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Rebirth Novel ki Duniya mein

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siya Rawat

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आंचल एक खूबसूरत और मासूम सी लड़की जिसे धोखे से मार दिया जाता है और वह पहुंच जाती है अपनी फेवरेट नोबेल के अंदर क्या वह अपनी और सनम की किस्मत को बदल पाएगी.... या एक बार फिर किसी की साजिश का शिकार हो जाएगी......

Total Chapters (104)

Page 1 of 6

  • 1. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 1

    Words: 1705

    Estimated Reading Time: 11 min

    कहते हैं, जब एक नई कहानी शुरू होती है, तो पुरानी कहानी का अंत होना निश्चित होता है। वैसे ही, उस दिन सनम और अभिमन्यु की कहानी समाप्त हुई, और एक नई कहानी शुरू हुई। एक घर में एक लड़की बेड के नीचे बैठी रो रही थी। उसने शादी का जोड़ा पहन रखा था, लेकिन वह यह शादी बिल्कुल नहीं करना चाहती थी। क्योंकि उसकी सौतेली माँ उसकी शादी जबरदस्ती उसके पिता की उम्र के आदमी से करना चाहती थी। लेकिन वह लड़की यह शादी बिल्कुल नहीं करना चाहती थी। इसीलिए वह वहाँ से भाग जाना चाहती थी। लेकिन उसके भागने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। तभी उसे कमरे में एक बूढ़ा आदमी आया, और उसने लड़की के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "भाग जा बेटी, यहाँ से, वरना ये लोग तेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर देंगे।" वह लड़की अपनी आँखें खोलकर उसे, बूढ़े आदमी को, देखती है और कहती है, "काका, उन लोगों ने मेरे भागने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। बस एक रास्ता बचा है। अगर मैं मौत को चुन लेती हूँ, तो शायद मेरी ज़िन्दगी और मेरी इज़्ज़त दोनों बच जाएँ।" तभी उसे कमरे में एक 40-45 साल की औरत आई, और उसके साथ एक 20 साल की लड़की थी, और एक 22 साल का लड़का। सब लोग वहाँ जाकर उस लड़की से कहते हैं, "यह तैयार हो गई है, तो इसे जल्दी से नीचे लेकर चलो। इसकी शादी होते ही, यह सारी प्रॉपर्टी हमारी हो जाएगी। और तुम जानते हो ना, मिस्टर गुप्ता ने हमें इस लड़की से शादी करने के लिए पूरे 25 करोड़ रुपये दिए हैं।" मैंने लड़की को भरी आँखों से उस लड़की की तरफ़ देखते हुए कहा, "हमने तो तुमसे प्यार किया था, ना, मोहित? फिर तुमने हमें धोखा क्यों दिया?" "हम तो वही करते थे जो तुम कहते थे, और तुमने हमें 25 करोड़ में बेच दिया।" तभी वह लड़का उस लड़की के करीब आया और कहता है, "आंचल, यह दुनिया सिर्फ़ पैसों से चलती है। प्यार-मोहब्बत का कोई काम नहीं है। अगर मैं तुम्हारे प्यार में पड़ा रहता, तो पहले की ही तरह कंकाल और भिखारी रहता। आज देखो, मेरे पास सब कुछ है - पैसा, प्रॉपर्टी, पॉवर, और मियाँ जैसी गर्लफ्रेंड। फिर मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है।" आंचल भरी आँखों से अपनी बहन की तरफ़ देखती है और कहती है, "मैंने तुम्हें हमेशा अपनी छोटी बहन माना, तुमने जो कहा मैंने किया। जो मुझे पसंद आया मैंने सब तुम्हें दे दिया। और आज तुम मेरी शादी एक 50 साल के बूढ़े से कराने जा रही हो। अरे, अगर मैं इतनी ही बेकार थी, तो तुम सब के ऊपर मुझे मार ही देतीं ना, लेकिन मुझे ऐसे किसी नरक में मत भेजो।" तभी औरत कहती है, "यह इमोशनल ड्रामा ना तू किसी और को दिखाना। यहाँ तेरा यह इमोशनल ड्रामा काम नहीं आने वाला है। और जल्दी से अपना हुलिया ठीक कर, नीचे शादी होने वाली है। और फिर यह सारी प्रॉपर्टी हमारी और तू यहाँ से दफ़ा हो जाएगी।" और तीनों जोर-जोर से हँसते हैं। वही वह लड़की मुस्कुराते हुए उन सब की तरफ़ देखती है और कहती है, "मैं मर जाऊँगी, लेकिन ना तो यह प्रॉपर्टी दूँगी, और ना ही उस बूढ़े से शादी करूँगी। और एक बात, मैंने यह सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट में दान कर दी है, तो इसकी एक फूटी कौड़ी भी तुम लोगों को नसीब नहीं होगी। और रही मेरी बात, तो मैं उस बूढ़े से शादी नहीं करूँगी। इसलिए, तुम सब लोग अपनी बर्बादी का मातम मानो, और तुम, मोहित, तुमने दौलत के लिए मुझे छोड़ा था ना? आज मेरी दौलत ही तुम्हारे ऊपर बात कर रही है, या यूँ कहो, स्मार्ट को पैसा और पॉवर।" बालकनी से नीचे कूद जाती है आंचल। आंचल का कमरा 18वें फ्लोर पर था। गिरते ही आंचल का सिर फटकर दो टुकड़ों में हो गया था, और उसकी साँसें तुरंत टूट गई थीं। वही वह तीनों लोग बालकनी से नीचे झाँककर आंचल को देख रहे थे। जब आंचल नीचे गिर रही थी, तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी, और वह मुस्कान उन दिनों की बर्बादी का सबूत थी। बहुत सी पुलिस आई और आंचल को अस्पताल ले गई। वहाँ आंचल की साँसें पहले ही रुक चुकी थीं। तभी उस औरत, मोहित और मियाँ के पास वकील का फ़ोन आया, और वह कहता है, "हाँ, आंचल जो कह रही थी वह सच था। उसने एक महीने पहले ही सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट में दान कर दी है। और उसने यह भी कहा था, अगर उसे कुछ होता है या उसकी मौत होती है, तो उसके ज़िम्मेदार तुम तीनों होंगे। इसलिए, अब तुम तीनों, या तो वहाँ से भाग जाओ, या फिर खुद को पुलिस के हवाले कर दो। क्योंकि थोड़ी देर में पुलिस वहाँ पहुँचने वाली है।" यह सब सुनकर उन तीनों के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। वे तीनों हड़बड़ा गए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि वहाँ पुलिस पहुँच चुकी थी, और उन तीनों को ज़बरदस्ती अपने साथ ले गई। यह अंत नहीं, शुरूआत थी एक नई कहानी की। आंचल की कहानी का तो अंत हो गया था, लेकिन आंचल का पुनर्जन्म हुआ था। उसका फेवरेट नॉवेल "मेरी आशिकी तुमसे ही" था, और आंचल काफी समय से उसे पढ़ रही थी। लेकिन इस नॉवेल का अंत आंचल ने अभी तक नहीं पढ़ा था। क्या होगा, जब अपने फेवरेट नॉवेल में ही आंचल पहुँच जाए, एक लीड कैरेक्टर के रूप में? यह देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि आंचल पहले से ही सब कुछ जानती होगी। एक अस्पताल के वार्ड में एक लड़की बेड पर लेटी हुई थी। उसकी कंडीशन बहुत खराब थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसका शरीर ना होकर सिर्फ़ एक कंकाल हो, लेकिन उसकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी। क्योंकि वह आज भी उतनी ही खूबसूरत थी, जितनी 3 साल पहले थी। हाँ, 3 साल हो गए थे। इस लड़की को कोमा में गए हुए 3 साल हो गए थे और उसकी फैमिली ने अब तो उम्मीद भी छोड़ दी थी कि वह कभी कोमा से बाहर आएगी। अचानक उस लड़की की आँखों की पुतलियाँ हिलने लगीं, और उसके हाथों की उंगलियाँ। तभी उस लड़की के पास बैठी नर्स डॉक्टर के पास गई, और उसे बुलाकर लाई। डॉक्टर ने उसे चेक किया, और बाहर आकर कहा, "कैसा है? आपकी बेटी को होश आ रहा है।" वहाँ के सारे लोग बहुत खुश हो गए कि आखिरकार 3 साल बाद उनकी बेटी को होश आ रहा था। तभी उस लड़की की आँखें खुलीं। उसकी नज़रें चमक उठीं। उसने अपनी आँखें बंद कीं और फिर बोली, "उसे अपनी आँखों के सामने एक सफ़ेद दीवार दिखाई दी। उसने चारों तरफ़ नज़र घुमाई, तो वह समझ गई कि यह अस्पताल का वार्ड है। उसने अपने मन में सोचा, "क्या मैं बच गई हूँ या मुझे किसी ने बचा लिया है? लेकिन मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं काफी समय से सोई हुई थी?" कमरे में बहुत से लोग आए। उन सबको देखकर आंचल कन्फ़्यूज़ हो गई और सबकी तरफ़ ऐसे देख रही थी जैसे वे सब उसके लिए अजनबी हों। हाँ, अजनबी ही तो थे वे सब, उसके लिए, क्योंकि आंचल का पुनर्जन्म हुआ था। अपनी बेटी को अपनी तरफ़ अजनबी की तरह देखते देखकर उसके माँ-बाप की आँखें नम हो गईं। तभी डॉक्टर ने कहा, "आप अपना ख्याल रखिए, मिस्टर और मिसेज़ प्रताप। यह भी बहुत बड़ा मेडिकल चमत्कार है कि आपकी बेटी 3 साल बाद कोमा से बाहर आई है। लेकिन उसे थोड़ा समय लगेगा क्योंकि कितने भयानक एक्सीडेंट के बाद वह ज़िंदा बची है। यही सबके लिए बहुत बड़ी बात थी, और धीरे-धीरे उसकी याददाश्त भी वापस आ जाएगी। और नहीं भी आई तो क्या हुआ, वह पुरानी चीज़ों को पीछे छोड़कर अपनी ज़िन्दगी की नई शुरुआत कर सकती है।" तभी आंचल बेड से उठने की कोशिश करती है। एक लड़का जाकर उसे सहारा देकर खड़ा करता है। आंचल उस लड़के की तरफ़ देखती है। तो वह लड़का आंचल के माथे को चूमकर कहता है, "बहुत वक़्त लगा दिया, प्रिंसेस। उठने में मुझे नहीं पता था। मेरी प्रिंसेस मुझे इतनी बड़ी सज़ा देगी, अपने बर्थडे पर ना आने की।" आंचल बहुत गौर से उस लड़के का चेहरा देख रही थी। लेकिन उसे कुछ भी समझ नहीं आया। तभी वह लड़का आंचल के सिर पर हाथ फेरकर कहता है, "मैं सब बता दूँगा, लेकिन अभी तुम्हें वाशरूम जाना है ना? चलो, मैं छोड़कर आता हूँ।" आंचल वाशरूम में आती है और आईने के सामने खड़ी हो जाती है। जब वह खुद के चेहरे को देखती है, तो चौंक जाती है क्योंकि यह चेहरा उसका तो नहीं था। यह तो किसी बहुत खूबसूरत लड़की का चेहरा था, और वह बहुत सुंदर थी। लेकिन वह इतनी दुबली-पतली थी कि ऐसा लग रहा था कि कपड़े ने उसे नहीं, बल्कि कपड़ों ने उसे पहना है। तभी उसके दिमाग में बहुत सी यादें आने लगती हैं। वह कहती है, "ये कैरेक्टर मुझे कुछ जाने-पहचाने से क्यों लग रहे हैं? ये तो मेरे फेवरेट नॉवेल के कैरेक्टर हैं। मैं मतलब, मैं अपने फ़ेवरेट नॉवेल में ज़िंदा हूँ। ओह माय गॉड!" फिर कहती है, "चलो, अच्छा है, उन धोखेबाज़ों की दुनिया से तो मैं बाहर आ गई। लेकिन यहाँ भी धोखेबाज़ अपने ही रिश्तेदारों के वेश में बैठे हैं।" बाहर आती है तो वह लड़का उसे उठाकर कार में बिठा देता है और कहता है, "कैसी हो, प्रिंस?" आंचल अपनी गर्दन हिला देती है। तभी वह औरत उसके पास आती है और कहती है, "क्या हुआ मेरी बच्ची? ऐसे क्यों देख रही है?" आंचल उसकी तरफ़ देखती है और कहती है, "मुझे कुछ याद नहीं। क्या आप मुझे बता सकती हैं, मैं कौन हूँ और आप लोग कौन हो? क्या आप लोग मुझे अपना परिचय दे सकते हैं?" उस औरत की आँखों में आँसू आ जाते हैं। तभी वह लड़का सामने आता है और कहता है, "तुम हमारी बहन हो। ये तुम्हारे पापा हैं, और ये तुम्हारी माँ। और मैं तुम्हारा भाई हूँ। मेरा नाम सात्विक है। और ये हमारे माँ-बाप, मिस्टर एंड मिसेज़ रोहित और काजल प्रताप हैं। और तुम हमारी गुड़िया हो, हमारी जान, हमारी ज़िन्दगी, हमारा सब कुछ। अक्षरा मेरी छोटी बहन है, मेरी गुड़िया।"

  • 2. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 2

    Words: 2619

    Estimated Reading Time: 16 min

    आंचल अजीब नज़रों से उन तीनों को देख रही थी। वहीं, वे तीनों अपनी बेटी और बहन की आँखों में अजनबीपन देखकर अपने सीने में बहुत भयानक दर्द महसूस कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनके दिल को उनके सीने से बाहर निकालकर अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया हो। आंचल उन तीनों की तरफ देखकर बोली, "आप लोग अभी यहाँ से बाहर जाइए। मैं किसी से बात करने की स्थिति में नहीं हूँ। जब मुझे लगेगा कि मैं हकीकत को अपना लिया है, तो मैं आप लोगों से बात करूँगी।" और अपनी आँखें बंद कर लीं। वहीं, वे तीनों लोग उसे देखते हुए बाहर चले गए। दोस्तों, मैं अब आगे से आंचल को अक्षरा के नाम से बुलाऊँगा, तो आप लोग कंफ़्यूज़ मत होइएगा। अक्षरा छत को देखते हुए बोली, "कैसी ज़िंदगी है मेरी! जिन्हें अपना माना, जिसे इतनी मोहब्बत की, जिनके लिए सब कुछ किया, उन लोगों ने तो मेरी कोई क़दर नहीं की। उनकी नज़रों में मैं एक बोझ थी; लेकिन अब मैं किसी के ऊपर बोझ नहीं बनूँगी। अब मैं खुद की ज़िंदगी, खुद के हिसाब से जीऊँगी। लेकिन मुझे इस फ़ैमिली के बारे में भी सोचना होगा ना? इस फ़ैमिली ने अपनी बेटी को खोया है, और उनकी बेटी के शरीर में मेरा पुनर्जन्म हुआ है।" और अब मैं इन सब लोगों का ख़्याल रखूँगी, क्योंकि जब मैं यह नॉवेल पढ़ रही थी, तब मुझे पता चल गया था कि ये लोग अक्षरा से कितना प्यार करते थे; और अब अक्षरा भी उन्हें उतना ही प्यार करेगी। पहले मैं धोखेबाज़ों पर विश्वास करती थी, और उन्होंने विश्वासघात किया। अब मैं किसी पर भी अंधा विश्वास नहीं करूँगी, और ना ही कभी किसी से दिल लगाऊँगी; क्योंकि यह दिल बहुत बुरी चीज़ होती है। जब टूटता है ना, बड़ी तकलीफ होती है। अक्षरा छत को देखती रही, और देखते-देखते उसकी आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला। उसके सोने के दस मिनट बाद तीनों लोग कमरे में आए और उसे देखकर बोले, "क्या हालत हो गई है हमारी बच्ची की! सिर्फ़ और सिर्फ़ उस आदमी की वजह से! और अब मैं अपनी बहन को उसके पास कभी नहीं जाने दूँगा, क्योंकि वह मेरी बहन के लायक नहीं है।" मिस्टर प्रताप उसकी तरफ देखते हुए बोले, "हम भले ही कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन इतना हम भी जानते हैं कि उसे अब तक ख़बर मिल चुकी होगी कि अक्षरा को होश आ गया है।" वहीं दूर, एक आलीशान महल में एक लड़का अपने कमरे की बालकनी में खड़ा था और फ़ोन पर किसी से बातें कर रहा था। डॉक्टर उसे पूरी अपडेट दे रहा था, और उसने यह भी बता दिया था कि अक्षरा की याददाश्त चली गई है। वह लड़का फ़ोन काटकर सामने घने अंधेरे को देखते हुए बोला, "आप हमें भूल जाएँ? यह तो पॉसिबल नहीं है, क्योंकि आपने हमसे मोहब्बत की है, और आप हमें भूल नहीं सकतीं, और हमें भूलकर अपनी ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ सकतीं।" यह है हमारी कहानी का हीरो, अगस्त्य राणा। अगस्त्य राणा, राणा इंडस्ट्रीज़ का मालिक है, और पूरी दुनिया का बादशाह और एक क्रूर तानाशाह है। उसके आगे कोई नज़र उठाकर देख ले, इतनी भी किसी की औक़ात नहीं है। और क्यों? अगस्त्य नफ़रत करता है अक्षरा से, और उसे खुद से दूर भी नहीं जाने देता। क्या वजह है? छह फ़ीट हाइट, गोरा रंग, काली, गहरी आँखें—जिनमें इतना अंधेरा है कि कोई देखे तो उन आँखों में ही डूब जाए, लेकिन उसे किनारा कभी ना मिले। बनाई हुई परफ़ेक्ट बॉडी, चेहरे पर इतनी कठोरता है कि देखने वाले की पलकें अपने आप झुक जाएँ। अगस्त्य अपने कमरे से निकलकर बाहर आया और आकर सोफ़े पर बैठ गया। तभी उसके पास एक बूढ़ी औरत आई और बोली, "क्या बात है? आज इतने रिलैक्स कैसे लग रहे हो?" "दादी, आपकी बहू को होश आ गया है, पर अनफ़ॉर्चुनेटली, उसकी याददाश्त चली गई है। वह भूल चुकी है हम सबको। यह भी भूल चुकी है कि उसकी शादी हमसे हुई थी, जो उसने जबरदस्ती की थी। और अब हम उसे खुद से आजाद तो नहीं करेंगे; उसे उसके लिए हुए हर एक गुनाह की सज़ा देंगे। उसने हमें, हमारे प्यार को, अलग किया था ना? अब हम उससे उसकी साँसें छीनेंगे। इस बार तो शायद वह बच गई, और तीन साल तक कोमा में रही; लेकिन अब नहीं बचेगी।" गायत्री राणा, अगस्त्य राणा की दादी और राणा ख़ानदान की मुखिया हैं। उनके हुक्म के बिना पूरे राणा ख़ानदान में एक पत्ता तक नहीं हिल सकता। गायत्री जी अगस्त्य की तरफ़ देखती हुईं बोलीं, "अगस्त्य, कभी-कभी आँखों देखा भी धोखा होता है। ज़रूरी नहीं कि अक्षरा ने वह सब कुछ किया ही हो। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हमने एक पहलू देखा है; दूसरा पहलू तो आज तक हमने देखा ही नहीं।" अगस्त्य अपनी दादी की तरफ़ देखता हुआ बोला, "और हमें दूसरा पहलू देखना भी नहीं है। हमें उस लड़की की ज़िंदगी को ज़िंदा नरक बनाना है।" गायत्री जी अगस्त्य की तरफ़ देखती हुईं बोलीं, "वह तो वैसे ही आपसे डरती है; आपके नाम तक से काँपती है। इतना टॉर्चर किया है आपने उसे दो सालों में! अगर आपका नाम भी ले ले ना, तो उसकी साँसें रुक जाती हैं। और कितना टॉर्चर करना चाहते हो आप? और हाँ, रास्ते और भी तो थे; आपको छोड़कर जाना पूर्वी की मर्ज़ी थी, अक्षरा की नहीं। इसीलिए हर बात के लिए अक्षरा को दोषी मत मानिए आप।" अगस्त्य अपनी दादी की बातें सुनकर गुस्से में वहाँ से उठकर बाहर चला गया और अस्पताल के आगे जाकर अपनी कार रोक दी। वह अंदर गया तो देखा वहाँ पर सात्विक और उसके पापा खड़े थे। सात्विक उसे देखकर बोला, "क्यों आये हो यहाँ? क्या रखा है तुम्हारा यहाँ?" अगस्त्य के सवाल पर सात्विक गुस्से मे बोला , "दोस्त हो हमारे, इसीलिए अभी तक ज़िंदा खड़े हैं; वरना कोई हमसे इस तरह बात करे तो हम इसकी सांस छीन लेते हैं।" सात्विक अगस्त्य के आगे खड़ा हो गया और बोला, "तुमने जो हमारी बहन के साथ किया है ना, उसके बाद हमारी दोस्ती बहुत पहले ही ख़त्म हो गई। और हम तुम्हें आज एक बात बता देते हैं: अगर हमारी बहन के आसपास भी तुम दिखे ना, तो कसम से, हम तुम्हें चूर-चूर कर देंगे, लेकिन उसे एक खरोच भी नहीं आने देंगे। और एक बात: पूर्वी का आपको छोड़कर जाना, पूर्वी की मर्ज़ी थी, उसमें मेरी बहन का कोई दोष नहीं था। वह मंडप में सिर्फ़ इसीलिए बैठी थी कि आपकी बेइज़्ज़ती ना हो; लेकिन आपने उसे कभी पूछा इस बारे में? नहीं! आपने सिर्फ़ उसे सज़ा दी, और उसकी ऐसी हालत कर दी कि वह पिछले तीन साल से एक ज़िंदा लाश की तरह पड़ी थी।" सात्विक सबकी तरफ़ देखकर कमरे में घुस गया। वे तीनों लोग पीछे-पीछे उसके पीछे आए। तभी सात्विक ने एक हाथ बढ़ाकर अक्षरा को खींच लिया। अक्षरा लड़खड़ा गई, लेकिन वह खुद को संभालकर खड़ी हो गई। तभी उसे ख़्याल आया—यही तो है उसकी ज़िंदगी का विलेन, जिसने बेचारी अक्षरा को मार दिया। लेकिन वह अक्षरा नहीं थी जो अगस्त्य से डर जाएगी; वह आंचल थी, आंचल जो अपनी इज़्ज़त के लिए अपनी जान दे बैठी थी। अक्षरा भी अपने दोनों हाथों को कसकर बांधते हुए, बिल्कुल अगस्त्य की आँखों में आँखें डालकर बोली, "कौन हो आप? और यह क्या बदतमीज़ी है आपकी? और आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे बिना इजाज़त मुझे हाथ लगाने की? मुझे ऐसा लगता है कि शायद आपकी फ़ैमिली ने आपको मैनर्स नहीं सिखाए, कि एक अजनबी इंसान से कैसे बात की जाती है।" अक्षरा की बात सुनकर एक बार को तो अगस्त्य की आँखें हैरानी से फैल गईं; लेकिन फिर उसकी आँखों में पहले की तरह गुस्सा और नफ़रत आ गई। वह अक्षरा का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोला, "चलो मेरे साथ, अभी के अभी!" अक्षरा उसका हाथ झटक देती हुई बोली, "कौन हो आप? क्यों जाऊँ मैं आपके साथ?" अगस्त्य अपने आप को संभालते हुए बोला, "बीवी हो मेरी, इसीलिए जाओगी मेरे साथ!" "लेकिन मुझे कुछ याद नहीं है; और जब मुझे कुछ याद नहीं, तो आप मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते। और एक बात: मैं कोई खिलौना नहीं हूँ, जिसे जब मर्ज़ी आया खेला, और जब मर्ज़ी आया फेंका। इसीलिए आइंदा से मुझ पर हुक्म चलाने की ग़लती मत करना, क्योंकि मैं आग हूँ! अगर मेरे करीब आओगे ना, तो जल जाओगे!! पहली बात तो मुझे याद नहीं कि मेरी शादी कभी आपसे हुई थी; और दूसरी बात, अगर कोई भी होगी ना, तो मुझे आप जैसा पति तो बिल्कुल नहीं चाहिए। और एक बात: अगर मेरे साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करने की कोशिश की ना, तो आप जानते नहीं हैं मुझे! इसीलिए, लीव! और दोबारा अपना मुँह उठाकर मेरे पास मत आना!" अक्षरा का यह रूप देखकर अक्षरा के माँ-बाप और भाई सात्विक तीनों का मुँह खुला का खुला रह गया, क्योंकि अक्षरा इतनी डेयरिंग तो कभी नहीं थी, जितनी वह इस वक्त है। तभी सात्विक बोला, "इसका मतलब तुम्हारी याददाश्त नहीं गई है?" अक्षरा सात्विक की तरफ़ देखती हुई बोली, "हाँ, मुझे जब पहले होश आया था, तो मुझे कुछ याद नहीं था; लेकिन मैं जब दोबारा नींद से जागी, तो मुझे सब कुछ याद था; और इस इंसान ने जो मेरे साथ किया है ना, उसके बाद तो मैं इस ज़िंदगी में कभी माफ़ नहीं कर सकती।" "और एक बात: सच्चाई जाननी है ना? तो सच्चाई का पता लगाओ! कौन थी पूर्वी? कहाँ से आई थी? क्यों आई थी? माँ-बाप कौन थे? भाई कौन था? परिवार कौन था? अगर इतनी ही पॉवर है ना तुम्हारे अंदर, तो पता लगाओ; और सारा सच अपने आप तुम्हारी आँखों के सामने आ जाएगा। और अगर मैं ग़लत साबित हुई ना, तो मैं तुम्हें तुरंत तलाक दूँगी। अगर तुम ग़लत साबित हुए, तब भी मैं तुमसे तलाक लूँगी। यह मेरा आख़िरी फ़ैसला है।" "और हाँ, अब आप यहाँ से जा सकते हो, क्योंकि यह हॉस्पिटल है, आपका घर नहीं, जहाँ आपकी हुकूमत चले। और मैं आपकी बीवी नहीं, बल्कि किसी की बेटी और बहन हूँ; तो मुझ पर हुकूमत सिर्फ़ मेरे पापा और भाई की चल सकती है, किसी और इंसान की नहीं। और हाँ, आपका बदला तो उस वक़्त पूरा हो गया था, जिस वक़्त आपने मुझे जानबूझकर ट्रक के सामने फेंका था। आपको क्या लगा? आप बच जाओगे? नहीं! भगवान ने मुझे बचाया था, जिस दिन मुझे ट्रक के आगे धक्का दिया था; और उस ट्रक के आगे मेरी मासूमियत और मेरी इंसानियत ख़त्म हो गई। अगर जो आपके सामने खड़ी है ना, वह एक नई अक्षरा है, जो अपने सामने खड़े हुए इंसान को उसकी औक़ात दिखाना बहुत अच्छे से जानती है।" अक्षरा का यह रूप देखकर अगस्त्य की बोली बंद हो गई। उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था। वह वहाँ से निकलकर बाहर चला गया। वहीं, सात्विक ने एकदम से जाकर अक्षरा को अपने गले लगा लिया और बोला, "वाह! मेरी शेरनी! मुझे नहीं पता था कि तू अगस्त्य राणा की बोलती बंद कर सकती है, जिसके आगे कोई बोलता तक नहीं है, यार!" अक्षरा सात्विक की तरफ़ देखती हुई बोली, "भाई, इन लोगों ने बहुत टॉर्चर किया है मुझे, इतना कि मेरी आत्मा तक ख़त्म हो गई है। मेरे अंदर की इमोशनल फ़ीलिंग्स, सब कुछ ख़त्म हो गया है। अगर मैं आपको बताऊँगी ना, तो शायद आप सुन नहीं पाओगे जो मैंने बर्दाश्त किया है।" अक्षरा की माँ अक्षरा के पास आई और उसे गले लगाकर बोली, "हम भले ही तुम्हारे दर्द से अनजान थे, लेकिन तुम तो हमें बता सकती थी ना कि उस घर में तुम्हारे साथ क्या हो रहा था! अरे, तुमने तो अपनी दोस्ती निभाने के लिए अगस्त्य से शादी की थी, और उसने तो तुम्हें ही इन सब का ज़िम्मेदार मान लिया!" "ग़लती मेरी थी, माँ, जो मैंने उस इंसान की मदद की, जो मदद के लायक ही नहीं था। और आज मैं आप तीनों से वादा करती हूँ: मैं अगस्त्य को वही दर्द, वही तकलीफ़ दूँगी जो उसने मुझे दी है। मेरे सामने वह नई-नई लड़कियों को लेकर मेरे ही कमरे में जाता था; अब मैं उसके सामने वही सब करूँगी। लेकिन आप फ़िक्र मत करना; आपकी बेटी आपकी परवरिश और संस्कार को कभी कलंकित नहीं करेगी; लेकिन उसे उसकी औक़ात याद दिलाना बहुत ज़रूरी है। वह खुद को तानाशाह समझता है ना? तो वह भूल गया है कि उसके सामने भी अक्षरा प्रताप सिंह खड़ी है, जो कभी किसी से नहीं डरती! भले ही मैं थोड़े टाइम के लिए डर गई थी, लेकिन अब नहीं! और मेरी असली पहचान क्या है, यह आप तीनों बहुत अच्छे से जानते हो। और अब मैं अपना बदला लेकर रहूँगी, और उसके लिए मैं साम , दाम, दण्ड, भेद सबका इस्तेमाल करूँगी।" सात्विक ने अपनी बहन को गले लगा लिया और कहा , "मैं हर क़दम पर, और हर लड़ाई में तेरे साथ हूँ। जब भी अगर तू कमज़ोर पड़ेगी ना, मुझे अपने पास समझना। जब तू डगमगाएगी ना, तो मैं तुझे संभाल लूँगा; और जब तू आगे बढ़ेगी, तो मैं तेरी ताक़त बनूँगा।" अक्षरा सात्विक के गले लग गई , क्योंकि उसकी पिछली ज़िंदगी में कोई भी ऐसा इंसान नहीं था जो उसे समझता हो, उसे टाइम देता हो। Do like, share, comment, review please 🙏🙏

  • 3. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 3

    Words: 2593

    Estimated Reading Time: 16 min

    सात्विक ने अपनी बहन को गले लगा लिया और कहा, "मैं हर कदम पर, हर लड़ाई में तेरे साथ हूँ। जब भी तू कमजोर पड़ेगी, मेरे पास आना। जब तू डगमगाएगी, मैं तुझे संभाल लूँगा। और जब तू लड़ेगी, मैं तेरी ताकत बनूँगा।"

    अक्षरा सात्विक के गले लग गई, क्योंकि उसकी पिछली ज़िंदगी में कोई ऐसा इंसान नहीं था जो उसे समझता हो, जो उसका साथ देता हो। कोई ऐसा नहीं था जो उससे प्यार करता हो, जो उसकी इज़्ज़त करता हो, उसकी परवाह करता हो। वह हमेशा अकेली रही थी। खाने को तो उसके पास सब कुछ था—माँ, पापा, बहन, और जिससे वह प्यार करती थी, वह दोस्त। लेकिन उन तीनों ने मिलकर उसे जान से मार दिया था। उसका सब कुछ उससे छीन लिया गया था। और जब उसके पापा ने विरोध किया, उसके पापा को भी मार दिया गया था। उसके पापा ने पूरी ज़िंदगी उससे नफ़रत की थी, और जब अपने आखिरी वक़्त में उसे अपने पापा का प्यार मिला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

    यही सब सोचते हुए अक्षरा नींद के आगोश में चली गई, क्योंकि कल से उसे एक नई लड़ाई लड़नी थी। उसे अगस्त्य का सामना करना था, और उसे उसे हर एक बार के लिए माफ़ करना था। क्योंकि अब वह अगस्त्य को माफ़ नहीं कर सकती थी। भले ही वह सब कुछ आँचल के साथ नहीं हुआ था, लेकिन उसने अपनी ज़िंदगी में वह दर्द झेला था; जब कोई अपना हमें दर्द और तकलीफ देता है, तो कैसा लगता है, और कितना दर्द होता है। अक्षरा ने तो प्यार किया था, और अगस्त्य ने उसे उसकी साँसें छीनी थीं।

    आँचल, अच्छा बनकर, उन सबसे अक्षरा का बदला लेगी, जिन्होंने अक्षरा को ज़िंदगी भर दुख, दर्द और तकलीफ दी थी। क्योंकि अक्षरा एक भोली-भाली और सीधी-सी लड़की थी, जिससे हर कोई बेवकूफ़ बना देता था। लेकिन आँचल भोली-भाली नहीं रही थी। उसने दुनिया देखी थी, और उसने दुनिया में संघर्ष किया था, पेट भरने के लिए। इसलिए वह जानती थी कि इस दुनिया में कैसे रहना है, और कैसे जीना है।

    Next morning

    आज की सुबह अक्षरा की ज़िंदगी में एक नया उजाला लाने वाली थी, क्योंकि अक्षरा हर एक बंधन से आजाद हो चुकी थी। क्योंकि अब वह कभी वापस लौटकर अगस्त्य के पास नहीं जाएगी, ऐसा उसका मानना था। क्या दिन ऐसा ही होने वाला था? शायद नहीं, क्योंकि अगस्त्य को भी तो अपनी गलतियों का एहसास होगा। तब उसे सच्चे प्यार की कीमत समझ आएगी। लेकिन शायद बहुत देर हो चुकी थी, या शायद अभी कोई उम्मीद बाकी थी…

    अगली सुबह, प्रताप फैमिली ने अक्षरा को डिस्चार्ज करके अपने घर ले गई। उसे घर देखकर, अक्षरा को पुरानी अक्षरा के साथ हुई सारी बातें याद आने लगीं, और वह अपने मन में निश्चय कर लेती है कि वह अक्षरा को इतना कमज़ोर नहीं रहने देगी। वह हर उस इंसान से बदला लेगी, जिस इंसान ने उसकी ज़िंदगी बर्बाद करने में अहम भूमिका निभाई थी।

    तीनों ने अक्षरा को ले जाकर सोफ़े पर बिठा दिया। और एक नौकर ने वहाँ पर चाय-नाश्ता रखकर चला गया। अक्षरा चारों तरफ़ देख रही थी, तभी सात्विक ने कहा, "जिसे तुम ढूँढ़ रही हो, वह घर पर नहीं है। क्योंकि आजकल उसे घर आने की फ़ुरसत नहीं है। वह अपने मायके में खुश है, तो तुम भी उसके बारे में ना सोचो तो अच्छा है।"

    सात्विक की ऐसी बातें सुनकर अक्षरा को नीति की बात याद आती है; सात्विक की पत्नी अगस्त्य की बहन थी। और जब से अगस्त्य ने अक्षरा के साथ वह सब किया था, तब से सात्विक और उसकी पत्नी नीति का रिश्ता भी ख़तरे में आ गया था।

    लेकिन नीति भी अपनी तरफ़ से कोई कोशिश नहीं कर रही थी इस रिश्ते को बचाने की। और सात्विक तो वैसे ही अगस्त्य और उसकी पूरी फैमिली से नफ़रत करता था, और अब उस नफ़रत में इज़ाफ़ा नीति की हरकतों ने कर दिया था। क्योंकि नीति अपने भाई के दम पर बहुत उछलती थी। उसे अपने अलावा इस दुनिया में कोई दिखाई नहीं देता था। सात्विक नीति से प्यार नहीं करता था। उसने शादी सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी बहन के लिए की थी, क्योंकि उसकी बहन अगस्त्य से प्यार करती थी। और नीति ने सात्विक से वादा किया था कि अगर सात्विक नीति से शादी कर लेगा, तो नीति अक्षरा और अगस्त्य की शादी करवा देगी।

    अक्षरा ने सात्विक के हाथ पर हाथ रखा और कहा, "कोई बात नहीं भाई, वह जैसे हैं, रहने दीजिए। जब उन्हें हमारे होने-ना-होने से फ़र्क नहीं पड़ता, तो हमें भी अब उनके होने-ना-होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। और एक बात भाई, वह आपके लायक ना पहले थी, ना अब है। लेकिन ये चीज़ देखने में मुझे थोड़ी देर हो गई। अगर आप उसे छोड़ना चाहते हैं, तो आप उसे छोड़ सकते हैं। क्योंकि मैं अब उसे इस घर में कभी वापस नहीं लाऊँगी, और मैं नहीं चाहती कि नीति जैसी लड़की मेरे भाई की ज़िंदगी में रहे।"

    अक्षरा की बात सुनकर सात्विक की आँखें नम हो जाती हैं। क्योंकि सात्विक भी नीति से प्यार नहीं करता था। नीति से शादी करना उसकी मजबूरी थी। अब वह मजबूरी अक्षरा थी। नीति हमेशा उसे अक्षरा को लेकर ब्लैकमेल करती थी, और इसीलिए सात्विक इस रिश्ते को ढो रहा था।

    अक्षरा नीति के बारे में पढ़कर जान गई थी कि नीति का कई लोगों के साथ रिलेशनशिप है। वह सिर्फ़ सात्विक का इस्तेमाल कर रही थी। सात्विक अपनी बहन के लिए नीति की हर एक बात मान लिया करता था, लेकिन अब उसकी बर्दाश्त की सीमा पार हो गई थी।

    सात्विक ने अपनी माँ-पापा की तरफ़ देखा, तो वे दोनों ने भी अपनी गर्दन हिला दी। तो सात्विक वहाँ से उठकर अपने कमरे में गया और कुछ पेपर्स लेकर घर से बाहर निकल गया। सात्विक की गाड़ी जब अगस्त्य के घर के आगे आकर रुकी, तो उसे घर देखकर सात्विक को अपने बचपन से लेकर जवानी तक की याद आ गई। अपनी और अगस्त्य की दोस्ती की याद आ गई। फिर उसे अगस्त्य का अपनी बहन के ऊपर किया हुआ अत्याचार याद आया, तो उसके अंदर जो भी मोहसिन थे, सारे ख़त्म हो गए।

    सात्विक अंदर जाकर खड़ा हो गया। दादी को देखकर कहा, "आपकी पोती नीति कहाँ है? ज़रा उसे बुला दीजिए।" आज सात्विक का ऐसा रूप देखकर नीति की दादी थोड़ी हैरान हुई, क्योंकि जब भी सात्विक घर आया करता था, वह हमेशा दादी के पैर छूता था और बहुत अच्छे से उनसे बात करता था। लेकिन आज उसके तेवर कुछ बदले हुए थे।

    तभी एक नौकर जाकर नीति को बुलाकर लाया, और नीति के साथ-साथ अगस्त्य की पूरी फैमिली वहाँ खड़ी हो गई। सात्विक ने नीति की तरफ़ देखकर कहा, "ये पेपर्स साइन कर दो।"

    नीति ने पेपर्स लिए।
    "किस चीज़ के पेपर्स हैं?"
    "तलाक के पेपर्स हैं। तलाक चाहता हूँ मैं तुमसे। क्योंकि अब मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी में नहीं रखना चाहता। तुम्हारी और मेरी शादी सिर्फ़ एक डील थी, जो मैंने मेरी बहन के लिए की थी। और जब मेरी बहन इस घर में नहीं है, तो तुम भी मेरी ज़िंदगी में रहकर क्या करोगी? और तुम सब लोगों ने जो मेरी बहन के साथ किया है, उसके बाद तुम्हें अपने घर की परछाई भी अपने घर पर नहीं दिखने दूँगा, तो तुमसे रिश्ता रखना तो बहुत दूर की बात है।"

    सात्विक के मुँह से तलाक की बात सुनकर नीति और अगस्त्य दोनों हैरान रह गए। अगस्त्य सात्विक के पास आया और कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन से इस तरह बात करने की?"

    तभी सात्विक ने अगस्त्य की आँखों में आँखें डालकर कहा, "वैसे ही जैसे तेरी हिम्मत हुई मेरी बहन को ट्रक के आगे धकेलने की। वैसे ही जैसे इस घर में मेरी बहन को टॉर्चर किया गया। मैंने तो तेरी बहन के साथ कुछ किया ही नहीं, सीधे-सीधे तलाक माँगा है। वरना अगर मैं अपना आपा खो देता, तो तू बहुत अच्छे से जानता है कि मैं क्या कर सकता हूँ। और मुझे तुझसे बेहतर कोई नहीं जानता। मेरी बहन मेरी ताकत है, मेरा गुरूर है, और तुम सब लोगों ने मुझे मेरी ताकत और मेरा गुरूर छीना है। तो मैं तेरी बहन को अपनी ज़िंदगी में कैसे बर्दाश्त कर लूँ, जब तू मेरी बहन को अपनी ज़िंदगी में बर्दाश्त नहीं कर सकता था?"

    "हाँ, मैं मानता हूँ मेरी बहन से बचपन में गलती हुई थी। लेकिन तुम लोगों ने क्या किया उसके साथ? उसके साथ जानवरों जैसा सलूक किया। उसे मारा-पीटा, खाना नहीं दिया, अंधेरे कमरे में बंद कर दिया। और तेरे भाई ने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की। अगर वह उस दिन वहाँ से बचकर ना भागती, तो शायद अब तक ज़िंदा भी ना होती। जिसे तू अपना भाई, अपना सब कुछ मानता है ना, उसने तेरी बीवी की इज़्ज़त पर हाथ डाला था। तुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, मैं जानता हूँ। लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि तू और तेरा परिवार कितना गिरा हुआ है। जो लड़का अपनी माँ समान भाभी की इज़्ज़त पर हाथ डाल सकता है, वह लड़का अपनी बहन और माँ की इज़्ज़त पर भी हाथ डाल सकता है।"

    अचानक से अगस्त्य गुस्से में सात्विक का कॉलर पकड़ लेता है। सात्विक ने उसका हाथ झटकते हुए कहा, "यह गुस्सा अपने परिवार पर दिखा। अपने भाई को तहज़ीब-तमीज़ सिखा, उसे औरतों का सम्मान करना सिखा। और तेरी बहन की तो क्या ही कहूँगा… कुछ देखना चाहोगे? चल, दिखा देता हूँ। और हाँ, नीति, अगर तुमने तलाक के पेपर्स साइन नहीं किए ना, तो जो वीडियो मेरे पास हैं ना, मैं उन्हें मीडिया में दे दूँगा। फिर तेरे और तेरे परिवार की इज़्ज़त धज्जियाँ उड़ जाएँगी, कौड़ी की नहीं रहेगी। मैं आज तक चुप सिर्फ़ इसीलिए था क्योंकि यह मेरी बहन का ससुराल था। और जब आज मेरी बहन का इस घर से कोई रिश्ता नहीं है, तो मुझे भी तुम लोगों की इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं है।"

    फिर उसने एक वीडियो चलाकर अगस्त्य को अपना फ़ोन पकड़ा दिया। जैसे-जैसे अगस्त्य वीडियो देख रहा था, उसके हाथों की मुट्ठी कसती जा रही थी। फिर उसने दूसरा वीडियो चलाकर अगस्त्य को दिया। ऐसे ही करके सात्विक ने आठ से दस वीडियो अगस्त्य को दिखाए। फिर उसने उसके हाथ से फ़ोन छीनकर कहा, "क्या? ये तेरा आदर्श परिवार है ना? यही है ना? देख ले, कैसा परिवार है तेरा। तूने इस परिवार के लिए और अपनी पूर्व प्रेमिका के लिए मेरी बहन की ज़िंदगी बर्बाद की है ना?"

    "वह लड़की तो किसी और के साथ भाग गई थी शादी के मंडप से। और तुझे पता है, वह उस लड़के से शादी करके बच्चे भी पैदा कर चुकी है। और तू यहाँ उसकी याद में देवदास बन बैठा है। लेकिन उसकी भी कोई गलती नहीं है। तू ही इस लायक है कि तुझे किसी का प्यार नसीब नहीं होगा। और हाँ, नीति, तुम डिवोर्स पेपर्स साइन कर रही हो कि नहीं?"

    नीति ने सात्विक के हाथ से डिवोर्स पेपर्स छीनकर उन पर साइन कर दिए।

    सात्विक नीति के पास आया और उसके गले में से मंगलसूत्र खींचकर तोड़ लिया और कहा, "तुझ जैसी लड़की के लिए यह मंगलसूत्र नहीं है।" और मंगलसूत्र छीनकर अपनी पॉकेट में रखकर वहाँ से जाने लगा। फिर दादी की तरफ़ मुड़कर कहा, "भले ही दादी, आप बड़ी हो, इस घर की मुखिया हो, लेकिन आपने अपने घर के बच्चों को संस्कार नहीं दिए। उन्हें सिर्फ़ ऐटिट्यूड और घमंड सिखाया है। और आज देखिए, आपके बच्चे कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं।" और घर से बाहर निकल गया।

    वहीं, अगस्त्य अभी भी उन वीडियो के बारे में सोच रहा था। और अब उसे यकीन हो गया था कि अक्षरा जो कहती थी, वह सच था। उसने कुछ नहीं किया था। उसे मंडप पर बैठने वाली नीति थी।

    उसे याद आया जब अक्षरा भाग जा रही थी, तब उसने अगस्त्य से कहा था कि उसके भाई शोभित ने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है। लेकिन अगस्त्य ने उसकी एक बात का भी विश्वास नहीं किया था। और आज जब अगस्त्य को सच्चाई पता चली, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अक्षरा उसकी ज़िंदगी से जा चुकी थी, और उसका भाई, जैसा दोस्त, हमेशा के लिए उसे छोड़कर चला गया था। आज अगस्त्य खुद को एक हारा हुआ इंसान समझ रहा था।

    दुनिया में हुकूमत करने वाला अगस्त्य आज अपने ही परिवार से हार गया था। अपने परिवार, अपनी बहन, अपने भाई का ऐसा रूप देखकर उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने इन लोगों को कभी जाना ही नहीं। ये लोग तो मासूम शक्ल के पीछे छिपे भेड़िये थे, जिन्होंने न जाने बेचारी अक्षरा के साथ क्या-क्या नहीं किया था। और ऊपर से उसकी शिकायत करके उसे और टॉर्चर करवाते थे। आज अगस्त्य को अपनी हर एक गलती का एहसास हो रहा था, लेकिन शायद अब देर हो चुकी थी। और अक्षरा उसकी ज़िंदगी से जा चुकी थी। अब अगस्त्य हर मुमकिन कोशिश करेगा अक्षरा को वापस अपनी ज़िंदगी में लाने की।

    अगस्त्य उदासी के हर एक क़दम से अपने कमरे में चला गया। जब वह अपने कमरे में गया, तो उसे चारों तरफ़ अक्षरा महसूस हो रही थी।

    लेकिन वह घर में नहीं थी, और नहीं अगस्त्य की ज़िंदगी में, क्योंकि वह जा चुकी थी, और अब वापस आना मुमकिन नहीं था। क्योंकि उसके दिल में एक ज़ख़्म था, जो इतनी जल्दी भरने वाला नहीं था। वह खोने वाला कोई और नहीं, उसका खुद का पति था, तो कैसे माफ़ कर देती वह उसे?

