शादी एक ऐसा रिश्ता जहां दो जिस्मों में बसे रूह एक हो जाते हैं, जहां जिंदगी के सफ़र के हमसफ़र बन जाते हैं, लेकिन जब यही हम सफ़र बीच सफ़र में धोखा दे, और इससे भी आगे बढ़ कर मौत दे तो इंसान कितना टूटेगा? ये कहानी भी ऐसी ही है जहां अपने पति रिवाज को सब कु... शादी एक ऐसा रिश्ता जहां दो जिस्मों में बसे रूह एक हो जाते हैं, जहां जिंदगी के सफ़र के हमसफ़र बन जाते हैं, लेकिन जब यही हम सफ़र बीच सफ़र में धोखा दे, और इससे भी आगे बढ़ कर मौत दे तो इंसान कितना टूटेगा? ये कहानी भी ऐसी ही है जहां अपने पति रिवाज को सब कुछ मानने वाली खनक को उसके ही पति से मिलेगा धोखा, और फिर एक भयानक मौत! लेकिन मौत को मात दे कर बच जाएगी खनक और शुरुआत होगी एक नए दास्तान की! क्या खनक खुद को इंसाफ दिल पाएगी? क्या उसके जिंदगी में खुशियां आएंगी? जानने के लिए पढ़ें "तू भी सताया जाएगा" मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ Only on storymania
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हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको ये नई कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें, आपके कमेंट से मुझे बहुत खुशी मिलती है।😍🤩
चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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अक्सर बड़े शहर खुद के अंदर कई कहानियाँ छुपाए रहते हैं, कई घटनाओं के चश्मदीद गवाह होते हैं। इनकी सड़कें, इनकी गलियाँ, और उन गलियों में बने घर—हर घर के आँगन में खेलती ज़िंदगियाँ किसी न किसी कहानी का हिस्सा होती हैं। कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें पन्नों पर उतारने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, वो खुद-ब-खुद पन्नों पर उतर जाती हैं... और चीख-चीख कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हैं। ऐसी ही एक कहानी है—हमारी खनक की।
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मुंबई (सुनसान सड़क)
मुंबई—जिसे लोग माया नगरी कहते हैं और सही भी कहते हैं। ये शहर किसी को भी भिखारी से राजा और राजा से भिखारी बना सकता है। यही इस शहर की करामात है—जिससे खुश हो गया, उसे पैसा और शोहरत देता है। और जिससे नाराज़ हुआ, उसे तबाह कर देता है—उसकी राख तक को समंदर में बहा देता है।
और आज, ये शहर फिर से किसी से नाराज़ है। सवाल ये है कि क्या ये उसे बर्बाद करेगा... या माफ़ कर देगा?
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मुंबई की एक अनजान लेकिन वीरान सड़क पर एक लड़की, हरे रंग की साड़ी में, बेतहाशा भाग रही थी। उसके सिर से खून बह रहा था। उसके पैरों में गहरी चोटें थीं, जिनसे लगातार खून रिस रहा था। उसके कंधे पर गोली लगी थी, और वहाँ से खून इस तरह बह रहा था जैसे बादलों से पानी। उसके होंठ सूख चुके थे। आँखों में मौत का डर था—पर उस डर से भी ज़्यादा एक दर्द था। कैसा दर्द? यह अब तक साफ़ नहीं था। वह बस भाग जाना चाहती थी—पूरी दुनिया से दूर, बहुत दूर, जहाँ कोई उसे न ढूँढ सके।
वह भाग रही थी और उसके पीछे एक लड़का और एक लड़की उसका पीछा कर रहे थे।
लड़का (आवाज़ लगाते हुए):
"रुक जाओ डार्लिंग, रुक जाओ! कहाँ भाग रही हो? रुक जाओ जान!"
जैसे-जैसे वह लड़का खनक को आवाज़ देता, वैसे-वैसे खनक की आँखों से आँसू लुढ़कते और उसके गालों पर बहते चले जाते। लेकिन वह नहीं रुकी… बस भागती रही।
लड़की (लड़के पर भड़कते हुए):
"क्या डार्लिंग-डार्लिंग लगा रखा है रिवाज? उसे पकड़ो, वरना वह हमारे लिए मुसीबत बन जाएगी। उसे जल्दी से पकड़ना होगा, वरना वी आर फिनिश!"
रिवाज (भागते हुए):
"शाइनी, जो तुम बोल रही हो, वो तुम खुद भी कर सकती हो! और वैसे भी, वह ज़्यादा दूर नहीं भाग सकती। उसे गंभीर चोटें आई हैं।"
इतना कहकर वह तेज़ी से खनक की ओर दौड़ा। रात का घना अँधेरा छाया हुआ था। कुछ भी साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। यहाँ तक कि उनके चेहरे भी धुँधले थे।
रिवाज ने दौड़कर खनक को पकड़ लिया। खनक खुद को छुड़ाने की भरसक कोशिश करती रही, हाथ-पैर मारती रही—लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं था, रिवाज का शरीर मजबूत और भारी था, जबकि खनक बेहद नाज़ुक थी। उसके लिए उससे छूट पाना लगभग नामुमकिन था। वह बार-बार हाथ-पैर मारती रही, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
रिवाज उसे घसीटते हुए पास खड़ी गाड़ी तक ले गया—वही गाड़ी जिससे खनक भागी थी। अब खनक को समझ आ गया था कि वह इनसे बच नहीं पाएगी।
शाइनी एक टेप लेकर आई और खनक के मुँह पर चिपका दिया। दोनों ने मिलकर उसे गाड़ी में पटक दिया और गाड़ी तेज़ स्पीड में वहाँ से निकल पड़ी।
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पाठक फार्म हाउस
गाड़ी एक छोटे से फार्महाउस के सामने आकर रुकी। रिवाज और शाइनी गाड़ी से उतरे और पीछे का दरवाज़ा खोलकर खनक को बाहर निकाला। वे उसे घसीटते हुए उस छोटे लेकिन खूबसूरत घर के अंदर ले गए। अंदर जाकर उन्होंने उसे एक कुर्सी पर बैठाया और उसके दोनों हाथ आपस में कसकर बाँध दिए। वह पहले से ही अधमरी हालत में थी, इसलिए भागने की कोई संभावना नहीं थी।
रिवाज (उसके पैरों के पास बैठते हुए, उसका हाथ पकड़ते हुए):
"जान, याद है ये फार्महाउस मैंने तुम्हें बर्थडे गिफ्ट में दिया था? कितने प्यार से तुम्हारे लिए खरीदा था ये सब… लेकिन अब हमारे बीच कुछ भी वैसा नहीं रहा। मुझे तुमसे जो खुशी चाहिए थी, वो तुम नहीं दे सकीं। वो खुशी मुझे अब मेरी शाइनी से मिलती है। इसलिए तुम्हें जाना होगा बेबी… क्योंकि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।"
खनक (मुस्कुराकर, लड़खड़ाते हुए):
"हाँ, बिल्कुल सही कहा… कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। लेकिन याद रखना रिवाज पाठक—कभी-कभी सब कुछ पाने की चाह में, आप वो खो देते हैं जिसकी वजह से आपका वजूद है। मैं तो चली जाऊँगी… लेकिन ये आँसू तुम्हें कभी चैन से सोने नहीं देंगे।"
शाइनी घबरा गई और रिवाज को खींचकर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए। रिवाज ने भी उसका साथ दिया। खनक ने अपनी आँखें बंद कर लीं।
इसके बाद, रिवाज ने पूरे फ्लोर पर पेट्रोल डाल दिया और आग लगा दी। दोनों बाहर निकल आए।
तभी अंदर से खनक की आवाज़ आई—
खनक (चीखते हुए):
"तुम हार गए रिवाज पाठक!
