दुश्मन का दोस्त हमेशा दोस्त होता है... लेकिन कभी दुश्मन से ही प्यार हो जाए ऐसा देखा हैं???? आस्था बदले की भावना रखते हुए निकल पड़ती हैं आयुष्मान से बदला लेना हैं.. आखिर क्यों?? ओर ये आयुष्मान कौन हैं???? क्या बदले की भावना प्रेम में बदल पाएगी???? आगे... दुश्मन का दोस्त हमेशा दोस्त होता है... लेकिन कभी दुश्मन से ही प्यार हो जाए ऐसा देखा हैं???? आस्था बदले की भावना रखते हुए निकल पड़ती हैं आयुष्मान से बदला लेना हैं.. आखिर क्यों?? ओर ये आयुष्मान कौन हैं???? क्या बदले की भावना प्रेम में बदल पाएगी???? आगे क्या होगा ये जान ने के लिए पढ़ते रहिए .. magic of love
Page 1 of 3
दोपहर के बारह बजे थे (दिल्ली में)। एक कमरे में ऐसा अंधेरा छाया हुआ था मानो रात के बारह बजे हों। उसी कमरे की चार दीवारों के बीच दो लोग आपस में बात कर रहे थे।
"क्या मिशन के लिए रेडी हो तुम?" एक कड़क आवाज सुनाई दी। जिसे सुनकर एक लड़की घबराते हुए बोली, "लेकिन पापा, अगर उसको पता चल गया तो?"
तभी वही कड़क आवाज फिर सुनाई दी, "नहीं पता चलेगा। बस तुम्हें ये देखना है कि उसे पता नहीं चलना चाहिए कि तुम ये काम कर रही हो, ठीक है?"
"ठीक है पापा, नहीं पता चलेगा," वो लड़की बोली।
इतना कहकर वह वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद, जो आवाज सुनाई दे रही थी, वह आदमी खड़ा हुआ और मुस्कुराते हुए बोला, "मिस्टर खन्ना, अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता।"
वह मुस्कुराने लगा।
इधर, वो लड़की बाहर सूरज की किरणों में आ गई। उसने अपने मुँह पर मास्क लगाया हुआ था ताकि उसे कोई पहचान न पाए। उसको देखकर ऐसा लग रहा था कि वह कोई जासूस हो।
वह अपने आप से बात करते हुए बोली, "पता नहीं मैं कहाँ पर फँस गई हूँ। अच्छा तो मैं डॉक्टर बन जाती। कुछ नहीं, पेशेंट को संभालो। यहाँ तो हर रोज़ कोई नई जंग खेलनी पड़ती है। कोई बात नहीं, ये आखिरी काम है। इस काम के बाद अब मुझे कोई और काम नहीं करना।"
वह अपने आप से ये सब बोल ही रही थी तभी उसे पीछे से एक लड़के की आवाज सुनाई दी जो उसे पुकारते हुए आ रहा था।
"आस्था! आस्था! रुको, तुम्हारा ये लो..."
उस लड़की का नाम आस्था था (जिसकी हम अभी बातें सुन रहे थे; जो दिखने में बेहद प्यारी थी, लेकिन उसने अपना मुँह मास्क से ढँक रखा था। उसने अपने पूरे बदन पर काले रंग के कपड़े पहने हुए थे। उसकी उम्र पच्चीस साल की थी। उसकी पूरी बॉडी एकदम फ्लेक्सिबल, एकदम पतली सी थी।)
आस्था उस लड़के के सामने घूरते हुए बोली, "कितनी बार बोला है मुझे सबके सामने आस्था मत बोलो। अगर ये और मेरा नाम रिवील हो गया तो?"
"अच्छा, कोई नहीं। मेरी बात सुनो तुम," वो लड़का बोला।
"हँ, बोलो क्या बात है?" आस्था मुँह बनाते हुए बोली।
तभी वो लड़का बोला, "ये लो..."
वह एक डब्बे जैसा बॉक्स देते हुए बोला।
"ये क्या है?" आस्था हैरान होते हुए बोली।
तभी वो लड़का बोला, "ये तुम्हारे लिए एक डब्बा है जिसके अंदर बहुत ही काम की चीज़ है। देख लो।"
वो डब्बे को लेकर खोलकर देखती है तो उसके अंदर एक इयरबड्स थे, जिसको लगाने से किसी को पता भी नहीं चलेगा कि उसके कान में ये लगा हुआ है। तभी आस्था बोली, "लेकिन ये मेरे पास पहले से हैं।"
तभी वो लड़का बोला, "लेकिन इसमें कुछ खास बात है।"
उस लड़के की बात सुनकर आस्था बोली, "क्या खास बात है?"
तभी वो लड़का उसे ये इयरबड्स पहना देता है और उसे कॉल करता है। जब आस्था उसका कॉल उठा लेती है और बाद में कट कर देती है, तभी वह कहता है, "तुम इसे दो बार टच करो।" जब वह दो से तीन बार टच करती है, तो पता चलता है कि ये कॉल अपने आप ही उस लड़के को लग गया। (चलो उसका नाम बता ही देते हैं, उसका नाम धीरज है।)
"वाह धीरज! ये तो बहुत ही काम की चीज़ है। लेकिन ये किसने दिया?"
"किसने दिया होगा?"
"ऑफकोर्स तुम्हारे पापा ने।"
ये सुनते ही आस्था मुस्कुरा दी और बोली, "सही में पापा मुझसे कितना प्यार करते हैं ना! मैं जो करने जा रही हूँ वो उनके लिए तो करने जा रही हूँ। बस एक बार मेरा प्लान सक्सेसफुल हो जाए, बाद में देखना तुम, मैं उसकी कितनी बैंड बजाऊँगी और उसे कहीं नहीं छोड़ूँगी। बस एक बार मैं मेरे पापा का बदला ले लूँ, उसके बाद वो कहीं मुँह दिखाने के लिए नहीं रहेगा।"
धीरज ये बात सुनते ही आस्था के कंधे पर हाथ रखकर बोला, "तुम फ़िक्र मत करना, हम हैं ना तुम्हारे साथ। तुम्हें, अंकल को, आंटी को, सबको न्याय दिलाकर रहेंगे।"
जब आस्था धीरज की पूरी बात सुनती है तो वह गुस्सा हो जाती है और बोली, "क्या? आंटी को? लेकिन क्यों? वो आखिर है क्यों? मैंने पहले भी बोला था और अब भी बोल रही हूँ, तुम उस औरत की बात मेरे सामने मत ही करो तो अच्छा है।"
"सॉरी यार, गलती हो गई। लेकिन तुमने अभी तक मुझे नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि तुम..." वो आगे बोल पाता, इससे पहले ही आस्था उसे हाथ दिखाते हुए बोली, "बस धीरज, अब हमें आगे भी कई सारे प्लान करने हैं। चलो तो फिर। अंदर चलो।"
वह अंदर जा रही होती है तभी उसे कुछ याद आ जाता है और वह कहती है, "एक काम करो, तुम चले जाओ। और हाँ, पापा को बोलना मैं अभी शाम के चार बजे तक आ जाऊँगी।"
"लेकिन कहाँ पर जा रही हो?" धीरज बोला।
"मैंने बोला उतना करो ना! अब तो तुम भी मुझे कई सारे सवाल पूछने लगे हो।"
ये सुनते ही धीरज कुछ नहीं बोला और वह अंदर चला गया।
उसके जाते ही आस्था खुश हो जाती है और वह एक शॉप के पास खड़ी हो जाती है जो पूरी काँच की बनी हुई थी। आस्था उसमें अपने आप को पूरे काले कपड़े में देख पा रही थी। वो बोली, "अगर पापा की बात नहीं होती तो कभी मैं ये काले कपड़े अपने बदन पर नहीं लगाती।" लेकिन ये बात मेरे पापा की है। वो एक गहरी साँस लेती है और सामने देखने लगती है।
क्रमशः
वह एक दुकान के सामने जाकर खड़ी हो गई। वह पूरी दुकान कपड़ों से घिरी हुई थी, और पूरी की पूरी कांच की बनी हुई थी। उसने अपने आप को कांच में देखा तो वह पूरे काले कपड़ों में पा गई। जिसे देखकर वह अपने मन ही मन में बोली, "अगर मेरे पापा की बात नहीं होती तो मैं ये काले कपड़े कभी भी अपने बदन पर ना आने देती।" इतना कहकर वह उस क्लॉथ शॉप के अंदर चली गई।
वह अंदर गई। जैसे ही वह अंदर गई, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वह देख रही थी कि पूरी दुकान कांच से तो बनी हुई थी, लेकिन अंदर उतनी ही शानदार थी। वह यह देखकर खुश हो गई और जल्दी-जल्दी दो ड्रेस ले लीं।
ड्रेस लेने के बाद वह वहाँ से निकलकर सीधे गुरुग्राम के लिए चली गई और एक बड़ी सी बिल्डिंग के अंदर चली गई, -10 मंजिल पर। उसने किसी का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाहर लिखा हुआ था "सिया की दुनिया।"
जब अंदर से दरवाजा खुला, तो एक लड़की, आस्था को देखकर बहुत खुश हो गई और उसके गले लग गई। "यार, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी! आखिर तुम कहाँ पर थीं? कितने दिन हो गए हैं!"
तभी आस्था, उसे गले लगाते हुए बोली, "अच्छा रुको।" उसने पहले उसके गाल पर एक किस किया और किस करने के बाद उसे एक थैली पकड़ाते हुए बोली, "रेडी हो जा, आज हम बाहर जाएँगे।"
"क्यों?" सिया ने पूछा।
"क्या सच में तुम्हें नहीं पता कि आज क्या है?" आस्था हैरान होते हुए बोली।
"नहीं, सच में नहीं पता।" सिया ने कहा।
"अरे पागल! आज हम दोनों को साथ में पाँच साल हो गए हैं! क्या यार, तुम्हें सच में नहीं पता था?" आस्था ने अपना मुँह फुला लिया। तभी सिया हँसते हुए बोली, "पागल है क्या? मुझे नहीं पता होगा तो किसे पता होगा? दिया को?"
उसकी बात सुनकर आस्था बोली, "अच्छा, तो फिर ठीक है। चल, अब रेडी हो जा। आज पूरे दिन बाहर रहेंगे। देख, मैं तेरे लिए प्यारे से कपड़े लेकर आई हूँ। इसमें से तुम्हें जो भी पसंद हो, वो ले लो और पहनो। जाऊँ जल्दी।"
तभी सिया आँखें दिखाते हुए बोली, "क्या तुम अंदर नहीं आओगी?"
"अरे हाँ, सॉरी, मैं तो भूल गई। वो क्या है, मैं बहुत ज़्यादा एक्साइटेड हूँ ना इसलिए।" आस्था ने कहा।
आस्था की बात सुनकर सिया हँसने लगी। जब आस्था अंदर आई, तो पूरी तरह से हैरान हो गई और बोली, "ये क्या है सिया?" पूरा कमरा गुब्बारों और गुलाबों से सजाया गया था, और उनकी दोनों की बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी।
यह देखकर आस्था की आँखों में आँसू आ गए। तभी वह बोली, "तुम्हें कैसे पता आज मैं आने वाली हूँ? मैं लास्ट ईयर तो आई ही नहीं पाई थी। और हम दोनों कितने महीने के बाद मिल रहे हैं।"
तभी सिया बोली, "मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी, तुम जब ये ड्रेस खरीद रही थीं, तब तुम्हारा कॉल आया मुझ पर। लेकिन तुम कुछ नहीं बोल रही थीं। मुझे लगा गलती से लगा होगा, तो फिर मैं कॉल काटने ही वाली थी, तभी मैंने सुना कि तुमने यह कहा था कि ये दोनों ड्रेस सिया पर बहुत अच्छी लगेंगी। बस मैंने सुन लिया और तुम्हें पता न चले, इस तरह से कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया।"
तभी आस्था हैरान होते हुए बोली, "लेकिन मैंने तुम्हें कोई कॉल नहीं किया था! तो फिर?"
"हाँ हाँ, नहीं किया, तभी तो पता चला, वरना कैसे पता चलता? हो जाता है कभी-कभी।" सिया बोली।
वह इतना कहकर अंदर जाने लगी, तभी वह पीछे मुड़ी और बोली, "एक मिनट, तुम मेरे साथ यही ड्रेस पहनकर आने वाली हो?"
तभी आस्था बोली, "हाँ, क्यों?"
"आज के दिन तो कुछ अलग पहन ले, मेरी जान।" सिया बोली।
तभी आस्था बोली, "नहीं नहीं, मैं रिस्क नहीं लेना चाहती।"
तभी सिया जिद करते हुए बोली, "नहीं, तुम्हें पहनना होगा। क्या आज के दिन मेरी बात नहीं मानोगी?" यह सुनते ही आस्था कुछ नहीं बोल पाई और सिया की जिद के आगे हार गई और बोली, "ठीक है, लेकिन मैं कौन से कपड़े पहनूँ?"
तभी सिया बोली, "एक ड्रेस तुम पहन लो, एक मैं।"
सिया की बात सुनकर आस्था बोली, "नहीं नहीं, मैं कैसे? ये ड्रेस तो मैं तुम्हारे लिए लेकर आई थी।"
"बस अब पहन ले, बोला उतना कर।" सिया ने कहा।
थोड़ी देर बाद...
आस्था ने ब्लू कलर की ड्रेस पहनी हुई थी जो पूरी गाउन थी। उसने अपने बालों को भी बहुत अच्छा सेट किया था, पूरे खुले रखे थे। लेकिन उसने अपने मुँह पर मास्क लगाए हुए था। तभी सिया उसे देखकर बोली, "वाह! क्या मस्त लग रही हो! लेकिन ये क्या? तुमने ये मास्क क्यों लगाया है?" इतना कहकर उसने आस्था का मास्क निकाल दिया। उसके मास्क निकलते ही आस्था के गुलाबी पंखुड़ियों जैसे होंठ दिखाई दिए और उसकी काली-काली आँखें और भी ज़्यादा आकर्षक लग रही थीं। साथ ही साथ उसका यह हल्का मेकअप लुक बेहद ही भा रहा था उसके ऊपर।
तभी आस्था बोली, "ये क्या किया? मैं नहीं कर सकती, पापा को पता चल गया तो?"
"पापा को क्या पता चलेगा? आखिर? नहीं पता चलेगा मासा को। जाने दे, और ये मास्क मत लगा आज के दिन। मेरी सारी बातें मान ले।"
तभी आस्था बोली, "लेकिन किसी ने देख लिया तो मेरे लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी। तुम नहीं समझ रही हो, मैं अपना चेहरा दुनिया के सामने अभी नहीं ला सकती।"
"कुछ नहीं होगा। हम नज़दीक ही जाएँगे और मूवी देखकर वापस, ठीक है?" सिया बोली।
सिया की बात सुनकर आस्था बोली, "क्या पक्का? सच में उतने में ही वापस?"
"अरे हाँ बाबा, चलो अब।" सिया बोली।
To be continued 💫 💙
बाबा उतने में ही वापस आ जाएँगे। चलो न अब मेरे साथ। आज तो मोज-मस्ती करनी ही है।" वो इतना कहकर आस्था का हाथ खींचकर ले गई। वो दोनों ही पूरे दिन बड़े ही अच्छे तरह से एन्जॉय करती रहीं। शाम के पाँच बजने को आए थे, इसलिए आस्था कहती है, "अरे यार, मैं तेरे घर तुम्हें छोड़ने आई तो बहुत लेट हो जाएगा यार।"
तभी सिया कहती है, "अच्छा, फिर एक काम करते हैं..."
आस्था उसे हैरानी भरी आँखों से देखते हुए कहती है, "क्या???"
सिया: "अरे कुछ खास नहीं, तुम यहाँ से चली जाओ अपने घर। मैं यहाँ से अपने घर..."
तभी आस्था कहती है, "अरे लेकिन तुम्हारी..."
सिया उसे आगे बोलने से रोक देती है और कहती है, "कुछ नहीं, डियर। तुम चली जाओ, मैं भी जाती हूँ। मैं तुम्हें घर पहुँचने के बाद कॉल कर दूँगी, जिससे तुम्हें भी आराम मिल जाएगा। और तुम घर पर जल्दी पहुँच गई तो तुम मुझे कॉल कर देना।"
आस्था: "हाँ, ये बात ठीक है।" वो इतना कहकर उसे बाय कहकर वहाँ से चली गई।
उसके जाने के बाद सिया भी रास्ते पर चलने लगी। करीबन एक घंटे बाद सिया के फ़ोन पर आस्था का कॉल आता है और सिया कॉल उठाते हुए कहती है, "पहुँच गई???"
तभी आस्था कहती है, "हाँ, मैं तो पहुँच गई। तुम???"
तभी सिया कहती है, "अरे नहीं, अभी थोड़ा ही बाकी है। मैं घर के पास ही हूँ।" तभी उसे पीछे से चलने की आवाज़ सुनाई देती है, जिसे सुनकर वह पीछे मुड़ती है, लेकिन वहाँ पर कोई भी नहीं था।
सिया को कुछ न बोलता हुआ देख आस्था कहती है, "क्या हुआ???"
सिया: "अरे मुझे लगा कि मेरे पीछे कोई है, लेकिन अभी फ़िलहाल तो कोई नहीं है। शायद मेरा भ्रम हुआ होगा।"
आस्था: "क्या पक्का? एक बार देख ले, और एक काम कर, ध्यान से जा।" अभी आस्था ये सब बोल ही रही थी, तभी उसे सिया की चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देती है। और आस्था ये सुनते ही परेशान हो जाती है और कहती है, "क्या हुआ सिया?? हेलो सिया?? मेरे जवाब क्यों नहीं दे रही हो??? क्या हुआ सिया???"
