अभिमन्यु राजवंश सीईओ ऑफ RAJVANSH company जिसे सिर्फ अपनों से मतलब है उने कोई नुकसान पहुंचने की कोशिश करें वह उन्हें जिंदा जला देता है उसको अपने उसूल बहुत ज़रूरी है कोई भी उने तोड़ा ने की कोशिश करेंगा उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं वही दूसरी तरफ कनक एक म... अभिमन्यु राजवंश सीईओ ऑफ RAJVANSH company जिसे सिर्फ अपनों से मतलब है उने कोई नुकसान पहुंचने की कोशिश करें वह उन्हें जिंदा जला देता है उसको अपने उसूल बहुत ज़रूरी है कोई भी उने तोड़ा ने की कोशिश करेंगा उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं वही दूसरी तरफ कनक एक मासूम और मस्ती करने वाली लड़की जिसे सिर्फ हर किसी को मुस्कुराते हुए रखना ही उसका कम हो पर इस मुस्कुराहट के पीछे भी है एक राज़ जिसे उसने अपने दिल में दफन करके है पर उसे है किसी की डर जैसे वो आकर उसकी खुशियां चीन लेगा
Page 1 of 1
॥ श्री गणेशाय नमः ॥ ॥ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ ॥ ॐ गं गणपतये नमः ॥ जंगल रात घनी हो चुकी थी। चाँद बादलों के पीछे छिपा हुआ था, और हल्की ठंडी हवा पेड़ों को झुका रही थी। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था, जिसे केवल झींगुरों की आवाज़ तोड़ रही थी। एक लड़की घबराई हुई, कांपते कदमों से अंधेरे रास्ते पर भाग रही थी। उसकी उम्र 18-19 साल की रही होगी। चेहरे पर खरोंचों के ताजा निशान थे, जिनसे अब भी हल्का खून रिस रहा था। आँखों में डर समाया हुआ था, और सांसें इतनी तेज़ चल रही थीं मानो दिल सीने से बाहर आ जाएगा। उसने बार-बार पीछे मुड़कर देखा। क्या कोई उसका पीछा कर रहा था? उसके कपड़े अस्त-व्यस्त थे—उसका गुलाबी सलवार-कुर्ता जगह-जगह से फटा हुआ था, और सफेद दुपट्टा गर्द और खून से सना हुआ था। वह बार-बार कांपते हाथों से अपने माथे का पसीना पोंछती, लेकिन भय उसके चेहरे से मिटने का नाम नहीं ले रहा था। भागते-भागते वह एक सुनसान हाइवे पर पहुँच गई। सड़क पर दूर तक कोई नहीं था, केवल स्याह अंधेरा और ठंडी हवाओं की सिसकियाँ थीं। तभी, अचानक! एक कार की हेडलाइट्स चमकीं, और उसकी तेज़ रफ्तार सीधी उसी की ओर बढ़ने लगी। लड़की के पैर जैसे जड़ हो गए। उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं, और एक तेज़ चीख उसके गले से निकल पड़ी— "नहीं!" अचानक, एक झटका! एक लड़की बुरी तरह डरकर चीख के साथ उठ बैठी। उसकी सांसें तेज़ चल रही थीं। उसने घबराकर चारों ओर देखा— यह कोई जंगल नहीं था। यह एक आलीशान कमरा था। सुनहरी रोशनी में चमकता, मखमली पर्दों से सजा हुआ। कमरे की दीवारों पर नक्काशीदार डिजाइन थे, और भारी लकड़ी के फर्नीचर पर महंगी कलाकृतियाँ रखी थीं। एक तरफ़ बड़ी खिड़की थी, जिससे बाहर काले आसमान में चमकते सितारे दिखाई दे रहे थे। हल्की ठंडी हवा पर्दों को हौले-हौले हिला रही थी। वह तेजी से सांस लेते हुए अपने सीने पर हाथ रखती है और खुद से कहती है— "कनक... कुछ नहीं हुआ... सब ठीक है... वो सिर्फ़ एक सपना था... अब तेरी जिंदगी अलग है।" उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन वह खुद को संभालने की कोशिश करती है। कुछ देर तक अपने गले को सहलाती है, जैसे अभी भी चीख की गूँज उसके अंदर बसी हो। वह हल्के पीले रंग का सिल्क का नाइटगाउन पहने हुए थी, जो उसकी पतली कलाई तक आ रहा था। उसके लहराते काले बाल बिखरे हुए थे, और उसके चेहरे पर अभी भी डर की हल्की छाया थी। उसने खुद को शांत करने के लिए गहरी सांस ली और तकिए पर सिर रखकर फिर से सोने की कोशिश करने लगी। Dark dominion 28 साल का वो लड़का दिखने में अपनी उम्र से छोटा लगता था, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी ठंडक थी—एक ऐसी गहराई जो किसी को भी बेचैन कर सकती थी। उसका चेहरा बिलकुल भावहीन था, न हंसी, न गुस्सा, न कोई और ज़ज्बात। उसकी नुकीली जबड़े की रेखाएं, तेज़ नज़रें और पतले होठ उसे और भी रहस्यमयी बनाते थे। उसकी गहरी काली आंखें किसी को भी सीधे देख लें तो जैसे अंदर तक झांक लें, किसी की भी सच्चाई या डर को पकड़ लें। उसने पूरी तरह काले कपड़े पहने थे—एक लंबी ब्लैक जैकेट, अंदर फिटेड ब्लैक शर्ट, काले टैक्टिकल पैंट और भारी काले बूट। उसके कपड़े इतने डार्क थे कि जैसे वो अंधेरे का ही एक हिस्सा हो। जब वो चलता, तो उसके बूटों की हल्की आवाज़ भी माहौल को और डरावना बना देती थी। यह एक बड़ा अंडरग्राउंड बेस था, जहाँ हर तरफ हथियार ही हथियार थे। दीवारों पर गन रैक लगे थे, टेबलों पर लोग नए हथियार टेस्ट कर रहे थे, और कुछ लोग कंप्यूटर पर काम कर रहे थे। तभी एक कोने से चीख़ने की आवाज़ आई। वो बंद कमरों की ओर देखता है और बिना कुछ बोले सीधा उस कमरे की तरफ बढ़ जाता है। जैसे ही वो अंदर आया, वहाँ मौजूद लोग सहम गए। एक लड़का, जिसने अभी-अभी नया हथियार उठाया था, डर से कांपते हुए बोला— "Boss..." इतना सुनते ही बाकी सबने एक साथ खड़े होकर कहा— "Hello, Boss." लेकिन बॉस बिलकुल चुप था। न कोई सवाल, न कोई हुक्म। वो बस एक पल के लिए सबको बिना किसी भाव के देखता रहा। फिर, बिना कुछ कहे, सीधा उस कमरे की तरफ बढ़ गया, जहाँ से चीखें आ रही थीं। बाकी सबने सांस में सांस ली, क्योंकि उन्हें पता था कि जब भी उनका बॉस कुछ कहता था, तो या तो किसी की मौत होती, या फिर किसी की नौकरी चली जाती। इसलिए उसका चुप रहना ही उनके लिए सबसे बड़ी राहत थी। कमरे में अंधेरा था, केवल एक बल्ब की हल्की पीली रोशनी उस 35 वर्षीय व्यक्ति के लहूलुहान शरीर पर गिर रही थी। उसकी साँसें भारी हो चुकी थीं, दर्द से कराहता हुआ वह ज़मीन पर पड़ा था। चारों ओर कुछ आदमी खड़े थे, उसके शरीर पर घूंसों और लातों की बौछार कर रहे थे, लेकिन फिर भी वह चुप था। उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि एक अडिग संकल्प झलक रहा था। तभी दरवाज़े पर भारी कदमों की आहट गूंजी। कमरे में मौजूद हर व्यक्ति ठिठक गया। मारपीट की आवाज़ें अचानक शांत हो गईं। सभी ने एक साथ मुड़कर देखा—बॉस अंदर आ चुका था। उसका कद लंबा था, चाल में एक अजीब सा ठहराव और भय था। उसकी ठंडी आँखें घायल आदमी पर टिकीं, फिर उसने एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, "क्या हुआ? सब रुक क्यों गए?" कमरे में मौजूद लोगों ने झिझकते हुए उसे सम्मानपूर्वक विश किया। बॉस ने चारों ओर नज़र दौड़ाई, फिर एक लड़के की तरफ देखा, जिसने घबराई आवाज़ में कहा, "बॉस, ये आदमी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। जितना भी टॉर्चर करो, कोई राज़ नहीं उगल रहा।" बॉस हल्के से मुस्कुराया, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह धीरे-धीरे घायल आदमी की ओर बढ़ा। उसके घुटनों के पास बैठकर उसने उसके जबड़े को कसकर पकड़ लिया और कहा, "सच में इतना वफ़ादार है अपने मालिक का? काश, मुझे भी ऐसा कोई आदमी मिल जाता, जो मेरी वफ़ादारी में अपनी जान तक दे देता!" उसकी आवाज़ में न तो गुस्सा था, न ही कोई उग्रता, बस एक ठंडा, निर्दयी तटस्थ भाव। वह उठा और अपने आदमियों को देखते हुए ठहर-ठहर कर बोला, "अगर ये हमारे किसी काम का नहीं, तो इसे ज़िंदा रखने का भी कोई मतलब नहीं। ख़त्म कर दो इसे।" कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। वह घायल आदमी हांफते हुए ज़मीन से थोड़ा उठा और अपनी टूटी हुई आवाज़ में बोला, "तुम ये ठीक नहीं कर रहे..." बॉस उसकी आँखों में झाँकते हुए हंसा और धीरे से कहा, "मैं जो करता हूँ, वो सही है या ग़लत, इसका फ़ैसला करने का हक़ मैंने किसी को नहीं दिया। इसलिए चुप रहो और शांति से ऊपर चले जाओ।" उसकी आवाज़ में एक ऐसी बेरहमी थी, जिसने वहाँ खड़े सभी लोगों की रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी। उसकी निर्दयता के सामने कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था। अगले