Novel Cover Image

एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️

User Avatar

punita singh

Comments

0

Views

833

Ratings

3

Read Now

Description

रात के घने अंधेरे में दिल्ली की सड़कों पर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। सर्द हवा की सरसराहट और बारिश की बूंदों के साथ एक अजीब सी खामोशी फैली हुई थी। अरमान, एक सफल बिजनेसमैन, अपनी गाड़ी में बैठा सोच में डूबा हुआ था। उसे हर रोज़ की तरह ऑफिस से देर हो चु...

Characters

Character Image

एक तेरी मोहब्बत में हारे ❤️

Hero

Total Chapters (6)

Page 1 of 1

  • 1. एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️ - Chapter 1

    Words: 1224

    Estimated Reading Time: 8 min

    रात के घने अंधेरे में दिल्ली की सड़कों पर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। सर्द हवा की सरसराहट और बारिश की बूंदों के साथ एक अजीब सी खामोशी फैली हुई थी। अरमान, एक सफल बिजनेसमैन, अपनी गाड़ी में बैठा सोच में डूबा हुआ था। उसे हर रोज़ की तरह ऑफिस से देर हो चुकी थी। काम में डूबे अरमान की जिंदगी में कोई रोमांच नहीं बचा था। लेकिन आज की रात कुछ अलग थी। जब वह सिग्नल पर रुका, तो उसकी नज़र फुटपाथ पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी। भीगे हुए कपड़े और कांपते हाथ, उसकी आँखों में कुछ अनकहा था। अरमान को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने उसे कहीं देखा हो। मन में उठते सवालों को नजरअंदाज करते हुए उसने कार का दरवाजा खोला और कहा, "आपको कहीं छोड़ दूँ?" लड़की ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा। "शुक्रिया, मुझे बस सामने वाली सड़क तक जाना है।" अरमान ने कार स्टार्ट की और धीरे-धीरे गाड़ी चलाने लगा। "आप इस वक्त यहाँ क्या कर रही हैं?" "कभी-कभी ज़िंदगी हमें उन रास्तों पर ले आती है जहाँ हमें खुद नहीं पता होता कि हम क्या कर रहे हैं," लड़की ने कहा। अरमान उसकी बातों में खो गया। "वैसे, मेरा नाम अरमान है।" "रूही," उसने धीरे से कहा। अरमान को महसूस हुआ कि रूही का नाम उसके लिए नया नहीं था। जैसे उसने इसे पहले भी सुना हो, किसी अधूरे ख्वाब में या भूले-बिसरे अतीत में। जब कार रुकी, रूही ने धन्यवाद कहा और उतर गई। लेकिन अरमान को यूं लगा जैसे वह उसकी जिंदगी में कोई गहरी छाप छोड़ गई हो। घर लौटते समय भी उसकी बातें और आँखों की चमक अरमान के मन में गूंज रही थीं। अगले दिन, अरमान ने उसे भूल जाने की कोशिश की, लेकिन उसकी यादें उसके ख्यालों में घर कर चुकी थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्यों वो एक अजनबी लड़की के बारे में इतना सोच रहा है। वो रोज़ उसी सड़क से गुजरता, उम्मीद करता कि शायद रूही फिर मिले। आखिरकार, एक दिन उसकी उम्मीद सच हो गई। रूही एक पुरानी किताबों की दुकान में मिली। अरमान ने खुद को संभालते हुए उससे बात करने की कोशिश की। "रूही, तुम यहाँ?" रूही ने मुस्कुराते हुए कहा, "कभी-कभी पुराने पन्ने हमारे आज के सवालों का जवाब देते हैं।" अरमान उसकी बातें समझने की कोशिश करता, तभी उसकी नजर रूही के हाथ में पकड़ी एक पुरानी डायरी पर पड़ी। "यह डायरी...?" अरमान ने पूछा। "यह मेरी नहीं है। लेकिन इसके पन्ने मेरे अपने से लगते हैं," रूही ने रहस्यमयी अंदाज़ में कहा। अरमान ने उसे एक कॉफ़ी के लिए आमंत्रित किया। दोनों एक छोटी सी कैफे में बैठकर बातें करने लगे। अरमान ने जाना कि रूही की जिंदगी में भी कई रहस्य छुपे थे। कैफे की दीवारों पर लगी पुरानी तस्वीरों के बीच, अरमान और रूही की आँखों में कुछ अनकहा था। जैसे उनकी रूहें एक दूसरे को सदियों से जानती हों। जब अरमान ने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा, तो रूही के चेहरे पर उदासी छा गई। "कभी-कभी, जो चीज़ें हमें सबसे ज्यादा प्यारी होती हैं, वो ही हमसे छीन ली जाती हैं," उसने धीरे से कहा। अरमान ने उसके दर्द को महसूस किया और उसका हाथ पकड़कर कहा, "शायद तुम्हारे अतीत में मैं भी कहीं था, और