लेकिन सिया कुछ भी जवाब नहीं दे रही थी। तभी आस्था को कुछ अच्छा महसूस नहीं होता और वह अपने कमरे से डायरेक्ट अपने पापा के कमरे में चली जाती है। उसके पापा, जो अभी किताब पढ़ रहे थे, वो आस्था को घबराते हुए देख परेशान हो जाते हैं और कहते हैं, "क्या हुआ बेटा???"
तभी आस्था कहती है, "पापा, लगता है सिया को कुछ हो गया है।"
आस्था के पापा हैरानी भरे आवाज़ में कहते हैं, "क्या??? क्या हो गया है???"
तभी आस्था कहती है, "पता नहीं पापा, लेकिन कुछ तो हुआ है। चलिए ना मेरे साथ।"
तभी आस्था के पापा कहते हैं, "एक काम करो, तुम यहाँ पर रहो, मैं जाता हूँ और मेरे साथ मेरे आदमी को भी लेकर जाता हूँ।" लेकिन आस्था मान ही नहीं रही थी। वो कहती है, "नहीं पापा, मैं भी आपके साथ चलूँगी।" वो इतना कहकर उसके पापा के साथ चली जाती है।
वो लोग सिया के घर के बाहर पहुँचने ही वाले होते हैं, तभी रास्ते पर बहुत ही सारी भीड़ को देख लेते हैं। एक पल के लिए उस भीड़ को देखकर आस्था के मन में सिया के लिए अजीब तरह से खयालात आने लगते हैं। लेकिन वो अपने खयालात को काबू में करती है और एक बार इस भीड़ के अंदर चली जाती है। जब वो अंदर जाती है तो पूरी तरह से हैरान हो जाती है और धड़ाम करके नीचे गिर जाती है।
सामने कुछ और नहीं, बल्कि सिया की लाश पड़ी हुई थी, जिसको देखकर ऐसा लग रहा था कि उसको किसी ने पहले उसके शरीर का फायदा उठाया गया हो, और बाद में उसको बड़े ही बेरहमी से मार दिया हो।
सिया की ऐसी हालत देखकर आस्था अपने मन ही मन बहुत ही टूट चुकी थी। तभी उसके पापा आते हैं और वो कहते हैं, "क्या हुआ???" जब वो भी सिया की हालत देखते हैं तो बड़े ही हैरान हो जाते हैं और वो भी आस्था को संभालने लगते हैं। उसको संभालने के बाद वो उसे लेकर जाते हैं।
दूसरे दिन
सिया के घर में कोई नहीं था, उसकी तो अपनी आस्था थी, इसलिए आस्था ही अपने दोस्त का अंतिम संस्कार करती है और वो लोग घर पर आ जाते हैं।
करीबन दस दिनों के बाद...
आस्था खिड़की तरफ देखकर खड़ी थी। उसे देखकर कोई भी कह सकता है कि उसने अपने जीवन में बहुत ही अहम हिस्सा खो दिया हो। उसको देखकर आज उसके पापा को उसके ऊपर तरस आ जाता है। तभी उनके फ़ोन पर किसी का कॉल आता है। कॉल पर बातें सुनकर हैरान हो जाते हैं और वो सिया की खबर लेकर आस्था के पास आ जाते हैं और आस्था को कहते हैं, "बेटा, मुझे पता चल गया है कि सिया के साथ ये दुष्कर्म किसने किया है।"
ये सुनते ही आस्था की आँखों में जैसे आग की लपटें उठ रही हों और वो पूरी गुस्से में बोलती है, "कौन है वो?? पापा, कौन है???"
तभी वो कुछ ऐसा बोलते हैं, जिसका नाम सुनकर उसकी आँखों में अब सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत की भावना ही पैदा हो जाती है! और वो कहती है, "इस आदमी को अब मैं नहीं छोड़ने वाली पापा। उसने आपके साथ, मेरे दोस्त के साथ जो भी किया है, उसका मैं अच्छी तरह से बदला लेकर ही रहूँगी। देखना पापा, अब ये आदमी जेल के पीछे हवा खा रहा होगा। अब मैं उसको खुलेआम, आपके ओर मेरी लाइफ़ से जुड़े इंसान के साथ कुछ नहीं होने दूँगी। अब बहुत ही हुआ। अब ये आस्था... पूरी आस्था से उसको बुरी तरह से बर्बाद करके ही दम लूँगी।"
"पापा, आप मेरे जाने की व्यवस्था करिए। मुझे अब बस अपनी आँखों के सामने उसकी बर्बादी ही दिखाई दे रही है, पूरी तरह से बर्बादी।"
To be continued 💫💙
उसकी आँखों में बदले की भावना अब बहुत ही तेज होती जा रही थी। इसलिए अब वो ठान लेती है कि अब वो किसी भी हालत में उसे बदला लेकर ही रहेगी। उसकी इन बातों से अब उसके पापा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
उसके पापा कहते हैं, "बेटा, तुम्हारे लिए मैंने मुंबई जाने की टिकट कर दी है। अब तुम्हें अपना बदला पूरी तरह से मुंबई जाकर ही मिलेगा। लेकिन संभालना अपने आप को..."
उनकी बात सुनकर आस्था अपने आप ही कहती है, "अब मुझे अपनी जान की भी फिक्र नहीं है।"
अब आस्था जैसे उसके मुँह का दम लेकर ही मानेगी, उस तरह से तैयार हो जाती है।
एक दिन बाद, सुबह के 8 बजे, दिल्ली के रेलवे स्टेशन से वो मुंबई जा रही थी। उसे छोड़ने के लिए वो सारे लोग आए थे जो आपस में बात कर रहे थे। उन सभी को बाय बोलते हुए वो खुद अंदर आ जाती है और कहती है, "अब ये सफ़र शुरू। अब मैं कहीं पर भी नहीं रुकना चाहती।" वो इतना कहकर अंदर चली जाती है।
करीबन 20 घंटे के बाद आस्था मुंबई पर कदम रख ही देती है और वो अपना मास्क चढ़ाते हुए कहती है, "कितना इंतज़ार कर रही थी! लेकिन अब नहीं, अब मैं आ गई हूँ। अब तुम्हें सब के सवालों का जवाब देना ही होगा। और उसके लिए मुझे एक अच्छी सी जॉब ढूँढ़नी होगी।"
इधर आस्था मुंबई आ गई थी और वहाँ पर दूसरी ओर दुनिया के सबसे अमीर घराने के मालिक आयुष्मान खन्ना, जिसका बिज़नेस पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में फेमस है, अब वो पूरी तरह से अपने फ़ील्ड में राज करके बैठे हुए हैं। आयुष्मान खन्ना एक बहुत ही बड़ी हस्ती हैं, जिसके नाम से अंडरवर्ल्ड के लोग भी काँप जाते हैं। तो फिर बाहर के लोगों की तो क्या ही बात करूँ। साथ ही साथ उसके एक इशारे पर सारे लोग अपने आप को बदल लेते हैं और वो कुछ भी कर सकता है। उसकी दुनिया के नियम उसके हाथों में हैं। वो दिखने में बेहद ही हैंडसम है, उसकी उम्र करीबन 30 साल की है। उसकी यही उम्र के चलते वो सबसे बुद्धिमान बिज़नेस मैन कहलाता है। और वही खतरनाक आदमी के साथ भीड़ में जा रही है हमारी आस्था। क्या होगा इसका परिणाम, ये तो हमें बाद में ही पता चलेगा।
आयुष्मान खन्ना जो अभी बड़ी सी इमारत से पूरे मुंबई को देख रहा था, उसके हाथ में चाय का कप था। जिसे पीते हुए वो अपने आप ही स्वाद लेते हुए और चाय की चुस्की लेते हुए पूरी तरह से मुंबई city को देखने में मशगूल हो गया था। उसने अपने बदन पर पूरे काले रंग के कपड़े पहने हुए थे।
तभी पीछे से उसका सेक्रेटरी आता है, जिसका नाम राजवीर है। राजवीर आते ही कह उठता है, "सारे काम हो गए बॉस। पिछले साल जो भी लॉस हुआ था, वो लॉस किसने किया था और कैसे, वो सब कुछ पता चल गया है। बस आपके इशारे की देरी है। आप इशारा करें और मैं उसको उड़ा दूँ।"
वो इतना कहकर आयुष्मान के चेहरे के सामने देखने लगता है। तभी आयुष्मान चेहरे पर मुस्कराहट लेते हुए कहता है, "नहीं नहीं राजवीर," (उसकी आवाज़ में एक भारीपन था, जिसको सुनकर हर कोई डर जाए), "उसको तो मैं देखना चाहता हूँ। आखिर कौन है? किसने किया है ये? मुझे ये सब कुछ जानना है। और उसकी हालत क्या करनी है और कैसे करनी है, वो सब कुछ मैं ही करूँगा।"
राजवीर: "जैसा आप कहो बॉस।" वो इतना कहकर अपने हाथ आयुष्मान के टेबल पर चलाने लगता है, जिस पर मॉडर्न साइंस से बने हुए कंप्यूटर की स्क्रीन बड़ी हो रही थी और छोटी हो रही थी। और राजवीर एक तरफ़ इशारा करते हुए कहता है, "बॉस, यही है वो जिसने हमारे साथ धोखा किया है।"
आयुष्मान जब ये देखता है तो पूरी तरह से हैरान हो जाता है और उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो जाती हैं और वो कहता है, "क्या?? सच में इसने ही किया है?" तभी राजवीर कहता है, "हाँ सर, ये सब कुछ इसने ही किया है। हमारे पास पक्का सबूत है।" ये सुनते ही आयुष्मान के हाथ में पकड़ा हुआ कप अपने आप ही टूट जाता है, क्योंकि आयुष्मान ने अपने हाथों से उसके कप पर बहुत ही प्रेशर दिया हुआ था। ये देखकर राजवीर कहता है, "अरे बॉस, ये आप क्या कर रहे हो???"
लेकिन आयुष्मान जैसे उसकी बात सुन ही नहीं रहा था। वो कहता है, "भले ही वो मेरा प्यारा दोस्त क्यों न हो, लेकिन मैं उसे अब नहीं जाने दूँगा।" वो इतना कहकर पूछता है, "कहाँ पर है?"
राजवीर उसे बता देता है कि उन लोगों ने उस आदमी को कहाँ पर रखा है। ये सुनते ही आयुष्मान तुरंत ही भाग जाता है और उसके पीछे-पीछे राजवीर भी। वो दोनों लिफ्ट से होते हुए सीधे बेसमेंट में चले जाते हैं और वहाँ से निकलने के बाद एक बंद कमरे के अंदर जो दिखने में बाहर से मामूली लग रहा था, लेकिन जब वो दोनों अंदर जाते हैं तो वो बहुत ही बड़ा और बहुत ही काले अंधेरे से घिरा हुआ था।
आयुष्मान के अंदर आते ही वहाँ की एक बल्ब की रोशनी शुरू हो जाती है, जिससे अंदर से हल्की-हल्की सी प्रकाश आ रही थी, और वो पूरी तरह से रेड कलर की बनी हुई थी। जब वो बल्ब प्रकाशित होता है, तभी उसकी रोशनी से उस आदमी का चेहरा दिखाई देता है और आयुष्मान गुस्से में आकर उसको एक लात मार देता है। वो आदमी पूरी तरह से बँधा हुआ था और उसकी यही हालत पर जब आयुष्मान मारता है तो वो पूरी तरह से गिर जाता है।
आयुष्मान उसे संभालते हुए कहता है, "क्या हुआ? अब नहीं डर लग रहा है?" वो आदमी सामने था, वो बहुत ही घबरा गया था और उसके मुँह से लगातार खून की बारिश हो रही थी। तभी आयुष्मान उसे अच्छे से बैठता है और वो कहता है, "ये तो कुछ नहीं मेरे प्यारे दोस्त, अगर तुम्हारे जगह पर कोई और होता तो मैं उसे कच्चा चबा लेता।" वो इतना कहकर उस आदमी के गर्दन पर हाथ फेरने लगता है।
क्रमशः
जब आयुष्मान उस आदमी से मिला, तो उसने पहले उसे बुरी तरह मारा। और बाद में उसके पास जाकर बैठकर उसे कहा, "तुम्हें पता है मेरे प्यारे दोस्त, ये तुम हो इसलिए मैं तुम्हें बड़े प्यार से मार रहा हूँ। अगर तुम्हारे जगह पर कोई और होता, तो उसका मैं कब का कचुम्बर बनाकर कुत्तों को खिला दिया होता।"
"मेरे प्यारे दोस्त गौरांग," आयुष्मान ने कहा, "(जिसको अभी बंदी बनाया गया है, उसका नाम गौरांग है) आखिर तुम्हारी वजह क्या थी मुझसे झूठ बोलने की? क्यों किया? और किस लिए?" आयुष्मान यह सब सामने बैठे गौरांग से पूछ रहा था।
जब गौरांग कुछ बोलने की कोशिश करता है, तभी आयुष्मान कहता है, "रुको, लेकिन अब तो वक्त चला गया। अब मुझे कुछ सुनना नहीं है। क्योंकि मैं तुम्हें अब कोई मौका देने वाला नहीं हूँ।" इतना कहकर उसने अपने हाथों से गौरांग की उंगलियाँ मरोड़ दीं। जिसकी वजह से गौरांग के मुँह से बुरी तरह तड़पती हुई चीखें निकल गईं।
यह सुनकर आयुष्मान गौरांग के पास गया और उसके कानों में कहा, "तुम्हें पता है, मुझे किसी भी चीज़ से प्रॉब्लम नहीं है, बस मुझे प्रॉब्लम है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ झूठ से। मुझे यह झूठ बर्दाश्त ही नहीं होता। और तुमने वह झूठ बोलकर मेरी कंपनी को धोखे में रखा, इसलिए मैं तुम्हें मेरे प्यारे दोस्त होने के नाते एक नदी में पोटली बनाकर फेकवा देता हूँ, जिसे मुझे कुत्ते को देने की ज़रूरत न पड़े, ठीक है?"
आयुष्मान के हाथों से कप टूट गया था। इसलिए उसके खून के निशान अभी-अभी उसके हाथों में ही थे और उसके हाथों से होकर गौरांग के चेहरे पर भी लगे थे।
गौरांग के चेहरे पर अपने हाथों को देखकर आयुष्मान राजवीर से कहा, "राजवीर, तुम इसको पहले अच्छी तरह से नहला दो, बाद में उसको अच्छी तरह से सुखा दो, और बाद में और भी अच्छी तरह से उसे नदी में पोटली बनाकर फेकवा दो, ठीक है?"
राजवीर अब आयुष्मान के साथ रहते-रहते निर्दयी हो गया था! और वह भी आयुष्मान की हाँ में हाँ मिलाते हुए अपने कुछ आदमियों को बुला लेता है और जैसे आयुष्मान ने कहा, वैसे ही करने लगता है।
थोड़ी देर बाद आयुष्मान वही बेसमेंट से बाहर आता है और अपने केबिन में जाने के लिए लिफ्ट से ऊपर चला जाता है। वह अपने केबिन में आते ही अपने हाथों को अच्छी तरह से धो देता है और चेयर पर बैठकर कुछ सोचने लगता है।
तभी उसके केबिन में उसकी दूसरी सेक्रेटरी आती है। उसका नाम रिज़ा था। रिज़ा को देखकर आयुष्मान कहता है, "क्या पता चला?"
"सर, पता चल गया है। वह कंपनी मिस्टर ओब्रॉय की है, और ओब्रॉय फैमिली के पीछे एक बड़े ही हाथ का साया है, लेकिन उसके बारे में कुछ नहीं पता चला।"
आयुष्मान ने कहा, "किसी भी करके मुझे सब कुछ पता होना चाहिए।"
"सर, सिर्फ़ तीन दिन का वक्त चाहिए।"
तभी आयुष्मान कहता है, "ठीक है, देता हूँ तुम्हें मैं तीन दिन। अगर यह काम नहीं कर पाई, तो मैं तुम्हें निकाल दूँगा। और मुझे ऐसा स्टाफ नहीं चाहिए जो अपना काम दिए हुए वक्त पर न कर सके, समझी?"
रिज़ा यह सुनते ही थोड़ी घबरा जाती है, लेकिन वह अपने अंदर हिम्मत रखते हुए कहती है, "सर, मैं बिल्कुल यह काम कर दूँगी। आप फ़िक्र मत करिए।" इतना कहकर वह वहाँ से चली जाती है।
उसके जाने के बाद आयुष्मान कहता है, "देखते हैं क्या होता है।"
दूसरी तरफ, आस्था अपने लिए एक पीजी ढूँढ़ लेती है और वहाँ पर जाकर अपने काम में लग जाती है। वह पहले कैसे आयुष्मान के ऑफ़िस में जाए, वह सोचती है, लेकिन अभी उसे वहाँ पर कोई वैकेंसी नहीं मिल रही थी। वह दूसरा कुछ आइडिया सोचती है। तभी उसके ख़बरिया से एक बात पता चलती है कि आयुष्मान ने रिज़ा नाम की सेक्रेटरी को चुटवानी दी है।
यह सुनते ही आस्था के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और वह कहती है, "नहीं, हमें ऐसा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। हम कुछ ऐसा करते हैं जिससे वह अपनी नौकरी खुद ही छोड़ दे। बाद में देखते हैं कैसे मुझे वह नौकरी नहीं मिलती।"
करीबन तीन दिन के बाद, रिज़ा आयुष्मान के केबिन में आती है और वह अपना सिर नीचे कर देती है। तभी आयुष्मान उसे सवालिया निगाहों से देखता है। तभी रिज़ा कहती है, "सर, मुझसे वह काम नहीं हुआ जो आपने दिया था। प्लीज़ सर, आप मुझे नौकरी से निकाल दीजिए।"
वह इतना कहकर उसके सामने देखने लगती है। तभी आयुष्मान कहता है, "क्या मतलब? तुमसे वह कुछ भी काम नहीं हुआ जो मैंने दिया था? क्या सच में? तुम्हें पता है तुम यहाँ चार साल से हो, फिर ऐसा कैसे?"
