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इबादत - ए- इश्क़ ( The Arrange Marriage)

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Aarya Rai

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Description

#Arrangemarriage #Secondchancelove #destinedlove "कभी सोचा है, दो अनजानों के बीच बंधा एक रिश्ता कैसे उम्र भर का सहारा बन जाता है? यह कहानी है अक्षय और आहाना की — दो अलग दुनियाओं से आए, पर एक डोर से बंधे दो दिलों की। अरेंज मैरिज के बाद...

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आहाना शुक्ला

Heroine

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अक्षय सहगल

Hero

Total Chapters (417)

Page 1 of 21

  • 1. इबादत - ए- इश्क़ - Chapter 1 दिलों की उलझन

    Words: 2347

    Estimated Reading Time: 15 min

    कानपुर

    जून-जुलाई का वक्त चल रहा था। न तो ज़्यादा सर्दी थी और न ही ज़्यादा गर्मी। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर नगर ज़िले में स्थित एक औद्योगिक महानगर है। यह नगर गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 80 किलोमीटर पश्चिम स्थित यह नगर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। कानपुर गंगा नदी के किनारे स्थित है और इस वजह से यह शहर कई घाटों का घर है।

    कानपुर के नवाबगंज, जहाँ अटल घाट स्थित है, वहीं एक तीन मंजिला घर बना है… शुक्ला निवास… जहाँ श्री जितेंद्र शुक्ला अपनी अर्धांगिनी जयंती जी और चार बच्चों के साथ रहते हैं।

    शुक्ला जी सरकारी स्कूल में अध्यापक थे और पिछले साल ही स्वास्थ्य की बढ़ती परेशानियों के कारण रिटायर हुए हैं। जयंती जी का स्वास्थ्य भी कुछ ठीक नहीं रहता। दर्द की समस्या उन्हें सालों से है और जब समस्या बढ़ जाती है तो चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है।

    पर उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी है। उन्हें बेहतर शिक्षा और संस्कार दिए हैं। उनका सबसे बड़ा बेटा द्रीशांत… सबसे बड़ी औलाद होने के कारण स्वभाव से ही शांत, धीर-गंभीर, विवेकशील और समझदार है। शुक्ला जी के बाद पूरे घर की ज़िम्मेदारी वही संभालता है और MNC में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत है। अपने माता-पिता को भगवान समान पूजता है, उनका आदर-सम्मान करता है और अपने छोटे भाई-बहनों पर अपनी जान छिड़कता है।

    द्रीशांत की शादी तय है और उसकी होने वाली पत्नी पल्लवी उसकी बहन आहाना की बचपन की दोस्त है। दोनों की लव मैरिज है जिसे परिवार वालों की सहमति और आशीर्वाद के साथ अरेंज किया जा रहा है।

    द्रीशांत के बाद अगला नंबर आता है आहाना का जो उम्र में उससे दो साल छोटी है। आहाना जो अपने पापा की परछाई है… शांत स्वभाव की समझदार और सहनशील लड़की है। देखने में सुंदर है, गोरा रंग, अच्छी कद-काठी, आकर्षक चरित्र, काबिलेतारीफ़ पर्सनैलिटी।

    अपने मम्मी-पापा की लाडली आहाना उनका गुरूर है… स्वभाव से शांत और सौम्य है पर कमज़ोर नहीं। ज़िंदगी में कई मुश्किलों का सामना करके काफी मज़बूत बनी है वो, पर व्यवहार से सरल है। आत्मविश्वास की चमक उसके चरित्र का अभिन्न अंग है। अपने पिता के नक्शे-कदमों पर चलते हुए दो साल पहले उसने टीचर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की है।

    आहाना से छोटी बहन है अंतरा। दोनों बहनें हैं पर उनके स्वभाव में ज़मीन और आसमान का अंतर है। जहाँ आहाना शांत स्वभाव की सादगी पसंद समझदार लड़की है, वहीं अंतरा अव्वल दर्जे की बातूनी, हँसमुख, शैतान, उटपटांग और कांडी है। पूरे कानपुर में उसके चर्चे मशहूर हैं…

    खुदपसंद अंतरा रंग में ज़रा साँवली है पर तीखे नयन-नक्ष, दमदार पर्सनैलिटी की मालकिन है और देखने में इतनी प्यारी कि एक नज़र में किसी के भी दिल में उतर जाए। बेधड़क, बेबाकी से खुलकर ज़िंदगी जीना पसंद करने वाली अंतरा, सिर्फ़ अपने दिल की सुनती है पर अपनी जीजी में जान बसती है उसकी।

    सबसे छोटा भाई है निशांत… बिल्कुल अंतरा के नक्शे-कदम पर चलता है। उससे दो साल छोटा है पर दोनों यूँ लड़ते-भिड़ते हैं जैसे ट्विन्स हों, अंतरा उस पर खूब दबाव जमाती है पर निशांत भी खूब फ़ायदा उठाता है उसका और उन दोनों की शैतानियों से पूरा शुक्ला परिवार परेशान रहता है।

    तो ये है कानपुर का शुक्ला परिवार जहाँ हर व्यक्ति के स्वभाव में कुछ भिन्नता है पर रिश्तों में प्रेम भरपूर है।

    रात का वक्त है और शुक्ला निवास में सभी रात के खाने के बाद अपने-अपने कमरों में सो रहे हैं। सब कमरों की बत्ती बुझी हुई है पर आहाना के कमरे की लाइट अब भी जल रही है और उस कमरे में इस वक्त आहाना और अंतरा दोनों बहनें एक साथ बैठी हैं।

    अंतरा के हाथ में आहाना का फ़ोन है जिसकी स्क्रीन पर किसी लड़के की तस्वीर है। आहाना के हाथ में एक novel है जिसके पन्ने पलटते हुए जाने किन्हीं ख्यालों में खोई है वो।

    "जीजी, इस बार वाला लड़का देखने में तो अच्छा लग रहा है।"

    अंतरा की बात सुनकर आहाना ने बिना किसी भाव के हामी भर दी।

    "Hmm… देखने में अच्छा है और भैया बता रहे थे कि स्वभाव में भी अच्छा है। पेशे से डॉक्टर है, फ़िलहाल तो प्राइवेट हॉस्पिटल में काम करता है। परिवार भी संपन्न है… अच्छे से देखभाल कर उन्होंने इस बार लड़का चुना है।"

    "मामा ने लड़का देखा है तो अच्छा ही होगा, लेकिन मैं सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करती।"

    अंतरा की इस बात पर आहाना ने कुछ नहीं कहा। जाने किन्हीं ख्यालों में खोई थी वो।

    कुछ पल बाद अंतरा ने ही आगे कहा, "जीजी, मेरे सुनने में आया है कि इस बार लड़का भी आने वाला है अपने परिवार के साथ आपको देखने।"

    "तो?" आहाना अब निगाहें घुमाकर अंतरा को देखने लगी।

    "तो क्या… आप लड़के को अच्छे से देख लीजियेगा। मेरी जीजी की टक्कर का होना चाहिए… अगर कोई लल्लू-पंजू हुआ तो मैं तो फ़ौरन रिश्ते से इंकार कर दूँगी… मेरी जीजी राजकुमारी जैसी दिखती है तो उनके लिए सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर कोई राजकुमार ही आएगा। जो उनसे बहुत प्यार करेगा और उन्हें अपनी पलकों पर बिठाकर रखेगा।"

    अंतरा की बात सुनकर और उसका बचपना देखकर आहाना हँस पड़ी, फिर प्यार से उसके गाल को छूते हुए बोली,

    "अपनी कहानियों की दुनिया से बाहर आओ अंतरा। असल ज़िंदगी में राजकुमार या राजकुमारियाँ नहीं हुआ करती।"

    "फ़िर भी जीजी। लड़का ऐसा होना चाहिए कि आपके साथ उसकी जोड़ी जमे। जो आपको बहुत प्यार दे ताकि आपको कभी हमारी याद न आए, जो आपकी आँखों में कभी आँसू न आने दे, जो कभी आपको उदास न होने दे।"

    "पर हमारे चाहने से क्या होगा?… जोड़ियाँ तो ऊपर से बनकर आती हैं और जिन्हें महादेव ने हमारे लिए चुना होगा हमारा विवाह उन्हीं से होगा… फ़िर ये ज़िंदगी है अंतरा। यहाँ सुख और दुःख, हँसना और रोना लगा ही रहता है। इसलिए हमसफ़र ऐसा होना चाहिए जो हर सुख-दुःख में आपका साथ दे सके, जो आपसे प्यार से पहले आपकी इज़्ज़त करे, आपका सम्मान करे।"

    "बिल्कुल पापा जैसे न?" अंतरा ने आँखों में चमक भरते हुए कहा और बदले में आहाना मुस्कुरा दी। सच कहते हैं लोग, अक्सर लड़कियाँ अपने हमसफ़र में अपने पिता को ढूँढती हैं। खासकर वो लड़कियाँ जो पापा की परी, उनकी लाडली, उनका स्वाभिमान और उनका गुरूर होती हैं। शायद आहाना को भी ऐसे ही हमसफ़र की तलाश थी।

    "वैसे पापा देखकर आए हैं लड़के को। उन्हें और भैया को लड़का पसंद है और मुझे उनके विश्वास पर विश्वास है।"

    "तब भी जीजी, हम तो अच्छे से जाँचने-परखने के बाद ही उन्हें अपनी जीजी सौंपेंगे… आप आँखें बंद करके बैठकर बस अपने आराध्य को याद करियेगा, हम तो लड़के को अच्छे से देखेंगे… और जो लड़का हमें पसंद नहीं आया तो शादी किसी कीमत पर नहीं होने देंगे।"

    अंतरा ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा और उसकी बात सुनकर आहाना के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए।

    "अंतरा, इस बार कोई बचकानी हरकत नहीं करोगी तुम।"

    आहाना ने सख्त निगाहों से उसे घूरते हुए वॉर्न किया तो अंतरा ने एकदम शरीफ़ बच्ची बनकर हामी भर दी।

    "हाँ हाँ… नहीं करेंगे पर लड़के की परीक्षा ज़रूर लेंगे और ढेर सारे सवाल भी करेंगे उनसे। यूँ ही किसी एड़े-गेड़े नत्थू-खैरे को अपनी जीजी नहीं देंगे हम।"

    "हमें अब तुमसे डर लगने लगा है।" आहाना विचलित सी उसे देखने लगी। शायद कुछ था जिसके कारण आहाना को चिंता होने लगी थी। आहाना की बात सुनकर अंतरा ने गंभीर लहज़े में कहा,

    "डरना नहीं है जीजी… उसे डराना है… अच्छा सुनिये, कल जब लड़का आपको देखने आएगा और आप दोनों को बात करने के लिए अकेले भेजा जाएगा न तो अपनी शर्म, हया, हिचक सब त्यागकर बेशर्मी पर उतर आइयेगा और दिल में जो भी हो सब सवाल पूछ लीजियेगा, उसके बाद ही कोई भी निर्णय लीजियेगा और खासकर ये तो ज़रूर जान लीजियेगा कि पहले से कोई गर्लफ़्रेंड तो नहीं पाली हुई?…

    पारुल की बहन का पता है न आपको?… शादी के दो दिन बाद ही पति अपनी गर्लफ़्रेंड के साथ भाग गया और उनकी पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई। आपके साथ भी ऐसा होते-होते बचा है इसलिए मैं तो पहले ही कह रही हूँ कि अच्छे से जान लीजियेगा कि कहीं कोई चक्कर तो नहीं चल रहा और साथ में ये भी पूछ लीजियेगा कि नॉनवेज खाने का शौक़ीन तो नहीं।

    आपको पता है कि आप नॉनवेज की बदबू भी बर्दाश्त नहीं कर सकती।… कहीं ऐसा न हो कि ससुराल जाकर सबके लिए नॉनवेज बनाते-बनाते, उल्टियाँ करते-करते अपनी जान आफ़त में पड़ जाए।"

    "पूछने से क्या होगा अंतरा? बोलने वाला तो झूठ भी बोल सकता है।"

    "जीजी, आप रहने दीजिये, मैं सब खुद ही संभाल लूँगी।" अंतरा ने खीझते हुए कहा और जाकर अपनी जगह लेट गई। आहाना ने एक नज़र अंतरा को देखा फिर परेशान सी अपने फ़ोन की स्क्रीन पर चमकती उस तस्वीर को देखने लगी। एक बार फिर उसके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे और दिमाग में विचारों का तूफ़ान सा उठ रहा था। उसके माथे पर पड़ी लकीरें उसकी परेशानी ज़ाहिर कर रही थी और दिल भी कुछ बेचैन नजर आ रहा था।


    दिल्ली (सहगल निवास)

    "भाई, आपने लड़की की फ़ोटो देखी?" एक 21-22 साल के हैंडसम से लड़के ने बेड पर पसरते हुए सवाल किया और उसकी निगाहें ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े लड़के पर टिकी थीं।

    6 फ़ुट के करीब हाइट, गठीला बदन, दमदार पर्सनैलिटी, आकर्षक व्यक्तित्व, हैंडसम से चेहरे पर आत्मविश्वास का तेज और गहरी काली आँखें… नाम अक्षय सहगल। सहगल परिवार के सबसे बड़े सुपुत्र, अपनी माँ के आज्ञाकारी राजदुलारे बेटे। पेशे से डॉक्टर है… बाकी व्यक्तित्व के बारे में वक़्त के साथ पता चल ही जाएगा।

    अक्षय ने अपने छोटे भाई अन्वय का सवाल सुना तो अपनी उंगलियों से अपने भीगे बालों को सैट करते हुए निगाहें उसकी ओर घुमाईं।

    "देखी है… पर तू ये सवाल पूछने इतनी रात को मेरे कमरे में आया है?" अक्षय ने भौंह उचकाते हुए सवाल किया। अन्वय अब उठकर बैठ गया और गंभीरता से बोला,

    "नहीं, मैं तो आपसे ये पूछने आया था कि आपको लड़की कैसी लगी और कल आप चल रहे हैं न लड़की देखने हमारे साथ?… कहीं पिछले बार के तरह बीच में धोखा देकर हॉस्पिटल भागने की तो प्लानिंग नहीं आपकी?"

    "माँ के रहते ये पॉसिबल है मेरे लिए?… उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा है कि कल लड़की देखने जाना है तो जाना है।"

    अक्षय ने ज़रा उखड़े स्वर में कहा। उसकी बात सुनकर अन्वय के चेहरे के भाव बदल गए। उसने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा और हैरानी से बोला,

    "मतलब अगर माँ आपको फ़ोर्स नहीं करती तो आपका हमारे साथ जाने का कोई इरादा नहीं था… इसका मतलब तो यही हुआ कि आपको लड़की से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं… मतलब आपको लड़की पसंद नहीं।"

    "मुझे नींद आ रही है अन्वय। तू सारा दिन फ़्री रहता है पर मैं बुरी तरह थका हुआ हूँ और कल भी दिल्ली से कानपुर तक ड्राइव करके जाना है जो काफी टायरिंग होने वाला है इसलिए अभी मुझे सोने दे।"

    अक्षय ने अन्वय की बात को पूरी तरह से अनसुना कर दिया और थकान भरी निगाहों से उसे देखते हुए जाने का इशारा कर दिया। उसकी बात सुनकर अन्वय मुँह बनाते हुए बेड से नीचे उतर गया और कमरे से बाहर जाते हुए बोला,

    "मुझे तो लड़की पसंद आई… आपके लिए अभी तक जितनी लड़कियाँ देखी उन सब में सबसे अच्छी लगी, बिल्कुल आपकी टक्कर की है। बाकी आपका जो मन हो कीजिये।"

    अन्वय खिन्झा हुआ सा मुँह बनाते हुए वहाँ से चला गया। अक्षय ने उसके जाने के बाद दरवाज़ा बंद किया और फिर बेड पर आकर बैठ गया। साइड टेबल पर रखा अपना फ़ोन उठाया और गैलरी खोली तो सबसे ऊपर ही एक तस्वीर थी जिसने उसके ध्यान को आकर्षित किया…

    अक्षय ने उस फ़ोटो को टच किया और अगले ही पल वो तस्वीर उसके फ़ोन की पूरी स्क्रीन पर फैल गई। हल्के आसमानी रंग के प्यारे से सूट में दुपट्टे को गले से चिपकाकर डाले एक लड़की थी उस फ़ोटो में। उसके कमर तक लहराते खुले बाल, गोरा चाँद सा सोना मुखड़ा, झुकी पलकें। देखने में काफी सुंदर थी और अक्षय की निगाहें उसकी उन झुकी पलकों पर ठहरी थीं।

    वो कुछ पल खामोशी से उस तस्वीर को देखता रहा जो आज सुबह ही उसके पापा अभिजीत सहगल जी ने उसे भेजी थी।

    "क्या छुपा है इन झुकी पलकों के पीछे जो मेरी नज़रों को अपनी ओर अट्रैक्ट कर रहा है?… ये भोली सी सूरत और उस पर आत्मविश्वास का तेज… कुछ तो है आपमें जो दिल आपसे मिलने को बेताब है। नाम भी तो कितना प्यारा है आपका… आहाना… जाने कैसी डोर जुड़ी है आपसे कि पहली दफ़ा किसी लड़की के चेहरे पर निगाहें ठहरी हैं और लड़की देखने के नाम से हमेशा बहाने बनाकर बात टालने वाला मैं… आपको देखने आने को तैयार हो गया।

    खुद पर हैरानी हो रही है मुझे पर क्या करूँ, मजबूर हूँ अपने दिल के हाथों जिसमें जाने-अनजाने आपकी छवि बस गई है। निगाहें एक बार प्रत्यक्ष आपका दीदार करने को इच्छुक हैं… और मेरी यही चाहत कल मुझे आपसे मिलवाने आपकी नगरी लाने वाली है…

    पता नही ये मुलाक़ात क्या रंग लाएगी, पता नहीं कैसी होंगी आप, जैसे छवि मैंने बनाई है आपकी, उस पर किस हद तक खरी उतरेंगी आप… क्या बात करूँगा आपसे ये भी नहीं मालूम मुझे?… पता नहीं आप भी मुझसे मिलने के लिए उतनी ही बेताब होंगी या नहीं जितना बेताब मैं हूँ।

    पता नहीं आपके दिल में क्या होगा… जाने ये एहसास जो मेरे मन को बेचैन किए हुए हैं इनकी अनुभूति आपके दिल को हो रही होगी या नहीं।… क्या अपने हमसफ़र में जिन खूबियों की तलाश आपको होगी मैं उन पर खरा उतर सकूँगा?…

    ज़िंदगी में पहली दफ़ा आज अजीब सी घबराहट हो रही है, जैसे अपनी ज़िंदगी का सबसे इम्पोर्टेन्ट एग्ज़ाम देने जा रहा हूँ जिससे मेरी ज़िंदगी का फैसला होगा और इस फैसले पर मेरी पूरी ज़िंदगी निर्भर करती है… अब तो सब महादेव के हाथों में है और मुझे उन पर पूरा विश्वास है कि वो मेरी ज़िंदगी के लिए बेहतर ही फैसला लेंगे।"

    अक्षय कुछ पल खामोशी से आहाना की तस्वीर को देखता रहा, फिर उसने फ़ोन बंद करके साइड में रखा और बेड पर पड़ गया।


    Coming soon…

  • 2. इबादत - ए- इश्क़ - Chapter 2 नटखट अंतरा

    Words: 2311

    Estimated Reading Time: 14 min

    अगले दिन सूरज सर चढ़ आया था। रात को देर से सोने के कारण आहाना की नींद अब तक नहीं खुली थी।

    नीचे ड्राइंग रूम में जितेंद्र जी बैठे अखबार पढ़ रहे थे। टेबल पर रखी चाय की प्याली ना जाने कब से उनकी राह देख रही थी। आखिर में जितेंद्र जी का ध्यान उस पर गया। उन्होंने अखबार साइड किया और चाय की प्याली उठाते हुए बोले,

    "भाग्यवान हमारी दोनों बिटिया कहाँ हैं?"

    उनके सवाल पर रसोई से जयंती जी की उलझन भरी आवाज़ आई,

    "हमें क्या मालूम कहाँ हैं? अभी तक दोनों में से कोई कमरे से बाहर नहीं निकली है। अभी जाकर देखते हैं, पता नहीं अभी तक उठी भी होंगी या नहीं।"

    बोलते-बोलते वे रसोई से बाहर आईं और सीढ़ियों की ओर बढ़ गईं। यहाँ उन्होंने सीढ़ियाँ चढ़ना शुरू किया और वहाँ दरवाज़े से द्रीशांक ने घर में कदम रखा।

    "आ गए निशांत को छोड़कर?" एक सरसरी नज़र उस पर डालते हुए जितेंद्र जी अपने मोस्ट इम्पोर्टेन्ट काम करने लगे... मतलब कि अपने अखबार की बची हुई ख़बरों को पढ़ने लगे। द्रीशांक ने सहमति में सर हिलाया।

    "जी पापा, छोड़ आया।"

    उसने गाड़ी की चाबी टेबल पर रखी और उनके बगल में बैठते हुए टीवी ऑन कर दिया। बस इसके बाद टीवी में न्यूज़ शुरू हुआ और दोनों बाप-बेटे बड़े ही ध्यान से दुनिया-जहाँ की ख़बरों को सुनने लगे। उनका यह रोज़ का रूटीन था जिसके दोनों आदि हो चुके थे। बिना न्यूज़ के न उनका दिन शुरू होता और न ही ख़त्म, और अक्सर दोनों साथ बैठकर न्यूज़ देखते हुए डिबेट भी कर लिया करते थे।

    अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू सामने रखने का हक़ इस घर में सबको मिला था और मास्टर जी ने अपने सभी बच्चों को अपना मत बिना डरे सामने रखना और सच्चाई के लिए लड़ना सिखाया था, जिसे उनकी छोटी लाडली ने कुछ ज़्यादा ही सीरियस ले लिया था, इसलिए आए दिन घर पर उसके अलग-अलग कारनामों की शिकायतें आया करती थीं।

    खैर, यह तो रोज़ की कहानी थी। अब ज़रा कहानी पर चलते हैं। जयंती जी कमरे में पहुँची तो अंतरा की तरफ़ का बिस्तर खाली था, जबकि आहाना तकिये में सर छुपाए अब भी सो रही थी। कमरे में मौजूद खिड़की पर पर्दे लगे थे और नाइट बल्ब जल रहा था जिससे कमरे में अब भी लगभग अंधेरा ही था।

    जयंती जी ने सबसे पहले मेन लाइट ऑन की, खिड़की पर से पर्दे हटाते हुए बालकनी का दरवाज़ा खोल दिया जिससे सूरज की सुनहरी किरणें पूरे कमरे में फैल गईं। फिर आहाना के सिरहाने के पास आकर बैठ गईं और बड़े ही मोहब्बत से उसके बालों को अपनी हथेली से सहलाते हुए उसे पुकारा,

    "अनु बेटा, आज तो आप बड़ी देर तक सोती रहीं। देखिए सूरज सर पर चढ़ आया है। चलिए अब उठ जाइए, आज स्कूल नहीं जाना आपको, लेट हो जाएंगी।"

    आहाना उनकी बातें सुनकर नींद में कुनमुनाई, फिर उनकी गोद में सर रखकर उनके आँचल से अपना चेहरा ढककर सोते हुए उनींदी सी बोली,

    "जाना है माँ, बस थोड़ी देर सोने दीजिए। रात में बहुत देर से नींद आई।"

    "मेरा बच्चा, अभी उठ जा। स्कूल जाकर अपना काम करके जल्दी लौटना है आपको, आज आपको देखने लड़के वाले आ रहे हैं।"

    पहले तो आहाना नींद में कसमसाई, पर जैसे ही आखिरी के शब्द उसके कानों में पड़े, उसकी सारी नींद एक झटके में ग़ायब हो गई। वह एकदम से उठकर बैठ गई और अपने बिखरे बालों को आँखों पर से हटाते हुए उसने उन्हें पुकारा,

    "माँ।"

    "हाँ बेटा।" जयंती जी बड़े ही प्यार से उसके बिखरे बालों को संवारने लगीं। आहाना ने मुँह बिचकाया और उदास नज़रों से उन्हें देखते हुए बोली,

    "माँ... क्या लड़के वालों का आना पोस्टपोन नहीं हो सकता?"

    "क्या हो गया बेटा?" जयंती जी उसकी बात सुनकर चौंक गईं कि जाने क्या बात हो गई?... जवाब में आहाना ने सर झुका लिया।

    "बस मम्मी, कुछ ठीक नहीं लग रहा।"

    "पिछली बार वाली बात अब भी दिल में बैठी है?" जयंती के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं और कुछ परेशान सी लगने लगीं वे। पुरानी बात उठते देखकर आहाना ने इंकार में सर हिला दिया।

    "नहीं माँ, वो बात नहीं... बस घबराहट सी हो रही है।"

    "बीती बात भूल जाओ बेटा... वो हमारी लापरवाही का नतीजा था, पर इस बार सब अच्छे से देखने-सुनने और पता करवाने के बाद लड़के वालों को घर बुलाया है। उस पर तुम्हारे मामा के जानकार हैं। तुम तो जानती हो कितना चाहते हैं वो तुम्हें, तुम्हारे लिए कोई गलत रिश्ता नहीं बताएँगे वो।"

    उन्होंने बड़े ही प्यार से उसे समझाया। उनकी बात पर सहमति जताते हुए आहाना ने मायूसी से कहा,

    "माँ, हम जानते हैं, पर आप सब इतनी जल्दी हमारी शादी क्यों करवाना चाहते हैं?"

    वही सवाल जो शायद हर लड़की अपने माता-पिता से करती है। आखिर बाबुल के आँगन की कौन सी चहचहाती चिड़िया उस आँगन को छोड़कर जाना चाहती है? सबको मायका और बाबुल का आँगन प्यारा होता है। वहाँ से जाने का मन कभी करता ही नहीं। अपनी समझदार बेटी का सवाल सुनकर जयंती जी मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

    "जल्दी कहाँ है बेटा? 27 की होने वाली हो और रिश्ता कौन सा एक दिन में मिल जाता है?... अभी ढूँढ रहे हैं, अच्छा रिश्ता मिलेगा तब ही बात आगे बढ़ेगी और अभी ब्याह कहाँ करवा रहे हैं?... पहले तो आपके भैया का ब्याह होगा। हाँ, नेक लड़का और अच्छा घर-परिवार मिला तो रिश्ता पक्का कर देंगे हम। इतनी जल्दी आपको विदा थोड़े न करेंगे।"

    "माँ, क्या शादी करना ज़रूरी है? हमें आप सारी उम्र अपने पास नहीं रख सकती?"

    "लाडो... बेटियाँ माँ-बाप की कितनी ही लाडली हों, पर एक न एक दिन उन्हें अपनी बिटिया का ब्याह करके उन्हें विदा करना ही होता है। यह माता-पिता का अपनी बेटी के प्रति सबसे अहम फ़र्ज़ है, इससे कोई मुँह नहीं मोड़ सकता। इस समाज को भी मुँह दिखाना है, बेटी को सारी उम्र अपने घर बिठाकर रखेंगे तो समाज हमें इज़्ज़त से जीने देगा?... माता-पिता का सम्मान इसी में है कि इज़्ज़त से बेटी को घर से विदा करें, पर विदाई का मतलब यह नहीं कि आप पराई हो जाएंगी। आप हमारी बिटिया हैं और हमेशा रहेंगी, यह घर आपका है और सदा आपका रहेगा। आप तो हमारी समझदार बेटी हैं, अपनी माँ की बात समझिए। हम और आपके पापा जो करेंगे आपके भले के लिए ही कहेंगे।"

    उनकी इस दलील के आगे आहाना निशब्द हो गई और खामोशी से सर हिला दिया। जयंती जी ने उसके गाल को सहलाते हुए उसे प्यार किया।

    "हमारी समझदार बच्चा। चलो शाबाश, उठो, सारी चिंता-फ़िक्र छोड़ दो और जल्दी से तैयार होकर बाहर आओ, हम नाश्ता लगाते हैं।"

    आहाना ने सर हिलाया और पलंग से नीचे उतरकर अलमारी की ओर बढ़ गई। जयंती जी ने जाने के लिए पलटी ही थी कि अंतरा की नाराज़गी भरी आवाज़ उनके कानों से टकराई,

    "सारा प्यार बस जीजी के लिए, मेरे लिए कुछ नहीं आपके पास?"

    आवाज़ सुनकर जयंती जी ने पलटकर देखा तो बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ी अंतरा नाराज़गी भरी निगाहों से उन्हें देख रही थी।

    "जब आपका ब्याह करेंगे तो आपको भी प्यार करेंगे।"

    "ओह, मतलब यह प्यार नहीं रिश्वत है... जैसे बकरे को हलाल करने से पहले उसकी पूजा की जाती है, ब्याह की सूली पर चढ़ाने से पहले आप मुझ पर प्यार लुटाएँगी... तो रहने दीजिए माता श्री, हमें ऐसी मोहब्बत ना चाहिये। हमें ऐसी कोई सूली पर लटकने का शोक नहीं है।"

    अंतरा ने बुरा सा मुँह बनाया, फिर बाल झटकते हुए ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ गई, जबकि आहाना और जयंती जी दोनों उसे हैरत से देखते रह गईं, पर अंतरा बेफ़िक्री से तैयार होने लगी थी। जयंती जी ने बेबसी से सर हिलाया और वहाँ से चली गईं, जबकि आहाना अब भी हैरान-परेशान सी अंतरा को देखे जा रही थी। पहले तो अंतरा उसे जानकर नज़रअंदाज़ करती रही, फिर उसके तरफ़ पलटते हुए बोली,

    "जीजी, मैं बस मज़ाक कर रही थी। आपको मेरे रहते कोई बलि पर चढ़ा सकता है भला?... आप चिल मारो और सब मुझ पर छोड़ दो। Why fear when अंतरा is here? I will handle everything and everyone."

    अंतरा ने शरारत से आँखें चमकाईं और बेफ़िक्री से जवाब देते हुए आकर उससे लिपट गई। उसकी बेबाकी, शैतानियों और उल्टी-पुल्टी हरकतों से वह बखूबी वाक़िफ़ थी। अगर उसने कहा है तो कुछ न कुछ जुगाड़ ज़रूर लगाएगी, पर कभी अपनी जीजी को किसी गलत रिश्ते में बंधने नहीं देगी, चाहे उसके लिए अकेले पूरे परिवार के ख़िलाफ़ क्यों न खड़ा होना पड़े... उसे फ़र्क नहीं पड़ता, सबकी डाँट क्यों न खानी पड़े, उसे परवाह नहीं, चाहे बदले में उसे सज़ा ही क्यों न भुगतनी पड़े, उसे कोई फ़िक्र नहीं। उसे बस अपनी जीजी की खुशियों से मतलब है।

    उसकी बात सुनकर आहाना के परेशान चेहरे पर इत्मिनान के भाव उभर आए। उसने प्यार से उसके गाल को छुआ और मुस्कुरा दी।

    "तुम बस थोड़ी शरारतें कम कर दो तो दुनिया की बेस्ट बहन हो।"

    "और आज जैसी भी हूँ, वर्ल्ड की बेस्टम बेस्ट जीजी है।" अंतरा ने चहचहाते हुए उसके गाल को चूम लिया। उसकी इस अदा पर आहाना हँस पड़ी और साथ ही अंतरा भी खिलखिलाकर हँस पड़ी।


    आहाना तैयार होकर बाहर आई, तब तक बाकी सब नाश्ते पर बैठ चुके थे और जयंती जी सबको उनकी पसंद का नाश्ता करवा रही थीं। आहाना सबको गुड मॉर्निंग विश करते हुए अपनी चेयर पर बैठी ही थी कि उसके सामने पोहे की प्लेट के साथ जूस का ग्लास भी हाजिर हो गया।

    आहाना ने लबों पर सौम्य सी मुस्कान सजाए अपनी माँ को देखा तो उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए खाने को कहा और वापस रसोई में चली गईं।

    "अनु बेटा, घर जल्दी आ जाना।" नाश्ते करते हुए सरसरी तौर पर जितेंद्र जी ने उसे यह कहा था, जिस पर आहाना ने सर झुकाए हामी भर दी। उसके चेहरे पर छाते उदासी के बादलों को अंतरा की चील की तेज नज़रें भांप गई और उसने तुरंत ही आहाना का ध्यान अपनी ओर खींचा।

    "जीजी, मुझे भी रास्ते में कॉलेज छोड़ दो, देर हो गई मुझे और मेरी धन्नो कल से बीमार पड़ी है।"

    अंतरा की कोशिश रंग लाई और अपनी परेशानी भूलकर आहाना ने अपना पूरा ध्यान उस पर लगा लिया।

    "तो इलाज क्यों नहीं करवाया तुमने अपनी धन्नो का?"

    उसके सवाल पूछने की देर थी कि अंतरा बेचारी सी शक्ल बनाए तपाक से बोल पड़ी,

    "कैसा करवाती इलाज?... भैया ने पॉकेट मनी आधी कर दी है, पैसे ही नहीं थे मेरे पास।"

    "तो तुम बेवजह पैसे उड़ाती भी बहुत हो। कभी मूवी देखने पहुँच जाती हो तो कभी बाहर लंच, इनसे भी मन नहीं भरता तो मॉल की खाक छानने लगती हो।"

    द्रीशांत ने तुरंत ही उसकी गलतियाँ गिनवाते हुए उसे डाँटा और अंतरा ने बिल्कुल मासूम बच्ची जैसा चेहरा बना लिया, जैसे डाँट पड़ने पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा हो उस पर।

    "भैया, यही तो उम्र है यह सब करने की, एक बार जिम्मेदारियाँ सर पर आ जाएंगी तो इन बेफ़िक्री भरे दिनों को बस याद ही कर सकेंगी।" बहन ने ख़ैरियत क्या की मैडम अंतरा की तो सारी उदासी पल में फ़ुर्र हो गई और जीजी पुकारते हुए वह बगल में बैठी आहाना से लिपट गई।

    आहाना जहाँ उसका बचपना देखकर मुस्कुरा उठी, वहीं द्रीशांत ने बेबसी से सर हिला दिया। नाश्ता ख़त्म कर चुका था सो हाथ धोए और पॉकेट से वॉलेट निकालकर 500 के दो नोट निकालकर उसके सामने रख दिए।

    "लो, आज अपनी धन्नो का इलाज करवा लेना और कम पड़े तो एक फ़ोन कर देना, ऑनलाइन ट्रांसफ़र कर दूँगा।"

    "थैंक्यू भैया।" अंतरा ने झट से पैसे उठाते हुए बड़ी सी स्माइल पास की, जबकि द्रीशांत सर हिलाते हुए वहाँ से उठकर चल दिया। अंतरा ने अब अपनी नज़रें घुमाईं और क्यूट सी शक्ल बनाकर अपनी पलकों को झपकाया... मक्खन लगाने की कोशिश सफल रही। आहाना ने भी अपने पर्स से पैसे निकालकर उसे थमा दिए और साथ ही उसके सर पर हल्की चपत लगाते हुए उसे समझाया,

    "बेवजह इतने पैसे मत उड़ाया करो, किसी दिन भैया का गुस्सा जागा तो हम भी तुम्हें नहीं बचा सकेंगी।"

    "तब तो सीधे पापा के पास दौड़ लगाऊँगी, वो कान पकड़कर भैया को सीधा कर देंगे... है ना पापा?" अंतरा ने जितेंद्र जी का रुख़ किया, मानो उनसे अपने विश्वास पर मोहर लगाने की दरख़्वास्त कर रही हो। जितेंद्र जी जो अपनी छोटी लाडली की कारस्तानी देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने जैसे ही हामी भरी, अपनी योजना पर अंतरा फ़क्र से मुस्कुरा उठी कि अब तो कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

    उसने पैसे रखे और उठी ही थी कि पीछे से जयंती जी की आवाज़ आई,

    "अंतरा, आज जल्दी घर आना, बहुत काम पड़े हैं।"

    "माता जी, आपका आदेश हो तो कॉलेज ही नहीं जाती आज।" अंतरा ने भी मौके पर चौके की जगह सीधे छक्का लगाया था। कॉलेज जाना किस कमबख्त को था?... उसका बस चलता तो कब की पढ़ाई से जान छुड़ा लेती और अब भी मौका हाथ लगते ही बच निकलती थी। सो आज फिर मौके का फ़ायदा उठाना चाहा, पर सोफ़े पर बैठे द्रीशांत ने उसके सारे इरादों पर घड़ा भर-भरकर पानी उंडेल दिया था।

    "बिल्कुल नहीं, चुपचाप कॉलेज जाओ तुम। पढ़ाई में इस लड़की का ज़रा भी मन नहीं लगता, इसे तो बस बहाना चाहिए पढ़ाई से जान छुड़ाने का, पर ऐसा कुछ नहीं होने वाला। चुपचाप कॉलेज पहुँचो और आज तो मैं खुद छोड़कर आऊँगा तुम्हें और दोपहर में घर पहुँच जाना, अगर कॉलेज से निकलकर सड़कों पर तफ़री लगाती नज़र आई तो आज ख़ैर नहीं तुम्हारी।"

    द्रीशांत का हमेशा वाला सख्त रवैया और यह बेवजह की धमकी। बेचारी अंतरा का पूरा मूड ही ख़राब हो गया। उसने बुरा सा मुँह बनाकर मन ही मन उसे कोसा और तुनकते हुए बोली,

    "मैं नहीं जाऊँगी आपके साथ, मैं जीजी के साथ जाऊँगी।"

    "पर हम तो आज भैया के साथ जा रहे हैं, पल्लवी भी साथ चल रही है, तुम भी चलो साथ।"

    अंतरा ने आहाना की बात सुनकर बुरा सा मुँह बनाया। मन तो नहीं था पर ज़रूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है, सो मन मारकर अपने ख़ड़ूस भैया को ही सर पर सवार कर लिया।


    जल्द ही...

  • 3. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 3

    Words: 2247

    Estimated Reading Time: 14 min

    कुछ देर बाद तीनों बाहर पहुँचे। ठीक उसी वक़्त पल्लवी भी वहाँ पहुँची। हल्का साँवला रंग और आकर्षक नयन-नक्ष, नारंगी सूट पर कंधे पर साइड से दुपट्टा डाले और कंधे से ज़रा नीचे तक के गीले बालों को क्लिप लगाकर खुला छोड़े... सादे रूप में भी बहुत प्यारी लग रही थी वह। द्रीशांत की निगाहें उस पर ठहर सी गईं, जबकि पल्लवी ने एक उड़ती नज़र उस पर डाली और फिर अंतरा और आहाना की ओर बढ़ गई।

    "हैलो भाभी जान, कैसी हैं आप?....... बड़े दिनों बाद दर्शन दिए।" अंतरा उसके आते ही शुरू हो गई।

    जवाब में पल्लवी ने प्यार से उसके गाल को खींचा।

    "परसो ही मिली थी नौटंकी।" अंतरा ने खिसियानी हँसी हँसते हुए बात छुपाई, फिर तिरछी नज़रों से द्रीशांत को घूरते हुए बोली,

    "भाभी जान, आपको भी सारी दुनिया में यही अकडू और खडूस शख्स मिला था, प्यार के पेंच लड़ाने के लिए?"

    "अंतरा," द्रीशांत ने सख्ती से उसे टोका।

    जिस पर अंतरा ने निर्भीकता से उसे घूरा। वहीं पल्लवी ने तिरछी नज़रों से द्रीशांत को देखते हुए जवाब दिया,

    "अंतरा, तुमने वो कहावत तो सुनी होगी कि अब दिल आया लंगूर पर तो हूर भी क्या चीज़ है?"

    वाह! खड़े-खड़े क्या बेइज़्ज़ती की थी मोहतरमा ने! वो जनाब अंदर तक सुलग रहे थे और रही-सही कसर अंतरा मैडम ने पूरी कर दी।

    "कहावत तो ठीक से पढ़िए भाभी जान....... तो अर्ज़ किया है..... जब दिल आया लंगूर पर तो अंगूर क्या चीज़ है?" अंतरा ने भी जमकर उसकी टांग खींची और दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े। बेचारी आहाना कभी इन दोनों को देखती तो कभी अपने भाई के गुस्से से तमतमाते चेहरे को।

    अभी दोनों नंद-भाभी की जोड़ी कहकहे लगाने में व्यस्त थीं, तभी द्रीशांत की कठोर आवाज़ उनके कानों में पड़ी।

    "चलना है या नहीं?..... बर्बाद करने को फालतू वक़्त नहीं मेरे पास। जल्दी से अंदर बैठो, वरना दोनों को यहीं छोड़कर चला जाऊँगा।"

    उसने साफ़ शब्दों में धमकी दी और इसका असर जल्दी ही देखने को मिला। अंतरा और पल्लवी हँसते-हँसते रुक गईं और अगले ही पल अंदर घुसकर बैठ गईं। द्रीशांत ने अफ़सोस से सर हिलाया और आँखों से आहाना को कुछ इशारा करते हुए, खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। आहाना पैसेंजर सीट पर बैठी और कार आगे बढ़ गई।

    सारे रास्ते पीछे बैठी अंतरा और पल्लवी की उल्टी-सीधी बातें और हँसी-मज़ाक चलता ही रहा, जिसमें बीच-बीच में आहाना भी शामिल हो जाती। इस वक़्त अभी कोई उन तीनों को देखता तो पल्लवी को आहाना की नहीं, अंतरा की दोस्त समझता। दोनों एक जैसे नेचर की थीं और खूब पटती थीं उनकी आपस में और जब दोनों इकट्ठी होतीं तो द्रीशांत को छेड़े बिना बाज़ नहीं आती थीं।

    द्रीशांत का पूरा ध्यान ड्राइविंग पर था और शांत गंभीर चेहरा... पर अगर गौर से ध्यान दिया जाए तो मालूम चले कि जनाब की निगाहें फ्रंट मिरर में कई दफ़ा पीछे बैठी पल्लवी को निहार चुकी थीं... और जब-जब उसकी खिलखिलाती हँसी द्रीशांत के कानों में पड़ती, उसके चेहरे के भाव कुछ बदलते, साथ ही होंठ भी किनारे से मुड़ जाते।

    खैर, रास्ता कटा। सबसे पहले अंतरा को उसके कॉलेज ड्रॉप किया गया, फिर कार आहाना और पल्लवी के स्कूल के बाहर रुकी। पल्लवी गेट खोल ही रही थी कि द्रीशांत की गंभीर आवाज़ उसके कानों से टकराई।

    "तुम रुको, कुछ बात करनी है मुझे तुमसे।"

    उसकी बात सुनकर आहाना और पल्लवी दोनों ही गेट खोलते-खोलते ठिठक गए और हैरानगी से उसे देखने लगीं, पर द्रीशांत का रुख पल्लवी के तरफ़ था।

    एक नज़र पल्लवी को देखने के बाद उसने आहाना की ओर रुख फ़ेरा।

    "आहाना, तुम अंदर जाओ, पल्लवी पाँच मिनट में आ जाएगी।"

    "जी भैया," आज्ञाकारी बच्चे जैसे सर हिलाया और गाड़ी से बाहर निकल गई। अब वहाँ सिर्फ़ द्रीशांत और पल्लवी ही रह गए थे। पल्लवी ने बेचैनी से निगाहें घुमाईं और घबराई हुई सी अपने पर्स की बद्दी पर मुट्ठी कसके हुए खुद में ही बड़बड़ाने लगी।

    "आ गई तेरी शामत... चढ़ गई हिटलर के हत्थे, अब तो कोई बचाने वाला भी नहीं... पल्लवी की बच्ची, आज तो तू गई काम से। आज तो खैर नहीं तेरी, जैसे तूने उसे छेड़ा है ना, आज ये जल्लाद तुझे छोड़ेगा नहीं।"

    बेचारी पल्लवी आगे की अपनी दुर्दशा सोचते हुए खुद को ही कोसने में लगी थी, जब एक सधी हुई धीमी पर सख्त आवाज़ बड़े करीब से आई।

    "क्या बोल रही थी तुम अंतरा से?"

