सिया को हर रात एक ही सपना सताता है । डर और उलझन से घिरी, वो कॉलेज में नई शुरुआत करने की कोशिश करती है, लेकिन ये सपना उसका पीछा नहीं छोड़ता। फिर उसकी जिंदगी में आता है वो—गहरी आँखों और रहस्यमयी मुस्कान वाला लड़का, जिससे मिलते ही सिया का दिल... सिया को हर रात एक ही सपना सताता है । डर और उलझन से घिरी, वो कॉलेज में नई शुरुआत करने की कोशिश करती है, लेकिन ये सपना उसका पीछा नहीं छोड़ता। फिर उसकी जिंदगी में आता है वो—गहरी आँखों और रहस्यमयी मुस्कान वाला लड़का, जिससे मिलते ही सिया का दिल अजीब ढंग से धड़क उठता है, मानो सदियों पुराना कोई बंधन उसे खींच रहा हो। उनके बीच एक अनकहा आकर्षण है, एक अजनबी सी अपनापन, लेकिन जैसे ही वो करीब आते हैं, सपनों की गुत्थियां और भी उलझने लगती हैं। क्या ये सिर्फ एक सपना है या किसी अधूरे वादे की गूंज? या ये प्रेम कहानी फिर से अधूरी रह जाएगी, जैसे पिछले जन्म में... जानने के लिए पढ़िए " rebirth"
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सूनी सूनी सी सड़कों पर सन्नाटा पसरा था। हवा में अजीब सी ठंडक थी, जैसे मौत का साया मंडरा रहा हो। दूर कहीं उल्लू की भयावह आवाज़ गूंज उठी, मानो रात के अंधेरे में किसी अनहोनी की गवाही दे रही हो। चाँद बादलों के पीछे छिपा था, लेकिन उसकी मद्धम रोशनी में वो लड़की साफ दिखाई दे रही थी... लगभग पच्चीस साल की..खून से लथपथ... उसकी लंबी सी चोटी उसके कंधों से नीचे लहरा रही थी ,उसके शरीर पर एक अजीब सा कवच था, जिस पर कमल का चिन्ह चमक रहा था...अपनी हल्की सुनहरी रौशनी बिखेरता हुआ। उसकी सांसे तेज थीं... घबराहट और दर्द से भरी हुईं। भागते-भागते वो एक चट्टान के पीछे छुप गई, अपने दिल की धड़कनों को शांत करने की नाकाम कोशिश करते हुए। उसकी आँखों में आंसू थे... आँसू जो उसके प्रेमी की बेरहम मौत की यादों से भरे हुए थे। वो छल... वो कपट... वो चीखें... सब उसके कानों में गूंज रही थीं। लेकिन उसके पीछे वो थे... तीन साए... लंबे और डरावने। उनके हाथों में चमकीली तलवारें थीं, जिन पर खून की बूंदें टपक रही थीं। उनके चेहरे धुंधले थे, लेकिन उनकी आँखें... वो लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं, जैसे किसी शिकारी की नजरें शिकार पर गड़ी हों। उनके पास अजीब से अस्त्र थे, जिनसे रहस्यमयी आभा निकल रही थी। लड़की का शरीर थरथरा रहा था, पर उसने खुद को संभाला। वो जानती थी कि अब उसकी मौत निश्चित है। लेकिन उससे पहले... उसने अपने हाथों से कवच पर उकेरे हुए कमल के चिन्ह को छुआ। एक आखिरी बार उसने अपनी आँखें बंद कीं, और उसकी सोच उसी पर ठहर गई... अपने प्रेमी पर, जिसकी मुस्कान उसकी आँखों के सामने झलक उठी। लड़की ने चट्टान के पीछे से झांका, वो साए उसे ढूंढ रहे थे। उनकी आवाजें उसके कानों में पड़ रही थीं, "वो ज्यादा दूर नहीं जा सकती... कमल के चिन्ह वाली वो अंतिम वारिस है... उसे खत्म करना ही होगा!" लड़की की मुट्ठियाँ भींच गईं। "मैं भागूँगी नहीं... मैं उनका सामना करूँगी... अपने प्रेमी की मौत का बदला लूँगी," उसके मन में प्रतिज्ञा की ज्वाला भड़क उठी। पर तभी... उसके सिर में एक तेज दर्द उठा। उसकी आँखें धुंधली होने लगीं, और वो वहीं चट्टान के पीछे घुटनों के बल गिर पड़ी। चारों ओर धुंध सी छा गई, और उसे एक सपना दिखाई देने लगा... वो एक सुंदर बगिया में थी, जहाँ चारों ओर कमल खिले हुए थे। वहाँ एक झील थी, जिसमें स्वर्णिम जल लहरा रहा था। उसके पास ही उसका प्रेमी खड़ा था, मुस्कुराते हुए, उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए। "मैंने तुम्हें छोड़ा नहीं... मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।" पर अचानक सब बदल गया... आसमान में काले बादल छा गए, बिजली कड़कने लगी, और वो तीन साए झील के पानी से उभरने लगे। उसके प्रेमी की मुस्कान गायब हो गई, और उसकी आँखों में डर भर आया। वो चीखा, "भागो! वो तुम्हें मार डालेंगे!" लड़की चिल्लाई, "नहीं... मैं तुम्हें छोड़कर कही नहीं जाने वाली!" पर तभी साए उसके प्रेमी पर झपट पड़े और... उसके होठों से एक आखिरी शब्द फिसला, “मैं वादा करता हूँ... मैं लौटूंगा।” अचानक, एक तेज चीख वातावरण में गूंज उठी। तीनों साए उस पर टूट पड़े... तलवारें चमकीं... खून की बूंदें हवाओं में बिखर गईं... और सबकुछ अंधकार में डूब गया। *** सुबह की हल्की धूप कमरे में झांक रही थी। खिड़की के पर्दे हवा में लहरा रहे थे। दीवार पर लगे घड़ी के कांटे सुबह के 7 बजा रहे थे। "आह!" एक चीख के साथ सिया बिस्तर से उछल पड़ी। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था, सांसें तेज चल रही थीं। दिल की धड़कनें इतनी जोर से थीं कि उसे अपने सीने में दर्द महसूस हो रहा था। उसकी आँखें भय से चौड़ी हो गई थीं। उसने कमरे का मुआयना किया... वही जाना-पहचाना कमरा... वही दीवारें... वही पोस्टर... लेकिन वो सपना... वो इतना असली कैसे हो सकता है? उसने अपने माथे से पसीना पोंछा और गहरी सांस ली। लेकिन उसकी उंगलियां काँप रही थीं। "वो कौन थी... और वो तीन साए... क्यों उसका दिल इतना भारी हो रहा है?" वो उठी और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई। लम्बे बाल बिखरे हुए थे, चेहरे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। लेकिन उसकी नजरें अपने कंधे पर अटक गईं... एक लाल निशान... ठीक वैसे ही जैसे सपने में उस लड़की के कंधे पर चोट लगी थी। सिया का दिल जोर से धड़कने लगा। "ये सपना था... या कुछ और?" वो पीछे हट गई, घबराहट में उसके पैर कांपने लगे। उसकी नज़रें बार-बार उस निशान पर टिक रहीं थीं, जो धीरे-धीरे हल्का हो रहा था, जैसे कभी था ही नहीं। "क्या हो रहा है मेरे साथ?" सिया के होठों से बुदबुदाहट निकली। उसकी आँखों में डर और उलझन की परछाई थी। अचानक, उसे कानों में एक आवाज़ सुनाई दी... धीमी, हल्की, पर साफ़... "मैं लौटूंगा..." सिया ने झट से मुड़कर पीछे देखा, लेकिन कमरे में कोई नहीं था। हवा का एक झोंका खिड़की के पर्दों को हिलाता हुआ बाहर निकल गया, और कमरे में सन्नाटा पसर गया। सिया को हॉस्टल में आए हुए एक हफ्ता हो चुका था। कॉलेज का पहला साल... नई जगह, नए लोग, और एक नई शुरुआत। लेकिन उसकी जिंदगी में कुछ और भी नया था... वो अजीब सपने, जो उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। हर रात जब वो आँखें बंद करती, उसे वही दृश्य दिखाई देता... सूनी सूनी सड़के... खून से लथपथ वो लड़की... कमल के चिन्ह वाला कवच... और वो तीन डरावने साए। हर बार उस प्रेमी की मौत होती... और हर बार सिया पसीने में भीगी हुई चीख के साथ जागती। लेकिन सबसे अजीब बात ये थी कि उसके कंधे पर वो लाल निशान कभी-कभी हल्का सा उभर आता... और फिर गायब हो जाता। "क्या हो रहा है मेरे साथ?" सिया अक्सर खुद से ये सवाल करती। लेकिन जब भी उसने अपने माता-पिता से इस बारे में बात की, उन्होंने इसे बस एक बुरा सपना कहकर टाल दिया। "ज्यादा सोचोगी तो और सपने आएंगे," माँ ने फोन पर कहा था। "नया माहौल है, सब एडजस्ट हो जाएगा।" पापा ने तो हँसते हुए उसे समझाया था, "कॉलेज का प्रेशर है, पढ़ाई में मन लगाओ, सब ठीक हो जाएगा।" लेकिन सिया जानती थी कि ये सिर्फ सपने नहीं थे... कुछ और था, कुछ ऐसा जो उसके दिल और दिमाग को झकझोर रहा था। तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और सिया की रूममेट वामिका अपने गीले बालों को टॉवेल से पोंछती हुई बाहर निकली। सिया का यूं खोया हुआ देख कर उसने पूछा ," ओए जानेमन..आज फिर देखा क्या वो सपना!"" सिया ने एक झटके में वामिका की तरफ देखा। उसकी आँखें अब भी डरी हुई थीं, चेहरा पसीने से चमक रहा था। वामिका ने तौलिया अपने बालों पर घुमाते हुए मजाक में कहा, "अरे बाबा! फिर से वही डरावना सपना? क्या भूत-प्रेत की कहानियाँ पढ़ रही है रात में?" सिया ने गहरी सांस ली और बिस्तर पर बैठ गई। "वो...वो लड़की... फिर से वही सपना था... वो खून... वो साए... और... और ये निशान..." उसने काँपते हाथों से अपने कंधे की ओर इशारा किया, लेकिन अब वहाँ कुछ नहीं था। निशान पूरी तरह से गायब हो चुका था। वामिका ने हैरानी से देखा और हंसते हुए बोली, "सिया, अब तो तू पक्का पागल हो गई है। वहाँ कुछ भी नहीं है।" पर सिया के चेहरे की घबराहट देखकर उसकी हंसी धीमी पड़ गई। वो सिया के पास बैठ गई, "सच में, इस बार क्या देखा?" सिया ने कांपती आवाज़ में पूरी कहानी बताई—खून से लथपथ लड़की, कमल के चिन्ह वाला कवच, तीन डरावने साए, और वो प्रेमी... जिसकी मौत उसके सामने बार-बार हो रही थी। वामिका ने ध्यान से सुना, फिर गहरी सोच में पड़ गई। "कमल का चिन्ह? ये तो कुछ ज्यादा ही फिल्मी लग रहा है... लेकिन इतनी बार एक ही सपना? कुछ गड़बड़ तो है।" सिया ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "ये सिर्फ सपना नहीं है, वामिका। वो सब... वो सब बहुत असली लगता है। और ये निशान... ये हर बार उभरता है, फिर गायब हो जाता है।" वामिका की आँखों में चिंता झलक आई। "देख, एक काम करते हैं। आज कॉलेज के बाद पास वाले मंदिर चलते हैं। वहाँ के पंडित जी बहुत ज्ञानी हैं। शायद वो कुछ बता सकें।" सिया ने हामी भरी, "शायद... शायद वो समझ पाएं कि ये सब क्या हो रहा है।" तभी हॉस्टल के कॉरिडोर में घंटी बजने लगी। वामिका ने घड़ी की ओर देखा और चौंकी, "ओ तेरी! क्लास के लिए लेट हो जाएंगे। जल्दी से तैयार हो जा, वरना मिस सिंह फिर क्लास से बाहर निकाल देंगी!" सिया ने हल्की सी मुस्कान दी, "तू भी ना, हर वक्त क्लास की टेंशन में रहती है।" वामिका ने झट से कहा, "अरे! तेरे भूतिया सपनों से तो यही टेंशन बेहतर है। चल जा जल्दी से तू नहा ले !"
