राघव एक फटीचर गरीब अनाथ जो अपनी गरीबी की वजह से अपनी पत्नी और सास के ज़ुल्मो का शिकार होता रहता था। उसकी पत्नी उसे उसकी गरीबी को लेकर दिन रात टॉर्चेर किया करती थी, उसकी सास उसे अपना पालतू नौकर बना कर रखती थी लेकिन फिर भी राघव सब कुछ बर्दास्त कर रहा... राघव एक फटीचर गरीब अनाथ जो अपनी गरीबी की वजह से अपनी पत्नी और सास के ज़ुल्मो का शिकार होता रहता था। उसकी पत्नी उसे उसकी गरीबी को लेकर दिन रात टॉर्चेर किया करती थी, उसकी सास उसे अपना पालतू नौकर बना कर रखती थी लेकिन फिर भी राघव सब कुछ बर्दास्त कर रहा था सिर्फ और सिर्फ अपनी पत्नी के लिए क्योंकि वो उस से बहुत प्यार करता था। लेकिन एक दिन जब राघव ने अपनी पत्नी को उसके बॉयफ्रेंड के साथ बिस्तर में देखा तो राघव की दुनिया उजड़ गयी थी। इस धोखे से टूटा राघव अपनी जान देने पहुंचा लेकिन तब उसे एक लड़की मिली और राघव रातों रात करोड़पति बन गया। कौन था राघव? और कौन थी वह लड़की? क्या राघव की पत्नी उसे एक बार फिर पाने में कामयाब हो पाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए "Mister AMEERZADA
Page 1 of 7
शहर के बाहर एक कंस्ट्रक्शन साइट पर कुछ मज़दूर काम कर रहे थे। तभी, अचानक एक मज़दूर दौड़ता हुआ राघव के पास आया। राघव एक नौजवान मज़दूर था जो अपनी गरीबी के कारण सीमेंट और पत्थर उठाने का काम कर रहा था।
जैसे ही राघव ने एक मज़दूर को अपनी ओर भागते हुए देखा, वह हैरान हो गया और कहने लगा, "क्या हुआ है भाई? इतना तेज़ दौड़ क्यों लगा रहे हो?"
तब उस मज़दूर ने राघव से कहा, "राघव भैया, तुम एक काम क्यों नहीं कर लेते हो? अपने इस डब्बा फ़ोन के लिए एक चार्जर क्यों नहीं खरीद लेते हो, यार? तुम तो हमारे चार्जर पर फ़ोन लगवाकर आ गए। और तुम्हारी बीवी एक बार कॉल करती है तो बस करती ही रहती है। तुम कह रहे हो न, दौड़ क्यों लगा रहे हो? तुम्हारी बीवी जब-जब कॉल करती है, हमें इसी तरह से दौड़ लगवा देती है। क्या बताएँ तुम्हें हम?"
यह सुनकर राघव थोड़ा परेशान और डर गया, क्योंकि उसे अपनी बीवी से बहुत डर लगता था। उसकी बीवी उसे ज़्यादा टॉर्चर करती थी और उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ाया करती थी।
वह मज़दूर फ़ोन लेकर आया और राघव ने डरते-डरते फ़ोन कान से लगा लिया। जल्दी ही उसकी बीवी सरिता की आवाज़ सुनाई दी। सरिता राघव पर चिल्ला रही थी, "कहाँ मर जाते हो तुम? एक बार में फ़ोन क्यों नहीं उठाते हो? इतना टाइम थोड़ा ना मेरे पास है कि मैं तेरे पास बार-बार फ़ोन करके फ़ालतू टाइम वेस्ट करती रहूँ। अब तू जिस भी हालत में, जहाँ पर है, फ़टाफ़ट से घर आ। और हाँ, आते वक़्त समोसे-कचोरियाँ लेकर आना और साथ ही साथ जलेबी लाना मत भूलना।"
सरिता की खरी-खोटी और समोसे, कचोरी, जलेबी लाने के फ़रमान से राघव परेशान हो गया। वह डरते हुए कहने लगा, "लेकिन सरिता, मैं समोसे-कचोरियाँ कहाँ से लेकर आऊँगा? मेरे जेब में तो कल ₹200 पड़े हैं, और उसमें समोसे-कचोरियाँ और जलेबी नहीं आएंगी।"
राघव के डरते हुए जवाब पर सरिता और ज़ोरों से चीखने-चिल्लाने लगी, "है भगवान! मेरी फ़ूटी किस्मत! ऐसा ग़रीब और मज़दूर पति मिला है जिसके पास फ़ूटी कौड़ी तक नहीं रहती। मेरे ही टुकड़ों पर पलता है। मुझे तो पूरी ज़िन्दगी ऐसे ही ग़रीबी में सड़-सड़कर गुज़ारनी होगी। अरे फ़टीचर आदमी! मुझे पता था तेरे पास पैसे नहीं होंगे, इसीलिए मैंने पहले ही एक मोहल्ले के बच्चे को ₹500 का नोट थमाकर गली के बाहर भेजा है। फ़टाफ़ट से वह पैसे ले, साइकिल उठा अपनी, और मैंने जो भी सामान तुझे कहा है, वह सारा सामान लेकर आ।"
सरिता हमेशा राघव से तू-तड़ाक से बात करती थी। राघव को नहीं पता था इज़्ज़त क्या होती है या बीवी का असली सुख क्या होता है। राघव भले ही हट्टा-कट्टा था, लेकिन उसकी हालत बहुत बुरी थी। न घर में उसकी इज़्ज़त थी, न बाहर। सभी उसे ग़रीब, गुज़रा, नाकारा समझते थे। कोई उसे एक पैसे का आदमी नहीं समझता था। लेकिन राघव को किसी चीज़ से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था; उसे कुछ नहीं पता था इज़्ज़त क्या होती है, क्या नहीं। वह बिना इज़्ज़त, बिना पैसे के, अपनी ज़िन्दगी जी रहा था।
सरिता ने उसे काम दिया था, तो राघव को मानना ही था। उसके पास कोई और रास्ता नहीं था। उसने जल्दी ही अपनी साइकिल उठा ली और घर के लिए दौड़ लगा दी। राघव सारा दिन मज़दूरी करके थक चुका था, लेकिन वह साइकिल बड़ी ही स्पीड से चला रहा था, क्योंकि वह जानता था कि अगर उसे देर हो गई, तो सरिता उसे क्या-क्या खरी-खोटी सुनाएगी। और हो सकता है कि उसे शाम को खाना भी ना मिले; उसे फिर से भूखा सोना पड़े।
यह सोचते हुए, राघव जल्दी ही अपनी गली के बाहर पहुँच गया, जहाँ पर एक लड़का पहले से ही ₹500 लेकर उसका इंतज़ार कर रहा था। राघव ने बच्चे से ₹500 लिए और सीधा समोसे-कचोरी और जलेबी की दुकान पर पहुँच गया। वहाँ से उसने कुछ समोसे-कचोरी और जलेबी खरीदी और फ़ुर्ती से घर की ओर रवाना हो गया।
वहाँ पर सरिता, उसकी बीवी और उसकी सास उसका इंतज़ार कर रही थीं। राघव घर जमाई था क्योंकि वह अनाथ था। सरिता की माँ ने राघव को घर जमाई बनाकर रखा हुआ था, और वह अकेली औरत थी; उसका पति काफ़ी समय पहले एक लंबी बीमारी के चलते गुज़र चुका था। हालाँकि उनके पास पैसों की कमी नहीं थी; सरिता के पिता एक गवर्नमेंट ऑफ़िसर थे; उनके मरने के बाद भी उनकी पेंशन आती रहती थी।
सरिता अपनी माँ का इकलौता सहारा थी, लेकिन वह अपनी जवान बेटी को घर पर बैठाकर नहीं रख सकती थी। तो इसीलिए उन्होंने राघव को चुना था, और सरिता को भी राघव पसंद आ गया था, क्योंकि राघव का हट्टा-कट्टा शरीर उसे आकर्षक लगता था, और वह जानती थी कि राघव फ़टीचर हालत में है। इसीलिए दोनों माँ-बेटी ने अपने फ़ायदे के लिए उसे अपने घर पर रख लिया था। समाज की नज़रों में सरिता की शादी राघव से हो गई थी, और सरिता को इससे यह फ़ायदा हुआ कि राघव उसे रोक-टोक नहीं करेगा। इसीलिए उसने ग़रीब, फ़टीचर राघव को चुना था।
वह लोग राघव को घर जमाई कम, अपना पालतू नौकर ज़्यादा समझते थे। दोनों माँ-बेटी ने अपना फ़ायदा देखते हुए राघव को अपना मोहरा बनाया था। क्योंकि सरिता तेज़-तर्रार लड़की थी और हमेशा पैसों, पार्टी, मौज-मस्ती में ज़्यादा रहा करती थी। इसलिए उसने राघव से शादी की थी ताकि वह जैसा कहेगी, राघव वैसा ही करेगा।
जल्दी ही राघव कचोरी, समोसे और जलेबी के साथ अपने ससुराल में मौजूद था। जैसे ही वह अंदर गया, सरिता उसे देखकर जोरों से चीखी, "कितना टाइम तुमने लगा दिया? कहाँ मर गए थे तुम? क्या तुम टाइम से नहीं आ सकते थे?"
राघव उसकी ओर देखकर कहने लगा, "मैं तो तुम्हारा फ़ोन आते ही निकल गया था और कहीं रुका भी नहीं। बस सीधा साइकिल चलाकर यहाँ आ रहा हूँ।" राघव ने थोड़ा कंपकपाते लहजे में कहा।
सरिता बोली, "अच्छा-अच्छा! अब ज़्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है। ठीक है, अब जल्दी करो; मेहमान कब से इंतज़ार कर रहे हैं।" सरिता ने उसके हाथ से कचोरी, जलेबी और समोसे ले लिए, और राघव केवल उसकी ओर देखता रहा।
राघव ने काफ़ी तेज़ साइकिल चलाई थी, जिससे उसे बहुत प्यास लगी थी। उसने सोचा कि पहले पानी पी लिया जाए। वह जल्दी से किचन में गया। वहाँ पर गरमा-गरम चाय के साथ-साथ सारा नाश्ता परोसा जा रहा था। साथ-साथ बिस्कुट, एक-दो मिठाइयाँ भी रखी हुई थीं। राघव हैरान हो गया, क्योंकि राघव की शादी सरिता से हुए पूरे 2 साल होने को आए थे, लेकिन आज तक कोई ऐसा मेहमान नहीं आया था जिसकी इतनी ख़ातिरदारी की जा रही हो। राघव ने सोचा कि चलो उनसे मिल लिया जाए।
जैसे ही सरिता ने राघव को ड्राइंग रूम में जाते देखा, वह उसे रोककर कहने लगी, "तू कहाँ चल दिया मुँह उठाकर?"
राघव कहने लगा, "वह मेहमान आए हैं, तो मैं उनसे मिल लेता हूँ।"
सरिता दाँत भींचकर आई और कहने लगी, "अपनी शक्ल देखी है तूने? अरे, अपनी शक्ल तो देख! तूने क्या हाल बना रखा है अपना? अरे, तेरे अंदर से मज़दूर वाली बदबू आ रही है। जा, जाकर अपनी मज़दूरी कर; कोई ज़रूरत नहीं है तुझे मेहमानों से मिलने की। जा, जाकर अपनी मज़दूरी कर; चल, भाग यहाँ से।"
सरिता ने राघव को वहाँ से जाने के लिए कह दिया, और राघव अपना मन मसोसकर रह गया। लेकिन उसके पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। सरिता ने साफ़ मना कर दिया था कि वह अपने मेहमानों से उसे नहीं मिलवाएगी। राघव जैसा आया था, उल्टे पाँव वैसे ही जाने लगा।
लेकिन उसके मन में बार-बार यह इच्छा हो रही थी कि आखिरकार ऐसा कौन मेहमान आया है। देखने के लिए वह थोड़ा सा रुक गया और घर से बाहर जाकर, डाइनिंग रूम की खिड़की के पास चला गया। वह यह देखना चाहता था कि कौन मेहमान आया है जिसकी इतनी ख़ास तवज्जो हो रही है और जिसे उससे मिलने तक नहीं जा रहा है।
जैसे ही राघव पीछे गया और उसने खिड़की में से देखा, वहाँ पर राहुल बैठा हुआ था। राहुल सरिता का एक्स-बॉयफ़्रेंड था। राहुल के साथ उसके एक-दो दोस्त और भी थे, जिनके लिए सरिता ने इतना सारा नाश्ता मँगवाया था और वह अपने हाथों से उन सबको नाश्ता परोस रही थी।
राहुल को देखकर राघव के अंदर आग लग गई, लेकिन वह उन्हें देखने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। राघव ने देखा कि उसकी सास ने जानबूझकर सरिता को राहुल के ठीक बराबर में बिठाया था। राघव की सास शुरू से ही राहुल को अपनी बेटी सरिता के लिए पसंद किया करती थी, लेकिन सरिता को लगता था कि राहुल कभी उसके मन मुताबिक नहीं चलेगा और उसे हर चीज़ के लिए रोका-टोकी करेगा। सरिता को बाहर घूमना-फिरना, मौज-मस्ती करना ज़्यादा पसंद था, वह बिना रोक-टोक की ज़िन्दगी चाहती थी; इसीलिए उसने राहुल को छोड़कर राघव से शादी की थी। लेकिन अब फिर से उसने राहुल के साथ नज़दीकियाँ बढ़ानी शुरू कर दी थीं। सरिता की माँ जानती थी कि राहुल एक बिल्डर था और वह शहर के अमीरों में से एक था, और उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी।
इसलिए उनका ख़्वाब था कि कुछ भी हो जाए, ग़रीब, फ़टीचर राघव से सरिता का पीछा छूट जाए और किसी न किसी तरह से राहुल उसकी ज़िन्दगी में आ जाए। आखिर कब तक वह सरिता के पिता की पेंशन से गुज़ारा करेगी, और राघव तो किसी काम का था ही नहीं। यह सपना लिए वह सरिता को राहुल पर फ़ोर्स करने की कोशिश किया करती थी।
राहुल तो सरिता को पहले से ही पसंद करता था, क्योंकि सरिता बहुत ख़ूबसूरत थी। उसका दूध सा गोरा और छरहरा बदन था। उसकी लंबी हाइट और पतली कमर उसे और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत बनाती थी; कोई भी लड़का आसानी से उसकी ओर आकर्षित हो जाता था, और राहुल इसीलिए सरिता पर मर-मिटा था और हर हाल में उसे अपना बनाना चाहता था।
जैसे ही सरिता राहुल के पास आकर बैठ गई, उसने उसका हाथ दो-तीन बार टच कर दिया। खिड़की पर खड़े राघव ने यह देख लिया और उसकी आँखों के किनारे भीग गए।
और जैसे ही सरिता राहुल के पास आकर बैठ गई, उसने जाने-अनजाने में उसका हाथ दो-तीन बार छुआ।
खिड़की पर खड़े राघव ने यह देख लिया, और उसकी आँखों के किनारे भीग गए। वहाँ रुके रहना अब उसके लिए असहनीय हो गया था, और वह वापस निकल गया। उसकी मज़दूरी का समय हो गया था। उसे आठ घंटे की मज़दूरी पूरी करनी थी; नहीं तो मालिक उसे पैसे नहीं देता।
इसीलिए, उसी गति से साइकिल चलाकर वह अपनी निर्माण स्थल पर पहुँच गया। उसने अपना काम शुरू कर दिया। छुट्टी के बाद, रात में वह घर लौटा। उसने देखा कि माँ-बेटी आराम से टीवी देख रही थीं।
राघव के आने पर, उन्होंने उसे पानी तक नहीं दिया। राघव ने पहले हाथ-मुँह धोए। हाथ-मुँह धोकर उसने पानी पिया; पानी पीकर नहा-धोकर वह खाना खाने बैठ गया। और सरिता को आवाज़ लगाकर बोला,
"सरिता, मुझे बहुत जोरों से भूख लगी है। कुछ खाने को ले आओ।"
तभी उसकी सास गुस्से से बोली,
"तेरा दिमाग खराब हो गया है? तुझे मेरी बेटी खाने के लिए देगी? तेरे क्या हाथ टूट गया है? क्या तू खुद खाना नहीं ले सकता है?"
उसने राघव को बुरी तरह से डाँटा।
राघव ने सरिता की ओर देखा। सरिता बेपरवाही से टीवी देख रही थी। राघव खुद उठा; किचन में जाकर उसने देखा कि खाने के नाम पर केवल थोड़े से चावल थे, और कुछ भी नहीं; दाल का एक दाना भी नहीं था। राघव को समझ नहीं आया कि वह खाली चावल कैसे खाए, और सारा दिन मज़दूरी करने के बाद उसे बहुत भूख लगी थी।
उसने थोड़े से चावल एक प्लेट में लिए और ऊपर हल्का सा नमक डालकर खाना शुरू कर दिया। भूख के मारे, नमक के चावल उसे किसी फ़ाइव-स्टार होटल के खाने से कम नहीं लगे। खाना खाने के बाद राघव ने पानी पिया और सीधा अपने कमरे में चला गया।
कमरे में जाकर उसने देखा कि वहाँ दो बिस्तर अलग-अलग पड़े थे। वह चौंक गया, लेकिन समझ गया कि उसकी पत्नी ने फिर दो बिस्तर कर दिए हैं। दो साल सरिता के साथ बिताने के बाद राघव इतना समझ चुका था कि जब उसे उसके शरीर की ज़रूरत होती थी, तब वह उसे अपने पास सुलाती थी; वरना दूर रखती थी।
पूरा दिन थका हुआ होने के कारण, राघव गहरी नींद में सो गया। करीब दो-तीन बजे रात में, राघव को अचानक खटपट की आवाज़ से आँख खुली। वह हैरान हुआ कि इस वक़्त कौन हो सकता है? आवाज़ तेज होने लगी, तो राघव ने देखा कि सरिता बेड पर नहीं थी। उसे लगा कि सरिता को कोई समस्या हो गई है। उठकर बाहर देखा, तो उसे कोई दिखाई नहीं दिया। अब राघव ज़्यादा हैरान हो गया, और तभी उसे स्टोर रूम की लाइट जलती हुई दिखाई दी।
राघव के घर में सिर्फ़ तीन कमरे थे: एक कमरा राघव और सरिता का, एक उसकी सास का, और एक स्टोर रूम। और एक किचन था। एक मिडिल-क्लास परिवार था; उनका गुज़ारा चल रहा था। ज़्यादा-कम ₹400-₹500 रोज़ कमाकर वह सरिता के हाथों में रख दिया करता था। इस तरह उसे एक-दो वक़्त का खाना मिल जाता था। कभी नमक ज़्यादा होता था, कभी खाना ही नहीं होता था; कभी एक रोटी मिलती थी। इस तरह उसका गुज़ारा चल रहा था।
लेकिन राघव और क्या करता? वह अनाथ आश्रम में पला-बढ़ा था; उसका कोई बैकग्राउंड नहीं था। अनाथ आश्रम में कम से कम दो वक़्त का खाना मिल जाता था। लेकिन अब वह जवान हो चुका था, और अनाथ आश्रम में रहने में उसे शर्म आती थी। कभी-कभी उसका मन करता था कि वह आश्रम में ही भाग जाए, लेकिन उसे सरिता से मोहब्बत थी, इसलिए वह सरिता को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहता था। वह सोचता था कि जब उसके बच्चे हो जाएँगे, तो सरिता का स्वभाव नरम पड़ जाएगा। यही ख्याल लिए वह अपनी शादी की चक्की खींच रहा था।
स्टोर रूम की लाइट जलती देखकर, वह हैरान हो गया, और आगे बढ़ने लगा। स्टोर रूम का दरवाज़ा बाहर से बंद था, और दरवाज़े के नीचे से हल्की लाइट दिखाई दे रही थी। लेकिन कमरे के अंदर से अजीब सी आवाज़ आ रही थी। राघव ज़्यादा हैरान था; उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह आवाज़ क्या है और कौन है वहाँ पर। तभी उसे एक आईडिया आया। स्टोर रूम के दरवाज़े के ऊपर छोटे-छोटे खाने से बनी जाली लगी हुई थी। राघव ने सोचा कि उसे वहाँ से देखना चाहिए।
यह सोचकर राघव ने डाइनिंग रूम से एक छोटा सा स्टूल दरवाज़े के पास रख दिया और खड़ा होकर जाली से अंदर झाँका, तो राघव के होश उड़ गए। उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई; उसे लगा मानो उसकी टाँगों में जान ही ना बची हो। राघव ने देखा कि उसकी पत्नी का बॉयफ्रेंड, राहुल, उसकी पत्नी को बुरी तरह से किस कर रहा था, और उसकी पत्नी उसका साथ दे रही थी। उसकी पत्नी के जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था, और दोनों एक-दूसरे को प्यार करने में मस्त थे।
यह देखकर राघव के होश ही उड़ गए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या यह सच था? अब उसे समझ आया कि अजीब आवाज़ उसकी पत्नी की मदहोश आवाज़ थी। राघव एक जगह जम गया और संतुलन खोकर स्टूल समेत नीचे गिर पड़ा।
सरिता और राहुल ने किसी के गिरने की आवाज़ सुनी, तो जल्दी से अलग हुए। उन्होंने कपड़े पहने, और जैसे ही सरिता ने दरवाज़ा खोला और राघव को ज़मीन पर गिरा देखा, वह हैरान हो गई। लेकिन तभी उसकी माँ, राघव की सास, वहाँ आ गई और सब कुछ समझ गई। और सरिता की ओर देखकर बोली,
"तेरा दिमाग ख़राब हो गया है? यह क्या कर रही थी तू? हाँ, अपने बेडरूम में यह सब नहीं कर सकती थी? और इस फ़टीचर को इस स्टोर रूम में सोने के लिए नहीं छोड़ सकती थी क्या?"
यह सुनकर राघव की आँखें हैरत से फैल गईं। उसने सोचा था कि शायद उसकी माँ उसे रोकेगी, लेकिन उसकी माँ कह रही थी कि उसे बेडरूम में यह सब करना चाहिए था। राहुल मुस्कुराते हुए अपनी पैंट की ज़िप बंद करने लगा और राघव के सामने ही सरिता की कमर पर हाथ रखकर उसके होठों को चूमते हुए बोला,
"क्या यार! इस फ़टीचर ने सारा मज़ा किरकिरा कर दिया। चलो, क्यों ना एक पारी तुम्हारे बेडरूम में खेली जाए? बोलो, क्या ख़्याल है तुम्हारा?"
सरिता ने बेशर्मी से कहा,
"हाँ-हाँ! क्यों नहीं? चलो, चलते हैं।"
यह कहकर दोनों ज़मीन पर गिरे राघव को लाँघकर, हाथ पकड़कर बेडरूम में चले गए। राघव की सास मुस्कुराकर यह सब देख रही थी और राघव की ओर देखकर बोली,
"क्या हुआ? आँखें फ़ाड़-फ़ाड़कर क्या देख रहा है? जब तू अपनी बीवी को किसी तरह का कोई सुख दे ही नहीं सकता है, हाँ, तो तेरी बीवी तो कहीं और जाएगी ही ना। और तेरे पास है ही क्या? हमारे टुकड़ों पर पलता है तू और मज़दूरी करके ₹400 लाकर हमारे हाथों पर रखता है। क्या होता है उस ₹400 में? हाँ, अब मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले। तू अपना ठिकाना कहीं और कर ले; बहुत हुआ। और वह जो टेबल है ना, वह तलाक के पेपर रखे हुए हैं। अरे, मैं तो बहुत पहले ही तेरा और सरिता का तलाक करना चाहती थी, लेकिन सरिता ही करने को तैयार नहीं थी। अब जैसे-तैसे उसे समझाया है और अब उसे समझ में आ गया है कि राहुल तुझसे हर लिहाज़ में बेहतर है। और अब सरिता राहुल से शादी करेगी और तू तलाक के पेपर उठा और अपना बोरिया-बिस्तर बाँध और जा यहाँ से। अगली सुबह जब मैं आँखें खोलूँ, तो मैं तेरी यहाँ शक्ल ना देखूँ। अब तेरी मर्ज़ी; अंदर बेडरूम में तो वह दोनों थोड़ी मौज-मस्ती कर रहे होंगे। तेरी मर्ज़ी है; मैं तो बेडरूम के बाहर बैठकर उनकी आवाज़ सुनूँ या फिर अभी और इसी वक़्त यहाँ से निकल जा।"
यह कहकर उसकी सास अपने कमरे में सोने चली गई, और राघव थोड़ी देर बाद उठा। एक नज़र बेडरूम की ओर देखकर उसने तलाक के पेपर उठा लिए और जल्दी से चप्पल पहनकर सड़कों पर निकल पड़ा। रात का तीसरा पहर था, लगभग चार बज चुके थे। राघव ने सोच लिया था कि वह अपनी बेमानी ज़िन्दगी खत्म कर देगा, इस गरीबी, इस ज़िन्दगी, इस ज़िल्लत से निजात पा लेगा। यह सोचते हुए वह बदहवास, कीचड़ में लथपथ, चल रहा था। शहर के बाहर जाकर उसने देखा कि अभी तक कोई गाड़ी नहीं आई थी। उसने सोचा कि किसी गाड़ी के आगे कूदकर जान दे देगा, लेकिन फिर सोचा कि क्यों ना पास की नदी में कूदकर जान दे दे? इसलिए राघव नदी की ओर बढ़ने लगा। उसने मन बना लिया था कि आज वह जान देकर ही रहेगा, क्योंकि पत्नी की बेवफाई के बाद उसकी ज़िन्दगी में कुछ नहीं बचा था। वह एक लानत भरी ज़िन्दगी जी रहा था। जैसे ही राघव आगे बढ़ा, नदी से थोड़ी दूरी पर, अचानक 15-20 गाड़ियों ने आकर उसे घेर लिया।।।।।।
आखिर कौन था उन गाड़ियों में? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!
राघव ने आज अपना पूरा मन बना लिया था कि वह अपनी जान दे देगा। पत्नी की बेवफ़ाई के बाद उसकी ज़िंदगी में कुछ भी नहीं बचा था। वह एक लानत भरी ज़िंदगी जी रहा था। राघव जैसे ही आगे बढ़ा और नदी के पास पहुँचा, अचानक 15-20 गाड़ियाँ आकर उसे घेर लेती हैं।
यह देखकर राघव हैरान और डर गया था। पर उसने सोचा, वह तो मरना ही चाहता था, उसे डरने की क्या ज़रूरत? उन काली गाड़ियों में बैठे सभी लोगों के हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें थीं। सबने एक जैसे कपड़े पहने हुए थे, बॉडीगार्डों जैसे।
राघव ध्यान से सब देख रहा था। तभी उसने देखा कि उन काली गाड़ियों में से एक सफ़ेद गाड़ी थी। सभी काली गाड़ियों के बीच सफ़ेद गाड़ी उसे हैरान कर रही थी। उस सफ़ेद गाड़ी से एक हल्के क्रीम रंग की साड़ी पहनी हुई औरत निकली। वह किसी नेता जैसी लग रही थी, उसका ओरा बहुत पावरफुल था। जैसे ही वह औरत बाहर आई, चार-पाँच गार्ड उसके पीछे चलने लगे। पर उसने अपने दाहिने हाथ से उन्हें रुकने का इशारा किया और राघव की ओर बढ़ने लगी।
राघव को कुछ समझ नहीं आ रहा था। यह औरत कौन थी? ये गार्ड कौन थे? ये सब उसे क्यों घेर कर खड़े थे? वह तो अपनी ज़िंदगी खत्म करने आया था, फिर यह सब क्या हो रहा था? वह औरत राघव के सामने आकर खड़ी हो गई और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगी। राघव सवालिया निगाहों से उसे देखता रहा। उसकी आँखों में आँसू थे। जब राघव अपनी ससुराल से निकला था, तब हल्की बारिश हो रही थी और वह बेसुध चलता हुआ आया था, जिससे उसके घुटनों तक कीचड़ लगा हुआ था।
राघव ने जल्दी से अपनी शर्ट की बाजू से आँसू पोछे और औरत की ओर देखकर कहा,
"जी जी मैडम जी, आप... आप कौन हैं?"
वह औरत राघव की ओर देखकर बोली,
"क्या हुआ? तुम मरना चाहते हो?"
यह सुनकर राघव हैरान हो गया और बोला,
"आ... आ...आपको कैसे पता चला कि मैं यहाँ मरने के लिए आया हूँ?"
राघव की अटकती हुई जुबान देखकर औरत हल्की मुस्कान के साथ बोली,
"मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम अपनी पत्नी को उसके बॉयफ्रेंड राहुल के साथ देखने के बाद यहाँ मरने आए हो।"
यह सुनकर राघव और भी हैरान हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह बड़ी हस्ती उससे इतने कैज़ुअल तरीके से कैसे बात कर रही है? उसे कैसे पता चला कि वह अपनी पत्नी की बेवफ़ाई के कारण यहाँ आया है? यह तो कल रात की बात थी! कहीं यह बात पूरे शहर में तो नहीं फैल गई? राघव के मन में यही डर था।
पर औरत राघव को सोचता हुआ देखकर बोली,
"तुम्हें ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारी पूरी जन्मकुंडली मेरे पास है। तुम्हारा पूरा नाम राघव है और तुम्हें 3 साल की उम्र में किसी अनाथ आश्रम में छोड़ दिया गया था। तब से तुम लोगों का झूठा खाकर जैसे-तैसे ज़िंदगी जी रहे हो। अनाथ आश्रम में तुम्हें एक टाइम खाना मिलता था। तुम वहीं रहे और धीरे-धीरे बड़े होते गए। तुमने पास की एक चाय की टपरी पर काम करना शुरू कर दिया था। जो थोड़ी-बहुत आमदनी होती थी, उससे तुम आश्रम के गरीब बच्चों की मदद करते थे। फिर एक दिन तुम्हारी ज़िंदगी में सरिता आई। सरिता को तुम पहली नज़र में पसंद आ गए थे। सरिता आज़ाद ख़यालों की लड़की थी। उसे मौज-मस्ती और पार्टी करना बहुत पसंद था। पर उसके मन में डर था कि शादी के बाद उसका सब कुछ छूट जाएगा और वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी। पर जवान होने के कारण घर में नहीं रह सकती थी। इसीलिए उसने तुम्हें अपना मोहरा बनाया, तुम्हें अपने प्यार के जाल में फँसाया, तुमसे शादी की और तुम्हें घर जमाई बना दिया। तुम सरिता से दिल से प्यार करने लगे थे, पर उसके घर में तुम्हारी क्या औक़ात थी, यह तुम्हें पता चल गया था। शादी के 2 साल बाद तुम मेहनत-मज़दूरी पर ही अटके रहे, सरिता की ख़्वाहिशें पूरी नहीं कर सके। उसने फिर से अपने एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर को हवा देना शुरू कर दिया, अपने कॉलेज वाले बॉयफ्रेंड राहुल से बातचीत बढ़ाने लगी। और शायद तुम्हें नहीं पता है, तुम्हारी बीवी शादी से पहले भी राहुल के साथ कई बार सो चुकी है।"
यह सुनकर राघव ने दोनों हाथ कानों पर रख लिए और जोरों से चीखा,
"यह सब झूठ! ऐसा नहीं हो सकता है! ऐसा नहीं हो सकता है! वह मुझे इतना बुरी तरह से धोखा नहीं दे सकती है! नहीं दे सकती है!"
