✍️ कहते हैं, कुछ रिश्ते किस्मत नहीं… हादसे तय करते हैं। और ऐसा ही एक हादसा था… जब सत्यम की ज़िंदगी में आई निराली। एक सीधा-सादा लड़का 👦 … और एक बगावती रईस लड़की👸 । रात की एक मुलाक़ात ने दोनों की दुनिया हिला दी। 🌎... ✍️ कहते हैं, कुछ रिश्ते किस्मत नहीं… हादसे तय करते हैं। और ऐसा ही एक हादसा था… जब सत्यम की ज़िंदगी में आई निराली। एक सीधा-सादा लड़का 👦 … और एक बगावती रईस लड़की👸 । रात की एक मुलाक़ात ने दोनों की दुनिया हिला दी। 🌎 **"वो आई थी बस एक रात के लिए… 🌃 पर उसकी मौजूदगी ने उसकी ज़िंदगी बदल दी। जब दिलों की टक्कर हो, तब कहानी ज़रा हटके होती है। #नित्यम ( निराली + सत्यम = नित्यम 😁) अब देखना ये है कि ये मुलाक़ात.... इत्तेफाक थी या मुक़द्दर? 👻 👈 ये मै हूँ जो बीच-बीच मे आपसे बात करते रहूँगी, तो मुझे देखकर डर मत जाना ।
सत्यम अग्रवाल
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निराली कपूर
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एक कॉलोनी के छोटे से घर में सुबह के 6:00 बज चुके थे।
अलार्म की तेज़ आवाज़ नींद की चादर में लिपटे उस शख्स को हकीकत की दुनिया में खींच रही थी। उसने आँखें मिचमिचाते हुए मोबाइल देखा, और एक झटके में अलार्म बंद कर दिया। फिर धीमे से ज़मीन को छूकर आंखें बंद कर कुछ बुदबुदाया — शायद एक छोटी सी दुआ। जिसके बाद उसने अपने पैर जमीन पर रखा।
टॉवल उठाया और सीधा हॉल में बने छोटे से बाथरूम की तरफ बढ़ गया। कुछ देर बाद, जब बाथरूम से वो बाहर निकला, तो बिना जिम के तराशी गई बॉडी पहली नज़र में ही ध्यान खींच लेती थी।
टाॅवेल लपेटे हुए वह अपने कमरे में गया, टी-शर्ट पहनी और फिर उसी हॉल की एक दीवार पर बने छोटे से मंदिर के सामने खड़ा हो गया। दीया जलाकर हाथ जोड़ते हुए उसकी आंखों में एक शांत आस्था दिखाई दी।
इसके बाद वह किचन की ओर बढ़ा। छोटा सा किचन, मगर उसमें उसकी हर सुबह की जद्दोजहद समाई हुई थी। जल्दी-जल्दी नाश्ता बनाया, साथ ही ऑफिस के लिए लंच भी तैयार किया। सबसे पहले लंच पैक किया, फिर नाश्ता किया और बर्तन धोकर रखा।
(👻- देख लो गर्ल्स इसे तो खाना बनाना भी आता है। सर्वगुणसंपन्न है हमारा लड़का। )
फिर कमरे में जाकर ऑफिस के लिए तैयार हुआ।
आईने के सामने खड़ा होकर बाल ठीक किए, घड़ी बांधी और आखिरकार बैग उठाया, जिसमें अपना टिफिन भी रखा। घर की लाइट्स बंद कीं, दरवाज़ा लॉक किया, और सीढ़ियों से नीचे आ गया। वहाँ उसकी पुरानी लेकिन संभाली हुई बाइक उसका इंतज़ार कर रही थी।
हेलमेट पहना, और ऑफिस की ओर निकल पड़ा—जैसे हर दिन।
ऑफिस पहुँचा, तो सबसे पहले जो चेहरा नजर आया वो था कबीर का—उसका दोस्त, उसका इकलौता अपना इस शहर में।
दिनभर की भागदौड़, काम का बोझ, मीटिंग्स और सिस्टम की स्क्रीन में आँखें गड़ाए हुए वक्त गुज़रता गया।
शाम को जब घर लौटा, तो कपड़े बदले, थोड़ा फ्रेस हुआ और फिर कुछ देर चुपचाप लेटा रहा। उसके बाद उठा, किचन में गया और अपने लिए रात का खाना बनाने लगा… बिल्कुल वैसे ही जैसे हर दिन।
रात के करीब 9 बजे थे। वह रात का खाना खा चुका था और रोज़ की तरह कॉलोनी से थोड़ी दूर टहलने निकल पड़ा। इस वक्त वह अपनी ज़िंदगी, अपने खर्चे, अपने काम, और दादी-दादी सब चिन्ता को पीछे छोड़कर बस यूँ ही आगे बढ़ रहा था।
अभी कुछ ही दूर गया था कि उसे कुछ आवाज़ सुनाई दी। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर वो आवाज़ थोड़ी और तेज़ होने लगी। वह रुककर आवाज को गौर से सुनने की कोशिश करने लगा— वो किसी के रोने की आवाज़ थी।
वह आवाज़ की दिशा में बढ़ने लगा। आगे जाकर देखा कि एक लड़की बेंच पर बैठी थी, चेहरा दोनों हाथों से ढका हुआ और लगातार रो रही थी। आस-पास कुछ लोग जरूर थे, पर सब उसे अनदेखा कर अपने रास्ते जा रहे थे।
सत्यम बिना कुछ सोचे उसके पास पहुँच गया।
"Excuse me," वह धीरे से बोलता है।
लड़की अपने चेहरे से हाथ हटाती है और धीरे से सिर उठाकर देखती है। उसकी आँखें लाल थीं, गाल रोने की वजह से गुलाबी हो गए थे और नाक भी लाल थी। वो लगभग 20-21 साल की लग रही थी।
"तुम ठीक हो...?"