तभी रिज़ा अपनी रोती हुई आवाज़ में कहती है, "नहीं सर, नहीं हुआ। सर, आप मुझे निकाल दीजिए। मैं कहीं और पर जाकर जॉब कर लूँगी। प्लीज़ सर, आप मुझे निकाल दीजिए।"
यह बात सुनते ही आयुष्मान कहता है, "क्या हुआ है रिज़ा तुम्हें?"
"कुछ नहीं सर, माँ की तबियत अच्छी नहीं है, इसलिए मुझे गाँव जाना होगा।"
आयुष्मान: अगर तुम्हें कोई...
आगे कुछ बोल पाता, इससे पहले ही रिज़ा कहती है, "नहीं सर, नहीं। अब मुझे यहाँ नहीं रहना। माँ का ध्यान रखना है। सर, इसलिए मैं काम नहीं कर पाई। प्लीज़ आप मुझे निकाल दीजिए।"
आयुष्मान उसकी बातों से संतुष्ट नहीं था, लेकिन उसका काम था कि वह उसकी बात सुनकर उसे निकाल दे क्योंकि उसने ही वही शर्त रखी थी, और वह कभी अपनी शर्त पूरी नहीं करता, ऐसा कभी नहीं हुआ था।
इसलिए वह उसे एक लेटर पर साइन करके देता है। उसके देते ही रिज़ा वहाँ से निकल जाती है। उसे इतना तेज़ जाते हुए देख आयुष्मान को कुछ सख्त होता है, और वह राजवीर को कहता है कि रिज़ा की हर हाल में चल पर नज़र रखे।
रिज़ा बाहर आते ही किसी को कॉल कर देती है। उसकी आँखों में लगभग आँसू आ ही गए थे, और वह रोते हुए कहती है, "तुम्हारा काम हो गया है, अब तो मेरी माँ को छोड़ दो।"
क्रमशः
रिजा जैसे ही बाहर आई, वैसे ही रोते हुए किसी को कॉल कर दिया। कॉल करते हुए उसने कहा, "आप का काम हो गया है। अब तो आप मेरी मां को छोड़ दीजिए।" दूसरी तरफ से आवाज़ सुनाई दी, "तुम्हारी मां अब सही सलामत है। तुम सब अपने घर जा सकती हो और अपनी मां से मिल सकती हो।" इतना सुनते ही वह खुश हो गई और कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। पहले ही एक लड़की की गहरी आवाज़ सुनाई दी, जो कह रही थी, "अगर ये बात तुमने किसी को कहने की ज़रूरत भी की तो देखना... तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा... क्या पता बाद में मां मिले न..."
वह आगे बोल पाती, इससे पहले ही रिजा बोली, "नहीं नहीं, मैं किसी को कुछ नहीं कहूंगी। तुम बेफ़िक्र रहो और हाँ... मेरी मां को छोड़ दो..."
वह इतना कहकर कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
रिजा वहाँ से चली गई। उसे जाता हुआ देख राजवीर बोला, "इसे क्या हो गया है? ये किसे रोकर बात कर रही थी?" तभी उसके मन में एक आइडिया आया। और वह रिजा के घर का कनेक्ट नंबर लगाया और उसकी माँ के कॉल उठाने का इंतज़ार करने लगा।
थोड़ी देर रिंग जाने के बाद दूसरी तरफ से कॉल उठा लिया गया। आवाज़ आई, "हाँ, मैंने ही रिजा को घर पर आने के लिए कहा था क्योंकि मैं अब अकेली हूँ और मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती इसलिए..." ये सुनते ही राजवीर को यकीन हो गया कि यह बात सच है और वह बाद में बात करने के बाद कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। दूसरी तरफ, कॉल डिस्कनेक्ट होते ही, रिजा की माँ के पास से एक बंदूक ले ली गई। और एक मास्क पहनी हुई, पूरे काले कपड़े पहनी हुई लड़की हँसते हुए बोली, "ये हुई ना बात... अच्छा, ये बात किसी को मत कहना, बुढ़िया, वरना ये तुम्हारी बच्ची के लिए अच्छा नहीं होगा, समझी?"
तभी रिजा की माँ बोली, "ठीक है, ठीक है। मैं ये बात किसी को नहीं कहूंगी।"
इतना सुनते ही वह लड़की वहाँ से गायब हो गई और वहाँ से निकल गई।
राजवीर ने आयुष्मान को बताया कि उसकी माँ बीमार हैं और उन्होंने ही रिजा को बुलाया है। इतना सुनते ही आयुष्मान बोला, "क्या पक्का?"
राजवीर: "जी सर, मैंने खुद बात करी है उसकी माँ से और ये बात सच है।" यह बात सुनकर आयुष्मान बोला, "ठीक है... जाने दो... अब तो नहीं सेक्रेटरी ढूंढने के लिए है, कोई चाहिए... हमें ये देखना है कि इतने कम में कैसे मिल सकती हैं?" ये सारी बातें राजवीर आयुष्मान को कह रहा था। उसकी बात सुनकर आयुष्मान बोला, "कोई बात नहीं, जाने दो... अब हम खुद कुछ मैनेज कर लेंगे... और हाँ, अगर कोई नया स्टाफ़ आए तो बता देना..."
यह बात सुनते ही राजवीर "ओके" बोला।
दूसरे दिन, राजवीर भागते हुए आया और आयुष्मान से बोला, "सर, सर... हमारी सिक्योरिटी को कुछ प्रॉब्लम हो गई है... मतलब कुछ ऐसा हुआ है कि हमारा सारा फ़ाइनेंसियल डाटा और हमारी सारी चीजें अब हैक हो रही हैं..."
आयुष्मान अपनी चेयर पर आराम से बैठा हुआ था। यह सुनते ही बोला, "क्या?? लेकिन आज तक किसी ने ज़रूरत नहीं की है मेरे सामने ऐसा कदम उठाने की... लेकिन कौन है?... क्या हुआ???" यह सब कुछ पूछते हुए वह भी सिक्योरिटी रूम में चला गया।
वह बोला, "सिक्योरिटी सिर्फ़ फ़िज़िकल नहीं होती... साइबर सुरक्षा जो आज के ज़माने में ज़्यादा ज़रूरत है, उसमें हमारी सारी इन्फ़ॉर्मेशन, हमारे डाटा और हमारी सारी चीजें आजकल सारी बातें साइबर यानी की कंप्यूटर में ही होती हैं... इसलिए हमें उसका कुछ खास तरह से ध्यान रखना पड़ता है... और अगर कई बड़ी कंपनी में साइबर सुरक्षा पर हमला होता है तो उसकी बड़ी मेहनत पर पानी फिर सकता है..."
आयुष्मान अपनी कंपनी (HM) में अब यह सहन नहीं कर सकता था। आयुष्मान को कोई और नहीं कमज़ोर कर सकता, उसे कोई कर सकता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी कंपनी... तभी राजवीर बोला, "सर, सर, पता नहीं कौन है... उसने इस तरह से सारी सुरक्षा हैक की है कि हमारे जाने-माने साइबर सिक्योरिटी भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं... और एक के बाद एक फ़ाइल डिलीट होती जा रही है..."
यह सुनते ही आयुष्मान गुस्से भरी आवाज़ में बोला, "मालूम करो ये किसने किया है... उसे पहले कोई इसके लिए ढूँढो... की उसको हरा पाए..." राजवीर आयुष्मान की बातों को जवाब देते हुए बोला, "लेकिन सर, हमारे सारे एम्प्लॉयी से नहीं हो रहा है... अब क्या करें?"
आयुष्मान: "ये मेरा काम नहीं है... कुछ न कुछ करो, वरना तुम्हारी नौकरी खतरे में है..." इतना कहकर आयुष्मान वहाँ से निकल गया और सीधे अपने केबिन में जाकर बैठ गया।
आयुष्मान के जाते ही राजवीर अपने मन में बोला, "अगर आपसे नहीं हो रहा है तो हमसे कैसे होगा? सर...?" तभी उन सभी के भागा-दौड़ी में किसी की नज़र एक व्यक्ति पर नहीं गई जो वहाँ पर कब से खड़ा था/खड़ी थी...
उन सभी लोगों के पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी, "If you don't mind... अगर आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो क्या ये मैं कर दूँ...?"
इन सब के बीच किसी की पतली आवाज़ सुनकर वे सब लोग एक तरफ़ देखने लगे। वह यह देखकर हैरान हो गए कि यह कोई लड़का नहीं बल्कि एक खूबसूरत लड़की कह रही है। यह देखकर सभी लोगों की निगाहें उस दिशा पर ही जम गई जहाँ पर यह आवाज़ आ रही थी।
To be continued 💫 💙
एक पतली सी आवाज़ सुनकर सभी लोग उस दिशा की ओर देखने लगे, जहाँ से आवाज़ आई थी। सबके मुँह खुले के खुले रह गए। वह कोई और नहीं, बल्कि आस्था थी। आस्था ने शॉर्ट, ब्लू कॉलर की ड्रेस पहनी हुई थी, जो उसके घुटनों तक आ रही थी। उसने अपने बाल खुले छोड़े हुए थे और हाथ में एक हैंड बैग रखा हुआ था। उसके पतले, गुलाबी होठों पर रेड वाइन कलर की लिपस्टिक लगी हुई थी और मोटी-मोटी आँखों पर काजल लगाया गया था। आस्था का लुक बेहद अलग था।
वो सब आस्था को देख रहे थे, तभी राजवीर भी फ्रीज़ हो गया। आस्था जैसी खूबसूरत लड़की को वहाँ देखकर… उन सभी पुरुष कर्मचारियों के बीच आस्था अकेली लड़की थी जो वहाँ खड़ी थी। तभी, उनके पीछे से एक कड़क आवाज़ सुनाई दी। वह आयुष्मान की थी।
"यहाँ क्या हो रहा है???"
आवाज़ सुनकर आस्था पीछे मुड़ी और आयुष्मान को देखने लगी। उसकी आँखों में अब तक के सारे नज़ारे घूमने लगे। आयुष्मान आस्था को देखते ही बाकियों की तरह फ्रीज़ सा हो गया।
आयुष्मान दूर खड़े राजवीर को इशारा करके पूछा,
"ये कौन है?"
राजवीर ने इशारे में अपने कंधे ऊंचा कर दिए। यह साफ़ पता चल रहा था कि यह बात राजवीर को भी नहीं मालूम थी।
आस्था ने उन सभी से कहा, "मेरे पास इसका हल है। मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में पहले से काम कर चुकी हूँ, और आप चाहें तो मैं इसे एक चुटकी में खत्म कर सकती हूँ।" वह इतना कहकर अपनी तीव्र नज़रों से आयुष्मान की ओर देखने लगी। यह देखकर राजवीर बोला, "आप लेकिन कैसे?"
आस्था: "वो इस तरह से…" वो इतना कहकर कीबोर्ड के पास आ गई और अपनी उंगलियों को इस तरह घुमाने लगी कि वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान हो गए। उसकी उंगलियाँ जैसे हवा में नाच रही हों, इस तरह फ्लोट हो रही थीं।
यह देखकर आयुष्मान भी एक पल के लिए हैरान हो गया। वह लगातार आस्था की ओर देख रहा था। पाँच मिनट बाद आस्था अपने हाथ खींचते हुए बोली, "देखो, ये हो गया।" वह इतना कहकर आयुष्मान के सामने और फिर राजवीर के सामने देखने लगी। वहाँ मौजूद सभी कर्मचारी यह देखकर हैरान हो गए कि जो कोई हैक कर रहा था, वह अब बंद हो गया था और साथ ही साथ वह दिख भी नहीं रहा था। जो भी फाइलें डिलीट हो गई थीं, वे सभी रिकवर हो गई थीं। यह देखते ही आयुष्मान की भी आँखें बड़ी हो गईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और वहाँ से आस्था को बिना धन्यवाद कहे चला गया। यह देखकर आस्था के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई।
उसकी मुस्कान को कोई नोटिस नहीं किया। वहाँ खड़ा राजवीर बोला, "जी मिस, आप…" आस्था ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, "जी, मेरा नाम सान्या है, सान्या मिसरा। मैंने सुना है यहाँ सेक्रेटरी की वैकेंसी है, इसलिए मैं यहाँ अपना इंटरव्यू देने आई हूँ। मेरा अनुभव वर्षों पुराना है। अगर आप चाहें तो मेरे सारे डॉक्यूमेंट भी पढ़ सकते हैं।"
तभी राजवीर के दिमाग में कुछ ऐसा आया कि उसने सान्या, यानी आस्था को वेटिंग रूम में बैठने का इशारा किया। आस्था वेटिंग रूम में चली गई। तभी राजवीर भागते हुए आयुष्मान के केबिन में आ गया और बोला, "सर, मुझे आपसे कुछ बात करनी है।" आयुष्मान ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, "उस लड़की को मेरी सेक्रेटरी की जॉब दे दो।" यह सुनते ही राजवीर के मन में शांति आ गई। वह इस बात को लेकर फिक्र कर रहा था कि वह अपने बॉस को कैसे मनाएगा, लेकिन उसके बॉस ने ही सामने से कह दिया कि वह लड़की को जॉब मिल जाए।
तभी राजवीर किसी को कॉल करते हुए बोला, "उसे अंदर भेज दो।"
तभी आस्था अपने बोल्ड लुक में अंदर आई। उसकी ऊँची हीलों की आवाज़ आयुष्मान के कानों में जैसे घर कर गई हो। उसकी आँखों में आयुष्मान जैसे पहले ही पिघल गया हो, उसके हाथों में जैसे डूब सा गया हो। यह सब देखते हुए राजवीर अपने मन में ही बोला, "लगता है अगली खबर होगी, बॉस का लफड़ा उसकी सेक्रेटरी के साथ…"
तभी आस्था उनके करीब आती है और कहती है, "मेरा नाम सान्या है, सान्या मिसरा। गुड मॉर्निंग सर।" उसकी विनम्र आवाज़ सुनकर आयुष्मान उसकी आवाज़ की गहराई में जैसे दलदल की तरह डूबता गया, लेकिन उसने खुद को काबू में किया और नज़रें हटा लीं। उसकी नज़रें हटते ही सान्या ने तुरंत अपने डॉक्यूमेंट उसे दिखा दिए।
आयुष्मान ने उसका अच्छी तरह इंटरव्यू ले लिया। वहाँ खड़ा राजवीर यह देखकर हैरान था कि जिसने आज तक किसी लड़की की आँखों में नहीं देखा, उसकी नज़रें किसी लड़की में फ्रीज़ सी हो गई हों। यह देखकर उसे अपने बॉस के आने वाले भविष्य में दोनों को साथ में दिखाई दे रहे थे। वह वहाँ खड़े-खड़े सब देख रहा था। यहाँ पर सान्या धन्यवाद कहने के बाद हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाने ही वाली थी कि उसे सेक्रेटरी के नियम याद आ गए। उसने खुद को काबू में किया। आयुष्मान बोला, "ठीक है, आप कल से यहाँ जॉब कर सकती हो।" उसकी बात सुनकर सान्या मन ही मन में हँसते हुए बोली, "तूने अपनी बर्बादी का रास्ता खुद चुना है। अब देखना, कैसे तेरे नाक के नीचे से तेरी बर्बादी करती हूँ।"
क्रमशः…
जब आयुष्मान ने सान्या को रख लिया, तब आस्था मन ही मन खुश होते हुए बोली, "अब देखती हूँ और करती भी हूँ। अब होगी तुम्हारी बर्बादी की सीधी ऑन…" वो इतना कहकर अपने मन ही मन में बहुत खुश हो रही थी।
तभी आयुष्मान बोला, "ठीक है मिस सान्या मिसरा, आप सब यहाँ से जा सकती हो। क्योंकि आपका मुझे कल है। ठीक है…"
वो आयुष्मान के मुँह से ये बात सुनकर पूरी तरह से हाँ कहकर बोली, "ठीक है। Ohk sir, nice to meet you…" इतना कहकर वह वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद आयुष्मान ने राजवीर को भी भेज दिया। जब दोनों वहाँ से चले गए, तब आयुष्मान मुस्कुराने लगा। उसकी मुस्कान बेहद खतरनाक लग रही थी। उसकी मुस्कान के आगे एक भेड़िया भी कुछ नहीं, जैसे वह ही पावरफुल हो। वह अपनी चेयर से खड़े होकर अपने लिए एक चाय का कप बनाया और कांच वाले हिस्से में जाकर वापस से पूरे मुंबई शहर को देखते हुए चाय की चुस्की लेते हुए बोला, "क्या लगा? मुझे कुछ पता नहीं चलेगा? मिस सान्या मिसरा… आप में कुछ बात है… आज जो भी है, वो सब कुछ एक छलावा है। आपका मकसद कुछ और ही है… अब मैं भी आपके उस मकसद को पूरा करने में मदद करूँगा…"
"तो फिर आप रेडी रहिए मिस सान्या, कल बेहद ही प्यारी मुलाकात होगी…" इतना कहकर वह जोर-जोर से हँसने लगा। हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा!