मैं माँ नहीं बन सकती, इसलिए तुमने मुझे धोखा दिया, है ना?
तो सुनो—मैं प्रेग्नेंट थी!
जा रही हूँ मैं अपने बच्चे को लेकर।
आज एक बाप ने अपने ही अजन्मे बच्चे को मार डाला।
एक पति ने अपनी पत्नी को मार डाला।
तुम इस गुनाह से कभी उभर नहीं पाओगे।
तुम हार गए… रिवाज पाठक, तुम हार गए!"
खनक की बातें सुनकर रिवाज के कदम वहीं जम गए। वह हैरानी से उस जलते हुए घर को देखता रहा, जो अब पूरी तरह आग की लपटों में घिर चुका था।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता… खनक की चीखें हमेशा के लिए शांत हो चुकी थीं। वहीं रिवाज मानो जम गया था लेकिन शाइनी की हालत ख़राब हो रही थी आखिर जलते हुए घर को देख कर सड़क पर चलने वाले या आस पास के लोग इकट्ठे हो सकते थे। शाइनी ने रिवाज का हाथ पकड़ा और खींचते हुए बाहर ले जाने लगी और घबराते हुए बोली,"रिवाज क्या पागलपन है? अब यहां रुक कर जेल जाना है क्या चलो जल्दी से, निकलना ही सही है।"
लेकिन रिवाज के कानों में कुछ पल कही खनक की बात गूंज रही थी उसका मन बैचेन सा हो उठा था।
आज के लिए इतना ही कहानी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताओ सब। Bye 👋🤌
Stay tuned my lovelies ❣️🌹🫂
✍️ शालिनी चौधरी
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बनारस (गंगा घाट)
बनारस, जो सुकून की एक दुनिया थी — जहां महादेव की छत्रछाया थी और मां गंगा का आंचल हर आत्मा को शीतलता देता था। उसी गंगा घाट के किनारे एक लड़की बैठी थी। उसका पैर गंगा के पानी में था, जो उसे गहरे सुकून का अनुभव करवा रहा था। उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे, और वह बिना किसी आवाज के, एकटक अपनी सूनी आंखों से मां गंगा को देखे जा रही थी।
गंगा की कलकल करती मनमस्त चाल जीवन के बहाव का ही प्रमाण थी। जैसे नदी हमेशा बहती है, किसी भी जलधारा को खुद में नहीं रोकती, बल्कि दूसरों के लिए बहाती रहती है — वैसे ही जिंदगी भी चलती रहती है। फर्क बस इतना था कि नदी कभी स्वार्थी नहीं होती, जबकि मनुष्य हर पल अपने स्वार्थ को अपना ताज बनाकर पहने रहता है। किसी के नसीब में खुशियां नहीं होतीं, तो किसी से जबरन छीन ली जाती हैं।
वह लड़की चुपचाप सामने देखती रही। बेहद खूबसूरत थी — रंग दूध जैसा साफ, पतली नाक, मुलायम होंठ, बड़ी-बड़ी आंखें, घनी पलकों से ढकी हुईं, और तनी हुई भौंहें। उसने रॉयल ब्लू रंग का सूट पहना था, और दुपट्टा सिर पर ओढ़ रखा था। वह बिना किसी श्रृंगार के थी, फिर भी अत्यंत सुंदर लग रही थी। तभी पीछे से किसी लड़की की आवाज आई।
लड़की (आवाज़ लगाते हुए)
"खनक ओ खनक, सुन रही है?"
जब कोई जवाब नहीं मिला, तो वह लड़की उसके बगल में बैठ गई।
लड़की (खनक को हिलाते हुए)
"खनक पाठक, मैं तुम्हें ही बोल रही हूं।"
खनक (गुस्से से उस लड़की की तरफ देखते हुए)
"खनक और सिर्फ खनक नाम है मेरा समझी अंबर, मैं सिर्फ खनक हूं, कोई खनक पाठक नहीं।"
अंबर (खनक को शांत करते हुए)
"शांत देवी दुर्गा शांत, अब से मैं बस खनक ही बोलूंगी। लेकिन तू ये बता कि तू यहां बैठी क्या सोच रही थी? और तू रो रही थी क्या?"
अंबर उसके गालों पर आंसू के निशान देखकर बोलती है।
खनक (हल्के से मुस्कुराते हुए)
"जिसे जिंदगी ने तोहफे के रूप में आंसू दिए हों, वो और कर भी क्या सकता है? वैसे तू बता, क्या काम था?"
अंबर (माथा पीटते हुए)
"हे भगवान! लो, जिस काम के लिए आई थी, वो तो भूल ही गई। तेरी शैतान की नानी मां उठ गई है, और तब से घर में हंगामा कर रही है — 'मेरी मां को लाओ, मेरी मां को लाओ।' जल्दी चल, वरना आज उसके आंसू में अपना घर बह जाएगा।"
खनक (जल्दी से उठते हुए)
"अब बता रही है! मेरी बच्ची को इतना रुलाकर… अब जल्दी चल।"
इतना कहकर वो दोनों बनारस की गलियों से भागते हुए अपने घर की ओर चल दीं। हाँ, यही तो था खनक का घर — घाट के पास बसी एक छोटी सी कॉलोनी में स्थित उसका छोटा सा आशियाना। वह भागते हुए घर के अंदर आई।
जैसे ही खनक अंदर पहुंची, उसे ऊपर से एक बच्ची के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी।
खनक (घबराते हुए)
"हाय मेरी बच्ची, कितना रो रही है।"
वह दौड़ती हुई ऊपर गई और कमरे में जाकर जल्दी से बिस्तर पर बैठी हुई बच्ची को अपनी गोद में लेकर सीने से लगा लिया।
खनक (बच्ची को शांत कराते हुए)
"चुप हो जाओ भूमिजा, मां आ गई है। भूमि, मेरा बच्चा, रोना नहीं है... श... श..."
