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आंखो में बसे हो तुम

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Kusum Sharma

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आंखों में बसे हो तुम दिल में बसे हो तुम मेरी नस-नस में हो तुम !! कहकर जय हंसा..... " सच में आप बहुत पागल हैं......ऐसे जोर से कोई बोलता है क्या ???? " लड़की नकली गुस्सा करते हुए " जय ने अब डरना छोड़ दिया है....और...

Total Chapters (35)

Page 1 of 2

  • 1. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 1

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    गलतफहमी की दरार ने दो दोस्तों के बीच दुश्मनी की एक गहरी खाई बना दी। करण और जय की दोस्ती में मयूरी के कारण आई दरार, इन दोनों की दोस्ती फिर से हो जाएगी या फिर दुश्मनी का नया अध्याय शुरु होगा। करण, मयूरी और जय के बीच उठे बवंडर में कौन किसके साथ होगा जानने के लिए "आंखो में बसे हो तुम" पढ़े। ***** आंखों में बसे हो तुम दिल में बसे हो तुम मेरी नस-नस में हो तुम !! कहकर जय हंसा..... " सच में आप बहुत पागल हैं......ऐसे जोर से कोई बोलता है क्या ???? " एक लड़की नकली गुस्सा करते हुए बोली। " जय ने अब डरना छोड़ दिया है....और वैसे भी कुछ दिन की बात है फिर हम शादी करेंगे।...." जय कालेज बिल्डिंग की छत की दीवार पर बैठकर लड़की को देखते हुए कहा जो मासूमियत से उसे ही देख रही थी। लड़की सहमकर बोली " जय हमें नहीं लगता, हमारे दादाजी हम दोनों की शादी के लिए मानेंगे? उन्हे अपनी इज्जत और मान-प्रतिष्ठा सबसे प्यारी है और दूसरी जाति में तो बिलकुल भी नहीं.......(उस लड़की की आंखो में पानी भर आया। )जय हम क्या करें ? हम आपके बिना भी न रह सकेंगें।" जय ने उस लड़की का हाथ पकड़कर " एग्जाम हो जाने दो फिर हम मंदिर में शादी करेंगें। चाहे पूरी दुनिया विरोध में खड़ी हो जाए। " लड़की हाथ छुड़ाकर दो कदम दूर होकर बोली" आपके परिवार का सम्मान है तो हमारे दादाजी शहर के जाने-माने विद्वान पंडित है....हम ऐसा सोच नहीं सकते। जय जो भी निर्णय लेना है हमें अपने परिवारों को देखकर लेना होगा।" जय नाराजगी से " फिर ठीक है यह हम दोनों का लास्ट ईयर है, तुम्हारे दादाजी कहे वैसे ही कर लेना, मेरा जो होना है हो जाएगा। एक बात ध्यान रखना जिस दिन जय चौधरी को पता चला तुम किसी ओर की होने वाली हो तो उस इंसान की खैर नहीं।" जय बोलते हुए गुस्से से भर उठा। वह लड़की गर्दन झुकाकर रोती हुई " जय हम आपके बिना नहीं रह पायेंगे लेकिन घर वालों का विरोध भी हमसे न होगा। हमारी मां नहीं है और भाभी...उनकी बात छोड़ दो। चाची कभी खुद के लिए न बोल सकी तो हमारे लिए क्या बोलेंगी वो भी जब....जब बात घर के सम्मान पर आए।" " अरे यार जय! तुम दोनों कितनी बातें करोगे?.....चल नीचे चल ! इसका भाई भी ढूंढ रहा है और आप पहले जल्दी से नीचे जाइए।" एक अन्य लड़का छत पर आते हुए बोला। वह जल्दी में ऊपर आया था इसलिए हांफ रहा था। "करण जब तुझे प्यार होगा ना, तब तुमसे पूछूंगा।" जय ने दूसरे लड़के के गले में हाथ डालकर कहा। वह लड़की वहां से जाने लगी तो जाते हुए उन दोनों की आवाज कान में पड़ी। "ना मुझे नहीं चाहिए ऐसी आफत जो जिंदगी को तहस-नहस कर दे।" करण ने कोहनी तक हाथ जोड़े और उसका हाथ पकड़कर दीवार से नीचे उतार दिया। ***** दूसरा लड़का जहन में आते ही कुछ देर पहले की घटना याद कर दुल्हन के वेशभूषा में बैठी लड़की रोने लगी और रोते -रोते थक गई। वह अपनी किस्मत को कोसते हुए सोच रही थी कि जय ने उसे धोखा क्यों दिया ? मेरे प्रेम में क्या कमी थी? फिर क्यों कहा कि हम दोनों जीवन भर एक दूसरे का साथ निभायेंगें ? सिर्फ आपके लिए अपने दादाजी का सर शर्म से झुका दिया ! क्यों जय?.....क्यों जय आपने ऐसा क्यों किया?....आप क्यों नहीं रुके जय.....एक कायर की तरह भाग गए......आपसे एक घंटे इंतजार नहीं हुआ....तो जिंदगी भर क्या इंतजार कर पाते.......सब बंधनों को दरकिनार कर के , घर छोड़ आई थी.....सिर्फ आप पर विश्वास करके मगर जय आप अपना प्यार  न निभा सके। उस लड़की के बेबसी और बेकसी से आंसू लगातार बहते जा रहे थे ! जबसे इस रूम में आई है तब से कमरे के एक कोने में दुबकी रो रही थी। उसका अपना द्वंद्व उसे घेरे था। वह जय से अपने सवालों के जवाब मांगना चाह रही थी किंतु जिसने सहारा दिया वो तो दिखाई न दे रहा था। वह जोर से चीख कर अपनी आत्मसंतुष्टि भी नहीं कर सकती थी । जाने वो कहां है?....कौन लोग है?....जो लाया है उसे भी पूरी तरह नहीं जानती और उसने ऐसा क्यों किया ? क्यों उसने अपनी इच्छा थोप दी। वह किसी से कुछ न चाह रही थी सिर्फ अपनी इच्छा से मुक्ति....लेकिन वो भी नियती को मंजूर ना थी। दिन का छठा पहर जाने को और सांतवा ( रात 12-3 बजे ) पहर आने को था,उस बड़े शाही रूम वह लड़की अकेली बैठी रो रही थी जो शादी करके लाया है उसका पता नहीं था जैसे अपराध करके मुजरिम छिपता है शायद उसी तरह वो छिप गया हो। उसे अपने किए का पछतावा हो। घर की मुलाजिमा ही उसे इस कमरे तक लाई थी और उसे छोड़कर वापस चली गई। उस लड़की को अपने किए का अह्सास हो रहा था, वह शादी का जोड़ा पहने ही कोने में निढाल सी बैठ गई। लड़की का दिमाग सोच सोच कर फटने लगा था। अपने घर वालों के बारे में और जो शादी करके लाया है उसके बारे में , उन सब से ऊपर जय जो उसे मंदिर में आने से पहले ही छोड़कर चला गया था। जाने क्यों...क्यों खेल रहा था उसके साथ.....उस के जज्बातों के साथ.........सब के विरुद्ध जाकर उसने जय के साथ शादी करने का वादा किया था। एक राजनितिज्ञ का बेटा था। राजनेताओं की संतान जो करती है, वही गुण उसमें भी हो जिसे वह पहचान पाने में असमर्थ रही हो। वो लड़की इधर-उधर कुछ ढूंढने लगी ! उस नए कमरे में उसे कुछ न दिखा तो अपनी चुन्नी याद आई ,रूम में ही दो क्लासिकल चेयर के साथ रखे स्टूल को उठाकर बैड पर रखने लगी ! स्टूल भारी होने के कारण नाजुक सी लड़की को काफी मशक्कत करनी पड़ी ! बैड पर खड़ी हो चुन्नी का फंदा बनाकर आत्महत्या का प्रयास करने लगी ! बस यही सोचकर कि " जो भी हुआ है उसमें वह खुद अपराधी है.....उसने जय पर भरोसा कर के बहुत गलत किया है....सबका दिल दुखाया है.....हमें जीने का हक ही नहीं है....." क्रमशः*****

  • 2. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 2

    Words: 1525

    Estimated Reading Time: 10 min

    AMBHT-2 बैड पर खड़ी हो चुन्नी का फंदा बनाकर आत्महत्या का प्रयास करने लगी ! बस यही सोचकर कि " जो भी हुआ है उसमें वह खुद अपराधी है.....उसने जय पर भरोसा कर के बहुत गलत किया है....सबका दिल दुखाया है.....हमें जीने का हक ही नहीं है....." दूसरी तरफ नीचे उसी घर में देवी सिंह अपने चारों पुत्रों के साथ खड़े थे ! पृथ्वी सिंह ,उम्मेद सिंह , चंद्र सिंह ओर अजय सिंह सामने लड़का अपराधी न होकर भी अपराधी बन खड़ा था !...... पृथ्वी सिंह ने आगे बढ़कर लड़के के थप्पड़ लगा दिया ! घर की औरतें कुछ रसोई घर में थी तो कुछ छत पर खड़ी थी यह देख हैरान रह गई ! पृथ्वी "  करण तुमने क्या किया है तुम्हे पता है...... वो हमारे महाराज की पौती है......ब्राह्मण की बेटी है....हम घनश्याम दास जी से क्या कहेंगें.....उनकी नजरों में गिरा दिया...." बीच में एक लड़का बोला "  बाबा सा कम से कम भाई सा की पूरी बात सुनते....उन्होने ऐसा क्यों किया...." पीछे खड़े सभी पुरुषों को देखकर " और आप सब मौन खड़े हैं....इनको कुछ कहिए....समझाइए....." देवी सिंह जोर से " परमवीर ....... जब बड़े बोल रहे हो तो छोटों को बोलने की इजाजत नहीं है...... " इतना बोल देवी सिंह अपने में जाते हुए लड़के को भी आने के लिए कहा और सभी को अपने अपने कमरों में जाने के लिए कहा ! कमरे में सोफे पर बैठे देवी सिंह ने पास आकर बैठने का इशारा करते हुए " कुंवर करण बोलिए..... " करणी " दादा सा हमें माफ कीजिए.....इतनी रात में हमारा किसी को परेशान करने का इरादा नहीं था.....और हमने कुछ भी जानबूझकर गलत नहीं किया है ! हम अपना राजपूत धर्म का निर्वाह कर रहे थे ! बस इसी निर्वहन में हमें ये सब करना पड़ा..... " देवी सिंह सिर पर हाथ रखकर " ऐसी क्या मजबूरी थी कि बात विवाह तक पहुंच गई !" करण मुंह पर हाथ रखकर " जय इस लड़की से शादी करने वाला था और मैंने ही इस लड़की को जय तक सुरक्षित पहुंचाने का वादा किया था ! मैं उसकी सहेली के यहां से लेने गया था ! इसके तैयार होने तक में इसके परिवार वालों को पता चला कि वह वहां नहीं है तो उन्होने किडनैपिंग की रिपोर्ट दर्ज करवा दी और पुलिस ने नाकाबंदी लगा दी ! एक घंटे देरी से किसी तरह वहां पहुंचे तो कोई नहीं था ! पंडित मंदिर के कपाट बंद कर रहे थे ! उसने यह समझा कि उसके साथ धोखा हुआ है और मैन मंदिर में जाकर मैया के हाथों से छोटी सी कटार थी उसे लेकर मरने की कोशिश की थी....बस मुझे उससे शादी करनी पड़ी ! " देवी सिंह ने उसे जाने के लिए कहा !.....करण अभी कमरे में पहुंचा ही था कि सामने का दृश्य देख चिल्लाकर भागता हुआ  " मयूरी.....मयूरी....रुको......" बैड पर चढ़कर मयूरी के हाथ से चुन्नी का फंदा छीनते हुए स्टूल से हाथ पकड़कर जबरदस्ती उतारते हुए " आप पागल हो गई है....." " करण मर जाने दीजिए.....मत रोकिए......हम इसी लायक है ......जय के झूठे प्यार के बदले हमने अपने परिवार का विश्वास तोड़ा है....." फंदा लेने की कोशिश करते हुए करण ने लात मार कर स्टूल नीचे गिराकर मयूरी को वहीं लेकर बैठ गया ! मयूरी के आंसुओ से भरे चेहरे को देख कर गले से लगाते हुए " हुकुम आपने तो जय तक ही अपनी जिंदगी सीमित कर ली ! सोच को विस्तार दीजिए आपका वर्तमान और भविष्य हम हैं , जय आपका अतीत है.....आप मेरी अर्धांगिनी हैं.....हमने सात फेरों के साथ सात वचन लिए हैं ! कम से कम एक राजपूत अपने वचन को मरते दम तक निभाएगा और जहां तक हमें पता है एक पत्नी भी अपने धर्म से च्युत नहीं होती और आज आप अपने धर्म से विमुख हो रही थी....." मयूरी रोती हुई " करण हम क्या करें !......हम इतने पागल हो गए थे जय के प्यार में.....हमें लगा कि नेता के परिवार में भी इंसान ही रहते है.....उनके सीने में भी दिल होता है....." करण मयूरी का सिर सहलाते हुए " जय ऐसा नहीं है जरूर कुछ ऐसा हुआ होगा !" मयूरी दूर होकर आंसू साफ करते हुए " आप के पक्के वाले दोस्त हैं इसलिए...." करण चुनरी को सही करके मयूरी के गले में डालते हुए " इसमें कोई संदेह नहीं है......." मयूरी हैरान सी करण को देख रही थी कि तभी गेट बजा ! करण मयूरी से दूर हो कर गेट की तरफ आया तो सामने राजपूती ड्रेस पहने दो महिला खड़ी थी , जिनमें एक मयूरी की हमउम्र थी तो दूसरी की पैंतालीस-पचास के लगभग थी ! करण ने आगे बढ़कर एक के पैर छुकर " मां सा आपने क्यों कष्ट किया !..... वर्षा बाई सा ले आती खाना....." सीमा ने करण के उस गाल को छूकर जिस पर पृथ्वी ने थप्पड़ मारा था ' पूछा " दर्द हो रहा है ????...." करण नजरें झुकाकर " वो भी अपनी जगह सही है....ऐसे अचानक से हुई क्रिया पर यही प्रतिक्रिया होगी....." सीमा मुड़कर " वर्षा  खाना रख दो......." करण ने स्टूल को सीधा किया ! मयूरी खुद में ही सिमट रही थी ! उसकी हिम्मत न हुई कि वह नजर उठाकर किसी को देख सके ! सीमा ने दाल-भात को मिक्स कर एक चम्मच करण के मुंह में दे दिया ! करण सीमा के हाथ से चम्मच लेकर " मां सा आप निश्चिंत होकर सो जाइए ! सब ठीक है !" सीमा हथेली करण के गाल पर हाथ रखकर " सच में....." सीमा को गले लगाकर " मुझे छोड़िए  परमवीर को संभाले आज बाबा सा के कोप का भाजन बन जाता.... " सीमा दूर होकर बाहर निकलते हुए " ह्म्म्म्म ! बाहर  रहकर बहुत बिगड़ गया है ! दीपिका के कपड़े वर्षा दे जाएगी ! बिनणी सा बदल लेंगी..." करण " ठीक है....." करण ने रूम बंद किया तो दिल धड़क उठा ! करण को भी तो वह नाम भर से ही जानती थी ! बस दो तीन बार ही मिली होगी वो भी जय के माध्यम से ! उसे पता न था करण कैसा है ???? जय और मयूरी आर्ट्स के स्टुडेंट थे जबकि करण लॉ का...... करण का नामभर सुना था पिछले दो साल से युनिवर्सिटी टॉप कर रहा था....जबकि जय एवरेज था तो मयूरी भी कॉलेज के होशियार स्टुडेंट में थी......जय को नेता बनना था उनकी पीढी दर पीढी सीट बुक थी जबकि करण को बेस्ट लॉयर......मयूरी की ग्रेजुएशन के दौरान ही शादी करने का उसके दादाजी ने सोच लिया था जिसके तहत प्राइवेट फार्म भर कर घर रह कर पढाई करेगी.....मयूरी ने रेग्युलर कॉलेज जाने के बहुत मिन्नतें की तब जाकर माने उसमें भी शर्त कि अपने चचेरे भाई मानव के साथ ही आया-जाया करेगी ! करण स्टूल सरका कर बैड के पास ले आया " हुकुम आइए खाना खाइए !" मयूरी ने ना कर दी साथ ही आंखे भर आई ! करण एक चम्मच चावल उसकी ओर बढा कर " हमारी हुकुम भूखे रहे हम खाना खाएं शायद ही आपने ये  शास्त्रों में पढा हो !" मयूरी पनियाती आंखों से करण की ओर देखकर" करण हमसे एक निवाला भी गले उतारा जाएगा ???" चम्मच प्लेट में वापस रखकर " ठीक है आज का डिनर कैंसिल..... " मयूरी मासूमियत से " आप क्यों खाना छोड़ रहे हैं....हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से कोई भूखा रहे......." करण " आपको शायद दोनों हाथों में लड्डू रखकर काम करने की आदत है.......मुझे नहीं , मैं तो वकील बनने जा रहा हूं ! मामला एक तरफ हो तो ज्यादा ठीक है.... " मयूरी नासमझी में फीका सा मुस्कुराकर खाने लगी ! अंजना जय को हिलाकर " होश में आओ जय....... घर चलो अंकल तुम्हे याद कर रहे हैं......जय.....जय...... " जय नशे में " हंअअ.....कौन है..... " गर्दन उठाकर " मयूरी तुम.... " अंजना जय के पास बैठ कर "  जय भूल जाओ उसे.....उन दोनों ने धोखा दिया है.....वो नहीं आएगी....." जय टेबल पर पड़ी बोतल को  उठाकर जोर से फेंक कर " तुम झूठ बोल रही हो.....मयूरी ऐसी नहीं है......" अंजना गुस्से में " तुम्हे धोखा देकर शादी कर ली है करण के साथ..... " चटाक की आवाज के साथ जय गरजा " तुम ने मेरे दोस्ती और  प्यार पर सवाल उठाया......" लड़खड़ा कर चलते हुए "  तुमने उन दोनों पर संदेह किया है ....नहीं....नहीं.....संदेह नहीं किया ! लांछन लगाया है !" अंजना " अगर मैं झूठ बोल रही हूं तो देवेन्द्र से पूछो वो भी तुम दोनों का खास है ना " फिर जोर से आवाज लगाकर " देवेन्द्र जय को बताओ.... क्या हुआ था कुछ देर पहले ......" देवेन्द्र " भाई मंदिर में शादी करते हुए देखा है उन दोनों को , दूर होने के कारण ढंग से बात नहीं सुन पाया था....." जय गुस्से में चिल्ला उठा " करण.......मयूरी......" जय की गुस्से और नशे से आंखे लाल हो चुकी थी....वह अपने होश खो देना चाहता था ! बार जय का था इसलिए वहां कोई नहीं था ! जय लड़खड़ा कर काउंटर पर जाकर मैनेजर से बोतल देने के लिए कहा ! अंजना अपने प्लान को कामयाब होते देख कर खुशी से जय का साथ देने लगी ! आज इतने सालों की मेहनत के बाद जय उसका है और दोनों कांटे....करण और मयूरी हट गए हैं ! आज उसकी खुशी इतनी ज्यादा थी कि किसके साथ शेयर करें.....इसलिए वहीं काउंटर पर खड़ी हो गई ! क्रमशः*****