    प्रताप मेंशन में, जब सात्विक वापस आया, तो आज उसके चेहरे पर एक अलग सी चमक, एक रौनक थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह एक बड़े बोझ से आजाद हो गया था। हाँ, नीति का रिश्ता उसके ऊपर एक बोझ तो था, जिसे वह ढो रहा था।

    लेकिन अब वह आजाद था। तभी मिस्टर प्रताप आए और कहा, "क्या हुआ सात्विक?"

    सात्विक ने डिवोर्स पेपर्स अपने पापा को दिखाते हुए कहा, "नीति ने साइन कर दिए हैं, पापा। कोर्ट में सबमिट करने जा रहा हूँ। उससे पहले मैंने सोचा अक्षरा को भी अपने साथ ले चलूँ। वह भी एक जगह रहने से बोर हो गई है ना, तो थोड़ा घूम आएगी मेरे साथ।"

    उन्होंने हाँ कहा। तभी अक्षरा ऊपर से आते हुए बोली, "सॉरी भाई, मैं कहीं नहीं जा सकती। क्योंकि मैं भी खुद को बहुत थका हुआ महसूस कर रही हूँ।"

    तो मिस्टर प्रताप ने सात्विक की तरफ़ देखकर कहा, "मैं वकील साहब को यहीं बुला देता हूँ। तुम पेपर्स दे देना।"

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  • 4. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 4

    Words: 2369

    Estimated Reading Time: 15 min

    प्रताप मेंशन में सात्विक जब वापस आया, तो उसके चेहरे पर एक अलग सी चमक, एक रौनक थी। ऐसा लग रहा था मानो वह किसी बोझ से आजाद हो गया हो। हाँ, नीति का रिश्ता उसके ऊपर एक बोझ था, जिसे वह उतार रहा था।

    लेकिन अब वह आजाद था। तभी मिस्टर प्रताप आए और पूछा,
    "क्या हुआ, सात्विक?"

    सात्विक ने तलाक के कागज़ अपने पिता को दिखाते हुए कहा,
    "नीति ने साइन कर दिए हैं, पापा। कोर्ट में सबमिट करने जा रहा हूँ। उससे पहले मैंने सोचा अक्षरा को भी अपने साथ ले चलूँ। वह भी एक जगह रहने से बोर हो गई है ना, तो थोड़ा घूम आएगी मेरे साथ।"

    उनके पिता ने हाँ कह दी। तभी अक्षरा ऊपर से आते हुए बोली,
    "सॉरी भाई, मैं कहीं नहीं जा सकती। क्योंकि मैं भी खुद को बहुत थका हुआ महसूस कर रही हूँ।"

    तो मिस्टर प्रताप सात्विक की तरफ़ देखकर बोले,
    "मैं वकील साहब को यहीं बुला देता हूँ। तुम उन्हें पेपर दे देना।"

    निर्दोष थी और उसे बिन मतलब सज़ा मिली थी। अगस्त को अपनी करनी पर बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकता था। क्योंकि अब वह उसके हाथ से जा चुकी थी, और अब अक्षरा उससे नफ़रत करने लगी थी। और यही बात अगस्त को बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

    क्योंकि अक्षरा हमेशा बचपन से अगस्त के आगे-पीछे घूमा करती थी। और अब शायद उसे अक्षरा के अपने आगे-पीछे घूमने की आदत हो गई थी। इसीलिए अगस्त को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि अक्षरा अब उसे छोड़कर अपनी अलग दुनिया बसाना चाहती है।

    आज अक्षरा ने अगस्त से कह दिया था कि उसका उस पर कोई अधिकार नहीं। यही बात अगस्त को बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वहीं दूसरी तरफ़, अक्षरा अपने कमरे में बैठी अपनी आगे की ज़िंदगी की प्लानिंग कर रही थी। उसे क्या करना है, कैसे करना है? तभी उसे एक चीज़ याद आती है कि अगस्त ज्यादातर अक्षरा को जलने के लिए नई-नई लड़कियों के साथ रहता था, और वही काम अक्षरा भी करेगी। क्योंकि आँचल को अक्षरा की मौत का बदला लेना था।

    इसीलिए अक्षरा अपने बचपन के दोस्त रजत को कॉल करती है और उसे मिलने के लिए बुलाती है। रजत भी अक्षरा की बात सुनकर तुरंत प्रताप मेंशन के लिए निकल गया। क्योंकि जब से अगस्त और अक्षरा की शादी हुई थी, अक्षरा ने रजत से सारे रिश्ते खत्म कर दिए थे, क्योंकि अगस्त को वह पसंद नहीं था।

    रात के 9:00 बजे, रजत को अपने घर देखकर मिस्टर प्रताप और सात्विक चौंक गए।
    "तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हो?" सात्विक ने पूछा।

    "मुझे अक्षरा ने बुलाया है। वह बहुत परेशान लग रही थी, और पता नहीं कैसे बातें कर रही थी।" रजत ने कहा।

    तीनों अक्षरा के कमरे की तरफ़ भागने लगे। उन्हें लगा कहीं फिर से अक्षरा को कुछ हो तो नहीं गया। लेकिन जब वे कमरे में पहुँचे, तो देखा अक्षरा आराम से बिस्तर पर बैठी हुई अपना फ़ोन चला रही थी।

    रजत अक्षरा को देखकर भावुक हो गया। क्योंकि उसने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि वह कभी अपनी बेस्ट फ्रेंड से मिल भी पाएगा। और जब से उसे पता चला था कि अक्षरा कोमा में थी, तो ज्यादातर अस्पताल में सात्विक के साथ रजत ही रहा था। रजत हमेशा अक्षरा का ख्याल रखता था और उसे एक बच्ची की तरह संभालता था। रजत जाकर अक्षरा को गले लगा लेता है और कहता है,
    "कहाँ चली गई थी पागल? तुझे पता है हम सब लोग कितने तरस गए थे तेरी आवाज़ सुनने के लिए, तुझे देखने के लिए, तुझसे बातें करने के लिए…"

    अक्षरा रजत को गले लगा लेती है और कहती है,
    "माफ़ कर दे यार। कुछ झूठे रिश्ते और झूठे लोगों के लिए मैंने अपने कीमती रिश्ते को खो दिया था। लेकिन फ़िक्र मत कर, अब तेरी दोस्त को अक्ल आ गई है। इसीलिए अब मैं उसके पीछे नहीं भागूँगी और उससे कोई मतलब नहीं रखूँगी। फ़िक्र मत कर, देखना तू मुझे जिस मुकाम पर देखना चाहता था ना, मैं खुद को उस मुकाम पर पहुँचा कर रहूँगी…"

    मिस्टर प्रताप और सात्विक वहाँ से नीचे चले गए। रजत और अक्षरा बैठकर बातें करने लगे। अक्षरा रजत को अपना पूरा प्लान समझाती है। तो रजत उसके प्लान को सुनने के बाद कहता है,
    "अच्छा, तो तूने मुझे सूली पर लटकाने के लिए यहाँ बुलाया है? मतलब तू हिटलर के सामने मुझे अपना बॉयफ्रेंड बनाकर ले जाएगी? क्या बात कर रही है?"

    अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर कहती है,
    "तू जानता है ना, वह मुझे पसंद नहीं करता। और उसे तो एक मौका मिल गया मुझे तलाक देने का। मैं यही तो चाहती हूँ कि वह मुझे आजाद कर दे इस छोटे रिश्ते से। फिर मैं एक नई उड़ान भरूँगी। एक ऐसी उड़ान जहाँ दुनिया देखेगी कि करण प्रताप की बेटी आज दुनिया को छू रही है।"

    "अच्छा, यह सब छोड़िए। बताओ माँ और बाबा कैसे हैं? और उनकी तबीयत तो ठीक रहती है ना? या तुम दोनों को परेशान करता रहता है?"

    रजत अक्षरा को गले लगाकर कहता है,
    "वह अपनी बेटी को बहुत मिस करते हैं। पाँच साल हो गए अक्षरा उनसे मिलने नहीं गई। फिर भी हर दिन, हर पल वह सिर्फ़ तुझे याद करते हैं और तेरे जल्दी से ठीक होने की दुआएँ करते हैं।"

    "हम दोनों कल सुबह का ब्रेकफ़ास्ट माँ और बाबा के साथ करेंगे जाकर। और अब तू ऐसा कर, हम दोनों सुबह जल्दी यहाँ से निकलेंगे और कल का पूरा दिन माँ और बाबा के साथ, एक फैमिली की तरह, पहले की तरह।"

    फिर दोनों नीचे आते हैं और डिनर करके अक्षरा अपने कमरे में चली जाती है। और रजत बाहर गार्डन में खड़े होकर आसमान को देखते हुए कहता है,
    "बहुत-बहुत शुक्रिया महादेव! मुझे मेरी दोस्त और मेरे माँ-बाप को उनकी बेटी वापस करने के लिए। आप नहीं जानते आज अक्षरा को पहले की तरह देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है।"

    "अगस्त्य ने मेरी अक्षरा को एक भीगी बिल्ली बना दिया था, लेकिन वह फिर से शेरनी बनकर आई है। और इस बार वह किसी को नहीं डरेगी, क्योंकि मैं उसकी आँखों में बदले की भावना देख रहा हूँ। और अगस्त ने जो मेरी अक्षरा के साथ किया, उसके बाद तो मैं हर एक कदम पर उसका साथ दूँगा, चाहे उसके लिए मुझे अपनी जान ही क्यों ना देनी पड़े।"

    कोई पीछे से आकर रजत के कंधे पर हाथ रखता है। तो रजत चौंक कर पीछे देखता है, तो उसके पीछे सात्विक खड़ा था। सात्विक को देखकर रजत रिलैक्स हो जाता है और कहता है,
    "मुझे लगा शेरनी फिर आ गई! अगर कहीं उसने मेरी बातें सुन ली होती ना, तो मुझे कच्चा निचोड़ देती।"

    रजत की तरफ़ देखते हुए सात्विक कहता है,
    "प्यार करते हो ना उससे?"

    रजत हैरानी भरी नज़रों से सात्विक की तरफ़ देखते हुए कहता है,
    "कैसी बातें कर रहे हो भाई?"

    सात्विक सामने आसमान को देखते हुए कहता है,
    "मैंने नीति से तलाक ले लिया है। अब मैं नीति से आजाद हूँ। और अब मैं अपनी बहन को कभी उसे घर में और लोगों के करीब नहीं जाने दूँगा। मैं चाहता हूँ, जैसे अगस्त और अक्षरा का तलाक हो जाए, तो वह मुझसे शादी कर ले। क्योंकि मैं अपनी बहन को अब एक नेक हाथों में सौंपना चाहता हूँ; जहाँ लोग उसकी क़द्र करें, उसे प्यार करें, ना कि उसे दुःख दें और उसे टॉर्चर करें…"

    रजत सामने देखते हुए कहता है,
    "मैं नहीं जानता भाई, वह मेरे बारे में क्या सोचती है। लेकिन हाँ, मैं उससे प्यार करता हूँ। कब से करता हूँ, नहीं पता। कितना करता हूँ, नहीं पता। उसके बिना जी पाऊँगा या नहीं, यह भी नहीं पता। पर इतना जानता हूँ कि मैं उसकी दोस्ती नहीं खोना चाहता। और मैं उसे कभी नहीं बताऊँगा कि मैं उससे प्यार करता हूँ…"

    सात्विक गौर से रजत के चेहरे को देख रहा था। सात्विक रजत से पूछता है,
    "आस्था कैसी है?"

    आस्था का ज़िक्र सुनकर रजत हैरानी से सात्विक की तरफ़ देखता है।
    "हाँ, आस्था कैसी है? यही पूछा मैंने।"

    "ठीक है। ऑफ़िस जाती है, ऑफ़िस से घर, घर से ऑफ़िस। नहीं, उनकी अपनी दुनिया है। पता नहीं वह लड़का कौन था जिससे मेरी बहन इतना प्यार करती थी कि उसके धोखे के बाद भी उसने किसी को अपनी ज़िंदगी में शामिल नहीं किया। और अकेले ही अपनी ज़िंदगी काट रही है। आपको पता है सात्विक भाई, मैंने मेरी दीदी को रात में रोते हुए देखा है।"

    "जब मैं जाकर उनके आँसू पूछता हूँ ना, तो वह झूठी मुस्कान अपने चेहरे पर रखकर मुझे दिखाती है, जैसे उसके दर्द का मुझे पता ही नहीं है। बस मुझे एक बार पता चल जाए वह लड़का कौन था जिसने मेरी दीदी को ज़िंदा ही मार दिया, कम से कम भाई, ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा उसे…"

    सात्विक कुछ नहीं कहता। एकटक आसमान को देखता रहता है। उसके मन में कुछ तो चल रहा था। फिर वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला जाता है और अपने आदमी को कॉल करके कहता है,
    "बजाज कंपनी को खरीद लो। कितने भी पैसे में। कुछ भी। मुझे कल तक बजाज कंपनी अपने नाम चाहिए। और कल से मेरी माँ की कंपनी की ब्रांच बजाज कंपनी ही होगी। इसलिए जितना भी पैसा खर्च हो, कोई भी साधन लगाकर वह कंपनी मुझे मेरे नाम चाहिए…"

    सात्विक अपने रोल से एक तस्वीर निकालता है और उस तस्वीर पर हाथ फेरते हुए कहता है,
    "मैं जानता हूँ आस्था, मैंने जो तुम्हारे साथ किया, उसके बाद तुम मुझसे नफ़रत करती होगी। लेकिन मैं भी मजबूर था अपनी बहन की खुशियों के लिए। वरना मैं कभी तुम्हें नहीं छोड़ता। और मैं जानता हूँ तुम आज भी मेरे इंतज़ार में हो, मेरे प्यार में हो। बस उस प्यार को, उस इंतज़ार को पूरा करना है मुझे। अब मैं किसी के लिए भी तुमसे दूर नहीं जाऊँगा। मुझे एक मौका चाहिए था नीति को खुद से दूर करने का, और अब वह मैंने कर दिया है। अब मेरी और तुम्हारी ज़िंदगी में कोई नीति नहीं होगी, सिर्फ़ हमारा प्यार होगा, हमारा विश्वास होगा, हमारा रिश्ता होगा। मैं जानता हूँ जिस वक़्त मैंने तुम्हें छोड़ा था, वह वक़्त हमारे लिए बहुत मुश्किल भरा था। और मैं यह भी जानता हूँ कि तुमने हमारे बच्चे को कितनी मुश्किल से पाला था। मैं वहाँ मौजूद था, लेकिन तुम्हारे पास नहीं था। तुम्हारे हर एक दुःख में, तुम्हारी हर एक खुशी में, तुम्हारी हर एक चीज़ में, तुम्हारी हर एक दर्द में मैं मौजूद था, लेकिन तुम्हें कभी अपने सीने से लगाकर तुम्हारा दर्द कम नहीं किया मैंने। अब मैं जानता हूँ, तुम्हें मानना मेरे लिए इतना आसान नहीं होगा। पाँच साल, पाँच साल की नफ़रत है, जिसे पाँच घंटे में तो नहीं मिटाया जा सकता।"

    "मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करूँगा आस्था, कि तुम वापस मुझ पर विश्वास करो, वापस मुझसे प्यार करो, वापस मुझे अपनाओ। और इस बार मेरे नाम का सिन्दूर सिर्फ़ और सिर्फ़ सात्विक की मांग में सजाया जाएगा।"

    वहीँ गेट पर खड़ी हुई अक्षरा सारी बातें सुन रही थी। आज उसे एहसास हुआ था कि उसका भाई उसके लिए क्या कुछ कर गया है। अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगा दिया उसने। लेकिन वह भी देखना चाहती थी कि उसका भाई आस्था को कैसे मनाता है। अगर वह कामयाब नहीं हुआ, तो अच्छा तो था ही। फिर वापस उसकी आस्था को उसकी ज़िंदगी में लाने के लिए…

    वह वापस वहाँ से अपने कमरे में चली जाती है और सो जाती है। अगली सुबह सबके लिए बहुत कुछ लाने वाली थी। आज शायद आस्था की ज़िंदगी में उसकी खुशी आने वाली थी, और सात्विक को उसका प्यार मिलने वाला था। वहीं रजत के माँ-बाप को उनकी बेटी, उनकी अक्षरा मिलने वाली थी।

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  • 5. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 5

    Words: 2876

    Estimated Reading Time: 18 min

    मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। आस्था ने कहा, "तुम वापस मुझ पर विश्वास करो, वापस मुझसे प्यार करो, वापस मुझे अपनाओ। और इस बार मेरे नाम का सिंदूर सिर्फ और सिर्फ सात्विक की मांग में सजेगा।" गेट पर खड़ी अक्षरा सारी बातें सुन रही थी। आज उसे एहसास हुआ कि उसका भाई उसके लिए क्या कुछ कर गया है। अरे, अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगा दी उसने! लेकिन वह भी देखना चाहती थी कि उसका भाई आस्था को कैसे मनाता है। अगर वह कामयाब नहीं हुआ, तो अच्छा ही था। फिर वापस उसकी आस्था को उसकी ज़िंदगी में लाने के लिए... वहाँ से अपने कमरे में जाकर वह सो गई। अगली सुबह सबके लिए बहुत कुछ लाने वाली थी। आज शायद आस्था की ज़िंदगी में उसकी खुशी आने वाली थी और सात्विक को उसका प्यार मिलने वाला था। वहीं रजत के माँ-बाप को उनकी बेटी, अक्षरा, मिलने वाली थी। सुबह 8:00 बजे रजत और अक्षरा तैयार होकर रजत के घर के लिए निकल गए क्योंकि वह दोनों वहीं पर ब्रेकफास्ट करने वाले थे। इन्हीं सब चक्करों में सात्विक भी रजत और अक्षरा के साथ रजत के घर चला गया क्योंकि उसे भी तो अपनी आस्था से मिलना था। वहीं, जब सब लोग रजत के घर पहुँचे, तो रजत के माँ-बाप बहुत खुश हो गए। पाँच साल बाद सात्विक और अक्षरा उनके घर आए थे। आज उन्हें ऐसा लगा कि वह सब लोग उन सबकी ज़िंदगी से बहुत दूर जा चुके हैं। वहीं आस्था डाइनिंग टेबल पर बैठी ब्रेकफास्ट कर रही थी। उसे जैसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता था सात्विक के आने से। वहीं अक्षरा को देखकर वह बहुत खुश हो गई और अक्षरा को गले लगा लिया। "बहुत टाइम लगा दिया तुमने अपने दोस्त के घर आने में," अक्षरा ने आस्था को गले लगाकर कहा। "वक़्त ज़रूर लगा है, लेकिन वापस आ गई हूँ अब मैं। क्योंकि अब मैं भी खोखले रिश्तों में नहीं रहना चाहती। जो रिश्ते मेरे अपने नहीं हैं, उनमें रहकर मैं बस नहीं बनना चाहती। आपको बता दी, मैंने फ़ैसला कर लिया है। मैं अगस्त से तलाक लेकर अपनी नई ज़िंदगी शुरू करूँगी। हमेशा ऐसा तो पॉसिबल नहीं है ना कि हम किसी आदमी पर ही डिपेंड रहें। हमें खुद के लिए भी कुछ करना चाहिए। यह मेरी पागलपंती थी कि मैं अगस्त के पीछे इस तरह पागल हो गई थी कि अपने माँ-बाप, अपने भाई, अपने दोस्त, सबको नज़रअंदाज़ कर दिया था मैंने। लेकिन अब मैं अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीऊँगी। अब कोई मेरी ज़िंदगी को कंट्रोल नहीं कर सकता।" आस्था एकटक अक्षरा के चेहरे को देख रही थी क्योंकि अक्षरा अब वह पहले वाली अक्षरा नहीं दिख रही थी। ऐसा लग रहा था कि इस अक्षरा और पहले वाली अक्षरा में ज़मीन-आसमान का अंतर है। आस्था को एकटक खुद को देखते हुए पाकर अक्षरा थोड़ी इनसिक्योर हो गई। तभी आस्था उसके चेहरे को पकड़कर बोली, "कोई बात नहीं। तुम वापस अपनी ज़िंदगी जीना चाहती हो, यही बहुत है।" सात्विक आस्था के पास आया और पूछा, "कैसी हो, आस्था?" आस्था, बिना सात्विक को देखे, बोली, "ठीक हूँ और ज़िंदा हूँ। देखकर ही पता चल रहा होगा आपको।" वहाँ से उठकर वह अपने कमरे में चली गई। भाई आस्था का ऐसा जवाब सुनकर सब लोग पहले थोड़े शॉक्ड हुए, फिर उन्हें लगा कि शायद दोस्तों के बीच की बात है। सब लोग ब्रेकफास्ट में लग गए और सात्विक वहाँ से अपने ऑफ़िस निकल गया क्योंकि अब उसे आस्था को अपने करीब रखने का बंदोबस्त करना था। ब्रेकफास्ट करने के बाद रजत भी किसी काम से बाहर चला गया और रजत के माँ-बाप अस्पताल चले गए क्योंकि रजत की दादी हॉस्पिटल में भर्ती थी। वहीं अक्षरा आस्था के कमरे की तरफ़ चली गई और पूछा, "क्या मैं अंदर आ सकती हूँ, दीदी?" आस्था हाथ पकड़कर अक्षरा को अंदर लाती है और बोलती है, "तुम्हें मेरे कमरे में आने से पहले कब से इजाज़त लेनी पड़ गई?" "बस पूछ लिया, शायद आप बिज़ी हो," आस्था अक्षरा को अपने पास बिठा लेती है और कहती है, "कोई बात है क्या? तुम बहुत परेशान लग रही हो।" अक्षरा आस्था के पैरों के पास बैठ जाती है और कहती है, "मुझे माफ़ कर दो, दीदी। मेरी वजह से आपके और भाई की ज़िंदगी बर्बाद हो गई।" अक्षरा की बात सुनकर आस्था चौंक जाती है। अक्षरा आस्था की तरफ़ देखकर कहती है, "हाँ, दीदी। मेरी वजह से आप और सात्विक भाई अलग-अलग हुए। क्योंकि नीति ने भाई के सामने शर्त रखी थी कि अगर वह उससे शादी करता है तो अगस्त मुझे अपने लिए तैयार हो जाएगा। और भाई ने अपनी बहन की खुशियों के लिए अपनी खुशियाँ कुर्बान कर दीं। और देखो ना, दीदी, आपकी बददुआ लेकर मैं भी कभी खुश नहीं रह पाई। उसने मुझे कभी अपनी पत्नी तक नहीं माना। अरे, पत्नी तो छोड़ो, दीदी, उसने मुझे कभी इंसान तक नहीं माना। तो पत्नी तो बहुत बड़ी बात होती है। मैं जानती हूँ कि जो आपके और सात्विक भाई के बीच हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। आप दोनों ने अपना बच्चा खो दिया। इसीलिए मुझे माफ़ कर दो। मुझे अपनी गुनाह की सज़ा मिल चुकी है। सब कुछ तो बर्बाद हो गया मेरा, मेरे पास क्या ही रहा है? माफ़ करोगी ना मुझे?" आस्था अक्षरा को अपने गले लगा लेती है और कहती है, "मैंने तुझे कभी बददुआ नहीं दी।" अक्षरा आस्था की तरफ़ देखकर कहती है, "आपने बददुआ नहीं दी, लेकिन भगवान तो मेरी क़िस्मत देख रहा था ना कि मैंने कैसे आपको आपकी मोहब्बत से और आपके बच्चे से अलग कर दिया। इसीलिए उसने मुझे मेरा सब कुछ छीन लिया, दीदी। मैं ज़ीरो पर आकर खड़ी हूँ जहाँ से मुझे अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत करनी है।" "क्या आप मेरी भाभी बनना चाहोगी? क्या मेरे भाई की बीवी बनोगी? मेरे माँ-बाप की बहू बनोगी?" आस्था अक्षरा को उठाकर अपने पास बिठा देती है और कहती है, "अगर तुम्हारा भाई मुझसे माफ़ी माँगता है और मेरी ज़िंदगी में वापस शामिल होता है तो मैं तुम्हारी भाभी बनने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मैं तुम्हारे भाई को इतनी आसानी से माफ़ नहीं करूंगी। क्योंकि मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ, अक्षरा। उसके बिना नहीं रह सकती। और उसने एक झटके में मुझे छोड़ दिया। भले ही उसने यह सब तुम्हारे लिए किया था, लेकिन वह मुझे बता सकता था, मुझे बोल सकता था। आस्था, मैं मजबूर हूँ। मेरी मजबूरी समझो। कसम से, अक्षरा, मैं मरते दम तक उसका इंतज़ार करती और कभी उसे एक लफ़्ज़ ना कहती, लेकिन उसने तो मुझे ऐसे रिजेक्ट किया था जैसे मैं इस दुनिया में एडजस्ट ही नहीं करती हूँ। तुम क्या सोचती हो? इतनी आसानी से माफ़ कर दूँ उसे?" "नहीं, भाभी! अपने आसानी से माफ़ मत करना। और हाँ, मैं आज से अकेले में आपको भाभी बोलूँगी और सबके सामने दीदी। आप जितना सबक़ सिखाना चाहती हैं, सिखाइए। मैं आपके साथ हूँ और मुझे भी उसे, अगस्त को, सबक़ सिखाना है। क्योंकि उसने मेरी पूरी दुनिया उजाड़ कर रख दी है। मेरे भाई की ज़िंदगी बर्बाद कर दी, अब मैं उसे बताऊँगी कि जब कोई अपना धोखा देता है ना, तो कैसा लगता है। मैं उसकी बीवी बनकर ही किसी दूसरे आदमी की गर्लफ्रेंड बनूँगी। तब उसे एहसास होगा कि अपनी बीवी के सामने पराई लड़कियों के साथ रिश्ता बनाने में कैसा लगता है।" आस्था एकटक अक्षरा के चेहरे को देख रही थी जिस चेहरे पर आज उसे एक दर्द और एक कुछ कर गुज़रने का जुनून दिख रहा था। फिर दोनों पूरा दिन एक-दूसरे के साथ बिताती हैं और शाम को अक्षरा अपने घर चली जाती है। अगले दिन सुबह 6:00 बजे अक्षरा का फ़ोन रजत को जाता है। वह उसे बताती है कि आज उसे रजत के साथ मीटिंग में जाना है जो मीटिंग राणा ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ में होने वाली है। इसलिए आज से ही वह रजत की कंपनी ज्वाइन करने वाली थी और रजत की असिस्टेंट के साथ-साथ उसकी गर्लफ्रेंड का नाटक भी करने वाली थी क्योंकि अगस्त को वही दर्द देना चाहती थी जो दर्द अगस्त ने अक्षरा को दिया था। भले ही यह दर्द अक्षरा को मिला था, लेकिन दर्द को महसूस आंचल भी कर रही थी क्योंकि यह पिछली ज़िंदगी में उसके साथ भी तो हुआ था। अच्छा! अपने घर सबको बाय बोलकर रजत के साथ ऑफ़िस की तरफ़ निकल जाती है। राणा इंडस्ट्रीज़ में इस वक़्त बहुत ही बड़ा माहौल था क्योंकि आज अगस्त का बड़ा दिन था। वह एक के बाद एक सबको फ़ायर करते जा रहा था। तभी अगस्त का असिस्टेंट जाकर उसे बताता है कि ओबेरॉय इंडस्ट्रीज़ का सीईओ मीटिंग के लिए आ चुका है। वहीं जब अगस्त मीटिंग रूम में पहुँचता है तो वहाँ रजत और रजत के साथ बैठी अक्षरा को देखकर शॉक हो जाता है, लेकिन वह अपने चेहरे पर यह सब कुछ शो नहीं करता। तीन-चार घंटे तक उन दोनों की मीटिंग चलती है जिस मीटिंग को आज अक्षरा लीड कर रही थी। अक्षरा की कैपेबिलिटी देखकर और बिज़नेस में उसकी पकड़ देखकर अगस्त भी हैरान था। उसे तो हमेशा यही लगता था कि अक्षरा को कुछ नहीं आता, लेकिन आज बिज़नेस की बारीकी देखकर वह समझ चुका था कि उसने अक्षरा को कम आँका है। मीटिंग होने के बाद लंच ब्रेक होता है और रजत अक्षरा का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ बाहर ले जाने लगता है। तभी दूसरी कंपनी का सीईओ रजत से कहता है, "मिस्टर ओबेरॉय, आप कहाँ जा रहे हैं?" रजत उन सबकी तरफ़ देखकर कहता है, "एक्चुअली ना, मेरी गर्लफ्रेंड को यहाँ का खाना पसंद नहीं आया, इसलिए मैं उसे लंच के लिए बाहर ले जा रहा हूँ। और हाँ, आप लोग मीटिंग कीजिए, मैं टाइम से आ जाऊँगा। मीटिंग पर कोई असर नहीं होगा।" "तो क्या आप हमें अपनी गर्लफ्रेंड से नहीं मिलाएँगे?" रजत हाँ बोलकर अक्षरा को अपने पास बुलाता है और कहता है, "यह है मिस अक्षरा प्रताप, मेरी गर्लफ्रेंड और होने वाली वाइफ़। हम दोनों बहुत जल्दी शादी करने वाले हैं।" अगस्त का पारा चढ़ जाता है रजत की बात सुनकर क्योंकि अभी तक अगस्त और अक्षरा का तलाक नहीं हुआ था और अक्षरा किसी और से शादी करने जा रही थी। यह बात अगस्त कैसे बर्दाश्त कर सकता था? तभी वह दूसरा सीईओ कहता है, "अक्षरा प्रताप, मतलब सात्विक प्रताप की बहन और मिस्टर प्रताप की बेटी और प्रताप इंडस्ट्रीज़ की ओनर?" अक्षरा गर्दन हिलाकर कहती है, "जी। एक्चुअली, मैं रजत के साथ थोड़ा टाइम स्पेंड करना चाहती थी इसलिए इस मीटिंग में आ गई। और फिर, इस मीटिंग में प्रताप इंडस्ट्रीज़ से भी किसी को आना था, तो मैं आ गई। मेरे दोनों काम हो जाते हैं। अपने फ़ोन से रजत के साथ टाइम स्पेंड भी हो जाता और मेरी कंपनी की तरफ़ से ओनर भी आ जाता।" अगस्त गुस्से में पागल हो रहा था। उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि जो लड़की कल तक उसके आगे-पीछे घूमती थी, आज वह किसी और लड़के के साथ उसकी होने वाली बीवी बनकर खड़ी है और वह लड़का पूरी दुनिया में ढिंढोरा पीटकर उसकी बीवी को अपनी होने वाली बीवी बता रहा था। लेकिन यह सब कुछ अगस्त्य का किया-धरा था। अगस्त ने कभी अक्षरा को किसी से इंट्रोड्यूस नहीं करवाया अपनी बीवी कहकर। वह हमेशा मालिनी को अपने साथ हर मीटिंग और पार्टी में लेकर जाया करता था। भले ही मालिनी उसकी दोस्त थी, लेकिन मालिनी सबको यही कहती थी कि वह अगस्त की होने वाली पत्नी है और सब लोग इस बात को मानते भी थे क्योंकि अगस्त मालिनी से बहुत अच्छे से बर्ताव करता था। आज अगस्त को एहसास हो रहा था कि जब-जब वह मालिनी को अपने साथ लेकर जाता था, तो अक्षरा को कैसा लगता होगा। भाई अक्षरा अगस्त के चेहरे के भाव देखकर समझ चुकी थी कि वह जो करना चाहती थी, वह हो चुका है। फिर रजत और अक्षरा मीटिंग पूरी करके घर के लिए निकल जाते हैं। रास्ते में रजत अगस्त के गुस्से से हुए लाल चेहरे को देखकर बहुत हँस रहा था। आज इतने सालों बाद अक्षरा ने रजत को खुलकर हँसते हुए देखा था। वह उसकी हँसी में खो जाती है। ऐसा लग रहा था उसने आज अपने दोस्त को वापस पाया है। और शायद उसकी एक गलती की वजह से सबकी ज़िंदगियाँ बर्बाद हो गई थीं। अक्षरा यह बहुत अच्छे से जानती थी कि रजत अक्षरा से कितना प्यार करता है क्योंकि आंचल ने वह पूरी नॉवेल पढ़ी थी। सिर्फ़ रजत को छोड़कर। रजत कैसे अक्षरा को हर टाइम प्रोटेक्ट करता था और अक्षरा ने कभी भी रजत की केयर नहीं की, कभी उसकी तरफ़ उसने अपना कोई भी फ़र्ज़ नहीं निभाया था। लेकिन आज जो थी वह अक्षरा नहीं, आंचल थी और आंचल दोस्ती और मोहब्बत शिद्दत से निभाती है और शायद आंचल के दिल में रजत बस चुका था और अगस्त तो अक्षरा की ज़िंदगी था, आंचल की नहीं। अक्षरा एकदम से आगे बढ़कर रजत के गाल पर किस कर लेती है। वहीं अक्षरा की हरकत से रजत अपनी जगह जम जाता है। वहीं रजत की साइड में चल रही गाड़ी में बैठा अगस्त यह सब कुछ देख लेता है और उसकी मुट्ठियाँ कस जाती हैं। अब उसे अक्षरा और रजत पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि अगस्त ने खुद अक्षरा को अपनी ज़िंदगी से अलग किया था और अभी अक्षरा अगस्त से बहुत नफ़रत करती थी। जब अक्षरा को एहसास होता है कि उसने अभी-अभी क्या किया, तो वह खुद को शर्माने से रोक नहीं पाती है और इधर-उधर देखने लगती है। वहीं रजत भी अक्षरा के चेहरे पर आई हुई शर्म की लाली को देख लेता है और मुस्कुराने लगता है। अनएक्सपेक्टेड जो दोनों के बीच हुआ, वह शायद अगस्त ने भी देख लिया था। इस बात से वह दोनों ही अनजान थे कि उन दोनों की फीलिंग्स किसी को भी भड़का रही थीं और शायद वह अक्षरा और रजत के लिए बहुत ख़तरनाक साबित होने वाली थी। वहीं रजत और अक्षरा प्रताप मेंशन के अंदर जाकर रुकती है और रजत बाहर आकर अक्षरा की साइड का गेट खोलता है तो देखता है अक्षरा सो चुकी थी। रजत उसे अपनी गोदी में उठाकर अंदर ले जाता है। सब लोग जब अक्षरा को सोते हुए देखते हैं तो कोई एक आवाज़ नहीं करता जिससे अक्षरा उठ ना जाए। अक्षरा को उसके बेड पर सुलाकर रजत उठने लगता है। तभी अचानक से अक्षरा के बालों में रजत की शर्ट का बटन फँस जाता है। वह उसके ऊपर ही हो जाता है और रजत के हाथ अक्षरा के फ़ोन से मिल जाते हैं। यह एहसास होते ही रजत की पूरी बॉडी काँपने लगती है क्योंकि अगर अक्षरा जाग गई तो मुझे बहुत नफ़रत करने लगेगी। अक्षरा को जब अपने फ़ोन पर कुछ ठंडा-ठंडा एहसास होता है तो नींद में उसे ऐसा लगता है जैसे वह आइसक्रीम खा रही है। इसीलिए वह रजत के होंठों को अपने होठों में भरकर उन्हें चूसने लगती है और रजत को जब इस बात का एहसास होता है तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो जाती हैं और वह हैरानी से अक्षरा के चेहरे को देखने लगता है। वहीं अक्षरा तो अपनी आँखें बंद करके नींद के नशे में रजत के होठों को चूम रही थी और वहीं रजत अपने होश में आने लगा था क्योंकि मोहब्बत तो वह भी अक्षरा से करता था और शायद इतना करता था जिसकी कोई हद ही नहीं थी। रजत की हालत से अनजान अक्षरा उसके होठों को चूसने में लगी हुई थी। रजत भी अपने ऊपर से कंट्रोल खो देता है और अक्षरा के होठों को अपने होठों में भरकर उन्हें चूमने और काटने लगता है। रजत को एहसास ही नहीं होता कि कब रजत के हाथ अक्षरा के शर्ट के अंदर चले गए। जब अचानक से अक्षरा रजत के होठों को काट लेती है तो रजत अपने होश में वापस आता है और जब उसे एहसास होता है तो वह झटके में अक्षरा के ऊपर से उठकर उसके कमरे से बाहर चला जाता है। वहीं रजत के बाहर जाते ही अक्षरा अपनी आँखें खोलकर बाहर की तरफ़ देखते हुए शरारत से मुस्कुरा देती है। अक्षरा जागी हुई थी। वह सोई नहीं थी। लेकिन जब रजत के होंठ उसके होठों पर फील हुए तो वह जाग गई थी और इसी बात का उसने फ़ायदा उठाया और रजत के होंठों को चूमने और काटने लगी थी और जब रजत का साथ पाया तो वह और बहकने लगी। बेचारा रजत अभी तक इस सपने में था। उसके साथ अभी-अभी क्या हुआ। अगर वह दो मिनट और कमरे में रुकता तो उसे पता चल जाता कि अक्षरा नींद में नहीं थी बल्कि जानबूझकर उसका फ़ायदा उठा रही थी क्योंकि आंचल नॉवेल पढ़कर जान चुकी थी कि रजत अक्षरा से कितना प्यार करता है और इसीलिए वह इस बात का फ़ायदा उठाकर रजत को अपनी ज़िंदगी में शामिल करना चाहती थी क्योंकि वह भी तो रजत जैसा जीवन साथी चाहती थी अपनी ज़िंदगी में जो उसके साथ लॉयल हो और उसे इज़्ज़त और प्यार दोनों दे। Do like, share, comment, Reviews🙏🙏🙏🙏🙏👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋

  • 6. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 6

    Words: 2577

    Estimated Reading Time: 16 min

    अक्षरा जगी हुई थी वह सोई नहीं थी लेकिन जब से रजत के होंठ अपने होठों पर feel हुए तो वह जाग गई थी और इसी बात का उसने फायदा उठाया और रजत के फोटो को चुनने और कटने लगी थी और जब रजत का साथ पाया तो वह और बहने लगी बेचारा Rajat अभी तक इस सपने में था उसके साथ अभी-अभी क्या हुआ अगर वह 2 मिनट और कमरे में रुकता तो उसे पता चल जाता की अक्षरा नींद में नहीं थी बल्कि जानबूझकर उसका फायदा उठा रही थी क्योंकि आंचल नोबेल पढ़कर जान चुकी थी कि रजत अक्षरा से कितना प्यार करता है और इसीलिए वह इस बात का फायदा उठाकर रजत को अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहती थी क्योंकि वह भी तो रजत जैसा जीवन साथी चाहती थी अपनी जिंदगी में जो उसके साथ लॉयल हो और उसे इज्जत और प्यार दोनों दे अक्षरा अभी भी एक तक दरवाजे को देख रही थी फिर वह करवट लेकर आईने की तरफ खुद का चेहरा करती है और देती है कि उसके चेहरे पर अभी भी मुस्कान थी वह उधर देखते हुए कहती है मैंने मेरी जिंदगी में सिर्फ एक सच्चा हमसफ़र चाहा है और वह सिर्फ रजत है अब मैं किसी भी कीमत पर रजत को खुद से दूर नहीं जाने दूंगी और उसे वही प्यार और इज्जत दूंगी जो पिछले जन्म में उसने मुझे दी थी और मुझे बचाने के लिए अपनी जान भी दे दी थी मैं ऐसे इंसान और हमसफर को कभी खुद से अलग नहीं जाने दूंगी पहले ही मैं पहले अगस्त से प्यार करती थी लेकिन वह मैं नहीं अक्षरा थी अब मैं यानी अक्षरा के शरीर में आंचल हूं और आंचल सिर्फ और सिर्फ रजत की है पहले मैं रजत के कैरेक्टर को बहुत पसंद करती थी उससे प्यार करती थी लेकिन मुझे यह नहीं पता था एक दिन मुझे रजत को हकीकत में जीने का मौका मिलेगा और आज में बहुत खुश हूं कि मुझे नोबेल का प्यार नवल में आकर मिला और अपनी आंखें बंद कर लेती है और नींद के आगोश में चली जाती है वहीं दूसरी तरफ रजत बेख्याली में प्रताप मेंशन से बाहर आता है और अपनी गाड़ी में बैठकर मुस्कराने लगता है और कहता है अगर सच में अक्षरा इस रिश्ते को अपनाना चाहती है और मैं भी उसे वही प्यार वही इज्जत और वही सम्मान दूंगा लेकिन वह नींद में थी और मैं इस बात से उम्मीद नहीं बन सकता अगर वह कल मुझे फिर से कोई हिंट देता है तो उसके बाद अक्षरा सिर्फ और सिर्फ रजत की होगी और किसी की नहीं दूसरी तरफ अगस्त के गुस्से की आग में जल रहा था उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि उसके आगे पीछे घूमने वाली अक्षरा अब किसी और के साथ थी किसी और के पास थी और किसी और से शादी करने वाली है लेकिन अभी भी अगस्त को अपनी गलती का एहसास नहीं हुआ था कि उसने क्या खाया है लेकिन इस वक्त भी वह अपने घमंड में चूर था कि वह इतना काबिल है कि वह किसी को भी हासिल कर सकता है और यही उसकी सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली थी Next morning आज की सुबह रजत के लिए मोहब्बत का पैगाम लाने वाली थी क्योंकि शायद आज उसके प्यार को उम्मीद का किनारा मिलने वाला था अक्षर नीचे जाकर सबको गुड मॉर्निंग विश करती है और बैठकर ब्रेकफास्ट करने लगती है मिस्टर प्रताप उसकी तरफ देखकर कहते हैं बेटा कहीं जाने की तैयारी है हां पापा आपको बताया तो था मैं रजत के साथ काम कर रही हूं तो वहीं जाऊंगी बेटा तुम अपनी कंपनी भी तो ज्वाइन कर सकती हो ना पापा मुझे अपनी कंपनी में वह फ्रीडम और काम सीखने की नहीं मिलेगा अब जानते हो सब लोग मुझे जानते हैं मुझे एक्स्ट्रा इज्जत और तवज्जो देंगे मुझे कोई काम नहीं करने देंगे मेरी गलतियां नहीं बताएंगे इसीलिए मैं रजत के साथ काम करना चाहती हूं और पापा मैं अगस्त को भूल कर अपनी लाइफ में आगे बढ़ना चाहती हूं और मैं यह भी जानती हूं आपका और अगस्त का जो प्रोजेक्ट चल रहा है उसके चक्कर में अगस्त्य का आपके ऑफिस आना जाना लगा रहता है और मैं फिर से अगस्त के चक्कर में नहीं पढ़ना चाहती पापा पहले में अपनी जिंदगी के 5 साल पर बात कर चुके हैं और अब नहीं कर सकती और एक बात आप यह बात अपने दिमाग से निकाल दीजिए कि मैं कभी ऑफिस नहीं आऊंगी मैं आऊंगी पापा जी दिन आप भाई को मेरी जरूरत होगी मैं आऊंगी वह मेरी कंपनी है हमें अपनी कंपनी में आने के लिए किसी की इजाजत नहीं lugi लेकिन फिलहाल मैं रजत के साथ रहना चाहती हूं मैं जिस दोस्त को 5 साल पहले को दिया था उसे दोस्त को उसके प्यार और उसके दोस्ती को दोबारा पाना चाहती हूं पापा अगस्त के चक्कर में मैंने उससे बहुत हर्ट किया है और अब मैं अपनी हर एक गलती का प्रायश्चित करना चाहती हूं और पापा मैं अपने लिए भाभी ढूंढ लिया है तो आप किस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है वही अक्षरा की बात सुनकर सात्विक के गले में खाना फस जाता है और खांसने लगता है अभी मैसेज प्रताप सात्विक कीपैड चलते हुए कहती है इतनी जल्दबाजी तुम बच्चों को पता नहीं किस बात की रहती है यार कभी-कभी अपनी मां के साथ भी वक्त बिता लिया करो तुम लोग वह दोनों अपनी मां के गले लग जाते हैं और कहते हैं कल संडे है ना कल संडे का दिन सिर्फ हम चारों का और हां कल हम चारों फार्म हाउस चलेंगे भाई बहुत सारी मस्ती करेंगे और सब लोग अपने-अपने फोन घड़ी छोड़कर जाएंगे अक्षरा की बात सुनकर मैसेज प्रताप खुश हो जाती है और उसके माथे को चुनकर रहती है मुझे वापस मेरी बेटी मिल गई और इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए अक्षरा कहां से निकाल कर बाहर आती है तो देखी है रजत की कर अभी-अभी आकर खेत पर रुकी थी अक्षर जाकर रजत के बगल में बैठ जाती है और उसे गुड मॉर्निंग विश करती है रजत भी उसे गुड मॉर्निंग विश करता है तभी अक्षरा रजत से कहती है आज के बाहर चले रजत असमंजस की स्थिति में अक्षरा की तरफ देखा है तो अक्षर रहती है या कहीं बाहर चलते हैं ना ऑफिस तो तुम रोज जाते हो और कल संडे है कल का दिन फैमिली टाइम है तो आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं पूरा दिन बाहर घूमेंगे लंच डिनर सब बाहरी करेंगे और गाड़ी लेकर वहां से निकल जाता है वहीं रजत की गाड़ी के पीछे एक गाड़ी और थी जो उनकी गाड़ी का पीछा कर रही थी और पल-पल की अपडेट अगस्त को दी जा रही थी वहीं यह सब सुनकर अगस्त का पर पहले हाई हो चुका था और अब अगस्त को और गुस्सा आने लगता है गुस्से में वह इतना पागल हो जाता है कि वह अपने स्टाफ को बहुत ही बुरी तरीके से करने लगता है और उसका कर फाड़ देता है वही उसका असिस्टेंट जाकर अगस्त और उसे स्टाफ को अलग करता है और स्टाफ मेंबर को अस्पताल भेज देता है वहीं उसे स्टाफ मेंबर की हालत देखकर अगस्त के ऑफिस के सारे एम्पलाइज डर जाते हैं अब कोई भी गलती से गलती नहीं करना चाहता था दूसरी तरफ मॉल में रजत और अक्षरा शॉपिंग कर रहे थे और उनके पीछे जो बॉडीगार्ड था वह लाइव अगस्त को सब कुछ दिख रहा था रजत अच्छा के ऊपर लगा लगा के एक-एक ड्रेस को चेक कर रहा था और फिर उसे ट्राई करने भेज रहा था यह सब देखकर अगस्त को आज रजत से बहुत जलन हो रही थी यह मौका अगस्त को भी मिला था लेकिन अगस्त ने उसे मौके को खो दिया और अब शायद वह अक्षरा को भी खो चुका था लेकिन वह यह बात मानने को तैयार नहीं था कि अगस्त अक्षरा उसे भूल कर किसी और के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहती है अगस्त्य यह भूल गया था प्यार जबरदस्ती नहीं पाया जाता प्यार को तो जीता जाता है जो रजत में जीता था लेकिन अगस्त्य अभी यह सब कुछ सोचने समझने की स्थिति में ही नहीं था रजत और अक्षरा बहुत सारी शॉपिंग करके बाहर आते हैं फिर वहां से लंच करने के लिए चले जाते हैं फिर दोनों ऐसे ही पार्क में स्लाइडिंग करते हैं पूरे दिन ऐसे एक दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करके शाम को घर के लिए निकल जाते हैं तभी रास्ते में बारिश होने लग जाती है और बारिश की वजह से आगे का रास्ता जाम हो गया था वही अगस्त का भेजा गया बॉडीगार्ड भी रास्ता भूल चुका था क्योंकि बारिश इतनी तेज ठीक उसे पता ही नहीं चलता कि रजत और अक्षर किस साइड से निकल गए रजत और अक्षरा घने जंगल के पास खड़े थे और उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था अच्छा रजत का हाथ पकड़ कर कहती है मुझे डर लग रहा है रजत इतना सुनसान जगह है और गाड़ी भी खराब हो गई फोन में सिग्नल भी नहीं आ रहा बारिश भी इतनी तेज है मैं भेजने की वजह से अक्षरा के कपड़े उसके जिस्म से चिपक गए थे अक्षरा की वह वाइट शर्ट पूरी ट्रांसपेरेंट हो चुकी थी वही रजत की नजर जब अक्षरा की शर्त पर जाती है तो अपनी नजर फिर कर अपना खुद उतार कर अक्षरा को पहना देता है जब रजत उसे कोट पहन रहा था तब जाकर अक्षरा का ध्यान खुद पर जाता है वही अपने लिए रजत की आंखों में इतनी इज्जत देखकर अच्छा उसके गले लग जाती है अक्षरा रजत के गले लगा कर कहती है तुम बहुत अच्छे हो रजत और जिस भी तुम्हारी शादी होगी ना वह बहुत किस्मत वाली होगी रजत अक्षरा का चेहरा ऊपर करके कहता है तो तुम ही कर लो ना मुझसे शादी तो वह किस्मत वाली तुम बन जाओगी हम दोनों दोस्त भी हैं और अच्छे जीवन साथी भी बनेंगे अच्छा एक टक रजत को देखने लगती है और अचानक से रजत की होठों पर अपनी होठों रख देती है अक्षरा के सदन रिएक्शन से रजत शौक हो जाता है रजत के हाथ अपने आप अक्षरा की कमर पर चले जाते हैं अक्षरा को खुद से चिपक कर रजत उसे किसने उसका साथ देने लगता है कब रजत के हाथ अक्षरा के पूरे पीठ पर घूमने लगते हैं इस बात का एहसास न अक्षरा को होता है और ना ही रजत को रजत तो बचपन से ही अक्षरा से प्यार करता था उसके प्यार के लिए तरसता था लेकिन आज अक्षरा की की गई पहल रजत और अक्षरा के रिश्ते की एक नई शुरुआत बन जाती है तभी अचानक से जोर से बिजली कड़कती है तब जाकर दोनों को होश आता है और एक दूसरे से अलग हटकर एक दूसरे से नज़रे चुराने लगते हैं वही इतनी बारिश में दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह घर कैसे जाएं तभी अक्षर को सामने कुछ रोशनी दिखाई देती है और दोनों धीरे-धीरे उसे रोशनी की तरफ जाने लगते हैं जब वह दोनों उसे रोशनी के पास पहुंचते हैं तो देखते हैं वह एक छोटा सा झोपड़ी थी जिसमें लैंप चली हुई थी जब वह दोनों वहां आवाज लगते हैं तो कोई नहीं था वह जब अंदर जाकर देखते हैं तो पूरी झोपड़ी खाली पड़ी थी दोनों आसपास देखते हैं तो वहां कोई नहीं था फिर दोनों कहीं बैठकर खुद को सूखने लगते हैं लेकिन इतनी देर बारिश में भीगने की वजह से अक्षरा को सर्दी सी हो जाती है तभी रजत को वहां एक कपड़ा मिलता है वह अक्षरा को लाकर कहता है तुम तब तक इस कपड़े को पहन लो मैं आग जलाने का बंदोबस्त करता हूं अक्षरा कहकर पीछे जाकर उसे कपड़े को पहन कर बाहर आती है रजत उसे एक तक देखता रह जाता है क्योंकि वह बहुत अच्छी और खूबसूरत लग रही थी उसमें सिर्फ उसका थोड़ा सा जिसमें ही रखा हुआ था वर्ना सारा शरीर उसका दिखाई दे रहा था इसलिए रजत एक तक अक्षरा को देख रहा था और अक्षरा भी अब शर्मा जाती है अपनी पीठ कर लेती है वहीं रजत भी आप होश में आता है तो वह भी अक्षरा से अपनी नज़रें हटाकर इधर-उधर लकड़ी देखने लगता है लेकिन वहां कुछ था ही नहीं जिससे वह दोनों आग जला सके तभी एकदम से बहुत जोर से बिजली कड़कती है और अक्षरा डर की वजह से रजत से जाकर चिपक जाती है वहीं रजत के हाथ अपने आप अक्षरा की पीठ पर चले जाते हैं दोनों एक दूसरे से चिपक के खड़े हुए थे तभी अचानक रजत के हॉट अक्षरा की गर्दन को छू जाते हैं और अक्षरा कसकर रजत को अपने गले लगा लेती है भाई अब रजत भी मदहोश होने लगा था क्योंकि एक तो अक्षर का इतना खूबसूरत हसीन अंदाज और ऊपर से बरसात की रात रजत अक्षरा के बालों में हाथ फंसा कर उसके चेहरे को ऊपर करता है और उसके होठों पर अपने होंठ रखकर उन्हें बहुत ही शिद्दत से और हंगरी चमन लगता है क्योंकि बहुत इंतजार किया था रजत ने अक्षरा का और उसने उम्मीद भी को दी थी कि अक्षर कभी उसे मिलेगी लेकिन आज उसकी अक्षर उसके पास थी उसके साथ थी उसकी बाहों में थी तो अक्षरा यह मौका कैसे जाने दे सकता था जब उसे अक्षरा को अपना बनाने का मौका मिल रहा था रजत के हाथ अक्षरा की पीठ पर चल रहे थे और अक्षरा के हाथ रजत की पीठ पर चल रहे थे दोनों एक दूसरे को महसूस कर रहे थे और दोनों के वोट एक दूसरे के होठों को सभा और खा रहे थे दोनों कब एक दूसरे की दुनिया में लीन हो जाते हैं उन्हें पता ही नहीं चलता 15 मिनट एक दूसरे को किस करने के बाद जब रजत को लगता है कि अक्षरा को सांस नहीं आ रही है तो वह अच्छा को छोड़कर उसके चेहरे को देखने लगता है आप अक्षरा शर्मा का रजत की तरफ अपनी पीठ कर लेती है रजत पीछे से अक्षरा को अपनी बाहों में भर लेता है और अक्षरा के कान में कहता है बहुत मोहब्बत करता हूं तुमसे इतनी मोहब्बत की तो अंदाजा भी नहीं लगा सकती बचपन से आज तक तुम्हारा इंतजार किया है अगस्त के लिए तुम्हारा पागलपन देखा फिर तुम्हें तड़पते हुए देखा अगस्त्य का तुम पर अत्याचार देखा तुम्हें कमा में देखा और तुम नहीं जानती मुझ पर क्या कुछ बीती है लेकिन आज तुम मेरी हो सिर्फ मेरी अब तुम पर किसी का अधिकार नहीं किसी का हक नहीं अब तुम सिर्फ और सिर्फ मेरी सिर्फ रजत की हो और मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अक्षरा रजत के गले लग जाती है और कहती है मैं भी तुम्हारे प्यार को समझने में देर कर दी रजत लेकिन अब मैं इस प्यार के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती हूं क्या शादी करोगी मुझसे अक्षरा के शादी के बारे में पूछने पर रजत अक्षरा के चेहरे के ऊपर करके उसके होठों को लाइट किस करके कहता है जब तुम कहो एक बार फिर जोर से बिजली कड़कने की आवाज आती है और अक्षरा एकदम से रजत से चिपक जाती है और इन सब में अक्षरा के शरीर से लैपटॉप कपड़ा नीचे गिर जाता है वही अक्षरा को अपने सामने इस तरह देखकर रजत मदहोश होने लगता है अक्षरा अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की कोशिश कर रही थी लेकिन सब कुछ बेकार रजत अपना एक हाथ बढ़ाकर अक्षरा के हाथों को पड़कर पीछे कर देता है और अक्षरा गर्दन कॉलर बोल और उसके लिए को चुनने और काटने लगता है Do  like share comment Reviews🙏🙏🙏🙏🙏👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋🙏🙏🙏🙏

  • 7. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 7

    Words: 3060

    Estimated Reading Time: 19 min

    रजत पीछे से अक्षरा को अपनी बाहों में भर लेता है और अक्षरा के कान में कहता है, "बहुत मोहब्बत करता हूँ तुमसे। इतनी मोहब्बत कि अंदाजा भी नहीं लगा सकती। बचपन से आज तक तुम्हारा इंतज़ार किया है। अगस्त के लिए तुम्हारा पागलपन देखा, फिर तुम्हें तड़पते हुए देखा, अगस्त्य का तुम पर अत्याचार देखा, तुम्हें कैद में देखा। और तुम नहीं जानती मुझ पर क्या कुछ बीती है। लेकिन आज तुम मेरी हो, सिर्फ़ मेरी। अब तुम पर किसी का अधिकार नहीं, किसी का हक़ नहीं। अब तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी हो, सिर्फ़ रजत की। और मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा हूँ।" अक्षरा रजत के गले लग जाती है और कहती है, "मैं भी तुम्हारे प्यार को समझने में देर कर दी, रजत। लेकिन अब मैं इस प्यार के साथ अपनी पूरी ज़िंदगी बिताना चाहती हूँ।" "क्या शादी करोगी मुझसे?" अक्षरा के शादी के बारे में पूछने पर, रजत अक्षरा के चेहरे के ऊपर झुककर, उसके होठों को लाइट किस करके कहता है, "जब तुम कहो।" एक बार फिर जोर से बिजली कड़कने की आवाज़ आती है और अक्षरा एकदम से रजत से चिपक जाती है। इन सब में अक्षरा के शरीर से लिपटा कपड़ा नीचे गिर जाता है। वहीं अक्षरा को अपने सामने इस तरह देखकर रजत मदहोश होने लगता है। अक्षरा अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सब कुछ बेकार था। रजत अपना एक हाथ बढ़ाकर अक्षरा के हाथों को पकड़कर पीछे कर देता है और अक्षरा की गर्दन, कॉलरबोन और उसके गले को चूमने और काटने लगता है। रजत का एक-एक टच अक्षरा को मदहोश कर रहा था। ऐसा लग रहा था अक्षरा का खुद पर कोई ज़ोर ही नहीं रहा था। वह पूरी तरह से रजत में बह चुकी थी। अब उसे शिवाय रजत के कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था, क्योंकि अक्षरा पूरी तरह रजत में बस चुकी थी। अब उसे शिवाय रजत के, अपने आस-पास और अपनी ज़िंदगी में कोई और समझ ही नहीं आ रहा था। वहीं धीरे-धीरे रजत के हाथ अक्षरा की पूरी बॉडी को एक्सप्लोर करने लगते हैं और धीरे-धीरे उसके शरीर को सहलाने लगता है। रजत के एक-एक टच से अक्षरा की बॉडी रिएक्ट कर रही थी। अक्षरा भी अब मदहोश हो चुकी थी और रजत का साथ दे रही थी। अक्षरा धीरे-धीरे रजत की शर्ट के बटन खोलने लगती है, उसकी शर्ट को उसके बदन से आज़ाद कर देती है। वहीं रजत अक्षरा को खुद से चिपक कर उसके होठों का रस पीने लगता है। रजत पूरी तरह से अक्षरा में खो चुका था। वह अक्षरा को वहीं ज़मीन पर लेटा देता है और खुद उसके ऊपर जाकर उसके सीने को चूमने और काटने लगता है, और दूसरे हाथ से उसके शरीर को जोर-जोर से दबा रहा था, जिससे अक्षरा के मुँह से बहुत हसीन आवाज़ निकल रही थी, जो रजत को एक्साइट करने के लिए काफी थी। आधे घंटे तक अक्षरा के सीने को चूमने और काटने के बाद, रजत धीरे-धीरे उसकी नाभि पर आ जाता है और वहाँ भी किस करने लगता है। रजत एक बार फिर अक्षरा की आँखों में देखकर कहता है, "देख लो, अच्छा रुक लो अभी भी। अगर मैं इससे आगे बढ़ गया, तो तुम्हें फिर कभी खुद से दूर नहीं जाने दूँगा।" अक्षरा रजत को एकदम से अपने ऊपर खींच लेती है और कहती है, "मैं खुद भी तुमसे दूर नहीं जाना चाहती। रजत, अपना बना लो मुझे, हमेशा-हमेशा के लिए।" अक्षरा का इतना कहना था कि रजत अक्षरा के अंदर प्रवेश कर जाता है और उसे प्यार करने लगता है। वहीं अक्षरा की आँखों के किनारों से आँसुओं की बूँदें निकलकर ज़मीन पर गिर रही थीं। बाहर बहुत ज़ोर से बारिश हो रही थी और अंदर रजत के प्यार की बारिश में अक्षरा भीग रही थी। पूरी रात रजत अक्षरा को इसी तरह प्यार करता रहता है। जब रजत ने देखा कि अक्षरा अब रजत को और नहीं सह पा रही है, तो रजत अक्षरा के बगल में आकर लेट जाता है और अक्षरा को खुद से चिपक कर उसके बालों को चूमने लगता है। वहीं अक्षरा गहरी नींद में सो गई थी। रजत अक्षरा की तरफ़ देखकर अपने मन में कहता है, "अब कुछ भी हो जाए, मुझे जल्द से जल्द तुमसे शादी करके तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए अपनी बीवी बनाना होगा। वरना उसे अगस्त का कोई भरोसा नहीं है। जिस तरह आज उसके आदमी हमारा पीछा कर रहे थे, उसके दिमाग़ में कुछ तो चल रहा है। अब तो तुम मेरी हो चुकी हो और अब मैं तुम्हें उसे अगस्त का तो बिल्कुल नहीं होने दूँगा, क्योंकि तुम मेरे दिल की धड़कन, मेरी साँसों में समाई हुई हो। तुम मेरी जिस में भी समा गई हो, अब मैं अपनी अक्षरा को कभी खुद से दूर नहीं जाने दूँगा।" रजत अक्षरा के कपड़े पहना देता है। अक्षरा इतनी गहरी नींद में थी कि उसे पता ही नहीं चलता कि रजत ने कब से उसके सारे कपड़े पहना दिए। अक्षरा को अपनी गोद में उठाकर अपनी गाड़ी में बैठाता है। गाड़ी को ऑटोमैटिक मोड पर लगाकर छोड़ देता है और अक्षरा को अपनी गोद में बिठाकर वहाँ से अपने दूसरे मेंशन की तरफ़ निकल जाता है। उस मेंशन के बारे में अभी तक किसी को नहीं पता था, जो रजत ने सिर्फ़ और सिर्फ़ अक्षरा के लिए बनवाया था और आज तक वह खुद ही वहाँ नहीं गया था क्योंकि अक्षरा उसके साथ नहीं थी। और आज वह पहली बार अक्षरा को लेकर वहाँ जा रहा था और खुद भी जा रहा था क्योंकि वह जंगल के पास में ही था। अक्षरा को लेकर रजत अपने मेंशन पहुँच जाता है। वह मेंशन बहुत ही खूबसूरत, व्हाइट कलर का था, क्योंकि अक्षरा को व्हाइट कलर का घर बहुत पसंद था। अक्षरा ने एक बार बचपन में रजत से कहा था कि वह उसी इंसान से शादी करेगी जिसके पास व्हाइट कलर का घर होगा। तो रजत ने मेहनत करके यह घर बनवाया था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और अक्षरा उससे दूर जा चुकी थी। लेकिन आज अक्षरा उसकी थी, उसके पास थी, उसकी बाहों में थी और अब वह उसे किसी भी कीमत पर खुद से नहीं जाने देगा। अक्षरा को ले जाकर अपने कमरे में सुला देता है और अच्छे से ब्लैंकेट से ढँककर खुद भी उसके बगल में लेट कर उसे अपनी बाहों में भरकर आँखें बंद कर लेता है। तभी अचानक उसे याद आता है कि वह अक्षरा कल से घर नहीं गई है तो घरवाले परेशान होंगे। वह सबको एक मैसेज छोड़ देता है कि वह बिज़नेस मीटिंग के लिए शहर से बाहर गए हुए हैं और उन्हें आने में तीन से चार दिन लग जाएँगे। और फिर फ़ोन रखकर साइलेंट कर देता है। अक्षरा को अपनी बाहों में लेकर अपनी आँखें बंद कर लेता है। और कब सो जाता है पता ही नहीं चलता। पूरे दिन दोनों सोते रहते हैं। शाम को 6:00 बजे रजत की नींद खुलती है तो वह देखता है अक्षरा अभी भी सो रही थी। रजत उसे अच्छे से ब्लैंकेट से ढँककर वॉशरूम में चला जाता है और नहाकर बाहर आकर कपड़े पहनकर कमरे से बाहर चला जाता है। वहीं धीरे-धीरे अक्षरा की नींद भी खुलने लगती है तो वह डर जाती है, लेकिन फिर उसे कमरा देखकर कुछ याद आता है। यह कमरा तो वैसा ही था जैसा एक बार उसने रजत को बताया था और आज इतने खूबसूरत, इतने महँगे कमरे को देखकर अक्षरा समझ जाती है कि यह रजत का कमरा है। वह आराम से बेड पर लेटी रहती है और फिर खुद को देखती है तो उसने रजत की एक व्हाइट शर्ट और नीचे शॉर्ट्स पहने हुए थे। अक्षरा खुद को देखकर शर्माने लगती है और कहती है, "मैंने अगस्त को अपनी ज़िंदगी से बहुत दूर कर दिया है और अब जब अगस्त हमारी ज़िंदगी में नहीं होगा तो मेरी फैमिली में से किसी को कुछ नहीं होगा। मैं हमेशा से एक ऐसा जीवनसाथी चाहती थी जो मुझे प्यार करे, मेरी केयर करे, मेरी इज़्ज़त करे और रजत में वह सब काबिलियत है। रजत मेरा फ़्यूचर है और उसके अलावा मैं किसी को अपनी ज़िंदगी में शामिल नहीं करूँगी क्योंकि मैंने अपना दिल तो रजत को दे दिया है, अब अपनी माँग का सिंदूर भी दूँगी और गले में मंगलसूत्र भी पहनूँगी।" वह खड़े होने की कोशिश करती है लेकिन उसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था क्योंकि उसने पिछले दो दिनों से कुछ खाया नहीं था। तभी कमरे का गेट खोलकर रजत अंदर आता है और देखता है कि अक्षरा बेड से उठने की कोशिश कर रही थी। रजत खाने की ट्रे को टेबल पर रखता है और अक्षरा को जाकर अपनी गोद में उठाकर कहता है, "कहाँ जाना है मैडम आपको? जो आप इतनी मेहनत कर रही थीं?" अक्षरा रजत की गर्दन में अपनी दोनों बाहें लपेटकर रहती है। "वॉशरूम जाना था। तुम चलोगे साथ?" रजत मुस्कुराकर अक्षरा की नाक को काट लेता है और कहता है, "आप जहाँ बोलो, हम तो वहाँ जाने के लिए तैयार हैं। वॉशरूम क्या चीज़ है?" अक्षरा मुस्कुराने लगती है। फिर रजत अक्षरा को लेकर वॉशरूम के गेट पर छोड़कर कहता है, "जब फ्रेश होकर आओ, तब तक मैं डिनर लगाता हूँ।" अक्षरा "हाँ" बोलकर वॉशरूम में चली जाती है और नहाकर एक बाथरोब पहनकर आती है। रजत खाना टेबल पर लगाकर उसके आने का इंतज़ार कर रहा था। अक्षरा बाथरोब में ही आकर सोफे पर बैठ जाती है और अपने गीले बालों को पोंछती है। रजत अपने हाथ में एक तौलिया लेकर अक्षरा के बालों में लपेट देता है और फिर उसे अपने हाथ से खाना खिलाने लगता है। रजत खिलाता है और अक्षरा खुद खाती है। दोनों इसी तरह अपना डिनर कंप्लीट करते हैं। अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर कहती है, "रजत, यह घर किसका है? बहुत खूबसूरत है।" रजत अक्षरा को अपनी बाहों में भर लेता है और कहता है, "यह घर तुम्हारा है। तुम्हें याद है जब हम कॉलेज में थे और तुमने मुझे बताया था कि तुम्हें अपने लिए कैसा घर चाहिए? तो मैंने वैसा ही घर बनवाया है तुम्हारे लिए। यह तो सिर्फ़ एक कमरा है, अभी बाहर से जाकर देखना, तो और पसंद आएगा।" अक्षरा की आँखें नम हो जाती हैं और वह रजत के गले लगकर कहती है, "बहुत दर्द दिया ना तुमने, बहुत तकलीफ दी।" रजत उसकी आँसू साफ़ करके कहता है, "नहीं, यह दर्द, यह तकलीफ़ तेरी खुशियों के सामने कुछ भी नहीं। जो तुम मुझे अब दे रही हो। मेरी बनकर।" "मुझसे कुछ माँगना, क्योंकि पहले और आखिरी बार माँग रहा हूँ। इसके बाद कभी तुमसे कुछ नहीं माँगूँगा।" अक्षरा रजत के चेहरे को अपने हाथों में भरकर कहती है, "बोलो ना, क्या चाहिए तुम्हें? मैं सब कुछ देने को तैयार हूँ।" "मुझसे शादी कर लो और हमेशा के लिए मेरी बन जाओ। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। मैं हर वक़्त, हर पल, हर लम्हा सिर्फ़ तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ। और कल रात के बाद तो अब मेरे अंदर इतनी भी ताक़त नहीं कि मैं तुम्हें उस प्रताप मेंशन में भी छोड़ सकूँ। इसीलिए तुम्हें यहाँ लेकर आया हूँ।" अक्षरा अपना सर रजत के सीने पर रखकर कहती है, "ठीक है। जब तुम्हें शादी करनी हो मुझे बता देना, मैं कर दूँगी।" "अभी कर लो, अभी रात में यार। कम से कम मुझे एक अच्छा सा लहँगा तो दिलवा देना। कम से कम मैं दुल्हन तो लगती चाहूँगी। पहले भी किसी के उतारे हुए कपड़े पहने थे मैंने, और किसी का उतरा हुआ रिश्ता निभाया था। इस बार मैं ऐसा कुछ नहीं चाहती।" रजत खींचकर अक्षरा को अपनी गोद में बिठा लेता है और कहता है, "मैंने सब कुछ इंतज़ाम कर रखा है। तुम बस हाँ कर दो। और मेरी ज़िंदगी में आने वाली तुम पहली और आखिरी लड़की हो और मैंने सारा इंतज़ाम पहले ही कर लिया है। और रही तुम्हारे तलाक़ की बात तो उसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि अगस्त के पास कोई सबूत नहीं है कि उसकी शादी तुमसे हुई थी। दुनिया यही जानती है कि उसकी शादी पूर्वी से हुई थी और पूर्वी उसकी पत्नी है। उसने कभी दुनिया के सामने तुम्हें अपनी पत्नी नहीं माना और ना ही कभी कहा। उसने कभी अपनी शादी रजिस्टर करवाई तो तलाक़ की तो कोई बात ही नहीं है। हम दोनों अपनी शादी भी रजिस्टर करवाएँगे, अपनी शादी के फ़ोटोस भी निकलवाएँगे और लाइफ़ भी दिखाएँगे सबको, जैसे हर कोई जाने की रजत की बीवी अक्षरा है और अक्षरा का पति रजत है।" "आज से तुम रजत की अक्षरा हो, हमेशा-हमेशा के लिए।" अक्षरा रजत को अपने सीने से लगा लेती है और कहती है, "बहुत इंतज़ार किया है रजत, तुमने मेरा। मैं जानती हूँ, इतना इंतज़ार करना हर किसी के बस की बात नहीं थी, लेकिन तुमने किया। आई लव यू रजत, आई लव यू सो मच।" अक्षरा के मुँह से "आई लव यू" सुनकर रजत अक्षरा को अपनी गोद में उठाकर पूरे कमरे में घुमाने लगता है। अक्षरा जोर-जोर से खिलखिला रही थी। रजत अक्षरा से कहता है, "ठीक है, कल सुबह हमारी शादी है, इसलिए तुम अभी आराम करो। मैं चाहता हूँ मेरी दुल्हन कल सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगे।" "यह बात है, यही बात है।" अक्षरा बेड पर लेट कर अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर रजत का हाथ पकड़कर खींच लेती है और कहती है, "मैं तो सोना ही नहीं चाहती। मैं तो पूरी रात जीना चाहती हूँ, कल रात की तरह तुम्हें खुद में महसूस करना चाहती हूँ। पूरी रात तुम्हारे प्यार की बारिश में भीगना चाहती हूँ और तुम्हें खुद में ले कर खुद को पूरा करना चाहती हूँ।" अक्षरा की इतनी रोमांटिक बातें सुनकर रजत मदहोश हो जाता है और कब रजत अपने होठ अक्षरा के होठों को अपने कब्ज़े में ले लेते हैं, किसी को पता ही नहीं चलता। दोनों एक-दूसरे को ऐसे चूम रहे थे जैसे अगर एक थक जाए तो दूसरा जीत जाएगा। वहीं दोनों पागल हो चुके थे एक-दूसरे के लिए। अब दोनों एक-दूसरे के कपड़े निकालकर फेंक देते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता। वहीं रजत धीरे-धीरे अक्षरा के सीने पर आ जाता है और उसके सीने को पकड़कर उसे दबा देता है। अक्षरा की एक हसीन आवाज़ पूरे रूम में घूम जाती है जो रजत को पागल करने के लिए काफी थी। अब तो रजत पागल की तरह अक्षरा के ऊपर टूट पड़ता है और उसे अपने जिस्म में इतने ज़ोर से समा लेता है कि अब अक्षरा को निशानों में भी दर्द होने लगा था। लेकिन अक्षरा एक बार भी रजत को रुकने के लिए नहीं बोलती। वह भी रजत का पूरा साथ दे रही थी। अचानक बिना इजाज़त के रजत अक्षरा के अंदर प्रवेश कर जाता है और अक्षरा की आँखों से आँसू निकल जाते हैं। वहीं रजत अक्षरा की दोनों आँखों के आँसुओं को पीकर कहता है, "यह तो शुरुआत है। देखो, रोज़ मैं तुम्हें इससे ज़्यादा प्यार करूँगा। और हाँ, तुम मुझे मना नहीं कर सकती क्योंकि तुमने खुद की लत मुझे लगाई है और अब मैं यह लत कभी छोड़ना नहीं चाहता।" और अक्षरा को बहुत तेज प्यार करने लगता है। वहीं अक्षरा भी रजत की गर्दन में अपने हाथ लपेटकर कहती है, "मैं भी तुमसे दूर नहीं जाना चाहती। मुझे हर रात तुम अपने साथ इस बिस्तर पर चाहिए। अगर तुमने काम का बहाना बनाया, कुछ भी किया ना, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" दोनों इसी तरह एक-दूसरे को भड़काते हुए, एक-दूसरे को प्यार करते रहते हैं। पूरी रात हो गई थी लेकिन दोनों ही रुकने के लिए तैयार नहीं थे और ना ही रुकते हैं। पूरी रात वे ऐसा करते हैं और सुबह के 11:00 बज चुके थे लेकिन दोनों अभी भी एक-दूसरे से लगे हुए थे। तभी रजत अक्षरा के ऊपर, कभी अक्षरा रजत के ऊपर। रजत अक्षरा से कहता है, "जान, रुक जाओ। शादी है हमारी। याद रखना, अब सुहागरात के लिए भी कुछ बाकी रखते हैं ना?" अक्षरा मुस्कुराने लगती है और साइड में लेटकर रजत से कहती है, "चलो, साथ में नहाते हैं, साथ में तैयार होते हैं।" रजत अक्षरा को अपनी गोद में उठाकर वॉशरूम में ले जाता है और आईने के सामने खड़ा करके कहता है, "एक बात कहूँ?" अक्षरा "हाँ" कहती है। रजत कहता है, "आई लव यू जान, आई लव यू सो मच। और तुम तो मेरी जीने की वजह बन चुकी हो, मेरी साँसें बन चुकी हो। तुम अपनी साँसों को मुझसे जुदा करने की कोशिश मत करना।" अक्षरा रजत को किस करने लगती है और दोनों एक-दूसरे में फिर से खो जाते हैं। दो घंटे बाद दोनों वॉशरूम से बाहर आते हैं और दोनों के ही चेहरे पर थकान थी क्योंकि पूरी रात और आधा दिन उन दोनों ने अपने प्यार की बारिश में एक-दूसरे को भोगा था। रजत अक्षरा को तैयार करता है और उसे बाहर लेकर आता है। बाहर एक खूबसूरत मंडप बना हुआ था। रजत अक्षरा को लेकर मंडप में बैठ जाता है और पंडित जी दोनों की शादी की विधियाँ शुरू करते हैं और धीरे-धीरे अक्षरा हमेशा के लिए रजत की हो गई थी। अक्षरा आसमान की तरफ़ देखकर कहती है, "महादेव, मैंने अपनी किस्मत बदल दी। मैंने छोड़ दिया अगस्त को और खुद को रजत के हवाले करके अपनी एक नई किस्मत लिखूँगी और अपने आस-पास जितने भी लोग मेरी वजह से मारे गए थे, उन सब लोगों को एक नई ज़िंदगी दूँगी।" पंडित जी रजत से कहते हैं, "वधू की मांग में सिंदूर भरिए।" रजत सिंदूर लेकर अक्षरा की मांग में भर देता है जो सिंदूर अक्षरा की मांग के साथ-साथ उसकी नाक पर भी गिर जाता है। फिर वह उसे मंगलसूत्र पहनाता है और उसके माथे को चूमकर कहता है, "आज से तुम पूरी तरह से रजत की हो गई।" अक्षरा भी रजत के माथे को चूम लेती है। वहीं दूसरी तरफ़ अगस्त्य पागल हुआ जा रहा था क्योंकि उसे पता नहीं चला था कि अक्षरा कहाँ है और रजत उसे लेकर कहाँ गया है। अगस्त को कुछ अनहोनी होने का डर हो रहा था कि कहीं अक्षरा उससे दूर ना चली जाए और शायद उसका डर पूरा भी हो चुका था क्योंकि अक्षरा अब रजत की बीवी बन चुकी थी। क्या होगा आगे? अगस्त का फैसला क्या होगा? अगस्त, रजत और अक्षरा के साथ देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अब अगस्त पागल हो चुका है अक्षरा के प्यार में। अब वह उसे पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेगा। Do like, share, comment. 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  • 8. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 8

    Words: 2555

    Estimated Reading Time: 16 min

    अक्षरा आसमान की तरफ देखकर कहती है, "महादेव, मैंने अपनी किस्मत बदल दी। मैंने अगस्त्य को छोड़ दिया और खुद को रजत के हवाले करके अपनी एक नई किस्मत लिखूंगी। और अपने आसपास जितने भी लोग मेरी वजह से मारे गए थे, उन सब लोगों को एक नई जिंदगी मिलेगी।" पंडित जी रजत से कहते हैं, "वधू की मांग में सिंदूर भरिए।" रजत ने सिंदूर लेकर अक्षरा की मांग में भरा। जो सिंदूर अक्षरा की मांग के साथ-साथ उसकी नाक पर भी गिर गया। फिर उसने उसे मंगलसूत्र पहनाया और उसके माथे को चूमकर कहा, "आज से तुम पूरी तरह से रजत की हो गई।" अक्षरा ने भी रजत के माथे को चूम लिया। वहीं दूसरी तरफ, अगस्त्य पागल होता जा रहा था क्योंकि उसे पता नहीं चला था कि अक्षरा कहाँ है और रजत उसे कहाँ ले गया। अगस्त्य को कुछ अनहोनी होने का डर हो रहा था कि कहीं अक्षरा उससे दूर ना चली जाए, और शायद उसका डर पूरा भी हो चुका था क्योंकि अक्षरा अब रजत की पत्नी बन चुकी थी। क्या होगा आगे? अगस्त्य का फैसला क्या होगा? अगस्त्य, रजत और अक्षरा के साथ आगे क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अब अगस्त्य धीरे-धीरे अक्षरा के प्यार में पागल हो चुका था। अब वह उसे पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेगा। वहीं दूसरी तरफ, रजत और अक्षरा की शादी हो गई और दोनों एक-दूसरे के गले लगकर एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं। पंडित जी को दक्षिणा देकर वहाँ से विदा कर दिया गया। तभी रजत अक्षरा को अपनी गोदी में उठाकर घर के अंदर लाया। अक्षरा रजत से कहती है, "नहीं रजत, मुझे इस घर में गृह प्रवेश नहीं करना। मैं वहाँ जाना चाहती हूँ जहाँ मेरे माँ-बाप हैं, और तुम फोन करके पापा, माँ और भाई को भी बुला लेना।" रजत ने "हाँ" कहा और वे दोनों वहाँ से अपनी गाड़ी में बैठकर रजत के घर के लिए निकल गए। ओबेरॉय मेंशन में सब लोग बैठे हुए लंच कर रहे थे। तभी बाहर से एक गार्ड आया और कहता है, "सर, बाहर रजत सर और अक्षरा मैडम हैं। आप लोगों को बाहर बुला रहे हैं।" सब लोग जब बाहर जाकर देखते हैं तो रजत और अक्षरा को दूल्हा-दुल्हन के रूप में देखकर सबकी आँखें बाहर आने को हो जाती हैं क्योंकि किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि रजत और अक्षरा शादी कर सकते हैं। तभी सीमा जी रजत की तरफ देखकर कहती हैं, "यह क्या है रजत?" रजत कहता है, "मॉम, मैं और अक्षरा ने शादी कर ली है और आज से अक्षरा मेरी पत्नी, इस घर की बहू है।" सीमा जी अक्षरा के पास आकर कहती हैं, "भले ही वह इस घर की बहू हो, लेकिन वह हमेशा से मेरी बेटी रही है और बेटी रहेगी। हाँ, मैं तुझे दामाद मान सकती हूँ, लेकिन अपनी बेटी को बहू नहीं।" तभी समर जी आगे आते हैं और अक्षरा को अपने हाथ में लेकर कहते हैं, "हाँ, यह बात तो सही है। और अक्षरा हमारी बेटी है।" उन सब की बातें सुनकर रजत का मुँह बन जाता है क्योंकि उन्होंने उसे अपने बेटे को अपना दिमाग नहीं बनाया था। तभी आस्था कहती है, "अब गृह प्रवेश भी कर लो।" फिर सीमा जी, रजत और अक्षरा का गृह प्रवेश कराती हैं। ओबेरॉय मेंशन में ऐसा लग रहा था जैसे ढेर सारी खुशियाँ उस घर में आ गई हैं। रजत समर जी की तरफ देखकर कहता है, "पापा, अभी तक हमने अंकल और आंटी को और सात्विक भाई को नहीं बताया। तो आप लोग हमें मनाने में हमारी मदद करेंगे?" समर जी रजत के पास उठकर अक्षरा के पास बैठ जाते हैं और कहते हैं, "बिल्कुल नहीं! यह कांड तूने किया है, तूने रायता फैलाया है, तो तू ही सुधारेगा। इसमें मेरी बेटी और मुझे फँसाने की कोशिश मत करना।" रजत छोटी-छोटी आँखें करके खोलने लगता है। समर जी रजत की तरफ देखकर कहते हैं, "यह आँखें ना मुझे मत दिखाना। तू जानता है, अगर मुझे गुस्सा आया ना, तो तू सोच लेना।" तभी रजत समर जी के थोड़ा पास जाकर कहता है, "और मैं मॉम को भी बता दूँगा जो उस दिन ऑफिस में हुआ था। आपको पता है, मैंने उसका वीडियो भी बना लिया है। पहले उस वीडियो में... और उस वक्त आपकी गलती नहीं थी, लेकिन जो कंडीशन थी... मॉम आपको क्या करना है, बहुत अच्छे से जानते हो ना, तो सोच समझकर पंगा लेना मुझसे।" अचानक से समर जी रजत से कहते हैं, "अरे, तू क्यों चिंता कर रहा है बेटा? मैं बात कर लूँगा ना, वह मेरा दोस्त है। मेरी बात तो मानेगा।" वहीं अचानक से समर जी के बदलते हुए व्यवहार को देखकर सीमा जी को पता चल जाता है कि ज़रूर कोई बात है जो रजत जानता है। और वह समर जी को ब्लैकमेल कर रहा था। आस्था अक्षरा के माथे को चूमकर कहती है, "मैं हमेशा से चाहती थी कि मेरे रजत की दुल्हन सिर्फ़ और सिर्फ़ अक्षरा बने, और आज तुम दोनों ने मेरा सपना सच कर दिया है।" सीमा जी आस्था की तरफ देखकर कहती हैं, "आस्था बेटा, जो अक्षरा ने रजत के कमरे में इतने हैवी कपड़े पहन रखे हैं, उसमें उसे प्रॉब्लम हो रही होगी ना?" वह "हाँ" बोल देती है और अक्षरा को लेकर रजत के कमरे में चली जाती है। तभी समर जी करण जी को फोन लगा देते हैं और उन्हें पूरी बात समझाते हैं। वे दोनों शाम को आने का बोल देते हैं। रजत अपने कमरे की तरफ चला जाता है। वहीं रजत के कमरे में आस्था और अक्षरा बातें कर रही थीं। तभी आस्था अक्षरा से पूछती है, "अक्षरा, क्या अगस्त्य तुम दोनों की शादी के बारे में जानकर कुछ करेगा? मतलब, वो पागल है, तुम जानती हो?" आस्था का हाथ अपने हाथ में लेकर अक्षरा कहती है, "वह कुछ नहीं करेगा, दीदी।" आस्था बार-बार अक्षरा से कुछ पूछना चाहती थी, लेकिन पूछ नहीं पा रही थी। अक्षरा बहुत देर से यह बात नोटिस कर रही थी। तभी कैमरा लेकर रजत अंदर आता है, लेकिन वह दोनों ने उसे नहीं देखा था। अक्षरा आस्था से कहती है, "आप जो भी पूछना चाहती हैं, पूछ सकती हैं, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।" आस्था सीधे कहती है, "क्या तुम्हारे और अगस्त्य के बीच फिजिकल रिलेशन थे?" आस्था की बात सुनकर अक्षरा थोड़ी अनकम्फ़र्टेबल हो जाती है। फिर वह आस्था की तरफ देखकर कहती है, "नहीं दीदी, मेरे और अगस्त्य के बीच कभी कोई फिजिकल कांटेक्ट नहीं हुआ था। क्योंकि जब से मुझे उसकी नफ़रत के बारे में पता चला था, मैं उसे खुद के करीब नहीं आने देती थी। और इसी बात से वह सबसे ज़्यादा जलता था कि मैं उसकी बीवी होकर उसकी नीड्स को पूरी नहीं करती। तब मैं यह सोचती थी कि पहले मुझे उसका प्यार चाहिए। मेरा जिस्म तो उसका ही था, लेकिन ना कभी उसने मुझे प्यार दिया और ना मैंने कभी उससे कुछ होने दिया। मेरा पहली बार सिर्फ़ और सिर्फ़ रजत का है, और रजत का पहली बार सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा है।" रजत पीछे से आकर अक्षरा को गले लगाकर कहता है, "दीदी, आपको अक्षरा से पूछने की ज़रूरत नहीं थी। मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ कि अक्षरा सिर्फ़ और सिर्फ़ रजत की है और आज तक अगस्त्य ने उसे छुआ भी नहीं।" आस्था गौर से रजत के चेहरे को देखकर कहती है, "तुझे यह कैसे पता चला? वह भी कल हम दोनों के बीच... वह सब कुछ हो गया था। और एक इंसान पहली बार में जो दर्द, तकलीफ़ होती है, वह सब समझ जाता है। हम दोनों का ही पहली बार था, तो हम दोनों ही समझ गए थे। इसलिए हमें एक-दूसरे से मुँह से बोलने की ज़रूरत नहीं लगी।" आस्था उन दोनों के चेहरे को सहलाते हुए कैमरे से बाहर चली जाती है। तभी रजत कमरे को लॉक करके अक्षरा को खुद से चिपकाकर कहता है, "तुम्हें यह सब बताने की ज़रूरत नहीं थी, और ना तुम सफाई देने की ज़रूरत थी। बहन है वह, तुम्हारी फिक्र करती है, तुमसे प्यार करती है, इसीलिए नहीं चाहती कि कोई गलत लड़का तुम्हारी ज़िंदगी में आए। और मैं भी यही जानना चाहता था कि तुमने मुझे कल यह सवाल क्यों नहीं पूछा। अक्षरा, अरे मेरी जान! मैं तो पहले ही समझ गया था। तुमसे पूछने की ज़रूरत ही नहीं थी। और अगर तुम्हारा अगस्त्य के साथ कोई फिजिकल कांटेक्ट होता भी, तब भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी हूँ। तुम्हारे दिल से प्यार किया है, तुम्हारे जिस्म से नहीं, समझी?" "जाओ, जाकर कपड़े चेंज कर लो। लहँगा बहुत हैवी है और मैं नहीं चाहता तुम्हें जरा सी भी दिक्कत हो।" अक्षरा रजत की तरफ देखकर कहती है, "मैंने तो सोचा था कि आज हमारी शादी हुई है, यह लहँगा पहन रखूँगी तो हमारे बीच सुहागरात होगी, सब कुछ होगा। तुम तो मुझे लहँगा चेंज करने को बोल रहे हो।" उसकी बातें सुनकर रजत हँसने लगता है और कहता है, "कल पूरी रात और आधा दिन हमने यही सब तो किया था। तुम थकी नहीं हो? अगर तुम थक गई हो तो कोई बात नहीं। मैं जाता हूँ।" अचानक से रजत उसे बेड पर धक्का दे देता है और अक्षरा बेड पर गिर जाती है। रजत उसके ऊपर आते हुए कहता है, "मैं तो तुम्हें वक़्त दे रहा था आराम करने का। अब तुम्हें ही वक़्त नहीं चाहिए तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं।" और उसके फ़ोटो को अपनी फ़ोटो में कैद कर लेता है और शिद्दत से उसके होठों को चूमने लगता है। काटते-काटते कब उसके दुपट्टे को निकालकर फेंक देता है, पता ही नहीं चलता। उसके होठों को अपने कैद में लेकर ही रजत उसके सारे गहने निकाल देता है, सिर्फ़ मंगलसूत्र गले में रहने देता है। फिर वह उसके ब्लाउज़ की डोरी को खोलकर अलग कर देता है और फिर अपने एक हाथ से उसके लहँगे की डोरी खींच देता है जिससे लहँगा अक्षरा के पैरों से सरकता हुआ नीचे गिर जाता है। अभी तक अक्षरा को कोई अहसास ही नहीं हुआ था कि वह तो रजत की किस्मत खोई हुई थी। जब रजत को एहसास होता है कि अक्षरा को साँस नहीं आ रही है, तो वह उसके होठों को छोड़कर उसके गले में अपना मुँह लगा लेता है और उसके गले को चूमने लगता है। अक्षरा की मदहोश कर देने वाली आवाज़ पूरे कमरे में पहुँच रही थी। तभी अचानक से रजत अक्षरा के ऊपर से खड़ा हो जाता है। अब जाकर अक्षरा को एहसास होता है कि रजत ने उसके जिस्म पर एक कपड़ा नहीं छोड़ा था। वह खुद को ब्लैंकेट से ढँक लेती है। रजत अक्षरा की तरफ़ देखते हुए धीरे-धीरे अपने कपड़े निकालकर फेंकने लगता है। वहीं रजत को अपने सामने ऐसे देखकर अक्षरा के हाथ-पैर काँपने लगते हैं। अक्षरा थोड़ा सा उठकर खड़ी हो जाती है और अपने सीने को और पेट को मसलने लगती है अपने दोनों हाथों से। उसे ऐसा करते देखकर अक्षरा के दिल की धड़कनें इतनी तेज चलने लगती हैं कि कुछ पूछो ही मत। अक्षरा ब्लैंकेट उठाकर फेंक देती है और जाकर रजत से चिपक जाती है और उसके सीने को चूमने और काटने लगती है। वहीं अक्षरा को इतना मदहोश होते देखकर रजत मुस्कुरा देता है। अक्षरा रजत के होठों को अपनी फ़ोटो में कैद कर लेती है और उसे चूमने और काटने लगती है। अब तो रजत भी मदहोश हो चुका था। वह अक्षरा को दीवार से सटाकर उसके ऊपर चढ़ जाता है और अक्षरा के एक पैर को उठाकर अपने कंधे पर रख लेता है और बिना अक्षरा को एक मौका दिए उसके अंदर समा जाता है। रजत के इस तरह करने से अक्षरा को बहुत दर्द होता है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। रजत अक्षरा के होठों को किस करने लगता है और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाता रहता है। अब तो पूरे कमरे में उन दोनों की खुशियों की आवाज़ गूँज रही थी। फिर वह अक्षरा को उठाकर सोफ़े पर लेटाकर उसके ऊपर आ जाता है और फिर से उसके अंदर इंटर हो जाता है। ऐसे ही करके रजत अपने कमरे के हर एक कोने में, हर एक जगह अक्षरा के साथ अपना वर्ल्ड रोमांस जारी रखता है - कल की पूरी रात, फिर आधा दिन, फिर सुबह। अक्षरा की आँखें बंद होने लगती हैं। यह देखकर रजत उसके ऊपर से उठकर साइड में लेट जाता है और अक्षरा को खुद से चिपकाकर उसके शरीर को दबाने लगता है और उसके होठों को छोटी-छोटी किस करने लगता है। रजत के सोते ही अक्षरा नींद के आगोश में चली जाती है। वहीं रजत भी अक्षरा की देखभाल में लगा हुआ था। वहीं दूसरी तरफ, अगस्त्य के ऑफ़िस में अगस्त्य ने तबाही मचा रखी थी क्योंकि उसके बॉडीगार्ड ने उसे बता दिया था कि रजत और अक्षरा ने शादी कर ली है और दोनों शादी करके घर आ गए थे। जब से अगस्त्य के गुस्से की कोई सीमा नहीं रही थी। वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि उसके आगे-पीछे घूमने वाली लड़की, उससे प्यार करने वाली लड़की आज किसी और की बीवी बन चुकी थी। वह उसके साथ था, अब अगस्त्य पागल हो चुका था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे अक्षरा ने उसे धोखा दिया हो, और वह अक्षरा को हर कीमत पर अपनी जिंदगी में लाकर रहेगा। तभी उसका बॉडीगार्ड उसे कुछ वीडियो दिखाता है। यह वीडियो रजत के घर के थे जहाँ वे दोनों एक-दूसरे के साथ इंटीमेट हुए थे। यह देखकर तो अगस्त्य का पारा ही हाँ हो जाता है। वह चीखने-चिल्लाने लगता है। कहता है, "तुम किसी और की नहीं हो सकती! तुम किसी और को यह हक नहीं दे सकती, तुम्हें छूने का, तुमसे प्यार करने का, तुम्हारे साथ खेलने का हक सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा है! तो वह हक रजत को कैसे दे सकती हो? अब तुम देखो, मैं रजत को कैसे बर्बाद करता हूँ, तो खुद चलकर मेरे पास आओगी, भीख माँगेगी मुझसे कि मैं तुमसे शादी कर लूँ, और मैं तुमसे शादी करके तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए अपनी कैद कर लूँगा। फिर कोई भी तुम्हें छू नहीं पाएगा, तुम्हें छोड़ नहीं पाएगा!" और पागलों की तरह हँसने लगता है। उसकी ऐसी हरकत देखकर अगस्त्य का सेक्रेटरी और गार्ड डर जाते हैं क्योंकि वे जानते थे अगस्त्य कितना बड़ा पागल और सनकी है। अगर उसके दिमाग में एक बार कोई बात चढ़ जाती है, तो वह कुछ भी कर सकता है। ओबेरॉय मेंशन में सात्विक और Mr. और Mrs. प्रताप आते हैं। आस्था और श्री और श्रीमती ओबेरॉय वहाँ बैठे हुए थे। सब लोग एक-दूसरे से बातें करते हैं। सात्विक समर जी की तरफ़ देखकर कहता है, "अंकल, यह दोनों कहाँ हैं? दिख नहीं रहे।" समर जी कहते हैं, "बेटा, वे लोग थक गए थे, इसलिए मैंने उन्हें आराम करने के लिए भेज दिया। ऐसा करो, तुम और आस्था उन्हें बुला लो।" वे दोनों ऊपर जाने लगते हैं। आस्था अभी भी सात्विक से बात नहीं कर रही थी। वहीं सात्विक एकटक आस्था को देख रहा था। जब वे दोनों बालकनी में पहुँचते हैं, तो सात्विक आस्था को लेकर दूसरे कमरे में घुस जाता है और कमरे को लॉक करके आस्था को गले लगा लेता है। आस्था हैरानी में सात्विक को देख रही थी क्योंकि सात्विक ने यह सब इतनी जल्दी किया। आस्था को समझ ही नहीं आया कि उसके साथ क्या हुआ था। Do like, share, comment, Reviews 🙏🙏🙏🙏🙏👋👋👋👋👋👋👋👋👋🙏🙏🙏🙏

