प्यार की कहानी
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क्लब नाइट तेज़ म्यूजिक की बीट्स, रंग-बिरंगी लाइट्स और लोगों की हंसी-ठिठोली से भरा हुआ क्लब आज कुछ ज़्यादा ही शोरगुल से भरा था। क्लब के एक कोने में वीआईपी लाउंज में एक गोल टेबल के पास तीन लड़कियां बैठी हुई थीं। बीच में बैठी लड़की, इशिका, आज काफी खुश थी। होना भी चाहिए, आखिरकार आज उसका प्रमोशन हुआ था। उसके दोस्तों ने जबरदस्ती उसे इस पार्टी में घसीटकर लाया था, क्योंकि उनके लिए खुशी मनाने का यही सबसे सही तरीका था। सोनिया ने इशिका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "आज तो ड्रिंक कर ही ले, इतना बड़ा दिन है तेरा।" इशिका ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, "यार सोनिया, तू जानती है ना कि मैं ड्रिंक नहीं करती।" उसकी दूसरी दोस्त, पायल, जो अब तक चुपचाप उनका वार्तालाप सुन रही थी, तुरंत बोली, "अरे ड्रिंक मत कर, पर जूस तो पी ही सकती है ना?" इशिका हंस दी, "ऑफ कोर्स!" सोनिया ने इशारा समझ लिया। वह उठी और बार काउंटर की तरफ बढ़ गई। उसके होंठों पर एक खतरनाक मुस्कान थी। उसने बारटेंडर से दो ड्रिंक्स और एक संतरे का जूस ऑर्डर किया। जैसे ही वेटर ने जूस उसके सामने रखा, उसने अपने बैग से एक छोटे से पैकेट में से सफेद पाउडर निकाला और बिना किसी को शक होने दिए जूस में मिला दिया। "अब खेल शुरू होता है," उसने मन ही मन सोचा और ट्रे उठाकर वापस टेबल की तरफ चल पड़ी। "लो, ये तुम्हारे लिए," सोनिया ने मुस्कराते हुए इशिका की ओर जूस बढ़ाया। इशिका ने बिना किसी शक के गिलास उठाया और एक घूंट लिया। थोड़ी देर बाद, उसने अजीब सा महसूस किया। उसके सिर में हल्का-हल्का चक्कर आने लगा था। "क्या हुआ?" पायल ने पूछा, उसकी आँखों में छुपा हुआ मज़ा साफ झलक रहा था। "मुझे... थोड़ा अजीब लग रहा है..." इशिका ने सिर पकड़ते हुए कहा। सोनिया और पायल ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कराते हुए हल्का-सा हाईफाइव किया। "अब आएगा असली मज़ा!" सोनिया धीरे से फुसफुसाई। "सोचती है कि सीईओ को पटाकर प्रमोशन ले लेगी? अब इसे पता चलेगा असली दुनिया कैसी होती है!" पायल ने ठहाका लगाते हुए कहा। इशिका को अब कुछ भी ठीक से दिख नहीं रहा था। उसे क्लब का हर कोना धुंधला-सा लग रहा था। लड़खड़ाते हुए उसने किसी तरह अपने फोन की स्क्रीन पर नंबर देखा और खुद से बुदबुदाई, "1011... हाँ, यही था मेरा रूम नंबर..." उसके कदम अब कंट्रोल में नहीं थे। सिर चकरा रहा था। दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी। शरीर में एक अजीब-सी कमजोरी महसूस हो रही थी। और फिर... वह धीरे-धीरे कमरे की ओर बढ़ गई, बिना इस बात का अंदाज़ा लगाए कि अगले कुछ घंटे उसके जीवन को पूरी तरह से बदलने वाले थे। इशिका लड़खड़ाते कदमों से रूम नंबर 1011 तक पहुंची। उसकी आँखों के सामने सब कुछ धुंधला हो रहा था, शरीर बेकाबू लग रहा था, और दिमाग सुन्न। उसने रूम कार्ड निकालकर दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन हाथ कांप रहे थे। कार्ड स्लॉट में डालते ही गिर गया। "उफ्फ... ये क्या हो रहा है मुझे?" उसने अपनी कनपटियों को दबाया। अचानक, एक अजीब सी गर्मी उसके शरीर में फैलने लगी। उसका गला सूखने लगा, सांसें तेज़ हो रही थीं। अंदर जैसे कोई आग जल रही हो, और वो उस जलन से बचने के लिए किसी ठंडे अहसास की तलाश कर रही थी। "हद हो गई..." उसने दरवाजे को हल्के से धक्का दिया, लेकिन वो नहीं खुला। इस बार उसने और ज़ोर लगाया, और दरवाज़ा अचानक खुल गया। संतुलन खोते ही वह सीधे अंदर गिरने लगी, लेकिन किसी की मजबूत बाहों ने उसे थाम लिया। उसका शरीर किसी के खुले, गर्म, मजबूत सीने से टकराया। हल्की ठंडी महक, शॉवर के बाद की ताज़गी, और हल्की धड़कनों की आवाज़... इशिका की धुंधली आँखों ने उस आदमी को देखने की कोशिश की, लेकिन वो साफ नहीं देख पा रही थी। उसका सिर घूम रहा था। बस इतना समझ आया कि उसके सामने खड़ा शख्स अभी-अभी नहाकर निकला था, उसकी कमर पर केवल एक सफेद टॉवल बंधा था। "तुम कौन हो?" उस आदमी की आवाज़ गहरी और भारी थी। लेकिन इशिका के कानों तक कोई शब्द ठीक से नहीं पहुंचे। उसकी पूरी बॉडी में अजीब-सी गर्मी दौड़ रही थी, और अब वो सहन नहीं कर पा रही थी। "बहुत गर्मी लग रही है..." इशिका बड़बड़ाई और अगले ही पल उस आदमी के सीने से लिपट गई। उस आदमी का शरीर ठंडा था, और उसकी सख्त मसल को महसूस कर इशिका को सुकून सा मिला। उसकी सांसें उस आदमी को अपने गले पर महसूस हो रही थीं। "हेलो...? तुम ठीक हो?" आदमी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, लेकिन इशिका का होश अब किसी और ही दुनिया में था। उसने उस आदमी को बेड की तरफ धक्का दिया, और खुद भी उसके ऊपर आ गई। शरीर में जलन और बढ़ रही थी। उसने अपनी ड्रेस को उतार फेंका, और बिना सोचे-समझे उस आदमी के होठों पर अपना चेहरा झुका दिया। सॉफ्ट... गर्म... और मादक । उसके नर्म होठों का स्पर्श उस आदमी के लिए एक झटके जैसा था। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। "ये... तुम..." लेकिन इससे पहले कि वो कोई सवाल कर पाता, इशिका ने फिर से उसके होठों को अपने होठों में कैद कर लिया। उसकी हरकतें इतनी धीमी और नशीली थीं कि वो खुद को रोक नहीं पाया। शायद, उसके ड्रिंक में भी कुछ मिला दिया गया था। धीरे-धीरे, उसने भी इशिका का साथ देना शुरू कर दिया। पहले हल्के-हल्के, फिर और गहराई से। जब इशिका को सांस लेने में तकलीफ होने लगी, तो वो उसके होठों को छोड़कर उसकी गर्दन और कंधों को अपने होठों से छूने लगा। सांसें तेज़ हो रही थीं... शरीर एक-दूसरे में उलझ रहे थे... और फिर... कब उनकी हदें टूट गईं, कब वो पूरी तरह एक-दूसरे में खो गए, किसी को कुछ पता नहीं चला। अगली सुबह इशिका की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। सिर में हल्का भारीपन था, जैसे उसने कोई गहरी नींद ली हो। उसकी पलकों पर अब भी पिछली रात की नशीली परछाइयाँ तैर रही थीं। उसने करवट बदली और जैसे ही उठने लगी, उसे अपनी कमर पर किसी की मजबूत पकड़ महसूस हुई। एक गर्माहट, एक सुरक्षित एहसास... लेकिन अगले ही पल, जैसे ही उसकी चेतना पूरी तरह जागी, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। "ये पकड़... ये हाथ..." उसने धीरे से अपनी गर्दन घुमाई और बेड की दूसरी तरफ देखा। वहाँ एक हैंडसम, मजबूत शरीर वाला आदमी लेटा हुआ था। उसकी साँसें नियमित और शांत थीं, और उसका चेहरा... इशिका का दिल जैसे एक पल के लिए रुक गया। "दे... देवांश?" उसके होठों से बस यही नाम फिसलकर निकला। वो शख्स, जो कभी उसकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा था। वो इंसान, जिसे उसने टूटकर चाहा था। और जिसने उसे बिना किसी वजह के छोड़ दिया था। उसका मन पल भर के लिए कहीं खो गया। बीती यादें, वो हँसी-मज़ाक, वो झगड़े, वो पहली बार हाथ पकड़ना, पहली बार 'आई लव यू' कहना... और फिर अचानक, उसका उसे छोड़कर चले जाना। "क्या ये सपना है?" उसने खुद को धीरे से चिकोटी काटी, लेकिन नहीं... ये हकीकत थी। हकीकत, जो उसे डराने लगी थी। जल्दी से उसने अपने शरीर की तरफ देखा, और सन्न रह गई। उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था! उसका पूरा चेहरा गुलाबी पड़ गया, आँखें चौड़ी हो गईं। घबराकर उसने पास में पड़ी देवांश की सफेद शर्ट उठाई और खुद पर डाल ली। उसकी उंगलियाँ कांप रही थीं, साँसें तेज़ हो रही थीं। वो धीरे से बेड पर बैठी और देवांश के चेहरे को निहारने लगी। उसका चेहरा अब भी उतना ही सुकूनभरा और आकर्षक था, जितना पहले हुआ करता था। हल्की दाढ़ी, घने बाल, गहरी आँखें जिनमें हमेशा एक रहस्यमयी शरारत रहती थी। उसकी उंगलियाँ धीरे से देवांश के चेहरे पर चली गईं। वो उसके माथे से होते हुए उसकी नाक और फिर उसके होठों पर आकर ठहर गईं। "तुम चले गए थे..." उसने बहुत धीमे से कहा, जैसे खुद से बात कर रही हो। "बिना कुछ कहे, बिना कोई वजह बताए... तुमने मुझे छोड़ दिया। और अब, जब तुम मेरे सामने हो, मैं तुम्हारे सामने नहीं आ सकती।" उसकी आँखों में नमी थी, लेकिन उसने आँसू गिरने नहीं दिए। उसने अपनी उंगलियाँ धीरे से हटा लीं और गहरी सांस ली। "अगर किस्मत में मिलना हुआ, तो एक बार फिर ज़रूर मिलेंगे..." उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा। और फिर, इशिका पर बाथरूम।में जाकर अपनी ड्रेस पहन वहां से निकल जाती है। इशिका एक विला के सामने आती है।ओर उसमे चली जाती है। वही अब लड़का उठ जाता है उसका सर बहुत भारी हो रहा था। वो उठ अपने आप को देखता हैं उसके शरीर पर कोई कपड़े नहीं था वो बेड की दूसरी तरफ देखता है जगह खून लगा हुआ था।जिसे देख वो पिछले रात की सारी चीज़े याद आने लगती है।उसे उस लड़की का चहरा साफ नजर नहीं आ रहा था। देवांश ठाकुर—एक नाम, जो खुद में एक पहचान है। 28 साल का यह शख्स, अपनी 6’1” की हाइट, शार्प ब्राउन आँखों, और परफेक्ट फीचर्स के साथ ऐसा व्यक्तित्व रखता है कि कोई भी उसे देख एक बार पलटे बिना नहीं रह सकता। उसकी मजबूत कद-काठी और चार्मिंग लुक्स उसे और भी अट्रैक्टिव बनाते हैं, लेकिन असली बात उसकी ऑरा में छुपी हुई पावर है। बिजनेस की दुनिया का बेताज बादशाह, जो अपनी काबिलियत और तेज दिमाग से हर मुश्किल को मोड़ देता है। उसके लिए जिंदगी एक गेम है, और उसे हमेशा जीतना आता है। इमोशन्स और रिश्तों से दूर, वो सिर्फ कंट्रोल और पावर में यकीन रखता है—जब तक कि कोई उसकी परफेक्ट प्लानिंग को हिला न दे। देवांश बेड से उठ अपना ट्राउजर पहनता है।ओर फिर अपने फोन से किसी को कॉल करता है और अपने रूम में बुला लेता है। देवांश के रूम का डोर नॉक होता है।देवांश कम इन कहता है। रूम के अंदर एक आदमी आता है।वो कहता है "येस बॉस।" ये था देवांश का असिस्टेंट।देवांश एक बिजनेसमैन है। वो अपने असिस्टेंट से पूछता है "कल रात मेरे रूम में एक लड़की आई थी मुझे उसके बारे में सारी डिटेल्स चाहिए।"
इशिका का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर गुस्से की लहरें साफ नज़र आ रही थीं। उसने ऑफिस की इमारत में कदम रखा, उसके तेज़ क़दमों की आवाज़ फ़र्श पर गूंज रही थी। वहाँ मौजूद कुछ लोग उसे हैरानी से देखने लगे, लेकिन उसने किसी की परवाह नहीं की। उसकी आँखों में एक अलग ही आक्रोश था, और वो सीधा कैफेटेरिया की ओर बढ़ी। कैफेटेरिया में सोनिया और पायल आराम से बैठी थीं, हाथ में कॉफ़ी के कप थे, और दोनों किसी बात पर ज़ोर-ज़ोर से हंस रही थीं। उनकी आँखों में एक साज़िश की चमक थी, जैसे उन्होंने कल रात की घटना को याद करके मज़े ले रही हों। इशिका को देखते ही दोनों के चेहरे पर नकली मासूमियत आ गई, लेकिन इससे पहले कि वो कोई दिखावा कर पातीं, इशिका उनके सामने जा खड़ी हुई। पल भर के लिए वहाँ मौजूद सभी लोग चौंक गए, और इससे पहले कि सोनिया कुछ समझ पाती, इशिका का हाथ हवा में उठा और एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके चेहरे पर पड़ा। "थप्प!!" सोनिया दर्द से कराह उठी, उसका चेहरा एक ओर झुक गया। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, उसे यक़ीन नहीं हुआ कि इशिका ने उसे सच में थप्पड़ मार दिया। पायल यह देख ही रही थी कि अगला तमाचा उसके गाल पर पड़ा। वह भी हक्की-बक्की रह गई। "ये मेरा साथ धोखा देने के लिए!" इशिका की गूंजती हुई आवाज़ पूरे कैफेटेरिया में फैल गई। सोनिया और पायल की आँखों में डर झलकने लगा, उनके आसपास के लोग भी सकते में थे। इशिका का पूरा शरीर गुस्से से कांप रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ ठोस और दृढ़ थी। "तुमने जो कल मेरे साथ किया, उसके लिए तुम बहुत पछताओगी!" सोनिया और पायल के चेहरे का रंग उड़ चुका था। वो दोनों एक-दूसरे को देखने लगीं, लेकिन उनके पास कोई जवाब नहीं था। इशिका की आँखों में आंसू थे, लेकिन उसने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया। बिना एक पल रुके, वो तेज़ी से मुड़ी और लंबे क़दमों से सीईओ के केबिन की ओर बढ़ गई। सीईओ केबिन के बाहर बैठी असिस्टेंट कुछ कहने ही वाली थी कि इशिका ने दरवाजा ज़ोर से खोला और सीधा अंदर चली गई। अविराज, जो अपने लैपटॉप स्क्रीन पर कुछ देख रहा था, अचानक हुई इस हरकत से चौंक गया। उसने नज़र उठाकर देखा तो सामने इशिका ग़ुस्से में बैठी थी। "यार अविराज, कैसे एम्प्लॉइज़ हैं तेरी फर्म में?" उसकी आवाज़ में नाराज़गी थी। अविराज ने अपने चश्मे को थोड़ा ठीक किया और अपनी कुर्सी पर सीधा होकर बैठ गया। "अब क्या हो गया?" उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, लेकिन इशिका की गंभीरता देखकर उसकी मुस्कान फीकी पड़ गई। "कल उनकी वजह से मेरे साथ पता नहीं क्या हो जाता!" उसकी आँखें छलकने को थीं, लेकिन उसने खुद को संभाला। अविराज अब पूरी तरह से सतर्क हो चुका था। "क्या मतलब? कल क्या हुआ था?" इशिका ने एक गहरी सांस ली, उसकी उंगलियाँ मुट्ठियों में बंध चुकी थीं। "पर नहीं," वह थोड़ी नरमी से बोली, "कल मुझे मेरा हीरो मिल गया।" अविराज ने हैरानी से अपनी भौहें उचका दीं। "सच्ची? तू कल देवांश से मिली?" इशिका के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी बीती रात की गहराई झलक रही थी। "हाँ," उसने सिर हिलाया, लेकिन उसकी आवाज़ अब भी रहस्यमयी थी। "पर अब मैं मम्मा-पापा का बिज़नेस संभालना चाहती हूँ और खुद का एक