उसकी हँसी उसके चैंबर में पूरी तरह से गूंज रही थी, लेकिन उसकी हँसी और भी ज़्यादा तेज होती जा रही थी।
तभी उसके फ़ोन में किसी का कॉल आया और वह कॉल का नंबर फ़्लैश होते हुए देख अपने फ़ोन को एक तरफ़ रख दिया। उसे उठाया नहीं। तभी उसके लैंडलाइन पर वापस कॉल आया। अब लैंडलाइन नंबर पर किसी का नंबर तो दिख नहीं सकता, इसलिए वह कॉल उठा लिया। तभी दूसरी ओर से एक आवाज़ सुनाई दी, जो उसकी दादी की थी। उसकी दादी बोली, "बेटा तुम कहाँ पर हो? अगले चार हफ़्ते से तुम अपने घर पर नहीं आए हो। कहाँ पर हो?" यह सुनते ही आयुष्मान अपनी दादी के साथ एकदम नर्म आवाज़ से बोला, "दादी आप फ़िक्र मत करिए, मैं किसी काम की वजह से अभी मुंबई में नहीं हूँ। मैं जल्दी ही कुछ ही दिनों में आप में आ जाऊँगा…" इतना कहकर उसने अपनी दादी को किस किया। अगर यह बात किसी ऑफिस वाले एम्प्लॉयी ने देख ली होती, तो कोई भी बिलीव ही नहीं करता कि यह वही बॉस है जो हर किसी को कच्चा चबा लेते हैं। उसका यह रूप सभी के सामने एकदम अनजान है और यह रूप वह किसी को नहीं दिखाना चाहता क्योंकि यह रूप सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी दादी के लिए है और किसी का कोई भी हक़ नहीं है।
थोड़ी देर बाद वहाँ पर राजवीर आ गया और वह बोला, "सर, सब कुछ हो गया है। आपने जो-जो कहा था वो सब कुछ… बस आपने मुझे यह नहीं बताया आपने वो सब कुछ क्यों कहा था?"
तभी आयुष्मान उसे आँखें दिखाते हुए बोला, "मैंने जितना कहा है, उतना ही करो। कुछ भी ज़्यादा बोलना नहीं, तुम्हें ज़रूरत नहीं है…"
राजवीर यह सुनते ही बोला, "I am really sorry 😔 सर…"
उसका यह फेशियल एक्सप्रेशन देखकर आयुष्मान अपनी कड़क आवाज़ में बोला, "अब यहाँ पर मत खड़े रहो, जाकर अपना काम करो और हाँ, दूसरों को भी करने दो, ठीक है…"
यह सुनते ही राजवीर का मुँह बन गया और वह आगे कुछ बोले बिना ही वहाँ से चला गया।
उसके जाने के बाद आयुष्मान अपने कुछ कामों में लग गया और रात के बारह बज गए। उसे अपने कामों से बेहद प्यार था और वह ऐसे थोड़ी ना बिज़नेस वर्ल्ड का राजा कहलाता है। वह अपना काम पूरे लगन से करता है।
अपने काम ख़त्म करने के बाद वह वापस से अपने लिए एक कप चाय बनाया और थकान की वजह से अपने सिर को चेयर पर रखकर सो गया। "(क्या तुम मुझे कभी नहीं छोड़कर जाओगे ना?? नहीं, हम दोनों हमेशा से ही साथ में रहेंगे… हम दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं… कुछ नहीं होगा, चलो मेरे साथ… बचाओ बचाओ…) " अचानक से आयुष्मान अपने सपने से बाहर आ गया। उसकी हालत बुरी तरह से ख़राब थी। उसके चेहरे पर पसीने की धारा बहने लगी और वह जोर-जोर से साँस लेने लगा। उसकी साँस की गति दिखा रही थी कि वह उस सपने से कितना डरा हुआ है।
आयुष्मान अपने आप से बात करते हुए बोला, "आज भी मुझे नींद नहीं आने वाली…" दरअसल, आयुष्मान को इनसोम्निया नाम की बीमारी है। इस बीमारी में इंसान को नींद नहीं आती है और शायद सभी जाएँ तो बहुत ही कम मात्रा में, लेकिन वह पूरी तरह से सो नहीं पाता और यह सब होता है हमारे साथ घटित घटनाओं के कारण। कोई ऐसी घटना जो हमारे दिल और दिमाग में घर करके बैठ गई हो और उसका प्रभाव हमारे ऊपर बहुत ही ख़राब पड़ा हो… और कभी-कभी हमारे अनकॉन्शियस माइंड में कुछ इस तरह से छवि आती है कि हमें कभी भी नाइटमेयर के चलते सोने नहीं देती और वही बीमारी थी हमारे आयुष्मान को। वह कई महीनों से, यहाँ तक यह भी कहें कि वह कई सालों से अच्छी तरह से नींद नहीं ले पा रहा है। उसे नींद के लिए सेडेशन की ज़रूरत पड़ती है जो हमारे माइंड को रिलैक्स करती है और सेडेटिव इफ़ेक्ट डालती है जिसकी वजह से हमें नींद आती है…
जेसे-तेसे दवाई लेने के बाद आयुष्मान को नींद आ गई। और वह वहाँ पर चेयर पर ही सो गया।
सुबह के छह बजे राजवीर केबिन में आया। और उसने देखा कि आयुष्मान वहाँ पर ही सो गया था। यह देखकर राजवीर कन्फ्यूज़ हो गया, और अपने मन में कहा, "अपने बड़े-बड़े मँशन को छोड़कर कोई यहाँ कैसे सो सकता है?? आखिर बॉस को रात में क्या हो जाता है???" अभी वह यह सब कुछ सोच रहा था, तभी उसकी नज़र उसके टेबल पर पड़ी जहाँ पर एक दवाई की डिब्बी थी। उसे देखकर राजवीर को पता चल गया कि आयुष्मान को अच्छा नहीं होगा, इसलिए उसने कोई-सी भी दवाई ली होगी। तभी उसने देखा कि आयुष्मान के शरीर पर कुछ हलचल हो रही थी! यह देखकर राजवीर बड़े ही अड़ब से खड़ा हो गया, और वह आयुष्मान की आँख खुलने का इंतज़ार करने लगा।
आयुष्मान अपनी आँखें खोला तो पहले ही राजवीर को अपने सामने पाया, और वह बोला, "तुम इधर??"
"जी सर, आप ऑफ़िस में ही सो गए थे?? आप घर क्यों नहीं जाते???" राजवीर ने कहा।
"वो दरअसल मुझे कुछ काम था इसलिए… अच्छा, सारी व्यवस्था हो गई???" आयुष्मान ने कहा।
"अरे हाँ, मैं यही कहने के लिए आया था कि हाँ, सारी व्यवस्था हो गई है। बस आपकी सिग्नेचर चाहिए।" राजवीर ने कहा।
आयुष्मान अपने पॉकेट में पेन निकाला, और कहा, "लो…"
आयुष्मान ने सिग्नेचर कर दिया।
उसके सिग्नेचर करने के बाद वह वहाँ से चला गया, और आयुष्मान भी अपने केबिन में बने एक सीक्रेट कमरे में जाकर वहाँ पर बने बाथरूम में चला गया, और अपने आप को शावर करने लगा। वह कमरा कुछ इस तरह से बना हुआ था कि वैसे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा, लेकिन आज आयुष्मान कुछ जल्दी में था और वह कमरा अच्छी तरह से लॉक करना भूल गया। अब लॉक नहीं है तो किसी को भी पता चल जाएगा कि यहाँ एक सीक्रेट कमरा है। तभी वहाँ पर एंट्री हुई हमारी हीरोइन, सान्या की, मतलब कि आस्था की। चलिए, आज क्या होता है? देखते हैं…
सान्या जब केबिन में आई, तो उसे आयुष्मान कहीं पर भी दिखाई नहीं दिया और वह सोची, "यही ही अच्छा टाइम है कुछ न कुछ पता लगाने का।" वह कुछ सोचते हुए जल्दी-जल्दी आयुष्मान के कंप्यूटर पर जाकर कुछ सर्च और कुछ फ़ाइल ढूँढने लगी। तभी उसके हाथ अचानक से रुक गए, और वह जिस तरफ़ दरवाज़ा खुला था, वहाँ पर उसकी नज़र गई। जब उसकी नज़र वहाँ पर पड़ी तो उसे सुनाई दिया वहाँ पर से कुछ आवाज़। वह आवाज़ सुनकर वह उस दिशा की ओर आगे बढ़ी। दरअसल, वह लॉक रूम/सीक्रेट रूम आयुष्मान के फ़िंगरप्रिंट से ही खुलते हैं, लेकिन अभी पहले से ही दरवाज़ा खुला था। बाहर से देखती है तो वह एकदम बुक शेल्फ़ की तरह लग रहा था। अगर यह बंद होता तो कोई भी नहीं कह पाता कि यह दरवाज़ा है।
"अरे, ये तो एक खुफिया दरवाज़ा है… लेकिन अंदर से पानी की आवाज़ कैसे आ रही है???" सान्या ने सोचा। वह यह देखने के लिए अंदर चली गई। जब अंदर गई तो देखती है एक केबिन के पीछे बहुत ही बड़ा कमरा है, जिसके अंदर डबल बेड है, टीवी और वो सारी सुविधाएँ हैं जो एक कमरे में होती हैं। उसके अंदर जाते ही वह गलती से दरवाज़ा भी बंद कर देती है। अब अंदर से बाहर आने के लिए भी आयुष्मान के फ़िंगरप्रिंट की ज़रूरत थी।
और उसको इस बात की भनक ही नहीं थी। वह अंदर बने कमरे का नज़ारा ले रही थी। अंदर के कमरे को देखते ही उसका मुँह तो जैसे खुला का खुला रह गया। तभी उसकी नज़र कांच के बने बाथरूम में नहा रहे आयुष्मान पर पड़ी। जब वह आयुष्मान को नहाते हुए देखती है तो उसकी आँखें आयुष्मान के ऊपर ही रह जाती हैं। उसकी मस्कुलर बॉडी और उसकी बॉडी पर बने ये मसल्स… Uff🥵 क्या ही लग रहा है… उसको नहाते हुए देखना मतलब… सान्या तो पहले एक तरफ़ से देखती ही रहती है, लेकिन कुछ मिनट के बाद वह पीछे मुड़ने वाली होती है, तभी उसके कानों में आवाज़ सुनाई देती है। उस आवाज़ को सुनकर सान्या पीछे मुड़ती है तो मस्कुलर बॉडी के साथ टॉवल को लपेटे हुए आयुष्मान अपने गीले बालों के साथ हाथ पर हाथ रखकर खड़ा था, और अपनी तीखी नज़रों से सान्या को देख रहा था। सान्या को देखते ही वह बोला, "तुम इधर क्या कर रही हो???" यह सवाल सुनते ही सान्या अपनी हड़बड़ी आवाज़ में बोली, "वो… वो… मैं…" वह बोलना कुछ और जा रही थी, लेकिन उसकी नज़र आयुष्मान के डोले-सोले पर ही टिकी हुई थी। उसे देखकर आयुष्मान को पता चल जाता है सान्या भी दिखने में hot and sexy के साथ-साथ क्यूट थी, लेकिन आज उसकी बोली जैसे बंध ही गई हो।
आयुष्मान को पता चल गया कि उसकी नज़र उसके बाजू पर टिकी हुई थी, इसलिए वह धीमे-धीमे करके अपने कदम आस्था की ओर, मतलब कि सान्या की ओर बढ़ाने लगा। उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए वह कह रहा था, "यहाँ क्या कर रही हो???" तभी सान्या बोली, "अरे… मैं… मैं…" वह भी घबरा गई, क्योंकि आयुष्मान उसके पीछे-पीछे ही आ रहा था। सान्या को पता नहीं चलता कि वह कब बेड के इतने करीब आ जाती है, और जैसे ही आयुष्मान अपना अगला कदम बढ़ाता है, वैसे ही सान्या अपना कदम पीछे लेती है, लेकिन तभी ही वह बेड से टकरा जाने के बाद बेड पर गिर जाती है, और बेड पर ही लेट जाती है। अब सान्या की साँसें जोर-जोर से फूल रही थीं क्योंकि आयुष्मान भी उसके ऊपर और एकदम से उसके करीब आ जाता है। यह देखकर सान्या की तो आँखें बंद हो जाती हैं। जब आयुष्मान सान्या के नज़दीक जाता है तब उसके चेस्ट पर सान्या के साँसों की आवाज़ सुनाई देती है, और…
आगे क्या होगा?? 😂 यह जानने के लिए आगे का एपिसोड पढ़ें 😜
जब आयुष्मान उसके करीब जा रहा था, तभी सान्या पीछे बेड से टकराने के कारण बेड पर गिर गई। अब उसकी साँसें बहुत फूल रही थीं। उसकी हार्टबीट बहुत तेज हो गई थी। और वो देखती है कि आयुष्मान भी उसकी तरह ही आगे बढ़ रहा था। वह आस्था के ऊपर जाता है, तभी सान्या की साँसें आयुष्मान की बॉडी से टच हो रही थीं। पता नहीं क्यों, लेकिन एक पल के लिए आयुष्मान फ़्रिज हो जाता है। उसे इस अहसास से कुछ याद आ जाता है और वह आस्था के चेहरे पर देखता है। वह देखता है कि उसकी आँखें बंद कर दी हैं और उसकी साँसें जैसे फूल रही हों। यह देखते ही आयुष्मान एक पल के लिए कुछ सोचता है, लेकिन वापस से उसकी चेस्ट पर डांस टकराने के कारण पता नहीं उसे क्या हो जाता है। वह अपने आप को समय के करीब जाने से नहीं रोक पाता और उसके करीब जाकर उसके गाल पर एक प्यारी सी किस कर देता है।
उसकी किस इतनी तेज थी कि सान्या के मुँह से "आह..." की आवाज निकल जाती है, जो आवाज आयुष्मान को उत्तेजित करने के लिए काफी थी। यह आवाज सुनते ही पता नहीं आयुष्मान की बॉडी पर जैसे खून सवार हो गया हो। वह पूरी तरह से सान्या को किस पर किस करने लगता है।
"पता नहीं मैं कहाँ पर आ गई। मुझे जाना होगा, वरना ये कुछ भी कर देगा," आस्था अपने मन में कहती है। लेकिन आयुष्मान की पकड़ बहुत तेज थी और पता नहीं क्यों, लेकिन उसे कहीं तक आयुष्मान का टच अच्छा लग रहा था।
आयुष्मान धीरे-धीरे करके सान्या के हाथों के करीब आ जाता है और उसके होठों और अपने होठों के बीच फँसाकर पैशनेट किस करने लगता है। आस्था अपने आप को निकलने के लिए जूझ रही थी और उसे अपने हाथों से मार भी रही थी, लेकिन उसके ये हाथ आयुष्मान की बॉडी पर वर्क नहीं करते। अब आस्था की साँसें फूलने लगती हैं, लेकिन आयुष्मान उसे बड़े ही पैशनेट होते हुए किस करता है।
अब आस्था भी हार मान लेती है, लेकिन अब आस्था के अंदर से कुछ अजीब सी फीलिंग आने लगती है और वह भी न चाहते हुए पता नहीं कैसे, लेकिन आयुष्मान को साथ देने लगती है। वह भी आयुष्मान को किस करने लगती है। आयुष्मान अब अपनी तरफ से पूरा कंट्रोल खोता जा रहा था और वह पूरी तरह से अब बेकाबू हो गया था। वह धीरे-धीरे करके सान्या के ऊपर से उसके कपड़े निकालने लगता है।
और थोड़ी देर में, वे दोनों एक अलग सी मदहोश करने वाली दुनिया में खो जाते हैं। आस्था के चेहरे से दिख रहा होता है कि वह कितना तड़प अनुभव कर रही है, लेकिन वह पूरी तरह से अपने आप को आयुष्मान को सौंप चुकी थी।
थोड़ी देर में दोनों ही थक-हारकर सो जाते हैं, करीबन 1 बजे। आस्था की नींद खुलती है और उसे अपने पेट के हिस्से में दर्द की अनुभूति होती है। वह अपने पेट पर हाथ रखकर कहती है, "मुझे इतना दर्द क्यों हो रहा है?? आखिर मैंने कुछ ऐसा खाया भी नहीं था।" तभी वह अपने आस-पास देखती है। वह एक कमरे में थी। तभी उसे याद आता है कि उसके साथ क्या-क्या हुआ था, लेकिन उसे विश्वास ही नहीं था। वह कहती है, "यह नहीं हो सकता। मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं अपने सबसे बड़े दुश्मन के साथ नहीं सो सकती।" वह इतना कहकर अपने ऊपर रखी गई चादर से अंदर झाँकने की कोशिश करती है। तभी उसे यकीन हो जाता है कि यह उसके साथ सच में हुआ है और वह अपने ही दुश्मन के साथ बेड शेयर कर चुकी है। यह सोचते ही उसके सामने सिया का और उसके पापा का चेहरा घूमने लगता है और वह अपने दोनों हाथों से अपने माथे को पकड़ लेती है।
थोड़ी देर बाद, जब वह अपने आप को सिर पर हाथ रखकर बैठी हुई होती है, तभी उस कमरे का दरवाजा खुलता है और वह इस आवाज से उसी दिशा को देखने लगती है। जब वह उसी दिशा में देखती है, तो उसे पता चलता है कि उस तरफ से आयुष्मान आ रहा होता है। अभी आयुष्मान ने ब्लैक कलर की शर्ट और पैंट पहना हुआ था, जिस लुक में वह बेहद ही डैशिंग लग रहा था। उसको आते हुए देख आस्था अपने आप को मुँह के अंदर छिपा लेती है और आयुष्मान अपनी तीखी नज़र से सान्या को देखने लगता है।
आयुष्मान की नज़रों से अब सान्या को डर सा लगने लगता है और वह अपने मुँह को छिपाने लगती है। तभी आयुष्मान एक चेयर लेकर सान्या के करीब जाते हुए कहता है, "ये क्या किया तुमने?? तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई थी मेरे करीब आने की?? आई तो आई तुम इस कमरे में कैसे आ गई???"