आज हमारा मिलना उसी की एक गवाही है।" रूही ने अरमान की आँखों में देखा, और कहा, "शायद हमारी मुलाकात महज़ एक इत्तेफाक नहीं, बल्कि हमारे अधूरे प्रेम की कहानी का एक नया अध्याय है।" इस नए रिश्ते के आरंभ के साथ, अरमान और रूही की जिंदगी में एक नए सफर की शुरुआत हो चुकी थी। एक सफर, जहाँ प्यार, रहस्य और खतरे एक-दूसरे से टकराने वाले थे। लेकिन यह केवल शुरुआत थी। दोनों को नहीं पता था कि उनके अतीत के परछाईं उनके वर्तमान में लौट रही थी। एक ऐसी परछाईं जो उनके प्यार को परीक्षा में डालने वाली थी। जैसे-जैसे रात गहरी होती गई, अरमान और रूही अपने-अपने घर लौटे, लेकिन एक अजीब सी बेचैनी दोनों के दिलों में घर कर चुकी थी। शायद उनकी रूहें अतीत के किसी बंधन को तोड़ने के लिए पुकार रही थीं। रात के घने अंधेरे में जब पूरा शहर सो रहा था, अरमान की आँखों में नींद नहीं थी। वह बिस्तर पर लेटा छत को घूर रहा था। उसके दिमाग में बस एक ही सवाल घूम रहा था—रूही से जुड़ा यह अजीब सा एहसास क्या है? क्यों लगता है कि वह उसे पहले से जानता है? वह उठकर बालकनी में आ गया। सर्द हवा के झोंकों ने उसे थोड़ा सुकून दिया, लेकिन मन में उठते सवाल शांत नहीं हो रहे थे। तभी उसकी नज़र टेबल पर रखी उस पुरानी डायरी पर पड़ी, जो उसने रूही के हाथों में देखी थी। अरमान ने महसूस किया कि उसमें कुछ राज़ छिपा है। अगले दिन उसने रूही को फिर मिलने के लिए बुलाया। इस बार वह उसे एक शांत झील के किनारे लेकर गया, जहाँ ठंडी हवा बह रही थी और पानी में चाँद की रोशनी झिलमिला रही थी। "रूही, मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ," अरमान ने झिझकते हुए कहा। रूही ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में वही रहस्यमयी चमक थी। "पूछो, अरमान।" "ये डायरी... इसमें ऐसा क्या है जो तुम्हें इसे लेकर इतना भावुक कर देता है?" रूही कुछ पल चुप रही, फिर उसने गहरी सांस ली और कहा, "इस डायरी में एक ऐसी प्रेम कहानी लिखी है जो पूरी नहीं हो सकी।" "क्या तुमने इसे पढ़ा है?" अरमान ने उत्सुकता से पूछा। रूही ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हाँ, लेकिन हर बार जब मैं इसे पढ़ती हूँ, मुझे ऐसा लगता है कि यह मेरी अपनी कहानी है।" अरमान को उसके शब्दों में छुपी गहराई महसूस हुई। उसने डायरी के कुछ पन्ने पलटे और देखा कि उसमें 1945 का ज़िक्र था—एक ऐसी प्रेम कहानी जो आज से कई दशक पहले खत्म हो गई थी। डायरी के पन्नों से— "रात्रि के साये में जब मैं उसके पास खड़ा था, मेरी धड़कनें तेज़ हो गई थीं। मुझे लगा था कि मैं उसे पा लूँगा, लेकिन नियति ने हमें अलग कर दिया। यह प्रेम, जो अधूरा रह गया... यह जन्म सिर्फ़ उसकी याद में जीने के लिए है।" अरमान ने रूही की ओर देखा। "क्या तुम्हें कभी यह एहसास हुआ कि शायद यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं है, बल्कि हमारे अतीत की सच्चाई हो सकती है?" रूही ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से कहा, "कभी-कभी मुझे सपने आते हैं... उन सपनों में एक वीरान हवेली होती है, एक पुराना झूला और कोई जो मुझे पुकारता है। लेकिन जब मैं उसके पास जाने की कोशिश करती हूँ, सब कुछ धुंधला हो जाता है।" अरमान को यह अजीब लगा। "क्या यह सब सिर्फ़ कल्पना है, या हमारी पिछली ज़िंदगी से जुड़ी कोई सच्चाई?" रूही कुछ बोलने ही वाली थी कि अचानक एक तेज़ हवा चली और झील के किनारे रखा दीपक बुझ गया। दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, जैसे किसी अनजानी ताकत ने उन्हें चेतावनी दी हो। "शायद हमें इस रहस्य से पर्दा उठाना होगा," अरमान ने कहा। रूही ने सहमति में सिर हिलाया। "लेकिन हमें सावधान रहना होगा, क्योंकि कुछ अधूरी कहानियाँ खत्म होने की इजाज़त नहीं देतीं।" अगले अध्याय में: अरमान और रूही अपनी पिछली ज़िंदगी के राज़ को जानने के लिए एक रहस्यमयी हवेली का रुख करेंगे। लेकिन क्या वे इस सफर के लिए तैयार हैं? क्या सच में उनका प्यार एक बार फिर जी उठेगा, या कोई अनदेखी ताकत उन्हें रोकने आएगी? प्लीज

