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नादानियां मेरे यार की

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Sanyogita

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प्यार कभी परफेक्ट नहीं होता, लेकिन जब दो विपरीत दिल टकराते हैं, तो कहानी बनती है। विराज, 24 साल का घुंघराले बालों वाला हैंडसम लेकिन शान्त और गंभीर लड़का, जो रेस्टोरेंट में काम करता है। दूसरी तरफ है 19 साल का चुलबुला, मासूम और नखरीला प्रीत,...

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. नादानियां मेरे यार की - Chapter 1

    Words: 1711

    Estimated Reading Time: 11 min

    जोगिन्दर रेस्टोरेंट

    सुबह का समय था, हमेशा की तरह इस रेस्टोरेंट में काफी रौनक थी। गोल मेजों पर लोग बैठे हुए थे और वेटर उनसे ऑर्डर ले रहे थे। कुछ वेटर हाथ में ट्रे लिए घूम भी रहे थे। तभी कॉलेज के तीन लडके कंधे पर बैग लटकाए इस रेस्टोरेंट में दाखिल हुए।

    “यार बिना चैन कहाँ रे! यार बिना चैन कहाँ रे! सोना नही चांदी नही यार तो मिला.....” ये गाते हुए उन्नीस साल का क्यूट सा प्रीत चेयर पर बैठ गया।

    उसका दोस्त रवि भी उसके पास दूसरी चेयर पर बैठते हुए बोला, “फिलहाल तो तुझे कोई भी ना मिला इसलिए ये गाना बंद कर और कुछ ऑर्डर कर, बहुत भूख लगी है।”

    दूसरी तरफ से उसका एक ओर दोस्त चित्रांश भी चेयर पर बैठते हुए बोला, “अरे कोई है यहाँ ऑर्डर लेने वाला?”

    तभी एक वेटर वहाँ आया और विनम्र भाव से बोला, “क्या चाहिए आप लोगों को?”

    रवि ने उसकी तरफ देखकर कहा, “मेरे लिए वेज पित्ज़ा, एक्स्ट्रा चीज भी डालना उसमें।”

    चित्रांश बोला, “मेरे लिए पनीर टिक्का, मसाला वाला।"

    प्रीत बोला, “मेरे लिए अमेरिकनो विद ब्राउनी केक।”

    वेटर उन तीनों का ऑर्डर लेकर चला गया।

    प्रीत ने अपना मोबाईल निकाल लिया जिसे देख रवि आश्चर्य से बोला, “न्यू फोन!” चित्रांश भी आँखें फाडे देख रहा था क्योंकि इस महीने में ये उसका दूसरा फोन था।

    प्रीत ने बडी ही शान से कहा, “मेरे चाचा ने दिलाया है।”

    चित्रांश ने नजरें सिकोडीं और पूछने लगा, “फिर वो पहला वाला...?”

    प्रीत ने दुबारा शान दिखाते हुए कहा, “वो भी चाचा ने ही दिलाया था बट जब ये न्यू मॉडल आया तो मैंने कहा ये चाहिए तो उन्होंने दिला दिया।”

    रवि जिज्ञासा भरे भाव से बोला, “तुझे हर चीज तेरे चाचा ही दिलाते हैं, पापा कुछ नही दिलाते।”

    प्रीत मुहँ बनाते हुए बोला, “पापा को अपनी दूसरी बीवी और उस मच्छर बेटे से फुर्सत मिले तब तो मुझ पर ध्यान देंगे न, बट मुझे भी उनकी कोई परवाह नही, मेरे पास चाचा हैं जो मेरे सबकुछ हैं।”

    ये सुनकर रवि और चित्रांश की भौहें ऊँची हो गई। तभी वो वेटर उन तीनों का ऑर्डर ले आया और टेबल पर रख दिया। रवि और चित्रांश तो स्वाद ले लेकर अपना वेज पिज्जा और पनीर टिक्का खा रहे थे। प्रीत ने ब्राउन केक खाकर बुरा सा मुहँ बनाया, “ये क्या है?”

    रवि और चित्रांश खाते-खाते रुक गए।

    “क्या हुआ? ब्राउनी केक ही तो है जो तूने ऑर्डर किया था!” रवि उससे बोला।

    प्रीत बुरा सा मुहँ बनाए उस केक को प्लेट में रखते हुए बोला, “ये केक है! इसे केक कहते हैं! इसे अच्छा तो मेरे चाचा बनाते हैं।”

    “तो फिर यहाँ क्यों आए हो?”

