Novel Cover Image

Rebirth of Rani Sa

User Avatar

Ishqi

Comments

23

Views

25209

Ratings

424

Read Now

Description

जिन्हे आप महफूज रहने की जगह समझ रहि थी वो धोखे की काल कोठरी थी और जिन्हे कैद का पिंजरा वो आपकी सुरक्षा की एक निश्छल दीवार थी। ये थी बीस वर्षीय चाहत कंवर के दिल की आवाज़, जो उसके आखरी पलो में उसकी जिंदगी की गलतियां गिनवा रहि थी। जोधपुर की रानी चाहत कं...

Characters

Character Image

Chahat kanwar

Heroine

Total Chapters (70)

Page 1 of 4

  • 1. Rebirth of Rani Sa - Chapter 1

    Words: 1327

    Estimated Reading Time: 8 min

    जोधपुर, राजस्थान। शाम के पाँच बजे का समय था। एक लड़की, जिसने घाघरा चोली पहना था, नंगे पांव जंगल में दौड़ रही थी। उसके पीछे राजस्थानी पोशाक पहने कुछ आदमी भाग रहे थे। उस लड़की के माथे पर टिका हुआ टीका और नाक में बड़ी सी नथ उसके शाही होने की गवाही दे रहे थे। वह ज़रूर किसी बड़े घराने की थी। उसके कोमल पांवों में बजती पायल की छन-छन की आवाज़ उन गुंडों को सुनाई दे रही थी, जिससे वे बिना किसी परेशानी के उसके पीछे भागने में सफल हो रहे थे। वह अचानक लड़खड़ाकर गिर पड़ी। उसकी नाज़ुक कलाईयों में खरोच आ गईं। वह डरते हुए पीछे खड़े उन गुंडों को सहमी नज़रों से देखने लगी। उसके दिल की धड़कनों की रफ़्तार बता रही थी कि वह किस कदर डरी हुई है! "चले जाओ यहां से, वरना कुंवर सा आपको ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। अभी भी मौका है।" वो आदमी शैतानों की तरह हँसने लगे। उनमें से एक, जो दिखने में उनका सरदार लग रहा था, तेज हँसी के साथ बोला, "मौत आ जाए, पर रानी सा का रौब तो शिखर पर ही रहता है!" "क्योंकि हम रानी सा हैं, और ये जो रौब अब लग रहा है, इसे हमारे कुंवर सा जल्द ही हकीकत में तब्दील कर देंगे!" वह लड़की, सामने मौत देखकर भी, अपना ओज, अपनी शख्सियत किसी के सामने कम नहीं करना चाहती थी। वह अपने हाथों के सहारे से पीछे खिसकने की कोशिश कर रही थी। उसके हाथों में जगह-जगह चोट के निशान बने थे। "रानी सा, अब वक्त आ गया है। आप अपने स्वर्गवासी पति के पास, यानी कि जयपुर के राजा साहब के पास चली जाइए। बेचारे कब से तड़प रहे होंगे आपके लिए! आपसे इतना टूटकर प्यार करते थे वो!" "और रही बात कुंवर सा की! तो कौन सा आपसे प्यार करते हैं? तरस खाकर शादी कर ली उन्होंने..." "वो तो पत्थर की तरह कठोर हैं। आप जैसी ठंडी बारिश की बूंदें उन्हें कभी नहीं तोड़ सकतीं।" वह लड़की, वहाँ की रानी सा, आज खुद को इस कदर हारा हुआ महसूस कर रही थी कि उसमें साँस लेने की हिम्मत तक नहीं बची थी। उसकी साँसें फूलने लगी थीं। साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। इतने में ही वहाँ एक जीप जोरदार ब्रेक के साथ धूल उड़ाती हुई रुक जाती है। उस कार में बैठे शख्स की ग्रे शेड आँखें उस लड़की की हालत देखकर उसी पर आकर थम गई थीं। गुस्से से तनी नज़रें साफ़-साफ़ उसके रौद्र रूप धारण करने का आह्वान दे रही थीं। वहीँ, वह लड़की भी अब एकटक भावहीन होकर उस लड़के की आँखों में देख रही थी। वो लड़का जैसे ही जीप से जमीन पर पांव रखता है, एक पल के लिए तो पूरी कायनात जैसे थर-थर गई थी। सूखे पत्ते गिरने की आवाज़ के साथ उसकी जीप का दरवाज़ा बंद हुआ। और वह अपनी पैंट के पीछे टंगी बंदूक को निकालकर लोड करते हुए आगे कदम बढ़ाता है। इस वक्त उसने एक सफ़ेद शर्ट और नेवी ब्लू पैंट पहनी थी। शर्ट की स्लीव्स कोहनी तक मुड़ी हुई थीं, जिससे उसकी मस्कुलर आर्म्स और उसकी नीली नसों में तेज़ी से बहता खून साफ़-साफ़ नज़र आ रहे थे। "क... कुंवर सा...!" वहाँ खड़े शख्स के मुँह से एकाएक निकला। इतने में ही गन की आवाज़ आई, और गोली उसके माथे के बीचों-बीच से होती हुई गुज़र गई। और वह आदमी निढाल होते हुए चित्त गिर पड़ा। वहाँ खड़े आधे लोगों की तो डर के मारे पैंट तक गीली हो चुकी थीं। उनके पैर जवाब दे रहे थे। उनके काँपते पैर देखकर रानी सा ने कुछ देर पहले की बातें याद कीं- "कुंवर सा सच में एक पत्थर से भी ज़्यादा कठोर इंसान हैं!" पर रानी सा की साँसें अब भी उखड़ रही थीं, क्योंकि उनके शरीर में ज़हर फैल चुका था। उन्हें एक अजीब किस्म का इंजेक्शन दिया गया था, जिसके बाद से उनका शरीर लाल पड़ चुका था। कुंवर सा तेज कदमों से रानी सा के पास जाकर धड़ाम से घुटनों के बल गिरते हुए उनके नाज़ुक हाथों को अपने हाथों में लेते हुए अपनी भारी और गहरी आवाज़ में कहा, "आप ठीक हैं रानी सा? कहाँ चोट लगी है आपको? हमारे होते हुए आपको कुछ नहीं हो सकता है।" रानी सा की आँखें एकदम से पानी से लबालब हो गईं। जिस कुंवर सा को मारने तक की सोच उनके दिमाग में थी, आज वो इस कदर उसके लिए लड़ रहा था। तभी उन गुंडों में से एक आदमी ने कहा, "कुछ भी कर लो कुंवर सा, पर आज रानी सा को इस ज़हर से कोई नहीं बचा सकता। आप हमें मारकर भी रानी सा को कभी नहीं बचा पाएँगे। रानी सा की ज़िंदगी........." आगे के शब्द उसके गले में ही अटक चुके थे, क्योंकि कुंवर सा ने मुड़ते हुए उसके सीने पर एक गोली दाग दी थी। रानी सा का दर्द अब असहनीय हो चुका था। वह अपने काँपते हाथ को कुंवर शाह के हाथ से छुड़ाते हुए हल्के से कुंवर सा के गाल पर हाथ रखते हुए बोली, "हमें माफ़ कर देना कुंवर सा, हमने आपको इतनी तकलीफ दी है, जिसका पक्ष अब हमारी मौत से होगा। हो सके तो अपनी रानी सा को माफ़ कर दीजिएगा!" इतना बोलने के बाद रानी सा की आँखें झपकने लगीं। कुंवर सा एकदम तड़प उठे और उनके चेहरे पर भरे गले से बोले, "न... नहीं रानी सा! आप हमें इस तरह अकेला छोड़कर नहीं जा सकतीं! अभी तो आपने प्यार से पहली बार मेरे गाल को छुआ था... इतनी सी पल की मोहब्बत के लिए तो हमने आपके साथ जन्मों-जन्म साथ रहने के वादे किए थे।" "आप अपने वादों से मुकर रही हैं! आप ऐसा नहीं कर सकतीं! आपने कहा था आप हमें जान से मारे बिना इस धरती से नहीं जाएँगी... अब मारिए मुझे, पर यूँ तड़पता छोड़कर मत जाइए।" कुंवर सा बोल ही रहे थे कि उनके सीने पर एक गोली आकर लगी। रानी सा जो दम तोड़ने की कगार पर थी... "आखिरी पलों में हमें यूँ आप पर इतना एतबार आया, और ये इज़हार साथ में हमारी मौत लाया।" "काश हम दोबारा मिल पाते, जो रह गई कसर हमारे रिश्ते में उसे पूरी कर पाते। काश हम भगवान की झोली में से भी सिर्फ़ आपके लिए लौटकर आ पाते।" कुंवर सा के सीने पर गोली लगते देख, रानी सा अपनी किस्मत को कोसने लगी। उनसे प्यार करने वालों को ही क्यों हमेशा सज़ा मिलती है? क्यों वो ही हर बार सहती है? क्या वो सिर्फ़ लोगों की नफ़रत के लिए पैदा हुई थी? कुंवर सा ने अपनी जहरीली लाल नज़रें ऊपर उठाईं तो सामने खड़ी औरत हँसते हुए बोली, "कुंवर सा... कैसा लगा हमारा निशाना? ये थी ताई सा... जिन पर रानी सा आँख मूँदकर विश्वास करती थीं।" रानी सा के दिल से आवाज़ आई, "जिन्हें आप महफ़ूज़ रहने की जगह समझ रही थीं, वो धोखे की कालकोठरी थीं, और जिन्हें कैद का पिंजरा, वो आपकी सुरक्षा की एक निष्कल दीवार थी।" "कम से कम इन आखिरी क्षणों में तो आपने हमारा हाथ थामा है। ऐसा लग रहा है कितने खुशनसीब हैं हम।" "पर इस प्यार के क्षण को इसी क्षण खो देंगे, और उस प्यार के साथी को भी। ये सोचकर लग रहा है कितने बदनसीब हैं हम।" इसी के साथ रानी सा की साँसें थम गईं। कुंवर सा ने जैसे ही महसूस किया, वो तड़पते हुए चिल्ला उठे, "रानी सा............" "हम बेक़सूस थे, पर ग़लती भी हमारी नादानी की थी। हमारा इस धरती पर अपना कोई नहीं मिला है। हमारी सच्चाई साबित करने के लिए तो गवाह भी आसमान से बुलाने पड़ते हैं।" उनकी चीख आसमान चीर देने वाली थी। और एक के बाद एक और गोलियों की बरसात होने लगी, जो अब कुंवर सा के आदमी कर रहे थे। पर कुंवर सा की ज़िंदगी तो पहले ही उनकी बाहों में ख़त्म हो चुकी थी। उनकी जीने की इच्छा मर चुकी थी। वह बेहोश होते हुए रानी सा के सीने पर गिर पड़े। और कुछ ही पलों में वो जंगल का इलाका जोधपुर के शाही राणा परिवार की औरतों की चीखों और रोने की आवाज़ के साथ गूँज उठा।

  • 2. Rebirth of Rani Sa - Chapter 2

    Words: 919

    Estimated Reading Time: 6 min

    "जल्दी जल्दी करो, इनके सारे गहने उतार दो और इस ठंडे पानी से नहला दो। उसके बाद इन्हें सती होने ले जाया जाएगा।" एक औरत की धीमी सी आवाज़ चाहत के कानों में पड़ रही थी। पर उसकी आँखें उस वक़्त बंद थीं; उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ थी और उसके साथ क्या हो रहा था। जैसे ही एक औरत चाहत की बड़ी सी नथ को जबर्दस्ती खींचते हुए निकालती है, दर्द के मारे चाहत की हलकी सी चीख निकल जाती है और उसी के साथ उसकी आँखें पूरी तरह खुल जाती हैं! "माफ़ करना रानी सा, पर माँ सा को जल्दी जल्दी सब करवाना है!" सामने खड़ी चाहत की ननद, किशोरी राणा ने सफ़ाई देते हुए कहा और फिर उसके माथे पर पड़ी बिंदी उतारने लगी। चाहत का दिल जोरों से धड़कने लगा। आखिर ये क्या हो रहा था? वह तो मर चुकी थी; उसे जहर दिया गया था। उसने अपनी उन गोरी कलाइयों को उठाते हुए देखा जो अब लाल की जगह सफ़ेद पड़ चुकी थीं। उसकी साँसें अटकने लगी थीं। चाहत ने घबराई नज़रों से एक बार चारों तरफ देखा। औरतों की भीड़ लगी थी जो आज उसे अपने पति, यानी जोधपुर के राजा सा अमरजीत सिंह राणा की सती होते हुए देखने आई थी। चाहत की नज़रों में इतना खौफ़ था कि उसकी आँखों की पुतलियाँ भी फड़फड़ा रही थीं। उसका वह भयानक अतीत कैसे उसके सामने फिर से दोहराया जा रहा था? वह कैसे भूल सकती थी अपनी ज़िंदगी के सबसे काले दिन को? जो आज उसके साथ हुआ था, वह उसके ज़हन में बुरी तरह घर कर चुका था। अचानक ही उसके शरीर पर बर्फ जैसे ठंडे पानी की बौछार हुई और वह चीख कर सामने देखने की कोशिश करने लगी। पर पानी के कारण सब कुछ अब उसे धुंधला नज़र आने लगा था। एक ही मटके पानी से चाहत के गुलाब की पंखुड़ी जैसे नर्म होंठ बुरी तरह काँपने लगे थे। उसकी स्किन इतनी sensitive थी कि ठंडा पानी लगते ही उसकी रंगत गुलाबी पड़ चुकी थी। उसकी यह बेदाग़ निखरी ख़ूबसूरती सब की आँखों में चुभती थी। चाहत के रुके हुए आँसू एक बार फिर बह उठे। वह बुरी तरह पैनिक करने लगी जब एक औरत ने उसकी कलाइयों में पहनी चूड़ियाँ तोड़नी शुरू कर दीं। "हमें... हमें दर्द हो रहा है! प्लीज़! प्लीज़ ऐसा मत करिए! Don't do that!" "रानी सा, थोड़ी सी पढ़ाई क्या कर ली, मेरे सामने अंग्रेज़ी झाड़ने लगीं।" "रहने दो भाभी सा, अब ये और इनकी पढ़ाई दोनों राजा सा के शरीर के साथ यहाँ से स्वर्गलोक प्रस्थान कर जाएँगी।" "नहीं... नहीं..." चाहत रोने लगी। उसका सिर दर्द से फट रहा था। करीब 15 मिनट बाद, चाहत एक सफ़ेद साड़ी में लिपटी हुई थी। सूजी हुई आँखें, जिनमें काजल फैल चुका था; लाल पड़ चुका छोटा, मासूम चेहरा; हाथों में खरोंच और खून! बिखरे बाल; वह बिलकुल किसी पागल की तरह लग रही थी। अब तो उसने तिलक मिलाना भी छोड़ दिया था क्योंकि उसे समझ आ गया था कि यह दर्द उसे झेलना ही होगा। पिछले जन्म में जो हुआ था, इस बार भी होगा। उसे एक नाई के सामने बैठाया जाता है जो कैंची लेकर उसके बाल काटने लगता है। उसके कमर तक लहराते बाल पल भर में कंधे तक के हो जाते हैं। उसकी आँखों के आँसू रुक नहीं रहे थे। वह मन ही मन ख़ुद से लड़ रही थी। "क्या इस दर्द को झेलने में अब हम इस ज़ालिम दुनिया में वापस आए हैं? यह तो नहीं माँगा था आपसे महादेव!" कुछ देर बाद, दो लड़कियाँ उसे घसीटते हुए "अमरजीत सिंह राणा" की सजी हुई चिता के करीब ले जा रही थीं, कि अचानक वहाँ एक गोली चलने की आवाज़ आती है और सबकी नज़रें उस तरफ चली जाती हैं। काला कुर्ता और पजामा पहने एक दमदार शख़्सियत गुस्से से चलती हुई आ रही थी। यह था मिथ्रान राणा, जिसका अर्थ था सूर्य! यहाँ के लोगों ने उसे यह नाम दिया था; माता-पिता ने तो "विक्रांत सिंह राणा" नाम रखा था, पर इसके कर्म जलते सूर्य की भांति थे, तो सब इसे मिथ्रान और कुँवर सा के नाम से जानते थे! "रानी सा सती नहीं होंगी! इनकी उम्र ही क्या है जो आप इन्हें सती करवा रहे हैं?" मिथ्रान की गहरी आवाज़ सुन वहाँ का माहौल सर्द पड़ चुका था। चाहत सूजी हुई आँखों से मिथ्रान को देख रही थी और उसकी आँखें भर आईं; मिथ्रान का चेहरा धीरे-धीरे आँसुओं में कहीं धुंधला सा होने लगा। पर चाहत ने झट से आँसू पोछ लिए; कहीं वह कुँवर सा को देखने का यह सुनहरा मौका भी न गँवा बैठे। "कलावती राणा" की गरजती हुई आवाज़ आई, "राणा खानदान में कोई भी लड़की विधवा के भेष में नहीं रह सकती, इसलिए इनका सती होना ही हमारे परिवार की परम्परा है।" "हम नहीं मानते ऐसी परम्परा को जो किसी मासूम की ज़िंदगी उससे छीन ले! रानी सा सती नहीं होंगी!" "माँ सा के ख़िलाफ़ जाने का अंजाम पता है ना भाई?" मिथ्रान के छोटे भाई ने कहा तो मिथ्रान की मुट्ठियाँ गुस्से में कस गईं। "हमने कहा ना, कोई सफ़ेद रंग ओढ़े हमारे इस रंगमहल में नहीं रहेगी।" "तो फिर रानी सा हमारे रंग में रंगी जाएँगी।" एक पल के लिए चारों तरफ़ सन्नाटा पसर गया। आख़िर अभी-अभी मिथ्रान ने क्या बोला? क्या वह एक विधवा से शादी करने वाला है? कितनी अजीब बात थी यह! जिस इंसान को कभी शादी नहीं करनी थी, अब वह एक सफ़ेद रंग से रंगी लड़की से शादी करने के लिए अपने घरवालों से लड़ रहा है! क्या होगी यह शादी? क्या होगा आगे?

  • 3. Rebirth of Rani Sa - Chapter 3

    Words: 892

    Estimated Reading Time: 6 min

    कलावती राणा की गरजती हुई आवाज़ आई। "राणा खानदान में कोई भी लड़की विधवा के बीच में नहीं रह सकती। इसलिए इनका सती होना ही हमारे परिवार की परंपरा है।" "हम नहीं मानते ऐसी परंपरा को जो किसी मासूम की ज़िंदगी उससे छीन ले। रानी सा सती नहीं होंगी।" "मां सा के ख़िलाफ़ जाने का अंजाम पता है ना भाई?" मिथ्रान के छोटे भाई ने कहा तो मिथ्रान की मुट्ठियाँ गुस्से में कस गईं। "हमने कहा ना, कोई सफ़ेद रंग ओढ़े हमारे इस रंगमहल में नहीं रहेगी।" "तो फिर रानी सा हमारे रंग में रंगी जाएंगी।" एक पल के लिए चारों तरफ़ सन्नाटा पसर गया। आख़िर अभी-अभी मिथ्रान ने क्या बोला? क्या वो एक विधवा से शादी करने वाला है? कलावती जी की फिर से गरजती हुई आवाज़ आई। "मिथ्रान, मत भूलो ये तुम्हारे छोटे भाई की विधवा है? हम ऐसा अनर्थ कभी नहीं होने देंगे।" "मां सा, अनर्थ वो है जो आप रानी सा के साथ करना चाहती हैं!" एक औरत ने कलावती जी के कान भरते हुए कहा। "तभी तो हम कहते थे कुंवर सा को विलायत ना भेजो। अब देखो नतीजा, आपकी एक बात मानने को तैयार नहीं हैं!" कलावती ने गुस्से से आँखें बड़ी करते हुए कहा। "सती की विधि प्रारंभ करो। हम भी देखते हैं कैसे ये सब रुकता है।" यह सुनकर चाहत की पल भर में रूह कांप उठी। "नहीं, नहीं! हमें डर लगता है आग से। मत करो हमारे साथ ऐसा।" चाहत की दर्द भरी आवाज़ सुनकर मिथ्रान का खून खोल उठा। "अगर किसी ने रानी सा को हाथ भी लगाया तो भूल जाना कभी तुम्हारे हाथ भी थे।" कलावती की आँखें हैरानी से फैल गईं। "मिथ्रान!!! हमने तुम्हें वापस रंगमहल में लाकर गलती कर दी है। इसके प्रमाण मत दो हमें!" मिथ्रान ने वैसे ही सर्द लहजे में कहा। "हम पहले भी आपके रंगमहल से दूर तीन साल तक इन जंगलों में रहे हैं! एक बार और रह लेंगे, कोई बड़ी बात नहीं है! पर रानी सा को इस आग में नहीं झुलसने देंगे!" मिथ्रान का साफ़-साफ़ यह रंगमहल को त्यागना वहाँ खड़े किसी भी व्यक्ति को नहीं भाया था। वहाँ एक और सशक्त आवाज़ आई। "क्या हो रहा है यहाँ? इतनी देर क्यों लग रही है!" यह था उमराव सिंह राणा, जोधपुर के दादा राजा! जो कभी यहाँ के राजा हुआ करते थे, पर इन्होंने अपनी गद्दी अपने मंझले बेटे, अमरजीत सिंह राणा को सौंप दी थी, जो आज के दिन चिता पर लेटा था! मिथ्रान ने बिना किसी हिचक के उमराव सिंह की तरफ़ देखकर कहा। "दादा राजा, हम शादी करना चाहते हैं रानी सा से!" उमराव सिंह का चेहरा एकदम से गुस्से से तमतमा गया। "कहीं जो अफ़वाह फैली है कि आपने ही अपने बड़े भाई की जान ले ली, वो सच तो नहीं? आप रानी सा से शादी करने के लिए ही यह षड्यंत्र रच रहे थे?" मिथ्रान ने कठोर स्वर में कहा। "हमें कोई सफ़ाई नहीं देनी है। बस आज हमारी शादी होगी!" उमराव सिंह ने थोड़ा शक भरे लहजे में कहा। "पर आप तो पूरी उम्र शादी नहीं करना चाहते थे, अकेले जंगलों में भी रहकर आए हैं।" "हमने कहा ना, आज हम ना किसी प्रश्न का उत्तर देंगे, ना आपसे कोई प्रश्न पूछेंगे!" इतना बोलकर मिथ्रान ने अपने कदम चाहत की तरफ़ बढ़ा दिए। चाहत ने अटकते हुए साँस भरी और जी भरकर मिथ्रान को देखने लगी। (पिछले जन्म में इस वक़्त चाहत ने गुस्से से मिथ्रान को एक तमाचा जड़ दिया था, पर इस बार वो यह बेवकूफ़ी बिलकुल नहीं करने वाली थी।) चाहत के होठ जैसे सिल चुके थे। ना वो कोई बहस कर रही थी, ना दर्द भरी सिसकी भर रही थी। उसकी नज़रें टिकी थीं बस मिथ्रान के शख़्त चेहरे से झलकते तेज पर! उमराव सिंह बड़ी उलझन में फँसे थे। मिथ्रान को शादी के लिए मनाने के लिए उन्होंने हर तरीक़े का हथकंडा अपनाकर देख लिया था, पर वो शादी के लिए बिलकुल राजी नहीं हो रहा था। और आज वो सामने से शादी करना चाह रहा है, वो भी एक सफ़ेद रंग में रंगी विधवा से! कलावती ने कुछ कहने के लिए अपने होठों को खोला ही था कि उमराव सिंह ने हाथ दिखाकर उन्हें चुप करवा दिया! कलावती जी अब चाहत को घिन भरी नज़रों से देख रही थीं। मिथ्रान ने चाहत का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए अपने साथ ले गया जहाँ रंगमहल के एक साइड में एक भव्य मंदिर बना था। मिथ्रान ने माता के चरणों में अर्पित एक लाल चुनरी उठाई और चाहत के सर पर ओढ़ा दी! उसके बाद सिन्दूरदान उठाया और चाहत की धुली हुई मांग पर एक बार फिर लाल रंग चढ़ा दिया। "पंडित जी, मंत्र पढ़ना शुरू करो!" जो पंडित सती करवाने आया था, वो अब शादी के मंत्र पढ़ रहा था। माता रानी के मंदिर के सामने जलती ज्योत को साक्षी मानकर मिथ्रान ने चाहत से शादी कर ली। "आज से आप हमारी हुईं रानी सा, और हम आपके।" और उसके बाद ही अमरजीत सिंह राणा की अर्थी को श्मशान घाट ले जाया गया! चाहत, थोड़ी ठिठकी सी, अब मिथ्रान के कमरे में बैठी थी। (पिछले जन्म में अपने क्रोध के चलते चाहत उस कमरे से भाग निकली थी और दूसरे कमरे में चली गई जहाँ उसके पति की यादें थीं, पर इस बार वो इत्मीनान से इस रहस्यमयी कमरे को देख रही थी।) क्योंकि यह कमरा रंग महल के बाकी कमरों से बहुत अलग और अतरंगी था! To be continued...

