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विवाह एक पवित्र बंधन

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nikki tha little writer

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Description

यह कहानी एशिया के फेमस बिजनेसमैन अर्थव मल्होत्रा और एक रेपिस्ट गर्ल मिस्टी मलिक की है अर्थ मल्होत्रा 27 साल का एक फेमस बिजनेसमैन हैंडसम इतना की कोई उसे नजर भर भी देखे तो दीवाना हो जाए हाइट 6 फुट 7 इंच आंखें डार्क ब्लैक 8...

Characters

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मिस्टी मालिक

Heroine

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अर्थव मल्होत्रा 😎

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Total Chapters (96)

Page 1 of 5

  • 1. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 1

    Words: 1652

    Estimated Reading Time: 10 min

    मॉम डैड.....

    "आई एम सॉरी। जब यह लेटर आपके पास होगा, मैं इंडिया से बाहर जा चुका हूँगा। मैं यह शादी नहीं कर सकता क्योंकि मैं उस लड़की को जानता ही नहीं, जिससे आप मेरी ज़िंदगी में शामिल करने जा रहे हैं। मैं रिया से प्यार करता था और करता हूँ। हमने कोर्ट मैरिज कर ली थी, सो अब मैं किसी दूसरी लड़की की ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकता। मैं यहाँ से जा रहा हूँ। हो सके तो आप मुझे माफ़ कर देना, और उस लड़की—क्या नाम है उसका?—हाँ, मिश्री, उसे भी कहना मुझे माफ़ कर दे। अटलीस्ट मैं उसे दूसरी शादी करके उसकी लाइफ बर्बाद नहीं करना चाहता। सॉरी मॉम डैड। मैं आपका परफेक्ट बेटा नहीं बन सकता... बन जाता तो अपनी खुशी खो देता, जो मुझे मंज़ूर नहीं थी। आज शादी है, आप क्या कर सकते हैं, यह आप सोच लेंगे। बहुत माइंडेड हैं आप, टॉप बिज़नेसमैन में आते हैं, हर सिचुएशन को हैंडल करना जानते हैं। तो प्लीज़, अगर कभी आपको मेरी याद आए तो मुझे कॉल कर लेना, मैं ज़रूर आ जाऊँगा। और वैसे, आपके सो कॉल्ड दो बच्चे हैं ना आपके साथ, वे ज़रूर आपके साथ ही रहेंगे। मैं नहीं भी रहा तो क्या... सॉरी मॉम डैड, वन्स अगेन। और लव यू सो मच। बट अपनी खुशी से बढ़कर कुछ नहीं। आप ही की नज़रों में आपका नालायक बेटा...

    अभिषेक..."

    लेटर मिस्टर मल्होत्रा के हाथ से नीचे गिर गया।

    मिसेज़ मल्होत्रा- आप यहाँ पर बैठे, प्लीज़। टेंशन मत लो, नहीं तो बीपी हाई हो जाएगा आपका...

    मिस्टर मल्होत्रा- जस्ट शट अप, रूहानी! टेंशन ना लूँ? सारा घर मेहमानों से भरा हुआ है और शाम को शादी है। अगर दूल्हा ग़ायब हो गया तो अब क्या होगा...?

    रूहानी- यश, अब हम मलिक जी से क्या कहेंगे? यह नहीं सोचा आपने? उनकी इकलौती बेटी है मिश्री, वह यह सब क्या बर्दाश्त कर सकेगी? मुझे अभिषेक से इतनी नादानी की उम्मीद नहीं थी... मना कर देता पहले ही। इस तरह अचानक शादी छोड़कर चला जाना, कितनी बुरी बात है।

    यश मल्होत्रा- यह तुम्हारे लाड़-प्यार का नतीजा है, जो हम आज इस तरह बेइज़्ज़त होने के लिए खड़े हैं। अब क्या करें, बोलो? 😡😡

    रूहानी- अर्थव से बात करें इस मसले पर...

    यश- दिमाग़ ख़राब है तुम्हारा! उससे बात? क्या बात करनी है? छोटा तो जा चुका है, क्या अब बड़े को भी घर से भेजना चाहती हो...?

    रूहानी- बट वह घर का बड़ा बेटा है, उसे सब बताना तो होगा ना...

    यश- क्या कहोगी? उसका छोटा भाई शादी के दिन किसी और से शादी करके इंडिया से जा चुका है। उसका गुस्सा मालूम है। वह अभिषेक को अभी के अभी ढूँढकर यहाँ पर खड़ा कर देगा, क्या? लेकिन यह सही होगा?

    रूहानी- फिर क्या करेंगे हम? आप ही कहो। अब रात को शादी है, हमारे पास टाइम कहाँ है कुछ भी करने का...


    मल्होत्रा इंडस्ट्री...

    सुबह 8:50 बजे

    संदीप माथुर- जूही, सब ठीक है ना? सर के ऑफ़िस आने में ओनली 10 मिनट्स ही हैं।

    जूही- जी, सब ठीक है।

    संदीप- तुम्हें पता है ना, सर को अपने केबिन में कुछ भी चेंज हो जाए तो पसंद नहीं आता। और आज तुम्हारी वजह से उनकी टेबल का सारा सामान इधर-उधर हो गया।

    जूही- हाँ सर, गलती हो गई। बट मैंने उनके आने से पहले सब ठीक कर दिया है। डोंट वरी। बट यह बात अजीब नहीं है। आज सर के भाई की शादी है, और सर आज भी काम करने के लिए ऑफ़िस आ गए। खुद आ जाते हैं, हमें तो छुट्टी दे देते। हम ही इन्जॉय कर लेते आज मल्होत्रा मेंशन जाकर। बट ना, जी। हॉलीडे बस स्टाफ़ कुछ भी वर्क हॉलीडे ही बनाकर छोड़ेंगे...

    संदीप- हो गया तुम्हारा? अब निकलो यहाँ से। सर बस आने ही वाले हैं... 9:00 बजते ही वो यहाँ होंगे, सब जानते हैं... तभी ऑफ़िस में अफ़रा-तफ़री मच जाती है।

    संदीप- आई थिंक की सर आ गए। चलो, दोनों अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ जाते हैं... तभी एक दमदार पर्सनालिटी का शख़्स ऑफ़िस में इंटर करता है।

    मिसेज़ सक्सेना- आल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू। अगर 10 कदम चल गए बिना रुके, तो सब कुछ सही है। और अगर 10 कदम से पहले ही रुक गए, तो कुछ ना कुछ गड़बड़ हो ही जाएगी। ओ गॉड, बचा लो... इधर अर्थव के हर बढ़ते कदम को स्टाफ़ काउंट कर रहे थे: "1...2...3...4...5...6...7...8... और यह 9! और तभी अर्थव रुक गया। उसके रुकते ही सारे स्टाफ़ की साँस रुक गई...

    संदीप- अब यह क्यों रुके हैं?

    अर्थव सारे स्टाफ़ मेंबर्स को बारी-बारी देखा, फिर बोला...

    अर्थव- "How disgusting! ऐसा कैसे हो गया? आपका फ़ेस मेरे रुकते ही जैसे भूत देख लिया हो। जस्ट चिल! मुझे आपसे सिर्फ़ यह कहना है कि आप लोग आज लंच मल्होत्रा मेंशन में करेंगे। सो आज आप सब की हाफ़ डे है। सो अपना काम कम्प्लीट करो और लंच के लिए घर जाओ।" यह कहकर वह अपने केबिन में चला गया।

    जूही- अब साँस में साँस आई सबके... चलो, करो काम सब के सब, नहीं तो सर कल हमारा लंच निकाल ही देंगे... हिटलर की औलाद है यह, पता नहीं जर्मनी से यहाँ उसकी आत्मा कैसे आ गई...

    मिसेज़ सक्सेना- सही बोला तुमने, हिटलर ही है यह तो पूरा बना बनाया। बस वो छोटा सा था, और यह लंबा सा है।


    दूसरी तरफ़ मलिक मेंशन में...

    मिसेज़ मलिक- मिश्री, कहाँ हो बेटा? आओ ब्रेकफ़ास्ट कर लो, बच्चा... तभी एक 19 साल की लड़की, जिसने येलो कलर्स का लहँगा पहना हुआ था, छोटे-छोटे बच्चों के साथ ब्लाइंड फ़ोल्ड गेम खेलती नज़र आई...

    मिश्री- अब मैं रीता को पकड़ूँगी।

    रीता- मुझे क्यों दी??

    मिश्री- क्योंकि फिर तुम मुझे पकड़ना। ओके?

    रीता, खुश होकर, "ओके..." फिर मिश्री आँखों पर पट्टी बाँधकर बच्चों को ढूँढने लगती है...


    अर्थव गुस्से से खुद में बड़बड़ाते हुए: "मॉम भी ना, बेकार के काम करने के लिए कह देती हैं। अब अभिषेक की दुल्हन का घर रास्ते में पड़ता है, तो यह शादी का जोड़ा मुझे दे दिया। यहाँ मलिक मेंशन में देने के लिए! कितनी बेकार बात है... 😡" फिर उसकी कार जाकर मलिक मेंशन के आगे रुकती है। अर्थव अब ड्राइवर को सामान लाने के लिए कहकर, खुद उसे मेंशन के अंदर जाने लगता है।


    अर्थव गार्डन से होकर अंदर जा रहा था कि दूसरी तरफ़ से मिश्री रीता को ढूँढती हुई आ जाती है। रीता, जो कि अर्थव के पीछे जाकर छुप गई थी... तभी मिश्री ने अर्थव को पकड़ लिया...

    मिश्री- अरे तुम इतनी बड़ी कब हो गई? रीता, कमाल है! अभी तो छोटी सी थी...

    अर्थव- "पागल हो तुम? हू आर यू...?" मिश्री आवाज़ सुनकर ब्लाइंडफ़ोल्ड अपनी आँखों से हटा देती है...

    मिश्री- आप कौन हैं? "How disgusting!" बोलने वाले, हाँ, बोलो...

    अर्थव- "जस्ट शट अप! इतनी बड़ी हो और बच्चों के साथ खेल रही हो? यह डिस्गस्टिंग नहीं तो इंटरेस्टिंग है क्या?"

    मिश्री- जो मेरा दिल करता है, मैं वही करती हूँ। और तुम हो कौन? पहाड़ की तरह सामने खड़े हो गए हो। आना है या जाना है? फ़टाफ़ट डिसाइड करो, मुझे अभी और खेलना है। ओके...?

    अर्थव- मुझे कोई शौक नहीं है तुमसे दिमाग़ लड़ने का। मुझे मिस्टर मलिक से मिलना है। यह सामान उन्हें देना था। तभी मिसेज़ मलिक बाहर आती हैं और अर्थव को मिश्री के साथ बात करते देख जल्दी से वहाँ पर आ जाती हैं...

    मिसेज़ मलिक- अरे अर्थव बेटा, आप यहाँ क्या कर रहे हो? अंदर चलिए ना, बाहर क्यों खड़े हैं? और मिश्री, तुम यहाँ क्यों क्या कर रही हो? चलो अंदर...

    मिश्री नाम सुनकर अर्थव चौंक जाता है और मिश्री को हैरान नज़रों से देखने लगता है...

    अर्थव (खुद से): "यह है मिश्री? अभिषेक की होने वाली वाइफ़? आई डोंट थिंक सो यह बनेगी हमारे घर की बहू। शादी के दिन बच्चों के साथ ब्लाइंडफ़ोल्ड खेल-खेल रही है। पागल है क्या? वैसे ही अभिषेक लापरवाह है, बीवी भी पूरी तरह से पागल। ले रहा है क्या देखकर पसंद किया मॉम ने इसे? एक तो वैसे ही इतनी छोटी है, ऊपर से हरकतें भी बच्चों वाली..."

    अर्थव- आंटी, मेरे पास टाइम नहीं है। आपको यह सामान देना था, तो अब दे दिया। अब मैं चलता हूँ...

    मिसेज़ मलिक- बट बेटा, तुम हमारे घर पहली बार आए हो। ऐसा कैसे जा सकते हो? कुछ तो लो आप।

    अर्थव- नो, कोई फ़ॉर्मेलिटी नहीं। घर की बात है।

    मिश्री- आप कहीं के राजा-महाराजा हैं क्या, जो आप-आप करके इतना फ़ोर्स कर रही हैं? जाने दो, जा रहा है तो...

    मिसेज़ मलिक- मिश्री, जस्ट शट अप! अंदर जाओ अभी के अभी। कोई एग्रीमेंट नहीं, बिल्कुल चुप...

    मिश्री- आपने मुझे डेट किया इस लंबू के लिए? मैं आपसे कट्टी...

    लंबू सुनकर अर्थव गुस्से से मिश्री को घूरने लगता है।

    श्रीमती मलिक- सॉरी बेटा, वो बस लाड़ली है ना, तो जल्दी नाराज़ हो जाती है...

    मिश्री- हूँ! इस कुतुबमीनार के लिए आपने मुझे डेट क्यों किया?? 😡😡😡

    मिसेज़ मलिक- मिश्री बेटा, यह अभिषेक के बड़े भाई हैं। सो सॉरी बोलो। अर्थव मल्होत्रा नाम है इनका। चलो, सॉरी बोलो...

    मिश्री अभिषेक के बड़े भाई से मिली नहीं थी, सिर्फ़ नाम सुना था। सो बड़ा भाई सुनकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें पूरी खोलकर अर्थव को ऊपर से नीचे तक देखने लगती है...

    मिश्री- तो आप हैं "मोस्ट एलिजिबल बैचलर," बिज़नेस टायकून ऑफ़ द ईयर, जो गुस्से के बहुत तेज हैं? ऐसा आपकी मॉम ने कहा था... "मोस्ट एलिजिबल बैचलर" कहाँ से हो गए आप? कोई पागल ही होगी जिसकी शादी आपसे होगी... बट फिर भी, "आई एम सॉरी," कहकर वहाँ से चली जाती है...

    "वही अर्थव हैरान सा खड़ा उसे जाता हुआ देख रहा था..."

    श्रीमती मलिक- वो सॉरी बेटा, बस वह ऐसी ही है, जो मन में आता है बोल देती है। मैं उसकी तरफ़ से माफ़ी माँगती हूँ तुमसे...

    अर्थव- "इट्स ओके। मैं चलता हूँ," कहकर वो वहाँ से चला गया...

  • 2. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 2

    Words: 1500

    Estimated Reading Time: 9 min

    वापस घर जाते समय,

    "अर्थव, how disgusting! यह लड़की बनेगी हमारे घर की बहू? जिसे बात करने की तमीज नहीं है! How dare she call me कुतुब मीनार? मुझे तो विश्वास ही नहीं होता अभिषेक के साथ इसकी शादी कैसे होगी! ओ गॉड! मेरे भाई को बचा लो..."


    दूसरी तरफ, मलिक मेंशन में...

    मैसेज मलिक हाल में आई और सामने का सीन देखकर डर गई। क्योंकि मिश्री मिस्टर मलिक के गले लग कर जोर-जोर से रोने में बिजी थी। मिसेज मलिक खुद से कह रही थीं, "ओ गॉड! अब यह बाप-बेटी मेरी बैंड बजाएंगे!" और सबसे ज्यादा तो मिश्री के पापा... तभी मिस्टर मलिक मैसेज मलिक को देख लेते हैं।


    मिस्टर मलिक- सरिता, आप इधर आओ, अभी के अभी।

    सरिता- जी, कहिए, क्या कहना है आपको?


    मिस्टर मलिक- मुझे नहीं, आपको जवाब देना होगा। आपने मिश्री को डांटा क्यों? और वो भी एक stranger के सामने! आपको पता है इसकी आँखों में एक भी आँसू मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, और आपकी वजह से कितनी रो रही है...

    मिश्री- मैं मॉम से बात नहीं करूंगी, बस।

    सरिता- आपको इसने क्या बताया कि मैंने स्ट्रेंजर के सामने इसे डांटा? यह नहीं बताया कि क्या कारनामा किया है इसने... वह स्ट्रेंजर आर्थव मल्होत्रा था, अभिषेक का बड़ा भाई, जो शादी का जोड़ा और दूसरी चीजें देने आया था। जिसे यह कुतुब मीनार और न जाने क्या-क्या बोल रही थी...


    मिस्टर मलिक यह सुनकर चौंक गए और फिर गुस्से से मिश्री को देखने लगे।


    मिस्टर मलिक- मिश्री, बेटा, यह मैं क्या सुन रहा हूँ? आपने इतनी बदतमीजी से बात की अर्थव से? दिस इज़ नॉट फेयर! आप उस घर पर बहू बनकर जा रही हो, इस तरह से कोई करता है क्या?


    मिश्री- ओ प्लीज, पापा! डांटो मत। मैंने सॉरी कह दिया था उन्हें, बट वह भी बेकार में मुझसे लड़ाई कर रहे थे, तो मैंने भी फिर सुन दिया और वहाँ से चली आई।

    सरिता- हाँ, और यहाँ पर आकर कह दिया, मैंने स्ट्रेंजर के सामने डांटा है! यह अच्छी हरकत है ना तुम्हारी, मिश्री...?


    मिश्री- चीज़! मॉम, हो गई ना बात खत्म! अब उसे लेकर मत बैठो, ओके? आज जा रही हूँ मैं अपने ससुराल। आज तो मुझसे प्यार से बात कर लो। हर वक्त डांटना ही है आपको? यह कहते हुए उसकी आँखों में आँसू बह गए। उसकी आँखों में आँसू देखकर सरिता मिश्री को टाइटली हग कर लेती है और फिर खुद भी रोने लगी।


    सरिता- सॉरी, बच्चा। अपनी मॉम को माफ़ कर दो।

    मिश्री रोते हुए- जाओ, माफ़ किया। और हँसकर मॉम और डैड दोनों को गले लगा लेती है।


    मिस्टर मलिक- माय एंजेल! मेरी परी! तेरे बिना मैं कैसे रहूँगा, पता नहीं...


    मिश्री- ओह! तो मैं कौन सा दूर हूँ? यहीं तो हूँ! एक कॉल कर लेना, आ जाऊँगी अभिषेक के साथ आपसे मिलने। अब ड्राइविंग तो आपने सिखाई नहीं मुझे, नहीं तो खुद भी आ जाती...


    सरिता- कोई ज़रूरत नहीं है। ड्राइवर है ना, उसके साथ आ जाना। बट खुद ड्राइविंग कभी मत करना, ओके...


    मिश्री- ओके, मॉम। खुश! बट मैं ड्राइविंग क्यों नहीं कर सकती??

    मिस्टर मलिक- मिश्री, ज़िद नहीं करते। चलो, आओ ब्रेकफास्ट कर लो...


    वहीं दूसरी ओर, मल्होत्रा मेंशन में...

    आर्थव मल्होत्रा मेंशन में इंटर हुआ कि सामने खड़ा रोहन को देख चौंक जाता है।


    अर्थव- अरे रोहन! तू कब आया यूके से? व्हाट अ सरप्राइज़! और उसे गले लगा लेता है।

    रोहन- बस जब तुमने देखा तब ही आ गया।

    अर्थव- नव्या आई है ना साथ?


    रोहन- हाँ, अंदर है।


    अर्थव- तू इतना परेशान क्यों लग रहा है? सब ठीक है ना?

    रोहन- तू अंदर चल, फिर बताता हूँ। फिर दोनों अंदर चले गए।
    अर्थव- बात क्या है? रोहन, मुझे यह तो बता ना...


    रोहन- अरे अंदर चल, फिर तुझे सब पता चल जाएगा...
    अर्थव- ओके, चलो... दोनों अंदर मिस्टर मल्होत्रा के रूम में चले गए।


    अर्थव- पापा, क्या हुआ आपको? इस वक्त बेड पर कैसे? आप सब ठीक है ना? बीपी ठीक है ना आपका?

    रूहानी- नहीं, कुछ भी ठीक नहीं है, बेटा। पापा का बीपी हाई हो गया था, लेकिन अब ठीक है...


    अर्थव- व्हाट डू यू मीन? हाई हो गया था? अब ठीक हो गया है? और आप लोगों ने मुझे इन्फॉर्म करना भी ज़रूरी नहीं समझा क्या?? बकवास है! और पास में रखी टेबल को गुस्से से लात मार देता है... और यह अभिषेक कहाँ है? सुबह से दिखाई नहीं दिया और उसका फ़ोन भी ऑफ़ आ रहा है...


    रोहन- कम डाउन, आर्थव। अंकल के लिए स्ट्रेस खतरनाक हो सकता है। अभिषेक यहाँ पर नहीं है।

    अर्थव- बट यहाँ नहीं है तो फिर कहाँ है?? मार्केट गया है, या दोस्तों के साथ? कहाँ है, बोलो??


    रूहानी- बेटा, वह इंडिया से बाहर चला गया है। रिया नाम की लड़की, जिसे वह प्यार करता था, उसके साथ शादी करके... यह सुनकर अर्थ चौंककर सबको देखने लगा।


    अर्थव- क्या बकवास लगा रखी है? शादी करके? पर आज तो उसकी शादी यहाँ है! फिर किससे शादी करके वह चला गया? क्या मज़ाक है यह सब? मुझे पूरी बात बताओ आप सब लोग, इसी वक्त...


    रूहानी- यह लेटर दे गया है। वह पढ़कर देख, पता चल जाएगा...


    अर्थव- रूहानी के हाथ से लेटर लेकर पढ़ने लगा।


    अर्थव- वो ऐसा कैसे कर सकता है? उससे शादी नहीं करनी थी तो बता देता। यह सब करने की क्या ज़रूरत थी? मुझे अभिषेक से ऐसी उम्मीद नहीं थी।


    रोहन- अब आगे क्या करना है, यह किसी ने सोचा है?


    अर्थव- व्हाट डू यू मीन? आगे क्या??


    रोहन- आज शादी है। कुछ घंटे रह गए हैं, और दोनों खानदानों की इज़्ज़त दाव पर लगी है। इसे कैसे बचाएँगे?


    अर्थव- क्या बचाएँगे? मिस्टर मलिक को बुलाकर सब बता दो। इसमें इतना दिमाग लगाने की क्या ज़रूरत है...


    रोहन- यह कोई बिज़नेस डील नहीं है कि समझ नहीं आई तो एक सेकंड में कैंसिल कर दो। यह दो खानदानों की इज़्ज़त का सवाल है। 1 मिनट में इसे मिट्टी में नहीं मिला सकते...


    अर्थव- ओके, तो मैं क्या करूँ? बोलो...


    सभी एक-दूसरे को देख रहे थे। आगे का कौन बोलेगा? तभी नव्या रूम में चिल्लाती हुई आई...


    नव्या- अरे भाई! आप आ गए! चलो, हल्दी की रस्म कर लेते हैं। फिर आपको रेडी भी होना है ना!


    रोहन- मेरी पागल वाइफ़! कभी तो जुबान पर लगाम लगा लिया कर! हर वक्त नॉनस्टॉप चलती ही रहती है!


    नव्या- अब मैंने क्या कर दिया? अर्थव भाई की ही तो शादी है ना आज... यह सुनकर अर्थ जो बेड पर बैठा था, एकदम से झटके से उठ खड़ा हुआ, जैसे उसे बेड पर करंट लगा हो...


    अर्थव & नव्या- क्या कहा तुमने? फिर से कहना! किसकी शादी? बोलो!


    रोहन- अर्थव, मेरे भाई! तू मेरी बात सुन, आराम से...


    अर्थव- गो टू हेल! योर आराम! नव्या ने जो कहा, वह क्यों कहा? बोलो!


    रूहानी- बेटा, अब कोई और रास्ता भी नहीं बचा है हमारे पास। शादी तो तुम्हें अब करनी ही होगी। तुम्हारे डैड अभी नींद के इंजेक्शन की वजह से सो रहे हैं, पर उठने के बाद फिर से अगर उन्होंने टेंशन लिया तो बीपी फिर हाई हो जाएगा, जो खतरनाक भी हो सकता है तुम्हारे पापा के लिए...


    अर्थव- तो इसलिए मैं शादी कर लूँ उस इमैच्योर लड़की के साथ? जो अपनी शादी के दिन बच्चों के साथ blind fold खेल रही थी? जिससे बात करने की तमीज़ तक नहीं है? नेवर! मुझे ना उस लड़की में और ना शादी जैसे रिश्ते में यकीन है! सो प्लीज, डॉन्ट फ़ोर्स मी! और गुस्से से वहाँ से जाने लगा...


    रोहन- ठीक है, मत कर शादी आज! अगर तू घोड़ी नहीं चढ़ेगा तो अपने पापा की अर्थी सजाने की तैयारी कर लेना! यह सुनकर अर्थव रोहन के चेहरे पर मुक्का मारने लगा।


    अर्थव- हाउ डेयर यू? जिसे तुम यह सब कह रहे हो ना, वह मेरे पापा हैं! समझा तो! आगे से अगर इस तरह से शब्द बोले तो दोस्ती खत्म हमारी!


    रोहन- सॉरी यार! तो क्या करता? यह नहीं कहता तो कोई और रास्ता भी नहीं है हमारे पास इस बात के अलावा...


    अर्थव चुपचाप खड़ा सबको देखने लगा।


    अर्थव- ओके, मैं तैयार हूँ। बट मेरी कुछ शर्तें हैं। अगर मंज़ूर हैं तो मैं शादी करूँगा, नहीं तो नहीं करूँगा...


    रोहन- शर्तें? कैसे शर्तें? बोल? अर्थव जो शर्तें उनके सामने रखता है, यह सुनकर सबके मुँह खुले के खुले रह जाते हैं...


    रोहन- आर यू मैड? ऐसा कैसे हो सकता है?


    रूहानी- बेटा, कोई मज़ाक नहीं, यह शादी है। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? मिश्री और उनके घर वालों के साथ यह सही नहीं होगा...


    अर्थव- मुझे नहीं मालूम। अगर एग्री हो आप लोग तो मुझे बता देना। मैं शादी कर लूँगा, नहीं तो नहीं। आपके पास ज़्यादा वक्त नहीं है। मैं अपने रूम में जा रहा हूँ। अगर मंज़ूर है तो मुझे बता देना, मैं हो जाऊँगा शादी के लिए तैयार। नहीं तो आप कोई ना कोई रास्ता निकाल लो। यह कहकर वह रूम से निकल गया...

  • 3. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 3

    Words: 1223

    Estimated Reading Time: 8 min

    मिस्टर मल्होत्रा के कमरे में...

    मिस्टर मल्होत्रा अभी-अभी नींद से जागे थे। "अहह! मेरा सर इतना भारी क्यों हो रहा है?"