  • 3. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 3

    Words: 1171

    Estimated Reading Time: 8 min

    AMBHT-3 यह कहानी उस दौर की है जहां हर घर में सम्पर्क बनाए रखने के लिए बेसिक फोन का राज था ! मोबाइल नहीं आया था ! लड़को की शान महिन्द्रा जीप हुआ करती थी !.....और शाम ढलते ही लड़कियां अपने घरों में अपनी मां का हाथ बटाने रसोई घर में आ जाती थी , पढ़ाई के साथ-साथ  घर का काम सीखना भी जरूरी माना जाता था ! लड़कों को भी पाबंद किया जाता था....लड़कियां ही नहीं लड़कों को भी समाजवाद का पाठ पढाया जाता था ! मान-सम्मान बनाए रखने की ठेकेदारी लड़कियों  के सिर पर थी और उसी समाज ,देशकाल , वातावरण का  हिस्सा करण , मयूरी , जय थे ! करण ने मयूरी को सुलाकर वहीं रूम में चेयर पर बैठकर स्टूल पर पैर पसारे और जय के ख्यालों में डूब गया ! जय करण का दोस्ताना नौंवी क्लास से था ! बाहरवीं के बाद सब्जेक्ट  बदल गए ! कॉलेज और दोस्ताना नहीं..... जय को राजनीति में इंटरेस्ट नहीं था लेकिन उसके पिता चाहते थे वह कॉलेज के फर्स्ट ईयर से ही छात्र संघ के चुनाव लड़े और राजनीति सीखें ! जय ने फर्स्ट इयर जैसे-तैसे निकाल दिया....सेकेंड इयर में जय के पापा ' जो कि एक राजनेता थे और एम एल ए का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे !' करण को बुलाकर जय से चुनाव लड़ने के लिए कन्वेंस करने को कहा ! जय करण का कहना मान चुनाव में खड़ा हो गया और पूरे कॉलेज में जय के पोस्टर थे !  करण ने जय के साथ सबसे वोट भी मांगे इसी दौरान जय मयूरी से मिला और उसे दिल दे बैठा ! करण कहीं वोट मांगने लगा हुआ था ! शाम को सब अपने-अपने घर जा रहे थे !आज जय ने करण को साथ चलने को कहा और अपने दिल की बात बता दी ! करण जय के कंधे पर हाथ रखकर " फिल्मी बातें छोड़ और घरवाले जैसा कहें वैसा कर ! " जय गाड़ी चलाते हुए " मुश्किल लग रहा है...." कुछ दिन बाद जयवीर चौधरी के सर चुनाव में जीत का सेहरा बंधा !.....चुनाव जीतने के बाद मयूरी का दिल जीतना ही टार्गेट रह गया ! इन सब में अंजना ने पूरा साथ दिया ! जो अंजना जय के साथ परछाई की तरह रहती थी अब वह उसके लिए उससे दूर मयूरी के साथ बैठने लगी !.......और मानव के साथ दोस्ती बढा ली ! कैंटीन में जाते वक्त मानव को साथ रखती....जय मयूरी के पास जाकर बैठ जाता.... एक दिन जय ने हिम्मत कर के इजहार कर दिया ! मयूरी ने ये ख्वाब में भी न सोचा था ! मयूरी ने अपनी पारिवारिक परिस्थिति और सामाजिक बंधन का सोचकर रिजेक्ट कर दिया ! जय निराश नहीं हुआ......मयूरी को कन्वेंस कर रहा था कि इसी बीच कॉलेज छूटने से पहले ही कुछ लड़कों ने हॉकी स्टिक , चैन ,डंडों से मानव पर हमला कर दिया ! मयूरी को जब पता चला तो वह मानव को छुड़ाने के लिए बीच में आ गई और उसे भी लगी ! मानव तो लगभग बेहोश हो चुका ! हॉकी स्टिक लगने से मयूरी के सर से खून बह रहा था ! जय को इस बात की भनक लग चुकी थी लेकिन उसे पता नहीं था कि मयूरी और मानव ही है ! चोटिल और रोती हुई मयूरी को देखते ही जय के गुस्से का पारावार न रहा और हाथ में ली चैन से वार कर दिया ! सात-आठ लड़कों ने देखा कि वो पूरी गैंग से घिरने वाले हैं तो मौका देखकर भाग निकले ! जय अपनी गाड़ी में मानव और मयूरी को  बैठाकर हॉस्पिटल ले गया ! करण क्लास में बैठा लेक्चर ले रहा था तभी एक लड़का सर से करण के पापा की तबीयत ठीक न होने का बहाना कर बुला लाया ! बाहर आते ही करण ने उस लड़के के मुक्का मार कर " क्या बकवास कर रहा था....." लड़के ने पूरी बात बताई तो करण ने हॉस्पिटल चलने को कहा ! वहां जय खड़ा हाथ पर पट्टी करवा रहा था ! करण ने उसे ठीक से देखा उसे कहीं ओर चोट तो नहीं लगी है...... मयूरी घर जा चुकी थी ! हॉस्पिटल में उसके पापा , चाचा और बड़े भाई थे जो मानव की इलाज करवा रहे थे ! उन्होने जय को जाने के लिए कहा और बचाने के लिए धन्यवाद दिया ! सात दिन हो गए उसकी राह तकते लेकिन आज भी लग रहा था कि वह नहीं आएगी ! करण के साथ कैंटीन में बैठा उसी के बारे में सोच रहा था ! करण के दो लेक्चरर ऑफ थे बाकी के लिए किसी के नोट्स लेकर काम करने का बोल जय घसीट लाया ! करण जय को देखता रहा.....फिर उठकर " चल...." जय उदास सा " कहां ??? " करण " चल ना..." पीछे बैठे दोस्त बोले " बंगाली बाबा के पास..... " करण ने घूर कर देखा ! सब दबी हंसी हंस दिये ! करण -जय कॉलेज कैंपस से बाहर निकल ही रहे थे कि एक दोस्त के साथ मयूरी आती दिखी ! करण ने ध्यान न दीया और उसे मालूम भी नहीं था कि वह मयूरी है ! जय " करण चूंटी काट.... " करण गर्दन हिलाकर " पागल हो गया है सच में.... " जय " देख..... वो देख.... मयूरी आ रही है....." करण को कुछ समझ न आया क्योंकि वहां  और भी लड़कियां भी आ जा रही थी ! करण झुंझलाहट से " है कौनसी.....उसे तो आज मैं बताउंगा मेरे दोस्त की क्या हालत  कर दी है ! सात दिन में पक चुका हूं मयूरी...... मयूरी......सुनकर ! " जय एकदम सामने जाकर खड़ा हो " हाय मयूरी....अब कैसी हो और तुम्हारा भाई मानव कैसा है ???? " करण सादगी की प्रतिमूर्ति मयूरी को देखता रह गया ! सच में मन को भा गई थी ! उसे उनकी बातचीत सुनाई नहीं दे रही थी ! मयूरी मुस्कुराकर " जी अब हम ठीक है , भाई को छह महीने का बेड रेस्ट मिला है...पहले से काफी सुधार है !" जय करण का हाथ पकड़कर " करण ये मयूरी है !..." करण होश में आकर हाथ मिलाने के लिए बढा दिया  लेकिन मयूरी की सहेली ने हाथ बढ़ाकर मिला लिया ! " सर आपको कौन नहीं जानता.....आप ठहरे युनिवर्सिटी टॉपर....." मयूरी की सहेली करण " इतना भी नहीं है....  " जय मयूरी का हाथ पकड़कर जाते हुए " हां भई हम तो डल हैं....आपको इनसे कुछ टिप्स लेने होंगें....है ना.... लीजिए.... मैं और मयूरी क्लास में जा रहे हैं !" करण हैरान रह गया ! पीछे सब दोस्त एक दूसरे को ताली देकर हंस दिए ! करण बहाना बनाकर चला गया ! करण को उस का जमीर धिक्कारने लगा था कि उसने क्या सोच लिया था ! ये एक तरह  से धोखा है !......करण ने जय से मिलना कम कर दिया !....... करण को याद आया कि एक बार मयूरी ने उससे दोस्ती करनी चाही लेकिन करण ने मना कर दिया ! कल जय के पास जाकर उससे बात करेगा और मयूरी जो उसे गलत समझ रही है ! उसकी गलतफ़हमी दूर करेगा ! जय मेरी बात जरूर समझेगा ! उसके मन में विद्वेष ना उत्पन्न हो जाए ! क्रमशः*****

  • 4. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 4

    Words: 2059

    Estimated Reading Time: 13 min

    AMBHT-4 करण को याद आया कि एक बार मयूरी ने उससे दोस्ती करनी चाही लेकिन करण ने मना कर दिया ! कल जय के पास जाकर उससे बात करेगा और मयूरी जो उसे गलत समझ रही है ! उसकी गलतफ़हमी दूर करेगा ! जय मेरी बात जरूर समझेगा ! उसके मन में विद्वेष ना उत्पन्न हो जाए ! बस यही सोचते हुए करण सो गया ! रात को देर से सोने पर आंख नहीं खुली ! वर्षा के गेट बजाने पर मयूरी उठी तो करण को चेयर पर सोया देखकर हैरान हुई ! " करण उठिए , बाहर कोई है ! " करण के हाथ को पकड़कर हिलाते हुए करण की गर्दन अकड़ गई थी ! अचानक से मयूरी के उठाने पर उठा तो गर्दन में दर्द हुआ ! मयूरी के सामने जाहिर न होने दिया और गर्दन पर हाथ रख कर गेट खोल दिया ! करण " वर्षा बाई सा सुबह सुबह क्या हुआ ????" वर्षा एक टोकरी और थैली आगे कर " भाभी सा के लिए कपड़े और गहने सामान भिजवाए है मां सा ने...." करण बाहर निकलते हुए  " आओ अंदर.....आप अपना काम करें ! दादा जग गए ????..." वर्षा हंस कर " कुंवर सा आज आप देरी से उठे हैं !" करण झेंप कर चला गया ! वर्षा अंदर आकर गेट बंद करते हुए " भाभी सा जल्दी तैयार हो जाइए ! दादी सा ने आपको याद किया है !...." यह सुनते ही मयूरी की आंखों के सामने अपने परिवार की छवि आ गई ! वर्षा ने जब ड्रेस आगे की तो उसे समझ आया कि करण राजपूत है ! कल से बावरी सी नजरें झुकाए अपने ही गम में समझ न पाई कि क्या हो रहा है....कोई कुछ कह रहा है.....अभी भी उसकी आंखों के सामने जय घूम गया और वॉशरूम में आकर फफक पड़ी ! जय सुबह उठा तो अनजान जगह देखकर हैरान हुआ फिर सर में भयंकर दर्द ! खुद  का बार था लेकिन करण की दोस्ती के चलते सबको एवॉयड करता था ! आज पहली बार इतनी अधिक मात्रा में नशा किया ! सर घुमा कर साइड में देखा अंजना थी ! लेकिन सर में उठ रहे बवंडर के कारण नजरों का धोखा समझ सर को पकड़े हुए वहां से निकल गया ! नीचे आया तो ड्राइवर ने उसे घर छोड़ने के लिए कहा ! अंजना अंगड़ाई लेकर उठी और खुद से ही " वेरी गुड मॉर्निंग अंजना , तुम्हारी जिंदगी की असली सुबह आज हुई है ! " मुस्कुराते हुए बेसिक फोन पर नंबर डायल कर दिया ! फोन उठते ही अंजना " अंकल नमस्ते !आपका काम हो चुका है अब मैं आपके खानदान की बहू बनने के लिए तैयार हूं ! कुछ ही देर में जय घर आ रहा है ! " महिपाल जी ( जय के पिता ) " बहुत अच्छा किया तुमने ! इन दोनों को कांटो को रास्ते से हटा कर अब देखो राजनीति में ले ही आऊंगा ! वह दिन दूर नहीं जब तुम जय की पत्नी के रूप में हमारे घर में आओगी ! फिर राजनीति में हम दोनों परिवारों की धाक होगी ! " अंजना फोन रखकर कुटिल मुस्कान के साथ " आपके नहीं अपने रास्ते के कांटे हटाए हैं....." बैड पर वापस लेटकर " अब सुकून की नींद लेंगे....." साथ ही मुस्कुराकर कल शाम की बात याद करने लगी ! जय शाम को अंजना की गाड़ी लेने आया तब उसने बताया कि रात को आठ बजे के लगभग मयूरी को उस की सहेली के यहां से किराए के रूम पर तैयार कर यहां लाने का काम करण करेगा ! करण उसकी गाड़ी लेकर गया है ! वहां से निकल  मंदिर में शादी करने का प्लान है ! विक्रम और देवेन्द्र भी साथ होंगे और यह बात छह के अलावा किसी को नहीं पता ! जय के गाड़ी लेकर निकलते ही अंजना ने महीपाल जी को फोन किया ! महीपाल जी के लिए नागवार था ! महीपाल जी ने अंजना से हर बात की खबर देने को कहा ! महीपाल जी ने सवा आठ बजे पंडित के घर न्यूज पहुंचा दी कि उनकी पोती मयूरी जो अपनी सहेली के यहां गई हुई थी , उसका  किडनैप हो चुका है !.....फिरौती की मांग कर रहे है ! पूरे सदन में भय का माहौल था !पंडित घनश्याम दास जी बेचैनी से इधर-उधर घूम रहे थे ! पूरे शहर भर में पूजनीय पंडित घनश्याम दास जी का कहा कौन टालता  !......एक फोन करने पर पूरे शहर भर में नाकाबंदी लगा दी ! करण ने प्लान में चेंजिंग कर दी ! वह किराए के घर में न जाकर फार्म हाउस पहुंचा ! वहां पर करण के शूरवीर चचेरे भाई ने जब यह सूचना दी तो पैरों तले जमीन हिल गई ! मयूरी तैयार होकर आई तो करण ने उसे वेट करने को कहा ! मयूरी की घबराहट बढती जा रही थी ! नाकाबंदी में चारों तरफ तालाश जारी थी ! मयूरी कहीं आती-जाती नहीं थी ! बस एक ही सहेली वो भी कॉलेज के काम तक सीमित थी ! उस रात भी नोट्स लेने के बहाने आई थी , घर पास होने के कारण आने दिया ! उस लड़की से पूछने पर स्पष्ट मना कर दिया ! करण पर किसी को शक हो नहीं सकता !" अब करण और वेट नहीं कर सकता था करण ने फार्म हाउस से निकलकर घुमावदार कच्चा रास्ता जोकि खेतों में से होकर गांव में से होकर निकलता था जिसे मंदिर तक पहुंचने के लिए एक से डेढ़ घंटा लग सकता था ! उसने वही चुना ! जय ने विक्रम को देखने के लिए उसकी बाइक पर भेजा ! पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे बीच में ही रोक लिया विक्रम किसी तरह बहाना बनाकर पुलिस से छूटकर आया था इसलिए वापस जाने का रिस्क नहीं ले सकता था ! अंजना ने करण के घर फोन करके करण के बारे में पूछा तो बताया गया कि वह अपने फार्म हाउस पर गया हुआ है ! फार्म हाउस का नंबर ले उसने डायल किया बेल होती रही लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया ! बस मौके का फायदा उठाकर अंजना जय से मिलने मंदिर की तरफ चल पड़ी ! विधायक की बेटी होने के कारण पुलिस का उसे रोकने का तो कोई सवाल ही नहीं था ! अंजना ने देखा कि मंदिर में जय और देवेंद्र खड़े हैं, उनके अलावा पंडित जी हैं ! अंजना " क्या बात है ???? मयूरी अभी तक नहीं आई..." जय घड़ी में टाइम देखते हुए आधे घंटे से ऊपर हो चुका था " नहीं , दोनों ही अभी तक नहीं आए हैं ! " अंजना हैरान हो " क्या ???? 20 मिनट के रास्ते में इतना टाइम कभी लगता है क्या ...." पंडित जी फेरों के लिए हवन वेदी तैयार कर रहे थे ! जय इधर-उधर चक्कर काट रहा था ! अंजना " जय कहीं मयूरी पकड़ी तो नहीं गई या करण के साथ उसके फार्म हाउस पर हो..... " जय चकराया " लेकिन करण के फार्म हाउस पर क्यों जाएंगे दोनों ???? उसे तो मैंने जो रेंट पर रूम लिया था उसी पर आने के लिए कहा था ! " अंजना  " आधा घंटा पहले फोन पर मैंने पूछा था तब तो करण अपने फार्म हाउस पर था ! " जय अचंभित खड़ा था ! देवेंद्र " अंजना तुम्हें जरूर गलतफहमी हुई होगी ! " अंजना गुस्से में  भड़कती हुई " तुम्हें लगता है, मैं झूठ बोल रही हूं ! उसके भाई उदयवीर ने ही फोन उठाया था और उसी से बात करके मैंने फार्म हाउस पर फोन किया था लेकिन वहां भी किसी ने अटेंड नहीं किया !" जय निराशा भरी आवाज में " अंजना शांत हो जाओ हो सकता है गाड़ी खराब हो गई हो या कुछ और बात हो ! करण आएगा तभी बात पता चलेगी ! " इंतजार करते हुए एक घंटा हो गया था ! अब पंडित जी भी बोल पड़े " बेटा कितना समय हो गया ! अब हमें चलना चाहिए ! चोर - उच्चकों और लुटेरों का समय हो गया है !अब यहां रहकर इंतजार करना मौत को दावत देना है !" अंजना जय के कंधे पर हाथ रखकर " चलो जय ,हमें रिस्क नहीं लेना चाहिए !" देवेंद्र ने भी अंजना का साथ दिया और निराशा जय उनके साथ चल पड़ा ! हजारों सवाल उसके जेहन में कौंध रहे थे " कहीं मयूरी को कुछ हो तो नहीं गया है करण उसे अपने फार्म हाउस पर क्यों लेकर गया था....." देवेंद्र को अंजना ने वही दस-पंद्रह मिनट वेट करने का कह कर जय के साथ आ गई ! अंजना जय की तरफ देख कर " जय तुम्हे नहीं लगता कि करण और मयूरी एक साथ हो गए हो.....समझ रहे हो ना !" जय ने गुस्से में " अंजना तुम्हे पता है तुम क्या कह रही हो!" अंजना भी नाराजगी से " जय तुम्हारी तरह आंखे बंद कर के भरोसा नहीं करती.....तुम जानते ही क्या हो ??? उस मयूरी के बारें में.....करण ने उससे दोस्ती क्यों नहीं की....तुम्हे पता है.....नहीं.....नहीं ना....करण की आंखों में मैने उसके लिए प्यार देखा है....." जय ने गाड़ी को एकदम ब्रेक लगा दिया ! अंजना का सिर आगे टकराते हुए बचा ! जय अंजना की तरफ घूम कर " हो गई तुम्हारी बकवास....ये लो तुम्हारी गाड़ी और तुम जा सकती हो...." अंजना की आंखों में पानी आ गया ! जय उतरने लगा तो अंजना ने हाथ पकड़ कर रोक लिया ! रोते हुए " जय हम दोनों के बचपन की दोस्ती की कसम.....मैं झूठ नहीं बोल रही हूं.......उस दिन कॉलेज में आंधी आई थी....कैसे करण को साइड से पकड़ लिया था....आंधी इतनी तेज भी नहीं थी कि उसे उड़ाकर ले जाती........और उस वक्त तुम भी वहां थे !" अंजना की बातों का जय के मन पर प्रभाव पड़ रहा था ! जय गाड़ी ड्राइव करके अपने बार की तरफ ले आया अंजना को घर जाने को कहा  और अंदर आकर मैनेजर से सबको बाहर करने का बोल दिया ! मैनेजर से टेबल पर ही सर्व करने को कहा ! मैनेजर हैरान सा " सर आप ??? " जय घूर कर " क्यों ???? मैं क्यों नहीं...... " अंजना जय के पीछे आ " जय घर चलो !...." जय गुस्से में " अंजना घर जाओ..." अंजना ने कोई जबाव न दिया बाहर आ गई ! जय ने पहली बार शराब को पहली बार मुंह लगाया था ! उतनी कड़वी न लगी जितना करण और मयूरी का बात करना...... करण और मयूरी की पिछली मुलाकात याद कर जय की आंखों में गुस्सा ही उतर आया ! दो-तीन गिलास बिना रुके गटक गया ! अंजना दूर खड़ी देख रही थी ! जय को नशा होने लगा था ! जय नशे में गिलास में शराब डालते हुए मैनेजर से " करण और मयूरी.....ऊंह कुछ जमा नहीं...नहीं ना...." मैनेजर क्या करता नौकरी का सवाल था जय का साथ दे रहा था !" तुम्हे पता पिछली बार जब दोनों मिले थे...तब दोनों बिल्कुल करीब खड़े थे.....मुझे देख हड़बड़ाहट में दूर हुए और करण.....करण तो वकील है.....बात घुमाना बांए हाथ का खेल है.....कह रहा था मयूरी की आंख में कुछ गिर गया !.....करण बात क्या....इंसानों को भी घुमाना जानता है ! देख अपने जिगरी दोस्त को घुमा दिया....." कहकर जय हंस दिया ! " लेकिन मुझे विश्वास क्यों नहीं हो रहा है...कहीं अंजना....हां यही हो सकता है.....करण तेरा जिगरी दोस्त है तेरे लिए कुछ भी कर सकता है......परन्तु धोखा.....नहीं...." अंजना देवेंद्र से बात करके उसे बाहर ही रुकने को कहा... अंजना अपना दांव उल्टा पड़ते देख अंदर आ गई ! ( इसके आगे का भाग दो में दिया है ! ) करण अपने दादाजी से मिल कर आया था ! सुबह उठते ही देवी सिंह जी से मिलना और दस मिनट उनके साथ बात करना रूटीन था ! आते वक्त करण मयूरी और खुद के लिए नाश्ता ले आया था ! उसके  बाद शायद नॉनवेज बने !  गेट बजाने पर वर्षा ने गेट खोला ! मयूरी तैयार होकर चुकी थी ! करण ने टेबल पर ट्रे रख कर मयूरी को खाने के लिए बोला.....नजर भर मयूरी को देखा ! वर्षा ने रोका कि अभी मयूरी को कुछ नहीं खाना है.....करण नहीं माना और एक परांठा चाय मयूरी के हाथ में पकड़ा दी !खुद तैयार होने चला गया ! उसके बाद उसे जय से मिलने जाना था कहीं गलत न समझे ! करण जय की गाड़ी की चाबी टेबल पर रख कर " जय... जय.....जय कहां है ???? " जय अब तक नार्मल होने की कोशिश कर रहा था कि करण की आवाज सुनकर उसका दिमाग गर्म हो गया ! सीढ़ियों  से उतरते हुए " शादी मुबारक हो करणवीर सिंह राजपूत...." क्रमशः*****