  • 9. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 9

    Words: 2628

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    उसके बॉडीगार्ड ने उसे कुछ वीडियो दिखाए। ये वीडियो रजत के घर के थे, जहाँ वे दोनों एक-दूसरे के साथ अंतरंग हुए थे। यह देखकर अगस्त का पारा चढ़ गया। वह चीखने लगा, "तुम किसी और की नहीं हो सकती! तुम किसी और को यह हक नहीं दे सकती, तुम्हें छूने का, तुमसे प्यार करने का, तुम्हारे साथ खेलने का हक सिर्फ और सिर्फ मेरा है! तो वह हक रजत को कैसे दे सकती हो? अब देखो, मैं रजत को कैसे बर्बाद करता हूँ, तो खुद चलकर मेरे पास आओगी, भीख माँगेगी मुझसे शादी करने की! और मैं तुमसे शादी करके तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए अपनी कैद कर लूँगा। फिर कोई भी तुम्हें देख नहीं पाएगा, तुम्हें छू नहीं पाएगा!" और वह पागलों की तरह हँसने लगा। उसकी ऐसी हरकत देखकर अगस्त का सेक्रेटरी और कार्ड डर गए, क्योंकि वे जानते थे अगस्त कितना बड़ा पागल और सनकी है। अगर उसके दिमाग में एक बार कोई बात चढ़ जाती है, तो वह कुछ भी कर सकता है। ओबेरॉय मेंशन में सात्विक और Mr. & Mrs. प्रताप आए। आस्था और श्री और श्रीमती ओबेरॉय वहीं बैठे हुए थे। सब लोग एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। सात्विक समर जी की तरफ देखकर बोला, "अंकल, ये दोनों कहाँ हैं? दिख नहीं रहे हैं।" समझी ने कहा, "बेटा, वे लोग थक गए थे, इसलिए मैंने उन्हें आराम करने के लिए भेज दिया। ऐसा करो, तुम और रास्ता उन दोनों को बुला लो।" वे दोनों ऊपर जाने लगे। आस्था अभी भी सात्विक से बात नहीं कर रही थी। वहीं सात्विक एकटक आस्था को देख रहा था। जब वे दोनों बालकनी में पहुँचे, तो सात्विक आस्था को लेकर दूसरे कमरे में घुस गया और कमरे को लॉक कर दिया। आस्था हैरानी से सात्विक को देख रही थी, क्योंकि सात्विक ने यह सब इतनी जल्दी किया था। आस्था को समझ ही नहीं आया कि उसके साथ क्या हुआ था। जब आस्था को एहसास हुआ, तब तक सात्विक उसके होठों को अपनी कैद में ले चुका था और आँखें बंद कर उसके होठों को चूम रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे जाने कितने सालों बाद सात्विक को उसके मनपसंद होठों का स्वाद मिला हो। आस्था सात्विक को खुद से दूर करने की कोशिश करती रही, लेकिन सात्विक आस्था को छोड़ नहीं रहा था। धीरे-धीरे सात्विक के हाथ आस्था के पूरे शरीर को सहलाने लगे, लेकिन आस्था अभी भी सात्विक को खुद से दूर करने की कोशिश कर रही थी। अचानक सात्विक उसकी कुर्ती में हाथ डालकर उसके सीने को जोर से दबा दिया, और उसी के साथ आस्था की चीख निकल कर सात्विक के मुँह में ही रह गई। आस्था का मुँह खुलते ही सात्विक अपनी जीभ आस्था के मुँह में डालकर उसके पूरे मुँह को चाटने लगा। वहीं आस्था पूरी तरह से सात्विक के वश में आ गई थी, क्योंकि सात्विक उसकी कमजोरी बहुत अच्छे से जानता था। इसलिए आस्था को वहीं पर काटा था, जहाँ उसका वीक पॉइंट था। धीरे-धीरे सात्विक के हाथ आस्था की पूरी बॉडी को सहलाने लगे। आस्था इतनी मदहोश हो चुकी थी कि उसे पता ही नहीं चला कि सात्विक ने कब उसके कपड़े उसके शरीर से अलग कर दिए। आस्था उसके सामने पूरी तरीके से बिना कपड़ों के खड़ी थी। जब सात्विक को लगा कि अब आस्था साँस नहीं ले पा रही है, तब जाकर सात्विक आस्था को छोड़ता है और उसके गले में काटने लगता है। जब सात्विक जोर से आस्था की गर्दन पर काट देता है, तब जाकर आस्था होश में आती है और सात्विक को उससे दूर करके बाहर जाने लगती है। सात्विक अचानक से आस्था का हाथ पकड़कर अपने करीब खींचता है और कहता है, "इस हालत में बाहर जाओगी?" अब जाकर आस्था को अपनी हालत का एहसास होता है। गुस्से में सात्विक की तरफ देखती है, तो सात्विक उसे चिपक कर कहता है, "क्या करूँ यार! कितने साल तुमसे दूर रहा हूँ मैं। अब तुम्हें पास से महसूस करने के लिए मर रहा हूँ। प्लीज यार!" आस्था सात्विक की तरफ देखकर कहती है, "पहले शादी करो। मुझे अपनी पत्नी बनाकर अपने घर लेकर जाओ। उसके बाद हर रात तुम्हारे साथ, तुम जो चाहो वो मैं करने को तैयार हूँ। लेकिन इस बार शादी से पहले तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे। तुम पहले ही मुझे बहुत बेवकूफ बना चुके थे। हर वक्त, हर टाइम मेरे साथ रहते थे, सब कुछ मेरे साथ करते थे, और शादी तुमने नीति से कर ली। तुमने मुझे क्या समझ रखा है, सात्विक?" "लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा। इस बार पहले शादी होगी, उसके बाद सुहागरात मनाना भी भूल जाना! मैं तुम्हें खुद को हाथ भी नहीं लगाने दूँगी। पर एक बात, अगर तुमने कल तक मुझसे शादी नहीं की, तो मैं तुम्हारी आँखों के सामने किसी और के साथ सो जाऊँगी। यह धमकी याद रखना!" सात्विक आस्था की किसी और के साथ सोने वाली बात सुनकर दिल दहल जाता है और आस्था को जोर से बेड पर धक्का देकर उसके ऊपर आकर कहता है, "तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी! मेरे अलावा किसी और का ख्याल भी तुम्हारे दिमाग में नहीं आना चाहिए, वरना जान से मार दूँगा तुम्हें!" और आस्था के एक स्तन को अपने एक हाथ में लेकर और दूसरे स्तन को दूसरे हाथ में लेकर जोर-जोर से दबाने लगता है। आस्था की चीख मुँह में ही रह जाती है, क्योंकि सात्विक ने उसके होठों को फिर से अपने कब्जे में ले लिया था और अपने दोनों हाथों से उसके दोनों स्तनों को जोर-जोर से दबा रहा था। अब तो आस्था को इतना दर्द हो रहा था कि उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे थे, लेकिन सात्विक रुकने को तैयार ही नहीं था, क्योंकि आस्था की बात ने उसके अंदर आग लगा दी थी कि आस्था किसी और के पास चली जाएगी। यही बात सात्विक को बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वहीं अचानक से सात्विक आस्था के अंदर घुस जाता है और आस्था की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो जाती हैं, लेकिन सात्विक आस्था को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था। वह बहुत ही वाइल्ड तरीके से आस्था के साथ अंतरंग होने लग जाता है। वहीं आस्था को बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन सात्विक उसे छोड़ ही नहीं रहा था। सात्विक धीरे-धीरे सॉफ्ट हो जाता है, और सात्विक के सॉफ्ट होते ही आस्था भी मदहोश होकर सात्विक का साथ देने लगती है, क्योंकि वह भी सात्विक से प्यार करती है, उसका प्यार, उसका साथ चाहती है, लेकिन इस तरह नहीं। सात्विक लगभग दो घंटे तक अपनी मनमानी आस्था के साथ करता रहता है। अचानक से सात्विक को याद आता है कि उसकी फैमिली ने उन दोनों को यहाँ क्यों भेजा था। सात्विक आस्था के ऊपर से उठकर अपने कपड़े पहनने लगता है। आस्था बेड पर अभी भी ऐसे ही लेटी हुई थी। सात्विक उसके पास जाता है, उसे कपड़े पहनाकर कहता है, "हमें नीचे चलना होगा। सब लोग हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।" सात्विक उसके साथ बहुत देर तक अंतरंग हुआ था, इसलिए आस्था को बहुत दर्द हो रहा था। नीचे आते हुए, सात्विक आस्था को सहारा देकर नीचे ला रहा था, तभी सब लोग आस्था के पास जाकर पूछते हैं, "क्या हुआ?" सात्विक आस्था की तरफ देखकर कहता है, "वह आस्था का पैर मुड़ गया है और उसे बहुत दर्द हो रहा है। वह चल भी नहीं पा रही है।" आस्था खामोश नज़रों से सात्विक को देखती है, लेकिन सात्विक पर कोई असर नहीं पड़ता। फिर सात्विक आस्था को सोफे पर बिठा देता है। तब तक वहाँ पर अक्षरा और रजत भी आ जाते हैं। तभी अक्षरा अपनी फैमिली को अपने और रजत की शादी के बारे में बता देती है। तभी सात्विक सबकी तरफ देखकर कहता है, "मैं आस्था से शादी करना चाहता हूँ, क्योंकि मैं बचपन से आस्था से प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाहता था, लेकिन नीति की वजह से नहीं कर पाया था। अंकल, आंटी, मैं आस्था से बहुत प्यार करता हूँ और उसके बिना नहीं रह सकता। प्लीज, मुझे मेरी आस्था दे दीजिए।" आज सबको पता चल गया था कि जिस लड़के से आस्था प्यार करती थी, वह कोई और नहीं, बल्कि सात्विक था। लेकिन कोई कुछ नहीं कहता, क्योंकि सबको आस्था की खुशी ही तो चाहिए थी, और आस्था के चेहरे पर वह खुशी की लहर उसकी फैमिली देख चुकी थी। इसीलिए वे भी हाँ कर देते हैं। तो सात्विक अपने माँ-बाप की तरफ देखकर कहता है, "माँ, पापा, कल मंदिर में शादी कर लेते हैं, उसके बाद अच्छा सा रिसेप्शन कर देंगे।" सब लोग इस बात पर सहमत हो जाते हैं। तभी रजत कहता है, "मैं चाहता हूँ कि आप दोनों के रिसेप्शन के साथ-साथ मेरा और अक्षरा का भी रिसेप्शन हो जाए, क्योंकि मैं भी दुनिया को बताना चाहता हूँ कि अक्षरा मेरी पत्नी है, मेरी जान, मेरी जिंदगी।" सब लोग रजत की बात सुनकर खुश हो जाते हैं। फिर रात का डिनर करके प्रताप फैमिली वापस अपने घर चली जाती है। वहीं रजत और अक्षरा अपने कमरे में चले जाते हैं। दूसरी तरफ, अगस्त के मेंशन में, अगस्त गुस्से में था। जब से उसने वो वीडियो देखे थे, तब से उसका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। अब जाकर उसे एहसास हुआ था कि उसने क्या खोया है। उसे इतना गुस्सा तब भी नहीं आया था जब पूर्वी ने उसे छोड़कर चला गया था या उसकी शादी अक्षरा से हो गई थी। लेकिन आज अक्षरा के चले जाने से उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी दुनिया ही उजड़ गई हो। वह गुस्से में अपने घर का सारा सामान तोड़फोड़ कर रहा था। फिर अपने आदमियों को देखकर कहता है, "जहाँ भी, जब भी तुम्हें रजत अकेला दिखे, उसके साथ अक्षरा ना हो, उसे अपने जंगल वाले मेंशन पर ले आना। क्योंकि अब मैं बताऊँगा रजत को, अगस्त की मोहब्बत पर हाथ डालने का अंजाम क्या होता है। भले ही मैंने उससे कभी प्यार ना किया हो, भले ही मैंने उसे कभी दुनिया के सामने नकारा हो, लेकिन वह अभी सिर्फ और सिर्फ मेरी है! मैं उसे किसी और की नहीं होने दूँगा, इजाज़त नहीं दूँगा!" पागलों की तरह हँसने लगता है। फिर अक्षरा की फोटो पर अपनी उंगलियाँ फेरते हुए कहता है, "बहुत जल्द, बहुत जल्द तुम मेरी कैद में होगी, मेरे पास, मेरी बाहों में, मेरे बिस्तर पर होगी! और फिर मैं तुम्हें कभी भी इस मेंशन से बाहर नहीं जाने दूँगा। दुनिया देखने के लिए तरस जाओगी, क्योंकि तुम्हें देखने का हक सिर्फ और सिर्फ मेरा है, और मैं तुम्हें किसी और के पास कभी नहीं रहने दूँगा।" अगस्त का पागलपन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था। इसे ही कहते हैं, जब अक्षरा अगस्त के पास थी, तब अगस्त को उसकी क़द्र नहीं थी। आज जब वह उसके पास नहीं है, तो वह उसके लिए पागल हुआ जा रहा है। तभी तो कहते हैं जो रिश्ता हमारे पास है, उसे हमेशा संजोकर रखना चाहिए। क्या पता कब बाज़ी पलट जाए और वह इंसान हमसे बहुत दूर चला जाए। अगस्त के साथ भी ऐसा ही हो रहा था। जब अक्षरा उसकी ज़िंदगी में थी, तब उसे पूर्वी चाहिए थी, और अब जब अक्षरा उससे दूर चली गई है, तो अब उसे अक्षरा चाहिए। लेकिन अक्षरा अगस्त की ज़िंदगी में नहीं आने वाली थी, क्योंकि उसने अपनी एक नई दुनिया बसा ली थी। उसे दुनिया में उसका प्यार, उसका पति, उसका सब कुछ, उसका रजत मिला था, और रजत उसे इतना प्यार, इतना सम्मान दे रहा था। अक्षरा अब कभी भी लौटकर अगस्त के पास नहीं आएगी, लेकिन अगस्त इतनी आसानी से मानने वाला नहीं था। अक्षरा और रजत के रूम में, दोनों अपने कमरे में आते हैं और कमरे में आकर दोनों सोफे पर बैठ जाते हैं। रजत अक्षरा को अपनी गोद में बिठा लेता है और धीरे-धीरे उसके बालों को सहलाते हुए कहता है, "तुम्हें कोई एतराज तो नहीं, मैं अपनी शादी को पब्लिक करने जा रहा हूँ, क्योंकि मैं दुनिया को बताना चाहता हूँ कि रजत ओबरॉय की बीवी अक्षरा रजत ओबरॉय है। मैं दुनिया के सामने अपना हमसफ़र, अपना सब कुछ साबित करना चाहता हूँ।" अक्षरा रजत की तरफ देखकर कहती है, "मुझे कोई एतराज नहीं है। तुम थोड़े टाइम बाद, या कल हमारी शादी अनाउंस कर दो, मुझे उस बात से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता।" तभी रजत के दिमाग में कुछ आता है। वह अपना और अक्षरा का फ़ोन लेकर दोनों को एक-दूसरे से अटैच करके अपनी शादी की फ़ोटोस और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर देता है। अभी एक मिनट हुआ था वीडियो और फ़ोटोस शेयर किए हुए, दो मिनट में फ़ोटो और वीडियो बहुत तेज़ी से वायरल होने लगते हैं। अक्षरा हैरानी से रजत की तरफ देखती है, तो रजत अक्षरा के गाल को चुभते हुए कहता है, "अरे, तुमने तो बोला कि मैं कल चाहूँ तो शादी को पब्लिक कर सकता हूँ, तो मैंने आज ही कर दी, क्या प्रॉब्लम है इसमें?" अक्षरा अपनी गर्दन हिला देती है और रजत के सीने पर अपना सिर रखकर लेट जाती है। अब नॉन-स्टॉप अक्षरा और रजत के फ़ोन बजने लगते हैं। वहीं प्रताप मेंशन में भी सबके फ़ोन लगातार बज रहे थे और इधर रजत के माँ-बाप और बहन का फ़ोन भी लगातार बज रहा था। सब लोग अचानक से फ़ोन बजने से थोड़े परेशान हो जाते हैं। जब वे कॉल उठाते हैं और बात करते हैं, तब उन्हें पता चलता है, तो वे बोलकर कॉल रखकर फ़ोन स्विच ऑफ़ कर देते हैं, क्योंकि वे लोग समझ गए थे कि पूरी रात यही सब चलने वाला है। वहीं अगस्त भी अक्षरा के सोशल मीडिया पर जुड़ा हुआ था, इसीलिए फ़ोटोस और वीडियो डाउनलोड होते ही अगस्त के पास नोटिफिकेशन आ जाता है। अगस्त जब वो वीडियो और फ़ोटोस चेक करता है, तो उसके गुस्से का ठिकाना नहीं रहता, क्योंकि एक फ़ोटो में अक्षरा और रजत फ़ेरे ले रहे थे, एक में एक-दूसरे को जयमाला पहना रहे थे, दूसरे फ़ोटो में रजत अक्षरा की माँग में सिंदूर भर रहा था और चौथे फ़ोटो में रजत अक्षरा को मंगलसूत्र पहना रहा था, और वीडियो उनके पूरी शादी का था, जयमाला से लेकर मंगलसूत्र पहनाने तक। चारों तरफ़ रजत ओबरॉय और अक्षरा प्रताप की शादी की न्यूज़ वायरल हो जाती है। हर एक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर इस न्यूज़ को रिपीट करके दिखाया जा रहा था, क्योंकि दोनों ही फैमिली वर्ल्ड की फ़ेमस फैमिली में से एक थीं। वहीं अगस्त के घर पर, जब से सब लोगों को पता चला था कि अक्षरा ने अपने बेस्ट फ़्रेंड रजत से शादी कर ली है, तब से सब का मुँह खुला का खुला रह गया था। सबको यही लगा था कि थोड़े-बहुत दिन नाटक करने के बाद अक्षरा वापस अगस्त की ज़िंदगी में आ जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। कल की अक्षरा ने अपना जीवनसाथी ही बदल लिया था। वहीं अगस्त की दादी अक्षरा और रजत की शादी की फ़ोटो को देख रही थीं। उनकी आँखें नम हो जाती हैं और वह फ़ोटो को देखकर कहती हैं, "मैं हमेशा चाहती थी अक्षरा हमेशा मेरे अगस्त की दुल्हन बनी रहे, लेकिन अगस्त उसे कभी संजोकर नहीं रख पाया।" हेलो दोस्तों, कैसे हो आप सब लोग? आशा करते हैं आप लोग बहुत अच्छे होंगे। और मेरे सारे प्यारे-प्यारे रीडर्स को गुड मॉर्निंग, सुप्रभात! तो दोस्तों, बताओ क्या चाल चलने वाला है? क्या अगस्त ऐसा कुछ करेगा जिससे रजत और अक्षरा के रिश्ते पर कोई फ़र्क पड़ेगा? कमेंट करके ज़रूर बताइए। तब तक के लिए बाय-बाय! 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  • 10. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 10

    Words: 2506

    Estimated Reading Time: 16 min

    वही अगस्त, अक्षरा के सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ था। इसीलिए, फोटो और वीडियो डाउनलोड होते ही अगस्त के पास नोटिफिकेशन आ गया। अगस्त्य ने जब वह वीडियो और फोटो चेक किए, तो उसके गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि एक फोटो में अक्षरा और रजत फेरे ले रहे थे, एक में एक-दूसरे को जयमाला पहना रहे थे, दूसरे में रजत अक्षरा की मांग में सिंदूर भर रहा था, और चौथे में रजत अक्षरा को मंगलसूत्र पहना रहा था। वीडियो उनकी पूरी शादी का था, जयमाला से लेकर मंगलसूत्र पहनाने तक। चारों तरफ रजत ओबेरॉय और अक्षरा प्रताप की शादी की खबर वायरल हो गई। हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस खबर को बार-बार दिखाया जा रहा था, क्योंकि दोनों ही परिवार दुनिया के मशहूर परिवारों में से एक थे। वहीँ, अगस्त के घर पर, जब से सब लोगों को पता चला कि अक्षरा ने अपने बेस्ट फ्रेंड रजत से शादी कर ली है, तब से सबके मुँह खुले के खुले रह गए थे। सबको यही लगा था कि थोड़े दिन नाटक करने के बाद अक्षरा वापस अगस्त की ज़िंदगी में आ जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। कल की अक्षरा ने अपना जीवनसाथी ही बदल लिया था। वहीं अगस्त की दादी अक्षरा और रजत की शादी की फोटो देख रही थीं। उनकी आँखें नम हो गईं और वे फोटो को देखकर बोलीं, "मैं हमेशा चाहती थी कि अक्षरा हमेशा मेरे अगस्त की दुल्हन बनी रहे, लेकिन अगस्त उसे कभी संजोकर नहीं रख पाया।" वहीं दूसरी तरफ, अगस्त पर पागलपन सवार होने लगा था। उसे हर हाल में अक्षरा अपने पास चाहिए थी, लेकिन अब ऐसा हो नहीं सकता था। लेकिन अगस्त इतनी आसानी से हार नहीं मानेगा। उसे हर कीमत पर अक्षरा चाहिए थी। इसलिए उसने अपने एक आदमी को फोन किया और अक्षरा को किडनैप करने के लिए कह दिया। और सामने अक्षरा की फोटो को देखते हुए कहा, "हम आपको अपनी ज़िंदगी में शामिल करके रहेंगे अक्षरा, क्योंकि तुम्हारे प्यार पर, तुम्हारी ज़िंदगी पर, तुम्हारे जिस्म पर, तुम्हारी रूह पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा, अगस्त्य का हक़ है। आप किसी और को अपने जीवन में शामिल बिल्कुल नहीं कर सकतीं। जब हम आपसे प्यार नहीं करते थे, तब आप हमारे आगे-पीछे घूमती थीं, और जब हम आपसे दिलो-जान से मोहब्बत करते हैं, तो आपने किसी और को अपना जीवनसाथी बना लिया? यह तो हम नहीं होने देंगे, और किसी कीमत पर नहीं होने देंगे।" क्योंकि अक्षरा सिर्फ़ और सिर्फ़ अगस्त की है, और अगस्त की ही रहेगी। अगस्त अपने पागलपन में सही-गलत की परिभाषा ही भूल चुका था। अब उसे किसी भी कीमत पर अक्षरा चाहिए थी, लेकिन ऐसा अब पॉसिबल नहीं था। क्योंकि हम अगस्त का पागलपन देख चुके हैं, लेकिन अभी रजत का पागलपन देखना बाकी है। क्योंकि भाई, वह हमारा हीरो है, तो उसका पागलपन अगस्त से चार कदम आगे ही होगा। दूसरी तरफ, रजत और अक्षरा अपने कमरे में एक-दूसरे के साथ वक़्त बिता रहे थे। अक्षरा रजत के सीने पर अपना सिर रखे हुए थी और रजत से बोली, "रजत, एक बात पूछूँ?" "एक नहीं, तुम तो पूछो। तुम्हें मुझसे प्यार कब हुआ था? मतलब, तुम्हें मुझसे प्यार का एहसास कब हुआ था?" अक्षरा की बात सुनकर रजत मुस्कराने लगा और बोला, "मैं बचपन से तुम्हें अपनी दुल्हन बनना चाहता था। तुम्हें याद है, एक बार हम दूल्हा-दुल्हन खेल रहे थे, और तुमने मुझसे कहा था कि जब भी तुम दूल्हा-दुल्हन खेलोगी, तुम्हारी दुल्हन मैं ही बनूँगी। तब से मेरे दिल में सिर्फ़ यही था कि चाहे मैं छोटा हूँ, तब भी, और बड़ा हो जाऊँगा, तब भी मेरी दुल्हन सिर्फ़ तुम ही बनोगी। और यह बात मैंने अपने दिल, दिमाग, आत्मा में बिठा दी थी। और शायद बचपन से ही मैं तुमसे बेपनाह मोहब्बत करता था, इसीलिए तुम्हारी जायज़-नाजायज़ हर बात मानता था।" अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर बोली, "और जब मैंने तुमसे अगस्त के बारे में बात की थी, तब मैं टूट गया था। अंदर से ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी आत्मा को निकालकर फेंक दिया हो। मैं तुम्हारे आगे ज़रूर मुस्कुराती थी, लेकिन अकेले में मेरे दिल का दर्द सिर्फ़ मैं ही समझ सकती थी। मैं भगवान से हर पल, हर लम्हा तुम्हें माँगती थी, लेकिन शायद उन्होंने तुम्हें अगस्त की ज़िंदगी में लिख दिया था। फिर जब अगस्त की शादी पूर्वी से होने वाली थी, और मुझे यह पता चला, तो मुझे खुशी हुई कि चलो तुम समझ जाओगी। लेकिन जब पूर्वी मंडप से भाग गई, और तुम उसकी जगह मंडप में बैठीं, यह बात जब मुझे पता चली, तो तुम नहीं जानती, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर जीने की इच्छा ही ख़त्म हो गई थी।" "दूसरा, मैं चाहता तो तुम्हें उस वक़्त भी पा सकता था, मैं ले जाता वहाँ से, और कोई मुझे रोक नहीं पाता। लेकिन मैं तुम्हारे प्यार की, तुम्हारी खुशी की, तुम्हारे सपनों की इज़्ज़त करता था। तुम १८ साल की थीं, जब से तुम अगस्त के लिए पागल हो गई थीं, और मैं ८ साल का था, जब से तुम्हारे पीछे पागल हुआ था। मेरा सिर्फ़ एक ही सपना था, तुम खुश देखना। उसके लिए मैंने अपनी मोहब्बत को भी कुर्बान कर दिया था।" "एक दिन मैं अगस्त से मिलने के लिए उसके घर गया था। जब मैंने तुम्हें देखा, तुम घर में पोछा लगा रही थीं। तुम्हारी वह हालत देखकर मेरे दिल को, मेरे दिमाग को इतना बड़ा झटका लगा था कि मुझे समझ नहीं आया था कि मैं क्या करूँ। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे समुद्र में फेंक दिया हो, और मुझे साँस नहीं आ रही हो। तुम्हारी वह हालत मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई। फिर मैंने वहाँ काम कर रहे नौकरों से पता किया, तो पता चला कि घर के सारे लोग तुम्हारे साथ ऐसा ही व्यवहार करते थे, और तुम सब कुछ चुपचाप सहती थीं, क्योंकि तुम अगस्त से सच्चा प्यार करती थीं।" "सात्विक भाई का फोन आया मेरे पास। उन्होंने बताया कि तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया है और तुम हॉस्पिटल में एडमिट हो। जब हम सब लोग अस्पताल पहुँचे, तो वहाँ अगस्त की फैमिली में से कोई भी नहीं था। सिर्फ़ माँ-पापा और सात्विक भाई थे। जब मैंने तुम्हारी वह हालत देखी, तो सच कहूँ, मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ था। तुम्हारे पूरे जिस्म पर चोटों के निशान थे। तुम्हारा वह हमेशा चमकता हुआ चेहरा मुरझा गया था। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अगस्त को अभी के अभी जान से मार दूँ, तुम्हें मार देता, और किसी को पता भी नहीं चलता। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि जब तुम्हें होश आएगा, और जब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारे दोस्त ने अगस्त को मार दिया है, तो तुम कैसे रिएक्ट करोगी।" "बस यही सब सोचकर मैं चुप रह गया। जब-जब मैंने अगस्त को पार्टी में, फंक्शन्स में देखा था ना, तो मेरा खून खौल जाता था। लगता था अभी के अभी जाकर इसके दो थप्पड़ मार के कहूँ कि तेरी बीवी वहाँ ज़िंदगी और मौत से लड़ रही है, और तू दुनिया घूम रहा है, दूसरी लड़कियों के साथ ड्रिंक कर रहा है, उनके साथ बाहर जा रहा है। लेकिन मेरे पास कोई अधिकार नहीं था।" "तीन साल ऐसे ही बीत गए। ऐसा कोई दिन नहीं गया था जब मैं तुमसे मिलने के लिए अस्पताल नहीं आया था। दिन में माँ-पापा, सात्विक भाई, सब लोग तुम्हारे पास रहते थे, लेकिन रात को सिर्फ़ मैं तुम्हारे पास रहता था। पूरी रात तुम्हें देखते-देखते गुज़ार देता था, और भगवान से प्रार्थना करता था कि जल्द से जल्द मेरी अक्षरा को ठीक कर दे। लेकिन भगवान ने भी मेरी पुकार सुनने में तीन साल लगा दिए।" "एक दिन मुझे बातों ही बातों में पता चला कि तुम्हारे दोस्त के भाई ने तुम्हारी इज़्ज़त पर हाथ डालने की कोशिश की थी। बस उसी दिन मेरा सब्र जवाब दे गया। यह बात तब की है जब तुम्हें होश आ गया था, और सात्विक भाई अगस्त को सच्चाई बताकर आए थे। बस उसी दिन से..." अक्षरा एक झटके में उठकर बैठ गई और रजत की तरफ़ देखी। रजत उसके चेहरे को अपने हाथों में भरकर बोला, "हाँ जान, मार दिया मैंने उसे। उसने अपने गंदे हाथों से तुम्हें छूने की कोशिश की थी, तुम्हें अपवित्र करने की कोशिश की थी, और यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता था। और मैं जानता था कि उसके मरने से, जीने से, उसके होने से, न होने से तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। मार दिया उसे।" अक्षरा हैरानी भरी आँखों से रजत को देख रही थी। रजत उसकी दोनों आँखों को प्यार से चूम लेता है और कहता है, "यह तो कुछ भी नहीं है। अब अगर अगस्त्य, या उसकी फैमिली में से किसी ने तुम्हारी तरफ़ नज़र उठाकर भी देखा ना, तो कसम से ऐसी मौत मारूँगा कि दुनिया की धूल कहाँ जाएगी उनकी मौत देखकर। यह वादा है मेरा। तुम नहीं जानती, पागल हूँ मैं तुम्हारे लिए। आज तक वो सब बर्दाश्त किया क्योंकि उसमें तुम्हारी खुशी थी। लेकिन आज तुम मेरी हो, मेरी पत्नी, मेरा प्यार, मेरी ज़िंदगी, मेरी दुनिया, और मेरी दुनिया को अगर कुछ छेड़ने की कोशिश करेगा, या उसकी तरफ़ अपनी गंदी नज़र से भी देखेगा, तो मैं उसके अंदर से उसकी साँसें छीन लूँगा।" अचानक अक्षरा रजत के गले लग गई और बोली, "इतना प्यार करते हो मुझे, तो मुझे उस वक़्त क्यों नहीं रोका? अगर मुझे उस वक़्त रोक लेते, तो शायद हम दोनों की ज़िंदगी आज कुछ और होती।" "रोका था मैंने तुम्हें, बहुत मिन्नतें की तुमसे, लेकिन तुमने क्या किया था? तुमने दोस्ती तोड़ ली, मुझसे बात करना बंद कर दिया, फोन करना बंद कर दिया, मेरा फोन उठाना बंद कर दिया। मैं कैसे जिया हूँ पाँच साल, मैं तुम्हें बता भी नहीं सकता, दिखा भी नहीं सकता।" अक्षरा रजत के सीने से लगकर रोने लगी। रजत अक्षरा का चेहरा अपने सीने से निकालकर ऊपर करता है और उसके गालों को प्यार से चूमकर कहता है, "पहले की बात अलग थी, लेकिन अब तुम सिर्फ़ अक्षरा रजत की हो, और रजत सिर्फ़ अक्षरा का। और हाँ, मेरे प्यार की, मेरे पागलपन की, मेरे जुनून की आदत डाल लो तुम, क्योंकि अब तुम्हें यह हर रोज़ देखने को मिलेगा।" अक्षरा अचानक रजत के लबों को अपने लबों में कैद कर लेती है। और बहुत ही सॉफ्टली रजत के होंठों को चूमने लगती है। ऐसा लग रहा था कि पाँच साल की तड़प और मोहब्बत को आज वह रजत पर लुटा रही है। रजत भी अब अक्षरा को अपने आगोश में भर लेता है और उसके साथ प्यार की दुनिया में खोने लगता है। रजत धीरे-धीरे अक्षरा को बेड पर लिटाकर उसके ऊपर आ जाता है और उसके होंठों को शिद्दत से चूमने लगता है, और अपने हाथों से उसकी पूरी बॉडी को सहलाने लगता है। तभी रजत का फ़ोन बजने लगता है। रजत अक्षरा के ऊपर से हटकर फ़ोन उठाने लगता है। वहीँ अक्षरा, उनकी गजब की हालत देखकर हँसने लगती है और बेड पर लेटकर अपना पेट पकड़ लेती है। वहीं रजत उठ जाता है और जो फ़ोन पर था, उसे कहता है, "अगर तुम्हारा काम मुझे ज़रूरी नहीं लगा, तो मैं तुम्हें कहाँ फेंकूँगा ले जाकर, तुम्हें खुद पता नहीं चलेगा। इसलिए कह रहा हूँ, जो कहना है, सोच-समझकर कहना, वरना कल का सूरज तुम नहीं देख पाओगे।" अपने बॉस की धमकी सुनकर रजत का सेक्रेटरी डर जाता है और कहता है, "सर, हमारी ऑस्ट्रेलिया वाली ब्रांच में हमारी सीक्रेट को किसी ने रिवील कर दिया है। जल्द से जल्द ऑस्ट्रेलिया जाना होगा।" सक्षम और भी बातें रजत से करता है। रजत कहता है, "ठीक है, सक्षम, रेडी करो। एक घंटे बाद निकलेंगे।" रजत अक्षरा की तरफ़ देखकर कहता है, "मेरे साथ ऑस्ट्रेलिया चलोगी?" अक्षरा अपनी गर्दन हिला देती है। "ठीक है, जल्दी से तैयार हो जाओ। तब तक मैं माँ और पापा को बात कर आता हूँ। और हाँ, कपड़े वगैरह लेने की ज़रूरत नहीं है, वो सब हम वहीं ले लेंगे। और जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जाओ।" रजत नीचे जाकर अपने माँ-पापा को ऑस्ट्रेलिया जाने वाली बात बताता है। तो रजत की मॉम कहती हैं, "अक्षरा को भी अपने साथ लेकर जाओ। अभी तो तुम्हारी शादी हुई है, और तुम्हें वहाँ भी काफ़ी टाइम लग जाएगा।" रजत अपने पापा से बात करने लगता है। तभी अक्षरा भी तैयार होकर आ जाती है और वह दोनों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है। फिर वह लोग वहाँ से ऑस्ट्रेलिया के लिए निकल जाते हैं। वहीँ अगस्त को लग रहा था कि रजत अकेला ही ऑस्ट्रेलिया जाएगा और अक्षरा यहाँ इंडिया रह जाएगी। फिर वह अक्षरा को अपनी ज़िंदगी में कैसे भी करके शामिल कर ही लेगा। लेकिन अगस्त भूल गया था कि वह रजत ओबेरॉय है। उड़ती चिड़िया का पर गिरना उसकी आदत है। और रजत समझ चुका था कि यह सब कुछ अगस्त का किया-धरा है। इसीलिए अक्षरा को अपने साथ लेकर गया था। रजत अगस्त्य को कोई मौका नहीं देना चाहता था जिससे वह अक्षरा को रजत से अलग कर सके। क्योंकि एक बार रजत अक्षरा को खो चुका था, अब दोबारा नहीं हो सकता था। इसीलिए वह चार कदम आगे की सोचकर काम करता था। रजत और अक्षरा एयरपोर्ट पहुँचते हैं और वहाँ से सीधा रजत के प्राइवेट जेट से ऑस्ट्रेलिया के लिए उड़ान भर देते हैं। जब दोनों जेट में जाकर बैठते हैं, तो उसे देखकर अक्षरा बहुत खुश हो जाती है। रजत का हाथ पकड़कर कहती है, "ना, मुझे भी दिखा दो मेरा रूम। मैं जाकर सो जाती हूँ, क्योंकि मुझे बहुत ऑस्ट्रेलिया घूमना है।" रजत "हाँ" बोलकर अक्षरा को उसका कमरा दिखा देता है और खुद बाहर आकर अपने सेक्रेटरी से बात करने लगता है। सक्षम रजत को पूरी अपडेट दे रहा था और यह भी बता रहा था कि अगस्त ने कुछ आदमियों को हायर किया था अक्षरा का किडनैप करने के लिए। रजत डेविल स्माइल के साथ कहता है, "उसे जो करना है करने दो, लेकिन हाँ, उसके पल-पल की खबर मुझे मिलनी चाहिए, वरना तुम जानते हो ना, मैं तुम्हें इस दुनिया में रहने लायक नहीं छोड़ूँगा।" रजत की धमकी सुनकर सक्षम डर जाता है और "हाँ" बस बोलकर दूर जाकर किसी से फ़ोन पर बात करने लगता है। अगस्त को नहीं पता था कि उसका ही कोई आदमी रजत से मिला हुआ था और अगस्त की हर एक खबर रजत तक पहुँचा रहा था। रजत कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था, बिज़नेस वर्ल्ड का बेताज बादशाह था। वह कितना बड़ा बिज़नेस टाइकून है, यह बात अभी दुनिया नहीं जानती थी। वह आज तक किसी के सामने नहीं आया था, लेकिन बहुत जल्द रजत अगस्त को उसकी औकात दिखाने वाला था। क्योंकि पहले रजत सिर्फ़ अक्षरा की वजह से अगस्त को छोड़ देता था, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला था। Do like, share, comment, Reviews🙏🙏🙏🙏🙏👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋🙏🙏🙏🙏

