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अगर तुम मिल जाओ( completed)

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--- "अगर तुम मिल जाओ" दो बिल्कुल अलग दुनिया के लोग… एक ज़िम्मेदार, सीरियस और बिज़नेस माइंडेड अर्जुन ओबेरॉय – ओबेरॉय खानदान का छोटा बेटा, जिसने हमेशा रिश्तों से ज़्यादा अपने काम को अहमियत दी। और दूसरी तरफ़ है सरगी सक्सेना – एक चुलबुली, ज़िं...

Total Chapters (40)

Page 1 of 2

  • 1. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 1

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    "सरगी, तू आज तो कम से कम गई,"

    ये बड़बड़ाते हुए एक लड़की ने जल्दी से स्कूटी का स्टैंड लगाया। भागती हुई, वह ऑफिस की बिल्डिंग की तरफ गई। वह इतनी जल्दबाजी में थी कि आगे देखती ही नहीं और जाकर किसी से टकरा गई। जिससे वह टकराई, वह एक खूबसूरत नौजवान था। सॉरी कहने की बजाय, वह उसके गले पड़ गई।

    "देखकर नहीं चल सकते? आँखें हैं या टिच बटन... मालूम नहीं कहाँ- कहाँ से आ जाते हैं..."

    वो सामने वाला इंसान उसकी बात सुनकर हैरान हो गया। क्योंकि गलती तो उसकी थी ही नहीं। गलती तो सरगी की ही थी। अब वो तो है ही ऐसी—चुलबुली, बिना सोचे-समझे बोलने वाली। यह हमारी खूबसूरत हीरोइन सरगी सक्सेना थी।

    असल में, सरगी को जॉब ज्वाइन किए हुए 2 महीने हो गए थे। सरगी अकाउंट डिपार्टमेंट में थी। जहाँ वह काम करती थी, वहाँ उसके नए मालिक आने वाले थे। यह कंपनी अर्जुन ओबरॉय नाम के आदमी ने खरीदी थी। सुना है, अर्जुन ओबरॉय बहुत ही खड़ूस आदमी है, जो लोग टाइम से काम नहीं करते, उन्हें वह अपनी कंपनी में नहीं रखता।

    सरगी आकर अपने क्यूबिक में बैठी। तभी सभी लोग खड़े हो गए। क्योंकि अर्जुन ओबरॉय भी ऑफिस में अभी-अभी इंटर हुआ था। सबसे पहले आकर, उसने अपने असिस्टेंट से अकाउंट डिपार्टमेंट की फाइल मँगवाई। उसके असिस्टेंट अतुल ने सबसे पहले सरगी को फाइल लेकर अंदर भेजा। सरगी पूछकर अंदर गई। उसने कहा, "सर, यह फाइल।" उसने अपने सामने उस इंसान को देखा जिससे वह टकराई थी। बेचारी सरगी! मालूम नहीं अब क्या होगा सरगी का।

    अब बात करते हैं हम अपनी स्टोरी के हीरो और हीरोइन के बारे में। अर्जुन ओबरॉय, उम्र 30 साल, काले बाल, गोरा रंग, भूरी आँखें, हल्की बियर्ड, हाइट 6 फुट के आसपास। अर्जुन ओबरॉय, अरिजीत ओबरॉय के छोटे बेटे थे। अरिजीत ओबरॉय के दो बेटे और एक बेटी थी। अर्जुन ओबरॉय उनका सबसे छोटा बेटा था। उनके दो बच्चों की शादी हो चुकी थी और उनके भी बच्चे थे। अर्जुन ओबरॉय के घर में कौन-कौन हैं, चलिए देखते हैं:

    दुर्गा ओबरॉय (अर्जुन ओबरॉय की दादी माँ), जिनका घर में हुक्म चलता था।
    अरिजीत ओबरॉय (अर्जुन ओबरॉय के डैड)
    आनंदी ओबरॉय (अर्जुन ओबरॉय की माँ)
    अभिजीत ओबरॉय (अर्जुन ओबरॉय के बड़े भाई)
    पामेला ओबरॉय (अर्जुन ओबरॉय की भाभी और अभिजीत की वाइफ)
    जानवी कपूर (अर्जुन ओबरॉय की बड़ी बहन)
    सैम कपूर (जानवी कपूर के पति)

    हमारी कहानी में और भी किरदार हैं, जो जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे हम आपको उनसे मिलवाते जाएँगे।

    अर्जुन ओबरॉय इन सभी का लाडला था। वैसे, वो एक खुशमिजाज लड़का था। घर में वह सभी से प्यार करता था। अपनी दादी माँ की बात तो वह बिल्कुल नहीं टाल सकता था। घर के बाहर, ऑफिस में वो एक खड़ूस इंसान था। उसने अपने बिजनेस में अपना नाम बनाने के लिए पापा और भाई के साथ बहुत मेहनत की थी। उसकी असली खुशमिजाज नेचर के बारे में बाहर के लोग बिल्कुल नहीं जानते थे। लड़कियों से उसका कोई वास्ता नहीं था और ना ही कोई शादी में इंटरेस्ट था। उसे सिर्फ अपने काम से प्यार था।

    अब बात करते हैं सरगी सक्सेना की। उसने एमबीए किया था और उसके बाद जिस कंपनी को ज्वाइन किया, उस कंपनी को अर्जुन ओबरॉय ने खरीद ली थी। इसलिए कह सकते हैं, सरगी सक्सेना अर्जुन ओबरॉय की कंपनी में काम करती थी।

    इसका मतलब यह नहीं है कि वह मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करती थी। उसकी फैमिली का अच्छा-खासा बिजनेस था। सक्सेना, उसके घर में उसके मॉम, डैड, भैया, भाभी सब थे। उनका अपना अच्छा-खासा फैमिली बिजनेस था। सरगी भी उसी बिजनेस को ज्वाइन करना चाहती थी। मगर वह चाहती थी कि पहले वह लोअर लेवल पर काम करके कुछ एक्सपीरियंस हासिल कर ले। उसके बाद वह अपना बिजनेस ज्वाइन करेगी। अगर वह सीधे अपनी कंपनी में काम करने लगेगी, तो उसकी काबिलियत का किसी को पता नहीं चलेगा। सब समझेंगे कि वह अपने घर की कंपनी की वजह से इस मुकाम पर है। चलिए अब देखते हैं सरगी की फैमिली में कौन-कौन हैं:

    राम सक्सेना (सरगी के डैड)
    रीमा सक्सेना (सरगी की मॉम)
    समर सक्सेना (सरगी का बड़ा भाई)
    करिश्मा सक्सेना (सरगी की भाभी)

    यह सब लोग सरगी की फैमिली थे। सरगी बड़ी प्यारी लड़की थी। उसे भी अपनी फैमिली से बहुत प्यार था और वह अपने परिवार के लिए कुछ भी कर सकती थी। वह मॉम, डैड के साथ-साथ भाई और भाभी की भी लाडली थी। वह अपने भाई की कोई बात नहीं मोड़ती थी और उसका भाई भी उसकी हर बात मानता था।

    वह बोलने से पहले एक बार भी नहीं सोचती थी। जो उसके मन में आता था, वह बोलकर ही रहती थी, चाहे बाद में उसका परिणाम जो भी हो। जैसी बड़बोली सरगी घर में थी, वैसी ही बोलने वाली लड़की बाहर भी थी। घर के बाहर और घर में उसका कोई फर्क नहीं था। जब वह बोलना शुरू करती थी, तो वह बिल्कुल नहीं सोचती थी कि इसका क्या मतलब होगा।

    सरगी देखने में बहुत सुंदर थी। उसका रंग गोरा, काली आँखें, काले बाल, हाइट 5 फुट 4 इंच और स्वभाव बहुत प्यारा, जो सामने वाले का दिल जीत ले। सरगी के भाई के भी दो बेटे थे, जिनसे वह बहुत प्यार करती थी। अर्जुन ओबरॉय की बहन और भाई के भी बच्चे थे, जो सरगी के भाई के बच्चों के साथ स्कूल में साथ पढ़ते थे।

    कैसे मिलेंगे अर्जुन और सरगी?

    क्या होगा जब यह दोनों टकराएँगे?

    क्या होगा उनकी आने वाली ज़िंदगी में?

  • 2. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 2

    Words: 1072

    Estimated Reading Time: 7 min

    सरगी फाइल लेकर अपने बॉस के सामने पहुँची। तब उसे पता चला कि जिससे वह टकराई थी, वही उसका नया बॉस है। मगर फिर भी अनजान बनते हुए, उसने फाइल अर्जुन ओबरॉय के सामने रखी। अर्जुन का उसे देखकर मूड खराब हो गया। उसे वही बिंदास लड़की दिखाई दी।

    गलती इस लड़की की थी, पर फिर भी उसने उसे सुना दिया था। मगर उसने अपने काम पर ध्यान देना ज़रूरी समझा। क्योंकि फ़ालतू बातों में पड़ना अर्जुन को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

    "मेरे कंपनी खरीदने से पहले company में जिस प्रोजेक्ट पर काम हो रहा था, मुझे उस प्रोजेक्ट की फाइल चाहिए।" अर्जुन ओबरॉय ने कहा।

    "जी सर, मैं अभी 2 मिनट में लेकर आती हूँ।" सरगी सक्सेना ने उत्तर दिया।

    सरगी 5 मिनट में फाइल लेकर आ गई। अर्जुन ओबरॉय ने प्रोजेक्ट के बारे में जो भी प्रश्न सरगी से किए, उनका उसने सही उत्तर दिया। सरगी की फाइल में हर अकाउंट डिटेल बड़े क्लियरली लिखा गया था। उसे हर चीज़ की नॉलेज थी।


    प्रीति, जो उसकी कलीग थी और उसकी अच्छी सहेली भी, लंच टाइम शुरू हो गया पर सरगी अपना लंच करने नहीं उठी।

    "आज तुम लंच नहीं लेकर आई?" प्रीति ने पूछा।

    "नहीं यार, लाई तो हूँ... पर क्या करूँ, काम ही इतना है... मैं यहीं सीट पर बैठकर ही खा लूँगी... अगर मैं उठकर गई तो मुझे ज़्यादा टाइम लग जाएगा और मुझे इस प्रोजेक्ट पर कुछ काम करना है..." सरगी ने कहा।

    "ठीक है.. मैं भी तेरे पास बैठकर ही खाना खा लेती हूँ..."

    दोनों सहेलियों ने सीट पर बैठकर ही खाना खाया। लंच करने के बाद प्रीति अपने फ़ोन से खेलती रही, मगर सरगी अपने काम में लगी रही।

    अर्जुन ओबरॉय सीसीटीवी कैमरे में उन सबको देख रहा था। उसकी नज़र पूरे ऑफिस पर थी। वह सारे इम्प्लॉइज़ को बड़े ध्यान से स्टडी कर रहा था। अर्जुन ने सोच रखा था कि जो इम्प्लॉइज़ काम नहीं करेंगे, उन्हें वह निकाल देगा। वह सिर्फ़ काम करने वाले लोगों को ही रखेगा।

    अर्जुन ओबरॉय रोज़ सबके आने से पहले ऑफिस पहुँच जाता था और सबके जाने के बाद जाता था। जब अर्जुन ने जो कंपनी खरीदी थी, तब वह नुकसान में जा रही थी। वह कैसे भी इसे आगे ले जाना चाहता था। इसलिए वह दिन-रात मेहनत कर रहा था। और जो दिन-रात मेहनत से काम करने वाले कर्मचारी थे, वे कर्मचारी अर्जुन ओबरॉय को पसंद थे। सरगी सक्सेना एक मेहनती लड़की थी। वह अपना सारा काम बड़ी ईमानदारी और मेहनत से करती थी। मगर सरगी की एक बुरी आदत थी: वह बहुत बोलती थी और बोलते समय बिल्कुल भी नहीं सोचती थी।

    जब मैं ऑफिस में आता था, तो उसे सिर्फ़ सरगी ही बोलती सुनाई देती थी। "यह लड़की बोलते हुए थकती नहीं है क्या..." अर्जुन अपने मन में सोचता था। इतना तो वह जान गया था कि इसे चुप कराना नामुमकिन है, मगर वह अपने काम के प्रति सीरियस है, उसे यह भी पता चल गया था।

    सरगी अपनी सीट से उठकर दूसरे केबिन की तरफ़ जा रही थी। वह चलते-चलते अचानक किसी को पीछे देखने लगी। इसी समय अर्जुन ओबरॉय अपने ऑफिस से बाहर निकला और सरगी पीछे देखकर चलती हुई उससे एकदम से टकरा गई।

    अर्जुन नीचे था और सरगी उसके ऊपर। पूरा ऑफिस यह नज़ारा देख रहा था। फिर सरगी ने उठने की कोशिश की, मगर वह खड़ी होने की जगह फिर गिर गई। पूरे ऑफिस में सब लोग मुँह छुपाकर हँस रहे थे। सरगी भी बहुत ऑकवर्ड फील कर रही थी और अर्जुन उसे जला देने वाली नज़रों से देख रहा था। वे दोनों बड़ी मुश्किल से खड़े हुए।

    "..मिस सक्सेना, पीछे देखकर नहीं, आगे देखकर चलना चाहिए।" अर्जुन ने गुस्से से कहा और आगे चला गया।

    ऐसा नहीं था कि सरगी फिर अर्जुन से टकराई नहीं थी। एक बार सरगी पीछे देखते हुए चलती जा रही थी। आगे से अपनी केबिन का दरवाज़ा खोलकर बाहर आया तो पीछे देखती हुई सरगी उससे टकरा गई। अर्जुन भी गिर पड़ा, उसके ऊपर सरगी। पूरा ऑफिस उन दोनों को देख रहा था। अर्जुन को बहुत गुस्सा आया।

    ऐसे हादसे एक बार नहीं, कई बार अर्जुन और सरगी के साथ हुए। और इन सब की वजह सरगी ही थी। सरगी कितनी ही कोशिश करती कि वह अर्जुन से दूर रहे, पर पता नहीं कैसे अपने आप ही उसके लपेटे में आ ही जाती थी।

    ये शायद इसलिए एक-दूसरे के साथ लपेटे में आ जाते थे क्योंकि किस्मत इन दोनों को एक साथ देखना चाहती थी।


    "...मुझे तुम दोनों साथ में बहुत अच्छे लगते हो..." प्रीति अक्सर सरगी से कहती थी। उसकी बात सुनकर सरगी उसकी आँखें दिखाने लगती थी। "...जिंदगी में अगर तुम मेरी सच्ची सहेली हो ना... तो मुझे उसका नाम जिंदगी में कभी मत लेना... कभी उसको हँसते देखा है? अगर हँस पड़ेगा तो मौत आ जाएगी इसको... मेरा मिस्टर राइट तो वह होगा जो मेरे सारे नखरे उठाएगा... और जब मैं हँसूँगी तो मेरे साथ हँसेगा..." दोनों सहेलियाँ कितनी देर ऐसी बातें करती रहती थीं।

    अचानक एक दिन प्रीति ऑफिस लेट पहुँची और सबको इनवाइट करने लगी क्योंकि कल उसकी सगाई थी। सरगी उसकी बात सुनकर बोली, "तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली, पहले तुमने कुछ बताया ही नहीं।"

    "मैं कैसे बताती? मुझे खुद को नहीं पता था कि कल मेरी सगाई है। कल ही रमेश देखने के लिए आया और आज मेरी सगाई तय हो गई।"

    "..ओ हो, तो तुम बड़ी छुपी रुस्तम निकली। एक ही दिन में सब कर लिया!" दोनों सहेलियाँ हँसती हैं। प्रीति ने ऑफिस में अपने कलीग्स के साथ-साथ अर्जुन ओबरॉय को भी इनवाइट किया।

    सरगी प्रीति के प्रोग्राम में सबसे पहले पहुँची। अपनी सगाई के प्रोग्राम में प्रीति बहुत खूबसूरत लग रही थी। सभी लोग प्रीति और रमेश को बधाइयाँ देते हैं। मगर उसकी सगाई में सबसे सुंदर कोई लग रहा था, वह थी हमारी सरगी। लाइट कलर की फ्रॉक सूट में वह कहर ढा रही थी। अर्जुन ने हमेशा उसे जीन्स और टॉप में देखा था और ऑफिस में वह हमेशा बाल बाँधकर रखती थी। मगर अपनी दोस्त की सगाई में सरगी की खूबसूरती देखने लायक थी। सूट में, खुले बालों में और हल्के मेकअप में सरगी को देखकर एक बार तो अर्जुन भी अपने होश खो बैठा था।

    क्या इन दोनों की कोई स्टोरी बन सकेगी?