कॉलेज के गेट पर पहुंचने के बाद वामिका ने अपनी किताबें ठीक करते हुए कहा, "चल, मेरी क्लास दूसरी बिल्डिंग में है। तुझसे लंच में मिलती हूँ।" सिया ने सिर हिलाया, "ठीक है, तब तक मैं अपने नोट्स कम्प्लीट कर लूंगी।" दोनों ने एक-दूसरे को बाय कहा और अलग-अलग दिशाओं में बढ़ गईं। वामिका मस्ती में सीटी बजाते हुए दूसरी बिल्डिंग की ओर चल पड़ी, जबकि सिया ने अपनी किताबें कसकर पकड़ लीं और तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। कॉलेज की वो पुरानी बिल्डिंग... मोटी दीवारें, ऊँची-ऊँची खिड़कियाँ, और लकड़ी की चरमराती सीढ़ियाँ। हर कदम पर सीढ़ियों से हल्की चरचराहट की आवाज़ आ रही थी, जैसे कई सालों से किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया हो। सिया की नजरें ऊपर मंजिल की ओर थीं, और कदम तेजी से बढ़ रहे थे। अचानक...
जारी है..... कौन है सिया? आखिर क्या है सिया के सपने का राज? सभी सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए...."the rebirth of love "
कॉलेज के गेट पर पहुंचने के बाद वामिका ने अपनी किताबें ठीक करते हुए कहा, "चल, मेरी क्लास दूसरी बिल्डिंग में है। तुझसे लंच में मिलती हूँ।" सिया ने सिर हिलाया, "ठीक है, तब तक मैं अपने नोट्स कम्प्लीट कर लूंगी।" दोनों ने एक-दूसरे को बाय कहा और अलग-अलग दिशाओं में बढ़ गईं। वामिका मस्ती में सीटी बजाते हुए दूसरी बिल्डिंग की ओर चल पड़ी, जबकि सिया ने अपनी किताबें कसकर पकड़ लीं और तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। कॉलेज की वो पुरानी बिल्डिंग... मोटी दीवारें, ऊँची-ऊँची खिड़कियाँ, और लकड़ी की चरमराती सीढ़ियाँ। हर कदम पर सीढ़ियों से हल्की चरचराहट की आवाज़ आ रही थी, जैसे कई सालों से किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया हो। सिया की नजरें ऊपर मंजिल की ओर थीं, और कदम तेजी से बढ़ रहे थे। अचानक... हवा का एक ठंडा झोंका आया। और एक अजीब सी सिहरन सिया की रीढ़ में दौड़ गई। उसने रुककर पीछे मुड़कर देखा... खाली सीढ़ियाँ, सुनसान गलियारा... कोई नहीं था। सिया ने सिर झटकते हुए खुद से कहा, "पागल मत बन... ज्यादा डरावनी फिल्में देख ली हैं तूने।" वो फिर से सीढ़ियाँ चढ़ने लगी, लेकिन इस बार उसकी चाल थोड़ी धीमी हो गई थी। जैसे ही वो दूसरी मंजिल पर पहुँची, उसे किसी के फुसफुसाने की आवाज़ सुनाई दी... बहुत हल्की... मानो कोई नाम ले रहा हो... "सिया..." सिया का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने घबराकर चारों ओर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। बस पुरानी दीवारों पर धूल की मोटी परत और खिड़की से आती धूप की हल्की किरणें थीं। उसने तेजी से कदम बढ़ाए, "बस कुछ नहीं... ये सब बस उस अजीब सपने का असर है।" लेकिन जैसे ही वो तीसरी मंजिल की ओर मुड़ी। अचानक .... धड़ाम! अचानक किसी से इतनी जोरदार टक्कर हुई कि सिया का बैग नीचे गिर गया और किताबें बिखर गईं। "ओह! सॉरी... मैं जल्दी में थी," सिया ने झुककर किताबें समेटनी शुरू कीं। "जल्दी में थी या अंधी हो?" एक ठंडी, घमंडी आवाज़ उसके कानों में पड़ी। सिया ने सिर उठाकर देखा... एक लड़का खड़ा था... लंबा कद, चौड़ा कंधा और गहरी भूरी आँखें जो गुस्से में चमक रही थीं। सफेद टी-शर्ट और ब्लैक जैकेट में वो किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लग रहा था। सिया एक पल के लिए उस लड़के को देखती रह गई... मानो समय थम गया हो। उसके बाल हल्के भूरे रंग के थे, जो माथे पर बिखरे हुए थे, जैसे हवा ने बड़ी नजाकत से उन्हें छुआ हो। उसकी स्किन दूध जैसी साफ और मुलायम लग रही थी –जैसे बिना किसी दाग-धब्बे के, बिल्कुल परफेक्ट। उसके होंठ... पतले और हल्के गुलाबी, जैसे किसी चित्रकार ने बड़ी बारीकी से उन्हें गढ़ा हो। भूरी आँखें इतनी गहरी थीं कि सिया को एक पल के लिए लगा, जैसे वो उनमें डूब जाएगी। उन आँखों में एक अजीब सा खिंचाव था – गुस्से की चमक के साथ-साथ एक रहस्यमयी गहराई, जो किसी अनकही कहानी को छुपाए हुए थी। उसकी नाक नुकीली और बिल्कुल तराशी हुई थी, जो उसके चेहरे को और भी आकर्षक बना रही थी। उसके पूरे हावभाव में एक शाही ठसक थी... जैसे वो किसी अमीर घराने का हो। सिया की नजर उसके हाथों पर गई... लंबे और खूबसूरत उंगलियाँ, जैसे किसी पियानो वादक की हों। उसके पूरे व्यक्तित्व में एक अलग ही आकर्षण था – इतना परफेक्ट और कातिलाना कि किसी का भी दिल धड़क उठे। सिया को एहसास हुआ कि वो उसे घूर रही है, और झट से नजरें नीचे कर लीं। लड़के ने फिर कहा ,"अंधी हो क्या?" "क्या कहा तुमने?" सिया ने हैरानी और हल्के गुस्से से पूछा। "सुनाई नहीं देता? अंधी हो क्या? देखने की तमीज नहीं है?" लड़के ने बेरुखी से कहा, उसकी आवाज़ में अकड़ साफ थी। सिया ने गहरी सांस ली, गुस्से को काबू में करने की कोशिश करते हुए कहा, "देखो, मैंने माफी माँग ली है, गलती से टकरा गई। लेकिन तुम्हें इतना ऐटिट्यूड दिखाने की जरूरत नहीं है।" लड़के ने तिरछी नज़रों से उसे देखा, "ऐटिट्यूड? लगता है तुम्हें मेरी पहचान नहीं पता।" सिया ने भौंहे चढ़ाई, "ओह! तो तुम खुद को कोई बादशाह समझते हो? वैसे भी, मुझे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कौन हो।" लड़के के होठों पर हल्की सी मुस्कान आई, "शायद तुम पहली हो जिसने मुझे नहीं पहचाना... या शायद जानबूझकर अनजान बन रही हो।" सिया ने आँखें घुमाईं और हल्के गुस्से में कहा, "भाड़ में जाओ तुम... मुझे नहीं जानना कि कौन हो तुम।" किताबें समेटते हुए उसने एक तीखी नजर उस पर डाली और बिना एक शब्द और कहे, उसे अनदेखा करते हुए साइड से निकल गई। लड़का वहीं खड़ा रहा, हल्की मुस्कान उसके होठों पर खेल रही थी। उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी, जैसे उसे कोई दिलचस्प चीज़ मिल गई हो। जैसे ही सिया सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर चली गई, उसने धीरे से कहा, "इंट्रेस्टिंग... बहुत इंट्रेस्टिंग।" उसकी आवाज में एक ऐसा आकर्षण था, जो किसी को भी उसकी ओर खींच ले। वो अब भी वहीं खड़ा था, उसके मन में सिया की बातों की गूँज थी – वो निडरता, वो बेपरवाही, और सबसे बढ़कर... उसे ना पहचानने का अंदाज। वो लड़का अपनी जगह से हिला भी नहीं था, बस उस ओर देख रहा था, जहाँ से सिया गई थी। उसके चेहरे पर अब भी वहीं मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक नई जिज्ञासा भी थी। "कोई मुझे ना पहचाने... और इतनी अकड़ भी दिखाए?" उसने खुद से बड़बड़ाते हुए बालों में हाथ फेरा, "ये तो वाकई में इंट्रेस्टिंग होने वाला है।" सिया गुस्से में तमतमाते हुए क्लास में घुसी और जोर से अपनी किताबें डेस्क पर पटक दीं। पूरी क्लास एक पल के लिए चुप हो गई, सबकी नजरें उसकी ओर घूम गईं, लेकिन सिया ने किसी की परवाह नहीं की। वो अपनी सीट पर धम्म से बैठ गई और गुस्से में बड़बड़ाने लगी, "ओह! खुद को समझता क्या है वो? जैसे कॉलेज उसी के बाप का हो... ऐटिट्यूड देखो ज़रा!" उसके बगल में बैठी तन्वी ने हैरानी से पूछा, "अरे! क्या हुआ? इतनी आग-बबूला क्यों हो रही है?" सिया ने गुस्से से फूली सांसों को काबू में करते हुए कहा, "कुछ नहीं यार... बस एक एरोगेंट लड़के से टकरा गई। ना माफी, ना अदब... सीधा अंधी बोल दिया!" तन्वी ने हंसते हुए कहा, "ओह! लगता है किसी रईसजादे से पाला पड़ा है। वैसे... दिखता कैसा था?" सिया ने अनमने ढंग से जवाब दिया, "दिखता तो... ठीक-ठाक ही था।" फिर अचानक उसे उस लड़के की गहरी भूरी आँखें, हल्के भूरे बाल और वो कातिलाना मुस्कान याद आ गई। उसने झट से अपनी सोच को झटका और कहा, "लेकिन अकड़ में तो आसमान पर बैठा था!" क्लास खत्म होने के बाद, सिया अपने बैग को ठीक करती हुई बाहर निकली। उसके दिमाग में अब भी उस एरोगेंट लड़के की बातें गूंज रही थीं – "अंधी हो क्या?" वो गुस्से में बुदबुदाई, "अकड़ू कहीं का... खुद को समझता क्या है?" वामिका अभी तक नहीं आई थी, इसलिए सिया गेट के पास खड़ी होकर उसका इंतजार करने लगी। तभी उसकी नजर कॉलेज पार्किंग की ओर गई। कुछ लड़के अपनी बाइकों के पास खड़े थे, हंसते-बोलते और मस्ती करते हुए। सिया की नजर अनजाने में उसी लड़के पर पड़ी। वो अपने दोस्तों के बीच खड़ा था, फिर आराम से अपनी बाइक पर बैठ गया। उसकी सफेद टी-शर्ट और ब्लैक जैकेट में वो वाकई में काफी हैंडसम लग रहा था। हवा में उसके हल्के भूरे बाल उड़े, और उसने एक स्टाइलिश अंदाज में हेलमेट पहनने के लिए हाथ बढ़ाया। उसने अचानक सिर घुमाकर सिया की ओर देखा। उसकी गहरी भूरी आँखें मुस्कुराईं, जैसे उसे कुछ याद आ गया हो। फिर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ आँखों को हल्का सा तिरछा किया – बिल्कुल जैसे किसी फिल्म का हीरो फील देता है। सिया का चेहरा तमतमा गया, "ओह! ये तो ऐसे मुस्कुरा रहा है? मानो पूरी दुनिया का बादशाह हो!" उसने गुस्से में मुंह सिकोड़ लिया और नजरें घुमा लीं। लेकिन तभी बाइक की इंजन की गूंज सुनाई दी। सिया ने अनायास ही दोबारा उस तरफ देखा – वो लड़का बाइक स्टार्ट कर चुका था। उसने एक बार फिर सिया की ओर देखा और फिर होंठों पर हल्की सी शरारती मुस्कान लाकर बाइक को रेस देकर तेजी से निकल गया। सिया को उसकी मुस्कान पर और भी गुस्सा आ गया। वो बड़बड़ाई, "क्या समझता है खुद को? कोई राजकुमार है क्या? हद है अकड़ की!" उसी समय वामिका दौड़ती हुई आई, "सॉरी सिया, लेट हो गई... वो प्रोफेसर ने कुछ नोट्स देने में टाइम लगा दिया। चल, चलते हैं?" सिया ने खुद को शांत करते हुए कहा, "हाँ, चल... यहाँ और रुकूंगी तो पागल हो जाऊंगी।" वामिका ने हैरानी से पूछा, "अरे! इतना गुस्सा क्यों आ रहा है? किसी से झगड़ा हुआ क्या?" सिया ने मुंह बनाते हुए कहा, "हुआ नहीं... बस टक्कर हो गई थी किसी से।" वामिका ने झट से शरारत से पूछा, "टक्कर? किससे? लड़का था क्या?" सिया ने झट से कहा, "अरे! कोई खास नहीं... बस एक एरोगेंट लड़का था।" वामिका हंसते हुए बोली, "अरे वाह! इतना गुस्सा? कहीं... पसंद तो नहीं आ गया?" सिया ने हैरानी से कहा, "क्या! तू पागल हो गई है क्या? उसे पसंद करना तो दूर, उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती हू मैं!" वामिका ने अपनी अपनी आँखें घुमाई और बोली, "अरे-अरे! इतनी नफरत? कुछ तो गड़बड़ है... चल, पूरा किस्सा रास्ते में सुनाना।" सिया ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "ठीक है... सुनाती हूँ। लेकिन सच में, वो लड़का... उफ्फ! कितना अकड़ू था!" दोनों हंसते-बोलते कॉलेज से बाहर निकल गईं, लेकिन सिया के मन में अब भी उस लड़के की वो शरारती मुस्कान घूम रही थी। वो खुद को समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्यों उसका चेहरा बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था। उधर, लड़के ने बाइक को रेस देते हुए मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा, "अजीब लड़की थी... इंट्रेस्टिंग... बहुत इंट्रेस्टिंग।" आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिए...."the rebirth of love "
शाम को हॉस्टल में...