    आवाज़ सुनकर पल्लवी चौंकते हुए अपने ख्यालों से बाहर आई। निगाहें आवाज़ की दिशा में घुमाईं और अपने बगल में द्रीशांत को बैठा देखकर घबराकर पीछे हट गई।

    "क... कुछ भी तो नहीं बोल रही..." घबराहट के मारे उसकी ऊपर की साँसें ऊपर और नीचे की साँसें नीचे अटकी थीं और ज़ुबान भी लड़खड़ा गई थी।

    "कुछ कैसे नहीं बोल रही थी... बोल तो तुम रही थी और खूब हँसी भी आ रही थी तुम्हें..."

    उसके रुख पर गुस्सा और नाराज़गी साफ़ झलक रही थी और घूरती निगाहें उस पर ही टिकी थीं। पल्लवी की जान हलक में अटकी थी, सो उसने तुरंत ही हड़बड़ी में इंकार में सर हिलाया... पर द्रीशांत फिर तीखी नज़रों से उसे घूरने लगा।

    "लंगूर हँ... यही कहा था ना तुमने मुझे।"

    द्रीशांत ने उसे उसकी कही बात याद दिलाई और पल्लवी ने अपनी जीभ दाँतों तले दबाते हुए, अपनी आँखों को कसके भींच लिया... जैसे अब कहने-सुनने को उसके पास कुछ रह ही न गया हो। द्रीशांत ने चेहरे पर सख्त भाव लिए, अपने सामने बैठी इस घबराई हुई, खुद में सिमटी बैठी लड़की को कुछ पल घूरा, जो बाकी सबके सामने तो शेरनी बनकर दहाड़ती है पर अकेले में उसके सामने बिल्कुल भीगी बिल्ली बन जाती है। यह सोचते हुए द्रीशांत के भाव कुछ कोमल हो गए।

    "मेरे मैसेजेस और कॉल्स का जवाब क्यों नहीं दे रही हो तुम?"

    सवाल सुनते ही पल्लवी ने चौंकते हुए अपनी आँखें खोलीं। पहले तो वो बड़ी-बड़ी आँखों से हैरानी से उसे देखती रही कि कैसे उसने टॉपिक चेंज किया?... फिर अचानक ही उसे कुछ याद आया और उसने मुँह बनाते हुए, अकड़ते हुए जवाब दिया।

    "क्योंकि मेरा आपसे बात करने का कोई मन नहीं।"

    "और वो क्यों भला?" द्रीशांत की आँखें गहरी हुईं, पर पल्लवी ने बड़ी ही लापरवाही से कंधे उचका दिए।

    "मुझे क्या पता, बस नहीं है मन तो नहीं है।"

    "बात करने का मन नहीं... या उस दिन पूछे मेरे सवाल का जवाब देने से बचने के लिए मुझे इग्नोर कर रही हो?"

    गंभीरता से किया सीधा-सपाट सवाल, जिसे सुनकर पल्लवी उससे नज़रें चुरा गई।

    "क... कैसा सवाल?... मुझे तो कुछ याद नहीं... मुझे देर हो रही है, मैं चलती हूँ।" पल्लवी ने हड़बड़ी में बात खत्म की और दरवाज़ा खोलने को हाथ बढ़ाया ही था कि द्रीशांत ने उसकी कलाई को सख्ती से थाम लिया। पल्लवी की साँसें पल भर को थम गईं और वो तुरंत ही अपना हाथ उससे छुड़ाने लगी।

    "हाथ छोड़िए मेरा।"

    "क्यों छोड़ूँ, हक़ है मेरा।" द्रीशांत ने गंभीरता से जवाब देते हुए अपनी पकड़ कस दी। पल्लवी जो उससे अपनी कलाई आज़ाद करवाने की हर संभव कोशिश करके थक चुकी थी, उसका जवाब सुनकर खीझ उठी।

    "नहीं है हक़। भूलिए मत, अभी शादी नहीं हुई है हमारी और अगर आपने मुझे अभी यहाँ से जाने नहीं दिया और परेशान किया तो शादी कभी होगी भी नहीं।"

    "अच्छा और कौन रोकेगा हमारी शादी होने से?" द्रीशांत ने भौंह उचकाते हुए सवाल किया, जिस पर पल्लवी ने उसे आँखें दिखाते हुए जवाब दिया।

    "मैं... मैं रोकूँगी। मेरे लिए मम्मी-पापा राज़ी हुए थे, अगर मैंने इंकार किया तो वो यह रिश्ता यहीं खत्म कर देंगे।"

    लगभग धमकाने वाला अंदाज़ था, जो द्रीशांत को ख़ासा पसंद आया। उसकी बेबाकी पर ही तो दिल हारा था पर यह मोहतरमा तो उसके आगे एकदम डरपोक बन जाती थी, सो उसके इस रूप के दीदार के लिए उसे थोड़ा सताना और भड़काना पड़ता था। पल्लवी की धमकी सुनकर द्रीशांत ने एक बार फिर भौंह उचकाते हुए सवाल किया।

    "अच्छा तो तुम इंकार करोगी?"

    "हाँ बिल्कुल," पल्लवी ने नज़रों से नज़रें मिलाते हुए जवाब दिया और अपनी बात पर डटी रही। सोचा था बात यहीं खत्म हो जाएगी पर द्रीशांत उससे कहीं गुना ज़्यादा चालाक था और बहुत आगे की सोचता था। उसने उसकी इस धमकी की हवा में उड़ाते हुए बेफ़िक्री से कहा।

    "ठीक है तो अपना यह शौक... शौक़ से पूरा करना। पहले मेरे सवाल का जवाब दो कि दोस्त का भाई तो भाई होता है, फिर मुझे अपने भैया के जगह सैया बनाने का ख्याल कब और कैसे आ गया तुम्हारे मन में?"

    "जैसे आपके मन में अपनी छोटी बहन की बेस्ट फ्रेंड को अपनी वाइफ बनाने का ख्याल आया।" पल्लवी ने तड़ककर जवाब दिया। जब से रिश्ता हुआ था, द्रीशांत अकसर यह सवाल करके उसे छेड़ता और आख़िर में तंग आकर आज पल्लवी ने पलटवार कर ही दिया था।

    "यह मेरे सवाल का जवाब नहीं। सच-सच बताओ, तुमने कभी मुझे भैया क्यों नहीं कहा और मेरे लिए तुम्हारे दिल में ऐसी वाली फीलिंग्स कब से हैं?"

    "नहीं बताती, क्या करेंगे आप?... और क्यों कहती मैं आपको भैया... भैया लगे हैं क्या आप मेरे?... और भैया वाली हरकतें थीं आपकी? जब मौका मिलता बस मुझे परेशान करते, डाँट लगाते और मैं भैया कहती आपको... हुह... बहुत ऊँचा ख़्वाब देख लिया आपने तो।"

    पल्लवी ने तुनकते हुए अपनी बात पूरी की, फिर मुँह बनाते हुए चेहरा फेर लिया।

    "जब इतना ही बुरा लगता था मैं, तो अपने दिल में कैसे बसा लिया मुझे?"

    एक बार फिर द्रीशांत ने उसे छेड़ा और मैडम खीझते हुए बोल पड़ी।

    "बहुत बड़ी गलती हो गई जो आपकी अच्छाइयाँ देखकर आपसे दिल लगा लिया... बड़ी पछता रही हूँ अब।"

    "फिर तो अब तुम्हें सारी उम्र पछताना ही पड़ेगा।" उसकी हथेली को सहलाते हुए द्रीशांत मुस्कुराया, वहीं पल्लवी मुँह फुलाकर बैठ गई।

    "इतना डरती क्यों हो मुझसे, खाने बैठा हूँ तुम्हें?" कुछ पल की खामोशी के बाद द्रीशांत ने सवाल किया, जिस पर पल्लवी चिढ़ते हुए तपाक से बोल पड़ी।

    "आप हमेशा हिटलर बने क्यों घूमते हैं?... जब देखो बस डाँटते ही रहते हैं। मुझे क्या, किसी को भी डर ही लगेगा आपसे।"

    पल्लवी का इल्ज़ाम सुनकर द्रीशांत गंभीर हो गया।

    "अपनी हरकतें न देखा करो तुम। बेवजह ही डाँटने का शौक़ नहीं चढ़ा है मुझे?... हरकतें ऐसी करती हो तो डाँट भी पड़ेगी।"

    "अच्छा... और ऐसी कौन सी डाँट खाने वाली हरकतें करती हूँ मैं?"

    दिलचस्पी दिखाते हुए पल्लवी ने तुनकते हुए सवाल किया। द्रीशांत ने भी उसकी निगाहों से निगाहें मिलाते हुए, उसी के लहजे में उसी से सवाल कर लिया।

    "मेरी छोटी बहन के साथ मिलकर, मेरे ही सामने मेरा मज़ाक नहीं उड़ाया था?"

    "वो तो बस मज़ाक था।" पल्लवी ने तुरंत ही सफ़ाई पेश करते हुए, अपना पल्ला झाड़ा, पर द्रीशांत गंभीर था।

    "पर मुझे पसंद नहीं आया।"

    "तो मैं क्या करूँ, न आए पसंद। मैंने ठेका थोड़े ना लिया है, आपकी पसंद की बातें करने का।" पल्लवी ने चिढ़ते हुए जवाब दिया। द्रीशांत कुछ पल खामोशी से उसे देखता रहा, फिर संजीदगी से बोला।

    "उसका सपोर्ट मत किया करो, पहले ही बिगड़ी हुई है। क्षय मिलने पर और उल्टी-सीधी हरकतें करती है और उसे संभालना मुश्किल हो जाता है।"

    "बिगड़ी नहीं है, बस थोड़ी मनमौजी और शैतान है।" एक अच्छी भाभी जैसे पल्लवी ने तुरंत ही अंतरा की तरफ़दारी की।

    "पढ़ाई से जी चुराती है।"

    द्रीशांत ने शिकायत की, बदले में पल्लवी ने आँखें छोटी-छोटी कर उसे घूरते हुए जवाब दिया।

    "दुनिया में हर कोई आपके तरह किताबों का कीड़ा नहीं होता। उसका इंटरेस्ट मेकअप और फ़ैशन में है।"

    "तो उसी में कुछ कर ले... पर कुछ तो करे। वो तो कुछ करना ही नहीं चाहती, बस अपने दोस्तों संग आवारागर्दी करती है और वक़्त के साथ, पैसे बर्बाद करती है।"

    "कर लेगी वक़्त आने पर, अभी तो ऐश-मौज करने की उम्र है। अभी से ज़िम्मेदारियों का बोझ डाल देंगे उसके कंधे पर तो उसका बचपना खो जाएगा और आपके तरह वक़्त से पहले सीनियर सिटीज़न बन जाएगी।"

    एक बार फिर पल्लवी ने जाने-अनजाने उस पर तंज किया और द्रीशांत की भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं।

    "कुछ ज़्यादा ज़ुबान नहीं चल रही तुम्हारी?"

    "चलना तो पैर भी चाहते हैं पर आप जाने दें तब ना, हाथ पकड़े बैठे हैं।" जवाब तुरंत ही हाज़िर था और तीखी नज़रें उसके हाथ को घूरने लगी थीं, जिसने उसकी कलाई थामी हुई थी।

    द्रीशांत ने अब उसकी कलाई छोड़ दी। पल्लवी ने तुरंत हाथ पीछे खींचा और अपनी कलाई सहलाने लगी।

    "अच्छा सुनो,"

    द्रीशांत की आवाज़ पर उसने सर घुमाकर उसे देखा। "जी कहिए।"

    द्रीशांत के चेहरे पर अब गंभीर भाव मौजूद थे। "कुछ ज़रूरी बात करनी है मुझे तुमसे।"

    "कहिए, सुन रही हूँ मैं।"

    "वो मैंने बताया था ना आज आहाना को देखने लड़के वाले आ रहे हैं।"

    "जी।"

    "हमारे सामने तो वो कुछ कहती नहीं है। बस सारा फ़ैसला हम पर छोड़ देती है, अपने दिल की बात अंदर ही रखती है तो एक बार तुम उससे बात करके देखो। जानो कि उसके मन में क्या है और वो क्या चाहती है?"

    "कोशिश करती हूँ पर मैं सोच रही थी कि पहले लड़का देख लेती, उससे बात कर लेती... उसके बाद मैं उससे पूछती, तब उसके लिए जवाब देना ज़्यादा आसान होता।"

    "जैसा तुम्हें ठीक लगे, वैसा ही करो। बस मुझे उसकी मर्ज़ी बता देना। मैं नहीं चाहता कि हमारे ख़ातिर वो किसी अनचाहे बंधन में बंध जाए।"

    "जी... मैं बात करके बताती हूँ आपको। अब जाऊँ क्या? कुछ और कहना है आपको?"

    "जाओ," द्रीशांत ने उसे जाने की इजाज़त दी तो पल्लवी तुरंत दरवाज़ा खोलकर बाहर निकलने लगी, पर फिर कुछ सोचकर रुकी। पलटकर द्रीशांत को देखा जो उसे ही देख रहा था और सौम्य सी मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए बोली,

    "लंगूर है पर मुझे बड़े पसंद हैं।"

    इतना कहकर वो खिलखिलाते हुए बाहर निकल गई, पर पीछे छोड़ गई द्रीशांत के लबों पर दिलकश मुस्कान।

  • 4. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 4

    Words: 2477

    Estimated Reading Time: 15 min

    दिल्ली (सहगल निवास)

    नाश्ता हो चुका था और कुछ देर में सब बस लड़की देखने निकलने वाले थे। अभिजीत जी के साथ उनकी पत्नी रूपाली जी, छोटा भाई, उनके पिताजी, एक दोस्त और उनका खुद का परिवार जा रहा था। जिनमें उनके दोनों बेटे, बेटी फलक, दामाद सुमित और समधी जी शामिल थे। सब लोग घर आ चुके थे, बस निकलने की तैयारी में थे।

    बाकी सब तो तैयार थे पर अक्षय अभी तक तैयार नहीं हुआ था। सुबह-सुबह एमरजेंसी में हॉस्पिटल जाना पड़ा था और अभी ही लौटा था। नहा-धोकर फ्रेश होकर वो बाथरूम से बाहर निकला तो उसके बेड पर अन्वय के साथ उसकी छोटी बहन फलक बैठी मजे से स्नैक्स खा रही थी।

    अक्षय ने दोनों को यहाँ डेरा जमाए देखा तो चिढ़ते हुए हाथ में मौजूद गीला तौलिया उनके ऊपर फेंकते हुए ड्रेसिंग टेबल की तरफ बढ़ गया। अन्वय ने तुरंत तौलिया कैच किया और चिढ़ते हुए बोला,

    "क्या भाई, ये कोई जगह है गीला तौलिया फेंकने की?"

    अक्षय के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए। वो वापिस उनकी ओर पलटा और उसी के लहजे में उल्टा उसी से सवाल किया,

    "जगह तो ये तुम्हारे मंडली जमाने की भी नहीं, फिर मेरे कमरे में क्या कर रहे हो दोनों?"

    "बस सोचा आपसे थोड़ी बातें कर ली जाएँ, पर भैया आप हमें देखकर इतना चिढ़ क्यों रहे हैं?" अबकी बार जवाब फलक ने दिया था और साथ ही सवाल भी पूछ लिया। जिस पर अक्षय ने खीझते हुए जवाब दिया,

    "ये तो तुमने मेरे बेड का हाल किया है ना, दिल तो मारने को चाह रहा है।" अक्षय का सख्त रवैया देखकर फलक ने तुरंत ही बात बदली,

    "भैया हम तो यहाँ ये जानने आए थे कि आज सूरज कहाँ से निकला है?"

    अक्षय ने भौंहें चढ़ाते हुए असमंजस भरी नज़रों से उसे देखा। उसके मन के सवाल को समझते हुए फलक ने आगे बात जारी रखी,

    "मेरा मतलब था कि इससे पहले कितनी ही बार हम यहीं दिल्ली में लड़की देखने गए थे, NCR में भी लड़की देखी। पर तब तो एक बार भी आप हमारे साथ नहीं गए थे और आज हमारे साथ कानपुर जाने को तैयार हो गए।

    कहीं लड़की कुछ ज़्यादा ही पसंद तो नहीं आ गई आपको, इसलिए खुद जा रहे हैं उसे देखने? इसी बहाने उससे मुलाक़ात भी हो जाएगी और बात भी हो जाएगी?"

    शरारती मुस्कान लबों पर सजाते हुए उसने आँखें मटकाईं। मतलब साफ़ था कि उसके यहाँ आने का सिर्फ़ एक ही मकसद था और वो था अक्षय को छेड़ना। उसके इरादे समझते हुए अक्षय ने आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरा और खीझते हुए बोला,

    "बकवास मत कर फलक। माँ ने कहा है इसलिए जा रहा हूँ।"

    "माँ तो हर बार कहती है भाई और अब तक आपके लिए पाँच लड़कियों को देखने जा चुके हैं हम। पहले कभी तो आप हमारे साथ नहीं गए। इस बार आपको माँ का आज्ञाकारी बेटा बनने का भूत कहाँ से सवार हो गया? कहीं माँ की आड़ में अपनी चाहत तो पूरी नहीं की जा रही?"

    ये अन्वय महाराज थे जिन्होंने बहती गंगा में सिर्फ़ हाथ नहीं धोया था बल्कि पूरी डुबकी लगाकर निकले थे। शैतानी मुस्कान लबों पर सजाते हुए उसने भौंहें चढ़ाईं। अक्षय उसकी बात का कोई जवाब दे पाता, उससे पहले ही फलक ने उसके पास आते हुए सवाल किया,

    "वैसे भैया अगर आपको लड़की पसंद है तो हम उन्हें अपनी भाभी मान लें?"

    फलक के इस सवाल पर अक्षय एक पल को उलझन में पड़ गया। ज़हन में उस लड़की की तस्वीर उभरी जिसे देखकर कुछ अनकहे से एहसास उसके दिल में जागे थे। उन्हीं एहसासों में खोया था वो और उसे यूँ ख्यालों में गुम देखकर फलक और अन्वय दोनों की आँखें शरारत से चमक उठी थीं, जैसे जिस भेद पर से पर्दा उठाने वे यहाँ आए थे वो राज़ उनके सामने खुल चुका था।

    दोनों ने आँखों में शरारत भरते हुए और लबों पर शैतानी मुस्कान सजाए अर्थपूर्ण दृष्टि से एक-दूसरे को देखा, जैसे आँखों ही आँखों में कुछ बात कर रहे हों। फिर अन्वय ने नाटकीय अंदाज़ में सोचते हुए सवाल किया,

    "फलक, नाम क्या है भाभी का? मुझे ध्यान नहीं आ रहा, बड़ा प्यारा सा तो नाम है उनका......"

    "मुझे भी कुछ ध्यान सा नहीं आ रहा। अभी तो बाहर मम्मी बता रही थी, मुझे तो नाम पसंद भी बहुत आया था पर अभी दिमाग में ही नहीं आ रहा।" फलक भी उसके नाटक में शामिल हो गई और दिमाग पर ज़ोर डालकर याद करने की कोशिश करने लगी। इतने में अक्षय की सधी हुई आवाज़ वहाँ गूंज उठी,

    "आहाना।"

    दोनों की निगाहें अक्षय की ओर घूम गईं, जिसकी आँखों में कुछ अलग से ज़ज़्बात झलक रहे थे और लबों पर मंद मुस्कान सजी थी।

    अन्वय की शरारत की रग फड़की और अपने नाटक को उसके अंजाम तक पहुँचाते हुए उसने ज़रा हैरानी ज़ाहिर की,

    "ओह हाँ, आहाना नाम है। मुझे तो ध्यान ही नहीं था।"

    इसके बाद उसने गहरी निगाहों से अक्षय को देखा,

    "पर आपको बहुत अच्छे से याद था। क्या बात है भाई, कहीं दिल ही दिल में चाहने तो नहीं लगे अपनी आहाना को?"

    "अन्वय, मार खाएगा आज तू मुझसे।" अक्षय ने अपने ज़ज़्बातों को गुस्से के पीछे छुपाया और उसे मुक्का दिखाते हुए उसे धमकाया। पर इससे पहले कि वो अन्वय पर हमला बोलता, फलक उन दोनों के बीच में आ गई और कमर पर हाथ रखकर गंभीर निगाहों से उसे देखने लगी,

    "पर मुझे तो आप नहीं मार सकते। चलिए मुझे बताइए, सच में आपको ये लड़की, मतलब आहाना, पसंद आ गई है?"

    अक्षय के चेहरे के सख्त भाव कुछ कोमल हो गए। उसने उलझन भरे लहजे में जवाब दिया,

    "एक तस्वीर देखकर कैसे बता दूँ कि पसंद आई या नहीं? किसी को पसंद या नापसंद करने के लिए मिलना-जुलना पड़ता है, एक-दूसरे को जानना और समझना पड़ता है, बातें करनी पड़ती हैं।"

    "मतलब इस लड़की आपको अच्छी तो लग ही गई है, तभी मिलने-जुलने और बातें करने के बारे में सोच रहे हैं आप। ठीक कहा ना भाई?" अन्वय फिर मैदान में कूद पड़ा। पर अक्षय अब भी उलझन में था।

    "पता नहीं, देखते हैं मिलकर शायद पसंद आ जाए या हो सकता है कि मुझे वो पसंद आ जाए पर वही मुझे नापसंद कर दे।"

    "ऐसा तो हो ही नहीं सकता ना भाई।" फलक ने तपाक से उसकी बात पर विरोध जताया। उसके चेहरे के भाव देखकर लग रहा था जैसे उसे अक्षय की बात पसंद नहीं आई, जबकि अक्षय ने सहजता से अपनी बात का समर्थन किया,

    "बिल्कुल हो सकता है। क्या पता जैसे हमसफ़र की तलाश उसे हो मैं वैसा ना हूँ और होने को तो ये भी हो सकता है कि मम्मी-पापा को ही लड़की पसंद ना आए तो अभी से कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी।"

    "अच्छा भाई, एक बात बताइए। वैसे तो आहाना जी के बारे में सब जानकर और उनकी तस्वीर देखने के बाद मम्मी-पापा ने देखने जाने के बारे में सोचा है, मतलब उन्हें वो अच्छी लगी, पर फिर भी अगर ऐसा हुआ कि लड़की को देखने और उससे मिलने के बाद मम्मी-पापा ने उसे रिजेक्ट कर दिया, पर आपको लड़की पसंद आ गई, तब आप क्या करेंगे?"

    अन्वय भी उसके पास पहुँच गया और अपने मन में तूफ़ान मचाते सवाल को उसके सामने रखकर जवाब का इंतज़ार करने लगा। इस सवाल के जवाब का इंतज़ार सिर्फ़ अन्वय को ही नहीं था बल्कि फलक भी बड़ी ही उत्सुकता से उसके जवाब का इंतज़ार कर रही थी।

    "तो शादी नहीं होगी।" अक्षय का जवाब सुनकर अन्वय और फलक एक-दूसरे को देखने लगे।

    "मतलब आप शादी से इंकार कर देंगे?" अन्वय उसका जवाब सुनकर चौंक गया और आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरान-परेशान सा उसे देखने लगा। उसके सवाल के बदले अक्षय ने भौंहें चढ़ाते हुए उसी से सवाल कर लिया,

    "तो एक अनजान लड़की के लिए अपने मम्मी-पापा के ख़िलाफ़ चला जाऊँ?"

    "अगर आपके जगह मैं होता तो 100% घर में बगावत होती और मैं तो उसी से शादी करता जिसे मैं पसंद करता, फिर चाहे सबके ख़िलाफ़ जाकर ही क्यों ना करनी पड़ती, पर शादी तो उसी से होती।" अन्वय ने बेफ़िक्री से जवाब दिया, जैसे ये उसके लिए कोई छोटी-मोटी बात थी। पर मज़ाक नहीं था क्योंकि उसकी आँखों में जज़्बे नज़र आ रहे थे, मतलब साफ़ था कि वक़्त आने पर वो ऐसा करने से पीछे नहीं रहेगा।

    उसका जवाब सुनकर अक्षय ने बेहद संजीदगी से कहा,

    "और शादी के बाद क्या होता? मम्मी-पापा की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी करता तो रोज़ घर में एक नई महाभारत छिड़ती, रिश्ते बिखर जाते, घर का माहौल बिगड़ता, परिवार के बीच दरार आती। मम्मी-पापा की भावनाओं को ठेस पहुँचती और साथ ही जिससे शादी करता उसकी ज़िंदगी भी मुश्किलों से भर जाती।"

    अक्षय ने अपना नज़रिया सामने रखा और वो भी स्पष्ट शब्दों में। अपनी जगह वो भी सही था, इसलिए इस मामले में उससे आगे कोई बहस को न बढ़ाते हुए कुछ पल सोचने के बाद गंभीरता से कहा,

    "आप वाकई मम्मी-पापा के फ़रमाँबरदार बेटे हैं। वही कीजिएगा जो वे कहें। पर ज़रा ये बताइए कि घर में महाभारत तो तब भी होने के चांस हैं जब बहू उनकी पसंद की आएगी, तब क्या करेंगे आप? अपने मम्मी-पापा के आज्ञाकारी बेटे बनकर उनका साथ देंगे या पतिधर्म निभाकर उसका समर्थन करेंगे जो आपसे शादी करके आपके भरोसे पर अपना घर, अपना परिवार सब छोड़कर यहाँ आपके घर आएगी, आपके परिवार को अपना परिवार मानेगी?"

    अन्वय ने एक सवाल उसके सामने लाकर खड़ा कर दिया और जवाब का इंतज़ार करने लगा। इस सवाल के जवाब का इंतज़ार सिर्फ़ अन्वय को ही नहीं था बल्कि फलक भी बड़ी ही उत्सुकता से उसके जवाब का इंतज़ार कर रही थी।

    "ये तो डिपेंड करता है, जो सही होगा उसका साथ दूँगा।" अक्षय का जवाब सुनकर अन्वय और फलक एक-दूसरे को देखने लगे।

    "भैया, एक सलाह दूँ आपको।"

    अन्वय के चेहरे पर ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर भाव देखकर अक्षय के चेहरे पर सवालिया भाव उभर आए,

    "कैसी सलाह?"

    "आप मम्मी से बहुत प्यार करते हैं, उनकी हर बात मानते हैं पर अच्छे बेटे का फ़र्ज़ निभाते-निभाते उस लड़की के साथ कोई नाइंसाफ़ी मत कर जाइएगा। इतिहास गवाह है सास-बहू के बीच छत्तीस का आँकड़ा रहता है और वजह भी जायज़ ही होती है।

    जिस माँ का अब तक अपने बेटे पर एकाधिकार था उसे शादी के बाद उसे बाँटना पड़ता है, जिससे उनके मन में एक इनसिक्योरिटी आने लगती है कि कहीं उनकी बहू उनके बेटे को उनसे छीन ना ले और इसी डर में वो बहू पर अत्याचार करती हैं और ऐसी स्थिति में उस लड़के को दोनों के बीच तालमेल बिठाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है और आपको फ़्यूचर में ऐसी प्रॉब्लम सौ फ़ीसदी होने वाली है। तो अभी से खुद को इस सिचुएशन के लिए तैयार कर लीजिए।"

    अक्षय जो बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रहा था, उसने अफ़सोस से सर हिलाया और उसके सर पर चपत लगाते हुए बोला,

    "ये सास-बहू वाले डेली सोप्स थोड़ा कम देखा कर तू।"

    अन्वय ने अपना सर सहलाते हुए बुरा सा मुँह बनाकर उसे देखा। इधर फलक जो काफ़ी देर से कुछ सोच रही थी, मौक़ा पाकर उसने अपनी बात रखने की कोशिश की,

    "भैया, मैं कुछ कहूँ?"

    अक्षय ने नज़र घुमाकर उसे देखा और ज़रा चिढ़ते हुए बोला,

    "अब भी कुछ कहना रह गया है तो तू भी बोल ले।"

    "भैया, जो मम्माज़ बॉयज़ होते हैं ना उनकी वाइफ़ को अपने ससुराल में एडजस्ट होने में बड़ी परेशानी होती है। मैं ये नहीं कहती कि शादी के बाद जिन माँ-बाप ने आपको जन्म दिया, पाल-पोसकर अपने पैरों पर खड़ा किया, अपनी पूरी ज़िंदगी आप पर न्यौछावर कर दी, उन्हें पूरी तरह भुला देना चाहिए, उनके प्रति अपने फ़र्ज़ और ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेना चाहिए,

    पर आँखें मूँदकर हर बात में उनका समर्थन भी नहीं करना चाहिए, अपनी पत्नी को पूरी तरह नज़रअंदाज़ भी नहीं करना चाहिए। ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि अगर उसके परिवार और माता-पिता के प्रति उसके कुछ फ़र्ज़ हैं तो उस लड़की के प्रति भी उसकी कुछ ज़िम्मेदारियाँ बनती हैं जिसे वो शादी करके अपने घर लाया है।

    उस लड़के के पास तो उसका पूरा परिवार होता है पर वो लड़की अपना घर, अपना परिवार सब छोड़कर उसका हाथ थामकर सिर्फ़ उस पर विश्वास करके एक अनजान जगह, अजनबियों के बीच आती है तो उस नए घर में उसे सम्मान दिलाना उस लड़के की सबसे पहली ज़िम्मेदारी है।

    जो लड़की उसके भरोसे अपना सब कुछ छोड़कर उसकी दुनिया में शामिल हुई है, उसका ख़्याल रखना भी उसका ही फ़र्ज़ है, उसे ये एहसास दिलाना कि वो भी उस परिवार की सदस्य है, उसके लिए अहम है, ये उस लड़के की अहम ज़िम्मेदारी है।

    मैंने सुना था कि ससुराल में लड़की की इज़्ज़त उसके पति से ही होती है और शादी के बाद देख भी लिया कि वाकई अगर ससुराल में पति आपके समर्थन में है, आपकी इज़्ज़त करता है, आपके मान-सम्मान को बनाए रखता है, आपका ख़्याल रखता है, तभी ससुराल वाले भी आपकी इज़्ज़त करते हैं।

    जिस लड़की को उसका पति ही गलत ठहरा दे, घरवालों से लेकर बाहरवालों तक सब की उंगलियाँ फिर उस पर ही उठती हैं, चाहे वाकई में वो गलत हो या ना हो पर झुकना और दबना, ताने सुनना उसे ही पड़ता है।"

    "और तुझे लगता है कि जो लड़की मेरी पत्नी बनकर इस घर में आएगी मैं उसकी इज़्ज़त नहीं करूँगा, उसका साथ नहीं दूँगा?"

    अक्षय ने उसकी पूरी बात गंभीरता से सुनने के बाद सवाल किया। फलक ने तुरंत ही इंकार में सर हिला दिया,

    "ऐसा नहीं है भैया, पर जैसे आप मम्मी की हर बात मानते हैं, मुझे कभी-कभी डर लगता है कि एक अच्छे बेटे का फ़र्ज़ निभाने में कहीं आप अपनी पत्नी के साथ कोई नाइंसाफ़ी ना कर दें। आप तो मम्मी से अपने लिए भी जल्दी से कुछ नहीं कहते, अगर उनके लिए भी स्टैंड नहीं ले सके तो?"

    "मुझे कभी ज़रूरत नहीं पड़ी, वरना अगर मम्मी कुछ गलत करेंगी तो मैं उन्हें ज़रूर रोकूँगा।"

    "मेरी शादी करने से तो नहीं रोका आपने उन्हें?"

    फलक के मुँह से अनायास ही ये शब्द निकला जिसने अक्षय को झकझोर कर रख दिया।

    "फलक।" अक्षय ने कुछ कहना चाहा पर फलक ने उसे बोलने का मौक़ा नहीं दिया और उसकी बात काटते हुए बोली,

    "भैया, मैं आपकी बहन हूँ, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं क्योंकि ससुराल चाहे जैसा हो पर सुमित बहुत अच्छे हैं, पर अब आप शादी करने जा रहे हैं तो जो लड़की आपकी पत्नी बनकर इस घर में आए, उसके साथ कुछ गलत मत होने दीजिएगा।"

    अक्षय कुछ पल खामोशी से अपनी बहन को देखता रहा, जिसके बड़े भाई का फ़र्ज़ निभाने में चूक गया था वो, पर फिर भी उसकी बहन उससे शिकायत नहीं करती।

    "तू इतनी समझदारी वाली बातें कब से करने लगी?" अक्षय ने प्यार से उसके गाल को छूते हुए सवाल किया। जिस पर फलक फ़ीका सा मुस्कुरा दी,

    "जब से मेरी शादी उस घर में करवा दी है ,जहाँ मुझे हर रोज़ एक नई जंग लड़नी पड़ती है। मेरी भाभी को ऐसी ज़िंदगी मत दीजिएगा भैया।"

    एक इल्तिजा थी उसने अपने भाई से, उसे अक्षय ने सर झुकाकर स्वीकार किया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।

  • 5. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 5

    Words: 1851

    Estimated Reading Time: 12 min

    "यार, पल्लवी," आहाना ने कुछ उलझन भरे स्वर में उसे पुकारा। उस वक्त दोनों ऑटो में बैठे, घर की ओर बढ़ रहे थे। आहाना ने पुकारने पर पल्लवी ने तुरंत पलटकर उसे देखा।

    "हाँ, मेरी जान, बोल क्या हुआ?"

    "यार, अजीब-अजीब सा लग रहा है हमें। इतनी घबराहट तो हमें उस दिन भी नहीं हुई थी, जिस दिन हम इंटरव्यू के लिए गए थे। अजीब सा डर लग रहा है।"

    आहाना ने अपने दिल का हाल बयाँ किया और दुपट्टे को अपनी मुट्ठियों में भींचे, घबराई हुई सी उसे देखने लगी। पल्लवी ने उसकी हथेली को थाम लिया और बड़े ही प्यार व अपनेपन से बोली,

    "घबराहट का तो समझ आता है। आज तुझे लड़के वाले देखने आने वाले हैं। पर इसमें इतना घबराने वाली और डरने की तो कोई बात नहीं है। वो बस तुझे देखने ही आ रहे हैं, कोई काला पानी की सज़ा थोड़े न सुनाएँगे तुझे। चंद सवाल करेंगे और फिर चले जाएँगे।"

    आहाना कुछ पल परेशान सी उसे देखती रही, फिर खौफ भरी नज़रों से उसे देखते हुए धीमे स्वर में बोली, "हमें शादी का सोचकर ही डर लगने लगता है यार। कहीं हमारे साथ भी..."

    "चुप! कोई अशुभ बात अपनी ज़ुबान पर नहीं लाएगी आज तू। तेरे साथ कुछ गलत नहीं होगा, समझी? इसलिए इस डर को अपने मन से निकाल दे।"

    आहाना की बात बीच में काटते हुए पल्लवी ने सख्ती से अपनी बात कही। वो आहाना की बात पर नाराज़ थी और उसका गुस्सा उसके शब्दों में झलकने लगा था, पर आहाना की चिंता अब भी खत्म नहीं हुई थी।

    "पर हमें कैसे पता कि कुछ गलत नहीं होगा? तू जानती है हमारे यहाँ दहेज कितना चलता है। लड़का जितना कामयाब होगा, उसकी बोली उतनी ही ऊँची लगती है। उतना ही बड़ा मुँह फाड़ते हैं वो... और हम अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत लालच की ज़मीन और दहेज की नींव पर नहीं करना चाहते। भैया ने हमें इस बार सख्त हिदायत दी है कि लड़के से ऐसी कोई बात न करें...

    पर हमारा मन नहीं मानता यार। हम किसी ऐसे शख्स से रिश्ता कैसे जोड़ सकते हैं, जिसके लिए हम नहीं, हमारे साथ आने वाले दहेज की रकम मायने रखती होगी?...जिसे हमसे नहीं, हमसे रिश्ता जुड़ने पर मिलने वाले गाड़ी और पैसों में दिलचस्पी हो।

    हम ऐसे लड़के की कभी दिल से इज़्ज़त नहीं कर सकेंगे और बिना इज़्ज़त के हर रिश्ता खोखला होता है। हमें ऐसे शख्स से नहीं जुड़ना, जो दहेज के लिए हमसे शादी करे।"

    "तेरी बात ठीक है आहाना, पर थोड़ा बहुत तो देना ही पड़ता है। फिर भी अगर तेरा मन नहीं मानता तो तू कर ले बात लड़के से इस बारे में। आगे जो होगा देखा जाएगा, बस तू अपना मन शांत रख।...तू इतनी टेंशन मत ले यार। पापा जी हैं ना और द्रीशांत जी भी तो हैं, वो संभाल लेंगे सब और तेरे लिए अच्छा ही घर ढूँढेंगे। काबिल हाथों में ही तेरा हाथ सौपेंगे।"

    "हम जानती हैं यार। फिर भी हमें बहुत घबराहट हो रही है।"

    "ये तीसरी बार है, अब तक तो तुझे आदत हो जानी चाहिए थी, पर मैंने तुझे इतना घबराते पहले कभी नहीं देखा।"

    पल्लवी भी अब कुछ परेशान दिखने लगी थी। उसकी बात सुनकर आहाना ने उसकी हथेली को कसके थाम लिया और घबराई हुई सी बोली,

    "इस बार बहुत अजीब सा लग रहा है हमें। ऐसे लग रहा है जैसे डर से हाथ-पैर फूलने लगे हैं। जी चाह रहा है कि कहीं भाग जाएँ, ताकि लड़के से मिलना ही न पड़े।"

    "क्यों? क्या तुझे लड़का पसंद नहीं? मैंने भी फ़ोटो देखी है, मुझे तो अच्छा ही लगा, शक्ल से ही शांत और समझदार लग रहा है।...कहीं ऐसा तो नहीं कि पहली बार लड़के से मिलने वाली है इसलिए इतनी घबराहट हो रही है तुझे?"

    "हमें नहीं पता कुछ भी। बस बहुत घबराहट हो रही है हमें। एक काम कर ना, तू भी चल हमारे साथ घर, हमें थोड़ी हिम्मत मिलेगी, मोरल सपोर्ट भी मिल जाएगा।"

    आहाना ने बड़ी ही उम्मीद से उससे साथ चलने को कहा, पर पल्लवी के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।

    "मैं भी आना चाहती हूँ यार, पर मम्मी ने शादी से पहले मुझे उस घर की चौखट पर कदम रखने से सख्त मना किया है। लोग बातें बनाएँगे, जिससे दोनों ही परिवारों की इज़्ज़त पर सवाल उठेंगे। पर छाया भाभी आने वाली है, तू चिंता मत कर।"

    "हम आंटी से बात कर लेंगे और वैसे भी तू वहाँ हमारी होने वाली भाभी नहीं, बल्कि हमारी बचपन की दोस्त बनकर चलेगी हमारे साथ और ये हमारा आखिरी फैसला है।"

    आहाना ने कठोर लहज़े में अपना फैसला सुनाया और पल्लवी की मम्मी से बात करने लगी। उसकी मस्का लगाने और प्यार से रिक्वेस्ट के आगे आंटी को झुकना पड़ा और उसकी ज़िद के आगे पल्लवी भी झुक गई।

    दोनों घर पहुँचीं तो अंतरा पहले ही घर पहुँच चुकी थी और जयंती जी के साथ ड्राइंग रूम का सेटअप बदलवा रही थी। ड्राइंग रूम को आगंतुकों के स्वागत के लिए सजाया जा रहा था। काम वाली बाई साफ़-सफ़ाई में लगी थी, जयंती जी उससे एक-एक चीज़ साफ़ करवा रही थीं। सारा हाल चमक रहा था, कहीं धूल का एक कण भी नहीं नज़र आ रहा था।

    ड्राइंग रूम में नया चमकदार कार्पेट बिछा दिया गया था, सोफ़े कवर बदल दिए गए थे, टेबल पर जयंती जी ने खुद से बनाया खूबसूरत सा टेबल क्लॉथ बिछाया हुआ था। ड्राइंग रूम में सोफ़े के साथ आगंतुकों के बैठने के लिए दीवान भी लगाए गए थे। घर के पर्दे भी बदल दिए गए थे।

    किचन से आती भीनी-भीनी खुशबू से हवा महक रही थी। मतलब साफ़ था कि वहाँ भी आगंतुकों के स्वागत की तैयारी जोरों-शोरों से चल रही थी। जयंती जी कभी इधर दौड़तीं तो कभी उधर भागकर काम ठीक करवातीं।

    द्रीशांत भी आज ऑफ़ डे में आ गया था और इस वक्त जितेंद्र जी के साथ मार्केट गया था कुछ सामान लाने।

    आज घर का हुलिया ही बदला हुआ था। आज की तैयारियाँ कुछ ख़ास थीं और आहाना को तो एक पल को लगा जैसे वो किसी और के घर में आ गई है। वो अभी हैरत से नज़रें घुमा-घुमाकर अपने घर को देख ही रही थी कि निशांत उसे देखकर दौड़ते हुए उसके पास चला आया और बड़ी ही उत्सुकता से बोला,

    "जीजी, देखिए मम्मी ने तो आज हमारे घर का कायाकल्प कर दिया, ऐसा लग रहा है जैसे दीवाली की तैयारी चल रही है और जितनी हड़बड़ी में मम्मी सब काम खुद से देख रही हैं, ऐसा लग रहा है जैसे लड़के वाले नहीं, खुद राष्ट्रपति हमारे घर पधारने वाले हैं।"

    निशांत की आवाज़ दीवान उठाकर दूसरे तरफ़ रखती अंतरा के कानों में पड़ी तो उसने चौंकते हुए आवाज़ की दिशा में नज़रें घुमाईं। जैसे ही उसकी नज़र गेट के पास खड़ी आहाना पर पड़ी, उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए मानो कोई उसे खूब प्रताड़ित कर रहा हो और अब उसे अपना रक्षक नज़र आ गया था जो उसे इन सबसे बचा सकता था।

    अंतरा बिना एक पल गँवाए अपनी जान उस मुसीबत से छुड़ाकर आहाना के पास पहुँच गई।

    "जीजी, अच्छा हुआ आप आ गईं। देखिए मम्मी पिछले एक घंटे से मुझसे कभी दीवान हटवाती है तो कभी सोफ़ा उठवाती है। माना मैं बहुत स्ट्रांग हूँ, पर इसका मतलब ये थोड़े है कि मुझे खली समझकर वेट लिफ्टिंग करवाई जाए।"

    अंतरा ने जयंती जी की शिकायत आहाना से लगाते हुए अपनी दुख भरी दास्ताँ उसे सुनाई, इस उम्मीद से कि वो उसको और टॉर्चर होने से बचा लेगी। आहाना ने उसकी बात सुनी, इतने में जयंती जी उसके पास चली आईं।

    "अनु बेटा, अच्छा हुआ आप आ गईं। हम कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे।"

    "हम तो आ गए माँ, पर ये क्या कर रही है? अंतरा से दीवान और सोफ़ा क्यों उठवा रही है?"

    "कुछ नहीं कर रहे, बस बैठने का इंतज़ाम देख रहे हैं।"

    जयंती जी का जवाब सुनकर सबसे पहले आहाना ने उनके कंधों को थामते हुए उन्हें बिठाया।

    "सबसे पहले तो आप बैठिए।"

    "निशांत, पानी लाओ मम्मी के लिए।" निशांत उसके कहने पर तुरंत उड़ता हुआ रसोई में पहुँचा और पानी लेकर दौड़ता हुआ वापिस आया।

    "ये लीजिए, पानी पीजिए और चैन की साँस लीजिए। सब बिल्कुल ठीक है और बस लड़के वाले ही तो देखने आ रहे हैं। आप इतने रेस्टलेस क्यों हैं?"