औरत बोली,
"हम जानते हैं कि तुम दुखी हो, पर तुम्हें सच का सामना करना चाहिए। तुम्हारी बीवी ने तुम्हें तलाक़ दे दिया है क्योंकि वह जल्द ही राहुल से शादी करने वाली है। और तुम्हारा क्या, राघव? अपनी बीवी की बेवफ़ाई जानने के बाद तुम यहाँ जान देने आ गए।"
राघव की हैरानी की कोई सीमा नहीं थी। वह हाथ जोड़कर बोला,
"आप हैं कौन? भगवान के लिए बता दीजिए! आप हैं कौन? और आपको मेरी ज़िंदगी के बारे में इतना सब कुछ कैसे पता है? आखिरकार आप हैं कौन? क्यों आप मुझे गरीब का मज़ाक उड़ा रही हैं? क्या मेरी बीवी के अफ़ेयर के चर्चे पूरे शहर में फैल गए? और आप... आप को तो मैंने कभी नहीं देखा! आप हैं कौन? और मेरे बारे में आप इतना सब कुछ कैसे जानती हैं?"
औरत बोली,
"हम कौन हैं, यह हम तुम्हें ज़रूर बताएँगे। फ़िलहाल हम यहाँ तुमसे एक रिक्वेस्ट करने के लिए आए हैं।"
यह सुनकर राघव हैरान हो गया। आज तक लोगों ने उसे ठुकराया था, गालियाँ दी थीं। पर यह इतनी बड़ी हस्ती उससे रिक्वेस्ट करने आई है?
राघव हैरत से देखने लगा और बोला,
"मैडम जी, आप हैं कौन और आप मुझसे क्या चाहती हैं?"
औरत ने कहा,
"हम तुमसे तुम्हारी ज़िंदगी चाहते हैं। हम तुमसे तुम्हारी पहचान चाहते हैं। तुम्हें अपनी यह पहचान भूलनी होगी और आज के बाद जो पहचान मैं दूँगी, तुम्हें उसी के साथ ज़िंदगी जीनी होगी।"
राघव पूरी तरह से हैरान और परेशान हो गया। उसे समझ आ गया था कि औरत मज़ाक नहीं कर रही थी। वह कैसी पहचान और कैसी ज़िंदगी देने की बात कर रही थी? राघव का दिमाग तेज़ी से चलने लगा। वह बोला,
"आप कहना क्या चाहती हैं? प्लीज़ मुझे साफ़-साफ़ बताइए।"
गायत्री जी ने उसकी ओर देखकर कहा,
"हमारा नाम गायत्री रघुवंशी है और हम अविनाश रघुवंशी की माँ हैं।"
राघव ध्यान से सुन रहा था और बोला,
"लेकिन मैडम जी, आपके नाम से और आपके बेटे के नाम से मेरा क्या लेना-देना?"
गायत्री रघुवंशी बोलीं,
"लेना-देना है राघव, बहुत बड़ा लेना-देना है। इसीलिए हम यहाँ तुम्हारे पास आए हैं, तुम्हारी मदद मांगने के लिए। हम तुम्हें सब कुछ समझाएँगे, उसके लिए तुमको हमारे साथ चलना होगा।"
ऐसा कहकर गायत्री रघुवंशी ने अपने आदमियों को इशारा किया। उन आदमियों ने जल्दी ही राघव के कपड़ों से कीचड़ साफ़ किया, उसे गाड़ी में बिठाया और एक सुरक्षित जगह ले गए। राघव बाहर की भागती-दौड़ती ज़िंदगी देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये लोग कहाँ से आ गए और उसे मरने से क्यों रोका।
दूसरी ओर, सरिता राहुल के साथ पूरी रात बिताने के बाद सुबह 10 बजे सोकर उठी और चिल्लाई,
"राघव, मेरे लिए चाय लेकर आओ।"
आखिर वह औरत कौन थी और उसे राघव की ज़िंदगी क्यों चाहिए थी? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।
जल्दी ही उसने अपनी गाड़ी में बिठाकर उन्हें एक सुरक्षित स्थान की ओर रवाना कर दिया था।
वहीं राघव बाहर की भागती-दौड़ती ज़िंदगी को देख रहा था। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग अचानक से उसकी ज़िंदगी में कहाँ से आ गए और उसे मरने से क्यों रोका।
वहीं दूसरी ओर, सरिता पूरी रात राहुल के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद अगले दिन सुबह दस बजे सोकर उठी और उठते ही चिल्लाई, "राघव, मेरे लिए चाय लेकर आओ!"
"लेकर आओ," क्योंकि राहुल उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद कल रात ही वहाँ से चला गया था, क्योंकि उसका काम पूरा हो चुका था और उसे सुबह अपने घर पर होना ज़रूरी था। जैसे ही सरिता ने नींद में राघव को आवाज़ लगाई और चाय माँगी, उसकी माँ तुरंत सरिता के पास गई और कहने लगी, "अब भूल जाओ उस राघव को। वह अब तुझे चाय देने के लिए नहीं आने वाला। अब खड़े होकर खुद चाय बना, और मेरे लिए भी बना। और सुन, मैंने उसे कल रात घर से निकाल दिया है। और मैंने उसे तलाक़ के बारे में भी बता दिया है, और अब हम राहुल की शादी करवा देंगे। देख, कितनी आसानी से तेरे रास्ते में आने वाले रोड़े को मैंने तेरी ज़िंदगी से निकाल फेंका है।"
कहीं न कहीं सरिता की माँ, उपासना जी, अपनी अकलमंदी पर बहुत खुश हो रही थीं। उन्हें अपनी चालाकी पर पूरा भरोसा था।
तब सरिता अपनी माँ की ओर देखकर कहने लगी, "लेकिन माँ, आपको इतनी जल्दी क्या पड़ी थी उसे घर से निकालने की? कम से कम आज का सारा काम तो उससे करवा लेती। पता है कितने सारे कपड़े धुलने पड़े हैं बाथरूम में? आज कम से कम कपड़े तो उससे धुलवा लेती, उसके बाद उसे घर से निकाल देती।"
अपनी बेटी की बात सुनकर उसकी माँ उसे देखती रही और कहने लगी, "तुम ये फ़ालतू के काम के बारे में सोचना छोड़ दो। मैंने पड़ोस में बोल दिया है, जल्दी ही एक नौकरानी घर में लग जाएगी। वैसे भी, वो राघव नाम का नौकर अब यहाँ से चला गया है, तो नौकरानी की ज़रूरत तो हमें पड़ेगी ही। तो इसीलिए कुछ दिनों के लिए हम नौकरानी लगा लेंगे, तो फ़िक्र मत कर। वैसे भी राहुल के पास बहुत पैसा है, नौकर तो मैं अफ़ोर्ड कर ही सकती हूँ।"
ऐसा कहकर उसकी माँ मुस्कुराई और जल्दी ही वहाँ से चली गई। वहीं सरिता ने कुछ पल राघव के बारे में सोचा और फिर अपना सिर झटक दिया, और सोचने लगी कि उसे अब राहुल के साथ अपनी ज़िंदगी आगे बढ़ानी चाहिए और जल्द से जल्द उससे शादी करनी चाहिए। वैसे भी, राहुल तो कब से उससे शादी करना चाहता था। लेकिन सरिता का दिल बीच में अचानक से उस फ़टे हुए राघव के शरीर को देखकर उस पर आ गया था, लेकिन अब दो साल तक राघव का इस्तेमाल अच्छी तरह से कर लेने के बाद उसे महसूस हो गया था कि उसकी ज़िंदगी में राघव की कोई वैल्यू नहीं है। तो इसीलिए उसने अब राघव को इस तरह से निकालकर फेंक दिया था, जैसे कि दूध में से मक्खी।
वहीं दूसरी ओर, राघव जल्दी ही गायत्री रघुवंशी के शहर के एक नामी होटल में पहुँच गया था। राघव यह देखकर पूरी तरह से हैरान हो गया था कि इतना बड़ा होटल किसका है? राघव ने एक नज़र अपने कपड़ों और अपनी चप्पलों की ओर देखा और उसके बाद उसने उस महल जैसे होटल की ओर देखा। वह सोचने लगा कि अगर वह इस हालत में इस होटल के अंदर गया, तो कहीं यह जगह उसके छूने से गंदी न हो जाए। कहीं न कहीं राघव के मन की बात गायत्री रघुवंशी जी समझ गई थीं और वह उसकी ओर देखकर कहने लगीं, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, तुम हमारे साथ हो।" ऐसा कहकर उसने अपने अकाउंटेंट को इशारा कर दिया और जल्दी ही एक आदमी राघव के सामने आकर खड़ा हो गया। "हैलो मिस्टर राघव, मेरा नाम जतिन है। आइए, मैं आपको पहले कपड़े बदलवा देता हूँ, उसके बाद आप मैडम से बात कर लीजिएगा।"
ऐसा कहकर जतिन राघव को एक कमरे में ले गया। राघव खुद कपड़े बदलने के लिए मर रहा था, क्योंकि उसे आज तक इतनी शर्म नहीं आई थी जितनी उसे आज आ रही थी, अपनी गरीबी और फ़टी हुई हालत में। लेकिन आज ऐसी जगह पर आकर अपनी हालत देखकर उसे डूब मरने को जी चाहता था। जल्दी ही जतिन ने राघव के लिए वाशरूम तैयार कर दिया। उसने कहा कि वह सबसे पहले नहा ले, उसके बाद तक वह उसके लिए कपड़े तैयार करवा देते हैं। राघव ने तुरंत उसकी बात मान ली। जल्दी ही उसने अच्छी तरह नहाना शुरू कर दिया। कितनी देर तक नहाने-धोने के बाद, जैसे ही राघव बाहर आया, उसने देखा कि जतिन उसके लिए कपड़े लेकर खड़ा हुआ था। राघव को काफ़ी अजीब लग रहा था कि अचानक से ये सब लोग उसके लिए ऐसे काम क्यों कर रहे थे। तभी उसने राघव को एक बड़ा सा महँगा थ्री-पीस सूट पहनने को दिया। राघव अटकते हुए कहने लगा, "लेकिन साहब जी, आप इतने महँगे कपड़े मुझे क्यों दे रहे हैं? अगर इन कपड़ों पर कोई दाग लग गया, तो मैं तो उनके पैसे भी चुका नहीं पाऊँगा। मैं बहुत गरीब हूँ।" ऐसा कहकर राघव ने जतिन के सामने ही अपने हाथ जोड़ लिए। तब जतिन मन ही मन में मुस्कुराया और कहने लगा, "मिस्टर राघव, आप प्लीज़ ये कपड़े पहन लीजिए और आप परेशान मत होइए। कोई आपसे इन कपड़ों के पैसे नहीं लेगा।" ऐसा कहकर उन्होंने जल्दी ही राघव को कपड़े पहना दिए और उसके बाल सेट करने के बाद उसे गायत्री जी रघुवंशी के पास ले जाने लगे।
गायत्री जी ने जैसे ही राघव को देखा, तो वह उसे देखती रहीं। अचानक से गायत्री जी की आँखें भर आईं। अब तो राघव काफ़ी ज़्यादा हैरान था और कहने लगा, "मैडम जी, यह सब क्या हो रहा है मेरे साथ? मैंने कुछ गलती कर दी है क्या? या मुझसे कुछ बहुत बड़ी गलती हो गई है? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि अचानक से आप सब लोग कौन हैं और कहाँ से आ गए हैं, और मेरे साथ इस तरह का बर्ताव क्यों कर रहे हैं?" तभी गायत्री जी ने राघव को एक जगह बैठने का हुक्म दिया और खुद अपने सभी आदमियों को वहाँ से बाहर भेज दिया और कहने लगीं, "मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, राघव, कि इस वक़्त तुम्हारे दिल में, दिमाग में काफ़ी सारे सवाल चल रहे होंगे, लेकिन अब तुम्हें हमारी बात ध्यान से सुननी होगी। वैसे भी, तुम अपनी यह ज़िंदगी ख़त्म करना चाहते थे, लेकिन हम तुम्हें तुमसे तुम्हारी ज़िंदगी क्यों माँग रहे थे? वह हम तुम्हें आज सारी बात बताते हैं। बस यह समझ लो कि हम तुम्हें गोद लेना चाहते हैं। आज के बाद तुम हमारे बेटे, अविनाश रघुवंशी होगे, यानी कि इन सबके मालिक, इस होटल के मालिक, इतना ही नहीं, पूरे 70,000 लोगों के मालिक, जिसके नाम से सब लोग खाना खा रहे हैं, पूरे के पूरे स्टेट के मालिक तुम रहोगे, और इतना ही नहीं, साथ-साथ पूरे 50,000 करोड़ के मालिक तुम रहोगे।"
जैसे ही राघव ने यह सुना, उसकी आँखें हैरत के मारे फटी रह गईं और वह उसकी ओर देखकर कहने लगा, "यह आप कैसी बातें कर रही हैं, मैडम जी? आप हैं कौन? और अविनाश रघुवंशी ये कौन है? और आप मुझे क्यों अपना बेटा बनाना चाहती हैं? आपका बेटा कहाँ है?"
जैसे ही राघव ने सीधा अविनाश रघुवंशी के बारे में पूछा, गायत्री जी की आँखें भर आईं और वह कहने लगीं कि हमारा बेटा इस दुनिया में नहीं है। लेकिन हम यह बात अपने प्रतिद्वंद्वियों तक नहीं पहुँचने देना चाहते हैं, क्योंकि अगर किसी को इस बात के बारे में भनक भी पड़ गई कि अविनाश रघुवंशी नहीं रहा, तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। पूरे 70,000 लोगों की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी। सभी मज़दूर काम करना छोड़ देंगे, पूरी तरह से तबाही आ जाएगी और हम ऐसा नहीं चाहते हैं, और अपने प्रतिद्वंद्वियों और दुश्मनों को जीतते हुए नहीं देखना चाहते हैं, क्योंकि इन सब चीज़ों पर, इन सब संपत्तियों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे बेटे का अधिकार है, और आज से हमारे बेटे आप होंगे, यानी कि आपका अधिकार होगा।
राघव को तो समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार गायत्री जी का क्या रहस्य था और क्योंकि सारी बातें उसके सर के ऊपर से जा रही थीं, और वह काफ़ी ज़्यादा अब अंदर ही अंदर डर रहा था, क्योंकि राघव को कभी-कभी उसका मालिक जब 400 रुपये की जगह ₹500 या किसी दिन ₹600 दे दिया करता था, तब उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे। लेकिन आज तो सीधे उसे पूरे 50,000 करोड़ रुपये दे रही थी और उसे कितने सारे लोग, हज़ारों-लाखों लोगों का मालिक बता रही थी, तो राघव की तो हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। उसका गला जोरों से सूखने लगा था और फिर वह गायत्री जी की ओर देखकर कहने लगा, "मैडम जी, क्या मुझे थोड़ा सा पानी मिल सकता है पीने के लिए?"
जैसे ही राघव ने यह कहा, तुरंत गायत्री जी ने टेबल पर रखा हुआ पानी राघव को दिया। राघव ने पूरा का पूरा ग्लास पानी एक झटके में ख़त्म कर लिया। लेकिन राघव का गला गीला होने का नाम ही नहीं ले रहा था। इसीलिए राघव ने सीधा, बिना गायत्री जी से पूछे, पूरी की पूरी बोतल उठाकर अपने मुँह से लगा ली और सारा का सारा पानी ख़त्म कर लिया और एक साँस लेने के बाद गायत्री जी की ओर देखकर बोला, "मैडम जी, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं। देखिए, मैं एक गरीब आदमी हूँ और आप मुझे इतना अमीर बनाने के बारे में सोच रही हैं, जितने की मुझे गिनती तक नहीं आती। और आपके बेटे की जान कैसे चली गई?"
तब गायत्री जी ने उसे कहा, "हमारे दुश्मनों ने हमारे बेटे की जान ली थी।" तब राघव घबरा गया और कहने लगा, "क्या आपके दुश्मनों ने आपके बेटे की जान ली थी? लेकिन अगर आपके दुश्मनों ने मेरी भी जान ले ली तो...?"
तब गायत्री जी उसकी ओर देखकर कहने लगीं, "लेकिन तुम तो खुद अपनी जान देना चाहते थे ना? तो अगर तुम्हारी जान किसी के काम आ रही है, तो तुम क्या यह काम नहीं कर सकते हो?"
अब राघव काफ़ी हैरान हो गया था। कहीं न कहीं गायत्री जी की बातों में उसे सच्चाई नज़र आने लगी थी। तब राघव अचानक से खड़ा हो गया और गायत्री जी की ओर देखकर कहने लगा, "मैं नहीं जानता कि आखिरकार ऐसी क्या बात है कि जो आप मुझे अपना बेटा बनने के लिए कह रही हैं। लेकिन फिर भी मैं पूरी बात जानना चाहता हूँ।" जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री जी ने कुछ पल राघव की ओर देखा और अगले ही पल अपने शब्दों में उन्होंने राघव को एक बड़ा ही ख़तरनाक सच बताना शुरू कर दिया।
क्या गायत्री जी का पूरा सच सुनने के बाद राघव उनके प्रस्ताव को कबूल कर लेगा? 50,000 करोड़ का मालिक और साथ ही साथ 70,000 लोगों पर हुक्म चलाने वाला? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।
राघव अचानक खड़ा हुआ और गायत्री जी की ओर देखकर बोला, "मैं नहीं जानता आखिर ऐसी क्या बात है कि आप मुझे अपना बेटा बनने के लिए कह रही हैं। लेकिन मैं पूरी बात जानना चाहता हूँ।"
राघव के यह कहते ही गायत्री जी ने कुछ पल उसकी ओर देखा और फिर एक खतरनाक सच बताना शुरू कर दिया।
राघव सच सुनते ही पसीने से तर-बतर हो गया। वह डरपोक स्वभाव का था; भले ही गरीब और फटीचर, पर बहुत डरता भी था। इतना बड़ा सच सुनकर वह और भी डर गया और गायत्री जी की ओर देखकर बोला, "लेकिन मैडम, आप बुरा मत मानिएगा, लेकिन इसमें तो मेरी जान भी जा सकती है। और आपको लगता है कि मैं इस काम के लिए बिल्कुल परफेक्ट हूँ, जबकि मुझे तो कुछ आता भी नहीं है और न ही मैं ज़्यादा पढ़ा-लिखा हूँ।"
गायत्री जी ने उसकी ओर देखकर कहा, "हम तुम्हारे बारे में सब कुछ जानते हैं, तुम नहीं जानते। जब हमने तुम्हें पहली बार साइकिल चलाते हुए देखा था, तब तुम्हें देखकर हमें कितनी खुशी हुई थी! हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि भगवान हमारे लिए ऐसा रास्ता खोज निकालेगा। और वैसे भी, मौत के डर की बात है तो अभी भी तुम अपनी जान देने ही जा रहे थे। सोचो, तुम्हारी जान, जिसकी कोई कीमत नहीं, अगर कल तुम मर जाते हो, तो तुम्हारी लाश निकालकर म्युनिसिपैलिटी वालों को दे दी जाएगी, और लावारिस लाश की तरह जला भी दिया जाएगा। तुम्हारी पत्नी, जिससे अब तुम्हारा तलाक हो चुका है, वह तुम्हें किसी लायक समझती ही नहीं है। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह तुम्हारी लाश भी लेने नहीं आएगी। और मेरे इस काम की बात है, हाँ, इसमें जान का खतरा है, लेकिन यह तुम्हें क्या से क्या बना सकता है, तुम अच्छी तरह सोच सकते हो।"
गायत्री जी की बातें सुनकर राघव ने कुछ पल सोचा। फिर उसने सोचा, "वैसे भी, मैं अपनी जान देने ही जा रहा था। अगर इस फटीचर और बेकार ज़िंदगी से किसी का काम चल जाता है, तो इसमें हर्ज क्या है?" यह सोचकर उसने गायत्री जी की ओर देखते हुए कहा, "ठीक है मैडम जी, जो आप कहेंगी, मैं वह करूँगा। आपका दिया हुआ सारा काम करूँगा। अब आप मुझे बताइए कि मुझे सबसे पहले क्या करना होगा?"
गायत्री जी हल्का सा मुस्कुराईं और बोलीं, "तुम्हें पढ़े-लिखे या किसी भी चीज़ को लेकर परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मेरा एक आदमी तुम्हें सब कुछ समझा देगा और इतना काबिल बना देगा कि तुम आराम से सारी चीज़ों को हैंडल कर लोगे। और काम की बात है, तो तुम्हारा पहला काम कल बैंक जाना होगा। तुम्हें वहाँ अपने फिंगरप्रिंट्स से कुछ सीक्रेट लॉकर्स अनलॉक करने होंगे और उसमें रखी हुई एक नीली रंग की फाइल लेकर आनी होगी।"
राघव हैरानी से गायत्री जी की ओर देखकर बोला, "लेकिन मैडम, भले ही मेरी शक्ल आपके बेटे से मिलती हो, लेकिन मैं उसके फिंगरप्रिंट्स कैसे मैच कर सकता हूँ?"
गायत्री जी ने कहा, "तुम्हें क्या लगता है राघव? हम तुम्हें इतना बड़ा आदमी बना रहे हैं, पूरे 50,000 करोड़ का मालिक। इतना ही नहीं, 70,000 लोगों की ज़िम्मेदारी भी तुम पर सौंप रहे हैं। तो क्या हमने इन छोटी-छोटी चीज़ों के लिए होमवर्क नहीं किया होगा? तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि कब क्या होगा। तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स ऑलरेडी हमने वहाँ ऐड करवा दिए हैं, वह भी बहुत ही आसान तरीके से। हम वहाँ से अपने बेटे के फिंगरप्रिंट्स हटवा चुके हैं। जैसे ही तुम लॉकर्स में अपने फिंगरप्रिंट्स लगाओगे, वह अपने आप खुल जाएँगे। समझ रहे हो ना मेरी बात? और हाँ, यह कार्ड लो। यह गोल्डन कार्ड है। तुम बैंक इसे साथ में ले जाना। इससे कोई तुमसे कुछ नहीं पूछेगा और सीधा तुम्हें वीआईपी सेक्शन में ले जाएगा, और वहाँ से तुम आसानी से अपने लॉकर तक पहुँच सकते हो।"
राघव थोड़ा डरते हुए बोला, "लेकिन मैडम, क्या मेरा बैंक जाना ज़रूरी है? मेरा मतलब है कि पहले मैं थोड़ा सा आपके बेटे के बारे में सोच लूँ, समझ लूँ, उसके बाद भी तो मैं बैंक जा सकता हूँ।"
गायत्री जी ने कहा, "हम तुम्हारी दुविधा समझ रहे हैं राघव, लेकिन तुम्हारा कल बैंक जाना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि जिस फाइल की हम बात कर रहे हैं, उसमें हज़ारों मज़दूरों की ज़िंदगी का फैसला लिखा हुआ है। वह फाइल हमें कल ही प्रोजेक्ट डिपार्टमेंट में जमा करनी होगी। नहीं तो एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट हमारे हाथ से निकल सकता है और उसका असर हज़ारों मज़दूरों पर पड़ेगा। हम नहीं चाहते कि ऐसा कुछ हो। इसीलिए हमें उस फाइल की बहुत ज़रूरत है, और वह फाइल अगर बैंक जाकर कोई ला सकता है, तो सिर्फ हमारा बेटा अविनाश। हम चाहें तो वह फाइल किसी और से भी मँगवा सकते थे, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे दुश्मनों, प्रतिद्वंद्वियों की नज़र उसे बैंक के साथ-साथ 24 घंटे हम पर है। अगर तुम फाइल लेकर आओगे, तो हमारे लिए बहुत आसान हो जाएगा। अभी हम किसी को कोई मौका नहीं देना चाहते। एक बार तुम हमें वह फाइल लेकर आ जाओ, उसके बाद हम तुम्हें सब से मिलवाने से पहले, रघुवंशी परिवार से मिलवाने से पहले, तुम्हें अविनाश के सभी तौर-तरीके, उसका रहना, पीना, खाना, सोना, वह कब क्या करता था, वह किस लहज़े में बात करता था, वह सब कुछ हम खुद सिखाएँगे। आप तब तक यह गोल्डन कार्ड अपने पास रखो।" गायत्री जी ने गोल्डन कार्ड राघव के हाथ में थमा दिया।
राघव ने कुछ पल कार्ड देखा और फिर बोला, "तो क्या मैं अभी के लिए घर जा सकता हूँ?"
गायत्री जी हैरानी से बोलीं, "घर? तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है? हम तुम्हें इतनी अच्छी ज़िंदगी दे रहे हैं, फिर भी तुम्हें उस घर में जाना है, जहाँ तुम्हारी इतनी बेइज़्ज़ती हुई है, जहाँ तुम्हारी बीवी ने तुम्हें धोखा दिया है।"
राघव बोला, "हाँ, मैं जानता हूँ जो आप कह रही हैं, बिल्कुल सही कह रही हैं, लेकिन मेरा वहाँ पर कुछ ज़रूरी सामान रह गया है, तो मुझे वह लेकर लेने जाना होगा।"
गायत्री जी ने कहा, "तो तुम्हें वह सामान ले जाने की क्या ज़रूरत है? इतने सारे नौकर हैं तुम्हारे पास, कोई भी वह सामान ला सकता है।"
राघव बोला, "नहीं, उसके लिए तो मुझे खुद ही जाना होगा।" गायत्री जी ने उसे रोकना ज़रूरी नहीं समझा और उसे जाने की इजाज़त दे दी। राघव ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि आप मेरे लिए जैसे कपड़े मैं पहना करता हूँ, उसी तरह के कोई एक जोड़ी कपड़े मँगवा दीजिए। मैं वही कपड़े पहनकर घर जाना चाहता हूँ। मैं इस तरह के महँगे कपड़े पहनकर वहाँ नहीं जाना चाहता हूँ।"
गायत्री जी ने उसकी बात मान ली और कुछ ही देर में राघव के लिए कई तरह के कपड़े आ गए, जैसे राघव पहना करता था। राघव चौंक गया और बोला, "इतनी जल्दी आपने ये कपड़े कहाँ से मँगवा लिए? ये तो बिल्कुल मेरी फ़िटिंग और मेरे साइज़ के हैं, और ये ऐसे ही कपड़े हैं जैसे मैं पहना करता हूँ।" गायत्री जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हमने तुम्हें कहा ना कि हम तुम्हारे बारे में सब कुछ जानते हैं, इसीलिए तुम अपनी एनर्जी बेकार के सवाल पूछने में बर्बाद मत करो।"
राघव चुप हो गया और जल्दी से अपने पुराने कपड़े पहन लिए और गोल्डन कार्ड अपनी जेब में रख लिया। गायत्री जी के अनुसार उसे कल ही बैंक जाना था।
राघव के जाने लगे तो गायत्री जी ने कहा, "राघव, तुम्हें कल ही बैंक जाना है। अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ एक गाड़ी और एक ड्राइवर भेज सकती हूँ, जो तुम्हें कल बैंक ले जाएगा।"
राघव मुस्कुराते हुए बोला, "नहीं-नहीं मैडम जी, आपको किसी ड्राइवर या गाड़ी को भेजने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं आज अपना सामान अपनी ससुराल से ले लूँगा और कल सुबह सबसे पहले बैंक चला जाऊँगा।" गायत्री जी ने उसे जाने की इजाज़त दे दी, लेकिन अपने एक आदमी को राघव पर नज़र रखने के लिए कह दिया। एक बड़ी गाड़ी ने राघव को उसके घर से थोड़ी दूरी पर छोड़ दिया।
क्या होगा जब राघव अपनी ससुराल जाएगा, और क्या होगा जब राघव गोल्डन कार्ड के साथ बैंक जाएगा? जानने के लिए बने रहिए।
एक बड़ी गाड़ी ने राघव को उसके घर से कुछ दूरी पर छोड़ दिया था। राघव अच्छी तरह जानता था कि ससुराल में कभी उसकी इज़्ज़त नहीं हुई थी। उसे किस तरह दुत्कारा और फटकारा जाता था, यह भी। अब राघव के मन में जीने की इच्छा जाग चुकी थी। क्योंकि वरना वह आज सुबह ही अपनी इस बेमानी ज़िन्दगी का अंत करने जा रहा था। लेकिन अब उसे ऐसा लगने लगा था कि ऊपर वाले ने शायद उसकी पुरानी ज़िन्दगी का अंत कर दिया है और उसे एक नई ज़िन्दगी दी है, जो ज़बरदस्त माल और दौलत से भरी हुई है।
राघव ने अपना गोल्डन कार्ड अपनी पैंट की जेब में रख लिया और शीघ्र ही अपनी सास के घर के बाहर खड़ा हुआ। जैसे ही राघव घर के अंदर गया, उसने देखा कि उसकी पूर्व पत्नी सरिता राहुल के साथ बैठी थी और राहुल उसके हाथ में अपनी अंगूठी पहना रहा था।
यह देखकर राघव हैरान रह गया। तभी सरिता की नज़र बाहर खड़े राघव पर पड़ी। और तभी उसकी लालची सास राघव की ओर देखकर चिल्लाई,
"तू? तू फिर यहां आ गया? हां, अब क्या लेने आया है यहां? क्या किसी ने तुझे एक वक़्त का खाना नहीं दिया? रहने के लिए छत नहीं दी...? जो फिर मुंह उठाकर यहां चला आया! मैंने तुझे बताया था ना कि तेरा मेरी बेटी से तलाक हो गया है, तो तेरा मेरी बेटी से कोई लेना-देना नहीं है! तो अपनी मनहूस शक्ल ले और जा यहां से!"
राघव ध्यान से अपनी सास की बात सुन रहा था। लेकिन अगले ही पल राघव सीधा सरिता के सामने जाकर खड़ा हो गया और उसकी ओर देखकर बोला,
"क्या तुमने कभी मुझसे प्यार नहीं किया? अगर तुम्हें शुरू से ही यह राहुल पसंद था, तो तुमने मुझ गरीब अनाथ से शादी क्यों की? मुझसे प्यार का झूठा दिखावा क्यों किया?"
जैसे ही उसने सरिता से सीधे सवाल किया, सरिता ने एक नज़र राहुल की ओर देखा। अगले ही पल उसने थोड़ा आगे बढ़कर राघव के मुंह पर तमाचा मार दिया।
और कहने लगी, "अपनी फालतू की बकवास बंद कर! तेरी औक़ात नहीं है मेरे सामने बोलने की! हां, क्या लगा रखा है तूने प्यार-प्यार? मैंने तुझसे शादी सिर्फ अपने ऐश-आराम के लिए की थी। इसलिए की थी कि तू मुझे किसी चीज़ को लेकर रोक-टोक ना करे। जब मैं चाहूं बाहर घूमूं, फिरूं, और पार्टी करूं, जो मर्ज़ी, वह करूं और मुझे कोई रोकने-टोकने वाला ना हो। इसके लिए मुझे नाम के पति की ज़रूरत थी, इसलिए मैंने तुम्हें चुना, समझे तुम? और अब मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि मैं कब तक तुम्हारे साथ ₹४०० की तुम्हारी मज़दूरी में अपनी ज़िन्दगी गुज़ारूंगी? मेरे सपने बहुत बड़े हैं राघव, और मेरे सपने सिर्फ़ राहुल पूरा कर सकता है, तुम नहीं। इसलिए मैंने तुम्हें तलाक दिया और मैं राहुल से शादी करूंगी, समझे तुम? इसलिए अपनी यह दो कौड़ी की सस्ती सी शक्ल उठाओ और जाओ यहां से!"