    यह आवाज सुनकर प्रीत ने सामने देखा तो एक चौबीस साल का लडका हाथ बांधे खडा था। उसके चेहरे पर गंभीर भाव थे। उसे देख रवि ने धीमी सी आवाज में प्रीत से कहा, “ये विराज चौहान हैं, लास्ट ईयर ही हमारे कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुऐशन करके निकले हैं।”

    दूसरी तरफ से चित्रांश भी बोला, “वो है न फर्स्ट ईयर में शिवांश! उसके बडे भाई हैं ये।”

    प्रीत ने बेपरवाह होकर कहा, “तो मैं क्या करूँ? ये चाहे किसी के भी बडे भाई हों, मेरे चाचा से तो बडे नही हैं न?” रवि और चित्रांश ने अपना सिर पीट लिया।

    सामने खडा विराज अब चलते हुए उसकी ओर आया। उसने वो ब्राउनी केक वाली प्लेट और अमेरिकनो कॉफी उठाते हुए गंभीर आवाज में कहा, “जो इस कॉफी और केक की इंसल्ट करे उसे मैं अपने रेस्टोरेंट में बर्दाश्त नही कर सकता, निकलो यहाँ से।”

    प्रीत भी उठकर बोला, “ओके, जा रहे हैं, मुझे भी कोई शौक नही है आपके इस रेस्टोरेंट में बैठने का, मेरे चाचा इससे भी बडा रेस्टोरेंट खोल सकते हैं मेरे लिए।”

    रवि और चित्रांश का मन तो टेबल पर सिर पीटने का हो रहा था कि ये लडका अपनी चाचा पुराण कब बंद करेगा?

    विराज ने कुछ पल प्रीत को बडे ही गौर से देखा फिर उस केक की चॉकलेट पर हल्के से उंगली लगाकर प्रीत के गाल की तरफ हाथ बढाते हुए बोला, “ओके, जिस दिन तुम्हारा रेस्टोरेंट खुल जाए, उस दिन इनवाइट जरूर करना मुझे, स्पेशली ब्राउनी केक जरूर खाऊँगा विद अमेरिकनो।” उसने प्रीत के गाल पर हल्के से वो उंगली रख दी। प्रीत को पता भी नही चला कि उसके गाल पर अब चॉकलेट लग चुकी है।

    प्रीत ने चिढकर विराज का हाथ हटाते हुए कहा, “ये क्या हरकत है? हाथ दूर रखो वरना अगर मेरे चाचा को पता चल गया तो तुम्हारे हाथ तोड देंगे।”

    अब तो विराज को भी उसकी इन बातों पर मन ही मन हँसी आने लगी थी। मतलब, क्या ही लडका है? कुछ ज्यादा ही प्यार है इसे अपने चाचा से। प्रीत अब जाते हुए बोला, “तुम दोनों चल रहे हो या नही? या फिर मैं अकेला कॉलेज जाऊँ?”

    रवि और चित्रांश ने जल्दी-जल्दी अपना पित्ज़ा और पनीर टिक्का मुहँ में ठूंस लिया। उसके बाद वो दोनों उठे और विराज से बोले, “सॉरी विराज सर! उसकी बातों को दिल से ना लगाना।”

    प्रीत दरवाजे तक जाते हुए बोला, “कोई मेरी बातों को दिल से लगाए या फेफडे-किडनी से, मुझको कोई फर्क नही पडता और तुम दोनों चल रहे हो या मैं जाऊँ?”

    “अरे आ रहे हैं चाचा के भतीजे!” वो दोनों चिल्लाते हुए उसके पीछे भाग गए।

    पीछे खडा विराज मुस्कुरा दिया और अपने-आप से बोला, “बातें तो दिल पर लग चुकी हैं।”

    ************

    कॉलेज के सामने प्रीत की जीप आकर रुकी जिसमें रवि और चित्रांश भी थे। तभी उनकी जीप के आगे ही एक बाईक आकर रुकी। उस बाईकर ने अपना हेलमेट उतारा और अपने कानों तक आते घने बालों को गर्दन इधर-उधर कर हिलाने लगा।

    उसे देख प्रीत मुहँ बनाते हुए बोला, “ये भी ना जाने कौनसे एटीट्यूड में रहता है?”

