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My psycho dear

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Sangita

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" बेरहमी है वो, बेदर्दी से जख्म देते हैं इश्क़ से अश्क को छुके हक से वो केहते है नफरत हमसे करते हैं " बेइंतहा नफरत करता है श्लोक वाणी से ,हर पल दर्द देना आदत है उसकी जख्म देना फितरत में हैं उसकी एक सांस भी उसे जख्म दिये बग...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. My psycho dear - Chapter 1

    Words: 1127

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक बेहद बड़े और खुबसूरत बैंग्लो के गार्डन में दो बच्चे खेल रहे थे एक लड़का जिसकी उम्र दस साल होगी और बच्ची जो छे साल की है, वो दोनों खेल तो रहे हैं पर देखने से लग रहा है जैसे वो लड़का जबरदस्ती उसे खिला रहा है,, वो लड़का बैठा था मगर खेलते हुए वो उठ गया और उस लडकी से कहा उसे पखड़ने को बोल भागने लगा वो बच्ची उसकी बात मानते हुए उठकर चलने लगी मगर वो चस लड़कें के गति को मिला नहीं पारही, वो लडका तेजी से भाग रहा था वो बच्ची उसे रोकनै की कोशिश करते हुए कहने लगी " श्लोक.... रूकिए .. प्ली.. ज" ,, उसकी बात सुन कर भी श्लोक नही रूका बल्कि बोलने लगा "तुम मेरा स्पीड मैच नहीं कर पारही तो इसमे मैं क्यो रूकु? " वो बिना रूके बिना मुड़े ही बोल रहा था उसकी बाते सुन वो बच्ची कुछ बोली नहीं पर जैसे ही कुछ बोलने‌ को हुइ तभी वो अचानक चुप होगई क्योंकि जल्दी चलने के चक्कर में वो गिड़ गई श्लोक को ये एहसास ही नहीं हुआ पर अचानक उसे इस तरह चुप होने जाने से श्लोक ने मुड़ के देखा तो पाया वो जमीन पे गिड़ गई ये देख वो रूक गया और आगे जाने के बजाय उसके पास जाते हुए बोला श्लोक -वाणी तुम्हे चलना नही क्या थोड़ा तेज क्या चली गिड़ ही गई, ये कहते हुए श्लोक उसके सामने चला गया इतने मे वाणी उठकर बैठ भी गई उसके घुटने में चोट लगी है खुन भी रिस रहा था,बेहते खुन को देख श्लोक ने ठंडे भाव से एक शब्द में कहा "उठो..." ये सुन वाणी उठने के बजाय श्लोक बोला "उठो चोट से खुन निकल रहा है.." इसबार श्लोक ने सपाट शब्दों में कहा जो सुन वाणी ने सर झुकाये कहा "नहीं.. मैं ठीक...आ....." उसके आगे की बात जगह हल्की चीख निकल गई क्योंकि श्लोक ने उसके घाव को छुया जिस वजह से वाणी चीख परि,, श्लोक ने अब कुछ कहा नहीं बल्कि उठके उसे भी उठाने लगा वाणी उसे ये करते देख बस इतना ही कह "मैं..." इसके आगे उसे कुछ कहने का मौका नहीं दिये बगैर श्लोक ने कहा "अब दोबारा ठीक हु कहा तो मैं ही उठाके पटक दुंगा " श्लोक की बात सुन वाणी चुप होगई और किसी तरह उठने लगी चलने की कोशिश करने लगी पर चलने में दिककत हो रही थी, श्लोक ने उसे घुरकर देखा और फिर कुछ कहे बगैर ही उसे गोद में उठा लिया वाणी उसके इस हरकत पर भी कुछ बोलीं नहीं क्योंकि वो जानती थी अगर वो कुछ बोलेगी या मना करेगी तो वो फिर कुछ सुना देगा या जैसा उसने कहा वैसा ही कर देगा,इसी वजह से वो चुप रहा,, वाणी प्यारी सी छोटी है शांत और कोमल स्वभाव है मासूम उसके चहरे से झलकता है वही श्लोक का स्वभाव उससे बिल्कुल विपरीत है दस साल की उम्र से ही गुस्सैल , किसी कि भी बात ना मानने बाला, वो बहत जिद्द है , कभी कभी बिना वजह के या छोटी छोटी बात पर चिल्लाना गुस्सा करना आदत है उसकी उसका कोई दोस्त नहीं