Unbreakable Obsession प्यार? अविनाश मल्होत्रा के लिए ये सिर्फ़ एक मज़ाक था। Cold-hearted और ruthless, वो किसी के लिए नहीं रुकता—फिर चाहे वो खुद भी क्यों ना हो। फिर उसकी ज़िंदगी में आई सिया वर्मा। बेपरवाह, ज़िद्दी और अपनी शर्तों पर जीने... Unbreakable Obsession प्यार? अविनाश मल्होत्रा के लिए ये सिर्फ़ एक मज़ाक था। Cold-hearted और ruthless, वो किसी के लिए नहीं रुकता—फिर चाहे वो खुद भी क्यों ना हो। फिर उसकी ज़िंदगी में आई सिया वर्मा। बेपरवाह, ज़िद्दी और अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की। लेकिन अविनाश को देखकर कुछ बदलने लगा—एक अजीब सा अट्रैक्शन, जो धीरे-धीरे जुनून में बदल गया। पर जितना सिया करीब आई, अविनाश उतना ही दूर भागा। क्या उसकी cold nature ही सिया से दूरी की वजह थी? या फिर वो अपने अतीत के किसी डर से भाग रहा था? जब जुनून हद से गुज़र जाए, तो मोहब्बत बचती है या बर्बादी? पढ़िए—"Unbreakable Obsession"
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सिया वर्मा, उन्नीस वर्षीय, पाँच फुट तीन इंच लंबी, गोरी त्वचा और घने, काले बालों वाली युवती थी, जिसे बारिश पसंद थी, पर इतनी नहीं कि वह अपने पहले दिन ही ऑफिस में भीग कर पहुँचे। सुबह का मौसम कुछ अजीब सा था—हल्की ठंडी हवा, आसमान में घने बादल और वह सन्नाटा जो तूफ़ान से पहले होता है। उसने अपने छोटे से फ्लैट की खिड़की से बाहर झाँका और धीरे-धीरे गिरती बारिश की बूँदों को देखकर गहरी साँस ली।
"ओके, सिया... तू लेट नहीं हो सकती! तेरा पहला दिन है, किसी भी हालत में तुझे परफेक्ट दिखना है!"
वह जल्दी से तैयार हुई—सफेद चिकनकारी का कुर्ता, हल्की सी सिल्वर झुमकियाँ और सीधे किए हुए बाल। शीशे में खुद को देखकर उसने कहा,
"परफेक्ट!"
ऑटो पकड़ने के लिए जैसे ही वह बिल्डिंग से बाहर निकली, बारिश तेज होने लगी। उसने बैग से छाता निकाला, पर फिर वापस रख दिया।
"थोड़ी बारिश से कोई melt नहीं हो जाता!" उसने खुद से कहा और तेज़ कदमों से सड़क की ओर बढ़ी।
रास्ता गीला हो चुका था। हर तरफ़ गाड़ियों का शोर, हॉर्न की आवाज़ें और लोगों की भागदौड़। वह ऑफिस के पास वाले फुटपाथ पर पहुँची ही थी कि अचानक एक काली मर्सिडीज़ तेज़ी से आई और उसके बिल्कुल पास से गुज़रते हुए कीचड़ का एक बड़ा सा छींटा उड़ाकर चली गई।
"अरे!!!"
सिया एकदम पीछे हटी और अपने कपड़ों को देखा। सफ़ेद कुर्ते पर भूरे रंग के कीचड़ के निशान फैल चुके थे। उसका मुँह गुस्से से लाल हो गया।
"ये क्या बदतमीज़ी थी! कोई देखकर नहीं चला सकता क्या?"
उसने गुस्से में उस कार की ओर देखा, जो थोड़ी दूर जाकर रुक चुकी थी। दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला।
लंबी कद-काठी, काले सूट में परफेक्ट फिट, गहरे भूरे रंग की आँखें, छह फुट दो इंच लंबा और चेहरे पर कोई भाव नहीं। ऐसा लग रहा था मानो वह किसी भी चीज़ की परवाह नहीं करता—ना इस बारिश की, ना सड़क पर खड़े लोगों की, और ना ही उस लड़की की, जिसके कपड़े उसकी गाड़ी ने खराब कर दिए थे।
सिया ने गुस्से से पैर पटका और सीधे उस आदमी के सामने जाकर खड़ी हो गई।
"Excuse me! आपकी गाड़ी कीचड़ से भरी हुई है या तमीज़ से भी खाली है?"
वह आदमी उसकी ओर बिना किसी रुचि के देखता रहा। उसकी निगाहें ठंडी थीं, और चेहरे पर नफ़रत या गुस्से का एक भी भाव नहीं था। फिर बहुत शांत आवाज़ में उसने कहा,
"ये सड़क तुम्हारी प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं है। अगर आपको परेशानी है, तो देखकर चलना चाहिए था।"
सिया की आँखें चौड़ी हो गईं। वह उसे देखते हुए गुस्से में बोली,
"वाह! मतलब आपकी गाड़ी लोगों को गन्दा कर सकती है, लेकिन आपको फ़र्क़ नहीं पड़ता?"
"बिल्कुल नहीं।" उसने उतनी ही बेरुख़ी से जवाब दिया। फिर अपनी घड़ी पर एक नज़र डाली और बिना कुछ कहे ऑफिस की ओर बढ़ने लगा।
सिया का खून खौल उठा। वह इतनी हैरान थी कि दो सेकंड तक कुछ बोल ही नहीं पाई। फिर गुस्से से उसका नाम पूछते हुए चिल्लाई,
"नाम तो बता दीजिए, ताकि मैं अपनी बद्दुआएँ सही आदमी को दे सकूँ!"
वह बिना रुके बस एक शब्द कहकर आगे बढ़ गया,
"अवनीश।"
सिया वहीं खड़ी रह गई।
"ये बंदा तो पूरा बर्फ का गोला है! न गुस्सा, न शर्मिंदगी, न माफ़ी… ये तो अकड़ की चलती-फिरती दुकान है!"
इतना बोलकर वह भी ऑटो पकड़कर चली गई।
सिया ऑफिस पहुँची, लेकिन अब उसका दिमाग उस बेरुख़ आदमी में ही उलझा हुआ था। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि कोई इतना ठंडा और अकड़ू कैसे हो सकता है।
वह अपनी दोस्त मिष्टी को ढूँढने लगी। ऑफिस में सारे लोग उसे अजीब नज़रों से देख रहे थे, पर सिया को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था; वह अपने दोस्त को ढूँढने में व्यस्त थी, और अवनीश को कोने में।
जैसे ही वह अपनी दोस्त मिष्टी की टेबल पर पहुँची, मिष्टी ने उसे देखकर चौंकते हुए कहा,
"यार, तू पहले ही दिन जंग लड़ के आई है क्या? ये तेरे कपड़ों का क्या हाल बना रखा है?"
सिया ने गुस्से से बैग पटका और कुर्सी पर धप्प से बैठ गई और मिष्टी को देखते हुए बोली,
"मत पूछ! एक आदमी मिला... पूरा अहंकार का पुतला! ना सॉरी बोलता है, ना कुछ... और ऊपर से ऐसा ऐटिट्यूड कि जैसे पूरी दुनिया उसके पैरों में पड़ी हो!"
मिष्टी ने हँसते हुए सिर हिलाया।
"अच्छा, ऐसा कौन था? तुमने कुछ पूछा उससे? नाम पता कुछ? क्योंकि मुझे पता है तुम बिना पूछे तो रह नहीं सकती।"
"हाँ, और उसने बस एक शब्द में जवाब दिया—अवनीश!"
मिष्टी की हँसी वहीं रुक गई। उसकी आँखें हल्का सा चौड़ी हो गईं।
"ओ माय गॉड! तू जिस इंसान से भिड़ी है, वो इस कंपनी का मालिक है—अवनीश मल्होत्रा!"
सिया का मुँह खुला का खुला रह गया।
"What the— मतलब मैं जिसको गालियाँ दे रही थी, वो मेरा बॉस निकला?"
मिष्टी ने हँसते हुए सिर हिलाया।
सिया ने गहरी साँस ली।
"पर ज़रूरी तो नहीं कि यह इस ऑफिस के बॉस अवनीश मल्होत्रा ही हों। दुनिया में सिर्फ़ उनका ही नाम थोड़ी ना है, बहुत सारे लोगों का ऐसा नाम होता है।"
"कोई नहीं... अगर वो राजा है, तो मैं बागी हूँ! अब देखना, कौन किसको झुकाता है!" वैसे भी गलती मेरी नहीं थी, अगर यह बॉस निकला, तो पक्का बता रही हूँ, इनको मैं अच्छे से मैनर्स सिखा दूँगी।
वैसे मिष्टी एक बात बताऊँ, "बंदा जितना गुस्से वाला ऐटिट्यूड में था, उतना ही ज़्यादा हैंडसम था।"
मिष्टी उसकी बात सुनकर बोली, "चुप कर पागल लड़की! तुझे पता भी है तू किसके बारे में क्या बात कर रही है? लगता है तुझे अच्छे से पता नहीं है सर के बारे में, बहुत ही गुस्से वाले और खतरनाक हैं।"
मिष्टी की बात सुनकर सिया बोली, "गुस्सा तो देख लिया, अब देखना है खतरनाक कितने हैं।"
वैसे मिस्टी एक बात बताऊँ, “बांदा जितना गुस्से वाला एटीट्यूड में था, उतना ही ज़्यादा हॉट और हैंडसम था।”
मिस्टी उसकी बात सुनकर बोली, “चुप कर, पागल लड़की! तुझे पता भी है तू किसके बारे में क्या बात कर रही है? लगता है तुझे अच्छे से पता नहीं है सर के बारे में। बहुत ही गुस्से वाले और खतरनाक हैं।”
मिस्टी की बात सुनकर सिया बोली, “गुस्सा तो देख लिया, अब देखना है खतरनाक कितने हैं।”
सिया ऑफिस में बैठी, मिस्टी की बातें सुनकर भी कुछ समझने की कोशिश कर रही थी। “गुस्से वाला और खतरनाक?” उसने मन ही मन दोहराया।
“अरे, तू मज़ाक समझ रही है न?” मिस्टी ने उसकी आँखों में झाँका। “अविनाश मल्होत्रा कोई आम आदमी नहीं है। उसके बारे में जो भी सुना है, वो सब सच्चा है! वो दिल से बिल्कुल हार्टलेस है। उसे लोगों की परवाह नहीं, और उसकी दुनिया में बस काम और सक्सेस के अलावा कुछ मायने नहीं रखता!”
सिया ने हँसते हुए अपने कपड़ों से सूख चुके कीचड़ को झाड़ा। “अच्छा? और ये बात उसने खुद आकर तुझसे कही थी क्या?”
“सिया, मैं सीरियस हूँ! उसने अपनी ज़िंदगी में किसी को भी खुद के करीब नहीं आने दिया। ना दोस्त, ना गर्लफ्रेंड, ना रिश्ते… कुछ भी नहीं! और जो उसके रास्ते में आता है, उसे वो बिना सोचे समझे हटा देता है।”
सिया के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई। “Interesting… अब मज़ा आएगा!”
“मतलब?”
“मतलब ये कि, मैंने तो ठान लिया था कि इस ऑफिस में सबसे हटकर कुछ करना है, और देखो… पहले ही दिन कंपनी के सबसे बड़े अकड़ू इंसान से पंगा ले लिया। चलो, अब देखते हैं कि किसकी अकड़ ज़्यादा चलती है!”
“पागल है तू,” मिस्टी ने माथा पकड़ा। “मैं बोल रही हूँ, उससे दूर रह! वरना बहुत पछताएगी!”
सिया ने मुस्कुराकर कहा, “पछताने के लिए तो पहले कोई गलती करनी पड़ती है, और मैं गलती नहीं करती… मैं सिर्फ इंटरेस्टिंग डिसीज़न लेती हूँ!”
दूसरी तरफ़, अविनाश के केबिन में, अविनाश अपनी कुर्सी पर बैठा लैपटॉप स्क्रीन पर देख रहा था, लेकिन उसका दिमाग कहीं और था। उसकी आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं, मगर सोच उसके कंट्रोल में नहीं थी। चेहरे पर इमोशन्स का नामोनिशान नहीं था—बस एक ठंडा, खौफनाक सन्नाटा।
तभी एक झल्लाई हुई आवाज़ उसके कानों में पड़ी—
“Excuse me! आपकी गाड़ी कीचड़ से भरी हुई है या तमीज़ से भी खाली है?”
अविनाश ने धीरे-धीरे नज़रें उठाईं। सामने खड़ी लड़की को एक सेकंड देखा, फिर बिना कोई एक्सप्रेशन बदले, इमोशनलेस आवाज़ में बस एक शब्द बोला—
“Idiot.”
इसके बाद उसने बिना किसी इंटरेस्ट के फ़ोन उठाया, नंबर डायल किया और बेहद ठंडे लहज़े में पूछा,
“मैंने जिसके बारे में बोला था, क्या वो आ चुकी है?”
दूसरी तरफ़ से तुरंत जवाब आया, “जी सर, वो आ चुकी है।”
अविनाश के जबड़े बिंच गए, उसकी पकड़ फ़ोन पर और मज़बूत हो गई। आँखों में गुस्से की एक ठंडी लपट सी जल उठी। उसने बेहद कोल्ड टोन में कहा,
“तो फिर अभी तक उसे मेरे पास भेजा क्यों नहीं?”
दूसरी तरफ़ से किसी की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, “स…सर, वो…वो—”
अविनाश ने उसकी अधूरी बात सुनते ही गुस्से में अपनी टेबल पर मुक्का मारा। चेहरा और ज़्यादा खतरनाक हो चुका था।
“मैंने तुम्हें जॉब पर इसलिए नहीं रखा कि तुम बहाने बनाओ और मेरी ऑर्डर को इग्नोर करो। मुझे तुम्हारी एक्सक्यूज़ नहीं सुननी, समझे? भेजो उसे, अभी के अभी!”
अविनाश की आवाज़ इतनी ठंडी थी कि उधर खड़ा आदमी सच में काँप उठा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, हाथ पसीने से भीग गए। अविनाश का गुस्सा ऐसा था, जिससे कोई बच नहीं सकता था—एक ठंडा, मगर बेहद खतरनाक गुस्सा।
उसने फ़ोन काट दिया और वापस अपने काम में लग गया। उसकी उंगलियाँ लैपटॉप के कीबोर्ड पर चल रही थीं, लेकिन दिमाग अब भी गुस्से की गर्मी में उबल रहा था।
तभी अचानक उसके केबिन का दरवाज़ा ‘क्लिक’ की आवाज़ के साथ लॉक हुआ।
अविनाश की नज़र अब भी स्क्रीन पर ही थी, उसने बिना ऊपर देखे ठंडी आवाज़ में कहा, “अंदर आ जाओ।”
दरवाज़ा खुला, और कोई अंदर आया। उसके कपड़ों पर अब भी कीचड़ के दाग लगे थे, और उसने एक हल्की मुस्कान के साथ कुछ कहने के लिए मुँह खोला, मगर जैसे ही उसकी नज़र अविनाश के चेहरे पर पड़ी, वो वहीं ठहर गई।
वो कोई और नहीं, सिया थी।
वो पलभर के लिए अवाक रह गई। उसके होंठों से कोई शब्द नहीं निकला, बस उसकी आँखें अविनाश के चेहरे पर अटक गईं।
“ये तो बहुत हॉट है यार… पहले मैंने ध्यान क्यों नहीं दिया?” उसने खुद से बुदबुदाया, उसकी आँखों में एक अलग सी शरारत थी।
वो अविनाश को देखते हुए ख्यालों में डूब गई। “मन कर रहा है अभी जाकर कस के गले लगा लूँ… इतनी किलर पर्सनालिटी… डैम!” सिया ने अपनी साँस अंदर खींची और खुद को काबू में करने की कोशिश की।
तभी अचानक अविनाश की नज़र उसके चेहरे पर पड़ी। उसकी आँखें बड़ी हो गईं, जैसे किसी अनजान चीज़ को देख लिया हो।
अविनाश की नज़रें सिया पर टिकी रहीं। कुछ पल के लिए केबिन में अजीब सा सन्नाटा छा गया। उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी, जैसे वो सिया की मौजूदगी से खुश नहीं था। उसके जबड़े बिंच गए, मगर उसने खुद को काबू में रखते हुए बस एक शब्द कहा—
“You…?”
सिया ने उसकी ठंडी आवाज़ सुनी, मगर उसकी परवाह किए बिना मुस्कुराते हुए उसके पास आई और हल्की सी झुककर बोली,
“Woww… आप सिर्फ़ हॉट ही नहीं, बल्कि इंटेलिजेंट भी हैं?”
उसके लहज़े में एक अजीब सी शरारत थी, जो अविनाश को और ज़्यादा चिढ़ा रही थी। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं, मुट्ठियाँ कसने लगीं। उसने बेहद ठंडे मगर गुस्से से भरे लहज़े में कहा—
“और तुम सिर्फ़ बदतमीज़ ही नहीं, बल्कि बत्त दिमाग भी हो!”
सिया ने उसकी भड़कती हुई आँखों में झाँकते हुए एक तरफ़ अपना सिर हल्का सा झुकाया, फिर बेहद क़रीब आकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली,
“बत्त दिमाग? इस बात का क्या मतलब है, मिस्टर अविनाश? थोड़ी सी तारीफ़ क्या कर दी, आप तो अपने आपको किसी महाराजा से कम समझ ही नहीं रहे!”
इतना कहकर उसने एक नकली हैरानी भरी मुस्कान दी और फिर बेहद कूल अंदाज़ में जाकर सोफ़े पर बैठ गई। उसके बैठने का तरीका ऐसा था जैसे वो किसी फ़ाइव-स्टार होटल के लाउंज में रिलैक्स कर रही हो, न कि अविनाश के केबिन में, जहाँ लोग उसकी इजाज़त के बिना साँस भी नहीं लेते थे।
अविनाश ने उसकी हरकतें देखीं, और उसके अंदर गुस्से की एक अलग ही आग भड़क उठी। उसकी मुट्ठियाँ इतनी कस गईं कि उंगलियों की नसें उभर आईं। उसकी नज़रें अब बेहद खतरनाक हो चुकी थीं।
वो धीरे-धीरे आगे बढ़ा, उसकी मौजूदगी ही इतनी भारी थी कि अगर कोई और होता तो अब तक काँप चुका होता। मगर सिया? वो तो अब भी आराम से बैठी थी, जैसे उसे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता।
अविनाश ने गहरी साँस ली, और फिर बेहद सख्त आवाज़ में बोला—
“Out. निकल जाओ यहाँ से!”
सिया ने एक भौं उचका कर उसकी तरफ़ देखा, मगर इस बार उसकी मुस्कान गायब थी।
अविनाश ने और ज़्यादा कड़े लहज़े में कहा, “तुम्हें बुलाया किसने यहाँ? और तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि मेरे केबिन में बिन बुलाए घुसने की?”
इस बार उसकी आवाज़ में सिर्फ़ गुस्सा ही नहीं था, बल्कि एक खतरनाक चेतावनी भी थी। ऐसा लगा जैसे अगर सिया ने उसकी बात को हल्के में लिया, तो अंजाम कुछ और ही होगा।
सिया ने एक भौं उचका कर उसकी ओर देखा, मगर इस बार उसकी मुस्कान गायब थी। उसकी आँखों में हल्की सी शरारत अब सख्त नज़रों में बदल चुकी थी।
अविनाश ने और भी कड़े लहज़े में कहा, "तुम्हें बुलाया किसने यहां? और तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि मेरे केबिन में बिन बुलाए घुसने की?"
इस बार उसकी आवाज़ में सिर्फ़ गुस्सा ही नहीं था, बल्कि एक खतरनाक चेतावनी भी थी। ऐसा लगा जैसे अगर सिया ने उसकी बात को हल्के में लिया, तो अंजाम कुछ और ही होगा।
लेकिन सिया भी कोई डरने वालों में से नहीं थी। उसने नज़रें हटाए बिना, ठंडी आवाज़ में कहा, "आपने ही तो बुलाया है! क्या मेरी मौसी का घर समझ रखा है जो बिना बुलाए टहलती हुई आ जाऊँगी?"
अविनाश की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उसकी पेशानी पर बल पड़ गए और वह तमतमाते हुए तेज़ी से आगे बढ़ा। गुस्से में उसने टेबल पर जोर से हाथ मारा, जिससे कांच के पेपरवेट में हल्की दरार आ गई। उसकी नज़रों में अब सिर्फ़ गुस्सा था, एक ऐसा गुस्सा जिसे किसी ने कभी इतनी करीब से नहीं देखा था। वह सिया के और करीब आकर, दबे हुए मगर खतरनाक लहज़े में बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस लहज़े में बात करने की? आज तक किसी ने भी मुझसे इस तरह बात करने की जुर्रत नहीं की!"
सिया भी कम ढीठ नहीं थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था, जैसे उसे अविनाश का गुस्सा देखकर मज़ा आ रहा हो। वह धीरे-से सोफे से उठी, उसकी ओर एक कदम बढ़ाया और बेहद ठहराव से बोली, "अच्छा? तो अब कोई तो है जिसने आपसे इस तरह बात करने की हिम्मत दिखाई है... कैसा लग रहा है, मिस्टर अविनाश?"
अविनाश की मुट्ठियाँ गुस्से से भींच गईं। उसकी आँखों में एक अजीब सी सख्ती थी, जैसे अगर उसने खुद को कंट्रोल न किया तो सिया के इस बर्ताव का बहुत बुरा अंजाम हो सकता था। लेकिन सिया तो सिया थी, एकदम बेपरवाह। उसने उसकी आँखों में देखते हुए फिर से कहा— "इतने गुस्से में क्यों देख रहे हो आप? एक तो वैसे ही आप इतने hot हो, ऊपर से ये गुस्सा… कहीं जान ही न ले लो मेरी!"