  • 3. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 3

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रीति ने अपने ऑफिस के कलीग और अर्जुन को अपनी सगाई के प्रोग्राम में आमंत्रित किया था। अपनी सगाई में प्रीति बहुत खूबसूरत लग रही थी। सभी लोगों ने प्रीति और रमेश को बधाई दी। मगर उस सगाई में सबसे सुंदर सरगी लग रही थी। सरगी लाइट कलर के फ्रॉक सूट में अद्भुत लग रही थी।

    अर्जुन ने उसे हमेशा जींस और टॉप में देखा था। ऑफिस में वह हमेशा अपने बाल बांधकर रखती थी। मगर अपनी दोस्त की सगाई में सरगी की खूबसूरती देखने लायक थी। सूट और खुले बालों में, हल्के मेकअप के साथ सरगी को देखकर अर्जुन भी कुछ पल के लिए मंत्रमुग्ध हो गया।

    सरगी ने अपनी सहेली की सगाई में खूब नाचा। गुरनाम भुल्लर के पंजाबी सॉन्ग पर उसने खूब डांस किया।

    "ओन्दे साक सी बथेरे पर मोड़ दी रही,
    मान चोटी दिया चोवरा दे तोड़ दी रही,
    तेरे मापिया दी बन गई नूं वे,
    जटी करमा च तेरे,
    कर्मा वाला तू भी वे।"

    प्रीति की सगाई में लड़कों को सरगी अच्छी लगी। मगर सरगी ने किसी पर ध्यान नहीं दिया। उसे किसी से कोई मतलब नहीं था; वह अपने आप में बहुत खुश थी। रमेश का एक दोस्त, रवि, ज़्यादा ही ज़िद्दी बन रहा था। उसने सरगी के पास आने की कोशिश भी की। रवि ने रमेश से कहा, "रमेश, प्रीति की सहेली सरगी से मेरी दोस्ती करा दे।" उसने उसे अपने साथ डांस करने के लिए भी कहा। मगर सरगी मुस्कुराते हुए मना करके चली गई।

    प्रीति को वॉशरूम जाना था, इसलिए वह सरगी को साथ लेकर वॉशरूम गई। इस बात से बेखबर, अर्जुन कॉरिडोर में एक तरफ खड़ा था। वह किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। दोनों सहेलियों की बातचीत शुरू हुई तो वह वहीं रुक गया।

    प्रीति: "अरे यार सरगी! इतने लड़के तुम पर मरते हैं। क्या तुम्हें कोई पसंद नहीं आता? उस रवि को देखो, कैसे रमेश की मिन्नतें कर रहा है तुमसे दोस्ती करने के लिए, तुमसे बात करने के लिए।"

    सरगी: "एक तो प्रीति, मुझे 'यार' मत कहा करो। सीधा मेरा नाम सरगी लो। और हाँ, मुझे अभी शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है।"

    प्रीति: "शादी की बात कौन कर रहा है? मैं तो बॉयफ्रेंड की बात कर रही हूँ।"

    सरगी: "मुझे कोई बॉयफ्रेंड नहीं बनाना। वैसे भी, मुझे अपने करियर पर ध्यान देना है। वैसे भी, जब तुम किसी को बॉयफ्रेंड बनाओगे, तो वह तुम्हारे पास आएगा। कोई मेरे इतने पास आए, मुझे पसंद नहीं। मैंने देखा है, कितनी लड़कियों के बॉयफ्रेंड हैं। जब वे उनके साथ डेट पर जाती हैं... मुझे सब कुछ पसंद नहीं।"

    प्रीति: "मैं तुमसे एक बात पूछूँ? तुम्हें हमारे अर्जुन सर कैसे लगते हैं?"

    सरगी: "अच्छे हैं! थोड़े ही दिनों में उन्होंने हमारी कंपनी को कैसे संभाल लिया!"

    प्रीति: "मैं वैसे नहीं पूछ रही। तुम दोनों साथ में मुझे बहुत अच्छे लगते हो। काश, तुम दोनों की शादी हो जाए!"

    सरगी (हंसने लगती है): "तुम्हें पता है, एक तो वह मुझसे उम्र में 8 साल बड़े हैं। और कुछ ही दिनों में उनकी सगाई होने वाली है।"

    प्रीति (हैरान होते हुए): "तुम्हें कैसे पता? तुम उनके बारे में इतना कुछ कैसे जानती हो?"

    सरगी: "तो सुनो, अर्जुन ओबरॉय, अरिजीत ओबरॉय के सबसे छोटे बेटे हैं। उनके एक बड़े भाई और एक बड़ी बहन हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। घर में एक भाभी हैं। बड़े भाई के दो बच्चे हैं, और उनकी बहन के भी दो बच्चे हैं। घर में एक प्यारी सी दादी माँ हैं। अनीता वर्मा, अशोक वर्मा की इकलौती बेटी से, इनकी सगाई और शादी होने वाली है। वह बहुत खूबसूरत है। अर्जुन और अनीता साथ में बहुत अच्छे लगते हैं।"

    प्रीति: "तुम इतनी बातें कैसे जानती हो? कहीं तुम ही तो अनीता वर्मा नहीं हो?"

    सरगी: "कोई बात नहीं, धीरे-धीरे बता दूँगी कि मैं सीआईडी एजेंट हूँ।" (हंसते हुए)

    उनकी सारी बातें अर्जुन ओबरॉय ने सुन ली थीं। उसे भी समझ नहीं आ रहा था कि सरगी सक्सेना उसके बारे में इतना कुछ कैसे जानती है।

    सगाई का प्रोग्राम खत्म हो गया। सभी अपने घर चले गए। मगर अर्जुन ओबरॉय सोचता रहा कि सरगी उसके बारे में इतना कैसे जानती है। उसने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उसकी आईडी ढूँढ़ने की कोशिश की। इस नाम की कई लड़कियों के अकाउंट दिखे, पर किसी पर भी सरगी की फ़ोटो नहीं थी। अर्जुन ओबरॉय का मन अजीब सा होने लगा। उसे लगा कि सरगी कहीं उसके बिज़नेस राइवल द्वारा भेजी हुई तो नहीं है।

    फिर अगले ही पल सोचने लगा कि सरगी तो कंपनी में पहले से ही काम करती है। उसका दिमाग सरगी में ही अटक गया था। पर उसे यह नहीं पता था कि दिमाग के साथ-साथ उसका दिल भी सरगी में अटकने वाला है। अर्जुन के फ़ोन पर अनीता वर्मा के कई कॉल आ चुके थे, पर अर्जुन सरगी में इतना खोया हुआ था कि उसने अनीता का कोई कॉल नहीं उठाया।

    अगले 2 दिनों तक अर्जुन ऑफिस नहीं आया। सरगी ने भी छुट्टी ले ली थी। अर्जुन की सगाई आज शाम को अनीता वर्मा के साथ होने वाली थी। उसी पार्टी में सरगी को भी जाना था।

    अर्जुन की सगाई का प्रोग्राम उसके बंगले में था। बंगले को दुल्हन की तरह सजाया गया था। बंगले के लॉन में सगाई की तैयारी की गई थी। अर्जुन की पूरी फैमिली बहुत खुश थी; उनके छोटे बेटे की आज सगाई थी। अनीता वर्मा, जिससे अर्जुन सगाई कर रहा था, उसे अर्जुन ने पसंद किया था, मगर वह उसकी फैमिली की भी पसंद थी। अनीता के पिता और अर्जुन के पिता दोनों दोस्त थे।

    लंदन की उस यूनिवर्सिटी से जहाँ अर्जुन ने एमबीए किया था, वहीं से अनीता ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था। दोनों एक-दूसरे को कॉलेज से जानते थे। जब अर्जुन के पिता ने अर्जुन से अनीता की बात की, तो अर्जुन ने हाँ कह दी। उसे लगा कि जब शादी करनी ही है, तो वह अनीता को जानता है, इसलिए अनीता से शादी करने में मुझे कोई समस्या नहीं होगी।

  • 4. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 4

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

    सगाई का प्रोग्राम शुरू होने वाला था। सारे मेहमान आ चुके थे। मगर अभी तक अनीता और उसके परिवार का कोई भी नहीं आया था। उनका ही इंतज़ार हो रहा था।

    अरिजीत ओबरॉय अशोक वर्मा को फोन लगा रहे थे। मगर उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। इस बात से उन्हें हैरानी हो रही थी। थोड़ी देर तो सभी को लगा कि शायद वे किसी वजह से लेट हो गए होंगे, पहुँचने वाले होंगे। मगर जब बहुत देर हो गई, तो उन सभी को चिंता होने लगी।

    अरिजीत जी ने अर्जुन के बड़े भाई अभिजीत को उनका पता करने के लिए भेज दिया। अभिजीत ओबरॉय जब वहाँ पहुँचे तो घर पर ताला लगा था। वह यह देखकर हैरान परेशान हो गया। वह वापस आ गया।

    उसने आकर कहा, "डैड, अशोक वर्मा के घर पर तो ताला लगा हुआ है। घर में तो कोई भी नहीं है।"

    "क्या?" उसके डैड ने कहा।

    "इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, अशोक वर्मा आकर अरिजीत ओबरॉय के पैरों पर गिर पड़े और बोले," मेरे दोस्त, मैं तुमसे माफ़ी चाहता हूँ। मेरी बेटी सगाई छोड़कर चली गई। क्योंकि वह मॉडल बनना चाहती थी, उसे एक कॉन्ट्रैक्ट मिला है। इसीलिए उसने सगाई से मना कर दिया और घर छोड़कर कहीं चली गई। मैं माफ़ी माँगता हूँ।"

    अरिजीत जी बोले, "अगर सगाई से मना ही करना था, तो पहले कर दिया होता। अब इस तरह मेहमानों के सामने हमारी बेइज़्ज़ती होगी। तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?"

    "मुझे पता है मैं आपका क़सूरवार हूँ, पर मेरे बस में कुछ भी नहीं है। मैं सचमुच बहुत शर्मिंदा हूँ।" अशोक वर्मा जी बोले।

    तभी अर्जुन की माँ, आनंदी ओबरॉय बोली, "अब क्या करें हम? घर में मेहमान आये हुए हैं।"

    अभिजीत ओबरॉय: "तो क्या हम बाहर जाकर कह दें कि सगाई नहीं हो रही?"

    तभी दादी जी आ गईं। वे आकर बोलीं, "ऐसे तो हमारी बहुत बेइज़्ज़ती हो जाएगी। तुम्हारे दादा जी की कमाई हुई इज़्ज़त खाक में मिल जाएगी। मुझे यह लड़की पहले ही पसंद नहीं थी। तब सोचना चाहिए था।"

    पामेला ओबरॉय (अर्जुन की भाभी और अभिजीत की धर्मपत्नी): "दादी माँ, आप बैठकर बात करें। आपकी तबीयत ठीक नहीं है।"

    दादी जी: "मेरी तबीयत अभी तक तो ठीक थी, मगर तुम लोगों की बातें सुनकर ख़राब हो गई।"

    अरिजीत ओबरॉय: "माँ, अब क्या हो सकता है? अब बाहर जाकर सबसे माफ़ी तो माँगनी पड़ेगी कि यह प्रोग्राम नहीं हो रहा।"

    दादी माँ: "अब तक तुम लोगों ने अपनी मर्ज़ी की। अगर आप मेरी बात मानोगे, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

    आनंदी ओबरॉय: "मगर कैसे माँ?"

    दादी माँ: "अगर अर्जुन मेरी पसंद की लड़की से सगाई करने को तैयार हो जाए। वह लड़की लाखों में नहीं, करोड़ों में एक है।"

    अरिजीत: "माँ, आप किसकी बात कर रही हैं?"

    दादी माँ: "तुम उस लड़की को और उसके परिवार को बहुत अच्छे से जानते हो।"

    अरिजीत: "किसकी बात कर रही हैं माँ, मेरी समझ नहीं आया?"

    दादी माँ: "सक्सेना फैमिली की बात कर रही हूँ। राम सक्सेना की बेटी, सरगी सक्सेना की।"

    अरिजीत: "बात तो आपकी ठीक है। लड़की तो अच्छी है। मगर सक्सेना साहब और अर्जुन, यह दोनों बात मानेंगे?"

    दादी माँ: "अगर तुम सब लोग मुझ पर छोड़ दो। सक्सेना साहब और अर्जुन दोनों से बात कर लूँगी। मगर तुम लोग कोई भी बीच में टांग मत अड़ाना।"

    आनंदी ओबरॉय: "माँ, आप ऐसा क्या करने वाली हैं? कुछ तो बताएँ?"

    दादी माँ अर्जुन को लेकर कमरे में चली गईं और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। दादी माँ अर्जुन से बोलीं, "बेटा, तुम मेरी जान हो! तुम्हारे लिए अगर मैं कोई लड़की पसंद करूँगी, तो ऐसी तो होगी नहीं जो तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दे। मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में एक ऐसी लड़की लेकर आना चाहती हूँ जो तुम्हारी ज़िन्दगी प्यार और खुशियों से भर दे।" दादी माँ की बात सुनकर अर्जुन बोला, "तो, ठीक है दादी माँ, जैसा आप चाहें वैसा करें। मैं अनीता वर्मा को जानता था, मगर मुझे लगता है कि मैं उसे बिल्कुल भी नहीं जानता था। कम से कम मैं आपको तो खुशी दे दूँगा। अगर आप मेरे लिए कोई लड़की पसंद करें, तो उससे मैं बिना देखे सगाई करूँगा और शादी करूँगा।"

    "अगर तुम चाहो तो सगाई से पहले उससे मिल सकते हो। बाद में मैं कुछ भी नहीं सुनूँगी। अनीता वर्मा की तरह तुम मेरे साथ मत कर देना अर्जुन। आप सोच लो। वैसे मुझे अभी लड़की और उसके परिवार से बात करनी है।"

    दरवाज़ा खोलकर अर्जुन बाहर आ जाता है। दादी माँ अभिजीत को अंदर बुलाती हैं। दादी राम सक्सेना को फ़ोन लगाने को कहती हैं। आगे से राम जी कहते हैं कि हम लोग आपके घर में पहुँच चुके हैं, तो दादी माँ उनको घर के अंदर आने को कह देती हैं। "तुम लोग मेरे रूम में चले आओ।"

    बाकी फैमिली नीचे ही रह जाती है। राम जी अकेले ऊपर दादी माँ के रूम में आ जाते हैं। दादी माँ उनको सारी बात बताती हैं। तो राम जी कहते हैं कि वे इतना बड़ा फ़ैसला कर नहीं सकते। अपने पूरे परिवार से सलाह करने की बात करते हैं और अपनी बेटी से भी पूछने के लिए कहते हैं।

    दादी माँ राम जी से कहती हैं कि आप लोग नीचे गेस्ट रूम में सलाह कर लें और मैं भी वहीं पर आती हूँ। (क्योंकि दादी माँ को उनके पास जाकर इमोशनल ब्लैकमेल कर सरगी का रिश्ता अर्जुन से जोड़ना था)

    राम जी अपनी पत्नी, अपने बेटे और पूरी फैमिली से बात करते हैं। तभी दादी माँ वहीं आ जाती हैं। वे सरगी से कहती हैं, "बेटा, मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ, यह बात तो तुम अच्छी तरह से जानती हो। मेरे पोते ने मेरी बात मानकर तुमसे बिना मिले सगाई के लिए हाँ कर दी। अगर तुम भी मुझ पर भरोसा रखो, तो याद रखना, यह तुम्हारी ज़िन्दगी का सबसे सही फ़ैसला होगा। इस दादी की झोली में खुशियाँ डाल दो। मरने से पहले मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो।"

  • 5. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 5

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

    दादी जी अर्जुन ओबरॉय और सरगी सक्सेना की सगाई कराना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने अर्जुन और सरगी दोनों से बात की। अर्जुन मान गया था। अब सरगी आगे क्या करेगी?

    सरगी ने दादी जी से कहा, "दादी मां, मैं अर्जुन को तो जानती हूं। अर्जुन सर भी मुझे जानते हैं। मैं उन्हीं के ऑफिस में काम करती हूं। मुझे नहीं लगता कि वह मुझे पसंद करते हैं।"

    "जब तुम मेरे बेटे को जानती हो, तो मुझे बताओ क्या वह अच्छा लड़का नहीं है?" दादी मां ने पूछा।

    "नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है। उन्होंने घाटे में जा रही कंपनी को थोड़े ही दिनों में बहुत अच्छे से संभाला है।" सरगी ने जवाब दिया।

    "क्या वह शराब पीता है? नशा करता है?" दादी मां ने पूछा।

    "नहीं, ऑफिस में तो ऐसा कभी नहीं हुआ।" सरगी ने कहा।

    "क्या वह ऑफिस में लड़कियों पर बुरी नजर रखता है? या लड़कियों से बदतमीजी से बात करता है?" दादी मां ने सवाल किया।

    "नहीं, सर तो सबकी बहुत इज्जत करते हैं और कभी किसी लड़की की तरफ आंख उठाकर नहीं देखते। बल्कि हमारे ऑफिस की सभी लड़कियां उन पर मरती हैं।" सरगी ने बताया।

    "तो फिर यह बताओ मेरे पोते में कमी क्या है? क्या तुम किसी और को पसंद करती हो?" दादी मां ने पूछा।

    "नहीं, मैं किसी को भी पसंद नहीं करती।" सरगी ने कहा।

    "तो फिर सगाई के लिए जल्दी से हां कर दो। पहले वो तुम्हारा बॉस था, अब जिंदगी भर के लिए तुम उसकी बॉस बन जाना।" दादी मां ने कहा।


    सरगी के माता-पिता, राम सक्सेना जी और रीमा सक्सेना जी को तो अर्जुन पहले से ही पसंद था। सरगी के भाई समर ने सरगी से कहा, "सोच लो, कुल मिलाकर अर्जुन अच्छा लड़का है। इतना अच्छा खानदान है। सब लोग तुझे पसंद करते हैं।" सबकी बातें सुनकर सरगी मना कैसे करती? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे हां कहना ही पड़ा। वह अर्जुन से डर भी रही थी कि कहीं उसे सामने देखकर अर्जुन उस पर गुस्सा न हो जाए।

    दोनों ही परिवार इस सगाई से खुश थे। अरिजीत ओबरॉय ने राम सक्सेना से कहा, "हमें यह ख्याल पहले क्यों नहीं आया? चलो अच्छी बात है कि बच्चे अब इस बंधन में बंध जाएंगे।"

    दादी ने अर्जुन से कहा, "एक बार सगाई से पहले लड़की से मिल लो।" तो अर्जुन ने कहा, "कोई बात नहीं दादी मां, अब तो मैं रिंग पहनाते हुए ही मिलूंगा। अगर आप खुश हैं तो मैं भी बहुत खुश हूं।"

    सरगी ने कहा, "दादी मां, क्या मैं इन्हीं कपड़ों में सगाई कर लूं?" दादी मां ने कहा, "हाँ तुम परी लग रही हो! तुम्हें कपड़े बदलने की कोई जरूरत नहीं।"


    अर्जुन पहले ही स्टेज पर चला गया था। सारी लाइट्स ऑफ हो गईं और दादी मां सरगी को लेकर स्टेज पर जाने लगीं। तो पूरी लाइट केवल सरगी पर पड़ी। सरगी ने दादी मां का हाथ कसकर पकड़ रखा था। उसे ऐसी घबराहट हो रही थी जैसे ऑफिस में कोई फाइल कंप्लीट न होने पर सर के केबिन में जाने में होती है।


    जब अर्जुन की नजर सरगी पर गई तो वह हैरान रह गया। बहुत सोचने पर उसे समझ आया कि सरगी ही है जिसने दादी मां को इतना मना लिया है। सगाई की रस्म के दौरान सरगी एक बार भी नजर उठाकर अर्जुन की तरफ नहीं देखती थी। सरगी को ऐसा लग रहा था कि आज अर्जुन उसे जरूर डांटेगा।