  • 5. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 5

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    जय अब तक नार्मल होने की कोशिश कर रहा था कि करण की आवाज सुनकर उसका दिमाग गर्म हो गया ! सीढ़ियों  से उतरते हुए " शादी मुबारक हो करणवीर सिंह राजपूत...." " परम , उदय ,शूर में से किसने बताया.... " करण जय की तरफ कदम बढ़ाकर जय ने भी करण के पास आकर " ये बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि किसने बताया या नहीं........ये बता तूने और मयूरी ने शादी कर ली ना....." करण गले लगकर गिल्ट दूर करने के लिए " मुझे माफ कर देना....मेरे पास रास्ता ही नहीं बचा था ! " जय ने कोई रिस्पांस न देकर " जब तुम दोनों एक घंटा तुम्हारे फार्म हाउस पर साथ रह सकते थे तो पूरी रात क्यों नहीं !" करण नासमझी में जय को देखकर " पागलों वाली बात मत कर.....तुझे सब पता है ना....मैं शुरु से ही इन सब बातों से दूर रहता था !....वो तो कल...." " मयूरी के गायब होने की बात सबको पता चल चुकी थी....कल रात तुने भी वेट नहीं किया तो बदनामी के डर से मयूरी खुद को मारने चली थी ! " करण कहने वाला था कि जय ने बात बीच में काट दी ! जय करण की बात सुनने को तैयार नहीं था.... जय की आंखे लाल हो रही थी " वो तो.... कल रात के बाद से नजरिया बदल गया होगा ना........" करण जय के कंधे पर हाथ रख कर" हम दोनों का रिश्ता बदल गया तो भावनाएं बदलना लाजमी है......." जय ने गुस्से में हाथ हटाकर करण की कॉलर पकड़कर " तेरे  जमीर ने एक बार भी नहीं धिक्कारा.....शायद उसको अच्छे से नहीं जानता था वो हो सकती है गिरी हुई.....लेकिन तु.....तूने ये नहीं सोचा कि मैं उससे प्यार करता हूं......एक घंटे में तुझे इतना खुश कर दिया कि तूने उससे शादी कर ली......जो इन सब बातों से दूर रहता था....." अचंभित सा करण जोर से कॉलर से हाथ हटाकर " जबान संभाल कर बात कर जय... कहीं ऐसा ना हो कि बोले हुए शब्दों पर पछतावा हो....." जय ने करण के मुंह पर मुक्का मार कर " सही-गलत सीखा रहा है......पहले खुद  के गिरेबान में झांक कर बात कर..." करण मुंह पर हाथ रख कर ' मुंह से खून निकलने लगा था' खून साफ करते हुए " ऐसे कोई वार करता है क्या ?????अचानक से...." जय ने अबकी बार करण के पेट पर मुक्का मार दिया " धोखे से जो तूने वार किया है उसका क्या ????तुम दोनों ही गद्दार निकले...." करण पेट पकड़कर झुक गया ! " जय बात समझ हम दोनों ने कोई धोखा नहीं दिया है !मैंने अपना वचन पूरा किया तुझसे कहा था ना उसकी रक्षा करने का " जय बात बीच में काट कर " बहुत अच्छे से रक्षा की है  तूने उसकी , तेरा एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा ! " जय ने झुके करण की पीठ पर कोहनी से वार कर दिया करण एकदम से नीचे गिर गया परंतु बोलने की कोशिश फिर भी कर रहा था ! जय उसके पेट में पैर से मारने लगा ! साथ ही चिल्ला रहा था " खत्म हो गई तेरी मेरी दोस्ती...." शोर सुनकर महिपाल जी बाहर आए और को रोकते हुए जय को खींच कर  दूर किया ! महिपाल जी ने अपने आदमी ऐसे कह कर करण को उसके घर छोड़ने के लिए कहा जय को उसके रूम में जाने के लिए जय गुस्से में अपने रूम में आकर तोड़फोड़ करने लगा जय की मां ने जब यह देखा तो वह दरवाजा खड़खड़ाते हुए जय गेट खोलने के लिए कह रही थी ! मुझे आज किसी की सुनने के मूड में नहीं था ! महिपाल जी आज बहुत खुश थे ! उनके इकलौते बेटे के कैरियर का रास्ता साफ  हो गया ! अब उसका राजनीति में आना तय था ! कल रात एक आदमी को बहुत से पैसे देकर उन्होने मयूरी के अपहरण की कोशिश में पकड़ा दिया ! पुलिस ने जय के आने तक में नाकेबंदी हटा दी ! जिससे करण कुछ कहना भी चाहे तो उसे विश्वास न हो !...... करण को महिपाल जी के आदमी उसके घर के आगे गिरा कर चले गए ! करण के घर के गार्ड ने उसे घर के आगे पड़ा हुआ देखकर हैरान रह गए ! करण के पेट मे दर्द हो रहा था ! बेहोशी से आंखे बंद होने लगी थी ! घर से बाहर आ रहे उदयवीर को आवाज लगाकर करण को संभालने के लिए कहा ! उदयवीर  बदहवास सा "  भाई सा हुकुम क्या हुआ ??? आपकी यह हालत किसने की ????" करण बहुत मुश्किल से ही बोल पाया " उदय...... प्लीज..... डॉक्टर....... को....... बुलाओ.....! कहकर करण बेहोश हो गया ! उदय रुमाल से कर्ण के मुंह का खून साफ करके गार्ड के साथ करण को अंदर ले आया ! करण की हालत देखकर सभी अचंभित रह गए ! अजय सिंह ने डॉक्टर को फोन करके घर बुलाया । दीपिका और अवनी दोनों करण की हालत देखकर घबरा गई ! दोनों घबराई सी एक साथ " भाई सा हुकुम को क्या हुआ ?" डॉक्टर आने वाला था दो अजय सिंह ने दोनों को अंदर जाने के लिए कहा ! दीपिका और अवनी में अंदर आकर घर की सभी महिलाओं को करण की हालत के बारे में बताया। सीमा जी यह सुन एक धक्के के साथ स्लैब के सहारे से खड़ी हो गई ! छाया ने आकर उन्हें संभाला तो वहीं जह्नावी ने पानी दिया। सीमा के पानी पीने पर प्रीति ने समझाते हुए " भाभी सा धीरज रखिए । " सीमा जी की आवाज ही नहीं निकल रही थी," ह्म्म्म्म " ही जबाव दिया ! एक मां के पास इतना धीरज नहीं होता , जितना एक स्त्री के पास होता है किंतु जब बात ममत्व की हो तो बच्चे की तकलीफ सुनकर उसकी जान हलक में आ जाती है। सीमा जी की भी वही हालत हो रही थी ! घर में सबसे बड़े पद पर आसीन थी इसलिए संयम रखना लाजिमी था और एक राजपूत का खून होने के नाते उनका धैर्य कैसे डगमगा सकता था उन्हे अटल खड़े रहना था......लेकिन जब तक सीमा जी करण को देख ना ले बेचैनी घेरे रहती। क्रमशः*****

  • 6. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 6

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण का परिवार देवी सिंह- गंगा ~ दादा पृथ्वी सिंह-सीमा ~ पिता-माता उम्मेद सिंह-छाया ~चाचा-चाची चंद्र सिंह - शैली ~चाचा-चाची अजय सिंह -प्रीति~चाचा-चाची दीपिका ,अवनी ,जाह्नवी ,शूरवीर ,उदयवीर ~ चचेरे भाई बहन परमवीर- भाई (स्वभाव से थोड़ा सा उग्र) वर्षा - महिलाओ की सहायिका ♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧ सीमा जी की भी वही हालत हो रही थी ! घर में सबसे बड़े पदों पर आसीन थे इसलिए संयम रखना लाजिमी था और एक राजपूत का खून होने के नाते उनका धैर्य कैसे डगमगा सकता है......लेकिन जब तक उसे देख ना ले बेचैनी घेरे रहती ! मयूरी दादी सा के पास घूंघट निकाले खड़ी उनकी हिदायतें और घर के रीति-रिवाज को सुन समझ रही थी ! उन्हे पता नहीं कि बाहर क्या हो रहा था ! घर की महिलाओं की ड्रेस राजपुताना ही थी ! ये घूंघट उसे समझ नहीं आ रहा था ! उसके घर में सिर पर पल्लू ही लिया जाता था,घूंघट की प्रथा नहीं थी। सीमा जी वर्षा के साथ कमरे में आई और गंगा देवी के सामने हल्का सा पल्लू की ओट में होते हुए बोली" हुकुम क्षमा करें ! एक जरूरी बात है...." गंगा देवी ने वर्षा को मयूरी को साथ ले जाने को कहा ! सीमा ने वर्षा के जाने के बाद करण का हाल कह सुनाया ! गंगा देवी अपनी ओढनी सही करते हुए जल्दी से बाहर आई ! वर्षा मयूरी के साथ ऊपर कमरे में ले आई ! मयूरी घूंघट में पूरे घर को हैरानी से देख रही थी ! वर्षा उस के साथ बैठी बातें करती रही ! नीचे डॉक्टर ने करण को चैक करने के बाद पेन किलर इंजेक्शन देकर एक्स रे करवाने को कहा ! करण की रिब्स में स्वैलिंग लग रही है ! एक बार हॉस्पिटल लाने को कहा जहां ठीक से चैकिंग हो सके ! गंगा देवी के करण की हालत पूछने पर देवी सिंह ने जल्द ही ठीक होने का आश्वासन दिया ! सीमा जी अपने कमरे में आ गई ! परमवीर भी उन्हे देखने पहुंचा साथ ही करण को हॉस्पिटलाइज्ड करने की बात बताई ! सीमा जी दबे गुस्से को बाहर निकालते हुए " हो न हो उस जय के कारण ही हुआ होगा !.....वही रहता है दादागिरी में.....ये करण कुंवर सा भी समझते क्यों नहीं है.....परमवीर आप उससे फोन पर बात कर के पूछे क्या हुआ है ????" परमवीर पास आकर " शांत हो जाइए मां सा...पहले भाई सा को देख ले.....ये बातें बाद में भी होती रहेगी ! जल्दी से बीस हजार रुपए दीजिए ! काका सा मंगवा रहे है....." सीमा के रुपए देने पर परमवीर सांत्वना देकर चला गया ! सीमा की आंखों से आंसू बहने लगे थे ! जह्नावी सीमा को खाने का पूछने के बहाने बुलाने आई थी ! आज पूरे घर में सन्नाटा था ! सबके चेहरे उदासी से घिरे थे ! शाम तक चैकिंग कर करण को रिब्स ( पसलियों ) में सूजन के कारण एक महीने का फुल बैड रेस्ट और दवा देकर घर भेज दिया ! रात होने पर वर्षा मयूरी के लिए खाना लेकर आई तो मयूरी बैड की चद्दर सही से बिछा रही थी ! वर्षा पास आकर " अरे भाभी सा मुझे बोल देती ! आप खाना खाइए !" मयूरी " दीदी बैठे बैठे बोर हो जाते हैं हमने सोचा करण आए तब तक इसे ही सही कर लें ! सुबह से करण दिखाई नहीं दिए ! आप पूरा दिन काम में व्यस्त रहती हैं....हम किसके साथ बात करें ????और किसी को हम जानते नहीं है......" वर्षा कुछ नहीं बोली खाना रखकर चली गई ! मयूरी को अजीब लग रहा था ! कुछ देर बाद वर्षा के साथ दीपिका आई ! वर्षा ने दोनों का परिचय करवाया ! मयूरी को कुछ समझ नहीं आया ! दीपिका परिवार के बारें बताती रही ! आज दीपिका उसी के साथ सोने वाली थी ! शर्म के मारे मयूरी की करण के बारे में पूछने की हिम्मत ना हुई ! लेटे हुए मयूरी करण के कल रात के व्यवहार को सोच चिंतन करती रही " है कौन ये मानव ??? , जो इस द्वंद भरे जीवन पथ में यकायक पाथेय बनकर आया है दुख दर्द के जठराग्नि को हरने ! ये कैसा विधि का मानस संविधान है जो अभिलाषित था वह छूट गया और जो कभी कल्पना मात्र में भी नहीं समाया था उसके साथ बंधन संपूर्ण जन्म का हो गया !....." " दादाजी सही कहते व्यक्ति के कुछ कर्म होते है जो किसी से पूर्व जन्म से जुड़े होते हैं.....इनकी समय-सीमा निर्धारित स्वंय भू द्वारा की जाती है !.... जीवन चक्र में मानव हमेशा अपनी परम्पराओं में बंध कर चलता है जिसका अनुसरण अनिवार्य है....और ये हम मानव ही कर सकते है वरन् जीवन तो स्वंय भू ने इस धरा पर हर प्राणी को मिला है....." मयूरी की आंखों में पानी उतर आया और डर से शरीर कांपने लगा कि अब तक घर पर सबको पता चल गया होगा ???? सब हमारे लिए क्या सोच रहे होंगे !......और दादा जी उनका क्या होगा ????...... सुबह-सुबह अखबार हाथ में आते ही देवी सिंह स्थानीय पेज पढ कर स्तब्ध रह गए ! पृथ्वी सिंह को बुलाया इस तरह सुबह-सुबह बुलाने सीमा अचंभित हुई ! पृथ्वी सिंह  ने अखबार में घनश्याम दास जी के परलोक गमन की खबर पढकर चलने के लिए पूछा ! सब करण की तरफ आए ! करण पहले से कुछ बेहतर महसूस कर रहा था लेकिन हिलने डुलने पर उसकी रिब्स में पेन हो रहा था ! उसे सबने आराम करने के लिए कहा ! दीपिका से मयूरी ने घबराहट में कोई बात नहीं की थी ! वर्षा के आते ही मयूरी ने करण के बारे में पूछा तो बाहर जाने का बहाना बना दिया ! कुछ देर बाद सब अपने अपने काम में व्यस्त हो गए तो करण ने उदयवीर और शूरवीर को बुलाकर ऊपर जाने के लिए कहा ! दोनों ने मना भी किया लेकिन करण नहीं माना तो सहारा देकर उसके रूम में पहुंचाया । करण ने अभी तक जय और उसके बीच हुई बात का खुलासा किसी के साथ नहीं किया था ,उसने एक ऑटो वाले से एक्सीडेंट का बहाना बनाया था । करण को ऐसी हालत में देखकर मयूरी हतप्रभ रह गई । क्रमशः*****

  • 7. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 7

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण ने अभी तक जय और उसके बीच हुई बात का खुलासा किसी के साथ नहीं किया था ! एक ऑटो वाले से एक्सीडेंट का बहाना बनाया था ! करण को ऐसी हालत में देखकर मयूरी हतप्रभ रह गई ! मयूरी जो कि अपने परिवार वालों के बारे में सोचती हुई महल नुमा बनी हवेली में करण के कमरे में झरोखे  (बालकनी ) में खड़ी थी ! कमरे का गेट खुला तो मयूरी का ध्यान उस तरफ गया तो वह भागकर करण के पास आई जिसे उदय और शूर दोनों अपने सहारे से ऊपर लेकर आए थे । मयूरी बेचैनी से" करण क्या हुआ आपको ???...." उदय ने करण को आहिस्ता से लेटाते हुए बोला " भाभी सा प्लीज.....भाई सा को रेस्ट करने दीजिए । उनकी हालत ठीक नहीं है और ना ही बोलने की हिम्मत है। " मयूरी उदय के बताने पर साइड हट गई ! करण को सुलाने के बाद उदयवीर मयूरी के न हिलने का ध्यान रखने का बोल चले गए ! मयूरी सधे कदमों से करण के पास आकर बैठते हुए" करण! करण आप ठीक हैं ??? " मयूरी की आवाज में घबराहट साफ झलक रही थी, उसकी हालत ने मयूरी को डरा दिया था! करण आंखे मींचे धीरे से बोला " ह्म्म्म्म....." कुछ देर में मयूरी असमंजस में वहीं दूसरी साइड बैड पर बैठ गई ! सीमा जी वर्षा के साथ करण के लिए खाने के लिए लाई थी ! मयूरी एकदम से खड़ी हो गई ! सीमा जी करण के पास चेयर रखकर बैठ गई ! करण के बालों को सहला कर " कुंवर सा आप ठीक हैं ?.... " सीमा जी ने करण से पूछते हुए स्टूल आगे सरका कर उस पर वर्षा को खाने के लिए रखने के लिए कहा । करण धीमे से " मां सा हमें दिल्ली जाना है मास्टर्स के लिए......" सीमा जी का गला भर आया और करण की ओर देखते हुए " कुंवर सा आपने अपनी हालत देखी है , ढंग से खड़े होने लायक नहीं हैं आप और आप दिल्ली जाने की कह रहे हैं । आपको नहीं लगता कि अपनी मां सा के बारे में सोचना चाहिए। " करण लेटे हुए " हम दो-चार दिन में ठीक हो जाएंगे ! रही बात आपकी तो....आप हर वक्त मेरे साथ हैं तो मुझे क्या चिंता है।" सीमा जी थाली हाथ में लेकर चम्मच से दलिया करण के मुंह की ओर बढाते हुए बोली" पहले आप निश्चिंत होकर खाना खाइए और ठीक हो जाइए फिर आपके बाबा सा हुकुम से बात करते हैं।" करण को इस तरह बेहाल देखकर मयूरी अंदर ही अंदर घुट कर रोने लगी, सीमा जी एक नजर मयूरी को देख कर " अब आप एक राजपूत की पत्नी है ,आपको इस तरह रोना शोभा नहीं देता ! धैर्य रखें और कुंवर सा को भी हिम्मत दे । उनका ध्यान रखें। इस तरह रोने से सब काम ठीक होने लगे तो किसी को ओर कुछ करना ही न पड़ता।" मयूरी वहां से हटकर झरोखे की ओर चली गई ! सीमा जी ने वर्षा को आवाज लगाकर पास बुलाया। मयूरी की ओर देखकर " वर्षा आप ही इन्हे यहां के तौर तरीके और रीति-रिवाज बताइए और सिखाइए । मुझे शिकायत पसंद नहीं और न ही मौका देती हूं।" मयूरी सीमा जी की कड़क आवाज से डर गई थी। एक कठोर सास का रूप सीमा जी में दिखाई दिया था जाने कैसे वो सब संभाल पाएगी। वर्षा हां में गर्दन हिलाकर मयूरी की तरफ चली गई ! करण की बोलने की हिम्मत नहीं थी इसलिए चुपचाप सुनता रहा और फिलहाल उसके बोलने का फायदा भी न था। घर की मर्यादा को ताक पर रखकर उसने मयूरी जो शादी की थी शायद उसे घर छोड़ने पर मजबूर कर दे या घर के किसी बड़े का फरमान कुछ ऐसा हो कि मयूरी को ही घर से निकाल दे ऐसे में उसका पढ़ाई के नाम पर जल्द से जल्द ठीक होकर घर से मयूरी को निकाल कर ले जाना ही बेहतर लग रहा था। ***** देवी सिंह अपने पुत्रों के साथ घनश्याम दास जी के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए पहुंचे तो उन पर किसी ने ध्यान न दिया जबकि अंदर से आते महीपाल जी देवी सिंह जी के आगे हाथ जोड़ का हाल-चाल पूछ कर निकल गए ! पृथ्वी सिंह उनका रवैया देख देवी सिंह जी को बाहर से ही लेकर घर आ गए ! पृथ्वी सिंह सबको घर छोड़ बाहर निकल गए ! देवी सिंह उनका गुस्सा जानते थे , रोकने की कोशिश करना बेकार था ! शास्त्री सदन शोक की लहर में डूबा था साथ ही समय ऐसा कि लोगों की बनती बातों ने सर शर्म से झुका दिया ! घर में सबको पता चल गया या था उनके कानों तक खबर पहुंचा दी गई कि करण मयूरी एक-दूसरे से प्यार करते थे और भाग कर शादी कर ली ! बस इसी कारण देवी सिंह जी का सम्मान करने वाले शास्त्री परिवार के बीच कड़वाहट पैदा हो गई थी । दवा के असर से करण को कुछ ठीक लग रहा था ! सीमा जी के जाने के बाद बैचेन सी मयूरी पास आकर "  करण आपको हुआ क्या है ???? " करण आंखें बंद किए बोला " कुछ नहीं हुआ है हुकुम आप अपनी बैचेनी त्याग दीजिए।दो दिन में सब ठीक हो जाएगा !" मयूरी ने संशय जाहिर करते हुए" आपकी हालत कुछ और कह रही है।....." करण " ऑटो से टक्कर में लग गई !........अब आप शांत रहिए !" मयूरी की बैचेनी खत्म नहीं हुई थी जाने क्या था ???...... पृथ्वी सिंह शाम को देर से घर आए और सीधा ऊपर करण के रूम की तरफ चल दिए ! पृथ्वी सिंह को ऐसे जाता देख सब अचंभित थे !.....गगांदेवी जी ने सीमा जी से पृथ्वी सिंह को रोकने के लिए कहा तो सब उनकी तरफ देखने लगे। सीमा जी जाने लगी तभी पृथ्वी सिंह वापस मुड़कर अपने रूम की तरफ चले गए ! सबने राहत की सांस ली ! सब अपने-अपने काम में लग गए ! सीमा जी अभी कुछ सोचते हुए अभी भी वहीं खड़ी थी तो उनका ध्यान पृथ्वी सिंह की तरफ गया और उन्हें देख सन्न रह गई ! क्रमशः*****