या ये कहे उसे किसी से दोस्ती करने में दिलचस्पी नहीं सिर्फ एक ही है उसका दोस्त,,, श्लोक वाणी को लिए अंदर आया और फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आया और उसकी चोट साफ कर दबाइ लगाने लगा बेडेंज लगा दिया, वाणी उसके ऐसा करने से वाणी हैरानी से देखने लगी जब श्लोक ने नजरें उठाये उसे देखा तो वाणी ने कहा "थैक्यु " इसपर श्लोक कुछ बोला नहीं बल्कि हल्का सा मुस्कुराकर उसके गाल चीखें,, अचानक हाथ में तेज दर्द के कारण वाणी अपने बचपन के यादों से बर्तमान में लौट आइ उसने अपने हाथ की तरफ देखा और हौलै से छुया हल्का सा छुते ही वो दर्द से करहा उठि उसके आखों से बहते अश्क ऊसके जिस्म के जख्म को और दिल के जख्म को भी बया कर रहे हैं मगर ना उसके पास बाहरी जख्म की दवा है ना दिल के जख्म के लिए, वो घुटने में चहरा छुपाये रोने लगी उसकी रोते हुए काफि देर होगये आसु थम कर रोते हुए उसकी आखं लग गई कुछ ही देर के अंदर अचानक उसे सोते हुए ही अपने बालों में किसी के हाथ का स्पर्श महसूस हुआ जिस्से उसकी आखें कुल गई ऊसके आखों में नीदं नहीं है अब उसने चहरा ऊपर कर देखा तो पाया उसके चहरे के बिल्कुल करीब बही चहरा है वही आखें है जिन आखों पहले परवाह होती पर अब इन आखों में अपने लिए हर पर गुस्सा होता नफरत होती ये आखें हैं श्लोक की,, वाणी के चहरे पर इस वक्त कोई भी नहीं है श्लोक के हाथ उसके बालों में कसते हुए उसके गर्दन तक खिसकते हुए आगया अब वो बोला श्लोक -वहा तुम्हे मेंने पढ़ने के लिए भेजा इश्क़ मोहब्बत करने तो नहीं भेजा था ना? (अब गर्दन पर पकड़ कसते हुए बोला) नहीं ना? (वाणी ने कोई जबाब नही दिया वही श्लोक अपनी बात आगे बढा़ते हुए बोला ) तो दोबारा उसके साथ या किसी और के साथ फिर कभी नजर आई तो दोनों की जान ले लुंगा (वो जैसे जैसे आगे बात बढ़ा रहा था वैसे उसकी पकड़ उतनी ही कसती जारही थी वो अपनी कही बात सोच उसी के साथ एक और बात जोड़ते हुए बोला) आ पर मैं तुम्हारी जान नहीं ले सकता वजह तो जानती हो न तुम? (उसके सबाल पर भी वाणी के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, उसे दर्द हो रहा था मगर फिर भी चुप रहा उसे चुप देख श्लोक ने अपने सबाल पर उसके चहरे के करीब जाके बोलने लगा) जैसा मेने कहा दोबारा कभी किसी और के करीब मत जाना हम्म...? (ये बोलते हुए उसके आखो मे खीची रोष की रेखायें और तेज होगई उसने अचानक वाणी के कलाइ को पकड़ पीठ के पीछे बेरहमी से मरोड़ दिया उसे दीवार से लगा दिया जिस वजह से वाणी की पीठ अब श्लोक की तरफ होगई और उसका चहरा दीवार से लगने लगा श्लोक उसके करीब जाकर कहने लगा ) तुम कभी किसी और के करीब नहीं जा सकती ना तुम्हें किसी से प्यार करने का हक़ है जानती हो क्यों ? क्योंकि तुमने मेरा सब कुछ छीन लिया और मेरे प्यार को छीन लिया, तुम्हे हक़ नहीं किसी से प्यार करने का हक़ नहीं ना तुम किसी के प्यार पाने की हकदार हो तुम्हें हक़ हैं तो सिर्फ मुझसे प्यार करने का और बदले में मेरी नफरत पाने का सिर्फ नफरत की हकदार हो तुम सिर्फ नफरत... उसके ऐसे बेरहमी से पकड़ने से दर्द की वजह से वाणी के आसूं बेतहाशा झड़ने लगे, क्रमश.... (मेरे प्रिय रिडर्स मैं स्टोरी मेनिया पर नइ हु मगर मैं प्रतिलिपि की थोड़ी पुरानी राईटर हु और यहा हु इस प्लाटफर्म पर ये मेरी पहली काहानी है तो पढ़कर रेटिंग कमेंट देकर प्लीज जरूर जरूर बताये कैसा लगा पहला एपिसोड)