    पास बैठा रवि बोला, “शहर के टॉप बिजनेसमेन चन्द्र सिंह राठौड का बेटा है वो, एटीट्यूड में तो रहेगा ही।”

    चित्रांश ने प्रीत से मजाकिया अंदाज में कहा, “तू नही रहता एटीट्यूड में, अपने चाचा के दम पर।”

    “ये तो सूनियो की टू-कॉपी हैं” सामने शिवांश बाईक पर से उतरते हुए बोला।

    रवि और चित्रांश जोर से हँस पडे। प्रीत ने गंभीर भाव से उन दोनों को घूरा और सामने खडे शिवांश को जवाब देते हुए बोला, “अगर मैं सूनियो की टू-कॉपी हूँ तो तुम नोबिटा हो, जिसे आलस के सिवाय कुछ नही आता।”

    उसका जवाब सुनकर रवि और चित्रांश का हँसना बंद हो गया।

    शिवांश भी उसे जवाब देते हुए बोला, “बट मेरे पास भी एक डॉरेमॉन है जिसके पास हर प्रोब्लम का सोल्यूशन है, तुम्हारे पास क्या है?”

    प्रीत तुरंत बोला, “मेरे पास चाचा हैं।”

    रवि और चित्रांश ने अपना सिर पीट लिया। लेकिन शिवांश को हँसी नही आई, वो उससे कहने लगा, “जिस दिन से मैंने कॉलेज में कदम रखा है, तुम्हारे मुहँ से डेली सुन रहा हूँ, मेरे चाचा ये, मेरे चाचा वो, मेरे चाचा फलाना, मेरे चाचा ढिमका...आखिर हैं क्या वो?”

    **********

    पर्वत बॉक्सिंग क्लब

    कुछ लडके इस बॉक्सिंग क्लब के बाहर कचरे की तरह आकर गिरे, मानो किसी ने उन्हें अंदर से फेंका हो। सारे के सारे सडक पर पडे दर्द से कराह रहे थे। आने-जाने वाले लोग भी रुक गए।

    “सालों, कुत्तो, हरामियों...मेरे क्लब में आकर मेरे को ही आँखें दिखाते हो!”

    अट्ठाईस साल का पर्वत गुस्से में चिल्लाता हुआ बाहर आया। वो इस वक्त ब्लैक लॉअर और व्हाईट बनियान में ही था। उसकी भुजाओं की मासपेशियां उभरी हुई थीं और नसे गुस्से में तन रही थीं। पसीने से भीगे बाल माथे पर चिपक रहे थे। वो उन सब लडकों पर खंजर की तरह अपनी उंगली तानते हुए बोला, “फूट लो यहाँ से, वरना श्मशान जाने के लिए कंधा भी नही मिलेगा।”

    वे सारे डर के मारे वहाँ से दुम-दबाकर भागे। लेकिन एक ढींट उठते हुए बोला, “तू अभी जानता नही है पर्वत, हम कौन हैं? तुझे तो...” वो आगे कुछ बोलता उससे पहले ही पर्वत ने उसे उठाकर सामने आ रही कार के बोनट पर पटक दिया। वो कार एकदम से रुक गई और वो लडका दूसरी साइड गिर गया।

    उस कार में से एक शख्स गुस्से में बाहर निकला और पर्वत पर चिल्लाया, “व्हॉट द हैल? क्या हरकत है ये?”

    पर्वत ने उस शख्स की तरफ देखा, जिसने बिजनेस थ्री पीस सूट पहना था, उसे देखकर वहाँ खडे लोग आपस में बोले, “चन्द्र सिंह राठौड!”

    पर्वत ने सामने खडे चन्द्र से कहा, “दिख नही रहा, इस पापी को सजा मिल रही है” उसने वहाँ गिरे लडके की ओर इशारा किया।

    “मेरी कार के बोनट पर?” चन्द्र ने सख्त होकर कहा।

    पर्वत बेपरवाह होकर बोला, “अब मेरे को क्या मालूम किसकी कार? मैंने इसे उठाकर पटका तो सामने से आप कार लेकर आ गए, गलती खुद ने की और इल्ज़ाम मुझ पर..”

