कहानी शेखावत ब्रदर्स की,,,,,,
वादिनी कश्यप
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यज्ञ सिंह शेखावत
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सानिध्य सिंह शेखावत
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तत्सवि पाठक
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शेखावत हवेली शेखावत परिवार राजस्थान का सबसे अमीर खानदान था उनके नाम भारत के टॉप 05 रिचेस्ट फैमिली मे और दुनियाभर मे टॉप 10 मे आता है शेखावत परिवार के हेड थे विकास सिंह शेखावत जिन्होंने अपने पिता जी के द्वारा शुरू किए गए छोटे से काम को आगे बढ़ाया और अब इनके बिजनेस को ऊँचाईयो मे पहुँचाने का काम इनके बेटे कर रहे है विकास जी के कामयाबी मे उनकी पत्नी जया जी का भी बहुत बड़ा योगदान है जया जी और विकास जी के तीन बच्चे थे ,छोटी बेटी दिव्या सिंह शेखावत जिसकी कुछ ही सप्ताह बाद शादी थी, छोटा बेटा सानिध्य सिंह शेखावत, और बड़ा बेटा यज्ञ सिंह शेखावत जो कि अपने पिता के बिजनेस को बखूबी आगे बढ़ा रहा थे। चलिए अब आपको शेखावत हवेली के अंदर लेकर चलते है क्योंकि हमे तो जया जी के द्वारा बनाए गए नास्ते की खुशबु यहाँ तक आ रही है 😋 शेखावत हवेली के किचन मे जया जी ट्रे मे दो ब्लेक कॉफी के कप रख रही थी और साथ ही मेड को नास्ता डाइनिंग टेबल पर रखने को बोल रही थी जिसके बाद जया जी ट्रे लेकर फस्ट फ्लोर पर बने अपने रूम मे जाती है जहाँ उनके पति देव उनका इंतजार कर रहे थे जया जी ट्रे को कॉफी टेबल पर रखती है और विकास जी के हाथ मे पकड़ी टाई को अपने हाथ मे लेती है और साइड मे रखी एक छोटी हाइट वाली स्टूल पर खड़े हो जाती है क्योंकि जया जी विकास जी से हाइट मे छोटी थी या हम ये भी कह सकते है कि विकास जी हाइट मे कुछ ज्यादा ही लम्बे थे " आप कब अपनी टाइ खुदसे बाँधेंगे विकास जी ,,, आपके वजह से आपके दोनो बेटो को टाई बांधना भी नही आता , क्योंकि बचपन से दोनो ने, हमे आपकी टाई बाँधते देखा है और उन्हे तो वो हर चीज करनी है जो उसके पापा करते है " जया जी टाई बाँधने के बाद कॉफी विकास जी को देती है और ट्रे उठाकर जाते हुए कहती है " चलिए हम जाते है आपके बेटे को देखने " जया जी कहती है " और हम आपके बेटी को " पीछे से विकास जी कहते है जिस पर जया जी मुस्कुरा देती है जया जी अपने बेटे के कमरे मे जाती है और ट्रे रख कर बेड से टाई उठाती है और उस के पास जाती है जिसने वाइट शर्ट के साथ ब्लेक पेंट पहना था तो इनसे मिलिए ये है इस खानदान के बड़े बेटे यज्ञ सिंह शेखावत, 29 साल की उम्र, 6.2 इंच हाइट, गेहुंआ रंग, गहरी काली आँखे, जीम मे बनाई गई मस्कुलर बॉडी, गले मे सोने की पतली सी चेन जो हमेशा इसके गले मे रहता है " आखिर कब तक हम आपकी टाई बाँधते रहेंगे डूग्गू , अब तो आपकी बहन की भी शादी होने वाली है अब तो अपने लिए कोई लड़की ढूँढ लिजिए जो आपकी टाई बाँधे " जया जी टाई बाँधते हुए कहती है " लड़की तो मै ढूँढ लू माँ पर आपकी टक्कर की कोई मिल ही नही रही है " यज्ञ टेबल से कप उठाकर उसके सीप लेते हुए कहता है " मेरे टक्कर की ? तू तो ऐसे कह रहा है जैसे हम दोनो सांस बहु इस घर मे युद्ध करने वाले है जो मेरी टक्कर की होनी चाहिए " जया जी कहती है " हू नेवर नोस " यज्ञ कॉफी का कप रखकर अपना कोट उठाता है और जया जी के कंधे पर अपनी बाँहे लपेट कर आगे बढ़ने लगता है " बदमाश " जया जी कहती है ***** " गुड मार्निग डैड, मॉर्निंग दिवी " नीचे जाने के बाद यज्ञ उन्हे मार्निग विश करता है " मार्निग बेटा/भाई " विकास जी और दिव्या एक साथ जवाब देते है " आपके लाड़ले आज फिर घर नही आए ना??" विकास जी पुछते है " उसने कहाँ है उसकी सुटींग कुछ दिन और चलेगी " जया जी कहती है फिर सभी नास्ता करते हुए दिव्या के शादी कि तैयारी के बारे डिस्कश करने लगते है तभी विकास जी का फोन बजने लगता है वह जल्दी से कॉल रिसीव कर लेता है " कैसा है मेरे यार " विकास जी कहते है " मै अच्छा हूँ तू बता तू कैसा है " जय जी कहते है " यहाँ आ रहा है ना दिवी के शादी मे तो खुद ही देख लेना " विकास जी कहते है " यार मैने यही बताने के लिए तुझे कॉल किया था ,,,मै और तुम्हारी भाभी हल्दी के दिन आयेंगे ,,, यार गुस्सा मत होना पर एक अर्जेन्ट काम निकल आया है " जय जी कहते है " ये क्या है जय मैने तूझे पहले ही कह रखा था जितने भी काम हो सब को समेट कर तू मुझे शादी के कम से कम 20 दिन पहले तो मुझे मेरे सामने चाहिए ,,, फिर भी तू काम का बहाना बना रहा है " विकास जी कहते है " यार बहाना नही बना रहा हूँ सच मे अगर जरूरी नही होता तो मै आज ही आ जाता ,,,, " " ठीक है तो तू मत आ लेकिन कम से कम भाभी और वादी को तो कम से कम भेज दे " विकास जी कहते है " तेरी भाभी तो नही पर आज शाम तक वादी वहाँ पहुँच जाएगी तो उसे लेने चले जाना " जय जी कहते है " अच्छा ठीक है मै यज्ञ को उसे लेने को भेज दूंगा, और तू भी जल्दी काम खत्म करके आने की कोशिश करना ओके " और कुछ देर बात करने के बाद कॉल रख देते है तो अभी जिनका कॉल आया था वह विकास जी के बचपन का दोस्त जय कश्यप था जो अपने परिवार के साथ यू एस ए मे सेटल हो गया था नास्ता करने के बाद यज्ञ अपना कोट लेकर सबको बाय बोलकर जाने लगता है " डुग्गु शाम को वादी को लेने एयरपोर्ट चली जाना " विकास जी कहते है " डैड आप भूल गए आज मि गुप्ता के साथ इम्पॉटेन्ट मिटिंग है " यज्ञ कहता है " ओ हाँ मै तो भूल ही गया था ,,,ओके वादी को मै ही लेने चला जाऊंगा " विकास जी कहते है तो यज्ञ अपनी ब्लेक कलर की महंगी कार लेकर ऑफिस के लिए निकल जाता है उसके पीछे ही उसके बॉडीगार्ड्स की कार भी उसे फॉलो करने लगती है *** शाम के समय एयरपोर्ट एक लड़की एयरपोर्ट से बाहर आती है और आस पास नजर घुमाकर देखने लगती है तभी उसे कुछ बॉडीगार्ड्स के बीच खड़े एक अंकल के हाथ मे एक बोर्ड दिखता है जिसमे उसका नाम "वादिनी कश्यप " लिखा था " क्या आप विकास अंकल है " वह उनके पास जाती है और पुछती है " वादी क्या ये तुम हो ?" विकास जी खुश होकर उनसे पुछते है " प्रणाम अंकल " वादी विकास जी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए कहती है " खुश रहो बेटा,, आने मे कोई परेशानी तो नही हुई ना " विकास जी उसके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए पुछते है " जी नही अंकल, कोई तकलीफ नही हुई " " तो फिर चले घर ?" " जी " एयरपोर्ट से वादिनी को लेने के बाद, विकास सिंह शेखावत अपनी कार में बैठते हैं और उसे हवेली ले जाने लगते हैं। रास्ते में दोनों के बीच हल्की-फुल्की बातचीत होती है। " तो बेटा, इतने सालों बाद वापस आकर कैसा लग रहा है ?" विकास जी ने मुस्कुराते हुए पूछते है। " बहुत अच्छा लग रहा है अंकल! इंडिया की मिट्टी की खुशबू ही अलग होती है। मम्मी-पापा यहाँ की बातें करते रहते हैं, लेकिन यहाँ आकर इसे जीने का मौका आज मिल रहा है," वादिनी ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहती है। ********** हवेली पहुँचते ही विकास जी ने जोर से आवाज लगाते है — " जया, दिवी! देखो, मैं वादी को ले आया!" आवाज़ सुनते ही जया जी और दिव्या वहाँ आते है। वादिनी ने जया जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और दिव्या को हल्का-सा हाय कहा। " तुम तो कितनी बड़ी हो गई हो बेटा! छोटी सी थी जब तुझे लास्ट बार देखा था ,,,,,वैसे तुम थक गई होगी ना ,,दिवी, वादी को गेस्ट रूम में ले जाओ। मैं तब तक उसके लिए कुछ स्नैक्स तैयार कराती हूँ," जया जी स्नेह के साथ कहती है दिव्या ने मुस्कुराते हुए वादिनी का हाथ थामा और उसे गेस्ट रूम की ओर ले गई। ******* शाम के समय वादिनी फोन पर बात करते हुए हॉल में टहल रही थी। वह जैसे ही पीछे मुड़ी, अचानक यज्ञ से टकरा गई।जिससे वादिनी का संतुलन बिगड़ने से वह गिरने वाली थी, लेकिन यज्ञ ने झट से उसकी कमर थामकर उसे संभाल लिया। गिरने के डर से वादिनी की आँखें कसकर बंद हो गई थीं। कुछ पल बाद जब उसे एहसास हुआ कि उसे दर्द नही हो रहा है , तो वह धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलती है और उसकी आँखे यज्ञ की गहरी काली आँखों से टकरा जाती है कुछ पलों के लिए जैसे सब कुछ ठहर गया था। वे दोनो एक दूसरे के आँखो मे खो गए थे। " लाइट्स, कैमरा, एक्शन... शेखावत परिवार का सुपरस्टार लौट आया है!" इस आवाज़ ने दोनों को उनकी दुनिया से बाहर खींच लिया। यज्ञ ने तुरंत वादिनी को सीधा खड़ा किया और दोनों ने दरवाजे की ओर देखा, जहाँ एक लंबा, चौड़ा नौजवान स्टाइल में घर के अंदर आ रहा था। क्रमश:-
" लाइट्स, कैमरा, एक्शन... शेखावत परिवार का सुपरस्टार लौट आया है!" इस आवाज़ ने दोनों को उनकी दुनिया से बाहर खींच लिया। यज्ञ ने तुरंत वादिनी को सीधा खड़ा किया और दोनों ने दरवाजे की ओर देखा, जहाँ एक लंबा, चौड़ा नौजवान स्टाइल में घर के अंदर आ रहा था। ब्लैक कलर की टी-शर्ट के ऊपर ब्लैक जैकेट, आँखों पर सनग्लासेस और चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी —ये कोई और नहीं, बल्कि शेखावत खानदान का छोटा बेटा सानिध्य सिंह शेखावत था। तो ये है , सानिध्य सिंह शेखावत, 6.3 इंच हाइट, गोरा रंग ,मस्कुलर बॉडी, एक कान मे छोटी सी सोने की बाली पहनी हुई थी ये इंडिया का सबसे फेमस एक्टर और मॉडल था साथ ही अपने पापा और भाई की बिजनेस मे मदद भी करता था। " हे भाई!" सानिध्य यज्ञ के पास जाकर उसे गले से लगा कर कहता है " मिल गई फुर्सत घर आने की?" यज्ञ सानिध्य की पीठ थपथपाते हुए कहता है " भाई, कम से कम आप तो पापा की तरह टॉन्ट मत दो यार !" सानिध्य ने हँसते हुए कहा। तभी पीछे से एक प्यारी सी आवाज़ आती है — " बिल्लू!" सानिध्य ने तुरंत मुड़कर देखता है तो वहाँ जया जी खड़ी थीं। वह दौड़कर उनके पास जाता है और उनके गले लगकर बोलता है , " आई मिस यू सो मच, मम्मी!" " मैंने भी तुझे बहुत मिस किया!" जया जी कहती है और उसे झुकने का इशारा करती है ,सानिध्य तुरंत उनके लेवल तक झुक जाता है और जया जी प्यार से उसके माथे को चूम लेती है। इसके बाद सानिध्य की नज़र वादिनी पर पड़ती है। वह एक नजर उसे ऊपर से नीचे तक देखता है और अपनी खास अंदाज में मुस्कुराते हुए बोलता है — " बाय द वे , हूँ इज दिस ब्यूटीफुल लेडी ?" " जय अंकल याद है तुझे?" जया जी ने पूछा। " वही ना, जिनको पापा आपसे ज्यादा प्रीयॉरिटी देते है, और हमेशा फोन पर बिजी रहते हैं " सानिध्य मजाक करते हुए कहता है " बदमाश " जया जी सानिध्य के कान पकड़कर खिचते हुए कहती है " आह माँ दर्द हो रहा है छोड़िए ना,,, देखिए आप मेरी फैन के सामने मेरी बेइज्जती करा रही है " सानिध्य कहता है जिसे सुनकर यज्ञ ना मे सिर हिला देता है। " ये तुम्हारे उसी जय अंकल की बेटी है वादिनी,,,, दिवी के शादी के लिए आई है " जया जी सानिध्य के कान छोड़कर बताती है सानिध्य ने स्टाइल से अपनी जैकेट ठीक करता है और वादिनी की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोलता है — " हैलो, मिस यूएसए! आई एम सानिध्य... नाम तो सुना ही होगा!" वादिनी ने हल्की हंसी दबाते हुए हाथ मिलाने के बजाय बाहें क्रॉस कर लेती है और बोलती है — " वादिनी… एंड सॉरी टू से , लेकिन मैंने तुम्हारा नाम पहले कभी नहीं सुना!" यज्ञ इस बातचीत को चुपचाप देख रहा था। जया जी की नजर जब उस पर पड़ती है तो वह उसे बुलाते हुए कहती है " यज्ञ, तुम भी वादी से मिल लो।" यज्ञ ने बस हल्का सा "हैलो" कहता है और वापस चुप हो जाता है कुछ देर बाद सभी एक साथ बेठे थे " वैसे मिस यूएसए, तुम्हारा नाम बड़ा अनोखा है... आई लाइक इट !" सानिध्य अपनी ब्लेक कॉफी का एक घूंट भरते हुए कहता है। " तो फिर मेरे नाम से ही बुलाया करें ना," वादिनी ने मुस्कुराते हुए कहा। " नो," सानिध्य ने जवाब देता है। जिस पर वादिनी उसे चिढ़कर देखती है , और सानिध्य हँसते हुए अपने कमरे में चला जाता है। *** रात का समय , डाइनिंग रूम *** सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। सानिध्य खाने की पहली बाइट लेने ही वाला था कि विकास जी उसकी ओर देखकर कहते है — " बिल्लू, होली के बाद दिव्या की शादी की रस्में शुरू हो जाएंगी, तो तब तक तुम कहीं नहीं जाओगे, समझे?" " हाँ पापा, समझ गया!, लेकिन पापा प्लीज अब तो मुझे बिल्लु बुलाना बंद करिए,मेरे फेन्स को पता चला तो " सानिध्य कहता है " वो तो नही होगा बेटा तू हमारे लिए हमारा बिल्लु ही रहेगा ,,, चाहे कितना ही बड़ा एक्टर ही क्यो ना बन जाए ,,,,,और तीन दिन बाद सभी शॉपिंग के लिए चल रहे हैं… तो सब अपना अपना सेड्यूल उस दिन के लिए क्लियर कर ले समझे " जया जी ने सख्त लहजे में आदेश सबको सुनाया। " जी हुज़ूर," सानिध्य ने मुस्कुराते हुए कहा, और बाकी सब हँस पड़े। शेखावत परिवार आज शॉपिंग के लिए निकल पड़ा था। पहली कार में विकास सिंह शेखावत, जया सिंह शेखावत और दिव्या थे। दूसरी कार में यज्ञ और वादिनी बैठे थे। जबकि, सानिध्य हमेशा की तरह अपनी स्टाइलिश स्पोर्ट्स कार में अकेले आ रहा था। इन तीनों गाड़ियों के आगे और पीछे बॉडीगार्ड्स की कारें चल रही थीं, जो उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रख रही थीं। **** वादिनी यज्ञ की ओर देखती है , जो शांत और गंभीर मुद्रा में कार चला रहा था। वादिनी हल्की-सी मुस्कान के साथ उससे पूछती है — " वैसे, क्या आप हमेशा इतने ही शांत रहते हैं?" यज्ञ एक नजर उसकी ओर देखता है और फिर वापस सड़क पर ध्यान केंद्रित करते हुए जवाब देता है — " डिपेंड करता है सामने वाले शख्स पर।" वादिनी ने हल्का सा सिर झटकती है और संजीदगी से बोलती है — " देखिए, मैं आपकी तरफ अट्रैक्ट हो रही हूँ... आई मीन, आपके लुक्स पर!" यज्ञ अचानक उसकी बात सुनकर हैरानी से उसकी तरफ देखने लगता है । " सामने देखिए, वरना एक्सिडेंट हो जाएगा!" वादिनी उसे सचेत करते हुए कहती है। यज्ञ झट से वापस सड़क की ओर देखने लगता है। वादिनी गहरी सांस लेती है और सीधे मुद्दे पर आते हुए कहती है — " देखिए, जब भी मैं आपको देखती हूँ, मुझे कुछ फील होता है... और मैं इस फीलिंग को समझना चाहती हूँ। ये प्यार है या बस अट्रैक्शन... तो, क्या आप मुझे डेट करना चाहेंगे?" यह कहते हुए वह झिझक गई और सिर झुका लिया। यज्ञ चुप रहा। कोई जवाब नहीं आया... न हाँ, न ना। वादिनी को थोड़ा अजीब लगा। उसे लगा, शायद उसने यह बात कहकर गलती कर दी। उसे इतनी जल्दी ये सब नही कहना चाहिए था ,वह खिड़की से बाहर देखने लगती है । कुछ देर बाद, उनका काफिला शहर के सबसे महंगे मॉल के सामने रुकता है । यज्ञ ने कार पार्क की और गियर बंद करते हुए गहरी आवाज़ में कहा— " सोच लो... क्योंकि अगर तुम मेरे साथ रिश्ते में आई, तो यहाँ से वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होगा।" वादिनी ने हैरानी से उसकी आँखों में देखा। वह समझ नहीं पाई कि यह चेतावनी थी या फिर कोई छिपा हुआ इमोशन। "मॉल आ गया, चलो," यज्ञ कहता है और बाहर निकलकर वादिनी के लिए कार का दरवाजा खोल देता है। वादिनी बाहर आई और चुपचाप उसके पीछे चलने लगी। उसके दिमाग में बस यज्ञ की बात घूम रही थी। ******* दिव्या की हल्दी, संगीत और मेहंदी के लिए लहंगे देखे जा रहे थे। शादी का जोड़ा तो दूल्हे के घर से आने वाला था, इसलिए वह नहीं देखना था। वादिनी भी अपने लिए हल्दी, मेहंदी और संगीत के लिए कपड़े चुन रही थी। " वादिनी बेटा, तुमने कपड़े सिलेक्ट कर लिए?" जया जी उसके पास आते हुए पुछती है " हल्दी, मेहंदी और संगीत के लिए तो कर लिए, लेकिन शादी के लिए कुछ समझ नहीं आ रहा," वादिनी जवाब देती है। " अच्छा, तुम—" " मम्मी, जरा यहाँ आना!" जया जी अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले दिव्या ने अचानक जया जी को आवाज लगा कर अपने पास बुला लिया। " मैं अभी आई, फिर तुम्हारी मदद करती हूँ," जया जी ने कहती है। " कोई बात नहीं, आंटी, आप जाइए," वादिनी ने मुस्कुराते हुए कहती है ,तो जया जी वहाँसे दिवी के पास चली जाती है अब वह अकेली थी। उसने एक सुंदर लहंगा उठाया और सामने रखे बडे से मिरर के सामने खड़े हो कर उसे देखने लगी। तभी... यज्ञ पीछे से उसके करीब जाता है और बिना कुछ कहे, उसके सिर पर एक लहंगे का दुपट्टा रख देता है। " तुम पर ये ज्यादा अच्छा लगेगा," यज्ञ वादिनी के दोनो कंधे पर अपना हाथ रखकर धीरे से उसके कान मे कहता है। वादिनी नजर उठाकर मिरर में देखती है लेकिन खुद को नहीं, बल्कि यज्ञ को , उसकी आँखों में कुछ था… कुछ जो उसने पहले नहीं देखा था। इतने दिन से यज्ञ मुश्किल से उससे दो शब्द बोलता था, और अब वह उसके लिए खुद कपड़े चुन रहा था? उसकी दिल की धड़कनें तेज़ हो चली थी। उसकी नजरें मिरर में यज्ञ की आँखों से टकराईं। दोनों बस यूँ ही एक दूसरे के आँखो मे देखे जा रहे थे, जैसे कोई अधूरी कहानी एक झलक में पूरी हो रही हो। तभी… सीटी बजने की आवाज से उनकी तंद्रा टूटती है। यज्ञ दो कदम पीछे हटकर सीटी की दिशा में देखता है और वहाँ खड़ा था… सानिध्य सिंह शेखावत! अपने चिर-परिचित अंदाज़ में, मुस्कुराते हुए, अपनी जैकेट की कॉलर ठीक करते हुए। वाह-वाह, भाईसाहब! ये क्या नज़ारा देख लिया आज? रोमांस चल रहा है? , वो भी दि ग्रेट यज्ञ सिंह शेखावत का, कही मेरी आँखे तो खराब नही हुई ना " सानिध्य पूल नौटंकी करते हुए कहता है। क्रमश:-
" वाह-वाह, भाईसाहब! ये क्या नज़ारा देख लिया आज? रोमांस चल रहा है? , वो भी दि ग्रेट यज्ञ सिंह शेखावत का, कही मेरी आँखे तो खराब नही हुई ना " सानिध्य फूल नौटंकी करते हुए कहता है। वादिनी ने झेंपकर दुपट्टा अपने सिर से हटा लेती है , उसे शर्म सी आने लगी थी। सानिध्य की शरारती मुस्कान अब और भी गहरी हो गई थी। " लगता है तुझे तेरी आजादी और एक्टर वाली लाइफ पसंद नही आ रही है , पापा से कहकर तुझे एक्टर से बिजनेसमैन बनाना पड़ेगा " यज्ञ सानिध्य को धमकाते हुए कहता है । " अरे भा,,,, ई आप तो नाराज हो गए मै तो बस मजाक कर रहा था " सानिध्य अपने दांत दिखा देता है । " मै तो यहाँ था ही नही , मैने तो कुछ देखा ही नही यहा क्या हुआ, और ये तो बिल्कुल नही देखा जब आप मिस यू एस ए के साथ रोमांस कर रहे थे " ये कहकर सानिध्य वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाता है । यज्ञ वहाँ से जाने लगता है , पर वादिनी उसका हाथ पकड़ लेती है । यज्ञ उसे देखता है । " आप ऐसा क्यो कर रहे ? " " बिकॉज आई लाइक यू " यज्ञ जवाब देता है । " लेकिन मेरे प्रपोज करने से पहले तक तो ऐसा कुछ नजर नही आ रहा था अब ऐसा क्या हो गया जो आपको मै पसंद आने लगी " " मुझे तुम्हारा बोल्ड अंदाज पसंद आया , जिस तरह से तुमने मुझे बोल्डली प्रपोज किया ये पसंद आया , और बाकि तो हम एक दूसरे को आगे और भी अच्छे से जान ही जाएगे " यज्ञ उसके पास आकर कहता है । ********* शॉपिंग खत्म होने के बाद, शेखावत परिवार शहर के सबसे फेमस रेस्टोरेंट में डिनर करने के लिए जाते है। "चलो, शॉपिंग की थकान दूर करने के लिए बढ़िया डिनर किया जाए !" विकास जी मुस्कुराते हुए कहते है । सभी अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठकर रेस्टोरेंट की ओर रवाना हो जाते है । रेस्टोरेंट का माहौल शाही था— हल्की रोशनी, मधुर संगीत और चारों तरफ शानदार सजावट। सभी टेबल पर बैठ चुके थे , और अपना अपना डिनर एन्जॉय कर रहे थे। सानिध्य हमेशा की तरह सबसे ज्यादा बातें कर रहा था, जबकि यज्ञ शांत था, पर उसके चेहरे पर हल्की-सी अनकही मुस्कान थी, जिसे सिर्फ एक शख्स नोट कर रही थी और वह थी—वादिनी। "अरे वादिनी, तुम कुछ खा क्यों नहीं रही ?" दिव्या ने उसे हल्का-सा छूकर पुछती है। "हाँ ? नहीं, खा रही हूँ..." वादिनी हड़बड़ाई और जल्दी से एक कौर मुँह में डाल लिया। "लगता है कुछ और ही ख्यालों में खोई हुई है , या किसी के ख्यालो मे " सानिध्य ने चुटकी लेता हुए कहता है, और ये कहते हुए उसकी नजरें सीधे यज्ञ की ओर जाती है। यज्ञ ने सानिध्य की इस शरारत को इग्नोर करता है और अपनी प्लेट पर ध्यान देने लगता है। डिनर खत्म करने के बाद सभी घर के लिए निकल जाते है यज्ञ अपनी कार पार्क करता है और वादिनी के ओर देखता है जो कार की विन्डो से सिर टिकाकर सो गई थी यज्ञ कुछ देर तक उसके सुन्दर से चेहरे को देखता है , और फिर कार से उतरकर आराम से वादिनी की ओर का गेट खोलता है और उसे अपनी गोद मे उठा लेता है वादिनी भी नींद मे अपनी बाँहे यज्ञ के गले मे लपेट देती है यज्ञ उसे लेकर गेस्ट रूम मे जाता है विकास जी, जया जी और दिव्या पहले ही अपने अपने रूम मे चले गए थे लेकिन सानिध्य ने यज्ञ को देख लिया और कुछ सोचकर वह मुस्कुराने लगा और अपनी कार की चाबी अपने उंगली मे घुमाते हुए अपने रूम की ओर सीटी बजाते हुए चला जाता है यज्ञ, वादिनी को उसके बेड पर आराम से लेटाता है और कुछ पल उसे देखने के बाद वहाँ से सेकण्ड फ्लोर पर बने अपने रूम मे चला जाता है ****** अगली सुबह डाइनिंग टेबल पर सब अपनी-अपनी जगह बैठे थे। आज का माहौल हल्का और मज़ेदार था। सानिध्य हमेशा की तरह मस्ती के मूड में था। उसने अचानक कहा— "वैसे मम्मी, मैं सोच रहा था कि दिवी शादी के बाद यहाँ से चली जाएगी, तो क्यों न उसके कमरे को अपना गेमिंग रूम बना लूँ?" सानिध्य बस दिवी को चिढ़ाने के लिए ऐसा बोलता है और दिवी चिढ़ भी जाती है। दिव्या का मुँह खुला का खुला रह जाता है। "खबरदार अगर मेरे कमरे की एक भी चीज़ हिली तो! वरना मैं आपके फैन्स को आपका निकनेम बता दूँगी... 'बिल्लू'!" इतना कहते ही दिव्या ने उसे चिढ़ाने के लिए जीभ निकाल दी। सानिध्य ने तुरंत भौंहे चढ़ाईं— "दिवी! मै तुझे वार्न कर रहा हुँ अगर तुने ऐसा किया!" तभी विकास जी अपनी भारी आवाज़ में कहते है— "बिल्लू! खबरदार, जो मेरी प्रिंसेस को परेशान किया!" "पापा आप तो ऐसे कह रहे है जैसे आपकी प्रिंसेस मुझे कभी परेशान नहीं करती!" सानिध्य बच्चो की तरह शिकायत करता है। जिस पर जया जी मुस्कुरा देती है जबकि यज्ञ बस सिर झुकाए अपने नाश्ते पर ध्यान दे रहा था। "अब बस भी करो तुम दोनों, और नाश्ता खत्म करो!" जया जी प्यार से कहती है। कुछ देर बाद, विकास जी, यज्ञ और सानिध्य ऑफिस के लिए निकल गए। क्योंकि सानिध्य की अभी कोई सुटिंग नही थी इसलिए वह भी टाइम पास के लिए ऑफिस गया था ******* शाम का वक्त वादिनी रेलिंग के पास खड़ी थी, ढलते सूरज के रंगों में खोई हुई थी। शाम की ठण्डी ठण्डी हवा वादिनी के बालो से खेल रहे थे। अचानक उसे एहसास होता है कि कोई उसे देख रहा है। वह धीरे से मुड़ती है, और उसकी नजर यज्ञ पर पड़ती है। जो उसे बहुत ही हल्की मुस्कान लिए देख रहा था। "ऐसे क्या देख रहे हैं?" वादिनी अपने बालों को कान के पीछे करते हुए पूछती है। यज्ञ एक कदम उसकी तरफ बढ़ता है, उसकी गहरी आँखों में एक अजीब सा आकर्षण था। "देख रहा हूँ... आजकल तुम बहुत खूबसूरत लगती हो।" वादिनी ये सुनकर हल्का सा चौंक जाती है। "आजकल? मतलब पहले नहीं लगती थी?" यज्ञ ने सिर हल्का झुकाया और अपनी गंभीर आवाज़ में कहा— "पहले तुम मेरी नहीं थी, इसलिए कभी मेहमान से ज्यादा नहीं सोचा। लेकिन अब... तुम मेरी हो। और जो मेरा होता है, उसे मैं बहुत ध्यान से रखता हूँ।" यज्ञ की आवाज मे एक जुनून था। जिसे सुनकर वादिनी का दिल जोर से धड़कने लगता है। " नीचे चलिए माँ ने बुलाया है" यज्ञ के कहने पर वादिनी यज्ञ के साथ नीचे चली जाती है ****** नीचे जाने पर देखती है वादिनी देखती है विकास जी , सानिध्य, जया जी और दिवी के साथ ही कुछ और लोग भी हॉल मे मौजूद थे। " वादिनी बेटा आओ इनसे मिलो " जया जी वादिनी को देखकर कहती है यज्ञ जाकर सानिध्य के पास बैठ जाता है और वादिनी जया जी के पास चली जाती है। " वादि बेटा ये दिवी के ससुराल वाले है , ये रचना जी है दिवी की होने वाली सास , ये उनके पति परेश जी और ये समर है हमारे होने वाले दामाद जी " जया जी सब से वादि का परिचय कराती है तो वादिनी उन सब को नमस्ते करती है " ये कौन है जया जी पहले तो कभी नही देखा ?" रचना जी सवाल करती है " ये विकास जी के बचपन के दोस्त की बेटी है दिवी की शादी के लिए आई है " जया जी बताती है जिससे बाद कुछ बाते होती है और डिनर करने के बाद दिवी के ससुराल वाले वापस अपने घर चले जाते है ****** दिन खुशी खुशी बीत रहे थे और यज्ञ और वादिनी के बीच नजदीकियां बढ़ गई थी, दोनो के बीच बाते बढ़ने लगी, वादिनी यज्ञ के प्यार के रंग मे रंगती जा रही थी और इसी के साथ होली का त्योहार भी आ गया त्योहारों की खुशबू हवाओं में घुल चुकी थी। हर कोई सफेद कपड़ों में रंगों के त्योहार को जी रहा था। गार्डन में रंग-बिरंगी गुलाल की उड़ती लहरों के बीच संगीत और हंसी-ठिठोली का माहौल था। दिव्या ने सफेद अनारकली पहन रखी थी, जया जी ने सफेद साड़ी में अपनी शालीनता बनाए रखी थी, और वादिनी… वह भी सफेद साड़ी में किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। उसकी खुली जुल्फों को छूकर आती हवा में एक अलग सी मिठास थी। सानिध्य हमेशा की तरह अपने स्टाइलिश अंदाज़ में था—सफेद कुर्ते और नीली जींस के साथ सनग्लासेस पहने, मस्ती में डूबा हुआ। विकास जी भी सफेद कुर्ते-पजामे में त्योहार का आनंद ले रहे थे। लेकिन एक इंसान इस सब से दूर था और वो था—यज्ञ। वादिनी सब को गुलाल लगाती है तो बदले मे सभी उसे भी गुलाल लगाते है " यज्ञ अभी तक नीचे क्यो नही आए ?" वादिनी जया जी से सवाल करती है। " उसे बचपन से होली खेलना पसंद नही है इसलिए वो अपने कमरे मे है।" जया जी कहती है वादिनी कुछ सोचकर रंग से भरी थाल उठाती है और यज्ञ के कमरे कि तरफ चली जाती है। क्रमश:- कहानी कैसी लग रही है आप सब को ,प्लीज लाइक एंड कमेंट
