प्यार की एक अतरंगी कहानी
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एक लड़का एक बड़ी सी बिल्डिंग के मेन डोर के बाहर अपनी साइकिल रोककर बिल्डिंग पर लिखा हुआ नाम पढ़ने लगा। बिल्डिंग पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था, "ए आर फैशन एंड लाइफ केयर"। यह नाम पढ़ते हुए उस लड़के के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। और वह मुस्कुराते हुए अपने मन में बोला, "पहुँच गया।" "ये है विशेष रावत," जिसका आज ए आर फैशन एंड लाइफ केयर फैशन कंपनी में इंटरव्यू था। विशेष अभी बाइस साल का था और दिखने में बहुत ही मासूम और प्यारा। क्लीन शेव, गोरा रंग, लम्बाई छह फीट के करीब और परफेक्ट बॉडी। विशेष अपनी साइकिल से उतरकर कंपनी की बिल्डिंग के मेन गेट के पास ही अपनी साइकिल खड़ी करने लगा। तभी पीछे से उसके कानों में एक भारी आवाज पड़ी, "सर, आप अपनी साइकिल को यहां पर नहीं खड़ा कर सकते।" यह आवाज सुनते ही विशेष पीछे मुड़ा तो सामने कंपनी का गार्ड खड़ा था। "सॉरी सर… प्लीज, आप मुझे बता सकते हो कि मैं अपनी साइकिल कहाँ खड़ी करूँ?" – विशेष ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा। इस पर गार्ड सामने पार्किंग एरिया की ओर इशारा करते हुए विशेष से बोला, "वहाँ खड़ी कर दीजिए।" विशेष अपनी साइकिल को पार्किंग एरिया में ले जाकर खड़ी कर दिया और फिर कंपनी के अंदर चला गया। अंदर जाते ही विशेष सबसे पहले रिसेप्शन की ओर गया। "एक्सक्यूज मी, मेम…" – विशेष रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़की से बोला। "जी, कहिए।" – रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़की मुस्कान के साथ विशेष से पूछी। "मेम, मुझे आरसी मेम से मिलना है।" – विशेष ने कहा। "सर, आपने मेम से मिलने की अपॉइंटमेंट ली है?" – रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़की विशेष की बात खत्म होते ही बोली। "नहीं मेम… वो आज मेरा इंटरव्यू है। इसलिए मुझे उनसे मिलना है।" – विशेष ने शांत भाव से कहा। इस पर रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़की थोड़ा हैरान होते हुए बोली, "क्या… इंटरव्यू… सॉरी सर, लेकिन आज हमारे ऑफिस में कोई भी इंटरव्यू नहीं है। शायद आपको कुछ गलतफहमी हुई है।" "मेम, मुझे आरसी मेम के दादा जी… मिस्टर प्रभाकर सिंह राजपूत… उन्होंने भेजा है। उन्होंने आरसी मेम को मेरे बारे में बताया होगा कि आज मैं इंटरव्यू के लिए आऊँगा। आप एक बार आरसी मेम से कॉल करके पता कर लीजिए।" – विशेष ने कहा। "ओके सर।" – रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़की बोली और फिर सामने रखे फोन से किसी को कॉल करने लगी। जैसे ही दूसरी ओर से कॉल पिक हुआ, वह बोली, "गुड मॉर्निंग मेम… मेम, आपसे मिलने कोई आए हैं। वो कह रहे हैं कि उन्हें आपके दादाजी ने भेजा है और आज उनका इंटरव्यू है।" "उन्हें मेरे केबिन में भेज दो।" – फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई। "जी मेम।" – इतना कहकर वह लड़की फोन नीचे रखते हुए सामने खड़े विशेष से बोली, "सर, आपको मेम ने अपने केबिन में बुलाया है।" "सर, आगे से लेफ्ट चले जाएँ, सामने ही मेम का केबिन है।" – वह लड़की सामने की ओर इशारा करते हुए आगे बोली। इस पर विशेष हल्का सा मुस्कुराते हुए रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़की को थैंक यू कहकर आरसी के केबिन की ओर चला गया। आरसी अपने केबिन में बैठी फाइल्स देखने में व्यस्त थी। "आरसी राजपूत"… "ए आर फैशन एंड लाइफ केयर" फैशन कंपनी की सीईओ… 25 साल की आरसी ने अपनी कड़ी मेहनत से पिछले दो सालों में ए आर फैशन एंड लाइफ केयर फैशन कंपनी को इंडिया की टॉप सेवन फैशन कंपनियों में शामिल कर दिया था। माता-पिता के गुजर जाने के बाद आरसी अपने दादाजी प्रभाकर सिंह राजपूत के साथ रहती थी। आरसी दिखने में काफी आकर्षक थी। बड़ी-बड़ी गहरी आँखें जिनमें एक अजीब सी कशिश थी। तीखे नयन-नक्श, साँचे में ढला हुआ शरीर और उसका हल्का साँवला रंग किसी को भी अपना दीवाना बना सकता था। आरसी स्वभाव से थोड़ी सख्त थी। शायद इसीलिए उसकी कंपनी के अधिकतर इम्प्लॉयी उससे डरते थे और उसे खड़ूस कहते थे। अपने हाथ में पकड़ी हुई फाइल को बंद करके आरसी सामने टेबल पर रखी और फिर अपनी चेयर से खड़ी होकर सामने दीवार पर बने रैक की ओर बढ़ गई। और रैक में रखी हुई एक फाइल निकालकर उसे देखने लगी। तभी विशेष आरसी के केबिन के डोर पर नॉक करते हुए बोला, "मे आई कम इन?" "कम इन।" – आरसी फाइल देखते हुए बोली। विशेष केबिन का डोर खोलकर केबिन के अंदर आ गया। अंदर आते ही उसकी नज़र रैक के सामने खड़ी आरसी पर पड़ी। आरसी विशेष की ओर अपनी पीठ करके खड़ी थी। आरसी को देखते ही विशेष कहने लगा, "गुड मॉर्न…" – अभी विशेष ने इतना ही कहा था कि आरसी अपने हाथ में पकड़ी हुई फाइल को बंद करके विशेष की ओर मुड़ी। आरसी के मुड़ते ही जैसे ही विशेष की नज़र आरसी के चेहरे पर पड़ी तो उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए। आरसी भी जब विशेष को देखती है तो उसके चेहरे के भी भाव बदल जाते हैं। वह दोनों एक-दूसरे को देखते ही हैरानी से एक साथ बोले, "तुम…"। **कुछ समय पहले** एक छोटा सा घर जहाँ बाहर आँगन में बहुत से गमले रखे हुए थे जिनमें अलग-अलग रंगों के फूल खिले हुए थे। घर के अंदर एक कमरे में विशेष सामने बिस्तर पर सो रहे दो छोटे बच्चों को जगाते हुए बोला, "अश्मि… अर्थ, उठो… स्कूल नहीं जाना क्या?" विशेष के उठाने पर अर्थ बिस्तर पर करवट बदलते हुए बोला, "भैया, प्लीज सोने दो ना।" "मतलब तुम दोनों ऐसे नहीं उठोगे?" – इतना कहकर विशेष बिस्तर पर लेटे हुए अश्मि और अर्थ को गुदगुदी करने लगा। गुदगुदी करने से दोनों खिलखिलाकर हँसते हुए जाग गए और फिर दोनों मिलकर विशेष को गुदगुदी करने लगे। कुछ देर बाद विशेष अश्मि और अर्थ से कहता है, "अब जल्दी से दोनों ब्रश करके नहाने जाओ। तब तक मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बना देता हूँ।" और अपने आप सामने बने किचन में चला गया। थोड़ी देर में अर्थ और अश्मि को स्कूल भेजने के बाद विशेष अपने मन में बोला, "अब मैं भी जल्दी से तैयार होकर इंटरव्यू के लिए निकलता हूँ।" और फिर कुछ देर बाद विशेष भी तैयार होकर अपनी साइकिल से इंटरव्यू के लिए निकल गया। अभी वह कुछ दूर ही गया था कि तभी उसकी साइकिल के ठीक बगल से होते हुए एक बड़ी सी कार गुज़री। विशेष की साइकिल को क्रॉस करते समय उस कार के पहिये रोड पर बने एक कीचड़ से भरे हुए गड्ढे में से होकर गए। जिस वजह से गड्ढे में जमा हुआ कीचड़ उछलकर बगल से साइकिल पर जा रहे विशेष के ऊपर आ गिरा। जैसे ही विशेष के ऊपर कीचड़ गिरा, वह अपनी साइकिल रोक दिया और फिर पीछे पलटकर उस कार को देखते हुए अपने मन में बोला, "कौन है ये बदतमीज़? इसने मेरे सारे कपड़े खराब कर दिए। रुको, इसे तो मैं अभी बताता हूँ।" इतना कहकर विशेष अपनी साइकिल को वापस मोड़ लिया और उस कार का पीछा करने लगा। विशेष अपनी साइकिल को अपने शरीर की पूरी ताकत लगाकर फुल स्पीड में चलाते हुए उस कार के ठीक बगल में आ गया और फिर कुछ देर बाद कार के आगे आकर खड़ा हो गया। अचानक से विशेष के कार के आगे आने से कार रुक गई। यह कार किसी और की नहीं, बल्कि आरसी की थी। आरसी कार से उतरकर कार के ठीक आगे साइकिल पर बैठे विशेष को गुस्से में घूरते हुए कहती है, "तुम्हारा दिमाग खराब है। ऐसे कैसे तुम मेरी गाड़ी के सामने आ गए? मरने के लिए मेरी ही गाड़ी मिली थी क्या तुम्हें?" आरसी की बातें सुनकर विशेष अपनी साइकिल से उतरकर आरसी की ओर मुड़ा। जैसे ही विशेष आरसी की ओर मुड़ा तो विशेष के कीचड़ से सने कपड़े देख आरसी थोड़ा हैरान रह गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह लड़का ऐसे कीचड़ से सने हुए कपड़े पहनकर उसकी कार के आगे क्यों खड़ा हो गया। विशेष आरसी के थोड़ा करीब आकर अपने कपड़ों की ओर इशारा करते हुए कहता है, "ये देखो, तुम्हारी वजह से मेरे सारे कपड़े गंदे हो गए।" "मेरी वजह से?" – आरसी थोड़ा हैरान होकर बोली। "हाँ, तुम्हारी वजह से… अभी थोड़ी देर पहले जब मैं तुम्हारी गाड़ी के सामने से गुजरा तो तुम्हारी गाड़ी एक कीचड़ से भरे हुए गड्ढे में गई, जिस वजह से गड्ढे में भरा हुआ सारा कीचड़ मेरे कपड़ों पर आ गिरा। क्या तुम्हें दिखा नहीं कि आगे कीचड़ से भरा हुआ गड्ढा है जिसमें तुम्हें गाड़ी थोड़ा धीरे चलानी थी?" – विशेष ने आरसी को घूरते हुए कहा। विशेष की बात सुनकर आरसी अपने पर्स से 2000 रुपये का नोट निकालकर विशेष की ओर करते हुए बोली, "ये लो… इससे तुम अपने लिए नई शर्ट खरीद लेना।" इस पर विशेष बनावटी हँसी हँसते हुए कहता है, "सॉरी बोलने की बजाय तुम मुझे ये दो हज़ार रुपये दे रही हो।" "हाँ… और वैसे ये दो हज़ार रुपये बहुत ज़्यादा ही हैं क्योंकि ये शर्ट ज़्यादा से ज़्यादा 500 या 600 तक ही होगी… और मैं तुम्हें सॉरी क्यों बोलूँ? इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैंने कौन सा तुम्हारे ऊपर कीचड़ जानकर उछाला?" – आरसी ने गंभीर भाव से कहा। आरसी की बातें सुनकर विशेष को थोड़ा गुस्सा आ जाता है और वह आरसी के ओर करीब आकर कहता है, "तुम्हें बड़ा पता है कि मेरी ये शर्ट 500 या 600 रुपये की है। क्या तुम किसी कपड़ों की दुकान में काम करती हो? तुम्हें देखकर तो नहीं लग रहा कि तुम किसी कपड़ों की दुकान में काम करती होंगी।" "देखो, मेरे पास इतना टाइम नहीं है कि मैं तुम्हारे साथ फ़ालतू की बहस-बाज़ी करूँ। समझे… अगर तुम्हें ये रुपये चाहिए तो इन्हें पकड़ो, वरना मुझे जाने दो।" – आरसी थोड़ा गुस्से में कहती है। "तुम्हारे पास टाइम नहीं है, लेकिन मेरे पास बहुत टाइम है इसलिए मैं ना तो तुम्हारी गाड़ी के आगे से अपनी साइकिल हटाऊँगा और ना ही तुम्हें जाने दूँगा। जब तक तुम मुझे सॉरी नहीं कहती।" – इतना कहकर विशेष अपने मन में सोचता है, "मैंने कह तो दिया कि मेरे पास बहुत टाइम है, लेकिन इंटरव्यू के लिए देर तो मुझे भी हो रही है। लेकिन मैं इस नकचढ़ी लड़की को ऐसे जाने भी तो नहीं दे सकता।" इतने में आरसी अपने पर्स से कुछ और पैसे निकालकर विशेष को देते हुए कहती है, "ये लो, ये पूरे पाँच हज़ार रुपये हैं… मुझे लग रहा है इतने पैसों में तो तुम पाँच-छह शर्ट खरीद लोगे।" "मुझे लगता है कि तुम्हारे पास कुछ ज़्यादा ही पैसे हैं। अगर तुम्हारे पास इतने ही पैसे हैं तो गरीबों में दान कर दो, पुण्य मिलेगा… और दूसरी बात, मुझे तुम्हारे ये पैसे नहीं चाहिए। मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे अपनी गलती पर सॉरी कहो।" – विशेष दाँत पीसते हुए बोला। ये सुनकर आरसी विशेष को गुस्से में घूरते हुए अपनी कार के अंदर बैठ जाती है और कार स्टार्ट कर साइकिल के बगल से निकालने लगती है, लेकिन तभी विशेष कार के ठीक सामने आ जाता है। जिस वजह से आरसी अपनी कार को विशेष के बगल से निकालते हुए जाती है। लेकिन इससे पहले कि आरसी विशेष के बगल से अपनी कार निकालकर वहाँ से जाती, विशेष गुस्से में नीचे रोड के किनारे पड़े गोबर को उठाकर आरसी की कार पर फेंक देता है, जो आरसी की कार के पीछे की सीट के विंडो पर जाकर गिरता है। विशेष की यह हरकत कार के साइड मिरर से आरसी भी देख लेती है। आरसी गुस्से में तमतमाते हुए अपनी कार रोककर कार से बाहर आती है और कार पर पड़े गोबर को देखकर लगभग चिल्लाते हुए गुस्से से कहती है, "तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?" लेकिन विशेष बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए अपनी साइकिल पर बैठकर वहाँ से चला जाता है और आरसी वहीं खड़ी विशेष को जाते देखती ही रह जाती है। …क्रमशः…