सब राघव और सरिता की बातें सुनकर भावुक हो गए थे। राघव थोड़ा आगे बढ़कर सरिता के कंधे पकड़कर बोला,
"नहीं सरिता, तुम गलत कर रही हो। तुमने भले ही मुझसे मतलब के लिए प्यार किया हो, लेकिन मैंने तुम्हें दिल से प्यार किया है। तुम्हें मेरे साथ ऐसी हरकत नहीं करनी चाहिए। प्लीज़ सरिता, मेरी ज़िन्दगी में वापस लौट आओ।"
राघव उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा। लेकिन तुरंत राहुल उसके सामने आया और उसने दो-तीन चांटे राघव के मुंह पर मार दिए और उस पर लात-घूसों की बरसात कर दी।
"तेरी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से मेरी आँखों के सामने, मेरी होने वाली बीवी को छूने की!"
अब राघव का सब्र जवाब दे गया। उसने मन ही मन सोचा, इसने मेरी ही आँखों के सामने मेरी बीवी को बिस्तर पर ले आया था और मैं इसकी होने वाली बीवी को छू भी नहीं सकता!
राघव के मुंह और नाक से हल्का-हल्का खून निकलना शुरू हो गया था। वह उठा और सरिता के कमरे की ओर बढ़ा। उसकी सास उसे रोकते हुए बोली,
"हे फटीचर आदमी, कहां जा रहा है?"
राघव ने हल्की सी कांपती आवाज़ में कहा, "एक्चुअली, मेरा कुछ ज़रूरी सामान है, मैं उसे लेने जा रहा हूं।"
जैसे ही उसने यह कहा, उसकी सास जोरों से हँसी।
"ओ हो! अच्छा, तेरा सामान? अच्छा-अच्छा, लेकर आ, मैं भी तो देखूं क्या लेकर आएगा!"
जब राघव को तीन साल की उम्र में अनाथ आश्रम में छोड़ा गया था, तब एक छोटा सा थैला उसके साथ दिया गया था। राघव ने जल्दी ही वह थैला अपने पास ले लिया। वह थैला देखकर सरिता ने बुरा मुंह बनाया और बोली,
"ओह! तो इस मिले-जुले थैले के लिए तुम्हारी जान जा रही थी? लेकर जा इसे और देखना कहीं इसमें खज़ाना न छुपा हुआ हो!"
तीनों राघव पर हंसने लगे और बोले, "चल अब चल, भाग यहां से!" वे उसे दुत्कारने लगे। राघव को ऐसा लगने लगा जैसे किसी कुत्ते को दुत्कारा जा रहा हो।
शाम हो चुकी थी और राघव गायत्री जी के पास नहीं जा सकता था क्योंकि होटल उस जगह से काफी दूर था। इसलिए राघव ने सोचा कि आज की रात वह यहीं आसपास की बस्ती में गुज़ार लेगा और सुबह उठते ही बैंक चला जाएगा। बैंक जाकर पहले गायत्री जी का काम कर देगा, उसके बाद जो गायत्री जी कहेंगी, वह कर देगा।
यह सोचते हुए राघव अपनी सास के घर से निकलकर अपनी बस्ती के बाहर आया। जल्दी ही उसे फुटपाथ पर सोने के लिए जगह मिल गई और राघव वहीं गहरी नींद में सो गया।
राघव के फुटपाथ पर सोने की बात गायत्री जी के आदमी जतिन ने उन्हें फ़ोन करके बता दी। उसने कहा कि अगर वे चाहें तो उसी वक़्त राघव को उठाकर अपने साथ होटल में ले आ सकते हैं या फिर कहीं अच्छी जगह रात ठहरा सकते हैं। लेकिन गायत्री जी ने मना करते हुए कहा, "तुम आज की रात उसे फुटपाथ पर ही सोने दो। पर हां, दूर से उस पर नज़र रखना। पूरी रात उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।"
जैसे ही गायत्री जी ने हुक्म दिया, उसके आदमी ने बात मान ली और दूर से राघव पर नज़र रखने लगा।
अगली सुबह जैसे ही राघव उठा, उसने देखा कि गली के छोटे-छोटे बच्चे उसके आसपास जमा हो गए थे। सबको लग रहा था कि वह मर गया है। लेकिन जैसे ही राघव उठा, सभी बच्चे डरकर भाग गए। राघव उन्हें देखकर मुस्कुरा उठा। आज राघव का दिल हल्का-फुल्का था। इतने दिन से उसके दिल पर जो बोझ था, वह खत्म हो चुका था। उसे ऐसा लगने लगा मानो उसका आज नया जन्म हो। उसे लगने लगा कि वह अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी जिएगा। उसकी ज़िन्दगी में अब कोई उसकी बेइज़्ज़ती नहीं करेगा, हर कोई उसकी इज़्ज़त करेगा।
तभी राघव का ध्यान अपनी पैंट की पिछली जेब में रखे गोल्डन कार्ड पर गया। वह कार्ड देखकर राघव के चेहरे पर मुस्कान आ गई। और शीघ्र ही उसने बैंक का रुख किया। उसने सोच लिया था कि उसे आज जल्द से जल्द बैंक जाना होगा और गायत्री जी का काम करना होगा।
यह सोचते हुए राघव पहले थोड़ा फ्रेश होने के बारे में सोचा। वहीं पर उसने थोड़ा पानी से मुंह धो लिया। मुंह धोने के बाद उसने एक टपरी से ₹५ की चाय खरीदी और चाय पीने के बाद जल्दी ही शहर के सबसे बड़े बैंक की ओर रवाना हो गया।
दूसरी ओर, राहुल ने सरिता से वादा किया था कि आज वह उसे दुनिया भर की शॉपिंग कराएगा। सरिता बहुत खुश हो गई थी। तभी राहुल ने उसे बताया कि वह बैंक जा रहा है पैसे निकालने के लिए, तो वह चाहे तो उसके साथ चल सकती है। सरिता घुमक्कड़ थी और उसे मौका चाहिए था। तो जल्दी ही वह राहुल के साथ बैंक की ओर रवाना हो गई।
जैसे ही राघव बैंक में गया, सभी लोग उसे हैरानी से देखने लगे। क्योंकि उस बैंक में शहर के ज्यादातर अमीर लोगों के अकाउंट थे। इसलिए राघव, जो वहां मामूली से कपड़ों में पहुंचा था, और फुटपाथ पर रात भर सोने की वजह से उसके कपड़ों पर जगह-जगह मिट्टी लगी हुई थी, सभी को अजीब लग रहा था। कुछ लोगों को राघव से घृणा भी आ रही थी। क्योंकि राघव अपने पुराने कपड़े पहनकर वहां गया था। गायत्री जी ने जो उसे कपड़े दिए थे, वह उसने बदल लिए थे, क्योंकि वह महंगे कपड़े पहनकर सरिता के सामने नहीं जाना चाहता था। और फिर उसे मौका नहीं मिला था कि वह गायत्री जी के पास वापस जा पाए। इसलिए वह उन्हीं कपड़ों में बैंक आ गया था। जैसे ही वह बैंक आया, चौकीदार ने उसे बाहर ही रोक दिया।
"भाई, कौन है तू? इस तरह से अंदर कहां चल रहा है? और यह कोई भीख मांगने की जगह नहीं है।" चौकीदार ने उसे भिखारी समझा था।
राघव ने उसकी ओर देखकर कहा, "आपको कोई गलतफहमी हुई है। मेरा यहां पर अकाउंट है, लॉकर है। मैं उसी से रिलेटेड जानकारी के लिए और कुछ ज़रूरी काम से आया हूं।"
जैसे ही राघव ने यह कहा, चौकीदार उस पर जोरों से हँसा। "तुम्हें देखकर तो यह लग रहा है कि तुम्हारा राशन कार्ड में भी नाम नहीं होगा और न किसी सरकारी बैंक में अकाउंट होगा, और तुम यहां अकाउंट होने की बात कर रहे हो!"
आसपास के लोग राघव पर हंसने लगे। एक बार को राघव का मन किया कि वह चौकीदार की बात मान ले और यहां से वापस चला जाए। क्योंकि चौकीदार बिल्कुल सही कह रहा था। क्योंकि राघव का वाकई किसी भी नॉर्मल बैंक में अकाउंट नहीं था। उसके पास इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि उसे बैंक में रखने पड़ें। मेहनत-मज़दूरी करके उसे दिन के ₹४०० मिलते थे और ₹४०० तो उसकी बीवी सरिता एक बार में पिज्जा खा लिया करती थी!
जैसे ही राघव वहां से वापस जाने लगा, तभी उसे गायत्री रघुवंशी जी की बात याद आई और साथ ही कार्ड का ख्याल आया जो गायत्री जी ने उसे दिया था। तो उसने एक बार फिर कोशिश की।
राघव थोड़ी हिम्मत करके एक बार फिर अंदर जाने लगा और कहने लगा, "तुम मुझे इस तरह से नहीं रोक सकते हो। मैंने कहा ना, मेरा अकाउंट है यहां पर!"
राघव का इतना विश्वास देखकर चौकीदार दंग रह गया। लेकिन वह यह भी जानता था कि इस फटीचर का अकाउंट तो किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता, क्योंकि यहां पर शहर के केवल अमीर लोगों का ही अकाउंट है।
चौकीदार ने समझ लिया था कि राघव नहीं मानने वाला है। तो उसने कहा, "अच्छा ठीक है। अगर तुम कह रहे हो कि तुम्हारा यहां कोई अकाउंट है तो यहां पूछताछ केंद्र है, तुम वहां जाओ। जाकर वहां अपनी पूछताछ करो।" उसने उसे बैंक के अंदर ना भेजकर बराबर में बने पूछताछ केंद्र में भेज दिया।
अब राघव को समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। वह सीधे-सीधे गोल्डन कार्ड दिखा दे क्या? लेकिन वह कार्ड कोई ना पहचाने तो? कहीं ना कहीं राघव काफी कशमकश का शिकार था। वह मन ही मन सोच रहा था कि न जाने गायत्री जी ने उसे कहां फंसा दिया है।
तभी अचानक उसके कानों में सरिता की आवाज़ पड़ी, "अरे भिखारी! तू यहां क्या कर रहा है?"
सरिता को वहां पाकर राघव क्या करेगा, जानने के लिए बने रहिए दोस्त...
वेल, राघव कुछ सोच ही रहा था कि अचानक उसके कानों में सरिता की आवाज़ पड़ी, "अरे भिखारी! तू यहाँ क्या कर रहा है?"
जैसे ही सरिता ने थोड़ी तेज आवाज़ में यह कहा, राघव हैरान हो गया। उस वक़्त बैंक में मौजूद सभी लोग, और बैंक के कर्मचारी, राघव की ओर देखने लगे।
राघव बैंक के ठीक बाहर, लाइन में खड़े लोगों के बीच खड़ा था। वह सभी के आकर्षण का केंद्र बन गया था।
सरिता ने राघव को देखते ही कहा, "भिखारी! तू यहाँ क्या कर रहा है? क्या यहाँ भी अपनी मंहुसियत फैलाने आया है?"
जैसे ही सरिता ने ऐसा कहा, राघव हैरान हो गया। तभी राहुल आगे बढ़ा और उसे देखकर बोला,
"अरे! तू यहाँ क्या कर रहा है?
और चौकीदार! तुझे क्या दिखाई नहीं दे रहा? यह भिखारी यहाँ बैंक में घुस आया है! तूने इसे अभी तक बाहर क्यों नहीं निकाला?"
"यहाँ से! इसे यहाँ से निकालकर बाहर फेंक! यह भिखारी है, भिखारी! और यह एक नंबर का मनहूस भी है!
इसे मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ। कहीं ऐसा न हो कि इसकी वजह से पूरा बैंक बंद हो जाए।"
राहुल के यह कहते ही सभी लोग हँसने लगे और राघव को देखने लगे। तभी भीड़ में से एक लड़की बोली,
"अरे हाँ हाँ! इसकी हालत देखकर ही पता चल रहा है कि यह तो इस बैंक का चौकीदार तक बनने के लायक नहीं है! और यह यहाँ पर अपना अकाउंट होने की बात कर रहा है!"
यह सुनकर सरिता हैरान हो गई और बोली, "अकाउंट? पागल हो गया क्या? अरे! मैं इसे बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ!
इसका तो कहीं राशन कार्ड में भी नाम न हो, यह यहाँ इस बैंक में अपना अकाउंट होने की बात कर रहा है!"
सरिता के यह कहते ही सभी लोग हँसने लगे। तभी राहुल आगे आया और राघव का गिरेबान पकड़कर उसे बैंक के अंदर ले जाकर खड़ा कर दिया।
वह बोला, "तूने आज तक ऐसा बैंक अपनी ज़िन्दगी में देखा है क्या? जो तू अपना अकाउंट होने की यहाँ बात कर रहा है?
तू पागल हो गया है क्या? ध्यान से देख! तेरे स्टेटस से यह मैच खाता है क्या?
और सुन! तेरी जगह सिर्फ़ कूड़े का ढेर है या फिर वो मज़दूरों की फैक्ट्री जहाँ मज़दूर काम करते हैं।
तेरी जगह यह शानदार बैंक नहीं है! तू जानता है कि यह शहर का कितना अमीर बैंक है? यहाँ पर जितने भी वीआईपी लोग हैं, बड़े-बड़े लोग हैं, उन सबके अकाउंट इस बैंक के अंदर हैं।
और वह इलाका देख रहा है? वह इलाका इस बैंक का वीआईपी अपार्टमेंट है और तू देखना, एक दिन मैं वहाँ ज़रूर बैठूँगा। मेरा भी सपना है वहाँ बैठने का।" राहुल ने राघव को एक जगह दिखाना शुरू कर दिया।
राघव ने देखा कि वाकई जिस जगह की राहुल बात कर रहा था, वह जगह बड़ी ही खूबसूरत दिखाई दे रही थी।
तभी अचानक राघव ने अपना कॉलर राहुल से छुड़ा लिया और सीधे उस वीआईपी वाली जगह पर जाकर बैठ गया।
यह देखकर राहुल और सरिता हैरान हो गए। राहुल सरिता की ओर देखकर बोला,
"लगता है तुम्हारे तलाक के बाद यह फटीचर और पागल हो गया है! इसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।"
तभी सरिता राहुल को घूर कर देखने लगी और बोली, "तुम देखो, मैं आज कैसे इस भिखारी को इसकी सही जगह दिखाती हूँ।"
ऐसा कहकर सरिता जोरों से चिल्लाने लगी, "सिक्योरिटी! सिक्योरिटी! देखो! देखो! यह भिखारी कहाँ घुस आया है!"
सरिता के इतनी बुरी तरह से चिल्लाने पर, बैंक के सभी गार्ड एक जगह जमा हो गए। इस तरह से किसी भिखारी का वीआईपी क्षेत्र में बैठना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं था।
सभी लोग गुस्से और घृणा भरी नज़रों से राघव की ओर देख रहे थे। बहुत कम लोग उस वीआईपी क्षेत्र में बैठते थे। उस वक़्त लाइन में लगे हुए शहर के बड़े-बड़े, अमीर लोग भी इतने बड़े नहीं थे कि वे वीआईपी क्षेत्र में बैठ सकें। राहुल का तो अब राघव को वहाँ देखकर गुस्से से खून खोलना शुरू हो गया था।
कहीं न कहीं राहुल सोच रहा था कि कहीं वह इस बैंक के वीआईपी क्षेत्र में बैठेगा तो कहीं वह जगह राघव के बैठने से मैली न हो जाए, जिस जगह पर राहुल बैठने का सपना देखा करता था।
शेखी मारने के लिए उसने उस बड़े बैंक में अपना अकाउंट खुलवाया था। जब वह इस बैंक में आ रहा था, तब से उसका यही एक सपना था कि वह एक दिन इतना अमीर हो जाएगा कि बैंक वाले उसे वीआईपी ट्रीटमेंट देंगे।
लेकिन आज जिस तरह से राघव वहाँ जाकर बैठ गया था, राहुल को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह भी उन सब गार्ड के साथ राघव के पास गया और सभी गार्डों ने राघव को एक ही झटके में पकड़ लिया।
राहुल ने आगे बढ़कर दो-तीन चांटे राघव के मुँह पर मार दिए और बोला,
"तेरी औकात कहीं गली के नुक्कड़ पर बैठने की नहीं है! और तू आकर यहाँ इस इतने बड़े बैंक के वीआईपी क्षेत्र में बैठ गया!
वाकई तेरी हिम्मत की दाद देनी होगी, भिखारी कहीं के!" ऐसा कहकर उसने राघव को दो-तीन चांटे और मार दिए।
अब तो राघव के मुँह से हल्का सा खून भी निकलना शुरू हो गया था। राघव समझ नहीं आ रहा था कि क्या वह अपना गोल्डन कार्ड इन लोगों को दिखाए? क्या ये लोग उसकी बात पर यकीन करेंगे?
क्योंकि ये लोग उसे बड़ी बुरी तरह से ट्रीट कर रहे थे। लेकिन इससे पहले कि राघव कुछ सोच पाता, उसकी निगाह सरिता पर गई जो राघव को इस तरह से पीटा हुआ देखकर, उसकी बेइज़्ज़ती होते हुए देखकर मन ही मन में मुस्कुरा रही थी।
उसकी मुस्कुराहट उसके होंठों पर साफ़ देखी जा सकती थी। जैसे ही राघव ने यह महसूस किया, उसका दिल नफ़रत से भर उठा।
तो अचानक से उसने उन सभी गार्ड से कहा, "छोड़ो मुझे! मैं इस बैंक का वीआईपी कस्टमर हूँ! तो तुम मेरे साथ इस तरह का बर्ताव नहीं कर सकते हो।"
जैसे ही राघव ने यह कहा, वहाँ खड़े सभी लोग एक-दूसरे का मुँह देखने लगे और अगले ही पल सभी जोरों से हँसने लगे। कहीं न कहीं उन सबको लगने लगा था कि ज़रूर इस आदमी के दिमाग में कुछ न कुछ प्रॉब्लम है जो यह इस तरह की बातें यहाँ आकर कर रहा है।
तभी सरिता राघव का मज़ाक उड़ाते हुए बोली, "ओह! तो तू इतने बड़े बैंक का वीआईपी कस्टमर है? हाँ, लगता है जब से मैंने तुझे तलाक दिया है, तब से तेरा दिमाग खराब हो गया है!
इसीलिए तुझे किसी भी चीज में कोई फर्क नज़र नहीं आ रहा है! अरे! यह बैंक है, बैंक! वह भी देश का सबसे बड़ा और यह अनाथ आश्रम नहीं है जिसे तू अपना घर समझ रहा है कि जहाँ मर्ज़ी वहाँ जाकर बैठ जाओ!" एक बार फिर सरिता ने उसकी खूब बेइज़्ज़ती करना शुरू कर दिया।
लेकिन अगले ही पल राघव ने एक बार फिर कोशिश की और कहना शुरू कर दिया, "देखो! तुम लोग बहुत बड़ी गलती कर रहे हो! तुम मेरे साथ इस तरह का बर्ताव नहीं कर सकते हो!
मैंने कहा न कि मैं इस बैंक का वीआईपी कस्टमर हूँ! तुम लोगों को मेरी बात माननी ही होगी।"
एक बार फिर राघव के द्वारा बोले जाने पर अब तो राहुल का दिमाग सनक गया था। वह गार्ड्स की ओर इशारा करने लगा, "इसे उठाकर बाहर फेंक दो!"
ऐसा कहकर गार्डों ने एक तरफ़ से राघव का हाथ पकड़ लिया, एक तरफ़ से राहुल ने, और उन्होंने उसे बैंक के दरवाज़े पर जाकर धक्का दे दिया।
राघव को इस तरह से बाहर फेंके जाने पर सरिता समेत उस वक़्त जितने भी लोग वहाँ मौजूद थे, सभी जोरों से हँसने लगे।
वहीँ राघव सीधा बैंक के बाहर जा गिरा। तभी राघव को एहसास हुआ कि वह किसी के पैरों के पास पड़ा हुआ है, क्योंकि उसे बड़े ही चमकदार, स्टाइलिश लेदर शूज़ दिखाई दे रहे थे। राघव ने जल्दी ही नज़रें उठाकर उस आदमी को देखना शुरू कर दिया।
लेकिन अगले ही पल राघव ने जैसे ही अपनी नज़र उठाकर देखा तो वह हैरान हो गया, क्योंकि उसके सामने एक बड़ा ही स्टाइलिश पर्सनालिटी वाला आदमी वहाँ खड़ा हुआ था।
राघव के इस तरह से गिरने पर वह काफी हद तक हैरान था। उसके चेहरे पर कई भाव आकर चले गए और वह गुस्से से अपने गार्डों की ओर घूरने लगा।
तभी सभी सिक्योरिटी गार्ड उस आदमी को देखकर एकदम साइड में हो गए और सभी उसे सलाम करने लगे। और वह आदमी कोई और नहीं, बल्कि उस बैंक का हेड मैनेजर था, जो किसी अमीर आदमी से कम नहीं था। इतने बड़े बैंक का मैनेजर होना भी एक बहुत बड़ी पोस्ट थी। सभी अमीर लोग उसकी बहुत ज़्यादा इज़्ज़त किया करते थे।
जैसे ही बैंक मैनेजर ने राघव को जमीन पर गिरे हुए देखा, वह तुरंत आगे बढ़कर उसे उठाया।
राघव को उठाकर बैंक मैनेजर ने अपने गार्ड्स से कहा, "यह क्या बदतमीज़ी है? यह कैसी हरकत कर रहे हो तुम उनके साथ?"
जैसे ही बैंक मैनेजर ने यह बातें उन लोगों से कही, सभी गार्ड एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।
इतना ही नहीं, राहुल और सरिता का तो हैरानी के मारे बुरा हाल हो गया था।
तभी राहुल अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में सीधा बैंक मैनेजर के सामने खड़ा हो गया और बोला,
"सर! यह बदमाश, यह गरीब फटीचर आपके बैंक में जबरदस्ती घुस आया है! मुझे लगता है कि यह ज़रूर चोरी करने के इरादे से यहाँ आया होगा! इसको तो आप अपने बैंक से काफी दूर फेंक दो और पुलिस के हवाले कर दो।"
तभी सरिता भी राहुल की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली, "हाँ सर! यह एक नंबर का मनहूस है, मनहूस!"
जैसे ही सरिता ने यह कहा, बैंक मैनेजर उसकी ओर देखने लगा और बोला, "देखिए मैडम! आप अपने काम से कम रखिए। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि कौन मनहूस है और कौन क्या है।"
तभी उस मैनेजर ने बड़े ही विनम्र तरीके से राघव के सामने झुककर उसे खड़ा किया और जल्दी से उसके सामने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा।
वह बोला, "मैं माफ़ कीजिएगा साहब! बहुत बड़ी गलती हो गई।"
और उसके बाद मैनेजर अपने सभी सिक्योरिटी गार्डों की ओर देखकर बोला, "खड़े-खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो? जल्दी से आकर इनसे माफ़ी मांगो! फ़ास्ट!"
क्या करेगी सरिता राघव का सच जानने के बाद? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!
तभी उस मैनेजर ने बड़े ही विनम्रतापूर्वक राघव के सामने झुककर उसे खड़ा किया था।
और जल्दी से उसके सामने हाथ जोड़कर माफ़ी माँगने लगा था।
"मैं माफ़ कीजिएगा साहब, बहुत बड़ी गलती हो गई।"
और उसके बाद मैनेजर अपने सभी सिक्योरिटी गार्डों की ओर देखकर कहने लगा,
"खड़े-खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो? जल्दी से आकर इनसे माफ़ी माँगो, फ़ास्ट!"
अपने मैनेजर की बात सुनकर सभी सिक्योरिटी गार्ड एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे थे।
किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उनके मैनेजर आज किस तरह का बर्ताव कर रहा था और एक गरीब, फटेहाल आदमी के लिए वह उनसे माफ़ी माँगने के लिए क्यों कह रहा था,
और खुद इस तरह उसके सामने हाथ क्यों जोड़ रहा था।
लेकिन उनके मैनेजर का हुक्म था, तो सिक्योरिटी गार्डों को तो राघव से माफ़ी माँगनी ही थी। जल्दी-जल्दी एक-एक करके सभी सिक्योरिटी गार्ड ने राघव से माफ़ी माँगना शुरू कर दिया था।
राहुल और सरिता का तो हैरानी के मारे बुरा हाल था। उन्हें तो समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार वहाँ क्या हो रहा है।
और जितनी भी लोगों की भीड़ थी, जो कि पहले राघव पर हँस रही थी, अब कहीं न कहीं राघव को लेकर वे लोग सभी थोड़े से गंभीर होने लगे थे, और सोचने लगे थे,
"अगर बैंक मैनेजर इस तरह से इस गरीब, फटेहाल के सामने हाथ बाँधे खड़ा हुआ है, तो पक्का ये कोई आम आदमी तो नहीं हो सकता है।"
तभी बैंक मैनेजर बड़े ही विनम्र लहजे में राघव से झुककर बोला था,
"सर, प्लीज़-प्लीज़ आप आइये मेरे साथ।" ऐसा कहकर बैंक मैनेजर राघव को उन सभी लोगों की भीड़ में से अंदर ले आया था।
अब जितने भी वहाँ पर लोगों की भीड़ थी, वे सभी हैरानी से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे थे।
वहीं राहुल को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह बैंक मैनेजर आखिरकार क्या कर रहा था।
क्योंकि वह इतने बड़े बैंक का मैनेजर था, तो यह कोई आम बात भी नहीं थी।
वह कभी भी किसी से इस तरह से नहीं मिलता था,
और वह वहाँ पर एक गरीब, फटेहाल आदमी से इतने विनम्रतापूर्वक बात कर रहा था।
इतने विनम्रतापूर्वक उसके साथ बर्ताव कर रहा था, तो कहीं न कहीं सब लोगों की आँखों में कई सारे सवाल नज़र आने लगे थे।
और तभी उस बैंक मैनेजर ने राघव को ले जाकर सीधा VIP क्षेत्र में बिठा दिया था।
और उसे वहाँ बिठाने के बाद उसने जल्दी ही फ़र्स्ट-एड बॉक्स लेकर आने के लिए कहा था,
और फिर खुद से ही वह राघव की ड्रेसिंग करने लगा था। अब जितने भी लोग उस वक़्त वहाँ मौजूद थे, सभी मुँह खोले, हैरत के मारे VIP section का नज़ारा देख रहे थे।
क्योंकि VIP क्षेत्र में एक ट्रांसपेरेंट काँच लगा हुआ था, जिससे अंदर क्या हो रहा है, आसानी से दिखाई दे रहा था।
इतना ही नहीं, मैनेजर ने खुद राघव के लिए कोल्ड ड्रिंक वगैरह ऑर्डर की थी और खुद उसे सर्व की थी।
यह देखकर जितने भी बैंक का स्टाफ़ था, सभी एक-दूसरे का मुँह देखने लगे थे।
और तभी एक व्यक्ति स्टाफ़ के दूसरे से कहने लगा था, "ज़रूर ये कोई न कोई बड़ी हस्ती है,
वरना बैंक मैनेजर तो इस बैंक के मालिक तक को गिलास पानी न दे।"
लेकिन देखिए यहाँ पर तो मैनेजर साहब खुद इसे अटेंड कर रहा है। इसका मतलब यह सामने खड़ा हुआ इंसान कोई आम आदमी नहीं है।"
जैसे ही उस बैंक स्टाफ़ ने अपने कॉलीग से यह कहा, सरिता को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था।
और तभी कुछ देर बाद बैंक मैनेजर बाहर आया था और गुस्से से सभी गार्ड को एक जगह इकट्ठा करके कहने लगा,
"तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई उन पर हाथ उठाने की? तुम लोग पागल हो गए हो क्या?
या तुम लोगों को अपनी जान प्यारी नहीं है, या अपनी नौकरी प्यारी नहीं है?"
"हाँ, जानते भी हो वह कौन है?"
तभी सरिता थोड़ी हिचकिचाते हुए आगे आई थी और कहने लगी थी,
"माफ़ कीजिएगा सर, लेकिन यह सब क्या हो रहा है? आप उसे, गरीब फटेहाल के लिए इतना सब कुछ क्यों कर रहे हैं?"
तभी वह बैंक मैनेजर सरिता की ओर देखकर कहने लगा था,
"मैडम, आप कौन हैं जो बार-बार अविनाश सर को फटेहाल और गरीब कह रही हैं?
अरे क्या तुम लोगों को नहीं पता, उनका जब भी मन होता है, वह किसी न किसी तरह का वेश बदलकर इस तरह से आते रहते हैं लोगों को आजमाने के लिए?"
"क्या...? या... या..." जैसे ही सरिता ने यह सुना,
वह कहने लगी थी,
"अविनाश?
कौन अविनाश?
इसका नाम राघव है।
यह कोई अविनाश नहीं है, और यह एक अनाथ है और आप इस तरह से बर्ताव क्यों कर रहे हैं इसके साथ?"
तभी बैंक मैनेजर उसकी ओर देखकर कहने लगा था,
"तुम लोग पागल हो गए हो! जानते भी हो कौन है वह? उसका नाम अविनाश रघुवंशी है,
और वह पूरे पाँच हज़ार करोड़ का मालिक है!"
"क्या...? या... या..." जैसे ही सब ने यह सुना, सबका हैरानी के मारे बुरा हाल हो चुका था।
इतना ही नहीं, सरिता के कान में जैसे ही यह आखिरी बात गूँजी कि वह पाँच हज़ार करोड़ का मालिक है,
तो यह सुनते ही वह पूरी तरह से बेहोश हो चुकी थी,
और राहुल उसे संभालने की कोशिश करने लगा था।
तभी राहुल ने बैंक रिसेप्शन से पानी माँगा था और जल्दी ही उसने कुछ पानी लाकर राहुल के हाथों पर थमा दिया था। राहुल ने पानी की छींटे सरिता के मुँह पर मारनी शुरू कर दी थीं।
कुछ देर बाद सरिता को होश आ गया था। होश आने के बाद उसकी नज़र सबसे पहले राहुल पर पड़ी थी,
और वह तुरंत धीरे से खड़ी होने लगी थी, क्योंकि उसका सिर अभी भी घूम रहा था।
तब खड़ी होकर राहुल से कहने लगी थी, "राहुल, तुम... तुम... तुमने सुना? उस बैंक मैनेजर ने क्या कहा?
कुछ न कुछ गड़बड़ लग रही है।
यह सब झूठ है, न? सच नहीं है, न?
क्या उसे, गरीब फटेहाल को पुलिस के हवाले कर दिया, न? बैंक वालों ने?
बोलो न! तुम जवाब क्यों नहीं दे रहे हो?
बोलो राहुल, मैं तुमसे पूछ रही हूँ!
आखिरकार तुम्हें क्या हो गया है?
तुम्हें क्या साँप सूँघ गया है?"
