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The replaced Husband, Rab ki marjiyan,

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Navia khan

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रूही अपने बचपन से आरव से प्यार कर करती है और उसके 21 साल के होने के बाद रूही की शादी आरव के साथ तय भी हो जाती है पर आरव रूही से शादी नहीं करना चाहता , तो वह रूही का दूल्हा ही बदल देता है , साथ ही ये कहानी रूही के दो जन्मों को एक साथ दिखाने वाल...

Total Chapters (100)

Page 1 of 5

  • 1. Rab ki marjiyan - Chapter 1

    Words: 2106

    Estimated Reading Time: 13 min

    उस रब की मर्ज़िया एक लड़की भागते हुए अपने कमरे में गई और जल्दी से अपना फ़ोन निकालकर एक नंबर डायल किया। कुछ देर तक फ़ोन रिंग करता रहा, और कुछ देर बाद दूसरी तरफ़ किसी ने उठा लिया। दूसरी तरफ़ से किसी लड़के की आवाज़ सुनाई दी, "हेलो।" उस आवाज़ को सुनते ही लड़की ने हड़बड़ाते हुए ऊँची आवाज़ में कहा, "हेलो भाई।" दूसरी तरफ़ के लड़के ने लड़की की घबराई हुई आवाज़ सुनी तो उसने फ़िक्र करते हुए पूछा, "क्या हुआ इशिका? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? क्या हुआ तुझे?" लड़के के इस तरह पूछने पर इशिका ने कहा, "भाई, वो मॉम ना आपकी शादी उस दो-कौड़ी की लड़की, नौकरानी रूही के साथ तय कर दी है! पता नहीं मॉम को क्या हो गया है, अचानक से कौन-सा भूत चढ़ गया है उनके ऊपर जो वो आपकी शादी उस नौकरानी के साथ करवाना चाहती हैं।" यह सुनकर लड़का चौंक गया और कहा, "क्या? मॉम ने मेरी शादी उस दो-कौड़ी की नौकरानी रूही के साथ तय कर दी? वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हैं? अच्छा, तू रुक, मैं अभी मॉम से पूछता हूँ और उन्हें शादी न करने के लिए बोलता हूँ।" यह लड़की बड़े सरपंच की पोती इशिका थी, और यह लड़का बड़े सरपंच के बड़े बेटे का लड़का आरव था। रूही की शादी आरव के साथ तय की गई थी। आरव की बात सुनकर इशिका ने कहा, "हाँ भाई, आप मॉम को समझाइए। कैसे भी करके बस... मॉम मेरी बात तो नहीं सुन रही हैं, शायद आपकी बात मान जाएँ।" इतना बोलकर वो रुकी और फिर चिढ़ती हुई आवाज़ में बोली, "कैसे भी करके मुझे उस दो-कौड़ी की लड़की रूही, जो हमारे घर की नौकरानी है, उसको अपनी भाभी नहीं बनाना है। अगर वो दो-कौड़ी की लड़की मेरी भाभी बन गई तो मेरी सारी फ्रेंड्स मेरा मज़ाक बनाएँगी कि हमने अपनी मेड को ही अपनी भाभी बना लिया।" यह बोलकर इशिका ने आरव को बाय बोलकर फ़ोन काट दिया। फ़ोन कट होते ही आरव ने जल्दी से अपनी मॉम का नंबर डायल किया। एक-दो रिंग के बाद दूसरी तरफ़ अनीता जी की चहकती हुई आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने आरव से कहा, "हेलो आरव बेटा, मैं तुझे ही फ़ोन करने वाली थी। वो मैं तेरी शादी..." उनकी आवाज़ से ही पता चल रहा था कि वो बहुत खुश हैं क्योंकि उनके बड़े बेटे की शादी तय हो गई थी। इसके आगे अनीता जी कुछ बोल पातीं, उससे पहले ही आरव ने रूही के साथ शादी के लिए मना करते हुए कहा, "मॉम, मुझे नहीं करनी है उस दो-कौड़ी की लड़की रूही के साथ शादी। बस अब आप कैसे भी करके ये शादी तोड़ दीजिए। मुझे नहीं करनी उसके साथ शादी मॉम, आपको तो पता ही है मेरी पसंद की मुझे उसके जैसी लड़कियाँ नहीं पसंद।" आरव के इस तरह मना करने और गुस्से से बोलने पर भी, अनीता जी ने प्यार से आरव को कुछ देर समझाया। जिस वजह से आरव ने, न चाहते हुए भी, रूही के साथ शादी करने के लिए हाँ कर दी। वहीं दूसरी तरफ़, अपनी शादी की खबर सुनकर रूही तेज़ी से अपनी एक्टिवा दौड़ाते हुए भगवान भोलेनाथ के मंदिर जा रही थी क्योंकि वह आरव को बचपन से ही दिल ही दिल में पसंद करती थी। जब वह मंदिर जा रही थी, तभी दूसरे रोड से आ रही एक कार से उसकी एक्टिवा टकरा गई क्योंकि रोड पर चौराहा था। रूही पहले ही जल्दी में थी, तो इस तरह टकराने की वजह से उसे एकदम गुस्सा आ गया। गुस्से में उसने सड़क से एक पत्थर उठाकर कार के शीशे पर दे मारा। पत्थर लगने की वजह से कार चला रहा लड़का गुस्से से बाहर निकल कर आया और उसने रूही से गुस्से से कहा, "हे यू, मेड गर्ल..." अभी वो लड़का इससे आगे कुछ बोल पाता, उससे पहले ही वो रूही की ख़ूबसूरती देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। रूही के नागिन जैसे लंबे बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, गुलाब के पंखुड़ियों जैसे होंठ, नाज़ुक पतली कमर... वो लड़का रूही को किसी परी से कम नहीं समझ रहा था। वो हैरानी भरी नज़रों से रूही की ख़ूबसूरती देखे जा रहा था। वहीं दूसरी तरफ़, रूही गुस्से में उसे सुना रही थी, पर उस लड़के को शायद रूही से पहली नज़र का प्यार हो गया था। इसलिए उसे बस रूही के गुलाबी होंठ ही हिलते हुए दिखाई दे रहे थे। बाकी रूही के गुस्से से बोले जा रहे शब्द उसे सुनाई ही नहीं दे रहे थे। रूही उसे सुनाते-सुनाते वहाँ से मंदिर के लिए चली गई, पर वो लड़का बीच रोड में मूर्ति की तरह खड़ा था। तभी बाकी कारों और बाइकों के हॉर्न की आवाज़ से उस लड़के का ध्यान टूटा और वो अपने होश में आया। क्योंकि बाकी लोग उसकी कार बीच रोड से हटाने के लिए हॉर्न बजा रहे थे। होश में आने के बाद उसके मुँह से खुद ही निकल गया, "हाए! कितनी सुंदर लड़की है! बिल्कुल मेरे सपनों की राजकुमारी जैसी! आई एम इन लव! अब लगता है मुझे तो प्यार हो गया है!" और फिर यह बोलकर उसके चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई। पर तभी उसे याद आया कि उसे जल्दी से अपने घर जाना होगा। यह सोचकर वो लड़का अपनी कार में बैठा और निकल गया अपने घर की तरफ़। 1 महीने बाद, एक घर को बहुत सुंदर तरीके से सजाया गया था। उस घर को देखकर पता चल रहा था कि वहाँ पर कोई फंक्शन होगा। और यह बात सच भी थी क्योंकि वहाँ पर रूही की शादी बड़े सरपंच के बड़े बेटे वीरेंद्र जी के लड़के आरव के साथ होने वाली थी। पूरे घर में शादी की धूम मची हुई थी। सब लोग वहाँ मौजूद थे और मंडप भी लगाया जा चुका था। तभी पंडित जी ने मीनाक्षी जी को आवाज़ लगाते हुए कहा, "दुल्हन की माँ, वधू को मंडप में ले कर आइये, मुहूर्त का समय हो गया है।" पंडित जी के यह बोलते ही मीनाक्षी जी ने हाँ का इशारा किया और अपने कमरे की तरफ़ चली गईं क्योंकि उन्होंने रूही को अपने कमरे में तैयार होने के लिए बोला था। उसके बाद जब मीनाक्षी जी कमरे में गईं तो उन्होंने रूही को पूरी दुल्हन की तरह तैयार होकर देखा। उसने शादी का लहँगा पहना हुआ था और सब कुछ दुल्हन वाला था। जिस वजह से रूही को दुल्हन के लिबास में देखकर मीनाक्षी जी की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। क्योंकि आज उनकी लाडली बेटी की शादी थी। और वैसे भी हर माँ अपनी बेटी को दुल्हन के लिबास में देखना चाहती है। पर जहाँ उन्हें रोना आ रहा था और उनका मन भर आया था, वहीं उन्हें एक बात की खुशी भी थी कि उनकी लाडली बेटी रूही इस घर को छोड़कर नहीं जाने वाली है। क्योंकि उसकी शादी इस घर के ही बेटे के साथ हो रही है, जिस वजह से उन्हें अपनी बेटी से दूर नहीं होना पड़ेगा। उनकी बेटी उनकी नज़रों के सामने ही रहेगी। उसके बाद मीनाक्षी जी ने रूही के पास जाकर प्यार से हाथों से ब्लाएँ लेते हुए, नज़र उतारते हुए कहा, "नज़र न लगे किसी की! मेरी प्यारी बच्ची को देखो तो, इस दुल्हन के लिबास में कितनी प्यारी लग रही है, बिल्कुल चाँद का टुकड़ा।" यह बोलते हुए मीनाक्षी जी ने अपनी आँखों के काजल से काजल निकालकर रूही के कान के पीछे काला टीका लगा दिया। और फिर उन्होंने भरे हुए गले से कहा, "मुझे पता ही नहीं चला कब मेरी फूल सी बच्ची इतनी बड़ी हो गई कि आज उसकी शादी हो रही है और वो दुल्हन के कपड़ों में मेरे सामने दुल्हन बनी खड़ी है।" यह बात बोलते हुए मीनाक्षी जी की आँखों में हल्का-हल्का पानी आ गया था। जब रूही ने देखा कि मीनाक्षी जी रो पड़ेंगी, तो उसने प्यार से मीनाक्षी जी को गले लगाकर कहा, "माँ, मैं कौन सी आपसे दूर जाने वाली हूँ? मैं तो हमेशा आपके साथ, आपके पास ही रहने वाली हूँ।" इसके बाद रूही ने मीनाक्षी जी को हँसाने के लिए मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "और देखना, मैं अब भी आपको परेशान करना बंद नहीं करूँगी। कहीं आप ये ना सोच रही हो कि मैं आपको परेशान करना बंद कर दूँगी, तो मैं आपको पहले ही बता देती हूँ, ये आपकी गलतफ़हमी है कि मैं अब बदल जाऊँगी। ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं होने वाला है।" जब मीनाक्षी जी ने रूही की बात सुनी तो उन्हें हँसी आ गई और उनके चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई। और उसके बाद वो रूही को मंडप की तरफ़ ले कर चली गईं। रूही मंडप में बैठ गई। सभी वहाँ पर थे। आरव भी दूल्हे के कपड़े पहने हुए आ गया। उसने अपने चेहरे पर फूलों का सेहरा लगाया हुआ था। उसके बाद आरव भी रूही के पास मंडप में जाकर बैठ गया। फिर पंडित जी ने उनकी शादी के मंत्र पढ़ने शुरू कर दिए। उनके फेरे होने लगे। सभी लोग उन दोनों के ऊपर फूल फेंक रहे थे। फिर पंडित जी ने आरव से रूही की मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहनने को कहा। पंडित जी के यह बोलते ही आरव ने रूही के गले में अपने नाम का मंगलसूत्र और उसकी मांग में सिंदूर भर दिया। उसके बाद पंडित जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "विवाह संपन्न हुआ। अब से आप दोनों एक-दूसरे के पति-पत्नी हुए।" पंडित जी के यह बोलते ही इशिका कमरे के अंदर से भागती हुई आई और हैरानी भरी नज़रों से दूल्हे की तरफ़ देखते हुए चिल्लाकर कहा, "अरे! आरव भाई तो अपने कमरे में शराब के नशे में बेड पर सो रहे हैं! तो फिर अभी जिस लड़के के साथ रूही की शादी हुई, वो दूल्हा कौन है?" इशिका के यह बोलते ही घर में मौजूद सभी लोग रूही के दूल्हे की तरफ़ देखने लगे यह जानने के लिए कि जब रूही की शादी आरव के साथ नहीं हुई है तो फिर रूही की शादी किसके साथ हुई? क्या आपको लगता है रूही की शादी किसके साथ हुई? और वो लड़का कौन था जिसको रूही से पहली नज़र का प्यार हो गया? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए ये कहानी "रब की मर्ज़िया"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी, तब तक के लिए अलविदा। _____take care of yourself_______ Please like, comment and share और हाँ, प्लीज़ रिव्यू देना मत भूलिएगा। Thank you so much my dear readers. नव्या खान

  • 2. Rab ki marjiyan - Chapter 2

    Words: 1479

    Estimated Reading Time: 9 min

    कहानी अब तक: पंडित जी के यह बोलते ही आरव ने रूही के गले में अपने नाम का मंगलसूत्र और मांग में अपने नाम का सिंदूर भर दिया। उसके बाद पंडित जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "विवाह संपन्न हुआ। अब से आप दोनों एक-दूसरे के पति-पत्नी हुए।" पंडित जी के यह बोलते ही इशिका कमरे के अंदर से भागती हुई आई और हैरानी भरी नज़रों से दूल्हे की तरफ देखते हुए चिल्लाकर कहा, "अरे आरव भाई तो अपने कमरे में शराब के नशे में बेड पर सो रहे हैं! तो फिर अभी जिस लड़के के साथ रूही की शादी हुई, वह दूल्हा कौन है?" इशिका के यह बोलते ही घर में मौजूद सभी सदस्य रूही के दूल्हे की तरफ देखने लगे, यह जानने के लिए कि जब रूही की शादी आरव के साथ नहीं हुई है, तो फिर अभी रूही की शादी किसके साथ हुई? कहानी अब आगे: तभी मीनाक्षी जी गुस्से में रूही के दूल्हे से पूछा, "कौन हो तुम? जिसे मेरी बेटी के साथ धोखे से शादी कर ली? मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं।" यह बात बोलती हुई मीनाक्षी जी गुस्से से उस दूल्हे के पास गईं और उसके चेहरे पर से सहारा खींच कर नीचे गिरा दिया। अब दूल्हे का चेहरा सामने आ चुका था। रूही के दूल्हे को देखकर वहाँ मौजूद सब लोग सन्न रह गए और हैरानी से उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। क्योंकि उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि यह लड़का रूही का दूल्हा होगा। तभी मीनाक्षी जी ने रूही के दूल्हे का चेहरा देखकर हैरान भरी नज़रों से चौंकते हुए उससे गुस्से से कहा, "तुम… तुमने धोखे से मेरी बेटी रूही के साथ शादी की? तुम ऐसा कैसे कर सकते हो, नील?" जी हाँ, यह लड़का जिसकी अभी रूही के साथ शादी हुई, कोई और नहीं बल्कि बड़े सरपंच जी के छोटे बेटे धर्मेंद्र जी का इकलौता लड़का नील था। नील खामोश खड़ा हुआ था। वह मीनाक्षी जी के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था और उसकी नज़रें नीचे झुकी हुई थीं। मीनाक्षी जी ने नील से अपने सवालों का कोई जवाब नहीं सुना तो उन्होंने गुस्से में आकर नील की शेरवानी का गला पकड़ कर उसे जोर-जोर से हिलाया और चिल्ला-चिल्ला कर नील के कुर्ते को अपने हाथों से पकड़ कर हिला-हिला कर नील से चीखते हुए पूछने लगीं, "बता, तूने मेरी रूही के साथ धोखे से शादी क्यों की? मेरी फूल सी बच्ची रूही ने तेरा क्या बिगाड़ा था? बोल! तूने मेरी फूल सी बच्ची रूही के साथ धोखे से शादी क्यों की? बोल अब!" पर मीनाक्षी जी के सवाल करने पर भी नील कुछ भी नहीं बोल रहा था। तभी नील के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ लगा। उस थप्पड़ की आवाज वहाँ पूरे एरिया में गूंज गई। जैसे ही नील को वह थप्पड़ पड़ा, उसने अपनी नज़रें ऊपर उठाकर देखा कि उसे थप्पड़ किसने मारा है। उसे यह थप्पड़ मारने वाली मीनाक्षी जी नहीं, बल्कि अनीता जी थीं। फिर अनीता जी ने नील के दूसरे गाल पर भी एक थप्पड़ लगा दिया और उससे गुस्से से चिल्लाते हुए बोला, "ठीक है, तूने रूही के साथ शादी की, पर क्या तू यह बात नहीं जानता था कि रूही की शादी तेरे छोटे भाई आरव के साथ होने वाली थी? कम से कम तूने यह सब करने से पहले अपने छोटे भाई आरव के बारे में तो सोचा होता कि रूही उसकी होने वाली बीवी है।" तभी अनीता जी रुकीं और फिर आगे बोलीं, "तूने रूही के साथ धोखे से शादी तो की, पर तूने अपने जान से भी प्यारे भाई आरव को भी धोखा दिया। और उसे नशे में कर के तूने धोखे से रूही के साथ शादी कर ली। तू ऐसे कैसे कर सकता है, नील?" यह बोलते हुए अनीता जी ने नील को एक थप्पड़ लगा दिया। फिर अनीता जी ने एक बार दोबारा नील का गिरेबान पकड़ कर नील को झिंझोड़ते हुए नील से पूछा, "नील, तू तो उसे अपना जान से भी प्यारा भाई मानता था ना? तो उसकी खुशी चाहता था और उसके बारे में सब कुछ जानता था कि आरव को क्या पसंद है और क्या नहीं। और यह भी कि आरव ने रूही के साथ शादी करने के लिए हाँ कर दी थी। और यह सब जानते हुए भी आज आरव की रूही के साथ शादी थी। तुझे शर्म नहीं आई क्या? आरव की दुल्हन को इस तरीके से धोखे से चुराते हुए?" नील से यह सवाल करते हुए अनीता जी ने नील पर अपना हाथ उठा दिया। पर इस बार अनीता जी का हाथ हवा में ही रुक गया क्योंकि उनका हाथ किसी ने पकड़ा हुआ था। यह इंसान और कोई नहीं, उनका अपना खुद का बड़ा बेटा आरव था। घर में इतना तेज-तेज बोलने की आवाज आ रही थी, जिस वजह से इतना ज़्यादा शोर और इतनी तेज-तेज आवाज़ें सुनकर जो इतनी देर से आरव अपने कमरे में सो रहा था, उसकी नींद खुल गई। और फिर वह इस शोर भरी आवाज का पीछा करते हुए मंडप तक पहुँच गया और जैसे ही अनीता जी एक बार दोबारा नील को थप्पड़ मारने वाली थीं, तभी उसने जल्दी से भागते हुए जाकर अनीता जी का हाथ पकड़ लिया, जिस वजह से अनीता जी का यह थप्पड़ नील को नहीं लग पाया। जब अनीता जी ने अपने खुद के बेटे को अपना हाथ पकड़ते हुए देखा, तो उनकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं और वह हैरानी भरी नज़रों से अपने बेटे आरव को देखने लगीं। तभी उन्होंने आरव पर गुस्सा करते हुए, आरव से अपना हाथ छुड़ाते हुए आरव से कहा, "आरव! एक तो इस लड़के ने धोखे से तुझे नशे की ड्रिंक पिलाकर तुझे नशे में सुला दिया और तेरी दुल्हन के साथ खुद मंडप में बैठकर तेरी दुल्हन के साथ इसने शादी कर ली और उस लड़की को अपनी बीवी भी बना लिया और तू अभी भी इसकी साइड ले रहा है? तू इस धोखेबाज को बचाने के लिए मेरा हाथ पकड़ रहा है।" तभी उन्होंने गुस्से से आरव से कहा, "अपनी माँ का हाथ छोड़, मेरा हाथ!" यह बोलते हुए गुस्से से अनीता जी ने अपना हाथ आरव से एक झटके में छुड़ा लिया और फिर वह एक बार दोबारा नील को थप्पड़ मारने के लिए आगे बढ़ गईं। पर इस बार भी आरव ने अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपनी माँ से तेज आवाज में चीखते हुए कहा, "नील भाई ने यह शादी केवल अपनी मर्जी से नहीं की है, बल्कि मैंने भी इस सब में नील भाई का पूरा साथ दिया है। तो जितना इसमें नील भाई जिम्मेदार है, उतना ही मैं भी हूँ, क्योंकि यह प्लान हम दोनों ने मिलकर बनाया था।" जैसे ही अनीता जी और बाकी के घरवालों ने आरव की यह बात सुनी, वे सभी हैरान हो गए और हैरानी से उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। और फिर अनीता जी ने अपनी हैरानी भरी आँखों से आरव से गुस्से से पूछा, "क्यों किया तुमने ऐसा? क्यों तुमने खुद नील को धोखे से रूही के साथ शादी करने दिया? तुम्हें यह नहीं पता कि हमारे लिए यह शादी कितनी ज़रूरी थी?" अनीता जी के यह बोलते ही आरव जोर-जोर से पागलों की तरह हँसने लगा और फिर उसकी इस हँसी ने गुस्से का रूप ले लिया और अब उसके चेहरे पर गुस्से भरे भाव आ गए थे और फिर उसने अनीता जी से गुस्से से कहा… क्योंकि… आपको क्या लगता है? आरव ने अनीता जी से क्या कहा होगा? और क्यों आरव रूही के साथ शादी नहीं करना चाहता था? और ऐसी क्या वजह होगी कि आरव की बात मानते हुए नील ने धोखे से रूही के साथ शादी कर ली? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "राब की मर्ज़ियाँ"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा। _____take care of yourself_______ Please like, comment and share और हाँ, प्लीज़ रिव्यू देना मत भूलिएगा। Thank you so much my dear readers. नव्या खान