अलग नाम बनाना चाहती हूँ।" अविराज ने नाटकीय अंदाज में अपने सीने पर हाथ रखा और मज़ाकिया लहज़े में बोला, "अगर तू बिजनेस करने लगी, तो शायद मुझे ही तेरी कंपनी में जॉब के लिए अप्लाई करना होगा! क्योंकि जब इशिका मलिक मैदान में उतरेगी, तो बाकी सबको पीछे हटना ही होगा।" इशिका ने आँखें घुमाई और हंसते हुए बोली, "ओह, रियली?" वह उठी, हल्की मुस्कान दी और वहां से चली गई। घर पहुंचते ही इशिका सीधा अपने पापा अमर मलिक के पास गई। लिविंग रूम में एक सुकून भरी शांति थी। हल्की रोशनी में अमर मलिक अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उनका चश्मा नाक के पास सरक आया था, और उनके चेहरे पर गहरी सोच की लकीरें उभर रही थीं। इशिका उनके पास बैठ गई। उसने उनके हाथ को हल्के से थामा और गहरी सांस लेते हुए बोली, "डैड, अब से आपका और मम्मा का बिज़नेस दोनों मैं संभालना चाहती हूँ।" अमर मलिक ने अखबार को मोड़ा, उसे टेबल पर रखा और बेटी की आँखों में देखा। उनकी हल्की मुस्कान में गर्व और भरोसा झलक रहा था। उन्होंने अपनी बेटी की ठहरी हुई आँखों को पढ़ लिया। "मुझे पूरा भरोसा है कि मेरी बेटी मलिक और गोयल, दोनों कंपनियों को अच्छे से संभाल लेगी," उन्होंने आत्मविश्वास भरी आवाज़ में कहा। इशिका की आँखें चमक उठीं। वह उत्साह से अपने पापा के गले लग गई, "लव यू, डैड!" तभी, सविता मलिक अपनी चूड़ियों की खनक के साथ पास आईं। उन्होंने हल्के गुस्से से भौंहें चढ़ाईं और बोलीं, "हां, सिर्फ पापा से लव यू? और अपनी मम्मा के लिए?" इशिका ने शरारत भरी मुस्कान के साथ अपनी मम्मा को भी कसकर गले लगा लिया। "मम्मा, लव यू ऑलसो सो मच!" उसने हँसते हुए कहा। दो महीने बाद… बिज़नेस संभालते हुए दो महीने कब बीत गए, इशिका को पता ही नहीं चला। उसकी सुबहें मीटिंग्स, प्रोजेक्ट्स और डिस्कशन्स में गुजरतीं, और रातें स्ट्रैटेजी प्लान करने में। उसे यह तक याद नहीं कि आखिरी बार कब उसने खुद के लिए वक्त निकाला था। लेकिन आज का दिन अजीब था। जैसे ही वह ऑफिस से बाहर निकली, उसे हल्का चक्कर सा महसूस हुआ। एक अजीब सा एहसास हुआ, जैसे उसकी ऊर्जा अचानक खत्म हो गई हो। उसने खुद को संभाला और अपनी कार में बैठ गई। उसका सिर भारी लग रहा था। मन में बेचैनी थी, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि क्यों। उसने गाड़ी स्टार्ट की और सीधे डॉक्टर के पास चली गई। कुछ देर बाद… हॉस्पिटल में डॉक्टर ने उसकी सभी जांच कीं और रिपोर्ट देखते ही मुस्कुरा दीं। उनकी मुस्कान में कुछ ऐसा था, जिससे इशिका का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "बधाई हो, मिस मलिक, आप प्रेग्नेंट हैं।" यह सुनते ही इशिका की आँखें चौड़ी हो गईं। "प्रेग्नेंट?" उसने धीमे से दोहराया। वह पल जैसे थम गया था। दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि उसे लगा, शायद डॉक्टर भी सुन सकती हैं। उसकी उंगलियाँ टेबल पर रखी रिपोर्ट के कोनों को कसकर दबाने लगीं। यादें… उसके दिमाग में अचानक से सब कुछ घूमने लगा—वो रात, देवांश, उनका साथ, और अब यह खबर। "ये देवांश का ही बच्चा है…" उसने खुद से बुदबुदाया। हॉस्पिटल की सफेद दीवारें अब उसे ठंडी और भारी लग रही थीं। चारों ओर गूँजती डॉक्टर की हल्की बातचीत उसके कानों में शोर की तरह लग रही थी। सिर झुका तो उसकी अपनी उंगलियाँ हल्के-हल्के कांपती नजर आईं। दिल में न जाने कितनी भावनाएँ उमड़ने लगी थीं—खुशी , एक्साइटमेंट, उलझन, और कहीं न कहीं एक नयी शुरुआत की आहट। थोड़ी देर पहले, वह खुश थी। कितनी सेटिस्फाइड महसूस कर रही थी अपने बिज़नेस को सँभालकर। आज ही उसने एक बड़ी डील साइन की थी, और अब यह खबर उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। ! उसने धीरे-धीरे अपने पर्स से मोबाइल निकाला। खुशी से उसके हाथ अभी भी कांप रहे थे। वह अपने मम्मी-पापा को कॉल लगाने ही वाली थी कि तभी स्क्रीन पर "मम्मा" का नाम चमक उठा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन जैसे ही उसने कॉल रिसीव की, दूसरी तरफ से उसकी मम्मी की घबराई हुई, टूटी-फूटी आवाज़ आई— "इशिका बेटा… तुम्हारे पापा और बुआ का एक्सीडेंट हो गया है! जल्दी हॉस्पिटल आ जाओ!" उसके शरीर से जैसे सारी जान निकल गई। एक पल के लिए उसे लगा कि उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो। "क्या?" उसकी आवाज़ हलक में ही अटक गई। उसके हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा। आँखें चौड़ी हो गईं, दिमाग सुन्न पड़ गया। "मम्मा, पापा और बुआ को कुछ नहीं होगा। आप रिलैक्स रहो, मैं बस आ रही हूँ।" उसने किसी तरह खुद को संभालते हुए कहा, लेकिन उसकी खुद की आवाज़ कांप रही थी। बिना एक पल गंवाए, उसने गाड़ी की चाबी उठाई और हॉस्पिटल से बाहर निकली। गाड़ी स्टार्ट करते हुए उसके हाथ काँप रहे थे। पूरा रास्ता धुंधला लग रहा था, जैसे कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा हो। हॉर्न की आवाज़ें, सड़क की लाइट्स, इधर-उधर दौड़ते लोग—सब कुछ जैसे बैकग्राउंड में चला गया था। उसके दिमाग में बस एक ही चीज़ गूंज रही थी—उसकी मम्मा की कांपती हुई आवाज़। "पापा और बुआ का एक्सीडेंट…" उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा, पर उसने खुद को झटका दिया। अभी कमजोर नहीं पड़ सकती थी। पूरी ताकत से एक्सीलेटर दबाया और हॉस्पिटल की ओर गाड़ी दौड़ा दी। हॉस्पिटल के गेट पर पहुँचते ही उसने बिना किसी देरी के गाड़ी रोकी और अंदर भागी। जैसे ही उसने इमरजेंसी वार्ड में कदम रखा, उसकी मम्मी दौड़ती हुई आईं और उसे कसकर गले लगा लिया। उनकी साड़ी अस्त-व्यस्त थी, चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था, और पूरा शरीर काँप रहा था। "इशिका… बेटा… तेरे पापा… तेरी बुआ…" उनकी आवाज़ इतनी टूटी हुई थी कि शब्द भी साथ छोड़ रहे थे। इशिका ने अपने आंसू रोकते हुए, खुद को मजबूत बनाते हुए, उनकी पीठ सहलाई और धीमे स्वर में बोली— "मम्मा, पापा को कुछ नहीं होगा… और बुआ को भी नहीं। मैं यहाँ हूँ, सब ठीक होगा।" पर उसके खुद के दिल की धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं। डर अंदर ही अंदर उसे खा रहा था। वह कांपते कदमों से ऑपरेशन थिएटर की ओर बढ़ी, जहाँ उसके पापा और बुआ की जान दांव पर लगी थी…
अस्पताल के गलियारे में हल्की-हल्की दवाइयों की गंध फैली हुई थी। चारों तरफ भागते-दौड़ते डॉक्टर, नर्सें, स्ट्रेचर पर ले जाए जा रहे मरीज और उनके रोते-बिलखते रिश्तेदार माहौल को और भी भारी बना रहे थे। हर तरफ सिर्फ दर्द, बेचैनी और उम्मीद की टूटी-बिखरी झलकें थीं। दीवारों पर लगे इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटर की बीप-बीप करती आवाज़ें माहौल में अजीब-सा तनाव भर रही थीं। इन्हीं सब के बीच, एक मासूम सा बच्चा, महज 12 साल का साहिल, भीड़ के बीच से दौड़ता हुआ इशिका के पास आया। उसकी साँसे तेज़ चल रही थीं, आँखें लाल और सूजी हुई थीं, और गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें बनी हुई थीं। उसने बिना एक पल गँवाए इशिका की कमर के चारों ओर अपने नन्हें-नन्हें हाथ लपेट दिए और पूरी ताकत से उससे लिपट गया, जैसे उसे डर था कि अगर वह उसे छोड़ देगा तो उसकी दुनिया ही बिखर जाएगी। उसकी हल्की सिसकियों के बीच एक काँपती हुई मासूम आवाज़ निकली, "दी, मम्मा को कुछ होगा तो नहीं न?" उसकी आवाज़ में एक डर था, एक उम्मीद थी, और एक ऐसी मासूमियत थी जिसने इशिका का दिल अंदर तक झकझोर दिया। साहिल की उंगलियाँ कसकर उसकी शर्ट को पकड़ चुकी थीं, जैसे अगर उसने पकड़ छोड़ी, तो कुछ बहुत बुरा हो जाएगा। इशिका की आँखों में भी आँसू भर आए, लेकिन उसने उन्हें ज़बरदस्ती रोक लिया। उसे साहिल के सामने खुद को मज़बूत दिखाना था। उसने साहिल के छोटे-छोटे बालों में धीरे से उंगलियाँ फेरीं और उसके काँपते कंधों को सहारा दिया। वह हल्के से मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान में वो विश्वास नहीं था, जो वह साहिल को देना चाहती थी। फिर भी, उसने खुद को मज़बूत बनाया और प्यार भरे लहज़े में कहा, "साहिल बच्चा, बुआ को कुछ नहीं होगा। देखना, कुछ ही देर में ठीक होकर तुम्हें होमवर्क न करने के लिए डांटने लगेंगी।" साहिल ने हल्के-हल्के सिर हिलाया, लेकिन उसके चेहरे से साफ़ झलक रहा था कि वह इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। उसकी छोटी उंगलियाँ अभी भी इशिका की हथेलियों को कसकर पकड़े हुई थीं, मानो वह छोड़ देगा तो सब कुछ बिखर जाएगा। साहिल, इशिका की बुआ सुमित्रा मालिक का इकलौता बेटा था। सुमित्रा जी के पति की मृत्यु के बाद से वह अपने मायके में ही रह रही थीं। उन्होंने अकेले ही साहिल को पाला था, उसे एक अच्छे स्कूल में डाला, उसके हर सपने को पूरा किया, और उसके लिए माँ और पिता दोनों बन गईं। मालिक परिवार में उनकी खास जगह थी, उनकी उपस्थिति घर में एक मजबूत स्तंभ की तरह थी। साहिल के लिए उसकी माँ सिर्फ माँ नहीं, उसकी पूरी दुनिया थी। वह हमेशा कहता था कि "मम्मा, जब आप पास होती हो तो मुझे किसी चीज़ का डर नहीं लगता।" पर आज, पहली बार, वह डरा हुआ था। बहुत ज्यादा। कुछ ही देर बाद, ऑपरेशन थिएटर (ओटी) का लाल बल्ब बंद हो गया और दरवाज़ा धीरे से खुला। इशिका, साहिल, और सविता जी की धड़कनें तेज़ हो गईं। बाहर आते डॉक्टर के चेहरे की गंभीरता ने ही बहुत कुछ कह दिया था, लेकिन इशिका अब भी उम्मीद का एक आखिरी सहारा लिए खड़ी थी। डॉक्टर ने गहरी सांस ली, उनकी आँखों में अफसोस था, चेहरे पर गहरी चिंता की रेखाएँ थीं। उन्होंने आँखें झुका लीं और फिर एक भारी आवाज़ में कहा, "I'm really sorry, हमने मिस मालिक को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनका खून बहुत ज्यादा बह चुका था और सर पर चोट भी गहरी थी। अब उनके पास बहुत ही कम समय है। आप अंदर जाकर उनसे आखिरी बार मिल सकते हैं।" डॉक्टर के ये शब्द सुनते ही समय जैसे थम गया। इशिका के दिल को एक गहरा झटका लगा, उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े। उसके कानों में डॉक्टर के शब्द गूंज रहे थे, लेकिन दिमाग मानने को तैयार नहीं था। सविता जी की आँखों से आँसू झरने लगे, और वह रोते हुए अपनी साड़ी के पल्लू से उन्हें पोंछने लगीं। पर सबसे ज्यादा टूटने वाला दृश्य था साहिल का। डॉक्टर की बात सुनते ही उसने अपनी आँखें चौड़ी कर लीं, उसका चेहरा बिल्कुल सफेद पड़ गया, होंठ कांपने लगे। कुछ पलों तक वह एकदम सुन्न खड़ा रहा, मानो समझ ही नहीं पा रहा कि डॉक्टर ने क्या कहा। फिर, अचानक, उसकी साँसें तेज़ होने लगीं और वह ज़ोर से चीख पड़ा, "नहीं... मम्मा को कुछ नहीं होगा!" उसने इशिका की बाहों में अपना चेहरा छुपा लिया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसकी रुलाई इतनी दर्दनाक थी कि वहाँ खड़े बाकी लोग भी अपनी आँखें पोंछने लगे। इशिका ने उसे कसकर गले से लगा लिया, लेकिन इस बार वह खुद भी टूट चुकी थी। उसके अंदर जैसे सब कुछ बिखर रहा था, लेकिन उसने खुद को संभाला। उसने अपने आँसू पोंछे, एक गहरी सांस ली और साहिल के सिर पर हल्की थपकी देते हुए कहा, "चलो, बुआ के पास चलते हैं..." साहिल की रुलाई और बढ़ गई, लेकिन इशिका ने उसका हाथ थामा और धीरे-धीरे उसे ऑपरेशन थिएटर के अंदर ले जाने लगी। यह आखिरी मुलाकात होने वाली थी... तीनों ओटी में पहुंचे। सुमित्रा जी बेहोश थीं, मगर जब उन्होंने हल्की आहट सुनी तो बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में दर्द, प्यार और एक माँ की चिंता साफ झलक रही थी। उन्होंने कांपते हाथों से इशारा किया कि वे उनके पास आएं। "साहिल बच्चा," सुमित्रा जी की आवाज़ बेहद धीमी थी, मगर उनकी ममता की गर्माहट अब भी थी, "अब ज्यादा मस्ती मत करना और मामी, मामू और इशिका दीदी को परेशान मत करना।" साहिल की आँखों से लगातार आँसू गिर रहे थे। उसने अपनी मम्मा का हाथ कसकर पकड़ा और रोते हुए बोला, "मम्मा, मैं बिल्कुल भी शैतानी नहीं करूंगा। आप प्लीज ठीक हो जाओ ना।" सुमित्रा जी ने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर सविता जी की तरफ देखा, "सविता दी, मेरे जाने के बाद साहिल का अच्छे से ध्यान रखना। उसे कभी मेरी याद मत आने देना।" फिर उन्होंने इशिका का हाथ पकड़ा, "इशिका बेटा, तुम सबका ख्याल रखना और अपने पापा की हर काम में मदद करना। भाई छोटी-छोटी बात पर टेंशन लेने लगते हैं।" इशिका ने रोते हुए उनका हाथ कसकर पकड़ लिया, "बुआ, मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी।" लेकिन इससे पहले कि वह कुछ और कह पाती, सुमित्रा जी ने अपनी आखिरी सांस ले ली। उनकी पकड़ ढीली पड़ गई, और उनके चेहरे पर एक अजीब सी शांति आ गई। इशिका का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने हड़बड़ी में डॉक्टर को बुलाया और उनसे सुमित्रा जी को चेक करने के लिए कहा। डॉक्टर ने उनकी नब्ज देखी और एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "She is no more." साहिल इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। उसने जोर से रोते हुए इशिका को गले लगा लिया। इशिका, सविता जी और साहिल को ओटी से बाहर लेकर आई। उसके चेहरे पर अब कोई इमोशन नहीं था। उसकी आँखों में सिर्फ एक खालीपन था, एक दर्द था जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। अभी वे इस सदमे से बाहर भी नहीं आए थे कि तभी उसके पापा के ओटी से डॉक्टर बाहर आए और बोले, "मिस मालिक, मिस्टर मालिक की हालत अब स्टेबल है।" यह सुनकर इशिका के दिल को थोड़ी राहत मिली। कम से कम उसके पापा अभी ठीक थे। रात को डॉक्टर ने उन्हें घर जाने की सलाह दी क्योंकि मिस्टर मालिक को फिलहाल आईसीयू में रखा गया था। घर आकर इशिका ने खुद खाना बनाया। उसने अपनी मम्मा और साहिल को अपने हाथों से खाना खिलाया, लेकिन खुद एक निवाला भी नहीं खाया। रात भर कोई भी सो नहीं पाया। दर्द, सदमा, और चिंता – तीनों ही उनके दिल और दिमाग में उमड़ रहे थे। भावनाओं के सागर में डूबी इशिका सारा घर सो चुका था। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन इशिका की आँखों में नींद दूर-दूर तक नहीं थी। वह अपने कमरे में गई और चुपचाप बालकनी में खड़ी हो गई। हल्की ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था। उसकी नजरें आसमान में चमकते चाँद पर टिक गईं, मानो कोई जवाब तलाश रही हो। उसने धीरे से अपने पेट पर हाथ रखा, हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखों में नमी थी। धीमे से फुसफुसाई, "बेबी, देखा कैसे कुछ घंटों में सब बदल गया? मैं पापा को तुम्हारे आने की खुशखबरी देना चाहती थी, और मुझे उनके एक्सीडेंट की खबर मिल गई। बुआ को नहीं बचा पाई, लेकिन पापा ठीक हैं। देखना, जब वे ठीक होंगे तो सबसे ज्यादा प्यार तुम्हें ही करेंगे।" उसकी आवाज़ में उम्मीद थी, लेकिन गहराई में कहीं एक डर भी छुपा हुआ था। वह खुद को दिलासा दे रही थी, खुद को यह यकीन दिलाने की कोशिश कर रही थी कि अब सब ठीक हो जाएगा। थकान ने धीरे-धीरे उसकी पलकें भारी कर दीं, और आखिरकार वह बिस्तर पर जाकर सो गई। पर किसे पता था कि यह सुकून भरी नींद ज्यादा देर तक नहीं टिकेगी... टूटते सपनों की आहट सुबह के चार बजे अचानक उसका फोन बज उठा। वह घबराकर उठ बैठी। फोन की स्क्रीन पर हॉस्पिटल का नंबर देखकर उसकी सांसें अटक गईं। कांपते हाथों से उसने कॉल उठाई। दूसरी तरफ डॉक्टर की गंभीर आवाज़ सुनते ही उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। "मिस मालिक, कल रात तक तो पेशेंट की हालत एकदम सही थी, लेकिन अब उनकी हालत खराब हो रही है और वे बार-बार आपका नाम ले रहे हैं। आप तुरंत आ जाइए।" डॉक्टर के शब्दों ने उसकी रूह तक हिला दी। "नहीं... यह नहीं हो सकता।" उसके दिमाग ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया, लेकिन दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने एक पल भी गँवाए बिना बिस्तर छोड़ा, जल्दी-जल्दी कपड़े पहने और घर से बाहर निकल गई। रात के अंधेरे में सड़कों पर इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही थीं। उसकी टैक्सी हॉस्पिटल की तरफ दौड़ रही थी, लेकिन इशिका को लग रहा था जैसे हर सेकंड उसकी दुनिया के लिए एक ticking bomb बनता जा रहा है। आईसीयू के अंदर का दर्द जैसे ही वह हॉस्पिटल पहुँची, वह बिना किसी को देखे सीधे आईसीयू की तरफ भागी। दरवाज़ा खोलते ही उसकी नजर अपने पापा पर पड़ी। वह पहले से भी ज्यादा कमजोर लग रहे थे। ऑक्सीजन मास्क उनके चेहरे पर था, हाथों में सलाइन लगी थी, और मॉनिटर पर उनकी गिरती धड़कनों की रफ्तार दिखाई दे रही थी। इशिका को देखते ही उनकी बुझती आँखों में थोड़ी चमक आई। उन्होंने कांपते हुए हाथ उठाने की कोशिश की, तो इशिका भागकर उनके पास पहुँची और उनके हाथ को कसकर पकड़ लिया। "पापा..." उसका गला भर आया था। उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े, जिन्हें रोकने की उसने कोशिश भी नहीं की। मिस्टर मालिक ने धीरे से उसकी हथेली थपथपाई, उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन उनकी आवाज़ काँप रही थी। "बेटा..." उन्होंने गहरी सांस ली, मानो हर शब्द बोलने में बहुत ताकत लग रही हो, "मैं तुम्हें इतनी जल्दी छोड़कर जाने वाला हूँ, इसलिए मुझे माफ करना।" "पापा, नहीं... ऐसा मत कहिए। आपको कुछ नहीं होगा। डॉक्टर कह रहे थे कि आप ठीक हैं!" इशिका ने उनकी उंगलियाँ और कसकर पकड़ लीं, मानो उनकी पकड़ ही उन्हें इस दुनिया से बाँध सकती हो। मगर मिस्टर मालिक जानते थे कि उनका समय खत्म हो रहा है। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "मेरे जाने के बाद तुझे ही सब संभालना है। अपनी मम्मा को भी, इस बिजनेस को भी। लेकिन एक बात याद रखना, तुम इस चक्कर में अपना सपना मत छोड़ना – सिंगर बनने का।" इशिका की आँखों से लगातार आँसू गिर रहे थे। "पापा, आप ऐसे बातें क्यों कर रहे हैं? आपको कुछ नहीं होगा।" मगर मिस्टर मालिक की आँखों में एक अजीब सा सुकून था, जैसे उन्हें पता था कि अब उनका सफर खत्म हो रहा है। "बेटा, वादा करो।" उनके काँपते हाथों ने इशिका की उंगलियों को हल्के से दबाया। इशिका ने रोते हुए सिर हिलाया, उसका गला सूख चुका था। आखिरकार उसने टूटे शब्दों में कहा, "पापा, I promise मैं आपकी सारी बातें मानूंगी।" जैसे ही उसने यह वादा किया, मिस्टर मालिक की पकड़ अचानक ढीली पड़ गई। उनके हाथ से इशिका का हाथ छूट गया। एक लम्बी, धीमी बीप की आवाज़ आई। मशीन की स्क्रीन पर एक सीधी लकीर दिखी। "नहीं... पापा!" इशिका की चीख पूरे आईसीयू में गूँज गई। डॉक्टर भागकर अंदर आए, उनकी नब्ज चेक की, और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोले, "मिस इशिका... he is no more." उन शब्दों ने जैसे उसकी दुनिया ही उजाड़ दी। वह सुन्न खड़ी रह गई। उसके कानों में कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। उसकी दुनिया वहीं खत्म हो गई थी... अब इशिका पूरी तरह अकेली थी। साहिल की जिम्मेदारी, अपने घर की जिम्मेदारी, अपने सपनों की जिम्मेदारी – सब उसके कंधों पर था।
हॉस्पिटल – आईसीयू के बाहर इशिका बेजान-सी खड़ी थी। डॉक्टर के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे— "मिस इशिका, he is no more." उसके भीतर कुछ टूटकर बिखर गया। उसके पापा… जो हमेशा उसके साथ थे, जिनकी हंसी पूरे घर को रौशन कर देती थी, अब कभी नहीं बोलेंगे, कभी उसे गले नहीं लगाएंगे। "नहीं… यह सच नहीं हो सकता। कल ही तो डॉक्टर ने कहा था कि वे ठीक हैं, फिर कैसे…?" उसकी आँखें सुनी हो गईं, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। अभी रो नहीं सकती थी। अभी उसे और चीज़ें देखनी थीं। वह गहरी सांस लेकर डॉक्टर की ओर देखी और ठंडे स्वर में बोली— "डॉक्टर, आप सारी फॉर्मेलिटी पूरी कर लीजिए। मैं पापा को भी बुआ के साथ घर ले जाऊंगी।" डॉक्टर उसकी गंभीरता को देखकर थोड़ी देर चुप रहे, फिर सिर हिलाते हुए बोले, "ठीक है, मिस इशिका।" वे वहां से चले गए। हॉस्पिटल के कॉरिडोर में… धीमे कदमों से… एक बोझिल दिल के साथ बाहर आकर इशिका ने अपने फोन से किसी को कॉल लगाया। आवाज़ शांत थी, लेकिन उसमें छुपा दर्द गहरा था। "आरू, दोपहर तक घर आ जाना।" उसने बस इतना ही कहा और बिना कोई और शब्द जोड़े कॉल काट दिया। फोन कटते ही स्क्रीन पर "मम्मा" लिखा चमकने लगा।इशिका ने काँपते हाथों से फोन उठाया।"हेलो, मम्मा।" दूसरी तरफ से माँ की चिंता भरी आवाज़ आई,"बेटा, तुम कहाँ हो? इतनी सुबह-सुबह कहाँ चली गई?" माँ की आवाज़ हमेशा की तरह नरम थी, लेकिन उसमें हल्की बेचैनी थी। उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि अगले कुछ लम्हों में उनकी दुनिया बदलने वाली थी।इशिका ने गहरी सांस ली, अपनी आँखें बंद कीं और खुद को मजबूत करते हुए एक ही सांस में सब कुछ कह दिया। दूसरी तरफ… सन्नाटा।कोई हलचल नहीं, कोई आवाज़ नहीं।"मम्मा?" उसने धीरे से पुकारा।लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया।सविता जी के हाथ काँपने लगे थे। फोन उनकी पकड़ से ढीला होने लगा। आँखों से आँसू गिरने लगे।उनके हमसफ़र… उनके जीवन का सबसे मजबूत सहारा… अब नहीं रहे। उनकी दुनिया अचानक खाली हो गई थी।इशिका जानती थी कि यह खबर माँ के लिए तोड़ देने वाली थी, लेकिन वो खुद को कमजोर नहीं कर सकती थी।उसे सब कुछ संभालना था। उसने एक पल के लिए आँखें बंद कीं, अपने आँसुओं को आँखों में ही कैद किया और दृढ़ स्वर में कहा— "मम्मा, मैंने आरू को कॉल कर दिया है। वो घर आ रही है। आप उसे संभाल लेना। मैं पापा और बुआ को लेकर आ रही हूँ।" इसके बाद बिना कोई और शब्द कहे उसने कॉल काट दिया। इस वक्त उसे खुद को भी संभालना था… और अपने परिवार को भी। सारी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद, दोनो शवों को एंबुलेंस में रखा गया। सफेद कपड़ों में लिपटे हुए… जैसे एक अनकही कहानी खत्म हो गई हो। इशिका अपनी कार में बैठी, एंबुलेंस के पीछे-पीछे घर की ओर चल पड़ी। रास्ते भर उसकी आँखें आगे देख रही थीं, लेकिन दिमाग कहीं और था—पिछली यादों में… अपने पापा की हंसी, उनकी सीख, उनका प्यार… और अब, वही चेहरा एक सफेद कपड़े में लिपटा हुआ था। जैसे ही एंबुलेंस घर पहुँची, माहौल चीख-पुकार से भर गया। सविता जी बेसुध हो गईं। आरू दौड़ती हुई आई और अपनी बहन से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। साहिल भी खुद को संभाल नहीं पाया। लेकिन इशिका… वो बस खड़ी रही—बिलकुल शांत। "इशू, पापा चले गए…" आरू के काँपते शब्दों ने माहौल और भारी कर दिया। लेकिन इशिका ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखें सूखी थीं। वो अंदर ही अंदर टूट चुकी थी, लेकिन बाहर से एक पत्थर की तरह खड़ी थी। सारा क्रियाकर्म हुआ। बुआ की चिता को साहिल ने अग्नि दी। और पापा की… इशिका और आरू ने कांपते हाथों से उन्हें अंतिम विदाई दी। चारों तरफ बस रोने की आवाज़ें थीं। लेकिन इशिका का चेहरा अब भी सख्त था। उसने अपने आँसू नहीं बहाए।उसे रोने की इजाज़त नहीं थी।उसे सब संभालना था।तेहरवीं के बाद… घर में अभी भी गम का माहौल था। लेकिन जिम्मेदारियाँ इंतज़ार नहीं करतीं।इशिका ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था। लेकिन वहाँ एक नई मुसीबत थी—उसके सौतेले चाचा, माधव। अब जब उसके पापा नहीं रहे, तो माधव जी पूरे बिज़नेस पर कब्ज़ा करना चाहते थे । l उन्हें उनकी पूरीप्रॉपर्टी और कंपनी के शेयर चाहिए थे। लेकिन इशिका भी इतनी आसान शिकार नहीं थी। उसने ठान लिया था—वो पापा की बनाई हुई इस कंपनी को किसी गलत हाथों में नहीं जाने देगी। कुछ दिन बाद… सुबह की हल्की रोशनी कमरे में आ रही थी। इशिका बालकनी में खड़ी थी। हल्की ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी। उसने अपने पेट पर हाथ रखा और धीमी आवाज़ में फुसफुसाई— "बेबी, आज मैं मम्मा और आरू को तुम्हारे बारे में बता दूंगी। उन्हें यह खबर सुनकर खुशी होगी, और शायद इतने दिनों बाद मैं उनके चेहरे पर मुस्कान देख पाऊँ।" उसके होठों पर हल्की मुस्कान आई। अब वो सिर्फ़ खुद के लिए नहीं, अपने इस नन्हे से मेहमान के लिए भी जी रही थी। नाश्ते की टेबल पर… वो तैयार होकर नीचे आई। टेबल पर उसकी मम्मा ,साहिल और आरू बैठे हुए थे। घर का माहौल अब भी भारी था, लेकिन धीरे-धीरे सबकुछ नॉर्मल हो रहा था। इशिका ने ब्रेकफास्ट खत्म किया और गहरी सांस लेते हुए बोली— "मम्मा, आरू, मुझे आप दोनों से एक जरूरी बात करनी है।" दोनों ने उसकी तरफ देखा। "मैं प्रेग्नेंट हूँ।" एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। आरू की आँखें चौड़ी हो गईं, सविता जी भी कुछ सेकंड तक कुछ नहीं बोल पाईं। फिर आरू खुशी से उछल पड़ी और दौड़कर अपनी बहन को गले लगा लिया। "इशू, यह सच है? ओह गॉड! मैं मासी बनने वाली हूँ!" सविता जी की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन इस बार ये आँसू ग़म के नहीं, खुशी के थे। उन्होंने अपनी बेटी को प्यार से गले लगा लिया । वो इतना जरूर जानती थी उनकी बेटी कभी कोई गलत काम नहीं कर सकती इशिका की आँखों में नमी आ गई। वो अपने पापा को भी ये न्यूज देना चाहती थी पर वो उससे पहले ही चले गए । उसे अकेले छोड़ लेकिन अब, वो अपनी इस नई जिम्मेदारी को पूरी ताकत से निभाएगी। अब वो सिर्फ़ एक बेटी नहीं थी… अब वो एक माँ भी बनने वाली थी। और यह सफर, अब सिर्फ़ उसकी नहीं, उसके बेबी की भी कहानी बनने वाली थी।वो अपनी मम्मी ओर आरु यानि आरोही को सब बताती हैं। अब इशिका की फैमिली के बारे ने जानते हैं । इशिका मलिक का परिवार पुराने समय से बिज़नेस से जुड़ा हुआ था। उसके दादाजी केशव मलिक एक जाने-माने बिजनेसमैन थे। उनकी पहली पत्नी का देहांत तब हो गया था जब उनके बच्चे छोटे थे। परिवार और बिज़नेस को संभालने के लिए उन्होंने दूसरी शादी संध्या मलिक से की। लेकिन संध्या कभी भी उनकी पहली पत्नी के बच्चों को अपना नहीं पाई। परिवार के सदस्य: 1. केशव मलिक (दादाजी): मलिक ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के फाउंडर, एक सख्त लेकिन न्यायप्रिय व्यक्ति थे। 2. संध्या मलिक (दूसरी दादी): स्वार्थी स्वभाव की महिला, जिन्होंने हमेशा अपने बेटे का साथ दिया और पहली पत्नी के बच्चों से कभी लगाव नहीं रखा। 3. अमर मलिक (इशिका के पिता): एक नेकदिल और सफल बिज़नेसमैन, जिन्होंने अपने परिवार को हमेशा आगे रखा। अपने पिता की कंपनी को आगे बढ़ाया और उसे नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। 4. रश्मि मलिक (अमर की बहन, इशिका की बुआ): बहुत दयालु महिला, जिन्होंने अमर के साथ मिलकर बिज़नेस को संभाला और अपनी संपत्ति का हिस्सा अमर को दिया, जिससे माधव उनसे नफरत करने लगा। 5. माधव मलिक (सौतेला चाचा): केशव मलिक और संध्या मलिक का बेटा। लालची, चालाक और बिज़नेस पर कब्ज़ा करने की चाह रखने वाला इंसान। उसने अमर और रश्मि की हत्या करवाने की साजिश रची थी। 6. सविता मलिक (इशिका की माँ): बहुत शांत और सहनशील स्वभाव की महिला, जो हमेशा अपने परिवार के लिए बलिदान देती रही। 7. आरोही "आरू" मलिक (इशिका की जुड़वा बहन): बहुत चंचल और मासूम लड़की, जिसने अपने पिता को बहुत प्यार किया। पिता की मौत के बाद पूरी तरह से टूट गई थी। 8. साहिल मलिक (इशिका का कजिन भाई): अभी स्कूल में पढ़ाई कर रहा था। बहनों से बहुत प्यार करता था लेकिन बहुत ज्यादा समझदार नहीं था। 9. इशिका मलिक : अपने पिता के सबसे करीब रही। पिता की मौत के बाद उसने खुद को मजबूत बनाया और बिज़नेस की जिम्मेदारी संभालने का फैसला किया। माधव हमेशा से अमर और रश्मि से जलता था क्योंकि उनके पास ज्यादा प्रॉपर्टी और बिज़नेस शेयर थे। जब उसे यह एहसास हुआ कि वह अपने पिता के जायदाद का बड़ा हिस्सा नहीं ले सकता, तो उसने अमर और रश्मि का एक्सीडेंट करवाया। लेकिन अमर बच गए। अस्पताल में माधव ने एक नर्स को रिश्वत देकर अमर को गलत इंजेक्शन दिलवा दिया, जिससे उनकी मौत हो गई। लेकिन यह काम इतनी सफाई से किया गया था कि किसी को भी उस पर शक नहीं हुआ और अमर की मौत को मेडिकल नेचुरल डेथ घोषित कर दिया गया। अब माधव कंपनी को पूरी तरह से हथियाना चाहता था और उसके लिए उसने कई चालें चलीं। लेकिन उसे यह अंदाजा नहीं था कि इशिका इतनी आसानी से हार नहीं मानेगी।