    ओबरॉय और सक्सेना फैमिली दोनों ही आज बहुत खुश थे। ओबरॉय फैमिली को अनीता वर्मा का जाना बिल्कुल भी महसूस नहीं हुआ क्योंकि वह सब लोग पहले ही सरगी को जानते थे और उन सब से सरगी का अच्छा प्यार भी था।

    सगाई के प्रोग्राम के बाद दादी मां सरगी और अर्जुन को अपने साथ अपने कमरे में ले गईं। दादी मां ने कमरे में जाकर सरगी को अपनी अलमारी से निकालकर गहनों का बॉक्स दिया। मगर सरगी ने इनकार करते हुए कहा, "नहीं दादी मां, मुझे यह नहीं चाहिए।" "तुम कौन होती हो इनकार करने वाली? यह मैंने अपने पोते की बहू के लिए संभाल कर रखे हैं।" दादी मां ने कहा। सरगी ने अर्जुन की तरफ देखते हुए कहा, "मगर दादी मां, मैं अभी कैसे ले सकती हूं? कोई बात नहीं, आप मुझे फिर दे दीजिएगा।"


    दादी ने अर्जुन से कहा, "अब तुम ही कहो अपनी होने वाली बीवी को। मेरी बात कोई रोके, ये बात मुझे बिल्कुल पसंद नहीं और इस घर की सभी बहुओं को मेरी बात माननी ही पड़ती है।" अर्जुन ने सरगी की तरफ देखते हुए कहा, "दादी मां जो आपको दे रही हैं, प्लीज आप ले लें।"


    सरगी ने दादी मां से गहने ले लिए। दादी मां हंसने लगीं, "देखो, यह तो अभी से तुम्हारी बात मानने लगी। देखना, तुम दोनों जिंदगी में बहुत खुश रहोगे। मैं तुम दोनों को जानती हूं। तुम दोनों को नहीं पता, तुम दोनों ने मुझे आज कितनी खुशी दी है। सरगी को तो मैं जब छोटी थी, इसको देखती थी तो मुझे लगता था कि मैं तुम्हारे लिए इसके माँ-बाप से मांग लूंगी। मगर पता नहीं वो अनीता वर्मा कहाँ से बीच में आ गई? चलो, आप मेरे मन की इच्छा पूरी हो गई।"

    सगाई हंसी-खुशी निपट गई। सारे अपने-अपने घर चले गए। रात को बिस्तर पर पड़ी हुई सरगी सोच रही थी कि वह गई तो किसी और की सगाई में थी, मगर उसकी तो खुद की सगाई हो गई। वह सोच रही थी कि वह कल से ऑफिस नहीं जाएगी। वह अर्जुन सर का सामना नहीं कर सकती थी। 😥😥

  • 6. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 6

    Words: 947

    Estimated Reading Time: 6 min

    सरगी और अर्जुन की सगाई हो गई थी। सरगी ऑफिस नहीं जाना चाहती थी। उसे अर्जुन के सामने जाते हुए डर लग रहा था। उसे लगा कि अगर वह ऑफिस गई तो उसे डांट पड़ेगी। सरगी ने फैसला कर लिया कि वह ऑफिस से रिजाइन करेगी।

    पूरे ऑफिस में यह बात फैल चुकी थी कि अर्जुन सर और सरगी की सगाई हो गई है। सरगी कौन है, यह भी सबको पता चल गया था। प्रीति उन दोनों की सगाई की खबर सुनकर सबसे ज्यादा खुश थी। प्रीति सीधा सरगी से मिलने उसके घर चली गई। दोनों सहेलियाँ मिलकर बहुत खुश हुईं।


    प्रीति: "वो विश जो मैंने मांगी थी, वो पूरी हो गई। मैंने कहा था ना, अगर तुम दोनों की शादी हो जाए तो तुम दोनों साथ में कितने अच्छे लगोगे।"


    सरगी: "मुझे लगता है ये सब कुछ तुम्हारी काली जुबान की वजह से हुआ है! मैं तो वहाँ अर्जुन और अनीता की सगाई में गई थी। मुझे कौन-सा पता था कि मेरी खुद की सगाई हो जाएगी? पता है प्रीति, मुझे अभी कोई शादी ही नहीं करनी थी। मुझे अपना कैरियर बनाना था। मैं अभी चार-पांच साल तक शादी के मूड में नहीं हूँ।"


    प्रीति: "(हंसते हुए) गोलीमार कैरियर को! इतना अच्छा लड़का मिला है तुझे!"


    सरगी: "अब चाहे जो हो, सगाई तो मेरी हो गई और मैंने नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया। मुझे तो अर्जुन के सामने जाते हुए भी डर लगता है।"


    प्रीति: "(शरारत से) मुझे तो लगा था कि तुम आज ऑफिस आओगी। मैं तुम दोनों को साथ में रोमांस करते हुए देखना चाहती हूँ।😊"


    सरगी: "तुम्हें जहाँ मज़ाक सूझ रहा है! मेरी जान पर बनी हुई है। तब तो सबके कहने से हम लोगों की सगाई हो गई। मगर मैं अर्जुन सर का सामना कैसे करूँ? मेरी जान पर बनी हुई है। तुम रोमांस की बात करती हो! मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैं ज़िन्दगी में कभी उसके सामने ही ना जाऊँ।😥😥"


    प्रीति: "(परेशान होकर) यार, तुम कैसी बातें करती हो? आजकल के ज़माने में ऐसा कौन करता है? तुम तो पुरानी हिंदी फिल्मों की हीरोइन लगती हो मुझे।"


    सरगी: "मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है, मुझे यार मत कहा करो। अगर तुम मेरी जगह पर होतीं, तुम किसी और की सगाई में खुशी-खुशी जाती और वहाँ जाकर तुम्हें पता चलता कि तुम्हारी ही सगाई तुम्हारे बॉस के साथ हो गई... बॉस के साथ... समझो तो सोचो, तुम पर क्या बीतती? बॉस भी जो इतना खूंखार हो।"


    प्रीति: "(मुस्कुराते हुए) कोई बात नहीं! होने दो, तुम्हारे उस अर्जुन सर से तुम्हारी 2-4 मुलाक़ातें।😊😊 तुम्हारा चेहरा और तुम्हारी ये जो बातें हैं ना, ना बदलीं तो मेरा नाम बदल देना।… फिर तुम कहोगी कि मेरे अर्जुन के बिना मेरा दिल नहीं लगता।🥰🥰"


    दोनों सहेलियाँ बहुत देर तक बात करती रहीं। प्रीति उसे मिलकर चली गई। सरगी भी सोचती है, चलो देखते हैं क्या लिखा है आगे मेरी तकदीर में? जो मैंने नहीं सोचा था, वो तो हो गया।


    सरगी अपना इस्तीफा ऑनलाइन भेज देती है। घर में भी वो यही कहती है कि वह काम पर नहीं जाएगी, तो उसकी फैमिली में से किसी को ऐतराज भी नहीं होता।


    उधर, अर्जुन ओबरॉय के मन में सरगी के लिए कोई फीलिंग नहीं थी। अभी अनीता वर्मा के लिए ज़रूर उसके मन में थोड़ी-बहुत फीलिंग थीं। वह सोचता है कि अनीता इस रिश्ते के लिए तैयार थी, जब वही बीच में छोड़कर चली गई। सरगी के लिए तो ये एकदम से हुआ है। सरगी के मन में अर्जुन के लिए कोई फीलिंग नहीं हो सकती और ना ही अर्जुन के मन में सरगी के लिए कोई फीलिंग थी। ये रिश्ता, वो सोचता है, सिर्फ़ दादी माँ के लिए जुड़ा है। मगर एक बात उससे अच्छी लगी कि सरगी ने उसकी फैमिली और दादी माँ की बात नहीं मोड़ी। जैसा भी उन्होंने कहा, सरगी ने चुपचाप कर लिया। वो सोचता है, चलो सगाई तो हो गई, मगर अब शादी होगी अथवा नहीं, ये तो हालात पर निर्भर करता है। वो जल्दी शादी नहीं करेगा। कोई न कोई बहाना बनाकर कम से कम 6 महीने तो लगा ही देगा। तब तक देखते हैं उसके और सरगी के रिश्ते का क्या होता है।


    अगले दिन सरगी और उसकी फैमिली किसी शादी में जाते हैं। ये शादी सरगी के भाई समर के दोस्त की बहन की थी। शादी का प्रोग्राम चल रहा था। वो सब लोग इन्जॉय कर रहे थे। तभी समर का दोस्त किसी को लेकर सरगी और समर के पास आता है।


    समर का दोस्त: "समर, मैं तुम्हें पंडित जी से मिलाना चाहता हूँ। पंडित जी एक माने हुए ज्योतिषी हैं। इनकी सभी भविष्यवाणियाँ सही होती हैं। पंडित जी हाथ और कुंडली देखकर सब कुछ बता सकते हैं।"


    ये बात सुनकर सरगी पंडित जी को नमस्ते करती है। फिर कहती है कि क्या आप मेरा हाथ देखकर बता सकते हैं कि मैं अपने कैरियर में इतनी सफल रहूँगी? पंडित जी उसका हाथ पकड़कर देखने लगते हैं…


    पंडित जी थोड़ी देर उसका हाथ अच्छे से देखते हैं, फिर कहते हैं: "अभी दो-चार दिन पहले ही तुम्हारी सगाई हुई है। ज़िन्दगी में तुम खुश रहोगी। बहुत प्यार करने वाला पति मिला है तुझे। ज़िन्दगी में पैसा, प्यार, परिवार, औलाद, माँ, बाप, भाई, बहन, किसी चीज की कमी नहीं होगी तुझे। हर चीज तुम्हारे पास होगी। तुम्हारा पति तुम्हें देख-देखकर साँस लेगा।"


    समर को कोई दोस्त मिल जाता है। वो उठकर चला जाता है। मगर सरगी और पंडित जी की बात सुनकर नज़दीक के ही टेबल पर बैठा हुआ अर्जुन उठकर उनके पास आ जाता है। उसके कान में बैठे हुए पंडित जी की बातें पड़ गई थीं। अर्जुन ने सरगी और उसकी फैमिली को पहले ही शादी में देख लिया था।

  • 7. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 7

    Words: 932

    Estimated Reading Time: 6 min

    एक शादी में सरगी को एक पंडित जी मिले। पंडित जी ने सरगी का हाथ देखकर उसके आने वाले कल के बारे में बताना शुरू किया। पंडित जी की बातें सुनकर पास के टेबल पर बैठा अर्जुन वहाँ आ गया। अर्जुन ने पंडित जी के आगे अपना हाथ कर दिया।


    अर्जुन ओबरॉय: (अपना हाथ पंडित जी के आगे करते हुए) पंडित जी, क्या आप मेरा हाथ देखकर मेरे बारे में बताएँगे?

    पंडित जी: (थोड़ी देर हाथ देखते रहे, फिर अर्जुन की तरफ देखते हुए) तो तुम्हारा लकी चर्म तुम्हारी लाइफ में आ चुका है।

    अर्जुन: मैं समझा नहीं, क्या कह रहे हैं आप?

    पंडित जी: मेरे कहने का मतलब है, तुम्हारा लेडी लक तुम्हारी लाइफ में आ चुका है। अभी कुछ दिनों में तुम्हारी सगाई हुई है?

    अर्जुन (पंडित जी के चेहरे को देखते हुए): ठीक कहा आपने।

    पंडित जी: जिस लड़की से तेरी सगाई हुई है, वह लड़की तुम्हारे लिए बहुत लकी है। वह तुम्हारी सारी मुसीबतों को अपने ऊपर ले लेगी। थोड़े ही दिनों में तुम एक बहुत बड़ी मुसीबत में फँसने वाले हो। वह लड़की सारी मुसीबत अपने ऊपर ले लेगी। तुम उस लड़की से बहुत प्यार करोगे। तुम बहुत अच्छी लाइफ बिताओगे। तुम्हारी अपनी बीवी से बहुत ज़्यादा प्यार करोगे, अथवा वह तुमसे ज़्यादा प्यार करेगी, यह कहना मुश्किल होगा।


    पंडित जी कुछ देर के लिए चुप हो गए और दोनों के हाथ एक साथ पकड़कर देखने लगे। पंडित जी की बातें सुनते हुए सरगी और अर्जुन एक-दूसरे की तरफ देखने लगे, क्योंकि दोनों के ही मन में एक-दूसरे के प्रति ऐसी कोई फीलिंग नहीं थी। वे दोनों बहुत अकॉर्ड फील करते हैं। तभी पंडित जी फिर कहने लगे।

    पंडित जी (दोनों के हाथों को देखते हुए): कहीं……तुम दोनों की……सगाई तो एक-दूसरे के साथ नहीं हुई?

    दोनों के चेहरे देखकर पंडित जी समझ गए कि वे सही कह रहे हैं। इन दोनों की ही सगाई एक-दूसरे के साथ हुई थी। तभी अर्जुन अपना हाथ छुड़ाकर खड़ा हो गया और बोला, "मैं सब बातों को नहीं मानता। ठीक है, हम दोनों की सगाई हुई है। इसका मतलब ज़रूरी थोड़ी है कि हम दोनों की शादी भी होगी।" जब अर्जुन वहाँ से जाने लगा, तो पंडित जी बोले, "अगले 3 दिन… 3 दिन में तुम दोनों की शादी हो जाएगी?"


    यह सारी बातें सुनकर सरगी और अर्जुन हैरान हो गए। तभी सरगी बोली, "मैं तो आपसे अपने कैरियर के बारे में पूछना चाहती थी। उसके बारे में तो आपने कुछ कहा ही नहीं। आप तो बस मेरी शादी के पीछे पड़ गए।"

    पंडित जी: क्या कह रही है तुम? कौन सा कैरियर? तुम काम करने के लिए नहीं बनी। तुम तो पूरी उम्र इस नौजवान पर अपना हुकुम चलाओगी। तुम तो बॉस की बॉस बनोगी। तुम्हारे मुँह से निकली हर इच्छा यह नौजवान पूरी करेगा। 3 दिन के बाद जब तुम्हारी शादी हो जाएगी, तुम्हारा पति तुम्हें पूरी ज़िंदगी अपने आप से 1 मिनट के लिए भी दूर नहीं होने देगा। तुम उसके साथ दुनिया घूमोगी। तुम्हारे घर बच्चे भी होंगे। मगर तुम दोनों पूरी ज़िंदगी हँसी-खुशी एक-दूसरे के साथ बिताओगे। कैरियर को तो तुम थोड़े ही दिन में भूल जाओगी।……शादी की शुरुआत में तुम दोनों को कुछ मुश्किलें आएंगी। जब तुम दोनों साथ होंगे, तो मुश्किलें हल हो जाएँगी। इस नौजवान को तुम्हारा दिल जीतने के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी पड़ेगी।


    अर्जुन तब तक दूसरी टेबल पर जा चुका था, मगर उसे सरगी और पंडित जी की बातें सुनाई दे रही थीं।


    सरगी: पंडित जी, यह आप क्या कह रहे हैं? क्या आपको लगता है कि हम दोनों की शादी होगी?

    पंडित जी: तुम दोनों क्या एक-दूसरे के साथ सगाई करने के लिए गए थे? फिर भी सगाई तो तुम दोनों की हुई ना? यह तो भाग्य है। जो होना है, वह तो होकर रहेगा।

    सरगी: मेरी बहुत तमन्ना है कि मैं बिज़नेस फ़ील्ड में काम करूँ। इसी के लिए मैंने एमबीए किया है। आगे भी इस लाइन में काम करना चाहती हूँ।


    पंडित जी: ऐसा नहीं है कि तुम्हारा पति तुम्हें काम करने से रोकेगा। मगर वह तुम्हें हर समय अपने साथ रखना चाहेगा। उसके लिए तुम्हें काम छोड़ना पड़ेगा।



    अर्जुन को शाम शहर से बाहर जाना था, तो वह बिज़नेस मीटिंग के लिए शहर से बाहर चला गया। सरगी और अर्जुन दोनों ही पंडित जी की बातों के बारे में सोचते रहे।


    अर्जुन सोच रहा था, ऐसे कैसे हो सकता है? मैं सरगी को अपने आप से ज़्यादा प्यार कैसे कर सकता हूँ? हम दोनों की तो कोई लव मैरिज भी नहीं हो रही। हम लोगों की तो सगाई भी एक्सीडेंटल हुई है।


    इधर सरगी सोच रही थी कि ऐसी कौन सी मुसीबत अर्जुन पर आने वाली है जो वह अपने ऊपर ले लेगी। सरगी चाहे कितनी भी परेशान क्यों ना हो, पर पंडित जी का यह कहना कि "तुम्हारा पति तुमसे बहुत प्यार करेगा। तुम्हारे नसीब में हर खुशी है," उसको अच्छा लग रहा था। वह सोचती-सोचती मुस्कुरा उठी। क्या सच में अर्जुन उससे इतना प्यार करेगा? रात को अपने बिस्तर पर लेटे हुए, वह अर्जुन के बारे में सोच रही थी। अर्जुन शहर से बाहर जा रहा था, मगर उसके दिमाग में सरगी ही घूम रही थी। अर्जुन का ध्यान बार-बार पंडित जी की बातों की तरफ जा रहा था। अर्जुन सोच रहा था, ऐसी कौन सी मुसीबत उस पर आने वाली है? अर्जुन सोच रहा था कि वह 3 दिन के लिए तो शहर से बाहर जा रहा है, तो वह 3 दिन में उसकी शादी सरगी के साथ कैसे हो सकती है?