"ए आर फैशन एंड लाइफ केयर कंपनी का आफिस" विशेष को अपने केबिन में देख आरसी की भौंहे तन गई। उसकी आँखों मे गुस्सा साफ नजर आ रहा था। "तुम....... तुम यहाँ कैंसे आये।"- आरसी विशेष पर लगभग चिल्लाते हुए बोली। आरसी की आवाज सुन विशेष एक नजर सामने रखी आरसी की खाली चेयर को देखकर अपने मन मे सोचता है-" शायद आरसी मेम अभी केबिन में नही हैं।" फिर वो अपनी नजरें सामने खड़ी आरसी की ओर घुमाते हुए धीरे से अपने मे ही बोलता है-"लेकिन ये नकचडी लड़की आरसी मेम के केबिन में क्या कर रही है। कहीं ये भी इसी ऑफिस में तो काम नही करती। इसे देखकर तो ऐंसा ही लग रहा है कि ये नकचडी लड़की यहीं काम करती है। ......हे भगवान अगर इसने आरसी मेम को बता दिया कि मैंने सुबह इसके साथ क्या किया तो बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो जाएगी।" विशेष को ऐंसे अपने मे ही बड़बड़ाते हुए देख आरसी ने अपने मन मे सोचा-" ये लड़का क्या बड़बड़ा रहा है। कहीं ये लड़का पागल वागल तो नही है। " फिर आरसी अपनी हाथ मे पकड़ी फ़ाइल सामने टेबल पर रखते हुए विशेष के थोड़ा करीब जाकर कहती है-" मैंने तुमसे कुछ पूछा है। तुम यहाँ कैंसे आये।" आरसी की बात सुनकर विशेष बनावटी मुस्कान के साथ बोला-" देखो मैं यहां जॉब के लिए आया हूँ। मुझे आरसी मेम के दादाजी ने भेजा है। और तुम्हे देखकर लग रहा है कि तुम भी यहीं काम करती हो। ....मुझे इस जॉब की बहुत जरूरत है। इसलिए प्लीज् जो भी सुबह हम दोनों के बीच हुआ वो तुम आरसी मेम को मत बताना। प्लीज्......... सुबह के लिए मैं तुमसे माफी तो नही मागूँगा क्योंकि गलती तो तुम्हारी भी थी। लेकिन फिर भी अब तो हम एक साथ एक ही ऑफिस में काम करेंगे। इसलिए अब हमें दोस्ती कर लेनी चाहिए।" विशेष की बातें सुनकर आरसी विशेष को घूरते हुए अपने मन ही मन मे सोचती है-" ओह तो यही है वो लड़का जिसे दादाजी ने भेजा है।...... और इसे लग रहा है कि मैं इस कंपनी की एक इम्प्लॉय हूँ। ..... इसे मैं अभी बताती हूँ कि मैं इस कंपनी की इम्प्लॉय नही बल्कि इस कंपनी की सी ई ओ ....आरसी राजपूत हूँ। जो इसका इंटरव्यू लेगी"। आरसी को अपने मे ही खोया देख विशेष आरसी के सामने चुटकी बजाते हुए बोला-" कहाँ खो गई तुम।" विशेष के चुटकी बजाते ही आरसी अपनी सोच से बाहर आकर सामने रखी अपनी चेयर पर बैठ जाती है। ये देख विशेष हैरानी से आरसी को देखते हुए कहता है-" अरे तुम ये क्या कर रही हो। तुम्हे पता है ये आरसी मेम की सीट है। तुम ऐंसे कैंसे उनकी सीट में बैठ गई। अगर आरसी मेम ने देख लिया तो वो तुम्हे जॉब से ही न निकाल दे।" ............... इतना कहकर विशेष फिर से धीरे से अपने मे ही कहता है-" वैंसे निकाल देंगी तो ठीक ही है।" विशेष को धीरे से अपने मे ही बड़बड़ाते देख आरसी कहती है-" क्या ...... ये अभी मुँह के अंदर ही अंदर तुमने क्या कहा।" "नही नही कुछ नही......मैं तो कह रहा हूँ कि तुम्हे आरसी मेम की चेयर में नही बैठना चाहिए। तुम्हे तो पता ही होगा को वो कितनी खतरनाक हैं। खुद उनके दादाजी ने मुझसे कहा था कि वो थोड़ा सख्त मिजाज की और खड़ूस हैं। इसलिए मैं उनके सामने अच्छे से पेश आऊं। "-विशेष अपनी बात बिना रुके कहे जा रहा था। विशेष की बातें सुनकर आरसी को अब गुस्सा आने लगा था ।इसलिए वो विशेष की बात काटते हुए बजोर से चिल्लाकर कहती हैं-" मैं ही हूँ आरसी राजपूत।" ये सुनते ही विशेष एकदम से चुप हो जाता है। और उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है। इस समय उसकी हालत ऐंसी थी मानो काटो तो खून नही। उसकी आवाज उसके गले मे ही रुक गई थी। और उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। कुछ देर तक पूरे केबिन में एक खामोशी पसर जाती है। कुछ देर बाद विशेष पूरी हिम्मत जुटाते हुए बोला-"क्या......आप ही हो आरसी राजपूत।" इतना कहकर विशेष झट से अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली को ऊपर कर आरसी को दिखाते हुए आगे कहता है-" मुझे वशरूम जाना है।" इससे पहले की आरसी कुछ कहती विशेष भागकर केबिन से बाहर आ जाता है। और आरसी उसे बस देखती ही रह जाती। केबिन से बाहर आकर विशेष अपने सर को पीटते हुए अपने मे ही कहता है-" सच मे मैं बहुत बड़ा वाला पागल हूँ"। तभी उसकी नजर सामने ऑफिस में काम कर रहे इम्प्लॉयस पर पड़ती है जो उसकी हरकतों को अजीब नजरों से देख रहे थे। ये देख विशेष बनावटी मुस्कान के साथ सामने बैठे एक लड़के से पूछता है-" आप प्लीज् मुझे बता सकते हैं कि वशरूम कहां है। इस पर वो लड़का सामने की ओर इशारा करते हुए कहता है-" आगे से लेफ्ट "। ये सुनते ही विशेष जल्दी से वशरूम के ओर चला जाता है। वशरूम में आते ही विशेष अपने बाल पकड़ते हुए परेशान सा अपने मे ही बड़बड़ाने लगता है-" अब क्या करूँ...... मैंने तो उसके मुँह पर ही उसे खड़ूस सख्त मिजाज और भी पता नही उसे क्या क्या कह दिया। मुझे नही लगता कि अब वो मुझे यहां जॉब पर रखेंगी।" ..... कुछ देर बाद विशेष खुद को शांत कर एक लंबी सांस लेते हुए अपना मुंह धोकर वाशरूम से बाहर आजाता है। और फिर आरसी के केबिन की ओर चला जाता है। आरसी के केबिन के दरवाजे के बाहर खड़ा होकर विशेष अपनी आँखें बंद कर एक लंबी सांस लेते हुए पूरी हिम्मत जुटाकर केबिन का दरवाजा खोलते हुए कहता है-"मे...मे आई कम इन।" आरसी बिना विशेष की ओर देखे कहती है-" यस....कम इन।" विशेष आरसी के ठीक सामने आकर धीरे से कहता है-"सॉरी....।" "जब सुबह तुमने मेरी कार पर गोबर फेंका तो मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन अब जब तुम उसके लिए सॉरी कह रहे हो तो मैं तुम्हे माफ कर........।"-इससे पहले की आरसी अपनी बात पूरी करती विशेष आरसी की बात बीच मे ही काटते हुए बोला-"नही नही आप गलत समझ रहीं हैं।......... ये सॉरी मैंने आपकी कार पर गोबर फेंकने के लिए नही कहा। ये सॉरी तो मैंने अभी थोड़ी देर पहले जो आपके लिए खड़ूस और सख्त कहा उसके लिए है। भला मैं आपसे सुबह के लिए सॉरी क्यों कहूंगा।" ये सुनकर आरसी विशेष को गुस्से से घूरने लगती है। विशेष अभी भी अपनी बात आगे कहे जा रहा था-"क्योंकि सुबह मेरी कोई गलती नही थी। अगर आप मेरे ऊपर कीचड़ डालने के लिए सॉरी कह देतीं तो मैं आपकी कार पर गोबर नही डालता।" ये कहते हुए विशेष की नजर आरसी के चेहरे पर पड़ती है जो कि गुस्से से उसे ही घूर रही थी। आरसी को ऐंसे गुस्से से खुद को देखते देख विशेष को ध्यान आता है कि शायद जो भी उसने अभी कहा उसे वो नही कहना चाहिए था। इसलिए वो चुप हो जाता है। और फिर अपनी नजरें नीचे कर अपने मन ही मन मे कहता है-"मैं सच मे ही पागल हूँ...... खुद पर जरा सा भी कंट्रोल नही कर पाता।" आरसी अभी भी विशेष को खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी। ये देख विशेष धीरे से कहता है-" सॉरी......।" नाम क्या है तुम्हारा"-आरसी गम्भीर स्वर में बोली। विशेष-" विशेष......विशेष रावत।" "तुम अपना सी वी या फिर डाक्यूमेंट्स लाये हो अपने साथ"- आरसी ने विशेष से पूछा। इस पर विशेष अपने हाथ मे पकड़ी अपनी डाक्यूमेंट्स फ़ाइल को आरसी की ओर बढ़ा देता है। आरसी विशेष के हाथ से फ़ाइल पकड़कर देखने लगती है।फ़ाइल देखते ही आरसी हैरान होते हुए विशेष से कहती है-" तुम सिर्फ बारहवीं तक ही पढ़े हो क्या।" "जी"-विशेष शांत भाव से बोला। आरसी विशेष की डॉक्यूमेंटस फ़ाइल बन्द कर विशेष को देते हुए बोली-" मैं तुम्हे अपने ऑफिस में जॉब पर नही रख सकती। क्योंकि तुम्हारे पास कोई डीग्री नही है।" "मेम प्लीज् मुझे जॉब की बहुत ज्यादा जरूरत है। मैं कुछ भी करने को तैयार हूं। "-विशेष आरसी से रिक्वेस्ट करते हुए कहता है। "अब तुम जा सकते हो"-आरसी ने बिना किसी भाव के कहा। "मेम प्लीज्...... कुछ काम ऐंसे भी तो होते हैं जिनमे ज्यादा पढ़े लिखे होने की जरूरत नही होती। जैंसे की फोर्थ क्लास में। मैं सब कुछ करने को तैयार हूं।"-विशेष एक बार फिर आरसी से रिकवेस्ट की। "तुमने सुना नही मैंने क्या कहा.....अब तुम जा सकते हो"-आरसी सख्त लहीजे में बोली तो विशेष चुप हो जाता है। और फिर अपनी डाक्यूमेंट्स फ़ाइल पकड़कर वहां से जाने लगता है। जैंसे ही विशेष केबिन के दरवाजे के पास जाता है वो अचानक से आरसी की ओर मुड़ता है और फिर आरसी के थोड़ा करीब आकर लगभग चिल्लाते हुए कहता है-" मुझे पता है आप मुझे इसलिए जॉब पर नही रख रहीं क्योंकि सुबह मैंने आपकी कार पर गोबर फेंका। आपको उसमे मेरी गलती तो नजर आ रही है लेकिन अपनी गलती नजर नही आ रही। अनजाने में ही सही लेकिन आपकी वजह से भी तो मेरे कपड़े खराब हुए थे पर आपको वो नही दिख रहा। अभी थोड़ी देर पहले तक तो मुझे लग रहा था कि मुझे आपकी कार पर गोबर नही फेंकना चाहिए था। लेकिन अब लग रहा है कि मैंने ठीक किया आपकी कार के ऊपर गोबर फेंक कर।" इतना कहकर विशेष गुस्से में अपने दोनो हाथ हिलाते हुए वहां से चला जाता है। जाते समय वो आरसी के केबिन का दरवाजा इतनी जोर से बन्द करता है कि दरवाजे का हैंडल टूट कर नीचे गिर जाता है। ये देखकर आरसी को विशेष के ऊपर ओर भी गुस्सा आने लगता है। लेकिन अब विशेष वहां से जा चुका था। ★★क्रमशः★★ धन्यवाद........।
दोपहर के बारह बज चुके थे। विशेष एक पार्क में परेशान सा बैठा हुआ था। आरसी के ऑफिस से आने के बाद विशेष दो रेस्टोरेंट और एक दो दुकानों में भी जॉब के लिए जाता है लेकिन उसे वहां भी जॉब नही मिलती। "अब मैं क्या करूँ। अगर मुझे जॉब नही मिली तो" विशेष परेशान सा अपने में ही बड़बड़ाया। तभी अचानक से उसका फोन बजने लगता है। जैंसे ही वो फोन की स्क्रीन पर देखता है तो आरसी के दादाजी प्रभाकर जी का कॉल था। विशेष प्रभाकर जी का कॉल उठाते हुए कहता है-" नमस्ते दादा जी।" "नमस्ते बेटा............मिल गई बेटा तुम्हे जॉब"- फोन पर दूसरी ओर से प्रभाकर जी की आवाज आती है। इस पर विशेष रुहांसी सी आवाज में बोला-" नही....."। "क्या......... आरसी ने तुम्हे जॉब पर नही रखा। लेकिन मैंने तो उससे कहा था कि वो तुम्हे जॉब पर रखे।"-प्रभाकर जी हैरानी भरे स्वर में कहते हैं। तो विशेष कहता है-"उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई डीग्री नही है इसलिए वो मुझे अपने ऑफिस में जॉब पर नही रख सकती"। "विशेष बेटा तुम चिंता मत करो। जब वो शाम को घर आएगी तो मैं उससे बात करूंगा। चाहे कुछ भी हो जाये मैं तुम्हे उसके ऑफिस में जॉब दिलवा कर रहूंगा। "-प्रभाकर जी थोड़ा गम्भीर स्वर में कहते हैं। इस पर विशेष कहता है-"दादाजी कोई नही....... मैं अपने लिए जॉब दूसरी जगह ढूंढ लूंगा। "अरे नही बेटा तुम्हारी जॉब मेरी वजह से गई है। तो मैं तुम्हे जॉब दिलवा कर ही रहूंगा। अच्छा अब मैं फोन रखता हूँ"- इतना कहकर प्रभाकर जी फोन रख देते हैं। रात के आठ बज चुके थे। आरसी अपनी कार से घर जा रही थी। कुछ ही देर में उसकी कार के बड़े से बंगले के मेन गेट के सामने रुकती है। जिसके गेट पर एक बड़ी सी नेम प्लेट लगी हुई थी। नेम प्लेट पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था-"राजपूत मैंशन"।....... आरसी की कार को देखते ही गेट पर बैठा गार्ड जल्दी से गेट खोलता है। गेट खुलते ही आरसी अपनी कार को अंदर ले आती है। और फिर कार रोककर घर के मुख्य दरवाजे के सामने बनी डोर बेल बजाती है। डोर बेल बजने के कुछ देर बाद ही एक सत्ताईस अठ्ठाईस साल की लड़की दरवाजा खोलती है। दरवाजा खुलते ही आरसी अंदर आ जाती है। आरसी के पीछे पीछे वो लड़की भी अंदर आ जाती है। अंदर हॉल में आकर आरसी सामने टेबल पर अपना पर्स रखते हुए कहती है-" मिताली......दादा जी कहाँ हैं। इस पर उसके उसके ठीक पीछे खड़ी मिताली कहती है-" सर तो अपने कमरे में ही हैं। कुछ रुककर मिताली हकलाते हुए आगे कहती है-" वो.... वो सर ने दोपहर में खाना नही खाया। उन्होंने कहा कि उन्हें भूख नही है। "क्या....दादाजी ने दोपहर से कुछ नही खाया। तुम्हे मुझे कॉल करके बताना चाहिए था ना कि दादा जी ने कुछ नही खाया"-आरसी लगभग चिल्लाते हुए कहती है तो मिताली डर जाती है और अपना सर नीचे झुकाकर झेंपते हुए शांत भाव से कहती है"- मैं आपको कॉल करने वाली थी लेकिन सर ने मना कर दिया।मिताली की बात सुनकर आरसी सीधे प्रभाकर जी के कमरे की ओर बढ़ जाती है। जैंसे ही वो कमरे के बाहर पहुंचती है तो देखती है कि कमरे का दरवाजा आधा खुला हुआ है। आरसी प्रभाकर जी के कमरे का दरवाजे को हल्का सा अंदर धकेलकर अंदर झांकते हुए कहती है-" दादाजी.......। जैंसे ही आरसी कमरे के अंदर झांकती है उसे सामने चेयर पर बैठे प्रभाकर जी किताब पढ़ते हुए दिखाई देते हैं। प्रभाकर जी को देखते ही आरसी कमरे के अंदर आ जाती है और प्रभाकर जी के पास जाकर कहती है-" दादा जी मिताली ने मुझे बताया कि अपने दोपहर में खाना नही खाया।आरसी की बात का प्रभाकर जी कोई प्रभाव नही पड़ता। और ना ही वो उसकी बात पर कोई रिएक्ट करते हैं। उन्हें देखकर लग रहा था मानो वो आरसी की बात सुन ही नही रहे थे। ये देख आरसी कहती है-"दादाजी क्या हुआ आप कुछ बोल क्यों नही रहे हो। इस पर प्रभाकर जी एक नजर आरसी की ओर देखते हैं। प्रभाकर जी का चेहरा देखकर आरसी समझ जाती है की वो उससे नाराज हैं। इसलिए आरसी प्रभाकर जी के पासबैठते हुए कहती है-" दादाजी आप मुझसे नाराज हैं क्या।