  • 2. एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️ - Chapter 2

    Words: 1195

    Estimated Reading Time: 8 min

    अरमान और रूही की जिज्ञासा अब डर में बदल रही थी। डायरी की लिखावट, रूही के अजीब सपने, और वो अनजानी कशिश—सब कुछ इस ओर इशारा कर रहा था कि उनका अतीत किसी रहस्य में छुपा हुआ है। रूही ने एक पुरानी किताबों की दुकान में हवेली के बारे में पढ़ा था। वह हवेली दिल्ली के पास एक सुनसान इलाके में थी, जिसे लोग "शापित महल" के नाम से जानते थे। कई कहानियाँ वहाँ के डरावने अनुभवों को बयां करती थीं। लेकिन अरमान और रूही के लिए यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं थी—यह उनकी पहचान से जुड़ा रहस्य था। "हमें वहाँ जाना होगा," रूही ने दृढ़ता से कहा। अरमान को उसकी चिंता थी, लेकिन वह खुद भी सच जानना चाहता था। "अगर हम वहाँ जाते हैं, तो हमें सावधान रहना होगा।" रहस्यमयी सफर की शुरुआत अगले दिन, वे दोनों उस हवेली की तरफ़ निकले। शाम ढलने लगी थी, और जैसे-जैसे वे हवेली के करीब पहुँचे, मौसम अचानक बदलने लगा। काले बादलों ने आसमान को घेर लिया, और हवा में अजीब सी ठंडक आ गई। हवेली एक वीरान जंगल के बीचों-बीच खड़ी थी—पुरानी, टूटी-फूटी दीवारें, लटकी हुई बेलें, और जाले से ढकी खिड़कियाँ। ऐसा लग रहा था जैसे सालों से यहाँ कोई नहीं आया हो। "क्या तुम यकीन करती हो कि यह वही जगह है?" अरमान ने धीमी आवाज़ में पूछा। रूही ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "मुझे यहाँ कुछ जाना-पहचाना सा महसूस हो रहा है।" वे दोनों अंदर जाने के लिए बड़े लोहे के गेट की ओर बढ़े। जैसे ही अरमान ने उसे छुआ, दरवाजा अपने आप चरमराते हुए खुल गया। उनके दिलों की धड़कनें तेज़ हो गईं। हवेली के अंदर अंदर कदम रखते ही उन्हें अजीब सी ठंडक महसूस हुई। हवेली के अंदर घना अंधेरा था। अरमान ने टॉर्च जलाया और चारों तरफ देखा। दीवारों पर पुराने चित्र लगे थे—राजसी पोशाक पहने एक युवक और एक युवती, जिनके चेहरे धूल से ढके थे। रूही ने उन तस्वीरों को गौर से देखा। "अरमान... यह देखो..." उसने कांपती आवाज़ में कहा। अरमान ने पास जाकर देखा। तस्वीरों पर से धूल हटाने पर उनका दिल काँप उठा। तस्वीर में जो युवक था, उसकी शक्ल अरमान से मिलती-जुलती थी, और युवती हूबहू रूही जैसी लग रही थी! "यह... यह कैसे हो सकता है?" अरमान ने चौंककर कहा। रूही के हाथ ठंडे पड़ने लगे। "क्या यह हमारे पिछले जन्म की निशानी है?" तभी, हवेली के अंदर अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ गूँजी। वे दोनों घबरा गए। हवा में फुसफुसाहट सी सुनाई दी—जैसे कोई उनके कानों में कुछ कह रहा हो। "तुम वापस आ गए..." रूही की आँखों में डर था। "अरमान, हमें यहाँ से निकलना चाहिए!" लेकिन अरमान को लगा जैसे कोई उसे पुकार रहा हो। उसने आगे बढ़कर देखा, तो हवेली के एक कोने में एक पुराना झूला हिल रहा था—बिना किसी हवा के। अचानक, झूले के पास रखा एक पुराना दर्पण चमकने लगा। अरमान ने उसमें झाँका, और अगले ही पल वह चीखकर पीछे हट गया। उस दर्पण में उसकी और रूही की परछाइयाँ नहीं थीं। वहाँ एक अन्य जोड़ा खड़ा था—वही युवक और युवती, जिनकी तस्वीर दीवार पर लगी थी। लेकिन उनकी आँखों में दर्द था, और उनके चेहरे पर गहरे घाव थे। "यह हम ही हैं... हमारे पिछले जन्म के प्रतिबिंब," रूही ने काँपती आवाज़ में कहा। अरमान को महसूस हुआ कि यह कोई साधारण हवेली नहीं थी। यह उनकी आत्माओं को बुला रही थी। "हम यहाँ क्यों आए हैं? हमें क्या करना होगा?" अरमान ने दर्पण को घूरते हुए पूछा। तभी, हवेली में रखी एक पुरानी घड़ी अपने आप चलने लगी और उसके काँटे ठीक रात के 12 बजे पर आकर रुक गए। "समय आ गया है..." एक धीमी, भयानक आवाज़ हवेली में गूँजी। अचानक, दरवाजे अपने आप बंद हो गए और चारों ओर अंधेरा छा गया। हवेली के अंदर घना अंधेरा छा चुका था। दरवाजे अपने आप बंद हो गए थे, और कमरे में एक अजीब सी ठंडक फैल गई थी। अरमान और रूही एक-दूसरे के पास खड़े थे, उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं। दर्पण में दिखने वाली रहस्यमयी परछाइयाँ अब गायब हो चुकी थीं, लेकिन उनकी गूँज अभी भी हवेली की दीवारों में छुपी थी। "अरमान, यह जगह हमें यहाँ रोकना चाहती है," रूही ने डरते हुए कहा। अरमान ने अपने चारों ओर देखा। उनके पीछे जो दरवाज़ा था, वह लोहे की ज़ंजीरों से जकड़ गया था, मानो हवेली ने उन्हें यहाँ क़ैद कर लिया हो। "हमें बाहर निकलने का कोई रास्ता खोजना होगा," अरमान ने कहा। लेकिन जैसे ही उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की, हवेली के फर्श पर पड़ी एक पुरानी तस्वीर उनके पैरों के पास आ गिरी। अरमान ने झुककर उसे उठाया। तस्वीर में वही युवक और युवती थे, लेकिन इस बार उनका चेहरा पूरी तरह से जल चुका था, और उनके पीछे आग की लपटें दिख रही थीं। रूही ने काँपते हुए कहा, "यह संकेत है, अरमान। यह बताता है कि हमारे पिछले जन्म में हमारे साथ कुछ भयानक हुआ था।" भूतकाल की झलक अचानक, हवेली में एक धीमी आवाज़ गूँजने लगी। यह किसी स्त्री की करुणामयी चीख थी। अरमान और रूही ने देखा कि दीवारों पर छायाएँ बनने लगीं—मानो कोई पुरानी कहानी उनके सामने दोहराई जा रही हो। छायाएँ दिखा रही थीं कि एक राजा के दरबार में एक सैनिक को मौत की सजा दी जा रही थी। पास खड़ी एक लड़की चिल्ला रही थी, लेकिन सैनिक को ज़ंजीरों में बाँधकर आग में धकेल दिया गया। रूही ने कांपते हुए कहा, "अरमान... मुझे लगता है कि वह सैनिक तुम थे, और वह लड़की... शायद मैं थी।" अरमान की आँखों में हैरानी थी। "क्या यह इसलिए हो रहा है क्योंकि हमें इस जन्म में अपना अधूरा प्यार पूरा करना है?" लेकिन हवेली ने जैसे उनके सवालों को अनसुना कर दिया। छायाएँ अचानक गायब हो गईं, और एक दरवाज़ा अपने आप खुल गया। मौत का दरवाज़ा अरमान और रूही ने हिम्मत जुटाकर उस दरवाज़े के अंदर कदम रखा। अंदर एक विशाल कमरा था, जहाँ बीचों-बीच एक पुरानी चारपाई रखी थी। उस चारपाई पर एक कंकाल पड़ा था, जिसके हाथ में वही डायरी थी जो रूही के पास थी। रूही ने कांपते हुए कहा, "यह... यह कंकाल उसी सैनिक का है।" अरमान ने धीरे से डायरी उठाई, और उसके पहले पन्ने को पढ़ा। "मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर दी। मैंने अपने राजा के आदेश की अवहेलना करके उससे प्रेम किया, जिससे मुझे नहीं करना चाहिए था। मेरा प्रेम अधूरा रह गया, और मेरे साथ विश्वासघात हुआ। यदि कभी मेरी आत्मा फिर से जन्म लेगी, तो मैं उसे ढूँढ निकालूँगा और अपने प्रेम को पूरा करूँगा..." अरमान ने डायरी को कसकर पकड़ लिया। "यह मेरी ही लिखावट जैसी लग रही है, रूही।" रूही के चेहरे पर अचानक एक साया दौड़ गया। "अगर यह सच है... तो क्या इसका मतलब है कि इस जन्म में भी हमारी कहानी अधूरी रहने वाली है?" अचानक, हवेली में फिर से दरवाजे बंद हो गए। चारों ओर आग की लपटें उठने लगीं, और हवा में वही आवाज़ गूँज उठी— "तुम्हें इस बार भी मरना होगा..." क्या अरमान और रूही अपने अतीत के इस श्राप से बच पाएंगे? कौन चाहता है कि उनका प्यार फिर से अधूरा रह जाए? और क्या हवेली में छुपा कोई राज़ उनकी तक़दीर बदल सकता है? आगे जानाने के लिए पढ़ते रहिये एक तेरे मोहब्बत में हारे❤️ 🌿🙏🌿🙏😊😊