वादिनी यज्ञ के कमरे के बाहर खड़ी थी। उसने दरवाजे पर हल्की दस्तक दी। "अंदर आ जाओ," अंदर से यज्ञ की भारी आवाज़ आई। जैसे ही वादिनी अंदर पहुंची, उसने देखा कि यज्ञ अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। "आप यहाँ अकेले क्यों बैठे हैं? आपको होली नही खेलना क्या ?" वह हल्की शिकायत भरे लहज़े में पूछती है। "मुझे होली खेलना पसंद नहीं," यज्ञ ने बिना नजर उठाए सीधा जवाब देता है। वादिनी कुछ पल उसे देखती रही, फिर उसकी आँखों में शरारत तैर गई। वह मुस्कुराकर बोली, "क्या मेरे प्यार के रंग से भी नहीं खेलेंगे? हमारी पहली होली है, यज्ञ।" इस बार यज्ञ ने पहली बार लैपटॉप बंद किया और उसे गौर से देखने लगा। "हमारी पहली होली?" यज्ञ हल्के से कहता है, फिर उसकी आँखें हल्का संकीर्ण हो गईं। "पर तुम तो पहले ही किसी और के रंग में रंगी हो।" यज्ञ की बात सुनकर वादिनी खुद को देखती है। और सच में, उसके कपड़ों से लेकर चेहरे पर पहले से ही रंग लगा हुआ था। "ये… ये तो सानिध्य ने जबरदस्ती मुझ पर रंग डाल दिया," वह झेंपते हुए बोलती है, "पर मेरी होली तो आपको रंगने पर ही पूरी होगी, ना?" वादिनी अपनी प्यारी सी आवाज मे कहती है। "ऐसा क्या?" यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ अपने भौंहे उठाकर पुछता है। "जी।" "तो फिर लगा लीजिए।" यज्ञ थोड़ा सा झुककर उसके हाइट के लेवल मे आकर कहता है यज्ञ की बात सुनकर वादिनी के चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान खिल जाती है। वह रंग से भरी थाल को कॉफी टेबल पर रखती है और दोनों हाथों में गुलाल ले लेती है और धीरे-से यज्ञ के गालों पर मल देती है। "हैप्पी होली, यज्ञ!" वादिनी खुशी से कहती है। "अभी मेरा रंग लगाना बाकी है, फिर होगी हमारी होली पूरी।"यज्ञ कहता है वह रंग उठाने के लिए झुका ही था कि वादिनी की हंसी गूंज उठी। "इतनी आसानी से नहीं, मिस्टर यज्ञ सिंह शेखावत!" वादिनी दरवाजे के पास भागती है और मुस्कुराते हुए बाहर निकल जाती है। यज्ञ झटपट से थाल से रंग उठाता है और उसके पीछे दौड़ पड़ता है। अब पूरे घर में एक अलग ही खेल शुरू हो चुका था—वादिनी आगे, यज्ञ पीछे। पूरे घर में उसकी खनकती हंसी की गूंज फैल हुई थी। वह कभी गलियारों में भागती, तो कभी सोफों के इर्द-गिर्द घूमती, और कभी-कभी परदे के पीछे छिपने की कोशिश करती, लेकिन यज्ञ हमेशा उसके पीछे-पीछे था। आखिरकार, भागते-भागते वादिनी गार्डन में पहुंच जाती है और हंसते हुए "बचाओ!" कहते हुए जया जी के पीछे छिप जाती है "माँ, प्लीज हटिए!" यज्ञ वही पर आकर रूकता है और मुस्कुराते हुए कहता है। "नहीं! आंटी, प्लीज, ऐसे ही रहिए!" वादिनी जया जी को पकड़ लेती है और सिर हिलाकर मना करने लगती है। जया जी उनकी इस शरारत पर मुस्कुरा देती है। "मैं बीच में नहीं पड़ने वाली," वो कहती है, यज्ञ हाथ बढ़ाकर वादिनी को पकड़ने ही वाला था कि वह दिव्या के पीछे छिप गई। अब फिर से वही खेल शुरू हो गया। लेकिन इस बार, जैसे ही वादिनी भागने लगी, पीछे से सानिध्य ने झटपट उसे पकड़ लिया। "सानिध्य, ये क्या कर रहे हो? छोड़ो प्लीज़!" वादिनी छूटने की कोशिश करते हुए कहती है। "तुम मुझे यज्ञ के पास क्यों ले जा रहे हो?" "क्योंकि मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं जब मेरे भाई हारते हैं या परेशान होते हैं।" सानिध्य हल्की हंसी के साथ कहता है। " मै तुम्हे छोडूंगी नही सानिध्य " वादिनी सानिध्य से छूटने के लिए स्ट्रगल करते हुए चिल्लाती है। " तो मत छोड़ना मिस यू एस ए ,लेकिन फिलहाल पहले मेरे भाई से बच जाओ "इतना कह कर वह वादिनी को सीधा यज्ञ के पास ले जाता है। "अब बचकर कहाँ जाओगी, मिस वादिनी कश्यप?"वादिनी की सांसें एक पल को थम सी जाती है जब यज्ञ उसकी कलाई पकड़कर, हल्के झटके से उसे अपनी ओर खींच लेता है। वह सीधा उसके करीब आ जाती है, इतनी करीब कि उसके हाथ खुद-ब-खुद यज्ञ के कंधों पर टिक जाते है। यज्ञ की गहरी नजरें उसकी झुकी पलकों पर टिक जाती है। यज्ञ धीरे से थाल से लाल गुलाल उठाता है और वादिनी के गालों पर मल देता है। गुलाल की हल्की ठंडक और यज्ञ के हाथो की गर्माहट का एहसास होते ही वादिनी की आँखें खुद-ब-खुद बंद हो जाती है यज्ञ उसकी मासूमियत को देखकर हल्का मुस्कुरिता है और बेहद कोमल आवाज़ में बोलता है, "अब हुई हमारी पहली होली पूरी… हैप्पी होली, जाना।" उसके इस प्यार भरे लहज़े पर वादिनी धीरे से आँखें खोलकर उसे देखती है। उसकी नजरें यज्ञ की गहरी आँखों से मिलती है , जिनमें कुछ तो ऐसा था जो उसके दिल की धड़कनों को और तेज कर गया। चारों तरफ रंगों की बौछार हो रही थी, संगीत बज रहा था, लोग हँस रहे थे, लेकिन इस पल में, उनके लिए दुनिया जैसे ठहर गई थी। जाने कितनी ही देर तक वे एक दूसरे की आँखो मे ही खोए हुए रहते अगर उन्हे तेज नगाड़ो की आवाज ना आती , वादिनी झटके से यज्ञ से दूर होती है और यहा वहाँ देखने लगती है कि कही किसी कि नजर तो नही पड़ी उन पर और यज्ञ को बिना कुछ कहे जया जी के पास चली जाती है चारों तरफ रंगों की बहार थी, ढोल-नगाड़ों की आवाज चारो तरफ गूंज रही थी, और माहौल में बस खुशीयाँ ही खुशीयाँ थी। दिव्या और सानिध्य पूरे जोश में डांस कर रहे थे, और जब दिव्या ने वादिनी को भी अपने साथ खींचा, तो वह हँसते हुए उनके साथ झूमने लगी। यज्ञ थोड़ा पीछे खड़ा, बस एकटक वादिनी को देखे जा रहा था। उसकी मुस्कुराहट, उसकी हँसी, उसके चेहरे पर बिखरी खुशी—सब कुछ उसे मंत्रमुग्ध कर रहा था। उसकी नजरें जैसे वादिनी के चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं। "क्या बात है बड़े भैया, आज तो निगाहें किसी और पर ही टिकी हैं?" सानिध्य ने पास आकर ठण्डाई का एक सीप लेते हुए बोला, तब जाकर यज्ञ का ध्यान टूटा। "तू ज़रूरत से ज्यादा बोल रहा है।" यज्ञ उसे आँखे दिखाते हुए कहता है "और आप ज़रूरत से ज्यादा देख रहे हैं।" सानिध्य आँख मारते हुए जवाब देता है और वापस दिवी और वादिनी के पास आकर डांस करने लगता है यज्ञ बस हल्का सा सिर हिला कर रह जाता है। तभी विकास जी वहाँ आ जाते है और यज्ञ को रंग मे रंगे देखकर बोलते है "अरे वाह! आज तो हमारे नवाब सहाब भी होली खेल रहे है और मुझे किसी ने बुलाया भी नहीं?" " पापा आप तो खुद ही आ गए,, हमे आपको बुलाने की जरूरत ही नही पड़ी " दिवी उनके गाल खिचते हुए कहती है तो सब हँस पड़ते है पूरा परिवार एक साथ मिलकर होली के रंगों में रंग चुका था, और इसी के साथ रिश्तों की गर्माहट और प्यार भी और गहरा हो गया था। ******************* होली के रंग अभी पूरी तरह उतरे भी नहीं थे कि शेखावत हवेली में एक नई हलचल शुरू हो गई। और ये हलचल थी शेखावत खानदान की प्रिंसेस, दिव्या की शादी की। पूरे परिवार में उत्साह था, रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ था, और मीडिया हर अपडेट को कवर करने के लिए तैयार थी। आखिर, यह शादी सिर्फ किसी आम घर की नहीं, बल्कि इंडिया के सबसे फेमस बिजनेसमैन और एक्टर की बहन की थी। शादी के सभी समारोह दुल्हा और दुल्हन दोनो परिवारों के साथ मिलकर मनाने की योजना थी, इसलिए शहर के सबसे रॉयल और फेमस होटल को बुक किया गया था। वादिनी के माता-पिता, जय और वीणा, भी इस खुशी में शामिल होने के लिए यू एस ए से आ चुके थे। शेखावत परिवार और उनके बॉडीगार्ड्स का पूरा काफिला होटल के लिए रवाना हो जाता है , और जैसे ही उनका कारवां होटल पहुँचता है , मीडियावालों के कैमरे चमकने लगते है। हर न्यूज चैनल पर यही ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी—"शेखावत परिवार की शाही शादी!" --- हल्दी की रस्म आज शादी की रस्मों की शुरुआत हो रही थी, और पहला समारोह था हल्दी का। पूरे वेन्यू को थीम के अनुसार पीले और नारंगी गेंदे के फूलों से सजाया गया था। हॉल के बीचों-बीच दूल्हा और दुल्हन के बैठने की विशेष व्यवस्था की गई थी, जिसके बीच में एक पतला पर्दा डाला गया था ताकि वे एक-दूसरे को देख न सकें। दिव्या को हल्दी के लिए नीचे लाया गया। उसने हल्के पीले रंग का खूबसूरत लहंगा पहना था, जिस पर गुलाबी फूलों की कढ़ाई थी। उसके गहनों में फूलों की माला, झुमके और हाथों में गजरा था, जो उसकी मासूमियत और खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। जैसे ही वह हॉल में पहुँची, हर किसी की नज़र बस उसी पर टिक गई। जया जी ने दूर से अपनी बेटी को देखा, और उनकी आँखों में हल्की नमी आ गई। वे धीरे-धीरे आगे बढ़ीं और दिव्या के पास आकर उसके गाल को प्यार से छुआ। फिर अपनी आँखों से हल्का सा काजल लेकर दिव्या के कान के पीछे लगा दिया। "किसी की नज़र न लगे मेरी बच्ची को..." उन्होंने प्यार से उसके माथे पर एक किस करते हुए कहा। दिव्या भी अपने आँसुओं को रोक नहीं पाई और माँ के गले लग गई। क्रमश:- प्लीज कहानी पसंद आए तो लाइक और कमेंट करके हमे लिखने के लिए प्रोत्साहित करे 🦋
कल आपने पढा-------- "किसी की नज़र न लगे मेरी बच्ची को..." उन्होंने प्यार से उसके माथे पर एक किस करते हुए कहा। दिव्या भी अपने आँसुओं को रोक नहीं पाई और माँ के गले लग गई। अब आगे ---------- चारों तरफ हल्दी की हल्की खुशबू और फूलों की सजावट माहौल को और भी खूबसूरत बना रही थी। महिलाओं ने मंगलगीत गाने शुरू कर दिए थे, और हल्दी की रस्म इसी के साथ शुरू हो गई थी। जया जी दिवी को उसकी जगह पर बैठाती है और समर की जूठी हल्दी दिवी को लगाती है दोनो की आँखो मे हल्की नही थी जया जी नम आँखो के साथ ही दिवी को ढ़ेर सारे आशीर्वाद देती है जिसके बाद विकास जी अपनी प्रिंसेस को हल्दी लगाते है। धीरे-धीरे बारी-बारी से परिवार के बाकी सदस्यों ने भी हल्दी लगाना शुरू किया। सानिध्य, जो अब तक हल्की मुस्कान के साथ खड़ा सब देख रहा था, हॉल के दूसरे कोने में खड़े यज्ञ के पास जाता है। "भाई, हमारी प्रिंसेस तो सच में किसी परी जैसी लग रही है! " सानिध्य दिवी को देखते हुए मुस्कुरा कर कहता है। यज्ञ ने भी अपनी छोटी बहन को निहारते हुए हल्के से अपना सिर सहमति मे हिला देता है। " बिल्कुल " "मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि दिवी इतनी जल्दी बड़ी हो गई! कल तक तो हमारे पीछे-पीछे घूमती थी और अब देखो, उसकी शादी हो रही है।" सानिध्य उन पलो को याद कर हल्के से हँस पडता है। " हाँ, वक्त कितनी जल्दी बित गया पता ही नही चला " यज्ञ गहरी सांस भरकर कहता है। "चलो चलते हैं दिवी को हल्दी लगाने।" यज्ञ कहता है और दोनो दिवी के पास जाने लगते है ****** हल्दी की रस्म जोरो पर थी सभी रिश्तेदार व दोस्त दिवी को हल्दी लगा रहे थे और अब बारी थी वादिनी की! " बहुत - बहुत बधाई हो दुल्हन " वादिनी दिवी के गाल पर हल्दी लगाते हुए कहती है और उसके गले लग जाती है जिस कारण दिवी की हल्दी गले लगने के कारण वादिनी के गाल पर लग जाती है " अरे! ये क्या? हल्दी तो तुम्हारे गाल पर लग गई " दिवी कहती है तो वादिनी हल्के से अपने गाल को छूकर देखती है " ये तो अच्छा शगुन है बेटा, दुल्हन की हल्दी लगी है मतलब अगली बारी इसी की है " पीछे से कोई महिला मजाकिया लहजे मे बोलती है जिसे सुनकर अनायास ही वादिनी की नजर सामने से आ रहे यज्ञ पर चली जाती है जिसकी नजर भी उस महिला की बात सुनकर वादिनी पर ही थी यज्ञ की आँखो मे देखते ही कुछ पलो के लिए जैसे सब कुछ थम सा गया था। " सही कहाँ आपने आंटी जी मिस यू एस ए के लक्षण देखकर मुझे भी यही लगता है " सानिध्य मजाक करते हुए कहता है तो वादिनी यज्ञ से नजर हटाकर सानिध्य को घुरती है " सानिध्य " वादिनी आँखे दिखाते हुए गुस्से से कहती है " क्या कहाँ तुमने,,, ऊपर मेरे कान तक नही पहुँची तुम्हारी आवाज " सानिध्य वादिनी के हाइट का मजाक बनाते हुए कहता है सानिध्य की बात सुनकर वादिनी का मुँह खुला का खुला रह जाता है और वहाँ मौजूद सभी लोग हँसने लगते है। बहुत मजाक सुझ रहा है ना तुम्हे ,रूको अभी तुम्हे बताती हूँ " इतना कहकर वादिनी अपने दोनो हाथ मे हल्दी लेकर उसकी ओर भागती है पर उसका पैर कार्पेट मे फँस जाता है और वह मुहँ के बल गिरने लगती है सबके मुँह से हल्की सी चीख निकल जाती है लेकिन इससे पहले वादिनी फर्श को किश करती, यज्ञ फुर्ती से आगे बढ़कर उसे गिरने से बचा लेता है और सीधे खड़े करता है। वादिनी अभी भी हल्की सदमे में थी कि वह गिरने से बच गई, लेकिन जब उसने अपने हाथों की हल्दी यज्ञ के कुर्ते पर लगी देखी, तो उसके चेहरे का रंग बदल गया। "म...मुझे माफ करिए, मैं—" वादिनी जल्दी से यज्ञ के कुर्ते से हल्दी साफ़ करने की कोशिश करते हुए कहती है, लेकिन यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लेता है। "कोई बात नहीं, वादिनी।" यज्ञ धीमे से कहता है, उसकी आँखों में एक अजीब सा अपनापन था। इसी बीच एक औरत की आवाज़ गूँजती है, "लो जी, पहले तो सिर्फ दुल्हन मिली थी, अब तो दूल्हा भी मिल गया! जया जी, बेटे की शादी की मिठाई कब खिला रही हैं?" इस बात पर पूरे हॉल में हँसी की लहर दौड़ जाती है , और जया जी भी मुस्कुराकर नाटकीय अंदाज मे बोलती है , "मैं तो कब से तैयार हूँ प्रभा जी, पर मेरा बेटा माने तब ना!" और इसे सुनकर सभी जोर-जोर से हँसने लगते है, लेकिन वादिनी और यज्ञ के बीच एक अनकहा सा एहसास दौड़ जाता है। वादिनी नज़रे झुका लेती है, जबकि यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसे देखता है। पूरे माहौल में हल्दी की खुशबू, फूलों की महक और ढोल-नगाड़ों की गूँज थी। शादी की पहली रस्म ने ही पूरे माहौल को भावनाओं और खुशियों से भर दिया था। ************** हल्दी की रस्म के बाद, दूल्हा-दुल्हन को उनके कमरों में स्नान कराने के लिए ले जाया जाता है। पूरे दिन की हलचल और रस्मों के बाद सभी थक चुके थे, इसलिए बाकी मेहमान और परिवार के सदस्य भी अपने-अपने कमरों में आराम करने चले जाते है। सानिध्य, आज की रस्मों की कुछ खास तस्वीरें और वीडियो अपने सोशल मिडिया अकाउंट पर शेयर करता है। पोस्ट अपलोड होते ही उसके फैन्स दीवाने हो जाते हैं, और कुछ ही मिनटों में तस्वीरें वायरल होने लगती हैं। *********** रात के खाने का समय होते ही सब एक बार फिर इकट्ठा होते है। चूंकि शादी में सिर्फ करीबी रिश्तेदार और दोस्तों को ही बुलाया गया था, इसलिए सभी बड़े से डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठ गए। दिव्या अपने पिता के पास बैठी थी। विकास जी उसे प्यार से देखते हैं और हल्की मुस्कान के साथ कहते हैं, "आज मैं अपनी राजकुमारी को अपने हाथों से खिलाने वाला हूँ।" उनकी आवाज़ में छुपी भावनाओं ने माहौल को और भावुक कर दिया था। वे अपनी बेटी की ओर एक निवाला बढ़ाते हैं, जिसे दिव्या बिना कुछ कहे, नम आँखों से स्वीकार कर लेती है। "पापा..." दिव्या की आवाज़ हल्की सी काँपी, लेकिन उसने अपनी मुस्कान छिपाने की कोशिश की। माहौल भावुक हो गया था। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनकी राजकुमारी अब इतनी बड़ी हो गई कि कल वह किसी और की दुल्हन बन जाएगी। जया जी भी दिव्या के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहती है " चाहे तू कही भी रहे, पर यह हमेशा याद रखना, यह घर तेरा था, तेरा है और तेरा ही रहेगा।" दिव्या ने मुस्कुराते हुए अपनी माँ का हाथ थाम लेती है। "माँ, चाहे मैं कहीं भी जाऊँ, मेरा दिल हमेशा यहीं रहेगा।" " बहन जी , दिवी सिर्फ आपकी ही नही हमारी भी बेटी है और जैसे वह आपके घर मे लाड-प्यार से रही है वैसे ही हमारे घर मे रहेगी, आप फिक्र मत करिए " समर की माँ कहती है " चल मोटी बहुत रो ली , अब अपने इस सुपरस्टार भाई के हाथ से भी कुछ खा ले " सानिध्य कहता है पर दिवी उसके बात का बुरा मानने की जगह अपने आँसू को रोकने की कोशिश करते हुए उसे खा लेती है और सानिध्य के कमर के चारो ओर बाहे लपेट कर रोने लगती है सानिध्य हल्के से मुस्कुराने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी आँखों की नमी छिप नहीं पाती। वह थोड़ा सा नीचे झुकता है और अपनी छोटी बहन सिर पर हल्का सा किस कर देता है। "अरे पगली, रोना बंद कर। वरना मेरे फैन्स सोचेंगे कि मैं तुझे तंग करता हूँ।" वह हल्के-फुल्के अंदाज में कहता है, लेकिन उसकी आवाज़ में छुपी भावनाएँ वादिनी और यज्ञ तक महसूस कर सकते थे। "मैं आपको बहुत मिस करूँगी, भाई..." दिवी सिसकते हुए कहती है। "और मैं भी तुझे, प्रिंसेस। लेकिन तू जानती है ना, मेरे से ज्यादा प्यार तुझे कोई नहीं कर सकता!" सानिध्य ने उसका चेहरा ऊपर कर के कहता है और उसके मांथे पर किश कर देता है, जिससे दिव्या हल्का सा मुस्कुरा देती है। " और परेशान भी यही कहता है तूझे, ये भूल गई " यज्ञ अपनी जगह से उठकर उसके पास आता है तो दिवी उसके गले लग जाती है यज्ञ अपनी बहन को कसकर गले से लगा लेता है, और उसके सिर पर हल्की थपकी देने लगते है। "तूझे याद है ना, जब भी तुझे कोई परेशानी हो, सबसे पहले किसे कॉल करना है?" यज्ञ प्यार से पूछता है। "अपने बड़े भाई को..." दिवी उसकी सीने से सिर टिकाते हुए धीरे से बोलती है। "और अगर मैं फोन न उठा पाऊं, तो?" यज्ञ ने हल्के से मुस्कराते हुए पूछता है। "तो अपने सुपरस्टार भैया को..." दिवी थोड़ा मुस्कराने की कोशिश करते हुए बोलती है। "और अगर ये भी बिजी हो तो?" यज्ञ ने उसकी ठोड़ी ऊपर करते हुए पूछता है । "तो फिर मैं खुद मैनेज कर लूँगी, क्योंकि आप दोनों ने मुझे इतना स्ट्रॉन्ग बनाया है! और मुझे पता है उसके बाद का जो रायता मेरे द्वारा फैलेगा उसे तो आप सम्हाल ही लेंगे" दिवी आँखों में आँसू , चेहरे मुस्कान और शरारत लिए कहती है। दिवी की बात सुनकर सानिध्य गर्व से उसकी तरफ देखता है। "ये हुई ना मेरी बहन वाली बात!" यज्ञ हल्के से हँसता है और दिवी के सिर पर प्यार से चपत लगाकर कहता है "और अगर कोई तुझे परेशान करे तो सीधा हमें बताना। ये मत सोचना कि अब शादी हो गई तो तो तू ,,,अम्म उसे क्या कहते है ( सानिध्य कुछ याद करने की कोशिश करते हुए चुटकी बजाता है ,, फिर याद आने पर ) हाँ ये मत सोचना तू पराया धन हो गई है " सानिध्य ड्रामेटिक अंदाज में कहता है, जिसे सुनकर सब हँस पड़ते है । क्रमश:- यहाँ तक पढ़े है तो प्लीज लाइक एंड कमेंट धन्यवाद 🦋