    आहाना ने उन्हें पानी पिलाया, पर एक घूँट पानी पीकर उन्होंने ग्लास साइड में रख दिया और चिंतित स्वर में बोलीं,

    "लड़के वाले आ रहे हैं बेटा। आपके मामा ने कहा है बड़ा अच्छा रिश्ता है, अगर आपकी बात यहाँ पक्की हो जाती है तो आपका भविष्य बन जाएगा। आपके जीवन की खुशियाँ और भविष्य इस रिश्ते से जुड़ा है, इसलिए हम कहीं कोई कमी नहीं रहने देना चाहते।"

    "माँ, हमारे भविष्य में जो लिखा होगा वो होकर ही रहेगा। अगर हमारे नसीब में ये रिश्ता लिखा होगा, महादेव ने इस परिवार से हमारा सम्बन्ध जुड़ना तय किया होगा तो आपके इतनी चिंता के बगैर भी सब तय हो जाएगा...और अगर नहीं होना होगा तो आप कितना भी कुछ भी क्यों न करें पर रिश्ता नहीं होगा, इसलिए आप इतनी टेंशन मत लीजिए।

    खुद को इतना मत थकाइए, आपकी तबियत खराब हो जाएगी। सब सही है, बस अब आप महादेव पर विश्वास रखिए, जो होगा अच्छा ही होगा। आप सारी चिंता और फ़िक्र छोड़ दीजिए और कुछ देर आराम कीजिए।"

    "आराम का वक़्त नहीं है बिटिया, लड़के वाले आते ही होंगे, अभी तो बहुत काम निपटाने हैं।" जयंती जी परेशान सी फिर उठने लगीं, पर आहाना ने उन्हें वापिस बिठाते हुए कहा,

    "आप कुछ नहीं करेंगी। हमें बताइए क्या काम है?...हम कर देते हैं।"

    "आप तो जाकर हाथ-मुँह धोकर तैयार हो जाओ, थोड़ा आराम भी कर लेना, चेहरे पर कितनी थकान लग रही है आपके। यहाँ के काम हम संभाल लेंगे।"

    "हाँ अनु, तू जाकर कुछ देर आराम कर, मैं यहाँ सब काम देख लेती हूँ और तू चिंता मत कर, माँ को बिल्कुल परेशान नहीं होने दूँगी मैं।"

    पल्लवी के कहने पर आहाना न चाहते हुए भी कमरे में चली गई, पर आराम करने के बजाय परेशान सी यहाँ से वहाँ चहलकदमी करने लगी। नीचे पल्लवी ने जयंती जी को उठने नहीं दिया और अंतरा के साथ मिलकर खुद बचे काम निपटाने लगीं।

    कुछ देर बाद द्रीशांत लौटा तो पल्लवी को यहाँ देखकर पहले तो चौंक गया, फिर उसे घर के सदस्य जैसे काम संभालते और जयंती जी की परवाह करते देख मुस्कुरा दिया।

    कुछ देर में आहाना के चाचा, बड़े पापा और मामा के साथ-साथ पल्लवी के माता-पिता भी यहाँ पहुँच गए। लगभग सब तैयारियाँ हो गई थीं। अब इंतज़ार था तो बस लड़के वालों का।

    "यहाँ तो सब ठीक है पापा, पर लड़का भी साथ आ रहा है तो अनु से अकेले मिलवाना भी होगा तो उसका इंतज़ाम अनु के कमरे में करवाएँ या छत पर?"

    द्रीशांत ने पूरे हाल में नज़र घुमाते हुए जितेंद्र जी से सवाल किया, पर उनके जवाब देने से पहले ही अंतरा तपाक से बोल पड़ी,

    "कमरे में नहीं भैया, वरना मम्मी अभी मुझसे पूरा कमरा साफ़ करवाएगी। आप छत पर इंतज़ाम करवा दीजिए।"

    "छत पर बिठाना ही ठीक रहेगा। खुले वातावरण में एकांत में बात कर लेंगे।" छाया भाभी ने भी अंतरा के सुझाव पर सहमति जताई और बाकी सबके मत के बाद लड़का-लड़की को छत पर मिलवाने का फैसला किया गया।


    Coming soon  .........

  • 6. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 6

    Words: 2053

    Estimated Reading Time: 13 min

    "अनु, तुम अभी तक ऐसे ही बैठी हो?"

    पल्लवी जब नीचे से सारे काम निपटाकर कमरे में आई, तो आहाना को कुर्सी पर बैठा देखकर चौंक गई। वो अभी भी उन्हीं कपड़ों में थी।

    आहाना भी पल्लवी की आवाज़ सुनकर अचानक चौंक गई। इतने में पल्लवी के साथ-साथ छाया भी उसके पास आ गई और आहाना को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली,

    "अनु, तुमने अब तक हाथ-मुँह धोकर कपड़े नहीं बदले? ऐसे ही बैठी हो। चाची तो कह रही थीं कि तुम आराम कर रही हो, फिर तुम ऐसे यहाँ बैठकर क्या सोच रही थीं!"

    आहाना तब तक खुद को संभाल चुकी थी। उसने उठते हुए जवाब दिया, "कुछ नहीं, भाभी। बस आराम ही कर रही थी। अभी हाथ-मुँह धोकर फ्रेश हो जाती हूँ।"

    "अब सिर्फ़ फ्रेश होने से काम नहीं चलेगा, जीजी। लड़के वाले आधे घंटे में पहुँचने वाले हैं, तो अब आपको जल्दी से तैयार भी होना है। और मम्मी ने आपके लिए ये साड़ी भेजी है।"

    हाथ में एक साड़ी थामे अंतरा ने कमरे में कदम रखा। आहाना ने सिर हिलाया और बाथरूम में चली गई।

    कुछ देर बाद आहाना को साड़ी पहनाते हुए भाभी ने बात छेड़ी,

    "हमने सुना है लड़का बड़ा गंभीर है।"

    "तो हमारी अनु भी तो कितनी सीरियस है। दोनों एक-दूसरे को कंपनी देंगे।" पल्लवी ने अनु के चेहरे पर गहरी नज़र जमाते हुए बात कही। उसके चेहरे के भाव ज़रा बदले थे। इतने में अंतरा ने मुँह बनाते हुए कहा,

    "पर अगर दोनों सीरियस रहेंगे तो बातें और मस्ती कौन करेगा? कितना बोरिंग हो जाएगा! ऐसा लगेगा जैसे दो लोग बोर्ड के एग्ज़ाम देने बैठे हैं।"

    "तो तुम उनके बीच अपनी दिलचस्प बातों का तड़का लगा देना।" भाभी ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा। वही उनकी बात सुनकर अंतरा का मुँह बन गया और नाराज़गी से उसने अपने गाल फुलाते हुए शिकायती लहज़े में कहा,

    "मुझे ऐसा मौका कहाँ नसीब होने वाला है, भाभी! मम्मी ने तो मुझे सख्त हिदायत दी है कि जब तक वो लोग घर पर होंगे, मुझे भूलकर भी उनके सामने नहीं आना है।"

    "पर ऐसा क्यों?" अंतरा की बात सुनकर पल्लवी चौंक गई और हैरानी से उसे देखने लगी।

    "मम्मी कहती हैं कि हमारे घर में ऐसा ही होता है। जिस लड़की को देखने आए, उसके अलावा बाकी कुंवारी लड़कियों को सामने नहीं आने दिया जाता, इस डर से कि कहीं किसी दूसरी लड़की को ही पसंद न कर लें। बताओ भला, मेरी चाँद सी सुंदर जीजी को छोड़कर कोई मुझे पसंद कर सकता है, जो मुझ पर ये पाबंदी लगाई गई है।"

    अंतरा ने जैसे ही बात पूरी की, पल्लवी ने तुरंत ही उसे टोका,

    "क्यों नहीं कर सकता? तुम भी इतनी प्यारी हो…… पर ये बात तो गलत है।"

    "वही तो मैंने भी कहा, पर मम्मी ने मुझे डाँटकर चुप करवा दिया।" एक बार फिर अंतरा ने मुँह फुलाते हुए जयंती जी की शिकायत लगाई। भाभी ने उसके फुले गाल को छुआ और बड़े ही प्यार से बोली,

    "ओह्ह! हमारी प्यारी नंद रानी पर इतना बड़ा अत्याचार किया जा रहा है।"

    "और नहीं तो क्या, भाभी! बताइये भला, ये भी कोई बात हुई कि मेरी जीजी को देखने लड़का आ रहा है और मुझे ही उसे देखने की इज़ाजत नहीं।" अंतरा ने उदास चेहरा बनाया, जैसे ग़मों का पहाड़ टूट पड़ा था उस पर, या जाने कितना अत्याचार किया जा रहा हो उस पर।

    उसको दुखी और उदास देखकर भाभी ने रहस्यमयी अंदाज़ में मुस्कुराते हुए कहा,

    "अरे, तुम इतना उदास क्यों होती हो? हम कुछ जुगाड़ लगा ही लेंगे। तुम चिंता नहीं करो।"

    "भाभी, ये प्राइवेट हॉस्पिटल में जो डॉक्टर होते हैं, उनका तो कोई शिड्यूल नहीं होता। पैसे कम देते हैं और बदले में जान निचोड़ लेते हैं। उनके पास तो वक़्त भी नहीं होगा। अगर जीजी का रिश्ता उनसे जुड़ गया, तो वो जीजी को वक़्त कैसे देंगे?"

    अंतरा का दिमाग अलग ही दिशा में दौड़ रहा था और काफी सीरियस लग रही थी वो। अंतरा का सवाल सुनकर भाभी ने मुस्कुराकर कहा,

    "चाचा जी कह रहे थे कि उन्हें अपना खुद का क्लिनिक खोलना है, जॉब करके बस एक्सपीरियंस ले रहे हैं और क्लिनिक खोलने का प्रोसेस भी शुरू कर चुके हैं। महादेव की कृपा रही, तो एक साल के अंदर खुद का क्लिनिक खोल लेंगे।"

    "ओह्, ऐसा क्या?" अंतरा ने होंठों को गोल करते हुए सोचने के अंदाज़ में कहा। जिस पर भाभी ने सहमति ज़ाहिर कर दी।

    अंतरा को किसी का कॉल आया, तो वो तुरंत ही वहाँ से निकल गई। हल्की-फुल्की बातों के बीच आहाना को साड़ी पहनाई गई। फिर भाभी और पल्लवी मिलकर उसे तैयार करने लगे। उनके बीच बातें अब भी हो रही थीं, पर आहाना एकदम चुप थी, खामोशी से उनकी बातें सुनते हुए जाने किन्हीं ख्यालों में खोई थी।

    कुछ देर बाद आहाना ने आईने में अपने अक्स को गहरी निगाहों से देखा। श्रृंगार किया जा रहा था, वो भी किसी और के लिए। उसके रूप को निखारा जा रहा था, पर किसी और को पसंद आने के लिए।

    ये पहली बार नहीं था जब वो खुद को किसी और के लिए संवार रही थी, पर जाने क्यों, लेकिन इस बार कुछ अलग से एहसास थे, घबराहट अपनी चरम पर थी। इस बार तैयारियाँ भी पिछले दोनों बारों से अलग और खास हुई थीं, उसके साज-श्रृंगार पर भी ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस बार तो बात पक्की होकर ही रहेगी।

    खैर, होना न होना तो बाद की बात थी, पर सबकी कोशिश तो पूरी यही थी कि आने वाले परिवार से उसका रिश्ता जुड़ जाए।

    उसने भी महसूस किया था कि इस रिश्ते पर सब खासा ज़ोर दे रहे थे। बहुत सी उम्मीदें टिकी थीं इस रिश्ते पर, सबका विश्वास था कि आने वाला लड़का उसके जीवनसाथी के रूप में बेहतर चॉइस है। अब अपने-अपने तरफ़ से पूरी कोशिशों में लगे थे कि बात पक्की हो जाए, कहीं कोई कमी न छूट जाए।

    आहाना अलग ही कशमकश में उलझी थी। मन की गहराइयों में कुछ बातें बैठी थीं जो उसके डर का सबब बन रही थीं। अजीब सी घबराहट थी और दिल बेचैन था, पेट में हलचल हो रही थी, शायद ज़्यादा नर्वस थी इसलिए। उस पर पहली बार लड़के से मिलने वाली थी, शायद इसलिए घबराहट का ये आलम था कि सीने में मौजूद दिल की धड़कनें कभी एकाएक थम जातीं, तो कभी धौंकली जैसे धड़क उठतीं।

    हाल तो वहाँ का भी कुछ ऐसा ही था, पर शायद इससे थोड़ा जुदा। घबराहट और नर्वसनेस की वजह अलग थी, दिल में छुपे एहसास अलग थे, पलकों तले सजे ख्वाब जुदा थे, कुछ अलग से ज़ज़्बाते थे और मन के किसी कोने में एक डर भी बैठा था कि जैसी उसने कल्पना की है, क्या आहाना वैसी ही होगी? क्या वो उसके जीवनसाथी की एक्सपेक्टेशन पर खरा उतर सकेगा? क्या उनके दिल मिलेंगे और क्या ये रिश्ता जुड़ेगा?

    अनेकों सवाल और अनकहे अधूरे ज़ज़्बाते अपने दिल में छुपाए वो ड्राइविंग कर रहा था। बाकी सबके बीच बातें जारी थीं, पर अक्षय अपने ही ख्यालों में खोया था।

    सात साढ़े सात घंटे का सफ़र था और इतने लम्बे सफ़र में थकावट लाज़मी थी। बीच में एक-दो जगह रुके भी थे और अब बस दस-पन्द्रह मिनट का ही रास्ता बचा था। कार अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी कि अचानक ही हिचकोले खाते हुए रुक गई। अक्षय और अन्वय दोनों ने सवालिया निगाहों से एक-दूसरे को देखा।

    "कार को क्या हुआ, अक्षय? ऐसे रुक क्यों गई?" पीछे बैठी रूपाली जी ने भी कार के अचानक रुकने पर सवाल किया।

    "पता नहीं, मम्मी। देखना पड़ेगा। आप सब अंदर ही रहिए, मैं देखता हूँ क्या परेशानी है?"

    अक्षय ने शांत स्वर में जवाब दिया और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। बाहर निकलते ही उसकी नज़र सामने के टायर पर पड़ी जो पंक्चर था।

    अक्षय देख ही रहा था कि अचानक टायर पंक्चर कैसे हो गया, कि दूसरे तरफ़ से अन्वय भी निकलकर बाहर आ गया।

    "क्या हुआ, भाई?"

    "टायर पंक्चर हो गया, डिग्गी से स्टेपनी और जैक लेकर आ, टायर चेंज करना पड़ेगा।"

    "ओके, बॉस। अभी लाया।" अन्वय तुरंत ही चाबी उंगलियों के बीच घुमाते हुए पीछे चला गया। कुछ देर में अन्वय और अक्षय ने मिलकर टायर बदल दिया था।

    वहीं दुकान के पीछे दीवार की ओट में खड़ी अंतरा की पैनी निगाहें सारे वक़्त अक्षय पर ही टिकी थीं। वो अक्षय को देखते हुए मन ही मन बड़बड़ाई,

    "शांत स्वभाव है, समझदार भी है और टायर भी बदल लेता है खुद से…… गुड।"

    अंतरा की एक परीक्षा में अक्षय अनजाने तौर पर पास हो चुका था। अक्षय बाकी के टायरों को चेक करने के बाद कार में बैठने जा ही रहा था कि एक अनजानी सी मीठी सी कोमल आवाज़ उसके कानों से टकराई,

    "हाय हैंडसम!"

    अक्षय ने चौंकते हुए पीछे पलटकर देखा, तो एक लड़की उसके ठीक पीछे ही खड़ी थी। अपने इतने करीब एक अनजान लड़की को खड़ा देखकर अक्षय सकपका गया और हड़बड़ाते हुए अपने कदम पीछे की ओर घसीटे,

    "जी…… जी आप मुझसे बात कर रही हैं?"

    "तुम्हारे अलावा दूसरा कौन हैंडसम लड़का है यहाँ?" उस लड़की ने आगे आती अपनी ज़ुल्फ़ों को बड़ी ही अदा से पीछे को झटकते हुए सवाल किया। बेचारा अक्षय फटी आँखों से उसे देखने लगा। वो अभी समझ भी नहीं सका था कि क्या कहे, कि इतने में दूसरे तरफ़ से अन्वय अक्षय के पास आ गया,

    "क्यों नहीं है? बिल्कुल है, ज़रा अपनी नज़रें तो घुमाइए।"

    अन्वय को सामने देखकर लड़की सकपकाते हुए उस तरफ़ को देखने लगी जहाँ अंतरा खड़ी, अपने प्लान की प्रोग्रेस पर बारीक नज़र रखे हुए थी।

    अन्वय ने उसके चेहरे के उड़ते रंग को देखा, तो उसकी भौंह सिकुड़ गई। उसने उसकी नज़रों का पीछा किया और दीवार की ओट में छुपी अंतरा पर चली गई जो उसके लिए पूरी तरह से अनजान थी।

    अंतरा हड़बड़ी में पीछे को पलट गई, पर अन्वय उसकी एक झलक देख चुका था और कुछ-कुछ समझ भी चुका था।

    अन्वय की निगाहें गहरी हो गईं और माथे पर सिलवटें पड़ गईं। वो इतना समझ गया कि इस लड़की का कनेक्शन उस लड़की से है जो दीवार के पीछे छुपी है, शायद ये उसी के कहने पर आई है, पर क्यों?

    इस सवाल का जवाब नहीं मिला था उसे, तो उसने बात की गहराई तक जाने का फैसला किया और उस लड़की के आगे चुटकी बजाते हुए बोला,

    "कहाँ खो गईं, मैडम?"

    लड़की ने सकपकाते हुए अन्वय को देखा। इतने में अन्वय फिर बोल पड़ा,

    "हैलो मिस, मुझसे बात कीजिए। वो क्या है ना, मेरे बड़े भैया ज़रा भोले-भाले हैं, लड़कियों से दूर ही रहते हैं। आप मुझे बताइए क्या परेशानी है आपको, मैं आपकी हर प्रॉब्लम सॉल्व करने की पूरी कोशिश करूँगा।"

    अन्वय का सवाल सुनकर उस लड़की ने संभलते हुए जवाब दिया,

    "वो मेरा फोन ऑफ हो गया है, तो एक कॉल करना था।"

    "बस इतनी सी बात? लीजिए मेरा फोन।" अन्वय ने बेफ़िक्री से अपना फोन उसके तरफ़ बढ़ा दिया। लड़की ने जाने किसे कॉल करके क्या कहा, पर दो मिनट बाद ही अन्वय को फोन पकड़ाकर थैंक्यू कहते ही वहाँ से चंपत हो गई।

    अन्वय ने तिरछी नज़रों से एक बार फिर उस दिशा में देखा, तो अब वहाँ कोई भी नहीं था। अन्वय ने सर झटका, फिर अक्षय के तरफ़ पलटते हुए बोला,

    "भैया, अब मैं ड्राइविंग करता हूँ, आप बैठिए।"

    अक्षय बिना किसी बहस के पैसेंजर सीट पर बैठ गया। कार स्टार्ट करते हुए अन्वय ने एक बार फिर उस दिशा में देखा था। दिखा तो कोई नहीं, पर किसी की परछाई ज़रूर नज़र आई थी उसे और ज़हन में अनेकों सवाल लिए वो आगे बढ़ चुका था।


    दूसरे तरफ़, कार के आगे बढ़ते ही अंतरा दीवार की ओर से बाहर आ गई। अन्वय को याद करते हुए उसकी भौंहें सिकुड़ गईं और मुँह बनाते हुए वो बड़बड़ाई,

    "ये कबाब में हड्डी कहाँ से आ गया? सारा प्लान बिगाड़ दिया मेरा। पर फिर भी मुझे जो देखना था मैंने देख लिया। लड़के की नियत बुरी नहीं, कैसे घबरा गया था उसे देखकर, जैसे किसी भूत को देख लिया हो और बात करने में भी कितना कतरा रहा था। शक्ल से भी कितना शरीफ़ लग रहा था। सेंसिबल भी लग रहा था…… उन तीनों कंजरों जैसा नहीं था कि ज़रा सी बात पर आग का गोला बन जाए, खूबसूरत लड़की को देखते ही लार टपकाने लगे।"

    अंतरा ने पहले अपने शिकार बने तीनों नमूनों को याद करते हुए बुरा सा मुँह बनाते हुए उन्हें कोसा, फिर अपनी स्कूटी स्टार्ट की और फुल स्पीड में दौड़ाई ताकि उनसे पहले खुद घर पहुँच सके।


    Coming soon.......

  • 7. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 7

    Words: 2281

    Estimated Reading Time: 14 min

    अक्षय के बगल में बैठे अन्वय ने, बस के मंज़िल पर पहुँचने ही वाले समय, उसके तरफ़ झुककर फुसफुसाते हुए पूछा, "भाई, नर्वसनेस हो रही है?" अक्षय ने सवाल सुनकर सिर घुमाया और सवालिया निगाहों से अन्वय को देखा। जवाब में अन्वय ने शैतानी मुस्कान लबों पर सजाते हुए, शरारत से आँखें मटकाईं।

    "भाई, अगर आप कहें तो मैं आपको कुछ टिप्स दे सकता हूँ। आप तो पहली बार किसी लड़की को देखने जा रहे हैं, पर मुझे लड़कियों के मामले में बहुत एक्सपीरियंस है।"

    अन्वय की बात और उसके पीछे छुपी शरारत अब अक्षय को अच्छे से समझ आ गई थी, और इसके साथ ही उसके चेहरे के भाव बदल गए थे। उसने आँखें छोटी-छोटी करके अन्वय को घूरा।

    "अपना एक्सपीरियंस तू अपने पास रख। जब तेरे लिए लड़की देखने जाएँगे, तब इसका इस्तेमाल करना।"

    "मैं कोई अरेंज मैरिज नहीं करने वाला। मैं तो लव मैरिज करूँगा, ये लड़की देखने जाना और अंजान लड़की को माँ-बाप की पसंद का मान रखते हुए अपनी ज़िंदगी में शामिल करना... मेरे बस की तो बिलकुल नहीं है।" अन्वय ने बेफ़िक्री से जवाब दिया और ध्यान सामने लगा दिया। उसका जवाब सुनकर अक्षय पहले तो उसे देखता रहा, फिर अफ़सोस से सिर हिलाते हुए निगाहें बाहर की ओर घुमा लीं।


    अंतरा बाल-बाल बची थी। यहाँ वो धन्नो खड़ी करके गेट की ओर बढ़ी, वहाँ गेट के बाहर उनकी कार आकर रुकी। अंतरा सांस रोके जो वहाँ से हड़बड़ी मे भागी, ऐसा लगा जैसे कोई आँधी गुज़री हो, और सीधे अपने कमरे में पहुँचकर थमी।

    कमरे में अभी बस आहाना और पल्लवी ही थीं। भाभी नीचे जा चुकी थीं। जिस तेज़ी से अंतरा ने कमरे में घुसते हुए दरवाज़ा बंद किया था, आहाना और पल्लवी दोनों चौंककर पीछे मुड़कर देखने लगीं, जबकि अंतरा सीधे बेड के पास पहुँची। उसने जल्दी से ग्लास में पानी भरा और एक साँस में पूरा ग्लास खाली करने के बाद वहीं बैठकर गहरी-गहरी साँसें लेने लगी।

    "अंतरा, कहाँ गई थी तुम? और ऐसे हाँफते हुए कहाँ से आ रही हो?"

    आहाना का सवाल सुनकर अंतरा ने नज़रें उठाकर उसे देखा और रहस्यमयी अंदाज़ में मुस्कुराई।

    "आपके होने और ना होने वाले ससुराल वालों की खातिरदारी करने गई थी। सही-सलामत घर तक पहुँच गए हैं। होप सो की इस बार बात भी पक्की हो जाए, क्योंकि मुझे तो लड़का बड़ा पसंद आया है।"

    आहाना अपनी बहन की हरकतों और उसके शैतानी दिमाग से अच्छे से वाकिफ़ थी। अंतरा के जवाब और इस अंदाज़ ने उसके मन में शक पैदा कर दिया था। उसने सशंकित निगाहों से उसे देखा।

    "तुम्हें पसंद आया? इसका क्या मतलब? और कैसी खातिरदारी करके आई हो तुम?"

    "कुछ नहीं जीजी, आपके जानने की बात नहीं। आप बस इतना समझ लीजिये कि मैंने उन्हें अपने जीजू के टेस्ट में पास किया। पर आप ध्यान रखियेगा, जो-जो मैंने कहा था, वो सवाल ज़रूर कीजियेगा और अच्छे से सोचने-विचारने के बाद ही कोई फैसला लीजियेगा, क्योंकि अगर ये रिश्ता जुड़ता है, तो उनके साथ सारी ज़िंदगी आपको ही बितानी है।"

    "अब फैसला हमारे हाथ में नहीं। हमारे यहाँ से तो हाँ कही जा चुकी है, अब तो वो हमें देखकर ये तय करेंगे कि हमसे रिश्ता जोड़ना है या नहीं?"

    आहाना ने बिना किसी भाव के जवाब दिया। इतने में नीचे से आवाज़ें आना शुरू हो गईं। मतलब साफ़ था कि जिनके इंतज़ार में सुबह से सभी घरवाले इतनी तैयारियों में जुटे थे, उसे यूँ सजाया-संवारा गया था, वो VIP गेस्ट उनके घर के आँगन में पधार चुके थे। उनके आने के एहसास के साथ ही आहाना के दिल की धड़कनें बढ़ गईं और मन बेचैन हो उठा।


    नीचे सब लोग इकट्ठे हो चुके थे और बड़े ही गर्मजोशी से आगंतुकों का स्वागत-सत्कार किया गया था। मामा जी के ज़रिये ये रिश्ता जुड़ा था, उन्होंने ही दोनों परिवारों का परिचय करवाया था।

    अक्षय के साथ उसका परिवार यहाँ मौजूद कुछ लोगों से पहले ही मिल चुका था। जब उसे देखने ये लोग पहुँचे थे, तो कुछ नए चेहरे भी नज़र आ रहे थे। खैर, आदर सहित सबको प्रणाम किया गया, एक-दूसरे से मिलने के बाद सब अंदर आए।

    "आप सबको आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई?" बड़े पापा ने औपचारिकता निभाते हुए सवाल किया। जिस पर अभिजीत जी ने सहज मुस्कान के साथ जवाब दिया,

    "जी, कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई, आराम से पहुँच गए।"

    "दिल्ली से कानपुर का बहुत लम्बा सफ़र रहा होगा, आप सब हाथ-मुँह धो लीजिये, तो चाय-नाश्ते का इंतज़ाम करवाया जाए।"

    जितेंद्र जी के अनुरोध को उन्होंने आदर सहित स्वीकार किया। "जी जी, बिलकुल।"

    फिर उन्होंने बाकी सबको भी इशारा किया। अशोक भैया सबको ड्राइंग रूम के कोने में बने वाशरूम में ले गए। इतने लम्बे सफ़र के बाद हाथ-मुँह धोकर सब इत्मीनान से बैठ गए और घर की औरतें उनकी आव-भगत में लग गईं।

    पहले पानी, फिर कोल्ड ड्रिंक संग स्नैक्स सर्व किए गए। थोड़ा इधर-उधर की बातों के बीच अक्षय का साक्षात्कार एक बार फिर शुरू हो चुका था। जब उसे देखने आए थे, तब जो सवाल पूछे गए थे, अब उनमें कुछ नए सवाल जुड़ चुके थे।

    कुछ नर्वस भी था वो और बार-बार अपने माथे पर आते पसीने को पोंछते हुए नज़रें यूँ घुमाता, जैसे किसी खास की तलाश में वो बेचैन हो, फिर सहज मुस्कान लबों पर सजाते हुए उन सवालों के जवाब देता।


    "बातें तो बहुत हो गईं, आगे और भी होती रहेंगी, पर अगर वो काम हो जाता, जिसके लिए हम इतनी दूर आए हैं, बिटिया को देख लेते, उनसे मिल लेते, तो अच्छा रहता।" आख़िर में दादा जी को अपने लाडले पोते पर तरस आ गया था और उन्होंने लड़की को लाने की बात छेड़ दी, जिससे सबका ध्यान अब अक्षय से हटकर आहाना पर चला गया था।

    "जी ज़रूर, अभी बुलवाते हैं हम अपनी बिटिया को।" जितेंद्र जी ने उनकी इच्छा सर आँखों पर धरी और भाभी तुरंत ही सीढ़ियों की ओर बढ़ गईं।

    सबसे घिरे बैठे अक्षय की धड़कनें कुछ अलग अंदाज़ में धड़कने लगीं और दिल थामे वो उस लम्हे का इंतज़ार करने लगा, जब उसे उसका दीदार होगा, जिसकी एक झलक देखने और चंद बातें करने वो इतना लम्बा सफ़र तय करके यहाँ तक आया था।


    भाभी कमरे में पहुँची तो आहाना बेचैनी से यहाँ से वहाँ चहलकदमी कर रही थी। माथे पर बल डाले घबराई हुई सी वो कभी अपने लबों को दाँतों तले दबाती, कभी साड़ी के आँचल को उंगलियों में उलझाती, तो कभी गालों पर बिखरी लटों को उंगलियों में लपेटकर कान के पीछे खोंसती।

    पल्लवी और अंतरा बेड पर खामोश सी बैठी थीं। कभी वो बेचैनी से वहाँ चहलकदमी करती आहाना को देखतीं, तो कभी परेशान सी एक-दूसरे को देखने लगतीं।

    "अनु, बुलावा आ गया आपका, चलिए नीचे सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" भाभी ने अनु के पास आकर प्यार से उसकी ठुड्डी को थामते हुए कहा। आहाना ने उनकी बात सुनी तो घबराहट और बढ़ गई। उसने छाया भाभी के हाथ को अपनी बर्फ सी ठंडी हथेलियों के बीच थाम लिया।

    "भाभी, डर लग रहा है, हम नहीं जाएँगे नीचे।" आहाना को देखकर इस वक़्त ऐसा लग रहा था, मानो कोई छोटी बच्ची इस डर से अपनी मम्मी से स्कूल न जाने का आग्रह कर रही हो कि स्कूल में मास्टर जी छड़ी से मारेंगे।

    भाभी भी ब्याह कर आई थीं, सब समझती थीं और इस स्थिति से वो भी दो-चार हुई थीं, सो आहाना के दिल के हाल से पूरी तरह से अंजान तो नहीं थीं। उन्होंने बड़ी ही मोहब्बत से उसे समझाया।

    "ये कैसी बात कर रही है आप? और डरने वाली कौन सी बात है? हम सब रहेंगे वहाँ आपके साथ। हाँ, घबराहट हो रही होगी, पर वो तो ऐसे मौकों पर हर लड़की को होती है। हमें भी हुई थी, जब आपके भैया हमें देखने आए थे। आप संभालिये खुद को, बस उनके सामने जाकर उनके चंद सवालों के जवाब ही तो देने हैं।"

    "भाभी, हाथ-पैर फूल रहे हैं हमारे। सबको इस रिश्ते से इतनी उम्मीद है। अगर हमसे कुछ गड़बड़ हो गई, तो सबकी इतनी मेहनत बर्बाद हो जाएगी, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा।"

    वाकई घबराहट उस पर इस कदर हावी थी कि उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ने लगे थे और चेहरा भय से पीला पड़ गया था। उसकी बात सुनकर भाभी ने प्यार से उसके गाल को सहलाते हुए आगे कहा,

    "ननद रानी, जोड़ियाँ तो ऊपर से बनकर आती हैं, यहाँ आकर तो बस किसी न किसी माध्यम से उनका मिलन होता है। अगर आपका जोड़ इनसे होगा, तो सौ अड़चनों के बाद भी रिश्ता जुड़कर रहेगा, और अगर आपके नसीब में कोई और होगा, जो इससे भी बेहतर होगा, तो किसी न किसी सूरत से महादेव उन्हें आप तक और आपको उन तक पहुँचाने का कोई न कोई माध्यम ढूँढ ही लेंगे। इसलिए आप चिंता छोड़िये।

    आप तो कितनी समझदार हैं, चाचा जी का गुरूर हैं, चलिए उनकी इच्छा का मान रखते हुए हिम्मत करके हमारे साथ चलिए। हम सब होंगे आपके साथ, इसलिए ज़रा भी नहीं घबराना। बस खुद पर संयम रखकर धैर्य के साथ उनके सवालों के जवाब देने हैं।"

    आहाना जाना तो नहीं चाहती थी, पर न जाने का कोई विकल्प ही नहीं था उसके पास, सो अपनी पल-पल बढ़ती घबराहट को संयमित करते हुए भाभी और पल्लवी संग उस ओर कदम बढ़ा दिए, जहाँ जाने के ख़्याल से ही उसका दिल घबराने लगा था।


    "लीजिये, आ गई हमारी बिटिया।" जयंती जी ने बड़ी ही प्रसन्नता से कहा और सीढ़ियों से उतरती आहाना के पास चली आईं। उनकी बात से बाकी सबके साथ अक्षय, जो जाने कब से उसके इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठा था, उसके दीदार को व्याकुल था, उसका ध्यान भी उस ओर गया।

    दूध सी गोरे बदन पर हल्के गुलाबी रंग की ज़ॉर्ज़ेट की साड़ी बड़े ही सलीके से लिपटी थी, जिस पर गहरे गुलाबी रंग के हल्के-हल्के से बड़े-बड़े फूल प्रिंटेड थे।

    बालों को आगे से स्टाइल करके पीछे से खुला छोड़ा हुआ था। कमर तक लहराते हुए सुनहरे बाल हवा में बलखा रहे थे और उनकी कुछ लटें आहाना के चाँद से चेहरे की शोभा बढ़ाती नज़र आ रही थीं। माथे पर दोनों तनी भौंहों के बीच हल्के गुलाबी रंग की छोटी सी बिंदी सजी थी। कानों में मैचिंग झुमके, आँखें गहरे काजल से सनी थीं और उन पर हया से झुकी पलकों का पहरा था।

    उसकी घनी, लरज़ती पलकें और हल्के गुलाबी रंग में रंगे सिकुड़े लब उसकी घबराहट की कहानी बयाँ कर रहे थे। चेहरे पर हल्का मेकअप था, गले में महादेव का गोल्ड का लॉकेट, बाएँ हाथ की कलाई पर घड़ी सजी थी, तो दाएँ हाथ की कलाई चंद चूड़ियों से भरी थी। पैरों में पतली सी पायल उलझी थी, जिसकी छम-छम की मद्धम आवाज़ वहाँ गूंज रही थी।

    प्यारी लग रही थी वो, उस पर शर्म से झुकी लरज़ती पलकें कयामत ढा रही थीं। बाकी सब जहाँ सामने से आती आहाना को ऊपर से नीचे तक स्कैन कर रहे थे, वहीं अक्षय की निगाहें आज फिर उन घने बादलों से झुकी पलकों पर ठहरी थीं।

    "अन्वय यार, ये तो हकीकत में तस्वीर से भी ज़्यादा खूबसूरत है, और चेहरे से ही कितनी इनोसेंट लग रही है।"

    फलक ने आहाना को एकटक देखते हुए अचरज से अन्वय के कान में फुसफुसाया, जिस पर उसने तुरंत ही सहमति जताई।

    "हाँ दी, लग तो बड़ी ही प्यारी रही है। अगर इनकी शादी भैया से हो जाए और ये हमारी भाभी बनकर हमारे घर आ जाए, तो मज़ा ही आ जाए।"

    अन्वय भी आहाना से काफी इम्प्रेस लग रहा था।

    "पर इतनी भोली-भाली लड़की हमारी सख्त और तल्ख़ मिजाज मम्मी को संभाल पाएगी?" फलक ने अपनी चिंता ज़ाहिर की और तिरछी नज़रों से रूपाली जी को देखा, जो चेहरे पर गंभीर भाव लिए चील सी तेज़ नज़रों से आहाना को देख रही थीं।

    फलक का सवाल सुनकर अन्वय ने पहले तो चौंकते हुए सिर घुमाकर उसे देखा, फिर नासमझी में कंधे उचकाते हुए धीमे पर गंभीर स्वर में बोला,

    "वो तो पता नहीं, पर अगर ये हमारे घर आई, तो इतना तो तय है कि मम्मी के तानाशाही साम्राज्य को इनसे कोई खतरा नहीं होगा और उनकी राजगद्दी सुरक्षित रहेगी।"

    उसकी बात पर फलक ने भी सिर हिलाया। यहाँ दोनों भाई-बहन एक-दूसरे के साथ लगे हुए थे, जबकि अक्षय सबसे नज़रें बचाते हुए खामोशी से आहाना को तक रहा था, जो सिर हल्का सा झुकाए, आँखों पर पलकों का पहरा लगाए, अपनी साड़ी के आँचल को कसके दोनों हाथों से थामे, धीमे कदमों से उन सबकी ओर बढ़ रही थी।


    छाया और पल्लवी आहाना को सबके पास लेकर आईं। आहाना ने थूक निगलते हुए अपने सूखते गले को तर किया और हौले से अपनी आँखों पर लगे पलकों के झालर को उठाया। हल्के गुलाबी रंग में रंगी उन बड़ी-बड़ी काजल से सनी कजरारी आँखों पर अक्षय की निगाहें ठहर गईं, जो उसके मन के हाल को बयाँ कर रही थीं।

    अगले ही पल उसने पलकें झुकाते हुए हाथ जोड़कर सबको प्रणाम किया। जिस पर उसे कई आशीर्वाद मिले, साथ ही उसे बैठने को भी कहा गया। वर पक्ष से आए लोग धीरे-धीरे उससे सवाल करने लगे- उसकी पढ़ाई-लिखाई को लेकर, परिवार को लेकर, जिसका जवाब आहाना अपनी घबराहट को खुद में दबाए हुए दे रही थी।

    "आहाना, तो आप टीचर हैं?" ये सवाल तब से चुप बैठी रूपाली जी ने किया था। जिस पर आहाना ने सिर हिलाते हुए धीमे मधुर स्वर में जवाब दिया,

    "जी।"

    "शादी के बाद का क्या सोचा है आपने?"

    "जी..." आहाना की असमंजस भरी निगाहें उनकी ओर उठ गईं और वो कंफ्यूज़ सी उनके सवाल का मतलब समझने की कोशिश करने लगी। इतने में उसे उलझन में फंसे देखकर रूपाली जी ने अपने सवाल को थोड़ा साफ़ शब्दों में दोहराया,

    "हमारा मतलब है कि शादी से पहले और बाद की परिस्थितियों में बहुत अंतर होता है। अभी आप अपने मायके में हैं तो बाहर जाकर काम करती हैं, शादी के बाद जब ससुराल जाएँगी, तब भी अपनी नौकरी जारी रखेंगी या छोड़ने का मन बनाया हुआ है?"


    Coming soon.......

    क्या जवाब देगी आहाना उनके इस सवाल का?

  • 8. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 8

    Words: 2276

    Estimated Reading Time: 14 min

    "हमारा मतलब है कि शादी से पहले और बाद की परिस्थितियों में बहुत अंतर होता है। अभी आप अपने मायके में हैं तो बाहर जाकर काम करती हैं, शादी के बाद जब ससुराल जाएँगी तब भी अपनी नौकरी जारी रखेंगी या छोड़ने का मन बनाया हुआ है?"

    उनका सवाल सुनकर आहाना की परेशान निगाहें जयंती जी की ओर घूम गईं। उन्होंने अपनी पलकों को झपकाते हुए उसे शांति से जवाब देने को कहा।

    आहाना ने नज़रें वापस रूपाली जी की तरफ घुमाईं और साड़ी के पल्लू को मुट्ठियों में भींचे संजीदगी से जवाब दिया।

    "हमारे मम्मी-पापा ने हमें इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए, और हमें हमारे पैरों पर खड़ा करने के लिए, आत्मनिर्भर बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया है। उन्होंने हमें हर फैसला अपनी मर्ज़ी से लेने की पूरी आज़ादी दी है, पर हमने अपने जीवन का कोई भी फैसला उनसे पूछे बगैर नहीं लिया।

    हमारी माँ हमें हमेशा कहती है कि परिवार और उसकी खुशहाली सबसे अहम है और उस परिवार को सँजोकर रखने के लिए अक्सर उस घर की औरतों को बलिदान देना होता है; कभी अपने सपनों का, कभी अपनी इच्छाओं का, कभी अपने करियर का तो कभी अपनी ख्वाहिशों का।

    उन्होंने भी दिए हैं और उनके उन्हीं बलिदानों के कारण आज हमारे परिवार में ये खुशहाली है। उन्होंने हमें बड़ों की इच्छा का मान रखना सिखाया है, दूसरों की खुशियों में अपनी खुशियाँ तलाशना सिखाया है।

    हम ये तो नहीं कहेंगे कि शादी के बाद अपनी नौकरी छोड़कर घर बैठने का ख्याल हमारे मन में हमेशा से था, क्योंकि ये सच नहीं, पर अगर ज़रूरत पड़ी तो अपने परिवार के लिए हम अपनी नौकरी छोड़ने से भी नहीं कतराएँगी। हमारे लिए हमारी नौकरी से कहीं गुना ज़्यादा अहमियत उस परिवार और उन रिश्तों की होगी जो शादी के बाद हमसे जुड़ेंगे।"

    अपनी सूझ-बूझ के अनुसार आहाना ने उस सवाल का जवाब दिया, जिसे सुनकर कईयों के चेहरे पर इत्मिनान और सुकून के भाव उभरे तो कई लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।

    खुद आहाना ने जवाब तो दे दिया, पर मन ही मन बुरी तरह उलझ गई। इतने में उसका जवाब सुनकर अभिजीत जी ने सहज मुस्कान के साथ कहना शुरू किया।

    "नौकरी छोड़ने की कोई आवश्यकता ही नहीं। वो हमारा ज़माना हुआ करता था जब औरतों की सीमा घर की चारदीवारी तक सीमित हुआ करती थी और उनकी एकमात्र ज़िम्मेदारी घर-परिवार को संभालना होता था।

    अब तो दुनिया बदल रही है। औरतें घर के साथ-साथ बाहर भी संभालती हैं, परिवार का ख्याल भी रखती हैं और अपने सपनों को भी पूरा करती हैं। हमारी बेटी खुद शादी के बाद काम भी करती है और अपनी गृहस्थी भी संभालती है। हमें आपके काम करने से कोई एतराज नहीं।"

    उनका जवाब सुनकर आहाना के साथ, जितेंद्र जी, द्रीशांत, पल्लवी के साथ उसके तरफ़ से आए कईयों के चेहरे पर राहत के भाव उभरे। इतने में रूपाली जी के तल्ख अल्फ़ाज़ वहाँ गूँज उठे।

    "हमारी बेटी को हमने घर और बाहर दोनों ज़िम्मेदारियों को साथ निभाने के काबिल बनाया है, पर सब ऐसा नहीं कर पातीं। हम भी नहीं कहेंगे कि शादी के बाद नौकरी करने की बिल्कुल ही मनाही है, पर शादी के बाद अपनी गृहस्थी संभालना औरत की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर नौकरी के कारण घर की ज़िम्मेदारियों को निभाने में कोताही बरती जाएगी तो नौकरी छोड़कर घर संभालने पर ही हम बल देंगे।"

    "हम आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैं। हमारी आहाना बहुत समझदार और गुणी है, हमारी तबीयत तो ठीक नहीं रहती, यहाँ भी नौकरी के साथ-साथ घर की ज़िम्मेदारी वही संभालती है। आपको शिकायत का मौका नहीं देंगी।"

    जयंती जी ने आहाना की बड़ाई करते हुए उनकी बात का जवाब दिया। फिर कुछ पल ठहरने के बाद बोलीं,

    "हमने तो अपने सब बच्चों को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बनाने पर ज़ोर दिया है ताकि आगे चलकर वे अपने परिवार का सहारा बनें। अगर आप नहीं चाहेंगी तो आहाना बाहर काम नहीं करेंगी, पर कभी ज़रूरत पड़ी तो अपनी काबिलियत से अपने परिवार को संभालने में योगदान देने से भी पीछे नहीं रहेंगी।"

    उनकी बात सुनकर आहाना ने पहले कातर नज़रों से उन्हें देखा, फिर पलकें झुका लीं। रूपाली जी ने उस पर अगला सवाल दागा।

    "घर के काम और खाना बनाना तो आता ही होगा आपको।"

    "जी जी, घर के सब काम जानती है। खाना भी बहुत लज़ीज़ बनाती है। हमने बताया ना, यही संभालती है इस घर को।" आहाना के बजाय जयंती जी ने जवाब दिया, जिस पर रूपाली जी ने एक उड़ती नज़र उन पर डाली, फिर निगाहें आहाना पर टिका दीं।

    "आपने हमारे सवाल का जवाब नहीं दिया।"

    "जी, आता है। खाना बनाना भी और घर के बाकी काम भी।"

    आहाना ने सर झुकाए हुए ही जवाब दिया। वो जैसे ही चुप हुई, अब तक चुप बैठा अन्वय तपाक से बोल पड़ा।

    "वैसे क्या-क्या बनाना आता है आपको? आई मीन, बस इंडियन या चाइनीज़ और इटैलियन भी आता है?"

