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Mr & Mrs billionaire

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Aman Kushwaha

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Title: Mr. & Mrs. Billionaire Genre: Mystery, Romance, Thriller Arjun Mehra और Siya Rathore—दो लोग, दो अलग-अलग ज़िंदगियाँ, लेकिन एक ही बड़ा राज़। दोनों अरबपति हैं, लेकिन अपनी असली पहचान एक-दूसरे से छुपाकर एक साधारण इंसान की तरह पेश आते हैं। Arjun...

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Siya Rathore

Heroine

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Arjun Mehra

Hero

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. Mr & Mrs billionaire - Chapter 1

    Words: 2356

    Estimated Reading Time: 15 min

    मुंबई के शांत कोने में बसा वह छोटा-सा कैफे एक अजीब-सा आकर्षण लिए हुए था। यहां की हल्की रोशनी और कोने की टेबलों पर रखे छोटे-छोटे फूलदान इसे खास बनाते थे। अर्जुन मेहरा ने कैफे में घुसते ही चारों ओर नजर दौड़ाई। वह थोड़ा नर्वस लग रहा था, लेकिन उसकी चाल में एक ठहराव था, जो उसे भीड़ से अलग करता था। सामने की टेबल पर बैठी सिया राठौड़ उसे दिखाई दी। उसकी हल्की नीली साड़ी, कंधों पर बिखरे बाल, और टेबल पर रखी खुली किताब उसे एकदम साधारण और आत्मनिर्भर दिखा रही थी। अर्जुन ने गहरी सांस ली और उसकी ओर बढ़ा। “माफ कीजिए, क्या आप सिया राठौड़ हैं?” सिया ने किताब के ऊपर से नजर उठाई और हल्की-सी मुस्कान दी। “जी हां, और आप अर्जुन?” “जी, थोड़ा लेट हो गया। ट्रैफिक...,” अर्जुन ने झेंपते हुए कहा। “मुंबई का ट्रैफिक! सबसे आसान बहाना,” सिया ने चुटकी लेते हुए कहा। दोनों बैठ गए। टेबल पर कुछ पल की खामोशी छा गई। अर्जुन ने घबराहट में मेन्यू उठाया और बिना कुछ देखे ही वेटर से कहा, “एक अमेरिकानो।” सिया ने उसे देखा और मुस्कुराई। “आप नर्वस लग रहे हैं। क्या मैं इतनी डरावनी हूं?” अर्जुन ने हंसते हुए कहा, “नहीं, नहीं। मैं बस...। मुझे अरेंज मैरिज के लिए इस तरह की मुलाकातों की आदत नहीं है। और सच कहूं तो, यह मेरी पहली है।” “अच्छा? तो आप भाग्यशाली हैं। मैं अपनी चौथी मीटिंग पर हूं। अब तो आदत-सी हो गई है,” सिया ने चुटकी ली। “तो, आप क्या करती हैं?” अर्जुन ने आखिरकार बातचीत को आगे बढ़ाया। “मैं एक फैशन डिजाइनर हूं,” सिया ने सहजता से जवाब दिया। “वाह, वह तो काफी दिलचस्प फील्ड है। मेरा मतलब है, आपको बहुत क्रिएटिव होना पड़ता होगा,” अर्जुन ने तारीफ की। “और आप?” सिया ने पूछा। “मैं... मैं एक टेक्निकल इंजीनियर हूं। एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूं,” अर्जुन ने कहा। “तकनीकी इंजीनियर? आप उन लोगों में से हैं जो घंटों कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं?” सिया ने मजाकिया लहजे में कहा। “कुछ ऐसा ही समझ लीजिए। पर यह काम मुझे पसंद है। मैं नई-नई चीजें बनाना और समस्याएं सुलझाना पसंद करता हूं,” अर्जुन ने कहा। “तो, आपकी जिंदगी स्क्रीन और कोड के बीच ही बीत जाती है?” “ऐसा ही कुछ,” अर्जुन ने हंसते हुए कहा। “लेकिन आपकी जिंदगी तो फैशन, रंगों और ग्लैमर से भरी होगी, है ना?” “हां, पर हर चमकती चीज सोना नहीं होती,” सिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा। सिया ने अपनी घड़ी की ओर देखा। वह सोच रही थी कि अर्जुन कितना अलग है। वह साधारण दिखता है, लेकिन उसकी आंखों में कुछ ऐसा है जो उसे रहस्यमयी बनाता है। उसी वक्त, बाहर सड़क पर खड़ी अर्जुन की काली मर्सिडीज में उसका ड्राइवर इंतजार कर रहा था। उसने फोन पर अर्जुन को मैसेज भेजा: “सर, मीटिंग खत्म होने के बाद बताएं। गाड़ी तैयार है।” अर्जुन ने फोन देखा और उसे अनदेखा कर दिया। वह नहीं चाहता था कि सिया को उसकी असली पहचान का पता चले। दूसरी तरफ, सिया ने भी अपने फोन पर मैसेज चेक किया। उसकी असिस्टेंट ने लिखा था: “मैम, आपके अगले ब्रांड लॉन्च के लिए प्रेस मीटिंग तय हो गई है।” सिया ने गहरी सांस लेते हुए फोन बंद कर दिया। उसने खुद से कहा, “अभी मैं सिर्फ एक साधारण लड़की हूं। फैशन एंपायर की मालिक नहीं।” बातचीत धीरे-धीरे सहज होती गई। “तो, आप मुंबई में कब से हैं?” अर्जुन ने पूछा। “पिछले पांच सालों से। लेकिन मैं जयपुर से हूं।" सिया ने जवाब देकर पूछा और आप? “दिल्ली से। पर यहां काम के लिए शिफ्ट हुआ। मुंबई का मौसम और ऊर्जा मुझे बहुत पसंद है,” अर्जुन ने कहा। “मुंबई की ऊर्जा? आप ट्रैफिक और भीड़ की बात कर रहे हैं?” सिया ने मजाकिया लहजे में कहा। “हां, और वड़ा पाव भी,” अर्जुन ने हंसते हुए जवाब दिया। सिया भी मुस्कुराई। “लगता है, आप साधारण चीजों से खुश रहने वाले इंसान हैं।” “और आप?” अर्जुन ने पूछा। “मुझे भी सादगी पसंद है। लेकिन कभी-कभी जिंदगी हमें दिखावा करने पर मजबूर कर देती है,” सिया ने गंभीरता से कहा। कैफे का समय खत्म होने वाला था। दोनों ने उठकर बाहर जाने का फैसला किया। “तो, आपसे मिलकर अच्छा लगा,” सिया ने कहा। “मुझे भी। उम्मीद है, हमारी अगली मुलाकात जल्द