  • 3. Rab ki marjiyan - Chapter 3

    Words: 2071

    Estimated Reading Time: 13 min

    कहानी अब तक: आरव ने अपनी मॉम का हाथ पकड़कर अपनी मॉम से तेज आवाज में चीखते हुए कहा, "नील भाई ने यह शादी केवल अपनी मर्जी से नहीं की है, बल्कि मैंने भी इस सब में नील भाई का पूरा साथ दिया है। तो जितना इसमें नील भाई जिम्मेदार है, उतना ही मैं भी हूँ क्योंकि यह प्लान हम दोनों ने मिलकर बनाया था।" जैसे ही अनीता जी और बाकी के घरवालों ने आरव की यह बात सुनी, वे सभी हैरान हो गए। हैरानी से उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। फिर तभी अनीता जी ने अपनी हैरानी भरी आँखों से आरव से गुस्से से पूछा, "क्यों किया तुमने ऐसा? क्यों तुमने खुद नील को धोखे से रूही के साथ शादी करने दिया? तुम्हें यह नहीं पता कि हमारे लिए यह शादी कितनी ज़रूरी थी?" अनीता जी के यह बोलते ही आरव जोर-जोर से पागलों की तरह हँसने लगा। फिर उसकी इस हँसी ने गुस्से का रूप ले लिया। अब उसके चेहरे पर गुस्से भरे भाव आ गए थे। फिर उसने अनीता जी से गुस्से से कहा, क्योंकि… कहानी अब आगे: "क्योंकि मैं रूही के साथ शादी नहीं करना चाहता था, मॉम।" जैसे ही आरव ने अनीता जी से यह बात कही, अनीता जी ने आरव के जवाब से तुरंत गुस्से से आरव से पूछा, "कोई तो वजह होगी जो तुम रूही के साथ शादी नहीं करना चाहते थे? रूही इतनी सुंदर है, इतनी प्यारी है, फिर तुम उसके साथ शादी क्यों नहीं करना चाहते थे?" अनीता जी के इस सवाल पर आरव ने अनीता जी को जवाब देते हुए कहा, "क्योंकि मैं किसी और से प्यार करता हूँ, तो फिर मैं किसी और के साथ शादी कैसे कर सकता हूँ, मॉम?" जैसे ही आरव ने अनीता जी से यह बात कही, वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान रह गए। फिर वे अपनी हैरानी में एक-दूसरे से बड़बड़ाते हुए बातें करने लगे। अब जैसे ही आरव ने यह बात कही, तभी मीनाक्षी जी आरव के पास आ गईं। फिर उन्होंने आरव से गुस्से से पूछा, "जब तुम किसी और लड़की से प्यार करते थे, तो फिर तुमने मेरी रूही के साथ शादी करने के लिए हाँ क्यों किया था? जब तुम्हारी मॉम ने तुम्हें रूही के साथ शादी तय होने की बात बताई थी, तो तुम्हें तभी मना कर देना चाहिए था ना? अब इस तरीके से भरे मंडप में तुमने दूल्हे को बदलकर उसको धोखा क्यों दिया, बोल?" मीनाक्षी जी के आरव से यह सवाल करने पर आरव ने शांत भाव के साथ मीनाक्षी जी से कहा, "बड़ी माँ, मैंने मॉम को सब कुछ पहले ही सच-सच बताया था कि मैं रूही के साथ शादी नहीं करना चाहता था। मॉम ने मुझे रूही के साथ शादी करने के लिए फोर्स किया था कि मैं रूही के साथ शादी कर लूँ।" इतना बोलकर आरव रुका और फिर उसने अपनी सफाई देते हुए मीनाक्षी जी से कहा, "पर मैं ऐसे कैसे रूही के साथ शादी कर सकता था जब मैं किसी और से प्यार करता था, बड़ी माँ? इसलिए बस इस वजह से, ना चाहते हुए भी मैंने यह किया।" अब सब लोग अनीता जी की तरफ देख रहे थे और अपने मन में यह सोच रहे थे कि जब आरव ने सब कुछ सच-सच अनीता जी को पहले ही बता दिया था, तो फिर अनीता जी ने फोर्सफुली आरव को शादी करने के लिए मजबूर क्यों किया। आरव की यह बात बोलते ही अब मीनाक्षी जी ने अनीता जी की तरफ देखा, जैसे वे अनीता जी से सब सच-सच जानना चाहती हों कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। पर इससे पहले कि मीनाक्षी जी आरव से या अनीता जी से कुछ पूछ पातीं या कुछ बोल पातीं, उससे पहले ही नील की मॉम, गौरी जी ने अनीता जी से गुस्से से पूछा, "भाभी, आपको इस तरीके से आरव के मना करने के बाद भी उसको रूही के साथ शादी करने के लिए फोर्स नहीं करना चाहिए था। फिर भी आपने उसको रूही के साथ शादी करने के लिए फोर्स क्यों किया? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। अब देखो, आपके इस सब की वजह से मेरे बेटे नील की ज़िंदगी खराब हो गई।" गौरी जी के यह बोलते ही अनीता जी ने अपने मन में गुस्से से कहा, "इसके बेटे की ज़िंदगी खराब हो गई या इसके बेटे ने रूही के साथ धोखे से शादी करके मेरे सारे किये-कराये पर पानी फेर दिया।" कुछ देर रुककर, फिर गुस्से से गौरी जी ने अपनी बात जारी रखते हुए अनीता जी से कहा, "उसको आरव की खुशियों की इतनी ज़्यादा पड़ी है कि उसने अपनी खुशी ना चाहते हुए भी उस लड़की के साथ शादी कर ली, क्यों कि आप आरव को रूही के साथ शादी करने के लिए मजबूर कर रही थीं। मेरे बेटे ने हमेशा आपके बेटे की, आपके बच्चों की खुशी चाही और आज भी मेरे नील को एक ऐसी लड़की के साथ शादी करनी पड़ गई जिससे वह सिर्फ़ बचपन में मिला था। आपने ऐसा क्यों किया, भाभी?" गौरी जी के यह सवाल पूछते ही सब लोगों की नज़रें अब अनीता जी पर चली गईं कि वे गौरी जी के सवाल का क्या जवाब देंगी कि वे आखिर आरव की शादी ज़बरदस्ती रूही के साथ करवाना क्यों चाहती थीं, इसमें उनका क्या फायदा था। इससे पहले कि अनीता जी कोई भी जवाब दे पातीं या अपना मुँह खोलकर अपनी कोई भी सफाई पेश करतीं, उससे पहले ही आरव ने गौरी जी के इस सवाल का जवाब देते हुए गौरी जी से कहा, "मैं बताता हूँ, चाची जी। क्योंकि अभी बड़ी माँ ने अपनी हिस्से की सारी प्रॉपर्टी रूही के नाम ट्रांसफर कर दी है और बाकी की आधी प्रॉपर्टी मेरे आर्यन और इशिका के नाम पर है, है ना?" आरव के इस सवाल पर वहाँ मौजूद सब लोगों ने हाँ में अपना सिर हिला दिया। उन सबका सिर हाँ में हिलते हुए देखकर आरव ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा, "जिस वजह से…" अभी आरव इतना ही बोल पाया था कि तभी वहाँ पर एक जोरदार गुस्से से भरी आवाज गूंज गई। यह आवाज और किसी की नहीं, अनीता जी की थी। अनीता जी ने आरव की बात को बीच में काटते हुए कहा, "अब बस करो, आरव।" पर अनीता जी के गुस्से को इग्नोर करते हुए आरव ने अपनी बात को सब लोगों को बताना जारी रखते हुए कहा, "जिस वजह से मॉम रूही के साथ मेरी शादी करवाकर सारी प्रॉपर्टी को, यानी कि पापा की सारी प्रॉपर्टी को हमारे पास ही रहने देना चाहती थी। और इस वजह से ही मॉम मुझे रूही के साथ शादी करने के लिए फोर्स कर रही थी कि मैं रूही के साथ शादी कर लूँ, जिस वजह से रूही के साथ शादी करने पर उसकी प्रॉपर्टी भी मेरे नाम हो जाएगी।" तभी आरव ने नील की तरफ प्यार से देखते हुए सब लोगों से बताते हुए कहा, "पर भाई यह नहीं चाहते थे। उनसे मेरा रोना, मेरा उदास चेहरा देखा ही नहीं गया। जिस वजह से उन्होंने मेरे साथ मिलकर यह प्लान बनाया। उन्होंने मुझे समझाया कि मुझे उस लड़की के साथ ही शादी करनी चाहिए जिससे मैंने शादी करने का वादा किया हुआ है और जिससे मैं प्यार करता हूँ।" इतना बोलकर आरव ने एक बार दुबारा से नील की तरफ देखा और फिर दुबारा से आरव ने सब लोगों से बताते हुए कहा, "ना कि मुझे उस लड़की के साथ शादी करनी चाहिए जिसके साथ मॉम प्रॉपर्टी के लालच में मेरी शादी करवा रही है, और वो भी तब जब मॉम मेरी ज़बरदस्ती शादी करने को कह रही है और जिससे मैं प्यार भी नहीं करता। इस वजह से भाई ने मेरा साथ देते हुए रूही के साथ शादी कर ली।" आरव के यह बात बताते ही अब सब लोगों की नज़रें अनीता जी के ऊपर चली गई थीं कि प्रॉपर्टी के लालच में वह ऐसा कैसे कर सकती है? वह अपने बेटे की खुशी ना चाहते हुए एक प्रॉपर्टी के लिए अपने बेटे की शादी कैसे ज़बरदस्ती ऐसी लड़की के साथ करवा सकती हैं जिससे वह प्यार ही नहीं करता और जिससे वह प्यार करता है, उसको अपने उस प्यार को छोड़ने को कह सकती है। अब जैसे ही अनीता जी ने खुद को दोषी पाया, तो अब उनको यह समझ नहीं आ रहा था कि वे कैसे खुद को बेक़सूरी साबित करें। जिस वजह से उनकी नज़र सामने खड़े हुए नील के ऊपर चली गई। नील को देखते ही उनको खुद को बचाने का बस एक ही तरीका लगा। इस वजह से उन्होंने नील के पास जाकर जोर-जोर से अपने हाथों से ताली बजा-बजाकर नील से कहा, "यह अच्छा तरीका है, नील। बहुत अच्छा तरीका है। तुमने मेरे बेटे को तो उल्टी-सीधी बातें पटका दीं, लव-प्यार सब कुछ, और तुमने आरव को रूही के साथ शादी करने से मना करने को कहा और फिर तुमने ही रूही के साथ शादी क्यों की? तुम भी फिर रूही के साथ शादी नहीं करते, क्यों कि तुम भी रूही से प्यार नहीं करते, फिर भी तुमने रूही के साथ शादी क्यों की, बोल नील?" नील अनीता जी की बातों को ध्यान से सुन रहा था, पर अभी वह कुछ बोल नहीं रहा था। जिस वजह से अभी अनीता जी ने एक तंज भरी हँसी हँसी और फिर नील से तंज भरे लहजे में कहा, "तुमने भी रूही के साथ शादी प्रॉपर्टी के लालच में ही की ना? क्योंकि रूही के पास इतनी प्रॉपर्टी है, इसलिए तुमने रूही के साथ शादी की। वाह! तुमने मेरे बेटे को शादी नहीं करने दिया और खुद रूही के साथ शादी करके प्रॉपर्टी के मालिक बन गए। वाह! मानना पड़ेगा नील, तुमने क्या दिमाग़ पाया है।" अनीता जी के यह बोलते ही नील ने रूही की तरफ देखते हुए अनीता जी से कहा, "यह मेरी वाइफ है और मैंने कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती से या इसकी प्रॉपर्टी के लिए इसके साथ शादी नहीं की है। बस मैं इसकी ज़िंदगी खराब नहीं होने देना चाहता था, क्योंकि आरव हमेशा से माही से ही प्यार करता है और इस तरीके से रूही की ज़िंदगी तबाह हो जाती। मैं एक लड़की की ज़िंदगी तबाह होते हुए नहीं देख सकता था, बस इसलिए मैंने रूही के साथ आरव की शादी नहीं होने दी।" अनीता जी को नील की इस बात पर अभी यकीन ही नहीं हो रहा था कि नील ने ऐसे ही बस रूही के साथ शादी कर ली, क्यों कि ना तो वह रूही से प्यार करता था और ना ही उसको रूही की प्रॉपर्टी में कोई इंटरेस्ट था। इस वजह से अभी अनीता जी को नील की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था। जिस वजह से उन्होंने नील से गुस्से से कहा, "अच्छा, तो तुमने जब रूही के साथ उसकी प्रॉपर्टी के लिए शादी नहीं की है, तो तुम फिर यह प्रॉपर्टी मेरे आर्यन या मेरे आरव के नाम पर क्यों ट्रांसफर नहीं कर देते? और वैसे भी आरव से तो तुम बहुत प्यार करते हो और तुमने भाई के नाम पर वह प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर ही सकते हो।" अब जैसे ही अनीता जी ने नील से रूही की प्रॉपर्टी आरव को ट्रांसफर करने की बात की, तभी नील ने अनीता जी से कहा… आपको क्या लगता है? नील ने अनीता जी से रूही की प्रॉपर्टी आरव को ट्रांसफर करने के लिए क्या बात कही होगी? और आगे उनकी यह धोखे की शादी क्या रंग लाएगी? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "धोखे से बंधा रिश्ता"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी, तब तक के लिए अलविदा। _____take care of yourself_______ Please like, comment and share और हाँ, प्लीज़ रिव्यू देना मत भूलिएगा। Thank you so much my dear readers. नव्या खान

  • 4. Rab ki marjiyan - Chapter 4

    Words: 1675

    Estimated Reading Time: 11 min

    कहानी अब तक : अनीता जी को नील की इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि नील ने यूँ ही रूही से शादी कर ली। न तो वह रूही से प्यार करता था और न ही उसे रूही की प्रॉपर्टी में कोई दिलचस्पी थी। इस वजह से अनीता जी को नील की बात पर यकीन नहीं हो रहा था। जिस वजह से अनीता जी ने नील से गुस्से से कहा, "अच्छा, तो तुमने जब रूही के साथ उसकी प्रॉपर्टी के लिए शादी नहीं की है, तो तुम फिर यह प्रॉपर्टी मेरे आर्यन या मेरे आरव के नाम पर क्यों ट्रांसफर नहीं कर देते? और वैसे भी, आरव से तो तुम बहुत प्यार करते हो, और तुमने भाई के नाम पर वह प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर ही सकते हो।" अब जैसे ही अनीता जी ने नील से रूही की प्रॉपर्टी आरव को ट्रांसफर करने की बात की, तभी नील ने अनीता जी से कहा… कहानी अब आगे : "नहीं, मैं रूही की प्रॉपर्टी आपके नाम पर ट्रांसफर नहीं करूँगा।" अब जैसे ही सब लोगों ने नील के मुँह से यह बात सुनी, तो सब लोगों की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। और तभी अनीता जी ने नील का यह जवाब सुनकर, एक बार फिर अपने दोनों हाथों से ताली बजाते हुए, नील से तंज भरे लहजे में कहा, "देखा, जब प्रॉपर्टी की बात आई, तो भाई सब भूल गए! जिस वजह से तुमने रूही के साथ आरव की शादी नहीं होने दी। प्रॉपर्टी की जब बात आती है ना, तो सब प्यार में ऐसे ही पड़ जाते हैं। अभी तुम्हारी बात साबित करती है कि तुमने प्रॉपर्टी के लिए ही रूही से शादी की है।" अनीता जी के यह बात बोलते ही, आरव ने लगभग गुस्से से चीखते हुए अनीता जी से कहा, "अब बस कीजिए मॉम! भाई से आप अब इस शादी या प्रॉपर्टी के लिए कुछ नहीं कहोगी।" तभी आरव ने रूही की तरफ देखते हुए अपनी माँ से कहा, "और जब मेरी रूही से शादी ही नहीं हुई है, तो फिर मैं रूही की प्रॉपर्टी कैसे अपने नाम करवा सकता हूँ? और वैसे भी, वह प्रॉपर्टी रूही की है और भाई की तो फिर मैं उसे नहीं ले सकता। सॉरी मॉम, मैं नहीं लूँगा।" अब जैसे ही अनीता जी ने आरव की यह बात सुनी, तो उन्होंने आरव से गुस्से से कहा, "हाँ आरव, मुझे सब पता है! तुम्हें प्रॉपर्टी से कुछ फर्क नहीं पड़ता। बस तुम्हें अपने उस सो-कॉल्ड प्यार की पड़ी है। अच्छा बताओ, कौन है वह लड़की जिसे तुम प्यार करते हो? जिसकी वजह से तुमने इतनी बड़ी प्रॉपर्टी यूँ ही छोड़ दी? बताओ?" अनीता जी के यह सवाल करने पर, आरव ने शादी में मौजूद अपनी एक फ्रेंड अनन्या की तरफ इशारा करते हुए कहा, "वह है मेरा प्यार, जिससे मैं प्यार करता हूँ। मैं अनन्या से प्यार करता हूँ और देखो ना मॉम, यह भी मुझसे इतना प्यार करती है कि मेरी शादी किसी और से होते हुए, उदासी से देख रही थी।" "इसने मुझे रोका भी नहीं जब मैंने इस से बोला कि मॉम मेरी शादी करवा रही है। यह बस अंदर ही अंदर रो रही थी। इसी वजह से मैं ऐसे कैसे इसको धोखा दे सकता हूँ? इसलिए मैं किसी और लड़की से शादी कैसे कर सकता था?" तभी उसने अनन्या की तरफ प्यार से देखते हुए कहा, "अब मैं अनन्या के साथ ही शादी करूँगा।" जैसे ही आरव ने अनीता जी से यह बात बोली कि वह अनन्या के साथ ही शादी करेगा, तभी आरव के गाल पर एक थप्पड़ पड़ा। यह थप्पड़ आरव को बहुत तेज़ी से उसके गाल पर पड़ा था। इस थप्पड़ की जोरदार गूँज दे रही थी। जब आरव ने यह देखा कि यह थप्पड़ उसे किसने मारा है, तो उसे पता चला कि यह थप्पड़ उसे अनीता जी ने मारा था। अपनी माँ को इस तरह से खुद पर हाथ उठाते हुए देखकर और सब सच बताते हुए देखकर, आरव ने अपनी माँ से कहा, "मॉम, आप क्यों मेरी खुशी नहीं देख रहे हो?" तभी आरव ने अपने पिता से कहा, "डैड, आप ही मॉम को समझाओ। जब मैं रूही से प्यार नहीं करता, मैं अनन्या से प्यार करता हूँ, तो फिर यह मुझे फोर्स क्यों कर रही है?" आरव ने वीरेंद्र जी की तरफ देखते हुए यह सवाल किया। वीरेंद्र जी को भी अपने बेटे की स्थिति समझ में आ रही थी क्योंकि वे जानते थे कि अपने प्यार को छोड़ने का ग़म क्या होता है। क्योंकि एक समय पर उन्होंने भी, ना चाहते हुए, मीनाक्षी जी के होते हुए भी, अनीता जी से दूसरी शादी की थी, बच्चों के लिए, अपने पिता के ज़बरदस्ती करने पर। पर अब वे यह सब दोबारा से अपने बेटे के साथ होते हुए नहीं देखना चाहते थे। जिस वजह से उन्होंने अनीता जी से कहा, "अब बस बहुत हो गया, अनीता! मैंने वह प्रॉपर्टी मीनाक्षी के नाम पर की थी और मीनाक्षी ने रूही को गोद लिया हुआ है, तो सिंपल सी बात है कि उसकी प्रॉपर्टी रूही के नाम पर होगी। और जिस रूही की शादी जिसके साथ हुई है, वह प्रॉपर्टी उसकी होगी। तो अब तुम्हें इस प्रॉपर्टी को लेकर इतना ज़्यादा झगड़ा नहीं करना चाहिए।" तभी वीरेंद्र जी ने अपना आदेश सुनाते हुए अनीता जी से कहा, "और हाँ, मैं यह बोलता हूँ कि अब आरव की शादी अनन्या के साथ ही होगी।" वीरेंद्र जी की यह बात सुनते ही आरव खुश हो गया और उसके चेहरे पर एक खुशी भरी मुस्कान आ गई। उसके मन में शादी के लड्डू फूट गए। वहीं अनन्या भी जहाँ वह खड़ी हुई थी, वहीं पर ही खड़ी-खड़ी शर्मा गई। वहीं दूसरी तरफ, वीरेंद्र जी के यह बात बोलते ही, अनीता जी ने गुस्से से चीखते हुए वीरेंद्र जी से कहा, "नहीं! मैं अपने बेटे की शादी ऐसे ही किसी भी अनजान लड़की के साथ नहीं होने दूँगी। हम तो इस लड़की के परिवार को, उनके स्टेटस को जानते ही नहीं हैं। बस यह आरव की शादी में आई थी, तो ऐसे कैसे हम इसकी शादी आरव के साथ होने दे सकते हैं?" अनीता जी के यह बोलते ही, वीरेंद्र जी ने अनीता जी को समझाते हुए कहा, "अनीता, तुम समझो! आरव अनन्या से प्यार करता है। तो तुम क्या चाहती हो कि तुम्हारा बेटा एक ऐसी लड़की के साथ शादी करके अपनी ज़िंदगी बिताए जिससे वह प्यार ही नहीं करता? अगर हमने ऐसा किया, तो वह इस तरह से अपनी ज़िंदगी कभी भी खुशी से नहीं जी पाएगा। अनीता, तुम समझो! आरव अनन्या से प्यार करता है, तो वह उसके साथ ही खुश रहेगा।" पर अनीता जी को तो बस प्रॉपर्टी की पड़ी हुई थी। उन्हें अभी भी वीरेंद्र जी की कोई भी बात समझ में नहीं आ रही थी। जिस वजह से अनीता जी ने वीरेंद्र जी से गुस्से से कहा, "नहीं! मैं अपने बेटे की शादी उस लड़की के साथ नहीं होने दूँगी।" वहीं जब वीरेंद्र जी ने एक बार फिर अनीता जी को यही हठ करते हुए सुना, और इतना समझाने के बाद भी अपने बेटे की ज़िंदगी भर की खुशियों के साथ खेल खेलते हुए समझौता करते हुए देखा, और वह भी बस एक प्रॉपर्टी के लिए, तो उन्हें अनीता जी पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया। जिस वजह से उन्होंने गुस्से में अनीता जी पर अपना हाथ उठा दिया। वीरेंद्र जी से थप्पड़ पड़ते ही, अनीता जी की आँखों में आँसू आ गए और वे हैरानी भरी नज़रों से वीरेंद्र जी की तरफ देख रही थीं। क्योंकि उन्हें अभी यह यकीन नहीं हो रहा था कि आज वीरेंद्र जी ने उन पर हाथ उठा दिया। क्योंकि आज तक वीरेंद्र जी ने कभी भी अनीता जी पर अपना हाथ नहीं उठाया था। इसलिए अनीता जी जो मन करती थी, वही करती थी, हमेशा अपनी मनमानी करती रहती थी, और वीरेंद्र जी उनको कुछ भी नहीं कहते थे। पर आज वीरेंद्र जी अपने बेटे की खुशियाँ इस तरह से अनीता जी के हाथों बर्बाद होते हुए नहीं देखना चाहते थे, जिस वजह से गुस्से में आकर उन्होंने अनीता जी पर हाथ उठा दिया। वहीं वीरेंद्र जी का थप्पड़ खाकर, अनीता जी का दिल बहुत ज़्यादा दुख रहा था और उन्हें अपने दिल में बहुत ज़्यादा दर्द भी हो रहा था। तभी उन्होंने एक हठी पत्नी की तरह, दोबारा से वीरेंद्र जी से गुस्से से कहा, "चाहे आप अब आरव की शादी इस लड़की के साथ करवा दो, पर मैं आपको पहले ही बता देती हूँ, इस शादी से खुश नहीं हूँ। मैं इस शादी को अपनी मंज़ूरी नहीं दूँगी।" पर अब वीरेंद्र जी भी सब सही करना चाहते थे। उन्हें अब समझ में आ रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी को हद से ज़्यादा बिगाड़ दिया है और उसकी मनमानी चलने दी है, जिस वजह से अब अनीता जी हद हो गई है। इस वजह से वीरेंद्र जी ने अनीता जी से अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "आरव की शादी अनन्या के साथ ही होगी, और इसी मंडप में, अभी होगी।" आपको क्या लगता है? अब अनीता जी इस शादी को रोकने के लिए क्या करेगी? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ीया"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी, तब तक के लिए अलविदा। _____take care of yourself_______ Please like, comment and share और हाँ, प्लीज़ रिव्यू देना मत भूलिएगा। Thank you so much my dear readers. नव्या खान