    सवाल सुनकर आहाना ने चौंकते हुए नज़रें उठाईं।

    "वो क्या है ना, हमारे भैया इंडियन से ज़्यादा चाइनीज़ और इटैलियन खाना पसंद करते हैं, बस इसलिए पूछ लिया।"

    अन्वय ने अपनी बात साफ़ की और आहाना ने एक बार फिर नज़रें झुका लीं।

    "होमसाइंस में कुछ चीज़ें सीखी थीं, खाली वक़्त में घर पर कुछ डिशेज ट्राई करते हैं। बाकी सीख लेंगे।"

    "खाना बनाने का बहुत शौक है हमारी आहाना को। जब वक़्त मिलता है, कुछ न कुछ नया ट्राई करती ही रहती है।"

    पल्लवी ने मुस्कुराते हुए उसकी तारीफ़ की, जिससे सबका ध्यान उसकी ओर चला गया।

    "ये आपकी छोटी बेटी है?" रूपाली जी के सवाल पर जयंती जी ने तुरंत ही इंकार में सर हिलाया और पल्लवी के सर पर हाथ रखते हुए मुस्कुराकर बोलीं,

    "वैसे तो हमारी होने वाली बहू है, पर आप बेटी ही समझिए।"

    'बहू' शब्द सुनकर रूपाली जी की भौंह सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं।

    "बुरा मत मानिएगा बहन जी, पर हमारे परिवार में शादी से पहले बहुओं के ससुराल आने का चलन नहीं है। मान-मर्यादा और संस्कार भी कुछ होते हैं, ऐसे बिना शादी के लड़की का ससुराल आना और अपने सास-ससुर के सामने ऐसे घूमना हमें तो ज़रा भी पसंद नहीं।"

    रूपाली जी ने तल्ख लहज़े में उन पर तंज कसा था और सब माथे पर बल डाले परेशान से एक-दूसरे को देखने लगे थे।

    द्रीशांत और पल्लवी की नज़रें एक-दूसरे की ओर उठीं। द्रीशांत उसके सम्मान में कुछ कहता, उससे पहले ही जितेंद्र जी ने स्थिति संभालते हुए मुस्कुराकर कहा,

    "असल में इस घर की बहू बनने से पहले वो इस घर की बेटी है। हमारी आहाना की बचपन की दोस्त है, बचपन से यहाँ आना-जाना लगा ही रहता है। आज भी यहाँ उनकी दोस्त का फ़र्ज़ निभाने आई है।"

    जितेंद्र जी की बात सुनकर रूपाली जी ने अजीब नज़रों से पल्लवी को देखा और रूखे लहज़े में बोलीं,

    "हमें नहीं मालूम था आपके यहाँ प्रेम-विवाह का चलन है। हमारे परिवार में तो आज भी बच्चों के लिए काबिल जीवनसाथी चुनने का दायित्व माता-पिता ही निभाते हैं।"

    जिस तरह से उन्होंने ये बात कही, पल्लवी और द्रीशांत दोनों के चेहरों पर एक साया सा आकर गुज़र गया। ढके-छुपे शब्दों में उन पर ही ये तंज कसा गया था और जिस लहज़े में रूपाली जी ने ये बात कही, सबकी नज़रें उन पर ठहर गई थीं।

    जहाँ फलक और अन्वय परेशान निगाहों से एक-दूसरे को देखने लगे थे, वहीं अक्षय की नज़रें अब भी आहाना पर ठहरी थीं, जिसने पल्लवी की हथेली को कसके थामा हुआ था।

    रूपाली जी के इस तरह से व्यवहार से सब ये बात समझ गए थे कि उन्हें प्रेम-विवाह से परेशानी है। पल्लवी के माता-पिता, जितेंद्र जी और जयंती जी को परेशान निगाहों से देखने लगे थे, जबकि जयंती जी ने रूपाली जी की बात पर सहजता से जवाब दिया था।

    "प्रेम-विवाह में अगर बड़ों की स्वीकृति शामिल हो तो हमारे परिवार में किसी को उससे कोई एतराज नहीं, बस जिसे हमारे बच्चे चुनें, वो इस परिवार और हमारे बच्चे के काबिल होना चाहिए।

    पर द्रीशांत और पल्लवी का प्रेम-विवाह नहीं। हमने जब अपने बेटे के लिए रिश्ता देखना शुरू किया तो हमारी तलाश पल्लवी पर आकर खत्म हुई। बचपन से यहाँ आना-जाना था, हमारे घर के रीति-रिवाज़ों, तौर-तरीकों से बेहतर तरीके से वाकिफ़ थीं। इस परिवार को अपना परिवार मानती थी और हमारी बेटियों से उनका बहुत गहरा रिश्ता था।

    हमें ऐसी ही बहू की तलाश थी जो कल को हमारे जाने के बाद हमारी बेटियों को वही प्यार और सम्मान दे जो इस घर की बेटी होने के नाते उन्हें मिलना चाहिए। हमारे जाने के बाद हमारी बेटियों से उनका मायका न छिन जाए, बस यही सब देखते हुए हमने दोनों बच्चों की रज़ामंदी से उनका रिश्ता जोड़ दिया।"

    जयंती जी ने बड़ी ही आसानी से अपनी चतुराई से बिगड़ती बात को संभाल लिया। बाकी सब तो उनका जवाब सुनकर मुस्कुरा दिए, पर रूपाली जी के चेहरे के भाव बिगड़े रहे। अभिजीत जी ने उन्हें देखा, फिर माहौल की गंभीरता देखते हुए उन्होंने बात का रुख मोड़ने की कोशिश करते हुए मुस्कुराकर सवाल किया।

    "भाई साहब, आपकी छोटी बेटी कहाँ है, कहीं नज़र नहीं आ रही।"

    उनका सवाल सुनकर जितेंद्र जी नज़रें जयंती जी की तरफ़ घूम गईं। जैसे आँखों ही आँखों में कुछ नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हों, फिर उन्होंने अभिजीत जी को देखा और सहजता से जवाब दिया।

    "कमरे में है, पढ़ाई कर रही है। अभी बुला देते हैं।"

    "पल्लवी, जाओ बेटा, अंतरा को बुला लाओ।"

    जितेंद्र जी ने पल्लवी को जाने को कहा तो उसने तुरंत मुस्कुराकर "जी पापा" कहा और पलटकर सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। कमरे में पहुँची तो अंतरा पलंग पर पेट के बल पड़ी थी। सीने के नीचे तकिया लगाए वो अपने हाथ में फ़ोन घुमाते हुए गहरी सोच में गुम थी।

    "अंतरा, जल्दी से तैयार हो जाओ, तुम्हें नीचे बुला रहे हैं।"

    "मुझे? पर क्यों?" अंतरा उसकी बात सुनकर चौंकते हुए उठकर बैठ गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरानी से उसे देखने लगी।

    "वो तो मुझे नहीं पता, पर तुम्हारा ज़िक्र हुआ और अक्षय जी के पिता ने तुम्हारे बारे में पूछा तो पापा ने तुम्हें बुलाने को मुझे भेज दिया। जल्दी से तैयार होकर नीचे चलो।"

    "मुझे क्यों तैयार होना है? कौन सा वो लोग मुझे देखने आए हैं, मिलना ही चाहते हैं तो ऐसे ही मिल लें। मैं किसी के लिए अब तैयार नहीं होने वाली।"

    अंतरा ने बेफ़िक्री से जवाब दिया और अपनी धुन में मगन बेड से उतरकर कमरे से बाहर निकल गई। पल्लवी ने बेबसी से अपना सर हिलाया और उसके पीछे-पीछे चल पड़ी।

    अंतरा का अपना ही स्वैग था, उसका अंदाज़ ही कुछ अलग और निराला था। एकदम बेफ़िक्र रहती थी और हमेशा वही करती जो उसका दिल करता, पर आज अपने अंदाज़ से अलग वो एक संस्कारी लड़की का रोल निभाने वाली थी, जिसके लिए उसने खुद को तैयार किया था।

    सबके बीच पहुँचकर उसने बड़े ही आदर के साथ दोनों हाथ जोड़कर सबको नमस्ते कहा, फिर मुस्कुराकर अपने पापा के पास चली आई।

    "पापा, आपने बुलाया।"

    "जी बेटा जी। आपको सबसे मिलवाना था।" जितेंद्र जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ रखा, फिर सामने बैठे अभिजीत जी और बाकी सबसे अंतरा का परिचय करवाया।

    "ये है हमारी छोटी बेटी अंतरा। कॉलेज फाइनल ईयर में है अभी।"

    अंतरा ने अबकी बार ध्यान से सामने बैठे लोगों को देखा। सबको देखते हुए उसकी नज़रें जैसे ही वहाँ बैठे अन्वय पर पड़ीं, जो जाने कब से बड़ी ही गहरी नज़रों से उसे घूर रहा था। एक पल को अंतरा हड़बड़ा गई, फिर उसने फट से उस पर नज़रें फेर लीं।

    "आपकी दोनों बेटियाँ बड़ी प्यारी हैं।"

    "जी, बस महादेव की कृपा है।" जितेंद्र जी के चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान थी और हो भी क्यों न? उनकी बेटियाँ उनका गौरव थीं। अन्वय ने अंतरा को ऊपर से नीचे तक स्कैन किया था: मल्टीकलर शॉर्ट कुर्ता, नीचे से ब्लू जीन्स, गले में घुमाकर डाला स्कार्फ़ और हाई पोनी में बंधे बाल; बड़ी-बड़ी काजल से सनी आँखें जो कभी अपनी बहन को देखतीं तो कभी पापा को देखकर मुस्कुरातीं; साँवली रंगत के साथ कमाल के फेशियल फ़ीचर्स और तीखे नयन-नक्षों के साथ वो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने का हुनर रखती थी।

    जहाँ अन्वय ने बड़े ही ध्यान से उसे देखा था, वहीं अंतरा ने दोबारा गलती से भी उसकी ओर नज़रें न उठाईं। रुकने का मन तो नहीं था, पर मन मानकर वहाँ रुकी रही।

    चंद सवाल और पूछे गए, कुछ बातें हुईं, साथ ही थोड़ा बहुत खाना-पीना भी हुआ, फिर रूपाली जी और अभिजीत जी ने एक-दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में कुछ बात की।

    "हमें तो जो जानना था, पूछना था, पूछ लिया। अब अगर आपकी इज़ाज़त हो तो बच्चे भी एक-दूसरे से बात कर लेते। यहाँ तो सबके बीच सहज नहीं होंगे। तो अगर अकेले में मुलाक़ात हो जाती तो बेझिझक एक-दूसरे से बात कर लेते, अपने मन के सवालों को पूछ लेते। आखिर आगे चलकर रिश्ता तो उन्हें ही निभाना है। एक-दूसरे को जान लेते तो फैसला लेने में आसानी होती।"

    "जी जी, बिल्कुल, हम भी आपकी बात से सहमत हैं कि जिनके रिश्ते की बात चल रही है, उन्हें एक-दूसरे से बात करने, जानने और समझने का मौक़ा मिलना चाहिए। आखिर ज़िंदगी उन्हें ही साथ बितानी है, एक-दूसरे से बात करेंगे तभी फैसला ले सकेंगे।"

    जितेंद्र जी ने भी उनकी बात का समर्थन किया, फिर आहाना और पल्लवी को देखकर बोले,

    "बहू आहाना और अक्षय जी को छत पर ले जाइए। अकेले में कुछ बातें कर लेंगे।"

    दोनों ने सर हिलाया। जहाँ पल्लवी ने आहाना को उठाया, वहीं भाभी ने अक्षय को साथ चलने को कहा। अक्षय थोड़ा झिझका, फिर अभिजीत जी के कहने पर उठ खड़ा हुआ।

    यहाँ भी अन्वय आँखों-आँखों में उसे छेड़ने से बाज़ न आया, जबकि अक्षय ने उसे आँखें दिखाते हुए शांत करवाया। अंतरा की चील सी तेज़ नज़रों से कुछ छुप न सका। उसने तीखी नज़रों से अन्वय को घूरा, फिर जयंती जी के कहने पर रसोई में चली गई।

  • 9. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 9

    Words: 2327

    Estimated Reading Time: 14 min

    मौसम ने अचानक करवट ली थी। सूरज बादलों की ओट में जा छिपा था और आकाश में रंग-बिरंगे बादल घिर आए थे। आसमानी रंग में केसरिया, पीला, सुर्ख रंग घुलने लगा था। हवाओं ने अपना रुख बदला था। कुछ वक्त पहले तक जहाँ शिद्दत से गर्मी का एहसास हो रहा था, वहीं अब मौसम में ठंडक घुलने लगी थी।

    पल्लवी और आहाना की भाभी ने अक्षय और आहाना को छत पर लाकर बैठाया। वहाँ पहले से ही उनके बात करने का इंतज़ाम किया हुआ था। एक गोल मेज़ लगी थी, जिस पर टेबल क्लॉथ बिछा था और आमने-सामने दो कुर्सियाँ लगी हुई थीं। उसके पीछे कतारों में फूलों के गमले लगे थे, जिनसे छत की पूरी बाउंड्री बन गई थी। खुशनुमा मौसम और ये सजावट ऐसा लग रहा था जैसे पूरी कायनात आज उनके इस खास लम्हे को यादगार बनाना चाहती है।

    "अब हम लोग जाते हैं। आप दोनों बिना किसी झिझक और संकोच के आराम से एक-दूसरे से बात कीजिए।"

    पल्लवी ने बारी-बारी दोनों को देखते हुए कहा। जैसे ही वो आहाना का हाथ छोड़ने लगी, आहाना ने पलटकर उसके हाथ को कसके थाम लिया और घबराई निगाहों से उसे देखते हुए हौले से सिर हिलाया, जैसे उसे जाने से रोकने की कोशिश कर रही हो।

    पल्लवी और भाभी दोनों ही आहाना के दिल के हाल से बखूबी वाकिफ थीं। नीचे सबकी मौजूदगी में वो इतनी नर्वस थी, तो यहाँ अक्षय के साथ अकेली रुकना उसके लिए और भी मुश्किल था।

    पल्लवी ने परेशान निगाहों से भाभी को देखा तो उन्होंने आँखों से उसे कुछ इशारा किया। पल्लवी ने आहाना से अपनी हथेली छुड़ाई और मुस्कुराते हुए अपनी पलकें झपकाईं, मानो उसे शांत रहने को कह रही हो।

    आहाना ने कातर नज़रों से दोनों को देखा, पर चाहकर भी उन्हें रुकने को न कह सकी। वे दोनों जाने को मुड़े ही थे कि अंतरा हाथ में ट्रे लिए वहाँ पहुँच गई। आहाना को उम्मीद की एक किरण नज़र आई। पर अगले ही पल वो उम्मीद भी टूटकर बिखर गई क्योंकि अंतरा ट्रे का सामान टेबल पर सजाकर जाने को पलट गई थी और जाते-जाते आहाना को कुछ इशारा भी कर गई थी।

    बेचारी आहाना की जान हलक में अटक गई थी। अक्षय के साथ यहाँ अकेली थी और घबराहट इतनी हो रही थी कि सीने में मौजूद दिल जोरों से धड़कने लगा था, जबकि दिमाग ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था।

    इतनी देर से खामोश खड़ा अक्षय, आहाना के हर मूवमेंट और उसके चेहरे के भावों को गहराई से देख रहा था और उसकी स्थिति भी समझ रहा था क्योंकि कुछ ऐसा ही हाल तो उसके दिल का भी था। पर दोनों के घबराने और खामोश रहने से तो बात नहीं बननी थी। किसी को तो पहल करते हुए बात की शुरुआत करनी थी, सो अक्षय ने ही पहल करने का फैसला लिया।

    पहले तो उसने सीढ़ियों की ओर देखा कि कहीं वहाँ कोई है तो नहीं। जब ये सुनिश्चित हो गया कि वाकई वहाँ उनके अलावा कोई नहीं, तो उसने बात की शुरुआत की।

    "आहाना।"

    आहाना जो उससे मुँह फेरे खड़ी थी, बेचैनी से अपनी निगाहें इधर-उधर घुमा रही थी। अक्षय के पुकारने पर वो हड़बड़ा गई।

    "ज......जी..."

    "सारे वक्त खड़े रहने का इरादा है आपका?" अक्षय ने सहज भाव से सवाल किया। पर उसका सवाल सुनकर आहाना अपनी भूल का एहसास होने पर कुछ शर्मिंदा सी हो गई। उसने सकपकाते हुए सिर हिला दिया।

    "न...नहीं तो...माफ़ी चाहेंगे, हमारा ध्यान नहीं गया...आप...आप बैठिए।"

    अब भी आहाना की निगाहें झुकी हुई थीं और चेहरे के भाव उसके दिल के हाल को चीख-चीख कर बयाँ कर रहे थे। उसको शर्मिंदा होते और माफ़ी माँगते देखकर अक्षय को अपनी गलती का एहसास हो गया, जिसे उसने तुरंत ही सुधारा।

    "मैं आपको शर्मिंदा करने के लिए तंज नहीं कस रहा था। आपको माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है।"

    आहाना ने बस सिर हिला दिया और चेयर की ओर इशारा करते हुए बोली,

    "बैठिए आप।"

    "आप भी बैठिए।"

    अब अक्षय और आहाना एक-दूसरे के आमने-सामने बैठे थे। आहाना पलकें झुकाए खुद में सिमटी हुई सी बैठी थी, बेचैनी और घबराहट में अपनी उंगलियों को आपस में जकड़े हुए थी।

    वहीं अक्षय बड़ी ही बारीकी से अपने सामने बैठी इस नाज़ुक सी लड़की को देख रहा था, जो उसे फूलों की गुड़िया जैसी नाज़ुक और कोमल लग रही थी, जो बस उसके छूने भर से टूटकर बिखर जाती। जो उससे नज़रें मिलाने तक से बचती नज़र आ रही थी।

    उनके दरमियान कुछ लम्हे खामोशी से सरके, फिर आहाना ने अपनी घबराहट पर काबू पाने की नाकाम सी कोशिश करते हुए, उससे पलकें झुकाए हुए ही सवाल किया,

    "च...चाय लेंगे आप?" जिस अंदाज़ में आहाना ने सवाल किया और उसकी लरजती पलकें उठते-उठते ठहरीं, न चाहते हुए भी अक्षय के लब हल्के से खिंच गए।

    "मैं चाय नहीं पीता। वैसे यहाँ चाय है भी नहीं, शायद आपने नज़रें उठाकर देखा नहीं।"

    उसकी आखिरी बात सुनकर आहाना ने चौंकते हुए नज़रें टेबल की ओर उठाईं। वहाँ कोल्ड ड्रिंक के साथ स्नैक्स रखे थे।

    आहाना का मन तो किया कि अपनी इस बेवकूफी पर यही ज़मीन खोदकर खुद को उसमें गाड़ ले, या अक्षय की नज़रों से दूर कहीं जाकर अपना चेहरा छुपा ले, पर दोनों ही इरादे पूरे न कर सकी। उसके चेहरे के बनते-बिगड़ते भाव देखकर अक्षय ने ही आगे कहा,

    "आहाना, रिलैक्स हो जाइए, इस तन्हाई का फ़ायदा उठाकर मैं कुछ नहीं करूँगा आपके साथ, आपको मुझसे इतना घबराने की ज़रूरत नहीं है।"

    अक्षय ने उसे शांत करने की छोटी सी कोशिश की थी। आहाना ने अपने निचले लब को दाँतों तले दबाते हुए अपनी आँखों को कसके भींच लिया और बेबसी से सिर झुकाते हुए बोली,

    "सॉरी, हमने ध्यान नहीं दिया था।"

    "इट्स ओके, मैं समझता हूँ अभी आपको कैसा लग रहा होगा और आपसे बस इतना ही कह सकता हूँ कि कोशिश कीजिए खुद को नॉर्मल रखने की, क्योंकि ऐसे तो हम कोई बात नहीं कर सकेंगे।" अक्षय अपने नेचर के अनुसार अब संजीदा नज़र आ रहा था।

    आहाना ने सहमति में सिर हिलाया, फिर टेबल पर रखे कोल्ड ड्रिंक के ग्लास को देखते हुए हिचकिचाते हुए बोली,

    "कोल्ड ड्रिंक या कुछ और लेंगे?"

    "नहीं। वैसे मुझे लगता है कि मुझसे ज़्यादा ज़रूरत इस वक्त आपको है इसकी।" अक्षय हौले से मुस्कुराया और कोल्ड ड्रिंक का ग्लास उसकी ओर बढ़ा दिया।

    संकोचवश आहाना ने इंकार करना चाहा, पर सच था, गला बुरी तरह सूख रहा था उसका। उसने हिचकिचाते हुए बड़े ही एहतियात से ग्लास थामा और उसे "थैंक्यू" कहते हुए एक घूँट कोल्ड ड्रिंक अपने हलक से नीचे उतारने के बाद ग्लास वापिस टेबल पर रख दिया।

    "आहाना, क्या मैं इतना बुरा दिखता हूँ कि आप मुझे देखने से इतना कतरा रही है?"

    अक्षय का सवाल सुनकर आहाना ने चौंकते हुए निगाहें उसकी ओर उठाईं। हैरानी से आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा, अगले ही पल पलकें झुकाते हुए हड़बड़ी में बोली,

    "न...नहीं...वो बस..."

    आहाना की जुबान बुरी तरह लड़खड़ा गई और चाहकर भी वो उन शब्दों की तलाश न कर सकी जिससे अपनी सफाई पेश कर सके, पर अक्षय उसके बिन कहे ही बहुत कुछ समझ गया था।

    "इट्स ओके। अगर आप सहज नहीं तो कोई बात नहीं।"

    आहाना उसके सामने निगाहें झुकाए खामोश सी बैठी रही। कुछ पल की खामोशी के बाद एक बार फिर अक्षय ने ही बात की शुरुआत की।

    "आहाना, पेशे से आप बायो की टीचर हैं?"

    "जी।" आहाना ने झट से सिर हिलाया। इसके साथ ही अक्षय ने अगला सवाल किया,

    "ये आपका सपना था?"

    उसके सवाल पर आहाना एक पल को चुप्पी साध गई, चेहरे के भाव कुछ बदले, जिसे अक्षय ने नोटिस भी किया। फिर आहाना की मीठी सी आवाज़ उसके कानों में घुल गई।

    "जी नहीं। हम डॉक्टर बनना चाहते थे, पर मम्मी की परमिशन नहीं मिली।"

    आहाना का जवाब सुनकर अक्षय चौंक गया।

    "क्यों? डॉक्टर बनने में क्या खराबी थी? मैं भी तो डॉक्टर हूँ।"

    आहाना की निगाहें अब अक्षय की ओर उठी थीं और चेहरे पर नाराज़गी के भाव उभर आए थे।

    "तो आप लड़के भी तो हैं, हम एक लड़की हैं। शादी करके आपको किसी के घर नहीं जाना होगा, उस घर की बहू बनकर उस घर की सारी ज़िम्मेदारी नहीं संभालनी होगी, पर हमारी शादी होगी तो हमें दूसरे के घर जाना होगा। वहाँ की बहू बनकर सारी ज़िम्मेदारियाँ संभालनी होंगी।

    आप खुद एक डॉक्टर हैं तो इतना तो जानते ही होंगे कि डॉक्टर को कभी भी इमरजेंसी में बुलाया जा सकता है, उनकी शिफ्टिंग में उनके पास घर के कामों में उलझने का वक्त नहीं होता। आप लड़के हैं तो आप पर कोई पाबंदी नहीं, पर हम लड़की हैं। एक बहू बनकर हम एक बेहतर डॉक्टर की ज़िम्मेदारियाँ नहीं निभा पाते, अगर ज़िम्मेदार डॉक्टर बनते तो बहू की ज़िम्मेदारियों में कमी रहती।

    इसलिए माँ चाहती थी कि हम टीचर बन जाएँ। आधा दिन स्कूल में रहेंगे और आधा दिन घर पर, तो दोनों जगह आसानी से मैनेज हो जाएगा और अब हमें एहसास होता है कि माँ सही कहती थी। जहाँ लोग पढ़ी-लिखी लड़की घर लाते हैं, पर बहू को जल्दी से 9 से 7 जॉब करने की इजाज़त नहीं देते, वहाँ एक डॉक्टर बहू को कभी स्वीकार नहीं करते जिसके काम का कोई फिक्स टाइम ही न हो।"

    आहाना के ज़हन में रूपाली जी की कही बात घूम रही थी। वो शांत और समझदार थी, सीधे से कुछ नहीं कहा था, पर अपनी बात उसके सामने रखने में हिचकिचाई भी नहीं थी। अक्षय उसकी बातों के पीछे के मतलब को बखूबी समझ रहा था।

    "लड़कियों को शादी के नाम पर अपने सपनों से भी समझौता करना पड़ता है, ये मुझे आपसे पता चला।"

    आहाना उसकी बात पर फ़ीका सा मुस्कुरा दी। अक्षय ने सकुचाते हुए आगे कहा,

    "अगर आपको मम्मी की बात का बुरा लगा है तो मैं उनके तरफ़ से आपसे माफ़ी माँगता हूँ। वो बाहर से थोड़ी सख्त मिजाज हैं, पर दिल की बुरी नहीं हैं और वो बस आपका टैस्ट ले रही थीं कि भविष्य में अगर कभी ज़रूरत पड़ी तो आप अपनी जॉब को अहमियत देंगी या परिवार को।"

    "हम जानते हैं।" आहाना ने बस इतना ही कहा और इस छोटे से जवाब के साथ खामोश हो गई। अब वो काफ़ी हद तक संभल गई थी, घबराहट कुछ कम हो गई थी और चेहरे पर कॉन्फिडेंस झलकने लगा था। ये देखकर अक्षय ने राहत की साँस ली और अगला सवाल किया,

    "तो आपको डॉक्टर बनना था। क्या यही वजह है कि आपने मुझसे मिलने के लिए हामी भर दी?"

    उसके इस सवाल पर आहाना ने तुरंत ही सिर हिला दिया।

    "जी नहीं। वो...आपका रिश्ता मामा जी लाए थे। सब कह रहे थे कि लड़का अच्छा है, परिवार अच्छा है तो एक बार मिल ले।"

    आहाना कहना तो और भी बहुत कुछ चाहती थी, पर संकोचवश इतना कहकर ही चुप हो गई। उसने जवाब भी सिर्फ़ इसलिए दिया ताकि अक्षय किसी तरह की गलतफ़हमी में न रहे।

    "अच्छा, मिलने से पहले फ़ोटो देखी थी आपने मेरी?"

    "जी।"

    "आपको मैं पसंद नहीं आया?"

    उसके इस सवाल पर आहाना के चेहरे पर एक बार फिर घबराहट के भाव उभर आए। पलकें झुकाए वो एकदम खामोश बैठी रही। उसकी ये चुप्पी अक्षय के मन में भय उत्पन्न करने लगी। उसने बेचैनी भरी नज़रों से उसे देखते हुए ज़रा जोर देते हुए अपना सवाल दोहराया,

    "जवाब दीजिए आहाना, क्या आपको मैं पसंद हूँ?"

    अक्षय बड़ी ही व्याकुलता से आहाना के जवाब का इंतज़ार करने लगा। आहाना कुछ असहज हो गई, पर चुप नहीं रह सकती थी, तो उसने अपनी साड़ी के पल्लू को अपनी उंगलियों में उलझाते हुए हिचकिचाते हुए धीमे स्वर में जवाब दिया,

    "शक्ल से अच्छे दिखते हैं, पर सूरत के साथ सीरत भी अच्छी होनी चाहिए। सिर्फ़ सूरत देखकर किसी को पसंद करने की कला हमें नहीं आती।"

    आहाना के जवाब से अक्षय कुछ हद तक संतुष्ट हो गया था। यही जवाब तो उसने भी दिया था। उसकी बेचैनी कुछ कम हुई और उसने बात आगे बढ़ाई।

    "ये बात भी ठीक है आपकी। वैसे आप टीचर हैं तो पढ़ाना पसंद होगा आपको?"

    "जी, पैशन फ़ॉलो नहीं कर सकीं तो शौक को ही पैशन और करियर बना लिया।"

    "तो पढ़ाने के अलावा और किन चीज़ों का शौक है आपको?"

    आहाना पहले तो ये सवाल सुनकर चुप रह गई, फिर उसे जयंती जी की समझाई बात याद आई कि लड़के और उसके परिवार वालों के सवालों का सहजता से जवाब देना है। उसकी खामोशी उन्हें बुरी लग सकती है, उसकी चुप्पी को वो अपना अपमान समझ सकते हैं जिससे बात बिगड़ने की संभावना है। बस ये ख्याल आते ही आहाना के फड़फड़ाते लबों से जवाब निकल गया,

    "पढ़ने का है, लिखने का भी है, खाना बनाना भी पसंद है और सॉन्ग सुनना भी काफ़ी अच्छा लगता है।"

    "गाती भी हैं?"

    "स्कूल टाइम पर कंपटीशन में पार्ट लेते थे। अब तो बस खुद में ही गुनगुना लेते हैं।"

    आहाना का जवाब सुनकर अक्षय के लबों पर गहरी मुस्कान फैल गई।

    "शौक तो काफ़ी अच्छे हैं आपके। वैसे किस तरह की बुक्स पसंद हैं आपको और क्या लिखती हैं आप, कहानी या कविताएँ?"

    "बुक में रोमांटिक नॉवेल्स बहुत पसंद हैं हमें। मोटिवेशनल बुक्स भी अच्छी लगती हैं। लाइफ़ से जुड़ी बुक्स भी पसंद हैं।"

    "और लिखती क्या हैं?"

    "ये सीक्रेट है।"

    "तो इस सीक्रेट पर से पर्दा नहीं उठ सकता?"

    "उठ सकता है, पर ऐसे सबको तो अपने सीक्रेट नहीं बता सकते।"

    आहाना का जवाब सुनकर अक्षय पल भर को उसे तकता रहा, फिर गहरी निगाहों से उसे देखते हुए बोला,

    "अगर हमारा रिश्ता जुड़ता है तो क्या तब आगे चलकर कभी आप अपना ये सीक्रेट मेरे साथ शेयर करेंगी?"

    "शायद।"

    "वैसे मैंने तो बहुत सवाल कर लिए, पर अब तक आपने मुझसे कुछ भी नहीं पूछा। आप कुछ कहेंगी नहीं? कुछ पूछेंगी नहीं मुझसे?"

    आहाना पहले तो चुप रह गई, फिर असमंजस भरे स्वर में बोली,

    "हमें समझ नहीं आ रहा कि हम क्या कहें या क्या पूछें।"

    "अगर आप कुछ कहेंगी नहीं और हमारे बीच बातचीत ही नहीं होगी तो हम एक-दूसरे को जान कैसे पाएँगे और बिना एक-दूसरे को जाने, समझे हम ये फैसला कैसे कर सकेंगे कि हम अपनी ज़िन्दगी एक-दूसरे के साथ बिता सकेंगे या नहीं?"


    Coming soon.......

    क्या करेगी आहाना? क्या अपनी हिचक और घबराहट को त्यागकर वो अपने मन के सवालों को अक्षय से पूछ सकेगी?

  • 10. इबादत - ए- इश्क़ ( The Arrange Marriage) - Chapter 10

    Words: 1850

    Estimated Reading Time: 12 min

    आहाना पहले तो चुप रही, फिर असमंजस भरे स्वर में बोली,

    "हमें समझ नहीं आ रहा कि हम क्या कहें या क्या पूछें।"

    "अगर आप कुछ कहेंगी नहीं और हमारे बीच बातचीत ही नहीं होगी तो हम एक-दूसरे को जान कैसे पाएँगे? और बिना एक-दूसरे को जाने, समझे हम ये फैसला कैसे कर सकेंगे कि हम अपनी ज़िंदगी एक-दूसरे के साथ बिता सकेंगे या नहीं?"

    आहाना घबराहट में अपने होंठ दांतों से दबाए, परेशान सी पलकें झुकाए खामोश बैठी रही। सवालों के जवाब तो जैसे-तैसे दे दिए थे, पर अब क्या सवाल करे, यही उसे समझ नहीं आ रहा था। उसे यूँ घबराते देखकर अक्षय ने गंभीरता से आगे कहा,

    "देखिए, आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है। आप बेझिझक मुझसे कुछ भी पूछ सकती हैं।... लव मैरिज नहीं हमारी, अरेंज है। हम दोनों एक-दूसरे के लिए पूरी तरह से अंजान हैं। मैं समझ सकता हूँ कि बहुत से सवाल होंगे आपके मन में।

    आप बेझिझक कोई भी सवाल मुझसे पूछ सकती हैं, जो भी जानना चाहें जान सकती हैं, ताकि आप अच्छे से सोचने के बाद ये फैसला कर सकें कि जैसे जीवनसाथी की तलाश आपको है, मैं आपकी उन अपेक्षाओं पर खरा उतर पाऊँगा भी या नहीं।"

    आहाना कुछ पल परेशान सी नज़रें घुमाती रही, फिर ज़रा हिचकिचाते हुए बोली,

    "एक... एक सवाल करूँ आपसे। बुरा तो नहीं मानेंगे?"

    "बेझिझक पूछिए।"

    "आपकी कोई गर्लफ्रेंड है?" आहाना ने सकुचाते हुए सवाल किया और अपने होंठ दांतों से दबा लिए। और कुछ तो उसके दिमाग में आया ही नहीं था, तो अंतरा का किया सवाल ही उसने अक्षय से पूछ लिया। पर अब अपने ही सवाल पर गुस्सा आने लगा कि गड़बड़ कर दी उसने। ऐसा सवाल कौन पूछता है? उसने शर्मिंदगी से अपना सर झुका लिया और अपनी आँखें कसकर मींच लीं।

    अक्षय, जिसे आहाना से बिल्कुल भी इस तरह के किसी सवाल की उम्मीद नहीं थी, वो पहले तो आँखों की पुतलियाँ फैलाए अचंभित सा उसे देखता रहा। फिर आहाना के चेहरे के बिगड़ते भाव देखकर उसने संभलते हुए जवाब दिया,

    "जी नहीं।"

    "पहले कभी थी?" आहाना कातर नज़रों से उसे देखने लगी। कुछ घबरा भी रही थी कि जाने अक्षय क्या सोचेगा उसके बारे में, जबकि अक्षय ने बड़ी ही सहजता से जवाब दिया था।

    "नहीं। आप जानती ही होंगी कि मैं अपने मम्मी-पापा की पहली औलाद हूँ और बड़े बच्चे पर बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। उन्हें बिगड़ने की इजाज़त नहीं होती।... वैसे प्यार करना बिगड़ना नहीं होता। अगर तरीका सही हो तो प्यार करना गलत नहीं, पर मेरे पास इन सबके लिए वक़्त नहीं था।

    मुझे डॉक्टर बनकर अपने पापा का सपना पूरा करना था। छोटे भाई-बहन को सही रास्ता दिखाने की ज़िम्मेदारी मुझ पर थी, मम्मी-पापा का लायक बेटा बनना था ताकि उनकी चिंता को कम कर सकूँ। अपनी पढ़ाई, परिवार और करियर को बनाने में इतना उलझ गया कि इन सबके लिए न मौका मिला और न ही वक़्त।...

    और प्यार से दूर रहने की एक वजह ये भी थी कि मैं जानता हूँ कि मेरे परिवार का माहौल कैसा है? लव मैरिज पॉसिबल ही नहीं। फिर जब प्यार को मंज़िल तक नहीं पहुँचाया जा सके, तो टाइमपास वाला प्यार करने का क्या फ़ायदा? इसलिए मैंने फैसला किया था कि मेरा सारा प्यार उस लड़की को मिलेगा जो पत्नी बनकर मेरी ज़िंदगी में शामिल होगी।"

    किसी को भी संतुष्ट करने वाला जवाब दिया था उसने, वो भी बेझिझक। जवाब देकर एक पल ठहरने के बाद उसने आगे कहा,

    "यही पूछना चाहती थी आप मुझसे? क्या सच में आपको मुझे देखकर लगा कि मैं ऐसा लड़का हूँ जो किसी लड़की से रिश्ता रखूँ और यहाँ आपको देखने आ जाऊँ?... शक्ल से क्या मैं धोखेबाज़ या टू टाइमिंग करने वाला लगता हूँ?"

    अक्षय ने भौंहें चढ़ाते हुए सवाल किया। जिसे सुनकर आहाना सकपका गई और हड़बड़ी में इंकार में सर हिला दिया।

    "नहीं... ऐसा नहीं है। वो हमारी, मतलब मेरी छोटी बहन है, उसकी दोस्त की बड़ी बहन के साथ ऐसा हुआ था। शादी के दो दिन बाद ही लड़का उसे छोड़कर भाग गया था। इसलिए उसने कहा कि हम पहले ही पूछ लें कि कोई अफ़ेयर तो नहीं?

    हमने तो कहा भी था कि बताने वाला तो झूठ भी बोल सकता है, पर आपने सवाल पूछने को कहा तो यही सवाल हमारे दिमाग में आया और हमने पूछ लिया। अगर आपको बुरा लगा हो तो हम माफ़ी चाहते हैं।"

    आहाना ने एक साँस में पूरी बात कही और अपनी सफ़ाई देने के बाद चुप हो गई। अक्षय ने खामोशी से बड़े ही ध्यान से उसकी पूरी बात सुनी, फिर गहरी निगाहों से उसे देखते हुए सवाल किया,

    "आप घबरा रही हैं मुझसे?"

    आहाना जो गहरी-गहरी साँसें ले रही थी, उसका सवाल सुनकर उसने पहले तो चौंकते हुए उसे देखा, फिर नज़रें चुराते हुए अपनी हथेली से अपना चेहरा फेरकर पसीना पोंछने लगी।

    "अच्छा, बस यही पूछने को कहा था आपकी बहन ने आपको या कुछ और भी जानना चाहती थी वो?"

    अक्षय ने उसे घबराते देखकर बात बदली। आहाना ने कातर नज़रों से उसे देखा और धीमे स्वर में हिचकिचाते हुए बोली,

    "आप नॉनवेज खाते हैं या नहीं, ये भी पूछने को कहा था।"

    "आपको पसंद है?" अक्षय ने सवाल के बदले सवाल किया और जवाब में आहाना ने तुरंत ही इंकार में सर हिला दिया।

    "नहीं। हमें तो उसे देखकर भी उल्टी आने लगती है। हम तो उसकी बदबू भी बर्दाश्त नहीं कर सकतीं, मन खराब हो जाता है हमारा। बनाना तो दूर, उसे देखकर भी घिन होने लगती है।"

    "फिर तो अगर हमारा रिश्ता जुड़ा तो आपको आराम रहेगा। क्योंकि मैं क्या, मेरे घर में कोई नॉनवेज को हाथ तक नहीं लगाता।" अक्षय ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा। उसकी बात सुनकर आहाना पल भर को उसे तकती रही, फिर पलकों के झालर तले अपनी सुरमई आँखों को छुपा लिया।

    "और कोई सवाल जो आपकी बहन ने पूछने को कहा हो?"

    "नहीं।"

    "तो कुछ जो आप पूछना चाहती हैं मुझसे?"