वामिका बिस्तर पर धड़ाम से गिर गई और लम्बी सांस लेते हुए बोली, "उफ्फ! आज तो पूरी तरह थक गई... वैसे सिया, कल संडे है। कल चलेंगे न मंदिर? आज वैसे भी लेट हो गए, और मंदिर यहाँ से दो घंटे की दूरी पर है... रात तो हो ही जाएगी। कल सुबह-सुबह चलते हैं न?"
सिया ने अपने बैग से किताबें निकालते हुए कहा, "हाँ, ठीक है... वैसे भी मेरा भी बहुत सारा वर्क पेंडिंग है। आज तो निपटाना ही पड़ेगा, नहीं तो कल मन नहीं लगेगा।"
वामिका ने करवट लेते हुए पूछा, "वैसे वो लड़का हैंडसम था क्या?"
सिया ने उसे घूरते हुए कहा, "थक गई है न तू ...आराम कर वैसे भी वो घमंडी था।"
वामिका के कान खड़े हो गए, "ओहो! यार घमंड तो हर किसी में होता है....तू ये बता वो दिखता कैसा था।"
वामिका के कान खड़े हो गए, "ओहो! यार, घमंड तो हर किसी में होता है... तू ये बता, वो दिखता कैसा था?"
सिया ने चिढ़ते हुए कहा, "अरे, मैंने कहा न, मुझे उसकी शक्ल भी याद नहीं! और तू क्यों इतनी एक्साइटेड हो रही है?"
वामिका ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि मेरी फ्रेंड के दिल की घंटियाँ बज रही हैं... चल बता न, लंबा था क्या?"
सिया ने खीझते हुए कहा, "उफ्फ! हाँ, लंबा था... और क्या?"
वामिका की आँखें चमक उठीं, "ओह! लंबा... और?"
सिया ने उसे घूरते हुए कहा, "और कुछ नहीं! हाँ, भूरी आँखें थीं... बहुत ही एरोगेंट एक्सप्रेशन के साथ!"
वामिका ने चुटकी लेते हुए कहा, "ओहो! भूरी आँखें? तेरी तो पसंदीदा! और... हेयरस्टाइल कैसा था?"
सिया ने अनमने ढंग से कहा, "बाल... हल्के भूरे, थोड़े बिखरे हुए, जैसे उसे परवाह ही न हो... लेकिन..."
वामिका ने शरारती लहजे में कहा, "लेकिन क्या?"
सिया ने झट से खुद को संभालते हुए कहा, "लेकिन कुछ नहीं! मैं क्यों तुझे डिटेल में बता रही हूँ? वैसे भी वो इतना घमंडी था कि मुझे गुस्सा आ रहा है!"
वामिका ने हँसते हुए कहा, "गुस्सा आ रहा है या... कुछ और फील हो रहा है?"
सिया ने तकिये से वामिका को मारते हुए कहा, "तू एक नंबर की पागल है! ऐसा कुछ भी नहीं है। और मुझे मत याद दिला वो लड़का... पूरा दिन खून खौला दिया उसने!"
वामिका ने हंसते हुए कहा, "अरे वाह! जो इंसान इतना गुस्सा दिला सकता है, वही सबसे ज्यादा असर डालता है दिल पर!"
सिया ने उसे घूरते हुए कहा, "अगर तूने और कुछ बोला न, तो मैं सच में तुझे कमरे से बाहर फेंक दूंगी!"
वामिका ने मज़ाक करते हुए कहा, "ठीक है-ठीक है, नहीं बोलती... लेकिन यार, कल मंदिर जाते समय अगर फिर से मिल गया तो?"
सिया ने गुस्से से कहा, "तू कुछ भी मत बोल! कल मिला न, तो देख लेना, मैं उससे बात तक नहीं करूंगी!"
वामिका ने मुँह दबाकर हंसते हुए कहा, "हाँ हाँ... देखेंगे!"
थोड़ी देर बाद, सिया अपनी किताबों में डूब गई, लेकिन उसका मन बार-बार भटक रहा था... उसे बार-बार उस लड़के की वो शरारती मुस्कान और उसकी गहरी आँखें याद आ रही थीं। वो झुंझलाते हुए खुद से बड़बड़ाई, "ओह! क्यों बार-बार उसकी शक्ल याद आ रही है मुझे?"
उधर, वामिका ने सोते-सोते कहा, "कल सुबह जल्दी उठना है... मंदिर के लिए। अलार्म लगा लेना वरना फिर लेट हो जाएंगे।"
सिया ने कहा, "हाँ, हाँ... लगा दिया।"
कमरे में हल्की सी खामोशी छा गई। वामिका गहरी नींद में थी, लेकिन सिया की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वो करवटें बदलती रही, और हर करवट में उसके दिमाग में वही भूरी आँखें घूम रही थीं।
वो सोचने लगी, "कौन था वो? इतना एरोगेंट क्यों था? और... उस मुस्कान में ऐसा क्या था जो... मुझे परेशान कर रहा है?"
वो खुद से नाराज़ हो गई, "उफ्फ! क्या हो गया है मुझे? पागल हो गई हूँ क्या?"
लेकिन चाहकर भी वो उसे भुला नहीं पा रही थी।
अगले दिन... सुबह का सूरज खिड़की से झाँक रहा था। अलार्म की कर्कश आवाज़ ने सिया की आँखें खोलीं। वामिका अब भी खर्राटे मार रही थी।
सिया ने उसे झकझोरते हुए कहा, "उठ! मंदिर नहीं जाना क्या?"
वामिका ने आँखें मलते हुए कहा, "अभी...? थोड़ा और सोने दे न..."
सिया ने झुंझलाते हुए कहा, "अरे! रात को खुद ही तो कह रही थी कि लेट हो जाएंगे... अब चल उठ! जल्दी तैयार हो!"
वामिका ने मुँह बिचकाते हुए बिस्तर छोड़ दिया, "ठीक है बाबा... उठ गई!"
थोड़ी ही देर में सिया और वामिका तैयार हो गई।
हॉस्टल के मेस में हमेशा की तरह आज भी वही लड़कियाँ मौजूद थीं, जो खुद को क्वीन समझती थीं। सिया का उनसे हर दिन झगड़ा हो जाता था, और आज भी वही हुआ।
जैसे ही सिया और वामिका नाश्ता लेने आगे बढ़ीं, एक लड़की, रिया, तंज कसते हुए बोली, "अरे देखो, हमारी मिस सिंपल गर्ल फिर आ गई... मंदिर जाने की इतनी जल्दी है, जैसे वहाँ कोई स्पेशल इंतज़ार कर रहा हो!"
सिया ने नाश्ते की प्लेट उठाई और बिना ध्यान दिए आगे बढ़ने लगी। वामिका से रहा नहीं गया, उसने पलटकर कहा, "कम से कम हम तुम्हारी तरह किसी के पीछे लटकते तो नहीं घूमते! और हाँ, मंदिर में स्पेशल कोई इंतज़ार कर भी रहा होगा, तो तुमसे ज्यादा अच्छा ही होगा!"
रिया ने घूरते हुए कहा, "हद है यार! इस बेशरम लड़की को देखो... जबान कितनी लंबी हो गई है!"
सिया ने गुस्से से कहा, "रिया, तुमसे बहस करने का मन नहीं है... रास्ते से हटो!"
रिया कुछ और कहने वाली थी, लेकिन तभी मेस के वॉर्डन आ गईं, और सब चुप हो गए। सिया ने वामिका का हाथ पकड़ा और दोनों जल्दी से बाहर निकल गईं।
रास्ते में...
ऑटो में बैठते ही वामिका ने सिया को छेड़ते हुए कहा, "वैसे सिया, वो लड़का मंदिर में मिले तो क्या करेगी? सच में बात नहीं करेगी?"
सिया ने आंखें घुमाकर कहा, "मिलेगा ही क्यों? और मिला भी तो, मैं देखूँगी भी नहीं उसकी तरफ!"
वामिका ने हँसते हुए कहा, "तू देखेगी नहीं, पर वो देखेगा... और तेरी कसम, अगर उसने तेरी तरफ देखा न, तो मैं वहीँ खड़ी होकर 'सिया को पसंद आ गया लड़का' वाला नारा लगा दूंगी!"
सिया ने चिढ़ते हुए कहा, "पागल है तू! चुप कर, वरना तुझे यहीं उतार दूंगी!"
दोनों हँसने लगीं।
मंदिर के बाहर...
मंदिर के दरवाजे पर पहुँचते ही सिया ने चैन की सांस ली, "आखिरकार पहुँच ही गए। कितनी भीड़ है यार आज!"
वामिका ने कहा, "चल जल्दी अंदर चलते हैं, आरती शुरू होने वाली है।"
दोनों अंदर गईं, और जैसे ही सिया ने भगवान के सामने हाथ जोड़कर आँखें बंद कीं...
...तभी पीछे से वही आवाज़ आई।
"ओह! तो तुम सच में इतनी धार्मिक हो? मुझे लगा था सिर्फ बहाना बना रही हो!"