ये सुनकर प्रभाकर जी फिर से अपनी नजरें अपने हाथ मे पकड़ी हुई किताब पर गढ़ा देते हैं। ये देख आरसी फिर से कहती है-" बताइये ना दादा जी आप मुझसे नाराज क्यों है। ऐंसा क्या किया मैंने कि जो आप मुझसे नाराज हो गए। "तुम्हे नही पता कि तुमने क्या किया"-"प्रभाकर जी सख्त लहीजे में कहते हैं। तो आरसी अपने दिमाग मे कुछ सोचते हुए कहती है-" नही........। "तुमने अपने ऑफिस में उस लड़के को जॉब पर क्यों नही रखा। जिसे मैंने भेजा था"-प्रभाकर जी ने आरसी को घूरते हुए कहा। प्रभाकर जी की बात सुनकर आरसी के चेहरे के भाव बदल जाते हैं और उसे विशेष पर गुस्सा आने लगता है।प्रभाकर जी अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहते हैं"- बताओ क्यों नही दी तुमने उसे जॉब। इस पर आरसी गुस्से से अपने दांत पीसते हुए अपने मन ही मन मे कहती है-" इस लड़के ने दादाजी से चुगली भी कर दी। कितना चुगल खोर है ये लड़का। "बताओ क्यों नही दी तुमने उसे जॉब"-प्रभाकर जी आरसी को अपने मे ही खोया हुआ देखकर थोड़ा तेज आवाज में कहते हैं। तो आरसी कहती है-" दादाजी उसके पास डिग्री नही है। और वैंसे भी हमारी कंपनी में अभी कोई पोस्ट खाली नही है। आपके कहने पर मैं उसे अपने एक क्लाइंट के ऑफिस में भेजने वाली थी। मेरे क्लाइंट ने कहा था कि मैं उसका इंटरव्यू लेकर उसे उसके ऑफिस में भेज दूं। लेकिन बिना डिग्री के मैं उसे अपने क्लाइंट के ऑफिस में कैंसे भेज सकती थी। मेरा क्लाइंट क्या सोचता कि मैंने ऐंसे लड़के को उनके यहां जॉब के लिए भेजा है जिसके पास कोई डिग्री ही नही है। "वो सब मैं कुछ नही जानता। तुम्हे उसे जॉब पर रखना ही होगा। तुम्हे नही पता कि हॉस्पिटल में उसने मेरी कितनी सेवा की। और अगर हॉस्पिटल में मैं उस दिन हॉस्पिटल से बाहर जाने की जिद नही करता तो उसकी जॉब नही जाती। और उस दिन उसने मुझे सीढ़ियों से गिरने से भी बचाया था। बेचारा..... मेरी वजह से उसकी जॉब चली गई। इसीलिए मुझे उसके लिए बहुत बुरा लग रहा है। और इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि तुम उसे अपने ऑफिस में जॉब दिलवा दो। उसे जॉब की बहुत जरूरत है।"- प्रभाकर जी आरसी से रिकवेस्ट करते हुए कहते हैं। "पर दादा जी......आरसी ने इतना ही कहा था कि प्रभाकर जी आरसी की बात काटते हुए कहते हैं"- पर वर कुछ नही..... जब तक तुम उसे अपने ऑफिस में काम पर नही रखती तब तक मैं खाना नही खाऊंगा। "दादाजी ये क्या बात हुई"- आरसी परेशान सी कहती है। लेकिन प्रभाकर जी गुस्से से आरसी से मुँह फेरकर फिर से नजरें किताब में गढ़ा देते हैं। ये देख आरसी अपने मन ही मन मे सोचती है-" अब मैं इस लड़के को जॉब पर कहाँ रखूं। क्योंकि मेरी कम्पनी में तो एक भी पोस्ट खाली नही है। और जब तक उसे जॉब पर नही रखूंगी दादाजी ऐंसे ही इमोशनल ब्लैकमेल करते रहेंगे।इतने में आरसी के दिमाग मे अचानक से एक आईडिया आता है और वो फिर से अपने मन ही मन मे सोचती है"-क्यों न मैं उस लड़के को दादाजी की केयर टेकर की जॉब पर रख लूं। वैंसे भी दादाजी अभी पूरी तरह ठीक नही हुए हैं। उनके लिए मुझे एक केयर टेकर तो रखना ही है। तो उसे ही रख लेती हूं। और दादाजी उस लड़के के साथ ज्यादा कम्फर्टेबल रहेंगे। क्योंकि वो लड़का हॉस्पिटल में भी दादाजी की देखभाल करता था।ये सोचकर आरसी प्रभाकर जी का हाथ पकड़कर कहती है-" अच्छा ...... ठीक है। आप उस लड़के को कॉल करके कल घर पर बुला दो। मैं उसे जॉब पर रख लुंगी। "क्या ..... सच मे"-प्रभाकर जी बड़ी सी मुस्कराहट के साथ बोले। तो आरसी अपना सर हां में हिला देती है ये देख प्रभाकर जी कहते हैं"- तो क्या कल तुम ऑफिस नही जाओगी। "नही.... मैंने सोचा कि जब तक आप पूरी तरह ठीक नही हो जाते तब तक मैं ऑफिस का सारा काम घर से ही करूँगी।....... मैं आपके साथ रहना चाहती हूं।"-आरसी शांत भाव से कहती है। तो प्रभाकर जी उसके सर पर प्यार से हाथ फेर लेते हैं। इस पर आरसी कहती है"- अब चलो खाना खाते हैं। "तुम चलो मैं जरा उस लड़के को कॉल कर के बता देता हूँ कि कल वो हमारे घर आ जाये।"-प्रभाकर जी बोले।प्रभाकर जी की बात सुनकर आरसी कमरे से बाहर जाने लगती है। अभी आरसी कुछ ही कदम चली थी कि वो अचानक से रुककर प्रभाकर जी की ओर मुड़ते हुए कहती है-" दादाजी आपने उस लड़के को ऐंसा क्यों कहा कि मैं सख्त और खड़ूस हूँ। "क्या........ उसने तुम्हे ये बातें बता दी। कैसा चुगलखोर लड़का है वो.......... बेटा वो तो मैंने तुम्हें प्यार से कही थी"-प्रभाकर जी सफाई देते हुए कहते हैं। तो आरसी कहती है-" भला प्यार से भी कोई खड़ूस कहता है।इस पर प्रभाकर जी जल्दी से फोन उठाकर विशेष को कॉल करने लगते हैं। जिसे देख आरसी वहां से चली जाती है। दूसरी ओर विशेष अपने कमरे में बैठा जॉब के बारे में ही सोच रहा था। तभी अचानक से प्रभाकर जी की कही हुई बात याद आती है। दोपहर में प्रभाकर जी ने कहा था कि वो उसकी जॉब के लिए दुबारा आरसी से बात करेंगे। प्रभाकर जी की कही हुई ये बात याद आते ही विशेष को आरसी की याद आ जाती है। जिस वजह से उसे गुस्सा आजाता है और वो गुस्से में अपने दांत पीसते हुए कहता है-" अगर दादाजी के बात करने पर वो नकचढ़ी लड़की मुझे जॉब पर रखने के लिए तैयार हो भी गई तो मैं उस नकचढ़ी के साथ बिल्कुल जॉब नही करूँगा। पता नही क्या समझती है अपने आप को जैंसे कि कहीं की महारानी हो।इतने में विशेष का फोन बजने लगता है। जैंसे ही विशेष अपने फोन की ओर देखता है तो प्रभाकर जी का कॉल था। विशेष प्रभाकर जी की कॉल उठाते हुए कहता है-" हेलो दादाजी। दूसरी ओर से प्रभाकर जी की आवाज आती है"-विशेष बेटा........ कल हमारे घर आ जाना। इस बार तुम्हारी जॉब लग गई समझो।"क्या...... मैं कुछ समझा नही"- विशेष हैरानी भरे स्वर में कहता है तो प्रभाकर जी कहते हैं"- अरे मैंने तुम्हारे बारे में आरसी से बात की तो उसने कहा कि मैं तुम्हे कल घर आने को कहूँ। इस बार वो तुम्हे अपने ऑफिस में जॉब पर जरूर रख देगी। "सच मे दादाजी....."-विशेष हल्का सा मुस्करा कर कहता है। "हां..... अब कल टाइम से हमारे घर आ जाना मैं तुम्हे मेसेज में घर का पता भेज दूंगा"-इतना कहकर प्रभाकर जी कॉल कट कर देते हैं। कॉल कट होते ही विशेष खुशी ने नाचने लगता है। तभी अचानक से उसे अभी थोड़ी देर पहले कही हुई अपनी बात याद आती है कि वो आरसी के साथ उसके ऑफिस में बिल्कुल जॉब नही करेगा।अपनी कही ये बात याद करके विशेष अजीब सा मुँह बनाकर अपने मे ही कहता है-" क्यों नही करूँगा भला मैं उसके ऑफिस में जॉब। मुझे उस नकचढ़ी से क्या मतलब। मुझे तो अपने काम से मतलब होना चाहिए। मैं भी पता नही क्या क्या कहता रहता हूँ।तभी अचानक से घर की डोर बेल बजती है। डोर बेल बजते ही विशेष जल्दी से दरवाजे की ओर जाता है और दरवाजा खोलता है तो सामने बीस इक्कीस साल की लड़की खड़ी थी। और उसने अपने हाथ मे एक बड़ी सी कटोरी पकड़ी हुई थी। उस लड़की को देखते ही विशेष कहता है-"जिया तुम...... और ये तुम्हारे हाथ मे क्या है। " गाजर का हलवा"- जिया घर के अंदर आते हुए कहती है।"क्या गाजर का हलवा...... किसने बनाया आंटी जी ने"-विशेष जिया के हाथ से कटोरी पकड़ते हुए कहता है। "हां मम्मी ने बनाया"-जिया कहती है। " वाह कितनी अच्छी खुशबू है"- विशेष कटोरे पर रखा हुआ ढक्कन हटा कर सूँघते हुए कहता है। ये देख जिया के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ जाती है। और वो विशेष को देखते हुए धीरे से अपने मे ही कहती है-" सच मे कितना क्यूट है ये।जिया की कही हुई ये बात विशेष सुनी तो लेकिन वो समझ नही पाया कि जिया ने क्या कहा क्योंकि जिया ने ये बात बहुत ही धीरे कही थी। इसलिए विशेष जिया की ओर देखते हुए कहता है-" क्या...... क्या कहा तुमने।इस पर जिया हड़बड़ाते हुए कहती है-" वो.... वो अश्मि और अर्थ कहाँ हैं। वो दोनो नही दिख रहे। "वो दोनो अंदर बैठ कर अपना स्कूल का होम वर्क कर रहे हैं"-विशेष गाजर के हलवे को अपनी उंगली से निकालकर खाते हुए कहता है। इस पर जिया मुस्कराते हुए कहती है"- ओके अब मैं चलती हूँ।"ओके बाय और आंटी जी को हलवे के लिए थैंक यू कह देना"- विशेष फिर से गाजर के हलवे को एक ओर बार खाते हुए कहता है। ★★क्रमशः★★ धन्यवाद....।
अगले दिन...... सुबह के दस बज रहे थे। विशेष राजपूत मैन्शन के गेट के बाहर अपनी साइकिल रोककर गेट पर लगी हुई नेम प्लेट पर लिखे नाम को पढ़ते हुये बोला-" आ गया राजपूत मैन्शन" इतना कहकर विशेष एक नजर सामने घर की ओर देखता है। जो कि बहुत बड़ा और बहुत खूबसूरत था। इतने में गेट पर खड़ा हुआ गार्ड विशेष के पास आकर कहता है"- जी आप कौन। और आप यहां क्यों खड़े हो।" "वो मुझे प्रभाकर जी से मिलना है। "-विशेष शांत भाव से गार्ड से बोला। तो गार्ड विशेष को ऊपर से नीचे तक घूरकर कहता है"- अच्छा तो फिर अपनी साइकिल यहीं बाहर खड़ी कर दो।" इतना कहकर गार्ड विशेष के लिए गेट खोलदेता है। और विशेष अपनी साइकिल गेट के बाहर खड़ी कर अंदर चला जाता है। गेट के अंदर आकर विशेष देखता है कि घर के एक ओर बड़ा सा गार्डन है। जिसमे कुछ फूल क्यारियों में सलीके से लगाये हुए थे। और कुछ फूल गमलों में लगे थे। ओर कुछ सजावटी पौधे एक कतार में लगे हुए थे। ओर बाकी के पूरे गार्डन में दूब घास उगी हुई थी। जिसे देखकर पता चल रहा था कि समय समय पर उसकी अच्छे से कटिंग की जाती होगी। घर के दूसरी ओर एक बड़ा सा पोर्च था जिसके नीचे एक कार खड़ी हुई थी। ये सब देखते देखते विशेष घर के मुख्य दरवाजे के पास पहुंच जाता है। मुख्य दरवाजे के पास पहुंचते ही वो एक लंबी सांस लेते हुए अपने मे कहता है"- आज चाहे कुछ भी हो जाये मुझे उस नकचढ़ी के सामने कोई गलती नही करनी। और ना ही ज्यादा बकबक करनी है" विशेष घर की बेल बजाता है। बेल बजाने के कुछ देर बाद ही मिताली दरवाजा खोलती है। मिताली को देखते ही विशेष मुस्कराते हुए बोला-" हेलो......।" "जी..... आप कौन"- मिताली ने विशेष को सवालियां नजरों से ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा। " वो मुझे प्रभाकर जी ने बुलाया है।"-विशेष ने कहा। तो मिताली कहती है"- आइये अंदर जाइये......... वैंसे सर तो अभी घर पर नही है। वो चेक अप के लिए हॉस्पिटल गए हुए हैं। बस थोड़ी देर में आते ही होंगे।" इस पर विशेष कहता है"- जब तक दादाजी हॉस्पिटल से आते हैं। मैं बाहर गार्डन देख लूं।" "जी देख लीजिये"-मिताली बोली।तो विशेष गार्डन की ओर चला जाता है। विशेष को गार्डनिंग करने का बहुत शौक था। उसने अपने घर मे भी गमलों में बहुत से फूल लगाए हुए थे। गार्डन में आकर विशेष सभी खिले हुए फूलों की खुशबू सूंघ रहा था। इतने में उसकी नजर गार्डन के एक किनारे पर लगे झूले पर पड़ती है। झूले को देखते ही विशेष झूला झूलने लगता है। विशेष की ये सारी हरकतें घर के दूसरी मंजिल पर अपने कमरे की खिड़की पर खड़ी आरसी देख रही थी। कुछ देर झूला झूलने के बाद विशेष झूले से खड़े होते समय लड़खड़ा जाता है जिस वजह से वो नीचे गिर जाता है। लेकिन फिर वो झट से खड़े होकर गुस्से में झूले पर पैर से मारते हुए अपने मे ही बड़बड़ाता है"- कितना घटिया झूला है मुझे गिरा दिया।" ये देख अपने कमरे की खिड़की पर खड़ी आरसी अपनी भौंहे सिकोड़कर खुद में बोली-" ये लड़का इतना बड़ा हो गया लेकिन हरकतें देखो बच्चों वाली हैं"। इधर विशेष वहां से गार्डन के पीछे वाले हिस्से में चला जाता है। जहां अब आरसी विशेष को नही देख पा रही थी। कुछ देर बाद आरसी नीचे हॉल में आकर मिताली को आवाज देते हुए बोली"- मिताली मिताली।" आरसी की आवाज सुनते ही मिताली किचन से लगभग दौड़ते हुए आरसी के पास आकर कहती है-" जी मेम।" "वो बाहर गार्डन में जो लड़का घूम रहा है। वो अंदर आया था क्या"- आरसी सख्त लहीजे में कहती है। " जी मेम....."