होगी,” अर्जुन ने कहा। जैसे ही दोनों अपने-अपने रास्ते पर बढ़े, दोनों के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। लेकिन उनके दिलों में सवाल थे। क्या यह रिश्ता साधारण होगा, या फिर उनकी असलियतें इसे जटिल बना देंगी? अर्जुन ने गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर से कहा, “चलिए, ऑफिस चलिए।” दूसरी तरफ, सिया ने अपनी मर्सिडीज के पास खड़े असिस्टेंट से कहा, “चलो, देर हो रही है। मुझे अगले इवेंट की तैयारी करनी है।” वे दोनों एक-दूसरे से अपनी असली पहचान छुपा रहे थे। पर कब तक? क्या उनका प्यार इस छलावे से ऊपर उठ पाएगा? अर्जुन और सिया की मुलाकात को एक हफ्ता बीत चुका था। दोनों ने अपनी-अपनी जिंदगी में वापस लौटने की कोशिश की, लेकिन कैफे की वो बातचीत बार-बार उनके दिमाग में घूमती रही। सिया अपने ऑफिस में थी। "राठौड़ फैशन हाउस" के विशाल मुख्यालय की ऊपरी मंजिल पर उसका निजी केबिन था। वह एक इंटरनेशनल ब्रांड के साथ अपने नए कलेक्शन के अनुबंध पर चर्चा कर रही थी। “मैम, यह प्रोजेक्ट हमारे लिए गेम-चेंजर हो सकता है,” उसके असिस्टेंट, आर्या ने कहा। “आर्या, मुझे पूरा विश्वास है। लेकिन ध्यान रखना कि हर डिटेल परफेक्ट हो। मैं नहीं चाहती कि हमारे ब्रांड की छवि पर कोई असर पड़े,” सिया ने दृढ़ता से कहा। आर्या ने सहमति में सिर हिलाया और कमरे से बाहर चली गई। सिया ने खिड़की से बाहर देखा। ऊंची इमारतों और तेज़ रफ्तार जिंदगी को देखते हुए उसने खुद से कहा, “कितनी अजीब बात है। मैं इस चमक-धमक भरी जिंदगी की मालिक हूं, फिर भी किसी से इसे साझा नहीं कर सकती। अर्जुन... क्या वह मेरी इस सच्चाई को समझ सकेगा?” उधर, अर्जुन अपनी टेक कंपनी, “मेक्सस इनोवेशन्स” के ऑफिस में था। बोर्ड रूम में निवेशकों के साथ मीटिंग चल रही थी। “अर्जुन, हमारी नई एआई तकनीक बाजार में तहलका मचा सकती है। हमें बड़े पैमाने पर इसे लॉन्च करना चाहिए,” उसके बिजनेस पार्टनर, रोहन ने कहा। “रोहन, हमें जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहिए। बाजार का रुझान समझने के लिए थोड़ा इंतजार करें,” अर्जुन ने संयमित लहजे में कहा। मीटिंग खत्म होने के बाद, रोहन ने अर्जुन से कहा, “तुम्हारी सोच हमेशा सही होती है। लेकिन, यार, तुमने अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ नहीं बताया। शादी का क्या चल रहा है?” “एक लड़की मिली है। सिया राठौड़। परिवार ने अरेंज किया है। लेकिन...” अर्जुन थोड़ा झिझकते हुए रुक गया। “लेकिन क्या?” रोहन ने पूछा। “मुझे नहीं पता कि वह मेरे जैसी जिंदगी समझ पाएगी या नहीं। मैंने उससे अपनी असली पहचान छुपाई है। फिलहाल, वह मुझे सिर्फ एक साधारण इंजीनियर समझती है।” रोहन ने हंसते हुए कहा, “यार, ऐसा क्या राज़ छुपाना? अगर प्यार करना है, तो सच बताना पड़ेगा। लेकिन मैं मानता हूं, थोड़ा वक्त लो।” कुछ दिन बाद, अर्जुन ने सिया को कॉल किया। “हेलो, सिया। क्या तुम इस वीकेंड पर मिलने के लिए फ्री हो?” अर्जुन ने पूछा। “हां, क्यों नहीं? कहां मिलना चाहोगे?” सिया ने कहा। “तुम्हें कोई पसंदीदा जगह है?” सिया ने कुछ सोचा और कहा, “क्या तुम बैंडस्टैंड पर मिल सकते हो? मुझे समुद्र के किनारे सुकून पसंद है।” शनिवार की शाम, बैंडस्टैंड के पास ठंडी हवा बह रही थी। अर्जुन और सिया एक छोटे कैफे के बाहर बैठकर बातें कर रहे थे। “तुम्हें समुद्र क्यों पसंद है?” अर्जुन ने पूछा। “यह मुझे मेरे बचपन की याद दिलाता है। जयपुर में हमारे घर के पास ऐसा कोई सुकून भरा कोना नहीं था। जब मैं मुंबई आई, तो यह जगह मेरे दिल के करीब हो गई,” सिया ने जवाब दिया। “तुम्हारा बचपन कैसा था?” अर्जुन ने रुचि से पूछा। सिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “साधारण। मेरे पापा ने हमेशा हमें सिखाया कि मेहनत और अनुशासन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। मैंने वही सीखा। और तुम्हारा बचपन?” अर्जुन थोड़ा गंभीर हो गया। “दिल्ली में बड़ा हुआ। माता-पिता की जल्दी मृत्यु हो गई। चाचा-चाची ने पाला, लेकिन मैंने सब कुछ खुद ही बनाया। मेहनत, असफलता, और फिर सफलता—यही मेरी कहानी है।” उनकी बातें गहरी हो रही थीं, लेकिन दोनों के दिलों में छुपे राज़ उनकी जुबान पर आने को तैयार नहीं थे। सिया सोच रही थी, “क्या होगा अगर अर्जुन को पता चले कि मैं करोड़ों की कंपनी चलाती हूं? क्या वह मुझे स्वार्थी समझेगा?” अर्जुन के मन में भी यही सवाल उठ रहे थे, “क्या होगा अगर सिया को मेरी असली पहचान पता चले? क्या वह मुझसे दूर हो जाएगी?” शाम ढल चुकी थी। अर्जुन ने सिया को उसकी टैक्सी तक छोड़ा। जैसे ही टैक्सी चली, अर्जुन का फोन बजा। “सर, एक समस्या है। हमारी नई प्रोजेक्ट रिपोर्ट लीक हो गई है,” अर्जुन के असिस्टेंट ने घबराते हुए कहा। “क्या? यह कैसे हुआ?” अर्जुन का चेहरा सख्त हो गया। “हमें शक है कि किसी ने अंदर से यह डाटा चुराया है। मैं तुरंत रिपोर्ट भेजता हूं।” अर्जुन ने गहरी सांस ली और खुद से कहा, “कंपनी को बचाना मेरी पहली प्राथमिकता है। लेकिन यह राज़ कब तक छुपा पाऊंगा?” उधर, सिया ने घर पहुंचते ही