इशिका मलिक, 19 साल की यंग और इंटेलिजेंट लड़की , आज उसे खुद को साबित करना था कि अपने पापा के बाद वो इस कंपनी को संभाल सकती हैं। ऑफिस पहुंचते ही उसकी सेक्रेटरी लिली आई और बोली, "मैम, सारे शेयरहोल्डर्स मीटिंग हॉल में आपका इंतजार कर रहे हैं। वे आपसे बात करना चाहते हैं।" इशिका, जो पहले ही उनकी नाराजगी भांप चुकी थी, बिना कोई सवाल किए अपनी चेयर से उठी और आत्मविश्वास से भरे कदमों के साथ मीटिंग हॉल की ओर बढ़ी। वहां पहुँचते ही उसने देखा कि सभी शेयरहोल्डर्स के चेहरे पर असंतोष साफ झलक रहा था। जैसे ही इशिका अपनी सीट पर बैठी, एक शेयरहोल्डर खड़ा हुआ और सख्त लहजे में बोला, "मिस मलिक, हम सीईओ बदलना चाहते हैं।" दूसरा शेयरहोल्डर भी बोल पड़ा, "हां, हम चाहते हैं कि हमारा पैसा एक भरोसेमंद इंसान के हाथों में हो। हमें लगता है कि आप इस पद के लिए अभी योग्य नहीं हैं।" धीरे-धीरे सभी शेयरहोल्डर्स ने अपनी राय रखी, और उनकी बातों से यह साफ हो गया कि वे इशिका को उसकी पोजीशन से हटाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। वहीं, कमरे के एक कोने में बैठा माधव, जो हमेशा से इशिका को नीचे गिराना चाहता था, यह सब देखकर खुश हो रहा था। लेकिन इशिका ने खुद पर पूरी तरह काबू रखा। उसने शांति से उनकी बातें सुनीं और फिर ठंडी आवाज़ में कहा, "अगर आप सभी का कहकर हो गया हो, तो अब मेरी बात भी सुन लीजिए।" पूरा हॉल एकदम शांत हो गया। सबकी नजरें अब इशिका पर थीं। वह गंभीर स्वर में बोली, "मुझे पता है कि आप सभी को मुझ पर भरोसा नहीं है, और इसकी सबसे बड़ी वजह मेरी उम्र है। लेकिन मैं आपसे सिर्फ 6 महीने मांगती हूं। अगर इन 6 महीनों में मैं खुद को साबित नहीं कर पाई, तो मैं खुद इस पद से इस्तीफा दे दूंगी।" शेयरहोल्डर्स ने एक-दूसरे की ओर देखा और आपस में चर्चा करने लगे। कुछ देर बाद एक शेयरहोल्डर खड़ा हुआ और कहा, "ठीक है, 6 महीने में अगर आपने हमारा भरोसा जीत लिया, तो हम खुद आपको पूरी तरह से स्वीकार कर लेंगे।" इसके बाद सभी एक-एक करके मीटिंग रूम से बाहर निकल गए। इशिका अपने केबिन में आई और थककर चेयर पर बैठ गई। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और धीरे से कहा, "देवांश, अब मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकती… लेकिन बहुत जल्द तुम्हारे पास आ जाऊंगी।" इसके बाद वह अपने काम में लग गई। समय पंख लगाकर उड़ गया, और इशिका ने खुद को साबित कर दिया। इन छह महीनों में उसने अपनी मेहनत से कंपनी को नए मुकाम तक पहुंचाया। लेकिन इसी बीच उसे पता चला कि उसकी बहन आरोही के दिल में छेद है, और उसे हार्ट सर्जरी की जरूरत है। इशिका ने हिम्मत नहीं हारी। उसने दुनिया के सबसे अच्छे डॉक्टर से आरोही का इलाज करवाया। और जब उसकी प्रेग्नेंसी के नौ महीने पूरे हुए, तो उसने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया—एक बेटा और एक बेटी। अब इशिका ने दुनिया के सामने आना लगभग बंद कर दिया था। उसकी पहचान सिर्फ उसके नाम से थी, और उसका चेहरा बिजनेस इंडस्ट्री में बहुत कम लोगों ने देखा था। चार साल बाद... बड़े से विला के अंदर हल्की धूप खिड़की से छनकर अंदर आ रही थी। घड़ी सुबह के सात बजा रही थी। इशिका बिजनेस सूट पहने सीढ़ियों से नीचे उतरी, उसकी चाल में वही पुराना आत्मविश्वास था। उसने हाथ में पकड़ा अपना फोन डाइनिंग टेबल पर रखा और कुर्सी खींचकर बैठ गई। अभी उसने अपनी कॉफी का पहला घूंट ही लिया था कि छोटे-छोटे नंगे पैरों की आवाज़ पूरे हॉल में गूंज उठी। नन्हें कदमों की वो हलचल उसके कानों में जैसे कोई मीठा संगीत बजा रही थी। "गुड मॉर्निंग, मम्मा!" एक प्यारी, मासूम सी आवाज़ ने उसके दिल को हल्का कर दिया। उसने ऊपर देखा, तो दो छोटे-छोटे नन्हे फरिश्ते उसकी तरफ दौड़ते चले आ रहे थे—चार साल का चीकू और एंजल। चीकू हल्के भूरे, घुंघराले बालों वाला शैतान था, उसकी आंखें बिल्कुल इशिका जैसी थी—गहरी और राज़ छुपाने वाली। चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लिए, वो पूरे जोश में इशिका की गोद में चढ़ने की कोशिश कर रहा था। वहीं एंजल एकदम उसके उलट थी—लंबे, सीधे सिल्की बाल, बड़ी-बड़ी चमकती हुई आंखें, और चेहरे पर हल्की मासूमियत। वह उतनी ही शांत थी, जितना चीकू चुलबुला। इशिका ने प्यार से उनके सिर पर हाथ फेरा, चीकू को अपनी गोद में खींच लिया और एंजल को भी अपनी कुर्सी के पास बुलाया। "गुड मॉर्निंग, चीकू और एंजल।" चीकू ने अपनी छोटी-छोटी बाहें फैलाकर उसे कसकर गले लगा लिया। "मम्मा, मैंने सपना देखा कि हम तीनों सुपरहीरोज़ हैं, और हमने सारे बैड लोग को हरा दिया!" उसने अपनी तोतली आवाज़ में बड़े गर्व से कहा। एंजल उसकी शरारतों को देखते हुए मुस्कुरा दी और अपने छोटे-छोटे हाथों से एक टोस्ट उठाने लगी। "मम्मा, चीकू झूठ बोल रहा है। उसे हमेशा अजीब सपने आते हैं।" इशिका ने हंसते हुए चीकू की नाक को हल्के से दबाया। "मेरे सुपरहीरो, पहले ब्रेकफास्ट कर लो, फिर मुझे तुम्हारी एडवेंचर स्टोरी सुननी है।" बच्चों को तैयार करने के बाद, इशिका उन्हें किंडरगार्टन छोड़ने गई। जब वह दोनों को स्कूल के दरवाजे पर छोड़ रही थी, तब चीकू ने अपनी छोटी उंगलियों से उसका हाथ पकड़ लिया। "मम्मा, आप जल्दी आओगी ना?" इशिका हल्के से झुककर उसकी ऊंचाई तक आई और प्यार से उसकी ठोड़ी को ऊपर किया। "हमेशा।" वह मुस्कुराई, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी नर्मी थी। उसने एंजल के गाल को चूमा और दोनों को स्कूल के अंदर जाते हुए देखती रही, जब तक कि वे उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गए। इसके बाद वह अपने ऑफिस पहुंची, जहां लिली पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। "मैम, इस बार भी हमारी कंपनी एशिया की टॉप 3 कंपनियों में से एक है, और कल आपको 'बेस्ट बिजनेसवुमन' अवॉर्ड मिला है।" इशिका ने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कहा, "लिली, अब काम की बात बताओ।" लिली ने तुरंत जवाब दिया, "मैम, ठाकुर ग्रुप बिजनेस कोलैबोरेशन के लिए मीटिंग रखना चाहता है।" "ठाकुर..." नाम सुनते ही इशिका का दिल एक अजीब हलचल से भर गया। उसका दिमाग चार साल पीछे भागने लगा, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया। "लिली, उनके साथ अगले हफ्ते की मीटिंग शेड्यूल कर दो।" उसकी आवाज़ में वही ठहराव था, वही सख्ती। लेकिन अंदर कहीं हल्की सी बेचैनी उठी थी। ठाकुर ग्रुप से जुड़ा नाम… जो कभी उसका सब कुछ हुआ करता था, अब एक बिजनेस मीटिंग तक सीमित रह गया था। रात के आठ बजे, इशिका अपने स्टडी रूम में बैठी थी। लैपटॉप की स्क्रीन पर ढेरों फाइलें खुली थीं, और वह पूरी तल्लीनता से काम कर रही थी। टेबल लैंप की रोशनी उसके चेहरे को हल्का सा चमका रही थी, लेकिन उसकी आँखों में वही पुरानी गंभीरता थी, जो उसके बिजनेस डिस्कशंस के दौरान रहती थी। तभी दरवाजा खुला और आरोही अपनी चिर-परिचित एनर्जी के साथ अंदर आई। "इशू, मेरे साथ चलो!" इशिका ने सिर उठाया, हल्का भौंहें चढ़ाईं और सवाल किया, "कहाँ? और तुम न्यू प्रोजेक्ट एक्सेप्ट क्यों नहीं कर रही हो?" आरोही ने नाटकीय अंदाज़ में हाथ हिलाया, "इस पर बाद में बात करेंगे, पहले तुम जल्दी से मेरे साथ चलो!" इशिका ने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन कहाँ?" आरोही मुस्कुरा दी, उसकी आंखों में शरारत झलक रही थी। "इशू, तुम कितने सवाल करती हो! सरप्राइज़ है, बस जल्दी से रेडी हो जाओ।" फिर उसने एक बैग पकड़ाया, "पहले ये कपड़े बदलो!" इशिका बहस करने के मूड में नहीं थी। उसने बैग लिया और अपने कमरे में चली गई। जब वह बाहर आई, तो आरोही उसे देखकर हल्का सा हक्का-बक्का रह गई। दोनों बहनों ने लाइट ब्लू ड्रेस पहनी थी, लेकिन स्टाइल बिल्कुल अलग था। इशिका ने स्लिट वाली लॉन्ग सिल्क गाउन पहनी थी, जो उसके परफेक्ट फिगर को उभार रही थी। गाउन की ऑफ-शोल्डर डिजाइन उसकी कॉलर बोन को खूबसूरती से निखार रही थी, और उसके लंबे, वेवी बाल उसके कंधों पर बिखरे हुए थे। उसने लाइट मेकअप किया था—हल्का ब्लश, न्यूड लिपस्टिक और आईलाइनर, जो उसकी शार्प आँखों को और उभार रहा था। उसने सिल्वर हाई हील्स पहनी थी, और उसके हाथ में एक स्टोन-स्टडेड क्लच था। आरोही ने शॉर्ट, बैकलेस बॉडीकॉन ड्रेस पहनी थी, जो उसके कर्वी फिगर को परफेक्ट लुक दे रही थी। उसके कर्ली बाल खुले थे, और उसने रेड लिपस्टिक के साथ थोड़ा बोल्ड लुक रखा था। उसके कानों में डायमंड इयररिंग्स चमक रहे थे, और उसने हाई हील्स के साथ मैचिंग ब्रैसलेट पहना था। आरोही ने शरारत से आंख मारी, "यू आर बेस्ट सिस्टर!" क्लब के अंदर जैसे ही दोनों घुसीं, डिस्को लाइट्स और तेज़ म्यूजिक ने पूरी एनर्जी बढ़ा दी। क्लब का माहौल हाई क्लास था—नीली और पर्पल लाइट्स, बार के पीछे ग्लास शेल्फ्स में सजे ड्रिंक्स, और चारों तरफ महंगे ब्रांड्स पहने लोग। जैसे ही दोनों बहनें अंदर आईं, लड़कों की निगाहें उन पर टिक गईं। दोनों का लाइट ब्लू आउटफिट और कॉन्फिडेंस उन्हें और भी ग्लैमरस बना रहा था। दोनों बार काउंटर के पास गईं और ऑरेंज मॉकटेल ऑर्डर किया। आरोही ने इशिका की ओर झुककर फुसफुसाया, "बहुत नजरें आ रही हैं इधर!" इशिका ने कंधे उचका दिए, "आदत हो गई है!" देवांश का नज़रअंदाज़ न कर पाना लेकिन एक शख्स था जो उन्हें सिर्फ ‘देख’ नहीं रहा था, बल्कि गौर से देख रहा था—देवांश राठौर। देवांश, जिसने अब तक कभी किसी लड़की को नोटिस नहीं किया था, आज उसकी आंखें खुद ब खुद इशिका पर टिक गईं। नेवी ब्लू फॉर्मल शर्ट, फुल स्लीव्स फोल्डेड, ब्लैक पैंट्स और टाइट फिट जैकेट, उसके स्टाइल में वही क्लास था, जो उसके नाम के साथ जुड़ा था। लेकिन इस वक्त उसके दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल था—वह लड़की कौन है? डांस फ्लोर पर इशिका और आरोही मस्ती में नाच रही थीं। इशिका अपने बालों को हल्के से पीछे करती, तो उसकी डायमंड स्टड्स लाइट्स में चमक उठतीं। उसकी आँखों में एक अजीब सा जुनून था, जैसे सालों से उसने खुद को सिर्फ काम में बिजी रखा था और आज कुछ घंटों के लिए आज़ाद महसूस कर रही थी। देवांश के दोस्त ने उसे कंधे पर हल्का सा धक्का दिया, "भाई, तू क्या देख रहा है?" देवांश ने खुद को सँभाला, लेकिन उसकी नज़रें फिर भी इशिका से नहीं हटीं। "कुछ नहीं… बस कोई पुरानी याद आ गई।" लेकिन सच यह था कि उसे आज पहली बार किसी को देखकर दिल की धड़कन तेज़ होती महसूस हुई थी। दो घंटे बाद, जब इशिका और आरोही क्लब से बाहर निकलीं, देवांश ने भी उनका पीछा किया। लेकिन ठीक तभी उनकी कार स्टार्ट हुई और वे आगे निकल गईं। देवांश बस उनकी तेज़ी से दूर जाती हुई परछाईं देख सका। उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली और हल्का मुस्कुराया। "शायद यह आखिरी मुलाकात नहीं थी, मिस…" वह अपना वाक्य पूरा नहीं कर सका, क्योंकि उसे खुद नहीं पता था कि वह उसका नाम भी जानता है या नहीं। आरोही ने कार लेक साइड पर रोकी। चांद की रोशनी पानी पर पड़ रही थी, और माहौल एकदम शांत और सुकून भरा लग रहा था। इशिका अपने फोन पर किसी ज़रूरी कॉल पर बात करने के लिए थोड़ी दूर चली गई। तभी देवांश अपनी कार पार्क करके वहां उतरा। उसे यह पता भी नहीं था कि उसके कदम खुद-ब-खुद उस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहाँ उसकी नज़रों ने किसी को देखा था। बेंच पर बैठी लड़की उसकी तरफ पीठ किए हुए थी। लाइट ब्लू ड्रेस, खुले बाल और हल्की हवा में उड़ते स्ट्रैप्स—चांदनी में उसका चेहरा देवांश की नजरों से छिपा नहीं रह सका। उसकी आँखें वहीं ठहर गईं। "कौन है यह?" उसके मन में सवाल उठा, लेकिन उसके कदम अपने आप पीछे हो गए। देवांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा, और फिर वापस मुड़ गया। क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक था? या फिर किस्मत की कोई चाल? क्योंकि कहानी अब शुरू हुई थी...