- मिताली ने कहा। "तो फिर तुमने उसके बारे में मुझे क्यों नही बताया। और उसे अंदर क्यों नही बिठाया"-आरसी एक बार फिर सख्त लहीजे में बोली " वो मेम उन्होंने कहा कि उन्हें सर ने बुलाया है। तो मैंने कहा कि सर अभी चेक अप के लिए हॉस्पिटल गए हैं। मैंने उन्हें अंदर आने को कहा था लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक सर आते हैं तब तक वो बाहर गार्डन देख रहे हैं"-मिताली कहती है। " जाओ उसे बुला कर लाओ"-आरसी बिना किसी भाव के बोली। ये सुनते ही मिताली जल्दी से गार्डन की ओर चली जाती है। विशेष अभी भी गार्डन में मजे से घूम रहा था । तभी उसकी नजर सामने बने एक छोटे से घर पर पड़ती है। जिसके दरवाजे पर बड़ा सा ताला लटक रहा था। विशेष जल्दी से उस घर की खिड़की के पास जाता है। और खिड़की के दरवाजे को अंदर की ओर धकेलता है तो खिड़की के दरवाजा हल्का सा खुल जाता है। इससे पहले की विशेष खिड़की से अंदर देखता। मिताली पीछे से विशेष को आवाज देते हुए कहती है"- आपको मेम अंदर बुला रही हैं।" ये सुनते ही विशेष मिताली की ओर मुड़ जाता है और फिर मिताली के पास आकर कहता है-" ये क्या है। ये किसी का घर था क्या।" "नही....... ये आउट हॉउस है"-मिताली ने कहा और वहां से चली जाती है। विशेष भी मिताली के पीछे पीछे घर के अंदर आ जाता है। सामने सोफे पर बैठी आरसी को देखकर विशेष अपने मन मे सोचता है "- विशेष कोई गलती मत करना।" इतने में आरसी भी विशेष को देखती है। जैंसे ही आरसी विशेष को देखती है विशेष अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लाते हुए कहता है-" हेलो मेम।" आरसी बिना किसी भाव से बोली"-मैं तुम्हे जॉब पर सिर्फ दादाजी के कहने पर रख रही हूं। और तुम्हारी जॉब भी यही है कि तुम्हे दादाजी की देखभाल करनी है। मतलब कि आज से तुम उनके केयर टेकर हो। समझे।" आरसी की बात सुनकर विशेष के चेहरे पर खुशी के भाव आ जाते है। और वो एक्साइटमेंट में कहता है"- क्या सच मे............।" आरसी विशेष को घूरने लगती है। तो विशेष शांत हो जाता है । आरसी आगे कहती है-"अगर तुमने थोड़ी सी भी लापरवाही की तो मैं तुम्हें जॉब से निकाल दूंगी। क्योंकि दादाजी की हेल्थ के मामले में मैं बहुत स्ट्रिक्ट हूँ। ओर हां ....... अब से तुम यहीं रहोगे। क्योंकि दादाजी को तुम्हारी जरूरत कभी भी पड़ सकती है। इसलिए तुम आज शाम तक ही यहां शिफ्ट हो जाओ।" "क्या .......लेकिन मेरे भाई बहन"- विशेष हैरान होते हुए बोला। " यहां सिर्फ तुम रहोगे।"-आरसी ने कहा। "लेकिन मेरे भाई बहन अभी बहुत छोटे हैं। और मेरे अलावा उनका कोई नही है। इसलिए मैं उनके बिना यहां नही आ सकता।"-विशेष परेशान सा बोला। "देखो..... मुझे बच्चे बिल्कुल नही पसन्द इसलिए अगर तुम्हें ये जॉब करनी है तो करो। वरना मत करो।"-आरसी सख्त लहीजे में बोली । इतने में प्रभाकर जी भी हॉस्पिटल से आ जाते हैं। और विशेष को देखकर मुस्कराते हुए बोले"- अरे विशेष बेटा तुम आ गए।" विशेष प्रभाकर जी के पैर छूकर रखे स्वर में कहता है"- नमस्ते दादाजी....... कैंसे हो आप।" "मैं तो ठीक हूँ। लेकिन मुझे तुम कुछ परेशान से लग रहे हो। क्या बात है।"-प्रभाकर जी ने विशेष को देखकर पूछा। " इस पर विशेष प्रभाकर जी से कहता है कि" उसे उन्ही के केयर टेकर की जॉब पर रखा गया है। जिसके लिए उसे यहीं रहना होगा। लेकिन उसके दो छोटे भाई बहन हैं। जिन्हें वो छोड़ नही सकता और आरसी मेम कह रही हैं कि उन्हें बच्चे नही पसन्द जिस वजह से वो उन्हें यहां भी नही ला सकता। इसलिए मुझे नही लगता कि मैं यहां जॉब कर पाऊंगा।" " यही तो मैं चाहती हूं कि तुम यहाँ जॉब न करो।"-आरसी विशेष को घूरते हुए अपने मन ही मन मे बोली। विशेष प्रभाकर जी को नमस्ते करते हुए उदास होकर आगे कहता है"- अच्छा दादाजी अब मैं चलता हूँ।" " बेटा तुम चिंता मत करो । मैं हॉस्पिटल में बात करूंगा कि उस दिन तुम्हारी कोई गलती नही थी। और वो तुम्हे दुबारा वार्ड बॉय के जॉब पर रख लें।"-प्रभाकर जी विशेष को दिलासा देते हुए बोले। इस पर विशेष प्रभाकर जी को एक फीकी सी स्माइल देते हुए वहां से जाता है। विशेष के जाते ही आरसी के चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव आ जाते हैं। " ठीक ही हुआ जो चला गया। मैं तो इसे दादाजी की केयर टेकर की जॉब दादाजी की ही वजह से दे रही थी। वरना तो ये लड़का मुझे जरा भी पसन्द नही था।"-आरसी ने अपने मन मे सोचा। इतने में मिताली पानी का गिलास लेकर प्रभाकर जी को देते हुए कहती है"- सर लीजिये पानी।" प्रभाकर जी मिताली के हाथ से पानी का गिलास पकड़कर पानी पीने लगते हैं। तभी आरसी मिताली से एक गिलास पानी अपने लिए लाने को भी कहती है। तो मिताली आरसी के लिए पानी लेने किचन की ओर चली जाती है। प्रभाकर जी पानी पीकर सामने सोफे पर बैठ जाते हैं। "लीजिये मेम"-मिताली किचन से पानी का गिलास लाकर आरसी को देते हुए बोली। आरसी मिताली के हाथ से पानी का गिलास लेकर उसे सामने दरवाजे की ओर इशारा करते हुए कहती है"- जाओ दरवाजा बंद कर दो।" आरसी की बात सुन मिताली दरवाजा बन्द करने को चली जाती है। ओर आरसी पानी पीने लगती है। जैंसे ही मिताली दरवाजा बंद करने को होती है। विशेष दौड़ते हुए दरवाजे से अंदर आकर लगभग चिल्लाते हुए कहता है।-"मुझे एक आईडिया मिल गया"। विशेष के ऐंसे अचानक से चिल्लाते हुए भागकर अंदर आने से आरवी घबरा जाती है। जिस वजह से उसे हल्की सी खांसी आ जाती है और उसके मुंह से पानी बाहर आजाता है। विशेष की इस हरकत पर प्रभाकर जी भी हैरान रह जाते हैं। "मेरे पास एक आईडिया है। जिससे मैं ओर मेरे छोटे भाई बहन यहां रह सकते हैं और आपको कोई परेशानी भी नही होगी।"-विशेष आरसी के सामने आते ही बोला। " कैसा आईडिया"-आरसी सामने टेबल पर रखे टिशू पेपर से अपना मुँह साफ करते हुए बोली। "वो इस घर के पीछे एक आउट हाउस है ना। जिसका कि कुछ यूज़ नही है। तो मैं सोच रहा हूँ कि मैं ओर मेरे भाई बहन वहां रह लेंगें। मैं अपने भाई बहन को बता दूंगा की वो यहां आपके घर मे कभी न आएं। ओर मैंने देखा कि मेन रोड पर जाने के लिए उधर से दूसरा रास्ता भी है।भले वो थोड़ा लम्बा पड़ेगा लेकिन इतना एडजेस्ट तो मैं कर ही सकता हूँ। इससे दादा जी को जब भी मेरी जरूरत होगी मैं आ जाया करूँगा। वो मुझे कॉल कर लेंगे। ओर वैंसे भी मैं पूरा दिन तो यहीं दादाजी के साथ रहूंगा बस रात ही रात की तो बात है।"-विशेष बोला और फिर मुस्कराने लगा। विशेष की बातें सुनकर प्रभाकर जी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है। लेकिन वहीं दूसरी ओर विशेष की बातों से आरसी अंदर ही अंदर कसमसा जाती है। तभी प्रभाकर जी कहते हैं"-हां ये सही रहेगा।" " तुम्हें कैंसे पता चला कि घर के पीछे आउट हाउस है"-आरसी गुस्से में अपने दांत पीसते हुए बोली। इस पर विशेष झट से कहता है-" कैंसे पता चला का क्या मतलब इतना बड़ा आउट हाउस है। जो साफ साफ दिख रहा है। अब वो छोटी सी चीज तो है नही जो दिखेगी नही"। विशेष की बात सुनकर आरसी का गुस्सा सांतवे आसमान में पहुंच जाता है। इससे पहले की वो विशेष से कुछ कहती प्रभाकर जी कहते हैं"-तो फिर ठीक है। आज हम आउट हाउस की सफाई करवा देंगे। तुम कल से वहां रह सकते हो।इस पर विशेष मुस्कराते हुए कहता है"- थैंक यू दादाजी ।" ★★क्रमशः★★
विशेष की आउट हाउस में रहने की बात सुनकर प्रभाकर बोलते हैं-" तो फिर ठीक है आज हम आउट हाउस की सफाई करवा देंगे । कल से तुम वहां रह सकते हो" " थैंक यू दादाजी"- विशेष बड़ी सी मुस्कराहट के साथ बोला। "दादाजी अभी आप हॉस्पिटल से आये हो आपको थकान लगी होगी। आप थोड़ी देर आराम कर लीजिए"आरसी प्रभाकर जी के पास आकर बोली। और फिर मिताली के सामने खड़े लड़के की ओर देखते हुए आगे बोली"- राघव जाओ दादाजी को उनके रूम में ले जाओ" प्रभाकर जी राघव के साथ ही हॉस्पिटल गए हुए थे।आरसी की बात सुनकर राघव जल्दी से प्रभाकर जी के पास आता है और उन्हें उनके कमरे की ओर ले जाने लगता है। जाते हुए प्रभाकर जी एक नजर विशेष को देखकर मुस्कराते हैं। तो बदले में विशेष भी मुस्करा जाता है। प्रभाकर जी के जाते ही विशेष शांत भाव से आरसी से कहता है " अब मैं भी चलता हूँ" विशेष की बात सुन आरसी अपने मन ही मन मे सोचती है"-बड़ा शौक है ना तुम्हे आउट हाउस में रहने का। तो सफाई भी तुम्हे ही करनी होगी। जब दस साल से बन्द उस आउट हाउस की सफाई करोगे तब पछताओगे की मैंने क्यों कहा होगा कि मैं इस आउट हाउस में रहूंगा" ये सोचकर आरसी विशेष को रोकते हुए बोली"रुको"।आरसी की बात सुन विशेष रुक जाता है। और फिर आरसी की ओर पलटते हुए कहता है-"जी कहिये मेम।" वो क्या है ना कि मेरे घर मे जितने भी सर्वेंट हैं वो सभी आज बिजी हैं। और उनके पास आज आउट हाउस की सफाई करने का बिल्कुल भी टाइम नही है। इसलिए अगर तुम्हें कल ही आउट हाउस में शिफ्ट होना है तो सफाई तुम्हे ही करनी होगी " -आरसी ने कहा। आरसी की बात सुनकर विशेष बड़ी सी मुस्कराहट के साथ बोला-" अरे आपने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं यही चाहता था कि आउट हाउस की सफाई मैं खुद अपने हाथों से करूँ । क्योंकि रहूंगा तो वहां मैं ही ना। लेकिन दादाजी की वजह से कह नही पाया। और आपको पता नही है कि मुझे अपने काम खुद से करना बहुत अच्छा लगता है।" ये सुनकर आरसी ने अपनी भौंहे सिकोड़कर अपने मन मे सोचा-" मुझे लगा था आउट हाउस की सफाई करने की बात सुनकर ये परेशान हो जाएगा। इसकी सारी चलाकी बाहर निकल जाएगी। लेकिन ये तो ऐंसे खुश हुआ जैंसे मैंने इसे कोई खजाना साफ करने को कह दिया हो।" " प्लीज् आप मुझे झाड़ू, पोछा, जाले निकालने वाला और जितना सफाई का सामान होता है वो दे देंगी"-विशेष मिताली के पास जाकर बोला। "जी अभी लाई"- इतना कहकर मिताली वहां से चली जाती है। कुछ देर बाद मिताली सफाई करने का सारा सामान लेकर विशेष को दे देती है। और फिर विशेष आरसी के पास आकर कहता है"-चाभी....." "चाभी........"-आरसी हैरानी से बोली। तो विशेष कहता है"- वो आउट हाउस में ताला लगा हुआ है ना........ तो ताला मैं तभी खोल पाऊंगा जब उसकी चाभी मेरे पास होगी।" विशेष की बात सुनकर आरसी विशेष को गुस्से में घूरते हुए मिताली से कहती है"- मिताली तुमने इसे आउट हाउस की चाभी लाकर क्यों नही दी। सफाई का सारा सामान दे दिया लेकिन चाभी नही दी। बिना चाभी के वो सफाई कैसे करेगा।" "सॉरी मेम ...... मुझे ध्यान नही रहा। मैं अभी चाभी ले आती हूँ"-मिताली झेंपते हुए बोली और फिर चाभी लेने चली गई। आरसी अभी भी सामने खड़े विशेष को गुस्से में घूर रही थी। और उसके गुस्से की वजह विशेष के चेहरे की स्माइल थी। लेकिन विशेष इस सब से अनजान अपने मे ही मस्त घर का मुआयना कर रहा था। तभी मिताली आउट हाउस की चाभी लेकर आ जाती है। और चाभी विशेष को देते हुए कहती है"- लीजिये आउट हाउस की चाभी।" विशेष मिताली के हाथ से चाभी पकड़ता है। और फिर आरसी के कान के सामने धीरे से कहता है-"ऐंसे छोटी छोटी बातों में इतना गुस्सा करना ठीक नही होता।" इतना कहकर वो झाड़ू अपने कंधे पर रखता है और बाकी का सफाई का समान अपने हाथ मे पकड़कर वहां से चला जाता है। "अभी तो बड़ा खुश लग रहा है। लेकिन जब आउट हाउस की हालत देखेगा तब चेहरे की सारी खुशी गायब न हो जाये तो कहना"-विशेष को जाते हुए देख आरसी ने मन मे सोचा। आरसी अभी ये सोच ही रही थी कि मिताली कहती है"- मेम आउट हाउस तो बहुत गन्दा होगा। वो अकेले नही कर पाएंगे।" इस पर आरसी मिताली को घूरते हुए बोली"- तुम्हे बड़ी चिंता हो रही है उसकी। ...... तुम अपने काम से काम रखो।"इतना कहकर आरसी वहां से चली जाती है। इधर विशेष आउट हाउस की ओर जाते हुए अपने मे ही बड़बड़ा रहा था"- क्या दिमाग लगाया मैंने सच मे........ वैंसे मानना पड़ेगा मुझे खुद को मैं बहुत इंटेलिजेंट हूँ।........ अब मैं , अर्थ ओर अश्मि मजे से फ्री में यहां रहेंगे। और वहां अपना घर किराये में दे देंगे। वहां से घर के किराए के पैंसे आ जायेंगे। और यहां मेरी केयर टेकर की जॉब तो रहेगी ही। अब तो मेरे पास बहुत पैंसे आएंगे अब मैं अर्थ और अश्मि को अच्छे से पढ़ा सकता हूँ। और उन्हें बारहवीं के बाद कोई अच्छा सा कोर्स भी करवा सकता हूँ। ................. भला में बारहवीं तक ही पढा हूँ। लेकिन दिमाग मेरे पास पी एच डी वालों के लेवल का है" इतने में विशेष आउट हाउस के दरवाजे के पास पहुंच जाता है। जैंसे ही विशेष दरवाजे का ताला खोलकर दरवाजा खोलता है। धूल का एक गुब्बार उसके मुंह पर आ जाता है। और वो अपना मुँह दूसरी ओर कर खांसने लगता है । कुछ देर बाद जब धूल थोड़ा कम हो जाता है तो विशेष अंदर आकर आउट हाउस की खिड़कियां खोल देता है। जिससे आउट हाउस के अंदर रोशनी हो जाती है। रोशनी होते ही जब विशेष की नजर आउट हाउस पर पड़ती है तो उसकी आँखें फैलकर चौड़ी हो जाती हैं। " बाप रे यहां तो बहुत ही गन्दा है। यहां देखकर तो लग रहा है कि शायद पिछले बीस पच्चीस सालों से यहां की सफाई नही हुई है। यहां की सफाई करने में तो मेरा आज का पूरा दिन निकल जायेगा। और अभी थोड़ी देर में अर्थ और अश्मि का स्कूल से आने का टाइम भी होने वाला है। ओर उनके लिए मैंने दोपहर का खाना भी नही बनाया है। ऐंसा करता हूँ। जिया को कॉल करके कह देता हूँ कि अगर अश्मि ओर अर्थ स्कूल से आ जाये तो उन्हें कुछ खिला देना।" फिर विशेष जिया को कॉल करता है। एक दो रिंग जाते ही जिया कॉल उठाते हुए कहती है"- हाँ बोलो विशेष।" विशेष-" जिया...... वो मैं किसी काम मे बिजी हूँ इसलिए जब अश्मि ओर अर्थ स्कूल से आयें तो उन्हें कुछ बना कर खिला देना। हमारे घर की चाभी तो तुझे पता ही है कि कहां रहती है।" "अच्छा खिला दूंगी......... वैंसे तुम कब तक आओगे घर। मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।"