अपनी असिस्टेंट आर्या को कॉल किया। “आर्या, इस हफ्ते मेरी सभी मीटिंग्स को रीस्केड्यूल करो। मुझे कुछ समय चाहिए।” “मैम, क्या सब ठीक है?” आर्या ने चिंतित होकर पूछा। “हां, लेकिन मैं अपनी जिंदगी को थोड़ा बेहतर समझना चाहती हूं। अर्जुन के बारे में सोच रही हूं।” फोन रखने के बाद, सिया ने खिड़की से बाहर झांकते हुए सोचा, “यह रिश्ता मुझे सुकून देता है। लेकिन क्या यह तभी तक टिकेगा, जब तक मेरे राज़ सामने नहीं आते?” अर्जुन और सिया दोनों अपनी-अपनी जिंदगी के बड़े खेल के बीच फंसे हुए थे। उनकी मुलाकातें उन्हें करीब ला रही थीं, लेकिन उनके राज़ एक दीवार की तरह उनके बीच खड़े थे। क्या होगा जब ये राज़ सामने आएंगे? क्या उनका रिश्ता इन दीवारों को पार कर पाएगा? अर्जुन और सिया की मुलाकातें अब एक नई गहराई तक पहुंच चुकी थीं। उनकी बातचीत में सहजता थी, लेकिन उनके दिलों में छुपे राज़ अभी भी सामने नहीं आए थे। इस बार सिया ने अर्जुन को नेशनल आर्ट गैलरी चलने का सुझाव दिया था। अर्जुन ने यह प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस मुलाकात में कुछ ऐसा होगा, जो उसे अतीत की याद दिला देगा। शनिवार की दोपहर, दोनों गैलरी के बाहर मिले। सिया ने हल्के नीले रंग की ड्रेस पहनी थी, जो उसकी सादगी और आत्मविश्वास को और निखार रही थी। अर्जुन ने सफेद शर्ट और जीन्स पहन रखी थी, जो उसकी सरलता को दर्शाती थी। “तो, यहां तुम्हें कोई खास पेंटिंग पसंद है?” अर्जुन ने गैलरी के बड़े दरवाजे की ओर इशारा करते हुए पूछा। “हां, मुझे यहां की हर पेंटिंग पसंद है। लेकिन असली मज़ा तब आता है, जब हर पेंटिंग की कहानी जानने को मिले,” सिया ने मुस्कुराते हुए कहा। अंदर कदम रखते ही अर्जुन ने देखा कि गैलरी का इंटीरियर बहुत ही शानदार था। उसे यह जगह जानी-पहचानी लगी, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था क्यों। जैसे ही वे एक बड़ी पेंटिंग के पास पहुंचे, अर्जुन अचानक रुक गया। यह एक विशाल कैनवस था, जिसमें एक नदी के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे। अर्जुन ने गहराई से उस पेंटिंग को देखा। “अर्जुन, क्या हुआ? तुम इतने ध्यान से इसे क्यों देख रहे हो?” सिया ने आश्चर्य से पूछा। अर्जुन ने कुछ पल चुप रहकर कहा, “यह पेंटिंग... यह मुझे कुछ याद दिलाती है। यह वही है, जो मैंने इस गैलरी के उद्घाटन के समय खरीदी थी।” सिया को यह सुनकर थोड़ा झटका लगा। उसने तुरंत पूछा, “तुमने? तुमने यह गैलरी की पेंटिंग खरीदी थी? तुम पहले यहां आ चुके हो?” अर्जुन ने थोड़ा असहज होकर कहा, “हां, मैं कुछ साल पहले यहां आया था। दरअसल, मैं इस गैलरी का एक पुराने सौदे में हिस्सा रह चुका हूं। लेकिन मैं तुम्हें यह सब क्यों बता रहा हूं?” अर्जुन को अचानक याद आया कि नेशनल आर्ट गैलरी कुछ साल पहले आर्थिक संकट में थी। उस समय, उसने एक अनाम निवेशक के रूप में गैलरी को आर्थिक सहायता दी थी और बदले में कुछ चुनिंदा पेंटिंग्स खरीदी थीं। यह सब उसने अपनी पहचान छुपाकर किया था, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि लोग उसकी दौलत को लेकर सवाल उठाएं। “तो यह जगह तुम्हारे लिए खास है?” सिया ने नरमी से पूछा। “हां, लेकिन मैंने इसे किसी को नहीं बताया। यह सिर्फ मेरे लिए एक निवेश नहीं था, बल्कि एक जिम्मेदारी थी। मुझे कला से प्यार है, और इस गैलरी को बचाना उस प्यार का हिस्सा था,” अर्जुन ने कहा। सिया अर्जुन की बातों को गौर से सुन रही थी। उसने महसूस किया कि अर्जुन के व्यक्तित्व में एक गहराई है, जिसे वह अभी तक पूरी तरह समझ नहीं पाई थी। अर्जुन की बातों ने सिया को थोड़ा असहज कर दिया। वह सोचने लगी, “अगर अर्जुन इस गैलरी का हिस्सा रह चुका है, तो इसका मतलब है कि उसकी जिंदगी मेरी सोच से कहीं ज्यादा जटिल है। क्या मैं उसे वास्तव में जानती हूं?” उधर, अर्जुन भी उलझन में था। उसने सिया से गैलरी से जुड़ा अपना राज़ तो बता दिया, लेकिन अपनी असली पहचान छुपाए रखना अब और मुश्किल लग रहा था। “चलो, आगे बढ़ते हैं। मुझे यकीन है, तुम्हें यहां की और भी पेंटिंग्स पसंद आएंगी,” अर्जुन ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा। “हां, चलो,” सिया ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसके मन में सवाल उमड़ रहे थे। गैलरी का दौरा खत्म होने के बाद, अर्जुन और सिया ने पास के कैफे में बैठकर बातें कीं। अर्जुन ने महसूस किया कि सिया थोड़ा शांत हो गई है। “तुम ठीक हो, सिया? मुझे लगता है, तुम कुछ सोच रही हो,” अर्जुन ने पूछा। सिया ने जवाब दिया, “हां, मैं ठीक हूं। बस, तुम्हारे बारे में और जानने की कोशिश कर रही हूं। तुम्हारी जिंदगी बहुत दिलचस्प लगती है।” “दिलचस्प, या रहस्यमय?” अर्जुन ने हल्की हंसी के साथ कहा। सिया ने कोई जवाब नहीं दिया। वह जानती थी कि अर्जुन भी कुछ छुपा रहा है, और शायद यह ठीक वही है, जो वह खुद भी कर रही थी। क्या अर्जुन और सिया अपनी-अपनी सच्चाईयों को छुपाते हुए इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाएंगे? या उनके राज़ उनके रिश्ते को प्रभावित करेंगे? कहानी जारी रहेगी....