तभी राहुल, जो कि सिर्फ़ और सिर्फ़ VIP क्षेत्र की ओर ही देख रहा था, जब सरिता ने राहुल की नज़रों का पीछा किया और उसने देखा कि राघव तो आराम से VIP क्षेत्र में बैठा हुआ था।
इतना ही नहीं, मैनेजर के साथ-साथ बैंक के एक-दो और कर्मचारी राहुल के सामने हाथ बाँधे खड़े हुए थे।
कोई उसे चाय-कॉफ़ी ऑर्डर कर रहा था, तो कोई कुछ और। सब के सब इस तरह से उसे ट्रीट कर रहे थे, मानो कि राघव उनका बॉस हो और वे सब राघव के कर्मचारी हों।
अब तो सरिता की आँखें हैरानी के मारे फटी की फटी रह गई थीं। उसे तो यकीन नहीं हो रहा था,
कि वह गरीब, फटेहाल आदमी, जो उसके झूठे बर्तन, जो उसके मैले-कुचैले कपड़े धोता है, इतना ही नहीं, रातों को उसकी टाँग तक दबाता था,
वह आज इस तरह से इतने बड़े बैंक में राजा-महाराजाओं की तरह बैठा था। तो सरिता की तो हालत ही खराब होने लगी थी।
उसके होंठ अपने आप ही कंपकंपाने लगे थे और वह अपनी उंगली से VIP क्षेत्र की ओर इशारा करके राहुल से कहने लगी थी,
"राहुल, यह... तुमने देखा? यह क्या हो रहा है? यह सब कुछ क्या है? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है।" तभी राहुल ने सरिता के दोनों कंधों को पकड़ लिया था।
और कहने लगा था, "तुम्हें अभी इस वक़्त शांत हो जाना चाहिए और पूरी बात क्या है, मैं पता करके बताता हूँ।
कि आखिरकार मसला क्या है। तुम जाओ, जाकर बाहर मेरी गाड़ी में बैठो।" ऐसा कहकर उसने सरिता को बाहर जाने का इशारा कर दिया था।
और सरिता बाहर नहीं जाना चाहती थी। उसकी निगाह तो इस वक़्त अगर कहीं ठहर रही थी, तो सिर्फ़ और सिर्फ़ VIP क्षेत्र पर ही ठहर रही थी,
जहाँ पर राघव बैठा हुआ था।
राघव वहाँ बड़े ही स्टाइल से बैठा हुआ था और अब तो जानबूझकर थोड़ा सा वह एटीट्यूड इसलिए दिखा रहा था क्योंकि उसकी एक्स-वाइफ़ सरिता उसे देख रही थी।
और कहीं न कहीं राघव भी सबकी नज़रों से बचकर बार-बार कनखियों से सरिता की ओर ही देख रहा था।
और सरिता की ऐसी हालत का वह मज़ा लेने लगा था।
और मन ही मन में उसे थोड़ा सा सुकून सा भी मिल रहा था।
जब राघव कितनी देर तक बैठकर आराम से जूस पीता रहा, तब मैनेजर बड़े ही विनम्रतापूर्वक राघव से बोला था, "अविनाश सर, अविनाश सर आप आज खुद बैंक आए हैं? क्या आपको कुछ ज़रूरी काम था...?
अगर आपको कुछ काम था, तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अभी आपका वह काम करवा देता हूँ..."
तब जैसे ही मैनेजर ने राघव को अविनाश कहा था,
अब राघव थोड़ा सा घबरा गया था, लेकिन वह अच्छी तरह से जानता था कि अगर वह इन बैंक मैनेजर के सामने घबरा गया, तो उसके लिए बहुत ही ज़्यादा मुश्किलें खड़ी हो सकती थीं। इसीलिए उसने थोड़ा सा खुद को शांत करते हुए,
तुरंत अपने अविनाश वाले कैरेक्टर में आते हुए, थोड़ा सा शांत होकर कहने लगा था,
"जी जी, वह मैं... मैनेजर साहब... वह एक्चुअली मुझे आप मेरे लॉकर तक लेकर चलिए। मुझे वहाँ कुछ ज़रूरी काम है।"
जल्दी ही राघव को गायत्री रघुवंशी जी का दिया हुआ काम याद आ गया था कि उसे हर हाल में लॉकर से जाकर फ़ाइल लेकर आनी होगी।
तो इसीलिए जल्दी ही उसने बैंक मैनेजर को लॉकर दिखाने को कह दिया था।
तब बैंक मैनेजर जल्दी ही राघव की बात समझते हुए तुरंत उनसे उठने का आग्रह करने लगा था कि "आप मेरे साथ चलिए, मैं आपको आपके लॉकर तक लेकर चलता हूँ।"
क्योंकि वह राघव की शान में किसी तरह की कोई गलती नहीं करना चाहता था।
वह अच्छी तरह से जानता था कि इस वक़्त उसके सामने कितनी बड़ी हस्ती बैठी हुई थी।
वहीं राघव एक नज़र और बाहर की ओर देखता हुआ जल्दी ही मैनेजर के साथ जाने लगा था।
और मैनेजर एक बड़े ही फ़ाइव-स्टार होटल के कमरे जैसे रूम में राघव को ले गया था,
जहाँ पर केवल गिने-चुने कुछ ही लोगों के VIP लॉकर्स थे।
मैनेजर राघव को सामने वाले एक लॉकर की ओर इशारा करते हुए कहा था,
"लीजिए राघव सर, वह सामने आपका लॉकर है और आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आपका फ़िंगरप्रिंट से ही आपका लॉकर खुलेगा।
अगर आप कहें, तो मैं आपकी मदद कर देता हूँ, वरना आप अपना लॉकर ओपन कर सकते हैं।" तभी राघव थोड़ा सा घबरा गया था, क्योंकि इतना बड़ा, इतना खूबसूरत कमरा देखने के बाद और ऊपर से इतना बड़ा लॉकर देखने के बाद राघव की हालत खराब होने लगी थी।
उसे तो यह भी नहीं पता था कि आखिरकार फ़िंगरप्रिंट लगते कहाँ हैं।
क्या राघव गायत्री रघुवंशी के द्वारा दिए गए इस इम्तिहान में फ़ेल हो जाएगा या कामयाब होगा? जानने के लिए बने रहिये दोस्तों।
उसे तो यह भी नहीं पता था कि आखिरकार फिंगरप्रिंट लगते कहाँ हैं।
तब राघव, थोड़ा शांत होकर, मैनेजर से बोला था,
"मैनेजर साहब, मैं चाहता हूँ कि आप मेरी मदद करें। आप फिंगरप्रिंट प्लेट्स ओपन कीजिए, मैं फिंगरप्रिंट ऐड कर देता हूँ।"
जैसे ही राघव ने यह कहा, मैनेजर ने कुछ पल राघव की ओर देखा था। अगले ही पल मैनेजर ने जाकर फटाफट से लॉकर की फिंगरप्रिंट प्लेट्स ओपन कर दी थीं।
और राघव से कहा था, "आप यहाँ पर आकर अपने फिंगरप्रिंट ऐड करें।"
तब राघव जल्दी ही आगे बढ़ा था। जैसे ही राघव ने, हल्की घबराहट के साथ, अपने फिंगरप्रिंट वहाँ ऐड किये, देखते ही देखते राघव का लॉकर खुल चुका था।
राघव का लॉकर खुलने पर मैनेजर ने राहत की साँस ली थी। जिस तरह से राघव ने उसे लॉकर खोलने के लिए कहा था, मैनेजर को थोड़ा अजीब लगा था कि इतना बड़ा आदमी इस तरह से अपना लॉकर खोलने के लिए क्यों कह रहा था। लेकिन अब, जैसे ही राघव के फिंगरप्रिंट मैच हो गए थे, मैनेजर ने भी राहत की साँस ली थी।
जल्दी ही राघव को उसमें रखी हुई एक नीले रंग की फाइल नज़र आ गई थी। राघव ने फटाफट से वह फाइल उठाई थी। फिर, लॉकर को अच्छी तरह से बंद करने के बाद, वह मैनेजर से कहने लगा था, "मुझे थोड़ा जल्दी है, मुझे जाना होगा।"
अब राघव थोड़ा अटक गया था क्योंकि मैनेजर उसे एक स्पेशल VIP लॉकर रूम में लेकर आया था और वह किन रास्तों से राघव को लेकर आया था, राघव को उसका अंदाज़ा नहीं था।
अब राघव पूरी तरह से कंफ्यूज हो गया था कि आखिरकार वह वापस जाए तो किधर से जाए। वहाँ पर कई सारे रास्ते थे और सभी पर कुछ लिखा हुआ भी था, लेकिन राघव इतना पढ़ा-लिखा नहीं था कि वह उन रास्तों के साइन बोर्ड को देखकर समझ पाता कि कौन सा रास्ता बाहर की ओर जाता है। तभी राघव ने हल्का सा दो कदम आगे जाकर रुकते हुए, मैनेजर की ओर देखकर कहा था,
"मैनेजर साहब, हम यहाँ आपके बैंक अकाउंट में आए हैं, तो क्या आप मुझे बाहर तक छोड़ने नहीं चलेंगे?"
जैसे ही राघव ने यह कहा, बैंक मैनेजर जल्दी से आगे आया था और राघव के साथ आकर खड़ा होकर कहने लगा था, "जी जी, रघुवंशी साहब, क्यों नहीं? मैं तो आ ही रहा था आपको छोड़ने के लिए। प्लीज, प्लीज, मेरे साथ चलिए।" ऐसा कहकर मैनेजर जल्दी ही राघव के आगे-आगे चलने लगा था।
मैनेजर के साथ आने पर राघव ने राहत की साँस ली थी कि चलो उसका यह काम तो हो गया, और किसी को उस पर शक भी नहीं हुआ। और जैसे ही राघव मैनेजर के साथ बाहर आया, राहुल खड़ा हुआ राघव को घूर रहा था।
लेकिन राघव ने जानबूझकर राहुल की ओर नज़र उठाकर देखा तक नहीं था।
तभी वह मैनेजर बड़े ही विनम्र तरीके से राघव को बाहर की ओर ले जाने लगा था।
और वहीं सरिता, जो राहुल की गाड़ी में बैठने जा रही थी, जैसे ही उसने राघव को मैनेजर के साथ बाहर आते हुए देखा, एक बार फिर वह तड़प उठी थी।
वह तुरंत जाकर राघव का गिरेबान पकड़ लिया था और कहने लगी थी,
"फटीचर, बता! तूने क्या चक्कर चलाया है? क्या करा है तूने? क्या मसला है? तूने क्या गोलमाल किया है? बता मुझे! अचानक से तू इतना बड़ा आदमी कैसे बन गया? बता मुझे, क्या बात है? देख, अभी भी वक्त है, बता दे, वरना मैं तुझे पुलिस के हवाले कर दूँगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि तू ज़रूर कुछ ना कोई बड़ा लफड़ा करके यहाँ तक आया है।"
जैसे ही सरिता ने एक बार फिर इस तरह की बातें राघव से करना शुरू की, अब तो मैनेजर पूरी तरह परेशान हो गया था।
और जल्दी से उसने सिक्योरिटी को बुलाकर सरिता को राघव के पास से हटवाया था और सरिता की ओर देखकर कहने लगा था, "मैडम, आप अपनी औकात में रहिए! आप इस तरह से हमारे VIP कस्टमर के साथ बर्ताव नहीं कर सकती हैं! अगर आप अपनी इन हरकतों से बाज नहीं आईं, तो हमें मजबूरन अब आपको पुलिस के हवाले करना होगा।"
वहीं राहुल, सरिता के चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनकर तुरंत बाहर आ गया था।
और सरिता को संभालने की कोशिश करने लगा था।
वहीं राघव केवल खाली नज़रों से सरिता और राहुल की ओर देख रहा था। उसकी आँखों में आज किसी तरह का कोई भाव नहीं था। तभी,
सरिता बैंक मैनेजर की ओर देखकर चिल्लाते हुए कहने लगी थी, "अरे, तुम पागल हो गए हो! पागल! एक गरीब फटीचर इंसान के साथ इस तरह का बर्ताव कर रहे हो! तुम्हें बिल्कुल भी अक्ल नहीं है! अरे, तुम्हें पुलिस के हवाले मुझे नहीं, बल्कि इस धोखेबाज़ को करना चाहिए! अरे, यह फटीचर है, गरीब है! यह इतना गरीब है, इतना गरीब है कि यह तो दो वक्त का खाना तक खुद नहीं खा सकता है, और तुम इसे 50,000 करोड़ का मालिक बता रहे हो! मुझे लगता है, मैनेजर, तुम्हें अपने दिमाग के इलाज की इस वक्त काफी ज़रूरत है!"
अब जैसे ही मैनेजर साहब ने सरिता की बातें सुनीं, वह अपना गला ठीक करने लगे थे।
और सरिता की ओर देखकर कहने लगे थे,
"लगता है वाकई यह मैडम दिमागी रूप से काफी ज़्यादा बीमार है, जो इस तरह की हरकतें कर रही है।"
तभी मैनेजर राहुल की ओर देखकर कहने लगा था, "हेलो मिस्टर, कौन हो तुम? तुम्हारे साथ जो यह औरत आई है, शायद उनके दिमागी हालात ठीक नहीं हैं। आप इन्हें लेकर जाओ और इन्हें कहीं जाकर मेंटल हॉस्पिटल में admit करवाओ। यह इस तरह से हमारे VIP गेस्ट के साथ बदतमीज़ी नहीं कर सकती है। मैं अपनी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त कर सकता हूँ, लेकिन अपने VIP कस्टमर की नहीं। आप सुन रहे हैं मेरी बात...?!!!"
जैसे ही मैनेजर ने अब इस तरह से राहुल को धमकी दी, राहुल अब सरिता के इस तरह के व्यवहार को लेकर काफी हद तक चिढ़ चुका था।
और वह सरिता को धमकाते हुए कहने लगा था, "सरिता, तुम्हारा ड्रामा बहुत हो गया है! तुम इस तरह से मेरी यहाँ सबके सामने बेइज़्ज़ती नहीं करवा सकती हो! तुम्हें खुद को संभालना होगा! जब मैंने तुम्हें कह दिया है कि फटीचर की कहानी मैं पता लगाकर रहूँगा, तो तुम्हें इस तरह का बर्ताव करने की क्या ज़रूरत है? हाँ...?"
तभी सरिता राहुल की ओर चिल्लाकर बोली थी, "तुम भी पागल हो गए हो! तुम सब के सब पागल हो गए हो! एक गरीब फटीचर आदमी को तुम लोगों ने सर पर बैठा रखा है, और तुम लोग मुझे चुप रहने के लिए कह रहे हो! मैंने तुम्हें कहा ना कि यह एक पैसे का आदमी नहीं है! अरे, इसकी कोई औकात नहीं है! इसकी कोई इज़्ज़त नहीं है! यह कुछ भी नहीं है! इसे अनाथ आश्रम से मैंने उठाया था, मैंने इसे दो साल तक अपने टुकड़ों पर पाला है, और तुम मुझे अब चुप रहने के लिए कह रहे हो, वह भी इस फटीचर आदमी के लिए...?"
जैसे ही सरिता ने एक बार फिर अपना रोना शुरू किया, अब तो बैंक मैनेजर का सब्र जवाब दे गया था। और वह तुरंत राहुल के पास आकर कहने लगा था,
"मिस्टर राहुल, अब हद हो गई है! अब हम यह सारी बातें बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं! अब हमें मजबूरन पुलिस को फोन करना ही होगा और मानहानि के जुर्म में हम अब इनके साथ-साथ आपको भी अंदर करवाएँगे।"
जैसे ही मैनेजर ने यह कहा, राहुल सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा था। वह अच्छी तरह से जानता था कि यह कितना बड़ा बैंक था, उसे बैंक मैनेजर की क्या पोज़ीशन थी और क्या उसकी हैसियत थी। तभी राहुल जल्दी से माफ़ी माँगते हुए कहने लगा था, "नहीं नहीं सर, प्लीज आप ऐसा कुछ मत कीजिएगा। मैं इसे समझने की कोशिश कर रहा हूँ। एक्चुअली इसे कुछ गलतफहमी हो गई है। वह आपके इस VIP कस्टमर की शक्ल उनके एक पुराने जानकार से मिलती है, तो शायद यह इसीलिए इस तरह का बर्ताव कर रही है।"
तभी मैनेजर सरिता की ओर देखकर हँसा था और कहने लगा था, "तो तुम्हारे रिश्तेदार की शक्ल मिस्टर अविनाश रघुवंशी के चेहरे से मिलती है? अरे वाह! बड़ा किस्मत वाला है तुम्हारा रिश्तेदार! तो मैं तुम्हें तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, मिस्टर अविनाश रघुवंशी से मिलने के लिए बड़े-बड़े नेता, VIP, बिज़नेसमैन इंतज़ार करते हैं और तुम इन्हें अपने किसी रिश्तेदार से कंपेयर कर रही हो? वाकई तुम्हारी दिमागी हालत ठीक नहीं है! अब जो मैंने तुम्हारे लिए अंदाज़ा लगाया था, वह बिल्कुल ठीक लगाया था।"
जैसे ही मैनेजर ने यह कहा, अब तो सरिता पानी-पानी हो गई थी। क्योंकि उसे काफी ज़्यादा बेइज़्ज़ती सी महसूस होने लगी थी। आज उसे पहली बार लग रहा था कि असल में बेइज़्ज़ती क्या होती है। तभी, इससे पहले कि अब कोई कुछ कहता, अचानक से धूँ-धूँ करते हुए कम से कम लगातार 15 से 20 गाड़ियाँ आकर सीधा बैंक के पास रुक गई थीं।
जितने भी लोग उस वक्त सड़क पर चल रहे थे, जो कोई आसपास था, जितना भी ट्रैफिक जाम था, वह सब का सब जाम हो चुका था। क्योंकि सभी लोगों का ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ इतनी महंगी-महंगी और शानदार गाड़ियों पर ही था।
सभी गाड़ियाँ एकदम काले रंग की थीं और उनमें से बॉडीगार्ड्स बाहर निकले थे जो कि गायत्री रघुवंशी जी के साथ थे। और सभी ने एकदम काले कपड़े पहन रखे थे और बिल्कुल सूट-बूट के साथ एकदम परफेक्ट लग रहे थे। और सबके हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें थीं। उन सभी ने अचानक वहाँ आकर राघव को अपने घेरे में ले लिया था, और राघव को उन्होंने चलने का इशारा किया था।
अब जैसे ही सरिता और राहुल ने यह देखा, उनको तो पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गए थे। और सरिता के तो चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ चुका था। उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था और बार-बार वह अपनी आँखों को मसल-मसल कर अपने सामने का नज़ारा देख रही थी।
जल्दी ही राघव एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ राहुल और सरिता की ओर देखता हुआ, बैंक मैनेजर को बाय करता हुआ, सीधा एक गाड़ी में बैठकर उनकी लोगों की आँखों के सामने से रवाना हो चुका था।
और बैंक मैनेजर ने राघव के जाने के बाद राहत की साँस ली थी। और फिर सरिता की ओर देखकर कहने लगा था, "देखा तुमने? यह गाड़ियाँ तो कुछ भी नहीं हैं! अगर यह इंसान चाहे तो कम से कम हज़ारों-लाखों गाड़ियाँ एक पल में यहाँ खड़ी कर सकता है! इनकी इतनी ज़्यादा पावर है!"
जैसे ही मैनेजर ने राहुल और सरिता से इस तरह से कहा, अब तो राहुल को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। और वहीं सरिता तो एक बार फिर से बेहोश होने लगी थी और राहुल उसे संभालते हुए उसके घर की ओर लेकर जाने लगा था।
बैंक मैनेजर ने राघव के जाने के बाद राहत की साँस ली थी।
और फिर सरिता की ओर देखकर कहने लगा, "देखा तुमने? यह गाड़ियाँ तो कुछ भी नहीं हैं। अगर यह इंसान चाहे तो कम से कम हजारों-लाखों गाड़ियाँ एक पल में यहाँ खड़ी कर सकता है। इनकी इतनी ज़्यादा पॉवर है!"
मैनेजर के राहुल और सरिता से इस तरह कहने पर राहुल को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। सरिता एक बार फिर बेहोश होने लगी थी। राहुल उसे संभालते हुए उसके घर ले गया।
राहुल जल्दी ही सरिता को उसके घर पहुँचा दिया था। सरिता को बेहोशी की हालत में देखकर उसकी माँ पूरी तरह परेशान हो गई थी।
"क्या हुआ है? मेरी बेटी इस तरह बेहोश क्यों हो गई है? क्या उसकी तबीयत ठीक नहीं है? बताओ ना राहुल, क्या हुआ मेरी बेटी को?" वह अपनी बेटी की चिंता में डूबी हुई थी; उसकी बेटी उसका इकलौता सहारा थी। वह उसे बीमार या परेशान देख नहीं सकती थी।
राहुल ने सरिता की माँ की ओर देखते हुए कहा, "इसको कुछ नहीं हुआ है। सिर्फ़ थोड़े-से शॉक की वजह से बेहोश हुई है। अभी थोड़ी देर में होश आ जाएगा। मैं ऑलरेडी डॉक्टर से इसका चेकअप करवा आया हूँ। डॉक्टर ने इसे कुछ मेडिसिन्स दी हैं। अभी थोड़ी देर में होश आ जाएगा।"
उसकी माँ हैरान हो गई। "मेडिसिन दी है? लेकिन क्यों? क्या हुआ है मेरी बेटी को? तुम दोनों तो एक साथ बैंक गए थे, तो फिर अचानक से यह बेहोश कैसे हो सकती है?"
राहुल को समझ नहीं आ रहा था कि वह उसकी माँ को क्या जवाब दे। उसने हल्की सी घबराई हुई आवाज़ में कहा, "जब आपकी बेटी को होश आ जाएगा, आप उसी से पूछ लीजिएगा। अभी फ़िलहाल मेरा सर बहुत ज़्यादा दुख रहा है। मुझे कुछ ज़रूरी कॉल करनी हैं। मैं अभी आता हूँ।" ऐसा कहकर राहुल अपना फ़ोन लेकर सरिता के घर की छत पर चला गया।
उसकी सबसे पहली प्राथमिकता राघव के बारे में सारा सच पता लगाना था। उसने सबसे पहले अपने एक सेक्रेटरी को फ़ोन किया और उसे अविनाश रघुवंशी और राघव की पूरी डिटेल पता करने को कहा; दोनों में क्या समानताएँ हैं, राघव बैंक में क्या करने गया था, और सब लोग उसे रघुवंशी यानी मिस्टर अविनाश रघुवंशी क्यों कह रहे थे।
राहुल को लग रहा था कि राघव ने कोई बड़ा झोल किया है, जिसकी वजह से वह इतने बड़े आदमी का नाम इस्तेमाल कर रहा था। उसने सोच लिया था कि वह राघव का पर्दाफ़ाश करके उसे जेल की सलाखों के पीछे डलवा देगा।
दूसरी ओर, राघव जिस कार में बैठा था, उसमें गायत्री रघुवंशी भी बैठी हुई थीं। राघव गायत्री जी को देखकर हैरान हो गया और जल्दी से वह नीली फ़ाइल उनके हाथ में थमाकर कहने लगा, "मैडम जी, ये फ़ाइल लीजिये। और मुझे माफ़ कर दीजिएगा। मैंने वहाँ पर पूरी कोशिश की, आपका बेटा बनने की, लेकिन मुझसे ज़रूर कुछ ना कुछ गड़बड़ हो गई होगी।"
गायत्री जी हल्की सी मुस्कराहट के साथ बोलीं, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। शायद तुम्हें यह नहीं पता था कि 24 घंटे से, जब से तुम हमारे पास से गए थे, हमारे एक आदमी ने तुम पर नज़र रखी हुई थी। जिस वक़्त बैंक में कुछ लोगों ने तुम्हारे साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश की, ठीक उसी वक़्त हमने खुद बैंक मैनेजर को फ़ोन किया था कि वह बैंक जाए और तुम्हें अटेंड करे।"
यह सुनकर राघव पूरी तरह हैरान हो गया। "क्या वाकई आपने ही मेरी वहाँ पर मदद की थी?"
गायत्री जी ने हाँ में उत्तर दिया, "हाँ, क्योंकि अब तुम्हारी ज़िंदगी हमारी अमानत है। तुम्हारी इस ज़िंदगी पर सिर्फ़ हमारा हक़ होगा, और हम जो चाहेंगे, वह तुम्हें करना होगा। और एक और बात राघव, यह बात तुम्हें हमें लिखित रूप में भी देनी होगी।"
यह सुनकर राघव फिर से हैरान हो गया। "लेकिन कौन सी बात मुझे लिखित रूप में देनी होगी? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ।"
गायत्री जी ने कहा, "हमें तुम्हारी नियत पर किसी तरह का कोई शक नहीं है, लेकिन यह बात हम अच्छी तरह से जानते हैं कि कितनी ग़रीबी में तुमने अपना जीवन जिया है और कितनी बेइज़्ज़ती सहन की है। अब अचानक से तुम्हारी ज़िंदगी पूरी तरह से बदलने वाली है। तुम्हें दुनिया भर का माल, दौलत, नौकर, हर तरह का ऐश्वर्य मिलने वाला है। तो हम नहीं चाहते कि तुम्हारी नियत इन सब चीज़ों को लेकर ख़राब हो और तुम अपनी लिमिट भूल जाओ। इसीलिए तुम्हें हमारे साथ एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करना होगा। तुम कभी भी अविनाश की दौलत का नाज़ायज़ इस्तेमाल नहीं करोगे, ना ही तुम दौलत के चक्कर में अंधे हो जाओगे। तुम्हें हर एक चीज़, हर एक फ़ैसला सोच-समझकर लेना होगा। इतना ही नहीं, तुम हमें बिना बताए कोई काम नहीं करोगे, और सिया से दूरी बनाकर रखोगे; बिल्कुल भी उसके क़रीब जाने की कोशिश नहीं करोगे।"
राघव पूरी तरह हैरान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर गायत्री जी कहना क्या चाह रही हैं, और यह सिया कौन थी और राघव भला उसके क़रीब क्यों जाएगा? वह तो जानता ही नहीं था कि सिया कौन है। राघव ने गायत्री जी की ओर देखते हुए कहा, "मैं नहीं जानता मैडम जी, आप क्या बात कर रही हैं। लेकिन यह सिया कौन है और भला आपकी दौलत पर मैं अपना हक़ क्यों जताऊँगा?"
गायत्री जी हल्की सी मुस्कराहट के साथ बोलीं, "हम अच्छी तरह से जानते हैं राघव, तुम अभी किसी तरह का कोई हक़ नहीं जताओगे। लेकिन इंसानों की फ़ितरत होती है बदल जाना। अब तुम रघुवंशी परिवार में शामिल होने जा रहे हो, और वहाँ पर लोग किस तरह से बदलते हैं, किस तरह का बर्ताव करते हैं, सारी चीज़ तुम्हें ज़रूर पता चल जाएगी। अभी फ़िलहाल हमने सभी लोगों से कह रखा है कि तुम एक इम्पॉर्टेन्ट बिज़नेस डील के लिए फ़ॉरेन गए हुए हो, पूरे एक महीने के लिए। और एक महीने के बाद तुम वहाँ की कंपनी का सारा सेटअप तैयार करने के बाद ही वापस आओगे। तो अभी तक किसी को इस बात का कोई एहसास नहीं है कि अविनाश रघुवंशी अब इस दुनिया में नहीं है। और इस बार जो वापस आएगा, वह अविनाश रघुवंशी नहीं होगा, बल्कि एक ग़रीब, फ़टीचर राघव होगा, जिसका कोई सरनेम भी नहीं है। इस एक महीने में तुम्हें पूरी मेहनत करनी होगी। हम भी तुम्हारे साथ पूरी मेहनत करेंगे और तुम्हें हम अविनाश रघुवंशी की हर चाल में ढालेंगे। अविनाश कब उठता था, कब क्या करता था, कब कहाँ जाता था, कैसे बातें करता था, वह सारी चीज़ हम तुम्हें एक महीने के अंदर-अंदर सिखाएँगे। और इतना ही नहीं, परिवार के हर एक सदस्य की जानकारी हम तुम्हें देंगे। क्योंकि रघुवंशी परिवार केवल एक या दो लोगों का परिवार नहीं है, रघुवंशी परिवार एक बहुत बड़ा परिवार है, जिसमें अविनाश के सभी लोगों के साथ अलग-अलग तरह के रिश्ते थे, वह सारी जानकारी हम तुम्हें देंगे। और एक और बात, कॉन्ट्रैक्ट में हम यह भी मेंशन करेंगे कि अगर तुमने कभी भी हमें धोखा देने की कोशिश की, या हमारी जायदाद हथियाने की कोशिश की, या कोई भी धोखेबाज़ी की, तो हम तुम्हारी जान ले लेंगे, और तुम हमें नहीं रोक पाओगे।"
यह सारी बातें सुनकर राघव के माथे से पसीना निकलने लगा था। हालाँकि राघव तो खुद अपनी जान देना चाहता था, लेकिन इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुनने के बाद उसे बहुत डर लगने लगा था। वह हल्के से कंपकपाते स्वर में गायत्री जी से बोला, "मैं नहीं जानता मैडम जी, आप मुझसे क्या चाहती हैं, लेकिन मुझे अब बहुत डर लग रहा है। और फिर कैसे मैं आपका बेटा बन पाऊँगा? कैसे मैं उसकी तरह से हाई-फ़ाई लोगों से बातचीत कर पाऊँगा? आप समझ नहीं रही हैं, मैं बहुत ग़रीब आदमी हूँ। मुझे कुछ नहीं आता है। इन फ़ैक्ट, मेरे अंदर कॉन्फ़िडेंस भी नहीं है। और मैंने तो केवल सातवीं जमात तक ही पढ़ाई की है।"
गायत्री जी सवालिया नज़रों से राघव की ओर देखकर बोलीं, "सातवीं जमात?"
राघव ने कहा, "जी, मैं केवल सातवीं क्लास तक पढ़ा हूँ। उससे आगे मैंने कोई पढ़ाई भी नहीं की है। और जो थोड़ी-बहुत अंग्रेज़ी मैंने सीखी है, वह भी अपने मज़दूर भाइयों से ही सीखी है, जो हम काम करते वक़्त एक-दूसरे से बोला करते थे।"
गायत्री जी ने कहा, "राघव, हमने तुम्हें कहा है ना कि जब तक हम इस बात की तसल्ली नहीं कर लेंगे कि तुम अविनाश की जगह लेने के लिए पूरी तरह से तैयार हो या नहीं, तब तक हम तुम्हें रघुवंशी परिवार के सामने प्रेज़ेंट नहीं करेंगे। तो तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। अभी फ़िलहाल तुम्हें हमारे साथ यह कॉन्ट्रैक्ट साइन करना होगा। इसके बारे में हम बात कर रहे हैं, क्योंकि हम तुम्हें लेकर किसी तरह का कोई रिस्क नहीं ले सकते हैं। तुम यह मत सोचो कि हम तुम पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। हम तुम पर पूरा भरोसा करते हैं, लेकिन फिर भी हम अपनी तसल्ली के लिए यह कॉन्ट्रैक्ट बनाना चाहते हैं।"
अब गायत्री जी की बात सुनकर राघव ने कहा, "आपने इस ग़रीब फ़टीचर राघव की जान बचाई है। इतना ही नहीं, जिसे आज तक लोगों ने गंदी गालियाँ दी हैं, उसकी बेइज़्ज़ती की है, उसे आज आपने इज़्ज़त दी है! मेरी तो यह ज़िंदगी ऑलरेडी आपकी हो चुकी है। अगर आप यह लिखित में लेना चाहती हैं, तो आप लिख सकती हैं, मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है।"
यह कहकर राघव ने कहा। गायत्री जी की आँखें नम हो गईं, और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। राघव उनके बेटे की बिलकुल फ़ोटोकॉपी था, लेकिन राघव और अविनाश के बर्ताव में जमीन-आसमान का फ़र्क़ था। राघव शांत, सुशील और हल्का-सा डरपोक आदमी था, जबकि अविनाश बिलकुल उसका उल्टा था - अकड़ू, बदतमीज़, ख़डूस और इतना एरोगेन्ट कि अगर कोई उसे गुस्सा दिला दे, तो वह उसकी जान लेने के बाद ही सुकून से रहता था। किसी की जान लेना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल था। सभी लोग उसे बहुत डरते थे।
गायत्री जी के लिए पूरा महीना चुनौती से भरा होने वाला था, क्योंकि उसका बेटा हर चीज़ में माहिर था और उसकी एक ऐसी गंदी आदत थी, जिसके बारे में गायत्री जी को राघव को बताने में शर्म आ रही थी। लेकिन उन्हें राघव को अविनाश की गंदी आदत बताना बहुत ज़रूरी था।
आखिर कौन था अविनाश रघुवंशी, और क्या थी उसकी गंदी आदत? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!