सिया ने आँखें खोलीं और झटके से पलटी।
वो लड़का सामने खड़ा था — वही भूरे बिखरे बाल, वही भूरी आँखें, और वही शरारती मुस्कान!
सिया का दिल एक पल के लिए जैसे रुक सा गया। वो चौंक गई, "तुम...? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
लड़का हल्के से मुस्कुराया, "शायद भगवान से मिलने आया हूँ... और वैसे भी, तुम्हें दोबारा देखने का मौका छोड़ देता क्या?"
सिया ने गुस्से से कहा, "तुम्हारा पीछा करने के अलावा और कोई काम नहीं है क्या?"
लड़के ने हँसते हुए कहा, "पीछा? हाहाहा... किस्मत से मिलना पीछा कहलाता है क्या?"
वामिका ने पीछे से फुसफुसाते हुए कहा, "सिया... ये तो मामला सेट है!"
सिया ने उसे घूरते हुए चुप रहने का इशारा किया।
लड़के ने सिया की तरफ देखकर कहा, "वैसे, नाम तो बता दो... ताकि अगली बार संयोग से मिलने पर अजनबी न लगे!"
सिया ने गुस्से में कहा, "नाम जानकर क्या करोगे?"
लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा, "शायद नाम से बुलाकर तुम्हारा गुस्सा कम कर दूं..."
सिया ने पलटकर कहा, "नाम जानने की जरूरत नहीं है... और वैसे भी, तुम जैसे घमंडी लड़कों से बात करने का कोई शौक नहीं है मुझे!"
लड़का ठहाका लगाकर हँस पड़ा, "तुम जितना मुझसे बचने की कोशिश करोगी, मैं उतना ही सामने आऊँगा। देखते हैं, भगवान किसकी सुनेगा!"
सिया ने गुस्से में आँखें घुमाईं और आगे बढ़ गई। वामिका पीछे-पीछे हँसते हुए चलने लगी।
जाते-जाते वामिका ने फुसफुसाते हुए कहा, "सिया, मुझे तो यही लड़का तेरे लिए सही लग रहा है... घमंडी नहीं, फ्लर्टी है। और वैसे भी, तेरे गुस्से का जवाब देने वाला चाहिए न?"
सिया ने झुंझलाकर कहा, "तू चुप करेगी या नहीं?"
वामिका ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं!"
सिया ने खीझते हुए सिर पकड़ लिया, "हे भगवान... अब तू ही बचा ले!"
...पर कहीं न कहीं, सिया के दिल के कोने में हलचल सी हो रही थी — उस मुस्कान की हलचल, जो पीछा नहीं छोड़ रही थी...
सिया ने मंदिर में भगवान के सामने सिर झुकाकर आंखें बंद कीं और मन ही मन बोली, "भगवान, इस अजीब लड़के से पीछा छुड़वा दो... पता नहीं क्यों बार-बार सामने आ जाता है।"
आरती खत्म होने के बाद वो प्रसाद लेने आगे बढ़ी। पंडित जी ने उसके हाथों में मिठाई रखी। सिया ने प्रसाद लेकर मुड़ते ही देखा — वो लड़का अभी भी वहीं खड़ा था, उसी शरारती मुस्कान के साथ।
सिया ने अनदेखा करने की कोशिश की और वामिका की ओर बढ़ी।
लेकिन तभी वामिका ने शरारत से लड़के को देखकर कहा, "वैसे, सिया का गुस्सा थोड़ा ज्यादा है... पर दिल की बुरी नहीं है!"
सिया ने झट से वामिका को घूरा, "तू चुप रहेगी या नहीं?"
लड़के की मुस्कान और गहरी हो गई। उसने सिर झुकाकर मजाकिया अंदाज में कहा, "ओह! तो नाम सिया है... अच्छा नाम है। वैसे, मैं अक्षांश।"
सिया ने बिना जवाब दिए वामिका का हाथ खींचा और गुस्से से बोली, "चल यहां से, अब तुझसे एक पल भी बात नहीं करनी!"
दोनों मंदिर के बाहर आईं। सिया गुस्से में आगे बढ़ गई, और वामिका उसके पीछे-पीछे हँसते हुए चल रही थी।
वामिका ने कहा, "अरे यार, वो तो अच्छा लड़का लग रहा था... नाम भी कितना अच्छा है — अक्षांश! और तेरी भूरी आँखों वाली लिस्ट में भी फिट बैठता है!"
सिया ने पलटकर कहा, "वामिका, अगर तूने एक शब्द और कहा ना, तो सच में तुझे छोड़कर अकेली चली जाऊंगी!"
वामिका ने मुँह बिचकाया, "ठीक है बाबा, चुप हूँ... पर दिल पर जो असर हो गया है, वो मैं देख रही हूँ!"
सिया ने अनदेखा कर दिया।
रास्ते में...
ऑटो पकड़कर दोनों हॉस्टल लौट रही थीं। सिया खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन मन कहीं और भटक रहा था।
उसे बार-बार अक्षांश का चेहरा, उसकी शरारती मुस्कान और वो गहरी भूरी आँखें याद आ रही थीं।
वो खुद से बड़बड़ाई, "क्यों सोच रही हूँ मैं उसके बारे में? उसने ऐसा क्या खास किया है?"
वामिका ने उसे खोया-खोया देख लिया और फिर से छेड़ते हुए कहा, "कहाँ खो गई मेरी सिया? कहीं अक्षांश के ख्यालों में तो नहीं?"
सिया ने झट से कहा, "नहीं! और तू पागल है!"
वामिका ने हँसते हुए कहा, "हाँ हाँ... मैं पागल ही सही, पर तेरी आंखें सब बता रही हैं!"
सिया ने चिढ़कर कहा, "तू बस चुप कर, वरना तुझे यहीं उतार दूंगी!"
हॉस्टल लौटने के बाद...
कमरे में पहुँचकर दोनों ने बैग पटका और बिस्तर पर गिर गईं।
वामिका बोली, "यार, आज तो बड़ा मजा आया... मंदिर जाने का इतना फायदा हुआ कि तेरा क्रश भी मिल गया!"
सिया ने तकिए से उसे मारा, "मेरा कोई क्रश-व्रश नहीं है! और प्लीज़, अब उसकी बात मत कर। वो चला गया होगा अपनी दुनिया में!"
वामिका ने मुँह बनाते हुए कहा, "ठीक है बाबा, नहीं करूंगी।"
सिया ने खुद को संभालते हुए कहा, "चल, नहाकर आते हैं। भूख लगी है।"
रात को...
सिया अपनी किताबों के साथ बैठी थी, लेकिन एक भी लाइन समझ नहीं आ रही थी। दिमाग में बस अक्षांश का चेहरा घूम रहा था। वो खुद को समझाने लगी, "सिया, पागल मत बन... बस एक अजनबी था, जिसे अब कभी नहीं देखेगी।"
Continue....
अगली सुबह...
सिया अभी गहरी नींद में थी, जब वामिका ने उसका कंबल खींचते हुए कहा, "उठ जा सिया, लेट हो जाएगा! क्लास नहीं जाना क्या?"
सिया ने करवट बदलते हुए कहा, "पाँच मिनट और... प्लीज!"
वामिका ने हँसते हुए कहा, "पाँच मिनट नहीं, सीधे आधा घंटा हो चुका है। अब उठ या फिर मैं तेरे फोन का अलार्म फुल वॉल्यूम पर बजा दूंगी — 'चिटियाँ कलाइयाँ' वाला!"
सिया झट से उठकर बैठ गई, "पागल है क्या! पूरा हॉस्टल जाग जाएगा।"
वामिका मुस्कुराई, "तू जाग गई, बस मेरा काम हो गया!"
सिया ने बेमन से उठते हुए कहा, "आज क्लास जाने का मन नहीं कर रहा यार... कल से ही अजीब लग रहा है।"
वामिका ने छेड़ते हुए कहा, "अजीब नहीं... अक्षांश जैसा लग रहा है, है ना?"
सिया ने तकिया उठाकर उसकी तरफ फेंका, "तू बंद करेगी ये बकवास या नहीं?"
वामिका ने हँसते हुए कहा, "ठीक है बाबा, चुप हूँ! पर सच में, मुझे लगता है नसीब ने तुम्हारा और उसका कनेक्शन बना ही दिया है। कहीं आज फिर मिल गया तो?"
सिया ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "अगर मिल भी गया तो मुझे क्या फर्क पड़ता है? मैं उससे बात नहीं करने वाली!"
कॉलेज के रास्ते में...
दोनों लड़कियाँ हँसते-गुनगुनाते चल रही थीं, जब पीछे से एक बाइक तेजी से आकर रुकी।
"ओए! सिया!"
सिया के कदम वहीं थम गए। वो आवाज़... वो टोन...
धीरे-धीरे उसने मुड़कर देखा — अक्षांश बाइक पर बैठा, उसी शरारती मुस्कान के साथ उसे देख रहा था।
वामिका ने धीरे से सिया के कान में फुसफुसाया, "लो जी... भगवान ने अर्जी सुन ली!"
सिया ने गुस्से में वामिका को घूरा और फिर अक्षांश की तरफ देखा, "तुम फिर से आ गए?"
अक्षांश हँसते हुए बोला, "तुम फिर से मिल गई... तो मैंने सोचा हेलो कह दूं।"
सिया ने रूखेपन से कहा, "हेलो हो गया, अब जा सकते हो!"
अक्षांश ने नाटकीय अंदाज में कहा, "अरे, इतनी बेरुखी? मैं तो बस लिफ्ट ऑफर कर रहा था... कॉलेज तक छोड़ देता हूँ। वैसे भी, तुम्हारा क्लास टाइम होने वाला है।"
वामिका ने तुरंत कहा, "हां सिया, टाइम तो सच में कम है। चल न, पीछे बैठ जा!"
सिया ने उसे घूरते हुए कहा, "तू किसकी साइड में है, मेरी या इसकी?"
वामिका ने शरारत से कहा, "जहां फ्री राइड मिले, उधर ही!"
अक्षांश ने मुस्कुराकर कहा, "तो चलिए मैडम, आपकी खास दोस्त भी यही चाहती है... बैठिए!"
सिया ने गुस्से से कहा, "नहीं चाहिए कोई फ्री राइड। हम खुद जा सकते हैं।"
अक्षांश ने मुस्कान दबाकर कहा, "ठीक है... लेकिन फिर जब लेट होगी और प्रोफेसर डांटेंगे, तब मत कहना कि मैंने बचाने की कोशिश नहीं की थी!"
सिया ने कुछ पल सोचा, फिर झुंझलाकर कहा, "ठीक है... चलो!"
अक्षांश की मुस्कान और चौड़ी हो गई। सिया ने बेमन से बाइक के पीछे बैठते हुए कहा, "बस कॉलेज तक... कोई बहाना मत बनाना रास्ते में!"
अक्षांश ने हँसते हुए कहा, "बिल्कुल नहीं... मैं तो शरीफ लड़का हूँ!"
वामिका ने चुटकी लेते हुए कहा, "शरीफ लड़के इतनी स्माइल नहीं करते!"
अक्षांश ने पलटकर कहा, "स्माइल में तो मैं एक्सपर्ट हूँ... बाकी का तुम देख लेना!"
सिया ने बड़बड़ाते हुए कहा, "पता नहीं किस मुसीबत में फंस गई हूँ!"
अक्षांश ने मुस्कुराकर कहा, "फंसी नहीं... किस्मत ने मिलाया है।"
सिया ने पलटकर कहा, "किस्मत का बहुत भरोसा है न तुम्हें? देखना, यही किस्मत तुम्हें पछताएगी!"
अक्षांश ने हल्की सी हँसी के साथ कहा, "चैलेंज एक्सेप्टेड, सिया!"
कॉलेज कैंपस के गेट पर...