यह सुनते ही आस्था को उसके ऊपर गुस्सा आने लगता है और वह अपना चेहरा बाहर निकालते हुए कहती है, "ये क्या कह रहे हो?? मैं जब यहाँ आई तब आप नहीं थे। मुझे अंदर से आवाज आने लगी थी, इसलिए मैं यहाँ आई थी। और जब आई तो आप नहा रहे थे और आप ही मेरे करीब आ रहे थे और वो सब भी आप ने ही किया था।"
आयुष्मान यह सुनते ही अपनी भौंहें ऊपर चढ़ा लेता है और वह कहता है, "क्या कहा??? मैंने किया??? मैंने कुछ नहीं किया था।"
"तो फिर मैंने अकेले किया सब कुछ???" आस्था/सान्या।
ये बोलने के बाद सान्या को पता चलता है कि उसने यह क्या कहा और वह खुद ही चुप हो जाती है। यह सुनते ही आयुष्मान भी कुछ नहीं बोलता और वह भी चुप हो जाता है।
आस्था अपना मुँह नीचे करके देख रही थी और उसे इस हालत में देखकर आयुष्मान कहता है, "चलो अब बाहर। कोई भी नहीं है। सब लोग लंच ब्रेक के लिए गए हैं। अभी तुम्हें कोई नहीं मिलेगा।"
"क्या? लंच ब्रेक?? कितने बजे???" वह हैरानी भरी आवाज़ से कहती है।
आयुष्मान अपने हाथ में बंधी क्लासिकल घड़ी को देखकर कहता है, "1:30 बज गए हैं। चलो अब।"
वह इतना कहकर खड़ा हो जाता है और अपना मुँह फ़िरा लेता है और आस्था की तरफ पीठ करके खड़ा हो जाता है और कहता है, "अपने कपड़े पहन लो।" यह सुनते ही आस्था को अपने आप में ही शर्मिंदा सी महसूस होती है और वह थोड़ी देर बाद बेड पर ही कपड़े चेंज करने लगती है।
उसके कपड़े पहनने के बाद ही आयुष्मान कहता है, "चलो अब।"
सान्या जब बेड पर से खड़े होने की कोशिश करती है, तो उसके मुँह से "आह" जोर से निकल जाती है।
जब आयुष्मान कमरे में आया, तब आस्था ने अपना मुँह नीचे कर लिया। उसे अपने ऊपर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने यह सब कर लिया, वह भी अपने ही दुश्मन के साथ। लेकिन अब उसे यह भी यकीन था कि जो हुआ, उसे बदला नहीं जा सकता। इसलिए उसने अपने आँसुओं पर काबू कर लिया। तभी आयुष्मान उसके करीब आया और कहा, "अपने कपड़े पहन लो, मैं नहीं देख रहा।" इतना कहकर वह अपनी पीठ दिखाकर खड़ा हो गया।
जब आस्था खड़ी होने की कोशिश करने लगी, तब उसके पेट में बहुत ज़्यादा दर्द हुआ। उसकी दर्द भरी आवाज़ सुनकर आयुष्मान अपनी जगह पर रुक गया और उसके सामने देखकर पूछा, "क्या हुआ तुम्हें?"
"कुछ नहीं, थोड़ा सा दर्द है," आस्था ने कहा।
यह सुनते ही आयुष्मान की नज़र उसके पेट के हिस्से पर गई। और फिर उसने उसी बिस्तर के एक कोने पर खून के धब्बे देखे। यह देखकर उसे पता चल गया कि आस्था कुंवारी थी, इसलिए उसे ज़्यादा दर्द हो रहा है। यह देखकर वह कुछ सोचने लगा और बोला, "एक काम करो, तुम अस्पताल जाकर आओ और हो सके तो आज की छुट्टी भी ले लेना। ठीक है?"
यह सुनते ही आस्था को राहत मिली। "ओह सर," उसने कहा और धीरे-धीरे चलने लगी। उसने देखा कि बाहर जाने के लिए भी आयुष्मान के फिंगरप्रिंट की ज़रूरत है। वह यह सब बारीकी से देख रही थी ताकि उसे आने वाले समय में आसानी हो।
वह वहाँ से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद आयुष्मान अकेला केबिन में बैठा रहा। उसके साथ और आस्था के साथ हुए हादसे का पूरा दृश्य उसकी आँखों के सामने घूमने लगा। यह देखकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। तभी उसके मन में एक ख्याल आया। वह हैरान था कि इतने सालों के बाद आज उसे कुछ अच्छा सा लग रहा है, जैसे कि उसके दिमाग में पल रही अनिद्रा नाम की बीमारी काम हो गई हो या फिर इतने सालों की नींद उसने आज कुछ घंटों में ही पूरी कर ली हो। वह यह सब सोच रहा था।
तभी फिर से उसके सामने वह सब चलने लगा। लेकिन अब वह उस विचार को हावी नहीं होने देना चाहता था। इसलिए उसने कहा, "जाने दो, मुझे इस पर नहीं आना है। मैं अकेला ही काफी हूँ। मुझे न ही मेरी ज़िंदगी पसंद है, वापस से इस दलदल में नहीं जाना चाहता जहाँ से निकलने में मुझे तेरह साल लग गए। बस अब नहीं।" इतना कहकर वह चाय बनाने लगा और अपनी जगह पर खड़े होकर पूरी मुंबई को देखते हुए चाय की एक घूँट ली।
दूसरी ओर, आस्था वहाँ से निकल गई और अब वह अस्पताल जाने की बजाय अपने पीजी हाउस चली गई। उसने ओवर द काउंटर दवा ले ली थी। वह दवा उसने दर्द के लिए ली थी ताकि उसका दर्द कम हो सके।
वह अपने कमरे में बैठी ही थी कि तभी उसके सामने रखे शीशे पर उसकी नज़र गई। और उसने देखा कि एक निशान, जो उसके गले पर बना हुआ था, अब काफी लाल दिख रहा था। उसे देखकर वह बहुत चिढ़ गई। इसलिए उसने कहा, "पता नहीं किस चक्कर में फंस गई हूँ।" इतना कहकर उसने उस निशान पर ट्यूब लगा दी।
दूसरे दिन सुबह वह जल्दी जाने की बजाय आज अपने समय पर जाना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि आज भी कोई घटना हो जाए। इसलिए वह समय पर आठ बजे चली गई। जब वह ऑफिस में आई, तब राजवीर ने उसे डाँटते हुए कहा, "तुम आज? कल क्यों नहीं आई थी? क्या तुम्हें नहीं पता? यहाँ बिना बताए छुट्टी लेना मौत को दावत देना है। वह तो अच्छा है बॉस कुछ नहीं बोले, वरना तो हम सब की बारी हो जाती।"
यह सुनते ही आस्था ने उसे माफ़ी माँगी। यह सुनने के बाद राजवीर ने कहा, "अच्छा चलो जाने दो। तुम एक काम करो, सर के सारे पूरे दिन का शेड्यूल बना लो और सारी मीटिंग की जानकारी मुझे दे दो। ठीक है?"
यह सुनते ही आस्था ने "ओके सर" कहा और वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद वह जाते हुए आस्था को लगातार देखने लगा और अपने मन में कहा, "लगता नहीं कि यह पाँच दिन से ज़्यादा यहाँ टिक पाएगी।"
जब आस्था आयुष्मान के केबिन में गई, तब उसने देखा कि आयुष्मान अपने केबिन में बैठकर कुछ काम कर रहा था। वह अंदर जाते हुए आयुष्मान को बड़े ही विनम्रता से गुड मॉर्निंग कहती है। आयुष्मान उसकी आवाज़ सुनते ही उसे देखा लेकिन कुछ नहीं बोला। उसके अपने काम में ध्यान जाने के बाद आस्था का मुँह बिगड़ने लगा और उसने नाटक करते हुए कहा, "खडूस, ठीक से गुड मॉर्निंग भी नहीं कह सकता।"
तभी उसे अपना काम याद आ गया और वह काम करने लगी। उसकी डेस्क भी आयुष्मान के सामने ही रखी हुई थी। क्योंकि वह उसकी सेक्रेटरी इसलिए नहीं थी, बल्कि आयुष्मान को आस्था पर भरोसा नहीं था। उसे पहले दिन से ही उस पर कुछ शक जा रहा था।
आस्था जब अपने डेस्क पर चली गई और काम करने लगी, तो आयुष्मान उसे पूरी तरह से देख रहा था।
To be continued
मरीन ड्राइव की शाम की सुनहरी रोशनी में आयुष्मान और परी एक-दूसरे के साथ बैठे थे। वे दोनों समुद्र की लहरों का आनंद उठा रहे थे और साथ ही भुजिया खा रहे थे।
तभी परी बोली, "पापा, आपने मुझे इस बस्ती में रहने के लिए क्यों रखा है? आपको पता है ना, मैं आपको और दादी माँ को कितना मिस करती हूँ। फिर क्यों?"
आयुष्मान ने उसके चेहरे को देखा, एक गहरी साँस ली और कहा, "क्योंकि मैं अपनी गुड़िया को एक सुरक्षित स्थान देना चाहता हूँ। क्या तुम्हें पता है? तुम्हारी जान के पीछे बहुत सारे लोग पड़े हुए हैं। वे मुझे और मेरी प्यारी गुड़िया को अलग करना चाहते हैं। क्या तुम मेरे साथ रहकर अलग होना चाहती हो?"
परी घबरा गई। "नहीं, पापा, मैं आपसे कभी अलग नहीं होना चाहती। मुझे आपके साथ ही रहना है। आपके साथ रहने के लिए मैं यहाँ रहने को तैयार हूँ।"
आयुष्मान मुस्कुराया। "बेटा, रामू चाचा तुम्हारा अच्छे से ख्याल रख रहे हैं, ना?"
"अच्छे से? नहीं, बहुत ही अच्छी तरह से! मैं उनको बहुत परेशान करती हूँ, लेकिन वे कभी मुझे गुस्सा नहीं होते।" परी हँसी। उन दोनों की बातें चलती रहीं।
दूसरी ओर, केबिन में बैठी आस्था ने उस पेनड्राइव को आयुष्मान के डेस्क के पास, पहले जैसी ही जगह, रख दिया। उसने सारे सामान को ध्यान से रखा ताकि किसी को पता न चले। तभी उसकी नज़र ड्रॉवर में पड़े फ़ोटो फ़्रेम पर गई। फ़ोटो फ़्रेम देखकर आस्था के मन में कई सवाल उठ रहे थे। उसने परी की तस्वीर उठाई, अपने डेस्क पर जाकर बैठी और काम में लग गई।
लगभग आठ बजे आयुष्मान केबिन में आया। आस्था को अभी भी वहाँ देखकर, उसने कड़क आवाज़ में कहा, "तुम अभी तक यहाँ क्यों हो?"
आस्था ने कहा, "क्योंकि आपने कहा था कि आपको वो रिपोर्ट चाहिए, और वो सारी रिपोर्ट बन गई हैं।"
"तुम अपना काम करके जा भी सकती थीं," आयुष्मान ने कहा।
"लेकिन..." आस्था बोली।
"अच्छा, ठीक है। लो, दे दो मुझे।" आयुष्मान ने रिपोर्ट देखनी शुरू कर दी। वह आस्था को जाने को कह दिया। आस्था चली गई। उसके जाने के बाद आयुष्मान को पेनड्राइव दिखाई दी। उसे याद आया कि उसे वो देखनी थी। उसने कंप्यूटर ऑन किया और पेनड्राइव लगाई। उसे एक 'मनीषा राय' नाम का फ़ोल्डर और कुछ अलग तस्वीरें दिखीं। आयुष्मान ने कहा, "लेकिन मुझे पता चला तब तक इसके अंदर तो आस्था..." उसकी नज़र फ़ोल्डर की बदली हुई तारीख पर गई जो आज की ही थी। उसकी नज़र आस्था के डेस्क पर गई। उसने मन ही मन में कहा, "अच्छा, तो फिर मेरा शक सही है।" वह आस्था के डेस्क पर गया और उसके कंप्यूटर में देखने लगा। उसे पता चला कि उसकी पेनड्राइव में छेड़छाड़ की गई है, लेकिन क्यों? इस सवाल का जवाब उसके पास नहीं था। उसने राजवीर को कॉल किया और उसे अपने केबिन में बुला लिया।
दूसरी ओर, आस्था अपने पीजी में आते ही, कपड़े बदलकर अपने लैपटॉप पर अपने पिता से वीडियो कॉल पर बात करने लगी। "पापा, पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे लगता है कि आयुष्मान की कोई बेटी भी है।"
उसके पिता हैरान हो गए। "क्या? सच में?"
"हाँ, पापा। मैंने आज उसके डेस्क पर एक फ़ोटो फ़्रेम देखी है, जिससे मुझे लगता है कि आयुष्मान की कोई बेटी भी है।" उसके पिता के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई। "क्या तुमने उस बच्ची की तस्वीर ली है?"
आस्था हाँ कहने ही वाली थी कि अचानक उसने अपना मन बदल दिया और ना कहा। उसके पिता भड़क उठे। "क्या तुमने वो तस्वीर नहीं ली?"
"ठीक है ना, मैं कल ले लूँगी," आस्था ने कहा।
"ठीक है।" उसके पिता ने आस्था को देखा। "बेटा, ये क्या हुआ है?"
"क्या? पापा," आस्था बोली।
"ये देखो, इतना बड़ा लाल निशान।" आस्था को वो सारे पल याद आ गए जो उसने आयुष्मान के साथ बिताए थे।
आस्था ने सामान्य होते हुए कहा, "नहीं, पापा, ये तो कुछ नहीं है। ये सिर्फ़ एक निशान है। मैं यहाँ सामान रखते समय गिर गई थी, बस।"
उसके पिता ने उसे घूरकर देखा। "क्या सच में, बेटा?"
आस्था घबरा गई, लेकिन खुद को सामान्य बनाते हुए बोली, "हाँ, पक्का पापा, मैं सच में कह रही हूँ।"
"अच्छा, तो ये बात है। तो फिर कोई बात नहीं। एक बात हमेशा याद रखना तुम, तुम वहाँ अपने दुश्मन के साथ हो, किसी प्रेमी के साथ नहीं। और वहाँ तुम अपने मकसद के लिए गई हो, और तुम्हारा मकसद वही होना चाहिए जो है।"
आस्था समझ गई कि उसके पिता क्या कहना चाहते हैं। "जी, पापा, मैं समझ गई।" उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया और अपने घाव पर उंगली घुमाते हुए कहा, "लेकिन ये मुझे दर्द नहीं देता, लेकिन आपकी मुस्कान मुझे दर्द देती है... पापा..."
क्रमशः
मरीन ड्राइव की शाम की सुनहरी रोशनी में आयुष्मान और परी एक-दूसरे के साथ बैठे थे। वे दोनों समुद्र की लहरों का आनंद उठा रहे थे और साथ ही भुजिया खा रहे थे।
तभी परी बोली, "पापा, आपने मुझे इस बस्ती में रहने के लिए क्यों रखा है? आपको पता है न, मैं आपको और दादी मां को कितना मिस करती हूँ। फिर क्यों?"
आयुष्मान ने उसके चेहरे को देखा, एक गहरी साँस ली और कहा, "क्योंकि मैं अपनी गुड़िया को एक सुरक्षित स्थान देना चाहता हूँ। क्या तुम्हें पता है? तुम्हारी जान के पीछे बहुत सारे लोग पड़े हुए हैं, जो मुझे और मेरी प्यारी गुड़िया को अलग करना चाहते हैं। क्या तुम मेरे साथ रहकर अलग होना चाहती हो?"
यह सुनकर परी घबरा गई। "नहीं पापा, मैं आपसे कभी भी अलग नहीं होना चाहती। मुझे आपके साथ ही रहना है। आपके साथ रहने के लिए मैं यहाँ रहने को तैयार हूँ।"
आयुष्मान परी की ओर देखकर मुस्कुराया। "बेटा, रामू चाचा आपका ख्याल अच्छे से रख रहे हैं न?"
"अच्छे से? नहीं, बहुत ही अच्छी तरह से!" परी हँसते हुए बोली, "मैं उनको बहुत परेशान करती हूँ, लेकिन वे कभी भी मुझे गुस्सा नहीं होते।"
उन दोनों की बातें जारी रहीं।
दूसरी ओर, केबिन में बैठी आस्था उस पेनड्राइव को आयुष्मान के डेस्क के पास रख गई, जैसे पहले थी, ताकि किसी को पता न चले। उसने सारे सामान उसी तरह रख दिए। तभी उसकी नज़र ड्रॉवर में पड़े फोटो फ्रेम पर गई। उस फोटो फ्रेम को देखकर आस्था के मन में कई सवाल उठ रहे थे। उसने परी की तस्वीर ले ली और अपने डेस्क पर जाकर बैठ गई, अपने काम में लग गई।
लगभग 8 बजे आयुष्मान केबिन में आया। आस्था को अभी भी काम करते हुए देखकर, आयुष्मान ने कड़क आवाज़ में कहा, "तुम अभी तक यहाँ क्यों हो?"