  • 2. Mr & Mrs billionaire - Chapter 2

    Words: 1773

    Estimated Reading Time: 11 min

    गैलरी की मुलाकात के कुछ ही दिन बाद, अर्जुन और सिया की जिंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया। दोनों की आपसी समझ बढ़ रही थी, लेकिन अपने-अपने राज़ छुपाए रखने का संघर्ष जारी था। तभी, उनके परिवारों ने एक बड़ा फैसला लिया। सिया अपने परिवार के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठी थी। उसके पिता, राघव राठौड़, हमेशा की तरह गंभीर मुद्रा में थे। “सिया, अर्जुन तुम्हें कैसा लगता है?” उन्होंने सीधा सवाल पूछा। सिया इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी। उसने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “वह अच्छा है। ईमानदार और सरल लगता है।” राघव ने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा है। अर्जुन के परिवार से बात हो चुकी है। वे भी इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि तुम्हारी और अर्जुन की शादी फिक्स कर दें।” सिया ने एक पल के लिए कुछ नहीं कहा। वह अर्जुन के बारे में सोचने लगी। उनके साथ बिताए गए छोटे-छोटे पल, उसकी सादगी और सुकून उसे याद आने लगे। “अगर आप सबको यह सही लगता है, तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है,” उसने धीरे से कहा। दूसरी तरफ, अर्जुन को उसके चाचा-चाची ने बुलाया। “अर्जुन, तुम्हारी और सिया की शादी के बारे में हमने राठौड़ परिवार से बात की है। वे भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं। क्या तुम्हारी भी सहमति है?” चाचा ने पूछा। अर्जुन ने उनकी बात ध्यान से सुनी। उसने सिया के बारे में सोचा—उसकी गहरी बातें, उसकी मुस्कान, और उसकी सादगी। “मैं भी तैयार हूं,” अर्जुन ने जवाब दिया। चाची ने खुश होकर कहा, “शादी की तारीख अगले महीने के अंत में तय हुई है। हमें तैयारियां शुरू करनी होंगी।” अगले दिन, दोनों परिवारों ने इस खबर को औपचारिक रूप से घोषित कर दिया। अर्जुन और सिया की सगाई अगले हफ्ते और शादी की तारीख एक महीने बाद फिक्स हो चुकी थी। सिया को जब अर्जुन का फोन आया, तो वह थोड़ा नर्वस थी। “सिया, तुम्हें यह सब अचानक तो नहीं लगा?” अर्जुन ने पूछा। “नहीं, मुझे सब ठीक लगा। लेकिन यह सब बहुत जल्दी हो रहा है,” सिया ने ईमानदारी से कहा। “मैं समझता हूं। लेकिन शायद यही जिंदगी है। हमें इसे स्वीकार करना होगा,” अर्जुन ने जवाब दिया। दोनों ने इस नए रिश्ते को लेकर अपनी-अपनी उलझनें साझा कीं। हालांकि, उनके दिलों में अब भी एक सवाल था—क्या उनका यह रिश्ता उनकी असली पहचान की सच्चाई झेल पाएगा? सिया का घर रोशनी और रंगों से सजने लगा। डिजाइनर कपड़े, जूलरी, और मेहमानों की लिस्ट तैयार हो रही थी। “सिया, तुमने अपनी सगाई के लिए कौन-सी ड्रेस चुनी?” उसकी मां ने पूछा। “गोल्डन और मरून लहंगा। सिंपल लेकिन क्लासी,” सिया ने जवाब दिया। उधर, अर्जुन का घर भी तैयारियों में व्यस्त था। “अर्जुन, तुम्हारी शेरवानी का नाप ले लिया गया है। बस अब तुम्हें फंक्शन के लिए टाइम पर तैयार रहना होगा,” चाची ने मुस्कुराते हुए कहा। अर्जुन ने हंसकर जवाब दिया, “चाची, चिंता मत करो। मैं समय पर तैयार रहूंगा।” सिया अपनी सबसे करीबी दोस्त अदिति से मिलने गई। “अदिति, मुझे अर्जुन के साथ समय बिताना अच्छा लगता है। लेकिन मैं अब तक उसे अपनी असली पहचान के बारे में कुछ नहीं बता पाई हूं। अगर उसे पता चला कि मैं राठौड़ फैशन हाउस की मालकिन हूं, तो क्या वह मुझे वैसे ही देखेगा?” अदिति ने सिया का हाथ थामते हुए कहा, “अगर अर्जुन वाकई तुम्हें पसंद करता है, तो यह सब उसे फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन शायद तुम्हें यह सच शादी से पहले बताना चाहिए।” सिया ने सिर हिलाया। “मैं सोचूंगी। लेकिन अभी के लिए, मैं इस शादी को सहज रूप से आगे बढ़ाना चाहती हूं।” उधर, अर्जुन अपने ऑफिस में अकेले बैठा था। उसने रोहन से कहा, “सिया मुझे पसंद है। लेकिन मैंने अब तक उसे यह नहीं बताया कि मैं ‘मेक्सस इनोवेशन्स’ का मालिक हूं। उसे लगता है कि मैं एक साधारण इंजीनियर हूं।” रोहन ने कहा, “यार, तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो। लेकिन यह राज़ तुम्हारे रिश्ते को मुश्किल में डाल सकता है। सच्चाई बताने का सही वक्त आ रहा है। शादी से पहले यह बात सिया को जाननी चाहिए।” अर्जुन ने गहरी सांस ली। “शायद तुम सही कह रहे हो। लेकिन मैं यह सब जल्दबाजी में नहीं करना चाहता।" आखिरकार सगाई का दिन आ गया। अर्जुन और सिया दोनों ने अपने-अपने परिवारों के साथ सगाई की रस्में निभाईं। पूरा हॉल रोशनी और फूलों से सजा था। दोनों परिवारों ने खुशी-खुशी इस पल को सेलिब्रेट किया। सिया ने अर्जुन से कहा, “आज के बाद हमारी जिंदगी पूरी तरह बदलने वाली है।” अर्जुन ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “हां, लेकिन मुझे यकीन है कि हम इसे संभाल लेंगे।” क्या सिया और अर्जुन अपने राज़ों के साथ इस रिश्ते को निभा पाएंगे? या शादी के करीब आते-आते उनकी सच्चाई एक नई चुनौती खड़ी करेगी? सगाई के कुछ दिनों बाद, सिया राठौड़ ने अपने फोन की स्क्रीन पर एक नंबर खोजा और झिझकते हुए अर्जुन मेहरा को कॉल किया। फोन की घंटी बजी, और दूसरी तरफ से अर्जुन की शांत लेकिन गंभीर आवाज़ सुनाई दी। "तुम कहाँ हो? मुझे तुमसे मिलना है।" कुछ पल की खामोशी के बाद, अर्जुन ने गहरी साँस ली और धीमे स्वर में कहा, "तुम मेरे घर आ जाओ।" फिर बिना कुछ और कहे उसने फोन काट दिया। फोन रखते ही अर्जुन ने अपने बटलर को इशारों में कुछ आदेश दिए और ऑफिस से