  • 4. Rebirth of Rani Sa - Chapter 4

    Words: 1061

    Estimated Reading Time: 7 min

    चाहत बेड से उतरते हुए कमरे की हर बारीक से बारीक चीज़ देखने लगी। साथ ही साथ उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था, कुंवर सा के बारे में सोचकर ही! क्या वह इस बार के इस नए सफ़र को खूबसूरत बना पाएगी या नहीं! चाहत के दिल में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी। पिछले जन्म में उसकी यह रात सिर्फ़ राजा सा की मौत का मातम मनाते हुए बीती थी। राजा से शादी करना चाहत का नहीं, बल्कि उनके परिवार का फ़ैसला था! क्योंकि अमरजीत सिंह राणा को चाहत पहली नज़र में भा गई थी और उन्हें शादी करनी थी तो सिर्फ़ चाहत से! चाहत की राजा सा से एक मुलाक़ात ने उसे एक साधारण सी राजपूती लड़की से सीधा जोधपुर की रानी सा बना दिया था। फ़्लैशबैक.... "कोन है तू छोरी? और मेरे रास्ते में क्या कर रही है?" अमरजीत बुरी तरह से घायल था और जंगल में एक पेड़ के नीचे पड़ा कराह रहा था! हमारी चुलबुली चाहत चहकते हुए बोली, "अरे ऐसे कैसे हट जाएँ हम? आपको इतनी चोट लगी है? हमने मेडिकल की पढ़ाई शहर जाकर इसलिए नहीं की है ताकि आप जैसे घायल लोगों को यूँ बीच राह में दर्द से तड़पा छोड़ दूँ।" चाहत के नर्म, गुलाब जैसे हिलते होठों को देखकर जोधपुर के कुंवर अमरजीत के सख़्त दिल में कुछ-कुछ तो हो रहा था! उसने अपना हाथ बढ़ाकर चाहत के हाथ पर रखते हुए कहा, "नाम क्या है तेरा?" "चाहत!" चाहत ने तुरंत कहा। तो अमरजीत के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। "अब से यह चाहत मेरी चाहत बनकर रहेगी।" ...रानी सा! रानी सा! (फ़्लैशबैक स्टॉप) किसी की आवाज़ आई और चाहत अपने ख़यालों से बाहर आती हुई दरवाज़े पर देखती है जहाँ एक सेविका सर झुकाकर खड़ी थी। "रानी सा, आपको माँ सा ने संदेश भिजवाया है कि आप कुंवर सा का ख़्याल रखें, सिर्फ़ आज रात के लिए ख़ासकर! क्योंकि उन्होंने बहुत ज़्यादा शराब पी ली है और अब नशे की हालत में महल के बाहर बगीचे में बैठे हैं!" चाहत ने घड़ी को देखा जो रात के 11 बजने की ओर इशारा कर रही थी! "ठीक है, तुम जाओ। हम संभाल लेंगे!" चाहत ने उस सेविका से कहा। चाहत ख़ुद के ऊपर एक हल्का सा शॉल डालते हुए धीमे कदमों से रूम के बाहर निकल गई। इस वक़्त रंगमहल सुनसान लग रहा था क्योंकि रात के इस पहर तक सब सो चुके थे और जिन्हें अंतिम संस्कार के बाद शोक सभा में जाना था, वे यहाँ के गुवाड़ के बीच बने शोक सभा स्थान पर राजा अमरजीत का शोक मना रहे थे। चाहत जैसे ही महल से निकली, एक ठंडी हवा की लहर उसके शरीर को छूकर गई और चाहत सिहरते हुए अपने शॉल पर पकड़ कसते हुए उसे और भी ज़्यादा ख़ुद से चिपका लेती है! और फिर बगीचे में जाती है तो एक बेंच पर बेदर्दी से लेटा मिथ्रान उसे दिख जाता है जिसके हाथ में अब भी एक शराब की बोतल थी। मिथ्रान आसमान में चमकते सितारों को देख रहा था। जैसे ही उसे पाजेब बजने की छन-छन सुनाई दी, उसका ध्यान टूटा और वह उठकर बैठते हुए चाहत को देखने लगा। जो ठंड के कारण थोड़ी सिकुड़ी हुई थी...उसके करीब बढ़ती जा रही थी। "रानी सा," मिथ्रान ने अपनी भारी-भरकम आवाज़ में कहा तो चाहत ने पलकें उठाकर उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "कुंवर सा, आप यहाँ इतनी रात को क्या कर रहे हैं! कितनी ठंड भी हो गई है, चलिए रूम में चलते हैं!" मिथ्रान बेंच के एक कोने पर खिसकते हुए चाहत को अपने साथ बैठने का इशारा करता है। "यहाँ बैठिए रानी सा," चाहत थोड़ा झिझकते हुए उसके करीब बैठ जाती है। मिथ्रान की ग्रे आँखें नशे के कारण बिलकुल किसी तूफ़ान की तरह लग रही थीं... "रानी सा, यह शादी आपको सती होने से बचाने के लिए की गई थी, आप पर कोई दबाव नहीं है यह रिश्ता अपनाने के लिए! पर मेरी एक बात हमेशा याद रखिएगा, आपका नाम अब मेरे नाम के साथ जुड़ चुका है जो अब इस जन्म में तो कभी बिछड़ नहीं पाएगा! आपको हमेशा मेरे साथ ही रहना पड़ेगा!" चाहत के होठ फड़फड़ा रहे थे पर उसने एक शब्द नहीं निकाला क्योंकि पिछले जन्म जो इस वक़्त हुआ था, वह बहुत भयानक था चाहत के लिए। (पिछले जन्म में चाहत ने मिथ्रान को साफ़-साफ़ धमकी दी थी कि वह मौक़ा मिलते ही यहाँ से भाग जाएगी।) "मैं इस कालकोठरी में कभी कैद नहीं रहूँगी कुंवर सा! डरता होगा पूरा जोधपुर आपसे पर हम किसी की दासी नहीं हैं यहाँ! जो हुक्म माने! हम मौक़ा मिलते ही यहाँ से भाग जाएँगी।" मिथ्रान ने चाहत को अपने करीब करके उसके होठों को अपने अंगूठे से बेरहमी से रगड़ते हुए कहा, "रानी सा, ये शब्द आइंदा आपकी जुबान पर नहीं आने चाहिए, वरना जो शब्द आपकी जुबान ने बोले हैं उनकी सज़ा आपको आपके इन नर्म होठों को चुकानी पड़ेगी।" यह सब बोलते हुए मिथ्रान की गरम साँसें चाहत के होठों पर पड़ रही थीं जिससे चाहत का पूरा शरीर काँप रहा था। (हालाँकि मिथ्रान ने इस बर्ताव के लिए अगली सुबह ही चाहत से माफ़ी माँग ली थी पर चाहत के ज़हन में कुंवर सा की छवि दिन ब दिन ख़राब होती जा रही थी।) "कहाँ खोई रानी सा?" मिथ्रान ने एक और शराब की घूँट भरते हुए कहा तो चाहत ने हिम्मत करके आहिस्ता से वह बोतल अपने हाथों में से उसके होठों से हटा दी और फिर नर्म लहजे में बोली, "इतनी शराब सेहत के लिए अच्छी नहीं है। हम पूरी कोशिश करेंगे! वही करेंगे जो आपको अच्छा लगे! आपकी मर्यादा को ठेस ना पहुँचे!" मिथ्रान एक पल के लिए चौंक गया पर अगले ही पल चाहत का हाथ अपने कठोर हाथ में थामते हुए ठंडे लहजे में बोला, "सोच लीजिएगा रानी सा, ये जो हाथ आज हमें नशा करने से रोक रहे हैं, कहीं आपकी ये फ़िक्र आपको ही भारी ना पड़ जाए! क्योंकि एक बार जो मिथ्रान का होता है वो उसका ही बनकर रह जाता है, पीछे हटने के लिए सारे रास्ते बंद हो जाते हैं!" मिथ्रान ने जिस सनक भरे लहजे में यह कहा था... चाहत के पूरे शरीर में एक करंट सा दौड़ गया था। वह दूसरे हाथ से अपना शॉल कसकर पकड़ते हुए मिथ्रान की आँखों में आँखें डाले बोली, "हम भी जोधपुर की रानी सा, हर फ़ैसला सोच-समझकर लेते हैं और एक बार हाथ बढ़ाया है तो मरते दम तक पीछे नहीं हटेंगे।" To be continued...

  • 5. Rebirth of Rani Sa - Chapter 5

    Words: 1034

    Estimated Reading Time: 7 min

    कुछ देर बाद चाहत और मिथ्रान अपने कमरे में चले गए। वहीँ, उनको यूँ सहज देखकर कईयों के दिल जलन से राख हो चुके थे, जिनमें सबसे पहला नाम था रंगमहल की बड़ी ताई सा का। जिनकी इज़्ज़त तो होती हुई भी, उनके जितना बेइज़्ज़त इंसान पूरे रंगमहल में नहीं था।

    ताई सा यानी हरकोरी सुबोध राणा का कमरा।

    ताई सा एक पैर मोड़कर बेड पर बैठी थीं। उनके हाथ में एक अजीब सा खंजर था और उनके सामने दो सेविकाएँ उनकी जी-हजूरी के लिए खड़ी थीं।

    "राजा सा तो चल बसे इस दुनिया से, उनकी आत्मा को परमात्मा शांति दें! पर इस जालिम मृत्युलोक में रानी सा अकेली क्या करेंगी? उन्हें भी अपने पति परमेश्वर के पास होना चाहिए था! ऐसा हो भी रहा था, पर ऐन वक्त पर कुंवर सा ने आकर सारा खेल पलट दिया! खैर, अब उन्हें भी इस दुनिया से अलविदा कहना पड़ेगा!"

    ताई सा की ऐसी पागलों जैसी बातें सुनकर सामने खड़ी दोनों सेविकाएँ डर के मारे काँप रही थीं।


    अगली सुबह

    चाहत की आँखें चेहरे पर धूप पड़ने से खुलीं। उसने धीमे से पलकें फड़फड़ाते हुए आँखें खोलीं तो उसकी आँखें सीधा मिथ्रान की ग्रे शेड बादामी आँखों से जा मिलीं।

    मिथ्रान ने खिड़की पर लगा पर्दा हटा दिया था, जिससे धूप सीधा चाहत के चेहरे पर गिर रही थी।

    "सुप्रभात रानी सा! आज रंगमहल में मातम नहीं, बल्कि हमारी शादी की दावत मनाई जाएगी। उसके लिए आपका तैयार होना ज़रूरी है। माफ़ करना, हमें आपकी प्यारी नींद को खोलना पड़ा।"

    मिथ्रान ने अपनी कर्कश आवाज़ में कहा।

    चाहत पहले तो आराम से मिथ्रान की बातें सुन रही थी, पर अचानक उसे अपने कपड़ों का ख्याल आया। क्योंकि हमारी रानी सा किसी छोटे बच्चे से कम नहीं हैं, पता नहीं किस उटपटांग तरीके से सोती हैं। दुपट्टा तो पहले ही निकल चुका था, लहंगा भी घुटनों से ऊपर सरक चुका था और उनके लंबे बाल किसी भूतनी की तरह बिखरे हुए थे।

    चाहत सकपकाते हुए साइड में पड़ी चादर अपने ऊपर लेती है। तो मिथ्रान आँखें फेरते हुए बोलता है,

    "हम आपके पति हैं, अब कोई गैर नहीं!"

    "पर जब तक आप असहज हों, ये आँखें आपको पाने की नज़र से कभी नहीं देखेंगी!"

    "पर एक बात याद रखिएगा, आप अब हमारी हैं! हमारा अधिकार एक न एक दिन हम ज़रूर लेकर रहेंगे!"

    चाहत के कानों में जैसे-जैसे मिथ्रान के ये कर्कश शब्द घुल रहे थे, उसके ज़हन में अजीब सी हलचल मच रही थी, जिसे ख़ुद चाहत नहीं समझ पा रही थी। ऐसा तो तब भी नहीं हुआ था जब चाहत ने अपना तन और मन दोनों अमरजीत को सौंपा था।

    चाहत ख़ुद में सिमटती जा रही थी। इसलिए मिथ्रान ज़्यादा देर न रुकते हुए कमरे से बाहर निकल गया और चाहत अपनी बेचैनी को कम करने की कोशिश करने लगती है, क्योंकि पिछले जन्म में यूँ आज का दिन भी किसी बड़े टास्क से कम नहीं बीता था। उसे याद करते हुए ही चाहत की आँखें नम हो चुकी थीं।


    चाहत बेड से उठकर बाथरूम की तरफ जाने लगती है। उसने अभी तक व्हाइट कपड़े पहने थे, जो उसके विधवा होने की निशानी थे और माँग में चमकता सिंदूर उसके मिथ्रान की दुल्हन होने की गवाही दे रहा था।

    अचानक ही दरवाज़ा खटखटाया तो चाहत ने मुड़कर देखा, एक सेविका खड़ी थी जिसके हाथ में थाल था।

    चाहत ने उसे अंदर आने का इशारा किया।

    उस थाल में चाहत के लिए एक राजस्थानी पोशाक थी।

    गुलाबी रंग की पोशाक थाल में सजी हुई बेहद प्यारी दिख रही थी।

    वह सेविका सर झुकाते हुए बोली,

    "ये माँ सा ने भेजा है आपके लिए!"

    और फिर वहाँ से चली जाती है।

    उसके तुरंत बाद हरकोरी राणा चाहत के कमरे में आती हैं।

    "अरे ताई सा! आप इतनी सुबह-सुबह!"

    चाहत ने अनजान बनते हुए कहा।

    क्योंकि हरकोरी का असली चेहरा तो पिछले जन्म में चाहत की आँखों के सामने आ ही गया था! ताई सा ने बेड पर चाहत को बिठाते हुए कहा,

    "बिंदनी, तेरा और मेरा दुख एक समान है! तेरे ताऊ सा जब इस दुनिया को छोड़कर गए थे, मेरे पेट में इस घर का अंश पल रहा था, तो मुझे सती नहीं होने दिया गया, पर पति के जाने का दर्द एक और तभी समझ सकती है!"

    "तुझे इतनी जल्दी मिथ्रान को अपनाने के लिए कहा जाना किसी कुएँ में धकेलने जैसा है। अगर तू अब भी इस रिश्ते में खुश न हो, तो तेरी ताई सा तेरे साथ है!"

    चाहत की आँखों में आँसू भर आए। माँ के लाड़ के लिए तरसी चाहत को ताई सा के मीठे शब्द इस कदर भाए थे बीते वक्त में कि वह उसे सच में अपनी माँ समान समझने लगी थी, पर इस वक्त उसके पीछे छल-कपट चाहत को दिखाई दे रहा था।

    "तभी तो कहते हैं, लोग चालाक होते नहीं हैं, पर दुनिया वाले एक न एक दिन उन्हें चालाक और दिखावटी बना ही देते हैं।"

    "अपने चरित्र की चादर पर जितने भी मासूमियत और सच्चाई के फूल लगा लो, दुनिया वाले उस पर काँटे लगाने पर मजबूर कर देते हैं, ताकि वह फूल सुरक्षित रह सके!"

    चाहत ये सब सोच ही रही थी कि ताई सा ने कहा,

    "तू कहे तो ये पोशाक अभी वापस भेजवा दूँगी। मेरी बच्ची, ख़ुद को कभी अकेला मत समझना।"

    ताई सा की बात का जवाब चाहत देने ही वाली थी कि दरवाज़े से मिथ्रान की भारी और थोड़ी गुस्से से भरी आवाज़ आई,

    "ताई सा, मिथ्रान ख़ुद अपनी दुल्हन के शरीर से ये सफ़ेद चादर उतारकर उसे अपने हाथों से सजायेगा। आप क्या, इस जग की कोई ताकत उसे अब मेरी होने से नहीं रोक सकती।"

    इतना बोलते हुए मिथ्रान कमरे में एंटर करता है और ताई सा एक नज़र चाहत को देखती है, शायद उसके बोलने का इंतज़ार कर रही थी, पर इस बार चाहत ये बेवकूफी बिलकुल नहीं करने वाली थी। इसलिए उसने ताई सा की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा और मजबूरन ताई सा को कमरे से बाहर जाना पड़ा।

    क्रमशः

  • 6. Rebirth of Rani Sa - Chapter 6

    Words: 1178

    Estimated Reading Time: 8 min

    तू कहे तो ये पोशाक अभी वापस भिजवा दूँगी। मेरी बच्ची, खुद को कभी अकेला मत समझना।


    ताई सा की बात का जवाब चाहत देने वाली थी कि दरवाजे से मिथ्रान की भारी और थोड़ी गुस्से से भरी आवाज़ आई।

    "ताई सा, मिथ्रान खुद अपनी दुल्हन के शरीर से ये सफ़ेद चादर उतार कर उसे अपने हाथों से सजाएगा। आप क्या, इस जग की कोई ताकत उसे अब मेरी होने से नहीं रोक सकती?"


    इतना बोलते हुए मिथ्रान कमरे में दाखिल हुआ और ताई सा ने एक नज़र चाहत को देखा। शायद उसके बोलने का इंतज़ार कर रही थी, पर इस बार चाहत यह बेवकूफ़ी बिलकुल नहीं करने वाली थी। इसलिए उसने ताई सा की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देखा और मज़बूरन ताई सा को कमरे से बाहर जाना पड़ा।


    ताई सा के जाते ही चाहत ने अपनी भारी पलकें उठाते हुए मिथ्रान को देखा। मिथ्रान उस थाल के करीब गया और वह पोशाक अपने हाथ में लेकर देखते हुए बोला,

    "रानी सा, आपकी चुप्पी, ताई सा के साथ-साथ मुझे भी खल रही है। कल तक तो आप ऐसी नहीं थीं। इतनी जल्दी कैसे आपके मिजाज बदल गए?"


    मिथ्रान की गहरी आवाज़ चाहत के शरीर के रोएँ खड़े कर रही थी। पर फिर भी चाहत ने हिम्मत करके मिथ्रान का जवाब दिया,

    "जब हमें अपने रंग में रंगने वाला इतना प्रभावशाली हो, तो पहले ही दिन मिजाज बदलना तो लाज़मी है ना!"


    "मेरी तारीफ़, वो भी रानी सा के मुँह से! ये तो कुछ ज़्यादा ही उम्मीद से परे हो गया! खैर, अब सिर्फ़ बातें ही नहीं करनी, ये पोशाक आपको पहननी भी है। देखते हैं ये बदला मिजाज और अंदाज़ कितना जँचता है आप पर।"


    चाहत धीमे कदमों से मिथ्रान के पास गई और वह पोशाक लेते हुए मुड़कर बाथरूम की तरफ़ बढ़ गई।


    बाथरूम का दरवाज़ा बंद हो चुका था और मिथ्रान वहीं खड़ा एकटक उस दरवाज़े को घूर रहा था। शायद किसी गहरी सोच में गुम था।


    कुछ देर बाद चाहत नहाकर आई। उसकी स्किन बहुत ज़्यादा सेंसिटिव थी। हल्का गुनगुना पानी लगते ही लाल हो चुकी थी। उसके लाल गाल, नेचुरल ब्लश के साथ बहुत सॉफ्ट नज़र आ रहे थे। भीगे बाल थोड़े कंधे पर बिखरे थे, तो थोड़े उसकी सुराहीदार गर्दन पर चिपके थे। उसके लाल होंठों पर ठहरी पानी की बूँदें, बिलकुल गुलाब के फूल पर ठहरी ओस की बूँदों सी लग रही थीं। मिथ्रान तो जैसे उसकी इस सादगी भरी खूबसूरती से मंत्रमुग्ध हो चुका था।

    "कैसा लगा हमारा ये नया सजा हुआ रूप, कुंवर सा?"