लड़की कोई जवाब नहीं देती।
"देखो, रात बहुत हो चुकी है। तुम्हें यहां अकेले नहीं रहना चाहिए, ये सेफ नही है" वह फिर से कहता है, लेकिन लड़की अब भी चुप थी।
एक पल को उसने सोचा कि शायद उसे अकेला छोड़ देना ही ठीक होगा... लेकिन फिर उसे यूँ रात मे अकेले छोड़ना सही नहीं लगा। वह उसी बेंच पर थोड़ा फासला बनाकर बैठ गया।
"तुम मुझसे बात कर सकती हो। वैसे... मेरा नाम सत्यम है।" सत्यम उसे सहज कराने के लिए कहता है।
लड़की उसकी ओर देखती है,फिर धीमे से कहती है,
"मेरा नाम निराली है।"
"तुम्हारा नाम भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है — बिल्कुल निराला," सत्यम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"तुम मुझे अपने घर का एड्रेस बताओ, मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।" सत्यम कुछ देर बाद कहता है।
"मैं... मैं इस वक्त घर नहीं जा सकती," निराली की आवाज़ कांप रही थी।
"क्यों?"
"क्या आप मुझे आज रात के लिए अपने घर ले जा सकते हैं?" वो बेहद धीमे स्वर में बोली।
"व्हाट??" सत्यम उसकी बात सुनकर चौंक जाता है।
"बस आज रात के लिए... प्लीज़," निराली ने एक उम्मीद भरी नज़र से उसकी ओर देखा।
सत्यम कुछ पल सोचता रहा, फिर बोला,
"ठीक है... लेकिन एक शर्त पर — सुबह होते ही तुम अपने घर जाओगी।"
निराली ने धीरे से सिर हिलाया, "ओके।"
"तो फिर चलो," सत्यम उठते हुए बोला और दोनों पैदल ही उसके किराए के मकान की ओर चल दिए।
थोड़ी ही देर में वे कॉलोनी के पास पहुंच गए। कॉलोनी के ज़्यादातर लोग सो चुके थे, क्योंकि यहाँ ज़्यादातर मिडिल क्लास 9-5 जॉब करने वाले रहते थे। तो किसी ने निराली को सत्यम के साथ इतनी रात मे आते हुए नही देखा।
सत्यम ने दरवाज़ा खोला और निराली को अंदर आने को कहा। वह चुपचाप अंदर आ गई और इधर-उधर देखने लगी, जैसे हर चीज़ को ध्यान से महसूस कर रही हो।
"तुम्हें भूख लगी है?" सत्यम ने पूछा।
"नहीं... क्या आप अकेले रहते हैं?" निराली ने पूछा।
सत्यम उसका सवाल सुनकर सिर उठाकर उसे देखता है
"क्यों? डर लग रहा है मुझसे?"
निराली किसी छोटे बच्चे की तरह 'ना' में सिर हिला देती है, जिसे देखकर सत्यम हँस पड़ा।
वह उसे पानी का गिलास देता है और कहता है,
"हाँ, मैं अकेले ही रहता हूँ। लेकिन तुम्हें मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
कुछ पल की खामोशी के बाद सत्यम फिर बोला,
"वैसे एक सवाल पूछ सकता हूँ? तुम इतनी रात को वहाँ क्या कर रही थी?"
निराली कुछ पल चुप रही, फिर बोली,
"दरअसल... मेरे मम्मी-पापा मेरी शादी करवाना चाहते हैं। लेकिन मैं इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती थी... इसलिए मैं घर से भाग आई।"
"व्हाट! तुम आजकल के बच्चे भी न..." सत्यम थोड़ा हैरान हुआ।
"तुम्हारे मम्मी-पापा को समझाया जा सकता था। बात करते... समय लगता, लेकिन वे समझ जाते। ऐसे घर से भागने की क्या ज़रूरत थी?"
उसकी बात सुनकर निराली ने सिर झुका लिया और फिर से रोना शुरू कर दिया। उसे यूँ अपने सामने टूटते देख सत्यम को थोड़ी ग्लानि हुई।
"अरे... देखो, रोना बंद करो प्लीज़... आई एम सॉरी," सत्यम नरमी से कहता है, "मुझे तुम पर ऐसे चिल्लाना नहीं चाहिए था।"
वह थोड़ा रुककर फिर बोला, "लेकिन... अगर तुम अपने मम्मी-पापा को समझा सकतीं कि तुम्हें अपनी पढ़ाई पूरी करनी है, और तुम इतनी छोटी उम्र में शादी नहीं करना चाहती—"
" 25 " निराली ने उसकी बात बीच में काटते हुए सुबकते-सुबकते कहा।
"वॉट?" सत्यम ने आश्चर्य से पूछा।
"मैं 25 साल की हूँ... और मेरी पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है," वह धीरे से बोलती है।
सत्यम कुछ पल के लिए चुप रह गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। वह तो उसे कॉलेज जाने वाली कोई लड़की समझ रहा था, और ये तो पढ़ाई पूरी कर चुकी थी!
"ओह... सॉरी, मुझे लगा तुम... खैर, छोड़ो," वह मुस्कुराने की कोशिश करता है, "अब ऐसा करो, तुम उस कमरे में जाकर सो जाओ। मैं हॉल में सो जाता हूँ। बस एक मिनट, मैं अपने लिए ब्लैंकेट और तकिया ले आता हूँ।"
सत्यम अपने कमरे में जाता है और एक ब्लैंकेट व तकिया लेकर वापस लौट आता है।
तभी पीछे से निराली धीमे स्वर में पुकारती है, "सुनिए..."
सत्यम पलटकर देखता है, "हां?"
"क्या आपके पास कुछ... कपड़े होंगे? मुझे चेंज करना था।"
सत्यम थोड़ा झिझकते हुए पूछता है, "कपड़े?"