    "वो नींद का इंजेक्शन लगाया था ना, इसलिए," रूहानी ने कहा।

    "व्हाट? नींद का इंजेक्शन? क्यों लगाया? मुझे थोड़ा सा ही तो बीपी हाई हुआ था," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    "अगर ना लगवाते तो अर्थव को शादी के लिए राजी कैसे करते? आपकी छोटी सी बीपी हाई की खबर सुनते ही वह शादी के लिए तैयार हो गया, लेकिन एक प्रॉब्लम हो गई... उसकी कुछ शर्तें हैं," रोहन ने बताया।

    मिस्टर मल्होत्रा खुश होकर बोले, "वाह! मेरा शेर! दिल खुश कर दिखाता है तूने। मेरे अर्थव को शादी के लिए तैयार कर लिया। मैं बहुत खुश हूँ। कोई भी शर्त हो, मुझे परवाह नहीं है।"

    "पहले शर्त सुन तो लो, शायद फिर से नींद का इंजेक्शन ना लगवाना पड़ जाए," रूहानी ने कहा।

    "यार, डराओ तो मत! शर्त क्या है? यह बताओ," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    "आपके साहिबजादे फरमा कर गए हैं, शादी मेरी उस इमैच्योर लड़की के साथ हो। यह बात किसी को भी पता नहीं चलनी चाहिए... उस मिश्री के मॉम-डैड को भी नहीं। शादी में सबको यह ही कहा जाएगा कि शादी अभिषेक के साथ ही हो रही है। शादी कंप्लीट होते ही अर्थव, यानी अभिषेक को अचानक किसी काम से यूके जाना होगा। इसलिए वह शादी होते ही वहाँ से यूके के लिए निकल जाएगा और मिश्री को विदा करवा लेंगे," रोहन ने बताया।

    "मिश्री छह महीने यहाँ पर रहेगी और इन छह महीनों में उसे यह भी बताया जाएगा कि अभिषेक कंपनी के काम से यूके ही रहेगा। और अगर इस सिक्स मंथ में अर्थव को यह लगा कि मिश्री उसकी वाइफ बनने के काबिल है तो वो सबके सामने बताएगा कि वो मिश्री का रियल हस्बैंड है और उसकी शादी मिश्री के साथ हुई है। लेकिन अगर उसे लगा कि यह मैच्योर नहीं है तो वह उसे डिवोर्स दे देगा।"

    मिस्टर मल्होत्रा यह सुनकर रियल में सर पकड़ कर बैठ गए।

    "अरे, संभल कर मिस्टर मल्होत्रा! ज़्यादा ही दिमाग घूम गया ना आपका? अभी से! हमारा तो कब से घूम रहा है," रूहानी ने कहा।

    "यह कोई शर्त है? किसी की बेटी कोई खिलौना है जिसे हम इस तरह से यूज़ करेंगे? मन किया तो रखेंगे, ना मन किया तो नहीं रखेंगे? यह सब शादी न करने के बहाने हैं... इसलिए उसने यह ऊंट-पटांग शर्त रखी है और कुछ नहीं है। वह नहीं करेगा शादी। मुझे यह पहले ही पता था," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    "पर अंकल, अब क्या करें? मिस्टर मलिक दिल के मरीज़ हैं। उन्हें अगर कुछ भी स्ट्रेस दिया तो कुछ भी हो सकता है। अब क्या करें? इधर कुहा है, उधर खाई है। अब हम कहाँ जाएँ?" रोहन ने पूछा।

    "क्या ऐसा हो सकता है कि किसी को भी शक ना हो और शादी अर्थव से ही हो रही है, अभिषेक से नहीं? बाकी का मैं संभाल लूँगा आगे का... एक बार शादी हो जाने दो। उसकी सारी शर्तें उसी के सर पर उल्टी नहीं मारी तो मेरा नाम भी यश मल्होत्रा नहीं... वो बेटा है तो मैं भी उसका बाप हूँ। एक बार सात फेरे ले ले वो, फिर उन सात फेरों के जाल में उसे ऐसा फँसाऊँगा कि बाहर आने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहेगी। तुम बोलो, कब हो जाएगी शादी, जैसे मैं सोच रहा हूँ... वैसे," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    "मुश्किल है, नामुमकिन नहीं सर। मैं कर लूँगा सब, पर आप आगे का देख लेना," रोहन ने कहा।

    "ठीक है। बोलो, उसे इसी वक़्त में भी तो उसका फेस कैसा होगा जब हम हाँ करवाएँगे... उसकी शर्तों के लिए," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    "मैं अर्थव को बुलाकर लाती हूँ," रूहानी ने कहा।


    अर्थव के कमरे में...

    अर्थव कमरे में आराम से बिस्तर पर लेटा हुआ कोई गाना गुनगुना रहा था। "अर्थव खुद से क्या सिक्सर मारकर आया हूँ! सारे के सारे क्लीन बोल्ड हो गए... क्या फेस हो गए थे सबके... मेरी बात सुनकर... मैं करूँगा उस बदतमीज़ लड़की से शादी, जिसे बात करने की तमीज़ नहीं है! कैसे मुझे कुतुब मीनार बोला था... अभिषेक कौन सा कम लंबा है? मेरे जितना ही तो है। उसे नहीं बोला कुतुब मीनार... बस मुझे ही बोला है... अब करेगी आराम अपने मॉम-डैड के पास! मेरा पीछा तो छूट गया। अब उस पागल लड़की से... बस अब अभिषेक को ढूँढना होगा, कहाँ छुपा बैठा है..."

    तभी कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और रूहानी कमरे के अंदर आई।

    "मॉम, आप?" अर्थव ने कहा।

    "हाँ, वह तुम्हारे पापा तुम्हें बुला रहे हैं। चलो जल्दी से," रूहानी ने कहा।

    "पापा उठ गए?" अर्थव ने कहा।

    "हाँ," रूहानी ने कहा। अर्थव हैरान सा मॉम के साथ यश मल्होत्रा के कमरे में चला गया।

    "आओ आओ बरखुद्दार! यहाँ मेरे पास बैठो और बोलो, शादी में कपड़े अरेंज किस शोरूम से करने हैं?" यश मल्होत्रा ने कहा। अब शादी के सूट की बात सुनकर अर्थव का मुँह खुला का खुला रह गया।

    "मुँह क्यों खोला है? कुछ कहना है तुम्हें?" यश मल्होत्रा ने पूछा।

    "वो, मैं कह रहा था कि जो शर्त मैंने रखी है, आप तैयार हैं उसके लिए?" अर्थव ने कहा।

    "हाँ, बिल्कुल तैयार है बेटा! तुम अजीब हो तो शर्त भी अजीब ही होगी। पता था, बट इट्स ओके। सब हो जाएगा। तुम बस शादी की तैयारी करो। जाकर रोहन इसकी ड्रेस लेकर आओ अभी, इसके साथ जाकर जो यह रात को पहनेगा," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    अर्थव गुस्से से बोला, "कोई ज़रूरत नहीं है! मेरे पास ड्रेस है, पहन लूँगा वही। आप परेशान मत हो।" यह कहकर गुस्से से वहाँ से निकल गया। उसके जाते ही सब हँसने लगे।

    "अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे! चल बेटा अर्थव, चढ़ जा घोड़ी! तू भी आगे-आगे देख, हम तेरी बेड़ कैसे बजाते हैं! शर्त के साथ शादी करेगा ना... कर! तू खुद इस शादी को दिल से मानेगा भी और निभाएगा भी। यह सात फेरों का रिश्ता है, इतनी आसानी से नहीं टूटेगा। सब जानते हैं एक दिन तू भी मानेगा, लेकिन अभी टाइम लगेगा," रोहन ने कहा।

    "सही कहा! अब रात का सोचा कैसे होगा सब... हमारा प्लान सक्सेसफुल," मिस्टर मल्होत्रा ने कहा।

    "आप फिक्र ना करो, सब हो जाएगा। पहले वो करें जो सबसे ज़रूरी है," रोहन ने कहा।

    "क्या सबसे ज़रूरी है?" रूहानी ने पूछा।

    "समय आने पर बता दूँगा। तुम टेंशन ना लो। चल रोहन," यशवंत ने कहा।

    रोहन और यशवंत वहाँ से निकल गए।


    दूसरी तरफ़ मलिक मेंशन में...

    "मिश्री बेटा, तुमने अपनी मेहँदी पर नींबू और शुगर लगाया है ना?" सरिता ने पूछा।

    "यस मॉम, लगा लिया था। यह देखो, कितनी रेड हो रही है मेहँदी मेरे हाथों की। बट एक प्रॉब्लम हो गई... मॉम, मेहँदी पर अभिषेक की जगह अर्थव का नाम लिखा हुआ है," मिश्री ने कहा।

    सरिता मिश्री के हाथ देखती हैं तो सच में अर्थव का नाम उसके गोरे हाथों पर चमक रहा था।

    "यह पार्लर वाली ने भी क्या काम ठीक नहीं करना है! कितना बड़ा अपशकुन कर दिया! अभिषेक की जगह अर्थव बना दिया! आने दो उसे, रात को बताती हूँ," सरिता ने कहा।

    "ओह मॉम, चिल! हो जाता है कभी-कभी। अभिषेक नहीं लिखा तो क्या मेरी शादी अभिषेक से नहीं होगी? क्या अर्थव नाम के इंसान से हो जाएगी? डोंट टेक ज़्यादा टेंशन! मत लो और स्माइल करो," मिश्री ने कहा।

    सरिता कुछ नहीं बोली और वहाँ से चली गई।

  • 4. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 4

    Words: 2003

    Estimated Reading Time: 13 min

    मलिक मेंशन में अफरा-तफरी का माहौल था। हर कोई व्यस्त था। मिस्टर मलिक अपने कमरे में बैठे थे। तभी सरिता आईं।

    सरिता: "क्या हुआ? इतने परेशान क्यों हैं आप? मिश्री के जाने से...?"

    मिस्टर मलिक: "हाँ, वो बात है। पर एक बात ने मुझे ज़्यादा परेशान किया हुआ है।"

    सरिता: "कौन सी बात?"

    मिस्टर मलिक: "मिश्री की बीमारी वाली बात। हमने मल्होत्रा से छुपाई है। कल को जब उन्हें पता चला, तो वह क्या करेंगे?"

    सरिता: "अरे, तो वह बात बहुत पुरानी है। अब हमारी मिश्री बिल्कुल ठीक है ना? कभी बीमार हुई ही नहीं है उसे। दिन के बाद तो आप भूल जाओ उस बात को। और बाहर चलो, बारात के आने का समय हो गया है। मिश्री भी बस आने ही वाली है, तैयार होकर।"

    मिस्टर मलिक: "एक बात और है, सरिता।"

    सरिता: "अब क्या हो गया?"

    मिस्टर मलिक ने कुछ बताया। यह सुनकर सरिता सर पकड़ कर बैठ गईं। "सरिता, यह कैसे हो सकता है? मैं अम्मा को क्या जवाब दूंगी? ऐसा थोड़ी होता है? शादी छोटे से तय हुई, फिर बड़े के साथ क्यों हो रही है? यह कोई मज़ाक है क्या?"

    मिस्टर मलिक: "मिस्टर मल्होत्रा बहुत समझदार हैं। बट अर्थव से शादी हो रही है हमारी बेटी की। यह देखो, वह बहुत अच्छे आदमी हैं, वर्ल्ड फेमस बिज़नेस टायकून। बस अब जो मैं कह रहा हूँ, वैसे ही करो। मिश्री को कुछ नहीं बताना है। जैसा हो रहा है, बिल्कुल वैसा ही होने दो। कोई बिग डील नहीं है कि हम हंगामा मचाकर अपनी बेइज़्ज़ती करें और उनकी भी। तुम बस नॉर्मल रहो, ओके? और जैसा हो रहा है, होने दो।"

    सरिता: "आपको पता है, मिश्री के हाथ में अभिषेक नहीं, अर्थव लिखा गया था कल मेहँदी से।"

    मिस्टर मलिक: "अच्छा, यह तो फिर भगवान का ही इशारा है कि अर्थव और मिश्री एक-दूसरे के लिए बने हैं। अगर ऐसा हुआ, तो भगवान भी यह चाहते हैं कि दोनों साथ रहें।"

    सरिता: "हाँ, पर मिश्री अभी भी बचपन करती है। वहीं अर्थव तो बहुत गुस्से वाला है। कैसे निभेगी ये शादी?"

    मिस्टर मलिक: "वक्त सब सही कर देगा। तुम परेशान मत हो। हम सब हैं ना, उन दोनों के साथ। उन्हें रास्ता दिखाने के लिए।" तभी मिश्री रेड कलर की ब्रांडेड ड्रेस पहन, तैयार होकर बाहर आई। सरिता और मिस्टर मलिक उसे देखकर पलकें झपकना ही भूल गए, क्योंकि वह लग ही इतनी प्यारी रही थी, बिल्कुल डॉल की तरह।

    मिस्टर मलिक: "ओ माय गॉड! माय प्रिंसेस! यू लुक सो प्रिटी!"

    सरिता: "हाँ, माय एंजेल! अंदर आओ बेटा, तुम्हें किसी की नज़र ना लगे। मैं अभी तुम्हारी नज़र उतरती हूँ।"

    मिश्री: "रियली, मॉम? मैं इतनी प्यारी लग रही हूँ?"

    मिस्टर मलिक: "प्यारी? तुम जन्नत की हुर लग रही हो, हमारी क्यूट सी प्रिंसेस!" यह कहते हुए मिस्टर मलिक रोने लगे। सरिता की आँखों में भी आँसू भर आए थे।

    मिश्री: "आप दोनों रोने लगोगे, तो मैं भी रोने लग जाऊँगी। फिर मेरा जो मेकअप है, वह भी खराब हो जाएगा और सारी पिक्चर ही बेकार आएंगी मेरी। दिस इज़ नॉट फेयर! अपनी परी को चुड़ैल बनाना चाहते हो क्या? चलो जल्दी से आँसू साफ़ करो अपने।" यह सुनकर उसके मॉम-डैड उसकी क्यूट-क्यूट बातों पर हँसने लगे।

    मिश्री: "मुस्कुरा कर, That's my mom and dad!"

    दूसरी तरफ़, मल्होत्रा मेंशन में...

    रोहन: "यह अर्थव कहाँ चला गया? आज इसकी शादी है और इसका कोई अता-पता ही नहीं है।"

    नव्या: "जी, वह अंदर बैठे हैं, रूम में।" रोहन ने रूम में जाकर देखा तो अर्थव लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था।

    रोहन: "हद है, अर्थव! तुझे तैयार नहीं होना है क्या? चल, आज भी कौन सा काम है जो अभी करना ज़रूरी है? मनीषा और रुद्र भी आ गए हैं, सब वेट कर रहे हैं।"

    अर्थव: "मैं क्या करूँ? अपना काम छोड़ दूँ इस सो कॉल्ड शादी के लिए? पाँच मिनट में शादी के लिए रेडी हो जाऊँगा। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुम सब के इशारों पर नाचूँगा। मुझे जो करना है, जैसा करना है, मुझे पता है। सो डोंट फोर्स मी, ओके? जाओ, मैं आ रहा हूँ।"

    "रोहन मन में: हे भगवान! यह तो आएगा अपने डेविल अवतार में। अब वही करेगा जो दिल में आएगा। इसके और किसी की हिम्मत नहीं है जो इसे अब अपने हिसाब से चला ले। भगवान उस प्यारी सी लड़की को बचा लेना।" फिर वह वहाँ से निकल गया।

    अर्थव: "शादी है तो बड़े खुश हो रहे हैं। शादी करवाने की सोचकर मैं इनके जाल में फँस गया। सब सुन चुका था मैं उनकी बातें गेट के बाहर। ऐसा दिखाया जैसे पता नहीं है। पापा सोच रहे हैं कि मैं बहुत बेवकूफ़ हूँ और सब मिलकर मेरी बैंड बजाएँगे। आई एम अर्थव मल्होत्रा! मेरी परमिशन के बिना तो कोई मुझे अपनी जगह से हिला भी नहीं सकता, तो बैंड बजाने की बात तो बहुत दूर की है। होने दो, शादी हो जाएगी, सबके अरमान पूरे हो जाएँगे। संभालेंगे उस पागल, मैच्योर बच्ची को खुद ही। ला रहा हूँ आप सभी की सो कॉल्ड बहू को..."

    यश मल्होत्रा: "अरे रोहन, बेटा! अर्थव कहाँ है? उसे इस रूम में लेकर आओ। यहीं से वह दूल्हा बनकर बाहर जाएगा। और बाहर सब को यही कहना है कि अर्थव किसी काम के सिलसिले में बाहर गया है, बाद में शामिल होगा शादी में। ठीक है? अब बुलाकर लाओ उस नालायक को, वक़्त बीत जा रहा है। आज मौसम भी बारिश का हो रहा है।"

    रोहन: "जी, अंकल! आ रहा हूँ वो, बस में लेकर आता हूँ।" और... तभी अर्थव रूम में इंटर करता है।

    रूहानी: "लो आ गया अर्थव! आ जाओ बेटा, जल्दी से ड्रेस चेंज कर लो, फिर कुछ रस्म भी करनी है।"

    अर्थव: "व्हाट रस्म, मॉम? 😲"

    यश: "बेटा, अब शादी करोगे तो सब रस्म निभाई ही होगी ना? नो एग्रीमेंट, ओके? जाओ ड्रेस चेंज करो।" अर्थव मुँह बनाकर वहाँ से चला गया।

    रोहन: "बस एक बार शादी हो जाए इसकी! मैं तो काली मंदिर में जाकर ग़रीबों को खाना खिलाकर आऊँगा।"

    नव्या: "मैं भी चलूँगी।"

    रोहन: "हाँ, क्यों नहीं? मेरी लाडली वाइफ के बिना तो कुछ कर ही नहीं सकता। तुम भी चलोगी, ठीक है?"

    नव्या: "और अबीर भी..."

    रोहन: "हाँ, वो भी चलेगा। अब चुप... और देखो वो कहाँ पर है..." तभी अबीर आता है, उसके साथ छोटी सी क्यूट सी लड़की भी थी। अबीर: "पापा, मैं यहाँ हूँ और खुशी भी मेरे साथ ही है।"

    रोहन: "खुशी तुम्हारे साथ है, तो मॉम-डैड कहाँ हैं? निशांत-रिद्धिमा दिख नहीं रहे।"

    नव्या: "रिद्धिमा मार्केट गई है, मैचिंग बैंगल्स लेने। बस आती ही होगी।"

    रोहन: "🤨 और जोरू का गुलाम साथ गया होगा पीछे-पीछे क्यों?"

    नव्या: "हाँ जी!" तभी अर्थव क्रीम और रेड कलर की शेरवानी पहनकर बाहर आता हुआ दिखा।

    रूहानी: "देखो जी, हमारा बेटा! इस ड्रेस में कहीं का शहज़ादा लग रहा है! किसी की नज़र ना लगे मेरे बच्चे को।"

    यश: "हाँ, शहज़ादा! मगर बिगड़ी हुई रियासत का। 😏"

    रूहानी: "धीरे बोलो आप! सुन लिया तो अभी शादी कैंसिल हो जाएगी।"

    अर्थव आकर चेयर पर आकर बैठ गया। तभी निशांत और रिद्धिमा, नव्या के साथ रूम में आ गए।

    रूहानी: "चलो नव्या और रिद्धिमा, अर्थव की एक-एक आँख में काजल लगाओ। यह भाभियों के हाथों की जाने वाली रस्म होती है। फिर तुम्हें नेक मिलेगा।" नव्या-रिद्धिमा एक्साइटेड होकर बोलीं, "ओ, रियली?" और फिर उसे काजल लगाती हैं।

    अर्थव: "काजल लगाना होगा? नो! बिल्कुल नहीं!"

    यश: "बेटा जी, शगुन का लगवा लो। सिर्फ़ ज़्यादा नहीं लगाएँगे, ओके।"

    अर्थव: "ओके।"

    रिद्धिमा और नव्या काजल लगाने लगीं। फिर रोहन फूलों से बना सेहरा लेकर आया और निशांत अर्थव को पगड़ी पहनाने लगा।

    अर्थव: "इतना लंबा सेहरा क्यों बनवाया है?"

    रोहन: "मेरे लाल! अब शर्त की शादी है, तो फेस इसी से छुपा सकते हैं ना? तो यह ही बाँधना होगा। हम और क्या करें?"

    अर्थव गुस्से में रोहन को देखने लगा, फिर बेमन से तैयार हो गया।

    यश: "चलो, हो गया मेरा बेटा तैयार! चल बेटा, बाहर चल! गाड़ी में बैठ जा, घोड़ी पर तो हम वहाँ पर ले जाकर बिठाएँगे।"

    अर्थव हैवी सेहरे की वजह से चल नहीं पा रहा था।

    अर्थव: "रोहन के बच्चे! मेरे साथ चल! मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, कहाँ पर गया तू?"

    रोहन: "यह रहा! तुम्हारे साथ ही चल रहा हूँ। नहीं गिरने दूँगा तुझे। चल आगे!" फिर सब डांस करते हुए गाड़ी तक जा जाते हैं। सब बारात वेन्यू तक पहुँच गए, जहाँ पर घोड़ी तैयार खड़ी की गई थी।

    रोहन: "चल अर्थव, अब बैठ जा घोड़ी पर! अबीर तेरे साथ बैठेगा, ओके।"

    अर्थव: "ओके... मेरी मदद कर पहले बैठने में! कहीं तू नागिन डांस करने के चक्कर में मैं चला मत जाना।"

    रोहन: "वह तो मेरा फेवरेट है! ज़रूर करूँगा। तू बैठ पहले घोड़ी पर!" फिर अर्थव घोड़ी पर जाकर बैठ गया और सब हँसते-डांस करते हुए मलिक मेंशन पहुँच जाते हैं, जहाँ पर बारात का वेलकम बहुत अच्छे से किया गया। सरिता आरती करती है, फिर सभी अंदर चले गए।

    अर्थव: "रोहन! कितना वक़्त लगेगा शादी में? फटाफट करवा! यह फेरे-वेरे... मेरा दम घुट रहा है इस सेहरे में।"

    रोहन: "बरदाश्त कर! अब और जैसे होगा, वैसे ही होगा। मेरे बाप का राज नहीं है जो पलक झपकते ही फेरे हो जाएँगे।" तभी अर्थव को स्टेज पर लाया गया माला पहनने की रस्मों के लिए। तभी एक लेडी बोली...

    "अरे, दूल्हे का चेहरा तो दिखाओ! और उसका सेहरा तो हटाओ! हम भी तो देखें हमारे मिस्टी का दूल्हा कैसा है!" यह सुनकर सब चौंक गए। अब क्या करें?

    तभी रोहन बीच में बोल पड़ा।

    रोहन: "सॉरी आंटी! हम सेहरा नहीं हटा सकते। हमारे बाबा जी ने मना किया है कि जब तक शादी नहीं हो जाती, तब तक दूल्हा अपना चेहरा किसी को नहीं दिखा सकता है। सो सारी रस्म ऐसे ही होगी।"

    लेडी: "अच्छा, कोई बात नहीं! बाद में देख लेंगे हम। वैसे मिस्टी कहाँ है?" तभी सजी-धजी मिश्री, रिद्धिमा और नव्या के साथ सीढ़ियों से नीचे उतरती हुई नज़र आई। उसने फेस को नेट की चुनरी से ढँका हुआ था, फिर भी उसकी ख़ूबसूरती नज़र आ रही थी नेट के पीछे से भी।

    रोहन: "हे भाभी! कसम से कितनी ख़ूबसूरत लग रही है! अर्थव, बिल्कुल गुड़िया जैसी! सो प्रिटी! आर यू आर सो लकी!"

    अर्थव: "हो गई तेरी बकवास स्टार्ट! चुप होने का क्या देगा तू? गुड़िया जैसी लग रही है? माय फ़ुट! देखा है कितनी छोटी सी है? कहाँ से शुरू हो रही है, कहाँ पर ख़त्म? यह ही पता नहीं चलता है। भाभी है तेरी! 😒😤😤"

    सब स्टेज पर आ गए और अर्थव-मिश्री एक-दूसरे को माला पहनने लगे और फिर मंडप में जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में फेरों की रस्म हो गई। फिर मिश्री की मांग में सिंदूर भरा गया और मंगलसूत्र पहनाया गया।

    पंडित जी: "शादी संपन्न हुई! आज से आप पति-पत्नी हुए। अपने बड़ों का आशीर्वाद ले लीजिए।"

    "अर्थव मन में: थैंक गॉड! हो गई शादी! बस अब यहाँ से निकलना होगा जल्द से जल्द! कोई देख न ले!" फिर दोनों सबका आशीर्वाद लेते हैं। वही लेडी फिर आती है। "अब तो दूल्हे का चेहरा दिखा दो! शादी हो गई!"

    रोहन: "इसकी जान चली जाएगी अगर यह अर्थव तेरा चेहरा नहीं देखोगी तो! पीछे ही पड़ गई है यार! क्या करूँ?"

    अर्थव: "मुझे नहीं पता! मुझे यहाँ से जाना है बस अभी! कुछ भी कर!"

    रोहन: "ओके! करता हूँ कुछ!" तभी लाइट चली गई। रोहन: "वह क्या कोइन्सडेंस है! अब तू आसानी से निकल जाएगा यहाँ से। रुक! मैं अभी आया..." रोहन, यश और सुरेश मलिक के पास जाकर कुछ कहते हैं, फिर अर्थव को लेकर बाहर निकल गए।

    रोहन: "लो आ गए बाहर! शुक्र कर लाइट चली गई! हम बच गए! अब तू फटाफट जा और वापस आ, ओके? अंदर मैं संभाल लूँगा।"

    अर्थव: "ओके! मैं जाता हूँ और थैंक यू।"

    रोहन: "हो गया तेरा थैंक्स का ड्रामा तो! निकल! कोई देख ना ले! बाय।"

    अर्थव: "बाय!" और बाहर निकल गया। वहीं रोहन अंदर चला गया।

  • 5. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 5

    Words: 1165

    Estimated Reading Time: 7 min

    यश मल्होत्रा ने कहा, "अरे रोहन बेटा, अर्थव कहाँ है?? उसे इस कमरे में लेकर आओ। यहीं से वह दूल्हा बनकर बाहर जाएगा और बाहर सबको यही कहना है कि अर्थव किसी काम के सिलसिले में बाहर गया है, बाद में शादी में शामिल होगा। ठीक है? अब बुलाकर लाओ उस नालायक को, वक्त बीत रहा है। आज मौसम भी बारिश का हो रहा है।"


    रोहन ने उत्तर दिया, "जी अंकल, आ रहा है वो। बस में लेकर आता हूँ और..." तभी अर्थव कमरे में आया।


    रूहानी ने कहा, "लो आ गया अर्थव... आ जाओ बेटा, जल्दी से ड्रेस चेंज कर लो, फिर कुछ रस्म भी करनी है।"


    अर्थव ने कहा, "व्हाट रस्म मॉम...? 😲"


    यश ने कहा, "बेटा, अब शादी करोगे तो सब रस्म निभाई ही होगी ना। नो एग्रीमेंट, ओके? जाओ ड्रेस चेंज करो।" अर्थव मुँह बनाकर वहाँ से चला गया।


    रोहन ने कहा, "बस एक बार शादी हो जाए इसकी, मैं तो काली मंदिर में जाकर गरीबों को खाना खिलाकर आऊँगा।"


    नव्या ने कहा, "मैं भी चलूँगी।"


    रोहन ने कहा, "हाँ, क्यों नहीं? मेरी लाडली वाइफ के बिना तो कुछ कर ही नहीं सकता। तुम भी चलोगी, ठीक है।"


    नव्या ने कहा, "और अबीर भी..."