अविनाश का पारा अब सातवें आसमान पर था। बिना कोई और बहस किए, उसने सिया का हाथ कसकर पकड़ा और दरवाजे की ओर घसीटते हुए ले गया।
"Get out, सिया!" उसने दाँत भींचते हुए कहा, और अगली ही सेकंड उसे दरवाजे के बाहर धक्का दे दिया। "आज के बाद मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना, वरना मैं भूल जाऊँगा कि तुम एक लड़की भी हो!"
इतना कहकर उसने दरवाजा जोर से बंद कर दिया और लॉक कर दिया।
सिया का चेहरा एकदम उतर गया। उसने एक गहरी साँस ली और गुस्से से ऊपर देखा, जैसे किसी से शिकायत कर रही हो।
"हे भगवान, क्या प्रॉब्लम है इनकी? एक तो पहली बार किसी को पसंद किया और वो भी इतना hot और handsome, लेकिन फायदा? Zero! एक नंबर का अकड़ू और खडूस निकला! लेकिन... मैं भी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूँ!"
मन ही मन खुद को मोटिवेट करते हुए सिया वहाँ से जाने लगी। लेकिन तभी अचानक वह किसी से टकरा गई। सामने एक 55-56 साल के सज्जन खड़े थे, जो हल्का सा लड़खड़ा गए और माथे पर हाथ रखते हुए बोले—
"Ouch!"
सिया झट से बोली, "इतनी जोर से नहीं लगी जितनी अभी दिल पर लगी है!"
सामने वाले व्यक्ति ने उसे हैरानी से देखा। "दिल पर लगी?"
सिया ने हल्की मुस्कान के साथ उनके कंधे पर हाथ रखा और एक ड्रामेटिक अंदाज़ में बोली, "अब आपको क्या बताऊँ, अंकल! लेकिन कोई बात नहीं, अब जब आप मिल ही गए हैं, तो आपको मैं अपनी दुख भरी कहानी बताती हूँ, चाहे क्यों न आप मेरी चुगली उस खडूस से कर दें? वैसे भी उसे मुझे दोबारा नौकरी पर तो रखना नहीं है, को पता है! यहां का CEO एक नंबर का खडूस है और... बस उसे देखते ही मुझे उससे प्यार हो गया!"
सामने वाला आदमी अब पूरी तरह हैरान हो चुका था।
सिया ने एक लंबी साँस भरी और फिर से अपनी कहानी सुनाने लगी— "उस खडूस ने मुझे धक्के मारकर बाहर निकाल दिया! Seriously, इतनी खूबसूरत लड़की को कोई ऐसे बाहर निकालता है क्या? आप ही बताइए, मुझमें क्या कमी है?"
अब सामने वाला आदमी बस खड़ा होकर उसे देखे जा रहा था।
दूसरी तरफ...
अविनाश अपने केबिन में बेचैनी से इधर-उधर टहल रहा था, गुस्से को काबू करने की पूरी कोशिश कर रहा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि कोई लड़की पहली मुलाकात में उसके साथ इस तरह से बात कैसे कर सकती है? ऊपर से उसके गुस्से का भी उस पर कोई असर नहीं हुआ था। यह सोच-सोचकर उसका मूड और खराब होता जा रहा था।
वह अभी भी अपनी फाइल्स को देखने का नाटक कर रहा था, लेकिन दिमाग पूरी तरह से सिया की बेबाकी पर अटका हुआ था। तभी अचानक दरवाज़े पर नॉक होने की आवाज़ आई।
अविनाश के चेहरे की कठोरता और बढ़ गई। उसके माथे पर हल्की शिकन पड़ गई क्योंकि उसे लगा कि फिर से वही लड़की लौट आई है!
गुस्से से भरा, वह तेज़ी से दरवाजे की ओर बढ़ा और एक झटके में दरवाजा खोल दिया—
पर अगले ही पल उसके चेहरे के रंग उड़ गए।
सामने खड़ी शख्सियत को देखकर उसका रुखा एक्सप्रेशन एकदम बदल गया।
"डैड? आप यहां?"
अविनाश की आवाज़ में हल्का सा आश्चर्य झलक रहा था।
उसके डैड, जो हमेशा बिज़नेस ट्रिप्स में बिज़ी रहते थे, अचानक उसके केबिन में? यह काफी अनएक्सपेक्टेड था।
उधर, उसके डैड ने हल्की सी स्माइल के साथ कहा, "क्यों? मैं यहां नहीं आ सकता?"
अविनाश ने तुरंत खुद को संभाला और सिर हल्का झुका लिया।
"ऐसी बात नहीं है, डैड। मैं तो बस पूछ रहा था… आप तो कभी आते नहीं, इसलिए... आज अचानक?"
उसके डैड अंदर आए और सीधे सोफे पर बैठ गए। उन्होंने अपने हाथों को आपस में जोड़ा और एक सीरियस एक्सप्रेशन के साथ बोले—
"क्योंकि मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी है... और एक काम भी है।"
अविनाश ने अपने डैड को गौर से देखा, फिर बेहद नॉर्मल अंदाज़ में बोला—
"कैसा काम और कैसी बात?"
उसके डैड ने हल्की साँस ली और बोले—
"Actually, मेरा एक बहुत पुराना फ्रेंड है... जिसके बारे में तुम नहीं जानते।"
अविनाश ने हल्की भौंहें चढ़ाते हुए पूछा, "तो?"
अविनाश की निगाहें अपने पिता पर टिक गईं। उनके चेहरे पर हल्की सी गंभीरता थी, जो आमतौर पर केवल व्यावसायिक बैठकों में दिखाई देती थी।
"असल में," उसके पिता ने गहरी साँस ली, "मेरा एक बहुत पुराना दोस्त है... जिसके बारे में तुम नहीं जानते।"
अविनाश ने हल्की सी भौंहें चढ़ाते हुए पूछा, "तो?"
उसके पिता ने हल्की मुस्कान के साथ आगे कहा, "वह चाहता है कि उसकी बेटी व्यापार में शामिल हो। उसके पास प्रतिभा है, लेकिन अनुभव नहीं। और इसीलिए, उसने मुझसे अनुरोध किया है कि हमारी कंपनी उसे प्रशिक्षित करे।"
अविनाश की मांसपेशियाँ तनाव में आ गईं। उसने सीधा जवाब दिया, "मुझे इसमें कोई रुचि नहीं है।"
उसके पिता की हल्की मुस्कान तुरंत गायब हो गई। अब उनका भाव ठंडा और आज्ञाकारी था। "यह तुम्हारी रुचि के बारे में नहीं है, अविनाश। यह जिम्मेदारी के बारे में है। तुम इस कंपनी के सीईओ हो, और तुम्हें यह करना ही होगा।"
अविनाश ने चिढ़कर जवाब दिया, "पिताजी, मेरे पास किसी बच्चे की देखभाल करने का समय नहीं है! अगर किसी को प्रशिक्षण चाहिए, तो मानव संसाधन विभाग को कहिए। मैं यह सब नहीं कर सकता!"
लेकिन उसके पिता ने अपना हाथ हवा में उठा दिया, जैसे उनके हर तर्क को वहीं रोक रहे हों। "मानव संसाधन नहीं, तुम करोगे। यह अंतिम निर्णय है।"
अविनाश का खून खौल गया। वह जानता था कि उसके पिता की बात पत्थर की लकीर होती है। लेकिन फिर भी, उन्हें मनाने की कोशिश करते हुए उसने ठंडी आवाज़ में कहा, "पिताजी, कृपया। मुझे पहले से ही बहुत काम है—"
"अविनाश!" उसके पिता का स्वर अब तेज था। "मुझे बहाने नहीं चाहिए। तुम यह काम करोगे। अगर तुम्हें सीईओ की कुर्सी पर बैठना है, तो यह तुम्हारी जिम्मेदारी है!"
उसका जबड़ा कस गया। उसने गहरी साँस ली और अपनी कुंठा को नियंत्रित करने की कोशिश की। आखिरकार, कुछ सेकंड की चुप्पी के बाद उसने मजबूर होकर कहा, "...ठीक है।"
उसके पिता के चेहरे पर हल्की सी संतुष्टि आई। "अच्छा। अब मैं उसे अंदर बुलाता हूँ।"
अविनाश ने झुंझलाकर अपने मंदिरों को दबाया। अब कौन सी मुसीबत आने वाली है?
पिता ने दरवाजे की ओर देखा और शांत लेकिन आज्ञाकारी आवाज़ में कहा, "तुम अब अंदर आ सकती हो।"
अविनाश ने ऊबते हुए सिर घुमाया, लेकिन अगले ही पल...
उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
उसका दिमाग एक सेकंड के लिए ठिठक गया।
दरवाजे पर वही लड़की खड़ी थी, जिसने कुछ मिनट पहले उसे परेशान किया था।
सिया।
वह उसी कष्टप्रद आत्मविश्वास के साथ अंदर आई, लेकिन इस बार उसके चेहरे पर एक नई चमक थी। एक विजयी मुस्कान, जैसे उसे पहले से पता था कि वह यहीं आने वाली है।
"नमस्ते फिर से, श्री अविनाश," उसने एक चंचल इशारे के साथ कहा।
अविनाश का खून खौल गया। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं। "तुम?!"
सिया ने सिर हल्का टेढ़ा किया, जैसे कोई मासूम भाव देने की कोशिश कर रही हो। "हैरान? मुझे पता है, मुझे पता है… बड़ी दुनिया है, लेकिन मिलना फिर भी ज़रूरी था!"
"यह क्या मज़ाक है?!" अविनाश ने गुस्से से अपने पिता की ओर देखा। "पिताजी, यह वही लड़की है जिसे मैंने अभी-अभी अपने केबिन से बाहर निकाला था!"
पिता ने एक नज़र सिया पर डाली, फिर पूरी गंभीरता से बोले, "मुझे पता है।"
अविनाश का सिर चकरा गया। "तो फिर वह यहाँ क्यों है?!"
उसके पिता ने ठंडी आवाज़ में कहा, "क्योंकि यही वह लड़की है, जिसे तुम्हें प्रशिक्षित करना है।"
अविनाश की आँखें गुस्से से जल उठीं। यह लड़की? सच में? उसने अभी-अभी इसे अपने केबिन से बाहर निकाला था, और अब यह फिर से उसके सामने खड़ी थी… उसी चिढ़ाने वाली मुस्कान के साथ, जैसे उसने कोई बड़ी जीत हासिल कर ली हो।
"ऐसा नहीं होगा," उसने ठंडी, लेकिन सख्त आवाज़ में कहा। "पिताजी, मैं इसे अपने आस-पास भी नहीं देखना चाहता।"
उसके पिता ने एक लंबी साँस ली, लेकिन उनकी आँखों में वही सख्ती बरकरार थी। "तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है, अविनाश। मैंने फैसला कर लिया है। सिया तुम्हारे अधीन प्रशिक्षण करेगी, और तुम इसे स्वयं मार्गदर्शन करोगे।"
अविनाश की नसें तन गईं। उसने अविश्वास में हँसते हुए कहा, "मार्गदर्शन? पिताजी, मेरे पास इसके लिए समय नहीं है! यह लड़की सिरदर्द के अलावा कुछ नहीं है!"
सिया ने अपनी भौंहें ऊपर चढ़ाईं, जैसे उसके अहंकार पर कोई असर ही न हुआ हो। "ओह आओ, श्री अविनाश! सिरदर्द तो वही होता है, जो दिमाग पर असर डाले," उसने एक नाटकीय अंदाज़ में कहा। "और मैं तो बस आपकी ज़िंदगी में रोमांच लाने आई हूँ!"
"रोमांच?" अविनाश का जबड़ा कस गया। "तुम्हें क्या लगा, मैं तुम्हें इतनी आसानी से रख लूँगा? तुम्हारी तरह की लड़कियों को तो मैं देखना तक नहीं चाहता!"
सिया ने कंधे उचका दिए, उसकी मुस्कान और चौड़ी हो गई। "ओह, श्री अविनाश। बस थोड़ी जानकारी लेनी है, और आपको सहना है।"
"ऐसा नहीं होगा," अविनाश ने ठंडी आवाज़ में कहा, उसकी निगाहें अपने पिता पर टिक गईं। "पिताजी, मैं इस लड़की को एक दिन भी नहीं सह सकता। इसे किसी और विभाग में डाल दो या फिर बाहर निकाल दो।"
अविनाश के पिता की आँखों में अब सख्ती और बढ़ गई। "नहीं, अविनाश। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, और तुम इसे पूरा करोगे।"
"क्यों?!" उसने अपनी आवाज़ काबू में रखने की कोशिश की, लेकिन उसकी कुंठा साफ़ झलक रही थी। "मुझे इस लड़की से कोई लेना-देना नहीं है! अगर इसे सीखना है, तो मानव संसाधन देखेगा, मैं नहीं!"
अविनाश के पिता की आवाज़ अब ठंडी और आज्ञाकारी हो गई। "मानव संसाधन इसे नहीं सिखाएगा, तुम सिखाओगे। यह अंतिम निर्णय है।"
"अंतिम?!" अविनाश का धैर्य अब जवाब दे रहा था। "पिताजी, मैं इस कंपनी का सीईओ हूँ, कोई बच्चे की देखभाल करने वाला नहीं! और यह लड़की—"
"—यह लड़की प्रतिभाशाली है, अविनाश।" उसके पिता ने सख्ती से कहा। "तुम्हें शायद अभी दिख नहीं रहा, लेकिन उसे सिर्फ़ सही दिशा चाहिए। और वह दिशा तुम दोगे।"
अविनाश की मुट्ठियाँ भिंच गईं। "दिशा? पिताजी, यह लड़की गंभीर ही नहीं है! यह सिर्फ़ मज़ाक उड़ाने और परेशान करने के लिए यहाँ आई है!"
"गंभीर हूँ या नहीं, यह वक़्त बताएगा, श्री अविनाश," सिया ने अपने सामान्य चंचल स्वर में कहा, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग सा आत्मविश्वास था। "फ़िलहाल तो आपके साथ काम करने का मौका मिल गया है, और मेरा विश्वास करिए, मैं इसे बर्बाद नहीं करने वाली।"
अविनाश ने गहरी साँस ली। उसने खुद को शांत रखने की बहुत कोशिश की, लेकिन यह लड़की… यह लड़की उसकी सहनशक्ति को हर सेकंड तोड़ रही थी।
अविनाश के पिता अपनी कुर्सी से उठते हुए बोले, "चर्चा समाप्त। कल से सिया ऑफिस में ज्वाइन करेगी, और तुम इसे व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षित करोगे। मुझे अब और कोई बहस नहीं चाहिए।"
अविनाश के चेहरे पर गुस्सा और कुंठा साफ़ दिख रही थी, लेकिन वह जानता था… जब पिता कोई फैसला लेते थे, तो वह अटल होता था।
सिया ने एक विजयी मुस्कान के साथ उसे देखा। "तो, कल मिलते हैं, बॉस!"
अविनाश ने अपनी आँखें बंद कीं, और मन ही मन खुद को संभालने की कोशिश की। यह लड़की उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सिरदर्द बनने वाली थी… और अब इससे बचना असंभव था।
सिया की बेपरवाह मुस्कान और उसके चुनौतीपूर्ण अंदाज़ ने अविनाश को अंदर तक झुलसा दिया था। यह लड़की खुद को क्या समझती थी? वह इतनी आसानी से उसके कम्फर्ट ज़ोन में घुसने की सोच भी कैसे सकती थी?
"तो, कल मिलते हैं, Boss!" उसने हल्के से सिर झटकते हुए कहा था, जैसे अविनाश की नाराज़गी से उसे कोई फ़र्क़ ही न पड़ता हो।
अविनाश की उंगलियाँ कसकर मुट्ठी में भींच गई थीं। उसे नफरत थी ऐसी लड़कियों से जो अपनी दुनिया में ही जीती थीं, जिन्हें लगता था कि उनके चहकने से लोग उनके आगे झुक जाएँगे।
वह झटके से आगे बढ़ा था, और इससे पहले कि सिया समझ पाती, उसने उसके बालों को मुट्ठी में भींच लिया था।
"आह!" सिया दर्द से कराह उठी थी, लेकिन उसने खुद को कमज़ोर नहीं दिखाया था।
अविनाश की आँखें उसकी आँखों में धँस गई थीं। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि सिया हिल भी नहीं पाई थी।
"तुम यहाँ मेरे दादा की वजह से हो, इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी बेवकूफियाँ बर्दाश्त करूँगा," उसकी आवाज़ में इतनी ठंडक थी कि सिया को पहली बार लगा था कि वह सच में बहुत आगे जा चुका था। "अगर मेरे करीब आने की जरा भी कोशिश की ना…"
उसकी साँसें सिया के चेहरे से टकराई थीं, लेकिन वह ख़ामोश हो गया था। शायद इसलिए क्योंकि उसे खुद समझ नहीं आया था कि वह ऐसा क्यों कह रहा था।
सिया ने अपना हाथ झटका था, खुद को छुड़ाने की कोशिश की थी, लेकिन अविनाश की पकड़ ढीली नहीं हुई थी।
"मिस्टर अविनाश, मुझे दर्द हो रहा है… क्या कर रहे हो?" उसकी आवाज़ में अब हल्की कंपकंपी थी, पर निडरता अब भी थी।
अविनाश ने उसकी आँखों में गहरी नजरों से देखा था, उसकी निगाहों में कुछ ऐसा था कि सिया का दिल एक पल को कांप गया था, लेकिन होंठों पर वही हल्की मुस्कान बनी रही थी।
"अगर मेरे करीब आने की कोशिश की, तो ये दर्द इससे भी ज्यादा होगा," अविनाश की आवाज में एक ठंडा सन्नाटा था, एक चेतावनी, जो किसी भी आम इंसान की रूह तक हिला सकती थी।
पर सिया...? उसने अपनी जगह से एक इंच भी पीछे हटने की जरूरत नहीं समझी थी। उसकी आँखों में हल्की शरारत थी, जैसे वो अविनाश की चेतावनी को चुनौती दे रही हो। उसने बहुत ही धीमे और सधे हुए लहजे में कहा था—
"तब तो ये दर्द भी मुझे मंज़ूर है, मिस्टर अविनाश।"
अविनाश का जबड़ा कस गया था। उसके अंदर कुछ तेज़ी से सुलग उठा था, गुस्सा, झुंझलाहट, या शायद कुछ और, जिसे वो खुद भी पहचानने से इनकार कर रहा था।
"मुझे नहीं पता आपको देखकर मुझे क्या हो गया है," सिया की आवाज में अजीब-सी बेचैनी थी, "लेकिन कुछ तो ऐसा है जो मुझे आपकी तरफ खींच रहा है। पहली बार मैं किसी के लिए ये सब महसूस कर रही हूँ..."
अविनाश को जैसे किसी ने जला दिया हो। उसका हाथ गुस्से में उठ गया था और दीवार पर ज़ोरदार मुक्का मारा था। उसकी आँखों में एक अलग ही आग थी, जो सिया को डराने के लिए काफी थी, लेकिन सिया...? वो अपनी जगह अडिग खड़ी रही थी।
"कहीं पहली बार तुम्हारा मैं आखिरी बार ना बना दूँ, सिया!"
उसका लहजा सख्त था, आँखों में एक स्याह साया था।
"और एक दिन में किसी को किसी से प्यार नहीं हो जाता। दूर रहो मुझसे! मुझे इन सब चीज़ों से नफरत है! मेरे नफरत की आग में जलाकर ख़ाक कर दूँगा तुम्हें!"
सिया हल्के से मुस्कुराई थी, जैसे उसकी बातें उसे बिल्कुल भी हिला नहीं पाई हों। उसने एक कदम और आगे बढ़ाया था, उसके चेहरे के करीब आकर फुसफुसाई थी—
"आप जलाने की कोशिश कीजिए, और मैं आपको बुझाने की..."