  • 3. एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️ - Chapter 3

    Words: 1294

    Estimated Reading Time: 8 min

    श्रापित प्रेम की काली रात चारों ओर आग की लपटें उठने लगी थीं। हवेली की दीवारें कांप रही थीं, और गूँजती हुई आवाज़ ने अरमान और रूही को झकझोर कर रख दिया था। "तुम्हें इस बार भी मरना होगा..." यह शब्द सुनते ही रूही का शरीर सिहर उठा। अरमान ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। "हमें यहाँ से निकलना होगा!" अरमान ने कहा, लेकिन दरवाज़े पहले ही बंद हो चुके थे। रूही ने चारों ओर देखा। "अरमान, कुछ न कुछ तो ऐसा होगा जिससे हम इस श्राप को तोड़ सकें।" अरमान की नज़र उसी डायरी पर पड़ी जो कंकाल के हाथ में थी। उसने जल्दी से उसके पन्ने पलटने शुरू किए। डायरी के अंतिम पन्ने का रहस्य डायरी के अंतिम पन्ने पर लिखा था: "यदि कोई भी मेरी आत्मा को मुक्ति दिलाना चाहता है, तो उसे वही करना होगा जो मैं नहीं कर सका था—अपने प्रेम की रक्षा। यदि इस जन्म में प्रेम की परीक्षा पूरी हो जाए, तो श्राप समाप्त हो सकता है। लेकिन यदि यह प्रेम फिर अधूरा रह गया, तो यह श्राप सदियों तक जारी रहेगा।" अरमान ने डायरी को झटके से बंद किया। "रूही, हमें इस जन्म में अपने प्यार को हर हाल में बचाना होगा। यही इस श्राप को तोड़ने का एकमात्र तरीका है।" रूही की आँखों में आँसू आ गए। "लेकिन यह आसान नहीं होगा, अरमान। कोई न कोई हमें रोकने की कोशिश करेगा।" तभी, कमरे में एक अजीब सी हलचल हुई। हवा ठंडी हो गई, और दीवारों पर छायाएँ फिर से उभरने लगीं। अतीत की परछाइयाँ छायाओं में वही सैनिक और लड़की नजर आने लगे। लेकिन इस बार कुछ अलग था। सैनिक यानी अरमान एक राजा के सामने खड़ा था। राजा गरजते हुए बोला, "तूने मेरी बेटी से प्रेम करने की हिम्मत कैसे की? तेरी सजा मौत है!" सैनिक ने राजा की आँखों में देखा और कहा, "महाराज, प्रेम कोई अपराध नहीं। मैं आपकी बेटी से सच्चा प्रेम करता हूँ।" राजा ने क्रोध से अपनी तलवार निकाली और सैनिक के सीने में घोंप दी। लड़की चीखती रह गई, लेकिन कोई उसे बचा नहीं सका। वर्तमान में श्राप का असर छाया गायब होते ही रूही ने अरमान की तरफ देखा। "अरमान, अगर हमारा अतीत सच में यही था, तो क्या इसका मतलब यह है कि हमें इस बार भी कोई अलग करने की कोशिश करेगा?" अरमान ने सिर हिलाया। "लेकिन इस बार हम हार नहीं मानेंगे। हमें यह श्राप तोड़ना ही होगा।" हवेली के राज़ को खोलने का प्रयास अरमान और रूही ने हवेली के अंदर रास्ता खोजने की कोशिश की। तभी, उन्होंने देखा कि एक दीवार पर एक पुराना चिन्ह बना हुआ था। "यह क्या है?" रूही ने उंगलियों से उसे छूते हुए कहा। जैसे ही उसने उसे छुआ, दीवार काँपने लगी और धीरे-धीरे खुलने लगी। उनके सामने एक गुप्त मार्ग खुल गया। अरमान ने रूही की ओर देखा। "हमें अंदर जाना चाहिए?" रूही ने सहमति में सिर हिलाया। "शायद यही हमें सच तक पहुँचाएगा।" वे दोनों धीरे-धीरे उस गुप्त मार्ग में घुस गए। अंदर अंधेरा था, लेकिन अरमान के फोन की टॉर्च से हल्की रोशनी फैल रही थी। मार्ग के अंदर कई पुरानी ताबूत जैसी संरचनाएँ थीं। अरमान ने उनमें से एक को खोलने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने उसे छुआ, एक ठंडी हवा का झोंका आया, और सामने एक रहस्यमयी आकृति प्रकट हो गई। हवेली का रक्षक वह एक लंबा, काले कपड़ों में लिपटा हुआ इंसान जैसा कुछ था, लेकिन उसका चेहरा पूरी तरह धुँधला था। "तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था," उसने गहरी आवाज़ में कहा। रूही ने हिम्मत जुटाकर पूछा, "तुम कौन हो?" "मैं इस हवेली का रक्षक हूँ। जो भी इस श्राप को तोड़ने की कोशिश करता है, वह मर जाता है।" अरमान ने गहरी सांस ली। "अगर यह श्राप प्रेम से जुड़ा है, तो हमें इसे खत्म करने दो।" रक्षक हँसा, लेकिन उसकी हँसी में डर था। "क्या तुम सच में