"हां... दरअसल, मैने जो कपड़े पहन रखा है... इन कपड़ों में मुझे नींद नहीं आएगी।" निराली ने जीन्स और क्रॉप टॉप पहन रखा था।
सत्यम थोड़ी देर सोचने के बाद बोलता है, "एक मिनट, देखता हूँ कुछ मिलता है क्या।"
वह अपनी अलमारी खोलता है, कुछ पल सोचता है… फिर एक लोवर और टी-शर्ट निकालकर उसकी ओर बढ़ाता है। साथ ही एक हल्की कॉटन की साड़ी भी निकालता है।
"ये लोवर और टी-शर्ट शायद तुम्हें फिट आ जाए," वह शांत लहजे में कहता है, "और ये साड़ी… ये मेरी दादी की है। अगर चाहो तो कल पहन सकती हो।"
निराली उसके हाथ से कपड़े लेते हुए धीमे से 'थैंक यू' कहती है, फिर थोड़ी हिचकिचाहट के साथ बोलती है,
"क्या… क्या आप कल मुझे घर छोड़ सकते हैं? मुझे अकेले जाने में डर लग रहा है। प्लीज़… आप अगर उनसे बात करेंगे तो शायद वो मान जाएं।"
सत्यम कुछ सेकंड चुप रहता है, फिर हल्की सांस लेते हुए कहता है,
"देखो, अगर तुम खुद उनसे बात करोगी, तो ज्यादा सही रहेगा। ये तुम्हारा मामला है…"
निराली की आँखें नम होने लगती हैं, वो थरथराती आवाज में कहती है,
"अगर आप साथ नहीं जाएंगे… तो मैं घर नहीं जाऊंगी। मैं… मैं कहीं और चली जाऊंगी…"
उसकी डबडबाई आंखों को देखकर सत्यम थोड़ा असहज हो जाता है।
"अरे बाबा, ठीक है ठीक है! तुम फिर से रोना मत शुरू कर देना बस… मैं चलूंगा तुम्हारे साथ। अब चेंज कर लो और सो जाओ।"
वो मुड़ने ही वाला था फिर वह कुछ सोचकर कहता है।
"और हाँ, प्लीज़ कल जल्दी उठ जाना… हमें यहाँ से जल्दी निकलना होगा।"
"क्यों?" निराली पूछती है।
"ताकि कॉलोनी वाले मुझे किसी लड़की के साथ सुबह-सुबह घर से निकलते ना देख लें… और फिर बातें ना बनने लगें,"
"ओह… ठीक है…"
सत्यम दरवाज़े की ओर इशारा करता है,
"और हाँ, उधर बाथरूम है… अगर तुम्हें यूज़ करना हो तो।"
निराली एक नज़र उसकी तरफ देखती है, फिर कपड़े लेकर बाथरूम की ओर बढ़ जाती है… और सत्यम, हल्की मुस्कान के साथ हॉल में अपने सोने की जगह ठीक करने लगता है।
क्रमश:-
कहानी के साथ बने रहीए आपको आगे जरूर पसंद आएगा और अगर कहानी पसंद आए तो इस पर लाइक और कमेंट करना बिल्कुल ना भूले , और हमे फॉलो करना भी 😊
कुछ देर बाद जब निराली कपड़े चेंज कर बाहर आती है, तो उसकी नजर सोफे पर सोते हुए सत्यम पर जाती है। वह उसे कुछ गहरे और अनजाने भावों के साथ देखती है।
फिर वह धीरे से अपने कमरे में जाती है। रूम को वह गौर से देखती है — सब कुछ बहुत ही साफ-सुथरा, साधारण लेकिन सलीके से रखा गया था।
वह बेड पर आकर लेटती है और सोचते-सोचते कब नींद में खो जाती है, उसे खुद भी पता नहीं चलता।
अगली सुबह—
निराली की नींद दरवाजे पर हो रही खटखटाहट से खुलती है। वह झुंझलाकर आँखें खोलती है और गुस्से में दरवाजा खोलते ही कुछ बोलने ही वाली होती है कि सामने खड़ा सत्यम को देखकर उसे याद आता है... ये उसका घर नहीं है, जहां वह किसी पर भी अपना गुस्सा उतार देती थी।
"उठ गई? तो जल्दी से तैयार हो जाओ, हमें निकलना है," सत्यम शांत लहजे में कहता है।
"हम्म..." निराली बस इतना ही कहती है और सत्यम के दिए गए पीले रंग की कॉटन साड़ी लेकर बाथरूम चली जाती है।
उधर, सत्यम किचन में जाकर जल्दी से दोनों के लिए चाय और हल्का-फुल्का नाश्ता तैयार करता है।
कुछ देर बाद जब निराली बाहर आती है, तो साड़ी में बेहद खूबसूरत लग रही होती है।
"अरे वाह, तुम आ गई? आओ जल्दी से नाश्ता कर लो, फिर हमें निकलना भी है," सत्यम मुस्कराते हुए कहता है।
वह उसके साथ बैठती है और दोनों साथ में नाश्ता करते हैं।
नाश्ते के बाद वे दोनों घर से निकल जाते हैं। नीचे आकर निराली सत्यम की बाइक के पीछे बैठती है, लेकिन कसकर उसका कंधा पकड़ लेती है।
"क्या तुम पहली बार बाइक पर बैठी हो?" सत्यम हल्के अंदाज़ में पूछता है।
निराली हाँ में सिर हिलाती है।
"तो फिर ज़रा और ज़ोर से पकड़ना," यह कहकर सत्यम बाइक स्टार्ट कर देता है।
सुबह के सिर्फ 6 बजे थे — हल्की ठंडक और ठंडी-ठंडी हवा मौसम को बेहद सुहाना बना रही थी। निराली पहली बार इतनी सादगी भरी सुबह देख रही थी। हवा उनके चेहरों को छूते हुए गुजर रही थी।
निराली रास्ता बताती जा रही थी और सत्यम उसी दिशा में बाइक चलाता जा रहा था।
सड़क पर तेज़ी से भागती बाइक को अचानक निराली की आवाज़ ने रोक दिया—
"रुको... वो देखो सामने मंदिर है। क्या हम थोड़ी देर रुक सकते हैं? मुझे भगवान के दर्शन करने हैं..."
सत्यम ने उसकी आँखों में वही मासूमियत देखी जो बीते दिन से अब तक उसने कई बार महसूस की थी।
"मंदिर के लिए भला कोई मना करता है?"
उसने मुस्कुरा कर बाइक साइड में रोक दी।
सड़क किनारे बने उस शांत और सुंदर मंदिर के प्रांगण में दोनों एक साथ दाखिल हुए। निराली ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढका, और भगवान के सामने हाथ जोड़कर आँखें बंद कर लीं। उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई अधूरी बात वह भगवान से कह रही हो।
सत्यम भी उसी श्रद्धा से हाथ जोड़कर खड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद निराली ने मंदिर में रखे एक पीतल के पात्र की ओर इशारा किया और धीमे स्वर में कहा,
"इससे मेरे माथे पर टीका लगा दीजिए ना..."
सत्यम थोड़ा हिचका, लेकिन फिर पात्र उठाकर धीरे से उसका टीका लगाता है।
निराली मुस्कुरा कर बोली,
"अब मैं भी आपके माथे पर लगाऊँ?"
सत्यम हल्की सी हँसी के साथ सिर झुकाता है।
"लगा दो..."