    रोहन ने कहा, "हाँ, वो भी चलेगा। अब चुप... और देखो वो कहाँ पर है..." तभी अबीर आया, उसके साथ एक छोटी सी क्यूट सी लड़की भी थी। अबीर ने कहा, "पापा, मैं यहाँ हूँ और खुशी भी मेरे साथ ही है।"


    रोहन ने पूछा, "खुशी तुम्हारे साथ है तो मॉम-डैड कहाँ हैं? निशांत-रिद्धिमा दिख नहीं रहे।"


    नव्या ने जवाब दिया, "रिद्धिमा मार्केट गई है, मैचिंग बैंगल्स लेने। बस आती ही होगी।"


    रोहन ने कहा, "🤨 और जोरू का गुलाम साथ गया होगा पीछे-पीछे, क्यों?"


    नव्या ने कहा, "हाँ जी।" तभी अर्थव क्रीम और रेड कलर की शेरवानी पहनकर बाहर आया।


    रूहानी ने कहा, "देखो जी, हमारा बेटा इस ड्रेस में किसी शहजादे जैसा लग रहा है। किसी की नज़र न लगे मेरे बच्चे को।"


    यश ने कहा, "हाँ, शहजादा, मगर बिगड़ी हुई रियासत का। 😏"


    रूहानी ने कहा, "धीरे बोलो आप, सुन लिया तो अभी शादी कैंसिल हो जाएगी।"


    अर्थव आकर चेयर पर बैठ गया। तभी निशांत और रिद्धिमा, नव्या के साथ कमरे में आ गए।


    रूहानी ने कहा, "चलो नव्या और रिद्धिमा, अर्थव की एक-एक आँख में काजल लगाओ। यह भाभियों के हाथों की जाने वाली रस्म होती है, फिर तुम्हें नेक मिलेगा।" नव्या और रिद्धिमा एक्साइटेड होकर बोलीं, "ओ रियली!" और फिर उसे काजल लगाया।


    अर्थव ने कहा, "काजल लगाना होगा? नो, बिल्कुल नहीं।"


    यश ने कहा, "बेटा जी, शगुन का लगवा लो। सिर्फ़ ज़्यादा नहीं लगाएँगे, ओके।"


    अर्थव ने कहा, "ओके।"


    रिद्धिमा और नव्या काजल लगाने लगीं। फिर रोहन फूलों से बना सेहरा लेकर आया और निशांत ने अर्थव को पगड़ी पहनाई।


    अर्थव ने कहा, "इतना लंबा सेहरा क्यों बनवाया है?"


    रोहन ने जवाब दिया, "मेरे लाल, अब शर्त की शादी है तो फ़ेस इसी से छुपा सकते हैं ना? तो यह ही बाँधना होगा, हम और क्या करें?"


    अर्थव गुस्से में रोहन को देखने लगा, फिर बेमन से तैयार हो गया।


    यश ने कहा, "चलो, हो गया मेरा बेटा तैयार। चल बेटा, बाहर चल। गाड़ी में बैठ जा, घोड़ी पर तो हम वहाँ पर ले जाकर बिठाएँगे।"


    अर्थव हैवी सेहरे की वजह से चल नहीं पा रहा था।


    अर्थव ने कहा, "रोहन के बच्चे, मेरे साथ चल। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। कहाँ पर गया तू?"


    रोहन ने कहा, "यह रहा, तुम्हारे साथ ही चल रहा हूँ। नहीं गिरने दूँगा तुझे। चल आगे।" फिर सब डांस करते हुए गाड़ी तक गए। सब बारात वेन्यू तक पहुँच गए जहाँ पर घोड़ी तैयार खड़ी की गई थी।


    रोहन ने कहा, "चल अर्थव, अब बैठ जा घोड़ी पर। अबीर तेरे साथ बैठेगा, ओके।"


    अर्थव ने कहा, "ओके... मेरी मदद कर पहले बैठने में। कहीं तू नागिन डांस करने के चक्कर में मैं गिर मत जाना।"


    रोहन ने कहा, "वो तो मेरा फ़ेवरेट है। ज़रूर करूँगा। तू बैठ पहले घोड़ी पर।" फिर अर्थव घोड़ी पर बैठ गया और सब हँसते-डांस करते हुए मलिक मेंशन पहुँच गए जहाँ पर बारात का वेलकम बहुत अच्छे से किया गया। सरिता आरती करती है, फिर सभी अंदर चले गए।


    अर्थव ने कहा, "रोहन, कितना वक्त लगेगा शादी में? फ़टाफ़ट करवा। यह फेरे-वेरे... मेरा दम घुट रहा है इस सेहरे में।"


    रोहन ने कहा, "बर्दाश्त कर। अब और जैसे होगा वैसे ही होगा। मेरे बाप का राज नहीं है जो पलक झपकते ही फेरे हो जाएँगे।" तभी अर्थव को स्टेज पर लाया गया माला पहनने की रस्मों के लिए। तभी एक लेडी बोली,


    "अरे, दूल्हे का चेहरा तो दिखाओ और उसका सेहरा तो हटाओ। हम भी तो देखें हमारे मिस्टी का दूल्हा कैसा है।" यह सुनकर सब चौंक गए। अब क्या करें?


    तभी रोहन बीच में बोला,


    रोहन ने कहा, "सॉरी आंटी, हम सेहरा नहीं हटा सकते। हमारे बाबा जी ने मना किया है कि जब तक शादी नहीं हो जाती तब तक दूल्हा अपना चेहरा किसी को नहीं दिखा सकता है। सो सारी रस्म ऐसे ही होगी।"


    लेडी ने कहा, "अच्छा, कोई बात नहीं। बाद में देख लेंगे हम। वैसे मिस्टी कहाँ है?" तभी सजी-धजी मिश्री, रिद्धिमा और नव्या के साथ सीढ़ियों से नीचे उतरती हुई दिखी। उसने फ़ेस को नेट की चुनरी से ढका हुआ था, फिर भी उसकी ख़ूबसूरती नज़र आ रही थी नेट के पीछे से भी।


    रोहन ने कहा, "हे भाभी, कसम से कितनी खूबसूरत लग रही है! अर्थव, बिल्कुल गुड़िया जैसी... सो प्रिटी! आर यू सो लकी..."


    अर्थव ने कहा, "हो गई तेरी बकवास स्टार्ट! चुप होने का क्या देगा तू? गुड़िया जैसी लग रही है? माय फ़ुट! देखा है कितनी छोटी सी है? कहाँ से शुरू हो रही है, कहाँ पर ख़त्म, यह ही पता नहीं चलता है! भाभी है तेरी...😒😤😤"


    सब स्टेज पर आ गए और अर्थव-मिश्री एक-दूसरे को माला पहनने लगे और फिर मंडप में जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में फेरों की रस्म हो गई। फिर मिश्री की माँग में सिंदूर भरा गया और मंगलसूत्र पहनाया गया।


    पंडित जी ने कहा, "शादी संपन्न हुई। आज से आप पति-पत्नी हुए। अपने बड़ों का आशीर्वाद ले लीजिए।"


    अर्थव ने मन में सोचा, "थैंक गॉड, हो गई शादी! बस अब यहाँ से निकलना होगा जल्द से जल्द। कोई देख न ले।" फिर दोनों सबका आशीर्वाद लेते हैं। वही लेडी फिर आती है।


    लेडी ने कहा, "अब तो दूल्हे का चेहरा दिखा दो, शादी हो गई।"


    रोहन ने कहा, "इसकी जान चली जाएगी अगर यह अर्थव तेरा चेहरा नहीं देखोगी तो। पीछे ही पड़ गई है यार, क्या करूँ?"


    अर्थव ने कहा, "मुझे नहीं पता। मुझे यहाँ से जाना है बस अभी कुछ भी कर।"


    रोहन ने कहा, "ओके, करता हूँ कुछ।" तभी लाइट चली गई। रोहन ने कहा, "वो क्या कॉइन्सडेंस है! अब तू आसानी से निकल जाएगा यहाँ से। रुक, मैं अभी आया।" रोहन, यश और सुरेश मलिक के पास जाकर कुछ कहते हैं, फिर अर्थव को लेकर बाहर निकल गए।


    रोहन ने कहा, "लो आ गए बाहर। शुक्र कर लाइट चली गई, हम बच गए। अब तू फ़टाफ़ट जा और वापस आ, ओके? अंदर मैं संभाल लूँगा।"


    अर्थव ने कहा, "ओके, मैं जाता हूँ और थैंक यू।"


    रोहन ने कहा, "हो गया तेरा थैंक्स का ड्रामा? तो निकल, कोई देख ना ले। बाय।"


    अर्थव ने कहा, "बाय।" और बाहर निकल गया। वहीं रोहन अंदर चला गया।

  • 6. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 6

    Words: 1330

    Estimated Reading Time: 8 min

    काफी देर तक लाइट नहीं आई जिस कारण सभी परेशान हो गए। तभी ड्रेस चेंज करके अर्थव मैरिज हॉल में आ गया और लाइट भी आ गई। सबकी नज़र अंदर आते हुए अर्थव पर ही रुक गई। वह ब्लैक सूट में किसी प्रिंस से कम नहीं लग रहा था। उसका एटीट्यूड देखकर सारी लड़कियाँ उसे ही देखने लगी थीं, पर वह किसी की ओर भी ध्यान नहीं दे रहा था। वह मिस्टर यश के पास जाकर खड़ा हो गया, पर वही लेडी अर्थव के पास आकर खड़ी हो गई।

    लेडी - "हे भगवान! कितना सुंदर लड़का है! यह ड्रेस चेंज करके आ गया। मिश्री का दूल्हा तो बहुत ही सुंदर है! कितनी प्यारी जोड़ी है!"

    लेडी की बात सुनकर अर्थव रोहन की तरफ देखने लगा कि अब क्या करे।

    रोहन - "आंटी, यह दूल्हे का बड़ा भाई है, दूल्हा नहीं। दूल्हा तो किसी जरूरी काम से अभी-अभी इंडिया से बाहर चला गया है। बाद में आ जाएगा। ओके?"

    लेडी - "ऐसा कैसे हो गया? दुल्हन को विदा भी नहीं करवाया और चला गया? ऐसा भी कोई करता है क्या?"

    रूहानी - "हम हैं ना आंटी, दुल्हन को ले जाने के लिए। बस बहुत जरूरी काम आ गया था, इसलिए जाना पड़ा। क्या करें? मजबूरी इंसान से कुछ भी करवा लेती है।" रूहानी गुस्से से अर्थव को देखने लगी। अर्थव उनसे नज़रें नहीं मिला रहा था और दूसरी तरफ देखने लगा।

    मिश्री अपने कमरे में बैठी थी। तभी उसकी कज़िन सिस्टर जाकर उसे बताने लगी कि अभिषेक वहाँ से चला गया।

    मिश्री - "बट कहाँ चला गया?"

    कज़िन सिस्टर - "कोई बहुत जरूरी काम था इसलिए चला गया। शायद इंडिया से बाहर गया है। अभी-अभी उसका बड़ा भाई आया है, जो कितना ज़्यादा हैंडसम और हॉट है! कसम से, मुझे मिल जाए ना तो मैं तो गंगा नहा लूँ! ऐसा हस्बैंड पाकर..."

    मिश्री - "वो कुतुब मीनार आ गया क्या?"

    कज़िन सिस्टर - "व्हाट? कुतुब मीनार? क्या कह रही है यार? कितनी शानदार हाइट है उसकी! तुमने कुतुब मीनार ही कहकर सब बेकार कर दिया!"

    मिश्री - "सुंदर हाइट? खंभे जैसे लंबा है और कुछ नहीं! हँसी तो आती ही नहीं है। उसे एटीट्यूड इतना, जैसे कहीं का प्रिंस चार्मिंग हो..."

    कज़िन सिस्टर - "यार, यह तो सही कहा है तूने! प्रिंस चार्मिंग ही है वो!!"

    मिश्री - "अब अर्थव पुराण बंद कर! मेरे सर में दर्द हो गया!" वह बेड पर लेट गई। तभी कमरे में मिश्री की मॉम आईं।

    सरिता - "बेटा, कुछ तो खा लो। नहीं तो तबीयत खराब हो जाएगी। कब से भूखी हो?"

    मिश्री - "मॉम, मैं ठीक हूँ। आप फ़िक्र ना करो। मॉम, अभिषेक ऐसा कैसे चला गया? यह क्या तरीका है? शादी है, कोई मज़ाक नहीं। अब अगर मैं विदा होने से मना कर दूँ तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी उनकी?"

    सरिता - "अरे नहीं नहीं बेटा, तुम्हारे पापा को पता था कि वह जाएगा। बस तुम परेशान हो जाती इसलिए नहीं बताया।"

    मिश्री - "आप लोग अपनी खिचड़ी अपने आप ही पका लेते हो! क्यों? शादी मेरी है और मुझे ही कुछ खबर नहीं है! दिस इज़ नॉट फेयर, मॉम!" वह रोने लगी। सरिता मिश्री को रोते देख घबरा गईं।

    सरिता - "अरे अरे मिश्री! तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो? हम कुछ गलत फैसला करेंगे? बस वह मजबूरी थी, तो बात माननी पड़ी। बेटा, तुम रो क्यों रही हो?" सरिता ने उसे गले लगाकर पीठ थपथपाने लगी। "मेरा बच्चा ऐसे नहीं रोते। चुप हो जाओ..." तभी मिस्टर मलिक कमरे में आए और मिश्री को ऐसे रोते देखकर चौंक गए।

    मिस्टर मलिक - "अरे क्या हुआ मेरी प्रिंसेस को? क्यों रो रही है?" वह जल्दी-जल्दी मिश्री के पास चले गए।

    मिश्री - "मैं आपसे बात नहीं करूंगी।"

    मिस्टर मलिक - "मैंने क्या किया कि मेरी गुड़िया अपने पापा से नाराज़ हो गई?"

    सरिता सारी बात बता देती है।

    मिस्टर मलिक - "अपने कान पकड़कर बेटा। पापा आपसे सॉरी बोलते हैं। यह मजबूरी थी। मैं और अभिषेक के पापा परेशान थे, तो बात माननी पड़ी। आई एम सॉरी।" उनकी आँखों में आँसू आ गए, जिन्हें देखकर मिश्री अपने पापा को टाइटली हग कर लेती है।

    मिश्री - "सॉरी पापा, मैं गंदी हूँ। आपको रुला दिया। आई एम अ बैड गर्ल, है ना?"

    मिस्टर मलिक - "नो, माय प्रिंसेस। तुम इस दुनिया की सबसे अच्छी बेटी हो। मेरी जान हो। तुम गलत हो ही नहीं सकती। अरे, सारा मेकअप खराब हो गया तुम्हारा! अभी तुम्हारी विदाई होगी कुछ देर में। तब तक तुम अपना मेकअप ठीक कर लो।"

    मिश्री - "अच्छा, मैं एंजेल लग रही हूँ पापा?"

    सरिता - "नहीं, मेरा बच्चा। तुम एंजेल लग नहीं रही। चाँद में दाग हो सकता है, मेरी बेटी में नहीं। बस थोड़ा फेस गंदा हो गया। लाओ, मैं साफ़ कर देती हूँ।"

    दूसरे तरफ़ मैरिज हॉल में...

    वही लेडी फिर से अर्थव के पास आती है।

    लेडी - "बेटा, शादी हो गई तुम्हारी?"

    रोहन - "अब आपको क्या काम है आंटी?"

    लेडी - "मेरी पोती है। बहुत सुंदर, पढ़ी-लिखी। उसके साथ इसकी जोड़ी खूब जचेगी। कहाँ हैं इसके माँ-बाप? मैं बात करना चाहती हूँ आज ही।"

    रोहन - अर्थव के पास जाकर बोला, "अर्थव बाबा! एक और शादी के लिए तैयार हो जाओ! यह लेडी तो तुम्हें अपना दामाद बनकर ही छोड़ेगी! पूरी तरह फ़िदा हो गई है तुम पर..."

    अर्थव - "प्लीज रोहन, बकवास बंद कर! अपनी और लेकर जा इसे यहाँ से! जब से परेशान किया जा रही है मुझे देख-देखकर!"

    रोहन - "क्या ज़रूरत थी लुका-छुपी खेलने की? अब भुगत तू जो भी हो! मैं क्या करूँ? क्या ज़रूरत थी इतना तैयार होकर आने की? कौन सा मिश्री तुझे देखने वाली थी? पति परमेश्वर मानकर..."

    अर्थव - "रोहन, मॉम डैड से कहो चलने का। बहुत लेट हो गया है।"

    रोहन - "हाँ, कितना बेचैन हो रहा है मेरा भाई! क्यों? इरादा तो नहीं बदल गया तेरा? मिश्री को वाइफ बनाकर?"

    अर्थव - "रोहन..."

    रोहन - "ओके ओके, सॉरी! जाता हूँ अंकल के पास।" फिर रोहन यश और रूहानी के पास चला गया और रूहानी सरिता के पास जाकर बात करने लगी।

    थोड़ी देर बाद मिश्री ऊपर के कमरे से आई हुई नज़र आई। उसने आधा चेहरा घूंघट से छुपा रखा था, फिर भी उसकी खूबसूरती घूंघट से भी नज़र आ रही थी।

    रोहन - "अर्थव, देख! भाभी कितनी प्यारी लग रही है! जैसे पूनम का चाँद घूंघट में आधा छुप गया हो!"

    अर्थव कुछ कहना चाहता था, पर उसकी नज़र अचानक मिश्री पर चली गई और वहीं पर ही रुक गई। यह रोहन देख लेता है।

    रोहन - "अहम, अहम! क्या हुआ मेरे लाल? नज़रें हटाना भूल गया? क्यों? भाभी से...?"

    अर्थव चौंककर नज़रें मिश्री से हटा लेता है।

    रोहन - "अरे देखो देखो! क्यों नज़रें हटा ली? तुम्हारी ही है अब वह! चाहे मानो या ना मानो..."

    अर्थव थोड़ा सा हड़बड़ा जाता है अपनी ही की हुई हरकत पर। फिर विदाई की रस्म शुरू होती है।

    मिस्टर मलिक रोती हुई मिश्री को अपनी बाहों के घेरे में लिए रूहानी के पास लेकर जाते हैं।

    मिस्टर मलिक - "मेरी बेटी को बहुत नाज़ों से पाला है मैंने। अगर कोई गलती कर दे तो अपनी बच्ची समझकर माफ़ कर देना। बहुत भोली है मेरी मिश्री।"

    अर्थव (मन में) - "भोली? या गज़ब की गोली! जुबान पर तो कंट्रोल है नहीं इसका!"

    रूहानी - "अरे भाई साहब! हम बहू नहीं, बेटी लेकर जा रहे हैं आपसे। बेफ़िक्र रहिए। हम मिश्री को कभी इस घर की कमी महसूस नहीं होने देंगे। बिल्कुल रानी की तरह रखेंगे हमारे घर में।" फिर रोती हुई मिश्री को पकड़कर गाड़ी की बैक सीट पर बिठा लेती हैं।

    रूहानी - "अर्थव, तुम आगे की सीट पर बैठ जाओ।"

    अर्थव - "वह मेरी कार है। मैं उसी में आऊँगा।"

    यश - "जो कहा है वो करो! गाड़ी में बैठो! जहाँ मिश्री बैठी है! नो एग्रीमेंट, दिस मोमेंट! ओके..." यश को गुस्से में देखकर अर्थव मुँह बनाता हुआ गाड़ी में आगे की सीट पर जाकर बैठ गया।

  • 7. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 7

    Words: 1932

    Estimated Reading Time: 12 min

    और सब घर की ओर रवाना हो गए। लेकिन आधे घंटे में ही बारिश शुरू हो गई और कार झटके से रुक गई।

    अर्थव- अब इसको क्या हो गया?😡

    रोहन- तू बैठ, मैं देखता हूँ क्या हुआ है। रोहन गेट खोलकर बोनट खोला, और उसमें से धुआँ उठ रहा था। रोहन- ओ शीट! इंजन में प्रॉब्लम हो गई है। अब क्या करें?

    अर्थव- क्या हुआ, रोहन?

    रोहन- इंजन में प्रॉब्लम है। मैकेनिक को बुलाना होगा, तब ही ठीक हो सकती है।

    अर्थव- यह ही होना बाकी था...😡

    मिश्री- मॉम, मुझे सर्दी लग रही है। गेट और विंडो बंद कर दो।

    रूहानी- अरे, अभी बंद कर देती हूँ। अर्थव, गेट बंद करो अभी के अभी। मिश्री को ठंड लग रही है।


    अर्थव- इतनी सी बारिश में सर्दी लग रही है? बड़ी नाजुक है आपकी बहू, मॉम।

    मिश्री- हाँ, आप तो स्टोन के बने हुए हैं ना। मिश्री ऐसा जवाब देकर अपनी जीभ दांतों तले दबा लेती है। "मिश्री मन में सोचती है- मै आज तो दुल्हन हूँ, आज कुछ भी बदतमीजी नहीं करनी चाहिए मुझे।" वहीँ रूहानी मिश्री के ऐसे जवाब से मुस्कुराने लगी थी। वहीँ अर्थव मिरर से अपनी मॉम को मुस्कुराते हुए देखकर बोला-

    अर्थव- मॉम, यह जवाब दे रही है और आप हँस रही हो?

    रूहानी- तो इसने गलत क्या कहा है? मेरी बहू है ही इतनी नाजुक, तो सर्दी तो लगेगी ना।


    मिश्री- ओ थैंक यू मॉम। और उनके गले लग गई।

    रूहानी- यू आर ऑलवेज वेलकम, बेटा। शुक्र है तुम हँसी तो सही। कब से रो रही थी, अब बिल्कुल नहीं रोना, मैं हूँ ना तुम्हारी मॉम।

    मिश्री- नहीं रोना अब। आप बिल्कुल मॉम की तरह हैं। फिर उनके कान में जाकर कहती है, "आप इतनी अच्छी हैं, पापा भी इतने स्वीट हैं, फिर यह कुतुब मीनार किस पर चला गया? हर वक्त मिर्ची चबा कर रहता है।"

    रूहानी हँसते हुए- अपने दादाजी पर!!

    मिश्री- हो, तभी ऐसा है, मॉम। मुझे तो अब भी सर्दी लग रही है, क्या करूँ...?

    रूहानी- अच्छा रुको... अर्थव, तुम्हारा कोट दो मिश्री को। सर्दी लग रही है बच्ची को, कहीं फीवर ना हो जाए।


    अर्थव- व्हाट डू यू मीन? कोट दो? मैं नहीं दे रहा अपना कोट।

    रूहानी- बेटा, तुम्हें वैसे ही सर्दी कम लगती है। मेरी बहू कितनी छोटी सी और नाजुक सी है। अगर बीमार पड़ गई, तो इसकी मॉम डैड को क्या जवाब देंगे कि हम एक दिन भी उसका ख्याल नहीं रख सकते... चल, शाबाश, दे दो। अच्छा बेटा है ना मेरा...

    अर्थव- हाँ हाँ, अच्छा बेटा। और गुस्से से अपना कोट उतार कर उनको दे देता है। रूहानी- मिश्री, इसे पहन लो। अब सर्दी नहीं लगेगी तुम्हें...

    मिश्री- थैंक यू मॉम।

    अर्थव- कोट मैंने दिया है, मॉम ने नहीं, तो थैंक यू भी मुझे ही बोल सकती हो। वैसे तो बहुत बोलती हो...

    मिश्री- आपने कौन सा खुश होकर दिया है? मॉम ने जोर दिया तो दे दिया, तो थैंक यू भी मॉम को ही कहूँगी, आपको क्यों? 😎

    रूहानी- ओके ओके, बस अब चुप... रोहन, क्या हुआ? सही हो गई गाड़ी या नहीं...

    रोहन- बस आंटी, हो गई। बस चलते हैं। तभी अर्थव का फोन बजने लगा...

    अर्थव- जी पापा, बस आ रहे हैं। रास्ते में ही हैं हम। हाँ, सही हो गई गाड़ी। बाय... फिर रोहन ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया।

    रोहन- यार, मेरी तो हालत खराब हो गई बाहर खड़े-खड़े। इतनी सर्दी है, और तुझे गर्मी लग रही है। नॉट बैड।

    अर्थव- मुझे गर्मी नहीं, माँ की यह छोटी सी बहू को सर्दी लग रही है, तो उन्हें कोट देना पड़ा।

    रोहन- ओह, बहू रानी को कोट देना पड़ा था! डैट्स गुड। धीरे से- नॉट बैड, अर्थव बाबा। अभी से पत्नी सेवा स्टार्ट हो गई। कोट दे दिया आपने उसे।😂

    अर्थव- तू चुप नहीं हो रहा क्या? चल अब, पापा जी कॉल कर रहे हैं बार-बार। तभी मिश्री बोल पड़ी...

    मिश्री- एक बार ही तो आया है। आप झूठ क्यों बोल रहे हैं? बार-बार आ रहा है, यह गलत बात है।

    अर्थव- मॉम, यह चुप नहीं रह सकती क्या एक मिनट के लिए भी...?

    मिश्री- पाँच मिनट के बाद बोली हूँ मैं। वॉच देखी है अपनी...


    रूहानी- बेटा मिश्री, बस अब नहीं बोलना। ओके...

    मिश्री- जी मॉम... रोहन गुनगुनाता हुआ- क्या करें, क्या ना करें, कैसे मुश्किल है। कोई तो बता दे इसका हल। और मेरा भाई... तब ही अर्थव गुस्से से...

    अर्थव- रोहन, तू चुप नहीं हो रहा क्या? यह निकालूँ गाड़ी से बाहर तुझे?

    रोहन- मैंने क्या किया? गाना ही तो गा रहा हूँ। क्यों गुस्सा कर रहा है? क्या गाना तुझे पसंद नहीं आ रहा? हाँ बोल।

    अर्थव- तू घर चल, फिर बताता हूँ तुझे।😡😡😡

    रोहन- अरे बाप रे! मैं... मैं तो डर गया यार! फिर चुपचाप रास्ता काटता हुआ और घर पर पहुँच जाते हैं।

    रूहानी- आओ मिश्री, बेटा। आराम से बाहर आओ, मेरे हाथ पकड़ लो। बाहर पानी-पानी हो रहा है बारिश की वजह से...

    मिश्री- जी मॉम। मिश्री बाहर आती है, फिर लेहँगे भारी होने की वजह से फिर सैंडल में अटक गई, जिस कारण उसका पैर मुड़ गया।

    मिश्री- आउच, मॉम! मेरा पैर!

    रूहानी- क्या हुआ, बच्चा?

    मिश्री रोते हुए- मेरा पैर मुड़ गया। बहुत दर्द हो रहा है, मॉम। सैंडल भी शायद टूट गया।

    रूहानी- अरे, टूट जाने दो! टूट गया। तुमने इतनी हाई हील्स क्यों पहनी हैं?

    मिश्री- सुमन ने पहना दी थीं। कहा था कि मैं लंबी हो जाऊँगी इसे पहनकर। मैंने मना भी किया था।

    अर्थव- हो हो, मॉम की छोटी सी बहू। छोटी हो तो छोटी ही रहोगी। सैंडल पहनकर लंबा होने लगे तो हर कोई पहनकर लंबा ही हो जाएगा।

    मिश्री मुँह बनाकर- देखो आप...

    रूहानी- आर्थव, शट अप! फिर रूहानी मिश्री को सहारा देकर अंदर लेकर आती है...

    अर्थव-मिश्री की क्यूट सी नोक-झोक...

    अब आगे...