  • 5. Rab ki marjiyan - Chapter 5

    Words: 1856

    Estimated Reading Time: 12 min

    कहानी अब तक : पर आज वीरेंद्र जी अपने बेटे की खुशियां इस तरीके से अनीता जी के हाथों बर्बाद होते हुए भी नहीं देखना चाहते थे। जिस वजह से गुस्से में आकर उन्होंने अनीता जी के ऊपर हाथ उठा दिया। वहीँ, वीरेंद्र जी का थप्पड़ खाकर अनीता जी का दिल बहुत ज्यादा दुख रहा था, और उन्हें अपने दिल में बहुत ज्यादा दर्द भी हो रहा था। तभी उन्होंने एक हठठी पत्नी की तरह, दोबारा वीरेंद्र जी से गुस्से से कहा, "चाहे आप अब आरव की शादी इस लड़की के साथ करवा दो, पर मैं आपको पहले ही बता देती हूँ, इस शादी से खुश नहीं हूँ। मैं इस शादी को अपनी मंजूरी नहीं दूंगी।" पर अब वीरेंद्र जी भी सब सही करना चाहते थे। उन्हें अब समझ में आ रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी को हद से ज़्यादा बिगाड़ दिया है और उसकी मनमानी चलने दी है, जिस वजह से अब अनीता जी हद पार कर गई हैं। इस वजह से वीरेंद्र जी ने अनीता जी से अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "आरव की शादी अनन्या के साथ ही होगी, और इसी मंडप में अभी होगी।" कहानी अब आगे : वीरेंद्र जी की यह बात सुनकर वहाँ पर सब लोग खड़े-खड़े सन्न रह गए। क्योंकि अब यह पति-पत्नी के बीच का झगड़ा बनकर रह गया था, और सब जानते हैं पति-पत्नी का झगड़ा हमेशा लंबा खिंचता है, और कभी-कभी चुटकियों में जल्दी से हल हो जाता है। कुछ कहा नहीं जा सकता। तभी वीरेंद्र जी ने एक बार दोबारा अपनी बात को दोहराते हुए आरव से कहा, "आरव, मैं बोल रहा हूँ, जाओ अनन्या को मंडप में ले कर जाओ। तुम्हारी शादी अभी ही होगी।" पर अपने माँ-बाप के इस झगड़े को देखकर आरव को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे अभी अपने माँ-बाप का झगड़ा सॉल्व करना चाहिए या फिर अभी इस झगड़े का फायदा उठाकर अपनी शादी अनन्या के साथ कर लेनी चाहिए। बाद में जो होगा, देखा जाएगा। अनीता जी ने जब आरव को अपनी जगह पर ही खड़े हुए देखा और उनको अनन्या को लेकर मंडप में जाने के लिए हिलते हुए भी नहीं देखा, तो अनीता जी के चेहरे पर एक जीत भरी मुस्कान तैर गई। उन्हें अपनी जीत महसूस होती हुई दिख रही थी। वहीं दूसरी तरफ, अब वीरेंद्र जी का गुस्सा हद पार कर चुका था। जिस वजह से उन्होंने एक बार दोबारा आरव से कहा, "आरव, मैंने कहा अभी अनन्या को लेकर मंडप में बैठो।" अपने पिता के यह बात बोलते ही आरव ने अनन्या की तरफ देखा। उसका प्यारा सा, भोला-भाला सा चेहरा देखकर आरव को अनन्या के साथ बिताए अपने पल, पुरानी यादें, सब याद आ गए। उन यादों और पलों को याद करके आरव ने अपने मन में उदास होकर कहा, "सॉरी मॉम, बट मैं अभी डैड की बात से एग्री करता हूँ। अगर मैंने अभी अनन्या के साथ शादी नहीं की, तो फिर आप मेरी शादी कभी भी अनन्या के साथ नहीं करने दोगी, और इस तरह से मेरी अनन्या मुझसे दूर हो जाएगी।" "बस इस वजह से मुझे अभी ही अनन्या के साथ शादी करनी होगी। यही हमारे लिए ठीक होगा।" अपने मन में यह सब बोलकर, और मन ही मन अनीता जी को सॉरी बोलकर, आरव के कदम अब अनीता जी के गुस्से को इग्नोर करते हुए अनन्या की तरफ बढ़ गए। जब अनीता जी ने आरव को अनन्या के साथ शादी करने के लिए आगे बढ़ते हुए देखा, तो उन्हें आरव पर बहुत ज्यादा गुस्सा आया। जिस वजह से उन्होंने अब आरव से गुस्से से कहा, "आरव, मैं कहती हूँ, वहीं रुक जाओ।" पर इस बार आरव ने अनीता जी के गुस्से भरी बात को इग्नोर कर दिया और अनन्या के पास जाकर अनन्या का हाथ पकड़ लिया। जब अनीता जी ने अपने बेटे को इस तरीके से खुद को इग्नोर करते हुए देखा, तो उन्होंने आरव को रोकते हुए गुस्से से कहा, "देखो, तुम जो यह कर रहे हो, यह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। मैं तुम्हारी माँ हूँ, तुम्हारा भला-बुरा सब जानती हूँ। बस इस लिए तुम्हें रोक रही हूँ।" उनके यह बात बोलते ही मंडप में मौजूद सभी लोग अनीता जी की तरफ अजीब सी नज़रों से देखने लगे। वे सब अनीता जी को इस तरीके से इसलिए देख रहे थे क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही अनीता जी अपने बेटे की शादी ज़बरदस्ती, प्रॉपर्टी के लिए, एक ऐसी लड़की के साथ करवा रही थीं जिसके साथ वह शादी करना ही नहीं चाहता था, और जिससे वह प्यार ही नहीं करता था। और अब वह अपनी माँ होने के बारे में, और अपने बच्चों का भला-बुरा सोचने के बारे में, उसे उसके प्यार के साथ शादी करने से रोक रही थीं, जिसके साथ वह शादी करके खुश रहने वाला था। पर अब आरव ने यह डिसाइड कर लिया था कि वह अनन्या के साथ शादी करके ही रहेगा, नहीं तो उसकी माँ कभी भी उसकी शादी अनन्या के साथ नहीं होने देंगी। जिस वजह से वह अनन्या को मंडप में ले कर बैठ गया। फिर पंडित जी ने अनन्या और आरव की शादी के मंत्र पढ़ने शुरू कर दिए, धीरे-धीरे फेरे होने लगे। जब आरव और अनन्या की शादी हो रही थी, तब दुल्हन बनी हुई रूही के दिल में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था क्योंकि वह आरव को पसंद करती थी। कहाँ तो उसकी शादी आरव के साथ होती, पर रूही की किस्मत ने एक ऐसा खेल खेला जिस वजह से रूही आरव के बड़े भाई की दुल्हन बनकर, आरव की शादी अपनी ही शादी के मंडप में किसी और लड़की के साथ होते हुए देख रही थी। वह अंदर ही अंदर रो रही थी। उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, पर उसका दिल बहुत ज्यादा दुख रहा था। फिर पंडित जी ने आरव को अनन्या की मांग में सिंदूर लगाने के लिए और उसके गले में अपने नाम का मंगलसूत्र पहनाने के लिए कहा, "अब वर-वधू की मांग में अपने नाम का सिंदूर लगाइये और उनके गले में अपने नाम का मंगलसूत्र पहनाइये।" पंडित जी के बोलने के अनुसार आरव ने अनन्या को उसके गले में अपने नाम का मंगलसूत्र पहना दिया और अनन्या की मांग में अपने नाम का सिंदूर भी भर दिया। तभी पंडित जी की आवाज सुनाई दी, "विवाह संपन्न हुआ। अब से आप दोनों पति-पत्नी हुए।" पंडित जी के यह बात बोलते ही जहाँ आरव और अनन्या के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और वे मुस्कुराते हुए एक-दूसरे को देखने लगे, वहीं वीरेंद्र जी भी अपने बेटे की शादी होते हुए, और वह भी उसकी शादी उस लड़की के साथ ही होते हुए देखकर, जिसको आरव पसंद करता था, दिल ही दिल में बहुत खुश हो रहे थे। और तभी उन्होंने अपने मन में उदासी से कहा, "देखना अनीता, अभी तुम आरव की इस शादी से बहुत ज्यादा गुस्सा हो, और आरव से और मुझसे दोनों से ही गुस्सा हो, पर एक दिन तुम्हें मेरा यह फैसला ठीक लगेगा कि मैंने आरव की शादी अनन्या के साथ करवाकर ठीक किया और तुम्हें गलत करने से रोक दिया।" वहीं दूसरी तरफ, अनीता जी से यह देखा ही नहीं जा रहा था। और पंडित जी की यह बात सुनकर, इतनी देर से जो अनीता जी खुद के गुस्से को अपने मन के अंदर रखकर खड़ी हुई थीं, वह उनसे कंट्रोल नहीं हुआ। जिस वजह से ज़्यादा गुस्सा आने की वजह से, और ज़्यादा स्ट्रेस लेने की वजह से, अनीता जी को चक्कर आने लगे और देखते ही देखते अनीता जी वहीं पर खड़ी होकर बेहोश होकर गिर पड़ीं। वहीँ, जब आरव ने अपनी माँ को इस तरीके से बेहोश होकर जमीन पर गिरते हुए देखा, तो वह भागकर मंडप में से उठकर अपनी माँ के पास चला गया और फिर उसने अपनी माँ को पकड़ लिया। उसके साथ ही आर्यन ने भी अपनी माँ को पकड़ा हुआ था। फिर आरव ने अपनी माँ को अपनी गोद में उठाया और फिर वह अपनी माँ को अपनी गोद में उठाकर उनके कमरे में ले जाने लगा। कुछ समय बाद डॉक्टर ने आकर अनीता जी को चेक कर लिया। तो तब उसने डॉक्टर से अपनी माँ की फ़िक्र करते हुए डॉक्टर से पूछा, "डॉक्टर अंकल, आप बताइए मेरी माँ अब कैसी है? उनकी हालत कैसी है?" डॉक्टर से आरव के ये सब सवाल पूछते हुए, आरव के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं क्योंकि उसे अभी अपनी माँ को इस तरीके से इग्नोर करने का, और उनके रोकने पर भी ज़बरदस्ती अनन्या के साथ शादी करने का अफ़सोस हो रहा था। पर उसे अपना फैसला भी ठीक लग रहा था, पर अभी वह अपने बेटे होने की भावनाओं की वजह से, और अपनी माँ को इस तरीके से बेहोश होकर गिरते हुए देखने की वजह से, आरव अपनी माँ के लिए फ़िक्र कर रहा था। आरव के सवाल पूछते ही, तभी इशिका ने भी डॉक्टर अंकल से अपनी माँ की फ़िक्र करते हुए फ़िक्र भरी आवाज़ में डॉक्टर से पूछा, "डॉक्टर अंकल, बताइए ना माँ अब कैसी है?" इशिका के भी यह सवाल करने पर डॉक्टर अंकल ने आरव, इशिका और बाकी के सभी फैमिली मेंबर्स की तरफ देखते हुए अनीता जी की हेल्थ के बारे में बताते हुए कहा, "डोंट वरी, ज़्यादा स्ट्रेस की वजह से और बीपी हाई होने की वजह से यह बेहोश हो गई थी। फ़िक्र मत करिए, यह अब ठीक है। बस आप यह दवाइयाँ इनको टाइम टू टाइम देते रहना।" यह बोलते हुए डॉक्टर ने एक दवाइयों की लिस्ट की छोटी सी चिट्ठी आरव के हाथ में पकड़ा दी। वहीं दूसरी तरफ, रूही नील के कमरे में बेड पर दुल्हन बनी हुई बैठी हुई थी और अभी जो भी आज उसकी शादी पर हुआ और किस तरीके से उसकी शादी आरव की जगह पर नील से हो गई, इस सब के बारे में ही सोच रही थी। कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और जब रूही ने घूँघट के अंदर से ही यह जानने के लिए झाँककर देखा कि दरवाज़े पर कौन है, तो तब उसने पाया कि दरवाज़े पर दूल्हे के कपड़े पहने हुए नील खड़ा हुआ था। आपको लगता है आगे क्या होने वाला है? इस धोखे की शादी का अंजाम क्या रहेगा? क्या लिखा है ईश्वर ने इन दोनों की ज़िन्दगी में? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ीया"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी, तब तक के लिए अलविदा। _____take care of yourself_______ Please like, comment and share और हाँ, प्लीज़ रिव्यू देना मत भूलिएगा। Thank you so much my dear readers. नव्या खान

  • 6. Rab ki marjiyan - Chapter 6

    Words: 1615

    Estimated Reading Time: 10 min

    कहानी अब तक: इशिका के सवाल करने पर, डॉक्टर अंकल ने आरव को, इशिका और अन्य परिवार के सदस्यों की ओर देखते हुए, अनीता जी के स्वास्थ्य के बारे में सामान्य भाव से कहा, "डोंट वरी, ज़्यादा स्ट्रेस और बीपी हाई होने की वजह से यह बेहोश हो गई थी। फ़िक्र मत करिए, यह अब ठीक है। बस आप यह दवाइयाँ समय-समय पर देते रहना।" यह बोलते हुए डॉक्टर ने दवाइयों की सूची की एक छोटी-सी चिट्ठी आरव के हाथ में पकड़ा दी। वहीं दूसरी ओर, रूही नील के कमरे में बिस्तर पर दुल्हन बनी बैठी थी और अपनी शादी के दिन घटित घटनाओं और आरव की जगह नील से शादी होने के बारे में सोच रही थी। तभी कमरे का दरवाज़ा खुला। रूही ने घूँघट के अंदर से झाँककर देखा कि दरवाज़े पर दूल्हे के कपड़े पहने नील खड़ा था। कहानी अब आगे: जैसे ही रूही की नज़र दरवाज़े पर खड़े नील पर पड़ी, उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था। नील ने जैसे ही कमरे का दरवाज़ा बंद किया, रूही ने गुस्से से अपना घूँघट उतारकर फर्श पर फेंक दिया। रूही की इस अचानक हरकत से नील दरवाज़े पर ही सन्न रह गया और हैरानी से उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। क्योंकि जब वह अपने कमरे में आया था, तब रूही शांत भाव से दुल्हन बनी, फूलों से सजी सेज पर बैठी थी। अब अचानक उसे इतना गुस्सा क्यों आ गया था? इतने में ही, नील के सोचते रहने पर, रूही गुस्से से नील पर बरस पड़ी और गुस्से से बोली, "किससे पूछकर तुमने मेरे साथ शादी की? तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई? जो तुमने दूल्हा बदल दिया, बोलो?" यह सब बोलते हुए, रूही अपने दुल्हन के लहंगे को पकड़े हुए नील के पास आकर खड़ी हो गई। फिर उसने एक बार फिर नील से गुस्से से, एक हाथ से लहंगा छोड़कर, उंगली नील की ओर दिखाते हुए कहा, "अब तुम चुप क्यों खड़े हो मेरे सामने? कुछ बोलते क्यों नहीं हो? मेरे साथ शादी करने से पहले तो तुम्हें एक बार मेरी राय पूछ लेनी चाहिए थी। अब तुम कुछ बोलोगे भी या ऐसे ही खड़े रहने वाले हो? कहीं तुम इस तरह से चुप होकर यह तो नहीं सोच रहे हो कि मंडप में जब मुझे पता चला कि तुमने मेरे साथ धोखे से शादी कर ली है, तो मैंने तुम्हारे से कुछ क्यों नहीं कहा?" यह सवाल नील से पूछकर रूही ने खुद ही जवाब दिया, "क्योंकि तब वहाँ घर के सब बड़े मौजूद थे और मेरी माँ तुम्हारे इस धोखे और इस शादी से, और आज घर में हुए इस ड्रामे से परेशान थी। मैं तब उनको और ज़्यादा परेशान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब माँ परेशान होती है।" तब उसकी नज़रें उसके सामने खड़े नील पर गईं, जो हैरानी भरी नज़रों से उसकी बातें सुन रहा था। इसलिए उसने बहुत ज़्यादा एटीट्यूड के साथ नील से कहा, "कहीं अब तुम्हें मेरे साथ शादी करने का पछतावा तो नहीं हो रहा है ना? कि तुमने मेरे साथ शादी करके गलती कर दी है? तो देखो, मैं तो बदलने वाली नहीं हूँ। मैं इतना ही बोलती हूँ। और रही बात तुम्हारी मुझसे तलाक लेने की, तो वह मैं तुम्हें लेने नहीं दूँगी क्योंकि तुमने खुद धोखे से मेरे साथ शादी की है। मैं कोई तुम्हारे साथ शादी करने के लिए मजबूर नहीं थी, समझे? तुमने खुद ही मेरे साथ शादी की, तो अब इतनी आसानी से मैं तुम्हें तलाक तो नहीं दूँगी।" यह सारी बात रूही ने एक ही साँस में बोल दी थी। यह सब बोलकर रूही चुप हो गई। तभी नील ने रूही से गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, "क्या तुम हमेशा ही इतना बोलती हो? या आज तुम मेरे सामने ही इतना ज़्यादा बोल रही हो?" नील का यह सवाल सुनकर रूही ने बहुत खुश होते हुए कहा, "मेरा तो हमेशा का ही है।" रूही की यह बात सुनकर नील ने गहरी साँस लेते हुए रूही से कहा, "अच्छा, मुझे लगा कि तुम आज ही बस मेरे सामने ऐसा बोल रही हो।" तभी उसने उदास होते हुए, गिल्टी भरी आवाज़ में, रूही से शादी करने के लिए माफ़ी माँगते हुए कहा, "आई एम रियली सॉरी रूही, पर मैंने यह सब जानबूझकर नहीं किया। तुमने सब बाहर सुना ही नहीं कि मैंने यह सब क्यों किया और किस वजह से किया?" तभी उसने रूही को वजह बताते हुए कहा, "क्योंकि आरव तुम्हारे से प्यार नहीं करता था। वह तुम्हारे साथ शादी नहीं करना चाहता था, जबकि वह अनन्या से प्यार करता था। इस वजह से मैं यह नहीं चाहता था कि वह तुम्हारे साथ जबरदस्ती की शादी करके तुम्हारी ज़िंदगी खराब कर दे और अपनी भी।" जैसे ही नील ने अपनी यह बात कही, रूही ने जोर-जोर से तालियाँ बजाते हुए नील से व्यंग भरे लहजे में कहा, "अच्छा, तो तुम यह जबरदस्ती की शादी करके आरव के साथ नहीं करवाकर मेरी ज़िंदगी खराब नहीं होने देना चाहते थे, और जो तुमने खुद यह जबरदस्ती और धोखे की शादी मेरे साथ की है, उसका क्या? उससे मेरी ज़िंदगी खराब नहीं होगी क्या? वाह! यह क्या बात हुई?" रूही की इस व्यंग भरी बात को नील अच्छी तरह समझ रहा था। उसे यह भी समझ में आ रहा था कि रूही इस तरह से शादी करने से बहुत नाराज़ है और उसे इस बात से बहुत झटका भी लगा है। तभी उसने एक बार फिर रूही से सॉरी बोलते हुए कहा, "आई एम रियली सॉरी रूही, पर मेरे साथ और आरव के साथ शादी करने में बहुत फ़र्क है, क्योंकि आरव पहले ही किसी और लड़की के साथ प्यार करता था और मैं किसी और लड़की के साथ प्यार नहीं करता।" जैसे ही रूही ने नील की यह बात सुनी कि वह किसी और लड़की से प्यार नहीं करता, उसकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने हैरानी भरी नज़रों से नील को देखते हुए पूछा, "क्या सच में तुम इतने ज़्यादा ओल्ड...?" फिर उसने अपनी बात को संभालते हुए नील से कहा, "मतलब इतने बड़े हो तो मुझे लगा कि तुम्हारी तो पक्का कोई न कोई गर्लफ्रेंड होगी ही।" रूही के सवाल को सुनकर नील की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं क्योंकि रूही उसे बूढ़ा बोल रही थी। इसलिए उसने अपनी उम्र की सफाई देते हुए रूही से कहा, "मैं ओल्ड नहीं हूँ। मैं सिर्फ़ आरव से 1 साल ही बड़ा हूँ, तो फिर मैं ओल्ड कैसे हो सकता हूँ?" नील का यह जवाब सुनकर रूही ने फिर भी नील को परेशान करते हुए कहा, "हाँ तो ठीक है ना, बड़े तो हो ही ना। तुम चाहे एक साल ही क्यों ना हो और मेरे से तो तुम वैसे भी 5 साल बड़े हो गए।" रूही के उम्र को लेकर इतनी कैलकुलेशन करते देखकर नील को बहुत बूढ़ा महसूस हो रहा था। वह तो अभी 26 साल का ही था, पर रूही उसे बूढ़ा बोल रही थी। नील को ऐसा लग रहा था जैसे रूही उसे यह बोल रही हो कि उसे बूढ़ा मिल गया। यह सब सोचते हुए, नील के मन में वह पुराना गाना भी याद आ गया: "मैं क्या करूँ राम, मुझे बूढ़ा मिल गया, बूढ़ा मिल गया।" तभी, नील कुछ बोल पाता उससे पहले ही, रूही की नज़र खिड़की से बाहर चली गई। जिस वजह से उसकी एक जोर की चीख निकल गई, "आआआहह!" आपको क्या लगता है रूही ने खिड़की से बाहर क्या देखा होगा जिससे वह इतना डर गई? आपको क्या लगता है आगे क्या होने वाला है? इस धोखे की शादी का अंजाम क्या रहेगा? क्या लिखा है ईश्वर ने इन दोनों की ज़िंदगी में? आगे इस कहानी का क्या मोड़ आने वाला है, यह जानने के लिए पढ़िए यह कहानी, "रब की मर्ज़िया"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा। _____take care of yourself_______ Please like, comment and share और हाँ, प्लीज़ रिव्यू देना मत भूलिएगा। Thank you so much my dear readers. नव्या खान

  • 7. Rab ki marjiyan - Chapter 7

    Words: 1168

    Estimated Reading Time: 8 min

    "मैं ओल्ड नहीं हूँ, मैं सिर्फ आरव से एक साल ही बड़ा हूँ, तो फिर मैं ओल्ड कैसे हो सकता हूँ?" नील का यह जवाब सुनकर रूही ने फिर भी नील को परेशान करते हुए कहा, "हाँ तो ठीक है ना, बड़े तो हो ही ना। तुम चाहे एक साल ही क्यों ना बड़े हो और मेरे से तो तुम वैसे भी पाँच साल बड़े हो गए।" रूही के उम्र को लेकर इतनी ज्यादा कैलकुलेशन करते हुए देखकर नील को अब बहुत ज्यादा बूढ़ा महसूस हो रहा था क्योंकि वह तो अभी बस छब्बीस साल का ही था और फिर भी रूही उसे बूढ़ा बोल रही थी। नील को रूही की बातें सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे रूही उसे यह बोल रही हो कि उसे बूढ़ा मिल गया। यह सब अपने मन में सोचते हुए ही नील के मन में वह पुराना गाना भी याद आ गया। "मैं क्या करूँ राम, मुझे बूढ़ा मिल गया, बूढ़ा मिल गया।" तभी रूही से नील कुछ बोल पाता, उससे पहले ही रूही की नज़र खिड़की से बाहर चली गई, जिस वजह से उसकी एक जोर की चीख निकल गई। "आआआहह!" जैसे ही नील ने रूही की इतनी डरी हुई चीख सुनी, उसने रूही से उसकी फ़िक्र करते हुए पूछा, "क्या हुआ रूही, जो तुम इतना डर गई हो?" पर रूही अभी भी बहुत डरी हुई थी और यह डर उसके चेहरे पर अभी भी साफ़-साफ़ देखा जा सकता था। तभी उसने डरते हुए, घबराते हुए नील से कहा, "तुम...तुम्हारे पी..पी..पीछे बहुत बड़ा साँप है।" जैसे ही नील ने रूही की यह बात सुनी कि उसके पीछे साँप है, तो नील घबराते हुए एकदम से अपने पीछे पलटकर देखा। और जैसे ही उसने अपने पीछे पलटकर देखा, तो उसने पाया कि उसके पीछे तो कोई भी साँप नहीं था। क्योंकि रूही की यह साँप होने वाली बात बोलते ही, वह जो बड़ा साँप, सलेटी रंग का था, अभी नील के पीछे खड़ा हुआ था, वह अब एकदम से खिड़की से बाहर चला गया था। जिस वजह से अपने पीछे किसी भी साँप को ना पाकर, तभी नील ने एक बार दोबारा रूही की तरफ़ पलटकर, हैरानी से कहा, "तुम यह क्या बोल रही हो? वहाँ पर तो कोई भी साँप नहीं है। देखो, मुझे डराना बंद करो, मैं किसी साँप से नहीं डरता।" पर रूही अभी भी नील से कुछ नहीं बोल रही थी। वह बहुत डरी हुई थी और डर और घबराहट अभी उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ देखा जा सकता था। और वह इसी घबराहट के साथ अभी बस नील के पीछे खड़े उस सलेटी रंग के साँप को देख रही थी क्योंकि अब वह साँप दोबारा खिड़की से होते हुए, एक बार दोबारा नील के पीछे आकर खड़ा हो गया था। तभी वह साँप नील की तरफ़ बढ़ने लगा, जिस वजह से डर की वजह से रूही की साँसें ऊपर नीचे चलने लगी थीं और उसके दिल की धड़कन बढ़ गई थी। जिस वजह से उसने जल्दी से नील का हाथ पकड़कर अपनी तरफ़ खींच लिया। इस तरीके से अचानक से नील का हाथ पकड़कर खींचने की वजह से वह साँप अब वहाँ से वापस खिड़की से होते हुए चला गया। और इस तरीके से नील का हाथ खींचने की वजह से नील और रूही दोनों फूलों से सजी हुई सेज पर गिर गए थे। क्योंकि यह सब इतनी जल्दी हुआ कि रूही को संभलने का मौका ही नहीं मिला और इस वजह से अब वह दोनों ही बेड पर गिर गए थे। रूही के नील को एक झटके से खींचने की वजह से रूही सीधा नील के सीने से जा टकराई। नील के सीने से टकराने की वजह से रूही को कुछ हार्ड सा फील हुआ क्योंकि नील की चेस्ट बहुत स्ट्राँग थी। और दूसरी तरफ़ नील को भी रूही के ऐसे टकराने की वजह से एक करंट का झटका सा फील हुआ था। और उन दोनों के गिरने की वजह से उन दोनों की एक्सिडेंटल किस हो गई, और उन दोनों के होंठ एक-दूसरे से टकरा गए। "तेरे सामने आ जाने से, यह दिल मेरा धड़का है, यह गलती नहीं है तेरी, कसूर नज़र का है, तेरे सामने आ जाने से, यह दिल मेरा धड़का है, यह गलती नहीं है तेरी, कसूर नज़र का है, जिस बात का तुझको डर है, वो करके दिखा दूँगा।" और इस एक्सिडेंटल किस की वजह से उन दोनों के माइंड पूरी तरह से ब्लैंक हो गए थे, जिस वजह से वे दोनों कुछ भी सोचने-समझने की हालत में नहीं थे। और उन दोनों की दिल की धड़कनें बुलेट ट्रेन की स्पीड से चल रही थीं और उन दोनों की साँसें नॉर्मल से ज़्यादा बढ़ गई थीं। जिस वजह से उन दोनों का सीना ऊपर नीचे हो रहा था और वह दोनों भी इस बात को बहुत अच्छी तरह से महसूस कर पा रहे थे। "ऐसे ना मुझे तुम देखो, सीने से लगा लूँगा। तुमको मैं चुरा लूँगा तुमसे, दिल में छुपा लूँगा। ऐसे ना मुझे तुम देखो, सीने से लगा लूँगा। तुमको मैं चुरा लूँगा तुमसे, दिल में छुपा लूँगा।" उन दोनों के गिरने की पोज़िशन कुछ इस तरह थी कि नील बेड पर गिरा हुआ था और उसके ऊपर रूही गिरी हुई थी। एक हाथ रूही का नील के हाथ में था और उसका दूसरा हाथ नील के कंधे पर था। उसे देखकर ऐसा लगता था कि उसने अपने उस हाथ से नील के कंधे को पकड़कर खुद को नीचे गिरने से बचाने की नाकाम कोशिश की थी। "तुमसे पहले, तुमसा कोई, हमने नहीं देखा। तुमसे पहले, तुमसा कोई, हमने नहीं देखा। तुम्हें देखते ही, मर जाएँगे, यह नहीं था सोचा। बाहों में तेरी मेरी, यह रात ठहर जाए, तुझ में है कहीं पे मेरे, सुबह भी गुज़र जाए। बाहों में तेरी मेरी, यह रात ठहर जाए। तुझ में ही कहीं पर मेरी, सुबह भी गुज़र जाए।" पर अफ़सोस, वह खुद को ऐसा करके भी नीचे गिरने से नहीं बचा पाई और नील के साथ-साथ नील के ऊपर ही गिर गई। अब पूरा एक मिनट होने को आया था पर वे दोनों अभी भी ब्लैंक होकर एक-दूसरे की आँखों में पूरी तरह से डूबे हुए थे और उन दोनों के होंठ अभी भी एक-दूसरे के होंठों से चिपके हुए थे। "जिस बात का तुझको डर है, वो करके दिखा दूँगा। ऐसे ना मुझे तुम देखो, सीने से लगा लूँगा। मुझको मैं चुरा लूँगा तुझसे, दिल में छुपा लूँगा।" नील तो इस समय भी रूही की थोड़ी-थोड़ी कत्थई सी और थोड़ी सुरमे-भुरी आँखों में खो ही गया था। वह रूही को बिना पलक झपकाए देखे जा रहा था। रूही भी नील की काली आँखों में एकटक देख रही थी। दोनों ही इस वक़्त सब कुछ भूलकर एक-दूसरे को ही देख रहे थे और एक-दूसरे में ही पूरी तरह से खोये हुए थे। उन दोनों के होंठ अभी भी एक-दूसरे के होंठ से चिपके हुए थे। "आपको क्या लगता है आगे क्या होगा इन दोनों की ज़िन्दगी में? क्या आज ही इन दोनों की यह फ़र्स्ट नाइट मुकम्मल हो जाएगी? या अभी इनके मिलने में समय है?" "आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी 'रब की मर्ज़ियाँ'"

  • 8. Rab ki marjiyan - Chapter 8

    Words: 2061

    Estimated Reading Time: 13 min

    पर अफ़सोस, वह खुद को ऐसा करके भी नीचे गिरने से नहीं बचा पाई और नील के साथ-साथ नील के ऊपर ही गिर गई। अब पूरा एक मिनट होने को आया था, पर वे दोनों अभी भी, एक दूसरे की आँखों में पूरी तरह डूबे हुए, खोये-खोये थे; और उनके होठ अभी भी एक-दूसरे के होठों से चिपके हुए थे।

    "जिस बात का तुझे डर है, वो करके दिखा दूँगा।"

    "ऐसे ना मुझे तुम देखो, सीने से लगा लूँगा।"

    "मुझको मैं चुरा लूँगा तुझसे, दिल में छुपा लूँगा।"

    नील तो इस समय भी रूही की थोड़ी-थोड़ी कत्थई सी और थोड़ी सुरमे-भुरी आँखों में खो ही गया था। वह रूही को बिना पलक झपकाए देखे जा रहा था।

    रूही भी नील की काली आँखों में एकटक देख रही थी। दोनों ही इस वक़्त सब कुछ भूलकर एक-दूसरे को ही देख रहे थे और एक-दूसरे में ही पूरी तरह खोये हुए थे।

    उन दोनों के होंठ अभी भी एक-दूसरे के होठों से चिपके हुए थे।

    जब रूही का नील पर से ध्यान टूटा और उसे यह एहसास हुआ कि वह अभी नील के ऊपर है, तो तब वह नील के ऊपर से उठने की नाकाम कोशिश करने लगी।

    पर इतनी कोशिश करने पर भी वह नील के ऊपर से उठ ही नहीं पा रही थी क्योंकि नील ने अभी रूही को उसकी कमर से कसकर पकड़ा हुआ था।

    जब रूही को यह महसूस हुआ कि नील उसे छोड़ने के मूड में ही नहीं है, तो उसने नील को गुस्से से देखते हुए उससे गुस्से से कहा, "छोड़ो मुझे! मैंने कहा ना, छोड़ो मुझे!"