अविनाश का पूरा बदन जैसे जड़ हो गया था। उसके होश उड़ चुके थे। इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता या रिएक्ट कर पाता, सिया मुस्कुराते हुए घूमी थी और वहां से चली गई थी।
अविनाश वहीं खड़ा रह गया था, उसकी धड़कनें तेज़ थीं, और दिल में एक अजीब-सी हलचल थी, जिसे वो रोकना चाहता था... लेकिन शायद अब रोक नहीं सकता था।
सिया के जाते ही अविनाश के अंदर एक तूफान उठ खड़ा हुआ था। उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, हाथों की मुट्ठियाँ गुस्से से भिंच गई थीं। उसकी आँखों में एक स्याह अंधेरा था, ऐसा अंधेरा जो शायद किसी को छू भी ले तो जला कर रख दे।
वह झटके से अपने केबिन में घुसा था और सामने रखा कांच का टेबल ज़ोर से मुक्के से तोड़ दिया था। एक कड़क आवाज़ गूँजी थी, कांच के टुकड़े ज़मीन पर बिखर गए थे। मगर अविनाश को कोई फर्क नहीं पड़ा था।
उसकी नज़र फर्श पर पड़े सबसे बड़े कांच के टुकड़े पर पड़ी थी। उसने धीरे-धीरे उसे उठाया था, और बिना किसी झिझक के अपनी हथेली में जकड़ लिया था।
कांच उसकी त्वचा में धंस गया था, लेकिन उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आई थी। खून की मोटी बूंदें उसकी उंगलियों से होकर ज़मीन पर टपकने लगी थीं, पर वो बस उस लाल रंग को देखता रहा था, जैसे ये दर्द भी उसके अंदर के तूफान के सामने कुछ भी नहीं।
उसकी आवाज़ फुसफुसाहट से भरी थी, मगर उसमें एक कड़वी सच्चाई थी—
"अब मेरी लाइफ में किसी के लिए कोई जगह नहीं है… और तुम… तुम कभी मेरी लाइफ में नहीं आ सकती, सिया।"
उसकी आँखों में नफरत नहीं थी, बल्कि एक अजीब-सी वीरानी थी।
"मैं कभी किसी को अपनी लाइफ में नहीं आने दूँगा।"
सिया ऑफिस से बाहर निकल चुकी थी, लेकिन उसका दिल और दिमाग अब भी वहीं, उसी केबिन में, उसी आदमी के पास अटका हुआ था— अविनाश।
उसकी आँखों के सामने बार-बार वही लम्हा घूम रहा था— अविनाश की गहरी, सख्त आँखें, उसकी चेतावनी भरी आवाज़, उसकी आग उगलती बातों के बावजूद उस आग में कुछ और छिपा था... कुछ ऐसा जो अविनाश खुद भी नहीं समझ पा रहा था।
वो धीमे कदमों से चल रही थी, उसका मन बेचैन था, दिल में हज़ारों सवाल थे, पर एक चीज़ जिसे वो पूरी तरह समझ चुकी थी— अविनाश उसके लिए सिर्फ एक नाम नहीं था, वो अब उसकी ज़िंदगी का वो हिस्सा बन चुका था जिसे वो किसी भी हाल में खोने को तैयार नहीं थी।
उसने गहरी साँस ली थी, अपनी धड़कनों को महसूस किया था, और खुद से फुसफुसाई थी—
"मुझे नहीं पता कि ये प्यार है, अट्रैक्शन है, या कुछ और... पर ये जो भी है, ये हल्का नहीं है, ये आम नहीं है।"
उसकी आँखों में एक जुनून था, एक पागलपन, जो किसी भी हद तक जा सकता था।
"मुझे भी पता है कि एक दिन में किसी से प्यार नहीं होता, लेकिन कुछ रिश्ते बनने में वक्त नहीं लगाते, कुछ एहसास किसी तर्क या लॉजिक के मोहताज नहीं होते।"
सिया की नज़रों में अब एक ठहराव आ चुका था, एक ठान लेने वाली ज़िद—
"अविनाश, आप जितना मर्जी दूर भाग लीजिए... जितना चाहें अपनी नफरत की दीवारें खड़ी कर लीजिए… पर मैं आपको अपना बनाकर ही रहूँगी।"
उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, आवाज़ में एक अलग ही दृढ़ता थी—
"आप अपने अंदर कितनी भी नफरत भर लीजिए, मैं उस नफरत की परतें हटाकर आपके दिल में जगह बना ही लूंगी। आपके जितने भी अंधेरे हैं, मैं उनमें रौशनी बनकर दाखिल हो जाऊंगी। आप खुद को कितना भी अकेला समझें, मैं हर हाल में आपकी बनूंगी, चाहे आप मुझे अपनाएं या नहीं।"
उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई थी, मगर वो आम मुस्कान नहीं थी, वो जीतने की मुस्कान थी।
"अभी तो आप खुद से लड़ रहे हैं, मिस्टर अविनाश... लेकिन एक दिन आएगा जब आप मुझसे नहीं, खुद से हार जाएंगे। और उस दिन, आप खुद मेरे अपने बनना चाहेंगे।"
सिया ऑटो पकड़ने के लिए बाहर गई। तभी उसके फ़ोन पर किसी अनजान व्यक्ति का फ़ोन आया। सिया ने बिना कुछ सोचे-समझे फ़ोन उठा लिया। जैसे ही उसने "हेलो" बोला,
"तुम जो खेल खेल रही हो, सिया, वह तुम्हारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है..."
आवाज़ में एक अजीब-सी ठंडक थी, जैसे कोई शख्स दूर खड़ा उसे देख रहा हो।
सिया ने हल्का-सा हँसी का झटका दिया। "ओह, रियली? और तुम कौन हो, जो मुझे डराने की कोशिश कर रहे हो?"
"डराने की कोशिश नहीं कर रहा, बस सच बता रहा हूँ। अविनाश से दूर रहो। वरना तुम्हें अंजाम पता भी नहीं चलेगा और सब खत्म हो जाएगा।"
सिया ने आँखें घुमाईं। "वाह! मिस्ट्री कॉलर और धमकियाँ? सीरियस्ली? तुम लोगों के पास कोई नया तरीका नहीं बचा क्या?"
दूसरी तरफ हल्की हँसी आई, मगर उसमें एक सिहरन थी। "तुम्हारी यही लापरवाही तुम्हें ले डूबेगी, सिया। अविनाश से दूर हो जाओ, वरना तुम भी उसकी तरह जल जाओगी।"
सिया का चेहरा सख्त हो गया। उसकी उंगलियाँ फ़ोन पर कस गईं। "सुनो, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता तुम कौन हो। और अगर यह धमकी देने का प्लान था, तो लेट मी टेल यू—तुम्हारा तरीका बहुत बोरिंग है। अगली बार कुछ नया ट्राई करना।"
उसने फ़ोन काट दिया। पर उसके दिल में हलचल मच चुकी थी। "इससे पहले कि मुझे जलाने की बात करो, पहले यह देखो कि मैं आग से डरती भी हूँ या नहीं..."
और उसने मन ही मन कहा, "अच्छा तो तुमने यह तरीका निकाला है मुझे खुद से दूर करने के लिए।"
उसी वक्त, दूसरी तरफ़,
अविनाश अपने केबिन में अब भी बैठा था। उसके हाथ की चोट से खून रिस रहा था, मगर उसे परवाह नहीं थी। उसकी आँखों में एक अजीब-सी वीरानी थी, जैसे वह किसी ऐसी लड़ाई में फँस चुका हो, जिसका कोई अंत नहीं था।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। बिना नज़र उठाए उसने कहा—
"नॉट नाउ।"
मगर दरवाज़ा खुला और सामने खड़ा था... आर्यन।
आर्यन अविनाश का छोटा भाई था।
आर्यन ने अविनाश के चेहरे पर घबराहट देखी। उसने धीरे से कहा, "भाई, तुम अब भी खुद से लड़ रहे हो?"
अविनाश ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों में थकान थी, जैसे वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ हो। आर्यन ने उसकी हालत देखी और बिना कुछ कहे जल्दी से फ़र्स्ट एड बॉक्स उठाया और उसके घाव साफ़ करने लगा।
अविनाश ने उसकी तरफ़ देखा और बिना कोई भाव दिखाए सख्त लहज़े में बोला, "छोड़ो मुझे, मैं ठीक हूँ। और टेंडर का क्या हुआ?"
आर्यन की उंगलियाँ कुछ पलों के लिए ठिठक गईं, लेकिन उसने खुद को संभाला और अविनाश के हाथ पकड़कर उसकी पट्टी बाँधने लगा। उसकी आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी, "भाई, यह टेंडर भी हमारे हाथ से चला गया... भाई, प्लीज़ अब तो आप बिज़नेस पर फ़ोकस करो, वरना हम बहुत बुरी तरह से फँस जाएँगे। जब से आपकी लाइफ से..."
उसने इतना ही कहा था कि अविनाश की लाल, गुस्से से भरी आँखें उसकी ओर उठीं। उसकी नज़रें इतनी ठंडी थीं कि आर्यन के शब्द वहीं अटक गए। अविनाश ने धीरे से लेकिन बेहद सख्त लहज़े में कहा, "आगे कुछ मत कहना, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
आर्यन ने उसकी बात सुनते ही खुद को रोक लिया। वह चुप हो गया, लेकिन उसका दिल जानता था कि उसका भाई अब बिज़नेस से बहुत दूर जा चुका था।
उसने मन ही मन कहा, "काश, भाई पहले की तरह फिर से फ़ोकस करने लगें... काश, वह खुद को इस अंधेरे से निकाल पाएँ..."
आर्यन ने अविनाश के चेहरे की कठोरता को देखा, लेकिन उसके अंदर का दर्द भी महसूस किया। वह चुप तो हो गया था, लेकिन उसका मन सवालों से भरा हुआ था।
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद उसने धीरे से कहा, "भाई, आप खुद को इस हालत में कब तक रखेंगे? हम सब आपको पहले जैसा देखना चाहते हैं… बिज़नेस भी आपको चाहिए और यह लड़ाई भी? आखिर कब तक?"
अविनाश ने कोई जवाब नहीं दिया, बस गहरी साँस लेकर खिड़की के बाहर देखने लगा। बाहर अंधेरा था, जैसे उसकी ज़िंदगी भी किसी घने अंधकार में डूबी हो।
आर्यन ने उसकी चुप्पी को तोड़ने की कोशिश करते हुए कहा, "मैं जानता हूँ कि कुछ चीज़ें भूलना आसान नहीं होता, लेकिन भाई, खुद को यूँ तबाह करना भी सही नहीं। हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके हैं… और नहीं खो सकते।"
अविनाश ने उसकी बात सुनी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह उठकर खड़ा हुआ और धीमी आवाज़ में बोला, "आर्यन, कुछ जंग ऐसी होती हैं, जिन्हें अकेले ही लड़ना पड़ता है। मुझे भी लड़ने दो…"
फिर वह बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चला गया, और आर्यन वहीं बैठा रह गया, अपने भाई को खोने के डर में डूबा हुआ।
अविनाश के घर पर...
अविनाश के पिता, अर्नव, घर पहुँच चुके थे। अपने कमरे में बैठकर वह गहरी सोच में डूबे थे। उनके चेहरे पर गंभीरता और आँखों में चिंता साफ़ झलक रही थी। वह किसी गहरे विचार में खोए हुए थे कि तभी उनकी पत्नी, अनीता, कमरे में आईं। अर्नव को यूँ चिंतित देखकर उन्होंने पूछा,
"क्या हुआ? आप इतनी सोच में क्यों हैं?"
अर्नव ने उनकी बात सुनी, लेकिन कुछ पल के लिए चुप ही रहे। फिर एक गहरी साँस लेते हुए बोले,
"जिसका बेटा अंधेरे की ओर बढ़ रहा हो, वह भला चिंता न करे तो क्या करे? लेकिन अब बहुत हो गया, अनीता। मैं उसका बाप हूँ, और अब मैं उसे इस दलदल से बाहर निकाल कर ही रहूँगा। चाहे वह मुझे अपना दुश्मन ही क्यों न समझे, लेकिन अब मैं और पीछे नहीं हट सकता।"
अनीता उनके शब्दों को सुनकर मायूस हो गईं। उनकी आँखों में भी चिंता झलकने लगी। उन्होंने नरम स्वर में कहा,
"मैं भी उसकी माँ हूँ, अर्नव। मुझे भी यह चिंता हर पल सताती है, लेकिन ऐसा मत कीजिएगा कि वह आपको सच में अपना दुश्मन समझने लगे।"
अर्नव ने उनकी बात सुनी, लेकिन उनकी आँखों में अब दृढ़ निश्चय था। वह ठंडे स्वर में बोले,
"अगर समझता है तो समझे, नहीं समझता तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन अब इस घर में वही होगा जो मैं चाहूँगा। इस बार मैं अपने बेटे को अंधेरे में गिरने नहीं दूँगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े!"
कमरे में सन्नाटा छा गया। अनीता अपने पति के फैसले को समझ रही थीं, लेकिन कहीं न कहीं उनका दिल घबराने लगा था।
"अगर समझता है तो समझे, नहीं समझता तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अब इस घर में वही होगा जो मैं चाहूँगा। इस बार मैं अपने बेटे को अंधेरे में गिरने नहीं दूँगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े!"
कमरे में सन्नाटा छा गया। अनीता अपने पति के फैसले को समझ रही थीं, लेकिन कहीं न कहीं उनका दिल घबराने लगा था।
रात का वक्त था। अविनाश अपने केबिन में बैठा था; वह कुछ सोच रहा था। फिर अचानक उसने अपना फोन उठाया और बाहर पार्किंग एरिया में जाकर अपनी कार में बैठ गया। कार में बैठकर उसने एक हाथ स्टीयरिंग पर रखा और दूसरे हाथ से सिगरेट का कस लिया। धुआँ उसकी आँखों के सामने एक परत बना रहा था, लेकिन उसके दिमाग में उठ रहे सवाल इस धुएँ से भी ज्यादा गहरे थे।
वहीं दूसरी तरफ, सीया बालकनी में खड़ी थी। मिस्टी अभी तक नहीं आई थी, और उसके दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे। "आखिर मिस्टर अविनाश जी ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए वे मुझे धमका भी सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया? वे मुझसे इतना दूर क्यों भागना चाहते हैं? ऐसी कौन-सी वजह है, जिस वजह से वे लड़कियों से दूर रहते हैं?"
उसके अंदर बेचैनी बढ़ रही थी। चाहे जो भी वजह हो, कोई तो ऐसी वजह होगी। उसे पता लगाना ही पड़ेगा। उसकी आँखों में अब एक नया इरादा था। "मिस्टर अविनाश, अब सीया आपसे कभी दूर नहीं होगी..."
वह अपने मन में कई सवाल लिए खड़ी थी। तभी अचानक उसके फोन पर कुछ नोटिफिकेशन आए, और उन्हें देखते ही उसके चेहरे का रंग बदल गया। उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं, उंगलियाँ फोन की स्क्रीन पर जम गईं, और दिल की धड़कनें अचानक तेज हो गईं।
दूसरी तरफ, अविनाश अब तक अपने घर पहुँच चुका था। जैसे ही वह अंदर हॉल में गया, उसकी माँ उसके पास आई और उसे देखते ही बोली, "क्या हुआ बेटा? तुम्हारे हाथ में चोट कैसे लग गई?"
अविनाश ने अपनी माँ की तरफ देखा, एक पल के लिए उसकी आँखों में हल्का सा ठहराव आया, लेकिन अगले ही पल उसने अपने हाथ छुड़ाते हुए कहा, "कुछ नहीं... बस ऐसे ही।"
उसकी आवाज़ में थकान थी, लेकिन आँखों में एक तूफान था।
तभी उसकी माँ उसे ध्यान से देखते हुए बोल पड़ीं,
"ऐसे कैसे कुछ नहीं? तुम्हारा दर्द तुम्हें क्यों नहीं दिखता, अविनाश? क्यों तुम खुद का ध्यान नहीं रख सकते? क्यों खुद को इस कदर तकलीफ दे रहे हो? तुम्हें क्यों अपनी तकलीफ महसूस नहीं होती? क्यों नहीं दिखाई देता तुम्हें कि तुम खुद को किस अंधेरे में धकेल रहे हो?"
अविनाश के चेहरे पर एक पल को कोई भाव नहीं आया। लेकिन फिर उसकी आँखें ठंडी पड़ गईं, आवाज़ में अजीब सा सूनापन था।
"मॉम, तेरे डर से अब दूर रहिए। अगर मेरे दर्द को देखने की कोशिश करोगी, तो पूरी ज़िंदगी दर्द में बीत जाएगी। इसीलिए बेहतर होगा कि आप डैड और अनु पर ध्यान दो। मैं खुद को संभाल रहा हूँ... और संभाल लूंगा।"
इतना कहकर वह मुड़ा और वहाँ से चला गया।
उसकी माँ उसे जाते हुए देखती रहीं; उनकी आँखों में तकलीफ साफ झलक रही थी। उन्होंने हल्की, थकी हुई आवाज़ में खुद से कहा,
"दिख रहा है, कितना खुद को संभाल रहा है तू... और तू सोचता है कि मैं तुझे तेरे दर्द के साथ यूँ ही अकेला छोड़ दूँगी?"
दूसरी तरफ, अविनाश अपने कमरे में था। कमरा पूरी तरह डार्क शेड में डूबा था—दीवारें ग्रे और ब्लैक टोन में थीं, हर तरफ भारी पर्दे पड़े हुए थे, जिससे एक भी किरण अंदर न आ सके। पूरे कमरे में सिर्फ घड़ी की हल्की टिक-टिक गूँज रही थी।
अविनाश अंदर आते ही सीधा बाथरूम की तरफ बढ़ा। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, बिना किसी झिझक के शॉवर ऑन कर दिया। ठंडा पानी तेजी से उसके सिर पर गिरने लगा, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने अपनी आँखें बंद कीं, सिर हल्का सा झुकाया और अपनी हथेलियाँ दीवार पर टिका दीं।
जैसे ही उसकी आँखें बंद हुईं—
एक लड़की हंसते हुए उसके करीब आई और उसकी आँखें बंद कर दी।
वह उसकी आँखों पर अपने नर्म हाथ रख रही थी, उसके कानों में उसकी मीठी हँसी गूँज रही थी। हँसी इतनी मासूम, इतनी प्यारी कि अविनाश के चेहरे पर अनजाने में एक हल्की मुस्कान आ गई। कुछ सेकंड के लिए, जैसे सब कुछ थम सा गया था—दर्द, अंधेरा, सूनापन... बस उस हँसी की गूंज थी।
लेकिन तभी—
अविनाश की मुस्कान एकदम से गायब हो गई। उसकी साँसें गहरी हो गईं, आँखें सख्त। और फिर एक पल में, जैसे उसके भीतर कोई भयंकर तूफान फट पड़ा।
उसने गुस्से में दीवार पर ज़ोर से घूँसा मारा! फिर दूसरा! फिर तीसरा!
"क्यों?! क्यों आखिर क्यों??!"
उसकी आवाज़ बाथरूम की दीवारों में गूँज उठी। आँखों में गुस्से की आग, साँसें बेकाबू, और सीने में भारी दर्द।
पानी अब भी उसके चेहरे पर गिर रहा था... लेकिन उसकी आँखों से टपकती तकलीफ़ को धो नहीं पा रहा था।
दूसरी तरफ, मिस्टी अब तक आ चुकी थी। खाना बनाने के लिए वह किचन में गई और सीया से बोली, "यार सीया, तू क्या कर रही है? मेरी हेल्प तो कर दे थोड़ी। मैं अकेले कैसे हम दोनों के लिए खाना बनाऊँगी, और तू ऑफिस से आ भी गई और मुझे बताया भी नहीं कि वहाँ पर क्या हुआ, कैसा गया तेरा दिन?"
रात की हल्की ठंडक और किचन में पक रहे खाने की खुशबू ने माहौल को और भी खुशनुमा बना दिया था।
मिस्टी हमेशा की तरह जल्दी-जल्दी सब कुछ निपटाने में लगी थी, ताकि थोड़ा आराम कर सके। पर सिया…वह तो जैसे किसी और ही दुनिया में थी। ऑफिस से आते ही सीधे अपने कमरे में चली गई थी और अब जब मिस्टी ने उसे देखा, तो वह चौंक गई।
मिस्टी ने हाथ में पकड़ी सब्ज़ी की प्लेट टेबल पर रखी और थोड़ा झुंझलाते हुए बोली, "यार सिया, तेरा कुछ भरोसा नहीं! तू कब आई, मुझे बताया भी नहीं? और ऊपर से मुझे अकेले ही किचन में छोड़ दिया! जरा मेरी हेल्प कर, वरना हम दोनों की भूख से हालत खराब हो जाएगी।"
सिया, जो अब तक कहीं और ही खोई हुई थी, मिस्टी की आवाज़ सुनकर हल्का सा मुस्कुराई और बोली, "अरे यार, आज का दिन ही इतना अच्छा था कि मैं बस… मैं कभी नहीं भूल सकती!"
मिस्टी चौंक गई। वह पलभर को रुकी, फिर आँखें संकरी करके सिया को गौर से देखने लगी। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, जो किसी गहरे राज़ की तरफ इशारा कर रही थी। मिस्टी ने कमर पर हाथ रखते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा,
"अच्छा! तो बात कुछ ज्यादा ही स्पेशल है। अब बता भी दे, ऐसा क्या हो गया कि तू इतनी खुश है? ऑफिस में तुझे प्रमोशन मिला या किसी ने तुझे प्रपोज़ कर दिया?"
सिया, जो अब तक अपनी ही दुनिया में खोई थी, किचन में आकर स्लैब पर बैठ गई और एक लंबी साँस लेकर बोली,
"उफ्फ मिस्टी, क्या बताऊँ… आज का दिन… बस इतना कह सकती हूँ कि मैंने ज़िंदगी में ऐसा दिन कभी नहीं देखा था! हर चीज़… इतनी परफेक्ट थी, इतना अच्छा लगा कि दिल कर रहा है कि टाइम बस यहीं रुक जाए!"
मिस्टी ने झट से चम्मच टेबल पर रखा और उत्सुकता से बोली, "अरे भगवान! अब तू मुझे और सस्पेंस में मत डाल, सीधे-सीधे बता क्या हुआ?"
सिया हल्के से मुस्कुराई, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। वह उस पल को जी रही थी, दोबारा महसूस कर रही थी।
"तू बैठ, मैं तुझे धीरे-धीरे सब बताती हूँ… लेकिन पहले मेरे लिए एक कप कॉफी बना दे, क्योंकि ये स्टोरी सुनने के लिए तुझे भी एनर्जी की ज़रूरत पड़ेगी!"
मिस्टी ने लंबी साँस ली और सिर हिलाते हुए बोली, "बिलकुल नहीं! पहले तू बता, फिर कॉफी मिलेगी।"
"ठीक है, मेरे लिए भी एक कप बना लेना," सिया ने कहा।
मिस्टी का मुँह खुला का खुला रह गया!
सिया की बात सुनकर उसकी आँखें और भी बड़ी हो गईं, जैसे उसे अपने कानों पर यकीन ही न हो रहा हो। वह दोनों हाथ कमर पर रखकर एकदम नाटकीय अंदाज़ में बोली,
"वाह रे महारानी! मतलब तुझे कहानी सुननी भी है, खुद के लिए कॉफी भी चाहिए और बनाने का ठेका फिर भी मेरा? ये कौन सा नया स्टाइल है मैडम?"
सिया शरारती अंदाज़ में मुस्कुराई और शराफत से बोली, "देख मिस्टी, तुझे तो कॉफी बनानी ही है, तो थोड़ा और दूध डाल देना, एक कप और बन जाएगा। वैसे भी, मैं इतनी बड़ी न्यूज़ देने वाली हूँ, उसके लिए मैं इतनी तो डिमांड कर ही सकती हूँ, नहीं?"