    दूसरी तरफ मलिक मेंशन में... मिस्टर मलिक रूम में उदास बैठे थे। तभी सरिता वहाँ आई।

    सरिता- क्या हुआ? तबीयत सही है ना?

    मिस्टर मलिक- हाँ, सही है। सारा घर सूना हो गया मिश्री के जाने से। हम कैसे रहेंगे उसके बिना...?😭

    सरिता- जैसे सब माँ-बाप रहते हैं, वैसे ही रहेंगे। आदत हो जाएगी हमें भी इसके बिना रहने की। आपने खाना खाया...?

    मिस्टर मलिक- नहीं, मिश्री ने खाया था खाना!

    सरिता- हाँ, थोड़ा सा खाया था।

    मिस्टर मलिक- सरिता, मिश्री ने मेडिसिन ली थी क्या?

    सरिता- ओह शिट! नहीं ली उसने...

    मिस्टर मलिक- तुमसे एक काम भी नहीं होता। तुम्हें पता है उसे डेली मेडिसिन लेनी होती है। नहीं लेती है तो क्या होता है? उसे फोन करो अभी... और पूछो वह सही है ना...

    सरिता- ओके, करती हूँ। तुम शांत रहो, प्लीज... वहीँ दूसरी ओर मल्होत्रा मेंशन में, रूहानी मिश्री को लेकर गेट पर आ जाती है... तभी मिश्री का फोन बजने लगा...

    मिश्री- "हेलो मॉम, कैसी हैं आप?☺"

    सरिता- बेटा, मैं ठीक हूँ। पापा भी ठीक हैं। तुम कहो, तुम सही हो ना...

    मिश्री- जी मॉम, मैं बिल्कुल सही हूँ...

    सरिता- तुमने आज मेडिसिन नहीं ली ना? तो पापा परेशान हो रहे हैं तुम्हारे लिए...

    मिश्री- मॉम, मैं सही हूँ। पापा से कहो, वह फ़िक्र ना करें। तभी रूहानी मिश्री से फ़ोन ले लेती है...

    रूहानी- सरिता बहन, मिश्री बिल्कुल सही है। आप फ़िक्र ना करें, हम हैं ना उसके साथ। आप बस अब आराम करें और भाई साहब को भी कहो, सब ठीक है। ओके...

    सरिता- थैंक यू सो मच...

    रूहानी- जी, किस बात के लिए थैंक यू? बेटी है मिश्री हमारी, सो हमें फ़िक्र है अब उसकी। आप बेफ़िक्र हो जाइए अब... और फ़ोन रख देती है।

    रूहानी- बेटा मिश्री, अब अपने राइट पैर से इस कलश को हल्के से धक्का मारना है, फिर इस थाली में अपने पैर रखकर घर में इंटर करना है... मिश्री सब करती है, थोड़ा आगे जाकर रुक जाती है। उसे पैर में दर्द होने की वजह से चला नहीं जा रहा था...

    रोहन रूहानी के कान में जाकर कहता है- "आंटी, आपके यहाँ दुल्हन को रूम में दूल्हा लेकर जाता है। अर्थव लेकर जाएगा क्या मिश्री को रूम में...?"

    रूहानी- लेकर तो वो ही जाएगा। तुम देखना, बस...

    रूहानी- आर्थव बेटा, हमारे यहाँ दुल्हन को रूम में ब्राइडल स्टाइल में उठाकर लेकर जाया जाता है। अब अभिषेक तो है नहीं...

    अर्थव- तो क्या, मॉम???

    रूहानी- अब तुम्हारे पापा तो लेकर जाने से रहे, तो तुम ही लेकर जाओ मिश्री को रूम में...

    अर्थव- व्हाट? नो, मॉम! मैं नहीं लेकर जाने वाला, बिल्कुल भी नहीं...

    रोहन- कर ली, मेरे भाई! सिम्पल शादी और शानदार वाली शादी। अब भुगत जो है...

    अर्थव- रोहनननननन...

    रूहानी- क्या रोहन...? हाँ, बच्ची के पैर में दर्द है। थक गई है कितना, और तुम्हें लड़ाई से फुर्सत ही नहीं है जरा भी। आखिर मिश्री इस घर की मेंबर है। चलो, शाबाश, लेकर जाओ मिश्री को रूम में...

    रोहन- हाँ, उठा जल्दी से! मैं तो बहुत सारी पिक्चर्स लेने वाला हूँ... अर्थव गुस्से से रोहन को देखने लगा और फिर मिश्री को उठाकर रूम की ओर बढ़ गया। मिश्री के चेहरे पर घूँघट सरक गया, तभी अर्थव की नज़र मिश्री के चेहरे पर टिक गई...

    मिश्री मन में सोचती है- यह कुतुब मीनार मुझे ऐसे क्यों देख रहा है? और इसका टच तो बिल्कुल अभिषेक के जैसा है, जब उसने कन्यादान के वक्त मेरा हाथ अपने हाथ में लिया था। अर्थव खोया-खोया सा रूम में इंटर करता है और मिश्री को आराम से रूम के बीच में उतार देता है। सारा रूम खूबसूरती से डेकोरेट किया गया था, जिसे देखकर मिश्री चौंक गई...

    मिश्री- वाउ! क्या बात है? जब दूल्हा ही नहीं था, तो रूम डेकोरेट करने की क्या ज़रूरत थी?😡

    अर्थव- वो अचानक जाना पड़ा था, तो इसलिए...


    मिश्री- ओह, रियली, मिस्टर अर्थव मल्होत्रा! ऐसा ही है या कुछ और बात है...?

    अर्थव हड़बड़ाकर- और क्या बात होगी? तभी मिश्री आगे बढ़ती है और जिस कारण उसका पैर लहँगे में फँसने के कारण वो गिरने लगी। अर्थव आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में थाम लेता है। जब अर्थव ने मिश्री को देखा, तो वह बेहोश हो चुकी थी...

    अर्थव घबराकर- मॉम! मॉम! कुछ ही देर में सभी रूम में आ गए...

    रूहानी- क्या हुआ, अर्थव? अरे, मिश्री को क्या हो गया?

    अर्थव- पता नहीं, मॉम। वॉशरूम में जा रही थी और अचानक बेहोश हो गई... अर्थव मिश्री को बेड पर लेटा देता है और AC ऑफ करके उसे ब्लैंकेट से अच्छे से कवर कर देता है... वहीं दूर खड़ा रोहन सब देख रहा था। उसके फेस पर एक शरारती स्माइल थी। यह सब देखकर-

    रोहन- अर्थव, क्या हुआ? AC बंद कर दिया, ब्लैंकेट ओढ़ा दिया मिश्री को... बात क्या है? इतनी फ़िक्र? हाँ...

    अर्थव- जस्ट शट अप! यह पिद्दी सी बहू इतनी नाजुक है, मॉम। जिसे सर्दी जरा भी बर्दाश्त नहीं है। अभी देखो कैसे कपकपा रही है। अगर AC बंद नहीं करता तो... डॉक्टर को कॉल करो... अभी क्या हुआ है इसे? बेहोश क्यों हो गई है यह...?

    रोहन- हाँ, यह तो है। मैं करता हूँ कॉल। और कुछ देर में डॉक्टर आ गए...

    डॉक्टर- शायद बहुत ज़्यादा थकान की वजह से BP लो हो गया है इनका, और खाना भी नहीं खाया इन्होंने। इसलिए बेहोश हो गई है। मैंने अभी इंजेक्शन दे दिया है। दो घंटे में होश में आ जाएगी। डोंट वरी। और यंग मैन, योर वाइफ वेरी प्रीटी। शायद नज़र लग गई है इन्हें। टेक केयर प्रॉपर्ली। ओके... और अर्थव का शोल्डर थपथपाकर वहाँ से चले गए...

    वहीँ अर्थव हैरान सा वहाँ वहीं खड़ा रह गया। हैरान तो सब ही हो गए थे... रोहन... रिद्धिमा... निशांत... नव्या... रूहानी... सब फिर हँसने लगे डॉक्टर की बात सुनकर...

  • 8. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 8

    Words: 1268

    Estimated Reading Time: 8 min

    और अर्थव सबको गुस्से से देखकर वहीं पड़े सोफे पर बैठ गया।

    "हां तो अब अर्थव बाबा आगे क्या?"

    "क्या आगे?.....हां बोल ना😡"

    "मेरा मतलब है कि मिश्री को जब तक होश नहीं आ जाता, यहां रूम में कौन रहेगा? आंटी तो रुकने से रही, अंकल की तबीयत ठीक नहीं है, और नव्या और रिद्धिमा रुक नहीं सकतीं क्योंकि बच्चे उनके बिना सोते नहीं। यू नो, तू अब तू ही बचा रुकने के लिए। वैसे भी, रुकना भी तुझे ही चाहिए, वाइफ है वो तेरी... इतना तो हक है तेरा।" अर्थव कुछ नहीं कहता, जिसका साफ मतलब था कि वह रुकने के लिए तैयार है। सभी जल्दी से रूम से बाहर चले गए और हल्का सा रूम बंद कर दिया।

    अर्थव काउच पर बैठा अपनी छोटी सी वाइफ को देख रहा था। जो सोते हुए कितनी मासूम लग रही थी। अर्थव के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह सोफे से उठकर मिश्री के पास गया और उसका माथा चेक करने लगा। उसने उसे कंबल से पूरा ढँक दिया और वापस काउच पर आकर बैठ गया। फिर बार-बार मिश्री को देखता रहा कि वह होश में आई या नहीं। यह देखते-देखते, ना जाने वह कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला।

    तकरीबन दो घंटे बाद मिश्री की आँख खुली। उसकी पहली नज़र सोफे पर सोते हुए अर्थव पर गई।

    "यह कुतुब मीनार मेरे रूम में इतनी रात को क्या कर रहा है? और मेरा सर क्यों घूम रहा है? आज खाना भी नहीं खाया और मेडिसिन भी नहीं ली, इसलिए यह सब हुआ। यह सोता हुआ कितना अच्छा लग रहा है! जागा हुआ बिल्कुल खडूस लगता है। बट यह मेरे रूम में कैसे सो सकता है? कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है।" वह सोचते हुए बेड से उठी। तभी उसके पायल के शोर से अर्थव की आँख खुल गई।

    "तुम उठ गई? अब ठीक हो? तुम चक्कर तो नहीं आ रहे ना?" वह एक साथ ढेर सारे सवाल पूछने लगा। वहीं मिश्री उसे हैरान होकर देख रही थी।

    "आपको मेरी इतनी फिक्र क्यों है, मिस्टर अर्थव मल्होत्रा? मैं आपकी नहीं, आपके भाई की वाइफ हूँ।"

    "नहीं, वो तुम बेहोश हो गई थीं तो सब ही परेशान थे, तो पूछ लिया मैंने। रुको, मैं मॉम को भेजता हूँ।" और रूम से निकल गया। थोड़ी देर बाद रूहानी खाने की ट्रे लेकर रूम में आई।

    "उठ गई मेरी बच्ची? अब कैसा फील कर रही है? हम तो सब डर ही गए थे तुम्हें बेहोश देखकर।"

    "आई एम फाइन मॉम, बट एक बात बताइए आप, वो भी सच-सच...😡"

    "क्या बेटा?"

    "मेरी शादी किसके साथ हुई है? अभिषेक के साथ या मिस्टर अर्थव मल्होत्रा के साथ? टेल मी ट्रस्ट मॉम, कोई झूठ नहीं।" रूहानी शॉक्ड रह गई मिश्री के सवाल सुनकर।

    "स्पीक अप मॉम, राइट नाउ! आपको मेरी कसम।" उसने अपना हाथ अपने सर पर रख दिया। "टेल मी मॉम, सच क्या है?😡😡😡"

    "बेटा, तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि तुम्हारी शादी अभिषेक से नहीं हुई?"

    "आप सब लोग मुझे बेवकूफ समझते हैं मॉम! गोल्ड मेडलिस्ट रही हूँ हर साल अपने स्कूल में, बोर्ड में मेरिट कवर की है मैंने। और सब मुझे ऐसे ही हल्के में ले गए। जब से शादी हुई, सब कुछ अजीब ही हो रहा है। शादी होना, दूल्हे का जाना, अर्थव का आना, मॉम डैड के फेस पर कोई परेशानी ना होना कि उनकी बेटी बिना दूल्हे के विदा हो रही है। मॉम डैड, वो हैप्पी हैं! पापा का अर्थव को उसी गाड़ी में बैठाना जिसमें मैं बैठी हुई थी, घर पर आना, अर्थव को ही मुझे गोद में उठाकर रूम में लेकर जाने की बात करना... जबकि भाई की दुल्हन को कौन बड़ा भाई उठाकर लेकर जाता है? और सबसे बड़ी बात, न्यूली मैरिड गर्ल के रूम में दूल्हे के भाई कब से केयर करने के लिए रुकने लगे?😡😡 मुझे तो नहीं पता ऐसा होता है। कभी हस्बैंड ही रुकेगा, कोई और क्यों? या आप रुकेगी, कोई और नहीं। मैं बहू हूँ इस घर की, कोई राह चलती लड़की नहीं। इसके रूम में कोई भी रुक जाए, चाहे वह बड़ा भाई ही क्यों ना हो। और सबसे बड़ी बात, गॉड गिफ्ट, एक और चीज है मेरे पास में, एक बार अगर कोई टच कर ले, मैं उसे नहीं भूलती।"

    "शादी के वक्त अर्थव ने मुझे टच किया, रस्म के वक्त, और जब वो मुझे रूम में लेकर आया, सेम टच था। अब आप सच बोलिए, क्या मैं गलत कह रही हूँ? किसकी वाइफ हूँ मैं? अभिषेक की या उसकी कुतुब मीनार की? बताइए ना मॉम, मैं सच सुनना चाहती हूँ, नहीं तो मैं यह घर छोड़कर जा रही हूँ, अपने घर।" और बेड से उठकर जाने लगी।

    "मिश्री बेटा, रुको! मेरे बच्चे, कहाँ जा रही हो? यह भी अब तुम्हारा ही घर है।"

    "ओ रियली? यह मेरा घर है? कैसा हुआ यह घर मेरा? मुझे तो अभी यह भी पता नहीं कि मैं किसकी वाइफ हूँ, छोटे भाई की या बड़े भाई की, या फिर किसी और से शादी हुई है मेरी।"

    "चुप कर मिश्री! तू मेरी ही बहू है, मेरे अर्थव की दुल्हन।" मिश्री यह सुनकर बेड पर बैठ गई। "मुझे यकीन नहीं हो रहा, यह सच है! मुझे लग ही रहा था, वही सच निकला। वाह! क्या पेरेंट्स हैं मेरे! मुझे पपेट की तरह, छोटे के साथ नहीं, बड़े के साथ बैठा दिया। पूछना भी जरूरी नहीं समझा...क्यों? आप बताएँगी मुझे या मैं डैड से पूछूँ?"

    मिश्री गुस्से से बेड पर लगी सारी फूलों की लड़ियाँ तोड़ देती है। "बताइए ना... मॉम, प्लीज़! 😭🙏🙏"

    रूहानी उसके इस तरह के रिएक्शन से घबरा गई।

    "बेटा प्लीज कूल डाउन, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है।"

    "तो बताइए अभिषेक कहाँ है? और अर्थव क्यों बैठा दूल्हा बनकर मंडप में?" तब रूहानी सारी बात उसे बता देती है और अर्थव की शर्त के बारे में भी। मिश्री वो सब सुनकर हैरान रह गई।

    "हाउ डेयर ही! वो कुतुब मीनार कौन होता है यह डिसाइड करने वाला कि 6 महीने के बाद उसका दिल करेगा तो वह मुझे वाइफ बनाकर रखेगा और अगर मैं उसे मैच्योर नहीं लगी तो मुझे डिवोर्स दे देगा? यह क्या बात हुई? आप सब उसकी बात मान जाते हैं? और मेरे सो कॉल्ड मॉम डैड भी? सब शामिल हैं...वो मुझसे इतने परेशान थे कि मुझे बस भेज दिया किसी के भी साथ फेरे दिलवा कर...😭😡😡 ऐसे होते हैं क्या? बोलिए मॉम, मैं क्या हूँ? क्या है मेरा वजूद? मेरी तो कोई सेल्फ रिस्पेक्ट ही नहीं है, सब अर्थव की ही है! उसने एहसान किया आप पर भी, मेरे मॉम डैड पर भी, कि उनकी इज्जत को बचा लिया, उनकी बेटी को अपनाया, चाहे शर्तों के साथ ही अपनाया, पर अपना तो लिया। कितना बड़ा काम किया उसने! बट इन सब में मैं कहाँ हूँ? कहीं भी नहीं! एक कठपुतली जिसे आपने अपने इशारों पर नचाया और मैं नाचती गई...वाह! क्या मज़ाक किया मेरे साथ सब ने! शादी के बाद पता चलता है शादी छोटे भाई से नहीं, बड़े भाई से हुई है।"


    "जब यह बात सब ने सामने आएगी तब क्या होगा?😡 तब सब तारीफ करेंगे आप लोगों की? आप सब की इज्जत बढ़ जाएगी? हां बोलिए! तब क्या जवाब देंगे? दोगी आप सबको? बोलिए, मैं कैसे फेस करूंगी सबको? यह कोई तीन घंटे की फिल्म नहीं...मॉम, मेरी जिंदगी है, कोई मज़ाक नहीं! सबने मेरा मज़ाक बना दिया। आई हेट ऑल ऑफ यू!" और रोती-रोती फर्श पर बैठ गई।

  • 9. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 9

    Words: 1708

    Estimated Reading Time: 11 min

    रूहानी उसे रोते देखकर खुद भी रोने लगी।


    रूहानी: "सॉरी बेटा, इतना डिप्ली जाकर हमने किसी ने भी नहीं सोचा कि तुम भी अपना एक मुकाम रखती हो, तुम्हारी भी पहचान है। वेरी सॉरी बेटा, माफ कर दो हमें, प्लीज। मैं अभी अर्थव को बोलती हूँ।"


    मिश्री: "नो, बिल्कुल नहीं। आपके बेटे को हाइड एंड सीक का खेल खेलना अच्छा लगता है ना? तो ठीक है, फिर ऐसा ही सही। आप उसे नहीं बताएंगी कि मुझे सच पता है। अब मैं आपके बेटे को पकडूंगी। छह महीने नहीं, सिर्फ एक महीना। अगर मुझे लगेगा कि वह मेरा हस्बैंड बन सकते हैं के काबिल है, तो मैं इस घर में रुकूंगी, नहीं तो मैं इस घर से चली जाऊंगी, हमेशा के लिए।"


    रूहानी: "पर बेटा..."


    मिश्री: "मॉम, इस बार आप कुछ नहीं बोलेगी। आपको यह बात मंजूर है तो मैं यहां हूँ, नहीं तो मैं भी जा रही हूँ यहां से। भाड़ में जाए फिर आपकी इज्जत और मेरे पेरेंट्स की। आई डोंट केयर। मैं कल ही डिवोर्स के पेपर कोर्ट में दे दूंगी और यहां से चली जाऊंगी, अम्मा के पास।"


    रूहानी: "ओके, ओके, ठीक है। जैसा तुम चाहती हो, वैसा ही होगा। अब खुश?" नंदनी कुछ नहीं कहती और उठकर वॉशरूम में चली गई, अपने कपड़े लेकर।


    रूहानी हेल्पलेस होकर उसे जाते हुए देख रही थी। मिश्री वॉशरूम से ड्रेस चेंज करके बाहर आती है और रूहानी को वही बेड पर बैठा देखकर बोली,


    मिश्री: "मॉम, आप अभी तक यही हैं? जाइए, बहुत लेट हो गया है।"


    रूहानी: "बेटा, खाना तो खा लो। तुम बीपी भी तुम्हारा डाउन है।"


    मिश्री: "ओके, खा लेती हूँ, बट फिर आप मुझे खिलाएंगी, मॉम की तरह। मॉम, डैड मुझे सबसे पहला निवाला खिलाते थे, फिर खुद खाते थे।"


    रूहानी खुश होकर मिश्री को खाना खिलाती है और उसे बेड पर लेटाकर उसके माथे पर किस कर चली जाती है।


    मिश्री (मन में): "कहीं मैंने कुछ ज्यादा तो नहीं कह दिया मॉम को? बट गुस्सा आ गया था। सुबह सॉरी बोल दूंगी उनसे।"


    दूसरी तरफ, मिस्टर मल्होत्रा का रूम। रूहानी रूम में इंटर करती है। तभी यश, जो कि बेड पर लेटा हुआ था, वह एकदम से अपनी आंखें खोल देता है।


    यश: "तुम कहाँ गई थी?"


    रूहानी: "मिश्री के रूम में गई थी, उसे देखने।" यह कहकर वह सर पकड़ कर बैठ जाती है।


    यश: "क्या बात है? परेशान हो? कुछ हुआ है क्या?"


    रूहानी: "आपकी बहू को पता चल गया है कि उसकी शादी अर्थव से हुई है, अभिषेक से नहीं।" यह सुनकर यश बेड से झटके से उठ खड़े हुए।


    यश: "बट उसे कैसे पता चल गया? इज़ दिस पॉसिबल...?"


    रूहानी: "आपकी बहू जीनियस है। छोटी-छोटी बातों को एक कड़ी बनाकर उसने अपने आप पता कर लिया कि उसकी शादी अभिषेक से नहीं, अर्थव से हुई है और फिर मुझसे पूछा, वो भी इतने कॉन्फिडेंस के साथ कि मैं झूठ भी नहीं बोल पाई। उसके बाद जो उसे गुस्सा आया है, वहाँ उसे संभालना मुश्किल हो गया था। मुझे जो उसने कहा, उसे सुनकर मैं भी शर्मिंदा हो गई।"


    रूहानी: "सच में उसके साथ गलत हुआ। किसी ने भी उसके लिए नहीं सोचा।"


    यश: "क्या मतलब?" फिर रूहानी उसको सारी बातें बता देती है जो मिश्री ने उनसे कही थीं।


    यश: "व्हाट? एक महीना?"


    रूहानी: "जी। अब मिश्री फैसला करेगी कि इस एक महीने में वह अर्थव के साथ रहना चाहती है या नहीं।"


    यश: "अब क्या करें हम?"


    रूहानी: "कुछ नहीं। सब भगवान पर छोड़ दो। अब वही करेंगे जो भी होगा।"


    रूहानी: "वैसे एक बात कहूँ..."


    यश: "क्या?"


    रूहानी: "राम मिलाई जोड़ी है दोनों की। एक शेर है तो दूसरा सवा शेर। अर्थव का गुस्सा गुस्सा है और मिश्री का गुस्सा ज्वालामुखी है। ऐसा फटता है कि उसके लावा से बचना मुमकिन ही नहीं है। यह मैंने अभी देखा है।"


    यश: "रियली? बट वो तो दिखती बहुत क्यूट और इनोसेंट सी है।"


    रूहानी: "हाँ, बस दिखने ही छोटी सी है। जब गलत होने पर उसका जो रूप चेंज होता है, वो आप विश्वास भी नहीं कर सकते। अर्थव को टक्कर की वाइफ मिली है। गॉड ही बचाए उसे अब।" और दोनों ऐसे ही बातें करते-करते सो गए।


    नेक्स्ट मॉर्निंग। रिद्धिमा, नव्या, रूहानी एक साथ मिश्री के रूम में इंटर करती हैं। मिश्री को बिल्कुल बच्चों की तरह सोते देख उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।


    रूहानी: "कितनी क्यूट है मेरी बहू।"


    रिद्धिमा: "जी आंटी जी, सच में बहुत प्यारी है हमारी मिश्री।" रूहानी मिश्री के पास जाकर बैठ गई और उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोली, "मिश्री बेटा, उठो। देखो कितना टाइम हो गया है।"


    मिश्री: "प्लीज मॉम, सोने दो मुझे। अभी नहीं उठना। और सोना है मुझे। पापा से भी कह देना मुझे उठाने नहीं आए। मैं नहीं उठने वाली अभी।"


    तीनों उसकी क्यूट सी डिमांड सुनकर हंसने लगीं।


    रूहानी: "बेटा, आज मुंह दिखाई की रस्म है। लेडिस आने ही वाली हैं। आपकी रेडी भी तो होना है ना, बच्चा? उठ जाओ।" मुंह दिखाई का सुनकर मिश्री झटके से उठकर बेड पर बैठ गई।


    मिश्री: "सॉरी मॉम, वो मैंने सोचा मैं घर पर अपने बेड पर हूँ।"


    रूहानी: "कोई बात नहीं। अब जल्दी से उठ जाओ। फिर यह ग्रीन पिंक लहंगा चेंज करके नीचे आ जाना। ये दोनों तुम्हें रेडी करेगी बहुत अच्छे से। सभी औरतों की आंखें बस तुम्हें ही देखे। सबको पता तो चले, चांद उतर कर आया है मेरे घर।"


    मिश्री: "हाँ मॉम, आपने तो मुझे क्या से क्या बना दिया। चांद में तो दाग होते हैं ना, मैं नहीं हूँ चांद। आप उसका नाम ना ले।"


    रूहानी: "माई प्रिंसेस, ऐसा नहीं कहते। ओके, अब जल्दी से तैयार हो जाओ। ये दोनों आकर तुम्हें रेडी कर देंगी।"


    मिश्री ने रूहानी का हाथ पकड़ लिया।


    रूहानी: "क्या हुआ?"


    मिश्री: "आई एम सॉरी मॉम, कल रात के लिए। मैंने ऐसा बिहेव किया।"


    रूहानी: "इट्स ओके बेटा। तुम्हारा रिएक्शन बिल्कुल सही था क्योंकि हमारा तरीका भी तो गलत था।"


    मिश्री: "ओह, थैंक यू, थैंक यू मॉम। यू आर सो स्वीट। आई एम सो लकी कि आप मेरी मदर इन लॉ हैं।"


    रूहानी: "अभी कहाँ? एक महीने के बाद बनूंगी मदर इन लॉ, पक्की वाली। तब तक तो तुम्हारी दोस्त हूँ, ओके।"


    मिश्री: "नॉट बैड। ओके मॉम, तो हम आज से दोस्त हैं और कुतुब मीनार की बेड़ मिलकर बजाएंगे? क्यों?"


    रूहानी: "बेटा, उसे कुतुब मीनार मत कहा करो। किसी दिन पिट जाओगी उसके हाथों से। इतनी अच्छी तो हाइट है मेरे बेटे की। लड़कियां मरती हैं उस पर, लेकिन उसने कभी किसी लड़की की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा।"


    मिश्री: "ओह, फिर तो गई भैंस पानी में। अब अगर वो मुझे भी नहीं देखेगा, तो मैं कैसे डिसाइड करूंगी कि वो मेरे लायक है या नहीं? दिस इज़ नॉट फेयर मॉम।"


    रूहानी: "आई एम सरप्राइज्ड बेटा।"


    मिश्री: "क्यों?"


