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बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर

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Aarya Rai

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Description

अर्नव सिंह रायज़ादा जो फैशन की दुनिया का बेताज बादशाह है और धृति जिसकी आँखों मे बस एक ही सपना सजता है फैशन डिज़ाइनर बनना । अर्नव धृति से बेइंतेहा नफरत करता है जिसकी वजह से धृति अंजान है । एक ऐसी कहानी जो बेइंतेहा नफरत से शुरू होती है, जहाँ अर्नव की न...

Characters

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अर्नव सिंह रायज़ादा

Hero

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धृति अवस्थी

Heroine

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सृष्टि अवस्थी

Villain

Total Chapters (227)

Page 1 of 12

  • 1. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 1

    Words: 4264

    Estimated Reading Time: 26 min

    मुंबई, जुहू

    शाम का समय था। आसमान में काले बादल घिर आए थे। हर तरफ घना अंधकार अपना अस्तित्व कायम करता जा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वह अंधकार किसी की ज़िंदगी के सुनहरे प्रकाश को धीरे-धीरे खुद में समेट रहा था, उसकी ज़िंदगी को घने अंधकार में धकेल रहा था।

    शाम का वक़्त था, इसलिए जुहू की ओर काफी भीड़ थी। मौसम भी खराब हो रहा था, इसलिए सभी लोग अपने-अपने घरों की ओर रवाना हो गए थे। जिस वजह से सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतार लग चुकी थी। और गाड़ियों की उसी भीड़ में एक टैक्सी फंसी हुई थी, जिसमें बैठी लड़की बार-बार अपनी कलाई में बंधी उस पुरानी सी घड़ी को देख रही थी।

    जैसे-जैसे वक़्त गुज़र रहा था, उस लड़की की घबराहट भी बढ़ती जा रही थी। उसने अपने एक हाथ में अपने फ़ोन को जकड़ा हुआ था, जिस पर एक मैसेज शो हो रहा था, शायद कहीं का एड्रेस था और उसे जल्दी से जल्दी वहीं पहुँचना था।

    डर और घबराहट उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहे थे। पूरा चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। कपड़ों पर मिट्टी लगी हुई थी, कोहनी पर छिलने के निशान थे, जिससे हल्का-हल्का खून रिस रहा था। मतलब ज़ख्म ताज़ा था, शायद जल्दबाज़ी में कहीं गिर गई थी।

    नीले रंग का सिंपल सा शॉर्ट कुर्ता, जिसका रंग भी कुछ फ़ीका पड़ चुका था, उसके नीचे व्हाइट जीन्स जो गंदी हो चुकी थीं और गले में मल्टी कलर का स्कार्फ़, जिससे वह बार-बार अपने पसीने को पोंछ रही थी।

    चौड़ा माथा, जिस पर कुछ छोटे-छोटे बालों की लटें बेतरतीब ढंग से फैली हुई थीं। पतली आइब्रो, जैसे अभी ही बनवाई गई हों। बड़ी-बड़ी भूरी आँखें जो काजल से सजी थीं और बेहद आकर्षक लग रही थीं। पतली, छोटी सी नाक और पतले-पतले करीने से तराशे गए, गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल गुलाबी होंठ जो घबराहट की वजह से सूख चुके थे। गोरा मुखड़ा जिसका रंग डर से सफ़ेद पड़ता जा रहा था।

    चाँद सा सुंदर मुखड़ा, वह किसी को भी अपना दीवाना बना दे। करीने से तराशा गया बदन, कुदरत का बनाया बेशकीमती रत्न लग रही थी वह लड़की जो सादगी में भी कहर बरपा रही थी। उसकी सुनहरी आँखें ही किसी को भी खुद में डूबने पर मजबूर करने को काफी थीं। उसके गुलाबी लब और उनके ऊपर दाईं ओर अपनी हुकूमत जमाए बैठा वह काला तिल, जो किसी के भी ध्यान को अपनी ओर खींचने का हुनर जानता था। उसकी खूबसूरती को शब्दों में बयाँ करना बेहद कठिन था और उस खूबसूरती पर चार चाँद लगा रहा था उसके लबों पर अपना अधिकार जमाए बैठा वह तिल और उसके चेहरे पर झलकती मासूमियत।

    वह लड़की कुछ पल घबराई हुई सी, कभी अपने फ़ोन को तो कभी अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखती रही। पर जब ट्रैफ़िक ने छंटने का नाम नहीं लिया, तो उसने अपने गोद में रखे बैग से पैसे निकालकर उस टैक्सी वाले को दिए और टैक्सी से निकलकर पैदल ही जुहू बीच की ओर दौड़ गई।

    वह अभी कुछ दूर पहुँची ही थी कि बादल पूरे जोर के साथ गरजे, जिससे एक पल को वह लड़की घबरा गई और उसके कदम काँप उठे। पर जल्दी ही उसने खुद को संभाला और उस तूफानी बारिश की परवाह न करते हुए बस सड़कों पर भागती रही। कुछ पंद्रह मिनट पूरा दम लगाकर भागने के बाद एक विला के बाहर आकर उसके कदम रुके। दरवाज़ा बन्द था, तो वह वहीं खड़ी हो गई।

    भागने की वजह से उसकी साँसें फूलने लगी थीं, इसलिए उसने अपनी दोनों हथेलियों को अपने घुटनों पर टिकाया और हल्का झुकते हुए गहरी-गहरी साँसें लेने लगी। वह पूरी तरह से बारिश में भीग चुकी थी।

    कुछ सेकंड बाद, जब उसकी साँसें कुछ नियंत्रित हुईं, तो उसने सर उठाकर देखा। पर अब वह दरवाज़ा बन्द नहीं था, बल्कि खुल चुका था और उस बड़े से काले गेट के दोनों तरफ़ दो गार्ड अपनी ब्लैक यूनिफ़ॉर्म पहने सर झुकाए खड़े थे।

    उस लड़की को कुछ समझ नहीं आया। इतने में एक सर्वेंट बाहर आया और उस लड़की के पास आकर बोला, "मैडम, आपको सर ने अंदर बुलाया है।"

    वह सर्वेंट उसके आगे सर झुकाकर खड़ा हो गया। वह लड़की उलझी हुई सी आगे बढ़ गई और उस सर्वेंट के पीछे-पीछे चलने लगी। वह घबराई निगाहों से उस बंगले को देख रही थी।

    व्हाइट संगमरमर से बना वह बंगला बहुत प्यारा लग रहा था। चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली थी। वह गलियारों से होते हुए अंदर बंगले की ओर बढ़ रही थी। उसके दोनों ओर खुला गार्डन था। दूर-दूर तक हरियाली ही हरियाली थी, बड़े-बड़े पेड़-पौधे लगे थे वहाँ। वातावरण जितना शांत था, उतना ही भयावह भी लग रहा था। बारिश अब भी अपने चरम पर थी और पेड़-पौधे ऐसे लग रहे थे जैसे नहाकर एकदम ताज़ा हो गए थे।

    वह लड़की घबराई हुई सी उस सर्वेंट के पीछे चली जा रही थी और वह खुद में सिमटती जा रही थी, क्योंकि एक तो बारिश में भीगने की वजह से उसके कपड़े उसके जिस्म से चिपक गए थे, और दूसरी वजह थी कि पूरी तरह भीगने के वजह से अब उसे ठंड लग रही थी।

    उसने जैसे ही गेट के अंदर कदम रखा, उसके कदम ठिठक गए और आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। वहाँ हर जगह सिर्फ़ अंधेरा ही अंधेरा था। इतना घना अंधकार था कि एक हाथ को दूसरे हाथ तक भी न दिखे।

    वह लड़की, जिसके पीछे आ रही थी, अब वह सर्वेंट उसे कहीं नज़र ही नहीं आ रहा था। उसे कुछ नज़र ही नहीं आ रहा था, इसलिए वह एंट्रेंस पर ही खड़ी हो गई और घबराई हुई सी सामने फैले घने अंधेरे और अजीब से सन्नाटे को देख रही थी।

    अचानक ही उसके कानों में एक सख्त, रौबदार आवाज़ पड़ी, "अंदर आ सकती हो, सही जगह आई हो। पहले ही तुम आधे घंटे लेट हो, अगर अब एक मिनट भी और देर की तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना।"

    एकदम से उस दिल दहला देने वाली आवाज़ को सुनकर वह लड़की एकदम से काँप उठी। पहले तो वह डर गई, पर फिर जैसे ही उसने उसके बात पर ध्यान दिया, उसे कुछ याद आया। फिर उसने अपने दिल को मज़बूत किया। फिर उसने अपनी हथेली को आगे करते हुए अंधेरे में ही कदम आगे बढ़ा दिया।

    वह अभी कुछ कदम चली ही थी कि उसके हाथ किसी के शरीर को छू गए। तो उसने हड़बड़ाहट में अपनी हथेलियों को पीछे हटाते हुए कहा, "सॉरी..."

    वह आगे कुछ कह पाती, उससे पहले ही किसी ने उसकी पीछे हटती बाँह को थामकर उसे झटके से अपनी ओर खींच लिया। उस लड़की का सर सामने खड़े इंसान के चौड़े सीने से टकरा गया। वह पाषाण जैसा सीना, उससे टकराकर लड़की का सर एक पल को चकरा गया। अगले ही पल उसने कानों में एक बार फिर वही गुस्से भरी भयावह आवाज़ पड़ी,

    "Welcome to hell, मिस धृति अवस्थी।"

    लड़की, मतलब धृति के कानों में उसके कहे शब्द पड़े तो, एक अंजान के मुँह से अपना नाम सुनकर उसकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। बाकी बातों पर उसने गौर ही नहीं किया। उसके मुँह से अपना नाम सुनकर उसने चौंक कर सर उठाकर देखा, पर उसे कुछ नज़र ही नहीं आया, बस उस अंधेरे में टिमटिमाती किसी की काली, गहरी, डरावनी आँखें जो उसी पर टिकी थीं। उसे देखकर धृति का गला सूखने लगा। तभी उसे कुछ याद आया और उसने तुरंत अपनी हथेलियों से उस लड़के को खुद से दूर धक्का देते हुए गुस्से से चिल्लाकर कहा,

    "मुझे ऐसे यहाँ बुलाने का क्या मतलब हुआ?"

    वह ठीक से उससे दूर भी नहीं जा सकी थी कि एक बार फिर उसकी बाँह उस लड़के की पकड़ में आ चुकी थी और इस बार उसकी पकड़ इतनी सख्त थी कि धृति के मुँह से दर्द भरी आह निकल गई। वह दर्द से छटपटाते हुए अपनी बाँह को उससे छुड़ाने की कोशिश करने लगी, पर उस लड़के ने एक बार फिर उसकी बाँह पकड़कर उसे खुद से सटा लिया और उसकी बाँह को बड़ी ही बेरहमी से मोड़ते हुए उसकी पीठ से सटा दिया।

    धृति दर्द से तड़प उठी। उसने दर्द से तिलमिलाते हुए निगाहें उठाकर उस शक्ल को देखा, जिसकी वह सिर्फ़ आँखें ही देख पा रही थी।

    धृति की आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं, दर्द चेहरे पर उभर आया था। पर उस लड़के के भाव एकदम सख्त थे और आँखों में नफ़रत की ज्वाला धधक रही थी।

    धृति ने जैसे ही कुछ कहने के लिए अपने लबों को खोलना चाहा, उसके दोनों गालों को पकड़ते हुए उस शख्स ने उसके मुँह को दबा दिया, जिससे वह कुछ कह न सकी, बस भरी निगाहों से उस भयानक, डरावनी काली आँखों को देखने लगी।

    उस लड़के ने उसकी एक बाँह को पकड़कर उसकी पीठ से लगाकर उसे खुद से एकदम सटाया हुआ था, दोनों के जिस्म एक-दूसरे को छू रहे थे। दूसरी हथेली से उसने उसके मुँह को दबाया हुआ था, जिससे वह चाहकर भी वह कुछ कह नहीं सकती थी।

    धृति आँसुओं से लबालब भरी आँखों से उसकी गहरी काली, डरावनी आँखों में झाँक रही थी।

    वह लड़का कुछ पल बेहद गुस्से से उसे घूरता रहा। फिर उसने गुस्से से जबड़े भींचते हुए कहा, "यहाँ किसी की इतनी हिम्मत नहीं कि अर्नव सिंह राइज़ादा के सामने निगाहें उठाकर भी देख ले, ऊँची आवाज़ में बात करना तो बहुत दूर की बात है। और तुम्हारी तो इतनी भी औक़ात नहीं कि मेरे सामने खड़ी रह सको और तुम हो कि मुझ पर अपना रौब दिखा रही हो। जानती नहीं हो अभी मुझे... कोई मुझसे ऊँची आवाज़ में बात करे ये मुझे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। अगर तुम्हारी जगह किसी और ने ये गुनाह किया होता तो अभी तक अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठा होता, पर तुम्हें इतनी आसान मौत नहीं मिल सकती। तुम्हें मौत ज़रूर मिलेगी, पर उसके लिए तुम्हें पल-पल तड़पना होगा, मुझसे मौत की भीख माँगनी होगी, महसूस करना होगा कि हर पल एक नई मौत मरने का दर्द कैसा होता है... तुम्हें तो ऐसी मौत दूँगा कि तुम्हारी रूह भी काँप उठेगी। पर उससे पहले तुम्हें इतना दर्द दूँगा कि तुम तड़पोगी मरने के लिए, पर तुम्हें मौत भी नसीब नहीं होगी क्योंकि मेरी इज़ाज़त के बिना तुम्हें मरने की भी इज़ाज़त नहीं मिलेगी। न तो तुम्हें सुकून से जीने दूँगा और न ही चैन से मरने... बहुत शौक है न दूसरों की ज़िंदगी, उनकी फ़ीलिंग्स के साथ खेलने का, अब बस देखती जाओ कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी का क्या हश्र करता हूँ, मिस धृति अवस्थी।"

    उस शख्स ने एक-एक शब्द बेहद गुस्से में चबाते हुए कहा। धृति पहले तो उसकी गुस्से भरी डरावनी आवाज़ को सुनकर सहम गई, पर जैसे-जैसे वह कहता गया, धृति के चेहरे के भाव बदलते गए।

    अर्नव की घूरती निगाहें अब भी उस पर ही टिकी थीं, जिसे धृति बखूबी महसूस कर पा रही थी। अर्नव ने उसे बेहद टाइटली पकड़ा हुआ था, न वह हिल पा रही थी और न ही कुछ कह पा रही थी।

    उसने अपने दूसरे हाथ से उसके हाथ को अपने मुँह पर से हटाया। फिर उससे दूर होने की कोशिश करते हुए बोली,

    "है कौन आप?... चाहते क्या है मुझसे?... कैसे जानते हैं मुझे? मैं तो आपको नहीं जानती..."

    वह आगे कुछ कह पाती, उससे पहले ही अर्नव ने उसे झटके से खुद से दूर धकेल दिया और गुस्से से चीख उठा, "तुम मुझे नहीं जानती, पर मैं तुम्हें और तुम्हारी फ़ितरत को बहुत अच्छे से पहचानता हूँ। तुम्हारी इतनी औक़ात नहीं कि तुम मेरे बारे में कुछ जानो। फिर भी तुम्हें इतना बता देता हूँ कि मैं दुश्मन हूँ तुम्हारा... तुमसे बेइंतेहा नफ़रत करता हूँ और इस नफ़रत की आग में तुम्हें पल-पल जलने पर मजबूर करने वाला हूँ। मैं वो तूफ़ान हूँ जो तुम्हारी ज़िंदगी को तबाह करने आया है।"

    उसकी बातें बेचारी धृति के सर के ऊपर से जा रही थीं। उसके यूँ अचानक धकेलने की वजह से धृति ज़मीन पर गिर गई थी और अब वह सर उठाकर सहमी सी, हैरान-परेशान सी उस लड़के को देख रही थी।

    लड़का जैसे ही चुप हुआ, धृति ने खड़े होते हुए थोड़ा आराम से कहा, "देखिए, मैं आपको नहीं जानती... मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है, मुझे नहीं पता आप क्या और क्यों कर रहे हैं? नहीं जानती कि क्यों आप इस क़दर मुझसे नफ़रत करते हैं जबकि मैंने पहले कभी न आपको देखा है और न ही आपका पहले कभी नाम ही सुना है... मुझे बस इतना पता है कि आप जो कर रहे हैं वो ग़लत है, मैंने आपका कुछ नहीं बिगाड़ा और न ही मेरे परिवार की आपसे कोई दुश्मनी है... आपने मुझे यहाँ बुलाया तो मैं आ गई। अब मेरे परिवार और मुझे बख्श दीजिए... उन्हें छोड़ दीजिए।"

    धृति उससे विनती कर रही थी, पर अर्नव पर जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा था। धृति बोल ही रही थी कि अचानक एक भयानक हँसी की आवाज़ वहाँ गूंज गई, जिससे धृति एकदम से ख़ामोश हो गई और हैरान-परेशान सी अपने सामने खड़े अर्नव को देखने लगी जो उसे देखकर ऐसे हँस रहा था मानो उसका उपहास उड़ा रहा हो।

    अर्नव कुछ देर तक हँसता रहा, फिर एकाएक उसने धृति की बाँह पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। वह उसे बेहद डरावना लग रहा था और उसकी गुस्से भरी निगाह धृति पर टिकी हुई थी।

    उसने धृति की बाँह पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए दाँत पीसते हुए कहा, "ग़लत कर रहा हूँ मैं? जो तुमने किया उसके सामने तो ये कुछ भी नहीं, मिस धृति अवस्थी। बहुत शौक है न तुम्हें लोगों की ज़िंदगियों के साथ खेलने का। आज जब बात तुम्हारे अपनों की आई तो इतनी जल्दी तिलमिला उठी..."

    धृति अब भी परेशान सी उसे देख रही थी और उसकी बातों को समझने की कोशिश कर रही थी। बाँह में दर्द हो रहा था उसे, पर अभी उसे इसका होश ही नहीं था। वह तो अर्नव के लगाए इल्ज़ाम सुनकर स्तब्ध सी उसे देखे जा रही थी।

    अर्नव ने अब शैतानी स्माइल के साथ उसे देखा, फिर उसकी बाँह को उसकी पीठ से लगाकर उसे अपने और करीब करते हुए एविल मुस्कान के साथ बोला,

    "सही कहा तुमने, मेरा तुम्हारे परिवार से कोई लेना-देना नहीं है, मेरी दुश्मनी तो तुमसे है और वो बेचारे तो तुम्हारे और मेरे बीच पिस रहे हैं। आखिर थोड़ी सज़ा तो उन्हें भी मिलनी चाहिए न, तुम जैसी बेटी को पैदा करने की... पर तुम चिंता मत करो, मैं उन्हें कुछ नहीं करूँगा, मैं तो यहाँ सिर्फ़ तुम्हारी ज़िंदगी को जहन्नुम बनाने आया हूँ और वो बस मेरे मोहरे हैं जो मुझे मेरी मंज़िल तक पहुँचाने में मेरे काम आने वाले हैं... जानना नहीं चाहोगी कि मेरा उन्हें किडनैप करने और तुम्हें यहाँ बुलाने के पीछे आखिर मेरा मक़सद क्या था?"

    धृति उसके एक्सप्रेशन देखकर घबराने लगी, उसे कुछ ग़लत होने का अंदेशा हो रहा था। अर्नव की आँखों में उसने अपने लिए नफ़रत देखी थी, बेइंतेहा नफ़रत, जिसकी वजह तक वह नहीं जानती थी, पर अर्नव की बातें उसके दिल दहलाने को काफी थीं।

    उसने घबराते हुए धीरे से पूछा, "क्या चाहते हैं आप मुझसे...?"

    "शादी करना चाहता हूँ तुमसे।" अर्नव ने बिना किसी भाव के ही जवाब दिया। उसका जवाब सुनकर धृति के होश फाख्ता हो गए। वह फटी आँखों से उसे देखते हुए हैरानगी से बोली,

    "शादी?"

    "हाँ, शादी। और ये सोचने की भूल भूल से भी मत करना कि मैं तुम्हें चाहता हूँ इसलिए तुमसे शादी करना चाहता हूँ। मैं तुम्हें तिल-तिल करते मरते देखना चाहता हूँ... तुम्हें मौत के लिए तड़पते देखना चाहता हूँ... बहुत खेल ली तुम औरों की ज़िंदगी से, पर तमाशा तुम्हारी ज़िंदगी का बनेगा... तुमसे शादी करके मैं तुम्हारी ज़िंदगी और तुम्हारी खुशियों को तबाह कर दूँगा। इतना दर्द दूँगा तुम्हें कि तुम्हारे आँसू तक तुम्हारा साथ छोड़ देंगे... तुम्हें इतना अकेला कर दूँगा कि तड़पोगी तुम दर्द से, मरना चाहोगी, पर मैं तुम्हें मौत भी नसीब नहीं होने दूँगा।"

    धृति जो अब तक शादी की बात सुनकर सदमे में थी, वह एकाएक जैसे होश में लौट आई। उसने अपनी पूरी ताक़त लगाकर अर्नव को खुद से दूर धकेल दिया। अर्नव को इसकी उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह दो कदम पीछे हट गया। गुस्से से उसका चेहरा तमतमा उठा, पर वह कुछ कहता या कर पाता, उससे पहले ही धृति उस पर गुस्से से चीख पड़ी,

    "समझ क्या रखा है आपने खुद को? मैं तब से कुछ कह नहीं रही, शांति से पेश आ रही हूँ तो मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। तब से सुन रही हूँ जो मुँह में आ रहा है, बस बोले जा रहे हैं... अपना ज़ोर आज़मा रहे हैं मुझ पर, ऐसे इल्ज़ाम लगा रहे हैं जिसकी वजह तक मुझे नहीं पता। तब से मैं ख़ामोश थी तो आपने मेरी ख़ामोशी को मेरी कमज़ोरी ही समझ लिया। पर मैं कमज़ोर नहीं हूँ... आप कौन हैं, क्या हैं, क्यों यहाँ आए हैं? क्यों कर रहे हैं ये सब? किस बात का बदला लेना चाहते हैं मुझसे? मैं कुछ नहीं जानती और न ही मेरा आपकी बकवास बातों के पीछे की वजह को जानने में कोई दिलचस्पी है। मैं बस इतना जानती हूँ कि मेरे परिवार को अपना मोहरा बनाकर आप ठीक नहीं कर रहे। मैं आपको शांति से कह रही हूँ कि उन्हें छोड़ दीजिए, वरना..."

    "वरना क्या?" एकाएक अर्नव ने आकर उसकी बाँह पकड़कर उसे मोड़कर उसकी पीठ से लगाते हुए उसे अपने करीब खींच लिया, जिससे धृति चौंक कर उसे देखने लगी।

    अर्नव जबड़े भींचे अपनी आग धधकती आँखों से उसे घूर रहा था। कुछ पल बाद धृति को होश आया कि वह उसके कितने करीब है तो उसने उससे दूर होने के लिए छटपटाते हुए कहा, "अगर आपने अभी मुझे यहाँ से नहीं जाने दिया और मेरे परिवार को अपनी कैद से आज़ाद नहीं किया तो मैं पुलिस के पास जाऊँगी।"

    उसकी बात सुनकर अर्नव शैतानी हँसी हँसने लगा। धृति असमंजस भरी निगाहों से उसे देखने लगी, एक बार फिर अर्नव की शैतानी हँसी उसे डरा रही थी।

    कुछ पल हँसने के बाद अर्नव ने उसके गाल पर अपनी दूसरी हथेली की उंगलियों को बेतरतीब ढंग से घुमाते हुए एविल मुस्कान के साथ कहा, "पुलिस को बताओगी तुम? और क्या करेगी पुलिस? आकर मुझे पकड़ेगी और तुम्हारी फैमिली को आज़ाद करवा देगी मुझसे?... बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में जी रही हो तुम... पुलिस क्या, तुम कमिश्नर के पास भी चली जाओगी, तब भी तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा। अर्नव सिंह राइज़ादा नाम सुनते ही सब अपने कदम पीछे हटा लेंगे और तुम एकदम अकेली रह जाओगी, बेबस हो जाओगी क्योंकि तब न तुम खुद को मुझसे बचा पाओगी और न ही तुम्हारा परिवार को मेरी कैद से रिहाई मिलेगी। बेचारे तुम बेवकूफी की वजह से बेमौत मारे जाएँगे।"

    उसकी बात सुनकर धृति का चेहरा डर से पीला पड़ने लगा। अर्नव का रुतबा वह बहुत अच्छे से समझ चुकी थी। उसके इरादों को जानने के बाद शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि चाहे जो हो जाए वह अपने मक़सद को पूरा करके रहेगा।

    अपने परिवार को दाव पर लगा देख धृति की हिम्मत कमज़ोर पड़ने लगी थी। कितनी ही कोशिशें करने के बाद भी वह उसकी पकड़ से आज़ाद नहीं हो पा रही थी।

    अर्नव चेहरे पर सख्त भाव लिए उसे घूर रहा था। धृति अब उसके आगे हारती जा रही थी। अर्नव ने अब भी उसकी बाँह को बेरहमी से मरोड़ा हुआ था और दर्द से धृति की आँखों में आँसू भर आए थे।

    वह थक गई थी उससे छूटने की कोशिश करते-करते, अपने परिवार की जान को ख़तरे में देख, उसकी हिम्मत जवाब देने लगी थी। उसने अब रुआँसी होकर उससे सवाल किया,

    "क्यों कर रहे हैं आप ये?... ऐसा क्या किया है मैंने जो आप मेरी ज़िंदगी बर्बाद करना चाहते हैं?... जब इतनी ही नफ़रत है मुझसे तो मुझे मार दीजिए न, क्यों मुझसे शादी करके अपनी ज़िंदगी और अपने घर में मुझे जबरदस्ती घुसाना चाहते हैं?"


    उसकी नम आँखें देखकर अर्नव के दिल को सुकून मिलने लगा था। पर आँखें अब भी ज्वालामुखी सी धधक रही थीं। उसने जलती आँखों से उसे घूरते हुए कहा,

    "नहीं जानती तुमने क्या किया है? इतनी भोली नहीं हो तुम जितना बनने की कोशिश कर रही हो। मैं तुम्हारे असली चेहरे से बहुत अच्छे से वाक़िफ़ हूँ, इसलिए अपना ये बेचारी होने का नाटक तुम्हें मेरे सामने करने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अर्नव सिंह राइज़ादा आग का दहकता गोला है जिसने तुम्हें ये झूठे आँसू कभी ठंडा नहीं कर सकते। तुम मरना चाहती हो न ताकि अपने गुनाहों से तुम्हें छुटकारा मिल जाए, पर तुम्हारे गुनाहों की सज़ा इतनी छोटी नहीं हो सकती। इतनी आसान मौत नहीं मिल सकती तुम्हें? जैसे तुम्हारी वजह से आज मैं पल-पल तड़प रहा हूँ, वैसे ही तुम भी तड़पोगी... तुमसे शादी करने का मेरा सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मक़सद है... तुम्हारी बर्बादी। मैं वो तूफ़ान हूँ जिसने तुम्हारी ज़िंदगी में दस्तक ही तुम्हें तबाह करने के लिए ली है। दूसरों की ज़िंदगी के साथ बहुत खेल ली तुम, अब बारी मेरी है... अब मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए किसी की ज़िंदगी, उसकी फ़ीलिंग्स के साथ खेलने का क्या अंजाम होता है। शादी तो तुम्हारी मुझसे ही होगी और उसके बाद मैं तुम्हारी ज़िंदगी का जहन्नुम से भी बदतर बना दूँगा।"

    "मैं नहीं करूँगी आपसे शादी... जब तक आप मुझे ये नहीं बता देते कि क्यों आप ये सब कर रहे हैं, मैं आपकी कोई बात नहीं मानूँगी।"

    धृति ने दृढ़ता से अपना फ़ैसला सुना दिया, जिसे सुनकर अर्नव ने उसे आज़ाद कर दिया और कदम पीछे हटाते हुए बेफ़िक्री से मुस्कुराते हुए बोला,

    "ठीक है, मत मानो मेरी बात, नहीं बताऊँगा मैं तुम्हें कुछ भी... मत करो मुझसे शादी, पर इतना ध्यान रहे कि यहाँ तुम्हारे कदम इस घर से बाहर पड़ें और वहाँ तुम्हारा परिवार इस दुनिया को छोड़कर चला जाएगा।"

    धृति जो उससे आज़ाद होते ही वहाँ से भागने की फ़िराक़ में थी, उसके कदम ठिठक गए उसकी बात सुनकर। एक पल को वह भूल ही गई थी कि उसका परिवार अब भी इस राक्षस के कब्ज़े में है और यह उनके साथ कुछ भी कर सकता है।

    अर्नव ने उसे रुकते देखा तो उसके लबों पर तिरछी मुस्कान फैल गई। उसने सख्त लहज़े में आगे कहा,

    "दो रास्ते हैं तुम्हारे पास... ये जानते हुए कि इस शादी से तुम्हें सिर्फ़ दर्द, अपमान, धोखा मिलेगा, मुझसे शादी करके अपने परिवार को मेरी कैद से आज़ाद करवा लो या फिर मेरी बात को न मानते हुए यहाँ से चली जाओ, पर फिर अपने परिवार की लाश देखने के लिए भी तैयार रहना। या तो तुम अपनी ज़िंदगी बर्बाद होने से बचा सकती हो, जिसका मतलब होगा कि तुम अपने परिवार को हमेशा-हमेशा के लिए खो दोगी, या फिर अपने परिवार को एक नई ज़िंदगी देने के एवज़ में खुद को मौत से बदतर ज़िंदगी जीने के लिए तैयार कर लो... फ़ैसला तुम्हारा है और तुम्हारे पास सोचने के लिए सिर्फ़ पाँच मिनट हैं। अगर इन पाँच मिनट के अंदर तुमने मुझसे शादी करने के लिए हाँ नहीं कही और यहाँ से जाने के लिए कदम आगे बढ़ाया तो मेरा बस एक फ़ोन कॉल और तुम्हारे परिवार का नामोनिशान इस दुनिया से मिट जाएगा, उसके बाद तुम दुनिया में कहीं भी क्यों न छुप जाओ, मैं तुम्हें ढूँढ़ निकालूँगा और उसके बाद वो तुम्हारा हश्र होगा, तुम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती।"

    अर्नव के चेहरे पर गुस्से के साथ नफ़रत के भाव भी उभर आए थे और अब वह अपने फ़ोन को अपने हाथों में घुमाते हुए धृति को घूर रहा था। वहीं धृति के तो पैर जैसे वहाँ जम से गए थे। कानों में अर्नव की कही बातें गूंज रही थीं और आँखों के आगे अपने परिवार का चेहरा घूम रहा था।

  • 2. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 2

    Words: 2206

    Estimated Reading Time: 14 min

    दो रास्ते थे तुम्हारे पास।...ये जानते हुए कि इस शादी से तुम्हें सिर्फ़ दर्द, अपमान, धिक्कार मिलेगी, मुझसे शादी करके अपने परिवार को मेरी कैद से आज़ाद करवा लो या फिर मेरी बात को न मानो और यहाँ से चली जाओ। पर फिर अपने परिवार की लाश देखने के लिए भी तैयार रहना, या अपनी ज़िंदगी बर्बाद होने से बचा सकती हो, जिसका मतलब होगा कि तुम अपने परिवार को हमेशा-हमेशा के लिए खो दोगी। या फिर अपने परिवार को एक नई ज़िंदगी देने के एवज़ में खुद को मौत से बदतर ज़िंदगी जीने के लिए तैयार कर लो।... फैसला तुम्हारा है और तुम्हारे पास सोचने के लिए सिर्फ़ पाँच मिनट हैं। अगर इन पाँच मिनट के अंदर तुमने मुझसे शादी करने के लिए हाँ नहीं कही और यहाँ से जाने के लिए कदम आगे बढ़ाया, तो मेरा बस एक फ़ोन कॉल और तुम्हारे परिवार का नामोनिशान इस दुनिया से मिट जाएगा। उसके बाद तुम दुनिया में कहीं भी क्यों न छुप जाओ, मैं तुम्हें ढूँढ निकालूँगा और उसके बाद तुम्हारा जो हश्र होगा, तुम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकोगी।"

    अर्नव के चेहरे पर गुस्से के साथ नफ़रत के भाव भी उभर आए थे। अब वह अपने फ़ोन को अपने हाथों में घुमाते हुए धृति को घूर रहा था। वहीं धृति के पैर वहाँ जम से गए थे। कानों में अर्नव की कही बातें गूंज रही थीं और आँखों के आगे अपने परिवार का चेहरा घूम रहा था।

    अर्नव की निगाहें उसी पर टिकी थीं और अब चेहरे पर कोई भाव नहीं था। शायद वह पहले से ही धृति का फैसला जानता था, इसलिए एकदम शांत था। पर बाहर से जितना शांत वह नज़र आ रहा था, अंदर से उतना ही ज़्यादा अशांत था।

    धृति कुछ पल परेशान सी सब बातों के बारे में सोचती रही। अपनी बेबसी पर आज उसको तरस आ रहा था। आँखें आँसुओं से लबालब भर चुकी थीं। उसने कुछ देर सोचने के बाद अपने हाथों से अपने आँसुओं को पोछ लिया और उसकी ओर पलटते हुए बोली,

    "अगर मैं आपसे शादी करती हूँ, तो आप मेरी फैमिली को छोड़ देंगे? दोबारा अपने मकसद को पूरा करने के लिए या मुझे मजबूर करने के लिए उन्हें बीच में तो नहीं लाएँगे?"

    "एक बार मेरी तुमसे शादी हो जाए, उसके बाद मुझे उनकी कोई ज़रूरत नहीं।"

    धृति ने उसकी बात सुनी। बहुत हिम्मत के साथ उसने आगे कहा, "ठीक है। मैं आपसे शादी करने को तैयार हूँ। आप जब और जहाँ कहेंगे, मैं आपसे शादी कर लूँगी, बस आप मेरी फैमिली को छोड़ दीजिए।"

    आखिर में धृति उसके आगे झुक ही गई। यह देखकर अर्नव के लबों पर तिरछी मुस्कान फैल गई। उसने उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए, इंटेंस निगाहों से उसे देखते हुए कहा, "गुड। इंटेलिजेंट लगती हो तुम। बहुत अच्छा फैसला लिया है तुमने। अब जब डिसीड कर ही लिया है, तो देर किस बात की? शादी अभी और इसी वक़्त होगी और एक बार शादी संपन्न हो जाए, उसके बाद मैं तुम्हारे परिवार को आज़ाद कर दूँगा।"

    उसकी बात सुनकर धृति एक बार फिर चौंक गई। वह आँखें फाड़े उसे देखते हुए हैरानी से बोली, "अभी शादी होगी? इसका क्या मतलब?"

    अर्नव उसके ठीक सामने आकर खड़ा हो गया। उसने तिरछी मुस्कान के साथ उसे देखते हुए चुटकी बजाई और इसके साथ ही वह जगह रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा उठी।

    जैसे ही धृति की नज़र सामने पड़ी, उसके होश उड़ गए।

    लिविंग रूम के बड़े से हॉल के बीचों-बीच फूलों से सजा खूबसूरत सा मंडप बनाया हुआ था जहाँ शादी के लिए आवश्यक सभी सामग्री पहले से मौजूद थी। वहाँ पंडित जी और दुल्हा-दुल्हन के बैठने के लिए आसन भी लगे थे और बीच में हवन कुंड बना हुआ था जिसमें अभी आग नहीं जल रही थी।

    धृति को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसने अविश्वास भरी नज़रों से अर्नव को देखा। उसने बिना किसी भाव के सवाल किया, "शादी अभी और इसी वक़्त होगी। अगर अपने परिवार की जान बचाना चाहती हो, तो तुम्हें मेरी हर बात खामोशी से माननी होगी क्योंकि कोई मेरी बात का विरोध करे, यह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।"

    उसने सख्त भाव से उसे चेताया। शादी शब्द सुनकर धृति की आँखों में नमी उतर गई। उसने नम आँखों से उस मंडप को देखा, जहाँ उसकी बर्बादी की कहानी लिखी जानी थी, जिसे इतनी खूबसूरती से सजाया ही इसलिए गया था ताकि वहाँ उसकी किस्मत को दुखों, तकलीफों और अपमान से जोड़ा जाए।

    फिर उसने खुद को संभालते हुए सख्त भाव से कहा, "मैं आपसे शादी करने को तैयार हूँ। आप अभी इसी वक़्त शादी करना चाहते हैं, तो मैं अभी ही मंडप पर बैठ जाऊँगी। पर उससे पहले आपको मेरी फैमिली को अपनी कैद से आज़ाद करना होगा। जो इंसान मुझे इस जबरदस्ती की शादी के लिए राज़ी करने के लिए इस हद तक गिर सकता है कि एक लड़की के परिवार को निशाना बनाए, उसकी मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अपने मकसद में पूरा करना चाहे, मैं उस शख्स पर विश्वास कैसे कर लूँ कि अपने मकसद के पूरे होने के बाद वह अपना वादा निभाएगा?

    मुझे आप पर विश्वास नहीं। क्या पता आप मुझसे शादी करने के बाद अपनी बात से मुकर जाएँ और मेरे परिवार को अपनी कैद से आज़ाद न करें ताकि आगे भी आप उन्हें निशाने पर रखकर मुझसे अपनी बात मनवा सकें। इसलिए पहले आप मेरी फैमिली को आज़ाद कीजिए। जब मैं उन्हें सही-सलामत अपने घर पर देख लूँगी, तो उसके बाद आप जो और जैसा कहेंगे, मैं बिना कोई सवाल किए, आपकी हर बात मान लूँगी।"

    उसकी बातें सुनकर अर्नव की मुट्ठी गुस्से से कस गई। उसने जबड़े भींचते हुए, बेहद गुस्से में पर धीमी आवाज़ में कहा, "इस वक़्त तुम्हारे पास मुझ पर विश्वास करने और खामोशी से मेरी बात मानने के अलावा और कोई चारा है ही नहीं। इसलिए अपना यह गुमान मुझे दिखाने की ज़रूरत नहीं है।... वैसे भी जिसकी खुद की फ़ितरत में धोखा देना शामिल हो, जिसके खून में छल-कपट, धोखेबाज़ी और चालाकी बहती हो, उसके मुँह से विश्वास की बातें सुनना कुछ ठीक नहीं लगता।

    तुम भरोसा करो या न करो, पर मैं तुम्हारी तरह धोखेबाज़ नहीं हूँ। अपने दिए वादे से मुकरना मेरी नहीं, तुम्हारी फ़ितरत है। मेरी ज़ुबान से एक बार जो बात निकल गई, वह पत्थर की लकीर होती है। मैंने कह दिया कि शादी के पूरे होते ही तुम्हारा परिवार सही-सलामत तुम्हारे घर पहुँच जाएगा, तो मतलब पहुँच जाएगा। अब अगर तुमने एक और शब्द अपने ज़ुबान से निकाला, तो मुझे अपना फ़ैसला बदलने में वक़्त नहीं लगेगा। इसलिए अगर अपने परिवार को ज़िंदा देखना चाहती हो, तो अपना मुँह बंद रखो और चुपचाप जो कहा जाए, वह करो।"

    अर्नव का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। इतने इल्ज़ाम लगाए उसने धृति पर, लेकिन उसे यह तक समझ नहीं आया कि आखिर उसने क्या किया है? उसके किस गुनाह की सज़ा मिल रही है उसे?

    कोई और रास्ता था ही कहाँ उसके पास, सिवाय खामोशी से अर्नव की बात मानने और न चाहते हुए भी इस जबरदस्ती के रिश्ते में बंधने के, जिससे उसे सिर्फ़ तकलीफ़ ही मिलने वाली थी।

    उसने अपना सर झुकाकर खामोश स्वीकृति दे दी। अर्नव ने घृणा भरी नज़र उस पर डाली, फिर तेज आवाज़ में चीखा, "माधुरी..."

    उसकी आवाज़ इतनी तेज थी कि धृति का पूरा बदन काँप उठा। वहीं अगले ही पल किचन से एक २५ साल की लड़की भागते हुए वहाँ पहुँची और अर्नव के आगे आकर सर झुकाकर बोली, "जी सर।"

    "इन्हें कमरे में लेकर जाओ और अच्छे से दुल्हन की तरह तैयार करके लेकर आओ। याद रहे, अगर कहीं कोई कमी रह गई, तो तुम्हें कल से ऑफ़िस आने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    अर्नव ने धृति की ओर इशारा किया और उसे लेकर जाने का कहने के साथ ही उसे भी धमकी दे डाली। उसने तुरंत हाँ में सर हिलाकर धृति को देखकर उसे चलने को कहा। धृति खामोश सी, धीमे कदमों से उसके पीछे चली गई।

    उसके वहाँ से जाते ही अर्नव ने किसी को फ़ोन किया और सीढ़ियों की ओर बढ़ गया।

    करीब एक घंटे बाद अर्नव सीढ़ियों से नीचे उतरा। गोल्डन कलर की एम्ब्रॉइडेड शेरवानी, सर पर गुलाबी रंग का साफ़ा बाँधा हुआ था, जिस पर गोल्डन कलर में मोर डिज़ाइन वाला ब्रोच लगा हुआ था। कंधे पर राजसी स्टाइल में डाला हल्के गुलाबी रंग का दुपट्टा, गले में मोतियों की चार लड़ी वाली माला पहनी हुई थी। पैरों में ट्रेडिशनल जूती।

    चेहरे पर सख्त भाव, गहरी काली आँखों में बेहिसाब गुस्सा और नफ़रत कैद थी; खड़ी नाक जिस पर गुस्सा सवार था; पतले-पतले गुलाबी लब जो गुस्से में भींचे हुए थे। हैंडसम तो था ही, पर चेहरे पर मौजूद हल्की बियर्ड्स और उसके सख्त भाव उसे किलर लुक दे रहे थे। छः फुट हाइट, जिम बनाई मस्क्युलर बॉडी जिसके उभार उस फ़िटेड शेरवानी में साफ़ नज़र आ रहे थे।

    कमाल की पर्सनैलिटी थी उसकी, जो एक बार देख ले, सीधे उसके दिल में उतर आए। चेहरे पर झलकता रौब उसकी पर्सनैलिटी का अहम हिस्सा था जो उसे सबसे जुदा बना रहा था। दूध सा गोरा चेहरा जो गुस्से में हल्का लाल हो रखा था।

    बेहद दिलकश लग रहा था वह और दुल्हे के लिबास में तो और ज़्यादा हॉट लग रहा था।

    वह बड़े ही रौब से चलते हुए नीचे आया तो मंडप के पास उसी की उम्र का एक लड़का खड़ा था। देखने में काफ़ी हैंडसम था और एकदम फ़ॉर्मल लुक में वह अलग ही नज़र आ रहा था। वह पंडित जी से कुछ बात कर रहा था। तभी अर्नव उसके पास पहुँचा तो उस लड़के ने निगाहें उसकी ओर घुमाईं, फिर उसे लेकर साइड में आ गया।

    अर्नव बिना किसी भाव के उसके साथ चला आया। दूसरे लड़के ने अब उसे देखते हुए गंभीरता से सवाल किया,

    "अर्नव, तू श्योर है न कि तू यह करना चाहता है? मतलब देख यार, मैं समझता हूँ कि तू उसे तकलीफ़ देना चाहता है, उसकी ज़िंदगी बर्बाद करना चाहता है, बदला लेना चाहता है उससे, पर उसके तो और भी कई तरीके हैं न? फिर तू क्यों उससे शादी करके अपनी ज़िंदगी बर्बाद करना चाहता है? देख यार, मैं तेरी फ़ीलिंग्स को समझता हूँ और तेरे हर फ़ैसले में तेरे साथ खड़ा हूँ, पर यार शादी ज़िंदगी का एक बेहद अहम फ़ैसला होता है, उसको यूँ गुस्से में या बदले के लिए लेना ठीक नहीं है। तू उससे शादी उसकी ज़िंदगी बर्बाद करने के लिए करना चाहता है, पर उसके साथ-साथ तेरी ज़िंदगी भी ख़राब हो जाएगी।

    नफ़रत से जुड़ा यह रिश्ता अगर उसे दर्द और तकलीफ़ देगा, तो तुझे भी ज़िंदगी भर का दर्द ही मिलेगा इस रिश्ते में बंधकर। एक बार फिर सोच ले यार। हम कोई और तरीका ढूँढ लेंगे उससे बदला लेने का। तुझे उसके लिए उस धोखेबाज़ लड़की से शादी करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    वह लड़का काफ़ी परेशान लग रहा था। अर्नव खामोशी से उसकी बात सुन रहा था। उसके एक्सप्रेशनलेस चेहरे को देखकर यह बता पाना बेहद मुश्किल था कि आखिर उसके दिमाग में इस वक़्त चल क्या रहा है?