निकल पड़ा। उसकी गाड़ी पुराने इलाके की ओर बढ़ रही थी—जहाँ शहर की चकाचौंध से दूर, मिडिल क्लास लोगों के घर बसे हुए थे। इन तंग गलियों में से एक, हल्के पीले रंग का एक पुराना मकान था, जिसके सामने आकर अर्जुन ने गाड़ी रोकी। उसने अपनी जेब से एक चाबी निकाली, दरवाजा खोला और अंदर चला गया। घर में हल्की धूल जमी थी, लेकिन फर्नीचर करीने से सजा हुआ था। लकड़ी की एक पुरानी कुर्सी पर बैठते हुए, उसने अपने घड़ी की ओर देखा—सिया के आने का इंतजार अब शुरू हो चुका था। कुछ समय बाद, दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई। अर्जुन उठा और दरवाजा खोला। सिया उसके सामने खड़ी थी, हल्की गुलाबी साड़ी में उसकी आँखों में एक अलग सी बेचैनी थी। बिना समय गँवाए, उसने कहा, "चलो, मैं तुम्हें एक जगह ले जाना चाहती हूँ।" अर्जुन ने बिना कोई सवाल किए उसकी बात मानी, और दोनों गाड़ी में बैठकर शहर की सबसे बड़ी पेटिक आर्ट गैलरी की ओर बढ़ चले। गैलरी में दाखिल होते ही, चारों तरफ बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स सजी हुई थीं—कुछ ऐतिहासिक, कुछ समकालीन, और कुछ अनकहे दर्द को बयां करती हुई। अर्जुन को सिया की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी, मानो वह किसी ख़ास चीज़ की तलाश में हो। वह दोनों कई कलाकृतियों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे, जब तक कि सिया एक विशेष पेंटिंग के सामने आकर रुक नहीं गई। अर्जुन ने उसकी निगाहों का पीछा किया और उस पेंटिंग को देखने लगा—लेकिन जैसे ही उसने उसे ध्यान से देखा, उसकी आँखों में हल्की हैरानी तैर गई। "यह पेंटिंग...?" अर्जुन ने धीरे से पूछा। सिया बिना उसकी ओर देखे, बस हल्की आवाज़ में फुसफुसाई— "यह वही है, जिसे मैंने सालों पहले देखा था... "पर मैं इसे खरीद नहीं पाई… इसका ओनर इस पेंटिंग को बेचना नहीं चाहता," सिया ने हल्की उदासी भरी आवाज़ में कहा। अर्जुन ने उसकी आँखों में छिपी कसक को महसूस किया। बिना कुछ कहे, उसने अपना फोन निकाला और अपने बटलर को मैसेज किया— "इस पेंटिंग को किसी भी हाल में खरीदना है।" कुछ ही सेकंड में सामने से जवाब आया— "हो जाएगा, सर।" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए फोन वापस अपनी जेब में रखा और सिया की ओर देखा, जो अब भी पेंटिंग को एक आखिरी बार निहार रही थी। फिर दोनों गैलरी से बाहर निकल आए। गर्मियों की हल्की धूप शहर के पुराने इलाकों पर छिटकी हुई थी। सिया और अर्जुन एक ऐतिहासिक जगह पर घूम रहे थे, जहाँ हर गली, हर इमारत में एक अलग ही सुकून था। हल्की हवा उनके चेहरे को छू रही थी, और आसपास के शांत माहौल में बस उनकी धीमी हँसी गूंज रही थी। "यह जगह कितनी खूबसूरत है," सिया ने धीरे से कहा, अपनी आँखों को बंद करके हवा को महसूस करते हुए। अर्जुन हल्के से मुस्कुराया, "पर तुम्हारी खूबसूरती के आगे तो यह कुछ भी नहीं, सिया।" सिया ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी। "अर्जुन, तुम ना… कभी-कभी बहुत फिल्मी हो जाते हो," उसने हल्के से हँसते हुए कहा। अर्जुन ने एक कदम आगे बढ़ाया, सिया के ठीक सामने आकर रुका। "और तुम्हें वो पसंद नहीं?" सिया एक पल के लिए उसकी आँखों में देखती रही, फिर धीरे से मुस्कुराई, "शायद पसंद है…" वे दोनों एक छोटी-सी गली से गुजरते हुए एक पुराने लेकिन खूबसूरत कैफ़े में जा पहुँचे। लकड़ी की टेबल, हल्की पीली रोशनी, और धीमे बजते पुराने गाने… माहौल किसी खूबसूरत पेंटिंग जैसा लग रहा था। अर्जुन ने हल्के से सिया का हाथ पकड़ा और उसे पास की टेबल पर बिठाया। "तुम्हें पता है, सिया… जब से तुम्हें देखा है, तुम्हारे साथ बिताया हर लम्हा मुझे खास लगता है।" सिया हल्का सा मुस्कुराई, लेकिन उसकी धड़कन थोड़ी तेज़ हो गई थी। "अर्जुन, तुम हमेशा इतने रोमांटिक क्यों होते हो?" अर्जुन ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "शायद इसलिए क्योंकि तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत चीज़ हो।" सिया का चेहरा हल्का सा गुलाबी हो गया। वह हल्के से अपनी नज़रें झुका ली, लेकिन अर्जुन की आँखों में जो चाहत थी, उसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल था। कैफ़े के बाद, वे दोनों एक झील के किनारे जा पहुँचे। शाम की ठंडी हवा चल रही थी, और हल्की-हल्की धुंध सूरज की रोशनी में घुलने लगी थी। अर्जुन ने धीरे से सिया की हथेली अपने हाथों में ली। उसकी उंगलियाँ सिया की हथेलियों पर एक नर्म एहसास छोड़ रही थीं। "अगर यह पल यहीं रुक जाए, तो?" अर्जुन ने धीमी आवाज़ में कहा। सिया ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में हल्की नमी थी। उसने धीरे से कहा, "कुछ पल हमेशा के लिए दिल में बस जाते हैं, अर्जुन… शायद यह भी उन्हीं में से एक है।" अर्जुन ने उसकी ओर झुककर हल्के से उसके माथे को चूमा। वह पल जैसे ठहर सा गया था। चारों तरफ खामोशी थी, सिर्फ उनके दिलों की धड़कन थी जो इस लम्हे को महसूस कर रही थी। "तुम्हारे बिना ये सफर अधूरा लगता, सिया," अर्जुन ने धीरे से कहा। सिया ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा, और हल्के से उसका हाथ दबाया। "तो मत छोड़ना मेरा साथ, अर्जुन…" झील के किनारे हल्की ठंडी हवा बह रही थी। सूरज डूबने को था, लेकिन उनके एहसासों का उजाला अभी भी चमक रहा था। ये बस एक शाम नहीं थी, यह उनकी कहानी का एक खूबसूरत मोड़ था—एक ऐसा लम्हा जो हमेशा के लिए उनकी यादों में बस जाने वाला था। कहानी जारी रहेगी.... आप लोगों को यह कहानी पसंद आए तो कमेंट में बताइए हम इसे और भी रोमांटिक और सस्पेंस के साथ बनाए