    अक्षय के सवाल पर आहाना कुछ पल अपने ख्यालों में खोई खामोश बैठी रही। माथे पर कुछ लकीरें उभर आई थीं और चेहरे पर उलझन भरे भाव मौजूद थे, जैसे कशमकश में उलझी हो।

    शायद कुछ पूछना चाह रही थी वह, पर हिचकिचा रही थी। अक्षय इतना समझ गया था, इसलिए उसने आहाना के दिल की बात उसकी ज़ुबान पर लाने के लिए ज़रा जोर दिया।

    "आहाना, अगर आप कुछ पूछना चाहती हैं तो बेझिझक पूछिए।"

    "दहेज कितना लोगे आप?" आहाना ने अपनी आँखें मींचते हुए एकदम से सवाल किया। बड़ी मुश्किल से दिल को मजबूत करके उसने ये सवाल किया था और एक बार फिर उसके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आई थीं।

    मन के किसी कोने में एक डर बैठ गया था कि शायद उसका ये सवाल सब कुछ बर्बाद कर देगा। इस रिश्ते पर कितनों की उम्मीदें टिकी हैं और अब शायद उठाए इस सवाल से सबकी उम्मीदें टूटकर बिखर जाएँगी। पर अपने दिल की बात दिल में रखकर वो किसी बोझ के साथ भी नहीं रह सकती थी, सो हिम्मत करके उसने सवाल पूछ ही लिया। पर अब अक्षय की नज़रों का सामना करने से बचने लगी थी।

    "दहेज?" अक्षय उसके सवाल पर एक बार फिर बुरी तरह से चौंक गया। आहाना उससे ऐसा सवाल करेगी, वो भी ऐसे स्पष्ट शब्दों में, इसकी तो उसने दूर-दूर तक भी कभी कल्पना नहीं की थी। हैरान था वो और आँखों की पुतलियाँ फैलाए अविश्वास भरी नज़रों से उसे देखने लगा था।

    आहाना ने उसकी आवाज़ सुनी तो हिम्मत करके अपनी आँखें खोलीं और पलकें झुकाए सर हिलाते हुए कहा,

    "हाँ, दहेज... आप डॉक्टर हैं तो इस हिसाब से दहेज भी ज़्यादा लेंगे ना? पर हम बता देते हैं कि अगर आप दहेज की डिमांड रखेंगे तो हम रिश्ते से इंकार कर देंगे। हम ऐसे शख्स से कभी शादी नहीं करेंगे जिनके लिए हमसे ज़्यादा अहमियत हमारे साथ आने वाले दहेज की हो, जो हमारी बोली लगाए और शादी जैसे पवित्र रिश्ते को पैसों में तोले, हमारी भावनाओं का सौदा करे।

    हमारे मम्मी-पापा ने हमें पालने-पोसने में, अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बहुत पैसे लगाए हैं हम पर। हमें इस काबिल बनाया है कि हमें किसी और पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं, सिर्फ़ इसलिए ताकि आगे चलकर हमें अपनी ज़रूरतों के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।

    अपनी शादी के नाम पर एक और बोझ हम उनके सर पर नहीं रख सकते। उन्हें हमारे दहेज जुटाने की चिंता में घुलते नहीं देख सकते हम।

    हमारे भैया की शादी है, पर हमने लड़की वालों से एक पैसा नहीं माँगा, क्योंकि वो परिवार पहले ही अपनी बेशकीमती बेटी हमें दे रहा है। वैसे ही हम भी उसी लड़के से शादी करेंगी जो हमारे साथ मिलने वाले दहेज से नहीं, हमसे शादी करेगा।

    हम ये नहीं कहते कि हम खाली हाथ ही आएंगे । दुनिया के कोई माँ-बाप अपनी बेटी को खाली हाथ विदा नहीं करते, पर अपने मन से देने में और मांगकर उन पर दबाव बनाने में ज़मीन और आसमान का अंतर है।

    हमारे मम्मी-पापा अपने मन से जो भी देंगे, बस वही लेकर आएंगे हम। कोई लाखों का दहेज नहीं मिलेगा आपको हमसे, क्योंकि हम चाहे सारी उम्र कुंवारे रह जाएँगे, पर अपना और अपने परिवार का भविष्य कभी दहेज नाम की कुप्रथा की भेंट नहीं चढ़ने देंगे।"

    आहाना ने बिना किसी डर या झिझक के, पूरे कॉन्फिडेंस के साथ अपनी बात, अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू उसके सामने रख दिया था। बिना इस बात की परवाह किए कि उसके उठाए इस कदम का अंजाम क्या हो सकता है, उसने दृढ़ता से अपना फैसला उसे सुनाया था।

    आहाना के इस रूप को अक्षय बस देखता ही रह गया। शायद हर लड़की ये आवाज़ उठाना चाहती है, पर परिवार की मान-मर्यादा, उनके संस्कार और इच्छाओं की बेड़ियों में जकड़ी हिम्मत नहीं कर पाती। पर आहाना ने आवाज़ उठाई थी और उसकी ये पहल काबिले तारीफ़ थी।

    अक्षय को महसूस हुआ जैसे इस लम्हे में आहाना उसकी दिल की गहराइयों में कहीं उतरी थी और उसके लब बेसाख़्ता मुस्कुराए थे।

    "और अगर दहेज ना माँगे तो आपकी हाँ होगी?" अनायास ही उसके लबों से सवाल निकला और दिल बड़ी ही बेताबी से जवाब का इंतज़ार करने लगा।

    आहाना ने उसका सवाल सुनकर चौंकते हुए उसे देखा, मानो उसने कोई गलत बात सुन ली हो। पर अक्षय के चेहरे पर संजीदगी के भाव देखकर उसकी सारी शंका दूर हो गई। अगले ही पल उसने निगाहें झुकाते हुए धीमे स्वर में सवाल किया,

    "पता नहीं। वो तो मम्मी-पापा पर निर्भर करता है। अगर सबकी हाँ होगी तो हम भी इंकार नहीं करेंगे।"

    "और अगर उनकी इंकार हुई तो?" अक्षय का दिल ये सवाल पूछते हुए कहीं गहराइयों में डूबा था और उसकी बेचैनी, बेकरारी, व्याकुलता तब और बढ़ गई जब जवाब के जगह उसके हिस्से आहाना की खामोशी आई।

    "क्या आपको मैं पसंद नहीं आया?"

    अक्षय ने बेचैन दिल से सवाल पूछा। अबकी बार आहाना की झुकी पलकें हल्के से हिलीं और लब हौले से फड़फड़ाए।

    "हमारे पसंद करने-ना करने से कुछ नहीं होता। अगर मम्मी-पापा और भैया को रिश्ता पसंद नहीं आया तो रिश्ता नहीं होगा।"

    "और अगर ऐसा हुआ तो आपको ज़रा भी दुख नहीं होगा?" अक्षय ने एक और सवाल किया और व्याकुल निगाहों से उसे देखने लगा।


    Coming soon......

    क्या जवाब देगी आहाना अक्षय के इस सवाल का? और आहाना के सवालों पर आप क्या करना चाहेंगे?

  • 11. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 11

    Words: 2068

    Estimated Reading Time: 13 min

    अक्षय ने बेचैन दिल से सवाल पूछा। अबकी बार आहाना की झुकी पलकें हल्के से हिलीं और लब हौले से फड़फड़ाए।

    "हमारे पसंद करने ना करने से कुछ नहीं होता। अगर मम्मी-पापा और भैया को रिश्ता पसंद नहीं आया तो रिश्ता नहीं होगा।"

    "और अगर ऐसा हुआ तो आपको ज़रा भी दुख नहीं होगा?" अक्षय ने एक और सवाल किया और व्याकुल निगाहों से उसे देखने लगा।

    आहाना एक बार फिर खामोश रह गई। जाने क्यों, पर आहाना की ये खामोशी चुभी थी उसे, पर कम्बख़्त ये भूल गया कि उसने भी तो यही कहा था अपने भाई-बहन से। जब वो लड़का होकर अपने मम्मी-पापा की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाने की सोच भी नहीं सकता, फिर वो तो लड़की है; उसके पैरों में मर्यादा की जंजीरें जकड़ी हैं और नाज़ुक कंधों पर अपने परिवार की इज़्ज़त का बोझ रखा है। वो भला ऐसा कोई फैसला कैसे ले सकती है जिससे सवाल उसके माता-पिता की परवरिश और उनके दिए संस्कारों पर उठे? जिन्होंने उसे इज़्ज़त से सर उठाकर जीना सिखाया, भला वो उनका सर किसी के सामने शर्मिंदगी से झुकाने के बारे में सोच भी कैसे सकती है?

    कुछ लम्हें उनके दरमियान खामोशी से सरक गए। आहाना पलकें झुकाए खामोश बैठी रही और अक्षय खामोशी से उसे तकता रहा। फिर उसने निगाहें उससे फेरते हुए कहा,

    "और कुछ पूछना हो तो पूछ लीजिए आप, ताकि आपको मेरे बारे में कोई भी राय बनाने में और अपना फैसला लेने में आसानी रहे।"

    "नहीं, हमें और कुछ नहीं पूछना। अगर आपको कुछ पूछना हो तो पूछ लीजिए।"

    "मुझे जो जानना था मैंने जान लिया।" इसके बाद कुछ पल ठहरने के बाद उसने आगे कहा,

    "नीचे चलें?"

    "जी," आहाना ने तुरंत ही सर हिलाया। और जैसे ही वो उठने को हुई, उसकी सैंडल में उसकी साड़ी उलझ गई। बैलेंस बिगड़ा, पर वो गिरती उससे पहले ही दो मजबूत बाजुओं ने उसे थाम लिया और अक्षय की चिंता भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई।

    "संभालकर आहाना।"

    अक्षय की एक बाँह उसकी कमर पर लिपटी थी, तो दूसरी ने आहाना के हाथ को थामा हुआ था। उसके सीने से लगी आहाना की साँसें थम गईं; आँखों की पुतलियाँ हैरत से फैल गईं; चेहरे पर कुछ रंग आकर गुज़र गए; रीढ़ की हड्डी में सिहरन सी हुई।

    इस मर्दाना स्पर्श ने उसके दिल में खलबली सी मचा दी; अक्षय के जिस्म से उठती खुशबू उसे व्याकुल कर गई। पल भर में क्या से क्या हो गया, आहाना कुछ समझ ही नहीं सकी और बिलकुल खाली होकर, इन अजीब से एहसासों में डूबने ही लगी थी कि अक्षय की आवाज़ उसके कानों से टकराई और वो चौंकते हुए होश में लौटी। हड़बड़ी में अक्षय से दूर होने को वो कसमसाई और उसने भी बड़ी ही आसानी से उसे छोड़ दिया।

    आहाना झट से दो कदम दूर हट गई और बेचैनी से अपनी झुकी पलकों के नीचे आँखों की पुतलियों को नचाने लगी। शर्म की लाली उसके चेहरे पर बिखरी थी और घबराहट में माथे पर पसीने की बूँदें चुहचुहाने लगी थीं।

    ज़िंदगी में पहली दफ़ा अपने भाई और पापा के अलावा किसी मर्द के इतने करीब गई थी और दिल अब भी कुछ अलग अंदाज़ में धड़क रहा था।

    असहज हो गई थी वो और अब अक्षय से नज़रें तक मिलाने की हिम्मत नहीं थी उसमें; जबकि अक्षय की नज़रें अब भी उसके शर्म से गुलाबी मुखड़े पर ठहरी थीं, जिसके एहसास ने आहाना की घबराहट को और बढ़ा दिया था।

    आहाना अब भी खुद में सिमटी हुई, घबराई हुई सी खड़ी, अपने इन अनोखे एहसासों में उलझी थी, जब उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पैर को छुआ है। उसने चौंकते हुए पैर पीछे हटाए और देखा तो अक्षय उसके कदमों में बैठा था।

    आहाना की आँखें हैरत से फैल गईं, जबकि अक्षय, जो अपना काम कर चुका था, उठकर खड़ा हुआ और हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोला,

    "अब नहीं लड़खड़ाएँगे आपके कदम।"

    आहाना का दिमाग ब्लैंक हो गया था। वो उलझन भरी नज़रों से उसे यूँ देखने लगी मानो उसकी बात का मतलब जानना चाहती हो।

    अक्षय, बिन कहे ही उसके सवाल को समझ गया और इसके साथ ही उसकी मुस्कान गहरी हो गई।

    "आपकी साड़ी आपके सैंडल में उलझ गई थी, अब ठीक है।"

    बस चंद शब्दों में अक्षय ने उसके सवाल का जवाब दे दिया था और मन ही मन अभी जो हुआ सब दोहराने पर आहाना को अब पूरी बात समझ आई थी कि आखिर अभी-अभी हुआ क्या और अक्षय नीचे बैठकर क्या कर रहा था? आहाना के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे और वो हैरान-परेशान टकटकी लगाए उसे देखने लगी।


    दूसरे तरफ़, सीढ़ियों के पास खड़ा अन्वय, जो दोनों को बुलाने आया था, छत से आती आवाज़ें सुनकर वहीं खड़ा हो गया। उसके पीछे आती अंतरा की नज़र जब उस पर पड़ी तो उसकी भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं और चेहरे पर सख्त भाव उभर आए।

    अन्वय अब भी कान लगाए छत पर दोनों के बीच होती बातें सुनने की कोशिश में था, तभी एक गुस्से भरी कठोर आवाज़ उसके कानों से टकराई।

    "ये जोंक हमारी दीवार से चिपककर क्या कर रहा है तुम?"

    आवाज़ सुनकर अन्वय ने चौंकते हुए नज़रें घुमाईं तो उसके ठीक सामने अंतरा खड़ी, कमर पर हाथ रखे, गुस्से से उसे घूर रही थी।

    "श्शश…." अन्वय ने उसे चुप करवाने के लिए हड़बड़ी में उसके मुँह पर उंगली रखनी चाही, पर इससे पहले कि उसकी उंगली अंतरा के लबों को स्पर्श कर पाती, अंतरा ने बीच में ही उसकी उंगली पकड़कर मोड़ दी और गुस्से से दाँत पीसते हुए बोली,

    "बड़े ही बेशर्म किस्म के आदमी हो तुम! इतनी भी मैनर्स नहीं तुममें कि यूँ छुपकर किसी की प्राइवेट बातें नहीं सुना करते?"

    अन्वय के मुँह से हल्की सी सिसकी निकली थी। अपनी गलती का एहसास भी शिद्दत से हुआ, पर ऐसे कैसे अपनी गलती मान लेता? सो अपनी पैरवी में सफ़ेद झूठ गढ़ा।

    "मैडम, आपको कोई गलतफ़हमी हुई है। मैं यहाँ कोई किसी की बातें छुप-छुपकर नहीं सुन रहा था, बल्कि उनकी बातों के ख़त्म होने का इंतज़ार कर रहा था।"

    उसकी सफ़ाई सुनकर अंतरा ने खा जाने वाली तीखी नज़रों से उसे घूरा, बदले में अन्वय झाँकने पर मजबूर हो गया।

    "पहली गलती समझकर माफ़ किया, आइंदा अगर मेरे हत्थे चढ़े तो इतनी आसानी से छोड़ूंगी नहीं मैं तुम्हें।" अंतरा ने बड़ी ही तबीयत से उसको धमकाया और उसके ये तेवर देखकर अन्वय के मुँह से हैरत से निकला,

    "क्या बवाल लड़की हो यार तुम?"

    "बवाल नहीं, भौकाल कहो। कानपुर का आइटम बम हूँ मैं।" अंतरा ने बड़ी ही अदा से अपने कुर्ते के कॉलर को झटका और खुद पर इतराने लगी। अन्वय के लब उसे तकते हुए अनजाने ही हल्के से खिंच गए।

    अंतरा ने जब उसे मुस्कुराते देखा तो गुस्से में खीझते हुए उसके पैर पर पैर दे मारा। अन्वय के मुँह से दर्द भरी चीख निकली जिसे उसने बमुश्किल अंदर-अंदर दबाया, वरना यहाँ भीड़ लग जाती।

    दर्द से बिलबिलाते अन्वय ने हैरत से अंतरा को देखा, जबकि अंतरा बड़ी ही बेरहमी से उसके पैर को कुचलते हुए आगे बढ़ गई।

    अन्वय ने बेबसी से सर हिलाया और फिर अपने पैर को सहलाते हुए उसके पीछे चल पड़ा। दोनों की आवाज़ें इतनी थीं कि नीचे मौजूद लोगों ने भले ही नहीं सुनी थीं, पर छत पर मौजूद दोनों लोग अलर्ट हो चुके थे।

    अंतरा खुद पर इतराते हुए आहाना के पास पहुँची, जो नज़रें झुकाए खड़ी थी।

    "जीजी, सारे वक़्त शर्माती ही रही या वो पूछा भी जो मैंने पूछने को कहा था?" आते ही अंतरा ने पहला सवाल यही किया था, पर जवाब आहाना के बजाय अक्षय ने दिया था।

    "जी, आपकी जीजी ने सवाल भी पूछे और उन्हें जवाब भी मिले हैं।"

    "क्या जवाब मिला?" अंतरा अब सीधे से अक्षय से मुखातिब हुई। उसका सवाल सुनकर अक्षय ने एक नज़र आहाना को देखा, फिर हौले से मुस्कुराते हुए जवाब दिया,

    "हमारे जाने के बाद अपनी जीजी से पूछिएगा, वो ज़रूर आपको हमारा जवाब बता देंगी।"

    अक्षय ने अपनी बात ख़त्म की, इतने में अन्वय भी वहाँ पहुँच गया।

    "भाई, अगर आपकी बातें हो गई हों तो नीचे चलें? सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"

    अक्षय ने सर हिलाया और एक नज़र आहाना को देखते हुए जाने को पलट गया। उनके जाते ही अंतरा ने आहाना से बड़ी ही उत्सुकता से सवाल किया,

    "जीजी, क्या बातें हुई आप दोनों के बीच? उन्होंने क्या जवाब दिया मेरे सवालों का? आपको वो पसंद आए?"

    "नीचे चलें अंतरा, सब इंतज़ार कर रहे होंगे।" आहाना ने बात टालते हुए कहा, जिस पर अंतरा ने मुँह बनाते हुए सर हिला दिया।

    आहाना जब अंतरा के साथ नीचे पहुँची तो नज़रें अनजाने ही उस तरफ़ चली गईं जहाँ अक्षय बैठा था और वो अब भी वहीं बैठा अपनी बहन से कुछ बात कर रहा था। बाकी सब भी आपस में कुछ बातें कर रहे थे।


    कुछ देर बाद आगंतुक जाने की तैयारी में थे। अक्षय अन्वय के साथ हाथ धोने गया हुआ था और निशांत भी उनके साथ ही था।

    "आप हमारी जीजी को देखने आए हैं?" अक्षय हाथ धो रहा था जब उसके कानों में निशांत के शब्द पड़े। उसने सर घुमाकर उसे देखा और सहमति में सर हिला दिया।

    "हाँ।"

    "आप हमारी जीजी को देखने क्यों आए हैं?"

    उसका अगला सवाल सुनकर अक्षय कुछ उलझन में फँस गया और असमझ सा बोला,

    "इस सवाल का मैं क्या जवाब दूँ?"

    "वही जो सच है।" अंतरा पर गया था, निशांत सीधा सवाल किया था। अक्षय को कंफ़्यूज़ देखकर अन्वय ने निशांत के कंधे पर बाँह लपेटते हुए मुस्कुराकर जवाब दिया,

    "हमें आपकी जीजी पसंद आई इसलिए हम उन्हें देखने आए हैं।"

    "तो आप हमारी जीजी को ले जाएँगे?" निशांत ने आँखें बड़ी-बड़ी करके दोनों भाइयों को देखा। उसका सवाल सुनकर अन्वय ने तिरछी नज़रों से अक्षय को देखते हुए जवाब दिया,

    "अभी तो नहीं, पर अगर हमारे भैया को आपकी जीजी भा गई तो जल्दी ही बारात लेकर आएंगे और आपकी जीजी को हमेशा के लिए अपने साथ ले जाएँगे।"

    "हमेशा के लिए?" बेचारा निशांत अब घबरा गया था। अपनी जीजी के हमेशा के लिए खुद से दूर के ख़्याल से ही वो बेचैन हो उठा और अक्षय ये समझ गया। उसने प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और सौम्यता से जवाब दिया,

    "घबराओ नहीं, अभी नहीं लेकर जाएँगे आपकी जीजी को और जब भी लेकर जाएँगे, आपकी जीजी पर पहला अधिकार आपका ही रहेगा। वो आती-जाती रहेंगी।"

    निशांत ने बस सर हिला दिया, पर वो अब भी उदास था, जिससे साफ़ ज़ाहिर था कि वो अपनी जीजी से बहुत प्यार करता है, जिसे अक्षय और अन्वय दोनों ने महसूस किया था।

    अक्षय ने निशांत को उदास देखकर आँखों ही आँखों में अन्वय को कुछ इशारा किया, जिसे समझते हुए अन्वय ने मुस्कुराकर सर हिलाया और निशांत को अपनी बातों में उलझाकर उसका मूड ठीक करने लगा।


    "भाई साहब, बहुत अच्छा लगा हमें आप सब से मिलकर। हमें तो आहाना बिटिया बहुत पसंद आई। आपस में बात करके एक-दो दिन में आपको अपना जवाब बता देंगे और अगर आपके परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा तो ये हमारा सौभाग्य होगा।" मृदुभाषी अभिजीत जी ने जितेंद्र जी से विदा लेते हुए ये बातें कही थीं।

    "आपके परिवार में अगर हमारी बेटी गई तो ये हमारे लिए खुशी की बात होगी।" जितेंद्र जी ने भी अपनी इच्छा चंद शब्दों में ज़ाहिर कर दी थी। साथ ही उनसे ठहरने की इल्तिजा भी की।

    "आज यहीं ठहर जाते आप सब तो अच्छा होता। इतना लंबा सफ़र करके आए, अभी तक ठीक से कुछ खाया-पिया भी नहीं आपने। ज़रा रुक जाते तो रात का खाना हो जाता। आज रात यहाँ आराम करके कल सवेरे निकल जाते।"

    "बहुत-बहुत आभार आपका, पर ऐसे रुकना कुछ ठीक नहीं लगता। यहाँ पास में ही हमारे दोस्त का घर है, पहले ही बात हो गई है उनसे। आज रात वहीं ठहरेंगे।"

    अभिजीत जी ने हिचकते हुए अपनी बात कही। जितेंद्र जी ने अब ज़ोर देते हुए कुछ निराशा से कहा,

    "अगर यहाँ ठहर जाते तो हमें खुशी होती। हमें भी मेहमाननवाज़ी का अवसर मिल जाता।"

    "अगर महादेव ने चाहा और रिश्ता जुड़ा तो आपको ये अवसर ज़रूर देंगे। अभी हमें इज़ाज़त दीजिए।"

    अभिजीत जी ने बड़ी ही विनम्रता से उनके आग्रह को ठुकरा दिया। जितेंद्र जी अब उनकी बात मान गए। जहाँ अन्वय-फलक संग अक्षय ने सबसे हाथ जोड़कर इज़ाज़त ली, वहीं जाने से पहले आहाना ने भी हाथ जोड़कर सब बड़ों को प्रणाम किया। फिर लड़के वाले विदा लेकर चले गए।

    जितेंद्र जी, द्रीशांत और बाकी मर्दों संग बाहर तक आए थे। अक्षय बाकी सबके साथ जा चुका था। आहाना को कपड़े बदलने के लिए कमरे में भेज दिया गया था और बाकी लोग नीचे काम निपटाने में लगे थे।

  • 12. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 12

    Words: 1882

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात के डिनर के बाद, सभी बड़े लोग नीचे हॉल में इकट्ठे बैठे विचार-विमर्श कर रहे थे। अपना-अपना पक्ष सबके सामने रख रहे थे। वहीं भाभी, पल्लवी और अंतरा आहाना के कमरे में जमकर लगाए बैठे थे। तीनों सवालों के पुल बांध चुके थे, पर आहाना उनके सवालों पर या तो चुप्पी साध जाती या फिर बात टाल देती। कुछ भी कहने से बचती नज़र आ रही थी वो।

    वो कहावत है न, कि जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए। बस इसी कहावत पर अमल करते हुए, भाभी ने अपने सवाल करने का तरीका बदला और शरारती नज़रों से उसे देखते हुए, मज़ाकिया लहज़े में बोली,

    "अनु, आप तो अक्षय जी से मिलने के नाम पर बड़ा घबरा रही थीं, जैसे वो आपको अकेला पाकर दस सिरों और लंबे-लंबे दांतों वाले राक्षस बन जाएँगे और हमारी भोली-भाली नाज़ुक सी नंद को अपना ग्रास बना लेंगे। अब उनसे मिलने और बात करने के बाद कैसा लगा आपको? वाकई में उन्होंने आप पर हमला तो नहीं बोल दिया था?"

    उनका सवाल सुनकर, जहाँ अंतरा और पल्लवी हैरत से आँखें बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखने लगी थीं, वहीं आहाना की नाराज़गी भरी निगाहें उनकी ओर उठ गई थीं।

    "भाभी।"

    "क्या भाभी? हमें तो बस आपकी चिंता है, इसलिए पूछ रहे हैं कि कहीं आपको अकेला पाकर उन्होंने कुछ कर तो नहीं दिया आपके साथ?" भाभी ने शरारती मुस्कान छुपाते हुए गंभीर चेहरा बनाया। वहीं उनकी बात सुनकर आहाना मुँह बिचकाते हुए नाराज़गी से बोली,

    "कुछ नहीं किया उन्होंने और वो कोई राक्षस नहीं थे जो हमें खा जाते, इसलिए आप झूठी परवाह का दिखावा मत कीजिये।"

    "खैर, परवाह तो अच्छी है, पर आप हमें ये बताइए कि अगर ऐसा था तो इतना घबरा क्यों रही थीं आप उनसे अकेले में मिलने और बात करने से?"

    आहाना उनके इस सवाल पर एक बार फिर से चुप्पी साध गई और उसने अपना सर झुका लिया। अंतरा तुरंत उसके पास आकर बैठ गई और बड़ी ही उत्सुकता से बोली,

    "जीजी, आप हमें बस इतना बताइए कि हमारे सवालों के क्या जवाब दिए उन्होंने?"

    "उनके घर में कोई नॉनवेज नहीं खाता और उनकी ज़िंदगी में कोई दूसरी लड़की नहीं। कह रहे थे कि उन्होंने अपना सारा प्यार उस लड़की के लिए सहेज कर रखा है जिनसे उनकी शादी होगी।"

    "अरे वाह! क्या जवाब दिया है, दिल खुश कर दिया। बड़ी खुशनसीब होगी वो लड़की जो उनकी ज़िंदगी में शामिल होगी।" पल्लवी अक्षय के जवाब से खासी इम्प्रेस हुई और भाभी भी मुस्कुरा दी, जबकि अंतरा शायद पहले से जानती थी कि यही जवाब होगा, इसलिए उसके चेहरे के भाव ज़्यादा नहीं बदले।

    "जीजी, आपको वो कैसे लगे?"

    "हाँ अनु, चलो ये न बताओ कि तुम्हारी उनसे क्या बात हुई, पर ये तो बता दो कि अक्षय जी तुम्हें कैसे लगे?"

    पल्लवी ने भी अंतरा की हाँ में हाँ मिलाते हुए आहाना से सवाल किया। तो भला भाभी क्यों चुप रहतीं? उन्होंने भी आहाना से पूछ ही लिया,

    "अनु, हमें भी जानना है कि अक्षय जी से मिलकर, उनसे बात करके आपको कैसा लगा? अक्षय जी आपको कैसे लगे और इस रिश्ते को लेकर आपका क्या फैसला है?"

    यहाँ तीनों आहाना से सवाल कर रही थीं, जबकि आहाना के ज़हन में अक्षय के साथ बिताए वे चंद पल घूम रहे थे। उसकी बातें सहज, सरल, व्यवहार; न चाहते हुए भी आहाना उसकी ओर आकर्षित हो रही थी।

    जिस तरह बिना किसी बात की परवाह किए उसने उसे गिरने से बचाने के लिए थामा, झुककर उसकी साड़ी ठीक की। आहाना को एहसास हुआ कि ज़रा भी मर्दाना गुरूर नहीं उसमें। कोई बनावट नहीं, जो था सामने था।

    आहाना कुछ पल अक्षय के बारे में सोचती रही, फिर उसे रूपाली जी का व्यवहार याद आया और चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए।

    "भाभी, हम ऐसा कोई ख्वाब अपनी आँखों में नहीं सजाना चाहते जो अधूरा रहकर हर पल हमारे मन में टीस पैदा करे और हम अपने दिल और दिमाग के बीच बँटकर रह जाएँ।"

    आहाना का जवाब सुनकर तीनों आँखों की पुतलियाँ फैलाए, हैरान-परेशान से उसे देखने लगे। भाभी ने तो हैरत से सवाल भी पूछ लिया,

    "इस बात का क्या मतलब हुआ अनु?"

    "मतलब ये है भाभी कि हमें लगता है कि उनका और हमारा कोई जोड़ नहीं और जो हमारा नहीं हो सकता, हम उसके बारे में कुछ सोचना नहीं चाहते, क्योंकि दिल में किसी को बसाकर किसी और का हाथ थामकर अपना जीवन उन्हें समर्पित करना हमसे नहीं होगा।"

    उसके इस जवाब से तीनों के चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए। पल्लवी ने उसके कंधे को थामा और परेशान निगाहों से उसे देखते हुए चिंतित स्वर में बोली,

    "अनु, क्या हुआ है? तुम ऐसे क्यों बोल रही हो? क्या अक्षय जी ने ऐसा कहा तुझसे?"

    "नहीं, उन्होंने कुछ नहीं कहा। उनका व्यवहार तो बहुत अच्छा था, पर शायद उनकी मम्मी को हम पसंद नहीं आए। वो कुछ अनमनी सी लगी हमें। जाते हुए भी सबने हमें आशीर्वाद दिया, पर उन्होंने झूठे मुँह भी एक शब्द नहीं कहा। इसलिए हमें लगता है कि हमारा उनसे रिश्ता नहीं होगा। और जब रिश्ता जुड़ना नहीं तो हम इस बारे में सोचना भी नहीं चाहते।"

    "आंटी का बर्ताव मुझे भी कुछ अजीब लगा। खड़ूस तो चेहरे से ही लग रही थीं, बातों से ज़ाहिर था कि सोच भी काफी पिछड़ी है। कुछ चिढ़ी हुई भी लग रही थीं।" भाभी ने भी रूपाली जी के व्यवहार को याद करते हुए आहाना की बात पर सहमति जताई।

    पल्लवी को भी उसके और द्रिशांत के रिश्ते पर उनकी टिप्पणी याद आ गई और चेहरे के भाव कुछ बिगड़ गए।

    "पुराने ज़माने की रूढ़िवादी सोच की औरत लग रही थी वो। लव मैरिज के सख्त खिलाफ और उनकी बातों से तो लग रहा था कि अपनी बहू के बाहर जाकर काम करने के पक्ष में भी नहीं वो। अपनी बेटी पर बड़ा गुरूर है उन्हें। आहाना की अगर उस घर में शादी हुई तो वो बहुत मुश्किलें खड़ी करेंगी उसकी ज़िंदगी में।"

    "ऐसी खड़ूस सास मिलने से तो अच्छा है कि जीजी की वहाँ शादी ही न हो।" अंतरा ने भी मुँह बनाया। रूपाली के व्यवहार से सभी चिढ़े हुए थे।

    आहाना खामोशी से बैठी सबकी बातें सुन रही थी। भाभी ने जब आहाना को यूँ चुपचाप गुमसुम बैठे देखा तो प्यार से उसके गाल को छूते हुए बोली,

    "अनु, आप अब सबके बारे में मत सोचो। अगर महादेव ने आपके लिए अक्षय जी को चुना होगा तो कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएँ आपके रास्ते में, पर आपका रिश्ता उन्हीं से जुड़ेगा और अगर यहाँ बात नहीं बनी, तब भी आपको दिल छोटा करने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि यहाँ रिश्ता नहीं हुआ, इसका मतलब होगा कि महादेव ने आपके लिए कुछ बेहतर सोचा है। इसलिए आगे क्या होगा और क्या नहीं इसकी चिंता महादेव पर छोड़ दो, वो सब संभाल लेंगे।" उन्होंने बड़े ही प्यार से आहाना को समझाया। आहाना ने भी हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए सहमति में सर हिला दिया।

    "आहाना, इतनी आसानी से किसी को भी अपने दिल में वो खास जगह मत बनाने देना, क्योंकि दिल में किसी और को बसाकर किसी और से रिश्ता जोड़ना वाकई आपसे नहीं होगा।" भाभी ने बड़े ही प्यार से आहाना को समझाते हुए सुझाव दिया था। आहाना ने एक बार फिर बस सर हिला दिया।

    "अब हम सो जाएँ, बहुत थक गए हैं।" आहाना ने इन सब बातों से बचने के लिए बहाना बनाया, जिसे समझते हुए भी सब खामोश ही रहे।

    दूसरे तरफ़, सहगल फैमिली अपने साथ आए लोगों के साथ जाने तो कहीं और वाले थे, पर रूपाली जी ने वापस घर जाने का फैसला किया और कानपुर से सब दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

    वापसी में अन्वय ड्राइव कर रहा था, जबकि अक्षय उसके बगल में पैसेंजर सीट पर बैठा था। कुछ अनकहे से एहसास दिल में बसाए, वो आहाना से हुई मुलाकात के बारे में ही सोच रहा था, जब अभिजीत जी ने बात शुरू की,

    "हमें तो लोग बड़े भले, सादगी पसंद और नेकदिल लगे। कितने अच्छे संस्कार दिए हैं उन्होंने अपने बच्चों को। आहाना हमें अक्षय के लिए भा गई, आपका क्या कहना है रूपाली जी?"

    रूपाली जी तो जैसे इंतज़ार में ही बैठी थीं। वो मौका मिलते ही तल्ख लहज़े में बोलीं,

    "हाँ, संस्कार तो बड़े अच्छे दिए हैं, तभी घर का बड़ा बेटा प्रेम विवाह करने जा रहा है।"

    "प्रेम विवाह कहाँ है? आपने सुना नहीं उन्होंने क्या बताया था?" अभिजीत जी ने तुरंत ही उन्हें टोका। बदले में रूपाली जी ने खीझते हुए कहा,

    "झूठ कहा था उन्होंने। अपने घर की इज़्ज़त बनाए रखने के लिए हमें झूठी कहानी सुनाई थी।"

    "अगर झूठ भी था और अगर वाकई बच्चों का प्रेम विवाह हो रहा था, तब भी हमें तो इससे कोई आपत्ति नहीं। घर की मान-मर्यादा और इज़्ज़त को ताक पर रखकर बच्चों ने कोई गलत फैसला नहीं लिया। माता-पिता की इच्छा से उनका विवाह होने जा रहा है और हमें तो बच्ची बड़ी भली लगी। कितने अच्छे से सब संभाला उन्होंने जबकि अभी तो उनकी शादी भी नहीं हुई है।" अभिजीत जी ने फिर से समर्थन किया, जो रूपाली जी को ज़रा भी रास न आया।

    "आपको तो सब भले ही लगते हैं, पर हम बता देते हैं कि हमें ये बिल्कुल पसंद नहीं आया। हम प्रेम विवाह के समर्थन में बिल्कुल नहीं हैं। जिस घर का बड़ा बेटा ऐसा हो, उस घर की बेटी के बारे में हम क्या कहें? हो सकता है उनका भी कहीं प्रेम-प्रसंग चल रहा हो, आखिर छोटे भाई-बहन बड़ों के नक्शे-कदम पर ही तो चलते हैं।"

    रूपाली जी ने सीधे आहाना के चरित्र पर सवाल उठाया, उसके किरदार पर तंज कसा, जो अक्षय को ज़रा भी पसंद न आया। उसके चेहरे के भाव बिगड़ने लगे, पर इससे पहले कि वो कुछ कहता, अभिजीत जी ने तुरंत ही उन्हें सख्ती से टोका,

    "कुछ भी मत बोलिए रूपाली जी। आहाना एक बड़ी प्यारी और समझदारी बच्ची है। उनके किरदार पर सवाल उठाने का पाप मत कीजिये। उस घर की इज़्ज़त है वो और अपने माता-पिता का गुरूर है। वो कभी ऐसा कोई काम नहीं कर सकती जिससे उनके माता-पिता को किसी के आगे शर्मिंदा होना पड़े।

    और जैसा कि आपने कहा कि छोटे भाई-बहन अपने बड़ों से ही सीखते हैं, तो अगर आहाना के साथ ऐसा कुछ होता तो जैसे उनके माता-पिता ने उनकी भाई का रिश्ता उनकी पसंद की लड़की से जोड़ा, वैसे ही उनके लिए कहीं और रिश्ता ढूँढ़ने के बजाय, जिन्हें उनकी बेटी पसंद करती, उन्हीं से उनका विवाह करवाते।

    इतनी देर में इतना तो हम समझ गए कि जितेंद्र जी के लिए उनके बच्चों की खुशियाँ सबसे ज़्यादा मायने रखती हैं इसलिए अभी कह दिया और दोबारा ये बात अपने ज़ुबान पर मत लाइएगा। ऐसे किसी और की बेटी के चरित्र पर सवाल उठाना एक बेटी की माँ को शोभा नहीं देता। सोचिए कोई अगर हमारी फलक के लिए ऐसा कहे तो आपको कैसा लगेगा?"

    अभिजीत जी ने अपने जवाब से रूपाली जी का मुँह बंद करवा दिया था। इसके आगे किसी की कोई बात नहीं हुई।

    अक्षय बेचैन था और अपनी माँ की बातें सुनने के बाद उसका मूड बिगड़ गया था। वो सीट से सर टिकाए आँखें मूँदकर बैठ गया, पर आँखें बंद करके ही बंद पलकों के आगे आहाना का मासूमियत भरा प्यारा सा चेहरा उभर आया।

    अगले ही पल अक्षय ने अपनी आँखें खोल दीं और विंडो से बाहर देखने लगा। उसकी बेचैनी और बेकरारी उसके बगल में बैठे अन्वय ने महसूस तो की, पर शांत बैठा रहा। फलक भी कुछ कह न सकी।

  • 13. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 13

    Words: 2385

    Estimated Reading Time: 15 min

    रात के वक़्त सड़कें खाली थीं और कार, फुल स्पीड में उन खाली सड़कों पर दौड़ रही थी। आधी रात गए, सब दिल्ली अपने-अपने ठिकाने पहुँचे।

    थका-हारा अक्षय अपने कमरे में आया तो उसके पीछे-पीछे अन्वय और फलक भी चले आए। रास्ते में तो उन्हें बात करने का मौका ही नहीं मिला था, तो अब दोनों अक्षय के कमरे में घुसपैठ कर गए थे।

    अक्षय खुद में ही इतना उलझा था कि उसने भी कुछ नहीं कहा और चुपचाप अलमारी की ओर बढ़ गया। अन्वय की आँखें शरारत से चमकीं और दिल शैतानी पर उतर आया। उसने छत वाला सीन याद करते हुए अक्षय की एक्टिंग की।

    "संभालकर आहाना।"

    अक्षय ने उसकी बात सुनकर चौंकते हुए पलटकर उसे देखा। वहीं फलक ने अन्वय को सवालिया निगाहों से देखते हुए हैरानी से सवाल किया।

    "अन्वय, तुम्हें अचानक से क्या हो गया?"

    "मुझे कुछ नहीं हुआ दी, पर हमारे प्यारे भैया को बहुत कुछ हो गया है। आपको पता है, जब मैं उन्हें बुलाने गया था तो मैंने क्या देखा?"

    अन्वय ने तिरछी नज़रों से अक्षय को देखते हुए बड़े ही रहस्यमयी ढंग से बात कही। अक्षय आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरने लगा। वहीं फलक ने भी उत्सुकता से सवाल किया।

    "क्या देखा? मुझे भी तो बताओ।"

    अन्वय ने एक नज़र अक्षय को देखा, फिर बड़ी ही दिलचस्पी के साथ बताना शुरू किया।

    "मैंने देखा कि आहाना जी गिरने वाली थीं और उन्हें गिरते देखकर हमारे प्यारे भैया बेचैनी से उनकी ओर दौड़ गए। यूँ घबराए जैसे आहाना जी के गिरने पर चोट उन्हें लगेगी। उन्होंने हवा की रफ्तार में उनकी ओर कदम बढ़ाए और उन्हें अपनी बाहों में थामते हुए बड़े ही व्याकुलता से बोले,

    'संभालकर आहाना।'

    आए हाए! क्या रोमांटिक सीन था! कसम से दी, मेरा दिल तो किया जमकर हूटिंग करूँ, पर नीचे मौजूद बड़ों का लिहाज़ कर गया।"

    अन्वय ने नाटकीय अंदाज़ में सारी बात फलक को बताई। अक्षय हैरान था कि अन्वय उस वक़्त वहाँ था और उसने सब छुपकर देखा-सुना, पर अब जिस तरह वो उसे छेड़ने की कोशिश कर रहा था

    अक्षय की गुस्से भरी निगाहें उसे ही घूर रही थीं। जबकि फलक फटी आँखों से हैरान-परेशान सी कभी उसे देखती तो कभी अक्षय को। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे अन्वय की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था और ये सच भी था क्योंकि अन्वय के चुप होते ही उसने अक्षय से सवाल कर लिया था।

    "भैया, ये अन्वय जो कह रहा है... क्या वो सच है?"

    अक्षय ने खा जाने वाली नज़रों से अन्वय को घूरा, फिर चिढ़ते हुए बोला, "इस नौटंकी की बातों में आने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है। इसकी तो आदत है हर बात को बढ़ा-चढ़ाकर करने की और खासकर जब बात मेरी हो। मज़ा जो आता है उसे मुझे परेशान करने में।"

    "मतलब अन्वय झूठ कह रहा है?" फलक ने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखते हुए हैरानी से सवाल किया, जिस पर पहले तो अक्षय उलझन में पड़ गया, फिर गंभीरता से बोला,

    "नहीं, झूठ नहीं है, पर वैसा भी नहीं है जैसा इसने बताया। उनकी सैंडल में उनकी साड़ी फंस गई थी जिससे वो गिरने वाली थी और मैंने बस इंसानियत के नाते उन्हें गिरने से बचाया था।"

    "अच्छा जी। बस इंसानियत के नाते उन्हें गिरने से बचाया था, तो जो उनके कदमों में बैठकर उनकी साड़ी ठीक की थी वो क्या था? क्या वो भी इंसानियत के नाते किया था?" अन्वय ने अक्षय के बहाने पर तुरंत ही सवाल खड़े कर दिए। अक्षय ने पहले उसे घूरा, फिर अफ़सोस से सिर हिलाते हुए बोला,

    "कदमों में बैठकर कोई प्यार का इज़हार नहीं किया था मैंने, बस उनकी साड़ी को सैंडल से निकाला था, वरना फिर से गिर जाती।"

    अक्षय ने सफाई पेश की, जिसे सुनकर अन्वय और फलक ने एक-दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में कुछ बातें कीं। बातें करने के बाद अन्वय ने अक्षय के बेड पर पसरते हुए सवाल किया,

    "अच्छा भाई, ये सब छोड़िए और ये बताइए कि आपको आहाना जी कैसी लगीं? पसंद आईं या नहीं?"

    "भैया के चाहने से क्या होता है? देखा नहीं था मम्मी लौटते वक़्त कितनी नाराज़ थीं। मुझे नहीं लगता कि वो इस रिश्ते के लिए हाँ कहेंगी और भैया उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाएँगे नहीं, तो उनका हमारी भाभी बनना नामुमकिन है।" फलक भी उसके बगल में आकर बैठ गई।

    अक्षय के ज़हन में आहाना का ख़्याल आया था और एक सुकून भरी मुस्कान उसके लबों पर ठहरी थी। रूपाली जी की बातें याद आते ही उसकी मुस्कराहट सिमट गई। दिल एक बार फिर बेचैन हो उठा। अन्वय और फलक ने बड़े ही गौर से उसे देखा।

    "भाई, बताइए न आहाना जी आपको कैसी लगीं?"