पिछले भाग मे आपने पढ़ा ---------- "और अगर कोई तुझे परेशान करे तो सीधा हमें बताना। ये मत सोचना कि अब शादी हो गई तो तो ,,,अम्म उसे क्या कहते है ( सानिध्य कुछ याद करने की कोशिश करते हुए चुटकी बजाता है ,, फिर याद आने पर ) हाँ ये मत सोचना तू पराया धन हो गई है " सानिध्य ड्रामेटिक अंदाज में कहता है, जिसे सुनकर सब हँस पड़ते है । अब आगे ------------- " भाई " दिवी ये शब्द लम्बा खिच कर कहती है "क्या भाई? सच तो कहा मैंने!" सानिध्य ने कंधे उचका कर कहता है। "पराया धन-वन कुछ नहीं होता, मेरी बेटी हमेशा हमारी प्रिंसेस रहेगी," जया जी दिवी का हाथ थामते हुए कहती है, उनकी आँखों में ममता झलक रही थी। "और वैसे भी, अगर समर ने इसे कभी परेशान किया, तो हमारी पूरी फैमिली को हैंडल करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा!" यज्ञ के बोलने का अंदाज भले ही शांत था लेकिन उसकी अंदाज से वार्निंग साफ झलक रही थी। " मै तो पहले ही प्रॉमिस कर चुका हूँ ,मै हमेशा आपकी प्रिंसेस को खुश रखूँगा " समर यज्ञ की बात सुनकर घबराते हुए कहता है। " यही आपके लिए ठीक होगा " सानिध्य अपनी कोल्ड टोन मे कहता है। " भाई प्लीज, आप समर को डरा रहे है" दिवी दोनो को आँखे दिखाकर कहती है। " अरे ,हम तो बस अपने जीजाजी से बात कर रहे है अब वो डर गए तो हम क्या करे " सानिध्य अपने कंधे उचकाकर बेफिक्री से कहता है "ठीक है बाबा, हम नहीं डराएँगे, लेकिन जीजाजी को पता तो होना चाहिए कि हमारी बहन को कोई तकलीफ हुई तो पूरा शेखावत खानदान एक साथ खड़ा होगा," यज्ञ अपनी भारी आवाज़ में कहता है , जिसे सुनकर समर और उसका पूरा परिवार एक पल के लिए सच में थोड़ा घबरा जाते है। " यज्ञ, सानिध्य बस करो अब तुम दोनो " विकास जी कडे लहजे मे कहते है जो दोनो भाई को चुप कराने के लिए काफी था। " इन दोनो की तरफ से हम आपसे माँफी मांगते है " विकास जी समर के माँ और पापा से कहते है। " आपको माँफी माँगने की जरूरत नही है विकास जी हम समझ सकते दोनो भाई अपने बहन के लिए प्रोटेक्टिव है" समर के पापा कहते है। " और सभी भाईयो को ऐसा होना भी चाहिए " समर की माँ उनके समर्थन मे कहती है। " देखा हमने कुछ गलत नही किया " सानिध्य यज्ञ के कान मे फुसफुसाते हुए कहता है। " चुप रह अभी " यज्ञ हल्की आवाज मे कहता है ताकि विकास जी फिर से उन दोनो को डाँट ना लगा दे। "अच्छा! अब इतना इमोशनल ड्रामा काफी हुआ, चलो अब खाना खाते हैं," विकास जी हँसते हुए कहते है। "हाँ! नहीं तो कल दुल्हन के हाथ काँप रहे होंगे मेहंदी लगवाने के दौरान!" सानिध्य मजाक करते हुए कहता है, जिससे सब हँस पड़ते है। " आज पहली बार मुझे सानु (सानिध्य) भाई की बात सही लगी,,, खाना खाते है नही तो कल के लिए एनर्जी कहाँ से मिलेगी मुझे " दिवी कहती है सब एक साथ हँसते हुए खाना खाना शुरू करते है, पर वादिनी की नजर बस यज्ञ पर थी और उसके इस नए रूप को देख कर हैरान थी, यज्ञ इतना प्रोटेक्टिव भी हो सकता था। " क्या हुआ " वादिनी अपने सोच मे इतनी गुम थी, उसे पता ही नही लगा यज्ञ कब उसके बगल की कुर्सी मे बैठ कर उसे देखने लगा। यज्ञ की आवाज आती है तब वह अपने साइड मे देखती है जहाँ अभी यज्ञ बैठा था । " कुछ नही " वादिनी जल्दी से कहती है। यज्ञ उसकी ओर देखता है और टेबल के नीचे से वादिनी के हाथ पर अपना हाथ रख देता है वादिनी बिजली की रफ्तार से अपना सिर यज्ञ की तरह घुमाती है उसकी आँखे बड़ी बड़ी हो गई थी। यज्ञ की यह हरकत वादिनी के लिए एकदम अप्रत्याशित थी। उसने हल्का सा हाथ खींचने की कोशिश की, लेकिन यज्ञ की पकड़ मजबूत थी। उसकी गर्म हथेली की छुअन से वादिनी का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। "य... यज्ञ! ये क्या कर रहे हैं आप?" वादिनी ने धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए कहती है, ताकि कोई और न सुन सके। यज्ञ ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा और बोला, "बस ऐसे ही, तुम्हें सोच में इतना गुम देखकर लगा कि कुछ कहना चाहती हो, तो सोचा... थोड़ा एहसास दिला दूँ कि मैं यहीं हूँ।" वादिनी की आँखें और भी बड़ी हो गईं। ये वही यज्ञ था, जो हमेशा गंभीर रहता था? जो अपनी हदें जानता था? "आप आजकल कुछ ज्यादा ही...," वादिनी ने फुसफुसाते हुए कहना चाहा, लेकिन यज्ञ ने हल्के से उसके हाथ को दबाया, "कुछ ज्यादा क्या?" वादिनी को उसकी शरारती टोन से और भी झिझक महसूस हुई। उसे नही पता था एक प्रपोजल किसी इंसान को इतना बदल सकता है पर वह खुश भी थी यज्ञ के साथ धीरे धीरे अपने अहसासो को जान रही थी उसे अब धीरे धीरे यह अहसास होने लगा था ये सिर्फ अट्रैक्शन नही है बल्कि ये उससे गहरा और बहुत खास अहसास है। " वादिनी बेटा तुम खा क्यो नही रही हो ?" जय जी अपनी बेटी को ऐसे ही बैठे देखकर सवाल करते है तो सबकी नजर भी उसकी ओर चली जाती है और हमारे यज्ञ बाबू तो ऐसे मासूम बनकर बैठे थे जैसे उन्हे कुछ खबर ही नही है वादिनी क्यो नही खा रही है " पापा,,,,वो मै बस खा ही रही थी , आप सब प्लीज कन्टीन्यु करे " वादिनी बड़ी मुस्किल से अपनी बात कहती है " यज्ञ प्लीज हाथ छोड़े " वादिनी मिन्नत करते हुए धीरे से बोलती है यज्ञ को उसका फेस बहुत क्यूट लगता है और आखिरकार वह वादिनी के हाथ को छोड़ देता है तब जाकर वादिनी को चैन की सांस आती है रात के खाने का माहौल अब पूरी तरह हल्का और खुशगवार हो गया था। अगले दिन की मेहंदी रस्म को लेकर सब उत्साहित थे, और एक नई सुबह के साथ शादी की तैयारियाँ और रंगीन होने वाली थीं। ********************** मेहंदी की रस्म आज मेहंदी की रस्म थी। पूरा माहौल हरे और सुनहरे रंगों से सजा था। फूलों की लटकों और झालरों ने हर कोने को महका रखा था। मेहंदी लगवाने के लिए दुल्हन के बैठने की खास व्यवस्था की गई थी। दिव्या ने एक पारंपरिक हरे रंग का लहंगा पहना था , जिसमें वह किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी। उसका चेहरा खुशी से दमक रहा था। बाकी सभी ने भी हरे रंग के कपड़े पहने थे वादिनी ने लाइट ग्रीन कलर का अनारकली सुट पहना था जिसमे वो बेहद खुबसुरत लग रही थी। सभी जेंस एक तरफ बैठे थे और सभी लेडीज एक तरफ बैठकर अपने अपने हाथ मे मेहंदी लगवा रही थी। " दीदी दुल्हे का क्या नाम है?" मेहंदी वाली दिवो से पुछती है " समर लिखिए " दिवी शर्माते हुए समर का नाम बताती है और नजर उठाकर सामने देखती है जहाँ समर बैठा था और समर की नजर तो बस अपनी दुल्हन पर ही थी। " हाँ और ऐसे लिखिए की दुल्हा रात भर अपना नाम ढूँढता ही रह जाए " वादिनी जो उसी के पास बैठी अपने हाथ मे मेहंदी लगवा रही थी वह कहती है तो सब हँस पड़ते है वादिनी की बात सुनकर दिवी तो शर्म से लाल होती जा रही थी वह वादिनी को कोहनी मारते हुए कहती है " वादि " "अरे, इसमें गलत क्या है? ये तो हमारे देश की परंपरा है, दूल्हे को अपनी दुल्हन के हाथों में अपना नाम ढूँढना ही पड़ता है," जया जी हँसते हुए कहती है। " दीदी आपकी मेहंदी पूरी हो गई क्या इसमे किसी का नाम लिखना है " मेहंदी वाली वादिनी से पुछती है वादिनी नजर उठाकर यज्ञ को देखती है और यज्ञ भी उसे ही देख रहा था वादिनी कुछ सोचकर आँखो से ही अपनी मेहंदी की ओर इशारा करती है और फिर यज्ञ की ओर देखकर अपनी भौंहे उचका देती है जैसे पुछ रही हो----- " लिखा ले आपका नाम ?" जिस पर यज्ञ हल्का सा मुस्कुराते हुए अपनी आँखे हल्के से बंद कर उसे परमिशन दे देता है " नही किसी का नाम नही लिखना है " वादिनी, यज्ञ ही देखते हुए कहती है और यह सुनकर तो बेचारे यज्ञ का दिल टूट जाता है। " मै अभी आई " वादिनी यज्ञ को शरारती मुस्कान देकर वहाँ से उठ जाती है और किसी काम से अपने रूम की ओर जाती है यज्ञ भी सब से नजरे बचाकर वादिनी के पीछे जाता है वादिनी अपने रूम की ओर जा ही रही थी की अचानक से कोई उसकी कमर को पीछे से अपने बाँहो के घेरे मे लेकर लेता है " यज्ञ ये आप क्या कर रहे है ,,,कोई देख लेगा " वादिनी घबराकर कहती है। जी हाँ यज्ञ ही था जिसके छूने के अहसास से ही वादिनी ने उसे पहचान लिया। " कोई नही देखेगा,,,और देख भी लेंगे तो मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि एक दिन तुम्हे मेरा ही होना है " यज्ञ धीरे से उसके कान मे कहता है वादिनी के गाल यज्ञ की बात सुनकर गुलाबी हो गए थे क्रमश:-
पिछले भाग मे आपने पढ़ा -------- " कोई नही देखेगा,,,और देख भी लेंगे तो मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि एक दिन तुम्हे मेरा ही होना है " यज्ञ धीरे से उसके कान मे कहता है वादिनी के गाल यज्ञ की बात सुनकर गुलाबी हो गए थे अब आगे ----------- वादिनी की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसकी साँसें उलझने लगीं थी, और यज्ञ की इतनी नजदीकी ने उसे पूरी तरह बेबस कर दिया था। "यज्ञ, प्लीज़... छोड़िए ना," वादिनी हल्की आवाज़ में कहती है, लेकिन उसका लहज़ा खुद ही उसे धोखा दे रहा था। "इतनी जल्दी पीछा छुड़ाने की कोशिश?" यज्ञ उसकी नजदीकी का पूरा फायदा उठाते हुए मुस्कुराया। "तुम्हीं ने तो मेरा नाम मेहंदी में नहीं लिखवाया, अब ये सज़ा तो मिलेगी ही।" वादिनी ने आँखें बंद कर लीं, उसकी गर्म साँसें उसके कानों को छू रही थीं। "यज्ञ, प्लीज़," वह और कुछ कहती, उससे पहले ही यज्ञ उसे अपनी ओर घुमाता है और हल्के से उसकी कलाई पकड़कर उसके हाथ को ऊपर करता है और अपने साथ लाए मेहंदी के कोन से वादिनी के हाथ पर अपना नाम गाढे अक्षर मे लिख देता है " यज्ञ आपने अपना पूरा नाम लिख दिया ,और वो भी इतना गाढा किसी ने देख लिया तो ?" " तो क्या होगा ?" यज्ञ उसकी आँख मे देखते हुए शरारत से पुछता है वादिनी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। उसकी नजरें खुद-ब-खुद हाथ पर चली जाती है, जहाँ "यज्ञ" नाम गहरे मेहंदी से चमक रहा था। "यज्ञ, प्लीज़... अगर किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा?" वादिनी हल्के गुस्से और घबराहट में बोलती है। "वही जो मैं चाहता हूँ, कि सब जान जाएँ कि तुम सिर्फ मेरी हो," यज्ञ मुस्कुराते हुए कहता है। यज्ञ की बात सुनकर वादिनी का चेहरा लाल पड़ जाता है। "आप न... बहुत ज़िद्दी हैं!" वह हल्के से भुनभुनाई। "तभी तो तुम्हें अपना बनाने की ठान ली है," यज्ञ धीमे से कहता है और फिर एक झटके में पीछे हट जाता है। "अब जब तक ये नाम मिटेगा नहीं, तब तक बार-बार इसे देखकर मुझे ही याद करोगी।" " आपने मेरे हाथ पर तो अपना नाम लिख दिया पर आपका क्या मेरा नाम भी तो लिखिए अपने हाथ मे ताकि सबको ये पता चले आप किसके है " वादिनी यज्ञ को देख कर कहती है। " आपका नाम तो यहाँ मेरे दिल पर लिखा है , और आप हाथ की बात कर रही है " यज्ञ अपने दिल की ओर इशारा करते हुए बड़े ही दिलकश अंदाज मे बोलता है। जिसे सुनकर वादिनी का दिल जोर से धड़कने लगता है। " बस बस ,,, दिल मे लिखा नाम किसने देखा है ,,,,मेरी तरह अपने हाथ पर लिखिए तब माँनू " वादिनी चैलेंजिंग टोन मे कहती है। यज्ञ उसकी बात सुनकर हल्की मुस्कुरा देता है और बिना कुछ कहे मेहंदी की कोन लेता है। वादिनी को लगा कि वह मजाक कर रहा है, लेकिन अगले ही पल यज्ञ खुद अपने हाथ पर बड़े-बड़े अक्षरों में "वादिनी" लिख देता है । वादिनी हैरानी से उसकी ओर देखने लगी। "यज्ञ, आप... सच में?" यज्ञ उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कराकर कहता है, " जब तुम्हारा नाम मेरे दिल पर लिखा है तो उसे हाथ मे लिखने मे कैसी झिझक?" वादिनी यज्ञ की बात सुनकर एक पल के लिए कुछ बोल ही नहीं पाई। उसकी आँखें यज्ञ की आँखों मे उलझ गई थी, जहाँ सिर्फ सच्चाई और अपनापन था। "आप... आप बहुत फिल्मी होते जा रहे हैं," वादिनी हल्के से मुस्कुराते हुए कहती है, लेकिन उसकी नजरें अब भी यज्ञ के हाथ पर लिखे अपने नाम पर थीं। यज्ञ उसकी ठोड़ी पकड़कर हल्के से ऊपर उठाता है, "और तुम धीरे-धीरे मेरी होती जा रही हो।" वादिनी का चेहरा गुलाबी पड़ जाता है। वादिनी जल्दी से अपना हाथ उससे छुड़ाती है और शरारती अंदाज में बोलती है, "देख लीजिए, शादी तक ये नाम मिट न जाए!" यज्ञ हल्की हँसी के साथ अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाता है, "अगर मिट गया तो फिर से लिख दूँगा... लेकिन इस बार सिर्फ हाथ पर नहीं, तुम्हारे हर लम्हे में।" वादिनी कुछ कह पाती, उससे पहले ही किसी के आने की आहट सुनाई दी। वह घबराकर पीछे हट जाती है, "अब आप जाइए यहाँ से, कोई देख लेगा तो—" "तो?" यज्ञ उसे परेशान करने के लिए उसके करीब जाने लगता है। "तो... बहुत मुश्किल हो जाएगी!" वादिनी ने आँखें घुमाते हुए कहती है। "मुश्किल नहीं, बस तुम्हें मेरी आदत हो जाएगी, मिस वादिनी कश्यप!" यज्ञ उसकी घबराहट का मजा लेते हुए धीरे से उसके कान मे फुसफुसाता है। और इतना कहकर वह शरारती मुस्कान के साथ वहाँ से चला जाता है, " शांत हो जा भाई और कितने ढोल नगाड़े बजायेगा " वादिनी अपने दिल पर हाथ रखकर कहती है ******* कुछ देर बाद सभी हॉल में बैठे थे, जब सानिध्य ने अपने खास अंदाज़ में अनाउंसमेंट की, "तो जैसा कि आप सबको पता है, आज रात संगीत का कार्यक्रम होने वाला है... और हमारे दूल्हा-दुल्हन इसमें परफॉर्मेंस देने वाले हैं!" सानिध्य की बात सुनकर पूरे हॉल में तालियों की गूँज उठता है। "लेकिन... इसमें एक ट्विस्ट है!" यज्ञ शरारती मुस्कान के साथ कहता है, तो सब उसे सवालिया नज़रों से देखने लगते है। "ट्विस्ट ये है कि ये सिर्फ परफॉर्मेंस नहीं होगी, बल्कि लड़की वालों बनाम लड़के वालों के बीच एक डांस कॉम्पिटिशन होगा!" यह सुनते ही यंगस्टर्स की टोली ने ज़ोरदार तालियाँ बजाईं, और माहौल में जोश भर गया। "अरे-अरे, ठहरो! अभी ट्विस्ट खत्म नहीं हुआ है!" सानिध्य ने एक और सरप्राइज़ देने के लिए हाथ उठाया। "आप सभी को सिर्फ आज शाम तक का समय मिलेगा अपने पार्टनर के साथ गाना डिसाइड करने और प्रैक्टिस करने का। और आपके पार्टनर कौन होंगे, ये यहाँ रखे दो बाउल तय करेंगे।" उसने दो बाउल दिखाए—एक लड़की वालो के लिए और एक लड़के वालो के लिए। "सभी सिंगल लोग बारी-बारी से आएँगे और लड़की वाले इस बाउल से और लड़के वाले इस बाउल से अपनी-अपनी चीट निकालेंगे।" "और हम शादीशुदा लोग क्या करें भई?" विकास जी हँसते हुए मजाकिया लहजे में पूछते है। "अरे, आप मैरिड कपल्स के पास तो पहले से ही परमानेंट पार्टनर हैं, तो बस उनके साथ जाएँ और डांस प्रैक्टिस शुरू करें!" सानिध्य चुटकी लेते हुए जवाब देता है। पूरा हॉल हँसी और उत्साह से गूँज उठता है, और हर कोई अपनी परफॉर्मेंस के बारे में सोचकर एक्साइटेड होते है। ****** सभी लड़के बारी-बारी से बाउल में हाथ डालकर अपनी पार्टनर की चीट निकाल रहे थे, क्योंकि लड़कियों के हाथों में तो मेहंदी लगी थी। माहौल में हल्की बेचैनी और उत्सुकता थी कि किसका जोड़ा किसके साथ बनेगा। अब बारी थी यज्ञ की। वह बाउल में हाथ डालकर एक चीट उठाता है और खोलकर देखता है। इससे पहले कि वह खुद कुछ कह पाता, सानिध्य तेजी से उसके हाथ से चीट छीन लेता है और ऊँची आवाज़ में पढ़ता है— तो भाई की पार्टनर हैं... मिस यू.एस.ए!" सानिध्य शरारती मुस्कान के साथ अनाउंस किया था और यज्ञ की तरफ देखकर एक आँख दबा दी। पूरा हॉल तालियों और हल्की हँसी से गूँज उठा। यज्ञ कुछ पल वादिनी की ओर देखता है, जो पहले से ही नर्वस थी। फिर वह बिना समय गँवाए सानिध्य के पास जाता है, उसे गले लगाता है " थैंक्यू " " ऑल दि बेस्ट भाई " सानिध्य कहता है। सभी के जोड़े बन चुके थे , लेकिन हमारे सुपरस्टार बाबू को छोड़कर। " अरे सुपरस्टार आपने तो किसी को चुना ही नही अपनी पार्टनर के लिए " वादिनी उससे कहती है " मुझे पार्टनर की जरूरत नही है मै तो अकेले ही अपनी बहन के संगीत मे चार चांद लगा सकता हूँ। तुम अपनी परफॉर्मेंस पर ध्यान दो क्योंकि जो तुम्हारे पार्टनर बने है ना मुझे नही लगता तुम उनके साथ परफॉर्मेंस दे भी पाओगी " सानिध्य कहता है क्योंकि वह जानता था उसके भाई को ज्यादा डांस नही आता था । सभी अपनी अपनी पार्टनर के साथ परफॉर्मेंस की तैयारीयो मे लग गए थे। ****** यज्ञ का रूम " यज्ञ मैने इस गाने को चुना है पूरा माहौल एकदम एनर्जी से भर जाएगा अगर हम इस गाने पर परफॉर्मेंस देंगे " वादिनी अपने द्वारा सिलेक्ट किए गाने को यज्ञ को सुनाती है यज्ञ गाने को ध्यान से सुनता है, फिर हल्की मुस्कान के साथ वादिनी की तरफ देखता है। "गाना तो अच्छा है, लेकिन तुम भूल रही हो कि मुझे ज्यादा डांस नहीं आता," यज्ञ अपनी बात रखते हुए कहता है। "यही तो फन है, मिस्टर यज्ञ सिंह शेखावत! मैं आपको सिखा दूँगी," वादिनी आँखें चमकाते हुए कहती है। यज्ञ हल्का सा हँसता है और अपने हाथ जोड़कर कहता है, "मैडम, मुझे बचा लो! मैं फुल एटीट्यूड में वॉक कर सकता हूँ, स्टेज पर खड़ा होकर चार्म बिखेर सकता हूँ, लेकिन डांस... वो भी इतनी एनर्जी वाला? मुझसे न हो पाएगा!" "बहाने मत बनाइए, अब आपको सीखना ही पड़ेगा!" वादिनी उसकी कलाई पकड़कर उसे खींचने लगती है। "अच्छा ठीक है, लेकिन अगर मैं गिर गया तो तुम्हें मुझे पकड़ना पड़ेगा," यज्ञ मजाकिया अंदाज में कहता है। "डील! अब कोई बहाना नहीं, चलिए रिहर्सल शुरू करें!" वादिनी एक्साइटेड होकर कहती है, और दोनों अपनी परफॉर्मेंस की तैयारी में जुट जाते हैं। क्रमश:- कहानी कैसी लग रही है आप सबको ,,, प्लीज अगर पसंद आए तो लाइक और कमेंट कर हमे प्रोत्साहित करे लिखने के लिए धन्यवाद 🦋
पिछले भाग मे आपने पढ़ा ----- "डील! अब कोई बहाना नहीं, चलिए रिहर्सल शुरू करें!" वादिनी एक्साइटेड होकर कहती है, और दोनों अपनी परफॉर्मेंस की तैयारी में जुट जाते हैं। अब आगे ----- रात का समय संगीत पूरी हवेली रोशनी से जगमगा रही थी। हर तरफ रंग-बिरंगी लाइट्स, फूलों की सजावट और संगीत की हल्की धुन माहौल को और खुशनुमा बना रही थी। मेहमानों की हंसी-ठिठोली और बातचीत से पूरा हॉल गूंज रहा था। "स्वागत है आप सभी का इस खास रात में, जहाँ होने जा रही है दूल्हा-दुल्हन के परिवारों के बीच शानदार डांस बैटल!" सानिध्य माइक संभालते हुए एनाउंस करता है, जिससे माहौल और भी जोशीला हो जाता है। "तो टीम लड़की वाले और टीम लड़के वाले, आप सब तैयार हैं?" सानिध्य के पूछने पर दोनों पक्षों से जोरदार तालियाँ बजती है। "चलो फिर, शुरुआत करते हैं हमारी प्यारी दुल्हन और हमारे जेंटलमैन दूल्हे की धमाकेदार परफॉर्मेंस से!" दूल्हा-दुल्हन की परफॉर्मेंस समर और दिव्या स्टेज पर आते हैं। गाना बजता है ---- बुलावे तुझे यार आज मेरी गलियाँ , बसाऊ तेरे संग मै अलग दुनिया ।। बुलावे तुझे यार आज मेरी गलियाँ , बसाऊ तेरे संग मै अलग दुनिया। । ना आए कभी दोनो मे जरा भी फासले, बस इक तू हो इक मै हूँ,और कोई ना ।। इस रोमांटिक म्यूजिक के बजते ही दोनों एक खूबसूरत सी परफॉर्मेंस देते है, जहाँ समर ने दिव्या को स्पिन किया, कभी हाथ थामकर घुमाया तो कभी हल्की मस्ती के साथ स्टेप्स किए। उनके बीच की केमिस्ट्री को देखकर सबकी आँखें चमक उठीं। परफॉर्मेंस खत्म होते ही तालियों की गूंज से पूरा हॉल भर गया। विकास जी और जया जी मुस्कुराते हुए स्टेज पर जाते है और दोनो अपनी बेटी दिव्या और समर की ओर देखे बिना रह नहीं सके। उनकी आँखों में एक माता -पिता की भावनाएँ साफ झलक रही थीं—गर्व, खुशी और एक हल्की सी उदासी, जो हर माता- पिता को अपनी बेटी की शादी के वक्त महसूस होती है। विकास जी अपनी जेब से नोटों की एक गड्डी निकालते है,और प्यार से दिवी और समर के सिर से वार करते है, और फिर होटल के स्टाफ को दे देते है, तो वही जया जी अपनी बेटी के मांथे को प्यार से चुम लेती है हॉल मे मौजूद हर किसी का दिल ये देखकर भर आता है। ******* "अब बारी है हमारी अगली जोड़ियों की!" सानिध्य स्टेज पर आकर उत्साह के साथ कहता है। यज्ञ और वादिनी की परफॉर्मेंस स्टेज की लाइट्स बंदहो जाती है और तभी म्यूजिकबजने लगाता है और एक स्पॉट लाइट यज्ञ पे पड़ता है जिसकी पीठ सब की तरफ थी , उस म्यूजिक पर यज्ञ वैसे ही सबकी तरफ पीठ करके अपने स्टेज करता है। जिसके बाद स्पॉट लाइट वादिनी की तरफ जाती है और वह भी वैसे ही सबकी तरफ पीठ करके अपने स्टेज करती है। दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है तेरी धुन में दिल है बंजारा।। (ये लाइन जैसे ही बजती है सारी लाइट्स ऑन हो जाती है और यज्ञ सबकी ओर पलटकर अपने स्टेप करने लगता है , और उसको इस तरह डांस करते देख सबके मुँह खुले के खुले रह जाते है ।) दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है तेरी धुन में दिल है बंजारा ( वादिनी अपने स्टेप करती है) मुटियारा पे वारा घर जायदाद सब हारा मुटियारा पे वारा घर जायदाद सब हारा माने माने ना माने मन के माने माने ना माने मन के खामखां दीवाना है ये (परफॉर्मेंस के दौरान जब वादिनी घूमकर यज्ञ की बाहों में आई, तो एक पल के लिए दोनों की आँखें मिलीं। उन आँखों में छुपे अहसासों को सिर्फ वही दोनों समझ सकते थे।) दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है कहे चंदा मेरा यारा मैं तन्हा एक तारा दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है इश्क़ तलातुम इश्क़ बवंडर इश्क़ दी गलियों में गहरा समंदर इश्क़ तलातुम इश्क़ बवंडर इश्क़ दी गलियों में गहरा समंदर आवारा नाकारा तरे डूब डूब बेचारा आवारा नाकारा तरे डूब डूब बेचारा माने माने ना माने मन के माने माने ना माने मन के खामखां दीवाना है ये दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम दम दम दमदम दम दम दम दम दम इश्क़ में कर के रब से यारी दिल है भूला भाई दुनियादारी इश्क़ में कर के रब से यारी दिल है भूला भाई दुनियादारी जन्नत से भी प्यारा यारा दा चौक चौबारा जन्नत से भी प्यारा यारा दा चौक चौबारा माने माने ना माने मन के खामखां दीवाना है ये दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है कहे चंदा मेरा यारा मैं तन्हा एक तारा दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम मस्त है कैसी ये जस्त है दम दम दम दम दम दमदम दम दम दम दम दम उनकी परफॉर्मेंस में एक खास तरह की केमिस्ट्री थी—कभी मस्ती, कभी रोमांस और कभी आँखों ही आँखों में शरारत। "वाह भाई, आज तो यज्ञ भैया ने स्टेज पर आग ही लगा दी!" कोई पीछे से कहकर एक जोरदार सीटी बजा देता है, गाने के अंत में यज्ञ वादिनी को थोड़ा झुका देता है और फिर धीरे से ऊपर खींचते हुए उसके कान में फुसफुसाता है, " तो कैसा लगा मेरा डांस, पार्टनर ?" " अच्छा था! लेकिन और प्रेक्टिस की जरूरत है " यज्ञ हल्का सा मुस्करा देता है और वादिनी को धीरे से सीधा करते हुए उसकी आँखों में देखने लगता है। दोनों के बीच कुछ पल के लिए बस नज़रों की खामोश बातचीत हुई, जिसे सिर्फ वही समझ सकते थे। ************ " वोओ,,,,, आज मिस यू.एस.ए और भाई ने तो स्टेज पर आग ही लगा दी ,,, " सानिध्य एक बार फिर माइक सम्हालते है और बारी सभी अपना अपना परफॉर्मेंस देते है। तो अब दिल थाम कर बैठीए क्योंकि अब परफॉर्मेंस की बारी है आप सबके चहीते सुपरस्टार की, और लड़के वाले सॉरी टू से बट हारने के लिए तैयार हो जाऐ " ये कहकर सानिध्य माइक को पास खड़े एक लड़के की तरह उछाल देता है जिसे वह लड़का जल्दी से कैच कर लेता है। और सानिध्य सबकी ओर पीठ करके खड़े हो जाता है लाइट्स डीम हो जाती है और म्युजिक बजने लगता है जैसे ही म्यूजिक बजा, पूरे हॉल मे कुछ सेकंड के लिए सन्नाटा छा जाता है, और फिर अगले ही पल ठहाकों से गूंज उठती है। दिवी हैरानी और गुस्से के मिला-जुला एक्सप्रेशन से सानिध्य को देखती है, जबकि समर की हंसी छूट जाती है। क्योंकि गाना था - " गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल, गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल।" " भाई!!!" दिवी गुस्से से उसे घूरते हुए कहती है "क्या हुआ दिवी? अच्छा गाना है ना?" उसने शरारती अंदाज़ में कहा, "अरे मैं तो बस यह कहना चाहता था कि अब शादी के बाद जीजाजी तुम्हारा हर टेंशन, हर स्ट्रेस और हर परेशानी दूर कर देंगे, जैसे यह गाड़ी वाला घर से कचरा ले जाता है!" सबकी हंसी दोगुनी हो जाती है । दिवी पास पड़ी एक कुशन उठाकर सानिध्य की तरफ फेंक देती है, लेकिन सानिध्य उसे फुर्ती से कैच कर लेता है। "ओके ओके, मज़ाक बहुत हो गया!" सानिध्य हंसते हुए हाथ ऊपर कर कहता है, "अब सुपरस्टार की असली परफॉर्मेंस देखने के लिए तैयार हो जाओ!" लाइट्स एक बार फिर धीमी हुईं, और इस बार बैकग्राउंड में " बद्तमीज दिल " गाना बजने लगा। सानिध्य की एंट्री दमदार थी—उसकी एनर्जी, उसके डांस मूव्स और एक्सप्रेशन्स ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। लड़कियों की चीखें और तालियों की गड़गड़ाहट पूरे हॉल में गूंज रही थीं। सानिध्य परफॉर्मेंस के बीच मे , एक सरप्राइज मूव किया। और अचानक स्टेज से नीचे कूदा और सीधे वादिनी के पास पहुँचकर उसका हाथ पकड़कर उसे स्टेज पर खींच लाया। अब वादिनी तो थी ही डांस की शौकीन इसलिए वह भी सानिध्य के साथ धीरे-धीरे म्यूजिक में बह गई और दोनों ने साथ में शानदार परफॉर्मेंस दी। हॉल तालियों और सीटियों से गूंज उठा। यज्ञ दूर से खड़ा यह सब देख रहा था, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में एक अलग ही इंटेंसिटी थी। "तो भई, ये रही हमारी संगीत की आखिरी और सबसे शानदार परफॉर्मेंस!" सानिध्य नाटकीय अंदाज़ में कहता है और झुककर सबको सलाम करता है। वादिनी हँसते हुए स्टेज से उतरती है और सीधे यज्ञ के पास आ जाती है। "कैसा लगा मेरा डांस?" वह शरारती लहजे में पूछती है। "अच्छा था... लेकिन तुम्हारी जोड़ी सिर्फ मेरे साथ अच्छी लगती है " यज्ञ पूरे हक के साथ उससे कहता है। यज्ञ की बात सुनकर वादिनी का दिल जोर से धड़का । उसके गाल हल्के गुलाबी हो गए, लेकिन फिर वादिनी खुद को सम्हालती है। " ओह,,,,तो मिस्टर यज्ञ सिंह शेखावत को अपने ही भाई से जलन हो रही है? " वादिनी शरारत से अपने भौंहे उचकाकर यज्ञ को बोलती है। क्रमश :-