ही पल, कमरे में एक गोली चली और सब कुछ ख़त्म हो गया... कपूर हाउस अगली सुबह। सूरज की हल्की किरणें कपूर हाउस के भव्य खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थीं। आलीशान सफ़ेद संगमरमर से सजा घर, दीवारों पर कीमती पेंटिंग्स, ऊँचे छत से लटके झूमर—हर कोना रॉयल्टी की कहानी कह रहा था। डाइनिंग टेबल पर विवेक कपूर (58 वर्ष) बैठे थे। उनके चेहरे पर हमेशा की तरह हल्की मुस्कान थी। वह कनक से बातें कर रहे थे, जो हल्के गुलाबी रंग के सलवार सूट में बैठी थी। उसके लंबे, घने बाल एक ऊँची पोनीटेल में बंधे थे, लेकिन फिर भी कुछ लटें बार-बार उसके चेहरे पर गिर रही थीं। "तो कोकून," विवेक कपूर ने मज़ाकिया लहज़े में कहा, "कल फिर कोई डरावना सपना देखा?" कनक ने हल्की झुंझलाहट से कहा, "पापा!" लेकिन तभी, अचानक! "बूऊऊऊऊ!!" कनक ने तेज़ चीख मारी और एक झटके में कुर्सी पर खड़ी हो गई। पीछे खड़ा विराज कपूर (26 वर्ष) ज़ोर से हँस रहा था। वह दुबला-पतला, शरारती आँखों वाला लड़का था। उसने सफेद टीशर्ट और ब्लैक जींस पहनी थी। उसका चेहरा हमेशा किसी शरारत की योजना बनाते हुए लगता था। विवेक कपूर भी हँसने लगे, और तभी टेबल के दूसरे छोर से एक और आवाज़ आई— "कोकून, तू सच में बहुत डरपोक है।" आरव कपूर (28 वर्ष), जो कपूर कंपनी का CEO था, हल्की मुस्कान के साथ कनक को देख रहा था। वह विराज की तरह चंचल नहीं था, बल्कि शांत और सख्त था। उसकी हल्की दाढ़ी और गहरी आँखें उसे गंभीर लुक देती थीं। उसने फॉर्मल शर्ट और घड़ी पहनी थी। लेकिन कनक के मामले में, वह हमेशा नरम पड़ जाता था। कनक गुस्से में पैर पटकते हुए कुर्सी से नीचे उतरी। "भाई, आप भी हंस रहे हैं!" उसने आरव की ओर देखा। आरव ने हल्की हंसी रोकने की कोशिश की, लेकिन विराज तो हंसते-हंसते पेट पकड़ चुका था। "क्या करूँ, विराज की हरकतें इतनी मज़ेदार होती हैं," आरव ने शांत लहज़े में कहा। कनक ने गहरी सांस ली और सोचा—यह परिवार ही उसकी असली दुनिया थी। सब लोग हँसते-हँसते अपने-अपने चेयर पर बैठ गए और नाश्ता करने लगे। माहौल हल्का और खुशनुमा था। तभी विवेक कपूर ने कनक की ओर देखकर पूछा, "कोकून, अब तुम आगे क्या करने वाली हो?" कनक ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "कुछ नहीं पापा, मैंने बिज़नेस की पढ़ाई पूरी कर ली है, तो सोचा था कि अब कहीं जॉब कर लूँ। मैंने कई जगह अपनी रिज्यूमे भी भेज दी है।" आरव, जो अब तक चुपचाप नाश्ता कर रहा था, कनक की बात सुनकर बोला, "तुम्हें बाहर जॉब ढूंढने की क्या ज़रूरत है? तुम हमारी कंपनी में क्यों नहीं काम करती? तुम्हारे लिए वहाँ एक पोस्ट खाली है, जिसे सिर्फ तुम ही अच्छे से संभाल सकती हो। और वैसे भी, जब भी उस काम से जुड़ी कोई परेशानी आई थी, तुमने ही घर से बैठकर उसे हैंडल किया था।" आरव की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कनक बीच में ही बोल पड़ी, "भाई, पर मैं खुद की पहचान बनाना चाहती हूँ। और मैं काबिलियत साबित करके वो पोस्ट पाना चाहती हूँ, न कि सिर्फ कपूर फैमिली की बेटी होने के नाते। इसलिए, पहले मुझे बाहर किसी और कंपनी में काम करने दो। फिर, अनुभव लेकर मैं अपने ही घर की कंपनी जॉइन करूँगी।" आरव और विराज कुछ कहने ही वाले थे कि विवेक कपूर ने हल्की मुस्कान के साथ अपनी आँखों से इशारा किया, और दोनों चुप हो गए। फिर उन्होंने कनक की ओर देखते हुए कहा, "अगर मेरी बेटी कुछ करना चाहती है, तो मैं उसे पूरा सपोर्ट करूंगा।" कनक की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने उत्साह से कहा, "थैंक यू पापा! आप बेस्ट हो!" विवेक कपूर ने प्यार से मुस्कुराते हुए कनक के सिर पर हाथ फेरा, जबकि आरव और विराज ने एक-दूसरे की ओर देखा और सिर हिलाते हुए मुस्कुराने लगे। पूरा परिवार हँसी-मजाक के बीच नाश्ता करता रहा राजवंश कम्पनी राजवंश कंपनी एक बड़ी इमारत है, जिसके बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में "राजवंश कंपनी" लिखा हुआ है। अंदर बहुत बड़ी जगह है, जहां हर कोई अपने काम में व्यस्त है। हर सेक्शन को अलग-अलग डिजाइन किया गया है, और हर फ्लोर पर अलग-अलग कर्मचारी और काम होते हैं। सबसे ऊपर, सीईओ का केबिन है, जो टॉप फ्लोर पर स्थित है, जहां से पूरे ऑफिस का दृश्य दिखाई देता है। – टॉप फ्लोर का प्राइवेट ऑफिस। एक साइड पर बड़ी ग्लास विंडो, दूसरी ओर लकड़ी की बनी बुकशेल्फ़ और एक एलिगेंट इंटरकॉम सेटअप। टेबल पर कुछ डॉक्युमेंट्स और कॉफी रखी है।) शेखावत ग्रुप से राइवलरी पर चर्चा PA रोहित शर्मा हाथ में एक फाइल लिए अभिमन्यु के सामने खड़ा था, जो अपने लैपटॉप स्क्रीन पर टेंडर डिटेल्स देख रहा था। "सर, सरकारी टेंडर के लिए शेखावत कंस्ट्रक्शन्स भी अप्लाई कर रहा है।" अभिमन्यु ने स्क्रीन से नज़र हटाकर रोहित को देखा, उसकी आँखों में हल्की ठंडक थी। "वीरेंद्र शेखावत ने अब तक कितनी बार गवर्नमेंट प्रोजेक्ट्स में अपना पॉलिटिकल नेटवर्क घुसाया है?" रोहित ने कुछ फाइल्स चेक कीं और जवाब दिया, "सर, पिछले तीन बड़े टेंडर्स में उन्होंने पॉलिटिकल सपोर्ट से ही जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार गवर्नमेंट ओपन बिडिंग प्रोसेस फॉलो कर रही है, जहाँ सिर्फ पावरफुल कॉन्टैक्ट्स नहीं, बल्कि कंपनी की स्ट्रेंथ भी देखी जाएगी।" अभिमन्यु ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में चैलेंज साफ था। "तो इस बार हमें भी एक कदम आगे सोचना होगा। टेक्नोलॉजी और क्वालिटी हमारे प्लस पॉइंट हैं, और इस बार डील हम ही जीतेंगे।" फिर अभिमन्यु ने अपनी नज़रें दूसरी ओर घुमाई और हल्के से कहा, "और हाँ, नई सेक्रेटरी का क्या हुआ?" रोहित ने एक फाइल खोलते हुए कहा, "सर, HR टीम ने कैंडिडेट्स सलेक्ट कर लिए हैं, और उन्होंने फाइनल इंटरव्यू के लिए कुछ उम्मीदवारों को चुना है।" "तो मतलब, मुझे किसी भी डिटेल्स की जरूरत नहीं है?" अभिमन्यु ने बगैर ज्यादा रुचि के पूछा। "जी सर, HR टीम ने पूरी प्रक्रिया को संभाला है। वे खुद ही कैंडिडेट्स से मिलकर फाइनल सलेक्शन करेंगे।" अभिमन्यु ने सिर हिलाया, "ठीक है, तो मैं इस बारे में और कुछ नहीं जानना चाहता। मुझे बस अपना काम और शेखावत के अगले कदम पर फोकस करना है।" रोहित ने हामी भरते हुए कहा, "जी सर।" कपूर मेंशन कनक इस वक्त सिंपल लेकिन ऑफिस के लिए परफेक्ट ड्रेस पहने हुए थी। वह अपने पापा से बोली, "पापा, मुझे आशीर्वाद दीजिए।" यह सुनकर विवेक जी मुस्कुराए और बोले, "मेरी आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी, अल the best! आज तुम्हारा पहला दिन है।" कनक ने थोड़ी एक्साइटेड के साथ कहा, "पापा, सच में, मुझे यकीन नहीं हो रहा कि कॉलेज कैंपस में सेलेक्ट हो गई, लेकिन प्रीति को सेलेक्ट किया, इसलिए वो तो सदमे में ही चली गई है।" विवेक जी हंसी रोकते हुए बोले, "सच में तुम दोनों पागल हो! और हां, मेरी तरफ से all the best! बोला देना उसे अब बताओ, तुम्हारा ऑफिस कहां है?" कनक बोली, "पापा, मुझे भी नहीं पता। जब कॉल आया था, तब मेरा फोन स्विच ऑफ था, तो सारी जानकारी प्रीति को दे दी है। वो आ जाएगी अभी।" तभी उसके दोनों भाई रेडी होकर नीचे आते हैं। आरव बिजनेस सूट में था, जबकि विराज कैजुअल लुक में था, क्योंकि आज उसका वॉलीबॉल मैच नहीं था। वह दोनों आते हुए बोले, "चलो, कोकून, हम तुम्हें छोड़ने चलेंगे!" कनक का चेहरा फीका पड़ गया RAJVANSH मेंशन अभिमन्यु का कमरा बहुत अलग और थोड़ा डरावना था। कमरे की दीवारें गहरे नीले और काले रंग में रंगी हुई थीं, जो पूरे कमरे को एक अजीब सा माहौल देती थीं। काले रंग का फर्नीचर और चांदी के रंग की लाइट्स कमरे को और भी गहरा बनाती थीं। कमरे के एक कोने में एक पियानो रखा था, और बीच में एक आरामदायक सोफा था। खिड़कियाँ बड़ी थीं, लेकिन बाहर का दृश्य धुंधला