जब निराली उसके माथे पर टीका लगाती है तो दोनों की आँखें एक पल के लिए टकरा जाती हैं। वो पल बहुत गहरा था... बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह गया।
मंदिर से बाहर आकर जैसे ही वे बाइक के पास पहुँचे, सत्यम का चेहरा अचानक चौंक गया।
"ये क्या... इसकी तो हवा ही निकल गई!"
निराली भी हैरानी से देखती है।
अब और कोई चारा नहीं था, तो सत्यम बाइक को धीरे-धीरे खींचते हुए पास के एक गैरेज तक ले गया।
गैरेज वाला लड़का बाइक देखता ही बोल पड़ा—
"भईया ये बाइक तो पंचर है, थोड़ा टाइम लगेगा ठीक करने में..."
"तब तक आप भाभी जी के साथ अंदर आकर इन कुर्सीयो पर बैठ जाइए .. धूप बहुत तेज है।"
उसकी बात सुनकर सत्यम और निराली दोनो एक दूसरे को चौक कर देखते है
फिर सत्यम लड़के की तरफ घूरकर कहता है —
"भाभी नहीं है वो... और तू जल्दी बना!"
(👻 - नही है तो बना लो।)
लड़का झेंप गया और बाइक बनाने में लगा।
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बाइक बनने में उन्हें काफ़ी समय लग गया। गैरेज की दीवार पर टंगी घड़ी अब सुबह के आठ बजकर पैंतीस मिनट दिखा रही थी। सत्यम ने मैकेनिक को पैसे दिए, हेलमेट पहना और बाइक स्टार्ट की।
"चलें?"
"हम्म..." निराली बस इतना ही कह पाई और चुपचाप उसके पीछे बैठ गई।
ठंडी हवा अब थोड़ी तेज़ हो चली थी, पर सूरज की रौशनी धीरे-धीरे सब तेज होने लगी थी। रास्ते में ज़्यादातर लोग अपने दिन की शुरुआत कर चुके थे, और सत्यम व निराली उस भीड़ से एकदम अलग दुनिया में थे।
निराली ने एक बार फिर कसकर सत्यम का कंधा पकड़ लिया।
"अब तो थोड़ा आराम से पकड़ रही हो..." सत्यम ने मुस्कुरा कर कहा।
"अब डर नहीं लग रहा... पर जाने क्यों... थोड़ी सी बेचैनी ज़रूर है..." उसकी आवाज़ में हल्का कंपन था।
कुछ घंटे की यात्रा के बाद, जब शहर पीछे छूट चुका था, सामने एक भव्य और आलीशान मेंशन दिखाई दिया।
" क्या वो तुम्हारा घर है ?" सत्यम ने पूछा, लेकिन निराली की नज़र सामने खड़ी भीड़ पर अटक गई।
"इतने सारे... रिपोर्टर?" सत्यम बाइक की स्पीड धीरे करते हुए हैरानी से कहता है।
निराली की सांसें तेज़ हो गईं। उसके चेहरे का रंग उतर गया।
"कहीं... पापा को कुछ हो तो नहीं गया?" उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसने कुछ और नहीं कहा, बस जल्दी-जल्दी बाइक से उतरी और मेंशन की ओर बढ़ने लगी।
"निराली, रुको! पहले देख तो लो..." सत्यम ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वो किसी और ही डर में घिरी आगे बढ़ती रही।
सत्यम भी उसके साथ चलने लगा, लेकिन जैसे ही दोनों मेंशन के करीब पहुँचे, मीडियावालों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया।
"मैम, आपने घर से भागकर शादी क्यों की?"
"क्या यही वो लड़का है जिससे आप प्यार करती हैं?"
"आपके पापा अगर इस रिश्ते को मंज़ूर नहीं करते, तो क्या आप इन्हें छोड़ देंगी?"
एक-एक सवाल, जैसे किसी चाकू की तरह उनके बीच चुभ रहा था।
निराली सहम गई। उसके चेहरे पर डर साफ़ दिख रहा था।
सत्यम ने तुरंत स्थिति को समझा और उसके आस पास अपने बाँहे कर उसे उन लोगो से बचाने की कोशिश की।
"पीछे हटिए! ज़रा दूर रहिए!" वह रिपोर्टर्स से कहता हुआ उसे बचाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन भीड़ इतनी घनी थी कि आगे बढ़ना नामुमकिन लग रहा था।
रिपोर्टर्स के कैमरे, माइक और फ्लैश उनकी आँखों पर अंधेरा कर रहे थे। निराली को हल्के से धक्का भी लग गया।
"निराली!" सत्यम तुरंत उसे थाम लेता है।
"मैं ठीक हूँ..." उसने घबराकर कहा, पर आँखों में आँसू आ चुके थे।
तभी, मेंशन के अंदर से कुछ गार्ड तेज़ी से बाहर आए।
"साइड हो जाइए! रास्ता छोड़िए!" एक गार्ड ने रिपोर्टरों को पीछे हटाया।
गार्ड्स ने दोनों को चारों तरफ से घेरते हुए मेंशन के गेट तक पहुँचाया और भीड़ से निकालकर अंदर लाया। बाहर मीडिया वालों की आवाज़ें अब भी गूंज रही थीं, लेकिन गेट बंद होते ही एक शांति सी फैल गई।
निराली ने बिना कुछ कहे अपने आँसू पोछे और तेज़ी से मेंशन की ओर बढ़ने लगी।
क्रमश :-
क्या होगा आगे ????
मिडीया ने आखिर ऐसा क्यो कहा कि निराली ने भाग कर शादी की है ????
क्या ये किसी की साजिश है ???
जानने के लिए बने रहे इस कहानी के साथ
कहानी पसंद आ रही हो तो हमे सपोर्ट करे - लाइक , कमेंट, और हमे फॉलो करके
धन्यवाद 🦋
जैसे ही निराली मेंशन के अंदर दाखिल हुई, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। हॉल में उसके माता-पिता बैठे थे। वो हिचकिचाते हुए आगे बढ़ी और हल्की आवाज़ में बोली:
"डैड..."
राज कपूर ने सिर उठाया, और उसकी ओर देखा। उनकी आँखों में गुस्सा और ठेस दोनों साफ झलक रहे थे।
"ये सब क्या है, निराली?" राज जी अपनी जगह से उठते हुए कहते है उनकी आवाज़ सख्त थी, "अगर तुम्हें किसी से प्यार था, तो मुझसे कहा क्यों नहीं? ये चुपके से शादी करने का क्या मतलब है?"