  • 8. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 8

    Words: 963

    Estimated Reading Time: 6 min

    सुबह-सुबह अर्जुन के फ़ोन पर किसी का फ़ोन आया। आँखें बड़ी मुश्किल से खोलते हुए अर्जुन ने फ़ोन उठाया क्योंकि रात की मीटिंग के कारण उसे देर रात कमरे में पहुँचना पड़ा था और उसे सोने में देर हो गई थी।

    इतनी जल्दी सुबह किसी का फ़ोन उठाने का उसका कोई मन नहीं था। मगर जब उसने डैड का नंबर देखा, तो उसने झट से फ़ोन उठा लिया। बिना वजह उसके डैड इतनी जल्दी फ़ोन नहीं करते थे। उनका स्वभाव था कि वे शाम को सोने से पहले अर्जुन को फ़ोन करते थे। जब अर्जुन ने फ़ोन उठाया, तो आगे से डैड ने कहा, "जल्दी से वापस आ जाओ। तुम्हारी दादी बहुत बीमार हैं, वे तुम्हें बहुत याद कर रही हैं।"


    फ़्लैशबैक

    अर्जुन शाम को मीटिंग के लिए शहर से बाहर गया था। जब शाम को पूरा परिवार चाय पी रहा था, तो बैठे-बैठे दादी को अजीब सा महसूस होने लगा। अर्जुन की भाभी, पामेला ओबरॉय, उन्हें हॉस्पिटल ले गईं। दादी रास्ते में ही बेहोश हो गईं। हॉस्पिटल में जाकर डॉक्टर ने बताया कि दादी को हार्ट अटैक आया था। वे पूरी रात बेहोश रहीं। दादी का ट्रीटमेंट कर दिया गया था। सबको पता था कि जब दादी को होश आएगा, तो सबसे पहले वे अर्जुन के बारे में ही पूछेंगी। इसलिए अर्जुन के डैड ने अर्जुन को वापस आने के लिए फ़ोन कर दिया था।

    अर्जुन दोपहर तक हॉस्पिटल पहुँच गया था। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसकी माँ, भाभी, बड़ी बहन के साथ सरगी भी वहीं बैठी हुई थी। सरगी ने एक सिंपल सा सूट पहना हुआ था। बालों को क्लिप से इकट्ठा किया हुआ था। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वह कितनी परेशान है। घरवालों से बात करके अर्जुन डॉक्टर से मिलने चला गया।

    अर्जुन: डॉक्टर साहब, दादी माँ को कब तक होश आ जाएगा?

    डॉक्टर: हमने अपना ट्रीटमेंट शुरू कर दिया है। उन्हें रात को होश आना शुरू हो जाएगा। मगर होश में आने के बाद कोई ऐसी बात मत कीजिए जिससे उन्हें स्ट्रेस हो। उन्हें खुश रखें। जी हाँ, यह अच्छी बात है कि मिसेज ओबरॉय उन्हें समय पर हॉस्पिटल ले आईं। अगर उन्हें लाने में देर हो जाती, तो शायद कॉम्प्लिकेशन बढ़ जाते।

    दादी माँ को अभी होश नहीं आया था। अर्जुन ने अपनी माँ से कहा, "मॉम, आप और पापा रात को घर चले जाएँ और भाभी को भी साथ में ले जाएँ। मैं और जानवी हॉस्पिटल में रहेंगे। बड़े भैया को मैं रात को घर भेज दूँगा।" अर्जुन बात कर ही रहा था कि तभी सरगी के भैया, समर जी और भाभी, करिश्मा जी वहाँ सबके लिए नाश्ता लेकर आ गए। उन्होंने सरगी को खाने-पीने का सामान पकड़ा दिया। सरगी ने सबको चाय पिलाई और सैंडविच देने लगी।

    सरगी ने अपने भैया-भाभी से कहा, "आप चले जाएँ, मैं रात को यहीं रहूँगी।" उसकी बात सुनकर अर्जुन की माँ बोली, "नहीं बेटा, तुम रात से यहीं हो। आज घर चली जाना। हम लोग भी आज रात घर जा रहे हैं। यहाँ पर अर्जुन और जानवी रुकेंगे।" सरगी रुकना चाहती थी, मगर जब उसे पता चला कि अर्जुन रुक रहा है, तो उसने जाना ही ठीक समझा। जब से अर्जुन आया था, सरगी ने उसे बुरी तरह से इग्नोर किया था। यह बात अर्जुन ने भी महसूस की थी।

    रात को अर्जुन और जानवी रुके। दादी के पास एक अटेंडेंट के लिए बेड लगा हुआ था। कमरे में दो कुर्सियाँ पड़ी हुई थीं। रात को जानवी तो सो गई, मगर अर्जुन बैठा हुआ लैपटॉप पर काम करता रहा। अर्जुन ने एक कुर्सी पर बैठकर दूसरे कुर्सी पर अपने पैर रख लिए। अर्जुन रात को उन कुर्सियों पर ही थोड़ा-बहुत सो गया।

    काम करते हुए अर्जुन के दिमाग में सरगी के इस तरह इग्नोर करने के बारे में ही विचार आ रहे थे। उसे सरगी में कोई इंटरेस्ट नहीं था, मगर उससे इस तरह इग्नोर होना भी अच्छा नहीं लगा। अर्जुन सोचने लगा, "अजीब बदमाश लड़की है। उसकी साथ मेरी सगाई हुई है, फिर वह ऐसा दिखा रही थी जैसे मुझसे कोई रिश्ता ही नहीं है। उसे सोचना चाहिए कि मेरी वजह से ही उसका दादी से रिश्ता है।"

    फिर अर्जुन को खुद पर ही झुंझलाहट होने लगी। वह क्या सोच रहा है? उसके बारे में क्यों सोच रहा है? अगर सरगी उसे इग्नोर करती है, तो करने दो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर फिर सरगी के बारे में सोचने लगा। सरगी उसकी दादी से कितना प्यार करती है, जैसे अर्जुन की नहीं, उसकी दादी ही हो। चेहरे से कितनी परेशान लग रही थी। सरगी उसकी माँ और भाभी के साथ कितनी कम्फ़र्टेबल थी और उसका परिवार भी उसके साथ कितना खुश था। अर्जुन बैठा-बैठा मुस्कुराने लगा। "वैसे यह स्टूपिड सी लड़की है, तो खूबसूरत ❤️।"

    "यह मैं क्या सोच रहा हूँ? कहीं उस पंडित की बातें सच न हो जाएँ। वह मेरे दिमाग पर ऐसे क्यों छा रही है?" फिर अर्जुन सोचने लगा, "अगर पंडित की बात सच होती है, तो दो दिनों में हमारी शादी हो जाएगी, क्योंकि तीन दिन में से एक दिन तो चला गया। मगर यह तो नामुमकिन है। अब मेरी दादी मरने वाली पड़ी हैं, मैं उसके साथ शादी करने से रहा। वैसे भी उसमें ऐसा कुछ नहीं है कि मुझे उसके साथ शादी की जल्दी हो।" ऐसे ही सोचते-सोचते कुर्सी पर बैठे हुए कब आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला।


    ऐसे ही सरगी भी सोच रही थी, "कितना अच्छा था ना अर्जुन बाहर गया हुआ था। क्या ज़रूरत थी उसे वापस आने की? अगर वह ना आता, तो सरगी दादी के पास रुक जाती।" सरगी का कितना मन था दादी के पास रुकने का। यह सब सोचते हुए सरगी भी सो गई। उन दोनों को नहीं पता था कि आने वाला दिन उन दोनों के लिए कौन सा सरप्राइज लिए बैठा है।

  • 9. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 9

    Words: 846

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्जुन की दादी को हार्ट अटैक आया था जिस कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अर्जुन और जानवी रात को दादी के पास रुके थे, जबकि सरगी को घर वापस जाना पड़ा था। अर्जुन चेयर पर ही सो गया था। सुबह जब अर्जुन की आँख खुली तो उसने देखा कि दादी को धीरे-धीरे होश आ रहा है। अर्जुन ने डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने कहा, "अब इनकी हालत खतरे से बाहर है। पर फिर भी अगले २ दिन अगर ये ठीक रहीं तो फिर कोई बात नहीं। फिर ये ठीक हो जाएंगी। आप इनके आगे कोई भी ऐसी बात ना करें जिससे इनको सदमा लगे। २ दिन इनको पूरा खुश रखें।"

    दादी को होश आ गया। अर्जुन के माँ-बाप अस्पताल आ गए। उन्होंने अर्जुन और जानवी को फ्रेश होने के लिए घर भेज दिया। अर्जुन दोपहर तक नहा-धोकर फ्रेश होकर वापस आ गया। वह दादी से बहुत प्यार करता था। अब वह उन्हें समय देना चाहता था।

    दादी के कमरे में पहुँचकर अर्जुन ने देखा कि उनके माँ-बाप, भैया-भाभी और सरगी के माँ-बाप, भैया-भाभी सब लोग दादी के पास खड़े थे। उसने देखा दादी हाथ के इशारों से उन लोगों से कुछ कह रही थीं। जिसके जवाब में अर्जुन के पिता ने कहा, "ठीक है, अभी बच्चों से बात करते हैं। आप परेशान ना हों।"

    उन लोगों की बात सुनकर अर्जुन परेशान हो गया। उसे लगा दादी की कोई बात है जो उसके माँ-बाप नहीं मान रहे हैं। तो अर्जुन आगे होकर बोला, "क्या बात है दादी, आप मुझसे कहें। मैं आपकी बात अभी पूरी कर दूँगा।" दादी ने अर्जुन की बात सुनकर हल्का सा स्माइल किया और अर्जुन के पिता अभिजीत जी की तरफ देखकर अर्जुन का हाथ पकड़ लिया। तभी उन्होंने पास में खड़ी सरगी का हाथ पकड़कर अर्जुन और सरगी के हाथ मिला दिए।

    अर्जुन के पिता और सरगी के पिता राम जी दोनों ने खुश होकर एक-दूसरे को देखा और फिर अर्जुन और सरगी से बोले, "ठीक है बच्चों, बहुत सही किया तुम लोगों ने! क्या फर्क पड़ता है शादी धूमधाम से हो या सादगी से। जब दादी घर आ जाएंगी तो हम तुम दोनों की बहुत बड़ी रिसेप्शन करेंगे। चलो मैं पंडित जी से बात करता हूँ। मंदिर में तुम दोनों की अभी शादी हो जाएगी।"

    सरगी अर्जुन से पहले वहाँ पर थी, तो उसे तो बात पता थी। मगर अर्जुन अभी आया था और उसने दादी और अपने पेरेंट्स की अधूरी बात सुनी थी। तो वह समझ नहीं सका कि दादी सरगी और अर्जुन की शादी की बात कर रही हैं।

    उसे पूरी बात पता चल गई थी। दादी उसकी और सरगी की शादी की बात कर रही थीं, तो उसने अपना सिर पीट लिया। "मुझे क्या पता था इस हालत में भी दादी की सुई हम दोनों की शादी में अटकी हुई है! मगर अब अर्जुन हाँ कहकर ना नहीं बोल सकता था। उसे पता था कि इससे दादी की कंडीशन बिगड़ जाएगी।"

    दादी ने सरगी को अपने पास बुलाया, "सरगी, आज मेरी शादी की साड़ी पहनना और मेरे ही शादी के गहने। मैंने अपने छोटे पोते की बहू के लिए अपनी शादी के गहने और कपड़े रखे हैं। मैंने तुम्हारी होने वाली सास से कह दिया है। रत्ना तुम्हें सारा सामान दे देगी। तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है ना मेरी साड़ी पहनने में?"
    "कैसी बातें करती हैं आप दादी, मेरे लिए इससे बड़ी खुशी की बात क्या होगी कि आप मुझे अपने कपड़े और गहने दे रही हैं।"

    सरगी दादी की साड़ी और गहने पहनकर तैयार हो गई। अर्जुन जींस और टीशर्ट, जिन कपड़ों में था उसी में शादी करने चला गया। दोनों की घंटे भर में शादी हो गई और शादी करके वे दोनों सीधे दादी के पास आशीर्वाद लेने आ गए।

    दादी उन दोनों को देखकर बहुत खुश हुईं। दादी की आँखों में आँसू आ गए। दादी ने बारी-बारी से उन दोनों को गले से लगाया और ढेर सारी दुआएँ दीं और फिर बोली, "बस अब तो एक ही तमन्ना रह गई।" दादी की बात सुनकर अर्जुन बोला, "दादी माँ जो आपकी इच्छा रह गई है बता दो। मैं आपकी यह तमन्ना भी पूरी कर दूँगा।" दादी सरगी और अर्जुन का हाथ पकड़कर बोली, "बस मेरी आखिरी तमन्ना तुम दोनों का एक बच्चा देख लूँ। बस फिर चाहे भगवान मुझे इस दुनिया से उठा लें।"

    सरगी और अर्जुन ने नज़र उठाकर एक-दूसरे को देखा। सरगी का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था। चाहे अर्जुन को सरगी में पहले कोई इंटरेस्ट नहीं था, मगर उसका लाल हुआ चेहरा उसे देखना अच्छा लगा। फिर उसने दादी से बोला, "दादी, मैंने शादी तो सुपरफास्ट कर ली आपके लिए। अब बच्चा नहीं ना सुपरफास्ट हो सकता है। उसके लिए आपको ठीक होना होगा। फिर देख लेना जितने बच्चे आप चाहेंगी हम उतने पैदा कर देंगे। 😁😁"

    दादी के पोते की बात सुनकर सरगी के चेहरे से हज़ारों रंग हया के आकर गुज़रे। अर्जुन नज़र बचाकर उसका चेहरा देख रहा था। सरगी ने दादी-पोते की बातें सुनकर अपना सिर पीट लिया। सरगी सोच रही थी, "कितने बेशर्म हैं दोनों?"

  • 10. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 10

    Words: 861

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्जुन और सरगी की शादी हो गई थी। शादी के हालात ऐसे थे कि दोनों को शादी के बारे में सोचने का कोई मौका नहीं मिला था। दोनों दादी के पास आशीर्वाद लेने आए थे। दादी उन दोनों को देखकर बेहद खुश हुईं। सरगी को दादी की शादी की साड़ी और गहनों में देखकर दादी झूम उठीं।

    दादी ने अर्जुन से कहा, "अर्जुन बता, अगर तेरी शादी उस अनीता से हो जाती, तो क्या वह मेरी शादी की साड़ी और ये गहने पहनती?"

    "नहीं... बिल्कुल नहीं... शायद वह तो कोई और साड़ी भी नहीं पहनती। अनीता तो शायद किसी बड़े डिजाइनर का लहंगा पहनती।"

    "तो देख लिया ना... सरगी मेरा कितना प्यार करती है। कुछ ऐसी ही लड़की मुझे तेरे लिए चाहिए थी। देख लेना, यह तेरी ज़िंदगी को कैसे खुशहाल कर देगी।"

    दोनों दादी-पोता छोटी-छोटी बातों में लगे हुए थे। सरगी उन्हें बैठकर देख रही थी। अर्जुन की मॉम दादी के पास आई और कहती हैं, "अगर आप कहे तो इन दोनों को मैं घर ले जाऊँ? इनका गृह प्रवेश करवा दूँ?"

    "तो क्या तुम इन दोनों को पहले यहीं पर ले आई? पहले इनका गृह प्रवेश कराना था, फिर लेकर आना था मेरे पास। कोई काम नहीं है जो तुम ढंग से कर सको? अगर मुझे कुछ हो गया तो तुम्हारा क्या होगा? अरे अरिजीत, समझा अपनी बीवी को... अब ये सास बन गई है... पर एक भी काम ढंग से नहीं आता।"

    तभी अर्जुन बोला, "नहीं... दादी, मैंने ही जिद की थी कि पहले हम आपके पास आएंगे, फिर घर जाएँगे। ठीक है, अब हम जाते हैं... आप हमसे गुस्सा ना हो।" घर में उन लोगों का गृह प्रवेश कराया गया। जैसे सिंपल सी शादी थी, वैसे ही सिंपल सा गृह प्रवेश था। कोई और तो था नहीं, सिर्फ़ घर के लोगों ने ही रस्म कर दी। सरगी सिर पर पल्ला लेकर घर के अंदर आई और सब से आशीर्वाद लिया।

    तब अर्जुन की भाभी पामेला जी बोलीं, "अरे अर्जुन, तुम भी तो आशीर्वाद लो, अकेले सरगी ही सबके पैर छू रही है।"

    "भाभी, ज़रूरी है क्या सबके पैर छूना...?"