    जब नील के कानों में रूही की गुस्से भरी आवाज़ सुनाई दी, तो तभी जाकर नील अपने होश में वापस आया। और फिर जब उसे यह एहसास हुआ कि वह अभी क्या कर रहा है,

    यह ध्यान में आते ही उसने रूही की पतली कमर को अपने सख्त हाथों की पकड़ से झट से आज़ाद कर दिया और फिर वह एकदम से उठकर सीधा खड़ा हो गया। फिर उसने रूही की तरफ़, उसे बेड पर से ऊपर उठाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए रूही से कहा, "आई एम सॉरी, रूही।"

    पर फिर भी रूही ने नील का हाथ नहीं पकड़ा और फिर रूही ने नील को गुस्से से देखते हुए कहा, "मैं खुद उठ सकती हूँ। मुझे तुम्हारी हेल्प की कोई ज़रूरत नहीं है। बड़े आए मुझे उठाने वाले! अगर तुम मेरी हेल्प करने की कोशिश ना करते, ना तो मैं खुद को संभाल लेती। तुम्हारे संभालने के चक्कर में मैं भी तुम्हारे साथ-साथ नीचे गिर गई।"

    क्योंकि जब रूही ने नील को अपनी तरफ़ खींचा था, तो नील ने रूही को नीचे गिरने से बचाने की और खुद को भी नीचे गिरने से बचाने की नाकाम कोशिश की थी, पर वह फिर भी रूही को नीचे गिरने से नहीं बचा पाया था।

    रूही नील पर इतना गुस्सा इसलिए थी क्योंकि वह सच में अभी नील से गुस्सा थी। नील ने एक तो धोखे से शादी कर ली थी और अब उसका यह किस भी हो गया था।

    दूसरी तरफ़, नील को भी अब रूही की बातों से गुस्सा आने लगा था। इसलिए उसने भी थोड़ी गुस्से भरी आवाज़ में रूही से गुस्से से कहा, "मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी हेल्प करने की कोशिश कर रहा था। तुम इतना गुस्सा क्यों हो रही हो बिना वजह ही?"

    यह बात तो नील भी जानता था कि रूही बिना वजह के गुस्सा नहीं हो रही है, क्योंकि एक तो उसने धोखे से रूही से शादी कर ली थी और अब उनका किस भी हो गया था, पर फिर भी वह अभी गुस्से से रूही से यह बोल रहा था।

    तभी रूही ने नील की यह बात सुनकर अपनी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी कर लीं और उसने अपनी इन हैरानी भरी नज़रों से नील की तरफ़ देखते हुए नील से गुस्से से पूछा, "क्या मैं बिना वजह ही तुम्हारे ऊपर गुस्सा हो रही हूँ? बोलो!"

    रूही के इस जवाब का अभी नील के पास कोई जवाब नहीं था, जिस वजह से अभी उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था। तभी उसे रूही का यूँ साँप-साँप चिल्लाना याद आया और फिर खुद ही उसे अपनी तरफ़ खींचना भी।

    जिस वजह से उसने रूही पर उल्टा गुस्सा करते हुए कहा, "तुमने ही तो मुझे अपनी तरफ़ साँप-साँप चिल्लाते हुए खींचा था, पर मुझे तो यहाँ पर कहीं भी कोई साँप नहीं दिख रहा है?"

    नील के यह बात बोलते ही रूही चुप हो गई और तभी उसे उस ग्रे कलर के साँप के बारे में याद आ गया। जिस वजह से उसे वह साँप याद आते ही वह इधर-उधर अपनी नज़रें दौड़ाकर पूरे रूम में उस साँप को ढूँढ़ने लगी।

    वहीँ, जब नील ने रूही को इस तरह पूरे रूम में कुछ ढूँढ़ते हुए देखा, तो उसने रूही से मज़ाकिया लहजे में कहा, "क्या ढूँढ़ रही हो वो साँप? तो मैं तुम्हें बता देता हूँ, यहाँ पर कोई भी साँप नहीं है।"

    नील की यह बात सुनकर रूही ने अपने मन में सोचते हुए कहा, "यहाँ तो कोई भी ग्रे कलर का साँप नहीं है। मैंने तो यहाँ पर वो बड़ा सा साँप देखा था। कहाँ गया?"

    और फिर उसने रूम की खिड़की बंद कर दी ताकि वह साँप एक बार दुबारा से रूम में ना आ जाये। क्योंकि रूही को बचपन से ही साँप से बहुत डर लगता था और हमेशा ही साँप को देखकर वह बहुत ज़्यादा डर जाती थी।

    और फिर रूही उस साँप के बारे में सोचती हुई ही, यूँ बिना नील की बातों पर ध्यान दिए ही, उस साँप के बारे में सोचती हुई सीधा बेड की तरफ़ जाने लगी और फिर वह ब्लैंकेट को ओढ़कर लेट गई।

    रूही की इस हरकत को नील अपनी बड़ी-बड़ी आँखें करके देख रहा था। तभी उसने रूही से कहा, "रूही, नाईट ड्रेस चेंज कर लो। तुम्हें इन कपड़ों में सोने में प्रॉब्लम होगी।"

    नील की इस बात से अभी रूही को नील पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। क्योंकि एक तो नील ने उससे धोखे से शादी कर ली थी और दूसरा उनका यह किस और नील का उससे इस तरह से झगड़ा करना, इस सब से अभी रूही को नील पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था।

    जिस वजह से उसने नील की इस बात का गुस्से से जवाब देते हुए कहा, "मैं तो इन ही कपड़ों में सोऊँगी। मेरी मर्ज़ी, मैं चाहे जिन कपड़ों में सोऊँ। तुम बस अपने काम से काम रखो और मुझे सोने दो शांति से।"

    जब नील ने रूही का ऐसा जवाब सुना, तो तब उसे रूही पर गुस्सा आ गया, पर फिर भी उसे पता था कि गलती उसकी ही थी। जिस वजह से अब उसने रूही से आगे कुछ भी नहीं कहा, पर उसने अपने मन में सोचते हुए कहा, "मैं तो बस इसके बारे में सोचकर इसे कपड़े चेंज करने को बोल रहा था, पर यह तो कुछ सुनती ही नहीं है। नील बेटा, इसने सही कहा। तूने खुद इसके साथ शादी की है और वह भी धोखे से, तो नील बेटा तू ही झेल अब इसे। यह तो बहुत बोलती है, बाप रे! अपने सामने किसी को बोलने ही नहीं देती, बड़बोली!"

    यह सब अपने मन में सोचते हुए, और फिर वह भी सीधे ही अलमारी की तरफ़ अपने कदम बढ़ाकर अलमारी की तरफ़ जाने लगा।

    अलमारी के अंदर से उसने अपने नाईट कपड़े लिए और फिर रूही को देखता हुआ बाथरूम में अपने कपड़े चेंज करने चला गया। अपने कपड़े चेंज करके वह अपने रूम के अटैच्ड स्टडी रूम की तरफ़ चल गया और वहाँ जाकर उस रूम के सोफ़े पर लेट गया।


    वह जब लेटा हुआ था, तो उसे बार-बार थोड़े समय पहले हुई रूही के साथ उसकी घटना ही याद आ रही थी। उस घटना को याद करके उसने खुद से, अपने मन में सोचते हुए कहा, "नील, आज क्या हो गया था तुझे? क्यों तू उसकी आँखों में इस तरह से खो गया था? क्यों तू उस लड़की को ऐसे देख रहा था? तू तो नहीं है ना ऐसा, तो फिर क्यों? क्यों आज फर्स्ट टाइम तू उस लड़की के इतने करीब गया? उसके होठों का वह एहसास तुझे क्यों इतना अच्छा लगा? जब वह गिर रही थी तो उसे नीचे गिरने देता, वैसे भी तो तूने यह शादी सिर्फ़ अपनी आरव के कहने पर ही तो की है। तो फिर ऐसा क्या है उस लड़की में, जिससे मैं खुद पाँच दिन पहले ही मिला हूँ? क्यों खींचा जा रहा हूँ मैं उस लड़की की ओर?"

    यह सब सोचते-सोचते ही और खुद से सवाल करते-करते ही नील कब नींद में चला गया, उसे पता ही नहीं चला और यूँ ही धीरे-धीरे वह गहरी नींद में चला गया।

    वहीं दूसरी तरफ़, अभी रूही भी नील के बारे में ही सोच रही थी, पर उसके मन में और दिमाग में नील के लिए कुछ अच्छा नहीं चल रहा था और ना ही वह उसके बारे में कुछ अच्छा सोच रही थी।

    वह तो नील के रूम से जाते ही अपनी चादर को हटाकर रूम से जाते हुए नील को देख रही थी और फिर उसने अपने मन में सोचते हुए कहा, "अच्छा हुआ गया धोखेबाज इंसान रूम से। नहीं-नहीं, इंसान है ही नहीं यह, यह तो पूरा का पूरा शैतान है। यह तो इंसान कहलाने के लायक ही नहीं है। इसको शैतान कहना ही सही है, शैतान कहिए। इसने मेरे साथ धोखे से शादी की ना, मैंने भी इसे अच्छा सबक नहीं सिखाया ना, तो मेरा नाम भी रूही नहीं। हाँ, कसम से!"

    यह बात बोलते ही रूही को आरव की याद आ गई, जिस वजह से अब उसकी आँखें सूनी हो गईं; उन आँखों में एक खालीपन दिखाई देने लगा।

    आरव के बारे में सोचते हुए रूही ने किसी मुरझाए फूल की तरह मुरझाए हुए कहा, "आरव, तुमने क्यों किया ऐसा? तुमने क्यों मेरी शादी नील के साथ करवाई? तुम्हें पता है मैं तुम्हें कितना..." अभी रूही इतना ही बोल पाई थी कि उसकी आँखों में आँसू आने शुरू हो गए।

    फिर रूही ने कुछ भी नहीं कहा। अब रूही के मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे; वह चुप हो गई और निकल रहे थे तो बस आँसू, क्योंकि अब उसकी आँखों से बिना उसके मुँह से आवाज़ किये वह रोने लगी थी।

    अभी उसकी आँखों से आँसुओं की बूँदें उसके गालों से होते हुए नीचे गिर रही थीं।

    अभी रूही का दिल बहुत ज़्यादा दुख रहा था, जिस वजह से रूही रोती हुई बिस्तर पर एक साइड की करवट लेकर लेट गई और जाने कब तक वह इसी तरह रोती रही और रोते-रोते ही रूही धीरे-धीरे गहरी नींद में चली गई, ठीक रात के बारह बजे। रूही को एक सपना दिख रहा था जिसमें रूही रो रही थी।


    आपको क्या लगता है रूही को सपने में क्या दिख रहा होगा, जो रूही इस तरह से फूट-फूट कर रो रही थी?

    आपको क्या लगता है आगे क्या होगा इन दोनों की ज़िन्दगी में? क्या आज ही इन दोनों की यह फर्स्ट नाईट मुकम्मल हो जाएगी? या अभी इनके मिलने में समय है?

    आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "धोखे से बंधा एक रिश्ता"।

    अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी।

    तब तक के लिए अलविदा।

  • 9. Rab ki marjiyan - Chapter 9

    Words: 1516

    Estimated Reading Time: 10 min

    नील को कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला। वह धीरे-धीरे गहरी नींद में सो गया।

    उधर, रूही नील के बारे में ही सोच रही थी। उसके मन में नील के लिए कुछ अच्छा नहीं चल रहा था, और वह उसके बारे में कुछ अच्छा भी नहीं सोच रही थी।

    नील के कमरे से जाते ही उसने अपनी चादर हटाई और जाते हुए नील को देखा। फिर उसने मन ही मन सोचा, "अच्छा हुआ गया धोकेबाज़ इंसान कमरे से। नहीं नहीं, इंसान है ही नहीं ये, ये तो पूरा का पूरा शैतान है। ये तो इंसान कहलाने के लायक ही नहीं है। इसको शैतान कहना ही सही है, शैतान! इसने मेरे साथ धोखे से शादी की ना, मैंने भी इसको अच्छा सबक नहीं सिखाया ना, तो मेरा नाम भी रूही नहीं। हाँ कसम से!"

    यह सब सोचते हुए और नील को बुरा-भला कहते हुए रूही भी धीरे-धीरे गहरी नींद में चली गई। ठीक रात के बारह बजे रूही को एक सपना दिखा, जिसमें वह रो रही थी।

    रूही को बहुत डरावना सपना दिख रहा था। सपने में दो नाग-नागिन का जोड़ा था। किसी ने नागिन के नाग को मार दिया था, और बेचारी नागिन अपने नाग से दूर हो गई थी। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, और वह बहुत रो रही थी। सपने में भी रूही को उस नागिन का दुख बहुत अच्छी तरह से महसूस हो रहा था, और वह उसके लिए रो रही थी।

    तभी रूही को सपने में उस नागिन की आँखों में बदले की आग दिखने लगी। फिर उसने देखा कि नागिन एक-एक करके अपने नाग के कातिलों को मार रही है। रूही को नागिन को इस तरह कातिलों को मारते हुए देखकर बहुत खुशी हो रही थी। जैसे हीरो विलेन को मारता है, दर्शकों को वैसी ही खुशी रूही को भी हो रही थी।

    रूही को यह नागिन का सपना ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई मूवी देख रही हो। वह नाग-नागिन के जोड़े के बिछड़ने के दुख और नागिन के बदले का बहुत मज़ा ले रही थी। तभी उसने सपने में देखा कि एक शूटर की गोली नागिन को लग गई। नागिन ज़ख्मी हो गई, और उसकी बॉडी से खून निकलने लगा। पर फिर भी नागिन शूटर को मारने के लिए उसकी तरफ़ उछल पड़ी। रूही सपना देखते-देखते चिल्लाने लगी। सपने में वह बोल रही थी, "हाँ हाँ, मार डालो उसे! हाँ हाँ, मार डालो उसको, ज़िंदा मत छोड़ना!"

    रूही के जोर-जोर से चिल्लाने से नील की भी नींद खुल गई। उसने रूही की आवाज़ सुनी, तो जल्दी से रूही के पास आ गया।

    उसने रूही को सोते हुए देखा और उसे सपने में बोलते हुए सुना। उसकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने मन में सोचा, "इस लड़की का कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। एक तो यह बड़बोली है, मतलब ज़्यादा बोलती है, और अब पता चल रहा है कि इसको नींद में बोलने की भी आदत है। क्या यह कोई फ़िल्मी स्टोरी का सपना देख रही है? जो यह ऐसे चिल्ला रही है, 'मार डालो, मार डालो'!"

    यह सब सोचते हुए नील ने नींद की उबासी लेते हुए कहा, "इसने इस तरह से शोर मचाकर मेरी नींद खराब कर दी। अब मैं भी इसकी नींद खराब करूँगा।"

    यह सब मन में सोचने के बाद नील के चेहरे पर शैतानी भरे एक्सप्रेशन आ गए। फिर उसने जल्दी से सोई हुई रूही को जोर-जोर से हिलाते हुए घबराहट भरे एक्सप्रेशन के साथ पूछा, "रूही! उठो, रूही! उठो अब, उठ भी जाओ! क्या हुआ? क्या तुमने कोई डरावना सपना देखा? जो तुम इस तरह से चिल्ला रही हो?"

    नील के जोर-जोर से हिलाने पर रूही नींद से जाग गई। उसका सपना टूट गया, और वह अपने सपनों की दुनिया से बाहर निकल आई। उसने हैरानी भरी नज़रों से नील को देखते हुए गुस्से से पूछा, "हे! तुम मेरे कमरे में कैसे आए? वह भी इतनी रात को! तुम्हें शर्म नहीं आती एक लड़की के कमरे में इस तरह से इतनी रात को आते हुए? मैं अभी माँ को तुम्हारी शिकायत करती हूँ कि तुम ऐसे बिना इजाज़त के मेरे कमरे में आ गए।"

    रूही की बातें सुनकर नील को भी गुस्सा आ गया। उसने रूही से जोर से कहा, "रूही! मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आया हूँ। यह मेरा ही कमरा है, और तुम ही मेरे कमरे में सोई हुई हो। एक तो मैंने तुम्हें तुम्हारे डरावने सपने से उठाया, और दूसरा तुम उल्टा मुझे कुछ-कुछ बोल रही हो।"

    रूही ने नील की बातें सुनीं, तो उसे अपनी शादी का सच याद आ गया। उसे याद आया कि उसकी शादी नील के साथ हो चुकी है। इसी वजह से नील इस कमरे में है। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने धीरे से नील से कहा, "आई एम सॉरी। मुझे सपने में ध्यान नहीं रहा।"

    इतना बोलते ही रूही चुप हो गई। उसे बहुत नींद आ रही थी, और वह बहुत नींद में भी थी। नील को सॉरी बोलने के बाद वह चादर ओढ़कर बिस्तर पर लेट गई और आँखें बंद कर लीं। कुछ ही देर बाद वह दोबारा गहरी नींद में चली गई।

    नील उसे बड़ी-बड़ी आँखों से सोते हुए देख रहा था। उसने मन में रूही के बारे में सोचा, "और तीसरी बात, यह कुंभकरण भी है। मेरे को इस तरह से जोर-जोर से हिलाने पर भी, और उसकी नींद पूरी तरह से खुलने पर भी, यह एक बार बस मुझे एक सॉरी बोलकर इतना सब कुछ सुनाकर दोबारा इस तरह से सो गई, जैसे यह घोड़े-तबले सब कुछ बेचकर सो रही हो। देखो तो मेरी नींद खराब करके कैसे मजे की नींद सो रही है।"

    यह सब सोचते हुए नील अपना मुँह बिगाड़ता हुआ एक बार फिर सोने के लिए स्टडी रूम की तरफ़ चला गया। वह अपने सोफ़े पर लेट गया, पर काफी देर तक इधर-उधर करवट बदलने के बाद भी नील को नींद नहीं आई। काफी देर बाद उसे नींद आई।

    अगली सुबह 5:00 बजे रूही की नींद खुल गई। वह जल्दी से फ्रेश होकर एक सुंदर सी पिंक कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने के लिए मंदिर गई। वह आज बहुत खुश थी क्योंकि आज उसका जन्मदिन था। आज वह 21 साल की होने वाली थी। जैसे ही वह खुशी-खुशी पूजा करने के लिए मंदिर गई...

    मंदिर के अंदर जाकर उसने आँखें बंद करके शिव जी की पूजा की और भजन गाया। जैसे ही उसने पूजा पूरी की और आँखें खोलीं, उसने जो नज़ारा देखा, उसे देखकर वह दंग रह गई।

    आपको क्या लगता है, मंदिर के अंदर उसने ऐसा क्या देख लिया जो वह इस तरह से दंग रह गई?

    आगे इस कहानी में क्या मोड़ आएगा, यह जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ी"।

    आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा।

  • 10. Rab ki marjiyan - Chapter 10

    Words: 1456

    Estimated Reading Time: 9 min

    कहानी अब तक:

    यह सब अपने मन में सोचते हुए, नील अपना मुँह बिगाड़ता हुआ सोने के लिए स्टडी रूम की ओर चला गया। वह फिर से अपने सोफे पर लेट गया, पर काफी देर तक करवटें बदलने के बाद भी नील को नींद नहीं आ रही थी। काफी देर बाद उसे नींद आई।


    अगले दिन सुबह पाँच बजे रुही की नींद खुल गई। वह जल्दी से फ्रेश होकर एक सुंदर सी पिंक कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने के लिए मंदिर गई। वह आज बहुत खुश थी क्योंकि आज उसका जन्मदिन था; आज वह इक्कीस साल की होने वाली थी। जैसे ही वह खुशी-खुशी मंदिर में गई,


    मंदिर के अंदर जाकर उसने आँखें बंद कर शिव जी की पूजा करते हुए भजन गाना शुरू कर दिया। पूजा पूरी करके जब उसने आँखें खोलीं और मंदिर के अंदर का नजारा देखा, तो वह दंग रह गई।


    कहानी अब आगे:

    क्योंकि उस मंदिर में, रुही के साथ ही कई नाग-नागिन अपने रूप में पूजा कर रहे थे। वहाँ बारह-तेरह साँप मौजूद थे। रुही की आँखें हैरानी से फैल गईं।


    डर उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। डर के मारे रुही के हाथ से पूजा की थाली छूटकर जमीन पर गिर गई।


    रुही ने जोर से अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे लग रहा था कि पूजा का सारा सामान थाली के साथ ज़ोरदार आवाज़ के साथ जमीन पर गिर जाएगा।


    पर काफी देर तक थाली गिरने की आवाज़ न सुनकर उसे बहुत हैरानी हुई। आँखें खोलकर उसने देखा तो उसकी आँखें हैरानी से और भी चौड़ी हो गईं। वह सन्न रह गई। एक बहुत बड़े साँप ने पूजा की थाली अपने मुँह में पकड़ रखी थी।


    रुही हैरानी से उस बड़े साँप को देख रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई साँप ऐसा कर सकता है। तभी उस साँप ने रुही की ओर देखा।


    आमतौर पर रुही को साँपों से बहुत डर लगता था, पर अभी डर से ज़्यादा वह हैरानी में थी। उसने देखा कि वह बड़ा साँप अपने मुँह में पकड़ी हुई थाली से भगवान भोलेनाथ जी की आरती करने लगा।


    रुही का ध्यान टूट गया। उसने भगवान जी का धन्यवाद करते हुए कहा, "शुक्र है शिवजी, आपका कि इन नाग देवताओं ने मेरी पूजा की थाली जमीन पर गिरने से बचा ली, नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता।"


    रुही को उस साँप की नज़रों से ऐसा लग रहा था जैसे वह साँप उससे कह रहा हो, "तुम ऐसे खड़ी क्यों हो? समय निकल रहा है, पूजा करना शुरू क्यों नहीं करती?"