"सर..." सत्यम राज कपूर को देखकर हैरानी और डर के बीच से धीरे से कहता है।
राज कपूर की नजर भी उस पर पड़ती है।
"तुम?" उन्होंने आश्चर्य से कहा।
"आप इन्हें जानते हैं, डैड?" निराली घबराते हुए पूछती है।
राज जी की आँखें सख्त हो चुकी थीं।
"तुमसे तो मैं बाद में निपटूंगा," उन्होंने सत्यम से कहा।
सत्यम के पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी। 'कहीं ये मुझे नौकरी से निकाल न दें, अगर ऐसा हुआ तो मै घर का किराया कैसै दूंगा, इतनी जल्दी तो मुझे नौकरी भी नही मिलेगी, कही मुझे मेरे घर से निकाल दिया तो , मै दादा दादी को क्या मुँह दिखाऊंगा..' ये सब सोचते हुए उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
"ये सब क्या है, निरा?" राज जी अब पूरे गुस्से में थे। "तुमने ऐसा क्यों किया? क्या मैंने तुम्हें कभी किसी चीज़ के लिए मजबूर किया?"
निराली की आँखों में आँसू थे, आवाज़ काँप रही थी:
"लेकिन आप तो आदित्य से मेरी शादी के लिए लगभग हाँ कह चुके थे... और मेरी बात आप सुन ही नहीं रहे थे..."
"तो क्या मैंने तुमसे नहीं पूछा था? क्या मैंने तुमसे साफ नहीं कहा था कि अगर तुम्हारे दिल में कोई और है तो बता दो!" राज जी चिल्ला पड़े।
"डैड, मैं..." निराली कुछ कहना चाहती थी, लेकिन राज जी ने उसकी बात बीच में काट दी।
"देखो, क्या कर डाला तुमने! मेरी रेपुटेशन...!" कहते हुए उन्होंने रिमोट उठाया और टीवी ऑन कर दिया।
टीवी पर एक न्यूज चैनल चल रहा था:
> "और आज की सबसे बड़ी खबर—जाने-माने बिजनेसमैन राज कपूर की इकलौती बेटी निराली कपूर ने मंदिर में अपने प्रेमी से की गुपचुप शादी। देखिए ये एक्सक्लूसिव तस्वीरें..."
स्क्रीन पर वही तस्वीर चल रही थी, जिसमें सत्यम निराली के माथे पर टीका लगा रहा था। लेकिन कैमरे के एंगल से ऐसा लग रहा था जैसे वह उसकी मांग भर रहा हो।
देशभर में यह खबर सनसनी बन गई थी।
निराली और सत्यम दोनों स्क्रीन को फटी-फटी आँखों से देख रहे थे।
"तुम्हारी वजह से पूरा देश मेरी हँसी उड़ा रहा है!" राज जी चीख उठे।
"आप एक बार शांत होकर बच्चों की बात तो सुनिए..."
सविता जी ने धीरे से राज जी के कंधे पर हाथ रखा और नर्मी से उन्हें समझाया। उनकी आवाज़ में माँ की ममता और एक पत्नी की चिंता साफ झलक रही थी।
राज कपूर गहरी साँस लेकर थोड़ी देर चुप रहे, फिर थक कर सोफे पर बैठ गए। उनकी आँखें कुछ पल के लिए बंद हो गईं, जैसे अपने गुस्से और उलझन से लड़ रहे हों। कुछ देर बाद उन्होंने आँखें खोली और अपनी सख्त निगाहें सत्यम पर टिका दीं।
(👻- सत्यम बी लाइक अपुन को ना ऐसे धक धक हो रहा है 🤣)
"तुम्हें मेरी बेटी के अलावा कोई और नहीं मिला था?"
उनकी आवाज़ में तल्खी और तंज दोनों था।
सत्यम को जैसे साँप सुंघ गया हो। उसका चेहरा पल भर में ज़र्द हो गया। मन में भयानक उथल-पुथल मची थी—"वाट द फ... ये क्या सोच रहे हैं ये? इन्हें लगता है मैं और इनकी बेटी एक दूसरे से प्यार करते हैं?"
वो घबराहट में आगे बढ़ा, और हिम्मत जुटाकर बोला,
"सर... मैं... मैं आपको सब समझा सकता हूँ। जैसा आप सोच रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं है..."
लेकिन राज जी शायद सुनने के मूड में नहीं थे।
"तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? मेरी ही कंपनी मे काम करके मेरे भरोसे को ऐसे तोड़ा तुमने?"
"सर दरअसल बात ये है की ये सब ..."
सत्यम की आवाज़ में सच्चाई थी, पर राज कपूर अब तक अपने गुस्से में थे।
"तुम यही कहना चाहते हो ना कि ये सब निराली का किया धरा है?"
राज जी बोले, फिर बिना रुके आगे बढ़ते हैं,
"मैं इसे अच्छी तरह जानता हूँ... जिसे ये चाहती है, उसे फिर किसी भी हाल में पाना चाहती है, और कुछ न कुछ गड़बड़ कर ही देती है।"
वो सत्यम के पास आए, और उसके कंधे पर हाथ रखा।
"तुम जैसे डिसेंट लड़के से ऐसी उम्मीद नहीं थी... जरूर इसने ही तुम्हें फोर्स किया होगा।"
सत्यम अंदर ही अंदर घबरा रहा था।
"ये तारीफ है या ताना? अब मैं हाँ में सिर हिलाऊँ या मना करूं?" वह मन ही मन कहता है।
तभी राज जी पलटे और निराली के पास जाकर बोले,
"कम से कम तुम्हारा सेलेक्शन तो सही है। अच्छा लड़का चुना है।"
फिर एक हल्की साँस लेकर बोले,
"अगर तुम पहले बता देतीं कि तुम्हें सत्यम पसंद है, तो मैं खुद तुम्हारी शादी कराता... वो भी खुशी-खुशी!"
"मैने तुम्हारी शादी को एक्सेप्ट कर लिया है..."
राज जी ने नरम होकर निराली के गाल पर हाथ रखा।
निराली तो जैसे पत्थर बन गई थी—उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
सत्यम का तो जैसे ब्लड प्रेशर डबल हो गया।
"कैसी शादी?! किसकी शादी?! कब हुई ये शादी?!"