"क्योंकि आपने कहा था कि आपको वो रिपोर्ट चाहिए, और वो सारी रिपोर्ट बन गई हैं," आस्था ने कहा।
"तुम अपना काम करके जा भी सकती थीं," आयुष्मान ने कहा।
"लेकिन..." आस्था बोली।
"अच्छा ठीक है, लो दे दो मुझे," आयुष्मान ने कहा और रिपोर्ट देखने लगा। उसने आस्था को जाने को कहा, और आस्था चली गई। उसके जाने के बाद आयुष्मान को पेनड्राइव दिखाई दी। उसे याद आया कि उसे वो देखनी थी। उसने कंप्यूटर ऑन किया और एक 'मनीषा राय' नाम का फ़ोल्डर और एक अलग तस्वीर देखी। "लेकिन मुझे तब तक पता चला... अच्छा, एक मिनट," आयुष्मान ने कहा। उसकी नज़र फ़ोल्डर की बदली हुई तारीख पर गई, जो आज की ही थी। उसकी नज़र आस्था के डेस्क पर गई। "अच्छा, तो फिर मेरा शक सही है," उसने मन ही मन में कहा। वह आस्था के डेस्क पर गया और उसके कंप्यूटर में देखने लगा। उसे पता चला कि उसकी पेनड्राइव में छेड़छाड़ की गई है, लेकिन क्यों? इस सवाल का जवाब उसके पास नहीं था। उसने राजवीर को कॉल किया और उसे अपने केबिन में बुला लिया।
दूसरी ओर, आस्था अपने पीजी में आते ही, कपड़े बदलकर अपने लैपटॉप पर अपने पिता से वीडियो कॉल पर बात करने लगी। "पापा, पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे लगता है कि आयुष्मान की कोई बेटी भी है," उसने कहा।
उसके पिता हैरान हो गए। "क्या? सच में?"
"हाँ पापा, मैंने आज उसके डेस्क पर एक फोटो फ्रेम देखी है, जिससे मुझे लगता है कि आयुष्मान की कोई बेटी भी है," आस्था ने कहा। उसके पिता के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई। "क्या तुमने उस बच्ची की तस्वीर ली है?"
आस्था हाँ कहने ही वाली थी कि उसे कुछ हुआ और उसने ना कहा। उसके पिता भड़क गए। "क्या तुमने वो तस्वीर नहीं ली?"
"ठीक है, मैं कल ले लूंगी," आस्था ने कहा।
"ठीक है," उसके पिता ने कहा। फिर उन्होंने आस्था को देखा। "बेटा, ये क्या हुआ है? ये देखो, इतना बड़ा लाल निशान..."
आस्था को वो सारे पल याद आ गए जो उसने आयुष्मान के साथ बिताए थे।
शांत होकर आस्था बोली, "नहीं पापा, ये तो कुछ नहीं है। ये सिर्फ़ एक निशान है, जो मैं यहाँ सामान रखते समय गिर गई थी, बस।"
उसके पिता ने उसे घूर कर देखा। "क्या सच में बेटा?"
आस्था घबरा गई, लेकिन अपने आप को शांत करते हुए बोली, "हाँ पक्का पापा, मैं सच में कह रही हूँ।"
"अच्छा, तो ये बात है। तो फिर कोई बात नहीं," उसके पिता ने कहा। "एक बात हमेशा याद रखना तुम, तुम वहाँ पर अपने दुश्मन के साथ हो, किसी प्रेमी के साथ नहीं। और वहाँ तुम अपने मकसद के लिए गई हो, और तुम्हारा मकसद वही होना चाहिए जो है।"
आस्था समझ गई थी कि उसके पिता क्या कहना चाहते हैं। "जी पापा, मैं समझ गई," कहकर उसने कॉल काट दिया। उसने अपने घाव पर उंगली घुमाई। "लेकिन ये मुझे दर्द नहीं देता, लेकिन आपकी मुस्कान मुझे दर्द देती है... पापा..."
क्रमशः
आस्था अपने पापा के साथ बात करने के बाद कुछ गुमसुम सी बैठ गई और कुचलने लगी। उसे यह नहीं समझ आ रहा था कि उसने उस लड़की की फ़ोटो क्यों नहीं दी थी? आखिर क्यों? क्या कारण हो सकता था?
वह यह सब सोचते-सोचते थक गई थी। इसलिए उसने बाहर जाने का सोचा। बाहर जाकर उसे अपना मूड भी अच्छा करना था। इसलिए वह वहाँ पर जाकर कुछ खा लेगी। यह सब सोचकर वह अपने कमरे से बाहर चली गई।
अपने कमरे से बाहर आने के बाद उसने सोचा कि वह कुछ अच्छा महसूस करने के लिए मरीन ड्राइव जाए। और वह रात के 9 बजे निकल पड़ी।
मरीन ड्राइव और उसके घर के रास्ते का माप करीबन 5 मिनट का ही था। इसलिए वह वहाँ जल्दी ही पहुँच गई। वहाँ पहुँचने के बाद उसे न जाने क्यों एक सुकून सा महसूस हुआ। उसने अपने लिए एक भुट्टा मँगवाया और साथ ही साथ अपने फ़ोन में गाने बजाने लगी। तभी उसे दूर से कुछ बच्चे खेलते हुए दिखाई दिए। वहीं पर नज़दीक ही बस्ती भी थी, इसलिए सारे बच्चे वहाँ खेल रहे थे। उन सभी के साथ एक बेहद ही प्यारा सा, हैंडसम सा लड़का भी था, जिसने एक टी-शर्ट पहनी हुई थी। उसे देखकर आस्था अपने मन ही मन में आनंद लेते हुए खाना और गाना सुन रही थी। तभी वह लड़का अचानक आस्था की ओर आने लगा। यह देखते ही आस्था ने कहा, "यह मेरी तरफ क्यों आ रहा है?" तभी उसे पता चला कि उसके पैर के नीचे एक बॉल था। बस वही बॉल को लेने के लिए वह लड़का आ रहा था।
जब वह लड़का आ गया, तब उसने देखा कि वह लड़का आस्था को मुस्कुराते हुए देख रहा था और आस्था ने भी उसे मुस्कुराकर देखा। तभी वह लड़का बोला, "हाय! मेरा नाम अस्थ्य है। आप?"
आस्था उसका नाम सुनकर हैरान हुई और बोली, "क्या? अस्थ्य?"
अस्थ्य उसके सामने देखते हुए हँसने लगा और बोला, "क्या हुआ? आप इतनी हैरान क्यों हो गई?"
"कुछ नहीं," आस्था ने मुस्कुराते हुए कहा, "अस्थ्य..." वह आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही उसने अपने आप को रोक लिया और बोली, "मेरा नाम सान्या है।"
"अच्छा, मैं यहाँ HMD का CEO हूँ।" यह सुनते ही आस्था की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं क्योंकि HMD आयुष्मान के बाद आने वाली दूसरी नंबर वन कंपनी थी।
अस्थ्य को देखकर सान्या मुस्कुरा दी और वे दोनों आपस में बातें करने लगे। तभी रात के 10 बज गए और अस्थ्य उसको ड्रॉप करने के लिए पूछा। लेकिन आस्था ने मना कर दिया। फिर भी अस्थ्य अपने ज़िद में अड़ा रहा और बोला, "प्लीज़..."
और सान्या मान गई।
दूसरे दिन...
सान्या ऑफ़िस में आ गई और अपने कामों में लग गई। आयुष्मान अभी नहीं आया था, यह देखकर उसे हैरानी हुई, लेकिन उसने उस बात पर ज़्यादा गौर नहीं किया।
तभी वहाँ पर राजवीर आ गया और बोला,
"मिस आस्था..." यह सुनते ही आस्था का चेहरा हैरानी से भर गया।
तभी राजवीर बोला, "मिस सान्या? क्या आप मेरी बात सुन पा रही हैं?"
यह सुनते ही उसकी साँसें थोड़ी तेज हुईं और बोली, "जी हाँ, कहिए?"
तभी राजवीर बोला, "आपको बॉस ने बेसमेंट में बुलाया है।" यह सुनते ही सान्या हैरान हो गई और हैरानी भरे भाव से पूछी, "लेकिन क्यों? क्या हुआ?"
तभी राजवीर बोला, "वह तो मुझे नहीं पता, लेकिन आपको बुलाया है।"
अब सान्या को अंदर से डर भी लग रहा था और वह रिस्क भी ले ली और राजवीर के साथ चली गई। उसके साथ आते ही बेसमेंट का दरवाज़ा खुल गया जहाँ पर पूरी तरह से अंधेरा था। यह देखते ही सान्या राजवीर की ओर देखने लगी और बोली, "आप अंदर जाएँ, मैं बाहर ही आपका इंतज़ार करता हूँ।"
जब वह अंदर गई, तो वहाँ पर बुरी तरह से अंधेरा छाया हुआ था। इसलिए वह थोड़ी घबरा गई और अपने साँसों को काबू में करते हुए इधर-उधर देखने लगी। तभी उसे वहाँ पर एक रेड लाइट दिखाई दी जिसके नीचे एक आदमी खड़ा हुआ था। यह देखकर वह बोली, "आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया?"
तभी उसके कानों में एक गहरी आवाज़ सुनाई दी, "तुम इधर अपने मकसद को पूरा करने के लिए आई हो? लेकिन पता नहीं तुम यहाँ आते ही अपना रास्ता क्यों भटक गई हो? क्या हुआ है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी दोस्त की मौत का कारण नहीं पता? क्या तुम्हें अपने पापा की बर्बादी के बारे में कुछ नहीं पता? क्या हुआ है तुम्हारे उस जुनून को?"
ये सारी बातें सुनते ही आस्था को वह आवाज़ कुछ जानी-पहचानी सी लगी। तभी वह आदमी वापस से बोला, "कहो, क्या हुआ?"
आस्था कुछ समझ ही नहीं पा रही थी आखिर हो क्या रहा है? तभी उसे उस बल्ब के माध्यम से यह पता चला कि वह आयुष्मान नहीं है। अगर वह आयुष्मान नहीं है, तो फिर कौन है?
आस्था इसे ये सब कैसे पता है? बेटा क्या तुम्हें पता है? वह यह सब अपने आप में ही बोलते हुए कहती रही, लेकिन उसे कुछ भी पता नहीं चल रहा था।
तभी वह आदमी पलटा और आस्था चौंक उठी और बोली, "आप? यहाँ? तो राजवीर भी...?" वह इतना कहकर हैरान हो गई।
To be continued 💫 💙
जब उसने देखा, तो वह हैरान हो गई! उसने कहा, "आप यहाँ? इसका मतलब राजवीर भी?" तभी वह आदमी वहाँ की रेड लाइट में बाहर आया! उसने कहा, "हाँ, राजवीर तुम्हारी हर गतिविधि पर नज़र रखता था!" वह कोई और नहीं, आस्था के पिता थे। आस्था अपने पिता को देखकर हैरान हो गई थी। उसे राजवीर का उन लोगों के साथ जुड़ना और भी ज़्यादा हैरान करने वाला था!
वह बोली, "लेकिन यह राजवीर तो उसका चमचा है!"
उसके पिता ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे! उन्होंने कहा, "नहीं, वह हमारा चमचा है! इसलिए उसे आयुष्मान का चमचा बनने का मौका नहीं मिला। राजवीर हर बार तुम्हें बचाता आया है! तुम्हें नहीं पता! लेकिन कल आयुष्मान ने राजवीर को बुलाया था! और उसने आस्था नाम की पेनड्राइव के बारे में पूछा था! लेकिन राजवीर ने सब कुछ संभाल लिया था! और उसने तुम्हें किसी भी हालत में बचा लिया था!"
यह सुनकर आस्था को अच्छा लगा! लेकिन उसे अपने पिता के यहाँ आने की कोई खुशी महसूस नहीं हो रही थी। फिर भी, उसने अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी! उसने कहा, "वेलकम पापा! आप कैसे हैं?"
उसके पिता ने उसे घूरते हुए कहा, "मैं अभी अच्छा नहीं हूँ.. जब तक मेरी प्यारी बेटी मेरा बदला नहीं ले लेती है! तब तक मुझे चैन नहीं पड़ने वाला है! इसलिए मैं कह रहा हूँ.. तुम कुछ भी करो.. और उसे बर्बाद कर दो.. चाहे तो उसके साथ सो भी जाना.. उसे अपने प्यार के जाल में फँसा लो... और उसे सब कुछ हड़प लो। पता है ना यह सब किसका है?"
तभी उसकी बेटी आस्था बोली, "पापा, आप बदले में इतने अंधे हो गए हैं! कि आपको पता भी है आप क्या बोल रहे हैं?? आप मुझे उस दानव के साथ सोने के लिए कह रहे हैं!"
तभी उसके पिता बोले, "ऐसे भोली मत बनो, डियर चाइल्ड। मुझे सब कुछ पता है! यह आपके गले पर निशान है, वह किस तरह से आया है!"
यह सुनते ही आस्था अपनी नज़र झुका लेती है! वह बोली, "यह आप क्या कह रहे हैं? पापा.." तभी उसके पिता बोले, "बेटा, मुझे सब कुछ पता है! आप रहने दीजिए.."
"लेकिन आपको कैसे पता?" तभी उसके पिता हँसते हुए बोले, "यह अपना राजवीर है! उसने तुम्हें दोनों को एक साथ उस सीक्रेट कमरे से बाहर आते हुए देख लिया था!"
तभी वह अपनी नज़र झुका लेती है! और आगे कुछ नहीं बोलती!
उसका पिता बोला, "आपको पता है ना... आपको क्या करना है.. आपको बदला लेना है! अब राजवीर की सच्चाई भी आपके सामने है! अब आपकी सारी समस्याएँ मैंने सुलझा दी हैं। एक हफ़्ते में आपको कुछ ऐसा करना है! जिससे मुझे आप पर गर्व हो.. ठीक है!" उसके पिता उसे अपना आदेश देते हुए कहते हैं।
आस्था यह सुनते ही मुस्कुरा देती है! और कहती है, "अच्छा चलिए पापा। अब मुझे अपने काम में लग जाना होगा! आप फ़िक्र मत करिए, मैं आपको कुछ ऐसा दिखाने वाली हूँ! जिसकी आपको उम्मीद भी नहीं है.." यह सुनते ही उसके पिता उसे अपने होटल का पता दे देते हैं! और रात को मिलने के लिए बुला लेते हैं!
वे दोनों बाहर आ जाते हैं! और राजवीर अब सान्या के सामने देखकर मुस्कुराने लगता है! और सान्या भी मुस्कुरा देती है!
दोनों ऊपर चले जाते हैं! और उसके पिता वहाँ से सीधे अपने होटल के लिए चले जाते हैं।
सान्या जब केबिन में आती है! तभी वह देखती है! आयुष्मान काम कर रहा होता है! आयुष्मान अपने काम में इतना व्यस्त था कि उसे पता नहीं चला कि वह कब आई। तभी उसने अपने कंप्यूटर में आयुष्मान की एक नई फ़ाइल देखी। उसकी फ़ाइल देखकर उसे पता चला कि कल आयुष्मान का एक बहुत ही बड़ा प्रोजेक्ट है! जो उसकी लाइफ बदल सकता है! अब उसके दिमाग में कुछ आइडिया आते हैं! और दूसरे कंपनी वालों के नाम भी देखती है! तभी उसे आस्था की कंपनी भी दिखाई देती है! और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है!
दूसरे दिन!
आयुष्मान के साथ अब सान्या जा रही थी! राजवीर अब दूसरा ऑफिस काम संभाल रहा था! तभी आयुष्मान अपनी कार में बैठे-बैठे कहता है, "सब कुछ हो गया है ना...?"
और सान्या उसे हाँ कह देती है!
वे दोनों एक बड़ी सी मल्टीनेशनल कंपनी के कॉन्फ़्रेंस में आ जाते हैं! और सीट पर बैठ जाते हैं! जहाँ पर कुल 50 कंपनी के सीईओ आए हुए थे; सामने आस्था भी बैठी हुई थी! आस्था की नज़र लगातार सामने बैठी हुई सान्या पर ही थी! और यह बात सान्या महसूस कर पा रही थी! लेकिन अभी वह क्या करे। इसलिए वह कुछ नहीं करती और वहाँ पर ही बैठी रहती है!
थोड़ी देर बाद वहाँ पर प्रोजेक्ट के लिए सभी के पीडीएफ़ माँगकर उनका प्रेजेंटेशन करने के लिए बुला लेते हैं!
आयुष्मान से पहले आस्था खड़े हो जाते हैं! और वह अपनी पेनड्राइव वहाँ से मैनेजर को दे देते हैं! और एक के बाद एक सारी जानकारी देने लगते हैं! यह देखते ही आयुष्मान पूरी तरह से हैरान हो जाता है! और वह कन्फ्यूज़ हो जाता है!
आयुष्मान बीच में ही खड़े होते हुए कहते हैं, "यह तो चीटिंग है! इस पेनड्राइव में जो भी डिटेल्स हैं! वह चुराई हुई हैं! यह बिलकुल मेरी डिटेल्स के बराबर हैं! मि. आस्था, आप हमें बताएँगे कि आपने ये डिटेल्स चुराने के लिए किसको भेजा था!?" यह सुनते ही आस्था भी गुस्से में आ जाता है! और वह कहता है, "माइंड योर लैंग्वेज.. मिस्टर आयुष्मान...."
उन दोनों के बीच में बहस ज़्यादा ही बढ़ती जा रही थी.. और यह देखकर वहाँ पर बैठी आस्था का चेहरा खिल जाता है! और वह मुस्कुराने लगती है!
To be continued 💫 🦋
अस्थय आयुष्मान को गुस्से में कहता है, "Mind your language, mister Ayushman. आप इस तरह से सबके सामने मुझे इस बेइज्जती नहीं कर सकते।"
आयुष्मान तालियाँ बजाते हुए सबके आगे जाता है और कहता है, "अरे वाह! मेरी ही प्रेजेंटेशन को चोरी करके आप यह सबको दिखा रहे हैं और कह भी रहे हैं कि मैं सबके सामने बेइज्जती नहीं कर सकता..."
सारे लोग एक-दूसरे के सामने देखने लगते हैं। कॉन्फ़्रेंस रूम में एक तरफ़ से हंगामा शुरू हो जाता है।
तभी एक डायरेक्टर खड़े होकर कहता है, "आप ऐसे नहीं कर सकते, मिस्टर आयुष्मान। हर किसी का सपना होता है, और आप उनका प्रोजेक्ट देखकर अपना नहीं कह सकते। क्या आपके पास इसका कोई प्रूफ़ है?"