रात का वक्त था, चारों तरफ शांति पसरी हुई थी। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, जो माहौल को और भी सुकूनभरा बना रही थी। आसमान में चांद अपनी पूरी रोशनी बिखेर रहा था, और उसकी चमक झील के पानी में पड़कर उसे चांदी की तरह दमका रही थी। इशिका कॉल रख आरोही के पास आती हैं । इशिका और आरोही झील के पास बने बेंच पर आकर बैठ गईं। चारों तरफ बस पानी की हल्की-हल्की लहरों की आवाज़ थी। दोनों बहनें चुपचाप आसमान में चांद को निहार रही थीं, मानो उनके दिलों में कई सवाल और जवाब उमड़ रहे थे, मगर शब्दों में बयां नहीं हो पा रहे थे। थोड़ी देर की खामोशी के बाद आरोही ने हल्की आवाज़ में कहा, "इशू, तूने अब तक चिक्कू और एंजल के डैडी के बारे में कुछ भी नहीं बताया मुझे। क्यों?" इशिका ने सुना, मगर तुरंत जवाब नहीं दिया। उसने अपनी नज़रों को चांद पर टिकाए रखा, जैसे कुछ सोच रही हो। फिर धीरे-से मुस्कुराई और हल्की आवाज़ में बोली, "बताना क्या, बहुत ही जल्द तुझे उससे मिलवा भी दूंगी।" आरोही ने उसकी तरफ देखा, मगर इशिका के चेहरे पर कोई और सवाल पूछने की जगह नहीं थी। वो शांत थी, मगर उसकी आंखों में एक अलग ही चमक थी। आरोही ने समझ लिया कि जब सही वक्त आएगा, तब सब कुछ खुद-ब-खुद साफ हो जाएगा। कुछ देर और झील के किनारे बैठने के बाद दोनों बहनें उठीं और घर की तरफ चल पड़ीं। रास्ता शांत था, हल्की ठंडी हवा उनके बालों को सहला रही थी, और दोनों बिना कुछ कहे एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस कर रही थीं। --- रात के करीब 11 बज चुके थे, जब देवांश अपने घर लौटा। घर के अंदर अंधेरा था, सिर्फ बेडरूम की एक हल्की रोशनी जल रही थी। वो बिना किसी आवाज़ किए अपने कमरे में गया, जैकेट उतारी और कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेट गया। वो थका हुआ था, मगर उसकी आंखों में नींद नहीं थी। जैसे ही उसने आंखें बंद कीं, उसे अचानक आरोही का चेहरा याद आ गया—चांद की रोशनी में दमकता हुआ, उसकी आंखों में चमक और चेहरे पर वो मासूमियत भरी मुस्कान। उसके होठों पर अनजाने में ही हल्की मुस्कान आ गई। वो समझ नहीं पाया कि क्यों, मगर उसका दिल हल्का महसूस कर रहा था। आरोही की यादों के साथ ही उसकी आंखें धीरे-धीरे भारी होने लगीं, और वो मुस्कुराते हुए नींद के आगोश में चला गया। अगली सुबह सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे थे।एंजल इशिका से पूछती है "मम्मा मामू ओर मासी कब आयेंगे।" इशिका रूमाल से उसका मुंह पूछते हुए कहती है "मामू कल तक आ जायेगे ओर मासी को कुछ और टाइम लगेगा।" एंजल फिर ब्रेकफास्ट कर चिक्कू के साथ जाकर अपना स्कूल बैग लेकर आती है।ओर इशिका के साथ कार में बैठ जाते है।आरोही आगे वाले सीट पर बैठी थी। उन दोनो को किंडरगार्डन छोड़ दोनो ऑफिस जाते है।कार एक ऑफिस के सामने आकर रुकती है।(पिछले पार्ट में ऑफिस के बारे में बताना भूल गई थी इस पार्ट में बता देती हु।) वहां दो बिल्डिंग साथ में खड़ी थी।एक बिल्डिंग का नाम था A&S groups ओर दूसरी का A&A मलिक ग्रुप। एक इशिका के सारे बिजनेस का हेडक्वार्टर था और दूसरा आरोही और एक और शख्स था ऑफिस था जिसके बारे में आपको बाद में पता चलेगा। दोनो अपने अपने ऑफिस में जाते है। इशिका जैसे ही अपने केबिन में आकर कोई उसे पीछे से आकर अचानक कहता है भाओ।ओर इशिका डरने की जगह पीछे मुड़ कहती है "सीरियसली अवि तुम मुझे ऐसे बच्चों की तरह डराओगे और मैं डर जाऊंगी।" इशिका जाकर अपनी चेयर पर बैठ जाती है।अवि यानी अविराज उसके सामने वाली चेयर पर बैठ जाता है। इशिका पूछती है "अब बताओ क्या हुआ कैसे आना हुआ?" अविराज कहता है "यार तुम कैसी दोस्त हो।मुझे कभी सामने से कॉल या मैसेज करती ही नहीं हो।" इशिका कहती है "अवि प्लीज सीधे प्वाइंट की बात पर आओ।" अविराज मुंह बनाकर कहती है "मेरी फीलिंग की कोई वैल्यू ही नहीं है।वो परसो जो डील हम मिली वो डील मानस मालिक को भी चाहिए थे।ओर न मिलने की वजह से वो भोखलाया हुआ है।प्लीज उससे बचकर रहना वो कुछ भी कर सकता है।।" इशिका कहती है "इस बार कोई भी मेरी फैमिली को टच भी नहीं पर पाएगा क्युकी उनकी सेफ्टी के लिए मैं खुद सारे दुश्मनों के सामने दीवार बन खड़ी हूं।वो मेरी फैमिली को हाथ लगाए उससे पहले ही मैं उनके हाथ तोड़ दूंगी।" अविराज इशिका की बात सुन मजाक कर कहता है "तुम्हारी बातें सुन मुझसे ऐसा क्यों लग रहा है तुम माफिया हो।" इशिका एक आईब्रो उठाकर कहता है "तुम्हे कोई शक है।" अविराज कहता है "मैं सिर्फ मजाक कर रहा था।" इशिका अपनी फाइल को फिर पढ़ने लगती है और कहती है "मैं भी।" अविराज फिर कहता है "वैसे दोनो क्यूटीपाई कैसे है।" इशिका कहती है "ठीक है।" अविराज इशिका को खुद से ऐसे बिना किसी इंटरेस्ट के बात करते देख कहता है "तुमसे अच्छा मैं आरोही जाकर बात कर लेता हु कम से कम वो मेरी बातें इंटरेस्ट के साथ सुनती है।" इशिका कहती है "ओके तो तुम जा सकते हो।" अविराज गुस्से में खड़ा होकर जाते हुए कहता है "अच्छे दोस्त की कद्र ही नहीं है।" इशिका उसके जाने के बाद स्माइल करने लगती हैं। अगली सुबह देवांश डाइनिंग एरिया में आता है।वहां उसके पापा,मम्मी और उसकी छोटी बहन बैठी हुई थी।देवांश उन सभी से कहता है "गुड मॉर्निंग मम्मा पापा और छोटी।" देवांश के मम्मी पापा कहते है "गुड मॉर्निंग बेटा ।" अगली सुबह देवांश डाइनिंग एरिया में आता है।वहां उसके पापा,मम्मी और उसकी छोटी बहन बैठी हुई थी।देवांश उन सभी से कहता है "गुड मॉर्निंग मम्मा पापा और छोटी।" देवांश के मम्मी पापा कहते है "गुड मॉर्निंग बेटा ।" देवांश की बहन दिया कहती है "गुड मॉर्निंग भाई।" अगली सुबह देवांश डाइनिंग एरिया में आता है।वहां उसके पापा,मम्मी और उसकी छोटी बहन बैठी हुई थी।देवांश उन सभी से कहता है "गुड मॉर्निंग मम्मा पापा और छोटी।" देवांश के मम्मी पापा कहते है "गुड मॉर्निंग बेटा ।" देवांश की बहन दिया कहती है "गुड मॉर्निंग भाई।" वो सभी ब्रेकफास्ट करते है।फिर देवांश अपने ऑफिस और दिया हॉस्पिटल जाती है।दिया ने मेडिकल की पढ़ाई की थी और अब वो सिटी हॉस्पिटल में एस ए ट्रेनी काम कर रही थी। इशिका लंच टाइम पर आरोही के केबिन में जाती है दोनो बैठ लंच करती है।इशिका आरोही को दवाई देती है।(आप सभी सोच रहे होगे कैसी दवाई वो आपको आगे पता चलेगा।) इशिका फिर अपने केबिन में आती है और कुछ मीटिंग अटेंड कर शाम को आरोही के साथ फिर घर जाती है। चिक्कू और एंजल के साथ थोड़ी देर खेल सभी के लिए डिनर बनाती है।ओर चिक्कू और एंजल का होमवर्क करवाती है।ओर फिर डिनर के टाइम पर डिनर कर सभी गार्डन में कुछ देर वॉक करते है और फिर अपने रूम में जाते है। इशिका रात में पानी पीने के लिए उठती है पर जग खाली था वो उठ किचन में से पानी भरने जाती है।ओर अपने रूम में वापस आ ही रही होती है तभी उसे अपने बगल वाले आरोही के कमरे में से कुछ आवाज आने लगती है।वो आरोही के रूम में जाती है रूम लॉक नहीं था। इशिका आरोही के बेड के पास जाती आरोही नींद में कुछ बडबडा रही थी।ओर उसके माथे पर कुछ पसीने की बूंदे भी आ गई थी। इशिका उसके पास बैठ जाती है और उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है "आरू शांत हो जा।" आरोही कोई बुरा सपना देख रही थी वो नींद में चीखते हुए उठ जाती है। "नहीं मेरे पास मत आओ।" आरोही उठ इशिका को अपने पास देख जल्दी उसे गले लगा लेती है और रोते हुए कहती है "इशू वो ...वो मुझे वापस तो नहीं ले जायेगा न।" इशिका उसे शांत करवाते हुए कहती है "आरू कोई नहीं आ रहा है प्लीज शांत हो जा कोई तुझे कही नहीं लेकर जाएगा।" आरोही कुछ देर में शांत हो जाती है। इशिका उसे पानी पिलाती है।ओर फिर उससे पूछती है "क्या तुमने अपनी सारी दवाई ली थी।" ये सुन आरोही अपना सर नीचे कर लेती है।इशिका उसे समझाते हुए कहती है "आरू तू ऐसा क्यों करती है। तू जानती है जब भी तू सारी दवाईयां नहीं लेती तुझे बुरे सपने आते है।" ये सुन आरोही अपना सर नीचे कर लेती है।इशिका उसे समझाते हुए कहती है "आरू तू ऐसा क्यों करती है। तू जानती है जब भी तू सारी दवाईयां नहीं लेती तुझे बुरे सपने आते है।" आरोही नम आंखों से इशिका को देख कहती है "इशू वो बुरे सपने नहीं मेरे लाइफ की हकीकत है।वो वो हादसा मैं जिससे टूट गई हूं ओर अब मुझे इन दवाइयों का सहारा लेना पड़ रहा है जीने के लिए।" इशिका उसके सर पर हाथ फेर कहती है "आरू ये सच नहीं है जब तुझे कोई अंजान जान से ज्यादा प्यार करने वाला शख्स मिलेंगे न तब देखना तू कैसे अपने सारे दर्द को भूल जाएगी।चल अब सो जा।कल तुझे शूट के लिए भी जाना है।" इशिका फिर आरोही को कंबल उठाकर और लाइट्स बंद कर अपने रूम में जाती है और सो जाती है। अगली सुबह सभी तैयार होकर नीचे डाइनिंग टेबल पर आ जाते हैं। एंजल और चिक्कू अपनी सीट पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे, जबकि इशिका ने दोनों की प्लेट्स में हल्का-हल्का खाना रख दिया था ताकि वो खुद से खा सकें। आरोही नीचे आई और कुर्सी खींचकर बैठ गई। उसने अपनी प्लेट में टोस्ट लिया और एक बाइट लेते हुए इशिका की तरफ देखा। "इशू, मुझे कुछ दिन के लिए अपार्टमेंट में रहने के लिए जाना होगा।" आरोही ने सीधा मुद्दे पर आते हुए कहा। इशिका ने थोड़ा चौंककर उसकी तरफ देखा, "क्यों? क्या हुआ?" "जो शूट लोकेशन है वो शहर के थोड़ी बाहर की तरफ है और मैं रोज इतना ट्रैवल नहीं करना चाहती, इसलिए वही कुछ दिन के लिए शिफ्ट हो जाऊं?" आरोही ने सफाई दी और एक सिप कॉफी का लिया। इशिका ने थोड़ा सोचा और फिर सिर हिलाते हुए कहा, "सिर्फ एक शर्त पर।" आरोही ने चौंककर पूछा, "क्या?" "अपनी दवाईयां टाइम पर लेना और अपनी हेल्थ का ध्यान रखना।" इशिका ने सख्ती से कहा, जैसे अगर उसने ये शर्त नहीं मानी तो उसे जाने ही नहीं देगी। आरोही ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ दिए, "पक्का इशू! मैं पूरा ध्यान रखूंगी। आज ऑफिस से डायरेक्ट वही जाऊंगी।" इशिका बस हल्की सी स्माइल कर देती है और अपने नाश्ते पर ध्यान देती है। तभी अचानक कोई पीछे से आता है और इशिका की आँखें बंद कर देता है। उसके होठों पर शरारती मुस्कान थी, लेकिन उसने एकदम शांत होकर हल्के-हल्के उन हाथों को छुआ और पहचानते ही मुस्कुराई, "साहिल।"
साहिल इशिका की आंखों से हाथ हटता है और कहती है "दी आपने मुझे इस बार भी पहचान लिया।" इशिका उसके बाल बिगड़ कहती है "तुझे कैसे नहीं पहचानती बचपन से तू ऐसा ही करता है।" फिर साहिल अपने रूम में जाकर फ्रेश होता है और इशिका आरोही और दोनो बच्चों के साथ कार में बैठ जाती है। बच्चों को स्कूल छोड़ वो ऑफिस जाती है और मीटिंग्स में बिजी हो जाती है।शाम को वो आज अकेले घर जाती है। वही देवांश ने अपने असिटेंट को आरोही के बारे में डिटेल्स निकलने को कहां था।उसके असिटैंट को आरोही के बारे में इतना ही पता चला था की आरोही एक कंपनी में एस ए फोटोग्राफर काम करती है और शहर के थोड़ी बार उसका एक अपार्टमेंट है। देवांश आज आरोही को देखना चाहता था इसलिए वो सोचता है आज रात वो आरोही को देखने उसके अपार्टमेंट में जायेगा। शाम को इशिका अकेले ही घर जाती है।दोनो बच्चे साहिल के साथ खेल रहे थे।ओर वही इशिका रूम में जाकर कपड़े चेंज करती है।ओर वो जैसे ही नीचे जाने वाली था उसे कोई कॉल आ है।वो कॉल रिसीव करती है और कहती है "हेलो जय ।" जय कहता है "इशिका पांच दिन बाद तुम्हारा एक कंसर्ट है याद है न।" इशिका कहती है "हां याद है।" फिर वो कॉल रख देती है। ओर फिर नीचे जाकर बच्चों के साथ खेलने लगती है।ओर फिर डिनर कर अपने रूम में जाती है। वही आरोही के अपार्टमेंट आरोही वहां आकर अपने कपड़े चेंज करती है।ओर फिर अपने ऑफिस के कुछ जरूर ईमेल्स चेक करती है।फिर डिनर बनाती है।ओर खाकर वो कुछ देर काम करती है।जब वो टाइम देखती है ।रात के 11 बज गए थे।वो विंडो बंद करने जाती है तभी उसकी नजर एक ब्लैक कार पर जाती है।ओर उसे लगता है की कार में कोई बैठा उसे देख रहा हो।वो जल्दी विंडो बंद कर पर्दा लगा देती है और जाकर सो जाती है। वही वो बोल कार देवांश की थी वो आरोही की एक जलक देख वहां आया था और वो आरोही को देखने के बाद वहां से चला जाता है।ऐसा ही ओर चार दिन होता है।आरोही को अब उस कार पर शक होने लगता है। वही इशिका आज कंसर्ट के लिए आउट ऑफ़ कंट्री जाने वाली थी।उसने घर पर कहां था की वो बिजनेस ट्रिप पर जा रही है। इशिका का कंसर्ट लंदन में होने वाला था। वो फ्लाइट पकड़ लंदन के लिए निकल जाती है। वही आरोही ने आज सोच लिया था की वो आज चेक करके रहेगी वो कार किस वजह से वहां आती है और कौन होता है उस कार में क्युकी उसने इतने दिनो में नोटिस किया था वो कार तब तक वहां खड़ी होती है जब तक उसकी विंडो खुली रहती है जैसे ही उसकी विंडो बंद होती है वो कार वहां से निकल जाती है। आरोही बस रात होने का वेट कर रही थी। इशिका लंदन पहुंच अपने बुक किए हुए होटल में चेक इन करती है। ओर कंसर्ट के टाइम तक वो होटल में आरम करती है। रात को आठ बजे ।लंदन में जहां 8 बज रहे थे वही इंडिया में रात के 12 बज रहे थे।