पिछ्ले भाग मे आपने पढ़ा----- ओह,,,,तो मिस्टर यज्ञ सिंह शेखावत को अपने ही भाई से जलन हो रही है? " वादिनी शरारत से अपने भौंहे उचकाकर यज्ञ को बोलती है। अब आगे --------- "मैं और जलन?" यज्ञ ने हल्की हंसी के साथ अपनी बाहें मोड़ता है, फिर एक कदम आगे बढ़कर वादिनी के करीब आ जाता है। उसकी आँखों में वही शरारती चमक थी, जो वादिनी को हमेशा बेचैन कर देती थी। "हाँ! जलन! क्योंकि सानिध्य के साथ मैंने स्टेज पर डांस किया और आप बस दूर खड़े देखते रह गए," वादिनी उसे चिढ़ाते हुए कहती है। "मुझे जलन नहीं होती, मिस वादिनी कश्यप, बस मेरा प्यार आपके लिए बढ़ रहा है, और इसलिए मुझे ये पसंद नही की तुम किसी के साथ डांस करो " यज्ञ अपनी गहरी आवाज मे कहता है " तब तो ये जलन नहीं, हक जमाना हुआ?" वादिनी कहती है। यज्ञ उसके कान के पास झुककर फुसफुसाया, "तुम पर मेरा हक पहले से था... बस तुम्हें अभी पता नहीं चला।" वादिनी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने खुद को संभालते हुए कहा, "अच्छा? और अगर मैं कहूँ कि मुझे किसी और के साथ डांस करने में ज्यादा मजा आया?" यज्ञ ने एक धीमी मुस्कान दी और उसके करीब आते हुए बोला, "अगर ऐसा हुआ, तो अगली बार मैं तुम्हें स्टेज से उठाकर सीधे अपने पास ले आऊँगा... और तब परफॉर्मेंस सिर्फ मेरे लिए होगी, समझी?" वादिनी के चेहरे पर हल्की लाली आ गई, और वह उसे हल्के से धक्का देकर वहाँ से जाने लगी। लेकिन यज्ञ ने उसकी कलाई को पकड़कर हल्के से खींचा, "इतनी जल्दी कहाँ भाग रही हो?" "क्यों? कोई और धमकी देना बाकी रह गया क्या?" वादिनी अपनी कलाई छूडाने की कोशिश करते हुए कहती है उसे डर था कही कोई देख ना ले। "धमकी नहीं, बस ये मेरा प्यार जताने का तरिका है " यज्ञ वादिनी को थोड़ा और करीब करते हुए कहता है प्यार ये शब्द जब जब वादिनी यज्ञ के मुँह से सुनती थी उसके दिल मे एक अलग ही खुशी होती थी। "अगर यही आपका तरीका है, तो बदल लीजिए, क्योंकि प्यार आज़ादी देता है, पाबंदी नही लगाता ।" वादिनी अपने विचार रखते हुए कहती है। यज्ञ उसकी बात सुनकर उसकी कलाई को हल्के से अपनी उँगलियों में जकड़ लेता है और गहरी नज़रों से उसे देखता है। फिर वही जानलेवा मुस्कान लाते हुए धीरे से फुसफुसाता है, " पर मेरे प्यार का मतलब कैद है , और मूझे खुशी-खुशी तुम्हारी इस कैद में रहना कबूल है। और तुम भी जल्द ही मान जाओगी कि यह कैद ही तुम्हारी सबसे बड़ी आज़ादी है।" वादिनी चौंककर उसे देखती है। उसकी आँखों में वो गहराई थी जो सीधा दिल तक उतर रही थी। यज्ञ का यह रूप उसे और भी बेबस कर रहा था। "यज्ञ..." उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन शब्द अधूरे रह गए। यज्ञ ने उसकी उँगलियों को हल्के से अपने होठों तक लाते हुए मुस्कुराकर कहता, "और तुम्हें भी अब इसे स्वीकार कर लेना चाहिए कि तुम सिर्फ मेरी हो… सिर्फ मेरी!" वादिनी की धड़कनें तेज़ हो गईं। वह कुछ कहती, इससे पहले यज्ञ उसकी कलाई छोड़ देता है। ************ रात का समय था, हवेली की चहल-पहल अब धीरे-धीरे शांत हो रही थी। दिनभर की रस्मों और संगीत की धूम के बाद, सभी ने डिनर किया और अपने-अपने कमरों में आराम करने चले गए। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही सुकून था, लेकिन दिलों में कल के बड़े दिन की उत्सुकता भी थी—क्योंकि कल समर बारात लेकर आने वाला था। ******* वादिनी अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ी थी। बाहर चाँदनी बिखरी हुई थी, होटल का बड़ा सा लॉन हल्की रोशनी में नहाया हुआ था। उसके मन में अजीब सी हलचल थी— एक तरफ यज्ञ के साथ बिताए लम्हों की मिठास, तो दुसरी तरफ शादी के बाद उससे दूर जाने का गम। "आज की रात कितनी लंबी लग रही है," वादिनी आसमान को देखते हुए खुद से कहती है। "अगर रात लंबी लग रही है तो किसी से बात कर लो," अचानक पीछे से किसी की आवाज़ आती है। वादिनी घबराकर पलटती है और देखती है—यज्ञ उसके रूम के दरवाजे के पास खड़ा था, हल्की रोशनी में उसका मुस्कुराता चेहरा और भी गहरा लग रहा था। "यज्ञ! आप यहाँ क्या कर रहे हैं?" वादिनी हैरान होकर उसके पास आई। यज्ञ को उसके कमरे में देखकर उसका दिल जोर से धड़कने लगा। अगर किसी ने देख लिया तो? यह सोचकर उसने तुरंत यज्ञ का हाथ पकड़कर उसे कमरे के अंदर खींचा और दरवाजे के बाहर झाँककर देखा कि कोई आसपास तो नहीं है। जब उसे यकीन हो गया कि सब अपने-अपने कमरों में हैं, तब उसने धीरे से दरवाजा बंद कर लिया। "आपको अंदाज़ा भी है कि अगर किसी ने देख लिया तो क्या होगा?" वादिनी फुसफुसाते हुए बोलती है, उसकी आँखों में हल्की सी नाराजगी झलक रही थी। यज्ञ ने अपनी बाहें सीने पर बांधते हुए मजाकिया लहजे में कहता है, "तो क्या होगा? सबको पता चल जाएगा कि मैं अपने होने वाली बीवी के पास आया हूँ।" वादिनी घूरकर उसे देखती है, "बहुत मजाक सूझ रहा है ना आपको, लेकिन प्लीज, अब जाइए यहाँ से।" "संगीत की वजह से मैं तुम्हारी मेहंदी का रंग ही नहीं देख पाया, इसलिए देखने आया हूँ... देखूँ तो सही, मेरे प्यार का रंग कितना गहरा चढ़ा है तुम्हारे हाथों पर," यज्ञ ने आगे बढ़कर वादिनी के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर अपने आगे कर लेता है। वादिनी का दिल जोर से धड़कने लगता है। यज्ञ इतनी रात को सिर्फ उसकी मेहंदी का रंग देखने आया था? उसकी शरारती मुस्कान और गहरी नजरें उसे और भी बेचैन कर रही थीं। यज्ञ उसकी हथेलियों को ध्यान से देखने लगता है, जहाँ उसकी मेहंदी बहुत गहरी चढ़ी हुई थी। वह हल्के से मुस्कुराते है और कहता है, "देखा? मेरा प्यार कितना गहरा है, ये तुम्हारे हाथों पर लगी मेहंदी का रंग भी बता रहा है।" वादिनी ने झटके से अपने हाथ खींचने की कोशिश की, लेकिन यज्ञ ने उसकी कलाई को हल्के से पकड़ लिया। "यज्ञ, अब प्लीज जाओ, कल शादी है... इतनी रात मे अगर किसी ने देख लिया तो?" यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसकी हथेलियों पर एक आखिरी नज़र डालकर दरवाजे की ओर बढ़ जाता है। पर जाने से पहले वह हल्के से मुड़कर कहता है, "वैसे, तुम्हारी मेहंदी जितनी गहरी है, मेरा प्यार उससे कहीं ज्यादा गहरा है, मिस वादिनी कश्यप।" और फिर वह वहाँ से चला जाता है, लेकिन वादिनी वहीं अपने जगह पर खड़ी, अपने तेज़ धड़कते दिल को संभालने की कोशिश कर रही थी। ********** अगली सुबह होटल आज किसी स्वर्ग से कम नहीं लग रही थी। हर तरफ फूलों की महक, रौशनी की जगमगाहट, और ढोल-नगाड़ों की गूंज ने माहौल को संगीतमय बना दिया था। पर वहाँ एक अलग ही चहल-पहल थी। हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त था। नौकर-चाकर से लेकर परिवार के लोग तक सब भाग-दौड़ में लगे थे। आखिर आज दिवी की शादी का दिन था, और समर अपनी बारात लेकर आने वाला था। ******* दिवी का रूम दिवी लाल जोड़े में सजी, आइने के सामने बैठी थी। उसका घूँघट हल्का सा सरका हुआ था, जिससे उसकी बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें और हल्का गुलाबी हुआ चेहरा साफ नजर आ रहा था। गले में भारी कुंदन का हार, माथे पर झिलमिलाता हुआ मांग टीका, और हाथों में सजी गहरी मेहंदी उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। वह सच में किसी राजघराने की दुल्हन लग रही थी। जया जी कमरे में आती है और अपनी बेटी को इस रूप में देखकर उनकी आँखें नम हो जाती है । "मेरी बेटी कितनी सुंदर लग रही है। बिल्कुल किसी राजकुमारी की जैसी।" जया जी दिवी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहती है। "माँ, आप रोइए मत, नहीं तो मेरी भी आँखें भर आएंगी।" दिवी माँ की ओर देखती है और हल्का सा मुस्कुरा कर कहती है, पर उसकी मुस्कान ऐसी थी जैसे वह अपने आँसू रोकने की कोशिश मे मुस्कुराने का प्रयास कर रही थी। विकास जी भी दरवाजे पर खड़े यह दृश्य देख रहे थे। उनकी बेटी आज सच में बड़ी हो गई थी। वह आगे आए और हल्के से बोले, "दुल्हन तैयार है?" दिवी ने सिर झुका लिया, जैसे हर बेटी अपने पिता के सामने उस आखिरी पल में करती है जब विदाई का एहसास होने लगता है। यज्ञ और सानिध्य भी वहाँ आ चुके थे। यज्ञ ने हल्के से मुस्कुराकर कहा, "आज तो हमारी बहन सबसे सुंदर दुल्हन लग रही है।" तभी बाहर बारात के ढोल-नगाड़े की आवाज गूंजने लगती है। समर घोड़ी पर बैठकर आ चुका था, अपनी दुल्हन को लेने। दिवी की ज़िन्दगी का सबसे खास और यादगार पल अब बस कुछ ही क्षणों में होने वाला था! जया जी के साथ सभी नीचे चले जाते है द्वार पूजा के लिए , दिवी अब कमरे में अकेली बैठी थी। बाहर ढोल-नगाड़ों की आवाजें गूँज रही थीं, लेकिन उसके दिल की धड़कन उनसे भी तेज थी। खुशी, घबराहट, बेचैनी, उलझन—सबकुछ एक साथ महसूस हो रहा था। क्या ये नॉर्मल था? क्या हर दुल्हन को ऐसा ही महसूस होता है? होटल के गेट के बाहर सभी बाराती खड़े थे और जया जी समर का आरती कर , द्वार पूजा की रस्म कर रही थी। समर आँखों में बस दिव्या की झलक पाने की बेकरारी थी। वह अपनी नजर घुमाकर दिव्या की एक झलक पाने की कोशिश कर रहा था पर कोई फायदा नही था पर इसी दौरान जया जी समर के नाक खिच देती है जो कि द्वार पूजा के रस्म मे आता था। समर अचानक जया जी के हाथों अपनी नाक खिंचवाकर चौंक गया। और तब पीछे से उसकी माँ ने बताया ये रस्म होती है पर तुम्हे अपनी नाक नही खिंचने देना था । क्रमश:- इस कहानी को लेकर अपने ओपिनियन जरूर शेयर करे धन्यवाद 🦋
पिछले भाग मे आपने पढ़ा--------- होटल के गेट के बाहर सभी बाराती खड़े थे और जया जी समर का आरती कर , द्वार पूजा की रस्म कर रही थी। समर आँखों में बस दिव्या की झलक पाने की बेकरारी थी। वह अपनी नजर घुमाकर दिव्या की एक झलक पाने की कोशिश कर रहा था पर कोई फायदा नही था पर इसी दौरान जया जी समर के नाक खिच देती है जो कि द्वार पूजा के रस्म मे आता था। समर अचानक जया जी के हाथों अपनी नाक खिंचवाकर चौंक गया। और तब पीछे से उसकी माँ ने बताया ये रस्म होती है पर तुम्हे अपनी नाक नही खिंचने देना था अब आगे ------- दिवी के रूम मे दस्तक होती है दिवी नजरे उठाकर देखती है तो सामने वादिनी खड़ी थी। वादिनी अंदर आती है उसने लैवेन्डर कलर का सुन्दर सा लहंगा पहन रखा था जिसके बॉडर पर वर्क हुआ था बाल को खुला छोड़ा हुआ था और कान मे बड़े-बड़े कुन्दन के झुमके माथे पर छोटी सी बिन्दी, हल्का मेकअप किया हुआ था। " नर्वस हो ?" वादिनी उसके पास आकर उसके दोनो हाथो को अपने दोनो हाथो से पकड़कर पुछती है " थोड़ा ,,,,,, " दिवी धीरे से जवाब देती है। " थोड़ा सा नर्वस होना तो लाजिमी है,,,, अब चलो नीचे से बुलावा आ गया है " वादिनी कहती है और दिवी के घूँघट को को थोड़ा सा नीचे कर वादिनी दिवी के साथ नीचे जाती है जैसे ही वे दोनो सीढ़ीयो से नीचे आते है सबकी नजर दुल्हन पर ही थी, लेकिन यज्ञ की आँखें बस एक ही जगह ठहर गई थीं—वादिनी पर। यज्ञ को ऐसा लगने लगा जैसे समय थम गया है, उसके आस-पास के लोग सब धुंधले से होने लगे,वह वादिनी मे खो गया था। लेकिन फिर उसकी नजर उस पतली सिल्वर वेस्टचेन पर अटक गई जो वादिनी की कमर की शोभा बढ़ा रही थी। हल्की रोशनी में वह और भी चमक रही थी, जैसे किसी ने सितारे पिरो दिए हों। यज्ञ अपनी जीभ से हल्के से होंठ तर करता है और खुद को सँभालने की कोशिश करता है वादिनी दिवी को मंडप पर ले जाती है जहाँ समर उसका इंतजार कर रहा था। मंडप पर जाते ही दिवी और समर को वरमाला दी जाती है, वरमाला के बाद धीरे धीरे सारी रस्मे होने लगती है और जैसे ही समर ने दिव्या की माँग में सिंदूर भरा और मंगलसूत्र पहनाया, हवेली में खुशियों की लहर दौड़ गई। ******** शादी के दौरान, यज्ञ की नज़र बार-बार वादिनी पर जा रही थी। "अब आप मुझे इतनी बार क्यों देख रहे हो?" वादिनी यज्ञके ऐसे बार बार देखने से थोड़ा सा इरिटेट होकर पुछती है। " अब तुम लग ही इतनी खुबसुरत रही हो की मेरी नजर ही नही हट रही है " " अपनी बहन के खास पलो पर ध्यान दिजिए मिस्टर,,,, ये पल बहुत अनमोल है " वादिनी कहती है तो यज्ञ भी अपनी बहन को देखने लगता है और उसकी आँखे नम हो जाती है इसी लिए तो वह अपना ध्यान भटका रहा था ताकि उसकी आँखे नम ना हो पर ये कमबख्त आँसू आ ही जाते है। ******* शादी की सभी रस्में पूरी हो चुकी थीं, अब विदाई का समय था। दिव्या अपने परिवार से गले मिल रही थी, सानिध्य और यज्ञ दोनों ही अपनी बहन को रोता देख खुद को संभाल नहीं पा रहे थे। "हमेशा खुश रहना, और कोई परेशानी हो तो हमें बताना," सानिध्य उसका हाथ पकड़कर कहता है। "भाई, मैं बहुत मिस करूँगी," दिव्या रोते हुए बोली। "हम भी तुम्हें बहुत मिस करेंगे," यज्ञ ने कहा और उसकी आँखों में भी हल्की नमी थी। समर ने दिव्या का हाथ थाम लिया, और गाड़ी की ओर बढ़ने लगे। जैसे ही गाड़ी चली, दिव्या खिड़की से बाहर देखते हुए अपने परिवार को निहार रही थी। वहाँ मौजूद हर कोई इमोशनल था, लेकिन दिल में एक संतोष था कि उनकी राजकुमारी अपने नए जीवन की खूबसूरत शुरुआत कर रही थी। ******** विदाई के बाद वहाँ एक अजीब सी शांति छा गई थी। जो अभी तक हँसी-ठिठोली और शोर से गूंज रहा था, वहाँ अब एक सूनापन महसूस हो रहा था। जया जी की आँखें लगातार नम थीं, और विकास जी भी बार-बार खुद को व्यस्त करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि भावनाओं का सैलाब उन पर हावी न हो जाए। सानिध्य, जो हमेशा मजाकिया और चंचल रहता था, आज चुपचाप खड़ा था। उसे पहली बार एहसास हुआ कि घर की रौनक सिर्फ बड़ी-बड़ी शादियों और समारोहों से नहीं होती, बल्कि उन अपनों से होती है जो हर कोने में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं। यज्ञ, जो बाहर बालकनी में खड़ा था, गहरी साँस लेकर रह गया। वादिनी धीरे से उसके पास आई और बोली, "अजीब लग रहा है ना?" यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ सिर हिला देता है, "हाँ... ऐसा लग रहा है जैसे घर का एक हिस्सा खाली हो गया हो।" "समर जीजू दिवी का बहुत ख्याल रखेंगे, आप देखना। और दिवी भी धीरे-धीरे वहाँ की रौनक बन जाएगी।" वादिनी धीरे से यज्ञ का हाथ अपने हाथ मे लेकर कहती है। "शायद यही ज़िंदगी का सच है… बेटियाँ घर का सबसे खूबसूरत हिस्सा होती हैं, और एक दिन उन्हें किसी और के घर की रौनक बनना ही पड़ता है।" यज्ञ उसकी बात सुनकर उसे देखते हुए कहता है। ******* अगली सुबह नाश्ते के बाद सभी मेहमान एक-एक करके शेखावत परिवार से विदा लेने लगे। सभी मेहमान के जाने के बाद शेखावत परिवार और वादिनी के मम्मी पापा, शेखावत हवेली की ओर निकल जाते है। हवेली में कदम रखते ही एक अलग ही सुकून महसूस हो रहा था। सब कुछ वैसा ही था,लेकिन दिव्या की गैरमौजूदगी का एहसास भी हल्का-हल्का होने लगा था। सभी अपने अपने रूम मे आराम करने जाते है लेकिन जया जी सीधे दिव्या के कमरे में कदम रखती है। चारों ओर उसकी यादें बिखरी हुई थीं—ड्रेसिंग टेबल पर रखी उसकी चूड़ियाँ, तकिए के पास रखी एक डायरी, और बेड पर उसका पसंदीदा टेडी बियर। उन्होंने धीरे से टेडी को उठाया और उसे गले से लगा लिया, और आँखों से आँसू टपक पड़े। तभी पीछे से विकास जी आए और उनके कंधे पर हाथ रखा, "बहुत खुश रहेगी हमारी बेटी... और अगर कोई परेशानी हुई, तो हम हमेशा उसके साथ हैं।" जया जी ने सिर हिलाया, लेकिन एक माँ का दिल यूँ ही थोड़ी मान जाता है। सभी अपने-अपने तरीके से इस बदलाव को महसूस कर रहे थे। हवेली में अभी भी रोशनी थी, पर उस रोशनी में एक अजीब सा सूनापन घुल चुका था… ***** हवेली में सुबह से ही एक अजीब सा सन्नाटा था। बीते कुछ दिनों में वादिनी इस परिवार का हिस्सा बन चुकी थी, और अब उसके जाने का समय आ गया था। जाने की सारी तैयारी हो गई थी, और अभी सब उन्हे एयरपोर्ट छोड़ने जा रहे थे विकास जी , जया जी के कार मे जय जी और वीणा जी बैठे थे , और उनके कार के थोड़ी दूरी पर यज्ञ की कार से वादिनी और यज्ञ आ रहे थे , सानिध्य नही आया क्योकि उसे शूट पर अर्जेन्ट जाना पड़ा यज्ञ ड्राइव कर रहा था, और वादिनी उसकी बगल में बैठी खिड़की के बाहर देख रही थी। गाड़ी के अंदर हल्की खामोशी थी, लेकिन दोनों के दिलों में एक अजीब सी हलचल थी। पर अचानक यज्ञ को वादिनी की एक हल्की सी सिसकी सुनाई देती है यज्ञ उसकी ओर देखता है पर वादिनी अभी भी खिड़की से बाहर देख रही थी। यज्ञ उसे देखकर साइड मे अपनी कार रोकता है और वादिनी के हाथ पर अपना हाथ रखकर उसका नाम लेता है। " वादिनी ?" यज्ञ की बात सुनकर वादिनी अपनी आँसू से भरी आँखो से यज्ञ को देखती है यज्ञ उसकी आंखों में देखते ही हल्का सा सिहर जाता है। वादिनी का यूं खुद को संभालने की कोशिश करना, लेकिन फिर भी उसकी आंखों का लाल होना साफ बता रहा था कि वह अंदर से कितनी दुखी है। "वादिनी, क्या हुआ?" यज्ञ उसकी हथेलियों को अपने हाथों के बीच में लेकर धीरे से पूछता है। वादिनी ने होठों को दबाया, जैसे अपने आँसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही हो। फिर हल्की आवाज़ में बोली, "यज्ञ...मुझे अच्छा नही लग रहा, मैं,, मै आपसे दूर नहीं जाना चाहती..." यज्ञ की धड़कन जैसे एक पल के लिए थम गई। वह जानता था कि यह सफर उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन वादिनी के मुँह से यह सुनना... यह पहली बार था। "तो मत जाओ।" यज्ञ धीरे से जवाब देता है। वादिनी का दिल तेज़ी से धड़कने लगता है। उसकी आँखें यज्ञ की आँखों में जैसे खो सी जाती है। कुछ सेकंड की खामोशी के बाद, उसने एक गहरी सांस ली और काँपते होठों से फुसफुसाई, "आई लव यू, यज्ञ।" यज्ञ एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। उसने कई बार चाहा था कि वादिनी उससे यह कहे, लेकिन इस लम्हे में... इस तरह... यह सुनना उसके लिए किसी ख्वाब जैसा था। "फिर से कहो।" उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, लेकिन उसकी आँखें गंभीर थीं। "आई लव यू, यज्ञ। बहुत ज़्यादा।" इस बार वादिनी की आँखों में कोई झिझक नहीं थी, कोई डर नहीं। यज्ञ बिना कुछ सोचे आगे बढ़ा और उसके होठ के करीब रूककर धीरे से पुछता है " इजाजत है " क्रमश:-
पिछले भाग मे आपने पढ़ा --------- यज्ञ बिना कुछ सोचे आगे बढ़ा और उसके होठ के करीब रूककर धीरे से पुछता है " इजाजत है " अब आगे ---------- वादिनी अपनी आँखे बंद कर धीरे से अपना सिर हाँ मे हिला देती है और अगले ही पल यज्ञ अपने होठ वादिनी उन मुलायम होठ पर रख देता है यज्ञ का स्पर्श वादिनी के अंदर एक अजीब सी हलचल मचा चुका था। जैसे ही उसके होंठ वादिनी के नर्म होंठों से मिले, बाहर हल्की-हल्की बारिश की बूंदें कार की खिड़कियों पर गिरने लगीं, मानो यह पल खुद कुदरत भी महसूस कर रही हो। वादिनी ने हल्के से अपनी उंगलियां यज्ञ की कॉलर पर कस दीं, और यज्ञ ने उसे अपनी बाहों में समेटते हुए चुंबन को और गहरा कर दिया। कार के अंदर का माहौल धीरे-धीरे गर्म होने लगा, खिड़कियाँ हल्की धुंध से भर गईं। बारिश की बूंदों की रफ्तार अब तेज़ हो चुकी थी, पर उनके दिलों की धड़कनों से कम ही थी। वादिनी की साँसें तेज हो रही थीं, उसकी नाजुक उंगलियाँ यज्ञ के बालों में चली गईं, और यज्ञ ने उसकी कमर को और कसकर पकड़ लिया, मानो उसे खुद से कभी जुदा ही न होने देना चाहता हो। कुछ ही पलों में जब दोनों ने खुद को अलग किया, तो वादिनी की आँखें अब भी बंद थीं, और उसके होंठ काँप रहे थे। यज्ञ ने हल्के से उसके गाल पर अपनी उंगलियाँ फेरीं, फिर कान के पास झुककर धीमे से फुसफुसाया— "तुम जानती नहीं, मैं कब से तुम्हारे ये कहने का इंतज़ार कर रहा था। मगर अब जब तुमने फाइनली अपने दिल की बात कबूल कर ही ली है, तो ये याद रखना..." यज्ञ ने वादिनी की ठुड्डी को हल्के से ऊपर उठाया, और उसकी आँखों में गहराई से झांकते हुए फुसफुसाया, "अब से तुम्हें मुझसे कोई जुदा नहीं कर सकता... खुद तुम भी नहीं।" वादिनी का दिल ज़ोर से धड़क उठा। यज्ञ की आवाज़ में एक अजीब सा जुनून था, कुछ ऐसा जिसे वह समझ नहीं पा रही थी। यह उसकी मोहब्बत थी या उसके प्यार पर एक हक जताने की कोशिश ? वादिनी यज्ञ की गहरी, तेज़ निगाहों में खो सी गई थी। उसकी उंगलियाँ अब भी वादिनी की ठुड्डी को छू रही थीं, उसकी पकड़ में एक अजीब सा अधिकार था—नरमी भी, और एक अनकही जिद भी। "यज्ञ…" वादिनी ने धीमे से कहा, जैसे खुद को इस पल से बाहर निकालने की कोशिश कर रही हो। "श्श्श…" यज्ञ ने उसके होठों पर उंगली रखते हुए उसे चुप करा दिया। "अब कुछ मत कहो… बस ये याद रखो कि तुम मेरी हो, और हमेशा मेरी ही रहोगी।" बारिश अब तेज़ हो चुकी थी। कार के शीशों पर पानी की बूँदें तेज़ी से फिसल रही थीं, जैसे वादिनी के मन में उमड़ते विचार। यज्ञ ने उसकी हथेलियाँ अपने हाथ में लेकर उनमें एक हल्का सा किश किया। "अब बस इतना जान लो, वादिनी… यू.एस.