    "अद्भुत! ऐसा लग रहा है कोई मुलायम बादल सूरज की लालीमा अपने अंदर समेटे धरती पर उतर आया हो! हमें लगा था पूर्वजों ने जो कहानियाँ बताई हैं, कोई किसी के लिए अपना सर धड़ से अलग कर देता था, कोई किसी के लिए महल बनवा देता था। अब समझ आ रहा है, वाकई अगर पसंद इतनी बेमिसाल हो तो यहाँ मौजूद बाकी चीज़ें तो हाथ में रखी रेत समान लगती हैं। अगर बिखर जाए हथेली से तो भी कोई ग़म नहीं।"

    "अरे! कुंवर सा, आपकी तारीफ़ तो बंद होने का नाम ही नहीं ले रही!"


    अचानक ही दरवाज़े से आवाज़ आई। चाहत और मिथ्रान जो एक-दूसरे में खो गए थे, उनका ध्यान इस आवाज़ से टूटा। दोनों ने नज़रें घुमाकर उस शख़्सियत को देखा और एकाएक चाहत के दिल में एक अजीब सा दर्द उठा; एक गिल्ट, एक पछतावा! सामने एक २० से २१ साल की लड़की खड़ी थी, मिथ्रान की परम मित्र, सुनिधि चौहान। जिसे पिछले जन्म में चाहत ने बहुत misunderstand किया और इतना जलील किया था। आख़िर में चाहत की वजह से सुनिधि की जान भी चली गई थी। जब वो लोग चाहत को मारने के लिए उसके पीछे जा रहे थे, सुनिधि ने ही सबसे पहले उनका सामना किया था, पर वह मौत के घाट उतार दी गई थी!


    मिथ्रान को पता था चाहत को सुनिधि पसंद नहीं है, इसलिए उसने एक बार गला साफ़ करते हुए कहा,

    "हमारी पत्नी हैं अब रानी सा! तो हम उनकी तारीफ़ करने से कैसे चूक सकते हैं भला! तुम चलो निधि, नीचे बहुत सारा काम है माँ सा के पास करने के लिए।"


    चाहत देख पा रही थी मिथ्रान का स्ट्रगल! कैसे वह बस उसके दिल को बुरा न लग जाए इसलिए अपनी सबसे प्यारी दोस्त को बाहर जाने को कह रहा है।

    "नहीं सुनिधि, आप आइए अंदर। हमारी मदद कर दीजिए, आज हमें सजना है, कुंवर सा के लिए!"


    ये सुनकर मिथ्रान का दिल तो मानो सीने से उछलकर बाहर ही आने को तैयार था। उसे इतनी बेचैनी आज से पहले कभी महसूस नहीं हुई थी। उसने घबराहट से सूखते गले को तर किया और अपनी गहरी आँखों को एक बार फिर चाहत के छोटे से, खूबसूरती से सजे हुए चेहरे पर देखा। और सुनिधि भी एक मुस्कराहट लिए अंदर आ गई और मिथ्रान को जीभ दिखाकर चिढ़ाते हुए बोली,

    "अब तुम जाओ! हम सजाएँगी रानी सा को!"


    मिथ्रान ने आँखें छोटी करके सुनिधि को घूरा और एक गहरी साँस छोड़ते हुए कमरे से बाहर जाने लगा। पर गुस्ताख़ नज़रें दरवाज़े पर पहुँचते ही उसने एक बार फिर पलटकर चाहत को देखा, जिसे अब सुनिधि आईने के सामने बैठा रही थी। फिर एक बार मिथ्रान का दिल बेकाबू हो उठा।

    "मिथ्रान!! मिथ्रान!! सब्र रख, ये तेरी ही है!"


    मिथ्रान ने खुद को ही मन ही मन डाँटते हुए कहा और सीढ़ियों से होते हुए नीचे गया तो देखा, कुछ गाँव के लोग इकट्ठे थे, कुछ और थे तो कुछ आदमी! जिन्होंने नॉर्मल किसानों वाले कपड़े पहने थे और सामने राजा की तरह बैठे उमराव सिंह से कुछ बातें कर रहे थे, शायद कोई डिमांड!


    एक किसान ने कहा,

    "सरकार! गाँव का माहौल इस शादी से बिलकुल बिगड़ चुका है! उन्हें लगता है ये प्रेम विवाह हुआ है! कुंवर सा और रानी सा दोनों की मिली-जुली साज़िश है जिसमें हमने हमारे राजा सा खो दिए! सब लड़के-लड़कियाँ अब शहर जाकर ये सब रंगरलियाँ करेंगी! हमें ये विवाह मंज़ूर नहीं! हम ना ही रानी सा को अपनाएँगे और ना ही कुंवर सा को राजा बनने देंगे!"


    ये सब पीछे खड़ी हरकोरी राणा सुन रही थी और उसके चेहरे पर शातिर मुस्कान थी। क्योंकि अगर मिथ्रान राजा नहीं बनेगा तो उमराव सिंह के पास एक ही उपाय बचेगा; हरकोरी के बेटे, हर्षवर्धन को राजा की गद्दी सौंपना। वो सब आगे और कुछ चाहत के बारे में उल-जुलूल बोलते उससे पहले रंगमहल में मिथ्रान की आवाज़ गूंज उठी,

    "रानी सा अब हमारी इज़्ज़त और हमारे सर का ताज हैं! जिसे मैं तुम सब की दकियानूसी सोच के पैरों तले बिलकुल नहीं रौंदने दूँगा! अगर किसी की जुबान से रानी सा के बारे में एक भी गलत लफ़्ज़ निकला, वो इस गाँव से बाहर मिलेगा, समझे तुम सब!"


    क्रमशः

  • 7. Rebirth of Rani Sa - Chapter 7

    Words: 992

    Estimated Reading Time: 6 min

    मिथ्रान की ऐसी कड़कती आवाज सुनकर पूरे रंग महल में बिल्कुल शांति पसर गई। हरकोरी ने अपनी जलती निगाहें उठाकर एक नज़र मिथ्रान को देखा और फिर अपने मन ही मन बोली, "लो आ गया रानी सा का दीवाना।"

    उमराव सिंह राणा ने मिथ्रान को एक नज़र देखकर उन गाँव वालों से कहा,

    "किसी के बहकावे में आकर जोधपुर के कुंवर सा को दुत्कारना, आप जैसे बुज़ुर्ग लोगों को शोभा नहीं देता। आपने दुनियादारी देखी है। लोगों का काम है ये सब बातें बोलकर गाँव और राजा के बीच में फूट पैदा करना, ताकि हमारे दुश्मनों का भला हो सके! पर हमें एकजुटता दिखानी चाहिए।

    हमारी समझदारी दिखानी चाहिए कि हम सब लोग एक साथ हैं, हर घड़ी में, हर मुसीबत में हम एक साथ हैं!

    राणा परिवार में न जाने कितने वीरों ने अपनी बलि दी है और हम उन सब के बलिदान को ऐसे ही जाया नहीं कर सकते। हमारी हवेली में आज तक किसी का मातम नहीं मनाया गया। हमारा बेटा अमरजीत बिल्कुल अमर था; वह मर जाए तो भी उसकी छत्रछाया इस रंग महल पर बनी रहेगी। तो आप सब लोग बिल्कुल चिंता ना करें और आपके राजा सा के कातिल को हम बहुत जल्द ढूँढ लेंगे। वह हमारा भी खून था; हमें पता है उसके लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।"

    फिर उमराव सिंह ने एक गहरी साँस छोड़कर मिथ्रान की तरफ देखते हुए कहा,

    "हम मानते हैं कुंवर सा और रानी सा ने एक साथ स्नातक पास किया है, एक साथ लगभग तीन साल पढ़े हैं; लेकिन फिर भी उनके बीच ऐसा कोई संबंध नहीं था, कल रात से पहले तक। शादी के बाद अब वह उनकी धर्मपत्नी है, तो उनका साथ देना कुंवर सा का कर्तव्य है।

    आप लोग इसे गलत दिशा देना बंद कीजिए और दावत खाइए!"

    अब सब नौकर-चाकर मिलकर हवेली के दूसरे साइड बने बगीचे में दावत के आयोजन के लिए सारी तैयारी कर चुके थे, और कुछ तैयारी अभी भी चल रही थी। वे सब लोग एक-दूसरे के साथ खुसर-फुसर करते हुए वहाँ से चले गए। अपने दादा सा को अपनी साइड देखकर मिथ्रान के दिल को थोड़ी तसल्ली मिली, "चलो उनकी माँ सा नहीं, पर दादा सा तो उसे समझते हैं!"


    वहीं दूसरी तरफ,

    सुनिधि चाहत का मेकअप कर रही थी।
    "रानी सा, आपकी स्किन तो बहुत रेडिश है; आपको ब्लश का तो बिल्कुल ज़रूरत ही नहीं है!"

    चाहत के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई और उसने धीमे से कहा,

    "आपका धन्यवाद! पर हमें आपसे कुछ सवाल करने थे!"

    सुनिधि चहकते हुए बोली, "बेझिझक कीजिए, क्या पूछना है आपको मुझसे?"

    चाहत को थोड़ा सा अजीब फील हो रहा था; पता नहीं सुनिधि उसके सवाल पर कैसा रिएक्ट करेगी!

    पर फिर भी उसने हिम्मत बटोरते हुए कहा,

    "वो हमें कुंवर सा के बारे में जानना था आपसे, उन्हें क्या पसंद है क्या नहीं, उनकी मनपसंद जगह, रंग, खाना... सब कुछ!"

    सुनिधि ने बड़ी सी शरारती मुस्कान लिए कहा,

    "ओह्ह्ह्हो!! तो हमारी प्यारी रानी सा को अपने कुंवर सा के पसंद-नापसंद जाननी है!"

    चाहत की पलकें हया से झुक गईं।

    और सुनिधि ने हल्के से उसके गाल पिंच करते हुए कहा,
    "शर्माते हुए तो आप और भी बला की खूबसूरत लगती हैं रानी सा! हम आपको ज़रूर बताएँगे कुंवर सा की पसंद और नापसंद, पर उसके बदले हमें भी आपसे कुछ चाहिए।"

    चाहत थोड़ी नर्वस हो गई, क्योंकि उसके पास देने लायक तो कुछ नहीं था। उसने अपने होंठ काटते हुए मन ही मन सोचा,

    "सुनिधि जी को मैं क्या ही दे सकती हूँ!"

    सुनिधि चाहत के मन की पीड़ा समझ रही थी, तो उसने एक मुस्कान के साथ कहा,

    "आप चिंता ना करें रानी सा; ऐसा कुछ नहीं माँगूँगी जो आप ना दे सकें!"

    चाहत के चेहरे पर राहत बिखर गई और वह पूरे विश्वास के साथ बोली,

    "फिर तो हम आपको वो चीज़ देने की पूरी कोशिश करेंगी जो आप हमसे चाहती हैं!"

    एक वादा!

    सुनिधि ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा। तो चाहत के चेहरे पर एक बार फिर हैरानी भर गई; जिसे देखकर सुनिधि ने कहा,

    "एक वादा चाहिए हमें आपका, आप हमसे दोस्ती करेंगी और तब तक निभायेंगी जब तक हम मर न जाएँ!"

    चाहत ने आँखें बड़ी करके कहा,

    "आप ये मरने की बातें ना करें... और फिर उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा... और रही इस वादे की बात तो हम आज से इसी क्षण से ये वादा करती हूँ!"

    सुनिधि का चेहरा खिल उठा...

    और उसने चाहत को झुककर गले लगाते हुए कहा,

    "ठीक है फिर! हम आपको सब बताने को तैयार हैं!"

    "आपके पतिदेव, यानी कि कुंवर सा को लाल रंग बेहद पसंद है... और आप तो बिल्कुल लाल पका हुआ सेब बन चुकी हो!"

    ये सुनकर चाहत का चेहरा झुक गया और सुनिधि ने आगे कहा,
    "उन्हें खाने में जलेबी बहुत पसंद है... बिल्कुल रसीली जलेबी... जिनका पका हुआ रंग बिल्कुल आपके इन होंठों से मिलता है!"

    सुनिधि की सारी double meaning बातें सुनकर चाहत शर्म से मर रही थी।

    पर सुनिधि अपनी बातों से बिल्कुल बाज़ नहीं आ रही थी।

    "उन्हें बगीचे का तालाब वाला एरिया बहुत पसंद है... जिसका ठंडा पानी पड़ते ही किसी का भी जिस्म अकड़ जाए... बिल्कुल वैसे जैसे आपके इस गठीले बदन को देखकर अकड़ जाता होगा..."

    "बस कीजिए आप! कैसी बेशर्मी भरी बातें कर रही हैं!"

    चाहत ने मुश्किल से अपनी रफ़्तार पकड़ती धड़कनों को काबू करते हुए कहा।

    बस ये सोचने मात्र से चाहत की धड़कनें बढ़ चुकी थीं; क्या वाकई कुंवर सा को उनका रूप इतना भाता होगा?


    To be continued...

  • 8. Rebirth of Rani Sa - Chapter 8

    Words: 1248

    Estimated Reading Time: 8 min

    राणा परिवार छोटा बेटा: उमराव सिंह राणा (दादा राज, इनका उपनाम है) कलावती राणा (इनकी धर्मपत्नी) इनके तीन बेटे हैं: विक्रांत सिंह राणा (कुंवर सा उर्फ मिथ्रान) (आयु 30, गोरा रंग, ग्रे शेड बादामी आँखें, 6 फुट हाइट और तगड़ी बॉडी, हमारी कहानी के हीरो) अमरजीत सिंह राणा (राजा सा, जिनकी मौत हो चुकी है) (28) अभिनय सिंह राणा (सबसे छोटे बेटे, जिनकी पत्नी हैं आरती सिंह राणा) (आयु 27, हल्का साँवला रंग, नीली आँखें, 6 फुट हाइट और अच्छी खासी बॉडी) (आरती की उम्र करीब 25 साल है, गोरा रंग, गठीला 5 फुट 5 इंच हाइट वाला शरीर, लंबे काले बाल और काली आँखें) सुबोध सिंह राणा (राणा परिवार के बड़े बेटे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं) हरकोरी राणा (ताई सा) इनके दो बच्चे हैं: बड़ा बेटा: "हर्षवर्धन (आयु 32) और उसकी बीवी दामिनी राणा (आयु 29)" (दोनों ही रंगमहल में नहीं रहते, क्योंकि इनका प्रेम विवाह हुआ था जो दादा राज को मंजूर नहीं था) छोटी बेटी: "किशोरी राणा" (इसका जिक्र पहले अध्याय में हुआ है) (आयु 23, गेहुआ रंग, hazel green eyes, कमर तक आते हल्के भूरे बाल, और 5 फुट 6 इंच हाइट) अब आते हैं हीरोइन पर। इनकी उम्र 21 साल है: चाहत कंवर! Back to story चाहत को तैयार करने के बाद, सुनिधि उससे बातें कर ही रही थी कि अचानक उनका दरवाज़ा लॉक हुआ। सुनिधि ने मुड़कर देखा तो दरवाज़े पर किशोरी खड़ी थी। किशोरी इस शादी से बिल्कुल खुश नहीं थी, पर फिर भी उसने जबरदस्ती की मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाते हुए कहा, "क्या रानी सा तैयार हैं? नीचे उनका इंतज़ार हो रहा है। माँ सा, दादा राज, भाई साहब और छोटी भाभी सा, सब इनका इंतज़ार कर रहे हैं!" सुनिधि ने हाँ में सिर हिलाया और चाहत के सिर पर पल्लू ओढ़ाते हुए बोली, "चलिए रानी सा, आज तो कुंवर सा के होश ही उड़ जाएँगे!" चाहत के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई, और आँखों में हल्की सी नमी। पता नहीं कुंवर सा का क्या रिएक्शन होगा, उसे देखकर। वहीं रंगमहल के बीचों-बीच हॉल में माहौल थोड़ा गर्म था। उमराव सिंह राणा और कलावती राणा दोनों हॉल में बनी दो चेयर्स पर बैठे थे, जो पर्सनली उन्हीं के लिए बनी थीं। साइड में हरकोरी की चेयर भी लगी थी। उन तीनों चेयर्स पर गोल्डन रंग से शेर बना था, और वे सब बिल्कुल किसी राजघराने की लग रही थीं। साइड में मिथ्रान हाथ सीने पर बाँधे खड़ा था। उसकी आँखों में कोई इमोशन नहीं था। वहीं अभिनय को इन सबसे कोई मतलब नहीं था। उसे सिर्फ अपनी लाइफ से मतलब था, और साथ में घर में हो रहे मसले में थोड़ा सा एंटरटेनमेंट मिल जाए तो उसका दिन बन जाता था। थोड़ा नादान है, पर दिल का बुरा नहीं है। सबका मज़ाक बनाना उसकी सबसे बुरी आदत है! अभिनय के साइड में उसकी पत्नी आरती भी खड़ी थी। वह उत्सुक भरी नज़रों से सीढ़ियों से आई हुई चाहत को देख रही थी, क्योंकि चाहत आज बिल्कुल स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी। सबकी नज़रें हॉल में आते ही उस पर टिक चुकी थीं। सब उसे आँखें फाड़े देख रहे थे। कोई कुछ कहता उससे पहले, मिथ्रान आगे आया और अपनी जेब से एक नोटों का बंडल निकालते हुए सात बार चाहत के ऊपर से उसे घुमाया और फिर एक आदमी की तरफ देखते हुए बोला, "रघु, यह लो। यह गरीबों में बाँट देना। हमारी रानी सा की नज़र उतारी है इसे। और हो सके तो हमारे कमरे में एक नज़र बट्टू ज़रूर भिजवा देना, क्योंकि हर पल तो हम उनकी नज़र उतारने के लिए रहेंगे नहीं।" मिथ्रान की इस हरकत पर चाहत का दिल बिल्कुल ऐसे दौड़ने लगा जैसे अभी उसकी मैराथन हो। उसकी नसों में खून भी डबल स्पीड से दौड़ रहा था। चेहरा और भी ज़्यादा लाल होता जा रहा था, और शर्म से पलकें फड़फड़ा रही थीं। उसके पास कहने के लिए शब्द नहीं थे। पर यह जो छोटी-छोटी कोशिशें मिथ्रान उसके लिए कर रहा था, शायद आज तक अमरजीत ने भी नहीं की थीं, और ना ही उसके परिवार वालों ने। मिथ्रान के आस-पास होने से ही चाहत को एक अपनेपन की गर्माहट महसूस हो रही थी, जो उसके शरीर के रोम-रोम को सिहरने पर मजबूर कर रही थी। और ऊपर से मिथ्रान की यह गहरी आवाज़ उसके दिल पर छुरियाँ चल रही थी। सब मिथ्रान की इस हरकत पर हैरान थे, पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि कोई उसकी बात टाल सके या उसके किए काम पर उँगली उठा सके। इसलिए सब चुप थे। आरती, किशोरी और हरकोरी जल-भुन कर कोयला हो चुकी थीं। सुनिधि ने एक मुस्कराहट के साथ चाहत को करणी माता के मंदिर के सामने लगी चटाई पर लगे पाटे पर बैठाया। और फिर कलावती राणा की तरफ देखते हुए बोली, "ठकुराइन, आप विधि शुरू कर सकती हैं!" कलावती ने एक सेविका की तरफ देखा, तो वह सिर झुकाते हुए बाहर गई। और थोड़ी देर बाद उस सेविका के साथ एक पंडित रंगमहल में प्रवेश किया। पंडित ने पहले करणी माता की पूजा की, और फिर एक चुनरी कलावती राणा के हाथ में देते हुए बोला, "यह आप रानी सा के सिर पर ओढ़ा दीजिए।" कलावती ने पहले चाहत को तिलक लगाया, और फिर उसके सिर पर वह चुनरी ओढ़ा दी। उसके बाद पंडित ने आगे की विधि पूरी की। वहीं चाहत जब-जब कलावती राणा को अपने आस-पास महसूस कर रही थी, उसके दिल की धड़कनें बढ़ते ही जा रही थीं। उसे पिछले जन्म का एक दिन याद आया। आज के दिन कलावती राणा ने उसे बहुत खरी-खोटी सुनाई थी, क्योंकि आज की दावत में सबसे पहले खाना पंडित जी को देना था, और वह चाहत के हाथों से बना होना ज़रूरी था। चाहत ने खाना बनाया भी था, पर आरती ने बड़ी चलाकी से उसमें लहसुन मिला दिया था, जिस वजह से भोग खंडित हो गया था। और उसके बाद कलावती राणा ने घर में जो घमासान मचाया था, चाहत को अंदर से काँपने पर मजबूर कर रहा था। पर इस बार वह यह गलती दोहराने वाली नहीं थी। वह आरती जैसी शातिर औरत से बचकर रहने वाली थी। और जैसा चाहत ने सोचा था, पूजा खत्म होते ही कलावती राणा ने अपने सख्त लहजे में कहा, "रानी सा, अब आपको पंडित जी के लिए खाना बनाना है, जिसमें खीर, पूरी और सब्जी, तीनों चीजें होनी चाहिए। अगर इससे ज़्यादा आप पकवान बनाएँ, वह आपकी इच्छा है, पर यह होना ज़रूरी है।" चाहत ने हाँ में सिर हिलाया और फिर उठकर रसोईघर की तरफ चली गई। और उसके पीछे-पीछे आरती भी। आरती ने रसोईघर में जाकर चाहत को सामान देते हुए कहा, "लीजिए रानी सा, माँ आपकी मदद कर देती हूँ।" चाहत ने सख्त लहजे में कहा, "नहीं, हमारे हाथ हैं भाभी साहब। आपके यहाँ आने की ज़रूरत नहीं, वरना मनसा नाराज़ हो जाएँगे। यह भोग हमें बनाना है, तो आप रसोईघर से जितना दूर रहें, आपके लिए अच्छा है।" चाहत ने पहली बार इतने कठोर स्वर में आरती से बात की थी। आरती तो पल भर में शॉक हो गई थी। आखिर यह क्या हुआ? कल तक मीठा-मीठा बोलने वाली यह लड़की आज तो बिल्कुल कड़वे करेले जैसी जुबान बोल रही है! पर उसे नहीं पता था कि जिसके एक बार बीत जाती है, वह आगे हर कदम पर अपना ध्यान रखना है। वह कहते हैं ना, दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है। इस तरह चाहत भी अपना हर कदम इस बार पूरी मज़बूती से रखने वाली थी, जिसे चाहकर भी कोई हिला नहीं पाएगा। To be continued. Thank you so much for reading this novel. 💗💗💗💗💗🩵 Follow meeéeeee..