    वह लड़का खामोश हुआ तो कुछ पल वहाँ गहरी खामोशी पसरी रही। फिर अर्नव ने भावहीन, कठोर लहज़े में कहना शुरू किया,

    "ठीक कहा तूने, उसे दर्द देने के और भी तरीके हैं, पर जो तकलीफ़ मैं उसे अपनी ज़िंदगी में शामिल करने के बाद दूँगा, उसकी बात ही अलग होगी।... हर पल उसे उसके गुनाहों का एहसास दिलाऊँगा। उसने जो किया, उसके बाद उसे चैन से जीने का कोई हक़ नहीं है और यह रिश्ता उसकी ज़िंदगी से सुख-चैन और खुशियों को हमेशा-हमेशा के लिए छीन लेगा।

    बहुत शौक़ से उसे अपने हुस्न के जाल में मासूम लड़कों को फँसाकर उनके दिल और जज़्बातों के साथ खेलने का, एक बार शादी हो जाए, उसके बाद मैं उसकी ज़िंदगी के साथ ऐसा खेल खेलूँगा कि वह उस पल को कोसेगी जब वह मेरी ज़िंदगी में आई थी।

    अमीर लड़कों को अपने प्यार के जाल में फँसाकर उनका इस्तेमाल करना और ज़रूरत पूरी होने के बाद उन्हें तड़पता छोड़ देना फ़ितरत है उसकी। अब मैं उसे एहसास दिलाऊँगा कि तड़पना क्या होता है। कितनी तकलीफ़ होती है जब कोई अपनी ज़िंदगी को अपने मतलब के लिए कंट्रोल करता है और अंत में आपको मरने के लिए अकेला छोड़ देता है। तन्हाई कैसी टीस पैदा करती है दिल में, इसका एहसास अब उसे होगा।..."

  • 3. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 3

    Words: 2131

    Estimated Reading Time: 13 min

    अमीर लड़कों को अपने प्यार के जाल में फँसाकर उनका इस्तेमाल करना, और ज़रूरत पूरी होने के बाद उन्हें तड़पता छोड़ देना—यह उसकी फितरत है। अब मैं उसे एहसास दिलाऊँगा कि तड़पना क्या होता है; कितनी तकलीफ होती है जब कोई अपनी ज़िंदगी को अपने मतलब के लिए नियंत्रित करता है और अंत में आपको मरने के लिए अकेला छोड़ देता है। तन्हाई कैसी टीस पैदा करती है दिल में, इसका एहसास अब उसे होगा।

    इस शादी के बाद वह चाहकर भी मुझसे दूर नहीं जा सकेगी, और अपने करीब मैं उसे आने नहीं दूँगा। उसे मुझसे सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत मिलेगी, और यह रिश्ता उसे सिर्फ़ ज़िल्लत भरी ज़िंदगी देगा।

    न वह मेरी कैद से छूटकर किसी और के पास जाने के काबिल रहेगी, और न ही सुकून से मेरे साथ रह सकेगी। पैसों के लालच में उसने जाने कितनों की ज़िंदगी बर्बाद की है; अब उसे बेशुमार दौलत मिलेगी, पर मान-सम्मान, इज़्ज़त और प्यार—जिसकी उसने कभी क़द्र नहीं की—उसके लिए उसे तड़पना होगा। तरसेगी वह प्यार के लिए, पर उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी नफ़रत मिलेगी।

    बहुत आसमान में उड़ने का शौक है उसे; यह शादी उसके पंखों में काटने के लिए कर रहा हूँ मैं। इस सोने के महल में उसे कैद करने के लिए यह ज़रूरी है। उसकी ज़िंदगी को जहन्नुम बनाने के लिए मुझे उसे अपनी ज़िंदगी में शामिल करना ही होगा, और अगर इसमें मेरी ज़िंदगी बर्बाद होती भी है, तो भी मुझे खुद की कोई फ़िक्र नहीं है।

    मेरी ज़िंदगी का अब बस एक ही मक़सद है—वह है धृति अवस्थी की बर्बादी। और उसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा, मैं करूँगा।

    अर्नव की आँखों में नफ़रत और बदले की भावना के साथ धृति को बर्बाद करने का जुनून नज़र आ रहा था। उसका चेहरा एक बार फिर गुस्से से तमतमा उठा।

    उस लड़के ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए आराम से कहा,
    "मैं तेरे हर फ़ैसले में तेरे साथ हूँ।"

    अर्नव ने उसकी बात सुनी तो उसके लबों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई, और इसके साथ ही उसके दाहिने गाल पर हल्का सा डिंपल उभर आया; पर अगले ही पल उसका चेहरा एक बार फिर भावहीन हो गया।

    उसने सपाट लहज़े में कहा,
    "जो कहा था, वह हो गया?"

    "Hmm, जैसा कि तूने कहा था, सब वैसा ही किया था। कुछ ही देर में उन्हें होश आ जाएगा, और आगे भी सब वैसे ही होगा जैसा हमने सोचा है।"

    अर्नव ने हामी भर दी। उसके माथे पर अब चिंता की लकीरें उभर आईं; उसने एक पल को अपनी आँखें बंद कर लीं, फिर बिना किसी भाव के बोला,
    "मेरे रूम के डेकोरेशन का काम शुरू करवा दे।"

    उसकी बात सुनकर उस लड़के के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं, पर वह चाहकर भी कुछ कह न सका, और नौकरों को कुछ समझाकर ऊपर भेज दिया।

    वह बात कह ही रहे थे कि पंडित जी ने मुहूर्त होने की बात कह दी। अर्नव की भौंहें सिकुड़ गईं; उसकी गुस्से भरी निगाहें उस कमरे की ओर घूम गईं, जहाँ एक घंटे पहले धृति गई थी।

    जैसे ही उसने निगाहें उस ओर घुमाईं, अगले ही पल माधुरी के साथ धृति ने उस कमरे से बाहर कदम रखा। अर्नव ने एक नज़र उसे देखा और घृणा से अपनी निगाहें फेर लीं; वहीं दूसरे लड़के की निगाहें जब धृति पर पड़ीं, तो वह उसे देखता ही रह गया।

    सुनहरे रंग का डिज़ाइनर लहंगा जो बहुत ही प्यारा लग रहा था। लंबे रेशमी बालों को जूड़े में बाँधकर उन पर गजरा लगाया हुआ था। बालों की कुछ लटों को जूड़े से बाहर निकाला हुआ था, जो उसके गालों पर अटखेलियाँ कर रही थीं। उस गोल्डन लहंगे पर ग्रीन और रेड के कॉन्ट्रास्ट का हैवी दुपट्टा था, जिसको उसके सर पर सेट करने के बाद कंधे से लेकर कमर पर सेट किया हुआ था।

    चाँद सा सोना मुखड़ा जिस पर हल्का मेकअप किया हुआ था। चौड़ा माथा-पट्टी जिस में से निकलती छोटी-छोटी लड़ियों से उसका आधा माथा ढँक चुका था। बीच में लटकता सुंदर सा गोल्डन कलर का माँगतिक्का उसके माथे पर सजा हुआ था। उसके ठीक नीचे छोटी सी स्टोन वाली लाल बिंदी लगाई हुई थी। बड़ी-बड़ी कजरारी काजल से सनी आँखें, जिस पर पलकों का पहरा था। हल्के गुलाबी गाल, नाक में पहनी बड़ी सी नथ जिसने उसके सुरख़ लबों को आधा ढँक दिया था और उसके गालों से होते हुए उसे बालों पर सेट किया हुआ था।

    गले में गले से सटा जड़ाऊ हार और उसके बाद दो थोड़े बड़े हार। कानों में उस हार के सेट का हैवी झुमका पहना हुआ था। गोरी कलाईयों में लाल और क्रीम कलर का भरा-भरा चूड़ा और उसमें लगे कलीरे। पाँचों उँगलियों में पहनी रिंग से जुड़ा ब्रेसलेट जो उसकी कलाई पर बाँधा हुआ था। दुपट्टे के ऊपर से पहनाया गया कमरबंद जो उसकी पतली कमर को और ज़्यादा आकर्षक बना रहा था। पैरों में भारी पायल जो उसके पैरों में बेड़ियों जैसी लग रही थीं।

    बेहद हसीन लग रही थी वह इस वक़्त। इस क़दर दिलकश लग रही थी कि अगर इस वक़्त कोई लड़का उसे देख ले, तो उसकी धड़कनें थम जाएँ और वह खुद को उसके प्यार से डूबने से रोक न सके।

    उस दूसरे लड़के ने ऊपर से नीचे तक उसे देखा और उसके चेहरे पर नफ़रत के भाव उतर आए; उसने अपना चेहरा फेर लिया।

    धृति का उदास, निष्छेज चेहरा उसकी बेबसी बताने को काफ़ी था। इतनी तकलीफ़ में थी वह इस वक़्त कि उसकी आँखें आँसुओं से लबालब भरी हुई थीं। मेकअप से लबों के ऊपर का तिल छुप गया था।

    उसके क़दम अब उसका साथ नहीं दे रहे थे। इतना हैवी जोड़ा, उस पर इतने हैवी गहने, और पैरों में पड़ी वे बेड़ियाँ, और दिल में दफ़्न दर्द। वह चाहकर भी अर्नव की ओर क़दम बढ़ाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। हर बढ़ते क़दम के साथ वह अपनी बर्बादी के नज़दीक जा रही थी—इसका एहसास था उसे, शायद इसलिए उसके क़दम आगे बढ़ने को राज़ी नहीं थे।

    वह बेहद धीमी चाल से आगे बढ़ रही थी, और उसके हर बढ़ते क़दम के साथ उस सन्नाटे में उसके पायलों की छन-छन की आवाज़ गूंज रही थी, जो अर्नव के कानों में शीशे सी चुभ रही थी। उसका गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था।

    कुछ पल तो वह ख़ामोशी से उसके तरफ़ पीठ किए खड़ा रहा, फिर मुड़कर गुस्से में उसकी ओर बढ़ गया। धृति की कलाई को अचानक ही किसी ने कसके पकड़ लिया, जिससे उसके हाथ में पहने ब्रेसलेट में लगे स्टार्स उसकी कलाई में चुभने लगे। धृति जो अपनी ही सोच में गुम, माधुरी के साथ धीमे क़दमों से आगे बढ़ रही थी, दर्द होते ही उसने अपनी निगाहें उठाईं और भरी निगाहों से अर्नव को देखने लगी, जो सामने देखते हुए उसकी कलाई थामे तेज़ क़दमों से आगे बढ़ रहा था।

    धृति उसके पीछे-पीछे खींची चली जा रही थी। यह नज़ारा देखकर माधुरी हतप्रभ सी वहीं खड़ी रह गई, और उस लड़के, जिसका नाम कबीर है, उसकी निगाहें भी उन दोनों पर चली गईं।

    अर्नव ने धृति को मंडप के पास लाकर झटके से उसके हाथ को छोड़ा, तो वह बमुश्किल गिरते-गिरते बची।

    उसने भरी निगाहों से, अचरज से उसे देखा, पर अर्नव के माथे पर एक शिकन तक नहीं थी। उसने नौकर की ओर गुस्से भरी निगाहें घुमाईं, तो दो नौकर तुरंत हाथों में बड़ी-बड़ी थाल लेकर वहाँ उपस्थित हो गए, जिसमें वरमाला रखी हुई थी।

    अर्नव ने अबीर को देखकर आँखों से ही कुछ इशारा किया, फिर वरमाला उठाकर धृति की ओर बढ़ते हुए बोला,
    "अपने ये सड़े से एक्सप्रेशन हटाकर ज़रा मुस्कुराकर दिखाओ। आख़िर शादी है...हमारी दुल्हन को देखकर लगना चाहिए कि वह यह शादी किसी दबाव में आकर नहीं कर रही है।"

    धृति ने उसकी बात सुनकर अपनी पलकें झुका लीं। यह देखकर अर्नव की भौंहें तन गईं। उसके गालों को दबाते हुए उसके चेहरे को ऊपर किया और दाँत पीसते हुए बोला,
    "जो बोला जाए, उसे एक बार में सुनने की आदत डाल लो, क्योंकि मुझे पसंद नहीं कि कोई मेरे हुक्म की अवहेलना करे। और अब तुम्हें सारी ज़िंदगी यहीं रहना है मेरे साथ, और मेरे दिए हर दर्द को मुस्कुराकर सहना है; इसलिए अभी से दर्द में मुस्कुराने की आदत डाल लो तो बेहतर होगा तुम्हारे लिए। वरना मेरी बात न मानने के जुर्म में मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा, तुम सोच भी नहीं सकोगी...चलो अब मुस्कुराओ, तुम्हें देखकर लगना चाहिए कि यह शादी तुमने अपनी मर्ज़ी से की है।"

    धृति की आँखें छलक आईं; उसके आँसू देखकर अर्नव ने उसके चेहरे को छोड़ दिया। नफ़रत करता था उससे, पर इन आँसुओं ने उसे बेचैन कर दिया था।

    धृति ने एक बार फिर अपना सर झुका लिया। अपने आँसुओं को अपनी हथेलियों से पोंछने के बाद उसने अपने दर्द को अपनी झूठी मुस्कान के पीछे छुपा लिया।

    उसकी दर्द भरी मुस्कान देखकर अर्नव ने अपना चेहरा फेर लिया; अगले ही पल बिना किसी भाव के उसने धृति के गले में वरमाला डाल दी।

    धृति बुत बनी खड़ी रही, तो अर्नव ने उसे गुस्से से घूरकर देखा। उसका बढ़ता गुस्सा देखकर माधुरी दौड़कर धृति के पास आई और वरमाला उसे पकड़ाते हुए धीमी आवाज़ में बोली,
    "मैम, इससे पहले ही सर का गुस्सा भड़क जाए, उन्हें वरमाला पहना दीजिए।"

    धृति के कानों में उसकी बात पड़ी, तो उसने भरी निगाहों से पहले उसे देखा; उसकी आँसुओं से भरी आँखें देखकर माधुरी को बड़ा दुख हुआ, पर वह कर भी क्या सकती थी? जॉब थी उसकी यह।

    धृति ने अब अपने हाथ में पकड़ी वरमाला को देखा, फिर निगाहें झुकाते हुए आगे बढ़कर अर्नव को वरमाला पहना दी।

    अर्नव ने अब उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर मंडप की ओर बढ़ गया। धृति बेजान गुड़िया की तरह उसके साथ खींची चली गई।

    अर्नव ने उसे मंडप पर बिठाया, फिर खुद उसके बगल में बैठते हुए पंडित को खा जाने वाली निगाहों से घूरकर देखा, तो उन्होंने तुरंत ही मंत्रोच्चारण के साथ शादी की विधियों को प्रारंभ कर दिया।

    घड़ी की सुई के आगे बढ़ते के साथ शादी की विधियाँ भी आगे बढ़ रही थीं। अर्नव के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, और धृति बुत बनी बैठी, सुनी निगाहों से उस हवन कुंड में प्रज्जवलित अग्नि को देख रही थी, जिसमें ज़िंदगी, स्वतंत्रता, खुशियाँ, स्वाभिमान, सुकून सब स्वाहा होता जा रहा था। शाम से रात हो चुकी थी।

    पंडित जी ने फेरों के लिए दोनों को खड़ा होने को कहा, तो अर्नव तो खड़ा हो गया, पर धृति अब भी वैसे ही बैठी हुई थी और एकटक उस अग्नि को देखे जा रही थी। उसे यूँ बैठी देखकर माधुरी ने तुरंत आगे बढ़कर उसे खड़ा किया।

    गठबंधन हो चुका था, और अब पंडित जी के बताए मंत्रों को दोहराते हुए वे उस पवित्र अग्नि के फेरे ले रहे थे। धृति किसी यंत्र-चालित गुड़िया के तरह जो कहा जाता था, सब कर रही थी, और अर्नव—वह तो मन ही मन उन वचनों के उलट वचन ले रहा था।

    सात फेरे समाप्त हुए, तो धृति को अर्नव के वाम भाग में बिठाया गया। पंडित जी ने एक थाल अर्नव के आगे बढ़ा दी। उस थाल में सोने सा छोटा सा लाल और काले मोतियों में गुँथा प्यारा सा मंगलसूत्र और सिंदूर की सुंदर सी डिब्बी के साथ चाँद का एक सिक्का भी रखा हुआ था।

    पंडित जी के कहने पर अर्नव ने उस मंगलसूत्र को उठाकर धृति के गले में ऐसे पहनाया, जैसे उसके गले में फाँसी का फंदा बाँध दिया हो। धृति को ऐसा लगा जैसे उसका दम घुटने लगा हो, पर वह ख़ामोश बैठी रही और अपनी आँखों के सामने चल रहे अपनी बर्बादी के मंज़र को ख़ामोशी से देखती रही।

    मंगलसूत्र के बाद सिंदूर की बारी आई, तो माधुरी ने आकर धृति के माँगतिक्के के ऊपर उठा दिया। अर्नव ने सिक्के से सिंदूर न लेते हुए, नीचे दूसरी थाल में रखे सिंदूर को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसकी मांग में ऐसे भरा कि उसके बाल, माथा और चेहरा सब पर सिंदूर फैल गया। माँगतिक्का अपनी जगह से हिल गया; धृति का शरीर काँप उठा और पलकें झुक गईं।

    अब तक जिन आँसुओं को उसने रोका हुआ था, वे उसकी झुकी पलकों के नीचे से निकलकर उसके गालों को भिगोने लगे।


    आगे....

  • 4. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 4

    Words: 2008

    Estimated Reading Time: 13 min

    पंडित जी के कहने पर अर्नव ने उस मंगलसूत्र को उठाकर धृति के गले में ऐसे पहनाया, जैसे उसके गले में फाँसी का फंदा बाँध दिया हो। धृति को ऐसा लगा, जैसे उसका दम घुटने लगा हो, पर वह खामोश बैठी रही और अपनी आँखों के सामने चल रहे अपनी बर्बादी के मंज़र को खामोशी से देखती रही।

    मंगलसूत्र के बाद सिंदूर की बारी आई। तो माधुरी ने आकर धृति के मांग में सिंदूर उठा दिया। अर्नव ने सिक्के से सिंदूर न लेते हुए, नीचे दूसरी थाल में रखे सिंदूर को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसकी मांग में ऐसे भरा कि उसके बाल, माथे और चेहरे सब पर सिंदूर फैल गया। मांगटीका अपनी जगह से हिल गया; धृति का शरीर काँप उठा और पलकें झुक गईं।

    अब तक जिन आँसुओं को उसने रोका हुआ था, वे उसकी झुकी पलकों के नीचे से निकलकर उसके गालों को भिगोने लगे।

    अर्नव ने अपना सारा आक्रोश अपने इस एक हरकत से दिखा दिया था, जिसे देखकर सभी स्तब्ध रह गए थे। यह सदमा कम था कि धृति की मांग में सिंदूर डालते हुए अर्नव उठकर गुस्से में वहाँ से चला गया।

    उसने पंडित जी के यह तक कहने का इंतज़ार नहीं किया कि शादी संपन्न हुई और सीधे सीढ़ियों से होते हुए टेरेस पर चला आया।

    उसके कंधे पर डाला दुपट्टा अब ज़मीन पर पड़ा था क्योंकि उसका एक सिरा धृति की चुनरी से बंधा था और अर्नव शादी के तुरंत बाद धृति को वहाँ तन्हा छोड़कर जा चुका था। धृति वहीं मंडप पर अकेली बैठी अपनी किस्मत पर आँसू बहा रही थी।

    पंडित जी, जो ऐसी अतरंगी शादी पहली बार ही देख रहे थे, पहले ही अर्नव का धृति के लिए रवैया देखकर हैरान थे; अब तो वे आँखें फाड़े अर्नव को देख रहे थे। माधुरी भी हैरानी और परेशानी से अर्नव को देख रही थी।

    अर्नव, जो गुस्से को बर्दाश्त न कर पाने की वजह से वहाँ से चला गया था, सीढ़ियों के ऊपर जाकर कॉरिडोर में रुक गया और बिना पीछे मुड़े, तेज आवाज़ में बोला,
    "माधुरी उसे मेरे कमरे में लेकर जाओ। उसको वहाँ छोड़कर कबीर के साथ तुम घर चली जाना; काफी लेट हो गया है।"

    इतना कहकर वह कुछ पल रुका; सबकी निगाहें उसी पर जमी हुई थीं। अर्नव भी अपनी जगह ठहर चुका था। अब उसने कदम आगे बढ़ाते हुए कहा,
    "कबीर पंडित जी को उनके काम की कीमत देकर यहाँ से भेज दे और साथ में यह भी समझा दे कि आज यहाँ क्या हुआ। अगर यह बात इस चारदीवारी से बाहर गई तो क्या हो सकता है उनके साथ।"

    अर्नव गुस्से में वहाँ से जा चुका था। वहीं उसकी गुस्से भरी धमकी सुनकर पंडित जी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो चुकी थी। उन्होंने जल्दी-जल्दी अपना सामान बाँधा और जैसे ही निकलने लगे, कबीर उनके सामने आकर खड़ा हो गया।

    पंडित जी उसको देखकर घबरा गए और हड़बड़ाहट में बोलने लगे,
    "यजमान, आप बेफ़िक्र रहें; यहाँ हमने क्या देखा और यहाँ क्या हुआ, हम वह सब भूल चुके हैं। आप निश्चिंत रहें, हम बाहर किसी को इस बारे में कुछ नहीं बताएँगे। बस हमें सुरक्षित यहाँ से प्रस्थान करने दीजिये।"

    उनका घबराया हुआ चेहरा देखकर कबीर ने मुस्कुराकर अपने वॉलेट से पैसे निकालकर उन्हें देते हुए कहा,
    "घबराइए नहीं पंडित जी, मैं तो बस आपको आपकी मेहनत की कमाई देने के लिए आपके पास आया था। बिना दक्षिणा लिए अगर आप आज यहाँ से चले गए तो हमें पाप लगेगा।"

    उसकी बात सुनकर पंडित जी ने जबरदस्ती की मुस्कान लबों पर चिपकाते हुए पैसे ले लिए और खिसियाते हुए मन ही मन बोले, "एक कन्या की इच्छा के विरुद्ध शादी करवाने का पाप हमें लगवाकर खुद पुण्य कमाना चाहते हैं, पर इन्हें ज्ञान नहीं कि कुँवारी कन्या पंडित समान ही पूजनीय होती है और उनके साथ बलपूर्वक विवाह करने के पाप से मुक्ति उन्हें इस जन्म में कभी नहीं मिल सकती।"

    उनकी वाणी में रोष भाव साफ़ झलक रहे थे। अगर उनकी जान की बात न होती, तो शायद वे कभी इस अधर्म के भागी न बनते, पर अब वे कर ही क्या सकते थे? वे वहाँ से चले गए। धृति अब भी उस जगह पत्थर बनी बैठी थी; आँखों से आँसू बह रहे थे और निगाहें हवन कुंड में जलती अग्नि पर टिकी थीं, जिसकी ज्वाला ने उसकी ज़िंदगी को झुलसाकर रख दिया था।

    माधुरी ने कबीर को देखा तो उसने उसे कुछ इशारा किया और सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया।

    धृति को तो जैसे अपना ही होश नहीं था; उसका दिमाग उसी पल पर ठहर गया था जब अर्नव ने उसकी मांग पर सिंदूर डाला था। वह सुन्न सी वहाँ बैठी हुई थी और आँखों के आँसू अब सूख चुके थे।

    एक पल में उसकी ज़िंदगी ने उसे कहाँ से कहाँ लाकर खड़ा कर दिया था! जो लड़की आज तक अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए इतने संघर्ष करती आ रही थी, आज उसके एक फैसले ने उसे इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था। उसका एक फैसला, यह शादी उसे जिल्लत भरी ज़िंदगी दे चुकी थी और वह कुछ नहीं कर सकी।

    माधुरी को उसकी हालत देखकर उस पर तरस आ रहा था, पर वह कुछ कर भी तो नहीं सकती थी। उसकी मजबूरी थी कि उसे अर्नव के आदेश मानने ही थे।

    उसने धृति के कंधे पर हाथ रखा तो उसकी पलकें हल्की सी हिलीं और आँखों से कुछ बूँद आँसू आज़ाद होकर उसके गालों पर लुढ़क गए। उसने अपनी पलकों को झपकाते हुए अपने आँसुओं को रोकने की कोशिश की, फिर भी कुछ आँसू उसके गालों को भिगो गए।

    माधुरी को उसका दर्द देखकर उसके लिए बुरा लग रहा था। उसने उसके कंधे पर हल्का दबाव बनाते हुए कहा,
    "मैम..."

    इतना कहकर वह चुप हो गई; उसे समझ नहीं आया आगे कैसे कहे? जिन हालातों में उसकी अर्नव से शादी हुई और जो उसकी हालत है, वह उसे कैसे कहे कि अब उसे अर्नव के कमरे में जाना है?

    धृति ने भी अर्नव की बात सुनी थी। इसलिए माधुरी के चुप होने पर वह खुद ही अपने भारी लहंगे को संभालते हुए उठकर खड़ी हो गई। उसने अर्नव के दुपट्टे को भी उठा लिया और थमे कदमों से आगे बढ़ गई। उसकी हालत देखकर माधुरी की आँखों में नमी तैर गई। वह उसे संभालते हुए सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई।

    माधुरी ने सकुचाते हुए अर्नव के कमरे का दरवाज़ा खोला और धृति को लेकर अंदर की तरफ़ बढ़ गई। धृति, जो अब भी अपने होश में नहीं थी, बस खोई हुई सी उसके साथ चली आ रही थी, पर उस कमरे का दरवाज़ा खुलते ही वहाँ की हवाओं में घुली भीनी-भीनी सी खुशबू ने उसका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा। उसने निगाहें उठाकर देखा तो पूरे रूम को फूलों और खुशबूदार कैंडल्स से बड़ी ही खूबसूरती से सजाया गया था।

    रूम में हल्की-हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। उस बड़े से बेड के बीचों-बीच गुलाब की पंखुड़ियों से बड़ा सा दिल बनाया हुआ था और उस पर हंसों के जोड़े को बिठाया हुआ था, जो प्रेम-मिलाप में लिप्त थे।

    पूरे रूम को उनकी पहली रात के लिए बड़ी ही खूबसूरती से सजाया गया था और यह सब देखकर धृति का दिल घबराने लगा था। शादी तो मजबूरी में कर ली थी, पर यह सब तो उसने सोचा ही नहीं था।

    वह घबराई निगाहों से उस रूम को देख रही थी। माधुरी ने उसे बेड के बीचों-बीच बिठाया, फिर अपने दुपट्टे से उसके चेहरे और बालों पर फैले सिंदूर को साफ़ करने लगी।

    बहुत कोशिश करने पर भी पूरी तरह से वह उसके चेहरे को साफ़ न कर सकी; उसके गोरे मुखड़े पर सिंदूर की आभा फैल चुकी थी, जो उसे और ज़्यादा हसीन बना रही थी।

    माधुरी उसे ठीक से वहाँ बिठाकर रूम से बाहर निकल गई।

    दूसरी तरफ़ कबीर टेरेस पर पहुँचा, जहाँ कॉर्नर में अर्नव खड़ा, सामने दूर-दूर तक फैले समुद्र को देख रहा था। कबीर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और सामने निगाहें जमाते हुए बोला,
    "अर्नव, अपने गुस्से और नफ़रत में अंधा मत बन, यार... शादी तक तो फिर भी ठीक था, पर अब जो तू करने जा रहा है, वह गलत है... किसी भी मजबूरी का फ़ायदा उठाकर, उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उसके करीब जाना ठीक नहीं है... अपने बदले को पूरा करने के लिए हमें इस हद तक गिरने की कोई ज़रूरत नहीं है... अगर आज तूने उसके साथ कुछ गलत किया तो इस गिल्ट से तुझे उम्रभर मुक्ति नहीं मिल सकेगी कि तूने एक लड़की की इच्छा के ख़िलाफ़ जाकर उसके मान को भंग किया है... मत कर, यार, यह।"

    कबीर उसे कुछ-कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था और वह कुछ परेशान नज़र आ रहा था। वहीं अर्नव के चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं थे। उसने बिना किसी भाव के कहा,
    "जिस हद तक वह गिरी है, मैं उसके लेवल तक कभी गिर ही नहीं सकता... और तू क्या उसकी इज़्ज़त की बात कर रहा है? वह अपने स्वार्थ के लिए खुद अपनी मर्ज़ी से जाने कितने ही लड़कों के साथ हमबिस्तर हो चुकी होगी... मेरे उसके साथ कुछ करने या न करने से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता क्योंकि मान भंग होने के लिए उसका होना भी ज़रूरी है और जैसी वह लड़की है, उसका न कोई चरित्र है और न ही स्वाभिमान... रही बात मुक्ति की तो मुझे उसकी ख्वाहिश भी नहीं, मैं तो बस उसके गुरूर को अपने इरादों तले रौंदना चाहता हूँ... बहुत घमंड है उसको अपनी खूबसूरती पर; इसी खूबसूरती के जाल में वह अमीर लड़कों को फँसाती है, पर आज वह मेरे बनाए इस चक्रव्यूह में इस कदर उलझ चुकी है कि अब चाहकर भी कभी बाहर नहीं निकल सकेगी... अब से उसकी खूबसूरती पर, उस दिल पर, उसके ख्यालों पर और उसके जिस्म पर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हक़ है और अब मैं उसको दिखाऊँगा कि कैसा लगता है जब कोई आपकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ आपको छूता है, आपकी इज़्ज़त के साथ खेलता है, तो कितनी तकलीफ होती है... इसी हुस्न के जाल में फँसाकर जाने उसने कितनों की ज़िंदगी तबाह की होगी; आज मैं उसे इस लायक छोड़ूँगा ही नहीं कि वह मेरे अलावा किसी के तरफ़ निगाहें उठाकर भी देख सके... और इस बारे में मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी है... नादान नहीं हूँ मैं; जो कर रहा हूँ, बहुत सोच-समझकर कर रहा हूँ और मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ कि इसका क्या अंजाम हो सकता है, पर मुझे अंजाम की कोई चिंता नहीं है क्योंकि यह सब मैंने ही प्लान किया है... रात बहुत हो गई है; माधुरी तेरा इंतज़ार कर रही होगी, तू जा, यहाँ मैं सब संभाल लूँगा।"

    अर्नव ने सख्त लहज़े में अपनी बात कही और कबीर चाहकर भी उसे रोक न सका। अर्नव अपने गुस्से और नफ़रत में इस कदर अंधा हो चुका था कि उसे सही और गलत में फ़र्क ही नहीं नज़र आ रहा था और न ही वह किसी की कोई बात सुनने या समझने को तैयार था। ऐसे में कबीर हारे हुए खिलाड़ी की तरह वहाँ से चला गया।

    अर्नव ने निगाहें उठाकर आकाश को देखा; बारिश कुछ थम चुकी थी, पर हल्की-हल्की बूँदाबांदी अब भी हो रही थी और आकाश में काले बादल अपना पहरा जमाए बैठे थे। अर्नव की बेचैन निगाहें शायद उन काले बादलों के बीच किसी के अक्स को तलाश रही थीं, पर आज उसे वह चेहरा नज़र नहीं आया, जिसे वह ढूँढने की कोशिश कर रहा था।

    इस वक़्त उसकी आँखों में अजीब सा दर्द और सुनपन नज़र आ रहा था और अगले ही पल वह दर्द गुस्से में बदल गए। उसके क्रोध के उस प्रचंड वेग में अब धृति की अस्मिता झुलसने वाली थी, जिसका भान तक नहीं था उसे।

  • 5. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 5

    Words: 1983

    Estimated Reading Time: 12 min

    अर्नव ने निगाहें उठाकर आकाश को देखा। बारिश कुछ थम चुकी थी, पर हल्की-हल्की बूँदाबांदी अब भी हो रही थी। आकाश में काले बादल अपना पहरा जमाए बैठे थे। अर्नव की बेचैन निगाहें शायद उन काले बादलों के बीच किसी के अक्स को तलाश रही थीं, पर आज उसे वह चेहरा नज़र नहीं आया, जिसे वह ढूँढने की कोशिश कर रहा था।

    उसकी आँखों में उस वक्त अजीब सा दर्द और सुनपन नज़र आ रहा था। अगले ही पल वह दर्द गुस्से में बदल गया। उसके क्रोध के प्रचंड वेग में धृति की अस्मिता झुलसने वाली थी, जिसका भान तक नहीं था उसे।

    धृति अब भी घबराई निगाहों से उस बड़े से कमरे को देख रही थी। उस कमरे की सजावट और हवाओं को महकाती वह भीनी-भीनी खुशबू, जो माहौल को खुशनुमा बना रही थी, और यह मदहोशी भरा आलम उसके मन में भय को जन्म दे रहा था।

    कुछ देर बाद ही रूम का दरवाज़ा खुला और किसी के अंदर की ओर बढ़ते कदमों की आहट पाकर धृति सचेत हो गई। उसने हड़बड़ाहट में अपनी निगाहें दरवाज़े की ओर घुमाईं। सामने से अर्नव उसके तरफ़ ही चला आ रहा था और उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे, जिन्हें समझ पाना अभी धृति के लिए नामुमकिन था।

    उसका दिल पहले ही घबरा रहा था। अब अर्नव को यूँ अपनी ओर बढ़ता देख, किसी अनहोनी के होने के भय से उसका बदन काँप उठा। मन में डर अपना पैर पसारने लगा। घबराहट और डर के भाव उसके चेहरे पर उतर आए।

    वह घबराई हुई सी, डरी-सहमी निगाहों से उसे देखने लगी, पर अर्नव के भाव ज़रा भी नहीं बदले। वह आकर जैसे ही बिस्तर पर बैठने को हुआ, उसके मूवमेंट को भाँपते हुए धृति तुरंत पीछे खिसकते हुए बिस्तर से उतरकर दूसरे तरफ़ फर्श पर, बिस्तर से कुछ दूरी पर खड़ी हो गई और घबराहट में बोली,

    "देखिए, शादी तक की बात हुई थी... आपने कहा था कि अगर मैंने आपसे शादी की तो आप मेरे परिवार को छोड़ देंगे... मैंने उनके लिए आपसे शादी की और इस जबरदस्ती के रिश्ते में बंध गई, पर इसके आगे का सोचिए भी मत... मैंने शादी ज़रूर की है, पर आपको अपने करीब आने का हक नहीं दिया है और न ही कभी दूँगी, तो दूर रहिए मुझसे..."

    धृति घबराई हुई सी एक साँस में सब बोल गई और अर्नव भावहीन सा बस उसे घूरता रहा। उसकी बातों से और यूँ उससे दूर भागने पर एक पल के लिए अर्नव के भाव बदले ज़रूर, पर फिर वही भावहीन चेहरा धृति के सामने था, जिसे समझ पाना उसके लिए नामुमकिन था। वह घबराई हुई सी उसे देखे जा रही थी।

    अर्नव अपनी जगह से सीधे धृति की ओर बढ़ गया। धृति उसके करीब आने से अपने उस भारी-भरकम लहंगे को अपनी मुट्ठियों में सँभाले, अपने कदम पीछे हटाने लगी। उसे यूँ दूर जाते देख धीरे-धीरे अर्नव के भाव बदलने लगे थे। उस भावहीन चेहरे पर कोल्ड एक्सप्रेशन आने लगे थे और चेहरा गुस्से से काला पड़ने लगा था। आँखों में एक बार फिर नफ़रत की ज्वाला धधक उठी थी, जिसे धृति बखूबी देख और महसूस कर पा रही थी; इसलिए वह अब और ज़्यादा डरने लगी थी।

    पीछे हटते हुए धृति दीवार से जा लगी। अर्नव उसके सामने कुछ ही कदमों की दूरी पर मौजूद था और उसके कदम अब भी धृति की ओर बढ़ रहे थे। धृति की जान हलक में अटक गई थी। मन बहुत घबरा रहा था, चेहरा डर से सफ़ेद पड़ने लगा था और हाथ-पैर सुन्न पड़ चुके थे... पर वह इतनी आसानी से हार नहीं मान सकती थी। अपनी इज़्ज़त को बचाने के लिए उसने अपनी सारी हिम्मत बटोरते हुए अपने हाथों से लहंगे को ऊपर उठाया और तुरंत ही अर्नव के साइड से निकलकर गेट की ओर दौड़ पड़ी। पर जैसे ही कुछ कदम आगे बढ़ी, अर्नव ने उसकी बाँह पकड़कर उसे वापिस पीछे दीवार से लगा दिया और उसकी दोनों हथेलियों को पकड़कर ऊपर करके दीवार से लगाते हुए इंटेंस निगाहों से उसे घूरते हुए बोला,

    "भागने की कोशिश कर रही हो, वो भी मुझसे? अर्नव सिंह रायज़ादा से बचकर भागना, इतना भी आसान नहीं... मिस धृति अवस्थी।"

    उसने उसकी कलाई को इतनी कसके पकड़ा था कि उसकी कलाई में दर्द होने लगा था, जो उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था, पर अर्नव को उसके दर्द से रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ रहा था... पड़ता भी क्यों? जब वह खुद उसे दर्द में ही देखना चाहता था।

    धृति उससे छूटने को कसमसा रही थी। यह देखकर अर्नव के भाव और सख्त हो गए। उसने उसकी दोनों कलाइयों को मरोड़ते हुए उसकी बाँह को उसकी पीठ से लगाते हुए उसे अपने करीब खींच लिया और धृति छटपटाकर रह गई क्योंकि अब वह पूरी तरह से उसकी बाँहों में कैद खड़ी थी। वह ठीक से हिल भी नहीं पा रही थी।

    अर्नव के अचानक ऐसा करने पर वह और ज़्यादा घबरा गई और डरते हुए बोली, "छोड़िए मुझे... ये क्या कर रहे हैं आप?... देखिए, ये गलत है... आप मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते..."

    "जो खुद गलत कामों में पूरी तरह लिप्त हो, वो दूसरों को सही-गलत का पाठ पढ़ाते अच्छे नहीं लगते... मिस धृति अवस्थी।"

    अर्नव की गुस्से भरी आवाज़ वहाँ गूंज गई, जिससे धृति सहमी हुई सी उसे देखने लगी। अर्नव ने उसकी दोनों बाँहों को अपनी एक हाथ से जकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके गालों पर अटखेलिया करती लटों को पीछे करते हुए उसने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा,

    "मिस धृति अवस्थी, मैंने तुमसे शादी तुम्हें अपनी जीत की निशानी के रूप में सजाकर रखने के लिए नहीं की है, तुम्हें दर्द से तड़पते देखने के लिए की है और उसकी शुरुआत आज रात से ही होगी... क्या कहा था तुमने कि तुमसे मुझसे शादी ज़रूर की है, पर मुझे तुम्हारे करीब आने का हक नहीं है? तुम शायद भूल गई, पर अब तुम धृति अवस्थी से मिसेज़ धृति अर्नव सिंह रायज़ादा बन चुकी हो और मेरे नाम के तुम्हारे साथ जुड़ने के साथ ही मुझे तुम पर सभी हक खुद-ब-खुद मिल गए हैं।

    अब मैं न तो तुम्हारे करीब आने के लिए तुम्हारी परमिशन का मोहताज हूँ और न ही तुम्हें छूने के लिए तुम्हारी कंसेंट की ज़रूरत है... तुम्हारी इच्छा से मुझे रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ता और न ही कभी पड़ेगा। मैंने जिस पल तुम्हारी मांग में सिंदूर भरा, उसी पल तुम पर तुमसे ज़्यादा मेरा हक कायम हो गया... इसलिए अब तुम्हारे पास कोई हक नहीं कि तुम मुझसे मेरा हक छीन सको या मुझे रोक सको। अब यहाँ वही होगा जो मैं चाहूँगा और तुम सिर्फ़ बेबसी से अपनी बर्बादी देखोगी।"


    अर्नव के लबों पर एक ईविल मुस्कान फैली हुई थी। वहीं धृति उसकी बातों से उसके इरादों को भाँप गई थी और अब उसकी डर और घबराहट से हालत ख़राब होती जा रही थी। उसका बदन डर से काँप रहा था, जिसे अर्नव भी महसूस कर रहा था, पर उसकी पकड़ ढीली होने के बजाय और कसती जा रही थी।

    धृति ने अपनी मुट्ठियाँ बांध लीं। अपने गाल पर फिसलती अर्नव की उंगलियाँ वह महसूस कर पा रही थी और किसी तरह उससे दूर चली जाना चाहती थी। उसकी छुअन उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी, पर वह चाहकर भी उससे दूर नहीं जा पा रही थी।

    उसने अपने सर को जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया ताकि अर्नव की उंगलियाँ उसके चेहरे को स्पर्श न कर सकें और अपने घबराते दिल को मजबूत करते हुए बोली,

    "आपने शादी की शर्त रखी थी, अब आप अपनी बात से नहीं पलट सकते... आपने नहीं कहा था कि इस शादी की आड़ में आप मेरे साथ ये सब करेंगे... मैं आपको इसकी इजाज़त नहीं देती... नहीं मानती मैं आपको अपना पति... आपका मुझ पर कोई हक नहीं..."

    उसकी बातों ने अर्नव के गुस्से को और ज़्यादा भड़का दिया। उसने उसके गालों को दबाते हुए उसका चेहरा अपने सामने कर लिया। धृति अपनी हल्की खुली आँखों से उसे देखने लगी। वहीं अर्नव ने उसके जबड़ों को दबाते हुए गुस्से में एक-एक शब्द चबाते हुए कहा,

    "मुझे तुम्हारी इजाज़त की ज़रूरत भी नहीं समझी और... क्या कहा तुमने कि मैंने पहले तुम्हें नहीं बताया कि मैं शादी के बाद तुम्हारे करीब आऊँगा? मिस धृति अवस्थी..."

    फिर उसने अपनी गलती सुधारते हुए कहा, "...नहीं, एक्चुअली मिसेज़ धृति अर्नव सिंह रायज़ादा... इतनी नासमझ तो नहीं लगती तुम मुझे कि मुझे तुम्हें ये बताने की ज़रूरत पड़े कि शादी के बाद हमारे बीच वो सब होगा जो नॉर्मल पति-पत्नी के बीच होता है... क्या मैं तुम्हें एक-एक बात बताता कि शादी के बाद हमारे बीच क्या-क्या होगा और मैं तुम्हारे साथ क्या-क्या करूँगा?