समझते हो कि इस श्राप को तोड़ा जा सकता है? यह शापित प्रेम है, जिसे कोई मिटा नहीं सकता!" रूही ने गुस्से से कहा, "प्यार अगर सच्चा हो, तो कोई भी श्राप उसे हरा नहीं सकता!" रक्षक रुका, जैसे उसके शब्दों का असर हुआ हो। "अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा प्रेम इतना मजबूत है, तो मैं तुम्हें एक आखिरी मौका दूँगा।" प्रेम की आखिरी परीक्षा रक्षक ने अपनी छड़ी घुमाई, और अचानक हवेली में चारों ओर आग लग गई। "तुम दोनों को इस आग से बाहर निकलना होगा, लेकिन तुम्हें एक-दूसरे का हाथ नहीं छोड़ना है। अगर तुमने एक-दूसरे का साथ छोड़ दिया, तो तुम हमेशा के लिए इस श्राप में फँस जाओगे।" अरमान और रूही ने एक-दूसरे का हाथ कसकर पकड़ लिया। आग बढ़ती जा रही थी, और गर्मी असहनीय हो रही थी। रूही की आँखों में आँसू थे। "अरमान, अगर मैं गिर गई तो?" अरमान ने मुस्कुराकर कहा, "मैं तुम्हें कभी गिरने नहीं दूँगा।" वे दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। आग की लपटें उनके बहुत करीब आ रही थीं, लेकिन उन्होंने अपना हाथ नहीं छोड़ा। तभी, अचानक ज़मीन दरकने लगी। रूही का पैर फिसला, और वह गिरने लगी। "रूही!" अरमान ने पूरी ताकत से उसका हाथ पकड़ लिया। रूही लटक रही थी, और नीचे एक गहरी खाई थी। "अरमान, मेरा हाथ छोड़ दो, तुम बच जाओगे!" "कभी नहीं!" अरमान ने पूरी ताकत से उसे ऊपर खींचा। आखिरकार, वह उसे ऊपर खींचने में सफल हो गया। वे दोनों जैसे ही हवेली के दरवाजे तक पहुँचे, दरवाज़े अपने आप खुल गए। श्राप का अंत जैसे ही वे हवेली से बाहर निकले, हवेली की दीवारें गिरने लगीं। रक्षक की आवाज़ हवा में गूँजी— "तुमने प्रेम की परीक्षा पास कर ली। श्राप समाप्त हुआ।" और अगले ही पल, हवेली पूरी तरह ढह गई। रूही और अरमान ने एक-दूसरे की ओर देखा। "हम बच गए?" रूही ने धीमी आवाज़ में कहा। अरमान ने मुस्कुराते हुए उसका हाथ थाम लिया। "हाँ, इस बार हमारा प्यार अधूरा नहीं रहा।" हवा में हल्की ठंडक थी, और आसमान साफ हो गया था। हवेली की जगह अब बस एक खाली मैदान था। लेकिन अरमान और रूही जानते थे कि उन्होंने सिर्फ़ अपने प्रेम को नहीं बचाया था, बल्कि एक सदियों पुराने श्राप को भी तोड़ दिया था। अगले अध्याय में: श्राप से मुक्त होने के बाद क्या अरमान और रूही की ज़िंदगी सामान्य हो पाएगी? या उनकी ज़िंदगी में अभी और रहस्य छुपे हैं?हवेली ढह चुकी थी। अरमान और रूही धूल और राख से ढके ज़मीन पर बैठे थे, उनकी सांसें तेज़ चल रही थीं। हवेली का अस्तित्व समाप्त हो चुका था, और उनके सामने अब सिर्फ़ एक खाली मैदान था। हवा में एक अजीब सी शांति थी, जैसे किसी आत्मा को मुक्ति मिल गई हो। रूही ने थकी हुई आवाज़ में कहा, "अरमान, क्या ये सच में खत्म हो गया?" अरमान ने उसकी तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। "हाँ, हमें जीत मिली है, रूही। इस बार हमारा प्यार अधूरा नहीं रहा।" रूही की आँखों में आँसू आ गए। उसने अरमान को कसकर गले लगा लिया। "अगर तुम नहीं होते, तो मैं हार मान लेती।" अरमान ने उसके सिर पर हाथ फेरा, "अब सब ठीक हो जाएगा। कोई श्राप, कोई डर, अब कुछ नहीं बचा।" लेकिन क्या सच में सब खत्म हो चुका था? रहस्यमयी संकेत जब वे दोनों हवेली के खंडहरों से दूर जाने लगे, तो अचानक रूही के कानों में धीमी आवाज़ गूँजी—"तुम अभी भी मुक्त नहीं हुए..." वह ठिठक गई। "अरमान... तुमने कुछ सुना?" अरमान ने सिर हिलाया, "नहीं, क्या हुआ?" रूही की आँखें चौड़ी हो गईं। उसे लगा जैसे कोई उसकी गर्दन के पीछे साँस ले रहा हो। उसने धीरे से पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। अरमान ने उसका हाथ थाम लिया, "तुम अभी भी डरी हुई हो, चलो यहाँ से चलते हैं।" वे दोनों अपनी कार तक पहुँचे और वहाँ से वापस शहर की ओर रवाना हो गए। हमारी स्टोरी को आगे जानने के लिए पढ़ते रहिये एक तेरे मोहब्बत में हारे 😊😊😊🙏🙏