    “बडे बदतमीज हो!” चन्द्र ने तल्खी भरे लहजे में कहा।

    पर्वत बडी सी मुस्कान चेहरे पर लाकर बोला, “बचपन से, वो क्या है कि तमीज सिखाने वाले बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए। लेकिन आप जैसे शरीफ लोग भी कुछ खास तमीज वाले नही होते हो, ऊपर तो शरीफाई का चोगा पहनते हो लेकिन अंदर से निहायती बेशर्म होते हो..”

    चन्द्र ने गुस्से में उस पर हाथ उठा लिया जिसे पर्वत ने मजबूती से पकड लिया और उसकी आँखों में झांकते हुए बोला, “नही अंकल, ये गलती ना करना वरना अपनी कार के बोनट पर आप खुद पडे हुए मिलोगे।”

    चन्द्र का चेहरा गुस्से में ओर भी सख्त हो गया। पर्वत ने उसका हाथ झटका और पलटकर वहाँ से अपने बॉक्सिंग क्लब की ओर चल दिया। उस पूरी गली में सन्नाटा छा गया।

    चन्द्र पर्वत को जाते हुए देखता रहा, उसका चेहरा काफी कठोर हो गया था, “बदतमीज लडका!”

    चन्द्र ने काफी गुस्से में अपनी कार का गेट खोला और अंदर बैठ गया। उसने कार स्टार्ट करते-करते भी उस बॉक्सिंग क्लब की ओर नजर डाली। पर्वत क्लब के दरवाजे तक आकर रुका और पलटकर देखा। चन्द्र भी कठोर नजरों से उसे ही देख रहा था।

    पर्वत ने उसे चिढाने वाले अंदाज में अपना हाथ ऊपर किया और उसे हिलाते हुए बोला, “बाय बाय अंकल जी! किस्मत ने चाहा तो फिर मिलेंगे।”

    चन्द्र को अब उसके मुहँ नही लगना था। उसने सामने देखते हुए कार स्टार्ट की और आगे बढा दी। उसकी कार के जाने के बाद पर्वत ने वहाँ मूक दर्शक बने लोगों को देखा और कहा, “तमाशा खत्म हो गया, अब तुम लोग भी फूटो यहाँ से वरना अपुन इस तमाशे की कीमत वसूलने लग जाएगा।”

    उसे सुनकर वो लोग भी वहाँ से फूट लिए, मतलब चले गए।

    जारी है......

  • 2. नादानियां मेरे यार की - Chapter 2

    Words: 1783

    Estimated Reading Time: 11 min

    कॉलेज में इस वक्त लंच टाईम चल रहा था। माहौल हमेशा की तरह चहल-पहल से भरा हुआ था। लॉन में कुछ स्टुडेंट्स पढाई कर रहे थे, कुछ ग्रुप्स में बैठे मस्ती कर रहे थे, तो कुछ कैफेटेरिया में अपनी मनपसंद डिश का लुत्फ उठा रहे थे।

    प्रीत भी अपने दोस्तों रवि और चित्रांश के साथ कैफेटेरिया की तरफ जा रहा था। शिवांश भी उसी समय अपनी क्लास से बाहर निकला। उसे देखकर प्रीत को याद आया कि इसने सुबह उसके चाचा के बारे में पूछा था, तब बेल बज गई थी इसलिए वो कुछ जवाब नही दे पाया। वो शिवांश की तरफ गया और उसके सामने आकर खडा हो गया।

    उसे देखकर शिवांश रुक गया और मुस्कुराते हुए बोला, “क्या हुआ? इस तरह अचानक मेरे सामने आकर क्यों खडे हो गए?”

    रवि और चित्रांश को भी कुछ समझ नही आया इसलिए वो भी प्रीत के पीछे आकर खडे हो गए। प्रीत ने शिवांश से कहा, “तुमने सुबह मेरे चाचा के बारे में पूछा था न, बेल बज गई थी इसलिए मैं कोई जवाब नही दे पाया लेकिन अगर तुम्हें मेरे चाचा के बारे में जानना है तो शाम को कॉलेज खत्म होने के बाद मेरे साथ चलना, मिलवा दूंगा उनसे।”

    शिवांश ने एक पल के लिए उसकी आँखों में देखा जिनमें कुछ अलग ही भाव झलक रहे थे। चेहरे पर अकड बनी हुई थी। ना जाने क्या सोचकर वो उसे अपने चाचा से मिलवा रहा था। फिर शिवांश ने भी कुछ सोचकर सिर हिला दिया, “ओके, डन!”