आरोही विंडो के छुपकर देख रही थी उस कार से कोई तो बाहर आए पर जब वो टाइम देखती है बारह बज रहे थे।उससे अब और वेट नहीं होता ।वो एक टॉर्च लेकर अपार्टमेंट से नीचे जाती है और उस कार के सामने करती है। कार में बैठ देवांश जो कबसे सिर्फ आरोही की एक जलक देखने का वेट कर रहा था वो अचानक लाइट पड़ने की वजह कार से बाहर आता है।ओर सामने आरोही को देख वो सकपका जाता है अब उसकी चोरी पकड़ी गई थी। आरोही उसके पास आकर कहती है "तुम यहां पर रहते हो या किसी से मिलने आते है जो हर रात तुम्हारी कार यही पार्क देखती हु।बताओ।" देवांश अपने मन में खुद से कहता है "देवांश अब तुझे अपने दिल की बात इसे बता देना चाहिए शायद आगे मौका मिले या न मिले।" आरोही उसे कही खोए देख हल्के गुस्से में कहती है "अब कुछ बोलोगे।" देवांश कहता है "मैं देवांश ठाकुर हूं।तुम्हे एक दिन क्लब में देखा पहली नजर में ही तुम मेरे दिल में उतर गई।अब बस रोज़ तुम्हारी एक जलक देखने आता था।मैं तुम्हे पसंद करता हु।तुम मुझे नहीं जानती हो ये भी मुझे पता है बस मुझे अपने दिल की बात आज बता देता हु।" रात के सन्नाटे में हल्की ठंडी हवा बह रही थी, लेकिन इस समय आरोही के अंदर तूफान चल रहा था। सामने खड़े देवांश को देखकर उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। आरोही ने अपनी बाहें सीने पर बांधते हुए तीखी नजरों से कहा, "देवांश ठाकुर, आप बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं, यह मैं भी जानती हूँ, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है कि लाखों लड़कियाँ आपकी दीवानी हों, पर मैं उनमें से एक नहीं हूँ। अगली बार मेरे आस-पास भी नजर मत आना!" देवांश की आँखों में हल्की उदासी झलकने लगी, लेकिन उसने शांत स्वर में कहा, "मैं तुमसे बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ और कुछ नहीं।" आरोही के अंदर एक पुराने दर्द की चिंगारी भड़क उठी। उसका गुस्सा अब और बढ़ चुका था। बिना कुछ सोचे-समझे उसने तीखी आवाज में कहा, "आप मुझे पसंद करते हैं या मुझे अपने बिस्तर पर लाना चाहते हैं? मैं आप जैसे लोगों को अच्छी तरह से जानती हूँ। अगली बार मेरे सामने भी मत आना!" देवांश के चेहरे पर एक पल के लिए झटका सा लगा, उसकी आँखें गहरी हो गईं। लेकिन फिर उसने खुद को संभाला। एक लंबी सांस लेते हुए उसने सख्त लेकिन भावुक आवाज़ में कहा, "अगर तुम्हें सिर्फ अपने बिस्तर तक लाना होता, तो कब का ऐसा कर चुका होता, आरोही! मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारी एक झलक के लिए पाँच दिन से आ रहा था, सिर्फ तुम्हें देखने के लिए। लेकिन अब... अब यही सोच लो कि मैंने तुमसे ऐसा कुछ कहा ही नहीं... और न ही कभी तुमसे मिला।" आरोही एक पल के लिए चुप हो गई। चांद की हल्की रोशनी में देवांश का हैंडसम चेहरा चमक रहा था, लेकिन इस बार उसकी आँखों में हल्का सा दर्द और नमी थी। आरोही कुछ देर तक उसकी आँखों में देखती रही, लेकिन फिर खुद को संभालते हुए अपने अपार्टमेंट की तरफ बढ़ गई। अपार्टमेंट में पहुंचते ही आरोही ने दरवाजा बंद किया और दीवार के सहारे बैठ गई। उसकी आँखों से आंसू छलकने लगे। उसकी आँखों के सामने उसका अतीत घूमने लगा—वो पुराने धोखे, वो दर्द, वो बेबसी... उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। देवांश की आँखों में जो आंसू थे, वो उसके दिल को अंदर तक छू गए थे। लेकिन वह खुद को समझा रही थी कि यह भी एक दिखावा हो सकता है। उसने अपनी आँखें बंद की और लंबी सांस ली। "मैं फिर से किसी पर भरोसा नहीं कर सकती... नहीं कर सकती," उसने खुद से कहा और खुद को संभालने की कोशिश की। देवांश कार में बैठा और तेज़ी से शहर की खाली सड़कों पर गाड़ी दौड़ाने लगा। मन में सिर्फ एक ही सवाल था—"मैंने ऐसा क्या कह दिया कि उसने मेरे इरादों पर सवाल उठा दिया?" उसके हाथ स्टेयरिंग व्हील पर कसकर जकड़े हुए थे। आखिरकार, वह एक ब्रिज के पास रुका और गाड़ी से बाहर निकल आया। हल्की ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन उसका अंदर जल रहा था। उसने आकाश की तरफ देखा और गहरी सांस लेते हुए खुद से कहा, "क्या पहली नज़र का प्यार इतना गलत होता है? मैंने उससे कुछ गलत नहीं कहा था, फिर भी उसने मुझे गलत समझा… शायद मेरी गलती थी जो मैंने उसे अपने दिल की बात इतनी जल्दी बता दी।" उसकी आँखों में नमी थी। वह चुपचाप ब्रिज की रेलिंग पर हाथ रखकर पानी को देखता रहा, अपने भीतर के दर्द को दबाने की कोशिश करता रहा। लंदन में, एक विशाल कॉन्सर्ट हॉल दर्शकों से भरा हुआ था। स्टेज पर तेज़ रोशनी के बीच एक शख्स खड़ी थी—इशिका। उसके चेहरे पर एक मास्क था, जिससे उसकी पहचान छुपी हुई थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। जैसे ही वह अपनी आँखें बंद करती है, उसके अंदर छुपा दर्द उसकी आँखों से आंसू बनकर गिरने लगता है। "आज भी वही अधूरापन, वही खालीपन... क्या मैं सच में खुश हूँ?" स्टेज पर खड़े होकर, वह माइक को हल्के से पकड़ती है और गाना शुरू करती है। उसकी आवाज़ में एक दर्द था, ऐसा दर्द जो सीधा दिल में उतर जाए। टूटा है बोहट यह दिल मेरा आँसू हैं बड़ी तन्हाई है जब से तेरी बाहों में हमे आने की हुई मनाही है कुच्छ यादें जो तेरी बाकी हैं जो दिल को बोहट सताती हैं काटे से नही काट..ता लम्हा क्यूँ दे दी तन्हाई कुच्छ बातें जो तेरी बाकी हैं जो हुमको बोहट रूलाती हैं जीने को नही अब दिल करता क्यूँ दे दी तन्हाई वो हाथ जो कल तक हाथ में था अब च्छुने से कतराता है हर लम्हा कल तक साथ में था अब मिलने तक नि आता है यह सोच के नींद ना आती है और दिल में एक उदासी है क्यूँ तूने किया हुमको तन्हा क्यूँ दे दी यह जुदाई होठों पे हँसी ना आती है आखें भी नाम्म हो जाती हैं अच्छा ही नही लगता जीना क्यूँ दे दी यह जुदाई इश्स इश्क़ में तेरे हाथों से यही चीज़ हमे मिल पाई है क्यूँ दे दी तूने जुदाई है क्यूँ दे दी तन्हाई तन्हाई है हुंसफर तन्हाई है हर डगर तन्हाई है हर पहर तन्हाई शाम-ओ-सहर तन्हाई है हर तरफ तन्हाई है हद-ए-नज़र तन्हाई है अर्श तक तन्हाई है अब फर्श तक मेरे हिस्से में हिस्से में घाम ही आए हैं तेरे हिस्से में हिस्से में खुशियां मेरी आखों में आखों में इश्क़ आए है तेरे होठों पे होठों पे हसना टूटा है बोहत यह दिल मेरा आँसू हैं बड़ी तन्हाई है जब से तेरी बाहों में हमे आने की हुई मनाही है इशिका का गाना जैसे खत्म होता है जोरदार तालियां और कियारा नाम का शोर जोर से गूंजता है। इशिका फिर बैक स्टेज आती है और कार में बैठ डायरेक्ट अपने होटल जाते है और कपड़े चेंज कर बेड पर बेड सोचने लगती है। परफॉर्मेंस के जस्ट 10 मिनिट पहले आरोही का उसके पास कॉल आया था।आरोही ने उसे सारी बाते बताई कैसे देवांश ने उससे अपने दिल की बात कही और जो आरोही ने देवांश से कहां ओर देवांश के आंसुओ के बारे में भी। उस बारे में सोच इशिका बेड पर लेट कहती है "देवांश इस बार फिर तुम मेरे नहीं हो पाओगे तुम मेरी आरू पसंद करते हो मैं जानती हु तुम्हारी फीलिंग्स कभी झूठी नहीं होगी।पर अब मैं कैसे जिउगी तुम्हारे अपने सामने देखूंगी वो भी आरोही के साथ क्युकी मैं आरोही को जानती हु वो बहुत जल्द ही तुम्हारी फीलिंग्स को समझेगी और तुम्हे अपना भी लेगी पर मेरा क्या?" यही सोचते सोचते इशिका सो जाती है अपनी आंखों में आसूं लेकर ।
नए दिन की शुरुआत सुबह की हल्की सुनहरी धूप खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन आरोही का मन आज भी बीती रात की घटनाओं में उलझा हुआ था। उसने तकिए के नीचे रखे फोन को निकाला और स्क्रीन पर वक्त देखा—सुबह के सात बज चुके थे। एक लंबी सांस लेते हुए वह बिस्तर से उठी। आज ऑफिस का दिन था और साथ ही शाम को उसे अपने पुराने विला में वापस शिफ्ट होना था। यह घर, जहाँ वह अभी रह रही थी, कुछ समय के लिए था, लेकिन अब उसे वापस जाना था—उस जगह जहाँ हर कोना उससे जुड़ा था। --- ऑफिस में व्यस्त दिन आरोही ने जल्दी से तैयार होकर ऑफिस के लिए कैब बुक की। पूरे रास्ते वह खिड़की से बाहर देखते हुए खोई-खोई सी रही। "क्या सच में मैंने देवांश को गलत समझा?" उसने खुद से सवाल किया, लेकिन फिर अपना ध्यान भटकाने के लिए लैपटॉप खोल लिया। ऑफिस पहुंचकर वह सीधे अपने केबिन में चली गई और अपने काम में डूब गई। दिनभर मीटिंग्स, प्रेजेंटेशन और क्लाइंट कॉल्स में व्यस्त रही। उसे खुद भी एहसास नहीं हुआ कि शाम के छह बज चुके थे। --- इशिका की वापसी इधर, लंदन से इशिका की फ्लाइट दोपहर में मुंबई पहुंच चुकी थी। उसने एयरपोर्ट से सीधे अपने घर जाने का फैसला किया। "घर जैसा सुकून कहीं नहीं होता," उसने मन ही मन सोचा और कार की खिड़की से बाहर देखने लगी। घर पहुंचते ही उसने अपना बैग एक तरफ रखा और बिना कुछ कहे सीधे अपने कमरे में चली गई। सफर की थकान के कारण उसकी आंखें भारी लग रही थीं, इसलिए उसने कुछ देर आराम करने का फैसला किया। शाम होते ही वह तरोताजा होकर बाहर आई। शाम के हल्के ठंडे मौसम में पूरा परिवार गार्डन में बैठकर चाय पी रहा था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी, और आसमान में सूरज धीरे-धीरे छुपने को था। इशिका, जो अभी-अभी अपनी ट्रिप से वापस आई थी, आराम से कुर्सी पर बैठी अपनी चाय के घूंट भर रही थी। इतने दिनों बाद घर लौटने की शांति उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। उसने अपनी निगाहें आरोही पर टिका दीं, जो ख्यालों में कहीं खोई हुई थी। "आरू, कल डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट है, याद है न?" इशिका ने हल्के मुस्कान के साथ पूछा। आरोही, जो चाय के कप को हल्के-हल्के घुमा रही थी, एकदम सचेत हो गई। "हाँ इशू, याद है," उसने धीमे स्वर में कहा। इशिका ने हल्की भौं उठाते हुए कहा, "और मैं भी तेरे साथ चलूंगी, कोई बहस नहीं!" आरोही ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा, "ठीक है, तुझे कौन सा मना कर सकती हूँ?" इशिका ने सिर हिलाया और अपनी चाय खत्म करते हुए कुर्सी से उठ गई। --- चिक्कू और एंजल पास ही खेल रहे थे। चिक्कू अपनी छोटी कार घुमा रहा था, तो एंजल अपनी गुड़िया के बाल संवारने में लगी थी। "मम्मा, देखो मेरी डॉली कितनी प्यारी लग रही है!" एंजल ने खुशी से अपनी गुड़िया दिखाते हुए कहा। इशिका ने मुस्कराते हुए उसे देखा, "हां, मेरी परी, बहुत प्यारी लग रही है!" चिक्कू तुरंत बीच में कूद पड़ा, "मम्मा, लेकिन मेरी कार भी देखो! ये सुपरफास्ट है!" इशिका हंस पड़ी और झुककर चिक्कू की कार को पकड़कर कहा, "अरे वाह! तो हमारी रेसर कार आ गई!" चिक्कू खुशी से उछल पड़ा, "हाँ, मम्मा ! मैं सबसे तेज़ चलाऊँगा!" इशिका मुस्कुराते हुए अपने दोनों बच्चों को देख रही थी। उनके हंसने की आवाज़ उसके दिल को सुकून देती थी, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की सी थकान भी झलक रही थी। रात धीरे-धीरे गहराने लगी थी। इशिका बच्चों को अंदर ले जाने लगी, लेकिन आरोही वहीं बैठी रही। हवा अब हल्की ठंडी हो गई थी, लेकिन उसके मन में एक अलग ही हलचल थी। "क्या मैंने देवांश को गलत समझा?" उसके मन में यही सवाल बार-बार गूंज रहा था। आरोही ने ऊपर देखा, आसमान में आधा चाँद चमक रहा था। उसने एक गहरी सांस ली और अपने विचारों को झटकने की कोशिश की। "नहीं... मुझे इन सब चीजों के बारे में नहीं सोचना चाहिए। " वह खुद को यही समझाते हुए उठी और अंदर चली गई, लेकिन मन अब भी उलझा हुआ था… अगले दिन आज सन्डे था और दोनो बच्चे घर पर ही थे।इशिका और आरोही तयार होकर नीचे आती है सविता जी ब्रेकफास्ट लगती है और इशिका और आरोही ब्रेकफास्ट कर हॉस्पिटल जाते है। दोनो हॉस्पिटल में आकर एक केबिन में जाते है।वहां एक मिडिल एज्ड औरत बैठी थी।वो पहले आरोही का चेक अप करती है।ओर फिर इशिका से कहती है "मिस इशिका अब आपको जल्द से जल्द हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए मिस आरोही के मैचिंग का हार्ट ढूंढना होगा।वरना शायद फिर उनको बचाना मुश्किल हो जायेगा।" इशिका ये सुन अपनी आंखें बंद करती है और फिर खोल कहती है "डॉक्टर मैं जल्द से जल्द ढूंढने की कोशिश करती हूं।" फिर वो आरोही के साथ केबिन से बाहर आती है।तभी इशिका चलते चलते किसी से टकरा जाती है।इशिका सामने देखती है वहां दिया खड़ी थी।इशिका और दिया दोनो एक दूसरे को देख रहे थे और दोनो की आंखें हल्की नम हो जाती है और दोनो एक दूसरे को गले लगा लेती है। आरोही बस दोनो को बस देखती रह जाती है।दिया उसे गले लगाए हुए कहती है "इशू कितना मिस किया तुझे तूने एक कॉल भी नहीं किया मुझे ऐसा क्यों।" इशिका उसकी पीठ सहलाते हुए कहती है "दिया शांत आराम से कही बैठ बातें करे।" दिया हां में गर्दन हिला देती है।आरोही खुद को ऐसे इग्नोर होते देख कहती है "ओ हेलो मैं भी वहां खड़ी हूं कोई मुझे भी बता दो की क्या चल रहा है यहां।" इशिका कहती है "आरू बाहर चल बातें करते है। फिर तीन हॉस्पिटल से बाहर किसी कैफे में जाकर बैठ जाती है।इशिका कहती है "आरू ये मेरी स्कूल फ्रेंड दिया है और दिया ये मेरी बहन आरोही है।" दिया कहती है "हेलो आरोही।" आरोही जी कहती है "हेलो दिया।" दिया कुछ कहना चाहती थी पर आरोही को सामने देख वो कुछ नहीं कहती है।