मिस्टी ने गुस्से में पानी पी लिया और फिर ग्लास जोर से टेबल पर रखते हुए बोली, "अरे वाह! अब मुझे ही गुलाम बना दिया तूने! मैं तो यहां तेरे लिए जान लगा रही हूँ, खाना बना रही हूँ और तू आराम से मजे ले रही है!"
सिया अब पूरी तरह मस्ती के मूड में थी। वह हँसते हुए बोली, "यही तो दोस्ती का असली मतलब है मिस्टी! एक काम कर, खाने के साथ कोई अच्छी स्वीट डिश भी बना ले, ताकि सेलिब्रेशन कम्प्लीट हो जाए!"
मिस्टी ने झट से लकड़ी का चम्मच उठाया और उसे दिखाते हुए धमकी भरे अंदाज़ में बोली, "तू एक और डिमांड कर, कसम से, इसी से तेरा माथा चिपका दूँगी!"
सिया हँसते-हँसते दोहरी हो गई, लेकिन खुद को संभालते हुए हाथ जोड़कर बोली, "अरे बाबा! मज़ाक कर रही थी, तू तो नाराज़ ही हो गई!"
मिस्टी ने गहरी साँस ली, जैसे खुद को शांत करने की कोशिश कर रही हो, फिर फ्रिज से दूध निकाला और गैस पर चढ़ाते हुए बोली, "चल, बन रही है तेरी कॉफी। अब जल्दी से बता कि हुआ क्या है, वरना मैं सच में ये कॉफी तुझसे छीन लूँगी!"
सिया मुस्कुराई, उसकी आँखों में वही चमक अब भी थी। वह स्लैब से उतरी और पास आकर मिस्टी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली,
"मिस्टी… तू सोच भी नहीं सकती, आज ऑफिस में क्या हुआ!"
मिस्टी ने उंगलियों से हवा में गोल घुमाते हुए कहा, "तो जल्दी से बोल ना, इतना सस्पेंस मत बना!"
सिया ने मुस्कुराते हुए गहरी साँस ली और धीरे से कहा,
"आज… मेरी लाइफ का सबसे खूबसूरत मोमेंट था!"
मिस्टी का हाथ अचानक रुक गया। वह सिया की आँखों में देखती रही, जो सच में खुशी से चमक रही थीं।
"मतलब… तू कहना क्या चाह रही है?" उसने धीमे से पूछा।
सिया हल्के से मुस्कुराई, फिर अपने बालों को पीछे करते हुए बोली,
"आज ऑफिस में… किसी ने मुझे स्पेशल फील कराया, बहुत ज्यादा। इतनी ज्यादा कि मैं खुद भी यकीन नहीं कर पा रही कि ये सब सच में हुआ!"
मिस्टी अब पूरी तरह से सिया की बातों में खो गई थी। वह कॉफी कप उठाकर उसके सामने रखते हुए बोली,
"अब तुझे कोई बहाना नहीं मिलेगा, एक-एक चीज़ बतानी पड़ेगी!"
सिया ने कप उठाया, हल्की सी स्माइल दी और बोली,
"ठीक है… तो सुन, हुआ यूँ कि…"
सिया ने मिस्टी को सोफे पर बिठाया और ऑफिस में हुई सारी बातें बतानी शुरू कर दी। मिस्टी ध्यान से सुनने लगी।
सिया ऑफिस में हुई हर एक बात को बताने लगी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह उन लम्हों को फिर से जी रही हो।
मिस्टी ने पहले तो उसे हल्के संदेह से देखा, लेकिन जब सिया ने उसका हाथ पकड़कर जबरदस्ती उसे सोफे पर बिठाया और कहा, "बैठ जा, वरना मेरी बातें खड़े-खड़े सुनने में तुझे चक्कर आ जाएँगे!"
मिस्टी ने लंबी साँस ली और हथियार डालते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है, अब जल्दी बता, मैं ध्यान से सुन रही हूँ।"
सिया ने एक मुस्कान दी और फिर जैसे ही बोलना शुरू किया, उसकी आवाज़ में एक अलग ही उत्साह था।
"मिस्टी, तू यकीन नहीं करेगी, पर आज का दिन सच में जादू जैसा था! सुबह ऑफिस पहुँची तो सब नॉर्मल लग रहा था, पर फिर…"
सिया की बातें जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगीं, मिस्टी का ध्यान उसमें पूरी तरह खो गया। कभी सिया के चेहरे पर हैरानी झलकती, कभी वह मुस्कुरा देती, तो कभी हल्की सी शरमाते हुए अपनी बातों को घुमा-फिरा कर कहने लगती। मिस्टी बीच-बीच में कभी सिर हिलाती, कभी भौहें उठाती और कभी आँखें चौड़ी करके सिया को घूरने लगती, जैसे उसकी बातों को पूरी तरह से समझने की कोशिश कर रही हो।
"मतलब… तू कहना चाह रही है कि…"
मिस्टी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि सिया ने झट से उसकी बात काटते हुए कहा, "अरे तू चुप रह, पहले पूरी कहानी सुन ले!"
मिस्टी ने गहरी साँस ली और अपने हाथ जोड़कर कहा, "ठीक है मैडम, आपकी कथा को पूरी श्रद्धा से सुन रही हूँ!"
मिस्टी कुछ कहने ही वाली थी कि सिया ने तुरंत उसकी बात काटते हुए कहा, "अरे तू चुप रह, पहले पूरी कहानी सुन ले!"
मिस्टी ने गहरी साँस ली और हाथ जोड़कर कहा, "ठीक है मैडम, आपकी कथा को पूरी श्रद्धा से सुन रही हूँ!"
सिया ने धीरे-धीरे सारी बातें मिस्टी को बताईं। हर एक लम्हा, हर एक एहसास... उसकी आँखों की चमक, उसकी आवाज़ में बसी वो मिठास—सब कुछ बता रहा था कि यह सिर्फ एक अच्छी याद नहीं थी, बल्कि कुछ और था... कुछ बहुत खास।
मिस्टी पहले तो बड़े ध्यान से सुनती रही, लेकिन जैसे ही सिया ने अपनी बात खत्म की और आखिरी शब्द कहे, "मुझे पहली नज़र में अविनाश से प्यार हो गया है..."
मिस्टी के चेहरे का रंग उड़ गया! वह कुछ पल तक बिना पलक झपकाए सिया को देखती रही, जैसे उसे यकीन ही न हो रहा हो कि उसने सही सुना है। फिर एक झटके से उसने कॉफी कप टेबल पर रखा और लगभग चिल्लाते हुए बोली,
"क्या?! तू पागल हो गई है सिया? अविनाश सर?? तुझे पता भी है तू क्या कह रही है?"
सिया ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन मिस्टी की घबराहट अब गुस्से में बदलने लगी थी।
"सिया, मुझे लगता है तू किसी और की बात कर रही है... अविनाश सर नहीं हो सकते!"
सिया ने तुरंत सिर हिलाया, "नहीं मिस्टी, मैं किसी और की नहीं, सिर्फ उन्हीं की बात कर रही हूँ।"
मिस्टी ने माथे पर हाथ रखा और हल्की सी चीखती आवाज़ में बोली, "हे भगवान! सिया, तुझे जरा भी अंदाज़ा है कि तू क्या बोल रही है? मैं अविनाश सर को बहुत अच्छे से जानती हूँ! और जितना जानती हूँ, उतना ही यकीन है कि वो... वो किसी भी लड़की के करीब नहीं आते! बल्कि..."
मिस्टी ने एक गहरी साँस ली, जैसे अपने शब्दों को तोल रही हो, "आज तक उन्हें किसी लड़की के साथ देखा तक नहीं गया! मैं कब से उसी ऑफिस में हूँ, लेकिन एक बार भी... कभी भी नहीं! लड़कियों से दूर रहते हैं, बल्कि कहूँ तो चिढ़ते हैं!"
सिया थोड़ी चौंकी, "पर ऐसा क्यों? कोई वजह तो होगी?"
मिस्टी ने हल्का कंधे उचकाया, "किसी को नहीं पता... किसी ने कभी उनसे यह पूछने की हिम्मत नहीं की। वो जितने प्रोफेशनल और रिजर्व रहते हैं, उतने ही अनप्रेडिक्टेबल भी हैं। लड़कियों से वो बहुत दूर रहते हैं, कभी किसी को पास आने नहीं दिया। और अब तू... तुझे पहली नज़र में प्यार हो गया?"
मिस्टी ने गहरी साँस ली और सिया के हाथ पकड़कर बोली, "सिया, देख... मैं नहीं चाहती कि तू किसी ऐसी चीज़ में उलझे जिससे तेरा दिल टूट जाए। मैं तुझे गलत नहीं कह रही, लेकिन तू जिसे चाहने लगी है, वो शायद..."
मिस्टी रुक गई। सिया उसकी आँखों में देख रही थी, जैसे उसके अगले शब्दों का इंतज़ार कर रही हो।
मिस्टी के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं। उसकी आँखों में हल्की घबराहट थी, जैसे वो सिया को इस खतरनाक राह से बचाना चाहती हो। उसने सिया का हाथ कसकर पकड़ लिया और गहरी साँस लेते हुए बोली,
"सिया, एकतरफ़ा प्यार बहुत ही खतरनाक होता है! तू समझ रही है ना मेरी बात? यह सिर्फ किताबों और फिल्मों में अच्छा लगता है, पर असल ज़िन्दगी में... यह दिल को बहुत तकलीफ़ देता है।"
सिया उसकी बात सुन रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी। वह बस हल्की मुस्कान के साथ मिस्टी को देख रही थी।
मिस्टी ने फिर कहा, "तूने सोचा भी है कि अगर उन्होंने तुझे कभी नोटिस तक ना किया, अगर वो तुझे कभी भी उस नज़र से ना देखें, तो तेरा क्या होगा? सिया, यह कोई कहानी नहीं है, यह रियल लाइफ़ है!"
सिया अपनी जगह से उठकर मिस्टी की आँखों में देखती हुई, दोनों बाँहें फैलाते हुए एक नटखट मुस्कान के साथ बोली,
"अब हो गया तो हो गया!"
मिस्टी ने झटके से अपनी आँखें बंद की और माथा पकड़ लिया, "हे भगवान! यह लड़की मेरी सुनने वाली ही नहीं है!"
सिया हँस पड़ी, फिर शरारत भरी आवाज़ में बोली, "देख मिस्टी, प्यार कोई सोच-समझकर थोड़ी ना होता है! यह तो बस हो जाता है... और मेरे साथ भी हो गया। अब इसमें मैं क्या करूँ?"
मिस्टी ने उसे घूरा, "क्या करूँ? सिया, तुझे समझ ही नहीं आ रहा कि तू किस चीज़ में पड़ गई है! अविनाश सर कोई आम लड़का नहीं है। वो बहुत अलग हैं, और सबसे बड़ी बात... वो लड़कियों से हमेशा दूर रहते हैं!"
सिया ने कंधे उचकाए, "तो? मैंने कब कहा कि मुझे उनके करीब जाने की जल्दी है? प्यार हुआ है, कोई चोरी थोड़ी ना की है!"
मिस्टी ने उसकी बात काटते हुए कहा, "पर क्या तुझे यकीन है कि तू सिर्फ़ अट्रैक्शन में नहीं फंसी? तूने उन्हें ठीक से जाना भी नहीं, और तू कह रही है कि तुझे प्यार हो गया?"
सिया ने थोड़ी देर सोचा, फिर मुस्कराते हुए बोली, "मुझे कुछ नहीं पता मिस्टी... बस इतना जानती हूँ कि जब मैंने उन्हें पहली बार देखा, तो कुछ अजीब सा महसूस हुआ... जैसे कुछ कनेक्ट कर गया।"
मिस्टी ने गहरी साँस ली और थोड़े गंभीर लहजे में कहा, "सिया, मैं तेरा दिल टूटते हुए नहीं देख सकती... और मुझे डर लग रहा है कि तू जिस इंसान को चाहने लगी है, वो कभी तुझे वैसे नहीं देखेगा जैसे तू चाहती है।"
सिया उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली, "पता नहीं मिस्टी, शायद तू सही कह रही है... पर जब तक मेरा दिल खुद हार नहीं मानता, तब तक मैं भी पीछे हटने वाली नहीं हूँ।"
मिस्टी ने एक पल के लिए कुछ नहीं कहा। फिर उसने लम्बी साँस लेकर सिया के सिर पर हल्की सी चपत मारी और बोली,
"तू पागल है... और यह पागलपन तुझे कहीं ना कहीं ले ही डूबेगा!"
सिया ने मुस्कुरा कर कहा, "तो फिर तू ही मेरी नाव बन जा... ताकि मैं डूबूँ नहीं!"
मिस्टी ने आँखें घुमा लीं, "बचाने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन तू बचना ही नहीं चाहती!"
सिया ने हँसते हुए मिस्टी को गले लगा लिया, "बस तू साथ रहना, फिर देखना, मेरी कहानी भी किसी फिल्म से कम नहीं होगी!"
मिस्टी ने गहरी साँस लेते हुए खुद को मन ही मन समझाया—"हे भगवान, इस लड़की को संभालना बहुत मुश्किल है!"
दूसरी तरफ अविनाश का घर था। डाइनिंग टेबल पर हल्की रोशनी फैली हुई थी। रात का खाना परोसा जा रहा था, और पूरे घर में खाने की खुशबू तैर रही थी। अविनाश का परिवार टेबल पर बैठ चुका था, और सभी लोग प्लेट्स उठाने ही वाले थे कि डोरबेल बज उठी।
टेबल पर हल्की-सी खामोशी छा गई।
"इतनी रात को कौन आ गया?" अविनाश की माँ ने हल्के से कहा।
सर्वेंट तुरंत उठकर मुख्य द्वार खोलने चला गया।
दरवाज़ा खुलते ही एक लड़की अंदर आई। हाथ में सूटकेस था, कंधे पर एक बैग टंगा हुआ था, और चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी।
टेबल पर बैठे सभी लोगों की नजरें अब दरवाज़े की ओर थीं।
लेकिन जैसे ही अविनाश की नजर उस लड़की पर पड़ी...
उसका चेहरा डार्क पड़ गया। उसकी आँखें बड़ी हो गईं।
टेबल पर बैठे सभी लोगों ने एक-दूसरे को देखा, फिर अविनाश को...
वह कभी किसी चीज़ को लेकर हैरान नहीं होता था, पर आज उसकी आँखों में पहली बार एक झटका सा दिखाई दिया!
वह लड़की अब दरवाज़े से अंदर आ चुकी थी।
सिया...
हाथों में सामान लिए हुए, चेहरे पर वही मासूम हंसी, आँखों में हल्की-सी शरारत लिए हुए।
अविनाश अब अपनी कुर्सी से उठ चुका था।
"तुम...?"
उसकी आवाज़ गहरी थी, भारी थी।
सिया ने हल्की-सी मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा,
"रहने आई हूँ... और क्या करूंगी?"
टेबल पर बैठे सभी लोग अब अविनाश और सिया को देखने लगे।
अविनाश की माँ ने हल्की परेशानी के साथ अविनाश की तरफ देखा,
"बेटा, यह लड़की कौन है?"
अविनाश ने नजरें नहीं हटाईं, उसकी आँखें सिया पर ही टिकी रहीं।
"तुम यहाँ नहीं रह सकती, सिया।"
सिया ने हल्का-सा सिर झुकाकर उसकी तरफ देखा, मुस्कान अब भी उसकी जगह थी।
"तो? कहाँ जाऊँ?"
अविनाश ने एक कदम आगे बढ़ाया, और उसे घूरते हुए बोला,
"कहीं पर भी जाओ! तुम्हें यहाँ का पता किसने दिया?"
सिया ने हल्के से अपने कंधे उचकाए,
फिर धीरे से अपने दाहिने हाथ की उंगली उठाई... और उसके पिता की ओर इशारा कर दिया।
टेबल पर बैठे सभी लोगों की नजरें अब अविनाश के पिता की ओर घूम चुकी थीं।
अविनाश की आँखों में हल्की-सी जलन थी, जैसे उसे इस जवाब की उम्मीद ही नहीं थी।
"डैड...?"
अविनाश के मुँह से धीमे से निकला, लेकिन उसकी आवाज़ में एक सवाल छिपा था।
"हाँ, मैंने बुलाया। इस बच्ची के पास घर नहीं है, और अकेली लड़की कहाँ रहती है! इसीलिए मैंने सोचा कि इसे यहाँ कुछ दिनों के लिए रहने के लिए बोल देता हूँ।" उसके पिता ने बड़े ही ठंडे लहज़े में कहा।
सिया अब हल्के-से मुस्कुराई और अपने बैग को घसीटते हुए अंदर बढ़ी,
"तो... मेरा कमरा कौन-सा है?"
अविनाश की आँखें अब और गहरी हो चुकी थीं।
लेकिन सिया?
वह अब भी उसी बेफिक्री से खड़ी थी, जैसे उसे किसी के गुस्से की परवाह ही न हो!
अविनाश का घर – जब सिया ने उड़ाए सबके होश!
डाइनिंग टेबल पर अब भी एक अजीब-सी खामोशी थी।
अविनाश की नजरें अपने पिता पर टिकी थीं, जैसे वह यह यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि यह सच में हो रहा है।
"आपने... आपने इसे यहाँ बुलाया?" उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें सख्त नाराजगी झलक रही थी।
अविनाश के पिता ने आराम से पानी का घूंट लिया और फिर बिना किसी हड़बड़ी के बोले, "हाँ, मैंने बुलाया। लड़की अकेली कहाँ जाती? कोई ठिकाना नहीं था इसका, तो सोचा कुछ दिन हमारे यहाँ रह लेगी। इसमें इतनी बड़ी बात क्या है?"
अविनाश ने गहरी सांस ली, जैसे खुद को काबू में रखने की कोशिश कर रहा हो। उसकी उंगलियाँ अब भी मुठ्ठी में जकड़ी हुई थीं। लेकिन उधर सिया...
सिया अब भी उतनी ही बिंदास खड़ी थी, जैसे उसे किसी के भी रिएक्शन से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। उसकी नज़रें कभी अविनाश पर जातीं, कभी उसके पिता पर और फिर बाकी परिवार को स्कैन करतीं, जैसे देख रही हो कि यहाँ उसे सहारा कौन देगा।
फिर उसने अपने बैग का हैंडल पकड़ा, हल्के से खींचा और लापरवाही से बोली, "तो अब मेरा कमरा कौन-सा है? जहाँ तक मुझे याद है, इस घर में बहुत सारे कमरे हैं, लेकिन रहने के लिए मुझे कौन-सा मिलेगा?"
टेबल पर बैठे सभी लोगों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
कोई कुछ नहीं बोला।
सबको लग रहा था कि अविनाश किसी भी सेकंड बम फोड़ने वाला है, लेकिन वह बस वहीं खड़ा सिया को घूरता रह गया।
जब किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, तो सिया ने एक लंबी सांस ली और फिर सीधा अविनाश की माँ के पास जा पहुँची।
थोड़ा झुककर, अपने चेहरे पर मासूमियत लाते हुए, नज़रें बड़ी-बड़ी करते हुए बोली—
"सासू माँ... बताइए ना, मैं कहाँ जाऊँ?"
पिन-ड्रॉप साइलेंस।
टेबल पर बैठे हर इंसान की आँखें चौड़ी हो गईं!
अविनाश, जो अब तक गुस्से में सिया को घूर रहा था, उसकी आँखें भी एकदम बड़ी हो गईं!
उसके छोटे भाई अर्णव ने तो सीधा अपने मुँह में रखा पानी गटक लिया!
उसकी माँ, जो अब तक पूरे दृश्य को शांत होकर देख रही थीं, वह भी चौंक गईं, "क्या???"
और अविनाश...
वह तो जैसे करंट लगने के बाद भी वहीं खड़ा रह गया हो!
"तुमने अभी... अभी क्या कहा???" उसकी आवाज़ में अब गुस्से से ज़्यादा झटका था!
सिया ने जैसे ही सबके भाव देखे, उसे एहसास हुआ कि उससे कुछ तो बहुत बड़ा बोल दिया गया है!
उसने फौरन अपने मुँह पर हाथ रखा, आँखें हल्की बड़ी कर लीं, जैसे उसे अपनी गलती का एहसास हुआ हो।
फिर हल्के से हकलाते हुए बोली, "मेरा मतलब... आंटी! हाँ, हाँ! आंटी! वह... मुँह से निकल गया... गलती से! सॉरी, सॉरी!"
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी!
अविनाश के पूरे परिवार को जैसे हाई वोल्टेज झटका लग गया हो!
अर्णव ने हल्के से खांसकर अपनी हंसी रोकने की कोशिश की, लेकिन उसका चेहरा लाल हो चुका था।
अविनाश की माँ ने घूरकर सिया की तरफ देखा, "बेटा, यह कौन-सा नया नाटक है?"
लेकिन अविनाश को अब सिर्फ एक ही बात अटकी थी—
"तुमने मुझे सासू माँ क्यों बुलाया???"
उसका दिमाग जैसे वहीं अटक गया था।
सिया ने फौरन हाथ जोड़ लिए, "अरे गलती हो गई ना! अब गलती से निकल गया तो क्या करूँ? और वैसे भी, टेक्निकली—"
"टेक्निकली कुछ नहीं!" अविनाश ने बीच में ही टोका, उसकी भौहें चढ़ चुकी थीं, और वह अब सच में उबलने वाला था।
सिया ने लंबी सांस ली, फिर हल्की-सी मुस्कान दबाते हुए, बैग को घसीटते हुए आगे बढ़ी, "तो अब यह बताओ, मैं कहाँ रुकूँ? सोने के लिए बिस्तर चाहिए ही होगा ना?"
अविनाश की आँखें गहरी हो गईं, उसकी माँ अब भी सदमे में थीं, और अर्णव...
अर्णव को अब मज़ा आने लगा था!
लेकिन इस बार पूरे घर में खामोशी थी।
अब आगे... अविनाश क्या करेगा?
सिया को यहाँ से निकालने की कोशिश करेगा या फिर उसे रहने देगा?