  • 3. Mr & Mrs billionaire - Chapter 3

    Words: 2331

    Estimated Reading Time: 14 min

    सगाई के बाद के दिन सिया और अर्जुन के लिए नए रंग लेकर आए। दोनों के बीच अब पहले से ज्यादा खुलापन था, लेकिन एक अजीब-सा संकोच भी। शायद इसलिए कि वे दोनों जानते थे—इस रिश्ते में अब सिर्फ भावनाएँ नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारियाँ भी जुड़ चुकी थीं। सिया अपनी माँ के साथ शादी की तैयारियों में व्यस्त थी। घर में हर तरफ उत्सव का माहौल था। राठौड़ परिवार के लोग और रिश्तेदार हर दिन घर में आते-जाते रहते थे। हल्दी, संगीत, और शादी से जुड़े अन्य रीति-रिवाजों की चर्चा हर जगह थी। “सिया, तुम्हारी शादी की शॉपिंग पूरी हुई या अभी भी कुछ बाकी है?” उसकी भाभी ने हँसते हुए पूछा। सिया ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “बस कुछ छोटी-छोटी चीज़ें रह गई हैं, जिन्हें मैं खुद लेना चाहती हूँ।” “अच्छा! तो अर्जुन के साथ जाओ, वैसे भी तुम दोनों को एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका कम ही मिलता है।” सिया ने कुछ नहीं कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसे यह सुझाव अच्छा लगा। अगले दिन अर्जुन और सिया एक बड़े मॉल में शॉपिंग करने पहुँचे। भीड़-भाड़ के बीच, दोनों ने अपने लिए कपड़े और ज़रूरी सामान खरीदे। अर्जुन ने जब सिया को एक बेहद खूबसूरत डायमंड ब्रेसलेट दिखाया, तो उसकी आँखें चमक उठीं। “यह तुम्हारे लिए,” अर्जुन ने ब्रेसलेट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा। सिया ने हल्की झिझक के साथ उसे देखा, “इतनी महंगी चीज़ की क्या जरूरत थी?” अर्जुन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “कुछ चीज़ें कीमत से नहीं, एहसास से खरीदी जाती हैं। और यह सिर्फ एक तोहफा नहीं, एक याद है।” सिया ने मुस्कराकर ब्रेसलेट ले लिया और उसकी कलाई पर पहन लिया। शाम को, दोनों एक छोटे-से कैफ़े में बैठकर कॉफी पी रहे थे। खिड़की से बाहर बारिश की हल्की बूँदें गिर रही थीं। सिया खामोश थी, मानो कुछ कहना चाहती हो लेकिन कह नहीं पा रही थी। “क्या सोच रही हो?” अर्जुन ने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा। सिया ने गहरी सांस ली और कहा, “बस यूँ ही… शादी के बाद सब कुछ बदल जाएगा, है ना?” अर्जुन ने उसकी बात सुनकर हल्का-सा सिर हिलाया, “हाँ, लेकिन बदलाव हमेशा बुरा नहीं होता। कभी-कभी ये नए रास्ते दिखाता है।” सिया ने उसकी ओर देखा। वो जानती थी कि अर्जुन सही कह रहा है, लेकिन उसके मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा था—क्या उनका रिश्ता इन अधूरी सच्चाइयों को सह सकेगा? शादी की तारीख नजदीक आ रही थी, और हर दिन सिया और अर्जुन के रिश्ते में नई गहराइयाँ जुड़ रही थीं। दोनों के बीच की बातचीत पहले से ज्यादा सहज हो गई थी, लेकिन उनके राज़ अब भी अनकहे थे। क्या यह अधूरी सच्चाइयाँ उनके रिश्ते की नींव को हिला देंगी? या प्यार की डोर उन्हें हर मुश्किल से बचा लेगी? शादी का दिन आ चुका था। सुबह की हल्की धूप हवाओं में सुनहरी आभा बिखेर रही थी। हवाओं में महकती हुई फूलों की खुशबू और मंत्रों की गूँज माहौल को एक अलौकिक शांति से भर रही थी। लेकिन यह शादी वैसी नहीं थी जैसी अक्सर अरबपतियों की होती है—यह सादगी और आत्मीयता से भरी थी, जहाँ दिखावे से ज्यादा भावनाओं को अहमियत दी गई थी। शादी का स्थान और माहौल अर्जुन और सिया ने अपनी शादी को पूरी तरह निजी रखा था। किसी भी तरह के मीडिया कवरेज की अनुमति नहीं थी। न ही इसमें बड़े उद्योगपतियों, राजनेताओं या हाई-प्रोफाइल हस्तियों को बुलाया गया था। शादी का समारोह एक भव्य होटल या किसी बड़े वेडिंग डेस्टिनेशन की जगह एक सुंदर से हेरिटेज हाउस में हो रहा था, जो सिया के परिवार से जुड़ी यादों का हिस्सा था। चारों ओर ताजे फूलों की सजावट थी, और मेहमानों की संख्या सीमित थी—सिर्फ परिवार के लोग और कुछ करीबी दोस्त। यह शादी वैभव और दिखावे से कोसों दूर थी, लेकिन इसके हर कोने में प्रेम और अपनापन झलक रहा था। अर्जुन का फैसला साफ था—वह नहीं चाहता था कि यह शादी कोई व्यापारिक सौदा लगे। उसके लिए यह दो दिलों का पवित्र मिलन था, न कि कोई हाई-प्रोफाइल इवेंट। सिया भी उसकी सोच से सहमत थी। सिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी। लाल और सुनहरे रंग की पारंपरिक बनारसी साड़ी में वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। उसने भारी गहनों की जगह हल्के लेकिन शाही आभूषण पहने थे, जो उसकी सादगी और रॉयल्टी का अनोखा मेल दर्शा रहे थे। "दीदी, आप कमाल की लग रही हो!" उसकी छोटी बहन खुशी ने मुस्कुराते हुए कहा। सिया ने आईने में खुद को देखा और एक हल्की मुस्कान दी। उसके चेहरे पर एक अजीब-सा