    "और नहीं तो क्या? शादी हुई है तुम्हारी?... "

    ऐसे मज़ाक करते हुए अर्जुन भी सब से आशीर्वाद लेता है।

    इन सब रस्मों के दौरान, सुबह शादी से लेकर गृह प्रवेश तक, अर्जुन एक बात जान गया था। सरगी रस्म, रिवाजों और परिवार को मानने वाली लड़की है। उसने दादी का मान कितने अच्छे से रखा था। जो दादी ने कपड़े-गहने पहनने को कहे, खुशी से पहन लिए। जिन हालात में शादी करने को कहा, चुपचाप कर ली। कैसे हँसी-खुशी गृह प्रवेश कर लिया और एक ही झटके में पूरे परिवार को इम्प्रेस कर दिया। इम्प्रेस तो वह खुद भी हुआ था। दादी की लाल बनारसी साड़ी में और दादी के शादी के गहनों में सरगी का रूप खूब दमक रहा था। जो उसके मन में बड़ों के लिए इज़्ज़त और प्यार था, वो आज सभी ने देख लिया था। सब लोग सरगी को अच्छे से जान गए थे कि क्यों दादी ने सरगी को बहू के रूप में चुना। उसकी सादगी में भी खूबसूरती थी जो देखने वालों को खींच रही थी। उसे इस रूप में देखकर एक बार तो अर्जुन ने भी अपने दिल की बीट मिस कर दी थी।

    इन सबके बीच सरगी सोच रही थी। अर्जुन ने तो उस पंडित जी के सामने शादी से साफ़-साफ़ इंकार कर दिया था। अब इन हालात में उसको मुझसे शादी तो करनी पड़ी। मगर उनकी शादी का फ़्यूचर क्या होगा? क्या वह अर्जुन की लाइफ़ में और उसके परिवार में वो जगह पा लेगी जो जगह अर्जुन की वाइफ़ की होनी चाहिए? कहीं इस शादी के बाद अर्जुन का बिहेवियर उससे रूडली तो नहीं होगा? वह इस उधेड़बुन में सोफ़े पर बैठी सोच रही थी।

    तभी अर्जुन की सिस्टर जानवी उनके पास आई और बोली, "आओ सरगी, पहले खाना खा लो... फिर तुम दोनों जाकर आराम कर लेना।" यह सच था कि सरगी ने सुबह से कुछ नहीं खाया था। वह जब सुबह अस्पताल आई थी तो उसने सोचा था कि वह वापस आकर कुछ खाएगी। फिर अचानक उसकी शादी का प्लान बन गया और अब वह अपनी भूख-प्यास सब भूल गई थी। जब जानवी दीदी ने खाना खाने को कहा तो खाने के नाम से ही उसकी भूख चमक उठी।

    अर्जुन अपने घरवालों से बोला, "अब शाम होने को है। हम दोनों हॉस्पिटल जाएँगे। आप लोग घर रह जाएँ। सब लोगों को हॉस्पिटल जाने की ज़रूरत नहीं है। आप सब आराम करें।" अर्जुन ने सरगी से कहा, "सरगी, तुम फ़्रेश हो जाओ। फिर हम लोग हॉस्पिटल चलते हैं।"

    तभी अर्जुन की मॉम बोली, "नहीं... तुम लोगों आज ही शादी हुई है। तुम लोग आराम करो। मैं और तुम्हारे पापा आज हॉस्पिटल में रुकेंगे।"

    "हमने तुम लोगों की बात मानकर शादी की। अब इसका मतलब यह नहीं... कि हम आपकी सारी बातें मानेंगे। हम लोग हॉस्पिटल जा रहे हैं तो जा रहे हैं।" अपनी मॉम की बात के जवाब में अर्जुन बोला।

    "मगर बेटा... मेरी बात तो... सुनो।" मॉम ने कहा। अर्जुन अपनी मॉम के गले में बाहें डालते हुए बोला, "...नहीं... आप मेरी बात मानें... यह दादी को भी अच्छा लगेगा... प्लीज़।"

  • 11. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 11

    Words: 1018

    Estimated Reading Time: 7 min

    घरवालों के मना करने के बावजूद अर्जुन और सरगी दोनों रात को हॉस्पिटल में दादी के पास रुकने का फैसला कर चुके थे। जब अर्जुन और सरगी साथ में हॉस्पिटल आए, तो दादी उन दोनों को देखकर खुश हो गईं। अर्जुन ने कपड़े बदलकर लोअर टीशर्ट पहन ली थी। सरगी उसी साड़ी में थी, लेकिन उसने सारे गहने उतार दिए थे। उसके हाथों में सिर्फ़ कंगन और गले में मंगलसूत्र था। बालों को उसने बांध रखा था। दादी उन दोनों को देखकर बोलीं,

    "अच्छा हुआ तुम दोनों आ गए... मेरा बहुत मन था कि मैं तुम दोनों को ही रात को रुकने को कहूँ।"

    अर्जुन दादी माँ का हाथ पकड़ते हुए बोला, "...तो कहना चाहिए था ना... दादी माँ, पता है मैं सबकी कितनी मिन्नतें करके यहां आया हूँ... अगर आप कह देतीं तो सब हमें बिना कुछ कहे कहीं भेज देते।"

    दादी माँ हँसते हुए बोलीं, "मैं तो इसलिए नहीं बोली... तुम कहोगे दादी माँ ने आज ही मेरी शादी कराई और रात को ही मुझे अपने पास बुला लिया... हम दोनों को अकेले रहने का मौका भी नहीं दिया। 😁😁"

    "क्या... दादी माँ... आप भी?" अर्जुन ने कहा।

    फिर दादी माँ ने सरगी का हाथ पकड़ा और उसे देखकर बोलीं, "तुम खुश हो ना सरगी... मुझे पता है... तुम्हारे मन में क्या चल रहा है... पर देख लेना मेरे बच्चे, तुम बहुत खुश रहोगी... जो लोग अपने बुजुर्गों का मान रखते हैं... रब भी उन्हें हमेशा खुश रखता है।"

    "दादी माँ, आप किसी बात की टेंशन ना लें... हम दोनों का रिश्ता आपने बांधा है... आपकी दुआएँ हमें ज़रूर लगेंगी।" सरगी ने कहा।

    "तुम भी साड़ी चेंज करके अपने रात को पहनने वाले कपड़े पहन लेती... मुझे पता है तुम्हें साड़ी की आदत नहीं है... जैसा मेरे लिए अर्जुन, वैसी तुम... इन कपड़ों की फॉर्मेलिटी में मत पड़ना... मुझे तुम सूट में, पैंट में, लोअर में, टीशर्ट में, साड़ी में, लहंगे में... एक जैसी ही प्यारी लगोगी... और हाँ," दादी माँ ने अर्जुन की तरफ देखते हुए कहा, "मेरा पोता तुम्हें अगर छोटे-छोटे कपड़े पहनने को कहे तो खुशी से पहन लेना।" फिर धीरे से सरगी को अपने पास बुलाकर उसके कान में बोलीं, "पति को खुश रखने के लिए सब कुछ करना पड़ता है... समझी... तुम भी जो इसको पसंद हो वो सब पहनना।"

    "ठीक है... दादी माँ, जैसा आप कहें?" सरगी हँसते हुए बोली।

    "जब मैं तुम्हारे दादा जी के साथ बाहर जाती थी... तो घरवालों से छुपकर तुम्हारे दादा जी की पसंद के कपड़े पहना करती थी... तुम्हारे दादा जी मुझे उन कपड़ों में देखकर बहुत खुश होते थे।" दादी माँ ने धीरे से सरगी को बताया।

    "सच में दादी माँ? क्या आपकी दादाजी के साथ उन कपड़ों में कोई पिक्चर है? प्लीज मुझे दिखाओ ना।" सरगी ने उत्सुकता से पूछा।

    "पहले हम जहां से घर चलें... मेरे पास तुम्हारे दादा जी के साथ ऐसी बहुत सी फोटो हैं... जो मैं तुम्हें दिखाऊंगी... वो पिक्चर मैंने आज तक किसी को नहीं दिखाई... ठीक है।" दादी माँ खुश होते हुए बोलीं।

    "दादी माँ... क्या मैं जान सकता हूँ आप दोनों मुझसे छुपकर क्या बातें कर रही हो? आप इतना धीरे बोल रही हो... मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा।" अर्जुन ने कहा।

    "हम लड़कियों की बातें हैं... तुम्हारे काम की कोई बात नहीं... तुम चुपचाप अपने लैपटॉप पर काम करो... यही तो फर्क होता है लड़कियों और लड़कों में... सरगी देखो तब से मेरे पास बैठी है... और तुम हो लैपटॉप लेकर कब से वहाँ पर बैठे हो... और फिर कह रहे हो तुम्हें हमारी बातें सुनाई नहीं दे रही।" दादी माँ ने कहा।

    "दादी माँ... इट्स नॉट फेयर... आपने तो झट से पार्टी बदल दी। अब मैं दोनों लड़कियों के बीच में लड़का हो गया... कमाल है दादी माँ।" अर्जुन ने कहा।

    "ठीक ही तो कह रही हूँ मैं।" दादी माँ ने कहा।

    "दादी माँ... कोई बात नहीं... चलो आपने तो पार्टी बदल ली... पर याद रखना... अगर सरगी इस टाइम यहाँ पर है... आपके पास है... तो सिर्फ मेरी वजह से।" अर्जुन ने कहा।

    "पता है मुझे... तुमने शादी की है इससे... पर आइडिया किसका था? तूँ तो अनीता से शादी करने चला था।" दादी माँ ने कहा।

    "ठीक है दादी माँ... आप जीती मैं हारा... आप दोनों करो बातें... मैं डॉक्टर से मिलकर आता हूँ।" अर्जुन ने कहा।

    अर्जुन डॉक्टर से मिलने चला गया। डॉक्टर ने अर्जुन से कहा कि अब दादी माँ की हालत स्थिर है। हाँ, 1 दिन और उन्हें हॉस्पिटल में रखेंगे। फिर चाहे तो आप सारा प्रबंध घर पर कर लीजिये। वहीं पर हम एक ट्रेन्ड नर्स भेज देंगे। डॉक्टर से बात करके अर्जुन वापस आ गया।

    जब अर्जुन डॉक्टर से बात करके कमरे में वापस आया तो देखा कि दादी माँ सरगी से खूब सारी बातें कर रही हैं। उनकी सरगी के साथ होने की खुशी उनके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। सरगी भी खूब शांति से उनकी बातें सुनकर जवाब दे रही थी, उनके साथ हँस रही थी। यह सब देखकर अर्जुन के दिल में सरगी के लिए इज्जत और प्यार दोनों ही पनपने लगे। उसे लगा शायद दादी माँ ने उसके लिए एक सही लड़की चुनी है। जैसे अर्जुन अपने परिवार से प्यार करने वाला लड़का है, उसे अपनी वाइफ के रूप में भी ऐसी ही लड़की चाहिए थी जो उसके परिवार को उसी तरह प्यार कर सके। और शायद सरगी ही वो सही लड़की है। यह सब सोचकर अर्जुन के मन में भी एक शांति सी पसर गई। उसे अपने अंदर से हल्कापन महसूस हुआ। वह जो सुबह से शादी करने से लेकर अब तक उसके मन में था कि क्या वह एकदम सरगी से शादी करने का सही डिसीज़न ले रहा है, पर अब उसे एक अजीब सी शांति महसूस हो रही थी। शायद उसकी दिल की धड़कनों पर अब सरगी कब्ज़ा करने लगी थी। ❤️❤️

  • 12. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 12

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    अर्जुन की धड़कनें सरगी के कब्ज़े में आ गई थीं। पर सरगी के मन में क्या चल रहा था, अर्जुन इस बात से अनजान नहीं था। कल से लेकर अब तक सरगी ने उसे पूरी तरह इग्नोर किया था। शादी के बाद भी, जब दोनों कमरे में फ्रेश होने गए थे, तब भी सरगी ने उस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया था।

    जानवी सरगी को अर्जुन के कमरे में ले गई थी, अर्जुन के कमरे में जाने से पहले। जानवी ने सरगी को कमरा दिखाकर वापस आ गई। सरगी ने अपने सारे गहने निकालकर ड्रेसिंग टेबल पर रख दिए और बाथरूम से फ्रेश होकर उसी वक़्त नीचे आ गई। अर्जुन के कमरे में जाने से पहले ही सरगी वापस आ गई थी। यह कहना सही होगा कि सगाई से लेकर शादी तक सरगी और अर्जुन की आपस में कोई बात नहीं हुई थी।

    अर्जुन यह भी समझता था कि उस पंडित की बातें सुनकर, जिस तरह से उसने react किया था, शायद वह सरगी को अच्छा नहीं लगा था। इसीलिए कल भी और आज शादी के बाद भी सरगी ने अर्जुन को इग्नोर किया था। अब अर्जुन सोच रहा था कि उसे इस तरह react नहीं करना चाहिए था।

    सरगी के बारे में सोचते-सोचते अर्जुन का ध्यान पंडित जी की दूसरी बातों की तरफ़ गया। पंडित जी ने कहा था कि 3 दिन में शादी हो जाएगी। अब शादी तो हो गई थी। "आप मुझ पर ऐसी क्या मुसीबत आने वाली है?" अर्जुन सोचने लगा। फिर उसने सोचा, "पंडित जी ने कहा था कि उसकी मुसीबत सरगी अपने ऊपर ले लेंगी। चलो देखते हैं क्या होता है उसकी लाइफ में।" कुल मिलाकर सरगी उसके होशो-हवास में छा गई थी। सरगी के बारे में सोचना उसे अच्छा लग रहा था। 😊😊

    दादी माँ थोड़ी देर रेस्ट करने लगीं। सरगी, वहीँ जो अटेंडेंट के लिए बेड लगा था, उस पर बैठकर अपने फ़ोन को देखने लगी। अर्जुन अपने लैपटॉप पर काम करता रहा। सरगी चाहे फ़ोन पर लगी हुई थी, पर वह सोच रही थी कि उसकी लाइफ में क्या होने वाला है। जो उसने बिल्कुल भी नहीं सोचा था, वो इन 10 दिनों में उसके साथ हो गया था। सगाई हो गई, शादी हो गई और उसकी शादी एक ऐसे इंसान से हुई थी, जिसको उसमें बिल्कुल भी इंटरेस्ट नहीं है।

    तो क्या होगा उसकी आने वाली जिंदगी का? सरगी अपने माइंड में एक बात के लिए बिल्कुल क्लियर थी। उसका मानना था कि प्यार, जिंदगी जीने के लिए प्यार बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। पर उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है सेल्फ रिस्पेक्ट। अपनी इज़्ज़त से ज़्यादा ज़रूरी और कुछ भी नहीं है। अगर सामने वाला आपको रिस्पेक्ट नहीं देगा, तो वह आपसे प्यार नहीं कर सकता। उस दिन पंडित जी की बातों पर जैसे अर्जुन react किया था, उसे नहीं लगता था कि अर्जुन सरगी की रिस्पेक्ट करता है। शायद अर्जुन सगाई से खुश नहीं था, पर उसे अपनी दादी के दबाव में सगाई करनी पड़ी थी। सरगी सोच रही थी कि उसी बात की फ्रस्ट्रेशन थी जो पंडित जी के सामने अर्जुन ने निकाली थी। अब तो उसे शादी भी करनी पड़ी थी। अब अर्जुन कैसे react करेगा? सरगी बहुत ज़्यादा टेंशन में थी। सरगी को लग रहा था कि अर्जुन अनीता वर्मा से प्यार करता था और अनीता का अर्जुन को छोड़कर चले जाना अर्जुन को अच्छा नहीं लगा था। शायद अगर अनीता उसकी लाइफ में वापस आना चाहे, तो अर्जुन अनीता को वापस आने देगा।

    सरगी सोच रही थी कि शायद जितनी लंबी दादी माँ की जिंदगी है, उतना ही लंबा उनका रिश्ता होगा। उसे लगा कि अगर दादी माँ की जिंदगी कुछ दिनों की हुई, तो उनका रिश्ता कुछ दिनों का होगा; अगर दादी माँ दो-चार साल उनके बीच रहीं, तो शायद अर्जुन उसके साथ दादी माँ के लिए निभा लेगा। मगर यह रिश्ता लाइफ़टाइम का नहीं है। सरगी के दिमाग में यही सब चल रहा था। सरगी के मन में अर्जुन से कोई भी उम्मीद नहीं थी।

    अर्जुन काम करते हुए बीच-बीच में सरगी की तरफ़ देख लेता था। अर्जुन सरगी से बात करना चाहता था, मगर जब सरगी ने उसकी तरफ़ एक बार भी नहीं देखा, तो वह बात शुरू करने की हिम्मत नहीं कर सका। इसी बीच शाम का खाना लेकर सरगी के भाई और भाभी आ गए। रात को काफी देर तक वे कमरे में रहे। सरगी ने एक बात नोट की कि अर्जुन ने उसके भैया और भाभी से बहुत अच्छे से बात की। उसे यह बात अच्छी लगी कि अर्जुन का रिश्ता उसके साथ चाहे जैसा भी हो, मगर अपने भैया और भाभी की रिस्पेक्ट सबसे पहले है।

    सरगी के भैया और भाभी चले गए, तो उसके बाद अर्जुन अपने ऑफिस का काम लैपटॉप पर करता रहा। सरगी दादी के पास वाले बेड पर लेट गई। जब रात को दादी की आँख खुली, तो उसने देखा कि सरगी बेड पर सो रही है और अर्जुन एक कुर्सी पर बैठकर, दूसरी कुर्सी पर पैर रखकर सोने की कोशिश कर रहा है। उसे सर्दी भी लग रही थी। वह अपने हाथों को इकट्ठा किए, दोनों कुर्सियों पर आड़ा-टेढ़ा लेटा हुआ था।

    दादी ने धीरे से अर्जुन को बुलाया:
    "अर्जुन.. अर्जुन.."

    अर्जुन, जो कि अच्छी तरह से सोया नहीं था, दादी माँ की आवाज़ सुनकर उठकर दादी माँ के पास आया और बोला:
    "क्या हुआ दादी माँ? कोई तकलीफ़ है? मैं नर्स को बुलाऊँ?"

    दादी माँ: "नहीं, मुझे कुछ नहीं हुआ। तुम्हें कुर्सी पर लेटना मुश्किल लग रहा है। तुमने पिछली रात भी कुर्सी पर ही निकाली थी। तुम्हें सर्दी भी लग रही है। तुम ऐसा करो, तुम सरगी के साथ बेड पर लेट जाओ।"

    अर्जुन (जिसे यह बात सुनकर थोड़ा अजीब लगा): "नहीं दादी माँ, कोई बात नहीं। मुझे... मुझे तो वैसे भी काम है। लैपटॉप पर काम करना है।"

    दादी माँ: "कोई बात नहीं। सरगी बीवी है तुम्हारी। मैं सिर्फ़ आराम करने को कह रही हूँ। और वैसे भी आधी रात निकल चुकी है। कितने घंटे बचे हैं सुबह होने में? जाओ जाकर आराम कर लो तुम।"

    सरगी जिस बेड पर सोई हुई थी, वह एक पतला सा बेड था। अर्जुन धीरे से उसके साथ लेट जाता है। उसे दादी के सामने सरगी के साथ एक बेड पर लेटना बहुत अजीब लग रहा था और सरगी के साथ इस तरह सोने में उसके दिल की धड़कनें भी बढ़ रही थीं।

  • 13. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 13

    Words: 899

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्जुन हॉस्पिटल में सरगी के साथ बेड पर लेट गया। लेटते समय उसने ध्यान रखा कि उसका सरगी से डिस्टेंस बना रहे। वह सरगी से थोड़ा हटकर सोने की कोशिश करता रहा। वह दादी माँ के सामने सरगी के साथ नहीं लेटना चाहता था। कब नींद के आगोश में चला गया, उसे पता भी नहीं चला। सुबह सरगी की आँख खुली तो उसे लगा कि उसकी पीठ किसी की चेस्ट के साथ लगी हुई है और उसकी कमर पर किसी का भारी हाथ है। वह किसी के साथ बिल्कुल सटकर सो रही थी। यह महसूस करते ही वह जल्दी से बेड से खड़ी हो गई।

    बेड से उठते ही उसकी साड़ी अर्जुन के नीचे आ गई।

    उसके खड़े होने की आवाज़ से अर्जुन और दादी दोनों जाग गए। सरगी खड़ी होकर अर्जुन के नीचे से साड़ी खींचने लगी। अर्जुन ने उसे देखकर हल्का सा, शरारत से मुस्कुराया और फिर अपने नीचे से सरगी की साड़ी का पल्ला निकाल दिया। फिर आँखें बंद कर सो गया। सरगी हैरान-परेशान खड़ी रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ?