घर में सिया की सास से हुई बातचीत का असर अभी भी बना हुआ था कि अविनाश के पिता ने अपना फैसला सुना दिया।
"सिया, तुम्हारा कमरा अविनाश के कमरे के बगल वाला होगा।"
टेबल पर बैठे सभी ने फिर एक-दूसरे की ओर देखा।
अविनाश का चेहरा एकदम काला पड़ गया था!
उसकी माँ कुछ कहने ही वाली थीं कि उसके पिता ने हल्के से हाथ उठा दिया— चुप रहने का इशारा।
उन्होंने सख्त नज़र से कहा, "जो हो गया सो हो गया, अब बहस की कोई ज़रूरत नहीं है। सिया यहाँ रहेगी, और यह फ़ाइनल है।"
अविनाश की माँ के होंठ कुछ देर तक खुले रहे, जैसे वो कुछ कहना चाहती थीं, परन्तु फिर चुप हो गईं।
लेकिन अविनाश?
उसके दिमाग में जैसे अलार्म बजने लगे थे!
"क्या??? उसके कमरे के बगल में??? पिताजी, आप क्या कर रहे हैं?"
उसके पिता ने बिना भाव बदले जवाब दिया, "ज़रूरत से ज़्यादा नाटक मत करो, अविनाश। अब जाकर सिया को उसके कमरे तक छोड़ दो।"
अविनाश: "मैं? मैं क्यों?"
अविनाश के पिता: "क्योंकि मैं कह रहा हूँ।"
अविनाश ने एक लंबी साँस ली, जैसे खुद को काबू में रखने की कोशिश कर रहा हो।
परन्तु इससे पहले कि वह और कुछ बोल पाता, सिया ने खुद अपना बैग उठाया और सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी। पास आते हुए एक नौकर को देखकर बोली, "आप ही चलिए साथ में, इन्हें रहने दीजिए, मैं नहीं चाहती कि अभी से ही थक जाएँ।"
घर के सभी सदस्यों के मुँह खुले के खुले रह गए।
परन्तु तभी...
सिया अचानक मुड़ी।
सब उसे देख रहे थे कि अब यह और क्या करने वाली है?
और फिर उसने अपने मासूम अंदाज़ में कहा—
"अभी रुक जाइए... बस दो मिनट में आती हूँ! मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है!"
सन्नाटा!!!
अविनाश का छोटा भाई अर्णव खुलकर हँसने लगा था!
"भैया, लग रहा है कि तुम्हारी ज़िंदगी बहुत दिलचस्प होने वाली है!"
अविनाश की माँ ने गहरी साँस ली और अपने माथे पर हाथ रख लिया।
लेकिन अविनाश?
वह अब सिर्फ़ सिया को घूर रहा था।
"इस लड़की से अब बचना मुश्किल है!"
सिया की बात सुनकर अविनाश के चेहरे पर ऐसा भाव था, जैसे वह अभी जाकर किसी कोने में सिर पटक लेगा! उसके पिता ने उसे फिर घूरा।
अविनाश के पिता (कड़े लहज़े में): "अविनाश, अब और बहस नहीं! मैंने जो कह दिया, वही होगा। जाओ और सिया को उसके कमरे तक छोड़कर आओ।"
अविनाश ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, होंठ कसकर दबा लिए, और गहरी साँस ली, जैसे खुद को काबू में रखने की कोशिश कर रहा हो।
अविनाश (मन में, गुस्से से): "क्या यही दिन देखने के लिए मैं पैदा हुआ था? पहले यह लड़की मेरे घर आई, फिर मेरे कमरे के बगल में रहने चली, और अब तो घर में जैसे उसी का राज चलने वाला है!"
लेकिन इससे पहले कि वह और कुछ बोल पाता, सिया ने अपना बैग उठाया और पास खड़े नौकर को बुलाते हुए खिलखिलाकर बोली—
सिया (हँसते हुए): "अरे आप ही चलिए, रहने दीजिए इन्हें... मैं नहीं चाहती कि अभी से ही थक जाएँ! वैसे भी गुस्से में रहना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता।"
अविनाश की आँखें हैरानी और गुस्से से फैल गईं।
अविनाश (गुस्से से, दबे हुए लहज़े में): "सिया... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई—"
लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले ही अर्णव हँस पड़ा।
अर्णव (हँसते हुए, मज़ाक उड़ाते हुए): "भैया, तुम्हारी ज़िंदगी तो अब पूरी एंटरटेनमेंट पैकेज बन चुकी है! मुझे तो लग रहा है, अगले कुछ दिनों में तुम या तो पूरी तरह बदल जाओगे... या फिर किसी पहाड़ पर जाकर सन्यासी बन जाओगे!"
अविनाश ने उसे घूरा, लेकिन कुछ बोला नहीं।
सिया का मन बदल गया था। वह अपना बैग छोड़कर किचन की ओर बढ़ गई।
सिया (हाथ ऊपर उठाते हुए, मुस्कुराकर): "अभी रुक जाइए... बस दो मिनट में आती हूँ! मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है!"
पूरा हॉल एकदम शांत हो गया।
अविनाश की माँ का सिर अब और तेज़ दर्द करने लगा था।
माँ (धीमे से, माथा पकड़ते हुए): "हे भगवान... यह लड़की मेरे बेटे को पागल करके ही छोड़ेगी!"
अविनाश ने गुस्से में अपनी मुट्ठी भींची।
अविनाश (मन में, चिढ़ते हुए): "क्या यह सच में भूखी है, या फिर जानबूझकर मुझे तंग करने के लिए नाटक कर रही है?"
लेकिन इससे पहले कि वह कुछ बोलता, सिया वापस आ गई, हाथ में एक प्लेट लिए हुए।
सिया (खुश होकर, सबको देखते हुए): "अरे हाँ, आप सब भी लीजिए ना! अकेले-अकेले खाना अच्छी बात नहीं!"
अर्णव तो अब हँसते-हँसते कुर्सी से गिरने वाला था।
अर्णव (हँसते-हँसते, ताली मारते हुए): "भैया, यह लड़की तो सुपरहिट निकली! अब तो तुम्हारी ज़िंदगी वाकई बहुत दिलचस्प होने वाली है!"
अविनाश ने उसे फिर से घूरा, लेकिन उसकी नज़रें फिर से सिया पर टिक गईं।
अविनाश (गुस्से से, भौंहें चढ़ाते हुए): "सिया, अपने कमरे में चलो!"
सिया ने मासूमियत से आँखें झपकाईं, जैसे उसे कुछ समझ ही न आया हो।
सिया (आँखें बड़ी करके, मासूमियत से): "अभी??? पर मैं तो खाने के बाद जाने वाली थी!"
अबकी बार अविनाश का सब्र पूरी तरह टूट चुका था। वह बिना कुछ बोले उसके पास आया, और झटके से उसके हाथ से प्लेट छीन ली।
अविनाश (गुस्से से, दाँत पीसते हुए): "खाना बाद में खाना! पहले अपने कमरे में चलो!"
सिया ने नकली दुखी चेहरा बनाया, होंठ नीचे कर लिए, और आँखों में हल्का सा नखरा भर लिया।
सिया (आह भरते हुए, हाथ जोड़कर): "इतने गुस्से में रहेंगे तो आप बूढ़े लगने लगेंगे, मिस्टर अविनाश! थोड़ा मुस्कुरा किया कीजिए… फेस वैल्यू बढ़ती है!"
अविनाश का मन किया कि अभी जाकर दीवार में सिर मार ले।
अविनाश (गहरी साँस लेते हुए, खुद को शांत करने की कोशिश में): "सिया... तुम हद से ज़्यादा बोल रही हो!"
सिया ने कंधे उचकाए और आखिरकार अपना बैग उठाकर चल पड़ी।
लेकिन चलते-चलते उसने फिर एक बात कही—
सिया (शरारत भरी मुस्कान के साथ): "वैसे, अच्छा हुआ जो मेरा कमरा आपके कमरे के पास है... इससे आपकी ज़िंदगी और भी दिलचस्प हो जाएगी!"
अविनाश ने गहरी साँस ली, और मन ही मन खुद को समझाया—
अविनाश (मन में, खुद से): "इस लड़की से बचना नामुमकिन है! भगवान ही जाने, आगे और क्या-क्या होगा!"
(आगे जारी…)
अविनाश ने गहरी साँस ली और मन ही मन खुद को समझाया—
अविनाश (मन में, खुद से): "इस लड़की से बचना नामुमकिन है! भगवान ही जाने, आगे और क्या-क्या होगा!"
अविनाश गुस्से में सीढ़ियाँ चढ़ते हुए सिया के पीछे-पीछे उसके कमरे तक आया। उसके चेहरे पर चिढ़ और खीज दोनों साफ दिख रही थी।
जैसे ही सिया कमरे में आई, उसने बैग एक तरफ पटका और पूरे कमरे का मुआयना करने लगी, जैसे यहाँ कोई छिपा खज़ाना ढूँढ रही हो।
अविनाश (गहरी साँस लेते हुए): "सिया, तुम इतनी ड्रामेबाज़ क्यों हो?"
सिया (हैरानी से आँखें बड़ी करके): "ड्रामेबाज़? मैं? ओहो मिस्टर अविनाश, आप मुझसे जल रहे हैं क्या?"
अविनाश (झुंझलाकर): "जल... जल रहे हैं? मैं? पागल हो गई हो क्या?"
सिया (मासूमियत से): "हाँ, थोड़ा-थोड़ा... लेकिन सिर्फ आपके लिए!"
वो मज़े से मुस्कुराई और अविनाश का दिमाग एकदम भन्ना गया।
अविनाश (सख्त लहज़े में): "बस! अब एक शब्द भी ज़्यादा मत बोलना! सो जाओ और मुझे जाने दो!"
सिया (मासूम चेहरा बनाते हुए): "अभी??? पर मुझे तो बिल्कुल भी नींद नहीं आ रही!"
वो अचानक उसके एकदम करीब आ गई, इतनी करीब कि अविनाश को अपने कदम पीछे करने पड़े। कमरा छोटा था, दीवार आ गई पीछे।
अविनाश (गुस्से से): "सिया, दूर हटो!"
सिया (शरारत से मुस्कुराते हुए): "नहीं हटूंगी! पहले बताइए, आप मुझे पसंद करने लगे हैं ना?"
अविनाश की आँखें फैल गईं।
अविनाश (सख्त आवाज़ में): "बकवास बंद करो सिया!"
लेकिन सिया ने उसे एक पल भी संभलने का मौका नहीं दिया।
सिया (हौले से): "आपको इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं लगता, मिस्टर अविनाश... फेस वैल्यू गिरती है!"
और अगले ही पल, उसने हल्के से अपने होंठ उसकी गर्दन के पास रख दिए।
अविनाश (सन्न रहकर, फौरन पीछे हटते हुए): "सिया!!! ये तुम क्या कर रही हो???"
लेकिन सिया तो जैसे मस्ती के पूरे मूड में थी। उसने एक नहीं, बल्कि उसके गाल पर भी हल्का सा किस कर दिया।
सिया (हंसते हुए): "अब आपको देखने में और भी अच्छे लगेंगे, ये छोटे-छोटे निशान आपकी पर्सनैलिटी में एक नया टच देंगे!"
अविनाश अब एकदम लाल पड़ चुका था— गुस्से से या शरम से, ये खुद उसे भी नहीं पता था।
अविनाश (गहरी साँस लेते हुए, खुद को संभालने की कोशिश में): "सिया, मैं आखिरी बार कह रहा हूँ, ये सब बंद करो!"
लेकिन सिया ने उसकी एक न सुनी।
सिया (हंसते हुए): "अच्छा चलिए, अब आप जा सकते हैं! नीचे सब आपका इंतजार कर रहे होंगे!"
अविनाश गुस्से में पैर पटकते हुए कमरे से निकला और नीचे खाने की टेबल पर पहुँचा। लेकिन जैसे ही उसकी माँ और भाई ने उसे देखा, उनकी आँखें चौड़ी हो गईं।
अर्णव (हैरानी से हंसते हुए): "भैया... ये क्या हाल बना रखा है?"
अविनाश (भौहें चढ़ाते हुए): "क्या मतलब?"
लेकिन फिर उसने देखा— डाइनिंग टेबल पर बैठे सभी लोग उसे घूर रहे थे। उसकी माँ की आँखें और भी बड़ी हो गईं।
माँ (सख्त लहज़े में): "अविनाश... तुम्हारे चेहरे और गर्दन पर ये लाल निशान कैसे आए?"
अविनाश ने चौंककर अपनी गर्दन को छूआ, और तभी उसे एहसास हुआ— सिया की लिपस्टिक के निशान अभी भी वहाँ थे!!!
अर्णव तो अब हंसते-हंसते कुर्सी से गिरने वाला था।
अर्णव (हँसते हुए, ताली बजाते हुए): "भैया, सिया भाभी तो सच में सुपरहिट निकलीं! मैं कह रहा था ना, तुम्हारी लाइफ बहुत इंटरेस्टिंग होने वाली है!"
अविनाश (गुस्से से, मन में): "सिया, तुमने तो मेरी ज़िंदगी में तूफान बन गई हो!!!"
अविनाश की साँसे अटक गईं जब उसकी माँ ने उसकी गर्दन के निशानों की तरफ इशारा किया। वह एकदम हक्का-बक्का रह गया, और उसकी हालत तब और खराब हो गई जब उसने सिया को सीढ़ियों से नीचे आते देखा— मासूमियत का झूठा नकाब ओढ़े हुए।
सिया हल्के कदमों से डाइनिंग टेबल की तरफ आई, और बिना कुछ बोले अविनाश के ठीक बगल में बैठ गई। उसकी खुशबू अविनाश के नशे में घुल गई, और वह पलभर के लिए अपना गुस्सा भी भूल गया। लेकिन फिर उसे याद आया कि यह लड़की सिर्फ उसे परेशान करने के लिए आई है।
सिया ने मुस्कुराकर प्लेट में कुछ परोसा और बिल्कुल नॉर्मल तरीके से खाने लगी, लेकिन जैसे ही उसने देखा कि अविनाश अपने खाने में बिजी हो गया है, उसने खेल शुरू कर दिया।
उसने अपने पैर को उसके पैर पर हल्का सा रख दिया।
अविनाश को हल्का सा झटका लगा, लेकिन उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया। उसने सोचा, चलो, गलती से हुआ होगा। लेकिन अगले ही पल, सिया ने अपने पैर को थोड़ा सा रगड़ा।
अविनाश की पकड़ चम्मच पर थोड़ी और मजबूत हो गई। वह जबरदस्ती अपने खाने पर ध्यान देने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी धड़कनें बढ़ रही थीं।
"क्या हुआ, अविनाश जी?" सिया ने एकदम मासूम आवाज़ में पूछा। "खाना अच्छा नहीं लग रहा?"
अविनाश ने उसकी तरफ घूरकर देखा, लेकिन वह तो ऐसे खा रही थी जैसे कुछ हुआ ही न हो।
जब सिया ने यह देखा तो उसने अपने हाथ धीरे से अविनाश की जांघ पर रख दिए।
इस बार अविनाश का दम निकलने वाला था। उसने फौरन अपने हाथ से सिया के हाथ को हटाने की कोशिश की, लेकिन सिया ने शरारत से उसकी उंगलियों को हल्का सा पकड़ लिया।
"छोड़ो," अविनाश फुसफुसाया।
"क्यों?" सिया ने अपनी उँगलियाँ उसकी उँगलियों में उलझाते हुए कहा, "ऐसे ही तो तुम्हारी हार्ट रेट बढ़ रही है, सोचो अगर असली में कुछ करूँ तो?"
अविनाश को लगा कि उसकी साँसें उखड़ने वाली हैं। उसने जैसे-तैसे खुद को संभाला, लेकिन फिर सिया ने अपनी उँगलियाँ उसकी जांघ पर हल्के से सरका दीं।
अविनाश का मुँह खाने से ज़्यादा सिया की हरकतों को संभालने में बिजी था। उसने सिया की तरफ एक गुस्से से भरी लेकिन बेबस नज़र डाली।
सिया ने आँखों में एक शरारती चमक लाते हुए उसकी प्लेट से एक टुकड़ा उठाया और अपने होठों से हल्के से खाया।
"Hmm... अच्छा बना है!" उसने एक सेक्सी अंदाज़ में कहा, और जानबूझकर अपनी उँगलियाँ अपने होंठों पर फिराईं।
अविनाश की आँखें बस वहीं अटक गईं।
लेकिन सिया यहीं नहीं रुकी। उसने धीरे से अपने बालों को एक तरफ किया, जिससे उसकी गर्दन पूरी तरह दिखने लगी। फिर उसने हल्के से गर्दन पर उँगलियाँ घुमाईं, जैसे कुछ सोच रही हो।
"अविनाश…" वो उसके कान के पास झुककर फुसफुसाई, "तुम इतने टेंशन में क्यों हो? कुछ ज़्यादा ही गर्मी नहीं लग रही?"
अविनाश ने एकदम कुर्सी पीछे खिसकाई और गहरी साँस ली।
"मुझे पानी चाहिए!" उसने जल्दी से कहा, और उठने ही वाला था कि सिया ने उसका हाथ पकड़ लिया।
अविनाश ने जैसे ही उठने की कोशिश की, सिया ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी उँगलियों की मुलायम गर्माहट ने अविनाश को और असहज कर दिया।
सिया (शरारती मुस्कान के साथ): "जी, आप बिना खाए ऐसे कैसे जा सकते हैं? खाने से ज़्यादा ज़रूरी कोई बात है क्या?"
उसकी आवाज़ में हल्की मीठी छेड़खानी थी, पर उसकी आँखों की गहराई में कुछ और ही था—एक जुनून, एक इरादा। अविनाश को लगा जैसे वह शिकार है और सिया अपने खेल का मज़ा ले रही है।
अविनाश (गुस्से में हाथ झटकते हुए): "मुझे भूख नहीं है!"
वह गुस्से में उठकर तेज़ कदमों से बाहर निकल गया। टेबल पर बैठे सभी लोग हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे। सिया हल्के से मुस्कुराई, जैसे यह सब उसके लिए सामान्य हो।
अविनाश की माँ ने गहरी साँस लेते हुए सिया की तरफ देखा; उनके चेहरे पर सवाल और सख्ती दोनों थे।
माँ (सख्त लहज़े में): "सिया, ये सब..."
पर इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी करतीं, अविनाश के पिता ने हल्के से हाथ उठाकर उन्हें रोक दिया। उनकी आँखों में एक अलग सख्ती थी, जैसे वे हालात समझ चुके थे और किसी तरह की टकराहट नहीं चाहते थे।
माँ ने चुपचाप उन्हें देखा और गहरी साँस लेकर चुप हो गईं।
सिया ने हल्का सा सिर झुका लिया, पर उसकी मुस्कान बरकरार थी। उसे पता था कि उसने जो चाहा, वह हुआ।
सिया बस अविनाश को अपने करीब करना चाहती थी; उसे खुद नहीं पता था कि अपने आप में ऐसा क्या है जो उसे उसके पीछे पागल कर चुका है। दूसरी तरफ अविनाश...
अविनाश ने गुस्से में अपने कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया और अपनी साँसें संभालने की कोशिश की। पर उसकी धड़कनें बेकाबू थीं।
उसने गुस्से में बेडशीट उठाकर ज़मीन पर फेंक दी, तकिये को दीवार पर दे मारा और मेज़ पर रखे गिलास को इतनी ज़ोर से पकड़ा कि उसके हाथ की नसें उभर आईं।
अविनाश (गुस्से में खुद से): "सिया, तुम... तुम बहुत गलत कर रही हो! मेरे करीब आने की कोशिश मत करना, वरना..."
उसकी आवाज़ अचानक रुक गई।
उसकी साँसें तेज़ थीं, आँखें लाल हो चुकी थीं, और दिमाग में सिर्फ़ एक ही चीज़ चल रही थी—सिया की हरकतें।
वह उसके चेहरे पर खेलती शरारती मुस्कान, वह हल्के से होंठ काटने का अंदाज़, वह उसकी गर्दन पर उँगलियों को फिराने का तरीका, उसकी खुशबू... सब कुछ जैसे दिमाग पर हावी हो रहा था।
उसने ज़ोर से बालों पर हाथ फेरा और खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। बाहर की ठंडी हवा भी उसके अंदर के उबाल को ठंडा नहीं कर पा रही थी।
दिल और दिमाग की लड़ाई
(मन में)
"ये लड़की मुझे पूरी तरह पागल कर देगी! हर जगह, हर वक्त बस वही...!"
पर फिर उसके अंदर का सख्त इंसान जागा।
"नहीं! सिया जैसी लड़की मेरी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बन सकती! वह बस एक खेल समझ रही है, और मैं... मैं इस खेल का हिस्सा नहीं बनने वाला!"
उसने गहरी साँस ली और आँखें बंद कर लीं। पर जैसे ही उसने आँखें बंद कीं, उसे फिर वही पल याद आ गए—सिया का उसके कान के पास झुककर फुसफुसाना, उसके हाथों का उसकी जाँघ पर हल्का सा दबाव, उसकी आँखों की वह शरारती चमक...
अविनाश (गुस्से से खुद को संभालते हुए): "सिया... तुम... तुम नहीं जानती कि..."
वह फिर बीच में रुक गया। उसके अंदर कुछ ऐसा था जो खुद उसे भी समझ नहीं आ रहा था।
"ये लड़की सिर्फ़ मेरे सब्र का इम्तिहान ले रही है, पर... अगर यही खेल उल्टा पड़ गया, तो?"
अचानक उसके चेहरे पर एक अलग भाव आया। गुस्सा अब भी था, पर अब उसमें एक अजीब सी चुनौती भी थी।
"अब मैं देखता हूँ, सिया, तुम ये खेल कैसे खेलती हो!"
अविनाश गुस्से में पैर पटकते हुए अपने कमरे में पहुँचा। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, चेहरा लाल हो चुका था और दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात घूम रही थी—
"सिया, तुम बहुत गलत कर रही हो!"