  • 2. My psycho dear - Chapter 2

    Words: 1071

    Estimated Reading Time: 7 min

    श्लोक की कही बातो से बेरहमी पकड़ने से वाणी के आखों से आसूओं की धारा से बह ने लगी,, उसकी आसूओं की धारा और अचानक और तेज हो गई जब उसके चहरे को एक हाथ से पकड़ श्लोक उसके होंठो पर अपने होंठ रख बेर्ददी और बेरहमी से चुमने लगा उसकी पकड़ जरा सी भी ढिली नहीं परि ना उसके गालो पे ना हि उसके होंठो पे, बल्की श्लोक के होंठो की पकड़ वाणी के होंठो कसती जारही थी और गहरी होती जारही थी, वाणी को अब दर्द होने लगा पर उसमें इतनी भी ताकत नही बची के वो उसे धक्का दे सके या झटपटा सके , श्लोक को कोई फर्क नहीं पर रहा बेरहमी से उसके होंठो को चुमते हुए उसके दांतो ने वाणी के होंठो पे तेजी से काट लिया वाणी के होंठो से चीख़ तो निकली मगर वो चीख होंठो से बाहर नहीं आपाई,, कुछ पलो के बाद श्लोक ने उसके होंठो से अपने होंठो को अलग कर दिया तब जाकर वाणी की उखरती सांसें को सम्हालने के लिए लम्बी लम्बी सांसें भरने लगी,, श्लोक ने उसके हाथ और गाल पर से हाथ हटा लिया वाणी के होंठो से निकलते खुन को अपने अंगुठे साफ करते हुए बोला "मेने जो भी कहा वो याद रखना अगर दोबारा ये सब मुझे दोहराना परे तो इस्से भी बुरा अंजाम सहने के लिए तय्यार रहना",,वो उसकी बात सुनकर भी कुछ कह नही पाइ ना ही नजर उठाये देख पाइ,, वही अपनी बात खत्म करते हुए श्लोक को महसूस हुआ वाणी के होंठो से जरा सा खुन उसके होंठो पे भी लग गया ये महसूस करते ही वो झुका और वाणी के कंधे के तरफ के कपड़े के हिस्से से अपने होंठो को साफ कर कुछ बोले बगैर ही उसे छोड़ चला गया,, वाणी उसके जाते ही एकदम से नीचे बैठ गई और अब वो जोर से रोने लगी रोते हुए वो कहने लगी "क्यों....क्यों करते हैं ऐसा...? क्यों रखते थे मुझे बचपन में....पहले इतना सम्हाल के सबसे छुपाकर ?.... क्यों एक... छोटी सी चोट भी लगने नहीं देते ताकी अब खुद ही इतना जख्म दे सके एक .....जख्म भरता नही के....एक नया जख्म...दें देते है..क्यों करते ऐसा....." कहते हुए वो अचानक चुप होगई कहना तो काफी कुछ है मगर दर्द की वजह से उसके शब्द रूक गये इसके बजाये फिर से तेजी से रोने लगी ,, _________________________ हॉल बैठा में बैठे श्लोक के चहरे पर अब को खास भाव नहीं है उसने आखें बंद कर लिया,, कुछ मिनट बाद उसने एक सर्वेंट को बुलाये कुछ कहा और वो उसकि कही बात मानते हुए चली गई, वो सर्वेंट वाणी के कमरे में आगई उसने उस्से सिर्फ इतना ही कहा के श्लोक ने उसे खाने के लिए बुलाया है ,उसे खाने का जरा सा भी मन नहीं मगर वो मना नही कर सकती उसे ना चाहते हुए भी जाना होगा वो किसी तरह उस सर्वेंट के सहारे उठी मगर उस्से ठीक से चला नहीं जारहा , उसकी हालत देख वो सर्वेंट उसे पकड़े धीरे धीरे चलने लगी , हॉल के करीब आते हुए वाणी ने अब उसे छोड़ने को कहा क्योंकि वो जानती है अगर ये श्लोक ने देखा तो फिर