    तभी दादी माँ बोलीं, "अभी मत उठो सरगी, लेट जाओ। अभी तो बहुत सुबह है।"

    "कोई बात नहीं दादी माँ... मुझे अभी नींद नहीं आ रही है..." कहकर सरगी कुर्सी पर बैठ गई।

    "पहले आधी रात तक अर्जुन कुर्सी पर बैठा रहा... अब तुम बैठ गई... मैंने उसे कहा कि वह बेड पर लेट कर आराम करे... बड़ी मुश्किल से सोया है... तुम भी अभी कुछ देर लेट कर आराम करो।"

    दादी के कहने से सरगी बेड पर आकर बैठ गई। फिर धीरे से लेट गई, पर ब्लैंकेट अपने ऊपर नहीं ली। तब दादी फिर बोलीं, "अरे सरगी, ऊपर कंबल ले लो। रात को थोड़ी सर्दी हो जाती है... बीमार हो जाओगी, फिर मेरी सेवा कैसे करोगी...?"

    सरगी को अपने ऊपर ब्लैंकेट लेना ही पड़ा।

    एक ही बेड पर, एक ही ब्लैंकेट में... यह सोचकर सरगी घबरा गई और बैठ गई। सरगी की ये सारी हरकतें अर्जुन आँखें बंद करके ही देख रहा था। वह थोड़ी देर के लिए आँखें खोलता, फिर बंद कर लेता। सरगी की इन हरकतों को देखकर उसे सरगी पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिर में सरगी को लेटना बहुत मुश्किल लगा। वह उठी और वॉशरूम चली गई।

    वॉशरूम जाकर उसने नोटिस किया कि उसके ब्लाउज की एक डोरी खुली हुई है और उसका गला काफी डीप हो रहा है। उसने डोरी बांधने की कोशिश की, मगर पीछे से बांधना मुश्किल था। उसने साड़ी का पल्लू फैलाया और अपने सारे गले को ढक लिया। फिर वॉशरूम से बाहर आकर वह फोन उठाकर चेयर पर बैठ गई। उसने देखा दादी फिर सो गई हैं। सरगी ने चैन की साँस ली और अपना फोन देखने लगी।

    अर्जुन लेटे हुए सरगी की हरकतों के बारे में सोच रहा था। वह सोचने लगा कि अगर सरगी का उसके साथ एक बेड पर लेटने पर यह हाल है, तो सुहागरात में क्या होगा? वह वहीं बेड पर लेटे-लेटे अपने मन में ख्याल भरने लगा। सरगी और अपनी सुहागरात के बारे में सोचने लगा। सचमुच उस लड़की का लाल हुआ चेहरा देखकर वह बहुत खुश हो रहा था। अर्जुन के अंदर सरगी के लिए प्यार पनपने लगा था। फिर वह सोचने लगा कि क्या आजकल के जमाने में भी सरगी जैसी लड़कियाँ होती हैं?

    थोड़ी देर बाद अभिजीत भैया और पामेला भाभी चाय लेकर घर से आ गए। अंदर आते ही पामेला भाभी बोलीं, "सरगी, क्या तुम सारी रात चेयर पर बैठी रहीं? और यह देखो, देवर जी आराम से सो रहे हैं..."

    "अरे नहीं भाभी, हम भी वहीं सो रहे थे... अभी बैठे हैं..."

    "तो... ठीक है... मुझे लगा देवर जी अकेले ही सो रहे हैं..." पामेला भाभी शरारत से बोलीं। सरगी को पता चल गया कि उसने क्या बोल दिया। वह अपना सिर पीट ली। जल्दी से बोली, "...अरे नहीं... भाभी मेरा वो मतलब..."

    "...मैं तो तुमसे मज़ाक कर रही थी... तुम दोनों रात हॉस्पिटल में हो... मुझे सब पता है... अस्पताल में रहना कितना मुश्किल होता है..." भाभी घर से लाई चाय थर्मस से निकालकर सरगी को देने लगीं और फिर बोलीं, "अर्जुन को भी उठा दो... अभी चाय पी लेगा..."

    वैसे तो अर्जुन जाग रहा था। वह सरगी की सिचुएशन को एन्जॉय कर रहा था। उसे अपने सामने एक स्टुपिड सी प्यारी लड़की दिखाई दे रही थी, जिस पर उसे ना चाहते हुए भी प्यार आ रहा था।

    पामेला भाभी ने तो सरगी को अर्जुन को उठाने के लिए कह दिया था, मगर सरगी के आगे प्रॉब्लम खड़ी हो गई थी। अब वह अर्जुन को कैसे उठाए? उसने चाय का कप लिया और अर्जुन के सिरहाने खड़ी हो गई। फिर बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकालकर बोली, "सर... चाय पी लें..."

    पामेला भाभी हँसने लगीं, "सरगी... अब तुम 'सर' क्यों कह रही हो...?"

    इससे पहले कि भाभी कुछ और बोलतीं, अर्जुन उठकर चाय का कप ले लिया और बैठकर पीने लगा। सरगी भी बैठकर चाय पीने लगी।

  • 14. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 14

    Words: 943

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्जुन और सरगी के लिए अभिजीत भैया और भाभी चाय लेकर आए। पामेला भाभी सभी को चाय पिलाने लगी। अभिजीत भैया डॉक्टर से मिलने के लिए चले गए। सरगी ने अर्जुन को चाय देखकर खुद चाय पीनी शुरू कर दी। दादी मां अभी सो रही थीं। अचानक बैठे-बैठे पामेला भाभी को ख्याल आया कि सरगी ने साड़ी ऐसी फैलाकर क्यों ली हुई है। तो वह सरगी से पूछी, "सरगी.. तुमने साड़ी ऐसे क्यों ली हुई है.. तुमने तो ऐसे गले को क्यों लपेटा हुआ है.."

    "भाभी.. मेरी ब्लाउज की डोरी पीछे से खुल गई है.. मेरे से बांधी नहीं गई.." सरगी धीरे से बोली, जो कि अर्जुन को सुनाई न दी।

    "तो.. क्या हुआ.. अगर तुझसे नहीं बांधी गई तो.. अर्जुन से कह देती.. वह बांध देता.." भाभी जब पूरी आवाज में बोली तो अर्जुन भी देखने लगा कि क्या हुआ। सरगी ने अपना सिर पीट लिया। सरगी यह सोच रही थी भाभी को क्या जरूरत थी इतनी ऊंची आवाज में बोलने की। सरगी की तरफ देखते हुए अर्जुन ने भी ध्यान दिया सरगी ने साड़ी पूरी फैलाकर ली हुई है। उसने सोचा शायद रात डोरी उसके नीचे आने की वजह से खुल गई।

    फिर भाभी कहने लगी, "तुम दोनों अब घर जाओ.. हम लोग यहीं रहेंगे.."

    "ठीक है.. हम लोग घर जाते हैं.. आज मेरी इम्पॉर्टेंट मीटिंग भी है ऑफिस में.. हम लोग शाम को आ जाएंगे.." अर्जुन बोला।

    तभी दादी मां उठ गईं। दादी मां कहने लगीं, "नहीं.. आज रात तुम दोनों यहां नहीं आओगे... आज अभिजीत और पामेला आ जाएंगे.. तुम दोनों घर पर ही रहना.."

    अर्जुन: "नहीं.. दादी मां.. आज रात को हम दोनों ही आएंगे... आपको सिर्फ आज का दिन ही हॉस्पिटल में रहना है... मेरे डॉक्टर से बात हो गई है.. फिर कल हम आपका ट्रीटमेंट का इंतजाम घर पर हो जाएगा... वहीं पर हम आपके लिए एक नर्स हायर कर देंगे... डॉक्टर आपके चेकअप के लिए आ जाया करेगा।"

    पामेला भाभी: "यह बात ठीक है... कल हम दादी मां को घर ले जाएंगे... मगर आज रात तुम दोनों घर पर ही रुकना... तुम दोनों की नई-नई शादी हुई है.. हम लोग तो रात को भी नहीं चाहते थे कि तुम यहां रुको.. अच्छा नहीं लगता.. तुम दोनों को साथ में टाइम बिताना चाहिए।"

    अर्जुन: "हम दोनों यहां पर साथ में ही तो थे.. भाभी.. आप ऐसा ना करें.. रात को तो हम ही रुकेंगे.. चाहे सरगी से पूछ लो।"

    सरगी: "सर.. ठीक कह रहे हैं.. हम लोग ही रुकेंगे.. अभी हम लोग घर जाते हैं.."

    अभिजीत: "ठीक है... कोई बात नहीं... इन दोनों को ही रुकने दो।"

    सरगी: "अभी मुझे घर जाना है.. मेरे पास कपड़े नहीं हैं.. मैं भैया को बहुत फोन कर देती हूं.. वह मुझे आकर ले जाएंगे.."

    भाभी: "भैया को फोन करने की क्या जरूरत है.... अर्जुन तुम्हें घर जाता हुआ छोड़ जाएगा.. क्यों ठीक है ना अर्जुन?"

    अर्जुन: "..ठीक है.. भाभी.. मैं सरगी को घर छोड़ जाऊँगा।"

    भाभी: "वैसे भी माम कह रही थी कि तुम्हारी शादी की सारी शॉपिंग करनी है.. तुम्हारी माम और भाभी से भी मेरी बात हुई थी.. बस दादी घर आ जाए फिर तुम दोनों की रिसेप्शन भी देनी है...💓💓 और तुम्हारे लिए बहुत सारी शॉपिंग भी करनी है.. अब शादी जिन हालात में हुई वह बात अलग है...."

    अर्जुन चाय पीकर खड़ा हो गया। सरगी और अर्जुन दादी से मिलकर हॉस्पिटल से बाहर निकल गए। अर्जुन सरगी को घर छोड़ने के लिए सरगी के घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में अर्जुन सरगी की तरफ देखते हुए गाड़ी रोककर साइड पर लगा दिया और फिर कहा, "सरगी लाओ मैं तुम्हारे ब्लाउज की डोरी बांध दूं.. घर पर भी सब पूछेंगे कि तुमने साड़ी ऐसे फैलाकर क्यों ली है?"

    "...नहीं.. कोई.. बात नहीं.. बस मैं घर जाकर ठीक कर लूंगी.." सरगी हकलाते हुए जवाब दी।

    "नहीं.. यार.. awkward लगता है.. सबका ध्यान तुम्हारी तरफ चला जाता है.."

    ना चाहते हुए भी सरगी अपनी पीठ अर्जुन की तरफ कर देती है। अर्जुन धीरे से उसकी पीठ पर हाथ लगाए बिना डोरी कसकर बांध देता है। दोनों सरगी के घर चले गए। अर्जुन सरगी को उतारकर वापस आना चाहता था। मगर सरगी का भाई समर बाहर आ गया और वह जबरदस्ती अर्जुन को घर के अंदर ले गया।

    "मेरी बहुत जरूरी इम्पॉर्टेंट मीटिंग है.. आज.. मुझे घर जाकर तैयार होकर वापस ऑफिस जाना है.. प्लीज आप मुझे जाने की आज्ञा दें।" अर्जुन बोला।

    तो समर ने कहा, "अर्जुन जी आप ऐसा करें फोन करके कपड़े यहीं मंगवा लें.. तब तक आप ब्रेकफास्ट करें.. फिर यहीं से तैयार होकर चले जाएं.. यह भी तो अब आपका ही घर है.. आपका ऑफिस यहां से नजदीक भी पड़ता है।"

    अर्जुन समझ गया कि उसका यहीं पर बहुत टाइम लग जाएगा अगर वह घर जाकर तैयार होगा तो मीटिंग पर टाइम से नहीं पहुँच सकेगा। उसने समर से कह दिया ठीक है और अपने कपड़े फोन करके घर से किसी को लाने के लिए कह दिया। मगर सरगी उससे पहले ही अपने कमरे में जा चुकी थी। अर्जुन समर के पास बैठ गया और सरगी अपने रूम में फ्रेश होने चली गई। उसको अर्जुन के यहां तैयार होने के बारे में कुछ भी पता नहीं था।

    समर ने अर्जुन की भाभी करिश्मा से कहा कि वे अर्जुन को सरगी का कमरा दिखा दें। करिश्मा अर्जुन को सरगी के रूम के बाहर तक छोड़कर चली गई। अर्जुन दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। उसने सामने देखा सरगी अपने ब्लाउज की डोरी खोलने के लिए जद्दोजहद कर रही थी। उसने नीचे की डोरी तो खोल दी लेकिन ऊपर की डोरी, जो अर्जुन ने बांधी थी, किसी भी तरह नहीं खुल रही थी। वह बहुत परेशान खड़ी थी।

  • 15. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 15

    Words: 701

    Estimated Reading Time: 5 min

    पिछले भाग में आपने पढ़ा कि अर्जुन ओबरॉय सरगी को उसके घर छोड़ने गया था। वह वापस आना चाहता था, मगर हालात ऐसे बने कि वह वहीं तैयार होने लगा। सरगी की भाभी करिश्मा उसे सरगी का कमरा दिखाकर वापस आ गई। जब वह कमरे में गया, तो उसने देखा कि सरगी अपने ब्लाउज़ की डोरी खोलने के लिए जद्दोजहद कर रही थी।

    जब सरगी ने अर्जुन को कमरे में देखा, तो उसने जल्दी से साड़ी के पल्लू से अपना ब्लाउज़ छिपा लिया और अर्जुन से कहा,
    "...आप..यहाँ कैसे?"

    "...क्यों...मैं यहाँ नहीं हो सकता? जैसे ओबरॉय मेंशन में मेरा बेडरूम...अब तुम्हारा कमरा है.. 😁😁😁 वैसे अब यह तुम्हारा बेडरूम...मेरा कमरा है...ठीक है ना..." अर्जुन मुस्कुराता हुआ बोला।

    "...नहीं...मेरा...मतलब...था...आपको तो जल्दी जाना था..." सरगी ने जल्दी से बात संभालने की कोशिश की।

    "...इसीलिए भैया ने कहा मैं यहीं तैयार हो जाऊँ...मेरे कपड़े यहीं आ रहे हैं...जहाँ से मेरा ऑफिस नजदीक पड़ता है..." अर्जुन ने सरगी से खड़े होते हुए कहा।

    अर्जुन सरगी के नजदीक जाते हुए बोला,
    "क्या हुआ...अब डोरी खुल नहीं रही है क्या? लाओ मैं खोल देता हूँ...वैसे तुम लड़कियाँ ऐसे कपड़े बनवाती ही क्यों हो...जो तुमसे ना बंद हो ना खुल सकें..."

    "...वैसे ये कपड़े मेरे नहीं हैं...दादी माँ के हैं...कोई बात नहीं, मैं अपने आप खोल लूँगी..." सरगी साइड होते हुए बोली।

    "...ठीक है...जैसा तुम चाहो...प्लीज़ मुझे कोई तौलिया दे दो...मुझे नहाने जाना है...तब तक मेरे कपड़े भी आ जाएँगे।"

    तौलिया लेकर अर्जुन नहाने चला गया। जब अर्जुन नहाकर वापस आया, उसने देखा सरगी वैसे ही बैठी थी।

    अर्जुन नहाकर बाहर आया। उसने केवल तौलिया बाँधा हुआ था। उसे देखकर सरगी अपना मुँह साइड कर लेती है। तो हँसता हुआ अर्जुन कहता है,
    "...मेरे पास पहनने के लिए कुछ नहीं था...तुम्हारा बाथरोब बाथरूम में था...मगर मेरे लिए वह बहुत छोटा था...वैसे भी यार...अब हम हस्बैंड वाइफ हैं...सही बात है ना..."

    ऐसा कहकर वह आईने के आगे खड़ा हो जाता है। फिर सरगी को देखकर कहता है,
    "...तुम्हारी डोरी नहीं खुली?"

    सरगी बोलती है,
    "...हाँ..."

    "...लाओ मैं खोल देता हूँ..." अर्जुन ने कहा।

    "...नहीं...मैं भाभी के पास जा रही हूँ..."

    "...नहीं...तुम भाभी के पास मत जाओ...रहने दो...मैं ही खोल देता हूँ...पामेला भाभी की तरह...वह भी वही कहेगी...सरगी तुम अर्जुन से डोरी खुलवा लेती..."

    सरगी को अर्जुन की बात ठीक लगती है। वह अर्जुन से कहती है,
    "...ठीक है..."

    सरगी आईने के आगे खड़ी हो जाती है। उसके पीछे अर्जुन डोरी खोलने की कोशिश करता है, मगर डोरी नहीं खुलती। ब्लाउज़ की एक डोरी पहले ही खुली हुई थी और सरगी की गोरी पीठ दिखाई दे रही थी। सरगी की गोरी पीठ और खुली कमर सचमुच किसी को भी पागल कर देने के लिए काफी थी। अर्जुन अपने मन ही मन मुस्कुराता है। मगर अर्जुन से डोरी की गाँठ नहीं खुलती। वह सरगी से कहता है,
    "...कैंची दे दो...मैं काट देता हूँ..."

    "...नहीं...दादी माँ की शादी की ड्रेस है...इसे काट नहीं सकते..."

    तो अर्जुन मुँह से गाँठ खोलने लगता है। गाँठ खोलते समय जब अर्जुन के होंठ सरगी की पीठ पर लगते हैं, तो वह घबराकर आगे हो जाती है। सरगी के स्पर्श से अर्जुन की धड़कन बढ़ जाती है। वह अपने आप पर कण्ट्रोल करते हुए कहता है,
    "...कुछ नहीं...हाथ से डोरी नहीं खुली...तो मैं दाँतों से डोरी खोलने की कोशिश कर रहा हूँ।"

    सरगी मन में सोचती है,
    "...ये डोरी ना खुली...मेरे जी का जंजाल हो गई...सुबह से लगी हैं...कभी खुल गई, कभी बंद नहीं हो रही...अगर बंद हो गई तो खुल नहीं रही...सचमुच लड़कियाँ ऐसे कपड़े सिलवाती ही क्यों हैं...जिससे उनका जुलूस निकल जाए...मैं अपनी ज़िंदगी में कभी डोरी वाले कपड़े नहीं सिलवाऊँगी...एक बार खुल जाए...सुबह से मैं ऐसी पोजीशन में हूँ...ना रो सकती हूँ...ना हँस सकती हूँ...हे भगवान...हे बाबाजी...मुझे बचा लो आज..."

