यह एक होरर शॉर्ट स्टोरी है।
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एक साथ एक घर मे इकत्तीस लोगों की मौत.?? मौत का कारण अभी समझ नही रहा है लेकिन घर के अंदर एक बड़े हिस्से पर पेरिश गेम लिखा हुआ पाया गया है।। जिसका मतलब है मौत का खेल।। "उफ़।। फहीम अब बंद भी कर दो टीवी।। उठ जाओ।। आज रात ही हमें मुजीब की शादी के लिए निकलना है। थोड़ी पेकिंग मे हेल्प करा दो।" बच्चों के लिए लंच बनाते हुए मिरहा के कानो मे टीवी पर चलती न्यूज़ के तमाम अल्फाज़ टकरा तो रह थे लेकिन इस वक़्त उसका सारा ध्यान महज़ काम खत्म करने पर था। आज ही मुजीब का रत्जगा था और आज उन्हें शाम तक दूसरे शहर पहुंचना था। फहीम रिमोट थामें हैरान सा बैठा था। "इकतीस मोतें...?? एक साथ...?? कौन कर सकता है मिरहा यह सब??" वह तो शॉक्ड रह गया था। यह खबर देखकर।। मिरहा ने प्लेट्स मे लंच निकाला और टेबल पर लगाते हुए भन्वे उचकाई थी। "यह सब आजकल फेक न्यूज़ बन रही हैँ।। आजकल कौन से घर मे इकतीस इकट्ठा रहते हैँ? कुछ भी..??" "यार। उनके घर मे पार्टी थी।। लोग आये हुए थे। गेदरिंग मे एक साथ थे।।" फहीम का तो दिल सा बैठ गया था।। इस मर्तबा मिरहा के भी हाथ रुके थे। "मगर यह पेरिश गेम का क्या मतलब है??" "पता नही?? बता रहे हैँ मौत का खेल है इसका मीनिंग।" फहीम ने कांधे उचकाये। "अच्छा चलो छोड़ो।। जल्दी जल्दी आकर खाना ख़त्म करो।। अंसर और रीहा को भी को भी बुलाओ।।" मिरहा ने बात को खत्म करते हुए कहा।। फहीम भी खाना खाने लगा।। वह लोग वक़्त पर पहुंच गये थे।। बहुत रोनक हो रही थी। मुजीब मिरहा के चचा का बेटा था और खानदान की शादी की तो बात ही अलग होती थी।। पार्टी रात तीन चार बजे तक चली थी।। हल्दी लगाई..डांस किया...और बहुत मस्ती की।। मिरहा हमेशा से चचा के साथ रही थी तो बेटी का किरदार उसी ने निभाना था। आते ही उसने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी संभाल ली थी।। "मै तो कल बारात मे बिल्कुल नही जाऊंगी।।" मिरहा थक चुकी थी।। वह अपनी फुफ्फीज़ाद कज़न के पास आकर बैठी थी।। "तो फिर कल जल्दी सो जाना।। जो नही सोता उसके साथ वरना लोग पेरिश गेम खेलने लगेंगे।" उसकी कज़न ने हँसते हुए कहा।। अचानक से उसके मुँह से इस गेम का नाम सुनकर मिरहा बुरी तरह चौंकी थी।। उसने सुनैना की तरफ हैरानी से देखा।। आज ही आज मे उसने दूसरी मर्तबा यह नाम सुना था।। "यह पेरिश गेम है क्या?? कभी इसका नाम नही सुना ना हमने कभी बचपन मे खेला था।। " उसका दिल अजीब से अहसास से घिर गया था।। अचानक से वह इकतीस मौतें याद आ गई थीं।। उसने न्यूज़ मे देखा था सब एक साथ एक ही तार पर टंगे हुए थे।। बिना किसी फंदे या रस्सी के।। "वह कोई दूसरी मखलुक़..." सुनैना ने राज़दारी से उसके कान की तरफ झुकते हुए कहा था।। " कहते हैँ कि रात मे अगर कहीं शोरोगुल