- जिया ने कहा " मुझे लगता है कि मैं अब शाम तक ही घर आ पाऊंगा।"- विशेष आउट हाउस में फैली गन्दगी पर अपनी नजरें दौड़ते हुए अजीब सा मुँह बनाकर कहता है। तो जिया कहती है" ओके .......फिर बाय" इतना कहकर जिया कॉल कट करके मुस्कराते हुए अपने मे ही कहती है "आज चाहे कुछ भी हो मैं विशेष को अपने दिल की बात बता कर ही रहूंगी।" वहीं आउट हाउस में खड़ा विशेष अजीब सा मुँह बनाकर खुद मे ही बड़बड़ाता है"चल विशेष बेटा लग जा काम पर। अब कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है।" फिर विशेष अपने फोन पर हेडफोन लगाकर गाने सुनते हुए सफाई करने लगता है।गाने सुनते हुए विशेष बीच बीच मे खुद भी गाना गा रहा था। और कभी कभी तो वो सफाई करते हुए गाने की धुन मे नाच भी रहा था। दूसरी ओर आरसी अपने कमरे में बैठी अपने आप मे ही कहती है" बड़ा खुश होकर गया था सफाई करने लेकिन जब उसने आउट हाउस के अंदर देखा होगा तो तब उसकी सारी खुशी बाहर निकल गई होगी। और उसे अपनी गलती रियलाइज हुई होगी कि उसने आउट हाउस की सफाई करने को क्यों कहा होगा। वैंसे भी मुझे नही लगता कि वो आज आउट हाउस की सफाई कर पायेगा। उसे आउट हाउस की सफाई करने में कम से कम दो दिन तो लग ही जांयेंगे। सफाई करते हुए उसकी हालत देखनी तो बनती है।" आरसी अपने कमरे से बाहर आकर विशेष को देखने आउट हाउस की ओर चली जाती है। कुछ देर बाद जब आरसी आउट हाउस पर पहुंचती है। और आउट हाउस की खिड़की से अंदर विशेष को देखती है। तो हैरान रह जाती है। क्योंकि विशेष सफाई करते हुए जोर जोर से गाने गा रहा था। "लाल दुप्पटा उड़ गया रे तेरे हवा के झोंके से ।मुझको पिया ने देख लिए हाय रे धोखे से" इतना गाने के बाद विशेष खुद में ही बोलता है-"अरे यार मैं ये कौन सा गाना सुन रहा हूँ। मेरा तो कोई पिया ही नही है तो देखेगा कहाँ से" ये कहकर विशेष अपने जेब से फोन निकालकर गाना चेंज कर दूसरा गाना लगा देता है। और फिर दूसरा गाना बजता है। "ऐंसे ना मुझे तुम देखो सीने से लगा लूंगा ।तुझको मैं चुरा लूंगा .........." ये गाना सुनने के बाद विशेष एक बार फिर से अपने मे ही बोलता है"-अरे यार ये गाना भी बेकार है। भला मुझे कौन देखेगा। और अगर कोई देखेगा भी तो मैं उसे सीने से बिल्कुल भी नही लगाऊंगा।" ये कहकर विशेष फिर से अपना फोन निकालकर गाना चेंज करने लगता है।विशेष की हरकतें ओर बातें सुनकर आरसी अजीब सा मुँह बनाकर दूसरी ओर देखते हुए अपने मे ही कहती है"ये कैसा जंगली टाइप का लड़का है" इतने में अंदर से विशेष की आवाज आती है"- चाहे कोई मुझे जंगली कहे।" ये सुनते ही आरसी की आँखें हैरानी से फैल जाती है। और वो विशेष की ओर देखती है। जो गाना गुनगुनाते हुए सफाई कर रहा था। इतना गाना गुनगुनाने के बाद विशेष अपने मे ही कहता है"-हां ये गाना बढ़िया है। चाहे कोई मुझे जंगली कहे कहने दो जी कहता रहे।" गाने के साथ साथ विशेष डांस भी करने लगता है। विशेष का डांस डांस कम और पागलों वाली हरकतें ज्यादा लग रही थी। " कोई इतना पागल कैंसे हो सकता है"-विशेष की हरकतें देख आरसी खुद में ही बड़बड़ाई। विशेष अभी भी गाना गाते हुए मजे से डांस कर रहा था। तभी वो डांस करते करते खिड़की की ओर मुड़ता है। जैंसे ही वो खिड़की की ओर मुड़ता है उसकी नजर खिड़की के बाहर खड़ी आरसी पर पड़ती है। जो उसे ही देख रही थी। आरसी पर अचानक से नजर पड़ने के कारण विशेष की डर के मारे चीख निकल जाती है"-मम्मी..............." जैंसे ही वो आरसी को ध्यान से देखता है तो अपनी छाती पर हाथ रखकर लम्बी लम्बी सांसे लेते हुए अपने मे ही धीरे से कहता है" इस चिमकाण्डी ने तो मुझे डरा ही दिया था।" ★★क्रमशः★★ धन्यवाद...। कॉमेंट में बता भी दिया करो कि कहानी कैसी है।
आरसी जब देखती है कि विशेष ने उसे ऐंसे खिड़की से उसको देखते हुए देख लिया है । तो वो जल्दी से अपनी नजरें दूसरी ओर फेर लेती है। " मेम आप यहाँ"-विशेष हैरानी से बोला। "क्यों मैं यहां नही आ सकती क्या"- आरसी रूखे स्वर मे बोली। तो विशेष अंदर की ओर से ही खिड़की के पास आकर कहता है"- बिल्कुल आ सकते हो। लेकिन ऐंसे किसी को छुप छुप कर खिड़की से नही देख सकते" "क्या बकवास कर रहे हो। भला मैं तुम्हे क्यों छुप छुप कर खिड़की से देखूंगी"- आरसी सफाई देते हुए गुस्से मे बोली। "वो तो आपको ही पता होगा कि आप मुझे ऐंसे खिड़की से छुप छुप कर क्यों देख रहे थे।"विशेष ने कहा इस पर आरसी गुस्से में विशेष को घूरने लगती है। तो विशेष झट से मुस्कराते हुए आगे कहता है"हां .....आप क्यों मुझे छुप छुप कर देखोगे। मुझे ही कुछ गलत फहमी हुई होगी। माना कि मैं बहुत हैंडसम हूँ , बहुत क्यूट हूँ , बहुत बहुत ज्यादा प्यारा भी हूँ लेकिन फिर भी आप मुझे छुप छुप कर थोड़ी देखोगे। इतने मैनर्स तो होंगे ही आपके अन्दर" विशेष की ये बात सुनकर तो आरसी का गुस्सा सातवें आसमान में पहुंच जाता है। आरसी को इतने गुस्से में देख विशेष बात बदलते हुए फिर से कहता है"वैंसे आपका ये गन्दगी से भरा हुआ आउट हाउस बहुत ही अच्छा लगा मुझे। काफी बड़ा भी है। लेकिन यहां फैली गन्दगी को देखकर ऐंसा लग रहा है कि जैंसे पिछले बीस पच्चीस सालों से यहां की सफाई नही हुई। कम से कम आपको एक दो साल में यहां की सफाई करवा लेनी चाहिए थी" ये सुनकर तो आरसी का मन कर रहा था कि वो विशेष को अभी यहाँ से निकाल दे। लेकिन वो ऐंसा चाहकर भी नही कर सकती थी। अब उसके पास बस एक ही ऑप्शन था कि वो वहां से खुद ही चले जाए। इसलिए आरसी विशेष की बात का कोई जवाब दिए बिना ही वहां से चली जाती है। आरसी के ऐंसे बिना कुछ कहे ही वहां से जाने पर विशेष अपने मे ही बोला"-जब देखो तब नाक पर गुस्सा ही रहता है। मेरा बस चलता तो इसकी नाक ही इसके चेहरे से हटा देता। ना रहेगा नाक और ना रहेगा गुस्सा। लेकिन बिना नाक के ये कैसी लगती। मुझे तो ये सोचकर ही हंसी आ रही है।" और फिर विशेष अपने मे ही हंसने लगता है। इधर आरसी गुस्से में तमतमाते हुए अपने कमरे में आकर अपने बेड पर बैठते हुए खुद में ही बड़बड़ाती है"अगर मुझे एक खून करना माफ होता तो मैं इस लड़के का खून कर देती। अभी तो ये यहां आया भी नही और इसने मुझे परेशान कर दिया है। जब ये यहीं रहने लगेगा तब क्या होगा। मेरा बस चलता तो मैं दुबारा इस लड़के की शक्ल भी नही देखती। लेकिन दादाजी की वजह से मुझे इसकी ये फालतू की बकबास सुननी पड़ती हैं। और इसकी ये पागलों वाली हरकतें बर्दास्त करनी पड़ती है। .......... लेकिन अब बहुत हुआ। मैं इसे यहां ज्यादा दिन तक नही टिकने दूंगी। मुझे कुछ ऐंसा करना होगा जिससे ये लड़का भी यहां से चला जाय और दादाजी भी नाराज न हों" दूसरी ओर आउट हाउस की सफाई करते हुए विशेष खुद मे ही बड़बड़ा रहा था"अब चाहे कुछ भी हो जाये ये जॉब तो मैं बिल्कुल नही छोडूंगा। क्योंकि इस जॉब में रहने को फ्री है। बाकी जब मैं उस घर मे दादाजी के केयर टेकर की जॉब करूँगा तो खाना भी वहीँ खा लूंगा। ओर रही अर्थ और अश्मि कि बात तो उनके लिए भी खाना वहीं से ले आऊंगा। वो दोनों तो थोड़ा थोड़ा ही खाते हैं। फिर मेरा ज्यादा कुछ खर्चा भी नही होगा। और ये सब हुआ दादाजी की वजह से थैंक यू दादाजी" आउट हाउस की सफाई करते करते विशेष को शाम के पांच बज चुके थे। सफाई पूरी होते ही विशेष एक नजर आउट हाउस को देखते हुए राहत की सांस लेता है और फिर अपने मे ही कहता है"धूल , कूड़ा,और जाले ये सब तो साफ हो गए लेकिन ये दीवार ठीक से साफ नही हुई। मुझे लगता है दीवार पर तो पेंट ही करना पड़ेगा। लेकिन पेंट लाने के लिए तो पैंसे चाहिए होंगे। इससे तो इस महीने का खर्चा बढ़ जाएगा। ऐंसा करता हूं कि अगले महीने जब मुझे सैलरी मिल जाएगी। दीवार पेंट तब करवा लूंगा" फिर विशेष एक नजर अपने कपड़ों पर डालता है जो धूल मिट्टी की वजह से बहुत गन्दे हो गए थे। "चलो अब हाथ मुँह धोकर और अपने कपड़े साफ करके घर चलता हूँ। सुबह से कुछ खाया भी नही है। बहुत तेज भूख भी लगी है"-इतना कहकर विशेष आउट हाउस को बंद कर बाहर गार्डन में लगे हुए नल से हाथ मुँह धोने लगता है। तभी आरसी भी गार्डन में आकर टहलने लगती है। " उस पागल लड़के ने कर दी होगी आउट हाउस की सफाई .......जरा देख कर आती हूँ। इस बार दूर से ही देखूंगी"-ये कहकर आरसी फिर से आउट हॉउस की ओर जाने लगती है। कुछ् आगे जाते ही उसकी नजर गार्डन के एक कोने मे लगे नल के सामने खड़े विशेष पर पड़ती है। जो कि अपना हाथ मुँह धो रहा था। विशेष को देखते ही आरसी अजीब सा मुँह बनाकर कहती है"- शायद कर दी इसने सफाई" ये कहते ही वहां से वापस जाने लगती है। लेकिन इससे पहले की आरसी वहां से जाने को मुड़ती नल के सामने खड़े विशेष ने अपनी टी शर्ट उतार दी। जैंसे ही विशेष अपनी टी शर्ट उतारता है आरसी के कदम रुक जाते हैँ और उसकी नजरें विशेष के गोरे बदन पर टिक सी जाती हैं। विशेष अपनी टी शर्ट उतारकर अपनी चेस्ट को पानी से साफ कर रहा था। क्योंकी सफाई करते समय उसकी शर्ट के अंदर भी धूल मिट्टी घुस गई थी। आरसी की नजरें अभी भी विशेष पर ही टिकी हुई थीं। पानी पड़ने की वजह से विशेष की फिट बॉडी ओर भी आकर्षक लगने लगी थी। और पानी की बूँदे विशेष के शरीर मे मोतियों की तरह लुढ़क रही थीं। तभी अचानक से विशेष की नजर भी आरसी पर पड़ जाती है जो उसे ही देखे जा रही थी। जैंसे ही आरसी देखती है कि विशेष ने उसे देख लिया है वो झट से पीछे पलटकर वहां से चली जाती है। "ये खड़ूसनी मुझे ऐंसे बिना टी शर्ट के कैंसे देख सकती है। शर्म वर्म नही आती क्या इसे"-विशेष गुस्से मे आरसी को जाते हुए देख कर बोला। इतना कहकर विशेष जल्दी से अपनी टी शर्ट पहनता है और वहां से जाने लगता हैं। घर का दरवाजा खुला देख विशेष आउट हॉउस की चाभी देने अंदर आ जाता है। जैंसे ही विशेष अंदर आता है उसकी नजर हॉल में बैठे प्रभाकर जी पर पड़ती है। प्रभाकर जी भी विशेष को देख लेते हैं। विशेष को देखते ही प्रभाकर जी कहते हैं"अरे विशेष बेटा तुम इतनी देर तक यहां क्या कर रहे हो" विशेष - "दादाजी वो मैं आउट हाउस की साफ सफाई कर रहा था" "क्या....... लेकिन तुमने क्यों कि आउट हाउस की सफाई। मैंने तुम्हें कहा था ना कि मैं अपने आप वहां की सफाई करवा दूंगा"-प्रभाकर जी बोले। विशेष-"दादाजी आज मेरे पास कोई काम नही था तो मैंने सोचा कि वहां की सफाई मैं ही कर देता हूँ। इसलिए मैंने वहां की सफाई कर दी" इतने में आरसी भी वहां पर आ जाती है। तभी भूख की वजह से विशेष के पेट से गढ़ गढ़ की आवाज आने लगती है। ये आवाज सुनते ही प्रभाकर जी कहते हैं" तुम सुबह से भूखे हो क्या। तुम्हारे पेट से भूख की वजह से ये आवाज आ रही " सब सुनते ही विशेष मासूम सा चेहरा बनाकर अपना सर हाँ में हिला देता है। "रुको मैं अभी तुम्हारे लिए खाना बनवाता हूँ"-इतना कहकर प्रभाकर जी मिताली को आवाज देते हुए आगे कहते हैं" मिताली मिताली" तभी विशेष एक नजर आरसी को देखते हुए कहता है" दादाजी रहने दीजिए मैं घर जाकर खा लूंगा" "अरे.......तुम रुको मैं तुम्हारे लिए जल्दी से खाना बनवा देता हूँ"- ये कहते ही प्रभाकर जी फिर से मिताली को आवाज देकर पुकारने लगते हैं। " कहिये सर"-मिताली वहां आते ही बोली। "जल्दी से विशेष के लिए खाना बनाओ। ओर जल्दी से बनाना" प्रभाकर जी कहते हैं तो मिताली कहती है"जी सर" इतना कहकर मिताली वहां से चली जाती है। लेकिन सामने खड़ी आरसी विशेष को खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए अपने मे ही कहती है" पता नही इस लड़के ने दादाजी पर क्या जादू कर दिया" तभी प्रभाकर जी कहते हैं"विशेष बेटा आउट हाउस की सफाई पूरी हो गई क्या" "हां दादाजी सफाई तो पूरी हो गई लेकिन आउट हाउस की दीवारें ठीक से साफ नही हो रही। मुझे लगता है कि दीवारों पर फिर से पेंट करना होगा"- विशेष शांत भाव से बोला। विशेष की बात सुन प्रभाकर जी कहते हैं" तुम पेंट की चिंता मत करो वो कल मैं करवा दूंगा" "दादाजी कोई नही। पेंट मैं खुद से कर दूंगा"विशेष बोला। "नही ............ तुमने वहां की सफाई कर दी है तो अब पेंट मैं करवा दूंगा "-प्रभाकर जी मुस्कराते हुए कहते हैं। तो विशेष अपने मन ही मन में सोचता है"-चलो मेरे पेंट के पैंसे भी बच गए" फिर विशेष एक नजर आरसी को देखकर प्रभाकर जी से कहता है"दादाजी वो आउट हाउस में कमरे का फैन भी खराब है" "वो भी मैं सही करवा दूंगा"-प्रभाकर जी कहते हैं। तो विशेष कहता है"- दादाजी वो बाथरूम का शावर भी खराब है" "उसे भी मैं करवा दूंगा ठीक।"-प्रभाकर जी बोले। विशेष ओर प्रभाकर जी की सारी बातें सामने बैठी आरसी भी सुन रही थी। इतने में विशेष फिर से कहता है "दादाजी वो किचन का नल भी खराब है।" "वो भी मैं ठीक करवा दूंगा। ओर बताओ.... कुछ और तो खराब नही है ना वहां"-प्रभाकर जी हल्की सी मुस्कान के साथ बोले तो विशेष अजीब सा मुँह बनाकर रुकरूक कर कहता है" रूम का बल्ब भी फ्यूज है" विशेष की बातें सुनकर आरसी दाँत पीसते हुए अपने मन ही मन मे कहती है"-कितना चालाक है ये लड़का एक बल्ब भी हमसे ही लगवा रहा है। और दादाजी इसकी हर बात मान रहे हैं" "बल्ब भी लगवा दूंगा मैं ...... कल शाम जब तुम यहाँ शिफ्ट होंगे तब तक तुम्हे आउट हाउस रहने के लिए तैयार मिलेगा। तुम चिंता मत करो।"प्रभाकर जी बोले " दादाजी आप सच मे बहुत बहुत बहुत अच्छे हो। और थैंक यू मुझे ये जॉब दिलवाने के लिए"-विशेष ने शांत भाव से कहा। विशेष की बात सुनकर प्रभाकर जी मुस्करा जाते हैं। इतने में मिताली वहां आकर कहती है" दादाजी खाना बन गया जो" "चलो बेटा अब खाना खा लो"-प्रभाकर जी विशेष से कहते हैं तो विशेष मिताली के पीछे पीछे सामने डाइनिंगटेबल पर जाकर बैठ जाता है। कुछ देर बाद मिताली विशेष के लिए खाना लेकर आती है। और विशेष के सामने खाना परोसकर वहां से चली जाती है। खाना आते ही विशेष खाने पर टूट पड़ता है। वो खाने का एक निवला ठीक से चबा भी नही रहा था और दूसरा निवला मुँह के अंदर डाल दे रहा था जिस वजह से उसका मुंह पूरा भर गया था। विशेष को ऐंसे खाना खाते देख सामने बैठी आरसी हैरान रह जाती है। वो विशेष को अजीब नजरों से देखते हुए धीरे से कहती है" मुझे पता है ये लड़का सुबह से भूखा है। लेकिन फिर भी ऐंसे खाना कौन खाता है यार। हद है इस लड़के के लिए" इतने में विशेष भी आरसी को देख लेता है कि वो उसे ही देख रही है। ये देख विशेष आरसी को देखते हुए हल्का सा मुस्कराता है और फिर एक निवाला मुँह के अंदर ठूस लेता है। ★★क्रमशः★★ धन्यवाद.....।
शाम के साढ़े छः बजने वाले थे। विशेष अपने घर के आंगन में अपनी साइकिल खड़ी कर डोर बेल बजाता है। तो सामने से जिया दरवाजा खोलती है। जिया को देखते ही विशेष घर के अंदर आते हुए कहता है"- थैंक यू सो मच जिया अर्थ और अश्मि का ध्यान रखने के लिए।" "मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि दोस्तों के बीच नो सॉरी और नो थैंक यू। फिर तुम बार बार मुझे थैंक यू क्यों कहते हो।"- जिया मुँह बनाते हुए बोली। जिया का झूठ का गुस्सा देख विशेष के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ जाती है। और वो जिया के पास जाकर उसके गाल खींचते हुए कहता है"-और मैंने भी तुम्हे कितनी बार कहा है कि छोटी छोटी बातों पर ऐंसे गुस्सा मत हो जाया करो। क्योंकि जब तुम गुस्सा होती हो तो बिल्कुल पांडा की तरह लगती हो।" "क्या तुमने मुझे पांडा कहा"-जिया विशेष को घूरते हुए चिढ़कर बोली। तो विशेष कहता है"- नही मैंने पांडा को जिया कहा।" ये सुनते ही जिया गुस्से में अपने दांत पीसते हुए सामने सोफे पर रखे पिल्लो उठाकर विशेष की ओर फेंकते हुए बोली-" तुम्हे तो मैं अभी बताती हूँ।" पिल्लो विशेष के मुंह पर जा लगता है। इससे पहले की विशेष सम्भलता जिया लगातार दो ओर पिल्लो विशेष के ऊपर फेंक देती है। ओर फिर सोफे में पड़ा तीसरा पिल्लो भी उठाने लगती है। ये देख विशेष जल्दी से जिया के पास आकर उसके हाथ पकड़ लेता है। "अच्छा........सॉरी।"-विशेष ने कहा। इस पर जिया विशेष की पकड़ से अपने हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहती है"- फिर से सॉरी। अभी कहा ना मैंने को दोस्ती में नो सॉरी और नो थैंक्यू" जिया की बात सुनकर विशेष कहता है" अच्छा तो फिर मैं अपना सॉरी वापस लेता हूं ओर अपना थैंक यू भी वापस लेता हूँ। ओके अब खुश।" "हाँ अब ठीक है"- जिया विशेष को देखकर मुँह बनाते हुए बोली। विशेष अपने जेब से चॉकलेट निकालकर जिया की ओर बढाते हुए कहता है"- लो चॉकलेट खाओगी।" चॉकलेट को देख जैंसे ही जिया चॉकलेट पकड़ने को होती है विशेष झट से अपना हाथ पीछे खींच लेता है। इतने में अर्थ और अश्मि भी वहां आ जाते हैं। तो विशेष अपने हाथ मे पकड़ी चॉकलेट अर्थ को दे देता है। और फिर एक ओर चॉकलेट अपने जेब से निकालकर अश्मि को देता है। वो फिर से अपने जेब से एक चॉकलेट निकालता है और उसे जिया की ओर बढाते हुए कहता है"- लो खालो तुम भी क्या याद रखोगी मुझे।" इस पर जिया झट से विशेष के हाथ से चॉकलेट पकड़ लेती है। और खाने लगती है। ये देख विशेष कहता है"-वैंसे तुमने फोन पर कहा था कि तुम्हे मुझसे जरूरी बात करनी है। बोलो क्या बात करनी थी तुम्हे मुझसे" विशेष की बात सुन जिया सामने बैठे अर्थ और अश्मि की ओर देखती है और फिर कहती है"- हम बाहर सामने पार्क में चल कर बात करें।" " यार पार्क में क्यों......आज मैं बहुत थक गया हूँ मुझ में पार्क तक जाने की हिम्मत बिल्कुल भी नही है। प्लीज् जो कहना है यहीं कह दो"- विशेष अजीब सा मुँह बनाकर कहता है। तो जिया विशेष को फोर्स करते हुए कहती है"- प्लीज् चल लो ना।" "तुम्हे मुझे परेशान किये बिना चैन नही आता ना। .......चलो अब"- विशेष चिढ़ते हुए अपनी जगह से खड़े होकर कहता है। तो जिया भी अपनी जगह से खड़ी हो जाती है। और फिर दोनों बाहर चले जाते हैं। बाहर अंधेरा हो चुका था। और ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थीं। विशेष अपने हाथ अपनी पेंट की जेब मे डाले जिया के आगे आगे चल रहा था। और जिया विशेष से कुछ दूरी पर उसके पीछे पीछे चल रही थी। जिया के चेहरे के भावों से साफ पता चल रहा था कि वो नर्वस थी। और होती भी क्यों नही। आज वो विशेष से अपने प्यार का इजहार जो करने वाली थी। "कितनी अच्छी हवा चल रही है ना यहां।"- विशेष पीछे जिया की ओर पलटते हुए कहता है। जैंसे ही वो पीछे पलटकर जिया को देखता है तो जिया उससे बहुत दूरी पर थी। और बहुत धीरे धीरे भी चल रही थी। ये देख विशेष गुस्से में खुद में ही बड़बड़ाया"- ये देखो इस लड़की को कितने धीरे धीरे चल रही है। जैंसे कि इसके पैरों में मेंहन्दी लगी हो।" विशेष जिया के पास आकर कहता है"- तुम इतने धीरे धीरे क्यों चल रही हो। जल्दी चलो।" इस पर जिया कुछ नही कहती और वहीं खड़ी हो जाती है। ये देख विशेष जिया के पीछे जाकर उसे आगे की ओर धकेलते हुए कहता है"-देखो अगर तुम जल्दी नही चली तो मैं तुम्हे उठाकर ले जाऊँगा।" विशेष की बात सुनकर जिया अपनी आँखें बंद करती है और फिर विशेष की ओर मुड़कर लम्बी सांस लेते हुए कहती है"-आई लाइक यू।" ये सुनकर एक पल के लिए विशेष शांत हो जाता है। वो बस जिया को देखता ही रह जाता है लेकिन फिर अगले ही पल उसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ जाती है। और वो मुस्कराते हुए कहता है-" मैं भी तो तुम्हें लाइक करता हूं। तुम मेरी इतनी अच्छी दोस्त जो हो। सिर्फ दोस्त नही सबसे अच्छी दोस्त।" "मैं तुम्हे प्यार करती हूं।"-जिया कहती है। जिया की बात सुन विशेष जिया के माथे पर हाथ रख कर कहता है"- तुम्हारी तबियत तो ठीक है। आज तुम ये कैसी अजीब अजीब सी बातें कर रही हो। कभी कह रही हो पसन्द करती हूं और कभी कह रही हो कि मैं तुम्हे प्यार करती हूं। ............जैंसे दोस्ती में नो थैंक यू नो सॉरी वाला रूल है वैंसे ही दोस्तों के बीच के प्यार को बोलकर नही जताया जाता समझी।" विशेष की बातों से जिया अब इरिटेट होने लगी थी। इसलिए वो झुंझलाते हुए बोलती है" तुम मेरी बात समझ क्यों नही रहे हो। मैं तुम्हे सिर्फ अपना दोस्त नही मानती। मैं तुमसे प्यार करती हूं। और मेरा प्यार सिर्फ दोस्ती वाला प्यार नही है। बचपन से ही मुझे तुम अच्छे लगते थे। लेकिन जैंसे जैंसे मैं बड़ी हुई वैंसे वैंसे मेरी फीलिंग्स तुम्हारे लिए बदलती चली गई। और न जाने कब मैं तुम्हे अपने दोस्त से बढ़कर मानने लगी। कब मैं तुमसे प्यार करने लगी मुझे खुद पता नही चला। " जिया की बातें सुनने के बाद विशेष को कुछ समझ नही आ रहा था कि वो जिया की बातों का उसे क्या जवाब दे। वो बुत की तरह खड़ा जिया की सारी बातें सुन रहा था।जिया अपनी बात पूरी करते हुए आगे कहती है"- मुझे पता है कि तुम प्यार व्यार इन सब चीजों से नफरत करते हो। लेकिन अब मैं तुमसे अपनी फीलिंग्स ओर नही छिपा सकती थी। आई रियली लाइक यू।" ये सुनकर विशेष कुछ देर तक शांत खड़ा रहता है। और फिर अचानक से हंसते हुए कहता है"- ये फ्रैंक हैं ना। तुम मेरे साथ फ्रैंक कर रही हो ना।" "ये कोई फ्रैंक नही है। मैं तुम्हे पसन्द करती हूं। तुम्हे मुझे देखकर ऐंसा लग रहा है कि मैं तुम्हारे साथ कोई फ्रैंक कर रही हूं। .......तुम जान बूझकर ना समझ बनने की कोशिश कर रहे हो ना।"- जिया कहती है। तो विशेष के चेहरे की हंसी पल में ही गायब हो जाती है। और वो शांत खड़ा जिया को देखने लगता है। क्योंकि उसे जिया को देखकर इतना तो समझ आ गया था कि जिया उसके साथ कोई प्रैंक नही कर रही थी। बल्कि वो सच कह रही थी। जिया भी एक उम्मीद भरी नजरों से विशेष के जवाब का इंतजार कर रही थी। कुछ देर बाद विशेष दूसरी ओर पलटते हुए शान्त भाव से बोला"- जिया मैं तुम्हारी फीलिंग्स की कद्र करता हूँ। और मैं चाहता हूं कि हम दोनों जिस रिश्ते में अभी तक थे उसी रिश्ते में आगे भी रहें। क्योंकि मेरी नजर मैं दोस्ती का रिश्ता प्यार से बड़ा होता है। और देखा जाय तो दोस्ती के रिश्ते की बुनियाद भी प्यार से ही बनी होती है। और तुम्हे पता है ना कि मैं इस प्यार शब्द से नफरत करता हूँ। मेरे जिंदगी में प्यार बस मेरे भाई बहन और तुम जैसी प्यारी सी दोस्त के लिए है । इसके अलावा मैं अपनी जिंदगी में किसी दूसरे तरह के प्यार को कोई जगह नही देता। होप तुम मेरी बातें समझोगी। और प्लीज् अब मुझसे ये मत पूछना की मैं इस तरह के गर्लफ्रैंड बॉयफ्रेंड वाले प्यार से नफरत क्यों करता हूँ।" ये कहते ही विशेष वापस जिया की ओर मुड़ता है। और देखता है कि जिया के आंखों में हल्की सी नमी है। ये देख विशेष एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर एक लंबी सांस लेता है और फिर आँखें खोलकर जिया के करीब जाकर बोला "तुम्हे कितनी बार कहा है मैंने कि रोया मत करो। तुम रोती हुई मुझे बिल्कुल अच्छी नही लगती। रोते हुए तुम्हारी आंखें बहुत छोटी हो जाती है।जिस वजह से तुम किसी गेंड़ी की तरह लगती हो।विशेष के मुँह से अपने लिए गेंड़ी सुनकर जिया की न चाहते हुए भी हल्की सी हंसी झूट जाती है। जिया हंसते देख विशेष आगे कहता है-"और हंसते हुए किसी चुड़ैल की तरह।" "और खुद को देखो तुम भी तो बन्दर के जैंसे दिखते हो"-जिया चिढ़कर बोली। तो विशेष जिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है"- मैं बन्दर तुम बिल्ली ....... शायद ही इससे पहले कभी किसी ने बिल्ली ओर बन्दर की दोस्ती देखी होगी।" वहीं कुछ दूर खड़ा एक लड़का जिया और विशेष को देख रहा था। विशेष और जिया की बातें सुनकर उस लड़के के चेहरे पर भी हल्की सी स्माइल आ जाती है विशेष ने अभी भी जिया के कंधे पर अपना हाथ रखे खड़ा था। "चलो आगे चौक तक चलते हैं। आज मैं तुम्हे तुम्हारी फेवरेट आइस क्रीम खिला कर लाता हूँ। वो क्या है ना कि आज मेरी दूसरी जगह जॉब लग गई है।इसलिए मैं तुम्हे आइस क्रीम तो खिला ही सकता हूँ।"