ए. जाने से पहले तुम भले ही खुद को मुझसे दूर समझ रही हो, लेकिन वहाँ जाकर तुम सिर्फ और सिर्फ मुझे महसूस करोगी। हर सांस में, हर धड़कन में, हर ख्याल में। वादिनी ने गहरी सांस ली। यज्ञ की बातों में एक अजीब सा यकीन था, जैसे वह उसकी पूरी तक़दीर का फैसला कर चुका हो। "चलो, एयरपोर्ट पर सब इंतजार कर रहे होंगे," यज्ञ ने कार स्टार्ट करते हुए कहा, लेकिन उसका लहजा वही था—गहरा, दावे से भरा, और कुछ ऐसा जिसे वादिनी चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रही थी। ******** एयरपोर्ट के बाहर यज्ञ ने एयरपोर्ट के बाहर अपनी कार रोकी। यज्ञ वादिनी की ओर पलटता है और उसकी ठुड्डी को हल्के से ऊपर करता है। और बेहद गंभीर लहजे में कहता है, "मेरा ये वादा है, वादिनी… मैं बहुत जल्द तुम्हें अपनी दुल्हन बनाकर वापस लाऊँगा।" वादिनी का दिल एक पल के लिए ठहर सा गया। उसके लफ्ज़ों में जो यकीन था, वो किसी भी हद को पार कर सकता था। बारिश अब धीमी हो गई थी, मगर कार के भीतर की खामोशी और भी गहरी हो चुकी थी। "यज्ञ…" वादिनी ने कुछ कहने के लिए होंठ खोले, लेकिन यज्ञ ने मुस्कुराते हुए उसकी नाक पर हल्की सी उंगली से टैप कर दिया। "श्श्श… अब बस वो दिन गिनना शुरू कर दो जब मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपनी दुनिया में ले जाऊँगा।" वादिनी के होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई। ******** जैसे ही यज्ञ और वादिनी एयरपोर्ट के अंदर पहुँचे, वहाँ पहले से ही विकास जी, जया जी, जय कश्यप और वीणा जी उनका इंतजार कर रहे थे। विकास जी ने घड़ी की ओर देखा और फिर यज्ञ की ओर भौंहें चढ़ाते हुए बोले, "तुम दोनों को इतनी देर कैसे हो गई?" "बस… थोड़ी बारिश में फँस गए थे, पापा।" यज्ञ जवाब देता है वहीं, जया जी ने वादिनी की तरफ देखा, जो अब भी थोड़ी गुमसुम लग रही थी। उन्होंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा, "बेटा, वहाँ पहुँचते ही कॉल करना, और अपना ध्यान रखना।" " जी आंटी, और आप भी अपना ध्यान रखना " वादिनी जया जी के गले लगते हुए कहती है। और फिर अलग होकर उनके पैर छू लेती है और यही वह विकास जी के साथ भी करती है जिसके बाद जय जी और वीणा जी के साथ सिक्योरिटी चेक की ओर बढ़ जाती है वादिनी एक आखिरी बार पीछे मुड़कर देखती है। यज्ञ वहीं खड़ा था, उसकी गहरी निगाहें अब भी उसी पर टिकी थीं। उसकी आँखों में एक अजीब सा इमोशन था—शायद मोहब्बत, शायद अधिकार, या फिर कुछ ऐसा जो वादिनी खुद भी समझ नहीं पाई। यज्ञ ने अपनी मुट्ठियाँ हल्के से भींच लीं और बहुत धीमे स्वर में बुदबुदाया, "अब देखना, वादिनी... ये दूरी ज़्यादा दिन तक नहीं रहने वाली।" और फिर, देखते ही देखते वादिनी सिक्योरिटी गेट के पार चली गई। यज्ञ की नज़र तब तक उस जगह पर टिकी रही, जब तक वह पूरी तरह ओझल नहीं हो गई। ******** दिन बीत रहे थे और दोनो की बाते भी बढ़ रही थी। रात के 10 बज रहे थे। औय वादिनी अपनी बालकनी में खड़ी थी। चाँद की हल्की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, मगर उसकी नजरें फोन स्क्रीन पर टिकी थीं, वह यज्ञ को कॉल कर रही थी। "हैलो!" वादिनी हल्के से कहती है। यज्ञ की आवाज में वही परिचित गर्माहट थी। "अभी तक सोई नहीं?" यज्ञ अपनी वही चिरपरिचित आवाज मे पुछता है। " अभी खाना खा के आई तो सोचा आपसे बात कर लू , वैसे आप क्या कर रहे है ?" वादिनी अपने कमरे के बेड पर आकर लेट जाती है " ऑफिस जा रहा हूँ " यज्ञ लैपटॉप मे कुछ काम करते हुए जवाब देता है। ****** थोड़ी देर की खामोशी के बाद वादिनी की आवाज आती है "यज्ञ, जब से यहाँ आई हूँ, सब कुछ अजीब सा लग रहा है। ऑफिस जाती हूँ, दोस्तों से मिलती हूँ, फिर भी एक खालीपन महसूस होता है... जैसे कुछ अधूरा रह गया हो।" उसकी आवाज सुनकर यज्ञ के हाथ रूक जाते है। यज्ञ उसकी आवाज में हल्का दर्द महसूस कर सकता था। कुछ पल रुककर, वादिनी धीमे से कहती है, "मुझसे अब और इंतज़ार नहीं होता, यज्ञ। मैं आपसे मिलना चाहती हूँ... बस अब और नहीं।" "तुम कहो, हम अभी आ जाते हैं तुम्हें लेने!" यज्ञ कहता है। "मजाक मत करो आप," वादिनी हल्की नाराजगी जताते हुए कहती है ,लेकिन उसके होंठों पर एक प्यारा सा पाऊट बन जाता है। "मैं मजाक नहीं कर रहा, जान। अगर तुम कहो, तो सच में तुम्हारे सामने आ सकता हूँ।" यज्ञ अपनी गहरी आवाज मे बोलता है। उसके लहजे की सच्चाई ने वादिनी के दिल की धड़कनों को तेज कर दिया... **** कुछ देर तक दोनों यूँ ही बातें करते रहे—बीती यादों को ताजा करते हुए, आने वाले पलों के सपने बुनते हुए। कभी हल्की हंसी गूंजती, तो कभी धीमी खामोशी भी अपने एहसास छोड़ जाती। वादिनी की आवाज़ धीरे-धीरे भारी होने लगी, शायद थकान की वजह से। यज्ञ मुस्कुराते हुए कहता है, "अब सो जाओ, जान। वरना फिर सुबह ऑफिस जाने के लिए लेट हो जाओगी।" वादिनी हल्की नींद भरी आवाज़ में जवाब देती है, "अच्छा बाबा, सो रही हूँ… और आप आराम से जाइऐगा ऑफिस ओके " "ओके मेरी जान?" यज्ञ ने मुस्कुराकर कहा। " अब तुम आराम करो ,गुड नाइट, स्वीट ड्रीम्स।" " टेक केयर।" धीरे-धीरे कॉल डिस्कनेक्ट हो गई, लेकिन दोनों के दिल अब भी एक-दूसरे के एहसास से जुड़े हुए थे… ******* शाम का समय वादिनी यज्ञ की यादो मे डूबी ऑफिस से लौट रही थी, जब अचानक उसकी नजर सामने एक बड़े बिलबोर्ड पर पड़ती है। वहाँ उसकी खुबसुरत सी तस्वीर थी, और नीचे लिखा था – "अब और इंतजार नहीं... तुम्हारे पास हूँ, मेरी जान।" वादिनी का दिल तेज़ी से धड़कने लगता है, और तभी पीछे से कोई उसकी कमर में बाहें डालता है— "कैसा लगा मेरा सरप्राइज?" यज्ञ उसके कानों में फुसफुसाता है। वादिनी हैरान थी, खुश थी, और हल्के से शर्माकर बस उसे देखे जा रही थी। यज्ञ धीरे से उसके माथे पर किस करता है वादिनी खुशी के मारे यज्ञ के गले लग जाती है , और यज्ञ की अपनी बाँहे वादिनी के आस-पास कस देता है। " आई मिस यू ,,,,आई मिस यू सो मच थैंक्यू फॉर कमिंग " वादिनी यज्ञ के गले लगे हुए ही कहती है। यज्ञ उसकी कमर को और कसकर पकड़ लेता है, जैसे अगर उसने छोड़ दिया तो वो फिर दूर चली जाएगी। "आई मिस्ड यू टू, जान... बहुत ज्यादा," यज्ञ उसके बालों में अपना चेहरा छुपाते हुए कहता है। वादिनी उसकी पकड़ में सुकून से सांस ले रही थी, उसकी धड़कनें तेज़ हो रही थीं, लेकिन एक अजीब सी शांति भी थी। "मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप सच में यहाँ हो।" वादिनी थोड़ी दूर होकर उसकी आँखों में देखते हुए बोलती है। यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम लेता है— "मैंने कहा था ना, अब मैं तुम्हें और इंतजार नहीं करवाने वाला।" क्रमश:- प्लीज कहानी पसंद आए तो लाइक और कमेंट जरूर करे धन्यवाद 🦋
पिछले भाग मे आपने पढ़ा----------- यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम लेता है— "मैंने कहा था ना, अब मैं तुम्हें और इंतजार नहीं करवाने वाला।" अब आगे ------- 'वादिनी हल्की सी शिकायती नजरों से उसे देखती है, फिर उसके सीने पर हल्की सी थपकी मारते हुए बोलती है— "पागल, आप पहले बता देते, तो मैं कुछ और अच्छे से तैयार हो जाती!" उसकी इस प्यारी सी शिकायत को सुनकर यज्ञ हँस पड़ता है। यज्ञ उसकी नटखट अदाओं पर फिदा होते हुए उससे कहता है— " तुम्हे देखकर तो हर बार मेरी सांसे वैसे ही रूक जाती है, ऐसे मे और तैयार होती तो मेरी जान,,,,," इससे पहले यज्ञ अपनी बात पूरी कर पाता वादिनी उसके होठ पर अपने हाथ रख देती है " खबरदार जो ऐसी बात अपने मुँह से निकाला तो " वादिनी हल्का गुस्सा करते हुए कहती है। यज्ञ उसकी इस हरकत पर हल्का सा मुस्कुरा देता है, लेकिन उसकी आँखों में वही गहरी चाहत झलक रही थी। "तो क्या करूँ, जब भी तुम्हें देखता हूँ, दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं, सांसें बेकाबू होने लगती हैं…" यज्ञ वादिनी के हाथ को धीरे से अपने होठों से हटाते हुए कहता है, और उसकी उंगलियों पर हल्का सा किस कर देता है। वादिनी की पलके हल्के से झुक जाती है और वह अपना सिर यज्ञ के मजबूत सिने पर टिका देती है। यज्ञ धीरे से उसके कान में बोलता है— "चलो, आज की पूरी शाम सिर्फ हमारी है।" " क्या ??? हम कहाँ जा रहे है, मैने तो मम्मा पापा को कुछ भी नही बताया है वो चिन्ता करेंगे।" यज्ञ की बात सुनकर वादिनी पेनिक करते हुए पूछती है। यज्ञ हल्के से हँसते हुए वादिनी के घबराए चेहरे को देखता है और उसकी ठंडी पड़ती हथेलियों को अपने गर्म हाथों में लेता है। "अरे पागल लड़की, मैं कोई किडनैपर नहीं हूँ। तुम्हारे मम्मी-पापा को बता दिया है मैंने। अब कोई बहाना नहीं चलेगा, आज की शाम सिर्फ हमारे लिए है," यज्ञ प्यार से उसकी आँखों में झांकते हुए कहता है। वादिनी थोड़ा रिलैक्स होते हुए एक लंबी सांस लेती है— "तो पहले बता देते, मैं इतनी पैनिक क्यों हो जाती?" "क्योंकि तुम्हारा ड्रामा क्वीन मोड कभी ऑफ ही नहीं होता," यज्ञ उसकी नाक दबाते हुए मजाक करता है। " हम्म ,,,,,लेकिन एक मिनट आपने मम्मा पापा को बताया मतलब वो जानते है हम दोनो साथ है" वादिनी अपनी आँखो को बड़ा करते हुए पुछती है "हम्म, बिल्कुल जानते हैं। और तुम्हारी मम्मा ने तो खासतौर पर कहा था कि मेरी बेटी को अच्छे से संभालना।" वादिनी का मुँह थोड़ा खुला रह गया— "क्या??? मतलब मम्मा को पता है कि मैं आपके साथ जा रही हूँ? ओह नो, अब मै उनको फेस कैसे करूँगी!" यज्ञ हँस पड़ा—"फेस करने वाली कोई बात ही नही है। वो जानती हैं कि उनकी बेटी ने अपने लिए बहुत ही अच्छा लड़का पसंद किया है जो उनकी बेटी का परफेक्टली केयर करेगा, उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करेगा और सबसे इम्पॉटेन्ट, तुम्हे खुश रखेगा!" वादिनी यज्ञ की कही एक एक बातो मे खोते जा रही थी। "वैसे कहाँ जा रहे हैं?" वादिनी पुछती है। "सरप्राइज तो सरप्राइज होता है, डार्लिंग। बस इतना समझ लो कि आज की शाम तुम्हारी जिंदगी की सबसे यादगार शाम होने वाली है!" यज्ञ सस्पेंस बनाए रखते हुए कहता है। "हम्म… ठीक है, लेकिन कम से कम हिंट तो दो कि जा कहाँ रहे हैं?" वादिनी उँगली उठाकर धमकाने के अंदाज में कहती है। "इतना बता सकता हूँ कि वहाँ सिर्फ मैं और तुम होंगे... जहाँ प्यार और खुशियों से भरी सबसे खूबसूरत यादें बनने वाली हैं!" यज्ञ शरारती मुस्कान के साथ कहता है। वादिनी हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देखती है। "ठीक है, देखते हैं मिस्टर यज्ञ सिंह शेखावत, आप मुझे कितना इम्प्रेस कर सकते हैं!" वादिनी अपना बाल पीछे झटकते हुए एटीट्यूड से कहती है। यज्ञ उसकी इस अदा पर हँस पड़ता है और उसके लिए कार का दरवाजा खोलता है,और वादिनी के बैठने के बाद यज्ञ अपनी कार स्टार्ट करता है, और अपनी कार आगे बढ़ा देता है, जो उनकी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शाम बनने वाली थी… यज्ञ वादिनी को लेकर वहाँ के सबसे फेमस होटल मे जाता है। होटल का रूफटॉप डाइनिंग एरिया पूरी तरह से कैंडल लाइट से सजा हुआ था। चारों तरफ हल्की-हल्की ठंडी हवा बह रही थी और ऊपर खुला आसमान था। "यज्ञ, ये बहुत ही खूबसूरत जगह है!" वादिनी चारों तरफ देखकर खुश होती है। " लेकिन तुमसे खुबसुरत नही !" यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसे निहारते हुए कहता है। वादिनी यज्ञ की आँखो मे देखती है , पर अचानक से पूरा माहौल बदल जाता है। लाइव म्यूजिक शुरू हो गया, और कुछ ही सेकंड्स में उनके ऊपर गुलाबों की पंखुड़ियाँ बरसाने लगी। "वादिनी, मैं जानता हूँ कि यह सब थोड़ा जल्दबाज़ी लग सकता है, लेकिन सच कहूँ तो अब मैं तुमसे और दूर नहीं रह सकता।" यज्ञ की आवाज़ में एक अजीब सा जुनून था, जो सीधे वादिनी के दिल तक पहुँच रहा था। फिर, उससे पहले कि वादिनी कुछ समझ पाती, यज्ञ उसके सामने एक घुटने पर बैठ जाता है। यह देखकर वादिनी की साँसें थम जाती है। वह हैरानी से अपने मुँह पर हाथ रख लेती है। यज्ञ अपनी जेब से एक चमकती हुई खूबसूरत डायमंड रिंग निकालता है और उसकी ओर बढ़ाते हुए गहरी नजरों से देखते हुए कहता है— "क्या तुम हमेशा के लिए मेरी जिंदगी का हिस्सा बनोगी? क्या तुम मुझसे शादी करोगी?" उसकी आँखों में सच्चाई और दिल में बेइंतहा प्यार था। वादिनी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसकी आँखें हल्की नमी से भर आईं। यह पल... यह इजहार... यह अहसास... सब कुछ एक खूबसूरत ख्वाब जैसा लग रहा था। वादिनी की आँखें हैरानी और खुशी के मिले-जुले एहसास से चमक उठता है। उसकी सांसें जैसे रुक-सी जाती है। सामने घुटनों पर बैठे यज्ञ की आँखों में एक अजीब सा जुनून और सच्चाई थी, जिसने उसके दिल की धड़कनों को तेज कर दिया। "यज्ञ... ये सब अचानक... मैं—" वादिनी की आवाज हल्की कांप रही थी। यज्ञ मुस्कुराया, उसकी आँखों में प्यार की गहराई झलक रही थी—"हाँ, अचानक ही तो तुम मेरी जिंदगी में आई थी, और अब मैं चाहता हूँ कि हमेशा के लिए मेरी जिंदगी का हिस्सा बन जाओ।" वादिनी की आँखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन ये खुशी के आंसू थे। उसने हल्के से अपना हाथ आगे बढ़ाया, और यज्ञ ने बड़ी नजाकत से उसकी उंगलियों में अंगूठी पहना दी और उसे चुम लिया। चारों तरफ रोमांटिक म्यूजिक गूंज उठा, जिसने माहौल को और भी खास बना दिया। वादिनी झुककर यज्ञ को गले लगाते हुए उसके कान में फुसफुसाई—"आई लव यू यज्ञ " " आई लव यू टू जान " यज्ञ ने उसे अपनी बाहों में कस लिया। चारों तरफ फैली कैंडल लाइट्स, गुलाबों की खुशबू, और ठंडी हवाओं ने इस पल को और भी यादगार बना दिया। यह पल उनके प्यार की नई शुरुआत थी—एक ऐसा वादा, जो उम्र भर निभाने के लिए किया गया था। वादिनी और यज्ञ एक-दूसरे की बाहों में खोए हुए थे, जैसे यह पल कभी खत्म ही न हो। अभी जो कुछ भी यज्ञ ने कहा सबकुछ किसी खूबसूरत ख्वाब जैसा था। लेकिन तभी, यज्ञ के फोन की तेज़ रिंगटोन ने इस जादुई मोमेंट को तोड़ दिया। यज्ञ हल्की नाराजगी से फोन उठाकर स्क्रीन पर देखता है—यह उनके वकील का कॉल था। "एक मिनट, जान।" वह धीरे से कहता है और वादिनी से थोड़ा दूर जाकर कॉल रिसीव करता है। "हैलो?" फोन के दूसरी तरफ से जो कहा गया, उसे सुनते ही यज्ञ की आँखें गंभीर हो गईं। उसकी जबड़े भिंच गए, और माथे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंच गईं। "ठीक है, मैं जल्द से जल्द निकलता हूँ।" यज्ञ अपनी ठंडी आवाज़ में कहता है और तुरंत किसी और को कॉल लगाकर आदेश देता है—"मेरा प्राइवेट जेट तैयार रखो। मैं जल्दी निकल रहा हूँ।" कॉल काटते ही उसने लंबी साँस लेता है और खुद को संयत करता है। फिर वह धीमे कदमों से वादिनी के पास जाता है, जो अब तक उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रही थी। "क्या हुआ, यज्ञ? आप अचानक इतने टेंशन में क्यों लग रहे हैं?" वादिनी उसका हाथ पकड़ते हुए पूछती है। यज्ञ उसकी आँखों में देखता है, फिर एक गहरी साँस लेकर धीरे से बोलता है—"सॉरी, जान। लेकिन मुझे तुरंत वापस जाना होगा। कुछ बहुत जरूरी काम आ गया है।" वादिनी का दिल धड़क उठा। "पर... ऐसी क्या बात हो गई? आप ठीक तो हैं ना?" यज्ञ हल्के से मुस्कुराने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी आँखें बेचैनी बयां कर रही थीं। उसने वादिनी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और प्यार से उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा— "तुम फिक्र मत करो, मैं जल्दी लौटूँगा। बस मुझ पर भरोसा रखो, जान।" लेकिन वादिनी का दिल एक अजीब-सी घबराहट से भर गया था। वह जानती थी कि यज्ञ कुछ छुपा रहा है... कुछ ऐसा जो वह अभी उसे नहीं बताना चाहता। ********* यज्ञ वादिनी का हाथ अपने हाथ में लेता है, और उसकी आँखों में देखता है, और हल्की मुस्कान के साथ कहता है— "मैं तुम्हें छोड़ने आया हूँ, लेकिन याद रखना, ये बस कुछ दिनों की जुदाई है। बहुत जल्दी, माँ पापा को तुम्हारे घर शगुन के साथ भेजूंगा। " वादिनी की आँखों में नमी थी, लेकिन वह जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश करती है। "बस जल्दी वापस आना, यज्ञ।" वह धीमे से कहती है। यज्ञ आगे बढ़कर उसका माथा चूमा लेता है और कार का दरवाजा खोल देता है। वादिनी कार से उतरकर अपने घर की तरफ बढ़ी, लेकिन हर कदम के साथ उसका मन पीछे मुड़ने को कर रहा था। यज्ञ की कार धीरे-धीरे दूर जा रही थी, और आखिरकार उसकी आँखों से ओझल हो जाती है। क्रमश:- आप सबको ये कहानी पसंद आ रही है कि नही 😤 प्लीज बताइए ना🥺 🦋
पिछले भाग मे आपने पढ़ा ---------- "बस जल्दी वापस आना, यज्ञ।" वह धीमे से कहती है। यज्ञ आगे बढ़कर उसका माथा चूमा लेता है और कार का दरवाजा खोल देता है। वादिनी कार से उतरकर अपने घर की तरफ बढ़ी, लेकिन हर कदम के साथ उसका मन पीछे मुड़ने को कर रहा था। यज्ञ की कार धीरे-धीरे दूर जा रही थी, और आखिरकार उसकी आँखों से ओझल हो जाती है। अब आगे ------------ यज्ञ के मन में हलचल थी। वह सीधा एयरपोर्ट की ओर बढ़ा, लेकिन रास्ते भर उसका दिमाग उसी फोन कॉल में उलझा रहा जिसने उसकी पूरी शाम का रुख बदल दिया था। यज्ञ अपने प्राइवेट जेट में बैठते ही सीट बेल्ट बाँधता है, लेकिन उसकी आँखों में बेचैनी साफ झलक रही थी। टेकऑफ़ के साथ ही वह तुरंत अपने फोन से किसी को कॉल लगाता है। "मैं रास्ते में हूँ, और जब तक मैं पहुँचूँ, मुझे पूरी रिपोर्ट चाहिए।" सामने से कुछ कहा गया, जिससे उसकी आँखों की तल्खी और बढ़ गई। "नहीं! मुझे सिर्फ़ बेसिक अपडेट नहीं चाहिए। मैं चाहता हूँ कि हर छोटी से छोटी डिटेल मेरे पास हो। जो भी इस मामले में शामिल है, उसका नाम, उसकी मंशा—सब कुछ।" उसने गहरी साँस ली, और उसकी उंगलियो की पकड़ फोन पर कस गई। जैसे ही यज्ञ राजस्थान एयरपोर्ट पर लैंड करता है, वह बिना किसी देरी के सीधा पुलिस स्टेशन की ओर रवाना हो जाता है। उसकी कार तेज़ रफ्तार से सड़कों पर दौड़ रही थी, और उसके कार के पीछे उसके बॉडीगार्ड्स की कार उसे फॉलो कर रही थी और साथ ही उसके मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे। **** पुलिस स्टेशन के बाहर कैमरों की फ्लैश चमक रही थी, माइक आगे बढ़ाए जा रहे थे, और हर रिपोर्टर अपने चैनल के लिए सबसे पहले प्रतिक्रिया लेने की होड़ में था। जैसे ही यज्ञ की कार पुलिस स्टेशन के सामने आकर रुकती है, भीड़ में हलचल मच जाती है। गेट खुलते ही यज्ञ अपनी प्रभावशाली शख्सियत के साथ बाहर निकलता है। उसकी आँखों में वही तेज़ नज़र थी, जो सामने वाले को बोलने से पहले दो बार सोचने पर मजबूर कर दे। वहाँ पहले से मौजूद मीडिया वालों की भीड़ तुरंत उस पर टूट पड़ती है। कैमरों की फ्लैश लाइट्स लगातार चमकने लगती है, और माइक उसकी ओर करीब धकेले जाने लगते है। "यज्ञ जी, आपके भाई सानिध्य पर लगे आरोपों पर आप क्या कहना चाहेंगे?" "क्या वाकई सानिध्य सिंह शेखावत ने एक लड़की की ज़िन्दगी के साथ खेला है?" "क्या शेखावत परिवार अपने रसूख का इस्तेमाल करके सानिध्य को बचाने की कोशिश कर रहा है?" मीडिया की भीड़ सवालों की बौछार कर रही थी, लेकिन यज्ञ एक शब्द भी नहीं कहता है। उसकी आँखों में सख्ती थी, चेहरे पर वही शेखावत परिवार की शान झलक रही थी, जो किसी भी हालात में झुकना नहीं जानती थी। बॉडीगार्ड्स उसे भीड़ से बचाते हुए रास्ता बनाते है, और आगे बढ़ते है पर जैसे ही वह पुलिस स्टेशन के दरवाजे तक पहुँचता है। तभी एक रिपोर्टर फिर से अपना सवाल दाग देता है— "यज्ञ जी, आपकी चुप्पी क्या इस बात की तरफ इशारा करती है कि सानिध्य सिंह शेखावत सच में दोषी है?" उसका सवाल सुनकर यज्ञ के कदम वहीं थम जाते है। वह हल्का सा सिर घुमा कर उस रिपोर्टर की तरफ गहरी नज़र डालता है। उसकी आँखों में न तो गुस्सा था, न ही डर—बस एक ठहराव भरी चेतावनी थी। फिर उसने बेहद शांत लेकिन भारी आवाज़ में कहा— "सच जल्द ही सबके सामने आ जाएगा—कौन दोषी है और कौन नहीं, आप सबको पता चल जाएगा। लेकिन मेरे भाई के बारे में कुछ भी छापने से पहले 100 बार जरूर सोचना, क्योंकि अगर झूठी खबरें फैलाने लगे, तो दोषी के सामने आने पर मैं तो शायद आप सबको माफ कर दूँ… पर मेरे भाई की कोई गारंटी नहीं।" उसकी गहरी आवाज़ में जो ठंडक थी, उसने वहाँ मौजूद कई रिपोर्टर्स को असहज कर दिया था। वहाँ हल्की खुसफुसाहट शुरू हो गई। "क्या आप हमें सीधे तौर पर धमकी दे रहे हैं, मिस्टर यज्ञ?" एक रिपोर्टर थोड़ा डरते हुए सवाल करता है। यज्ञ हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखता है, लेकिन उसकी आँखों में वही सख्ती बरकरार थी। "आप मीडिया वाले बहुत समझदार हैं। मुझे कुछ भी साफ-साफ कहने की ज़रूरत नहीं है।" यह कहते ही यज्ञ माइक और कैमरों की भीड़ को नजरअंदाज करते हुए सीधे पुलिस स्टेशन के अंदर चला जाता है। और पीछे रह गए रिपोर्टर्स अब भी फुसफुसा रहे थे। कुछ के चेहरों पर डर था, तो कुछ के दिमाग में नए हेडलाइंस बनने लगी थीं। ******* जैसे ही यज्ञ पुलिस स्टेशन के भीतर पहुँचा, वहाँ मौजूद हर पुलिसकर्मी अपने जगह पर खड़े हो गए, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई उसे रोकने की। उसकी चाल में वही रौब था, जो शेखावत खानदान की पहचान थी—सीधा, प्रभावशाली और अडिग। उसके तेज़ कदम एसपी के केबिन की ओर बढ़े, दरवाज़ा बिना किसी इजाज़त के खोलते ही उसकी आँखें सानिध्य पर टिक गईं। सानिध्य कुर्सी पर बैठा था, उसकी आँखें गुस्से से लाल, जबड़ा भिंचा हुआ और हाथों की मांसपेशियाँ तनाव से कड़ी हो चुकी थीं। वो एक ज्वालामुखी की तरह लग रहा था, जो किसी भी पल फट सकता था। दूसरी ओर, एसपी की हालत देख कर साफ़ पता चलता था कि वह बुरी तरह से घबराया हुआ था। पसीने की हल्की बूंदें उसके माथे पर चमक रही थीं। यज्ञ बिना किसी देरी के अपनी भारी आवाज़ में आदेश देता है— "वकील साहब, इन्हें बेल के पेपर दीजिए।" अभी-अभी वहाँ पहुँचे शेखावत परिवार के वकील ने बिना किसी देरी के बेल पेपर एसपी की ओर बढ़ा दिए। एसपी के हाथ काँपे, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कागज़ों को देखा। "ये तो… इतनी जल्दी…?" एसपी बेल के पेपर देखकर मन मे सोचते है। हम्म वैसे मुझे हैरान नही होना चाहिए, आखिर यहाँ बात शेखावत खानदान की हो रही है जिनके लिए कोई भी काम मुस्किल नही है।" एस पी खुद ही अपने स्वाल का जवाब देता है। सानिध्य अब भी कुर्सी पर बैठा था, उसकी नज़रों में गुस्सा साफ़ झलक रहा था। यज्ञ एक नजर अपने छोटे भाई पर डालता है, और फिर बिना एक भी शब्द बोले एसपी की तरफ देखता है। "साइन कीजिए।" एसपी थोड़ा हिचकिचाते हुए बेल पेपर्स पर नजर डालता है, लेकिन फिर यज्ञ की गंभीर और हावी करने वाली मौजूदगी ने उसे एक सेकंड भी सोचने का मौका नहीं दिया। एस पी दस्तावेजों पर साइन कर देता है और फाइल को बंद कर देता है। सानिध्य अब तक बिना कुछ कहे बस अपनी उंगलियों को टेबल पर पटक रहा था, उसकी आँखों में एक अजीब सा आक्रोश था। जैसे ही एसपी ने बेल ऑर्डर जारी किया, यज्ञ ने एक गहरी सांस ली और अपनी जगह से उठते हुए कहा— "चलो, सानिध्य!" " सर इनकी बेल तो हो गई है लेकिन केश दर्ज हो चुका है और एक सप्ताह बाद केस की फस्ट हियरिंग है " पीछे से एसपी उन्हे कहते है सानिध्य कुर्सी से उठा, उसकी बॉडी लैंग्वेज बता रही थी कि वह इस वक्त कितने गुस्से में है। वह एसपी को एक ठंडी नजर से देखता है और बिना कुछ कहे यज्ञ के साथ बाहर निकल जाता है। बाहर निकलते ही मीडिया फिर से उन पर टूट पड़ती है— "सानिध्य सिंह शेखावत, क्या आप इस आरोप को स्वीकार करते हैं?" "क्या शेखावत परिवार ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर आपको बचा लिया?" "क्या आप पीड़िता को कोई सफाई देना चाहेंगे?" मीडीया के सवाल सुनकर सानिध्य का खून खौल उठता है, वह पीछे मुड़ने ही वाला होता है कि यज्ञ ने उसका हाथ कसकर पकड़ लेता है और हल्के से सिर हिला देता है, मानो कह रहा हो—"अभी नहीं, सही वक्त आने दो।" सानिध्य बिना कुछ कहे गुस्से में गाड़ी में बैठ जाता है। उसका चेहरा इस वक्त सख्त था, आँखें अब भी गुस्से से लाल थी। उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यज्ञ भी बिना कोई प्रतिक्रिया दिए कार में अपनी जगह ले लेता है, और इसी के साथ शेखावत ब्रदर्स का काफिला वहाँ से रवाना हो जाता है। पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी मीडिया का हुजूम उनके जाते हुए काफिले को अपने कैमरों में कैद कर रहा था। "तो जैसा कि आप देख सकते हैं, सानिध्य सिंह शेखावत को कुछ ही मिनटों में बेल मिल गई।" "क्या यह रसूख और पैसे की ताकत नहीं है?" "क्या उस मासूम पीड़िता को इंसाफ मिलेगा, या फिर यह मामला भी पैसे और पावर के दबाव में दफ्न हो जाएगा?" न्यूज चैनलों पर ये आवाजें लगातार गूँज रही थीं, लेकिन गाड़ियों के अंदर बैठे यज्ञ और सानिध्य के चेहरों पर किसी भी मीडिया रिपोर्ट का कोई असर नहीं दिखा। सानिध्य ने कार की खिड़की से बाहर देखा, उसकी मुठ्ठियाँ भींची हुई थीं। गुस्से से उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, लेकिन उसने खुद को शांत रखने की कोशिश की। *********** जैसे ही सानिध्य और यज्ञ हवेली के अंदर दाखिल होते, उनके कदमों की आहट सुनते ही जया जी दौड़ते हुए आईं। उनकी आँखों में बेचैनी और चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं। "बिल्लु!" बस इतना कहते ही उन्होंने अपने बेटे को कसकर गले से लगा लिया। उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन यह राहत के आँसू थे। पूरे दिन से उनके दिल पर जो बोझ था, वो अब जाकर हल्का हुआ था। सानिध्य ने भी अपनी माँ को मजबूती से पकड़ लिया, लेकिन उसकी आँखों में अब भी गुस्से की ज्वाला धधक रही थी। उसके भीतर चल रहा तूफान अभी शांत नहीं हुआ था, लेकिन माँ की बाहों में एक पल के लिए उसे सुकून जरूर मिला। यज्ञ ने चुपचाप खड़े होकर माँ-बेटे के इस पल को देखा। "तू ठीक तो है ना, बेटा? कुछ किया तो नहीं उन लोगों ने?" जया जी ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ते हुए भरे स्वर में पूछा। "मैं बिल्कुल ठीक हूँ, माँ" सानिध्य उनकी आँखो मे देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहता है। लेकिन जैसे ही विकास जी अंदर आते है, एक अजीब सी गंभीरता पूरे हाॅल में फैल जाती है। क्रमश:- क्या सानिध्य पर लगा इल्ज़ाम सच है ,या है किसी दुश्मन की चाल, क्या होने वाला है आगे जानने के लिए बने रहे इस कहानी के साथ 🦋