  • 8. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 8

    Words: 1085

    Estimated Reading Time: 7 min

    सीमा जी जाने लगी तभी पृथ्वी सिंह वापस मुड़कर अपने रूम की तरफ चले गए ! सबने राहत की सांस ली ! सब अपने-अपने काम में लग गए ! सीमा जी अभी कुछ सोचते हुए वही खड़ी थी तो उनका ध्यान पृथ्वी सिंह की तरफ गया और उन्हें देख सन्न रह गई ! पृथ्वी सिंह हाथ में बंदूक लिए ऊपर की ओर जा रहे थे ! सीमा जी डर कर भागी पृथ्वी सिंह के आगे आकर उन्हे रोकते हुए " क्या करने जा रहे है हुकुम ???" पृथ्वी सिंह सीमा को हटाते हुए " हटो सामने से....  " रोते हुए सीमा पृथ्वी सिंह को रोकने की कोशिश करते हुए " अजय कुंवर सा , उम्मेद, चंद्र कुंवर सा अपने भाई सा को रोकिए !" बाहर खड़े सबने जब सीमा की आवाज सुनी तो अंदर भाग कर आए ! पृथ्वी सिंह के हाथ में बंदूक देख स्तब्ध हुए और  अजय सिंह भागकर उनके पास आ बंदूक छीन ली ! पृथ्वी सिंह " छोड़ो अजय समाज , बिरादरी में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस लड़के ने !"  सीमा रोते हुए वहीं सीढ़ी पर बैठ गई ! अजय सिंह बंदूक दूर फेंक कर " भाई सा हुकुम ! होश में आइए.....क्या करने जा रहे थे आप ???? करण के साथ....आप सोच भी कैसे सकते हैं......" सीमा रोते हुए एक हाथ से ग्रिल और एक हाथ से लहंगा पकड़कर भागते हुए करण के रूम की तरफ गई और अंदर से बंद कर लिया ! उम्मेद सिंह ने पृथ्वी सिंह को वहीं सोफे पर बैठाकर पानी दिया ! घर में तनाव का माहौल था ! बच्चे जो कि खाना खा रहे थे सबके हाथ वहीं रुक गए ! पृथ्वी सिंह गुस्से में पानी का गिलास हाथ से दूर करते हुए " सब के सब मुझे ही रोकना.....देखा नहीं आज बाबा सा की किस तरह सरेआम बेइज्जती हुई है....सब उस लड़के के कारनामें की वजह से......उसने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा....." अजय सिंह सामने आकर  " उसे मारने के बाद सब सही हो जाएगा ??? होता है तो कर लीजिए आत्मसंतोष.....उसके बाद कोई नहीं कहेगा ना करण ने ब्राह्मण की बेटी से शादी की थी ???? " चंद्र सिंह पास आकर बैठते हुए " भाई सा हुकुम , हालात सुधारने है न कि बिगाड़ने...." पृथ्वी सिंह गुस्से में खड़े होकर  " और इससे ज्यादा क्या बिगड़ेंगे.....कल को दीपिका का रिश्ता न हो मुझे मत कहना ! " अजय सिंह अपने रूम में चले गए ! परमवीर गुस्से में खड़ा होने को हुआ तो दीपिका और शूरवीर ने हाथ पकड़ लिया ! शैली ने भी ना में गर्दन हिलाई ! परमवीर वहीं बैठा रहा ! प्रीति ने सबको खाना खाने के लिए कहा ! बिना मन के सब ने खाना खाया ! सीमा जी के अचानक गेट बंद करने पर मयूरी डर गई थी ! सहमी आंखों से सीमा को देख रही थी ! सीमा गेट बंद कर वहीं रोते हुए निढाल सी बैठ गई ! मयूरी सहमी सी उनके पास आई और उनके कंधे हाथ रखा तो सीमा ने हाथ झटक दिया ! दवाई लेकर सोये करण को सीने से लगा रोने लगी ! मयूरी उनका रोना देख अंदर से डर गई और करण से स्नेह देखकर उसे लगा कि करण को कुछ हुआ है ! यह सोचते ही वह कांपने लगी तभी बाहर से गेट खटखटाने की आवाज से डर कर मुंह पर हाथ रख लिया और उसकी आंखों से पानी बहने लगा ! गेट खटखटाने की आवाज के साथ परमवीर " मां सा , भाभी सा गेट खोलिए.....जल्दी...." मयूरी ने कांपते हाथों से गेट खोला तो घर के सब बच्चे एकदम  से अंदर आ गए उनके पीछे प्रीति , शैली , छाया और वर्षा भी..... मयूरी को साइड कर सब अंदर आ गए ! सब करण और सीमा को घेर कर खड़े हो गए ! शैली आगे आकर सीमा के कंधे पर हाथ रख कर " भाभी सा हुकुम कुछ नहीं होगा करण कुंवर सा को , हम सब है ना ......." सीमा करण के सिर पर हाथ फेर कर " अपने भाई सा को देखा ना अभी.....वो गुस्से में कुछ भी कर देंगे ! " कुछ आंसू करण के चेहरे पर पड़े तो दवा के असर से गहरी नींद में आंखे खोलते हुए " मां सा आप ??? रोना बंद कीजिए ! मैं जल्दी ठीक हो जाऊंगा ! " कहकर करण ने नींद से बोझिल पलकें बंद कर ली ! परमवीर सीमा के पास बैठते हुए " मां सा प्यार की पूरा बैंक उसी पर दीवालिया करेगी तो हम सब कहां जायेंगे ! हमारा हिस्सा...." सब परमवीर के पीछे आकर एक साथ धीरे से " हां बड़ी मां सा हुकुम..... " सीमा जी रोते हुए मुस्कुराकर खड़े हो अपनी बांहे फैला दी ! सब सीमा के झूम गए !  छाया " बस करे सब , भाभी सा ने खाना नहीं खाया है.....और चलिए सब कुंवर सा को आराम करने दीजिए....." मयूरी भी सबको ऐसे देख रोते हुए मुस्कुराकर अपने आंसू पोंछने लगी ! वर्षा ने मयूरी के कंधे पर आश्वासन दिया ! सब कमरे से बाहर चले गए तो मयूरी वर्षा के हाथ पर हाथ रख कर " क्या हुआ ये सब ऐसे क्यों आए थे ????.... " वर्षा हाथ हटाकर " कुछ नहीं भाभी सा , बड़ी मां सा भाई सा को लेकर घबरा गई ! " इतना बोल वर्षा मयूरी को अंदर से गेट बंद कर ने का बोल बाहर आ गई ! परमवीर बाहर आ " मां सा भाई सा के लिए जो फ्लैट दिल्ली में देखा है , वहीं ले जाते है और अच्छे से इलाज भी हो जाएगा.....कल रात  बस की टिकट बना लेता हूं !..... मैं भाभी सा बस में भाई सा के साथ जायेंगें और उदय भाई सा , शूरवीर गाड़ी में साथ आ जायेंगें ! " सीमा कठोरतापूर्वक " वो लड़की कहीं नहीं जाएगी ! " सीमा जी का फैसला सुन सब हैरान रह गए ! सीमा जी मयूरी को यहां रखना चाहती है क्यों ???? जय पूरा दिन कमरे में बंद रहा उसकी मां ने न जाने कितनी बार बैचेनी से गेट खटखटाया लेकिन जय ने शाम तक बाहर आने का बोल दिया ! देर शाम जय ने गेट खोलकर बाहर आया तो  जय की हालत देखकर उसकी मां परेशान हो जय के पास आ " जय क्या हुआ है तुम दोनों के बीच.....करण ने कुछ कहा क्या ???? " जय चीख उठा " नाम मत लीजिए उस गद्दार का...... धोखेबाज का......" जय गाड़ी की चाबी उठाई और बाहर निकल गया ! जय की मां रोकती रही ! महीपाल जी ने जय की मां के कंधे पर हाथ रख उन्हे शांत रहने को कहा ! क्रमशः*****

  • 9. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 9

    Words: 1029

    Estimated Reading Time: 7 min

    जय गाड़ी की चाबी उठाई और बाहर निकल गया ! जय की मां रोकती रही ! महीपाल जी ने जय की मां के कंधे पर हाथ रख उन्हे शांत रहने के लिए कहा। महीपाल बजते ही फोन की तरफ जाकर बोले " प्यार का बुखार था , उतरेगा तो ऐसे ही व्यवहार करेगा, ऐसे ही कुछ दिन तड़प कर रह जाएगा।.... प्यार और दोस्ती में उसका दिल तोड़ा गया है, धोखा मिला है थोड़ा समय दीजिए.... वह संभल जाएगा.... " जय की मां अपने बेटे की हालत देखकर वहीं रोते हुए सोफे पर बैठ गई । जय की हालत ने उनके मन में भय पैदा कर दिया था। वह कहीं कोई कम ना उठा ले। महीपाल जी फोन पर बात कर अपने आदमियों के साथ बाहर निकल गए ! जय रात तक बार में एक कोने में बैठा रहा । देर रात में अंजना ही जय को साथ ले गई ! जय मयूरी को भूलने की कोशिश में अपना ही वजूद बदले की आग में खो रहा था लेकिन यहां रहकर मयूरी को भूलना उसके लिए संभव नहीं था ! महिपाल जी ने आगे पढ़ाई के नाम पर जय को उसकी मौसी के पास दिल्ली भेजने का फैसला किया जिससे जय इन सब से बाहर निकल आए ।......जय ने शहर छोड़ने से मना कर दिया था। वह अपने रूम या फिर बार में ही रहता, नशे में अपनी सेहत खराब करने पर तुला था। करण को दिल्ली गए हुए पंद्रह दिन हो गए ! मयूरी करण के कमरे तक सिमट कर रह गई ! उसके साथ कोई खुलकर बोल नहीं पा रहा था ! वर्षा थोड़ी-थोड़ी देर में संभाल कर चली जाती थी और उसके काम करती थी ! कुछ ऐसी ही जिंदगी हो चली थी, दिनभर बालकनी में बैठी करण की राह तकती और जब वह नहीं लौटता या वर्षा भी करण की कोई खबर न देती तो उसके आने की आस मिट जाती ! सारा दिन खाली बैठे रहने से पिछली बातें घूम-घूम कर याद आ जाती....कभी घर तो कभी कॉलेज...कभी घर से भागना....घर से भागने की बात पर मन ही मन खुद को कोसती अगर वह जय की बातों के जाल में फंस कर न भागी होती तो वह भी आजाद थी इस तरह एक कमरे में कैद न होती। बीस दिन हो चले थे अकेले में मयूरी अपने घरवालों को याद करके रो देती !......वर्षा आज सुबह-सुबह एक बार आई थी लेकिन उसके बाद दिखाई नहीं दी !.....आज पहली बार मयूरी  शाम को जग में पानी लेने के लिए नीचे किचन की तरफ आई लेकिन एक अजीब सी स्मैल से उसका जी खराब हो गया था और वह वापस अपने रूम में आ गई, अभी तक उस अजीब स्मैल नाक में समाई थी,कुछ देर तक सहन किया। परंतु वह और ज्यादा बढती गई। मयूरी सहन शक्ति से बहार चला तब उसने वॉशरूम में आकर वोमेटिंग कर दी.....स्मैल अभी भी अपने इर्द-गिर्द महसूस हुई तो बालकनी की तरफ आई तब और भी ज्यादा मुश्किल हो गया। उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था ! दीपिका मयूरी से कुछ पूछने के लिए आई लेकिन मयूरी अपने मुंह पर हाथ लगाकर वॉशरूम की तरफ चल दी ! दीपिका से पूरी बात भी न हो सकी, वह घबरा कर नीचे आई और धीरे से बड़ी मां सा हुकुम को पास बुलाया। दीपिका ने मयूरी की कंडीशन जाकर सीमा जी को बताई ! सीमाजी जल्दी से मयूरी के रूम में आई तो मयूरी को वॉशरूम में पाया, वह अभी तक वोमेटिंग कर रही थी। उसकी हालत खराब हो चली थी, सांस लेना दूभर हो गया था, बात उसकी समझ से परे थी। सीमा जी उसके बाहर आने का इंतजार करते हुए दीपिका से मयूरी की भड़ास निकालते हुए बोली " पता नहीं क्या समस्या है...आजकल लड़के- लड़कों को जरा सब्र नहीं है....शादी हुए एक महीना नहीं हुआ....अभी से बच्चा.....अब वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे या इस पर...और आजकल की लड़कियों की चोचलेबाजी सो अलग..." दीपिका शर्म के मारे वहां से हट गई तो मयूरी और सीमा जी कमरे में अकेली रह गई। मयूरी ये सब सुन स्तब्ध रह गई, करण! करण तो अभी तक उसके नजदीक न आया था और ना ही पति का हक जताया था। तो फिर किस मुंह से वह अपनी सास को इस बात का हवाला दे कि जो वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं है। सीमा जी मयूरी को देखकर नाराज सी बोली " नींबू पानी भेज रही हूं....आज करण आ रहा है...पहुंचने वाला ही होगा.....उसके सामने लटका हुआ मुंह लेकर मत आ जाना....मेरा बेटा समझे कि कुछ दिया नहीं.....पुराने राज-परिवार से हैं......कोई कमी नहीं है !" सीमा इतना बोल कर चली गई ! अशक्त सी मयूरी वहीं बैठ गई  !  कुछ देर में जह्नावी  नींबू पानी लेकर आई परंतु पानी में भी स्मेल आ रही है ! मयूरी को खुद समझ में नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है !...... मयूरी बेहाल हो गई ! बेचारी ने डर कर किसी से कुछ नहीं कहा।.......और  चुपचाप बेड पर लेटकर रोने लगी। आज मयूरी को चाची की याद आ रही थी ! उसकी भाभी ने तो कभी तवज्जो नहीं दी !......चाची हर कदम पर उसका साथ देती थी !.....दोनों भाई भी ठीक थे लेकिन भाभी के स्वभाव के चलते बड़े भाई को कुछ न कहती और मानव बिना कहे सब कुछ समझ जाता !.......उसे रह-रह कर मानव और चाची याद आ रहे थे !.....इसके साथ ही आंसू बह रहे थे! अपनी हालत किसके साथ शेयर करे,अपना दुख किससे कहे या बांटे। करण के ठीक होकर आने पर नीचे सब खुश थे । उदय और परम करण को लेकर पहुंचे तो सबसे पहले देवी सिंह के पैर छूकर आशीर्वाद लिया ! करण सबसे बड़ा और लाडला था, उसने कभी किसी की आज्ञा की अवहेलना न की थी और न ही पलटकर जबावदेही... शायद यही वजह थी कि सब उसे चाहते थे । बचपन में अपने दादाजी के साथ रहा और उनसे संस्कार ग्रहण किए थे । बड़े होने पर कभी-कभार गलत बातों का विरोध करता तो पृथ्वी सिंह जी को खटकता था बस इसीलिए बाप बेटे में विरोधाभास था। सबसे खुश होकर मिला लेकिन नजरें कहीं न कहीं मयूरी की खोजबीन में लगी थी ! मयूरी परदे के भीतर से नहीं नजर आई तो बातों में ध्यान लगा लिया !..... क्रमशः*****