-विशेष बोला "तुम्हारी जॉब लग गई और तुम मुझे सिर्फ आइस क्रीम खिला रहे हो। सच मे तुम ना कंजूस के कंजूस ही रहोगे"-जिया शांत भाव से कहती है। ये सुन विशेष हल्का सा मुस्करा जाता है। कुछ आगे चलने के बाद विशेष जिया से गम्भीर स्वर बोला"- जिया हम दोनों के बीच का ये दोस्ती का रिश्ता बाकी सभी रिश्तों से बड़ा है। तुम्हे पता है मेरी जिंदगी में अर्थ, अश्मि , तुम और तुम्हारा परिवार बहुत मायने रखते हैं। मम्मी पापा की मौत के बाद अगर तुम या तुम्हारे मम्मी पापा नही होते तो पता नही मेरा क्या होता। ..... और एक बात ओर हमारी ये दोस्ती हमेशा ऐंसे ही रहेगी। और आज मैं तुमसे प्रोमिश करता हूँ कि चाहे कुछ भी हो हमारी दोस्ती की जगह मेरी जिंदगी में सबसे ऊपर रहेगी। क्योंकि तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। और आजकल की इस स्वार्थी दुनिया मे अच्छे दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है। और मैं बहुत किश्मत वाला हूँ जो मेरे पास तुम जैसी दोस्त है।" विशेष की बातें सुन जिया अपने आंखों के नमी पोंछकर विशेष के पेट पर कोहनी से मारते हुए कहती है"- बस करो अब ज्यादा मस्का मत मारो" कुछ देर बाद विशेष और जिया आइस क्रीम खाकर आपस मे मस्ती करते हुए वापस घर आजाते हैं। वापस आकर जिया अपने घर के बाहर आंगन में बैठ जाती है। विशेष की ना से उसे तकलीफ तो हुई थी लेकिन उसने विशेष के सामने ये जाहिर नही होने दिया था। इतने में पीछे से किसी की आवाज आती है"- तुम यहाँ अकेली क्यों बैठी हो।" ये सुनते ही जिया पीछे देखती है। तो सामने चौबीस पच्चीस साल का लड़का खड़ा था। जो दिखने में बहुत आकर्षक था। जिया उस लड़के से बोली"- बस ऐंसे ही" वो लड़का जिया के पास आकर बैठते हुए बोला"-तुम्हे पता है प्यार एक ऐंसी चीज है जो जोर जबरदस्ती से नही होती । ओर प्यार में ये भी जरूरी नही है कि हम जिसे प्यार करे वो भी हमे प्यार करे। प्यार तो वो खूबसूरत एहसास है जिस पर अपना कोई कंट्रोल नही होता" उस लड़के की बात सुनकर जिया हल्का सा मुस्कराते हुए बोलती है"- भैय्या....आज आपको ये क्या हो गया आप ऐंसी बातें क्यों कर रहे हो। कहीं किसी ने आपका दिल तो नही तोड़ दिया।" "मैंने तुम्हें और विशेष को पार्क के बाहर खड़े देख लिया था। और तुम दोनों की बातें भी सुन ली थीं"-वो लड़का बिना जिया की ओर देखे शांत भाव से बोला तो जिया के चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है। इतने में घर के अंदर से एक औरत की आवाज आती है"-जिया......मनन कहाँ हो तुम दोनों....... खाना लग गया है जल्दी से खाने को आओ।" मनन भी थोड़ा तेज आवाज में कहता है"- आया मां" इतना कहकर मनन अपनी जगह से खड़े होते हुए जिया से कहता है"- चल मोटी......खाना खाते हैं।" ये सुनकर जिया मनन को घूरने लगती है। फिर दोनों भाई बहन खाना खाने अंदर चले जाते है। ★★क्रमश:★★
रात के साढ़े नौ बज रहे थे। विशेष अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा था। उसने अपने हाथ मे एक लॉकेट पकड़ा हुआ था। जिसे वो एक टक देखे जा रहा था। विशेष के ठीक पीछे बेड पर अश्मि और अर्थ सो रहे थे। कमरे की लाइट बन्द थी लेकिन खिड़की खुली होने के कारण चांद की रोशनी आधे कमरे तक फैली हुई थी। विशेष खिड़की के पास चांद की उसी रोशनी में खड़ा था। कुछ देर तक अपने हाथ मे पकड़े हुए लॉकेट को देखने बाद विशेष लॉकेट से अपनी नजरें हटाकर खिड़की से आसमान में चमकते हुए चांद की ओर देखने लगता है। विशेष की आंखों में हल्की सी नमी भी थी। आसमान में चमक रहे चांद को देखते हुए विशेष को अपने अतीत की कुछ कड़वीं यादें याद आने लगती हैं। उस समय विशेष की उम्र ग्यारह बारह साल की रही होगी। वो एक कमरे के बाहर खड़ा कमरे के अंदर बातें कर रही दो औरतों की बातें सुन रहा था। एक औरत दूसरी औरत से कहती है " वसुंधरा काकी आज आपको मुझे ये सच बताना ही होगा कि जब भी कोई विशेष को गोद लेना चाहता है तो आप उन्हें मना क्यों कर देते हो। क्या आप नही चाहती कि विशेष को मां बाप का प्यार मिले। वो पढ़े, लिखे और उसका भविष्य अच्छा हो।" "रजनी तुम गलत समझ रही हो। भला मैं विशेष के लिए ऐंसा क्यों चाहूंगी। तुम्हे पता है ना कि मैं सभी बच्चों में सबसे ज्यादा प्यार विशेष से ही करती हूं"-वसुंधरा काकी शांत भाव से बोली।" "कहीं आपके इसी प्यार की वजह से तो आप उसे अपने से दूर नही भेजना चाहती। या फिर कोई ओर वजह है। क्योंकि इन बारह सालों में हमारे इस अनाथ आश्रम में कितने ही लोग आये जो विशेष को गोद लेना चाहते थे। लेकिन हर बार आपने उन्हें मना कर दिया और विशेष के बदले किसी दूसरे बच्चे को गोद लेने को कहा। इसका मतलब तो यही है ना की आप विशेष को यहाँ से भेजना ही नही चाहती हो।"रजनी गम्भीर भाव से कहा। "हां नही भेजना चाहती मै उसे यहाँ से दूर क्योंकि मैंने किसी से वादा किया है कि मैं विशेष को किसी को भी गोद नही लेने दूंगी"-वसुंधरा काकी रजनी की बातें सुन परेशान सी झुंझलाते हुए कहती है। "वादा...... कैसा वादा"-वसुंधरा काकी की बात सुन रजनी हैरानी भरे स्वर मे बोली। ये सुन वसुंधरा काकी को एहसास होता है कि उसे ये बात रजनी से नही कहनी चाहिए थी। लेकिन अब उसके पास रजनी को पूरी सच्चाई बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न था। इसलिए वो शांत भाव तो आगे कहती है" हाँ वादा...... तुम्हें तो पता ही है ज्यादातर अनाथ आश्रम में वही बच्चे आते हैं जिनके मां बाप नही होते। लेकिन जब विशेष यहां आया था उसके माता पिता थे। और शायद आज भी होंगे" वसुंधरा काकी की बात सुनकर रजनी हैरान रह जाती है। "क्या जब विशेष हमारे अनाथ आश्रम में आया था तब उसके माता पिता थे। लेकिन जिस औरत ने उसे यहां छोड़ा था उसने तो कहा था कि विशेष की मां उसे जन्म देते ही मर गई। और उसका बाप इसकी मां को पहले ही छोड़कर चला गया था। इसलिए अब ये बच्चा अनाथ हो गया "-रजनी हैरानी भरे स्वर मे बोली। "वो झूठ था।.....तुम्हे याद है उस दिन जब उस औरत ने विशेष को हमारे अनाथ आश्रम में छोड़ा था। तो उस औरत के जाते ही एक लड़का और एक लड़की अनाथ आश्रम में आये थे"-वसुंधरा काकी आगे बोली। ये सुनकर रजनी उस समय को याद करते हुए कहती है। "हाँ ...... मुझे याद हैं। उस दिन मैं सामान लेने बाजार जा रही थी तो वो दोनों मुझे बाहर दरवाजे पर मिले थे। उन्होंने मुझसे कहा था कि उन्हें उस बच्चे के बारे मे कुछ जरूरी बात करनी ना। जिसे अभी थोड़ी देर पहले एक औरत यहाँ छोड़कर गई। वो विशेष के बारे मे ही बात करना चाहती थी। लेकिन मैं बाजार जा रही थी तो मैंने उनको आपके पास भेज दिया था। फिर बाद मे मैं भी आपसे पूछना ही भूल गई कि उन्होंने आपसे विशेष के बारे मे क्या बात की।......... तो क्या वो दोनों ही थे विशेष के माता पिता" "नही वो दोनों विशेष के माता पिता नही थे। वो लड़की विशेष की मां की सहेली और वो लड़का उसका पति था। और उन्होंने ही मुझे बताया कि "विशेष के माता पिता जिंदा हैं वो अनाथ नही है।" उनकी ये बात सुनकर तो मैं हैरान रह गई। फिर मैंने भी उनसे यही सवाल किया जो अभी तुमने मुझसे किया कि जब विशेष के माता पिता जिंदा है तो जो औरत विशेष को यहां अनाथ आश्रम में छोड़ने आई थी वो कौन थी और उसने ऐंसा क्यों कहा कि विशेष अनाथ है। तब उन्होंने बताया कि "वो औरत जिसने विशेष को यहां छोड़ा वो विशेष की माँ की माँ थी। मतलब की विशेष की नानी मां। विशेष की मां एक लड़के से प्यार करती थी और अभी उनकी शादी नही हुई थी। विशेष को शादी से पहले ही जन्म देने की वजह से विशेष की नानी ने उसे यहां अनाथ आश्रम में छोड़ा दिया।"...............आगे उन्होंने बाताया कि ............" ऐंसा नही है कि विशेष की मां और उसके पिता विशेष को अपनाना नही चाहते थे। लेकिन विशेष के पिता विशेष के जन्म के समय अमेरिका में थे। वो उस समय यहां आना तो चाहते थे लेकिन किसी जरूरी काम की वजह से वो आ नही पाए। इसीलिए विशेष के पिता ने विशेष की मां का ध्यान रखने के लिए उन दोनों को कहा था। और विशेष को जन्म देने के कुछ महीनों से विशेष की मां उनके साथ उनके ही घर मे रह रही थी। लेकिन एक दिन अचानक से विशेष की नानी उनके घर आ गई। तो विशेष की नानी को मालूम पड़ गया कि विशेष की माँ प्रेग्नेंट हैं। फिर विशेष की नानी ने कहा कि जब तक विशेष की मां अपने बच्चे को जन्म नही दे देती वो भी यहीं रहेंगी। और जिस दिन विशेष की मां ने विशेष को जन्म दिया उस दिन विशेष की मां के साथ विशेष की नानी ही हॉस्पिटल में थीं। विशेष की मां विशेष को जन्म देते ही बेहोश हो गई। और इसी बात का फायदा उठाकर विशेष की नानी ने विशेष को छुपा दिया। जब विशेष की मां की सहेली वो लड़की और उसका पति विशेष की मां से मिलने हॉस्पिटल गए तो विशेष की नानी ने उन दोनों से कहा कि विशेष की मां का बच्चा जन्म लेने के कुछ देर बाद मर गया। लेकिन उसी के कुछ देर बाद में उस लड़की ने और उसके पति ने विशेष की नानी को हॉस्पिटल से एक बच्चे को बाहर ले जाते हुए देख लिया जिससे उन्हें विशेष की नानी पर शक हो गया कि वो झूठ कह रही हैं। और फिर वो उसका पीछा करते हुए यहां अनाथ आश्रम तक आ गए।वसुंधरा की बातें सुनकर रजनी हैरान रह गई। उसे यकीन नही हो रहा था कि कोई नवजात बच्चे के साथ ऐंसा कैंसे कर सकता । रजनी वसुंधरा की बात काटते हुए कहती है" तो फिर वो दोनों विशेष को वापस क्यों नही ले गए।" "उन्होंने कहा था कि वो यहां से जाने के बाद विशेष की मां को सब सच बताकर जल्द ही विशेष को यहां से वापस लेने आएंगे। तब तक मैं विशेष को अपने पास ही रखूं और उसका ध्यान रखूं। क्योंकि अगर वो उसे उसी समय ले जाते तो क्या पता विशेष की नानी फिर से विशेष के साथ कुछ कर देती। उन्हें लगा कि विशेष इस समय मेरे साथ इस अनाथ आश्रम में ज्यादा सुरक्षित रहेगा। विशेष का विशेष नाम भी विशेष की मां की सहेली ने ही रखा था। और वो लॉकेट जो विशेष के गले मे रहता है वो भी उसी लड़की ने दिया था। उस लड़की ने मुझसे वादा भी लिया था कि अगर उन्हें यहां आने में टाइम लगे तो तब तक वो विशेष को किसी को गोद न लेने दें। वो विशेष को उसके माता पिता के साथ यहाँ या ले जाने वापस जरूर आयेंगे। यही वजह है कि आज बारह साल बाद भी मैं विशेष को किसी को गोद नही लेने देती। मेरी हिम्मत नही होती विशेष को किसी को भी गोद देने की। क्योंकि मैं आज भी विशेष के माता पिता के आने का इंतजार कर रही हूं। मुझे ये डर रहता है कि अगर कहीं मैंने विशेष को किसी को गोद दे दिया और वो लड़की विशेष के माता पिता के साथ विशेष को लेने आ गई तो मैं उसे क्या जवाब दूंगी। और मां बाप से उसके बेटे को भी अलग कर दूंगी। "- ये कहते हुए वसुंधरा की आँखें नम हो जाती हैं। " उस बात को बीते आज बारह साल हो गए हैं। अगर विशेष के माता पिता को उसे अपनाना होता तो वो उसी समय विशेष को यहां से लेकर चले जाते। शायद बाद में उन्होंने विशेष को अपनाने से मना कर दिया होगा।आपको तो पता ही है कि हमारे समाज मे उस लड़की को किस नजरिये से देखा जाता है जो शादी से पहले ही प्रेग्नेंट हो जाती हैं। शायद इस वजह से वो विशेष को लेने नही आये होंगे। ......... आजकल के जवान लड़के लड़कियों की यही प्रॉब्लम है। प्यार करते हैं। और फिर अपनी भावनाओं पर कंट्रोल नही कर पाते जिसका नतीजा होते हैं। विशेष जैंसे मासूम बच्चे। जिन्हें अनाथ बनाकर अनाथ आश्रम में छोड़ दिया जाता है या फिर गर्भ में ही मार दिया जाता है। ........ और इसे ये लोग प्यार का नाम देते हैं। इन्हें कौन समझाये की बच्चे तो भगवान का एक अनोखा आशीर्वाद होते हैं।" अतीत की इन कड़वी यादों को याद करते हुए विशेष की आंखों से आंसू बहने लगे थे। "नफरत है मुझे इस प्यार शब्द से। ......... पता नही क्यों लोग ऐंसे प्यार को मां बाप, भाई बहन और दोस्तों के बीच के प्यार से ऊपर रखते हैं। जबकि सच ये है कि ये प्यार नही होता ये तो सिर्फ एक जरूरत होती है। जिसे प्यार का नाम दे देते हैं। जबकि सच्चा प्यार तो भाई बहनों के बीच, संतान का अपने पेरेंट्स से और एक दोस्त का दूसरे दोस्त से होता है। जो निस्वार्थ प्यार होता है।"