    तुम मानो या न मानो, अब हमारी शादी हो चुकी है... तुम पत्नी हो मेरी और मैं तुम्हारा पति, इसलिए अब मुझे वो सब हक़ मिल चुके हैं जो शादी के बाद एक पति को अपनी पत्नी पर मिलते हैं और तुम मुझे अब अपने करीब आने से रोक नहीं सकती क्योंकि ये हक़ तुम खो चुकी हो।"

    धृति सहमी हुई सी उसे देखने लगी। वहीं अर्नव ने उसके मुँह को दबाते हुए गुस्से से दाँत पीसते हुए आगे कहना जारी रखा,

    "मुझे आदत नहीं बार-बार अपनी बात दोहराने की, तो अब तुम ये बात कान खोलकर सुन लो और अपने दिमाग में अच्छे से बिठा लो कि मैं पति हूँ तुम्हारा और अब मेरी ज़रूरतों और इच्छाओं का ध्यान रखना, मुझे खुश रखना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है, जिसे तुम्हें हर हाल में निभानी ही होगी... मुझे ना कहने का हक़ तुम खो चुकी हो।

    अगर तुमने चुपचाप मेरी बात नहीं मानी और ज़्यादा नखरे दिखाए तो याद रखना कि तुम्हारा परिवार अब भी मेरे कब्ज़े में है और अगर तुमने मुझे नाराज़ किया या गुस्सा दिलाया तो मैं उनके साथ कुछ भी कर सकता हूँ... आज हमारी सुहागरात है और मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई मेरे काम में रुकावट डाले, इसलिए अगर अपने परिवार को सही-सलामत देखना चाहती हो, जो मैं भी करूँ, चुपचाप मुझे करने दो, वरना मुझे नाखुश करने का अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना, वाइफ़ी।"


    क्या अर्नव अपने इरादों में कामयाब हो पाएगा? क्या धृति कामयाब हो सकेगी अर्नव से अपने मान की रक्षा करने में?

  • 6. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 6

    Words: 2225

    Estimated Reading Time: 14 min

    मुझे न कहने का हक़ तुम खो चुकी हो। अगर तुमने चुपचाप मेरी बात नहीं मानी और ज़्यादा नखरे दिखाए, तो याद रखना कि तुम्हारा परिवार अब भी मेरे कब्ज़े में है और अगर तुमने मुझे नाराज़ किया या गुस्सा दिलाया, तो मैं उनके साथ कुछ भी कर सकता हूँ। आज हमारी सुहागरात है और मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई मेरे काम में रुकावट डाले। इसलिए, अगर अपने परिवार को सही-सलामत देखना चाहती हो, तो चुपचाप मुझे करने दो, वरना मुझे नाखुश करने का अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना, वाइफ़ी।


    अर्नव ने एक बार फिर उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। धृति दर्द से तिलमिलाकर रह गई थी क्योंकि अब वह चाहकर भी अर्नव को रोक नहीं सकती थी। उसके चेहरे पर छाई बेबसी के भावों को देखकर अर्नव के लबों पर विजयी मुस्कान तैर गई।


    वह जानता था कि ऐसी धृति चाहे कितना ही इंकार करे, उसका विरोध करे, पर परिवार की बात आते ही वह कमज़ोर पड़ जाएगी। और हुआ भी वही, फैमिली का ज़िक्र उठते ही धृति एकदम शांत हो गई।


    अर्नव ने अब उसको अपनी बाहों की कैद से आज़ाद कर दिया, पर धृति बुत बनी वहीं खड़ी रही। अर्नव ने तिरछी मुस्कान के साथ एक नज़र उसको देखा, फिर एक स्टेप और उसके करीब चला आया। दोनों के बीच बस इंच भर की दूरी थी, जिसे खत्म करते हुए अर्नव उसके एकदम करीब आकर खड़ा हो गया था।


    उसने धृति के माथे से माथे की पट्टी निकालकर वहीं छोड़ दिया। वह हल्की सी आवाज़ के साथ फर्श पर जा गिरी। उसने उसकी नाक से उस बड़ी सी नथ को निकालकर उसको भी वहीं छोड़ दिया। धीरे-धीरे वह उसके जिस्म से उन गहनों को अलग करता गया। कुछ देर पहले तक जो गहने दुल्हन बनी धृति के बदन पर शोभित थे, उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहे थे, वे अब बेतरतीब से फर्श पर यहाँ-वहाँ बिखरे हुए थे।


    अर्नव के चेहरे पर एक बार फिर कोई भाव नहीं थे। वहीं धृति बुत बनी उसके सामने खड़ी थी। ऐसा लग रहा था जैसे मिट्टी की गुड़िया हो, जिसमें प्राण थे ही नहीं।


    गहने उतारते हुए जाने कितनी ही बार अर्नव की उंगलियाँ धृति के बदन को छू चुकी थीं, पर न ही अर्नव के चेहरे पर कोई भाव उभरे, न ही धृति ने कुछ रिएक्ट किया। वह वहाँ ऐसे खड़ी थी, जैसे वहाँ हो ही न।


    अर्नव ने एक नज़र उसके भावहीन चेहरे को देखा। कहीं न कहीं धृति की यह खामोशी उसके गुस्से को बढ़ा रही थी, जबकि वह खुद यही चाहता था।


    उसने नफ़रत भरी निगाहों से उसको देखने के बाद, उसके सर से लेकर कमर पर सेट किए उस दुपट्टे को उसके बदन से दूर हटाकर वहीं छोड़ दिया। अब धृति उसके सामने सिर्फ़ लहंगे और चोली में खड़ी थी, जिससे उसकी पतली, मखमल सी मुलायम, गोरी कमर अब साफ़ नज़र आ रही थी। अर्नव की निगाहें उसके भावहीन चेहरे पर टिकी थीं और धृति की सुनी निगाहें ज़मीन पर गड़ी हुई थीं।


    अर्नव ने अपनी एक बाँह को उसकी कमर पर फँसाकर एकदम से उसको अपने करीब खींच लिया। धृति किसी बेजान गुड़िया की तरह उसके सीने से आ टकराई। उसका सर अब भी झुका हुआ था। उसने एक बार सर उठाकर उसको देखा तक नहीं। उसकी यही बातें अर्नव के गुस्से को हवा देने का काम कर रही थीं।


    उसने अपने दूसरे हाथ को पीछे से उसके सर और बालों पर पकड़ जमाते हुए उसके सर को ऊपर कर दिया, पर धृति की निगाहें अब भी झुकी हुई थीं।


    उसका यूँ निगाहें झुकाए खामोश खड़ा रहना अर्नव को नागवार गुज़रा और उसने गुस्से में उसके सुरख़ गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल अधरों पर अपने शुष्क लबों को टिका दिया और उसके लबों को चूमने लगा।


    यह किस जितनी गहरी होती जा रही थी, अर्नव उतना ही ज़्यादा आक्रामक होता जा रहा था और उसका आक्रामकपन उस किस में भी साफ़ झलक रहा था। वह उसके लबों को चूमते हुए उन्हें काटने लगा था और दर्द से धृति ने अपने लहंगे को अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया था। एक लंबी, गहरी, भावुक किस के बाद अर्नव ने उसके लबों को आज़ाद किया और भावहीन सा उसके चेहरे को देखने लगा, जबकि धृति अब भी सर झुकाए खड़ी गहरी साँसें ले रही थी क्योंकि इस किस के कारण उसकी साँस नहीं आ रही थी, उसकी साँसें बुरी तरह फूल रही थीं।


    अभी वह अपने चढ़ती-उतरती साँसों को ठीक से नियंत्रित भी नहीं कर सकी थी कि अर्नव ने झुककर उसको अपनी बाहों में उठा लिया। अर्नव के हाथ उसकी खुली कमर और पीठ को छू रहे थे और उसके स्पर्श से धृति का तन-बदन सिहर उठा था, पर वह न उसको रोक सकती थी, न कुछ कह सकती थी। इसलिए वह एकदम खामोश रही, न उसने निगाहें उठाईं और न ही अर्नव को पकड़ा। एक बेजान लाश की तरह वह उसकी बाहों में समाई हुई थी।


    अर्नव ने जाकर उसको बिस्तर पर बड़े ही आराम से लिटा दिया। फिर उसकी झुकी निगाहों को देखते हुए एक बार फिर उसके चेहरे के करीब झुकने लगा। अगले ही पल धृति के कोमल अधर उसके लबों की कैद में थे और अर्नव बड़ी ही बेरहमी से उसके लबों को काट रहा था। उसकी निगाहें अब भी धृति की झुकी पलकों पर टिकी हुई थीं।


    धृति ने अब भी कुछ रिएक्ट नहीं किया, तो अर्नव अब उसके गर्दन और कंधों को चूमते हुए उन पर अपने दाँतों के निशान छोड़ने लगा। उसकी हथेली धृति की खुली कमर को सहला रही थी। धृति के लिए खुद को कंट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा था। आखिर कब तक वह खामोशी से सब सहती? इतनी मज़बूत नहीं थी वह कि अपनी तकलीफ़ को छुपा पाती। आखिर में उसकी हिम्मत जवाब दे गई। उसने अपनी आँखों को कसकर मींच लिया। आँखों से अश्रुधारा बह निकली। अर्नव का विरोध करते हुए उसने उसके कंधों को कसके थाम लिया, जिससे उसके नाखून अर्नव के कंधों पर चुभने लगे। इसके साथ ही उसके कानों में घुटी हुई सिसकी की आवाज़ पड़ी और वह जहाँ था वहीं रुक गया।


    उसने सर उठाकर देखा तो धृति की आँखों से निकलते अश्रु पिल्लो को भीगो रहे थे। उसने अब भी अपनी आँखें मींची हुई थीं और आँखों के कोनों से अश्रु बह रहे थे। चेहरा एकदम लाल हो चुका था। लबों से उसने अपने बातों को दबाया हुआ था, शायद अपनी सिसकियों को रोकने की कोशिश कर रही थी वह। चेहरा दर्द से सना था।


    अर्नव उसको यही दर्द तो देना चाहता था, फिर भी जब उसकी नज़र उसके दर्द से सने चेहरे पर पड़ी, तो एक अजीब सी बेचैनी का एहसास हुआ उसे। उसके आँसू देखकर दिल में एक टीस सी उठी और वह चाहकर भी आगे नहीं बढ़ सका।


    उसने अपने कंधों पर से धृति की हथेलियों को हटाया। तो उसने हौले से अपनी पलकें उठाकर उसे देखा। उसकी लाल, आँसुओं से भरी आँखें देखकर उसका दिल तड़प उठा।


    अगले ही पल वह झटके से उसके ऊपर से उठकर खड़ा हो गया। धृति की आँखों से अब भी आँसू बह रहे थे।


    अर्नव उसको दर्द में तड़पता देखना चाहता था, पर अब जब उसकी चाहत पूरी हो रही थी, तो वह उसको इस हालत में देख ही नहीं पाया और तुरंत ही अपने कदम पीछे हटा लिए। तभी उसकी नज़र उसकी खुली कमर पर पड़ी, जहाँ उसके नाखूनों के निशान बने हुए थे।


    उसने तुरंत ही अपनी निगाहें फेर लीं और बिस्तर के कोने में रखे ब्लांकेट को उठाकर उसको ऊपर फेंकते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गया। उसने दरवाज़े को इतनी तेज़ बन्द किया कि अंदर बिस्तर पर लेटी धृति डर से काँप उठी। आँसुओं की रफ़्तार तेज हो गई और उस ब्लांकेट को खुद पर लपेटे हुए वह बिस्तर के एकदम कोने में सिकुड़कर बैठ गई। उसने अपना सर अपने घुटनों के बीच छुपा लिया और फफक कर रो पड़ी।


    दूसरे तरफ़ अर्नव उसी फ्लोर पर बने जिम में पहुँच गया। अजीब से ज़ज़्बातों से घिरा था उसका मन। नफ़रत करता था धृति से, उसको दर्द देना चाहता था, पर उसका दर्द देखकर अब खुद बेचैन हो रहा था। आँखों के सामने बार-बार उसकी आँसुओं से भरी लाल आँखें नज़र आ रही थीं और कानों में उसकी घुटी सिसकियों की आवाज़ शीशों की कीर्चों सी चुभ रही थी।


    उसका गुस्सा अब उसकी कंट्रोल से बाहर हो चुका था। मन उलझा हुआ था, आज खुद को ही नहीं समझ पा रहा था वह। अपना सारा गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन उसने पंचिंग बैग पर निकालना शुरू कर दिया।


    एक घंटा बीत गया, तब भी उसका गुस्सा कम नहीं हुआ था। अब यह गुस्सा क्यों था, यह वह खुद नहीं जानता था। वह धृति को दर्द देना चाहता था और वही देकर आया था, तो उसे खुश होना चाहिए था, पर उसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। मौक़ा था आज उसके पास और उसने सोचा भी था कि आज धृति को ऐसा ज़ख़्म देगा जो वक़्त के बीतने के साथ नासूर बनकर उसको असहनीय पीड़ा का एहसास करवाएगा, पर जब उसका दर्द से सना चेहरा निगाहों के सामने आया, तो वह सब भूल गया। नफ़रत करता था उससे, फिर भी उसकी तकलीफ़ देखकर उसने अपने कदमों को पीछे हटा लिया।


    वह अपने ही ख़्यालों में बुरी तरह उलझा हुआ था और वही गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन वह खुद पर निकाल रहा था इस वक़्त। उसके हाथ अब भी नहीं रुके थे। अचानक ही उसके दिमाग़ में धृति का ख़्याल आया और उसके हाथ रुक गए।


    जिस हालत में वह उसे उस कमरे में अकेले छोड़कर आया था, ना चाहते हुए भी उसको उसकी फ़िक्र होने लगी और कदम अनायास ही अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गए।


    उसने कमरे में कदम रखा तो अब वहाँ घना अंधेरा छाया हुआ था। कैंडल्स बुझ चुके थे, पर उनकी खुशबू अब भी वहाँ की हवा में घुली हुई थी। कमरे में एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था और उस सन्नाटे को चीरते हुए किसी की सिसकियों की आवाज़ अर्नव के कानों तक पहुँच रही थी।


    उसने तुरंत ही कमरे की लाइट्स जलाईं और बिस्तर की तरफ़ निगाहें घुमाईं। तो बिस्तर के कोने से टिककर बैठी धृति पर उसकी निगाहें जम सी गईं। धृति अपने पैरों को समेटे और घुटनों के बीच अपना सर छुपाए खुद में सिमटी हुई सी बैठी थी। ब्लांकेट को अच्छे से खुद पर लपेटा हुआ था। उसके शरीर में ज़रा भी मूवमेंट नहीं हो रही थी, पर सिसकियों की आवाज़ उस कमरे में गूंज रही थी। यह बात उसको थोड़ी अजीब लगी।


    वह धीमे कदमों से उसके तरफ़ बढ़ गया। कदमों की आहट पर भी धृति के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई, यह देखकर अर्नव की भौंहें एक साथ आ गईं।


    वह धृति के पास आकर खड़ा हो गया। कुछ देर सोचने के बाद उसने हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखकर उसको हिलाया, तो धृति दूसरी तरफ़ लुढ़क गई। यह देखकर अर्नव घबराकर पीछे हट गया।


    अब उसकी नज़र धृति के आँसुओं से भीगे लाल चेहरे पर पड़ी। कितना मासूम चेहरा था उसका। आँसुओं से मेकअप धुल चुका था और अब उसके अपर लिप का तिल साफ़ नज़र आ रहा था। मासूमियत से लबरेज़, सादगी भरा चेहरा, जिस पर दर्द पसरा हुआ था। अर्नव की निगाहें कुछ पल को उसके चेहरे पर जम सी गईं। इतने घंटों में पहली बार इतने ध्यान से उसको देखा था। बला की खूबसूरत थी वह और उतनी ही ज़्यादा मासूम लग रही थी, पर अर्नव को उसकी यह मासूमियत भी छलावा लग रही थी।


    उसने कुछ पल बाद ही नफ़रत से उस पर से अपनी निगाहें फेरते हुए खुद से ही कहा, "इसी मासूमियत को दिखाकर तुम लड़कों को अपने जाल में फँसाती होगी, पर तुम्हारी इस झूठी मासूमियत का मुझ पर कोई असर नहीं होगा। मैं इस मासूम चेहरे के पीछे छुपे उस शातिर चेहरे से बखूबी वाक़िफ़ हूँ। तुम उन लड़कियों में से हो जो अपने मतलब के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है, जिसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसे मायने रखते हैं, जो चंद पैसों के लिए किसी की भी ज़िंदगी से खिलवाड़ करने से पहले एक बार भी नहीं सोचती है, जिन्हें अपने किए गुनाहों का एहसास तक नहीं होता। जो अपने फ़ायदे के लिए किसी के सच्चे ज़ज़्बातों से खेलने से पहले एक बार सोचती तक नहीं है, जो अपने अमीर बनने के सपने को पूरा करने के लिए अपने जिस्म का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं रहती। तुम्हारी यह भोली सूरत के छलावे में मैं कभी नहीं आऊँगा और न ही तुम्हारे इन मगरमच्छ के आँसुओं का मुझ पर कोई असर होगा। तुम्हें मैं तुम्हारे गुनाहों की सज़ा ज़रूर दूँगा।"


    एक बार फिर उसकी आँखों में धृति के लिए बेइंतेहा नफ़रत झलकने लगी थी। चेहरा गुस्से से तमतमा उठा था। उसने घृणा भरी नज़र धृति पर डाली और तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया।


    दूसरे कमरे में जाकर उसने शॉवर लिया, फिर बाथरोब पहनकर ही बिस्तर पर पड़ गया और धृति और इस शादी के बारे में सोचते हुए थकान के कारण जल्दी ही नींद के आगोश में चला गया।

  • 7. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 7

    Words: 2134

    Estimated Reading Time: 13 min

    अगली सुबह, खिड़की से छनकर आती सूर्य की किरणें उसके चेहरे पर पड़ीं, तब जाकर उसकी आँख खुली। उठते ही उसने खुद को अलग कमरे में पाया तो वह थोड़ा हैरान हुआ, पर फिर जल्दी ही उसे कल की सभी बातें याद आ गईं और चेहरे पर सख्त भाव उभर आए।

    वह जल्दी से उठा और अपने कमरे की ओर बढ़ गया। कमरे में पहुँचकर उसने बिस्तर की ओर निगाहें घुमाईं तो धृति, ब्लैंकेट में लिपटी गठरी बनी, अब तक सो रही थी। अब उसकी सिसकियाँ बंद हो चुकी थीं। यह देखकर, जाने क्यों, पर अर्नव के दिल को अनजाने से सुकून का एहसास हुआ, पर उसका गुस्सा अभी भी उस पर हावी था।

    वह तेज कदमों से उसके पास आया और पास ही टेबल पर रखा पानी का जग उठा लिया। वह जैसे ही धृति पर पानी डालने के लिए आगे बढ़ा, धृति ने करवट बदली। अब उसका चेहरा अर्नव की ओर था। उदास, निस्तेज चेहरा, सूजी हुई आँखें, गालों पर बने आँसुओं के निशान और जगह-जगह कटे हुए होंठ। जैसे ही अर्नव की नजर उन पर पड़ी, कल रात का सारा दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गया और उसके हाथ रुक गए। ब्लैंकेट से उसके गले का कुछ हिस्सा भी नजर आ रहा था जहाँ उसके दांतों के निशान मौजूद थे।

    अर्नव जो करने आया था, वह चाहकर भी कर नहीं सका और खुद से ही चिढ़ते हुए उसने जग वापस टेबल पर रखा और सीधे बाथरूम में घुस गया।

    घड़ी सात बजा रही थी, जब अर्नव बाथरूम से नहाकर बाहर आया। उसने चेंजिंग रूम में जाकर कपड़े पहने और फिर कमरे में आया तो उसकी निगाहें अनजाने ही बिस्तर पर सो रही धृति पर चली गईं।

    ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ते कदम बिस्तर की ओर मुड़ गए। अब उसने धृति पर जरा भी दया नहीं दिखाई और पूरे जग का पानी उसके मुँह पर उड़ेल दिया। पानी चेहरे पर पड़ते ही धृति ने हड़बड़ाहट में अपनी आँखें खोलीं और झट से उठकर बैठ गई। उसका चेहरा और ऊपर से कपड़े के साथ-साथ ब्लैंकेट भी भीग चुका था। और वह ब्लैंकेट को खुद पर लपेटते हुए, घबराई हुई सी, उसको देख रही थी।

    अर्नव के कल रात के रवैये के कारण वह बुरी तरह डर से काँप रही थी। अर्नव को जाने क्यों, पर उसका डरा-सहमा चेहरा देखकर अजीब लगने लगा था, पर उसने अपने गुस्से के पीछे अपनी भावनाओं को छुपा लिया और उसको गुस्से से घूरते हुए बोला,

    "यह तुम्हारा घर नहीं जहाँ तुम बारह बजे तक सोती रहो। शायद तुम भूल गई हो तो मैं तुम्हें याद दिला दूँ कि अब तुम्हारी शादी हो चुकी है, तुम मेरी पत्नी हो और मेरे प्रति तुम्हारी कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी बनती हैं। आज पहली और आखिरी बार समझा रहा हूँ तुम्हें, मुझे हर काम वक्त पर करने वाले लोग ही पसंद हैं। यूँ देर तक सोने की आदत अब छोड़ ही दो तो बेहतर होगा। अब से मेरी ज़रूरतों का ध्यान रखना तुम्हारा फ़र्ज़ है, इसलिए जल्दी उठकर घर के और मेरे काम करने होंगे तुम्हें। लापरवाह लोगों से मुझे सख्त नफ़रत है, तो यह गाँठ बाँध लो।"

    धृति अब भी घबराई हुई सी उसको देख रही थी। अर्नव ने उसको यूँ ही बैठे देखा और खीझते हुए तेज आवाज़ में बोला,

    "अब यहाँ बैठे-बैठे मुझे घूर क्या रही हो? कुछ देर में मुझे ऑफिस के लिए निकलना है। जाकर नाश्ता तैयार करो मेरे लिए और हाथ ज़रा जल्दी चलाना, सिर्फ़ आधा घंटा है तुम्हारे पास। अब यहाँ बैठी-बैठी क्या कर रही हो? जाओ जाकर पत्नी होने का फ़र्ज़ निभाओ।"

    "अब से मेरे सभी काम तुम्हें अपने हाथों से करने होंगे। आज पहला दिन है और तुम मेरे बारे में कुछ जानती नहीं हो, इसलिए तुम्हें बख्श रहा हूँ, पर आगे से ऐसा नहीं होगा। तुम्हारी हर गलती पर तुम्हें सज़ा मिलेगी, इसलिए ध्यान रहे कि तुमसे कोई गलती न हो और कोई ऐसा काम तो बिल्कुल मत करना जिससे मुझे गुस्सा आए, वरना उस गुस्से को झेलना तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा।"

    "पत्नी हो मेरी, तो एक अच्छी पत्नी बनकर रहो। मुझे कब क्या और कैसा चाहिए होता है, शीला तुम्हें बात देगी। आज का वक्त है तुम्हारे पास, मेरे हिसाब से खुद को ढालने के लिए। कल से मुझे सब मेरे हिसाब से चाहिए, कहीं कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। जाओ जाकर नाश्ता तैयार करो, मेरे नीचे पहुँचने से पहले डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लग जाना चाहिए।"

    अर्नव उसको ऑर्डर पर ऑर्डर दे रहा था, उसकी आवाज़ इतनी सख्त थी कि धृति डर से खुद में सिमटती जा रही थी। अर्नव ने उसको जाने को कहा तो वह तुरंत बिस्तर के दूसरे तरफ़ जाकर खड़ी हो गई। ब्लैंकेट में लिपटी हुई ही आगे बढ़ी, पर अचानक ही उसके पैर में कुछ चुभा और उसके मुँह से आह निकल गई।

    अर्नव जो ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ रहा था, उसके कानों में जैसे ही धृति की आवाज़ पड़ी, उसने तुरंत पलटकर देखा तो धृति वहीं फ्लोर पर बैठी हुई थी। ब्लैंकेट अब अलग गिरा हुआ था और वह अपने पैर को पकड़कर सिसक रही थी।

    अर्नव ने उसके आँसू देखे तो तुरंत तेज कदमों से उसके पास आया और उसके पास बैठकर उसके पैर को अपने हाथों में लेते हुए, चिंता भरे लहज़े में बोला,

    "क्या हुआ दिखाओ मुझे..."

    इतना कहकर उसने तुरंत ही उसके पैर को देखा तो तलवे में ईयरिंग चुभ गया था जो अंदर तक धँस गया था जिस वजह से पैर से खून रिसने लगा था।

    कल जिस ईयरिंग को अर्नव ने यूँ ही खोलकर फ्लोर पर फेंक दिया था, आज वही ईयरिंग धृति के पैर में चुभ गया था। दर्द धृति को हो रहा था, पर दर्द की एक रेखा अर्नव के चेहरे पर भी नज़र आने लगी थी।

    धृति के कानों में जब उसकी चिंता भरी आवाज़ पड़ी तो उसने हैरानी से निगाहें उठाईं। अर्नव ने बड़े ध्यान से उस ईयरिंग को उसके पैरों से निकाला तो दर्द से तड़पते हुए धृति ने उसकी बाँह को कसके पकड़ लिया। भींची आँखों से आँसू की कुछ बूँदें आज़ाद होकर उसके गालों पर लुढ़क गईं और मुँह से दर्द भरी सिसकी निकल गई।

    अर्नव जो उसको दर्द में देखकर किसी और ही दुनिया में पहुँच चुका था और अपना गुस्सा और नफ़रत भूलकर उसकी परवाह करने लगा था, वह धृति के बाँह पकड़ने पर एकदम से जैसे होश में लौटा था।

    एकदम से उसके भाव बदल गए और उसने धृति के हाथ को गुस्से में झटक दिया। उसके ऐसा करते ही धृति ने अपनी आँखें खोलीं और नम आँखों को बड़ा-बड़ा करके, कन्फ्यूज सी, उसको देखने लगी।

    अर्नव झट से उठकर खड़ा हो गया और गुस्से से भड़कते हुए बोला,

    "नाटक बहुत अच्छा कर लेती हो, पर अफ़सोस की मेरे सामने तुम्हारा कोई नाटक नहीं चलेगा। इसलिए अपने घड़ियालू आँसू बहाना बंद करो। ज़रा सा ज़ख्म है, इससे कई गुना ज़्यादा गहरा ज़ख्म तो तुम हँसते-मुस्कुराते दूसरों को दे देती हो और अपने बारी में इतने से ज़ख्म से दर्द से तड़प उठी।...That's not fair, वाइफ़ी। अभी तो तुम्हारी दर्द भरी ज़िंदगी की शुरुआत ही हुई है, अब तुम्हें इस दर्द के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए। चलो बहुत हुआ तुम्हारा नाटक, इस नाटक को देखकर मेरा पेट नहीं भरेगा, इसलिए जाकर नाश्ता तैयार करो।"

    एक बार फिर वह उसको गुस्से में ऑर्डर देकर, उसको घूरते हुए वहाँ से दूसरे तरफ़ चला गया।

    उसकी बातें सुनकर धृति की आँखें भर आईं, एक बार फिर अर्नव ने उस पर जो इल्ज़ाम लगाया था, वह उसकी वजह समझ नहीं पा रही थी। उसने अपने आँसुओं को अपनी हथेली से पोछा और किसी तरह उठकर खड़ी हो गई।

    सीधे पैर में चोट लगी थी, तो वह उसे ज़मीन पर रख नहीं पा रही थी, पर अर्नव का गुस्सा और उसकी बात याद करके उसने अपने दर्द को बर्दाश्त करते हुए पैर ज़मीन पर टिकाया और कुछ कदमों की दूरी पर पड़ा अपना दुपट्टा उठाकर, उससे अपने शरीर को ढँकते हुए, धीमे कदमों से, लँगड़ाते हुए, कमरे से बाहर निकल गई।

    कमरे के दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ अर्नव के कानों में पड़ी तो उसने निगाहें घुमाकर दरवाज़े की ओर देखा। अनजाने ही उसका ध्यान फ्लोर पर चला गया जहाँ धृति के पैर से रिसते खून के कारण उसके पैरों के निशान बन गए थे।

    अर्नव ने एक नज़र उन कदमों के निशानों को देखा, फिर वापस रेडी होने लगा।

    दूसरी तरफ़, धृति पिलर रेलिंग का सहारा लेते हुए, लँगड़ाते हुए, नीचे पहुँची तो हॉल में चार नौकर साफ़-सफ़ाई के काम में लगे थे। धृति जिस अवस्था में नीचे आई थी, सब उसको अजीब नज़रों से देखने लगे थे। धृति असहज महसूस कर रही थी, पर कुछ कर भी नहीं सकती थी। वह हॉल में पहुँची, उसी वक्त एक तीस-पैंतीस साल की लेडी बाहर से अंदर आई। उसके आते ही सब अपने-अपने कामों में लग गईं। यह शीला थी, इस घर की केयरटेकर, जिसे देखते ही सब सर्वेंट्स ने अपना ध्यान काम पर लगा दिया था।

    अंदर आते हुए उसकी नज़र हॉल में खड़ी धृति पर पड़ी तो उसको देखते ही उसने उसको बड़े ही आदर के साथ ग्रीट करते हुए मुस्कुराकर कहा,

    "गुड मॉर्निंग मैडम... आप यहाँ? कुछ काम था तो हमें बुला लिया होता।"

    धृति जो परेशान सी यहाँ-वहाँ नज़रें घुमा रही थी, आवाज़ सुनकर धृति ने भी उसकी ओर निगाहें घुमाईं और उसको यूँ मुस्कुराता देख, हौले से मुस्कुराते हुए, धीमी आवाज़ में बोली,

    "वो मुझे किचन में जाना था, क्या आप मुझे बता देंगी कि किचन किस तरफ़ है?"

    शीला ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराकर कहा,

    "जी मैडम, चलिए मैं आपको किचन तक लेकर चलती हूँ।"

    वह आगे-आगे चलने लगी तो धृति सकुचाती हुई उसके पीछे चलने लगी। वह पीछे अपने पैर के निशान छोड़ती जा रही थी, जिसका एहसास उसे भी नहीं था, पर जब साफ़-सफ़ाई करते सर्वेंट ने उन निशानों को देखा तो वे एक-दूसरे को देखने लगे, फिर वापस अपने काम में लग गए।

    धृति ने किचन के एंट्रेंस पर कदम रखा तो उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं।

    वह ओपन किचन उसके घर से भी बड़ा था। सब चीज़ सलीके से सही जगह रखी हुई थी, एकदम साफ़-सुथरा, चमचमाता किचन, जैसे अभी ही बनवाया गया हो। वहाँ किचन में होने वाली सभी चीज़ें मौजूद थीं और धृति, जिसने पहली बार इतना बड़ा और आलीशान किचन देखा था, वह आँखें फाड़े उस किचन को देखने लगी थी।

    शीला अंदर आकर रुक गई, फिर उसके तरफ़ मुड़ते हुए बोली,

    "मैडम आपको किचन से क्या काम है? मतलब आपको जो भी काम है, आप मुझे बता दीजिए, मैं कर देती हूँ। वैसे भी अभी मैं सर के लिए ब्रेकफ़ास्ट बनाने ही जा रही थी, अगर आपको भी कुछ अलग से खाना है तो आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, मैं बना देती हूँ।"

    शीला उसके साथ एकदम सहज थी और बड़े ही आदर से उससे बात कर रही थी तो धृति भी अब कुछ नॉर्मल हो गई और हल्की सी मुस्कान के साथ बोली,

    "नहीं, मुझे कुछ नहीं खाना। मैं आपके सर के लिए नाश्ता बनाने आई हूँ। आप बता दीजिए कि वे नाश्ते में क्या खाते हैं और कौन सी चीज़ कहाँ रखी है। आज से उनके सभी काम मैं खुद करूँगी।"

    यह शादी किन हालातों में हुई है, यह सभी जानते थे। शीला को उसकी मुस्कान के पीछे छुपी मजबूरी और तकलीफ का पता लगाने में ज़्यादा वक्त नहीं लगा। उसकी हालत ही चीख-चीख कर बयाँ कर रही थी कि अर्नव का उसके प्रति कैसा रवैया है।

    कोई आम पति होता तो शादी के अगले दिन इस हालत में अपनी पत्नी को घर के नौकरों तो क्या, घर के सदस्यों के सामने भी नहीं जाने देता, पर अर्नव ने उसको इस हालत में नीचे भेजकर सबके सामने उसका तमाशा बना दिया था। नौकरों के सामने बिना कुछ कहे ही यह जता दिया था कि उसकी नज़रों में और इस घर में उसकी क्या औक़ात है?

    जब अर्नव की इस हरकत ने यह बता ही दिया था कि उसकी इस घर में और उसकी नज़रों में कोई इज़्ज़त ही नहीं है, तो जब घर का मालिक ही उसकी इज़्ज़त नहीं करता, उसको कुछ नहीं समझता, तो भला घर के नौकर क्यों ही उसकी इज़्ज़त करते या उसको अपनी मैडम मानते? उनकी नज़रों में धृति का स्थान बहुत नीचा था, या यह कहें कि कोई स्थान था ही नहीं, पर शीला फिर भी उसको वह इज़्ज़त दे रही थी जिसकी वह हक़दार थी। भले ही वह कुछ जानती नहीं थी, पर इतने सालों में यहाँ मुंबई जैसे शहर में रहकर वह इंसान के चेहरे देखकर उनकी फ़ितरत पहचानना सीख गई थी और धृति के चेहरे पर छाई मासूमियत चीख-चीख कर उसकी सच्चाई की गवाही दे रही थी।


    आगे....

  • 8. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 8

    Words: 2999

    Estimated Reading Time: 18 min

    अर्नव के इस व्यवहार ने स्पष्ट कर दिया था कि उसे इस घर में, उसकी नज़रों में कोई इज़्ज़त नहीं है। जब घर का मालिक ही उसकी इज़्ज़त नहीं करता, उसे कुछ नहीं समझता, तो घर के नौकर क्यों उसकी इज़्ज़त करते या उसे अपनी मैडम मानते? उनकी नज़रों में धृति का स्थान बहुत नीचा था, या यूँ कहें कि कोई स्थान ही नहीं था। पर शीला फिर भी उसे वह इज़्ज़त दे रही थी जिसकी वह हकदार थी।

    भले ही वह कुछ नहीं जानती थी, पर इतने सालों में मुंबई जैसे शहर में रहकर वह इंसान के चेहरे देखकर उनकी फितरत पहचानना सीख गई थी। और धृति के चेहरे पर छाई मासूमियत चीख-चीखकर उसकी सच्चाई की गवाही दे रही थी।

    शीला समझ रही थी कि ज़ुबान भले ही धृति की थी, पर उससे निकले शब्द अर्नव के थे। इतने सालों से यहाँ काम कर रही थी, तो अर्नव को वह काफी अच्छे से जानती थी। धृति के कहने पर उसने मुस्कुराकर हामी भर दी और उसे सब समझाने लगी।

    धृति उसके बताए अनुसार अर्नव के लिए चीज़ सैंडविच बना रही थी। शीला उसे अर्नव की पसंद-नापसंद, वह कब क्या खाना पसंद करता है, किन चीज़ों को देखना भी नहीं भाता, कब किस चीज़ की ज़रूरत होती है, सब समझा रही थी। धृति उसके लिए नाश्ता तैयार करते हुए बड़े ध्यान से उसकी हर बात सुन रही थी। करती क्या? और कोई रास्ता भी तो नहीं था उसके पास। अगर अर्नव को कहीं कोई कमी लगी और वह गुस्सा हो गया, तो फिर कल रात जैसी हरकत करेगा उसके साथ, या शायद उससे भी ज़्यादा कुछ बुरा करेगा। इसलिए उसे उसकी बात माननी ही थी, उसे खुश रखना ही था।

    उसके पैर से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था और यह शीला देख रही थी। जहाँ-जहाँ वह कदम रखती, वहाँ खून के हल्के-हल्के निशान बन जाते थे। एक तो ज़ख्म गहरा था, उस पर चलने और खड़े होने की वजह से पैर पर लगातार दबाव पड़ रहा था, जिस वजह से खून बंद नहीं हो रहा था। उस पर वह नंगे पाँव घर में घूम रही थी, तो फ्लोर पर उसके पैरों के निशान बन रहे थे।

    धृति जूस तैयार कर रही थी, तभी शीला वहाँ से चली गई। कुछ देर बाद वापस आई, फिर उसे वहाँ लगी कुर्सी पर बिठाकर उसके पैरों की ड्रेसिंग करने लगी। धृति ने मना करना चाहा, पर उसके अनुरोध पर मान गई।

    शीला ने उसके पैर के ज़ख्म पर दवाई लगाकर ड्रेसिंग कर दी। फिर उसे वहीं बैठने को कहकर नाश्ता लेकर किचन से बाहर निकल गई। अर्नव के आने का वक्त हो गया था, इसलिए उसने जल्दी से नाश्ता लगा दिया।

    वह उसके गिलास में जूस डाल ही रही थी कि उसके कानों में अर्नव की गुस्से भरी आवाज़ पड़ी, "यह काम धृति को करना है। अगर तुम यह सब कर रही हो, तो वह कहाँ है?"

    उसके अचानक गुस्से से भरे इस कथन को सुनकर एक पल को शीला घबरा गई। फिर उसने सहजता से जवाब दिया, "सर, यह नाश्ता मैडम ने ही आपके लिए बनाया है। उनके पैरों में चोट लगी है, चलने में दिक्कत हो रही है, इसलिए मैंने उन्हें किचन में आराम करने को कह दिया।"

    "और यह हक तुम्हें किसने दिया?" अर्नव का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। शीला उसका सवाल सुनकर सर झुकाकर खड़ी हो गई। इतने में अर्नव ने गुस्से में आगे कहा, "मेरे ऑर्डर को न मानने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? ...क्या सोचकर तुमने उसको वहाँ आराम करने को कहा है? ...जब मैंने उसको यह काम करने को कहा था, तो तुम्हें यह हक किसने दिया कि मेरी बात की अवहेलना करो और दूसरों को भी यही सिखाओ? पैर में ज़रा सी चोट ही लगी है न? कोई मर तो नहीं गई और न ही उसके पैर कट गए हैं जो दो कदम चलकर आ भी नहीं सकती और अपना काम तुम्हें देकर वहाँ आराम फरमा रही है। ले जाओ यह सब वापस और उसे कहो कि खुद आकर सर्व करे मुझे, वह मेरी वाइफ है तो यह ज़िम्मेदारी उसकी है और अपने फ़र्ज़ से कामचोरी करने वाले लोगों से मुझे सख्त नफ़रत है... जाओ बुलाकर लाओ उसे, अभी और इसी वक़्त। अगर अगले दो मिनट के अंदर वह मुझे मेरे पास नहीं मिली, तो अच्छा हुआ होगा, उसके लिए भी और तुम्हारे लिए भी।"

    बेचारी शीला चाहकर भी कुछ न कर सकी। सालों से वह अर्नव के लिए काम कर रही थी, पर अर्नव ने आज पहली बार उस पर ऐसे चिल्लाया था। सभी नौकर हतप्रभ से उसे देखने लगे, जबकि शीला खामोशी से नाश्ता ट्रे में रखकर वापस किचन की तरफ़ बढ़ गई।

    अर्नव इतनी तेज़ आवाज़ में चिल्लाया था कि उसकी बातें बाहर खड़े गार्ड्स ने भी साफ़-साफ़ सुनी थीं। फिर भला डाइनिंग एरिया से कुछ दूरी पर बने किचन में बैठी धृति को कुछ पता कैसे नहीं चलता?

    शीला किचन के पास पहुँची ही थी कि सामने से आती धृति पर उसकी नज़र पड़ी। वह लड़खड़ाते कदमों से उसकी ही तरफ़ बढ़ रही थी, दर्द चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था, पर शीला चाहकर भी उसके लिए कुछ नहीं कर सकती थी।

    उसे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। वह कुछ कहती, उससे पहले ही धृति ने उसके हाथ से ट्रे ले लिया और हल्का सा मुस्कुरा दी। शीला सर झुकाकर खड़ी हो गई और धृति हाथ में ट्रे थामे आगे बढ़ गई। उस ज़ीनतदार दुपट्टे के नीचे से उसकी गोरी कमर और उस पर उभरे निशान साफ़ नज़र आ रहे थे। गर्दन पर मौजूद निशान कल रात की कहानी बयाँ कर रहे थे। सभी नौकर उसे अजीब निगाहों से घूर रहे थे, जिसे महसूस करते हुए धृति खुद में सिमटती जा रही थी।

    असहजता उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। वह किसी तरह लंगड़ाते हुए डाइनिंग टेबल के पास पहुँची और ट्रे टेबल पर रखकर उसकी प्लेट लगाने लगी।

    अर्नव की निगाहें हाथ में पकड़े फ़ोन पर टिकी हुई थीं और पीछे मौजूद नौकर आपस में कानाफूसी कर रहे थे। अर्नव ने तो निगाहें उठाकर धृति को देखा तक नहीं और खामोशी से अपना नाश्ता करता रहा। ऐसा नहीं था कि वह नहीं जानता था कि उसके सामने वहाँ मौजूद नौकर धृति के बारे में कैसी बातें कर रहे थे। उनकी बातों से धृति को तकलीफ़ हो रही थी और उसकी आँखों में नमी तैर गई थी।

    वह अपना सर झुकाए वहाँ खड़ी थी, कभी अपनी हथेली से अपनी गर्दन को ढँकने की कोशिश करती, तो कभी दुपट्टे से अपनी कमर को ढँकने की नाकाम कोशिश करती। और अर्नव सब जानते हुए भी अनजान बना बैठा था, जैसे उसे कुछ न तो दिखाई दे रहा हो, न ही कुछ सुनाई दे रहा हो, या शायद उसे फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था।

    उसने अपना नाश्ता खत्म किया, फिर अपनी चेयर से उठकर धृति की तरफ़ बढ़ गया।

    धृति निगाहें झुकाए खड़ी थी, पर अपने तरफ़ बढ़ते अर्नव के कदमों से अनजान नहीं थी वह। वह धीरे से अपने कदम पीछे हटाने लगी, पर अर्नव ने आगे बढ़कर तेज़ी से उसकी कलाई पकड़कर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया।

    धृति ने घबराकर निगाहें उठाकर उसे देखा। वही अर्नव के चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं थे, पर उसकी इंटेंस निगाहें धृति के चेहरे पर टिकी हुई थीं। धृति ने हड़बड़ाहट में निगाहें घुमाईं, तो आस-पास खड़े नौकर आँखें फाड़े उन्हें ही देख रहे थे।

    धृति की एक हथेली अर्नव के सीने पर टिकी थी, वही दूसरी को अर्नव ने मोड़कर उसकी पीठ से लगाई हुई थी। धृति ने सबकी निगाहों को खुद पर टिका देखा, तो अर्नव के सीने पर रखी हथेली से उसे खुद से दूर करने की कोशिश करते हुए घबराकर बोली,

    "क्या कर रहे हैं आप? ...सब यही देख रहे हैं... छोड़िए मुझे..."