बाइक धीमी हुई, और अक्षांश ने स्टाइल से ब्रेक मारी। सिया झट से पीछे से उतरी, जैसे बाइक से नहीं, किसी मुसीबत से उतरी हो।
"थैंक यू!" सिया ने नज़रें फेरते हुए बोला, आवाज़ में रूखापन साफ था।
अक्षांश ने मुस्कुराते हुए कहा, "इतना सख्त थैंक यू तो पहली बार सुना है। वैसे... देख लेना, एक दिन तुम खुद कहोगी — थैंक यू अक्षांश, तुम न होते तो मेरा क्या होता!"
सिया ने घूरकर कहा, "वो दिन कभी नहीं आएगा!"
"देखते हैं..." अक्षांश ने हल्के से सिर झटकाया ।
पीछे खड़ी वामिका ने सिया की तरफ देखा बोली, "तेरी और इसकी तो पूरी 'रब ने बना दी जोड़ी' वाली फीलिंग आ रही है यार!"
सिया ने गुस्से से वामिका को घूरा, "तू चुप रहेगी या और भी बकवास करेगी?"
वामिका हँसते हुए बोली, "अरे यार, सच बोल रही हूँ! तेरी और अक्षांश की तो पूरी लव-हेट स्टोरी वाइब आ रही है।"
सिया ने खीझकर कहा, "लव-हेट नहीं, सिर्फ हेट स्टोरी है ये।"
तभी वामिका ने सवालिया अंदाज में पूछा, "वैसे अक्षांश, तुम पहले कभी दिखे ही नहीं हमें?"
अक्षांश, जो अभी तक जाने के लिए मुड़ चुका था, पलटा और शरारती मुस्कान के साथ बोला, "क्योंकि मैं सीनियर हूँ और बहुत कम आता हूँ… लेकिन अब रोज़ आने की वजह मिल गई है।"
सिया का चेहरा लाल हो गया — गुस्से से या शर्म से, ये तो वो खुद भी नहीं समझ पाई।
अक्षांश ने हल्के से सिर झुकाया, जैसे कोई राजकुमार सलाम कर रहा हो, और मुस्कुराकर अपनी क्लास की ओर बढ़ गया।
वामिका ने सिया के कंधे पर हल्का सा धक्का मारते हुए कहा, "वजह मिल गई है... समझी न? मेरी फ्रेंड अब स्पेशल हो गई है किसी के लिए!"
सिया ने झल्लाकर कहा, "चुप कर, वामिका! वरना सच में मार खाएगी आज।"
क्लासरूम में...
वामिका दूसरी बिल्डिंग में चली गई अपनी क्लासेज के लिए और दूसरी तरफ सिया अपनी क्लास में पहुँची।
प्रोफेसर पहले ही आ चुके थे, और सिया ने राहत की सांस ली कि किसी तरह लेट नहीं हुई।
सिया ने अपनी सीट पकड़ी और किताब खोलने का नाटक करने लगी। प्रोफेसर कुछ समझा रहे थे, लेकिन उसका ध्यान बार-बार दरवाजे की तरफ जा रहा था — "कहीं अक्षांश फिर से न टपक पड़े!"
पर वो क्लास में आ ही नहीं सकता था... वो तो सीनियर था!
तभी खिड़की के पास से हल्की सी आवाज़ आई, "सिया..."
सिया का दिल धक से रह गया। उसने धीरे से सिर घुमाया — खिड़की के बाहर, तीसरी मंजिल पर होते हुए भी, अक्षांश खड़ा था!
वो हाथ हिलाकर शरारती अंदाज में मुस्कुराया और इशारे से बोला, "बंक मारोगी?"
सिया ने आंखें तरेरते हुए धीरे से फुसफुसाया, "पागल हो क्या? प्रोफेसर देख लेंगे!"
अक्षांश ने मुस्कुराकर एक छोटा सा कागज लहराया, जिस पर लिखा था — "रूफटॉप कैंटीन... ब्रेक में मिलना वरना सबको बता दूंगा कि आज सुबह बाइक पे कौन बैठी थी!"
सिया का मुंह खुला का खुला रह गया — "ये ब्लैकमेल कर रहा है क्या?"
प्रोफेसर ने अचानक पूछा, "सिया! ध्यान किधर है तुम्हारा?"
सिया झट से संभली, "जी सर, नोट्स लिख रही थी।"
खिड़की से अक्षांश ने आंख मारी और वहां से भाग गया। सिया का मन तो कर रहा था कि भागकर उसकी शरारत का जवाब दे, लेकिन अभी क्लास से बाहर जाना मतलब बवाल मचाना था।
---
लंच ब्रेक में...
सिया सीधा कैंटीन गई, जहां वामिका पहले ही बैठी थी।
"कहां थी तू?" वामिका ने पूछा।
सिया ने कुर्सी खींचकर बैठते हुए गुस्से से कहा, "जहां भी थी, अब लग रहा है जेल में होनी चाहिए थी!"
"अब क्या हुआ?"
"अक्षांश!"
"ओह हो, फिर से वही नाम! क्या कर दिया इस बार?"
सिया ने टेबल पर हाथ पटकते हुए कहा, "खिड़की से आकर ब्लैकमेल कर गया मुझे... कह रहा था, ब्रेक में रूफटॉप कैंटीन में नहीं आई तो सबको बता देगा कि मैं उसकी बाइक पर बैठी थी!"
वामिका ने हँसते हुए कहा, "हाय रे, ये तो पूरी बॉलीवुड स्टाइल ब्लैकमेलिंग हो गई!"
सिया ने खीझकर कहा, "तुझे हंसी आ रही है?"
"तो और क्या करूँ यार? ये लड़का तो रोमांटिक विलेन बन गया है तेरे लिए!"
"विलेन ही है वो... और मैं उसको हीरो बनने नहीं दूंगी!"
तभी पीछे से आवाज़ आई, "मैं तो हीरो ही हूँ, सिया… तुम्हारे लिए नहीं, पर तुम्हारे साथ जरूर बन सकता हूँ!"
सिया ने सिर पकड़ लिया — "अक्षांश!!!"
Continue....
कैंटीन में...
सिया ने गुस्से से पीछे मुड़कर देखा, "हर वक्त हर जगह पहुंच जाते हो तुम... कोई और काम नहीं है क्या?"
अक्षांश ने मजाकिया अंदाज में कहा, "काम तो बहुत हैं, लेकिन सबसे जरूरी काम तुम्हें परेशान करना है।"
सिया भड़क गई, "परेशान करने के अलावा भी कुछ आता है तुम्हें?"
अक्षांश ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें देखना... और तुम्हारी बातें सुनना।"
वामिका, जो अब तक चुपचाप बैठी थी, ठहाका लगाकर हंस पड़ी, "हाय रे, सिया... ये तो पूरा आशिक बन गया है!"
सिया ने वामिका को घूरते हुए कहा, "तू चुप कर! इसकी साइड मत लेना!"
अक्षांश ने आंख मारते हुए कहा, "राइट वामिका? देखो, तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड मुझसे कितना प्यार करती है।"
सिया ने गुस्से से कहा, "प्यार और तुमसे? सपना देख रहे हो क्या?"
अक्षांश ने हंसते हुए कहा, "सपना नहीं सिया, हकीकत देख रहा हूँ... और वैसे भी, सीनियर होने का फायदा तो उठाना चाहिए ना?"
सिया चिढ़कर बोली, "तुम सीनियर हो तो क्या मेरे सर पर बैठोगे?"
अक्षांश ने शरारत से कहा, "अगर इजाजत दो तो... बैठ सकता हूँ!"
वामिका फिर से हंस पड़ी, "सिया, यार ये लड़का तो बवाल है! तुझे संभालना मुश्किल हो जाएगा!"
सिया ने गुस्से में कहा, "मुझे किसी को संभालने का शौक नहीं है... और तुम —" वो अक्षांश की तरफ इशारा करते हुए बोली, "तुम अपनी सीनियरिटी अपने पास रखो। मैं किसी से नहीं डरती!"
अक्षांश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "डरने की जरूरत भी नहीं है सिया... मैं तो दोस्त बनना चाहता हूँ।"
सिया ने रूखेपन से कहा, "मुझे दोस्ती नहीं करनी तुमसे।"
अक्षांश ने सिर झटकते हुए कहा, "तुम्हारी नफरत भी मंजूर है... कम से कम रोज़ मुलाकात तो होगी!"
सिया गुस्से से उठ खड़ी हुई, "तुमसे जितनी दूर रहूं, उतना अच्छा है!"
वामिका ने धीरे से कहा, "अरे यार, इतनी सख्ती क्यों? दोस्ती ही तो कर रहा है।"
अक्षांश ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं कह रहा हूँ न, एक दिन ये खुद आकर बोलेगी — ‘थैंक यू, अक्षांश!’"
सिया ने पलटकर कहा, "वो दिन कभी नहीं आएगा!"
अक्षांश ने हंसते हुए कहा, "देखते हैं, सिया... वक्त किसका साथ देता है!"
रात को…
सिया अपने प्रोजेक्ट का काम खत्म करके थकी हुई सी हॉस्टल की बालकनी में आकर बैठ गई। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी। उसने फोन निकाला और घर पर मम्मी-पापा को कॉल किया।
"हां मम्मी, सब ठीक है... बस थोड़ा थक गई हूं।"
मम्मी की आवाज आई, "तू अपना ख्याल रख सिया, खाना ठीक से खाया?"
"हां मम्मी, खा लिया। आप चिंता मत करो।"
फोन काटने के बाद सिया चुपचाप आसमान की तरफ देखने लगी। चांद आज कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रहा था, जैसे चुपचाप उसकी परेशानियों को सुन रहा हो।
हवा थोड़ी और ठंडी हो गई। सिया ने अपनी बाहें मोड़कर खुद को गर्म रखने की कोशिश की। उसे पता ही नहीं चला कब उसकी आंख लग गई...
अचानक, उसे अजीब सा एहसास हुआ।
वो अधजगी सी थी, लेकिन उसे महसूस हुआ जैसे कोई साया उसके पीछे से गुजरा हो। हल्की सरसराहट सी आवाज आई, जैसे कोई धीमे कदमों से चल रहा हो।
उसने धीरे से आंखें खोलीं। बालकनी के किनारे, चांदनी के धुंधले उजाले में उसे सचमुच एक परछाई सी दिखी — लंबी, काली सी आकृति... खड़ी हुई... बस उसे ही देख रही थी।
सिया का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने पलकें झपकाईं — परछाई अभी भी वहीं थी!
"क... कौन है वहां?" सिया की आवाज हल्की सी कांप गई।
कोई जवाब नहीं आया।
साया धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा। सिया ने अपनी जगह से उठने की कोशिश की, लेकिन ऐसा लगा जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं बची।
अचानक, वो साया और करीब आ गया... और फिर एक तेज़ झटका महसूस हुआ —
"सिया!!"
सिया हड़बड़ाकर उठी। सामने वामिका खड़ी थी, उसके कंधे झकझोरते हुए।
"सिया, क्या कर रही है यार? तू यहां सो गई थी? तुझे ठंड नहीं लग रही?"
सिया घबराई हुई थी। उसने इधर-उधर देखा — बालकनी में कोई नहीं था। साया गायब हो चुका था।
सिया ने सांस लेते हुए कहा, "मैंने... मैंने किसी को देखा था, वामिका। यहां कोई था!"
वामिका ने उसे घूरते हुए कहा, "तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? कोई नहीं है यहां। तू ओवरटाइम करके ज्यादा सोचने लगी है। चल अंदर, सो जा।"
सिया अभी भी सांसें थामे बैठी थी। उसने धीरे से कहा, "नहीं वामिका... मैंने सच में देखा था। वो... वो बस खड़ा मुझे देख रहा था।"
वामिका ने सिर झटकते हुए कहा, "तेरी हॉरर मूवीज की आदतें न, एक दिन तुझे पागल बना देंगी। चल, बहुत हो गया। अंदर चल सोने।"
सिया ने एक आखिरी बार बालकनी के अंधेरे को देखा। सब शांत था — लेकिन उस साए का एहसास अब भी उसके मन से नहीं जा रहा था।
वो धीरे से बुदबुदाई, "अगर ये सपना था, तो इतना असली क्यों लगा?"