  • 4. एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️ - Chapter 4

    Words: 1031

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात के अंधेरे में कार हाईवे पर दौड़ रही थी। अंदर एक अजीब सी चुप्पी थी। अरमान ड्राइव कर रहा था, और रूही खिड़की से बाहर देख रही थी। तभी, रूही के हाथ में रखी वही पुरानी डायरी अपने आप खुलने लगी। उसके पन्ने बिना किसी हवा के पलट रहे थे। रूही ने डरते हुए डायरी को बंद करने की कोशिश की, लेकिन आखिरी पन्ना अचानक चमक उठा। पन्ने पर लिखा था: "श्राप खत्म नहीं हुआ... यह सिर्फ़ एक नए दौर की शुरुआत है..." रूही के हाथ काँप गए। "अरमान! यह देखो!" अरमान ने झट से कार रोकी और डायरी की ओर देखा। उसकी आँखें भी चौड़ी हो गईं। "यह क्या बकवास है? हमने तो हवेली का श्राप तोड़ दिया था!" तभी, कार के चारों ओर घना कोहरा छाने लगा। ठंडी हवा अंदर घुसने लगी। और अगले ही पल, कार के शीशे पर एक रक्त से लिखा हुआ संदेश उभर आया— "तुम मौत को हरा नहीं सकते..." रूही चीख पड़ी। अरमान ने तुरंत कार स्टार्ट की, लेकिन कार अपने आप बंद हो गई। भूतिया सफर अचानक, कार का रेडियो अपने आप ऑन हो गया। उसमें से एक अजीब सी धीमी आवाज़ आ रही थी— "तुमने समझा कि सब खत्म हो गया? नहीं... यह बस शुरुआत थी। अब तुम बच नहीं सकते..." अरमान ने गुस्से में रेडियो बंद कर दिया। "यह क्या हो रहा है?" रूही की आँखों में डर था। "अरमान, हमें यह जगह छोड़नी होगी।" अरमान ने हड़बड़ाकर कार स्टार्ट की, और इस बार कार चल पड़ी। लेकिन जैसे ही उन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया, कोहरा और घना हो गया। सामने हाईवे का रास्ता ही गायब हो गया था। "यह... यह कहाँ आ गए हम?" अरमान ने चौंककर कहा। रूही ने कार की विंडो से देखा। वे उसी हवेली के सामने खड़े थे जो कुछ घंटे पहले मिट चुकी थी। लेकिन अब वह पहले से भी ज्यादा भयानक लग रही थी। "नहीं... यह कैसे हो सकता है? हमने इसे गिरते देखा था!" रूही कांप उठी। अरमान की साँसें तेज़ हो गईं। "यह असंभव है!" हवेली का नया खेल तभी, हवेली के दरवाज़े अपने आप खुल गए। अंदर से वही रहस्यमयी आवाज़ गूँजी— "अब भागने का कोई रास्ता नहीं..." अरमान और रूही के शरीर सुन्न हो गए। यह कोई आम श्राप नहीं था। यह कोई आत्मा नहीं थी जो सिर्फ़ बदला लेना चाहती थी। यह कुछ और था। कुछ ऐसा, जो उनके साथ खेल खेल रहा था। "अरमान, हमें यहाँ से निकलना होगा!" रूही ने काँपती आवाज़ में कहा। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ कर पाते, अचानक ज़मीन काँपने लगी। उनके चारों ओर की हवा भारी हो गई। तभी, हवेली के दरवाज़े पर एक लड़की की परछाई उभर आई। वह लंबी थी, उसके बाल हवा में उड़ रहे थे, और उसकी आँखें सुर्ख लाल चमक रही थीं। "तुमने सोचा कि तुमने श्राप तोड़ दिया?" अरमान और रूही के खून जम गए। "तुम कौन हो?" अरमान ने हिम्मत करके पूछा। लड़की की हँसी गूँजी, और अगले ही पल उसकी आवाज़ क्रूर हो गई— "मैं वही हूँ जो तुम्हारे पिछले जन्म में भी थी... और इस जन्म में भी हूँ।" रूही ने काँपते हुए पूछा, "मतलब?" लड़की की आवाज़ फुसफुसाई, "मैं तुम्हारे साथ हमेशा थी... और हमेशा रहूँगी।" और फिर हवेली की दीवारों पर कुछ उभरने लगा—खून से लिखा एक नाम। "नंदिनी" रूही का चेहरा सफेद पड़ गया। "नंदिनी कौन है?" अरमान की आँखों में अजीब सी बेचैनी थी। उसे यह नाम जाना-पहचाना लग रहा था, लेकिन क्यों? लड़की की आवाज़ फिर गूँजी— "सच्चा प्यार? तुमने सोचा कि तुम बच जाओगे? नहीं अरमान, यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है।" अरमान और रूही कुछ समझ पाते, इससे पहले हवेली के दरवाज़े ज़ोर से बंद हो गए, और चारों ओर अंधेरा छा गया। घना अंधेरा... बंद दरवाज़े... और हवेली की दीवारों पर उभरा खून से लिखा नाम—“नंदिनी”। अरमान और रूही स्तब्ध खड़े थे। हवेली फिर से खड़ी हो गई थी, जैसे कभी गिरी ही न हो। दरवाज़े अब लॉक थे और बाहर का रास्ता कहीं नहीं दिख रहा था। रूही काँपते हुए बोली, “अरमान, ये सब कोई सपना नहीं है। ये सच है, और... ये नंदिनी कौन है?” अरमान का चेहरा फक पड़ चुका था। उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि उलझन थी। वो नाम उसके ज़ेहन में जैसे गूँजने लगा हो। “नंदिनी...” उसने धीमे से दोहराया, “कहीं मैंने ये नाम पहले भी सुना है… बहुत पहले... किसी और जीवन में।” रूही ने उसकी तरफ देखा, “क्या तुम कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हो?” अरमान चुप था। तभी हवेली की एक दीवार पर फिर वही लाल रौशनी फैली और एक छाया उभरी। वह छाया किसी लड़की की थी, जिसके बाल खुले थे, चेहरा अस्पष्ट था, और उसके होठों से निकली सिर्फ एक लाइन— “मुझे भुला दिया, अरमान?” रूही डर के मारे अरमान की बांह पकड़कर चिपक गई। “ये हमसे बात कर रही है…” अरमान की साँसे गहरी हो गईं। “शायद... ये नंदिनी ही है।” नंदिनी की दास्तान हवेली के बीचों-बीच अचानक एक नीली रोशनी की परत फैल गई और अरमान की आंखों के सामने एक झलक उभरी— पुराने ज़माने का एक महल, जिसमें एक सुंदर लड़की संगीत के सुरों में खोई हुई थी। वह वीणा बजा रही थी और सामने एक नौजवान खड़ा था—जो हूबहू अरमान जैसा दिखता था। रूही ने भी वही देखा। “ये क्या हो रहा है? ये दोनों हम ही हैं!” लेकिन तभी तीसरी परछाई वहाँ आई—वो लड़की... जिसकी आँखों में एक साया था। नंदिनी। नंदिनी वो राजकुमारी थी जो अरमान से एकतरफा प्रेम करती थी। वो अरमान के हर कदम का पीछा करती थी, उसके गानों में खो जाती थी, उसकी परछाई बन गई थी। लेकिन अरमान के दिल में जगह किसी और के लिए थी—रूही के लिए। “अरमान... मुझे क्यों ठुकराया?” नंदिनी की आत्मा की गूंज हवेली की दीवारों से टकराने लगी। “मैंने तुमसे कभी झूठ नहीं कहा...” अरमान बोला, जैसे वो उस पुराने जीवन के अहसास में चला गया हो। नंदिनी की परछाई तिलमिला उठी—“लेकिन तुमने मेरी आत्मा को अधूरी छोड़ दिया। मैं जल गई... अपनी ही आग में... और तुमने हाथ भी नहीं बढ़ाया!” रूही चौंकी। “क्या नंदिनी की मौत आत्महत्या थी?” अरमान धीमे स्वर में बोला, “नहीं... वह खुद को आग में झोंक बैठी थी... हमारे विवाह वाले दिन।” रूही के गले से आवाज़ नहीं निकली। हवेली की हवा भारी हो गई थी।