वो लगभग चिल्ला देना चाहता था।
सविता जी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आ गई थी।
उन्हें लगा, सब ठीक हो रहा है।
सत्यम अब निराली को देख रहा था—"अब तो बोल दे यार! अब तो सच्चाई बता दे!"
पर निराली अभी भी अपने पापा को एकटक देख रही थी—शायद इस अप्रत्याशित स्वीकृति को पचा नहीं पा रही थी।
सविता जी भावुक होकर निराली के पास आईं।
उसका माथा चूमा और फिर उसे गले से लगा लिया।
"तू ठीक है न मेरी बच्ची..."
फिर अचानक बोलीं, "एक मिनट रुक, मैं अभी आई!"
और तेज़ी से अंदर चली गईं।
उधर सत्यम, जो अब तक खड़ा-खड़ा अपने भाग्य को कोस रहा था,
धीरे से एक नज़र इधर-उधर करता है और फुर्ती से निराली की बाजू पकड़ता है।
"निराली!"
वो उसे एक कोने में ले जाकर हल्की मगर सख्त आवाज़ में पूछता है,
"ये सब क्या है? क्या चल रहा है ये?"
निराली ने धीरे से आँखें नीची कर दीं।
"I… I’m sorry!"
सत्यम थोड़ी देर चुप रहा, फिर एक लंबी साँस लेकर बोला,
"It’s okay… लेकिन अब तुम जाओ और जाकर अपने मम्मी-पापा को सब कुछ क्लियर करो। ठीक है?"
निराली उसकी ओर देखती है।
"आपने अब तक मेरी बहुत हेल्प की है, लेकिन… मुझे आपसे एक लास्ट हेल्प चाहिए।"
उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें एक गहराई थी।
सत्यम थोड़ा पीछे हटा।
"What?" उसने धीरे से पूछा।
निराली की कत्थई आँखें अब सत्यम की काली आँखों में थीं।
"आपको मेरा पति होने का नाटक करना होगा…"
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तो कैसा लगा आपको आज का भाग
क्या होगा सत्यम की प्रतिक्रिया
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" Have you gone mad ? तुम क्या बोल रही हो ? तुम्हें समझ भी आ रहा है ?"
सत्यम गुस्से में फट पड़ता है।
निराली धीरे से कहती है ,
" देखिए, मुझे पता है मैं बहुत स्टूपिड साउंड कर रही हूँ … लेकिन हालात बहुत बिगड़ चुके हैं। "
वो एक पल को रुकती है, फिर फौरन कहती है,
" हम दोनों की तस्वीरें वायरल हो चुकी हैं … हर जगह। अब अगर लोगों को पता चला कि मैं आपके घर एक रात रही— बिना किसी रिश्ते के— तो मीडिया इसे कितनी गंदी तरह से दिखाएगी, आपको भी पता है। "
सत्यम उसकी बात सुनता है और माथा पकड़ लेता है।
" देखो निराली, ये बहुत ही स्टूपिड आइडिया है … तुम्हें अपने घर में सब कुछ साफ-साफ बता देना चाहिए। "
" लोगों का काम है बात बनाना, कुछ दिनों में सब शांत हो जाएगा। "
निराली अब गुस्से में थी।
" आप मेरी हेल्प करेंगे कि नहीं? " वह सीधा सवाल करती है।
" नहीं। "
सत्यम साफ़ जवाब देता है,
" मैं एक मिडिल क्लास फैमिली से हूँ। सादा जीवन पसंद करता हूँ। तुम्हारा ये क्रेज़ी और स्टूपिड आइडिया मुझे नहीं चाहिए। तुम्हारी इमेज और रेपुटेशन का सवाल है इसका मुझसे कोई लेना देना नही है —It’s none of my business! "
लेकिन सत्यम ये नहीं जानता था कि जिस दिन उसने निराली की मदद के लिए हाथ बढ़ाया था, उसी दिन उसने अपने सादे जीवन में ज्वालामुखी सेट कर दिया था।
निराली एक कदम आगे बढ़ती है, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
" That’s definitely your business, Mr. Satyam Agrawal. "
अब उसका एटीट्यूड पूरी तरह बदल चुका था।
" डैड बहुत जल्द मुझे कंपनी का ऑनर बनाने वाले हैं। और जैसे ही मैं पावर में आई, सबसे पहले आपको कंपनी से बाहर निकाल फेकूँगी। और हाँ, मैं ये भी तय करूंगी कि आपको कहीं और नौकरी ना मिले। "
निराली की बात सुनकर सत्यम का चेहरा जैसे सुन पड़ जाता है।
" क्या… ये वही मासूम लड़की है जो कल बात बात पर रो रही थी? और आज मुझे धमकी दे रही है? "
" You have ten seconds to decide—चाहिए तुम्हें अपनी जॉब या नहीं? "
निराली उसकी आँखों में आँखें डालकर बोलती है।
" तुम मुझे धमका नहीं सकती। "
" Oh, I can, Mr. Agrawal… do you want to see? " निराली की आवाज मे एक अलग ही एटीट्यूड, था।
सत्यम की साँसे तेज़ हो चुकी थीं…
उसे अपनी दादी-दादी का चेहरा याद आ गया… गाँव का छोटा सा घर… और फिर वह नौकरी जिसके लिए उसने महीनों मेहनत की थी और बहुत मुश्किल के बाद उसे ये नौकरी मिली थी।
" नहीं… "
वो धीरे से कहता है।
" तो फिर जैसा मैं कह रही हूँ, वैसा करो। "
निराली ठंडी मुस्कान के साथ जवाब देती है।
तभी अंदर से सविता जी की आवाज़ आती है,
" अरे वहाँ इतनी देर से क्या बात कर रहे हो दोनो? जल्दी से यहाँ आओ! "
निराली फौरन सत्यम का हाथ अपने हाथ में ले लेती है, और चेहरे पर प्यारी सी स्माइल चिपका लेती है और सविता जी की ओर चल देती है।
पीछे रह जाता है सत्यम, जो बस निराली के साथ खिचा चला जा रहा था ,जिसके चेहरे पर सदमा, गुस्सा, और लाचारी तीनों एक साथ दौड़ रहे थे।
*********
कुछ देर बाद राज जी आते हैं और पूरे परिवार से कहते हैं,
" मैंने मीडिया से बात कर ली है… और उन्हें साफ़-साफ़ बता दिया है कि मैं निराली और सत्यम की शादी से पूरी तरह खुश हूँ। "
सबके चेहरे पर थोड़ी राहत की झलक आती है। तभी राज जी सत्यम की तरफ़ देख कर कहते हैं,
" सत्यम, क्या तुम मेरे साथ आओगे? मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। "
सत्यम एक पल को निराली की ओर देखता है…
जो उसे आँखों ही आँखों में चेतावनी दे रही थी,
‘कुछ भी बताने की कोशिश भी मत करना!’