बच्ची शांत हो गई, लेकिन रोना पूरी तरह बंद नहीं हुआ। वह धीरे-धीरे सुबक रही थी। भूमिजा — हाँ, यही नाम था खनक की बेटी का। उसने बचा लिया था अपनी बच्ची की जिंदगी।
खनक (भूमिजा को सीने से लगाए हुए मन में)
"मैंने मौत को बहुत करीब से देखा है, इसलिए अब मुझे मौत का डर नहीं है। लेकिन हां, मैं मरना नहीं चाहती। मैं जिऊंगी — अपनी बच्ची के लिए, उसके भविष्य के लिए… और अपने बदले के लिए।"
खनक की आंखें लाल हो गई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे कोई ज्वालामुखी भीतर से उबल रहा हो।
अंबर (कमरे में आते हुए)
"खनक, भूमि सो गई है तो उसे सुलाकर नीचे आ जा न। अचानक से चालीस कप के ऑर्डर आए हैं — पैकिंग करवा दे।"
खनक (भूमि को सुलाते हुए)
"हम्म… चलो, आ रही हूं।"
इसके बाद दोनों नीचे हॉल में कप्स की पैकिंग में लग गईं। टीवी पर न्यूज़ चल रहा था। तभी एंकर एकदम से बोलने लगी।
एंकर (एकदम से बोलती है)
"दिल्ली सरकार द्वारा खोले जा रहे अब तक के सबसे लग्जरी मॉल का आज भूमि पूजन हुआ है, जिसे लेकर विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के बजाय इस तरह के मॉल्स में पैसा बर्बाद कर रही है। दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था और पानी की समस्या का कोई समाधान नहीं है, तो लोग ऐसे मॉल्स का क्या करेंगे? सुनिए विपक्षी सांसद राखी देशमुख को…"
अंबर (न्यूज़ सुनते हुए)
"ये विपक्ष वाले भी कभी शांत नहीं रह सकते। हर मामले में इश्यू खड़ा करना होता है इन्हें। कभी साथ नहीं दे सकते।"
खनक (मुस्कुरा कर)
"अगर वो साथ देंगे तो विपक्ष कैसे कहलाएंगे?"
अंबर (हां में सिर हिलाते हुए)
"हां, ये भी है। अब देखते हैं कैसा मॉल बनता है।"
तभी फिर से एंकर की आवाज सुनाई पड़ी।
एंकर (हाथ में पेन घुमाते हुए)
"अब तक की सबसे बड़ी खबर सामने आ रही है। दिल्ली में बन रहे इस बड़े मॉल के कंस्ट्रक्शन का सारा काम पाठक कंस्ट्रक्शन को दिया गया है। यह एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है। सरकार के इस फैसले से एक बात की खुशी जरूर है कि इस प्रोजेक्ट के लिए देश की कंपनी को ही चुना गया है — इससे हमारा पैसा देश के अंदर ही रहेगा।"
न्यूज़ आगे भी चलती रही, लेकिन खनक के मन में केवल एक ही शब्द गूंजता रहा — पाठक कंस्ट्रक्शन।
वह इस नाम को कैसे भूल सकती थी? उस नाम को खड़ा करने में उसने अपनी ज़िंदगी के पाँच साल दिए थे। उसकी नींव में उसका श्रम और सपना दोनों शामिल थे। उसकी आंखें गुस्से और नफरत से भर गईं। वह टीवी स्क्रीन को एकटक घूरती रही।
उसकी मुट्ठी कस गई और उसके हाथ में पकड़ा कप टूट गया। टुकड़े उसकी हथेली में धंस गए और खून बहने लगा। खनक अपनी हथेली से बहते खून को एकटक देखती रही — जैसे उस खून में अपना अतीत बहता हुआ देख रही हो।
आज के लिए इतना ही आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ें तू भी सताया जाएगा मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।
Stay tuned my lovelies ❣️🌹🫂
✍️ शालिनी चौधरी
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बनारस (कश्यप हाउस)
खनक के हाथों से खून टपक रहा था और वह बिना किसी भाव के उस बहते खून को देखे जा रही थी। तभी अंबर की नज़र उसके हाथ पर पड़ी। वह घबराते हुए बोली,
"खनक, तेरे हाथ से खून निकल रहा है, तू क्या सोच रही है?"
खनक ने कोई जवाब नहीं दिया। वह किसी और ही ख्याल में खोई हुई थी, जबकि उसके हाथों से खून लगातार बह रहा था। अंबर ने जल्दी से फर्स्ट ऐड बॉक्स उठाया और उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया। खनक के हाथ में कप के कुछ टुकड़े अब भी धंसे हुए थे। अंबर ने उन्हें हल्के हाथों से निकाला ताकि खनक को ज्यादा दर्द न हो, फिर रूई में डेटॉल लगाकर फूंक मारते हुए उसका घाव साफ़ किया। मगर खनक को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। उसकी नज़रें टेलीविज़न स्क्रीन पर टिकी थीं, जहां पाठक कंस्ट्रक्शन के बाहर रिवाज का इंटरव्यू चल रहा था, और उसके ठीक बगल में शाइनी खड़ी थी — दुनिया की नजरों में रिवाज की असिस्टेंट।
मीडिया पर्सन: "मिस्टर पाठक, कैसा लग रहा है आपको? इतना बड़ा प्रोजेक्ट पहली बार आपके हाथ लगा है, आप इसे कैसे देखते हैं?"
रिवाज (पूरा आत्मविश्वास के साथ):
"यह मेरे और मेरी कंपनी के लिए बहुत बड़ी बात है। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इस प्रोजेक्ट के लायक समझा गया। और हाँ! इस वक्त मैं बहुत ज़्यादा एनर्जेटिक फील कर रहा हूँ। मुझमें एक नई ऊर्जा आई है काम करने की।
फीलिंग हैप्पी।
जहाँ तक इस प्रोजेक्ट के बारे में मेरे विचारों की बात है, तो मुझे सरकार के इस निर्णय से बेहद खुशी मिली है कि उन्होंने मेरी कंपनी पर भरोसा दिखाया। इससे देश में बाकी छोटी कंपनियों और स्टार्टअप्स को भी एक नई उम्मीद मिलेगी कि उन्हें भी सरकारी समर्थन मिलेगा। वरना हमारे देश में भी कई नामी और अनुभवी कंपनियाँ हैं। लेकिन मुझे चुनना, मानो नई कंपनियों को चांस देना है, जिससे देश में एक नया संदेश जाएगा। लोग अपने स्टार्टअप्स पर काम करेंगे।"
दूसरा मीडिया पर्सन: "आपका क्या प्लान है इस मॉल के लिए? क्या सबकुछ मिलेगा पब्लिक को?"
रिवाज (मुस्कुराते हुए):
"देखिए, अभी मॉल के डिज़ाइन या सुविधाओं के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता, वरना पब्लिक का सरप्राइज़ खराब हो जाएगा।
बस इतना कह सकता हूँ कि सरकार ने जो भरोसा दिखाया है, उस पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा।"
तीसरा सवाल: "पिछले छह महीनों में आपकी कंपनी को एक नया बूस्ट मिला है, अभी आपके पास कई नेशनल और इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स हैं। तो आप इस सबका श्रेय किसे देंगे?"
रिवाज:
"ऑफकोर्स! अपनी फैमिली को — जो कंपनी में मेरे साथ काम करते हैं। वे कंपनी को अपना हंड्रेड परसेंट देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर टू हंड्रेड परसेंट भी देते हैं। उन्हें ही सारा श्रेय दूंगा।"
इतना कहकर रिवाज अपनी कार में बैठ गया और शाइनी भी उसी कार में सवार हो गई। कार वहां से रवाना हो गई। कुछ दूर तक मीडिया वाले माइक लेकर उनके पीछे भागते रहे लेकिन फिर थककर रुक गए।
एंकर:
"तो आप सुन रहे थे पाठक कंस्ट्रक्शन के मालिक रिवाज पाठक को। अब रुख करते हैं दूसरी खबरों की ओर।"
खनक अब भी एक टक टीवी को देख रही थी। अंबर पट्टी कर चुकी थी।
अंबर (गुस्से में खनक को झिंझोड़ते हुए):
"कहाँ खोई है ये तो बता? कितनी गहरी चोट लगी है तुझे और तुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा?"