  • 9. Rebirth of Rani Sa - Chapter 9

    Words: 1058

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोधपुर, राजस्थान। रंगमहल। सुबह लगभग 10 बजे।

    चाहत का रूखा जवाब सुनकर आरती की भौंहें तन गईं और मुट्ठियाँ गुस्से से कस गईं।

    किशोरी अंदर आते हुए बोली,

    "भाभी सा, आप चलिए। भोग रानी सा को बनाने दीजिए!"

    आरती ने खुन्नस भरी नज़रों से चाहत को देखा और फिर किशोरी के साथ रसोईघर से बाहर आ गई।

    चाहत ने जब किशोरी के मुँह से अपने लिए 'रानी सा' और आरती के लिए 'भाभी सा' सुना, तो उसके दिल में अजीब सा दर्द उठा। क्या वह अपनेपन और प्रेम-स्नेह के लायक नहीं थी, जो सब उसे सिर्फ़ उसके 'रानी सा' होने की वजह से बुलाते हैं?

    रिश्ते में तो वह भी किशोरी की भाभी सा लगती है, पर यह व्यवहार रंगमहल का हर सदस्य करता है, चाहे बड़ा हो या छोटा।

    चाहत को बचपन से सिर्फ़ यातनाएँ मिली थीं, जिन्हें याद करते-करते वह अब तक भोग बन चुकी थी। और फिर उसे लेकर रसोईघर से बाहर आ गई।

    कुछ देर बाद, पंडित जी जा चुके थे। चाहत अपने कमरे में थी और शीशे के आगे बैठकर अपना एक-एक जेवर उतार रही थी।

    अचानक मिथ्रान कमरे में प्रवेश करता है!

    चाहत हड़बड़ाकर उठने लगी क्योंकि उसने चुनरी नहीं पहनी थी; उसके शरीर पर जिस वजह से उसका शीशे की तरह दमकता यौवन दिख रहा था।

    मिथ्रान उसके करीब गया और उसे फिर से वहीं बैठाते हुए बोला,

    "एक पल्लू से आपकी शख्सियत नहीं मापी जाएगी, रानी सा! वह तो एक हवा के झोंके से भी उड़ सकता है।"

    मिथ्रान की गहरी बातों को सुनकर, हर बार की तरह चाहत का दिल बेकाबू हो चुका था और धड़कनों ने अपनी रफ्तार पकड़ ली थी।

    "कुंवर सा, आप..."

    "विक्रांत! हमें विक्रांत कहिए, रानी सा। आपका हक है... जो हम आपको देना चाहते हैं!"

    मिथ्रान ने अपनी कर्कश आवाज़ में कहा।

    चाहत ने शायद ही किसी के मुँह से मिथ्रान के लिए 'विक्रांत' नाम सुना होगा, और अब वह चाहता है कि वह उसे विक्रांत बुलाए।

    ख्याल भर से चाहत का रोम-रोम सिहर उठा था।

    चाहत ने पलकें उठाकर मिथ्रान की गहरी ग्रे शेड आँखों में देखा, जिसमें उसके लिए ढेरों इमोशन्स भरे थे।

    चाहत ने अपने लहंगे पर पकड़ कसते हुए कहा,

    "क्या सच में हम इतने काबिल हैं कि आपको आपके नाम से बुला सकते हैं?"

    मिथ्रान ने थोड़े गुस्से भरे लहजे में कहा,

    "आपको इसके लिए किसी काबिलियत की ज़रूरत नहीं है, रानी सा। आपके लिए... आपकी ये सच्ची नज़रें ही काफी हैं... जिनके लिए हम जान तक दे सकते हैं, और आप हमारे नाम पुकारने के लिए काबिलियत की बात करती हैं?"

    चाहत थोड़ा सा ठिठक गई और फिर गहरी साँस छोड़ते हुए बोली,

    "क्या माँ सा ने आपको इस कमरे में रात रहने के लिए मजबूर किया है?"

    मिथ्रान ने दिलकश अंदाज़ में कहा,

    "ऐसी मजबूरी हमारे दिल को बहुत भाती है जो हमें आपके करीब खींच लाए, रानी सा। खैर, फिलहाल तो माँ सा ने हमें मजबूर नहीं किया है, पर हम मजबूर अपने दिल के हाथों हैं, जो आपको अकेला छोड़ने भर के ख्याल से तड़प उठता है!"

    "हमें आपकी सुरक्षा करनी है, रानी सा। इसे आप गलत मत समझिए। हम यह पहले ही आपको बता चुके हैं। आपकी मर्ज़ी के बिना छूना तो दूर की बात, आपको नज़र उठाकर भी नहीं देखेंगे!"

    चाहत के होठों पर मुस्कान खिल उठी।

    और वह वापस अपने जेवर उतारने लगी और मिथ्रान फ्रेश होने बाथरूम में चला गया।


    बिहार (औरंगाबाद)। शाम 5 बजे।

    एक बड़ा सा खंडहर! जिसे देखने में लग रहा था कि किसी समय यह एक आलीशान महल रहा होगा। उसके अंदर एक आदमी रस्सियों से बँधा था। जगह-जगह खून के धब्बे बता रहे थे कि वह बुरी तरह घायल है।

    उसके सामने खड़ा आदमी पान चबाते हुए उसे एकटक देख रहा था।

    और जैसे ही उस आदमी ने रस्सियों को छुड़ाने के लिए हिलाया, उसकी दर्द भरी आवाज़ पूरे खंडहर में गूंज गई!

    "Aahhhh"

    सामने खड़े आदमी ने अपना पान थूकते हुए कहा,

    "राजा सा, जितना खुद को रिहा करने की कोशिश करोगे, उतना ही ज़्यादा दर्द का सामना करना पड़ेगा! यह कोई मामूली रस्सी नहीं है; ठाकुर कृपाल सिंह की बंधी हुई कैद है, जो कि तुम चाहकर भी नहीं तोड़ सकते!"

    उस आदमी की बिहारी भाषा बता रही थी कि वह बिहार निवासी है।

    वह सामने कोई और नहीं, बल्कि जोधपुर के राजा सा अमरजीत सिंह राणा थे, जिन्हें जोधपुर में सब मरा हुआ समझ बैठे थे।

    अमरजीत के चेहरे पर दर्द के भाव साफ़-साफ़ नज़र आ रहे थे और आँखों में खूनी लालपन उसके गुस्से को दिखा रहा था। उसकी नसों में बहते राजपूती खून सामने वाले का कत्ल करने को बेताब था, पर इन रस्सियों की पकड़ उसके अंदर के जानवर को बाहर निकलने से रोक रखा था। वह गुर्राते हुए सामने खड़े आदमी को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था।

    सामने खड़ा आदमी जोर-जोर से हँसते हुए बोला,

    "काहे तड़प रहे हो इतना, राजा सा? वैसे तो एक गरमा-गरम खबर देनी थी..."

    फिर वह व्यंग्य से मुस्कुराकर आगे बोला,

    "तोहर मेहरारू को तो के बड़े भाई ने अपनी दुल्हनिया बना लिया है। दोनों आज की रात पलंग तोड़ मोहब्बत करने वाले हैं। वैसे देखे तो काफ़ी दुखद है, तोहर लाश को सामने देखकर उन लोगों ने शादी का बंधन बाँध लिया... उस लाश को अग्नि दी! और अब उसकी सुहागरात..."

    वह आदमी आगे कुछ बोल पाता, कि अमरजीत सिंह राणा बिल्कुल किसी घायल शेर की तरह दहाड़ा...

    और सामने खड़े आदमी के मुँह के शब्द उसके गले में अटक कर रह गए और उसने डर से अपना थूक गटक लिया।

    "Aaaaaa.... ठाकुर के दलाल! तेरी इतनी हिम्मत!... तू हमारी रानी सा का नाम भी अपनी गंदी जुबान पर कैसे लाया? एक बार हमारे हाथ खोल, फिर हम तुझे दिखाते हैं कि उस ठाकुर की कैद मज़बूत है या हमारी पकड़!"

    अमरजीत पूरी तरह से बँधा होने के बावजूद, उसके शब्दों में दहकती ज्वाला सामने खड़े इंसान की रूह तक को काँपने पर मजबूर कर रही थी।

    क्रमशः

  • 10. Rebirth of Rani Sa - Chapter 10

    Words: 1422

    Estimated Reading Time: 9 min

    ठाकुर के दलाल! तेरी इतनी हिम्मत! तू हमारी रानी सा का नाम भी अपनी गंदी जुबान पर कैसे लाया?

    एक बार हमारे हाथ खोल, फिर हम तुझे दिखाते हैं, उस ठाकुर की कैद मजबूत है या हमारी पकड़!


    अमरजीत पूरी तरह से बंधा होने के बावजूद, उसके शब्दों में दहकती ज्वाला सामने खड़े इंसान की रूह तक को कांपने पर मजबूर कर रही थी।


    सामने खड़े व्यक्ति ने डर से अपना थूक निगला और फिर थरथराते होठों से बोला,
    "रस्सी टूट गई, पर बाल नहीं गया। राजा की उपाधि मिलने से कोई व्यक्ति राजा नहीं बन जाता है।"

    और एक राजा को बंदी बनाने से वह भीग बिल्ला नहीं बन जाता है।


    अमरजीत ने फिर से दहाड़ते हुए कहा। उस व्यक्ति के दो कदम पीछे हट गए। उसने जल्दी से अपने मुँह में चबाते पान को थूका और फिर गुस्से से अमरजीत को घूरते हुए वहाँ से चला गया।


    वह जा चुका था, पर उसकी बातें अब तक अमरजीत के कानों में गूंज रही थीं।


    उसने धीरे से कहा,
    "क्या सच में अब हमारी चाहत हमारी नहीं रही? रानी सा, आप हमारा इतना इंतज़ार भी ना कर सकीं? वादे तो ताउम्र साथ रहने के किए थे आपने, तो हमारी साँसें छूटने की खबर से ही अपना वादा वापस ले लिया?"

    क्या इतना कमज़ोर बंधन था हमारा?


    यह बोलते वक्त अमरजीत के चेहरे पर दर्द झलक रहा था। पर वह उस आदमी की बातें पूरी तरह सही भी नहीं मान सकता था। इसलिए दिल में एक उम्मीद अभी भी कायम थी कि शायद यह एक अफ़वाह है जो उनके कानों में भारी जा रही है। और ऊपर से उसका बड़ा भाई, वह तो कभी ज़िंदगी में शादी ही नहीं करना चाहता था, तो वह कैसे उसकी विधवा से शादी कर सकता है?


    यह सोच-सोच कर अमरजीत खुद को तसल्ली दे रहा था।

    "हमें यकीन है, कुंवर सा, आपने अब तक जो ब्रह्मचर्य का चोला पहना था, अभी भी कायम होगा और आप हमारी चाहत को हमसे नहीं छीनेंगे।"


    अमरजीत ने इतना सोचकर गहरी साँस ली और अपनी आँखें बंद कर लीं। और उसके सामने बीते पलों के दृश्य घूम गए; जब वह और उसकी रानी सा एक साथ खूबसूरत पल बिताते थे और कैसे उस दिन वो बिछड़ गए।


    Flashback


    अमरजीत और चाहत गार्डन में लगे एक झूले पर बैठे थे। अमरजीत का हाथ चाहत की गोद में था और चाहत उसके रेशमी बालों में हाथ घुमाते हुए उसे कुछ कह रही थी।


    चाहत की बच्चों जैसी चाहतों को सुनकर अमरजीत का चेहरा खिल उठा था।

    "राजा सा, आपने हमसे वादा किया था कि इस रविवार हम उस पहाड़ी वाले मंदिर पर जाएँगे। यहाँ से वहाँ का नज़ारा कितना खूबसूरत दिखता है! हमें वह और ज़्यादा करीब से देखना है। कहा जाता है, खूबसूरत चीज़ करीब से और ज़्यादा अच्छी लगती है। हमें भी देखना है!"


    चाहत ने बच्चों की तरह जिद करते हुए कहा। अमरजीत ने उसके बालों में अपना हाथ डालते हुए, उसका चेहरा अपने चेहरे पर झुकाते हुए, अपनी गहरी और सरगोशी भरी आवाज़ में कहा,
    "हाँ, यह बात सिर्फ़ कही नहीं जाती है, बल्कि सच में खूबसूरत चीज़ें ज़्यादा पास से और भी ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं, बिलकुल हमारी चाहत की तरह।"

    "राजा सा, आप भी ना! आपको फ़्लर्ट करने का यही टाइम मिला था! हम सच में बहुत सीरियस बात कर रहे हैं! हमें उस पहाड़ी पर जाना है!"


    अमरजीत ने चाहत के माथे को चूमते हुए कहा, "हाँ, बिलकुल। हम कल सुबह ही जाएँगे वहाँ। आप बेफ़िक्र हो जाइए। आपकी हर ख्वाहिश पूरी करेंगे आपके राजा सा।"

    और चाहत के होठों पर भी एक मीठी सी मुस्कान आ गई।


    Next day


    जैसा कि अमरजीत ने कहा था, वह चाहत को लेकर पहाड़ी वाले मंदिर के लिए निकल चुका था। पर चाहत को उगता सूरज देखना था क्योंकि उसने सुना था वहाँ से सूर्योदय का जो दृश्य है, वह बहुत भव्य होता है।


    और इसीलिए वह सुबह करीब 4:00 बजे रंग महल से निकल चुके थे ताकि सुबह 5:00 के आस-पास मंदिर पहुँच जाएँ। क्योंकि मंदिर का रास्ता पथरीला था, तो वहाँ जाने में वक़्त लगता था।


    अमरजीत बिना अपने अंगरक्षकों (bodyguards) के मंदिर के लिए निकल चुका था। पर बीच रास्ते में ही कुछ लोगों ने उनकी कार को घेर लिया। यह देखकर चाहत बहुत ज़्यादा डर गई थी और उसकी आँखों में बहुत सारा कन्फ़्यूज़न भी आ गया था।


    क्योंकि उन लोगों ने जो कपड़े पहने थे, वह मिथ्रान के लोगों जैसे लग रहे थे। क्योंकि मिथ्रान रंग महल में नहीं, बल्कि जंगल में रहता था, इसलिए उसके जो लोग थे, उनकी वेशभूषा रंग महल के सैनिकों से थोड़ी अलग थी।


    उनके चेहरे पर हमेशा एक पर्दा रहता था और सिर्फ़ उनकी काली आँखें ही दिखाई देती थीं।


    चाहत ने अमरजीत की बाजू को कसकर पकड़ते हुए कहा,
    "राजा सा, हमें बहुत डर लग रहा है।"

    अमरजीत ने उसका सर सहलाते हुए कहा,
    "डरो मत चाहत, हम बस यूँ गए और यूँ आए। शायद भाई को हमसे कुछ काम हो, इसलिए ये लोग आए होंगे।"


    अमरजीत ने चाहत को भरोसा दिलाया और फिर गाड़ी से उतरते हुए उन लोगों के करीब बढ़ गया।


    पर अगले ही पल उन लोगों ने अमरजीत पर हमला कर दिया। और अब अमरजीत उनसे लड़ने में लगा था। और इतने में ही किसी ने चाहत को बेहोश कर दिया था, और अमरजीत यह देख नहीं पाया। और उसके बाद अमरजीत ने करीब 20 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।


    लेकिन फिर भी उन सैनिकों की तादाद बढ़ते ही जा रही थी। और एक वक़्त आया जब अमरजीत की हिम्मत ने भी जवाब दे दिया। और उसके सर पर एक बड़ा सा रॉड आकर लगा और उसकी आँखों के सामने कालापन छा गया।


    और उसके बाद जब अमरजीत की आँखें खुली थीं, तो उसने खुद को इस खंडहर में पाया था, जहाँ खड़ा होकर वह यह सब बीते पल सोच रहा था।


    Flashback end


    वहीं दूसरी तरफ़ रंग महल में! शाम करीब 5 बजे!


    मिथ्रान अपनी कंपनी के सिलसिले में जोधपुर से मुंबई गया हुआ था। एक्चुअल में यह एक बहाना था। मिथ्रान अपने भाई के कातिलों को ढूँढ रहा था, पर रंग महल में यही कहकर गया था कि वह ऑफिस के सिलसिले में बाहर जा रहा है।


    चाहत अपने कमरे में अकेली बैठी थी कि अचानक एक दासी अंदर आई और चाहत से बिना पूछे उसके करीब बढ़ गई। चाहत बालकनी में झूले पर बैठी, बीते पल और आने वाले पल के बारे में सोच रही थी।


    पर इसके उलट उसे इस बात की खबर नहीं थी कि सिर्फ़ उसका पुनर्जन्म ही नहीं हुआ है, कुछ घटनाएँ ऐसी भी घटित होंगी जो पिछले जन्म में नहीं घटी थीं।


    यह नया जन्म उसका नई कठिनाइयों से भरा था। उसे खुद अपने दुश्मन को पहचानना था। वह पिछला जन्म मात्र एक संकेत रह गया था।


    अचानक ही उसे अपने चेहरे पर किसी का हाथ महसूस हुआ और चाहत झटपट खड़ी हो गई।


    लेकिन अब तक वह दासी अपना काम कर चुकी थी, जो था चाहत को बेहोश करना।


    चाहत बेहोश हो चुकी थी और वह दासी वहाँ से दौड़ते हुए रंगमहल के बीचों-बीच गई और फिर झूठी उदासी के साथ घबराए अंदाज़ में बोली,
    "बड़ी मालकिन, ठाकुरैन (कलावती राणा | मिथ्रान की माँ सा) कोई है आप दोनों में से!"


    हर कोरी और कलावती दोनों एक साथ अपने कमरे से बाहर आईं। तो वह दासी घबराते हुए बोली,
    "वो रानी सा, रानी सा!"

    हर कोरी जल्दी से बोली,
    "हाफ के री स! जल्दी बोल, क्या हुआ रानी सा को?"


    दासी ने कहा, "वो बेहोश हुईं। बालकनी में झूले पर लेटी हैं। हमने उन्हें बहुत आवाज़ लगाई, वो नहीं आईं। तो हम उनके करीब चले गए। पर जब उन्हें हाथ लगाया तो वो झूले पर लुढ़क गईं। यानी वो बेसुध होकर झूले पर लेटी हैं!"


    कलावती के चेहरे पर बल पड़ गए और वो तेज़ी से सीढ़ियों से चाहत के कमरे में जाने लगीं।


    हर कोरी ने एक कुटिल मुस्कान उस दासी को दिखाई और एक मोटी रकम उसके हाथ में देते हुए बोली,
    "जा अब वेद को बुलाकर ला जल्दी! रंग महल में तमाशा करना है। मिथ्रान की ज़िंदगी इतनी शांति से तो व्यतीत नहीं होने देंगे हम!"


    उस दासी ने एक कुटिल मुस्कान हर कोरी को दिखाई और वहाँ से तेज़ी से चली गई।


    To be continued. धन्यवाद।

  • 11. Rebirth of Rani Sa - Chapter 11

    Words: 1172

    Estimated Reading Time: 8 min

    कलावती राणा (मां सा) और हरकोरी राणा (ताई सा), दोनों चाहत और मिथ्रान के कमरे में थीं। उन्होंने चाहत को बिस्तर पर लिटा दिया था।

    कलावती लगातार उसके हाथों को अपने हाथों से रगड़ते हुए उसे होश में लाने की कोशिश कर रही थी।

    "उठो रानी सा! क्या हो गया है आपको?"

    कलावती स्वभाव से कठोर थी, पर एक मां का दिल हमेशा नरम होता है। कलावती ने कभी जाहिर नहीं किया था, लेकिन चाहत से उसका अलग लगाव था। क्योंकि चाहत ऐसी लड़की थी जिसे उनके दोनों बेटों ने पसंद किया था और उनके दोनों बच्चे बहुत समझदार थे; कलावती को हमेशा लगता था कि उसके बच्चे अपनी पत्नी में उसी की छवि ढूँढ़ेंगे।

    जब मिथ्रान अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके आया था, या फिर कभी छुट्टियों में भी वह कलावती के पास आता था, वह बस चाहत की बातें किया करता था कि उसके कॉलेज में अप्सराओं सी खूबसूरत लड़की है, और जिसका स्वभाव बिल्कुल कमल के फूल की तरह कोमल है, वह सबका ख्याल रखती है!

    मिथ्रान ने जरूर अपने प्यार का इज़हार कभी नहीं किया था, पर चाहत का ज़िक्र होते ही उसके चेहरे पर जो मुस्कान आती थी, उसमें ढेर सारे इमोशंस छुपे होते थे!

    पर किस्मत ने करवट ली और चाहत की टक्कर अमरजीत से हो गई। अमरजीत ने भी पहली मुलाकात होते ही रंग महल में आकर सबसे पहले यही ऐलान किया था कि उन्हें उनकी चाहत मिल गई है और उन्हें अभी विवाह करना है!

    इसके बाद चाहत की शादी अमरजीत से हो गई थी। मिथ्रान और रंग महल के बाकी सदस्यों के बीच हमेशा मनमुटाव रहता था। इसलिए वह रंग महल छोड़ चुका था, और अब चाहत को अपने भाई की पत्नी के रूप में देखना उसके दिल को गवारा नहीं था; यह भी एक कारण था उसके रंग महल छोड़ने का!

    पर चाहत को कभी पता नहीं था कि मिथ्रान उसे कॉलेज के दिनों से ही पसंद करता है! वह उसे हमेशा अपना सीनियर मानती थी और हमेशा उसकी इज़्ज़त करती थी। और मिथ्रान की छवि हमेशा एक सख्त मिजाजी व्यक्ति के रूप में रही थी; चाहे वह कॉलेज हो या रंग महल, उसे हमेशा मिथ्रान से थोड़ा डर भी लगता था। और मिथ्रान का कैरेक्टर खराब है, ऐसी अफवाहें उसने बहुत सुनी थीं, इसलिए वह मिथ्रान से जितना हो सके उतनी दूरी बनाती थी!