था, जिससे कमरे में एक रहस्यमय सा एहसास होता था। अभिमन्यु जब शॉवर लेकर कमरे में आता है, तो उसका शरीर बहुत आकर्षक और हॉट दिखता था। पानी की कुछ बूंदें उसके शरीर से टपक रही थीं, जो उसे और भी हॉट बना रही थीं। वह अपने सिर को पोंछते हुए अपना फोन देखता है, जिसमें एक कॉल आ रही होती है। वह कॉल उठाता है और कुछ देर बात करने के बाद बस इतना कहता है, "ठीक है, मैं आ रहा हूँ," और फिर कॉल काट देता है। लेकिन... क्या वह सच में सिर्फ़ सपना था? क्या अभिमन्यु को मिलेगा टेंडर? क्यों कनक का चेहरा फीका पड़ गया? कैसा होगा कनक और प्रीति का पहला दिन? लाइक और कमेंट करना मत बोलिएगा! 😃 आप लोग कुछ कहोगे तभी मुझे मालूम पड़ेगा, अच्छी है या नहीं!
(राजवंश हवेली – सुबह का नाश्ता) डाइनिंग टेबल पर पूरा राजवंश परिवार बैठा था। बड़ी, लकड़ी की टेबल पर अलग-अलग तरह के नाश्ते रखे थे—गरम पराठे, सैंडविच, जूस, कॉफी और ताज़े कटे फल। माहौल हल्का-फुल्का था, लेकिन आज अवनी जी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। अभिमन्यु राजवंश, हमेशा की तरह अपने फोन में बिजी था। वह ब्लैक शर्ट और ग्रे पैंट में बेहद प्रोफेशनल लग रहा था। उसने एक हाथ में कॉफी का कप पकड़ा हुआ था और धीरे-धीरे उसकी चुस्कियां ले रहा था। तभी अवनी राजवंश, जो हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहने थीं, अचानक बोलीं— "अभी, तुम शादी कब करने वाले हो?" टेबल पर हल्की खामोशी छा गई। अभिमन्यु ने बिना सिर उठाए फोन स्क्रॉल करते हुए कहा— "जब करनी होगी, तब कर लूंगा।" अवनी जी ने चिढ़ते हुए कहा, "क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारी उम्र 28 हो चुकी है! तुम्हारे पापा तो तुम्हारी उम्र में तीन साल के बच्चे के पिता बन चुके थे, और तुम अब तक शादी करने के बारे में सोच भी नहीं रहे!"** फिर उन्होंने लंबी सांस ली और हाथ नचाते हुए बोलीं— "अब बताओ, अगर अभी तेरे पापा तेरे बच्चों के साथ खेलना चाहें, तो कब खेलेंगे? पूरे बूढ़े हो जाने के बाद?" टेबल पर बैठे सभी लोग हंसने लगे। वीरेन राजवंश, जो सफेद कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे और अख़बार पढ़ रहे थे, अचानक चौकन्ने हो गए। उन्होंने झट से अख़बार नीचे रखा और बोले— "अवनी! तुम्हें अपने बेटे की शादी करवानी है, तो करवाओ। लेकिन मेरी उम्र बीच में मत लाओ! और सुनो, मैं बूढ़ा नहीं हुआ हूँ, समझी?" फिर उन्होंने मजाकिया अंदाज़ में अपनी बाजू हिलाते हुए कहा— "मैं अभी भी इतना जवान हूँ कि तुम्हें गोद में उठाकर कमरे तक ले जा सकता हूँ!" टेबल पर ठहाके गूंज उठे। अवनी जी एकदम हड़बड़ा गईं और झेंपते हुए बोलीं, "हे भगवान! मुझे अपने बेटे की शादी की चिंता है, और आपको अपनी जवानी की!" फिर उन्होंने गुस्से से अभिमन्यु की ओर देखा और हाथ जोड़ते हुए कहा— "लाड़ले साहब, अब आप बताने का कष्ट करेंगे कि शादी करने का कोई इरादा भी है या नहीं? या फिर यह बता दो कि किसी को पसंद करते हो, तो मैं बात आगे बढ़ाऊं। वरना मैं खुद अपनी बहू ढूंढ लूंगी!" टेबल पर फिर से सन्नाटा छा गया। अभिमन्यु ने धीरे से फोन को टेबल पर रखा, अपनी कॉफी का आखिरी घूंट लिया और बिलकुल शांत लहजे में बोला— "मुझे किसी में कोई इंटरेस्ट नहीं है, और न ही मुझे अभी शादी करनी है। जब करनी होगी, मैं खुद बता दूंगा।" अवनी जी का चेहरा गिर गया। उनका सारा उत्साह मानो ठंडा पड़ गया। उन्होंने गहरी सांस लेते हुए सोचा, "मैं तो अपने बेटे की शादी के सपने देख रही थी, और मेरा बेटा तो मेरे सारे सपने तोड़ रहा है!" वहीं, वीरेन राजवंश हल्का मुस्कुरा दिए। उन्हें पता था कि उनके बेटे को कोई भी जबरदस्ती शादी के लिए नहीं मना सकता। थोड़ी देर तक हल्की-फुल्की बातें चलती रहीं, फिर सब अपने-अपने कामों के लिए निकल गए। अभिमन्यु ने अपनी घड़ी देखी, जैकेट उठाई और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए ऑफिस के लिए निकल गया। कपूर मेंशन कनक का चेहरा फीका पड़ा हुआ था क्योंकि आरव और विराज उसे छोड़ने की बात कर रहे थे, जिसका साफ मतलब था कि उसे सब लोग पहचान लेंगे। यह बात कनक के लिए बड़ी चिंता का कारण थी, क्योंकि उसके भाई बहुत प्रोटेक्टिव थे। तभी कनक परेशान होकर बोलने ही वाली थी कि तभी दरवाज़े पर एक तेज़ आवाज़ गूंजती है बिल्कुल नहीं — यह सुनकर सब लोग चौंकते हुए आवाज की दिशा में देख रहे थे। वह एक लड़की थी कड़ी गोरी रंगत, नपी-तुली लंबाई (5'5"), बड़ी-बड़ी गहरी काली आँखें, जो हर भाव को साफ़ बयां कर देती थीं। लंबे, सीधे और घने काले बाल, जो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। वह हमेशा सादगी में ही खूबसूरत लगती थी। आज भी उसने हल्के रंग की शर्ट और फॉर्मल पैंट पहनी थी, जिससे उसका बिज़नेस स्टूडेंट वाला लुक और भी दमदार लग रहा था। उसकी आंखों में बचपन की मासूमियत साफ झलक रही थी। वह प्रीति थी, कनक की बेस्ट फ्रेंड। प्रीति का कोई नहीं था, वह अनाथ थी, और अपनी स्कॉलरशिप के जरिए कॉलेज में सीट प्राप्त की थी। लेकिन आत्मविश्वास से भरी शख्सियत प्रीति का ऐसा बोलने से आरव और विराज की आंखें छोटी हो जाती हैं। दोनों एक साथ पूछते हैं, "क्यों? हम क्यों नहीं चल सकते?" यह सुनकर प्रीति ने मुस्कुराते हुए कहा, "सच में आप दोनो मुझे से पूछ रहे हो? क्या आपको याद नहीं कि कनक की कॉलेज के पहले दिन आपने क्या किया था?" यह सुनकर आरव और विराज अपने आंखें इधर-उधर करने लगते हैं और विवेक जी हंसी से भर जाते हैं। वह हंसते हुए सोफा पर बैठ जाते हैं, और कनक को भी अपने भाइयों को देखकर हंसी आ रही थी। फिर कनक ने कहा, "हां भाई, आप दोनो को क्यों? तकलीफ मैं और प्रीति चले जाएंगे, आप चिंता मत करो।" यह सुनकर आरव और विराज ने एक साथ कहा, "अरे, वो तो पहले की बात है! इस बार ऐसा नहीं होगा, और पहले भी हमने कुछ बड़ा नहीं किया था।" कनक, प्रीति, और विवेक जी एक साथ बोले, "सच में?" यह सुनकर आरव और विराज का मुंह बन गया। तभी कनक ने कहा, "सच में भाई, आप सही हो कि वो बड़ा नहीं था, लेकिन जरा याद तो करो।" इस पर सब लोग उस वक्त को याद करने लगते हैं... फ्लैशबैक कनक का पहला दिन था बैचलर डिग्री के लिए, और वह थोड़ी नर्वस थी, लेकिन सबसे ज्यादा नर्वस उसके दोनों भाई थे। हालांकि वे चेयर से दिखा नहीं रहे थे। वे लोग कनक को लेकर प्रिंसिपल के कमरे में चले जाते हैं और बाहर खड़े पेऊन ने जाकर प्रिंसिपल को बताया कि आरव कपूर और विराज कपूर आए हैं। यह सुनकर प्रिंसिपल ने जल्दी उन्हें अंदर भेजने को कहा, और वे लोग अंदर चले गए। प्रिंसिपल जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हेलो, MR कपूर और MS कपूर।" यह सुनकर दोनों भाई सिर हिलाते हैं और कनक सिर्फ रिटर्न विश करती है। फिर आरव ने प्रिंसिपल से बहुत ही शांत आवाज में कहा, "प्रिंसिपल, हमारी बहन का थोड़ा खयाल रखिएगा। वह थोड़ी नादान है, तो आप उसे कुछ भी गलती हुई तो उसे बच्ची समझकर माफ कर देना।" प्रिंसिपल ने मुस्कुराते हुए कहा, "आप टेंशन मत लीजिए, हम MS कपूर का ध्यान रखेंगे।" यह सुनकर विराज कनक से कहा, "कोकून, तुम थोड़ी देर के लिए बाहर रहो, हम बात करके आते हैं प्रिंसिपल से।" कनक ने सिर हिलाया और केबिन से बाहर चली गई। इसके बाद, विराज एकदम से खड़े होकर बहुत ही ताड़ी आवाज में कहते हैं, "प्रिंसिपल, अगर मेरी बहन को कुछ भी परेशानी हुई, और वो थोड़ी मस्ती भी करी तोह उसे कुछ मत बोलना उसे जो मन करे वो करने दो अगर इसे कोई भी कुछ भी बोला तो मैं आपकी जो प्रिंसिपल की जॉब है, न, उसे छीनने से पहले एक बार भी नहीं सोचूंगा।" यह सुनकर प्रिंसिपल की होश उड़ जाते हैं, "वो तो पहले बहुत पोलाइटली बता कर रहे थे, अब ये क्या धमकी है?" तभी आरव की डरावनी आवाज आती है, "अगर मेरी बहन को कुछ भी बोला, या उसे कोई परेशानी हुई, तो मैं आपको बम से