    अर्जुन के घर से उसके कपड़े आ गए। सरगी की मम्मी ने करिश्मा से कहा,
    "...जाओ सरगी के कमरे में जाकर उसके कपड़े दे आओ..."

  • 16. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 16

    Words: 1034

    Estimated Reading Time: 7 min

    अर्जुन सरगी के ब्लाउज की डोरी खोलने की कोशिश कर रहा था, मगर उसकी गांठ नहीं खुल रही थी। उधर, अर्जुन के घर से आए कपड़े देने के लिए करिश्मा भाभी उनके कमरे में गई।

    करिश्मा जब कपड़े देने के लिए कमरे के पास पहुँची, तो उसने देखा कि दरवाज़ा खुला था। वह बिना कोई आवाज़ किए अंदर चली गई। अंदर जाकर उसने देखा कि अर्जुन, केवल तौलिए में लिपटा हुआ, सरगी की पीठ पर झुका हुआ था। वह एकदम घबरा गई और "सॉरी" कहकर बाहर चली गई।

    "सॉरी" कहने के बाद जब भाभी वापस गईं, तो सरगी बोली, "...लो हो गया सियापा... अब भाभी क्या सोचेंगी... हमारे बारे में..." वह एकदम से भाभी के पीछे जाने लगी, तो अर्जुन ने उसकी बाजू पकड़ ली। "ऐसी क्यों घबरा रही हो सरगी... हम दोनों हस्बैंड वाइफ हैं... चाहे जैसे भी खड़े हों... भाभी को कोई प्रॉब्लम नहीं... अगर तुम जाकर सफ़ाई दोगी तो... उससे प्रॉब्लम होगी... प्लीज़ समझो।"

    डोरी खोलकर अर्जुन कपड़े बदलने चला गया। जब तक अर्जुन तैयार हो रहा था, सरगी भी नहाकर एक सिम्पल सलवार सूट पहनकर बाहर आ गई। जब वे दोनों बाहर जाने लगे, तो सरगी रुक गई। अर्जुन ने कहा, "चलो... सरगी, कमरे से बाहर चलते हैं..." सरगी को परेशान देखकर अर्जुन ने पूछा, "...क्या बात है... तुम ऐसे परेशान सी क्यों दिख रही हो..." तो सरगी ने कहा, "...मुझे भाभी के सामने जाने से शर्म आ रही है..." तो अर्जुन ने उसे छेड़ते हुए कहा, "...मेरी शादी एक छोटी बच्ची से करा दी गई है....." सरगी उस पर गुस्सा हो गई, "...मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ...." तो अर्जुन हँसकर बोला, "...चलो चलें सरगी....."

    अर्जुन नीचे आकर सभी से मिला और फिर कहा कि उसे ऑफिस में ज़रूरी मीटिंग है। सरगी की मॉम ने उसे कहा कि सरगी अर्जुन को गेट तक छोड़ दे। जब सरगी अर्जुन को गेट पर छोड़ने आई, तो अर्जुन ने सरगी से कहा, "...मैं तुझे शाम को हॉस्पिटल जाते हुए ले लूँगा....." तो सरगी ने कहा, "...मैं आपको फोन करके बता दूँगी... मेरा कब जाने का प्रोग्राम है... मैं शायद पहले चली जाऊँगी हॉस्पिटल..."

    "....मेरे पास तुम्हारा फोन नंबर ही नहीं है सरगी..."
    "....मगर मेरे पास है..." सरगी बोली।
    "....ठीक है ऐसा करो, तुम मेरे फ़ोन पर अपने फ़ोन से एक रिंग कर दो... मुझे तुम्हारा नंबर आ जाएगा....."

    वहीं खड़े-खड़े जब सरगी रिंग करने के लिए फ़ोन से कांटेक्ट लिस्ट निकालने लगी, तो वह रुक गई।
    "....नहीं... आप जाएँ, मैं... मैं आपको फिर रिंग कर दूँगी...."
    "....क्यों? क्या हुआ...?"

    अर्जुन सरगी के हाथ से फ़ोन पकड़कर अपना नंबर डायल करने लगा, तो "खडूस बॉस" नाम से उसका सेव किया हुआ नंबर स्क्रीन पर दिखने लगा। सरगी अपनी जीभ काट लेती।

    अर्जुन ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा, "...अच्छा, तो इसीलिए बाद में रिंग करने की बात कह रही थी... कोई बात नहीं... खडूस बॉस कहो चाहे कुछ और कहो... हम जैसे भी हैं... अब तो आप ही के हैं....." कहकर अर्जुन मुस्कुराने लगा।

    सरगी नीचे देखने लगी। वह ऐसी किसी सिचुएशन के लिए तैयार नहीं थी। यह सब अचानक हो गया था। उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था। अर्जुन ने अपनी एक बाजू सरगी के कंधे पर रखते हुए उसे अपने आगोश में लिया और धीरे से उसके गाल पर किस कर दिया। फिर वह बाय कहकर चला गया। अर्जुन के किस से सरगी का मुँह खुला का खुला रह गया। सरगी अपने गाल पर हाथ रखकर मूर्ति की तरह खड़ी रह गई। अर्जुन ने गाड़ी में बैठकर हॉर्न मारा, तो उसे होश आया। जब सरगी ने अर्जुन की तरफ देखा, तो अर्जुन गाड़ी लेकर चला गया। सरगी के पेट में तितलियाँ सी उड़ने लगीं। उसने अपना पेट एक तरफ़ से पकड़ लिया। उसे अपने पेट में मीठा-मीठा सा दर्द महसूस हुआ और दिल में मीठा-मीठा सा एहसास हुआ।

    सरगी हैरान-परेशान सी अंदर जाने लगी। वह कन्फ़्यूज़ सी महसूस कर रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह सोच रही थी, आज तो दिन की शुरुआत ही ऐसी थी, अब शाम तक पता नहीं क्या होगा। जब सरगी अर्जुन को बाहर तक छोड़ने गई थी, तो उसकी मॉम और भाभी ऊपर खड़ी उनको देख रही थीं। अर्जुन की सरगी से शरारत उन्होंने देख ली थी। वे खुश थीं उन दोनों के लिए। मगर सरगी का कन्फ़्यूज़ सा चेहरा भी उन्होंने देख लिया था। इसलिए उसकी भाभी आगे बढ़कर उसके पास आ गई।

    सरगी खड़ी-खड़ी सोच रही थी, आज तो उसका दिन ही बवाल रहा। अगर आज दिन की शुरुआत ऐसी है, तो दिन ख़त्म कैसे होगा? उसे समझ नहीं आ रहा था। उसे खुश होना चाहिए या रोना चाहिए? सरगी परेशान सी अंदर चली गई। करिश्मा सरगी के पीछे ही उसके कमरे में आ गई।

    उसने आकर सरगी के गले में बाहें डाल दीं।
    "....सरगी, क्या बात है... तुम कन्फ़्यूज़ क्यों हो...."
    "....नहीं... भाभी, ऐसी कोई बात नहीं...."
    "....मैं तुम्हारी भाभी हूँ... मुझे नहीं बताओगी... मैं तुम्हारी सहेली जैसी हूँ...."
    "....भाभी, कुछ नहीं... बस मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है..."
    "....क्या समझ नहीं आ रहा है... अर्जुन का बिहेवियर.... सरगी, तुम्हें समझने की ज़रूरत नहीं है... जो हो रहा है वो सही हो रहा है... उसे होने दो... अगर अर्जुन आगे बढ़ा है तो... तुम भी आगे बढ़ो..... मुझे पता है... तुम दोनों की जिन हालात में सगाई हुई और इतने कम दिनों में शादी... और जिन हालातों में शादी हुई... उस बात को लेकर मेरे मन में भी डर था... कहीं अर्जुन और तुम्हारे बीच में दूरियाँ ख़त्म ही ना हो पाएँ... मगर तुम दोनों को साथ में देखकर मुझे बहुत खुशी हुई....."

    अपनी भाभी की बातें सुनकर सरगी करिश्मा के गले लग गई। "...शायद आप ठीक कह रही हैं... भाभी... आपने मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया...."
    "....चलो, और सब बातें तो ठीक है सरगी, मगर अर्जुन को यूँ तुम्हें सरेआम किस नहीं करना चाहिए था...." करिश्मा ने सरगी को छेड़ा।
    "....भाभी... आप भी ना... आप जाइए कमरे से... मुझे रेस्ट करना है...." शरमाते हुए सरगी खड़ी हो गई।

  • 17. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 17

    Words: 823

    Estimated Reading Time: 5 min

    अर्जुन और सरगी के बीच की दूरियाँ कम हो रही थीं। अर्जुन अब आगे बढ़ने को तैयार था और सरगी की तरफ धीरे-धीरे बढ़ रहा था। पर सरगी अभी थोड़ी कन्फ्यूज थी। उन दोनों को घर तक छोड़ने के बाद सरगी थोड़ी देर आराम करने लगी। लेटे-लेटे अपने और अर्जुन के बारे में सोचने लगी। फिर उसने सिर झटक कर खड़ी हो गई। अब जो होगा, देखा जाएगा। भाभी ने सही कहा था, जो हो रहा है, उसे होने दो। तभी उसे जानवी का फ़ोन आ गया। जानवी ने उसे कहा कि वह सरगी को दोपहर को साथ में हॉस्पिटल ले जाएगी। सरगी ने हाँ कह दिया। वह दोपहर के खाने के बाद जानवी के साथ हॉस्पिटल आ गई। मगर आते-आते घर से एक ब्लैंकेट भी उठा लाई। उसे याद आ गया कि रात अर्जुन और सरगी एक ही कम्बल में थे और आज वह इस स्थिति का सामना दादी मां के सामने नहीं करना चाहती थी।

    दोपहर के बाद अर्जुन का फ़ोन सरगी को आया।
    "...सरगी... मैं तुम्हें 1 घंटे में लेने आ रहा हूँ... तुम तैयार हो जाना..."

    "...नहीं... मैं तो पहले ही दीदी के साथ हॉस्पिटल आ गई..."

    "...ठीक है... मैं घर से चेंज करके फिर आऊँगा..."

    कहकर अर्जुन ने फ़ोन काट दिया। घर पहुँचकर अर्जुन ने सरगी को फिर फ़ोन किया।
    "...सरगी... मैं घर से आ रहा हूँ... तुम्हें कुछ चाहिए हो तो बता दो..."

    सरगी ने मना कर दिया।

    अर्जुन कपड़े बदलकर हॉस्पिटल आ गया। शाम को बहुत देर तक जानवी भी उनके साथ बैठी रही। अर्जुन लैपटॉप पर अपना काम करता रहा। जानवी और सरगी एक-दूसरे से बातें करती रहीं। फिर शाम को जानवी को लेने के लिए सैम कपूर (जानवी का पति) आ गया। वह भी डेढ़ घंटा बैठा रहा। वह तीनों के लिए खाना लेकर आया। जानवी ने खाना खिलाकर घर जाने की तैयारी कर ली।

    जानवी जाते हुए सरगी से पूछी,
    "...सरगी... कुछ चाहिए तो नहीं..."

    "...नहीं दी... कुछ नहीं चाहिए..."

    "...अच्छा ये दो ब्लैंकेट किसलिए पड़े हैं... बेड इतना छोटा है... और दो ब्लैंकेट हैं..."

    "...दी... क्या है कि रात को सर्दी ज़्यादा हो जाती है... तो रात एक ब्लैंकेट में ठंड लग गई... इसलिए एक और ले आई।"

    उसने चोर नज़र से अर्जुन की तरफ़ देखा। वह उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।

    फिर जानवी ने सैम से कहा,
    "...गाड़ी में... नीचे एक मोटा ब्लैंकेट पड़ा है..."

    सैम ने वहाँ से दोनों ब्लैंकेट उठाए और नीचे से मोटा ब्लैंकेट लाकर रख दिया। और उनसे मिलकर चले गए। जब सरगी ने अर्जुन की तरफ़ देखा तो वह उसे देखकर शरारत से मुस्कुरा रहा था। सरगी इधर-उधर देखने लगी। सरगी ने अपना सिर पीट लिया। उसके साथ ही ऐसी-ऐसी सिचुएशन क्यों होती है! आज सुबह से रात हो गई, मगर वह उसी चक्कर में फँसी हुई है।


    उन लोगों के जाने के बाद दादी भी सो गई। सरगी भी अपनी जगह आकर लेट गई। अर्जुन बैठा हुआ अपना काम करता रहा। देर रात को जब उसका काम ख़त्म हुआ तो वह भी सरगी के साथ आकर लेट गया। पिछली रात तो सरगी से अर्जुन दूरी बनाकर सोने की कोशिश कर रहा था, मगर आज वह उससे सटकर लेट गया। आज सरगी ने अनारकली सूट पहना था जिसका फ्लेयर काफी ज़्यादा था जो बार-बार अर्जुन के नीचे आ रहा था। उसकी वजह से वह बहुत डिस्टर्ब हुआ। अर्जुन सोचने लगा,
    "....अजीब लड़की है... रात को ऐसे कपड़े पहन कौन सोता है... एक बार जब हम कहीं चले जाएँगे... फिर सेक्सी नाईटी लाकर दूँगा... रात को सिर्फ़ वही पहना करेगी..."

    सोचते हुए मन में मुस्कुराने लगा। सोचते हुए अर्जुन धीरे-धीरे नींद के आगोश में चला गया।

    सुबह सरगी की जल्दी आँख खुल गई। वह उठकर बाथरूम चली गई। फिर वापस आकर चेयर पर बैठ गई तो अर्जुन बोला,
    "...अभी सिर्फ़ 3:00 बजे हैं... आकर सो जाओ..."

    अर्जुन की बात सुनकर सरगी बेड पर उसके साथ आकर लेट गई। जिस तरफ़ सरगी लेटी थी उसी तरफ़ अर्जुन ने साइड बदलकर अपना मुँह कर लिया। अपना एक हाथ सरगी के पेट पर रख दिया और धीरे से बोला,
    "...मेरे साथ नींद नहीं आ रही क्या..."

    "....नहीं... ऐसी कोई बात नहीं है..."

    सरगी ने धीरे से जवाब दिया। फिर अर्जुन ने सरगी का हाथ पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया। आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर बाद सरगी ने अपना हाथ खींचना चाहा तो अर्जुन बोला,
    "...अब नहीं छोड़ूँगा... इसे पकड़ना हक़ है मेरा..."

    वह मुस्कुराकर सरगी की ओर देखने लगा। सरगी ने शर्माकर अपनी आँखें झुका लीं। अर्जुन फिर धीरे से बोला,
    "...यह बात-बात पर तुम्हारे शर्माने की अदा ही तो मेरा दिल ले गई... मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं था... तुमसे शादी करने या तुम्हारे पास आने में... मगर पता नहीं... इन हिरनी जैसी आँखों से क्या जादू करती हो..."