रात गहरी हो चुकी थी, पर सिया की आँखों से नींद कोसों दूर थी। बालकनी में हुई वो अजीब सी घटना उसके मन में अब तक घूम रही थी। हर बार आँखें बंद करने पर वही साया उसकी आँखों के सामने आ जाता। वो खुद को समझा रही थी कि ये सब सिर्फ उसका वहम था... लेकिन दिल मानने को तैयार नहीं था।
वो उठकर कमरे में इधर-उधर टहलने लगी। वामिका तो कब की गहरी नींद में डूब चुकी थी। सिया ने खिड़की के बाहर झाँका — पूरा हॉस्टल अंधेरे में डूबा हुआ था। दूर, कैंपस की स्ट्रीट लाइट्स अपनी मद्धम रोशनी से अजीब सा डरावना माहौल बना रही थीं।
वहीं दूसरी तरफ...
अक्षांश अपने हॉस्टल रूम की खिड़की पर खड़ा था। उसकी शर्ट कहीं पीछे पड़ी थी, उसने बस एक काली पैंट पहन रखी थी। उसके घुँघराले बाल बिखरे हुए थे, हल्की हवा उन्हें और उड़ा रही थी। उसकी आँखें कहीं दूर शून्य में टिकी थीं, जैसे वो किसी गहरे ख्याल में डूबा हो।
उसके हाथ में फोन था, स्क्रीन पर एक पुरानी तस्वीर खुली थी — एक खुशहाल परिवार की तस्वीर। एक छोटा सा बच्चा, उसके मम्मी-पापा के बीच मुस्कुराते हुए। वो बच्चा... अक्षांश ही था।
आँखों में नमी उतर आई। उसने धीमे से फुसफुसाया, "मम्मी... पापा... आई मिस यू... कहाँ हो आप लोग?"
उसे अपना बचपन याद आने लगा — वो 13 साल का था, जब वो हादसा हुआ था।
उस दिन तेज़ आंधी आई थी। आसमान काले बादलों से भर चुका था। हवा इतनी तेज़ थी कि पेड़ तक उखड़ने लगे थे। उनके शहर में अचानक एक बवंडर आ गया था।
अक्षांश का घर उस तूफान की चपेट में आ गया। वो अपनी दादी के साथ मंदिर भागकर किसी तरह बच गया था, लेकिन उसके मम्मी-पापा... वो कभी वापस नहीं आए। दादी ने कहा था, "उन्हें बवंडर अपने साथ ले गया बेटा… भगवान ने उन्हें बुला लिया।"
पर अक्षांश कभी यकीन नहीं कर पाया। उसे हमेशा लगता था कि उसके माता-पिता ज़िंदा हैं, कहीं न कहीं...
उसने फोन की स्क्रीन बंद कर दी और अपनी आँखों से आंसू पोंछे। फिर उसने धीरे से खुद से कहा, "मैं तुम्हें ढूंढ लूंगा... चाहे जो भी हो।"
वो खिड़की से बाहर देख रहा था, और तभी...
उसकी नजर सामने हॉस्टल के दूसरे ब्लॉक की बालकनी पर पड़ी।
सिया खड़ी थी। चांदनी में उसका चेहरा साफ दिख रहा था। वो बेहद थकी हुई और डरी हुई सी लग रही थी। अक्षांश ने उसे गौर से देखा।
उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई, "ये लड़की हमेशा इतनी गुस्से में क्यों रहती है? पर... ये आज कुछ अलग लग रही है... इतनी चुपचाप? कहीं कुछ हुआ तो नहीं?"
सिया बालकनी से नीचे झाँक रही थी, अचानक उसे फिर से वही एहसास हुआ — जैसे कोई साया नीचे से गुज़रा हो। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
उसने घबराकर चारों ओर देखा... पर इस बार कोई नहीं था।
पर अक्षांश की नजरों ने सब देख लिया था।
अक्षांश ने खिड़की से हटकर अपनी अलमारी से एक जैकेट निकाली और पहन ली। उसके मन में अजीब सी बेचैनी थी। वो जानता नहीं था क्यों, लेकिन वो सिया के पास जाना चाहता था — अभी, इसी वक्त।
इधर सिया अपनी धड़कनों से लड़ते-लड़ते कमरे में वापस आई। वो सोच रही थी, "क्या सच में कोई साया था? या ये सिर्फ मेरा डर है? कहीं सच में... हॉस्टल में कुछ गलत तो नहीं हो रहा?"
वो बिस्तर पर लेट गई, पर आँखें बंद करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वो एक ही ख्याल में उलझी रही — "अगर वो साया सिर्फ वहम था... तो मुझे अब भी ऐसा क्यों लग रहा है कि कोई मुझे देख रहा है?"
...और वो सही थी।
क्योंकि हॉस्टल के नीचे, अंधेरे में... एक जोड़ी आँखें सचमुच उसे घूर रही थीं।
वो आँखें नफरत से भरी हुई थीं।
अक्षांश ने खिड़की से नजर हटाई और खुद से बुदबुदाया, "नहीं अक्षांश... अभी जाना सही नहीं होगा। सिया पहले ही मुझसे चिढ़ी हुई है। अगर अभी गया तो वो और ज्यादा दूर हो जाएगी।"
उसने गहरी सांस ली, लेकिन मन में अजीब सी बेचैनी अब भी बाकी थी। उसका दिल बार-बार कह रहा था कि सिया ठीक नहीं है। पर दिमाग समझा रहा था — कल सुबह ही सही रहेगा...
अगली सुबह...
हॉस्टल के गलियारे में हलचल शुरू हो चुकी थी। लड़कियों का शोर, लड़कों की आवाजें, कैंटीन से आती चाय और पराठों की खुशबू... सबकुछ रोज जैसा था।
सिया आंखों के नीचे हल्के काले घेरे लिए हुए निकली। वो रातभर सो नहीं पाई थी। उसके चेहरे से थकान साफ झलक रही थी, लेकिन वो खुद को संभालते हुए क्लास के लिए तैयार हो गई थी।
वामिका ने उसे देखते ही कहा, "हाय राम सिया, तू तो भूत लग रही है! रातभर कौन सा भूतिया प्रोजेक्ट कर रही थी?"
सिया ने थके हुए अंदाज में कहा, "कुछ नहीं यार... बस नींद नहीं आई।"
अभी वो दोनों बात कर ही रही थीं कि सामने से अक्षांश आ गया। वो हमेशा की तरह बेफिक्र, हल्की मुस्कान के साथ चला आ रहा था। पर आज उसकी आंखों में कुछ अलग था — एक हल्की सी चिंता छुपी हुई थी, जिसे वो छिपाने की कोशिश कर रहा था।
"गुड मॉर्निंग, भूतनी!" अक्षांश ने सिया को छेड़ते हुए कहा।
सिया ने उसे घूरा, "तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मुझसे? हर जगह टपक पड़ते हो!"
अक्षांश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "अरे, प्रॉब्लम नहीं है... पर तुम इतनी बुरी हालत में दिख रही हो कि मुझे खुद पर शक हो रहा है। कहीं रातभर मुझे मिस तो नहीं कर रही थी?"
वामिका हंसने लगी, "हाय, सिया... देख लो, बंदा तो पूरी तरह से लाइन मारने पर उतारू है!"
सिया ने गुस्से से कहा, "तू चुप कर वामिका!" फिर अक्षांश की तरफ मुड़ी, "तुमसे बात करना ही बेकार है!"
अक्षांश ने एक पल उसे देखा, फिर हल्के से कहा, "सिया... सब ठीक है न?"
सिया थोड़ा चौंकी। अक्षांश की आवाज में पहली बार कोई मजाक नहीं था। उसकी आंखों में वही बेचैनी दिख रही थी, जो सिया खुद रातभर महसूस कर रही थी।
सिया ने नज़रें चुराते हुए कहा, "मुझे क्यों नहीं ठीक होना चाहिए?"
अक्षांश ने हल्की आवाज में कहा, "पता नहीं... बस लग रहा है। अगर कुछ गलत हो रहा है तो बता सकती हो।"
Continue....
सिया बिना कुछ कहे नजरें चुराकर वहां से चली गई। वामिका ने उसे आवाज दी, "अरे सुन तो... कहां जा रही है?"
सिया ने सुना, पर जवाब देने का मन नहीं था। उसके कदम तेज़ी से लाइब्रेरी की ओर बढ़ रहे थे। आज उसे अकेला रहना था — खुद से बात करनी थी, अपने डर से लड़ना था।
लाइब्रेरी में घुसते ही उसे राहत सी महसूस हुई। वहां सन्नाटा था। सिर्फ किताबों की हल्की सी गंध और पंखे की धीमी आवाज। वो एक कोने में जाकर बैठ गई, सिर टेबल पर टिकाकर आंखें बंद कर लीं।
"क्या सच में मैंने कुछ देखा था? या ये सब मेरी थकान और डर का नतीजा है?"
वो खुद को यही समझाने की कोशिश कर रही थी, जब अचानक उसे फिर वही एहसास हुआ — जैसे कोई उसके पीछे खड़ा हो।
सिया की सांसें थम गईं। उसकी पूरी बॉडी जम सी गई। उसने धीरे-धीरे अपनी गर्दन घुमाई...
कोई नहीं था।
लेकिन तभी —
"धप्प!!"
पीछे रखी किताबों की रैक जोर से हिली, और एक किताब सीधे उसके पास आकर गिरी। सिया का दिल जोर से धड़क उठा। उसने घबराकर वो किताब देखी — उसका कवर काला था, बिना किसी नाम के।
सिया ने कांपते हाथों से किताब उठाई।
सिया ने जैसे ही किताब वापस रखने के लिए हाथ बढ़ाया, अचानक पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज आई — "सिया!"
सिया की रगों में सिहरन दौड़ गई। वो झटके से पीछे मुड़ी, तो सामने तन्वी खड़ी थी, सांस फूल रही थी, चेहरा घबराया हुआ।
"त-तू यहां क्या कर रही है?" सिया ने हकलाते हुए पूछा।
"मैं तुझे ढूंढ रही थी, पागल! तू ऐसे अकेली क्यों आ गई?" तन्वी बोली, लेकिन तभी उसकी नजर सिया के हाथ में पकड़ी काली किताब पर गई। "ये क्या है?"
सिया ने कुछ बोलने की कोशिश की ही थी कि…
"धड़ाम!"
पीछे की रैक एक झटके से पूरी की पूरी गिर गई। दोनों चीख पड़ीं।
"क्या हो रहा है ये सब?" तन्वी ने घबराकर सिया का हाथ पकड़ा।
तभी लाइब्रेरी के सर, मिश्रा सर, गुस्से में तेज़ कदमों से आते दिखे।
"तुम दोनों यहां क्या तमाशा कर रही हो? ये लाइब्रेरी है, तुम्हारा पिकनिक स्पॉट नहीं!"
"लेकिन सर, वो रैक अपने आप गिर गई!" सिया ने सफाई देने की कोशिश की।
"बकवास मत करो! बाहर निकलो अभी के अभी!" मिश्रा सर ने गुस्से से इशारा किया।
सिया और तन्वी एक-दूसरे को देखती रह गईं, फिर चुपचाप बाहर निकल आईं।
लाइब्रेरी से निकलते हुए सिया ने मुड़कर एक आखिरी बार अंदर देखा।
वो काली किताब अब फर्श पर नहीं थी।
वो गायब हो चुकी थी।
"तन्वी," सिया ने धीमे स्वर में कहा, "कुछ तो गलत हो रहा है।"
तन्वी ने उसकी ओर देखा, फिर धीरे से बोली, "मुझे भी ऐसा ही लग रहा है..."