    रुही ने तो अपनी पूजा खत्म कर ही ली थी, पर नाग देवताओं की मदद और भगवान भोलेनाथ जी के इस चमत्कार को देखकर उसने एक बार फिर भजन गाना शुरू कर दिया।


    वह यह भजन गा रही थी:

    ईश्वर सत्य है
    सत्य ही शिव है
    शिव ही सुंदर है
    जागो जीवन ज्योत उजागर है
    सत्यम शिवम सुंदरम

    ईश्वर सत्य है
    सत्य ही शिव है
    शिव ही सुंदर है
    आ..आ..आ..आ..
    सत्यम शिवम सुंदरम


    और इसी के साथ वहाँ मौजूद सारे साँपों ने अपने सिर हिलाना शुरू कर दिया, जैसे वे भी पूजा कर रहे हों। जैसे-जैसे थाली हिल रही थी, वैसा ही लग रहा था कि सारे साँप भी उस हिलती हुई आरती की थाली के साथ पूजा कर रहे हैं।


    राम अवध में
    काशी में शिव
    कान्हा वृन्दावन में
    दया करो प्रभू देखूँ इन को
    हर घर के आँगन में
    राधा मोहन शरणम
    सत्यम शिवम सुंदरम


    रुही की आवाज़ में यह भजन कानों में एक मिठास सी घोलने वाला सुनाई दे रहा था। साथ ही, सब साँप मस्ती में रुही के साथ पूजा कर रहे थे।


    तभी रुही ने आगे गाया:

    एक सूर्या है
    एक गगन है
    एक ही धरती माता
    दया करो प्रभू एक बनें सब
    सब का एक से नाता
    राधा मोहन शरणम
    सत्यम शिवम सुंदरम

    ईश्वर सत्य है
    सत्य ही शिव है
    शिव ही सुंदर है
    आ..आ..आ..आ..
    सत्यम शिवम सुंदरम


    थोड़ी देर में, इन शब्दों के साथ रुही का भजन खत्म हो गया। भजन गाते समय उसकी आँखें खुद ही बंद हो गई थीं। उसे पूजा करना बहुत अच्छा लगता था।


    आँखें खोलकर रुही ने देखा कि उस बड़े साँप ने थाली भगवान भोलेनाथ जी की मूर्ति के सामने रख दी थी। फिर सभी साँपों ने रुही की ओर देखा और उसके सामने अपना सिर इज़्ज़त से झुकाया। फिर वे एक-एक करके वहाँ से चले गए।


    सांपों के जाने के बाद भी रुही को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने अपनी आँखों के सामने इतना बड़ा चमत्कार देखा है। पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि उन साँपों ने उसके सामने अपना सिर क्यों झुकाया। उसने अपने मन में सोचते हुए कहा, "इन सभी साँपों ने मेरे सामने अपना सिर क्यों झुकाया?"


    जब उसे अपने सवाल का कोई जवाब नहीं मिला, तो उसने अपने दिमाग से उस सवाल को झटकते हुए कहा, "चले जाने दे रुही, बस तू इसी में खुश रह कि आज तूने अपने जन्मदिन पर भगवान जी का यह चमत्कार देखा।"


    रुही बहुत खुश हो गई थी। उसने एक बार फिर भगवान भोलेनाथ जी का धन्यवाद करते हुए कहा, "थैंक यू भगवान जी, जो आज आपने मुझे यह चमत्कार दिखाया। मुझे तो अभी भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा।"


    फिर रुही खुशी-खुशी किचन की ओर जाने लगी। रास्ते में वह अपने मन में सोच रही थी, "काश कोई मेरे साथ मंदिर में होता, जिससे मैं भगवान जी के इस चमत्कार की वीडियो अपने फोन से शूट करवाती और फिर उसे इंस्टाग्राम रील और यूट्यूब पर अपलोड करती। मुझे पक्का बहुत व्यूज़ मिलते।"


    यह सब सोचते हुए रुही उदास होते हुए बोली, "पर अफ़सोस, वहाँ मंदिर में मेरे अलावा कोई नहीं था। अब मैं किसी को यह बात बताऊँगी भी नहीं, क्योंकि कोई मेरी बात पर यकीन नहीं करेगा।"


    पर फिर भी रुही आज बहुत खुश थी। वह खुशी-खुशी किचन में चली गई। किचन में जाकर उसने जो नजारा देखा, उससे उसका मुँह बिगड़ गया और उसका सारा मूड खराब हो गया।


    आपको क्या लगता है रुही ने किचन में ऐसा क्या देख लिया जिससे उसका पूरा मूड खराब हो गया और उसका मुँह बिगड़ गया?


    आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, यह जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ी"।


    आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा।

  • 11. Rab ki marjiyan - Chapter 11

    Words: 1793

    Estimated Reading Time: 11 min

    रूही खुशी-खुशी किचन की ओर जाने लगी। किचन के रास्ते में वह मन ही मन सोच रही थी, "काश कोई मेरे साथ मंदिर में होता! मैं भगवान जी के इस चमत्कार की वीडियो अपने फोन से शूट करवाती और उसे इंस्टाग्राम रील और यूट्यूब पर अपलोड करती। मुझे बहुत व्यूज मिलते।"

    उदास होते हुए उसने कहा, "पर अफसोस, वहाँ मेरे अलावा कोई नहीं था। अब मैं किसी को यह बात भी कैसे बताऊँगी? कोई मेरी बात पर यकीन भी नहीं करेगा।"

    फिर भी, रूही बहुत खुश थी। वह खुशी-खुशी किचन में चली गई। किचन में जो नजारा उसने देखा, उसे देखकर उसका मुँह बिगड़ गया और उसका सारा मूड खराब हो गया।

    वह किचन इसलिए गई थी क्योंकि आज उसकी शादी की पहली रसोई की रस्म थी। जैसे ही वह पहुँची, उसे मीनाक्षी जी के साथ अनन्या दिखाई दी।

    अनन्या को अपनी माँ के साथ किचन में देखकर रूही का मुँह बिगड़ गया और उसका मूड खराब हो गया। आज नियम के अनुसार अनन्या की भी पहली रसोई की रस्म थी। उसे भी कुछ मीठा बनाना था।

    मीनाक्षी जी ने रूही को किचन के दरवाजे पर खड़े देखकर कहा, "रूही बेटा, तुम बाहर क्यों खड़ी हो? अंदर आओ।"

    रूही ने सिर हिलाकर किचन में चली गई।

    मीनाक्षी जी ने रूही से प्यार से कहा, "तुम किचन में खुद ही आ गईं। बहुत अच्छा लगा। मुझे तुम्हें देखकर बहुत अच्छा लगा। चाहे तुम्हारी शादी धोखे की शादी क्यों ना हो, पर तुम अपनी शादी की सभी रस्मों को दिल से निभा रही हो। मुझे पता है, बच्चा, कि तुम ज़रूर एक दिन इस शादी को पूरी तरह से एक्सेप्ट कर लोगी।"

    रूही ने कहा, "माँ, यह सब संस्कार आपने ही मुझे दिए हैं कि अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना चाहिए। यह शादी धोखे की शादी है, पर मैं इस घर की बहू हूँ। मेरी शादी हो चुकी है, तो मुझे इस घर की बड़ी बहू होने की सारी ज़िम्मेदारियाँ निभानी ही होंगी।"

    मीनाक्षी जी को अपनी बेटी पर प्यार आ गया। उन्होंने रूही के बालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "मेरा बच्चा तो सच में अब बहुत समझदार हो गया है।"

    यह बात सुनते हुए रूही की नज़र अनन्या पर गई, जो मीनाक्षी जी के बगल में खड़ी थी। रूही ने मन ही मन सोचा, "आरव इस लड़की से प्यार करता है। इसीलिए उसने मेरे साथ शादी करने से मना कर दिया और मेरी शादी नील के साथ करवा दी।"

    रूही ने अनन्या को ऊपर से नीचे तक देखा। अनन्या ने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी। उसने मैचिंग इयररिंग्स और मेकअप किया हुआ था। हाथों में लाल चूड़ा और मांग में आरव के नाम का सिंदूर था। गले में मंगलसूत्र भी था।

    उसकी मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र बहुत अच्छे लग रहे थे। उसने अपने बाल खुले छोड़े हुए थे। अनन्या बहुत खूबसूरत लग रही थी। रूही ने मन ही मन सोचा, "यह अनन्या बहुत सुंदर है। शायद इसीलिए आरव ने इसके साथ शादी कर ली। पर मैं भी बहुत सुंदर हूँ। शहर की गोरी का गांव की छोरी से क्या मुकाबला? शायद आरव की आँखें खराब होंगी जो वह मेरी सुंदरता देख नहीं सका।"

    रूही को अनन्या की किस्मत और खूबसूरती से जलन हो रही थी। वह अनन्या से ज़्यादा खूबसूरत थी, पर आरव अनन्या से प्यार करता था। उसने अपने प्यार को चुना।

    कई बार इंसान के लिए खूबसूरती से ज़्यादा प्यार मायने रखता है। इसीलिए उसने रूही के साथ शादी ना करके अनन्या के साथ शादी कर ली थी।

    जब रूही मन ही मन अनन्या से जल रही थी, तभी मीनाक्षी जी की आवाज़ सुनाई दी। रूही अपनी ख्यालों की दुनिया से बाहर निकल आई और मीनाक्षी जी की बातों पर ध्यान दिया।

    मीनाक्षी जी कह रही थीं, "रूही बेटा, सुनो। अनन्या की शादी आरव के साथ हो गई है, तुम्हारी नहीं हो पाई। पर बेटा, रिश्ते में वह तुम्हारी छोटी देवरानी है और आरव तुम्हारा छोटा देवर है। तुम्हें अपने रिश्ते की मर्यादा ध्यान में रखते हुए सब कुछ सोच समझ कर करना है। समझ में आया बच्चा?"

    रूही ने सिर हिला दिया। मीनाक्षी जी ने अनन्या की तरफ़ देखते हुए कहा, "रूही बेटा, अनन्या को खाना बनाना नहीं आता है। क्या तुम उसकी आज की पहली रसोई बनाने में उसकी मदद कर सकती हो? तुम अपनी भी रसोई बना लेना और अनन्या की भी मदद कर देना।"

    यह जानकर कि अनन्या को खाना बनाना नहीं आता, रूही ने मन ही मन सोचा, "क्या मुझे इसकी मदद करनी है? और इसको खाना बनाना नहीं आता? देखा, मैं क्या कह रही थी थोड़ी देर पहले? शहर की गोरी और गांव की छोरी में कोई मुकाबला नहीं हो सकता।"

    पर वह यह बात मीनाक्षी जी से नहीं कह सकती थी। उसने झूठी खुशी दिखाते हुए कहा, "जी माँ, मैं अपनी रसोई भी बना लूँगी और अनन्या की भी मदद कर दूँगी। आप फ़िक्र मत करिए। आपकी कमर में दर्द है ना?"

    मीनाक्षी जी ने कहा, "हाँ रूही बेटा, मेरी कमर में दर्द है। अच्छा, ठीक है। तुम अनन्या के साथ मिलकर अपनी पहली रसोई की रस्म में कुछ खाना बना लो। मैं अब जाती हूँ।"

    रूही ने कहा, "जी माँ, आप जाइए।"

    किचन से बाहर जाते हुए मीनाक्षी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "जन्मदिन मुबारक हो रूही बेटा।"

    रूही के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। उसने कहा, "थैंक यू माँ, मुझे लग ही रहा था मैं अपना जन्मदिन नहीं भूल सकती और देखा मेरा यकीन सही ही निकला है ना?"

    मीनाक्षी जी ने कहा, "भला ऐसा हो सकता है कि एक माँ अपने बच्चे का जन्मदिन भूल जाए? नहीं ना?"

    रूही ने सिर हिलाया। मीनाक्षी जी ने कहा, "तो फिर मैं अपनी रूही का जन्मदिन कैसे भूल सकती हूँ?"

    रूही ने कहा, "जी माँ, आप नहीं भूल सकती। आज तक तो ऐसा नहीं हुआ कि आप मेरा जन्मदिन भूली हों, तो फिर आज कैसे भूल सकती थीं? आखिर आप मेरी माँ हैं, सिर्फ़ मेरी माँ।"

    मीनाक्षी जी के चेहरे पर पहले से भी ज़्यादा बड़ी मुस्कान आ गई। उन्होंने कहा, "जहाँ हमेशा तुम्हारा जन्मदिन का गिफ़्ट रखा होता है, आज भी वही रखा हुआ है। अपनी रसोई की रस्म के बाद जाकर ले लेना।"

    रूही बहुत खुश हो गई। उसने कहा, "जी माँ, जल्दी से अपनी रसोई की रस्म पूरी करके अपना गिफ़्ट ले लूँगी।"

    मीनाक्षी जी हँसीं और सिर हिलाकर किचन से बाहर चली गईं।

    जब मीनाक्षी जी किचन से बाहर जा रही थीं, तब रूही के दिमाग में एक शैतानी आइडिया आया। उसने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा, "इस अनन्या की पहली रसोई में ऐसी बनवाऊँगी कि सब मेरे ही हाथों के बने खाने की तारीफ़ करेंगे और इसके खाने की बुराई करेंगे। जब इसकी सबके सामने बेइज़्ज़ती होगी, तो आरव को पता चलेगा कि उसने मेरे साथ शादी ना करके कितनी बड़ी गलती कर दी और किसको खो दिया, हाँ।"

    उसने कहा, "अरे वाह! बड़ा मज़ा आएगा तब तो।"

    आपको क्या लगता है? क्या रूही सच में अनन्या की पहली रसोई खराब करवा देगी और क्या अनन्या को सबके सामने बेइज़्ज़ती का सामना करवाएगी? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, यह जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ीया"। अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी।

  • 12. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 12

    Words: 2075

    Estimated Reading Time: 13 min

    गिफ्ट की बात सुनकर रूही बहुत खुश हो गई और उसने खुशी में मीनाक्षी जी से कहा, "जी माँ, जल्दी से अपनी रसोई की रस्म पूरी करके अपना गिफ्ट ले लूँगी।"

    रूही की बात सुनकर मीनाक्षी जी को हल्की सी मुस्कान आ गई और फिर वह रूही की बात पर हाँ में अपना सिर हिलाकर किचन से बाहर चली गईं।

    जब मीनाक्षी जी किचन से बाहर जा रही थीं, तब रूही के दिमाग में एक शैतानी आइडिया आया और उसने अपने मन में एक शैतानी मुस्कान मुस्कुराते हुए कहा, "इस अनन्या की पहली रसोई में ऐसा बनवाऊँगी कि सब बस मेरे ही हाथों के बने खाने की तारीफ करेंगे और इसके खाने की बुराई, जब इसकी सबके सामने बेइज्जती होगी, तब आरव को पता चलेगा कि उसने मेरे साथ शादी ना करके कितनी बड़ी गलती कर दी और किसको खो दिया, हाँ।"

    और फिर उसने अपने मन में खुश होते हुए कहा, "अरे वाह! बड़ा मज़ा आएगा तब तो।"

    मीनाक्षी जी के वहाँ से जाने के बाद, थोड़ा हिचकिचाते हुए अनन्या ने रूही की तरफ देखते हुए अपनी मीठी सी आवाज़ में कहा, "हैप्पी बर्थडे रूही।"

    जब रूही ने अनन्या को खुद को इस तरह से बर्थडे विश करते हुए सुना, तब उसने जबरदस्ती अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाते हुए अनन्या से कहा,
    "थैंक यू अनन्या, पर अगर तुम मेरी एक बात बुरा ना मानो तो क्या तुम मुझे मेरे नाम के साथ 'रूही दी' कहना पसंद करोगी? क्योंकि चाहे उम्र में तुम मेरे से बड़ी हो, पर रिश्ते में तो अब मैं ही तुम्हारे से बड़ी लगती हूँ, जिस वजह से तुम्हें मुझे 'रूही दी' कहना चाहिए।"

    अभी रूही ने यह बात अनन्या को नीचा दिखाने के लिए बोली थी क्योंकि उसकी शादी इस घर के बड़े बेटे से हुई थी। तो फिर जब वह अपने सारे फ़र्ज़ अच्छे से निभा ही रही है, तो तब उसको बड़ी बहू होने के नाते घर की बड़ी बहू वाली इज़्ज़त भी मिलनी चाहिए, जिस वजह से उसने अभी अनन्या से यह सब कहा था।

    रूही की यह बात सुनकर अनन्या ने रूही से कहा, "ओह सॉरी रूही दी, मुझे इतना नहीं पता था कि अपने पति के बड़े भाई की वाइफ को 'दी' कहकर बुलाना होता है।"

    यहाँ पर जब रूही ने अनन्या के मुँह से ये शब्द सुने, "ओह सॉरी रूही दी, मुझे इतना नहीं पता था कि अपने पति के बड़े भाई की वाइफ को 'दी' कहकर बुलाना होता है।"

    तो तब उसको अनन्या के मुँह से निकले ये शब्द ऐसे लग रहे थे जैसे अभी कोई उसके कानों में गरम-गरम पिघलता हुआ लोहा डाल रहा हो। ख़ासकर, "अपने पति के बड़े भाई की वाइफ को..." ये शब्द ज़हर की तरह लग रहे थे। और अनन्या के इन शब्दों से रूही को अपने दिल में अहसासनीय दर्द महसूस हो रहा था।

    पर फिर भी रूही ने अपने दिल में हो रहे इस दर्द को छुपाते हुए, अनन्या से अपने चेहरे पर नकली मुस्कान लाकर अनन्या के मुँह से निकलने वाले आगे के शब्दों को सुना, जिसमें अनन्या रूही से मुस्कुराते हुए कह रही थी,
    "थैंक यू बताने के लिए। मैं अब से आपको रूही दी ही कहकर ही बुलाऊँगी।"

    अभी अनन्या ये सब बातें रूही से इस तरह से मुस्कुराते हुए बोल रही थी जिससे यह पता नहीं चल रहा था कि अभी रूही से इतनी ज़्यादा दिल दुखाने वाली बात उसने जानबूझकर कही थी या बस ऐसे ही उसने बिना ज़्यादा सोचे-समझे यह बात रूही से बोल दी थी।

    अनन्या की यह ज़हर से भी ज़्यादा जहरीली बात सुनकर रूही ने अपने मन में सोचते हुए कहा, "बड़ी चालाक है यह! तो झट से मेरी बात मान गई और साथ-साथ इसने अपनी बातों से मेरा दिल भी दुखा दिया।"

    तभी रूही ने अपने मन में आगे सोचते हुए कहा, "मैं तो सोच रही थी कि शहर की लड़की है तो यह कहाँ यह सब रिश्ते-नाते और मेरी बात को मानेगी, पर शायद इसको अभी मेरे से काम है। मुझे इसकी पहली रसोई बनाने में मदद भी तो करनी है। शायद अभी यह अभी मेरे साथ इतनी ज़्यादा प्यार से बात कर रही है और इनडायरेक्टली मेरा दिल दुखा रही है।"

    न जाने क्यों रूही को अनन्या से अंदर ही अंदर जलन हो रही थी क्योंकि उसकी शादी जिस लड़के के साथ होने वाली थी, उस लड़के की शादी अनन्या के साथ हो गई थी और रूही को अनन्या के शहर की लड़की होने की वजह से यह लग रहा था कि अनन्या बहुत ज़्यादा बिगड़ी हुई लड़की होगी, तभी तो उसने अपने मम्मी-पापा को बिना बताए इस तरह से आरव के साथ शादी कर ली।

    जब रूही अपने मन में यह सब सोच ही रही थी, तभी अनन्या ने रूही से अपनी मीठी सी आवाज़ में कहा, "रूही दी, मुझे तो कुछ बनाना नहीं आता है। आप बताओ आप अभी क्या बनाने वाली हो और मेरे से क्या बनवाओगी?"

    अनन्या के यह सवाल करने पर रूही भी अब अपने मन में सोचने लगी कि हाँ, उसको तो अभी अपनी पहली रसोई के लिए कुछ न कुछ मीठा बनाना होगा और जैसे कि उसने अभी अपनी माँ से वादा किया था कि वह अनन्या की भी मदद करेगी, तो फिर उसको अभी अनन्या की भी हेल्प करनी होगी।

    जिस वजह से उसने अपने मन में आगे सोचते हुए कहा, "क्या बनाऊँ मैं? क्या पसंद आएगा घरवालों को?"

    तभी उसको यह याद आ गया कि घर में सबको खीर बहुत ज़्यादा पसंद है। यह बात याद आते ही उसने अनन्या से कहा, "अनन्या, मैं तो खीर बनाने का सोच रही हूँ। तुम बताओ तुम्हारा क्या मन है बनाने का?"

    तभी उसने एक बार दुबारा से अपना सवाल दोहराया, "मेरा मतलब तुम क्या बनाना चाहती हो?"

    तभी उसने आगे कहा, "मैं तुम्हारे से वही बनवा दूँगी, मतलब तुम्हारी उस चीज़ को ही बनाने में मदद कर दूँगी जो तुम्हारा बनाने का मन होगा।"

    अभी रूही की इस बात से पता चल रहा था जैसे वह अभी अनन्या से कह रही हो, "मुझे सब कुछ बनाना आता है जो तुम बोलोगी मैं तुम्हारे से वही बनवा दूँगी।"

    रूही की यह बात सुनकर अनन्या ने खुश होते हुए अपनी मीठी सी आवाज़ में रूही से कहा, "ग्रेट! मतलब आपको सब कुछ बनाना आता है।"

    और फिर अनन्या ने रूही से आगे कहा, "अच्छा आप खीर बना रही हैं तो फिर मैं हलवा बना लेती हूँ क्योंकि मैंने सुना है कि हलवा बनाना आसान होता है, ज़्यादा टफ़ भी नहीं होता है और इसकी रेसिपी भी ईज़ी सी होती है।"

    तभी अनन्या ने आगे कहा, "और मैंने सुना है कि यह ईज़िली बन भी जाता है तो आप मेरी प्लीज़ हलवा बनाने में ही हेल्प कर दीजिएगा।"

    अनन्या की बात सुनकर रूही ने हाँ में अपना सिर हिला दिया और फिर उसने अनन्या से कहा, "ठीक है तो मैं तुम्हें अभी हलवा बनाने की रेसिपी बता देती हूँ और खीर बनाते हुए बीच-बीच में मैं तुम्हारी हलवा बनाने में हेल्प भी कर दूँगी, ठीक है?"

    रूही की आवाज़ सुनकर अनन्या ने अपनी प्यारी सी आवाज़ में कहा, "ठीक है दी।"

    और फिर रूही ने अनन्या को हलवा बनाने की रेसिपी बतानी शुरू कर दी, कि कितनी सूजी लेनी है, कितनी चीनी लेनी है और फिर कितना पानी डालना है और सबसे पहले सूजी को कढ़ाई में डालकर भूनना है। यह सब वह अभी अनन्या को बता रही थी।

    अनन्या भी अभी रूही की यह बात बहुत ध्यान से सुन रही थी जो-जो रूही अनन्या को यह सब बता रही थी।

    यह सब अनन्या से बताते हुए उसने अपने मन में सोचते हुए कहा, "क्या मुझे इसके हलवे में चीनी ज़्यादा डलवा देनी चाहिए ताकि इसके हाथों का बना हलवा ज़्यादा मीठा हो जाए और कोई इसके हलवे को खाना पसंद ही ना करे?"

    रूही को अभी अपना यह आइडिया बहुत अच्छा लग रहा था और वह मन ही मन इतना अच्छा आइडिया बनाने पर खुद को शाबाशी दे रही थी, पर तभी रूही के मन की अंतरात्मा ने रूही से उसको समझाते हुए कहा, "नहीं रूही, अगर किसी ने भी हलवा नहीं खाया तो तब तो यह अन्न का अपमान हो जाएगा।"

    यह सब अपने मन में सोचने के बाद रूही ने आगे अपने मन में सोचते हुए कहा, "मुझे अभी ऐसा नहीं करना चाहिए। यह गलत है।"

    जिस वजह से रूही ने अपने मन में आए अनन्या का हलवा ख़राब करने के ये गलत विचारों को अपने दिमाग से निकाल दिया और फिर वह अच्छी तरीके से अनन्या को हलवा बनाने की रेसिपी आगे बतानी शुरू कर दी।

    जिस वजह से रेसिपी सुनकर अनन्या ने रूही से अपनी मीठी सी आवाज़ में कहा, "थैंक यू रूही दी।"

    अनन्या के मुँह से "थैंक यू" सुनकर रूही ने अपने चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कान लाते हुए अनन्या से कहा, "अरे कोई बात नहीं। मैंने तो बस तुम्हें रेसिपी ही बताई है। हलवा तो तुम्हें ही बनाना है, कौन सा मैं बना रही हूँ।"

    रूही की बात को सुनकर अनन्या के चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई और फिर रूही के इंस्ट्रक्शन्स के अकॉर्डिंग अनन्या अपना हलवा बनाने लगी। वहीं दूसरे वाले गैस पर रूही भी अपनी खीर बनाने लगी। वहीं अनन्या भी एक गैस पर अपना हलवा बनाने में लगी हुई थी।

    पूरे किचन में हलवे और खीर की खुशबू फैली हुई थी और इन दोनों की मीठी सी खुशबू हवा से होते हुए किचन के बाहर तक जा रही थी।

    कुछ देर बाद उनका खाना बनकर तैयार हो गया। अनन्या का हलवा बन गया था और रूही की खीर भी बनकर तैयार हो गई थी।

    जिस वजह से रूही ने खुश होते हुए कहा, "अरे वाह! बन गई खीर मेरी!" तभी उसने अनन्या के हलवे की तरफ़ देखते हुए अनन्या से कहा, "और तुम्हारे इस हलवे को देखकर लग रहा है कि यह भी अब बनकर तैयार हो गया है तो चलो अनन्या जल्दी से हम इनको लेकर डाइनिंग टेबल पर चलते हैं।"

    रूही की इस बात को सुनकर अनन्या ने भी मुस्कुराते हुए हाँ में अपना सिर हिला दिया और तभी एक बार दोबारा से रूही की आवाज़ अनन्या के कानों में सुनाई दी। रूही अभी अनन्या से कह रही थी, "तुम भी अपना हलवा जल्दी से सभी कटोरियों में निकाल लो। मैं भी निकाल लेती हूँ खीर सभी कटोरियों में।"

    रूही की बात सुनकर अनन्या ने भी मुस्कुराते हुए अपना सिर हिला लिया और फिर उसने भी रूही के कहने के अनुसार अपना हलवा जल्दी से सभी कटोरियों में निकाल लिया और फिर वे दोनों अपनी इन सभी कटोरियों को ट्रे में रखकर अपने हाथों में उस ट्रे को पकड़कर डाइनिंग टेबल की तरफ़ जाने लगीं।

    पर जैसे ही वे दोनों डाइनिंग टेबल की तरफ़ जा रही थीं, तभी रूही और अनन्या के कानों में किसी के बोलने की ऐसी बात सुनाई दी कि जिसको सुनकर मन ही मन रूही का मुँह बिगड़ गया और उसको एकदम से बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया।

    वहीं दूसरी तरफ़ जब अनन्या ने उस इंसान की ऐसी बात सुनी, तो तब वह रूही के चेहरे की तरफ़ देखने लगी।

    आपको क्या लगता है? अभी रूही और अनन्या ने ऐसा क्या सुन लिया जो रूही को एकदम से इतना ज़्यादा गुस्सा आ गया?