    रूहानी: "रात को तो तुम कुछ और थीं और अब कुछ और हो।"


    मिश्री: "वो, जब गुस्सा आता है तब ऐसी हो जाती हूँ, बट ज्यादा देर तक नहीं गुस्सा कर सकती। और जब मेरा गुस्सा उतर जाता है, तो फिर से मैं वैसे ही बच्ची बन जाती हूँ।"


    रूहानी: "यह क्यूट सी बच्ची बन जाना ही तो मुझे पसंद है तुम्हारा। और ना बाबा, रात वाली से ये वाली ज्यादा अच्छी है। ऐसी ही रहा करो तुम। मेरे बेटे का तभी काबू में आएगा। अगर तुम भी गुस्सा करोगी, वो भी तो हो चुकी तुम्हारी और उसकी प्रॉब्लम। सॉल्व, तुम तो ऐसे ही रहो। देखना कैसे मेरा बेटा चेंज होगा।"


    मिश्री: "क्या सच्ची मॉम?"


    रूहानी: "सच्ची बेटा। चलो अब तैयार हो जाओ।" दूसरी तरफ हॉल में सब लेडिस मिश्री का वेट कर रही थीं। अर्थव भी वहीं पर रोहन के साथ खड़ा था। तभी रिद्धिमा और नव्या मिश्री को थामे हुए नीचे लेकर आती हैं।


    रूहानी: "लो आ गई मेरी बहू।" सब की नज़रें मिश्री पर ही टिक गईं जो थोड़ा सा घुंघट ओढ़कर धीरे-धीरे चलती हुई आ रही थी। रोहन से बात करते-करते अर्थव की नज़रें मिश्री पर चली गईं और फिर वहीं पर ही टिक गईं।


    मिश्री पिंक और ग्रीन कलर के लहंगे में बला की खूबसूरत लग रही थी। (अब अर्थव बाबा के होश गुम ना हो तो... जिसने कभी किसी लड़की की तरफ आँख उठाकर नहीं देखा, उसकी लाइफ में अचानक इतनी क्यूट छोटी सी वाइफ का शामिल हो जाना तो शॉकिंग था। अर्थव बाबा भी हैरान-परेशान हो गए थे और आँखें झपकाना ही भूल गए।)


    रोहन यह सब देखकर अर्थव को चिढ़ाता हुआ बोला,


    रोहन: "मेरे बच्चे, आँखें और मुँह दोनों ही कैसे खुला रह गए तुम्हारा? ऐसा क्या देख लिया कि होश ही गुम कर बैठे? वैसे भाभी इतनी प्यारी लग रही है कि तेरी नज़र ही नहीं हट पा रही उन पर से, है ना? यही बात है ना?"


    अर्थव चौंककर रोहन को देखने लगा।


    अर्थव: "क्या बोला तूने रोहन?"


    रोहन: "लो अब आँख, मुँह और अब कान भी गए तुम्हारे। नोट बेड बेटा, और तब तुम तो अब गए।"


    अर्थव: "क्या बकवास कर रहे हो? मैं मिश्री को नहीं देख रहा था। मैं तो कुछ और सोच रहा था।"


    रोहन: "सोच रहा था? मुँह और आँखें दोनों को पूरा खोलकर? तुम कब से सोचने लगे? बताओ। वैसे..."


    अर्थव: "जस्ट शट अप। तुम चुप नहीं रह सकते। हर वक्त जबान चलती रहती है तुम्हारी।"


    रोहन: "क्या करूँ? तुम्हारे हिस्से का भी मुझे ही बोलना पड़ता है। तुम तो मौन व्रत रखते हो ना? बट वाइफ तुम्हें पटाखा मिली है। पूरी हरी मिर्च है। तुम लाल हो, वो हरी। आज तो ड्रेस भी हरी ही है, दोनों की।"


    अर्थव: "रोहन, तू मरेगा किसी दिन मेरे हाथ से।"


    रोहन: "अभी तो तू मर गया मेरे भाई, मिश्री की खूबसूरती से।" यह बोलकर वहाँ से भाग गया।


    अर्थव (मन में): "क्या हो जाता है मुझे? जब भी मिश्री को देखता हूँ तो सब गायब हो जाता है आसपास से। सिर्फ़ मिश्री ही नज़र आती है। नहीं अर्थव, यह गलत है। संभालो, नहीं तो यह रोहन तो जान खा जाएगा मेरी, चिढ़ा-चिढ़ाकर।"

  • 10. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 10

    Words: 1062

    Estimated Reading Time: 7 min

    लेडी—वाह रूहानी! बिल्कुल गुड़िया के जैसी है तुम्हारी बहू तो, बहुत सुंदर है। इसे नजर का टीका लगा देना… कहीं किसी की नजर न लग जाए…

    रोहन—😁 एक ही इंसान की नजर लगेगी जो मुंह खोल खड़ा है मेरे पास…

    अर्थव—😡 रोहनननननन…

    रोहन—जस्ट जोकिंग यार, सब लेडिस मिश्री को गिफ्ट देकर चली गईं।

    मिश्री, लहंगा संभालते हुए रोहन के पास आकर खड़ी हो गई।

    मिश्री—"रोहन भाई, आपके पास अभिषेक का नंबर है ना…"

    रोहन—"हां, पर क्यों?"

    मिश्री—"तो आप मेरी पिक्चर्स लेकर उसे सेंड करो ना। आखिर उसकी वाइफ कितनी प्रिटी है, तो उसको भी तो पता चलना चाहिए ना कि उसकी वाइफ कितनी खूबसूरत लग रही है इस ड्रेस में। क्यों? सही कहा ना मैंने… रोहन भाई…"

    यह सुनकर अर्थव, गुस्से से लाल पीला होते हुए, रोहन की तरफ देखने लगा।

    रोहन—"यस, अफकोर्स सही कहा आपने। आप अपना दुपट्टा सही करो, मैं अभी आया…"

    फिर रोहन वहाँ से चला गया। मिश्री, नज़र नीचे किए, अर्थव को देख लेती और कभी अपना दुपट्टा सही करती। वह उसके चेहरे को नोटिस कर रही थी।

    अर्थव (मन में)—"वाइफ मेरी और पिक्चर अभिषेक को सेंड होगी? क्यों?😡 यह रोहन कहाँ मर गया? कितने मजे से कह रहा था। हां, ज़रूर जानी चाहिए पिक्चर्स, वह भी अभिषेक के पास… एक बार पिक्चर्स भेज के तो दिखाएँ, फिर बताता हूँ मैं इसको…" तभी रोहन वहाँ आता हुआ दिखा।

    रोहन—"चलिए भाभी, पोज दीजिए। मैं आपकी पिक्चर्स क्लिक करता हूँ…"

    मिश्री—"या ऑफ कोर्स! आखिर मेरे पति के पास पिक्चर्स जा रही है, तो शानदार आनी चाहिए ना… क्यों निशांत भाई?"

    निशांत—"हां हां, सही कहा आपने!"

    अब अर्थव गुस्से से निशांत की तरफ देखने लगा और फिर वहाँ से चला गया।

    मिश्री (मन में)—"हां, कुतुब मीनार को गुस्सा आ गया। मेरा प्यारा सा पतिदेव…"

    फिर रोहन मिश्री की पिक्चर्स खींचकर अभिषेक को सेंड कर देता है और फिर मिश्री को दिखाने लगता है।

    रोहन—"देखो भाभी, सेंड कर दिया पिक्चर्स अभिषेक के पास। अब खुश…"

    मिश्री—"जी, बिल्कुल खुश। आपने इतना बड़ा काम किया है। वेरी गुड…"

    दूसरी तरफ, अर्थव का रूम…

    अर्थव—"हाउ डेयर? डेयर? रोहन, मिश्री की पिक्चर अभिषेक को? वो उसका पति थोड़ी है जो उसके पिक्चर सेंड कर रहा है?" तभी उसका फ़ोन बजने लगा… वो गुस्से से फ़ोन को चेक करता है। मिश्री की पिक्चर्स देखकर उसके फेस पर एक स्माइल आ गई।

    नीचे एक मैसेज लिखा था—"ज़्यादा लाल पीला मत हो, मेरा लाल। यह तेरी प्यारी वाइफ की पिक्चर उसके पति को सेंड कर दी। अब देखता रहे उसे पिक्चर्स में… अभिषेक को कहाँ से सेंड करूँगा? उसका तो फ़ोन ही ऑफ है, तो पिक्चर्स कहाँ से सेंड होगी? वो तो तुम्हारे नाम की जगह अभिषेक का नाम लिखने गया था अंदर, ताकि मिश्री को शक न हो पिक्चर्स किसको सेंड की है। अब खुश? आज अब बाहर, बहुत काट लिए रूम के चक्कर।"

    रोहन का मैसेज पढ़कर अर्थव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। "साला दिमाग का कितना तेज है! बट मेरा दोस्त है।" प्यार से फिर मिश्री की पिक्चर्स को देखने लगा… थोड़ी देर में वो बाहर, रूम से बाहर आ गया…

    रूहानी मिश्री के पास आकर खड़ी थी।

    रूहानी—"मिश्री बेटा, आज तुम्हारा पहला दिन है, तो तुम्हें कुछ मीठा बनाना होगा। किचन में जाकर…" यह सुनकर मिश्री…

    मिश्री—"व्हाट? मॉम? मीठा? किचन में? बट मुझे तो कुछ भी बनाना नहीं आता…"

    अर्थव—"अच्छा? बातें तो तुम्हें बहुत अच्छी बनानी आती हैं।"

    मिश्री—"हां, तो गॉड गिफ्ट है। आप भी मेरी क्लास अटेंड कर ले, आपको भी सिखा दूँगी बातें बनाना। इसमें कौन सी बड़ी बात है…"

    अर्थव—"पहले किचन में जाकर कुछ बनाओ तो जाने कितना दाम है। चाय भी बनानी नहीं आती होगी मां, आपकी बहू को…"

    मिश्री—"चाय आती है! किसने कहा नहीं आती?"

    सब दोनों की क्यूट सी नोक-झोंक देख रहे थे…

    रूहानी—"बेटा मिश्री, चलो किचन में चलकर हाथ हिला देना, बस बाकी सब मैं देखूँगी…"

    मिश्री—"ओह, रियली मॉम? तो चलो…"

    अर्थव—"यह इतना तामझाम पहनकर काम करेगी आपकी पिद्दी सी बहू, मॉम… 😂"

    मिश्री—"हां, तो इसमें क्या है? आपने टीवी शो नहीं देखा? उसमें कितने टिप-टॉप होकर बहू किचन में काम करती है, तो मैं क्यों नहीं कर सकती काम इन कपड़ों में…"

    रूहानी उन दोनों को फिर से लड़ते देख मिश्री को किचन में लेकर चली जाती है।

    रूहानी—"बेटा, यह दूध है, यह चावल और यह शुगर, बादाम, काजू है। सबसे पहले दूध को गर्म होने के लिए गैस पर रखना है। ओके…"

    मिश्री—"जी मॉम।"

    फिर रूहानी चावल धोने के लिए मिश्री को देती है, जिन्हें मिश्री अच्छे से धोकर ले आई। फिर रूहानी मिश्री को चावल दूध में डालने के लिए कहती है और बाद में मिश्री को कहती है कि वह बादाम और काजू काट के ले आए। मिश्री किसी इंटेलिजेंट स्टूडेंट की तरह नाइफ लेकर छोटे-छोटे बादाम और काजू काटने लगी, लेकिन कभी उसका दुपट्टा इधर गिर जाता, तो कभी उधर, कभी माँग टीका टेढ़ा हो जाता, तो कभी बालों की लट चेहरे पर आ जाती। पर मिश्री इन सबको नज़रअंदाज़ कर काम में लगी हुई थी। वहीं बाहर खड़ा अर्थव चोरी-चोरी मिश्री को काम करते हुए देख रहा था और बाकी सब अर्थव को देखकर मुस्कुरा रहे थे…

    तभी मिश्री की चीख निकल गई…

    मिश्री—😫 "आउच! मॉम…"

    रूहानी—😥 "ओह! मिश्री! हाथ काट लिया तुमने? केयरफुल करना था ना बेटा! कितना खून बह रहा है!"

    सबसे पहले किचन में अर्थव भागता हुआ आया और खून देखकर बोल पड़ा—"व्हाट इज़ दिस? मॉम? जिससे किचन में खड़ा होना नहीं आता, उसे आप यह सब करवा रही हैं?"

    फिर जाकर उसका हाथ पकड़कर नल के नीचे कर देता है, लेकिन ब्लड रुक ही नहीं रहा था।

    अर्थव—😡 "तुम बादाम काट रही थी या उनका कचुंबर बना रही थी? इतना छोटा-छोटा कब काटा जाता है? चलो बाहर। बना ली तुमने खीर। जब तक खीर बनेगी, पता नहीं क्या-क्या कर बैठोगी!"

    पर मिश्री कुछ नहीं बोल पा रही थी। उसकी आँखों से आँसू लबालब भरे हुए थे…

    अर्थव उसे खींचते हुए बाहर ले गया…

    अर्थव—"रामू काका! फ़र्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ जल्दी…"

    रोहन—"यह ले…"

    अर्थव बहुत ध्यान से कट पर दवाई लगाकर बैंडेज बांध देता है।

  • 11. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 11

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    लेकिन चाकू के कट के लिए अब तुम्हें इंजेक्शन लगवाना होगा।


    मिश्री: मॉम, मैं नहीं लगवाने वाली। घर पर भी कई दफ़ा कट लग गया था, इसलिए मॉम मुझे कभी भी किचन में नहीं आने देती थीं।


    अर्थव: तो लीजिए मॉम, आपकी बहुत सी आप करवा चुकी हैं किचन का काम। अगर यह किचन में गई तो बस यही कारनामे होंगे।


    रूहानी: हां, तो नौकर हैं काम करने के लिए। मैं इसे किचन के काम के लिए नहीं लाई हूं।


    अर्थव: जी, बिल्कुल। बातें बनवाने के लिए लाई हैं आप, क्यों है ना?


    मिश्री (गुस्से से): बड़े देवर जी!

    यह सुनकर अर्थव सोफ़े से उठ खड़ा हुआ।


    अर्थव: व्हाट? बड़े देवर जी?


    मिश्री: आप अभिषेक के बड़े भाई हैं, तो मेरे तो बड़े देवर जी ही हुए ना। तो बस इसलिए इस नाम से बुला रही हूं आपको।


    अर्थव: कोई ज़रूरत नहीं है। सब मिस्टर मल्होत्रा कहते हैं, तुम भी वही कह सकती हो। बट यह बड़े देवर जी बिल्कुल नहीं।

    वही सभी अर्थव का ऐसा रिएक्शन देखकर हँसने लगे और मिश्री चेहरा नीचे कर मुस्कुरा रही थी।


    "मिश्री (खुद से): हां, कितना मज़ा आ रहा है कुतुब मीनार को चिढ़ाने में! आगे आगे देखो मिस्टर मल्होत्रा! तुम्हारी बैंड ना बजाई तो मेरा नाम भी मिश्री नहीं! फिर सबको खीर सर्वे की जाएगी।"

    यश मल्होत्रा मिश्री को नेक देते हैं। यश मल्होत्रा मिश्री के पास जाकर बोले, "वेल डन बेटा! मेरे बेटे, ऐसे ही आगे बढ़ती रहो। कभी हार मत मानना। मैं तुम्हारे साथ हूं। ओके। गॉड ब्लेस यू।"


    मिश्री: थैंक यू पापा। यू आर सो स्वीट।

    तभी मिस्टर मलिक गेट से अंदर आते हुए दिखे। मिश्री भागकर उनके गले लग गई।


    मिश्री: पापा, अब याद आई आपको मेरी?


    मिस्टर मलिक: बेटा, तुम भूलने वाली हो क्या? हमें जो याद करें! पग फेरों की रस्म के लिए तुम्हें लेने आए हैं। चलो।


    मिश्री: ओह, रियली? चलिए।


    रूहानी: बेटा, पहले उन्हें बैठने तो दो। ऐसे कैसे जाने के लिए कह दिया?

    मिस्टर मलिक मिश्री को अपने साथ ही बैठा लेते हैं और कुछ वक्त के बाद मिश्री उनके साथ जाने लगी।


    रूहानी: बेटा, शाम को आ जाना। ओके?


    मिश्री: मैं अकेले कैसे आऊंगी, मॉम?


    रोहन: मैं आ जाऊँगा। नव्या के साथ लेने। ओके?


    मिश्री: ओके। रूहानी, अब अभिषेक होता तो वही जाता दुल्हन को लेने। अब रोहन ले आएगा। कोई बात नहीं, यह तो रस्म ही है।


    मिश्री: जी मॉम, जब अभिषेक आएगा तब हम यह रस्म फिर से कर लेंगे।


    रूहानी: हां बेटा, यह सही कहा तुमने।

    वही थोड़ी दूर खड़ा अर्थव वह सब सुन रहा था।


    "मिश्री (मन में): अब देखती हूं शाम को कुतुब मीनार कैसे नहीं आएगा मुझे लेने! उप्स! मिस्टर मल्होत्रा, माय सो कॉल्ड हस्बैंड।"


    कुछ ही देर में मिश्री अपने पापा के साथ वहाँ से चली गई।

    मलिक मेंशन...


    सरिता बाहर गेट पर खड़ी मिश्री का वेट कर रही थी। तभी मिश्री कार से उतरती हुई दिखी और चुपचाप घर के अंदर चली गई।


    सरिता: क्या हुआ जी? मिश्री ऐसे कैसे चली गई?


    मिस्टर मलिक: पता नहीं। वहाँ तो खूब हँस-हँसकर बातें कर रही थी मुझसे, लेकिन जैसे ही कार में बैठी ना, मुझसे बात की ना, मेरी तरफ़ देखा और अब चुपचाप अंदर चली गई।


    सरिता: ऐसा तो वह तब ही करती है जब बहुत गुस्सा होती है। क्या वह हमसे नाराज़ है? पर क्यों?


    मिस्टर मलिक: पता नहीं। अंदर चलकर देखते हैं।

    फिर दोनों भी मिश्री के पीछे चले गए। सरिता, अंदर जाकर कहाँ चली गई?


    मिस्टर मलिक: शायद अपने रूम में होगी।

    फिर दोनों मिश्री के रूम में जाकर देखने लगे। जहाँ मिश्री ड्रेस चेंज कर कर बेड पर गुमसुम सी बैठी थी और अपने टेडी को हग किया हुआ था।


    सरिता: बच्चा, क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? ऐसे गुमसुम सी क्यों बैठ गई?


    मिस्टर मलिक: हां प्रिंसेस, वहाँ तो तुम हँस रही थी, बोल रही थी। फिर अचानक क्या हुआ? कोई परेशानी है?

    मिश्री अभी भी चुपचाप बैठी थी। सरिता मिश्री के पास जाकर बैठ गई।


    सरिता: क्या हुआ बच्चा? मम्मा-पापा से गुस्सा हो?

    मिश्री आँखें झटका कर हाँ बोली।


    मिस्टर मलिक: बट क्यों? बच्चा, हमने क्या किया कि आप हमसे गुस्सा हो?

    बस उनका इतना कहना था कि मिश्री का पारा हाई हो गया।


    मिश्री (गुस्से से): क्या नहीं किया? यह कहो! आप दोनों एक कठपुतली की तरह! आप दोनों ने मुझे ट्रीट किया, जिसे आप गुड़िया कहते हैं, उसे गुड़िया समझकर किसी के साथ भी विदा कर दिया। क्यों?


    सरिता: किसी के भी साथ? क्यों? अभिषेक के साथ विदा किया है बेटा तुम्हें धूमधाम से।


    मिश्री: अब भी झूठ बोल रही है आप! अभिषेक के साथ विदा किया है आपने मुझे, या फिर अर्थव के साथ? बोलिए! अब छुपाने की क्या ज़रूरत है दोनों की थी।


    मिस्टर मलिक: बट तुम्हें कैसे... किसने... बताया?


    मिश्री: मैं आपको फ़र्स्ट क्लास की बच्ची लगती हूँ क्या, जिसके साथ आप लोग गेम खेलेंगे और उसे पता भी नहीं चलेगा?


    सरिता: बट तुम्हें... तुमने अर्थव को कब देखा?


    मिश्री: नहीं देखा। बट जिस तरह की हरकतें हुई थीं कल उससे मुझे डाउट हो गया कि मेरी शादी अभिषेक से नहीं, अर्थव से हुई है। जब मैंने मॉम से पूछा तो उन्होंने बता दिया कि क्या सच है और यह सब क्यों हुआ। बट आप लोगों पर मैं क्या बोझ थी कि एक भाग गया तो दूसरे के साथ मंडप में बिठा दिया आप लोगों ने? क्यों मेरी मर्ज़ी मालूम करना भी ज़रूरी नहीं समझा? आपने मेरी कोई मर्ज़ी नहीं पूछी। किसी के भी साथ आप रवाना कर देंगे। किस जमाने में रह रहे हैं हम लोग? जहाँ आज भी लड़की की मर्ज़ी मालूम करना ज़रूरी नहीं समझा जाता? कोई भी आए और ले जाए। वैसे तो मैं आपकी परी, प्रिंसेस और न जाने क्या-क्या हूँ, पर शादी के वक्त वही एक लड़की जिसकी डोर पहले आपके हाथ में, बाद में उसके पति के हाथ में थमाओ और गंगा नहाओ। क्यों?


    मिस्टर मलिक (शर्मिंदा होते हुए): नहीं बेटा, ऐसा नहीं है। वह हालात ऐसे हो गए थे, तो हमें ऐसा करना पड़ा।

  • 12. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 12

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    अरे वो हालत आप मुझे बताते तो क्या मैं आपका कहा नहीं मानती? आपने मुझे कुछ भी बताना ज़रूरी नहीं समझा।


    सरिता- क्योंकि हमें मालूम था कि तुम हमारा फैसला एक्सेप्ट कर लोगी।


    मिश्री- क्यों कर लूंगी? अर्थव से पूछा गया, उसकी शर्तें मानी गईं, तब वह शादी के लिए रेडी हो गया। और यहाँ मेरे पेरेंट्स मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझते। क्यों? क्योंकि लड़की हूँ ना, समझौता कर लूंगी। बट नो, मॉम डैड, आप गलत हो यहाँ पर। मैं नहीं एक्सेप्ट करूंगी अर्थव को अपना पति जब तक वह मेरी कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा। और इसके लिए एक महीना है। उसने छः महीने की शर्त रखी थी ना, मैं एक महीने की रख चुकी हूँ। मॉम के सामने, अगर अर्थव मेरी सोच के हिसाब से नहीं निकला, तो मैं एक महीने के बाद वो घर छोड़कर डिवोर्स फाइल कर दूंगी कोर्ट में। डेट्स फाइनल। और यहाँ पर कोई लड़ाई नहीं होगी, कोई ड्रामा नहीं होगा। बस अब मुझे सोना है।


    "आप जाओ यहाँ से।" यह कहकर खुद को ब्लैंकेट से ढक लिया।


    सरिता- मिश्री बेटा, सुनो तो...


    मिश्री ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। मिस्टर मलिक इशारे से सरिता को बाहर लेकर चले गए।


    रूम के बाहर आकर...


    मिस्टर मलिक- तुम जानती हो ना, गुस्से में वो किसी की भी नहीं सुनेगी। तो क्यों कुछ भी कहना? सोने दो उसे। जब गुस्सा कम होगा, अपने आप बात कर लेगी। अभी तो वह कुछ भी नहीं कहेगी। बट हमने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? मिश्री को बताकर हमें यह शादी करवानी चाहिए थी। उसने जो कहा, सब सच कहा। हम लड़के की बात को अहमियत देते हैं, पर लड़की को कुछ भी नहीं बताते। बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, बट जब उन बातों पर अमल करने की बारी आई, वही पुराने माँ-बाप बन गए जिनकी बेटी उनके हर बात पर सर झुकाकर माने बस...


    सरिता- बट आगे क्या? कितनी सनकी है, आपको पता है। अगर एक महीने का नाम लिया है, तो वही करेगी जो सोचा है।


    मिस्टर मलिक- एक महीने के बाद जो हमारी बेटी का फैसला होगा, हमारा भी वही होगा। बस मैं अपनी बच्ची के साथ अब कुछ गलत नहीं करूँगा। चलो, शाम की तैयारी करें। रोहन और नव्या आएंगे मिश्री को लेने।


    सरिता- काश अर्थव आता तो कितना अच्छा होता।


    मिस्टर मलिक- हाँ, बट तुम्हारी बेटी कम नहीं है। उसने कह दिया होगा रूहानी को कि यह बात अर्थव को पता ना चले। उसे पता है कि उसकी शादी अर्थव से हुई है। अब वह एक महीने में क्या करेगी, भगवान ही जाने।


    रूम के अंदर मिश्री गेट पर खड़ी उनकी सारी बातें सुन रही थी।


    मिश्री- वेल डन मिश्री! तुम्हें तो फिल्मों में होना चाहिए। क्या एक्टिंग करती हो, सब हिल गए। अब करवाओ गलती का एहसास। ज़रूरी था आप लोगों को, मॉम डैड, जो करवा दिया। वैसे भी वह कुतुब मीनार इतना भी बुरा नहीं है। अच्छा-खासा हैंडसम है, अच्छा लगेगा मेरे साथ। क्यूट कपल भी कह सकते हैं। बट पहले तो बेड़ बजाऊँ उसकी, आगे की आगे सोचूंगी। चलो, अब सोती हूँ, थक गई सुबह से काम करते-करते।


    वही मल्होत्रा मेंशन में अर्थव रूम में बैठा हुआ था। तभी रोहन रूम में आया।


    रोहन- अर्थव।


    अर्थव- हाँ रोहन, बोल क्या हुआ?


    रोहन- वो एक परेशानी वाली बात हो गई है। नव्या की मॉम की तबीयत खराब है, सो मुझे और नव्या को अभी बैंगलुरु के लिए निकलना होगा।


    अर्थव- तो तू जा ना, इसमें क्या परेशानी? अभी निकल जा।


    रोहन- बट वो शाम को पग-फेरों की रस्म के लिए मिश्री को भी लेने जाना है। हम दोनों को तो वहाँ जाना था।


    अर्थव- हाँ, तो मॉम डैड ले आएंगे। तू टेंशन मत ले।


    रोहन- नहीं ला सकते। अभी-अभी मैंने दोनों को बातें करते सुना कि वे शाम को सक्सेना के यहाँ डिनर पर जा रहे हैं, निशांत और रिद्धिमा भी जा रहे हैं। घर पर अब तू ही बचा है।


    अर्थव- व्हाट डू यू मीन? मैं ही बचा हूँ? मैं नहीं जा रहा किसी को भी लेने।


    रोहन- वो किसी भी नहीं, तुम्हारी वाइफ है। ओके? और रस्म के हिसाब से तो तुम्हें ही जाना चाहिए था। और भगवान भी यही चाहते हैं कि तुम ही जाओ।


    अर्थव- भगवान तो मुझे पता नहीं, तुम सब यही चाहते हो कि मैं ही जाऊँ, तभी सबको कोई ना कोई काम याद आ गया। मैं इतना बेवकूफ लगता हूँ तुम सबको?


    रोहन- कसम से, नव्या की मॉम की तबीयत खराब है। तू पूछ ले चाहे फोन करके। बाकी का मुझे नहीं पता। मैं निकल रहा हूँ। और वहाँ से निकल गया।


    अर्थव- क्या बकवास है! शादी ना हुई, जी का जंजाल हो गया। इसलिए शादी नहीं करना चाहता था। मैं बेचारा लड़का घनचक्कर बनकर रह जाता है और लड़की महारानी बन जाती है कुछ दिनों के लिए। अब उसे लेने भी जाऊँ मैं? चैटरबॉक्स एक मिनट के लिए भी चुप नहीं रह सकती है। अगर लेने चला गया, तो बड़े देवर जी की रट लगाकर दिमाग खराब कर देगी मेरा। मैं नहीं जाने वाला उसे लेने। डेट्स फाइनल आए तो आए, ना तो मत आए।


    मिस्टर मल्होत्रा के रूम में...