तभी आयुष्मान कहता है, "हाँ, मेरे पास पुख्ता सबूत हैं! रुकिए..." इतना कहकर वह सान्या के पास जाता है और उसके पास से अपना प्रोजेक्ट वाला पेनड्राइव ले लेता है। जब वह उसे लगाता है, तो उसमें कुछ नहीं होता। वह गुस्से से सान्या की ओर देखने लगता है। यह देखकर सान्या कन्फ़्यूज़ और परेशान होकर आयुष्मान की ओर देखती है और कहती है, "सर, यह पेनड्राइव मुझे सुबह ही राजवीर सर ने दिया था... मुझे सच में नहीं पता..."
उसकी बातों से आयुष्मान थोड़ा डिस्टर्ब हो जाता है और वहाँ से बिना कुछ कहे बाहर निकल जाता है।
वह बाहर जाने के बाद, सान्या सब से माफ़ी माँगते हुए और एक तरफ़ अस्थय के सामने एक आँख मारते हुए चली जाती है। उसके जाने के बाद अस्थय मन ही मन मुस्कुराने लगता है।
वे दोनों एक ही कार में जैसे आए थे, वैसे ही जाने लगते हैं। आयुष्मान का मूड बेहद खराब था, और साथ ही सान्या मन ही मन अपनी जीत का जश्न मना रही थी। तभी अचानक कार में ब्रेक लगते हैं, और वे दोनों अपने-अपने ख्यालों से बाहर आते हैं। वे देखते हैं कि सामने पाँच-चार लोग बंदूक लेकर खड़े थे। यह देखकर सान्या मन ही मन कहती है, "ऐसी कोई बात तो नहीं हुई थी पापा के साथ... और ये हमारे लोग भी नहीं लग रहे हैं! आखिर ये लोग कौन हैं?"
आयुष्मान भी उन लोगों को देखकर हैरान हो जाता है और कहता है, "ये लोग मुझे चैन से जीने नहीं देंगे..." इतना कहकर वह अपनी जेब से बंदूक निकालता है। सान्या यह देखकर हैरान हो जाती है, लेकिन उसे इतनी हैरानी नहीं होती क्योंकि वह बड़ा आदमी था और उसके जान के कई दुश्मन थे। इसलिए उसे अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक रखनी पड़ती थी।
वहाँ पर फायरिंग होने लगती है, और एक-एक करके सामने वाले सारे लोग मर जाते हैं। आयुष्मान वापस गाड़ी में आ जाता है और ड्राइवर को कार चलाने के लिए कहता है। ड्राइवर कार शुरू कर देता है और कार चलाते हुए आयुष्मान की कंपनी में आ जाता है। लेकिन सान्या देख पा रही थी कि फायरिंग के बाद आयुष्मान कुछ ज़्यादा ही परेशान हो गया था। आखिर क्यों? वह तो उसे भी नहीं पता था।
तभी आयुष्मान राजवीर को कॉल करता है और कहता है, "तुम दोनों मेरे साथ चलोगे..." यह सुनकर सान्या कहती है, "कहाँ पर?"
सान्या के सामने घूरते हुए आयुष्मान कहता है, "It's my order, baby..." इतना कहकर वह मुस्कुराने लगता है। उसकी मुस्कान और बात सुनकर सान्या को हैरानी होने लगती है। उसकी हैरानी देखकर आयुष्मान कहता है, "कहीं यह तो नहीं कि बेबी, यह सब तूने ही किया हो?"
तभी सान्या कहती है, "क्या? सर, और आप मुझे बेबी-बेबी क्यों कह रहे हैं?"
तभी आयुष्मान हँसने लगता है और कहता है, "कुछ नहीं, चलो मेरे साथ..." इतना कहकर वह उसे अपने साथ ले जाता है। एक बड़ा सा हाल था, जो दिखने में मीटिंग रूम लग रहा था। उसे देखकर आयुष्मान सान्या को बैठने का इशारा करता है और बाद में राजवीर को भी बुला लेता है।
राजवीर जब वहाँ आता है, तब वह कहता है, "क्या हुआ सर? आपकी मीटिंग कैसी रही? क्या हमें वह प्रोजेक्ट मिल गया?" इन सारे सवालों को सुनकर आयुष्मान मुस्कुराते हुए कहता है, "अरे राजवीर, तुम्हारे होते हुए कुछ हो सकता है क्या?"
यह सुनते ही राजवीर के चेहरे पर हैरानी आ जाती है, और यही हालत सान्या की भी थी। वे दोनों एक-दूसरे के सामने देखने लगते हैं। तभी आयुष्मान कहता है, "तुम्हारे होते हुए हमारे वहाँ कोई प्रॉब्लम हो सकती है क्या?" यह सुनते ही दोनों एक लंबी राहत की साँस लेते हैं।
आयुष्मान हँसते हुए कहता है, "क्या हुआ? क्या लगा था?"
आयुष्मान की बात सुनकर आस्था कहती है, "सर, आपने हमें यहाँ क्यों बुलाया है? क्या हमें कोई नया प्रोजेक्ट बनाना है?"
यह सुनते ही आयुष्मान कहता है, "हाँ, ऐसा ही कुछ समझ लो... वही करना है।" यह सुनते ही वह कहती है, "तो कहिए सर, मुझे क्या करना है?" इतना कहकर वह उसके सामने देखने लगती है। तभी आयुष्मान कहता है, "अरे इसकी ज़रूरत नहीं। दरअसल मेरा यार... मेरा जिगरी...वह भी यहाँ आ रहा है, और हम दोनों ने मिलकर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का सोचा है।"
सान्या यह सुनते ही मन ही मन कहती है, "अब इसका कौन सा दोस्त आ गया?" तब आयुष्मान कहता है, "रुको, तुम दोनों को अभी पता चल जाएगा कि वह दोस्त कौन है जिसने मेरी मदद की है।"
तभी वहाँ पर एक दरवाज़ा खुलता है, और वहाँ से एक हैंडसम लड़का आता है। उसे देखकर वहाँ बैठी सान्या बड़ी-बड़ी आँखों से देखने लगती है, और राजवीर भी हैरान हो जाता है। उन दोनों को साथ में देखकर आयुष्मान उसे गले लगाते हुए कहता है, "He is my best friend... अस्थय..."
To be continued 💫🦋
अंडर आ रहे इंसान को देखकर आस्था अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से देखने लगी। उसने कहा, "ये???" आयुष्मान ने कहा, "He is my best friend Astha...."
अस्थय को वहाँ पर देखकर राजवीर और आस्था दोनों ही हैरान हो गए। दोनों एक साथ खड़े हो गए और कहा, "क्या?? "
उन दोनों की हैरानी देखकर आयुष्मान ने कहा, "क्या हुआ?? आप दोनों इस तरह से हैरान क्यों हुए हो??" उन दोनों को देखकर अस्थय ने कहा, "क्यों?? आप दोनों हैरान क्यों हो?? अच्छा हाँ आयुष्मान.. ये दोनों हमारी कॉन्फ्रेंस मीटिंग में हुई लड़ाई के बारे में सोच रहे हैं!"
तभी आयुष्मान जोर-जोर से तालियाँ बजाते हुए बोला, "अरे वो तो एक नाटक था! हम दोनों तो बिछड़े हुए यार हैं! जो पिछले पाँच साल से एक साथ हैं!"
"तो फिर सर वहाँ पर???" आस्था ने पूछा।
"क्योंकि मुझे पता है! इस ड्रामे के बाद वहाँ पर कोई मीटिंग नहीं होने वाली है! अस्थय मेरे साथ और मैं भी.. वहाँ कोई नहीं बचा है! हमारे शेयर उन लोगों ने एक पैसे जितना कम कर दिया था! और मुझे एक पैसे का भी लॉस नहीं पसंद.. अब वो आएंगे सामने और हम दोनों चार पैसे बढ़ाने की बात करेंगे.. अब मजा आएगा....." आयुष्मान ने कहा।
"हैं न जिगरी.." वो दोनों आपस में हाथ मिलाते हुए एक-दूसरे के साथ गले लग गए। वहाँ पर आस्था और राजवीर एक-दूसरे के सामने देखकर इशारों में बात कर रहे थे कि आखिर ये क्या हो रहा है?? ये ??
आस्था ने भी कहा, "उसे कुछ नहीं पता...."
थोड़ी देर बाद...
आस्था का पसीने से बुरा हाल था! उसे लग रहा था कि अगर अस्थय ने कुछ बता दिया तो क्या होगा? क्या करेगा आयुष्मान??
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और आयुष्मान को कुछ काम करने के लिए जाना पड़ा। तभी उसने कहा, "तुम सान्या एक काम करो..."
"हाँ सर, कहिए.." सान्या ने कहा।
"तुम मेरे दोस्त का ख्याल रखना। मैं अभी आता हूँ, मुझे एक इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग में भी जाना है.." यह सुनते ही आस्था ने अपनी हकलाती हुई आवाज़ में कहा, "जी.. जी.. सर..."
आयुष्मान के जाने के बाद अस्थय मुस्कुराते हुए आस्था के पास आ गया। उसने कहा, "AC 20 पर है! कूलिंग भी अच्छा-खासा है.. तो तुम्हें पसीना क्यों आ रहा है???" यह सुनकर सान्या ने कहा, "नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं।।"
तभी अस्थय ने कहा, "अच्छा.. कहीं ये तो डर नहीं कि मैंने तुम्हारे बॉस को तुम्हारी सच्चाई बताई है! क्या नहीं???"
यह सुनते ही आस्था उसके सामने देखने लगी। तभी अस्थय ने कहा, "तुम फ़िक्र मत करो.. मैंने कुछ भी नहीं कहा है उसे।।।। आखिर उसे कहूँ भी क्यों???"
यह सुनते ही आस्था ने कहा, "लेकिन क्यों?? आप मेरा साथ क्यों दे रहे हैं???"
आस्था की बात सुनकर अस्थय मुस्कुराते हुए उसे देखता है और एक हाथ से एक उंगली से उसके मुँह पर आ रहे बालों को कान से पीछे करते हुए कहा, "क्योंकि जिसमें तुम्हारी खुशी है! उसमें मेरी खुशी..." यह सुनते ही और उसका स्पर्श महसूस होते ही वह उसे दूर हो गई और बोली, "क्या मतलब हैं?? आपका??"
तभी आस्था की बात सुनकर अस्थय ने कहा, "मतलब तो कुछ नहीं, बस वही समझ लो.. मैं तुम्हें बचाकर रखूँगा.. अपने दोस्त के सामने से, लेकिन तुम्हें मेरा एक काम करना पड़ेगा!"
यह सुनते हुए आस्था हँसते हुए बोली, "तभी तो मैं सोचूँ कि आपने मेरी मदद क्यों करनी है???"
आस्था घूरते हुए बोली, "क्या?? चाहिए आपको मेरी मदद..."
आस्था की बात सुनकर अस्थय उसके कानों में बोला, "One night stand......"
यह सुनते ही आस्था ने उसे जोर से थप्पड़ लगा दिया! अपने गालों पर आस्था का हाथ देखकर अस्थय को बहुत गुस्सा आने लगा और वह बोला, "ये तुमने क्या किया?? तुम्हें पता भी है! तुम्हारी इस थप्पड़ की वजह से अब तुम्हें क्या कुछ भुगतना पड़ेगा??? अगर हाँ तो सुनो.. अब मैं ये बात आयुष्मान को नहीं.. बल्कि पूरी दुनिया को पता दूँगा!"
यह कहकर वह वहाँ से चला गया। उसके जाते ही आयुष्मान अंदर आया और आस्था से पूछा, "क्या हुआ सान्या? इस तरह से अस्थय क्यों चला गया???" आयुष्मान की आवाज़ सुनकर आस्था के दिल में एक ठंडक पहुँची और वह जल्दी से जाकर आयुष्मान को गले लगा लिया!
आयुष्मान जब सान्या को अपने गले लगते हुए देखता है तो पूरी तरह से हैरान हो जाता है और उसकी आँखें भी बड़ी हो जाती हैं। वह कहता है, "क्या हुआ???" आयुष्मान की आवाज़ सुनकर सान्या होश में आ जाती है और कहती है, "कुछ नहीं.."
वह इतना कहकर उसे अलग हो जाती है। यह देखते ही आयुष्मान बहुत कन्फ्यूज हो जाता है और कहता है, "क्या हुआ तुम्हें?? तुम रो क्यों रही हो?? कहीं अस्थय ने तुम्हारे साथ...?"
"नहीं-नहीं। ऐसा कुछ नहीं है!" आस्था/सान्या आयुष्मान की ओर देखकर कहती है, "क्या सर, मुझे आज एक हाफ छुट्टी लेनी पड़ेगी? मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है? प्लीज.." यह सुनकर आयुष्मान मान जाता है और उसे हाफ छुट्टी दे देता है।
आस्था वहाँ से चली जाती है और आयुष्मान उसे जाते हुए सोचने लगता है, "आखिर इसे हुआ क्या???" उन दोनों के बीच हो रही सारी घटनाएँ राजवीर खिड़की से देख लेता है और वह आस्था के पापा को कॉल करके बता देता है। आस्था जब अपने रूम में पहुँचती है तो देखती है कि वहाँ पर उसके पापा खिड़की के पास खड़े हुए उसे देख रहे थे और कह रहे थे, "आप आ गई बेटी???"
यह सुनते ही आस्था अपने पापा के पास चली जाती है और कहती है, "पापा आप कैसे हैं?? आपको कुछ चाहिए क्या??? और आपको यह कैसे पता चला?" तभी उसके पापा उसकी तरफ़ घूमते हैं और उनकी हालत देखकर आस्था हैरान हो जाती है!
क्रमशः
जब आस्था के पिता उसकी ओर घूमे, तो आस्था उनकी हालत देखकर हैरान हो गई। वह बोली, "पापा, ये क्या हुआ? आपकी आँखें इस तरह क्यों सूज गई हैं? आप परेशान क्यों हैं?"
तभी उसके पिता बोले, "बेटा, मैंने तुमसे एक राज छिपाया है। क्या तुम्हें पता है?"
"एक राज? लेकिन कैसा राज?" आस्था ने हैरानी भरे स्वर में पूछा।
उसके पिता बोले, "बेटा, मैंने तुम्हें एक बात नहीं बताई। तुम्हें इतना ही पता है कि आयुष्मान, यानी उसके पिता, मिलन खन्ना, जो मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त था, हम दोनों ने साथ में बिज़नेस शुरू किया था, और हम दोनों ने साथ में काम किया था। और एक दिन उसने मुझसे धोखे से सारी जमीन हड़प ली..." वह आस्था के सामने देखने लगे।
तभी आस्था बोली, "हाँ, ये तो पता है। लेकिन तुम्हें ये नहीं पता कि उसके पिता, यानी मेरे जिगरी दोस्त को, मेरी बहन से प्यार हो गया था। वे दोनों एक-दूसरे के प्यार में पागल थे। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि ये सब एक नाटक है।"
तभी आस्था उन्हें रोकते हुए बोली, "पापा, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप कहना क्या चाहते हो? मुझे सच में कुछ नहीं पता चल पा रहा है।"
आस्था की बात सुनकर उसके पिता बोले, "बेटा, मेरी एक बहन भी थी।"
"थी? अब नहीं है क्या? और आपने बताया नहीं अभी तक?" आस्था ने सवालिया निगाहों से अपने पिता को देखा और बोली।
हालाँकि वह मेरी सगी बहन नहीं थी। उसे मेरे पिता ने गोद लिया था। हम दोनों के बीच में सगे भाई-बहन से भी ज़्यादा प्यार था। हम दोनों एक-दूसरे को इतना पसंद करते थे। हम दोनों भाई-बहन एक-दूसरे की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकते थे। कुछ सालों बाद मैं मिलन खन्ना से मिला। और हमारी अच्छी दोस्ती हो गई। हम दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी कि मार्केट में हम दोनों को जय-वीरू के नाम से जाना जाता था। हमारे काम के सिलसिले में मिलन का हमारे घर आना-जाना हुआ करता था। और उसी चक्कर में वे दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे... और दोनों ही खुश थे। लेकिन नादानी में आकर वे दोनों हद से आगे बढ़ गए थे। और एक दिन मेरी बहन नलिनी प्रेग्नेंट हो गई। जब मैंने मिलन से नलिनी से शादी करने के लिए कहा, तो मिलन अभी तैयार नहीं था इस बच्चे को एक्सेप्ट करने के लिए। लेकिन नलिनी को प्यार की निशानी चाहिए थी। एक दिन, खबर आई कि मिलन की शादी किसी बड़े घराने से हो गई, किसी निशा नाम की लड़की से। यह खबर सुनते ही नलिनी यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने खुदकुशी कर ली।
आस्था ने यह सुनते ही कहा, "क्या? बुआ ने खुदकुशी कर ली थी? वो भी उस आयुष्मान के पिता के वजह से? क्या सच में पापा? लेकिन उसके पिता ने मना क्यों किया?"