    और क्यों अनन्या उस इंसान की बात को सुनकर रूही के चेहरे को इस तरह से देखने लगी थी?

    और यह बात अभी डाइनिंग टेबल पर किसने बोली होगी जिस बात का भी रूही को इतना ज़्यादा बुरा लग गया?

    आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ीया"।

    आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा।

  • 13. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 13

    Words: 1817

    Estimated Reading Time: 11 min

    एक लड़का एक लड़की के घर के बाहर बारिश में भीगते हुए, अपने हाथों में गुलाब से बना हुआ एक बुके लेकर खड़ा था। उसकी निगाहें एकटक उस लड़की के कमरे की ओर देख रही थीं। अब धीरे-धीरे बारिश बहुत तेज होने लगी थी, पर उस लड़के को इतनी तेज बारिश में भीगने से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

    क्योंकि उस लड़के को बस इंतज़ार था एक लड़की के घर से बाहर आने का; वही लड़की जिससे वह लड़का बहुत प्यार करता था।

    और आज वह उस लड़की से अपने प्यार का इज़हार करने आया था।

    जी हाँ, यही है हमारी कहानी का हीरो, हर्ष सिंह। उम्र 28 साल, कद 5.8 इंच, रंग गोरा, काले बाल और काली आँखें।

    तभी हर्ष को उस घर के अंदर से एक सुंदर सी लड़की बाहर निकलती हुई दिखाई दी। यह लड़की वही थी जिसका हर्ष बाहर बारिश में भीगते हुए उसके घर से बाहर आने का इंतज़ार कर रहा था। उस लड़की का चेहरा देखते ही हर्ष के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई, और फिर वह लड़का उस लड़की के अपने पास आने का इंतज़ार करने लगा।

    यह लड़की और कोई नहीं, हमारी कहानी की हीरोइन अंशिका थी। उम्र 19 साल, कद 5.6 इंच। अंशिका का छोटा सा चेहरा, तीखे नैन-नक्श और बड़ी-बड़ी आँखें, पतले-पतले गुलाबी होंठ और कुछ ज़्यादा ही पतला शरीर, अंशिका को बिलकुल नाज़ुक सी गुड़िया की तरह दिखाता था।

    अंशिका बिना किसी भाव के साथ हर्ष की तरफ़ आ रही थी। जहाँ हर्ष के चेहरे पर इस समय एक प्यारी सी मुस्कान थी, वहीं दूसरी तरफ़ अंशिका के चेहरे के भाव शून्य थे। जिससे यह पता लगा पाना मुश्किल था कि वह अभी खुश थी या दुखी।

    और जैसे ही हर्ष अंशिका से कुछ बोलने के लिए अपना मुँह खोलने वाला था, तभी उसके कुछ बोलने से पहले ही अंशिका ने कहा,
    "देखो हर्ष, मैं जानती हूँ तुम मुझसे प्यार करते हो, पर तुम्हें भी समझना चाहिए कि मैं तुम्हारे जैसे एक गरीब लड़के से शादी नहीं कर सकती हूँ। नहीं कर सकती मैं एक गरीब लड़के से शादी, गरीब लड़के से शादी करके अपनी ज़िंदगी खराब नहीं कर सकती मैं। अब मैं और पैसों के लिए या पैसों से मिलने वाली किसी भी चीज़ के लिए नहीं तरसना चाहती। मैं अब जान गई हूँ पैसा ही सब कुछ होता है इस दुनिया में, मैं अब समझ गई हूँ इस बात को। तो तुम प्लीज़ अभी यहाँ से चले जाओ।"

    अंशिका की ऐसी बातें सुनकर हर्ष अंशिका से कुछ बताने वाला था, पर तभी दुबारा से अंशिका ने कहा,
    "हर्ष, तुम चले जाओ यहाँ से। आज के बाद तुम यहाँ पर नहीं आना, क्योंकि कल से मैं तुम्हें यहाँ पर नहीं मिलूँगी।"

    यह बोलकर अंशिका तेज-तेज कदमों से वापस घर के अंदर चली गई। और वापस घर के अंदर जाते हुए उसकी आँखों में आँसुओं की बूँदें थीं, पर बारिश के पानी में उसके आँसू दिखाई नहीं दे रहे थे। इसका मतलब वह अभी रो रही थी।

    वहीं दूसरी तरफ़ हर्ष सिंह अभी भी उस जगह पर ही किसी बर्फ़ की तरह जमा हुआ खड़ा था, मानो उसके पैर जैसे ज़मीन पर जम गए हों। अभी उसको अपने दिल में एक तेज दर्द महसूस हो रहा था, और उसकी आँखों से आँसू उसके गालों से होते हुए ज़मीन पर गिर रहे थे। तभी उसने अपने मन में कहा,
    "अंशिका, मैं तुम्हें आज यही तो बताने आया था कि मैं कोई गरीब इंसान नहीं हूँ। वो तो मैं तुम्हारा प्यार पाने के लिए एक गरीब इंसान बन गया था।"

    अपने मन में यह बोलता हुआ हर्ष सिंह देखते ही देखते अपनी पुरानी यादों में चला गया। अब उसकी आँखें शून्य में देख रही थीं।

    फ़्लैशबैक:

    "सुन बे फ़टीचर, तेरी औक़ात भी है मुझे इतने महँगे फ़ाइव स्टार होटल में डिनर करवाने की? मुझे तो लगा था कि तू बहुत अमीर होगा, इसलिए मुझे डिनर करने के लिए इस होटल में बुला रहा है। पर नहीं, मैं ही गलत थी। अच्छा हुआ जो मुझे तेरी असलियत का पहले ही पता चल गया, नहीं तो मुझे भी तेरे साथ वो सड़क के किनारे वो गोलगप्पों का ठेला ही लगाना पड़ता। तेरी औक़ात भी है इतने महँगे होटल में एक कप चाय पीने की भी? सुन बे, मैं जा रही हूँ। अब तू मेरे लायक नहीं है। माँगे हुए अच्छे कपड़े पहनने से कोई अमीर नहीं हो जाता, समझा?"

    यह लड़की और कोई नहीं, हर्ष सिंह की आज की डेट थी, जिसका नाम मोनी था। मोनी ने हर्ष को एक गोलगप्पे की रेड़ी को खींचते हुए देख लिया था जब हर्ष एक गोलगप्पे वाले की मदद कर रहा था। जिस वजह से मोनी को लगा कि हर्ष कोई अमीर-वमीर नहीं है, बल्कि वह एक गोलगप्पे वाला है जिसने माँगे हुए अच्छे महँगे कपड़े पहने हुए हैं। अपनी बात बोलकर मोनी गुस्से से तमतमाती हुई वहाँ से वापस अपनी हीलस से ज़ोर-ज़ोर आवाज़ करती हुई चली गई।

    और हर्ष उसको बिना किसी भाव के देखता ही देखता रह गया। जैसे इस लड़की के कुछ भी बोलने से या यहाँ से जाने से कोई फर्क न पड़ा हो। हर्ष सिंह कोई आम आदमी नहीं था, वह अगर चाहता तो इस होटल को यहीं खड़े-खड़े मुँह माँगी कीमत पर खरीद सकता था। इसलिए हर्ष बस मोनी जैसी पैसों की लालची लड़की को जाते हुए ही देख रहा था, क्योंकि उसको मोनी कुछ ख़ास पसंद नहीं आई थी।

    वहीं कुछ दूरी पर एक लड़की हर्ष सिंह को सहानुभूति भरी निगाहों से देख रही थी। उसको हर्ष के लिए बुरा लग रहा था। उस लड़की ने हर्ष को देखते हुए अपने मन में कहा,
    "हाय बिचारा, गरीब है तो क्या हुआ? उस लड़की को इसको इतना इंसल्ट नहीं करना चाहिए था। पर इस लड़के को भी झूठ बोलकर उस लड़की को इतने महँगे होटल में डिनर के लिए नहीं लाना चाहिए था।"

    जब हर्ष वहाँ से जा रहा था, तभी उसके पास एक 5.6 इंच लंबी एक लड़की आई, जिसका रंग दूध जैसा सफ़ेद था, हल्की भूरी आँखें, और जो देखने में कुछ ज़्यादा ही पतली थी; मानो हवा के झोंके के आने से ही उड़ जाएगी। उसने अपने बालों को पोनीटेल में बाँधा हुआ था और कैज़ुअल जींस टॉप पहना हुआ था।

    उस लड़की ने हर्ष सिंह के पास आकर उसे फ्री का दिलासा देते हुए कहा,
    "कोई बात नहीं, आप फ़िक्र मत करो, आपको कोई दूसरी इससे भी अच्छी लड़की मिल जाएगी। हर लड़की पैसों पर नहीं मरती, आप दिल से ढूँढ़ोगे तो आपको एक अच्छी लड़की ज़रूर मिल जाएगी।"

    तभी उस लड़की ने हर्ष को ऊपर से लेकर नीचे तक एक नज़र देखा और फिर उसने कहा,
    "हाँ, माना आपकी थोड़ी ऐज ज़्यादा है, पर अच्छे दिखते हो, नहीं अच्छे नहीं, बल्कि अभी भी स्मार्ट दिखते हो। देखना पक्का आपको कोई मिल जाएगी अच्छी लड़की।"

    यह लड़की और कोई नहीं, हमारी कहानी की हीरोइन अंशिका थी, जो अभी हर्ष सिंह को फ्री का ज्ञान दे रही थी।

    जब अंशिका हर्ष को अपना मुफ्त का ज्ञान दे रही थी, तब हर्ष अपने मन में सोच रहा था,
    "किसी लड़की से मैं इस से बात कर भी नहीं रहा हूँ, फिर भी मुझसे खुद ही बात कर रही है। लगता है यह भी मुझे गरीब समझ रही है। चलो अच्छा है मुझे इसको कुछ भी एक्सप्लेन नहीं करना पड़ेगा। पर दिल की अच्छी लड़की है।"

    जब हर्ष खुद से बातें करने में व्यस्त था, तभी अंशिका ने हर्ष की आँखों के सामने जोर-जोर से अपना हाथ लहराते हुए कहा,
    "ओ हेल्लो मिस्टर! मैं आपसे ही बात कर रही हूँ, आपको कम सुनाई देता है क्या?"

    तभी हर्ष ने एक्सप्रेशनलेस चेहरे के साथ कहा,
    "थैंक यू, बट मैं खुद को संभाल लूँगा। मुझे एडवाइस देने के लिए मैं आपको डिनर करवाना चाहूँगा, मेरे साथ अंदर चलो।"

    हर्ष के इतने महँगे होटल के अंदर डिनर करवाने की बात सुनकर अंशिका हर्ष को हैरानी से बड़ी-बड़ी आँखें करके देखने लगी।

    हर्ष को देखते हुए उसने अपने मन में सोचा,
    "हाय बिचारा, उस लड़की की बात शायद इस लड़के के दिल पर लग गई है, और यह सदमे में चला गया है इसलिए ये मुझे भी इस होटल में डिनर करवाने को बोल रहा है। पर इस बिचारे के पास इतने पैसे कहाँ होंगे जो ये मुझे यहाँ पर डिनर करवाएगा? पर पैसों से कुछ नहीं होता, दिल से होता है। तो क्या हुआ अगर यह गरीब है तो है तो इंसान ही, आज मैं ही इसको डिनर करवा देती हूँ।"

    अपने मन में यह बोलकर अंशिका ने कहा,
    "अरे यहाँ नहीं, मैं तुम्हें कहीं और लेकर चलती हूँ, वहाँ का फ़ूड मेरा फ़ेवरेट है। एंड आई होप आपको भी वह पसंद आएगा।"

    यह बोलकर अंशिका ने हर्ष का हाथ पकड़ा और उसको खींचकर होटल से बाहर चली गई। हर्ष अंशिका को रोकना चाहता था, पर जब उसने अंशिका के चेहरे की वो प्यारी सी मुस्कान देखी, तो तब हर्ष अंशिका की उस क्यूट सी मुस्कान में ही खो सा गया।

    और अंशिका के चेहरे की मुस्कान देखने के चक्कर में हर्ष अंशिका के साथ जाने से मना नहीं कर पाया और फिर वह भी अंशिका के साथ उसका साथ देता हुआ दौड़ने लगा।

    पूरे रास्ते हर्ष अंशिका के छोटे से हाथ में पकड़े हुए अपने बड़े से हाथ को देख रहा था और अपने मन में बोल रहा था,
    "कितनी मासूम है ये, एकदम सिंपल सी, इसके अंदर बिलकुल भी चालाकी नहीं है। मैं अपने लिए बिलकुल ऐसी ही लड़की ढूँढ़ रहा था। अब लगता है मुझे मेरी तलाश खत्म हुई।"

    तभी एक मीठी सी आवाज़ से हर्ष का ध्यान टूट गया। यह आवाज़ अंशिका की थी। अंशिका कह रही थी,
    "देखो हम पहुँच गए, यहाँ का खाना बेस्ट होता है।"

    अंशिका की बात सुनकर हर्ष सिंह ने अपनी नज़रें ऊपर उठाकर देखा तो उसकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं, क्योंकि अंशिका हर्ष को रोडसाइड के फ़ूड स्टॉल के पास लेकर आई थी।

  • 14. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 14

    Words: 2191

    Estimated Reading Time: 14 min

    रूही की आवाज़ अनन्या के कानों में सुनाई दी। रूही ने कहा, "तुम भी अपना हलवा जल्दी से सभी कटोरियों में निकाल लो। मैं भी निकाल लेती हूँ खीर सभी कटोरियों में।"

    अन्नया ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और रूही के कहने के अनुसार अपना हलवा सभी कटोरियों में निकाल लिया। फिर दोनों ने कटोरियाँ ट्रे में रखकर, ट्रे हाथ में पकड़कर, डाइनिंग टेबल की ओर जाना शुरू किया।

    पर जैसे ही वे डाइनिंग टेबल की ओर जा रही थीं, रूही और अनन्या के कानों में किसी के बोलने की आवाज़ आई। यह सुनकर रूही का मुँह बिगड़ गया और उसे बहुत गुस्सा आया।

    अनन्या ने उस इंसान की बातें सुनकर रूही के चेहरे की ओर देखा।


    रूही को इतना गुस्सा इस वजह से आया था क्योंकि नील की माँ, गौरी जी, डाइनिंग टेबल पर बैठी बाकियों से कह रही थीं, "सही मायने में तो आज पहली रसोई की रस्म अनन्या की ही है। क्योंकि हम आज पहली बार अनन्या के हाथों से बना हुआ कुछ खाएँगे। रूही के हाथों का बना हुआ खाना तो हम खाते ही आ रहे हैं, इसमें कुछ भी नया नहीं होगा। हमने उसके हाथों का स्वाद टेस्ट किया हुआ है, पर अनन्या के हाथों का स्वाद आज हम पहली बार टेस्ट करेंगे। इसलिए सही मायने में आज की पहली रसोई की रस्म अनन्या की ही है, रूही की नहीं।"

    गौरी जी की यह कड़वी बात सुनकर रूही ने मन ही मन गुस्से से सोचा, "यह तो मेरी पक्के वाली सास बन गई है और मेरी बुराई तो ऐसे कर रही है जैसे मैंने धोखे से इनके बेटे से शादी कर ली हो और इनके घर बड़ी बहू बन गई हूँ। यह तो वही बात हो गई, अपने बेटे की गलती की सज़ा अपनी बहू को देना।"

    अनन्या ने रूही की सासू माँ के मुँह से ये बातें सुनकर रूही के चेहरे को देखने लगी। वह जानना चाहती थी कि रूही को गौरी जी की बातों का बुरा लगा है या नहीं। और सच में, रूही को गौरी जी की बातों का बुरा लगा था। पर तभी रूही के कानों में अनीता जी की आवाज़ आई।

    अनीता जी ने गौरी जी की बात बीच में काटते हुए कहा, "नहीं, असल में तो आज जो अनन्या खाना बनाएगी, वह भी तो रूही ने ही अनन्या की मदद करके बनवाया होगा। क्योंकि अनन्या को तो खाना बनाना आता ही नहीं है। तो अनन्या के हाथों में भी हमें रूही के हाथों का ही टेस्ट मिलेगा।"

    "क्योंकि इस खाने में रूही का ही अंदाज़ा होगा। इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि यह सही मायने में अनन्या की पहली रसोई की रस्म है। क्योंकि जो खाना अपने अंदाज़े से बनवा रहा है, उसके हाथों का ही टेस्ट खाने में आता है।"

    अनीता जी की यह बात सुनकर रूही अनन्या के चेहरे की ओर देख रही थी। वह जानना चाहती थी कि अनन्या को भी अनीता जी की बातें उतनी ही बुरी लग रही होंगी जितनी रूही को गौरी जी की बातें बुरी लगी थीं।

    अनीता जी और गौरी जी को इस तरह बातें करते हुए देखकर लग रहा था कि ये दोनों सास अपनी थोपी गई बहुओं से बिल्कुल भी खुश नहीं थीं। इस वजह से वे अपनी-अपनी बहुओं के खाने की बुराई करने पर तुली हुई थीं, जैसे यह जताना चाहती हों कि किसकी बहू में कितनी कमी है।

    क्योंकि ना तो अनीता जी अनन्या को अपने घर की बहू बनाना चाहती थीं, क्योंकि अनन्या उन पर जबरदस्ती थोपी गई थी। वहीं दूसरी तरफ गौरी जी का भी कुछ यही हाल था। उन्हें तो धोखे से बहू मिल गई थी। उन्हें पता ही नहीं था कि जो लड़की उनके जेठ के लड़के की बहू बनने वाली थी, वह अब उनके घर की बहू बन जाएगी।

    और ना उन्होंने कभी ऐसा सोचा था।

    इस तरह से उन्हें भी रूही बहू के रूप में पसंद नहीं आई थी। क्योंकि गौरी जी हमेशा शहर में रहती थीं, जिस वजह से उन्हें अपने बेटे के लिए एक शहर की, एक स्टैंडर्ड लड़की चाहिए थी, जैसे अनन्या।

    वहीं दूसरी तरफ अनीता जी को रूही जैसी बहू चाहिए थी, जिसको वह अपने बस में कर के रखती और जो उनका मन करता वह करवाती। पर उन्हें शहर की लड़की मिल गई थी। इसलिए ये दोनों सास अपनी-अपनी मिली बहू से खुश नहीं थीं।


    तभी उनकी बातें सुनकर मीनाक्षी जी ने कहा, "आप दोनों को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। असल में तो रूही और अनन्या दोनों की ही पहली रसोई की रस्म है। चाहे आपने रूही के हाथों का खाना पहले से ही खाया हो या फिर अनन्या को खाना बनाना ना आता हो और उसने रूही से पूछ-पूछकर बनाया हो, पर उसने बनाया तो अपने हाथों से ही है। इसलिए आज उन दोनों की ही पहली रसोई की रस्म है।"

    अभी तक घर के बाकी के सभी आदमी भी वहाँ आ गए थे: वीरेंद्र जी, महेंद्र जी, आरव, नील और आर्यन। आज बड़े सरपंच गाँव में नहीं थे, गाँव से बाहर गए थे।

    इन सब के साथ ही इस घर की इकलौती बेटी इशिका भी डाइनिंग टेबल पर बैठ गई थी। जिस वजह से अनीता जी और गौरी जी को मीनाक्षी जी की बातों को काटना सही नहीं लगा। क्योंकि रिश्ते में सबसे बड़ी मीनाक्षी ही थीं और वैसे भी ये औरतें अपने बच्चों के सामने ज़्यादा झगड़ा नहीं करती थीं।

    इसी वजह से उनके घर में थोड़ी बहुत शांति बनी हुई थी और सारे बच्चे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। उनके माँ-बाप अलग-अलग थे, पर फिर भी सारे बच्चे खुद को एक परिवार की तरह मानते थे और एक-दूसरे को सगे भाई-बहन की तरह मानते थे। बस उन सब में रूही अलग थी। उसके लिए सब भाई-बहनों में बचपन से ही बहन वाली फीलिंग नहीं थी और यह सही भी था, सच में रूही उनकी बहन नहीं थी, बस मीनाक्षी जी ने उसे पाला था।


    तभी रूही और अनन्या ने झूठी मुस्कान लिए हुए डाइनिंग टेबल के पास जाकर सबसे पहले अपनी ट्रे से खीर और हलवा वीरेंद्र जी को दिया। वीरेंद्र जी ने प्यार से उन दोनों से खीर और हलवा ले लिया।

    उसी तरह उन्होंने मीनाक्षी जी, अनीता जी, धर्मेंद्र जी और गौरी जी को भी हलवा और खीर दिया।

    फिर रूही और अनन्या नील के पास पहुँचीं। रूही ने जैसे ही नील को देखा, उसका मुँह बिगड़ गया।

    उसने मन में सोचा, "ओह, अब इस धोखेबाज़ का नंबर है। चल बेटा, ले ले ये अपने हाथों की बनी खीर। ये भी याद रखेगा कि मैंने कितनी टेस्टी खीर बनाई है।"

    पर फिर यह सब अपने मन में सोचते हुए ही रूही ने नील को खीर दे दी। जब रूही नील को खीर दे रही थी, नील बस रूही के चेहरे की ओर देख रहा था।

    क्योंकि आज रूही बहुत खूबसूरत लग रही थी। आज तक नील ने रूही को सिर्फ घर के साधारण कपड़ों में ही देखा था, पर आज जब उसने रूही को साड़ी में देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया।

    आज रूही ने पिंक कलर की साड़ी पहनी हुई थी और चेहरे पर पिंक लिपस्टिक, आँखों में काजल के साथ हल्का मेकअप किया हुआ था। उसने हाथों में चूड़ा भी पहना हुआ था। बालों को उसने एक साधारण हेयरस्टाइल के साथ खुला छोड़ा हुआ था। मांग में नील के नाम का सिंदूर और गले में नील के नाम का मंगलसूत्र भी पहना हुआ था। कुल मिलाकर रूही बहुत सुंदर लग रही थी।


    जब रूही ने नील को खुद को इस तरह देखते हुए पाया, तो वह असहज हो गई और उसने मन में गुस्से से सोचा, "यह धोखेबाज़ इंसान मुझे ऐसे क्यों देख रहा है? वह भी सबके सामने, बेशर्म।"

    पर फिर उसने जैसे-तैसे अपने गुस्से को शांत किया और आरव के पास चली गई। जैसे ही रूही ने आरव की तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक उदासी छा गई। क्योंकि कल अगर धोखे से उसकी शादी नील से ना हुई होती, तो आज वह आरव की दुल्हन होती।

    पर फिर उसने अपने मन में आए इन भावों को अपने चेहरे से गायब कर लिया और नकली मुस्कान लाते हुए आरव को खीर दे दी।

    आरव ने रूही को खीर देते हुए देखा तो शर्मिंदगी में अपनी नज़रें झुका लीं। उसे भी गिल्टी फील हो रहा था कि उसने रूही के साथ गलत किया है।


    आरव नीचे देख रहा था, तब रूही आरव को खीर देकर चली गई। अब रूही की जगह पर आरव के सामने लाल रंग की साड़ी पहने हुए और पूरी सजी हुई अनन्या अपना हलवा लेकर आ गई।

    जिस वजह से आरव की नज़रें अनन्या पर पड़ीं और अनन्या को देखकर आरव के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई। अब उसे रूही से शादी ना करने का फैसला ठीक लग रहा था।

    आरव की नज़रें अनन्या पर ही टिकी हुई थीं। क्योंकि आज अनन्या साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी। नॉर्मली तो उसने अनन्या को जींस-टॉप, क्रॉप टॉप के साथ शॉर्ट्स, और वन-पीस ड्रेस में ही देखा था।

    पर आज उसे अनन्या साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी। जिस वजह से उसकी नज़र अनन्या से हट ही नहीं रही थी। फिर रूही ने आर्यन को भी खीर दे दी। तभी उसकी नज़र पीछे बैठे आरव और अनन्या पर गई। अनन्या और आरव एक-दूसरे को प्यार भरी नज़रों से देख रहे थे। यह देखकर रूही का दिल बहुत दुख रहा था और यह सब उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।


    इसलिए जब वह इशिका को खीर देकर वापस आर्यन की तरफ आ रही थी, तो उसने जानबूझकर सब लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए, खासकर आरव का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए, जानबूझकर अपना पैर आर्यन की कुर्सी से टकरा दिया।

    रूही के पैर में जानबूझकर मारी गई इस ठोकर की वजह से उसे बहुत तेज दर्द हुआ। क्योंकि उसने जानबूझकर आर्यन की कुर्सी से अपना पैर टकराया था, इसलिए उसकी जोरों की चीख निकल गई। "आआआहह!"