    यह सुनकर प्रीत के होंठों पर शातिर मुस्कान तैर गई और वो कैफेटेरिया की तरफ बढ गया। पीछे-पीछे रवि और चित्रांश भी चल दिए लेकिन उन्हें दाल में कुछ काला लग रहा था। शिवांश को तो पूरी दाल ही काली लग रही थी लेकिन उसे तो काली दाल पसंद है।

    **************

    रावत इंडस्ट्रीज़

    ऑफिस का माहौल तनाव से भरा हुआ था। चन्द्र अपने केबिन में चेयर पर बैठा था, उसकी आँखों में गुस्से की लपटे थीं। टेबल पर कई फाईलें बिखरी हुई थीं और उसके हाथ में एक पेपर था जिसे उसने गुस्से में मरोडकर फेंक दिया।

    तभी डोर नॉक हुआ। चन्द्र ने कम इन कहा तो उसका सेकेट्री परीक्षित अंदर आया। चन्द्र का गुस्से भरा चेहरा देखकर एक पल के लिए तो वो भी डर गया। फिर थोडा हिम्मत करते हुए बोला, “सर, आज का मीटिंग शेड्यूल...”

    चन्द्र ने तेज आवाज में उसे टोक दिया, “मीटिंग का शेड्यूल मुझे मालूम है, तुम तो बस ये बताओ कि ये पेपर मेरी टेबल पर कैसे आया?” उसने नीचे पडे पेपर की तरफ इशारा किया जो उसने अभी-अभी मोडकर फेंका था।

    परीक्षित ने थोडा झिझकते हुए उस पेपर को उठाया और खोलकर पढने लगा.....
    “सर, ये तो बगल वाली फैक्ट्री के उद्घाटन का इन्वीटेशन है, जिसमें आपके छोटे भाई..” चन्द्र ने तीखी नजरों से उसे घूरा तो परीक्षित बोला, “आई मीन एम एल ए राज चौहान को चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया है।”

    चन्द्र गुस्से में दांत भींचते हुए बोला, “जब तुम्हें मालूम था कि इस फैक्ट्री के उद्घाटन के लिए उसे बुलाया गया है तो इस इन्वीटेशन को एक्सेप्ट करने की जरूरत क्या थी? और तुमने इसे लाकर मेरी टेबल पर भी रख दिया, क्यों?” वो उस पर चिल्लाया तो परीक्षित ने डर के मारे आँखें मींच लीं, “सॉरी सर!”

    “व्हॉट सॉरी!” चन्द्र चेयर पर से उठ गया और तेज आवाज में ही बोला, “तुम्हें मालूम है न, मैं उससे सारे रिश्ते खत्म कर चुका हूँ, वो कुछ नही है मेरा।”

    परीक्षित अपनी आँखें हल्की सी खोलते हुए बोला, “लेकिन सर, ये फैक्ट्री तो आपके दोस्त अमन मेहरा ने खरीदी है, अब वो दोस्ती के नाते आपको इन्वीटेशन देंगे तो मैं मना कैसे कर पाऊँगा?”

    चन्द्र को अब अमन पर भी गुस्सा आया। ये हमेशा उसका और उसके भाई का मिलन कराने पर ही तुला रहता है, जबकि चन्द्र ने इसे भी दोस्ती तोडने की धमकी दे रखी है लेकिन फिर भी नही मानता। फिर चन्द्र ने भी कुछ सोचकर वो इन्वीटेशन कार्ड परीक्षित से लिया और उसे देखते हुए बोला, “ओके, हम जाएंगे वहाँ पर।”

    परीक्षित हैरान तो हुआ लेकिन फिर खुश भी हो गया।

    **********

    आज मार्केट में हल्की हलचल थी। दुकानों पर लोग खरीदारी कर रहे थे। चाट के ठेलों पर भीड जमा थी। विराज रेस्टोरेंट के ही किसी काम से वहाँ आया। उसने फल और सब्जियों वाली दुकान के सामने अपनी जीप रोकी। उसने फोन निकाला और एक नंबर डायल कर कान पर लगाते हुए बोला, “हाँ पापा, मैं पहुँच तो गया हूँ बस आपको जो चाहिए उसकी लिस्ट मुझे सेंड कर दीजिए, मैं ले आऊँगा।”