  • 11. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 11

    Words: 2558

    Estimated Reading Time: 16 min

    रजत का हाथ पकड़कर अक्षरा कहती है, "ना, मुझे भी दिखा दो, कौन सा कमरा है। मैं जाकर सो जाती हूँ क्योंकि मुझे बहुत ऑस्ट्रेलिया घूमना है।" रजत "हाँ" बोलकर अक्षरा को उसका कमरा दिखा देता है और खुद बाहर आकर अपने सेक्रेटरी से बात करने लगता है। सक्षम रजत को पूरी अपडेट दे रहा था और यह भी बता रहा था कि अगस्त में कुछ आदमियों को अक्षरा के किडनैप के लिए हायर किया गया था। रजत डेविल स्माइल के साथ कहता है, "उसे जो करना है, उसे करने दो। लेकिन हाँ, उसके पल-पल की खबर मुझे मिलनी चाहिए, वरना तुम जानते हो ना, मैं तुम्हें इस दुनिया में रहने लायक नहीं छोड़ूँगा।" रजत की धमकी सुनकर सक्षम डर जाता है और "हाँ बस" बोलकर दूर जाकर किसी से फोन पर बात करने लगता है। अगस्त को नहीं पता था कि उसका ही कोई आदमी रजत से मिला हुआ था और अगस्त की हर एक खबर रजत तक पहुँचा रहा था। रजत कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था, बिज़नेस वर्ल्ड का बेताज बादशाह था। वह इसके बारे में अभी दुनिया नहीं जानती थी। बिज़नेस टाइकून को वह लोग घेरने की कोशिश कर रहे थे, वह आज तक किसी के सामने नहीं आया था, लेकिन बहुत जल्द रजत अगस्त को उसकी औकात दिखाने वाला था। क्योंकि पहले रजत सिर्फ़ अक्षरा की वजह से अगस्त को छोड़ देता था, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला था। रजत अपने असिस्टेंट की तरफ़ देखता है और कहता है, "उन्होंने हमारे लिए इतना इंतज़ाम किया है, तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है उन्हें रिटर्न गिफ़्ट देने का, और रिटर्न गिफ़्ट तो सस्ता नहीं होना चाहिए ना?" और मुस्कुराने लगता है। फिर सामने देखते हुए कहता है, "बहुत बड़ी गलती की है अगस्त, तुमने! पहले तुमने मेरी अक्षरा को अपने प्यार के जाल में फँसाया, फिर उसे बहकाया, उसकी इंसल्ट की और उसे ट्रक के सामने धकेला था। और इसका हिसाब तुम्हें चुकाना पड़ेगा। मैं कुछ भी कर सकता हूँ इस दुनिया में, लेकिन कोई मेरी अक्षरा को, मेरी जान को तकलीफ़ पहुँचाएगा, यह मेरी बर्दाश्त से बाहर है।" "और इस बार तुमने सारी हदें पार कर दी हैं। तुम मुझसे मेरी जान छीनना चाहते हो ना? लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि अब वह मेरी है, रजत ओबरॉय की। और रजत अपना प्यार किसी को नहीं दे सकता। पहले तुम्हें दिया था, क्योंकि मेरी मोहब्बत खुद तुम्हारे पास आना चाहती थी, लेकिन अब वह मेरी है। मैं उसे किसी और को दे दूँ? इतना अच्छा तो मैं नहीं हूँ। और तुम बहुत अच्छे से जानते हो कि रजत ओबरॉय क्या है।" फिर वह वहाँ से उठकर उस कमरे में चला जाता है जहाँ अक्षरा सोई हुई थी। जाकर अक्षरा के पास बैठ जाता है और उसके बालों में हाथ फिरते हुए, उसके माथे को चूमकर कहता है, "अब तुम जब मेरी दुनिया में शामिल हो ही गई हो, तो अब यहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। मैं तुम्हें इतना प्यार और ऐसी लत लगा दूँगा अपने कि तुम्हें मेरे सिवाय कुछ दिखाई नहीं देगा और मेरे सिवाय कुछ सुनाई नहीं देगा।" "तुम्हें हर पल सिर्फ़ मेरी ज़रूरत होगी। तुम सिर्फ़ मेरी होगी। तुम पर किसी का कोई हक़ नहीं होगा। देख लिया ना, एक बार तुम्हें किसी और के पास भेजकर क्या हाल हुआ तुम्हारा? अब तुम मेरी दुनिया में शामिल हो चुकी हो, और इस दुनिया में आने का रास्ता तो था, लेकिन जाने का कोई रास्ता नहीं है, जानती हो?" फिर उसके साइड में लेट कर उसे अपनी बाहों में भर लेता है। 14 घंटे बाद रजत का रिजल्ट ऑस्ट्रेलिया की ज़मीन पर लैंड करता है। वह सोई हुई अक्षरा को अपनी गोदी में उठाकर बाहर निकलता है। चारों तरफ़ से बॉडीगार्ड उसे घेर कर ले गए थे। वह इंडिया में बहुत कम बॉडीगार्ड के साथ रहता था, लेकिन अभी तक उसकी आइडेंटिटी पब्लिक नहीं हुई थी, वरना उसे हर समय 500 बॉडीगार्ड के साथ रहना होगा। रजत अपनी लैम्बॉर्गिनी में बैठकर अक्षरा को अपनी गोदी में बिठा रखता है और ड्राइवर गाड़ी ले जाता है। तकरीबन एक घंटे बाद रजत की कार उसके मेंशन में जाकर रुकती है। वह अंदर जाकर अपने कमरे में जाता है, वहाँ अक्षरा को अच्छे से बेड पर लिटाकर, ब्लैंकेट से ढँककर बाहर आता है और तैयार होकर अपने ऑफ़िस निकल जाता है, क्योंकि वह जल्द से जल्द यह सारी प्रॉब्लम सॉल्व करना चाहता था। अक्षरा अभी भी गहरी नींद में सोई हुई थी, और हमारे रजत बाबू अपने ऑफ़िस पहुँच चुके थे। उन्होंने अपनी ऑफ़िस की पूरी टीम को इस वक़्त कॉन्फ़्रेंस हॉल में बुला रखा था। वह इस वक़्त एक डेविल लग रहा था; एक ऐसा डेविल जिसकी एक नज़र से ही सामने वाले की जान निकल जाती। अगर अक्षरा इस वक़्त रजत को देख लेती, तो उसे हार्ट अटैक आ जाता, इतना भयानक लग रहा था। रजत एक बार फिर सब मेंबर्स की तरफ़ देखकर कहता है, "जिसने भी यह काम किया है, अगर वह अपने आप मेरे सामने नहीं आया और मैं उसे सामने लेकर आया, तो वह इंसान सोच भी नहीं सकता कि मैं उसके साथ क्या करूँगा। क्योंकि मुझे धोखा और धोखा देने वाले दोनों से सख़्त नफ़रत है। इसलिए एक लास्ट बार वार्निंग दे रहा हूँ कि जिसने भी यह काम किया है, चुपचाप से मेरे सामने आ जाए।" रजत के इतनी बार बोलने के बावजूद भी, जब कोई सामने नहीं आता, तो रजत अपने असिस्टेंट की तरफ़ देखकर कहता है, "वीडियो चलाओ।" तभी स्क्रीन पर एक वीडियो चलने लगती है जिसमें दो लोग, एक लड़का और एक लड़की, रजत के ऑफ़िस से सीक्रेट डेटा चुरा रहे थे; उसे पेन ड्राइव में डालकर प्रोजेक्ट के कंप्यूटर से कनेक्ट करके सारी इनफ़ॉर्मेशन निकालकर राइवल कंपनी को भेज देते हैं। जो दोनों उस वीडियो में थे, वह दोनों डर के मारे वहीं गिर पड़ते हैं, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। तभी रजत अपनी जैकेट में हाथ डालकर वहाँ से बंदूक निकालकर उन दोनों को वहीं मार देता है। फिर उस लड़के के सीने पर अपना पैर रखकर कहता है, "मैंने बोला था ना, मुझे धोखा और धोखा देने वाले दोनों से सख़्त नफ़रत है।" अपने असिस्टेंट की तरफ़ देखकर कहता है, "पूरा का पूरा स्टाफ़ बदलो। मुझे पुराना एक भी बिस्तर मेरी कंपनी में नहीं चाहिए, क्योंकि यह सब के सब धोखेबाज़ हैं।" "और इस बार ऐसा कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाना कि अगर कंपनी में कुछ भी इलीगल होता है या यहाँ की इनफ़ॉर्मेशन बाहर पहुँचती है, तो उन लोगों को तुरंत मार दिया जाएगा। इसलिए इस बार मुझे ईमानदार स्टाफ़ चाहिए। इन जैसे धोखेबाज़ों की मेरी कंपनी में कोई ज़रूरत नहीं है।" पूरे स्टाफ़ ने एक आवाज़ तक नहीं निकाली थी, क्योंकि वह लोग जानते थे रजत कितना बड़ा डेविल है। उसके सामने कोई नज़र उठाकर बात करे, यह भी उसे पसंद नहीं था, तो वह लोग आवाज़ कैसे निकाल सकते थे? वहीं रजत का असिस्टेंट भगवान जी की तरफ़ देखकर कहता है, "भगवान जी, अक्षरा जैसी प्यारी सी लड़की को आपने यह खड़ूस अकडू क्यों दे दिया? उसे प्यारी सी लड़की मिलने वाली थी।" तभी रजत उसके पास आकर कहता है, "अगर भगवान से मेरी बुराई हो गई हो, तो अपने काम पर ध्यान दो। और एक बात, मेरे इस रूप के बारे में मेरी सोना को कुछ नहीं पता चलना चाहिए, वरना तुम जानते हो ना मैं क्या करूँगा? यस सर! कुछ भी पता नहीं चलेगा। मेरे लिए यही बेहतर होगा।" और वहाँ से मुस्कुराते हुए चला जाता है। वहीं वह अपने पैर पटकते हुए स्टाफ़ के पास जाकर उनके resignation letter बनाने लगता है। वहीं दूसरी तरफ़, रजत के मेंशन में अक्षरा की नींद धीरे-धीरे खुलती है और वह उठकर बैठ जाती है। जब वह अपने सामने एक अजनबी कमरा देखती है, तो डर जाती है। लेकिन तभी उसे कमरे में पड़ी एक फ़ोटो दिखाई देती है जिसमें अक्षरा और रजत शादी के जोड़े में थे। वह देखकर समझ जाती है कि यह रजत का कमरा है। इसलिए अब डरना बंद करके पूरे कमरे को अच्छे से देखने लगती है। वह कमरा बिल्कुल वैसा ही था जैसा अक्षरा ने एक बार बचपन में रजत को बताया था। अक्षरा की आँखें नम हो जाती हैं। अक्षरा कहती है, "तुमने मेरे लिए क्या-क्या नहीं किया है रजत! मेरे हर एक सपने को जिया है तुमने। और मैंने क्या किया? मैंने तुम्हें छोड़कर किसी और को अपना लिया, लेकिन वह मैं नहीं थी, रजत। वह असली अक्षरा थी, मैं तो आँचल हूँ। अगर मैं पहले ही इस रिश्ते में आ जाती, तो शायद अब तक हमारे छोटे-छोटे बच्चे भी हो जाते। लेकिन देर आए दुरुस्त आए, और अब मैं अपने रजत को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी। वह मेरी दुनिया है, मेरी मोहब्बत है। मुझे इतना प्यार, इस दुनिया में किसी को नहीं मिला था। और इस दुनिया में मेरे पास सब कुछ है: माँ, पापा, भाई, इतना प्यार करने वाला पति, और कुछ नहीं चाहिए मुझे।" अक्षरा कमरा देखने के बाद वॉशरूम में चली जाती है और शॉवर लेकर बाहर आती है। तभी उसके दिमाग में शरारत आती है। वह एक सेक्सी सी नाइटी पहनकर रजत का इंतज़ार करने लगती है, क्योंकि वह रजत को सजा देना चाहती थी उसे यहाँ अकेले छोड़कर जाने की, लेकिन वह नहीं जानती थी कि रजत की यह सजा उसके लिए घातक होने वाली है, क्योंकि रजत उसे ऐसे तो नहीं छोड़ने वाला था। दूसरी तरफ़ इंडिया में अगस्त बर्बाद हो चुका था, क्योंकि अगस्त को पता चल चुका था कि रजत अपने साथ अक्षरा को भी ऑस्ट्रेलिया ले गया है। और अगस्त का प्लान फ़्लॉप हो चुका था। और इसी गुस्से में रजत ने अपने असिस्टेंट का सर फ़ोड़ दिया था, क्योंकि वह समय से पता नहीं कर पाया था कि रजत अपने साथ अक्षरा को लेकर जा रहा है या नहीं। वहीं अगस्त के ऑफ़िस का पूरा स्टाफ़ डरा हुआ था, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से अगस्त किसी न किसी को अस्पताल पहुँचा ही देता था। इसलिए ऑफ़िस का स्टाफ़ अगस्त से बहुत डरने लगा था। पहले भी अगस्त ऐसा ही था, लेकिन पहले वह किसी पर हाथ नहीं उठाता था, लेकिन अब तो सामने वाले को सीधा मार ही देता है। और धीरे-धीरे अगस्त का स्टाफ़ नौकरी छोड़ने लगा था, क्योंकि उन्हें अपनी जान प्यारी थी, पैसों से ज़्यादा। वहीं शाम को जब अगस्त अपने घर पहुँचता है, तो देखता है कि इस वक़्त घर में कोई भी मौजूद नहीं था। तभी पूजा घर से अगस्त की दादी बाहर आती हैं और अगस्त के पास बैठ जाती हैं और कहती हैं, "यह क्या नाटक का लगा रखा है तूने? यह स्टाफ़ के साथ मारपीट करना, यह सब कैसे शुरू कर दिया तूने? क्या जानता है ना इससे तेरी इमेज खराब हो जाएगी?" अगस्त गुस्से में भरकर अपनी दादी की तरफ़ देखता है और कहता है, "मैं हार नहीं सकता दादी, क्योंकि मुझे किसी भी कीमत पर अक्षरा वापस चाहिए।" अगस्त की दादी अगस्त की तरफ़ ना-समझी से देखते हुए कहती हैं, "यह क्या बकवास कर रहा है तू? जब वह तेरे साथ थी, तेरे पास थी, तब तो तुझे उसकी क़द्र नहीं थी। अब जब वह तुझे तेरी ज़िंदगी से दूर जा चुकी है, तो अब तुझे अक्षरा चाहिए?" "हाँ दादी, क्योंकि अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि मैं पूर्वी से नहीं, अक्षरा से प्यार करता हूँ, और इसीलिए मुझे अक्षरा चाहिए।" "तुझे क्या लगता है, इस दुनिया में सब कुछ तेरी मर्ज़ी से होगा? वह तेरी दुनिया से जा चुकी है। जब वह तेरे पास थी, तूने क्या किया था उसके साथ? जानता है ना, उसकी जान लेने की कोशिश की थी तूने, और उस कोशिश में तीन साल वह कोमा में रही थी। वह तीन साल उसने कैसे गुज़ारे होंगे, यह तो मैं या कोई भी सोच भी नहीं सकता। उन तीन सालों में उसने कितना दर्द सह होगा, कितना तड़पी होगी! तूने एक बार भी उसके बारे में सोचा था? अगर तू एक बार सच्चाई पता करने की कोशिश करता, ना, तो आज अक्षरा तेरी होती और तुम दोनों अपनी दुनिया में खुश होते।" "अगस्त, तू हमेशा उन परछाइयों के पीछे भागता है जो तेरी नहीं हो सकतीं; जैसे पहले पूर्वी, और अब अक्षरा। अक्षरा तेरी नहीं हो सकती, वह किसी की पत्नी बन चुकी है।" गुस्से में अगस्त अपनी दादी को धक्का दे देता है और वह सोफ़े पर जाकर गिर जाती है। आज उसकी दादी की आँखों में आँसू थे, क्योंकि उन्होंने ही तो अगस्त को ऐसा बना दिया था कि अब उसके लिए कोई रिश्ता मायने नहीं रखता था। पहले दौलत, दौलत, और आज नंबर वन की पोज़िशन पर पहुँचने के चक्कर में गायत्री देवी ने अपने पोते को इंसान से जानवर बना दिया था, और यह जानवर अब खुद उनका ही शिकार करने लगा था। अगस्त अपनी दादी को धक्का देकर घर से बाहर निकल जाता है। वहीं दादी आँसू से तर-बतर होकर अगस्त को देख रही थी, जिसने एक बार भी पलटकर अपनी दादी को नहीं देखा था। वहीं ऊपर बालकनी में खड़ी नीति यह सब देख रही थी। अब नीति को अपना भी डर लगने लगा था कि कहीं अगस्त उसे भी किसी दिन धक्का मारकर घर से ना निकाल दे। इसीलिए नीति ने एक फैसला किया और घर से बाहर चली गई। एक घंटे की ड्राइव के बाद नीति सात्विक के ऑफ़िस पहुँच जाती है। रिसेप्शन पर जाकर कहती है कि उसे सात्विक से मिलना है, लेकिन रिसेप्शनिस्ट उसे अंदर नहीं जाने देती, क्योंकि सात्विक ने पहले ही मना कर दिया था कि कभी भी नीति अगर उससे मिलने आए तो उसे अंदर ना आने दिया जाए। वहीं अपने ऑफ़िस में बैठा सात्विक अपनी गोद में बैठी आस्था को किस कर रहा था, तभी सात्विक का फ़ोन बजता है। वह फ़ोन उठाकर बात करता है, तो नीचे हो रहे तमाशे के बारे में उसे पता चलता है। सात्विक हैरानी से आस्था की तरफ़ देखता है, तो आस्था पूछती है, "क्या हुआ सात्विक?" वह उसे सारी बात बता देता है। आस्था सात्विक की तरफ़ देखकर कहती है, "जो भी है, देखना ज़रूर है कि वह क्यों यहाँ आकर तमाशा कर रही है। साथ में कहता है, तुम अंदर कमरे में रहो, मैं उसे यहीं बुला लेता हूँ, और तुम ही देखना, क्योंकि मैं उस लड़की से अकेले में कोई भी बात नहीं करना चाहता हूँ।" आस्था की बात सुनने के बाद सात्विक रिसेप्शन पर कॉल करके नीति को अंदर भेजने के लिए बोलता है। नीति बहुत ही एटीट्यूड में सात्विक के ऑफ़िस में आती है और सात्विक के सामने बैठकर कहती है, "कैसे हो?" लेकिन सात्विक उसकी किसी बात का जवाब नहीं देता और पूछता है, "क्यों आई हो यहाँ? वह बताओ, क्योंकि मैं जानता हूँ तुम बिना किसी मतलब के तो यहाँ आ नहीं सकतीं, तो मतलब बताओ अपना, क्यों आई हो?" "हेलो दोस्तों, कैसे हो आप सब लोग? आई होप आप लोग बहुत अच्छे होंगे! तो कमेंट करके बताइए, क्यों आई है नीति सात्विक के पास?" Do like, share, comment, Reviews 🙏🙏🙏🙏🙏👋👋👋👋👋👋👋👋👋🙏🙏🙏🙏

  • 12. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 12

    Words: 2509

    Estimated Reading Time: 16 min

    आस्था, सात्विक की तरफ़ देखकर, कहती है कि वह क्यों यहाँ आकर तमाशा कर रही है। साथ ही, वह कहता है, "तुम कमरे में अंदर रहो। मैं उसे यहीं बुला लेता हूँ, और तुम ही देखना। क्योंकि मैं उसे लड़की से अकेले में कोई बात नहीं करना चाहता हूँ।" आस्था की बात सुनने के बाद, सात्विक रिसेप्शन पर कॉल करके नीति को अंदर भेजने के लिए कहता है।


    नीति बहुत ही एटीट्यूड में सात्विक के ऑफिस में आती है और सात्विक के सामने बैठ जाती है। "कैसे हो?" वह कहती है, लेकिन सात्विक उसका कोई जवाब नहीं देता और पूछता है, "क्यों आई हो यहाँ? बताओ, क्योंकि मैं जानता हूँ तुम बिना किसी मतलब के तो यहाँ नहीं आ सकतीं। तो, अपना मतलब बताओ, क्यों आई हो?"


    नीति सात्विक की तरफ़ देखकर कहती है, "मैं चाहती हूँ कि तुम वह तलाक पेपर कोर्ट में सबमिट मत करना, जो मैंने और तुमने साइन किए थे।" सात्विक नीति की तरफ़ देखने लगता है।


    "और तुम्हें क्यों लगता है कि मैं तुम्हें तलाक नहीं दूँगा और तुम्हें अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लूँगा?" सात्विक पूछता है।
    नीति कहती है, "क्योंकि तुम्हारी बहन का एक राज मेरे पास है, और अगर मैं वह राज दुनिया के सामने लेकर आ गई, तो तुम किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहोगे।"


    "और मैं अगस्त भाई से बोलकर अक्षरा और अगस्त भाई की फिर से शादी करवा दूँगी। मैं जानती हूँ अक्षरा अगस्त भाई से बहुत प्यार करती है।"
    सात्विक जोर-जोर से हँसने लगता है और कहता है, "तुम पागल थीं, यह तो मुझे पता है, लेकिन तुम्हारा दिमाग इतना खराब है कि तुम सामने चल रही चीज़ों को भी नहीं देख सकतीं।"


    "और बात रही अक्षरा और अगस्त की शादी की, तो भूल जाओ कि मेरी बहन तुम्हारी भाई की ज़िंदगी में वापस जाएगी। क्योंकि वह शादी कर चुकी है और अपने पति के साथ अपनी दुनिया में बहुत खुश है। और क्या कहा तुमने? कि अक्षरा का राज दुनिया को बता दो? बता दो। लेकिन तुम यह नहीं जानती हो कि उसका पति कौन है। उसका पति, वह राज दुनिया के सामने आने से पहले ही तुम्हें इस दुनिया से एक राज बना देगा।"


    नीति कहती है, "पहले मैं तुम्हारी बातों में आई थी, क्योंकि मुझे मेरी बहन की खुशियाँ चाहियी थीं। लेकिन आज मुझे तुमसे, तुम्हारे परिवार से कोई रिश्ता नहीं रखना है। और हाँ, मैं तुम्हें किसी से मिलवाना भूल गया।" एक मिनट के बाद, आस्था बाहर आती है और सात्विक उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी गोदी में बिठा लेता है और नीति की तरफ़ देखकर कहता है, "यह है मेरा प्यार, मेरी मोहब्बत और मेरी बीवी।"


    "मेरी आस्था, जिसे तुम्हारी वजह से मैंने बहुत दुःख, बहुत दर्द दिया था। लेकिन हमारी मोहब्बत सच्ची थी। नीति, इसलिए आज हम दोनों एक-दूसरे के साथ हैं और तुम अकेली और तन्हा।"


    "और एक बात, आज मैं तुम्हें बता देता हूँ। आज तुम मेरे ऑफिस आईं, तुमने तमाशा किया, मैंने तुमसे कुछ नहीं कहा। आज के बाद मेरे ऑफिस, मेरे घर या मेरे आस-पास भी आने की कोशिश की, तो जान से मार दूँगा मैं तुम्हें। क्योंकि तुम कैसी हो, यह बात मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ। इसलिए आज के बाद मेरे या मेरे परिवार के किसी भी मेंबर के आस-पास, अगर मैं तुम्हें देखा, तो तुम देख लेना।"


    "अब तुम यहाँ से जा सकती हो, क्योंकि मुझे अपनी जान के साथ थोड़ा वक़्त बिताना है, और मैं तुम जैसी औरत के लिए अपना टाइम वेस्ट नहीं करना चाहता हूँ।" नीति उठकर बाहर जाने लगती है, लेकिन जब वह पलटकर सात्विक की तरफ़ देखती है, तो सात्विक आस्था को किस करने में बिजी था। और यह बात नीति को बहुत चुभती है, क्योंकि नीति और सात्विक पाँच साल पति-पत्नी रहे थे, फिर भी सात्विक ने कभी उसे छुआ नहीं था।


    यह सब देखकर, नीति की आँखें नम हो जाती हैं और वह वहाँ से बाहर निकल जाती है। बाहर आकर, वह अपनी गाड़ी में बैठकर क्लब के लिए चली जाती है। वहीं, नीति के जाते ही, सात्विक गहरी साँस लेता है और आस्था से कहता है, "देखा, यह कैसी लड़की है! हमारा तलाक हो चुका है, फिर भी इसको अपना फ़ायदा देखना होता है।" आस्था सात्विक के चेहरे को देखकर कहती है, "पहले हम और तुम अलग हुए, क्योंकि हम एक-दूसरे से खुलकर कोई बात नहीं कर पाए। लेकिन आज के बाद तुम वादा करो, सात्विक, कि तुम सारी बातें मुझे शेयर करोगे।"


    सात्विक कहता है, "हाँ जान, आज के बाद हम दोनों अपनी सारी बातें एक-दूसरे से शेयर करेंगे। अच्छा, यह बताओ कि रजत और अक्षरा कैसे हैं?" आस्था मुस्कुराते हुए कहती है, "मेरा भाई पागल हो गया है तुम्हारी बहन के प्यार में। तुम्हें पता है, उसे काम के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना था, अक्षरा को भी अपने साथ लेकर गया है। कह रहा था, अक्षरा के बिना एक पल नहीं रह सकता।" रजत की बात सुनकर आस्था मुस्कुरा रही थी, वहीं अब सात्विक भी मुस्कुराने लगता है, क्योंकि सात्विक की पहली पसंद अक्षरा के लिए रजत ही था।


    ऑस्ट्रेलिया


    रजत और अक्षरा दोनों डिनर करके अपने कमरे में आते हैं। रजत देखता है कि पूरे कमरे को बहुत खूबसूरत तरीके से सजाया गया था। ऐसा लग रहा था जैसे आज किसी की सुहागरात है। वह अक्षरा की तरफ़ देखता है, तो अक्षरा वहाँ मौजूद ही नहीं थी।


    रजत अपनी नज़रें चारों तरफ़ घुमाकर अक्षरा को ढूँढने की कोशिश करता है, लेकिन वह उसे कहीं दिखाई नहीं देती। तभी, अचानक से कमरे में हल्का-हल्का म्यूज़िक बजने लगता है, और एक हाथ रजत की शर्ट के अंदर से उसके सीने पर आ जाता है। यह महसूस करके रजत की आँखें बंद हो जाती हैं। तभी, अक्षरा आगे से आकर रजत के होंठों को अपने होंठों में कैद कर लेती है।


    अभी तक रजत ने अक्षरा को नहीं देखा था, क्योंकि रजत की आँखें अक्षरा के स्पर्श से ही बंद हो गई थीं। जब रजत सब्र नहीं रख पाता, तो वह अक्षरा की कमर में हाथ डालकर उसे खुद से चिपका लेता है। तब जाकर रजत को एहसास होता है कि अक्षरा के शरीर पर बहुत पतला सा कपड़ा था।


    रजत अपनी आँखें खोलकर अक्षरा को देखता है, तो रजत की आँखें खुली की खुली रह जाती हैं, क्योंकि अक्षरा एक बहुत ही रिवीलिंग नाइटी में उसके सामने खड़ी थी। उसमें से अक्षरा का फिगर छिपने की बजाय उभर कर दिख रहा था।


    रजत की आँखों में नशा छा जाता है। अक्षरा को अपने सामने ऐसे देखकर, वह अक्षरा को और ज़्यादा अपने से चिपका लेता है, उसके होंठों को काटने लगता है, और उसे उठाकर दीवार से चिपकाकर उसके ऊपर चढ़ जाता है, और उसकी गर्दन में अपना चेहरा छिपाकर उसकी गर्दन को चूमने लगता है। ऐसा लग रहा था आज रजत कोई रहम नहीं करना चाहता था अक्षरा पर।


    अक्षरा अभी भी रजत का साथ दे रही थी, क्योंकि वह भी रजत से किसी मामले में पीछे नहीं रहना चाहती थी। अक्षरा और रजत एक-दूसरे को पागलों की तरह चूम और काट रहे थे, और दोनों ने कब एक-दूसरे के कपड़े एक-दूसरे के शरीर से हटा दिए, पता ही नहीं चला। दोनों एक-दूसरे के सामने पूर्ण रूप से निर्वस्त्र खड़े थे और एक-दूसरे को नशे में चूर होकर देख रहे थे। अचानक रजत अक्षरा को दीवार से हटाकर, उसके एक पैर को हवा में उठाकर, उसके अंदर प्रवेश कर जाता है। अक्षरा इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए अक्षरा को बहुत दर्द होता है।


    लेकिन अक्षरा "उफ़्फ़" नहीं करती, क्योंकि वह रजत को मनचाहा करने देती है, क्योंकि रजत के सिर पर नशा चढ़ चुका था। अब वह हर हाल में अक्षरा को अपना बनाना चाहता था। आधे घंटे तक इस पोज़िशन में एक-दूसरे के साथ मोहब्बत का खेल खेलते-खेलते, रजत अक्षरा को गोदी में उठाकर बेड पर लिटा देता है और फिर से उसके ऊपर टूट पड़ता है। ऐसा लग रहा था आज रजत अक्षरा को पूरी तरह से अपने में समा लेगा।


    फिर रजत अक्षरा को सोफ़े पर ले जाता है और फिर से उसके साथ मोहब्बत की लड़ाई लड़ने लगता है। रजत ने पूरी रात अक्षरा को जगह-जगह, पूरे कमरे में, बालकनी में, हर जगह अपनी मोहब्बत के दर्शन कराए थे। वहीं अब अक्षरा थक चुकी थी, लेकिन रजत रुकने को तैयार ही नहीं था।


    रजत अक्षरा को गोदी में उठाकर वाशरूम में ले जाता है और उसे शावर के नीचे खड़ा करके गर्म पानी चालू कर देता है और धीरे-धीरे अक्षरा की बॉडी को साफ़ करने लगता है। अक्षरा की बॉडी को साफ़ करते-करते रजत की बॉडी फिर से गर्म होने लगती है।


    एक झटके में फिर से अक्षरा के अंदर खुद को प्रवेश कर देता है। वहीं अक्षरा अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके रजत को देख रही थी और रजत अपनी एक आँख अक्षरा की तरफ़ कर देता है। अक्षरा अपनी गर्दन हिला देती है। वहीं दो घंटे तक बाथरूम से उन दोनों की तेज साँसों की आवाज़ आती रहती है। फिर रजत अक्षरा को नहलाकर और उसे अच्छे से तैयार करके कमरे में लाकर बेड पर सुला देता है। अक्षरा तो इतनी थक चुकी थी कि वह अपनी एक उंगली तक नहीं हिला पा रही थी। आज रजत ने उसे इतना घायल कर दिया था कि अक्षरा की बॉडी का हर एक हिस्सा दर्द कर रहा था।


    अक्षरा को सुलाने के बाद, रजत सोफ़े पर जाकर बैठ जाता है और अपना काम करने लगता है। वहीं उसके पास एक मेल आता है। वह मेल को देखते हुए मुस्कुराने लगता है और अपने मन में कहता है, "तुमने मेरी बीवी पर गंदी नज़र डालने की कोशिश की, अगस्त राणा! मैं तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ूँगा। अब देखो कैसे तुम्हारी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाता हूँ मैं! बहुत शौक है ना तुम्हें मेरी अक्षरा की भावनाओं से, फीलिंग्स से खेलने का? अब तुम देखो, मैं तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ूँगा।"


    दूसरी तरफ़, अगस्त्य बौखलाया हुआ था, क्योंकि उसे अभी तक पता नहीं चल पाया था कि रजत और अक्षरा कहाँ पर हैं और किस जगह रुके हुए हैं। अगस्त भी ऑस्ट्रेलिया पहुँच चुका था, लेकिन वह अभी तक अक्षरा तक नहीं पहुँच पाया था। अगस्त ने अपने आदमियों को पूरी ऑस्ट्रेलिया में फैला दिया था अक्षरा को ढूँढने के लिए, लेकिन अक्षरा अभी तक घर से बाहर नहीं गई थी, और किसी ने उसे नहीं देखा था, इसीलिए वह भी सबके लिए एक पहेली बनी हुई थी।


    यह सब कुछ जानते हुए भी रजत अभी कुछ नहीं कर रहा था, क्योंकि वह देखना चाहता था अगस्त्य का अगला कदम क्या होगा। उसके कदम के आधार पर ही रजत उसे एक करारी शिकस्त देने वाला था।


    अगस्त अपने कमरे की बालकनी में खड़ा, सामने उगते हुए सूरज को देख रहा था और सूरज को देखते हुए कहता है, "बहुत जल्द मैं और अक्षरा साथ में तुम्हें देखूँगा। मैंने अक्षरा के साथ बहुत गलत किया है, यह मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ। लेकिन मैं उसे खुद की ज़िंदगी से दूर तो नहीं जाने दे सकता। भले ही मैं उससे प्यार नहीं करता था, लेकिन फिर भी वह मेरे साथ थी। लेकिन आज जब मैं उससे प्यार करता हूँ, तो वह किसी और के साथ कैसे जा सकती है? उसे सज़ा तो मिलेगी। मैं उसे कैद कर लूँगा, उसके बाद कोई उसे ढूँढ नहीं पाएगा।"


    रजत अपने लैपटॉप पर जल्दी-जल्दी हाथ चला रहा था, क्योंकि वह अक्षरा के उठने से पहले अपने ऑफिस का सारा काम खत्म कर लेना चाहता था। क्योंकि जब अक्षरा जागती थी, तो उसका सारा समय अपनी अक्षरा के साथ बिताना चाहता था; वह अपना काम नहीं छोड़ सकता था; रात भर जागकर काम करना पड़ता था।


    धीरे-धीरे अक्षरा की आँखें खुलने लगती हैं और वह अपनी आँखें खोलकर सामने सोफ़े पर बैठे रजत को देखती है, जो अभी भी काम में बिजी था। यह देखकर अक्षरा की आँखें छोटी-छोटी हो जाती हैं और वह रजत को घूरने लगती है। रजत को एहसास होता है कि कोई उसे बहुत देर से घूर रहा है। जब वह अपनी नज़रें उठाकर सामने देखता है, तो उसकी नज़रें अक्षरा की नज़रों से मिल जाती हैं। अक्षरा की नज़रों में नाराज़गी देखकर, रजत अपना लैपटॉप बंद करके अक्षरा के पास जाकर बैठ जाता है और उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहता है, "क्या हुआ? क्यों नाराज़?"


    अक्षरा रजत से कुछ नहीं कहती और चुपचाप दूसरी तरफ़ चेहरा करके आँखें बंद कर लेती है। अक्षरा का ऐसा रिएक्शन देखकर अब रजत परेशान हो जाता है। वह अक्षरा से बात करने की कोशिश करता है, लेकिन अक्षरा उसके किसी बात का जवाब नहीं देती।


    अक्षरा कहती है, "रात को तुम कितनी देर सोए थे?" रजत अपनी नज़रें इधर-उधर घुमाने लगता है। अक्षरा कहती है, "मैंने पूछा, रात को कितनी देर सोए थे?" रजत कहता है, "मुझे ऑफिस का काम करना था, इसलिए मैं पूरी रात नहीं सोया।" अक्षरा उठकर बैठ जाती है और रजत की तरफ़ उंगली पॉइंट करके कहती है, "तुम पागल इंसान! तुम इंसान हो या रोबोट? तुम्हें थकान नहीं होती है? क्या तुम कभी बीमार नहीं होगे? आज के बाद मेरी एक बात कम खोलकर सुन लो: रात को तुम ऑफिस का कोई काम नहीं करोगे! मतलब कोई काम नहीं करोगे! वरना तुम जानते हो ना मुझे..."


    रजत कहता है, "हाँ, ठीक है बाबा। आज के बाद रात में मैं कोई काम नहीं करूँगा। प्रॉपर तरीके से आराम करूँगा।" रजत अक्षरा को खुद के सीने से लगाकर कहता है, "पहले मैं दिन और रात काम करता था, कोई यह नहीं कहता था कि आराम करो। लेकिन जब से तुम मेरी ज़िंदगी में आई हो ना, मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी पूरी दुनिया बन गई हो।"


    अक्षरा रजत को अपनी गोदी में लेटने का इशारा करती है।


    रजत अपना सर अक्षरा की गोदी में रखकर लेट जाता है। अक्षरा धीरे-धीरे उसके सर को सहलाने लगती है, और ऐसा करते ही रजत कब गहरी नींद में चला जाता है, उसे पता ही नहीं चलता। जब अक्षरा रजत को इतनी गहरी नींद में सोता हुआ देखती है, तो रजत के माथे को चूमकर खुद भी उसके बगल में, उसके सीने पर अपना सर रखकर लेट जाती है, और थोड़ी देर में अक्षरा को भी नींद आ जाती है। वह दोनों अपनी छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थे। वहीं कोई उनकी दुनिया में ग्रहण लगने की कोशिश कर रहा था, इन दोनों को एक-दूसरे से अलग करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन यह इतना आसान भी होने वाला नहीं था।


    अगस्त के सारे आदमी एक-एक करके ऑस्ट्रेलिया की गलियों से गायब हो गए थे, और यह बात अगस्त को पता ही नहीं चली थी, क्योंकि उसका वह आदमी अभी भी उसके टच में था। वहीं रजत के आदमियों ने उसके सारे आदमियों को रिप्लेस कर दिया था। वह अगस्त को वही अपडेट दे रही थी जो रजत चाहता था, और रजत ने अगस्त तक यह बात पहुँचा दी थी कि रजत और अक्षरा यहाँ से वापस इंडिया जा चुके हैं।


    रजत अभी भी अगस्त को मौका दे रहा था सुधारने का, लेकिन शायद अगस्त सुधरने वालों में से नहीं था। उसे किसी भी कीमत पर अक्षरा चाहिये थी, और अब वह उसके लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार था...

  • 13. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 13

    Words: 2609

    Estimated Reading Time: 16 min

    अक्षरा ने रजत को अपनी गोदी में लेटने का इशारा किया।


    रजत ने अपना सिर अक्षरा की गोदी में रखकर लेट गया। अक्षरा धीरे-धीरे उसके सर को सहलाने लगी, और ऐसा करते ही रजत कब नींद के आगोश में चला गया, उसे पता ही नहीं चला। जब अक्षरा रजत को इतनी गहरी नींद में सोता हुआ देखती है, तो रजत के माथे को चुमकर खुद भी उसके बगल में, उसके सीने पर अपना सिर रखकर लेट जाती है।


    और थोड़ी देर में अक्षरा को भी नींद आ जाती है। वे दोनों तो अपनी छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थे, वहीं कोई उनकी दुनिया में ग्रहण लगाने की कोशिश कर रहा था; इन दोनों को एक-दूसरे से अलग करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन यह इतना आसान भी होने वाला नहीं था।



    अगस्त के सारे आदमी एक-एक करके ऑस्ट्रेलिया की गलियों से गायब हो गए थे, और यह बात अगस्त को पता ही नहीं चली थी क्योंकि उसका वह आदमी अभी भी उसके टच में था। वहीं रजत के आदमियों ने उसके सारे आदमियों को रिप्लेस कर दिया था। वह अगस्त को वही अपडेट दे रहा था जो रजत चाहता था, और रजत ने अगस्त तक यह बात पहुँचा दी थी कि रजत और अक्षरा यहाँ से वापस इंडिया जा चुके हैं।



    रजत अभी भी अगस्त को मौका दे रहा था सुधरने का, लेकिन शायद अगस्त सुधरने वालों में से नहीं था। उसे किसी भी कीमत पर अक्षरा चाहिए थी, और अब वह उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार था।


    दूसरी तरफ, अक्षरा और रजत एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छा समय बिता रहे थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी की चुनौतियाँ अब उनका इंतज़ार कर रही थीं, क्योंकि जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो सबकी ज़िंदगी में आते ही रहते हैं। जो हर मुश्किल को पार कर जाए, वही एक सच्चा इंसान होता है।


    अक्षरा और रजत ऑस्ट्रेलिया आए हुए एक महीने से ज़्यादा हो चुका था, लेकिन वे दोनों अभी तक वापस नहीं गए थे। वहीं प्रताप मेंशन में इस वक्त नीति ने तमाशा कर रखा था, क्योंकि वह अब किसी भी कीमत पर सात्विक के साथ रहना चाहती थी। लेकिन सात्विक आस्था से प्यार करता था; यह बात सब लोग जान चुके थे, और सात्विक और आस्था शादी भी कर चुके थे। लेकिन यह बात अभी घर में किसी को पता नहीं थी। नीति ने रो-रोकर बहुत तमाशा मचा रखा था, और वह महिला मंडल को भी अपने साथ लेकर आई थी।



    सब लोग मिलकर उन तीनों को बहुत परेशान कर रहे थे। तभी वहाँ आस्था आ जाती है। आस्था जाकर उन लोगों को अपने सास-ससुर और सात्विक से दूर करती है और कहती है, "यह क्या तमाशा लगा रखा है आप लोगों ने?" वहीं एक महिला आगे आती है और कहती है, "तुम्हें शर्म नहीं आई? एक शादीशुदा मर्द से अफेयर रखते हुए, और उसकी बीवी को इस घर से निकालते हुए! तुम जैसी लड़कियों को नाक काला करके सारे बाज़ार घूमना चाहिए।"



    अब आस्था का सब्र का बांध टूट चुका था। इसलिए आस्था, चलते हुए कहती है, "आप इस लड़की की बात कर रही हैं जो शादी के बाद न जाने कितनों ही लड़कों के साथ हुई है! और आप क्या जानती हैं सात्विक और उसकी फैमिली के बारे में? इन दोनों का तलाक हो चुका है, समझे आप लोग? और आप लोगों को विश्वास नहीं होता तो मैं पेपर्स दिखाती हूँ।" आस्था पेपर्स दिखाती है। "ये देखिए!" और बहुत सारे फ़ोटो दिखाती है जिसमें नीति अलग-अलग आदमियों के साथ होटल के कमरों में जा रही थी, पार्टी कर रही थी, छोटे-छोटे कपड़े पहन रही थी।


    गुस्से में, वह महिला मंडल की तरफ घूमते हुए कहती है, "अब आप लोगों को समझ में आया? हर बार गलती एक आदमी की नहीं हो सकती है। हमेशा हम यही सोचते हैं कि आदमियों की गलती होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। कभी-कभी गलती औरतों की भी होती है, लेकिन हमारा समाज हमेशा सिर्फ़ मर्दों को ही दोष देता है। इसीलिए आज मैं आपसे कह रही हूँ, बिना सच्चाई जाने कभी किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगाना चाहिए। और तुम, नीति, अब मैं तुम्हारे साथ ऐसा करूँगी कि तुम जिंदगी में कभी सात्विक और उसकी फैमिली के आस-पास भी नज़र नहीं आओगी।"



    तभी सब लोग वहाँ से नीति को खोजते हुए निकल जाते हैं। वहीं नीति अभी हार मानने को तैयार नहीं थी। वह सात्विक का हाथ पकड़कर कहती है, "सात्विक हमेशा मेरा था, मेरा है, और हमेशा मेरा रहेगा! तुम जैसी लड़की उसके करीब नहीं आ सकती।"


    आस्था ने अपना हाथ बढ़ाकर सात्विक और नीति का हाथ अलग किया और नीति को धक्का देकर सात्विक से दूर करके कहा, "तुम जैसी लड़कियाँ अपना घर खुद तोड़ती हैं। वह तुम थी जिसने सात्विक को धोखा दिया था।


    वह तुम थी जो अपने भाई के पैसे और रुतबे पर अकड़कर अपने ससुराल को छोड़कर गई थी। मैं तो बचपन से सात्विक से प्यार करती थी, उसके साथ जीना चाहती थी। लेकिन सात्विक ने अपनी बहन की खुशी के लिए तुमसे शादी कर दी। मैं फिर भी कभी उसकी खुशी में टकराव देने की कोशिश नहीं की। लेकिन जब मुझे पता चला कि मेरे साथ पिक की बीवी एक बेहद बदतमीज़, गिरि हुई औरत है, तब जाकर मुझे पता चला कि मैंने कितनी बड़ी गलती की है, सात्विक को तुम्हारे पास छोड़कर। और आज तुमने मेरा यह भी तोड़ दिया कि तुम कभी सुधर सकती हो। तुम और तुम्हारा भाई दोनों एक ही जैसे हो। जब उनके पास सब कुछ था, तो उन्हें उसकी क़द्र नहीं थी। आज जब उनके पास कुछ भी नहीं है, तो वह चीज़ को पाने के लिए पीछे भाग रहे हैं।"


    "आज पहली और आखिरी बार मैं तुम्हें चेतावनी दे रही हूँ, नीति। मेरे घरवालों के आस-पास भी मत आना, क्योंकि सात्विक अब मेरा पति है। यह मेरा ससुराल है, यह मेरा घर है। अगर आज के बाद मैं तुम्हें यहाँ देखी, तो तुम नहीं जानती कि मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगी।" आस्था नीति को प्रताप मेंशन से बाहर फेंक देती है। वहीं प्रताप मेंशन के गेट पर खड़ी नीति, नफ़रत से आस्था को देखते हुए कहती है, "बहुत जल्द ऐसे ही मैं तुझे घर से बाहर निकलवाऊँगी, ना तो मेरा भी नाम नीति राणा नहीं!"