होता है तो वह लोग ग्रुप बना कर कुछ लोगों को ले जाते हैँ खासकर तो देर रात तक जागे होते हैँ।" "मतलब..?" कहना ग़लत नही होगा कि मिरहा के अंदर सिरहन सी दौड़ी थी।। "मतलब वह इकतीस लोगों का ग्रुप बनाते हैँ और फिर उनको मार देते हैँ।। फिर दूसरा ग्रुप बनाते हैँ।। अगर फिर से इकतीस लोग होते हैँ तो फिर ले जाते हैँ।। इकतीस इकतीस करके जितने भी ग्रुप मारने पड़े मारते हैँ और अगर इकतीस लोग नही हो पाते तो छोड़ देते हैँ। इसलिए कल बरात लौटने से पहले सो जाना।। और बच्चों को भी सुला देना।।", " यह क्या बकवास है..??" मिरहा ने मुँह बिसूरते हुए कहा।। सुनैना हंस दी थी।। मिरहा का चेहरा डरा हुआ था।। सुनैना वहां से उठ गई थी मगर जाते जाते उसे देखते हुए मुस्कुराई थी। "और कुछ अपने भी उनके साथ मिले हुए होते हैँ।। जो दोनों को पेरिश गेम खिलाते हैँ।।" वह क़दम उठाती हुई वहां से चली गई थी।। मिरहा माथे पर बल डाले उसे जाते देखती रही। "पागल कहीं की।।" अगले दिन रात की बरात थी।। फहीम बच्चो को लेकर चले गये थे।। सबने मिरहा से बहुत बहुत इंसिस्ट किया था मगर उसका दिल नही था।। वह आज थोड़ा आराम करना चाहती थी।। फिर उसे नई बहु के घर आने के इन्तिज़ामात भी देखने थे। एक तो चचा पहले ही नाराज़ थे। वह बिल्कुल दिन के दिन मेहमानो की तरह आई थी।। कुछ ही लोग थे जो बारात मे नही गये थे। कुछ बुढ़ी औरतें जिनसे चलना मुहाल होता था और कुछ खास लोग जिनके उपर ज़िम्मेदारी ज़्यादा थी।। चची भी नही गई थीं।। अक्सर उनके खानदान मे लड़के की मां बारात मे नही जाती थी ताकि बहु का इसतक़बाल अच्छे से हो सके।। उनकी वजह से भी मिरहा नही गई थी।। ना जाने उसके दिल मे कैसा वहम बैठ गया था सुनैना की कल वाली बात का कि उसने सब कमरों मे जाकर लोगों को ठहरे हुए लोगों को गिनना शुरु कर दिया।। कुल अट्ठाइस लोग थे।। उसने जाने क्यों शुक्र का सांस लिया।। "अब थोड़ा सा आराम कर लो।। दो बज गये हैँ।। बारात चार बजे तक वापस आएगी।।" चची ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा।। नीचे पोर्शन पर सिर्फ चची और मिरहा ही थे। बाक़ी सब उपर थे।। यक़ीनन सब सो गये थे।। "बस मै यह खाने की ट्रे खाली करके रख दूँ फिर लेटने जाऊंगी।। आप सो जाए।।" मिरहा ने प्यार से कहा।। चची भी सिर हिलाते हुए वहां से निकल गईं और लाऊंज मे पड़े तख्त पर लेटकर सो गई।। थकी हुई थीं इसलिए ज़्यादा वक़्त नही लगा।। मिरहा ने ट्रे एक तरफ रखी तभी कॉल बेल हुई थीं।। वह जल्दी से भागती हुई दरवाज़े तक आई।। फहीम बच्चो के साथ खड़ा था। "क्या हुआ खैरियत..?" मिरहा हलका सा चौंकी।। "बच्चे तुम्हें याद कर रहे थे।। मुझे भी थकन हो रही थी।। बारात लौटने मे अभी वक़्त है इसलिए मै इन्हें लेकर आ गया।।" फहीम के साथ दोनों बच्चे भी अंदर आ गये थे।। उनतीस... तीस.. इकतीस.. मिरहा अभी गेट वापस बंद करती कि सुनैना भी पीछे से आ गई।। "यार बड़ा पकाऊ माहौल है।", वह भी गिरी गिरी तबियत मे लग रही थी।। " मम्मा हमने कुछ नही खाया है। हमें कुछ खिला दो।"