  • 18. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 18

    Words: 1124

    Estimated Reading Time: 7 min

       अब तक आपने पड़ा अर्जुन और सरगी नजदीक आ चुके हैं । दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए प्यार पनपना शुरु हो चुका है। अर्जुन अपने दिल की बात धीरे-धीरे सरगी से कह रहा है। सरगी चुपचाप उसकी बातें सुन रही है।"... सरगी अपना जरा सिर ऊपर उठाना..." अर्जुन के कहने पर जब सरगी अपना सिर  ऊपर करती है तो उसको अर्जुन उसके सिर के नीचे अपनी बाजू कर देता है। सरगी अपना सिर उसकी बाजू पर रख देती है । अर्जुन सरगी से  कहता है,"... सरगी..."".. जी...""... कल मैं बिजनेस मीटिंग के लिए Toronto  जा रहा हूं.. मेरा बड़ा मन है... कि तुम भी मेरे साथ चलो... लेकिन मेरी बुकिंग पहले से है... इतनी जल्दी तुम्हारी टिकट कंफर्म नहीं हो सकती...."। ".... कोई बात नहीं... आप जल्दी आ जाइए....""... यही तो प्रॉब्लम है... शायद मुझे वहां पर हफ्ता 10 दिन लग सकते हैं... काफी बड़ी बिजनेस डील है...."".... कोई बात नहीं ... 10 दिन तो ऐसे ही निकल जाएंगे... तब तक मैं दादी मां के पास रहूंगी... उनकी सेवा करूंगी..."" वह तो ठीक है... मगर मेरा तुमको छोड़कर जाने का कोई मन नहीं..." आंखों में प्यार भरते हुए अर्जुन बोला। कुछ देर के लिए अर्जुन और सरगी दोनों चुप हो गए। फिर थोड़ी देर बाद अर्जुन  बोला,"... सुनो ...तुम् ऐसा करना मेरे बाद अपनी शॉपिंग पूरी कर लेना ...."जब सरगी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो अर्जुन सरगी की तरफ देखने लगा। उसने देखा तब तक सरगी सो चुकी थी। बह उसे  देख कर मुस्कुराने लगा। फिर अर्जुन  ने भी अपनी आंखें सोने के लिए बंद कर ली। उसका महबूब उसकी बाहों में था उसकी आंखों में नींद कहां थी।      सरगी अर्जुन की बाजू पर सिर रखकर सो गई। मगर अर्जुन  आपनी मीटिंग के बारे में सोचता रहा। उसे जाना बहुत मुश्किल लग रहा था। वह सोच रहा था कि वो सरगी को कैसे साथ ले जा सकता है। मगर उसे कोई रास्ता नजर नहीं आया। ऐसे सोचते सोचते सुबह के 7:00 बज गए उसे हॉस्पिटल में कमरे के बाहर पामेला भाभी और भैया की आवाज सुनाई दी। उसने सरगी को उठाने की कोशिश की मगर वह गहरी नींद में थी। फिर उसने  उसके गाल पर धीरे से थपथपा  तो सरगी की आंख खुली तो शरारत से अर्जुन बोला,".... माना मेरी बाहों में नींद तुम्हें अच्छी आई... मगर अब उठना पड़ेगा.... भैया और भाभी आ गए..." अर्जुन की बात सुनकर सरगी शर्मा कर उठ गई।       भाभी और भैया दोनों चाय लेकर आ गए। तब तक दादी मां उठ गई। उनकी तबीयत पहले से बहुत ठीक थी ।उनको रात को नींद भी अच्छी आई थी ।चाय पीने के बाद अर्जुन डॉक्टर से मिलने चला गया ।डॉक्टर से बात करके दादी मां को घर शिफ्ट कर दिया । उनके लिए  घर पर एक नर्स का इंतजाम कर दिया गया। सभी घर पहुंच गए तो दादी मां कहने लगी,"... अब तुम लोग अपने कमरों में जाओ .आराम करो...  अगर किसी चीज की जरूरत   होगी तो मैं बता दूंगी...।"        दादी अपने कमरे में आराम करने लगती है। सभी अपने कमरों में चले जाते हैं। अर्जुन कमरे में आकर सरगी से कहता है,"... मुझे अभी तैयार होना है... कनाडा जाने के लिए... मेरी जरूरी मीटिंग है..."अर्जुन  नहा कर आ जाता है। अर्जुन केवल टावर बांधकर ही आ जाता है। सरगी  उसे देख कर मुंह साइड पर कर लेती है तो अर्जुन उसके पास आकर कहता है,"... यार यह क्या बात हुई ...तुमने तो अपना मुंह साइड पर कर लिया...  मैं इतना बुरा दिखता हूं.."। ".... नहीं नहीं... वह तो..." सरगी खड़ी होकर कोई बात न आने पर  इधर उधर देखने लगती है। तो अर्जुन  उसके पास आ जाता है ।आकर उसका हाथ पकड़ता है और फिर  कहता है,"... सच-सच बताओ तुम्हें मेरी याद आएगी.... या नहीं...." उसकी तरफ देखकर सरगी धीरे से बोलती है,"... आप जल्दी आ जाइए ...मैं आपका इंतजार करूंगी..." तो उसकी बात पर अर्जुन कहता है,".... ठीक है एक बार... आप मेरे गले से तो लग जाओ....."सरगी आंखें झुका कर शर्माने लगती है। उसे देखकर अर्जुन  हंसता है,"... यार... तुम तो गले लगने की बात पर ही इतना शर्मा रही हो.... तुम्हारा सुहागरात को क्या हाल होगा... ऐसे ही एक डेढ़ घंटा है मेरे पास... अगर तुम कहो तो जल्दी-जल्दी में सुहागरात 😁का काम भी निपटा लें...."। अर्जुन की बात सुनकर सरगी शर्म से लाल हो जाती है ।उसकी दिल की धड़कन बढ़ जाती है। उसके गालों से सेक निकलने लगता है। उसके सामने खड़ा अर्जुन जोर जोर से हंसता है ,"...तुम्हारे गालों का सेक मुझे जहां तक आ रहा है ...तुम्हारे बड़ी हुई दिल की धड़कन मुझे सुनाई दे रही ..... मैं तो मजाक कर रहा था... वैसे अपनी शर्म को थोड़ा कम करो.... "अर्जुन आगे बढ़कर उसे गले से लगा लेता है......" सरगी उसके सीने में अपना मुंह छुपा लेती है। फिर बोलती है,".... मेरा भी आपके बिना मन नहीं लगेगा... जल्दी आ जाना...." अर्जुन  उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेता हुआ कहता है,".... मेरे लिए जाना कितना मुश्किल हो रहा है ...तुम सोच नहीं सकती.... अगर बहुत ज्यादा जरूरी नहीं होता तो.... मैं कभी नहीं जाता...." अर्जुन उसके चेहरे की तरफ झुकने लगता है। सांची अपनी नजर झुका लेती है। उसकी आंखों में हां पढ़कर  अभी  उसके होठों के पास ही पहुंचा था कि उसका फोन बजने लगता है। अर्जुन फोन पर बात करने के बाद तैयार हो जाता है।     अर्जुन तैयार होकर दादी मां के पास आता है। अर्जुन :...दादी मां...  मैं  कनाडा के लिए निकल रहा हूं... मेरी  जरूरी बिजनेस मीटिंग है... वहां पर मुझे शायद कुछ दिन लग जाएंगे ....आप अपना ख्याल रखिएगा....। दादी मां :...ऐसे कैसे... तुम अकेले जा सकते हो... कल तो तुम्हारी शादी हुई है... 2 दिन से तुम दोनों हॉस्पिटल में थे... अब तुम कनाडा जा रहे हो.. ... सरगी: कोई बात नहीं दादी मां ...बहुत जरूरी काम है... ये जल्दी ही वापस आ जाएंगे ...तब तक मैं आपके पास रहूंगी ना.... आपकी सेवा करूंगी... हम दोनों बहुत अच्छा टाइम गुजारेंगे.... दादी मां ( गुस्से से ):तुम्हारी शादी मेरे साथ थोड़ी ना हुई है... मैं तुम्हें नहीं झेल सकती ...अर्जुन मुझसे बुरा कोई ना होगा... अगर तुम सरगी को साथ ना लेकर गए। अर्जुन:...दादी मां ....मेरी टिकट पहले से कंफर्म है... मेरे साथ की टिकट नहीं मिल सकती... और वहां पर जाने के लिए वीजा भी चाहिए.....। दादी मां:... अगर तुम्हारे साथ की टिकट नहीं मिल सकती... तो यह तुम्हारे बाद वाली फ्लाइट में आ जाएगी... यह कोई अनपढ़ तो नहीं है... जो गूम जाएगी ....आज की पढ़ी-लिखी लड़की है... मुझे लगता है सरगी के पास वीजा भी होगा.... अर्जुन :...सरगी क्या तुम्हारे पास वीजा है...? सरगी:... हां मेरा 10 साल का वीजा लगा हुआ है....      तभी अर्जुन सुन किसी को फोन मिलाता है और कहता है," कल की कनाडा की किसी भी फ्लाइट   की जो टिकट मिल सकती हैं उसे चाहिए...."अर्जुन की बात सुनकर दादी खुश हो जाती है   

  • 19. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 19

    Words: 655

    Estimated Reading Time: 4 min

    अर्जुन कनाडा में बिज़नेस मीटिंग के लिए जा रहा था। जब दादी को यह पता चला, तो उन्होंने सरगी को भी साथ जाने के लिए कहा। जब अर्जुन को पता चला कि सरगी के पास वीज़ा है, तो उसने अगले दिन के लिए उसकी फ़्लाइट टिकट का इंतज़ाम किया। उसे अगले दिन रात की फ़्लाइट की टिकट मिल गई।

    जब अर्जुन तैयार होकर एयरपोर्ट जाने लगा, तो उसकी माँ ने कहा, "जाओ सरगी, तुम अर्जुन को छोड़ आओ।" वे दोनों एयरपोर्ट के लिए निकल गए। जाते हुए अर्जुन ने सरगी से पूछा, "मुझे याद करोगी?"

    "बिल्कुल करूंगी," सरगी ने कहा। "😁 वैसे इन 2 दिनों में तुम्हें मेरी आदत तो पढ़ ही गई होगी..."

    सरगी उसकी तरफ देखते हुए बोली, "...बिल्कुल। वैसे मैंने सोचा नहीं था... आपके बारे में..."

    "...मतलब...?" अर्जुन ने पूछा।

    "...आपको याद है... आपने उस पंडित जी के सामने... कैसे जवाब दिया था... मुझे तो लगा था कि आप मुझे सारी ज़िन्दगी अपना नहीं बनाएँगे...🥺"

    "😇😇 सॉरी यार... बस मुझे तब तुम ख़ास अच्छी नहीं लगी थी... अब क्या करूँ.... तब हम अच्छे से मिले नहीं थे ना... जब अब मिले हैं तो तुमने... ऐसे कब्ज़ा जमा लिया है... अब तो तुम्हें छोड़कर ही नहीं जाया जाता। 😊"

    "...वैसे पंडित जी ने हमें मुसीबत के बारे में भी कहा था... और क्या आनी है अब हम पर मुसीबत...?"

    "...पंडित जी ने कहा था... कि मुझ पर मुसीबत आएंगी... और तुम उसे अपने ऊपर ले लोगी... मेरी दादी माँ बीमार हुई और तुम्हें मुझसे शादी करके कर ली... और वह ठीक हो गई... मुसीबत ख़त्म हो गई..."

    "...सच में अब सब ठीक हो क्या...?"

    "...अब तो मुसीबतों की बात छोड़ो जान... मुझसे प्यार😜 की बात करो... तुम..." अर्जुन ने कहा, गाड़ी एक तरफ़ ले जाते हुए।

    "...अरे आपने गाड़ी क्यों रोक ली साइड पर...?"

    अर्जुन आँखों में शरारत भरकर उसके चेहरे की तरफ़ झुकने लगा। सरगी ने उसे रोकते हुए कहा, "...आपको लेट नहीं हो रहा है अभी 😊..."

    "...थोड़ा टाइम है..."

    अर्जुन ने अपना एक हाथ सरगी के सर के पीछे लगा लिया और दूसरा उसके गले में डाल दिया। थोड़ी देर के लिए दोनों एक-दूसरे में खो गए। थोड़ी देर बाद जब अर्जुन ने उसे छोड़ा, सरगी को शर्म आ रही थी।

    अर्जुन ने उससे कहा, "...अब शर्माना छोड़ो... 10 मिनट है मेरे पास... प्यार कर लो मुझसे..." सरगी भी उसके सीने से लग गई।

    "...मेरी भी तो कल रात को फ़्लाइट है... हाँ, मैं अभी निकलूँगा तो कितना लंबा रास्ता हो जाता है। 11-12 घंटे का तो सफ़र ही है... जाते ही मेरी मीटिंग होगी... और तुम भी परसों शाम तक पहुँच जाओगी... अब मैं भी 2 दिन निकाल लूँ... चार्ज तो कर दो मुझे..."

    सांची ने आगे बढ़कर अर्जुन के गाल पर किस कर लिया। "...अरे यार, गालों पर नहीं, इन होठों पर किस करो..."

    "...कल जब आऊँगी फिर..."

    "...तब किस से काम थोड़ी चलेगा, और भी बहुत कुछ करना होगा 😁..." सरगी अर्जुन को मारते हुए बोली, "...बेशर्म हैं आप 😊..."

    "अब इसमें बेशर्मी वाली कौन सी बात है... जो करना है... वह तो करना ही है। 🫣... वैसे भी वाइफ़ हो... तो मेरा पूरा हक़ है मेरा तुझ पर... रात मेरी बाहों में चैन से सोई थी। 🤭... उसका हिसाब भी तो लेना है।"

    "...अगर मैं कल आऊँगी ना तो..."

    "...कैसे नहीं आओगी यार... मेरा प्यार खींच कर लाएगा तुम्हें... और हाँ, अब वहाँ पर मैं तुम्हारे लिए सेक्सी सी नाइट ड्रेस लेकर रखूँगा... जिसकी कोई डोरी 😁 ना हो..." ऐसे ही दोनों एक-दूसरे से प्यार जताते चले गए। सरगी अर्जुन को छोड़कर अकेले ही वापस आ गई।

    सरगी को वापस आकर बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। वह अर्जुन के प्यार में पूरी तरह डूब चुकी थी। उसे कनाडा जाने के लिए शॉपिंग भी करनी थी। उसकी शादी तो इतनी जल्दबाज़ी में हुई थी कि वह वही पुराने कपड़ों में घूम रही थी। अगले दिन रात को उसकी फ़्लाइट थी। उसने वहाँ जाने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर ली थी।

  • 20. अगर तुम मिल जाओ - Chapter 20

    Words: 932

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्जुन के जाने के बाद सरगी को एयरपोर्ट से घर जाना बहुत मुश्किल लग रहा था। सच में, इन थोड़े ही दिनों में उस इंसान ने सरगी का दिल पूरी तरह चुरा लिया था। आते हुए सरगी सोच रही थी, "...वो इंसान, जो उसका बॉस था... बिल्कुल अलग था और जिससे उसकी शादी हुई थी... उससे बहुत अलग लगता है... उसका बॉस गुस्सा वाला था... उसका पति उतना ही प्यार करने वाला था..." थोड़े ही दिनों में सरगी को अर्जुन से प्यार हो गया था। सरगी शाम को शॉपिंग का प्रोग्राम बनाती है। सरगी अकेले ही मन में सोचती है, "...मुझे एक सेक्सी सीन नाईटी भी लेनी है..." फिर अकेले में ही खुद से ही शर्म आने लगती है।

    सरगी के पास 2 दिन थे। उसने अपनी पूरी तैयारी कर ली थी। वह अपने भैया, भाभी और माँ-बाप से भी मिली थी। उसने दादी के साथ भी काफी समय बिताया था। वह बहुत खुश थी। बस सोच रही थी कि चलो अब वह और अर्जुन कुछ दिनों के लिए अकेले बाहर रहेंगे। सच में, जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है तो वह बहुत अच्छा लगता है। सरगी भी पूरी सपनों की दुनिया में खोई हुई थी। मगर जब उसे पंडित जी की बात याद आ जाती कि अर्जुन पर मुसीबत आने वाली है तो वह घबरा जाती। फिर पंडित जी की अगली बातें, अर्जुन उससे बहुत प्यार करेगा, वह एक बहुत अच्छी जिंदगी बिताएंगे, सोचकर खुश हो जाती।

    सरगी की फ्लाइट लेट नाइट थी। वह कनाडा में अगले दिन शाम को ही पहुँची। वह बहुत थक गई थी। अर्जुन उससे बार-बार फोन करके पूछता रहा कि वह किसी को लेने भेज देगा। मगर सरगी ने उससे कह दिया था, "नहीं, मैं अपने आप पहुँच जाऊँगी।" वह उसकी फिक्र बिल्कुल मत करें। वैसे भी उसे अच्छा लग रहा था। अर्जुन ने उसको लेने किसी को नहीं भेजा। वह जाने से पहले होटल के काउंटर पर कह गया था, "एक सरगी ओबरॉय नाम की लड़की आएगी, उसे कमरे की चाबियाँ दे देना।"

    अर्जुन के कमरे की बुकिंग केवल अर्जुन के नाम पर थी। वैसे भी, सरगी के आने के बाद अर्जुन केवल उसी रात उस होटल में रुकने वाला था। उसके बाद उसका प्रोग्राम कुछ और था। अर्जुन ने अपने और सरगी के लिए एक कॉटेज बुक की थी, जहाँ पर वे दोनों कुछ दिनों के लिए रहने वाले थे। अर्जुन ने भी सरगी के साथ इन दिनों के लिए बहुत सपने सजा कर रखे थे। वह इन दिनों को अपनी जिंदगी के सबसे यादगार दिन बनाना चाहता था। ❤️

    सरगी शाम को होटल में पहुँच गई। सरगी के पास ज़्यादा सामान भी नहीं था। उसके पास एक छोटा सा बैग था, जिसे उसने खुद ही उठा लिया, किसी होटल स्टाफ की हेल्प की ज़रूरत नहीं पड़ी। अर्जुन ने उसे कह दिया था कि वह उसे वहाँ से शॉपिंग कराएगा। इसलिए ज़्यादा सामान इंडिया से लाने की ज़रूरत नहीं थी। सरगी ने रिसेप्शन से कमरे की चाबी ली और रूम में पहुँच गई। उसको किसी ने आते हुए नहीं देखा।

    कमरे में आकर सरगी फ़्रेश हो गई। खाना उसने प्लेन में ही खा लिया था। इसलिए अब वह थोड़ा रेस्ट करना चाहती थी। वह कुछ देर के लिए सो गई। अर्जुन ने उससे फ़ोन पर करके कह दिया था कि वह थोड़ा सा लेट आएगा। सरगी सोकर फ़्रेश हो गई। फिर उसने उठकर अर्जुन को फ़ोन किया। अर्जुन ने बताया कि वह थोड़ा सा और लेट हो जाएगा क्योंकि उसे किसी से मिलना था। उनके साथ शायद खाना खाकर ही आएगा। अर्जुन सरगी से कहने लगा कि वह खाना खा ले। मगर सरगी को भूख नहीं थी, तो उसने खाना नहीं मँगवाया। सरगी ने प्रीति को फ़ोन लगा दिया और बहुत देर तक प्रीति से बातें करती रही। प्रीति भी सरगी से बात करके बहुत खुश हुई। दोनों सहेलियाँ अपनी खुशियाँ एक-दूसरे को बताती रहीं।

    अर्जुन थोड़ा लेट ही कमरे में आया। वह आकर सरगी को देखकर खुश हो गया। सरगी आकर उसके गले लग गई। "पता है... इन दिनों में मैंने तुम्हें कितना मिस किया..." अर्जुन सरगी से कहने लगा। "...मेरा भी आपके बिना बिल्कुल मन नहीं लगा..." कितनी देर दोनों एक-दूसरे के गले लगे रहे। अर्जुन ने सरगी का चेहरा अपने हाथों में पकड़ लिया। सरगी ने अपनी नज़र झुका ली। अर्जुन उसे किस करने लगा। पहले तो बहुत सॉफ्टली किस कर रहा था, मगर धीरे-धीरे वाइल्ड होने लगा। सरगी को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि जितना उसने अर्जुन को जाना था, अर्जुन ऐसा नहीं था। सरगी ने मुश्किल से अपने आप को छुड़ाया।

    सरगी के होठों से थोड़ा खून भी आने लगा था। अर्जुन ने उससे सॉरी कहा। सरगी को अर्जुन थोड़ा अजीब लग रहा था। उसकी आवाज़ भी उसे थोड़ी बहकी लग रही थी। अर्जुन भी अपने आप को ठीक फील नहीं कर रहा था। वह सोफ़े पर बैठ गया। उसने ग्लास उठाकर पानी पीने लगा। उसने अपनी टाई भी खोल दी। वह बहुत गरम फील कर रहा था। उसे लग रहा था जैसे उसको अपने आप पर कंट्रोल नहीं हो रहा। मगर वह सरगी को नहीं बताना चाहता था। सरगी उसके पास आई और बोली, "...कोई बात नहीं... मुझे आपको ऐसे किस करने का बुरा नहीं लगा..." उसने अर्जुन के काँधे पर सिर रख दिया। अर्जुन ने भी उसे अपनी बाहों के हिसार में ले लिया। थोड़ी देर ऐसे बैठे-बैठे अर्जुन का हाथ सरगी के शरीर पर चलने लगा। वह थोड़ा अजीब तरीके से कर रहा था। सरगी ने उसका हाथ हटा दिया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है?