    अर्नव ने उसे छोड़ने के बजाय उसे अपने और करीब खींच लिया। धृति की साँसें अटक गईं, वह अपनी घनी पलकों को फड़फड़ाते हुए घबराई हुई सी उसे देखने लगी।

    अर्नव ने उसकी निगाहों में निगाहें मिलाते हुए धीमी पर सख्त आवाज़ में कहा, "क्या हुआ? शर्म आ रही है सबके सामने मेरे करीब आने से? ...पर तुम्हारे मुँह से ये बातें कुछ ठीक नहीं लगतीं, तुम्हें तो इन सब की आदत होनी चाहिए। फिर मेरे सामने यह सती-सावित्री बनने का नाटक क्यों? ...जो हो वही बनकर रहो, क्योंकि मुझसे कुछ भी छुपा नहीं है और मैं तो पति हूँ तुम्हारा। जब तुम्हें कभी भरी महफ़िल में अपने आशिकों के साथ इससे आगे तक जाने में शर्म नहीं आई, तो यह तो अपना घर है और मैं तुम्हारा पति, मेरा तो हक है तुम पर, फिर इतनी घबराहट क्यों, स्वीटहार्ट?"

    अर्नव उसे बुरी तरह घूर रहा था, वहीँ धृति उसकी बातें सुनकर हैरान-परेशान सी उसे देखे जा रही थी। अर्नव के भाव एकदम सख्त थे, वह जानबूझकर यह सब कर रहा था, वह सिर्फ़ धृति को नीचा दिखाना चाहता था।

    उसने उसके चेहरे की तरफ़ झुकते हुए जैसे ही उसके होठों को छूना चाहा, धृति ने अपने होठों को भींच लिया। अर्नव की भौंहें सिकुड़ गईं, उसने खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा, फिर उसके कान के पास लब सटाते हुए वहाँ लव बाइट का निशान बना दिया। धृति के मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गई। अगले ही पल अर्नव ने उसे देखकर बेहद प्यार से कहा,

    "माय वाइफ। शाम को मिलते हैं। तब तक अपना ध्यान रखना, यू नो ना आई लव यू सो मच?"

    उसने हौले से उसके गाल को चूम लिया। उसके लहज़े में आए इस अचानक बदलाव की वजह से धृति आँखें बड़ी-बड़ी किए हैरानी से उसे देखे जा रही थी।

    अर्नव ने एक उड़ती नज़र पीछे खड़े नौकरों पर डाली और धृति को छोड़कर तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया।

    धृति अर्नव के इस हरकत के बाद निगाहें उठाने की हिम्मत भी नहीं कर सकी। नौकर अब उसके बारे में और ज़्यादा वाहियात बातें करने लगे, करते भी क्यों नहीं? आखिर उन्हें यह मौका खुद अर्नव ने ही तो दिया था।

    धृति के लिए एक पल भी वहाँ रुकना बहुत मुश्किल हो गया था। सबकी अजीब निगाहों को खुद पर महसूस करते हुए वह खुद में सिमटती जा रही थी। आँखों में आँसू भरने लगे थे। एक बार फिर अर्नव के लगाए इल्ज़ाम और उसके चरित्र पर उठी उसकी उंगली धृति को आहत कर गई थी और आँसू आँखों से छलक आए थे।

    उसने अपने ज़ख्म की परवाह तक नहीं की और रोते हुए वहाँ से भाग गई। भागते हुए वह सीधे कमरे में पहुँची और बिस्तर पर बेजान सी उल्टी गिरकर तकिए में मुँह छुपाए रो पड़ी।

    अभी उसे यहाँ आए हुए कुछ ही देर हुई थी कि उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया गया। आवाज़ सुनते ही धृति झट से उठकर बैठ गई। उसने अपने आँसुओं को पोंछते हुए शांत लहज़े में कहा, "कौन है?"

    "मैम, सर के ऑफिस से माधुरी मैडम आई हैं आपसे मिलने।"

    माधुरी नाम सुनते ही धृति को याद आया कि कल उसने ही उसे तैयार किया था। अर्नव के बारे में ज़्यादा कुछ तो जानती नहीं थी वह, पर वह अमीर, पैसे वाला, ताकतवर आदमी है, इतना समझ गई थी वह। और साथ ही यह भी समझ गई थी कि माधुरी उसी के लिए काम करती है।

    अर्नव के बारे में सोचते ही धृति के चेहरे पर दर्द, बेबसी, गुस्सा, नफ़रत और कड़वाहट जैसे अनेकों भाव उभर आए। उसने अपने आँसू पोंछे और कपड़ों को ठीक करते हुए बोली,

    "अंदर भेज दीजिये।"

    वह दरवाज़ा बंद करके आई ही नहीं थी, बस भीड़का दिया था। उसका जवाब मिलते ही दरवाज़ा खुला और दोनों हाथों में कुछ शॉपर्स लिए माधुरी ने कमरे में कदम रखा। उसने एक नज़र धृति को देखा, तो उसकी लाल-सूजी आँखें, सूजे हुए होंठ जो जगह-जगह से कटे हुए थे, गर्दन पर मौजूद नाखूनों और दाँतों के निशान देखकर माधुरी के चेहरे पर दर्द के भाव उभर आए। ये निशान अर्नव की बेरहमी और धृति के दर्द की कहानी बयाँ कर रहे थे, जो उसने बीती रात सहा था। उसकी आँखों में मौजूद नमी चीख-चीखकर बयाँ कर रही थी कि वह अभी भी दर्द में है और रोई है।

    माधुरी एक सेकंड से ज़्यादा देर तक धृति को देख नहीं सकी। उसने अपनी निगाहें झुका लीं।

    "मैडम, ये कुछ कपड़े और आपके ज़रूरत का बाकी का सामान है। ...सर ने भेजा है आपके लिए और कहा है कि फ़्रेश होकर खाना खा लीजिएगा।"

    धृति के चेहरे पर गहरी उदासी छा गई। उस उदासी के पीछे असहनीय पीड़ा और दर्द झलक रहा था। उसने खुद को संभाला और बिना किसी भाव के बोली, "रख दीजिये।"

    माधुरी ने सारे शॉपर्स सोफ़े पर रखे और वहाँ से चली गई। दरवाज़ा बंद होने के बाद धृति उठकर सोफ़े की तरफ़ बढ़ गई। उसने शॉपर्स देखे, तो साबुन, शैम्पू, मेकअप का सामान और ज़रूरत की बाकी सभी चीज़ें थीं उनमें, पर कपड़े सब के सब काफी महँगे, डिज़ाइनर और रिवीलिंग थे। कुछ घुटनों तक की ड्रेस, कुछ उससे भी छोटी थीं, कुछ गाउन थे जो जाँघों तक स्प्लिट थे, तो कोई बैकलेस, शोल्डरलेस ड्रेस थी, किसी का गला काफी डीप था। इन शॉर्ट एक भी ऐसा कपड़ा नहीं था जिसे धृति पहन सके। उसने सब सामान वापस शॉपर में डाला और बिस्तर पर आकर बैठ गई।

    कुछ वक़्त बीता, धृति अब भी बिस्तर पर बैठी थी, तभी बाहर से शीला की आवाज़ आई, "मैम, आपने नहा लिया? ...मैं खाना ले आऊँ आपके लिए?"

    "नहीं, मुझे भूख नहीं है।" धृति का जवाब सुनकर शीला वहाँ से चली गई और पीछे रह गई धृति। भूखी-प्यासी, मायूस सी बैठी वह कल के बारे में सोच रही थी।


    धृति अवस्थी। एक मिडिल क्लास लड़की। पापा नहीं हैं उसके। जब सात साल की थी, तभी उसके पापा की एक कार हादसे में डेथ हो गई थी, जिसका ज़िम्मेदार धृति को ठहराया गया, पर सात साल की धृति समझ तक नहीं सकी कि उसने क्या गलत किया? ...दो बहनें थीं वह। बड़ी बहन सृष्टि, जिससे उसकी मम्मी को बहुत प्यार था। ...कोमल अवस्थी... धृति की माँ और सृष्टि अवस्थि उसकी बड़ी बहन। उस दिन क्या हुआ, वह या तो सृष्टि जानती है या धृति। बाकी कोई हकीकत नहीं जानता, पर अपनी माँ, बड़ी बहन से लेकर रिश्तेदार और गली-मोहल्ले वाले सब धृति को ही उसके पिता की डेथ की वजह समझते हैं, जिसके लिए वह दिन-रात ताने सुना करती हैं।

    धृति के पापा उससे बहुत प्यार करते थे। पापा की परी बचपन से बहुत क्यूट और सुंदर थी, जिसके लिए उसकी बड़ी बहन बहुत चिढ़ती थी। उनके जाने के बाद धृति परिवार के होते हुए जैसे उस घर में बिल्कुल अकेली हो गई थी। बड़ी बहन वैसे ही उससे चिढ़ती थी और पिता के जाने की वजह बनने के बाद तो जैसे माँ ने भी उससे मुँह मोड़ लिया था। दो महीने पहले ही उसने लोकल कॉलेज से फ़ैशन डिज़ाइनिंग में अपनी ग्रेजुएशन पूरी की है। ब्रिलियंट स्टूडेंट थी वह, पर लोकल कॉलेज जाना पड़ा, जिसकी वजह आगे पता चलेगी।

    स्कूल-कॉलेज के साथ धृति ट्यूशन भी देती थी, कपड़े सिलने का काम भी करती थी और साथ ही घर भी संभालती थी। अगर यह कहें कि पूरे घर की ज़िम्मेदारी वह कम उम्र से अपने कंधे पर उठा रही थी, तो गलत नहीं होगा। पहले तो कोमल जी सोसाइटी में काम करके घर चलाती थीं, पर फिर उनकी तबियत खराब रहने लगी और बड़ी बहन के होते हुए सारी ज़िम्मेदारी धृति पर आ गई। कॉलेज के बाद उसने एक बुटीक में काम करना शुरू कर दिया था। ताकि थोड़े पैसे जमा करने और अनुभव मिलने के बाद अपना खुद का बुटीक खोल सके। कल भी वह बुटीक में अपना काम ही कर रही थी, जब उसके पास किसी अननोन नंबर से फ़ोन आया, जिसमें उसे धमकी दी गई कि तय वक़्त पर भेजे हुए एड्रेस पर पहुँचे, वरना अपनी फैमिली को हमेशा-हमेशा के लिए खो देगी।

    धृति को न तो कुछ समझने का मौका मिला और न ही कुछ कहने का। अपनी बात कहकर उस शख्स ने फ़ोन काट दिया। साथ ही मैसेज आया, जिसमें एड्रेस लिखा था। एड्रेस के साथ एक फ़ोटो भी आई, जिसमें कोमल जी को कुर्सी पर रस्सी से बाँधा हुआ था और वह बेहोश थीं। फ़ोटो देखने के बाद धृति ने दोबारा उस नंबर पर फ़ोन लगाना चाहा, पर नंबर नहीं लगा। मैसेज किया तो कोई रिप्लाई नहीं आया। आखिर में धृति, जिसके सर पर से बाप का साया पहले ही छीन गया था और अब बस माँ थीं, जिनके जाने के बाद वह अनाथ हो जाती, वह अपनी माँ के लिए वह न सिर्फ़ उस जगह पर आई, बल्कि अर्नव से शादी भी कर ली उसने। प्यार तो ज़िंदगी में पहले ही नहीं था, अब तक की सारी ज़िंदगी संघर्ष करते, दुख सहते, ताने सुनते बीती थी और अब अर्नव की बेवजह की नफ़रत भी उसी के हिस्से आई।

    एक बार बचपन में उस पर उसके पापा की मौत की वजह बनने का इल्ज़ाम लगा था, जिसकी सज़ा वह आज तक भुगत रही थी और अब अर्नव जाने कैसे-कैसे इल्ज़ाम लगा रहा था उस पर, सज़ा दे रहा था उसे उस गुनाह की जिसके बारे में वह कुछ जानती तक नहीं थी। धृति के दिलो-दिमाग में अर्नव की कही बातें, उसके लगाए इल्ज़ाम घूम रहे थे और वह बहुत सोचने के बाद भी उनके पीछे की वजह जानने और अपनी गलती ढूँढ़ने में असमर्थ थी।

    धृति के बारे में बाकी बातें धीरे-धीरे पता चलेगी। बहुत से राज़ छुपे हैं अभी, जिन पर से धीरे-धीरे पर्दा उठेगा।

  • 9. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 9

    Words: 2218

    Estimated Reading Time: 14 min

    माधुरी रायजादा हाउस से निकलकर वापिस ऑफिस पहुँची और अपने कैबिन में आकर काम करने लगी। धृति की हालत देखकर उसका दिमाग खराब हो चुका था। एक लड़की होने के नाते वह उसका दर्द समझ रही थी; इसलिए गुस्से से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। यह गुस्सा उसे अर्नव पर आ रहा था, पर वह उसकी एक मामूली सी इम्प्लॉय थी, इसलिए कुछ कह भी नहीं सकती थी।

    अभी उसे आए कुछ मिनट ही बीते थे और वह खुद को पूरी तरह से शांत भी नहीं कर सकी थी कि उसके कैबिन का दरवाज़ा खुला और कबीर ने अंदर कदम रखते हुए उससे सवाल किया।

    "माधुरी, काम हो गया?"

    कबीर की आवाज़ सुनकर माधुरी ने गुस्से भरी, खूनी लाल आँखों से निगाहें उठाकर उसे घुरा और दाँत पीसते हुए बोली,
    "हाँ, हो गया।"

    उसके बोलने का लहजा और गुस्से से तमतमाया चेहरा देखकर कबीर चौंक गया और हैरानगी से बोला,
    "माधुरी, तुम्हें अचानक क्या हो गया? इतने गुस्से में क्यों लग रही हो तुम?"

    "कबीर, बात मत करो तुम मुझसे। क्योंकि अभी मुझे इतना गुस्सा आ रहा है कि जो मेरे सामने आएगा, मैं जान ले लूँगी उसकी।" माधुरी ने बेरुखी और गुस्से से कहा। उसकी बात सुनकर कबीर और ज़्यादा चौंक गया और हैरानगी से बोला,

    "मधु, क्या हुआ है तुम्हें?"

    माधुरी ने घूरकर उसे देखा और खीझते हुए बोली,
    "मुझे कुछ नहीं हुआ है, पर तुम्हारे दोस्त का दिमाग खराब हो गया है। कोई किसी लड़की के साथ ऐसा सुलूक करता है क्या? दुश्मन के साथ भी कोई ऐसा व्यवहार नहीं करता। तुम्हारे दोस्त ने क्रूरता और हैवानियत की सारी हदें पार कर दी हैं। क्या हाल किया है उसने एक रात में धृति का, कि मुझसे देखा तक नहीं गया उसे...हद होती है किसी बात की! पहले मजबूर करके जबरदस्ती उससे शादी की और अब पति बनकर ऐसे टॉर्चर कर रहा है उसे। अगर अर्नव तुम्हारा दोस्त न होता तो माँ कसम, आज मैं उसका वो हाल करती कि उसकी सात पुश्तें तक याद रखती।"

    माधुरी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पहले तो कबीर परेशान सा उसको देखता रहा कि आखिर माधुरी किस बात पर इतना भड़क रही है, पर जब उसने धृति का नाम सुना तो उसके चेहरे के भाव बदल गए। माधुरी के चुप होते ही उसने बिना किसी भाव से कहा,

    "दुश्मनी ही निभा रहा है वो धृति से, तो टॉर्चर ही करेगा उसे।"

    कबीर की यह बात सुनकर माधुरी का दिमाग गुस्से से भन्ना उठा। वह अपनी चेयर से उठकर खड़ी हो गई और उस पर गुस्से से चीखी,
    "अच्छा, तो ऐसे निभाते हैं दुश्मनी? क्या तुम मर्दों के पास औरतों से दुश्मनी निभाने का एक यही तरीका होता है कि उसके मान को भंग करो, वहशी दरिंदे की तरह नोच खाओ उन्हें, उन्हें वो ज़ख्म दो जो हर पल उनके एक नई मौत मरने पर मजबूर करे, जिसकी टीस कभी कम न हो? क्या दुश्मनी निभाने का और कोई तरीका नहीं? और मैं पूछती हूँ कि आखिर धृति ने ऐसा क्या किया है जिसकी इतनी बड़ी और भयावह सज़ा मिल रही है उसे?

    तुमने चेहरा देखा है उसका? इतनी मासूमियत है उस चेहरे पर, मैं मान ही नहीं सकती कि उसने ऐसा कुछ गलत किया होता जिसके बदले वह यह सब डिज़र्व करती हो या ऐसा सुलूक किया जाए उसके साथ। कबीर, मुझे नहीं मालूम क्या चल रहा है यहाँ पर, मैं बता रही हूँ तुम्हें कि अर्नव जो कर रहा है, बहुत गलत कर रहा है और उसका साथ देकर तुम जो उसकी तरफ़दारी करके उसकी गलतियों पर पर्दा डाल रहे हो, तुम उससे भी ज़्यादा बड़ी गलती कर रहे हो और देखना, एक न एक दिन इसका एहसास तुम्हें और अर्नव दोनों को होगा।

    मैं भले धृति को नहीं जानती, नहीं जानती कि किस बात की दुश्मनी निकाल रहा है वह, पर दावे के साथ कह सकती हूँ कि जो लड़की अपने परिवार के लिए यह सब खामोशी से सह सकती है, वह कभी कोई गलत काम नहीं कर सकती। और जिस दिन हकीकत तुम्हारे और सर के सामने आएगी, दोनों अपने किए पर बहुत पछताओगे, अपनी ही नज़रों में गिर जाओगे और तब कितना ही प्रायश्चित करने के बाद भी तुम्हें और अर्नव को अपने किए गुनाहों के लिए माफ़ी नहीं मिलेगी। अब तुम जाओ यहाँ से, मुझे न तुम्हारा चेहरा देखना है और न ही तुमसे कोई बात करनी है।"

    माधुरी की आँखों में धृति के लिए दर्द और हमदर्दी नज़र आ रही थी। कबीर ने खामोशी से उसकी पूरी बात सुनी, फिर बेबसी से सर झुकाते हुए बोला,
    "तुम नहीं जानती माधुरी, क्या किया है उस लड़की ने, क्या खोया है अर्नव ने उस लड़की के वजह से। नहीं जानती तुम कि खुद अर्नव कितना तड़प रहा है। वह इस वक़्त मेरी तो क्या किसी की भी नहीं सुनेगा क्योंकि उसके सर पर बदला लेने का जुनून सवार है। तुम्हें क्या लगता है कि मैंने उसे रोकने की कोशिश नहीं की होगी? अरे मैं तो इस शादी के भी खिलाफ़ था, पर अर्नव इस मामले में मेरी कोई बात नहीं सुनता, इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकता और तुम उस लड़की के लिए ज़्यादा हमदर्दी मत पैदा करो अपने मन में, वह लड़की इस लायक ही नहीं है, उसके मासूम चेहरे के पीछे एक चालबाज़ शातिर दिमाग छुपा है। उसने जो किया है उसके लिए यह सज़ा तो बहुत कम है। जब तुम्हें उसकी हकीकत मालूम चलेगी तो तुम विश्वास नहीं कर सकोगी कि कोई लड़की इतना नीचे भी गिर सकती है, इसलिए प्यार से कह रहा हूँ तुम्हें कि दूर रहो उस लड़की और इस मामले से। अर्नव संभाल लेगा।"

    कबीर ने अपनी बात कही और वहाँ से चला गया। माधुरी बस उसे देखती ही रह गई। कबीर के कदम सीधे अर्नव के कैबिन के बाहर रुके, जहाँ घुसने के लिए उसे नॉक करने की ज़रूरत नहीं थी, इसलिए वह सीधा अंदर चला आया। अर्नव चेयर से सर टिकाए आँखें बंद किए बैठा था और अपनी उंगलियों से अपनी भौंहों की मसाज करते हुए किसी गहरी सोच में गुम था, जब उसके कानों में कबीर की आवाज़ पड़ी,

    "अर्नव, तूने धृति के साथ क्या किया है?"

    अर्नव ने चौंकते हुए अपनी आँखें खोल दीं। उसके ठीक सामने कबीर खड़ा था, जिसके चेहरे पर गंभीर भाव मौजूद थे। अर्नव ने एक नज़र उसे देखा, फिर वापिस आँखें बंद करते हुए बोला,

    "करना तो वह सब चाहता था जो वह औरों के साथ करती है, पर अफ़सोस कि उसके जितना नीचे नहीं गिर सका मैं और बीच में ही रुक गया।"

    अर्नव की बात सुनकर कबीर चौंक गया। उसको समझ ही नहीं आया कि आखिर यहाँ हो क्या रहा है? इधर अर्नव कह रहा है कि उसने कुछ किया नहीं है और माधुरी वहाँ गुस्से से फायर हुई जा रही है। उसने अर्नव के चेहरे पर गहरी निगाहें टिकाते हुए फिर से सवाल किया,

    "मतलब तूने उसके साथ कुछ गलत नहीं किया?"

    "पूरी तरह से नहीं, पर जो ज़ख्म उसे दिया है उसे वह ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी और अभी ऐसे ही जाने कितने ही ज़ख्मों को बर्दाश्त करना होगा उसे। उसके साथ वह सब होगा जो वह औरों के साथ करती है, उसके हर गुनाह की सज़ा मिलेगी उसे तब तक जब तक वह टूटकर नहीं बिखर जाती।"

    अर्नव की आँखें अब भी बंद थीं और चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। चेहरे पर गुस्सा, नफ़रत, रोष जैसे कई भाव पैर जमाए बैठे थे। कबीर ने उसकी बात सुनी तो गंभीरता से बोला,

    "अर्नव, तू उसके साथ चाहे जो करे, मैं कभी तुझे नहीं रोकूँगा, पर ध्यान रहे कि खुद को कभी उसके जितना नीचे मत गिराइयो। जो हो गया सो हो गया, पर दोबारा उसके करीब जाने या उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश मत करियो। वह चाहे जैसी हो, पर एक लड़की के मान को भंग करना महापाप है और अगर तूने यह पाप कर दिया तो तू खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकेगा, कभी खुद से नज़रें नहीं मिला सकेगा।"

    कबीर की बातें सुनते हुए अर्नव की आँखों के सामने रात का दृश्य किसी फिल्म जैसे घूमने लगा। एक बार फिर धृति की आँसुओं से भरी निगाहें, जाने क्यों, पर उसके मन को व्याकुल कर गईं। उसने अपनी आँखें खोल दीं और उठकर कैबिन के बैक साइड के ग्लास वॉल के पास चला आया। कबीर की बात पूरी हुई तो अर्नव ने ग्लास वॉल से दिखते समुद्र को देखते हुए कहा,

    "Don't worry, मैंने कहा ना मैं चाहूँ भी तो उसके जितना नीचे नहीं गिर सकता और वैसे भी उस चालबाज़, धोखेबाज़, characterless, gold digger लड़की की तरफ़ मैं देखना भी पसंद नहीं करता। रात को जो हुआ वह बस उसे एहसास दिलाने के लिए था कि जब कोई बिना आपकी मर्ज़ी के आपके करीब आता है, आपको छूता है तो कैसा लगता है? पर ताज्जुब की बात है। अपनी मर्ज़ी से आज तक जाने कितने लड़कों के साथ रही होगी वह और कल नाटक ऐसे कर रही थी जैसे सती सावित्री हो।"

    अर्नव के चेहरे पर कड़वाहट के भाव उभर आए। कबीर कुछ पल खामोशी से उसकी बातों के बारे में सोचता रहा, फिर गंभीरता से बोला,
    "आगे का क्या सोचा है तूने?"

    "सोचा तो बहुत कुछ है। तू बस देखता जा कि मैंने कैसे उसकी ज़िंदगी तबाहों बर्बाद करता हूँ। बहुत शौक से उसे लोगों की इज़्ज़त, उनके फीलिंग और ज़िंदगी के साथ खेल खेलने का, अब उसकी ज़िंदगी तमाशा बनेगी, इतना दर्द दूँगा उसे कि मौत के लिए तड़पेगी वह, पर मेरी इजाज़त के बिना मौत भी नसीब नहीं होगी उसे, इतना तोड़ दूँगा कि मेरे पैरों में गिरकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगेगी और उस दिन वही मौत वह मरेगी जो उसके आकाश को दी थी।"

    अर्नव के चेहरे पर गुस्से, नफ़रत और रोष के साथ अजीब सा दर्द झलकने लगा था। कबीर आगे कुछ बोल नहीं सका, बस आगे बढ़कर उसने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। अर्नव की आँखों में नमी तैर गई, पर उसने उसे बाहर नहीं आने दिया और दर्द भरी आह भरते हुए बिना किसी भाव के बोला,

    "मैं ठीक हूँ। तू जाकर अपना काम कर, बहुत से काम पेंडिंग पड़े हैं।"

    कबीर ने सर हिला दिया और वहाँ से चला गया। अर्नव कुछ पल वहीं खड़ा समुद्र की लहरों को देखता रहा, फिर आकर अपना काम करने लगा।

    सुबह से शाम कब हुई किसी को पता ही नहीं चला। धृति चाहकर भी अपने घर नहीं जा सकी। उस कमरे में कैद, अपनी ही सोच में खोई रही। न एक बार भी कमरे से बाहर निकली और न ही कुछ खाया-पिया। शीला दो-तीन बार पूछने भी आई, पर धृति ने इंकार कर दिया।

    अर्नव ने खुद को सारा दिन काम में डूबोए रखा और शाम को घर लौटा। ड्राइंग रूम में कदम रखते ही उसे सामने शीला नज़र आई, पर धृति कहीं नहीं दिखी। अर्नव ने अंदर की तरफ़ कदम बढ़ाते हुए कठोर लहज़े में उससे सवाल किया,
    "तुम्हारी मैडम कहाँ है?"

    शीला ने उसका सवाल सुना और परेशान सी बोली,
    "मैडम तो कमरे में है। आपके जाने के बाद अंदर गई तो दोबारा बाहर ही नहीं आई। सुबह से कुछ खाया-पिया भी नहीं है। इतनी बार पूछा, पर हर बार भूख नहीं है कहकर इंकार कर दिया।"

    शीला की बातें सुनकर अर्नव की भौंहें तन गईं और आँखें गुस्से से लाल हो गईं। वह गुस्से में लंबे-लंबे डग भरते हुए सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया।

    धृति रूम में बेड पर बैठी अपने ही ख्याल में गुम थी, जब तेज़ आवाज़ के साथ कमरे का दरवाज़ा खुला और साथ ही अर्नव की गुस्से भरी आवाज़ वहाँ उस सन्नाटे में गूंज उठी,
    "धृति!"

    धृति आवाज़ सुनकर भय से काँप उठी और घबराकर सामने देखने लगी। अर्नव का गोरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उसने जलती निगाहों से धृति को घुरा और गुस्से में अपने पैरों तले ज़मीन को रौंदते हुए उसके तरफ़ बढ़ने लगा।

    अर्नव को यहाँ इतने गुस्से में देखकर धृति की हालत भय से खराब हो गई कि कहीं फिर से वह उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश न करे। धृति घबराई निगाहों से अर्नव को देखने लगी और जब अर्नव उसके करीब आया तो डरकर पीछे सरकने लगी, पर तब तक अर्नव उसके पास पहुँच चुका था। उसने धृति की बाँह पकड़कर उसके पीठ से लगाते हुए उसको अपनी तरफ़ खींच लिया और उसके चेहरे के तरफ़ झुक गया। धृति उसके सीने से चिपकी हुई थी। उसकी साँसें थम गई थीं और वह डरी-सहमी हुई सी उसे देखने लगी थी।

  • 10. बेरहम इश्क़ - Chapter 10 करारा तमाचा

    Words: 3278

    Estimated Reading Time: 20 min

    अर्नव के इतने गुस्से से धृति का हाल बेहाल हो गया। उसे डर सताने लगा कि कहीं अर्नव फिर से उसके साथ जबरदस्ती न करने लगे। धृति घबराई हुई निगाहों से अर्नव को देख रही थी। जैसे ही अर्नव उसके पास आया, डर के मारे वह पीछे हटने लगी, पर अर्नव पहले ही उसके पास पहुँच गया था। उसने धृति की बाँह पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया और अपनी छाती से लगा दिया। उसके चेहरे के पास झुक गया। धृति उसके सीने से चिपकी हुई थी। उसकी साँसें थम गई थीं और वह डरी-सहमी हुई अर्नव को देख रही थी।

    अर्नव ने दूसरी हथेली से धृति के गाल दबा दिए और गुस्से में दाँत पीसते हुए बोला,
    "क्या नाटक लगा रखा है यह तुमने? क्या लगता है तुम्हें, कि खाना नहीं खाओगी, कमरे में बंद रहोगी तो मैं तुम पर तरस खाऊँगा और तुम्हें अपनी कैद से आज़ाद कर दूँगा? या भूखे-प्यासे रहकर मरना चाहती हो ताकि अपने गुनाहों की सज़ा भुगतने से बच सको? अगर यह सोच रही हो तो बदल दो अपनी सोच, क्योंकि मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूँगा। जब तक मेरा बदला पूरा नहीं हो जाता, तुम न तो मेरी कैद से आज़ाद हो सकती हो और न ही तुम्हें मरने की इज़ाज़त है। अब से तुम्हारी ज़िन्दगी की एक-एक साँस पर मेरा अधिकार है और तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सज़ा देने से पहले मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा।"

    धृति की आँखों में आँसू भर आए थे। उसे दर्द हो रहा था, पर वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। अर्नव की बातें उसके दिल को भेदती जा रही थीं। उसकी आँखों में अपने लिए बेइंतेहा नफ़रत देख रही थी वह, जिसकी वजह से वह पूरी तरह से अनजान थी। उन काली, भयावह आँखों में नफ़रत में घुला हुआ दर्द देखकर धृति के दिल के किसी कोने में यह भावना पैदा होने लगी कि शायद उसने ही ऐसा कुछ किया है जिसकी सज़ा अब उसे दी जा रही है।

    धृति की आँसुओं से भरी आँखें देखकर अर्नव के चेहरे के भाव कुछ कोमल हो गए। जाने क्यों, पर इन आँखों में आँसू अर्नव को बेचैन कर जाते थे और अब भी यही हुआ। धृति के गाल और बाहों पर अर्नव की पकड़ कुछ ढीली हो गई, पर अगले ही पल उसकी कुछ पुरानी, दर्द भरी, कड़वी यादें अर्नव पर हावी होने लगीं और उसका गुस्सा, नफ़रत अपनी चरम पर पहुँच गया। उसने धृति के गालों को और कसकर दबाते हुए, नफ़रत भरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा,
    "तुम्हारे इन दिखावटी आँसुओं से मैं पिघलने वाला नहीं हूँ। इसलिए बंद करो अपना यह नाटक।"

    फिर उसने धृति के कपड़े देखे और शैतानी मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोला,
    "वैसे स्वीटहार्ट, मैंने तो तुम्हारे लिए एक से एक डिज़ाइनर ड्रेसेज़ भेजी थीं, फिर तुमने अब तक शादी का लहँगा क्यों पहना हुआ है? क्या तुम्हें यह लहँगा इतना पसंद आया कि तुम इसे उतारना ही नहीं चाहती? या फिर चाहती हो कि जो काम रात को अधूरा रह गया, उसे पूरा करते हुए मैं खुद तुम्हारे इन कपड़ों को तुम्हारे जिस्म से अलग करूँ? या कहीं तुमने यह नाटक इसलिए तो नहीं किया ताकि मैं खुद तुम्हें अपने हाथों से खाना खिलाऊँ, तुम्हें नहलाकर तुम्हारे कपड़े बदलूँ?"

    अर्नव घिनौनी मुस्कान लबों पर सजाते हुए धृति को देखने लगा। धृति पहले तो उसकी बातें सुनकर सन्न रह गई, अगले ही पल उसने पूरी ताकत लगाकर अर्नव को खुद से दूर धकेल दिया और गुस्से से चीखी,
    "किस किस्म के इंसान हैं आप? शर्म नहीं आती आपको ऐसी बेहूदी बातें करते हुए? मैं सोच भी नहीं सकती कि किसी इंसान की इतनी घटिया सोच भी हो सकती है। आपको क्या लगता है कि मैं मर रही हूँ आपके लिए? गलत है आप। मुझे आप में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं, आप मुझे छुएँ इससे पहले मैं अपनी जान देना पसंद करूंगी। आपके गंदे हाथों से खाना खाने से पहले मैं ज़हर खाकर अपनी जान दे दूँगी। रात की आपकी हैवानियत देखने के बाद मैं एक सेकंड भी आपके साथ नहीं रहना चाहती। मुझे घिन आ रही है खुद से कि आपने मुझे छुआ। मैंने नहीं नहाया, नहीं बदले कपड़े, क्योंकि आपने जो कपड़े भेजे, मैं उस तरह के बदन दिखाने वाले कपड़े नहीं पहनती। सुना आपने? जैसा आपने कहा, वैसा कोई अरमान नहीं मेरे दिल में और न ही कभी होगा। तो आइंदा मेरे बारे में ऐसी बातें कहने से पहले अच्छे से सोच लीजिएगा, क्योंकि हर बार आपकी बदतमीज़ी खामोशी से बर्दाश्त नहीं करूँगी मैं।"

    धृति की आवाज़ में गुस्सा, दर्द और रोष झलक रहा था। उसके धक्का देने से अर्नव कुछ कदम पीछे को हो गया था। धृति की धमकी सुनकर उसके चेहरे के भाव सख्त हो गए। उसने धृति की तरफ़ कदम बढ़ाते हुए उसे घूरते हुए सवाल किया,
    "अच्छा तो क्या करोगी तुम? कर क्या सकती हो तुम? लो, छू रहा हूँ तुम्हें, करो जो करना है तुम्हें।"

    अर्नव ने धृति को छूने के लिए हाथ बढ़ाया, पर इससे पहले ही उसका हाथ धृति के जिस्म को छू पाता, एक करारा तमाचा उसके गाल पर आकर लगा और उस सन्नाटे में उस ज़ोरदार थप्पड़ की आवाज़ गूंज उठी।

    अर्नव को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि धृति ऐसा कुछ करेगी। वह सन्न रह गया और उसका सर एक तरफ़ को झुक गया। धृति, जिसने अभी-अभी उसे तमाचा जड़ा था, वह गुस्से से काँपते हुए चीखी,
    "कोशिश भी मत करना मुझे दोबारा छूने की। कल सह लिया, इसका मतलब यह नहीं कि कमज़ोर हूँ मैं। इतनी हिम्मत है मुझमें कि अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए अपनी जान दे भी सकती हूँ और किसी की जान ले भी सकती हूँ।"

    उसकी धमकी सुनकर अर्नव ने जलती निगाहों से उसे घूरा और उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भींचकर उसके चेहरे को ऊपर कर दिया। दर्द से धृति की चीख निकल गई और आँखों से आँसू बहने लगे, पर अर्नव ने उस पर ज़रा भी दया नहीं दिखाई। बेरहमी से उसके बालों को खींचते हुए गुस्से में गरजा,
    "हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझ पर हाथ उठाने की? भूल गई हो कि कल ही शादी हुई है हमारी, पति हूँ मैं तुम्हारा। हक़ है मुझे जब चाहे करीब आऊँ तुम्हारे, तुम रोक नहीं सकती मुझे।"

    धृति ने अपनी दर्द से बंद होती आँखों को किसी तरह खोला और अपनी आँसू भरी निगाहों से उसकी खूनी लाल आँखों में देखते हुए दृढ़ता से बोली,
    "मैं नहीं भूली कि कैसे आपने मुझे मजबूर करके मुझे जबरदस्ती शादी के इस बंधन में बाँधा है और न ही कभी भूल सकती हूँ। जानती हूँ कि पति है आप मेरे और मेरी ज़िन्दगी की सबसे भयावह हक़ीक़त यह है कि मेरा पति ही मेरी आबरू लूटने को तैयार बैठा है। हक़ जता रहे हैं आप पति होने का, पर जब आप पति होने का कोई फ़र्ज़ नहीं निभा सकते, अपनी पत्नी की इज़्ज़त नहीं कर सकते, तो आपको मेरी इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करने का भी कोई अधिकार नहीं, नहीं है हक़ आपको मेरे करीब आने और मुझे छूने का। मैं आपको यह अधिकार नहीं देती और मेरी इज़ाज़त के बिना आपको कोई अधिकार नहीं मुझे छूने का। इसके लिए आप चाहे मुझे जान से मार दें, पर मैं आपको खुद पर अधिकार कभी नहीं दूँगी। और अगर आपने दोबारा मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मुझे छूने की कोशिश की तो आज तो बस एक थप्पड़ मारा है मैंने आपको, अगली बार या तो आपको जान से मार दूँगी या खुद को ख़त्म करके यहीं इस कहानी का अंत कर दूँगी।"

    धृति की आँखों में आत्मविश्वास की चमक मौजूद थी। दर्द में थी वह, पर चेहरे पर डर, घबराहट या दर्द के भाव नहीं थे, बल्कि दृढ़ता झलक रही थी। उसके शब्दों ने एक बार फिर अर्नव को ललकारा था। धृति का निडर चेहरा और बातें अर्नव के बर्दाश्त से बाहर थीं। वह पहले तो जलती निगाहों से उसको घूरता रहा, फिर गुस्से में दाँत पीसते हुए बोला,
    "एक ही दिन में बहुत हिम्मत आ गई है तुममें, मुझे धमकी दे रही हो, मुझे मारोगी तुम, बहुत मरने का शौक चढ़ा है। अभी तुम्हारा सारा हिम्मत और शौक निकालता हूँ।"

    धृति कुछ समझ पाती कि अर्नव करने वाला है, उससे पहले ही अर्नव ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया। धृति भय से काँप उठी और उसे नीचे उतारने को कहने लगी, पर अर्नव पर कोई असर नहीं हुआ। वह धृति को अपनी बाहों में उठाए बैक साइड, मतलब पूल साइड चला आया और धृति को पानी में फेंकते हुए बोला,
    "मरौ सारी रात यहाँ, तब अक्ल ठिकाने आएगी तुम्हारी। और दोबारा मुझसे ज़ुबान लड़ाने की, मुझे धमकाने की हिम्मत करने से पहले सौ नहीं, हज़ार बार सोचोगी, क्योंकि अगर दोबारा तुमने ऐसी गलती दोहराई तो सज़ा इससे कहीं ज़्यादा भयावह होगी।"

    अर्नव के फेंकने से धृति छपाक की आवाज़ के साथ पानी में जा गिरी, पर अर्नव ने यह तक नहीं सोचा कि अगर धृति को तैरना नहीं आता होगा तो वह ऐसे में डूब भी सकती है। उसने अपनी बात कही और रूम में जाते हुए दरवाज़ा बंद कर लिया।

    धृति पूरी पानी में भीग गई थी और सीधे पूल के फ्लोर पर गिर गई थी। उसने किसी तरह खुद को सम्भाला और फ्लोर पर खड़ी हो गई। पूल का पानी उसके मुँह तक आ रहा था। साँस घुटने लगी थी उसकी। बड़ी मुश्किल से किसी तरह मौत से संघर्ष करते हुए वह पूल से बाहर आई और गहरी-गहरी साँसें लेने लगी। उसकी आँखों में आँसू भर आए थे। उसने सर घुमाकर रूम की तरफ़ देखा और सिसकते हुए खुद से ही बोली,
    "मिस्टर अर्नव सिंह रायज़ादा... आप क्या हैं और क्यों यह सब कर रहे हैं, मैं नहीं जानती, पर एक बात मैं ज़रूर जानती हूँ कि शादी की है आपने मुझसे और दुनिया का कोई पति अपनी पत्नी के साथ ऐसा सुलूक नहीं करता, जैसा आप कर रहे हैं मेरे साथ। बिना मेरा गुनाह बताए सज़ा दे रहे हैं मुझे, इसके लिए मैं और मेरे महादेव कभी आपको माफ़ नहीं करेंगे।"

    धृति पूरी भीग चुकी थी। अंदर जा नहीं सकती थी और यहाँ ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थीं, जिससे उसे ठंड लगने लगी थी। वह एकदम कोने में जाकर खुद में सिमटकर बैठ गई और एक बार फिर सोच में खो गई कि उसके किस गुनाह की सज़ा मिल रही है उसे?