गायत्री जी के लिए पूरा महीना चुनौतीपूर्ण होने वाला था। उनके बेटे अविनाश में हर काम करने की कुशलता थी, पर एक बुरी आदत भी थी जिसके बारे में गायत्री जी को राघव को बताने में शर्म आ रही थी। लेकिन उन्हें राघव को अविनाश की बुरी आदत बताना बेहद ज़रूरी था।
जल्दी ही गायत्री जी राघव को एक खास जगह ले आईं। वहाँ एक प्राइवेट जेट खड़ा था।
प्राइवेट जेट को देखकर राघव डर गया। उसने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार इतने करीब से प्राइवेट जेट देखा था। पहले तो उसने इन्हें केवल आकाश में दूर से उड़ते हुए देखा था। लेकिन अब सामने से देखकर राघव की हालत खराब होने लगी। उसे बहुत डर लगने लगा।
गायत्री जी ने राघव को बताया कि वे इस प्राइवेट जेट से ऐसी जगह जाएँगे जहाँ वे पूरा एक महीना बिताएँगे।
राघव हैरान और परेशान हो गया। उसे डर लग रहा था कि कहीं रास्ते में प्राइवेट जेट में कोई खराबी आ गई और उसकी जान चली गई तो? गायत्री जी से मिलने के बाद से ही उसे अपनी जान की चिंता सताने लगी थी। वरना वह तो हर पल यही सोचता था कि कैसे इस ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी से छुटकारा पाए, इसके लिए वह अपनी जान तक देने को तैयार था। लेकिन अब उसे हर कदम पर जान का खतरा नज़र आने लगा था।
तब गायत्री जी ने राघव से कहा, "वह भी उसके साथ जा रही है, इसलिए उसे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"
राघव ने गायत्री जी की बात मान ली और जल्दी ही प्राइवेट जेट आकाश में उड़ान भरने लगा। प्राइवेट जेट के लैंड होने से पहले राघव ने गायत्री जी का हाथ कसकर पकड़ लिया और कहने लगा,
"प्लीज़ मैडम जी, आप मेरा हाथ मत छोड़ना। मुझे बहुत डर लग रहा है।"
राघव को डरते हुए देखकर दो-तीन बॉडीगार्ड मुस्कुराने लगे। उस जेट में केवल गायत्री जी और उनके कुछ खास लोग ही थे।
जल्दी ही गायत्री जी ने राघव की ओर देखते हुए कहा, "डोंट वरी राघव, तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम तुम्हारे साथ हैं और तुम्हें बिल्कुल भी नहीं डरना है। ओके? बी ब्रेव।"
यह कहकर वह राघव को थोड़ा सा हिम्मत देने लगी, लेकिन राघव फिर भी खुद को संभाल नहीं पाया। उसने जोरों से अपनी आँखें बंद कर लीं।
जल्दी ही प्राइवेट जेट एक सुनसान जगह पर लैंड हो गया जहाँ सिर्फ़ एक बड़ा सा फ़ार्म हाउस था। उसके आसपास दूर-दूर तक ना तो कोई घर था, ना कोई सड़क, ना कोई रेलगाड़ी, कुछ भी नहीं था। ऐसा लग रहा था कि उस पूरे इलाके में सिर्फ़ वही एक जगह थी। लेकिन वह जगह कमाल की खूबसूरत थी।
जैसे ही राघव वहाँ गया और उस जगह को देखा तो वह पूरी तरह से हैरान हो गया और गायत्री जी की ओर देखकर कहने लगा,
"आंटी जी, यह सब क्या है? यहाँ तो कोई घर भी नहीं है, सिर्फ़ यह एक बड़ा सा बंगला है। यहाँ के लोग कैसे रहते होंगे? मेरा मतलब है कि वह खाना बनाने के लिए सब्ज़ियाँ कहाँ से खरीदते होंगे? सब सामान कहाँ से आता होगा? क्या करते होंगे?"
तभी गायत्री जी राघव के मासूम सवाल पर मुस्कुरा उठीं और कहने लगीं,
"राघव, तुम्हें इन सब चीज़ों की टेंशन लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम अविनाश रघुवंशी हो। अविनाश रघुवंशी के सिर्फ़ एक आवाज़ पर हर चीज़ हाज़िर हो जाती है।"
गायत्री जी के यह कहने पर राघव हैरान था। गायत्री जी ने राघव की बेचैनी देखकर कहा,
"तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हें बहुत जल्द सब चीज़ समझ में आ जाएगी। और रही बात इस घर में आने की, तो हम तुम्हें जानबूझकर इसलिए यहाँ ले आए हैं क्योंकि अगले एक महीने तक तुम यहीं रहोगे। यहाँ हम तुम्हें अविनाश रघुवंशी के सारे तौर-तरीके, उसके सारे चाल-चलन, सब कुछ सिखाएँगे। क्योंकि हम नहीं चाहते कि जब तुम हमारे परिवार के सामने जाओ तो उन्हें तुम पर ज़रा सा भी शक हो।"
गायत्री जी के यह कहने पर राघव चुप हो गया, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार उस जगह पर जा रही थीं जहाँ सिर्फ़ एक बड़ा ही खूबसूरत बंगला था और उसके आसपास दूर-दूर तक कुछ भी नहीं था।
जैसे ही राघव उस बंगले के अंदर गया तो वह अपनी पलकें झपकना भूल गया। उसने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार इतनी खूबसूरत जगह देखी थी। इतना ही नहीं, वहाँ कुछ लोग थे। राघव को देखते ही उन्होंने अपना सिर झुका लिया। राघव यह देखकर हैरान हो गया क्योंकि आज तक लोगों ने उसे सिर्फ़ गालियाँ ही दी थीं, इस तरह से किसी ने उसे इज़्ज़त नहीं दी थी। जिस तरह की इज़्ज़त उसे आज मिल रही थी, उससे वह बहुत हैरान था, लेकिन वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा था।
जल्दी ही गायत्री जी ने उसे एक जगह बैठने के लिए कहा और कहने लगीं,
"अभी तुम सफ़र करके आए हो। हम चाहते हैं कि तुम सबसे पहले थोड़ी देर आराम करो, खाना खाओ। तुम्हारा कमरा ऊपर दूसरा वाला है, तो वहाँ जाकर आराम करो। और एक और बात, तुम्हारे कमरे में हमने एक फ़ाइल रखी हुई है। उस फ़ाइल में रघुवंशी परिवार का नाम, उम्र और उसका राघव के साथ किस तरह का रिश्ता था, वह सब लिखा हुआ है। तो तुम्हें पूरे रघुवंशी परिवार की उस फ़ाइल को देखना होगा और एक बार पढ़ना होगा। बाकी चीज़ हम तुम्हें समझा देंगे।"
गायत्री जी के यह कहने पर राघव सर हिलाकर रह गया और जल्दी ही वह थोड़ा-बहुत कुछ खाकर अपने कमरे में चला गया।
जब राघव अपने कमरे में गया तो कमरे की खूबसूरती देखकर वह हैरान रह गया। उस कमरे में हर तरह की सुविधा थी, आधुनिक चीज़ों से भरा पड़ा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि क्या यह वाकई उसका कमरा है। उसने देखा कि उसके कमरे में एक फ़ाइल रखी हुई थी जिस पर हल्के हरे रंग का कवर था। उसकी नज़र उस फ़ाइल पर पड़ी जिसके बारे में गायत्री जी ने उसे बताया था। राघव ने एक गहरी साँस ली और सब चीज़ों को अच्छी तरह से देखने-समझने के बाद सोचने लगा कि शायद ऊपर वाले ने उसे यह ज़िन्दगी एक बार फिर जीने के लिए दी है। उसे अब पूरी तरह से अपने पुराने राघव को मार लेना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि आखिरकार कौन था यह अविनाश रघुवंशी और क्या थी उसकी ज़िन्दगी। फिलहाल तो उसे रघुवंशी परिवार के बारे में जानने के लिए कहा गया था, इसलिए राघव ने जल्दी ही वह फ़ाइल खोल ली।
वहीं दूसरी ओर, करीब डेढ़ घंटे बाद सरिता को होश आया। जैसे ही उसे होश आया, उसने देखा कि उसकी माँ उसके बराबर में बैठी हुई थी। सरिता ने होश में आते ही चिल्लाना शुरू कर दिया,
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है! वह गरीब है, फटीचर है! ऐसा नहीं हो सकता!"
यह कहकर सरिता घबराने लगी। तभी उसकी माँ ने उसे संभालते हुए कहा,
"क्या हुआ बेटी? कौन नहीं हो सकता है? कौन गरीब है? सरिता, तुझे क्या हो गया है? तेरी ऐसी हालत कैसे हो गई? कहीं तुझे बुखार तो नहीं हो गया है? कहीं तेरे ऊपर भूत-प्रेत का कोई साया तो नहीं आ गया है? हे भगवान, मेरी बेटी को क्या हुआ?"
यह कहकर सरिता की माँ रोने लगी। तब तक राहुल भी अपने फ़ोन कॉल खत्म करके नीचे आ गया और दोनों माँ-बेटी को ध्यान से देखने लगा। तभी राहुल को देखकर सरिता उसके पास गई और कहने लगी,
"राहुल, आखिरकार हो क्या रहा है? कुछ पता चला? राहुल, तुम मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हो? मैं तुमसे पूछ रही हूँ, क्या कुछ पता चला? क्या हो रहा है? यह सब झूठ था ना? उसे पुलिस ने पकड़ लिया ना? वह सलाखों के पीछे होगा ना?"
सरिता के यह सब कहने पर राहुल उसकी ओर देखकर कहने लगा,
"नहीं, उसे पुलिस ने नहीं पकड़ा है और वह सलाखों के पीछे नहीं गया है। समझी तुम? और यह सब कुछ तुम्हारी सिर्फ़ बेवकूफी की वजह से हुआ है।"
राहुल की यह बात सुनकर सरिता हैरान थी। वहीं सरिता की माँ जल्दी से आगे आई और अपनी बेटी को देखकर कहने लगी,
"आखिरकार बेटी, बात क्या है? और यह सब क्या हो रहा है? और यह राहुल तुमसे इतने गुस्से में बात क्यों कर रहा है?"
तभी सरिता ने अपनी माँ की ओर देखकर कहा, "माँ, वह आपको पता है, वह राघव... वह राघव... वह बैंक में था।"
"बैंक में क्या कर रहा था? वह भिखारी तो नहीं हो गया? बैंक में पैसे माँगने तो नहीं गया किसी से?"
तभी सरिता अपनी माँ की ओर देखकर कहने लगी,
"माँ, आप मेरी बात नहीं समझ रही हैं। वह उस बैंक का VIP कस्टमर था। VIP कस्टमर समझती हैं आप? एक स्पेशल कस्टमर, जिससे सारी सुविधाएँ दी जाती हैं। इतना ही नहीं, उस बैंक के मैनेजर ने बताया कि वह राघव 50,000 करोड़ का मालिक है।"
सरिता की माँ यह सुनकर पूरी तरह से हैरान हो गई और कहने लगी,
"यह क्या बकवास कर रही है तू? भला उस गरीब फटीचर के पास 50 रुपये जेब में होते नहीं हैं और तू उसे 50,000 करोड़ का मालिक बता रही है? बेटा, कहीं तेरा मानसिक संतुलन तो नहीं बिगड़ गया?"
वह राहुल की ओर देखकर कहने लगी, "क्या राघव अविनाश के तौर-तरीके सीख पाएगा? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।"
राहुल ने अपनी सासू माँ, सरिता की माँ की ओर देखते हुए कहा, "लगता है मेरी बेटी का दिमागी संतुलन कुछ ठीक नहीं है। एक काम करो, उसे डॉक्टर के पास फिर से लेकर जाओ। अच्छे से ट्रीटमेंट करवा कर लाओ।"
तभी राहुल ने अपनी सासू माँ, सरिता की माँ की ओर देखकर कहा, "आपकी बेटी जो कुछ कह रही है, वह ठीक कह रही है। राघव पूरे 50000 करोड़ का मालिक है। और उसका नाम राघव नहीं, बल्कि अविनाश रघुवंशी है। क्योंकि मैंने अपने आदमी को अविनाश रघुवंशी की डिटेल्स पता लगाने के लिए कहा था। और उसने यह बात कंफर्म करके बताया है कि अविनाश रघुवंशी कितना पावरफुल आदमी है। इतना ही नहीं, वह फॉरेन से बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स सीखकर वापस आया था, और उसने अपने बिज़नेस को इतनी ऊंचाइयों पर ले गया कि कोई उसका मुक़ाबला नहीं कर सकता।"
इतना ही नहीं, तमिलनाडु का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट है मिस्टर अविनाश रघुवंशी, और उसके नीचे कम से कम 70000 लोग काम करते हैं। उसने कुछ ही समय में इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लिया कि वह 50000 करोड़ का मालिक बन बैठा है। इतना ही नहीं, सब उसकी केवल एक झलक पाने के लिए तरसते हैं।
जैसे ही राहुल ने यह सब कहा, सरिता और उसकी माँ दोनों ही हैरान थीं। और तभी सरिता की माँ ने फिर बोला, "लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? वह राघव है, राघव! अविनाश रघुवंशी कैसे हो सकता है? अरे, हम उसे पिछले दो-ढाई सालों से अच्छी तरह से जानते हैं। हमने उसे अनाथ आश्रम से खुद उठाया था, और 2 साल से तो हमारे साथ भी रह रहा है। तो भला किसी को पहचानने में इतनी बड़ी भूल हमसे कैसे हो सकती है?"
तभी राहुल ने आगे कहना शुरू किया, "यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन यह बात सच है कि वह अविनाश रघुवंशी ही है। अगर आप लोगों को यकीन नहीं आ रहा है, तो यह देखिए।" ऐसा कहकर राहुल ने जल्दी ही अविनाश रघुवंशी के कुछ फ़ोटो सरिता और उसकी माँ को दिखा दिए। जिसमें अविनाश रघुवंशी अपने प्राइवेट जेट के साथ खड़ा हुआ था, दूसरी में कई गाड़ियों के साथ खड़ा हुआ था, और एक फ़ोटो में कई बॉडीगार्ड उसके पीछे थे।
अब राघव, यानी अविनाश का इतना पावरफुल औरा और पावर पोजीशन देखने के बाद सरिता की माँ और सरिता दोनों ही हक्का-बक्का रह गई थीं। इतना ही नहीं, सरिता की माँ की आँखों के सामने अंधेरा आ गया था। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उसका दामाद, जिसको उसने आज तक इतनी बेइज़्ज़ती की है, वह इस तरह से इतना बड़ा अमीर आदमी निकलेगा। कहीं ना कहीं यह सब बातें मानने का उसका दिल नहीं कर रहा था, लेकिन सारा सच उसकी आँखों के सामने था। ना मानने वाली कोई बात ही नहीं थी।
और यही सोचते-सोचते सरिता की माँ बेहोश हो गई। उसे एहसास भी नहीं हुआ।
वहीं सरिता की माँ के बेहोश होने के बाद राहुल ने अपने माथे पर हाथ मार लिया। और वह मन ही मन में सोचने लगा कि अभी तो जैसे-तैसे बेटी को होश आया था, अब माँ बेहोश हो गई। क्या वह सारा दिन इन्हीं को होश में लाने में लगा देगा?
थोड़ी देर बाद उसकी माँ को भी होश आया। और उसके बाद राहुल, सरिता, और उसकी माँ तीनों एक जगह ऐसे बैठे हुए थे मानो उन्हें किसी ने बहुत ही ज़्यादा पीट दिया हो। उनकी हालत बहुत ही खराब थी। वहीं सरिता की माँ अपने हाथ को अपने गाल पर लगाकर ऐसे बैठी हुई थी मानो उसका सब कुछ बर्बाद हो गया हो। कहीं ना कहीं उसके दिमाग में बार-बार यही सवाल आ रहा था कि वह फटीचर राघव इतना बड़ा अमीर आदमी है, लेकिन उन्होंने उसके साथ कितना बुरा सुलूक किया था! इतना ही नहीं, उन्होंने उस पर अत्याचार किया, उसे मारा-पीटा। अब क्या होगा?
तभी सरिता ने कहा, "मुझे तो अभी भी कुछ ना कुछ गड़बड़ लग रही है। मुझे लगता है कि हमें अनाथ आश्रम में जाकर चेक करना चाहिए कि क्या वाकई वह अविनाश रघुवंशी है या फिर राघव। ज़रूर कुछ ना कुछ गड़बड़ है।"
तब राहुल ने सरिता से कहा, "तुम्हें क्या लगता है? मैंने अनाथ आश्रम में पता नहीं लगवाया है? मैं ऑलरेडी पता करवा चुका हूँ। यह बात सामने आई है कि राघव उनके अनाथ आश्रम में दो-ढाई साल पहले ही गया था।"
गायत्री जी ने पहले ही अनाथ आश्रम में इस तरह के कागज़ तैयार करवा दिए थे जिससे सबको यही पता चले कि राघव केवल दो-ढाई साल पहले ही अनाथ आश्रम में गया था। ताकि अगर कोई अविनाश रघुवंशी के बारे में पता लगाना चाहे तो राघव को वह अविनाश रघुवंशी ही समझे, राघव नहीं।
वह बचपन से वहाँ नहीं था, तो इसका मतलब साफ़ है कि ज़रूर राघव अपने किसी न किसी मिशन के तहत यहाँ इस घर में रह रहा था, और तुम लोगों का काम कर रहा था। और इतना बड़ा आदमी अगर यहाँ रह रहा था, तो ज़रूर उसके पीछे कोई न कोई कारण होगा। कहीं ना कहीं उन लोगों ने इस बात का यकीन कर लिया था कि राघव ही अविनाश रघुवंशी है।
इसीलिए अब उन तीनों का मुँह पूरी तरह से लटक चुका था। वहीं राहुल सरिता से कह रहा था, "अब जो कुछ भी है, अब तो तुमने उसे तलाक़ दे दिया है। अब तुम्हें उसके बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए, और हमारी शादी के बारे में सोचना चाहिए। हमारी सगाई हो चुकी है और हम इसी हफ़्ते शादी करेंगे।" जैसे ही राहुल ने यह कहा, सरिता उसे घूर कर देखने लगी, और जल्दी ही वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई। वहीं उसकी माँ, सरिता के इस तरह से जाने पर हैरान थी, लेकिन वह समझ चुकी थी कि उसकी बेटी इस तरह से वहाँ से क्यों गई है।
वहीं राहुल, सरिता को इस तरह से जाता हुआ देखकर हैरान था और गुस्से से सरिता की माँ से कहने लगा, "सरिता को क्या हो गया है? अगर वह राघव अमीर है, तो इससे क्या फर्क पड़ता है? क्या मैं गरीब हूँ? फटीचर हूँ? मेरे पास पैसों की कमी है? अरे, मैं भी करोड़पति हूँ, करोड़पति! समझे तुम दोनों?" ऐसा कहकर राहुल वहाँ से चला गया।
अब सरिता अपने कमरे में जाकर खुद को कोसने लगी और बुरी तरह से चीखने-चिल्लाने लगी। क्योंकि उसने अपने हाथ से आए हुए 50000 करोड़ रुपये छोड़ दिए थे, खुद अपने हाथों से उन्हें जाने दिया था, तो उसे बहुत ही ज़्यादा अफ़सोस हो रहा था।
जल्दी ही दूसरी ओर, राघव ने जो फ़ाइल गायत्री जी ने उसे दी थी, वह अच्छी तरह से पढ़ ली थी। और थोड़ी देर बाद उसकी आँखें भारी होने लगी थीं। उसे सही से कुछ समझ में नहीं आया था कि इस फ़ाइल में किसका क्या रिश्ता था। उसने तो बस फ़ौरन हल्की-फुल्की फ़ाइल पढ़ी थी और एक गहरी नींद में सो गया था। क्योंकि उसने ऑलरेडी भरपेट खाना खाया था, भरपेट खाना खाने के बाद उसे कोई होश नहीं था और वह सो चुका था।
वहीं गायत्री जी राघव के कमरे में जाकर राघव को बड़े ही ध्यान से देख रही थीं। राघव को कुछ पल देखने के बाद वह बाहर आ गईं। तभी उसका एक भरोसेमंद आदमी, जतिन, उससे कहने लगा, "मैडम, अगर आप कहें तो क्या मैं राघव जी को उठा दूँ? आज से उनकी ट्रेनिंग भी शुरू करनी है।"
तभी गायत्री जी ने जतिन की ओर देखते हुए कहा, "नहीं, जतिन। हम अभी उसे नहीं उठा सकते हैं। हमने ही उसे आराम करने के लिए कहा था। कल से हम उसकी ट्रेनिंग शुरू करेंगे। और एक और बात, जतिन, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि अविनाश क्या था और क्या नहीं था। लेकिन राघव को बिल्कुल अविनाश बनाने में काफ़ी जतन करना पड़ सकता है। इसके लिए हमें तुम्हारी मदद की बहुत ज़रूरत पड़ेगी। तुम्हारे पास वह सारी सीडी है ना जिसमें अविनाश खाना खाते हुए, बातचीत करते हुए हैं?"
तभी जतिन ने गायत्री जी की ओर देखते हुए कहा, "जी मैडम, मेरे पास सारी चीज़ें अवेलेबल हैं, और आपके कहे मुताबिक मैंने सभी वीडियो को एक डीवीडी फॉर्म में कन्वर्ट कर लिया है। और कल से ही हम राघव को वह सब दिखाना शुरू कर देंगे।"
"और मैडम, मेरा एक सवाल था। राघव जी की शक्ल तो अविनाश सर से मिलती है, लेकिन राघव पढ़ा-लिखा भी नहीं है और अविनाश साहब छह भाषाएँ जानते थे। उन्हें विदेशी भाषाओं का भी अच्छा-ख़ासा ज्ञान था। तो आपको लगता है कि राघव अविनाश सर के जितना अंग्रेज़ी बोल पाएगा या फ़्रेंच बोल पाएगा? इतना ही नहीं, अविनाश सर को तो चाइनीज़ लैंग्वेज भी आती थी! उन्हें छह भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।"
तभी गायत्री रघुवंशी कुछ देर चुप रहीं और बोलीं, "हम अच्छी तरह से जानते हैं कि तुम हमारे कितने बड़े विश्वासपात्र हो, लेकिन अभी हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि इस वक़्त हालात कितने गंभीर बने हुए हैं। और अगर हमने राघव को सबके सामने अविनाश बनाकर प्रेजेंट नहीं किया, तो कितने लोगों, हज़ारों लोगों की ज़िन्दगी बर्बाद हो सकती है। इतना ही नहीं, अविनाश के दादाजी, अगर उन्हें यह खबर मिली कि अविनाश इस दुनिया में नहीं है, तो वह तो मर ही जाएँगे। तुम जानते हो ना, हम तुम्हें क्या कह रहे हैं?"
तब जतिन चुप हो गया। "ठीक है मैडम जी, जैसे आप कहेंगी, हम वैसे ही करेंगे। और मुझे पूरी उम्मीद है कि राघव सर बहुत जल्द अविनाश सर जैसे बनेंगे।"
तभी गायत्री जी जतिन से कुछ देर बात करने के बाद अपने कमरे में चली गईं। वहाँ पर एक बड़ी सी फ़ोटो लगी हुई थी जिसमें अविनाश रघुवंशी था, जो एकदम स्टाइलिश और पावर औरा के साथ वहाँ मौजूद था। तस्वीर से ही अविनाश रघुवंशी की पर्सनैलिटी निखर कर सामने आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि तस्वीर की जगह कोई जीता-जागता इंसान खड़ा हुआ हो।
तभी गायत्री जी कुछ देर अपने बेटे अविनाश को देखती रहीं और फिर उसकी फ़ोटो को छूकर कहने लगीं, "हमें नहीं पता बेटा कि हम तुम्हारे तौर-तरीक़े उस बच्चे को सिखा पाएँगे या नहीं, लेकिन हम फिर भी दिल से ख्वाहिश करते हैं कि काश हमारा बेटा ऐसा ही बने। तुमने हमें बहुत दुख दिया है अविनाश, और हम यह बात कभी नहीं चाहेंगे कि राघव हमें तुम्हारी तरह दुख दे।"
जैसे ही गायत्री जी ने सारी बातें कहीं, उनकी आँखों से कुछ आँसू निकल कर उनके गालों पर आ गए थे। उन्हें अपने आप को मजबूत करना ही होगा। और वैसे भी, कल से वह राघव को अविनाश की एक-एक बात बताने वाली थीं, क्या अविनाश क्या है और क्या नहीं है। तो इसीलिए गायत्री जी खुद को अब मजबूत करने लगी थीं। क्योंकि अविनाश की कहानी बताना, अविनाश को प्रेजेंट करना कोई मामूली काम नहीं था।
वहीं दूसरी ओर, सरिता की माँ उसके कमरे में उसके साथ मौजूद थी, और कहने लगी, "बेटा, इस तरह का बर्ताव क्यों कर रही हो? देखो, हमें खुद नहीं पता कि वह फटीचर अचानक से इतना अमीर आदमी कैसे बन गया, लेकिन तुम अच्छी तरह से जानती हो कि उसे, फटीचर को, हमने, तुमने खुद ही अपनी ज़िन्दगी से बाहर निकालकर फेंका है। और अब तुम्हें उसे भूलना होगा। तुम्हें अब राहुल से शादी कर लेनी चाहिए। क्योंकि राहुल उस फटीचर के जितना अमीर आदमी तो ना सही, लेकिन फिर भी वह करोड़पति तो है ना। अब तुम सोच लो, अगर तुम्हारी यही हरकतें रहीं, तो शायद राहुल भी तुम्हारे हाथ से निकल जाए।"
तभी सरिता अपनी माँ की ओर देखकर कहने लगी, "यह सब कुछ आपकी वजह से हुआ है, माँ। अगर आप उसे इतनी जल्दी से तलाक़ के कागज़ नहीं देतीं, तो मैं उसे तलाक़ नहीं देती। अरे, कम से कम उसे बिना तलाक़ के कागज़ दिए, आप उसे यहीं रहने दे सकती थीं। और कम से कम वह घर का काम तो कर ही रहा था। क्या ज़रूरत थी आपको इस तरह से उसे भगाने की?"
तभी सरिता की माँ आँखों में आँसू लाकर बोली, "हाँ मेरी बेटी, अब तो तुम मुझे ही कहोगी ना? आखिरकार तेरी माँ हूँ ना। तेरी भलाई के बारे में सोचा ना। मुझे थोड़ी ना पता था कि वह फटीचर इस तरह रातों-रात करोड़पति हो जाएगा। वह भी हमारे घर से चले जाने के तुरंत बाद।"
अब दोनों माँ-बेटी कुछ देर अपना सर पकड़े बैठी रहीं। दोनों एक-दूसरे को दोष दे रही थीं।
लेकिन अगले ही पल सरिता कहने लगी, "कुछ ना कुछ करके एक बार फिर राघव को अपनी ज़िन्दगी में लेकर आना होगा। आप समझ रही हैं? पूरे 50000 करोड़ का मालिक है वह, और यह राहुल तो केवल एक-दो करोड़ का मालिक होगा। इससे ज़्यादा इसके पास कोई प्रॉपर्टी नहीं होगी। लेकिन राघव... आप सोच भी नहीं सकती 50000 करोड़ पर कितनी ज़ीरो होती हैं। उतनी तो हमें आज तक गिनती तक नहीं आती है। मुझे अब कुछ भी करके राघव को अपनी ज़िन्दगी में वापस लाना होगा। I need Raghav back! मैं राहुल से शादी नहीं करूँगी।"
आप समझ रही हैं, पूरे पाँच हज़ार करोड़ का मालिक है वह, और यह राहुल तो केवल एक-दो करोड़ का मालिक होगा। इससे ज़्यादा इसके पास कोई प्रॉपर्टी नहीं होगी।
लेकिन, लेकिन राघव, आप सोच भी नहीं सकतीं, पाँच हज़ार करोड़ पर कितनी ज़ीरो होती हैं! उतनी तो हमें आज तक गिनती तक नहीं आती है।
मुझे अब कुछ भी करके राघव को अपनी ज़िन्दगी में वापस लाना होगा।
"मुझे राघव वापस चाहिए!!"
"मैं राहुल से शादी नहीं करूँगी।"
"उसे आप साफ़-साफ़ मना कर दो," सरिता की माँ ने उसकी ओर देखते हुए कहा था।
"लेकिन बेटी, यह क्या कह रही है? राघव तेरे साथ वापस क्यों आएगा? तू अच्छी तरह से जानती है कि उससे मिल तक नहीं पाएगी, तो उसे अपनी ज़िन्दगी में वापस लेकर कैसे आएगी?"