खनक (दर्द भरी आवाज़ में):
"जिसने दिल पर चोट खाई हो, उसके लिए ये चोट और ये दर्द कुछ भी नहीं है।"
अंबर (खनक को गले लगाते हुए):
"यार खनक, छोड़ ना पुरानी बातें। वैसे वो आदमी कभी मेरे सामने आया न, तो उसका सर फोड़ दूंगी। तू बस उस हरामखोर का नाम बता।"
खनक (हल्की मुस्कान के साथ):
"छोड़ ना ये सब... और पैकिंग कर ले।"
इतना कहकर दोनों फिर से पैकिंग में लग गईं।
अंबर:
"लगभग हो ही गया है। तू कर, मैं चाय बना लाती हूं और कुछ स्नैक्स भी। फिर शाम को गंगा आरती देखने चलेंगे।"
इतना कहकर वह रसोई की तरफ चली गई। उसके जाते ही खनक की आंखों में एक बार फिर खून उतर आया।
खनक (मन में):
"रिवाज पाठक, तू नहीं जानता कि अब तेरा पाला किससे पड़ने वाला है। मुझसे — खनक से, जो अब बहुत बदल चुकी है। तूने ही बदला है इसे। चलो, देखते हैं तुझे क्या सबक सिखाना है।"
उसके दिमाग में कोई योजना चल रही थी — एक खतरनाक साज़िश, रिवाज के खिलाफ़।
तभी अंबर वापस आ गई।
खनक:
"अंबर, मुझे कुछ ज़रूरी काम है। मैं दो दिन के लिए मुंबई जा रही हूँ। भूमिजा को संभाल लोगी?"
अंबर (चाय की चुस्की लेते हुए):
"हाँ, संभाल लूंगी। लेकिन ऐसा क्या काम है, जिसके लिए तुझे मुंबई जाना है? जानती है ना, उसी शहर में तू मुझसे मिली थी — कितनी घायल हालत में थी तू। उस शहर ने तो मार ही डाला था तुझे... फिर क्यों वापस जाना?"
खनक (मुस्कुराते हुए):
"याद है मुझे... कैसे भूल सकती हूँ अपनी ज़िंदगी की उस रात को।
भूलकर भी नहीं भूल सकती।
लेकिन ये भी सच है कि जब लंबी छलांग लगानी हो, तो कदम पीछे लेने पड़ते हैं। समझी? और एक बदलाव के लिए, मुझे वहाँ जाकर अपना काम खत्म करना होगा।"
अंबर (चिंता में डूबी):
"लेकिन काम है क्या?"
खनक (धीरे से):
"पहले काम हो जाए, फिर बताऊंगी।"
अंबर (एक लंबी साँस लेते हुए):
"ठीक है। जो तुझे सही लगे। क्योंकि मुझे तेरी खुशी और तरक्की ही चाहिए। तू चिंता मत कर, मैं संभाल लूंगी भूमिजा को।"
खनक हल्की मुस्कान के साथ सिर हिला देती है।
लेकिन उसके अंदर कुछ तो बहुत बड़ा और खरनाक चल रहा था, आँखों में एक दृढ़ता थी, और उसके चेहरे पर रिवाज को बर्बाद कर देने का जुनून साफ झलक रहा था।
आज के लिए इतना ही क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी तू भी सताया जाएगा मेरे यानी शालिनी चौधरी साथ।
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मुंबई (पाठक मेंशन)
रिवाज की गाड़ी पाठक मेंशन के अंदर आकर रुकी। वह बाहर निकला और कोट का बटन लगाते हुए मेंशन के अंदर जाने लगा। तभी शाइनी भी बाहर निकली, लेकिन उसे किसी का कॉल आ गया, और वह उसी गाड़ी में बैठकर चली गई।
रिवाज जैसे ही मेंशन के गेट पर पहुंचा, उसे याद आया कि कभी खनक उसके लिए दरवाज़े के पास खड़ी रहा करती थी। लेकिन उसने उस याद को झटकते हुए बेल बजाई।
अंदर से एक मेड ने दरवाज़ा खोला और साइड हो गई। वह उम्रदराज़ महिला थी, जिसने पीले रंग की साड़ी पहनी थी, उस पर काला ब्लाउज, हाथों में लाल चूड़ियां और मांग में लाल सिंदूर। ऐसा ही श्रृंगार खनक भी किया करती थी। ठीक ऐसे ही ‘रिवाज’ नाम की चूड़ियां पहनती थी, सिंदूर लगाती थी। न जाने क्यों, आज रिवाज को हर जगह खनक की याद आ रही थी।
उसने उन सब ख्यालों को मन से निकालकर अपने कमरे की राह ली। शॉवर लेकर जल्दी से कपड़े पहने, क्योंकि उसका सिर भारी हो रहा था और उसे कॉफी पीने का मन था। कपड़े पहनने के बाद उसने फोन उठाया।
रिवाज (फोन पर) – “आंटी जी, एक कॉफी भेज दीजिए।”
इतना कहकर वह कॉल काट चुका था और बेड पर बैठ गया। वह इस वक्त खुद को बेहद अकेला महसूस कर रहा था। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
रिवाज (थकी आवाज़ में) – “कम इन।”
एक मेड कॉफी मग पकड़े अंदर आई, मग को साइड टेबल पर रखकर चुपचाप बाहर चली गई।
रिवाज ने कॉफी का एक सिप लिया, लेकिन उसे उसमें वो स्वाद नहीं मिला जिसकी उसे तलाश थी। किसी तरह कॉफी खत्म कर वह सो गया, लेकिन उसके भीतर गहरा खालीपन भरा था।
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बनारस (गंगा घाट – कश्यप हाउस)
जो कप्स की बची हुई पैकिंग थी, वो भी पूरी हो चुकी थी और खनक व अंबर दोनों बैठ चुकी थीं। तभी बाहर से एक डिलीवरी बॉय आया जो कप्स लेने आया था। दोनों ने ऑर्डर की गिनती करके कप्स उसे सौंप दिए। आज का उनका सारा काम निपट चुका था।
अंबर (खनक से) – “खनक, आज खाने में क्या बनाऊं? कुछ हल्का ही बना लेती हूं, कल तुझे ट्रैवल भी करना है। वैसे ये बता, तेरी टिकट हुई क्या?”
खनक (अंबर को देखते हुए) – “हम्म, तत्काल में बन गई है। ला, आज का खाना मैं बना लेती हूं।”
जैसे ही खनक ने बात पूरी की, ऊपर से भूमिजा के रोने की आवाज़ आई।
अंबर (हँसते हुए) – “तू अपनी झांसी की रानी को संभाल। खाना मैं बना लूंगी।”
खनक दौड़कर ऊपर गई और भूमिजा को सीने से लगाकर नीचे आ गई। सीढ़ी पर बैठते हुए उसने उसे चुप कराना शुरू किया।
खनक (भूमिजा को शांत करते हुए) – “नहीं ऐसे नहीं रोते हैं। मेरी भूमि समझदार है, मां को परेशान नहीं करेगी, मासी के पास रहेगी। है ना?”