उसने गुस्से में अपनी बेडशीट खींचकर ज़मीन पर फेंक दी। फिर मेज़ पर रखी घड़ी, पानी का गिलास—सब कुछ उठा-उठाकर फेंकने लगा। उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, दिल जैसे किसी अदृश्य बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।
"सिया, तुम नहीं जानती कि तुम किससे खेल रही हो..."
उसके होंठों से निकला, पर उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। वह खुद को रोकना चाहता था, पर उसका दिमाग और दिल जैसे किसी जंग में फँस गए थे।
तभी दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई।
अविनाश की साँसें थमीं। उसने दरवाज़े की तरफ़ देखा और फिर अपनी गुस्से में उठी उँगलियाँ बालों में फिराईं। दरवाज़ा दोबारा खटखटाया गया।
"अविनाश?"
उसने गहरी साँस ली और एकदम से अपना एक्सप्रेशन बदल लिया। चेहरे पर एक नकली मुस्कान लाकर, अपनी गुस्से में उठी चीज़ों को नज़रअंदाज़ करते हुए, वह दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया।
सामने सिया थी। पर इस बार उसकी आँखों में वही पुरानी शरारत नहीं थी, बल्कि हल्की सी झिझक और जिज्ञासा थी।
"क्या हुआ? इतनी जल्दी सोने चले गए?" सिया ने हल्के से पूछा, उसे उम्मीद थी कि अविनाश अब भी चिढ़ा हुआ होगा।
पर इसके उलट, अविनाश ने एकदम सामान्य तरीके से मुस्कुराकर कहा—
"हाँ, अब सोना चाहिए न! कल ऑफ़िस जाना है। वैसे भी रात बहुत हो गई है।"
सिया की भौहें हल्की सी चढ़ गईं। यह कौन सा अविनाश था? वह आदमी जो हमेशा उससे दूर भागता था, जो हर बार उसकी हरकतों पर चिढ़ता था, अचानक इतनी प्यार से बात क्यों कर रहा था?
"तुम ठीक हो?" सिया ने अजीब तरीके से उसे देखा।
अविनाश फिर से हल्का सा हँसा और अपना सिर हिलाया।
"हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और अब तुम्हें भी सो जाना चाहिए।"
सिया का दिल हल्का सा धड़क उठा। उसे यह अजीब लग रहा था, पर साथ ही अच्छा भी लग रहा था।
"अच्छा... ठीक है। गुड नाइट!" सिया ने उसे ध्यान से देखा, जैसे उसकी चालाकी पकड़ने की कोशिश कर रही हो।
अविनाश ने गहरी नज़रों से उसकी आँखों में झाँका, फिर हल्का सा मुस्कुराया—
"गुड नाइट, सिया!"
और धीरे से दरवाज़ा बंद कर दिया।
सिया अपने कमरे में पहुँची और दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने गहरी साँस ली और अपने होठों पर उँगलियाँ फिराईं।
"यह क्या था?" उसने खुद से पूछा।
अविनाश ने आज पहली बार उससे इतनी सामान्य और मीठी बातें की थीं। वह आदमी, जो हमेशा उसे डाँटता था, उसकी हरकतों पर चिढ़ता था, आज इतना सहज और मुस्कराहट से भरा क्यों था?
उसने अपना फ़ोन उठाया और खुद को आईने में देखा। उसके होंठों पर अनजाने में एक मुस्कान आ गई।
"क्या ये सच में अविनाश था?"
वह बिस्तर पर बैठी और तकिए को गोद में लेकर सोचने लगी।
"अगर यही अविनाश का असली रूप है, तो यह मुझे पहले क्यों नहीं दिखा?"
उसका दिल हल्का सा धड़का।
"क्या मुझे यह अविनाश पसंद आ रहा है?"
पर फिर उसने अपना सिर झटका।
"नहीं! ये वही अविनाश है जो हमेशा मुझसे बचता था। अब अचानक से इतना अच्छा क्यों बन रहा है?"
उसका दिमाग लगातार सवालों में उलझता जा रहा था, पर कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में एक अजीब सा सुकून भी था।
वह तकिए पर सिर रखकर आँखें बंद करने की कोशिश करने लगी, पर अविनाश की मुस्कान उसके दिमाग से हट ही नहीं रही थी।
सिया तकिए को कसकर पकड़े लेटी रही, लेकिन उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। उसका दिल रह-रहकर तेज़ धड़क रहा था, और दिमाग में सिर्फ़ एक ही ख्याल घूम रहा था—अविनाश।
"आज पहली बार उसने मुझसे इतनी सॉफ्टली बात की… इतनी मीठी हँसी, वो गहरी नज़रें… ये सब अचानक क्यों?"
वह बेचैनी से करवट बदलने लगी।
"कहीं वो सच में मुझसे दूर भागते-भागते थक तो नहीं गया?"
उसके अंदर हल्का सा डर उठा।
"या फिर… वो भी मेरे बारे में कुछ फील करने लगा है?"
यह ख्याल ही उसके चेहरे पर हल्की लाली खींच गया। उसने खुद को शांत करने के लिए गहरी साँस ली, लेकिन दिमाग अब भी उन्हीं पलों में उलझा हुआ था।
दूसरी तरफ, अविनाश भी करवटें बदल रहा था। उसने आँखें बंद करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही पलकें झपकीं, उसे फिर वही लम्हें याद आने लगे—
सिया की बड़ी-बड़ी आँखें, उसकी हल्की मुस्कान, उसके होंठों पर अनकही बातें, उसकी छुअन की गर्माहट…
उसने गुस्से में आँखें खोलीं और तकिए को एक तरफ़ फेंक दिया।
"ये लड़की सच में मेरे दिमाग से नहीं निकल रही!"
उसने झुंझलाकर माथे पर हाथ फेरा और खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई, लेकिन उसके अंदर की गर्मी को शांत करने में नाकाम रही।
"अगर सिया ये सोच रही है कि मैं उसके खेल का हिस्सा बन जाऊँगा, तो वो गलत है।"
लेकिन उसके ही अंदर से एक आवाज़ आई—
"अगर ये सिर्फ़ खेल नहीं हुआ तो?"
अविनाश ने झटके से सिर हिलाया।
"नहीं! ये सब बस एक चाल है। वो मुझे उलझाना चाहती है, और मैं उसकी इस चाल में फँसने वाला नहीं।"
पर उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान आ गई—
"चलो सिया, देखते हैं… ये खेल कब तक चलता है!"
अगली सुबह सिया जल्दी उठ गई थी, लेकिन उसका मन अब भी उलझा हुआ था। उसने अपनी पसंदीदा ड्रेस पहनी, खुद को शीशे में देखा और एक शरारती मुस्कान के साथ खुद से कहा—
"आज देखती हूँ, अविनाश की ये नई साइड कितनी देर तक बनी रहती है!"
नीचे हॉल में, अविनाश पहले से ही तैयार होकर बैठा था। उसके चेहरे पर वही ठहराव, वही गंभीरता थी।
जैसे ही सिया सीढ़ियों से नीचे उतरी, उसकी नज़रें सीधा अविनाश पर पड़ीं। लेकिन इस बार कुछ अलग था।
अविनाश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ़ देखा।
सिया के कदम हल्के से ठिठके।
"ये… ये फिर से मुस्कुरा क्यों रहा है?"
उसका दिल अजीब तरह से धड़क उठा। लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाला और नार्मल दिखने की कोशिश करते हुए डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ी।
जैसे ही उसने कुर्सी खींची, अचानक—
"गुड मॉर्निंग, सिया!"
अविनाश की गहरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
सिया की उंगलियाँ रुक गईं।
"गुड मॉर्निंग?"
उसने धीमे से सिर उठाया और चौंक कर अविनाश की तरफ़ देखा।
"अब ये क्या नया ड्रामा है?"
लेकिन अविनाश बस हल्की मुस्कान लिए अपनी कॉफ़ी पी रहा था, जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं।
सिया ने आँखें छोटी कीं। सिया को कुछ अजीब लगा। सोचा था कि शायद रात की तरह फिर कोई एक्सप्रेशन दिखेगा, कोई झिझक या कोई चिढ़, लेकिन सब नार्मल था। थोड़ा और फ़्लर्ट करने की सोची।
बैठते हुए, हल्की मुस्कान के साथ कहा, "वैसे, रात को इतनी मीठी बातें करके सोने का आईडिया बहुत अच्छा था, अविनाश। सोच रही हूँ, रोज़ रात ऐसी बातें हों।"
बिल्कुल कूल एक्सप्रेशन के साथ जवाब आया, "हाँ, क्यों नहीं! वैसे भी अच्छी नींद के लिए अच्छे ख्याल ज़रूरी होते हैं।"
मुँह थोड़ा खुला रह गया। लगा था कि चिढ़ जाएगा या कुछ अजीब रिएक्शन देगा, लेकिन कोई असर ही नहीं था!
थोड़ा और छेड़ते हुए कहा, "मतलब बातें अच्छी लगीं?"
हल्की मुस्कान के साथ जवाब आया, "बिल्कुल। वैसे तैयार हो जाओ, साथ चलना है।"
आश्चर्य से पूछा, "कहाँ?"
शांत स्वर में जवाब मिला, "ऑफ़िस नहीं, एक मीटिंग में। पर्सनल असिस्टेंट हो ना, वहाँ जाना ज़रूरी है।"
बस देखती रह गई। लगा था कि शायद इग्नोर करेगा या कहेगा कि ऑफ़िस में मिलते हैं, लेकिन खुद साथ ले जा रहा था!
हल्की मुस्कान दबाते हुए कहा, "ओह, तो अब ज़रूरत महसूस करने लगे हो?"
बिल्कुल सीधे तरीके से जवाब आया, "बिल्कुल। एक असिस्टेंट का बॉस के साथ जाना ज़रूरी होता है, और मेरी असिस्टेंट हो, तो चलना चाहिए।"
अब तक पूरा यकीन हो चुका था—अविनाश पागल करने की कसम खा चुका है!
बस देखती रह गई। लगा था कि शायद वह उसे अनदेखा करेगा या कहेगा कि ऑफिस में मिलते हैं, लेकिन खुद साथ ले जा रहा था!
हल्की मुस्कान दबाते हुए उसने कहा, "ओह, तो अब ज़रूरत महसूस करने लगे हो?"
बिल्कुल सीधे तरीके से जवाब आया, "बिल्कुल। एक असिस्टेंट का बॉस के साथ जाना ज़रूरी होता है, और मेरी असिस्टेंट हो, तो चलना चाहिए।"
सिया को बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था अविनाश का बदला हुआ रूप, लेकिन उसे यह बदलाव अच्छा लग रहा था। अविनाश अपनी कार में उसे अपने साथ ले गया। शहर से दूर, सुनसान इलाके में जाकर उसने कार रोकी। वहाँ एक पुरानी सी हवेली थी, जिसकी दीवारों पर वक्त की मार साफ दिखाई दे रही थी।
सिया ने चारों ओर नज़र दौड़ाई और थोड़ा असमंजस में पड़कर बोली, "सर, यह तो बहुत ही पुरानी हवेली लग रही है… यहाँ पर मीटिंग?"
अविनाश हल्का मुस्कुराया और उसकी ओर देखते हुए बोला, "हाँ, मेरी कुछ मीटिंग यहाँ भी होती हैं। और आज… तुम्हें भी पता चल जाएगा कि मेरी कौन-कौन सी और कैसी मीटिंग यहाँ होती हैं।"
उसकी बात सुनकर सिया के मन में और भी सवाल उठने लगे, लेकिन उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। हवेली के आसपास घना सन्नाटा था, जो माहौल को और भी रहस्यमयी बना रहा था।
अविनाश ने गाड़ी रोकी और सिया की ओर देखा। उसकी मुस्कान पहले से भी ज़्यादा रहस्यमयी लग रही थी। सिया ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई। यह एक पुरानी, सुनसान हवेली थी, जिसकी दीवारों पर वक्त की मार साफ दिख रही थी।
"सर, यह तो बहुत पुरानी हवेली लग रही है… यहाँ पर मीटिंग?" सिया ने संकोच भरे स्वर में पूछा।
अविनाश हल्का सा हँसा और बोला, "हाँ, मेरी कुछ मीटिंग यहाँ भी होती हैं, और आज तुम्हें भी पता चल जाएगा कि मेरी मीटिंग कैसी होती हैं।"
सिया के दिल की धड़कन तेज हो गई। वह अनजाने डर से घिरने लगी। अविनाश ने हवेली के भारी दरवाजे को धक्का दिया, और दोनों अंदर दाखिल हुए।
अंदर का नज़ारा चौंकाने वाला था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसमें लकड़ी की पुरानी मेज़ रखी थी। उसके चारों ओर कुछ विदेशी लोग बैठे थे। उनके चेहरे गंभीर थे, और उनके हावभाव से साफ लग रहा था कि यहाँ कोई आम बातचीत नहीं हो रही थी।
"अविनाश, यह सौदा सही नहीं है। हमें इसे यहीं खत्म कर देना चाहिए। यह बहुत जोखिमभरा है," उनमें से एक विदेशी ने घबराए स्वर में कहा।
अविनाश ने शांत भाव से कुर्सी खींची और बैठ गया। उसकी आँखों में हल्की चमक थी, मानो वह इस माहौल का पूरा मज़ा ले रहा हो।
"जोखिम तो हर बड़े काम में होता है। लेकिन डर उन्हें लगता है जिनके पास कुछ खोने के लिए होता है," अविनाश ने ठंडे स्वर में कहा।
विदेशी व्यक्ति ने एक गहरी साँस ली। "मैं अब इस खेल का हिस्सा नहीं बन सकता। मुझे इससे बाहर निकलना होगा।"
सिया को महसूस हुआ कि कुछ बहुत गलत हो रहा है। उसकी हथेलियाँ पसीने से भीग गईं।
अविनाश ने धीरे से अपनी जैकेट में हाथ डाला और वहाँ से एक चमकती हुई छुरी निकाली। उसका तीखा धार सिया की आँखों में चुभने लगा।
विदेशी व्यक्ति ने घबराकर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, अविनाश ने उसकी गर्दन पर छुरी चला दी।
चारों तरफ सन्नाटा छा गया। रक्त की धार फर्श पर फैल गई। सिया की आँखें फटी रह गईं। उसकी साँस अटक गई। उसकी चीख़ हलक में ही दब गई। विदेशी व्यक्ति का शरीर काँपा, उसकी आँखें अविश्वास और भय से चौड़ी हो गईं। वह धीरे-धीरे नीचे गिर पड़ा।
सिया की टाँगों में जैसे जान ही नहीं बची थी। उसका पूरा शरीर काँपने लगा। उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
"ये… ये क्या कर दिया आपने?" उसकी आवाज कांप रही थी।
अविनाश ने उसकी ओर देखा और हल्के से मुस्कराया, "जो खेल में शामिल होता है, उसे यह भी समझना पड़ता है कि इससे बाहर निकलने का एक ही तरीका होता है—मौत।"
सिया ने सिर हिलाया। उसकी साँसें तेज हो गईं। वह घबराकर पीछे हटने लगी।
"मुझे यहाँ से जाने दो… प्लीज… मुझे जाने दो…" वह फूट-फूट कर रोने लगी।
अविनाश की आँखों में कोई दया नहीं थी।
"अब तुम इस दुनिया में आ चुकी हो, सिया… अब वापसी का कोई रास्ता नहीं।"
हवेली के अंदर सिर्फ सिया की सिसकियाँ गूंज रही थीं, और खून की गंध हर तरफ फैल चुकी थी…
सिया के पूरे शरीर में कंपकंपी दौड़ रही थी। उसकी आँखों से आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वह घबराकर पीछे हटने लगी, जैसे किसी तरह इस डरावनी जगह से भाग सके।
"नहीं... नहीं... मुझे आपके साथ नहीं रहना है!" सिया ने रोते हुए कहा। उसकी आवाज काँप रही थी, गला सूख चुका था, और दिल किसी तूफान की तरह तेज़ धड़क रहा था।
वह तेज़ी से पीछे मुड़ी, लेकिन इससे पहले कि वह एक कदम भी बढ़ा पाती, अविनाश ने झटके से उसका हाथ पकड़ लिया।
"छोड़ो मुझे… प्लीज!" सिया ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अविनाश की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वह चाहकर भी हिल नहीं सकी।
अविनाश ने उसे अपनी ओर खींचा, इतना करीब कि सिया की साँसें रुकने लगीं। उसका चेहरा अविनाश के ठीक सामने था। उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था, लेकिन अविनाश की आँखों में कुछ और ही था—एक अजीब-सा जुनून, एक खतरनाक पागलपन।
उसने सिया की ठोड़ी को हल्के से ऊपर उठाया और गहरे स्वर में बोला, "क्यों? प्यार करती थी ना मुझसे? दावे तो बड़े किए थे अपने प्यार के!"
सिया की आँखें आँसुओं से भर चुकी थीं। उसका बदन बेजान-सा लग रहा था।
"मैं... मैं नहीं रह सकती आपके साथ... प्लीज, मुझे जाने दो!"
अविनाश के होठों पर हल्की मुस्कान आई। उसने अपनी पकड़ और मज़बूत कर ली।
"इतना भी आसान नहीं है, सिया… प्यार किया है तो उसकी सज़ा भी भुगतनी पड़ेगी।"
सिया की आँखों में डर और गहरा हो गया। उसकी पूरी दुनिया जैसे थम गई थी। हवेली की खामोशी के बीच सिर्फ उसकी सिसकियाँ गूंज रही थीं…
अविनाश के होठों पर हल्की मुस्कान आई। उसने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।
"इतना भी आसान नहीं है, सिया… प्यार किया है तो उसकी सजा भी भुगतनी पड़ेगी।"
सिया की आँखों में डर और गहरा हो गया। उसकी पूरी दुनिया जैसे थम गई थी। हवेली की खामोशी के बीच सिर्फ उसकी सिसकियाँ गूंज रही थीं।
सिया के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसकी आँखों में सिर्फ डर था—अविनाश का खौफ, उस खून का खौफ, जो अभी कुछ ही पलों पहले उसकी आँखों के सामने बहा था। उसका पूरा जिस्म काँप रहा था।
वह सिसकते हुए बोली, "आपने… आपने किसी का खून कर दिया, अविनाश…!"
अविनाश ने हल्की सी हंसी के साथ उसकी ठोड़ी को ऊँगलियों से ऊपर उठाया। उसकी आँखों में जरा भी पछतावा नहीं था, बल्कि एक अजीब-सा सुकून था, जैसे यह सब उसके लिए आम बात हो।
"तो? खून ही तो किया है, सिया…" वह बेहद शांत था, जैसे किसी ने उससे कोई मामूली बात पूछी हो। "और वैसे भी, जब हम किसी से सच्चा प्यार करते हैं, तो उसके बारे में सबकुछ एक्सेप्ट करना पड़ता है—अच्छा भी, बुरा भी। क्यों, है ना?"
सिया ने काँपते हुए सिर हिलाया। उसकी साँसें तेज चल रही थीं।
अविनाश ने हल्के से झुककर उसके कान में फुसफुसाया, "तुम तो मुझसे बहुत प्यार करती हो, सिया… अब क्या हुआ? मेरा यह रूप पसंद नहीं आया?"
सिया ने रोते हुए सिर झुका लिया। वह बुरी तरह से घबराई हुई थी, लेकिन उसके दिल की गहराइयों में कहीं न कहीं, यह डर फीका पड़ने लगा था।
अविनाश ने उसकी कमर में हाथ डाला और उसे अपनी ओर और करीब कर लिया। उसकी साँसें अब सिया के चेहरे को छू रही थीं।
"डर तो लग रहा है ना?" उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।
सिया की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार उनमें सिर्फ डर नहीं था। उसमें कुछ और भी था—एक कन्फ्यूजन, एक उथल-पुथल, एक अजीब सा एहसास।
उसने अपने काँपते हाथों से अविनाश के चेहरे को छू लिया।
"हाँ, डर तो लग रहा है…" उसकी आवाज अब भी कांप रही थी, लेकिन उसमें कुछ और भी था—एक यकीन।
अविनाश उसे देखकर थोड़ा चौंका।
सिया की आँखों में अब हल्की नमी थी, लेकिन साथ में एक अलग ही चमक भी थी।
"लेकिन…" सिया ने गहरी सांस ली और फिर कहा, "इस डर से मेरा प्यार छोटा नहीं पड़ सकता। मुझे तुम्हारे साथ रहना है, अविनाश।"
अविनाश ने अपनी आँखें संकरी कीं, मानो यह सुनकर थोड़ा हैरान हुआ हो।
"मतलब? तुम्हें अब भी मुझसे डर नहीं लग रहा?"
सिया ने आँसू पोंछते हुए उसकी आँखों में देखा और हल्के से मुस्कुराई।
"डर तो लगता है, लेकिन तुम्हारे बिना रहने का डर इससे भी बड़ा है। मुझे तुम्हें छोड़कर नहीं जाना। तुम चाहे जैसे भी हो, मैं तुम्हें वैसे ही चाहती हूँ।"
हवेली की मद्धम रोशनी में सिया की बड़ी-बड़ी आँखों में चमक थी—डर, यकीन और बेइंतहा प्यार की। अविनाश के लिए यह नज़ारा हैरान कर देने वाला था।
उसने अपने डरावने सच को सिया के सामने रखा था, यह सोचकर कि वह भी बाकी सबकी तरह भाग जाएगी, उसके खूनी हाथों को देखकर नफरत से भर जाएगी… मगर नहीं, यह लड़की तो कुछ और ही निकली।
वह उसे छोड़कर नहीं जा रही थी।
अविनाश के होंठों पर हल्की मगर गहरी मुस्कान आई। उसने सिया के चेहरे पर उँगलियाँ फिराईं, मानो उसके फैसले की गहराई को टटोल रहा हो।
"तुम सच में पागल हो, सिया… इतना प्यार? इतना भरोसा? क्या तुम जानती भी हो कि तुम किससे प्यार कर रही हो?"