सुकून था। उसे इस शादी से कोई डर या असमंजस नहीं था—वह पूरी तरह से तैयार थी अर्जुन के साथ अपनी नई जिंदगी शुरू करने के लिए। दूसरी ओर, अर्जुन अपनी हल्की क्रीम और गोल्डन शेरवानी में किसी राजकुमार की तरह लग रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी—शायद इसलिए कि वह जानता था कि वह जिस औरत से शादी कर रहा है, वह सिर्फ उसकी पत्नी नहीं, बल्कि उसकी सबसे अच्छी दोस्त भी थी। बारात ढोल-नगाड़ों के बिना आई। न कोई घोड़ा, न कोई बैंड-बाजा। अर्जुन अपने करीबी दोस्तों और परिवार के साथ सीधे मंडप तक आया। सिया के परिवार के लोग उसकी सादगी से प्रभावित हुए। "आजकल ऐसा कौन करता है?" किसी ने कहा। "सच्चा प्यार दिखावे से नहीं, दिल से जुड़ता है," सिया के पिता ने गर्व से जवाब दिया। शादी की रस्में और बीच में आई मुश्किलें मंडप के पास पहुँचते ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण शुरू हो गया। अर्जुन और सिया अग्नि के चारों ओर फेरे ले रहे थे। लेकिन तभी, दूर से हलचल मचने लगी। अर्जुन के कुछ पुराने दुश्मन शादी को बर्बाद करने के इरादे से वहाँ पहुँच चुके थे। वे चाहते थे कि यह शादी सुर्खियों में आए और विवाद खड़ा हो। "यह शादी किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए!" उनमें से एक ने फुसफुसाकर कहा। उन्होंने शादी के बीच में ही बिजली कटवा दी। अचानक, पूरा विवाह स्थल अंधेरे में डूब गया। मेहमान घबरा गए, और कुछ हलचल होने लगी। लेकिन अर्जुन के बटलर और उसके भरोसेमंद लोग पहले से सतर्क थे। बटलर ने जल्दी से कुछ इशारे किए, और कुछ मिनटों के भीतर जनरेटर चालू कर दिया गया। "यह सिर्फ एक चाल थी। असली परेशानी अभी बाकी है," बटलर ने अर्जुन को फोन पर सूचित किया। अर्जुन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस सिया की ओर देखा। वह निश्चिंत और शांत थी, मानो उसे अर्जुन पर पूरा भरोसा था कि वह सब संभाल लेगा। कुछ ही मिनटों में अर्जुन के लोगों ने उन गुंडों को पकड़ लिया और पुलिस को सौंप दिया। शादी की रस्में बिना किसी और रुकावट के जारी रहीं। सात फेरे और वचन आखिरकार, अर्जुन और सिया ने अपने सात फेरे पूरे किए। पहला फेरा – हम जीवनभर एक-दूसरे का सम्मान करेंगे। दूसरा फेरा – हम अपने रिश्ते में सच्चाई और विश्वास बनाए रखेंगे। तीसरा फेरा – हम अपने परिवारों को हमेशा खुश रखेंगे। चौथा फेरा – हम एक-दूसरे का हर परिस्थिति में साथ देंगे। पाँचवाँ फेरा – हम एक-दूसरे की इच्छाओं और सपनों का सम्मान करेंगे। छठा फेरा – हम हर मुश्किल में एक-दूसरे की ताकत बनेंगे। सातवाँ फेरा – हम जन्म-जन्मांतर तक एक-दूसरे के साथ रहेंगे। जब सिया ने अर्जुन के नाम की मंगलसूत्र पहनी, तो उसके चेहरे पर संतोष था। अर्जुन ने उसकी मांग में सिंदूर भरते हुए हल्का-सा मुस्कुराया। "अब से तुम मेरी जिम्मेदारी हो," अर्जुन ने धीरे से कहा। सिया ने उसकी आँखों में देखा और हल्के से सिर हिला दिया, "और तुम मेरी ताकत।" शादी खत्म होने के बाद कोई बड़ा रिसेप्शन नहीं रखा गया। दोनों ने तय किया था कि वे एक प्राइवेट डिनर पार्टी करेंगे, जिसमें सिर्फ उनके परिवार और करीबी दोस्त होंगे। मीडिया अब भी अर्जुन और सिया की शादी की एक झलक पाने के लिए बेचैन थी, लेकिन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। "यह शादी साबित करती है कि असली प्यार पैसों और शोहरत से परे होता है," एक रिपोर्टर ने कहा। अर्जुन और सिया ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था। उन्हें इस बात की परवाह नहीं थी कि दुनिया क्या सोचती है—वे जानते थे कि वे एक-दूसरे के लिए बने हैं। अब, उनकी नई जिंदगी शुरू हो रही थी—नई चुनौतियों और नई खुशियों के साथ। शादी की रस्में समाप्त हो चुकी थीं। अर्जुन और सिया अब पति-पत्नी बन चुके थे। पूरे माहौल में एक अलग ही शांति और संतोष था। यह शादी भले ही सादगी भरी रही हो, लेकिन इसमें जो भावनाएँ और अपनापन था, वह किसी शाही शादी से कम नहीं था। शादी के बाद विदाई का समय आ गया था। यह वह पल था जब सिया को अपने मायके को छोड़कर अर्जुन के घर जाना था। यह विदाई किसी भी लड़की के लिए सबसे कठिन होती है, और सिया के लिए भी यह अलग नहीं थी। उसकी माँ की आँखें नम थीं, और पिता की आँखों में गर्व और दुख का मिला-जुला भाव था। उसकी बहन खुशी ने उसे गले लगाया और रो पड़ी। "दीदी, बिना मेरे कैसे रहोगी?" खुशी ने सिसकते हुए कहा। सिया मुस्कुराई और उसके आँसू पोंछते हुए बोली, "जैसे तुम मेरे बिना रहोगी, वैसे ही मैं भी रह लूँगी। पर हम हमेशा साथ रहेंगे, यह वादा है।" अर्जुन खड़ा यह सब देख रहा था। वह जानता था कि यह सिया के लिए आसान नहीं था। उसने उसके पिता के पास जाकर सिर झुकाया। "मैं वादा करता हूँ कि सिया को कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा," उसने