  • 10. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 10

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    सबसे खुश होकर मिला लेकिन नजरें कहीं न कहीं मयूरी की खोजबीन में लगी थी । मयूरी परदे के भीतर से भी कहीं नजर न आई तो सबके साथ बातों में ध्यान लगा लिया !..... कुछ देर बात करने के बाद करण बहाने से उठा और सबसे फ्रेश होकर आने को कहा ! मयूरी बेबसी में लेटी हुई थी ! गेट बजा तो फटाफट उठकर गेट की तरफ पीठ कर के खड़ी हो गई !...... करण वहीं बैड के दूसरे किनारे खड़ा होकर" मयूरी कैसी हो ???  " करण की आवाज सुनकर मयूरी खुश हुई लेकिन यह खुशी सीमा जी के शब्दों से हवा हो गई ! मयूरी अपनी चुनरी की ओट करके "  हम ठीक हैं....आप बताइए...आप कैसे हैं ?" करण बैड के कार्नर पर बैठ कर बोला " वहीं खड़ी रहोगी या इधर भी आकर बैठने का इरादा....और आज चुनरी की आड़ क्यों ???.... हम दोस्त तो नहीं थे मगर कहते हैं ना कि दोस्त का दोस्त दोस्त होता है बस इस दोस्ती के नाते यहां बैठ जाओ। " मयूरी की आंखों में पानी आ गया और खुद को सहज करते हुए " कुछ नहीं........बस परम्परा का निर्वहन कर रही हूं ! " करण ने कुछ नहीं कहा और अपना टॉवेल और ड्रेस ले वॉशरूम में चला गया ! मयूरी बालकनी की साइड चली गई लेकिन उसका गंध ने जीना मुहाल कर दिया और खाली पेट ही उबकाई आने लगी जिससे उसकी आंतो में दर्द होने लगा , वह पेट पकड़कर वहीं बालकनी में अंधेरे में बैठ गई। उसका गला सूख रहा था !...... उस हालत में आंखो से पानी निकल रहा था ! करण बाहर आया तो मयूरी को देखने लगा, बालकनी में बैठी बेहाल मयूरी को देखा तो उसके पास आकर " मयूरी.... मयूरी.....क्या हुआ है तुम्हे?......" मयूरी कुछ बोलने की हालत में नहीं थी उसे फिर से उबकाई आ रही थी !...... करण नीचे की ओर भागकर गया सीमा को मयूरी की हालत बताई !...... सीमा जी ने सपाट कहा " कुछ नहीं हुआ है ??? मां बनने वाली है....." करण वापस मयूरी के पास आया और उसे बैड पर बैठा कर " मयूरी तुम प्रेगनेंट हो?...." यह सुनकर मयूरी की आंखे बरसने लगी " सबने अपना-अपना हिसाब लगा लिया।.....मुझसे किसी ने कुछ पूछना जरूरी नहीं समझा। बस स्वयं से ही कल्पनायें करके न होने वाली बात गढ ली।" करण मयूरी के आंसू साफ करके कहा" मयूरी रो मत.....ऐसी कोई बात है तो हम दोनों के बीच रहेगी।....." मयूरी सूखे गले से बोली " करण आप क्यों समझेंगे बात को.... जिससे हमने इतना प्यार किया था उसने ही धोखा दे दिया !" करण पानी का गिलास मयूरी को देकर " मयूरी ऐसा मत कहो.....तुम जो कहोगी करने को तैयार हूं....इस बच्चे को अपना नाम दूंगा। किसी को अह्सास भी न होगा कि यह बच्चा जय का है।" बच्चे का नाम सुनकर मयूरी का सर चकरा रहा था ! आखिर में हिम्मत कर के जोर से बोली " करण बस कीजिए , कब से हम बच्चा.... बच्चा... सुने जा रहे हैं। ()मयूरी रोते हुए) अपनी मर्यादा हम जानते हैं। हम उन लड़कियों में से नहीं है जैसा आप समझ रहे हैं। हमारी हालत खराब होने की वजह आपके घर में फैली गंध है । हम ठीक से सांस नहीं ले पा रहे हैं जैसे ही सांस लेते पूरे पर्यावरण में घुली बास हमारा दम घोटने लगती है।" करण की दिमाग ठनका और स्मैल लेते हुए खुद से ही बोला" नॉनवेज...शिट....." करण ने मयूरी का हाथ पकड़कर कहा "चलो.." मयूरी आश्चर्य से " कहां ??? नीचे हम बिल्कुल नहीं जायेंगे ! हमारा दम घुट जाएगा.....और न ही चलने की हिम्मत बची है।" करण मयूरी का हाथ थामकर आगे चलते हुए " सबसे ऊपर वाली छत पर चलो, वहां शायद ठीक लगे।" करण पीछे की साइड से उसे ले गया। मयूरी ने नाक बंद कर के जैसे-तैसे ऊपर वाली छत पर जाकर राहत की सांस ली ! करण नीचे आया सबने खाने के लिए बैठा लिया.....उसने नॉनवेज दरकिनार कर दिया। सब उसे ही देख रहे थे मगर किसी ने कुछ नहीं कहा। सबके खाना खाने के बाद दीपिका ऊपर खाना लेकर जाने लगी तो करण ने दीपिका को रोककर कहा " दीपिका मयूरी नॉनवेज नहीं खाती....इसलिए उसकी हालत खराब है।....." दीपिका वहीं से वापस मुड़ गई और खाना ले जाकर भजन में रख दिया करण शूर के कमरे की ओर चला गया। दीपिका वापस मुड़कर आ गई तो सीमा ने कारण पूछा..... दीपिका ने करण द्वारा कही बात बता दी ! सीमा जी कुढ कर बोली " इस घर की बहू बनने लायक नहीं है। जो इस घर में खुद को न ढाल सकी वह क्या जिम्मेदारियां समझेगी।.........एक इंसान के लिए बीस दिन बहुत होते हैं !.......लेकिन कभी महारानी नीचे उतर कर ही नहीं आई। पता नहीं क्या होगा?" करण शूर के पास आकर ऑर्डर देते हुए " शूर किसी भोजनालय से मयूरी के लिए खाना ला दे ! शुद्ध सात्विक हो......" शूर ने करण को हैरानी से देखा ! करण इधर-उधर देखकर" ऐसे मत देख, मयूरी नॉनवेज नहीं खाती हैं ,सुबह से उसकी हालत खराब है इसकी स्मेल से.......और साथ में दो बोतल पानी भी ले आना ! " शूर अपनी बुक बंद करते हुए " दादा सा हुकुम पूछेंगे तो क्या कहूं ??? " करण कुछ पल सोचते हुए उपाय सुझाया " ऐसे कर तुझे नोट्स लाने अपने दोस्त से.....चल जल्दी कर....." शूर मुस्कुराकर चल दिया तो पीछे से करण ने आवाज दी " गाड़ी लेकर जाना और सबसे ऊपर वाली छत पर खाना ले आना !" करण मयूरी  के पास चला आया ! मयूरी को ऊपर आकर कुछ अच्छा लगा ! करण मयूरी के पास बैठ कर " मयूरी तुम्हे कोई तकलीफ तो नहीं है ना.....और सॉरी आज के लिए...... शायद किसी को पता नहीं है तुम नॉनवेज नहीं खाती....." मयूरी घुटनों पर सिर टिकाए " करण आप चिंता मत कीजिए धीरे-धीरे आदत हो जाएगी.....और सब अच्छे हैं !...." कुछ देर में शूर खाना देकर चला गया ! मयूरी हैरान रह गई और एकटक करण को देखने लगी !.....करण ने मयूरी को पानी बोतल दी , पानी पीने के बाद करण पैक खाना आगे रख दिया ! क्रमशः*****

  • 11. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 11

    Words: 1026

    Estimated Reading Time: 7 min

    कुछ देर में शूर खाना देकर चला गया ! मयूरी हैरान रह गई और एकटक करण को देखने लगी !.....करण ने मयूरी को पानी बोतल दी ! पानी पीने के बाद करण पैक खाना आगे रख दिया ! अपने सामने खाने को देख मयूरी की आंखे भर आई ! करण पास बैठकर " इसको देखने के लिए नही मंगवाया है !..... " मयूरी की आंखों में पानी आना स्वभाविक था ! जिस तरह के पारिवारिक जीवन था उसमें ये उम्मीद करना कि कोई लड़का अपनी पत्नी को स्पेशल फील करवाए तो महज एक सपना ही हो सकता था ! जाने कितने दिनों बाद उसे मोहब्बत भरा अह्सास ,अपनापन करण की बातों में महसूस किया था , इस तरह चाची और मानव ही बातें किया करते थे । दादाजी ,पापाजी और चाचाजी की बातें अनुशासन के लिए होती थी । भाई भाभी के अलावा किसी की सुनते नहीं थे......भाभी ताने मारने से बाज नहीं आती.....ऐसे बड़ों के सामने नहीं बोलती थी लेकिन बातों-बातों में जली कटी भी जोर से बोलकर सबको सुना देती थी !...... उसे चाची और मानव याद आ रहे थे !..... वो खाना खाकर दीवार के सहारे बैठ गई ! शाम से लेकर अब तक के वाक्ये को याद कर आंखो में आंसू आ गए ! किस तरह उसके चरित्र पर सवाल उठा दिए गए।...... करण ने दीवार के पास खड़ा ऊपर से सब देख रहा था ! उसने मुड़कर मयूरी को देखा " मयूरी गद्दा और चादर लाकर देता हूं।.....आज रात यहीं सो जाओ।....." मयूरी वैसे ही बैठे हुए आंख बंद कर के" आप जाइए मैं ठीक हूं !......" करण दीवार के सहारे मयूरी के पास बैठकर " तुम्हारा साथ हर हाल में देना है, ऐसा मुझे मेरा पति धर्म कह रहा है !" मयूरी की तबीयत ठीक न होने से उसे अपने घर की याद आ रही थी, साथ ही रोना.......खुद को अशक्त समझ रही थी। परिस्थिति उसकी समझ से बाहर थी। मयूरी दोनों हाथों को घुटनों पर बांधते हुए" करण हमारे पीछे अपना स्वास्थ्य खराब मत कीजिए...... आप जाकर सो जाइए......कल तक सब ठीक हो जाएगा !" करण मयूरी को देखकर " शायद कल भी ठीक न हो......तब ????" मयूरी " धीरे-धीरे आदत हो जाएगी।....आप चिंतित न हो।...." करण " हुकुम आपकी हालत देख कर लग रहा है,इस जन्म में संभव नहीं है।......" भोर में पक्षियों के कलरव से मयूरी की नींद खुली!.....खुद को करण के कंधे पर सर रखा देख कर झट से अलग हुई । उसकी नीचे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी फिर भी नाक बंद करके अपने रूम में आई ! अपने कपड़े लेकर मुड़ी सामने सीमा जी खड़ी नजर आई । उन्हे सामने देखकर मयूरी ठिठक गई। " घूंघट नहीं कर सकती तो कम से कम मुंह फेर कर खड़ी हो सकती हो या वो भी नहीं हो सकता।.....इस घर की मर्यादा का निर्वहन नहीं हो सकता तो उन्हे तोड़ने की कोशिश भी मत करो। घर के बड़ों के सामने सभ्यता से रहना सीख लो वरना कुंवर सा के लिए आज भी लड़कियों की लाइन लगी है।" मयूरी कुछ नहीं बोली चुपचाप सुनती रही !.... " ऐसा क्या हो गया था.....क्या था ? जो सहन नहीं कर सकती थी, अपने घर परिवार को कैसे चलाएगी? सबके साथ मिलकर कैसे रह सकेगी ! सब के अलग-अलग व्यवहार के हिसाब से सबको ढलना होता है और बदकिस्मती से तुम इस घर में सबसे बड़ी बहू बनकर आई हो इस नाते तुम्हें भी इस घर को जोड़ कर रखना होगा मगर तुम्हे देखकर लगता नहीं कि ये सब कर पाओगी।...... सबके साथ मिलकर चलना होगा...... लेकिन उम्मीद कहीं नजर नहीं आ रही है ......और क्या था ??? रात को ऊपर जाकर सोना, यह अच्छे घरों की लड़कियों के काम है क्या??? 2 साल कॉलेज में क्या निकाल लिए और ऊपर से टीवी क्या आ गया है , सब जगह माहौल बिगाड़ कर रख दिया है !सब अपने आप को आजाद समझने लगे हैं, मान मर्यादा , बड़ों की लिहाज कुछ रह नहीं गया है ,खुली छत पर ऐसे सोना अच्छा लगता है !......कहीं घर के बड़ों ने देख लिया होता तो......करण कुंवर सा भावुक है, नाजायज फायदा न उठाओ। हर बार उनके कहे अनुसार करोगी , कुछ अपना भी दिमाग लगा लिया करो...... भला बुरा सब समझती हो या घर छोड़ने के साथ-साथ वो समझ भी चली गई है।....." मयूरी घबराहट में नजरे झुकाए " हमें माफ कर दीजिए।..... आगे से ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे।....." सीमा जी कमरे से बाहर का रुख करते हुए " उम्मीद तो यही है..... देखते हैं वक्त बताएगा।..." मयूरी का मन खिन्न से भर गया, शायद करण को उसके कारण सब सुनना पड़े !..... करण अपनी आगे की पढ़ाई के लिए डॉक्यूमेंट और जरूरी चीजें सूटकेस में लगा रहा । सीमा करण के पास आकर " खाने क्या कुछ बना कर दूं ??? कुंवर सा......" करण सूटकेस तैयार करते हुए" रहने दो मां सा !......मयूरी साथ जा रही है तो वो बना लेगी।" यह सुनते ही सीमा जी का लहजा बदल गया और खासी नाराजगी से " किसकी इजाजत से जा रही है?" करण एकदम से सीमाजी की ओर देखकर " इसमें इजाजत की क्या बात है ! उसकी पढ़ाई बीच में रह गई है, वो भी पूरी हो जाएगी। साथ में खाने की समस्या खत्म हो जाएगी।......" सीमा जी " यहां घर के तौर-तरीके कौन सीखेगा।....और तुम जो खाना खाते हो , वो ये बना सकेगी?...... " करण एकदम से सीमा जी के सामने खड़ी होकर" मां सा दो दिन से देख रहा हूं।.....ये अपने कमरे में अकेले बैठी घर के तौर-तरीके सीख रही है....है ना.....रही बात खाने की......मैने वो खाना छोड़ दिया है......अब आपकी समस्या खत्म हो गई है ! " सीमा जी सवालिया नजरों से " कुंवर सा ऐसा क्या है ??? उस लड़की में जो आप उसके लिए ऐसा कर रहें हैं ! आजतक कोई बहू नहीं गई ऐसे.....घर के नियमों का पालन करना सबके लिए जरूरी है !....." करण मयूरी के लिए दीवार बनकर खड़ा हो गया था" हां सब निभा रहे हैं ना...... और जो आजतक न हुआ हो जरूरी तो नहीं आगे भी न हो....." सीमा जी " मैने जो कहना था कह दिया.....बाकी घर के बड़ों की आज्ञा का पालन सबने किया है।.....और इस कमरे बाहर निकलते ही तुम्हे पता चल जाएगा ।" क्रमशः*****

  • 12. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 12

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    सीमा जी " मैने जो कहना था कह दिया.....घर के बड़ों की आज्ञा का पालन किया है.....बाकी इस कमरे बाहर निकलते ही तुम्हे पता चल जाएगा !" करण मयूरी को अपना सामान पैक करने का बोल चला गया ! मयूरी कुछ देर तक असमंजस की स्थिति में खड़ी रही। देवी सिंह जी के कमरे में आकर करण उनके पास बैठ गया ! देवी सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए " कोई काम था ?" करण देवी सिंह जी के सामने पीछे हाथ बांधकर खड़े होते हुए " जी हुकुम आपसे एक निवेदन था।......" देवी सिंह हैरान होकर बोले " आपको निवेदन की जरूरत है क्या ?" करण गर्दन झुकाकर " जब घर के रीति रिवाज और परंपराएं आड़े आने लगे तो बड़े बुजुर्गों से निवेदन करना ही सही रहता है ! शायद वे लीक से हटकर कुछ अलग कर जाए ।" देवी सिंह जी करण को पास आकर बैठने का इशारा कर बोले " ऐसी कौन सी परंपराएं हैं जो हमारे पोते के आड़े आ रही है और उन्हें निवेदन करना पड़ रहा है !" करण उनके पास बैठते हुए " मयूरी को दिल्ली साथ ले जाना चाहता हूं !...." देवी सिंह जी बिना किसी हाव-भाव के " हूं....." गंगा देवी आश्चर्य से " लेकिन  हुकुम....." देवी सिंह जी ने गंगा देवी को हाथ उठाकर रोका ।..... करण अपनी उंगलियों को उलझाकर " मेरे बाहर खाने पीने की समस्या का समाधान हो जाएगा और मयूरी की दो साल में ग्रेजुएशन हो जाएगी ! " देवी सिंह जी " जाओ......ले जाओ और उनका ध्यान रखना। और फ्लैट खुद का ही लेना, ताकि बार-बार इधर-उधर अपना सामान उठाना न पड़े । " करण को उम्मीद नहीं थी कि उसके दादाजी इतनी जल्दी मान जाएंगे। आंखों में खुशी लिए करण " हुकुम इतनी जल्दी......." देवी सिंह जी ने करण के पास पड़े फोन देने को कहा तो करण ने फोन का तार लम्बा कर फोन देवी सिंह जी को दिया , नंबर डायल कर किसी से बात की और दो दिन में काम होने की बात करके करण को तैयारी करने को कहा ! करण जाने लगा तो पृथ्वीसिंह मिल गए !....करण को देख भंवे तन गई ! देवी सिंह जी ने उन दोनों को आमने-सामने होते देखा तो करण को तैयारी करने का आदेश दिया ! करण के जाते ही गंगा देवी " हुकुम ये आपने क्या किया.... बहू को आप इस तरह नहीं भेज सकते ।.....उम्मेद कुंवर सा इतने बड़े अधिकारी रहे हैं....छाया कभी गई? नहीं ना......नहीं हुकुम, और आप करण के साथ मयूरी को क्यों भेज रहे हैं ?" पृथ्वीसिंह नाराजगी से " आप उसकी मनमानी को बढावा दे रहे हैं। बस आपके इसी प्यार ने तो उसे सर चढ़ा कर रखा था तभी बिरादरी से बाहर शादी करके ले आया अब भी संभल जाइए। " देवी सिंह जी " आप दोनों का हो गया है.... तो हम अपनी बात रखें !.....हाल ही में जो हुआ , उसे भूलने में ही भलाई है और दीपिका के रिश्ते की बात चल रही है.....बहू यहां रही तो बिरादरी में हर वक्त बात उठेगी.....हो सकता है बच्चों के रिश्ते होने में दिक्कत हो......उन दोंनो का जाना अच्छा है ! अब मुझे कोई विवाद....बहस नहीं चाहिए......और ना ही अब कोई सवाल चाहिए ! करण के बिना हमारा भी मन नहीं लगेगा..... सब जानते हैं करण से हम कितना प्यार करते हैं फिर भी खुद से दूर भेज रहे हैं। इस बात को आप लोग समझ क्यों नहीं रहे हैं।......" गंगा देवी की तरफ से चेहरा करके " और आप अंदर जाकर सब बहुरानी से बोल दो , मयूरी को हंसी खुशी विदा करें ! वहां जाकर उन्हें किसी चीज की कमी नहीं हो ! साथ में परम उदय और शूर चले जाएंगे जिससे उन्हे घर का सामान रखने में दिक्कत न हो ।" करण अपने विचारों में मग्न रूम में आकर चेयर पर बैठ गया ! कुछ देर बाद उसने देखा मयूरी नहीं है....झरोखे की साइड आकर देखा तो तुलसी के पौधे के पास बैठी थी ! वह पौधा वर्षा  ने लाकर दिया हो !.....बाकी तो कोई आकर पूछता ही नहीं था। करण ने इन दो-तीन दिन में सब देखा था ! मां सा का रवैया भी कठोर था, उन्हे कुछ कहना भी उचित न था! करण मयूरी को यहां से ले जाना चाहता था वरना वो यहां घुट-घुट कर मर जाएगी और किसी से कुछ नहीं कहेगी ! करण झरोखे की दीवार के सहारे से खड़े होकर पूछा " मयूरी अपना बैग पैक कर लिया ?" मयूरी अचानक से करण की आवाज सुनकर सहमी सी बोली " जी.... जी नहीं....मां ने मना किया । उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । " करण पास बैठते हुए " उनसे बड़ों ने अनुमति दे दी है। अब आपको डरने की जरूरत नहीं है।....." मयूरी करण के पास बैठने से असहज हो तुलसी के गमले की तरफ सरक गई। करण मुस्कुरा दिया। मयूरी ने करण की ओर देखकर" दादाजी से आप अनुमति लेकर आए हैं।....है ना। " करण भी मयूरी को देखकर " हां.... " करण के रूम का गेट बजा , करण ने गेट खोला तो सामने छाया खड़ी थी ! करण हैरानी से " चाची सा आप ??? " छाया " क्यों हम नहीं आ सकते कुंवर सा ......" करण साइड हट कर " आइए ना.....आपको मनाही हो ही नहीं सकती।..... " छाया इधर-उधर देखकर " बहूरानी किधर है ??? " " झरोखे में बैठी है !....." करण इतना बोल बाहर चला गया। ***** महीपाल जी ने अंजना को फोन मिलाकर " क्या बात अंजना  हमारा बेटा अभी तक उस दो टके की लड़की के जादू से बाहर नहीं निकला है।" अंजना सफाई देते हुए" कोशिश कर रही हूं अंकल......" महीपाल जी नाराजगी से " लगभग एक महीना होने को है फिर तुम उसका ध्यान न भटका सकी। अब मुझे लगता है......मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ।......" "अंकल उसी का ध्यान रख रही हूं परंतु जय को थोड़ा टाइम लगेगा। हो सकता है इस शहर से निकलकर वह उसे भूल जाए।" अंजना ने कहा। "ह्म्म्म्म" महीपाल जी ने फोन रख दिया। महीपाल जी ने अपनी पत्नी से किसी भी बहाने से जय को दिल्ली ले जाने को कहा। शहर से दूर रहेगा तो व्यवहार बदल जाएगा शायद उस लड़की को भूल कर अपने भविष्य के बारे में सोचे। क्रमशः*****