    अन्वय ने अपने सवाल पर ज़ोर दिया। अक्षय के कानों में उसके शब्द पड़े तो वो अपने ख़्यालों से बाहर आया और सिर झटकते हुए बोला,

    "जैसी थीं, वैसी ही लगीं, पर तुझे बहुत ज़ोर की लगेगी अगर मेरे वापिस आने से पहले मुझे मेरा रूम खाली नहीं मिला तो। इसलिए दोनों अपनी तशरीफ़ उठाओ और अपने-अपने कमरे में जाओ, मुझे भी आराम करने दो।

    तुम्हें तो कोई काम नहीं है। अभी मस्ती करोगे तो कल दिन में घोड़े बेचकर सोओगे, पर मुझे कल सुबह हॉस्पिटल भी जाना है और उसके लिए अभी रेस्ट करना कम से कम मेरे लिए तो बहुत ज़रूरी है।"

    अक्षय ने दोनों को फटकारते हुए उन्हें धमकी दी और अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। उसके जाने के बाद फलक और अन्वय ने एक साथ एक-दूसरे को देखा और बेबसी व अफ़सोस से सिर हिलाते हुए बोले,

    "इनका कुछ नहीं हो सकता।"

    दोनों ने बुरा सा मुँह बनाया और कमरे से बाहर निकल गए।

    कुछ देर बाद अक्षय वापिस कमरे में आया तो जैसा कि उसे उम्मीद थी, कमरा खाली था। अक्षय ने गहरी साँस छोड़ी और बेड पर आकर पड़ गया। थक तो वाकई बहुत गया था, पर आँखों में नींद का एक कतरा तक नहीं था। दिल और दिमाग बुरी तरह उलझा हुआ था और मन बेचैन था, जैसे कुछ बहुत अहम उससे दूर जा रहा हो।


    दूसरे तरफ़ अंतरा भी सुकून की नींद में सो गई थी और आहाना से लिपटी हुई थी, पर आहाना की आँखों में नींद नहीं थी। रह-रहकर ज़हन में अक्षय का ख़्याल आता और उसका दिल बेचैन हो उठता।

    सिर झटकती, उसके ख़्याल को अपने दिमाग से निकालने की कोशिश करती, पर कुछ देर बाद फिर से उसका ख़्याल उसके दिलो-दिमाग पर हावी हो जाता।


    अगले दिन की शुरुआत दोनों की ही हड़बड़ी में हुई। रात देर से सोने से सुबह नींद देर से खुली और फिर हड़बड़ी में अपने-अपने काम के लिए निकले।

    देखते ही देखते अक्षय और आहाना की मुलाक़ात को पाँच-छः दिन बीत गए। फलक अपने ससुराल जा चुकी थी। उस दिन कार में हुई बहस के बाद अभिजीत जी ने जब-जब बात छेड़ी, रूपाली जी टाल गईं।

    जब बात ही नहीं हुई तो किसी भी निर्णय पर कैसे पहुँचते? उनके साथ जितने लोग गए थे, सब इस रिश्ते को जोड़ने के समर्थन में थे, बस रूपाली जी जाने क्या चाहती थीं। दो दिन का कहकर आए थे, पर अब इतने दिनों बाद भी वो जवाब नहीं दे सके थे।

    अन्वय इन दिनों अपने पापा की इलेक्ट्रॉनिक्स के शोरूम के कामों में व्यस्त था। अभिजीत जी की तबीयत कुछ ख़राब चल रही थी और उनकी अनुपस्थिति में वहाँ की सारी ज़िम्मेदारियाँ वही संभालता।

    अक्षय अपनी जॉब में काफ़ी व्यस्त था। सुबह निकलता, सो रात को थका-हारा लौटता। उस पर इस बीच मझधार में लटके रिश्ते के कारण डिस्टर्ब रहता।

    आहाना पहली नज़र में भा गई थी उसे और जब से उससे मिलकर आया था, उसका ख़्याल उसके ज़हन से जाता ही नहीं था। जाने-अनजाने उसके दिल में बस चुकी थी और बसती भी क्यों न, जब वो बिल्कुल वैसी थी जैसी लड़की की तलाश उसे थी। अपने जीवनसाथी के लिए जो खाका उसने बुना था, उसमें आहाना बिल्कुल फ़िट बैठ चुकी थी।

    उसका घबराहट में अपने लब को काटना, उससे नज़रें टकराते ही हिचक से पलकें झुकाना, स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कह जाना और उसके बाद नज़रें मिलाने से कतराना, उसकी नज़दीकियों से सहमकर खुद में सिमटना, शर्म से गालों का गुलाबी होना।

    उसकी हर अदा अक्षय पर अपनी गहरी छाप छोड़ गई थी, जिसे वो चाहकर भी झुठला नहीं सकता था। पहले उसकी झुकी पलकें ने उसका करार लूटा था और अब वो बड़ी-बड़ी काजल से सनी घबराई आँखें उसके ज़हन में बस चुकी थीं। अपने दिल के हाल से अनजान नहीं था वो, इसलिए इस मामले पर घर में छाया ये अजीब सा सन्नाटा उसे बेचैन कर रहा था।

    अभिजीत जी को इंतज़ार था कि कब परिवार के सब लोग साथ बैठे और वो इस गंभीर मामले पर उनसे बात करे। आज उन्हें वो मौका मिल गया। संडे था तो सुबह के नाश्ते के बाद सब साथ ही ड्राइंग रूम में बैठे थे। अक्षय अखबार पढ़ रहा था, अन्वय फ़ोन चला रहा था, फलक को भी बुलाया था उन्होंने।

    अभिजीत जी ने सबको देखा, फिर भूमिका बाँधते हुए बात की शुरुआत की।

    "हम बीते कई दिनों से सोच रहे थे कि सब साथ हों तो एक साथ इस बारे में सबसे बात करें, सबकी राय लें और उसके बाद कोई भी निर्णय लें।"

    उनकी बात का मतलब सभी समझ रहे थे और अपना-अपना काम बंद करके उन्हें देखने लगे थे। कुछ पल ठहरने के बाद उन्होंने आगे कहना जारी किया।

    "अक्षय की शादी अब हमें जल्दी ही करनी है। उसके बाद अन्वय के बारे में भी सोचना है। अभी तक अक्षय के लिए हमने जितनी भी लड़कियाँ देखीं, उन सब में हमें आहाना अक्षय की पत्नी और इस घर की बहू बनने के लिए सबसे काबिल लगी। सुंदर है, समझदार है, ज़िम्मेदार है, शांत स्वभाव की प्यारी सी बच्ची है। रिश्तों की अहमियत समझती है और उन्हें निभाना भी जानती है।

    अक्षय के लिए हमें जैसी लड़की की तलाश थी, आहाना बिल्कुल वैसी है। परिवार भी अच्छा-भला है। हमें तो इस रिश्ते में कोई कमी नज़र नहीं आती। अब आप सब अपना-अपना मत रख दीजिए ताकि हम किसी निर्णय पर पहुँच सकें और अपना जवाब जितेंद्र जी तक पहुँचा सकें जो दो बार पहले ही हमसे जवाब पूछ चुके हैं और अब उन्हें और रोककर रखना और टालना हमें ठीक नहीं लग रहा।

    जो भी फ़ैसला हो, वो जल्दी हो तो बेहतर है ताकि वो भी अपनी बेटी के भविष्य के बारे में आगे सोच सकें और हम भी अक्षय के बारे में आगे देखें।"

    अभिजीत जी ने अपनी इच्छा और परेशानी सबके सामने रख दी थी और अब उन्हें इंतज़ार था बाकी सबके जवाबों का। अक्षय, अन्वय, फलक तीनों एक-दूसरे की शक्लें देखने लगे थे, जबकि रूपाली जी ने उनकी बात पर असहमति जताते हुए तुरंत ही अपना जवाब उनके सामने रख दिया था।

    "हम आपके इस फ़ैसले से सहमत नहीं हैं। हमें न वो परिवार हमारे परिवार से जुड़ने काबिल लगा और न ही वो लड़की हमें हमारे बेटे के लिए ठीक लगी।"

    जैसा कि सबको उम्मीद थी, वही हुआ था। उन्होंने साफ़ तौर पर इस रिश्ते के लिए इनकार कर दिया था। अक्षय के लिए अब यहाँ रुकने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। भला अपने ही आँखों से अपने अरमानों का ख़ून होते कैसे देख लेता? वो तो अपने टूटे दिल को समेटे उठकर जाने लगा था कि अभिजीत जी की सख़्त आवाज़ उसके कानों में टकराई।

    "अक्षय, वापिस बैठ जाइए। आज जब तक हम किसी निर्णय पर नहीं पहुँच जाते, किसी को भी यहाँ से जाने की इजाज़त नहीं है।"

    पिता का हुक्म था, सो मन मारकर वापिस बैठ गया। फलक और अन्वय जो पहले दिन से अक्षय की भावनाओं और इच्छा से वाक़िफ़ थे, माथे पर बल डालें, कभी अक्षय को देखते तो कभी एक-दूसरे को।

    हालाँकि वो जानते थे कि अक्षय कुछ नहीं कहेगा, फिर भी एक उम्मीद थी कि शायद वो अपनी खुशी के लिए आवाज़ उठाए। उसके साथ के बिना तो उन दोनों की कोई सुनेगा ही नहीं, पर अक्षय को ख़ामोश देखकर अब उनकी सारी उम्मीदें बस अभिजीत जी पर ही टिकी थीं।

    अक्षय के बाद अभिजीत जी ने रूपाली जी का रुख़ किया और बेहद गंभीर स्वर में बोले,

    "आपने अभी-अभी जो कहा, हम उसके पीछे की वजह जानना चाहते हैं। वैसे तो ये उनका पारिवारिक मामला है, फिर भी अगर उनके बेटे के प्रेम-विवाह के कारण आप ऐसा कह रही हैं तो हम आपको बता दें कि उन्होंने अपने बच्चों को इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि प्रेम होने के बावजूद वो अगर शादी कर रहे हैं तो अपने माता-पिता की मर्ज़ी से, उनके आशीर्वाद के साथ कर रहे हैं। अगर वो घर से भागकर शादी करते या प्रेम में कोई ग़लत क़दम उठाते तो हम मानते आपकी बात, पर ऐसा कुछ नहीं है।

    उनके रिश्ते से दोनों के परिवार वाले ख़ुश हैं और अगर हमारे बच्चे भी हमारे सामने किसी को लाकर खड़ा करके हमें कहते हैं कि ये उनकी मोहब्बत है और उन्हें अपनी ज़िंदगी में शामिल करना चाहते हैं तो उनकी पसंद को परखने के बाद अगर हमें वो हमारे परिवार और बच्चों के लिए ठीक लगते हैं तो हम खुले दिल से उन्हें अपना लेते, क्योंकि प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है, रूपाली जी।

    फिर शादी के बाद आहाना को हमारे घर आना है, इस परिवार का हिस्सा बनना है। यहाँ के रीति-रिवाज़ों, तौर-तरीक़ों को अपनाना है, न कि अक्षय को उनके घर जाकर रहना है। हमें आहाना को देखना चाहिए कि वो हमारे घर की बहू बनने के काबिल है या नहीं? उनके भाई-भाभी की निजी ज़िंदगी का उनके इस घर-परिवार से रिश्ता जुड़ने से कोई संबंध नहीं होना चाहिए।"

    "उस बात को छोड़ भी दें, तब भी हमें आहाना अपने बेटे के काबिल नहीं लगी।"

    "क्यों नहीं लगी? वो आपको अक्षय के काबिल, इसकी वजह बताइए हमें। आपके सभी सवालों के अपने विवेक के अनुसार सही जवाब दिए थे उन्होंने। आपके कहने पर उन्होंने ये तक कह दिया था कि अपनी नौकरी छोड़ देंगी, जबकि उन्होंने कितनी मेहनत के बाद उस नौकरी को हासिल किया होगा और एक टीचर की नौकरी से वो घर और बाहर दोनों जगह की ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभा भी सकती थी।

    हम तो उनके सभी जवाबों से संतुष्ट थे, पर आप नहीं हैं तो आप हमें वजह बताइए कि आपको उनमें कौन-सी कमी नज़र आई, क्योंकि ऐसे किसी की बेटी देखकर आने के बाद हम बिना किसी कारण के तो रिश्ते से इनकार करके उनका अपमान नहीं कर सकते। वजह चाहिए हमें, जो उन्हें बताकर हम रिश्ते के लिए इनकार कर सकें।"


    क्या वजह देंगी रूपाली जी और क्या होगा आहाना और अक्षय के रिश्ते का अंजाम?

  • 14. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 14

    Words: 2353

    Estimated Reading Time: 15 min

    "हम उनके सभी जवाबों से संतुष्ट थे, पर आप नहीं हैं। तो आप हमें वजह बताइए कि आपको उनमें कौन-सी कमी नज़र आई? क्योंकि ऐसे किसी की बेटी देखकर आने के बाद हम बिना किसी कारण के तो रिश्ते से इंकार करके उनका अपमान नहीं कर सकते। वजह चाहिए हमें, जो उन्हें बताकर हम रिश्ते के लिए इंकार कर सकें।"

    "देखिए, हम पहले ही इस रिश्ते के पक्ष में नहीं थे। पर आपके दोस्त की भांजी थी, तो आपके दबाव में हम वहाँ गए थे। जितेंद्र जी एक मामूली से स्कूल मास्टर हैं। अब रिटायर हो गए हैं। आहाना के बाद एक और जवान बेटी है उनकी, जिसकी शादी की ज़िम्मेदारी भी उनके सर पर है। फिर एक छोटा बेटा भी है, जिसकी पढ़ाई-लिखाई का खर्चा भी उन पर है।

    बड़ा बेटा कमाता है, पर उसकी खुद की शादी होने वाली है। शादी के बाद उसका अपना परिवार होगा। ऐसे में भाई साहब को अभी से सब सोचकर चलना होगा। ज़्यादा दहेज़ नहीं मिलेगा हमें वहाँ से। पिछली बार जिस लड़की को देखकर आए थे, वहाँ से 15 लाख दहेज़ मिल रहा है। इससे ज़्यादा पर ही बात पक्की करेंगे हम।"

    रूपाली जी ने जो जवाब दिया, सब शॉक्ड से उन्हें देखते ही रह गए। किसी को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। हालाँकि उनकी बात सही थी और हमारे समाज में ज़्यादातर लोगों की सोच भी ऐसी ही है।

    वो लड़की को रिजेक्ट नहीं करते, उस दहेज़ को ठुकराते हैं जो वो अपने साथ लाने वाली थी, क्योंकि उससे ज़्यादा उन्हें कहीं और मिल रहा होता है। लड़का जितनी बड़ी पोस्ट पर होता है, दहेज़ भी उतना ही मोटा चाहिए होता है और लड़की में जितनी कमियाँ, उसके साथ आने वाला दहेज़ उतना ही बढ़ता है। रूपाली जी ने कोई निराली बात नहीं कही थी, पर उनकी बात अक्षय को नागवार गुज़री थी।

    उसने तुरंत ही दृढ़ स्वर में, नाराज़गी से उनकी बात का विरोध किया।

    "माँ, मैंने पहले ही आपको कहा था कि मेरे सामने दहेज़ की बात मत कीजियेगा। मैं शादी करना चाहता हूँ, खुद को बेचने के लिए तैयार नहीं हूँ। जो आप बोली लगा रही हैं मेरी, कि जो जितनी ज़्यादा कीमत अदा करेगा, आप उससे मेरी शादी करवा देंगी।

    मेरी कही इतनी सी बात आपको क्यों नहीं समझ आती माँ, कि पैसों और लालच की नींव पर खड़े किए गए रिश्ते कभी संतुष्टि और सच्ची खुशी नहीं देते। मुझे तो समझ नहीं आता कि आपको मेरे लिए पत्नी और इस घर के लिए बहू लानी है या पैसे छापने की मशीन? क्यों दहेज़ का इतना लालच है आपको?"

    अक्षय की बातें सुनकर रूपाली जी ने तुनकते हुए सवाल किया।

    "तुम्हें पढ़ाने-लिखाने में इतना पैसा लगा है, तो दहेज़ में कुछ वसूलेंगे नहीं?"

    "तो क्या आपने मुझे जन्म इसलिए दिया था ताकि एक दिन दहेज़ के नाम पर मेरा सौदा कर सकें? मुझे पढ़ा-लिखाकर इस काबिल इसलिए बनाया है आपने ताकि मेरी होने वाली पत्नी और उसके परिवार से मुझ पर खर्च हुए एक-एक पाई का हिसाब ले सकें? क्या मुझे उन्हीं के भरोसे इस दुनिया में लाई थी आप? अगर ऐसा ही था माँ, तो नहीं पढ़ाना था आपको मुझे।

    माफ़ कीजियेगा मम्मी, पर आपकी इस सोच से इत्तफ़ाक नहीं रखता मैं। अगर आपने मुझे पढ़ाया-लिखाया है, मुझ पर खर्चा किया है, तो उनकी फैमिली ने भी उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा किया है। खर्चा उनका भी हुआ है और अब वो अपनी ज़िन्दगी भर की उस जमापूँजी को हमें देने वाले हैं। अपनी बेटी के रूप में अपना अनमोल हीरा हमें दे रहे हैं, उन पर दहेज़ का दबाव बनाना मुझे सही नहीं लगता।

    फिर फलक के वक़्त देखा था न आपने कि कितनी दिक्क़त हुई थी हमें। उसके बाद भी आप दहेज़ माँगना चाहती हैं?"

    अक्षय ने अपने गुस्से को दबाते हुए, जितना हो सकता था उतने आराम से उन्हें अपनी बात समझाने की कोशिश की थी। पर रूपाली जी कुछ समझने को ही तैयार नहीं थीं। उन्होंने रोषपूर्ण लहज़े में कहा-

    "दिया है तो लेंगे नहीं?"

    "मैं तो देने के ही फ़ेवर में नहीं था माँ, पर तब आपने मेरी नहीं सुनी। फलक के अच्छे फ़्यूचर का हवाला देकर मुझे चुप करवा दिया। उसका खामियाज़ा हम आज तक भुगत रहे हैं।

    उन लालची लोगों का लालच वक़्त के साथ बढ़ता ही जा रहा है, आए दिन कोई नई डिमांड करते हैं और अगर उसके बदले फलक खुश रहे तो हम अपनी सारी दौलत मुस्कुराकर उस पर वार दें, पर ये आप भी जानती हैं और मैं भी जानता हूँ कि फलक को वहाँ कितना संघर्ष करना पड़ता है।

    अगर तब आपने मेरी बात सुनी होती, तो आज फलक की ज़िन्दगी इससे बेहतर होती। वो तो सुमित जी उसका बहुत साथ देते हैं, बस इसलिए मैं सब बर्दाश्त कर रहा हूँ, पर जो फलक के साथ हुआ, वही मैं अपनी होने वाली पत्नी के साथ नहीं कर सकता।

    पहले आपने फलक की शादी उस लालची परिवार में करवा दी और अब मेरी शादी में आप दहेज़ लेना चाहती हैं, पर मैं ऐसा नहीं होने दूँगा। अगर सब यही सोचते रहेंगे तो ये प्रथा कभी ख़त्म ही नहीं होगी और जो प्रथा समाज को दीमक जैसे खोखला करता जा रहा हो, उसका ख़त्म होना बहुत ज़रूरी है। जिसके लिए पहल किसी न किसी को तो करनी ही होगी… तो पहल मैं करूँगा।

    चाहे मेरी शादी किसी से भी हो, पर इतना तय है कि मैं अपनी शादी में दहेज़ में एक पैसा नहीं लूँगा। मेरी पत्नी सिर्फ़ वही लेकर इस घर में आएगी जो उनका परिवार अपनी हैसियत के हिसाब से अपनी मर्ज़ी से उसे देंगे।"

    "सब दहेज़ लेते हैं। हम कुछ अलग तो नहीं कर रहे।"

    "आप ही हमेशा कहती हैं न माँ कि सब कुएँ में कूदेंगे तो हम भी तो उनके साथ नहीं कूद जाएँगे। भगवान ने हमें सोचने-समझने के लिए दिमाग दिया है, तो अपने विवेक का उपयोग करके वो जो सही होगा वही करेंगे। फिर अब सबके जैसी क्यों बन रही हैं आप?"

    "दहेज़ नहीं लेंगे तो आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार जब पूछेंगे कि बहू अपने साथ क्या लाई है, तो क्या कहेंगे?"

    "लड़कियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। बहू के रूप में लक्ष्मी घर आएगी, इससे ज़्यादा और किस चीज़ की कामना है आपको? कोई पूछे तो यही कहिएगा कि बहू लक्ष्मी बनकर आई है।"

    "अक्षय, ऐसा नहीं होता है। दहेज़ तो शादी में देना ही होता है।"

    "अगर आपकी यही ज़िद है, तो मैं शादी ही नहीं करूँगा माँ और ये आख़िरी फैसला है मेरा। फिर जब वही आस-पड़ोस वाले और रिश्तेदार आपसे सवाल करें कि बेटा शादी क्यों नहीं कर रहा, तो गर्व से बताइएगा उन्हें कि क्यों नहीं कर रहा मैं शादी।"

    रूपाली जी ने लाख दलीलें पेश कीं, पर अक्षय सबको नकारता रहा। उसने उन्हें समझाने की हर संभव कोशिश की, पर वो भी अपनी ज़िद पर अड़ी रहीं। आख़िर में अक्षय ने दृढ़ता से अपना फैसला सुना दिया, जिसे सुनकर रूपाली जी की आँखें अविश्वास से फैल गईं।

    अपने बेटे की ज़िद से बखूबी वाक़िफ़ थीं वे, कि एक बार उसने जो फैसला कर दिया, उसके बाद वो किसी की भी नहीं सुनता, इसलिए वो घबरा गईं और अपने बेटे से जंग हारते देखकर उन्होंने अभिजीत जी का सहारा लेने का फैसला किया।

    "आप कुछ क्यों नहीं समझाते उसे? देखिए कैसी ज़िद पकड़कर बैठा है।"

    "बच्चा बड़ा हो गया है रूपाली जी। अच्छा-बुरा और सही-गलत में अंतर करने की समझ है उनमें, तो अब हम क्या कहें? फिर कह तो सही ही रहे हैं। किस चीज़ की कमी है हमारे पास? क्यों बेवजह लड़की वालों पर दहेज़ का दबाव बनाना?

    वैसे भी बहू अच्छी होनी चाहिए, पैसों का क्या है? वो तो आता-जाता रहता है?… अगर लाखों का दहेज़ लेकर किसी ऐसी लड़की को घर ले आए जो न हमारे बच्चे को खुश रख सकी और न ही हमारे परिवार को संभाल सकी, तो क्या करेंगे उस लाखों के दहेज़ का?"

    अभिजीत जी का जवाब रूपी सवाल सुनकर रूपाली जी खिसियाकर रह गईं। आख़िर उन्होंने भी अक्षय का ही समर्थन किया था। अपने पापा और भैया की बात सुनकर फलक ने भी अपनी बात सामने रखने का फैसला किया।

    "भैया ठीक कह रहे हैं माँ। पापा और भैया काम करते ही हैं, अब तो अन्वय की भी पढ़ाई पूरी हो गई है। किसी चीज़ की कमी नहीं हमारे घर में, फिर दहेज़ लेने की ज़रूरत ही क्या है?

    हमें तो ऐसी लड़की ढूँढनी चाहिए जो भैया को खुश रख सके, इस परिवार को संभालकर रख सके, जैसे आपने रखा है। जो आपको बेटी को अपनी बहन का मान दे, ताकि मुझसे मेरा मायका कभी न छिने।

    मुझे तो आहाना जी बहुत अच्छी लगीं। बहुत स्वीट हैं, सुन्दर भी हैं और अपने पैरों पर खड़ी भी हैं। वो बिल्कुल वैसी हैं जैसे जीवनसाथी की तलाश भैया के लिए हमें है।

    सिर्फ़ दहेज़ के लिए उनकी सभी खूबियों को नज़रअंदाज़ करके उनके रिश्ते को ठुकराना सही नहीं होगा। वो तो इतनी अच्छी हैं, उन्हें अपने जैसा कोई अच्छा लड़का और अच्छा परिवार मिल जाएगा, पर हमें भैया के लिए शायद ऐसी लड़की दोबारा न मिले।"

    "दी की बातों से मैं भी सहमत हूँ। अगर आहाना जी में आपको कोई कमी नज़र आ रही है, जिसके कारण आप भैया से उनका रिश्ता नहीं जोड़ना चाहतीं, तो वजह हमें बताइए और अगर बस दहेज़ के लालच में आप इस रिश्ते से इंकार कर रही हैं, तो मत कीजिये ऐसा, क्योंकि आप भले ही ज़्यादा दहेज़ के साथ इस घर में बहू ले आएँ, पर भाई की ज़िन्दगी की खुशियों को उस दहेज़ के पैसे से खरीद नहीं सकेंगी।"

    अन्वय ने भी अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू सबके सामने रखते हुए रूपाली जी को समझाने की कोशिश की और साथ ही आहाना को अपनी भाभी बनाने की अपनी इच्छा भी ज़ाहिर कर दी। सबकी बातें सुनने के बाद अभिजीत जी ने अक्षय से सवाल किया-

    "अक्षय, आप भी हमें बता दीजिए कि आप क्या चाहते हैं? अगर आपको भी आहाना पसंद है, तो हम रिश्ते के लिए हाँ कह देते हैं।"

    अक्षय ने उनका सवाल सुनकर पहले उन तीनों को देखा जो उसके लिए आहाना को चुन चुके थे, फिर उठकर रूपाली जी के पास आ गया और उनके सामने बैठते हुए उनकी हथेलियों को अपनी हथेलियों में थाम लिया।

    "मम्मी, मैं जानता हूँ कि आप वही कर रही हैं जो आपने देखा, सुना है और जो इस समाज में सदियों से होता आ रहा है, पर शादी में दहेज़ की माँग न सिर्फ़ लड़की वालों पर अनचाहा बोझ डालती है, बल्कि उस नए-नए जुड़ने वाले रिश्ते में भी एक दरार डालती है।

    पहले के ज़माने में ये आम बात थी, पर आजकल की लड़की, वो भी पढ़ी-लिखी लड़की, जो खुद अपने पैरों पर खड़ी हो, वो कभी ऐसा पति नहीं चाहेगी जो उससे शादी करने के बदले दहेज़ की डिमांड करे, वो अगर रिश्ते में बंध भी गई, तो उस शख़्स की इज़्ज़त पूरे दिल से कभी नहीं कर सकेंगी, क्योंकि वो ये बात कभी नहीं भूल पाएगी कि उस इंसान से रिश्ता जोड़ने की कीमत उसके माँ-बाप ने चुकाई है, उसके कारण उसके माँ-बाप परेशान हुए हैं।

    आप चाहें तो फलक से पूछ लीजिये कि क्या उसे सुमित जी से ये शिकायत नहीं कि उन्होंने दहेज़ लेकर उससे शादी की, अपने पैरेंट्स के सामने ये कहने की हिम्मत नहीं कर सके कि उन्हें हमारी फलक पसंद है और उन्हें उससे शादी करने के लिए दहेज़ नहीं चाहिए।…

    मैं ऐसा रिश्ता हरगिज़ नहीं जोड़ना चाहता माँ। ये दहेज़ की प्रथा इस समाज को खोखला कर रही है और इसे ख़त्म करने की पहल सिर्फ़ लड़का ही कर सकता है, क्योंकि अपनी बेटी की शादी करने के लिए हर माँ-बाप खुद को बेचकर भी दहेज़ देगा, क्योंकि वो अपनी बेटी को सारी उम्र घर पर बिठाकर नहीं रख सकते, पर अगर लड़के ही दहेज़ लेने से इंकार कर दें तो धीरे-धीरे ये प्रथा समाप्त हो जाएगी। समाज में बदलाव आएगा, फिर कोई लड़की अपने माता-पिता के लिए बोझ नहीं बनेगी।

    फिर किस चीज़ की कमी है हमारे घर में? मैं कमाता हूँ, जो भी ज़रूरतें होंगी मैं पूरी करूँगा, उसके लिए हमें किसी और से उनकी बेटी से रिश्ता जोड़ने के बदले दहेज़ लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। प्लीज़ अपनी ये ज़िद छोड़ दीजिये, क्योंकि मैं दहेज़ लेकर शादी कभी नहीं करूँगा।

    हाँ, अगर आपको आहाना नहीं पसंद, कोई और पसंद है तो आप जिससे कहेंगी मैं उसी से शादी करूँगा, पर शादी में दहेज़ का एक रुपया नहीं लूँगा।"

    अक्षय ने प्यार से उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की। बेटे की ज़िद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा।

    "जब आपका यही फैसला है, तो अब हम कुछ नहीं कहेंगे। आपकी शादी में दहेज़ नहीं लेंगे आप, पर आपको शादी करनी होगी।"

    रूपाली जी की बात सुनकर अक्षय के परेशान, तनावपूर्ण चेहरे पर सुकून के भाव उभर आए, लब हौले से मुस्कुरा उठा।

    "जिससे आप कहेंगी, उससे कर लूँगा माँ।"

    अक्षय का जवाब सुनकर अन्वय और फलक दोनों के माथों पर चिंता की लकीरें उभर आईं और वो परेशान निगाहों से अक्षय को देखने लगे। वहीं अभिजीत जी ने गंभीरता से रूपाली जी से सवाल किया-

    "अब बताइए रूपाली जी, क्या फैसला है आपका? आहाना के लिए हाँ कहें या उन्हें इंकार कर दें?"

    उनका सवाल सुनकर रूपाली जी ने अक्षय को देखा और प्यार से उसके गाल को छूकर बोलीं- "आप बताइए बेटा, आप क्या चाहते हैं? क्या आपको आहाना पसंद है?"

    "माँ, मुझे उनमें कोई कमी नहीं नज़र आई, जो मैं उन्हें रिजेक्ट करूँ। शांत, समझदार, सुलझी हुई, कम बोलने वाली, बड़ों का आदर करने वाली संस्कारी लड़की है, जो रिश्तों की अहमियत समझती है, उन्हें निभाना जानती है।…

    ऐसा मुझे लगा, पर अगर आपको उनमें कोई कमी नज़र आती है तो कोई दूसरी लड़की चुन लीजिये और अगर आपको वो मेरी पत्नी और इस घर की बहू बनने के काबिल लगती है, तो मुझे इस रिश्ते से कोई एतराज़ नहीं, पर आख़िरी फैसला आपका होगा, क्योंकि मैं उसी लड़की को अपनी पत्नी बनाकर इस घर में लाऊँगा जो मेरी माँ की पसंद हो।"

    अक्षय ने सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं दिया और आख़िरी फैसला रूपाली जी पर छोड़ दिया। उसका जवाब सुनकर वहाँ मौजूद तीनों शख़्सों के चेहरों पर तनाव के भाव उभर आए, जबकि रूपाली जी के लबों पर गर्व भरी मुस्कान फैल गई।

    क्या फैसला लेंगी रूपाली जी? कहीं अक्षय अपने शब्दों के जाल में फँस तो नहीं जाएगा?

  • 15. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 15

    Words: 1936

    Estimated Reading Time: 12 min

    शुक्ला निवास में सभी ने सुबह का नाश्ता करने के बाद साथ बैठे थे। पिछले दिनों से सभी को अभिजित जी के फ़ोन और उनके जवाब का इंतज़ार था।

    जितेंद्र जी दो बार फ़ोन भी कर चुके थे, पर अब भी कोई हाँ या ना का स्पष्ट जवाब नहीं आया था उनके तरफ़ से। जिसके कारण अहाना की नैया बीच मझधार में अटकी हुई थी। इंकार होता तो अगला रिश्ता देखते, पर अभी ये भी नहीं कर सकते थे। पर जैसे-जैसे इंतज़ार लंबा होता जा रहा था, इस रिश्ते से उनकी उम्मीद टूटती जा रही थी।

    वक़्त बेवक़्त आजकल उनके बीच यही बातें हुआ करती थीं और आज भी जब सब साथ बैठे तो यही बात उठी।

    "पापा, अब भी उनके तरफ़ से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है। दो दिन का कहा था और अब एक हफ़्ता होने वाला है। वो बात को बस टालते जा रहे हैं। न तो हाँ कहते हैं और न ही इंकार करते हैं, पर ऐसे तो बात नहीं बनेगी।

    आप उनसे फ़ोन करके सीधे से कहिये कि हमें साफ़-साफ़ जवाब दें कि उन्हें ये रिश्ता करना है या नहीं। उनके आस पर बैठे रहने से कोई फ़ायदा नहीं होगा। अगर वो इंकार करते हैं तो हम अहाना के लिए दूसरा रिश्ता ढूँढ़ेंगे।"

    द्रीशांत बेहद गंभीर था और बात भी ऐसी ही थी। सही कह रहा था, आख़िर कब तक वो उनके इंतज़ार में बैठे रहते? उन्हें कोई न कोई फैसला तो लेना था, जिसके लिए दूसरी तरफ़ से स्पष्ट जवाब आना ज़रूरी था।

    मामले की गंभीरता और उसकी बातों को समझते हुए, जितेंद्र जी ने माथे पर बल डालते हुए, विचलित स्वर में कहा,

    "बेटा, हम आपकी बात समझते हैं, पर आप भी हमारी बात समझने की कोशिश कीजिये। हम लड़की वाले हैं, पहले ही दो बार उनसे पूछ चुके हैं। हमारा ऐसे बार-बार फ़ोन करना ठीक नहीं होगा। इससे उन्हें लगेगा कि हम अपनी बेटी की शादी करके अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्ति पाने को बहुत बेताब हैं।

    ऐसा भी हो सकता है कि हमारे बार-बार फ़ोन करने पर वो सोचें कि हमारी बच्ची में कोई कमी है, इसलिए हम जल्दी से जल्दी उनकी शादी कर देना चाहते हैं। हमें धैर्य से काम लेना होगा, वरना बात बिगड़ सकती है और इससे अनु पर भी सवाल उठ सकते हैं।"

    "मैं आपकी बात समझ रहा हूँ पापा, पर वो भी तो समझें ना। न तो हाँ कह रहे हैं और न ही इंकार कर रहे हैं। बीच मझधार में लटकाया हुआ है हमें। फैसला बताने के बजाय बात को टालते जा रहे हैं। इसका तो यही मतलब हुआ ना कि उन्हें इस रिश्ते और हमारी अनु में कोई दिलचस्पी नहीं है। तो ऐसे में हम कब तक बिना किसी उम्मीद के उनके जवाब का इंतज़ार करते रहें?"

    "द्रीशांत ठीक कह रहा है जी। उस दिन रूपाली जी का व्यवहार हमें कुछ ठीक नहीं लग रहा था। हमें तो उसी दिन से शंका थी कि शायद उनकी ओर से इंकार ही होगा और इसलिए वो इतने दिनों से बात टाल रहे हैं। वरना अब तक जवाब दे चुके होते।"

    जयंती जी ने भी द्रीशांत की बात का समर्थन किया। अंतरा जो खामोशी से सबकी बातें इतने दिनों से बस सुनती ही आ रही थीं, आज उसने भी अपना मुँह खोल ही दिया।

    "पापा, मुझे तो लगता है कि हमें नंबर में लगाकर वो वहाँ दूसरी लड़कियाँ देखने लगे हैं, तभी हमें जवाब नहीं दे रहे। वरना फैसला लेने में इतने दिन लगते हैं?

    मैंने भी देखा था, वो आंटी बहुत चिढ़ी हुई सी लग रही थी, जैसे इस रिश्ते से खुश न हो। शायद उन्हें रिश्ता करना ही नहीं, इसलिए बात टालते जा रहे हैं। बिना किसी उम्मीद के उनके भरोसे बैठना बेवकूफ़ी होगी। आप अगर उन अंकल को फ़ोन नहीं करना चाहते तो मामू से बात कीजिये। वो तो अंकल को जानते हैं, वो उनसे बात कर लेंगे।"

    "आपके मामा जी ने ही कुछ दिन इंतज़ार करने को कहा है। इस बारे में हमारी उनसे कल ही बात हुई है। उनका कहना है कि ऐसा रिश्ता और ऐसा लड़का अनु के लिए हमें दूसरा नहीं मिलेगा। उनके परिवार में सब बहुत अच्छे और मिलनसार हैं, पर बहन जी थोड़ी सख़्त मिजाज हैं, पर दिल की वो भी बुरी नहीं हैं। हमारी अनु उस घर जाएगी तो खुश रहेगी। इसलिए जल्दबाजी में बात बिगड़ने से अच्छा होगा कि थोड़ा सब्र करें, वो एक-दो दिन में जवाब दे देंगे।"

    "सिर्फ़ मिजाज सख़्त नहीं है पापा, वो आंटी बहुत खड़ूस है और उतनी ही घमंडी भी है। मुझे तो वो ज़रा भी पसंद नहीं आई। अगर जीजी की शादी उस घर में हो गयी तो देखना वो बहुत सताएँगी जीजी को।" रूपाली जी को याद करते हुए अंतरा ने बुरा सा मुँह बनाया और साथ में अहाना के लिए अपनी चिंता भी ज़ाहिर कर दी। उसकी बात पर जयंती जी ने उसे बड़े ही प्यार से समझाया,

    "बेटा, सास ऐसी ही होती हैं। सास के रूप में माँ बहुत कम खुशनसीब लड़कियों को नसीब होती हैं और लड़कियों को रिश्तों में तालमेल बिठाकर, त्याग करके रिश्तों को निभाना होता है। ये सब समझने के लिए अभी तुम छोटी हो। पर अभी इतना समझ लो कि सास-ससुर कुछ वक़्त के लिए होते हैं और अगर जीवनसाथी अच्छा हो, आपका साथ दे तो रिश्ते निभ ही जाते हैं।

    अक्षय जी बहुत समझदार, शांत और सुलझे हुए व्यक्तित्व वाले हैं। अपने पैरों पर खड़े हैं, वो हर तरह से हमारी अहाना के काबिल हैं और उस परिवार में रूपाली जी को छोड़कर सबका स्वभाव मिलनसार है और सभी मृदुभाषी हैं। अगर अहाना उस घर की बहू बनेंगी तो उनके नसीब खुल जाएँगे, इसलिए महादेव से प्रार्थना करो कि वो हाँ बोल दें। वरना ऐसा लड़का हमारी अनु के लिए फिर नहीं मिलेगा।"

    अपनी माँ की बात सुनकर अंतरा ने मुँह बना लिया। अहाना जो अब तक खामोश बैठी सबकी बातें सुन रही थी, अब उसके लिए यहाँ बैठना दुश्वार हो गया। अपने कारण इतने दिनों से वो सबको परेशान होते देख रही थी, जिससे उसे खुद को बहुत तकलीफ होती थी।

    इस वक़्त उसे एहसास हो रहा था कि बेटी चाहे कितनी ही काबिल क्यों न हो, अपनी ज़िंदगी में कामयाब क्यों न हो जाए, पर जब तक माता-पिता उसका विवाह नहीं कर देते, उन्हें उसकी ज़िम्मेदारी से मुक्ति नहीं मिल जाती, वो उनकी चिंता का ही कारण बनती है और माता-पिता के दिल को सुकून उस दिन ही मिलता है जब वो अपनी बेटी का हाथ एक काबिल शख़्स के हाथों में सौंपकर उसे इज़्ज़त से अपने घर-आँगन से विदा कर दें।

    "माँ, हमें कल की क्लास की तैयारी करनी है, हम अपने कमरे में जाएँ?" अहाना बड़ी ही विनम्रता से उनके जाने की आज्ञा मांग रही थी। जयंती जी समझ रही थीं कि पिछले कुछ दिनों से सबके साथ वो भी परेशान है। इसलिए उन्होंने मुस्कुराकर उसे जाने की इज़ाज़त दे दी।

    अहाना उठकर अपने कमरे में चली आई। कुछ देर बालकनी में अकेली खामोश बैठी रही, फिर अपना फ़ोन उठाया और उसमें अक्षय की तस्वीर निकालकर देखने लगी।

    बीते दिनों में ऐसा एक दिन नहीं गया होगा जब उसने इस तस्वीर को कुछ पल खामोशी से न निहारा हो। जब फ़ोटो मिली थी तब तो इतने ध्यान से नहीं देखा था, पर अक्षय से हुई मुलाक़ात के बाद उसने उसकी फ़ोटो को बहुत ही गौर और बारीकी से देखा था।

    जिम में बनाई बॉडी नहीं थी, पर डॉक्टर था और खुद को फ़िट रखा हुआ था। गठीले बदन पर हल्के आसमानी रंग की फ़िटिंग की शर्ट, जिसकी स्लीव्स को कोहनी तक फोल्ड किया हुआ था, कॉलर के दो बटन खोले हुए थे और नीचे डार्क ब्लू जीन्स।

    चेहरे पर हल्की दाढ़ी, आँखों पर चश्मा, करीने से सेट किये बाल जो शायद हवा से बिखरकर उसके माथे पर आ गए थे। आत्मविश्वास से भरा गंभीर चेहरा और लबों पर सजी मंद मुस्कान। गज़ब का कॉम्बिनेशन था। उसके व्यक्तित्व में अलग ही आकर्षण था, जिसका असर अहाना पर भी होने लगा था।

    अहाना ने उस दिन से ही हर पल खुद को समझाया था कि इस रिश्ते से कोई उम्मीद न रखे, पर फिर भी अक्षय से हुई उस मुलाक़ात में अक्षय की बातें सुनने और उसके व्यवहार को देखने के बाद उसके दिल के किसी कोने में एक उम्मीद साँस लेने लगी थी।

    जिस तरह से अक्षय ने उससे पूछा था कि दहेज़ ना लेने पर क्या उसकी हाँ होगी? अहाना के मन में न चाहते हुए भी एक आस बँध गयी थी। अक्षय जाने-अनजाने में ही उसके दिल पर दस्तक दे गया था। अपने व्यक्तित्व के आकर्षण जाल में उसे बाँध गया था।

    जब-जब अहाना वो लम्हा याद करती, जब बिना किसी बात की परवाह किये, अपने अहम को त्यागकर सहजता से उसके कदमों के पास बैठकर उसकी साड़ी ठीक की थी, उसके दिल की धड़कनें थम जातीं और कुछ अलग से एहसास उसे व्याकुल कर जाते। अनचाहे तौर पर ही अक्षय का ख्याल उसके मन में आता और ज़हन में उसके साथ बिताए वो पल घूम जाते।

    ये जो उम्मीद की नाज़ुक डोर वो उस दिन से थामे जवाब का इंतज़ार कर रही थी, उसके बढ़ते इंतज़ार के साथ वो डोर भी उसके हाथ से फिसलती जा रही थी। जो आस अक्षय की बातों और व्यवहार के कारण आज भी ज़िंदा थी, अब ना-उम्मीदी तले दम तोड़ने लगी थी।

    अक्षय की तस्वीर को देखते हुए यही सब बातें उसके ज़हन में घूम रही थीं और अपने ख्यालों में गुम उसे एहसास ही नहीं हुआ कि कब उसकी आँखें नम हो गयीं। जब आँखों की नमी गालों पर फिसली, और गाल पर गीलेपन का एहसास होने पर अहाना चौंकते हुए अपने ख्यालों से बाहर आई। उसने तुरंत अपने गाल को अपनी हथेली से छुआ तो वही गीलापन उसकी उंगली पर भी लग गया।

    ये देखकर वो हैरान थी। उसने तुरंत अपने आँसुओं को पोछ लिया। हाथ उस तस्वीर को डिलीट करने को आगे बढ़े, पर फिर दिल ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। अहाना ने फ़ोन बंद करके रख दिया और खुद कमरे में चली आई। मन बहलाने के लिए नोवेल उठाई और पढ़ने बैठ गयी, पर मन नहीं लगा।

    कुछ देर बाद नोवेल भी बंद करके रख दी और दराज़ में रखी अपनी डायरी निकालकर वापिस बालकनी में चली आई। उंगलियों में पैन फँसाए काफ़ी देर तक कुछ सोचती रही, फिर अपनी आँखों को मूँद लिया।

    अक्षय चुपके से उन बंद पलकों के भीतर समा गया और उसकी आँखों में अपना अक्स देखकर मुस्कुराया। साथ ही अहाना के लब भी मुस्कुराए। कुछ पल बाद उसने अपनी आँखें खोली और उंगलियों के बीच फँसा पैन उस कोरे पन्ने पर उसके अनकहे ज़ज़्बाती को उकेरने लगी।


    कुछ अनकही सी अनुभूतियाँ मुझे तुझसे जोड़ती हैं,
    ज़िन्दगी की हर राह जैसे मुझे तेरी ओर मोड़ती है।
    ये इंतज़ार की घड़ियाँ हर लम्हा मेरा सब्र तोड़ती हैं,
    लाख समझाया मैंने खुद को कि तेरा मेरा साथ मुमकिन नहीं,
    पर तुझसे पुनः मिलन की आस साथ ना छोड़ती है।


    वो लफ़्ज़, वो अल्फ़ाज़ जो तूने कहे थे,
    वो तेरी निगाहों के सितम जो हमने खामोशी से सहे थे।
    वो पहला लम्हा जब तूने हमें छुआ था,
    उस लम्हे में कुछ अलग सा एहसास हमें हुआ था।
    दिल की धड़कनें बढ़ी थीं, साँसें भी कुछ चढ़ी थीं,
    पलकें हया सी झुकी थीं, कायनात भी पल भर को रुकी थी।


    वो एहसास, वो ज़ज़्बात हमें अब भी याद हैं।
    तू साथ न होकर भी जैसे हर लम्हा मेरे पास है।
    निगाहें हर रोज़ तुझे तकती हैं,
    पलकों तले तेरी मोहक छवि बसती है।
    जब-जब तेरे अधर मुस्कुराते हैं,
    एक मुस्कान मेरे लबों पर सजती है।


    जाने ये कैसे एहसास हैं,
    लगता है तू हमें हमारे अपनों सा खास है।
    जैसे कोई रिश्ता सा जुड़ा है तुझसे,
    एक बंधन से बँधा है तू मुझसे,
    जिसका कोई नाम, न कोई पहचान,
    बस है तो कुछ अनकहे एहसास और अधूरे से ख्वाब।

  • 16. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 16

    Words: 1997

    Estimated Reading Time: 12 min

    "भैया," अचानक आई आहाना की आवाज़ सुनकर द्रीशांत तुरंत पीछे मुड़ा। आहाना उसके कमरे के बाहर खड़ी थी।

    "हाँ अनु, क्या हुआ?"