    दूसरे तरफ़ अर्नव गुस्से से पागल हो गया था। वह सीधे बाथरूम में घुस गया। काफ़ी देर तक ठंडे पानी के नीचे खड़ा भीगता रहा, फिर कमरे में चला आया। डिनर करने भी नहीं गया और रूम की लाइट्स ऑफ़ करके सोने के लिए लेट गया। उसके दिलो-दिमाग पर सिर्फ़ और सिर्फ़ धृति ही छाई हुई थी।


    रात बीती और अगला दिन शुरू हुआ। अर्नव की नींद पाँच बजे खुली और उठते ही ज़हन में धृति का ख्याल आया, पर चेहरे पर सख्त भाव ही मौजूद रहे। उसने स्लीपर्स पहने और लॉक खोलकर पूल साइड आ गया। हर जगह चील सी तेज नज़रें घुमाने के बाद उसकी नज़र एक तरफ़ कोने में गठरी बने सो रही धृति पर चली गई। शायद ठंड लग रही थी उसे, इसलिए काँप रही थी वह। अर्नव लम्बे-लम्बे डग भरते हुए उसके पास चला आया। धृति को सुकून से सोते देखकर, उसको ज़रा भी अच्छा नहीं लगा। उसने गुस्से से धृति को घूरा, फिर वहाँ रखा गमला उठाकर फ़र्श पर दे मारा। गमला टूट गया और उसकी मिट्टी आस-पास बिखर गई।

    आवाज़ सुनकर धृति घबराकर उठकर बैठ गई। पहले उसने अपने पास टूटे-बिखरे पड़े गमले को देखा, फिर निगाहें सामने की तरफ़ उठा दीं। सामने अर्नव को खड़े देखकर उसने तुरंत अपने दुपट्टे को अपने ऊपर लपेट लिया। अर्नव ने यह देखकर निगाहें फेर लीं और कठोर स्वर में बोला,
    "तुम्हारे बाप का घर नहीं है यह जो दस-दस बजे तक सोती रहो। बहुत आराम फ़रमा लिया तुमने, अब चुपचाप यह साफ़ करो और अंदर आओ।"

    अर्नव ने पलटकर एक बार उसे देखा तक नहीं और वहाँ से चला गया। अपने पापा का ज़िक्र सुनकर धृति की आँखों में आँसू भर आए। उसने सर उठाकर भीगी निगाहों से आसमान की तरफ़ देखा और रुँधे गले से बोली,
    "आई मिस यू पापा, आप क्यों मुझे यहाँ अकेला छोड़कर चले गए? मुझे भी अपने पास बुला लीजिये। मैं और ज़िंदा नहीं रहना चाहती। थक गई हूँ मैं ज़िन्दगी की परीक्षा देते-देते, सबकी नफ़रत सहते-सहते, अब मुझे सुकून की नींद में सोना है। मुझे अपने पास बुला लीजिये ना, यहाँ कोई मुझसे प्यार नहीं करता, किसी को मेरी परवाह नहीं है।"

    धृति की आँखों में कैद आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए। कुछ भावुक हो गई थी वह, पर जल्दी ही उसने खुद को सम्भाल लिया। अपनी हथेलियों से अपने आँसू पोंछते हुए वह उठकर खड़ी हो गई। आस-पास निगाहें घुमाई तो नज़र एक तरफ़ कोने में रखे ख़ाली गमले पर पड़ी। वहीं डस्टबिन भी रखा था जिसमें पेड़-पौधों का कूड़ा रखा जाता था। धृति गमला उठाकर ले आई और बिखरी मिट्टी अपनी हथेलियों में भरकर गमले में डालने लगी। उसने उस पौधे को उस ख़ाली गमले में लगा दिया। बाकी बची मिट्टी डस्टबिन में डाल दी और अपने हाथों को अपने दुपट्टे से पोंछते हुए कमरे की तरफ़ बढ़ गई।

    उसने कमरे में पहला कदम रखा ही था कि कोई कपड़ा आकर उसके मुँह पर लगा और साथ ही अर्नव की सख्त आवाज़ कानों से टकराई,
    "जल्दी जाकर नहाओ और उसके बाद अपने कामों में लग जाओ।"

    कपड़ा धृति के मुँह पर लगकर फ़र्श पर गिर गया था। अर्नव की बात सुनकर धृति ने एक नज़र उसे देखा, फिर कपड़े उठा लिए। कल आए कपड़ों में से उसने एक शोपर उठा लिया और बाथरूम में चली गई। ठंड लग रही थी उसे तो कुछ देर गरम पानी के नीचे खड़ी रही। फिर नहाकर अर्नव के दिए कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर चली आई। सोफ़े पर बैठा अर्नव अपने फ़ोन में कुछ कर रहा था। अचानक ही उसकी नज़र बाथरूम से बाहर निकलती धृति पर चली गई।

    धृति ने अर्नव की वाइट शर्ट और नीचे से ब्लैक ट्राउज़र पहना हुआ था। अर्नव जैसे हट्टे-कट्टे जवान मुंडे के कपड़े भला हमारी लकड़ी जैसी सुखी धृति को कैसे फिट आते? शर्ट और लोअर दोनों ही ओवरसाइज़ थे। शर्ट इतनी बड़ी थी कि उसके कंधे धृति के कंधों से नीचे बाँह पर लटक रहे थे। स्लीव्स को आधा फोल्ड किया हुआ था, फिर भी लगभग पूरी बाँह ढका हुआ था उसने। लेंथ घुटनों से ज़रा ऊपर तक की थी। गला भी काफ़ी डीप था, जिसकी वजह से उसके क्लीवेज का हिस्सा दिख रहा था और अर्नव को सामने देखते ही धृति ने हड़बड़ाते हुए गले पर से शर्ट को पकड़ लिया था।

    ट्राउज़र भी काफ़ी लूज़ और लम्बा आ रहा था, जिसे नीचे से फोल्ड किया हुआ था। फिर भी धृति की पूरी टाँगें कवर हो रखी थीं। ठंड लगने की वजह से उसके गाल और नाक कश्मीरी सेब जैसे लाल हो गए थे। उसका गोरा, चाँद सा सुंदर, मासूम चेहरा, उस पर लबों के ऊपर मौजूद तिल जो अपनी मौजूदगी पर इठला रहा था और धृति की ख़ूबसूरती में चार-चाँद लगा रहा था। उन ओवरसाइज़ कपड़ों में धृति छोटी सी, क्यूट सी खरगोश लग रही थी। इतनी क्यूट लग रही थी कि एक पल को अर्नव उसमें खो सा गया, पर तभी उसकी नज़र धृति के हाथों पर पड़ी और चेहरे के भाव एकाएक सख्त हो गए।

    धृति ने अर्नव को नज़रअंदाज़ कर दिया और ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गई। वह ड्रेसिंग टेबल पर कुछ ढूँढ रही थी, तभी उसे अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ और वह घबराकर पीछे को पलट गई। उसके ठीक पीछे अर्नव खड़ा था। धृति उससे टकराते-टकराते बची और घबराकर पीछे हटने लगी कि पीछे टेबल से टकरा गई।

    उसने पहले पीछे देखा, फिर घबराकर सामने देखा तो अर्नव उसके और करीब आ रहा था। धृति का दिल निकलकर बाहर आने लगा। घबराहट के मारे धड़कनें बढ़ सी गईं और साँसें थम गईं। पर उसने अपनी घबराहट ज़ाहिर न करते हुए दृढ़ता से कहा,
    "देखिए आ..." वह आगे कुछ कह पाती, उससे पहले ही अर्नव ने उसके लबों पर उंगली रखकर उन्हें ख़ामोश कर दिया और चेतावनी भरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा,
    "चुप... एक शब्द नहीं कहोगी तुम। चुपचाप खड़ी रहो। ख़बरदार जो कुछ कहा या यहाँ से हिलने की कोशिश भी की। जो कर रहा हूँ आराम से करने दो, वरना सज़ा के लिए तैयार रहना।"

    धृति अब कुछ बोल नहीं सकी। बस आँखें बड़ी-बड़ी करके उसकी गहरी काली आँखों में झाँकने लगी, जहाँ इस वक़्त न गुस्सा झलक रहा था और न ही नफ़रत।

    अर्नव ने उसके लबों पर से अपनी उंगली हटाई, फिर धृति की हथेलियों को शर्ट पर से हटाते हुए एक हथेली को उसके सीने पर टिका दिया ताकि अंदर का कुछ नज़र आए और दराज से सेफ्टी पिन निकालकर शर्ट के कॉलर के नीचे के दोनों सिरों को जोड़कर वहाँ सेफ्टी पिन लगा दिया। धृति भी यही करना चाहती थी, पर उसे पिन नहीं मिल रहा था और जब यही काम अर्नव ने किया तो धृति की आँखें अविश्वास से फैल गईं। जहाँ धृति आँखें बड़ी-बड़ी किए हैरान-परेशान सी उसको देखने लगी, वहीं अर्नव ने अपना काम पूरा किया, फिर कदम पीछे हटाते हुए कठोर स्वर में बोला,
    "ज़्यादा फ़ालतू के कामों में वक़्त बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं है। जल्दी से जाकर नाश्ता रेडी करो मेरे लिए। इससे पहले कि मैं तैयार होकर नीचे आऊँ, मुझे नाश्ता और तुम डाइनिंग टेबल पर दिखनी चाहिए।"

    किसी बादशाह के तरह ऑर्डर सुनाकर अर्नव लम्बे-लम्बे डग भरते हुए बाथरूम में घुस गया। उसके जाने के बाद धृति ने चैन की साँस छोड़ी और बाथरूम के बंद दरवाज़े को घूरते हुए बोली,
    "दानव कहीं के, खाना चाहिए इन्हें। अगर मुझे मौक़ा मिलता ना तो उसी खाने में ज़हर डालकर खिला देती आपको।" धृति ने बुरा सा मुँह बनाया, फिर अपने गीले बालों को झाड़कर सुखाया और क्लीचर लगाकर रूम से बाहर निकल गई। नीचे पहुँची तो जहाँ बाकी सब सर्वेंट पहले आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगे, फिर आपस में बातें करने लगे, जिसका टॉपिक धृति ही थी, पर धृति ने उन पर ध्यान नहीं दिया।

    अब तो यह रोज़ का ही था तो कब तक रोती रहती? जब दर्द और ज़िल्लत हिस्से में आई ही थी तो अब अपनी किस्मत और हालातों से समझौता करने का फैसला ले लिया था उसने और कोई रास्ता भी तो नहीं था उसके पास।

    बाकी सबसे उलट शीला ने आज भी आदर सहित उसे मॉर्निंग विश किया और धृति उसके साथ ही किचन में चली आई।

  • 11. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 11

    Words: 2296

    Estimated Reading Time: 14 min

    धृति ने बुरा मुँह बनाया। फिर अपने गीले बालों को झाड़कर सुखाया, क्लैचर लगाया और कमरे से बाहर निकल गई। नीचे पहुँचते ही बाकी नौकरों ने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा। फिर आपस में बातें करने लगे; धृति ही उनके बातचीत का विषय थीं। पर धृति ने उन पर ध्यान नहीं दिया। अब तो यह रोज़ का ही हो गया था; कब तक रोती रहती? जब दर्द और ज़िल्लत हिस्से में आ ही गई थी, तो अब अपनी किस्मत और हालातों से समझौता करने का फ़ैसला ले लिया था उसने। और कोई रास्ता भी तो नहीं था उसके पास।

    बाकियों के उलट, शीला ने आज भी आदर सहित उसे मॉर्निंग विश किया और धृति उसके साथ किचन में चली गई।

    लगभग एक घंटे बाद अर्नव नीचे आया और डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ गया। धृति पहले से ही वहाँ खड़ी थी, और टेबल पर खाना भी लगा हुआ था। काम करने या खाना बनाने से उसे कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि अपने घर में भी ये सब करती थी। परेशानी थी तो अर्नव और उसके रवैये थे।

    जैसे ही अर्नव की नज़र धृति पर पड़ी, उसके चेहरे के भाव सख्त हो गए। उसने भौंहें सिकोड़कर उसे घूरा और गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला,

    "मंगलसूत्र कहाँ है तुम्हारा? और तुम्हारी माँग सुनी क्यों है? सिंदूर क्यों नहीं लगाया तुमने?"

    धृति ने उसकी बात सुनकर चौंकते हुए निगाहें झुकाकर देखा; गले में मंगलसूत्र नहीं था। फिर उसने अर्नव को घबराई निगाहों से देखते हुए कहा,

    "वो मंगलसूत्र बालों में उलझ रहा था, तो उतार दिया था। फिर जल्दबाज़ी में पहनना भूल गई। आदत नहीं है इसलिए सिंदूर लगाना ध्यान नहीं रहा।"

    धृति को डर था कि कहीं अर्नव यहाँ नौकरों के सामने ही कुछ तमाशा न कर दे, इसलिए उसने तुरंत सफाई पेश की। पर अर्नव के चेहरे के भाव ज़रा भी सामान्य नहीं हुए। उसने गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला,

    "आज हो गया। दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए। वाइफ़ हो तुम मेरी, जिसकी निशानी चौबीसों घंटे तुम्हारे गले और माँग में मौजूद होनी चाहिए। जाओ, जल्दी जाकर मेरी वाइफ़ बनकर आओ।"

    अर्नव की इस बेतुकी ज़िद पर धृति खीझ उठी, पर कुछ नहीं कहा और सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। कुछ देर बाद वह वापस लौटी।

    अर्नव ने एक ईर्ष्यालु मुस्कान लबों पर सजाते हुए उसे देखा; मानो अपनी जीत के गर्व में चूर हो। वह आकर राजा-महाराजाओं की तरह ठाठ से अपनी कुर्सी पर बैठ गया। फिर उसने तीखी निगाहों से धृति को घूरा। धृति ने तुरंत उसकी प्लेट में खाना सर्व कर दिया। अर्नव अब भी उसे घूरता रहा और आँखों से ही बैठने का इशारा कर दिया। धृति उसके साथ बैठना तो नहीं चाहती थी, पर कुछ सोचते हुए बैठ गई।

    "सिर्फ़ बैठने को नहीं कहा है। साथ खाने को कहा है।" अर्नव ने उसे खाली बैठा देखकर सख्त लहज़े में कहा। धृति ने बिना कुछ कहे अपने लिए खाना निकाल लिया। फिर तिरछी निगाहों से अर्नव को देखते हुए बोली,

    "खाने के बाद आप एक मिनट ऊपर चलेंगे, कुछ बात करनी है मुझे आपसे... अकेले में।"

    अर्नव ने एक नज़र उसे देखा, फिर बिना कोई जवाब दिए खाना खाने लगा। धृति ने फिर से कहा,

    "ज़रूरी बात है।"

    "पहले खाना खाओ, उसके बाद बात करेंगे।"

    अर्नव ने खाना खाते हुए ही जवाब दिया। धृति का मन बिल्कुल नहीं था, पर शायद वह अभी अर्नव को नाराज़ नहीं करना चाहती थी। कल गुस्से से बात करके देख लिया था कि यहाँ गुस्से से बात करने से बात बनने के बजाय बिगड़ेगी; इसलिए वह शांत बनी रही और जैसे-तैसे निवाले गले के नीचे धकेलने लगी।

    अर्नव का खाना खत्म हुआ तो उसने हाथ धोने के बाद निगाहें आस-पास घुमाईं। उसके आँखों के इशारे को समझते हुए सारे नौकर वहाँ से चले गए। अब वहाँ बस धृति और अर्नव ही थे।

    "बोलो क्या बोलना है तुम्हें, और ज़रा जल्दी बोलना। फ़ालतू वक़्त नहीं है मेरे पास।"

    मन ही मन धृति उसके इस रवैये से कुढ़ गई। पर क्या ही उम्मीद रख सकती थी वह उस इंसान से, जो उससे बेइंतेहा नफ़रत करता हो? धृति ने उसे देखा और गंभीरता से बोली,

    "मुझे सच में नहीं पता कि ऐसा क्या किया है मैंने, जो आप इतनी नफ़रत करते हैं मुझसे और ऐसा सुलूक कर रहे हैं मेरे साथ। आपने मुझसे जबरदस्ती शादी की है, मुझे चोट पहुँचाने के लिए, और पहुँचा रहे हैं आप मुझे चोट।... आपने मेरी माँ को निशाने पर रखकर मुझे शादी के लिए मजबूर किया और मैंने आपसे शादी भी कर ली। आपकी नफ़रत भी सह रही हूँ। बदले में मैं बस इतना चाहती हूँ कि मुझे मेरे घर जाने दिया जाए।

    मुझे मेरी माँ से मिलना है और शादी से पहले मैं जॉब करती थी, उसे भी मैं कंटिन्यू करना चाहती हूँ क्योंकि सारा दिन खाली घर बैठना मेरे बस की बात नहीं। मुझे आपके इस सोने के पिंजरे से आज़ादी चाहिए ताकि जैसे पहले मैं पैसे कमाकर अपना घर संभाल रही थी, वैसे आगे भी कर सकूँ। और एक बात, आपको पहले जो करना था आपने कर लिया, पर अब मुझे किसी चीज़ के लिए मजबूर करने के लिए आप मेरी माँ को निशाने पर नहीं लाएँगे।"

    धृति अपनी बात कहकर खामोश हो गई। अर्नव चेहरे पर सख्त भाव लिए खामोशी से उसकी बात सुनता रहा। फिर उठते हुए बोला,

    "अर्नव सिंह रायज़ादा किसी और के इशारों पर नहीं चलता, वह वही करता है जो उसे करना होता है। अगर आगे मुझे ज़रूरत पड़ी तो तुम्हारी फैमिली बीच में ज़रूर आएगी। और अगर तुम चाहती हो कि मैं उन्हें दोबारा बीच में ना लाऊँ या अपनी नफ़रत की बलि न चढ़ाऊँ तुम्हारी माँ को, तो तुम्हें मेरी हर बात खामोशी से माननी होगी। अगर तुमने मुझे नाराज़ किया तो सज़ा तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी माँ भी भुगतेगी..."

    अर्नव ने धृति को धमकी देने के बाद उसे चेतावनी भरी निगाहों से देखा। फिर आगे कहना शुरू किया,

    "तुम्हें अपनी माँ से मिलने जाना है तो जा सकती हो, नौकरी भी कर सकती हो। पर याद रहे कि मेरे लौटने से पहले तुम मुझे यहाँ मिलनी चाहिए। ध्यान रहे, अगर तुमने मरने की या भागने की कोशिश की तो तुम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न छुप जाओ, पर मैं तुम्हें ढूँढकर वापस यहीं लाऊँगा और वो हाल करूँगा तुम्हारा और तुम्हारी माँ का कि खून के आँसू रोओगी तुम और कोसोगी उस पल को जब मुझे धोखा देने और यहाँ से भागने का ख्याल तुमने अपने मन में आने दिया।... और एक बात, मेरे इस सोने के पिंजरे से तुम्हें तब तक रिहाई नहीं मिल सकती जब तक कि मैं नहीं चाहता।"

    अर्नव ने अपनी बात कही और तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया। धृति ने ठंडी आह भरी और उठकर कमरे में चली गई। आख़िरकार वह अपने घर जा सकती थी; इस बात से वह खुश थी, पर चिंता भी थी कि उन्हें क्या बताएगी? सुकून भी था कि घर से बाहर तो जा सकेगी और अपने परिवार के लिए पैसे भी कमा सकेगी।

    अभी वह इन्हीं सब ख्यालों में गुम थी, जब दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। धृति तुरंत दरवाज़े की ओर घूम गई। सामने फिर माधुरी खड़ी थी। उसने आने की इजाज़त माँगी तो धृति ने सिर हिला दिया। माधुरी आज फिर कुछ शॉपर्स लेकर आई थी, जिसे उसने सोफ़े के सामने वाले टेबल पर रखते हुए धृति से कहा,

    "मैम, ये कुछ कपड़े हैं जो सर ने भेजे हैं आपके लिए। आप देख लीजिए, अगर पसंद न आएँ तो दूसरे आ जाएँगे।"

    धृति ने अब सारे शॉपर्स खोलकर देखे; उनमें सूट और साड़ियाँ थीं। सूट बिल्कुल उसके साइज़ के हिसाब से थे। देखने में न ज़्यादा महंगे लग रहे थे, न ही सस्ते।

    कुछ इसी प्रकार के सादे कपड़े वह खुद भी पहनती थी। धृति ने कपड़े देखे, फिर आश्चर्य भरी निगाहों से माधुरी को देखते हुए बोली,

    "ये कपड़े आपके सर ने भेजे हैं?"

    "जी, उन्होंने कहा कि कुछ इंडियन आउटफ़िट्स ले आऊँ, तो मैंने ये ड्रेसेज़ पसंद किए हैं आपके लिए। Hope so कि आपको पसंद आए हों। अगर न आए हों तो बता दीजिए, मैं दूसरे ले आऊँगी।"

    धृति ने उसकी बात सुनी, फिर फ़ीकी मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोली,

    "इसकी ज़रूरत नहीं। आपकी पसंद और मेरी पसंद काफ़ी मिलती है। थैंक्यू मेरे लिए कम्फ़र्टेबल कपड़े लाने के लिए।"

    "It's my duty मैम।" माधुरी ने सौम्यता से जवाब दिया और मुस्कुराकर आगे बोली,

    "मैम, सर ने कहा है कि आप बाहर जा सकती हो, पर आपको जहाँ भी जाना होगा कार से जाना होगा और ड्राइवर आपके साथ रहेगा। शाम से पहले आपको वापिस लौटने को भी कहा है।"

    धृति की ज़िंदगी को अर्नव कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था, पर धृति ने बहस न करते हुए हामी भर दी। माधुरी कुछ पल खामोशी से उसे देखती रही, फिर हिचकिचाते हुए बोली,

    "मैम, क्या मैं आपसे एक पर्सनल सवाल कर सकती हूँ?"

    "जी।" धृति असमंजस भरी निगाहों से उसे देखने लगी। माधुरी ने उसकी इजाज़त मिलने के बाद गंभीरता से सवाल किया,

    "मैम, क्या आप पहले से सर को जानती हैं?"

    "नहीं... मैंने न तो पहले कभी उनका नाम सुना है और न ही परसों से पहले उन्हें कभी देखा था।"

    "फिर वो आपके साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?"

    "मालूम नहीं... बताया नहीं है उन्होंने और मैं याद करने की कोशिश करते-करते थक गई, पर मुझे कुछ याद नहीं आया।"

    "क्या कल फिर से सर ने आपके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की?" माधुरी के मुँह से फ़ौरन यह सवाल निकल गया। इसे सुनकर धृति पहले तो कुछ असहज हो गई, फिर शर्मिंदगी से निगाहें झुकाते हुए इंकार में सिर हिला दिया।

    माधुरी ने अब चैन की साँस ली और धृति के शर्मिंदगी से झुके सिर को देखते हुए बोली,

    "मैम, जब गलती आपकी नहीं तो आपको शर्मिंदा होने या नज़रें चुराने की कोई ज़रूरत भी नहीं है। और मेरी माने तो अगली बार जब वो आपके साथ ऐसा वैसा कुछ करने की कोशिश करे तो लैंप उठाकर उनके सर पर दे मारिएगा। अक्ल एक ही बार में ठिकाने आ जाएगी और दोबारा कभी आपको आपकी इजाज़त के बिना हाथ लगाने की भी हिम्मत नहीं करेंगे।"

    माधुरी काफ़ी सीरियस लग रही थी। वहीं धृति उसकी बात सुनकर हैरानी से आँखें बड़ी-बड़ी करके अचंभित सी उसे देखने लगी थी। माधुरी ने उसका एक्सप्रेशन देखा तो तुरंत ही आगे बोली,

    "आप मुझे ऐसे इसलिए देख रही हैं क्योंकि मैं अपने ही बॉस के लिए ये सब बोल रही हूँ, पर यहाँ मैं उनकी इम्प्लॉय बनकर नहीं बल्कि एक लड़की और इंसान होने के नाते ये बोल रही हूँ। गलत चाहे कोई भी करे, सज़ा मिलनी ही चाहिए ताकि वो दोबारा वो गलती करने की भूल से भी न कर सके। याद रखिएगा कि ये दुनिया ऐसी है जहाँ सीधे-सादे कमज़ोर लोगों को दबाया जाता है और गलती पर खामोश रहने पर उसे बार-बार दोहराया जाता है। इसलिए अपने लिए खुद आवाज़ उठानी होगी आपको और सर की हिम्मत ज़्यादा न बढ़े इसके लिए उनका सामना पूरी हिम्मत से करना होगा।"

    माधुरी की बातें सुनकर धृति मुस्कुरा उठी।

    "आप बहुत अच्छी हैं, फिर उस दानव के साथ काम कैसे करती हैं?"

    "क्या करे मैडम, ये पापी पेट के आगे मजबूर हूँ। जॉब छोड़ूंगी तो जीऊँगी कैसे? फिर बस सर का ही स्वभाव थोड़ा ढीला है, बाकी ऑफ़िस के सभी मेंबर काफ़ी अच्छे हैं। एटमॉस्फ़ेयर अच्छा है, सैलरी अच्छी है, तो सर को भी झेल लेती हूँ।" माधुरी की बातें सुनकर धृति पहले तो आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखती रही, फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी और उसके साथ-साथ माधुरी भी हँस पड़ी।

    कुछ देर हँसने के बाद माधुरी ने धृति के तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए मुस्कुराकर कहा,

    "दोस्त बनेगी मेरी? दोनों मिलकर सर की खूब बुराई करेंगे, जो बातें आप किसी से नहीं कह सकेंगी वो मुझसे शेयर कर सकेंगी और साथ ही मैं आपको आइडियाज़ भी देती रहूँगी कि आपको उनके साथ कैसे डील करना है?"

    धृति उसकी बात सुनकर कुछ पल सोचती रही, फिर उसके आगे बढ़े हाथ को थाम लिया।

    "आप मेरी पहली दोस्त हैं, आपसे पहले मेरी कोई दोस्त नहीं रही।" धृति की बात सुनकर माधुरी पहले तो चौंक गई, फिर मुस्कुराते हुए बोली,

    "आई प्रॉमिस आप मुझसे दोस्ती करने के अपने इस फैसले पर कभी पछताएँगी नहीं और मैं एक अच्छी दोस्त साबित होऊँगी।"

    धृति उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी। माधुरी ने धृति को अपना नंबर दे दिया, फिर वहाँ से निकल गई। धृति का फ़ोन ऑफ़ था, इसलिए उसने नंबर को नोट करके रख लिया और एक सादा सूट लेकर बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद वह ड्राइवर के साथ अपने घर के लिए निकल गई; जहाँ एक नई मुसीबत मुँह बाए उसका इंतज़ार कर रही थी।

    आगे...

    क्या हंगामा होगा धृति के घर पर? क्या जवाब देगी धृति अपनी माँ के सवालों का? और क्या होगा आगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए "बेरहम इश्क़"।

  • 12. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 12

    Words: 2330

    Estimated Reading Time: 14 min

    सुबह के ग्यारह बजे गाड़ी धृति के घर से कुछ दूरी पर रुकी। धृति ने अपना मंगलसूत्र खोलकर बैग में रख लिया और सिंदूर को टिशू पेपर से साफ कर लिया। शादी के बारे में बताना तो था, पर ऐसे सुहागन बनकर उनके सामने जाती तो उन्हें गहरा सदमा लगता और वह उन्हें कुछ समझा नहीं पाती, इसलिए उसने अभी के लिए शादी की इन निशानियों को मिटा लिया। गहरी साँस छोड़ते हुए धृति कार से बाहर निकली और अपने घर की ओर कदम बढ़ाते हुए मन ही मन सोचने लगी कि परसों शाम से गायब है, तो उनके हज़ारों सवाल होंगे। क्या जवाब देगी उनके सवालों का और कैसे बताएगी उन्हें अपनी शादी के बारे में?

    इन्हीं सब उलझनों में उलझी धृति अपने घर के बाहर पहुँच गई। उसने गेट नॉक किया और कुछ ही मिनटों बाद दरवाज़ा खुल गया। सामने कोमल जी खड़ी थीं। उन्हें देखते ही धृति की आँखें भर आईं। परसों शाम से जो दर्द उसने खुद में दफन किया हुआ था, आज अपनी माँ को सामने देखकर वह दर्द आँसुओं बनकर उसकी आँखों से बरसने को आतुर हो गया। भावुक धृति अपनी माँ के गले लगने को आगे बढ़ी, पर कोमल जी ने अपना हाथ उसके सामने कर दिया और गुस्से भरी निगाहों से उसे घूरते हुए, दाँत पीसते हुए बोला,

    "जहाँ हो वहीं रुक जाओ। खबरदार जो मुझे हाथ भी लगाया।"

    धृति उनकी बातें सुनकर आँखें बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखने लगी। कोमल जी का व्यवहार हमेशा उसके प्रति रूखा ही रहा था, पर आज वह कुछ बदली-बदली सी लग रही थीं। उनका रवैया पहले से ज़्यादा बेरुखी भरा लग रहा था और आँखों में अलग ही गुस्सा और नफ़रत झलक रही थी।

    धृति अभी कुछ समझ ही नहीं सकी थी और हैरान-परेशान सी कोमल जी को देख ही रही थी कि कोमल जी एक बार फिर गुस्से से उस पर भड़क उठीं,

    "अब क्या लेने आई है तू यहाँ हमारे घर? पहले अपने बाप को खा गई, अब अपने यार के साथ मिलकर हमारी इज़्ज़त को सरेआम निकालकर दिया, अब क्या रह गया है जो तू अपना मनहूस चेहरा उठाकर फिर हमारी चौखट पर चली आई?"

    कोमल जी की बात और उनके लगाए इल्ज़ाम सुनकर धृति की हैरानगी की तो कोई सीमा ही नहीं रह गई थी। उसने आँखें बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखा और हैरानगी से बोली,

    "ये आप क्या कह रही हैं मम्मी? मैंने क्या किया है जो आप ऐसे कह रही हैं मुझे?"

    "तू नहीं जानती क्या किया है तूने? अपने उस आशिक के साथ मिलकर क्या गुल खिलाए हैं तूने, तुझे नहीं मालूम या यहाँ हमारे सामने आकर सती-सावित्री और मासूम बनने का नाटक कर रही है?"

    कोमल जी गुस्से से उस पर भड़क उठीं। धृति की आँखें अविश्वास से फैल गईं और उसने उलझन भरे स्वर में कहा,

    "मैं कुछ समझी नहीं मम्मी। आप ये क्या कह रही हैं? कौन से आशिक का ज़िक्र कर रही हैं आप? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"

    कोमल जी ने पहले तो आँखें तरेरकर उसे घूरा, फिर गुस्से में उसकी बाँह पकड़कर खींचते हुए उसे अंदर घर में ले आईं। फिर झटके से उसका हाथ छोड़ दिया, जिससे धृति का बैलेंस बिगड़ गया, पर जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया। इतने में कोमल जी गुस्से से उस पर चीख उठीं,

    "कुछ नहीं पता न तुझे? कोई आशिक नहीं तेरा? हमारी पीठ पीछे किसी लड़के के साथ रंग-रलियाँ नहीं मना रही तू, तो जवाब दे मुझे कि परसों से कहाँ थी तू? किसके साथ अय्याशी कर रही थी? कहाँ मुँह काला करती फिर रही थी? बोल, कहाँ थी परसों से तू और किसके साथ थी?"

    धृति जानती थी कि यह सवाल उठेगा ज़रूर, इसलिए उसने इसके लिए खुद को तैयार किया हुआ था। धृति ने उनका सवाल सुना, तो गहरी साँस छोड़ी और शांत स्वर में गंभीरता से बोली,

    "मम्मी, मैं आपको आपके सभी सवालों के जवाब दूँगी। आप एक बार मेरी बात सुन लीजिए। आप जैसा सोच रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है। मैं आपको सब बता—"

    चटाक!

    धृति अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी थी कि एक उड़ता हुआ हाथ सीधे उसके गाल पर आकर लगा। चाँटा इतना तेज़ था कि उसकी आवाज़ पूरे घर में गूंज उठी। धृति का सिर एक तरफ़ को लुढ़क गया और कान सुन्न पड़ गए। कुछ सेकंड बाद उसने गाल पर अपनी हथेली रखकर सिर घुमाकर डबडबाई आँखों से उन्हें देखा। कोमल जी गुस्से से लाल, नफ़रत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए उस पर बरस पड़ीं,

    "तेरी जैसी बेशर्म लड़की मैंने अपनी आज तक की ज़िंदगी में दूसरी नहीं देखी। पहले हमारी नाक के नीचे काम के बहाने अपने आशिक के साथ गुलछर्रे उड़ाती रही, हमारी पीठ पीछे अपने उस अमीर आशिक से हमारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी कर ली और दो दिन, दो रातें उसके साथ बिताकर बेशर्मों की तरह मुँह उठाकर यहाँ चली आई और अब कैसे अपनी बेहयाई दिखाकर हमें अपनी बातों में बहलाने की कोशिश कर रही है, पर मैं तेरा असली चेहरा देख चुकी हूँ। सब जान चुकी हूँ मैं कि मेरे पीठ पीछे इस घर के बाहर तू क्या-क्या करती फिरती है।

    सृष्टि कहती थी तो मैं विश्वास नहीं करती थी, पर अब मुझे पूरा भरोसा हो गया है कि अपने उसी अमीरज़ादे के पैसों पर ऐश करती होगी तू और अब इस ग़रीबी से छुटकारा पाने के लिए छुपकर उससे शादी भी कर ली। फिर यहाँ क्या लेने आई है तू? जा, जिससे शादी की है उसी के साथ रह। तेरी जैसी बेशर्म, बेहया, बदचलन, मौकापरस्त, भगोड़ी लड़की से हमारा कोई संबंध नहीं है और न ही हमारे घर में तुझ जैसी चरित्रहीन लड़की के लिए कोई जगह है।"

    धृति स्तब्ध सी उन्हें देखती ही रह गई। वह समझ ही नहीं सकी कि यह सब क्या हो गया? कोमल जी को उसकी शादी के बारे में कब, कैसे और कहाँ से पता चला? उसने तो सोचा था कि उन्हें आराम से बैठकर सब समझा लेगी, पर यहाँ तो उसके जानकारी से पहले ही उसकी शादी का बम फूट चुका था। अब उसे कोमल जी के इस व्यवहार की वजह समझ आ चुकी थी।

    पहले तो धृति शॉक्ड सी उन्हें देखती ही रह गई, फिर उन्हें अपनी स्थिति समझाने की कोशिश करते हुए बोली, "मम्मी, आप गलत समझ रही हैं मुझे। सब इतना सीधा नहीं है। आप एक बार मेरी बात सुन लीजिए। मैं आपको सब बताती हूँ।"

    धृति ने उन्हें समझाने की कोशिश की, पर कोमल जी कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थीं। उन्होंने हाथ दिखाकर धृति को खामोश कर दिया और गुस्से से फुफकारते हुए बोली,

    "कुछ नहीं सुनना है मुझे। सारी सच्चाई अपनी आँखों से देख चुकी हूँ मैं, इसलिए अब तेरी बनाई किसी झूठी कहानी पर विश्वास नहीं करूँगी मैं। मुझे तो अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ था, पर आँखों देखी सच्चाई को झुठलाने की बेवकूफी नहीं करूँगी मैं। सब अपनी आँखों से देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि काश जन्म लेते ही मर गई होती तू, तो आज तेरी वजह से हमें ये दिन ना देखना पड़ता। बाप को तो पहले ही खा गई थी। आज अपने इस कुकृत्य से हमारी सालों की बनाई इज़्ज़त पर भी कभी न मिटने वाला दाग लगा दिया। सबसे सामने हमारे घर-परिवार और संस्कारों का तमाशा बना दिया। हमारा और अपने स्वर्गवासी बाप का सर दुनिया के सामने झुका दिया।

    जब अपने मन की कर ही ली थी, अपने यार से छुपकर शादी कर ली, उसके साथ ऐशो-आराम से अपने दिन गुज़ार रही थी, तो अब क्यों आई वापिस लौटकर यहाँ ताकि हमारे जले पर नमक छिड़क सके? चली जा यहाँ से अभी इसी वक़्त, अब तेरे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है, तो दोबारा कभी लौटकर यहाँ मत आना और अपना मनहूस चेहरा हमें कभी मत दिखाना, हम समझ लेंगे कि मर गई तू। अब से हमारी एक ही बेटी है, तुझसे कोई रिश्ता नहीं हमारा। जा, चली जा यहाँ से। चली जा अपने उस अमीर पति के पास जिससे छुपकर शादी की है तूने, क्योंकि हम तो तुझे सारी ज़िंदगी अपने सर पर बिठाकर रखने वाले थे, न इसलिए अपने यार के बारे में तूने कभी हमें कुछ नहीं बताया और हमसे छुपकर घर से भागकर उससे शादी कर ली। जा, चली जा अपने उस पति के पास और याद रखना कि अब तेरा सब वही है, इस घर से या हमसे तेरा कोई रिश्ता नहीं, जिसके लिए तूने ये घर छोड़ा अब उसी के साथ रह। जो चाहे करे वो अमीरज़ादा, पर कभी लौटकर यहाँ मत आना। तेरा यहाँ कोई नहीं, कोई मायका नहीं तेरा। निकल जा हमारे घर और हमारी ज़िंदगी से।"

    कोमल जी के इल्ज़ाम, कड़वी बातें धृति को अंदर तक तोड़ गईं। वह माँ-माँ पुकारकर अपनी सच्चाई बयाँ करने की कोशिश करती रही, पर कोमल जी ने उसकी एक नहीं सुनी और उसकी बाँह पकड़कर उसे घसीटते हुए घर से बाहर ले आईं और उसे चौखट से बाहर धक्का दे दिया। बेचारी धृति ज़मीन पर मुँह के बल जा गिरी। उसने सिर घुमाकर आँसुओं से भीगी निगाहों से पलटकर कोमल जी को देखा। उन आँखों में गुज़ारिश थी कि एक बार उसकी बात सुन लें। उसकी हालत अभी ऐसी थी कि किसी को भी उस पर तरस आ जाए, पर धृति की माँ होते हुए कोमल जी को उस पर रत्ती भर भी तरस या दया नहीं आई। उन्होंने उसकी हालत को और मौन विनती को नज़रअंदाज़ कर दिया और गुस्से से गुर्राते हुए बोली,

    "जा, चली जा उसके पास जिसके साथ शादी करके दो दिन से साथ रह रही है। मर गई तू हमारे लिए, तुझ जैसी बेशर्म, बेहया, मतलबी, मौकापरस्त, चालबाज़, भगोड़ी लड़की से हमें कोई रिश्ता नहीं रखना। जा, चली जा यहाँ से और दोबारा कभी हमें अपना मनहूस चेहरा मत दिखाना।"

    कोमल जी ने धृति को अपना फैसला सुनाया और उसके मुँह पर दरवाज़ा बंद कर दिया। कार का ड्राइवर, जो अर्नव के ऑर्डर के हिसाब से गेट के पास छिपकर वीडियो कॉल पर यहाँ जो हुआ सब अर्नव को दिखा रहा था, वह दोनों को बाहर आते देखकर जल्दी से वहाँ से चला गया। अंदर से आती आवाज़ें आस-पास के घरों तक पहुँचीं और घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई। कोमल जी की बातें सुनने के बाद सब आपस में धृति के बारे में बातें करने लगे,

    "देखो तो कितनी बेशर्म लड़की है। माँ से छुपकर अपने यार से शादी की और बेशर्मों की तरह मुँह उठाकर वापिस यहाँ चली आई।"

    "अरे, मुझे तो पहले ही पता था कि इसके चाल-चलन ठीक नहीं है। कितनी बार इसे मैंने लड़कों के साथ देखा था और कोमल बहन को कहा भी था कि अपनी इस बेटी पर ज़रा लगाम कसकर रखे, वरना कहीं हाथ से निकल गई तो सारे समाज में थू-थू हो जाएगी, पर उसने मेरी बातों पर भरोसा नहीं किया और देखो, कर दी न इस लड़की ने परिवार की इज़्ज़त ख़राब।"

    "बड़ा ख़राब ज़माना आ गया है। आजकल तो बच्चे माँ-बाप के नहीं होते। देखो, बेचारी कोमल ने कितना संघर्ष करके दोनों बेटियों को पाल-पोसकर बड़ा किया और देखो, एक बेटी माँ को अकेला छोड़कर दुनिया की सैर कर रही है और दूसरी अकेली माँ को छोड़कर अपने आशिक के पास चली गई।"

    "अरे, बड़ा हाथ मारा है इसने। अपने रूप-सौंदर्य के जाल में किसी अमीरज़ादे को फँसाया है इसने। बचपन से क़मियों में ज़िंदगी बीती है, पर अब तो ऐशो-आराम से दिन गुज़रेंगे।"

    "सही कहा बहन जी। अपने सुख से ज़्यादा आजकल कोई किसी के बारे में नहीं सोचता। इसने भी अपना फ़ायदा देखकर अपनी ज़िंदगी संवार ली। खुद से अपने लिए अमीर लड़का ढूँढ लिया, वरना इसकी माँ अपने जैसे ही किसी ग़रीब परिवार में इसे ब्याह देती। अब अपने साथ-साथ अपने परिवार के भी दिन बदल देगी ये।"

    "स्वार्थी बच्चे के लिए कुछ नहीं कहा जा सकता बहन जी। जिस लड़की ने अपनी बूढ़ी माँ की परवाह नहीं की और अपने यार से छुपकर शादी कर ली, वो आगे उस माँ का ध्यान रखेगी इसकी क्या गारंटी है?"

    "ये बात भी ठीक है। फिर कोमल है भी स्वाभिमानी, जिस बेटी ने उसके और उसके पति की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी, उससे वो कोई रिश्ता नहीं रखेगी और न ही उसकी दी कोई चीज़ लेगी।"

    जितनी मुँह उतनी बातें हो रही थीं यहाँ। कुछ की आवाज़ दबी थी, तो कुछ की बातें धृति के कानों में शीशे की कींचों सी चुभने लगी थीं। हर जुबान धृति को कटघरे में खड़ा कर रही थी। बिना उसका पक्ष जाने उसे क़ुसूरवार ठहरा दिया गया था, बिना किसी ग़लती के उसके चरित्र पर कभी न मिटने वाला दाग लग चुका था।

    धृति खुद पर उठते सवालों और उंगलियों को ख़ामोशी से बर्दाश्त कर रही थी। शायद अब किसी को कुछ सफ़ाई देना, अपना पक्ष उनके सामने रखना, अपनी बेगुनाही को साबित करना, उसके लिए कोई महत्व ही नहीं रखता था और रखता भी क्यों, जब उसकी खुद की माँ ने उसकी बात नहीं सुनी, बिना सच्चाई जाने उसे ग़लत ठहरा दिया, बिना किसी गुनाह के उसे सज़ा सुना दी, तो किसी और को क्या ही कहती वह। सबके लगाए इल्ज़ामों को उसने ख़ामोशी से स्वीकार कर लिया।

  • 13. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 13

    Words: 2286

    Estimated Reading Time: 14 min

    जितनी मुँह उतनी बातें हो रही थीं वहाँ। कुछ की आवाज़ दबी थी तो कुछ की बातें धृति के कानों में शीशे की कीलें सी चुभने लगी थीं। हर जुबान धृति को कटघरे में खड़ा कर रही थी। बिना उसका पक्ष जाने उसे कुसूरवार ठहरा दिया गया था, बिना किसी गलती के उसके चरित्र पर कभी न मिटने वाला दाग लग चुका था।

    धृति खुद पर उठते सवालों और उंगलियों को खामोशी से सह रही थी। शायद अब किसी को कुछ सफ़ाई देना, अपना पक्ष उनके सामने रखना, अपनी बेगुनाही को साबित करना, उसके लिए कोई महत्व ही नहीं रखता था। और रखता भी क्यों, जब उसकी खुद की माँ ने उसकी बात नहीं सुनी, बिना सच्चाई जाने उसे गलत ठहरा दिया, बिना किसी गुनाह के उसे सज़ा सुना दी तो किसी और को क्या ही कहती वह। सबके लगाए इल्ज़ामों को उसने खामोशी से स्वीकार कर लिया।

    धृति कुछ पल नम आँखों से उस घर के बंद दरवाज़े को देखती रही। जहाँ उसका जन्म हुआ और वह इतनी बड़ी हुई। फिर वह उठकर खड़ी हो गई और अपनी हथेलियों से अपने आँसुओं को पोंछते हुए पलटी तो बाकी लोगों ने नफ़रत भरी निगाहों से उसे देखते हुए चेहरा फेर लिया। धृति ने अपनी नज़रें झुका लीं और उनकी कड़वी बातें सुनते हुए निगाहें झुकाए वहाँ से चली गई। कार के पास आई तो ड्राइवर बाहर ही खड़ा था। धृति ने अब तक खुद को सम्भाल लिया था। कमज़ोर पड़ने की इज़ाज़त तो उसे कभी से नहीं थी।

    धृति कार में बैठ गई और ड्राइवर को बुटीक का एड्रेस बता दिया। कुछ आधे घंटे बाद धृति बुटीक पहुँची। उस दिन बिना इन्फॉर्म किए अधूरे में ही यहाँ से चली गई थी और उसके बाद एक के बाद एक इतने हादसे होते चले गए उसके साथ कि उसे अपना ही होश नहीं था तो यहाँ कब कैसे और क्या बताती? धृति जानती थी कि उसकी उस दिन की हरकत के वजह से उसको यहाँ भी थोड़ा जलील होना पड़ेगा और उसने खुद को मानसिक रूप से इसके लिए तैयार भी कर लिया था।

    वह अंदर जाने लगी तो वहाँ काम करने वाले बाकी लड़के-लड़की उसे अजीब नज़रों से देखने लगे। धृति अपने वर्क प्लेस की तरफ़ बढ़ ही रही थी कि इतने में वहाँ प्यून का काम करने वाले बुजुर्ग अंकल उसके पास चले आए और सर झुकाते हुए बोले,
    "बेटा आपको साहब बुला रहे हैं।"

    धृति जानती थी कि यह तो होना ही था। उसने गहरी साँस छोड़ी और वहाँ के मालिक के केबिन की तरफ़ बढ़ गई।

    "May I come in sir?"

    केबिन के गेट पर खड़ी धृति ने ज़रा सकुचाते हुए कहा। उसकी बात सुनकर सामने कुर्सी पर बैठे आदमी ने अजीब नज़रों से उसे देखा, फिर सर हिलाते हुए बोले,
    "Yes, Come in।"

    धृति अब अंदर चली आई और उनके टेबल के दूसरे तरफ़ उनके सामने खड़े होते हुए बोली,
    "सर आपने बुलाया?"

    "हाँ।" उस आदमी ने हाँ में जवाब दिया और टेबल की दराज से एक लिफ़ाफ़ा निकाला और धृति के सामने टेबल पर लगभग पटकते हुए बोले,
    "यह परसों तक की तुम्हारी सैलरी है। अब से तुम्हें दोबारा यहाँ आने की ज़रूरत नहीं है। मैंने तुम्हारे जगह किसी और को रख लिया है।"

    धृति के बॉस के कहे शब्दों को सुनकर धृति की हैरानी की कोई सीमा ही नहीं रह गई थी। उसकी आँखों की पुतलियाँ फैल गईं और उसने अचंभित निगाहों से उन्हें देखते हुए हैरानी से सवाल किया,
    "सर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? मेरे काम में कोई कमी रह गई क्या?"