खनक की आवाज़ पर भूमिजा शांत हो गई और खेलने लगी।
खनक (अंबर से) – “अंबर, आज तू इसे संभाल, मैं खाना बना लेती हूं।”
अंबर (हाथ पोंछते हुए) – “ठीक है। ला, इसे मैं ले लेती हूं।”
(भूमिजा से खेलते हुए) – “क्यों भूमि, मासी के पास आएगी? मासी अच्छी है, मम्मा गंदी है। आजा मेरी झांसी की रानी, आजा अपनी मासी के पास।”
अंबर ने भूमिजा को संभाल लिया और खनक किचन में चली गई। सब्जी में लौकी थी और फ्रिज में पनीर।
खनक (मन में) – “हल्का ही बनाती हूं कुछ, वरना कल रास्ते में दिक्कत आ सकती है।”
यही सोचकर उसने लौकी की सब्जी और सादी रोटी बना ली। सारा काम निपटा कर दोनों ने खाना खाया और दूध गर्म करके भूमिजा को पिला दिया। पेट भरते ही वह फिर से सो गई।
थोड़ी देर बातचीत के बाद दोनों अपने-अपने कमरे में चली गईं।
खनक (बिस्तर पर लेटी, मन में) – “अगले कदम के लिए मेरा ये काम पूरा होना ज़रूरी है। चाहे कुछ भी हो जाए, ये रिस्क मुझे लेना ही होगा। अपनी बच्ची का भविष्य अंधकार में नहीं डाल सकती।”
खुद को किसी नए संघर्ष के लिए तैयार करते हुए वह सो गई।
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पाठक मेंशन (मुंबई)
रिवाज बेड पर सोया था, लेकिन वह बार-बार बेचैन हो रहा था। फिर अचानक उठकर बैठ गया।
कुछ देर बाद वह कमरे से बाहर निकला और दूसरे कमरे में गया। जैसे ही लाइट ऑन की, पूरा कमरा शराब की अलग-अलग बोतलों से भरा पड़ा था – यह एक बार था।
उसने एक बोतल खोली और पीने लगा। फिर चेयर पर बैठ गया। दो-तीन बोतलें खत्म करने के बाद भी उसे शांति नहीं मिल रही थी।
बार-बार खनक की आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी –
“आज तुमने अपने अजन्मे बच्चे को और अपनी पत्नी को मार दिया। तुम हार गए, रिवाज पाठक, तुम हार गए।”
रिवाज ने अपने कानों को ढंक लिया और फर्श पर बैठ गया। सामने लगे शीशे में उसने खुद को देखा – वही चेहरा, लेकिन उसे नफ़रत से घूरता हुआ।
रिवाज (खुद को समेटते हुए) – “नहीं! वो मेरे बच्चे की मां बनने वाली नहीं थी। वो झूठ बोल रही थी। मैं नहीं हारा हूं... मैं हार ही नहीं सकता।”
वह खुद को शांत करने की कोशिश करता रहा और आखिरकार वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।
उसकी जिंदगी मानो थम सी गई थी।
आज के लिए इतना ही आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए 'तू भी सताया जाएगा' मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।
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इश्क़ ये शब्द ही इतना मीठा है कि कहते ही हो जाए... ये कहानी है इश्क़ और जुनून की जहां एक को इश्क़ है और चाहत है उसे पा लेने की अपने रूह में बसा लेने की, तो दूसरे को जुनून है अपने नाम और पहचान की ! एक की जंग है इश्क़ हासिल करना और एक को दुनियां मुट्ठी में भरनी है ! तो क्या इश्क़ जीतेगा या हावी हो जाएगा अस्तित्व का जंग और इश्क़ के हिस्से आयेगा इंतज़ार या इनकार ? जानने के लिए पढ़ें, ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ! कहानी आपको मेरे profile में मिल जाएगी।
Stay tuned my lovelies ❣️🌹🫂
✍️ शालिनी चौधरी
हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको ये कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें, आपके कमेंट से मुझे बहुत खुशी मिलती है।😍🤩
चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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अगली सुबह
बनारस (गंगा घाट)
कश्यप हाउस
अंदर से अंबर की आवाज़ आ रही थी, जो भूमि को शांत करने की कोशिश कर रही थी।
अंबर (भूमि को पुचकारते हुए):
"अलेले, मेरा बच्चा! क्यों रो रहा है? ना, बच्चे रोते नहीं हैं, मां आ रही है, अभी आ जाएगी। चुप हो जा। ना, ऐसे नहीं रोते हैं, चुप हो जा। आ.. आ.."
अंबर की सारी कोशिशें बेकार जा रही थीं, क्योंकि खनक इस वक्त अपनी पैकिंग में लगी थी। इसलिए वो भूमि को नहीं ले सकती थी और उसे जल्दी से नहाकर अपनी पूजा भी करनी थी। दोपहर में ही उसकी ट्रेन थी, मुंबई के लिए।
खनक (परेशान होते हुए):
"ये लड़की भी न... मतलब इसी के रोने-धोने की वजह से कल घाट आरती में भी नहीं जा पाए, और आज फिर वही हाल है इसका।"
उसी वक्त अंबर भूमि को लेकर कमरे में आई।
अंबर (परेशान होते हुए):
"खनक, ये शांत कहां हो रही है? एक बार चुप करा दे।"
खनक (अंबर से):
"अभी ले लूंगी, लेकिन दो दिन तक मैं गायब रहूंगी, तब कैसे संभालेगी?"
खनक की बात पर अंबर बच्चों जैसा मुंह बना लेती है।
अंबर (रोनी सी आवाज़ में):
"तो क्या करूं?"