    अब कलावती परेशान थी। कहीं मिथ्रान ने तो चाहत के साथ कुछ नहीं किया होगा? पर कैसे? मिथ्रान कैसे कर सकता है? उसने तो उसकी जान बचाई है।

    कलावती के चेहरे पर पसीने की बूंदें झलक रही थीं। वह जानती थी, मिथ्रान का गुस्सा—अगर मिथ्रान को पता चला कि उसकी गैरमौजूदगी में चाहत को कुछ हुआ है, तो वह पूरे जोधपुर को अपने सर पर उठा लेगा; पता नहीं कौन सी तबाही लेकर आएगा?

    कलावती के चेहरे पर इतने सारे ख्याल घूम रहे थे, जिन्हें देखकर हरकोरी (ताई सा) मन ही मन बहुत ज़्यादा खुश हो रही थी।

    आखिर यही तो वह चाहती थी! उमराव सिंह (दादा राज) के परिवार के जितने भी सदस्य हैं, चाहे वह कलावती हो, मिथ्रान हो, अमरजीत हो (राजा सा) या अभिनय (उमराव सिंह का तीसरा बेटा) हो, उसे बिलकुल गवारा नहीं था कि वह एक दिन की ज़िन्दगी भी चैन से जी ले!

    कलावती की आँखों में पानी भी आ चुका था। उसे देखकर लग रहा था वह बस रोने ही वाली है! पर कलावती जैसे-तैसे करके अपने इमोशंस को कंट्रोल कर रही थी।

    इतने में दासी ने दरवाज़ा खटखटाया और कलावती ने मुड़कर देखा तो दासी एक दाई मां के साथ खड़ी थी। यह दाई मां एक उम्रदराज औरत थीं, जिनकी उम्र करीब 55 की होगी!

    कलावती ने जल्दी से उन्हें अंदर आने को कहा और फिर बिस्तर से उठ गई ताकि दाई मां वहाँ बैठ सकें। दाई मां ने चाहत को चेक किया और करीब 15 मिनट बाद वह चाहत के कमरे से बाहर आ गईं।

    रंग महल के हाल में बैठकर कलावती उनके साथ चाय पी रही थी और चाहत की हालत कैसे हुई, इन सब के बारे में सवाल-जवाब कर रही थी।

    दाई मां ने चिंता भरे स्वर में कहा,

    "रानी सा, पेट से हैं। शायद राजा सा का अंश उनके पेट में पल रहा है।"

    यह सुनना भर था और कलावती के हाथ से चाय का कप छूटकर फर्श पर गिर गया और आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं!

    यह किस दुविधा में फँस चुकी थी वह? वह तो मिथ्रान और चाहत के रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात कर रही थी। अब मिथ्रान कैसे अपनाएगा चाहत को, जबकि वह उसके भाई के बच्चे की माँ बनने वाली है?

    यह सुनकर हरकोरी के चेहरे पर घिनौनी मुस्कान तैर गई थी। उसने एक नज़र दाई मां को देखा, जो भी डरी-सहमी सी उसी की तरफ देख रही थी!

    दाई मां को अंदर ही अंदर बहुत गिल्ट फील हो रहा था। उन्होंने झूठ बोला था, वह भी अपनी रानी सा के बारे में, जो उनकी जिंदगी में तूफान लाने के लिए काफी था।

    कुछ समय बाद दाई मां रंग महल से जा चुकी थीं और कलावती के चेहरे पर परेशानी उभर आई थी। डर से उसके हाथ-पांव फूल चुके थे। उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या करना चाहिए?

    वहीं आरती (अभिनय की पत्नी, चाहत की देवरानी) ने जैसे ही यह सुना, वह भी दिल ही दिल खुश हो गई। चलो एक भूचाल तो आया रानी सा की ज़िन्दगी में! चाहत आरती से एक साल पहले इस रंग महल में आई थी। बावजूद इसके, आरती को किसी ने इस रंग महल की बहुरानी होने का लाड़-प्यार नहीं दिया था। उसकी इतनी कदर नहीं थी जितनी चाहत की थी। और अमरजीत जितना चाहत से प्यार करता था, वह उसके एक बार बोलने से चाँद भी धरती पर ला सकता था; इतनी हिम्मत रखता था। ऊपर से वह जोधपुर का राजा सा था; इसके नाते उसकी जो हुकूमत चलती थी, वह अभिनय की कभी नहीं चल सकती थी, जो आरती को दिल ही दिल में बहुत चुभता था। इस वजह से चाहत के लिए उसके दिल में हमेशा से बुरा ही रहा था।

    वहीं किशोरी (हरकोरी की बेटी, चाहत की नन्द) को किसी से कोई लेना-देना नहीं था, पर वह आरती से ज़्यादा क्लोज़ थी; इसलिए जब आरती को चाहत से जलन होती थी, तो किशोरी को क्यों नहीं! उसे भी धीरे-धीरे आरती के साथ रहकर चाहत और भी ज़्यादा खटकने लगी और वह भी चाहत से नफ़रत करने लगी!

    किशोरी और आरती ने एक-दूसरे को स्माइल पास की; जैसे वह इस न्यूज़ को सुनकर बहुत ज़्यादा खुश हो गई हैं। अब मिथ्रान शायद खुद ही रानी सा को अपने से इनकार कर दे!

    कैसे संभालेगा मिथ्रान इस सिचुएशन को? जानने के लिए पढ़ते रहिए "रिबॉर्न ऑफ़ रानी सा"।

  • 12. Rebirth of Rani Sa - Chapter 12

    Words: 1499

    Estimated Reading Time: 9 min

    Jodhpur, Rajasthan

    रात के करीब 8 बजे थे।

    कलावती राणा चाहत के सिरहाने बैठी थी और एकटक उसके मासूमियत से लबालब चेहरे को देख रही थी।

    कुछ देर बाद चाहत की पलकों में हरकत हुई।

    इसे देखकर कलावती हड़बड़ा गई और चाहत का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली,

    "रानी सा, आप ठीक हैं!"

    चाहत ने कसमसाते हुए अपनी आँखें खोलीं। आँखें खोलते ही उसे कमरे की छत पर लगा बड़ा सा झूमर दिखाई दिया। उसने इधर-उधर पलकें घुमाईं और फिर अपने सिरहाने कलावती को देखकर एक झटके से उठकर बैठते हुए बोली,

    "अरे माँ सा, आप?"


    कलावती ने उसे बैठने में मदद करते हुए कहा,

    "आराम से, इतनी जल्दबाजी करने की ज़रूरत नहीं है!"

    चाहत ने अपनी नज़रें नीचे करते हुए कहा,

    "वो हमें पता ही नहीं चला कि आप हमारे पास हैं, वरना हम बहुत पहले जाग जाते। माफ़ करना, आपको इंतज़ार करना पड़ा!"

    कलावती ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा,

    "रानी सा, आप सो नहीं रही थीं, आप बेहोश हो गई थीं।"

    अचानक चाहत को याद आया कि किसी ने उसका मुँह दबाया था। वह जल्दी से कलावती की तरफ देखते हुए बोली,

    "माँ सा, कोई आया था हमारे कमरे में और उसने जबर्दस्ती हमारे मुँह पर कुछ लगाया, जिससे हम बेहोश हो गए।"

    कलावती के चेहरे पर उलझन आ गई और उसने कहा,

    "यह आपका वहम है, रानी सा। ऐसा कुछ नहीं था। आप बेहोश हो गई थीं क्योंकि....."

    आगे के शब्द कलावती के गले में अटक गए। चाहत ने कन्फ्यूज़ होते हुए कहा, "क्योंकि??? क्योंकि क्या माँ सा?"

    कलावती ने कहा,

    "क्योंकि आप माँ बनने वाली हैं। इसलिए कमज़ोरी की वजह से आपको चक्कर आ रहे थे और कल के दिन जो जो हुआ, उससे आपके दिमाग पर ज़ोर पड़ा है और उसका असर आपके बच्चे पर भी हो रहा है।"

    चाहत ने हैरान होते हुए कहा,

    "यह... यह क्या कह रही हैं आप माँ सा? हम? हम... माँ बनने वाले हैं? आप हमारी बात पर यकीन कीजिए, हम माँ नहीं बनने वाले। किसी ने जबर्दस्ती हमारे चेहरे पर कपड़ा रखा था, जिससे हम बेहोश हो गए।"

    कलावती ने कहा, "हमने दाई माँ से आपका परीक्षण करवाया है। आप सच में माँ बनने वाली हैं!"

    चाहत को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी बात पर कैसे यकीन दिलाए? कलावती ने तो बस एक रट पकड़ ली थी कि वह माँ बनने वाली है!

    चाहत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। इन दो दिनों में जो जो उसके साथ हुआ था, अब तक वह अविश्वसनीय था।

    चाहत को लगा था कि एक बार वह ज़िन्दगी की चुकी है, तो शायद इस बार कठिनाइयाँ थोड़ी कम होंगी और वह दुश्मनों को पहचान लेगी, पर ऐसा नहीं हो रहा था। उसके साथ जो हो रहा था, सब उलट हो रहा था।

    चाहत ने फिर से कलावती की तरफ देखते हुए कहा,

    "माँ सा, हमारा यकीन कीजिए, हम प्रेग्नेंट नहीं हैं!"

    कलावती ने चाहत को बीच में रोकते हुए कहा,

    "बस, हमें और कुछ नहीं सुनना है। आप आराम कीजिए। हम आपके लिए रात का खाना यहीं भिजवा देते हैं। और मिथ्रान का अभी तक कुछ पता नहीं है कि वह कब तक आएगा? आएगा भी या नहीं? इसलिए आप खाना खाकर सो जाइए। ज़्यादा चिंता मत कीजिए।"

    इतना बोलकर कलावती कमरे से बाहर चली गई, परेशान सी चाहत को छोड़कर।

    चाहत ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "भगवान जी, यह सब क्या हो रहा है हमारे साथ? हम... हम सबको कैसे यकीन दिलाएँ कि हम माँ नहीं बनने वाले?"

    इतना सोचकर चाहत ने गहरी साँस ली और फिर एक नज़र घड़ी की तरफ़ देखा, जिसकी सुइयाँ अब 9:00 बजने का इशारा कर रही थीं।

    चाहत ने साइड टेबल पर रखा अपना फ़ोन उठाया और कुछ सोचते हुए मिथ्रान का नंबर डायल कर दिया, जो शायद मिथ्रान ने ही सेव किया था उसके फ़ोन में।

    कॉल डायल हो रहा था, पर सामने से कोई जवाब नहीं आ रहा था। चाहत ने फ़ोन को बेड पर पटकते हुए झुँझलाते हुए कहा,

    "सब क्या हो रहा है हमारे साथ? क्यों हम चैन से नहीं जी सकते?"

    इतना बोलकर चाहत बेड से उठी और फिर फ़्रेश होने बाथरूम में चली गई।

    उसी वक़्त उसके बाथरूम में जाते ही फ़ोन रिंग होने लगा। लगातार फ़ोन बज रहा था, पर चाहत तब बाथरूम में थी, तो उसे रिंग सुनाई नहीं दे रही थी।

    मुंबई, "द रॉयल वन" बिल्डिंग (मिथ्रान की कंपनी)

    मिथ्रान अपने ऑफ़िस में था। चाहत का कॉल आया हुआ देखकर उसने अपनी मीटिंग छोड़ दी और चाहत को कॉल किया, लेकिन चाहत अब कॉल नहीं उठा रही थी, जिससे मिथ्रान का दिल बुरी तरह घबरा रहा था।

    वह जल्दी से बाहर आते हुए अपने असिस्टेंट से बोला,

    "जीत, जल्दी से एक चॉपर का इंतज़ाम करो। हमें जोधपुर वापस जाना है।"

    जीत ने हैरानी से कहा, "पर कुंवर सा, आप तो सुबह जाने वाले थे?"

    मिथ्रान ने गुस्से में कहा,

    "जितना कहा है, उतना करो! अगले 5 मिनट में मुझे चॉपर ऊपर टेरेस पर चाहिए!"

    जीत ने हड़बड़ाते हुए हाँ में सर हिलाकर कहा,

    "जी कुंवर सा, हो जाएगा।"

    और फिर जल्दी से अपना फ़ोन निकालकर उसमें कुछ करने लगा। वहीं मिथ्रान अब लिफ़्ट की ओर बढ़ गया और लिफ़्ट में जाकर सीधा टॉप फ़्लोर का बटन प्रेस किया।

    लिफ़्ट सीधी टेरेस में जाकर खुली और मिथ्रान तेज कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ गया। उसने इस वक़्त ब्लैक जींस और ब्लैक शर्ट पहनी हुई थी, जिसकी स्लीव्ज़ कोहनी तक मुड़ी हुई थीं और उसकी बाजू में चमकते नीले नसें साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं। ऊपर से उसके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था, और यह गुस्सा उसे खुद पर था। उसने चाहत का कॉल कैसे नहीं उठाया? वह इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकता है?

    क्या चाहत उससे नाराज़ हो गई है जो अब 2 मिनट बाद ही उसका कॉल नहीं उठा रही!

    अगले ही मिनट वहाँ एक चॉपर लैंड हुआ और मिथ्रान तेज कदम बढ़ाते हुए उसके अंदर चला गया।

    जोधपुर, रंग महल

    चाहत अब शावर लेकर बाहर आ चुकी थी। उसने इस वक़्त एक आसमानी रंग की शिफ़ॉन की साड़ी पहनी हुई थी। स्लीवलेस ब्लाउज़ में उसकी गोरी बाजूएँ दिखाई दे रही थीं, जो उसे और भी ज़्यादा खूबसूरत बना रही थीं। चाहत के बाल अब कंधे तक ही आते थे, इसलिए उसके बाल दोनों कंधों पर बिखरे हुए थे, जो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे।

    चाहत खुद को मिरर में देखते हुए अपने बालों को ड्राई कर रही थी और उसकी आँखों में कई सवाल घूम रहे थे।

    कि अगर वह सच में प्रेग्नेंट हुई तो? क्योंकि ऐसा तो नहीं था कि उसका अमरजीत से कोई रिश्ता नहीं था। वह अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके थे, पर पिछले जन्म ऐसा कुछ नहीं हुआ था। इसलिए अब वह मिथ्रान से इस बारे में डिस्कस करना चाहती है, पर एक अजीब सा डर जो उसके दिल में था, वह था रिजेक्शन का! क्या हो अगर मिथ्रान उसे अपनाने से मना कर दे? उसे बीच राह में यूँ छोड़ दे? क्या वह जी पाएगी?

    देखते ही देखते आधा घंटा बीत गया, चाहत को पता ही नहीं चला!

    वह अब भी मिरर के सामने बैठी थी और कहीं खोई हुई थी। उसके दिमाग में ख़्याल घूम रहा था प्रेग्नेंसी कीट का। वह मिथ्रान से यह बात शेयर कैसे करेगी, उसे समझ नहीं आ रहा था!

    वहीं मिथ्रान की कार अब रंग महल के सामने आकर रुकी। वह काफ़ी जल्दबाज़ी में लग रहा था। उसके सिल्की बाल उसके माथे पर बेतरतीब बिखरे थे, आँखें बिल्कुल लाल!

    वह जैसे ही हॉल में एंटर करता है, उमराव सिंह, जो वहीं कुर्सी पर बैठे थे, शायद उसी का इंतज़ार कर रहे थे, उसे रोकते हुए बोलते हैं,

    "रुको मिथ्रान! हमें कुछ ज़रूरी बात करनी है!"

    मिथ्रान ने तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए कहा,

    "हमारी रानी सा को हमारी ज़रूरत है, दादा राज! हमें पहले उनसे मिलना है!"

    कलावती भी वहीं खड़ी थीं। उन्होंने तेज आवाज़ में कहा,

    "मिथ्रान, तुम अपने पिता की बातों को सुनने से इनकार कर रहे हो!"

    "नहीं माँ सा! हर वाक्य को समझने के अलग तरीके हैं! मैं दादा राज की बात सुनने से इनकार नहीं कर रहा, बल्कि रानी सा की बात सुनने का इज़हार कर रहा हूँ!"

    उमराव सिंह ने तेज आवाज़ में कहा,

    "हमें उन्हीं के बारे में बात करनी है!"

    यह सुनकर मिथ्रान के कदम रुक गए!

    क्रमशः

  • 13. Rebirth of Rani Sa - Chapter 13

    Words: 1550

    Estimated Reading Time: 10 min

    मिथ्रान के हॉल में प्रवेश करते ही, उमराव सिंह, जो उसी कुर्सी पर बैठे थे, शायद उसी का इंतज़ार कर रहे थे, उसे रोकते हुए बोले,

    "रुको मिथ्रान! हमें कुछ ज़रूरी बात करनी है!"

    मिथ्रान ने तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए कहा,

    "हमारी रानी सा को हमारी ज़रूरत है, दादा राज! हमें पहले उनसे मिलना है!"

    कलावती वहीं खड़ी थीं। उन्होंने तेज आवाज़ में कहा,

    "मिथ्रान, तुम अपने पिता की बातों को सुनने से इनकार कर रहे हो!"

    "नहीं, मां सा! हर वाक्य को समझने के अलग तरीके हैं! मैं दादा राज की बात सुनने से इनकार नहीं कर रहा, बल्कि रानी सा की बात सुनने का इज़हार कर रहा हूँ!"

    उमराव सिंह ने तेज आवाज़ में कहा,
    "हमें उन्हीं के बारे में बात करनी है!"

    ये सुनकर मिथ्रान के बढ़ते कदम एकदम से रुक गए!

    उमराव सिंह ने एक पल का ठहराव लिया और फिर अपना गला सही करते हुए बोले,

    "रानी सा गर्भवती हैं। वे अमरजीत के बच्चे की माँ बनने वाली हैं!"

    यह सुनकर एकदम से मिथ्रान की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और उसने उमराव सिंह की तरफ़ बड़ी-बड़ी आँखों से देखा।

    कलावती और उमराव सिंह दोनों उसका यह रिएक्शन देखकर थोड़े असहज हो गए और उमराव सिंह ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा,

    "अगर तुम एक गर्भवती महिला के साथ रिश्ता आगे नहीं बढ़ाना चाहते हो, तो अब भी इस रिश्ते से पीछे हट सकते हो। क्योंकि तुम्हारी शादी सात फेरों से नहीं हुई है, वह अभी थोड़ी सी जा सकती है और बेफ़िक्र हो जाइए। हम अपने अंश को नहीं मारेंगे, इसलिए रानी सा को कोई दुख-दर्द नहीं झेलना पड़ेगा। पूरी शानो-शौकत से वे इस रंग महल में रहेंगी।"

    "भूल जाइए, दादा राज! किसी भी हाल में हमारा और रानी सा का यह रिश्ता टूटेगा! आपके हिसाब से यह सच्ची शादी न हो, पर हमने माता रानी की जलती लो को साक्षी मानकर उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाया है। मौत ही एक मात्र अंतिम साधन है हमें रानी सा से अलग करने के लिए!"

    मिथ्रान का यह गुस्से से सुलगता जवाब सुनकर एक पल के लिए उमराव सिंह और कलावती दोनों भयभीत हो गए थे!

    पर फिर कलावती के चेहरे पर सुकून बिखर गया!

    उमराव सिंह ने भी आगे कुछ कहना सही नहीं समझा।

    एक मेड, चाहत का डिनर लेकर जा रही थी, तो मिथ्रान ने वह प्लेट उसके हाथ से ली और तेज कदमों से अपने कमरे की तरफ़ चला गया। चाहत जो मिरर के सामने बैठी अपनी ज्वैलरी उतार रही थी।

    "रानी सा?"

    मिथ्रान ने जैसे ही कहा, चाहत ने झट से मुड़कर दरवाजे की तरफ़ देखा।

    "हमारी गैर-मौजूदगी में रात के समय आपको दरवाजा खुला नहीं छोड़ना चाहिए, रानी सा।"

    मिथ्रान ने खाने की प्लेट टेबल पर रखी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।

    वहीं, मिथ्रान को अपने पास देखकर चाहत के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। वह मिथ्रान को सब कुछ सच-सच बता देना चाहती थी, आज जो-जो हुआ, पर कहीं न कहीं उसे डर लग रहा था। जैसे किसी ने उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया। क्या मिथ्रान भी नहीं करेगा?

    चाहत उठकर मिथ्रान के सामने गई, शायद कुछ बोलने के लिए, पर मिथ्रान तब तक बाथरूम की तरफ़ चला गया! और चाहत के दिल में एक अजीब सा दर्द उठा!

    क्या अभी से मिथ्रान उसे इग्नोर कर रहा है?

    वहीं, मिथ्रान चाहत को इग्नोर नहीं कर रहा था। वह तो खुद की घबराहट को काबू में करने की कोशिश में लगा था।

    करीब 10 मिनट बाद मिथ्रान बाथरूम से फ़्रेश होकर आया। उसने इस वक़्त व्हाइट कुर्ता-पजामा पहना था और तौलिये से अपने बाल सुखा रहा था। चाहत फिर से बिस्तर से उठ खड़ी हुई और मिथ्रान के सामने जाते हुए बोली,

    "विक्रांत, आप मुझे इग्नोर क्यों कर रहे हो? मुझे आपसे बहुत ज़रूरी बात करनी है।"

    "हम्म्म… कहीं रानी सा, हम आपको इग्नोर नहीं कर रहे हैं। बस जो हो रहा है, उसे हज़म करने की कोशिश कर रहे हैं!"

    चाहत ने कंफ़्यूज़ होते हुए कहा, "कहा? क्या हो रहा है? क्या हज़म करने की कोशिश कर रहे हैं आप?"

    मिथ्रान ने एक छोटी सी स्माइल लिए चाहत के करीब जाकर कहा, "यही कि अब हमारी ज़िंदगी में शामिल होने वाली एक छोटी सी जान और आ रही है।"

    यह सुनकर चाहत की आँखें बड़ी हो गईं और वह उन्हें बार-बार झपकते हुए बोली,

    "ऐसा नहीं है, विक्रांत। हम आपको…"

    चाहत की बात पूरी होने से पहले मिथ्रान ने उसके होंठों पर अपनी उंगली रखते हुए कहा,

    "हमें कोई सफ़ाई नहीं सुनाई है, रानी सा… कल से पहले तक आप हमारी नहीं थीं… इसलिए हम आपसे कोई सवाल-जवाब नहीं करेंगे। यह क्यों हुआ? होना चाहिए था या नहीं? सही है या गलत? कुछ भी नहीं। लेकिन आज के दिन आप हमारी हैं और आपकी हर ज़िम्मेदारी भी हमारी। आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। किसी में हिम्मत नहीं है कि आपकी तरफ़ आँखें उठाकर भी देख सके, तो बातें बनाना आपके बारे में वह तो बहुत दूर की बात है।"

    चाहत की आँखें पल भर में नम हो गईं। उसने मिथ्रान का हाथ अपने हाथ में थामते हुए कहा,

    "विक्रांत, आप हमें अपना मानते हैं, यह सुनकर दिल को सुकून मिल गया। पर आप पहले हमारी पूरी बात तो सुनिए। हम कहना क्या चाह रहे हैं?"