    धृति परेशान, घबराई निगाहों से उन्हें देखने लगी। उसके सवाल पर उस आदमी ने बड़ी ही बेरुखी से, गुस्से भरे लहजे में जवाब दिया,
    "नहीं, काम में कोई कमी नहीं, पर कमी तुममें, तुम्हारे व्यवहार और तुम्हारे character में है। मैंने तुम्हारे टैलेंट को देखकर तुम्हें यहाँ काम पर रखा था पर तुमने अपने बिहेवियर से मुझे अपने फ़ैसले पर पछताने पर मजबूर कर दिया।... तुम्हारी लापरवाही के वजह से हज़ारों का नुकसान हो गया मुझे। परसों तुम बिना किसी को कुछ बताए अपना काम अधूरा छोड़कर चली गईं, न कोई कॉल, न मैसेज। ऊपर से ऑफ़िस के कॉल्स को भी पूरी तरह से इग्नोर किया। तुम्हारे वजह से पैसों के नुकसान के साथ हमारे रेगुलर कस्टमर के सामने हमारी बेइज़्ज़ती हुई, हमारी गुडविल और मार्केट में इमेज डैमेज हुई। तुम्हारी जैसी गैर-ज़िम्मेदार और लापरवाह लड़की के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है इसलिए इसे उठाओ और दफ़ा हो जाओ यहाँ से।"

    सर ने लिफ़ाफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए अपनी बात पूरी की। उनकी बातें सुनकर धृति जो पहले से दुखी थी उसकी आँखें भर आईं। उसने खुद को सम्भालते हुए अपनी बेगुनाही की सफ़ाई देनी चाही,
    "सर मैं लापरवाह नहीं हूँ। मुझे किसी पर्सनल इमरजेंसी के वजह से जाना पड़ा था। मैं मानती हूँ इस बार मुझसे गलती हुई है पर सर इससे पहले मैंने कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दिया था। आगे भी मैं कभी कोई गलती नहीं करूँगी। बस मेरी इस गलती को माफ़ कर दीजिए।"

    धृति की बातों का उसके सर पर कोई असर नहीं हुआ था। उन्होंने उसी तरह बेरुखी भरे लहजे में जवाब दिया,
    "तुम्हारी इस गलती की मेरे पास कोई माफ़ी नहीं है। मैं तुम्हारी जगह किसी और को दे चुका हूँ इसलिए अब तुम यहाँ काम नहीं कर सकती तो अब तुम्हारी विनती करने या कुछ भी कहने का कोई फ़ायदा नहीं है। अभी मैं तुम्हें इज़्ज़त से कह रहा हूँ कि अपनी अब तक की कमाई लो और चली जाओ यहाँ से। अगर सीधे से नहीं मानी तो गार्ड को बुलाकर मुझे मजबूरन तुम्हें यहाँ से बाहर निकलवाना होगा और सबके सामने तुम्हारी बेइज़्ज़ती होगी इसलिए तुम्हारे लिए यही बेहतर है कि तुम अपने पैसे लो और जाकर कहीं और काम ढूँढ़ो क्योंकि तुम्हारा यहाँ काम करना तो नामुमकिन है।"

    सर अपना फ़ैसला सुना चुके थे। एक बार फिर अर्नव के वजह से धृति को जलील होना पड़ा था। पहले उसकी खुशियाँ, उसका वजूद उससे छीना गया और अब उसके परिवार के साथ-साथ उसका काम, उसका सपना, उसकी ज़िंदगी का लक्ष्य भी उससे छीन लिया गया था और आज वह जिस अवस्था में थी उसका ज़िम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ अर्नव था। धृति के मन में उसके लिए नाराज़गी आज और ज़्यादा बढ़ गई थी। उसने सर झुकाते हुए वह लिफ़ाफ़ा उठाया और चुपचाप वहाँ से चली गई।

    उसके केबिन से बाहर निकलते हुए उस आदमी ने गहरी साँस छोड़ी और किसी को फ़ोन लगा दिया। पहली रिंग में ही दूसरे तरफ़ से कॉल रिसीव हो गया।

    "काम हो गया?" दूसरे तरफ़ से एक रौबदार आवाज़ आई जिसे सुनकर धृति के सर ने घबराकर हाँ में जवाब दिया,
    "येस सर आपने जैसा कहा था मैंने बिल्कुल वैसा ही किया है। धृति को बेइज़्ज़त करके यहाँ से निकाल दिया है। अब तो आप मेरे बुटीक को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे ना?"

    "नहीं, अब तुम और तुम्हारा बुटीक पूरी तरह से सेफ़ है। बस याद रहे कि धृति दोबारा वहाँ नज़र नहीं आनी चाहिए।"

    "जी सर।" उनके हाँ में जवाब देते ही फ़ोन कट गया। फ़ोन के दूसरे तरफ़ मौजूद अर्नव जिसने यह सब प्लान किया था वह किसी महाराजा जैसे अपनी चेयर पर अकड़ते हुए पसरकर बैठ गया। उसके लबों पर विजयी कुटिल मुस्कान फैली हुई थी। उसने अपना सर चेयर से टिकाया और शैतानी मुस्कान लबों पर सजाते हुए खुद से ही बोला,

    "अभी तो यह तुम्हारी बर्बादी की सिर्फ़ शुरुआत है मिस धृति अवस्थी। तुम तो बस देखती जाओ कि आगे-आगे क्या होता है और कैसे मैं तुम्हारा जीना दुश्वार करता हूँ।"

    अर्नव धृति के उदास मायूस चेहरे को याद करते हुए शैतानी हँसी हँसने लगा।

    दूसरे तरफ़ धृति एकदम उदास और मायूस वहीं पास के पार्क में बैठी अपनी ज़िंदगी के बारे में सोच रही थी। जैसे भी चल रही थी पर कुछ दिनों पहले तक तो उसकी ज़िंदगी ठीक-ठाक ही चल रही थी और वह खुश थी उस ज़िंदगी से पर जब से अर्नव नाम का तूफ़ान उसकी ज़िंदगी में आया है, उसकी पूरी ज़िंदगी बिखर गई है, सब कुछ तहस-नहस हो गया है। जाने कब यह तूफ़ान थमेगा और कब उसकी ज़िंदगी पटरी पर आएगी? जाने कब इस सज़ा का अंत होगा जिसके पीछे छुपी अपनी गलती तक नहीं जानती थी वह?

    देखते-देखते शाम हो गई पर धृति वहाँ से इंच भर भी नहीं हिली। ड्राइवर कई बार आकर उसे बुला चुका था पर धृति जाना ही नहीं चाहती थी। रात के करीब आठ बज चुके थे। धृति अब भी वहीं उस पार्क में बेंच पर बैठी शून्य में ताक रही थी। रात हो चुकी थी तो पार्क एकदम खाली हो चुका था फिर भी धृति अकेले वहाँ बैठी हुई थी।

    ड्राइवर एक बार फिर धृति को बुलाने आया पर उसने जाने से इनकार कर दिया। ड्राइवर ने अब सीधे अर्नव को फ़ोन लगाकर सब बता दिया। धृति अपने ख्यालों में गुम, उदास, मायूस, हताश सी वहाँ बैठी थी जैसे अब उसके लिए सब ख़त्म हो गया हो और वह बस इस ज़िंदगी के बोझ से आज़ादी चाहती हो।

    अभी कुछ मिनट ही गुज़रे थे कि कुछ आवारा लड़के वहाँ आ गए। उनमें से सभी ने शराब पी हुई थी। सुनसान पार्क में अकेली किसी लड़की को देखकर सब आपस में कुछ कुसुर्-फुसुर करने लगे फिर लबों पर ज़हरीली मुस्कान और आँखों में हवस भरकर धृति की तरफ़ बढ़ने लगे। आगे वाले ख़तरे से अनजान धृति खामोश सी वहाँ बैठी थी। तभी अचानक उसे अपनी हथेली पर किसी के स्पर्श का एहसास हुआ जैसे कोई उसे सहला रहा हो। धृति चौंकते हुए अपने ख्यालों से बाहर आई और उसने चौंकते हुए निगाहें घुमाईं तो उसके बगल में बैठा लड़का उसे देखकर अजीब तरह से मुस्कुराने लगा जिससे उसके गुटके से लाल-काले दाँत नज़र आने लगे और साथ ही उसकी नशे के वजह से आँखें भी लाल थीं जिन्हें देखकर धृति डर गई और तुरंत उसका हाथ झटकते हुए वह उठकर खड़ी हो गई।

    "क्या हुआ छमिया, आ बैठ साथ में रात का मज़ा लेते हैं।"

    उसकी बात और बोलने के तरीके से धृति को ख़तरे का अंदेशा हो गया था। उस पर जब उसने खुद को नशे में धुत्त आवारा लड़कों से घिरा देखा और भय से उसका हलक सुखने लगा। वह समझ गई कि यहाँ एक पल भी रुकना उसके लिए ख़तरे से खाली नहीं है और अकेले इतने लड़कों का सामना करना बेवकूफी होगी। सब संभावनाओं के बारे में सोचने के बाद उसने भागकर खुद को इन आवारा मनचले लड़कों के हवस का शिकार बनने से बचाना ही उसको सबसे सही उपाय लगा इसलिए उसने बिना एक पल गँवाए तुरंत बाहर की तरफ़ दौड़ लगा दी।

    वो लड़के जो अब तक उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे कि चाँदनी रात को रंगीन बनाने के लिए उन्हें एक चाँद सी खूबसूरत जवान हसीना मिल गई है, उनके चेहरे के भाव एकदम से सख्त हो गए और उन्होंने भी धृति के पीछे दौड़ लगा दी। आखिर उसे अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे वे।

    "ए छमिया कहाँ भागी चली जा रही है?...... इधर आ हमारे पास तेरी तन्हाई दूर कर देंगे हम......"

    "ए रमन पकड़ साली को, हाथ से निकलकर न जाने पाए...... आज तो शराब के साथ शबाब का भी आनंद लेंगे......"

    "लड़की है तो बहुत खूबसूरत अगर मिल गई तो आज तो मज़ा ही आ जाएगा......"

    ऐसे ही आपस में बात करते हुए, धृति को रुकने को कहने के लिए वे उसके पीछे भाग रहे थे। भागते हुए धृति की सैंडल टूट गई जिसे पीछे छोड़ते हुए वह बिना रुके बस आगे की तरफ़ भागती चली गई। उनमें से एक लड़का धृति के करीब पहुँच गया। धृति तो उससे बच गई पर उसका दुपट्टा उस लड़के के हाथ लग गया पर धृति तब भी नहीं रुकी और पूरा दम लगाकर भागती गई। वे लड़के उसे घेरने में लगे थे ताकि वह पार्क से बाहर न जा सके और धृति उनसे बचते हुए भाग रही थी।

    कंकड़-पत्थर चुभने के वजह से उसके पैरों से खून निकलने लगा था, दर्द भी हो रहा था पर धृति ने अपने कदमों को रुकने की इज़ाज़त नहीं दी। आज उसे किसी भी तरह से खुद को इन हैवानों से बचाना था।

    भागते-भागते अचानक ही धृति का पैर मुड़ गया और वह औंधे मुँह आगे को गिरने लगी पर इससे पहले कि वह गिरती, किसी ने उसकी बाँह पकड़कर उसे झटके से अपनी तरफ़ खींच लिया। धृति गिरने के जगह उस शख्स के चौड़े मज़बूत सीने से टकरा गई। भागने के वजह से उसकी साँसें उखड़ रही थीं। उस शख्स ने उसकी कमर पर अपनी बाहों के घेरे को कस दिया जिससे धृति उसकी बाहों में छटपटाने लगी और उस शख्स को खुद से दूर धकेलने की कोशिश करते हुए चिल्लाने लगी,
    "छोड़ो मुझे.......... जाने दो मुझे.......... मैंने कहा छोड़ो मुझे वरना मैं सबको जान से मार दूँगी........."

  • 14. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 14

    Words: 2533

    Estimated Reading Time: 16 min

    भागते भागते अचानक ही धृति का पैर मुड़ गया और वो औंधे मुह आगे को गिरने लगी पर इससे पहले की वो गिरती, किसी ने उसकी बाँह पकड़कर उसे झटके से अपनी तरफ खींच लिया  । धृति गिरने के जगह उस शक्स के चौड़े मजबूत सीने से टकरा गयी । भागने के वजह से उसकी साँसें उखड़ रही थी । उस शक्स ने उसकी कमर पर अपनी बाहों के घेरे को कस दिया जिससे धृति उसकी बाहों की कैद मे छटपटाने लगी और उस शक्स को खुदसे दूर धकेलने की कोशिश करते हुए चिल्लाने लगी " छोड़ो मुझे  ..........  जाने दो मुझे  .......... मैंने कहा छोड़ो मुझे वरना मैं सबको जान से मार दूँगी  ......... " धृति अभी आगे बोलने ही वाली थी की उसके कानों मे किसी की आवाज़ पड़ी  " ए हीरो कौन है तु और इस वक़्त यहाँ कैसे आया  ? ..... जो भी हो छोड़ लड़की को वो हमारा शिकार है  । पहले हमने उसे देखा था इसलिए पहले हम उसके जिस्म से अपनी जिस्म भी भूख मिटाएंगे उसके बाद चले आना तु  । " उन शराबियों मे से एक ने बड़ी ही बेशर्मी से ये बात कही  । जिसे सुनकर धृति भय से अंदर तक काँप उठी  । वो बोलते बोलते रुक गयी और हैरानगी से निगाहें उठाकर देखा तो उसके सामने चाँद की रोशनी मे चमकता अर्नव का हैंडसम सा चेहरा आ गया जो एक बार फिर गुस्से से जल रहा था और उसकी गहरी काली आँखे खूनी रंग मे रंगी थी  । अर्नव को सामने देखकर जाने क्यों पर धृति के व्याकुल मन को एक राहत सी मिली । हालांकि शादी की रात खुद अर्नव ने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी पर फिर भी उसका यहाँ होना धृति को अंजाना सा सुकून पहुँचा गया  । वजह वो खुद नही समझ सकी पर अर्नव की मौजूदगी उसे सुरक्षित महसूस करवा गयी  , जैसे अब उसके साथ कुछ गलत नही हो सकता  । अर्नव के कानों मे उस लड़के के शब्द पड़े तो उसने गुस्से मे अपने जबड़े भींच लिए और धृति को खुदसे दूर करते हुए गुस्से मे अपनी मुट्ठियाँ कसते हुए उस लड़के के तरफ कदम बढ़ा दिये और दांत पीसते हुए बोला  " बीवी है वो मेरी  । " एक एक शब्द अर्नव ने चबाकर कहा और इसके साथ ही उस लड़के के मुह पर एक ज़ोरदार पंच दे मारा जिससे नशे मे धुत्त वो लड़का संभल नही सका और एक ही पंच मे वही ढेर हो गयी  । अब पंच था भी दमदार जिससे उसका पूरा जबड़ा हिल गया था और मुह से खून भी आ गया था  । अपने साथी की हालत देखकर बाकी सब लड़के जो अर्नव के तरफ बढ़ रहे थे वो डरकर पीछे हटने लगे पर अर्नव से बच ना सके  । अगला नंबर उसका लगा जिसके हाथ मे अब भी धृति का दुपट्टा लिपटा हुआ था  । अर्नव ने उसके हाथ से दुपट्टा पकड़कर खींचते हुए उसे धृति के तरफ फेंक दिया और गुस्से मे उस लड़के के उस हाथ को बड़ी ही बेदर्दी से मरोड़ दिया जिसमे उसने उस दुपट्टे को पकड़ा हुआ था  । उस सन्नाटे मे कट की आवाज़ के साथ उस लड़के की दिल दहला देने वाली चीख गूंज उठी  । बाकी लड़के अब डर के मारे सूखे पत्ते के जैसे थर थर कांपने लगे  । भागना चाहा पर कदमों ने साथ ही नही दिया  । अर्नव ने एक के बाद एक सबको ठिकाने लगा दिया । उसकी पिटाई से कुछ बेहोश हो चुके थे तो कुछ बुरी तरह ज़ख़्मी हालत मे वहा पड़े दर्द से कराह रहे थे  । सबको निपटाने के बाद अर्नव धृति के तरफ मुड़ा । चाँद की रोशनी मे उसका चाँद सा चेहरा साफ नजर आ रहा था  । उसके गोरे कोमल गाल पर अब भी कोमल जी के मारे चांटे का निशान मौजूद था  । चेहरा और शरीर पसीने से तर था  । उसने अपने दुपट्टे को खुदपर शॉल जैसे लपेटा हुआ था  । भय से उसका चेहरा काला पड़ गया था और चेहरे पर घबराहट टांग पसारे बैठी थी  । आँसुओं से भरी आँखे अर्नव पर टिकी थी  । ड्राइवर के फोन करने पर अर्नव गुस्से मे यहाँ आया था पर यहाँ का नज़ारा देखकर तो उसका दिमाग ही ठनक गया था । गुस्सा तो उसे अब भी धृति पर बहुत आ रहा था  पर उसका डर से सना घबराया हुआ चेहरा और आँसुओं से भरी आँखे देखकर अर्नव चाहकर भी उसपर गुस्सा न कर सका  । अर्नव ने गहरी सांस छोड़ी और धृति के तरफ कदम बढ़ा दिये  । जैसे ही वो धृति के पास आया  । वो कुछ कह पाता उससे ही धृति ने नम आँखों से उसे देखते हुए मायूसी भरे लहज़े मे सवाल किया  " क्या करना चाहते है आप मेरे साथ  ?......... पहले खुद मेरी मर्ज़ी के खिलाफ मेरे मान को भंग करना चाहा और अब जब इन आवारा लड़कों ने भी मेरा फ़ायदा उठाना चाहा तो इतना मारा उन्हें  ......... आप तो नफरत करते है न मुझसे  ...... मुझे दर्द ही तो देना चाहते है आप भी तो क्यों बचाया आपने मुझे इन दरिंदों से  ...... आपके तरह ये भी नोच खाते मेरे जिस्म को  , घायल करते मेरी आत्मा को  , मेरी रूह को तड़पाते  तो आपको तो खुश होना चाहिए था  । जो आप करना चाहते है वो ये लोग कर देते फिर क्यों मारा उन्हें  ?...... करने देते न उन्हें भी अपनी मनमानी जैसे आप करना चाहते थे  ....... " अर्नव के भाव उसके आँसू देखकर कुछ सामान्य हुए थे पर उसकी बातें सुनने के बाद एक बार फिर उसके चेहरे पर सख्त भाव उभर आए । अर्नव ने गुस्से मे धृति के बालों को पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया और धधकती निगाहों से उसे घूरते हुए गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला "  सही कहा तुमने नफरत करता हूँ मैं तुमसे  ..... बेइंतेहा नफरत करता हूँ  ..... तुम्हे दर्द से तड़पते देखना चाहता हूँ मैं पर वो दर्द मेरा दिया होना चाहिए  ...... तुम मेरी गुनाहगार हो इसलिए तुम्हे दर्द देने का  , तड़पाने का  , छूने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरा है ..... " अर्नव ने गुस्से मे धृति के बालों को कसके पकड़ लिया था जिससे उसे दर्द होने लगा था  । उसका दर्द उसके चेहरे पर झलकने लगा था । अर्नव की बातें और उसकी आँखो मे झलकती अपने लिए बेइंतेहा नफरत को देखते हुए धृति कुछ पल को स्तब्ध सी उसे देखती रही  । पर जब दर्द बर्दाश से बाहर चला गया  तो उससे अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश करते हुए धृति दर्द से तड़पते हुए भारी गले से बोली " छोड़िये मुझे ......... मुझे दर्द हो रहा है   " " दर्द ही तो देने आया हूँ मैं तुम्हारी ज़िंदगी मे  , तो मुझसे राहत की उम्मीद न ही करो तो बेहतर होगा तुम्हारे लिए  । " अर्नव ने बेरहमी दिखाते हुए एक एक शब्द गुस्से से चबाकर कहा और झटके से धृति को खुदसे दूर धकेल दिया  । धृति के पैर मे चोट लगी थी  , अर्नव के यूं धकेलने से धृति संभल नही सकी और ज़मीन पर जा गिरी जिससे उसके कोहनी मे चोट लग गयी और आँखों मे कैद आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए  । अभी वो अपनी किस्मत पर ठीक से आँसू भी नही बहा सकी थी कि अर्नव की गुस्से भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई  " पांच मिनट के अंदर बाहर पहुँचो  , वरना यही रहना सारी रात  । अभी तो मैंने तुम्हे इंसानी रूप मे मौजूद दरिंदों से बचा लिया पर अगली बार किसी न किसी का शिकार बन ही जाओगी तुम और तब मैं बचाने नही आऊंगा तुम्हे। " धृति को डराकर वो गुस्से मे पैर पटकते हुए वहां से चला गया  । धृति ने अपने आँसुओं को अपनी हथेली से पोंछा और अपना दर्द अपने सीने मे दफन करते हुए  , किसी तरह लंगड़ाते हुए उठकर पार्क के बाहर चली आई  । पार्क के एंट्रेंस के सामने ही अर्नव की कार खड़ी थी  । धृति को देखते जी अर्नव ने पैसेंजर सीट का दरवाजा खोल दिया। धृति अंदर बैठ गयी और सीट बेल्ट लगा दी  । इसके साथ ही कार हवा से बातें करते हुए आगे बढ़ गयी  । धृति थोड़ा घबरा गयी पर उसने ज़ाहिर नही होने दिया  । वो अपनी कोहनी से रिसते खून अपने दुपट्टे से पोंछने लगी  । अर्नव ने कार ड्राइव करते हुए एक नज़र धृति को देखा  , जिसके चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था  । फिर वापस ध्यान ड्राइविंग पर लगा लिया  । फूल स्पीड मे दौड़ती गाड़ी जल्दी ही रायज़ादा मेंशन के पोर्च मे आकर रूकी  । अर्नव ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया। धृति भी दरवाजा खोलकर कार से बाहर निकल गयी  । एक बार फिर वो उसी जगह आ चुकी थी जहाँ से उसकी ज़िंदगी की सारी परेशानी शुरू हुई थी  । " अब यहाँ खड़े खड़े क्या देख रही हो  ? ..... चलो अंदर  । " अर्नव के बेरुखी भरे कड़वे शब्द धृति के कानों मे पड़े तो उसने आवाज़ की दिशा मे नज़रें घुमाई पर अर्नव तो तब तक मे वहाँ से जा चुका था  । धृति ने गहरी सांस छोड़ी और उसके पीछे पीछे चलने लगी  । हॉल मे उसका इंतज़ार करती शीला ने धृति के अस्त व्यस्त गंदे कपड़े , बिखरे बाल देखे तो तुरंत दौड़कर उसके पास पहुँच गयी और परेशान निगाहों से उसे देखते हुए चिंता भरे स्वर मे बोली " मैम आपकी ये हालत कैसे हो गयी  ?..... आप ठीक तो है  ?........ " " हम्म " धृति ने सर हिला दिया और लड़खड़ाते हुए सीढ़ियों के तरफ बढ़ गयी  । शिला परेशान सी उसे देखती ही रह गयी  । अर्नव कुछ पल हाथ बांधे खड़ा जाती हुई धृति को घूरता रहा फिर उसने गहरी सांस छोड़ी और तेज़ कदमों से आगे बढ़ते हुए धृति के पास पहुँच गया  । धृति ने पहली सीधी पर कदम रखने के लिए अपना पैर उठाया ही था की पीछे से अर्नव ने उसे अपनी बाहों मे उठा लिया जिससे धृति घबरा गयी और आँखे बड़ी बड़ी करके उसे देखते हुए हैरानगी से बोली " ये आप क्या कर रहे है  ?........ नीचे उतारिये मुझे  ......... " धृति लगातार उससे छुट्ने के लिए कसमसा रही थी । जिससे तंग आकर अर्नव ने अपनी घुरति निगाहों को उसके तरफ घुमाया और जबड़े भींचते हुए चेतावनी भरे लहजे मे बोला  " जो कर रहा हूँ चुपचाप करने दो  । अगर ज्यादा नखरे दिखाए   , बकर बकर की या अपना ये हिलना डूलना  बन्द नही किया तो अभी नीचे फेंककर चला जाऊंगा और वो तुम्हारी हालत है न उठकर ऊपर तक भी नही आ सकोगी इसलिए एकदम चुप करके बैठो रहो। " अर्नव की धमकी सुनकर धृति की आँखों की पुतलियाँ हैरानी से फैल गयी  । गिरने के डर से उसने अर्नव की गर्दन पर अपनी बाहों को लपेट दिया और घबराई हुई सी उसे देखने लगी  । अर्नव के लबों पर तिरछी मुस्कान फैल गयी और वो धृति को अपनी बाहों मे उठाकर वहाँ से चला गया  । सारे वक़्त धृति बस अर्नव को देखती रही जिसके चेहरे पर गंभीर भाव मौजूद थे  । जबकि अर्नव ने एक बार भी उसे नही देखा  । कमरे मे पहुँचकर उसने धृति को नीचे उतारा और कबर्ड के तरफ बढ़ते हुए बोला " कपड़े बदल दो अपने और हुलिया सुधारो अपना  । " धृति ने पलटकर कुछ नही कहा  । अर्नव अपने कपड़े लेकर वॉशरूम मे चला गया  । धृति ने भी आज आए कपड़ों मे से एक सिंपल सा सूट निकाल लिया  । अर्नव कपड़े बदलकर आया तो धृति लंगड़ाते हुए बाथरूम मे चली गयी  । कुछ देर बाद वो नहाकर कपड़े बदलकर बाहर आई  । और बेड के साइड टेबल की ड्रोवर् से फर्स्ट एड बॉक्स निकालकर बेड पर बैठ गयी  । सोफे पर महाराजाओं जैसे पसर कर बैठा अर्नव जो खुदको फोन मे व्यस्त दिखा रहा था उसकी चील सी तीखी नज़रें बराबर उसपर बनी हुई थी  । धृति ने कॉटन मे डिटोल लगाया और अपनी कोहनी के ज़ख़्म को साफ करने लगी  । जैसे ही उसने कॉटन को अपनी कोहनी से टच किया उसके मुह से हल्की सिसकी निकल गयी और उसने तुरंत ही हाथ पीछे खींच लिया  । धृति ने अब ज़ख़्म साफ करने का ख्याल ही दिमाग से निकाल दिया  । उसने कॉटन डस्टबिन मे डाल दिया और डब्बा वापिस बन्द करके ड्रोवर् में रखने लगी तभी अर्नव ने उसके हाथ को पकड़ लिया और डब्बे को लेते हुए उसके हाथ को छोड़ दिया  । धृति पहले तो असमंजस भरी नज़रों से उसे देखने लगी फिर उठकर जैसे ही जाने लगी अर्नव ने उसकी बांह पकड़कर उसे वापिस बिठा दिया  । धृति कंफ्यूज निगाहों से उसे देखने लगी पर अर्नव ने नजर उठाकर उसे देखने की ज़हमत तक नही उठाई और चुपचाप बॉक्स से कॉटन निकालकर , उसमे डेटॉल लगाने के बाद धृति की बाँह पकड़कर उसके कोहनी के ज़ख़्म को साफ करने लगा  । धृति को अब भी जलन हो रही थी पर वो कुछ बोल न सकी। उसने अपनी आँखों को कसके भींच लिया फिर भी उसके लबों से हल्की सिसकी निकल गयी  , बन्द पलकों के नीचे से आँसू की एक बूँद फिसलकर उसके रुखसारों पर लुढ़क गयी  । आँसू की वो बूँद धृति के गालों से लुढ़कते हुए सीधे अर्नव के हाथ पर गिरी  । अगले ही पल अर्नव की निगाहें धृति के तरफ उठ गयी  । एक बार फिर धृति के आँसू अर्नव को पिघलने पर मजबूर कर गए  । अर्नव ने एक नजर उसे देखा फिर हल्के फुंक मारते हुए उसकी बाँह को साफ करने लगा । धृति को जब उसकी साँसों का अपनी बाँह पर टकराने का एहसास हुआ तो उसने चौंकते हुए अपनी आँखे खोल दी और नजर सीधे अर्नव पर पड़ी जिसका पूरा ध्यान अपने काम पर था  । अर्नव ने उसकी दोनों बाँह की खरोचों को साफ करके ओइलमेंट लगा दिया  । फिर उसके पैरों के ज़ख़्मों को साफ करके दवाई लगा दी  । उसके बाद उसने बॉक्स वापिस ड्रोवर् में रखा और उठकर वापिस बाथरूम मे चला गया  । धृति सारा वक़्त बस उसे देखती ही रह गयी  । इस वक़्त एक अलग ही अर्नव उसके सामने था  । जिसकी आँखों मे उसे अपने लिए नफरत नही परवाह झलक रही थी  । उसको चोट पहुँचाने वाला उसका ख्याल रख रहा था  । धृति कुछ पल बाथरूम के बंद दरवाजे को देखती रही फिर उसने अपनी निगाहें फेर ली  । कुछ डर बाद अर्नव बाहर आया और कमरे से बाहर चला गया ।  कुछ देर बाद शीला उनका खाना ले आई  । सुबह के बाद अब जाकर उसने धृति ने थोड़ा सा खाना खाया । अर्नव खाने के बाद कमरे से बाहर निकल गया  । तब कही जाकर धृति को सुकून आया और वो बेड पर खुदमे सिमटकर लेट गयी । दूसरे तरफ अर्नव काफी देर तक रूम मे बेचैनी से चहलकदमी करता रहा। उसकी आँखों के सामने वो दृश्य घूम रहा था जब धृति के पीछे वो आवारा नशेड़ी लड़के लगे थे और धृति उनके बुरे इरादों से खुदको बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी  । उसके ज़ख़्मी पैर , बाँह और आँसू सब अर्नव को व्याकुल कर रहे थे  । काफी देर तक वो यूँही टहलता रहा फिर बेड पर आकर लेट गया । Coming soon.......... कैसा लगा आपको ये पार्ट बताइयेगा ज़रूर  । मिलते है जल्दी ही अगले भाग के साथ  । तब तक हँसते रहिये  , मुस्कुराते रहिये और पढ़ते रहिये मेरे साथ " बेरहम इश्क़ "

  • 15. बेरहम इश्क़ - Chapter 15 बेदर्दी सनम

    Words: 2125

    Estimated Reading Time: 13 min

    धृति की अभी आँख लगी ही थी कि एक तेज़ आवाज़ के साथ उसके रूम का दरवाजा खुला जिससे धृति घबराकर चिहुँकते हुए उठकर बैठ गयी  । उसने हड़बड़ाहट मे सामने देखा तो अर्नव अपनी गुस्से से खूनी रंग मे रंगी लाल आँखों से उसे घुरते हुए उसी के तरफ बढ़ रहा था  । उसका लाल चेहरा   , लड़खड़ाते कदम और झपकती पलकें उसके नशे मे होने की तरह इशारा कर रही थी  । असल मे अर्नव सोने के लिए लेटा था पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी  । रह रहकर उसकी बंद पलकों के बीच वो दृश्य घूम रहा था जब वो नशेड़ी लड़के धृति की इज़्ज़त लूटने के लिए उसके पीछे पड़े थे और अपनी अस्मत की रक्षा के लिए धृति बदहवास सी भागे जा रही थी  । उसकी बिखरी अवस्था  , अस्त व्यस्त कपड़े, ज़ख़्मी पैर  , भीगी आँखे उसके संघर्ष को दर्शा रही थी जो उसने किया था अपनी इज़्ज़त लूटने से बचाने के लिए । जाने क्यों पर आज के इंसिडेंट के बाद और धृति की हालत देखने के बाद एक बार फिर अर्नव का दिल जैसे चीख चीखकर कहने लगा था की धृति की मासूमियत कोई छलावा नही  । जो लड़की अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए इतना संघर्ष करे वो उन लड़कियों मे से बिल्कुल नही हो सकती जो अपने फायदे और स्वार्थ के लिए अपनी आबरू को नीलाम करे  । उसकी आँसू भरी आँखे उसकी सच्चाई की गवाही दे रही थी पर अर्नव की धृति के लिए नफरत उसे उसपर भरोसा नही करने दे रही थी  । उसने अपने ही मन से ये सोच लिया कि आज जो हुआ वो सब नाटक इसलिए था क्योंकि वो लड़के धृति को कुछ नही दे सकते थे और ये बात सोचते हुए उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था  । अपना गुस्सा शांत करने के लिए वो घर मे बने बार मे चला गया और जाने कितनी ही बोतलें अपने गले से नीचे उतारने के बाद वो चल पड़ा एक बार फिर धृति को अपने शब्दों से ज़लील करने और उसकी आत्मा को अपने इल्ज़ामों से छलनी करने  । धृति नशे मे घुत्त अर्नव को अपनी तरफ आते देखकर घबरा गयी  । उसे अर्नव मे वो आवारा नशेड़ी लड़के नजर आने लगे जो उसके बदन को नोचकर अपनी हवस मिटाने के लिए उसके तरफ बढ़ रहे थे  । धृति भय से खुदमे सिमट गयी और खुदको पूरी तरह से ब्लैंकेट से ढकते हुए घबराई निगाहों से अर्नव को देखते हुए बोली  " आ........ आप इस वक़्त यहाँ क्या कर रहे है  ? " नशे मे धुत्त अर्नव धृति का ये सवाल सुनकर उसपर भड़क उठा  " ये मेरा कमरा है  । मैं जब चाहे यहाँ आ सकता हूँ  , तुम होती कौन हो मुझसे ये सवाल करने वाली  ? " अर्नव का सवाल सुनकर धृति एक पल को खामोश रह गयी क्योंकि सच तो यही था कि ये घर  , ये कमरा  , ये बेड सब अर्नव का था  । अर्नव के जैसे ही यहाँ की किसी चीज़ पर उसका कोई अधिकार नही था और न ही उसे अर्नव से सवाल जवाब करने का कोई हक था  । धृति अपनी ही सोच मे गुम थी इतने मे अर्नव उसके पास आकर बैठ गया  और धृति के गालों पर अपनी उंगलियाँ टिकाकर उसके मुह को दबाते हुए गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला " पार्क मे क्या कर रही थी तुम  ? " धृति एकाएक चौंक चौंकते हुए अपने होश मे लौटी और आँखे बड़ी बड़ी करके घबराई हुई सी उसे देखने लगी  । उसके कंठ से एक शब्द बाहर न निकल सका  । जब अर्नव को उसके सवाल का जवाब नही मिला तो उसपर गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया  । फलस्वरूप धृति के गालों पर उसकी पकड़ कस गयी जिससे धृति को दर्द होने लगा  । दर्द आँसू बनकर आँखों मे उतर आया पर धृति के दर्द की परवाह न करते हुए अर्नव ने बड़ी ही बेदर्दी से उसके मुह को दबाते हुए  , गुस्से से दाँत पीसते हुए तेज़ आवाज़ मे अपना सवाल दोहराया  " सुना नही तुमने  ?.....  सवाल किया है मैने  , जवाब दो मुझे की इतनी रात गए  , अकेले उस सुनसान पार्क मे क्या कर रही थी तुम  ? " उसके यूँ चिल्लाने से धृति कुछ डर गयी और डबडबाई आँखों से उसे देखते हुए रुँधे गले से बोली  " मुझे अकेले रहना था इसलिए वहाँ रुकी थी  । " " अकेले रहना था या अपने अकेलेपन का साथी ढूँढना था जो तुम्हारी जिस्म की ज़रूरत को पूरा करते हुए तुम्हारी तन्हाई को दूर कर सके इसलिए घर आने के जगह उतनी रात को अकेले उस पार्क मे बैठी हुई थी  । " धृति के मुह को बेदर्दी से दबाते हुए अर्नव गुस्से से धधकती आँखों से उसे घूरने लगा  । अर्नव का लगाया बेबुनियाद इल्ज़ाम सुनकर धृति की आँखों की पुतलियाँ अविश्वास से फैल गयी  । उसको अपने कानों पर भरोसा नही हो रहा था  । कुछ पल तो वो स्तब्ध सी उसे देखती रही फिर दर्द भरी मुस्कान लबों पर सजाते हुए दृढ़ता से बोली  " आपके मुह से अपने लिए ऐसी बातें सुनना कोई ताज्जुब की बात नही मेरे लिए  । आपको तो मैं ऐसी ही लड़की लगती हूँ जो अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है    ... आपको मेरे बारे मे जो भी सोचना है सोचते रहिये  । मैं नही रोकूंगी आपको और न ही अपनी सच्चाई और बेगुनाही साबित करने के लिए कोई सबूत या सफाई दूंगी क्योंकि आपके लगाए इन बेबुनियाद इल्ज़ामों से मुझे कोई फर्क नही पड़ता  ..... आप मेरे बारे मे क्या सोचते है और क्या नही इस बात से मुझे घंटा फर्क नही पड़ता  ..... मैं क्या हूँ और कैसी हूँ ये मैं जानती हूँ  , मेरे महादेव जानते है और इसके अलावा दुनिया मेरे बारे मे क्या सोचती है  , क्या कहती मुझे उससे कोई फर्क नही पड़ता  ........ आप पूरी तरह से स्वतंत्र है मेरे बारे मे गलत सोचने के लिए । अब तक बिना किसी गुनाह के मुझे सज़ा ही देते आए है न आप तो आज भी ठहरा दीजिये मुझे गलत और सुना दीजिये मुझे सज़ा पर कुछ भी कहने या करने से पहले इतना ज़रूर सोच लीजियेगा की अगर अपने जिस्म की ज़रूरत किसी मर्द से ही पूरी करनी होती तो कल आपको खुदके करीब आने से रोकती नही  , अगर यही सब करना था मुझे तो आज उन लड़कों से अपनी इज़्ज़त की रक्षा करने के लिए इतना संघर्ष न करती मैं पर मैंने किया क्योंकि अपनी इज़्ज़त पर मैं किसी प्रकार का कोई दाग बर्दाश्त नही कर सकती  । मेरी तनहाई की बात करते है आप ..... तन्हा तो मैं जाने कितने सालों से हूँ पर आज तक मैंने कभी खुदको गलत रास्ते पर नही जाने दिया  , कभी किसी मर्द को खुदको छूने तक नही दिया  , आपके अलावा कोई आदमी कभी मेरे इतने करीब नही गया था और अगर आपने मुझे धमकी देकर मजबूर न किया होता तो मैं आपको भी खुदको छूने तक न देती  । ....... आपने ही अभी कहा था न की ये कमरा आपका है और मुझे आपसे कोई सवाल करने का कोई अधिकार नही है, वैसे ही ये जिस्म मेरा है और आपको कोई अधिकार नही मेरे character पर सवाल उठाने का । " धृति ने अपनी बात पूरी की । एक एक शब्द उसने पूरे विश्वास के साथ  ,अर्नव की निगाहों से निगाहें मिलाते हुए कहा था । एक बार फिर उसकी बड़ी बड़ी आँखों मे अर्नव को सच्चाई नजर आ रही थी पर उसकी आँखों मे बंधी नफरत और गुस्से की पट्टी उसे धृति की सच्चाई देखने नही दे रही थी । धृति ने अपनी बात पूरी की और पूरा ज़ोर लगाकर अर्नव की हथेली को अपने मुह पर से हटा दिया पर अगले ही पल अर्नव ने उसके बालों को पकडकर खींचते हुए उसका सर हल्का ऊपर उठाते हुए उसका चेहरा अपने करीब कर लिया । धृति के मुह से हल्की सिसकी निकल गयी  । वो दर्द से छटपटा उठी और आँखों मे ठहरे आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए  । अर्नव ने उसके चेहरे को अपने बेहद करीब कर लिया और नफरत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए बोला  " तुम क्या हो और क्या नही मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ इसलिए मेरे सामने तो ये सती सावित्री बनने का नाटक मत ही करो तो अच्छा होगा तुम्हारे लिए क्योंकि मुझसे बेहतर कोई नही जानता की तुम किस तरह की लड़की हो  । ....... और अपने फायदे के लिए कितना नीचे गिर सकती हो  । " एक बार फिर अर्नव के लगाए इल्ज़ाम सुनकर धृति अवाक सी उसे देखती ही रह गयी  । अर्नव ने उसको गुस्से से जलती निगाहों से घूरते हुए दाँत पीसते हुए आगे कहा " इतनी ही प्योर और इनोसेंट लड़की हो तुम तो मंगलसूत्र कहाँ है तुम्हारा और सिंदूर क्यों नही लगाया तुमने  ? शादीशुदा होकर कुँवारी बनकर क्यों घूम रही हो ताकि लड़कों को अपनी खुबसुरती के जाल मे फंसा सको   , उन्हे ये दिखा सको की अब तक अकेली हो तुम तो उनके साथ हो सकती हो  ....... क्या ज़ाहिर करना चाहती हो तुम ऐसे रहकर की अब तक सिंगल हो और उनके साथ रिश्ता जोड़ने के लिए तैयार बैठी हो  ..... पर अफसोस की मैं किसी और इनोसेंट लड़के को तुम्हारे स्वार्थ की बलि नही चढ़ने दूंगा  ..... मैं अब तुम्हे किसी और लड़के को अपनी मासूमियत और खुबसुरती के जाल मे फंसाने नही दूंगा  ...... अब तुम्हे किसी और की ज़िंदगी बर्बाद नही करने दूंगा मैं  ...... तुम चाहो या न चाहो पर तुम्हे मेरे ही साथ रहना होगा  , मेरी कैद से तुम कभी आज़ाद नही हो सकोगी   , इस सज़ा से तुम्हे कभी छुटकारा नही मिलेगा  ..... बहुत आग लगी है न तुम्हारे अंदर  , तुम्हारे जिस्म को किसी मर्द की ज़रूरत है ताकि उससे अपनी चाहत पूरी कर सको पर अफसोस की मेरे रहते अब ऐसा कभी नही होगा  ...... अबसे न मैं खुद कभी तुम्हे छूँगा और न ही किसी और को तुम्हारे करीब आने दूंगा  ...... बहुत से दिलों को तोड़ा है तुमने अब तुम खुद तड़पोगी तन्हा   , ढूँढ़ोगी किसी का साथ पर तुम्हे हर बार तुम्हारे आस पास तुम्हे सिर्फ और सिर्फ मैं दिखूँगा और मुझसे तुम्हे सिर्फ और सिर्फ दर्द  , नफरत  , तकलीफ ही मिलेगी  । " अर्नव ने नफरत भरी निगाहों से उसे घुरा और गुस्से मे धृति को खुदसे दूर झटक दिया  । धृति जो उसकी बातों को सुनकर सदमे मे जा चुकी थी वो उसके अचानक धकेलने से संभल नही सकी और बेड पर जा गिरी  । धृति बेड पर औंधे मुह पड़ी सिसकने लगी तभी उसके कानों मे अर्नव की आवाज़ पड़ी " वैसा मैं तुमसे पूछना तो भूल ही गया । कैसा लगा तुम्हे अपनी प्यारी माँ से मिलकर  ?....... बहुत शौक है न तुम्हे लोगों को उसके अपनों से दूर करने का आज जब तुम्हारे अपने तुमसे नफरत करते है  , तुमसे सभी रिश्ते तोड़कर तुम्हे अपनी ज़िंदगी से निकाल चुके है  , तुम्हारा मनहूस चेहरा देखना तक नही चाहते तो कैसा लग रहा है तुम्हे  ?..... एहसास हो रहा है कि जब अपने परिवार के होते हम दुनिया मे बिल्कुल तन्हा हो जाते है  , जब हमारे पास ऐसा कोई नही होता जिससे हम अपना दुख तकलीफ बाँट सके तो कैसा लगता है  ?..... जो दर्द आज तक दूसरों को देती आई हो वो दर्द खुद सहकर कैसा लग रहा है तुम्हे  ? " अर्नव की बातें सुनकर धृति सर घुमाकर डबडबाई  , अविश्वास भरी निगाहों से अर्नव को देखने लगी  । उसके आँखों मे मौजूद गुस्सा और चेहरे पर छाई कुटिलता भरी मुस्कान देखकर धृति समझ गयी कि आज उसके साथ हो हुआ सब अर्नव ने ही करवाया है  । धृति पहले तो बेबस और लाचार सी उसे आँसुओं से भीगी पलकें उठाए देखती रही फिर अपने आँसुओं को बड़ी ही बेरहमी से अपनी हथेलियों से पोंछते हुए ठीक से बैठ गयी और दर्द भरी मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोली  " आपने कभी उस इंसान को देखा है जिसकी आत्मा मर चुकी होती है पर फिर भी वो ज़िंदा होता है क्योंकि उसका जिस्म मौजूद होता है और उसकी साँसें चल रही होती है पर जिस दिन उसकी वो अनचाही साँसें उसका साथ छोड़ देती है वो जिस्म भी पूरी तरह बेजान हो जाता है पर इससे दुनिया को फर्क पड़ता है उस इंसान को नही  । दुनिया वालों के लिए उस दिन वो इंसान मरता है पर ये तो सिर्फ वही जानता था की मर तो वो बरसों पहले गया था उस दिन तो उसे जीवन के बोझ से मुक्ति मिली थी  । " Coming soon....... अगर कहानी पसंद आ रही हो तो like एंड कॉमेंट करना न भूले। मुझे फॉलो करे। कैसा लगा आपको आजका भाग बताइयेगा ज़रूर । और अगर आप कभी ऐसे किसी इंसान से मिले हो तो समीक्षा मे बताइयेगा ज़रूर बाकी धृति ने ये क्यों कहा ये जानने के लिए ज़रा इंतज़ार करिये और पढ़ते रहिये  " बेरहम इश्क़ "