    “हाँ भैया जी मैं दिखने में अमीर लगती हूँ लेकिन इसका मतलब ये तो नही कि आप मेरी अमीरी को देखकर मुझसे ज्यादा पैसे मांगोगे।”

    ये आवाज सुनकर विराज ने सामने देखा एक औरत सब्जी वाले से सौदेबाजी कर रही थी। उसे देखकर विराज हल्के से मुस्कुरा दिया, “बुआ!” वो जीप से उतरकर उसकी तरफ जाने लगा।

    “देखिए बहन जी, यही रेट है, आपको लेना हो तो लो वरना जाओ यहाँ से।” सब्जी वाले ने साफ-साफ कह दिया।

    वो भी मुहँ बनाकर चलने लगी तभी सामने विराज को देखकर अचानक से रुक गई। विराज उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोला, “कैसी हो बुआ?”

    वो कुछ बोल पाती तभी उसका फोन बज उठा। उसने उसे उठाकर कान पर लगाया, “हाँ चन्द्र बोलो!”

    “नयना, तुम कहाँ हो इस वक्त?”

    नयना ने सामने खडे विराज को देखकर कहा, “मार्केट में हूँ।”

    चन्द्र चिढचिढाते हुए बोला, “तुम मार्केट में क्या कर रही हो?”

    नयना ने कहा, “घर पर अकेले मन नही लग रहा था इसलिए चली आई।”

    “अब मार्केट से सीधा मेरे ऑफिस आओ, ओके।”

    “क्यों?” नयना ने पूछा।

    “सब-कुछ फोन पर ही बता दूं क्या, पहले आओ तो सही।” ये कहकर चन्द्र ने फोन काट दिया।

    फोन रखने के बाद नयना ने विराज की तरफ देखा जिसका चेहरा सख्त हो गया था, वो गंभीर होकर बोला, “आपके हसबैंड बुला रहे हैं शायद?”

    नयना ने हाँ में सिर हिला दिया। विराज एक गहरी साँस छोडते हुए बोला, “ठीक है बुआ, आप जाओ!”

    नयना चलने लगी लेकिन फिर रुक गई। उसने विराज की तरफ देखा और अपने इमोशंस को कंट्रोल करते हुए बोली, “तेरे पापा कैसे हैं..मतलब घर में सब ठीक हैं न?”

    विराज ने गंभीर स्वर में ही जवाब दिया, “हाँ बुआ, सब ठीक हैं।” यह सुनकर नयना हल्का सा मुस्कुराई लेकिन विराज की ऐसी गंभीर सूरत देख उसकी मुस्कान गायब हो गई और वो चुपचाप वहाँ से चली गई।

    विराज उसे जाते हुए देखता रहा और फिर गहरी साँस छोडते हुए बोला, “काश! किसी तरह इनके हसबैंड की नफरत भी खत्म हो पाती तो आज हम सब साथ होते।”

    **************

    जन्मों के साथी, हम साथ साथ हैं......

    ये गाना पर्वत बॉक्सिंग क्लब में किसी के फोन में बज रहा था। पर्वत ने टेढी निगाहें करके उस लडके को देखा जिसने अपने फोन में ये रिंगटोन डाल रखी थी। पर्वत ने हाथ से इशारा करके उसे अपने पास बुलाया, “इधर आ।”

    वो लडका नया-नया ही यहाँ बॉक्सिंग सीखने आया था, उम्र भी उसकी ज्यादा नही थी, बीस के आसपास ही थी। पर्वत ने उसका फोन मांगा। उस लडके को कुछ समझ नही आया लेकिन पर्वत ने तो हाथ बढा रखा था, फिर उसने अपना फोन उसके हाथ में रख दिया।

    पर्वत ने उसके फोन में रिंगटोन चेंज कर दी और नई रिंगटोन थी.....

    चल अकेला चल अकेला चल अकेला
    तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला

    वो लडका अजीब सी नासमझी भरी नजरों से पर्वत को देखते हुए बोला, “सर, ये क्या किया आपने? ये रिंगटोन चेंज क्यों कर दी?”