वह फहीम के साथ सीढियों की तरफ बढ़ने लगी थी कि रीहा ने अचानक से कहा।। फहीम उसे बच्चो के साथ आने का कहकर उपर चला गया था।। मिरहा ने बच्चों को खाना खिलाया। किचन मे फिर से काम बढ़ गया था।। रीहा और अंसर को नींद आ रही थी।। वह चची के तख्त पर उनके कंबल मे घुस गये थे।। मिरहा ने किचन को अच्छे से संगवाया और देखा कि बच्चे सो गये थे।। वह तसल्ली बख्श सांस लेकर सीढियां चढ़ती उपर आई थी।। ऊपरी मंज़िल का दरवाज़ा बंद था।। उसने हाथ बढ़ा कर दरवाज़ा खोला।। टेरिस पर गहमा गहमी सी महसूस हुई।। उसे तो लग रहा था सब सो चुके थे मगर गोया सब तो कोई गेम खेल रहे थे।। टेरिस के साथ ही लगा हुआ एक कमरा था जिसमे मिरहा फहीम के साथ ठहरी हुई थी।। उसके दूसरे कमरे मे बाक़ी के लोगों को सोना था मगर यहां तक अजीब सा सरगोशियों से भरा हुआ माहौल लग यह था।। काले लिबास मे दो लोग सामने की तरफ बैठे हुए थे।जिनके चेहरे वह देख नही पा रही थी।। अपनी ही धुन मे चलती मिरहा के क़दम अचानक से कमरे की देहलीज़ पर जकड़ से गये थे।। उसने चेहरा उपर उठाया था ।। उसका दिल बेहद अजीब से ख़ौफ़ मे लिपट गया था।। उसने डरते डरते गर्दन वापस पीछे घुमाई थी।। काले लिबास मे जो लोग बैठे थे।। उनके ठीक ऊपर बिजली जैसा मोटा तार एक सीध मे जा रहा था और उसपर एक साथ कै लोग लटके हुए थे।। जिनकी गर्दन मे साइड मे से कोई सरिया सा बढ़ाया हुआ था।। और उसी की मदद से वह लोग तार पर टंगे हुए थे।। मिरहा के अंदर ख़ौफ़ का भूचाल उठा था।। आँखें जैसे पलटने को तैयार थी। काले लिबास वाले चेहरे अब वह देख सकती थी।। उनका चेहरा चोंचीला था और आँखे गोल गोल ज़रूरत से ज़्यादा बड़ी बड़ी थी।। वह एक साथ उसकी तरफ देख रहे थे।। ख़ौफ़ से काँपती मिरहा जल्दी से अंदर दाखिल हो गई थी।। उसने देखा सामने बिस्तर पर फहीम सो रहा था।। उसके हल्क़ से आवाज़ नही निकल रही थी।। वह फहीम की तरफ भागना चाहती थी लेकिन अचानक उसे बच्चों का ख्याल आया था।। वह फ़ौरन वापस पलटी थी लेकिन उस वक़्त तक कमरे के दरवाज़े के आगे एक बड़ा सा बेरिगेट लग चुका था।। जिसका मतलब था वह भी शिंकजे मे आ चुकी थी।। वह बोखलाई हुई सी फहीम की तरफ दोबारा जाना चाहती थी लेकिन उसके कान के नीचे से बारीक सरिया घुस चुका था और दूसरे कान के नीचे की सीध मे पार हो गया था।। दर्द का एक पहाड़ था जो जसपर फट गया था।। वह हवा मे उठती चली गई थी और टेरिस पर तार के साथ टांग दी गई थी।। "अब यह तब तक टंगे रहेंगे जब तक इकतीस लोग ना हो जाएं।" कोई किसी से कह रहा था।। "उसके बाद..?" अचानक सुनैना की आवाज़ आई।। "उसके बाद इकतीस लोगों के एक साथ क़त्ल की खबर फैल जाएगी।।" ##//##//## खत्म