    क्या रूही आरव का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर पाएगी? रूही की अनन्या से यह जलन आगे क्या मोड़ लेगी? आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, यह जानने के लिए पढ़िए यह कहानी, "रब की मर्ज़ियाँ"।

    आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा।

  • 15. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 15

    Words: 1382

    Estimated Reading Time: 9 min

    पुरे रास्ते हर्ष अंशिका के छोटे से हाथ में पकड़े हुए अपने बड़े से हाथ को देख रहा था। और अपने मन में बोल रहा था, "कितनी मासूम है ये, एकदम सिम्पल सी, इसके अंदर बिलकुल भी चालाकी नहीं है। मैं अपने लिए बिलकुल ऐसी ही लड़की ढूंढ़ रहा था। अब लगता है मुझे मेरी तलाश खत्म हुई।"

    तभी एक मीठी सी आवाज़ से हर्ष का ध्यान टूट गया। यह आवाज़ अंशिका की थी। अंशिका कह रही थी, "देखो हम पहुँच गए, यहाँ का खाना बेस्ट होता है।"

    अंशिका की बात सुनकर हर्ष सिंह ने अपनी नज़रें ऊपर उठाकर देखा तो उसकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गयीं, क्योंकि अंशिका हर्ष को रोड साइड के फ़ूड स्टॉल के पास ले कर आयी थी।

    अंशिका ने हर्ष सिंह का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा, "यहाँ पर वन प्लेट खाना ओनली फिफ्टी रूपीज का मिलता है, तुम जितना चाहो उतना खाना खा सकते हो, पैसों की फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है, पैसे मैं दे देती हूँ।" इतना बोलकर अंशिका ने हर्ष को खाने की एक बड़ी सी प्लेट पकड़ा दी।

    और हर्ष अपने हाथ में पकड़ी हुई उस खाने की प्लेट को देख रहा था। हर्ष ने कहा, "फिफ्टी रूपीज में इतना सारा खाना, ये तो बहुत ज़्यादा है।"

    जब हर्ष सिंह ने ये बात बोली कि इतना सारा खाना, तब अंशिका ने अपने मन में सोचा, "हाय बिचारा, इतना सारा खाना देखकर कैसे शौक हो रहा है। बिचारा।"

    अंशिका ने अपने मन में यह सब सोचकर हर्ष सिंह से कहा, "तुम अच्छे से खाना खा लेना, मैं अब घर जा रही हूँ। मुझे लेट हो रहा है।" इतना बोलकर अंशिका ने हर्ष से कहा, "अगर तुम्हें और भूख लगे तो ये लो फिफ्टी रूपीज और इस से ले कर और खाना खा लेना। और हाँ एक बात याद रखना, झूठ बोलकर गर्लफ्रेंड मत बनाना किसी भी लड़की को, क्योंकि जो लड़की पैसों के लालच में तुम्हारी गर्लफ्रेंड बनेगी, जब उसको तुम्हारी असलियत का पता चलेगा तो तब वह तुम्हें छोड़कर चली जायेगी। और जो लड़की तुम्हारे गरीब होने पर तुमसे प्यार करेगी, वो तुम्हारा कभी भी साथ नहीं छोड़ेगी। मेरी ये बात हमेशा याद रखना।" इतना बोलकर अंशिका वहाँ से जाने लगी, और हर्ष सिंह ने अंशिका की बात में हाँ में हाँ मिलाने के लिए अपना सिर हिला दिया।

    अंशिका को खाना खिलाने के लिए हर्ष ने अंशिका को थैंक यू बोलते हुए कहा, "थैंक यू मुझे खाना खिलाने के लिए और हाँ मुझे इतनी अच्छी एडवाइस देने के लिए कि लड़कियों को मैं खुद को गरीब बताऊँ।"

    हर्ष की बात सुनकर अंशिका ने स्माइल करते हुए कहा, "अरे थैंक यू बोलने की ज़रूरत नहीं है, बस तुम पेट भरकर खाना खाना ओके।"

    अंशिका की बात सुनकर हर्ष सिंह ने हाँ में दुबारा अपना सिर हिला दिया। और फिर वह थाली को देखने लगा। थाली में सच में बहुत सारा खाना था, उसमें करी, चावल, दो बड़ी-बड़ी रोटियाँ, छोले और दाल और थोड़ा सा सलाद भी था। हर्ष ने देखा कि खाने के अंदर से बहुत अच्छी खुशबू भी आ रही थी, जिस वजह से हर्ष खाना खाने लगा। और अंशिका ने जब हर्ष को खाना खाते हुए देखा तो तब वह हर्ष की तरफ़ टेस्टी का इशारा करते हुए वहाँ से एक ऑटो में बैठकर हर्ष की तरफ़ स्माइल करती हुई वहाँ से चली गयी।

    अंशिका के वहाँ से जाने के बाद हर्ष ने अपने मन में सोचते हुए कहा, "अब तो मैं अपनी गर्लफ्रेंड एक गरीब बनकर ही बनाऊँगा। और वह भी तुम्हें ही, तुम देख लेना।"

    तभी उसने उस फ़ूड स्टॉल से कुछ दूरी पर खड़े हुए अपने गार्ड्स में से दो गार्ड्स को अंशिका के पीछे लगा दिया, ताकि वह अंशिका को प्रोटेक्ट कर सकें और हर्ष सिंह को अंशिका की लाइफ़ से जुड़ी हर एक बात बता सकें।

    ऐसे ही तीन दिन बीत गए।

    जब अंशिका पिज़्ज़ा डिलीवर करने एक घर में गयी तो उस घर के अंदर से एक लड़की निकलकर आयी। उस लड़की ने जब अंशिका को देखा तो तब उसने अंशिका से उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "अंशिका तुम, तुम मेरा पिज़्ज़ा डिलीवर करने आयी हो, तुम तो क्लास टॉपर थी ना, बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती थी। मैं ये बनूँगी, ऐसा करूँगी, वैसा करूँगी और अब एक पिज़्ज़ा डिलीवरिंग गर्ल की जॉब कर रही हो, तुम्हें तो देखकर लगता है, तुम जैसी गरीब लड़की का कोई बॉयफ्रेंड भी नहीं बना होगा। किसी भी लड़के को तुम्हारी जैसी लड़की में कोई इंटरेस्ट ही नहीं होगा।"

    अंशिका जो कब से अपनी इस क्लास मेट की बातें सुन रही थी, उसने गुस्से से अपनी उस क्लास मेट से कहा, "तनु तुम मेरा मज़ाक उड़ाना बंद करो, मेरा भी एक बॉयफ्रेंड है और वह भी बहुत स्मार्ट, समझी तुम, ये लो अपना पिज़्ज़ा, मुझे पैसों की ज़रूरत है इस लिए मैं ये पार्ट टाइम जॉब कर रही हूँ।"

    ये बोलकर अंशिका ने तनु के हाथ में उसका पिज़्ज़ा पकड़ा दिया। तभी तनु ने अंशिका से कहा, "अच्छा अगर तुम्हारा बॉयफ्रेंड है तो स्कूल की क्लास यूनियन होने वाली है ठीक दो दिन बाद, तुम अपने बॉयफ्रेंड को स्कूल यूनियन में ले कर आना, मैं और बाकी के सब क्लासमेट भी तुम्हारे बॉयफ्रेंड से मिल लेंगे।"

    तनु की बात सुनकर अंशिका ने भी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ तनु से कहा, "हाँ ठीक है, मिल लेना तब ही, तुम मेरे बॉयफ्रेंड से।"
    "ठीक है, मिल लेंगे।" तनु ने कहा।

    "हाँ हाँ ठीक है मिल लेना। और देख भी लेना।" अंशिका ने कहा।

    इतना बोलकर अंशिका ने तनु से उसके पिज़्ज़े के पैसे लिए और वहाँ से चली गयी। घर से बाहर निकलकर अंशिका का फेस बिगड़ गया, और उसको अब घबराहट हो रही थी। उसने अपने मन में सोचते हुए कहा, "अंशिका बेटा, तेरा तो कोई बॉयफ्रेंड है ही नहीं, अब किसको तू अपना नकली बॉयफ्रेंड बनाकर ले कर जायेगी स्कूल यूनियन में? तू भी ना जोश-जोश में उस तनु की बच्ची को झूठ बोल दिया कि तेरा बॉयफ्रेंड है, और वो भी स्मार्ट। तुझे क्या ज़रूरत थी, उस तनु की बच्ची से झूठ बोलने की? अब दो ही दिन में स्कूल यूनियन है, और तेरे पास तेरा बॉयफ्रेंड नहीं है।"

    जब अंशिका ये सब सोच रही थी, तब वह अपनी एक्टिवा चला रही थी। ज़्यादा सोचने की वजह से अंशिका का ध्यान रोड पर पूरी तरह से नहीं था, जिस वजह से अंशिका की एक्टिवा सामने से आ रही एक महंगी सी कार से टकरा गयी। अपनी गलती ना मानते हुए अंशिका ने चिल्लाना शुरू कर दिया, "अरे जब कार चलानी नहीं आती है तो फिर चलाते क्यों हो? पहले तो कार खरीद लेते हैं और फिर कार चलाना सीखते हैं, ये नहीं कि पहले कार ड्राइविंग स्कूल में जाकर कार ड्राइव करना सीख लें। पर नहीं, स्कूल तो इनको जाना नहीं है, पैसे तो खर्च करने नहीं हैं, बस सीधा कार खरीदनी है, और हम जैसे लोगों को उस कार से मार देना है।"

    तब अंशिका ने देखा कि अभी भी कार के अंदर से कोई बाहर नहीं निकल रहा है तो तब अंशिका को गुस्सा आ गया, जिस वजह से अंशिका ने नीचे रोड पर से एक पत्थर उठाकर कार के शीशे पर मार दिया। तभी उस कार का गेट खोलकर एक स्मार्ट सा लड़का बाहर आया।

  • 16. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 16

    Words: 1108

    Estimated Reading Time: 7 min

    कहानी अब तक:

    पर उसको आज अनन्या साड़ी में बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। जिस वजह से उसकी नज़र तो अनन्या के ऊपर से हट ही नहीं रही थी। फिर तभी रूही ने आर्यन को खीर दे दी। वहीं तभी उसकी नज़र अपने पीछे बैठे आरव और अनन्या पर चली गई। क्योंकि अनन्या और आरव अभी एक-दूसरे को प्यार भरी नज़रों से देख रहे थे। जिस वजह से उन्हें कोई ऐसे देखते हुए, रूही का दिल बहुत ज्यादा दुख रहा था और उसे यह सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।

    इसलिए, जब वह इशिका को खीर देकर वापस आर्यन की तरफ आ रही थी, तब उसने जानबूझकर सब लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए, खासकर आरव का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए, जानबूझकर अपना पैर आर्यन की कुर्सी से टकरा लिया।

    और रूही के खुद को अपने पैर में जानबूझकर मारी गई इस ठोकर की वजह से, उसे अपने पैर में बहुत तेज दर्द महसूस हो रहा था। क्योंकि उसने जानबूझकर आर्यन की कुर्सी से अपना पैर टकराया था, इस वजह से उसकी जोरों की चीख निकल गई। "आआआहह!"

    कहानी अब आगे:

    रूही के इस तरह से चीखने की वजह से वहाँ पर मौजूद सभी लोगों का ध्यान रूही के ऊपर चला गया। क्योंकि रूही बहुत तेज आवाज़ में चिल्लाई थी।

    जिस वजह से मीनाक्षी जी बहुत ज्यादा टेंशन में आ गई थीं। इसलिए वह तुरंत ही उठकर जल्दी से चिल्लाते हुए रूही के बारे में पूछते हुए रूही के पास चली गईं। और फिर उन्होंने फ़िक्र भरी आवाज़ में रूही से पूछा, "क्या हुआ रूही बेटा? तुम्हें ज़्यादा चोट तो नहीं लग गई?"

    और फिर उन्होंने वहाँ पर मौजूद सभी लोगों से कहा, "अरे कोई रूही को उसके रूम में ले कर चलो। रूही मेरी बच्ची के पैर में कितनी चोट लग गई है!"

    रूही ने जब यह देखा कि उसकी माँ उसके लिए बहुत ज्यादा परेशान हो रही हैं, तो तब उसने प्यार से मीनाक्षी जी से कहा, "नहीं माँ, मुझे इतनी ज़्यादा चोट भी नहीं लगी है, आप फ़िक्र मत करो। बस हल्की सी चोट लगी है, ठीक हो जाएगी।"

    अब तक सब लोग, जो भी डाइनिंग टेबल पर बैठकर डिनर कर रहे थे, वे सब उठकर अब रूही के पास आ गए थे। तभी अनीता जी ने अपने बेटे आर्यन से कहा, "आर्यन बेटा, तेरी चेयर से रूही को चोट लगी है, तो तू ही अपनी रूही भाभी को उनके रूम में छोड़कर आ।"

    पर अनीता जी के यह बात बोलते ही आर्यन ने अपनी मॉम से कहा, "नहीं मॉम, मैं कैसे रूही भाभी को उनके रूम तक छोड़कर आ सकता हूँ? क्योंकि मेरे हाथ में भी तो चोट लगी है।"

    यह बात बोलते हुए उसने अपना बायाँ हाथ अनीता जी की तरफ उनकी आँखों के सामने करके दिखा दिया। हाँ, उसके हाथ पर हल्की सी पट्टी बंधी हुई थी। उसके हाथ की पट्टी को देखकर अनीता जी को आर्यन की फ़िक्र हो गई।

    और उन्होंने आर्यन से फ़िक्र भरी आवाज़ में पूछा, "आर्यन बेटा, कल तक तो तेरा हाथ बिल्कुल ठीक था। अब अचानक से क्या हो गया? और तुझे यह चोट कैसे लग गई?"

    अपनी मॉम के यह सवाल करने पर आर्यन सकपका सा गया और वह अपनी आँखों से इधर-उधर देखते हुए, अपनी नज़रें चुराते हुए दिखने लगा। तभी उसने अपनी मॉम से इसी तरह से अपनी नज़रें चुराते हुए कहा, "वह मॉम..."

    अभी आर्यन बस इतना ही बोल पाया था कि तभी उसे अपने कानों में अनीता जी की आवाज़ सुनाई दी। अनीता जी आर्यन से कह रही थीं, "चलो छोड़ो, मैं तुम्हारे से बाद में इस सब के बारे में पूछूँगी कि तुम्हें यह चोट कहाँ लगी।"

    और फिर उन्होंने आरव की तरफ़ देखते हुए आरव से कहा, "आरव बेटा, तू ही अब आर्यन की जगह पर रूही को उसके रूम तक छोड़कर आजा।"

    जैसे ही रूही ने अनीता जी की यह बात सुनी कि उन्होंने उसे उसके रूम तक छोड़कर आने के लिए आरव से कहा है, तो तब रूही मन ही मन बहुत ज़्यादा खुश हो गई और उसके मन में खुशी के लड्डू फूट गए। और उसके चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल आ गई।

    पर उसने वह स्माइल एक ही सेकंड में अपने चेहरे पर से गायब कर ली और अपने चेहरे पर दर्द भरे एक्सप्रेशन ले कर आ गई। और फिर उसने अपने मन में खुशी से झूम कर सोचते हुए कहा, "अरे वाह! मुझे नहीं पता था कि आरव की मम्मी आरव को मुझे मेरे रूम तक छोड़ने को बोलेंगी या मुझे आरव मेरे रूम में छोड़कर आएगा।"

    अपनी मॉम की बात सुनकर और अपनी मॉम का कहना मानते हुए आरव भी ना चाहते हुए रूही के पास आ गया। और आरव को अपने पास आते हुए देखकर रूही बहुत खुश हो रही थी कि आरव खुद उसे अपनी गोद में उठाकर उसके रूम में छोड़कर आएगा। पर रूही के सारे दिल के अरमान रखे के रखे ही रह गए और उन पर किसी ने अपना ठंडा पानी फेर दिया।

    क्योंकि जैसे ही आरव रूही को अपनी गोद में उठाने के लिए थोड़ा नीचे झुका, पर तभी किसी का एक हाथ आरव के कंधे पर आकर रखा गया। उस बड़े से हाथ को अपने कंधे पर महसूस करते ही आरव के हाथ झुके झुके वहीं पर ही रह गए। और उस दूसरे इंसान ने रूही को अपनी मजबूत बाहों में, अपने मजबूत हाथों से अपनी गोद में उठा लिया।

    जैसे ही रूही ने खुद को किसी दूसरे आदमी की बाहों में देखा और आरव उसे अभी भी नीचे झुके हुए ही दिखा, तो तब वह उसे गोद में उठाने वाले इंसान का चेहरा देखने लगी।

    यह आदमी और कोई नहीं बल्कि.....

    आपको क्या लगता है रूही को इस तरह से अपनी गोद में उठाने वाला इंसान कौन है?

    आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़ीया"।

    अब आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी।

    तब तक के लिए अलविदा।

  • 17. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 17

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    अंशिका ने देखा कि उस स्मार्ट लड़के ने ड्राइवर का कोट पहना हुआ था, और केप लगाई हुई थी। उन कपड़ों को देखकर अंशिका को समझने में देर नहीं लगी कि यह कोई और नहीं बल्कि ड्राइवर है। और जैसे ही अंशिका ने उस लड़के का चेहरा देखा, तो उसका सारा गुस्सा ठंडा हो गया, और उसने चौंक कर कहा, "अरे तुम तो वही हो ना, उस दिन वाले! क्या तुमने ड्राइवर की जॉब ले ली? चलो अच्छा किया, अब तुम काम करोगे तो तुम्हें एक अच्छी सी गर्लफ्रेंड भी मिल जाएगी।"

    यह कोई और नहीं बल्कि हर्ष सिंह था। वह अपनी एक महत्वपूर्ण मीटिंग के लिए उसी रास्ते से जा रहा था जहाँ से अंशिका जा रही थी। जब अंशिका ने हर्ष सिंह की कार को टक्कर मार दी, तो हर्ष सिंह ने कार की खिड़की से बाहर झाँककर देखा। उसको अंशिका का गुस्से वाला चेहरा दिखाई दिया। जिस वजह से हर्ष सिंह ने जल्दी से अपने ड्राइवर से उसका कोट और टोपी ले ली, और फिर वह जल्दी से बैक सीट से ड्राइवर वाली सीट पर बैठ गया और कार से बाहर निकल आया। क्योंकि हर्ष सिंह को अंशिका के सामने गरीब बनना था।

    हर्ष सिंह ने अंशिका को देखकर कहा, "थैंक यू। आपने जब मुझे एडवाइस दी थी कि मुझे झूठ बोलकर और एक अमीर लड़के बनने का नाटक करके अपने लिए गर्लफ्रेंड नहीं ढूँढनी चाहिए, तो मैंने सोचा कि मैं एक गरीब लड़के बनकर ही एक ऐसी लड़की ढूँढूँगा जो सच्ची और अच्छी हो, वह मेरे से मेरी गरीब वाली असलियत सुनकर भी मुझसे प्यार करेगी। तो बस मैं आ गया गरीब वाले लुक में।"

    हर्ष सिंह ने अंशिका से यह बात बोलकर अपने मन में कहा, "हाँ, अब से मैं तुम्हारे सामने एक गरीब लड़के बनकर ही आऊँगा। ताकि तुम मुझसे प्यार कर सको, और रही बात मेरी, मैं तो तुम्हारे पर अपनी पहली मुलाकात में ही अपना दिल हार बैठा हूँ।" यह बात हर्ष ने अपने मन में हल्की सी मुस्कान के साथ कही थी।

    तभी हर्ष सिंह के कानों में एक मीठी सी आवाज सुनाई दी। यह आवाज अंशिका की थी। अंशिका हर्ष से मुस्कान के साथ कह रही थी, "वेरी गुड! यह तो तुमने बहुत अच्छा काम किया। आई एम इम्प्रेस्ड! यही तो अच्छी बात होती है, इंसान को कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। मेहनत करती रहनी चाहिए। एक दिन मेहनत करने वाला इंसान कामयाब हो ही जाता है।"

    अंशिका की बातें सुनकर और अंशिका के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर हर्ष सिंह को बहुत अच्छा लग रहा था। उसका दिल खुशी से झूम रहा था। इतनी खुशी उसको तब भी नहीं होती थी जब उसको बेस्ट बिज़नेसमैन का अवार्ड मिलता था।

    हर्ष सिंह ने अपनी तारीफ के लिए अंशिका को धन्यवाद बोलते हुए कहा, "थैंक यू, बस आपके सिखाए हुए पर चल रहा हूँ।"

    हर्ष से बात करते-करते अंशिका को याद आया कि उसकी स्कूटी तो टूट गई है, और उसके सारे पिज़्ज़े भी नीचे रोड पर गिर गए हैं। इसलिए यह याद आते ही अंशिका का चेहरा रोता हुआ बन गया और उसने अपने रोते हुए चेहरे के साथ लगभग रोते हुए कहा, "हाय! मेरी स्कूटी तो टूट गई, और मेरे सारे पिज़्ज़े भी गिर गए! अब मैं क्या करूँगी? यह जॉब मेरे लिए बहुत ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट है। और अगर मेरे पास पैसे नहीं हुए तो बॉस मुझे जॉब से निकाल देंगे, और फिर मुझे दूसरी जॉब ढूँढनी पड़ेगी। दूसरी जॉब को ढूँढने में बहुत टाइम वेस्ट होगा, क्योंकि मुझे दूसरी जॉब इतनी आसानी से नहीं मिलेगी। नहीं, नहीं, नहीं! यह मेरे लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होगा। अब मैं क्या करूँ? मेरे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।" इस तरह से अंशिका रोता हुआ चेहरा बनाकर एक के बाद एक बात लगातार बोलती ही जा रही थी। और हर्ष हैरानी से अंशिका को बोलते हुए देख रहा था, क्योंकि अभी ये सारी बातें अंशिका ने बहुत तेज़ गति में बोली थीं।

    तभी उसने हर्ष सिंह की तरफ देखते हुए रोते हुए स्वर में हर्ष से कहा, "तुम्हारे पास तो पैसे भी नहीं होंगे मुझे देने को, क्योंकि तुम तो पहले से ही गरीब हो। तुमने अभी तो यह जॉब ली है। अब मैं क्या करूँ?" अभी यह बात हर्ष से बोलते हुए अंशिका के चेहरे पर उदासी और टेंशन साफ़ देखी जा सकती थी, जिसको हर्ष सिंह ने भी साफ़-साफ़ देख लिया था।

    इसलिए हर्ष ने अंशिका को परेशान देखा तो उसने तुरंत अंशिका से बोल दिया, "मैं तुम्हें पैसे दे दूँगा, देखो तुम इस तरह से मत रोओ।"

    हर्ष के मुँह से जैसे ही यह बात निकली कि वह उसे पैसे दे देगा, वह ना रोये, तो यह बात सुनकर अंशिका की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं और वह हैरानी से हर्ष को देखने लगी। जैसे हर्ष से अपनी नज़रों के देखने मात्र से अपने सवाल का जवाब मांग रही हो।

    आपको क्या लगता है, क्या अब हर्ष का झूठ पकड़ा जाएगा कि वह कोई गरीब इंसान नहीं है, बल्कि बहुत अमीर है?

    हर्ष अंशिका से अपने इस झूठ को छुपाने के लिए क्या करेगा कि वह अमीर है?