उड़ाने से पहले एक बार भी नहीं सोचूंगा, और आपको ऐसे लापता करूंगा कि कोई आपको ढूंढ ही न पाए, चाहे जिंदा हो या न।" यह सुनकर प्रिंसिपल को ऐसा लगा जैसे उनकी जान अभी उनकी बातों से निकल जाए। लेकिन तीनों इस बात से बेखबर थे कि उनके अलावा कोई और था जो उनके बातें हैरानी से सुन रहा था। हैरानी से उसके हाथ से स्टेपलर नीचे गिर जाता है। उसकी आवाज से तीनों आवाज की दिशा में देखते हैं, और वह प्रीति है, जो उन्हें हैरानी से देख रही थी। उने अपनी तरफ देखता पाकर प्रीति को घबराहट महसूस करती है। तभी आरव की ठंडी आवाज सुनाई देती है, "तुम कौन हो?" यह सुनकर प्रीति एकदम से कहती है, "मैं... मैं वो... " उसके डर के कारण उसे समझ नहीं आता कि क्या बोले। वह तो बस अपने कुछ डॉक्यूमेंट्स सबमिट करने आई थी, तभी ये लोग आए थे। यह सुनकर आरव और विराज एक साथ पूछते हैं, "तुम कौन हो, और यह क्या कर रही हो? अगर तुमने हमारी बात सुनी, तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।" प्रीति जल्दी से सिर हिलाती है। इस वक्त वह बहुत क्यूट लग रही थी। यह देखकर विराज को हंसी आ जाती है, लेकिन वह अपनी हंसी को कंट्रोल करते हुए प्रिंसिपल से कहते हैं, "याद रखिए, प्रिंसिपल, हमारी बहन को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।" प्रिंसिपल जल्दी से सिर हिलाते हुए कहते हैं, "जी, जी, हम MS कपूर का पूरा ध्यान रखेंगे।" यह सुनकर दोनों एक नजर प्रिंसिपल को देखते हैं और फिर प्रीति पर डालते हैं, और बाहर निकल जाते हैं। प्रिंसिपल शॉक में वहीं बैठ जाते हैं। प्रीति भी जल्दी से डॉक्यूमेंट्स सबमिट करके बाहर आती है। तभी उसे आरव और विराज दोनों बहुत प्यार से कनक को समझा रहे थे कि अच्छे से पढ़ाई करें। यह देखकर प्रीति को फिर से सदमा लगता है, क्योंकि जिस तरह अंदर इन दोनों ने धमकी दी थी, उसे लग नहीं रहा था कि ये वही इंसान हैं। तभी कनक की नजर प्रीति पर जाती है, जो उन्हें ही देख रही थी। कनक ने कहा, "हाई!" यह सुनकर प्रीति हैरान होकर कहती है, "हाई!" आरव और विराज प्रीति की तरफ देखते हैं और कनक से पूछते हैं, "क्या तुम इसे जानती हो?" कनक हल्की मुस्कुराहट के साथ कहती है, "हां, भाई, मैं और पापा कुछ दिन पहले एडमिशन के लिए आए थे, तब मेरी मुलाकात प्रीति से हुई। वह और मैं एक ही क्लास में हैं।" यह सुनकर आरव कहते हैं, "हूं, अच्छी बात है! अब कोई मिलेंगा, तो मुझे चिंता हो रही है कि तुम कैसे संभालोगी।" प्रीति मुंह खोलकर आरव की तरफ देखती है, क्योंकि जिस तरह अंदर उसने धमकी दी थी, उसे बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही इंसान हैं। कनक ने कहा, "चलो, हमें क्लास के लिए देर हो जाएगी। पहले दिन देर नहीं होना चाहिए।" कनक ने अपने दोनों भाइयों को बाय किया और प्रीति के साथ चली गई। फ्लैशबैक एंड आरव और विराज याद करने के बाद प्रीति को घूरने लगे, जिस पर प्रीति मासूमियत से विवेक जी की तरफ देखते हुए बोली, "अंकल, देखो न! मुझे जैसी मासूम बच्ची को ये दोनों राक्षस घूरकर डरा रहे हैं!" प्रीति की बात सुनकर विवेक जी ने आरव और विराज की ओर देखा और मज़ाकिया लहजे में कहा, "खबरदार! अगर मेरी बच्ची को किसी ने घूरा तो!" विवेक जी की बात सुनकर प्रीति के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई, जबकि आरव और विराज एक-दूसरे को देखकर रह गए। वे अच्छी तरह जानते थे कि प्रीति ऐसा क्यों कर रही थी—उसे अपना बदला लेना था। पहली मुलाकात में जब उन्होंने उसे धमकी दी थी, तब से ही वह हर बार किसी न किसी तरह विवेक जी से उनकी डांट पड़वा देती थी। कनक यह सब अच्छे से समझती थी और जानती थी कि ये तीनों कभी नहीं सुधरेंगे। इसलिए उसने कहा, "ठीक है, फिर मैं और प्रीति ऑफिस जा रहे हैं। मेरे दोनों प्यारे भाई अपने-अपने काम करें।" यह सुनते ही आरव और विराज तुरंत आगे बढ़े, कनक को गले लगाया और उसके माथे पर किस