  • 16. बेरहम इश्क़ -बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर - Chapter 16

    Words: 2380

    Estimated Reading Time: 15 min

    आपने कभी उस इंसान को देखा है जिसकी आत्मा मर चुकी होती है, पर फिर भी वह ज़िंदा होता है? क्योंकि उसका जिस्म मौजूद होता है और उसकी साँसें चल रही होती हैं, पर जिस दिन उसकी वह अनचाही साँसें उसका साथ छोड़ देती हैं, वह जिस्म भी पूरी तरह बेजान हो जाता है। पर इससे दुनिया को फर्क पड़ता है, उस इंसान को नहीं। दुनिया वालों के लिए उस दिन वह इंसान मरता है, पर यह तो सिर्फ वही जानता था कि मर तो वह बरसों पहले गया था। उस दिन तो उसे जीवन के बोझ से मुक्ति मिली थी।

    धृति का सवाल सुनकर अर्नव के चेहरे पर उलझन भरे भाव उभर आए। वह समझ नहीं सका कि आखिर धृति कहना क्या चाहती है? अर्नव असमंजस भरी निगाहों से उसे देखने लगा। धृति ने दर्द भरी आह भरी और आगे कहना शुरू किया।

    "आप खुश हैं कि आपने मुझसे मेरा परिवार छीनकर मुझे तन्हा कर दिया, पर अफ़सोस की आपकी यह खुशी अधूरी है। क्योंकि आपने मुझसे मेरा परिवार नहीं छीना, आपके वजह से मैं अकेली नहीं हुई... मेरा परिवार तो मुझसे उसी दिन छिन गया था जिस दिन मेरे पापा मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़कर चले गए थे। तन्हा तो मैं उसी पल हो गई थी जिस पल मेरे पापा की साँसें थमी थीं। यह परिवार तो बस नाम का था, जिसके होने ना होने का मेरी ज़िंदगी पर, मुझ पर कभी कोई असर ही नहीं पड़ा।... मैं तो इस नाम के परिवार के होते हुए भी तन्हा ही थी और आपने आज उस नाम के परिवार को भी मुझसे छीन लिया... आज आपने मुझे तन्हा नहीं किया, तन्हा तो मैं जाने कितने सालों से हूँ और इस तन्हाई की आदत हो चुकी है मुझे। बल्कि आज तो आपने मुझे सही मायनों में अनाथ कर दिया।... पहले कम से कम कहने को मेरे कुछ अपने तो थे, पर आज मेरा कोई नहीं।... खुश हो जाइए आप कि आपने मुझसे मेरा नाम का परिवार, मेरे सपने छीन लिए, पर इस खुशी में यह मत भूल जाइएगा कि जिस परिवार की जान की धमकी देकर आपने मुझे इस जबरदस्ती के रिश्ते में बाँधा है, उस परिवार से मेरे सभी रिश्ते टूट चुके हैं। अब मेरा कोई परिवार नहीं, तो आप मुझे उस परिवार का वास्ता देकर ब्लैकमेल भी नहीं कर सकेंगे।... अब मुझ पर आपकी मनमानी नहीं चलेगी।... कैद करना चाहते हैं ना आप मुझे? तो कर लीजिए कैद, पर याद रखिएगा कि मृत शरीर को ज्यादा वक्त तक घर में रखने से उससे बास मारने लगता है और जिस इंसान की जीने की इच्छा खत्म हो जाए, वह ज्यादा वक्त तक ज़िंदा भी नहीं रह पाता। इसलिए ज्यादा वक्त तक आप टॉर्चर नहीं कर सकेंगे मुझे, इसलिए जितना दर्द देना है अभी दे दीजिए, बाद में कहीं मलाल न रह जाए आपके मन में कि मुझसे दुश्मनी शिद्दत से नहीं निभा सके आप।"

    धृति ने अपनी बात पूरी की, फिर गहरी साँस छोड़ते हुए बिना एक और पल वहाँ रुके सीधे बाथरूम में चली गई। वॉशबेसिन के सामने खड़ी शीशे में अपना अक्स देखकर वह फूट-फूटकर रो पड़ी और सिसकियों की आवाज़ बाहर न जा सके, इसलिए उसने अपने मुँह को अपनी हथेली से कसके दबाकर बंद कर लिया।

    कुछ देर बाद जी भरकर आँसू बहाने और अपना सारा दर्द आँसुओं के रूप में बाहर निकालने के बाद, जब वह कुछ सामान्य हुई, तो उसने अपना मुँह धोया और तौलिये से मुँह पोंछकर वापस कमरे में चली आई। कमरे में पहला कदम रखते ही उसकी नज़र बेड पर पड़ी और उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए। सामने अर्नव बेड पर औंधे मुँह पड़ा हुआ था। शायद सो गया था वह। अब तक न उसने कपड़े बदले थे और न ही जूते ही खोले थे। धड़ बेड पर था तो टाँगें बेड से नीचे की ओर लटकी हुई थीं।

    अर्नव को यूँ पड़े देखकर धृति चौंक गई। फिर उसके पास चली आई। उसने अर्नव को उठाने की कोशिश की, पर वह गहरी नींद में सो रहा था। यह कन्फर्म होने के बाद धृति पूल साइड जाने लगी, पर कुछ कदम चलकर रुक गई। उसने पलटकर अर्नव को देखा और अपने सच्चे दिल के आगे मजबूर होकर वापिस उसके पास चली आई। अर्नव ने चाहे कितना बुरा व्यवहार किया हो उसके साथ, पर धृति की इंसानियत उसे उसके साथ कुछ गलत करने की इजाज़त नहीं दे रही थी। अर्नव के पास आकर उसने उसके जूते खोले और उसके पैरों को बेड के ऊपर करके उसे ब्लेन्केट से ढँक दिया। थोड़ी दिक्कत हुई और बहुत दम लगा, पर आखिरकार उसने अर्नव को ठीक से सुला ही दिया और पूल साइड चली आई।

    अर्नव के इतने बुरे व्यवहार और नफ़रत सहने के बाद भी धृति ने उसकी परवाह की। उसे ठीक से सुलाया ताकि ऐसे सोने की वजह से उसकी टाँगें दर्द ना हों। धृति की सच्चाई और नेकदिली का इससे बड़ा सबूत कुछ हो नहीं सकता था। पर यह देखने के लिए अर्नव जाग ही नहीं रहा था और अगर जाग भी रहा होता, तो भी शायद वह धृति की परवाह को उसका स्वार्थ करार देता कि उसके करीब आने के लिए उसने ऐसा किया।

    खैर, धृति अपना काम करके अर्नव को वहाँ अकेला छोड़कर पूल साइड चली आई। काफ़ी देर तक सुनी निगाहों से वह आकाश को देखकर उसमें कुछ ढूँढती रही, फिर वहीं बैठे-बैठे ही सो गई।

    अगले दिन, नशे में होने की वजह से अर्नव की नींद ज़रा देर से खुली और वह भी सर दर्द के कारण। जब वह उठा तो उसका सर बहुत दर्द कर रहा था। उसकी आँखें भी अभी पूरी तरह से नहीं खुली थीं और उसने अपनी हथेली से अपने सर को पकड़ा हुआ था। तभी अचानक उसके कानों में धृति की कोयल सी मीठी आवाज़ पड़ी।

    "टेबल पर हैंगओवर कम करने वाला ड्रिंक रखा है, पी लीजिए। आपके कपड़े और बाकी का सामान भी निकाल दिया है। अगर काम पर जाना हो तो तैयार होकर नीचे आ जाइएगा और अगर न जाना हो तो दूसरे कपड़े पहनकर फ्रेश होकर नीचे आकर नाश्ता कर लीजिए, फिर दवाई ले लीजिएगा तो सर दर्द ठीक हो जाएगा।"

    धृति की आवाज़ सुनकर अर्नव ने चौंकते हुए अपनी निगाहें घुमाईं तो वह उसके कपड़े सलीके से बेड पर रख रही थी। नहाकर तैयार हो चुकी थी वह। सुहाग की जिन निशानियों के न होने पर अर्नव ने बीती रात उसके चरित्र और नियत पर सवाल उठाए थे, वे भी आज मौजूद थे। मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहने वह सुहागन के रूप में उसके सामने खड़ी थी।

    धृति को देखते हुए अर्नव सोच में पड़ गया कि कल हुआ क्या था? वह यहाँ कैसे आया?... धृति इतनी नॉर्मल कैसे लग रही है?

    यहाँ अर्नव अपने ही ख्यालों में गुम था और धृति अपना काम पूरा करके बिना एक बार अर्नव को देखे ही वहाँ से चली गई। अर्नव ने अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर दिया तो बीती रात की धुँधली-धुँधली सी यादें उसके ज़हन में घूमने लगीं जो धीरे-धीरे साफ़ होती चली गईं। सब याद आने के बाद अर्नव और ज़्यादा परेशान हो गया कि बीती रात इतना सब होने के बाद धृति इतनी नॉर्मल कैसे लग रही थी?

    अर्नव कुछ पल उसके बारे में सोचता रहा, फिर सर झटकते हुए उसने हैंगओवर ड्रिंक पिया और बाथरूम में चला गया।

    कुछ देर में वह ऑफिस के लिए तैयार होकर नीचे पहुँचा तो धृति खाना टेबल पर लगाए उसका इंतज़ार करती नज़र आई। अर्नव को देखते ही उसने उसकी प्लेट लगा दी और खुद उससे दो चेयर छोड़कर बैठ गई। सारा वक्त अर्नव धृति को देखते हुए सोचता रहा कि आखिर उसके दिमाग में चल क्या रहा है? पर धृति खामोशी से निगाहें झुकाए अपना नाश्ता करती रही। जब किस्मत में ऐसी ज़िंदगी, यह दुख और जिल्लत लिख ही दिया गया था, तो उसने भी अब समझौता कर दिया था। ज़िंदा वैसे भी नहीं रहना चाहती थी क्योंकि जीने की अब कोई वजह नहीं रह गई थी उसके पास, फिर भी कुछ ज़िम्मेदारी थी जिसे उसे मरते दम तक निभाना था, इसलिए उसने खुद को आने वाली ज़िंदगी, इन संघर्षों के लिए तैयार कर लिया था।

    नाश्ते के बाद अर्नव ऑफिस चला गया और धृति अपने लिए नई जॉब ढूँढने लगी। हालाँकि पैर का ज़ख्म अभी ठीक नहीं हुआ था, पर वह एक स्वाभिमानी लड़की थी जिसे कभी से अपनी ज़रूरतों के लिए किसी पर निर्भर होना पसंद नहीं था, इसलिए वह जल्दी से जल्दी जॉब ढूँढना चाहती थी ताकि अपना और अपने उस परिवार का खर्चा उठा सके जो उसके पैसों पर ही निर्भर था।

    धृति के पल-पल की खबर रहती थी अर्नव के पास और अब उसने एक नई चाल चल दी थी उसके खिलाफ़, जिसका परिणाम जल्दी ही धृति के सामने आने वाला था। सारा दिन धृति कमरे में बैठी जॉब ढूँढने में लगी रही। शाम को अर्नव के आने से पहले नीचे चली आई। अर्नव के आने पर उसके कपड़े और कॉफ़ी दोनों उसे तैयार मिले, जिसके वजह से वह धृति को कुछ कह न सका, फिर भी उसे जलील करने के लिए कॉफ़ी के लिए अर्नव ने सबके सामने उसे खूब सुनाया, जिसे धृति ने खामोशी से सुन लिया। एक शब्द नहीं बोली। डिनर के वक्त भी अर्नव बेवजह उस पर बरस पड़ा, पर धृति यहाँ भी खामोश ही रही और कहीं न कहीं उसकी यही खामोशी अर्नव को चुभ रही थी।

    आज रात में वह कमरे में सोया तो धृति बिना कुछ कहे पूल साइड लगे काउच पर आकर लेट गई।

    यूँ ही कुछ दिन बीत गए थे। धृति इन दिनों घर में ही रही थी और टॉर्चर में सुबह से लेकर रात तक अर्नव के सब छोटे-बड़े काम करती थी, जिसके लिए बेवजह अर्नव की डाँट और ताने भी खामोशी से सुन लेती थी। अब उसके हाथ-पैर ठीक हो चुके थे। धृति ने माधुरी से बात करके अपनी ज़रूरत की चीज़ें मँगवा ली थीं। अर्नव की बेरुखी अब भी बरकरार थी, पर अब वह जबरदस्ती उसके करीब आने की कोशिश नहीं करता था। धृति भी उससे उलझती नहीं थी। वैसे भी यह उसका स्वभाव नहीं था और उसका सब कुछ उससे छिन चुका था, अब खोने के लिए कुछ नहीं था उसके पास, इसलिए ज़िंदगी के बोझ को खामोशी से ढो रही थी।

    अर्नव अब भी उसकी इंसल्ट करने का एक मौका नहीं छोड़ता था, पर धृति पलटकर कुछ कहती नहीं थी। उसके सब काम करती, उसे शिकायत का मौका नहीं देती थी, फिर भी अर्नव किसी न किसी बात पर उस पर भड़क ही जाता था। अर्नव अब भी पहले जैसा था, पर धृति ने गहरी खामोशी अख़्तियार कर ली थी और शायद अर्नव उसको बार-बार प्रोवोक इसलिए करता था ताकि वह कुछ कहे, पर नहीं... धृति एक शब्द नहीं कहती थी। आज भी अर्नव अपने कमरे में सोता था और धृति बाहर पूल साइड।

    देखते-देखते एक महीना बीत गया। धृति और माधुरी की दोस्ती अब काफ़ी गहरी हो चुकी थी। उनकी बात हो जाती थी कभी-कभी। धृति ने कई जगह इंटरव्यू दिया था, पर उसे जॉब नहीं मिल सकी थी। आज भी वह एक जगह इंटरव्यू देकर आई थी और आज तो उसे महीने भर की भाग-दौड़ के बाद कामयाबी भी मिल गई थी। ASR फ़ैशन्स में उसे CEO की PA की पोस्ट पर सिलेक्ट किया गया था और आज ही उससे छह महीने का कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाकर पहले महीने की सैलरी भी एडवांस में दे दी गई थी। धृति लगभग महीने भर बाद आज मुस्कुराई थी। खुश थी आज वह कि फाइनली उसे जॉब मिल गई और अब वह अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठा सकेगी।

    अपनी सैलरी लेकर धृति खुशी-खुशी अपने घर चली आई। वही घर जहाँ से उसे धक्के मारकर निकाला गया था। यही वजह थी कि आज डोर बेल बजाते हुए उसके हाथ काँप रहे थे।

    उसने हिम्मत करके डोर बेल बजाई। कुछ ही पल बाद दरवाज़ा खुल गया और उसके सामने उसी के जैसे दिखने वाली एक लड़की आ खड़ी हुई। उस लड़की की उम्र, हाइट, बॉडी शेप, शक्ल-सूरत सब धृति से इस कदर मिलती थी कि कोई भी पहली बार उसे देखे तो धोखा खा जाए। दोनों इस कदर एक-दूसरे जैसी दिखती थीं कि देखने वाला उनमें अंतर न पहचान सके, पर गौर से देखने लगे तो उनमें कुछ अंतर नज़र आ रहे थे। जैसे धृति के चेहरे पर जहाँ भोलापन और मासूमियत झलकती थी, वहीं वह लड़की देखने में ही चालबाज़ लग रही थी। उसके चेहरे से मक्कारी टपक रही थी और धृति की जो आँखें उसकी सच्चाई ज़ाहिर करती थीं, उस लड़की की उन्हीं आँखों में छल-कपट झलक रहा था। दोनों की सूरत में ज़्यादा अंतर नहीं था, पर इसमें कोई शक की बात नहीं थी कि धृति उस लड़की से ज़्यादा हसीन थी, जिसकी एक वजह उसके अपर लिप का तिल भी था जो उस लड़की के लिप के ऊपर मौजूद नहीं था।

    धृति ने अब तक पूरे कपड़े पहने थे। वही वह लड़की धृति के सामने क्रॉप टॉप और शॉर्ट्स में खड़ी थी। धृति के लंबे घने रेशमी बाल उसकी कमर को छूते थे। वहीं उस लड़की के बाल कंधे से कुछ नीचे तक ही जा रहे थे। उनमें भी मोर्पंखी रंग करवाया हुआ था। काफ़ी अंतर था दोनों में, पर ध्यान से देखने पर ही पता चलता था। वरना उन्हें पहली बार देखने वाला इंसान उसे धृति समझने की गलती कर सकता था; दोनों को पहचानने में धोखा खाना आम बात थी।


    आगे.....

    कौन है यह लड़की और यहाँ धृति के घर में क्या कर रही है?... क्या रिश्ता है इससे धृति का और हूबहू धृति जैसी कैसे दिखती है वह?... कौन से गहरे राज़ कैद हैं यहाँ और कब उन राज़ों पर से पर्दा उठेगा?... क्या होगा आगे, जानने के लिए पढ़ते रहिए "बेरहम इश्क़"।

  • 17. बेरहम इश्क़ - Chapter 17 हमशक्ल

    Words: 2172

    Estimated Reading Time: 14 min

    धृति उस लड़की से अधिक सुंदर थी। एक कारण उसका ऊपरी होंठ का तिल भी था, जो उस लड़की के होंठ पर नहीं था।

    धृति ने पूर्ण वस्त्र धारण किए हुए थे। वहीँ वह लड़की धृति के सामने क्रॉप टॉप और शॉर्ट्स पहने खड़ी थी। धृति के लंबे, घने, रेशमी बाल उसकी कमर तक पहुँच रहे थे, जबकि उस लड़की के बाल कंधों से कुछ नीचे तक ही थे। दोनों में काफी अंतर था, पर ध्यानपूर्वक देखने पर ही वह स्पष्ट होता था। अन्यथा, पहली बार देखने वाला उसे धृति समझ सकता था; दोनों को पहचानने में भ्रम होना सामान्य बात थी।

    जब उस लड़की की नज़र धृति पर पड़ी, तो उसके चेहरे पर क्रोध, चिढ़, और रोष के भाव उभर आए, मानो धृति उसकी जन्मों की शत्रु हो। जबकि धृति के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया, हाँ, वह कुछ हैरान अवश्य लग रही थी। धृति ने उसे देखा और हल्की हैरानी से पूछा,

    "दी, आप वापिस कब आई?"

    "जब तुम अपने प्रेमी के साथ छुपकर शादी करने और उसके साथ ऐशो-आराम भरी ज़िंदगी का मज़ा लेने में व्यस्त थी।"

    उस लड़की का नाम सृष्टि था, धृति की बड़ी बहन, बस कुछ मिनटों की बड़ी। असल में, दोनों जुड़वाँ थीं, पर सृष्टि धृति से कुछ मिनट पहले इस दुनिया में आई थी, इसलिए धृति उसे 'दी' कहती थी। उन दोनों बहनों का रिश्ता कैसा और क्यों था, यह आगे की कहानी में आपको मालूम चलेगा। फिलहाल, कहानी को आगे बढ़ाते हैं।

    सृष्टि ने बेरुखी भरे लहजे में जवाब दिया और नफ़रत व गुस्से भरी नज़रों से उसे घूरने लगी। एक बार फिर उस शादी के लिए धृति को ताना दिया जा रहा था, जो उसकी मजबूरी थी, पर उसकी इच्छा बनाकर उस पर थोपी गई थी।

    धृति कुछ जवाब नहीं दे सकी। इतने में सृष्टि ने नफ़रत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए रूखे स्वर में कहा,

    "मम्मी ने तुझसे सभी रिश्ते तोड़कर तुझे इस घर से निकाला था ना, फिर अब वापिस अपना मनहूस चेहरा लेकर यहाँ क्यों चली आई तू? पहले ही तेरी करतूत के कारण हमारा सर उठाकर चलना मुश्किल हो गया है, अब क्या चाहती है कि तेरे कारण मैं और माँ शर्म से अपनी जान दे दें? पापा को तो पहले ही छीन चुकी है हमसे, अब क्या मुझे और माँ को मारकर तेरे दिल को चैन पड़ेगा? क्या चाहती है तू हमसे? चली गई ना अपने अमीर प्रेमी से शादी करके, तो अब पीछा छोड़ हमारा। जाकर ऐशो-आराम से अपनी ज़िंदगी जी और हमें भी सुकून से अपनी ज़िंदगी जीने दे।"

    सृष्टि की बातें सुनकर धृति के चेहरे पर गहरी उदासी छा गई, पर शायद उसे इसी व्यवहार की उम्मीद थी सृष्टि से, इसलिए उसे ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा। उसने गहरी साँस छोड़ी और अपने पर्स से एक लिफ़ाफ़ा निकालकर सृष्टि की ओर बढ़ाते हुए बोली,

    "जॉब चले जाने के कारण पिछले महीने पैसे नहीं दे सकी थी। ये मेरी इस महीने की सैल..."

    "हमें तेरे पैसों की कोई ज़रूरत नहीं।" धृति अपनी बात पूरी नहीं कर सकी थी कि सृष्टि उसकी बात काटते हुए एकदम से उस पर बरस पड़ी।

    "ये पैसे देकर क्या साबित करना चाहती है तू कि हम तेरे पैसों पर जी रहे हैं और अगर तू पैसे नहीं देगी तो हम अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकेंगे? ये पैसे देकर हमें नीचा दिखाने और खुद को महान दिखाने आई है ना तू कि यहाँ से जाने के बाद भी हमें पैसे देकर हमारी ज़रूरतें पूरी कर रही हो। पर हमें अब तेरे किसी एहसान की कोई ज़रूरत नहीं है। तेरे पैसों के बिना भी हम अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं। तुझे अब हमारी झूठी फ़िक्र करने का दिखावा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मम्मी की एक बेटी ज़रूर मर गई है, पर दूसरी अब भी ज़िंदा है और मैं मम्मी को तुझसे भी बेहतर जीवन दूँगी। तू जा यहाँ से, जाकर अपने पति के साथ ऐय्याशी कर, मैं हूँ यहाँ और मुझे और मम्मी को तेरी, तेरे एहसान की, तेरी दी भीख या तेरे पैसों की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    धृति के चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं थे। वह खामोशी से सृष्टि की बातें सुनती रही। सृष्टि ने पहले तो धृति को जी भरकर सुनाया, अपनी सारी भड़ास उस पर निकाल ली, फिर तिरछी मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोली,

    "मैंने तो सुना कि तूने बहुत लंबा हाथ मारा है। किसी अमीरज़ादे को अपने हुस्न और प्यार के जाल में फँसाकर उससे छुपकर शादी की है, फिर जॉब क्यों कर रही है तू? कहीं तेरा वह प्रेमी सिर्फ़ देखने में ही तो अमीर नहीं था, किसी कंगाले के चक्कर में तो नहीं फँस गई तू? खैर, किसी के भी चक्कर में फँसी हो, मुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं तो इस बात से बड़ी खुश हूँ कि फ़ाइनली अब मेरा तुझसे पीछा छूट गया। धृति नाम का ग्रहण मेरी ज़िंदगी से उतर गया। बस अब जब तू मेरी ज़िंदगी में दोबारा कभी लौटकर आने की कोशिश भी मत करना। भूल जा कि तेरा कोई घर और परिवार भी था और जा अपने पति के पास, दोबारा कभी लौटकर यहाँ कदम मत रखना।"

    सृष्टि ने भी उसे बुरी तरह लताड़ा, उसे ज़लील किया और यहाँ से जाने को कहा। धृति ने उसे देखा और गहरी साँस छोड़ते हुए बोली,

    "बचपन से आपकी नफ़रत सहती आ रही हूँ, जबकि इसकी वजह तक नहीं जानती अब तक। ऐसी ही एक नफ़रत एक बार फिर मेरे हिस्से आई है। शायद महादेव ने मुझे लोगों की बेवजह की नफ़रत सहने के लिए ही बनाया है। खैर, मैं जानती थी कि यहाँ यही होगा, फिर भी मैं इस घर की बेटी होने का फ़र्ज़ निभाने यहाँ चली आई और अगर आपको या माँ को सच में इन पैसों की ज़रूरत नहीं तो मैं किसी ज़रूरतमंद को ही ये पैसे दे दूँगी और जाते हुए इतना ज़रूर कहूँगी कि आपको मुझसे भले नफ़रत रही हो, पर मैंने कभी किसी से नफ़रत नहीं की। मुझे आपने और मम्मी ने पराया करके यहाँ से निकाल दिया, तो दोबारा कभी मैं यहाँ कदम नहीं रखूँगी, पर अगर कभी आपको या मम्मी को मेरी ज़रूरत हो तो फ़ोन कर लीजिएगा मुझे। मैं अपना फ़र्ज़ ज़रूर निभाऊँगी।"

    धृति ने दृढ़ता से अपनी बात कही और वहाँ से चली गई। सृष्टि ने जाती हुई धृति को देखते हुए मन ही मन कहा,

    "देखने में ये इस शादी से खुश तो नहीं लग रही थी। पर फँसाया तो इसने एक अमीर आदमी को ही है, जो देखने में हैंडसम भी कम नहीं। किस्मत तो चमक गई इस धृति की बच्ची की। आगे की सारी ज़िंदगी इसकी ऐशो-आराम से बीतेगी। पता नहीं कहाँ से इतनी अच्छी किस्मत लेकर आई है कि सब अच्छी चीज़ इसे ही मिलती है और अब भी कितना अच्छा, हैंडसम और अमीर पति मिल गया उसे। एक पल में ये इस झोपड़ी से निकलकर सीधे आलीशान महल में चली गई और मैं सालों से बस कोशिश ही करती रह गई, पर इस झोपड़पट्टी से बाहर ही नहीं निकल सकी।

    मुझे भी अब किसी अमीरज़ादे को अपने जाल में फँसाना होगा ताकि आगे की ज़िंदगी बिना किसी चिंता-फ़िक्र के आराम से बीते और भगवान करे कि तेरी ज़िंदगी में खाली दुख ही आए। जितना तूने मुझे परेशान किया है, उतना ही खून के आँसू रोए तू। तुझे दर्द से तड़पते देखूँगी, तब जाकर मेरे मन को सुकून मिलेगा और देखियो, तुझसे भी बड़े मुर्गे को फँसाऊँगी मैं। इस मामले में मेरी किस्मत तुझसे बेहतर होगी।"

    सृष्टि के दिल में जाने क्यों धृति के लिए इतनी नफ़रत भरी थी और जाने उसकी यह नफ़रत उनकी ज़िंदगी को किस मोड़ पर लाकर खड़ा करने वाली थी। सृष्टि कुछ पल वहीं खड़ी नफ़रत भरी निगाहों से धृति को घूरते हुए उसे बद्दुआ देती रही, फिर दरवाज़ा बंद करके अंदर चली आई। धृति ने वह पैसे पास के ही एक वृद्धाश्रम में दान कर दिए और रायज़ादा मेंशन लौट गई।

    ड्राइवर ने अर्नव को धृति के घर जाने और वृद्धाश्रम जाने की बात बताई, पर आज वह आगे तक नहीं गया था, इसलिए धृति के घर पर क्या हुआ यह बात नहीं जानता था वह। अर्नव को धृति के वृद्धाश्रम जाने की बात पता चली तो उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। उसने तुरंत अपने आदमी को वहाँ भेजकर पता करवाया कि धृति वहाँ क्यों गई थी और जब उसे वजह पता चली तो वह हैरान रह गया कि धृति ने अपनी पूरी एडवांस सैलरी वहाँ दे दी थी।

    धृति घर आकर अपने कमरे में बैठी गहरी सोच में गुम रही। मरना चाहती थी वह, पर मौत आ नहीं रही थी और जब तक मौत नहीं आ जाती, उसे जैसे-तैसे ज़िंदगी की गाड़ी को धक्का मारकर आगे तो बढ़ाना ही था, पर इसी में लगी थी वह।

    आज भी अर्नव शाम को वापिस आया तो धृति रोज़ की तरह आज भी पहले से उसके कपड़े निकालकर रख चुकी थी। आज फिर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। डिनर के वक़्त भी धृति खामोश ही रही। सोई भी पूल साइड।

    अगले दिन वह ज़रा जल्दी उठ गई। उसने जल्दी-जल्दी अर्नव से जुड़े सभी काम निपटाए और नहाने लगी। अर्नव घर में बने जिम से बाहर निकला तो आज प्रोटीन शेक धृति के बजाय शीला लेकर आई, यह देखकर उसकी त्योरियाँ चढ़ गईं।

    "तुम यह क्यों लेकर आई हो? धृति कहाँ है?"

    अर्नव ने गुस्से से सवाल किया, जिसे सुनकर शीला ने ज़रा घबराते हुए कहा, "सर, मैडम ने ही बनवाया है। उन्हें आज ऑफ़िस जाना है, इसलिए वह मुझे यह आपको देने को कहकर नहाने चली गई हैं।"

    पहले तो अर्नव गुस्से से फुफकार रहा था, पर जब उसने ऑफ़िस जाने वाली बात सुनी तो उसके लबों पर कुटिल मुस्कान फैल गई। अर्नव ने सर हिला दिया और प्रोटीन शेक पीते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। अर्नव ने कमरे में कदम रखा तो नज़रें सीधे सामने से आती धृति पर पड़ीं। कॉलर वाला व्हाइट कुर्ता, नीचे से ब्लू जीन्स। लंबे सुनहरे रेशमी बालों को गुंथकर चोटी में बाँधा हुआ था जो उसकी कमर पर नागिन जैसे बलखा रही थीं। बालों की कुछ छोटी-छोटी लटें निकलकर उसके गालों पर अठखेलियाँ दिखा रही थीं। माँग में हल्का सिंदूर झलक रहा था, कत्थई आँखों में गहरा काजल लगा था। गुलाबी लबों पर गुलाबी रंग का बेबी लिप्स लगाया हुआ था। गले में मौजूद मंगलसूत्र सूट के नीचे छुप गया था। बाएँ हाथ की कलाई में वॉच बंधी थी और पैरों में फ़्लैट सैंडल्स।

    ऊपरी होंठ पर मौजूद तिल आज फिर फ़ाउंडेशन से छुपा लिया था। इतने दिनों में अर्नव ने उस तिल को नहीं देखा था। ज़्यादातर धृति उसे छुपाकर रखती थी और जब दिखता, तब अर्नव ध्यान नहीं देता था। ज़्यादा मेकअप नहीं किया था उसने, फिर भी बहुत प्यारी लग रही थी। माँग में सजा सिंदूर उसके शादीशुदा होने की गवाही दे रहा था। उस दिन अर्नव के सिंदूर और मंगलसूत्र के न होने के कारण उसकी नियत और चरित्र पर सवाल उठाने के बाद से धृति हमेशा सिंदूर लगाकर और मंगलसूत्र पहनकर ही रहती थी।

    अर्नव ने उसे ऊपर से नीचे तक अपनी गहरी आँखों से स्कैन किया, फिर उसके तरफ़ कदम बढ़ा दिए। धृति अपने पर्स में कुछ ढूँढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी। इसलिए अब तक उसने सामने से आते अर्नव को नहीं देखा था। कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद जाकर उसने निगाहें सामने की तरफ़ उठाईं और ठीक सामने खड़े अर्नव को देखकर उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। एक पैर हवा में उठा ही रह गया।

    पहले तो धृति स्तब्ध सी उसे देखती रही, फिर तुरंत ही हड़बड़ाहट में कदम पीछे हटाना चाहे, पर तब तक अर्नव ने उसकी बाँह पकड़कर उसे वापिस अपने करीब खींच लिया। धृति की आँखों की पुतलियाँ हैरानी से फैल गईं और भय से शरीर काँप उठा। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को अर्नव से टकराने से बचाया और आँखें बड़ी-बड़ी करके घबराई हुई सी उसे देखने लगी, जबकि अर्नव की नज़रें उसकी गर्दन पर टिकी थीं।

  • 18. बेरहम इश्क़ - Chapter 18 न्यू बॉस

    Words: 2277

    Estimated Reading Time: 14 min

    कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद धृति ने निगाहें सामने उठाईं। ठीक सामने खड़े अर्नव को देखकर उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। एक पैर हवा में उठा ही रह गया।

    पहले तो धृति स्तब्ध सी उसे देखती रही। फिर तुरंत ही हड़बड़ाहट में कदम पीछे हटाना चाहा, पर तब तक अर्नव ने उसकी बाँह पकड़कर उसे वापस अपने करीब खींच लिया। धृति की आँखों की पुतलियाँ हैरानी से फैल गईं और भय से शरीर काँप उठा। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को अर्नव से टकराने से बचाया और आँखें बड़ी-बड़ी करके घबराई हुई सी उसे देखने लगी। जबकि अर्नव की नज़रें उसकी गर्दन पर टिकी थीं।

    अर्नव ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया तो धृति उससे दूर होने के लिए कसमसा उठी।

    "छोड़िये मुझे। क्या कर रहे हैं आप? छुइये मत मुझे आप। मैं कह रही हूँ छोड़िये मुझे।"

    धृति बोलती रही, पर अर्नव को तो जैसे उसके शब्द सुनाई ही नहीं दे रहे थे। मानो उसकी आवाज़ अर्नव के कानों तक पहुँच ही नहीं रही हो। धृति उससे छूटने को कसमसाती रही, पर अर्नव की मजबूत पकड़ से छूट नहीं सकी। अर्नव ने न तो उस पर ध्यान दिया और न ही उसकी बातों पर। उसका पूरा ध्यान धृति की गर्दन पर था। उसने हाथ आगे बढ़ाकर धृति के कुर्ते के नीचे से मंगलसूत्र बाहर निकाल दिया और सख्त निगाहों से उसे घूरते हुए बोला,

    "हमारे शादी और रिश्ते की निशानियों को छुपाने की कोशिश भी मत करना। सबको पता चलना चाहिए कि तुम शादीशुदा हो और तुम पर, तुम्हारे ख्यालों पर, तुम्हारे जिस्म पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है।"

    अर्नव ने कठोर लहज़े में अपनी बात कही और उसे छोड़ते हुए बाथरूम की ओर बढ़ गया। धृति साँसें रोके, आँखें बड़ी-बड़ी किए, बस उसे देखती ही रह गई। अर्नव के बाथरूम में जाने के बाद उसने अपने गले में फाँसी के फंदे जैसे लटकते मंगलसूत्र को देखा और खुद से ही बोली,

    "मैं चाहकर भी इस शादी को झुठला नहीं सकती। कैसी मजबूरी है ये कि जिस रिश्ते से मुझे हर पल की जिल्लत, तिरस्कार, अपमान मिलता है, उसकी निशानी को भी मैं खुद से अलग नहीं कर सकती।"

    धृति ने ठंडी आह भरी और कमरे से बाहर निकल गई।

    नाश्ते के वक्त धृति अपनी नई जॉब के बारे में सोच रही थी। वहाँ इतने सारे कैंडिडेट थे, पर जॉब उसे मिली। ऑन द स्पॉट उसे सिलेक्ट करके जॉइनिंग लेटर भी दे दिया गया और जल्दबाजी में कांट्रैक्ट भी साइन करवा लिया गया।

    अर्नव की गहरी निगाहें उसी पर टिकी थीं और आँखों में आज कुछ अलग ही चमक थी, जैसे कुछ होने वाला है जिसका उसे बड़ी ही बेसब्री से इंतजार है। लबों पर कुटिल मुस्कान फैली हुई थी। कुछ तो चल रहा था उसके शैतानी दिमाग में जिससे धृति अब तक अनजान थी।

    ब्रेकफास्ट के बाद अर्नव रोज़ की तरह ऑफिस के लिए चला गया। धृति भी उसके साथ ही निकली, पर अलग गाड़ी से।

    ऑफिस पहुँचकर धृति कुछ पल बाहर खड़ी, काँच से बनी उस पाँच मंजिला खूबसूरत सी बिल्डिंग को देखती रही जिसके ऊपर बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था।

    'ASR Fashions'

    धृति ने गहरी साँस छोड़ी और अंदर चली आई। नीचे रिसेप्शन पर उसने अपना अपॉइंटमेंट लेटर दिखाया तो रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने बड़ी ही इज़्ज़त के साथ उसे फ़िफ़्थ फ़्लोर पर जाने के लिए कह दिया। धृति लिफ्ट लेकर ऊपर चली आई। जैसे-जैसे वह अंदर जा रही थी, जाने क्यों, पर उसकी दिल की धड़कनें घबराहट के मारे तेज़ होती जा रही थीं।

    धृति के कदम सीधे CEO के चैंबर के बाहर आकर रुके। उस फ़्लोर पर उस तरफ़ ऐसे ही कई केबिन बने थे, बीच में आने-जाने का रास्ता था, और उसके दोनों तरफ़ ओपन केबिन बने थे जिन्हें पार्टिशन से सेपरेट किया गया था। वहाँ मौजूद एम्प्लॉयीज़ काम में लगे थे। आगे बढ़ते हुए धृति को वह एम्प्लॉयी मिला जिसने उसका इंटरव्यू लिया था। उसने धृति को जल्दी से जाकर सर, मतलब CEO के पास जाने को कह दिया क्योंकि वह थोड़ी लेट हो गई थी। धृति थोड़ा घबरा गई और जल्दी-जल्दी CEO के केबिन के बाहर खड़ी हो गई। फिर ज़रा हिचकिचाते हुए उसने केबिन का डोर नॉक कर दिया।

    अगले ही पल अंदर से एक सख्त, रौबदार आवाज़ आई, "Come in"

    धृति ने जैसे ही केबिन में अपना पहला कदम रखा, उसके कानों में एक जानी-पहचानी सी कठोर आवाज़ पड़ी,

    "तुम अपने ऑफिस के पहले ही दिन दस मिनट लेट हो।"

    धृति आवाज़ सुनकर चौंक गई और उसकी निगाहें आवाज़ की दिशा में घूम गईं। सामने ही टेबल के दूसरे तरफ़ चेयर पर कोई बैठा नज़र आया जिसकी उल्टी साइड धृति की तरफ़ थी। अगले ही पल वह शख्स उसकी तरफ़ घूम गया। धृति की नज़र जैसे ही सामने चेयर पर, महाराजाओं जैसे चौड़ में बैठे शख्स पर पड़ी, उसकी आँखों की पुतलियाँ हैरानगी से फैल गईं और अचंभित सी वह तेज़ आवाज़ में बोल पड़ी,

    "आप...यहाँ क्या कर रहे हैं? आप मेरे पीछे-पीछे यहाँ तक चले आए?"

    सामने चेयर पर रौब में फैलकर बैठा अर्नव, धृति का एक्सप्रेशन देखकर उठकर खड़ा हो गया और उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए, लबों पर कुटिल मुस्कान सजाते हुए बोला,

    "वेलकम टू माय वर्ल्ड, मिस धृति अवस्थी।"

    धृति उसका मतलब नहीं समझ सकी और आँखें बड़ी-बड़ी किए, हैरान-परेशान सी उसे देखने लगी। उसके कन्फ़्यूज़न भरे भाव देखकर अर्नव तिरछा मुस्कुराया और उसके ठीक सामने आ खड़ा हुआ।

    "ASR फ़ैशन्स मेरी कंपनी है। यहाँ का CEO मैं हूँ, अर्नव सिंह रायज़ादा, और तुम्हें मेरी PA बनकर अब परछाई की तरह हर पल मेरे साथ रहना होगा।"

    अर्नव के लबों पर एक ईविल मुस्कान फैल गई। धृति तो जैसे उसकी बातों से सदमे में चली गई थी। वह अचंभित सी उसे देखती रही, फिर इंकार में सर हिलाते हुए बोली,

    "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"

    "ऐसा ही है, स्वीटहार्ट। मैं यहाँ का बॉस हूँ और तुम्हें अब से मेरे लिए ही काम करना है।"

    "मैं नहीं करूँगी आपके साथ काम।" धृति ने अर्नव की बात सुनते ही इंकार कर दिया। अर्नव उसका जवाब सुनकर यूँ मुस्कुराया जैसे वह जानता हो कि यही होगा। अगले ही पल तिरछी मुस्कान लबों पर सजाते हुए, गहरी निगाहों से उसे देखते हुए बोला,

    "अब तुम कॉन्ट्रैक्ट साइन कर चुकी हो। अगले छः महीने तक तुम्हें मेरे ही साथ काम करना होगा और अगर तुम कॉन्ट्रैक्ट तोड़ती हो और छः महीने से पहले जॉब छोड़ती हो तो कंपेन्सेशन के रूप में कंपनी को पूरे दो करोड़ रुपए देने होंगे, वरना तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी फैमिली भी जेल की सलाखों के पीछे जाएगी। एंड आई एम डैम श्योर कि तुम्हारे पूरे खानदान के पास इतने पैसे नहीं होंगे और न ही तुम चाहोगी कि तुम्हारी जो फैमिली पहले ही तुमसे नफ़रत करती है, वो उन्हें जेल पहुँचाने के लिए तुम्हें ज़िम्मेदार ठहराए और तुमसे और ज़्यादा नफ़रत करे।...और सबसे बड़ी बात, अगर तुमने इस जॉब को ठुकराया तो तुम्हें कहीं और नौकरी नहीं मिलेगी, अपने पर्सनल खर्च के लिए भी तुम्हें मेरे सामने हाथ फैलाना होगा और मुझसे फ़्री में तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा। हर चीज़ की कीमत चुकानी होगी तुम्हें। अब तुम सोच लो कि कौन सा रास्ता बेहतर है तुम्हारे लिए।"

    अर्नव शातिर तरीके से मुस्कुराया। उसने धृति को अपने जाल में बुरी तरह फँसा लिया था। उसके पास कोई और रास्ता नहीं छोड़ा था अर्नव ने उसके पास। अब धृति के दिमाग में सब बातें घूमने लगीं। कैसे उसकी जॉब छूटी, हर जगह उसे रिजेक्ट किया गया, फिर इस ऑफ़र का सामने से उसके पास आना, इतनी आसानी से उसे नौकरी मिलना, ऑन द स्पॉट कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाना। सब बातों के बारे में सोचने के बाद उसने अविश्वास भरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा,

    "सब आपने किया ना? मेरी जॉब छूटना, हर जगह मेरा रिजेक्शन, इस ऑफ़र का आना, इतनी आसानी से ये जॉब मुझे मिलना, मुझसे कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाना...सब आपकी साज़िश थी ताकि मुझे यहाँ अपने साथ काम करने के लिए मजबूर कर सकें और जैसे घर में मुझे टॉर्चर करते हैं वैसा यहाँ अपने एम्प्लॉयीज़ के सामने मेरा तमाशा बना सकें?"