  • 18. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 18

    Words: 1865

    Estimated Reading Time: 12 min

    अपनी मॉम की बात सुनकर, और अपनी मॉम का कहना मानते हुए, आरव भी ना चाहते हुए रूही के पास आ गया। आरव को अपने पास आते हुए देखकर, रूही बहुत खुश हो रही थी कि आरव खुद उसे अपनी गोद में उठाकर उसके रूम में छोड़कर जाएगा। पर रूही के सारे दिल के अरमान रखे के रखे ही रह गए, और उन पर किसी ने अपना ठंडा पानी फेर दिया।

    क्योंकि जैसे ही आरव रूही को अपनी गोद में उठाने के लिए थोड़ा नीचे झुका, पर तब ही किसी का एक हाथ आरव के कंधे पर आकर रखा गया। उस बड़े से हाथ को अपने कंधे पर महसूस करते ही आरव के हाथ झुके झुके वहीं पर ही रह गए। और उस दूसरे इंसान ने रूही को अपनी मजबूत बाहों में, अपने मजबूत हाथों से, अपनी गोद में उठा लिया।

    जैसे ही रूही ने खुद को किसी दूसरे आदमी की बाहों में देखा, और आरव उसे अभी भी नीचे झुके हुए ही दिखा, तो तब वह उसे गोद में उठाने वाले इंसान का चेहरा देखने लगी।

    यह आदमी और कोई नहीं बल्कि…

    उसका हस्बैंड, नील सिंह था। जैसे ही रूही को यह पता चला कि उसे अपनी गोद में उठाने वाला और कोई नहीं बल्कि नील ही है, तो तब नील को देखकर रूही का मुँह बिगड़ गया। पर फिर भी उसने तुरंत ही अपने इन बिगड़े हुए फेस एक्सप्रेशन्स को अगले ही पल गायब कर लिया।

    रूही को गोद में उठाकर, नील ने वहाँ पर मौजूद सभी लोगों से कहा, "रूही मेरी वाइफ है और मैं अपनी वाइफ को खुद अपनी गोद में उठाकर हमारे रूम तक ले जा सकता हूँ और उसका पूरा ध्यान रख सकता हूँ। जब तक मैं रूही के साथ हूँ, मैं रूही को किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने दूँगा।"

    यह बात बोलकर, नील रूही को अपनी मजबूत बाहों में किसी नाजुक से फूल की तरह उठाए हुए अपने रूम की तरफ चल दिया।

    अभी नील ने यह बात ऐसे बोली थी जैसे वह यह बात अनीता जी को बोल रहा हो।

    "ओ माही वे.. ओ माही वे..
    माही मैनु छड्ड्यो ना
    के तेरे बिन दिल नइयो लगना
    जित्थे वी तू चलना ऐ
    माही मैं तेरे पीछे पीछे चलना

    तू जी सकदी नही
    मैं जी सकदा नही
    कोई दूसरी मैं शर्तां वी रखदा नही
    क्या तेरे बाजों मेरा

    सच्चियाँ मोहब्बतां वे
    हो माही कित्ते होर नइयो मिलना
    होर नइयो मिलना
    जित्थे वी तू चलेया
    हाँ माही मैं तेरे पीछे पीछे चलना
    (पीछे पीछे चलेया)

    ओ माही वे.. ओ माही वे.."

    नील की ऐसी बातें सुनकर, अभी रूही हैरानी भरी नज़रों से नील को ही देख रही थी। उसकी नज़रें नील के चेहरे पर लगातार टिकी हुई थीं। जब नील सीढ़ियाँ चढ़ रहा था, तो तब ही अनजाने में ही उसकी नज़र रूही के चेहरे पर पड़ी जो लगातार बिना अपनी पलकें झपकाए बस नील के फेस को ही देख रही थी।

    जिस वजह से रूही के खुद को इस तरह से देखने पर, नील ने रूही से कहा, "रूही क्या तुम्हें मेरा चेहरा इतना ज़्यादा पसंद है कि तुम्हारी नज़रें मेरे ऊपर से हट ही नहीं रही हैं?"

    और फिर नील ने थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ में रूही से, रूही को चिढ़ाने के लिए कहा, "अच्छा अगर तुम्हें मेरा चेहरा इतना ज़्यादा पसंद है तो तुम मुझे रूम में चलकर भी देख सकती हो। मेरा फेस ही नहीं बल्कि मुझे पूरे को ही। और इसके साथ ही रूम में चलकर तुम्हारा जो दिल करे तुम मेरे साथ वह भी कर सकती हो, यू नो ना, बेड एक्सरसाइज़, क्योंकि अभी तो बाहर सभी फैमिली मेंबर्स हमें ही देख रहे हैं।"

    अभी नील इतना ही बोल पाया था कि तभी रूही ने जोर से नील की शर्ट को पकड़ लिया और उसके सीने पर एक छोटी सी चुटकी भर ली। जिसकी वजह से नील को अपनी चेस्ट में हल्का सा दर्द हुआ और उसने रूही से कहा, "अरे रूही क्या कर रही हो? हम गिर जाएँगे, बैलेंस बिगड़ जाएगा। बैलेंस बनाए रखो, छोड़ो मत।"

    वहीं अब नील की ऐसी बातें सुनकर, रूही अब नील को ना देखते हुए इधर-उधर देख रही थी। और नील की ऐसी बातें सुनकर उसका मुँह बिगड़ गया था। तभी उसने अपना मुँह बिगड़ते हुए अपने मन में सोचते हुए कहा, "कहाँ तो मैं आरव के साथ, उसकी बाहों में, अपने रूम में जाने वाली थी, और कहाँ मुझे इस धोखेबाज़ इंसान के साथ अपने रूम में जाना पड़ रहा है। वाह! क्या किस्मत पाई है मैंने।"

    यह सब अपने मन में सोचते हुए, और नील के बारे में बुरा-भला बोलते हुए, रूही की नज़रें कॉरिडोर वाले रास्ते पर चली गईं। तभी उसने तेज आवाज़ में नील से कहा, "अरे यह मेरे रूम वाला रास्ता नहीं है। मेरा रूम तो साइड में है।"

    जैसे ही नील ने रूही की यह बात सुनी, तो तब उसके चेहरे पर एक स्माइल आ गई। और उसने रूही से हँसते हुए कहा, "वहाँ पर तुम्हारा रूम हुआ करता था, पर अब नहीं है। क्योंकि अब तुम्हारी मेरे साथ शादी हो चुकी है, जिस वजह से मेरा रूम भी अब तुम्हारा रूम ही है, यानी हमारा रूम।"

    नील की बात सुनकर रूही को याद आ गया कि हाँ, कल ही तो उसकी शादी नील के साथ हो गई थी। कहाँ तो वह सोच रही थी कि आरव उसे उसके रूम में ले जाएगा, पर अब नील के रूम वाली बातें सुनकर उसे अपनी सारी हदें, अपनी शादी का बंधन, सब कुछ याद आ गया था।

    नील ने वैसे तो रूही से सिंपल से शब्द ही बोले थे, पर नील के इन शब्दों से रूही को उसकी सारी मर्यादाएँ, शादी का बंधन, सब कुछ याद आ गया था।

    इतने में ही उनका रूम भी आ गया। जिस वजह से नील ने अपने रूम में जाकर रूही को बहुत ही सावधानी से बेड पर बिठा दिया। और फिर वह रूही को बेड पर बैठाकर अपने रूम में से फ़र्स्ट एड बॉक्स ढूँढकर दराज में से ले आया। और फिर वह बहुत ही ज़्यादा ध्यान से रूही के पैर के अंगूठे पर डेटॉल से उसके अंगूठे को साफ़ करते हुए उस पर बैंडेज लगाने लगा।


    "दिल विच तेरे यारा मैनु रहं दे
    आँखों से यह आँखों वाली गल केह्न दे
    दिल विच तेरे यारा मैनु रहं दे
    आँखों से यह आँखों वाली गल केह्न दे

    धड़कन दिल दी आए तैनु पहचाने
    तू मेरा है मैं हूँ तेरी रब भी ये जाने

    तू रह सकदी नई, मैं रह सकदा नई
    तेरे बिन यारा और कित्ते तकदा नई
    क्या तेरे बाजों मेरा

    रंग तेरा चढ़ेया वे
    के हुन कोई रंग नइयो चढ़ना
    रंग नइयो चढ़ेया
    जित्थे वी तू चलेया
    हाँ माही मैं तेरे पीछे पीछे चलना
    (पीछे पीछे चलेया)

    माही मैनु छड्ड्यो ना
    के तेरे बिन दिल नइयो लगना
    जित्थे वी तू चलना ऐ
    माही मैं तेरे पीछे पीछे चलना

    माही मैनु छड्ड्यो ना
    के तेरे बिन दिल नइयो लगना
    जित्थे वी तू चलना ऐ
    माही मैं तेरे पीछे पीछे चलना"

    अभी नील रूही के पैर के अंगूठे पर बहुत ही ज़्यादा ध्यान से बैंडेज कर रहा था। वहीं रूही नील को फ़र्स्ट एड करते हुए उसके फेस को ही देखे जा रही थी। और नील के चेहरे को देखते हुए वह अपने मन में सोचते हुए कह रही थी, "क्या यह सच में इतना अच्छा है या बस अपने इस धोखेबाज़ चेहरे को छुपाने के लिए मेरे सामने अच्छा बनने का नाटक कर रहा है?"

    यह सोचते-सोचते उसने आगे सोचते हुए कहा, "जो भी हो मुझे इसका असली चेहरा पता चल ही जाएगा। और अगर मुझे पता नहीं भी चला तो तब मैं पता लगा लूँगी।"

    इतने में ही उनके दरवाज़े पर किसी की दस्तक हुई। उस इंसान के दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनकर नील ने उस इंसान को अंदर आने की परमिशन देते हुए कहा, "कम इन।"

    नील की इजाज़त मिलने पर वह इंसान अपने हाथों में खाने की ट्रे लेकर रूम में आ गया। क्योंकि यह एक सर्वेंट था जो रूही के लिए मीनाक्षी के बोलने पर रूम में ही खाना लेकर आया था।

    नील और रूही ने खाने की तरफ़ देखा और फिर नील ने उस सर्वेंट से कहा, "आप इस खाने को यहाँ टेबल पर रख दो।"

    उसकी बात सुनकर वह सर्वेंट खाना टेबल पर रखकर चला गया। रूही के पैर पर बैंडेज करने के बाद नील ने टेबल पर रखे खाने की तरफ़ इशारा करते हुए रूही से कहा, "अब तुम खाना खा लो।" रूही पहले तो नील को खाना खाने के लिए मना करना चाहती थी, पर फिर उसको भी भूख लग रही थी। जिस वजह से उसने खाना खा लिया। और फिर खाना खाने के बाद नील ने उसे पेनकिलर की दवाई भी खिला दी।

    दवाई के असर में रूही को जल्दी ही नींद भी आ गई। इस वजह से रूही कुछ ही देर में सो गई। रूही के सोने के बाद नील ने बहुत प्यार से रूही को चादर ओढ़ाई और फिर वह दरवाज़ा धीरे से बंद करके रूम से बाहर चला गया।

    रूही के सोने के बाद रूही को एक सपना दिख रहा था। उस सपने में रूही को एक घना जंगल दिख रहा था और फिर उस जंगल में ही देखते ही देखते रूही को एक बहुत बड़ा मंदिर दिखने लगा। यह मंदिर और कोई मंदिर नहीं, वही रहस्यमयी इच्छाधारी नाग-नागिन का मंदिर था जिसको इंसानों ने नहीं, बल्कि इच्छाधारी नाग-नागिनों ने मिलकर बनाया था।

    रूही को उस मंदिर में बहुत से अजीब से कपड़े पहने हुए, फ़ैंसी ड्रेस जैसे, इच्छाधारी नाग-नागिन इंसानी रूप में दिख रहे थे। पर रूही उनमें से किसी को भी नहीं जानती थी। वहीं उसको वहाँ उस मंदिर में बहुत सारे साँप भी दिख रहे थे। तभी उसने अपने सपने में देखा कि उन साँपों की बातें उन फ़ैंसी ड्रेस जैसे कपड़े पहने हुए इंसानों को बहुत अच्छे से समझ में आ रही थी और वह उनसे बातें भी कर रहे थे।

    यही नहीं, रूही अपने सपने में बहुत ज़्यादा हैरान भी हो रही थी क्योंकि उसको भी अभी उन साँपों की बातें बहुत अच्छे से समझ में आ रही थीं। इस वजह से रूही बहुत ज़्यादा हैरान-परेशान थी और अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके उन साँपों की बातें सुन रही थी। तभी उसने कुछ ऐसा देखा जिस वजह से उसके पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गई।

    ऐसा क्या देख लिया रूही ने सपने में जो उसके पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गई?

    आगे यह कहानी क्या मोड़ लेगी, जाने के लिए पढ़िए यह कहानी "रब की मर्ज़िया"।

    आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। तब तक के लिए अलविदा।

  • 19. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 19

    Words: 1128

    Estimated Reading Time: 7 min

    जैसे ही हर्ष सिंह ने अंशिका को पैसे देने की बात कही, अंशिका हैरानी से उसका चेहरा देखने लगी। उसने हैरानी से पूछा, "क्या तुम मुझे पैसे दोगे? सच में? ये तुम क्या बोल रहे हो? अरे तुम मुझे पैसे कैसे दे सकते हो? मतलब, मेरा मतलब है कि तुम तो गरीब हो।"

    अंशिका ने एक के बाद एक सवाल पूछा। हर्ष ने अपने दांतों तले जीभ दबा ली। उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। उसने मन ही मन सोचा, "हर्ष सिंह, जिससे पूरी दुनिया बात करने से डरती है, और सोच समझ कर बात करती है, उसकी इस लड़की के सामने एक नहीं चलती। जो सोचता है, वो होता नहीं। अब हो गई ना गलती, अब दे जवाब।" खुद को डांटते हुए, उसने अंशिका से कहा, "अरे मैं नहीं, मैं कैसे दे सकता हूँ तुम्हारे पैसे?"

    हर्ष की बात सुनकर अंशिका ने कहा, "हाँ, वही तो मैं भी सोच रही थी कि तुम कैसे दे सकते हो मेरे पैसे?" अंशिका को समझ आ गया कि हर्ष उसके पैसे नहीं दे सकता। वह फिर से उदास हो गई। उसने मुरझाए हुए चेहरे के साथ कहा, "तो फिर कौन देगा मेरे पैसे? तुम तो मुझे पैसे देने की बात कर रहे थे?"

    हर्ष ने कहा, "अरे मेरे बॉस दे देंगे। जब मैं उनको बोलूँगा कि मेरे से तुम्हारी स्कूटी टूट गई है और तुम्हारे सारे पिज़्ज़ा नीचे रोड पर गिर गए हैं, तो ये सुनकर मेरे बॉस तुम्हें पैसे दे देंगे।"

    हर्ष के बॉस के पैसे देने की बात सुनकर, अंशिका के मुरझाए हुए चेहरे पर चमक आ गई। उसका चेहरा एक खिलते हुए फूल जैसा हो गया। उसने हर्ष से पूछा, "क्या सच में तुम्हारे बॉस मुझे पैसे दे देंगे?"

    हर्ष ने जवाब दिया, "हाँ बिलकुल, मेरे बॉस तुम्हें पैसे जरूर दे देंगे। मेरे बॉस ना, वो दिल के बहुत अच्छे हैं और साथ ही बहुत अच्छे इंसान भी हैं।"

    अपनी आदत के अनुसार, अंशिका ने फिर एक सवाल किया, "अच्छा, ये बात है? क्या वो सच में इतने अच्छे इंसान हैं?"

    हर्ष ने प्यार से जवाब दिया, "हाँ बिलकुल। तुम ही देखो, मेरे सर कितनी पेशेंसली हमारी बातें खत्म होने का इंतज़ार कर रहे हैं। क्या कोई बॉस इतना वेट करता है, अपने ड्राइवर की बातें खत्म होने का? तुम ही सोचो?"

    अंशिका ने कार की तरफ देखा और कहा, "हाँ, ये तो है। लगता है वो सच में एक अच्छे इंसान हैं। तुम उनको मेरी प्रॉब्लम बताओ, क्या पता वो हमारी हेल्प कर दें?"

    हर्ष ने कहा, "हाँ, मैं उनसे अभी बात करता हूँ। वे पक्का हमारी हेल्प कर देंगे।"

    हर्ष के मुँह से "हमारी" निकलते ही उसने चौंक कर अंशिका की तरफ देखा और शौक भरे चेहरे के साथ पूछा, "हमारी?"

    अंशिका ने आराम से जवाब दिया, "हाँ, हमारी। हमारी हेल्प कर देंगे। क्योंकि पैसे तो तुम्हें मुझे देने थे ना, पर तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं, तो ये प्रॉब्लम हमारी दोनों की हुई ना, इसलिए हमारी हेल्प। चलो अब अपने बॉस से बात करो हमारी प्रॉब्लम के बारे में।"

    हर्ष ने लाचारी से कहा, "हाँ, हमारी प्रॉब्लम, हमारी हेल्प। मैं अभी अपने बॉस से हेल्प माँगता हूँ। तुम यहीं रुको।"

    इतना बोलकर हर्ष अपनी कार के पास गया। उसने अंशिका को कुछ भी ना दिखाते हुए अपनी जेब से पैसे निकाले और अंशिका को देते हुए कहा, "ये लो, बॉस ने पैसे दे दिए।"

    पैसे देखकर अंशिका बहुत खुश हो गई। उसने खुशी से हर्ष को धन्यवाद दिया, "थैंक यू सो मच, तुम सच में बहुत अच्छे हो।" खुशी में उसने अनजाने में हर्ष को गले लगा लिया।

    हर्ष को समझ नहीं आया कि अभी-अभी उसके साथ क्या हुआ। लेकिन जैसे ही उसे एहसास हुआ कि अंशिका ने उसे गले लगाया है, वह बहुत खुश हो गया। उसकी दिल की धड़कन बढ़ गई, क्योंकि उसे अंशिका से पहली नज़र में प्यार हो चुका था।

    कुछ ही सेकंड में अंशिका हर्ष से हट गई। उसने फिर से हर्ष का चेहरा देखा। हर्ष उसे स्मार्ट लगा। उसे अपने लिए दो दिन में फेक बॉयफ्रेंड ढूंढ़ने की बात याद आ गई। उसने हर्ष से पूछा, "क्या तुम मेरे बॉयफ्रेंड बनोगे?"

    अंशिका के "क्या तुम मेरे बॉयफ्रेंड बनोगे?" कहने पर, हर्ष सिंह की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। वह हैरानी भरी नज़रों से अंशिका का चेहरा देखने लगा।

    आपको क्या लगता है? हर्ष अंशिका के अचानक प्रपोज़ल का क्या जवाब देगा? वह अंशिका के प्रपोज़ल को एक्सेप्ट करेगा या रिजेक्ट?

  • 20. Rab ki marjiyan, <br>The replaced groom - Chapter 20

    Words: 1448

    Estimated Reading Time: 9 min

    रूही ने अपने सपने में देखा कि तभी एक सांप अपना नाग रूप बदलकर एक लड़का बन गया। उस सांप को लड़का बनते हुए देखकर रूही बहुत हैरान रह गई। अभी रूही को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि कोई सांप उसकी आंखों के सामने लड़का बन सकता है।

    रूही हैरान परेशान ही हो रही थी कि तभी उसकी नजर खुद पर चली गई। खुद को देखकर रूही की आंखें पहले से और भी बड़ी हो गईं, और उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। क्योंकि रूही ने देखा कि वह कोई इंसान नहीं, बल्कि एक पीले रंग की सांप है और अपनी सांप वाली आंखों से वहां सब लोगों को देख रही है। रूही को अपने सपने में भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि वह सांप है और इतनी देर से सांप बनी हुई सब लोगों को बातें करते हुए सुन और देख रही थी।

    खुद को सांप के रूप में देखकर रूही को बहुत पसीना आने लगा और वह बहुत डर गई। डरने की वजह से रूही की नींद खुल गई।

    नींद खुलने पर रूही ने पाया कि वह पसीने से लथपथ और बहुत हैरान थी। अपनी इसी हैरानी के चलते रूही बेड पर उठकर बैठ गई और हैरानी से इधर-उधर पूरे कमरे में देखने लगी कि वह कहां है; क्या वह अभी भी उस जंगल में, उस बड़े मंदिर के सामने है?

    पर इधर-उधर पूरे कमरे में नज़रें घुमाने के बाद रूही को यह एहसास हुआ कि वह अपने कमरे में ही है और अपने बिस्तर पर सो रही थी।

    तो उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा, "ओह, ये एक सपना था। मैं सपना देख रही थी। पर ये कैसा सपना था, इतना अजीब!"

    और फिर उसने खुद ही अपनी इस बात का जवाब देते हुए कहा, "सपना देख रही थी तभी तो ये सब देखा कि एक सांप इंसान बन गया। असल ज़िंदगी में थोड़े ही कोई इंसान सांप बन सकता है या सांप इंसान बन सकता है। और इसमें अजीब होने वाली कौन सी बात है? सपने तो अजीब ही होते हैं।"


    फिर रूही ने खुद को देखकर कहा, "और कितना अजीब सपना था! सपने में मैं भी तो एक सांप ही थी, वो भी पीले रंग की सांप।"

    तभी उसने सोचते हुए कहा, "न जाने क्यों कल से मुझे सांप ही सांप दिख रहे हैं और अब तो मुझे मेरे सपने में भी सांप ही सांप दिख रहे हैं।"

    खुद से बातें करते हुए ही रूही की नज़र सामने लगी दीवार घड़ी पर चली गई।

    दीवार घड़ी पर समय देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं और उसने जल्दी से बिस्तर से उठते हुए कहा, "क्या? शाम के 4:00 बज गए? मैं इतना कैसे सो सकती हूँ? मैं पूरे पाँच घंटे तक सोती रही।"

    समय देखकर रूही को याद आया कि सुबह उसने आरव का अनन्या के ऊपर से ध्यान हटाने के लिए जानबूझकर अपने पैर में ठोकर मारी थी, जिससे उसके पैर में चोट लग गई थी।

    और उसने उसकी केयर भी की थी। पर आज उसका बर्थडे था और अब शाम के 4:00 बज गए थे। उसे आज मंदिर जाना था। मंदिर के बारे में याद आने पर रूही ने जल्दबाजी दिखाते हुए अपने मन में सोचा, "ओह, शित! शाम के 4:00 बज गए! मुझे तो मंदिर भी जाना है। चल बेटा रूही, जल्दी-जल्दी तैयार हो जा मंदिर जाने के लिए।"

    खुद से यह बोलती हुई रूही जल्दी-जल्दी तैयार होने लगी और फिर वह तैयार होकर मंदिर जाने के लिए निकल गई। मंदिर पहुँचकर रूही ने पहले पास में लगे स्टॉल से पूजा के लिए नारियल और फूल वगैरह खरीदे और फिर मुस्कुराती हुई वह मंदिर के अंदर पूजा करने के लिए चली गई और फिर उसने अपनी पूजा शुरू कर दी।

    आज रूही उसी मंदिर में पूजा करने आई थी जिस मंदिर का निर्माण दो नाग-नागिन के निकलने की वजह से हुआ था। यह मंदिर महादेव का मंदिर था। मंदिर में पूजा करके जब रूही मंदिर से बाहर निकल रही थी, तभी उसकी नज़र मंदिर के बाहर एक छोटे बच्चे पर पड़ी जो मंदिर के बाहर खड़े आइसक्रीम वाले भैया से आइसक्रीम खरीद रहा था।

    उस बच्चे को आइसक्रीम खरीदते हुए देखकर रूही का भी आइसक्रीम खाने का मन करने लगा। जिस वजह से उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा, "देखो तो बच्चे कितने खुश होते हैं आइसक्रीम खा रहे हैं! मैं भी एक आइसक्रीम खा ही लेती हूँ। वैसे भी आज मेरा बर्थडे है, इसलिए मुझे एक नहीं, दो आइसक्रीम खानी चाहिए।"

    आइसक्रीम के बारे में सोचती हुई रूही भी आइसक्रीम वाले भैया के ठेले की तरफ बढ़ने लगी। पर इतने में, रूही उन भैया की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी वहाँ पर एक बड़ी सी वैन आकर रुकी और उस वैन में से कुछ नकाबपोश आदमी निकल आए। ये कुल चार-पाँच आदमी थे और उन्होंने अपने चेहरे को काले रंग के नकाब से ढका हुआ था और उनके हाथों में बंदूकें भी थीं। नकाबपोशों को देखकर ही सारे लोग वहाँ डर गए और वह छोटा सा बच्चा तो ठेले के पीछे जाकर छिप गया।

    उस छोटे बच्चे को ठेले के पीछे छिपते हुए देखकर एक नकाबपोश आदमी ने दूसरे नकाबपोश, अपने साथी से इशारे से पूछा, "यही है ना वह बच्चा? इसको ही उठाना है ना?"

    उस पहले वाले आदमी का सवाल सुनकर कार में मौजूद आदमी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए गुस्से से कहा, "तुझे बताया तो था सब, तो फिर भी पूछ रहा है? जल्दी से उठा उस बच्चे को!"

    उस पहले वाले आदमी ने दूसरे वाले आदमी की गुस्से भरी आवाज सुनकर उसकी बात मान ली। जिस वजह से वह उस छोटे बच्चे के पास गया और उसे ठेले के पीछे से खींचकर अपनी गोद में उठा लिया और फिर उस बच्चे को अपनी वैन में डालने लगा।

    इस बीच में वह छोटा सा बच्चा उस नकाबपोश आदमी की पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश कर रहा था और अपने हाथ-पैर जोर-जोर से हिला रहा था और चिल्ला रहा था, "छोड़ो! छोड़ो मुझे!"

    जब रूही ने उन नकाबपोश आदमियों को उस छोटे बच्चे को अपनी वैन में जबरदस्ती उठाकर ले जाते हुए देखा, तो रूही ने सब कुछ छोड़-छाड़कर उस वैन की तरफ दौड़ लगाई। पर जब तक रूही उस वैन के पास पहुँची, तब तक वे नकाबपोश आदमियों ने उस छोटे बच्चे को अपनी वैन में डाल दिया था और उनकी वैन हवा से बातें करती हुई रोड पर दौड़ पड़ी थी।

    रूही ने भी ज़्यादा कुछ न सोचते हुए उस वैन के पीछे दौड़ लगानी शुरू कर दी।

    आपको क्या लगता है? क्या रूही उस छोटे बच्चे को अपहरणकर्ताओं से बचा पाएगी?

    यह हादसा रूही की ज़िंदगी में कौन सा मोड़ लेकर आएगा?

    आगे की कहानी अगले भाग में जारी रहेगी।