    दूसरी तरफ़, ऑस्ट्रेलिया में इस वक़्त बर्फबारी हो रही थी, क्योंकि अचानक से मौसम बदल गया था, और हल्की-हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। हल्की-हल्की बर्फ में अक्षरा और रजत छत पर खड़े होकर बर्फ का मज़ा उठा रहे थे। वहीं थोड़ी दूर पर कोई उन दोनों पर निशाना लगाए खड़ा था। पता नहीं कैसे अचानक अक्षरा की नज़र रजत के सीने पर एक लाल डॉट पर पड़ जाती है, और वह रजत को लेकर नीचे गिर जाती है। तभी एक गोली जाकर पीछे लगे झूले में लगती है। झूला टूटकर नीचे गिर जाता है। तब जाकर रजत का ध्यान इस तरफ़ जाता है। रजत इशारा करके उसे आदमी को पकड़ने के लिए बोलता है।


    इस हमले से अक्षरा पूरी तरह डर चुकी थी। वह एकदम से रजत से चिपक जाती है और कहती है, "मुझे बहुत डर लग रहा है, रजत!" रजत उसे अपनी बाहों में उठाकर नीचे जाते हुए कहता है, "कुछ नहीं हुआ है। हम हैं यहाँ पर, ना?" और उसे ले जाकर कमरे में बैठाकर, उसके करीब बैठकर, उसे अपने सीने से लगा देता है।



    ऐसे ही अक्षरा को पैंपर करते हुए, उसे अपने करीब रखता है, और धीरे-धीरे अक्षरा भी गहरी नींद में चली जाती है। अक्षरा के सोने के एक घंटे बाद, रजत अच्छे से अक्षरा को कंबल से ढँककर घर से बाहर निकल जाता है, और वह काम कर रही सर्वेंट को कहकर जाता है कि वह अक्षरा के कमरे के आस-पास ही रहे; अक्षरा को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।


    एक घने जंगल में, एक ब्लैक कलर की कार अंदर चढ़ती जा रही थी। वह जंगल के बीचो-बीच जाकर रुक जाती है, और उसमें से एक 27-28 साल का बंदा, ब्लैक कपड़ों में, एटीट्यूड से बाहर निकलता है। उसके पूरे फ़ेस पर मास्क लगा हुआ था, और उसने खुद को बहुत अच्छे से ढँक रखा था। फिर भी उसकी बॉडी देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता था कि वह बहुत ही हैंडसम और 6 फ़ीट का इंसान है।



    जब वह लड़का अंदर पहुँचता है, तो सारे गार्ड उसके आगे अपना सर झुकाकर खड़े थे। वहीं दो लोगों को बाँधकर सामने दीवार पर लटकाया गया था। वह लड़का जाकर सोफ़े पर बैठ जाता है और अपने एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ा लेता है। तभी उसके दोनों तरफ़ ब्लैक पैंथर आकर बैठ जाते हैं। वह लड़का उन दोनों ब्लैक पैंथर के माथे पर अपना हाथ फेरने लगता है, और सामने लटके हुए लोगों की तरफ़ देखकर कहता है, "बताओ, किसने भेजा था तुम्हें, और क्यों मारना चाहते थे तुम रजत ओबेरॉय को?" वह दोनों आदमी उसे देखकर पहले ही डर चुके थे, क्योंकि वह माफ़िया वर्ल्ड का बेताज बादशाह था, लेकिन आज तक उसे कभी किसी ने देखा नहीं था। और वह दोनों की हालत तो उसकी प्रेजेंस से ही ख़राब हो चुकी थी। अगर उन्हें पता होता कि रजत ओबेरॉय का रिश्ता माफ़िया वर्ल्ड के बादशाह से है, तो वे कभी भी उस पर हमला नहीं करते।



    वह लड़का एक बार फिर पूछता है, "मुझे अपनी बात बार-बार दोहराने की आदत नहीं है, इसलिए एक आखिरी बार पूछ रहा हूँ: तुम्हें रजत ओबेरॉय को मारने के लिए किसने भेजा था?" तभी उनमें से एक लड़का कहता है, "मैं बताता हूँ सर। हमें रजत ओबेरॉय को मारने के लिए अगस्त्य राणा ने पैसे दिए थे, क्योंकि वह रजत ओबेरॉय को अपने रास्ते से हटाना चाहता है।" वह लड़का अपनी आँखों में दुनिया भर का गुस्सा लिए अपने फ़ेस से अपना मास्क हटा देता है।


    अपने सामने रजत ओबेरॉय को देखकर उन दोनों आदमियों की हालत ख़राब हो जाती है। फिर वे दोनों हकलाते हुए कहते हैं, "मतलब माफ़िया वर्ल्ड का बादशाह और बिज़नेस वर्ल्ड का बिज़नेस टाइकून, दोनों रजत ओबेरॉय हैं?" रजत सारकास्टिकली मुस्कुराते हुए कहता है, "बहुत गलत जगह पंगा ले लिया है।"


    रजत उनकी तरफ़ देखकर कहता है, "तुमने मुझे मारने से पहले मेरी हिस्ट्री, जियोग्राफी भी निकाली थी क्या? अगर निकाल लेते ना, तो अपनी मौत के करीब आने के लिए मुझ पर हमला नहीं करते। और सबसे बड़ी बात, तुमने मुझ पर हमला किया, तो मैं तुम्हें माफ़ कर देता, लेकिन तुम्हारी वजह से मेरी जान, मेरी सोना, डर गई थी। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, तो मैं तुम्हें माफ़ तो नहीं कर सकता। अब तुम देखोगे कि रजत ओबेरॉय और माफ़िया वर्ल्ड का किंग कैसे सज़ा देता है।"


    वह दोनों आदमी उसकी सज़ा का नाम सुनकर ही काँपने लगे थे, क्योंकि वे लोग जानते थे कि किंग अपने दुश्मनों को किस तरीके से मारता है। लेकिन आज वे खुद फँस चुके थे। इसलिए तभी दूसरा आदमी कहता है, "मैं खुद को मार लूँगा सर, प्लीज़ आप मुझे पनिशमेंट मत दीजिए।" रजत जोर-जोर से हँसने लगता है। वहीं उसकी हँसी इतनी भयानक थी कि सारे गार्ड के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वहीं वे दोनों ब्लैक पैंथर चार क़दम पीछे हटकर रजत से खड़े हो जाते हैं।


    रजत हँसते-हँसते उन दोनों आदमियों के पास आता है और कहता है, "यह तो तुम्हें हमला करने से पहले सूचना चाहिए थी ना कि मैं तुम दोनों की ज़िंदगी को क्या से क्या बना दूँगा। लेकिन अभी कुछ नहीं हो सकता। अभी तो तुम्हें सज़ा मिलेगी, पनिशमेंट मिलेगी, और वह भी ऐसी मिलेगी कि तुम लोग काँप जाओगे, और तुम इस धरती पर दोबारा जन्म लेने से भी मना कर दोगे।"


    रजत की बात सुनकर अब तो उन दोनों आदमियों की हालत ख़राब हो जाती है, क्योंकि वे दोनों जानते थे कि अब उनके साथ क्या होने वाला है। तभी रजत अपने एक आदमी को इशारा करके उन दोनों की ज़ंजीरें खुलवा देता है, और खुद जाकर सामने सोफ़े पर बैठ जाता है। उन आदमियों के हाथों से जैसे ही ज़ंजीरें खुलती हैं, वे दोनों खुद-ब-खुद वहाँ रखे एक टैंकर में कूद जाते हैं, और उनकी एक भयानक चीख पूरे जंगल में गूँज जाती है।


    क्योंकि उस टैंकर में एक ऐसा लिक्विड था जिसमें अगर आदमी गिर जाए तो उसका माँस और ब्लड उस लिक्विड में मिल जाता था, और बाहर निकलता तो सिर्फ़ और सिर्फ़ हड्डियों का ढाँचा। उन्होंने खुद को टॉर्चर करने से अच्छा एक बार में ही अपनी जान देना अच्छा समझा। पर उन दोनों के ऐसे टैंकर में कूद जाने से रजत खुश नहीं था, क्योंकि वह उन्हें अपने हाथ से सज़ा देना चाहता था, लेकिन वे दोनों ने तो इतनी आसान मौत चुन ली थी।


    रजत अपने ख़ास आदमी मोंटी को बुलाता है और कहता है, "अगस्त्य राणा पर नज़र रखो। और हाँ, उसकी बहन ने मेरी बहन की ज़िंदगी हराम कर रखी है। ज़रा उसकी बहन की कुंडली निकालकर मेरे पास लेकर आओ। मैं भी तो देखूँ कि किस बहाने वह इतना उछल रही है, और क्या वजह है कि वह वापस सात्विक की ज़िंदगी में जाना चाहती है।"


    मोंटी रजत की बात सुनकर "ओके बॉस" बोलकर वहाँ से बाहर निकल जाता है। तभी रजत उन दोनों पैंथर्स के ऊपर अपना हाथ फेरकर कहता है, "अब मैं चलता हूँ। मेरी सोना और तुम्हारी लेडी बॉस मेरा इंतज़ार कर रही होगी ना? और हाँ, बहुत जल्द मैं तुम्हें उससे मिलने आऊँगा, याद में वहाँ ले चलूँगा, लेकिन अभी नहीं, क्योंकि अभी वह डर जाएगी तुम दोनों को देखकर।" और वहाँ से बाहर निकलकर अपनी गाड़ी में बैठकर वापस घर की तरफ़ चला जाता है।


    मोंटी जाते हुए रजत को देखकर कहता है, "शक्ल से इतना सीधा लगने वाला बंदा इतना ख़ूंख़ार और क्रूर हो सकता है, यह कोई सोच नहीं सकता। इस इंसान के अंदर तो दिल और फीलिंग्स नाम की चीज़ नहीं है। पता नहीं यह कैसे अक्षरा में के प्यार में पड़ गए, अक्षरा mem से शादी कर ली। जिस दिन अक्षरा mem को उनकी हकीकत पता चलेगी ना, पता नहीं वह कैसे रिएक्ट करेंगी, और Boss उन्हें कैसे संभालेंगे।"


    "चल बेटा मोंटी, जल्दी से लग जा काम पर, नहीं तो इन दोनों के बाद नेक्स्ट नंबर तेरा ही होगा, क्योंकि यह इंसान सज़ा देने से पहले यह नहीं देखता कि उसके सामने कौन है।" मोंटी अपने काम में लग जाता है। वहीं रजत की कार अपने घर के सामने आकर रुकती है।


    रजत जब अंदर जा रहा था तो देखता है कि सोफ़े पर बैठी अक्षरा बहुत गुस्से में थी। अक्षरा को इतने गुस्से में देखकर रजत थोड़ा हैरान हो जाता है। तभी उसके पीछे से आ रहा मोंटी रजत को इस तरह खड़े देखकर थोड़ा परेशान होता है, क्योंकि कोई रजत को डरा सके, ऐसा कोई दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ था। वहीं मोंटी के साथ रजत का एक और ख़ास आदमी, पीटर भी था, और ऐसे कुल मिलाकर पाँच आदमी रजत के पीछे खड़े थे। अक्षरा हाथ बाँधकर रजत के पास आकर खड़ी हो जाती है और कहती है, "रात के 2:00 बजे आप कहाँ से आ रहे हो? जरा एक्सप्लेन करोगे?"


    रजत पहले तो अक्षरा का सवाल सुनकर हड़बड़ा जाता है, फिर खुद को सम्भालते हुए कहता है, "मैं एक बिज़नेस मीटिंग में गया था।" अक्षरा रजत की चारों तरफ़ चक्कर काटते हुए कहती है, "रात के 2:00 बजे कौन सी बिज़नेस मीटिंग थी सर? जरा बताएँगे मुझे?" वहीं वे पाँच आदमी आँखें फाड़े रजत को देख रहे थे, क्योंकि जो रजत किसी से नहीं डरता था, आज वह अपनी बीवी के सामने हकलाकर बात कर रहा था, और यही बात उन पाँचों को हज़म नहीं हो रही थी।


    शिवेन धीरे से मोंटी के कान में कहता है, "मोंटी सर, मैं तो इससे भी ज़्यादा डरता हूँ।"


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  • 14. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 14

    Words: 2579

    Estimated Reading Time: 16 min

    रजत ने अपने खास आदमी, मोंटी को बुलाया और कहा, "अगस्त्य राणा पर नज़र रखो। और हाँ, उसकी बहन ने मेरी बहन की ज़िंदगी हराम कर रखी है। जरा उसकी बहन की कुंडली निकालकर मेरे पास ले आओ। मैं भी तो देखूँ कि किस बेस पर वह इतना उछल रही है और क्या वजह है कि वह वापस सात्विक की ज़िंदगी में जाना चाहती है।"


    मोंटी ने रजत की बात सुनकर, "ओके बॉस," कहा और वहाँ से बाहर निकल गया। तभी रजत ने उन दोनों पैंथर्स की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, "अब मैं चलता हूँ। मेरी सोना और तुम्हारी लेडी बॉस मेरा इंतज़ार कर रही होंगी ना? और हाँ, बहुत जल्द मैं तुम्हें उससे मिलने आऊँगा, याद में वहाँ ले चलूँगा। लेकिन अभी नहीं, क्योंकि अभी वह डर जाएगी तुम दोनों को देखकर।" वह वहाँ से बाहर निकलकर अपनी गाड़ी में बैठ गया और वापस घर की ओर चला गया।


    मोंटी, जाते हुए रजत को देखकर बोला, "शक्ल से इतना सीधा लगने वाला बंदा इतना खूंखार और पेट में छुरा घोंप सकता है, यह कोई सोच नहीं सकता। इस इंसान के अंदर तो दिलों-फ़ीलिंग्स नाम की चीज़ ही नहीं है। पता नहीं यह कैसे अक्षरा में प्यार में पड़ गया। अक्षरा मैम से शादी कर ली। जिस दिन अक्षरा मैम को उनकी हकीकत पता चलेगी ना, पता नहीं मैं कैसे रिएक्ट करूँगा और बॉस उन्हें कैसे संभालेगा।"


    "चल बेटा मोंटी, जल्दी से लग जा काम पर। नहीं तो इन दोनों के बाद नेक्स्ट नंबर तेरा ही होगा, क्योंकि यह इंसान सज़ा देने से पहले यह नहीं देखता कि सामने उसके कौन है।" मोंटी अपने काम में लग गया। वहीं रजत की कार अपने घर के सामने आकर रुकी।


    रजत जब अंदर जा रहा था, तो उसने देखा कि सोफ़े पर बैठी अक्षरा बहुत गुस्से में थी। अक्षरा को इतने गुस्से में देखकर रजत थोड़ा हैरान हो गया। तभी उसके पीछे से आ रहा मोंटी, रजत को इस तरह खड़े देखकर थोड़ा परेशान हुआ, क्योंकि कोई रजत को डरा सके, ऐसा कोई दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ था। वहीं, मोंटी के साथ रजत का एक और खास आदमी, पीटर भी था, और ऐसे कुल मिलाकर पाँच आदमी रजत के पीछे खड़े थे। अक्षरा, हाथ बाँधकर रजत के पास आकर खड़ी हो गई और बोली, "रात के 2:00 बजे आप कहाँ से आ रहे हो? जरा एक्सप्लेन करोगे?"


    रजत पहले तो अक्षरा का सवाल सुनकर हड़बड़ा गया, फिर खुद को सम्भालते हुए बोला, "मैं एक बिज़नेस मीटिंग में गया था।" अक्षरा रजत के चारों ओर चक्कर काटते हुए बोली, "रात के 2:00 बजे कौन सी बिज़नेस मीटिंग थी सर? जरा बताएँगे मुझे?" वहीं, वे पाँच आँखें फाड़े रजत को देख रहे थे, क्योंकि जो रजत किसी से नहीं डरता था, आज वह अपनी बीवी के सामने हकलाकर बात कर रहा था, और यही बात उन पाँचों को हजम नहीं हो रही थी।


    शिवेन धीरे से मोंटी के कान में बोला, "मोंटी सर मैम से इतना डरते हैं कि मुझे नहीं पता था।" मोंटी शिवेन की तरफ़ देखकर धीरे से बोला, "अपनी बीवी से अच्छे-अच्छे डरते हैं सर। क्या चीज़ है?" और फिर वह सामने देखने लगे, जहाँ अक्षरा गुस्से में रजत को देख रही थी। रजत ने उसे कम डाउन करते हुए कहा, "तुम इन सब से पूछो ना। सच में मीटिंग में गया था। और मैं बताना भूल गया, क्योंकि तुम सो रही थी और मैं तुम्हारी नींद नहीं खराब करना चाहता था। तुम जानती हो ना सोना, मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं कर सकता।" लेकिन अक्षरा रजत की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं थी...


    अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर बोली, "अब तुम्हारी सज़ा यह है कि तुम पूरे दिन मेरे साथ रहोगे और मेरा हर एक काम करोगे। जो मैं कहूँगी, वह सब कुछ तुम्हें करना पड़ेगा।" रजत हैरानी से अक्षरा की तरफ़ देखा और बोला, "तुम जानती हो ना, आज मेरी बहुत इम्पॉर्टेंट मीटिंग है..."


    अक्षरा बोली, "मैं क्या करूँ? फिर यह तो तुम्हें मुझे बिना बताए जाने से पहले सोचना चाहिए था ना? अब तुम्हें मेरा काम करना होगा, तो करना होगा। अब यह तुम पर डिपेंड करता है कि तुम मेरे साथ पूरा दिन रहते हुए कैसे अपनी मीटिंग अटेंड करते हो।" वहीं, वे पाँच आँखें फाड़े रजत को देख रहे थे कि जो रजत दुनिया को अपने पैरों तले रखता है, दुनिया जो रजत के नाम तक से कम आती है, वह रजत अपनी बीवी के आगे इस कदर झुकता है...


    रजत अक्षरा को मनाने की पूरी कोशिश करता रहा, लेकिन अक्षरा रजत की कोई बात नहीं सुनती और अपने कमरे में चली गई। रजत जाती हुई अक्षरा को देख रहा था। फिर वह कुछ नहीं कहता, पाँचों की तरफ़ मुड़कर बोला, "अभी जो यहाँ हुआ, अगर तुमने किसी को बताया ना, तो तुम जानते हो ना? सब अपनी गर्दन मिलकर कहेंगे..." "नहीं सर, हम किसी को कुछ नहीं बताएँगे। हमने तो कुछ देखा ही नहीं, हम तो अंधे और बहरे हो गए थे..."


    पाँचों की तरफ़ देखकर बोला, "कभी भी लव मैरिज मत करना। अगर लव मैरिज करोगे ना, तो मेरी तरह हमेशा अपनी बीवी की डाँट खाते रहोगे।" रजत अपनी बात बोलकर अपने कमरे की तरफ़ चला गया। वहीं, वे पाँच जाते हुए रजत को देख रहे थे, क्योंकि उन्हें पता था कि रजत ने जो काम उन्हें दिया है, अगर नहीं किया, तो उन लोगों की जान को कोई भी नहीं बचा सकता था...


    Mumbai


    सात्विक ने अपने मम्मी-पापा को अपनी और आस्था की शादी के बारे में बता दिया था, और यह भी बता दिया था कि इस बारे में उन्होंने रजत और अक्षरा से बात कर ली थी और उन्हें कोई परेशानी नहीं थी। उन्होंने बोला था, "जब वह वापस आएंगे, तो हम चारों साथ में अपनी शादी का अनाउंसमेंट कर देंगे।"


    सात्विक अपनी मम्मी-पापा के सामने सर झुकाकर खड़ा था, क्योंकि वह जानता था कि पहले अक्षरा ने शादी की, फिर उसने और आस्था ने, और दोनों ने अपने मम्मी-पापा से न पूछा था, ना बताया था। वे दोनों साथ में एक-दूसरे की तरफ़ देखकर बोले, "शादी तुम्हें करनी थी, तुमने कर ली। तुमने ना हमें बताया, ना पूछा। यह तुम्हारी मर्ज़ी थी, ठीक है। जो तुम लोगों की मर्ज़ी हो, तुम लोग करो..."


    सात्विक अपनी माँ का हाथ पकड़कर बोला, "मैं मानता हूँ मम्मी, हमसे गलती हुई है। लेकिन हम क्या करें? आप बताओ। अगस्त्य और नीति ने हम लोगों का जीना हराम कर रखा है। और ऐसे में अगर मैं आस्था से शादी नहीं करता, तो मुझे किसी भी कीमत पर नीति को अपनाना पड़ता, और मैं यह तो कभी नहीं कर सकता था, क्योंकि एक बार मैं बहुत मुश्किल से उसे अपनी ज़िंदगी से बाहर किया है, और मैं दोबारा उसे अपनी ज़िंदगी में लाकर इस बार आस्था का विश्वास नहीं तोड़ सकता था..."


    श्रीमती प्रताप ने सात्विक के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "जो करना है, तुम करो। अक्षरा को जो करना है, वह करे। और हमें जो पसंद आएगा, हम कर लेंगे। लेकिन इस घर में शांति रखो, बस और कुछ नहीं चाहिए मुझे।" वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गईं। उनके पीछे-पीछे मिस्टर प्रताप भी चले गए। वहीं, सात्विक हाल में खड़े अपने माँ-बाप को जाते हुए देख रहा था...


    सात्विक आस्था की तरफ़ देखकर बोला, "हम दोनों जानते हैं कि हमसे गलती हुई है। हमें अपने मम्मी-पापा को बता देना चाहिए था। उन्हें कैसे मनाना है, यह हम दोनों पर डिपेंड करता है। तो फ़िक्र मत करो, हम बहुत जल्दी मम्मी-पापा को मना लेंगे। और अब तो मैं अंकल-आंटी को भी यह बात जल्दी बतानी होगी, वरना वे भी नाराज़ हो जाएँगे।" आस्था घबराकर बोली, "तुम तो जानते हो ना, जब पापा को गुस्सा आता है, तो किसी की नहीं देखते..."


    सात्विक आस्था को समझाते हुए बोला, "वह माँ-बाप हैं हमारे, गुस्सा तो करेंगे ना। चल कोई बात नहीं, आज शाम को चलकर उनसे भी बात कर लेंगे, ठीक है? और तुमने रजत को फ़ोन किया? कब तक आ रहा है?" आस्था बोली, "वह ज़ोरू का गुलाम फ़ोन ही नहीं उठाता। बस उसकी बीवी का क्या? मिल गई है। उसने तो हम लोगों से ऐसी बात करना बंद कर दिया, जैसे हम लोग उसकी ज़िंदगी में कुछ हैं ही नहीं..."


    सात्विक हैरानी से आस्था की तरफ़ देखकर बोला, "तुम्हें पता है ना, तुम मेरी बहन के पति के बारे में बात कर रही हो?" आस्था गुस्से में सात्विक को देखते हुए बोली, "मैं अपने भाई के बारे में बात कर रही हूँ, समझे तुम..."


    दोनों एक-दूसरे से इसी तरह बहस करते हुए घर से बाहर चले गए, क्योंकि उन्हें ओबेरॉय मेंशन जाकर मिस्टर और मिसेज़ ओबेरॉय को भी समझाना था। तो वे दोनों प्रताप मेंशन से ओबेरॉय मेंशन के लिए चले गए...


    Australia


    अक्षरा अपने कमरे में सो रही थी, और बाहर रजत अपनी मीटिंग निपटा रहा था। उसने अर्जेंट मीटिंग बुलाई थी, क्योंकि वह अपनी बीवी को नाराज़ नहीं करना चाहता था। क्योंकि पहली बार तो उसकी सोना ने उसे कुछ डिमांड की थी, और वह अपनी सोना की डिमांड पूरी न करे, ऐसा तो हो ही नहीं सकता था...


    चार घंटे बाद जाकर मीटिंग खत्म हुई, और रजत मीटिंग खत्म करके जब अपने कमरे में गया, तो देखा कि अक्षरा तैयार हो रही थी। उसने रेड कलर की सिम्पल साड़ी पहनी थी और पूरा सिंगार किया था। रजत तो एकटक अक्षरा को देखता ही रह गया था। ऐसा लग रहा था कि वह अक्षरा की ख़ूबसूरती में हिप्नोटाइज़ हो गया है...


    रजत धीरे-धीरे अक्षरा के करीब बढ़ता जा रहा था, और अक्षरा के पास जाकर पीछे से उसे अपनी बाहों में भरकर उसके कान में बोला, "ब्यूटीफुल लग रही हो। ऐसा लग रहा है, बस तुम्हें मैं ही देखूँ, कोई बाहर देख ही ना पाए तुम्हारे इस रूप को। मेरे सिवाय ना कोई देखे, ना कोई महसूस करे। बस मैं ही महसूस करूँ, मैं ही देखूँ।" और अक्षरा को अपनी तरफ़ घुमाया...


    अक्षरा रजत की आँखों में देख रही थी। अक्षरा को रजत की आँखों में बेपनाह मोहब्बत दिखाई दे रही थी। अक्षरा रजत की आँखों में खोने लगी, और कब दोनों के होंठ आपस में मिल गए, दोनों को ही पता नहीं चला। दोनों एक-दूसरे से कंपटीशन कर रहे थे कि कौन किसको ज़्यादा देर प्यार करता है। दोनों ही एक-दूसरे से कंपटीशन में टक्कर दे रहे थे, क्योंकि दोनों ही एक-दूसरे को छोड़ना नहीं चाहते थे। धीरे-धीरे रजत के हाथ अक्षरा के पूरे शरीर को एक्सप्लोर करने लगे, और उसके हाथ धीरे-धीरे उसके पल्लू तक पहुँच गए...


    रजत एक झटके में अक्षरा के पल्लू को उसके शरीर से अलग कर दिया। अब अक्षरा ऊपर से सिर्फ़ ब्लाउज़ में रजत के सामने थी, लेकिन फिर भी अक्षरा को कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था, क्योंकि उसके साथ उसका राजा था, उसका प्यार। अक्षरा रजत की आँखों में इस कदर खो गई थी कि उसे एहसास ही नहीं था कि रजत ने उसके शरीर से उसके कपड़े उतारना शुरू कर दिया है...


    रजत ने अब उसके ब्लाउज़ को उसके शरीर से अलग कर दिया, और उसकी साड़ी को पूरा खोलकर फेंक दिया। अब अक्षरा पूरी तरीके से निर्वस्त्र रजत के सामने खड़ी थी, और रजत अपनी आँखों में ढेर सारा प्यार, जुनून, तलब, शिद्दत और पागलपन लिए अक्षरा को देख रहा था...


    रजत अक्षरा को लेकर बेड पर लेट गया, और धीरे-धीरे उसके पूरे शरीर को चूमने और काटने लगा। अब अक्षरा भी पूरी मदहोश हो चुकी थी और रजत का साथ दे रही थी। एक घंटे तक रजत अक्षरा के पूरे शरीर को ऐसे ही चूमता और काटता रहा...


    अक्षरा अब रजत के ऊपर जाकर उसे किस करने लगी, और धीरे-धीरे उसके कपड़ों को उसकी बॉडी से उतारकर फेंक दिया। अब रजत अक्षरा को पलटकर उसके ऊपर आ गया, और उसके दोनों पैरों के बीच में आकर खुद को उसके अंदर इंटर कर दिया। और पूरे कमरे में अक्षरा की सिसकियाँ और रजत की तेज साँसें लेने की आवाज़ गूंज रही थी। उनकी आवाज़ों का शोर ही उनकी मोहब्बत की दास्ताँ सुना रहा था कि वे दोनों किस क़दर एक-दूसरे में खोए हुए हैं कि उन्हें दुनिया से कोई मतलब ही नहीं है। उन दोनों को सिर्फ़ एक-दूसरे का साथ चाहिए, एक-दूसरे का प्यार चाहिए...


    अगस्त्य का हाल बेहाल हो रखा था, क्योंकि डेढ़ महीना हो गया था, कोई डेढ़ महीने में अगस्त्य ने अक्षरा को नहीं देखा था। अब उसे अक्षरा किसी भी कीमत पर अपनी आँखों के सामने चाहिए थी, लेकिन अभी तक अगस्त्य को अक्षरा के बारे में कुछ पता ही नहीं चला था...


    अगस्त्य अपने ऑफिस में बैठा अक्षरा को वापस अपने पास कैसे ले, इस बारे में सोच रहा था। तभी कोई अगस्त्य के ऑफिस में बिना नॉक किए इंटर करता है। जब अगस्त्य ने ऊपर अपनी आँखें उठाकर देखा, तो उसके सामने पूर्वी खड़ी थी। पूर्वी को पाँच साल बाद अपने सामने देखकर अगस्त्य को हैरानी नहीं हुई, क्योंकि अब उसे पूर्वी से कोई मतलब ही नहीं था। अगस्त्य ने एक नज़र उसे देखकर कहा, "क्यों वापस आई हो? जब एक बार चली गई थी ना, तो अब आने की वजह क्या है..."


    पूर्वी अगस्त्य के पास आकर बोली, "मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं गई थी अगस्त्य! मुझे अक्षरा ने जबरदस्ती यहाँ से भगाया था। तुम नहीं जानते, अगस्त्य से अक्षरा पूरी तरीके से पागल है। वह तुम्हें किसी भी कीमत पर पाना चाहती थी, इसलिए उसने मुझे यहाँ से दूर भेज दिया। मुझे वहाँ से यहाँ आने में पाँच साल लग गए। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ अगस्त्य, मैं तुम्हें कभी छोड़ नहीं सकती थी..."


    पूर्वी की बात सुनकर अगस्त्य ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा और बोला, "तुमने मुझे पागल समझा है क्या? पूर्वी, तुम मुझे छोड़कर गई, तो मुझे पता नहीं क्या हुआ होगा। मैंने सब कुछ पता किया था, एक-एक बात पता की थी। तुम क्यों गई, किसके साथ गई, किस लिए गई। मैं हर कुछ जानता हूँ। इसलिए यह अपने मगरमच्छ के आँसू मत बहाओ मेरे सामने। तुम्हारे नीति के चक्कर में आकर मैंने अपनी अक्षरा को खुद से दूर कर दिया, और आज वह मुझसे इतनी दूर जा चुकी है कि मैं चाहकर भी उसे अपने पास नहीं ला पा रहा हूँ..."


    अगस्त्य के मुँह से अक्षरा की तारीफ़ सुनकर पूर्वी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, लेकिन वह अभी अगस्त्य के सामने अपना गुस्सा ज़ाहिर नहीं कर सकती। पूर्वी गुस्से में अगस्त्य से बोली, "वह लड़की बहुत बड़ी चालबाज़ है अगस्त्य! वह तुम्हारे पास सिर्फ़ तुम्हारी प्रॉपर्टी के लिए थी। और जिस दिन उसे तुम्हारी प्रॉपर्टी मिल जाएगी ना, उस दिन वह तुम्हें छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चली जाएगी..."


    अगस्त्य पूर्वी के पास आकर बोला, "तुम्हें क्या लगता है कौन है अक्षरा? प्रताप फ़ैमिली की बेटी है, सात्विक प्रताप की बहन है, रजत ओबेरॉय की बीवी है। अक्षरा! तुम्हें लगता है उसे मेरी अगस्त्य राणा की प्रॉपर्टी की ज़रूरत है? अरे, वह खुद ही अरबों की मालकिन है। वह मेरी प्रॉपर्टी के लिए मेरे पीछे आएगी? यह तुम किसी से ख़ान की कोशिश कर रही हो मुझे? अरे, मैं पहले आ जाता था तुम्हारी इन बातों में, लेकिन अब मैं सच जानता हूँ। वह मुझसे भी ज़्यादा पैसे वाली है, तो उसे मेरी प्रॉपर्टी से क्या लेना-देना..."


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  • 15. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 15

    Words: 2107

    Estimated Reading Time: 13 min

    अगस्त के मुंह से अक्षरा की तारीफ सुनकर पूर्वी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, लेकिन उसने अगस्त के सामने अपना गुस्सा जाहिर नहीं किया। गुस्से में, पूर्वी ने अगस्त से कहा, "वह लड़की बहुत बड़ी चालबाज है, अगस्त्य! वह तुम्हारे पास सिर्फ तुम्हारी प्रॉपर्टी के लिए थी, और जिस दिन उसे तुम्हारी प्रॉपर्टी मिल जाएगी ना, उस दिन वह तुम्हें छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चली जाएगी..."


    अगस्त पूर्वी के पास आकर बोला, "तुम्हें क्या लगता है कौन है अक्षरा? प्रताप फैमिली की बेटी है। अक्षरा सात्विक प्रताप की बहन है। अक्षरा रजत ओबेरॉय की बीवी है। अक्षरा! तुम्हें लगता है उसे मेरी, अगस्त्य राणा की, प्रॉपर्टी की जरूरत है? अरे, वह खुद ही अर्बन की मालकिन है! वह मेरी प्रॉपर्टी के लिए मेरे पीछे आएगी? यह तुम किसी से छुपाने की कोशिश कर रही हो मुझसे? अरे, मैं पहले आ जाता था तुम्हारी इन बातों में, लेकिन अब मैं सच जानता हूँ। वह मुझसे भी ज़्यादा पैसे वाली है, तो उसे मेरी प्रॉपर्टी से क्या लेना-देना..."


    पूर्वी के पास अब अगस्त से बहस करने के लिए कुछ नहीं बचा था, क्योंकि अगस्त्य ने उसे कोई विकल्प ही नहीं दिया था कि वह अक्षरा के बारे में कुछ भी कह सके। तभी, पूर्वी ने अचानक चक्कर आने का नाटक किया। लेकिन अगस्त को पता नहीं चला। वह दो कदम पीछे हट गया, और पूर्वी धमाके की आवाज़ के साथ फर्श पर गिर गई।


    बाहर से आवाज़ देकर उसने अपने सेक्रेटरी को बुलाया और पूर्वी को वहाँ से बाहर छोड़ने के लिए कह दिया। पूर्वी इस वक्त बहुत गुस्से में थी, लेकिन वह अपना खेल खराब नहीं करना चाहती थी।


    अगस्त्य का सेक्रेटरी पूर्वी को खड़ा करके ऑफिस के बाहर छोड़कर अंदर आया। अगस्त ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "नज़र रखो इस पर। यह कुछ तो करने आई है, जो शायद हम लोगों के लिए बेहतर नहीं होगा। इसलिए ध्यान रखो..."


    अगस्त्य काँच की गोल्ड की दीवार पर आकर खड़ा हो गया और नीचे पूरे मुंबई को देखते हुए बोला, "मैं यह तो नहीं जानता अक्षरा, कि तुम मुझे कभी माफ़ करोगी कि नहीं, लेकिन मैं तुम्हें अपना बनाकर रहूँगा। तुम मुझसे माफ़ ना करो, तब भी मैं तुम्हें ज़बरदस्ती अपने पास रखूँगा। क्योंकि अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि मुझे तुमसे मोहब्बत है, ना कि पूर्वी से। आज पूर्वी का वापस आना, यह बात साबित करता है कि उसका मेरी ज़िंदगी में कोई वजूद नहीं है। क्योंकि अगर मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी होता, तो उसे अपने पास देखकर मैं उसे माफ़ कर चुका होता, या मुझे कुछ एहसास होता..."


    "अक्षरा, बस इंतज़ार करो उस दिन का, जिस दिन मैं तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए अपना बना लूँगा। लेकिन यह भी बात है, मैं तुम्हें उस रजत से कभी नहीं रहने दूँगा। जितनी नफ़रत मैं इस दुनिया में किसी से नहीं करता, उतनी नफ़रत मैं उस रजत से करता हूँ। और जिस दिन से उसने शादी की है ना, उस दिन से वह मेरी हिट लिस्ट में सबसे ऊपर है। जिस दिन मुझे मौक़ा मिला, मैं उसे अपने हाथों से मारूँगा..."


    रजत अपने ऑफिस में बैठा एक ज़रूरी फ़ाइल चेक कर रहा था। तभी रजत के ऑफिस का गेट लॉक हो गया। रजत हैरान होकर बोला, "... " तभी एक शॉर्ट ड्रेस पहने लड़की ऑफिस के अंदर आई। उसकी ड्रेस इतनी छोटी थी कि कहाँ से शुरू हुई और कहाँ ख़त्म, कुछ पता ही नहीं था। और उसने भर-भर के मेकअप किया हुआ था। ज्यादातर उसकी बॉडी ही शो कर रही थी।


    वह लड़की रजत के सामने खड़ी हो गई और बोली, "सर, जो आपने फ़ाइल मंगाई थी, मैं वह फ़ाइल लेकर आई हूँ। आप एक बार चेक करके इस पर साइन कर दीजिए।" रजत ने प्रोजेक्ट फ़ाइल लेकर देखनी शुरू कर दी, लेकिन अभी तक उसने उस लड़की को नज़र उठाकर नहीं देखा था। वह लड़की अपनी ड्रेस को और थोड़ा खींचकर इधर-उधर करने लगी, तो ज़्यादातर उसके बॉडी पार्ट्स दिखने लगे थे।


    वह लड़की एकदम से जाकर रजत की गोद में बैठ गई। जब तक रजत कुछ समझ पाता, तब तक रजत के ऑफिस का गेट एक झटके में खुला और अक्षरा अंदर आई।


    अंदर का नज़ारा देखकर अक्षरा की आँखें खून की तरह लाल हो गईं, और वह घूरकर रजत की तरफ देखने लगी। जब रजत ने अक्षरा को अपने सामने देखा, उस लड़की को अपनी गोद में, तो वह अंदर तक डर गया। क्योंकि रजत अक्षरा को किसी भी वजह से खोना नहीं चाहता था। वह कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया, और वह लड़की जमीन पर गिर गई।


    अक्षरा बिना कुछ कहे, बिना कुछ बोले, और बिना कोई सवाल किए, बाहर चली गई। रजत भी अक्षरा के पीछे-पीछे भागने लगा। पूरा ऑफिस यह तमाशा देख रहा था। अक्षरा वहाँ से निकलकर अपनी गाड़ी में बैठी और गाड़ी को फ़ुल स्पीड से वहाँ से ले गई। रजत उसके पीछे भागकर आया, तब तक अक्षरा वहाँ से जा चुकी थी।


    डर की वजह से, रजत जल्दी से गाड़ी लेकर अक्षरा के पीछे निकल गया। लेकिन जब तक रजत बाहर निकला, तब तक अक्षरा वहाँ से गायब हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था जैसे अक्षरा वहाँ रोड पर आई ही नहीं थी। अब तो रजत की हालत और ख़राब हो गई। रजत अपने ऑफिस से लेकर घर तक का रास्ता कई बार चेक कर चुका था, लेकिन अक्षरा उसे कहीं नहीं मिली, और ना ही उसे अक्षरा की कार मिली थी।


    रजत की हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। अब उसे उस लड़की पर बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि उसकी वजह से उसकी अक्षरा उससे दूर हो गई थी, और पता नहीं किस हालत में कहाँ थी। इसलिए उसने अपने सेक्रेटरी को फ़ोन करके उस लड़की को अपने जंगल वाले घर पर लाने के लिए कहा।


    वह लड़की अगस्त को फ़ोन करके बोली कि आपका काम हो चुका है, और बहुत जल्द अक्षरा आपके पास होगी। वहीं अगस्त ने अक्षरा की तस्वीर पर अपना हाथ फेरते हुए कहा,


    "बस कुछ दिन और, उसके बाद तुम हमेशा-हमेशा के लिए मेरे पास होगी, और मेरे साथ होगी। उसके बाद मैं उस रजत की परछाई भी तुम्हारे ऊपर नहीं पड़ने दूँगा..."


    रजत हारा हुआ रात के 2:00 बजे घर आया। उसने घर को चारों तरफ से देखना शुरू किया। आज उसे यह घर पहले की तरह एकदम वीरान लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस घर में उसकी आत्मा ही नहीं है। तभी रजत का फ़ोन बजने लगा।


    रजत ने जब अपना फ़ोन देखा, तो अननोन नंबर से कॉल आ रहा था। अक्षरा से मिलने की आस में रजत ने फ़ोन उठा लिया। तभी दूसरी तरफ़ से अगस्त की आवाज़ आई, "क्या हुआ रजत? अक्षरा नहीं मिल रही? ऐसा तो नहीं है कि वह तुम्हें छोड़कर मेरे पास आ गई है, या मेरे पास आने के लिए निकल गई है? और उसे तुम्हारी सच्चाई पता चल गई है कि तुम उससे प्यार नहीं करते हो? तुम तो हर लड़की से प्यार करते हो ना, जैसे आज ऑफिस में उस लड़की को अपनी गोद में बिठाए हुए थे..."


    अगस्त की बात सुनकर रजत का गुस्से से बुरा हाल हो गया, और वह चीखकर बोला, "अगर मेरी अक्षरा मुझसे दूर है, अगस्त्य, तो मैं तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ूँगा! तुम अभी मुझे जानते नहीं हो कि मैं कौन हूँ और क्या हूँ! मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, तुम! अक्षरा सिर्फ़ और सिर्फ़ रजत की है, और हमेशा ही रजत की रहेगी! तुम जितनी भी कोशिश कर लो, कितनी भी चालें चलो, लेकिन अक्षरा हमेशा सिर्फ़ और सिर्फ़ रजत की ही रहेगी..."


    और उसने अपना फ़ोन सामने की दीवार पर फेंक मारा। फ़ोन दो टुकड़ों में बिखर गया। रजत गुस्से से पागल हो गया था। जोर से चिल्लाकर बोला, "तुमने बहुत ग़लत किया अगस्त्य! अगर मुझे मेरी अक्षरा नहीं मिली ना, तो मैं तुम्हारा जीना इस बार हराम कर दूँगा! ना मैं तुम्हें जीने लायक छोड़ूँगा, और ना ही मरने लायक..."


    सात्विक और आस्था ओबेरॉय मेंशन पहुँच चुके थे, लेकिन दोनों की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे अंदर जाकर मिस्टर और मिसेज़ ओबेरॉय से बात कर सकें। लेकिन दोनों को जाना तो था ही। फिर दोनों हिम्मत करके अंदर गए, तो उन्होंने देखा कि वे दोनों बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे।


    सात्विक और आस्था को आया हुआ देखकर दोनों खुश हो गए और बोले, "अरे, तुम दोनों? क्या बात है? आज दोनों एक साथ? जानी दुश्मन एक साथ क्या कर रहे हैं, भाई?" सात्विक ने मुस्कुराते हुए उनके पैर छुए और एक सोफ़े पर जाकर बैठ गया। आस्था भी उसके बगल में जाकर बैठ गई। तब मिस्टर ओबेरॉय बोले, "तुम दोनों तो ऐसे कर रहे हो, जैसे तुम दोनों शादी करके आए हो, और हमें यह न्यूज़ सुनाना चाहते हो..."


    श्री ओबेरॉय की तरफ़ देखकर सात्विक बोला, "अंकल, यह सच है कि हम दोनों ने शादी कर ली है, और हम आपको यही बताने आए थे।" तभी मिस्टर ओबेरॉय हँसते हुए बोले, "मुझे पता था...


    तुम दोनों आज या कल यह करने वाले थे। लेकिन यार, एक बार हमें बता देते, तो हम धूमधाम से अपने बच्चों की शादी में शामिल हो जाते ना। तुम दोनों ने भी ऐसे ही शादी कर ली, उधर रजत और अक्षरा ने भी ऐसे ही शादी कर ली। यार, हमारा सपना तो सपना ही रह गया, अपने बच्चों की बारात ले जाने का, या बारात का स्वागत करने का..."


    "चलो, कोई बात नहीं। जब तुम दोनों ने शादी कर ही ली है, तो निभाओ शादी को, एक-दूसरे के साथ खुश रहो। और हम लोग क्या कर सकते हैं?" इतनी आसानी से मिस्टर ओबेरॉय को मानता हुआ देखकर आस्था की आँखों में आँसू आ गए, और उसने मिस्टर ओबेरॉय को गले लगाकर कहा, "मुझे माफ़ कर दीजिए पापा, लेकिन मैं क्या करती? मैं डर गई थी, कहीं पिछली बार की तरह नीति इस बार भी मुझे मेरा प्यार ना छीन ले..."


    श्री ओबेरॉय ने आस्था के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "अगर नीति तुमसे तुम्हारा सात्विक छीन लेती, तब भी कोई बात नहीं थी। क्योंकि अगर तुम्हारी मोहब्बत सच्ची थी ना, तो सात्विक तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाता। हाँ, पहले उसने ग़लती की, वह तुम्हें छोड़कर किसी से शादी कर ली, लेकिन वह वापस भी तो तुम्हारे पास आ गया ना। एक बार हमसे बात ही कर ली होती, या एक बार हमें हिंट दे दी होती। हम भी माँ-बाप हैं, हमारी भी कुछ अरमान हैं, कुछ ख़्वाहिशें हैं। लेकिन ना तुमने समझा, ना रजत ने..."


    आस्था ने अपना सर नीचे झुका लिया। "मुझे माफ़ कर दो पापा। आइंदा से ग़लती कभी नहीं होगी।" मिस्टर और मिसेज़ ओबेरॉय आस्था को गले लगा लेते हैं और कहते हैं, "हम तो तुमसे कभी नाराज़ थे ही नहीं, बच्चे। तुम अपनी ज़िंदगी में खुश हो, इससे ज़्यादा हमें क्या चाहिए? और तुम हमेशा से अपनी ही दुनिया में तो मस्त रही थी। रजत, अक्षरा के साथ खुश रहा था, और तुम सात्विक के साथ। तुम चारों ने कभी हमारा, मिस्टर प्रताप के बारे में, कभी सोचा..."


    "तुम चारों बच्चों ने वही किया जो तुम्हें ठीक लगा। तुम लोगों ने तो कभी हमें अपना माँ-बाप समझा ही नहीं। अगर समझा होता, तो तुम हमसे कभी कोई बात नहीं छुपाते। तो चलो, कोई नहीं। जाओ आराम करो..."


    "और अगर तुम सात्विक के साथ उसके घर जाना चाहती हो, तो चली जाओ। मुझे आराम करना है, मेरा सर दर्द कर रहा है। तो मेरे लिए काफ़ी लेकर कमरे में आ जाना।" मिस्टर ओबेरॉय मिसेज़ ओबेरॉय से कहकर अपने कमरे में चले गए। आस्था को बहुत दुख हो रहा था कि उसने अपने पापा को इतना हर्ट कर दिया।


    अपने ऑफिस की बालकनी में खड़ा अगस्त्य बार-बार अपने फ़ोन को देख रहा था, क्योंकि उसे शायद किसी के फ़ोन का इंतज़ार था। वह अभी तक नहीं आया था। लेकिन अब उसे भी टेंशन होने लगी थी कि आखिर अक्षरा गई कहाँ सकती है? कहीं किसी ने अक्षरा को किडनैप तो नहीं कर लिया? या अक्षरा के साथ कुछ ग़लत तो नहीं हो गया...


    ना तो अभी तक रजत को अक्षरा की ख़बर मिली थी, और ना ही अगस्त को। अक्षरा कहाँ थी, यह कोई नहीं जानता था। क्या उसका किडनैप हुआ था? या वह खुद अपनी मर्ज़ी से कहीं चली गई थी? या उसे यह लगा कि रजत उसे धोखा दे रहा था?

  • 16. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 16

    Words: 2570

    Estimated Reading Time: 16 min

    आस्था ने अपना सिर नीचे झुकाया। "मुझे माफ़ कर दो, पापा। आइंदा से गलती कभी नहीं होगी।" मिस्टर ओबेरॉय ने आस्था को गले लगा लिया और कहा, "हम तो तुमसे कभी नाराज़ थे ही नहीं, बच्चे। तुम अपनी ज़िंदगी में खुश हो, इससे ज़्यादा हमें क्या चाहिए? और तुम हमेशा से अपनी ही दुनिया में तो मस्त रही थी। रजत, अक्षरा के साथ खुश रहा था, और तुम सात्विक के साथ... तुम चारों ने कभी हमारे, मिस्टर प्रताप के बारे में कभी सोचा...?"


    तुम चारों बच्चों ने वही किया जो तुम्हें ठीक लगा। तुम लोगों ने तो कभी हमें अपना मन-आप समझा ही नहीं। अगर समझा होता, तो हमसे कभी कोई बात छुपाते नहीं। तो चलो, कोई नहीं। जाओ, आराम करो...


    और अगर तुम सात्विक के साथ उसके घर जाना चाहती हो, तो चली जाओ। मुझे आराम करना है। मेरा सर दर्द कर रहा है। तो मेरे लिए कॉफ़ी लेकर कमरे में आ जाना।" मिस्टर ओबेरॉय ने यह कहकर अपने कमरे में चले गए। फ़ैसले पर उन्हें बहुत दुख हो रहा था कि उसने अपने पापा को इतना हर्ट कर दिया...


    अपने ऑफ़िस की बालकनी में खड़ा अगस्त्य बार-बार अपने फ़ोन को देख रहा था क्योंकि उसे शायद किसी के फ़ोन का इंतज़ार था। वह अभी तक नहीं आया था। लेकिन अब उसे भी टेंशन होने लगी थी कि आखिर अक्षरा गई कहाँ सकती है? कहीं किसी ने अक्षरा को किडनैप तो नहीं कर लिया? या अक्षरा के साथ कुछ गलत तो नहीं हो गया...?


    ना तो अभी तक रजत को अक्षरा की खबर मिली थी, और ना ही अगस्त्य को ही अक्षरा का कुछ पता चल रहा था। अक्षरा कहाँ थी, यह कोई नहीं जानता था। क्या उसका किडनैप हुआ था? या वह खुद अपनी मर्ज़ी से कहीं चली गई थी? या उसे यह लगा था कि रजत उसे धोखा दे रहा था...?