सिया ने हल्के से सिर हिलाया।
"हाँ, जानती हूँ। और अब सबकुछ देखने के बाद भी… मैं तुम्हें चुनती हूँ, अविनाश।"
अविनाश ने गहरी साँस ली। उसके अंदर कुछ टूट रहा था, कुछ दरक रहा था। गुस्सा, दर्द, कड़वाहट—सबकुछ उलझ रहा था।
"यह सब एक ख्वाब नहीं है, सिया। यह मेरा सच है। मैं वही हूँ जिसे तुमने अभी देखा। यह मेरा असली रूप है।"
सिया ने उसकी आँखों में देखा, एक ऐसी नर्मी के साथ जो अविनाश को चुभने लगी।
"मैंने तुमसे कहा था ना, प्यार अच्छा-बुरा देखकर नहीं किया जाता… बस हो जाता है।"
अविनाश के हाथ अचानक से ढीले पड़ गए। वह सिया को और करीब लाना चाहता था, मगर एक अजीब-सी बेचैनी ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
यह लड़की डर क्यों नहीं रही?
वह एक झटके में पीछे हटा और एक गहरी, खौफनाक हंसी हँसा।
"तुम्हें पता भी है कि तुम क्या कह रही हो?"
सिया एक कदम आगे बढ़ी, "हाँ। और तुम्हें भी पता है कि मैं सही कह रही हूँ।"
अविनाश का चेहरा सख्त हो गया। उसने अपनी उँगलियाँ सिया की ठोड़ी के नीचे रखीं और उसे अपनी तरफ झुका लिया।
"अगर मैं कहूँ कि मैं तुम्हें कभी प्यार नहीं करता था?"
सिया की आँखों में दर्द छलक आया, मगर उसने हिम्मत नहीं हारी।
"तो मैं कहूँगी कि झूठ बोल रहे हो।"
अविनाश की पकड़ और मजबूत हो गई। उसकी आँखों में एक अजीब-सा तूफान था।
"अगर मैं कहूँ कि तुम मेरे लिए बस एक खेल थी?"
सिया की साँसें भारी हो गईं, लेकिन उसने खुद को संभाला।
"तो मैं कहूँगी कि खेल में सिर्फ एक ही नहीं खेलता, अविनाश। इस खेल में मैं भी थी, और मुझे पता है कि तुमने इसे दिल से खेला है।"
अविनाश का जबड़ा कस गया। उसके अंदर गुस्से का एक सैलाब उमड़ने लगा। उसने सोचा था कि सिया डरकर भाग जाएगी, उसकी असलियत को देखकर नफरत से भर जाएगी… मगर वह तो और भी मजबूत होकर खड़ी थी।
उसने झटके से सिया का हाथ छोड़ा और एक कदम पीछे हट गया।
"तुम जानती नहीं हो कि तुम क्या कर रही हो, सिया।"
सिया ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया, मगर अविनाश ने उसे रोक दिया।
"नहीं! अब और कुछ मत कहना!" उसकी आवाज़ में घबराहट थी, गुस्सा था, और सबसे ज्यादा… हार का एहसास था।
सिया की आँखों से आँसू बह निकले, "तुम मुझसे भाग क्यों रहे हो, अविनाश?"
अविनाश ने एक कड़वी मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि मैं तुमसे प्यार नहीं करता और ना ही कभी किसी से कर सकता हूँ।"
और अगले ही पल, वह मुड़कर चल दिया।
सिया ने रोते हुए उसे रोकने की कोशिश की, मगर वह तेजी से हवेली के बड़े दरवाजे की ओर बढ़ा।
"अविनाश… मत जाओ…!"
मगर अविनाश नहीं रुका।
वह गुस्से में था—खुद पर, सिया पर, और उस अजीब-से एहसास पर जो उसके अंदर उथल-पुथल मचा रहा था।
सिया वहीं खड़ी रही, आँसू बहते रहे, लेकिन उसके चेहरे पर हार नहीं थी।
"तुम वापस आओगे, अविनाश…" वह हल्के से फुसफुसाई, "क्योंकि प्यार कभी अधूरा नहीं रहता…"
हवेली की खामोशी में उसकी आवाज़ गूंजती रही… और अंधेरे में खोते हुए अविनाश के कदम भी।
हवेली की खामोशी ज्यों की त्यों बनी हुई थी। केवल सिया की हल्की-हल्की सिसकियाँ और ठंडी हवा की सरसराहट ही उसके अकेलेपन की गवाह थीं। उसकी निगाहें दरवाज़े पर टिकी थीं, जहाँ से कुछ देर पहले अविनाश गुस्से में बाहर निकला था।
अंदर ही अंदर उसका दिल चीख रहा था—‘रुक जाओ, मत जाओ!’ लेकिन वह जानती थी कि अविनाश के दिल तक पहुँचने के लिए उसे केवल आँसू बहाने से ज़्यादा कुछ करना होगा।
सिया ने अपनी सिसकियाँ रोकने की कोशिश की और धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसके पैर अब भी काँप रहे थे, लेकिन उसका हौसला पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत था।
अविनाश हवेली से बाहर निकलते ही तेज़ कदमों से अपनी कार की ओर बढ़ा। गुस्सा उसके हर कदम में झलक रहा था। वह बार-बार खुद से यही सवाल कर रहा था—‘क्यों? क्यों नहीं भागी वह? क्यों नहीं डरती मुझसे?’
उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। उसने अपनी कार का दरवाज़ा खोला, मगर बैठने से पहले ही उसने अपने हाथों को देखा—वे अब भी खून से सने हुए थे।
एक तीखी हँसी उसके होंठों से निकली।
“प्यार…” उसने खुद से बुदबुदाया, “कैसा प्यार? मैं इस लायक नहीं हूँ, सिया।”
वह कार में बैठ गया और स्टीयरिंग पर सिर टिकाकर गहरी साँस ली। लेकिन उसकी बेचैनी कम नहीं हुई। उसकी आँखों में सिया का चेहरा घूम रहा था—उसका डर, उसकी हिम्मत, और सबसे बढ़कर, उसकी वह जिद, जिसने अविनाश को पूरी तरह झकझोर दिया था।
“तुम वापस आओगे, अविनाश… क्योंकि प्यार कभी अधूरा नहीं रहता…”
सिया की कही हुई बात उसके कानों में गूँज रही थी।
“नहीं, सिया…” उसने खुद से कहा, “तुम गलत हो। मैं लौटकर नहीं आऊँगा।”
लेकिन क्या वह सच में अपने ही कहे शब्दों पर यकीन कर पा रहा था?
सिया अब भी हवेली के अंदर थी। उसने अपने आँसू पोंछे और अपने डर को पीछे छोड़ने का फैसला किया। उसे अविनाश तक पहुँचना था। उसे यह एहसास करवाना था कि वह अकेला नहीं है।
उसने गहरी साँस ली और अपने फ़ोन की ओर बढ़ी। उसका हाथ काँप रहा था, लेकिन उसने खुद को रोका नहीं।
“अविनाश…” उसने धीमे से उसका नाम लिया और उसे कॉल करने के लिए फ़ोन उठाया। लेकिन तभी दरवाज़े की तरफ़ एक हल्की आहट हुई।
सिया ने तुरंत नज़र घुमाई।
दरवाज़ा अब भी थोड़ा-सा खुला हुआ था, और बाहर की ठंडी हवा अंदर आ रही थी। लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। क्या वह वापस आ गया था?
“अविनाश…?” उसने धीमे से पुकारा और आगे बढ़ी।
पर जैसे ही उसने दरवाज़े के पास कदम रखा, अचानक एक तेज़ झोंका आया और दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। सिया डर के मारे पीछे हट गई।
हवेली की खामोशी और गहरी हो गई थी। सिया का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने एक बार फिर दरवाज़े की ओर देखा।
वह जानती थी कि उसे अब रुकना नहीं है।
उसने दरवाज़ा खोला और बाहर की ओर कदम बढ़ाए।
“अगर तुम मुझे छोड़कर जा सकते हो, अविनाश… तो मैं भी तुम्हें ढूँढ सकती हूँ।”
सिया का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर अब कोई शिकन नहीं थी। उसने अपने डर को पीछे छोड़ दिया था। उसे पता था कि अविनाश कहाँ होगा—वह हमेशा अपने ऑफिस जाता था जब उसे किसी बात से बचना होता था।
अविनाश का ऑफिस
अविनाश अपनी कुर्सी पर बैठा था, मगर उसका ध्यान सामने रखी फ़ाइलों पर नहीं था। उसकी उंगलियाँ मेज़ पर अनजाने में हल्की-हल्की थपकियाँ दे रही थीं, और उसकी आँखें एक जगह टिकी हुई थीं—शायद किसी अनदेखी सोच में डूबी हुईं।
उसने अपनी आँखें बंद की और लम्बी साँस ली, लेकिन चैन नहीं मिला। सिया की आवाज़ अब भी कानों में गूँज रही थी—“तुम वापस आओगे, अविनाश… क्योंकि प्यार कभी अधूरा नहीं रहता…”
“नहीं सिया… तुम गलत हो…” उसने बुदबुदाया।
तभी दरवाज़े की ओर से आहट हुई।
उसने धीरे से नज़रें उठाईं।
सिया वहीं खड़ी थी।
ना कोई शिकवा, ना कोई आँसू, ना कोई गुस्सा। बस एक शांत चेहरा, जैसे वह यहाँ आने के लिए ही बनी हो।
अविनाश ने उसे देखा, फिर वापस अपनी कुर्सी पर टिक गया, मानो उसकी मौजूदगी का कोई असर नहीं हुआ हो।
“क्या चाहिए?” उसने बेरुखी से पूछा।
सिया आगे बढ़ी। “सिर्फ़ सच।”
अविनाश ने हल्की हँसी भरी, मगर उसमें कोई मज़ाक नहीं था। “सच? कौन सा सच, सिया?”
वह उसके डेस्क के पास आकर रुकी। “जिससे तुम खुद भाग रहे हो।”
अविनाश की उंगलियाँ एक पल के लिए रुकीं। उसने सिया की आँखों में देखा—गहराई तक।
“मैं किसी से नहीं भाग रहा,” उसने ठंडे लहजे में कहा।
“झूठ।” सिया ने सीधे उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “अगर भाग नहीं रहे होते, तो मुझे यहाँ देखने के बाद भी तुम्हारी साँसें इतनी तेज़ क्यों हो गईं?”
अविनाश ने तुरंत नज़रें फेर लीं। लेकिन सिया ने अपनी जगह नहीं छोड़ी।
“मैं तुम्हें मजबूर करने नहीं आई,” वह धीमे से बोली, “बस यह बताने आई हूँ कि मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूँ।”
कमरे में कुछ सेकंड तक खामोशी छाई रही। अविनाश के पास कोई जवाब नहीं था।
सिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “तुम कह सकते हो कि तुम वापस नहीं आओगे, लेकिन मैं तब तक नहीं जाऊँगी जब तक तुम्हें यकीन ना हो जाए कि प्यार अधूरा नहीं रहता।”
अविनाश ने पहली बार उसकी तरफ़ देखा, लेकिन इस बार उसकी आँखों में कुछ बदला-बदला सा था।
उसने सिया को देखते हुए कहा, “ठीक है तो तुम जा सकती हो!”
उसकी बात सुनकर सिया घूर कर बोली, “जा सकती हो? क्या मतलब है? मैं यहाँ आपकी सेक्रेटरी हूँ। इतनी आसानी से तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी, और आप चाहकर भी मुझसे पीछा नहीं छुड़ा सकते जब तक मैं ना चाहूँ।”
अविनाश ने एक पल के लिए सिया की तरफ़ देखा और फिर बिना कुछ कहे सामने रखी फ़ाइलों की ओर इशारा कर दिया।
“ये क्या है?” सिया ने फ़ाइलों की मोटी गड्डी देखते ही चौंककर पूछा।
“तुम्हारा आज का काम,” अविनाश ने बिना भाव बदले जवाब दिया।
सिया की आँखें फैल गईं। “इतना सारा? सर, आपको मुझसे कोई दुश्मनी है क्या?”
“नहीं, लेकिन अब हो जाएगी अगर तुमने इतनी बातें कीं तो।”
सिया ने गहरी साँस ली, फिर कुर्सी खींचकर बैठ गई और नाटकीय अंदाज में माथा पकड़ लिया। “ओह गॉड! ये आदमी मुझे काम के बोझ से खत्म करके ही मानेगा।”
अविनाश ने हल्का सिर हिलाया और अपनी सीट से उठकर खिड़की की तरफ़ चला गया। लेकिन सिया चुप रहने वालों में से नहीं थी।
“सर, एक बात बताइए…” सिया ने फ़ाइल खोलते हुए कहा।
“अगर बेकार की बात हुई तो मैं सुनूँगा भी नहीं।”
“नहीं-नहीं, बहुत काम की बात है!” उसने आँखें चमकाते हुए कहा। “आपको कभी किसी पर दया नहीं आती?”
अविनाश ने पीछे मुड़कर देखा। “क्या कहना चाहती हो?”
सिया ने नाटकीय अंदाज में कहा, “मतलब कि कोई और बॉस होता तो अपनी प्यारी असिस्टेंट को इतना सारा काम देकर थकाने की बजाय, उसे एक कप कॉफ़ी ऑफ़र करता। लेकिन आप…”
अविनाश ने उसकी पूरी बात सुने बिना ही इंटरकॉम उठा लिया। “रिया, सिया के लिए एक ब्लैक कॉफ़ी भेजो—बिल्कुल बिना चीनी की।”
सिया का मुँह खुला का खुला रह गया। “सर! बिना चीनी वाली? मेरी तो जान ही निकल जाएगी!”
अविनाश ने हल्का मुस्कराते हुए कहा, “अभी तो निकली नहीं, लेकिन अगर जल्दी काम नहीं किया तो निकलवा दूँगा।”
सिया ने गुस्से में फ़ाइल को घूरा और बड़बड़ाने लगी, “लगता है पिछले जन्म में मैं ही रावण थी, जो इस जन्म में ऐसा बॉस मिला है!”
सिया ने गुस्से में फाइल को घूरते हुए बड़बड़ाया, "लगता है पिछले जन्म में मैं ही रावण थी, जो इस जन्म में ऐसा बॉस मिला है!"
अविनाश ने ठंडे स्वर में कहा, "काम करो, सिया। वरना अगले जन्म में भी यही बॉस मिलेगा।"
सिया ने आँखें घुमा दीं और फाइल खोलने लगी। पर वह इतनी आसानी से चुप रहने वाली नहीं थी। उसने थोड़ा झुककर टेबल पर कोहनी टिका दी और आँखों में शरारत भरकर बोली, "वैसे, सर… अगर मैं बॉस होती तो अपने असिस्टेंट के साथ थोड़ा नरमी से पेश आती। थोड़ा प्यार, थोड़ा ध्यान… क्या कहते हैं आप?"
अविनाश ने ठंडी नजरों से उसे देखा। वह उसकी हरकतों से प्रभावित होने वाला नहीं था। वह धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा, कुर्सी के पीछे खड़ा हो गया और झुककर उसके कान के पास फुसफुसाया, "अच्छा? और अगर तुम्हारी तरह कोई बेशर्म असिस्टेंट होती तो?"
सिया का दिल ज़ोर से धड़का, मगर वह हार मानने वाली नहीं थी। उसने एक लंबी साँस ली और पलटकर उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुराई, "तो उसे काम से ज़्यादा बॉस पर ध्यान देना पड़ता, है ना?" उसकी आवाज़ में नर्मी थी, मगर उसके शब्दों में चिढ़ाने वाली शरारत भी थी।
अविनाश ने उसकी कुर्सी के हेडरेस्ट पर हाथ रखते हुए उसे घेर लिया। "अगर तुम मेरे ऑफिस में हो, तो तुम्हें वही करना होगा जो मैं कहूँगा। और फिलहाल तुम्हें चुपचाप काम करना चाहिए।"
सिया ने होंठ भींच लिए और आँखें नचाईं। "अगर मैं काम करने के बजाय आपको तंग करना चाहूँ तो?"
अविनाश ने हल्की मुस्कान के बिना कहा, "तो मैं तुम्हें इस ऑफिस से निकाल सकता हूँ।"
सिया ने नकली सदमे से अपना हाथ सीने पर रखा, "अरे सर, ये तो अन्याय है! मैं तो बस माहौल हल्का कर रही थी। आप इतने डोमिनेटिंग क्यों बन रहे हैं?"
अविनाश ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से बोला, "क्योंकि मुझे हुक्म चलाने की आदत है, और तुम्हें मेरी बात मानने की।"
सिया ने होंठ काटते हुए उसकी आँखों में देखा, फिर हल्का सा हँसी, "फिर तो आपको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, सर… मुझे अपने कंट्रोल में करने के लिए।"
सिया ने अपनी आँखें बंद कीं, एक लंबी साँस ली और खुद को फोन के कैमरे में देखा। थकान उसके चेहरे पर उभरने लगी थी, लेकिन हार मानना उसके बस में नहीं था। उसकी नज़र फिर अविनाश पर गई, जो अब भी ठंडे, सख्त अंदाज़ में अपनी फाइलों में उलझा हुआ था।
"सर," वह शरारती मुस्कान के साथ बोली, "आपको पता है, इतने काम के बीच भी मैं आपको देखकर बिल्कुल भी थकती नहीं। उल्टा, एनर्जी और बढ़ जाती है।"
अविनाश ने उसकी तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में कोई भाव नहीं थे। "अगर इतनी एनर्जी है तो मैं और काम दे सकता हूँ।"
सिया ने अपनी कुर्सी से थोड़ा झुककर टेबल पर कोहनी टिकाई, उसकी आँखों में चंचलता थी। "सर, ये तो सरासर गलत बात है… मैं आपके साथ थोड़ा रोमांस करना चाह रही हूँ और आप मुझे और काम देने की धमकी दे रहे हैं?"
अविनाश की भौहें हल्की सी उठीं, लेकिन वह अब भी अपने एक्सप्रेशन को कंट्रोल में रखे हुए था।
"अगर रोमांस के लिए टाइम चाहिए तो पहले काम खत्म करो," उसने ठंडे स्वर में कहा।
सिया ने होंठ काटते हुए मुस्कुराया। "अगर मैं कहूँ कि मेरे लिए रोमांस भी एक काम है? और आप मेरे बॉस हैं, तो जाहिर सी बात है, मुझे ये भी परफेक्टली करना आना चाहिए।"
अविनाश ने फाइल बंद की और उसकी तरफ झुका। उसकी आवाज़ धीमी, लेकिन असरदार थी। "और अगर तुम्हें सज़ा मिले तो?"
सिया ने अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आँखों में गहराई से झाँका। "तो मैं भी आपकी तरह डोमिनेटिंग बनने की कोशिश करूँगी, सर। फिर देखेंगे, कौन जीतता है।"
अविनाश ने बिना हिले उसे घूरा, जैसे उसकी हर चाल को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन सिया हार मानने वालों में से नहीं थी।
उसने धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया, टेबल के कोने पर पड़ी अविनाश की पेन उठाई और अपनी उंगलियों से उसके ऊपर हल्के से चलाने लगी। "वैसे, सर… ये जो आपका सीरियस फेस है, ये दिलचस्प तो है… लेकिन अगर कभी मुझे देख के हल्की सी स्माइल आ जाए, तो मैं इस ऑफिस में ही जान दे दूँगी।"
अविनाश की आँखें हल्की सी संकरी हुईं। "ड्रामा मत करो, सिया।"
सिया ने गहरी साँस ली, अपनी कुर्सी पीछे खिसकाई और खड़ी हो गई। "ड्रामा नहीं कर रही हूँ, सर। मैं तो बस अपने प्यार का इज़हार कर रही हूँ… अपने अंदाज़ में।"
अविनाश ने कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ़ अपनी घड़ी की तरफ़ देखा और फिर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
"अब घर जाओ।"
सिया ने एक नकली ठंडी आह भरी। "इतनी बेरुखी… कभी-कभी लगता है कि मैं ही आपसे बेइंतेहा प्यार करती हूँ, और आप… बस बॉस बनने में बिज़ी हैं।"
अविनाश ने अपनी घड़ी पर एक नज़र डाली और फिर कुर्सी पीछे खिसकाकर खड़ा हो गया। "अब घर जाओ, सिया।"
सिया ने एक नकली ठंडी आह भरी और टेबल पर टिके अपने हाथों को हिलाया, जैसे बहुत दुखी हो। "इतनी बेरुखी… कभी-कभी लगता है कि मैं ही आपसे बेइंतेहा प्यार करती हूँ, और आप… बस बॉस बनने में बिज़ी हैं।"
अविनाश ने उसकी बातें अनसुनी करते हुए अपनी जैकेट उठाई और ठंडे स्वर में बोला, "ठीक है, अगर तुम्हें जाना ही नहीं तो यहीं बैठकर काम करो। मैं चलता हूँ।"
सिया ने झटके से सिर उठाया। "क्या?"
अविनाश ने बिना कुछ कहे अपनी जैकेट पहनी और दरवाजे की ओर बढ़ गया।
सिया की आँखें चौड़ी हो गईं। "नहीं… नहीं, नहीं, सर! आप ऐसे अकेले नहीं जा सकते!" वह जल्दी से अपनी कुर्सी से उठी और दौड़ते हुए उसके पीछे गई।
अविनाश दरवाजा खोल ही रहा था कि सिया ने उसका हाथ पकड़ लिया। "आप मुझे छोड़कर अकेले कैसे जा सकते हैं? ये सरासर अन्याय है!"
अविनाश ने उसकी तरफ देखा, उसकी भूरी आँखों में हल्की सी चमक थी। "तुमने ही कहा था कि तुम मेरे प्यार में पागल हो, लेकिन मेरा प्यार पाने के लिए तुम एक रात भी मेरे बिना ऑफिस में नहीं बिता सकती?"