सत्यम बस सिर झुकाकर राज जी के पीछे-पीछे चल पड़ता है।
राज जी उसे अपने स्टडी रूम में लेकर जाते हैं।
दोनों आमने-सामने बैठते हैं।
एक तरफ देश के जाने-माने बिज़नेसमैन, दूसरी तरफ़ एक साधारण सा लड़का, जिसके चेहरे पर तनाव और उलझन की लकीरें थीं।
सत्यम का दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो अपने बॉस के स्टडी रूम में, उनके सामने बैठा है—वो भी इस तरह के हालात में।
अगर कोई और दिन होता तो यह सत्यम के लिए किसी सपने जैसा होता पर यह सपना आज उसे डरावना लगा था।
राज जी गहरी सांस लेते हैं और बोलते हैं,
" मुझे माफ़ करना सत्यम… नीचे जो कुछ भी कहा, वो सब ग़ुस्से में था। "
सत्यम तुरंत कहता है,
" प्लीज़ सर, आप माफ़ी मत माँगिए। मै समझ सकता हूँ ,मैं… मैं आपकी जगह होता, तो शायद मैं भी ऐसा ही रिएक्ट करता। "
राज जी मुस्कुराते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर एक हल्का सा दर्द भी था।
" देखो सत्यम, जो कुछ भी हुआ… मैं अभी भी पूरी तरह एक्सेप्ट नहीं कर पाया हूँ। लेकिन मेरा मानना है, जो होता है, अच्छे के लिए होता है। "
" और इस संसार में अगर कोई सबसे पवित्र बंधन है, तो वो है शादी का बंधन। और मैं इस रिश्ते पर पूरा विश्वास करता हूँ… और खुश हूँ कि मेरी बेटी ने तुम्हें —एक होनहार, मेहनती और सच्चा इंसान को अपना जीवनसाथी चुना। "
उनकी बात सुनकर सत्यम जैसे एकदम सुन्न पड़ जाता है।
उसके अंदर कुछ चटकता है…
जिस इंसान ने उसे इतना सम्मान, इतना विश्वास दिया—उसी को वो धोखा देने जा रहा था।
उसका दिल गिल्ट से भर गया था।
वो एक पल को अपनी मुट्ठियाँ भींचता है, और नजरें झुका लेता है। राज जी की मासूमियत, और उनका प्यार, उसके अंदर कुछ गहरा तोड़ देता है।
" सर…"
उसके होंठ कुछ कहना चाहते हैं,
लेकिन वो कुछ कह नहीं पाता।
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राज जी की बातों के बाद सत्यम के अंदर जैसे तूफान उठ रहा था।
वो अंदर ही अंदर खुद से लड़ रहा था…
"क्यों किया मैंने ये सब… सिर्फ एक रात की मदद की थी और बदले में…"
दिल बुरी तरह से उलझा हुआ था—गिल्ट, डर और फंसे होने का एहसास… सब कुछ एक साथ।
कमरे में एक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
केवल घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी…
राज जी ने एक लंबी साँस ली…
"सत्यम…" उन्होंने उसकी आँखों में देखा,
"तुम जैसा लड़का ही मेरी बेटी के लिए सबसे अच्छा है तुम बेस्ट चॉइस हो मेरी बेटी के लिए … लेकिन…"
"लेकिन मैं अपनी बेटी को भी जानता हूँ।"
राज जी की आवाज अब भारी हो गई थी।
"निरा... वो लड़की नहीं है जो कम्प्रोमाइज कर ले। वो चीज़ों को अपने हिसाब से चाहती है, और जब उसकी डिमांड पूरी नहीं होती… वो बहुत अग्रेसिव हो जाती है।"
सत्यम का दिल धक-धक करने लगा।
"कहाँ फँस गया तू?" वह अपने आप से सवाल करता है।
"मैंने उसे हमेशा उसकी खुशी दी है, और शायद इसी वजह से वो हर चीज़ को 'हक़' की तरह देखती है।"
राज जी का स्वर अब भावुक होता जा रहा था।
"मैं नहीं जानता कि तुम दोनों के बीच ये सब कब और कैसे शुरू हुआ… लेकिन बेटा, डेट करने और शादी करने में बहुत फर्क होता है। बहुत बड़ा फर्क।"
सत्यम चुप रहा… उसकी आँखों में अब पछतावा झलक रही थी।
"मुझे तुम्हारे स्टेटस से कोई फर्क नहीं पड़ता, ना ही तुम्हारी बैकग्राउंड से। लेकिन एक पिता होने के नाते मैं बस इतना चाहता हूँ कि मेरी बेटी को कभी कोई तकलीफ न हो—और तुम्हें भी कोई तकलीफ न हो।"
राज जी की आवाज में अपनापन था, लेकिन साथ ही एक गहराई भी।
"इसलिए मैं सोच रहा था…"
राज जी थोड़ी देर रुके, फिर गंभीरता से बोले,
"तुम्हें प्रमोशन दे दूँ… एक अच्छी सैलरी के साथ, और ऑफिस की तरफ से एक घर भी। ताकि तुम दोनों की जिंदगी आसान हो जाए।"
सत्यम उनकी बात सुनकर हैरान रह गया, उसे समझ नही आ रहा था वो इस वक़्त कैसे रिएक्ट करे।
ये वो ऑफर था, जिसकी उसने न जाने कितनी बार कल्पना की थी…
वही प्रमोशन, जिसके लिए वो दिन-रात मेहनत करता रहा, अपने नींद, अपने आराम को किनारे रखकर सिर्फ एक चीज को तरजीह दी थी—काम।
पर आज…
आज ये सब यूँ ही उसे थाली में परोसकर मिल रहा था।
ना किसी appraisal मीटिंग के बाद, ना किसी hardwork के acknowledgment के रूप में…
बल्कि…
एक झूठ पर खड़े रिश्ते की कीमत पर।
उसका मन अंदर से चिल्ला रहा था—
"क्या यही वो रास्ता है जिसे मैंने चुना था? क्या इसी दिन के लिए मैंने खुद को खोया था, नींदें गँवाई थीं, सपनों को सींचा था?"