    Australia


    नीचे से आ रही शोर की आवाज़ सुनकर ऊपर से कोई नीचे आया और कहा, "यह क्या शोर और तोड़फोड़ मचा रखे हो तुम लोगों ने? यह मेरा घर है, तुम लोगों का ऑफ़िस नहीं जहाँ तुम जैसे चाहो वैसे तोड़फोड़ कर सकते हो।" यह आवाज़ सुनकर रजत और बाकी सब पीछे पलट कर देखते हैं तो उनके पीछे अक्षरा खड़ी थी...


    अक्षरा को अपने सामने देखकर रजत भागकर उसे अपने गले से लगा लिया और कहा, "कहाँ चली गई थी तुम मुझे बिना बताए? तुम्हें पता है मैं कितना डर गया था? मुझे ऐसा लगा मैं एक बार फिर तुम्हें खो दूँगा..."


    अक्षरा रजत से थोड़ा दूर हुई और कहती है, "मैं अपना घर छोड़कर क्यों जाती, भला? मैंने ऐसा कौन सा काम किया था जिससे मुझे शर्मिंदगी होती? मैं घर छोड़कर क्यों जाती? मैं तुमसे नाराज़ थी, तो इसका मतलब यह थोड़ी है कि मैं अपना घर छोड़कर चली जाऊँ? और फिर, मैंने तो अभी तुम्हें तुम्हारी सफ़ाई में कुछ कहने का मौका भी नहीं दिया, और ना ही तुमसे अभी तक कोई सवाल किया है। तो मेरा घर छोड़कर जाने का तो कोई सवाल पैदा नहीं होता..."


    "तुम्हें कैसे लगा कि मैं घर छोड़कर चली गई? जब मैं घर आया तो तुम्हारी गाड़ी यहाँ नहीं थी, और मैंने बाहर खड़ी कार्ड से भी पूछा तो किसी ने तुम्हें घर के अंदर आते हुए नहीं देखा था। तो मैं भी घर के अंदर नहीं आया। मैं तुम्हें बाहर से ही चारों तरफ़ ढूँढ रहा था..."


    अक्षरा बोली, "मुझे एक बात बताओ, रजत, तुम्हें इतना बड़ा बिज़नेसमैन बन किसने दिया? तुम्हारे अंदर दिमाग तो है नहीं! तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? सारे शहर में ढूँढ लिया, सब जगह ढूँढ लिया! एक बार घर में जाकर ढूँढ लिया होता! और रही गाड़ी की बात, तो मेरी गाड़ी रास्ते में खराब हो गई थी इसलिए मैं पैदल ही आ गई क्योंकि घर पास में ही था। और दूसरी बात, तुम्हारे गार्डों ने मुझे इसलिए नहीं देखा क्योंकि वे खुद गेट पर नहीं खड़े थे। पता नहीं क्या-क्या ढूँढ रहे थे, क्या कर रहे थे..."


    अक्षरा की बात सुनकर रजत को थोड़ी तसल्ली हुई और वह एक बार फिर अक्षरा को अपनी बाहों में भरकर उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा और कहा, "तुम्हें पता है मैं कितना डर गया था? देखो, मेरे दिल पर हाथ रखकर। मुझे ऐसा लगा मैंने तुम्हें एक बार फिर खो दिया। तुम फिर चली गई, मुझे छोड़कर..."


    "अक्षरा, मैं तुम्हें छोड़कर क्यों जाती? मैंने कोई गलत काम किया था क्या? उस लड़की को तुमने अपनी गोदी में बिठाया था?" "नहीं, जान। मैंने उसे नहीं बिठाया। वह अचानक से आकर बैठ गई, और उसके तुरंत बाद तुम आ गई। मुझे तो रिएक्ट करने का भी मौका नहीं मिला। जानती हूँ, मैंने तुम्हें इतना डरा दिया था। मैं अपनी लाइफ़ में कभी इतना नहीं डरा था। बस एक बार डरा था जब तुम्हारी शादी अगस्त्य से हुई थी। उसके बाद जैसे मेरे अंदर कोई डर ही नहीं रहा था, कुछ खोने का। लेकिन आज मुझे फिर से वह डर, मुझे आज दोबारा से महसूस हुआ कि कहीं तुम फिर से मुझसे दूर ना चली जाओ। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता..."


    रजत बोला, "इन सबको बोलो यह सब भी जाकर आराम करें। और तुमने कुछ खाया नहीं? मेरा मन नहीं है। कॉफ़ी पियोगी? नहीं? अच्छा, तो कमरे में चलो। मैं आता हूँ वहाँ जाकर। मुझे सारी बात की सफ़ाई चाहिए, वरना तुम जानती हो ना? ओके, जान। तुम जो बोलोगी मैं करूँगा। जल्दी आना..."


    अक्षरा अपने और रजत के लिए कॉफ़ी बनाकर अपने कमरे में ले गई। उसने देखा रजत सोफ़े पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था। अक्षरा कॉफ़ी टेबल पर रखती है और कहती है, "तुमने अपने कपड़े चेंज क्यों नहीं किए? कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा, अक्षरा... ऐसा लग रहा है कहीं हम अलग ना हो जाएँ, कोई हमें एक-दूसरे से छीन ना ले..."


    अक्षरा बोली, "मुझसे वादा करो कि कभी भी ऐसे हालात बनते हैं कि आँखों देखा हमें सच लगने लगे, और हमें, मैं या तुम, दोनों अगर एक-दूसरे को किसी हालत में या किसी वजह से किसी के साथ देखें, तो बिना एक-दूसरे से बात किए, बिना एक-दूसरे को सच्चाई बताए, कभी एक-दूसरे से नाराज़ नहीं होंगे। क्योंकि मैं किसी भी गलतफ़हमी की वजह से तुम्हें खोना नहीं चाहता। तुम नहीं जानती, अक्षरा, तुम मेरे जीने की वजह हो। अगर तुम मुझसे दूर हो ना, तो मेरी साँसें बंद हो जाएँगी..."


    अक्षरा रजत को अपने सीने से लगा लेती है और कहती है, "सब ठीक है, रजत। मुझे लगा तुम ऑफ़िस में बिज़ी हो, इसलिए तुम्हें कॉल नहीं किया। और फिर, जब कॉल करने के लिए फ़ोन देखा, तो फ़ोन मेरे पास नहीं था। फिर मुझे याद आया कि मैं गाड़ी में फ़ोन भूल गई थी। तो मैंने सोचा सुबह मँगवा लूँगी। एक बार तुम घर के नंबर पर तो कॉल करते! इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मैंने तुम्हें गलत नहीं समझा। मैं वहाँ से इसलिए आ गई क्योंकि मैं गुस्से में उस लड़की के साथ कुछ करना नहीं चाहती थी, और मैं जानती थी वह लड़की अगस्त्य के कहने पर वहाँ आई थी, जिससे हम दोनों के बीच गलतफ़हमी पैदा करके हमें दूर कर सके..."


    तुम फ़िक्र मत करो। मैं कभी भी तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगी। तुम मेरी दुनिया हो, और मेरी दुनिया को मैं कभी भी खुद से जुदा नहीं करूँगी..."


    अक्षरा रजत को अपने साथ बेड पर लेटने के लिए बोलती है। रजत भी लेट जाता है। अक्षरा धीरे-धीरे रजत के बालों को सहलाने लगती है और रजत से कहती है, "सो जाओ। कुछ नहीं हुआ है। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। कोई भी, अगस्त्य आकर हमें अलग नहीं कर सकता..."


    रजत अक्षरा को सीने से लगा लेता है और अपनी आँखें बंद कर लेता है...


    अक्षरा भी धीरे-धीरे रजत के बालों को सहलाने लगती है, और रजत गहरी नींद में चला जाता है। वहीं अक्षरा रजत के चेहरे को देखकर कहती है, "मैं जानती हूँ तुम बहुत डर गए थे, और मैं यह भी जानती हूँ..."


    कि तुम इतना क्यों डरते हो। लेकिन आज मैं तुमसे एक वादा करती हूँ, रजत। हमारे बीच कितनी भी लड़ाई हो, कितना भी झगड़ा हो, कुछ भी हो, लेकिन हम दोनों एक-दूसरे को छोड़कर कभी नहीं जाएँगे..."


    Next morning


    रजत की आँख खुली तो अक्षरा बेड पर नहीं थी। रजत यह देखकर घबराने लगा और कमरे में चारों तरफ़ अक्षरा को ढूँढने लगा, लेकिन अक्षरा कमरे में थी ही नहीं। अब रजत की हालत ख़राब हो गई थी...


    रजत अक्षरा को आवाज़ देते हुए बाहर आया।


    तभी रजत को नीचे से कुछ आवाज़ सुनाई दी। जब रजत नीचे जाकर देखा तो मोंटी, शिवन, कपिल, शेर और अक्षरा नीचे गार्डन में बैठे एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। रजत को आता देखकर वे चारों लोग खड़े हो जाते हैं। रजत आकर...


    अक्षरा को अपने सीने से लगा लेता है और कहता है, "मुझे बिना बताए कमरे से बाहर क्यों गई, अक्षरा?" रजत की पीठ को सहलाते हुए अक्षरा कहती है, "इसमें इतना घबराने वाली क्या बात है? अगर मैं कमरे में नहीं थी, तो नीचे होगी..."


    और हाँ, तुम पाँचों लोग सुन लो, तुम पाँचों की मैं दो गलतियाँ माफ़ कर चुकी हूँ। अगर इस बार किसी ने गलती की ना, तो मैं किसी को माफ़ नहीं करूँगी। सीधी सज़ा दूँगी। और तुम सब लोग भी, जब तुम्हारे बस में मुझे नहीं बचा सकते, तो तुम्हारे तो बचने का कोई चांस ही नहीं है। समझे? इसलिए आज के बाद याद रखना, ऑफ़िस में ऐसी कोई भी लड़की काम नहीं करनी चाहिए..."


    अक्षरा को इस तरह बात बदलते देखकर वे चारों लोग चुप हो जाते हैं और अपनी आँखें खड़े अक्षरा को देखने लगते हैं। वहीं रजत भी एकटक अक्षरा को देख रहा था। अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर कहती है, "मैं आपके ऑफ़िस से सारी लड़कियों को दूसरे ऑफ़िस में शिफ्ट करवा दिया है, और वहाँ के लड़कों को आपके ऑफ़िस में। अब तो कोई गलतफ़हमी नहीं होगी ना हमारे बीच?" अक्षरा की बात सुनकर रजत मुस्कराने लगता है...


    रजत अक्षरा के पास आकर कहता है, "बहुत पजेसिव हो रही हो तुम तो!" "हाँ, तो होगी। अगर कोई मेरे पति को लेकर फ़्लर्ट करे, तो फिर मैं क्या करूँगी..."


    अक्षरा की बात सुनकर रजत अपनी गर्दन हिलाकर कहता है, "ठीक है, आज के बाद मेरे ऑफ़िस में कोई भी लड़की काम नहीं करेगी। ठीक है? ओके, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।" तभी अक्षरा के पास एक अननोन नंबर से कॉल आता है...


    दूसरी तरफ़ से एक लड़की की आवाज़ आती है, "मैं जानती हूँ तुम्हारी सच्चाई। तुम कौन हो? तुम असली अक्षरा नहीं हो। भले ही तुम्हारे पास असली अक्षरा का चेहरा है, लेकिन तुम असली अक्षरा नहीं हो। अगर तुम आज शाम मुझे जाकर नहीं मिली, तो मैं तुम्हारे पति और परिवार वालों को तुम्हारी सच्चाई बता दूँगी कि तुम एक धोखेबाज़ हो..."


    सामने से आ रही आवाज़ को सुनकर अक्षरा परेशान हो जाती है क्योंकि अब वह रजत को खोना नहीं चाहती थी, और ना ही वह रजत से दूर रह सकती थी। अगर रजत को उसकी सच्चाई पता चल गई, तो रजत हमेशा-हमेशा के लिए उसे दूर चला जाएगा...


    अक्षरा किसी भी कीमत पर रजत को खोना नहीं चाहती थी। "अच्छा, ओके," बोलकर वह उस लड़की से मिलने के लिए तैयार हो जाती है। फिर वह मोंटी की तरफ़ देखकर कहती है, "एक नंबर दे रही हूँ। तुम्हें इस नंबर की पूरी डिटेल निकालकर मुझे दो। और हाँ, इस बारे में रजत को कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए।" मोंटी "हाँ," बोलकर नंबर लेकर वहाँ से चला जाता है। फिर वे तीनों भी उठकर वहाँ से अपने-अपने काम में लग जाते हैं...


    रजत और अक्षरा कमरे में तैयार हो रहे थे। आज अक्षरा का ध्यान कहीं और था। ऐसा लग रहा था जैसे वह वहाँ होकर भी नहीं थी। रजत पीछे से अक्षरा को अपने गले लगाकर कहता है, "क्या हुआ है? तुम इतनी परेशान क्यों हो...?"


    अक्षरा रजत की तरफ़ देखती है और कहती है, "रजत, कभी ऐसा वक़्त आए कि तुम्हें पता चले कि कोई तुम्हारा अपना तुमसे झूठ बोल रहा है, तो क्या तुम उसे माफ़ कर पाओगे?" रजत अक्षरा को अपनी गोदी में बिठाकर बेड पर बैठ जाता है और कहता है, "अगर उसका झूठ बोलने का रीज़न मुझे सही लगा, तो मैं उसे माफ़ कर दूँगा। अगर मुझे लगा वह सिर्फ़ धोखा देने के लिए झूठ बोल रहा था, तो मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूँगा..."


    अक्षरा रजत की तरफ़ बहुत गौर से देख रही थी। उसके बाद, "अच्छा," रजत के माथे को चूमकर वह उसकी गोदी से उठकर कहती है, "चलो, तो मैं ऑफ़िस के लिए देर हो रही है।" फिर वे दोनों नीचे जाकर ब्रेकफ़ास्ट करते हैं, और उसके बाद रजत अपने आदमियों के साथ वहाँ से ऑफ़िस के लिए निकल जाता है...


    और अक्षरा भी तैयार होकर उस एड्रेस के लिए निकल जाती है जो उस लड़की ने दिया था। वह एड्रेस एक पहाड़ी का था जहाँ चारों तरफ़ सिर्फ़ पहाड़ियाँ थीं और कुछ भी नहीं। डर तो अक्षरा को भी लग रहा था, लेकिन वह जानना चाहती थी कि वह कौन है जो उसकी, अक्षरा के शरीर में आने वाली बात जानती है...


    अक्षरा पहाड़ी पर पहुँचती है तो देखती है वहाँ एक लड़की अक्षरा की तरफ़ पीठ करके पहाड़ी से नीचे देख रही थी। अक्षरा उसके बगल में जाकर खड़ी हो जाती है और कहती है, "बोलो, क्या बोलना चाहती हो?" वह लड़की मुड़कर अक्षरा की तरफ़ देखती है, और अक्षरा को देखकर उस लड़की की आँखें नम हो जाती हैं...


    वह लड़की अक्षरा की तरफ़ देखकर कहती है, "कैसी हो तुम, अक्षरा?" अक्षरा समझी नहीं। वह उस लड़की को देखकर कहती है, "मुझे क्या हुआ? मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ। रजत कैसा है अब?" अक्षरा का दिमाग ख़राब हो जाता है। वह उस लड़की से कहती है, "देखो, मैं जो कोई भी हूँ, मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो। मैं, मेरी रजत का ज़िक्र किसी के मुँह से नहीं सुन सकती, चाहे वह कोई भी हो..."


    मुस्कुराते हुए अक्षरा की तरफ़ देखकर कहती है, "इतनी मोहब्बत करती हो उसे? इससे भी ज़्यादा? इतना कि उसके बिना साँस भी नहीं ले सकती?"


    "तो उसे सच्चाई क्यों नहीं बताई कि तुम अक्षरा नहीं, कोई और हो? क्यों उसे यह सच छुपाया? जब तुम यह जानती हो कि मैं अक्षरा नहीं, कोई और हूँ, तो तुम यह भी जानती होगी कि मैं अक्षरा कैसे बनी। तुम्हें लगता है कि ये लोग मेरी बातों पर विश्वास करेंगे? अरे, विश्वास करना तो दूर है, ये लोग मुझे पागलखाने भेज देंगे..."


    उस लड़की की तरफ़ देखकर कहती है, "अब तुम मुझे बताओ कि तुम कैसे जानती हो यह सब कुछ? और कौन हो तुम?" वह लड़की अक्षरा की तरफ़ देखकर कहती है, "जैसे तुम्हारी आत्मा मेरे शरीर में आई, वैसे ही मेरी आत्मा किसी और के शरीर में चली गई।" यह सुनकर अक्षरा हैरानी से उस लड़की की तरफ़ देखती है। तो लड़की कहती है, "हाँ, जो बॉडी तुम्हारे पास है ना, वह मेरी है। मैं असली अक्षरा हूँ, प्रताप परिवार की बेटी, सात्विक प्रताप की बहन, रजत प्रताप की दोस्त और अगस्त्य राणा की बीवी..."


    अक्षरा हैरानी से उस लड़की की तरफ़ देखकर कहती है, "यह कैसे पॉसिबल है कि तुम्हारी ज़िंदा होते हुए भी तुम्हारी सोल किसी और की बॉडी में चली गई, और तुम्हारी बॉडी में मेरी सोल आ गई? यार, यह क्या है? शायद भगवान जी हमें हमारी मोहब्बत देना चाहते थे क्योंकि रजत अक्षरा से इतनी मोहब्बत करता था कि भगवान ने शायद अपनी कुदरत के नियम बदल दिए..."


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  • 17. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 17

    Words: 2531

    Estimated Reading Time: 16 min

    उसे सच्चाई क्यों नहीं बताई थी कि तुम अक्षरा नहीं, कोई और हो? क्यों उसे यह सच पता चला था? जब तुम यह जानती थी कि मैं अक्षरा नहीं, कोई और हूँ, तो तुम यह भी जानती होगी कि मैं अक्षरा कैसे बनी। तुम्हें लगता था कि ये लोग मेरी बातों पर विश्वास करते? अरे, विश्वास करना तो दूर, ये लोग मुझे पागलखाने भेज देते…


    उसे लड़की की तरफ देखकर कहा था, “अब तुम मुझे बताओ कि तुम कैसे जानती हो यह सब कुछ? और कौन हो तुम?” वह लड़की अक्षरा की तरफ देखकर कहती है, “जैसे तुम्हारी आत्मा मेरे शरीर में आई, वैसे ही मेरी आत्मा किसी और के शरीर में चली गई।” यह सुनकर हैरानी से उसे लड़की की तरफ देखा था। तो लड़की कहती है, “हाँ, जो बॉडी तुम्हारे पास है ना, वह मेरी है। मैं असली अक्षरा हूँ, प्रताप परिवार की बेटी, सात्विक प्रताप की बहन, रजत प्रताप की दोस्त और अगस्त के राणा की बीवी…”


    अक्षरा हैरानी से उसे लड़की की तरफ देखकर कहती है, “यह कैसे पॉसिबल है कि तुम्हारी ज़िंदा होते हुए भी तुम्हारी सोल किसी और की बॉडी में चली गई और तुम्हारी बॉडी में मेरी सोल आ गई? यार, यह क्या है? शायद भगवान जी हमें हमारी मोहब्बत देना चाहते थे, क्योंकि रजत अक्षरा से इतनी मोहब्बत करता था कि भगवान ने शायद अपनी कुदरत के नियम बदल दिए…”


    “अक्षरा, तुम कहना क्या चाहती हो? मैं समझ नहीं पा रही हूँ।” मतलब बस तुम मेरी फैमिली और रजत का ख्याल रखना इतना ही चाहती हूँ। मैंने देखा है, वह कैसे पागलों की तरह तुमसे प्यार करता है। कल रात सड़कों पर पागलों की तरह तुम्हें ढूंढता फिर रहा था। मैं उसके पास से भी गई थी, लेकिन उसने मुझ पर ध्यान ही नहीं दिया…


    अक्षरा उसे लड़की का चेहरा अपनी तरफ करके कहती है, “नाम क्या है तुम्हारा?”
    “आरोही। नाम है मेरा। मैं जिस लड़की की बॉडी में आई हूँ, वह लड़की एक अनाथ है, जिसका इस दुनिया में कोई नहीं था…”


    “किसी ने उसे जान से मारने की कोशिश की थी। तुम मर चुकी थी। उसकी बॉडी में मैं…और इतने दिन से मैं यही समझाने की कोशिश कर रही थी कि मैं कहाँ हूँ। लेकिन जब जाना, तो पता चला मैं ऑस्ट्रेलिया में हूँ। इसलिए मैं यहां से निकलने के तरीके सोच रही थी। तभी एक दिन मैंने तुम्हें और रजत को देखा। उसके बाद मैं तुम दोनों का पीछा करने लगी। तब जाकर मुझे समझ आया कि जैसे आरोही के जिस शरीर में मेरी आत्मा थी, वैसे ही मेरे शरीर में तुम्हारी आत्मा आ गई…”


    आरोही अक्षरा के सामने हाथ जोड़कर कहती है, “प्लीज, मुझे मेरे अगस्त के पास भेज दो। मैं जी नहीं पा रही हूँ उसके बिना। मैं उसके बिना साँस भी नहीं ले पाती हूँ। अक्षरा, प्लीज, मुझे मेरे अगस्त के पास भेज दो। मैं दोबारा से उसकी मोहब्बत पाने की कोशिश करूंगी। जो काम शायद मैं कभी अक्षरा बनकर नहीं कर पाई, वह काम मैं आरोही बनकर कर दूँगी। और प्लीज, मुझे मेरे अगस्त के पास भेज दो…”


    अक्षरा आरोही के हाथों को नीचे करके कहती है, “उसने तुमसे कभी प्यार नहीं किया। तुम्हें इतना टॉर्चर किया, सब कुछ किया, फिर भी तुम मुझसे मोहब्बत करती हो? उसके पास जाना चाहती हो?”
    आरोही अक्षरा से कहती है, “बचपन से सिर्फ उसे ही तो चाहा है मैंने…”


    “तुम्हें यह नहीं लगता कि तुम्हें अपने परिवार से भी मिलना चाहिए?”
    “मैं नहीं मिल सकती ना अपने परिवार से, क्योंकि वे मुझे पहचानेंगे नहीं। अगर वे मुझे पहचानेंगे नहीं, तो मेरे दिल में सबसे ज़्यादा दर्द होगा। और मुझे पता है कि अगस्त मुझसे प्यार नहीं करता। तो शायद आरोही बनकर मैं उसके करीब रह सकूँ…”


    आरोही अक्षरा की तरफ देखकर कहती है, “मैं सिर्फ अगस्त से प्यार करती हूँ और मुझे अपनी ज़िंदगी में सिर्फ अगस्त ही चाहिए। तुम बस मेरा इतना काम कर दो, मुझे किसी भी तरह इंडिया भेज दो। उसके बाद मेरा तुम्हारा जो भी राज है, वह राज ही रहेगा और हम दोनों कभी भी इस बारे में किसी से भी कोई बात नहीं करेंगे और ना ही कभी एक-दूसरे से कोई बात करेंगे…”


    अक्षरा आरोही की तरफ देखकर कहती है, “अगर अगस्त ने तुम्हें नहीं अपनाया, उसे तुमसे मोहब्बत नहीं हुई, तो तुम क्या करोगी?”
    “मैं क्या करूँगी? उसके पास रहकर उसे खुश देखकर, एक खुश रह लूंगी। क्योंकि यह कदम मैं खुद उठाया था। अगस्त को अपने लिए मैं खुद चुना था, तो अब मैं किसी और को तो इसके लिए ब्लेम नहीं कर सकती ना…”


    अक्षरा आरोही की तरफ देखकर कहती है, “अब अगस्त को अक्षरा से प्यार हो गया है। आरोही, वह अक्षरा को हर कीमत पर पाना चाहता है और उसे किसी भी कीमत पर अक्षरा अपनी ज़िंदगी में चाहिए…”


    आरोही हैरानी से अक्षरा की तरफ देखती है। तो अक्षरा अपनी गर्दन हिलाकर कहती है, “जब से मेरी शादी रजत से हुई है, अगस्त हर मुमकिन कोशिश करता है मुझे और रजत को अलग करने की। और मैं अगस्त को एक मौका देना चाहती हूँ, बदलने का। अगर तुम मुझे बदल पाओ या तुम उसे आरोही से मोहब्बत करने के लिए मजबूर कर पाओगी, तो तुम कुछ नहीं करोगी। उसके साथ वादा है मेरा यह तुमसे…”


    आरोही अक्षरा की तरफ देखकर कहती है, “वादा करती हूँ, मैं अगस्त और मेरी वजह से तुम्हें और रजत को कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। क्योंकि मेरी वजह से रजत ने बहुत सफ़र किया है और अब मैं अपनी वजह से किसी को सफ़र नहीं करने दूँगी। मेरी फैमिली तुम्हारे जैसी बेटी डिजर्व करती है और मेरा दोस्त तुम्हारे जैसी जीवनसाथी। इसलिए…”


    अक्षरा आरोही की तरफ देखकर कहती है, “ठीक है, मैं तुम्हें यहां से इंडिया भेजने का कोई जुगाड़ लगती हूँ। लेकिन तुम भी इस बारे में कभी किसी से ज़िक्र मत करना। क्योंकि हम दोनों को ही भगवान जी ने मौका दिया है। अगर हम दोनों ने कभी किसी को इस बारे में बताया, तो हमसे यह जीवन भी छीना जा सकता है और हमारे साथ कुछ गलत भी हो सकता है। आज पहली और आखिरी बार हम इस टॉपिक पर बात कर रहे हैं और अब हम कभी किसी को इस बारे में जानकारी नहीं होने देंगे कि हम दोनों कौन हैं और कैसे एक-दूसरे को जानते हैं…”


    उसके बाद अक्षरा वहाँ से अपनी गाड़ी में बैठकर चली जाती है और आरोही जाती हुई अक्षरा को देख रही थी। ऊपर आसमान की तरफ देखकर कहती है, “मैं जानती हूँ, भगवान जी, आपकी इसमें भी ज़रूर कोई मर्ज़ी रही होगी, तभी आपने हम दोनों के साथ ऐसा किया। बस अब मुझे मेरा अगस्त मिल जाए, उसके बाद मुझे आपसे या किसी से कुछ भी नहीं चाहिए…”


    फिर आरोही वहाँ से चली जाती है। जब आरोही और अक्षरा उस पहाड़ी से चली जाती हैं, तभी उस पहाड़ी पर एक तेज रोशनी होती है और फिर वह रोशनी अचानक ही वहाँ से गायब हो जाती है…


    अक्षरा जब घर पहुँचती है, तो शाम हो चुकी थी। जब अक्षरा हाल में पहुँचती है, तो देखती है रजत वहीं बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था। अक्षरा को आता हुआ देखकर रजत उसके पास जाता है और कहता है, “कहाँ गई थी तुम? मैं सुबह से कितना परेशान हूँ। तुम्हें पता है और फिर तुम्हारा फ़ोन कहाँ था? फ़ोन क्यों नहीं लग रहा था? तुम्हें मालूम है मुझे कितने बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे…”


    “अक्षरा, तुम इतनी लापरवाही कैसे कर सकती हो? तुम जानती हो ना, मैं डर जाता हूँ तुम्हें लेकर। मैं बहुत पजेसिव हूँ, यार। प्लीज, मुझे बिना बताए कहीं मत जाया करो।” अक्षरा रजत के हाथ को अपने हाथों में पकड़ती है और कहती है, “कुछ नहीं हुआ है। मैं किसी काम से बाहर गई थी। फिर वहाँ मुझे एक लड़की मिल गई। वह पता नहीं कैसे यहाँ आ गई। तरीके से पता नहीं कैसे वह ऑस्ट्रेलिया आ गई थी और अब वह वापस इंडिया नहीं जा पा रही क्योंकि उसके पास ना वीज़ा है ना पासपोर्ट। बस मैं उसी से बातें करने में इतनी बिज़ी हो गई कि मुझे टाइम का ख्याल ही नहीं रहा…”


    रजत अक्षरा को अपने पास बिठा लेता है और कहता है, “तुम्हें इन सब की टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है। मैं उस लड़की के बारे में पता करता हूँ। अगर वह लड़की सच में यहाँ धोखे से आई है, तो मैं उसे वापस इंडिया पहुँचा दूँगा। और अगर वह यहाँ किसी वजह से आई है, तो मैं इसमें उसकी कोई मदद नहीं कर सकता…”


    अक्षरा रजत को खुद के सीने से लगा लेती है और कहती है, “इतना टेंशन मत लिया करो। मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी, समझे…”


    अक्षरा रजत की तरफ देखकर कहती है, “मैं फ़्रेश होकर आती हूँ। तब तक तुम किसी से बोलकर मेरे लिए कॉफ़ी बनवा देना।” रजत अपनी गर्दन हिला देता है और अक्षरा अपने कमरे की तरफ़ चली जाती है। रजत जाती हुई अक्षरा को एकटक देख रहा था। फिर वह अपना फ़ोन निकालकर मोंटी को कॉल करता है और कहता है, “पता करो अक्षरा कहाँ गई थी, किसी से मिली थी…”


    मोंटी “ओके बॉस” करके फ़ोन काट देता है और रजत का बताया हुआ काम करने लगता है। वहीं रजत ऊपर कमरे की तरफ़ देखकर कहता है, “पता नहीं आज मुझे ऐसा क्यों लगा कि तुमने मुझसे झूठ बोला या तुम कुछ छिपा रही हो मुझसे। अगर तुम्हें कोई दिक्कत है, कोई प्रॉब्लम है, तो मैं उसे प्रॉब्लम को जल्द से ही ख़त्म कर दूँगा। तुम फ़िक्र मत करो, तुम्हारा रजत तुम्हें किसी परेशानी में नहीं पड़ने देगा। जो भी परेशानी की वजह होगा…”


    उसे उसके अंजाम तक पहुँचा दिया जाएगा। फिर वह खुद किचन में जाकर अक्षरा के लिए कॉफ़ी बनाने लगता है। अक्षरा जब नीचे आती है तो देखती है कि रजत कहाँ नहीं था। वह किचन में जाकर देखती है तो रजत कॉफ़ी लेकर बाहर आ रहा था। अक्षरा रजत के हाथ में कॉफ़ी देखकर कहती है…


    “तुमने क्यों कॉफ़ी बनाई? मैं बना लेती।” रजत कहता है, “तुम हमेशा कुछ तो कर ही देती हो। आज पहली बार तुम्हारे लिए कुछ बनाया है, तो मेरे हाथ का भी टेस्ट कर लो।” अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर कहती है, “किया था एक बार तुम्हारे हाथ का खाना टेस्ट। चार दिन तक अस्पताल में एडमिट रहना पड़ा था मुझे।” अक्षरा की बात सुनकर रजत हँसकर अक्षरा को देखता है और अक्षरा अपने कंधे उचका देती है…


    अक्षरा कॉफ़ी का पहला घूँट लेते ही कहती है, “वह रजत, मुझे नहीं पता था तुम इतनी अच्छी कॉफ़ी बनाते हो। आज से मेरे लिए कॉफ़ी सिर्फ़ तुम ही बनोगे। मैं किसी और के हाथ की बनी हुई कॉफ़ी नहीं पीऊँगी।” रजत अक्षरा की तरफ़ देखकर कहता है, “नहीं, मैं तो ज़हर बनाता हूँ ना? मेरे हाथ की कॉफ़ी अभी तो बहुत तारीफ़ कर रही थी कि चार दिन हॉस्पिटल में रही थी…”


    रजत जिस तरीके से अक्षरा से कह रहा था, अक्षरा सोफ़े पर बैठकर पेट पकड़ लेती है और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है। अक्षरा के हँसने की आवाज़ पूरे घर में गूंज रही थी और यह देखकर रजत के चेहरे पर एक चमक आ जाती है और उसके होठों पर एक मुस्कान…


    अक्षरा जब रजत की तरफ़ देखती है, तो रजत के चेहरे की वह चमक और उसके होठों पर आई वह मुस्कराहट रजत को अक्षरा का दीवाना बना रही थी। रजत उठकर अक्षरा के पास आता है और उसे गोदी में उठाकर अपने कमरे की तरफ़ चला जाता है। अक्षरा हैरानी से रजत को देखती है, तो रजत कहता है, “तुम्हारी पनिशमेंट है आज। मैं तुम्हारी वजह से जल्दी घर आया था और तुम गायब थीं। इसलिए अब मैं आज पूरी रात तुम्हें बहुत परेशान करूँगा और इतना थका दूँगा कि कल तुम बेड पर से भी नहीं उठोगी।” उसकी इतनी बेशर्मी भरी बातें सुनकर अक्षरा का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है…


    अक्षरा अपना चेहरा रजत के सीने में छिपा लेती है। वहीं रजत मुस्कुराते हुए अक्षरा को लेकर कमरे में चला जाता है। जब अक्षरा कमरे में पहुँचती है, तो कमरे को न्यू लुक में देखकर वह बहुत खुश हो जाती है और कहती है, “यह सब तुमने मेरे लिए किया है?” रजत आसपास देखकर कहता है, “नहीं, वह हमारे यहाँ जो मैड काम करती है ना, मेरे लिए किया है…”


    अक्षरा अपना एक हाथ रजत के सीने पर मार देती है और कहती है, “तुम्हारी जान ले लूँगी अगर मेरे कमरे में किसी दूसरी औरत को लेकर आए तो।” रजत अक्षरा को अपने करीब करके कहता है, “और अगर किसी दिन कोई तीसरा हमारे बीच आ गया, तो तुम क्या करोगी? अगर तुम उसके साथ खुश होओगी ना रजत, तो मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊँगी, क्योंकि मुझे तुम्हारी खुशी चाहिए, चाहे वह मेरे साथ हो या किसी और के साथ…”


    रजत अक्षरा की बातें सुनकर गुस्से से भर जाता है, क्योंकि उसे बिल्कुल पसंद नहीं आया था कि अक्षरा उसे छोड़कर जाने की बात कर रही थी…


    रजत अक्षरा को एक झटके में बैठकर फेंक देता है और उसके ऊपर जाकर उसकी आँखों में देखकर सर्द आवाज़ में कहता है, “कोशिश भी मत करना मुझसे दूर जाने की, वरना तुम… उसे रजत से मिलने… इसके बारे में तुम कुछ नहीं जानती। और जिस दिन तुम उसे रजत से मिलने… ना अक्षरा, तुम इस दुनिया में किसी से नहीं मिल पाओगी, क्योंकि मैं तुम्हें कैद कर लूँगा अपनी दुनिया में…”


    अक्षरा रजत के इस रूप से पूरी तरीके से डर चुकी थी, क्योंकि इतने दिन से रजत के साथ रहते हुए उसे आदत हो गई थी हँसमुख और लवली रजत की। लेकिन आज जो रजत उसके सामने था, वह रजत कहीं से भी उसका रजत नहीं लग रहा था। ऐसा लग रहा था उसके अंदर दो मिनट में ही किसी और की आत्मा आ गई थी। अब अक्षरा डर की वजह से काँपने लगती है और जब रजत को एहसास होता है, तो वह अक्षरा के ऊपर से उठकर खड़ा हो जाता है…


    रजत अक्षरा के पास आकर कहता है, “सॉरी अक्षरा, मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता था। लेकिन बार-बार मुझसे दूर जाने की बात बोलती हो ना तुम, मुझे गुस्सा आ गया था। आइंदा से याद रखना, मेरे आगे कभी मुझसे दूर जाने की बात मत करना। चाहे मज़ाक में ही क्यों ना हो, लेकिन कभी भी मुझे छोड़कर जाने की बात तुम्हारे दिमाग में नहीं आनी चाहिए। याद रखना…”


    और वहाँ से उठकर वॉशरूम में चला जाता है। वहीं अक्षरा हैरानी से वॉशरूम के गेट को देख रही थी। आज वह नए रजत से ही मिली थी…


    अक्षरा की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह बेड से उठकर बालकनी में चली जाती है और वह बालकनी की रेलिंग पकड़कर खड़ी हो जाती है और आसमान की तरफ़ देखकर उसकी आँखों में अपने आप आँसू बहने लगते हैं, क्योंकि जिस इंसान ने आज तक उसे इतने प्यार और लाड़ से रखा था, आज उसका गुस्सा उसके ऊपर देखकर उसकी आँखें न चाहते हुए भी आँसुओं से भर गई थीं…


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  • 18. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 18

    Words: 2556

    Estimated Reading Time: 16 min

    अक्षरा रजत के इस रूप से पूरी तरह डर गई थी क्योंकि इतने दिनों से रजत के साथ रहते हुए उसे हँसमुख और लवली रजत की आदत हो गई थी। लेकिन आज जो रजत उसके सामने था, वह रजत कहीं से भी उसका रजत नहीं लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि उसके अंदर दो मिनट में ही किसी और की आत्मा आ गई थी। अब अक्षरा डर की वजह से कांपने लगी और जब अक्षरा को एहसास हुआ, तो वह अक्षरा के ऊपर से उठकर खड़ा हो गया।


    रजत अक्षरा के पास आकर बोला, "सॉरी अक्षरा, मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता था, लेकिन बार-बार मुझसे दूर जाने की बात बोलती हो ना तुम, मुझे गुस्सा आ गया था। आइंदा से याद रखना, मेरे आगे कभी मुझसे दूर जाने की बात मत करना, चाहे मज़ाक में ही क्यों ना हो। लेकिन कभी भी मुझे छोड़कर जाने की बात तुम्हारे दिमाग में नहीं आनी चाहिए, याद रखना।"


    और वहाँ से उठकर वह वाशरूम में चला गया। वहीं अक्षरा हैरानी से वाशरूम के गेट को देख रही थी। आज वह नए रजत से ही मिली थी।


    अक्षरा की आँखों में आँसू आ गए और वह बेड से उठकर बालकनी में चली गई। वह बालकनी की रेलिंग पकड़कर खड़ी हो गई और आसमान की तरफ देखकर उसकी आँखों में अपने आप आँसू बहने लगे। क्योंकि जिस इंसान ने आज तक उसे इतने प्यार और लाड़ से रखा था, आज उसका गुस्सा उसके ऊपर देखकर उसकी आँखें, न चाहते हुए भी, आँसुओं से भर गई थीं।


    अक्षरा को, ना चाहते हुए भी, रजत का गुस्सा याद आ रहा था। अक्षरा को बहुत बुरा लग रहा था कि रजत ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया। जब हम किसी इंसान को पहले बहुत लाड़-प्यार और पैंपर करके रखते हैं ना, फिर अगर हम उस पर जरा सा भी गुस्सा कर लें, तो उस इंसान को वह बात बहुत खटक जाती है। और इस वक्त अक्षरा के साथ भी यही हो रहा था।


    वहीं बाथरूम से निकलने के बाद रजत चारों तरफ नज़र घुमाकर अक्षरा को ढूँढ रहा था। अक्षरा कमरे में कहीं नहीं थी। रजत ने देखा कि बालकनी का गेट खुला हुआ था, तो बालकनी की तरफ जाने लगा। तो उसे अक्षरा के रोने की आवाज़ आई। यह देखकर रजत पागल हो गया और वह भागकर अक्षरा के पास गया।


    और उसे अपनी तरफ़ करके बोला, "क्या हुआ? तुम क्यों रो रही हो? कोई प्रॉब्लम है? क्या कहीं तकलीफ़ है? कहीं दर्द हो रहा है? बताओ ना अक्षरा, तुम चुप क्यों हो? बोलो ना सोना, क्या हुआ है?" लेकिन अक्षरा रजत की किसी बात का जवाब नहीं देती और रजत के हाथों को अपने ऊपर से हटाकर कमरे में चली जाती है।


    रजत अक्षरा का ऐसा व्यवहार देखकर पहले तो हैरान हुआ, लेकिन अभी तक रजत को समझ नहीं आया था कि अक्षरा उसके साथ ऐसा क्यों कर रही है।


    रजत अक्षरा के पीछे-पीछे जब कमरे में आया, तो देखा कि अक्षरा कमरे में थी ही नहीं। रजत सोचने लगा कि उसने ऐसा क्या किया जो अक्षरा नाराज़ हो गई। तब उसके दिमाग में अभी थोड़ी देर पहले वाली बात आई। उसने अपना सर पकड़ लिया और बोला, "मैं भी गुस्से में पता नहीं क्या-क्या बोल दिया। उसे पता नहीं क्या सोच रही होगी मेरे बारे में। मैं अपना वह रूप उसे कभी नहीं दिखा सकता, क्योंकि मेरे गुरु को यह बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे और मैं किसी भी कीमत पर उसे खो नहीं सकता। इसलिए आगे से मुझे अपने गुस्से पर कंट्रोल रखना होगा।"


    फिर अपने दिमाग में सोचा कि कैसे अक्षरा को मनाया जाए। लेकिन उसे पता था कि अक्षरा जब नाराज़ होती है, तो जल्दी मानती नहीं है, और जल्दी नाराज़ भी नहीं होती। लेकिन आज इतनी सी बात पर अक्षरा नाराज़ हो गई थी। रजत के दिमाग में घोड़े दौड़ने लगे। फिर उसे याद आया कि अक्षरा को पानी पूरी बहुत पसंद है, तो उसने किसी को कॉल करके अक्षरा के लिए पानी पूरी मँगवा ली।


    रजत जब हाल में आया, तो देखा कि अक्षरा डाइनिंग टेबल पर बैठी डिनर कर रही थी। उसे डिनर करता हुआ देखकर रजत कुछ नहीं बोला और जाकर अपनी चेयर पर बैठ गया। तभी एक सर्वेंट प्लेट में पानी पूरी लेकर आया और अक्षरा के सामने रख दिया। अक्षरा सर्वेंट की तरफ़ देखकर बोली, "मैंने तो नहीं मँगवाई, फिर ये क्यों लेकर आए?" वह बोला, "सर ने आपके लिए मँगवाई है।"


    अक्षरा सर्वेंट की तरफ़ देखकर बोली, "मेरा डिनर हो चुका है। ऐसा करो, ये पानी पूरी तुम लोग खा लो, क्योंकि थोड़ी देर में ये खराब हो जाएँगी। ठीक है? और मैं अपने कमरे में जा रही हूँ। और हाँ, मेरे लिए सब कमरे में पहुँचा देना।" और वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई। रजत अपने मन में सोचा, "रजत बाबू, बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। आपकी बीवी बहुत नाराज़ है आपसे।"


    अक्षरा कमरे में आकर पूरे कमरे में इधर-उधर देखती रही, लेकिन आज उसका मन नहीं लग रहा था। इसलिए उसने बालकनी का दरवाज़ा खोलकर, वहाँ से एक छोटा सा दरवाज़ा खोलकर, नीचे गार्डन में चली गई, क्योंकि बालकनी सीधे नीचे गार्डन में जाती थी।


    इसके बारे में रजत ने अक्षरा को बताया था और पिछले एक महीने से यहाँ रहते-रहते अक्षरा को भी इस घर की हर एक चीज़ की जानकारी हो गई थी। वह बालकनी से नीचे गार्डन में जाकर झूले पर बैठ गई और सामने आगे चाँद को देखने लगी। आज उसका मन नहीं लग रहा था।


    उसे अपने परिवार की बहुत याद आ रही थी, अपने माँ-बाप की, अपने भाई की। फिर वह अपना फ़ोन निकालकर मिस्टर प्रताप को कॉल लगा देती है। मिस्टर प्रताप कॉल उठाते हैं, तो अक्षरा उनसे बातें करने लगती है। अक्षरा की आवाज़ में उदासी मिस्टर प्रताप पहचान लेते हैं। जब वह उसका कारण पूछते हैं, तो वह कहती है कि उसे सबकी याद आ रही है, अकेला अच्छा नहीं लग रहा है।


    वहीं अक्षरा की बातें उसके पीछे खड़ा कोई सुन रहा था। उसे भी अब बुरा लग रहा था, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। थोड़ी देर मिस्टर प्रताप से बात करने के बाद, अक्षरा सात्विक को फ़ोन लगा देती है। सात्विक भी अक्षरा की उदासी को पहचान जाता है, लेकिन वह कुछ नहीं कहता। वह भी काफी देर अक्षरा से बातें करता है।


    सबसे बातें करने के बाद अक्षरा अपने फ़ोन को साइड में रख लेती है और वहीं झूले पर लेट जाती है और अपने एक पैर से झूले को आगे-पीछे करती रहती है। वहीं थोड़ी दूर पर खड़ा रजत यह सब कुछ देख रहा था। आज रजत को खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसने क्यों अक्षरा पर गुस्सा किया, क्यों उसे वह सारी बातें कहीं। वह बेचारी इतना डर गई है कि वह रजत से बात भी नहीं कर पा रही।


    अक्षरा चाँद को देखते-देखते नींद के आगोश में चली जाती है और दुनिया से बेख़बर, हर चीज़ से बेख़बर, गहरी नींद में सो जाती है। वहीं उसके सो जाने के बाद रजत उसके पास आता है और वहीं घास पर बैठकर एकटक अक्षरा के चेहरे को देखता रहता है। अक्षरा के चेहरे पर अभी भी आँसुओं के निशान बने हुए थे और यह बात रजत को बहुत चुभ रही थी। वह बोला, "माफ़ कर दो यार, गलती हो गई। तुम तो माफ़ी माँगने का भी मौक़ा नहीं दे रही।"


    रजत काफी देर तक अक्षरा को ऐसे ही देखता रहता है, फिर उसे गोदी में उठाकर अपने कमरे में ले जाता है और बेड पर लिटाकर अच्छे से ब्लैंकेट से ढँक देता है।


    तभी रजत का फ़ोन बजने लगता है। रजत अपना फ़ोन लेकर कमरे से बाहर निकल जाता है। उधर मोंटी रजत को बहुत सारी बातें बताता है जो उसने मोंटी को पता करने के लिए बोली थीं। मोंटी कहता है, "सर, मैं सही कह रहा था। आज भी इधर आए थे, तब उन्हें आरोही नाम की लड़की मिली थी, जो यहाँ कैसे आई, किसी को नहीं पता था। और अब वह अपने परिवार के पास वापस जाना चाहती है, लेकिन उसके पास ना तो पैसे हैं और ना ही जाने का कोई साधन। वह मुझसे मदद माँग रही थी।"