खनक (मुस्कुराते हुए):
"जब ज़्यादा रोए तो इसे घाट पर घुमा देना, वहां जाकर शांत हो जाती है। अब जा, लेकर इसे। मुझे पैकिंग करनी है, नहाना है, पूजा भी करना है। सारा काम वैसे ही पड़ा हुआ है।"
अंबर (मुस्कुराते हुए):
"ठीक है, मैं इसे घाट घुमा कर लाती हूं, तब तक तू तैयार हो जा। और हां, पूजा करने साथ में चलेंगे।"
खनक (मुस्कुराते हुए):
"हम्म! ठीक है।"
अंबर भूमि को लेकर घाट पर निकल गई, वहीं खनक अब जल्दी-जल्दी पैकिंग कर रही थी। दो दिन के लिए ज्यादा सामान नहीं चाहिए था, लेकिन अगर कुछ और ज़रूरी था तो वो थी हिम्मत—जिसकी उसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। आज वो उस इंसान के खिलाफ़ खड़ी होने जा रही थी, जिसके लिए उसने अपनी ज़िंदगी की हर खुशी को त्याग दिया था।
खनक (खुद को शांत करते हुए):
"मैं उस इंसान के खिलाफ़ जाऊंगी! उसे बर्बाद कर दूंगी। वो इंसान मेरी बर्बादी की वजह है। अब उसे पता चलेगा कि सब कुछ छिन जाने पर कैसा लगता है।"
वो अपने अंदर आत्मविश्वास भर रही थी। उसे पता था कि जिससे वह टकराने जा रही है, वो मुंबई के सबसे ताकतवर लोगों में से एक है। उसे हर मोर्चे पर खुद को साबित करना होगा, क्योंकि अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं था।
उसकी पैकिंग पूरी हो चुकी थी। अब वो नहाने चली गई। अंबर पहले ही उठकर सारा घर का काम निपटा चुकी थी, इसलिए उसे ज़्यादा कुछ नहीं करना पड़ा। खनक नहा कर बाहर आई, एक सिंपल सूट पहनकर नीचे उतरी और किचन में जाकर महादेव के लिए भोग बनाने लगी।
गंगा घाट
अंबर भूमि को गोद में लिए घाट पर घूम रही थी। घाट पर आते ही भूमि एकदम शांत हो गई थी, ठीक वैसे ही जैसे वो खनक के पास शांत हो जाती थी।
अंबर (मुस्कुराते हुए, खुद से):
"सही कहा था खनक ने, घाट पर शांत हो जाएगी। यहां जब बड़े लोगों का मन शांत हो जाता है तो ये तो बच्ची है। मां गंगा का आंचल किसी को भी शांत करने के लिए काफी है।"
वो भूमि को लेकर दूसरी ओर बढ़ने लगी, तभी भूमि फिर से रोने लगी। अंबर ने उससे पूछा।
अंबर (भूमि को पुचकारते हुए):
"क्या हुआ बच्चा? क्यों रो रही हो?"
भूमि ने अपनी उंगली एक ओर उठा दी। अंबर ने पलटकर देखा, तो वहां एक छोटा बच्चा बैठा था, जो लगभग भूमि की ही उम्र का था। उसके बगल में एक आदमी बैठा था—करीब 30 साल का, पर उसकी पर्सनैलिटी इतनी आकर्षक थी कि उसकी उम्र छिप जाती थी। वो बेहद सीरियस लग रहा था। भूमि बार-बार उस बच्चे की ओर इशारा कर रही थी, जिससे परेशान होकर अंबर उसे वहां ले गई और उस बच्चे के पास बैठा दिया।
अंबर के ऐसा करने पर वो आदमी उसकी ओर देखने लगा।
अंबर (हिचकिचाते हुए):
"वो... ये बार-बार इसके तरफ इशारा कर रही थी और रो रही थी, इसलिए ले आई। आपको अगर दिक्कत हो तो मैं ले जाती हूं।"
वो आदमी कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसके बगल में खड़ा दूसरा आदमी, जो उसकी ही उम्र का था, उसके कान में कुछ फुसफुसाया।
दूसरा आदमी (पहले आदमी के कान में फुसफुसाते हुए):
"सर, खेलने दीजिए। वैसे भी यंग मास्टर को बाहर के माहौल में रखने की सलाह डॉक्टर ने दी है। और देखिए ना, यंग मास्टर खेल भी रहे हैं।"
पहले आदमी ने देखा कि उसका बेटा वाकई खेल रहा था। उसकी आंखों में हैरानी थी, क्योंकि पिछले छह महीने से वो एकदम शांत था, जैसे किसी में कोई हलचल न रही हो।
जब अंबर को कोई जवाब नहीं मिला, तो उसे लगा शायद उन लोगों को पसंद नहीं आया। वह भूमि को गोद में लेने लगी, लेकिन तभी वो बच्चा रोने लगा।
वो आदमी (गहरी आवाज़ में):
"सुनिए, बच्ची को खेलने दीजिए।"
उसकी बात सुनकर अंबर मुस्कुरा दी और भूमि को दोबारा बच्चे के पास बैठा दिया। दोनों खेलने लगे।
अंबर (उस आदमी से):
"नाम क्या है बेबी का?"
वो आदमी (अपने बच्चे को देखते हुए):
"अर्पण।"
अंबर (मुस्कुराते हुए):
"बहुत प्यारा नाम है। वैसे, आपका नाम क्या है?"
वो आदमी कुछ नहीं बोला, बस अपलक अपने बच्चे को देखता रहा। उसकी नजर भूमि पर भी पड़ी—उसे वो बच्ची बहुत प्यारी लगी।
दोनों बच्चे खेल रहे थे। तभी अंबर को खनक का फोन आया।
अंबर (कॉल रिसीव करते हुए):
"हां! भूमि बिल्कुल शांत है और खेल रही है।"
खनक (फोन पर):
"ठीक है, अब आजा!"
इतना कहकर उसने फोन काट दिया। अंबर भूमि को गोद में लेते हुए बोली:
अंबर (अर्पण से):
"अब जा रही है भूमि, क्योंकि भूमि की मां बुला रही है। बाय क्यूटी।"
इसके बाद वो भूमि को लेकर वहां से चली गई। उसके जाते ही अर्पण फिर से पहले की तरह शांत हो गया।
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मुंबई (पाठक मेंशन)
एक नौकर सफाई करने के लिए उस कमरे में गया था, जहां रिवाज बेहोश पड़ा था। उसे इस हालत में देखकर वह उसे उठाकर उसके कमरे तक ले गया और बिस्तर पर लिटा दिया। लेकिन रिवाज जैसा हट्टा-कट्टा आदमी उठाकर एक कमरे से दूसरे कमरे तक ले जाना उसके लिए आसान नहीं था। उसकी हालत खराब हो गई थी और वह बुरी तरह हांफ रहा था।
सर्वेंट (अपने मन में):
"आदमी है कि पहाड़, समझ ही नहीं आता है। हर रोज इसे शराब पीकर यहीं लुढ़कना है, और रोज इसे यहां लाने के चक्कर में कहीं मुझे दमा न हो जाए। ये पेट भी जो न कराए सो थोड़ा है।"
ऐसे ही भुनभुनाते हुए वह वहां से चला गया। वहीं, रिवाज अब भी बेहोशी की हालत में ही पड़ा था। जब उसका नशा उतरता, तभी वह उठता। यही उसकी ज़िंदगी बन गई थी—ऑफिस से घर और घर आकर या तो शराब या फिर शाइनी। उसकी ज़िंदगी नशे और हवस में इतनी उलझ चुकी थी जैसे कोई कीड़ा मकड़ी के जाल में फँस गया हो।
कुछ देर बाद रिवाज को होश आया। वह उठकर बैठा, उसके सिर में तेज़ दर्द हो रहा था। किसी तरह वह बाथरूम गया, खुद को ताज़ा किया और फिर बाहर हॉल में आकर बैठ गया।
रिवाज (हल्की तेज़ आवाज में):
"आंटी जी, नींबू पानी!"