    पर्वत व्यंग्य भरी मुस्कान चेहरे पर लाकर बोला, “वो रिंगटोन गलत थी मेरे भोले, यही जीवन की सच्चाई है, यहाँ कोई साथ नही देता, अकेले ही चलना पडता है इसलिए आज के बाद वो रिंगटोन इस क्लब में गूंजनी नही चाहिए वरना तेरी आवाज कहीं गूंजने के लायक नही बचेगी, समझा।” उसने दांत पीस लिए।

    उस लडके ने भी थोडा डरकर सिर हिला दिया।

    “चल अब जा, प्रैक्टिस कर।” पर्वत ने थोडा तेज आवाज में कहा तो वो लडका फिर से प्रैक्टिस करने चल दिया। बेचारा लडका अपना फोन भी लेकर नही गया। पर्वत ने उसका फोन वहीं एक टेबल पर रख दिया।

    पर्वत का ये बॉक्सिंग क्लब देखकर ही लोग अंदाजा लगा लेते थे कि वो कितना ताकतवर और मजबूत इरादों वाला इंसान है लेकिन सब ये भी जानते थे कि वो उतना ही अल्हड और बदतमीज किस्म का है। उसके बॉक्सिंग क्लब में सीधे-सादे लडकों के लिए तो कोई जगह ही नही थी, अगर कोई सीधा-सादा लडका यहाँ ट्रेनिंग के लिए आता भी था तो कुछ ही दिनों में इसके मिजाज बदल जाते थे, जिसके नही बदल पाते थे वो ये क्लब छोडकर चला जाता था।

    चारों ओर लटकते पंचिंग बैग्स जिन पर पर्वत चलते-फिरते कभी भी मुक्के बरसा देता था। इस वक्त भी वो यही कर रहा था।

    बीचों-बीच एक बडा सा बॉक्सिंग रिंग था, जिसके कोनों पर लाल और नीले रंग की रस्सियां कसी हुई थीं। रिंग के गद्दीदार जमीन पर एक बॉक्सर आकर गिरा, दूसरे बॉक्सर ने उसकी गर्दन पर पैर रखना चाहा तभी.....

    “यहाँ आपसी दुश्मनी नही निभानी है!”

    पर्वत की तेज आवाज सुनकर वो बॉक्सर रुक गया और उसकी तरफ देखकर दांत चमकाते हुए बोला, “अरे नही सर, आपको मिस अंडरस्टैण्डिंग हो गई है, मैं तो बस....” उसने अंगद की तरह जो पैर उठाया था उसे फिर से नीचे कर लिया।

    पर्वत आगे बढा और ऊँची जंप लगाते हुए उस रिंग के अंदर डायरेक्ट उस लडके के सामने खडा हो गया। उसे देखकर उस लडके ने डर के मारे गला तर कर लिया। नीचे गिरा लडका उठा और उस लडके के आगे आकर पर्वत से बोला, “हाँ सर, हमारे बीच कोई दुश्मनी नही हैं, हम दोनों तो बॉयफ्रेंड हैं।” उसने उस लडके कंधे पर अपनी बाहँ डाली तो वो लडका गुर्रा दिया।

    पर्वत ने उन दोनों को ही जोरदार घूंसा मारा जिससे वो दोनों नीचे गद्दे पर जा गिरे। पर्वत उन दोनों को बारी-बारी से देखकर बोला, “इस क्लब में ना तो दुश्मनी निभाई जाएगी और ना ही दोस्ती, यहाँ सिर्फ ट्रेनिंग दी जाती है और फाईट की जाती है, उसी पर फोकस रखना होगा, समझे तुम दोनो।”

    आसपास बाकी लडके जो अपनी ट्रेनिंग कर रहे थे वो भी रुक गए और रिंग की तरफ देखने लगे। उन्हें सिखा रहे कोच धीमी आवाज में बोले, “उधर ध्यान मत दो अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दो।”

    क्लब के दरवाजे पर प्रीत, चित्रांश, रवि और शिवांश खडे थे। प्रीत ने बडी ही शान से पर्वत की तरफ इशारा करके शिवांश से कहा, “ये हैं मेरे चाचा।”

    शिवांश भी रिंग में खडे पर्वत को ही देख रहा था। उसने जिस तरह से उन दोनों लडकों को डांटा उन्हें पंच मारा, शायद शिवांश को पसंद नही आया था।

    “ये क्या तरीका हुआ किसी को ट्रेनिंग देने का? गुरू है इसका मतलब ये तो नही कि किसी पर भी बिना बात के हाथ उठा देंगे, बदतमीज इंसान।”

    जारी है.......