    मिथ्रान ने एक स्माइल करते हुए कहा, "ठीक है। क्या कहना है आपको?"

    "हम माँ नहीं बनने वाले हैं।" चाहत ने पलकें झुकाते हुए कहा।

    और यह सुनकर विक्रांत एक पल के लिए कंफ़्यूज़ हो गया और फिर चाहत को कंधे से पकड़कर उसकी आँखों में देखते हुए बोला,

    "क्या आप सच कह रही हैं, रानी सा? हमने अभी-अभी सुना दादा राज और मां सा बोल रहे थे।"


    चाहत ने विक्रांत को बेड पर बिठाते हुए कहा,

    "आप ध्यान से मेरी बात सुनिए, फिर हम आपको सब बताएँगे। यह कैसे हुआ।"

    मिथ्रान ने कहा,

    "पहले खाना। काफ़ी देर से रखा है। आप खा लीजिए, उसके बाद हम आराम से बात करेंगे।"

    चाहत ने मायूस होते हुए कहा,

    "पर हमें अभी सारी बात क्लियर करनी है। हमें अपनी लाइफ में कोई मिसअंडरस्टैंडिंग नहीं चाहिए। यह मिसअंडरस्टैंडिंग नाम की बला बहुत बुरी होती है। अच्छे से अच्छा और मज़बूत से मज़बूत बंधन तोड़ डालती है। और हमें तो एक दरार बर्दाश्त नहीं है। इसे तोड़ना तो बहुत दूर की बात है!"

    मिथ्रान ने चाहत के चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए कहा,

    "आप बेफ़िक्र हो जाइए। ऐसी कोई बात हमारे इस बंधन को नहीं तोड़ पाएगी और ना ही कोई दरार पड़ेगी। आप चुपचाप खाना खाइए।"

    मन ही मन मिथ्रान ज़रूर परेशान था, पर वह अपनी रानी सा को तो परेशान नहीं देख सकता था और कहीं न कहीं उसका दिल चाहत की बातों पर यकीन करने के लिए बोल रहा था क्योंकि चाहत कुछ हद तक सही थी। मिसअंडरस्टैंडिंग बिल्कुल नहीं होनी चाहिए किसी भी रिश्ते में।

    वहीं दूसरी तरफ़ बिहार में…

    "ठाकुर साहब, ठाकुर साहब! गज़ब हो गया! वह अमरजीत, जोधपुर के राजा सा…"

    कृपाल, जो हवेली में बैठकर अपना हुक्का इन्जॉय कर रहा था, अमरजीत का ज़िक्र होते ही सामने खड़े आदमी को घूरते हुए बोला,

    "बोलो महिपाल, आगे बोलो। क्या किया उस अमरजीत ने?"

    वह आदमी हाफ़ते हुए बोला,

    "वो… वह आपकी पकड़ से छूट गए। हमने पूरे खंडहर में ढूँढ़ लिया, वह हमें कहीं नहीं मिले। उनकी बेड़ियाँ टूटी हुई हैं। मतलब, वह आपसे कैसे आज़ाद हो चुके हैं?"

    यह सुनकर कृपाल के हाथों से हुक्का छूट गया और उसकी आँखें बड़ी हो गईं। वह गुस्से से गरजते हुए बोला,

    "वह पहरेदार कहाँ हैं, जिन्हें मैं खंडहर के सामने खड़ा किया था?"

    महिपाल अपना सर झुकाते हुए बोला,

    "ठाकुर साहब, उनकी लाशें मिली हैं। वह भी टुकड़ों में।"

    यह सुनकर कृपाल का दिल धक से रह गया। यह शायद उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती थी, क्योंकि राणा परिवार बहुत ज़्यादा ताकतवर था। इसीलिए उसने एक-एक इंसान को मारकर करने की साज़िश रची थी। पहले राजा साहब, उसके बाद कुंवर सा, उसके बाद दादा राज और उसके बाद पूरा परिवार। पर उसका तो पहला दाव ही उस पर उल्टा पड़ रहा था। अमरजीत उसकी पकड़ से भाग चुका था!

    वहीं दूसरी तरफ़ एक सुनसान सड़क पर अमरजीत घायल अवस्था में दौड़ते हुए आगे बढ़ रहा था और अचानक ही उसे चक्कर आने लगे और वह एक पेड़ से सहारा लेकर बैठ गया और…

    उसे वह बीता पल याद आ गया जब ऐसे ही वह बेसहारा था और चाहत ने उसे सहारा दिया था और उसके होठों पर एक दर्द भरी मुस्कान आ गई।

    "रानी सा, कहाँ हैं आप? आपके राजा सा को आपकी ज़रूरत है! आपने तो कहा था आप हमारी हर ज़रूरत पूरी करेंगी। तो हम चाहते हैं आप इसी वक़्त हमारे पास आ जाएँ!"

    इतना बोलकर अमरजीत ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपना सर पेड़ से लगा लिया।

    क्रमशः

  • 14. Rebirth of Rani Sa - Chapter 14

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोधपुर, राजस्थान

    रात का पहर ढल चुका था, पर चाहत मिथ्रान से अपनी बात नहीं कर पाई। मिथ्रान को अमरजीत के बारे में कुछ पता चल गया था, जिससे वह रात भर चाहत से दूर रहा। इस स्थिति में चाहत कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह मिथ्रान को कैसे यकीन दिलाए कि वह गर्भवती नहीं है, और उसके साथ साज़िश रची जा रही है।

    उसने आज बैंगनी रंग का राजस्थानी लहंगा पहना था, जिस पर नेट का दुपट्टा था। वह रानी सा थी, इसलिए उसका सजना-संवरना हमेशा ज़रूरी होता था; और राजस्थानी औरतें हमेशा साज-श्रृंगार में रहती हैं।

    "नाक में नथ, माथे पर पट्टी विद रखड़ी, और हाथों में भर के चूड़ियाँ; मिथ्रान के नाम का सिंदूर, मंगलसूत्र, पैरों में पायल, कमर पर कमरबंद।"

    चाहत बिल्कुल अप्सरा लग रही थी।

    वहीं नीचे आंगन में सब नाश्ता कर रहे थे। आरती सबको खाना परोस रही थी। चाहत भी नीचे गई और आरती की मदद करने लगी।

    "किशोरी अपने मन में बोली,"
    "लो आ गई अब आरती भाभी सा के साथ काम में हाथ बटाने और झूठी अच्छाई का दिखावा करने।"

    किशोरी ने तंज कसते हुए कहा,
    "महलों की रानियाँ यूँ खाना नहीं परोसा करतीं, रानी सा!"

    उसकी बात सुनकर चाहत की आँखें बड़ी हो गईं। भला किशोरी को उससे इतनी चिढ़ क्यों है? क्या वह अब घर में शांत माहौल में भी नहीं रह सकती?

    किशोरी की यह बात सिर्फ़ चाहत को ही नहीं, बल्कि रंग महल के बाकी सदस्यों को भी अजीब लगी। इसलिए सब घूर कर उसे देखने लगे। किशोरी ने अपने ऊपर इतनी नज़रें देखकर हड़बड़ा कर कहा,
    "वह तो रानी सा गर्भवती हैं ना, बस इसलिए हम उनकी फ़िक्र कर रहे थे। उन्हें हमारे साथ बैठकर खाना खाना चाहिए, ना कि परोसना। उसके लिए आरती भाभी सा हैं।"

    किशोरी की सफ़ाई सुनकर सब वापस खाना खाने लगे। वहीं यह सुनकर हरकौरी के चेहरे पर तिरछी मुस्कराहट थी; उसकी बेटी भी आखिर उसी का साथ दे रही है।

    तभी मिथ्रान तेज कदमों से आया और एक कुर्सी निकालकर चाहत की ओर देखकर बोला,
    "आइए रानी सा, बैठिए। किशोरी बिल्कुल ठीक बोल रही है; आपको यहाँ बैठकर खाना खा लेना चाहिए। आखिर लोगों को पता है कि उनकी यह हैसियत नहीं है कि आपके हाथों का परोसा खाना खा सकें!"

    यह सुनकर किशोरी एकदम से खांसने लगी। उसका दाँव उसी पर उल्टा पड़ रहा था। कहाँ वह चाहत को शर्मिंदा करना चाह रही थी, और बात उसकी हैसियत पर आ गई!

    चाहत का दिल एकदम से धड़क उठा। वह एकटक मिथ्रान के उस हाथ को देख रही थी जो उसे कुर्सी पर बैठाने के लिए आगे बढ़ा हुआ था।

    चाहत ने हिम्मत करके अपना काँपता हाथ मिथ्रान की बड़ी सी हथेली पर रख दिया, और मिथ्रान ने उसे कुर्सी पर आराम से बिठा दिया।

    चाहत को मन ही मन बुरा लग रहा था। क्या सच में उसकी केयर इस खबर की वजह से की जा रही थी कि वह माँ बनने वाली है? तो फिर वह उनकी उम्मीदें तोड़ देगी! सबको कितना बुरा लगेगा…

    सब ने एक साथ बैठकर नाश्ता किया, और उसके बाद मिथ्रान चाहत को वापस कमरे में ले गया।

    "आरती ने अभिनय से कहा,"
    "देखा कितने चिपके-चिपके रहते हैं कुंवर सा इनसे!"

    अभिनय ने शरारत से कहा,
    "अरे हमारी प्रिय पत्नी जी! आप कहें तो हम भी बिल्कुल फेविकोल की तरह आपसे चिपक सकते हैं, फिर हमारे भी नन्हे-मुन्ने कुंवर की किलकारियाँ रंग महल में गूँजेंगी!"

    अभिनय की ऐसी बातें सुनकर आरती को शर्म आ गई, और वह अभिनय से दूर हटते हुए बोली,
    "आप तो जब देखो तब छिछोरेपन पर उतर आते हो!"

    अभिनय ने मुँह बनाते हुए कहा,
    "अब हमारा यह छिछोरापन क्या पड़ोसियों को दिखाएँ हम?"

    "हमें इन पारिवारिक झगड़ों से कोई लेना-देना नहीं है। रानी सा चाहे किसी से भी चिपके, कुंवर सा चाहे किसी से भी चिपके, हमें तो आपसे चिपकना है!"

    आरती ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,
    "ये-ये क्या भाषा बोल रहे हैं आप? चिपकना! चिपकना! बस बहुत हो गया!"



    चाहत और मिथ्रान का कमरा

    "विक्रांत, हम बोल रहे हैं ना आपसे! आप पहले हमारे लिए एक प्रेगनेंसी किट मँगवाइए; हम अभी सब क्लियर कर देंगे!"

    मिथ्रान ने गहरी साँस छोड़कर कहा,
    "ठीक है रानी सा, हम तैयार हैं! आपकी बात मानने को! आप परेशान मत होइए, बस!"

    यह सुनकर चाहत का चेहरा खिल उठा। फिर उसने मिथ्रान को देखा, जो थोड़ा असहज लग रहा था; सोफ़े पर बैठा-बैठा अपनी नज़रें फेर रहा था।

    "चाहत कन्फ्यूज़न में बोली,"
    "क्या हुआ विक्रांत? आप ठीक नहीं लग रहे हैं; कोई परेशानी है?"

    "हाँ, आपका कमरबंद और यह नथ…?"

    मिथ्रान ने तुरंत खोए हुए अंदाज़ में कहा।

    तो चाहत चौंक कर बोली,
    "क्या दिक्कत है इनमें? अच्छे नहीं लगे आपको?"

    मिथ्रान को समझ आ चुका था कि शायद यह गलत बोल दिया उसने। पर वह करता भी क्या? उसके दिल में गुदगुदी हो रही थी चाहत को यूँ देखकर।

    "वो यह कमरबंद काफ़ी मज़बूती से आपकी मखमली कमर को जकड़े हुए हैं; हमें यह अच्छा नहीं लग रहा। और आपकी यह बड़ी सी नथ बार-बार आपके नर्म होंठों को छू रही है; हमसे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है!"

    चाहत मिथ्रान के इस जवाब पर हैरानी से उसे पलकें झपकाते हुए देख रही थी।

    "अब इन बेजान चीज़ों से भी आपको जलन हो रही है विक्रांत?"

    चाहत ने थोड़ा कन्फ्यूज़ होकर पूछा।

    "जलन!!! हमारा मन कर रहा है हम अभी खींचकर इन्हें आपसे अलग कर दें!"


    बिहार

    अमरजीत रात भर ठंड में उस पेड़ के नीचे ही लेटा रहा। जैसे ही सुबह हुई, उसने अपना सफ़र फिर से शुरू कर दिया। क्योंकि वह बिहार में था, बस उसे इतना ही पता था। अब बिहार से वह राजस्थान कैसे जाएगा, इसके लिए उसके पास कोई साधन नहीं था।

    क्रमशः

  • 15. Rebirth of Rani Sa - Chapter 15

    Words: 1106

    Estimated Reading Time: 7 min

    Bihar, Aurangabad

    अमरजीत रात भर ठंड में उस पेड़ के नीचे ही लेटा रहा। जैसे ही सुबह हुई, उसने अपना सफर फिर से शुरू कर दिया।

    क्योंकि वह बिहार में था, बस इतना ही उसे पता था। अब बिहार से वह राजस्थान कैसे जाएगा, इसके लिए उसके पास कोई साधन नहीं था।

    अमरजीत लड़खड़ाते हुए सड़क पर चल रहा था और उसकी आँखों के सामने बार-बार कालापन छा रहा था। जैसे वह अभी जमीन पर गिर पड़ेगा... और अचानक ही उसके कानों में तेज हॉर्न की आवाज पड़ी। पर उसका दिमाग सुन्न हो चुका था। वह गाड़ी ठीक उसके करीब आकर रुकी और हल्की सी कार अमरजीत को टच कर गई। अमरजीत तुरंत सड़क पर गिर पड़ा और गिरते ही उसके सिर पर चोट लगी और वह बेहोश हो गया।

    वह कार भी एक झटके से ब्रेक के साथ रुकी और कार में बैठी एक लड़की का चश्मा झटके से उसके नाक पर आ गया।

    "ई का नई मुसीबत है!"

    वह अपनी बिहारी भाषा में इरिटेट होकर बोली और फिर जल्दी से कार से उतरी। उसके ब्राउन लेदर बूट्स दिखाई दिए।

    उसने इस वक्त ब्लैक जींस, ब्लैक टैंक टॉप और लेदर की जैकेट पहनी थी। बॉब कट हेयर जो सिर्फ उसकी गर्दन तक आ रहे थे, बेहद सिल्की लग रहे थे... और आँखों पर काला चश्मा!

    वह तेज कदमों से अमरजीत के पास आई और फिर उसे यूँ उल्टा गिरे हुए देखकर मुँह बिगाड़ते हुए बोली,

    "का हम ईके पिछवाड़े का दर्शन करने आए हैं? ई आधा खोपड़ी सीधा भी तो गिर सकता था।"


    राजस्थान, जोधपुर

    चाहत ने अब तक अपनी नथ और कमरबंद निकाल दी थी। वहीं मिथ्रान किसी को कॉल अटेंड करने गया था। वह जैसे ही अंदर आया, चाहत को बिना नथ देखकर उसके होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट छा गई। पर उसे चाहत उस नथ में भी प्यारी ही लग रही थी।

    वहीं चाहत ने जब देखा कि मिथ्रान उसे ही देख रहा है, वह बिना मिथ्रान की तरफ नज़र उठाए ही बोली,

    "विक्रांत, अब तो आपके सीने में आग नहीं लगी होगी।"

    विक्रांत ने हल्की हँसी के साथ कहा,

    "लगी है ना बहुत तेज! पर उसका कोई इलाज नहीं है रानी सा। आप आराम कीजिए। इस हालत में ज़्यादा इधर-उधर नहीं जाना। और हाँ, अच्छे से खाना भी खाना ताकि बच्चे को..."

    मिथ्रान की बात पूरी होने से पहले ही चाहत इरिटेट होते हुए बोली,

    "विक्रांत, जब हम कह रहे हैं हम प्रेग्नेंट नहीं हैं तो क्यों कोई हमारी बात नहीं सुन रहा है? और हाँ, यहाँ एक सेविका आई थी जिसने हमें जबरदस्ती बेहोश कर दिया और उसके बाद, वह दाई माँ आई और हमें प्रेग्नेंट करार कर दिया।"

    मिथ्रान ने आँखें बड़ी कर के कहा, "करार कर दिया? का क्या मतलब? ये कोई जुर्म है? और सेविका? कौन सेविका? आपको उसका चेहरा याद है?"

    मिथ्रान थोड़ा घबरा गया और चाहत के नज़दीक आकर उसके कंधे पकड़ते हुए बोला,

    "ये आपने पहले क्यों नहीं बताया?"

    चाहत रोने जैसी शक्ल बनाकर बोली,

    "हमने माँ सा को बताया था, पर उन्होंने कहा हमारा वहम है। पर हमारा यकीन कीजिए, ये वहम नहीं है। कोई आया था। फिर मैंने बस उसके हाथ देखे जो मेरे चेहरे के सामने आए क्योंकि हम बालकनी में उधर सामने की तरफ मुँह करके बैठे थे।"

    चाहत यह सब थोड़ा पैनिक होते हुए बता रही थी। तो मिथ्रान ने झट से उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके हल्के-हल्के बाल सहलाते हुए बोला,

    "आप पहले शांत हो जाइए। अगर हम आप पर यकीन कर रहे हैं तो आपको बाकी दुनिया की ज़रूरत है?"

    चाहत का सिर मिथ्रान के सीने पर टिका था जिससे उसे मिथ्रान की बढ़ती धड़कनें साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थीं। मिथ्रान की बेचैनी को चाहत बखूबी महसूस कर पा रही थी।

    उसने धीमे से कहा,

    "Hmmm... नहीं है। हमें किसी के यकीन की ज़रूरत नहीं! आप बार-बार यह extra care दिखाना बंद कीजिए। सोच के देखिए मुझे कैसे लग रहा होगा। मेरी जगह खुद को रख के देखिए, अगर आपसे कोई कहे आपको आराम की ज़रूरत है क्योंकि आप प्रेग्नेंट हो!"

    मिथ्रान ने आँखें बंद करते हुए गहरी साँस छोड़कर कहा,

    "ठीक है। अब कम से कम हमें तो प्रेग्नेंट मत बोलिए। हम मान रहे हैं आपकी बात, और हमारी बात हुई अभी धर्मेश से। वह किट लेकर आ रहा है। आप चेक कर लीजिएगा। हम फिर दाई माँ से पूछ के आएंगे आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया!"

    चाहत ने मायूसी से कहा,

    "शायद उन्हें भी हमारा रिश्ता ना पसंद हो इसलिए वह आपके दिल में हमारे लिए नफ़रत पैदा करना चाहती हो!"

    "नहीं रानी सा, ऐसा नहीं है। और कोई भी चीज़, कोई भी सिचुएशन आपके लिए मेरे दिल में नफ़रत नहीं पैदा कर सकती।"

    यह सुनकर चाहत ने मिथ्रान को कसकर बाहों में जकड़ लिया।

    मिथ्रान के पूरे शरीर में goosebumps आ गए थे। यह पहली बार था जब चाहत उसे यूँ अपने सीने से लगा रही थी। उसके दिल में emotions का तूफ़ान उठा हुआ था।

    उसकी गहराती साँसें बता रही थीं कि चाहत की करीबी उसे किस क़दर इफ़ेक्ट करती है।

    चाहत ने नज़रें उठाकर मिथ्रान का चेहरा देखा जिसकी आँखें बंद थीं।

    चाहत ने मिथ्रान के सीने पर अपनी पकड़ कसते हुए धीमे से कहा,

    "क्या सच में कॉलेज में मैं आपका क्रश थी?"

    मिथ्रान ने झट से आँखें खोलकर चाहत के चेहरे को देखा और फिर उसकी आँखों में देखते हुए कहा,

    "हम आपको पसंद करते थे, यह सच है, पर सिर्फ़ पसंद करते थे, यह झूठ। तो क्रश तो नहीं थी आप... एक अनकही सी चाहत है आप हमारी..."

    चाहत ने मिथ्रान के dark lips को देखते हुए कहा,

    "तो फिर इज़हार क्यों नहीं किया आपने कभी?"

    "क्योंकि हमें आपकी ना से बेहद दर्द होता, जो झेलने लायक हम थे नहीं। इतनी ख़राब किस्मत है हमारी, हर पसंदीदा चीज़ हमसे कोसों दूर होती है। तो फिर इज़हार करके इस एकतरफ़ा मोहब्बत की बेइज़्ज़ती नहीं करना चाहते थे हम। बस आपसे मोहब्बत करना चाहते हैं, एकतरफ़ा ही सही, हो तो रही है!"

    मिथ्रान का हर जवाब चाहत के दिल की गहराइयों को छू रहा था... जिससे उसकी आँखों में हल्की नमी आ गई थी। उसे पता था मिथ्रान के हिस्से में अंधेरा है... जो सबको अपने अंदर कैद कर लेता है। पर चाहत मिथ्रान को इस अंधेरे से निकाल कर रहेगी... यह उसने ठान रखा था।

  • 16. Rebirth of Rani Sa - Chapter 16

    Words: 1306

    Estimated Reading Time: 8 min

    शाम का समय था। बिहार के औरंगाबाद में अमरजीत की पलकें धीरे-धीरे फड़कने लगीं और वह अपने सिर पर हाथ रखते हुए धीरे से अपनी आँखें खोला। सामने किसी कमरे की छत दिखाई दी। वह एकदम हैरान हो गया। आखिर वह कहाँ आ गया था? वह जल्दी से उठकर बैठ गया। सामने एक लड़की दिखाई दी।

    उस लड़की ने शॉर्ट्स और क्रॉप टीशर्ट पहनी हुई थी और हाथ में चाय का कप लिए वह टीवी देख रही थी।

    अमरजीत उठने की कोशिश करता है, और अचानक उसके सिर में तेज दर्द होने लगता है।

    "आह!!!" उसकी कराहने की आवाज निकल जाती है और वह अपना सिर पकड़कर अपनी आँखें बंद कर लेता है।

    जो लड़की अब तक टीवी देख रही थी, उसकी आवाज सुनकर चाय का कप वहीं रखते हुए उसके पास आई और बोली,

    "अरे चिकने, तू उठ गया। अब कैसा लग रहा है तुझे?"