से चिल्लायेगा, वो सर्वेंट उसके पीछे ही थी वाणी किसी तरह चलकर टेबल तक पहची उसने एकनजर देखा श्लोक शांत बैठा है नजरें हटाये वो अब बैठने को हुइ तभी श्लोक ने दो शब्दों में कहा "यहाँ आओं " वाणी उसकी बात सुनकर भी दूसरी तरफ बैठने को हुइ तभी उसने इसबार कुछ कहा नहीं बल्कि अपना हाथ बढ़ाये उसे पकड़ खीचके अपनी गोद में बैठा लिया उसके ऐसे खीचने से खुद को सम्हाल नहीं पाइ, वाणी ने उठने की कोशिश की मगर श्लोक ने उसे बैठाते ही उसके कमर पे पकड़ कस दिया वाणी कुछ कह नही पाइ उसने चहरे दुसरी तरफ घुमा लिया श्लोक ने नजरें घुमाये बहा खड़े सर्वेंट को देखा उसके देखने से वो सब चले गये,, श्लोक वाणी के साथ काफी दिनों के बाद खा रहा है रोजाना दोनों अगल अगल खाना खाते है, श्लोक ने एक निबाला लिया और वाणी के चहरे को गालो ‌से पकड़ अपनी ओर घुमाया गालो को दबाने के वजह से मुह हल्का सा खुल गया तो उसने उसके मुह में खाना डाल दिया वाणी बस खुली आखो से उसे देखती रही श्लोक के देखते हुए वो फिर अपनी बीते यादों में खो गई , , , आठ साल की छोटी सी वाणी को किसी और के किये गलती कि वजह से स्कूल में टीचर ने पनिशमेंट दिया था, स्कूल खत्म होने तक वाणी को बाहर खड़ा रहना होगा उसकी सजा ये थी ये बात श्लोक से ज्यादा देर तक छुपी नहीं , तब वो बिना रूके टीचर के पास चला गया वो बहत गुस्से में था तब उसने सिर्फ हाथ ही नहीं उठाया इसके बजाये उसने टीचर को धमकी तक दि , बारह साल के बच्चे में इतना गुस्सा देख टिचर तक हैरान थे,उसकी वजह से उन्होंने वाणी को छोड़ दिया जिस की वजह से उसे सजा मिली थी उस बच्चे से मांफी मंगबाइ वाणी से, उसने उस बच्चे को मारा भी था बुरी तरह, इसके बाद अगले दिन श्लोक के माता पिता को स्कुल मे बुलाया गया था वही उसके इन हरकतों के वजह से वाणी डर भी गई और उस्से नाराज भी हो गई और उस्से नाराज हो कर वो स्कुल फिल्ड में जाकर कही छुप गई काफी मिनट ढुंढने के बाद उसे वाणी मिल गई , काफी देर बीत चुके थे मगर तब तक उसने कुछ खाया नही था , ये जानने के बाद श्लोक ने उसे खिलाया मगर वाणी खाने को तय्यार नहीं थी तब उसने अपने किये हरकतो की वजह से माफी मांगी थी उसके बाद ही वाणी ने कुछ खाया ,, वो बचपन के बाते यादों में पुरी तरह खो चुकी थी मगर जब उसके कानों से श्लोक की आवाज टकराइ तब जाकर वो होश में आइ वो कह रहा था "मुंह खोलो " उसके इन दो शब्दों को सुनकर वाणी ने अब कुछ कहे बगैर मुंह खोला इसके बाद श्लोक उसे खिलाने लगा और खुद भी खा रहा था, उसे खिलाने के बाद श्लोक उसकी आखों में देखने लगा देखते हुए उसकी नजरें उसके गले और सीने से लिपटे बालो की ओर गई उन बालो को हटाये इतने देर बाद अब चुप्पी तोड़ते हुए बोलने लगा "तुम मेरी सिर्फ मेरी" इतना बोल उसकी आखों में देखते हुए आगे कहने लगा "तुम्हारे जेहन में तो मेरा नाम लिखा हैं ही तो क्यों ना तुम्हारे जिस्म पे भी मैं मेरा नाम लिख दु " ,, क्रमश......