लेकिन जैसे ही विकास जी अंदर आते है, एक अजीब सी गंभीरता पूरे हाॅल में फैल जाती है। उनकी तेज़ नज़रें सीधे सानिध्य पर गड़ी थीं। आँखों में गुस्सा नहीं, बल्कि सवालों का सैलाब था। वह धीरे से आगे बढ़े और वहाँ रखे सोफे पर एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाकर बैठ गए। उनके चेहरे पर वही शेर जैसी गंभीरता थी, जो बिना कुछ कहे ही सामने वाले को बेचैन करने के लिए काफी होता था। कुछ सेकंड तक कमरे में एक खामोशी रही, फिर वह सीधे, बिना किसी लाग-लपेट के सवाल करते है— "मुझे पूरी बात बताओ, सानिध्य।" सानिध्य बिना हिले-डुले वहीं खड़ा रहा। उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, लेकिन उसकी कंठ की मांसपेशियाँ हल्का सा खिंच गई थीं। इससे पहले कि वह कुछ कहता, जया जी की घबराई हुई आवाज़ आई— "हाँ बेटा, क्या हुआ है? बता ना… तेरे ऊपर जो इल्ज़ाम लगा है, वो झूठ है ना? बोल बेटा, ये सब झूठ है ना?" उनकी आवाज़ में एक उम्मीद थी, एक माँ की वो उम्मीद जो अपने बेटे को निर्दोष सुनना चाहती थी। उनकी आँखें सानिध्य के चेहरे पर टिकी थीं, जैसे वह उसके जवाब से पहले ही सच्चाई पढ़ लेना चाहती हों। लेकिन सानिध्य चुप रहा। कमरे में पसरा सन्नाटा अब भारी लगने लगा था। यज्ञ भी शांत था, वह जानता था कि यह पल कितना कठिन है। कुछ सेकंड बाद, सानिध्य गहरी सांस लेता है, और बहुत धीमी, मगर साफ आवाज़ में कहता है— "सच है, माँ…" बस, इन शब्दों ने पूरे माहौल को जैसे जमाकर रख दिया था। ये सुनकर जया जी का चेहरा सफेद पड़ गया। उनकी आँखें झपकना भूल गईं। वह एकदम पीछे हट गईं, जैसे उनके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। यज्ञ ने तुरंत माँ के कंधे पर हाथ रखा, लेकिन उनकी नजरें सानिध्य पर टिकी थीं। "सानिध्य, ये… ये तू क्या कह रहा है?" जया जी की आवाज काँप रही थी। यज्ञ, जो अब तक शांत था, उसकी आँखों में भी एक हल्की बेचैनी झलकने लगी। उसने सानिध्य की ओर देखा, मानो वह समझना चाहता हो कि उसके भाई के इन शब्दों का असली मतलब क्या है। विकास जी, जो हमेशा अपनी गंभीरता और धैर्य के लिए जाने जाते थे, उन्होंने एक लंबी सांस ली। उनकी तीखी नजरें सानिध्य के चेहरे पर टिकी थीं, लेकिन उनका चेहरा कोई भाव नहीं जता रहा था। "तू कहना क्या चाहता है, सानिध्य?" उनकी भारी आवाज़ हवेली के शांत माहौल में गूंज उठती है। उनका रौबदार लहजा पूरे माहौल पर छा गया। सानिध्य की भूरी आँखों में हल्का गुस्सा और लाचारी एक साथ झलक रही थी। वह अपनी उंगलियाँ कसकर भींच लेता है, और फिर गहरी सांस लेते हुए बोलता है— "सच ये है कि जब परसों मैं क्लब गया था, तो मेरी ड्रिंक में किसी ने कुछ मिला दिया था।" उसकी आवाज़ में नफरत साप झलक रही थी, खुद से, उस हालात से, और उस लड़की से भी जिसने ये सब किया। "जब सुबह मेरी आँख खुली, तो मैं किसी अनजान लड़की के साथ था… और अब वही लड़की ये पूरा ड्रामा कर रही है, सिर्फ मुझसे पैसे ऐंठने के लिए!" सानिध्य गुस्से से अपनी जैकेट उतारता है और सोफे पर पटक देता है। "पर आप टेंशन मत लीजिए, पापा, उससे मैं खुद डील करूँगा!" "बिल्लू बेटा, कोई भी लड़की सिर्फ पैसों के लिए अपनी इज्जत को दांव पर नहीं लगाती।" जया जी सानिध्य के कंधे पर हाथ रखकर नर्म आवाज मे कहती है जया जी की बात सुनकर सानिध्य की भूरी आँखें उनकी तरफ उठती है, पर हल्की झुंझलाहट थी उसकी आँखो मे। "माँ, आप मेरी बात पर यकीन नहीं कर रही हैं?" इससे पहले कि जया जी कुछ कहतीं, विकास जी की गहरी आवाज़ गूँजी— "बात यकीन की नहीं है, बेटा… सोचने वाली है। यज्ञ ने उस लड़की के बारे मे पता लगवाया है और वो लड़की ऐसी नही है जो पैसो के लिए ये सब करे।" "अगर वो लड़की झूठ बोल रही है, तब तो हम किसी भी तरह सच सामने ले ही आएँगे। लेकिन अगर तुमने वाकई उसके साथ कुछ गलत किया है, तो तुम्हें उसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, बेटा।" सानिध्य, जो अब तक खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहा था, गुस्से से उबल पड़ता है। उसकी भूरी आँखें एक पल के लिए आग उगलने लगती है। "वाट नॉनसेंस, पापा?! ये क्या बात हुई? उस रात जो कुछ भी हुआ, वो सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि मैं नशे में था! इसका मतलब ये नहीं कि मैं जबरदस्ती किसी की जिम्मेदारी लेने लगूँ!" उसकी आवाज़ ऊँची हो गई, जिससे पूरे हॉल में एक अजीब-सी चुप्पी पसर गई। "सानिध्य, बिहेव योरसेल्फ!" यज्ञ, जो अब तक चुपचाप खड़ा सब सुन रहा था, आखिरकार गुस्से में बोल ही पड़ा। उसकी गहरी आवाज़ ने पूरे माहौल को और गंभीर बना दिया था। "पापा से इस तरह बात करोगे तुम?" सानिध्य जब यज्ञ की सख्त नज़रों को देखता है, तो थोड़ी देर के लिए चुप रह जाता है, लेकिन उसका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था। यज्ञ उसके करीब आता है और बेहद ठहराव भरी आवाज़ में बोलता है— "सानिध्य, हमें कभी किसी लड़की की इज्जत से खिलवाड़ करना नहीं सिखाया गया है। मैं मानता हूँ, तुम नशे में थे… लेकिन इसमें उसकी क्या गलती थी, भाई?" सानिध्य अपनी मुट्ठियाँ भींच लेता है। "लेकिन भइया…" सानिध्य कुछ कहना चाहता है, पर यज्ञ हाथ उठाकर उसे रोक देता है। "तू गुस्से में कुछ ऐसा कदम मत उठा लेना जिससे बाद में पछताना पड़े।" जया जी अपने बेटे का हाथ थाम लेती है और प्यार से बोलती है— "बेटा, गुस्सा चीजों को सुलझाने के बजाय उन्हें और उलझा देता है। पहले उस लड़की से मिलकर सच जानो, फिर फैसला करना कि क्या करना है।" सानिध्य कोई जवाब नही देता ,और अपने रूम मे चला जाता है सानिध्य बिना कुछ कहे तेजी से मुड़ा और भारी कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। उसकी पकड़ अब भी मुट्ठियों पर कस चुकी थी, और उसके अंदर एक अजीब सा तूफान उमड़ रहा था। विकास जी, यज्ञ और जया जी बस खड़े उसे जाते हुए देखते रहे। "ये लड़का गुस्से में क्या कर बैठे, भगवान जाने," जया जी चिंता भरी निगाहों से सानिध्य को ऊपर जाते देखते हुए धीरे से कहती है। यज्ञ भी सानिध्य की तेज़ चाल को नोट करता है। उसे अपने छोटे भाई की मनोदशा अच्छी तरह समझ में आ रही थी। गुस्सा, झुंझलाहट और एक अनजाना डर—सानिध्य के भीतर बहुत कुछ चल रहा था। "मुझे उससे बात करनी चाहिए," यज्ञ हल्की आवाज़ में कहता है। "नहीं, अभी नहीं। उसे थोड़ा वक्त दो। जब उसका गुस्सा ठंडा होगा, तब बात करेंगे।" विकास जी मना करता हुए बोलते है। ***** सानिध्य अपने कमरे का दरवाजा धड़ाम से बंद कर देता है। अंदर जाते ही उसने सबसे पहले अपना जैकेट उतारकर बेड पर फेंक देता है, फिर बालों में हाथ फेरते हुए गहरी सांस लेता है उसके अंदर उथल-पुथल मची हुई थी। सानिध्य अपने शर्ट के बटन खोलता है, और एक झटके में उतार देता है और बाथरूम में दाखिल हो जाता है। जैसे ही वह शावर ऑन करता है, ठंडे पानी की धार उसके सिर से बहते हुए उसकी मस्कुलर बॉडी पर गिरने लगती है। उसके दोनों हाथ सामने की दीवार पर टिके थे, आँखें बंद… चेहरा गीले बालों से ढका हुआ… और दिमाग में वही रात चल रही थी, जो उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा बवाल बन चुकी थी। उसकी आँखों के सामने धुंधली तस्वीरें तैरने लगती है— वो क्लब की चकाचौंध… तेज़ म्यूजिक… हाथ में ड्रिंक… फिर अचानक सिर भारी होने लगा… धुंधली हँसी… किसी लड़की की नज़दीकी… और फिर सुबह—बेड पर वो लड़की, बिना कपड़ों के… और खुद भी उसी हाल में… सानिध्य की भौहें तन जाती है। वह एक गहरी सांस लेता है, लेकिन दिल की बेचैनी कम नहीं होती है। अगले दिन की घटनाएँ भी उसकी आँखों के सामने घूमने लगती है— उसका शूटिंग सेट… पुलिस का वहाँ आना… सबके सामने उसे पुलिस स्टेशन ले जाना… मीडिया के तीखे सवाल… और फिर परिवार की चिंता भरी निगाहें… सानिध्य झुंझलाकर अपनी मुट्ठी भींच लेता है और ज़ोर से दीवार पर मार देता है। शावर का पानी उसके चेहरे पर पड़ता रहा, लेकिन उसके दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल था— "आखिर उस रात हुआ क्या था?" उसे सिर्फ आधी-अधूरी बातें याद थीं। लेकिन वो लड़की… वो कौन थी? क्या वो सच में उसे फँसाना चाहती थी, या फिर इसके पीछे कोई और खेल था? वह अपनी मुट्ठियाँ भींच लेता है। उसे अपने हर सवाल का जवाब चाहिए था। "जो भी हो, मुझे इसका सच पता लगाना ही होगा!" ******* "सानिध्य, इस वक्त तुम्हारा बाहर जाना ठीक नहीं है! मीडिया वाले तुम्हारी एक-एक हरकत पर नज़र रख रहे हैं।" सानिध्य को सीढ़ीयो से नीचे आता देखकर विकास जी उसे रोकने की कोशिश करते है। सानिध्य की चाल धीमी हो जाती है, लेकिन वह अपने पिता की तरफ बिना देखे ही जवाब देता है— "चिंता मत कीजिए पापा, इस मामले को अब मै अपने तरह से हैंडल करूँगा। " विकास जी की आँखें एक पल के लिए चौड़ी हो जाती है। उनके ठीक बगल में खड़े यज्ञ ने सानिध्य की तरफ देखा, जो अब दरवाज़े की ओर बढ़ चुका था। वे दोनो अच्छे से जान रहे थे सानिध्य का कहना क्या था। यज्ञ गंभीर स्वर में कहता है— "सानिध्य, अगर तुम सच में उस रात की सच्चाई जानना चाहते हो, तो सही तरीके से जाओ, ये अंडरवर्ल्ड वाला एटिट्यूड इस बार तुम्हारे लिए उल्टा भी पड़ सकता है।" सानिध्य रुकता है। वह अपनी गहरी आँखों से यज्ञ को देखता है। उसके चेहरे पर कोई खास एक्सप्रेशन नहीं था, लेकिन उसकी बॉडी लैंग्वेज साफ कह रही थी कि वह किसी भी हाल में रुकने वाला नहीं है। "सही तरीका?" वह हल्का हंसता है, लेकिन उसकी हंसी में एक अजीब-सी सख्ती थी। "जब दुनिया तुम्हें विलेन बना ही चुकी हो, तो सही और गलत का फर्क मिट जाता है, भैया!" इतना कहकर सानिध्य चाबी उंगलियों पर घुमाते हुए बाहर निकल जाता है। हवेली के बाहर उसकी ब्लैक स्पोर्ट्स कार खड़ी थी। वह ड्राइविंग सीट संभालता है, इंजन ऑन करता है, और देखते ही देखते कार हवेली से बाहर निकल जाती है साथ ही उसके पीछे उसके बॉडीगार्ड्स की कार भी उसे फॉलो करती है। एक सुनसान सड़क, सानिध्य अपनी कार को झटके से रोकता है। कार के इंजन की गूंज कुछ सेकंड तक हवा में तैरती रही, फिर सबकुछ शांत हो गया। उसने गियर न्यूट्रल किया, सीट बैक की और अपने मोबाइल स्क्रीन पर वक्त देखा— शाम के यही कोई 7 बज रहे थे। अगले ही पल, कोई तेजी से कार का दरवाजा खोलता है और अंदर आकर बैठ जाता है। "क्या पता चला?" सानिध्य बिना उसकी तरफ देखे सवाल करता है, और अपने जैकेट की जेब से एक सिगरेट निकालकर होंठों से दबा लेता है। हल्की लाइटर की चिंगारी हवा में नाचने लगी, और धुएं का हल्का सा छल्ला कार के भीतर फैल गया। "बॉस, लड़की मिडिल क्लास फैमिली से है। नाम— तत्सवि पाठक। क्रमश:-
"बॉस, लड़की मिडिल क्लास फैमिली से है। नाम— तत्सवि पाठक। उसके पिता का देहांत हो चुका है, माँ कुछ साल पहले एक भयानक एक्सीडेंट का शिकार हुई थीं और तब से कोमा में हैं। हॉस्पिटल में उनका इलाज जारी है, लेकिन हालत गंभीर बनी हुई है।" सानिध्य की उंगलियां सिगरेट पर कस गईं। उसने धुएं को धीरे से बाहर फेंका, उसकी आँखें अब सीधे सामने सड़क पर टिकी थीं। "आगे बोलो।" "घर की बात करें तो, उसके चाचा-चाची और उनका बेटा भी उसी के साथ रहते हैं। चाचा एक शॉप पर काम करते है ।लेकिन असली जिम्मेदारी सिर्फ तत्सवि के कंधों पर है। उसकी एक छोटी बहन भी है, जो हॉस्टल मे रहकर पढाई पूरी कर रही है।" "और वह 'शर्मा इंडस्ट्रीज' में एक रिस्पेक्टेबल पोस्ट पर काम करती है। काफी मेहनती और इमानदार लड़की है,।" इतना कहकर वह आदमी अपनी जेब से एक मुड़ा-तुड़ा सा कागज निकालता है और सानिध्य की तरफ बढ़ा देता है— "ये उसका एड्रेस है।" सानिध्य बिना कोई हड़बड़ी दिखाए वो कागज लेता है, और खोलकर हल्के-हल्के शब्दों मे पढ़ने लगता है। कुछ सेकंड तक कार में सिर्फ सिगरेट जलने की आवाज़ सुनाई दी। फिर अचानक, वह कागज को मोड़कर अपनी जैकेट की जेब में रख लेता है, "तो अब क्या करना है, बॉस?" आदमी ने पूछा। सानिध्य अपने दोनों हाथ स्टेयरिंग व्हील पर रखता है, और एक पल के लिए उसकी उंगलियां हल्के से थिरकती है, जैसे कोई फैसला कर रहा हो। फिर अचानक उसके होंठो पर एक हल्की मगर ठंडी मुस्कान उभरती है। वह सिगरेट का आखिरी कश लेता है और उसे कार की ऐशट्रे मे मसल देता है। और अपनी कार बढ़ा देता है,सीधी तत्सवि पाठक की दुनिया की ओर... उदयपुर के एक छोटे से घर मे जहाँ पाठक परिवार रहता था हॉल मे शीला जी (तत्सवि की चाची ) तेज़ी से इधर-उधर घूम रही थीं। उनके चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था। महेश पाठक (तत्सवि के चाचा ) चुपचाप बैठे थे, और तत्सवि उनकी आँखों में अपने लिए कोई सहारा ढूँढ रही थी। लेकिन वहाँ बस एक मजबूर बाप था, जो चाहकर भी अपनी भतीजी का साथ नहीं दे पा रहा था। " अरे मै कहती हूँ क्या जरूरत थी केस करने की! जब रंगरलीया मना ही आई थी, तो ये बिना मतलब का पंगा लेने की क्या जरूरत थी, देखो महेश जी, अब भी वक्त है इस लड़की को समझा लो! हमें शेखावत परिवार से पंगा नहीं लेना चाहिए! कौन है हमारे पीछे? कौन खड़ा है हमारे लिए? अरे उसे एक मिनट भी नही लगेगा हमारा वजूद मिटाने मे" शीला जी गुस्से से बोलती है। "मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं है, चाची जी। मुझे सिर्फ न्याय चाहिए।" तत्सवि सख्ती से कहती है। "न्याय? वाह! सुन रहे हो महेश जी? इसे न्याय चाहिए! अरे, ये बड़े लोग हैं! इनके लिए लोगों की इज्जत खरीदना और बर्बाद करना, दोनों चुटकियों का खेल है! और तू क्या है? एक मामूली मिडिल क्लास लड़की! जिसे वो लोग यू चुटकीयो मसल कर रख देंगे" शीला चुटकी बजाते हुए तंज भरे लहजे मे कहती है "हाँ, हूँ मै मामूली लड़की! और होगा वो अमीर बाप का बिगड़ा हुआ नवाब, लेकिन मैं इस बात से डरकर घर में नहीं बैठने वाली , अपने गुनहगार को तो मै सजा दिला कर रहूँगी " तत्सवि आँखो मे आँसू लिए लेकिन आवाज मे दृढ़ता लाते हुए कहती है। "तो क्या करेगी तू? कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाएगी? अपनी इज्जत तो सम्हाली नही गई कोट कचहरी के चक्कर लगाकर हमारी इज्जत और निलाम कर " शीला जी गुस्से से कहती है "बेटा, तेरा गुस्सा जायज है, लेकिन दुनिया इतनी आसान नहीं होती। शीला की बात तीखी जरूर है पर कही ना कही सही है… हम साधारण लोग हैं बेटा, हमारे पास उनकी तरह पैसा और ताकत नहीं है।" महेश जी धीमे स्वर मे कहते है। "तो क्या करूँ चाचा जी? डरकर सब कुछ भूल जाऊँ? उस रात जो हुआ, उसे ऐसे ही जाने दूँ? मेरे गुनहगार को खुले आम ऐसे ही घुमने दू?" तत्सवि अपने चाचा जी के आँखो मे देखते हुए कहती है "अरे जब मैं कहती थी, लड़की की जात है, ज्यादा घुमा-फिरा मत कर, चुपचाप अपनी औकात में रह, तब तो मेरी बात मानी नहीं! और अब जब मुँह काला करा आई तो महारानी को न्याय चाहिए, वो भी उन लोगों के खिलाफ, जिनकी जेब में पूरी न्याय व्यवस्था है!" शीला जी तंज भरे स्वर मे कहती है। तत्सवि गहरी सांस लेती है, वो अब इन तानों से डरने या टूटने वाली नहीं थी। वह खुद को संभालते हुए शांत लेकिन ठोस आवाज़ में कहती है— "अगर आप सोचती हैं कि मैं चुप बैठकर अपने साथ हुए अन्याय को सह लूँगी, तो आप बहुत गलत हैं, चाची, अगर मैं डरकर बैठ गई, तो कल कोई और लड़की मेरी जगह होगी। कोई और वो लड़की ऐसी ही बेबस खड़ी होगी, और हम फिर से यही कहेंगे— भूल जाओ, चुप रहो!" "देख तत्सवि, मैं तुझे आखिरी बार कह रही हूँ, ये केस वापस ले ले! वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!" शीला जी कड़े लहजे मे तत्सवि को ऊँगली दिखाते हुए कहती है शीला जी की बात सुनकर तत्सवि की मुट्ठियाँ हल्की-हल्की भींच गईं। "आपसे बुरा कोई नहीं होगा? क्या इससे बुरा कुछ हो सकता है, चाची जी, कि मेरी अपनी ही फैमिली मेरे साथ खड़ी होने की बजाय मुझे धमका रही है, कि मै अपना मुँह बंद रँखू?" तत्सवि कहती है। "शीला, अब बस भी करो।" महेश जी बीच मे आते हुए उन्हे शांत कराते हुए कहते है। "आप चुप रहो जी! अगर ये लड़की जिद पर अड़ी रही, तो हम सब सड़क पर आ जाएँगे! वो शेखावत लोग किसी को नहीं छोड़ते!" शीला जी गुस्से मे बोलती है। "आपका तो नही पता चाची जी ,लेकिन अगर मै डर के कारण सही चीज़ करने से पीछे हट जाऊँ, तो फिर पूरी ज़िन्दगी अपने आपको आईने में नहीं देख पाऊँगी।" तत्सवि कहती है "अरे! ये मत भूल कि हम तुझे बचपन से पाल रहे हैं! तेरे बाप के जाने के बाद हमने तुझे सहारा दिया था!" शीला जी तेज आवाज मे कहते है। "सहारा दिया या बोझ समझकर ढोया, चाची जी? आपने मुझे हमेशा ये एहसास दिलाया कि मैं इस घर पर बोझ हूँ। और बुरा मत मानना चाची जी लेकिन अगर मै काम करके आपके हाथ मे हर महीने पैसे ना देती ना, आप कब का मुझे और मेरी बहन को इस घर से निकाल चुकी होती।" तत्सवि कड़वे स्वर मे कहती है तत्सवि की बात सुनकर शीला जी का चेहरा गुस्से से तमतमा जाता है। " बहुत जुबान चलने लगी है तेरी?, तुझे तो मै सबक सिखाती हूँ !" यह कहकर शीला जी तत्सवि को मारने के लिए अपने हाथ उठा देती है तत्सवि कसकर अपनी आँखे बंद कर लेती है। लेकिन शीला जी का हाथ हवा में ही थम जाता है। जब कोई उनकी कलाई को कसकर पकड़ लेता है। "बस बहुत हुआ।" एक भारी, सख्त आवाज़ पूरे कमरे में गूँजती है। तत्सवि आँखे खोलती है। शीला झटके से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश करती है, वह चेहरा ऊपर कर देखती है तो सामने खड़ा इंसान कोई और नही बल्की —सानिध्य सिंह शेखावत था। शीला हक्की-बक्की रह गईं, महेश अवाक थे, और तत्सवि… उसके पूरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। उसकी साँसें तेज हो गईं, उसकी आँखें डर और घृणा के मिले-जुले भावों से भर उठीं। उसके सामने वही शख्स खड़ा था, जिसने उसकी ज़िंदगी को तहस-नहस कर दिया था। सानिध्य सिंह शेखावत। उसका नाम ही उसके मन में उस रात की यादों को ताजा करने के लिए काफी था। उसकी पूरी बॉडी हल्के-हल्के काँपने लगी। सानिध्य अपनी जगह खड़ा था, चेहरे पर वही ठंडा, निर्विकार भाव। उसकी कंज़र आँखें सीधी तत्सवि पर टिकी थीं, लेकिन उसमें कोई शर्मिंदगी नहीं थी, कोई पछतावा नहीं था। "त… तुम यहाँ क्यों आए हो?" तत्सवि की आवाज़ कांप रही थी, लेकिन वह हिम्मत जुटाकर पूछती है। सानिध्य एक सिगरेट निकालता है, और हल्के अंदाज़ में उसे होंठों से लगा लेता है, लेकिन जलाया नही था। फिर एक कदम उसकी तरफ बढ़ाता है। "क्यों? डर लग रहा है मुझसे?" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा ठंडापन था। तत्सवि गुस्से में उसकी तरफ देखती है। उसकी आँखों में अब सिर्फ डर नहीं था, बल्कि एक जंग लड़ने का जुनून भी था। "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? मेरे घर में?" उसकी आवाज़ पहले से ज्यादा मजबूत थी। सानिध्य हल्का सा मुस्कुरा देता है, लेकिन उस मुस्कान में कोई गर्माहट नहीं थी। "हिम्मत?" वह एक हल्की सी हँसी छोड़ता है। "तुम शायद भूल रही हो, तत्सवि पाठक, कि मैं सिर्फ़ तुम्हारे घर में नहीं, तुम्हारी पूरी ज़िंदगी में दाखिल हो चुका हूँ। चाहो या न चाहो, अब मेरी छाया से पीछा छुड़ाना तुम्हारे बस की बात नहीं।" " डराने आए हो? तो मेरी एक बात कान खोलकर सुनलो मै किसी के बाप से नही डरती , और तुम्हे तो मै जेल भेज कर रहूँगी सानिध्य सिंह शेखावत!" तत्सवि गुस्से मे एक कदम उसकी ओर बढ़ाती है और उसे उँगली दिखाकर हर शब्द पर जोर देते हुए कहती है। सानिध्य उसकी आँखों में झाँकता है, और कुछ देर तक बिना पलक झपकाए उसे देखता रहता है। फिर हल्के से सिर झुकाकर बोलता है— "अच्छा?… देखते हैं।" कमरे में सन्नाटा पसर जाता है। शीला और महेश कुछ बोलने की हालत में नहीं थे। क्रमश:- क्या यह सच में एक नए खेल की शुरुआत थी? क्या तुफान लाने वाला है सानिध्य जानने के लिए बने रहे 🦋