    अमरजीत एकदम से आँखें बड़ी करते हुए बोला,

    "ये कैसी अभद्र भाषा का प्रयोग कर रही हैं आप? और हम यहां कैसे आए?"

    उसके इतना बोलते ही वह लड़की पेट पकड़कर हँसते हुए बोली,

    "कसम बिहारी जी की, इस वॉलकैनो से किसी ने इतनी इज्जत से बात नहीं की। वैसे, ये बोली, ये रंग-रूप, काफी जच रहा है!"

    "थारे को समझ ना आया…!!!"

    अमरजीत को गुस्सा आ रहा था। उसे पता था कि उसकी शुद्ध मारवाड़ी यह नहीं समझ पाएगी, पर गुस्से में हमेशा हमारी भाषा ही मुँह से निकलती है। यही अमरजीत के साथ हो रहा था।

    अमरजीत ने गहरी साँस ली और अपने गुस्से को काबू किया। फिर सामान्य स्वर में बोला,

    "हमें जाना है यहां से। आपकी मदद के लिए धन्यवाद। हमें याद आ गया है, हम सड़क पर बेहोश हो गए थे। शायद वह गाड़ी आपकी ही थी। वैसे, हमारा एक नाम भी है, यह आपको जच ना रहा होगा।"

    उस लड़की ने हँसते हुए कहा,

    "तेरे ऐटिट्यूड को देखकर नहीं लग रहा तू मुझसे मेरा नाम पूछेगा। तो मैं खुद ही बता देती हूँ। माईसेल्फ अग्निशा, जिसे सब प्यार से वॉलकैनो बुलाते हैं।"

    अमरजीत ने खुद में बड़बड़ाते हुए कहा, "क्या मुसीबत है?"

    "मुसीबत नहीं! वॉलकैनो! बूम!"

    जैसे ही अग्निशा ने कहा, अमरजीत ने आँखें खोलीं और उसकी आँखों के सामने चाहत का खिलता हुआ चेहरा आ गया।

    "कैसे ना कैसे भी हमें अपनी चाहत के पास पहुँचना होगा।"

    अमरजीत ने खुद से कहा और फिर अग्निशा की तरफ देखते हुए बोला, "क्या तुम अपनी गाड़ी हमें उधार दे सकती हो? हम अपने घर पहुँचते ही तुम्हें तुम्हारी गाड़ी वापस भिजवा देंगे, और साथ में किराया भी!"

    अग्निशा हँसते हुए बोली, "इतनी शरीफ़ी औरंगाबाद में… इंटरेस्टिंग!!!"

    "वैसे, तू इस हालत में नहीं है कि खुद अपने घर जा सके। और तेरे बोलचाल से लग रहा है तू बिहारी नहीं है, राजस्थानी है। जहाँ जाने के लिए पूरा दिन निकल जाएगा, और तेरी यह जो हालत है, बद से बदतर हो जाएगी। पर वॉलकैनो इतनी भी पत्थर दिल नहीं है। मैं तुझे तेरे घर जरूर छोड़कर आऊँगी, पर आज की रात तो यहीं रुक जा। तेरी हालत बिल्कुल ठीक नहीं है, ऊपर से तुझे बुखार भी है। वैसे भी, मैं अकेली रहती हूँ, तो अगर तेरा कोई दुश्मन भी है, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यहाँ कोई नहीं आएगा।"

    अमरजीत को उसकी बात पर गुस्सा आ रहा था, पर उसने अपने गुस्से को काबू करते हुए कहा,

    "पर हमें अभी जाना है अपने घर। हमारी बीवी हमारा इंतज़ार कर रही है।"

    अग्निशा ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,

    "ओह! शादीशुदा भी हो? तभी इतनी शरीफ़ी झलक रही है। मेहरारू तो अच्छे-खासे को सीधा कर सकती है। पर तुझे मेरी बात माननी पड़ेगी। आज की रात तुझे यहीं काटनी पड़ेगी। और फ़िक्र मत कर, तेरी इज़्ज़त नहीं लूटूँगी। शक्ल से शरीफ़ बिल्कुल नहीं हूँ, पर दिल से हूँ। थोड़ी सी शादीशुदा मर्द पर गंदी नज़र नहीं डालती हूँ।"

    अमरजीत जितनी उसकी बातें सुन रहा था, उसे उतना ही उसके ऊपर गुस्सा आ रहा था, पर कहीं न कहीं उसकी बात सही थी। अभी शाम ढलने को थी। अगर वह आज निकलते भी, तो कल सुबह ही पहुँचते। इससे अच्छा है कि वह अपनी थोड़ी हालत सुधार के यहाँ से जाए। और जैसे कि यह बता रही थी, यहाँ कृपाल सिंह के आदमी भी नहीं आ सकते हैं, इसलिए यह उसके लिए एक सुरक्षित जगह हो सकती है।


    जोधपुर, राजस्थान में मिथ्रान बेड पर बैठा था और उसकी निगाहें बाथरूम के दरवाजे पर टिकी थीं, जहाँ अभी-अभी चाहत प्रेगनेंसी टेस्ट करने के लिए गई थी। कुछ ही देर बाद चाहत वापस आई और बेड पर मिथ्रान के सामने बैठते हुए बोली,

    "देखिए विक्रांत, हमने कहा था ना, हम प्रेग्नेंट नहीं हैं। यह देखो, अब तो हमने आपको सबूत भी दे दिया। अब आप हमारी बात पर विश्वास करेंगे ना?"

    चाहत बिल्कुल मिथ्रान के सामने बैठकर बहुत मासूमियत से यह सब बोल रही थी।

    मिथ्रान ने एक पल उस किट को देखा और फिर चाहत के चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए बोला,

    "बिल्कुल रानी सा, हम पहले भी आप पर यकीन करते थे और अभी करेंगे। आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।"

    "मतलब अब भी आप हमसे मोहब्बत करते हैं?" चाहत ने धीमी आवाज में पूछा।

    मिथ्रान ने धीमे से हाँ में सिर हिला दिया।

    चाहत उसके करीब बढ़ते हुए अपने होठों को उसके गाल पर रखते हुए पीछे हट गई।

    एक पल के लिए मिथ्रान की पूरी बॉडी रिएक्ट करना बंद कर चुकी थी। वह साँस लेना भूल गया था। उस पल में उसे लग रहा था कि उसे मिनी हार्ट अटैक आया होगा। चाहत के ठंडे, नर्म होठ उसे अपने गाल पर महसूस अब भी हो रहे थे – शायद उसकी ज़िंदगी की सबसे प्यारी छुआन!

    फिर उसने तीन-चार बार पलकें झपकाईं और चाहत की तरफ देखकर गहरी आवाज में बोला,

    "ये क्या था रानी सा?"

    चाहत ने मिथ्रान की आँखों में देखते हुए कहा,

    "हमारा पहला कदम आपकी तरफ़। और हमें यकीन है, अगर हम एक कदम आपकी तरफ़ बढ़ाएँगे, तो आप हमारी तरफ़ सौ कदम बढ़ाने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे!"

    मिथ्रान ने अपनी गहरी नज़रों से चाहत को देखा और फिर धीमे से उसका गाल अपनी कठोर हथेली से सहलाया और अपने होठों को उसके माथे पर रखते हुए बोला,

    "अगर आपने पहला कदम बढ़ाया, तो हमारी तरफ़ से बढ़ने वाले कदमों की कोई गिनती नहीं कर पाएगा रानी सा!!! आसमान में सितारे फिर भी गिन सकता है कोई, पर ये बढ़ने वाले कदम नहीं!"

    यह सुनकर चाहत के दिल में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी। हमेशा ही मिथ्रान के शब्द उसे इस तरह दिल पर लगते थे, जैसे उन शब्दों को पता हो कि उन्हें कहाँ जाना है और दिल में कितनी गहराई तक चाहत को छूना है।

    अगले ही पल मिथ्रान ने चाहत के बालों को अपने मुट्ठी में भरते हुए उसके नर्म, गुलाबी होठों को अपने मुँह में भर लिया।

    जिसके साथ ही चाहत की आँखें बंद हो गईं। वह इस एहसास के लिए कब से खुद प्रिपेयर कर रही थी, क्योंकि उसे पता था कि वह जितने बोल्ड स्टेप मिथ्रान के सामने ले रही है, मिथ्रान की जुनूनियत को उतनी ही हवा लग रही है और जल्द ही उसके लिए नर्म होठ उसके कब्जे में होंगे। क्योंकि वह करीब पाँच से छह महीने पिछले जन्म में मिथ्रान के साथ बिता चुकी है।

    क्रमशः

  • 17. Rebirth of Rani Sa - Chapter 17

    Words: 1609

    Estimated Reading Time: 10 min

    मिथ्रान ने चाहत के होंठों को अपने मुँह में भर लिया था। वह अपने पहले चुम्बन के अहसास को पूरी तरह जी रहा था, इतना कि वह भूल ही गया था कि इंसान को जीवित रहने के लिए साँसों की भी ज़रूरत होती है!

    चाहत ने उसके कठोर सीने पर हल्के-हल्के हाथ दबाए और उसे खुद से दूर करने की कोशिश की, जो कुछ पल तक नाकामयाब रही। पर चाहत के मुँह से अब आवाज़ें आ रही थीं; वह खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।

    इस कारण मिथ्रान उस अहसास के सागर से बाहर आया और अगले ही पल उसने चाहत के होंठों को छोड़ दिया।

    चाहत ने तुरंत अपना सिर मिथ्रान के सीने पर रख दिया और अपनी साँसों को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगी।

    मिथ्रान का हाथ लगातार उसके बालों में घूम रहा था और वह भी आँखें बंद किए गहरी-गहरी साँसें ले रहा था।

    कुछ पल बाद मिथ्रान ने चाहत के छोटे से चेहरे को अपने सीने से हटाकर अपनी आँखों के सामने किया और गहरी आवाज़ में कहा,

    "क्या आप हमें इस तरह बर्दाश्त कर सकती हैं, रानी सा? एक बार आपके होंठों को छुआ तो आपका यह हाल हो गया। हमारे हिसाब से आप अभी पूरी तरह तैयार नहीं हैं इन सब के लिए। तो आगे से हमें उकसाने से पहले आज के इन कुछ खूबसूरत पलों को याद रखना।"

    मिथ्रान के ये गहरे शब्द चाहत के दिल में खलबली मचा रहे थे। वह बस बार-बार पलकें झपकते हुए और गहरी साँसें लेते हुए मिथ्रान के कठोर चेहरे को देख रही थी।

    मिथ्रान जैसे ही उठने को हुआ, चाहत ने अपने दोनों हाथों से उसका एक हाथ पकड़ते हुए कहा,

    "आपको ऐसा क्यों लगता है? हम अब बच्चे नहीं हैं जो झेल न पाएँ!"

    मिथ्रान ने चाहत को उठाया और आईने के सामने कर दिया। फिर पीछे से उसे बाहों में जकड़ते हुए बोला,

    "एक बार देखिए अपने आप को इस आईने में, पाँच फुट की कद-काठी और नाज़ुक सा बदन!!!"

    "फिर हमारे कहे लफ़्ज़ों पर गौर कीजिएगा!"

    चाहत ने कुछ पल हैरानी से आँखें मारीं और उसके बाद अजीब सा मुँह बनाते हुए बोली,

    "हम तो औसत दिखने वाली ही हैं, आप ही औसत से ज़्यादा हैं। इसमें हमारी गलती नहीं है।"

    चाहत मिथ्रान के सीने तक ही पहुँच रही थी! वह ठहरा छह फुट वाला दमदार राजपूत! और हमारी चाहत छोटी सी गुड़िया!

    मिथ्रान ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा,

    "हम आपसे भाषा नहीं करना चाहते, पर आप अभी तैयार नहीं हैं हमें झेलने के लिए। और हम अपना हक़ छोड़ेंगे नहीं! अगर आपको यह डर है कि हम आपको अपनाएँगे नहीं, तो निकाल फेंकिए यह ख्याल अपने ज़हन से। आप हमारी ही हैं और हम आपके!"

    चाहत को जैसे ही लगा कि मिथ्रान जा रहा है, उसने झट से मुड़ते हुए उसके सीने से चिपक कर कहा,

    "पर हमें है ना डर! हमें आप चाहिए!"

    चाहत को नहीं पता था कि वह मिथ्रान के अंदर सो रहे कितने ख़तरनाक जानवर को जगाने की कोशिश कर रही है, जो शायद खुद पर भी काबू खो दे! वह किस क़दर तड़प कर खुद को रोक रहा है, यह चाहत कभी नहीं समझ सकती थी।

    मिथ्रान कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोल ही रहा था कि उसे अपने कुर्ते पर चाहत के आँसुओं की नमी महसूस हुई और उसका दिल एकदम से घबरा गया।

    उसने झट से चाहत का चेहरा अपनी आँखों के सामने किया। मिथ्रान की गहरी ग्रे शेड बादामी आँखें लाल हो गई थीं चाहत को रोता हुआ देखकर। उसने झुककर अपने होठों को उसके गाल पर टिका दिया और उसकी बहती आँसुओं की बूंदों को गिरने से रोक दिया। कुछ पल बाद मिथ्रान चाहत के पूरे चेहरे पर किसों की बरसात कर चुका था, जिससे चाहत का पूरा चेहरा पके हुए सेब की तरह लाल हो गया था।

    मिथ्रान ने उसके माथे को शिद्दत से चूमते हुए कहा,

    "रानी सा, आपके ये आँसू हमें पागल बना रहे हैं, हमें ये बर्दाश्त नहीं!"

    चाहत ने किसी रूठे हुए बच्चे की तरह भरे गले से कहा,

    "हमें आपकी यह दूरी बर्दाश्त नहीं है। एक तरफ़ आप बोलते हो कि आप हमसे पिछले कई सालों से प्यार करते हो, और वहीं दूसरी तरफ़ ये दूरियाँ, आपका हमें यूँ बिस्तर पर अकेले लेटने को कहना, हमसे दूर-दूर रहना? हम समझ नहीं पा रहे हैं ये सब!"

    "हमें कहने में शर्म आ रही है, पर हमें कहना है… हम पहले भी किसी के साथ हमबिस्तर हो चुके हैं, तो क्या अब हम झेलने लायक नहीं हैं? या आपको हमें छूना नहीं है क्योंकि हम किसी की झूठी हैं?"

    "हमने सुना है आप अपना सुकून ढूँढने रातों को उन बदनाम गलियों में जाते हैं… ये बाहें आपको सुकून देने के लिए तरस रही हैं… क्या हम में वो बात नहीं है और आप…"

    मिथ्रान ने चाहत की बात पूरी होने से पहले ही अपनी एक उंगली उसके होंठों पर रखते हुए बोला,

    "शशश… चुप, बिलकुल चुप। एक लफ़्ज़ और नहीं।"

    "ख़बरदार अपने किरदार को किसी से भी तौलने की कोशिश करना।"

    "हमें पता है आपको यह डर है, इसीलिए रोज़ आपसे इज़हार करते हैं ताकि आपके दिल को तसल्ली मिले… पर आप हैं कि मानने को तैयार नहीं!"

    "और जाते हैं उन बदनाम गलियों में, पर वहाँ अपना सुकून ढूँढने नहीं… किसी और की जान बचाने… फिर कभी फ़ुरसत से समझाएँगे आपको।"

    चाहत ने झट से मिथ्रान की उंगली अपने होंठों से हटाकर कहा,

    "अरे हमें नहीं समझना कुछ भी, हम बस…"

    एक बार फिर उसके वो नर्म होंठ मिथ्रान की कैद में थे।

    और उसके रेशमी बाल मिथ्रान की सख़्त हथेली में।

    "उम्… म्म…" चाहत की बस घुट-घुट आवाज़ें आ रही थीं क्योंकि उसकी बात अधूरी रह गई थी।

    चाहत की पकड़ मिथ्रान के चौड़े कंधे पर कस चुकी थी। पर वह पूरी कोशिश कर रही थी मिथ्रान की स्पीड मैच करने की, जो उससे नहीं हो पा रही थी।

    वही मिथ्रान ने उसे चुप करवाने के लिए उसके होंठों को छुआ था, पर अब उसका मन भी चाहत से दूर होने का बिल्कुल नहीं कर रहा था।

    कि अचानक किसी के खांसने की आवाज़ आई और चाहत झटपट उठी खुद को मिथ्रान से आज़ाद कराने के लिए। वही मिथ्रान को कोई होश हो तो उसे किसी का खांसना सुनाई दे।

    चाहत को जब कुछ न सूझा तो उसने अपना पूरा जोर लगाकर मिथ्रान के होंठों को काट लिया।

    और मिथ्रान के होंठों से ख़ून निकलने लगा। मिथ्रान अगले ही पल चाहत से अलग हो गया। चाहत उसके सीने पर माथा टिकाते हुए लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। फिर अचानक उसे याद आया कि दरवाज़े पर कोई है। वह जल्दी से मिथ्रान से दूर जाकर खड़ी हो गई। मिथ्रान को कुछ समझ नहीं आया तो वह उसके करीब बढ़ते हुए बोला,

    "आप ठीक तो हैं, रानी सा? हमने जान-बूझकर नहीं किया वो। पता नहीं कैसे हमने अपना आपा खो दिया और भूल गए आपको साँस भी लेनी है!"

    उसने इतना ही कहा था कि दरवाज़े से किसी के हँसने की आवाज़ आई।

    चाहत नाराज़गी से कभी मिथ्रान को देख रही थी तो कभी दरवाज़े पर खड़ी सुनिधि को।

    सुनिधि के पास मिथ्रान के कमरे की चाबियाँ थीं क्योंकि वह उसकी परम मित्र थी और वह हमेशा की तरह मिथ्रान को सरप्राइज़ देने आई थी, पर उसे इतना बड़ा सरप्राइज़ मिल जाएगा, उसने कभी नहीं सोचा था।


    मिथ्रान ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,

    "निधि, तुम्हें शर्म-लिहाज़ नहीं है, यह एक शादीशुदा जोड़े का कमरा है।"

    सुनिधि हँसते हुए बोली,

    "सॉरी-सॉरी, हम भूल गए। अब हमारे ख़ड़ूस दोस्त की प्यारी बीवी उनके साथ रहती है! खाने का वक़्त हो गया है, ठाकुरैन खाने के लिए बुला रही हैं।"

    चाहत झट से अपने कपड़े और बाल सही करती हुई कमरे से निकल गई।

    "अरे रानी सा…!!!" मिथ्रान बस पीछे से पुकारते हुए रह गया।

    मिथ्रान जैसे ही निकला, सुनिधि गुनगुना कर बोली,

    "लहू मुँह लग गया… हम्म… लहू मुँह लग गया हा…!"

    मिथ्रान तुरंत अपने होंठों को छूता है और उसकी एक हल्की सी आह निकल जाती है। फिर वह घूरते हुए सुनिधि को देखता है। और फिर दोनों नीचे चले जाते हैं।

    चाहत मिथ्रान से पहले खाने के लिए नहीं बैठ सकती थी, इसलिए चुपचाप एक तरफ़ खड़ी थी। मिथ्रान ने जाकर पहले चाहत के लिए एक कुर्सी पीछे खिसकाई और फिर उसी के पास अपने लिए।

    चाहत सुनिधि के सामने थोड़ा असहज महसूस कर रही थी, इसलिए उससे बिना नज़रें मिलाए खाना खा रही थी।

    आरती ख़ुन्नस भरी नज़रों से उसे देख रही थी क्योंकि उसके नाक में नथ का न होना और उसके लाल होंठों का सूजा हुआ होना साफ़-साफ़ ज़ाहिर कर रहा था उनके कमरे में अभी-अभी क्या हो रहा होगा।

    "ऐसे क्या देख रही हैं, भाभी सा? निहायती बेशर्म है ये रानी सा, भाई सा के जाने का ज़रा सा भी दुःख नहीं है इन्हें, अपनी ही खुशी का ख़्याल है बस।"

    अगली सुबह…

    अमरजीत जिप में बैठा था और उसे ड्राइव कर रही थी अग्निशा।

    "देख यार, तू यह सड़ा सा चेहरा लेकर अगर अपनी बीवी के सामने गया ना, देखते ही तुझे वापस घर से बाहर निकाल फेंकेगी। और अब तो वैसे ही दिवाली की सफ़ाई चल रही है, तुझे कूड़ा समझकर फेंक देगी लात मारकर।"

    "बस…!!!!!" अमरजीत ने उसकी बकवास से परेशान होकर चीखते हुए कहा।

    अग्निशा एकदम से ख़ामोश हो गई।

    "हमने कितनी बार कहा कि हमें आपकी यह बकवास बिल्कुल पसंद नहीं है। अपना यह मुँह बंद रखिए!"

  • 18. Rebirth of Rani Sa - Chapter 18

    Words: 1019

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोधपुर, राजस्थान। सुबह का वक्त था।

    आज पहली बार मिथ्रान की सुबह उसकी मोहब्बत के साथ हुई थी। चाहत बड़े सुकून से आँखें मूँदकर सो रही थी, और मिथ्रान उसे एकटक निहार रहा था। उसने अपना एक हाथ अपने सर के नीचे रखा था, सहारे के लिए। और उसकी निगाहें बस चाहत के खूबसूरत चेहरे पर टिकी थीं।

    बार-बार, रह-रह कर उसके चेहरे पर एक मुस्कान खिल रही थी; रात की बातों को याद करके। उसने कितनी मुश्किल से चाहत को समझाकर सुलाया था कि वह जल्द ही अपने इस रिश्ते में आगे बढ़ेगा।

    चाहत किसी छोटी बच्ची की तरह उसे जिद कर रही थी, पर असल में मिथ्रान को चाहत से ज़्यादा डर था अपनी मोहब्बत को खो देने का। पर फिर भी उसमें सब्र कायम था। और सब्र नाम की चीज़ चाहत के इर्द-गिर्द भी नहीं घूमती है; उसे जो चाहिए, बस अभी चाहिए।

    खिड़की से आती हवा की वजह से चाहत के रेशमी बाल उसके गालों को छू रहे थे, जो कहीं न कहीं मिथ्रान को अच्छा नहीं लग रहा था।

    इसलिए उसने उन बालों को चाहत के कान के पीछे करते हुए, एक बार उसके गाल को अपने हाथों में भर लिया। कितना कोमल स्पर्श था चाहत का! मिथ्रान की धड़कनें बिल्कुल तेज हो चुकी थीं; चाहत के ख्याल भर से उसका रोम-रोम सिहरने लगता था।

    उसके पेट में भी तितलियाँ उड़ रही थीं।

    वहीं चाहत ने जैसे ही अपने गाल पर मिथ्रान की छुअन का एहसास पाया, उसकी नींद तुरंत उड़ गई। उसने अपनी प्यारी आँखें खोलते हुए मिथ्रान को देखा, जिसकी गहरी बदामी आँखें उसे एकटक देख रही थीं। चाहत ने एक छोटी सी मुस्कान लिए कहा,

    "सुप्रभात, विक्रांत! आप हमें कब से देख रहे हैं? आपके पास कोई और काम नहीं है?"