    रजत सोचते हुए कहता है, "ऐसा करो, आज रात को उसे यहीं ले आओ घर पर और उसके पासपोर्ट-वीज़ा के इंतज़ाम करके उसे इंडिया भेज दो। ऐसा करो, हम लोग कल इंडिया वापस जा ही रहे हैं, तो वह हम लोगों के साथ इंडिया चली जाएगी। तो तुम आज उसके पासपोर्ट-वीज़ा का इंतज़ाम कर देना।" मोंटी "ओके बॉस" कहकर कॉल काट देता है।


    रजत कमरे में आता है और अक्षरा की तरफ़ देखते हुए कहता है, "जब तुम्हें घरवालों की इतनी याद आ रही है, तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं तुम्हें वहाँ ले जाऊँ। वैसे मेरा यहाँ कोई खास काम नहीं था, मैं तो तुम्हारे साथ अकेला वक़्त बिताने के लिए यहाँ रुका हुआ था। लेकिन मेरी एक छोटी सी गलती ने सब कुछ खराब कर दिया।"


    रजत अक्षरा के पास आकर उसे अपनी बाहों में भरकर लेट जाता है और धीरे-धीरे उसे भी नींद आ जाती है। अगली सुबह जब रजत की नींद खुली, तो वह देखा कि वह बेड पर अकेला था। यह देखकर रजत हैरान हो गया, क्योंकि अक्षरा कभी भी उससे पहले नहीं जाती थी, हमेशा वह ही अक्षरा को जगाया करता था, लेकिन आज अक्षरा रूम में थी ही नहीं। वह तो पता नहीं कब चुपके से कमरे से जा चुकी थी।


    रजत ऐसे ही उठकर कमरे से बाहर आता है और ऊपर रेलिंग पर खड़ा होकर पूरे हॉल को अपनी नज़रों से देखने लगता है, लेकिन उसे अभी तक पूरे हॉल में, कहीं भी अक्षरा नज़र नहीं आई थी। फिर वह सीढ़ियों से नीचे उतर कर आता है और एक सर्वेंट को रोककर अक्षरा के बारे में पूछता है। तो सर्वेंट कहता है, "अक्षरा सुबह-सुबह कहीं चली गई। हमने बहुत पूछने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हमें बताया ही नहीं कि वह कहाँ जा रही हैं।"


    तभी रजत के पीछे कोई आकर खड़ा हो जाता है। जब रजत घूमकर पीछे देखा, तो उसके पीछे आरोही खड़ी थी। आरोही को अपने सामने देखकर रजत को समझ नहीं आता कि वह कौन है। कल रात की बात रजत के दिमाग से निकल गई थी। आरोही रजत की तरफ़ देखकर कहती है, "कैसे हो रजत?" पहले तो रजत ध्यान नहीं देता, फिर आरोही की तरफ़ देखकर कहता है, "मैं ठीक हूँ, आप कैसी हो?" आरोही उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करती है, रजत उसके हाथ पकड़ने से पहले ही दो कदम पीछे हट जाता है।


    आरोही की तरफ़ देखकर कहता है, "मैंने आपको अपने साथ ले जाने के लिए सिर्फ़ इसलिए कहा है, क्योंकि मेरी वाइफ़ चाहती है कि मैं आपकी मदद करूँ। और मेरी मदद करने का आपको गलत मतलब मत निकालना आरोही, क्योंकि मेरी ज़िन्दगी में शिवाय मेरी पत्नी के और कोई नहीं आ सकता।"


    आरोही जाते हुए रजत को देख रही थी। आरोही की आँखें नम हो जाती हैं, क्योंकि यह वही रजत था जो कभी उससे बात करने के लिए, उसके पास आने के लिए, उसकी एक नज़र के लिए कुछ भी कर सकता था। आज वही रजत उससे मुँह फेरकर चला गया था। यह कैसी दुनिया थी? यह कैसी किस्मत थी? जिसमें अक्षरा को अपनी फैमिली ही नहीं मिली और जब मिली थी, तब उसने खुद उन्हें ठुकराया था। आज अक्षरा को अपनी हर एक गलती का एहसास हो रहा था कि उसने क्यों खुद को सब से दूर कर दिया था।


    रजत जब अपने कमरे में आता है, तो गहरी साँस लेकर कहता है, "पता नहीं क्यों उस लड़की से मुझे अजीब सी फीलिंग आ रही है। कैसा लग रहा है जैसे कुछ तो है जो मैं नहीं समझ पा रहा। छोड़ो आरोही के बारे में, यह अक्षरा कहाँ चली गई है? सुबह से दिमाग खराब कर रखा है इस लड़की ने। इतनी सी बात के लिए इतना मुँह फुलाकर बैठी है।"


    रजत तैयार होकर नीचे आता है और मोंटी की तरफ़ देखकर कहता है, "अक्षरा कहाँ है? पता है तुम्हें? लोकेशन ट्रैक करो उसकी।" मोंटी बोला, "सर, लोकेशन ट्रैक करने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्यों? एनी प्रॉब्लम नहीं सर, मैं तो घरवालों के लिए गिफ़्ट लेने माल गई हुई हूँ। इसलिए मैंने आपको नहीं बोला। मैं बात कर के आई हूँ, वह कौन से माल जा रही है।"


    रजत मोंटी की तरफ़ देखकर कहता है, "मैं आरोही को जल्द से जल्द इंडिया भेजने की तैयारी करो। पहले आप ले जाने वाले थे ना आरोही जी को अपने साथ ले जाने वाले थे, लेकिन अभी मेरी बीवी नाराज़ है, तो मुझे उसे मनाना ज़रूरी है। इसलिए इन्हें इंडिया पहुँचाने का काम तुम्हारा है।" मोंटी "ओके बॉस" बोलकर आरोही की तरफ़ चला जाता है। वहीं आरोही एकटक रजत को देख रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे आरोही के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था, जिसका अंदाज़ा किसी को भी नहीं था।


    रजत अपनी गाड़ी लेकर वहाँ से सीधे माल की तरफ़ निकल जाता है, क्योंकि अक्षरा के बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था और पता नहीं क्यों आरोही के पास होने से उसे बहुत ही अजीब सी फीलिंग आ रही थी। और यही सब रजत को बहुत अजीब लग रहा था, इसलिए वह घर से जल्द से जल्द निकल आया। अब उसे गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसने आरोही को अपने घर बुलाया था।


    अक्षरा लगभग सारी शॉपिंग कर चुकी थी और वह माल से बाहर ही आ रही थी कि वहाँ एक गाड़ी आकर रुकती है और अक्षरा के बिल्कुल सामने आकर खड़ी हो जाती है। उसे गाड़ी को देखकर पहचान जाती है कि यह गाड़ी रजत की थी, लेकिन अक्षरा रजत को इग्नोर करके,


    जिस गाड़ी से अक्षरा आई थी, उस गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगती है। रजत गहरी साँस लेता है और अपनी गाड़ी से उतरकर अक्षरा की गाड़ी के पास जाता है। अक्षरा घूरकर रजत को देखती है, तो रजत अपने कंधे उचका देता है। अक्षरा गाड़ी से उतरने लगती है, तो रजत उसका हाथ पकड़कर अपने करीब खींच लेता है और अक्षरा एक झटके में कटी पतंग की तरह रजत की गोदी में जाकर गिरती है। रजत उसके बालों को सहलाते हुए कहता है,


    "रजत, इतना गुस्सा किस बात का है? जरा बताएँगे आप? जरा सा गुस्सा करने पर आप दो दिन से हमसे बात नहीं कर रही हैं। मैं आपसे बोल रहा हूँ, तो बताइए। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मैं पागल हो जाऊँगा तुम्हारे पीछे भागते-भागते। बताओ ना यार, क्यों नाराज़ हो? अच्छा, कुछ नहीं, अपने मुँह फेर लेती है।"


    रजत अक्षरा का चेहरा अपनी तरफ़ करके कहता है, "नाराज़ हो तो ज़ाहिर करो, लड़ाई करो, झगड़ा करो, सामान तोड़ो, लेकिन प्लीज़ इस तरह से साइलेंट मत जाओ। मुझे यह सब कुछ बर्दाश्त नहीं है और तुम्हारे मामले में तो बिल्कुल नहीं।"


    क्या चल रहा है आरोही के मन में?


    दोस्तों, ढेर सारे कमेंट कीजिए। मिलती हूँ आपसे नेक्स्ट पार्ट में।


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  • 19. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 19

    Words: 2512

    Estimated Reading Time: 16 min

    रजत अपनी गाड़ी लेकर वहाँ से सीधे माल के लिए निकल गया क्योंकि अक्षरा के बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। और पता नहीं क्यों, आरोही के पास होने से उसे बहुत ही अजीब सी फीलिंग आ रही थी; यही सब रजत को बहुत अजीब लग रहा था। इसलिए वह घर से जल्द से जल्द निकल आया था। अब उसे गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसने आरोही को अपने घर बुलाया था।


    अक्षरा लगभग सारी शॉपिंग कर चुकी थी और वह माल से बाहर ही आ रही थी कि वहाँ एक गाड़ी आकर रुकी और अक्षरा के बिल्कुल सामने आकर खड़ी हो गई। उसने गाड़ी को देखकर पहचान लिया कि यह गाड़ी रजत की थी, लेकिन अक्षरा रजत को इग्नोर करके...


    जिस गाड़ी से अक्षरा आई थी, उसकी ओर बढ़ने लगी। रजत ने गहरी साँस ली और अपनी गाड़ी से निकलकर अक्षरा की गाड़ी में बैठ गया। अक्षरा घूरकर रजत को देख रही थी। तो रजत ने अपना कंधा उचकाया। अक्षरा गाड़ी से उतरने लगी तो रजत ने उसका हाथ पकड़कर अपने करीब खींच लिया और अक्षरा एक झटके में कटी पतंग की तरह रजत की गोदी में जाकर गिर गई। रजत उसके बालों को सहलाते हुए बोला,


    "रजत इतना गुस्सा किस बात का है? जरा बताएँगे आप? जरा सा गुस्सा करने पर आप दो दिन से हमसे बात नहीं कर रही हैं। मैं... हमसे बोल रहा हूँ, तो बताइए। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मैं पागल हो जाऊँगा तुम्हारे पीछे भागते-भागते। बताओ ना यार, क्यों नाराज़ हो? अच्छा, कुछ नहीं। रहती अपने मुँह फेर लेती है..."


    रजत ने अक्षरा का चेहरा अपनी ओर करके कहा, "नाराज़ हो तो ज़ाहिर करो, लड़ाई करो, झगड़ा करो, सामान तोड़ो, लेकिन प्लीज़ इस तरह से साइलेंट पर मत जाओ। मुझे यह सब कुछ बर्दाश्त नहीं है और तुम्हारे मामले में तो बिल्कुल नहीं..."


    अक्षरा अभी भी रजत की बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी। रजत ने अपनी गर्दन ना में हिला दी और गाड़ी को वहाँ से फुल स्पीड में लेकर निकल गया। वहीं अक्षरा को डर भी लग रहा था क्योंकि रजत की गाड़ी की स्पीड बहुत ज़्यादा थी।


    लेकिन अक्षरा कुछ नहीं बोली। तभी उसने देखा कि रजत की गाड़ी घर की तरफ ना जाकर कहीं दूसरी ही दिशा में जा रही थी। वह फिर भी कुछ नहीं बोली, सामने देखती रही क्योंकि वह रजत को सबक सिखाना चाहती थी कि रजत ने उसे पर गुस्सा क्यों किया और आगे से वह कभी उसे इस तरीके से ना करे। इसलिए वह उसके साथ ऐसा व्यवहार कर रही थी।


    रजत की गाड़ी एक बड़े से फ़ार्महाउस के बाहर जाकर रुकी और रजत गाड़ी से निकलकर अक्षरा के पास आया। उसने गेट खोला और हाथ पकड़कर अक्षरा को बाहर निकाला और फिर उसे उस बड़े से फ़ार्महाउस के अंदर ले जाने लगा।


    अक्षरा कुछ नहीं बोली पर रजत के साथ जाने लगी। जब अंदर गई तो देखा कि पूरा फ़ार्महाउस बहुत खूबसूरत तरीके से सजाया गया था। ऐसा लग रहा था कि आज वहाँ कुछ स्पेशल है। अक्षरा अपनी तिरछी नज़रों से रजत की तरफ देख रही थी तो रजत मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था। फिर वह एक सॉरी कार्ड लेकर आया और घुटनों पर बैठकर बोला, "हम सॉरी सोना, मुझसे गलती हो गई थी। आइंदा से मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा और तुम पर गुस्सा तो कभी नहीं करूँगा..."


    "प्लीज़ जान, माफ़ कर दो ना। तुम नहीं जानती, कल से मुझे कितना बुरा लग रहा है। एक अजीब सा खालीपन और बेचैनी लग रही है। प्लीज़ जान, माफ़ कर दो।" अक्षरा मुँह फेरकर खड़ी हो गई। रजत भी हताश होकर खड़ा हुआ और पीछे से अक्षरा को अपनी बाहों में भरकर बोला, "माफ़ कर दो ना यार..."


    "सोना, तुम जानती हो ना मैं तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूँ। तुम्हारे बिना मैं जीने के बारे में सोच भी नहीं सकता। और तुम मुझे छोड़कर जाना चाहती थी? तुमसे आगे गुस्सा... मैं तुम पर गुस्सा नहीं करना चाहता। मैं तुम्हारे आगे हमेशा हार्ट रेट रहना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कभी मेरी किसी बात का बुरा लगे। बस एक चीज़ का ख़्याल रखना, कभी मुझसे दूर जाने के बारे में मत सोचना..."


    अक्षरा घूमकर रजत की तरफ देखी और बोली, "अगर कभी तुमने मुझसे दूर जाने की कोशिश की या हमारे बीच कोई तीसरा आया, रजत, आई प्रॉमिस, वह दिन हमारे रिश्ते का और हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा। मैं तुम्हें उसके लिए या छोड़कर नहीं जाऊँगी कि तुम उसके साथ अपनी नई ज़िंदगी शुरू करो या उसके साथ अपनी फैमिली बढ़ाओ। जान से मार दूँगी मैं तुम्हें भी, खुद को भी..."


    "मुझे यह बताओ, वह लड़की तुम्हारे घर में क्या कर रही थी?" रजत बोला, "तुम्हीं ने तो कहा था कि उस लड़की की हेल्प करनी है। मैंने बोला था हेल्प करनी है, यह नहीं बोला था कि उसे घर में लाकर बिठा देना है।" अब जाकर असली नाराज़गी का मतलब समझ आया था।


    रजत ने अक्षरा को अपनी बाहों में भर लिया और बोला, "अगर यह बात थी तो एक बार मुझसे बोला तो होता। मैं तो उसे कभी अपने घर के आसपास भी ना आने देता।" अक्षरा रजत के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और बोली, "किसी पर भरोसा नहीं है मुझे अब। रजत, किसी पर भी नहीं। तुम जानते हो ना पिछली बार मेरे साथ क्या हुआ था? उसके बाद भी तुम्हें अनजान लड़की को घर पर ले आए, वह भी बिना मुझसे पूछे और बिना मुझे बताए। तुम्हें क्या लगता है, मुझे अच्छा लगा? नहीं लगा। क्यों तुम्हें किसी भी लड़की को तुम्हारे आसपास बर्दाश्त नहीं कर सकती..."


    "अक्षरा, रजत, मेरी एक बात कान खोलकर अच्छे से सुन लो। तुम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हक़ है, तुम पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है। और अगर हमारे रिश्ते में कभी भी तुमने किसी और को लाने की कोशिश की, तो तुम मुझे बहुत अच्छे से जानते हो और मेरे गुस्से को भी। और तुम यह भी बहुत अच्छे से जानते हो कि मैं अपने लोगों के लिए, अपनी चीज़ों के लिए कितनी पॉज़ेसिव हूँ। और आगे से किसी को भी मेरे घर पर मत लेकर आना..."


    रजत खामोशी से अक्षरा की बातें सुन रहा था। अब उसे डर लग रहा था कि अगर कभी अक्षरा को उसके बारे में पता चल गया तो अक्षरा उसे छोड़कर चली जाएगी। उसकी आँखों में अक्षरा को खो देने का डर भर गया था।


    अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर बोली, "भूख लगी है, चलो लंच करते हैं।" फिर वह दोनों बैठकर लंच करने लगे, लेकिन अक्षरा की बातें सुनकर रजत किन ख़्यालों में खो गया था, यह तो नहीं पता था, लेकिन ऐसी कोई बात तो ज़रूर थी जो रजत अक्षरा से छुपा रहा था।


    और पता नहीं क्यों, यह बात कभी अक्षरा और रजत के रिश्ते में दरार ना बन जाए, इस बात का उसे एहसास हो रहा था। क्योंकि अक्षरा ने जिस तरीके से रजत को सारी बातें कही थीं, अब रजत के दिल में एक डर भर गया था कि कभी अगर वह अक्षरा के सामने आ गई और उसे सारी सच्चाई पता चल गई तो वह कैसे रिएक्ट करेगी।


    अक्षरा रजत को खोया हुआ देख रही थी। "क्या हुआ? कहाँ खोए हुए हो?" रजत अपने ख़्यालों से बाहर आया और बोला, "कुछ नहीं, बस कुछ सोच रहा था!"


    "ऐसा भी क्या सोच रहे थे कि मैं इतनी देर से आवाज़ दे रही थी, तुम्हें मेरी बात नहीं सुनाई दे रही थी?" रजत अक्षरा की तरफ़ देखकर बोला, "आज हम दोनों को इंडिया वापस जाना है। मेरा बहुत अर्जेंट काम है। ओके? चलते हैं, कोई प्रॉब्लम नहीं है..."


    अक्षरा और रजत अपना-अपना लंच फ़िनिश करके फ़ार्महाउस से वापस घर के लिए निकल गए। जब वे घर पहुँचे तो देखा कि आरोही अभी भी हाल में बैठी हुई थी। आरोही को देखकर अक्षरा का मूड ख़राब हो गया। अक्षरा बिना कुछ बोले वहाँ से सीधे ऊपर कमरे की तरफ़ चली गई। वहीं रजत भी अक्षरा के पीछे चला गया। यह सब देखकर आरोही को बहुत बुरा लग रहा था कि जो रजत कल तक उसके आगे-पीछे घूमता था, आज वह रजत किसी और के आगे-पीछे घूम रहा है। यही बात आरोही को बर्दाश्त नहीं हो रही थी।


    मोंटी आरोही के पास आया और बोला, "आप सर के तैयार हो जाइए। थोड़ी देर में हम लोगों को इंडिया के लिए निकलना है।" आरोही ने हाँ बोलकर गेस्ट रूम में चली गई। वहीं ऊपर कमरे में अक्षरा और रजत तैयार हो चुके थे। तभी रजत के पास किसी का कॉल आया।


    रजत ने एक नज़र अक्षरा की तरफ़ देखकर फ़ोन लेकर कमरे से बाहर निकल गया और बाहर जाकर बातें करने लगा। उधर की बातें सुनने के बाद रजत के चेहरे पर परेशानी झलक रही थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ हुआ है।


    अक्षरा और रजत तैयार होकर हाल में आए तो सब लोग पहले से ही वहाँ तैयार खड़े थे और वे लोग बाहर गार्डन में चले गए जहाँ रजत का प्राइवेट जेट खड़ा था। वे सब लोग एक-एक करके जेट में चढ़ गए और थोड़ी देर में जेट आसमान में ऊँचाइयों में कहीं गायब हो गया।


    अक्षरा रजत की तरफ़ देखकर महसूस कर रही थी कि रजत कुछ परेशान है। जब अक्षरा ने रजत से पूछा तो रजत ने काम का बहाना करके बात को टाल दिया और अक्षरा ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया इस बात पर। बारह घंटे बाद रजत का प्राइवेट जेट मुंबई एयरपोर्ट पर लैंड हुआ और वहाँ से सब लोग निकलकर बाहर आए तो वहाँ रजत की गाड़ियों का काफ़िला खड़ा था।


    सब लोग गाड़ियों में बैठकर वहाँ से ओबेरॉय मेंशन के लिए निकल गए, लेकिन रजत ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था। वह अपनी परेशानी में इतना उलझा हुआ था कि वह अक्षरा को एयरपोर्ट पर ही छोड़ आया था और आरोही को अपने साथ ले आया था और यह चीज़ अक्षरा ने देख ली थी। उसकी आँखों में ना चाहते हुए भी आँसू आ गए थे।


    अक्षरा एयरपोर्ट के वेटिंग लाउंज में बैठ गई और अपने मन में सोच रही थी, "क्या रजत के दिल में मेरे लिए कोई फीलिंग्स नहीं है? क्या वह... अक्षरा से इतना प्यार करता था तो उसकी आत्मा को भी पहचानता है। आरोही के रूप में उसे उसकी अक्षरा मिल गई थी, शायद इसलिए वह मुझसे दूर जा रहा है, मुझे भूल रहा है..."


    रजत की गाड़ी जब ओबेरॉय मेंशन के गेट पर रुकी और जब रजत गाड़ी से बाहर निकला तो आस्था जल्दी से भागकर आई और रजत से बोली, "अक्षरा कहाँ है? और यह किसी लड़की को तुम अपने साथ लेकर आए हो?" अब जाकर रजत का ध्यान आरोही पर गया। वह चौंककर दो क़दम पीछे हट गया। फिर वह आरोही की तरफ़ देखकर बोला, "तुम मेरे साथ क्या कर रही थी?" आरोही रजत की तरफ़ देखकर बोली, "एयरपोर्ट पर तुमने मेरा हाथ पकड़कर मुझे गाड़ी में बिठाया था। मैंने तुम्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन तुमने मेरी बात ही नहीं सुनी। अक्षरा कहाँ है? और शायद एयरपोर्ट पर ही रह गई..."


    जाकर रजत को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह गाड़ी लेकर वापस एयरपोर्ट की तरफ़ चला गया। एक घंटे बाद जब रजत एयरपोर्ट पहुँचा तो वहाँ अक्षरा नहीं थी। वह चारों तरफ़ अक्षरा को ढूँढ़ता रहा, अनाउंसमेंट भी करवाया, लेकिन अक्षरा वहाँ थी ही नहीं।


    परेशान हो गया वह। चारों तरफ़ आवाज़ देते हुए अक्षरा को बुला रहा था, लेकिन अक्षरा का कोई जवाब नहीं आया था। वहीं रोड के किनारे इतनी तेज़ बारिश में चलती हुई अक्षरा आगे बढ़ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह अपना सब कुछ हार चुकी है। आसमान की तरफ़ देखकर अपने मन में सोच रही थी, "क्या इसी दिन के लिए आपने मुझे एक नया जन्म दिया था कि मैं फिर से अपनों के ही धोखे का शिकार हो जाऊँ..."


    अक्षरा धीरे-धीरे इतनी तेज़ बारिश में, तूफ़ान में आगे बढ़ती जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि आंधी और तूफ़ान और बारिश का अक्षरा पर कोई असर ही नहीं हो रहा था क्योंकि अक्षरा को बार-बार वही सीन याद आ रहा था जब रजत ने अक्षरा का हाथ छोड़कर आरोही का हाथ पकड़कर उसे गाड़ी में बिठाया था।


    रजत थका-हारा गाड़ी में बैठकर अक्षरा को चारों तरफ़ ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा था। अक्षरा उसे मिल ही नहीं रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह कहीं गायब हो गई। लेकिन उसे आंधी, तूफ़ान और बारिश को देखकर रजत का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसे ऐसा लग रहा था कि कहीं वह एक बार फिर अपनी एक गलती के लिए अक्षरा को खुद से दूर ना कर ले...


    रजत जब घर पहुँचा तो रात के 2:00 बज रहे थे और जब वह अंदर गया तो प्रताप फैमिली और ओबेरॉय फैमिली बैठी उसके ही लौटने का इंतज़ार कर रही थी, लेकिन उसे अकेला आता हुआ देखकर सब परेशान हो गए।


    सब लोग रजत की तरफ़ देखकर बोले, "अक्षरा कहाँ है?" रजत सबकी तरफ़ देखकर बोला, "पता नहीं पापा, कहाँ चली गई। पूरा एयरपोर्ट और मुंबई का सर्कल ढूँढ़ लिया मैंने, लेकिन कहीं नहीं मिली। ऐसा लग रहा था जैसे अचानक से कहीं गायब हो गई..."


    रजत अपना सर नीचा करके ज़मीन को घूर रहा था कि उसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई। तभी अचानक से सात्विक का फ़ोन बजा। जब सात्विक ने फ़ोन पर कॉलर आईडी देखा तो वह बोला, "अक्षरा का कॉल!" अचानक से सब लोग सात्विक के पास खड़े हो गए। रजत घबराकर सात्विक के पास पहुँच गया।


    सात्विक ने कॉल अटेंड की तो दूसरी तरफ़ से अक्षरा की एक भारी आवाज़ आई, "भाई, कहाँ हो आप?" "सात्विक, क्या हुआ बच्चे? तुम्हारी आवाज़... क्या हुआ?" "कुछ नहीं भाई, बारिश में भीगते हुए पैदल प्रताप मेंशन पहुँची हूँ ना, इसलिए आवाज़ में थोड़ा भारीपन आ गया है।" "तू पैदल क्यों गई? पागल! रिक्शा कर लेती।" "भाई, पैसे नहीं थे मेरे पास, कैसे रिक्शा कर लेती? और भाई, आप जल्दी से घर पर आ जाओ, मैं बाहर बैठी हूँ क्योंकि अंदर ताला लगा हुआ है।" "ना, तो तू ओबेरॉय मेंशन क्यों नहीं आई?"


    अक्षरा सात्विक का कोई जवाब नहीं दे रही थी और कॉल कट कर दिया। सात्विक जल्दी से खड़ा हुआ और घर से बाहर निकल गया और उसके पीछे-पीछे आस्था, मिस्टर प्रताप और मिसेज़ प्रताप भी निकल गए। तभी रजत भी अपनी कार से प्रताप मेंशन के लिए निकल गया और उसके साथ मि. और मिसेज़ ओबेरॉय भी।


    जब वे सारी गाड़ियाँ प्रताप मेंशन के आगे रुकीं और सब लोग जल्दी से गाड़ी से बाहर निकले तो सामने अक्षरा की हालत देखकर सबका दिल धड़क से रह गया।


    दोस्तों, ढेर सारे कमेंट कीजिए। मिलती हूँ आपसे नेक्स्ट पार्ट में।


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  • 20. Rebirth Novel ki Duniya mein - Chapter 20

    Words: 2740

    Estimated Reading Time: 17 min

    अक्षरा के कमरे में सब लोग अक्षरा के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे। सात्विक सबकी तरफ़ देखकर बोला, "इस वक्त उसे अकेला छोड़ देना ही उचित है। हम सब लोग बाहर चलते हैं। जब वह बाहर आएगी, तो हम सब उससे बात कर लेंगे।" सब लोगों को सात्विक की बात ठीक लगी, तो सब लोग कमरे से बाहर चले गए। उनके बाहर जाते ही, अक्षरा बाथरूम से बाहर आई और अपने कमरे को देखा। आज उसे यह कमरा अजनबी लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि यहाँ उसका कोई अपना नहीं है। उसके साथ कितना बड़ा हादसा हुआ था, लेकिन कोई एक बार भी उसे देखने और पूछने नहीं आया था। यही बात अक्षरा को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ दे रही थी!


    अक्षरा के मन में सबके लिए गलतफ़हमी पनप रही थी, जो शायद आगे चलकर उसके मन में सबके लिए गलतफ़हमी पैदा कर देगी। सब फैमिली इस बात से अनजान थी। अक्षरा बेड पर लेटकर अपनी आँखें बंद कर लीं और पूरे दिन की थकान और मानसिक तनाव के बाद वह गहरी नींद में सो गई। जब सब लोग अक्षरा का इंतज़ार करते-करते थक गए, तो फिर एक बार सब कमरे में आए और देखा कि अक्षरा गहरी नींद में थी।


    सब लोग उसके पास आकर बैठ गए और पूरी रात उसी के पास रहे। रजत खड़ा होकर अक्षरा की हालत देख रहा था। आज उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि वह अपनी इतनी परेशानी में उलझा हुआ था कि उसने अक्षरा पर ध्यान नहीं दिया। अगर वह अक्षरा पर ध्यान देता और उसे एयरपोर्ट पर छोड़कर नहीं जाता, तो आज अक्षरा के साथ यह सब कुछ नहीं होता। लेकिन अब पछताने से कुछ नहीं होने वाला था; जो होना था, हो चुका था।


    अक्षरा जब सुबह उठी, तो देखी कि वह कमरे में पूरी तरह से अकेली थी। कोई नहीं था उसके कमरे में। वह चारों तरफ़ देखती है, फिर कमरे को लॉक कर लेती है, बालकनी लॉक करके सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े लॉक कर लेती है, और बेड पर बैठकर अपनी पिछली और वर्तमान ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगती है। वह धीरे-धीरे डिप्रेशन में जा रही थी, जिस बात का शायद किसी को अंदाज़ा नहीं था। हादसे ने अक्षरा का मन तोड़कर रख दिया था, और ऊपर से उसका किसी से बात ना करना उसके दिल में हज़ारों घाव दे रहा था। अक्षरा बाथरूम में गई और बाथटब में बैठ गई।


    अक्षरा ने बाथटब में पानी खोल रखा था। धीरे-धीरे बाथटब पूरा भर गया और अक्षरा धीरे-धीरे पानी में डूबने लगी। रजत काफ़ी देर से अक्षरा के कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अक्षरा ने कमरा अनलॉक नहीं किया था। रजत ने अक्षरा के कमरे का पासवर्ड तोड़कर जब कमरे में आया, तो अक्षरा कमरे में नहीं थी। वह बाथरूम का गेट खटखटाता है, लेकिन कोई आवाज़ नहीं आती। उसने जबरदस्ती बाथरूम के गेट को तोड़कर जब अंदर देखा, तो रजत की साँस रुक गई क्योंकि अक्षरा पूरी तरह से टब में डूब चुकी थी। रजत भागकर जाकर अक्षरा को टब से बाहर निकाला।


    रजत तेज आवाज़ देकर सबको ऊपर बुलाने लगा। जब सब ऊपर आए, तो रजत ने सारी बात बताई। सब रजत की बात सुनकर परेशान हो गए। तभी रजत ने देखा कि बेहोशी की हालत में भी अक्षरा अपने हाथों पर इधर-उधर खरोंचें बना रही थी, चिल्ला रही थी और कह रही थी, "छोड़ दो उसे, छोड़ दो!" और ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे दबा रहा था और अक्षरा अपने हाथों पर मार रही थी।


    अक्षरा की यह हालत फैमिली के लिए अच्छी नहीं थी। सबसे ज़्यादा हालत रजत की खराब थी, क्योंकि रजत अक्षरा से प्यार करता था। अक्षरा की यह हालत रजत बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। अक्षरा बुरी तरह से चीख रही थी, चिल्ला रही थी, और बेहोशी में भी किसी को अपने पास नहीं आने दे रही थी। अक्षरा की हालत देखकर रजत का गुस्सा काबू से बाहर हो चुका था।


    रजत कमरे से बाहर निकल गया और किसी को कॉल करके पुलिस स्टेशन से आठ लड़कों को पकड़ने का हुक्म दिया और कहा, "उनकी ऐसी हालत करना कि मेरे आने तक वे मौत की भीख माँगने लगें, लेकिन उन्हें मौत नसीब नहीं होनी चाहिए!"


    रजत का गुस्सा उसके काबू से बाहर हो चुका था, लेकिन वह फिर भी खुद को संभाल रहा था क्योंकि अक्षरा की कंडीशन बहुत खराब थी। धीरे-धीरे अक्षरा को होश आने लगा। जब उसे होश आया, तो सब लोग उसके पास खड़े थे। उसने एक नज़र सबको देखा और फिर अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह किसी से बात ही नहीं करना चाहती थी।


    अचानक एक चेहरा अक्षरा के मन में आया। अक्षरा अपनी आँखें खोलकर देखती है तो रजत के बगल में आरोही खड़ी थी। आरोही को रजत के साथ देखकर अक्षरा की आँखें नम हो गईं और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।


    सब लोग अक्षरा से बात करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह किसी से कोई बात नहीं करती और चुपचाप आँखें बंद किए रहती है। रजत सबको कमरे से बाहर जाने के लिए कह देता है। सबको रजत की बात ठीक लगती है, क्योंकि रजत ही था जो अक्षरा को ठीक कर सकता था। इसीलिए सब लोग बाहर चले जाते हैं, लेकिन आरोही अभी भी वहीं खड़ी थी।


    रजत अक्षरा के पास जाकर बैठ जाता है और उसके बालों में हाथ फेरने लगता है। फिर उसे उठाकर खुद की गोद में बिठा लेता है, लेकिन इन सब के बावजूद भी अक्षरा ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, जैसे उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ा हो। रजत अक्षरा को अपने सीने से लगाकर कहता है, "बहुत डर गया था मैं जब तुम नहीं मिल रही थीं। ऐसा लग रहा था कि मेरी साँसें रुक गई हैं!"


    अक्षरा अपनी आँखें खोलकर रजत की तरफ़ देखती है, फिर उसकी गोद से उठकर बेड पर साइड में बैठ जाती है और कहती है, "मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि तुम्हें मेरी याद आई होगी।" रजत कन्फ़्यूज़न में अक्षरा को देखता है। अक्षरा सीधे उसके सामने आकर कहती है, "तुम्हारे पास अगर मैं होती, तो फिर तुम्हें मेरी याद क्यों आई होती?" अब जाकर रजत का ध्यान आरोही पर गया और रजत की आँखें चौड़ी हो जाती हैं, क्योंकि अक्षरा को ढूँढ़ने के चक्कर में रजत ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था।


    अक्षरा बाथरूम की तरफ़ इशारा करके कहती है, "कोई बात नहीं, मैं समझ गई। और अगर आप दोनों एक-दूसरे के साथ वक़्त बिताना चाहते हैं, तो प्लीज़ मेरे कमरे से बाहर चले जाइए, क्योंकि मैं अपने कमरे में अजनबियों को नहीं आने देती।" और रजत की तरफ़ देखकर बाथरूम में जाकर गेट बंद कर देती है।


    रजत आरोही के पास आता है और कहता है, "आपने मेरी वाइफ़ से कहा था कि आपको इंडिया आना है। हम लोग आपको इंडिया ले आए, उसके बाद भी आप मेरे घर में क्या कर रही हैं? और अब मेरी वाइफ़ के कमरे में? देखिए, आप जो भी हों, आपने सिर्फ़ हमसे इतनी मदद माँगी थी कि हम आपको इंडिया तक पहुँचा दें। हमने आपको पहुँचा दिया। और प्लीज़, आज की बात कभी भी मेरे या मेरी फैमिली के किसी के भी पास आने की, या मदद माँगने की, या किसी भी चीज़ के लिए आने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हम आपकी इतनी ही मदद कर सकते थे, इससे ज़्यादा नहीं।"


    आरोही गुस्से में बाथरूम के दरवाज़े को देख रही थी। फिर रजत की तरफ़ देखकर कहती है, "तुम ऐसी लड़की के लिए मुझे ऐसी बातें कर रहे हो? अरे, मैं इससे ज़्यादा अच्छी हूँ, समझदार हूँ, शांत हूँ!" रजत मुस्कुराते हुए कहता है, "मैंने उसे इसलिए प्यार नहीं किया था कि वह शांत है। मैंने उसे उसके दिल से प्यार किया था, जो दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। उसने तुम्हारी भी मदद की, तो तुम्हें उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। और प्लीज़, अब यहाँ से चली जाओ और फिर कभी भी हम में से किसी के भी पास मिलने की कोशिश मत कीजिएगा। अब आप जा सकती हैं, क्योंकि मैं आपके साथ कोई भी बात डिस्कस नहीं करना चाहता, क्योंकि आप मेरे लिए मैटर नहीं करतीं।"


    आरोही रजत की तरफ़ देखकर कहती है, "हम दोस्त बन सकते हैं ना, रजत?" रजत आरोही की तरफ़ गुस्से में घूमता है और कहता है, "नहीं, क्योंकि मैं तुम्हें नहीं जानता। इस दुनिया में मेरी सिर्फ़ एक दोस्त है, थी और रहेगी, और उसके अलावा मैं कभी किसी को ना तो दोस्त बनाऊँगा, ना कुछ और। तो प्लीज़, इससे अच्छा होगा कि आप अभी यहाँ से जाओ, क्योंकि मुझे गुस्सा नहीं करना चाहिए, वरना मुझे आपको धक्के मारकर यहाँ से निकालना होगा।"


    आरोही कमरे से बाहर आकर एक नज़र कमरे को देखती है और घर से बाहर चली जाती है। बाहर आकर वह एक टैक्सी लेती है और वहाँ से सीधा अपने अपार्टमेंट चली जाती है, जो उसने अक्षरा के रहते हुए अपने लिए लिया था, क्योंकि इस अपार्टमेंट के अलावा उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। कल से उसे जॉब की तलाश करनी थी।


    अक्षरा बाथरूम से बाहर आती है तो देखती है कि कमरे में इस वक़्त सिर्फ़ रजत था। अक्षरा बिना रजत की तरफ़ देखे, आईने के सामने खड़ी होकर अपने बालों को सुखाती है और फिर बालकनी में जाकर खड़ी होकर सूरज को देखने लगती है, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी भी ऐसी ही हो गई थी।


    रजत अक्षरा के पास आकर बैठ जाता है और कहता है, "एयरपोर्ट से कहाँ चली गई थीं तुम?" एयरपोर्ट का ज़िक्र होते ही अक्षरा का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपना चेहरा घुमा लेती है, रजत की तरफ़ नहीं देखती। अक्षरा की आँखों में इतना गुस्सा देखकर एक पल को रजत भी काँप जाता है, लेकिन उसे जानना था कि हकीक़त में अक्षरा के साथ क्या हुआ था।


    अक्षरा के अंदर आँचल थी, और आँचल का गुस्सा था, क्योंकि पिछले जन्म में उसके अपनों ने उसे धोखे से मार दिया था, और इस जन्म में ऐसा कुछ हो रहा था। उसे पिछला जन्म आज पर हावी होते हुए दिख रहा था। अक्षरा गुस्से में रजत की तरफ़ देखती है और कहती है, "तुम जैसे मर्दों को न सिर्फ़ नई-नई औरतों की ज़रूरत होती है, जैसे पहले तुम्हें मेरी थी। क्योंकि मैं तुम्हें मिली नहीं थी, अब तुम्हें आरोही की ज़रूरत है, मेरी नहीं। चाहिए मिस्टर रजत? मुझे आपसे कोई लेना-देना नहीं है!"


    अक्षरा की बात सुनकर रजत अक्षरा को हैरान नज़रों से देखने लगता है, अक्षरा के चेहरे की तरफ़ देखने लगता है, क्योंकि आज अक्षरा के चेहरे पर ना प्यार था, ना अपनापन। आज उसकी आँखों में सिर्फ़ खालीपन था, एक ऐसा खालीपन जिसमें रजत खुद का अक्स ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा था।


    रजत अक्षरा के चेहरे को पकड़कर खुद के करीब करता है और कहता है, "आज तो यह बात बोल दी तुमने, लेकिन आइन्दा अगर यह बात बोली ना सोचना, तो तुम जानती हो मुझे। मैं जितना अच्छा हूँ, उतना बुरा भी हूँ। मानता हूँ मुझे उस वक़्त गलती हो गई। मैं परेशान था, किसी प्रॉब्लम में था, तुमसे शेयर नहीं कर पाया, इसलिए तुम्हारी जगह उस लड़की का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले आया। लेकिन जब तुमने मुझे देखा, तो तुम मुझे आवाज़ दे सकती थीं, मुझे रोक सकती थीं। क्यों नहीं रोका तुमने मुझे?" अक्षरा अचानक से बहुत तेज़ साँस लेने लगती है। अक्षरा की हालत देखकर रजत डर जाता है।


    रजत अक्षरा को अपने सीने से लगाकर उसकी पीठ को सहलाने लगता है और उसके कान में कहता है, "शान्त हो जाओ, प्लीज़, रिलैक्स, कुछ नहीं हुआ। मैंने बोला ना, रिलैक्स, रिलैक्स।" और उसकी पीठ को सहलाने लगता है। जब भी अक्षरा नॉर्मल नहीं होती, तो रजत उसकी गर्दन पर एक उंगली प्रेस कर देता है और अक्षरा रजत की बाहों में शांत हो जाती है।


    अक्षरा को बेड पर लिटाने के बाद रजत कमरे से बाहर आता है और डॉक्टर को कॉल करके सारी बात बताता है। तो डॉक्टर कहता है कि उनके दिमाग पर इस चीज़ का गहरा असर पड़ा है कि आप उन्हें छोड़कर किसी और को अपने साथ लेकर आ गए, फिर उनके साथ वह हादसा, जिस वजह से उनका दिमाग इस चीज़ को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है कि आप उनके हैं। रजत डॉक्टर को बोलता है कि आप आकर एक बार उसका चेकअप कर दीजिए।


    एक घंटे बाद डॉक्टर अक्षरा को चेक कर रहे थे और पूरी फैमिली कमरे के बाहर डॉक्टर के बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी।


    डॉक्टर बाहर आकर रजत की तरफ़ देखते हैं और कहते हैं, "आपकी वाइफ़ की कंडीशन सच में बहुत खराब है, क्योंकि उनके दिमाग पर गहरा असर हुआ है उस हादसे का, और शायद इससे पहले भी उनके साथ ऐसा कुछ हो चुका है, जिसकी वजह से वह डिप्रेशन का शिकार हो गई है, और अब उन्हें ऐसी-ऐसी चीज़ें नज़र आती हैं जो इस दुनिया में हैं ही नहीं। जैसे आपने बताया कि आपकी वजह से एक लड़की को देखकर ओवर रिएक्ट करने लगी थीं। आपको उनका ख़ास ख़्याल रखना होगा।"


    डॉक्टर की बात सुनकर पूरी फैमिली परेशान हो जाती है, क्योंकि हँसती-खेलती बेटी को आकर क्या हो गया? और एक हादसे ने उसे किस क़दर तोड़ दिया? वह इतनी कमज़ोर तो नहीं थी कि कोई हादसा उसे इस तरह तोड़कर चला जाए, लेकिन अगस्त के साथ जो हुआ था उसके बाद शायद यह हादसा उसके लिए बहुत बड़ी बात थी।


    वहीं अगस्त के ऑफ़िस में अगस्त का सेक्रेटरी अगस्त को अक्षरा की हालत की जानकारी दे रहा था। जैसे-जैसे वह अक्षरा के बारे में बता रहा था, वैसे-वैसे अगस्त का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वह अपनी मुट्ठी बन्द करके कहता है, "मुझे वे लोग चाहिए अभी के अभी, क्योंकि मैं उन्हें अपनी आँखों के आगे सज़ा देना चाहता हूँ, जिन्होंने मेरी अक्षरा को छूने की गलती की है, उसे परेशान किया है, उसकी ऐसी हालत की है। मैं उन्हें ऐसी मौत दूँगा कि वे जिन्दगी में कभी भी दोबारा उसकी तरफ़ उठाकर देखने की कोशिश नहीं करेंगे।"


    अगस्त गुस्से में अपने ऑफ़िस से बाहर निकल जाता है और वहाँ से गाड़ी लेकर प्रताप मेंशन के लिए निकल जाता है, क्योंकि अब उससे इंतज़ार नहीं हो रहा था। वह अक्षरा को देखना चाहता था। अक्षरा को देखे बिना अब उसे चैन नहीं आने वाला था। प्रताप मेंशन के बाहर एक साथ पाँच से छह गाड़ियाँ आकर रुकती हैं और बीच वाली गाड़ी से अगस्त बाहर निकलता है और बिना किसी पर ध्यान दिए वह घर के अंदर चला जाता है।


    अगस्त जब अक्षरा के कमरे के बाहर पहुँचता है, तो वह डॉक्टर की सारी बातें सुन लेता है। अचानक वह डॉक्टर का कॉलर पकड़कर कहता है, "और तू कैसे कहता है कि उसकी मेंटल कंडीशन खराब हो रही है?" वहीं अगस्त को अपने सामने देखकर डॉक्टर की हालत खराब हो जाती है। वहीं अगस्त को वहाँ देखकर प्रताप फैमिली, ओबेरॉय फैमिली और रजत सब चौंक जाते हैं।


    अगस्त डॉक्टर की तरफ़ देखकर कहता है, "तेरा काम डॉक्टर, पेशेंट को ठीक करना है, और ठीक कर अक्षरा को। अगर वह ठीक नहीं हुई ना, तो तू चलने लायक नहीं रहेगा, याद रखना इस बात को।" और डॉक्टर को धक्का दे देता है। रजत अगस्त की तरफ़ देखकर कहता है, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की?"


    अगस्त हँसते हुए रजत की तरफ़ देखता है और कहता है, "तुझे अपनी बीवी का ख़्याल तो रखा नहीं गया, मुझे क्यों गुस्सा दिखा रहा है? अगर उसे वक़्त पर किसी और लड़की पर ध्यान देने की बजाय अपनी बीवी पर ध्यान दिया होता, ना तो आज उसकी यह हालत नहीं होती। पहले ही वह मेरी वजह से इस क़दर टूटी हुई है कि शायद उसके अंदर जीने की इच्छा भी ना हो, और तुमने भी उसके साथ वही किया जो एक बार मैं कर चुका था—उसे सुनसान सड़क पर अकेला छोड़ आया था और कुछ लोगों ने उसे उठाकर ले गए थे और उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी। वह पहले इस हादसे का शिकार हो चुकी है और दोबारा वही हादसा उसकी ज़िन्दगी को झकझोरकर रख चुका है!"


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