  • 13. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 13

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    महीपाल जी ने अपनी पत्नी से किसी भी बहाने से जय को दिल्ली ले जाने को कहा ! शहर से दूर रहेगा तो व्यवहार बदल जाएगा शायद उस लड़की को भूल कर अपना भविष्य के लिए सोचे। ..... महीपाल जी ने जय को दूसरे दिन जय की मौसी की तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाकर दोनों मां-बेटे को दिल्ली भेज दिया। वहां के अच्छे कॉलेज में एडमिशन करवा दिया। माहौल और दिनचर्या बदलने से जय के व्यवहार में बदलाव हो सके। जय अब गुमसुम रहने लगा था। किसी की बात का ढंग से जबाव न देता और अपने में खोया सा कमरे में बंद रहने लगा था। उसकी आंखो के सामने जय और मयूरी के चेहरे आते तो गुस्से से भर उठता, दिमाग फटने लगता और वह तोड़-फोड़ करने लगता था। ***** छाया ने जब मयूरी को तुलसी के पास बैठे देखा तो उसके पास आकर बैठ गई ! मयूरी का ध्यान उनकी पायल की छनक और चूड़ियों के खनकने पर गई तो वह एकदम से बोली " चाची जी आप हमारे बराबर नीचे क्यों बैठे हैं?....उठिए आप ऊपर विराजमान हो जाइए।....." छाया उसका हाथ पकड़कर " अरे कोई बात नहीं , बैठो तुम और सुनो......कल या परसों में दिल्ली जा रही हो......वहां अपना और करण का ध्यान रखना.....करण बाहर का खाना नहीं खाता है....इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखना। घर का कैसा भी हो उसे चलेगा, वैसे खाने में उसके नखरे नहीं है। दिल का अच्छा है कभी-कभार गुस्सा करे तो गौर मत करना। दो मिनट में रफूचक्कर हो जाएगा ! हां , उन्हे अपने कपड़े प्रेस चाहिए !......इसे भी दिमाग में बैठा लो।" मयूरी छाया की बात ध्यान से सुन कर उनकी बात का जवाब हां में गर्दन हिलाकर दे रही थी! छाया " तुम्हारे चाचाजी ने करण कुंवर सा के नाम से फोन के लिए फार्म भर दिया है ....पंद्रह दिन में लग जाएगा ! कुछ ना समझ आए तो पूछ लेना !......अभी तो सबके मन में तुम्हारे लिए जो कड़वाहट है वह समय के साथ मिट जाएगी।.....बस आगे से कोई ऐसा काम मत करना जिससे परिवार के मान को ठेस पहुंचे ! भाभी सा जितनी कठोर है उतनी ही नर्म भी है लेकिन उनकी जिम्मेदारी और पद ही ऐसा है कि कठोर बनना पड़ता है !......घर में थोड़ी सी ऊंच-नीच उन्हे बैचेनी से भर देती है। दिल पर मत लेना , उन्हे मां समझ कर सुनना,बहू बनकर समझना।" मयूरी छाया की बातें सुनकर भावुक हो गई इतने दिनों में पहली बार किसी ने आकर इतने प्यार से बात की थी। "आज रात यहीं सोने का इरादा है क्या?" करण ने कहा तो मयूर हड़बड़ा गई। "जी....जी मैं बस आ ही रही थी।" मयूरी को अजीब सी घबराहट हो चली थी। शादी के बाद पहली बार जब करण सहजता से बात कर रहा था। मयूरी बालकनी से अंदर आई तो करण बैड के एक साइड लेटने की तैयारी कर रहा था, मयूरी ठिठक कर रुक गई। " इधर आकर लेट जाओ।" करण ने कहा मगर मयूरी के कदम न बढ सके। करण उसकी हालत समझ रहा था परंतु अनदेखा कर अपनी जगह करवट लेकर लेट गया। मयूरी कुछ देर में दूसरी साइड में आकर लेट गई पर सिमटकर, कहीं करण से छू न जाए। ***** करण को भी अच्छा कॉलेज मिल चुका था ! इंटर्नशिप के लिए अच्छे एडवोकेट की तालाश थी ! इस मामले में वह किसी की मदद नहीं लेना चाहता था.....खुद के बल पर  कुछ करना था...... उसके दादाजी ने उसके और मयूरी  के रहने के लिए व्यवस्था कर दी थी , कॉलेज की फीस भी ! यही उसके लिए बहुत था ! दिल्ली पहुंच कर करण और  मयूरी की मदद की, तीनों भाई घर सेट करवाने के बाद वापस लौट आए । मयूरी और करण दोनों अकेले थे,मयूरी को करण के साथ इस तरह अकेले रहना अजीब लग रहा था । करण कॉलेज में एडमिशन  लिस्ट में अपना नाम देखने गया था । मयूरी दोपहर का खाना बनाकर करण का इंतजार करते हुए मोहन राकेश जी का नाटक लहरों के राजहंस पढ रही थी जिसमें सासांरिक और आध्यात्मिक विचारों का विरोध व्यक्ति के माध्यम से दर्शाया गया है ! इसमें व्यक्ति की अनिश्चित, अस्थिर, द्वंद और संशय की मनःस्थिति को व्यक्त किया है ! मयूरी की साहित्य में विशेष रुचि होने के कारण ध्यान मग्न हो पढ रही थी कि तभी डोर बेल बजी ! उसने गेट खोला सामने करण था जिसके हाथ में मिठाई का डिब्बा और दूसरे हाथ में कागज थे,उसने उत्साहित हो मयूरी के गले लगाया " आज मुझे मेरा फेवरेट कॉलेज मिल गया है !" मयूरी उसकी क्रिया पर अचंभित हुई ! करण अलग हो मिठाई के डिब्बे से कलाकंद निकाल कर मयूरी के मुंह में भर दिया ! मयूरी को बोलने का मौका ही नहीं मिला ! करण ने अंदर आ टेबल पर डिब्बा और हाथ में पकड़े कागज रख घर फोन मिलाने लगा ! कुछ मिनट में कलाकंद खाने के बाद मयूरी बोली " करण पहले भगवान को धन्यवाद कहना था और फिर प्रसाद चढाना था ! " करण ने मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया ! घर पर सबसे बात कर के अपने एडमिशन की सूचना दी ! मयूरी ने करण को जूते निकाल कर हाथ धो भगवान से आशीर्वाद लेने को कहा ! शाम को दूसरी मिठाई लाने को कहा तो करण ने मुस्कुराकर सर हिला दिया ! खाना खाने के बाद मयूरी टेबल से बर्तन उठाते हुए " करण आपसे एक बात पूछे ,आप मना नहीं करोगे ! " करण पानी पीकर गिलास मयूरी को देते हुए " ह्म्म्म्म " मयूरी हिचकिचाहट से " वो....हम.....घर...... बात कर सकते हैं ! कितने दिन हो गए हैं.....मानव से बात करके सब के बारे में पूछ लेते....दादाजी....पापा , भईया-भाभी , चाचा-चाची सबका हालचाल जान लेते !......" करण ने हैरान से मयूरी को देख कर " पहले अपना काम करो ......फिर मुझे भी तुम्हे कुछ बताना है ! " मयूरी सर हिलाकर घर बात करने की खुशी में किचन में बर्तन साफ करने के लिए चली गई ! करण वहीं बैठे मयूरी की बात सोच रहा था कि उसे अभी तक अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं पता है ! क्रमशः*****

  • 14. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 14

    Words: 1324

    Estimated Reading Time: 8 min

    मयूरी सर हिलाकर घर बात करने की खुशी में किचन में बर्तन साफ करने के लिए चली गई ! करण वहीं बैठे मयूरी की बात सोच रहा था कि उसे अभी तक अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं पता है ! कुछ देर मे किचन का काम करके करण के पास आकर बैठ गई ! करण को नंबर बताकर " इनमें कोड क्या लगेगा वो आपको पता है !......" करण मयूरी को सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए "  मयूरी ठंडे दिमाग से बात सुनना.....और धैर्य से काम लेना!...." मयूरी भी पास आकर बैठ गई और करण को पेपर्स में काम करते हुए देखने लगी ! करण कुछ सेकेंड में पेपर्स समेटकर मयूरी की ओर मुड़कर " मयूरी तुम्हारे दादाजी इस दुनिया में नहीं है !......" मयूरी का सिर चकराया !......उसकी आगे कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं रही !......और खड़ी हो अपने बालकनी में चली गई ! करण मयूरी के पीछे आया तो मयूरी तुलसी के आगे बैठ कर रो रही थी ! करण दूसरी तरफ मुंह कर के पास बैठ कर " मयूरी शांत हो जाओ.......ऐसे रोने से कुछ बदल जाएगा क्या ???.....अब हम दोनों ही किसी से ना कुछ कह सकते हैं ना कर सकते हैं....." मयूरी " किसी को क्या दोष दें.....एक इंसान ने जिंदगी दोराहे पर लाकर खड़ी कर दी जिसमें आप पिस रहे हो ! आपके दोस्त है जय......आप ने उन्हे पहचानने में इतनी बड़ी भूल कैसे कर दी ???" करण चुप रहा ! मयूरी " उस दिन हमेशा के लिए शांत हो जाने दिया होता.....क्यों बचाया आपने ????..... बस यही सुनने के लिए......करण इन सबके जिम्मेदार हम हैं और कोई नहीं......जय की बातों में नहीं आते तो......" करण की तरफ मुंह करके " करण एक बार आपने अपने दोस्त से पूछा होता.....ऐसा क्यों किया ????" करण चुपचाप सुनता रहा उसे जय की सोच बताकर और टेंशन  नहीं देना चाहता था ! मयूरी सिसकने लगी थी ! करण खड़ा होकर अपने रूम में आ गया ! बैचेन होकर चक्कर काटने लगा ! वापस से आ " मयूरी भूख लगी , खाने में कितना टाइम लगेगा !" मयूरी होश में और क्षमा मांगकर खाना बनाने लगी ! करण ने किचन में आकर एक्सट्रा खाना बनाने को कहा अपने गम में डूबी मयूरी नहीं एक्स्ट्रा खाना भी बना दिया ! करण के लिए खाने की प्लेट लगाकर उसकी ओर बढा दी और खुद खड़ी रही ! करण ने दूसरी प्लेट लेकर खाना डालने लगा ! मयूरी  हैरान होकर " क्या हुआ आपको पसंद नहीं आया ! " करण चम्मच उठाते हुए" नहीं.....अब ये प्लेट तुम खत्म करो....." मयूरी मायूस होकर पास रखी चेयर पर बैठकर खाने को देखने लगी ! करण " नहीं ,खाना है तो फेंक दो !...." मयूरी उदास सी "नहीं फेंक सकते....चाची कहती है प्लेट में डालने के बाद फेंकना अन्न का अनादर होता है ! उनकी तरफ सोच कर भोजन करना चाहिए जिनको एक वक्त भी खाने को नहीं मिलता है इसलिए जैसा भी भोजन मिले वह खा लेना चाहिए ! " " ह्म्म्म्म...."करण यही चाह रहा था कि मयूरी खाना खा ले और वो बिना कुछ किए ही हो गया....मयूरी इन सबसे बेखबर थी ! करण ने चुपचाप खाना खत्म किया और लगभग आदेशात्मक लहजे में शाम मार्केट चलने के लिए कहा ! मयूरी कुछ कहती इससे पहले करण पेपर्स उठाकर दूसरे रूम में चला गया ! मयूरी पुकारती रह गई ! शाम को करण तैयार होकर " मयूरी कितना टाइम लगेगा..." मयूरी बाल सुलझाते हुए उसके पास आकर " लेकिन हमें बाजार क्यों जाना है ????" करण " हर बार क्यों का तड़का लगाना जरूरी है....." मयूरी आंखे फाड़े करण को देख रही थी.....करण ने मयूरी के हाथ से कंघी लेकर बाल बालों को मुट्ठी में बंद कर बनाने लगा ! अचानक से करण के व्यवहार पर चौंक गई ! मयूरी अपने बाल छुड़ाने के लिए करण का हाथ पकड़ कर " अरे....अरे....आप क्या कर रहे हैं....छोड़िए मैं करती हूं ना..... " करण ने मयूरी का हाथ खुद के हाथ पर देख दूर हुआ ! करण रिस्ट वॉच में टाइम देख कर " पांच मिनट....उसके बाद उठाकर ले जाऊंगा !...." मयूरी आज करण के व्यवहार से अचंभित थी ! कुछ देर मे दोनों मार्केट की तरफ आए और  करण मयूरी को लेडीज सेक्शन की तरफ ले गया ! मयूरी हैरानी से करण को देखती रही ! करण मयूरी को देख " अंदर चलो...." मयूरी " ये तो लड़कियों के लिए है...." करण " हां तुम भी तो लड़का हो......  " मयूरी ने अपनी बात का मतलब समझ कर झेंप कर कर करण को देखा और अपनी मूर्खता पर मुस्काई ! फिर संभलकर " करण किसके लिए ले रहे हैं!" करण " दीपिका , जह्नावी और अवनी के लिए .... " मयूरी ने गर्दन हिलाई और उसके साथ चल पड़ी ! मॉल में अंदर जाते ही सेल्स  गर्ल ने मयूरी को राजपूताना ड्रेस में हैरानी से देखा ! लेकिन मयूरी ने इग्नोर कर दिया ! करण के बताने पर सेल्स गर्ल ने मयूरी को ड्रेस चैक करने के लिए कहा तो उसने मना किया कि वह अपनी बहनों के लिए ले रहा है तो फिर मैं क्यों ??? मयूरी कुछ कहने को हुई उससे पहले ही करा " मयूरी जल्दी करो लेट हो रहा है ! " मयूरी बिना कुछ कहे चली गई और कुछ देर में तीन ड्रेस सेलेक्ट कर बाहर आ गई ! करण पेमेंट कर शॉपिंग बैग ले कुछ मयूरी को दे दिए ! मयूर इतनी सारी शॉपिंग बैग देखकर अचंभे में कुछ देर खड़ी रही ! करण के आवाज लगाने पर कैब में बैठ गई ! करण और मयूरी के घर पहुंचने पर करण ने मयूरी को बताया कि यह सब ड्रेसेस उसके लिए हैं ! मयूरी हैरानी भरे सबब से " लेकिन क्यों ???....." करण गहरी आवाज में " कल तुम भी मेरे साथ कॉलेज में चलोगी.....इसके आगे कोई बहस नहीं होगी !......" मयूरी कुछ नहीं बोली.....उसकी आवाज से डर गई थी ! सुबह-सुबह दोनों कॉलेज जाने के लिए नाश्ता कर रहे थे तभी फोन बजा ! करण ने फोन उठाया तो सीमाजी उसे नसीहत दे रही थी ! कुछ मिनट बाद मयूरी से बात करने लगी ! मयूरी ने अदब से बात की ! सीमा जी " हां जहां तक हो सके बेमतलब के वाद-विवाद से दूर रहना परायी जगह हैं , ना ही कोई खास जान-पहचान है जो मुसीबत में मदद के लिए आ सके ! जहां तक हो सके करण को गुस्सा मत दिलाना.... उसको खुद पता नहीं रहेगा कि वो क्या कर रहा है ! ..... ये बात ध्यान रखना .....ठीक से रहना ! करण का ख्याल रखना ! " करण जूते पहनते हुए " मयूरी चलना नहीं है क्या ??? फोन से चिपकी रहोगी !  " मयूरी ने फटाफट फोन रखा और बाहर निकलने लगी तो करण ने रोक दिया " मयूरी कॉलेज ऐसे जाओगी ???" मयूरी हैरानी से खुद के देखकर " क्या हुआ ??? ड्रेस ठीक नहीं है !.....चेंज करूं !......" पतली सी आवाज में मयूरी की मासूमियत उसके चेहरे पर भी झलक आई तो करण कुछ क्षण उसी में खो गया ! मयूरी " करण बताइए ना.....अच्छे नहीं लग रहे हैं !...... " करण होश में आ "नहीं , वो बात नहीं है ! चूड़ियों की खनक से सबको डिस्टर्ब होगा ! घर आ कर पहन लेना !" मयूरी ने चूड़ियां उतार दी ! करण ने माथे के आगे से सिंदूर हटा दिया और बिंदी भी उतार दी ! .....करण ने मंगलसूत्र के लिए कहना चाहा लेकिन मयूरी ने मुड़कर कुर्ते के अंदर छिपा लिया और  करण मुस्कुराकर चल दिया ! मयूरी करण के साथ बाइक पर बैठते हुए " आप हंसे क्यों ???" करण बाइक स्टार्ट कर बिल्डिंग से बाहर निकालते हुए " आज दिमाग लगाया तो......" मयूरी एकदम से खीज उठी " आपका मतलब हम दिमाग नहीं लगाते !" करण मिरर में मयूरी को देख मुस्कुरा दिया ! कुछ देर बाद कॉलेज पहुंच कर करण ने मयूरी के एडमिशन की कागजी कार्रवाई की और मयूरी को छोड़ने आर्ट क्लास के सेक्शन की तरफ चल दिया ! मयूरी और करण को कुछ लड़कों और  लड़कियों ने रोका ! क्रमशः*****

  • 15. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 15

    Words: 1040

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण मिरर में मयूरी को देख मुस्कुरा दिया ! कुछ देर बाद कॉलेज पहुंच कर करण ने मयूरी के एडमिशन की कागजी कार्रवाई की और मयूरी को छोड़ने आर्ट क्लास के सेक्शन की तरफ चल दिया ! मयूरी और करण को कुछ लड़कों और  लड़कियों ने रोका बस वही रैगिंग का चक्कर होता था जहां सीनियर्स की मनमर्जी से चलना पड़ता था! करण मयूरी को अपने पास बुलाया और मयूरी की तरफ देख उसके पहनावे का मजाक बनाया तो करण को गुस्सा आने लगा था। मयूरी ने करण की तरफ देखा और उसके चेहरे के हाव-भाव देख कर सीमा जी की बात याद आई फिर उसने करण का हाथ मजबूती से पकड़कर शांत रहने का इशारा किया ! लीडर के पास खड़ी लड़की " यार लैला मजनू लग रहे हैं। देखा कैसे लड़की ने हाथ थामा है।" करण से इंट्रो करने के बाद उसे लॉ सेक्शन की तरफ जाने के लिए कहा तो करण शांत और गहरी आवाज में मयूरी की ओर देखकर" इसको क्लास में छोड़कर ही जाऊंगा।" मयूरी करण की तरफ देख सहमी सी " करण आप जाइए.... कोई कुछ नहीं कहेगा,मैं देख लूंगी ।आप जाइए । " करण ने नाराजगी से देखा तभी पीछे से आवाज आई " जाने दो , इन दोनों को......" वहीं जो लड़के करण और मयूरी की रैगिंग के चक्कर में थे,सब पीछे देखकर " अरे एम एल ए साहब.....आइए आप भी मनोरंजन कीजिए। " करण मयूरी ने पीछे मुड़कर देखा , जय खड़ा था । मयूरी की उंगलियां करण की हथेली के पीछे कस गई । वह गहरी निगाहों से जय को देखने लगी, आंखे भर आने को आतुर थी मयूरी ने जय के पीछे अपने आंसू वेस्ट करना उचित नहीं समझा। " आपकी सिफारिश हो और काम न हो !" लीडर जय से हाथ मिलाकर बोला। करण इग्नोर कर मयूरी के साथ आगे बढ़ गया ! दोनों पूरी राह चुप ही रहे। उन दोनों की समझ से परे था कि क्या बात करे। सब अपनी सीट पर आकर बैठ गए । मयूरी के पास कोई  लड़की बैठी थी । मयूरी बेमन से क्लास में उपस्थित थी ! उसकी आंखो के आगे जय घूम रहा था,उसको देख कर अतीत मंडरा गया । किसी विद्यार्थी की आवाज आई, पूरी क्लास में हल्ला हो गया" आज हिंदी के लेक्चरर ऑफ है । " जय आगे आकर सबको देखते हुए " सब्जेक्ट हिंदी है..... कुछ को छोड़कर आप सब गालिब के शहर से हो , क्यों ना कुछ शेरो शायरी हो जाए। " कुछ की आवाज आई " गालिब के शहर वाले कुछ ना कुछ सुना देंगे जो अदर्श हैं उनसे ही स्टार्ट किया जाए....." कोई बीच मे से आवाज बोला " अरे जय तुम भी तो बाहर से ही हो क्योंकि तुम से ही शुरू किया जाए !..... " जय पीछे बैठी मयूरी की ओर देखकर जो कि बाहर देख रही थी और अचानक जय की आवाज सुनकर उसकी ओर एक नजर डाली और नजरे किताब पर झुका ली, नजरें झुकाना बस बहाना भर था। वक्त को दे दोष या खुद को दे सजा यहां पर यार भी है बेवफा और प्यार भी....... सबने एक साथ कहा कि एक ओर शेर हो जाए। जय की आवाज में मायूसी थी,मयूरी की पलकें भीग गई ! इश्क में खुद से ही हूं खफा बेवफा सुन ओ बेवफा.......... " अरे यार जय तुम तो बड़े आशिक मिजाज हो " किसी ने कहा। मयूरी ने गर्दन झुकाकर एक हाथ की कोहनी को टेबल से टिकाकर उसे गाल से सटा लिया। वह क्लास से भाग जाना चाहती परंतु सबके बीच से ऐसे जाना ठीक न लगा। जय फीकी मुस्कान होठों पर सजा कर" अर्ज किया है कि......." कहते हैं लोग,अरे यार तुम बड़े आशिक मिजाज हो......... इक मेरे यार ने किसी ओर के पहलू में आशियां सजाया है ! मयूरी का वहां जरा भी रुकने का मन नहीं था ! जय की बातें उसके दिल पर चोट कर रही थी ! मयूरी ने दुपट्टे से आंखे साफ की ! मयूरी के पास बैठी लड़की इन सब से बोर होकर बाहर जाने की तैयारी में थी, मयूरी भी उसी के साथ निकलना चाहती थी मगर लड़की के हटते ही जय मयूरी के पास आकर बैठ गया.....अचानक से जय के बैठने  मयूरी के दिल की धड़कन बढ़ गई ! करण भी बेचैन हो उठा आज अचानक जय को सामने देख ! मयूरी पर क्या गुजर रही होगी ! वह लेक्चर खत्म होते ही मयूरी की तरफ आया ! जय ने मयूरी की कलाई कसकर पकड़ ली ! सहमी-सी मयूरी धीरे से " जय हमारा हाथ छोड़िए। जब थामने का वक्त था तब आप कहां थे?" जय दर्द में मुस्कुराकर " तब...तब मैं अपनी बर्बादी का जश्न मना रहा था क्योंकि तुम दोनों...दोनों ही मेरी जिंदगी का मजाक बनाया है।बस एक बार कह देती कि करण से प्यार है। मैं खुशी से तुम दोनों से दूर चला जाता,इस तरह धोखा देकर क्या हासिल किया? तुम दोनों ने पीठ पीछे वार किया है।" उसके शब्द-बाणों से जो दर्द हो रहा था उसके सामने मयूरी की कलाई पर दर्द फीका था......मयूरी ने झिलमिल आंखों के साथ हैरानी से देखा.....मयूरी क्लास में मौन रही। जय ने गुस्से से तिलमिलाकर " मौन सब कुछ बता देता है मयूरी......तुम दोनों को देख लूंगा...... चैन छीनकर चैन से जीने आए हो तो......चैन से जीने की उम्मीद छोड़ दो......मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि तुम्हारे चैन को बेचैनी से भर दूं।" जय की बात सुनकर मयूरी का दम घुटने लगा, वह लेक्चरर के जाने का इंतजार करने लगी ! मयूरी करण की हालत याद करके घबराकर जय से विनती करते हुए बोली " प्लीज जय! करण को कुछ मत करना। तुम्हें जो कुछ कहना है वह मुझसे कहो ! अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हे धोखा मिला है तो मुझसे बदला लो। मैंने तुम्हारी भावनाओं के साथ खेल खेला....." लेक्चरर जा चुके थे..... जय मयूरी की बात पर जोर से हंसा ! मयूरी ने सामने देखा तो कोई नहीं था वह फटाफट अपनी बुक्स लेकर क्लास रूम से बाहर आ गई  और सामने से आते करण से टकरा गई ! करण ने मयूरी को संभाला और खैरियत पूछी ,उसने गर्दन झुकाकर हिला दी ! करण से घर चलने को कहा और आगे निकल कर आ गई ! करण भी जल्दी से बाहर आ घर की ओर निकल गया ! दोनों के बीच एक बेचैनी सी छाई हुई थी ! क्रमशः*****