कुछ ही देर में एक औरत हाथ में नींबू पानी लेकर आई। रिवाज ने एक ही झटके में पूरा गिलास खत्म कर दिया और वहीं सोफे पर आंखें बंद करके लेट गया। थोड़ी ही देर में उसे फिर से नींद आ गई।
कुछ देर बाद शाइनी वहाँ आई। उसे आते देख घर के काम में लगे नौकरों के चेहरे बिगड़ गए।
तभी एक औरत जो गमला साफ कर रही थी, धीरे से बोल उठी:
औरत (मुंह बनाते हुए दूसरे सर्वेंट से):
"लो, आ गई चुड़ैल। इसे देख कर तो उल्टी करने का मन करता है। इतना मेकअप भी इसे ठीक नहीं कर पा रहा है। छी! साहब के साथ तो और भी बुरी लगती है।"
दूसरी औरत (दबी आवाज़ में):
"साहब की जोड़ी तो खनक मैडम के साथ ही जमती थी, लेकिन इस के चक्कर में उन्होंने उन्हें छोड़ दिया और नाम लगा दिया कि वो भाग गईं। कितने बेकार किस्म के आदमी हैं।"
पहली औरत (सामने देखते हुए):
"देखना, आज नहीं तो कल साहब कितना पछताएंगे।"
वे औरतें उसे जी भरकर कोस रही थीं। तभी शाइनी ने सबको वहां से जाने का इशारा किया और सब चुपचाप वहां से चले गए। कुछ ही मिनटों में पूरा हॉल खाली हो चुका था।
शाइनी रिवाज के ऊपर लेट गई और हल्के-हल्के उसे किस करने लगी। वहीं नींद में रिवाज को जब किसी के होने का एहसास हुआ, तो उसे लगा जैसे खनक है। वह एक झटके से आंखें खोल बैठा, लेकिन सामने शाइनी का चेहरा देखकर वह एक पल के लिए निराश हो गया। अगले ही पल उसने शाइनी को पलट कर खुद के नीचे दबा लिया।
रिवाज (हल्के गुस्से से):
"नींद से जगाने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?"
शाइनी (मुस्कुराते हुए):
"क्योंकि ये हिम्मत मेरे अंदर ही है, इसलिए मैंने की।"
रिवाज कुछ नहीं बोला और उठ खड़ा हुआ। उसके ज़हन में कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो उठीं।
अतीत:
खनक (रिवाज को उठाते हुए):
"रिवाज, उठिए। सुबह हो गई है। आपको आज ऑफिस जल्दी जाना है।"
रिवाज (कसमसाते हुए):
"सोने दो ना।"
इतना कहकर वह फिर से सो गया। जब खनक थक गई उसे उठाने से, तो उसके दिमाग में एक आइडिया आया। वह बेड पर चढ़कर रिवाज के ऊपर ही लेट गई और हल्के-हल्के उसके गालों और आंखों पर किस करने लगी।
प्रेज़ेंट टाइम:
खनक रिवाज के ज़हन से कभी निकली ही नहीं थी। वह हर चीज़ में उसे ढूंढ लिया करता था, लेकिन इस बात को स्वीकार नहीं करता था। वह हर पल उसे याद करता, मगर एक्सेप्ट नहीं करता था।
रिवाज का सिर अभी भी दर्द कर रहा था, इसलिए उसने दवा ली और खा ली। वहीं, शाइनी सोफे पर बैठी उसे देख रही थी।
शाइनी (मन में):
"तुम्हें उसे भूलकर मेरे पास आना होगा। क्योंकि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं।"
उसकी आंखों में जुनून झलक रहा था।
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बनारस
खनक ने घर में पूजा कर ली थी और अब वे दोनों मंदिर से पूजा करके लौट रहे थे। तभी अचानक भूमि खनक की गोद से उछल कर नीचे उतर आई और अपने छोटे-छोटे पैरों से चलते हुए एक दिशा में बढ़ने लगी। अंबर और खनक भी उसके पीछे चलने लगे।
भूमि थोड़ी दूर पर खड़े एक आदमी के पैरों से लिपट गई। वह आदमी नीचे झुककर देखा, तो पाया कि एक बच्ची उसके पैरों से लिपटी थी। उसकी गोद में भी एक बच्चा था, जो अब नीचे उतरकर भूमि के साथ खेलने लगा।
अंबर (खनक से):
"खनक, यही है वो बच्चा अर्पण, जिसके साथ भूमि की दोस्ती हुई है। और ये उनके पापा हैं।"
क्षितिज (अंबर और खनक से):
"मेरा नाम क्षितिज है। क्या थोड़ी देर बच्चों को खेलने दे सकते हैं?"
खनक (मुस्कुराते हुए):
"जी, ज़रूर।"
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तो आगे क्या होगा इस कहानी में?
क्या रिवाज को अपने गुनाह का एहसास होगा?
किस हद तक जा सकती है शाइनी?
और क्या होगा खनक के साथ?
जानने के लिए बने रहिए "तू भी सताया जाएगा" में —
मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।
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इश्क़ ये शब्द ही इतना मीठा है कि कहते ही हो जाए... ये कहानी है इश्क़ और जुनून की जहां एक को इश्क़ है और चाहत है उसे पा लेने की अपने रूह में बसा लेने की, तो दूसरे को जुनून है अपने नाम और पहचान की ! एक की जंग है इश्क़ हासिल करना और एक को दुनियां मुट्ठी में भरनी है ! तो क्या इश्क़ जीतेगा या हावी हो जाएगा अस्तित्व का जंग और इश्क़ के हिस्से आयेगा इंतज़ार या इनकार ? जानने के लिए पढ़ें, ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ! कहानी आपको मेरे profile में मिल जाएगी।
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बनारस (गंगा घाट)
सभी लोग घाट के किनारे पहुँच चुके थे। मंदिर की सीढ़ियों पर भक्तों का आना-जाना लगातार बना हुआ था। वहीं, अर्पण और भूमिजा घाट की धरती पर बैठे खेल रहे थे, जैसे वे इस संसार की माया से बहुत दूर, अपने ही एक नवीन और मासूम दुनिया में खोए हुए हों। आज उनके उस छोटे से संसार में एक नया दोस्त जुड़ गया था। उन्हें यूँ खेलते देख सभी के चेहरे पर मुस्कान थी। तभी खनक को अपने जाने की बात याद आई।
खनक (अंबर से)
"अंबर, भूमि खेलने में लग गई है, इसलिए मैं अब निकलती हूँ। अगर उसने मुझे देख लिया तो मेरा जाना मुश्किल हो जाएगा। तुम इसके साथ रहो, मेरा ट्रेन भी है।"
अंबर ने चुपचाप सिर हिलाया और खनक वहाँ से चुपचाप निकल गई।
क्षितिज (खनक को जाते हुए देखता है)
"इतनी छोटी सी बच्ची को छोड़कर कहाँ जा रही है?"
अंबर (खनक की ओर देखते हुए)
"दो दिन के लिए मुंबई जा रही है, कुछ ज़रूरी काम है। वरना तो वो भूमि से एक पल को भी दूर नहीं होती।"
क्षितिज (मुस्कुराते हुए)
"हाँ, वो तो उनकी आँखों में ही दिखता है। वैसे इसके पापा तो होंगे ही?"
अंबर (थोड़े गुस्से से)
"नहीं हैं इसके पापा।"
क्षितिज (सकपकाते हुए)
"नहीं रहे इसके पापा? माफ़ कीजिएगा, मैं..."