सिया ने जब तन्वी से कहा, "कुछ तो गलत हो रहा है,"
तन्वी ने एक पल उसे घूरा, फिर अचानक हंस पड़ी, "अरे नाटकबाज़! तू तो ऐसे बात कर रही है जैसे हॉरर मूवी की हीरोइन हो। कहीं तूने ही तो वो रैक नहीं गिरा दी ड्रामा करने के लिए?"
सिया भड़क गई, "मैं क्यों गिराऊंगी? सच में कुछ अजीब हुआ था!"
तन्वी ने मजाकिया अंदाज में आंख मारी, "हां हां, और फिर उस काली किताब से कोई आत्मा निकलेगी!"
सिया झुंझलाकर बोली, "तु मस्ती कर रही है, लेकिन मैंने सच में कुछ महसूस किया था! वो किताब अपने आप गायब हो गई!"
तन्वी ने फिर से हंसते हुए कहा, "हो सकता है मिश्रा सर ने उठा ली हो — और हो सकता है उस किताब में हमारी स्कूल की सीक्रेट रेसिपी लिखी हो: 'कैसे स्टूडेंट्स की जिंदगी और बोरिंग बनाई जाए!'"
सिया ने गुस्से से उसे घूरा, "तू मेरी बात समझ क्यों नहीं रही?"
तन्वी ने मुस्कुराकर उसके कंधे पर हाथ रखा, "अरे बाबा! मैं तेरी बात समझ रही हूं, लेकिन सच बोलूं तो लाइब्रेरी में पंखे की आवाज और किताबों की खुशबू के अलावा कुछ नहीं होता। तुझे बस ओवरथिंकिंग हो रही है। चल कैंटीन चलते हैं, समोसे खाएंगे, तेरा सारा डर उड़ जाएगा!"
सिया ने झुंझलाकर मुंह फेर लिया।
पर उसके दिमाग से वो काली किताब और गिरती रैक का ख्याल नहीं जा रहा था।
जैसे ही दोनों कैंटीन की ओर बढ़ीं, पीछे से धीमी, अजीब सी आवाज आई — "
सिया ने झटके से पीछे देखा।
कोई नहीं था।
तन्वी ने उसका चेहरा देखा और फिर मुस्कराते हुए कहा, "अब तेरे कानों में भी भूत घुस गए हैं क्या?"
सिया ने उसकी बात अनसुनी कर दी।
वो जानती थी — ये सिर्फ उसका वहम नहीं था। कुछ तो था, जो अब भी उसे देख रहा था… पीछा कर रहा था।
सिया लाइब्रेरी से निकलने के बाद सीधे गार्डन की ओर बढ़ गई। वो अब और किसी से बात नहीं करना चाहती थी — ना तन्वी से, ना वामिका से। बस खुद के साथ अकेले रहना चाहती थी।
गार्डन में हल्की-हल्की ठंडी हवा बह रही थी। गुलमोहर के पेड़ के नीचे कुछ जूनियर्स मस्ती कर रहे थे, कुछ कपल्स अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे, लेकिन सिया को अब किसी से फर्क नहीं पड़ रहा था। वो चुपचाप एक किनारे जाकर बैठ गई।
उसने आंखें बंद कर लीं। हवा के साथ गुलमोहर के लाल फूलों की हल्की खुशबू उसके दिल को सुकून दे रही थी।
वो लाइब्रेरी वाली बात को भूल जाना चाहती थी — उस काली किताब को, गिरती रैक को, और उस अजीब से एहसास को, जो उसे अब भी अंदर ही अंदर बेचैन कर रहा था।
"शायद सच में ये सब मेरा वहम ही था…" उसने खुद को समझाने की कोशिश की।
"काश ये सुकून हमेशा के लिए ठहर जाए…" उसने मन ही मन सोचा।
दूर से कोई उसे ढूंढते हुए आ रहा था।
अक्षांश।
वो सिया को पूरे स्कूल में ढूंढता फिर रहा था। जब उसने लाइब्रेरी में सुना कि सिया और तन्वी को मिश्रा सर ने डांटकर बाहर निकाला, तब से उसका दिल बेचैन था।
जैसे ही उसने गार्डन में सिया को गुलमोहर के नीचे बैठा देखा, वो रुक गया।
सिया आंखें बंद किए बैठी थी, उसके चेहरे पर अजीब सा सुकून था — जैसे वो इस दुनिया से कहीं दूर चली गई हो।
अक्षांश के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
"पागल लड़की... खुद से ही लड़ती रहती है, और किसी को बताती भी नहीं," उसने धीमे से बुदबुदाया।
वो धीरे-धीरे उसके पास आया, लेकिन सिया अब भी अपनी दुनिया में गुम थी।
"सिया," अक्षांश ने हल्की आवाज में पुकारा।
सिया ने आंखें नहीं खोलीं, वो बस हल्के से मुस्कुराई, जैसे उसे पता था कि अक्षांश ही है।
अक्षांश कुछ पल उसे देखता रहा, फिर उसके पास बैठ गया। दोनों के बीच चुप्पी थी — मगर ये वो चुप्पी थी जो असहज नहीं लग रही थी। हवा में गुलमोहर की खुशबू थी, और सूरज ढलने लगा था। हल्की नारंगी रोशनी सिया के चेहरे पर पड़ रही थी, जिससे उसका चेहरा और नाजुक लग रहा था।
अक्षांश ने हल्की आवाज में पूछा, "क्या सोच रही हो?"
सिया ने आंखें खोलीं, उसकी आंखों में नमी थी, लेकिन उसने जबरदस्ती एक हल्की मुस्कान लाने की कोशिश की।
"कुछ नहीं… बस आज थोड़ा अजीब सा लग रहा है।"
अक्षांश ने सिया की आंखों में देख कर कहा, "शेयर कर सकती हो... मैं सुनूंगा, बिना मजाक बनाए। भरोसा करो मुझ पर।"
सिया ने कुछ पल उसे देखा, फिर हल्की सांस लेते हुए कहा, "अक्षांश... आज लाइब्रेरी में कुछ अजीब हुआ। सच में अजीब।"
अक्षांश ने भौंहें चढ़ाईं, "कैसा अजीब?"
सिया ने धीरे-धीरे सब कुछ बताया — काली किताब, गिरती रैक, और वो अजीब सा एहसास। उसकी आवाज में हल्की घबराहट थी, लेकिन वो रुक नहीं रही थी। सब कह दिया उसने।
अक्षांश ने ध्यान से सुना, बिना एक भी बार टोके। जब सिया चुप हुई, तो वो कुछ पल चुप रहा, फिर बोला, "सिया, मैं नहीं जानता कि सच में वहां क्या हुआ, लेकिन मुझे इतना पता है कि अगर तुझे ऐसा महसूस हुआ है, तो उसका कोई न कोई मतलब जरूर होगा। तेरा दिमाग इतना कुछ सोच नहीं सकता जब तक कोई वजह ना हो।"
सिया ने हैरानी से उसे देखा। उसे उम्मीद थी कि अक्षांश हंसेगा, बोलेगा कि "तू पागल हो गई है," लेकिन उसने उल्टा उसकी बातों पर भरोसा किया।
"तुम मुझ पर यकीन कर रहे हो?" सिया ने धीमे से पूछा।
अक्षांश ने हल्के से मुस्कुराकर कहा, "हमेशा करूंगा।"
सिया का गला भर आया। उसने नजरें फेर लीं, नहीं तो आंसू गिर जाते।
कुछ पल दोनों चुप रहे।
"सिया," अक्षांश ने धीरे से उसका नाम लिया, " चलो मैं हॉस्टल छोड़ देता हूँ ।"
सिया ने हल्के से सिर हिलाया, लेकिन वो अभी भी गुलमोहर के फूलों की खुशबू में खोई हुई सी थी। अक्षांश ने उसका बैग उठाया और धीरे-धीरे उसके साथ हॉस्टल की ओर चल पड़ा। रास्ते में दोनों खामोश थे, मगर ये खामोशी भारी नहीं थी — जैसे उनके बीच शब्दों की ज़रूरत ही नहीं थी।
सूरज पूरी तरह डूब चुका था, और हल्की ठंडी हवा चलने लगी थी। कैंपस की लाइट्स जल गई थीं, लेकिन माहौल में अजीब सा सन्नाटा था।
"अक्षांश," सिया ने आखिरकार चुप्पी तोड़ी, "तुझे नहीं लगता वो किताब… अजीब थी? ऐसा लगा जैसे… जैसे वो मुझे देख रही थी।"
अक्षांश रुक गया। उसने सिया की तरफ देखा, उसकी आंखों में डर साफ झलक रहा था।
"कल सुबह फिर से लाइब्रेरी चलेंगे," अक्षांश ने ठहरते हुए कहा, "उस किताब को दोबारा देखेंगे। इस बार मैं भी साथ रहूंगा।"
सिया ने झिझकते हुए कहा, "अगर फिर से कुछ अजीब हुआ तो?"
अक्षांश मुस्कुराया, "तो मैं हूं ना, डरने की ज़रूरत नहीं है।"
सिया ने पहली बार हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसके मन का डर अब भी कायम था।
हॉस्टल के गेट तक पहुंचकर अक्षांश ने रुकते हुए कहा, "अंदर जाओ, आराम करो। और हां, ज्यादा सोच मत लेना। मैं कल सुबह आ जाऊंगा लेने।"
सिया ने सिर हिलाया, फिर एक पल के लिए रुकी। उसने धीरे से कहा, "थैंक यू, अक्षांश।"
अक्षांश ने मुस्कुराकर कहा, "हमेशा करूंगा, पागल लड़की।"
सिया हंस दी, पहली बार पूरे दिन में उसकी हंसी सुनाई दी। अक्षांश उसे मुस्कुराते हुए देखता रहा, फिर धीरे-धीरे पलटकर वापस चला गया।
सिया हॉस्टल के कमरे में आई, लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। वो खिड़की के पास बैठ गई, बाहर हल्का चांदनी का उजाला बिखरा हुआ था।
Continue....
सिया खिड़की के पास बैठी थी। बाहर हल्की चांदनी फैली थी, लेकिन उसके भीतर अंधेरा गहराता जा रहा था। गुलमोहर की खुशबू अब भी हवा में थी, पर वो उसे महसूस नहीं कर पा रही थी। उसकी आंखें उस अंधेरे में कहीं अटक गई थीं — अतीत की परछाइयों में।
"मम्मी…" उसके होंठों से धीमे से निकला, और अगले ही पल उसकी आंखें भीग गईं।
वो यादें लौट आई थीं, जो उसने कई सालों से दबी हुई थीं — अपने दिल के किसी कोने में बंद कर रखी थीं।
उसे याद आया…
वो एक गर्मी की रात थी।
सिया सिर्फ 10 साल की थी।
उसकी माँ ने उससे कहा था,
"सो जा बेटा, आज बहुत थक गई हूँ।"
लेकिन उस रात माँ की आंखों में अजीब सी बेचैनी थी।
रात के किसी पहर घर में चिल्लाने की आवाज़ें आईं।
"कितनी बार कहा है, सवाल मत किया कर मुझसे!"
ये उसके पापा की आवाज़ थी।
गुस्से से भरी हुई।
"क्यों न करूं सवाल? रोज रात किसी और के साथ बात करते हो! मैं सब जानती हूँ!"
माँ रो रही थी, लड़ रही थी, टूट रही थी।
और फिर...
"निकल जा इस घर से! मुझे नहीं रहना तेरे साथ!"
सिया की मां को धक्का लगा…
वो दीवार से टकराई और ज़मीन पर गिर पड़ी।
सिया तब दरवाजे के पीछे खड़ी सब देख रही थी… चुपचाप।
माँ उठी, कांपती हुई, सिया की तरफ देखा… और बस इतना कहा,
"चल बेटा, यहां अब हमारा कुछ नहीं है।"
उस रात सिया की दुनिया बदल गई थी।
गली के बाहर माँ, सिया का हाथ थामे चली जा रही थी।
सिया कुछ समझ नहीं पा रही थी… सिर्फ एक सवाल उसके दिल में था —
"हमारा घर कहां गया?"