  • 16. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 16

    Words: 1061

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण ने संभाला और खैरियत पूछी ! गर्दन झुकाकर हिला दी ! करण से घर चलने को कहा और आगे निकल कर आ गई ! करण भी जल्दी से बाहर आ घर की ओर निकल गया ! एक बेचैनी सी छाई हुई थी ! जय मयूरी को ढूँढने के लिए उसके पीछे आया लेकिन वो उसे कहीं नहीं मिली.....कॉलेज के गार्डन एरिया में चला गया जहां अकेला बैठा मयूरी को सोचता रहा !...... बिल्डिंग के फोर्थ फ्लोर पर अपने फ्लैट की तरफ भागती हुई चली गई ! करण उसकी स्थिति से असमंजस में था ! नीचे पार्किंग में बाइक खड़ी कर के जल्दी से मयूरी के पीछे आया तो अपने रूम में बैठी रो रही थी ! करण रूम के गेट पर खड़े होकर " मयूरी जय ने कुछ कहा क्या ??? " मयूरी कुछ नहीं बोली रोती रही !........ करण गुस्से में " मयूरी तुमसे कुछ पूछ रहा हूं..... " मयूरी फिर भी कुछ नहीं बोली.....करण मुड़कर जाते हुए " ठीक है मत बताओ  आज आमना-सामना हो जाए तो ठीक है......दुश्मन तो वैसे भी मान बैठा है !......" करण की बात सुनकर मयूरी ठिठकी......आंसू साफ करके करण के रूम में आई तो करण अपनी गन चैक कर रहा था ! मयूरी की आंखे डर से फैल गई !...... मयूरी करण का हाथ पकड़कर " करण नहीं , आप ऐसा कुछ नहीं करेंगें !......कुछ नहीं कहा है जय ने....." मयूरी सिसक कर " आज इतने दिन बाद जय हमारे सामने थे और हम उनकी हालत देख कर रो दिये.....क्या हालत कर ली है उन्होने अपनी......ये सब हमारे साथ ही क्यों......" मयूरी रोते हुए वहीं टेबल के सहारे बैठ गई ! गन वापस छोड़ कर करण पानी का गिलास ले आया , पास बैठ कर " लो पानी ! " मयूरी अपने हाथों में मुंह छिपाकर सिसक उठी ! करण पानी का गिलास साइड में रखकर मयूरी के सामने आलथी-पालथी मार कर बैठते हुए उसका हाथ हटा " मयूरी कब तक खुद को यूं ही इन सब में जलाती रहोगी !......अगर तुम्हे जय के पास जाना है तो बेशक जा सकती हो !" मयूरी ने दुपट्टे से आंसू पोंछ कर " करण सच में आप ऐसा चाहते हैं ????..... और जय मुझे अपना लेगा ????" करण कुछ देर खामोश रहा ! " करण जबाव दीजिए....." करण ने मयूरी को गले से लगा लिया.....दोनों की जिंदगी दोराहे पर खड़ी हो गई ! मयूरी उसका स्नेह पाकर बिल्कुल टूट गई थी !......उसे रह-रह कर जय की बात याद आ रही थी ! करण को मालूम था कि जय का नजरिया उन दोनों के प्रति क्या है ! बस मयूरी की हालत उससे देखी न गई........ और चाह कर भी मयूरी को उसके पास नहीं भेज सकता ! जय अगर उसकी एक बार बात सुन लेता....तो शायद वह आज मयूरी को उसके साथ बिना सोचे समझे भेज देता.... मयूरी करण की" करण छोड़ दीजिए हमें.....हमारे साथ से कभी खुश नहीं रह पायेंगें !..... बस किस्मत काली स्याही से लिखी है कि जिसकी जिंदगी में जायेंगें....अंधेरा ही करेगें !... करण हमारा साथ आपके जीवन की राह में हमेशा कांटे ही बोयेगा !..... " करण मयूरी के चेहरे को हाथों में लेकर आंसू साफ करते हुए " तुम नजरिया बदलो.....फिर देखो कांटे मिलते हैं या फूल... तुमने पहले ही सोच लिया है कि कांटे मिलेगे.....फिर फूल की उम्मीद मुश्किल है......" मयूरी उसकी आंखो में उम्मीद देख रही थी ! करण पानी का गिलास देकर " पहले तो हर बात पर इमोशनल होना बंद करो !.....तुम्हारे मन में जय का जो स्थान है वह कोई ओर हासिल नहीं कर सकता......" मयूरी ने हैरानी से करण को देखा और जय की बात सोच कर " किसी के लिए कोई जगह ही नहीं है......." करण अचंभित सा " अभी तो तुम जय के लिए रो रही थी !" मयूरी डर गई कहीं करण को सच बताया तो जाने वह क्या कर बैठे......" भावनाओं में बह गई थी....अब ऐसा नहीं होगा !......" करण खड़े होकर " मैं खाना लेकर आता हूं.....तुम मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ...... " मयूरी नार्मल होकर खड़े होते हुए " नहीं , मैं बना दूंगी..... " करण " तुम ठीक नहीं हो ना......" मयूरी एकदम से " लेकिन आपको बाहर का पसंद नही है , मै बना दूंगी......." जय कॉलेज के गार्डन में आंखे बंद कर के लेट गया ! मयूरी को याद करके उसके कोर गीले हो गए......जय को आवाज सुनाई दी तो कोर साफ करके साइड में देखा तो उसका मासी का बेटा उसे आवाज लगा रहा था ! " भाई आप यहां ???? क्लास हो गई तो घर चलें......." जय उठकर उसके पास आकर" ह्म्म्म्म....चल..... " जय घर आया तो उसके लिए अंजना का फोन आया हुआ था ! जय को देख कर उसकी मां ने उसे फोन दिया ! अंजना नाराजगी से " क्या बात वहां जाने के बाद मुझे भूल गए !" जय " यहां खुद का अता-पता नहीं और तुम तुम्हे याद रखने की बात कह रही हो" अंजना गुस्से में " भूल जाओ मयूरी को वह नहीं मिलेगी तुम्हें ! " जय " लेकिन आज मिली थी वही सादा रूप वही मासूमियत लिए हुए ! " अंजना का रोम-रोम सुलग उठा " करण भी होगा साथ में , उसका पति जो ठहरा ! दोनों का असली चेहरा देख लिया होगा !" जय ने गुस्से में फोन रख दिया क्योंकि उसे मयूरी का करण  हाथ पकड़कर खड़ा होना जहन में घूमा था और साथ ही करण के लिए फिलिंग्स याद करके दिल दरक ही गया था ! अपने रूम में आकर औंधे मुंह लेट गया ! जय की आंखे गीली हो गई ! कपड़े धोती मयूरी की हेल्प के लिए करण आया ! मयूरी के मना करने के बावजूद भी उसकी मदद करने लगा ! करण ने पहले कभी काम नहीं किया था तो मुश्किल लगना ही था ! करण अपनी शर्ट को सुखाने लगा तो मयूरी ने टोका और शर्ट को झड़काया तो कुछ छींटे करण पर आ गिरे...... " ऐसे सुखाना चाहिए " करण ने हां गर्दन हिलाई और अपना तौलिया झाड़ने लगा तो शरारत सूझी और  मयूरी की तरफ झड़का दिया पानी के छींटे उस पर आ गिरे ! अमूमन ऐसा करता नहीं है...... मयूरी ने चौंक कर देखा तो करण मुस्कुराता हुआ नजर आया तो वह भी उसके संग मुस्कुरा दी ! करण ने मूड ठीक करने के लिए किया था ! दूसरे दिन मयूरी ने कॉलेज जाने से मना कर दिया ! करण भी इंटर्नशिप के लिए बेस्ट एडवोकेट की तालाश में निकल गया ! क्रमशः*****

  • 17. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 17

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    मयूरी ने चौंक कर देखा तो करण मुस्कुराता हुआ नजर आया तो वह भी उसके संग मुस्कुरा दी ! करण ने मयूरी का मूड ठीक करने के लिए किया था ! दूसरे दिन मयूरी ने कॉलेज जाने से मना कर दिया ! करण भी इंटर्नशिप के लिए बेस्ट एडवोकेट की तालाश में निकल गया ! दो दिन बाद घर में फोन रिंग हुआ ! मयूरी ने बात की , करण घर नहीं था ! मयूरी के फोन उठाते ही सामने वाले के तीखे बोल कानों में पड़े " तुम दोनों को चैन नहीं है ना.... क्यों  जय की जिंदगी बर्बाद करने पर तुली हो।.....उसने नशे में खुद की हालत क्या कर ली है तुम क्या जानो?.....तुमने तो धोखा देकर अपना घर बसा लिया लेकिन जय तिल-तिल मर रहा है ! मयूरी उसे बख्श दो......अपनी मासूमियत का दिखावा मत करो !......" पहले मयूरी को समझ नहीं आया कि कौन बोल रहा है जब समझ आया तब तक अंजना अपनी आग उगल चुकी थी ! मयूरी घबराहट में बस उसका नाम बोल सकी " अंजना..... " अंजना उसी लहजे में बरकरार गुस्से से " हां मै , वो दिल्ली गया तो तुम पीछे-पीछे पहुंच गई..... क्या बात करण से मन भर गया क्या ????" मयूरी उसकी बात सुनकर गुस्से में कांप ही तो उठी थी।..... " अंजना.....अपनी सोच अपने पास रखो तो ठीक है....हमने करण से शादी की है।......उसे निभायेंगे.....जय का हमें क्या पता वो क्या करते हैं क्या नहीं.....हम इतने भी गिरे हुए नहीं है......अंजना.....आप यह जानते हुए भी सब बोल रही हैं....." मयूरी को उसकी बातें कांटो की तरह चुभ रही थी। अंजना चेतावनी देकर" एक बात ध्यान से सुन लो......कल अगर कॉलेज में जय मिले तो उसे भी अपनी शादी और वचन याद दिला देना !......वरना....." इतना कहकर अंजना ने फोन रख दिया ! मयूरी को लगा एक तुफान सा आकर चला गया ! जिंदगी में अभी और क्या देखना बाकी है ! अंजना भी तो शक्तिशाली परिवार से थी !......क्या पता क्या करवा दे......अब अपनी परवाह नहीं थी ख्याल तो करण का था...... मयूरी ने ठंडे पानी से मुंह धोया और सोचते हुए काम में लग गई ! मयूरी ने ठान ही लिया कि वह कॉलेज नहीं जाएगी..... मयूरी के साथ करण मजाक कर रहा था फ्लैट के अंदर आते हुए मयूरी उसकी बात पर खिलखिलाकर हंसी ! करण कुछ पल उसके हंसने में खो गया ! करण को जिस एरिया में फ्लैट मिला था वह बिल्डिंग अभी-अभी तैयार यह हुई थी ! फ्लोर पर कुछ लोग रहने के लिए आए थे ! कुछ फ्लैट्स में काम चल रहा था ! करण के अपार्टमेंट में करण और उसके अलावा एक व्यक्ति और रहता था जो नाइट ड्यूटी में चला जाता था ! बाकी सब फ्लैट्स में काम चल रहा था ! उनमें रहने के लिए कोई नहीं आया था ! मैन डोर खुला ही था करण ने उसे सब्जी से भरा थैला दिया ! आज दोनों ही कॉलेज से आने में लेट हो चुके थे !  थकावट से घर आकर सो गए थे ! रात में खाना बनाने के लिए मयूरी ने ढूंढा था !उसे कुछ नहीं मिला इसलिए करण सब्जी लेकर अभी-अभी आया ही था ! करण ने हाथ धोकर मयूरी के मना करने पर भी हाथ से चाकू ले सब्जी काटने लगा ! करण की उंगली कट गई ! करण ने उंगली डुबाने के लिए पास पड़े जग से पानी गिलास में डाला ! उससे पहले मयूरी ने उंगली मुंह में ले ली !...... कुछ देर बाद उंगली निकाल कर मयूरी करण को डांटते हुए " आपको पता है चाकू नहीं चलाना आता फिर भी आपको काम करना जरूरी है ! मैं कर रही हूं ना सब काम..... नहीं , हर काम आपकी उपस्थिति के बिना अटक जाएगा ! जैसे गनु जी का नाम लेना जरूरी है वैसे ही आपकी उपस्थिति जरुरी है.....एक गिलास पानी भर नहीं सकते और चले हैं काम करने......" मयूरी करण को डांट रही थी साथ-साथ बैंडेज भी लाकर लगाने लगी ! करण मयूरी को पतली सी आवाज में डांटते हुए देख रहा था जैसे कोई छोटा बच्चा बोल रहा हो ! करण ने हंसकर पानी का गिलास उठा कर उसके मुंह से लगा दिया ! मयूरी फटी-फटी आंखों से देखती रह गई पानी पीकर करण को हाथ को पकड़कर साइड करते हुए आगे आने के चक्कर में करण के पैर में पैर उलझा बैठी , गिरने लगी तो करण का वजूद उसके घेरे में आया ! करण तो हिला नहीं लेकिन मयूरी को बचाने के लिए मयूरी की पतली सी कमर के चारों ओर हाथ लपेट दिया ! मयूरी करण की क्रिया पर उसे देखने लगी तभी ताली के साथ एक आवाज सुनाई दी  " एक वक्त कोई  कहता था कि वह लड़कियों और प्यार-व्यार की बातों से दूर रहता है और आज.......तुम दोनों जरा भी गिल्ट नहीं है ना.....कैसे होगी उसके लिए जमीर होना जरुरी है ! " मयूरी और करण हैरानी से उस ओर देखने लगे ! करण मयूरी से दूर हो जय की तरफ बढते हुए " जय तु यहां ???" जय ताना मार कर  " तुम्हारे काम में दखल डाल दी ना....तुम अपना प्यार कंटिन्यू रखो.....मैं जा रहा हूं ! तुम्हारा पता नहीं पर दो गद्दारों को इस तरह प्यार करते देख मेरा खून खौल उठेगा !" करण जोर से बोला " अपनी बकवास बंद करेगा !....नहीं पता तुझे किसने क्या कहा ??? जो मेरी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है और आपने दिमाग में जो भी घटियापन डाल रखा है उसे बाहर निकाल ! " जय ने गन के निशाने पर लेकर " बाहर तो तु निकलेगा हमारी जिंदगी से ,(मयूरी की ओर इशारा करके) उसके बाद इसकी सजा तय होगी ! " मयूरी जय के हाथ में गन देखकर डर गई,मयूरी चीख कर "जय आप ऐसा कुछ नहीं करेंगें । " करण जय की ओर बढ रहा था , मयूरी उसे मना कर रही थी परंतु करण नहीं रुका तो मयूरी आगे आ गई और उसे झिंझोड कर दूर होने के लिए कह रही थी ! करण ने मयूरी को दूर किया तो जय ने गोली चला दी ! यह देख मयूरी की आंखे भय से फैल गई और शारीरिक की कंपन बढ गई ! क्रमशः*****