    "हम अंदर आ जाएँ भैया?"

    अहाना ने अंदर आने की इज़ाज़त मांगी। द्रीशांत ने तुरंत मुस्कुराकर कहा, "आजा गुड़िया।"

    अहाना धीमे कदमों से चलते हुए उसके पास आई और उसके सामने निगाहें झुकाकर खड़ी हो गई।

    "क्या हुआ अनु? कोई बात तुम्हें परेशान कर रही है? तुम इतनी उदास क्यों लग रही हो?" उसकी झुकी पलकें, माथे पर पड़ी सिलवटें और तनावपूर्ण चेहरे को देखते हुए द्रीशांत ने चिंतित स्वर में बड़े ही प्यार से सवाल किया।

    आहाना ने पलकें उठाकर नम आँखों से उसे देखा और धीमे स्वर में बोली,

    "भैया, हमने एक गलती कर दी है।"

    "कैसी गलती गुड़िया?" द्रीशांत ने प्यार से उसकी भीगी आँखों को पोंछते हुए सवाल किया। आहाना ने एक बार फिर अपनी पलकें झुका लीं और रुँधे स्वर में बोली,

    "भैया, आप सबकी परेशानी की वजह हम हैं। हमारे कारण वहाँ से कोई जवाब नहीं आ रहा। हमने बहुत बड़ी गलती कर दी, जिसके बाद शायद वो हमसे कभी रिश्ता नहीं जोड़ेंगे और आप सबका इंतज़ार, इंतज़ार ही रह जाएगा।"

    आहाना की बातें सुनकर द्रीशांत के माथे पर बल पड़ गए। कुछ गलत होने की आशंका मन में जन्म लेने लगी। द्रीशांत ने आहाना के चेहरे को अपनी हथेलियों में भरते हुए अपने सामने किया और चिंतित स्वर में बोला,

    "अनु, क्या हुआ गुड़िया? तू ऐसे क्यों बोल रही है? किस गलती की बात कर रही है तू? अपने भाई को बता।"

    आहाना ने अपनी भीगी पलकें उठाकर उसे देखा और सुबकते हुए बोली,

    "आपने हमें लड़के से दहेज़ के बारे में कुछ भी बात करने से मना किया था, पर उस दिन हमने उन्हें साफ़-साफ़ शब्दों में कह दिया था कि अगर वो दहेज़ लेंगे तो हम उनसे शादी नहीं करेंगे, लालच की ज़मीन पर अपने किसी नए रिश्ते के बीज नहीं बोएँगे।

    शायद हमारी उसी बात के कारण अब तक वहाँ से कोई जवाब नहीं आया है और आगे भी नहीं आएगा। तो आप लोग उम्मीद छोड़ दीजिये। अब वो रिश्ता नहीं जुड़ेगा।"

    आहाना के इस खुलासे ने द्रीशांत को गहरा सदमा दिया। पहले तो वो शॉक्ड सा उसे देखता रहा, फिर जब उसके कानों में आहाना की सिसकियों की आवाज़ पड़ी तो उसने खुद को संभाला और आहाना को अपने सीने से लगा लिया।

    "कोई बात नहीं। तुमने कुछ गलत नहीं किया। तुम्हारे कहने के बावजूद हम सब तुम्हें खाली हाथ तो विदा नहीं करते। फिर भी, अगर सिर्फ़ दहेज़ के कारण वो इस रिश्ते से मुकरते हैं तो अच्छा हुआ जो तुमने पहले ही ये बात कर ली। उनका लालच हमारे सामने आ गया और तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद होने से बच गई।

    हमें ऐसी जगह तुम्हारा रिश्ता करना ही नहीं जिनके लिए तुम, तुम्हारे गुणों से ज़्यादा एहमियत तुम्हारे साथ आने वाले दहेज़ की हो। हमें तुम्हारी शादी करवानी है, पर तुम हम पर बोझ नहीं, किसी ऐसे लालची लोगों के बीच तुम्हें भेज दें।

    फिर मेरी बहन के लिए लड़कों की कोई कमी नहीं। महादेव की कृपा से इतनी प्यारी, मासूम सूरत है, हर गुण से परिपूर्ण, इतनी समझदार है। तुम्हारे लिए हम इससे भी अच्छा रिश्ता ढूँढ़ेंगे और तुम्हें ऐसे घर में भेजेंगे जहाँ तुम्हारे गुणों की कदर की जाएगी।

    चलो अब रोना बंद करो। मैं पापा से बात करके कह दूँगा कि हमारे तरफ़ से इंकार कर दें, अगर उन्हें सीधे से न करने में शर्मिंदगी महसूस हो रही है तो हम ही बात खत्म कर देंगे।"

    द्रीशांत की आख़िरी बात सुनकर एक टीस सी उठी थी मन में, अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस हुआ। शायद ख्वाबों में उन अधूरे एहसासों और ज़ज़्बातों का जो महल उसने बनाया था, वो ताश के पत्तों के बने घर जैसे टूटकर बिखर गया और उन अधूरे ज़ज़्बातों के कीर्चे दिल में चुभकर दर्द का एहसास करवा रहे थे।

    कितना रोका था उसने कि जो ज़िन्दगी में शामिल नहीं हो सकता उसे दिल में नहीं बसाना, पर जाने कब वो चुपके से आकर उसके दिल में घर कर गया, उसे एहसास तक नहीं हुआ। शायद उसी पल दिल उसकी तरफ़ झुक गया था जब वो उसके आगे झुका था।

    शायद ये अनकहे से एहसास उसी पल अपना वजूद तलाश चुके थे जब अक्षय की नज़रें उस पर ठहरी थीं। जो एक खूबसूरत सा एहसास था, जो चंद पलों के लिए उसके हिस्से आया था, ये तकलीफ़देह था, पर आहाना ने अपने ज़ज़्बातों को मारकर इस हक़ीक़त को स्वीकार कर लिया था।


    सारा दिन गुज़र गया था। उनके जवाब के इंतज़ार में एक दिन और पहाड़ सा गुज़रा था, पर आज दो लोग थे जिन्हें कोई इंतज़ार नहीं था।

    एक आहाना, जिसने खुद को समझा लिया था कि यही उसकी नियति है। दूसरा द्रीशांत, जिसने ये जानने के बाद इस रिश्ते से मुँह मोड़ लिया था कि दहेज़ के कारण वो लोग बात टाल रहे हैं। वो इंतज़ार में था कि सही वक़्त देखकर जितेंद्र जी से बात करे।

    शाम का वक़्त था। द्रीशांत ने पल्लवी को कॉल करके बुलवा लिया था और अंतरा और आहाना को उसके साथ शॉपिंग पर भेज दिया था, साथ निशांत भी गया था।

    बीते दिनों आहाना बहुत गुमसुम और उदास सी रहती थी, इसलिए जयंती जी ने भी उन्हें पल्लवी के साथ जाने की इज़ाज़त दे दी।

    इस वक़्त घर में सिर्फ़ द्रीशांत, जितेंद्र जी और जयंती जी थे। ड्राइंग रूम में बैठी जयंती जी रात के लिए सब्ज़ी काट रही थीं। जितेंद्र जी के साथ द्रीशांत न्यूज़ सुन रहा था और साथ ही ये भी सोच रहा था कि कैसे बात की शुरुआत करे?

    द्रीशांत ने कुछ देर सोचा, फिर जैसे ही बोलने के लिए उनकी ओर मुड़ा, अचानक ही जितेंद्र जी का फ़ोन बज उठा। उन्होंने टेबल पर रखा फ़ोन उठाकर देखा तो स्क्रीन पर अभिजीत जी का नाम चमक रहा था।

    इतने दिनों में पहली बार सामने से उन्होंने फ़ोन किया था, इसलिए पहले तो जितेंद्र जी कुछ हैरान हुए, फिर उनके मन में उम्मीद की एक किरण जली और उन्होंने तुरंत ही टीवी बंद करते हुए कॉल रिसीव किया।

    "नमस्कार भाई साहब, कैसे हैं आप? अब तबीयत कैसी है आपकी?"

    "नमस्कार भाई साहब। महादेव की कृपा से अब हम बिलकुल ठीक हैं। आप बताइये क्या हाल है वहाँ के?"

    "महादेव के आशीर्वाद से सब कुशल मंगल है। आपके वहाँ सब कैसे हैं?" जितेंद्र जी ने सहज भाव से मुस्कुराते हुए जवाब दिया और साथ ही सवाल भी पूछ लिया।

    "यहाँ भी सब कुशल मंगल है।" दोनों के बीच अभी बस औपचारिक ही बातें हो रही थीं। द्रीशांत और जयंती जी दोनों के आँख-कान उन पर टिके थे। जितेंद्र जी अब समझ नहीं सके कि आगे क्या कहें, मन में सवाल था पर पूछने में हिचकिचा रहे थे, पर उनके उस सवाल का जवाब बिना पूछे ही अभिजीत जी ने दे दिया था।

    "सबसे पहले तो हम आपसे माफ़ी चाहते हैं कि आपसे इतने दिन इंतज़ार करवाया, पर हमारी भी कुछ मजबूरियाँ थीं।"

    अभिजीत जी कुछ शर्मिंदा से लगे, जिसे जितेंद्र जी ने महसूस किया और सहजता से बोले,

    "कोई बात नहीं भाई साहब, हम समझते हैं। आप बताइये कैसे फ़ोन किया आपने?"

    कुछ-कुछ अंदाज़ा तो उन्हें हो गया था, पर फिर भी वो उनसे बात सुनना चाहते थे। अभिजीत जी ने अब मुस्कुराकर जवाब दिया,

    "हमने आज आपको ये खुशखबरी सुनाने के लिए फ़ोन किया है कि हमें और हमारे परिवार को आपकी बिटिया बहुत पसंद आई। हम आहाना को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। ये रिश्ता हमें मंज़ूर है और अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो हम चाहते हैं कि नज़दीक का जो भी अच्छा मुहूर्त निकलता है, उस पर आप अपने संबंधियों संग हमारे यहाँ पधारें और अक्षय का तिलक करते हुए इस रिश्ते को पक्का कर दें।

    फिर हम भी अच्छा सा मुहूर्त देखकर अपनी बहू का रोका कर लेंगे और हम तो सोच रहे थे कि रोके के साथ बच्चों की सगाई भी करवा दें, उसके बाद जब आप कहेंगे हम बारात लेकर आपके द्वारे आ जाएँगे अपनी बहू को लेने।"

    जितेंद्र जी को तो जैसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस रिश्ते के टूटने की उन्हें पूरी आशंका थी, वो रिश्ता टूटते-टूटते जुड़ गया। उन्होंने आहाना को अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया। उनकी बेटी का रिश्ता तय हो गया, वो भी उस वर से जो उन्हें अपनी बेटी के लिए सबसे बेहतर लगा था।

    अभिजीत जी की बात सुनकर उनकी कितनी बड़ी चिंता ख़त्म हो गई थी। बीते दिनों से जिस चेहरे पर चिंता और तनाव के भाव नज़र आया करते थे, ये खुशखबरी सुनकर उस चेहरे पर सुकून और खुशी के भाव उभर आए और ये खुशी उनके लिए बहुमूल्य थी।

    "आपने ये खुशखबरी सुनाकर हमें धन्य कर दिया। हमारी बेटी नसीबों वाली है जो महादेव की कृपा से उन्हें इतना अच्छा घर और सुयोग्य वर मिलने जा रहे हैं। बहुत-बहुत आभार आपका हमारी बेटी को स्वीकार करने के लिए। आप जब कहेंगे हम तिलक के लिए आ जाएँगे।"

    "आभार तो हमें आपका व्यक्त करना चाहिए भाई साहब, जो अपनी इतनी समझदार, गुणी और प्यारी बिटिया आप हमें सौंपने को राजी हो गए। हमारा बेटा खुशनसीब है जो उन्हें आहाना जैसी जीवनसंगिनी मिलने जा रही है और उन्हें अपनी बहू के रूप में पाकर हम भी धन्य हो जाएँगे। इसके लिए हम आपका जितना आभार व्यक्त करें उतना कम है।"

    द्रीशांत अब लगभग पूरी बात समझ गया था, इसलिए उसके चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए थे। उसने जितेंद्र जी को दहेज़ के बारे में पूछने को कहा और साथ ही फ़ोन भी स्पीकर पर डाल दिया।

    आहाना की बातें सुनने के बाद उसे लगा था कि अब ये रिश्ता नहीं होगा, पर अब जो हो रहा था उसने उसको उलझन में डाल दिया था। वो अपने शक को जाँच रहा था। उसका इशारा समझते हुए जितेंद्र जी ने गंभीरता से सवाल किया,

    "भाई साहब, हमें तो रिश्ता पहले ही मंज़ूर था। अक्षय जी हमें हमारी बिटिया के लिए सुयोग्य वर लगे। अब आपने भी हमारी बिटिया को स्वीकार कर लिया तो लेने-देने की बात हो जाती तो अच्छा होता, उस हिसाब से हम आगे का फैसला लेते।"

    जितेंद्र जी ने भूमिका बाँधते हुए मुख्य सवाल पूछा और दूसरी तरफ़ से जवाब बड़ा सरल आया,

    "लेने-देने की बात करें तो भाई साहब, हम भिक्षुक बनकर आपके द्वारे आएंगे, आप अपने जीवन भर की जमा पूँजी, अपनी बिटिया हमें दान कर दीजियेगा, बस इससे ज़्यादा हमें आपसे कुछ नहीं चाहिए… दहेज़ में एक रुपया नहीं लेंगे हम आपसे, बस हमें हमारी बहू दे दीजियेगा, हमारे लिए वही बहुमूल्य है।"

    अभिजीत जी का जवाब सुनकर जितेंद्र जी का दिल खुशी से गदगद हो गया। हालाँकि वो हैरान भी थे, पर उनकी सोच के कायल भी हो गए थे। जयंती जी की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था।

    आहाना के भविष्य की चिंता उन्हें दिन-रात सताती थी, पर अब उसका रिश्ता तय होने वाला था। वो भी ऐसे परिवार में जिन्होंने उन बेजान नोटों से ज़्यादा एहमियत उनकी बेटी को दिया था, जो उनसे लाखों का दहेज़ नहीं, बस इज़्ज़त से उनकी बेटी मांग रहे थे।

    इन दोनों से अलग द्रीशांत बेहद हैरान था। उसे तो लगा था कि वे लालची लोग हैं, इसलिए दहेज़ न मिलने पर रिश्ता टाल रहे हैं, पर यहाँ न सिर्फ़ उन्होंने रिश्ते के लिए हाँ कहा, बल्कि उन्होंने तो दहेज़ में एक रुपया तक लेने से साफ़ इंकार कर दिया था।

    मतलब साफ़ था कि उसने उन्हें गलत समझा। वे लालची नहीं, अच्छे और नेक लोग हैं। उन्हें आहाना के साथ आने वाले दहेज़ से नहीं, सिर्फ़ आहाना से मतलब है। द्रीशांत की हैरानी अब उसकी खुशी में बदल गई थी। अपनी बहन के लिए ऐसा ही परिवार चाहिए था उन्हें।

    यहाँ सभी खुश थे। जितेंद्र जी आगे के बारे में उनसे बात करने लगे। जयंती जी मन ही मन महादेव को नमन करने लगीं। द्रीशांत तो आहाना के बारे में सोच रहा था कि जब उसे ये सब पता चलेगा तो कितनी खुश होगी वह। ऐसे ही हमसफ़र की ख्वाहिश थी उसे और महादेव ने उसे उसकी दुआओं और भक्ति के फल के रूप में अक्षय दे दिया था।


    क्या रिएक्शन होगा आहाना का जब उसे इस बारे में पता चलेगा?

  • 17. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 17

    Words: 2285

    Estimated Reading Time: 14 min

    अक्षय अपने कमरे में बैठा था। बाहर की सारी बातें सुनने के बाद वो यहाँ आया था, तन्हाई में कुछ पल खुद के और आहाना की यादों के साथ बिताने।

    इतने दिनों से दिल जिस भय के साये में तड़प रहा था, उस भय के साये अब छटते नज़र आ रहे थे। भले ही अभी ऐसी कोई रस्म नहीं हुई थी जिससे दोनों एक-दूसरे के कहलाते, पर जिससे दिल जुड़े थे, आज उससे रिश्ता भी जुड़ गया था और यही उसकी ख़ुशी की वजह थी।

    बड़ी मुश्किलों के बाद उसके जीवन में ये पल आया था। उस दिन कार में रूपाली जी का रवैया देखने के बाद तो उसे ना के बराबर ही चान्सेस नज़र आ रहे थे कि वो आहाना को स्वीकार करेंगी, इसलिए वो इतना बेचैन था। पर अब उसके दिल की गहराइयों तक सुकून उतर गया था।

    जिस पर नज़रें ठहरी थीं, जिसने दिल पर दस्तक दी थी, उससे जुड़ने का एहसास ही कुछ अलग सा था। जिसे शब्दों में बयाँ करना नामुमकिन था।

    अक्षय अभी तन्हाई में अपनी ख़ुशी को ठीक से सेलिब्रेट भी नहीं किया था कि अन्वय और फलक ने उसके कमरे पर धावा बोल दिया।

    "कॉन्ग्रेचुलेशन्स भाई! आख़िरकार आपका रिश्ता आहाना भाभी से जुड़ ही गया।" दोनों ने एक साथ ही ख़ुशी से चहकते हुए उसे बधाई दी और उनकी बात सुनकर अक्षय हौले से मुस्कुरा दिया।

    "वैसे अभी ऑफिशियली वो भाभी नहीं बनी है क्योंकि अभी तो बस बात ही हुई है। ऐसी कोई रस्म नहीं हुई जो उन्हें भाई से जोड़े और वो हमारी भाभी कहलाएँ।" अन्वय ने काउच पर पसरते हुए कहा। उसकी बात सुनकर फलक भी उसके बगल में पसरते हुए बोली,

    "कोई रस्म नहीं हुई तो क्या हुआ? सुना नहीं तुमने? पापा ने साफ़-साफ़ बात कर ली है कि आहाना भाभी हमें पसंद हैं। उन्हें ही अक्षय भैया की पत्नी और इस घर की बहू बनाया जाएगा और बहुत जल्द वो लोग आएंगे, भैया का तिलक करके रिश्ता पक्का करने। फिर हम लोग भी जाएँगे उनका रोका करने और साथ ही भैया से उनकी सगाई भी होगी।"

    फलक ने खनकती आवाज़ में अभिजीत जी की कही बातें दोहराई थीं और इसका बहुत गहरा असर अक्षय पर देखने को मिला था।

    आहाना के ख्याल से उसकी धड़कनें बेतरतीब हुई थीं, उससे जुड़ने और फिर से मिलने के ख्याल से चेहरे की रंगत बदली थी, ख़ुशी की चमक उसके आकर्षक चेहरे पर बिखरी थी और लबों के कोने उसकी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए अलग अंदाज़ में मुड़े थे। एक मंद मुस्कान अधरों पर ठहरी थी और पलकों तले भविष्य के सुनहरे ख्वाब सजने लगे थे जिनमें आहाना शामिल थीं।

    अन्वय और फलक दोनों ने अक्षय को यूँ खुद ही खुद में मुस्कुराते हुए खोया देखा तो नज़रें घुमाकर एक-दूसरे को देखा और अगले ही पल एक-दूसरे को ताली देते हुए बोले,

    "भैया तो भाभी के प्यार में पूरे दिवाने बन गए।"

    "प्रेम रोग लगा है, असर तो दिखेगा ही। अब इनका कुछ नहीं हो सकता, इस रोग के पागलपन का असर इन पर भी दिखने लगा है।"

    दोनों खी-खी करके हँसने लगे, जबकि उनकी बातें कानों में पड़ते ही अक्षय के चेहरे के भाव बदल गए थे। उसने भौंह सिकोड़कर दोनों को घुरा,

    "तुम दोनों पिटना चाहते हो अभी मुझसे?"

    धमकी भरा लहज़ा था और वार्निंग भरी निगाहें उन्हें घूर रही थीं। दोनों ने अपनी जान की ख़ैर मानते हुए तुरंत इंकार में सर हिलाया और एकदम शरीफ़ बच्चे बनकर बैठ गए।

    "नहीं-नहीं। अब हम कोई शरारत नहीं करेंगे और आपको भाभी का नाम लेकर छेड़ेंगे भी नहीं।"

    दोनों ने अपनी तौबा की, वरना अक्षय के हाथों अच्छी खासी कुटाई होती और कोई बचाने भी न आता। अक्षय कुछ पल उन्हें घूरता रहा, फिर उखड़े स्वर में बोला,

    "क्यों आए हो दोनों यहाँ?"

    "हम तो आपको बधाई देने आए थे, इतनी परेशानियों और अड़चनों के बाद भाभी से आपका रिश्ता जुड़ा है।"

    "हाँ, हम आपको बधाई देने और आपकी ख़ुशी में शामिल होने आए थे।"

    दोनों ने अच्छे बच्चों जैसे झट से अपने आने की सफ़ाई पेश कर दी। अक्षय के चेहरे के भाव अब कुछ कोमल हो गए थे।

    "दे दी बधाई तो अब चलो निकलो।" रूखे अंदाज़ में उसने दोनों को लताड़ा था। शायद वो ये वक़्त अपने, अपनी तन्हाई और आहाना की यादों संग बिताना चाहता था।

    अक्षय के यूँ जाने को कहने पर दोनों उठने की जगह और जमकर बैठ गए और नाराज़गी से मुँह फुला लिया।

    "आपको नहीं लगता भाई आप हमारे साथ कुछ ज़्यादा ही सख्ती दिखा रहे हैं?"

    "बिलकुल, सिर्फ़ सख्ती ही नहीं दिखा रहे बल्कि हमारे साथ ज़्यादती कर रहे हैं। हमने कितना सपोर्ट किया मम्मी-पापा के सामने भाभी को, इतनी कोशिश की ताकि इनका रिश्ता भाभी से जुड़ जाए, पर यहाँ तो हमारी किसी को कोई कदर ही नहीं है। अपना काम बनते ही कैसे दूध में पड़ी मक्खी जैसे निकालकर फेंक दिया हमें।"

    "सही कहते हैं लोग, भलाई का तो कोई ज़माना ही नहीं रह गया है। सब के सब एहसानफ़रामोश हो गए हैं और सबसे बड़े एहसानफ़रामोश तो हमारे सामने ही सीना ताने बैठे हैं।"

    फलक और अन्वय अक्षय को खूब सुनाने में लगे थे और साथ ही ऐसा दिखा रहे थे जैसे दुनिया भर का दुःख उनकी झोली में आ गिरा हो।

    अक्षय पहले तो खामोशी से अपने भाई-बहन की इन हरकतों को देखता रहा, उनकी बात सुनता रहा, फिर खीझते हुए बोला,

    "अच्छा-अच्छा, दोनों अपनी ये नौटंकी और इमोशनल ब्लैकमेलिंग बंद करो। बको क्या चाहिए तुम्हें जिसके लिए इतनी ओवर एक्टिंग करके मेरा दिमाग खा रहे हो?"

    ये सुनते ही दोनों के चेहरे के भाव एकदम से बदल गए। सारी उदासी और मायूसी पहली फ़ुर्सत में गायब हुई और ख़ुशी और उत्सुकता से उनका चेहरा खिल उठा। मौक़ा हाथ आते ही दोनों ने बिना एक पल गँवाए तुरंत ही फ़रमाइशें झाड़ीं।

    "ट्रीट, वो भी हमारी पसंद की जगह।"

    "और मैन्यू भी हम डिसाइड करेंगे और पेमेंट आप करेंगे।"

    "वो भी आज।"

    अक्षय ने अपने चालाक भाई-बहनों को देखा जो मौक़े का फ़ायदा उठाने से कभी बाज़ नहीं आते। अफ़सोस से गहरी साँस छोड़ी और उनसे अपनी जान छुड़ाने के लिए हामी भर दी।

    "ठीक है, आज शाम को चलेंगे। अब दोनों निकलो मेरे कमरे से।"

    उसकी बात सुनकर फलक ने फ़ौरन मुँह बनाते हुए आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा।

    "ऐसे कैसे निकल जाएँ? हम सिर्फ़ इसलिए थोड़े ना आए थे, आपसे बात भी तो करनी थी हमें। बिना बात करे थोड़े ना जाएँगे।"

    "क्या बात करनी है तुम दोनों चंगू-मंगू की जोड़ी को मुझसे?" अक्षय ने भौंह सिकोड़ते हुए दोनों से सवाल किया। अन्वय और फलक ने एक-दूसरे को देखा, फिर मुस्कुराकर वापिस अक्षय का रुख किया।

    "भैया, अब तो सच बता दीजिये। भाभी पहली नज़र में पसंद आ गई थी ना आपको, तभी तो उन्हें देखने जाने को इतनी आसानी से तैयार हो गए थे।"

    फलक के इस सवाल पर अक्षय ने बेफ़िक्री से जवाब दिया,

    "जब जवाब जानती हो तो ये सवाल क्यों?"

    "क्योंकि आपके मुँह से सुनना है।"

    फलक ने भी हाज़िर जवाबी दिखाते हुए तुरंत ही सवाल किया और जवाब में अक्षय ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया,

    "उनमें नापसंद आने वाला कुछ था ही नहीं।"

    "हाँ, ये बात भी सही है। इतनी प्यारी दिखती हैं कि किसी का भी दिल उन पर फिसल जाए।" अन्वय ने उसकी बात पर सहमति जताई और आहाना को याद करते हुए मुस्कुरा दिया। आहाना के ज़िक्र से अक्षय के लबों पर भी हल्की मुस्कान उभर आई।


    "भाई, एक सवाल का सच-सच जवाब दीजिये।"

    कुछ पल ठहरने के बाद अन्वय ने गंभीर स्वर में कहा। उसे सीरियस देखकर अक्षय ने भौंह उछालते हुए सवाल किया,

    "कैसा सवाल?"

    "अगर मम्मी आहाना जी, मतलब हमारी होने वाली भाभी से आपका रिश्ता करवाने से इंकार कर देतीं तो आप किसी और से शादी कर लेते?"

    अन्वय का सवाल सुनकर उसके चेहरे पर उलझन भरे भाव उभर आए।

    "पता नहीं। शायद नहीं कर पाता।"

    "फिर आपने ऐसा क्यों कहा था मम्मी को? सीधे से कहते कि आपको भाभी पसंद हैं और आपको उन्हीं से शादी करनी है।"

    "अन्वय, जितना आसान तुम समझते हो ना, हकीक़त में सब उतना आसान होता नहीं है। कुछ भी कहने, सुनने और करने से पहले बहुत सी बातों का ख़्याल रखना पड़ता है।"

    "जैसे?"

    "जैसे कि मैंने दहेज़ ना लेने पर इतना ज़ोर देकर और ज़िद करके मम्मी को पहले ही नाराज़ कर दिया था। वो मानी भी सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मैंने शादी करने से ही इंकार कर दिया था।

    अगर तब मैं कहता कि मुझे आहाना पसंद हैं और मैं उन्हीं से शादी करना चाहता हूँ तो माँ जो पहले से उनके लिए मन में नाराज़गी भरे बैठी थी, वो हर बात के लिए सीधे उन्हें ही ज़िम्मेदार ठहराती।.....

    प्रेम विवाह से सख्त नफ़रत है उन्हें, वो पहले तो इस रिश्ते के लिए मानती नहीं, आहाना को गलत समझती और अगर मेरी ज़िद पर उन्हें इस घर में मेरी पत्नी बनाकर ले भी आती तो दिल से अपनी बहू के रूप में उन्हें अपना नहीं पाती।

    अपनी नाराज़गी और गुस्सा उन पर निकालती, उनके साथ सख्ती से पेश आती जिससे उनके लिए हालात मुश्किल हो जाते। उनकी मुसीबतें बढ़ जातीं। इसलिए मैंने साफ़ तौर पर उनका नाम नहीं लिया। शायद इससे उनकी राह कुछ आसान हो जाए क्योंकि मम्मी के लिए तो मैं उसी लड़की से जुड़ने जा रहा हूँ जिसे उन्होंने और पापा ने पसंद किया है मेरे लिए।"

    "पर मुझे ऐसा नहीं लगता। मम्मी उन्हें आड़े हाथों ही लेंगी क्योंकि उनके कारण पापा मम्मी के ख़िलाफ़ गए, आपने भी विरोध किया और भाभी उनकी पसंद नहीं, पर मजबूरी है कि वो कोई कमी बताकर उन्हें रिजेक्ट नहीं कर सकी तो एक्सेप्ट करना पड़ा।"

    दोनों भाइयों के बीच फलक ने अपना पॉइंट रखा तो माथे पर बल डाले दोनों उसे देखने लगे। फलक बेहद गंभीर थी। अक्षय ने उसकी बात सुनी तो पहले तो परेशान हो गया।

    "मम्मी अभी नाराज़ हैं पर धीरे-धीरे ठीक हो जाएँगी। वैसे भी उन्हें परेशानी आहाना से नहीं बल्कि उनके भैया के लव मैरिज करने से है। जब आहाना इस घर में आएंगी तो अपनी अच्छाइयों से उनका दिल भी जीत लेंगी।"

    "होप सो कि ऐसा ही हो।" अब उम्मीद ही थी। माहौल को गंभीर होते देखकर अन्वय के ज़हन में अचानक ही अंतरा का ख़्याल आया और उसने रहस्यमयी मुस्कान लबों पर सजाते हुए अक्षय को वार्न किया,

    "भाई, भाभी तो बहुत अच्छी हैं। बहुत प्यारी, स्वीट और इनोसेंट हैं पर आपकी होने वाली साली बहुत तेज़ है। ज़रा बचकर रहियेगा उससे।"

    "क्या मतलब? अंतरा ने क्या किया है जो तुम ऐसे बोल रहे हो?" अक्षय उसकी तरफ़ हैरानी से देखने लगा।

    "जहाँ तक मेरा अंदाज़ा है, वहाँ जाते हुए हमारी कार का टायर पंचर होना और उस अनजान लड़की का आपके पास आना, वो दोनों ही इत्तेफ़ाक़ आपकी साली साहिबा की करामात थी। वो वहीं छुपकर सब देख रही थी और जब मुझे देखकर वो लड़की सकपकाई तो उसने पलटकर उसे ही देखा था।"

    अन्वय की बात सुनकर पहले तो फलक और अक्षय दोनों ही आँखें बड़ी-बड़ी हैरान-परेशान से उसे देखते रहे, फिर अक्षय ने उसकी बात झुठला दी।

    "अन्वय, कुछ भी बोल रहा है तू। ज़रूर तुझे या तो कोई गलतफ़हमी हुई है या फिर तुझे उसे पहचानने में कोई गलती हुई होगी। वो तो घर पर थी और अगर वहाँ थी भी तो वो ऐसा क्यों करेगी?"

    "इस सवाल का जवाब तो आपकी प्यारी साली साहिबा ही देंगी। क्योंकि इस बात पर तो मैं 200% श्योर हूँ कि वो सब उसी का किया-धरा था और अब उसने ऐसा क्यों किया ये भी मैं उसी के मुँह से उगलवाऊँगा। आप बस देखते जाइये कि कैसे मैं उसके मुँह से उसका इक़बाले जुर्म करवाता हूँ।"

    अन्वय ने रहस्यमयी मुस्कान लबों पर सजाते हुए जुनूनियत भरे अंदाज़ में ये बात कही थी और उसके इरादों ने अक्षय के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी थीं।

    "अन्वय, देख वो आहाना की बहन है, उसके साथ कोई उल्टी-सीधी हरकत करने के बारे में सोचियो भी मत।"

    अक्षय ने लगभग चेतावनी दी थी उसे। अपने भाई के शैतानी दिमाग और हरकतों से अच्छी तरह वाक़िफ़ था वो। अक्षय की चेतावनी को उसने हवा में उड़ा दिया और बेफ़िक्री भरे अंदाज़ में बोला,

    "चिल यार भाई। आपकी साली के साथ ऐसा-वैसा कुछ नहीं करने वाला मैं, पर इस बात को यूँ ही जाने भी नहीं देने वाला।"

    अक्षय उसे समझाता रहा पर अन्वय ने उसकी एक नहीं सुनी। कुछ देर बाद फलक और अन्वय का बाहर से बुलावा आया तो दोनों बाहर चले गए।

    अक्षय को अब जाकर तन्हा कुछ वक़्त मिला। उसने तुरंत जाकर दरवाज़ा बंद किया और बेड पर आकर बैठ गया। फ़ोन में आहाना की तस्वीर निकाली, उसकी झुकी पलकों पर एक बार फिर उसकी निगाहें ठहरीं और लबों पर दिलकश मुस्कान बिखर गई।

    "फ़ाइनली अब हमारा रिश्ता जुड़ गया। पता नहीं जब आपको ये न्यूज़ मिलेगी तो आपका कैसा रिएक्शन होगा, पर आज मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि वो लड़की जो पहली नज़र में मेरे दिल पर दस्तक दे गई थी, अब उससे मेरा रिश्ता जुड़ गया है और इसके साथ ही आपको खोने का डर भी मिट गया है। पर तड़प और बेचैनी अब भी यूँ ही बरक़रार है और ये शायद तब तक रहेगी जब तक कि आप मेरी दुल्हन बनकर मेरे पास नहीं आ जातीं।

    आपसे हुई पिछली मुलाक़ात और उससे जुड़े वो हसीन एहसास मैं आज तक नहीं भूला हूँ और अब मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा आपसे अपनी अगली मुलाक़ात का। उम्मीद करता हूँ कि तब तक आपके दिल में भी मेरे लिए ज़ज़्बाते पनप जाएँगे, मुझसे जुड़े इस रिश्ते का कुछ असर आप पर भी होगा।"

    अक्षय आहाना की फ़ोटो से यूँ बात कर रहा था मानो वो उसके सामने बैठी उसकी बातें सुन रही हो।

    आज से पहले किसी लड़की को इस नज़र से देखा नहीं था, ऐसा कोई रिश्ता नहीं बनाया था, उसके सारे ज़ज़्बाते और एहसास सिर्फ़ और सिर्फ़ आहाना के लिए थे, बेहद एक्साइटेड था वो और उतना ही ज़्यादा खुश भी, जिसका एहसास उसके चेहरे से बखूबी लगाया जा सकता था।

  • 18. इबादत - ए- इश्क़ <br>( The Arrange Marriage) - Chapter 18

    Words: 1919

    Estimated Reading Time: 12 min

    शाम की निकली आहाना रात आठ बजे घर वापस आई। उसके साथ अंतरा, निशांत और पल्लवी भी थे। चारों घर में कदम रखते ही किसी बात पर ठहाके लगाकर हँस रहे थे और उनकी हँसी पूरे शुक्ला निवास के आँगन में गूँज उठी।

    जैसे ही चारों अंदर आए, जयंती जी आकर आहाना को अपने सीने से लगा लिया। उन्होंने उसे ढेरों आशीर्वाद दिए और उसकी बलाएँ उतारीं। उसे लाड़ करते-करते वो भावुक हो गईं, मानो अभी ही उसकी विदाई हो रही हो।

    हँसी सबकी रुक चुकी थी और अब सब हैरान-परेशान से उन्हें देख रहे थे। आहाना तो उनके अचानक इस तरह के व्यवहार से उलझन में पड़ गई थी। पहले तो वो आँखें फैलाए स्तब्ध सी उन्हें देखती रही, फिर जब उनकी आँखों में आँसू देखे तो परेशान हो गई।

    "माँ, क्या हुआ? आप रो क्यों रही हैं?"

    आहाना को चिंतित होते देखकर जयंती जी ने प्यार से उसके गाल को छुआ और मुस्कुराकर बोली,

    "हम रो नहीं बेटा। ये तो खुशी के आँसू हैं। आज हम बहुत खुश हैं। महादेव ने हमारी भक्ति और प्रार्थनाओं का फल दे दिया आज। हमारी बेटी की ज़िंदगी खुशियों से भर दी। बस अब हमारी लाडो खुशी-खुशी अपने घर की हो जाए, यही मनोकामना है हमारी।"

    उनकी बातें आहाना के सर के ऊपर से गुज़र गईं। वो कंफ्यूज सी उन्हें देखने लगी, जबकि बाकी तीनों भी हैरान-परेशान से उन्हें ही देख रहे थे।

    जयंती जी की बातें सुनकर पल्लवी ने असमंजस भरी नज़रों से उन्हें देखते हुए सवाल किया,

    "माँ, हुआ क्या है ये तो बताइए। आप इतनी खुश क्यों हैं कि खुशी से रोने लगीं और आप अनु को इतनी दुआएँ किस खुशी में दे रही हैं? हमें तो आपकी कोई बात समझ नहीं आ रही।"

    जयंती जी ने उसका सवाल सुनकर प्यार से आहाना के सर पर हाथ फेरा और पल्लवी को देखते हुए मुस्कुराकर बोली,

    "बात ही खुशी की है बेटा। इतने दिनों से इतने परेशान थे हम सब, पर महादेव के घर देर है अंधेर नहीं। उन्होंने हमारी सारी परेशानियों को हर लिया, हमारी प्रार्थनाओं को कुबूल कर लिया। हमारी बिटिया का रिश्ता तय हो गया।"

    जैसे ही उन्होंने रिश्ता तय होने वाली बात कही, सभी चौंक गए। अंतरा ने हैरानगी से सवाल किया,

    "रिश्ता तय हो गया? इसका क्या मतलब हुआ माँ? किससे तय हो गया जीजी का रिश्ता और कब हुआ?"

    अब तक जितेंद्र जी और द्रीशांत भी वहाँ पहुँच चुके थे। अंतरा के इस सवाल का जवाब जितेंद्र जी ने दिया,

    "बेटा, कुछ देर पहले अभिजीत भाई साहब का फ़ोन आया था। उन्होंने इतने दिन इंतज़ार करवाने के लिए हमसे माफ़ी माँगी और साथ ही ये खुशखबरी भी सुनाई कि उन्हें आहाना पसंद है और वो हमारे परिवार से रिश्ता जोड़ना चाहते हैं। सारी बातें हो गई हैं हमारी, बस अब अच्छा सा वक़्त देखकर जाकर अक्षय जी का तिलक करके इस रिश्ते को पक्का करना है।"

    जितेंद्र जी की बात सुनकर सबकी आँखें अविश्वास से फैल गईं। उन्होंने तो इस रिश्ते से सारी उम्मीदें ही छोड़ दी थीं और अब अचानक जो खुशखबरी उन्हें मिली, उस पर विश्वास करना मुश्किल हो गया था।

    आहाना के सीने में मौजूद दिल एकाएक ज़ोरों से धड़क उठा और बेचैनी भरी निगाहें द्रीशांत की तरफ़ घूम गईं, जैसे उससे पूछना चाह रही हों कि क्या ये सच है? द्रीशांत उसकी आँखों में झलकते सवाल और उसके दिल की कशमकश को बखूबी समझ रहा था।

    उसने अपनी पलकें झपकाते हुए उसे आश्वस्त किया और हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोला,

    "पापा सच कह रहे हैं। उन्होंने रिश्ते के लिए हाँ कह दिया है। हमें तिलक करके इस रिश्ते को पक्का करने के लिए अपने घर आमंत्रित भी किया है और सबसे बड़ी बात उन्होंने दहेज में एक भी रुपया लेने से साफ़ इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि हमारी अनु बहुमूल्य है और उन्हें बस हमारी आहाना को अपने घर की बहू बनाना है, उसके बदले कोई दहेज नहीं चाहिए।"

    द्रीशांत ने आहाना के मन में मौजूद सभी सवालों के जवाब दे दिए थे। आहाना अब भी हैरान थी जबकि बाकी सभी खुश थे।

    आहाना के लिए ये सब एक खूबसूरत ख्वाब जैसा था और उसे लग रहा था जैसे पलक झपकते ही ये ख्वाब टूटकर बिखर जाएगा। अभी आहाना इस हकीकत पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर सकी थी कि निशांत उदास चेहरा बनाए उसके पास चला आया और मुँह लटकाते हुए बोला,

    "जीजी, अब आप हमें छोड़कर चली जाएँगी?"

    क्या जवाब देती आहाना उसके इस सवाल का, जब अब तक वो खुद इस हकीकत पर विश्वास नहीं कर सकी थी? आहाना उलझन भरी नज़रों से खामोशी से उसे देखती रही, जबकि पल्लवी उसे भावुक होते देखकर प्यार से उसके बाल पर हाथ फेरते हुए मुस्कुरा दी,

    "नहीं पगले। अभी तो बस रिश्ता तय हुआ है। इतनी जल्दी हम हमारी अनु को कहीं जाने थोड़े न देंगे। अभी तो वो यहीं रहेगी हम सबके साथ और हम ढेर सारा वक़्त एक साथ बिताएँगे। ढेर सारी मस्ती साथ करेंगे।"

    उसने निशांत को समझाया, फिर आगे बढ़कर आहाना को गले से लगा लिया। खुशी से उसका चेहरा खिल उठा था, आखिर उसकी बेस्ट फ्रेंड को इतना अच्छा और समझदार लाइफ पार्टनर मिलने जा रहा था।

    "कॉन्ग्रेचुलेशन अनु। आज मैं बहुत-बहुत-बहुत से भी ज़्यादा खुश हूँ तेरे लिए।"

    "जीजी, मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा कि वो ख़डूस आंटी इस रिश्ते के लिए मान गईं। जैसे वो गई थी मुझे तो लगा था कि पक्का उनके तरफ़ से इंकार ही आएगा। पर उन्होंने तो हाँ कह दी, वो भी बिना दहेज के। पर मैं भी बड़ी खुश हूँ। मुझे तो जीजू पहले ही पसंद हैं।"

    अंतरा ने अपनी हैरानी के साथ-साथ अपनी खुशी भी ज़ाहिर की, पर आहाना ने कुछ ख़ास रिएक्ट नहीं किया, बस टकटकी लगाए खामोशी से सबको देखती रही।

    उसे यूँ खामोश देखकर द्रीशांत उसके पास चला आया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए मोहब्बत से कहा,

    "अनु, तुम्हें अपने होने वाले जीवनसाथी से यही चाहत थी न कि वो तुम्हें स्वीकारे, तुमसे रिश्ता जोड़े। तुम्हारे साथ आने वाले दहेज से उसे कोई सरोकार न हो। तुम्हारे रिश्ते की इमारत दहेज की लालच की नींव पर न बनाई जाए।

    देखो, महादेव ने तुम्हारे लिए ऐसे शख्स को भेज दिया जिसने बिना एक बार सोचे दहेज को ठुकराकर तुम्हारा साथ चुना है... अब तो तुम खुश हो? तुम्हें इस रिश्ते से कोई एतराज तो नहीं? अक्षय जी तुम्हें पसंद तो हैं?