अब, हॉस्टल की खिड़की के पास बैठी सिया की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे।
"काश वो सब एक बुरा सपना होता…" उसने मन में सोचा।
"काश पापा… एक बार बस एक बार… मुझसे भी पूछा होता कि मैं क्या चाहती हूँ।"
उसका दिल भारी हो गया था।
तभी दरवाज़ा धीरे से खुला।
"ओए, तू सो नहीं रही क्या?" वामिका की आवाज़ आई।
सिया ने जल्दी से आंसू पोंछ लिए, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
वामिका हाथ में चिप्स का पैकेट लिए अंदर आई, उसकी बाल थोड़े बिखरे हुए थे और आँखों में नींद की जगह शरारत झलक रही थी।
"ले खा चिप्स, मुझे भी नींद नहीं आ रही," उसने पैकेट आगे बढ़ाते हुए कहा।
सिया ने सिर हिलाया, "मन नहीं है।"
"ओ हेलो! ये मन-वमन का टाइम नहीं है। ये चिप्स की खुशबू खुद ब्रह्मा जी को भी मना नहीं कर सकती," वामिका ने जबरदस्ती चिप्स का एक टुकड़ा उसके हाथ में रख दिया।
सिया की आंखें अब भी थोड़ी लाल थीं।
वामिका उसकी तरफ देखने लगी… फिर धीरे से बोली, "रोई थी क्या?"
सिया ने नजरें चुरा लीं। "नहीं… ऐसे ही… हवा में कुछ चला गया था।"
"अच्छा?" वामिका मुस्कराई, "और वो हवा तेरी आँखों से आंसू बनकर बह गई?"
सिया हँस पड़ी… हल्की सी, थकी हुई हँसी… लेकिन वो वामिका को सच्चा जवाब नहीं दे पाई।
वामिका पास आकर उसके बगल में बैठ गई, "देख पागल, जो भी है ना… बातें करने से हल्का लगता है। तू मुझे सब बता सकती है। हम दुश्मन नहीं हैं।"
सिया ने धीरे से कहा, "कभी-कभी... कुछ बातें इतनी पुरानी होती हैं कि वो अब लफ्ज़ नहीं बन पातीं। बस दिल में अटक जाती हैं।"
वामिका ने उसकी तरफ देखा… फिर चिप्स का पैकेट उसकी गोद में रखते हुए बोली, "जब दिल भारी हो, तो चिप्स खाना चाहिए। क्रंच की आवाज़ दिमाग के दुख-दर्द को डिस्टर्ब कर देती है। साइंटिफिकली प्रूव्ड है ये!"
सिया फिर हँस दी, थोड़ा ज्यादा इस बार।
दोनों ने थोड़े चिप्स खाए, कमरे में हल्की चुप्पी थी लेकिन बोझ हल्का लगने लगा था।
थोड़ी देर बाद वामिका बोली, "आज तू अक्षांश के साथ थी ना… कुछ सीरियस लग रहा था?"
सिया ने चौंक कर देखा, "तूने देखा?"
"गुलमोहर के नीचे बैठी थी, और मिस्टर स्माइली तुझे देखता ही जा रहा था," वामिका ने आँख मारते हुए कहा।
"पागल है तू…" सिया ने तकिया उसके ऊपर फेंका।
"अरे तो तू बता ना, क्या चल रहा है? मैं तो बस इंस्पेक्टर वामिका हूँ," उसने फालतू सा गॉगल पहनने की एक्टिंग करते हुए कहा।
सिया मुस्कुराई, लेकिन फिर धीरे से बोली, "आज कुछ अजीब हुआ था… लाइब्रेरी में।"
वामिका तुरंत सीरियस हो गई, "क्या?"
सिया ने धीरे-धीरे सब बताया — काली किताब, गिरती रैक, और वो अजीब सा एहसास।
वामिका शांत थी।
फिर उसने चुप्पी तोड़ी, "सिया… मुझे लगता है… ये सब कोई इत्तेफाक नहीं है। शायद उस किताब से कुछ जुड़ा हुआ है…"
सिया ने डरते हुए कहा, "अक्षांश ने कहा, कल सुबह फिर से चलेंगे उसे देखने…"
वामिका बोली, "तो फिर हम तीनों चलेंगे। और अगर कोई आत्मा-वात्मा निकली ना, तो मैं चिप्स से उसका भी इलाज कर दूंगी।"
सिया हँसते-हँसते लोटपोट हो गई। और इस बार उसकी हँसी में दर्द नहीं था… बस दोस्ती थी।
अगली सुबह का सूरज एक नई जिज्ञासा और डर के साथ उगने वाला था…
वो काली किताब… अब भी लाइब्रेरी की उसी कोने में बंद थी…
लेकिन शायद… वो किसी और के आने का इंतजार कर रही थी।
अगली सुबह…
सूरज की हल्की किरणें खिड़की से अंदर झाँक रही थीं। हॉस्टल के गलियारों में लड़कियों की चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। कहीं बाथरूम की बाल्टियों की आवाज़, कहीं हेयरड्रायर की, और कहीं किसी की तेज़-तेज़ बातें।
लेकिन रूम नंबर 213 में…
"वामीका!! उठ जा वरना मैं तुझे खींच कर बाथरूम तक ले जाऊंगी!"
सिया अपने बाल बाँधते हुए चिल्लाई।
कम्फर्टर के अंदर से धीमी सी आवाज़ आई, "प्लीज़...पांच मिनट और… भगवान की कसम, आज तो नींद ने मुझे पकड़ के रखा है…"
"नींद ने नहीं, तूने उसे गले लगाया है!" सिया झल्लाई।
वामीका ने रजाई से बस आँखें निकालीं और मासूमियत से बोली, "देख ना यार, कितना प्यारा सपना देख रही थी… मैं एक पहाड़ी पर थी… अक्षांश मुझे चाय पिला रहा था… और पीछे ताजमहल भी था…"
"वाह! पहाड़, चाय और ताजमहल, सब एक ही ड्रीम पैकेज में?"
सिया हँसते हुए बोली, "चल उठ! वरना लाइब्रेरी तो दूर, प्रिंसिपल रूम की शोभा बन जाएगी आज!"
वामीका ने कराहते हुए करवट बदली, "तू जा, मैं तेरे पीछे आती हूँ…"
सिया ने बिना बोले एक ठंडी बाल्टी उठाई और झट से वामीका के ऊपर उंडेल दी।
"आआआआअ!! ठंडा... ठंडा... बर्फ जैसा ठंडा!"
वामीका कूदकर खड़ी हो गई, बाल बिखरे हुए, आंखें चौड़ी।
"अब आई ना रियलिटी में?" सिया ने ताली बजाई।
"तू पागल है! टॉर्चर कर रही है! मैं कोर्ट जाऊंगी, हॉस्टल हाई कोर्ट!" वामीका चिल्लाते हुए बाथरूम की तरफ भागी।
सिया हँसते हुए बाथरूम की लाइन में लग गई, और पीछे से आवाज़ आई —
"पागल सिया, आज का बदला पूरा होगा… नहा के आऊँ फिर देख!"
थोड़ी देर बाद वामीका भीगी बालों और गीले तौलिए में बाहर निकली, और बोली,
"अब बता, काली किताब वाली जासूसी आज शुरू हो रही है न?"
सिया ने मुस्कराकर कहा,
"हाँ… लेकिन ध्यान रखना… ये कोई नॉर्मल किताब नहीं है। कल रात को भी मैंने कुछ अजीब सपना देखा…"
"सपना? कैसा?" वामीका थोड़ा चौक गई।
"मैं उस किताब को पढ़ रही थी… और अचानक उसके पन्नों से कोई काला धुआं निकला… वो मेरे चेहरे की तरफ बढ़ने लगा… और फिर…"
"फिर?" वामीका की आँखें बड़ी हो गईं।
"फिर तू आ गई और चिप्स खिलाने लगी!" सिया ने शरारती हँसी के साथ कहा।
"ओ गॉड! इतनी डरावनी बात के बाद भी तू मज़ाक कर रही है?" वामीका ने तकिया फेंका।
दोनों तैयार होकर बैग उठाती हैं, और फिर…
जल्दी से कॉलेज के लिए निकलती है।
कॉलेज के गेट के बाहर...
हल्की ठंडी हवा चल रही थी। कॉलेज की इमारत सुबह की धूप में चमक रही थी। सामने मेन गेट पर कुछ लड़के बाइक पार्क कर रहे थे, कुछ लड़कियाँ ग्रुप बना कर अंदर जा रही थीं।
और वहीं...
गेट के ठीक बाहर एक लड़का खड़ा था — अक्षांश।
काले रंग की शर्ट, कैज़ुअल जैकेट, और गर्दन में लटकती हेडफोन की वायर।
आंखों पर हल्की सी धूप का चश्मा।
सिया और वामीका जैसे ही गेट की ओर बढ़ीं, अक्षांश ने चश्मा नीचे खिसकाया और सिया की तरफ देख कर एक आँख मारी।
सिया पल भर के लिए ठिठकी… उसकी चाल थोड़ी धीमी हो गई…
पर चेहरे पर मुस्कान छिपाना मुश्किल था।
वामीका ने कोहनी मारी, "ओ हो… ये तो तुझे सीधे दिल पे निशाना मार रहा है।"
सिया ने नज़रे चुराई, "बकवास बंद कर… चल क्लास के लिए देर हो रही है।"
अक्षांश ने उनके पास आते ही कहा,
"गुड मॉर्निंग, मिस ‘ब्लैक बुक स्पेशलिस्ट’ और मिस ‘5 मिनट और वाली’।"
...वामीका हँसते हुए बोली,
"तुम्हें कैसे पता चला कि मैं पाँच मिनट वाली हूँ?"
अक्षांश ने मुस्कराकर कहा,
"कॉमन सेंस है। जो भी सुबह सबसे ज्यादा गुस्सैल दिखे, समझो उसने किसी को उठाने के लिए ठंडी बाल्टी ज़रूर इस्तेमाल की है!"
सिया ने घूरते हुए कहा,
"तुम्हें हमारे रूम की CCTV मिली क्या?"
अक्षांश ने हँसते हुए कहा,
"नहीं… लेकिन तुम्हारी बातें ही काफी होती हैं सस्पेंस खोलने के लिए!"
तीनों हँसते हुए कॉलेज के भीतर दाखिल होते हैं। कैम्पस की भीड़, लाइब्रेरी के बाहर का सन्नाटा, और उस कोने की ओर धीरे-धीरे बढ़ते कदम…
लाइब्रेरी के भीतर…
अंदर घुसते ही वो पुरानी लकड़ी की खुशबू और दीवारों पर टंगी घड़ियों की टिक-टिक का एहसास हुआ। कुछ स्टूडेंट्स किताबों में डूबे थे, तो कुछ अपनी-अपनी टेबल पर सो रहे थे।
लेकिन सिया, वामीका और अक्षांश की नज़रें सीधी उस कोने की तरफ थीं —
जहाँ कल वो काली किताब मिली थी।
वामीका ने धीरे से कहा,
"अजीब सन्नाटा है यहाँ… कल कोई भी नहीं था इस तरफ।"
अक्षांश बोला,
"अब भी कोई नहीं है। चलो धीरे-धीरे चलते हैं।"
तीनों उस कोने की तरफ बढ़े — लकड़ी की अलमारियाँ, धूल से ढँकी किताबें, और बीच में एक टूटी हुई स्टूल, जिस पर कल सिया बैठी थी।
सिया बोली,
"यहीं था… यही रैक गिरा था… और किताब इसी के नीचे से निकली थी…"
continue......