तभी इशिका का फोन बजता है।इशिका फोन उठाकर कहती है "हेलो चिक्कू क्या हुआ?" दूसरी तरफ एस चिक्कू कहता है "मम्मा देखो न एंजल मुझे परेशान कर रही है।" इशिका कहती है "आप उसके भाई हो न उसकी बात मन लो वो आपको परेशान नहीं करेगी।" चिक्कू कहता है "नहीं मम्मा आप एंजल से बात कर उसे समझाओ।" ओर फिर वो फोन एंजल को से देता है।एंजल कहती है "मम्मा देखो न भाई को मेरे साथ डॉल डॉल नहीं खेल रहे हैं।मैं बस थोड़ी देर उन्हे खेलने कहां है?" इशिका एंजल को समझाती है "एंजल बच्चा आप अब भाई के साथ कार के साथ खेल लो जब मैं घर आऊंगी तब हम तीनो साथ में बैठ डॉल डॉल खेलेंगे।" एंजल कहती है "ओके मम्मा।" इशिका फिर कॉल रख देती है।दिया उसे पूछती है "तुमने शादी कर ली?" इशिका कहती है "अरे नहीं।ये मेरे बच्चे है सिर्फ मेरे।" इशिका बात बदल कहती है "दिया तुम क्या कर रही हू अभी मीन जॉब वगैरा।" दिया कहती है "मेरी डॉक्टर की ट्रेनिंग चालू है।" इशिका कहती है "ओके।" फिर तीनो नंबर एक्सचेंज करते है आरोही ने भी दिया से फ्रेंडशिप कर ली थी। तीनो फिर अपने अपने घर जाते है। इशिका घर आकर बच्चों के साथ खेलने लगती है।वही दिया घर जाकर अपने मम्मा से कहती है "मम्मा आपको पता है आज मैं किससे मिली।" देवांश की मॉम पूछती है "किससे?" दिया कहती है "मम्मा मैं आज इशू से मिली।मैं आज कितनी खुश हु आपको बता भी नहीं सकती।" देवांश की मॉम कहती है "सच्ची तुम इशू से मिली तो तुम्हे उसे घर लेकर आना चाहिए था न मुझे भी मिलना था उससे।" दिया कहती है "मम्मा मैंने कहां था उससे पर उसने कहा की उसे कुछ काम है पर वो आपसे मिलने जल्दी आयेगी ।" इशिका के विला शाम को सभी गार्डन में बैठ में चाय पी रहे थे तब अवीराज वहां आता है। अविराज आकर एंजल को अपनी गोद में उठा लेता है।ओर कहता है "कैसी हो मेरी एंजल।" एंजल कहती है "मैं ठीक हु आप कैसे हो अंकल।" अविराज कहता है "एंजल में ठीक हु आपकी याद आ रही थी इसलिए मैं मिलने आ गया।" चिक्कू अविराज के पास आकर कहता है "अंकल आपने मुझे मिस नहीं किया।" अविराज एंजल को अपनी गोद से नीचे उतर खुद घुटनों पर बैठ कहता है "अरे चिक्कू तुम्हे कोई भूल सकता है।I missed both of you।" दोनों उसके गालों पर किस करते है। अविराज फिर उठ सविता जी के पास बैठ जाता है और उनसे कहता है "आंटी कैसी बेटी है आपकी दोस्त की कद्र ही नहीं है।" सविता जी पूछती है "अब क्या हुआ ?" अविराज कहता है "आपको नहीं पता आपकी बेटी कैसी है।" इशिका उसे घूरते हुए कहती है "तुम ही बताओ कैसी हूं मैं।" अविराज कहता है "अब क्या तारीफ करू तुम्हारी।" क्युकी अविराज को याद है गलती से उसने पिछले टाइम ये गलती की थी और इशिका ने उसके दो प्रोजेक्ट के लिए मार्केटिंग का काम करने के लिए मना कर दिया था।इतने मुश्किल से मनाया था उसने। सभी फिर साथ में डिनर करते है। अगली सुबह सभी अपने अपने काम कर जाते है।इशिका अपने केबिन में बैठी होती है।उसकी सेक्रेटरी नॉक कर अंदर आती है।ओर फिर उससे कहती है "मैम मिस्टर ठाकुर और उनके सेक्रेटरी आ गए है मीटिंग रूम में आपका वेट कर रहे है।" इशिका चेयर से खड़ी होकर कहती है "ओके चलो चलते है।" इशिका मीटिंग रूम में जाती है।मीटिंग रूम का दरवाजा खोलते ही उसकी नजर देवांश पर जाती है।पूरे चार साल बाद उसे देख वो बहुत मुश्किल से दिल को संभालती है। वो जाकर सीट पर बैठती है और देवांश से कहती है "गुड आफ्टरनून मिस्टर ठाकुर।" देवांश कहता है "गुड आफ्टरनून मिस मलिक ।अब हमे प्रोजेक्ट के बारे में बाते करनी चाहिए।" इशिका कहती है "श्योर।" फिर वो दोनो प्रोजेक्ट के बारे में डिस्कस करते है इशिका बीच बीच में देवांश के चहरे को भी देख रही थी।पर देवांश के एक्सप्रेशन से बिलकुल भी नहीं लग रहा था की वो उसे पहचानता भी है। फिर वो दोनो प्रोजेक्ट के बारे में डिस्कस करते है इशिका बीच बीच में देवांश के चहरे को भी देख रही थी।पर देवांश के एक्सप्रेशन से बिलकुल भी नहीं लग रहा था की वो उसे पहचानता भी है। मीटिंग खतम होती है इशिका कॉन्ट्रैक्ट को साइन करती है।देवांश और वो दोनो खड़े होते है और हाथ मिलाकर देवांश कहता है "थैंक यू।फॉर गिविंग योर टाइम।" इशिका कहती है "I also wanted to work with you।" फिर दोनो कहीं से बाहर आते है।देवांश जाने वाला होता है पर पता नहीं क्यू पर उसका दिल कह रहा था वो इशिका को पहले से जानता है। इशिका फिर अपने केबिन में जाती है।ओर अपनी सेक्रेटरी से कहती है किसी को भी उसके केबिन में आने न दे। देवांश को जाते हुए आरोही इशिका के ऑफिस की तरफ आते हुए दिखता है पर वो सिर्फ उसे दूर से देखकर वहां से चला जाता है। इशिका अपने चेयर पर आकर बैठ जाती है।ओर आंखें बंद करती ओर उसकी आंखें से एक बूंद आंसू बाहर आता है और वो खुद से कहती है "वो मुझे भूल चुका है मेरी एक याद भी उसके जहन में नहीं है।" ओर वो रोने लगती है इससे ज्यादा तकलीफ की बात क्या हो सकती है उसके प्यार को वो याद भी नहीं है और वो उसकी बहन से ही प्यार करता है।इशिका अपने दिल में एक बहुत तेज़ दर्द महसूस कर रही थी पर कुछ नहीं कर सकती थी। इशिका चेयर पर आंखें बंद कर बैठी थी और उसकी आंखों से लगातार आंसू आ रहे थे तभी कोई उसके केबिन का डोर खोल अंदर आती है।इशिका जल्दी अपना हुलिया ठीक करती है।उसके सामने आरोही आकर बैठी थी।वो कहती है कमेंट्स कर बताना पार्ट कैसा है
इशिका अपने ऑफिस के केबिन में अकेली बैठी थी। पूरा कमरा शांति में डूबा हुआ था, लेकिन उसकी अंदरूनी हलचल थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी आंखें बंद थीं, और उसकी पलकों के किनारे गीले थे। आँसू धीरे-धीरे उसके गालों पर बह रहे थे, लेकिन उसने अपनी जगह से हिलने की भी कोशिश नहीं की। वह अपनी कुर्सी पर पीछे सिर टिकाए बैठी थी, गहरी सांसें लेती हुई, जैसे खुद को शांत करने की कोशिश कर रही हो। तभी अचानक उसके केबिन का दरवाजा खुला। दरवाजे की आवाज़ सुनते ही उसने जल्दी से अपनी आँखें पोंछ लीं, चेहरे पर किसी भी तरह के भाव को छुपाने की कोशिश की और बैठने का तरीका भी ठीक कर लिया। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसकी इस हालत को देखे। दरवाजे के अंदर से आरोही आई, जो सीधा उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। आरोही के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन इशिका उसके चेहरे के पीछे की थकान और हल्की बेचैनी को समझ सकती थी। "इशू, ये नया प्रोजेक्ट आया है।" आरोही ने टेबल पर एक फाइल रखी और थोड़ा झुककर बोली, "तू ज़रा देख, फोटोशूट को और क्रिएटिव दिखाने के लिए मैं क्या करूँ?" इशिका ने हल्का सिर हिलाया और फाइल उठाकर ध्यान से पढ़ने लगी। उसकी उंगलियाँ हल्के-हल्के पन्ने पलट रही थीं, लेकिन उसके दिमाग में अब भी पिछले कुछ पलों की उलझन थी। फिर भी, उसने खुद को संभालते हुए काम पर फोकस किया। "तू इस बार थीम थोड़ी सी सॉफ्ट और वाइब्रेंट दोनों रख सकती है।" इशिका ने सुझाव देते हुए कहा, "कोशिश कर कि मॉडल्स के एक्सप्रेशंस नैचुरल लगें, ना कि ओवर-पोज़्ड। और बैकग्राउंड को क्लासिक लेकिन ट्रेंडी रख, ताकि फोकस सीधे मॉडल्स पर जाए।" आरोही ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं और सिर हिलाते हुए कहा, "समझ गई, ये काफी अच्छा आइडिया रहेगा। थैंक यू, इशू!" इशिका ने हल्की मुस्कान दी, और आरोही संतुष्ट होकर उठ गई। उसके जाने के बाद, इशिका ने एक गहरी सांस ली और अपने हाथों को एक-दूसरे में जकड़ लिया। उसने खुद को एक बार फिर काम में डुबाने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं उसका मन अब भी भारी लग रहा था। दोपहर होते ही, एयरपोर्ट पर हलचल थी। लोगों की भीड़ इधर-उधर घूम रही थी, कोई अपना बैग खींचता हुआ बाहर निकल रहा था, तो कोई फोन पर बात करता हुआ तेज़ी से चलता जा रहा था। इस भीड़ के बीच, एक लड़की खड़ी थी। उसने क्रॉप टॉप और रिप्ड जींस पहनी हुई थी, और कंधे पर एक स्टाइलिश बैग टंगा हुआ था। उसके लंबे, खुले बाल हवा में हल्के-हल्के उड़ रहे थे, और उसने एक हाथ में फोन पकड़ रखा था। "और कितना टाइम लगेगा?" उसने फोन पर किसी से तेज़ आवाज़ में पूछा। उसकी आवाज़ में एक हल्की झुंझलाहट थी। दूसरी तरफ से कुछ जवाब आया, जिसे सुनकर उसने बिना कुछ कहे फोन काट दिया और बैग का स्ट्रैप थोड़ा एडजस्ट किया। उसकी उम्र करीब 18-19 साल की लग रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही आत्मविश्वास झलक रहा था। वह एयरपोर्ट के बाहर खड़ी थी, जब अचानक एक बाइक उसके सामने आकर रुकी। बाइक पर बैठा लड़का हेलमेट पहने हुए था, और बिना कुछ कहे उसने अपनी बाइक की चाबी उस लड़की की तरफ बढ़ा दी। लड़की ने बिना एक पल गंवाए चाबी ली, बाइक स्टार्ट की, और एयरपोर्ट से निकल गई। वह आराम से बाइक चला ही रही थी कि अचानक, एक कार गलत दिशा से तेज़ स्पीड में आई और उसकी बाइक से टकरा गई। टक्कर हल्की थी, लेकिन बाइक और लड़की दोनों सड़क पर गिर गए। लड़की को ज्यादा चोट नहीं आई, लेकिन अचानक हुई इस घटना से वह गुस्से में आ गई। कार से एक लड़का बाहर निकला। वह लगभग 20 साल का लग रहा था। उसने जल्दी से बाइक के पास जाकर लड़की को उठाने में मदद की। लड़की ने अपना हेलमेट उतारा और गुस्से से उस लड़के को घूरते हुए बोली, "अंधे हो क्या? गलत साइड में कार क्यों चला रहे थे? अच्छा हुआ मेरी स्पीड ज्यादा नहीं थी, वरना अब तक तो तुम मुझे मार ही डालते!" लड़के ने बिना कोई बहस किए उसकी बात सुनी, फिर धीरे से बोला, "I'm really sorry... मैं बस थोड़ी जल्दी में था। Once again, sorry।" लड़की पहले तो उसे गुस्से से घूर रही थी, लेकिन फिर उसने पहली बार गौर से उसकी तरफ देखा। वह बेहद हैंडसम था—गहरे भूरे बाल, शार्प जॉलाइन, और हल्की मुस्कान जो उसे और भी आकर्षक बना रही थी। लड़की अचानक थोड़ी असहज हो गई और बोली, "इट्स ओके। वैसे भी मुझे ज्यादा चोट नहीं लगी।" लड़के ने हल्का सिर झुकाया और फिर संकोच से पूछा, "क्या मैं तुम्हें सॉरी कहने के लिए कॉफी पर ले जा सकता हूँ?" लड़की ने हल्की मुस्कान दी और बोली, "श्योर।" दोनों ने नंबर एक्सचेंज किए और फिर लड़की बाइक पर बैठकर वहाँ से निकल गई। शाम को, सभी घर आ चुके थे। ड्राइंग रूम में हर कोई बैठा बातें कर रहा था, तभी दरवाजे से एक लड़की अंदर आई। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, दो नन्हें बच्चे खुशी से चीखते हुए उसकी ओर भागे। "आयुषी मासी!" एंजल और चिक्कू एक साथ चिल्लाए। आयुषी मुस्कुराई, नीचे झुककर दोनों को अपनी बाहों में भर लिया और प्यार से उनके गालों पर चूम लिया। इसके बाद वह बाकी सभी के पास गई। सबसे पहले उसने सविता जी को गले लगाया, फिर आरोही को। जैसे ही वह इशिका के पास आई, इशिका ने हल्की झूठी नाराजगी के साथ उसका कान पकड़ लिया, "दिनभर कहाँ थी तू?" आयुषी ने मासूमियत से बड़ी-बड़ी आँखें झपकाईं और धीरे से बोली, "दी, आप जानती हो न!" इशिका हल्के से मुस्कुराई और उसे गले लगा लिया। रात को डिनर के बाद, सब अपने-अपने कमरों में चले गए। इशिका अपने कमरे में आई, लैपटॉप खोला और कुछ काम करने लगी। वह स्क्रीन पर फोकस कर ही रही थी कि अचानक फोन बज उठा। उसने स्क्रीन देखी—दिया का कॉल था। उसने कॉल उठाई। "हेलो, इशू! कैसी है? आंटी, आरोही, चिक्कू और एंजल सब कैसे हैं?" दिया की आवाज़ हमेशा की तरह चहकती हुई थी। "मैं अच्छी हूँ, और बाकी सब भी मस्त हैं। तू बता, अंकल, आंटी और देवां..." इशिका ने अचानक खुद को रोका। उसका दिल हल्का सा कसैला हो गया। वह देवांश का नाम पूरा नहीं ले पाई। दिया समझ गई। उसने गहरी सांस लेते हुए धीरे से कहा, "इशू, सब ठीक हैं। मम्मा को जब तेरे बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि तुझे घर क्यों नहीं लाया?" "आंटी से कहना मैं जल्द ही आऊँगी उनसे और अंकल से मिलने।" दिया कुछ पल चुप रही, फिर हल्के स्वर में बोली, "और भाई के बारे में नहीं पूछेगी?" रात के अंधेरे में इशिका अपने कमरे में अकेली बैठी थी। लैपटॉप की हल्की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही उदासी थी। फोन उसके हाथ में था, और दिया की कॉल जारी थी। जब दिया ने देवांश का नाम लिया, तो इशिका ने दर्द भरी मुस्कान दी। उसकी आवाज़ धीमी और थोड़ी कांपती हुई थी, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "क्या पूछूं? कल ही ऑफिस में मिले थे। उसका मुझे अनजान की तरह देखना, जैसे पहली बार मिले हों… फिर एक बार मेरा दिल तोड़ गया।" दिया ने गहरी सांस ली। वह जानती थी कि इशिका के लिए ये सब कितना मुश्किल था। उसने नरम आवाज़ में समझाने की कोशिश की, "इशू, तू जानती है न भाई के एक्सीडेंट के बाद वो ऐसे हो गए हैं… वो सच में भूल गए हैं, लेकिन उनका दिल तो अभी भी वैसा ही है, बस उन्हें याद नहीं आता।" इशिका की आँखें नम हो गईं, लेकिन उसने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया। उसने अपने आंसू रोकते हुए हल्की हंसी में बात बदल दी, "वो सारी बातें छोड़। कुछ दिनों बाद मिलने का प्लान बनाते हैं।" दिया भी समझ गई कि इशिका इस टॉपिक पर और बात नहीं