  • 3. My psycho dear - Chapter 3

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    वाणी की आखों में देखते हुए श्लोक ने कहा श्लोक -तुम मेरी हो सिर्फ मेरी तुम्हारे जेहन में तो मेरा नाम लिखा हुआ है ही तो कयो ना जिस्म पर भी मेरा नाम लिख दु उसके कहे इन शब्दों को सुन वाणी अंदर तक डर गई मगर वो पुरी तरह उसके बातों का मतलब समझती उसके पहले ही अचानक उसके मुह से चीख़ निकल गई क्योंकि अब तक श्लोक दूसरे हाथ से जिस चाकू से खेल रहा था उसे उठा कर उसके सीने पे कुछ लिखने लगा, दर्द की वजह से उसके कंधे में चहरा छुपाये पुरी ताकत से वाणी ने उसपर पकड़ कस दिया पर श्लोक पर कोई फर्क नहीं पर रहा, मगर अचानक जब उस के कानों से वाणी की चीख़ टकराइ तब उसे एहसास हुआ के वो क्या करने बाला था, उसके हाथ अब रूक गये वो स्थिर होगया मगर वही उसे इस तरह रुकता महसूस कर वाणी ने नजरें उठाये उसकी ओर देखा और कसने लगी,,"हर पल मारने से अच्छा एक बार में ही...." इन शब्दों को कहते हुए श्लोक के हाथ पर अपना हाथ रख उसके हाथ में पकड़ी चाकू को दबाना चाहा मगर वो ऐसा कर नहीं पाइ,, उसके कहे शब्द अधूरे रह गये और उसने जैसा करना चाहा वो भी नहीं कर पाइ क्योंकि उसके पहले ही श्लोक ने उसके हाथ से चाकू खीचकर छटक दिया और इसी के साथ वाणी के गाल पर जोर से थप्पड़ मारा, दोनों के बीच सन्नाटा छा गया श्लोक ने एक शब्द नहीं कहा वाणी ने आसूंओं से भरी पलको से उसे देखे बगैर ही उसकी गोद से उतर चली गई उसने उसे दोबारा रोका नहीं,, उसे जाते देख श्लोक ने नजरें झुकाये अपने हाथ को घुरने लगा उसने एक बार फिर अपने उसी हाथ में चाकू लिया और चाकू के सीरे पे अपनी पकड़ कस दिया कुछ ही पलो में उसके हाथ से खून टपकने लगा पर उसके चहरे पे दर्द के कोई भाव नहीं चंद लम्हों पहले की अपनी हरकत को याद करते हुए उसने और कसके पकड़ पलके मीच़ लिया,, वही वाणी अपने कमरे में आते ही एकदम से नीचे बैठ गई दर्द तो बेहद हो रहा था मगर उसके मानो आसूं भी सूख गये वो उठकर शीशे के सामने चली गई, उसने अपने बाल हटाये और अपने सीने की तरफ देखा जहा श्लोक ने अपना लिखा था वो पुरा नही लिख पाया सिर्फ अपने नाम का पहला अक्षर यानी S ही लिख पाया, वाणी ने हाथ बढ़ाये उस जगह को छुना चाहा पर छुने से पहले ही उसके हाथ रुक गये उसने अपने हाथ को बासप खीच लिआ ,, वक्त बढ़ने लगा धीरे धीरे रात की चादर गहरी होने लगी मगर श्लोक की आखों में नींद नहीं , कुछ देर तक बैसे ही बैठे रहने के बाद वो उठकर कमरे से निकल गया, श्लोक चलकर वाणी के कमरे में आगया, आते ही उसने देखा वाणी फर्श पे सो रही है ये देखते ही वो बेआवाज़ उसके पास गया और उसे बाहों में उठाये बेड की ओर बढ़ गया बेड