तभी सरिता ने अपनी माँ की ओर देखते हुए कहा था, "माँ, मुझे ध्यान से देखिए। मेरे खूबसूरत जिस्म को देखिए। मेरे इस जिस्म को देखकर अच्छे-अच्छे फिसल जाते हैं। तो राघव क्या चीज़ है? और आप तो अच्छी तरह जानती हैं वो मुझे कितना प्यार करता है। मेरे प्यार की कसमें खाता है। तो अगर मैं उसके सामने हाथ जोड़ूँगी, थोड़ा-सा गिड़गिड़ाऊँगी, तो वह आसानी से मेरी ज़िन्दगी में वापस आ जाएगा। और साथ ही साथ हमारी ज़िन्दगी में आएंगे पूरे पाँच हज़ार करोड़!" सरिता की आँखों में चमक आ गई थी।
वहीं सरिता की माँ सरिता की ओर देखकर कहने लगी थी, "लेकिन तू उसे ढूँढेगी कहाँ?" तब सरिता ने अपनी माँ से कहा, "जब वो इंसान इतना करोड़पति है, तो उसका पता आराम से मिल ही जाएगा। नेट पर सारी चीज़ें अवेलेबल होंगी। मैं अभी पूरी डिटेल निकालती हूँ उसकी, कि वो है कहाँ।"
वहीं अगली सुबह, राघव ठीक पाँच बजे उठ चुका था। पाँच बजे उठने के बाद जैसे ही वह उठा, वह तुरंत नीचे आया था। उसने देखा कि चारों ओर बहुत ही अजीब सी शांति थी। लेकिन बॉडीगार्ड बंदूक लिए खड़े हुए थे। कहीं ना कहीं राघव यह देखकर हैरान हो गया कि इतनी रात को भी ये गार्ड किस तरह से खड़े हैं, और भला इस सुनसान जगह पर कैसा जान का खतरा हो सकता है। लेकिन फ़िलहाल राघव को सुबह पाँच बजे उठने की आदत थी। उसने फ़टाफ़ट से उठकर नहा-धो लिया था और फिर वह हर रोज़ के मुताबिक अपनी पूजा करने लगा था। पूजा करने के बाद उसने जल्दी ही एक जगह बैठकर भजन गाना शुरू कर दिया था।
वहीं गायत्री जी के कानों में जैसे ही किसी के भजन गाने की आवाज़ गई, तो वो तुरंत उठ बैठी थीं और जैसे ही उन्होंने राघव को इस तरह से भजन गाते हुए देखा, तो हैरान होकर कहने लगी थीं, "बेटा, तुम इतनी सुरीली आवाज़ में भजन गा रहे हो! यह बात तो हमारी, तुम्हारी, किसी ने भी हमें नहीं बताई। तुम्हारी सारी इनफ़ॉर्मेशन हमारे पास थी, लेकिन यह तो हमें पता ही नहीं था।" तब राघव मुस्कुराने लगा था और गायत्री जी को आरती देने लगा था और कहने लगा था, "मैडम जी, जब भी मेरा मन थोड़ा-सा शांत और ठीक होता है, तब मेरा दिल सिर्फ़ और सिर्फ़ भजन गाने का ही करता है। इसीलिए मैं बैठ जाता हूँ।" तब गायत्री जी मुस्कुरा उठी थीं और राघव के गाल पर हाथ रखकर कहने लगी थीं, "वाकई बच्चे, बहुत अच्छी आदत है। बहुत दिनों के बाद हमारे कानों को भी सुकून पहुँचा है। वेल, आज से तुम्हारी ज़िन्दगी की एक नई शुरुआत होनी है, और अच्छा हुआ कि तुमने अपने दिन की शुरुआत इतनी अच्छी तरीके से की। हमें पूरी उम्मीद है कि अब सब कुछ अच्छा ही अच्छा होगा।"
तब राघव गायत्री जी की बात सुनकर मुस्कुरा दिया था और कहने लगा था, "मैं अपनी पूरी की पूरी कोशिश करूँगा और पूरी मेहनत करूँगा कि मैं आपकी सारी उम्मीदों पर खरा उतरूँ।"
राघव की बात सुनने के बाद गायत्री जी मुस्कुरा दीं और कहने लगी थीं, "हमें पूरी उम्मीद है कि तुम हर काम बहुत ईमानदारी से करोगे। अच्छा, हमने तुम्हें कल रात एक फ़ाइल पढ़ने के लिए दी थी, क्या तुम्हें उसमें से कुछ समझ में आया?"
तभी राघव अपना सर खुजाने लगा था और कहने लगा था, "मैडम जी, मैंने वह फ़ाइल खोली तो ज़रूर थी, लेकिन मैं कुछ खास समझ नहीं पाया कि कौन किसका क्या रिश्ता है, क्योंकि मैं तो शुरू से ही अनाथ रहा हूँ। मुझे रिश्ते-नातों के बारे में क्या पता है?"
जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री जी के चेहरे पर कुछ भाव आए थे और उन्होंने बोला, "ठीक है बेटा, परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। ऑलरेडी हमने सारी चीज़ें, सब रिश्ते जानने के लिए प्रोजेक्टर रूम तैयार किया है। तो तुम फ़टाफ़ट से नाश्ता कर लो और उसके बाद हमारे साथ चलो।"
जैसे ही उन्होंने यह कहा, राघव जल्दी से नाश्ता करने लगा था। नाश्ते में आज उसने अलग-अलग तरह के फ़र्स्ट क्लास चीज़ें देखीं, जिससे वह काफी हद तक हैरत में था, क्योंकि राघव को सुबह का नाश्ता क्या होता है, इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। क्योंकि जब अगली सुबह वह उठता था, मज़दूरी पर जाना होता था, और उसकी बीवी तो उसे एक गिलास पानी तक नहीं देती थी, और खुद उसके पास सुबह के समय इतना समय नहीं होता था कि वह अपने लिए कुछ बना सके। इसीलिए राघव खाली पेट ही सुबह-सुबह मज़दूरी पर चला जाया करता था। लेकिन आज अपने सामने इतना सारा शानदार नाश्ता देखने के बाद कहीं ना कहीं उसकी आँखें भर आई थीं और नम आँखों के साथ उसने जल्दी ही खाना शुरू कर दिया था।
कहीं ना कहीं गायत्री जी ने राघव की नम आँखें देख ली थीं, लेकिन वह कुछ सोचकर चुप थीं। उस टाइम उसने राघव को कुछ नहीं कहा था।
जल्दी ही नाश्ता करने के बाद राघव ने गायत्री जी की ओर देखते हुए कहा, "अब आप मुझे हुक्म कीजिए मैडम जी, मुझे क्या करना होगा?"
तभी गायत्री जी हल्का राघव के पास आई थीं और उसके गालों पर हाथ रखकर कहने लगी थीं, "पहली बात तो यह बेटा, मैं तुम्हारी कोई मैडम जी नहीं हूँ। अब तो आज से तुम मेरे बेटे अविनाश हो, तो तुम मुझे अब माँ कहकर पुकारोगे। अविनाश भी मुझे माँ ही कहकर पुकारा करता था, तो तुम अब मुझे गायत्री माँ कहकर बुलाओगे।"
अब जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव थोड़ा-सा हैरान हो गया था, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी में तो माँ कोई थी ही नहीं। माँ क्या होती है? माँ का प्यार क्या होता है? उसके बारे में उसे कुछ खास नहीं पता था। तभी उसने गायत्री जी के कहने पर 'माँ' कहने की कोशिश की थी, लेकिन हर बार वह अटक रहा था। उसके मुँह से 'माँ' ही नहीं निकल रहा था। अब तो गायत्री जी ने राघव को कहा था, "बेटा, हम जानते हैं कि किसी को इस तरह से अपनी माँ बना लेना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन तुम्हें यह करना होगा। अगर तुम आज मुझे माँ नहीं बोल पा रहे हो, तो कल बोलना होगा, लेकिन इसकी तुम्हें प्रैक्टिस ज़रूर करनी होगी।"
अब जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव ने अपना सर हाँ में हिला दिया था और गायत्री जी जल्दी ही राघव को एक प्रोजेक्टर रूम की ओर ले गई थीं और बड़ी सी स्क्रीन पर उन्होंने सभी के सभी रघुवंशी परिवार की फ़ोटोज़ चला रखी थीं। उन्होंने राघव को एक जगह बैठने के लिए कह दिया था और तभी उन्होंने सबसे पहले शुरुआत घर के मुखिया, यानी के दीनदयाल रघुवंशी से की थी। दीनदयाल रघुवंशी, घर के प्रमुख यानी के अविनाश रघुवंशी के दादा जी और गायत्री जी के ससुर हैं।
तब गायत्री जी ने दीनदयाल जी के बारे में बताते हुए राघव से कहा था, "यह तुम्हारे दादाजी हैं, और अविनाश और उसके दादा की बहुत ही ज़्यादा पटती थी। दोनों एक तरह से एक-दूसरे के दोस्त थे, और अविनाश अपने दादा को दादा नहीं, बल्कि 'बडी', यानी के यार-दोस्त कहकर बुलाता था। तुम समझ रहे हो ना मेरी बात?" तब राघव मुस्कुरा दिया था और कहने लगा था, "ठीक है, ठीक है आंटी जी, ठीक है मैडम जी।" जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री जी ने हल्का-सा उसे गुस्से से देखा, यानी कि "मुझे मैडम नहीं, माँ बोलो," लेकिन फ़िलहाल राघव नज़र चुरा गया था।
तभी उसके बाद एक और फ़ोटोज़ सामने आई थी। वह फ़ोटो किसी और की नहीं, बल्कि रमन रघुवंशी की थी। रमन रघुवंशी, यानी कि अविनाश के पिता और गायत्री जी के पति। बड़े ही पॉवरफ़ुल इफ़ेक्ट और ओरा के साथ उनकी फ़ोटो वहाँ मौजूद थी। तभी उसने आगे कहना शुरू कर दिया था, "यह रमन है, मेरे हस्बैंड, और आज के बाद तुम इन्हें 'डैड' कहोगे, क्योंकि अविनाश भी इन्हें 'डैड' बोला करता था। और एक और बात, इन्हें सबसे ज़्यादा अपने खून-खानदान की सबसे ज़्यादा फ़िक्र रहती है, और थोड़ी-थोड़ी बातों पर यह गुस्सा हो जाते हैं। अविनाश और रमन कुछ खास ज़्यादा बात नहीं करते हैं, लेकिन उससे प्यार बहुत करते हैं। एक और बात, हमेशा गुस्सा उनके नाक पर रखा रहता है।"
जैसे ही गायत्री जी ने थोड़े से शब्दों में रमन का इंट्रोडक्शन दिया, राघव मुस्कुरा दिया था। और उसके बाद बारी आई थी एक और रघुवंशी मेंबर की। उनका नाम कुछ और नहीं, बल्कि अधर्व रघुवंशी था। अधर्व, रमन के छोटे भाई, यानी के गायत्री जी के देवर थे। गायत्री जी ने कहना शुरू कर दिया था, "यह अधर्व है, यह अविनाश के चाचा हैं, और उनकी पत्नी अद्विका है, और यह उनकी बेटी धरा है। इनकी एक ही बेटी है। अविनाश से यह भी बहुत प्यार करते हैं, लेकिन उनके मन में हमेशा से ही खोट रहता है, क्योंकि इनके कोई बेटा नहीं है। इस वजह से यह हमेशा ही अपनी बेटी को इस बात के लिए टॉर्चर करते रहते हैं और साथ ही साथ अपनी बीवी को इस बात के लिए बहुत ही ज़्यादा सुनाया करते हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं उनका मानना था कि अगर इनको भी कोई एक बेटा होता, तो आज वह भी अविनाश की तरह पूरे के पूरे रघुवंशी एम्पायर का मालिक होता। लेकिन बदकिस्मती से उनकी एक बेटी है, जिसकी वजह से यह हमेशा से ही हीन भावना का शिकार रहते हैं और सोचते हैं कि अविनाश के घर में इनकी कोई वैल्यू नहीं है। और अविनाश भी बहुत ही कम बात किया करता था। और वहीं धरा इस वक़्त फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट है, और यह उसके कॉलेज की डिटेल्स हैं। यह इस कॉलेज में पढ़ती है, जिसे रघुवंशी परिवार ही चलाता है। और एक और बात, अविनाश की और धरा की बहुत ही ज़्यादा बनती है। अविनाश अपनी बहन धरा से बहुत प्यार करता है और उसकी छोटी-छोटी हर ख्वाहिशों को पूरा करता है। धरा को जो कोई भी प्रॉब्लम होती है या कुछ भी उसे चाहिए होता है, वह सिर्फ़ अविनाश को ही कहती है। लेकिन धरा के पिता अविनाश को कम पसंद करते हैं और अविनाश भी उनसे कुछ खास बात करना पसंद नहीं करता है।"
अब जैसे ही गायत्री जी ने अपने देवर का इंट्रोडक्शन दिया और साथ ही साथ यह बताया कि अविनाश के साथ उसका रिश्ता कैसा था, राघव केवल देखता रहा था और गायत्री जी के समझाने पर उसे सबके साथ रिश्ता, सबके नाम अच्छी तरह से समझ में आ रहा था। धीरे-धीरे उनका नेचर भी पता चल रहा था। तभी उसके बाद गायत्री जी ने एक और फ़ोटो स्लाइड की थी, और वह फ़ोटो किसी और की नहीं, बल्कि सिया की थी।
राघव ने जैसे ही सिया जैसी खूबसूरत लड़की को देखा, देखता ही रह गया था। लम्बे-लम्बे बाल, एकदम दूध-सा गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, बड़े खूबसूरत, नरम, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ और सिया, एक बड़ी खूबसूरत लड़की थी।
तभी गायत्री जी ने सिया की फ़ोटो राघव को दिखाते हुए कहा था...
राघव का रघुवंशी परिवार से मिलने के बाद कैसा बर्ताव होगा, जानने के लिए बने रहिये दोस्तों!
राघव ने जैसे ही सिया जैसी खूबसूरत लड़की को देखा, देखता ही रह गया।
लम्बे-लम्बे बाल, एकदम दूध सा गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, बड़े खूबसूरत, नरम गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ—सिया बड़ी खूबसूरत लड़की थी।
तभी गायत्री जी ने सिया का फ़ोटो राघव को दिखाते हुए कहा,
"यह सिया है, अविनाश की मंगेतर। हमने इसे अविनाश के लिए पसंद किया है।"
"लेकिन अविनाश ने कभी इससे सीधे मुँह बात तक नहीं की।"
क्योंकि वह शादी नहीं करना चाहता था और इसीलिए सिया को पसंद नहीं करता था। और अपने दादा की वजह से—क्योंकि दादाजी का ही घर में ऑर्डर चलता था—उसने यह मंगनी तो कर ली थी, लेकिन शादी के लिए वह टालता रहा था।
और यही सिया बहुत अच्छी, उलझी हुई लड़की थी; बहुत ही ज़्यादा किन्डहार्टेड थी और हमेशा दूसरों की मदद करती थी। साथ ही, वह अविनाश से बहुत प्यार करती थी; उसकी खुशी के लिए छोटी-छोटी चीज़ें करती रहती थी। कभी उसके लिए बर्थडे प्लान करती, कभी कुछ और। लेकिन अविनाश हर बार चिढ़ जाता था; हर बार सबके सामने सिया को पूरी तरह से डाँट दिया करता था।
उसने कभी सीधे मुँह, या मुस्कुराकर, कभी भी सिया से बात तक नहीं की।
"और बेटा, इसके पीछे एक और कारण है। वह हम तुम्हें वक़्त आने पर ज़रूर बताएँगे।"
जैसे ही राघव ने यह सुना, वह काफी हद तक हैरत में था। और मन ही मन में सोचने लगा, "कितना बड़ा उल्लू है यह अविनाश! इतनी खूबसूरत लड़की जो इस तरह प्यार करती है, उसके आगे-पीछे घूमती है, उसकी छोटी-छोटी चीज़ों का ख्याल रखती है, उसी से वह बात तक नहीं करता था! हद है यार!"
जल्दी ही गायत्री जी ने रघुवंशी परिवार के आखिरी फ़ोटो की स्लाइड शो की। वह फ़ोटो किसी और की नहीं, बल्कि अविनाश रघुवंशी की थी। राघव ने जैसे ही अविनाश का पॉवरफुल ओरा देखा और अपनी जैसी शक्ल देखी, वह पूरी तरह से चोंक गया।
अभी तक उसने अविनाश की कोई फ़ोटो नहीं देखी थी; सिर्फ़ गायत्री जी के मुँह से ही सुना था। लेकिन अब अविनाश की फ़ोटो देखने के बाद वह अपनी सीट से खड़ा हो चुका था और बड़े ही ध्यान से अविनाश को देखने लगा। धीरे-धीरे कदम चलते हुए, अविनाश के गालों को छूकर देखने लगा।
राघव को यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई बिल्कुल उसके जैसा, सेम टू सेम, कैसे दिख सकता है। लेकिन अविनाश तो बड़े ही पॉवरफुल इम्पैक्ट और ओरा के साथ वहाँ मौजूद था।
तभी गायत्री जी ने आगे कहना शुरू कर दिया, "बेटा, हम तुम्हें अब अविनाश के बारे में बताएँगे।"
"जैसे कि अविनाश के बारे में, उसकी मौत कैसे हुई थी, तुम जान ही चुके हो। लेकिन अविनाश की आदतों के बारे में, साथ ही साथ वह क्या करता था, ज़्यादा से ज़्यादा टाइम वह कहाँ बिताया करता था—यह सारी बातें हमें तुम्हें बताना बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी है, बेटा।"
"मेरा बेटा अविनाश इतना ज़्यादा टैलेंटेड था कि उसे छह भाषाओं का ज्ञान था।"
"ज़्यादातर विदेश में ही रहा था। वहीं से उसने बिज़नेस मैनेजमेंट सीखकर रघुवंशी परिवार के फ़ैमिली बिज़नेस को ज्वाइन किया था और उसे ऊँचाइयों तक ले गया, जिस तक ले जाने में लोग सपना देखा करते थे।"
"कहीं ना कहीं उसने परिवार का मान-सम्मान बढ़ाया था।"
"लेकिन मेरे बेटे की एक सबसे बुरी और गंदी आदत यह थी कि हर रात उसे अपने बेड पर एक नई लड़की चाहिए होती थी।"
"क्या?!"
जैसे ही राघव ने यह सुना, वह पूरी तरह से हैरान हो गया और सवालिया नज़रों से गायत्री जी की ओर देखने लगा। तब गायत्री जी भी अपनी नज़र चुरा गईं; हल्का सा सर झुकाकर कहने लगीं,
"बेटा, मैं जो कुछ कह रही हूँ, ठीक कह रही हूँ। तुम जानते हो मैं तुम्हें अविनाश की सारी बातें क्यों बता रही हूँ? क्योंकि ताकि तुम्हें अविनाश के किरदार को समझने में आसानी हो।"
"मैं जानती हूँ कि वह सबसे बड़ा गलत काम करता था, लेकिन खूबसूरत लड़कियाँ उसकी सबसे ज़्यादा कमज़ोरी थीं।"
"एक यही कारण था कि वह कभी भी शादी जैसे पवित्र बंधन में नहीं बंधना चाहता था। क्योंकि उसे इसी तरह से लड़कियों के साथ रहना पसंद था।"
"और एक और बात, बेटा, अविनाश को अगर एक बार गुस्सा आ जाए, तो वह सामने वाले इंसान की जान लेकर ही रहता था।"
"यह उसकी सबसे बड़ी कमी थी। इतना ही नहीं, अगर किसी नौकर को उसे चाय, कॉफ़ी या कुछ भी देने में देर हो जाती थी, तो वह उस नौकर के साथ बहुत ही बुरा बर्ताव किया करता था।"
"इसीलिए सभी लोग उससे डरते थे। इतना ही नहीं, घर के नौकर के साथ-साथ बाहर के, उसके ऑफ़िस के हर कर्मी उससे डरा करते थे।"
"उसमें कभी भी सीधे मुँह किसी से बात नहीं की, क्योंकि जितना अमीर अविनाश हो गया था, उतना ही घमंड उसके अंदर बढ़ता चला गया था।"
"इतना ही नहीं, अपने दादा और दादी के अलावा, उसने कभी किसी और फ़ैमिली मेंबर को ज़्यादा इम्पॉर्टेंस नहीं दी थी। और उसमें मैं भी इन्क्लूड हूँ।"
"कभी उसने मुझे भी दो प्यार के शब्द नहीं कहे। हम सब उसे प्यार करने के बारे में सोचा ही करते थे, लेकिन वह कभी भी दो मिनट हमारे पास आकर नहीं बैठा था।"
"बस अपने दादा की बात मानते हुए उसने सिया से सगाई की थी, लेकिन उसके सिया के साथ किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं बनाया था और हमेशा उसे नीचा ही दिखाया था।"
"वह इतना ही नहीं, बेटा, अविनाश इतना टैलेंटेड भी था कि वह प्राइवेट जेट—यानी कि जिस जेट में हम आए थे—उसे भी अकेला ही उड़ा लिया करता था। और मार्शल आर्ट में वह मास्टर था। उसे अपनी ताकत, जवानी और पैसे पर इतना ज़्यादा घमंड हो गया था कि वही सब चीज़ें उसे ले डूबी थीं।"
"अब बेटा, यह अविनाश का पूरा कैरेक्टर था। और जैसे-जैसे तुम अविनाश के बारे में जानोगे, उसकी सारी चीज़ों, आदतों के बारे में तुम्हें पता चलता रहेगा, वैसे-वैसे तुम अब उसके बारे में सारी चीज़ें समझते जाओगे।"
"अभी फ़िलहाल हम तुम्हें आज का शेड्यूल बता देते हैं। एक घंटा तुम सबसे पहले अपनी मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस करोगे, और उसके बाद तुम्हें कुछ टीचर्स आएंगे जो सभी भाषाओं का ज्ञान देंगे। हमें पूरी उम्मीद है तुम मेहनत और मन लगाकर सारी चीज़ें करोगे।"
"और साथ ही साथ, अविनाश खाना कैसे खाता था, चलता कैसे था, लोगों से किस तरह से बात किया करता था—इस तरह की कुछ वीडियो हमारे पास पड़ी हुई हैं, तो खाली टाइम में तुम्हें वह वीडियो देखनी होगी।"
"और अविनाश जैसे कपड़े पहनता था, वैसे कपड़े हमने ऑलरेडी यहाँ मँगवा दिए हैं। तुम्हें अच्छी तरह से अविनाश के जैसा ड्रेस अप करना सीखना होगा।"
"और बेटा, तुम्हें भी उसी की तरह एरोगेंट, खड़ूस और दयाहीन बनना होगा। क्योंकि अगर तुमने अपना यह सॉफ्ट कॉर्नर, राघव का बिल्कुल सॉफ्ट नेचर, दूसरों की हेल्प करने वाला नेचर, किसी के भी सामने प्रेज़ेन्ट कर दिया, तो पहले दिन ही तुम पर लोगों को शक हो जाएगा।"
"तो इसीलिए, तुम हमारी बात समझ रहे हो ना? हम तुम्हें क्या कहना चाहते हैं?"
तभी राघव ने गायत्री जी का हाथ पकड़ लिया और कहने लगा,
"आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं पूरी कोशिश करूँगा कि मैं अविनाश जी के जैसा बन पाऊँ।"
जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री जी मुस्कुरा दीं और जल्दी ही अपने भरोसेमंद आदमी जतिन को वहाँ बुला लिया और कहा कि चौबीस घंटे वह राघव के साथ रहे।
वहीं दूसरी ओर, राहुल सरिता से मिलने आया हुआ था और एक बार फिर उसने सरिता को बाहों में लेकर उसे प्यार करना शुरू कर दिया था। लेकिन जैसे ही वह उसके जिस्म से कपड़े अलग करने लगा, सरिता ने उसे रोक दिया।
"मेरा मूड नहीं है अब।"
जैसे ही सरिता ने यह कहा, राहुल चिढ़ गया और कहने लगा, "अच्छा, तुम्हारा मूड नहीं है? हर रोज़ तो मेरे साथ सोने के लिए मरी रहती हो, और आज खुद आगे बढ़कर तुम्हें प्यार कर रहा हूँ, तो तुम्हारा मूड नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने उस फ़टीचर गरीब पति की अमीरी देखने के बाद तुम्हारा मन बदल गया हो?"
जैसे ही राहुल ने यह कहा, सरिता घूर कर राहुल की ओर देखने लगी और कहने लगी,
"राहुल, अपनी फ़ालतू की बकवास बंद करो! मैंने तुम्हें कहा है ना कि मेरा मूड नहीं है, तो मतलब मूड नहीं है!"
तभी राहुल ने सरिता के बालों को कसकर पकड़ लिया और बेड की ओर धकेलते हुए कहने लगा,
"अपनी फ़ालतू की बकवास बंद करो! तुम्हारे ऊपर लाखों रुपये ख़र्च कर चुका हूँ! वह भी किस लिए? सिर्फ़ तुम्हारे इस जिस्म के लिए! ना तुम मुझे इस तरह से मना नहीं कर सकती हो, समझी?"
उसने जल्दी ही उसकी साड़ी को उसके जिस्म से अलग कर दिया और उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा। और सरिता केवल उसे मना करने के बारे में सोचती रह गई।
वहीं सरिता की माँ के कानों में जैसे ही सरिता की इस तरह की आवाज़ पड़ी, वह थोड़ी सी दुखी हो गई, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी? राहुल को उसकी ज़िन्दगी में लाने वाली आखिरकार उसकी माँ ही तो थी।
राहुल ने जल्दी ही सरिता के जिस्म के साथ अपनी मनमानी की और उसके बाद उसके होंठों को कसकर चूमते हुए कहने लगा,
"आज के बाद तुम मुझे मना करने के बारे में सोचना भी मत! और हाँ, जब से तुम्हें अपने उस गरीब, फ़टीचर पति के बारे में पता चला है कि वह इतना अमीर था, तब से तुम्हारा बर्ताव कुछ बदल रहा है। याद रखना, सरिता, अब तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी हो, समझी? मैंने अपनी इंगेजमेंट तक तोड़ दी सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए। तुम जानती हो अपने पिता को तुम्हारे और मेरी शादी के लिए तैयार करने में मुझे कितना समय लग गया। वह तो किसी शादीशुदा से मेरी शादी करना ही नहीं चाहते थे। लेकिन यह कमबख़्त दिल है कि तुम पर आ गया! अब तुम मुझे छोड़कर जाने के बारे में सोचना भी मत, समझी? और हाँ, फ़टाफ़ट से कपड़े पहनो, चलो। मैं तुम्हें शादी की शॉपिंग करा कर लेता हूँ।"
ऐसा कह कर एक चादर सरिता के ऊपर फेंकता हुआ, राहुल जल्दी ही कमरे से निकल गया। वहीं सरिता काफी हद तक हैरान थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि राहुल उसके साथ इस तरह से बर्ताव करेगा। क्या राघव अविनाश बन पाएगा? कैसे फेस करेगा वह रघुवंशी परिवार को? और कैसे निपटेगा अविनाश के दुश्मनों से? जानने के लिए बने रहिए, दोस्तों।
याद रखना, सरिता, अब तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी हो। समझी? मैंने अपनी सगाई तक तोड़ दी, सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए। तुम जानती हो, अपने पिता को तुम्हारे और मेरी शादी के लिए तैयार करने में मुझे कितना समय लग गया।
वह तो किसी शादीशुदा से मेरी शादी करना ही नहीं चाहते थे।
लेकिन यह कमबख़्त दिल है कि तुम पर आ गया। अब तुम मुझे छोड़कर जाने के बारे में सोचना भी मत।
समझी? और हाँ, फटाफट से कपड़े पहनो, चलो।
"मैं तुम्हें शादी की शॉपिंग कराकर लेता हूँ।" ऐसा कहकर राहुल ने एक चादर सरिता के ऊपर फेंकी।
राहुल जल्दी ही कमरे से निकल गया। सरिता काफ़ी हद तक हैरान थी।
उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि राहुल उसके साथ इस तरह से बर्ताव करेगा।
वेल, सरिता अब कुछ नहीं कर सकती थी। उसने खुद अपने लिए मुसीबत मोल ली थी।
बहरहाल, सरिता ने चुपके से जल्दी ही कपड़े पहनना शुरू कर दिया।
और राहुल के साथ वह बाजार के लिए निकल चुकी थी। वैसे भी, शॉपिंग उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी थी।
वहीं दूसरी ओर, जल्दी ही एक मास्टर राघव को पढ़ाने लगा था। राघव को बहुत ही ज़्यादा परेशानी हो रही थी क्योंकि उसे तो कुछ खास पढ़ना-लिखना आता ही नहीं था। लेकिन मास्टर इस तरह एक साथ राघव को सारी भाषाओं का ज्ञान देने लगा था कि उसने पहले हिंदी से स्टार्ट किया था, उसके बाद अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, बंगाली—जितनी भी काफ़ी भाषाएँ थीं, रशियन, साथ-साथ फ़्रेंच—जितनी भी भाषाएँ अविनाश को आती थीं, सभी भाषाएँ एक साथ लेकर राघव को बताना शुरू कर दिया था।
राघव काफ़ी ज़्यादा थक चुका था क्योंकि उसे ज़्यादा कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इसीलिए वह अचानक उस पढ़ने वाले मास्टर के पास से उठकर एक दूसरी जगह जाकर बैठ गया।
तब जैसे ही गायत्री जी ने राघव को इस तरह से बैठे हुए देखा, तो वह उसके पास आईं और कहने लगीं, "क्या बात है राघव बेटा? तुम इस तरह से क्यों बैठे हुए हो?"
"कोई बात है क्या?"