करना चाहती। उसने तुरंत हामी भरते हुए कहा, "ऑफ कोर्स! जल्दी ही मिलते हैं।" इसके बाद दोनों ने कुछ और बातें कीं, हंसी-मज़ाक किया, और फिर कॉल रख दी। लेकिन इशिका के दिल में अब भी एक हल्की कसक थी, जो उसने किसी को नहीं दिखाई। अगली सुबह सूरज की हल्की किरणें खिड़की से अंदर आ रही थीं। पूरा घर सुबह की हलचल से भर गया था। सभी अपने-अपने रूटीन में व्यस्त थे—कोई ब्रेकफास्ट की टेबल पर था, तो कोई तैयार होने में बिजी। इशिका भी जल्दी उठकर तैयार हुई और डाइनिंग टेबल पर आ गई। आरोही पहले से वहाँ बैठी थी, और चिक्कू और एंजल मस्ती कर रहे थे। "गुड मॉर्निंग दी!" आरोही ने मुस्कुराते हुए कहा। "गुड मॉर्निंग," इशिका ने हल्के से मुस्कराते हुए जवाब दिया और अपने लिए ब्रेड-बटर लिया। सभी ने साथ में नाश्ता किया, और फिर अपने-अपने काम के लिए निकल गए। इशिका का ऑफिस ऑफिस पहुंचते ही इशिका अपने केबिन में आकर बैठ गई। उसने लैपटॉप ऑन किया और कुछ जरूरी फाइल्स पर काम करने लगी। लेकिन ज्यादा देर तक वह काम में डूबी नहीं रह पाई, क्योंकि उसके केबिन का दरवाजा खुला और दो जाने-पहचाने चेहरे अंदर आए। पहला आविराज और दूसरा आयुषी। दोनों ही बिना किसी हिचकिचाहट के उसके सामने वाली कुर्सियों पर बैठ गए। इशिका ने हल्का सा सिर उठाया और मुस्कुराते हुए बोली, "चलो, अब दोनों जल्दी बताओ क्या काम है मुझसे? वरना तुम दोनों को तो मेरी याद नहीं आती!" उसकी बात सुनते ही दोनों हंस पड़े। आयुषी ने अपना ट्रेडमार्क क्यूट फेस बनाया, और आविराज ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "अरे इशिका, ऐसी बात मत कर! तू तो हमारी हेल्पलाइन है!" इशिका ने आँखें घुमाईं और हथेली अपनी ठुड्डी के नीचे रखते हुए बोली, "अच्छा? तो बताओ, किस बात की हेल्प चाहिए?" आविराज ने गंभीर होते हुए कहा, "मैं एक न्यू कंपनी स्टार्ट करने का सोच रहा हूँ, पर समझ नहीं आ रहा कि किस फील्ड में ट्राय करूं। हेल्प कर दो!" इसके बाद आयुषी ने क्यूट एक्सप्रेशन बनाते हुए अपनी परेशानी रखी, "दी, मेरी एक कॉम्पिटीटर ने न्यू फ्लैगशिप स्टोर खोला है, और मार्केट में उसकी चर्चा हो रही है। मुझे भी कुछ बड़ा करना है, प्लीज़ मेरी भी हेल्प कर दो!" अब आपको मैं ये बताना चाहूंगी कि आयुषी एक फैशन डिज़ाइनर है। वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ ही इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना चुकी है। वह कई बड़े इवेंट्स में अपने कलेक्शंस पेश कर चुकी है और एक फेमस डिज़ाइनर बन चुकी है। हाल ही में वह एक इंटरनेशनल फैशन वीक के लिए देश से बाहर गई थी। साथ ही, वह कॉलेज में मैनेजेरियल कोर्स कर रही है ताकि वह अपने ब्रांड को खुद मैनेज कर सके। इशिका ने दोनों की बातें ध्यान से सुनीं और सोचते हुए बोली, "अवि, तुम्हें परसों तक का इंतज़ार करना होगा। तब तक मैं कुछ सोचकर और रिसर्च करके तुम्हें बताऊंगी कि कौन-सा बिज़नेस फील्ड तुम्हारे लिए सही रहेगा।" फिर उसने आयुषी की तरफ देखा और कहा, "आयुषी, मेरा एक नया मॉल बनकर तैयार हो चुका है। तुम चाहो तो उसमें अपना स्टोर खोल सकती हो। वहाँ लोकेशन भी अच्छी है और बिज़नेस ग्रोथ के लिए परफेक्ट रहेगा।" ये सुनते ही आविराज और आयुषी खुशी से उछल पड़े। दोनों ने अपनी सीट से उठकर इशिका को साइड हग किया और एक साथ बोले, "यू आर द बेस्ट!" इशिका ने हल्की मुस्कान दी और प्यार से दोनों के सिर पर हाथ रखा। "चलो, अब भागो यहाँ से! और हाँ, जो भी करना है, मुझे पहले अपडेट देना मत भूलना!" दोनों हंसते हुए उसके केबिन से निकल गए, और इशिका एक बार फिर अपने काम में लग गई। लेकिन उसके चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान थी—अपने अपनों के लिए कुछ करने का एहसास उसे हमेशा सुकून देता था।
इशिका शाम को घर लौटती है, दिनभर की थकान के बावजूद उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान होती है। घर में घुसते ही उसके दोनों बच्चे, एंजल और चिक्कू, भागकर उसके पास आते हैं और उसकी गोद में चढ़ने की कोशिश करते हैं। इशिका हंसते हुए दोनों को अपनी बाहों में भर लेती है और प्यार से उनके गालों पर किस कर देती है। बच्चे अपनी मासूमियत भरी बातें करने लगते हैं—कोई स्कूल की कहानियां सुनाता है तो कोई नए दोस्तों के बारे में बताता है। इशिका उनकी बातें सुनते हुए हल्के-हल्के उनके बाल सहलाती रहती है, मानो पूरे दिन की थकान बस इस एक पल में दूर हो रही हो। डिनर के समय पूरा घर एक साथ बैठता है। बच्चों की मस्ती, उनकी तोतली बातें, और बीच-बीच में उनकी शरारतें माहौल को खुशनुमा बना देती हैं। इशिका सबको खाना परोसती है, खुद भी थोड़ा-थोड़ा खाती है, लेकिन उसका मन कहीं और उलझा हुआ है। अंदर ही अंदर कोई पुरानी यादें उसके दिल को भारी कर रही थीं। डिनर खत्म होते ही बच्चे सोने चले जाते हैं, और घर में एक सुकून भरी शांति छा जाती है। इशिका अपने कमरे में जाती है, अलमारी खोलती है, और एक पुराना फोटो एलबम निकालती है। धीमे हाथों से पन्ने पलटते हुए उसकी नजर एक तस्वीर पर ठहर जाती है—एक स्कूल ग्राउंड की तस्वीर, जिसमें दो छह साल की लड़कियां और दो नौ साल के लड़के खेलते हुए नजर आ रहे हैं। तस्वीर देखकर उसका दिल कसक उठता है। वो अतीत में खो जाती है। एक स्कूल ग्राउंड में चारों बच्चे खेल रहे थे—हंसी-ठिठोली, मस्ती, और बेफिक्री उनके चेहरों पर झलक रही थी। इशिका जोश से खेल रही थी, तभी उसने दिया से कहा, "दिया, ये गेम अच्छा नहीं लग रहा, चलो कुछ और खेलते हैं!" दिया ने नाखुशी से जवाब दिया, "नहीं ना इशू, ये ही खेलते हैं! देख तो कितना मजा आ रहा है!" इशिका ने मुंह बना लिया और शरारती अंदाज में कहा, "ठीक है, तुम खेलो, मैं देवू और शिवू के पास जा रही हूं!" दिया ने उसे रोकते हुए पूछा, "रुक इशू! तू भाई के पास क्यों जा रही है?" इशिका बस मुस्कुरा दी और उधर जाने लगी। तभी एक तेज़ स्पीड में आई फुटबॉल सीधे आकर इशिका के हाथ पर लगी और वो संतुलन खोकर गिर गई। उसकी हल्की चीख निकली, जिसे सुनकर थोड़ी दूर खेल रहे देवांश और शिवांश तुरंत दौड़ते हुए उसके पास पहुंचे। "इशू! तू ठीक तो है ना?" देवांश ने चिंतित होकर पूछा। इशिका ने जल्दी से खुद को संभाल लिया था, लेकिन उसके हाथों में चोट लग गई थी, जिससे खून निकल रहा था। देवांश ने बिना वक्त गंवाए अपनी जेब से रूमाल निकाला और उसकी हथेली पर बाँध दिया। तभी एक लड़का, जो गेंद लेने आया था, डरते-डरते बोला, "सॉरी, मुझे नहीं पता था कि बॉल तुम्हें लग जाएगी!" इशिका ने दर्द में भी मुस्कुराते हुए कहा, "इट्स ओके, तुम जाओ!" लेकिन दर्द असहनीय था। उसने देवांश की ओर देखा और मासूमियत से बोली, "देवू, बहुत दर्द हो रहा है!" देवांश ने झट से उसकी हथेली पकड़कर हल्के-हल्के फूंक मारनी शुरू कर दी और बोला, "रुक, मैं तुझे अभी मेडिकल रूम लेकर जाता हूं!" चारों बच्चे मेडिकल रूम पहुंचे, जहां टीचर ने इशिका की चोट साफ करके उस पर दवाई लगाई। जैसे ही दवाई की जलन हुई, इशिका की आंखों में आंसू आ गए। देवांश ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया, जैसे उसकी तकलीफ देख नहीं पा रहा हो। टीचर ने बैंडेज लगा दी और उन्हें वापस क्लास में भेज दिया। लेकिन इशिका को आज जल्दी घर जाना था, इसलिए उसे स्कूल की कार लेने आ रही थी। देवांश उसके साथ बाहर तक रुक गया, जबकि दिया और शिवांश क्लास में चले गए। इशिका ने देखा कि देवांश उसे नजरें चुराकर देख रहा था। उसने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और पूछा, "क्या हुआ देवू?" देवांश ने उसकी बैंडेज लगी हथेली पकड़कर फिर से फूंक मारी और उदास स्वर में कहा, "तुझे बहुत दर्द हो रहा है ना? मैं तुझे बचा नहीं पाया…" इशिका ने हल्के से हंसते हुए कहा, "कोई बात नहीं, नेक्स्ट टाइम प्रोटेक्ट कर लेना!" देवांश की आंखें नम हो गईं। इशिका ने धीरे से उसके गाल पर हाथ रखा और उसके आंसू पोंछते हुए कहा, "इतना दुखी मत हो, देख मैं ठीक हूं!" देवांश ने गहरी सांस ली और गंभीरता से कहा, "फ्यूचर में, मैं तुम्हें सबसे बचाऊंगा… जो भी तुम्हें हर्ट करना चाहेगा, उसे मैं बख्शूंगा नहीं!" इशिका की आंखों में हल्की नमी आ गई। वापस वर्तमान में, इशिका ने वो फोटो अपने सीने से लगाई और हल्की हंसी के बाद उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने खुद से फुसफुसाते हुए कहा, "देवू… तुमने मुझे प्रोटेक्ट करने का वादा किया था, पर अब तो मुझे पहचानते भी नहीं…" उसका दिल भारी हो गया। बार-बार यही यादें उसके दिमाग में घूमने लगीं। आखिरकार, उसने अपनी कार की चाबी उठाई और घर से बाहर निकल गई। रात के सन्नाटे में वो अपनी कार ड्राइव करते हुए शहर की हलचल से दूर एक बीच पर पहुंची। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन उसके दिल में हलचल मची थी। उसने कार पार्क की और चप्पल उतारकर ठंडी रेत पर चलने लगी। समुंदर की लहरें किनारे से टकरा रही थीं, जैसे उसे शांत करने की कोशिश कर रही हों। वो चुपचाप वहां खड़ी रही, दूर लहरों को देखते हुए। उसके अंदर बहुत कुछ था कहने को, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। हवा की सरसराहट में जैसे देवांश की पुरानी बातें गूंज रही थीं—"फ्यूचर में मैं तुम्हें सबसे बचाऊंगा…" इशिका ने गहरी सांस ली, अपनी आंखें बंद की, और खुद को संभालने की कोशिश करने लगी। लेकिन उसकी आंखों से आंसू बहते ही जा रहे थे। तभी उसे किसी चीज की आवाज आती है वो उस तरफ जाती है।पांच लड़के दो लड़कियों को परेशान कर रहे थे। इशिका उनके पास जाकर कहती है "क्या हो रहा है यहां।" पांचों लड़के और दोनो लड़कियां इशिका को देखते है।दोनो लड़कियों की आंखों में आंसू थे।एक लड़का कहता है "तुझे क्या करना है जो भी हो रहा हु।" दूसरा लड़का कहता है "अगर तुम हमे ज्वाइन करना चाहती हो तो कर सकती हो आज हमारे फ्रेंड का बर्थडे है।शराब का इंतजाम तो हो गया है बस शबाब चाहिए जो हम मिल गया है।तुम भी ज्वाइन कर लो।बहुत मजे करेगे।" तीसरा लड़का एक लड़का का हाथ खीच खुद के करीब कर किस करने वाला था था जबरदस्ती।इशिका जल्दी उसके पास जाकर उसी चहरे पर एक पांच मारती है जिससे वो लड़का दूर जाकर गिरता है। दो लड़के उन लड़कियों को छोड़ इशिका के तरफ बढ़ते है।इशिका एक को जोर से कुछ करते है।ओर दूसरे को लगातार तीन चार पांच मारती है। पहले लड़के एक कांच बॉटल लेकर इशिका पर वार करता है।इशिका उस वार को अपने हाथ से रोकती है जिससे कांच की बॉटल टूट जाती है और कांच के टुकड़े इशिका के हाथ में चुभ जाते है।जिसने खून निकलने लगता है।पर इशिका उसपर ध्यान न देकर पहले लड़के को पीटने लगती है।तभी वो दूसरा लड़का उसके सर पर दूसरी कांच की बॉटल वार करने वाला था पर तभी कोई उस लड़के का हाथ पकड़ लेता है। ओर उस लड़के के हाथ से बॉटल लेकर फेक देता है और उसका हाथ मोड़ देता है जिससे उस लड़के की जोर से चीख निकलती है। इशिका तब जाकर पीछे देखती है।ओर जो वो देखती है उससे पहले लडको को मारते हुए उसके हाथ रुक जाते है।उसके सामने देवांश खड़ा था।जिसने उस लड़के को इशिका के वार करने से रोका था।इशिका जिसे मारते हुए रुकी की वो इशिका को रुके हुए देख मौके का फायदा उठाकर इशिका को मारने वाला होता है तभी देवांश उसे एक किस मारता है जिससे वो दूर जाकर गिरता है। फिर पांचों इतनी मार खाने के बाद वहां से भाग जाते है।दोनो लड़कियां इशिका को देवांश को थैंक यू कहती है ।पर इशिका का ध्यान सिर्फ देवांश पर था और उसके कान में छोटे देवू की बात गूंजती है "फ्यूचर में मैं तुम्हे सबसे बचाऊंगा जो तुम्हारा मारना या हर्ट करना चाहेंगे।" तभी दिया देवांश के पीछे से आगे आती है और इशिका को देख कहती है "इशू तुझे क्या हुआ ये तेरे हाथ से खून निकल रहा है।" इशिका अब अपने होश में आती है।ओर कहती है "नहीं दिया ठीक हु बस छोटी सी चोट है।" दिया कहती है "छोटी सी देख कितना खून निकल रहा है।" पर इशिका जैसे सुनने को तयार ही नहीं थी।दिया थक हार कर देवांश को देखती है और आंखों से इशारा कर उससे कहती है "भाई प्लीज हेल्प।" देवांश ये देख समझ जाता है दिया क्या चाहती है वो मना नहीं कर पाता और इशिका के पास जाकर डायरेक्ट उसे अपनी गोद में उठा लेता है। जैसे ही देवांश इशिका को गोद में उठाता है।देवांश में गोद में उठाते ही इशिका देवांश को देखती है।दिया कहती है "भाई कार में फर्स्ट ऐड बॉक्स है।इशू को वही लेकर चलते है।" देवांश हां में गर्दन हिला देता है।ओर इशिका को अपनी कार के पास लेकर जाती है।इशिका को कार सीट पर बिठा देता है।दिया उसकी ड्रेसिंग करती है। देवांश कहता है "मिस मलिक मैं आपको घर ड्रॉप कर देता हूं।" इशिका एक छोटी सी स्माइल के साथ कहती है "थैंक यू मिस्टर ठाकुर पर मैं वहां थोड़ी देर ठंडी और खुली हवा में सांस लेने आई थी मैं यहां कुछ और देर रुकना पसंद करूंगी ।" देवांश के कुछ कहने से पहले दिया कहती है "चली दोनो साथ में चलते है।मजा आयेगा।" ओर वो इशिका का दूसरा हाथ पकड़ वहां से लेकर चली जाती है।देवांश हुई लाचारी में सर हिलाकर उनके पीछे चलने लगता है। plzz comment kar zarur batana part kaisa tha