पर धीरे से लेटा कर उसके पास बैठ उसके चहरे को देखने लगा, वाणी के गाल पे श्लोक के ऊंगलीयो लाल पर चुके निशान साफ नजर आरहे है,, उसके चहरे को देखते हुआ श्लोक की नजरें उसके चहरे से खिसक वाणी के सीने पे चली गई उसका लिखा अक्षर लाल पर चुका था खुन फिल्हाल थम गया पर खुन के निशान अभी भी बिल्कुल ताजे है उसे देखते हुए उसने हाथ से उस जख्म को छुकर नहीं देखा बल्कि झुककर वहाँ अपने होंठ रख दिये फिर होंठ हटाये, अपने साथ जो दबाइ ले कर आया था वो उस जगह पर लगाने लगा, मगर उसने अपने हाथ जख्म पे उसने कुछ नहीं लगाया ,, दबाइ लगाने के बाद उस जगह श्लोक हौले से फुक मारा और फिर दबाइ साइड में रख, जहा दबाइ लगाइ वहा से जरा सा हटके हमेशा की तरह वाणी के ऊपर आकर सीने पे सर रख वो भी लैट गया, अब जाकर श्लोक की पलके बंद हुइ, उसकी आखें तो बंद हुइ पर वाणी आखें खुल गई वो सोई ही नही थी बस उसने पलके मीची हुइ थी उसे सब महसूस हुआ श्लोक के कदमों की आहट, बाहों में उठाकर लेटाना, श्लोक की नजरें भी अपने ऊपर महसूस कर पारही थी उसके ठंडे होंठो का स्पर्श ऊंगलीयो की छुयन, दबाइ की जलन इस सब के बाबजूद वो जरा सी नहीं हिली,,, उसने हल्का सा सर उठाकर श्लोक को देखा जो उसके सीने पे सर रख उसे पकड़े सुकून से सो चुका था उसे ऐसे सोते देख दर्द के बाबजूद वाणी के होंठो पे एक अजीब सी सुकून भरी लकीर आगई , , उसने देखने के बाद वाणी की शांत खाली नजरें सिलींग को एकटक ताकने लगी अचानक उसे अपने हाथ में कुछ गिला गिला सा महसूस हुआ, उसके हाथ में श्लोक का हाथ गया, वाणी उसका हाथ पकड़ उपर कर देखा तो पाया श्लोक के हाथ गहरा घाव है उसमें से खून बहकर अब थम चुका ,, उसके घाव को देख वाणी नजरें इधर उधर घुमाये कुछ ढुंढने लगी उसके जख्म पे बांधने के लिए मगर उस कुछ भी नहीं मिला, साथ ही एक ख्याल आया जो इंसान उस्से नफरत करता है, उसे गुस्सा निकालने का जरिया बनाता है हर पल हर वक़्त दर्द देता है जख्म देता है एक जख्म भरने से पहले ही नया जख्म दे देता या पुराने जख्मों को कुड़ेद देता उस इंसान के जख्म को देख उसे अजीब क्यो लग रहा है क्यों बुरा लग रहा है, ये सोचते ये ख्याल आते ही उसने चहरा फेर आखें बंद कर लिया,, मगर अचानक उसकी पलकें खुल गई जब श्लोक ने सोते हुए ही वाणी के हाथ को अपने ऊपर रख दिया, श्लोक को देख लग रहा है वो गहरी नींद में सोते हुए उसने ऐसा किया वाणी अब उसे देखने लगी श्लोक के इस हरकत कि वजह ये है के वाणी उसे पकड़ नहीं रही ना ही उसे छु रही थी उसके दोनों हाथ दोनों तरफ थे इसीलिए उसने ऐसा किया या शायद यू ही, मगर वाणी ने हाथ नहीं हटाया बल्कि पहले जैसे ही चहरा घुमाये कसकर पलके मीच़ सोने की कोशिश करने लगी,, क्रमश....