यू.एस.ए – लिविंग रूम में हल्की-फुल्की बातें चल रही थीं जब जय कश्यप ने रिमोट उठाकर टीवी ऑन कर दिया। "ब्रेकिंग न्यूज़!" "मशहूर एक्टर और मॉडल सानिध्य सिंह शेखावत पर गंभीर आरोप! क्या यह मामला महज एक साजिश है, या फिर सच्चाई इससे कहीं ज्यादा कड़वी है?" टीवी स्क्रीन पर सानिध्य की तस्वीर के साथ न्यूज़ एंकर की आवाज़ गूँज उठी— कुछ ही मिनटों में मिली बेल—क्या फिर पैसों के आगे हार जाएगा इंसाफ?" वादिनी की आँखें आश्चर्य और चिंता से फैल जाती है। वह टीवी स्क्रीन को अविश्वास से देखती है, फिर घबराकर अपने मम्मी-पापा की ओर नजर घुमाती है। "ये क्या बकवास दिखा रहे हैं?" जय जी गुस्से से कहती है। "सानिध्य पर ऐसा इल्ज़ाम? ये कैसे हो सकता है?" वीणा जी भी चिंतित स्वर में कहती है। लेकिन वादिनी कुछ सुन नहीं रही थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। बिना एक पल की देरी किए, वह तेजी से अपने रूम की ओर भागती है। अंदर जाते ही वह दरवाजा बंद करती है और तुरंत यज्ञ का नंबर डायल करती है। दूसरी तरफ घंटी बजती है… और फिर कॉल कनेक्ट होती है। "यज्ञ!" उसकी आवाज़ हल्की काँप रही थी। यज्ञ की भारी, शांत आवाज़ आती है— "हाँ, वादिनी?" "ये सब क्या है यज्ञ? मैंने न्यूज़ देखी… सानिध्य पर ये इल्ज़ाम?" यज्ञ कुछ पल चुप रहता है, फिर धीमे से बोलता है— "वादिनी, मैं तुम्हे सब एक्सप्लेन करूंगा। बस एक बार सब ठीक हो जाए, तुम प्लीज़ टेंशन मत लो।" "पर यज्ञ… सानिध्य के बारे में इतनी बड़ी बातें कह रहे हैं लोग! क्या सच में…" "मैंने कहा ना, मै तुम्हे सब एक्सप्लेन करूंगा।" यज्ञ का लहजा ठंडा था। "ठीक है, लेकिन आप मुझे अपडेट देते रहना… और अगर आपको मेरी किसी भी तरह की मदद चाहिए हो तो मुझे जरूर बताइएगा।" उसकी आँखों में चिंता थी, " ठीक है" यज्ञ छोटा सा जवाब देता है। इस बीच, लिविंग रूम में जय जी ने अपना फोन उठाया और तुरंत विकास जी का नंबर डायल कर दिया। "विकास, ये सब क्या हो रहा है?" उनकी आवाज़ गंभीर थी। उधर, विकास सिंह शेखावत पहले से ही कई कॉल्स में उलझे थे, लेकिन जय जी की आवाज़ सुनते ही उन्होंने बाकी सब छोड़ दिया। "जय…" " विकास, तू ठीक है?" विकास जी गहरी साँस लेते है। " हम्म,,एक हफ्ते बाद कोर्ट में सुनवाई है। फिर सच जल्द ही सामने आ जाएगा।" " तू चिन्ता मत कर , सब ठीक हो जाएगा" जय जी कहते है। जय कुछ पल चुप रहने के बाद, फिर बोलते है— "अगर तुम्हें मेरी जरूरत हो तो बस एक कॉल कर देना। सानिध्य हमारा भी बेटा है, और मैं जानता हूँ कि तू उसे बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है। लेकिन याद रख, सही और गलत के बीच का फर्क मत भूलना।" विकास की आँखें थोड़ी नम हो गईं, लेकिन उनकी आवाज़ अब भी सख्त थी— "मैं एक बाप हूँ, जय… लेकिन उससे पहले एक इंसान भी हूँ। सच जो भी हो, मैं उसका सामना करने के लिए तैयार हूँ।" फोन कट चुका था, लेकिन दोनों दोस्तों के दिल में एक अजीब सी बेचैनी छोड़ गया। ******** पाठक निवास सानिध्य एक गहरी नजर तत्सवि पर डालता है और सीधे खड़े होकर घर से बाहर चला जाता है उसके पीछे ही उसके आदमी भी घर से बाहर निकल जाते है " मुझे इस लड़की की पल पल की खबर चाहिए " सानिध्य सिगरेट होंठो पर दबाते हुए अपने आदमी से कहता है और अपनी कार मे बैठ जाता है कार स्टार्ट करता है और एक हाथ से स्टेयरिंग सम्हालते है और दूसरे हाथ से सिगरेट के कश भरने लगता है लेकिन फिर कुछ सोचकर उसके होठ पर एक अजीब सी रहस्यमयी मुस्कान तैरने लगती है " इन्ट्रेस्टीग" वह धीरे से कहता है और अपनी कार की स्पीड बढा देता है ********* शेखावत हवेली के दरवाजे पर एक कार आकर रुकती है। कार का दरवाजा खुलते ही बाहर निकलती है। हमेशा की तरह खूबसूरत, सादगी में भी रॉयलिटी झलकती हुई। हल्के गुलाबी रंग के सूट में, खुले घुँघराले बाल और चेहरे पर वही चिर-परिचित मासूमियत। लेकिन आज उसकी आँखों में एक अलग ही गंभीरता थी। हवेली के दरवाजे पर कदम रखते ही उसकी नजर सीधे अंदर बैठे यज्ञ और विकास जी पर पड़ती है। जया जी सीढ़ियों से उतर रही थीं, और सानिध्य कहीं नजर नहीं आ रहा था। "दिवी!" जया जी ने अपनी बेटी को देखते ही प्यार से पुकारती है और उसकी ओर आती है। दिव्या हल्की मुस्कान के साथ माँ से लिपट जाती है, लेकिन जया जी उसकी आँखों की बेचैनी महसूस कर सकती थीं। "कैसी है मेरी बच्ची?" जया जी ने प्यार से पुकारा और दिव्या को गले से लगा लिया। दिव्या माँ से लिपट गई। "और तुम लोग तो हनीमून पर जाने वाले थे ना?" जया जी ने उसका चेहरा देखा और हल्के से उसके बालों को सहलाया। इससे पहले कि कोई कुछ कहता, दिव्या ने आगे पूछा— "हमने कैंसिल कर दिया, माँ… सानिध्य भैया कहाँ हैं?" पूरा हॉल एक पल के लिए शांत हो गया। यज्ञ और विकास जी एक-दूसरे की ओर देखते है। दिव्या की आँखों में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। यज्ञ गहरी सांस लेता है और धीरे से कहता है, "वो अभी घर पर नहीं है।" "भैया, प्लीज़ सच बताओ। न्यूज़ में जो दिखा वो कितना सच है?" दिव्या अब लगभग रूआंसी हो रही थी। "ओए मोटी, तू यहाँ क्या कर रही है?" अचानक पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज आती है। वो चौंककर पीछे मुड़ती है, और उसकी आँखें तुरंत भर आती है। सामने सानिध्य खड़ा था— हमेशा की तरह बेपरवाह अंदाज मे, चेहरे पर वही पुरानी शरारती मुस्कान। "भ…भैया!" बिना कुछ सोचे-समझे वह दौड़कर सानिध्य से लिपट जाती है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते है। "आपको पता है, मैं कितना डर गई थी?" दिव्या फफक पड़ती है। सानिध्य हल्की मुस्कान के साथ उसके सिर पर हाथ फेरता है, लेकिन उसकी आँखों में भी कुछ अलग सा था— एक गहरी सोच। "ओए पगली, तू कब से इतनी इमोशनल हो गई?" वह हल्के से हँसने की कोशिश करता है, लेकिन दिव्या अपनी पकड़ और मजबूत कर देती है। "मैंने न्यूज़ में सब देखा भैया… ये सब क्या हो रहा है?" वह पीछे हटकर सीधे उसकी आँखों में देखते हुए सवाल करती है। दिव्या के सवाल पर सानिध्य हल्का सा मुस्कुराता है, लेकिन उसकी आँखों में वही बेशुमार ठहराव था, जो उसे बाकी सबसे अलग बनाता था। "ज्यादा कुछ नहीं, बस तेरे भाई की लाइफ में थोड़ा सा ट्रेजडी और कुछ इमोशनल सीन ऐड हो गया है।" उसका जवाब हल्का-फुल्का था, लेकिन दिव्या जानती थी कि इस हंसी के पीछे कितना दर्द छिपा है। वह फिर से भर्राई आवाज में बोलती है— "भैया, यह मज़ाक करने का वक्त नहीं है! पूरे देश में आपकी न्यूज़ चल रही है! आपको अंदाजा भी है कि लोग क्या-क्या कह रहे हैं?" सानिध्य ने एक गहरी सांस लेता है और अपनी उंगलियों से अपनी कलाई पर बंधी ब्रेसलेट को घुमाता है। "लोगों का क्या है, मोटी? आज कुछ कहेंगे, कल कुछ और। मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी को सफाई नहीं दी, और अब भी नहीं दूंगा।" यज्ञ, जो अब तक चुपचाप खड़ा था, आखिरकार बोल ही पड़ता है— "दिवी, तू ज्यादा मत सोच। तेरा भाई खुद इस चीज़ को हैंडल कर लेगा।" "कैसे भैया? सब कुछ बिखर रहा है, और आप कह रहे हैं कि ज्यादा मत सोचो?" दिव्या नाराज़गी से बोलती है। सानिध्य उसके सिर पर हल्की चपत लगाता है और मज़ाकिया लहजे में कहता है— "अबे मोटी, तू शादी करके गई ना, फिर क्यो मेरी मम्मी बनी घूम रही है?" दिव्या गुस्से से उसकी ओर देखती है— " अगर तू ऐसे ही बेवकूफों वाली हरकत करता रहा तो बनना ही पड़ेगा!" पूरा माहौल हल्का हो गया, लेकिन वहां मौजूद हर किसी को पता था कि ये हंसी बस एक मुखौटा थी। सच्चाई इससे कहीं ज्यादा कड़वी थी… ************* पाठक निवास – तत्सवि का कमरा सानिध्य के जाते ही तत्सवि की आँखों में रुके हुए आँसू बेबस होकर बहने लगे। उसका पूरा शरीर कांप रहा था। उसने बिना किसी की परवाह किए अपने कमरे की तरफ दौड़ लगा दी। अंदर आते ही उसने दरवाजा जोर से बंद किया और उसी से पीठ टिकाकर फर्श पर बैठ गई। उसका दम घुट रहा था… "क्यों आया वो यहाँ? आखिर क्यों?" उसके मन में सवाल गूंज रहे थे, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। उसकी उंगलियाँ खुद-ब-खुद उसके बाजुओं को जकड़ने लगीं, जैसे खुद को ही समेटना चाह रही हो। सानिध्य की ठंडी, गहरी नज़रों ने उसे झकझोर कर रख दिया था। तत्सवि घुटनों में अपना सिर छुपा लेती और सुबकने लगती है। उसके आँखो के सामने उस काली रात की छलकियाँ आने लगती है फ्लैशबैक क्लब की चकाचौंध भरी रोशनी, तेज़ म्यूजिक और चारों तरफ लोग—कहीं हँसी, कहीं शोर, कहीं नशे में झूमते लोग। क्लब के वीआईपी सेक्शन में सानिध्य अपने दोस्तों के साथ बैठा था। "भाई, तू आज बहुत दिन बाद पार्टी में आया है!" उसके दोस्त अर्जुन ने उसे छेड़ा। "बस यार, मूड बना तो आ गया," सानिध्य ने एक हल्की मुस्कान के साथ कहा और अपने ग्लास से एक घूँट लिया। "आज तो तुझे खुलकर एन्जॉय करना पड़ेगा," दूसरा दोस्त, रॉनी, उसे छेड़ते हुए बोला। सानिध्य हँसा, फिर डांस फ्लोर की ओर देखा। वह जगह पूरी तरह भरी हुई थी—खूबसूरत लड़कियाँ, पार्टी का माहौल, सब कुछ परफेक्ट था। क्रमश:-
सानिध्य हँसा, फिर डांस फ्लोर की ओर देखा। वह जगह पूरी तरह भरी हुई थी—खूबसूरत लड़कियाँ, पार्टी का माहौल, सब कुछ परफेक्ट था। तभी एक वेटर उसके पास आया और एक नया ड्रिंक उसकी टेबल पर रख दिया।
"भाई, ये ट्राय कर! स्पेशल ड्रिंक है!" अर्जुन ने कहा।
सानिध्य ग्लास उठा लेता है। और हल्का सा चखने के बाद उसने पूरा ड्रिंक खत्म कर देता है।
कुछ मिनटों बाद…
सानिध्य को हल्का-हल्का अजीब महसूस होने लगा। उसकी पलकों में भारीपन आ रहा था, दिमाग सुन्न होने लगा था, और शरीर गर्मी से भरता जा रहा था।
"भाई, तुझे क्या हुआ?" अर्जुन ने उसकी हालत देखकर पूछा।
सानिध्य ने अपने सिर को झटका दिया, जैसे खुद को नॉर्मल करने की कोशिश कर रहा हो।
"कुछ नहीं… बस थोड़ा स्ट्रॉन्ग लग रहा है ड्रिंक।"
उसकी नजरें धुंधली होने लगीं। म्यूजिक अब कानों में गूँजने लगा था, दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी, और उसका दिमाग एक अजीब-सी धुंध में डूबने लगा था।
उसके साथ कुछ गलत हो रहा था।
वह अपने दोस्तों की बातें ठीक से नहीं सुन पा रहा था। शरीर अजीब-सा महसूस करने लगा, जैसे उसमें कोई अलग-सी उत्तेजना दौड़ रही हो, एक बेसब्र बेचैनी।
"मुझे… ताज़ी हवा चाहिए…" वह उठते हुए कहता है।
"भाई, तू ठीक है?"
"हाँ…" उसने अपनी आवाज़ को सामान्य रखने की कोशिश करते हुए कहता है। "मुझे बस आराम की जरूरत है।"
इतना कहकर वह उठता है और अपने फोन पर किसी को कॉल लगाता है।
"मुझे जल्द से जल्द कोई लड़की चाहिए। जितना पैसा मांगे, दे दो, लेकिन पांच मिनट में लड़की मेरे रूम में होनी चाहिए।"
फोन कट करने के बाद उसने अपनी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए, उसकी सांसें अब और ज्यादा भारी हो रही थीं। वह खुद को काबू करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन नशे का असर उसके शरीर को पूरी तरह जकड़ चुका था।
क्लब का वीआईपी रूम
वह तेज़ी से क्लब के अंदर बने उस रूम में जाता है, जो हमेशा उसके लिए बुक रहता था। अंदर घुसते ही उसने जैकेट उतारकर एक तरफ फेंक दी और गले में बंधी टाई को ढीला करने लगा। सानिध्य के सब्र का बांध टूट रहा था। वह बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था, लेकिन कोई नहीं आया। उसके शरीर में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। शरीर पसीने से भीगा चुका था, वह झुंझलाकर बालों में हाथ फिराने लगता है।
"शिट!" वह गुस्से से घूँसा दीवार पर दे मारता है।
*****
तत्सवि अपनी बेस्ट फ्रेंड अवनी के साथ उसका बर्थडे सेलिब्रेट करने आई थी। हालांकि यहाँ आने से पहले उसे चाची जी की जली कटी बाते भी सुननी पड़ी थी लेकिन ये तो उनका रोज का था और उनकी वजह से तत्सवि अपनी लाइफ जीना तो नही छोड सकती थी । वह ज्यादा देर क्लब में नहीं रुकना चाहती थी, लेकिन अवनी के बार-बार कहने पर मान गई थी।
"तू जा वाॅशरूम, मैं तब तक कैब बुक कर देती हूँ," अवनी ने कहा।
तत्सवि सिर हिलाकर क्लब के अंदर बने सेकंड फ्लोर की तरफ बढ़ी। क्लब की चमक से हटकर यह हिस्सा अपेक्षाकृत शांत था।
वह यहाँ वहाँ आगे बढ ही रही थी की तभी कोई अचानक से उसे पीछे से पकड़ लेता है और पास के ही रूम मे लेकर जाता है और कमरे को बंद कर देता है
*******
सानिध्य का धैर्य अब जवाब दे चुका था। उसके अंदर एक अजीब सी खलबली मची हुई थी, शरीर तप रहा था, और दिमाग सुन्न होने लगा था। वह तेजी से कमरे का दरवाजा खोलता है और बाहर निकलता है।
तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ती है।
वह इधर-उधर देख रही थी, शायद कोई रूम ढूँढ रही थी।
सानिध्य की धुंधली सोच में यही ख्याल आता है—यही वो लड़की होगी, जिसे मेरे बॉडीगार्ड्स ने भेजा होगा।
उस पर नशा इतना हावी हो गया था कि बिना एक पल भी गँवाए, वह तेजी से लड़की की कलाई पकड़ता है और उसे झटके से कमरे की ओर खींच लेता है।
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आगे के कुछ सीन आपको ट्रिगर कर सकते है तो अगर आप कम्फरटेबल ना तो प्लीज आप इस भाग को स्कीप कर सकते है।
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" हॉउ डेयर यू तुम्हारी ,,,,,,, " तत्सवि की आगे की बात उसके मुँह मे ही रह जाती है
" अभी मेरे पास इन सब चीजो के लिए समय नही ,, राइट नॉ आई वान्ट यू, सो सट द फ* योर माउथ " नशे की हालत मे यह कहकर सानिध्य अपने होठ उस लड़की के कोमल होठो पर रख देता है तत्सवि उससे छूटने की कोशिश करने लगती है पर वह 6 फीट का हट्टा कट्टा इंसान और वह 5 फीट 4 इंच की पतली सी लड़की कहा उसके ताकत का सामना कर सकती थी वह उसे किस करते हुए पीछे की ओर लेकर जाने लगता है और फिर अपने होठ को उसके होठ से आजाद कर उसे बेड पर धक्का दे देता है तत्सवि बेड पर गिर जाती है वह उठने की कोशिश करती है पर जब वह देखती है सानिध्य अपने शर्ट के बटन खोल रहा है यह देखकर उसकी हालत खराब होने लगती है
" देखो प्लीज मुझे जाने दो " वह बेड मे पीछे की तरह सरकते हुए कहती है
लेकिन सानिध्य को ड्रग्स के नशे मे यह समझ नही आ रहा था कि नशे की हालत मे अपने जीवन का सबसे बड़े गुनाह करने की ओर बढ़ रहा था पर उसे जिस तरह का ड्रग दिया गया था उसे इस वक्त यह करने की बहुत जरूरत थी सानिध्य अपनी शर्ट निकाल कर कमरे मे एक साइड फेक देता है और तत्सवि का पैर पकड़कर उसे अपनी तरफ खिचता है और अपने होठ तत्सवि के गर्दन पर रख देता है वह छटपटाने लगती है उसके आँखो से आँसू आने लगते है सानिध्य उसके आँसू को इग्नोर कर अपना हाथ तत्सवि के बेक पर लेकर जाता है और और उसकी ड्रेस की चेन खोलकर उसके कंधे से उसके ड्रेस को सरका देता है यह देखकर वह और ज्यादा छटपटाने लगती है जिससे इरिटेट होकर सानिध्य उसके हाथ को अपनी टाइ से बाँधकर हेडबोड से बाँध देता है
" प्लीज मुझे जाने दो ,,,, मै ये नही चाहती ,, प्लीज स्टॉप "
लेकिन उसकी आवाज़, उसकी गिड़गिड़ाहट, उसकी आँसू… सानिध्य तक नहीं पहुँच रहे थे।
" प्लीज मुझे जाने दो,,,, प्लीज मै आपके आगे हाथ जोड़तीहूँ प्लीज" वह रोते हुए कहती है पर सानिध्य उसके ऊपर आ जाता है और कुछ ही सेकण्ड मे तत्सवि के कपड़ो को फाड़कर एक साइड फेक देता है और इसी के साथ उस कमरे मे तत्सवि के चीखे उसकी सिसकिया गुंजनी शुरू हो जाते है और किस पहर वो उसके हाथ को खोलता है और कितने समय तक वह उसके शरीर के साथ अपनी मनमानी करता है इसका भी तत्सवि को होश नही होता क्योंकि वह अपने होश खो चुकी होती है ,
अगली सुबह –
तत्सवि की पलकों में हलचल होती है। उसे सिर भारी लग रहा था, शरीर टूट रहा था, और पूरे बदन में अजीब-सी जकड़न महसूस हो रही थी। उसने आँखें खोलीं, लेकिन सामने का नज़ारा देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया।
कहाँ थी वह?
अजनबी कमरा… महंगे फर्नीचर… धीमी रौशनी… और उसके शरीर पर सिर्फ चादर!
उसकी साँसें तेज हो गईं। दिल में अजीब-सी घबराहट समा गई। झटके से वह उठी और खुद को देखा—उसके कंधे पर नीले निशान थे, बाजुओं पर उंगलियों के गहरे दाग थे, और…
"नहीं… नहीं…"
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। बीती रात की सारी यादें किसी तेज़ झटके की तरह उसके दिमाग में उभरने लगीं—किस तरह किसी ने उसे खींचकर कमरे में बंद किया, कैसे उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, पर वह कुछ नहीं कर पाई… कैसे वो दर्द… वो बेबसी…
वह रोते हुए बेड से उतरने लगी, लेकिन उसका शरीर इतना कमजोर था कि गिरते-गिरते बची। किसी तरह हिम्मत करके उसने कमरे में नज़र दौड़ाई। उसके कपड़े फर्श पर बिखरे पड़े थे, फटे हुए… और वहीं एक टेबल पर रखा था—
एक ब्लैंक चेक!
तत्सवि के दिमाग में जैसे धमाका हो गया।
"ये क्या समझता है खुद को? क्या मैं कोई बिकने वाली चीज़ थी?"
गुस्से और बेबसी से उसका दिल बैठ गया। आँसुओं से धुंधलाई आँखों से उसने चेक उठाकर देखा—नाम की जगह खाली था, रकम की जगह खाली थी…
मतलब जितने पैसे चाहिए, लिख लो!
एक झटके में उसने चेक फाड़ दिया और वहीं फर्श पर गिरकर जोर-जोर से रोने लगी।
"मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? कौन विश्वास करेगा मेरी बात पर?"
वह खुद को सम्हालते हुए उठती है और किसी तरह वहा रखे लैंडलाइन से अपनी दोस्त को कॉल करती है और जैसे ही अवनी कॉल उठाती है और उसका नाम लेकर रोने लगती है
"तत्सवि? क्या हुआ? तू रो क्यों रही है?" अवनी की घबराई हुई आवाज़ फोन में गूंजती है।
तत्सवि के गले से आवाज़ तक नहीं निकल रही थी। उसका पूरा शरीर कांप रहा था। उसने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन उसकी सिसकियाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं।
"अवनी… मुझे यहाँ से ले जा… प्लीज़…" वह फूट-फूटकर रो पड़ी।
अवनी तुरंत सतर्क हो गई। "कहाँ है तू? क्या हुआ? तुझे किसने कुछ कहा?"
"मैं… मैं उसी क्लब मे हूँ"
अवनी ने उसकी आवाज़ में छिपे डर और बेबसी को महसूस कर लिया था।
"मैं पहुँच रही हूँ!" अवनी कहती है।
तत्सवि ने फोन वापस रख दिया और दीवार से टिककर बैठ जाती है। आँसुओं से उसका चेहरा भीग चुका था, लेकिन अब डर के साथ गुस्सा भी था।
कुछ देर बाद अवनी तेज़ी से क्लब के कमरे में दाखिल होती है। दरवाजे के अंदर कदम रखते ही उसकी नज़र सामने बैठी तत्सवि पर पड़ती है, जो दीवार से लगी, घुटनों में सिर छुपाए बैठी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, आँखें सूजी हुई थीं और चेहरे पर अजीब-सी वीरानी छाई हुई थी।
"तत्सवि!" अवनी भागकर उसके पास आई और उसके कंधे पकड़कर झकझोरने लगी। "क्या हुआ तुझे? ये सब… ये सब कैसे?"
तत्सवि ने धीरे-धीरे अपना चेहरा ऊपर उठाया। उसकी लाल सूजी आँखें अवनी की चिंता भरी आँखों से मिलीं, और अगले ही पल वह अवनी के गले लगकर फूट-फूटकर रोने लगी।
"मुझे यहाँ से ले चल, अवनी… प्लीज़…" उसकी आवाज़ काँप रही थी, जिस्म थरथरा रहा था।
अवनी के दिल में गहरी चोट लगी। उसने दोस्त को और जोर से अपने सीने से चिपका लिया।
"किसने किया ये सब, तत्सवि? बता मुझे!" अवनी के चेहरे पर गुस्सा और बेबसी दोनों झलक रहे थे।
तत्सवि के आँसू नहीं रुक रहे थे। वह कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन उसके होंठ काँपने लगे। उसकी उंगलियाँ कसकर चादर को मरोड़ रही थीं। आखिर हिम्मत जुटाकर उसने काँपती आवाज़ में कहा—
"सानिध्य सिंह शेखावत…"
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कुछ देर बाद अवनी का फ्लैट
अवनी ने तत्सवि को सहारा देकर वहाँ रखे सोफे पर बैठाया। वह जानती थी कि इस वक्त उसे घर वापस भेजना सही नहीं होगा। तत्सवि अभी भी काँप रही थी, उसकी आँखों में बेबसी और डर था। अवनी पानी का ग्लास लेकर आई और उसके सामने बैठ गई।
"पानी पी ले," उसने ग्लास बढ़ाते हुए कहा।
तत्सवि ने काँपते हाथों से ग्लास पकड़ा और एक घूँट लिया। कुछ पल कमरे में खामोशी छाई रही, फिर अवनी ने गंभीर आवाज़ में पूछा—
"अब क्या करना है?"
तत्सवि ने नजरें झुका लीं। उसके दिमाग में बीती रात के खौफनाक मंजर अब भी घूम रहे थे। उसने खुद को समेटा और धीरे-धीरे बोली—
"तू मेरा केस लड़ेगी?"
अवनी चौंक गई। उसने हाथ में पकड़ा ग्लास हल्के से टेबल पर रखा और उसने तत्सवि की तरफ देखा।
"क्या?"
"हाँ अवनी… तू एक वकील है, और मुझे इंसाफ चाहिए। तू मेरा केस लड़ेगी, ना?"
अवनी के लिए यह फैसला आसान नहीं था। सामने कोई आम इंसान नहीं था—सानिध्य सिंह शेखावत था। एक नामचीन एक्टर, प्रभावशाली बिजनेसमैन और शेखावत परिवार का वारिस।
वह समझ सकती थी कि यह लड़ाई सिर्फ कोर्ट तक सीमित नहीं रहने वाली थी। इसमें ताकत, पैसा, राजनीति—सब कुछ दांव पर लगने वाला था। लेकिन उसने तत्सवि की आँखों में देखा। वहाँ दर्द के साथ एक उम्मीद भी झलक रही थी।
अवनी ने गहरी साँस ली और उसकी आँखों में देखते हुए दृढ़ता से कहा—
"हाँ, मैं तेरा केस लडूँगी!"
तत्सवि की आँखों से आँसू छलक पड़े।
अवनी ने हल्के से उसका हाथ थामा और गंभीर स्वर में बोली—
"लेकिन ये लड़ाई बहुत मुश्किल होगी। तुझे हर तरफ से दबाव आएगा, तेरा कैरेक्टर सवालों के घेरे में आएगा, धमकियाँ मिलेंगी… क्या तू इसके लिए तैयार है?"
तत्सवि ने अपनी आँखों से आँसू पोंछे और मजबूत आवाज़ में जवाब दिया—
"हाँ, मैं अब और नहीं डरूँगी। मैं लड़ूँगी!"
अवनी मुस्कुराई और उसे गले लगा लिया।
"फिर ठीक है। हम साथ लड़ेंगे, और जीतेंगे भी!"
फ्लैशबैक एन्ड
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तत्सवि अपनी सोच से बाहर तब आती है जब फोन की लगातार बजती रिंगटोन उसकी तंद्रा तोड़ती है। वह जल्दी से अपने आँसू पोंछती है और फोन उठाकर स्क्रीन पर नजर डालती है—नीवा।
उसकी उंगलियाँ हल्के से कांपीं जाती है, लेकिन वह खुद को सम्हालाती है और कॉल रिसीव करती है।
"हेलो…" वह धीमी और कमजोर आवाज मे कहती है।
"दी, आप ठीक हैं?" नीवा की चिंतित आवाज़ आती है। "मुझे वहाँ आना है, प्लीज… मुझे आपके साथ रहना है!"
तत्सवि अपनी आँखें बंद कर लेती है। वह जानती थी कि नीवा का प्यार सच्चा था, लेकिन वह उसे इस गंदगी में नहीं घसीटना चाहती थी।
"नहीं, नीवा! तुम यहाँ नहीं आओगी। अगर मीडिया को तुम्हारे बारे में पता चला, तो वे तुम्हें भी सवालों के घेरे में घसीट लेंगे। लोग तुम्हें बुरा-भला कहेंगे, तुम्हें जज करेंगे, और मैं यह नहीं चाहती।"
"लेकिन दी, आप वहाँ अकेले सब कुछ कैसे सम्हालेंगी? मुझे आपके पास आना है… प्लीज!" नीवा अपनी भर्राई आवाज मे कहती है
तत्सवि एक गहरी सांस लेती है और अपनी आवाज़ को मजबूत करती है।
"मैं अकेली नहीं हूँ, नीवा। अवनी मेरे साथ है… और सबसे बड़ी बात, मैं खुद अपने साथ हूँ। मुझे लड़ना है, और मैं लड़ूंगी। बस तुम मेरा हौसला बनकर रहो, दूर से ही सही, लेकिन मेरा साथ मत छोड़ना।"
फोन के दूसरी तरफ कुछ पलों की खामोशी रही, फिर नीवा धीरे से कहती है—
"ठीक है दी, लेकिन अगर कभी आपको मेरी जरूरत हो, तो बस एक बार कहना… मैं भागकर आ जाऊंगी।"
तत्सवि के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है।
"मुझे पता है, मेरी गुड़िया। और इसी भरोसे पर मैं यह लड़ाई लड़ रही हूँ।"
कुछ देर बात करने के बाद वह कॉल रख देती है , अब तत्सवि का हौसला पहले से ज्यादा मजबूत हो चुका था।
*******
कोर्ट की पहली सुनवाई –
कोर्टरूम खचाखच भरा था। मीडिया, जनता और नामी वकीलों की मौजूदगी ने माहौल को और गंभीर बना दिया था। केस सिर्फ एक लड़की के सम्मान की लड़ाई नहीं था, बल्कि यह एक ऐसे इंसान के खिलाफ था जो ताकत, शोहरत और पैसे से खेलना जानता था—सानिध्य सिंह शेखावत।
जज अपनी कुर्सी पर बैठे और अदालत की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया।
"केस नंबर 287"
सानिध्य अपने महंगे सूट में, बिना किसी भाव के कठघरे में खड़ा था। उसकी नज़रें सामने बैठे जज पर टिकी थीं, लेकिन वह बार-बार निगाहें घुमाकर तत्सवि को देख रहा था, जो एकदम शांत बैठी थी। मगर उसकी उंगलियाँ आपस में कसकर जकड़ी हुई थीं, यह बताने के लिए कि वह कितनी घबराई हुई थी।
अभियोजन पक्ष की वकील अवनी अपनी जगह से खड़ी होती है और पूरी गंभीरता से जज की ओर देखते हुए कहती है।
"माय लॉर्ड, यह सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि एक महिला की गरिमा और आत्मसम्मान से जुड़ा विषय है। मेरी मुवक्किल, मिस तत्सवि पाठक, आज यहां न्याय की गुहार लगाने आई हैं। उनके साथ जबरदस्ती हुई, उनकी आत्मा और शरीर को ठेस पहुंचाई गई, और यह अपराध किसी और ने नहीं, बल्कि आरोपी सानिध्य सिंह शेखावत ने किया।"
सानिध्य के वकील, विक्रांत मेहरा, जो शहर के सबसे नामी और महंगे वकीलों में से एक थे, अपनी कुर्सी से उठे। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मानो वह पहले से ही इस बहस का नतीजा जानते हों।
"माय लॉर्ड, मैं यह नहीं कहूंगा कि मेरे मुवक्किल ने कुछ नहीं किया। लेकिन हमें परिस्थितियों को समझना होगा। जो कुछ भी हुआ, वह ड्रग्स के नशे में हुआ।"
अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अवनी ने तुरंत आपत्ति जताई—
" ऑबसेक्सन, माय लॉर्ड! ड्रग्स लेना अवैध है, और बलात्कार चाहे नशे में किया जाए या पूरी चेतना में—बलात्कार, बलात्कार ही कहलाएगा!"