    मल्होत्रा- रूहानी, क्या अर्थव हो जाएगा मिश्री को लेने? रोहन ने तो कहा कि वो मना कर रहा है। अब क्या करेंगे हम?


    रूहानी- आप फिकर ना करो, वो ही लेने जाएगा मिश्री को। आप देख लेना। आप बस डिनर पर चलने की तैयारी करो। हम जल्दी निकल जाएंगे घर से। बहुत दिन हो गए साथ कहीं गए भी नहीं। आज आउटिंग पर चलते हैं, वहीं पर डिनर भी करेंगे।


    मिस्टर मल्होत्रा- नॉट बैड आईडिया, मिसेज मल्होत्रा! शादी बेटे की हुई है और घूमने आप जा रही हैं।


    रूहानी- हाँ, तो हम कौन से इतने बड़े हो गए हैं? अर्थव के मॉम डैड कम और बड़े ब्रो-सिस्टर ज़्यादा लगते हैं। और अपनी एक आँख दबा देती है।

  • 13. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 13

    Words: 1106

    Estimated Reading Time: 7 min

    मिस्टर मल्होत्रा ने कहा, "या राइट।" फिर दोनों हंसने लगे।

    अर्थव रूम से बाहर आया तो उसे पूरे घर में कोई नहीं दिखा।

    "रामू काका, कहाँ हैं आप?" अर्थव ने पूछा।

    "जी अर्थव बाबा," रामू काका ने उत्तर दिया।

    "सब कहाँ हैं? कोई नज़र नहीं आ रहा। कहाँ चले गए?" अर्थव ने पूछा।

    "बड़े साहब और मैम दोस्त के यहाँ गए हैं। रोहन बाबा नव्या बीवी के साथ बहुत पहले चले गए थे। और आप जब सो रहे थे तब निशांत बाबा और रिद्धिमा बीवी भी चली गई थीं। आपसे मिलने गए थे, पर आप सो रहे थे तब," काका ने बताया।

    "ओके। आप मेरे लिए कॉफी बना देना। और मुझे एक ज़रूरी काम के लिए जाना है," अर्थव ने कहा।

    "जी ठीक है," रामू काका ने कहा।

    अर्थव अपने रूम में जाकर तैयार होने लगा। कुछ ही देर में वह तैयार होकर नीचे आया।

    "रामू काका, मैं एक क्लाइंट से मिलने जा रहा हूँ। आप खाना खा लेना। मुझे आने में देर हो जाएगी, तो मेरे लिए खाना मत बनाइएगा। ओके," अर्थव ने कहा।

    "बेटा, एक बात पूछूँ," रामू काका ने कहा।

    "पूछिए," अर्थव ने कहा।

    "वो फिर बहु रानी को कौन लेकर आएगा उनके मायके से? आज उनके पग-फेरों की रस्म भी है ना, तो उन्हें आज ही आना होगा। और सब जहाँ से चले गए। अभी बाबा होते तो वह ही लेकर आते उन्हें, लेकिन वह तो आ ही नहीं रहे। कैसी किस्मत है बहु रानी की! शादी के दिन ही पति चला गया। बेचारी अकेली रह गई। कोई एक दिन की दुल्हन भी ससुराल में पति के बिना रहती है क्या? पर बेचारी रह रही है। बहुत प्यारी है ना," रामू काका ने कहा।

    अर्थव रामू काका की सारी बात चुपचाप सुन रहा था, लेकिन उसे बार-बार मिश्री का नाम अभिषेक के नाम के साथ सुनना पसंद नहीं आया।

    "आ जाएगा अभिषेक भी वापस, जल्द ही। कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसे ही जाना-आना, बिज़नेस है, जाना पड़ता है। और आपकी बहु रानी इतनी भी सीधी-सादी नहीं है जितनी नज़र आती है। देखूँगा, अगर वक़्त मिला तो लेकर आ जाऊँगा आपकी बहु रानी को," अर्थव ने कहा।

    "जी बाबा, ठीक है," रामू काका खुश होकर बोले।

    अर्थव कुछ सोचता हुआ वहाँ से निकल गया। तभी फ़ोन की घंटी बजी। रामू काका ने फ़ोन रिसीव किया।

    "हेलो साहब जी… हाँ, गए…" रामू काका ने कहा।

    "तुमने वैसा ही बोला ना, जैसा मैंने सिखाया था तुमको," यश ने कहा।

    "जी साहब जी, सब वैसा ही कहा जैसा आपने कहा था," रामू काका ने कहा।

    "तो अर्थव ने क्या कहा फिर?" यश ने पूछा।

    "उन्होंने कहा, वक़्त मिला तो लेकर आ जाऊँगा बहु रानी को," रामू काका ने बताया।

    "शाबाश रामू! तुम सच में हमारे वफ़ादार हो। जैसा हम हैं ड्रामेबाज़, तुम भी वैसे ही हो गए। दोनों अगले महीने से तुम्हारी सैलरी डबल," यश ने कहा।

    "शुक्रिया साहब जी," रामू काका ने खुश होकर फ़ोन रख दिया।


    कार में…

    "आपको लगता है कि वह ले आएगा?" रूहानी ने पूछा।

    "50-50 चांसेस हैं। जा भी सकता है और नहीं भी," यश ने कहा।

    "जाना तो उसे ही पड़ेगा, बाय हुक बाय क्रुक। अब देखो मैं क्या करती हूँ। आपका और मेरा फ़ोन ऑफ़ हो गया है, क्योंकि हमारे फ़ोन की बैटरी ख़त्म हो गई है। तो अब मिश्री किसको कॉल करेगी? अर्थव को," रूहानी ने कहा।

    "वाह मैडम! स्मार्ट हो गई हो! मेरे साथ रहने का नतीजा," यश ने कहा।


    मलिक मेंशन…

    मिश्री ने आज पिंक कलर का गाउन पहना था और सीधा हॉल में आकर सोफ़े पर जाकर बैठ गई।

    "अरे आ गई मेरी प्रिंसेस! तैयार होकर कितनी प्यारी लग रही है! कुछ खाना है?" सरिता ने पूछा।

    "मॉम, कुछ नहीं खाना। वैसे खाना बन गया?" मिश्री ने पूछा।

    "हाँ बन गया। बस मीठा बना रही हूँ," सरिता ने कहा।

    "ओके। मैं रोहन भाई को फ़ोन करती हूँ। कब तक आएंगे," मिश्री ने कहा।

    मिश्री ने रोहन को फ़ोन किया।

    "हाँ रोहन भाई, आप कब आ रहे हो?" मिश्री ने पूछा।

    "सॉरी भाभी, मैं तो बैंगलोर आ गया हूँ। नव्या की मॉम की तबीयत ख़राब है ना, तो शायद कोई और आए तुम्हें लेने के लिए," रोहन ने कहा।

    "ओके," मिश्री ने कहा।

    मिश्री को लगा अब मॉम-डैड ही आएंगे या फिर वो आएगा।

    "क्या हुआ बेटा? क्या कहा रोहन ने?" सरिता ने पूछा।

    "मॉम, वह नहीं आ रहे। बैंगलोर गए हैं। नव्या भाभी की मॉम बीमार है। इसलिए शायद मॉम-डैड आ जाएँ या फिर वो लेने आएगा," मिश्री ने बताया।

    "वो कौन बेटा?" सरिता ने पूछा और नज़रें नीचे करके हँसने लगीं।

    "मॉम, वो मतलब कुतुब मीनार… आपके सो-कॉल्ड ख़डूस दामाद जी," मिश्री ने कहा।

    सरिता मन में कहती हुई: "क्यूट लग रही है भगवान! इसने दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार भर दे बस।"

    "मैं मॉम को कॉल करके पूछती हूँ कौन-कौन आ रहे हैं," मिश्री ने कहा। मिश्री मॉम-डैड दोनों को कॉल करती है, पर लग ही नहीं रहा था। मिश्री मॉम-डैड दोनों के फ़ोन आउट ऑफ़ रेंज जा रहे थे। "अब क्या करूँ? उनका तो नंबर भी नहीं है मेरे पास…" मिश्री ने कहा।

    "क्या हुआ बेटा?" सरिता ने पूछा।

    "मॉम-डैड दोनों के फ़ोन ही आउट ऑफ़ सर्विस हैं। अब कैसे पता करूँ कौन आएगा मेरे को लेने? और किसी का फ़ोन नंबर भी नहीं है," मिश्री ने कहा।

    "तेरे डैड के पास है। जाकर ले ले," सरिता ने कहा। मिश्री जल्दी से उठकर स्टडी रूम में बैठे अपने पापा के पास चली गई।

    "पापा, आपके पास उनका नंबर है क्या?" मिश्री ने पूछा।

    "उनका? किनका नंबर बेटा?" मिस्टर मलिक ने पूछा।

    "वो… आपके सो-कॉल्ड सन-इन-लॉ," मिश्री ने कहा।

    मिस्टर मलिक हँसते हुए, "अर्थव का? हाँ है ना। ये लो," कहकर अर्थव का नंबर मिश्री को दिया। मिश्री फ़ोन से नंबर लेकर वहाँ से चली गई।

    मिस्टर मलिक मन ही मन कहते हैं, "थैंक यू भगवान! मेरी बच्ची नॉर्मल हो गई।" फिर उसकी नकल उतारते हुए, "उनका नंबर है क्या? कितनी क्यूट लग रही है मेरी बच्ची…"

    मिश्री रूम में जाकर अर्थव को कॉल करने लगी।

    "हेलो…" अर्थव ने कहा।

    "हेलो बड़े देवर जी…" मिश्री ने कहा।

    "क्या बकवास कर रही हो?" अर्थव ने कहा।

    "क्या-क्या बकवास की है मैंने? कब बकवास कर दी? मैंने तो बस यही कहा बड़े देवर जी। इसमें बकवास कहाँ से आ गई?" मिश्री ने कहा।

    "तुमसे बात करनी ही बेकार है। क्यों कॉल किया है?" अर्थव ने पूछा।

    "मॉम-डैड का फ़ोन आउट ऑफ़ रेंज जा रहा है। रोहन भाई बैंगलोर गए हैं। मैंने कॉल किया था। अब यहाँ पर मॉम-डैड वेट कर रहे हैं पग-फेरों की रस्म के लिए। मैं अकेले आऊँ तो अपशगुन होगा ना," मिश्री ने कहा।

    "सॉरी, मैं अभी बिज़ी हूँ। अभी नहीं आ सकता। वक़्त मिलेगा तब ही आऊँगा, लेकिन अभी पता नहीं," अर्थव ने कहा और कॉल काट दी।

    "ख़डूस कहीं का! हर वक़्त बिज़ी ही रहता है," मिश्री ने कहा।

    "किसकी नकल उतार रही है?" सरिता ने पूछा।

    "आपके दामाद की! लाल मिर्च खाकर रहता है हर वक़्त," मिश्री गुस्से से बोली।

    सरिता अपने दोनों हाथ जोड़कर ऊपर देखते हुए सोचती है, "भगवान! क्या होगा इन दोनों का…"

  • 14. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 14

    Words: 1342

    Estimated Reading Time: 9 min

    मलिक मेंशन में...

    सरिता: अभी तक अर्थव क्यों नहीं आया? कितना लेट हो गया है! मिश्री भी गुस्सा हो गई। अब वो नहीं जाएगी, देख लेना आप...

    मिस्टर मलिक: हां, मुझे भी ऐसा ही लगता है। अब वो नहीं जाएगी। यह अर्थव भी ना, नहीं आना था तो क्लियर मना कर देता। हां और ना वाली बात क्यों की उसने भी...


    दूसरी तरफ...

    अर्थव क्लाइंट से मिलकर होटल से बाहर निकला। तभी उसने टाइम देखा। "ओह शिट! कितना टाइम हो गया! अब तो घर ही जाना होगा। मिश्री तो शायद घर चली गई होगी अब तक।" और फिर अपनी गाड़ी घुमाकर घर के लिए निकल गया।


    जब वो घर पहुँचा, तो उसके मॉम-डैड उसका ही इंतज़ार कर रहे थे।

    रूहानी: अर्थव, मिश्री कहाँ है??

    अर्थव: व्हाट? मिश्री??

    रूहानी: हाँ, मिश्री। तू गया नहीं उसे लेने के लिए?

    अर्थव: लेट हो गया था मैं मीटिंग में। तो मैंने सोचा कि वो आ गई होगी, इसलिए मैं नहीं गया।

    रूहानी: नहीं आई। तुम गए क्यों नहीं उसे लेने?

    अर्थव: ओह, प्लीज मॉम! यह लाना-ले जाना मुझे समझ नहीं आता। नहीं आई तो मैं क्या करूँ? 😏

    यश: 😡 क्या करूँ? जाओ और उसे लेकर आओ अभी इसी वक्त! नो एग्रीमेंट! गो नाउ!

    अर्थव अपने पापा को गुस्से में देख कुछ नहीं बोल पाया और अपने पैर पटकता हुआ वापस मिश्री के घर की ओर निकल गया।



    कार में...

    "अर्थव, क्या मुसीबत है ना! दिन को चैन है और ना रात को। इसे अच्छा होता नॉर्मल तरीके से मैं शादी कर लेता। फिर देखता कैसे मुझ पर गुस्सा करते और आर्डर चलते। और वो उनकी सो कॉल्ड बहु रानी फिर रहती मेरे हिसाब से। बड़े देवर जी की आवाज़ तो सुननी नहीं पड़ती! 😡😡"


    मलिक मेंशन...

    सरिता: अब नहीं आएगा अर्थव, शायद बहुत लेट हो गया है।

    तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज़ आई।

    सरिता: शायद अर्थव आ गया।

    फिर दोनों गेट तक गए। तभी अर्थव घर के अंदर आता हुआ दिखा। अर्थव उनके पैर छूते हुए बोला, "वो सॉरी, मैं लेट हो गया। मीटिंग की वजह से। तो मैंने सोचा मिश्री चली गई होगी।"


    मिस्टर मलिक: इट्स ओके बेटा। आओ। मैं मिश्री को लेकर आता हूँ। उसने खाना भी नहीं खाया तुम्हारे इंतज़ार में। की बड़े देवर जी आएंगे तब ही खाएगी।

    बड़े देवर जी सुनकर अर्थव चौंक कर उन्हें देखने लगा।

    लेकिन कुछ नहीं बोला और खाने के टेबल पर जाकर बैठ गया।


    मिश्री का रूम...

    मिस्टर मलिक रूम में गए तो सामने मिश्री टेडी को हग किए सोई हुई नज़र आई।


    मिस्टर मलिक: मिश्री बेटा, उठो। अर्थव आ गया है तुम्हें लेने।

    मिश्री: आई डोंट केयर। आया होगा, मैं नहीं जा रही। अब कह दो उसे वापस जाएँ।

    मिस्टर मलिक: प्लीज़ बेटा, एक बार मेरी बात मान लो। माय प्रिंसेस, इस बार चली जाओ। फिर कभी मत जाना उसके साथ। प्लीज़ बेटा, उठ जाओ एक बार।

    मिश्री गुस्से में उठकर बैठ गई।

    मिश्री: लास्ट बार, ओके। आगे से उस कुतुब मीनार के साथ में नहीं जाऊँगी, चाहे वह कितना भी लेट आए या जल्दी।

    मिस्टर मलिक: ओके। अब चलो। यह लो तुम्हारा दुपट्टा।

    मिश्री टेडी को हग करके नीचे आई। मिश्री को ऐसे देखकर अर्थव चौंक गया।


    मिश्री वही डाइनिंग टेबल पर अपने टेडी को गोद में लिए बैठ गई।

    सरिता: मिश्री बेटा, टेडी को तो उधर रख दो। फिर खाना खा लो आराम से।

    मिश्री: ना, मुझे नहीं खाना खाना। और टेडी मेरे साथ जाएगा। मुझे इसके बिना नींद नहीं आती, आपको पता है ना।

    मिस्टर मलिक: ओके ओके, ले जाना। चलो, मैं खाना खिला देता हूँ अपनी प्रिंसेस को। मुँह खोलो बेटा।

    और मिश्री बड़ी मुश्किल से थोड़ा सा खाना खाती है। वहीँ अर्थव यह सब चुपचाप होते देख रहा था।

    "अर्थव (मन में): क्या बहू पसंद की है मॉम ने! लाजवाब! अच्छा है, करें अरमान पूरे। बहू के रूप में छोटी बच्ची को लेकर आ गई। कहाँ फँस गया मैं..."


    खाना खाने के बाद अर्थव जाने के लिए बैठा था। गिफ्ट और शगुन का सामान गाड़ी में पहले ही रख दिया गया था। सरिता मिश्री को फ्रंट सीट पर बैठा देती है।

    सरिता: मिश्री बेटा, बेल्ट बांध लेना। ओके? टेक केयर बेटा, अपना ख्याल रखना।

    मिश्री: (सोते हुए) जी मॉम, बाय! बड़े देवर जी, अब चले भी क्या? यहीं रुकना है मुझे, सोना है जाकर।

    अर्थव गुस्से से उसे गाड़ी से बाहर ले आता है।

    अर्थव: यह क्या? बड़े देवर जी, बड़े देवर जी लगा रखा है कहाँ है ना? मिस्टर मल्होत्रा बोलो करो, समझ नहीं आता तुम्हें!

    मिश्री नींद से भरी आँखों से अर्थव को देख रही थी।

    मिश्री: नहीं आता समझ में तो क्या? हाँ क्या करोगे आप? जेल में डाल दोगे मुझे? क्या करोगे? बोलो! 😡

    "अर्थव मिश्री की गुलाबी होती आँखों को देखता है, जो कि नींद भरी होने के कारण हो गई थी, जिसमें मिश्री इस समय बहुत ज्यादा क्यूट लग रही थी।"


    मिश्री: अरे आप चुप हैं! कुछ नहीं कहा आपने! वाह! मिश्री तुमने अर्थव मल्होत्रा को चुप करवा दिया! नॉट बैड!

    अर्थव कुछ नहीं बोलता और चुपचाप गाड़ी ड्राइव करता है और अपनी आँखें टेढ़ी कर मिश्री को देखता है, जो सोते हुए बिल्कुल बच्ची लग रही थी, टेडी को हग किए हुए। यह देख अर्थव के फेस पर स्माइल आ गई।

    "अर्थव (मन में): बिल्कुल पागल है यह लड़की! पर क्यूट भी! टेडी को लेकर सोती है अब भी! क्या हमेशा टेडी साथ सोएगा बेड पर? हमारे साथ भी? ओह शिट! अर्थव क्या सोच रहा है? कुछ भी! अभी 6 महीने हैं, यह सब बाद की बात है। कहाँ से कहाँ चली गई तुम्हारी सोच भी! जब भी यह मिश्री सामने आती है, मेरा दिमाग भी बहक जाता है अपने आप ही।"


    कुछ ही देर में अर्थव मल्होत्रा मेंशन में पहुँच जाता है।

    रूहानी: लो जी, आ गए आपके बेटे और बहू! मैं आरती की थाल लेकर आती हूँ।

    अर्थव: मिश्री, उठो, घर आ गया।

    मिश्री: नो, मैं नहीं उठ रही। मुझे सोना है। तुम जाओ बस।

    अर्थव गुस्से से गाड़ी से बाहर आ गया।

    अर्थव: डैड, अब क्या करूँ मैं? आपकी लाडली बाहर नहीं आ रही। उसे वहीं सोना है। 😤

    यश: तो बेटा, तुम उसकी नींद डिस्टर्ब क्यों कर रहे हो? गोद में उठाकर ले जाओ रूम में।

    अर्थव: व्हाट? मैं फिर से गोद में उठाकर रूम में लेकर जाऊँ? मैं कोई नौकर हूँ उसका जो रोज-रोज यह काम करूँगा?

    यश: तो उठाओ उसे जाकर।

    अर्थव: बस यही काम रह गया मेरा! महारानी साहिबा को गोद में लिए-लिए घूमता रहूँ? क्या मज़ाक है!

    गुस्से में गेट खोलकर मिश्री को गोद में उठा लेता है।


    रूहानी दोनों की आरती उतार रही थी। अर्थव: हो गई आरती। अब जाऊँ? और हाँ, बहु रानी का टेडी लेकर आएँ। इन्हें नींद नहीं आती इसके बिना।

    रूहानी हँसते हुए टेडी गाड़ी से निकालकर रामू काका को देती है। "जाओ, रूम में रखकर आओ।"


    "अर्थव मिश्री को लेकर रूम में चला गया। मिश्री ने अर्थव की नेक को अपने दोनों हाथों से अच्छी तरह पकड़ा हुआ था और अपना फेस उसकी चेस्ट में छुपा रखा था, जिस कारण अर्थव को बेचैनी हो रही थी।"


    अर्थव रूम में आकर मिश्री को बेड पर लेटा देता है। लेकिन मिश्री ने अभी भी अर्थव की शर्ट पकड़ रखी थी। अर्थव हल्के से अपनी शर्ट छुड़ाकर उसे ब्लैंकेट से अच्छी तरह कवर कर देता है। बाहर खड़ी रूहानी यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।

    अर्थव: मॉम, अब स्माइल क्यों कर रही हैं आप? एक तो वैसे ही आपकी लाडली ने दिमाग खराब किया हुआ है, अब आप भी दिमाग खराब मत करो।

    रूहानी: नहीं, मैं बस देख रही थी। तुम्हें AC के बिना नींद नहीं आती, वाइफ़ को AC कम पसंद है। आगे क्या होगा तुम दोनों का?

    अर्थव शोक होकर अपनी मॉम को देखता है।

    अर्थव: 😡 मॉम...

    रूहानी: ओके ओके, जस्ट जोकिंग। सो जाओ जाकर, थक गए हो बहुत। गुड नाईट। और उसके माथे पर किस कर चली गई।

    अर्थव: गुड नाईट।

  • 15. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 15

    Words: 1098

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगली सुबह, मिश्री रूहानी के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठी यश और अर्थव का इंतज़ार कर रही थी।

    मिश्री: मॉम, कब आएंगे आपके लाडले? मुझे भूख लग रही है।

    रूहानी: बेटा, वो वक्त का बहुत पाबंद है। 8:30 पर डेली ब्रेकफास्ट करता है, चाहे कुछ भी हो जाए। बस, आता ही होगा। ये लो, आ गया।

    मिश्री सीढ़ियों की ओर देखने लगी, जहाँ अर्थव ब्लैक थ्री पीस सूट में बिल्कुल तैयार होकर नीचे उतर रहा था। मिश्री उसे बिना पलक झपकाए देख रही थी।

    रूहानी: अरे, क्यों है ना मेरा बेटा हैंडसम और हॉट? नहीं हट रही ना नज़रें तुम्हारी भी उस पर से?

    मिश्री: क्या??

    रूहानी: नज़रें और क्या??

    मिश्री: ओह प्लीज़ मॉम, नज़रें आपके बेटे पर से नहीं, उसकी शर्ट से नहीं हट रही हैं।

    रूहानी: व्हाट? क्या शर्ट??

    मिश्री: हाँ, शर्ट। ब्लैक के साथ कौन डार्क मेहरून कलर की शर्ट पहनता है? लाइट कलर की शर्ट पहनी चाहिए थी बड़े देवर जी को। ज़्यादा अच्छे लगते क्यों बड़े देवर जी...?

    अर्थव: "How disgusting! फिर बड़े देवर जी, मॉम?"

    रूहानी: बेटा, मत बोला करो। अगर उसे पसंद नहीं है, तो मिस्टर मल्होत्रा बोल दो।

    मिश्री: क्यों बोल दूँ? अभी के बड़े भाई हैं, तो क्या भैया बोलूँ इन्हें...?

    वहीँ, अर्थव के हाथ से चम्मच प्लेट में गिर गया, "भैया" सुनकर।

    अर्थव: "व्हाट डू यू मीन? तुम भैया कहोगी मुझे??😡😡😳"

    मिश्री: अगर आपको बड़े देवर की पसंद नहीं है, तो भैया ही बोलूँगी ना। अब आप डिसाइड करो कि क्या बोलूँ। और अपना चेहरा नीचे कर हँसने लगी। मिश्री (मन में): अब बोलो तुम कुतुब मीनार क्या बोलोगे? हो गई ना बोलती बंद?

    वहीँ, अर्थव कुछ नहीं कहता और बैग लेकर गुस्से से वहाँ से चला गया।

    मिश्री उसके जाने के बाद खुलकर हँसने लगी।

    मिश्री: हो मॉम, मिस्टर खड़ूस चुप हो गए।

    रूहानी मुस्कुराकर मिश्री को हँसते हुए देखती रही। तभी यश मल्होत्रा टेबल पर आकर बैठ गए। उन्हें देखकर मिश्री चुप होकर बैठ गई।

    यश: अरे हमारी बेटी किस बात पर हँस रही थी? और अब चुप क्यों हो गई?

    मिश्री: वो आपकी वजह से। मॉम ने कहा था ससुराल में अपने से बड़ों के सामने इस तरह से हँसना बेड मैनर्स होते हैं। और क्यूट सा फेस बना लेती है।

    रूहानी: तो मैं भी तो बड़ी ही हूँ तुमसे। फिर मेरे सामने तो तुम खूब हँसती हो, जो दिल में आया करती हो।

    मिश्री: हाँ, बट अभी एक महीने के लिए आप मेरी दोस्त हैं ना? सास तो बाद में बनेगी, अगर हुआ तो। नहीं तो आप हमेशा मेरी दोस्त रहेंगी ना मॉम? और उदास होकर देखती है।

    रूहानी: मैं तुम्हें इस घर से जाने ही नहीं दूँगी। देख लेना, मेरा बेटा हीरा है, वो तुम्हें जीत ही लेगा एक महीने में।

    मिश्री: इतना यकीन है आपको?

    रूहानी: यकीन नहीं, पक्का यकीन है। अर्थव मेरा प्राउड है।

    मिस्टर मल्होत्रा उसकी हरकत देखकर हँसने लगा।

    यश: यू आर सच ए स्वीटहार्ट, माय एंजेल। आपके आने से हमारे घर में रौनक सी हो गई है। ऐसे ही हँसती रहा करो, अच्छी लगती हो।

    मिश्री: डैड, सच में मैं जैसे चाहूँ वैसे रह सकती हूँ?

    यश: जी बेटा जी, आप बेटी हैं हमारी, बहू बाद में। जैसे मुक्ति, वैसे ही आप...

    मिश्री: अरे हाँ, वो मुक्ति दीदी शादी में क्यों नहीं थी?

    रूहानी: बेटा, वो हॉलीडे पर है ना। लंदन किसी काम के सिलसिले में गई है। पापा और भाई के साथ ही ऑफिस ज्वाइन किया हुआ है उसने। आने ही वाली है कुछ ही दिनों में।

    मिश्री: कैसी है? खड़ूस के जैसी या आपके जैसी?

    रूहानी: मेरे जैसी...