सिया ने होंठों पर हल्की मुस्कान लाई। "बिल्कुल नहीं! मैं आपके बिना एक मिनट भी नहीं रह सकती।"
अविनाश ने सिर झुकाकर हल्की मुस्कान दी और सिया को ध्यान से देखा। "तुम बहुत ज़िद्दी हो, सिया।"
सिया ने गर्व से सिर ऊँचा किया। "और आप बहुत बेरहम!"
अविनाश ने हल्की सी साँस छोड़ी, फिर अपनी जेब से कार की चाबी निकाली और उसकी तरफ बढ़ाई। "ठीक है, अगर तुम्हें जाना ही है, तो चलो। लेकिन रास्ते में बकवास मत करना।"
सिया ने उसकी ओर देखा और धीरे से फुसफुसाई, "बकवास तो मैं नहीं करूँगी, लेकिन थोड़ी बहुत फ्लर्टिंग तो चलेगी, ना?"
अविनाश ने चाबी उसके हाथ में रखी और दरवाजा खोलते हुए कहा, "सिया, अगर तुमने बहुत ज़्यादा बकवास की, तो मैं तुम्हें रास्ते में उतार दूँगा।"
सिया ने झट से दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए और मुस्कुराते हुए बोली, "तो फिर मुझे आपकी सीट के बिल्कुल पास बैठना चाहिए, ताकि आप मुझे उतार ही न सकें।"
अविनाश ने बिना कुछ कहे गाड़ी की ओर कदम बढ़ाया, और सिया, शरारत भरी मुस्कान के साथ, उसके ठीक बगल में चलते हुए अपने अगले प्लान पर सोचने लगी! कैसे अपने बॉस के सख्त दिल को थोड़ा और पिघलाया जाए!
रात गहरा रही थी। आसमान में तारे झिलमिला रहे थे और सड़कों पर सन्नाटा छाया हुआ था। अविनाश और सिया कार में बैठे थे। सिया ड्राइवर साइड की पीछे वाली सीट पर बैठने की जिद कर रही थी।
"सर, मैं पीछे बैठ रही हूँ ताकि आप पीछे मुड़-मुड़कर मुझे देखो... और फिर मुझे याद करो," उसने आँखें मटकाते हुए कहा।
अविनाश ने एक ठंडी साँस ली, गाड़ी स्टार्ट की और बगल से बोला, "प्लीज, ड्रामा मत करो।"
"ड्रामा नहीं, सर… ये intense love expression है!" सिया ने हाथ जोड़ लिए और फिर सीट बेल्ट लगाते हुए मुस्कुराई, "वैसे आपकी प्रोफाइल बहुत हैंडसम लग रही है, बाय द वे।"
"सिया!" अविनाश की आवाज़ थोड़ी सख्त हुई।
"ठीक है, नहीं बोलती… पर गाना तो गा सकती हूँ ना?" सिया ने खिड़की से बाहर देखते हुए गुनगुनाना शुरू किया – "तू सामने बैठा रहे, दिल की गलियों में..."
अविनाश ने झटके से ब्रेक मारी।
"सिया, एक बार और बकवास की तो गाड़ी से बाहर फेंक दूँगा," वह दांत भींचकर बोला।
"फेंको ना, मैं उड़ जाऊंगी, फिर आप पछताओगे," उसने मासूमियत से पलकें झपकाईं।
"Enough!" अविनाश ने तेज़ी से एक्सीलेरेटर दबाया, और गाड़ी शहर की रौशनी से दूर, एक सुनसान हाईवे पर पहुँच गई थी।
"ओह्ह… ये तो मूड सेटिंग लोकेशन है, सर! सुनसान सड़क, चांदनी रात… और हम दो तनहा लोग," सिया ने सीट के पीछे से उसका कंधा पकड़ते हुए कहा, "मानिए ना… आपके दिल में भी कुछ-कुछ होता है मेरे लिए?"
अविनाश ने अचानक गाड़ी रोकी।
"उतरो।" उसके लहजे में ऐसा ठंडा गुस्सा था कि हवा भी सहम गई।
सिया ने हैरानी से उसकी तरफ देखा। "क्या?"
"उतरो, सिया! अभी! इसी वक्त!" उसने दरवाजा खोल दिया।
"सर, मज़ाक क्यों कर रहे हैं?" सिया ने हँसी रोकते हुए कहा, "ये वाला ड्रामा मुझसे ज़्यादा आप कर रहे हो!"
"ये ड्रामा नहीं है!" अविनाश अब गुस्से में काँप रहा था, "मैं थक गया हूँ तुम्हारे फ़्लर्टिंग, बात-बात पर मज़ाक और हर वक्त की बेवकूफी से। ये ऑफ़िस है, कोई सिटी रोमांस नहीं!"
"लेकिन सर…" सिया का चेहरा थोड़ा उतर गया।
"कोई लेकिन नहीं! अभी उतरो।" उसने उसकी तरफ इशारा किया।
सिया हँसने की कोशिश करती रही, लेकिन जब उसने देखा कि अविनाश बिल्कुल भी नहीं झुक रहा, तो चुपचाप दरवाजा खोला और गाड़ी से बाहर आ गई।
ठंडी हवा ने उसे झटका दिया। चारों तरफ़ सन्नाटा। सड़क के दोनों तरफ़ घना जंगल, और सिर्फ़ स्ट्रीट लाइट की मद्धम रोशनी।
"सर… ये रोड सुनसान है," उसने धीरे से कहा, "मैं अकेली क्या करूँगी यहाँ?"
अविनाश ने एक सेकंड के लिए उसकी आँखों में देखा, जैसे मन डगमगाया हो। लेकिन फिर अगले ही पल उसने बिना कुछ कहे दरवाजा बंद किया, गाड़ी मोड़ी और चला गया।
"सर!" सिया ने पीछे भागने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी धुएं की तरह उसकी आँखों से ओझल हो गई।
"अरे नहीं... सर! आप ऐसे नहीं जा सकते!" सिया चिल्लाई, उसके शब्द हवा में घुल गए।
वह वहीं खड़ी रह गई – एक टॉप क्लास शरारती लड़की, जिसकी चुलबुली बातें इस सुनसान सड़क पर अब किसी के काम की नहीं थीं। उसकी आँखों में पानी भरने लगा, और होंठ काँपने लगे।
"आपको मुझसे इतनी नफ़रत है?" उसने बुदबुदाते हुए कहा, "मैं तो बस आपको हँसाना चाहती थी… आपसे थोड़ा प्यार पाना चाहती थी।"
उसने खुद को गले लगाया, जैसे खुद को ही संभाल रही हो। लेकिन उसके अंदर टूटन साफ़ झलक रही थी।
"अविनाश… आपको इतना भी नहीं पता कि आपकी चुप्पी मुझे कितनी जोर से चोट देती है।" उसकी आवाज अब लड़खड़ा रही थी।
पीछे जंगल से हल्की सरसराहट की आवाज़ आई, और सिया का चेहरा डर से पीला पड़ गया। "प्लीज़... वापस आ जाइए ना, सर। मज़ाक कर रही थी मैं… सच में।"
लेकिन दूर तक कोई गाड़ी नहीं दिखी।
वो वहीं खड़ी रही… हवा उसके बालों से खेलती रही, और चांदनी रात उसका गवाह बनी — कि एक शरारती दिल, अब पहली बार डर के साये में आ गया था।
अब धीरे-धीरे मौसम भी खराब हो रहा था, बारिश होने लगी थी। अविनाश सिया को वहीं सुनसान सड़क पर छोड़कर गाड़ी में बैठकर चला गया। उसकी आँखों में गुस्सा था, दिल में खामोशी। पीछे से सिया चिल्लाती रही…
"अविनाश! प्लीज़ मत जाओ… अकेली हूँ मैं… सुन तो लो एक बार…"
लेकिन अविनाश के दिल तक सिया की आवाज़ नहीं पहुँची। वो बिना पीछे देखे चला गया।
कुछ देर बाद अविनाश अपने घर पहुँचा। चेहरे पर चुप्पी थी, कपड़े भीग चुके थे। घर में घुसते ही उसकी माँ, सिया को ना देखते हुए, पूछी,
"अरे अविनाश, सिया साथ नहीं आई?"
अविनाश बिना उसकी तरफ़ देखे सीधा ऊपर की तरफ़ बढ़ गया।
"वो आ रही है। खुद ही आ जाएगी।"
अविनाश के पापा हैरानी से पूछते हैं, "क्या मतलब? तू उसे अकेला छोड़ आया इस मौसम में?"
अविनाश बिना पलटे जवाब देता है, "उसके नखरे अब और नहीं सहने। अब जो करना है, खुद करे। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता उसके साथ क्या हो रहा है या क्या होगा।"
कहते हुए वो सीधा वॉशरूम में चला गया, शॉवर चालू किया, और खुद को उस पानी में भिगो दिया। आँखें बंद कर लीं जैसे सब कुछ भूल जाना चाहता हो।
उधर दूसरी तरफ़, सिया वहीं सड़क के किनारे खड़ी थी। बारिश अब और तेज़ हो चुकी थी। उसके बाल भीग चुके थे, होंठ काँप रहे थे। आँखों से आँसू और बारिश की बूँदें एक साथ बह रही थीं।
तभी कुछ बाइक सवार लड़के उसके पास आकर रुके। तीनों की आँखों में गंदी नज़रें और चेहरे पर घटिया मुस्कान।
एक लड़का उतरता है और सिया के पास आकर कहता है, "ओ हो… इतनी बारिश में अकेली लड़की? कोई छोड़ गया क्या?"
दूसरा लड़का हँसते हुए बोला, "छोड़ गया तो क्या हुआ… अब हम हैं ना… छोड़ देंगे घर तक… या फिर…?"
सिया पीछे हटती है, लेकिन वो लड़का उसका रास्ता रोक लेता है।
सिया आँखों में डर दबाकर बोलती है, "हटो मेरे रास्ते से… वरना बहुत पछताओगे।"
तीसरा लड़का उसकी कलाई पकड़ने की कोशिश करता है, लेकिन सिया उसकी कलाई झटक देती है और जोर से धक्का देती है।
"मैं अकेली हूँ… लेकिन कमज़ोर नहीं। किसी के गिरे हुए मज़ाक का हिस्सा नहीं बनने वाली मैं।"
तीनों लड़के अब घेरने की कोशिश करते हैं। सिया खुद को बचाने के लिए पत्थर उठाती है, एक को मारती है, लेकिन वो लड़के पीछे नहीं हटते।
उधर अविनाश अब भी वॉशरूम में शॉवर के नीचे खड़ा है। उसके चेहरे पर अब भी वही ठंडा गुस्सा है।
"जो उसे करना है, कर ले… मुझे उससे अब कोई लेना-देना नहीं।"
उसे नहीं पता कि जिस लड़की को उसने अकेला छोड़ा, उसकी ज़िंदगी इस वक़्त खतरे में है।
बारिश तेज होती जा रही थी। बिजली की चमक के साथ हर पेड़ की परछाईं डरावनी लग रही थी। सड़क पर सिर से पाँव तक भीगी हुई सिया के होठ बुरी तरह काँप रहे थे, लेकिन आँखों में डर से ज़्यादा गुस्सा था।
"छोड़ो मुझे!" वह चीखी, जब एक लड़के ने फिर से उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की।
"अरे, तेवर देखो मैडम के... अकेली है, बारिश में भीग रही है, और attitude देखो," एक लड़का ज़ोर से हँसा। "चलो ना बेबी... प्यार से बात कर लो, नहीं तो हम भी गुस्से में आ जाएँगे।"
सिया ने उस पर एक ज़ोरदार तमाचा मारा। आवाज़ इतनी तेज थी कि बाकी दोनों लड़के भी चौंक गए।
"मुझे छूने की कोशिश मत करना...वरना हड्डियाँ तोड़ दूँगी!" उसकी आवाज़ अब गूंज रही थी।
"ओ बेटा... अब मज़ा आएगा!" एक और लड़का आगे बढ़ा। तभी पीछे से एक पत्थर उसकी पीठ पर जा लगा।
श्याम, एक दुबला लेकिन गुस्सैल लड़का, दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा। उसके चेहरे पर गुस्सा और आँखों में आग थी।
"हाथ लगाया ना इस पर, तो काट के फेंक दूँगा यहीं... समझे?" उसने हाथ में एक लकड़ी उठाई और लड़कों की तरफ बढ़ाया।
"कौन है बे तू?" एक लड़के ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा।
श्याम ने बिना जवाब दिए, सीधे उसकी टांग पर डंडा मार दिया। लड़का लड़खड़ाया, पर दूसरे ने पीछे से आकर श्याम को पकड़ लिया।
सिया अब चुप नहीं रही। वह तेज़ी से आगे बढ़ी, कीचड़ में गिरते-गिरते खुद को संभाला, और झपटकर श्याम को पकड़ने वाले लड़के को धक्का दिया। "तुम्हें नहीं पता ना, कि जब लड़की का डर खत्म हो जाता है... तब वह शेरनी बन जाती है!"
फिर उसने अपने सैंडल निकाले और एक लड़के की आँख पर मार दिए। लड़का जोर से चिल्लाया। दूसरे को घूँसा मारा... तीसरे को डंडे से पीटा, जो श्याम ने फेंक दिया था।
बारिश, चीखें, और उनके बीच सिया की हिम्मत का तूफ़ान।
उधर अविनाश... शॉवर बंद कर चुका था। बालों से पानी टपक रहा था, चेहरा थका हुआ था... लेकिन गुस्से की लकीरें अब भी साफ थीं।
वह कमरे में आया, तौलिया झटकते हुए बिस्तर पर लेटा।
"मुझे फर्क नहीं पड़ता..." उसने खुद से कहा, जैसे दिल को मनाने की कोशिश कर रहा हो।
लेकिन उसकी नज़र बार-बार फोन की तरफ जा रही थी। कोई कॉल नहीं, कोई मैसेज नहीं।
"अभी तक नहीं आई?... आती होगी... बस किसी और को पकड़ा रही होगी ड्रामा दिखाने के लिए।"
उसने करवट बदली, तकिया मुँह पर रखा, लेकिन नींद नहीं आई।
"तू क्या कर रही होगी अब?" उसने खुद से बुदबुदाते हुए पूछा। फिर झुंझलाकर बोला, "ड्रामेबाज़...!"
लेकिन उसकी आँखें अब बेचैन हो रही थीं। दिल में हल्की सी घुंघरु उठ रही थी, जो वह खुद से भी छुपा नहीं पा रहा था।
वापस सुनसान सड़क... तीनों लड़के अब भाग चुके थे। सिया की साँसें तेज थीं। हाथ काँप रहे थे, कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे। श्याम वहीं बैठा था, घायल और हाँफता हुआ।
"त... तुम ठीक हो?" सिया ने धीरे से पूछा।
श्याम हँसा, "अब तुम पूछ रही हो?"
सिया ने उसकी चोट पर दुपट्टा बाँधा और कहा, "शुक्रिया... अगर तुम नहीं आते तो..."
"तो भी कुछ नहीं होता। तुम अकेली नहीं हो। तूने आज बता दिया कि लड़की अकेली हो सकती है, लेकिन कमज़ोर नहीं।"
सिया की आँखों से फिर से आँसू बह निकले। इस बार डर से नहीं, बल्कि एक एहसास से—"मैं सिर्फ़ मज़ाक नहीं करती... मैं वक़्त आने पर लड़ भी सकती हूँ..."
वह लड़कों से निपटने के लिए गई थी, लेकिन उनमें से एक लड़के ने उसे पकड़ कर उसके सूट को पूरी तरह फाड़ दिया। जिसके कारण उसके बाजू और पीठ साफ़-साफ़ दिख रहे थे। अब सिया पूरी तरह डर गई और वहाँ से भागने लगी।
चारों तरफ गहराती रात और ऊपर काले बादलों की फटी हुई चादर से झाँकती बिजली। तेज हवाएँ हर दिशा से गूंज रही थीं। एक पुराना बिजली का खंभा दूर काँप रहा था, उसकी ट्यूबलाइट बीच-बीच में टिमटिमा रही थी... जैसे खुद भी डर से काँप रही हो।
सिया भाग रही थी। उसके गीले बाल उसके चेहरे से चिपक गए थे, आँखों में पानी नहीं—सिर्फ डर। दुपट्टा कीचड़ से घसीटता हुआ अब उसके पैरों में अटकने लगा था। पैर लड़खड़ा रहे थे... लेकिन वह रुकी नहीं।
पीछे से बाइक की आवाज़ फिर आई। तीन लड़के... तेज रफ्तार में... जैसे शिकार की तलाश में भटके हुए गिद्ध।
"रुक जा पगली!!" एक लड़के की कर्कश आवाज़ सड़क पर गूंज उठी। "इतनी तेज कहाँ भागेगी? चल अब खेल शुरू करते हैं..."
सिया ने एक बार पलट कर देखा—वह नज़रों से ही खुद को समेटने लगी। वह बस एक बच्ची थी, जिसे रौंदने के लिए तीन जानवर पीछे पड़े थे।
तभी वह फिसल गई। एक गहरा गड्ढा... पानी से भरा... और कीचड़ से ढका। उसका पैर फिसला और वह सड़क के किनारे गिर पड़ी।
लड़कों ने बाइक रोकी। अब शिकार उनके सामने था... अकेला... भीगा हुआ... डरा हुआ।
एक लड़का धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा। "अब कितना भागेगी? आज तेरे नसीब में यही लिखा है..."
सिया ने काँपते हुए एक पत्थर उठाया और उसकी ओर फेंका—पत्थर सीधा जाकर एक लड़के के चेहरे से टकराया।
"च #%$!t..." उसका होंठ फट गया। खून बहने लगा।
वह गुस्से में झपटा—"अब दिखाता हूँ तुझे नायिका बनने का नतीजा!" उसने सिया की चूड़ी पकड़ कर मरोड़ दी, चूड़ियाँ चटक गईं और काँच की किरचें सिया की हथेली में चुभ गईं।
वह लड़का अब पूरी ताकत से उस पर झपटा—और तभी... एक सिहरन सी गूंज उठी।
दूर से कोई गाड़ी नहीं... एक ब्लैक लैंड रोवर डिफेंडर चीखती हुई स्पीड में उनकी तरफ बढ़ रही थी। उसके टायर सड़क को चीरते हुए... तेज रफ्तार में... हेडलाइट की चमक ने तीनों लड़कों को चौंधिया दिया।
"अबे...अबे क्या है ये?!" एक लड़का पीछे हटते हुए बोला।
"गाड़ी रोक ही नहीं रही! अबे हट सामने से!"
तीनों जैसे-तैसे किनारे हटे... और तभी...
लैंड रोवर स्क्र्र्र्र्र्र्र्र!! एक झटके में सामने आकर रुकी—इतनी तेज़ी से कि मिट्टी और कीचड़ हवा में उड़ गए।
दरवाज़ा धीरे से खुला। बारिश की आवाज़ के बीच, उसके बूट्स की ठक-ठक जैसे मौत की दस्तक। काले कपड़े में लिपटा एक आदमी। लंबा, चौड़ा, और ठंडा चेहरा। बिजली की चमक में उसकी आँखों में जलती आग साफ़ दिख रही थी।
"तुम तीनों ने... कुछ ज़्यादा ही गलती कर दी है।" उसकी आवाज़ बेहद शांत थी, लेकिन हर लफ़्ज़ रगों में उतरती आग थी।
"अब तमीज़ सिखाऊँ या पहले हड्डियाँ तोड़ूँ?"
एक लड़का बोला—"अबे तू जानता नहीं मैं कौन हूँ..."
थड़ाक!!! अगले ही पल उस लड़के का जबड़ा घूम गया। उसका पूरा शरीर उछल कर ज़मीन पर गिर गया।
दूसरा भागा... लेकिन हाथ पकड़ लिया गया। "भाई छोड़... छोड़ दे... प्लीज़... आह!"
क्र्ररर्र्र!! उसकी कलाई मरोड़ दी गई—हड्डी टूटी... चीख गूंज उठी।
तीसरा लड़का भागने को हुआ... लेकिन अविनाश ने अपने बूट से उसका घुटना तोड़ डाला। वह चिल्लाया... रेंगते हुए भागने लगा।
तीनों अब सड़क पर पड़े थे... कराहते हुए... और वह शख्स... बस खड़ा उन्हें देख रहा था। सिया काँपती हुई दूर से उसे देख रही थी।
बारिश अब भी हो रही थी... लेकिन अब तीनों लड़के कीचड़ में पड़े थे—चीखते, कराहते हुए... और उनके ऊपर खड़ा था अविनाश। उसका चेहरा अब भी साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन उसके हाथों की हर हरकत—बेहद तेज, ठंडी और खतरनाक थी।
एक लड़का हाथ जोड़कर बोला—"भाई... गलती हो गई... छोड़ दो प्लीज़!"
अविनाश झुका। उसका चेहरा अब सामने था—लेकिन उसमें ना गुस्सा था, ना दया... सिर्फ़ एक बेरहम सुकून।
"जब तू इसका दुपट्टा पकड़ रहा था... तब तेरी माँ याद नहीं आई?" उसने लड़के की गर्दन पर दबाव बढ़ा दिया।
"अब जो याद आ रही है... तो सुन... यह आखिरी बार है।" उसने गर्दन झटक कर छोड़ दी।
लड़का खांसते हुए गिर पड़ा। तीसरा लड़का भागने लगा... अविनाश ने उसे नहीं रोका—बस अपने फोन में किसी का नंबर डायल किया।
"तीन लाशें उठानी हैं यहाँ से... बाकी डिस्पोज़ल तुम्हारी मर्ज़ी का।" और कॉल काट दी।
अब वह सिया की तरफ मुड़ा। सिया काँपती हुई बैठी थी... उसके कपड़े कीचड़ से भरे, और आँखों में डर के साथ हैरानी।
अविनाश कुछ देर तक बस उसे घूरता रहा—बिना कुछ कहे। फिर एक कदम आगे बढ़ा। झुका नहीं। हाथ नहीं बढ़ाया।