तभी राघव गायत्री जी की ओर देखकर कहने लगा, "मैं नहीं जानता आंटी जी, मैं यह सब कुछ कैसे सीख पाऊँगा? मैं एक नॉर्मल, मामूली सा इंसान हूँ, जिसने ज़िन्दगी में सिर्फ़ और सिर्फ़ ठोकरें ही खाई हैं। मैं इस तरह से भला इतने अमीर आदमी को कैसे कॉपी करूँगा? कैसे मैं उसकी सारी भाषाएँ सीखूँगा? कैसे सारी चीज़ें करूँगा?" तभी गायत्री जी ने राघव का हाथ पकड़ लिया और कहने लगीं,
"बेटा, हम अच्छी तरह से जानते हैं कि यह सब कुछ तुम्हारे लिए आसान नहीं है। लेकिन बेटा, तुम तो अपनी जान लेना चाहते थे ना? तो अगर वह तुम्हारी जान कितने ही लोगों के काम आ जाए तो इसमें क्या हर्ज़ है? हाँ, तुम्हें थोड़ा सा सिर्फ़ और सिर्फ़ दिल लगाने की और मेहनत करने की ज़रूरत है। मुझे पूरी उम्मीद है, तुम बहुत जल्द कामयाब हो जाओगे। और बेटा, अविनाश को कॉपी कर पाना मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, बहुत ही ज़्यादा मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन तो नहीं है ना राघव? और फिर ऊपरवाला तुम्हारे साथ है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तो तुम क्यों घबरा रहे हो? प्लीज़ बेटा।" ऐसा कहकर गायत्री जी ने अपने दोनों हाथ राघव के सामने जोड़ दिए और कहने लगीं,
"बेटा, आज तक हमने किसी के सामने हाथ नहीं जोड़े हैं। हम तुम्हारे सामने हाथ जोड़ते हैं बेटा। प्लीज़ बेटा, हमें मायूस ना करो। हमने बहुत सी उम्मीदें तुमसे लगा रखी हैं। तुम नहीं जानते कि तुम्हारा हमारे साथ चलना कितना ज़्यादा ज़रूरी है। तुम्हारी पूरे रघुवंशी परिवार को ज़रूरत है। इतना ही नहीं, हज़ारों लोगों को जो तुम्हारी ज़रूरत है, जिनके परिवार सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे नाम से चलते हैं। तुम समझ रहे हो ना हमारी बात? और बेटा, अभी तक हमने तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ रघुवंशी परिवार की डिटेल्स बताई हैं। अभी हमने तुम्हें रघुवंशी परिवार के दुश्मनों के बारे में नहीं बताया है। एक बार तुम्हें सारी चीज़ें अच्छी तरह से सीख लो, समझ लो, उसके बाद हम तुम्हें रघुवंशी परिवार के दुश्मनों के बारे में भी बताएँगे।"
गायत्री जी राघव से रिक्वेस्ट करने के साथ-साथ यह भी बता रही थीं कि उसे आगे क्या करना है।
राघव कुछ पल गायत्री जी की ओर देखता रहा और उसने गायत्री जी के दोनों हाथों को पकड़ लिया और कहने लगा, "आप मेरी माँ समान हैं। आप इस तरह से मेरे सामने प्लीज़ हाथ मत जोड़िए। और मैं आपसे वादा करता हूँ, मैं अपनी पूरी जान लगा दूँगा। जैसा आप कहेंगी, मैं वैसा ही करूँगा। और पूरी मेहनत और लगन से मैं आपका बेटा बनने की पूरी कोशिश करूँगा, क्योंकि मैं इतनी बात समझ गया हूँ कि ऊपरवाले ने अगर मुझे यह नया जन्म दिया है, तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके लिए दिया है। आज के बाद मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी दी हुई ज़िन्दगी को जीऊँगा और पुराने राघव को पूरी तरह से भुला दूँगा।" जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री जी ने नम आँखों से उसके सर पर हाथ रख दिया और वहाँ से चली गईं। तब राघव जल्दी ही एक बार फिर उस मास्टर जी के पास जाकर बैठ गया और उसने पढ़ना शुरू कर दिया।
और राघव की ग्रहणशीलता बहुत ही ज़्यादा अच्छी थी। राघव एक घंटे में काफ़ी कुछ सीख गया था और धीरे-धीरे वह और मन लगाकर सीखने लगा था। कहीं ना कहीं राघव को लगने लगा था कि उसकी ज़िन्दगी की अब एक नई शुरुआत होने वाली है। तो उसे सब कुछ भूलकर अच्छी तरह से सारी चीज़ें समझनी होंगी। यही सोचते हुए राघव बड़े ही मन लगाकर पढ़ाई करने लगा। और गायत्री जी बड़े ही ध्यान से राघव को देख रही थीं और सोच रही थीं कि कितना भोला-भाला है यह, लेकिन इसका चेहरा अविनाश रघुवंशी से मिलता है। काश इसमें एक बार रियल अविनाश रघुवंशी को देख लिया होता, तो पता नहीं क्या हालत होती इसकी।
वेल, तभी गायत्री जी अपनी आँखें बंद करके कुछ पल हॉल में बैठ गईं। क्योंकि पिछले दिनों में उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल चुकी थी। उनका अपना बेटा इस तरह से उनकी आँखों के सामने से गायब हो गया था कि उन्हें कुछ पता ही नहीं चला था। और कितने ही लोग अविनाश के आने का इंतज़ार कर रहे थे क्योंकि अविनाश भले ही रूड़ और अहंकारी था, लेकिन वह पूरी रियासत का एकमात्र मालिक था। और कुछ तो उनका खानदान पुश्तैनी अमीर थे, कुछ अविनाश रघुवंशी ने बिज़नेस को ऊँचाइयों पर ले जाकर उसे नंबर वन की पोजीशन पर लाकर खड़ा कर दिया था। और राघव के लिए इतनी जल्दी बिज़नेस सीख पाना, कहीं ना कहीं अविनाश की तरह ट्रिक सीख पाना, इतना ही नहीं, गन चलाना सीख पाना काफ़ी ज़्यादा मुश्किल होने वाला था। लेकिन गायत्री जी ने ठान लिया था कि एक महीने के अंदर-अंदर वह राघव को सारी चीज़ें सिखा देंगी और उसके बाद सब लोगों के सामने उसे प्रस्तुत करेंगी। वहीं दूसरी ओर, राघव कितनी ही देर तक पढ़ाई करने के बाद वहीं बैठा-बैठा सो गया था।
अब जैसे ही गायत्री जी राघव को देखने के लिए आईं और उन्होंने उसे सोता देखा, तो वह उसके सर पर हाथ रखते हुए बोलीं, "क्या हुआ बेटा? इस तरह से क्यों सो रहे हो? तुम अंदर जाकर आराम भी तो कर सकते थे।"
तभी राघव तुरंत उठकर बैठ गया और कहने लगा, "माफ़ कीजिएगा आंटी जी, मुझे इस तरह से आराम से बैठकर खाने-पीने की आदत नहीं है। ना ऊपर से पढ़ाई। ऐसा लग रहा है कि मैं एक अलग ही दुनिया में आ गया हूँ। आप जानती हैं, मैं सुबह-सुबह तड़के सवेरे ही चला जाया करता था और पूरा दिन मेहनत-मज़दूरी किया करता था, वह भी खाली पेट। केवल शाम के समय ही मैं खाना खाया करता था। दोपहर का खाना या शाम का नाश्ता कभी-कभार ही, सुबह का नाश्ता मुझे मिला करता था। लेकिन अब तो यहाँ भरपेट खाना मिल रहा है, सुबह का नाश्ता भी मिल रहा है, ऊपर से कुछ काम भी नहीं करना पड़ रहा, तो बस इसीलिए अब धीरे-धीरे ऐसा लग रहा है कि मेरे शरीर में आलस्य घुसता जा रहा है।" अब जैसे ही राघव ने बड़ी ही मासूमियत से यह सारी बातें कहीं, गायत्री जी मुस्कुराने लगीं और अचानक से उन्होंने आगे बढ़कर राघव को चुप किया और कहने लगीं,
"मेरे बच्चे, तुम राघव नहीं हो, तुम अविनाश रघुवंशी हो। तो तुम्हें इस तरह से मेहनत करने की भला क्या ज़रूरत है? अरे, तुम्हारे हुक्म पर तो हज़ारों मज़दूर खड़े हो जाएँगे काम करने के लिए, तो भला तुम्हें काम करने की क्या ज़रूरत है? और रही बात मेहनत-मज़दूरी की, तो ठीक है। अगर तुम यही चाहते हो, तो सबसे पहले हम तुम्हें मेहनत-मज़दूरी का ही काम देंगे।" अब जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव सवालिया नज़रों से उनकी ओर देखने लगा और कहने लगा,
"लेकिन आंटी जी, यहाँ पर तो कोई काम ही नहीं है। अगर आप कहें, तो मैं आपका जो गार्डन है, उसमें छोटे-छोटे पौधे लगा दूँ। वहाँ सभी पौधे और पूरा गार्डन जो उबड़-खाबड़ हो रहा है, उसे फावड़े से खोदकर बढ़िया, बेहतरीन बना दूँ। और अगर आप कहेंगी, तो मैं सब पौधों की छटाई भी कर दूँगा।"
अब जैसे ही राघव ने गायत्री जी को प्रस्ताव दिया, गायत्री जी एक बार फिर मुस्कुराने लगीं और कहने लगीं, "मेरे कहने का मतलब यह था कि हम तुम्हें मेहनत का काम देंगे, लेकिन अविनाश के स्टाइल में, अविनाश रघुवंशी के स्टाइल में हम तुम्हें मेहनत का काम देंगे। तो मुझे पूरी उम्मीद है, उसके बाद तुम्हें थक-हारकर अच्छी नींद आएगी और आलस्य नहीं आएगा।" अब जैसे ही गायत्री रघुवंशी जी ने यह कहा, राघव मुस्कुराने लगा और कहने लगा, "ठीक है, दे दीजिए। अगर ऐसा कुछ है, तो वह ज़रूर काम करूँगा।" ऐसा कहकर राघव गायत्री जी के साथ-साथ उनके पीछे-पीछे जाने लगा।
वहीँ गायत्री जी राघव को सीधा जिस फ्लोर पर जिम बना हुआ था, वहाँ ले गईं और कहने लगीं,
"वह सामने देखो, अविनाश की फ़ोटो लगी हुई है। तुम्हें इस तरह की बॉडी, अपना शरीर बनाना होगा। हालाँकि तुम काफ़ी ज़्यादा तंदुरुस्त हो और बॉडी भी तुम्हारी ठीक-ठाक है, लेकिन तुम्हें थोड़ी मेहनत और करनी होगी। और तुम्हें अविनाश जैसा शरीर बनाना होगा।" ऐसा कहकर गायत्री जी ने अविनाश की एक फ़ोटो की ओर इशारा किया।
राघव पूरी तरह से हैरान था क्योंकि सामने ही अविनाश की फ़ोटो लगी हुई थी जिसमें उसने केवल पैंट पहनी हुई थी और ऊपर का शरीर उसका नग्न था, जिसमें उसकी स्टील बॉडी साफ़ दिखाई दे रही थी। राघव आँखें मसल-कर बार-बार अविनाश की बॉडी की ओर देखने लगा। उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी की बॉडी इतनी ज़्यादा पॉवरफ़ुल, मज़बूत दिखाई दे सकती है। राघव को काफ़ी हैरानी हो रही थी।
तभी गायत्री जी ने राघव की ओर देखते हुए कहा, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम ८० प्रतिशत, तुम्हारा शरीर बिल्कुल अविनाश के जैसा है। बस थोड़ी बहुत बड़ी इंप्रूवमेंट करनी होगी और मुझे पूरी उम्मीद है कि २०% भी तुम बहुत जल्द कवर कर लोगे।" जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव मुस्कुरा दिया।
और जल्दी ही एक बड़ा ही बॉडीबिल्डर टाइप आदमी वहाँ आया। गायत्री जी ने उसे कुछ निर्देश दिए। फिर वह आदमी राघव को गायत्री जी के निर्देशों के अनुसार जिम वगैरह कराने लगा।
क्या मासूम, भोला-भाला राघव अविनाश जैसे रूड़, अहंकारी और बॉडीबिल्डर टाइप आदमी के जैसा बन पाएगा? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों।
गायत्री जी ने राघव की ओर देखते हुए कहा, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम पूरे 80 प्रतिशत...तुम्हारा शरीर बिल्कुल अविनाश के जैसा है। बस थोड़ी बहुत और इंप्रूवमेंट करनी होगी, और मुझे पूरी उम्मीद है कि 20% भी तुम बहुत जल्द कवर कर लोगे।"
जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव मुस्कुरा दिया।
थोड़ी देर बाद, एक बड़ा-सा बॉडीबिल्डर टाइप आदमी वहाँ आया।
गायत्री जी ने उसे कुछ निर्देश दिए। वह आदमी, गायत्री जी के निर्देशानुसार, राघव को जिम में प्रशिक्षित करने लगा।
राघव ने पहली बार इस तरह का जिम देखा था। सब कुछ उसके लिए नया था। लेकिन जो ट्रेनर गायत्री जी ने राघव को दिया था, वह राघव को इतने आसान तरीके से समझा रहा था कि राघव को सब कुछ बहुत आसान लगने लगा।
वैसे भी, राघव को तो मेहनत-मजदूरी करने की आदत थी। ना जाने कितने सालों से उसने ईंट-पत्थर, सीमेंट वगैरह ढोने का काम किया था।
इसीलिए, ट्रेनर राघव को इतने एक्टिव तरीके से काम करता देखकर हैरान था।
दो-तीन घंटे कैसे बीत गए, राघव और ट्रेनर दोनों को पता ही नहीं चला।
जब दोपहर का लंच टाइम हुआ, गायत्री जी वहाँ आईं।
उन्होंने दोनों को प्रैक्टिस करते हुए देखकर हैरानी से कहा, "क्या आप लोग पिछले दो-ढाई घंटे से प्रैक्टिस ही कर रहे हैं?"
राघव मुस्कुराते हुए बोला, "मैडम जी, इसमें तो बहुत मज़ा आया! मैं तो यह काम रोज़ करना चाहूँगा।"
राघव के यह कहते ही, गायत्री जी हैरानी से उसे देखने लगीं। बेसिकली, जब पहली बार लोग जिम वगैरह करते हैं, तो उनकी हालत बहुत खराब हो जाती है।
इतना ही नहीं, अगले दिन तो सोकर उठते ही उनके जोड़ों और बाज़ू में दर्द होने लगता है।
लेकिन राघव को तो वह काम करने में बहुत मज़ा आ रहा था। गायत्री जी हैरान थीं। तभी ट्रेनर ने अपनी भाषा में गायत्री जी से कहा, "यह कितना एक्टिव है! इस ट्रेनिंग का इस पर बिल्कुल असर नहीं होगा, और ना ही इसे किसी तरह का दर्द महसूस होगा। शायद बचपन से ही इसने ज़्यादा मेहनत की है।"
ट्रेनर के यह कहते ही, गायत्री जी ने गर्व से राघव की ओर देखा।
फिर गायत्री जी बोलीं, "अच्छा-अच्छा, चलो यह सब बाकी का काम तुम लोग बाद में करना। अभी एक काम करो राघव, अब तुम्हारा लंच करने का टाइम है। आइए, फटाफट हमारे साथ लंच कीजिए।"
ऐसा कहकर गायत्री जी राघव को अपने साथ ले गईं। राघव ने जल्दी से हाथ-मुँह धो लिए।
जैसे ही वह डाइनिंग टेबल पर आया, वह हैरान हो गया। वहाँ तमाम तरह का खाना था—देसी-विदेशी, एक से बढ़कर एक।
राघव के मुँह में पानी आ गया, क्योंकि राघव ने इतना सारा खाना एक साथ कभी नहीं देखा था। तभी गायत्री जी ने राघव को एक जगह बैठने के लिए कहा।
राघव बैठ गया और तुरंत उसने अपनी प्लेट में पहले बिरयानी, फिर भुना चिकन और चाइनीस मोमोस रख लिए।
गायत्री जी हैरानी से यह सब देख रही थीं। राघव इस तरह बर्ताव कर रहा था मानो अगर उसने जल्दी-जल्दी यह सब नहीं खाया, तो यह सब खत्म हो जाएगा।
इसलिए उसने अपनी पूरी थाली हर तरह के खाने से भर ली।
तब गायत्री जी ने कहा, "राघव, रिलैक्स। आराम से खाओ। यह सारा खाना तुम्हारा है। यह खाना कहीं भाग नहीं जा रहा है। यह सब खाना तुम ही खाने वाले हो। और एक और बात, तुम्हें आज अविनाश की तरह खाना खाना होगा। इस तरह से प्लेट भरकर नहीं, बल्कि अविनाश की तरह, फ़ोर्क और स्पून से खाना खाना होगा।"
गायत्री जी के यह कहते ही, राघव पूरी तरह से हैरान हो गया। गायत्री जी ने अपने नौकर को इशारा किया। उसने राघव की भरी हुई थाली हटाकर उसके सामने एक साफ़-सुथरी थाली रखी और उसमें थोड़ा चिकन पीस परोसा, और उसे एक कांटा देते हुए कहा, "तुम्हें इसकी मदद से खाना होगा।" एक अलग प्लेट में और चिकन पीस रख दिया गया।
राघव पूरी तरह से हैरान था। वह तो हाथों से खाने वाला आदमी था, वह कांटे-छुरी से कैसे खा सकता था?
जैसे ही राघव ने कांटे में चाउमीन लेने की कोशिश की, वह फिसल कर नीचे गिर गई। उसे खाना ही नहीं आ रहा था। उसने सोचा कि पहले चिकन पीस ट्राई करना चाहिए। जैसे ही उसने चिकन लेग पीस में कांटा घुसाया, वह पूरा का पूरा उठ गया। उसने गायत्री जी की ओर देखा, जो उसे देख रही थीं। राघव ने पीस वापस रख दिया। गायत्री जी ने कहा, "तुम्हें पहले इस चाकू का इस्तेमाल करना होगा। चिकन का थोड़ा पीस काटना होगा, फिर फ़ोर्क की मदद से उसे खाना होगा।"
गायत्री जी के यह कहने पर, राघव ने चिकन पीस खाने का इरादा छोड़ दिया, हालाँकि उसका मन सब कुछ खाने को कर रहा था। वह बिरयानी की ओर बढ़ा, लेकिन गायत्री जी ने उसे रोकते हुए कहा, "ठहरो! यह सर्वेंट तुम्हें सर्व करेगा।"
नौकर ने एक छोटी सी प्लेट में थोड़ी सी बिरयानी दे दी। राघव देख रहा था कि उसका इरादा दो-तीन प्लेट बिरयानी खाने का था, लेकिन इतनी सी बिरयानी में क्या होगा?
गायत्री जी ने एक चम्मच से बिरयानी खाने को कहा। राघव बिरयानी तो खा पा रहा था, लेकिन चम्मच बहुत छोटी थी। एक-एक दाना खाते हुए ऐसा लग रहा था मानो उसके दाँतों में भी खाना नहीं लग रहा हो।
राघव पूरी तरह से इरिटेट हो चुका था। उसका मन पेट भरकर खाने का था, लेकिन इतनी सारी शर्तें थीं।
हारकर राघव ने पानी पीया और कहा, "मैडम जी, मेरा पेट भर गया है। मैं और कुछ नहीं खाऊँगा।"
राघव के यह कहते ही गायत्री जी थोड़ी मायूस हो गईं। राघव खाली पेट उठ गया था, लेकिन गायत्री जी चाहती थीं कि वह अविनाश की तरह खाना खाए। अविनाश कैसे छोटे स्पून का इस्तेमाल करता था और कितनी सफाई से खाता था। लेकिन राघव तो एक देसी आदमी था, वह कैसे इस तरह खा सकता था?
गायत्री जी ने सोचा कि वह बाद में सब सिखा सकती हैं। पहले उसे भरपेट खाना खाना चाहिए।
गायत्री जी ने कहा, "अच्छा-अच्छा, एक काम करो। तुम एक तरफ बैठो और पहले फटाफट जिस तरह से तुम खाना खाना चाहते हो, खा लो। और उसके बाद हम कांटे-छुरी से खाने की प्रैक्टिस कर लेंगे।"
गायत्री जी के यह कहने पर राघव के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने अपने हिसाब से खाना खाना शुरू कर दिया।
गायत्री जी के देखते ही देखते चिकन लेग पीस और बाकी का सारा खाना खत्म होने लगा। राघव खाते जा रहा था, उसके दोनों हाथ बाजू तक सलाण में थे। वह बड़े चटकारे से खा रहा था। आखिरकार शहर के सबसे फाइव स्टार होटल के शेफ़ ने वह खाना बनाया था, जो एकदम स्वादिष्ट था।
जब राघव ने खूब मन भरकर खा लिया, तब उसने एक लंबी सी डकार ली। गायत्री जी थोड़ी डर गईं, लेकिन अगले ही पल मुस्कुराने लगीं। उन्हें राघव की ये हरकतें अच्छी लग रही थीं। वे सोचने लगीं कि काश उनका बेटा भी ऐसा ही होता।
तभी अचानक गायत्री जी का फ़ोन बजने लगा।
लेकिन अगले ही पल वह मुस्कुराने लगी। वहाँ उन्हें राघव की यह हरकतें काफी अच्छी लग रही थीं और वह सोचने लगी कि काश उनका बेटा भी इसी तरह थोड़ा-सा अटपटा होता, कितना अच्छा होता!
तभी—
अचानक गायत्री जी का फ़ोन बजने लगा।
जैसे ही गायत्री जी ने फ़ोन उठाया, फ़ोन किसी और का नहीं, बल्कि उनके पति रमन रघुवंशी का था। रमन रघुवंशी ने गायत्री जी के फ़ोन उठाते ही कहना शुरू कर दिया, "गायत्री जी, आखिरकार यह सब कुछ कब तक चलेगा? मुझे नहीं लगता कि तुम्हें इतनी लंबी वेकेशन पर जाना चाहिए।"
"तुम्हें अब वापस आ जाना चाहिए। आखिरकार कब तक मुँह फुलाकर बैठोगी?"
"तुम जो चाहती हो, वह किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। तुम्हें हमारी बात माननी होगी और वापस आना होगा।"
जैसे ही रमन जी ने हमेशा की तरह गायत्री जी से कड़क और रौबदार आवाज़ में बात की, गायत्री जी हैरान हुईं, लेकिन अगले ही पल वह कहने लगीं, "देखिए रमन, मैंने आपसे कहा ना, जब तक मेरा कहा हुआ काम पूरा नहीं हो जाता, मैं वापस रघुवंशी मेंशन नहीं आऊँगी। ठीक है?"
रमन गुस्से से कहने लगे, "आखिरकार आप समझती क्यों नहीं? क्यों एक ही बात के पीछे पड़ी हुई हैं? अगर यही सब चलता रहा, तो मीडिया में हमारी बहुत बदनामी होगी। सबको पता चल जाएगा कि रघुवंशी परिवार की बहू गायत्री रघुवंशी घर छोड़कर चली गई है।"
तभी गायत्री जी ने एक लंबी गहरी साँस ली और कहने लगीं, "मुझे इन सब चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता रमन, और मैं आपको अपना फैसला सुना चुकी हूँ। अगर आप मुझे वापस रघुवंशी मेंशन में चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको वह काम करना होगा जो मैंने आपसे कहा है। वरना मैं बिल्कुल भी रघुवंशी मेंशन नहीं आऊँगी। इतना ही नहीं, मैं अपने बेटे के साथ विदेश चली जाऊँगी।"
जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, रमन जी ने तुरंत फ़ोन पटक दिया। गायत्री जी आँखों में आँसू लिए अपनी जिंदगी के कुछ पुराने लम्हों में खो गईं।
गायत्री जी की शादी को पूरे 26 साल हो चुके थे, लेकिन 26 सालों में केवल कुछ ही साल उन्होंने सुकून की जिंदगी अपने पति रमन के साथ गुजारी थी। लेकिन उस दिन उनकी दुनिया पूरी तरह से उजड़ गई थी, जब उन्हें अपने पति की दूसरी गर्लफ्रेंड के बारे में पता चला था।
गायत्री पूरी तरह से टूट चुकी थी क्योंकि रमन रघुवंशी बहुत पहले ही एक लड़की को पसंद किया करते थे और उसे चुपके से मिला भी करते थे। और जिस दिन गायत्री जी के बेटे ने जन्म लिया, उसी दिन उन्हें इस बात का पता चला था कि उनके पति की एक गर्लफ्रेंड भी है, जिसके पास वह अक्सर जाया करते थे।
तब से गायत्री जी काफी ज्यादा टूट गई थीं और उनका व्यवहार पूरी तरह से बदल चुका था। उन्होंने अपना ध्यान अपने पति पर से हटाकर अपने बेटे पर केंद्रित कर लिया था और धीरे-धीरे उन्होंने अपने बेटे को बड़ा किया। उन्होंने खुद को रघुवंशी बिज़नेस में घुसा लिया था और धीरे-धीरे उन्होंने अपनी पॉवर पोजीशन इतनी ऊँची कर ली थी कि दादाजी के बाद घर और ऑफिस में सिर्फ़ गायत्री रघुवंशी की ही चलती थी।
वहीं अब, जब उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे को पालने-पोसने में गुजार दी, जब उनके बेटे ने ही उनके साथ बुरा बर्ताव करना शुरू किया, दो पल मीठे बोल अपनी माँ से नहीं बोले और हमेशा अहंकारी रहा, तब वह काफी ज्यादा अकेला पड़ चुकी थीं। और उसके बाद, जब उन्होंने एक दिन अपनी आँखों से अपने पति को उसकी गर्लफ्रेंड के साथ शॉपिंग करते हुए देखा, तो उन्होंने उसी वक़्त उसकी गर्लफ्रेंड के मुँह पर तीन चाँटे मारे थे और रमन रघुवंशी को साफ़-साफ़ धमकी दी थी कि अगर उसने यह सब कुछ बंद नहीं किया, तो वह उसे छोड़कर चली जाएगी।
अब गायत्री रघुवंशी को छोड़ना रमन रघुवंशी के लिए किसी भी कीमत पर संभव नहीं था, क्योंकि गायत्री रघुवंशी रघुवंशी परिवार का एक तरह से दूसरा चेहरा बन चुकी थी। इतना ही नहीं, उसकी पॉवर पोजीशन इतनी थी कि अगर वह रघुवंशी परिवार को छोड़कर चली जाती, तो रघुवंशी परिवार घुटनों पर आ जाता। इसीलिए राघव को ट्रेनिंग देने के बहाने से उसने रमन रघुवंशी को साफ़-साफ़ धमकी दी थी कि वह अपनी गर्लफ्रेंड को छोड़ दे। अगर वह उसे छोड़ देता, तो वह उसके पास आ जाएगी; और छोड़ना ही नहीं, बल्कि अपने हाथों से जान भी लेनी थी।
तो कहीं न कहीं रमन रघुवंशी इस बात के लिए अभी तैयार नहीं थे। इसीलिए गायत्री को मनाने के लिए वह हर रोज उसे फ़ोन कर रहे थे।
फ़िलहाल गायत्री जी अभी अपनी जिंदगी के बारे में सोच ही रही थीं कि अचानक उन्हें राघव के कमरे से कुछ गिरने की आवाज़ आने लगी।
इसीलिए जल्दी से दौड़कर वह उस कमरे में गईं। इतना ही नहीं, वहाँ के कई बॉडीगार्ड्स भी उस कमरे की ओर गए जहाँ से आवाज़ आ रही थी। जैसे ही वे वहाँ गए, उन्होंने देखा कि राघव के कमरे में वॉश वगैरह नीचे गिरा हुआ था और राघव अपने कमरे में झाड़ू लगा रहा था।
जैसे ही गायत्री जी ने देखा, वह हैरानी से राघव की ओर देखकर कहने लगीं, "राघव बेटा, यह तुम क्या कर रहे हो? तुम्हारे हाथ में झाड़ू क्या कर रही है?" और शायद वह सब सामान गिरने की ही आवाज़ थी और राघव उन सबको साफ़ कर रहा था।
जल्दी से उसने कहना शुरू कर दिया, "आंटी जी, आज सुबह जब मैं गार्डन में जॉगिंग करने गया था, तो मेरे जूते गंदे हो गए थे और मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया। जिससे मैं कमरे में आया, पूरा कमरा गंदा हो गया। देखिए, पूरे फ्लोर पर मिट्टी लग गई और फिर मैंने देखा कि मेरे कमरे के वॉश पर भी धूल-मिट्टी लगी हुई थी। तो मैंने सोचा थोड़ी सी सफ़ाई क्यों न कर लूँ, इसीलिए मैं साफ़ करने लगा। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे हाथ से झाड़ू लगाते हुए यह वॉश टूटकर जमीन पर गिर गया जिससे आप लोग अचानक से यहाँ आ गए।"
जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री रघुवंशी ने अपने माथे पर हाथ मार लिया और तुरंत एक नौकर को इशारा किया। उस नौकर ने जल्दी ही राघव के हाथ से झाड़ू ले ली और दूसरा नौकर जल्दी ही राघव के कपड़े बदलने लगा। अब राघव हैरानी से गायत्री जी की ओर देखने लगा।
क्या राघव अविनाश रघुवंशी के नाम की अहमियत को कभी समझ पाएगा? क्या गायत्री जी वाकई उसे अविनाश रघुवंशी में तब्दील कर पाएँगी?
गायत्री रघुवंशी ने अपने माथे पर हाथ रख लिया था। उसने तुरंत एक नौकर को इशारा किया था। उस नौकर ने जल्दी ही राघव के हाथ से झाड़ू ले ली थी। दूसरा नौकर राघव के कपड़े बदलने लगा था। अब राघव हैरानी से गायत्री जी की ओर देखने लगा था।
वह सोचने लगा था, "वेल, इस तरह से वह गायत्री जी के सामने कैसे अपने कपड़े बदल सकता था?"
वह जल्दी से कहने लगा, "यह आप क्या कर रही हैं? मैं अपने कपड़े खुद बदल लूँगा।"
ऐसा कहकर राघव जल्दी से भागकर बाथरूम में घुस गया था। गायत्री जी राघव के इस तरह से करने पर हँसने लगी थीं।
वह सोचने लगी थीं कि थोड़ी देर पहले वह रमन को लेकर परेशान और दुखी हो रही थीं, और उसने जो उन्हें धोखा दिया था, उस बात को लेकर रो रही थीं।
लेकिन इस लड़के ने उन्हें एक पल में ही हँसा दिया था। एक पल में ही उनका मूड हल्का-फुल्का और ठीक हो गया था। वाकई कुछ न कुछ बात तो है इसके अंदर।
ऐसा सोचकर गायत्री जी प्यार से राघव की ओर देखने लगी थीं।
वहीं दूसरी ओर, सरिता राहुल के साथ शॉपिंग करने आई थी, लेकिन उसका मन शॉपिंग में नहीं लग रहा था। वरना सरिता जब भी राहुल के साथ जाती थी, दुनिया भर का समान उठा लिया करती थी, चाहे उसके पास वह समान पहले से ही मौजूद हो। उसे इस बात की कोई परवाह नहीं होती थी। उसे तो बस शॉपिंग करने से मतलब होता था। लेकिन आज सरिता कहीं खोई हुई सी थी।
राहुल ने इसे महसूस कर लिया था और वह जल्दी से आगे बढ़ा था। सरिता की ओर देखकर उसने कहा, "क्या हुआ? अपने फ़टीचर पति की याद आ रही है? सोच लो, अगर तुम्हें उसकी याद आ रही है तो मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़ भी सकता हूँ। मुझे कोई मसला नहीं है। देखो, मैं जबर्दस्ती तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता हूँ। और वैसे भी, तुम्हारे जिस्म का स्वाद तो मैं कितनी ही बार चख चुका हूँ। बार-बार तो ज़रूरी नहीं है। और मुझे पता है कि अगर तुम उस फ़टीचर के पास चली भी जाती हो, तो उसके बाद भी तुम मुझे बुलाती ही रहोगी और इसी तरह से मुझे अपने जिस्म के दीदार करवाती रहोगी।"
जैसे ही राहुल ने यह कहा, सरिता झेंप गई थी। उसे बहुत गंदी सी फीलिंग आई थी। लेकिन वह इस वक्त राहुल को छोड़ने का रिस्क नहीं ले सकती थी। क्योंकि राघव के बारे में उसे कुछ पता ही नहीं था कि आखिरकार राघव कहाँ है और कहाँ चला गया। उसने राघव को ढूँढ़ने की कितनी कोशिश की थी, लेकिन न तो राघव उसे कहीं दिखाई दिया और न ही उसके बारे में उसे कुछ खास पता चला।
तभी उसने जल्दी से राहुल की ओर देखते हुए कहा, "तुम कैसी बातें कर रहे हो? मैंने कब कहा कि मैं उसके बारे में सोच रही हूँ? मैं तो बस हैरान हूँ, वह इतनी जल्दी रातों-रात इतना अमीर कैसे हो सकता है?"