"क्योंकि पैसे के आगे एक प्यार हार गया बेटा, एक प्यार हार गया... उसने मेरे पास से वो सब कुछ छीन लिया था जो मेरे दिल के बेहद करीब था।"
उसके पिता की आँखों में आँसू आ गए, और वे रो पड़े। उन्हें रोते हुए देख आस्था भी इमोशनल हो गई। वह बोली, "नहीं पापा, आप इमोशनल मत होइए। आपने जिस मिशन के लिए मुझे भेजा है, मैं उस मिशन के करीब हूँ।"
तभी उसके पिता आँख दिखाते हुए बोले, "लेकिन राजवीर ने बताया कि तुमने आयुष्मान को जोर से गले लगाया हुआ था।" उनकी बात सुनकर आस्था बोली, "ये राजवीर भी आपको अधूरी कहानी सुनाता है। हुआ ये था..." वह सब कुछ बताते हुए बोली, "तो पापा, ये बात थी! इसलिए... लेकिन उसने मुझे सिर्फ गले लगते हुए देखा।"
उसके पिता उसे शांत करते हुए बोले, "कोई बात नहीं।" तभी आस्था बोली, "और आपने ही तो कहा था कि उसे अपने प्यार के जाल में फँसा लो। क्योंकि पापा, मुझे अब ये कहानी सुनने के बाद ये पता चला है कि आखिर मुझे क्या करना है। उसे इमोशनली अपने काबू में करना है और बाद में इमोशनली ब्रेक कर देना है। जिसे... इंसान कितनी भी कामयाबी क्यों न हासिल कर ले, लेकिन एक मेंटल हेल्थ आपके साथ नहीं होगा तो आपसे कुछ नहीं हो पाएगा। पापा, समय का चक्र वापस से घूमेगा। जो मेरे बुआ और मेरे पिता के साथ हुआ है, वो मैं अब आयुष्मान को महसूस कराऊँगी।"
तभी उसके पिता उसके माथे पर हाथ रखकर बोले, "बेटा, तुम्हें पता है, मुझे आज एक और बात पता चली..."
"क्या?" आस्था ने पूछा।
"तुम्हारी माँ..." वे आगे कुछ बोल पाते, उससे पहले ही आस्था ने उन्हें रोकते हुए कहा, "नहीं पापा, मुझे माँ के बारे में नहीं सुनना। उस इंसान के बारे में बिल्कुल भी नहीं, जो मेरा है ही नहीं!" इतना कहकर वह वहाँ से चली गई। वहाँ से जाने के बाद, उसके पिता एक तरफ वापस से खिड़की के बाहर देखने लगे।
दूसरे दिन...
सान्या जल्द ही केबिन में आ गई। उसने देखा कि आयुष्मान अभी कुर्सी पर सोया हुआ था। आज फिर एक बार आयुष्मान को देखकर पता नहीं क्यों, लेकिन आस्था के दिल की धड़कन तेज हो गई थी। वह उसके पास जाने लगी। तभी उसने देखा कि आयुष्मान के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गई हैं, जैसे वह कुछ सोच रहा है। और तभी उसकी नज़र वहाँ पड़ी, सेडेटिव मेडिसिन पर। वह बोली, "ये क्या? सेडेटिव मेडिसिन? लेकिन क्यों?"
तभी आयुष्मान झटके से उठा और चिल्लाकर बोला, "नहीं..."
To be continued...
आयुष्मान को सोते हुए देखकर, आस्था एक पल के लिए अपने आप को उसके पास जाने से नहीं रोक पाई। और वह चली गई। जब वह उसके पास गई, तो देखा कि टेबल पर एक sedative की मेडिसिन है। यह देखकर आस्था हैरान होते हुए बोली, "सेडेटिव की मेडिसिन? लेकिन क्यों...?" इतना कहकर जब आयुष्मान के चेहरे की ओर देखती है, तो वह हैरान हो जाती है क्योंकि आयुष्मान के चेहरे पर टेंशन की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। उसका चेहरा नींद में ही बदल रहा था। यह देखकर आस्था सोचती है कि आयुष्मान पक्का कोई बुरा सपना देख रहा है। लेकिन अचानक आयुष्मान हाँफते हुए उठा और बोला, "नहीं..." उसका पूरा मुँह पसीने से भरा हुआ था। पसीने से नहाते हुए देख आस्था, यानी सान्या, बोली, "क्या हुआ?"
लेकिन आयुष्मान अंदर ही अंदर बहुत घबरा गया था। इसलिए वह पहले एक बार सान्या की ओर देखता है। उसे देखकर आयुष्मान को पता नहीं क्या हो जाता है। अपनी चेयर से खड़े होकर वह जल्दी से आस्था के पास जाता है और उसके गले लग जाता है।
आस्था आयुष्मान को पहले ऐसा करते हुए नहीं देखती थी, इसलिए यह भी उसके लिए बड़ी हैरानी भरा था। वह बोली, "क्या हुआ? सर?" वह हाथ रखने ही वाली होती है कि तभी वहाँ पर राजवीर आ जाता है।
राजवीर को देखकर आस्था और आयुष्मान दोनों ही एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। राजवीर जब आस्था को देखता है, तो पहले हैरान होता है, लेकिन उसे याद आता है कि यह आस्था की नई चाल है, अपने प्यार में फँसाने के लिए। इसलिए वह कुछ नहीं बोलता।
"क्या हुआ राजवीर, तुम यहाँ?" आयुष्मान ने पूछा।
"सॉरी सर, मुझे लगता है मैंने आप दोनों को डिस्टर्ब किया।" राजवीर ने कहा।
"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है!" आयुष्मान और आस्था/सान्या दोनों साथ में बोल पड़ते हैं।
यह सुनते ही दोनों एक-दूसरे के सामने देखने लगते हैं।
"सर, आज शाम की तैयारी हो गई है, जो हम पिछले कई महीने से करते आ रहे थे।" राजवीर ने कहा।
"बढ़िया... तो सभी गेस्ट को बुला लिया क्या?" आयुष्मान ने पूछा।
"हाँ सर, सबको बुला लिया है। मैंने..." राजवीर ने कहा।
"बढ़िया, ठीक है! तो फिर तुम एक काम करना, तुम आज शाम को दादी जी को भी लेकर आना।" आयुष्मान ने कहा।
यह सुनकर राजवीर खुशी से बोला, "तो क्या? हम इतने सालों के बाद दादी जी से मिलेंगे?"
उसकी खुशी देख आस्था को पता नहीं चल रहा था कि ये दोनों किस चीज़ के बारे में बात कर रहे थे, और वह कुछ बीच में पूछने का सोचती भी नहीं। वह सब कुछ चुपचाप सुन लेती है।
"हाँ, आज मुझे कुछ जरूरी अनाउंसमेंट करनी है, इसलिए..." आयुष्मान ने कहा।
"क्या? जरूरी अनाउंसमेंट? लेकिन क्या?" राजवीर और आस्था दोनों ही हैरान होते हुए कहते हैं।
तभी आयुष्मान कहता है, "वो ये कि... चलो छोड़ो, मैं रात के 9 बजे सबके सामने ही कहने वाला हूँ, तो आप दोनों भी रेडी रहना ठीक है। अभी मुझे एक काम से बाहर जाना है, तो आप दोनों शाम का सब कुछ कर देना और हाँ, मेरे दोस्त को बुलाना मत भूलना..."
वह दोनों हाँ में सिर हिला देते हैं और वहाँ से चले जाते हैं।
वह दोनों बाहर आते हैं, तब राजवीर कहता है, "तुम बाहर क्यों आई? तुम्हारा डेस्क तो अंदर ही है? कहीं पर सख्त ना हो जाए..."
तब आस्था कहती है, "ये आज क्या पार्टी होने वाली है? और आज ये कौन सा अनाउंसमेंट करने वाला है? क्या पता है तुमको?"
"नहीं, उसके बारे में मुझे सचमुच कुछ नहीं पता।" राजवीर ने कहा।
"और पार्टी?" आस्था ने पूछा।
"पार्टी के बारे में भी मुझे कुछ नहीं पता।" राजवीर ने कहा।
"ठीक है! जाने दो..." इतना कहकर आस्था अंदर चली जाती है।
जब आस्था अंदर आती है, तब आयुष्मान उसे कहता है, "सान्या... मुझे तुमसे एक बात कहनी है..." तभी आयुष्मान अपने मन में कुछ सोचते हुए कहता है, "लेकिन ये कुछ जल्दी नहीं हो जाएगा?" वह इतना कहकर अपने मन ही मन में कुछ सोचने लगता है।
तभी आस्था कहती है, "हाँ सर, कहिए... आप क्या कहना चाहते हैं?"
उसकी आवाज सुनकर आयुष्मान कहता है, "कुछ नहीं... तुम अपना काम कर दो..."
वह इतना कहकर वहाँ से बाहर आ जाता है। उसके बाहर आने के बाद आस्था सोचती है, "आखिर क्या बात हो सकती है?" जब आयुष्मान बाहर गया था, तब वह सोचती है कि वह उस लड़की की तस्वीर ले ले ताकि शाम को अपने पापा को भेज सके।
इसलिए वह भेजने के लिए उस तस्वीर को ड्रॉवर में ढूँढ़ने लगती है, लेकिन उसे वह तस्वीर वहाँ पर नहीं मिलती। वह यह देखकर परेशान हो जाती है और कहती है, "क्या? तस्वीर यहाँ नहीं है? तो फिर कहाँ पर गई?"
तभी उसके कानों में आयुष्मान की आवाज सुनाई देती है, "क्या ढूँढ़ रही हो सान्या?"
आयुष्मान की आवाज सुनकर वह परेशान हो जाती है और वह पीछे मुड़कर कहती है, "कुछ... कुछ... कुछ नहीं सर... बस... यही कि यह का स्टाम्प कहाँ पर रखा है? वह मुझे फाइल में लगाने के लिए चाहिए था..."
आयुष्मान जब यह सुनता है, तो कहता है, "अच्छा स्टाम्प... यह तो यहीं कहीं रखा होगा... लेकिन हाँ, ड्रॉवर में नहीं है! यह रहा..." वह इतना कहकर उसे दिखा देता है और यह देखकर सान्या हँसते हुए कहती है, "सॉरी, वो मेरा ध्यान नहीं था।" "इट्स ओके।" आयुष्मान इतना कहकर अपनी दवाई की डब्बी लेकर चला जाता है।
उसकी दवाई की डब्बी लेकर जाते हुए देख आस्था की साँस में साँस आ जाती है और वह कहती है, "थैंक गॉड... मैं बार-बार बच्ची हूँ..." वह इतना कहकर एक सुकून भरी साँस छोड़ती है। तभी वह देखती है कि आयुष्मान के कंप्यूटर पर एक ईमेल आता है और उस ईमेल को देखने के लिए पहले वह पूरी तरह से कन्फर्म करती है कि आयुष्मान वहाँ से जा चुका है या नहीं।
जब कन्फर्म हो जाता है, तब कंप्यूटर में ईमेल देखने लगती है और ईमेल देखते हुए उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं...
क्रमशः
आस्था ने जब ईमेल देखा, तो उसने कंप्यूटर ऑन कर दिया। उसे एक बेहद ही प्यारी और खूबसूरत लड़की की तस्वीर दिखाई दी, जिसके नीचे "आकांक्षा" लिखा हुआ था। इसको देखकर आस्था के मन में कई सारे सवाल उठ गए। वो अपने मन ही मन सोचते हुए बोली, "कहीं ये लड़की मिस्टर आयुष्मान की गर्लफ्रेंड या वाइफ तो नहीं?" वो ये सब सोचने लगी और बाद में उस ईमेल को बंद कर दिया।
उस ईमेल को देखकर अब आस्था का मन कुछ भी सोचने लगा। तब अचानक सोचते हुए वो बोली, "कहीं ऐसा तो नहीं कि आज रात आयुष्मान उसकी और इस लड़की की शादी की बात करके सरप्राइज देना चाहता हो? अगर ऐसा हुआ तो मैं कैसे उसे अपना बदला ले पाऊँगी? लेकिन अगर सच में उसकी शादी हो गई तो...?" वो ये सब कुछ सोचने में पड़ गई और उसका पूरा दिन यही बात सोचने में चला गया।
शाम के छह बजे, ऑफिस के बड़े से हाल में एक पार्टी रखी गई थी। जहाँ पर सारे बड़े-बड़े बिज़नेसमैन मौजूद थे। आयुष्मान भी वहाँ मौजूद था। उसने ब्लू कलर का सूट पहना हुआ था और उसमें बेहद ही हैंडसम और अट्रैक्टिव लग रहा था।
बार-बार लगातार सारे गेस्ट आते जा रहे थे। उन सभी गेस्ट के आने के बाद दादी जी भी आ गईं। दादी जी को देखकर सारे लोग दादी जी का आदर करने लगे। दादी जी की उम्र भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन वो दिखने में अभी भी जवान लग रही थीं। उन्होंने बेहद ही प्यारा सा ड्रेस पहना हुआ था और साथ ही साथ मेकअप भी। उनको देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि वो आयुष्मान की दादी हैं। दादी के साथ आयुष्मान चला गया और दादी को पैंपर करने लगा।
तभी वहाँ पर आस्था भी आ गई। आस्था ने ब्लू कलर की ड्रेस पहनी हुई थी, जिसमें वो बेहद ही प्यारी लग रही थी। उसकी आँखें आयुष्मान को तलाश रही थीं। तभी उसे राजवीर दिख गया। राजवीर ने दूसरे से ही आयुष्मान की ओर इशारा कर दिया। जब आयुष्मान की नज़र आस्था पर गई, तो वो उसे पूरी तरह से देखने लगा और उसकी ओर लगातार देखता रहा।
आस्था भी आयुष्मान के पास आ गई। उसने आयुष्मान को "गुड इवनिंग" कहा और बाद में दादी जी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद ले लिया। ये देखकर दादी जी बहुत खुश हो गईं और वो आयुष्मान के सामने देखकर बोलीं, "क्या ये तुम्हारी गर्लफ्रेंड हैं?"
ये सुनते ही आस्था और आयुष्मान दोनों ही एक साथ बोल पड़े, "नहीं..." उन दोनों को साथ में बोलते हुए देख दोनों ही एक-दूसरे के सामने देखने लगे।
तभी दादी जी बोलीं, "अरे बाबा, मैं तो मज़ाक कर रही थी।"
थोड़ी देर बाद, जैसे ही नौ बज गए, वैसे ही पार्टी शुरू हो गई। बाद में राजवीर ने अनाउंसमेंट किया। आयुष्मान ने थोड़ी स्पीच दी और सभी का वेलकम और थैंक्यू के साथ ग्रीट किया और सभी को एन्जॉय करने के लिए कहा। तभी आयुष्मान बोला, "मैं आयुष्मान, आप सभी को कुछ अनाउंसमेंट करने जा रहा हूँ..." वहाँ पर एक बहुत बड़ा बोर्ड था, जिसके ऊपर बहुत बड़ा लाल कपड़ा रखा हुआ था। ये देखकर सारे लोग बहुत ही आतुर हो गए।
आयुष्मान सबके सब्र का बाण न रखते हुए उस कपड़े को हटा दिया और सभी को कहा, "आई लॉन्च्ड माय न्यू बिज़नेस..." फ़ोटो में एक लड़की थी, जिसके हाथों में कॉस्मेटिक क्रीम थी और उसका नाम "ग्लो इंटेंट्स" था। ये देखकर सभी लोग आयुष्मान के सामने देखने लगे।
जब आस्था ने देखा, तो वो हैरान हो गई क्योंकि उसने जिस लड़की का ईमेल देखा था, वो ईमेल में यही लड़की थी। लेकिन उसने सिर्फ़ लड़की की तस्वीर देखकर ईमेल बंद कर दिया था; पूरा ईमेल नहीं पढ़ा था। ये देख आस्था भी आयुष्मान के सामने देखने लगी।
आयुष्मान: "मैं जानता हूँ आप सभी के दिमाग में बहुत सारे सवाल होंगे। ये मैंने क्यों किया? मेरा बिज़नेस कुछ और है, मैं शेयर अच्छी तरह जानते हुए भी ये क्यों किया? मुझे पता है! आप सब को पता है! ये कंपनी मैं कुछ महीने पहले ही बंद हो गई थी और अब मैंने उस कंपनी को खरीद लिया है। ये ग्लो इंटेंट्स वाला अब मेरा बिज़नेस है और आप सबके प्यार और सहयोग से मुझे यकीन है ये मेरा नया बिज़नेस भी बहुत अच्छा करेगा..."
ये सुनते ही सारे लोग तालियाँ बजाने लगे। और उस कंपनी का नाम मालिनी ग्लो रखा हुआ था, जो आयुष्मान की दादी जी का नाम है। ये देखकर उसकी दादी की आँखों में खुशी के और इमोशनल भरे आँसू आ गए।
सभी लोग अब पार्टी एन्जॉय करने लगे। सारे लोग पार्टी एन्जॉय कर रहे थे, जब कि राजवीर ये सारी बातें आस्था के पापा को पहुँचा रहा था। राजवीर की बात सुनकर आस्था के पापा चिल्लाते हुए बोले, "क्या? मालिनी ग्लो? ये तो आयुष्मान की दादी का नाम है! मतलब कि उसकी माँ का..." राजवीर: "जी हाँ..."
"मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम दोनों का वहाँ पर होना कुछ फायदा नहीं है? तुम दोनों वहाँ पर कुछ नहीं कर रहे हो। तुम दोनों एक काम करो, अपना जॉब छोड़ दो। आस्था को भी बेटा पापा घर बुला रहे हैं। हमें कोई बदला नहीं लेना, वो खुद पापा ले लेंगे।" ये सुनते ही राजवीर अंकल को शांत करने लगा और बोला, "आप फ़िक्र मत करिए, हम यहाँ पर सब कुछ संभाल लेंगे..." वो इतना कहकर कॉल काट देता है। उसके कॉल रखते ही आस्था के पापा चिल्लाते हुए बोले, "ये नहीं हो सकता! वहाँ पर आयुष्मान ऊँचाई की सीढ़ी बहुत आसानी से चढ़ता जा रहा है और हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। अगर आस्था को वहाँ पर सब पता चल गया तो? उसे पता चल गया कि मेरे पापा ही... नहीं नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए... नहीं होगा ऐसा..." इतना कहकर उसने अपना एक हाथ टेबल पर मार दिया।
।
।
क्रमशः