  • 5. एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️ - Chapter 5

    Words: 860

    Estimated Reading Time: 6 min

    नंदिनी की परछाई हवेली की छत से नीचे उतरी और उनके बीच मंडराने लगी। “तुमने अपने प्रेम की कसमें खाईं थीं... और मुझे भूल गए। अब तुम्हारा प्रेम भी अधूरा रहेगा, जैसे मेरा रहा था।” रूही ने साहस दिखाया। “अगर तुम्हारा प्यार सच्चा था, तो तुम्हें हमें तकलीफ़ नहीं देनी चाहिए। आत्मा का अर्थ बदला नहीं होता, नंदिनी।” नंदिनी चीखी—“मुझे इंसाफ चाहिए! मैं भी चाहती थी अरमान का प्यार। अगर वो मेरा न हुआ, तो किसी और का भी न होगा!” हवेली फिर हिलने लगी। फर्श में दरारें आने लगीं। ऊपर झूमर गिर पड़ा। अरमान ने रूही का हाथ पकड़ा। “हमें यह आत्मा मुक्त करनी होगी। तभी हम बच पाएंगे।” नंदिनी की मुक्ति का उपाय डायरी के पिछले पन्नों में कुछ अस्पष्ट संकेत थे। एक मंत्र, एक स्थान, और एक वादा—“सच्चे प्रेम से आत्मा को मुक्त किया जा सकता है, यदि वह स्वीकार कर ले।” “हम नंदिनी से बात करके उसे समझा सकते हैं,” रूही बोली, “लेकिन वो मानेगी कैसे?” अरमान गहराई से बोला, “हमें उसे वो देना होगा जो उसने कभी नहीं पाया—मान्यता।” प्रेम का अंतिम समर्पण अरमान ने नंदिनी की छाया की ओर देखा। “नंदिनी, मैं जानता हूँ कि तुमने मुझसे सच्चा प्रेम किया था। और आज मैं तुम्हें वो सम्मान देता हूँ, जो तुम्हें तब नहीं मिला।” हवा में कुछ हलचल हुई। नंदिनी की परछाई रुक गई। अरमान आगे बढ़ा, “मैं तुम्हें माफ़ी देता हूँ... और तुम्हारे प्रेम को मान्यता देता हूँ, नंदिनी। तुम्हारी भावना झूठी नहीं थी, लेकिन प्रेम में अधिकार नहीं होता।” रूही ने भी कहा, “तुम्हारा दर्द अब ख़त्म होना चाहिए। तुम मुक्त हो सकती हो… अगर तुम चाहो तो।” कुछ पल तक खामोशी रही। हवेली शांत हो गई। फिर, नंदिनी की परछाई रोशनी में बदलने लगी। उसका चेहरा पहली बार साफ़ दिखा—आँखों में आँसू थे, होंठों पर हल्की मुस्कान। “क्या मैं... सच में मुक्त हो सकती हूँ?” अरमान ने धीरे से कहा, “हाँ, नंदिनी।” फिर वो रोशनी धीरे-धीरे आकाश में समा गई। हवेली की दीवारें खुद-ब-खुद ढहने लगीं। कोहरा छँट गया। और एक बेहद भारी सन्नाटा सब कुछ समेट ले गया। मुक्ति मिल गई… लेकिन क्या सब वाकई खत्म हुआ? अरमान और रूही, दोनों जमीन पर गिर गए। आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल हल्का था। “क्या… क्या अब सच में सब खत्म हो गया?” रूही ने थकी आवाज़ में पूछा। अरमान ने उसे देखा, “हमने नंदिनी को शांति दी, रूही। उसका इंतजार खत्म हुआ। अब हमें हमारे भविष्य की ओर देखना होगा।” लेकिन तभी... ...हवेली के उस अंतिम पत्थर पर एक नया नाम उभरने लगा... खून से नहीं, आंसुओं से— “विक्रम” अरमान की साँसें थम गईं। “विक्रम? मेरा… भाई?” रूही ने पूछा, “कौन विक्रम?” अरमान ने धीरे से कहा, “विक्रम… वो जो बचपन में गायब हो गया था। शायद कहानी अभी पूरी नहीं हुई, रूही। शायद ये सिर्फ़ पहला अध्याय था…” रूही की साँसें थम सी गई थीं। हवेली की अंतिम ईंट पर आँसुओं से लिखा नाम... "विक्रम" अरमान पत्थर की तरह जम गया था। उसके चेहरे पर पहली बार ऐसा दर्द था जो शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता था। "अरमान..." रूही ने धीमे से उसका हाथ थामा, "ये विक्रम कौन है?" अरमान की आँखों में पुरानी परछाइयाँ तैरने लगीं। "विक्रम... मेरा छोटा भाई था। हम बचपन में एक साथ रहते थे। बहुत चुपचाप, मगर गहराई से जुड़ा हुआ रिश्ता था हमारा।" "फिर क्या हुआ?" "एक रात... जब मैं आठ साल का था और वो पाँच का, वह अचानक गायब हो गया। बहुत तलाशा हमने, माँ-पापा पागल हो गए थे। लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस ने केस बंद कर दिया। और... उस दिन के बाद मैंने उसका नाम लेना भी बंद कर दिया।" रूही चौंक गई। “क्या कभी शक हुआ कि वो मरा नहीं, कहीं कैद है?” अरमान की आँखें गहरी हो गईं। "नहीं। मैंने हमेशा यही सोचा कि वो मर गया। लेकिन आज... ये नाम, ये आँसू... ऐसा लग रहा है जैसे कोई कोशिश कर रहा है मुझसे बात करने की।" हवेली से बाहर की दुनिया... और फिर लौटना उस रात अरमान और रूही किसी तरह शहर लौटे। शरीर थका हुआ था, लेकिन दिमाग बेचैन। अगले दिन उन्होंने अपने तरीके से “विक्रम” के नाम से जुड़ी कोई जानकारी तलाशने की कोशिश की। अरमान ने अपने पुराने एल्बम्स निकाले, विक्रम की एक धुंधली तस्वीर ढूँढ निकाली। विक्रम—गहरे नीले रंग की आँखें, हल्के घुंघराले बाल, और चेहरा कुछ हद तक अरमान से मिलता-जुलता। रूही ने एक सुझाव दिया, "क्यों न हम उसी पुराने जंगल के रिकॉर्ड देखें, जहाँ हवेली थी? वहाँ कुछ छुपा हो सकता है—कोई खबर, या गुमशुदगी की रिपोर्ट…" अरमान ने तुरंत हामी भरी। राजकीय अभिलेखागार की खोज दोनों सरकारी लाइब्रेरी पहुँचे, जहाँ पुराने ज़माने की जमीन-जायदाद और लोगों की फाइल्स रखी जाती थीं। कई घंटों तक पुराने दस्तावेज़ खंगालने के बाद, रूही की नज़र एक फाइल पर गई: "1967 – विक्रम सिंह राठौड़ – हवेली क्षेत्र में संदिग्ध गुमशुदगी" रूही ने फाइल खोली। तस्वीर देखकर दोनों सन्न रह गए। वो विक्रम अरमान के भाई जैसा ही दिखता था… लेकिन तारीख़ थी 1967। "ये तो संभव ही नहीं… मेरा विक्रम तो 2005 में गायब हुआ था…" अरमान ने चौंककर कहा। रूही बोली, "क्या ये भी किसी पिछले जन्म का विक्रम था?" अरमान की साँसें तेज हो गईं। "अगर ऐसा है… तो शायद विक्रम भी हमारे पिछले जन्म से जुड़ा