अंबर (खुद को शांत करती हुई)
"अरे आप माफ़ी क्यों माँग रहे हैं? उसके पापा ज़िंदा तो हैं, लेकिन उसके लिए नहीं हैं... छोड़ दिया है।"
क्षितिज (हैरानी से)
"क्या? कोई अपनी वाइफ़ और बच्ची को कैसे छोड़ सकता है?"
अंबर (कड़वी मुस्कान के साथ)
"छोड़ने में तो आजकल लड़कियाँ भी नहीं हिचकती हैं, वो तो फिर भी मर्द है।"
क्षितिज (अब भी हैरान)
"लेकिन फिर भी... इतनी प्यारी बेटी को और इतनी सुंदर बीवी को कोई क्यों छोड़ेगा?"
अंबर (हल्के व्यंग्य के साथ मुस्कुराती है)
"जब लोगों की चाहतें बढ़ने लगती हैं और वो वेरायटी पसंद हो जाते हैं, तो उनके लिए रिश्ते भी पुराने-नए हो जाते हैं।"
क्षितिज बस अंबर को देखता रह गया। उसे हैरानी हो रही थी कि कोई कैसे अपने बच्चे को यूँ छोड़ सकता है। हालांकि, रिवाज को यह पता ही नहीं था कि वो बाप बनने वाला है, और जब तक उसे पता चला... तब तक बहुत देर हो चुकी थी – कम से कम उसके हिसाब से।
अंबर (क्षितिज से)
"वैसे अर्पण के पापा नहीं आए आज? कहीं गए हैं क्या?"
क्षितिज (मुस्कुराते हुए)
"हाँ, उनकी आज एक मीटिंग थी, उसी में व्यस्त हैं।"
अंबर (अर्पण को देखते हुए)
"वैसे अर्पण के मम्मी-पापा का नाम क्या है? और मम्मी कहाँ हैं? सुबह भी नहीं दिखीं।"
क्षितिज (थोड़ा सीरियस होकर)
"बॉस का नाम अभिमन्यु कृष्णा है, और लेडी बॉस का नाम अपर्णा अभिमन्यु कृष्णा।"
अंबर (मुस्कुराते हुए)
"बड़ा प्यारा नाम है।"
भूमि और अर्पण अब भी खेलने में मग्न थे।
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कश्यप हाउस
खनक घर लौट आई थी और इस वक्त ब्रेकफास्ट कर रही थी। निकलने में अभी समय था, इसलिए उसने अपने रोज़ के रूटीन को फॉलो किया। खाना खत्म होते ही उसने प्लेट धोकर रख दी और फोन लेकर सोफे पर बैठ गई।
खनक (फोन लगाते हुए, खुद से बुदबुदाती)
"बस ये कॉल उठ जाए, फिर मेरा काम थोड़ा आसान हो जाएगा।"
पहली बार पूरी रिंग जाने के बाद फोन कट गया। खनक ने दोबारा कॉल किया। इस बार चार-पाँच रिंग्स के बाद कॉल रिसीव हुआ और दूसरी तरफ से एक गहरी आवाज में लड़के ने जवाब दिया।
लड़का
"हैलो।"
खनक (थोड़ी नर्वस होकर)
"हैलो, राघव से बात हो रही है क्या?"
राघव (गंभीर आवाज में)
"जी हाँ, राघव से ही बात हो रही है। लेकिन आप कौन?"
खनक (रुंधे गले से)
"राघव यार, मैं खनक बोल रही हूँ।"
राघव (हैरानी में)
"खनक... तू? तू ज़िंदा है? कहाँ है तू? बोल, मैं अभी आता हूँ!"
खनक (हल्की मुस्कान के साथ)
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ। टेंशन मत ले। तू कैसा है? और भाभी कैसी हैं?"
राघव (आवाज़ भारी हो जाती है)
"सब ठीक है यार। तू बता, कहाँ है?"
खनक (संकोच के साथ पॉइंट पर आते हुए)
"राघव, मैं कल तक मुंबई पहुँच जाऊँगी। (हिचकिचाते हुए) वो… मैं पूछ रही थी कि तेरे घर आ जाऊँ क्या?"
राघव (मुस्कुराकर)
"ये भी कोई पूछने वाली बात है? आजा यार! मैं तेरा इंतज़ार करूंगा।"
खनक (मुस्कुराते हुए)
"ठीक है! मुझे पता है तेरे मन में अभी बहुत सारे सवाल होंगे, उनके जवाब मैं खुद आकर दूंगी। और एक बात और... मैंने तुझसे जो बात की है, वो किसी को मत बताना। ये तक नहीं कि खनक ज़िंदा है। बात समझ में आई?"
राघव (गंभीर टोन में)
"लेकिन क्यों?"
खनक (आँखें बंद करके खोलती है)
"मैं आकर जवाब दूंगी तेरे हर सवाल का। वैसे, अगर फ्री हुआ तो स्टेशन आ जाना, मैं उतरकर कॉल कर दूंगी।"
राघव (खुशी से)
"मैं फ्री ही हूँ, तू आजा बस।"
खनक
"ठीक है फिर, पहुँच कर बात होगी। और हाँ, ये नंबर सेव कर ले।"
राघव
"हाँ कर लूंगा। बस तू आ जा। बाय।"
खनक
"बाय।"
कॉल कट गया और खनक तैयार होने के लिए उठ गई।
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मुंबई (पाठक मैंशन)
मैंशन पूरी तरह से शांत था। जैसे वीरान पड़ा हो। बस हॉल में टंगी बड़ी सी घड़ी की सुई की टिक-टिक की आवाज गूंज रही थी। तभी एक नौकरानी, हाथ में पानी का ग्लास लिए, ऊपर की ओर टेरेस की ओर जा रही थी। उसका रास्ता रिवाज के कमरे से होकर गुजरता था।
जैसे ही वह कमरे के पास पहुँची, उसकी नजर खुली खिड़की से होती हुई कमरे के अंदर गई, जहाँ बिस्तर पर शाइनी और रिवाज एक ही चादर में लिपटे हुए थे। उनके कपड़े इधर-उधर फैले पड़े थे। रिवाज बिस्तर पर लेटा हुआ था और शाइनी उसके ऊपर, चादर में ढकी हुई। रिवाज उसे देख रहा था और वे दोनों एक-दूसरे में पूरी तरह डूबे हुए थे।
यह दृश्य देखकर उस नौकरानी के चेहरे पर घृणा साफ़ झलकने लगी। उसकी आँखों से टपका एक आँसू उस पानी के ग्लास में जा गिरा।
औरत (नफरत से)
"छिः... मतलब ये लड़की साहब की असिस्टेंट नहीं है... अब मुझे पूरा यकीन है कि मैडम को इन दोनों ने ही मारा है, कोई हादसा नहीं था।"
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तो आगे क्या होगा इस कहानी में?
कौन है ये राघव? क्या वो खनक का साथ देगा?
क्या रिवाज को कभी अपनी गलती का एहसास होगा?
जानने के लिए बने रहिए - तू भी सताया जाएगा, मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।
आज के लिए इतना ही अब कल मिलते है।
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