दृढ़ आवाज में कहा। सिया के पिता ने उसकी पीठ थपथपाई, "मुझे तुम पर भरोसा है, बेटा।" गाड़ी में बैठते ही सिया ने एक आखिरी बार अपने घर को देखा, फिर आँखें बंद कर लीं। यह एक नई यात्रा की शुरुआत थी। अर्जुन का घर बाहर से देखने में भले ही साधारण लगता हो, लेकिन अंदर जाते ही उसकी भव्यता और सुंदरता नजर आती थी। हालांकि, इस घर की सबसे खास बात इसकी सादगी थी—कोई दिखावा नहीं, कोई अनावश्यक तामझाम नहीं। जैसे ही वे दरवाजे पर पहुँचे, अर्जुन की माँ ने थाली में दीप जलाकर आरती उतारी। "बेटा, यह घर अब तुम्हारा भी है। इसे अपने प्यार और हँसी से भर देना," उन्होंने सिया से कहा। सिया ने थाली में हाथ रखा और पहला कदम अंदर रखा। अंदर आते ही घर की बड़ी-बूढ़ी महिलाओं ने रस्मों की शुरुआत की। सबसे पहली रस्म ‘दूध और गुलाब की खोज’ थी। एक बड़े कटोरे में दूध और गुलाब की पंखुड़ियाँ डालकर उसमें अंगूठी छिपाई गई थी। सिया और अर्जुन को इसमें से अंगूठी ढूँढनी थी। "जिसकी अंगूठी पहले मिलेगी, वही घर में राज करेगा!" अर्जुन की बहन ने मजाक किया। अर्जुन मुस्कुराया, "तो फिर सिया को ही जीतने दो।" सिया ने उसकी ओर देखा, फिर अचानक से अंगूठी निकाल ली। सभी तालियाँ बजाने लगे। "वाह, भाभी ने तो आते ही जीत लिया!" अर्जुन की बहन हँसते हुए बोली। अर्जुन हल्के से मुस्कुराया, "पहले से ही जानता था कि जीतने का हक तुम्हारा है।" अब दूसरी रस्म आई—जिसमें सिया को बिना अर्जुन का नाम लिए उन्हें बुलाना था। अगर वह नाम ले लेती, तो उसे जुर्माना देना पड़ता। "सिया भाभी, अपने पति को बुलाइए, लेकिन नाम नहीं लेना!" अर्जुन के दोस्त ने चुटकी ली। सिया थोड़ी देर सोचती रही, फिर अर्जुन की तरफ देखकर बोली, "सुनिए, आपसे कुछ कहना था।" "जी, कहिए?" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए पूछा। "देखा! नाम नहीं लिया, फिर भी बुला लिया!" अर्जुन की बहन हँसते हुए बोली। "चलो, इस बार भाभी जीत गईं," अर्जुन के दोस्त ने मजाक किया। अब सभी थके हुए थे सब सोने चले गये सुहागरात कमरे में हल्की सुनहरी रोशनी थी। मोमबत्तियों की लौ धीमी-धीमी जल रही थी, और खिड़की से आती ठंडी हवा हल्के पर्दों को हौले-हौले हिला रही थी। पूरे घर में शांति थी, लेकिन इस कमरे में एक अजीब-सी हलचल थी—एक ऐसी हलचल, जो दिल की धड़कनों से जुड़ी थी। सिया दरवाजे के पास खड़ी थी, उसकी हल्की घबराहट उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। लाल जोड़े में सजी हुई, उसकी खूबसूरती किसी सपने से कम नहीं लग रही थी। चूड़ियों की खनक और गजरे की भीनी खुशबू ने माहौल को और खास बना दिया था। अर्जुन ने उसकी ओर कदम बढ़ाए। उसकी आँखों में एक गहरी चमक थी—जैसे कोई खजाना पा लेने की खुशी हो। वह सिया के सामने आकर रुका, और बिना कुछ कहे उसकी आँखों में देखने लगा। यह नज़रों का संवाद था—एक ऐसा संवाद, जिसमें अनकहे शब्दों से ज्यादा एहसास भरे थे। सिया की धड़कन तेज हो गई। अर्जुन ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और उसे नज़दीक खींच लिया। सिया ने नज़रें झुका लीं, लेकिन उसके गालों पर आई हल्की लाली ने उसके एहसासों को उजागर कर दिया। "आज की रात सिर्फ हमारी है, सिया," अर्जुन की आवाज़ गहरी और मदहोश करने वाली थी। सिया ने धीरे से नज़रें उठाईं, उसकी आँखों में संकोच था, लेकिन साथ ही अर्जुन पर अटूट भरोसा भी। अर्जुन ने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया, फिर धीरे से उसकी चूड़ियों को छूते हुए बोला, "पता है, ये चूड़ियाँ जब खनकती हैं, तो लगता है जैसे कोई मीठी धुन बज रही हो।" सिया मुस्कुराई, लेकिन उसकी नज़रें अब भी अर्जुन के चेहरे पर टिकी थीं। अर्जुन ने धीरे से उसका घूंघट हटाया, और उसकी लटों को पीछे करते हुए उसकी खूबसूरती को निहारने लगा। "तुम्हें पता है, तुम कितनी खूबसूरत हो?" अर्जुन ने फुसफुसाते हुए कहा। सिया का दिल तेजी से धड़कने लगा। अर्जुन ने हल्के से उसकी ठोड़ी को छुआ और उसका चेहरा ऊपर उठाया। उनकी नज़दीकियाँ बढ़ रही थीं, और इस पल में सिर्फ उनके एहसास थे—ना कोई सवाल, ना कोई झिझक। अर्जुन ने उसके माथे को चूमा, फिर उसकी आँखों को। सिया की पलकें झुक गईं, लेकिन उसके दिल की हलचल बढ़ती जा रही थी। अर्जुन ने धीरे-धीरे उसके गालों पर अपने स्पर्श की गर्माहट छोड़ दी। सिया ने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे इस एहसास को हमेशा के लिए अपने भीतर समेट लेना चाहती हो। कमरा अब भावनाओं की मिठास से भर चुका था। चूड़ियों की हल्की खनक, अर्जुन की धीमी साँसें, और सिया का हल्का कंपन—सब मिलकर एक खूबसूरत रात की कहानी बुन रहे थे। यह रात सिर्फ उनकी थी—एक नई शुरुआत की, एक नए सफर की... जहाँ शब्दों से ज्यादा एहसासों ने बात की। कहानी जारी रहेगी...