"सर… देखिए, मैं आपकी चिंता समझता हूँ, लेकिन—"
सत्यम कुछ कहने ही वाला था कि तभी दरवाज़ा खुला और किसी के कदमों की आवाज गूँजी।
"लेकिन आपको ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है, डैड।"
आवाज सख्त थी, और साफ़ तौर पर एटीट्यूड से भरी हुई।
निराली स्टडी रूम में दाखिल हो चुकी थी। उसका चेहरा शांत था, लेकिन आँखों में एक अलग ही ठंडक और चालाकी थी।
राज जी और सत्यम, दोनों ही उसकी तरफ देखने लगे।
"मैं अपने लिए फैसले ले सकती हूँ। और अगर मैंने सत्यम को चुना है, तो वो इसीलिए नहीं कि आप उसे प्रमोट करें या घर दें।"
निराली की आवाज अब और भी कठोर होती जा रही थी।
राज जी ने उसकी ओर देखा, लेकिन जवाब सत्यम को देखकर दिया—
"मैं ये सब तुम्हारे लिए नहीं कर रहा हूँ निरा। मैं ये सब सत्यम के लिए कर रहा हूँ।"
वो थोड़ा रुके, फिर शांत लेकिन गहराई भरे स्वर में बोले—
"मैं जानता हूँ तुम कितनी ज़िद्दी हो… और जब तुम्हारी बात नहीं मानी जाती तो तुम कहाँ तक जा सकती हो, ये भी मुझे अच्छे से पता है।"
सत्यम को बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई।
क्योंकि वो तो देख ही चुका था…
कैसे एक मासूम-सी लड़की एक ही रात में शेरनी बन सकती है,
कैसे वह सिर्फ एक जॉब को लेकर उसे धमका सकती है, और
कैसे उसके चेहरे पर मासूमियत और चालाकी एक साथ खेल सकती है।
वो चुपचाप सोच रहा था…
"सर अपनी बेटी को सही जानते हैं… लेकिन ये नहीं जानते कि उनकी बेटी उनकी सोच से भी ज़्यादा ज़िद्दी है।"
उससे पहले कि कोई और कुछ कहता, निराली बोल पड़ी—
"डैड… मैं दूसरों के साथ जैसी भी हूँ, वो मेरी चॉइस है। लेकिन मेरे पति… और दूसरो मे बहुत फर्क है।"
कमरे में एक पल को जैसे हवा भी थम गई थी।
वो आगे बढ़ी और राज जी के पास ज़मीन पर बैठ गई।
उनका हाथ अपने हाथों में लिया, और बहुत प्यार से उनकी आँखों में देखते हुए कहा—
"मैं जिद करती हूँ… क्योंकि मुझे पता है, आप हमेशा मुझे वो चीज़ दिला सकते हैं जो मैं चाहती हूँ।
लेकिन डैड, ये इंसान… ये मुझे महंगी चीज़ें भले ना दे सके,
पर ये मुझे सच्चा प्यार देते हैं… इज़्ज़त देते हैं।"
उसकी आवाज़ अब थोड़ी भर्राई हुई थी—
"और मुझे ऐसे ही प्यार की ज़रूरत है।
मैं इनके साथ इनका छोटा-सा घर भी खुशी से बाँट लूंगी,
क्योंकि घर ईंटों से नहीं, रिश्तों से बनता है।"
“छत चाहे टपकती हो… पर साथ अगर मजबूत हो, तो हर मौसम निकल जाता है।”
राज जी चुप थे।
उनकी आँखों में नमी सी छलक आई थी।
सत्यम अवाक था…
वो जैसे उसी जगह जम गया।
वो सोच रहा था—
"वैसे एक्टिंग तो जबरदस्त करती है… मानना पड़ेगा।"
निराली अब राज जी के गले लग गई थी।
"डैड, मुझे सिर्फ आपका आशीर्वाद चाहिए… बाकी सब हम खुद संभाल लेंगे।"
राज जी मुस्कुराए, लेकिन आँखों में नमी साफ झलक रही थी।
"मेरी बेटी तो सच मे बड़ी और समझदार हो गई है।अगर तुम सच में ऐसा चाहती हो… तो मैं इस फैसले से बहुत खुश हूँ। मैं बाहर तुम्हारी माँ को ये खुशखबरी देने जा रहा हूँ।"
कहते हुए उन्होंने प्यार से निराली के सिर पर हाथ फेरा और कमरे से बाहर चले गए।
अब कमरे में सिर्फ निराली और सत्यम थे।
एक पल की खामोशी के बाद…
सत्यम की आवाज से ख़ामोशी टूटी—
"क्या तुम… सच में मेरे साथ चलने वाली हो?"
"आपको सुनाई नहीं दिया जब मैं डैड से बात कर रही थी?" वो बीना किसी भाव के जवाब देती है।
"देखो निराली, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए… सर बहुत खुश लग रहे थे। सोचो, अगर उन्हें कल को सच्चाई पता चली तो… उनके दिल पर क्या गुज़रेगी?" सत्यम निराली को समझाने की एक आखिरी कोशिश करता है।
निराली का चेहरा सख्त हो जाता है।
"वो मेरे पापा हैं सत्यम… तो आपको उनकी चिंता करने की जरूरत नहीं है, आपको इससे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए।"
"मुझे फर्क पड़ता है निरा! क्योंकि वो इंसान हम पर भरोसा कर रहा है… उस भरोसे को तोड़ना, मेरे लिए पाप के बराबर है।"
"एक बार सोचो कल को अगर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी बिना किसी रिश्ते के… एक गैर मर्द के साथ… उसकी बीवी बनकर रह रही थी…"
"तब वो क्या महसूस करेंगे? क्या उसके बाद तुम अपना चेहरा दिखा पाओगी उन्हे?"
सत्यम की आवाज़ भर्राई हुई थी, उसकी आँखों में सच्ची बेचैनी थी।
निराली ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला… पर शब्द नहीं निकल पाए।
सत्यम उसकी आँखों में एक नज़र देखता है— वो नज़र जो जिद के पीछे छिपे एहसासों को टटोलती है।
और फिर… बिना कुछ कहे, वो रूम से निकल जाता है।
और पीछे रह जाती है— निराली।
कमरे की खामोशी में उसका दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रहा था …।
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