तभी राहुल ने सरिता की ओर देखते हुए कहा था, "मुझे पूरी उम्मीद है कि वह एक फ़टीचर और गरीब भी है, लेकिन रघुवंशी परिवार उस पर इस तरह से क्यों मेहरबान हुआ है, हमें बस इसके बारे में पता लगाना है। और तुम फ़िक्र मत करो, मैं बहुत जल्द पता लगा लूँगा। अभी एक काम करो, मूड ठीक करो, फ़टाफ़ट शॉपिंग करो। उसके बाद हम यहाँ से सीधा होटल जाएँगे।"
"होटल? लेकिन होटल क्यों?" सरिता ने पूछा।
तभी राहुल उसकी ओर देखकर कहने लगा था, "अरे भाई! इतनी सारी शॉपिंग कराऊँगा तुम्हें, तो क्या तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं बनता थोड़ी बहुत मेरी थकावट उतारने का? थोड़ी सी देर मौज-मस्ती करने के लिए होटल जाएँगे।"
"लेकिन अभी तो घर पर हम दोनों इंटीमेट होकर आए हैं, तो क्या तुम उसके बाद भी..." सरिता ने कहा।
तभी राहुल कहने लगा था, "तुम्हें इसके बारे में ज़्यादा बात करने की कोई ज़रूरत नहीं है! मैं तुम्हारा दिन में एक बार नहीं, दस बार ख्याल रख सकता हूँ। फ़िलहाल तो यह सब छोड़ो, फ़टाफ़ट से शॉपिंग कंप्लीट करो और चलो, मेरा बहुत मन कर रहा है तुमसे एक बार फिर प्यार करने का।"
जैसे ही राहुल ने यह कहा, सरिता इरिटेट हो चुकी थी, लेकिन उसके पास राहुल की बात मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। इसीलिए वह जल्दी ही शॉपिंग करने लगी थी और फ़टाफ़ट से राहुल के साथ होटल की ओर निकल चुकी थी।
वहीं दूसरी ओर, राघव जल्दी ही कपड़े चेंज करके बाहर आ गया था। तब गायत्री जी ने बड़े ही प्यार से उसे अपने पास बुलाया था और बैठकर कहने लगी थीं, "बेटा, तुम्हें यह सब काम करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं तुम्हें अपने बेटे के बारे में बता चुकी हूँ, कि वह कितना ज़्यादा गुस्से वाला था और इस तरह से वह छोटी-छोटी बातों को लेकर नौकरों पर गुस्सा हो जाया करता था। कोई उसने तो आज तक झाड़ू को देखा तक नहीं होगा कि आखिरकार झाड़ू दिखती कैसी है, और तुम हो कि तुम झाड़ू हाथ में लेकर सफ़ाई करने लग गए। नहीं बेटा, तुम्हें इस तरह से बिल्कुल नहीं करना है। अभी तुम आओ मेरे साथ।" ऐसा कहकर और राघव का हाथ पकड़कर एक बार फिर प्रोजेक्टर रूम में ले गई थीं।
और कहने लगी थीं, "यहाँ पर अविनाश के खाना खाते हुए, बोलते हुए, चलते हुए और साथ ही साथ कुछ और एक्टिविटी करते हुए वीडियो हैं। तो मैं चाहती हूँ कि तुम यहाँ बैठकर वह वीडियो अच्छी तरह से देखो और बिल्कुल अपने दिल में, दिमाग में बैठा लो।"
राघव को यह काम थोड़ा सा बोरिंग लगा था क्योंकि उससे ठहर नहीं बैठता था। उसकी सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही थी। इसीलिए गायत्री जी उसके ठीक पास बैठ गई थीं।
और कहने लगी थीं, "तुम यहाँ अकेले इस वीडियो को नहीं देखोगे, मैं भी तुम्हारे साथ देखूँगी। मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि तुम्हें अकेले और बिल्कुल बिना किसी काम के बैठने में काफी प्रॉब्लम होती है। लेकिन फ़िलहाल तुम्हें अविनाश रघुवंशी बनना है, तो तुम्हें उसके सारे तौर-तरीके सीखने ही होंगे।"
राघव, जो पहले वह वीडियो नहीं देखना चाहता था, लेकिन अब क्योंकि गायत्री जी उसके पास थीं, तो उसे ध्यान लगाकर वह वीडियो देखनी पड़ रही थी। उसमें वह देख रहा था कि अविनाश किस तरह से काँटे-छुरी का इस्तेमाल करके बड़ी ही सफ़ाई से खाना खा रहा था, और किस तरह से सिर्फ़ हल्का सा मुस्कुरा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मुस्कुराना तो अविनाश ने कभी सीखा ही ना हो।
तभी राघव ने एक दूसरी वीडियो में देखा कि अविनाश किस तरह से लोगों से फ़टाफ़ट, फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी में बात कर रहा था, और कुछ लोगों से चीनी में, कुछ लोगों से रूसी में, कुछ लोगों से सिर्फ़ फ़्रेंच में बात कर रहा था।
तब राघव बहुत ही ज़्यादा डर गया था और गायत्री जी की ओर चोर नज़रों से देखने लगा था। तब गायत्री जी राघव के मन की बात समझ गई थीं और कहने लगी थीं, "तुम फ़िक्र मत करो बेटा, बहुत जल्द तुम भी ये सारी भाषाएँ सीख लोगे और आसानी से सब कुछ बोल भी पाओगे। तुम परेशान मत हो, बस तुम अपने आप पर भरोसा रखो। अपना कॉन्फ़िडेंस कम मत होने दो।"
जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव हल्का सा मुस्कुरा दिया था। वहीं दूसरी वीडियो दिखाई जाने लगी थी। उसमें अविनाश रघुवंशी एक लड़की के साथ था।
जैसे ही लड़की के साथ वाली वीडियो आई, गायत्री जी थोड़ा सा शर्मिंदा सी हो गई थीं। और कहने लगी थीं, "बेटा, तुम यह वीडियो देखो, तब तक मैं तुम्हारे लिए शाम के खाने का देखकर आती हूँ कि शाम को तुम्हारे लिए क्या खाना बनेगा।"
ऐसा कहकर गायत्री जी बहाने से वहाँ से बाहर निकल गई थीं। तभी राघव ने देखा कि अविनाश रघुवंशी एक बड़ी ही खूबसूरत लड़की के साथ था और अचानक उसने उस लड़की को दो-तीन चांटे मार दिए थे। और वह लड़की फिर भी मुस्कुराते हुए अविनाश को देख रही थी। तभी अविनाश ने उस लड़की से कहा था, "चाहे मैं तुम्हें कितना भी टॉर्चर करूँ, चाहे मैं तुम्हें कितना भी मारूँ, या कितनी भी तकलीफ़ दूँ, लेकिन तुम्हारे चेहरे से यह मुस्कुराहट कम नहीं होनी चाहिए। याद रखना, अगर तुम्हारी यह मुस्कुराहट कम हो गई, तो अविनाश रघुवंशी उसी वक्त तुम्हारी जान ले लेगा।"
जैसे ही अविनाश ने यह कहा, राघव बैठा हुआ थर-थर काँपने लगा था। और तभी उस लड़की को अविनाश ने बड़े ही जंगली तरीके से पकड़कर चूमना शुरू कर दिया था।
अविनाश रघुवंशी एक बड़ी ही खूबसूरत लड़की के साथ था। उसने अचानक उस लड़की को दो-तीन चांटे मार दिए। वह लड़की फिर भी मुस्कुराते हुए अविनाश को देख रही थी। तभी अविनाश ने उससे कहा, "चाहे मैं तुम्हें कितना भी टॉर्चर करूँ, चाहे मैं तुम्हें कितना भी मारूँ, या कितनी भी तकलीफ दूँ, लेकिन तुम्हारे चेहरे से यह मुस्कुराहट कम नहीं होनी चाहिए। याद रखना, अगर तुम्हारी यह मुस्कुराहट कम हुई तो अविनाश रघुवंशी उसी वक्त तुम्हारी जान ले लेगा।"
जैसे ही अविनाश ने यह कहा, राघव बैठा हुआ थर-थर काँपने लगा। तभी अविनाश ने उस लड़की को बड़े ही जंगली तरीके से पकड़कर चूमना शुरू कर दिया। वह लड़की दर्द में होते हुए भी मुस्कुरा रही थी।
फिर अविनाश ने उस लड़की को सीधा बेड पर पटक दिया। उसने उसके कपड़े उतारने के बजाय, कैंची से काटकर उसके जिस्म से अलग कर दिया और बड़ी ही बेरहमी से उसे अपनी हवस का शिकार बनाने लगा। इस बीच उसने उस लड़की को कई चांटे मारे, यहाँ तक कि एक बार तो उसने उसके नाक पर मुक्का भी मारा जिससे उसकी नाक से खून निकलने लगा। लेकिन लड़की ने एक पल के लिए भी अपनी मुस्कुराहट कम नहीं की।
अविनाश का इतना भयानक और जानवरों जैसा रूप और बर्ताव देखकर राघव के हाथों के रोएँ खड़े हो गए। अविनाश उस लड़की के साथ केवल शारीरिक संबंध ही नहीं बना रहा था, बल्कि जब वह उसके अंदर प्रवेश कर रहा था, तब भी उसे इतनी तकलीफ दे रहा था मानो उस लड़की की जान इसी वक्त चली जाएगी। लेकिन अविनाश को उस वक्त उस लड़की को दर्द में मुस्कुराते हुए देखकर बहुत मज़ा आ रहा था। वह किसी भी कीमत पर उसे एक पल के लिए भी साँस नहीं लेने दे रहा था।
अब राघव के लिए यह सब देख पाना बहुत मुश्किल हो गया था। इसलिए वह वहाँ से उठा और सीधा बाहर आ गया। तभी गायत्री रघुवंशी, जो बाहर राघव का इंतज़ार कर रही थी, बोली, "क्या हुआ बेटा?"
"मैं...मैं...मेरे बेटे का यह जानवर रूप नहीं देख पाया।"
"मैं भी नहीं देख पाई थी। तुम जानते हो, यह वीडियो मेरे भरोसेमंद आदमी जतिन ने बनाई थी। उस वक्त हमें सिर्फ हल्का सा अंदेशा था कि अविनाश कुछ न कुछ गलत कर रहा है, लेकिन वह इस हद तक गलत कर रहा था, इसके बारे में हमें दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था। और जब हमने यह सब कुछ वीडियो में देखा, तब हमारी इतनी बुरी हालत हुई कि हम तुम्हें क्या बताएँ।"
तब राघव बिना कुछ बोले वहाँ से सीधा जाकर हॉल में बैठ गया और इधर-उधर हॉल के चक्कर काटने लगा। गायत्री ध्यान से राघव की हर हरकत को देख रही थी और बोली, "क्या हुआ बेटा? तुम इस तरह का बर्ताव क्यों कर रहे हो? अगर तुम्हारे मन में किसी तरह की कोई बात है तो तुम हमें बता सकते हो।"
तभी राघव तुरंत गायत्री के पास आया और उनके हाथों को पकड़कर कहने लगा, "आंटी जी, मुझे नहीं पता कि मैं आपका बेटा बन पाऊँगा या नहीं, लेकिन किसी औरत के साथ इस तरह की घटिया हरकत मैं दूर से दूर तक नहीं कर पाऊँगा। यह मुझसे नहीं होगा।"
गायत्री ने राघव का हाथ पकड़ लिया और बोली, "बेटा, तुम कोई भी गलत काम नहीं कर सकते हो। और रही बात इस वीडियो की, यह वीडियो गलती से बना था, लेकिन इससे तुम्हें इस बात का अंदाज़ा तो हो गया न कि अविनाश औरतों के साथ किस तरह का बर्ताव किया करता था। तो अगर कभी कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए जहाँ किसी को तुम पर शक न हो, तो तुम्हें एक-दो बार इस तरह की हरकत भी करनी पड़ सकती है।"
जैसे ही गायत्री ने यह कहा, राघव हैरान था। तभी गायत्री ने आगे कहा, "हम जानते हैं कि तुम्हें कहीं न कहीं सारी चीज़ें बहुत ज़्यादा अजीब लग रही होंगी, लेकिन बेटा, जो सच है, हम तुम्हें सिर्फ और सिर्फ वही दिखा रहे हैं, ताकि कोई भी तुम पर किसी तरह का इल्ज़ाम न लगा सके।"
गायत्री की बात सुनने के बाद, राघव थोड़ी देर के लिए चुप हो गया और जल्दी ही वहाँ से चला गया। इस तरह की बातें राघव को काफी ज़्यादा असहज लगती थीं। उसे अच्छी तरह से याद था जब पहली बार वह सरिता के साथ अंतरंग हुआ था और सरिता ने हँस-हँस कर सारी बातें अपनी दोस्तों के साथ शेयर की थीं। राघव को काफी शर्म महसूस हुई थी, वह शर्म सरिता को आनी चाहिए थी, लेकिन वह शर्म राघव को आई थी। इसलिए उसे इस तरह से किसी लड़के-लड़की का अंतरंग दृश्य देखना काफी निजी बात लगती थी, जो इस तरह से सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए थी।
लेकिन आज अविनाश के वीडियो देखने के बाद वह समझ चुका था कि अविनाश कितना बड़ा क्रूर था। उसने सोच लिया था कि अब वह सबसे पहले अविनाश की पूरी कहानी पता करेगा; आखिरकार अविनाश कौन था, और आखिर उसके साथ ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से उसकी जान चली गई, या फिर वह सचमुच मरा भी है या फिर वह ज़िंदा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अगर वह अविनाश रघुवंशी बनकर उसकी जगह पर जाता है और उसके कुछ दिनों बाद असली अविनाश आ जाता है तो फिर क्या होगा? कहीं न कहीं राघव का दिमाग अब उलटी-सीधी चीज़ों में दौड़ने लगा था।
कुछ देर अपने कमरे में इधर-उधर टहलने के बाद वह एक जगह बैठ गया, लेकिन उसकी आँखों के सामने बार-बार अविनाश का उस लड़की के साथ इस तरह का व्यवहार याद आ रहा था। उसे रह-रहकर काफी बुरा लग रहा था। क्योंकि राघव यह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि कोई भी आदमी, चाहे वह अविनाश रघुवंशी हो या राघव हो या कोई और हो, किसी को भी किसी भी औरत के साथ इस तरह की घटिया हरकत करने का हक नहीं है। हालाँकि औरत के नाम पर राघव की ज़िंदगी में सिर्फ सरिता और उसकी माँ थीं, लेकिन उन्होंने भी उसे औरत का केवल नकारात्मक रूप ही दिखाया था। लेकिन उसके बाद भी राघव के मन में औरतों के लिए इतनी इज़्ज़त थी जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।
कुछ देर सोचते हुए राघव एक बार फिर गायत्री के सामने जाकर खड़ा हो गया और कहने लगा, "गायत्री मैम, आपसे कुछ बातें कहना चाहता हूँ।"
जैसे ही राघव ने यह कहा, गायत्री जी बड़े ही प्यार से बोलीं, "बेटा, तुम्हें हमें कुछ भी बात कहने के लिए, कुछ भी पूछने के लिए हमसे परमिशन लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा जब मन करे, तुम हमसे बातें कर सकते हो।"
अब जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव को गायत्री जी की बात बहुत पसंद आई। क्योंकि उसे अच्छी तरह से याद था कि अगर वह कभी किसी के सामने अपना मुँह भी खोला करता था तो उसे किस तरह से दुत्कार दिया जाता था, किस तरह से उसकी बेइज़्ज़ती की जाती थी। लेकिन अब गायत्री जी की इतनी प्यार भरी बातें सुनने के बाद, कहीं न कहीं राघव को बहुत अच्छा लग रहा था और मन ही मन में सोचने लगा था कि अगर ऊपर वाले ने उसकी किस्मत में माँ नहीं दी है, तो हो सकता है कि ऊपर वाले का प्लान मुझे माँ देने का देर से हो, इसीलिए उन्होंने गायत्री जी को मेरी ज़िंदगी में भेजा हो।
राघव को इस तरह से सोचते हुए देखकर गायत्री जी ने उसे कहा, "क्या हुआ बेटा? तुम कुछ बातें करने के लिए आए थे? क्या हुआ? बताओ, कोई परेशानी है क्या?"
तभी राघव हल्का सा आगे बढ़ा और गायत्री जी का हाथ पकड़कर उसे चूम लिया और उनका हाथ पकड़कर कहने लगा, "आप बहुत अच्छी हैं, बहुत अच्छी हैं! बहुत लकी था अविनाश कि आप उसकी माँ हैं। सचमुच, अगर मेरी भी कोई माँ होती, वह भी शायद आपके जितनी अच्छी नहीं होती। आप बहुत प्यारी हैं।"
जैसे ही राघव ने इस तरह से गायत्री जी की तारीफ़ करना शुरू की, गायत्री जी की आँखें नम हो गईं। क्योंकि जो सारी बातें वह अपने बेटे से सुनना चाहती थी, वह उसके बेटे के रूप में कोई और कह रहा था। कहीं न कहीं उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि जो बातें वह अविनाश के मुँह से सुनना चाहती थी, वह उसी के मुँह से सुन रही थी, लेकिन वह अविनाश नहीं, राघव था। इसलिए वह खुद को तसल्ली दे रही थी। क्योंकि गायत्री जी ने अविनाश के लिए काफी त्याग किए थे। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी ही अविनाश के लिए कुर्बान कर दी थी। वरना, रमन के धोखे के बाद उसने सोच लिया था कि वह रमन को छोड़ देगी, तलाक ले लेगी या कहीं अलग रह लेगी। क्योंकि गायत्री जी शुरू से ही एक काफी ज़्यादा मज़बूत व्यक्तित्व वाली महिला थीं। उसने कभी जिंदगी में रोना-धोना या इस तरह का कुछ नहीं सीखा था, लेकिन अविनाश के पैदा होने के बाद उसने सोच लिया था कि शायद उसके जिंदगी में पति का प्यार न सही, तो बेटे का प्यार होगा। इसलिए उसने अपने बेटे को अपना सारा प्यार न्यौछावर किया था और अपनी पूरी ज़िंदगी, अपनी पूरी जवानी सिर्फ और सिर्फ अविनाश को पालने में गुज़ार दी थी। लेकिन जब उसने अविनाश की इस तरह की घटिया हरकतें, औरतों के साथ उसका बर्ताव, इतना ही नहीं, जब अविनाश सीधे मुँह अपनी माँ से बात तक नहीं किया करता था, तब गायत्री जी पर क्या बीतती थी, गायत्री जी अच्छी तरह से जानती थीं। और एक दिन, उसकी आँखों के सामने अविनाश ने बड़ी ही बेरहमी से सिया के साथ बदतमीज़ी की थी। वह दिन और आज का दिन ऐसा था कि गायत्री जी अविनाश को कभी माफ़ नहीं कर पाई थीं।
तभी उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं क्योंकि इससे आगे वह कुछ भी सोचना नहीं चाहती थीं। तभी उन्होंने राघव को देखते हुए कहा, "बच्चा, तुम आज अचानक से मेरी इतनी तारीफ़ क्यों कर रहे हो? और हाँ, मैं तुम्हें प्यारी लग रही हूँ क्योंकि तुम खुद बहुत प्यारे हो, तुम खुद बहुत अच्छे हो, रियली बेटा! मैं जानती हूँ कि तुमने अपनी ज़िंदगी में काफी सारे दुख झेले हैं, काफी सारी बेइज़्ज़ती फ़ेस की है, लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हारी ज़िंदगी में अब कोई दुख नहीं होगा और कोई तुम्हारी बेइज़्ज़ती करने के बारे में तो सोच भी नहीं सकता! क्योंकि तुम्हारी ज़िंदगी में अगर कुछ होगा तो सिर्फ़ और सिर्फ़ सुख ही सुख होगा! और हाँ, हमें पूरी उम्मीद है कि इस वीडियो को तुम बिल्कुल अपने काम का ही एक हिस्सा लोगे, इसके बारे में ज़्यादा नहीं सोचोगे। और तुम बहुत अच्छा अविनाश रघुवंशी बनोगे, जैसा अविनाश रघुवंशी का हम सपना देखते हुए आए हैं।"
जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा, राघव ने तुरंत अपनी गर्दन नीचे झुका दी और कहने लगा, "आप जानती हैं, जब से आप मेरी ज़िंदगी में आई हैं, तब से मैं आपसे कितनी बार यह बातें बोल चुका हूँ, लेकिन आज एक बार फिर मैं आपको बोलना चाहता हूँ। मैं अपनी जान ख़त्म करने के लिए जा रहा था, लेकिन आपने मेरी ज़िंदगी बचाई है। तो मेरी ज़िंदगी पर किसी का हक है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपका है! आप जो कहेंगी, मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ वही करूँगा और मेरी यह पूरी ज़िंदगी सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी अमानत रहेगी। और कल से मैं बिल्कुल पूरी तरह से अविनाश के रंग-रूप में खुद को ढाल लूँगा।"
जैसे ही गायत्री जी ने यह कहा राघव ने तुरंत अपनी गर्दन नीचे झुका दी थी और कहने लगा था अब जानती है जब से आप मेरी जिंदगी में आए हैं तब से मैं आपसे कितनी बार यह बातें बोल चुका हूं लेकिन आज एक बार फिर मैं आपको बोलना चाहता हूं मैं अपनी जान खत्म करने के लिए जा रहा था लेकिन आपने मेरी जिंदगी बचाई है तो मेरी जिंदगी पर किसी का हक है तो सिर्फ और सिर्फ आपका है,!!!!!!!! आप जो कहेंगे मैं सिर्फ और सिर्फ वही करूंगा और मेरी यह पूरी जिंदगी सिर्फ और सिर्फ आपकी अमानत रहेगी और कल के बाद में बिल्कुल पूरी तरह से अविनाश के रंग रूप में खुद को ढाल लूंगा।।।।।।।।। और मैं पूरी का पूरी कोशिश करूंगा कि मैं कभी भी मेरी वजह से आपको नीचे ना देखना पड़े, जैसे ही राघव ने यह कहा अचानक से गायत्री जी ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया था ,,,, ।।।।और उसके सर पर हाथ रखकर कहने लगी थी ,,।।। हमें पूरी उम्मीद है मेरे बच्चे की तुम सभी उम्मीदों पर खरे और एक बहुत अच्छे लोगों के मसीहा बनोगे तब जैसे ही गायत्री जी ने राघव को लोगों का मसीहा कहा राघव हैरान था ,,।।। और उसकी आंखों में कितने ही सारे सवाल आ गए थे तब गायत्री जी उसका हाथ पकड़ कर उसे बेड बिठाते हुए कहने लग तुम यहां बैठो हम तुम्हें समझाते हैं बेटा हमें तुम्हें पहले दिन से ही कह रहे हैं कि अविनाश के नाम पर पूरे 50000 करोड़ है,,,।।।।।। लेकिन साथ ही साथ 70000 लोगों की जिम्मेदारी भी अविनाश के ऊपर है, ।।।।। । Tum जानते हो कितने सारे लोग अविनाश की कंपनी मे काम कर रहे हैं और वहां से तनुखा पा रहे हैं ,।।।।।। और उनके परिवार के लोगों का लालन पालन हो रहा है कितने ही सालों से यह काम होता रहा है ,,।। अविनाश जब 15 साल का था तब से ही उसने अपना काम संभाल लिया था ,,।। हालांकि पूरा परफेक्ट बिजनेसमैन वह तब बना था जब वह विदेश से अच्छी तरह से बिजनेस की नॉलेज लेकर आया था लेकिन घर पर रहकर यह अपने दादा के साथ जा जाकर धीरे-धीरे उसने अच्छी तरह से काम संभालना शुरू कर दिया था केवल 15 साल की उम्र में ही काफी कुछ उसने सीख लिया था ,।।।।।।।।।। लेकिन अविनाश को शुरू से ही अपनी अमीरी का बहुत ज्यादा घमंड था अविनाश को शुरू से ही अमीरी का बहुत ही ज्यादा घमंड था जिसकी वजह से आज वह इस दुनिया में नहीं है उसका घमंड उसकी जिद उसका गुस्सा ही उसे आज ले डूबा है ,,।। तुम जानते हो सभी लोगों ने आज तक सिर्फ और सिर्फ उसे बद्दुआ ही दी है किसी ने भी उसे दुआ नहीं दी है उसने गरीबों को इतना परेशान किया था उसकी फैक्ट्री पर काम करने वाले लोगों का वहां काम करना उनकी मजबूरी थी क्योंकि उनका परिवार इस फैक्ट्री से खाना खाता था इस फैक्ट्र इस फैक्ट्री से उन लोगों का पेट भरता था ।।।।।।। सिर्फ और सिर्फ इसी वजह से सभी लोग अविनाश की बदतमीजी या सहन करते थे ,,।।। अविनाश जब मर्जी किसके किसी की कहीं कहीं भी बेज्जती कर दिया करता था अगर कोई मजदूर एक दिन उसे सलाम करना भूल जाया करता था तो उसके पूरे दिन की तनख्वाह काट लिया करता था ,,।।।। सभी मजदूरों के दिल में उसने एक अलग ही तरह का खौफ पैदा कर रखा था,,।।। लेकिन मेरे बच्चे अब मैं चाहती हूं कि तुम सभी मजदूरों के अंदर अविनाश का वह खौफ निकाल कर मोहब्बत पैदा करो अब जो कोई भी तुम्हें देखें तो उसके दिल से तुम्हारे लिए बद्दुआ ना निकले बल्कि सिर्फ और सिर्फ दुआएं निकले,,।।।।।।।।। और हमें पूरी उम्मीद है कि जो काम अविनाश नहीं कर पाया वह तुम जरूर करोगे,,।।। क्योंकि तुम भी उन लोगों में से ही एक हो जो लोग अपने परिवार का मेहनत मजदूरी करके पालन पोषण कर रहे हैं,,।।।।। अगर फैक्ट्री कौ मजदूरों की जरूरत है तो फिर तुम मजदूरों को भी फैक्ट्री की जरूरत है ,,।। और हमें पूरी उम्मीद है रघुवंशी अंपायर का काम तुम बहुत अच्छी तरह से संभालोगे,,।,।। और तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है हम चपे चप्पे पर तुम्हारे साथ होंगे,,।। हर कदम पर हम तुम्हारे साथ रहेंगे और सारी चीज हम तुम्हें खुद सिखाएंगे ,,। बस उससे पहल उससे पहले बस तुम्हें थोड़ी सी मेहनत करनी होगी अविनाश के जैसा रहना बोलना खाना पीना सीखना होगा चलना सीखना होगा ,,।। और किस से तुम्हारा क्या रिश्ता है उसके अकॉर्डिंग तुम्हें सारी बातें करनी होगी ,!!! !इतना ही नहीं 24 घंटे हमारा एक आदमी जतिन तुम्हारे साथ रहेगा जो कि तुम्हें हर पल हर मोमेंट पर गाइड करेगा,,,!!! तो तुम्हें बिल्कुल भी परेशानि या घबराना नहीं है तो मैं अविनाश की तरह थोड़ा सा रूड और बदतमीज भी होना पड़ सकता है,!!!!! अब जैसे गायत्री जी ने एक बार फिर अविनाश के बारे में जानकारी देना शुरू की राघव काफी हैरान था,!!! मन ही मन में से डर उससे पहले बस तुम्हें थोड़ी सी मेहनत करनी होगी,!!!!! लेकिन अब जैसे-जैसे वह गायत्री जी की बातें सुन रहा था तो कहीं ना कहीं उसके मन में कॉन्फिडेंस भी जन्म लेता जा रहा था ,,,, उसने सोच लिया था कि अब चाहे कुछ भी हो जाए चाहे वह पकड़ा ही क्यों न जाए लेकिन अब वह इस मां की सारी इच्छाएं जरूर पूरी करेगा,!!!! क्योंकि कहीं ना कहीं अपने मन में वह गायत्री जी को मां का मुकाम दे चुका था!!!!! वेल वहीं दूसरी और राहुल सरिता को ढेर सारी शॉपिंग करने के बाद सीधा उसे सनलाइट होटल में ले गया था और क्योंकि राहुल थोड़ा सा ठरकी किसम का आदमी था, तो अगर किसी दिन वह सरिता के साथ इंटीमेट नहीं हो पाता था, तो वह किसी न किसी लड़की को बहला फुसला कर या पैसे देकर किसी ने किसी बहाने से या स्क्वाड गर्ल को बुला लिया करता था ,!!!!!! तो इसीलिए उसे कमरे का एक होटल रूम हमेशा उसके लिए बुक रहा करता था,!!!!! तो जैसे ही सरिता वहां गई उसे कुछ अजीब सा लगने लगा था लेकिन राहुल तो उसे कमरे में जाकर एकदम से वह शेर हो जाता था,,, क्योंकि उस कमरे में वह खुल कर जो चाहता था वह कर सकता था,.. तो इसीलिए सरिता को इतने करीब देखने के बाद राहुल भूखे भेड़िया की तरह उस पर टूट पड़ा था,... और उसने बड़ी ही बुरी तरह से उसके साथ फिजिकल रिलेशन बनाया था,!!!!!! सरिता काफी हद तक दर्द में थी और आज उसे राघव की बहुत ही ज्यादा याद आ रही थी,,, क्योंकि उसे अच्छी तरह से याद था जब वह राघव से उसकी शादी हुई थी राघव ने उसे छुआ तक नहीं था सरिता ने खुद से ही शुरुआत की थी और उसे अपनी ओर आकर्षित किया था लेकिन उसके बाद भी राघव ने बड़े ही पोलाइट तरीके से उसके साथ जिस्मानी रिश्ता बनाया था,!!;;;; ऐसा लगने लगा था मानो कि वह सरिता को इतनी सी भी तकलीफ ना देना चाहता हो,!!;;;;!!! और कितने ही देर तक तक उसने केवल सरिता को प्यार ही प्यार किया था, एक बार भी उसने हल्के से किस में भी उसे तकलीफ नहीं दी थी, बड़े ही सहज तरीके से वह सरिता को किस किया करता था लेकिन आज राहुल ने किस ही नहीं बल्कि उसे कितने सारे व्हाइट दिए थे जिसकी वजह से कितनी ही जगह से उसे खून तक निकलना शुरू हो गया था ,!;;;;;; लेकिन उस वक्त राहुल अपनी हवस में पूरी तरह से अंधा हो चुका था, उसे तो सिर्फ और सिर्फ इस वक्त जो उसने शॉपिंग कराई थी उस का पूरा पैसा वसूल करना था,!!! राहुल आराम से थक कर सरिता के साथ कितनी ही देर तक रिश्ता बनाने के बाद सो चुका था ,!;;;; लेकिन सरिता तुरंत उठ खड़ी हुई थी उल्टी सीधी उसने अपनी साड़ी एक बार फिर पहनी थी ,,!!!! और जल्दी ही शॉपिंग बेग्स वगैरह लेकर वो वहां से निकल चुकी थी ,, सरिता ने सोचा कि जिस शॉपिंग बैग्स के लिए राहुल ने उसके साथ इस तरह की हरकतें की है तो भला वह शॉपिंग बेग्स क्यों छोड़े ,,, तो इसीलिए वह उन्हें लेकर अपनी मां के सीधा घर पहुंच चुकी थी ,,!!!! वही उसकी माँ ने जैसे ही सरिता के ऐसे ही बद हवास से हालत देखी तो वह हैरान हो गई थी ,..... और कहने लगी थी क्या हुआ है मेरी बच्ची तेरी एसी हालत किसने की, ;;;; तभी सरिता की आंखें अचानक से भारी हो गई थी और वह अपनी मां को गले से लगाकर रोने लगी थी,,, और कहने लगी थी, यह सब कुछ उसे राहुल ने मेरे साथ किया है मैं सोच भी नहीं सकती थी कि राहुल इतना ज्यादा घटिया निकलेगा ,!!!!! इससे अच्छा तो वह फटीचर राघव ही था कम से कम अगर मुझे प्यार किया भी करता था तो बहुत ही सहज तरीके से प्यार किया करता था ,!!!!! लेकिन यह राहुल यह तो दिन पर दिन अपनी सारी हदें भूलता जा रहा है, ;;;;!! और सारी सारी हदों को पार करता जा रहा है तब उसकी मां ने सरिता कहा था ,!;;;;;!! बेटी तुझे हो क्या गया है पहले राहुल के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना तुझे बहुत पसंद आता था,,, और तू राघव की गैर मौजूदगी में कभी अपने घर पर, कभी उसके साथ कहीं और , जाकर रिश्ता बनाया करती थी,,,,,लेकिन मैंने तुझे कभी भी रोका नहीं टोका नहीं क्योंकि कहीं ना कहीं मैं भी चाहती थी कि तेरी शादी राहुल से ही हो,,, इसीलिए मैं चाहती थी कि तू उसे अपने हुस्न के जाल में पूरी तरह से फंसा कर रख,,, लेकिन