  • 6. एक तेरे मोहब्बत में हारे ❤️ - Chapter 6

    Words: 763

    Estimated Reading Time: 5 min

    फाइल के नीचे एक नोट चिपका था— "यदि कोई भी विक्रम की सच्चाई जानना चाहता है, तो उसे 'गूढ़पुरा मंदिर' जाना होगा। वहीं वह अंतिम बार देखा गया था।" अरमान और रूही उसी रात उस मंदिर की ओर निकल पड़े। वह एक पुराना, जर्जर मंदिर था जो अब टूटने की कगार पर था। मंदिर के दरवाज़े से अंदर प्रवेश करते ही एक ठंडी लहर उनके शरीर में दौड़ गई। एक ओर पुराने शिलालेख थे, और बीच में एक शिवलिंग। लेकिन उस पर कोई आम फूल या चढ़ावा नहीं था—वहाँ पड़ा था एक काले धागे में बंधा ताबीज़, जिस पर लिखा था— "जिसने भाई से प्रेम किया, उसे उसकी पीड़ा भी समझनी होगी।" अरमान ने कांपते हुए ताबीज़ को उठाया। उसके छूते ही ज़मीन काँपने लगी और मंदिर की दीवारें बोलने लगीं। स्मृति का तूफ़ान एक साथ अरमान की आँखों के सामने दृश्य उभरने लगे— वो खुद और विक्रम, दो भाइयों की जोड़ी, एक ही लड़की से प्रभावित थे। वो लड़की... नंदिनी थी। रूही ने हैरानी से कहा, "नंदिनी विक्रम से भी जुड़ी थी?" अरमान का माथा पसीने से भर गया। "नंदिनी मुझसे नहीं, विक्रम से प्रेम करती थी। लेकिन मुझे भ्रम हो गया था कि वह मुझसे प्रेम करती है।" "क्या... तुमने उसके प्रेम को छीन लिया था?" "हाँ… शायद। और विक्रम ने कभी विरोध नहीं किया। वो चुप रहा… लेकिन उसकी आँखों में वो पीड़ा थी जो आज समझ में आ रही है।" मंदिर की छत से एक मृदुल सी आवाज़ गूँजी— "अरमान... मैंने तुमसे कुछ नहीं चाहा... सिर्फ़ यह कि तुम मेरा दर्द समझो..." रूही ने आहिस्ता से कहा, "ये विक्रम की आत्मा है, अरमान।" विक्रम का संदेश मंदिर के शिवलिंग से एक नीली रौशनी उठी, और उसमें विक्रम की आकृति बनी—छोटा, मासूम, लेकिन आँखों में एक शांति थी। "भैया..." अरमान की आँखें भर आईं। "विक्रम... माफ़ कर दो मुझे।" विक्रम मुस्कुराया। "तुमने जो किया, उसमें मेरा भाग्य था। मैंने कभी शिकायत नहीं की... लेकिन मेरी आत्मा हवेली की कैद में फँस गई थी। अब नंदिनी के जाने के बाद, मैं भी मुक्त होना चाहता हूँ।" अरमान हाथ जोड़कर बोला, "क्या मैं कुछ कर सकता हूँ?" विक्रम ने जवाब दिया, "बस एक वादा करो... इस जन्म में किसी के प्यार को कभी गलत मत समझना, और अपने रिश्तों को पूरा मान देना।" अरमान ने कसम खाई। तभी विक्रम की छवि हल्की होने लगी और वो रौशनी में बदलकर आकाश की ओर उड़ने लगी। शांति... या फिर से तूफान? मंदिर शांत हो गया। हवाएं थम गईं। और पहली बार, अरमान और रूही को ऐसा लगा कि वाकई अब कोई आत्मा उन्हें नहीं देख रही। रूही ने सिर टिकाते हुए कहा, “अब सब खत्म हो गया, है ना?” अरमान ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराया, “अब, हम सिर्फ अपने आज के लिए जीएँगे।” लेकिन जैसे ही दोनों मंदिर से बाहर निकले, दूर घने बादलों में बिजली चमकी… और आकाश में किसी और छाया की परछाई उभरी... गूढ़पुरा मंदिर से लौटते वक्त अरमान और रूही को पहली बार सच्ची शांति का एहसास हुआ। हवेली का श्राप टूट चुका था, नंदिनी और विक्रम की आत्माओं को मुक्ति मिल चुकी थी, और अतीत का दर्द धीरे-धीरे धुंध बनकर छंटता जा रहा था। लेकिन उस शाम, जब दोनों ने होटल के कमरे में कदम रखा, तो माहौल में कुछ अजीब सा सन्नाटा था। जैसे दीवारें कुछ छुपा रही हों। जैसे कोई देख रहा हो… बिलकुल करीब से। रूही ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा, "अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है ना? अब हम… नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं?" अरमान ने उसका हाथ थामते हुए कहा, "हाँ, अब कोई डर नहीं। अब सिर्फ़ हम हैं और हमारा प्यार।" लेकिन ठीक उसी समय, कमरे की खिड़की अपने आप खुल गई… और हवा के साथ एक पुराना लाल कागज उड़ता हुआ भीतर आया। रूही ने चौंक कर उसे पकड़ा। कागज पर सिर्फ दो शब्द लिखे थे — “अब मेरी बारी है।” अरमान के चेहरे से रंग उड़ गया। "ये किसका संदेश है…? किसकी बारी?" रूही ने धीमे से कहा, "कहीं... कोई और आत्मा..." रात की रहस्यमयी दस्तक रात के 3:03 बजे अचानक दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुला। कमरे में एक ठंडी लहर दौड़ गई। रूही उठी और दरवाज़े की तरफ बढ़ी, लेकिन दरवाज़े पर कोई नहीं था। बस ज़मीन पर कुछ गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ बिखरी थीं, और बीच में पड़ा था एक छोटा शीशा, जिस पर लिखा था: "हर आत्मा को मुक्ति नहीं चाहिए… कुछ को सिर्फ़ बदला चाहिए।" अरमान जाग गया। "रूही, कुछ तो बहुत गड़बड़ है। ये आत्मा न नंदिनी है, न विक्रम… ये कोई और है।" रूही ने शीशा उठाया और उसमें देखा… लेकिन शीशे में उसकी परछाई नहीं थी… वहाँ कोई अनजान चेहरा था।