    मिथ्रान ने चाहत के माथे को चूमते हुए कहा,

    "अब तो आप ही हमारा काम हैं, रानी सा! और आप निहारने की बात कर रही हैं? हम तो आपको अपनी बाहों में जकड़ कर रखना चाहते हैं, ताकि कोई दूसरा आपको हमसे छीन न ले। और ये आँखें तो हमेशा आप पर ही टिकी रहती हैं। अगर हम कोशिश भी करें इन्हें हटाने की, तो ये हमसे दगाबाज़ी करने लग जाती हैं। अब आप ही इसका कोई हल बता सकती हैं मुझे।"

    चाहत हँसते हुए बोली,

    "अगर बाई एनी चांस हमें हल पता भी चला, तो हम आपको कभी नहीं बताएँगे। क्योंकि हम चाहते हैं आप बस हमें देखें, बाकी किसी और को नहीं। और ये आपकी आँखें आपसे दगाबाज़ी नहीं कर रही हैं, ये हमसे वफ़ादारी दिखा रही हैं। ये सिर्फ़ हमें निहार सकती हैं, बाकी किसी को नहीं।"

    मिथ्रान ने हँसते हुए कहा,

    "आपके पास हमारे हर सवाल का जवाब रहता है, रानी सा! ऐसी कौन सी पढ़ाई कर ली है आपने?"

    चाहत मिथ्रान के और करीब होते हुए बोली,

    "हमने आपके दिल में रखी वो इश्क़ की किताब पढ़ ली है, जिसे खोलने की इजाज़त आपने अब तक किसी को नहीं दी थी। पर हमने चोरी-छुपे ही उसे आपके दिल से चुरा लिया है। और हम अब उसे, किताब का हर पन्ना, शिद्दत से पढ़ेंगे, और उसे पाने में लिखे हर एक एहसास को आपके साथ जिएँगे।"

    चाहत ने इतना बोलते ही अपने होठों को मिथ्रान के गाल पर रखा और एक छोटी सी चुम्बन करते हुए उससे दूर हो गई।

    मिथ्रान ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा,

    "बातें इतनी बड़ी-बड़ी कर रही हैं आप, और आपके ये होठ बस मंज़िल तक आते-आते ही अपना रास्ता मोड़ लेते हैं! हम क्या समझें इस?"

    "एक शर्म की हवा का झोंका है, विक्रांत, जो बस आपके करीब आते ही इतनी तेज़ी से आता है कि ना चाहते हुए भी हमें अपना रास्ता मोड़ना पड़ता है।"

    मिथ्रान ने ये सुनते ही उसे अपने एकदम करीब किया और उसके होठों को अपने कब्ज़े में कर लिया।

    कुछ पल ये एहसास जीने के बाद, मिथ्रान ने धीरे से चाहत के होठों को छोड़ा, जो हल्के सूज कर लाल हो गए थे और मिथ्रान के लार से चमक रहे थे।

    चाहत ने लंबी-लंबी साँसें लेते हुए मिथ्रान को देखा। तो मिथ्रान ने एक मुस्कराहट करते हुए कहा,

    "वो शर्म हम तक नहीं पहुँच सकती, रानी सा! इस मामले में हम निहायती बेशर्म इंसान हैं!"

    चाहत ने कुछ पल मिथ्रान को घूरा, क्योंकि चाहकर भी वो अपनी साँसें नहीं बटोर पा रही थी।

    मिथ्रान ने चाहत का छोटा सा सिर अपनी गर्दन में छुपाते हुए उसकी पीठ को सहलाया और प्यार से बोला,

    "कैल्म डाउन! उठी-सी किस से कोई इतना साँसें लेना भूल सकता है? आपको किस नहीं करनी आती?"

    चाहत ने आँखें बंद करते हुए मिथ्रान के कंधे पर पकड़ कस दी। मिथ्रान से आती खुशबू उसे सुकून महसूस करवा रही थी।

    वहीं कोई सुकून में था, तो कोई बेहद बेचैनी में।

    अमरजीत जोधपुर पहुँच चुका था, अपनी 'वोल्केनो कार' को फुल स्पीड से लेकर आया था।

    अमरजीत अब अग्निशा को रास्ता बता रहा था अपने गाँव का, अपने घर का।

    और अग्निशा उसे फ़ॉलो कर रही थी।

    और कुछ ही पलों बाद अमरजीत का इंतज़ार भी ख़त्म हुआ; वो अपने सामने अपने रंगमहल को देख रहा था, जिसकी रौनक रत्ती भर भी कम नहीं हुई थी।

    जिसे देखकर अमरजीत हैरान था। और उसका दिल तो मानो किसी जंग की तैयारी में हो, डबल स्पीड से धड़क रहा था।

    उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें, आँखों में नमी, और हल्का सुकून… बहुत सारे इमोशन्स मिक्स में दिखाई दे रहे थे।

    अग्निशा भी इस शानदार हवेली को देखकर हैरान और एक्साइटेड दोनों थी।

    "चिकने, तू तो बड़ा अमीर घराने वाला निकला! हम तो खाक-खाक तुझे सुना रहे थे!"

    अमरजीत ने उसकी बात सुनकर एक गहरी साँस ली और कहा,

    "हमारे यहाँ का रिवाज़ है, 'अथिति देवो भव:'। तुम यहाँ मेहमान हो, और तुम्हारी मेहमान-नवाज़ी में हम कोई कमी नहीं रहने देंगे। चलो हमारे साथ!"

  • 19. Rebirth of Rani Sa - Chapter 19

    Words: 1054

    Estimated Reading Time: 7 min

    अमरजीत ने अपने पुराने रोग में आते हुए तेज कदम रंग महल की ओर बढ़ाए।

    और जैसे ही वह रंग महल की चारदीवारी के भीतर प्रवेश किया, सारे लोग उसे देखकर हैरान हो गए। रंग महल के बाहर एक चारदीवारी बनी थी, जिसमें से एक बीच का रास्ता रंग महल के अंदर जा रहा था और उसके अगल-बगल बगीचा था। उस बगीचे में रंग महल के कुछ सेवक और कुछ सिपाही थे। वे सब अपने राजा को अपने सामने जीवित देखकर हैरान रह गए।

    कोई इंसान अपने मृत्यु के तीन दिन बाद कैसे जीवित हो सकता है?

    यह सवाल एकदम से उनके मन में आ गया! वहीं कुछ तो उत्साह में दौड़ते हुए अमरजीत के पास आ चुके थे और उसके पैर छूते हुए यह महसूस करने की कोशिश कर रहे थे कि यह वाकई में सच है या उनका कोई सपना?

    वहीं अमरजीत की आँखें भी नम हो चुकी थीं अपने लोगों को अपने पास देखकर। उसने एक उंगली से अपनी आँखों की नमी पोंछी और अग्निशा की ओर इशारा करते हुए कहा,

    "ये हमारी मेहमान हैं! रंग महल का सबसे खूबसूरत कमरा इनकी मेहमाननवाज़ी के लिए तैयार करवाओ!"

    उन लोगों में से दो लोग बड़ी खुशी से अंदर की ओर बढ़ गए।

    पर एकाएक सबके दिमाग में वो ख्याल आया जो (मेरे पाठकों के दिमाग में आ रहा है 😉)

    अब रानी सा किसके साथ रहेंगी? क्या कुंवर सा फिर से अकेले पड़ जाएँगे? राजा सा क्या करेंगे जब उन्हें यह पता चलेगा कि रानी सा ने दूसरा विवाह कर लिया है?

    अमरजीत के कदम लगातार रंग महल के अंदर की ओर बढ़ रहे थे। वहीं सिपाहियों ने अब तक ढोल-नगाड़े तैयार कर लिए थे, जिसे लेकर वे अब गाँव में ढिंढोरा पीटने वाले थे कि उनके राजा सा सही-सलामत महल में आ गए हैं।

    चारों ओर इतनी चहल-पहल और नगाड़ों की आवाज़ सुनकर उमराव सिंह, जो अपने कमरे में आराम कर रहे थे (क्योंकि उनकी तबियत बिगड़ गई थी; अब एक बेटा मर गया हो और दूसरे ने उसी लड़की से शादी कर ली हो, वो लड़की पहले वाले से गर्भवती हो! तो पिता का बीमार होना लाजिमी है, उन्हें इन सब की चिंता खाने-पीने नहीं दे रही थी), उमराव सिंह के पास ही कलावती जी बैठी थीं। वे दोनों चौंककर अपने कमरे से बाहर आते हैं!

    और जैसे ही कलावती जी की नज़र अमरजीत पर जाती है, वे दो कदम लड़खड़ा जाती हैं और उमराव सिंह उन्हें संभालने लगते हैं...

    "अ.. अमर..."

    उनके मुँह से टूटे हुए शब्दों में निकलता है और उनकी आँखें भर आती हैं! उमराव सिंह की भी आँखें नम हो गई थीं, पर वे अपनी पत्नी को संभालने में लगे थे।

    अमरजीत ने आगे तेज़ी से कदम बढ़ाए और जल्दी से अपनी माँ को अपने गले लगा लिया। और कलावती जी रो पड़ीं। उन्हें रोता देखकर उमराव सिंह ने अपने आँसू पोंछे और एक तेज आवाज़ में चिल्लाते हुए बोले,

    "पूरे शहर में मिठाइयाँ बाँटवाई जाएँ! उनके राजा सा सही-सलामत हैं..."

    यह सुनकर अमरजीत के होठों पर मुस्कान आ जाती है, पर उसकी बेताब नज़रें तो अपनी चाहत को ढूँढ रही थीं। वह बेसब्री से अपने होठों पर जीभ फेरते हुए एक बार सीढ़ियों की ओर, अपने कमरे की ओर देखता है... शायद उसे अपनी रानी सा की एक झलक दिख जाए।

    पर चाहत और मिथ्रान तो आपस में ही उलझे थे; उन्हें बाहरी दुनिया से कोई लेना-देना ही नहीं था, इसलिए इतनी चहल-पहल के बाद भी उन्हें अब तक कोई खबर नहीं थी।

    वहीं उमराव सिंह और कलावती ने जब अपने बेटे की नज़रों का पीछा किया और उन्हें उसके कमरे की ओर जाते हुए देखा, उनके दिल धड़क से रह गए... यह कैसा धर्म-संकट था! अब वह चाहत को अपने छोटे बेटे की पत्नी बनाएँगे या बड़े बेटे की? और कलावती जी को पता था अमरजीत और विक्रांत दोनों चाहत को बेहद चाहते हैं। उनके प्यार को किसी तराजू में तोला नहीं जा सकता कि उनका कौन सा बेटा चाहत को ज़्यादा खुश रखेगा?

    वहीं एक दासी तेज कदमों से चाहत और विक्रांत के कमरे के सामने गई और दरवाज़ा खटखटाया। जिससे चाहत ने विक्रांत के हाथ अपनी कमर से हटाते हुए कहा,

    "अब छोड़िए हमें। हमें लगता है आपकी माँ सा आग-बबूला हो गई होंगी और उनका वह सब हम पर फूटने वाला है कि हम कैसे लापरवाही कर सकते हैं इतनी देर तक सो रहे हैं। हमें तुलसी मैया की पूजा करनी होती है सुबह उठकर नहाकर। और एक सच भी तो बताना होगा कि हम गर्भवती नहीं हैं। यह उनका एक वहम है?"

    वहीं अग्निशा अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को टिमटिमाते हुए इस बड़ी सी हवेली को देख रही थी, जो उसे घर कम और एक टूरिस्ट प्लेस ज़्यादा लग रहा था। एक सेवक ने अग्निशा को उसका कमरा दिखाया। अग्निशा ने जब कमरा देखा तो बस देखती रह गई। उसने अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए कहा, "अरे मोरी मैया! इतना सुंदर कमरा!"

    अमरजीत सिंह अब सब्र नहीं कर पा रहा था। उसने कलावती की ओर एक मुस्कान पास करते हुए कहा, "हम आपको बहुत जल्दी सब बताएँगे माता, हम कहाँ गए थे, क्यों गए थे और सब वापस क्यों आए हैं और जिनका अंतिम संस्कार आपने किया वह कौन था। पर अभी हमें अपनी रानी सा से मिलना है। हमारा दिल बेचैन हो रहा है उन्हें देखने के लिए।"

    इतना बोलकर अमरजीत सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। वहीं उमराव सिंह और कलावती दोनों की दिल की धड़कनें तेज़ी से बढ़ गईं। न वे अमरजीत को रोक पा रहे थे और न ही उसे यह सच पता लगने देना चाहते थे कि मिथ्रान ने चाहत से शादी कर ली है।

    वहीं अमरजीत, होठों पर एक मुस्कान और आँखों में नयी तेज़ी से अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था। शायद उसकी रानी सा उसकी यादों को समेटे इसका बेसब्री से इंतज़ार कर रही हो और वह उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करवाना चाहता था। यह तीन दिन का इंतज़ार काफी था उसकी चाहत को रुलाने के लिए, क्योंकि वह इतनी मासूम थी।

    क्रमशः

  • 20. Rebirth of Rani Sa - Chapter 20

    Words: 1173

    Estimated Reading Time: 8 min

    अमरजीत ने अपनी धड़कते दिल को एक गहरी साँस लेकर काबू किया और अपने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। पर वह अपने आप ही खुल गया। यह देखकर अमरजीत को थोड़ा अजीब लगा। आखिर चाहत ने अंदर से कमरा बंद क्यों नहीं किया था?

    पर जब उसने अंदर झाँककर देखा, तो उसे चाहत कहीं नहीं दिखी। वह और अंदर गया और चाहत को आवाज़ देते हुए बोला,

    "रानी सा, कहाँ हैं आप? देखो, आपसे मिलने कौन आया है।"

    पर सामने से चाहत की कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। अमरजीत का गला भर आया था। अब तक वह झाँककर अंदर बाथरूम, बालकनी, सब चेक कर चुका था। पर जब उसे चाहत कहीं नहीं दिखी, तो उसके माथे पर बल पड़ गए।

    आखिर उसकी चाहत गई कहाँ?

    एकदम से उसके दिल में ख्याल आया, कहीं इन लोगों ने चाहत को सती तो नहीं कर दिया? और यह ख्याल भर से उसका दिल जल उठा। वह भागते हुए बाहर गया और सीढ़ीघर से ही आवाज़ लगाते हुए बोला,

    "दादा, राजा रानी सा कहाँ हैं? हमें नज़र क्यों नहीं आ रही हैं? कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया है?"

    उसकी आवाज़ में तड़प, गुस्सा, सब एक साथ नज़र आ रहे थे।

    वहीँ, उसकी इतनी तेज आवाज़ अब चाहत के कानों में भी पहुँच चुकी थी। क्योंकि वह तैयार होकर बाहर ही आ रही थी और एकदम से उसने नज़र उठाई तो सीढ़ीघर पर अमरजीत बेसब्री से अपनी नज़रें घुमा रहा था। और चाहत बस आँखें फाड़कर उसे देखती रह गई।

    मिथ्रान भी चाहत के पीछे कमरे से बाहर आया और अमरजीत को अपने सामने देखकर उसके पैरों तले से जमीन ही खिसक गई।

    उसने एक नज़र चाहत को देखा, जो बस अपना होश खोने ही वाली थी। और उसने आगे बढ़कर झट से चाहत को कंधों से पकड़ते हुए कहा,

    "रानी सा, संभालिए खुद को।"

    और जैसे ही अमरजीत के कानों में "रानी सा" नाम पड़ा, उसने तुरंत मुड़कर पीछे देखा और फिर ऊपर की तरफ दौड़ते हुए गया।

    और अमरजीत चाहत को मिथ्रान की बाहों से अपनी बाहों में ले लिया और उसका सर सहलाते हुए बोला,

    "रानी सा, क्या हुआ आपको? ठीक तो हैं? हम इतनी दूर से आपसे मिलने आए हैं और आप हमारे आते ही अपनी आँखें बंद करना चाहती हैं? यह तो ना-इंसाफ़ी है, जो हम कभी नहीं होने देंगे। देखिए हमारी तरफ़!"

    चाहत ने एक नज़र उठाकर देखा। उसने अब तक खुद को संभाल लिया था। उसने अपनी भीगी आँखों से अमरजीत को देखा और फिर अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा सहलाते हुए बोली,

    "...आप...आप ठीक हैं, राजा सा।"

    चाहत की आवाज़ में एक खुशी झलक रही थी। और छलके भी क्यों ना? कोई भी इंसान, जिसके साथ इतना समय बिताया हो, उसे अपने सामने देखकर खुश हो जाता है। और वह तो उसका पति था। चाहे अब उसके दिल में अमरजीत के लिए कुछ भी ना हो, पर किसी समय तो वह उसका पति था और उसे कितनी मोहब्बत करता था, कितना ख्याल रखता था, उसकी हर छोटी सी ख्वाहिश पूरी करता था।

    वहीं अमरजीत के लिए चाहत की आवाज़ में यह खुशी महसूस करके मिथ्रान का दिल हज़ार टुकड़ों में टूट चुका था।

    उसने एक हाथ जो चाहत के कंधे पर रखा था, वह झट से हटा लिया और अपनी नज़रें झुकाते हुए उन दोनों से दूर हो गया।

    और चाहत अमरजीत को देखने में इतनी बिजी थी, उसने यह ध्यान भी नहीं दिया कि मिथ्रान उससे दूर जा रहा है। मिथ्रान तेज कदमों से सीढ़ीघर से होते हुए बाहर जाने लगा। वहीं उसे जाता हुआ देख कलावती तेज़ी से उसके पास आते हुए बोली,

    "मिथ्रान, मेरी बात सुनो। कहाँ जा रहे हो तुम? तुम्हारा भाई आया है इतने दिनों बाद और तुम मुँह मोड़कर जा रहे हो!"

    मिथ्रान ने एक नज़र फिर से चाहत और अमरजीत को देखा, जो एक-दूसरे की बाहों में खुश नज़र आ रहे थे।

    मिथ्रान ने कलावती को देखते हुए कहा,

    "माँ सा, हम मुँह नहीं मोड़ रहे हैं। बस हम आपके राजा सा को नाराज़ नहीं करना चाहते हैं। वे इतने दिनों बाद आए हैं और जब उन्हें पता चलेगा कि उनकी पत्नी मेरे साथ थी, तो उन्हें कितना बुरा लगेगा। बस इसीलिए कुछ दिन के लिए जा रहा हूँ और उसे यह महसूस नहीं होना चाहिए कि कभी हमारी शादी हुई थी! उसके दिल को बहुत ज़्यादा ठेस पहुँचेगी। और एक बात, रानी सा गर्भवती नहीं हैं और उनसे आप कोई सवाल-जवाब नहीं करेंगी। हम दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ है। वह आज भी उतनी ही पवित्र हैं जितनी पहले थी। तो आपके राजा सा को उन्हें स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए!"

    इतना बोलकर मिथ्रान वहाँ से चला गया। उमराव सिंह भी ठगे से बस उन्हें देख रहे थे और बाकी हवेली के लोग बस मज़ा ले रहे थे इस सिचुएशन का। किशोरी ने आरती से कहा,

    "यह क्या हो गया? क्या यह राजा सा स्वर्ग से लौटकर आए हैं अपनी रानी सा के लिए!"

    आरती ने कहा, "हाँ, हो सकता है। सुना है हमने, प्यार में बहुत ताकत होती है!"

    किशोरी ने मुँह बनाते हुए कहा,

    "पर रानी सा तो कुंवर सा से प्यार करने लगी थीं। फिर उनके प्यार का असर वहाँ स्वर्ग लोक में राजा साहब पर कैसे हो रहा था?"

    आरती ने मुँह बिचकाते हुए कहा,

    "पता नहीं कौन सा काला जादू आता है उसे, जो दोनों भाइयों को अपने काबू में कर चुकी है।"

    अभिनय जो उनकी बातें सुन रहा था, वह अपने भाई को अपने सामने देखकर बहुत खुश था। वह उन्हें इग्नोर करते हुए अमरजीत के पास जाने लगा। वहीं हरकोरी तो जलकर कोयला हो चुकी थी।

    उसकी मुट्ठियाँ गुस्से में कसी हुई थीं और उसका दिमाग फ़ुल स्पीड से दौड़ रहा था कि इस सिचुएशन का वह कैसे फ़ायदा उठाए। ऐसा क्या करे जो चाहत की ज़िंदगी बर्बाद हो जाए। और अगर चाहत यहाँ से चली गई तो दोनों भाई की ज़िंदगी तो वैसे ही बर्बाद है। इतनी मोहब्बत जो करते हैं उसे।

    अमरजीत ने कसकर चाहत को अपनी बाहों में भर लिया और उसके बाल सहलाते हुए बोला,

    "बस अब और मत रोइए। जितना रोना था आप रो चुकी हैं। अब हम आपकी प्यारी आँखों में और आँसू बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।"

    इतना बोलकर अमरजीत ने उसका आँसुओं से भीगा चेहरा देखा और उसके माथे को चूमा। जिससे एक पल के लिए चाहत की आँखें बंद हो गईं और अगले ही पल उसने झटके से अपनी आँखें खोल दीं। क्योंकि इस चुम्बन का एहसास होते ही उसे तुरंत अपने विक्रांत याद आ गए। क्योंकि उसके दिल में जो जगह विक्रांत ने बना रखी थी, शायद अमरजीत तब उसे जगह को नहीं ले सकता है?

    क्रमशः