    मिश्री: फिर ठीक है। गुस्सा करना और उसे बर्दाश्त करना, दोनों मुझे पसंद नहीं है।

    रूहानी: ओह, रियली? बेटा, तुम गुस्सा नहीं करती? कमाल है... 😂

    मिश्री: नहीं मॉम, वो तो बात ही गलत थी, तो गुस्सा आना ही था ना? वैसे मैंने कब गुस्सा किया?

    रूहानी: रात को नहीं देखा? गाड़ी से बाहर नहीं आई? यही सोचा है मुझे कि रट लगा रखी थी। बेचारा अर्थव अब रात को भी गोद में उठाकर ले गया था रूम में।

    मिश्री शर्मिंदा होकर: हाँ, सोने के बाद मुझे उठने में बहुत आलस आता है। क्या करूँ? आदत ही ऐसी पड़ी हुई है। कैसे चेंज होगी...?

    रूहानी: क्या ज़रूरत है चेंज करने की? मेरा बेटा बहुत स्ट्रॉन्ग है, तुम्हें संभाल ही लेगा। वैसे भी तुम छोटी सी हो। डोंट वरी।

    मिश्री: रियली मॉम, आप बहुत क्यूट हो। आई लव यू सो मच मॉम। और रूहानी के गले लग गई।

    रूहानी: मी टू, बेटा। चलो, तुम रूम में जाओ और कुछ अच्छी सी ड्रेस पहन लो। नई दुल्हन हो, कोई भी आ जाएगा तो क्या सोचेगा? जींस टॉप में नहीं नवेली दुल्हन बैठी है...

    मिश्री: ओके। और रूम में चली गई। रूहानी लंच का देखने के बाद...


    मिश्री का रूम...

    मिश्री: (मन में) अब क्या पहनूँ? मैं क्या साड़ी पहन लूँ? हाँ, वही पहन लेती हूँ। बट चलना नहीं आता मुझे उसे पहनकर। कोई बात नहीं, आ जाएगा धीरे-धीरे। ये नेट की रेड साड़ी निकालती हूँ। कितनी प्रीटी है! बट इसका ब्लाउज कितना बैकलेस है? अच्छा लगेगा क्या? मैं पल्लू सेट कर लूँगी। हाँ, ऐसा ही ठीक होगा।

    फिर मिश्री वही साड़ी पहनकर बालों को खुला छोड़ देती है। हल्की सी ज्वेलरी पहनकर सच में वह किसी नई दुल्हन लग रही थी।

    मिश्री (मिरर में खुद को देखकर): वॉव, मिश्री! यू लुक सो क्यूट एंड प्रीटी! लंच के लिए सब आने ही वाले हैं। नीचे चलना चाहिए, बहुत वक्त हो गया।

    फिर मिश्री रूम से बाहर आकर सीढ़ियों तक आई और तभी अर्थव सीढ़ियों से ऊपर आ रहा था। और अचानक उसकी नज़रें मिश्री पर पड़ गईं और वो पलटना ही भूल गया।

    दोनों ही एक-दूसरे को देखते हुए एक-एक स्टेप ऊपर-नीचे जा रहे थे। मिश्री नीचे आती हुई, वहीं अर्थव ऊपर की तरफ। मिश्री अर्थव के ऐसे देखने से नर्वस हो रही थी और जल्दबाजी में नीचे आने के चक्कर में उसका पैर मुड़ गया। जैसे ही वह गिरने लगी, अर्थव ने उसे अपनी बाहों में संभाल लिया। वहीं मिश्री उसके टच करने से और ज़्यादा नर्वस हो जाती है।

    अर्थव: आराम से नहीं उतरा जाता तुमसे? अभी मैं नहीं होता तो सीधा नीचे गिर जाती।

    मिश्री: हाँ, तो आप इतना गौर से मुझे क्यों देख रहे थे? मैं नर्वस हो गई थी इसलिए फिर पैर मुड़ गया मेरा। पहले किसी लड़की को नहीं देखा इस तरह तैयार होते हुए।

    अर्थव: नहीं...

    मिश्री: क्या नहीं? बोलिए...

    अर्थव: कुछ नहीं। अब आराम से जाओ।

  • 16. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 16

    Words: 1922

    Estimated Reading Time: 12 min

    मिस्टी जाऊंगी तब ना जब आप मुझे छोड़ेंगे। अर्थव जल्दी से अपने हाथ पीछे कर, उसे सॉरी बोला और वहां से निकल गया।

    "मिस्टी, ओ माय गॉड! क्या हो गया था मुझे! जब अर्थव ने मुझे छुआ, मेरी हार्टबीट अब भी कितनी तेज चल रही है! इसे तो बचकर चलना होगा भाई साहब, नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी..." वही दूर खड़ी रूहानी यह सब देख रही थी।

    मिस्टी: मॉम, क्या देख रही हैं आप? और स्माइल क्यों कर रही हैं?

    रूहानी: तुम्हें देख रही हूँ। बिल्कुल दुल्हन लग रही हो। और मेरे डफर बेटे को देख रही हूँ, जिसे इतनी प्यारी वाइफ नज़र नहीं आ रही।

    मिस्टी: इनोसेंटली नज़र आने पर क्या करते हैं आपके बेटे, मॉम?

    रूहानी, मिस्टी के गाल पर किस करते हुए: यह करता है मेरा बेटा।

    वही मिस्टी इस एक्ट से शॉक रह गई और शर्माकर रूहानी के गले लग गई।

    रूहानी: अरे मेरी बहू को शरमाना भी आता है! मुझे तो पता ही नहीं था!

    मिस्टी: मॉम, प्लीजजजजज...

    रूहानी: जस्ट जोकिंग, माय स्वीटी! चलो, टेबल अरेंज करते हैं।

    मिस्टी रूहानी से नज़रें नहीं मिला रही थी और टेबल अरेंज करने लगी। वही ऊपर से नीचे आता हुआ अर्थव, खोया-खोया सा, मिस्टी को काम करते हुए देख रहा था।

    "अर्थव मन में सोचता हुआ: कितनी अच्छी लग रही है टेबल अरेंज करती हुई! और उसकी बैंगल्स कितनी बज रही हैं! इतनी भी बुरी नहीं है, बस बोलना कम कर दे तो परफेक्ट है।" वह यह सोचते हुए टेबल के पास आ रहा था कि टेबल से टकराकर नीचे गिर गया और टेबल का कॉर्नर उसके सर पर लग गया, जिससे ब्लड निकलने लगा।

    मिस्टी: अथर्व! आप ठीक हैं ना? ओ गॉड! ब्लड निकल आया! मॉम, मॉम! जल्दी आओ, देखो अर्थव को क्या हो गया है! और चोट पर हाथ रखकर ब्लड रोकने की कोशिश करने लगी। इधर अथर्व हैरान होकर मिस्टी को देख रहा था।

    "अर्थव मन में: मिस्टी ने मुझे 'अर्थव' बोला। बड़े देवर जी नहीं, क्यों बट कितना अच्छा लगा उसके मुँह से मेरा नाम।"

    रूहानी: ओ गॉड! अर्थव! क्या करते हो? क्या देख रहे थे जो टकरा गए? वही अर्थव फिर से मिस्टी को देखने लगा।

    'रूहानी मन में: ओ गॉड! अर्थव मिस्टी की तरफ़ देख रहा था। इतना गुम था उसे देखने में कि किसी बात का होश ही नहीं रहा। कमाल है क्या बच्चे हैं मेरे! एक 1 महीने की बात करती है और 6 महीने की बात करता है। मुझे तो लगता है 6 दिनों में ही ये दोनों पागल हो जाएँगे। बताओ, चोट लगा बैठा मेरा पागल बेटा मिस्टी को देखने के चक्कर में!'

    रूहानी: मिस्टी, हाथ हटाओ और फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ जल्दी से।

    मिस्टी: नो मॉम! मैं हाथ नहीं हटा रही। अर्थव के सिर से फिर खून निकलने लगेगा। रामू काका, फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ आप जल्दी से।

    यह सब अर्थव देख रहा था।

    "अर्थव मन में: यह इतनी बेचैन क्यों दिख रही है मेरे लिए? और बार-बार 'अर्थव' क्यों बोल रही है मुझे?"

    रूहानी मिस्टी का हाथ हटाकर कॉटन से ब्लड साफ़ करती है और दवाई लगाकर बैंडेज लगा देती है।

    रूहानी: अब बैंडेज लगा दिया, मिस्टी। अब जाओ, हाथ वॉश करके आओ बेटा जी।

    मिस्टी: जी मॉम, जा रही हूँ। और अर्थव को आराम से सोफ़े पर बैठाकर फिर कुछ खिलाकर पेनकिलर दे देना, दर्द नहीं होगा।

    रूहानी: ओके, डॉक्टर साहिबा! अब जाओ।

    वही अर्थव मिस्टी की बेचैनी देख चुका था और काउच पर आँखें बंद कर लेट जाता है।

    मिस्टी: मॉम, यह आँखें बंद क्यों कर रहे हैं? सब ठीक है ना?

    रूहानी: हाँ, सब ठीक है। ऐसे ही लेट गया। तुम फ़िक्र मत करो, छोटी सी चोट है।

    मिस्टी: नो मॉम! छोटी सी चोट कभी-कभी इंसान की ज़िंदगी ले जाती है अपने साथ। आप डॉक्टर को बुलाओ अभी। वह ही देखेगा अर्थव को आकर। फिर से कुछ गलत हो गया तो हम रिस्क क्यों लें?

    मिस्टी: मॉम, डॉक्टर को कॉल करो अभी के अभी!

    रूहानी: मिस्टी, क्या हुआ है? इतना परेशान क्यों हो रही हो? कुछ नहीं हुआ है अर्थव को। वह ठीक है। इतनी सी चोट में डॉक्टर क्या करेगा आकर? बेटा, रिलैक्स! कम डाउन! इतना हाइपर क्यों हो रही हो? हाँ, बोलो, कोई बात है क्या? शेयर करो मुझे।

    मिस्टी: अर्थव को कुछ भी नहीं होगा ना मॉम? वह ठीक हो जाएगा ना?

    रूहानी: हाँ, बेटा, सही हो जाएगा। तुम रिलैक्स हो जाओ। चलो, लंच कर लो। तुम्हारे पापा भी आने वाले होंगे।

    मिस्टी: यह नहीं करेंगे लंच।

    रूहानी: नहीं, अभी बाद में कर लेना। तुम तो आ जाओ।

    मिस्टी: यह सो क्यों रहे हैं? इन्हें उठाओ बस!

    रूहानी: बेटा, बात क्या है? ऐसा बिहेव क्यों कर रही हो? वह उठ जाएगा, सो गया है वो।

    मिस्टी अर्थव के पास जाकर उसके माथे पर हाथ रखती है और उसकी नाक के पास हाथ रखकर कुछ फील करती है।

    मिस्टी: सब ठीक है मॉम। थैंक गॉड! कुछ नहीं हुआ।

    रूहानी: मिस्टी ऐसा बिहेव क्यों कर रही है? समथिंग रॉन्ग विद हर। मिसेज मलिक से पूछूंगी।

    कुछ ही देर में यश मल्होत्रा आ गए। वह भी अर्थव की चोट देखकर घबरा गए थे।

    रूहानी: एक तो आपकी बहू ने मुझे परेशान किया हुआ है कब से, और आप भी स्टार्ट मत हो जाना। वो सही है, बिल्कुल। बस सो गया है और कुछ नहीं है। आप लंच करो जाकर। उसे सोने दो। जब उठेगा तब मैं लंच करवा दूंगी।

    फिर सभी लंच करने लगे।

    रूहानी: मिस्टी बेटा, जाओ अपने रूम में आराम कर लो जाकर। थक गई हो तुम। जाओ।

    मिस्टी: बट मॉम, अर्थव...

    रूहानी: वो ठीक है। तुम जाओ बेटा, आराम करो।

    मिस्टी चुपचाप अपने रूम में चली गई, लेकिन वह जाते हुए भी पलट-पलट कर अर्थव को ही देख रही थी।

    रूहानी: यह अचानक मिस्टी को क्या हो गया है? ऐसा क्यों बिहेव कर रही है? अजीब सा। फिर रूहानी अर्थव के पास आकर बैठ गई जो कि इस वक़्त सो रहा था।

    रूहानी: अर्थव, उठो। रूम में चलकर सो जाओ बेटा, नहीं तो नेक में पेन होगा ऐसे सोने से।

    अर्थव: अहहहह...

    रूहानी: क्या हुआ बेटा?

    अर्थव: मॉम, सर में दर्द हो रहा है।

    रूहानी: तुम रूम में चलो। मैं कुछ खाने के लिए लाती हूँ। फिर पेनकिलर ले लेना, पेन सही हो जाएगा। ओके।

    अर्थव: ओके मॉम। वो कहाँ है?

    रूहानी: वो कौन?

    अर्थव: मॉम, मिस्टी। वह इतना अजीब बिहेव क्यों कर रही थी? वह ठीक है ना?

    रूहानी: हाँ, ठीक है। अपने रूम में है। बड़ी मुश्किल से भेजा है मैंने उसे। अजीब तरह से बिहेव कर रही थी, पता नहीं क्या बात है। मैं मिस्टर मलिक से पूछूंगी इस बारे में।

    अर्थव: इट्स ओके मॉम। शायद ब्लड देखकर डर गई होगी। मिस्टर मलिक को क्यों परेशान करना? मैं रूम में जा रहा हूँ। आप लंच वही ले आना। ओके।

    रूहानी: ओके, तुम चलो।

    अर्थव रूम में चला गया। वहीं रूहानी उसे लंच करवाकर पेनकिलर दे देती है। रूहानी: अब तुम सो जाओ। मैं मिस्टी को देखती हूँ, वह सो गई है या नहीं।

    अर्थव: ओके मॉम।

    रूहानी मिस्टी के रूम में जाकर देखती हैं तो मिस्टी टेडी को हग किए सोई हुई थी। वो अंदर जाकर मिस्टी को आराम से लिटाकर उसके माथे पर किस कर बाहर आ गई।

    अगली सुबह...

    मिस्टी आँखें मलती हुई उठती है।

    मिस्टी: ओ गॉड! 8:00 बज गए! इतना कैसे सो गई? और अर्थव? वो कैसा है? मुझे अभी जाकर देखना होगा।

    मिस्टी रूम से निकलकर अर्थव के रूम में गई। अर्थव वहाँ नहीं था।

    मिस्टी: कहाँ गया अर्थव? कहीं हॉस्पिटल में तो नहीं चला गया वो?

    वो नंगे पाँव ही सीढ़ियों से भागती हुई नीचे गई।

    मिस्टी: मॉम, अर्थव रूम में नहीं है। कहाँ है वो? ठीक है ना?

    तभी सामने से आते हुए अर्थव को देखकर मिस्टी रुक गई, लेकिन फिर भागकर उसके गले लग जाती है।

    मिस्टी: थैंक गॉड! तुम ठीक हो! मैंने सोचा तुम हॉस्पिटल तो नहीं चले गए ना! बट तुम सही हो! थैंक यू भगवान! थैंक यू सो मच!

    लेकिन अर्थव इस तरह मिस्टी के गले लगने से शॉक रह गया, लेकिन उसकी कपकपी देखकर उसने उसे अपने बाहों के घेरे में ले लिया था।

    अर्थव: मिस्टी, आई एम फाइन। तुम इतना हाइपर क्यों हो रही हो? क्या बात है?

    तभी मिस्टी होश में आकर अर्थव से खुद को अलग कर लेती है।

    मिस्टी: सॉरी, मैं वह...

    अर्थव: इट्स ओके। तुम बैठो यहाँ पर। मैं ठीक हूँ। रिलैक्स।

    मिस्टी: पक्का आप ठीक हो ना?

    अर्थव: 100% श्योर। उसके फेस को हाथों में लेकर: जस्ट रिलैक्स, ओके।

    मिस्टी: फिर ठीक है देवर जी! और नज़रें नीचे कर हँसने लगी। अर्थव उसकी शरारत समझ गया था और स्माइल करके उठ गया।

    मिस्टी: कुछ नहीं बोला देवर जी कहने पर भी... यह मैंने क्या किया? गले ही लगा लिया! जाकर क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में! बट उन्होंने भी तो मुझे गले लगाया! मुझे कितना सुकून मिला था उनकी बाहों में! सोचते हुए ब्लश करने लगी और कुछ देर पहले के पल याद करके मुस्कुरा रही थी।

    वही रूहानी यह सब देख रही थी।

    रूहानी: क्या कोई बात है मिस्टी के साथ? जो अर्थव के इतना सा चोट लगने पर वह ऐसे परेशान हो गई है? क्या मिस्टी के पेरेंट्स से पूछूँ इसके बारे में?

    मिस्टी काउच पर बैठी थोड़ी देर पहले की बात सोचकर खुश हो रही थी, तभी उसे देखकर...

    रूहानी: वॉव! समवन ब्लशिंग...

    मिस्टी: जी मॉम, क्या कहा आपने?

    रूहानी: मैंने कहा आज मेरी बहू रानी इतनी शर्मा क्यों रही है?

    मिस्टी: नहीं तो मॉम, आपको ऐसा क्यों लगा?

    रूहानी: मिरर में फेस दिखाकर देखो। तुम, तुम्हारे गाल कितने लाल हो रहे हैं। नज़रें शर्म से अपने आप झुक रही हैं। क्या है यह सब? कुछ हुआ है क्या? वैसे भी आज इतनी प्यारी लग रही हो इस साड़ी में। हो सकता है मेरे बेटे से कोई गुस्ताखी हो गई हो।

    मिस्टी चौंकते हुए: नहीं तो मॉम, उन्होंने तो कुछ नहीं किया।

    रूहानी: तो फिर तुमने कुछ किया है?

    मिस्टी: कुछ नहीं किया। आप भी ना! और वहाँ से भाग गई।

    रूहानी: पागल लड़की! जैसे मुझे पता ही नहीं है कि अभी जो थोड़ी देर पहले हुआ। बट मिस्टी इतनी हाइपर क्यों हो गई अर्थव की चोट देखकर? पूछना पड़ेगा सरिता जी से। और यह मेरा लड़का कहाँ गया? देखूँ क्या कर रहा है।

    रूहानी अर्थव के रूम में गई जहाँ अर्थव बेड पर पिल्लों को गोद में लिए स्माइल कर रहा था।

    रूहानी: वॉव! द अर्थव मल्होत्रा ब्लश कर रहा है! क्या बात है भाई? कुछ हुआ है क्या?

    अर्थव रूहानी की बात सुनकर शॉक गया। क्या? कौन ब्लश कर रहा है? मिस्टी...?

    रूहानी: वाह! मेरा बेटा अब अंदाज़ा भी सही लगने लगा है। नॉट बेड।

    अर्थव: व्हाट डू यू मीन मॉम?

    रूहानी: आई मीन, तुम्हारे फेस पर इतनी प्यारी स्माइल कैसे दिखाई दे रही है? कुछ अलग सी है यह स्माइल।

    अर्थव: कैसी स्माइल? मॉम आप भी ना! बस बेकार की बात करती रहती है। कोई स्माइल नहीं कर रहा था। मैं आपको धोखा हुआ होगा।

    रूहानी: धोखा तो तुम दोनों दे रहे हो अपने आप को। यह जो साथ फेरे लिए हैं ना तुम दोनों ने, वो सात जन्मों के लिए हैं। तुम चाहो तब भी इस रिश्ते से पीछा नहीं छुड़ा सकते। मंगलसूत्र की डोर इतनी मजबूत है जिसे तुम दोनों को एक साथ बाँध दिया है।

  • 17. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 17

    Words: 1117

    Estimated Reading Time: 7 min

    तुम दोनों को एक साथ बांध दिया गया है। अब तुम इकरार कब करोगे, यह नहीं पता, लेकिन उसकी एक महीने की शर्त और तुम्हारी छह महीने की शर्त ज्यादा चलने वाली नहीं है, यह तो पता चल ही गया मुझे।


    अर्थव- क्या हुआ, मॉम? क्या सोच रही हो?


    रूहानी- कुछ नहीं। तुम स्माइल करो, अकेले बैठकर। ओके, मैं तो चली। और वैसे भी, मेरी बहू जादूगरनी है। तुम पर ऐसा जादू करेगी कि तुम उसके जादू से बच नहीं पाओगे। देख लेना, कहीं छह महीने तुम्हारे लिए गले की घंटी न बन जाए। बच के रहा करो उससे। कहीं सेक्स डे के बाद ही न आ जाओ मेरी पास। कि मॉम, मुझे मिस्टी अपनी वाइफ के रूप में दिलाओ। वह मुझे जान से ज्यादा कबूल है। मैं नहीं रह सकता उसके बिना। अर्थव अपनी मॉम की बात सुनकर चौंक गया।


    "ओह गॉड! मॉम को कैसे पता कि मैं ऐसा कह सकता हूँ? वैसे सही, वो जादूगरनी है आपकी बहू, मॉम।" उसने एक हग किया और मेरा सारा सिस्टम हिला कर रख दिया। वो बिल्कुल फिट आती है मेरी बाहों में। कितना रिलैक्स महसूस हुआ जब वह मेरे गले लगी। बिल्कुल नया एहसास था।


    रूहानी- क्या हुआ?


    अर्थव- कुछ नहीं। मैं यह सोच रहा था, मिस्टी ने आज मुझे वह स्टुपिड 'बड़े देवर जी' क्यों नहीं कहा? सिर्फ 'अर्थव' क्यों कहा? वो भी एक बार नहीं, बार-बार। ऐसा क्यों, मॉम? 🤔🤨


    रूहानी- (मन में) वाह भगवान! बहू भी जासूस मिली, बेटा भी जासूस बन गया, और मैं बीच में फँस गई। दोनों के अब यह छोटी-छोटी बातों पर नज़र रखेगा। ओह गॉड! बचाओ मुझे! अच्छा, अर्थव, बोला मैंने ध्यान नहीं दिया। घबराहट में बोल दिया होगा। कौन सी बड़ी बात है? तुम रेस्ट करो, ओके। और जल्दी से वहाँ से निकल गई।


    "स्ट्रेंजर! मॉम ने यह बात नोटिस नहीं की, बट उसके मुँह से 'अर्थव' कितना अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि बस वह यह नाम बोली ही जाए। अर्थव बाबा, तू तो गया काम से! सारा दिन सर पर सवार रहती है मेरे। क्या करूँ मैं? इसी तरह लड़ते-झगड़ते हुए पन्द्रह दिन निकल गए।"


    मिस्टी- मॉम, मैं बोर हो रही हूँ। मुझे खेलना है, बस! 😤


    रूहानी- क्या खेलना है, बेटा आपको? मैं तो ब्लाइंडफोल्ड या क्रिकेट खेलूँगी। खाना, सोना, बस यही। मैं यहीं रह गई हूँ।


    रूहानी- तो बेटा, MBA में एडमिशन ले लो। कितने शानदार नंबर हैं तुम्हारे BA में। यही एडमिशन मिल जाएगा तुम्हें तो।


    मिस्टी- मॉम, अभी हो जाएगा एडमिशन?


    रूहानी- हाँ, दो महीने के बाद होगा। तुम वह बता देना अर्थव को। वह करवा देगा सब काम।


    मिस्टी- ओके। बट अभी क्या करूँ? मैं बोर हो गई हूँ, टीवी देख-देख कर। तभी डोर बेल बजती है।


    रूहानी- रामू, देखो दरवाजे पर कौन है। रामू काका जब वापस अंदर आए, तो उनके साथ क्यूट-क्यूट बच्चे थे, जिन्हें देखकर मिस्टी के फेस पर स्माइल आ गई।


    "मिस्टी- आज कुछ और भी मांगती तो गॉड, वो भी दे देते। मुझे कितने क्यूट बच्चे हैं! खा जाऊँ ऐसा लग रहा है।"


    रूहानी- हेलो, स्वीट किड्स। कौन हो तुम?


    लड़की- आई एम निशा।


    लड़का- आई एम आरव।


    लड़की- आई एम खुशी।


    रूहानी- नाइस नेम। आप यहां कैसे...?


    "मिसेज़ मिश्रा- हम आपके पास वाली हवेली में न्यू शिफ्ट हुए हैं। अभी घर सेट नहीं हुआ है और गार्डन भी गंदा है, तो मॉम ने कहा कि आपके गार्डन में खेल लें। पर आप परमिशन दें तो..."


    मिस्टी- अरे, तुम्हारा ही गार्डन है। खेलो जितना खेलना है। मैं भी खेलूँगी तुम्हारे साथ। क्यों, मॉम?


    रूहानी- हाँ, बेटा।


    निशा- सच, आंटी? आप भी खेलोगी?


    मिस्टी- (🤨) एक मिनट। डोंट कॉल मी आंटी। मिस्टी, ओके? मैं इतनी बड़ी हूँ क्या जो आंटी कहोगे?


    आरव- ना। यू लुक सो क्यूट एंड प्रीटी। मिस्टी नाम आप पर सूट करता है।


    मिस्टी- दैट्स बेटर। बेट, बॉय लेकर आओ। मैं भी आती हूँ। सभी बच्चे वहाँ से चले गए।


    मिस्टी- मॉम, मैं अपनी ड्रेस चेंज कर लूँ। यह लॉन्ग साड़ी पहनकर मैं कैसे खेलूँगी? मैं जींस टॉप पहन लूँ।


    रूहानी- ज़रूर, बेटा। पहन लो। किसने मना किया है? वह तो स्टार्टिंग की बात थी। अब तो पहन लो। बट यह जो चूड़ा, मत उतारना, ओके? यह शगुन का चूड़ा है। एक महीने के बाद ही उतरेगा, ओके।


    मिस्टी- ओके, मॉम। एंड यू आर स्वीट हार्ड। आई लव यू सो मच।


    रूहानी- ऑलवेज वेलकम, बेटा। मेरे पागल बेटे को कब कहोगी यह मैजिकल वर्ल्ड?


    मिस्टी- मैं नहीं, वो कहेंगे मुझे पहले।


    रूहानी- तो इंतज़ार ही करो।


    मिस्टी- लगी शर्त। वही कहेंगे, वह भी सबके सामने। देखना आप।


    रूहानी- देखेंगे, बेटा जी। मिस्टी ड्रेस चेंज करके सारे सर्वेंट को गार्डन में ले जाकर क्रिकेट खेलने लगी। तभी खूब हंगामा होने लगा।


    आरव- वॉव, मिस्टी! आप तो जीनियस हो खेलने में! क्या शॉट लगाती हो!


    मिस्टी- देखा? मानते हो ना मेरी तकनीक कितनी अच्छी है? अब देखना, यह बॉल गेट से बाहर जाएगी, पक्का!


    आरव- ओके। गेट पर किसी ने कैच कर लिया, तो आप आउट हो जाओगी।


    मिस्टी- कौन है जो कैच करेगा मेरी? कुतुब मीनार तो अभी ऑफिस गया है।


    निशा- वॉव! आपकी कुतुब मीनार ऑफिस भी जाती है क्या? हमने तो पिक्चर्स में उसे एक जगह खड़े हुए देखा है।😳


    मिस्टी- (🤭) मेरी कुतुब मीनार ऐसी ही है। मिलवाऊँगी किसी दिन तुम्हें। चलो, बॉल पकड़ो।


    तभी अर्थव गेट खोलकर अंदर आता है। उसने गाड़ी बाहर ही खड़ी कर दी थी क्योंकि गेटकीपर भी खेलने में लगा हुआ था।


    मिस्टी- अब डालो बॉल।


    आरव बॉल डालता है और मिस्टी हिट करती है, लेकिन गेट पर खड़ा अर्थव उसे कैच कर लेता है। अब देखकर आरव खुशी से चिल्लाता हुआ- मिस्टी, आप आउट हो गई! अंकल ने कैच पकड़ लिया!