  • 4. My psycho dear - Chapter 4

    Words: 529

    Estimated Reading Time: 4 min

    धीरे धीरे रात की चादर हटने लगी , सूलज ने बाहे फैलालिया वाणी की नींद खुल गई उसने नजरें घुमाये अपने आसपास देखा तो खुद को अकेला पाया यानी श्लोक हमेशा की तरह जा चुका था,वो उठके बैठ गई उठके कपड़े लेकर फ्रेस होने चली गई, कुछ मिनट के बाद वाणी बापस आगई, तय्यार होकर वो शीशे के में खुद को देख बालों को बांधने लगी उसने बालों को चोटी बना लिया वो आज भी वैसे ही है जैसे बचपन में थी गोल और प्यारा चहरा, बड़ी बड़ी आखें जिन आखों में मासूमियत है आज भी मगर अब अक्सर दर्द रहता है आसूं खालीपन होते,छोटा सा नाक वो हल्के बड़े गुलाबी होंठ कभी सजती नहीं है उसकी सादगी ही उसकी खुबसूरती है ,, उसने अपने बालो को बांध लिया उसके बाल पहले बड़े थे एक दिन उसने काच तोड़ते अपने बालों को काट दिया था इसकी वजह भी श्लोक ही था, वो जब भी बाहर जाती पुरे ढके कपड़े पहनती ताकी उसके जख्म के निशान बहत गहरे थे वो नहीं ये कोई और जाने या देखें ,, उसे सिर्फ कॉलेज जाने की इजाजत है इस्से ज्यादा कही और नहीं ऐसा भी कह सकते हैं उसने घर से कॉलेज तक जाती इस्से बाहर उसने बाकी दुनिया देखा ही नहीं कभी श्लोक कही किसी पार्टी में ले जाता जहाँ वाणी को जाने का मन भी नहीं करता वो उसे जबरदस्ती ले जाता, मगर अब तो ऐसा भी नहीं होता अब वो उसे कहि नहीं ले जाता वाणी कॉलेज में भी किसी से बात नहीं करती कोई नहीं जानता उसके बारे में, वो हमेशा शांत चुपचाप अपने आप में रहती सबके लिए वो कुछ अजीब और रहस्यमय है, वो सिर्फ एक लड़की से बात करती सिर्फ उसी के साथ अपने गम भुलाके मुस्कुराती ,, तय्यार होकर वाणी अपने कमरे से निकल गई और कुछ ही मिनट के अंदर वो दुसरी तरफ आगई वही डाइनिंग टेबल पे बैठे श्लोक को अनदेखा कर कुछ कहे बिना और खाये बगैर ही निकल गई श्लोक ने नजरे घुमाये उसे देखा मगर रोका नहीं वो कभी अभी ऐसे ही बगैर खाये ही चली जाती मगर कभी कभी कहना गलत होगा रोजाना ही ऐसा ही करती वो, जब वाणी बगैर खाये जाती तो श्लोक भी कहा खा पाता आज भी वही हुआ वो प्लेट में चम्मच घुमा रहा था कभी अगर मन करता तो थोड़ा सा खा लेता या फिर बिना खाये ही चला जाता,, आज भी वही हुआ चम्मच घुमाये हटा लिया और अपना फोन निकाल किसी को कॉल करने लगा, कुछ कहकर वो उठ गया,, ____________________ वाणी कॉलेज पहच इधरउधर कही ना देख अपनी जगह पर जाकर बैठ गई उसके बैठने के बाद ही एक लड़की बैठते हुए बोली "वाणी यार तु अब आरही है मैं कबसे तेरे इंतज़ार मैं इधर उधर घुमे जारही थी ऊपर से भुख भी लगी है" उसकी बाते सुन वाणी अब बोली "तिथि तु फिर से खाके नहीं आइ?" इसके जबाब में तिथि बोलने लगी "नहीं न जल्दी जल्दी आने के चक्कर में खा नहीं पाइ चलना मुझे कुछ खाना है तु मुझे कम्पनी देना,"उसकी ये जबाब सुनकर उसने कहा "जितनी देर से तु मेरा इंतजार कर रही थी उतने वक्त में तो तु घर से ब्रेकफास्ट करके आ सकती ()"