जज ने गहरी नजरों से दोनों वकीलों को देखा और शांत स्वर में कहा—
" ऑबसेक्सनओवररूल्ड। पहले बचाव पक्ष को अपनी बात पूरी करने दीजिए।"
विक्रांत ने अवनी को एक चतुर मुस्कान दी और फिर जज की तरफ मुड़े।
"थैंक यू, माय लॉर्ड। जैसा कि मैं कह रहा था, मेरे मुवक्किल को साजिश के तहत ड्रग्स दिया गया था। उन्हें जानबूझकर ऐसी हालत में पहुंचाया गया कि वह खुद पर काबू न रख सकें।"
वह एक फाइल निकालते हैं और कोर्ट के सामने रखते हैं।
"माय लॉर्ड, यह सामान्य ड्रग नहीं था। यह एक स्पेशल ड्रग थी, जिसे अगर कोई व्यक्ति लेता है, तो उसके अंदर कुछ शारीरिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। ऐसी स्थिति में उसे किसी महिला के सहारे की जरूरत पड़ती है, नहीं तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता था।"
उन्होंने एक मेडिकल रिपोर्ट और कुछ डॉक्युमेंट्स कोर्ट में पेश किए।
"यह सबूत हैं, माय लॉर्ड, कि सानिध्य को यह ड्रग बिना उसकी जानकारी के दिया गया। वह पूरी तरह अपनी सुध-बुध खो चुका था और उसकी हालत बेहद गंभीर थी। इस केस को सिर्फ अपराध के रूप में नहीं, बल्कि एक साजिश के रूप में भी देखा जाना चाहिए।"
अब पूरा कोर्टरूम सन्नाटे में था। सभी की निगाहें जज पर थीं, जो अब दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुन रहे थे।
अवनी ने ठंडी मुस्कान के साथ जवाब दिया—
"साजिश? यानी अब आप बलात्कार को जायज़ ठहराने के लिए नई कहानी गढ़ रहे हैं? माय लॉर्ड, यह साफ़ है कि बचाव पक्ष कानून की आड़ में अपराध को सही साबित करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सच यह है कि मेरी मुवक्किल के साथ जो हुआ, वह अपराध था, और अपराधी चाहे नशे में हो या होश में—सजा तो उसे मिलेगी ही!"
कोर्टरूम में खामोशी छा गई।
क्रमश:-
बचाव पक्ष के वकील विक्रांत मेहरा आत्मविश्वास से खड़े हुए और बोले—
"माय लॉर्ड, मैं मानता हूँ कि बलात्कार एक संगीन अपराध है, और इसकी कोई माफ़ी नहीं हो सकती। लेकिन इस केस में हमें हालात को भी देखना होगा। ना तो मेरे मुवक्किल ने जानबूझकर ड्रग्स लिया, और ना ही उन्होंने अपनी चेतना में यह कृत्य किया। ऐसे में इसमें उनकी गलती कहाँ है?"
अवनी ने तुरंत आपत्ति दर्ज कराई—
" ऑबसेक्सन, माय लॉर्ड! क्या बचाव पक्ष यह साबित करना चाहते है कि अगर किसी ने अनजाने में ड्रग्स ले लिया हो, तो उसे किसी और की अस्मिता को तार-तार करने का हक़ मिल जाता है?"
जज ने एक गहरी नज़र विक्रांत पर डाली और बोले—
"मि. मेहरा, यह तर्क काफ़ी संवेदनशील है। सावधानी से आगे बढ़ें।"
विक्रांत सिर झुकाता है और अपनी दलील जारी रखता है—
"माय लॉर्ड, मैं यहाँ यह साबित करने नहीं आया कि जो हुआ, वह सही था। मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि सानिध्य सिंह खुद इस पूरे षड्यंत्र का शिकार हैं। उन्हें किसी ने धोखे से ड्रग्स दिया, और वह ड्रग्स के कारण नियंत्रण खो बैठे। अब, कानून यह भी कहता है कि किसी व्यक्ति को उसके पूरे होशोहवास में किए गए अपराध के आधार पर ही दोषी ठहराया जा सकता है। जब मेरे मुवक्किल को अपने किए का एहसास ही नहीं था, तो क्या यह उचित होगा कि हम उन्हें एक सोच-समझकर किया गया अपराधी मान लें?"
अवनी ने तेज़ आवाज़ में जवाब दिया—
"माय लॉर्ड, बचाव पक्ष सिर्फ बहाने ढूंढ रहा है। अगर कोई नशे में गाड़ी चलाते हुए किसी को टक्कर मार दे, तो क्या उसे माफ़ कर दिया जाएगा? नहीं, क्योंकि कानून यह नहीं देखता कि अपराध नशे में किया गया था या होश में। अपराध अपराध होता है!"
" माय लॉर्ड, अभियोजन पक्ष ड्रग्स और अपराध की तुलना शराब पीकर गाड़ी चलाने से कर रहा है, लेकिन ये तुलना पूरी तरह ग़लत है। वहाँ व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से शराब पीता है, लेकिन यहाँ मामला अलग है। मेरे मुवक्किल को साजिश के तहत ड्रग्स दिया गया, और वह भी कोई साधारण नशा नहीं, बल्कि ऐसा नशा जो व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर देता है।"
कोर्टरूम में गहमागहमी बढ़ गई। जज ने हथौड़ा पटकते हुए कहा—
"शांत रहें! अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों अपनी दलीलें पेश कर चुके हैं। अब कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए सबूतों और गवाहों पर ध्यान देगा। अगली कार्यवाही में, दोनों पक्षों को अपने-अपने गवाह पेश करने होंगे। तब तक के लिए कोर्ट स्थगित की जाती है।"
हथौड़े की आवाज़ के साथ पहली सुनवाई समाप्त हो गई।
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कोर्टरूम धीरे-धीरे खाली हो रहा था। जज के जाने के बाद भी कई लोगों की फुसफुसाहट वहाँ बनी हुई थी। तत्सवि अपनी जगह पर जड़ होकर बैठी थी—बिना किसी भाव के, बिना किसी हलचल के।
अवनी उसकी बगल में थी, लेकिन उसने भी अभी तक कुछ नहीं कहा। उसे पता था कि इस वक्त कोई भी शब्द बेकार होगा।
"तत्सवि, चलें?" अवनी ने धीरे से कहती है।
तत्सवि सिर उठाकर उसे देखती है , उसकी आँखें सुर्ख हो चुकी थीं, लेकिन वह रोई नहीं थी। शह हाँ मे अपना सिर हिलाकर प्रतिक्रिया देती है अवनी चुपचाप अपनी फाइल समेटने लगती है, तत्सवि उसकी मदद करती है पर अचानक उसकी नजर सानिध्य पर पड़ती है।
सानिध्य कोर्टरूम के दूसरी तरफ खड़ा था। विक्रांत उससे कुछ कह रहे थे, और यज्ञ भी उसके पास ही था। लेकिन पूरे समय सानिध्य की नज़र सिर्फ तत्सवि पर थी।
"सानिध्य, हमें चलना चाहिए," यज्ञ हल्के से उसका कंधा थपथपाते हुए कहता है।
सानिध्य तत्सवि से अपनी नजर हटाता है और सिर हिलाकर हाँ बोलता है।
बाहर मीडिया वाले उनके इंतजार में खड़े थे। जैसे ही सानिध्य और यज्ञ बाहर निकले, कैमरों के फ्लैश चमकने लगे।
"सानिध्य सर, आप इस केस पर क्या कहना चाहेंगे?"
"क्या सच में आपको ड्रग दिया गया था या ये सिर्फ एक बहाना है?"
"क्या आपने तत्सवि पाठक के साथ जबरदस्ती की?"
"अगर आप निर्दोष हैं तो असली गुनहगार कौन है?"
सानिध्य कोई जवाब नहीं देता, लेकिन उसके चेहरे से साफ था कि ये सवाल उसे परेशान कर रहे थे।
उनके बॉडीगार्ड्स ने मीडिया को रास्ता बनाते हुए सानिध्य को गाड़ी तक पहुँचाया। विक्रांत भी उनके पीछे ही थे।
"कोई बयान नहीं," विक्रांत मीडिया को एक सख्त लहजे में जवाब देता है और यज्ञ और सानिध्य को बाय बोलकर अपनी गाड़ी मे बैठ जाता है।
गाड़ी के अंदर बैठते ही सानिध्य एक गहरी सांस लेता है। उसकी मुठ्ठियाँ भींची हुई थीं।
"क्या हो रहा है मेरे साथ?" वह अपनी चेहरे पर अपने दोनो हाथ को मलते हुए खुद मे बुदबुदाता है।
यज्ञ उसके बगल मे बैठा उसे देख रहा था, लेकिन कुछ कहता नहीं। वह समझ सकता था कि यह सब सानिध्य के लिए आसान नहीं था। वह ड्राइवर को कार स्टार्ट करने बोलता है
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तत्सवि और अवनी जैसे ही कोर्टरूम के बाहर आती है, कैमरों के फ्लैश एक बार फिर चमक उठते है। और मीडिया सवालों की बौछार कर देते है—
"तत्सवि जी, क्या आपको लगता है कि आपको न्याय मिलेगा?"
"सानिध्य सिंह शेखावत के खिलाफ आपके पास क्या सबूत हैं?"
"क्या ये मामला सिर्फ एक गलतफहमी है, या इसमें साजिश की बू आती है?"
"आप इस केस को कहाँ तक ले जाएँगी?"
तत्सवि कोई जवाब नहीं देती है। उसकी आँखें सीधी आगे देख रही थीं। अवनी ने उसकी कलाई कसकर पकड़ रखी थी, जैसे उसे भरोसा दिला रही हो कि वह अकेली नहीं है।
मीडिया रिपोर्टर उन्हें घेर रहे थे, रास्ता बनाना मुश्किल हो रहा था। तभी अचानक कुछ पुलिसकर्मी आते है और मीडिया के बीच से जगह बनाने लगते है।
"पीछे हटिए, प्लीज रास्ता दीजिए!"
पुलिसकर्मियों की मदद से तत्सवि और अवनी अपनी गाड़ी तक पहुँच जाती है। एक पुलिस अफसर गाड़ी का दरवाजा खोलता है , और दोनों अंदर बैठ जाती है।
अवनी गाड़ी स्टार्ट करती है और वहाँ से चली जाती है और उनके कार के जाते ही एक और कार वहाँ से निकलती है जो की मिडीया की नजरो से बच कर एक जगह पार्क थी
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गाड़ी के अंदर एक पल की शांति थी। अवनी एक नजर तत्सवि पर डालती है। वह अब भी चुप थी, लेकिन उसकी आँखें बता रही थीं कि उसके अंदर कई तूफान चल रहे थे।
"तु ठीक है?" अवनी पूछती है।
तत्सवि धीरे से सिर हिला देती है, "हम्म"
अवनी मुस्कुराकर उसकी ओर देखती है, और कहती है "हम हारने के लिए नहीं लड़ रहे, जीतने के लिए लड़ रहे हैं। और हम जरूर जीतेंगे। "
तत्सवि बिना कुछ कहे खिड़की से बाहर देखने लगती है, जैसे कुछ सोच रही हो।
कोर्टरूम में अगली सुनवाई
कोर्टरूम में भीड़ उमड़ी हुई थी। हर कोई इस बहुचर्चित मामले के अगले मोड़ का इंतजार कर रहा था। जैसे ही जज ने अपनी कुर्सी संभालते है, कार्यवाही शुरू हो जाती है।
अवनी आत्मविश्वास के साथ खड़ी होती है, उसकी आँखों में एक दृढ़ निश्चय झलक रहा था।
"माई लॉर्ड," अवनी गंभीर स्वर में कहती है, "आज मैं इस अदालत के सामने एक ऐसा सबूत पेश करने जा रही हूँ, जिससे यह साफ हो जाएगा कि मेरी मुवक्किल के साथ जबरदस्ती हुई थी।"
उसने अपने सहायक को इशारा किया। अगले ही पल, कोर्टरूम की स्क्रीन पर क्लब की सीसीटीवी फुटेज चलने लगी।
CCTV फुटेज
वीडियो में साफ दिखाई दे रहा था— तत्सवि आगे बढ़ रही थी, और फिर सानिध्य अचानक उसकी कलाई पकड़ता है
तत्सवि विरोध करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सानिध्य की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह चाहकर भी खुद को छुड़ा नहीं पा रही थी। फिर वह उसे अपने प्राइवेट रूम में ले जाता है और दरवाजा बंद कर देता है।
कोर्टरूम में एक क्षण के लिए सन्नाटा छा जाता है।
"माई लॉर्ड, क्या यह स्पष्ट नहीं है कि मेरी मुवक्किल को उसकी मर्जी के बिना अंदर ले जाया गया?" अवनी तीखे शब्दों में कहती है, "यह साफ दिख रहा है कि उसने जबरदस्ती की!"
जज गंभीरता से वीडियो देखते है, जबकि कोर्टरूम में हलचल बढ़ने लगती है। लोग एक-दूसरे से फुसफुसा रहे थे।
तभी, विक्रांत मेहरा खड़े होते है। उनके चेहरे पर अब भी वही शांत भाव था।
"माई लॉर्ड," वे संयमित लहजे में कहते है, "मेरी विरोधी वकील ने वीडियो प्रस्तुत किया है, लेकिन इसमें साफ दिख रहा है कि सानिध्य नशे में था। अब, इससे पहले कि मिस अवनी फिर से तर्क दें कि नशे में किया गया अपराध भी अपराध ही होता है, मैं अपने गवाह को कटघरे में बुलाने की इजाजत चाहता हूँ।"
जज हामी भरते है।
विक्रांत एक तरफ इशारा करता है। कोर्टरूम के दरवाजे खुलते है, और एक युवक अंदर आता है।
"माई लॉर्ड, यह राहुल है। यह उस रात क्लब में बारटेंडर था। यह अदालत को बताएगा कि सानिध्य सिंह शेखावत को ड्रग्स देने की साजिश किसने की।"
जज ने राहुल को बयान देने का निर्देश दिया।
राहुल थोड़ा घबराता है, लेकिन वह बोलना शुरू करता है—
राहुल घबराते हुए इधर-उधर देखता है, लेकिन फिर गहरी साँस लेकर बोलना शुरू करता है—
"जी... उस रात एक आदमी मेरे पास आया था। उसने मुझे पैसे दिए और साथ ही एक खास तरह की गोली भी, जिसे उसने सानिध्य सर के ड्रिंक में मिलाने के लिए कहा।"
पूरा कोर्टरूम सन्नाटे में डूब जाता है। सानिध्य की आँखें सिकुड़ गईं, उसकी मुट्ठियाँ कसकर भींच गईं।
"सिर्फ इतना ही नहीं," राहुल ने कांपती आवाज में आगे कहा, "उसी आदमी के कहने पर मैंने इन मैडम को बाथरूम का गलत रास्ता बताया था, ताकि... ताकि वह उनके पीछे आ सके।"
तत्सवि की साँसें तेज हो गईं। अवनी की भौंहें चढ़ गईं।
"और फिर?" विक्रांत ने ठंडे स्वर में पूछा।
राहुल ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया—
"उस आदमी ने मुझे इनकी प्राइवेट पलो की तस्वीरें और वीडियो लेने को भी कहा था, लेकिन सानिध्य सर के बॉडीगार्ड्स उनके रूम के बाहर पहरा दे रहे थे, जिस वजह से मैं ऐसा नहीं कर पाया।"
सानिध्य की नसें गुस्से से तन गईं। उसकी आँखें गहरी हो गईं, जैसे किसी तूफान से पहले की शांति हो।
कोर्टरूम में पूरी तरह सन्नाटा पसर गया।
"कौन था वह आदमी?" विक्रांत ने गंभीर स्वर में पूछा।
राहुल ने सिर झुकाते हुए हाथ जोड़ लिए। "मुझे नहीं पता, सर। उसने मास्क पहन रखा था।"
पूरा हॉल हलचल से भर उठा। अवनी ने तत्सवि की ओर देखा, जो स्तब्ध खड़ी थी।
कोर्टरूम में फिर से हलचल शुरू हो जाती है।
जज अपना हथौड़ा टेबल पर मारते हुए बोलते है—
"ऑर्डर! ऑर्डर!"
कोर्टरूम में अचानक सन्नाटा छा जाता है। सभी की साँसें थमी थीं, हर कोई फैसले का इंतजार कर रहा था।
जज गंभीर स्वर में कहते है, "कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद इस नतीजे पर पहुँची है कि भले ही अभियुक्त सानिध्य सिंह शेखावत नशे में था, लेकिन कानून में इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। अपराध, अपराध होता है। किसी भी महिला की गरिमा और सम्मान से खिलवाड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
कोर्टरूम में हलचल बढ़ गई। पत्रकार अपने नोट्स लिखने लगे, दर्शकों में फुसफुसाहट शुरू हो गई।
क्रमश:-
क्या होगा कोर्ट का फैसला जानने के लिये बने रहे इस कहानी के साथ
प्लीज हमे फॉलो करे , कहानी अगर पसंद आ रही है थो लाइक और कमेंट करे , 🦋
ऑर्डर! ऑर्डर!"
कोर्टरूम में अचानक सन्नाटा छा जाता है। सभी की साँसें थमी थीं, हर कोई फैसले का इंतजार कर रहा था।
जज गंभीर स्वर में कहते है, "कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद इस नतीजे पर पहुँची है कि भले ही अभियुक्त सानिध्य सिंह शेखावत नशे में था, लेकिन कानून में इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। अपराध, अपराध होता है। किसी भी महिला की गरिमा और सम्मान से खिलवाड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
कोर्टरूम में हलचल बढ़ गई। पत्रकार अपने नोट्स लिखने लगे, दर्शकों में फुसफुसाहट शुरू हो गई।
जज फाइल पर नजर दौड़ाते है और आगे बोलते है—
"लेकिन चूँकि यह भी साबित हो चुका है कि अभियुक्त को नशीला पदार्थ धोखे से किसी साजिश के तरत दिया गया था और वह अपनी मर्जी से इस अपराध में शामिल नहीं था, इसलिए अदालत एक संतुलित निर्णय ले रही है।"
तत्सवि की साँसें तेज हो गईं। उसने घबराकर अवनी की ओर देखा ।
"अदालत का निर्णय यह है कि अभियुक्त सानिध्य सिंह शेखावत को मुआवजे के रूप में पीड़िता की पूरी जिम्मेदारी उठानी होगी। इसके लिए उन्हें मिस तत्सवि पाठक से विवाह करना होगा, उन्हें अपना नाम और सम्मान देना होगा, ताकि समाज में पीड़िता को किसी भी तरह के अपमान या तिरस्कार का सामना न करना पड़े। दोनों पक्ष—अभियुक्त सानिध्य सिंह शेखावत और पीड़िता तत्सवि पाठक—को आगामी दो दिनों के भीतर विवाह की प्रक्रिया पूर्ण करनी होगी। विवाह कोर्ट की निगरानी में संपन्न होगा, और इसका विधिवत प्रमाण कोर्ट में प्रस्तुत किया जाएगा।"
हथौड़े की आवाज फिर गूंजी—
"कोर्ट स्थगित की जाती है।"
कोर्टरूम में सनसनी फैल जाती है फुसफुसाहट बढ़ जाती है।
"क्या?!" तत्सवि की चीख पूरे हॉल में गूँज गई। उसकी आँखों में अविश्वास था।
"नहीं! यह नहीं हो सकता! आप ऐसा फैसला कैसे कर सकते है मुझे मेरे ही गुनहगार के साथ इस पवित्र बंधन मे बंधने का फैसला कैसे ले सकते है " तत्सवि रोते हुए जज साहब से सवाल करती है
सानिध्य का चेहरा भावहीन था, लेकिन उसकी मुट्ठियाँ कसकर भींची गई थी।
"माई लॉर्ड," अवनी फौरन खड़ी हुई, "मेरी मुवक्किल को किसी ऐसे व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसे उसने अदालत में दोषी साबित किया है! यह कानून का अपमान होगा!"
"आप ऐसा फैसला कैसे ले सकते हैं?" तत्सवि का गला भर आया। "मेरे लिए यह शादी नहीं, एक सज़ा होगी!"
विक्रांत मेहरा शांत थे, उनके होंठों पर हल्की मुस्कान थी। "माई लॉर्ड, यह एक न्यायसंगत निर्णय है। यह शादी मिस पाठक को समाज में इज्जत और सुरक्षा देगी, और मेरे मुवक्किल को अपने कृत्य की पूरी जिम्मेदारी उठाने का अवसर भी मिलेगा।"
जज ने अपनी फाइल बंद कर दी।
तत्सवि रो रही थी लेकिन कोर्ट का आदेश अंतिम था। फैसला सुनाया जा चुका था।
तत्सवि की आँखों में आंसू छलक आए, उसका पूरा शरीर काँप रहा था। वह अवनी से कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शब्द गले में अटक गए थे।
कोर्ट का आदेश सुनाए जाने के बाद तत्सवि जैसे किसी बुरे सपने में खो गई थी। उसकी आँखों में आंसू जम चुके थे, लेकिन बह नहीं रहे थे—मानो अब रोने की भी हिम्मत नहीं बची हो।
वो चुपचाप कोर्टरूम से बाहर निकलकर वेटिंग एरिया की एक बेंच पर बैठ गई। उसके हाथ काँप रहे थे, होंठ सूख चुके थे, और साँसें अनियमित थीं। भीड़ उसके आस-पास से गुजर रही थी, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
तभी अवनी उसके पास आकर बैठी।
कुछ देर तक दोनों में खामोशी छाई रही। फिर अवनी ने धीरे से उसका हाथ थामा।
"तत्सवि..." अवनी की आवाज में ममता थी, दोस्ती थी, और एक वकील से कहीं बढ़कर इंसानियत भी।
"शादी भले ही मजबूरी में हो रही है," वह बोली, "लेकिन अब तुम्हें खुद को कमजोर नहीं, बल्कि और मजबूत साबित करना होगा। और उसके साथ रहकर तुम्हें खुद ही अपने साथ हुए अन्याय की सज़ा उसे देनी होगी। यही तुम्हारा बदला भी होगा, और जीत भी।"
तत्सवि की आँखें पहली बार पलकें झपकाती हैं। वो अवनी की तरफ देखती है—आँखों में झील जैसा सूनापन है, लेकिन कहीं भीतर एक हल्की सी लहर भी उठती है।
"मैं उसके साथ कैसे रहूँगी, अवनी? जो मेरी सबसे बड़ी तकलीफ बन गया है… उसकी पत्नी बनकर?"
अवनी की आवाज और सख्त हो जाती है।
"उसके नाम से नहीं, अपने इरादे से जियो। ये मत सोचो कि तुम कमज़ोर हो गई हो, ये सोचो कि तुम्हें अब उसी घर में खड़े होकर अपना हक़ लेना है, अपने सम्मान की लड़ाई उसी की छांव में लड़नी है। तभी तो समाज को भी जवाब मिलेगा, और उसे भी।"
तत्सवि ने अपनी आँखें बंद कीं। गालों पर दो आंसू बहे… लेकिन अब वो बेबसी के नहीं थे, अंदर पलते एक मौन प्रतिशोध के थे।
कुछ देर बाद उसने खुद को सीधा किया, आँसू पोंछे और गहरी सांस ली।
"ठीक है, अवनी। मैं ये शादी करूंगी। लेकिन इस रिश्ते में प्यार नहीं होगा, सिर्फ मेरी शर्तें होंगी। अब मैं सिर्फ पीड़िता नहीं हूँ—अब मैं अपना इंसाफ खुद बनूँगी।"
अवनी मुस्कराई।
"बस यही चाहिए था, मेरी शेरनी।"
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कोर्ट के आदेश के अनुसार — दो दिन के भीतर शादी संपन्न करनी थी।
शेखावत परिवार ने बहुत शोरशराबे से बचते हुए, शहर के एक पुराने मंदिर में एक छोटे से मंडप की व्यवस्था की थी।
मंदिर के आंगन में गुलाब, मोगरे और बेलपत्रों की सौंधी गंध बसी हुई थी, लेकिन वहां कोई त्योहार जैसी रौनक नहीं थी… बस एक चुप्पी थी—धीमी, भारी, और गूंजती हुई।
चारों तरफ कुछ गिने-चुने लोग मौजूद थे—जज साहब, कोर्ट रजिस्ट्रार, वकील अवनी, विक्रांत, और शेखावत परिवार के सदस्य।
सबके चेहरों पर गंभीरता थी—ना कोई उत्साह, ना कोई आशीर्वाद की मुस्कान।
तत्सवि पीले रंग की एक बेहद साधारण साड़ी में थी। चेहरे पर न तो कोई श्रृंगार था और न ही कोई रंग—सिर्फ एक छोटी सी बिंदी और थके हुए, वीरान से आँखे।
उसके हाथों की चूड़ियाँ भी इस बार कोई खनक नहीं कर रहीं थीं।
सानिध्य सफेद कुर्ता-पायजामा और हल्की क्रीम जैकेट में था। बाल पीछे सलीके से संवरे हुए, चेहरे पर एक अजीब सी स्याही थी—जैसे कई रातें नींद से खाली बीती हों।
दोनों धीरे-धीरे मंडप की ओर बढ़ते हैं… एक ही दिशा में, लेकिन बिना एक-दूसरे को देखे।
पंडित मंत्रोच्चार शुरू करते हैं।
"अब वर-वधू एक-दूसरे के गले में वरमाला डालें।"
दोनों ने जैसे किसी स्क्रिप्ट का पालन करते हुए माला एक-दूसरे के गले में डाली—धीरे, थमे हुए हाथों से।
तत्सवि की उंगलियां कांपी थीं, लेकिन उसने खुद को संयमित रखा।
फेरे शुरू हुए।
हर फेरा… एक वचन था, लेकिन उनके होठों से न कोई संकल्प निकला, न कोई वादा।
बस एक अजीब सी चुप्पी उनके कदमों के बीच मौजूद थी।
चौथे फेरे के समय, पंडित ने जब कहा—
"पत्नी, पति को अपना धर्म मानकर उसका साथ दे,"
तत्सवि के कदम एक पल को रुकते हैं। उसकी आँखें अनायास भर आईं।
लेकिन उसने खुद को कड़ा किया… और चल पड़ी।
"अब वर, वधू की मांग में सिंदूर भरें।"
पंडित की आवाज मानो फिजाओं को चीरती है।
सानिध्य सिंदुर उठाता है और एक गहरी नजर तत्सवि को देखता है फिर उसने चुपचाप सिंदूर भर दिया—थोड़ा हाथ कांपा… कुछ सिंदूर उसकी नाक पर गिरा, लेकिन उसने पोंछा नहीं।
फिर पंडित ने मंगलसूत्र आगे बढ़ाया।
इस बार उसकी उंगलियाँ स्थिर थीं, लेकिन उसकी आँखों में नमी थी।
उसने मंगलसूत्र उसकी गर्दन में बांधते हुए सिर झुकाया
"अब आप पति-पत्नी घोषित किए जाते हैं।"
जज ने भारी आवाज में घोषणा की।
कोई तालियाँ नहीं बजीं।
ना कोई फूल उड़े…
ना किसी ने "बधाई हो" कहा।
बस हवा में एक भारी ख़ामोशी थी—जैसे सब कुछ थम गया हो।
अवनी एक कोने में खड़ी थी, उसकी आँखें भर आईं थीं… लेकिन चेहरा सख्त था।
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शादी की सभी रस्में पूरी हो चुकी थीं।
मंदिर के एक कोने में, लकड़ी की चौकी पर बैठी तत्सवि चुपचाप सामने देख रही थी। उसकी आंखें सूखी थीं, लेकिन उनमें एक वीरान नदी जैसा बहाव था—जो बाहर नहीं आता, बस भीतर ही भीतर बहता रहता है।
तभी धीरे-धीरे जज साहब उसके पास आए।
सफेद बालों में उम्र की गंभीरता और आँखों में एक नर्म चमक थी।
उन्होंने बिना कुछ कहे, एक क्षण तक उसे देखा—जैसे उसकी चुप्पी को समझने की कोशिश कर रहे हों।
फिर वो उसके पास बैठ गए।
"बेटा," उन्होंने धीमे और भारी स्वर में कहा,
"मुझे पता है… इस वक्त तुम्हें मेरा फैसला नाइंसाफ़ी लग रहा होगा।"
तत्सवि ने धीरे से उनकी ओर देखा—उसकी पलकें भारी थीं, पर उसमें कोई सवाल नहीं था… बस थकान थी।
"लेकिन बेटा," उन्होंने आगे कहा,
"यह शादी कोई सज़ा नहीं है… यह एक मौका है।
खुद को फिर से खड़ा करने का।
उन सवालों का जवाब देने का… जो इस समाज ने हमेशा पीड़िता से पूछे हैं।"
तत्सवि की आँखें अब नमी से चमक रही थीं।
"मैं जानता हूँ—तुम्हारा भरोसा टूटा है, तुम्हारा दिल टूटा है… लेकिन तुम्हारी हिम्मत अभी भी जिंदा है।
और वही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है।"
एक पल के लिए, जज साहब ने उसकी ओर झुककर उसके सिर पर अपना हाथ रखा।
उसका स्पर्श सख्त नहीं था, न ही औपचारिक—वो एक पिता के जैसे स्नेहिल और संरक्षण भरा था।
"आज ये रिश्ता तुम्हारे लिए मजबूरी हो सकता है, लेकिन कल यही मजबूरी तुम्हारी सबसे बड़ी जीत बन सकती है…
अगर तुम खुद को टूटने मत दो।"
तत्सवि की आँखों से आखिरकार आँसू गिर पड़े।
"तुम कमज़ोर नहीं हो, बेटा…
तुम मिसाल हो।
और एक दिन, तुम खुद को इस दिन के लिए धन्यवाद दोगी—क्योंकि तुम खुद को कभी हारने नहीं दोगी।"
तत्सवि ने धीरे से सिर झुकाया… जज साहब के हाथ पर एक आँसू गिरा।
क्रमश:-
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