    मिस्टी- नो! इट्स चीटिंग!


    आरव- क्यों चीटिंग? अंकल ने गेट से पहले बॉल पकड़ी है, तो आप आउट क्यों नहीं हुईं? अर्थव वहाँ पर आ गया।


    अर्थव मिस्टी को देखता है जो कि पोनीटेल बनाए, जींस टॉप पहने, बिल्कुल बच्ची लग रही थी। क्यूट सी जो चिंगम चबा रही थी।


    मिस्टी- (🤨) बड़े देवर जी! आपने बॉल क्यों पकड़ी? आप खेल रहे हैं क्या हमारे साथ?


    अर्थव- नहीं पकड़ता तो मेरी कार का शीशा टूट जाता।


    मिस्टी- कोई नहीं, टूट ही तो जाता। आप तो बस मुझे आउट करने चाहते थे। अगर इतना ही शौक है, तो आ जाओ मैदान में और खेलकर दिखाओ। एक मिनट में आउट कर दूँगी आपको।


    अर्थव- ओके। आ जाओ। आफ्टर में, जीता तो तुम मुझे वह स्टुपिड 'बड़े देवर जी' नहीं बोलोगी। शर्त मंजूर।


    मिस्टी- ओके। बट आप तो हार जाओगे।


    अर्थव- देखते हैं।

  • 18. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 18

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्थव ने अपना ब्लेज़र उतारा, उसे आस्तीन फोल्ड करके बैट हाथ में ली और बैटिंग करने लगा। मिश्री बोलिंग कर रही थी।

    "अर्थव मन में सोच रही थी, अगर आज जीत गया तो यह बड़े देवर जी की बातें नहीं सुननी पड़ेंगी। मेरा सर फट गया है यह सुन-सुनकर... मिस्टी मन में सोच रही थी, इतने हैंडसम लगते हैं तो मैं बोलिंग कैसे करूँगी? मेरी नज़रें हट ही नहीं रही हैं इनसे। आज तो सारे बाल भी बिखरे हुए हैं, हॉट और हैंडसम लग रहा है। भगवान बचा देना आज मुझे! एक बड़े देवर जी सुनकर ही तो उनकी बोलती बंद हो जाती है, फिर मैं इन्हें परेशान कैसे करूँगी? कितने क्यूट लगते हैं जब इरिटेट होते हैं बड़े देवर जी सुनकर...."


    अर्थव: "क्या हुआ? डर गई? बॉल डालो। बहुत दिन हो गए खेले हुए। आज तो ये बॉल गेट के पार जाएगी, देख लेना।"


    आरव: "नो, नो अंकल! इतना तेज शॉट नहीं मारना। दूसरी बॉल नहीं है हमारे पास।"


    अर्थव: "ओके, ओके। अपनी मिस्टी से कहो, बॉल डाल दे। कहाँ खो गई है वो?"


    "हाँ, हाँ। डाल रही हूँ।" इतना भी क्या पागलपन खेलने का? फिर मिस्टी ने बॉल डाली, लेकिन वह बॉल सीधा गेट के पास गई।


    आरव: "4 रन!"


    अर्थव: "यह तो पहला है बेटा, अभी आगे देखो कितने पड़ेंगे 4 रन।"


    मिस्टी: "अच्छा, एक ही फोर पर खुश हो रहे हैं? मैंने तो बहुत सारे मारे हैं।" फिर मिस्टी ने बॉल डालनी शुरू की, लेकिन बार-बार वह गेट पर ही जाकर लगती रही।


    अर्थव: "हार मान लो तुम। मुझे आउट नहीं कर पाओगी।"


    मिस्टी: "बड़े देवर जी, हारने वाली तो मैं नहीं, आप आउट होंगे अब... एक मिनट, मैं अभी आई।"

    "मिस्टी मन में सोच रही थी, अब देखो मिस्टर मल्होत्रा, तुम्हारे होश उड़ा दूँगी। सारी बैटिंग भूल जाओगे अब तुम।" मिस्टी ने अपना चेहरा पानी से धोया और अपनी पोनीटेल खोली, जिससे उसके सिल्की बाल पीछे बिखर गए। चेहरा साफ करके वह वापस बोलिंग करने आई। अर्थव उसे देखकर चौंक गया।


    अर्थव: "ओ माय गॉड! इस तरह बोलिंग करेगी तो मैं बैटिंग कैसे करूँगा? स्मार्ट गर्ल!"

    मिस्टी की बोलिंग, उसके खुले बालों के साथ, उसे और आकर्षक बना रहे थे। इतनी खूबसूरत पत्नी से कोई पति कैसे नज़रें चुरा सकता है? अर्थव भी मिस्टी को देखकर काम से गया और उसकी बॉल उनके बेड की जगह स्टंप पर लग गई। लेकिन अर्थव अब भी होश में नहीं था।


    मिस्टी: "आउट! बड़े देवर जी आउट हो गए! बड़े देवर जी आउट हो गए!"


    अर्थव: "जस्ट शट अप! तुमने चीटिंग की!"


    मिस्टी: "आरव, मैंने चीटिंग की बेटा? निशा, तुम बोलो, मैंने चीटिंग की?"


    तीनों: "नहीं, मिस्टी ने चीटिंग नहीं की। अंकल, आप आउट हो गए हैं।"


    मिस्टी: "तो आप आउट हो गए! मैं जीत गई! और बड़े देवर जी, अब मैं बोलूँगी, आप सुनेंगे।"


    अर्थव: "चुप! चीटर कहीं की!" और गुस्से से अंदर चला गया।


    मिस्टी: "हाँ, चले गए थे मुझे हराने। मिस्टी...उप्स, अर्थव मल्होत्रा नाम है मेरा। हार कैसे जाऊँगी अपने प्यारे हबी से? मुझे देखकर खो गए थे, मैं हूँ ही इतनी ब्यूटीफुल, कोई भी हार जाए देखकर। तो यह अर्थव मल्होत्रा क्या चीज है? फिर गेम खत्म करके घर के अंदर आ गई।" मिस्टी घर के अंदर जाकर खड़ी हुई थी कि...


    अर्थव: "मॉम! मॉम! आप कहाँ हैं?"


    रूहानी: "क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो?"


    "यह क्या है? घर की बहु इस तरह के कपड़े पहनकर खेल रही है?"


    रूहानी: "हाँ, मैंने ही कहा था। क्यों? क्या हुआ?"


    मिस्टी: "कुछ नहीं हुआ। बड़े देवर जी हार गए इसलिए गुस्सा कर रहे हैं।"


    अर्थव: "तुमने चीटिंग की थी इसलिए मैं हारा।"


    मिस्टी: "मैंने क्या चीटिंग की? बड़े देवर जी, बताइए आप..."


    अर्थव: (मन ही मन) "वो तुमने अपने..." फिर चुप हो गया।


    मिस्टी: "हाँ, मैंने अपने मन... क्या? बड़े देवर जी, बोलो..."


    अर्थव: "नो, आई एम नॉट!" और गुस्से से वहाँ से चला गया।


    रूहानी: "मिस्टी, अब क्या किया तुमने? हाँ, मेरा बेटा क्रिकेट का चैंपियन है। तुमने कैसे हरा दिया? तुमने कुछ किया होगा, वह तुम्हें चीटर क्यों कह रहा था?"


    मिस्टी: "अब हार गए तो गुस्सा कर रहे हैं बड़े देवर जी। मैंने तो कोई चीटिंग नहीं की।" और अपने रूम में मुस्कुराती हुई चली गई। लेकिन रूहानी उसकी यह मुस्कराहट देख लेती है।


    "रूहानी: ओह गॉड! दोनों बिल्कुल बच्चों की तरह लड़ते हैं। पता नहीं कब बड़े होंगे। इसने कुछ ना कुछ जरूर किया है। ऐसे मेरा बेटा नहीं हार सकता। इसको तो बच्ची मिली है, बैंड-बाजा कर रख दी मेरे बेटे की।"


    दूसरी तरफ अर्थव के रूम में...


    "मैं सो स्टूपिड! मिस्टी उसके सामने आते ही क्या हो जाता है मुझे! पर वह मेरे सामने इस तरह की हरकत कैसे कर सकती है जबकि मैं उसके पति का बड़ा भाई हूँ? क्या कोई और भी बात है जो मैं नहीं जानता? मुझे मॉम से पूछना होगा। सीरियसली, वो ही बताएँगे मुझे। पर वह कितनी क्यूट लग रही थी, छोटी सी बच्ची की तरह खुश होते हुए। उसके गाल कैसे रेड-रेड हो गए थे! मैं कैसे नज़रें हटाता पता नहीं उस पर से... थैंक्स अभिषेक, भगाने के लिए। अगर तू नहीं जाता तो यह क्यूटी मुझे कैसे मिलती? अनजाने में ही..."


    मिस्टी का रूम...


    मिस्टी रूम में जाकर डांस करने लगी। "हार गए! हार गए मेरे प्यारे पतिदेव, हार गए! अब मैं उन्हें बड़े देवर जी कहकर बुलाऊँगी और उनकी बैंड बजाऊँगी।" फिर हँसते हुए बेड पर गिर गई और टेडी को हग किया। कब सो गई, उसे भी पता नहीं चला।

  • 19. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 19

    Words: 1058

    Estimated Reading Time: 7 min

    सभी डाइनिंग टेबल पर डिनर के लिए आकर बैठ गए।

    रूहानी ने अर्थव से कहा, "तुम्हारी मुक्ति से बात हुई?"

    अर्थव ने कहा, "जी, मोम। हुई थी। ठीक है, वह आ जाएगी। जल्दी काम पूरा होने वाला है।"

    मिस्टी उत्साह से बोली, "वाह! मुक्ति दी आने वाली है! अब मज़ा आएगा!"

    अर्थव ने मुँह बनाते हुए कहा, "क्या मज़ा आएगा? हाँ, उसे भी अपने साथ खेल में लगा लेना। और तो कोई काम भी नहीं है तुम्हें; खाना और सोना।"


    "बस एक मिनट! बड़े देवर जी, आप यह कैसे कह सकते हैं? मैं काम नहीं करती? मेरे रूम का बेड मैं ही अरेंज करती हूँ, फिर दीपा के साथ खड़े होकर सफाई करवाती हूँ और मोम के साथ किचन में उनका काम में हाथ बटाती हूँ। देखो, कल भी कट लग गया था टमाटर काटते हुए," उसने अपना हाथ आगे कर उसे दिखाया। उसकी पिंक हथेली पर कट साफ दिखाई दे रहा था।

    अर्थव ने अचानक उसका हाथ पकड़ कर कट देखने लगा और बेचैन हो गया।

    अर्थव ने कहा, "यह क्या किया? जब काम करना नहीं आता तो करती क्यों हो? सर्वेंट किस लिए हैं? इतना बड़ा कट है और कुछ लगाया भी नहीं है! और उसी हाथ से क्रिकेट खेल रही थी! हद है लापरवाही की!"

    "कुछ नहीं होता इतने से कट से। आप हाथ छोड़ो मेरा। मुझे खाना खाना है।"

    अर्थव ने कहा, "जस्ट शट अप! पहले बैंडेज करवाओ हाथ पर।" रामू काका, बैंडेज लेकर आओ!" रामू काका बैंडेज लेकर आए और अर्थव ने उसके हाथ पर बैंडेज किया।

    अर्थव ने कहा, "केयरफुल! आगे से कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है। अगर ऐसे काम करने हैं तो ना ही करो तुम।"

    मिस्टी बोली, "वाह, बड़े देवर जी! अभी तो आप ही कह रहे थे खाना और सोना कोई काम नहीं है। अब खुद ही कह रहे हैं कोई काम मत करना। दिस इज़ नॉट फेयर! क्यों, मॉम?" लेकिन रूहानी और यश बेचारे मुँह खोले उनकी लड़ाई देख रहे थे और सोच रहे थे कि क्या बोलें।

    रूहानी बोली, "पता नहीं क्या सही है और क्या गलत। दोनों जाने मुझे नहीं पता। हर वक़्त तुम टॉम एंड जेरी की तरह लड़ाई करते रहते हो।"

    मिस्टी बोली, "टॉम एंड जेरी मेरा फेवरेट कार्टून है! मैं तो बहुत देखती हूँ। आप भी देख रही हैं क्या?"

    रूहानी ने सर पकड़कर कहा, "बेटा, मैं तो तर्क दे रही थी।"

    मिस्टी बोली, "ओह, एक्सप्लेन दे रही थीं। मैंने सोचा आज दोनों मिलकर कार्टून देखेंगे। मज़ा आएगा!" यह सुनकर यश और अर्थव अपने चेहरे पर हाथ रखकर हँसने लगे।

    मिस्टी बोली, "दिस इज़ नॉट फेयर! पापा और बड़े देवर जी, आप हँस रहे हैं? क्या मुझ पर? क्या मैंने कोई जोक मारा?"

    अर्थव बोला, "तुम खुद ही एक बहुत बड़ा जोक हो! तुम क्या जोक मारोगी?"

    मिस्टी गुस्से में बोली, "व्हाट यू मीन, बड़े देवर जी? मैं जोक हूँ? ये कैसे कहा आपने? बोलिए!"

    अर्थव बोला, "और क्या कहूँ? मॉम, तुम्हारे साथ कार्टून देखेंगी? आर यू सीरियस?"

    मिस्टी बोली, "हाँ, तो क्या हो गया? अगर देखेंगे तो मेरे मॉम-डैड भी देखा करते हैं मेरे साथ। इसमें कौन सी बड़ी बात है?"

    अर्थव बोला, "मजबूर थे बेचारे! क्या करते? ना देखें तो जीना हराम कर देतीं तुम दोनों का। जुबान कितनी लंबी है! लटकती रहती है, रुकती ही नहीं!"

    मिस्टी बोली, "हाँ, जैसे आप तो मौन व्रत रख रहे हैं! अब कौन जुबान चला रहा है? मैं या आप?"

    अर्थव बोला, "मैं तो तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा था, और क्या कर रहा हूँ?"

    मिस्टी गुस्से से देखती रही, मॉम को। और चुप हो गई क्योंकि रूहानी और यश बेचारे कब से उनकी तू-तू मैं-मैं सुनकर वहाँ से चले गए थे।

    मिस्टी बोली, "अरे, मॉम-डैड कहाँ गए?"

    "अपने रूम में।"

    मिस्टी बोली, "ऐसे कैसे चले गए? गुड नाइट भी नहीं कहा। उन्होंने मेरे माथे पर किस भी नहीं किया। यह तो गलत बात है!"

    अर्थव बोला, "अब कब तक सुनते तुम्हारी बकबक? इसलिए चले गए बेचारे।"

    मिस्टी गुस्से से बोली, "हाँ, आप तो प्रवचन दे रहे थे! मैं बकबक कर रही थी!" और गुस्से से उठकर चली गई रूहानी के रूम की तरफ़।

    अर्थव ऊपर की तरफ़ देखकर बोला, "भगवान! यह ही पीस बचा था मेरे लिए पूरी दुनिया में! बिल्कुल एंटीक! सबसे अलग!"

    रामू काका बोले, "क्योंकि आप भी सबसे अलग हैं, अर्थव बाबा! तो घरवाली भी अलग ही मिली है। सबसे हटके, लेकिन बहुत प्यारी है। घर में रौनक हो गई बहु रानी के आने से।"

    अर्थव मुस्कुराते हुए बोला, "हाँ, काका, सही कहा आपने! पिद्दी सी वाइफ मेरी लाइफ में आ गई!" और मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया।


    सुबह...

    ब्रेकफास्ट के टाइम सब ब्रेकफास्ट कर रहे थे। पर एक बात सब ने नोटिस की कि मिस्टी आज बिल्कुल चुपचाप नाश्ता कर रही थी और ना ही किसी की तरफ़ देख रही थी। किसी ने उसे कुछ नहीं कहा।

    रूहानी भी अपनी फ्रेंड से मिलने चली गई। मिस्टी अपने रूम में जाकर बैठ गई। लंच के वक़्त भी मिस्टी चुपचाप खाना खाकर रूम में चली गई।

    अर्थव मिस्टी को इतना चुप देखकर बेचैन होने लगा।

    अर्थव ने कहा, "मॉम?"

    रूहानी ने कहा, "क्या?"

    अर्थव ने कहा, "ये चैटरबॉक्स इतनी चुप क्यों है? मॉर्निंग से एक शब्द नहीं बोला इसने आज। तबीयत तो सही है ना?"

    यश ने कहा, "यार, तुम भी अजीब हो! बोलती है तो परेशानी, ना बोले तो परेशानी। आखिर चाहते क्या हो तुम आखिर?"

    अर्थव घबराकर बोला, "मैं क्या चाहूँगा? वह बस बोलती रहती है ना! अब चुप है तो अजीब लग रहा है। बस तो पूछ दिया, और कुछ नहीं।"

    रूहानी बोली, "हाँ, तो अच्छी बात है। चुप रहना सीख रही है तो मैच्योर होना अच्छी बात है। आफ्टर ऑल, तुम्हें भी तो ऐसी ही लाइफ पार्टनर चाहिए ना, कम बोलने वाली, ज़्यादा लड़ाई ना करने वाली। अच्छी है मिस्टी। तुम्हारी कोशिशों पर खरी उतरने की कोशिश कर रही है।"

    अर्थव ने मन में सोचा, "भाड़ में जाए मैच्योर लड़की! नहीं चाहिए ऐसी वाइफ मुझे! जो जिंदगी को ही सुना कर दे! सुबह से लेकर अब तक ऐसा लग रहा है पूरी लाइफ ही चुप होकर रह गई है। सब कुछ कितना सूना-सूना लग रहा है! ना मुझे तो अपनी वही मिस्टी पसंद है, हँसती-मुस्कुराती लड़की, झगड़ती हुई! यह चुप मिस्टी ना बाबा! मैं तो वही मिट्टी चाहता हूँ।"

    रूहानी बोली, "क्या सोच रहे हो, बेटा?"

    अर्थव बोला, "कुछ भी नहीं। गुड नाइट, मॉम-डैड।"

    रूहानी और यश ने कहा, "गुड नाइट, बेटा।" अर्थव अपने रूम की तरफ़ चला गया।

  • 20. विवाह एक पवित्र बंधन - Chapter 20

    Words: 1001

    Estimated Reading Time: 7 min

    रूहानी ने कहा, "आपको क्या लगता है? यह रूम में जाएगा या फिर मिस्टी के रूम में?"

    'मेरा बेटा धीरे-धीरे मजनू बनता जा रहा है। वह देखना, सीधे मिस्टी के रूम में ही जाएगा। उसे इतना चुप वह देख ही नहीं सकता।'

    रूहानी ने कहा, "बिल्कुल सही कहा। बेटा तो आपका ही है ना।"

    यश ने कहा, "यह तो सही कहा तुमने।" और दोनों हँसने लगे। अथर्व खुद के रूम में जाते-जाते रुक गया और उसके कदम मिस्टी के रूम की तरफ बढ़ गए।

    रूहानी ने कहा, "सही कहा था आपने। मिस्टी के रूम में ही गया है वह। मेरा बेटा फँस गया मिस्टी की मासूमियत में।"

    मिस्टी का रूम...

    मिस्टी खुद से बड़बड़ा रही थी, "अभी तक यह कुतुब मीनार क्यों नहीं आया? मॉम ने तो बोला था वह मुझे चुप देखेगा तो मेरे पास जरूर आएगा। बट सुबह की दोपहर हो गई, वह तो आया ही नहीं। और अब मैं ज्यादा देर तक चुप नहीं रह सकती। दिमाग का दही हो गया ऐसे चुप रह-रहकर। मॉम क्यों नहीं आया अर्थव? अब तक रूम में मुझसे पूछने के लिए? मैं चुप क्यों हूँ?" तभी किसी के चलने की आवाज सुनाई दी।


    "मिस्टी! आ गया यश! यश! यश! बड़े देवर जी! माय क्यूटी पाई! आओ आओ! अभी और बेड बजाऊंगी आपकी। ज्यादा बोलती हूँ ना मैं, आज पता चलेगा मेरा बोलना आपके लिए कितना जरूरी है!"


    अर्थव सोच रहा था, "क्या मैं अंदर जाऊँ या नहीं? क्या सोचेगी? मैं अंदर ही चला आया तो क्या हुआ? मैं जा सकता हूँ। आफ्टर ऑल मैं हस्बैंड हूँ उसका। वाह! मिस्टर मल्होत्रा! उसे नहीं पता कि शादी तुम्हारे साथ हुई है। ओके, सो ज्यादा सपने मत देखो और नॉक करो जल्दी से फिर..." अर्थव दरवाजा नॉक करने लगा।


    मिस्टी ने सोचा, "थैंक गॉड! नॉक किया। कितने टाइम लिया नॉक करने में भी!"


    मिस्टी ने पूछा, "कौन है?"

    अर्थव सोच रहा था क्या बोले।

    अर्थव ने कहा, "मैं हूँ..."

    मिस्टी ने अपनी हँसी दबाते हुए पूछा, "मैं कौन?"

    अर्थव ने कहा, "आपके बड़े देवर जी..."

    मिस्टी ने कहा, "है! कितने प्यार से बोल रहे हैं आपके बड़े देवर जी..."

    मिस्टी ने कहा, "तो आप हैं? आप गेट पर क्यों खड़े हैं फिर?" मुँह बनाकर बेड पर बैठ गई। अर्थव झिझकते हुए रूम में आया और सामने मुँह फुलाकर बैठी मिस्टी को देखने लगा।

    अर्थव ने कहा, "मिस्टी, आपसे एक बात करनी है..."

    मिस्टी ने कहा, "क्या है? बोलो।"

    अर्थव ने कहा, "वह... आपकी तबीयत सही है ना?"

    मिस्टी गुस्से में बोली, "हाँ, ठीक है। क्यों? आपने यह सवाल क्यों पूछा?"

    अर्थव ने कहा, "नहीं, वह... सुबह से आप कुछ बोल नहीं रही हैं, चुप-चुप हैं तो मुझे लगा आपकी तबीयत सही नहीं है, सो पूछ लिया।"

    मिस्टी ने कहा, "नहीं, मैं ठीक हूँ। वह आपने कहा था ना मैं बहुत बकबक करती हूँ, तो फिर जबरदस्ती आँखों में आँसू लेकर... तो मैं इसलिए अब... मेरा बोलना किसी को पसंद ही नहीं है तो मैं क्यों बोलूँ? मैं चुप ही रहूँगी अब। एक बार अभिषेक आ जाएगा तब ही बोलूँगी।" फिर फ़ेक रोने लगी, "क्यों चला गया अभिषेक मुझे छोड़कर? बात भी नहीं की मुझसे जाने के बाद। ऐसा होता है? पति जाकर पलटा ही नहीं..."


    अर्थव यह सुनकर और मिस्टी का रोना देखकर बेचैन हो गया और मिस्टी के पास जाकर खड़ा हो गया और मिस्टी के चेहरे से उसके हाथ हटा दिए।

    मिस्टी यह देखकर चौंक गई।

    अर्थव ने कहा, "शशश... बिल्कुल चुप। कोई ज़रूरत नहीं है रोने की। ओके? और कोई ज़रूरत नहीं है चुप रहने की। तुम्हारा जितना दिल करे उतना बोलो। कोई कुछ नहीं बोलेगा।"

    मिस्टी ने अर्थव की आँखों में देखते हुए पूछा, "आप भी कुछ नहीं कहेंगे?"

    अर्थव ने कहा, "नहीं, कभी नहीं कहूँगा।"

    मिस्टी ने पूछा, "क्यों?"

    अर्थव ने कहा, "क्योंकि तुम्हारी आवाज सुनने की आदत हो गई है मुझे। जब तुम नहीं बोलती हो तो सब कुछ सुना-सुना लगता है। आई एम सॉरी। आगे से तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। तुम जितना चाहो उतना बोलो। ओके? बट बोलो। चुप मत रहो।" वहीँ मिस्टी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक रही थी।

    मिस्टी ने कहा, "जितना चाहो उतना बोलो।"

    अर्थव ने कहा, "हाँ, जितना चाहो उतना।" मिस्टी अर्थव से दूर होकर गेट तक गई।

    मिस्टी ने कहा, "वह मेरे पापड़ वाले को! मॉम! ठीक रहती हैं अगर मैं नहीं बोलूँगी तो आप परेशान हो जाएँगे। मैंने कहा नहीं होंगे। मॉम ने कहा होंगे। और देखिए, मॉम जीत गई। आप परेशान हो गए मेरे चुप रहने से। उल्लू बनाया बड़ा मज़ा आया बड़े देवर जी!" यह कहकर वह बाहर भाग गई।

    अर्थव पहले तो कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन जब समझा तो बोला, "मिस्टी! रुको! मैं भी बताता हूँ तुम्हें उल्लू बनाना किसे कहते हैं!" और मिस्टी के पीछे भागने लगा। अब मिस्टी हँसते हुए आगे और गुस्से से भरा अर्थव मिस्टी के पीछे भाग रहा था।

    रूहानी ने कहा, "शायद मिस्टी ने उसे सच बता दिया। अब क्या होगा मिस्टी का? बहुत गुस्से में है वह।"

    यश ने कहा, "वह मिस्टी है। निपटा लेगी वह तुम्हारे मजनू अर्थव मल्होत्रा से। आराम करो।" अब गार्डन में दोनों आगे-पीछे भाग रहे थे।

    अर्थव ने कहा, "मिस्टी! स्टॉप!"

    मिस्टी डरते हुए बोली, "नहीं! आप मुझे मारोगे..."

    अर्थव हैरानी से बोला, "बट मैं क्यों मारूँगा तुम्हें?"

    मिस्टी ने कहा, "हाँ! तब ही तो मेरे पीछे भाग रहे हैं। अगर नहीं मारना तो रुक जाओ, मैं भी रुक जाऊँगी।"

    अर्थव वहीं रुककर बोला, "ओके! रुक रहा हूँ। अब तुम भी रुक जाओ।"

    मिस्टी ने पूछा, "सच्ची!!"

    अर्थव वहीं पर रुक गया। मिस्टी ने कहा, "तो मैं भी रुक गई। यह लो! बट आगे से मुझे बोलने से मत रोकना। प्रॉमिस।"

    अर्थव ने कहा, "पक्का प्रॉमिस..." और प्यार से उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया।

    मिस्टी ने कहा, "गुड।" यह कहकर मिस्टी जाने लगी, बट अर्थव ने मिस्टी के हाथ को कस के पकड़ रखा था।

    अर्थव ने उदासी से कहा, "अभी कहाँ जा रही हो? अभी तो बहुत सारी बातें करनी हैं मुझे..."

    मिस्टी ने पलटकर पूछा, "क्या बात करनी है मुझसे बड़े देवर जी?"

    अर्थव ने कहा, "बताता हूँ। इतनी भी क्या जल्दी है? कौन सा काम करना है? सोना ही तो है। बाद में सो जाना।"

    मिस्टी ने कहा, "ओके। बोलो क्या कहना है।"