करते हुए बोले, "ऑल द बेस्ट, कोकून! अच्छे से जाना, और अगर कुछ भी हो तो हमें तुरंत फोन करना, समझी?" कनक मुस्कुराते हुए सिर हिलाकर हामी भरती है और विवेक जी को बाय कहकर प्रीति के साथ बाहर निकल जाती है। जाते-जाते प्रीति पलटकर आरव और विराज को चिढ़ाते हुए जीभ दिखाती है और हंसते हुए वहां से चली जाती है। आरव और विराज गुस्से से प्रीति को घूरते रह जाते हैं, जबकि विवेक जी यह सब देखकर मुस्कुरा उठते हैं। राजवंश कंपनी – अभिमन्यु का ऑफिस अभिमन्यु अपने ऑफिस में खड़ा था, हाथ में करण शेखावत की भेजी गई धमकी भरी रिपोर्ट थी। उसने ग़ुस्से से कागज़ मोड़कर मेज़ पर फेंक दिया। उसकी आँखों में एक अलग ही आग थी। वो अभिमन्यु राजवंश था – कोई उसे चुनौती दे और वो चुप बैठे, ऐसा हो ही नहीं सकता। उसने फोन उठाया और सीधे करण शेखावत को कॉल लगा दी। "इतनी जल्दी हार मान ली, करण?" उसकी आवाज़ सधी हुई लेकिन बेहद खतरनाक थी। दूसरी तरफ करण मुस्कुराया, "खेल अभी शुरू हुआ है, अभिमन्यु।" अभिमन्यु ने गहरी सांस ली और ठंडी आवाज़ में बोला, "तुम्हारे पिता वीरेंद्र शेखावत को शायद याद नहीं कि जब मैं खेल में उतरता हूँ, तब सिर्फ़ जीत की गिनती होती है, चालें नहीं।" करण तैश में बोला, "देखते हैं, किसकी गिनती आखिरी तक चलती है!" अभिमन्यु ने फोन रख दिया। उसकी आँखों में अब सिर्फ़ एक इरादा था—शेखावत कंस्ट्रक्शन्स को ज़मीन पर लाना। "रोहन!" उसने अपने असिस्टेंट को आवाज़ दी। रोहन तुरंत अंदर आया, "यस सर!" "शेखावत कंस्ट्रक्शन्स के हर प्रोजेक्ट पर मेरी नज़र चाहिए। उनके सबसे बड़े सप्लायर्स से बात करो—अगर वे हमारे साथ आना चाहें, तो उन्हें ऑफर दो। अगर न आना चाहें, तो उन्हें बताओ कि उनके लिए दूसरा रास्ता नहीं बचेगा।" रोहित समझ चुका था—अभिमन्यु अब पीछे हटने वाला नहीं था। "और हाँ," अभिमन्यु ने धीरे से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में ठंडा ग़ुस्सा था, "करण शेखावत को एक साफ़ संदेश भेजो—राजवंश से टकराने का अंजाम वो खुद देखेगा।" रोहित बाहर निकला और अभिमन्यु अपनी कुर्सी पर बैठा। उसकी उंगलियां टेबल पर धीमे-धीमे बज रही थीं। अब खेल असली होने वाला था… और इस बार हारने का सवाल ही नहीं था। शेखावत कंस्ट्रक्शन्स करण शेखावत अपना ग़ुस्सा काबू करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन जितनी बार वो अपने डेस्क पर बिखरी हुई रिपोर्ट्स देखता, उतना ही उसका खून खौल उठता। "क्या बकवास है ये? हमारे तीन बड़े सप्लायर्स ने डील कैंसिल कर दी?" उसने ग़ुस्से में रिपोर्ट फेंकी। "यस सर," असिस्टेंट ने डरते हुए कहा, "उन्होंने कहा कि अब वो सिर्फ़ राजवंश कंपनी के साथ काम करेंगे।" करण ने अपना फोन उठाया और उन सप्लायर्स को कॉल करने की कोशिश की—लेकिन हर कॉल अनसुनी कर दी गई। तभी उसके ऑफिस का दरवाज़ा ज़ोर से खुला। उसका CFO घबराया हुआ अंदर आया। "सर, बैंक ने हमारे नए प्रोजेक्ट की फंडिंग रोक दी है! उन्होंने कहा कि हमारी फाइनेंशियल कंडीशन स्थिर नहीं लग रही!" करण की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। "नाम बताओ… किसने ये सब किया?" CFO ने काँपते हुए जवाब दिया, "अभिमन्यु राजवंश।" करण की मुट्ठी भिंच गई। उसने ग़ुस्से में अपनी कुर्सी लात मारकर गिरा दी। "अभिमन्यु…!!" उसने दाँत भींचकर कहा। --- दूसरी ओर अभिमन्यु राजवंश अपनी ऑफिस चेयर पर बैठा था, हाथ में एक ग्लास था। उसकी आँखों में वही ठंडा और खतरनाक भाव था। रोहन अंदर आया और बोला, "करण शेखावत की कंपनी अब बुरी हालत में है, सर। कोई उन्हें फंड करने को तैयार नहीं, उनके सप्लायर्स हमारे साथ आ चुके हैं, और उनके क्लाइंट्स ने भी हाथ खींच लिया है।" अभिमन्यु ने हल्की मुस्कान के साथ ग्लास नीचे रखा। "शेखावत कंस्ट्रक्शन्स का अंत शुरू हो चुका है, रोहन। अब करण शेखावत को समझ आएगा कि अगर कोई राजवंश से टकराए, तो उसे मिटना ही पड़ता है।"