    तुम्हारे दिल में जो भी है हमें बताओ। अभी बस बात चली है। अगर तुम्हें इस रिश्ते से एतराज है, अक्षय जी तुम्हें नहीं पसंद, या अगर तुम इस रिश्ते से खुश नहीं तो बेझिझक मुझे बताओ। कोई तुम पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं डालेगा। हम बस तुम्हारी खुशी चाहते हैं।"

    द्रीशांत बड़े ही प्यार और अपनेपन से उसे समझा रहा था। उसे विश्वास दिला रहा था कि उसका भाई उसके साथ खड़ा है, उससे उसकी मर्ज़ी पूछ रहा था क्योंकि उसकी खामोशी उसे खटक रही थी।

    हालाँकि रिश्ता बहुत अच्छा था और जिस तरह आहाना के दहेज न लेने की शर्त को मान लिया गया था, इससे साफ़ ज़ाहिर था कि वो आहाना को अपनाने के लिए बेहद संजीदा है, पर फिर भी उसके लिए सबसे ज़रूरी उसकी बहन की मर्ज़ी और खुशी थी।

    द्रीशांत की बातें सुनकर सब माथे पर बल डाले, विचलित निगाहों से उसे देखने लगे। खुशी के जगह चेहरों पर परेशानी के भाव उभर आए थे। जबकि आहाना की बड़ी-बड़ी आँखों में गुलाबी पानी तैर गया था।

    "हाँ..... हम खुश हैं भैया।" उसके रुँधे गले से बस चंद शब्द बाहर आए और अपने भाई का प्यार महसूस करते हुए उसका गला भर आया। उसने आगे बढ़कर उसके सीने में अपना चेहरा छुपा दिया। उसके जवाब ने सबके चेहरों की खोई रौनक और खुशी वापिस लौटा दी थी।

    द्रीशांत के लबों पर भी सुकून भरी मुस्कान फैल गई थी। आहाना को अपने सीने से लगाते हुए उसने प्यार से उसके सर को चूम लिया।


    रात के ग्यारह बज रहे थे और आहाना अपने कमरे की बालकनी में खड़ी, तारों से सजी चादर ओढ़े, आकाश में अल्साए से बैठे चाँद को एकटक निहार रही थी।

    काफ़ी देर से सोने की कोशिश कर रही थी, पर नींद आँखों से कोसों दूर थी। अंतरा कब की सो चुकी थी, पर आहाना का ध्यान आज जो हुआ उसमें अटका हुआ था।

    लड़कों वालों के तरह से आए जवाब के बाद उसके माँ-बाप कितने दिनों बाद आज उसे निश्चिंत और खुश नज़र आए थे। घर में चारों ओर जैसे खुशियों के रंग बिखरे थे, हर लब पर मुस्कान सजी थी, अलग ही रौनक लगी थी, मानो कोई तीज-त्यौहार हो।

    इस खुशी में पल्लवी के साथ उसके माता-पिता और परिवार भी शामिल हुआ था और सबने उसे ढेरों आशीर्वाद के साथ बधाई भी दी थी।

    वो भी खुश थी, सबकी खुशी देखकर उसके लब भी मुस्कुराए थे।

    इस वक़्त उसके दिलो-दिमाग़ पर अक्षय का ख्याल छाया हुआ था। आखिर इस खुशी की वजह तो वही था। आहाना के कानों में अक्षय की कही बात गूँज गई कि अगर दहेज नहीं लेंगे तो क्या उसकी हाँ होगी? ज़हन में ख्याल आया तो क्या इस रिश्ते के जुड़ने के लिए उसकी रखी शर्त को पूरा किया है उसने?

    दहेज लेने से इंकार क्या सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि उसने कहा था कि दहेज देकर शादी नहीं करेगी? सवाल था जवाब नहीं, पर जिस तरह अक्षय ने ये बात कही थी, उसके अंदाज़ को याद करते हुए आहाना का मन मीठे-मीठे एहसासों से भर गया था।

    ये एहसास था किसी के लिए इतना ख़ास होने का कि उसे अपना बनाने के लिए उसकी शर्त तक का मान रख लिया गया और ऐसा करना हर किसी के बस की बात नहीं। मतलब साफ़ था कि वो ख़ास है उसके लिए और वो उसे खोना नहीं चाहता।

    ये ख्याल मन को गुदगुदा गया और शर्म से बोझिल पलकें झुक गईं, गाल सुरख़ रंग में रंग गए और उन झुकी पलकों तले भविष्य के सुनहरे ख़्वाब सजने लगे।

    अक्षय पहले ही उसके दिल पर दस्तक दे गया था और उसकी इस हाँ ने जैसे आहाना को मजबूर कर दिया था उसके बारे में सोचने पर।

    अक्षय उसे दिल की गहराइयों में कहीं उतरता हुआ नज़र आया। मोहब्बत का तो पता नहीं, पर उसकी नज़रों में अक्षय की इज़्ज़त और उसका मान बहुत बढ़ गया था। दिल से सम्मान करने लगी थी वो उसका और उनके दरमियान इस रिश्ते की पहली नींव पड़ चुकी थी और वो था सम्मान।


    दूसरे तरफ़ अक्षय भी आज इतना खुश था कि नींद उसे भी नहीं आ रही थी। वो हाथ में फ़ोन पकड़े एकटक आहाना की तस्वीर को निहार रहा था। ये सादगी से लबरेज़ मासूम सी लड़की पहली नज़र में उसे अपनी ओर आकर्षित कर गई थी। झुकी पलकों तले नयनों के तीर चले जो सीधे अक्षय के दिल पर जाकर लगे।

    वो पहला एहसास उस मुलाक़ात के बाद और गहरा हो गया और अब तो जैसे ज़िंदगी के हर रंग उसे आहाना की ओर खींचने लगे थे।

    कुछ देर यूँ ही आहाना को निहारता रहा जो अब भी उसके सामने पलकें झुकाए खड़ी थी। उसे देखते हुए अक्षय को अचानक ही ख़्याल आया कि उस दिन भी कैसे नज़रें झुकाए खुद में सिमटी हुई सी बैठी थी वह। कभी गलती से नज़रें उठाई भी तो बस पल भर के लिए, फिर अपनी उन बड़ी-बड़ी सुरमई आँखों को पलकों के घने झालर तले छुपा गई।

    अक्षय ने नज़रें उठाई तो आकाश में चमकते चाँद में भी उसे वही मासूम सा चेहरा नज़र आया जो उसके दिल की गहराइयों में नक़्श हो चुका था और इसके साथ ही उसके लब बेसख़्ता मुस्कुराए थे।



    कोशिश की है दोनों के ज़ज़्बातों को दिखाने की। कामयाब हुई या नही ये तो अब आप ही बताएंगे।

  • 19. इबादत - ए- इश्क़ ( The Arrange Marriage) - Chapter 19

    Words: 2181

    Estimated Reading Time: 14 min

    कुछ दिन चुपके से सरक गए थे। बेचैनियाँ दोनों तरफ़ थीं, पर दोनों ने खामोशियाँ इख़्तियार कर रखी थीं। पर आज आहाना का दिल कुछ ज़्यादा ही बेचैन और बेकरार था।

    कल रात को जितेंद्र जी, द्रीशांत, निशांत, परिवार के बाकी मर्दों और कुछ दोस्तों के साथ रोके/तिलक के लिए प्रस्थान कर गए थे।

    बीते लगभग एक हफ़्ते से शुक्ला निवास में तिलक की तैयारियाँ जोरों-शोरों से चल रही थीं। ऐसा ही कुछ हाल दिल्ली में सहगल निवास में भी था।

    यहाँ दिल्ली जाने की तैयारी की जा रही थी। साथ जाने वालों को पहले से जानकारी दे दी गई थी। वहाँ परिवार में सबके लिए कपड़े और एक से एक तोहफ़े खरीदे गए थे। तिलक में अक्षय को देने के लिए सोने की अंगूठी, चैन, कपड़े से लेकर इस्तेमाल की हर छोटी-बड़ी चीज़ खरीदी गई थी। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि कहीं कोई कमी न रह जाए।

    कल भी ढेर सारी एक से एक मिठाइयाँ, फल और सूखे मेवे खरीदे गए थे। शगुन का सारा सामान लेकर परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों संग दिल्ली रवाना हुआ था।

    दिल्ली में ही मामा जी का घर था। आधी रात गए, वहाँ पहुँचे और रात भर वहीं ठहरे। सुबह सहगल निवास पहुँचना था उन्हें।

    सहगल निवास में भी बीते कई दिनों से खूब चहल-पहल और रौनक लगी थी। काम भी काफ़ी था। घर के बड़े बेटे का तिलक था, इसलिए सभी रिश्तेदारों को न्यौता दिया गया था।

    कल ही घर के बाहर टेंट लगवा लिया गया था, हलवाई को भी बुलाया गया था। परिवार वालों और रिश्तेदारों संग गली-मोहल्ले के लोगों और जानकारों के लिए भी तिलक के बाद खाने-पीने का इंतज़ाम किया गया था। तिलक की तैयारी भी खूब जोरों-शोरों से शुरू थी।

    खुश तो सभी थे, हालाँकि रुपाली जी शायद इस रिश्ते से संतुष्ट नहीं थीं, पर अपने बेटे के तिलक में वो भी कोई कमी नहीं छोड़ रही थीं।

    लड़की वाले जब यहाँ पहुँचे तो बड़े ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया गया। अभिजीत जी बड़े ही प्रसन्नता से जितेंद्र जी के गले लगे थे। द्रीशांत और निशांत ने हाथ जोड़कर आदर सहित उन्हें प्रणाम किया था। फलक भी अपने ससुराल वालों के संग वहाँ पहुँची हुई थी और बड़ी ही खुश थी। आगंतुकों के चाय-पानी का सब इंतज़ाम वहीं देख रही थी।

    ड्राइंग रूम में ही हवन-पूजन का इंतज़ाम किया गया था। बीच में हवन कुंड था और चारों तरफ़ कालीन बिछी थी। हवन कुंड के पास पंडित जी और अक्षय के लिए चौकी लगी हुई थी।

    अन्वय पंडित जी को लेने गया था। कुछ देर बाद पंडित जी को लेकर आया और सब मेहमानों को हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए अंदर चला गया।

    सब तैयारियाँ हो चुकी थीं। लड़की वालों की तरफ़ से आए मेहमान, जो पहले लड़के से नहीं मिले थे, उन्होंने मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। अभिजीत जी ने अन्वय को अक्षय को बुलाने भेज दिया।

    अन्वय अक्षय के कमरे में बेधड़क घुसा और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े अक्षय को देखकर मुस्कुराते हुए बोला,
    "चलिए भैया, आपके ससुराल वाले आ चुके हैं और उनकी अदालत में आपकी पेशी का हुक्म भी आ चुका है, मतलब, आपका बुलावा आ गया है। भाभी की ओर अपना पहला क़दम अब बढ़ा ही लीजिए।"

    पहला क़दम ही तो था ये उसका आहाना की ओर। आज रोका था उसका, उसका तिलक होना था, जो कि दुल्हन के परिवार में दूल्हे का दामाद के रूप में स्वागत करने का प्रतीक है। दूल्हा और दुल्हन के जीवन की नई यात्रा शुरू करने के लिए भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए घर में पूजा (हवन) आयोजित किया गया था और इन छोटी-मोटी रस्मों के बाद वो आहाना से जुड़ने वाला था।

    हालाँकि ये अभी बस शुरुआत थी, पर तिलक के बाद आहाना का उस पर और उसका आहाना पर अधिकार होगा। वो भावी जीवनसाथी कहलाएँगे, जिन्हें आगे चलकर शादी के पवित्र बंधन में बंधना था।

    ये सोचते हुए अक्षय का मन उमंगों और उत्साह से भर गया, आँखें खुशी से चमक उठीं और अधरों पर दिलकश मुस्कान बिखर गई, जिसे उसने छुपाने की कोशिश भी नहीं की।

    अक्षय के साथ बाहर आया तो आदर सहित अपने होने वाले ससुर जी, मतलब जितेंद्र जी और उनके साथ मौजूद बड़ों के चरण स्पर्श करके उन्हें प्रणाम किया। द्रीशांत भी पैर छूने को झुका, पर उसने उसे रोकते हुए गले से लगा लिया।

    आहाना भले ही उससे छोटी थी, पर अक्षय हमउम्र था। हालाँकि रिश्ते में वो बड़ा था, पर उसने अक्षय को गले से ही लगाया। जबकि निशांत ने अक्षय के पैर छूने चाहे, पर अक्षय ने सहज भाव से उसे रोकते हुए बस बालों में प्यार से हाथ फेर दिया, जैसे निशांत नहीं अन्वय हो।

    उसके सरल-सौम्य स्वभाव से वो काफ़ी इम्प्रेस हुए थे। खैर, मिलने-मिलाने के बाद हवन शुरू किया गया। साथ लाया शगुन का सब सामान पहले गंगा जल छिड़ककर शुद्ध किया गया, फिर तिलक की रस्म अदायगी की जाने लगी। रिश्ते का सम्मान और स्वीकृति दिखाते हुए द्रीशांत, निशांत, बाकी कज़न भाई और परिवार के अन्य पुरुषों द्वारा तिलक लगाया गया। शगुन का सब सामान उसे दिया गया।

    जब आख़िर में नोटों के बंडल संग अंगूठी और चैन उसे चढ़ाया गया तो अक्षय के माथे पर सिलवटें पड़ गईं और चेहरे के भाव कुछ बदल गए। अब तक वो खामोशी से हर रस्म पूरी कर रहा था, पर अब उसने अपनी खामोशी तोड़ी और सहज भाव से आदर सहित अपनी बात उनके सामने रखी।

    "पापा जी, शगुन 11, 21, 51 या 101 से किया जाता है। ज्यादा से ज्यादा 501. आप प्यार से बस शगुन की रस्म पूरी कीजिए। मुझे आपसे बस आपका प्यार और आशीर्वाद चाहिए, जिनके आगे इन सोने-चाँदी की चीज़ों और काग़ज़ के नोटों की कोई अहमियत नहीं। और अगर देने ही हैं तो ये पैसे मुझे नहीं अपनी बेटी को दीजिए, उनके भविष्य में काम आएंगे, क्योंकि इन पर मेरा नहीं आपकी बेटी का अधिकार है।"

    द्रीशांत, जिसने सब उसे चढ़ाया था, उसके चेहरे पर तनाव के भाव उभर आए और परेशान निगाहें जितेंद्र जी की ओर घूम गईं।

    "बेटा, ये तो रस्म है। हमारा आशीर्वाद समझकर रख लीजिए।"

    "आपका दिया हर तोहफ़ा मैंने आपका आशीर्वाद समझकर सर झुकाकर स्वीकार किया है, पर माफ़ कीजिएगा, मैं ये स्वीकार नहीं कर सकता। हमने आपसे पहले ही साफ़-साफ़ शब्दों में कहा था कि हमें बस आपकी बेटी चाहिए, दहेज़ नहीं। मैं इन्हें स्वीकार नहीं कर सकता। आप प्लीज़ मुझे शर्मिंदा मत कीजिए और इन चीज़ों को वापस ले लीजिए।"

    "बेटा, चढ़ाया हुआ शगुन का सामान वापस लेना ठीक नहीं। बड़े दिल से हमने अपने होने वाले दामाद के लिए ये चीज़ें बनवाई हैं।"

    "तो मैं ये दोनों चीज़ें स्वीकार करता हूँ, पर ये पैसे आप मेरे तरफ़ से आहाना के नाम पर फ़िक्स करवा दीजिएगा, इन्हें मैं नहीं लूँगा।"

    सबके समझाने पर भी अक्षय नहीं मानता और अगर मान जाता तो ये तो अपनी बात से मुकरने वाली बात हो जाती। आख़िर में जितेंद्र जी को उसकी बात माननी ही पड़ी। चैन और अंगूठी उसने रख लिए और पैसे आहाना के फ़्यूचर के लिए फ़िक्स करवाने को वापस दे दिया।

    अक्षय के इस फ़ैसले से जितेंद्र जी और अभिजीत जी का गर्व से सीना चौड़ा हो गया। अभिजीत जी को अपने बेटे पर फक्र हुआ। वहीं जितेंद्र जी खुशी से निहाल हो गए कि कितना काबिल, होनहार और समझदार दामाद ढूँढा है उन्होंने, जो अभी से उनकी बेटी के बारे में इतना सोच रहा है।

    मेहमान लोग कुछ ताज्जुब से अक्षय को देखते रहे। शायद ऐसा दूल्हा उन्होंने पहली बार देखा था, पर अक्षय के उठाए इस क़दम ने सबकी नज़रों में उसका मान बढ़ा दिया। अभिजीत जी की परवरिश और संस्कारों के साथ जितेंद्र जी की पसंद की खूब वाहवाही हुई। जबकि रुपाली जी आती लक्ष्मी को जाते देखकर सुलगकर रह गईं।

    तिलक समारोह के पूरा होने के बाद खाने-पीने का कार्यक्रम शुरू हुआ।

    दोपहर हो चुकी थी, अक्षय सब मेहमानों के बीच ही था। कोई न कोई आ ही जाता उससे बात करने। घर-परिवार, मेहमानों और लड़की वालों की तरफ़ से आए लोगों के खाने-पीने के बाद बाकियों का खाना शुरू हुआ।

    दोपहर बाद मेहमान विदा हुए, तब कहीं जाकर अक्षय को फ़ुर्सत मिली और वो चेंज करने कमरे में चला गया। यहाँ से कानपुर से आए लोग सीधे कानपुर रवाना हुए थे। तिलक की रस्म अच्छे से पूरी हो गई थी और अब रिश्ता पक्का हो चुका था, सो सभी निश्चिंत थे।

    वहाँ से निकलने से पहले पंडित जी से सगाई की डेट भी निकलवा ली थी, जो महीने भर बाद की निकली थी और उसी दिन आहाना का रोका भी होना था। लड़के वालों ने दुल्हन के परिवार को ढेर सारे उपहार और मिठाइयों के साथ विदा किया था, वो भी इस वचन के साथ कि जल्दी ही आएंगे और आहाना को अपने बेटे के लिए रोककर इस रिश्ते को उनकी ओर से भी पक्का कर देंगे।

    सबको उनके घर छोड़ते हुए रात के करीब नौ बजे जितेंद्र जी अपने दोनों बेटों संग घर पहुँचे, जहाँ सबको बड़ी ही बेसब्री से उनके आने का इंतज़ार था। उनके आते ही आहाना सबके लिए पानी ले आई, जिसके बाद सब फ़्रेश होने चले गए।

    सवाल बहुत थे, करने को बहुत सी बातें थीं, कहने-सुनने को बहुत कुछ था, पर अभी वो थके-हारे आए थे, इसलिए किसी ने कोई सवाल नहीं किया। कुछ देर बाद सबने साथ ही डिनर किया, फिर उसके बाद सब साथ में बैठे। वहाँ के बारे में सब बता रहे थे। निशांत तो पूरे फ़ंक्शन की वीडियो भी बनाकर लाया था, जो वो सबको दिखा रहा था।

    अंतरा के पास बैठी आहाना खामोशी से सबकी बात सुन रही थी। सब बात बताते हुए द्रीशांत उस बात पर आकर रुका।

    "माँ, पता है उन्होंने शगुन 501 रुपये से करवाया है, बाकी सारे पैसे लेने से ये कहकर इंकार कर दिया कि वो नहीं लेंगे। उन पैसों पर आहाना का अधिकार है, तो उसके नाम पर जमा करवा दें।"

    द्रीशांत के चेहरे पर उसकी खुशी साफ़ झलक रही थी। एक तसल्ली थी कि अपनी बहन के लिए उन्होंने बिलकुल सही जीवनसाथी को चुना है। उसकी बात पर सहमति ज़ाहिर करते हुए जितेंद्र जी ने फ़ख़्र से मुस्कुराकर कहा,

    "आज हमें गर्व महसूस हुआ। हमने अपनी बेटी के लिए हीरा चुना है।"

    निशांत ने उस वक़्त की वीडियो तीनों को दिखाई। अक्षय का कहा एक-एक शब्द आहाना के दिल की गहराइयों में उतरता चला गया, उसकी नज़रों में उसका दर्जा आज और ज़्यादा बढ़ गया था। अपलक वो बस खामोशी से अक्षय को निहारती रही, जिसने बिना माथे एक शिकन लाए इतने पैसों को सबके सामने ठुकरा दिया था।

    जयंती जी भी उनकी बातें सुनकर खुश हो गईं और महादेव को धन्यवाद करने लगीं कि उन्होंने उनकी बेटी के लिए इतने काबिल और समझदार हमसफ़र चुना। अंतरा, जो अक्षय को पहले ही पसंद करने लगी थी, वो उससे और ज़्यादा इम्प्रेस हो गई। जबकि आहाना बस खामोशी से बैठी सबकी बातें सुनते हुए अक्षय के बारे में सोचती रही।


    "जीजी, देखिए इस फ़ोटो में जीजू कितने गुड लुकिंग और हैंडसम लग रहे हैं।"

    अंतरा ने फ़ोन की स्क्रीन आहाना की ओर घुमाते हुए मुस्कुराकर अक्षय की तारीफ़ की। इस वक़्त दोनों अपने कमरे में पलंग पर बैठी थीं। अंतरा पल्लवी की भेजी तस्वीरें देख रही थी।

    आहाना, जिसने शर्म और हिचक के कारण तिलक की वीडियो तक नहीं देखी थी, उसका ध्यान अनायास ही स्क्रीन पर चमकती उस तस्वीर पर चला गया था। चेरी कलर का खूबसूरत सा कुर्ता और सफ़ेद चूड़ीदार में अक्षय चौकी पर बैठा था।

    कुर्ते की आस्तीनों को कोहनी तक फ़ोल्ड किया हुआ था, जिससे उसकी मज़बूत मांसपेशियाँ उभरकर सामने आ रही थीं। उसके गठीले दूधिया बदन पर वो कुर्ता खूब फ़ब रहा था। बालों को अच्छे से सेट किया हुआ था और सर पर बँधे सफ़ेद रुमाल से ढँके हुए थे।

    माथे पर लगा तिलक गवाही दे रहा था उनके रिश्ते का, जिस पर आज पक्की मोहर लग चुकी थी। हाथ में शगुन का सामान थामे वो सामने देख रहा था और लबों पर दिलकश मुस्कान बिखरी हुई थी।

    गुड लुकिंग और हैंडसम तो पहले से ही था, कुर्ते-पायजामा में उसका चार्म ही अलग था, बेहद आकर्षक लग रहा था वो और उस पर उसकी दिलकश मुस्कान क़हर बरपा रही थी।

    आहाना की नज़रें उसके चेहरे पर ठहर गईं और दिल की धड़कनें यूँ बेतरतीब हुईं, मानो वो उसके सामने बैठा उसे ही तक रहा हो। अगले ही पल उसके चेहरे पर हया की लाली बिखर गई और पलकें मानो सजदे में झुक गईं।

    "जीजी, वैसे तो आपकी होने वाली सास मुझे रत्ती भर भी पसंद नहीं। बड़ी ही खड़ूस और घमंडी औरत है, पर जीजू मुझे बड़े पसंद आए। कितने हैंडसम दिखते हैं, इतने स्वीट हैं, बातें भी कितने रिस्पेक्ट के साथ करते हैं और आपके लिए उन्होंने कैसे दहेज़ को ठुकरा दिया, जबकि यहाँ तो लड़का और लड़के वाले दहेज़ में ज़रा सी कोताही पर मंडप से उठकर खड़े हो जाते हैं। मैं तो जीजू की फ़ैन हो गई हूँ। पिछली बार तो ठीक से मिल नहीं सकी थी, पर सगाई पर जब वो आएंगे तो मैं अच्छे से जान-पहचान कर लूँगी उनसे।"

    उसके दिल के हाल से पूरी तरह अन्जान अंतरा खुद में ही बोलती जा रही थी, जबकि पलकों के झुके झालरों तले आहाना भविष्य के सुनहरे सपने सजाते हुए रश्क कर रही थी अपनी किस्मत पर कि उसे ऐसा जीवनसाथी मिलने जा रहा है।

  • 20. इबादत - ए- इश्क़ ( The Arrange Marriage) - Chapter 20

    Words: 2495

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    देखते-देखते एक महीना बीत गया था। अगस्त का महीना शुरू हो चुका था। बीते कुछ दिनों से दोनों घरों में एक बार फिर तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं।

    कुछ दिन पहले ही रुपाली जी का फ़ोन आया था। आहाना से कुछ बात भी हुई और साथ ही अंगूठी का नाप भी ले लिया गया, क्योंकि सगाई के लिए अंगूठी बनवानी थी। बातों से वो थोड़ी सख्त मिजाज़ लगीं, पर व्यवहार ठीक था।

    एक तरफ़ कानपुर आने और आहाना के रोके, सगाई की तैयारियाँ जोरों-शोरों से चल रही थीं, तो दूसरी तरफ़ शुक्ला निवास में भी सब तैयारियों में मशगूल थे। फ़ंक्शन छोटे पैमाने पर, सिर्फ़ परिवार और रिश्तेदारों के बीच होना था। पर आस-पड़ोस वालों को खाने पर बुलाया गया था, जिसका इंतज़ाम बाहर गली में किया गया था।

    शुभ दिन था; जितने आशीर्वाद मिले, उतना कम और खुशियाँ जितनी बांटी गईं, उतनी बढ़ती गईं। विचार तो था कि सगाई धूमधाम से हो, पर लड़कों वालों ने छोटे पैमाने पर ही करने की बात कही, जिसे जितेंद्र जी ने सर झुकाकर स्वीकार कर लिया था।

    रुपाली जी ने अपने रुतबे के हिसाब से सब तैयारियाँ कर ली थीं। आज सगाई थी और मुहूर्त शाम का था। परिवार और मुख्य रिश्तेदारों, दोस्तों संग एक मिनी बस और कार में वो सभी शगुन के सब सामान संग कानपुर के लिए सुबह ही रवाना हो चुके थे।

    अक्षय का दिल आज कुछ अलग अंदाज़ में धड़क रहा था। आज आहाना से उसकी दूसरी मुलाक़ात होनी थी और आज वो वाकई में आहाना से जुड़ने वाला था। सगाई के बाद ऑफिशियलि आहाना उससे जुड़ जाएगी, उसका अधिकार होगा उस पर, शायद उनके बीच बातें भी शुरू हो जाएँगी, आखिर सगाई के बाद उसे इजाज़त तो मिल ही जाएगी।

    इस दिन का इंतज़ार उसने बीते एक महीने से बड़ी ही बेसब्री से किया था। ये तो वही जानता था कि किस क़दर वो बेचैन था उससे मिलने और बात करने के लिए। रातें उसकी तस्वीर को निहारते हुए कटती थीं और जाने कितनी ही बार मन ही मन उससे हुई पिछली मुलाक़ात को दोहरा चुका था।

    वो मुलाक़ात ज़हन में उस क़दर ताज़ा थी कि ऐसा लगता था मानो कल ही की बात थी जब वो आहाना को देखने आया था। सबसे सामने तो वो संजीदा और निर्मोही बना रहता था, पर सारे जज़्बात तो तन्हाई में ज़ाहिर होते थे। बेताबीयाँ और बेचैनियाँ तो इधर भी बिखरी थीं, जज़्बातों में रवानियाँ इधर भी उठती थीं।

    वैसे तो उसे अकेले रहने का मौका नहीं मिलता था। स्कूल, घर और सगाई की तैयारियाँ, शॉपिंग में वक़्त ही कहाँ मिल रहा था उसे, पर जब रात को अंतरा के सोने के बाद वो तन्हा होती थी तो खाली बैठे उसकी तस्वीर निहारती, तिलक की वीडियो में उसकी कहीं बातें सुनकर उस पर वारी- वारी जाती।

    उसकी निगाहों की तपिश को खुद पर महसूस करते हुए वो सिमट जाती, उसकी बातें याद करके खुद में ही मुस्कुराती। उसके ख्याल मात्र से उसका रंग निखर जाता था, धड़कनें बेतरतीब हो उठती थीं। खूबसूरत सा एहसास था जब वो पास न होकर भी उसके दिल के बेहद पास था और शायद उतना ही खास भी।

    दोनों में अंतर बस इतना था कि एक तरफ़ अक्षय उससे दोबारा मिलने को बेकरार था, जबकि आहाना उससे फिर से मिलने के ख्याल से ही अजीब से एहसासों से घिर जाती थी। दब्बू किस्म की, डरपोक लड़की नहीं थी वो, बेझिझक अपनी बात सामने रखना जानती थी, कॉन्फ़िडेंस की भी कोई कमी नहीं थी,

    पर जाने अक्षय के वजूद में ऐसा क्या था कि उसके सामने लब खुलने से कतराती थी, निगाहें तक मिलाने से घबराते थे, दिल अलग बेचैन हो उठता और बदन खुद में सिमट जाता था। जिस अंदाज़ से वो देखता, आहाना को शर्माने पर मजबूर कर देता था, या शायद ये उससे जुड़े एहसासों का असर था। खैर, कितना ही कतराए, पर आज उसका उससे सामना होना था एक बार फिर।

    सुबह से घर में खूब चहल-पहल थी। रिश्तेदारों से घर भरा था। द्रीशांत सगाई की तैयारियों में लगा था, जितेंद्र जी मेहमानों के ठहरने और बैठने का, खाने-पीने का इंतज़ाम देख रहे थे।

    पल्लवी के पिता और भाई भी साथ लगे थे। उनके खुद में भाई और भतीजे भी थे। पल्लवी और भाभी जयंती जी के कामों में मदद कर रही थीं। अंतरा आहाना के साथ थी।

    अभी-अभी उसके हाथों में मेहँदी लगाकर वो फ़्री हुई थी और अब छत पर पहुँच गई थी इस सुहावने मौसम का लुत्फ़ उठाने। साथ ही अपने घर की चहल-पहल भी देख रही थी। कुछ देर बाद वो फिर आहाना के पास चली गई।

    दोपहर और शाम के बीच का वक़्त था जब अचानक ही चहल-पहल उफ़ान पर पहुँची। बाहर से आती आवाज़ों ने कमरे में बैठी अंतरा और आहाना तक लड़के वालों के आने की खबर पहुँचा दी थी।

    नीचे सब लोग उनके स्वागत में जुटे थे। बैठने का इंतज़ाम आँगन में किया गया था। डाइनिंग टेबल वग़ैरह हटाकर पूरे ड्राइंग रूम को खाली कर दिया गया था। सीढ़ियों के तरफ़ सोफ़ा लगा था और उसके सामने काफ़ी सारी चेयर्स लगी थीं। सिलिंग फ़ैन के साथ टेबल फ़ैन और कूलर भी लगे थे, जिससे ज़रा भी गर्मी या उमस का एहसास नहीं हो रहा था।

    मेहमानों का बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत किया गया। समधी सब आपस में मिले, फिर सफ़र के थके-हारे सब हाथ-मुँह धोकर फ़्रेश हुए। सबको वहीं ड्राइंग रूम में बिठाया गया। पानी, कोल्ड ड्रिंक के साथ स्नैक्स भी सर्व किए जाने लगे।

    पल्लवी और भाभी के साथ घर की औरतें इन्हीं कामों में लगी थीं, जबकि आहाना की कज़न सिस्टर्स ने अपने होने वाले जीजा जी को घेर लिया था।

    अक्षय तो इतनी लड़कियों को देखकर ही कुछ नर्वस हो गया, आदत जो नहीं थी इन सबकी और ये अभी अंजान थीं उसके लिए, पर उसके बगल में बैठा अन्वय उसके जगह उन लड़कियों के हर सवाल का जवाब देता, उनके मज़ाक में उन्हें ही उलझा देता।

    इस दौरान उसकी नज़रें चारों ओर भटकी थीं, पर जिसकी उसे तलाश थी वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी। यहाँ नीचे सब लड़के वालों की आव-भगत में लगे थे, बातें शुरू हो रही थीं, तो ऊपर अंतरा आहाना को जल्दी-जल्दी से तैयार करने में लगी थी। उसे तैयार करके उसे भी तो नीचे जाकर अपने जीजू से मिलना था, उनकी टाँग खींचनी थी।

    जल्दी ही अंतरा ने आहाना को तैयार कर दिया, फिर उसे अपने सामने खड़ा किया और गहरी निगाहों से ऊपर से नीचे तक उसे देखने लगी। खुद में सिमटी हुई खड़ी आहाना कुछ ज़्यादा ही नर्वस लग रही थी। वो आँखें बड़ी-बड़ी करके घबराई हुई सी उसे देखने लगी।

    "अच्छे नहीं लग रहे क्या?"

    "बस अच्छे..."

    अंतरा ने नाराज़गी से उसे देखा, फिर अगले ही पल बेसाख्ता मुस्कुरा उठी।

    "अम्मा, भौकाल लग रही हो, सच बता रहे हैं, आज जीजू नज़रें ना हटा सकेंगे। आज जो आपको देखकर उनकी दिल की धड़कनें ना थम गईं तो हमारा नाम द ग्रेट अंतरा शुक्ला नहीं।"

    उसने गर्व से अपनी तारीफ़ करते हुए अपने इमेजिनरी कॉलर को बड़ी ही अदा से झाड़ा, जबकि उसकी बात सुनकर आहाना का गोरा मुखड़ा शर्म से कश्मीरी सेब बन गया और पलकें बोझिल होकर झुक गईं। अंतरा ने दो उंगलियों को मुँह में डालते हुए ज़ोर की सीटी बजाई।

    "आए हाय! का बात, जीजी, तुम जो जीजू के ज़िक्र से ही शर्म से लाल-गुलाबी हुई जा रही हो। तुम्हारा तो जीजू के नाम से ही रंग निखर गया, जब सामने आएंगे तब का करोगी, जिज्जी?"

    जीजी उसने ज़रा लंबा खींचते हुए उसे छेड़ा और उसकी शरारत समझते हुए आहाना ने अपनी शर्म छुपाते हुए झूठा गुस्सा दिखाया और आँखें छोटी-छोटी किए उसे घूरने लगी। उसके घूरते हुए अंतरा एकदम शांत हो गई और संजीदगी से बोली,

    "चलिए, नहीं छेड़ते आपको, ज़रा ये तो बताओ, जीजू पसंद हैं आपको?"

    "तुम्हें क्या लगता है?"

    आहाना ने उसके सवाल के बदले सवाल किया और लबों पर सौम्य सी मुस्कान सजाए उसे देखने लगी। अंतरा ने चिन पर दो उंगली रखकर ऐसा दिखाया जैसे गहरी गंभीर सोच में हो, फिर निगाहें आहाना की ओर घुमाईं, चंचल मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए बोली,

    "हमें तो लगता है हमारी जीजी अभी से पराई हो गई हैं। जीजू का रंग चढ़ने लगा है उन पर...क्यों सही कहा ना हमने, चढ़ने लगा है ना उनका रंग?"

    आहाना कुछ कह न सकी, पर अक्षय के ज़िक्र मात्र से उसका चेहरा ताज़े गुलाब सा खिल उठा था, जिसने बिन कुछ कहे उसके दिल में बसे जज़्बातों की चुगली कर दी थी।

    "जीजी, हम बहुत खुश हैं आपके लिए, जीजू बहुत अच्छे हैं।"

    अंतरा ने उसके गले लगते हुए ये कहा था। आहाना ने भी उसे गले से लगा लिया और अक्षय के बारे में सोचते हुए पलकें झुकाकर मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद अंतरा उससे अलग हुई और चहकते हुए बोली,

    "हम अभी आते हैं, जीजू को देखकर।"

    आहाना ने सिर हिला दिया तो अंतरा तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गई। जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरती वो नीचे पहुँची और अभी अक्षय की ओर बढ़ ही रही थी कि सामने ही जयंती जी मिल गईं। सामने खड़ी अंतरा को देखकर उनके चेहरे के भाव बिगड़ गए।

    "अंतरा बिटिया, तुम अब तक तैयार काहे न हुई?"

    "माँ, जीजी को तैयार कर रही थीं, अभी जाकर तैयार हो जाएँगे, पहले जीजू से मिल लें।"

    अंतरा ने तपाक से जवाब दिया और जयंती जी आगे कुछ बोलती उससे पहले ही अक्षय की ओर बढ़ गई।

    "क्या कर रही हो तुम सब की सब यहाँ?"

    अपनी सालियों से घिरे अक्षय के कानों में अचानक ही एक जानी-पहचानी सी कर्कश आवाज़ पड़ी और उसके चेहरे पर राहत के भाव उभर आए, जबकि उसके सामने खड़ी लड़कियाँ पीछे को पलटीं तो उसके ठीक पीछे अंतरा खड़ी थी और कमर पर हाथ धरे गुस्से से उन्हें घूर रही थी। उसने आँखों से उन्हें कुछ इशारा किया और सब की सब मुँह बनाती वहाँ से निकल गईं।

    सबके जाने के बाद अक्षय के साथ-साथ अन्वय की नज़र भी अंतरा पर पड़ी। आज फिर वो शॉर्ट कुर्ता और जीन्स पहने उनके सामने खड़ी थी। बालों को समेटकर जुड़े में बाँधा हुआ था, जिससे निकलती लटें उसके चेहरे और गर्दन पर बेतरतीब से बिखरी हुई थीं।

    फिर भी बड़ी प्यारी लग रही थी वह। उस पर नज़र पड़ते ही अन्वय के लब मुस्कुराए थे और चेहरे पर सुकून के भाव उभरे, नज़रों की तलाश इस चेहरे पर आकर ख़त्म हुई। अन्वय की नज़रें जहाँ अंतरा पर टिकी थीं, वहीं अंतरा ने उसे फ़ुल इग्नोर किया था और अक्षय से मुखातिब हुई।

    "हाय, जीजू।"

    "हैलो।"

    अक्षय हल्के से मुस्कुराया था, जिस पर अंतरा भी मुस्कुरा दी।

    "कैसे हैं आप?"

    "मैं ठीक हूँ, आप बताइए।"

    "एकदम झक्कास।"

    अंतरा खुलकर मुस्कुराई थी और बड़ी ही अदा से जवाब दिया था। अक्षय के लब खुलकर मुस्कुराए थे। वहीं अंतरा ने अब चील सी तेज नज़रों से उसे ऊपर से नीचे तक स्कैन किया था। लाइट पिंक शर्ट पर नेवी ब्लू कोट और पेंट कैरी किया था। गले में ब्राउन टाई लटक रही थी। बालों को जेल वैक्स लगाकर बढ़िया से सेट किया हुआ था। दाएँ हाथ में घड़ी सजी थी और पैरों में ब्राउन लोफ़र्स। उसका व्यक्तित्व आकर्षक था और आज तो बेहद दिलफ़रेब लग रहा था।

    अंतरा उसे जाँचती नज़रों से देखते हुए मुस्कुराई।

    "वैसे आज जँच खूब रहे हैं आप पर हमारी जीजी के आगे पानी कम चाय लगेंगे।"

    अंत में उसका बड़ा ही दुखी चेहरा बनाते हुए अपनी निराशा जताई। अक्षय भला क्या कहता, वो तो बस मुस्कुराकर रह गया, पर अन्वय जो तब से चुप्प साधे बैठा था, मौका मिलते ही बोल पड़ा,

    "ऐसी बात है, फिर तो हम भी ये देखना चाहेंगे। चलिए, ज़रा भाभी से तो मिलवा दीजिए हमें।"

    अन्वय का बीच में बोलना अंतरा को ज़रा भी पसंद नहीं आया। उसने भौंह सिकोड़कर उसे घूरा और बेरुखी से बोली,

    "अभी वो हमारी जीजी हैं, आपकी भाभी नहीं बनी हैं।"

    उसके तीखे तेवर देखकर अन्वय ने दिल जलाने वाली मुस्कान पास की।

    "अच्छा, तो बुरा क्यों मानती है? अपनी जीजी से ही मिलवा दीजिए, हमारी भाभी भी तो वहीं बनेंगी।"

    उसकी मुस्कराहट देखकर अंतरा सुलग गई। जी चाहा एक घूँसों में मुँह तोड़ दे उसका, पर अपने गुस्से में जफ़्त कर गई और गुस्से में दाँत पीसते हुए बोली,

    "इतनी बेसब्री किस बात की है आपको? कुछ देर में नीचे आएंगी, तब मिल लीजिएगा।"

    "पर हमें तो अभी ही मिलना है। आप नहीं मिलवाएँगी तो हम सिफ़ारिश कहीं और लगाएँगे।"

    अन्वय ने शैतानी मुस्कान लबों पर सजाते हुए उसे देखा। अंतरा उसकी उस रहस्यमयी शैतानी मुस्कान की वजह और उसके इरादे समझ पाती उससे पहले ही अन्वय ने सर घुमाया और कुछ कदमों की दूरी पर खड़ी जयंती जी को आवाज़ लगा दी।

    "आंटी।"

    आवाज़ सुनकर जयंती जी ने तुरंत सर घुमाकर उसे देखा।

    "जी बेटा, कुछ चाहिए आपको?"

    "इधर तो आइए, फिर बताते हैं।"

    अन्वय के बुलाने पर वो उसके पास चली आईं। अक्षय खामोश बैठा अपने भाई की हरकतें देखते हुए उसके इरादों को समझने की कोशिश कर रहा था, जबकि अंतरा उसके जयंती जी को आवाज़ लगाने से पहले तो चौंक गई, फिर आँखें छोटी-छोटी किए गुस्से से उसे घूरने लगी।

    "बोलिए बेटा, क्या हुआ? कोई परेशानी है? कुछ चाहिए आपको?"

    जयंती जी ने उसके पास आते हुए सवाल किए। जवाब में अन्वय ने तिरछी नज़रों से अंतरा को देखा, फिर मासूम सी सूरत बनाकर बोला,

    "आंटी, मैं आपका घर देखना चाहता था और भाभी से भी मिलना चाह रहा था, पर अंतरा जी इंकार कर रही हैं।"

    अंतरा ने मन ही मन कम से कम भी तो सौ गालियाँ दी होंगी उसे। उसी के सामने उसी की माँ को कैसे उसकी झूठी-सच्ची शिकायत लगा रहा है और कितना मासूम बन रहा है? एक नंबर का मक्कार आदमी है।

    अंतरा का गुस्सा, उसकी खीझ उसके चेहरे पर झलक रही थी, जिसे देखकर जयंती जी ने नाराज़गी से उसे फटकार लगाई।

    "अंतरा, बुरी बात बेटा। तुम्हारी जीजी का देवर है। कुछ तो ख्याल करो।"

    अंतरा को डाँट पड़ते देखकर अन्वय ने तुरंत ही उन्हें रोका।

    "अरे आंटी, आप उन्हें क्यों डाँटने लगीं? वो तो कह रही थी कि आपसे पूछूँ तो ले जाएँगी, बस इसलिए आपसे पूछा। अगर आपकी इजाज़त हो तो आपका घर देख लूँ और साथ ही भाभी से भी मिल लूँगा।"

    एक बार फिर जयंती जी के सामने कितना अच्छा, सच्चा और शरीफ़ बन गया था। गुस्से से अंतरा का खून फूँक गया। वहीं जयंती जी ने उसकी बात सुनकर बिना एक पल गँवाए तुरंत ही इजाज़त दे दी।

    "आपका ही घर है बेटा। बिल्कुल जाइए।"

    उसके बाद उन्होंने अंतरा का रुख किया और बड़ी ही मोहब्बत से बोलीं,

    "अंतरा, जाओ बेटा, अन्वय को घर दिखा दो और आहाना से भी मिलवा देना।"

    अपनी माँ की बात सुनकर अंतरा ने तुनकते हुए कहा,

    "माँ, मैं क्यों जाऊँ? मैं क्या टूर गाइड लगी हूँ? जिसको घूमने का शौक चढ़ा है, खुद घूमे।"

    "अंतरा!"

    जयंती जी ने गुस्से से उसे पुकारा था और अंतरा मुँह बनाए चुप्पी साध गई थी। पर उसने आखिरी कोशिश जारी रखी।

    "माँ, मुझे अभी तैयार भी होना है। खुद तो बन-सवरकर ऐसे आए हैं जैसे इनकी ही सगाई हो, क्या मैं अपनी जीजी की सगाई में ऐसे शामिल होऊँगी?"

    उदास और दुखी चेहरा बनाते हुए अंतरा ने शिकायत की और तिरछी नज़रों से अन्वय को घूरना न भूली।


    ...