  • 18. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 18

    Words: 1019

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण जय की ओर बढ रहा था इसके विपरीत मयूरी मना कर रही थी ! "करण आप आगे मत बढ़ना, आप समझने की कोशिश करो। जय के हाथ में बंदूक है। " मयूरी करण के आगे आकर उसकी शर्ट पकड़कर रोकने का असफल प्रयास कर रही थी। "मयूरी तुम दूर हटो, आज आमना-सामना हो ही जाए। इसकी आंखो पर गलतफहमी की जो पट्टी बंधी वह भी उतारनी जो है।" मयूरी की बाजू पकड़कर उसे दूर करना चाहा। "तुम दोनों अपने धोखे को गलतफ़हमी का नाम देकर खुद को निर्दोष साबित करना चाहते हो तो वो साफ-साफ दिखाई दे रहा है ना मयूरी का तुम्हारे प्रति प्रेम, अब और भी सबूत चाहिए क्या?" जय गुस्से में आंखे लाल किए हुए बोला। करण और मयूरी दोनों ही उसकी बात सुनकर जम से गए थे। "क्यों मयूरी गलत कहा क्या?" जय जोर से हंसा। उसकी हंसी दर्द भरी थी। जय निष्ठुर सा गन ताने खड़ा हो गया जैसे उसके सर पर खून सवार था। करण फिर भी नहीं रुका तो मयूरी उसे झिंझोड कर दूर होने के लिए कह रही थी ! करण ने मयूरी को दूर किया तो जय ने गोली चला दी ! यह देख मयूरी की आंखे भय से फैल गई और शारीरिक की कंपन बढ गई, गले की आवाज भी चली गई थी! मयूरी करण के पास बेजान सी बैठ गई ! जय भी उसके पास बैठ कर " पति-परमेश्वर के जाने का शोक..." " जय क्यों किया आपने ऐसा, आपको मुझसे बदला लेना था आप मुझे जान से मार देते, मुझे कोई शिकायत न होती,करण ने कुछ नहीं किया था बस मुझ बेसहारा को सहारा दिया था।" मयूरी जय पर चीखते हुए बोली। जय मयूरी का हाथ पकड़कर खींच कर ले जाने लगा तो मयूरी हाथ छुड़ाने के प्रयास में " छोड़ो हमें , आपके साथ नहीं जाना है। जय प्लीज करण मर जायेंगें,उन्हे डॉक्टर की जरूरत है ! प्लीज जय आपके आगे हाथ जोड़ती हूं,करण को बचा लीजिए। " जय उसे खींच कर बाहर ले जा रहा था, रोने के साथ-साथ मयूरी चीख रही थी और  खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी और पीछे करण के खून से लथपथ शरीर को देख रही थी। सब तरफ खून बिखरा पड़ा था। करण थोड़ा दूर खड़ा मयूरी को जगा रहा था " मयूरी.. मयूरी... मयूरी उठो।..." मयूरी नींद में बोली " प्लीज छोड़ो....करण.....मुझे करण के पास जाना है।" करण ने पानी के छींटे दिए तब मयूरी ने आंखे खोली ! उसकी पलकें आंसुओ से गीली थी ! करण झुककर मयूरी के सिर पर हाथ फेरते हुए" मयूरी ठीक हो ??? बुरा सपना देख रही थी......लो पानी पियो और उठो ! कॉलेज जाना है !....." मयूरी की डर से धड़कने बढी हुई थी, पानी पीकर गिलास रखते हुए सपने में खोई थी ! करण चुटकी बजा कर होश में लाते हुए " मयूरी जल्दी करो !..... " करण जाने लगा तो मयूरी हाथ पकड़कर पूछा " एक बात कहें आपसे ???? " करण मयूरी के हाथ पकड़ने से असहज हुआ, जाने कैसे अह्सास थे। उसका स्पर्श दिल की धड़कने बढा गया। पूरी देह में एक अलग सी हलचल जो पहले कभी नहीं हुई थी, उस पर मयूरी की मासूमियत और भी ज्यादा दिल की नइया प्यार के सागर में डुबाने को तैयार थीधीरे से हाथ हटाकर बोला " करण तुम्हे पूछने की जरूरत नहीं है ! तुम अपनी इच्छा जाहिर कर सकती हो।मयूरी ऐसी क्या बात है जो तुम इतना घबराई हुई हो।" मयूरी गर्दन झुकाकर अपनी उंगली उलझाते हुए बोली " मैं कॉलेज नहीं जा रही हूं या यूं समझ लीजिए जाना ही नहीं चाहती हूं।" करण उसे हैरानी से देखने लगा, मयूरी नजरे उठाकर  " आप से निवेदन है कि आप भी मत जाइए। आप भी घर रहकर पढ़ाई कर सकते है ना तो कर लीजिए।" करण गौर से देखते हुए " क्या बात है मयूरी ?..... इतना डरी हुई क्यों हो? जय ने कुछ कहा या किया?" मयूरी जय के नाम से सफेद हो गई मगर खुद को सहेज कर धीरे से बोली "  बस सपना कुछ ऐसा था तो डर लग रहा है। आप मेरे साथ घर पर रुक सकते हैं ना" करण बाहर की ओर मुड़ते हुए " कुछ नहीं होगा ! चलो तैयारी करो ! " मयूरी भरे गले से " करण प्लीज..... 2 दिन के लिए मान जाइए !" "ओके कॉलेज नहीं जा रहा मगर मेरे दूसरे काम है वो करने के लिए बाहर जाना पड़ेगा।" करण कहते हुए रूम से बाहर चला गया। मयूरी ने फटाफट तैयार होकर करण के लिए चाय नाश्ता तैयार किया और उसे विदा करने के बाद अपने कामों में लग गई। करण ने उसकी बात मान ली और तैयार होकर इंटर्नशिप के लिए बेस्ट एडवोकेट की लिस्ट निकाली और मिलने चला गया ! चार दिन तक करण एडवोकेट्स के चक्कर लगाता रहा और इंटर्नशिप के लिए फॉर्म फिल कर दिए। उनके असिस्टेंट ने करण को कॉल कर सूचना देने को कहा ! पांच दिन बाद करण कॉलेज गया था ! कुछ नोट्स ले आया और कॉपी करने लगा ! शाम तक वह थक गया था !..... मयूरी ने अपार्टमेंट में नीचे शॉप से कुछ सामान लाने को कहा ! करण नीचे गया तभी उसका दोस्त आ गया जो उसके साथ लॉ कर रहा था !  बालकनी में खड़ी मयूरी को करण ने नीचे से आवाज लगाकर बाइक की चाबी फेंकने को कहा और नीचे से सामान ले जाने का इशारा किया ! मयूरी अपना दुपट्टा सही कर लॉक लगाकर नीचे आई और सामान चैक करने लगी ! सब सामान चैक करके सेट किया और सामान का बिल ले ऊपर आई ! गर्मी में पूरी तरह से पसीने से भर गई  ! करण के फ्लैट पर नहीं होने से दुपट्टा उतारकर पंखा तेज कर उसके नीचे खड़ी हो गई, गर्मी में घुटन हो रही थी ! वह नहाकर आई और पानी का गिलास लेकर पानी पिया ही था कि डोर बेल बजी ! मयूरी हैरानी से गेट खोलते हुए बोली" आप इतनी जल्दी आ गए ?" मयूरी ने गेट खोला ! सामने खड़े शख्स को देख कर हैरान हो वापस से गेट बंद करने लगी ! परन्तु वह उसके सामने कमजोर साबित हुई ! मयूरी को धकेल कर वह शख्स अंदर आ गया ! क्रमशः*****

  • 19. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 19

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    मयूरी ने गेट खोला ! सामने खड़े शख्स को देख कर हैरान हो वापस से गेट बंद करने लगी ! परन्तु उसके सामने कमजोर साबित हुई ! मयूरी को धकेल कर वह शख्स अंदर आ गया ! नाजुक सी मयूरी उसका सामना नहीं कर सकी और धक्के से दो-तीन कदम पीछे हट गई,माहौल में ही घबराहट छा गई ! मयूरी डरते हुए पीछे होकर बोली " जय क्यों आए हैं आप ??" जय कुछ नहीं कहा और मयूरी को देख रहा था । राजपुताना  ड्रेस , भीगे खुले लम्बे और गहरे बाल कुछ आगे कर रखे थे जिनसे पानी झर रहा था.......हाथों में सफेद सीप की चूड़ियां........गले में मंगलसूत्र......माथे पर बिंदी और मांग में करण के नाम का सिंदूर......जिसे देख जय का खून खौल उठा था !..... जय को इस तरह देख फ्लैट पर देख कर मयूरी सपने को याद कर के भयभीत हो गई थी कहीं सपना सच न हो जाए ! मयूरी की तरफ जय बढ रहा था तो मयूरी पीछे की ओर...... मयूरी बालकनी की दीवार से आ लगी...... मयूरी डर कर " जय क्या चाहिए आपको? " जय गुस्से में मयूरी की एक साइड दीवार पर हाथ रखकर" धोखे के अलावा तुम क्या दे सकती हो।....." मयूरी वहां हटने के लिए मौका देख रही थी ! जय बिल्कुल करीब आ गया, मयूरी दीवार से लगकर घूम गई......जय दीवार से जा लगा ! मयूरी जाने लगी तो जय ने वापस खींच कर सीमेंटेड जालीदार झरोखे के डिजाइन पर जोर से लगाया तो जाली मयूरी की पीठ में चुभ गई और दर्द से मयूरी की आंखे बंद हुई, उसका सर चकराया ! जय करीब आकर आंखो में लालिमा लिए आवेश में बोला " बस इतना बता दो कि करण में क्या देखा.......उसके रूपये थे, मेरे पास भी है....उसके पास शानो-शौकत है तो मेरी उससे ज्यादा है।.....या फिर एक घंटे में अपने फार्महाउस पर उसने कुछ ज्यादा ही खुश कर दिया था फिर तो इस हिसाब से मुझे भी मौका देकर देखती ना,शायद में उससे ज़्यादा हर मामले में खुश कर देता।" मयूरी जय की बात सुनकर शॉक्ड हो गई कि वो उसके बारे में ऐसी सोच रखता है ! मयूरी की आंखो में बेबसी और गुस्से के मिले जुले भाव थे।......मयूरी ने जय को थप्पड मार दिया। जय गुस्से में मयूरी को करीब कर " उससे इतना प्यार हो गया कुछ ही दिनों में या फिर मेरे साथ नाटक कर रही थी।.....मुझे भी मौका दिया होता।" मयूरी नम आंखो से चीखते हुए बोली " बस करो जय.....दूर हटो.......ये अपशब्द.......ऐसी मानसिकता......छी घिन्न आ रही आपकी सोच पर" जय ने दांत पीसकर मयूरी की गर्दन को कसके पकडते हुए एक-एक शब्द पर जोर देकर बोला " क्यों इतनी औपचारिकता, दिखावे की जरूरत नहीं......तुम्हारा ये अबला नारी का रोल सूट नहीं करता..........खास कर तुम पर........ इस मासूमियत भरे चेहरे और आवाज पर... बेचारा करण भी क्या करता तुम्हारे रूप जाल में फस गया।" जय मयूरी के साथ बात कर ही रहा था कि अचानक से जय को धक्का लगा और मयूरी को खींच कर खुद  के पीछे लेते हुए करण ठंडी सी आवाज में" जय तुमने अपनी बहुत चला ली, बहुत कर ली मनमानी....मुझ तक तो ठीक था मगर मयूरी के साथ नहीं, अभी के अभी यहां से चले जाओ ! आईपीसी की धारा चार सौ चौवालीस और छियालिस के तहत तुम पर केस कर दूंगा ! " जय संभलकर गुस्से में लाल आंखों से " अच्छा तु भी आ गया.....और तु कर भी क्या सकता है, तेरा पेशा ही ऐसा है।.....सच को झूठ....झूठ को सच....दोस्ती भी नहीं देखी तूने.......पर याद रखना , वक्त दोहराव जरूर करता है ! " करण चुपचाप खड़ा रहा ! जय फ्लैट को देखकर जहां कोई नहीं था उन दोनों के अलावा,जय के सीने में दर्द सा उठा।" सोने से दिन और चांदी सी रातें......मुबारक हो तुम दोनों को......" करण की पीठ से पीठ लगाकर खड़ी मयूरी करण का हाथ थाम कर " जय चले जाइए.....करण हमारे पति है। ..." मयूरी के इतना कहते ही करण ने मयूरी की हथेली कस दी।मयूरी ने जब करण का हाथ थामा तो फिर से धड़कन की लय बिगड़ गई मगर आगे के शब्द सुनते ही करण सन्न रह गया। " हम अपना पत्नी धर्म मरते दम तक निभायेंगे !.....करण और उनके परिवार के प्रति हमारा कर्तव्य है......और इसका निर्वहन जीवन भर करेंगें ! " मयूरी की आंखो में आंसू आ गए। यह सुनते करण की हथेली की पकड़ ढीली हो गई ! मयूरी बस अपना कर्तव्य पालन कर रही है !.....जय जो इतना द्वेष पाल कर बैठा है उसे इसका मतलब कहां समझ आएगा ! प्रेम की स्वच्छंदता और नियम में बंधकर कर्तव्य पालन में.....   ये सोच भी कैसे लिया कि मयूरी उससे प्यार करेगी !.....जय के लिए ही है.....उसका प्यार......जय ने जो शक की लक्ष्मण रेखा खींच ली है उसे पार करके अगर मयूरी जय के पास चली जाती है तो उसका भस्म होना तय है ! जय टेबल गिरा कर जोर से गेट बंद कर के चला गया ! मयूरी रोते हुए वहीं बैठ गई ! करण मुड़कर मयूरी के पास बैठा और मयूरी की बैक देख कर हैरान हुआ, उसकी पीठ पर जगह-जगह से खून निकल रहा था ! करण दोनों कंधों से पकड़कर उठाते हुए " मयूरी चलो रूम में तुम्हे चोट लगी है....." मयूरी चुनरी से आंसू पोंछ कर करण का हाथ पकड़ कर" करण.....आप एक बार जय को देख लीजिए....शायद बूरी आदत से घिर आए हैं.....उनके अंदर से गंध आ रही थी जैसे नशा किया हो....उन्हे संभालिए.....करण आप ये कर सकते हैं !" "मगर मयूरी तुम" करण बोलने को हुआ तो मयूरी ने बात बीच में काट दी। "आपसे विनती है आप जय को संभाल लीजिए उन्हे कहीं कुछ हो न जाए।" जय की फिक्र करते हुए मयूरी ने करण से रिक्वेस्ट की। करण हैरान सा देखता रहा  इतनी चोट लगी है फिर भी उसे अपनी चिंता नहीं है......जय के बारे में सोच रही है.....सोचे भी क्यों ना.......आखिर उसे प्यार जो करती है। मैं बस हालातों के कारण बीच में आ गया।........लेकिन वो उसके चरित्र पर ही दाग लगाकर चला गया और ये उसकी फिक्र कर के पागल हुए जा रही है !...... इसके बावजूद भी उसकी चिंता...... क्रमशः*****

  • 20. आंखो में बसे हो तुम - Chapter 20

    Words: 1065

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण हैरान सा देखता रहा  इतनी चोट लगी है फिर भी उसे अपनी चिंता नहीं है......जय के बारे में सोच रही है.....सोचे भी क्यों ना.......आखिर उससे प्यार जो करती है। मैं बस हालातों के कारण बीच में आ गया। ........लेकिन वो उसके चरित्र पर ही दाग लगाकर चला गया और ये उसकी फिक्र कर के पागल हुए जा रही है !...... इसके बावजूद भी उसकी चिंता...... करण बिना कुछ कहे चला गया ! मयूरी के मुंह से कर्तव्य शब्द सुनकर ही उसके अह्सासों के हजार टुकड़े हुए थे !....करण का प्यार मयूरी के कर्तव्य के तले दब गया था !...... करण बिल्डिंग से नीचे बाहर आया तो जय की गाड़ी खड़ी थी ! करण ने भागकर जय को आस-पास ढूंढा.......पर वह नहीं मिला,घना अंधेरा हो गया था।.....मैन रोड पर आया तो कुछ दूर हाथ में बोतल लिए लड़खड़ाता हुआ जय दिखाई दिया ! करण भागकर उसके पास गया ! करण ने देखा बोतल खाली है....जय इतना नशे में है कि उसे होश नहीं है बस करण और मयूरी का नाम ले अनाप-शनाप बोल रहा था ! करण पास आकर " आप कहां जा रहे हैं.....मैं छोड़ दूं आपको ??? " जय ने आवाज सुनकर साइड में देखा धुंधलापन नजर आया फिर भी अनुमान लगाते हुए " करण..... " करण ने साफ मना किया।" नहीं......करण नहीं हूं....." जय रुककर गौर से देखने की कोशिश करते  हुए " मुझे करण जैसे क्यों लग रहे हो भाई......" करण साथ चलते हुए " आपने नशा किया है इसलिए....." जय एक तरफ बोतल फेंकने लगा तो करण ने लेकर साइड में रखे कचरे के कंटेनर में डाल दी ! जय पीठ ठोक कर " तुम बड़े समझदार हो।" करण उसके साथ चलते हुए" आप पैदल ही आए हैं ???....." जय लड़खड़ाते हुए अपनी पॉकेट में हाथ डालने का प्रयास किया तो हाथ हवा में ही जा रहा था " लगता है किसी ने जेब काट ली। तुम यहां सावधान रहना। यह नाम की दिल्ली पर यहां धोखेबाजों का बसेरा है।" करण ने जय का हाथ पकड़कर उसकी पॉकेट में डाल दिया। जय गाड़ी की चाबी ढूंढने लगा, कुछ देर की मेहनत के बाद उसे चाबी मिली और करण को दिखा कर " इससे आया था।....... " करण " है कहां ????" जय सिर खुजलाकर सोचते हुए " अरे यार याद नहीं आ रही....कहां रख दी।" कारण कोई याद आया कि उसके अपार्टमेंट में अभी तक कोई ऐसा परिवार नहीं आया है जिसके पास गाड़ी हो। हो सकता है उसने जो गाड़ी देखी थी वह जय की हो इसलिए अंदाजा लगाया और करण उसके आगे हथेली करके " लाओ चाबी दो, मैं ढूंढ कर लाता हूं।......" जय ने चाबी दे दी। करण उसे वहीं इंतजार करने का बोल भाग कर बिल्डिंग में आया और गाड़ी लेकर जय की तरफ चल दिया ! जय  धीरे-धीरे चल रहा था।.....करण ने हार्न दिया तो जय" अरे भाई इतनी चौड़ी सड़क पड़ी है उसे निकल जाओ ना, मुझे क्यों परेशान कर रहे हो। " करण ने आवाज लगाकर उसे गाड़ी में बैठने को कहा। जय अब होश खोने लगा था।.... करण ने बातों-बातों में घर का एड्रेस पूछा।..... और जय के घर के बाहर गाड़ी का तेज हार्न बजाकर घर के बाहर से ही लौट आया ! वह किसी की नजरों में नहीं आना चाहता था ना ही कोई क्रेडिट लेना था। ***** जय को करण बाहर छोड़कर निकल गया था वहीं जय की गाड़ी का हार्न सुनकर उसका कजिन आया और उसे अंदर ले गया तो जय की मां इतने दिनों बाद जय की हालत देख घबरा गई ! एक मन किया कि महिपाल जी को फोन करे....लेकिन सबने रोक दिया ! बेसुध  जय के सिर पर हाथ फेर कर उसकी हालत देख रोती रही ! ***** करण घर आया तो मयूरी खाना बनाकर अपने रूम में चली गई थी ! करण हाथ धोकर आया तो प्लेट लगी देख कर हैरान हुआ ! उसने प्लेट लेकर मयूरी के रूम का डोर नोक किया ! मयूरी ने मुश्किल से चारों तरफ दुपट्टा लपेटा और गेट खोला तो सामने प्लेट लिए करण को देखकर हैरान हुई ! मयूरी को देखकर करण को ध्यान आया कि मयूरी के चोट लगी है , प्लेट को अंदर आकर साइड टेबल पर रखा और मयूरी से डॉक्टर के पास चलने के लिए कहा तो वहीं मयूरी ने ठीक होने की बात कहकर डॉक्टर के पास जाने से मना कर दिया ! करण मयूरी के बैड पर आकर बैठ गया । मयूरी करण के हाथ में प्लेट देखकर " इतनी सहानुभूति......इस योग्य नहीं है हम.....हमारे साथ-साथ आप भी बिना अपराध के दंड भुगत रहे हैं।......." करण प्लेट मयूरी के आगे करते हुए " मयूरी तुम्हे कैसे पता कि मैं तुम्हारे साथ दंड भुगत रहा हूं।....." मयूरी चेहरा घुमाकर " हमें पता है कि हम इतने सौभाग्यशाली नहीं है।....." करण मयूरी पर नजरे जमाकर " पहले खाना खत्म करो फिर देखते हैं कि सौभाग्यशाली आप है या ये खाना......" मयूरी अपनी जिद्द पर अड़ी रही" आप निश्चिंत रहिए....कुछ नहीं होगा हमें....." करण नाराजगी से " जब प्लेट का खाना खत्म हो जाए तो मुझे बता देना , मैं भी खा लूंगा ।......." करण जाने लगा तो मयूरी ने हाथ पकड़ लिया और बात को दूसरी दिशा में घुमाकर" हमने मां को नहीं देखा लेकिन हमारी चाची ने हमेशा चाचा जी के खाना खाने के बाद ही निवाला गले से उतारा है, वे चाचा जी से पहले नहीं खाती हैं।....... इस हिसाब से मैं आपसे पहले कैसे खा सकती हूं।......." करण हाथ छुड़ाकर उसके पास चेयर लेकर बैठते हुए " उसके सामने तो कह रही थी कि पत्नी का धर्म निभाओगी......और अब ??? पति को भूख लगी होगी....ये भी नहीं सोचा।" पहले वाला खुद खाने के बाद दूसरा मयूरी को खिलाया ,आंखों के पानी को मयूरी में जब्त कर लिया फिर खुद से खाने लगी। कुछ देर बाद करण ने मयूरी को पेन किलर दी और अपने रूम में आ गया ! मयूरी करण के मना करने पर भी किचन का काम करने के लिए चली गई ! देर रात ग्यारह बजे करण का प्यास के कारण बुक्स से ध्यान हटा तो पानी पीने किचन की तरफ आया ! मयूरी के रूम का गेट खुला देखा तो बरबस ही मयूरी की चोट का ध्यान कर उसे देखने के लिए चला गया ! रूम लाइट जलाने पर देखा मयूरी गायब थी......करण ने वॉशरूम का डोर नोक करने लगा तो वह बाहर से बंद था ! करण बालकनी की तरफ आया।.....वह नहीं मिली ! करण स्लीपर पहन कर नीचे की तरफ चला गया ! क्रमशः*****