    धृति की बातें सुनकर अर्नव अजीब तरह से मुस्कुराया, फिर वापस अपनी चेयर पर फैलते हुए बोला,

    "आई मस्ट से, दिमाग बहुत तेज़ है तुम्हारा। तुम तो मेरी पूरी प्लैनिंग समझ गई। अब जब तुम समझ ही गई हो कि मैंने ये सब तुम्हें यहाँ लाने के लिए किया है ताकि तुम्हारी ज़िंदगी को और दुश्वार कर सकूँ, तो अब और कुछ कहने-सुनने की तो ज़रूरत ही नहीं रह गई है। जैसे ये शादी तुम्हारी मजबूरी है, ये जॉब करना भी तुम्हारी मजबूरी है। छः महीने से पहले तुम ये जॉब नहीं छोड़ सकती और आई स्वेयर कि छः महीने बाद तुम इस लायक रह नहीं जाओगी कि जॉब छोड़ने का ख्याल भी अपने दिमाग में ला सको। तुम्हें अपनी आखिरी साँस तक मेरा टॉर्चर सहना होगा और ये कोई ऑप्शन नहीं, बल्कि एकमात्र रास्ता है तुम्हारे पास। अगर तुम मेरे खिलाफ़ जाती हो तो आगे की सज़ा इससे भी ज़्यादा भयंकर होगी। अब अच्छे से सोच लो कि क्या करना है तुम्हें, पाँच मिनट हैं तुम्हारे पास। या तो तुम हाँ कहोगी, या फिर अपने खानदान के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाओगी।"


    अर्नव ने धृति को पाँच मिनट का समय दिया और खुद अपने लैपटॉप में कुछ करने लगा। धृति वहीं खड़ी उसे देख रही थी।

    देखते-देखते पाँच मिनट गुज़र गए। उसके बाद अर्नव ने निगाहें धृति की तरफ़ उठाईं और भौंह उठाते हुए आँखों से ही सवाल किया। धृति सब बातों के बारे में अच्छे से सोच चुकी थी। उसने गहरी साँस छोड़ी और भावहीन सी बोली,

    "कर लीजिये जो करना है आपको मेरे साथ। अब नहीं रोकूँगी आपको। मैं भी देखना चाहती हूँ कि अपने गुस्से और नफ़रत में आप कितना नीचे गिर सकते हैं, अपनी ही पत्नी को अपने ही लोगों के सामने कितना जलील और बेइज़्ज़त कर सकते हैं।"

    अर्नव के चेहरे के भाव अब कुछ बदल से गए। पहले उसने धृति को जी भरकर घूरा, फिर अपने सामने टेबल पर लगे बटन को प्रेस किया। अगले ही पल केबिन का दरवाज़ा खुला और कबीर ने अंदर कदम रखा। धृति ने एक नज़र उसे देखा, फिर अपना चेहरा फेर लिया। अर्नव ने कुछ इशारा किया जिस पर कबीर सर हिलाते हुए वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद दो पियून एक टेबल लेकर वहाँ आ गए। देखते-देखते टेबल पूरी तरह से सेट हो गया। पर ताज्जुब की बात थी कि उस केबिन में एक्स्ट्रा टेबल ही लगाया गया था। चेयर का तो नामोनिशान तक नहीं था।

    धृति पहले तो आँखें बड़ी-बड़ी करके सब होते देखती रही, फिर जैसे ही आखिरी वाला पियून बाहर जाने लगा, धृति तुरंत ही बोल पड़ी,

    "भैया, चेयर..."

    पियून उसकी बात सुनकर पलटकर अर्नव को देखने लगा। अर्नव ने उसे जाने का इशारा कर दिया तो वह वहाँ से चला गया। धृति बस उसे देखती ही रह गई।

    "तुम्हें बैठने के लिए चेयर नहीं मिलेगी। ऐसे ही काम करना होगा तुम्हें।"

    धृति जो अब भी दरवाज़े की तरफ़ देख रही थी, उसके कानों में जैसे ही अर्नव की आवाज़ पड़ी, उसने चौंकते हुए उसे देखा। अर्नव ने भौंह उठाई तो धृति ने इंकार में सर हिला दिया। अगले ही पल अर्नव ने उसे घूरते हुए कठोर स्वर में कहा,

    "अब खड़े-खड़े मुझे क्या देख रही हो? मुझे देखने के पैसे नहीं मिलेंगे तुम्हें, इसलिए जाकर अपना काम शुरू करो। जो फ़ाइलें तुम्हारे टेबल पर रखी हैं, उन्हें पढ़कर उन पर रिपोर्ट तैयार करो और ध्यान रखना कि कल सुबह नौ बजे तक मुझे रिपोर्ट मेरे डेस्क पर मिल जानी चाहिए।"

    धृति ने सर हिला दिया और पलटकर देखा तो टेबल पर आठ-दस फ़ाइलें रखी थीं। धृति ने गहरी साँस छोड़ी और लग गई काम में। एक के बाद एक फ़ाइल पढ़ते हुए वह मेन-मेन पॉइंट्स को नोट करने लगी। देखते-देखते लंच का टाइम हो गया। अर्नव और धृति दोनों ही अपने-अपने कामों में लगे थे। धृति के सर पर पहले ही दिन इतनी ज़िम्मेदारी दे दी अर्नव ने कि वह नज़रें भी इधर-उधर नहीं कर सकी। खड़े होकर काम करना आसान तो नहीं था, पर कर रही थी वह।

    अर्नव बीच-बीच में नज़र उठाकर धृति को देख ले रहा था, फिर वापस काम करने लगता। धृति को यूँ काम में लगे देखकर और उसकी कॉन्संट्रेशन देखकर अर्नव की निगाहें कई दफ़ा उस पर ठहरीं। वह उसके चेहरे पर संघर्ष और परेशानी के भाव भी बखूबी देख पा रहा था, पर फिर भी चुप था। दोनों को ही वक्त का होश नहीं रहा था।

  • 19. बेरहम इश्क़ - Chapter 19 आशिक से मिलने तो नही पहुँच गयी थी

    Words: 2749

    Estimated Reading Time: 17 min

    अर्नव और धृति दोनों ही अपने-अपने कामों में लगे थे। धृति के सर पर पहले ही दिन अर्नव ने इतनी ज़िम्मेदारी दे दी थी कि वह नज़रें भी इधर-उधर नहीं कर सकी। खड़े होकर काम करना आसान तो नहीं था, पर वह कर रही थी।

    अर्नव बीच-बीच में नज़र उठाकर धृति को देख ले रहा था। फिर वापिस काम करने लगता। धृति को यूँ काम में लगे देखकर और उसकी एकाग्रता देखकर अर्नव की निगाहें कई दफ़ा उस पर ठहरीं। वह उसके चेहरे पर संघर्ष और परेशानी के भाव भी बखूबी देख पा रहा था, पर फिर भी चुप था। दोनों को ही वक़्त का होश नहीं रहा था।

    कुछ देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई जिसने दोनों का ध्यान अपनी ओर खींचा।

    "Come in," अर्नव की आवाज़ में अब भी रौब झलक रहा था।

    उसके परमिशन मिलते ही दरवाज़ा खुला और माधुरी ने अंदर कदम रखा। धृति उसे देखने लगी।

    "सर, लंच टाइम हो गया है। कबीर सर पूछ रहे हैं कि लंच यहाँ आपके कैबिन में करेंगे या उनके कैबिन में?"

    माधुरी का सवाल सुनकर अर्नव ने एक नज़र धृति को देखा, फिर सख्त लहज़े में बोला, "उनके कैबिन में लंच होगा। यहाँ काम चल रहा है।"

    अर्नव का इशारा धृति के काम की ओर था। माधुरी ने सर हिला दिया, फिर धृति को देखकर बोली,

    "मैम, आप भी चलकर लंच कर लीजिए, काम वापिस आकर कर लीजिएगा।"

    उसकी बात सुनकर धृति ने सर हिला दिया। सुबह घबराहट के कारण उसने ठीक से खाया नहीं था, इसलिए अब उसे भूख लग रही थी। धृति ने माधुरी की बात सुनकर जैसे ही फाइल बंद की, उसके कानों में अर्नव की सख्त आवाज़ पड़ी,

    "वह आज लंच नहीं करेगी।"

    यह सुनकर धृति की हैरानगी भरी निगाहें उसकी ओर घूम गईं। अर्नव ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा,

    "आज वह पूरे दस मिनट लेट ऑफ़िस आई थी और मुझे वक़्त की क़द्र न करने वाले, गैर-ज़िम्मेदार, लापरवाह लोगों से सख्त नफ़रत है। आज लेट से आने की इसकी सज़ा है कि आज इसे लंच ब्रेक नहीं मिलेगा। इसलिए यह यहीं रुककर अपना काम करेगी और अगर दोबारा यह ऑफ़िस के लिए लेट हुई तो सज़ा इससे भी बड़ी होगी..."

    अर्नव ने अपनी बात पूरी करते हुए चेतावनी भरी नज़रों से धृति को देखा, फिर आगे बोला, "और एक बात, यह लड़की मेरी वाइफ़ नहीं, PA है, तो ध्यान रहे कि यहाँ किसी को हमारे रिश्ते के बारे में पता नहीं चलना चाहिए।"

    अर्नव की बातें सुनकर धृति भावहीन सी उसे देखती रही। उसने पलटकर एक शब्द तक नहीं कहा। अर्नव ने निगाहें माधुरी की ओर घुमाते हुए भौंह उचकाई तो उसने सहमति में सर हिला दिया और एक नज़र धृति को देखने के बाद मायूस सी कैबिन से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद अर्नव की घूरती निगाहें धृति की ओर घूम गईं और उसने चेतावनी भरे लहज़े में कहा,

    "जा रहा हूँ, इसका मतलब यह बिल्कुल मत समझना कि अब तुम मेरी नज़रों में नहीं रहोगी। इस कैबिन में कैमरे लगे हैं और मेरी नज़रें हर पल तुम पर रहने वाली हैं, इसलिए चुपचाप अपना काम करना और बैठने या आराम करने की सोचना भी मत।"

    धृति को धमकाकर अर्नव वहाँ से चला गया। धृति की आँखों में अब हल्की नमी उतर आई। उसने अपने पेट पर हाथ रखते हुए गहरी साँस खींची और लग गई वापिस काम में। कुछ देर बाद अर्नव लंच करके वापिस आया, तब भी धृति खड़ी फाइल पढ़ती नज़र आई। अर्नव उसे देखकर तिरछा मुस्कुराया और अपनी चेयर पर आकर बैठ गया। धृति ने एक बार नज़र उठाकर उसे देखा तक नहीं।

    देखते ही देखते घड़ी ने शाम के सात बजा दिए और धीरे-धीरे सब एम्प्लॉयीज़ ऑफ़िस से जाने लगे। धृति की आठ फाइलें पूरी हो गई थीं, पर दो अब भी बाकी थीं। उसने उन दोनों फाइलों को बैग में डाल लिया। अर्नव उसे छोड़कर पहले ही जा चुका था। धृति भी माधुरी के साथ ऑफ़िस से निकल गई। गाड़ी अर्नव ने वापिस भेज दी थी, तो धृति माधुरी के साथ कैब से घर के लिए निकल गई। रास्ते में माधुरी उसे रिपोर्ट कैसे तैयार करनी है, यह बताती रही।

    धृति घर पहुँची और अभी उसने चौखट के अंदर पहला कदम रखा ही था कि उसके कानों में अर्नव की कठोर, गुस्से भरी आवाज़ पड़ी,

    "इतनी देर कहाँ लगा दी तुमने? कहीं ऑफ़िस के बाद अपने किसी आशिक़ से मिलने तो नहीं पहुँच गई थी?"

    असल में, धृति को घर आते-आते आठ बज गए थे, इसलिए अर्नव गुस्से से फायर हो रहा था। धृति के कानों में अर्नव के शब्द पड़े तो उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए। सब नौकरों के सामने अर्नव का ऐसा सवाल करना और उस पर ऐसा इल्ज़ाम लगाना धृति को सबके सामने शर्मिंदा कर गया। चेहरे पर गहरी उदासी छा गई। उसने ठंडी आह भरी और दर्द भरे लहज़े में बोली,

    "मेरा कोई आशिक़ नहीं और न ही पहले कभी था, इसलिए ऐसा बेबुनियाद इल्ज़ाम दोबारा मत लगाइएगा मुझ पर... मुझे देर हुई क्योंकि रास्ते में बहुत ट्रैफ़िक था और मैं माधुरी के साथ आई हूँ। इसलिए अगर आपको लग रहा हो कि मैं झूठ कह रही हूँ, तो उससे पूछ लीजिए। उस पर तो भरोसा होगा न आपको? तो वह बता देगी आपको कि मैं उसके साथ ही ऑफ़िस से निकली थी और वही यहाँ तक मुझे छोड़कर गई है। और एक बार अगर विश्वास नहीं मुझ पर, तो लगा दीजिए मुझ पर पहरेदारी जो मेरे पल-पल की खबर आपको देता रहे। कम से कम तब आपको इतना तो पता चलेगा कि मेरा आपके अलावा किसी लड़के से कोई संबंध नहीं और आप जो इल्ज़ाम मुझ पर लगाते हैं वह सरासर झूठ है।"

    धृति ने अपनी बात कही और सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। सोफ़े पर बैठा अर्नव बस उसे घूरता ही रह गया। धृति ने अभी पहली सीढ़ी पर कदम रखा ही था कि एक बार फिर अर्नव की सख्त आवाज़ उसके कानों से टकराई,

    "वहाँ कहाँ चली तुम?... मेरी कॉफ़ी कौन लाकर देगा और खाना कौन बनाएगा?"

    धृति के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए। उसने गहरी साँस छोड़ी और किचन की ओर चली आई। उसने अपना बैग साइड में रखा और दुपट्टे को कंधे से तिरछा लेकर कमर पर बाँधते हुए काम में लग गई। पाँच मिनट के अंदर अर्नव को उसने उसकी कॉफ़ी बनाकर दे दी और डिनर की तैयारी करने लगी। अर्नव के ऑर्डर के मुताबिक़ सब काम उसे खुद ही करना था, पर अब उसकी हालत खराब होने लगी थी। सुबह के बाद से अन्न का एक दाना भी उसके पेट में नहीं गया था। उस पर सारा दिन खड़ी रही थी, जिस वजह से पैर बुरी तरह दर्द करने लगे थे।

    धृति ने जैसे-तैसे डिनर तैयार किया और फिर रूम में पहुँची तो अर्नव बड़े ही शौक़ से बेड पर पसरकर फ़ोन चला रहा था। अर्नव ने नज़र उठाकर धृति को देखा, जिसके चेहरे पर थकान साफ़ झलक रही थी, फिर निगाहें फेर लीं। धृति ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया और अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई।

    कुछ देर बाद दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे। धृति को ज़ोरों की भूख लगी थी। उसने पहला निवाला तोड़कर मुँह में डालने के लिए उठाया ही था कि अर्नव ने उसकी प्लेट उठाकर ज़मीन पर पटक दी और गुस्से से चीखा,

    "जब मैं नहीं खा रहा तो तुम कैसे खाना खा सकती हो? यही पत्नी धर्म है तुम्हारा कि पति भूखा बैठा है और तुम अपना पेट भरने में लगी हो?"

    बेचारी धृति, वह निवाला तक नहीं खा सकी और आँखें बड़ी-बड़ी करके अर्नव को देखने लगी। वह समझ ही नहीं सकी थी कि आखिर अब अर्नव किस बात का गुस्सा उतार रहा है उस पर?

    अर्नव ने धृति के चेहरे पर उलझन भरे भाव देखे तो सब्ज़ी का बाउल ज़मीन पर पटकते हुए गरजा,

    "यह क्या सब्ज़ी बनाई है तुमने?... इतने दिनों में तुम्हें इतना पता नहीं चला कि तुम्हारे पति को क्या पसंद है और क्या नहीं?... जाओ अभी जाकर दूसरी सब्ज़ी बनाकर लाओ।"

    धृति की हालत पहले ही खराब थी, पर अर्नव ने उस पर ज़रा भी तरस नहीं खाया। धृति ने नीचे ज़मीन पर बिखरी कटहल की सब्ज़ी को देखा, जो उसने बड़े ही शौक़ से बनाई थी क्योंकि उसे बहुत पसंद थी, फिर दर्द भरी आह छोड़ते हुए सब्ज़ी उठाने के लिए नीचे बैठ गई।

    इस वक़्त उसके चेहरे पर गहरी उदासी, दर्द और बेबसी झलक रही थी। अर्नव के कारण वह एक निवाला तक नहीं खा सकी थी, पर उसने पलटकर कुछ कहा भी नहीं उसे। चुपचाप फ़्लोर साफ़ करने के बाद किचन में चली आई। कुछ देर बाद वह दूसरी सब्ज़ी बनाकर लाई। पनीर बनाई थी उसने, जो अर्नव को तो पसंद थी, पर धृति को पसंद नहीं थी। अर्नव ने तो भरपेट खाना खाया, पर सुबह की भूखी धृति दो रोटियाँ खाकर ही खाने पर से उठ गई और कमरे में चली आई।

    कुछ देर बाद अर्नव कमरे में पहुँचा तो कमरा बिल्कुल खाली था। अर्नव ने कुछ सोचते हुए ग्लास विंडो का पर्दा साइड करके पूल साइड देखा तो काउच पर बैठी धृति अपने पैरों में तेल लगा रही थी। धृति ने तेल लगाकर अपने पैरों की हल्की मालिश की, फिर हाथ धोकर वापिस काम में लग गई।

    घड़ी की टिक-टिक के बीच अर्नव वहाँ खामोश खड़ा धृति को देखता रहा। आधी रात गए धृति ने अपना काम किया, फिर वहीं सोने के लिए लेट गई। अर्नव भी आकर बेड पर लेट गया।

    अगली सुबह जब वह उठा तो धृति कमरे में नहीं थी। उसके कपड़े से लेकर ज़रूरत का सब सामान सलीके से टेबल पर रखा था। अर्नव पहले जिम में गया, फिर नहाकर तैयार होकर नीचे पहुँचा तो डाइनिंग टेबल पर खाना लगा था, पर धृति वहाँ नहीं थी।

    अर्नव ने आस-पास निगाहें घुमाईं, फिर शीला को देखकर सवाल किया, "तुम्हारी मैडम कहाँ है?"

    "सर, मैडम कह रही थीं कि उन्हें कुछ काम था, इसलिए आज जल्दी ऑफ़िस चली गई हैं। ड्राइवर के साथ गई हैं, तो आप फ़ोन करके उनसे पूछ सकते हैं कि मैडम कहाँ गई हैं।"

    धृति ने अर्नव के शक का इलाज भी कर दिया था, पर उसकी यह बात अर्नव को कुछ खास पसंद नहीं आई थी। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था और आँखों में नाराज़गी झलकने लगी थी। अर्नव ने खाने को हाथ तक नहीं लगाया और अपना लैपटॉप का बैग और कार की चाबी लेकर बाहर निकल गया।

    धृति आज टाइम से पहले ऑफ़िस पहुँच गई थी। माधुरी से बात करवाने पर उसे एंट्री मिल गई थी। ऑफ़िस की साफ़-सफ़ाई करने वाला स्टाफ़ आ चुका था और वह अपने काम में लगे थे। धृति इस वक़्त प्रिंटिंग एरिया में खड़ी अपनी बनाई रिपोर्ट का प्रिंट आउट निकाल रही थी। तभी अचानक किसी ने उसकी बाँह पकड़कर उसे कोने में खींच लिया, जिससे धृति चौंक गई। पर जब तक वह संभल पाती या खुद को बचा पाती, उस शख़्स ने उसे दीवार से सटा दिया और उसकी दोनों कलाइयों को जकड़ते हुए उसके हाथ को ऊपर करके दीवार से चिपका दिया।

    घबराहट के मारे धृति की साँसें थम गई थीं। वह बुरी तरह डर गई थी, पर जब उसने सामने खड़े अर्नव को देखा, तब कहीं जाकर उसे कुछ राहत महसूस हुई।

    अर्नव ने उसे बिल्कुल दीवार से चिपका दिया और गुस्से से धधकती निगाहों से उसे घूरते हुए दाँत पीसते हुए बोला,

    "क्या कर रही हो तुम सुबह-सुबह यहाँ?... हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझे बिना बताए घर से बाहर कदम रखने की?... क्या सोचकर तुम खाने के लिए बिना मेरा इंतज़ार करे यहाँ चली आई?... "

    अर्नव ने गुस्से में धृति की कलाइयों को कुछ ज़्यादा ही सख़्ती से दबा दिया था, जिससे उसकी कलाइयों में तेज़ दर्द होने लगा। धृति अर्नव को सामने देखकर चौंक गई थी, फिर उसका गुस्सा देखकर सहम गई, पर जब उसने अर्नव की बातें सुनी तो उसके चेहरे के भाव बदल गए। उसने अर्नव की पकड़ से अपनी कलाइयों को छुड़ाने की कोशिश करते हुए जवाब दिया,

    "मैं प्रिंट आउट निकालने जल्दी आई थी ताकि आपका काम वक़्त पर पूरा कर सकूँ। आपके सब काम करके आई थी मैं, शीला को बता भी दिया था कि मैं ऑफ़िस आ रही हूँ और अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं, तो अपने ड्राइवर से पूछ लीजिए कि घर से मैं सीधे यहाँ आई हूँ या नहीं... मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब किस बात पर आप इतना भड़क रहे हैं? आपने कहा था मुझे कि एक पत्नी का फ़र्ज़ निभाते हुए मुझे आपके सब काम करने होंगे, तो मैंने सब किया था। आपने पहले यह नहीं कहा था मुझे आपके साथ बैठकर खाना खाना भी होगा या आपसे पहले मैं घर से बाहर कदम नहीं रख सकती। इसलिए अब इसके लिए आप मुझे टॉर्चर नहीं कर सकते।"

    धृति की बात सुनकर भी अर्नव के भाव ज़रा भी नहीं बदले। धृति को छोड़ने के बजाय उसने उसकी कलाई को थामे हुए उसकी बाँह को मरोड़कर उसकी पीठ से चिपकाते हुए धृति को अपने करीब कर लिया और धधकती निगाहों से उसे घूरते हुए बोला,

    "मैं क्या कर सकता हूँ और क्या नहीं, यह मुझे तुमसे जानने की ज़रूरत नहीं है... और न ही मैं कुछ भी तुम्हारे हिसाब से करने वाला हूँ। उल्टा तुम्हें अपनी ज़िंदगी मेरे हिसाब से जीनी है। मेरी इज़ाज़त के बिना तुम्हें साँस लेने तक की भी इज़ाज़त नहीं है, यह याद रखना... पत्नी हो तुम मेरी और एक अच्छी पत्नी की तरह तुम्हें मेरा हर काम करना है, मेरा ध्यान रखना है। जब तक मैं नहीं खा लेता, तुम्हें खाने की इज़ाज़त नहीं है। मेरी परमिशन के बिना तुम्हें घर से एक कदम भी बाहर निकालने की इज़ाज़त नहीं है। यह बातें अपने दिलों-दिमाग़ में अच्छे से बिठा लो, क्योंकि आज तो इसे तुम्हारी पहली गलती समझकर माफ़ कर रहा हूँ, पर अगली बार माफ़ी नहीं, सज़ा मिलेगी तुम्हें... तुम क्या और कैसे मैनेज करोगी, मुझे नहीं पता, पर मैं तुम्हारी पहली रिस्पॉन्सिबिलिटी हूँ, जिसमें कोई कॉम्प्रोमाइस बर्दाश्त नहीं करूँगा मैं, इसलिए आज वाली हरकत दोबारा रिपीट नहीं होनी चाहिए।"

    अर्नव ने चेतावनी भरी निगाहों से उसे घूरा और झटके से धृति को खुद से दूर झटक दिया। दर्द से धृति की आँखों में आँसू आ गए थे और इतनी देर से वह खुद को किसी तरह संभाले हुए थी, पर अब वह खुद को नहीं संभाल सकी। उसने अपनी कलाइयों को देखा, जिस पर अर्नव की उंगलियों के निशान छप चुके थे और कलाई एकदम लाल हो गई थी। धृति अपनी कलाई को पकड़कर सहलाने लगी और उसकी आँखों में ठहरे आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए।

    एक बार फिर बेवजह उसके हिस्से अर्नव का गुस्सा, बेरुखी और यह दर्द आया था। अर्नव, जिसका चेहरा अब भी गुस्से से भरा था। उसकी नज़र धृति की लाल कलाइयों और गालों पर ठहरे आँसू की बूंदों पर पड़ी तो उसके चेहरे के भाव कुछ कोमल हो गए। पहले तो बेख़याली में उसके कदम धृति की ओर बढ़े, पर अगले ही पल उसने नफ़रत से उस पर से निगाहें फेर लीं और गुस्से में लंबे-लंबे डग भरते हुए वहाँ से अपने कैबिन की ओर चला गया।

    धृति ने अपने आँसू पोछे और थोड़ा आगे आई तो वहाँ ऑफ़िस का एक लड़का खड़ा था और उसके शॉक़्ड से चेहरे को देखकर धृति समझ गई कि उसने कुछ तो देख लिया है। पर धृति ने उसे अनदेखा करते हुए अपने प्रिंट्स लिए और अर्नव के कैबिन की ओर बढ़ गई।

  • 20. बेरहम इश्क़ - Chapter 20 नई मुसीबत

    Words: 2449

    Estimated Reading Time: 15 min

    एक बार फिर बेवजह उसके हिस्से अर्नव का गुस्सा, बेरुखी और यह दर्द आया था। अर्नव का चेहरा अब भी गुस्से से भरा था। उसकी नज़र धृति की लाल कलाइयों और गालों पर ठहरे आँसू की बूंदों पर पड़ी तो उसके चेहरे के भाव कुछ कोमल हो गए। पहले तो बेख्याली में उसके कदम धृति की ओर बढ़े, पर अगले ही पल उसने नफ़रत से उस पर से निगाहें फेर लीं और गुस्से में लम्बे-लम्बे डग भरते हुए वहाँ से अपने केबिन की ओर चला गया।

    धृति ने अपने आँसू पोंछे और थोड़ा आगे आई तो वहाँ ऑफ़िस का एक लड़का खड़ा था। उसके शॉक्ड से चेहरे को देखकर धृति समझ गई कि उसने कुछ तो देख लिया है। पर धृति ने उसे अनदेखा करते हुए अपने प्रिंट्स लिए और अर्नव के केबिन की ओर बढ़ गई।

    अर्नव अपने केबिन में चेयर पर बैठा लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। तभी केबिन का दरवाज़ा खुला और धृति ने अंदर कदम रखा। अभी बेचारी पहला कदम ही अंदर रख पाई थी कि अर्नव की गुस्से से लाल आँखें उसे घूरने लगीं और साथ ही उसकी कठोर, बेरुखी भरी आवाज़ कानों से टकराई।

    "यह घर नहीं है तुम्हारा, मेरा ऑफ़िस और मेरा केबिन है। यहाँ यूँ ही मुँह उठाए किसी को भी घुसते चले आने की इजाज़त नहीं है। जो तुम बिना पूछे अंदर घुस आई... क्या इतने भी मैनेर्स नहीं तुममें? प्रोफ़ेशनल जगहों पर कुछ रूल्स फ़ॉलो करने होते हैं। किसी के केबिन में आने से पहले डोर नॉक करके परमिशन ली जाती है और परमिशन मिलने पर ही अंदर आया जाता है।"

    धृति का मूड पहले ही खराब हो चुका था। उसने यहाँ भी अर्नव से बहस नहीं की और चुपचाप वापस बाहर चली गई। उसने डोर नॉक किया, पर अंदर से अर्नव का जवाब नहीं आया। धृति ने कुछ देर इंतज़ार करने के बाद फिर से डोर नॉक किया, पर फिर से अंदर से अर्नव का कोई जवाब नहीं आया। धीरे-धीरे ऑफ़िस के बाकी इम्प्लॉयी भी आ गए। माधुरी जब अपने केबिन की ओर बढ़ी तो अनायास ही उसकी नज़र अर्नव के केबिन के बाहर खड़ी धृति पर चली गई। माधुरी उसे यूँ बाहर खड़े देखकर चौंक गई और उसके पास आकर हैरानगी से बोली,

    "मैम, आप इस वक़्त यहाँ खड़े होकर क्या कर रही हैं? अंदर जाइये, वरना लेट आने के लिए सर आज फिर आपको कोई सज़ा दे देंगे।"

    धृति तब से कई बार गेट नॉक कर चुकी थी, पर अर्नव उसे अंदर बुला ही नहीं रहा था। माधुरी की बात सुनकर धृति ने बेबसी भरी निगाहों से उसे देखा और मायूसी से बोली,

    "वो जानते हैं कि मैं बाहर खड़ी हूँ, पर जानबूझकर मुझे अंदर नहीं बुला रहे।"

    धृति की बात सुनकर माधुरी का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। उसने केबिन के बंद दरवाज़े को घूरते हुए गुस्से से दाँत पीसते हुए कहा,

    "सर का दिमाग खराब हो गया है! मन तो करता है कि उनके सारे बाल नोचकर, उनके दिमाग का ऑपरेशन कर दूँ, ताकि दिमाग वहीं सही जगह आकर सही दिशा में चलने लगे। पर मजबूरी है जो उनकी सब मनमानी खामोशी से सहनी पड़ती है। अगर ये मेरे बॉस न होते न, तो मैं एक दिन में उन्हें उनकी नानी याद दिला देती। वो हाल करती उनका कि उनकी सात पुश्तें भी याद रखतीं।"

    माधुरी को गुस्से से भड़कते देखकर धृति ने शांत लहज़े में कहा, "माधुरी, तुम मेरे वजह से उनसे दुश्मनी मत मोल लेना। तुम्हारे साथ वो ठीक से पेश आते हैं तो तुम भी उनके प्रति अपने मन में ज़हर मत भरों। यह मेरे और उनके बीच का मामला है, मैं संभाल लूँगी।"

    माधुरी बोलने के अलावा कर ही क्या सकती थी? उसने मायूसी से सर हिलाया और अपने केबिन में चली गई। कुछ देर बाद कबीर वहाँ आया और केबिन के बाहर खड़ी धृति को देखकर चौंक गया। धृति ने एक नज़र उसे देखा, फिर निगाहें फेर लीं। कबीर ने भी उसको नज़रअंदाज़ किया और सीधे अंदर चला गया। यह देखकर धृति की आँखें हैरानी से फैल गईं।

    कबीर अंदर आया और लैपटॉप में घुसे अर्नव को देखकर हैरानगी से बोला, "अर्नव, धृति बाहर खड़ी होकर क्या कर रही है?"

    कबीर का सवाल सुनकर अर्नव ने लैपटॉप के की-पैड पर उंगलियाँ चलाते हुए ही जवाब दिया, "मैंने उसे अंदर आने की परमिशन नहीं दी, इसलिए बाहर खड़ी है।"

    "और तू उसे अंदर क्यों नहीं आने दे रहा? यही तो काम करती है वो।" कबीर ने एक बार फिर हैरानगी से सवाल किया। अर्नव ने अब निगाहें उठाकर उसे देखा और कठोर लहज़े में बोला,

    "वो हमारे बीच का मामला है। पत्नी है वो मेरी, मैं जो चाहे करूँ उसके साथ, इसके लिए मैं किसी के सवालों के जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हूँ। और यहाँ वो मेरी असिस्टेंट है, तो जो मेरा मन करेगा मैं उससे करवाऊँगा और उसे करना ही होगा। इसलिए तुझे न तो उसकी चिंता करने की ज़रूरत है और न ही हमारे बीच कुछ कहने की ज़रूरत है। इसलिए उसे छोड़ और अपने आने की वजह बता।"

    अर्नव की बात सुनकर कबीर ने आगे धृति के बारे में कुछ नहीं कहा। उसने गहरी साँस छोड़ी और गंभीरता से बोला,

    "दस मिनट बाद मीटिंग है मार्केटिंग डिपार्टमेंट के साथ, तो पूछने आया था कि तू चलेगा या नहीं?"

    "चलूँगा।" अर्नव ने सर हिलाया और अपना कोट पहनते हुए उठकर खड़ा हो गया। दोनों केबिन से बाहर निकले तो धृति उन्हें देखने लगी। पहले तो अर्नव कबीर से कुछ डिस्कस करते हुए धृति को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करते हुए आगे बढ़ गया, पर कुछ कदम चलने के बाद अचानक ही उसके दिमाग में कुछ आया और वह चलते-चलते रुक गया। उसने पलटकर धृति को देखा और सख्त लहज़े में बोला,

    "मेरी इजाज़त के बिना मेरे केबिन में कदम रखने की सोचना भी मत।"

    इतना कहकर वह कबीर के साथ मीटिंग, मतलब कॉन्फ़्रेंस रूम में चला आया जहाँ पहले से बाकी सब मौजूद थे। धृति वहाँ खड़ी की खड़ी ही रह गई। देखते-देखते चार घंटे बीत गए। लंच भी निकल गया, पर अर्नव वापस नहीं आया। धृति कभी अपने हाथ में पकड़ी फ़ाइल को देखती, कभी कलाइ पर बंधी घड़ी में टाइम देखती, तो कभी निगाहें आस-पास घुमाती। उस पूरे फ़्लोर पर वह आज चर्चे में थी। सब उसे यूँ बाहर देखकर बातें बना रहे थे। कुछ उससे सिम्पैथी दिखाते, तो कुछ उसे नफ़रत से देखते। खैर, धृति ने किसी पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

    पाँच घंटे लम्बी मीटिंग चली, उसके बाद जाकर अर्नव वापस आया और अंदर जाते हुए तिरछी निगाहों से धृति को देखते हुए बोला,

    "Come in"

    धृति जो सुबह से वहाँ खड़ी-खड़ी थक चुकी थी, वह झट से अंदर चली आई। अर्नव अपनी चेयर पर आकर बैठा तो धृति ने अपने हाथ में पकड़ी फ़ाइल उसकी ओर बढ़ा दी।

    "सर, रिपोर्ट।"

    अर्नव ने एक नज़र धृति को देखा, फिर उसके हाथ से रिपोर्ट की फ़ाइल लेकर डस्टबिन में डाल दी। यह देखकर धृति की आँखें हैरानी से फैल गईं। वह अचंभित सी तेज आवाज़ में बोल पड़ी,

    "सर, यह क्या किया आपने?"

    अर्नव ने निगाहें घुमाकर उसे देखा और बेफ़िक्री से बोला,

    "मैंने पहले ही कहा था कि सुबह यह फ़ाइल मुझे मेरे डेस्क पर चाहिए, पर तुम मेरी दी डेडलाइन पर अपना काम पूरा नहीं कर सकीं और अब इस फ़ाइल का मुझे कोई काम नहीं, इसलिए अब यह रद्दी में जाएगी।"

    अर्नव की यह बात सुनकर धृति की आँखों की पुतलियाँ यूँ फैली मानो निकलकर बाहर आ गिरेंगी। वह हैरान-परेशान सी बोल पड़ी,

    "पर मैंने सुबह तक फ़ाइल तैयार कर दी थी। आपने ही मुझे अंदर नहीं आने दिया।"

    "वह सज़ा थी तुम्हारी, मेरे केबिन में मुझसे बिना पूछे आने की, जिसकी ज़िम्मेदार सिर्फ़ तुम थीं। इसलिए तुम्हारे इन बहाने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। मुझे टाइम पर मेरा काम नहीं मिला, तो अब उस काम की मेरी नज़रों में कोई वैल्यू नहीं, That's it।"

    धृति के चेहरे के भाव अब कुछ बदल से गए। उसने डस्टबिन में पड़ी उस फ़ाइल को देखा, जिसमें वह कल सुबह से आधी रात तक लगी हुई थी। जिसके लिए वह सुबह जल्दी उठकर जल्दी ऑफ़िस आई, अर्नव का गुस्सा भी सहा। फिर बेबसी भरी मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोली,

    "मैं समझ गई। यह सब बस मुझे टॉर्चर करने के लिए किया जा रहा है।…Fine…जो करना है कीजिए। देखते हैं आपके टॉर्चर करने की लिमिट ज़्यादा है या मेरे सहने की। आपकी नफ़रत ज़्यादा है या मेरा सब्र और हिम्मत।"

    धृति ने एक नज़र फिर उस फ़ाइल को देखा और अपने टेबल के पास चली आई। एक बार फिर वहाँ फ़ाइलों का ढेर लगा हुआ था। लंच निकल चुका था तो धृति ने शाम तक काम किया और आज फिर माधुरी के साथ घर गई। पर उसके और अर्नव के बीच जो भी हुआ, उसने कुछ भी उसे नहीं बताया। लेकिन धृति के चेहरे पर छाई उदासी देखकर वह काफ़ी हद तक बात समझ गई थी कि ज़रूर उसकी उदासी की वजह अर्नव ही होगा, मतलब फिर उसने कुछ किया होगा।

    अर्नव आज धृति के बाद घर पहुँचा। तब तक धृति फ़्रेश हो चुकी थी। आज फिर डिनर में अर्नव ने ड्रामे किए। पर धृति आज भी खामोश ही रही। आज भी वह पूल साइड ही सोई।

    यूँ ही दिन गुज़रने लगे। हर बीतते दिन के साथ अर्नव का धृति के लिए व्यवहार और भी बेरुखा भरा होता जा रहा था। सुबह-शाम वह खाने या किसी न किसी बात को लेकर धृति पर बरस पड़ता। सबके सामने उसे जलील करता। अक्सर उसको अपने वजह से ऑफ़िस जाने में लेट करवा देता और रोज़ एक नई सज़ा उसका इंतज़ार करती। उस पूरे फ़्लोर पर धृति फ़ेमस हो चुकी थी, जिसकी कई वजहें हैं, जिसमें से एक उसका अर्नव के केबिन में काम करना और कई दफ़ा अर्नव के करीब पाया जाना था।

    दुनिया और वहाँ काम करते लोगों की नज़रों में वह शादीशुदा थी। अर्नव से उसके रिश्ते के बारे में कोई जानता नहीं था। ऐसे में अर्नव उनके लिए एक गैर-मर्द था, जिसके साथ धृति का एक बन्द केबिन में काम करना उनके लिए शक के घेरे में आता था। कई दफ़ा धृति पर गुस्सा करते हुए वह उसके करीब चला जाता, जिसे कोई न कोई देख लेता और बात पूरे फ़्लोर पर फैल जाती। सब उसके बारे में बातें करते, पर धृति अब तक इन बातों से पूरी तरह अनजान थी कि बाहर लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं और कैसी-कैसी बातें होती हैं उसके बारे में।

    माधुरी सब देखकर भी खामोश थी और कबीर ने उसे इस मामले से दूर रहने कहा था, जिस वजह से माधुरी बहुत बार उस पर भी बरस पड़ती थी। अर्नव को तो कुछ कह नहीं सकती थी, तो कबीर की ही क्लास लगा देती थी।

    देखते-देखते तीन हफ़्ते से ज़्यादा वक़्त गुज़र चुका था। धृति और अर्नव की शादी को डेढ़ महीना होने को था, पर अर्नव का धृति के प्रति रवैया ज़रा भी नहीं बदला था, या यह कहें कि उसकी नफ़रत, गुस्सा और बेरुखी वक़्त के साथ और बढ़ गई थी।

    आज भी धृति को बैठने के लिए चेयर नहीं दी गई थी। वह सारा दिन खड़े-खड़े ही काम करती, पर कुछ कहती नहीं थी। आज भी वह काम कर रही थी, पर आज बाकी दिनों से ज़्यादा असहज सी लग रही थी वह। बार-बार वह अपने पेट को छूती, रह-रहकर चेहरे पर दर्द की रेखाएँ उभर आतीं। अर्नव की चील की तेज़, गहरी निगाहों से कुछ छुपा नहीं था, पर उसने कुछ कहा भी नहीं, बस खुद को काम में व्यस्त दिखाता रहा।

    कुछ देर तो धृति बर्दाश्त करती रही, पर जब उससे दर्द सहन नहीं हुआ तो हारकर उसने अर्नव की ओर निगाहें घुमाईं। अर्नव के चेहरे पर सख्त भाव मौजूद थे और वह किसी फ़ाइल को बड़ी ही बारीकी से पढ़ रहा था। धृति कुछ पल खामोशी से उसको देखती रही, फिर परेशान सी बोली,

    "सर, क्या मुझे आज की छुट्टी मिल सकती है?"

    "क्यों?" अर्नव की आवाज़ अब भी सख्त थी और वह भौंहें चढ़ाए उसे घूरने लगा था। धृति उसका सवाल सुनकर थोड़ा सकुचाई, फिर निगाहें झुकाते हुए बोली,

    "मुझे मेरी तबियत आज कुछ ठीक नहीं लग रही। मेरा अभी घर जाना बहुत ज़रूरी है।"

    अर्नव ने उसका जवाब सुनकर एक बार फिर भौंहें चढ़ाते हुए सवाल किया, "क्या हुआ है तुम्हारी तबियत को जो तुम्हें अभी घर जाना है?"

    "मैं आपको नहीं बता सकती, बस मुझे अभी घर जाना है।" धृति ने निगाहें चुराते हुए जवाब दिया। अर्नव कुछ पल गहरी निगाहों से उसे देखता रहा, फिर बेफ़िक्री से बोला,

    "ठीक है। अगर तुम मुझे वजह साफ़-साफ़ नहीं बता सकती कि तुम्हें छुट्टी क्यों चाहिए, तो मैं भी तुम्हें घर जाने की इजाज़त नहीं दे सकता। इसलिए अपना नाटक छोड़ो और चुपचाप काम करो।"

    अर्नव की बात सुनकर धृति का मुँह लटक गया। उसने बेबसी से कहा, "आप समझ नहीं रहे हैं। मेरा घर जाना बहुत ज़रूरी है।"

    "मुझे कुछ समझना भी नहीं है। तुम्हें जितना कहा जा रहा है, बस उतना करो।"

    अर्नव ने कठोर लहज़े में कहा और अपने काम में लग गया। धृति कुछ पल परेशान सी उसे देखती रही और मन ही मन बोली,

    "आप जैसे पत्थर दिल, बेदर्द, बेरहम इंसान से मैंने रहम और दया की उम्मीद की, यह मेरी ही गलती थी।"

    धृति ने दर्द भरी आह्ह छोड़ी और मन मारकर वापस काम में लग गई, पर उससे काम किया नहीं जा रहा था। यूँ ही घंटा भर बीत गया। फिर धृति बाथरूम में चली गई, पर बाहर नहीं आई। अर्नव बार-बार नज़रें बाथरूम की ओर घुमाता और टाइम देखता। वक़्त बीतता जा रहा था। देखते-देखते धृति को अंदर गए दो घंटे बीत गए, पर वह बाहर नहीं आई।


    जल्द ही अगला भाग...