-विशेष रोते हुए नफ़रत भरे स्वर मे अपने मे ही कहता है। इस समय उसके चेहरे पर गुस्से और नफ़रत के मिले जुले भाव थे। विशेष अपने हाथ मे पकड़े हुए लॉकेट को सामने रखी अलमारी के अंदर डाल देता है। और बेड पर आकर लेट जाता है। अगली सुबह.... सुबह के लगभग नौ बज रहे थे। विशेष पड़ोस में जिया के घर के बाहर खड़ा घर की डोर बेल बजाता है। कुछ देर बाद जैंसे ही दरवाजा खुलता है तो सामने मनन खड़ा था। तभी मनन और विशेष दोनो के कानों के मनन की मां पार्वती की आवाज पड़ती है। पार्वती किचन से मनन को आवाज देते हुए कह रही थी "मनन कौन आया है" इस पर मनन भी थोड़ा तेज आवाज में कहता है" आपका असली बेटा" ये सुनते ही पार्वती किचन से बाहर आते हुए कहती है"अरे विशेष ....... आओ ना वहां क्यों खड़े हो" ये देख मनन विशेष को घूरते हुए अपने मन मे बोलता है"- पता नही इस लड़के में ऐंसा क्या है जो मम्मी पापा इस पर इतना प्यार लुटाते हैं।" विशेष दरवाजे पर खड़े मनन को धक्का देकर अंदर आते हुए पार्वती से कहता है"- नमस्ते आंटी जी। कैंसे हो आप" विशेष की ये हरकत देख मनन अपने मन मे आगे बोला" इसीलिए ये लड़का मुझे कुछ खास पसन्द नही है। जब देखो अपनी उल्टी सीधी हरकतों से मुझे परेशान करता रहता या" पार्वती विशेष की बात का जवाब देते हुए कहती है"- मैं तो ठीक हूँ। तुम बताओ ....कल जिया कह रही थी कि तुम्हारी दूसरी जगह जॉब लग गई " "हां आंटी जी जॉब तो लग गई। "- विशेष थोड़ा बुझे हुए मन से कहता है। " " तो फिर ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है। जॉब लगने की खुशी तुम्हारे चेहरे पर बिल्कुल नही दिख रही"-पार्वती ने सवालिया नजरों से विशेष को देखते हुए पूछा। "आंटी जी जॉब लगने से मैं खुश तो बहुत हूँ। लेकिन अब मैं यहां नही रह पाऊंगा इसलिए थोड़ा दुखी हूं।"- विशेष बिना किसी भाव के बोला। इस पर पार्वती कहती है"-क्या ...... मैं कुछ समझी नही। अगर तुम यहाँ नही रहोगे तो कहां रहोगे " " वो क्या है ना आंटी जी जहां मेरी जॉब लगी है मुझे अब वहीं रहना होगा। क्योंकि मेरी केयर टेकर की जॉब लगी है। और जिनकी मैं केयर करूँगा उन्हें मेरी जरूरत कभी भी पड़ सकती है। दिन को भी और रात को भी इसलिए मुझे वहीं रहना होगा"- विशेष ने कहा। ये सुन पार्वती कहती है"- अर्थ ओर अश्मि वो दोनों " "वो दोनों भी मेरे साथ वहीं रहेंगे"-विशेष बोला। विशेष की बात सुनकर मनन खुशी से चहकते हुए कहता है" वाह सुबह सुबह क्या खुश खबरी सुनाई तुमने। सच मे आज तो मेरा दिन बन गया....... अब कम से कम पूरे मौहल्ले मे शांती तो रहेगी। मनन की बात पर विशेष मनन को खा जाने वाली नजरों से घूरने लगता है। तभी पार्वती मनन को डांटते हुए कहती है"- चुप कर.....कुछ भी बोलता रहता है" विशेष घर में चारों ओर अपनी नजरें दौड़ाते हुए आगे कहता है"-आंटी जी जिया और अंकल जी कहाँ है। वो दोनों नही दिख रहे।" "इसके पापा जिया का एडमिशन करवाने जिया के साथ कॉलेज गए हैं। तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूँ।" पार्वती इतना कहकर अपनी जगह से उठने को होती ही है कि विशेष पार्वती को वापस बिठाते हुए कहता है" आंटी जी मैं नाश्ता करके आया हूँ। विशेष की बात सुन मनन विशेष पर ताना मारते हुए फिर से कहता है" तुम तो हमेशा ही अपने घर से नाश्ता करने के बाद यहां भी ठूस लेते हो। तो फिर आज मना क्यों कर रहे हो।" "क्योंकि मुझे घर जाकर पैकिंग भी करनी है।समझे।" विशेष चिढ़कर बोला। "आंटी जी ये मेरे घर की चाभी है। इसे आप रखिये। वो क्या है ना कि मैंने सोचा कि अब मैं अर्थ और अश्मि तो वहीं रहेंगे जहां मेरी जॉब है तो क्यों न मैं अपने घर के दो कमरे किराये पर दे दूं। ओर एक कमरे में अपना बचा हुआ सामान रख दूँ। इसीलिए अगर कोई किराये पर कमरा लेने वाले आये तो उन्हें मेरा घर दिखा देना।"-विशेष पार्वती को अपने घर की चाभी देते हुए बोला। "अच्छा ठीक है.......लेकिन किराया कितने तक बताना है"-पार्वती विशेष के हाथ से चाभी पकड़ते हुये कहती है " अठारह हज़ार"-विशेष ने कहा। ये सुनकर मनन और पार्वती हैरानी से आँखें फाड़कर एक दूसरे की ओर देखते हुए एक साथ कहते है"- अठारह हज़ार........." "अठारह हज़ार कुछ ज्यादा नही है।"- पार्वती हल्की सी मुस्कान के साथ कहती है तो विशेष कहता है"- मुझे पता है आंटी जी अठारह हज़ार ज्यादा हैं। इसीलिए जिनको देखकर आपको लगे कि ये पैंसे वाले हैं ये आठारह हज़ार तक दे सकते हैं उन्हे आठारह हज़ार कहना और जिनको देखकर लगे कि ये अठारह हज़ार तक नही दे पाएंगे उन्हें पन्द्रह हज़ार कहना। बाकी तो मोल भाव करके दस या बारह हजार में दे देना। इतना कहकर विशेष वहां से चला जाता है। विशेष के जाते ही मनन कहता है"- मम्मी ये कितना चालाक है ना। सच मे पिछले जन्म मे ये लोमड़ी रहा होगा" ★★क्रमशः★★
वापस घर आकर विशेष अपनी जरूरत का सामान पैक करके बाकी का बचा हुआ सारा सामान एक कमरे के अंदर एडजस्ट कर देता है। क्योंकि उसे बाकी के दो कमरे किराये पर देने के लिए खाली करने थे। दोपहर के एक बजे तक अर्थ और अश्मि भी स्कूल से वापस आ गए थे। और लगभग साढ़े चार बजे तक विशेष अर्थ और अश्मि के साथ जिया के घर मे सबसे मिलने जाता है। लेकिन इस समय मनन घर पर नही था। मनन को घर पर न देख अर्थ पार्वती से कहता है"- ताई जी मनन भैय्या कहाँ हैं। "पार्वती -"अर्थ मनन अभी कुछ काम से बाहर गया हुआ है।" मनन अर्थ और अश्मि से बहुत प्यार करता था। वैंसे तो जिया, पार्वती और जिया के पापा आलोक जी भी अर्थ और अश्मि से बहुत प्यार करते थे। लेकिन मनन अश्मि और अर्थ को अपने साथ बाइक में घुमाने ले जाता था उन्हें खाने के लिए बहुत सी चीजें देता था इसलिए अर्थ और अश्मि का मनन से कुछ ज्यादा ही लगाव था। और मनन के घर मे आकर वो दोनो सबसे पहले मनन के पास ही जाते थे। इतने में मनन भी आ जाता है। अर्थ और अश्मि को देख मनन अपने जेब से चॉकलेट निकालते हुए कहता है"- चॉकलेट किसको चाहिए।" ये सुनते ही अर्थ और अश्मि दौड़ते हुए मनन के पास जाकर कहते हैं"- मुझे चाहिए" "तो पहले मुझे एक एक पप्पी दो" मनन घुटनों के बल नीचे बैठकर बोला। अर्थ और अश्मि मनन के गाल पर एक एक किस करते हैं और बदले में मनन अर्थ और अश्मि को एक एक चॉकलेट दे देता है। और फिर विशेष सभी से मिलकर राजपूत मैन्शन के लिए निकल जाता है। थोड़ी ही देर मे विशेष,अर्थ और अश्मि राजपूत मैन्शन पहुंच जाते हैं। विशेष के आते ही प्रभाकर जी भी घर के बाहर आ जाते हैं। प्रभाकर जी को देखते ही विशेष कहता है" नमस्ते दादाजी......" "नमस्ते बेटा........ आ गए तुम मैं कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रहा था"- प्रभाकर जी एक बड़ी सी मुस्कान के साथ बोले। ये सुनकर विशेष के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है। फिर वो अर्थ और अश्मि से कहता है"अर्थ.... अश्मि दादाजी को नमस्ते करो" अर्थ और अश्मि अपने दोनों हाथ जोड़कर एक साथ कहते है"- नमस्ते दादाजी।" "नमस्ते बेटा...... ये हैं तुम्हारे भाई बहन"-प्रभाकर जी अर्थ और अश्मि को देखते हुए बोले। "हां दादाजी .....इतना कहकर विशेष अर्थ की ओर इशारा करते हुए कहता है" ये अर्थ .... और फिर अश्मि की ओर इशारा करते हुए कहता है"- ये अश्मि।" "विशेष बेटा मैंने आउट हाउस का सारा काम करवा दिया है। अब तुम्हें वहां रहने में कोई परेशनी नही होगी।...... अगर तुम्हें किसी ओर चीज़ की जरूरत हो तो कह देना" इतना कहकर प्रभाकर जी अपने हाथ मे पकड़ी चाभी को विशेष की ओर करते हुए आगे कहते हैं"- लो ये रही आउट हाउस की चाभी" "थैंक यू दादाजी" विशेष प्रभाकर जी के हाथ से चाभी पकड़ते हुआ बोला और फिर विशेष राघव और मिताली की हेल्प से अपना सारा सामान आउट हाउस में ले जाता है। आउट हाउस मे सामान एडजस्ट करने के बाद विशेष पूरे आउट हाउस में अपनी नजरें दौड़ाकर एक बड़ी सी मुस्कान के साथ बेड पर पसरते हुए कहता है"-चलो ये काम तो हो गया।" तभी अर्थ और अश्मि विशेष के पास आकर कहते है" भैय्या हमे भूख लगी कि" "रुको मैं अभी तुम दोनों के लिए खाना बनाता है"-विशेष की बात सुन अर्थ और अश्मि वहां से चले जाते हैं। उनके जाते ही विशेष रोने वाला मुँह बनाकर खुद मे ही बड़बड़ाता है" सुबह से मैं काम ही कर रहा हूँ। और अब मेरे शरीर मे खाना बनाने की बिल्कुल भी हिम्मत नही है। लेकिन भूख भी तो लग रही है। क्या करूँ...... ......बाहर से ले आऊं। ..... नही नही अगर मैं बाहर से खाना लाया तो डेड दो सौ रुपये में आएगा। और इतने रुपयों में तो तीन चार दिन की सब्जी आ जाती है। .... लेकिन इसके अलावा मेरे पास कोई और चारा नही है।" इतना कहकर जैंसे ही विशेष बेड से उठता है अचानक से उसके दिमाग मे कुछ आता है। और फिर उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान आ जाती है। कुछ देर बाद विशेष आरसी के घर के बाहर खड़ा घर की डोर बेल बजाते हुए अपने मे ही बड़बड़ा रहा था"सॉरी दादाजी मैं आपकी अच्छाई का फायदा उठा रहा हूँ। लेकिन सच मे मेरे अंदर खाना बनाने की बिल्कुल भी हिम्मत नही है। इसलिए मुझे ये सब करना पड़ रहा है। वैंसे देखा जाए तो इसमें आपका ही फायदा है क्योंकि किसी भूखे को खाना खिलाने से पुण्य मिलता है। ......और आप तो तीन तीन भूखे लोगों को खाना खिलाओगे। मतलब आपको तो तीन गुना पुण्य मिलेगा। लेकिन दुख इस बात का है कि मेरे आपके घर खाना खाने से आधा पुण्य उस चन्डालिका को भी मिल जाएगा। " तभी अचानक से घर का दरवाजा खुलता है सामने मिताली खड़ी थी। विशेष को देखते ही मिताली कहती है"आप यहां....... कुछ चाहिए था क्या आपको।" इस पर विशेष अपना सर हाँ में हिला देता है। तो मिताली आगे कहती है"आओ अंदर आओ ..." अंदर आकर जब विशेष को प्रभाकर जी वहां कहीं नही दिखते तो वो अपने मन ही मन मे कहता है" हे भगवान यहां तो दादाजी कहीं दिख ही रहा रहें। अगर दादाजी नही होंगे तो मेरा सारा प्लेन खराब हो जाएगा" विशेष को अपने मे ही खोया देख मिताली कहती है" क्या चाहिए आपको।" "वो दादाजी कहाँ........"-अभी विशेष ने इतना ही कहा था कि उसकी नजर सामने से आते हुए प्रभाकर जी पर पड़ती है। प्रभाकर जी को देखते ही वो चुप हो जाता है। "अरे विशेष बेटा तुम यहाँ .......कुछ चाहिये था क्या..."-प्रभाकर जी विशेष को देखते ही बोले। "दादाजी वो मैं यहां टमाटर लेने आया था। बहुत भूख लगी है । सुबह से काम ही कर रहा हूँ। इसलिए खाना बनाने जा रहा था तो देखा कि टमाटर तो हैं ही नही। तो सोचा यहीं से मांग कर ले जाऊं। वैंसे अब हिम्मत तो नही हो रही खाना बनाने की लेकिन अर्थ और अश्मि भी भूखे हैं उनके लिए तो बनाना ही पड़ेगा।"-विशेष लाचार होते हुए बोला। "क्या.... अरे मेरे तो दिमाग से ही निकल गया। अभी थोड़ी देर पहले मैं यही सोच रहा था कि मिताली को तुम्हारे पास भेज कर तुम्हे आज रात का खाना यहीं करने को कहूँ । लेकिन फिर भूल गया ।........... आज रात का खाना तुम यहीं कर लेना।"- प्रभाकर जी कहते हैं ये सुन विशेष अपने मन ही मन मे सोचता है"फोर्मेलिटिस के लिये मना कर देता हूँ। एक बारी मे ही हां कहना ठीक नही लगता" " दादाजी मैं बना लूंगा। आप रहने दीजिये। "-विशेष बोला। " मुझे पता है तुम बना लोगे। लेकिन आज तुम सुबह से काम कर रहे हो तो थकान लगी होगी। इसलिए आज का खाना यहीं कर लो। कल से अपने लिए अपने आप बना लेना " इतना कहकर प्रभाकर जी मिताली से आगे कहते हैं"आज रात का खाना विशेष और उसके भाई बहन यहीं करेंगे। इसलिए खाना उनके लिए भी बनवा देना" "जी सर"- इतना कहकर मिताली वहां से चली जाती है। और विशेष के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है। विशेष मुस्कराते हुए प्रभाकर जी से कहता है" दादाजी आप हमेशा मुझसे अपनी बात मनवा ही लेते हो" इस पर प्रभाकर जी मुस्कराने लगते हैं। विशेष आगे कहता है-" दादाजी अभी मैं भी चलता हूँ। थोड़ी देर में अर्थ और अश्मि को लेकर आ जाऊंगा।" इतना कहकर विशेष घर से बाहर आ जाता है। घर से बाहर आते ही विशेष के चेहरे की मुस्कान ओर भी फैल जाती है। और वो अपनी ही धुन में गार्डन की ओर चलते हुए मुस्कराकर कहता है" चलो खाने का जुगाड़ तो हो गया।" जैंसे ही विशेष ये कहता है उसकी नजर एक पेड़ के पास खड़ी आरसी पर पड़ती है। जो उसे अजीब तरह से घूर रही थी । आरसी को ऐंसे अचानक से देखने के कारण विशेष डर जाता है। और डर के मारे वो झटके से पीछे की ओर उझलते हुए जोर से चीखकर कहता है"-मम्मी........." आरसी अभी भी विशेष को घूरे जा रही थी । जब विशेष आरसी को गौर से देखता है तो वो अपनी चेस्ट पर हाथ रखते हुए राहत की एक लंबी सांस लेते हुए धीरे से अपने मे ही बुदबुदाता है"- अरे ये तो वो खड़ूसनी है। ......... लेकिन ये भी कुछ कम डरावनी नही तो" इतना कहकर विशेष आरसी से बिना कुछ कहे ही चुपचाप वहां से चला जाता है।" आरसी वहीं खड़ी विशेष को जाते हुए देख कर बोली"- हद है इस लड़के के लिए। मतलब कि खाना भी इसको यहीं खाना है।" कुछ देर बाद विशेष अर्थ और अश्मि के साथ वापस आरसी के घर मे आ जाता है। " आ गए तुम सब"-अर्थ,अश्मि और विशेष को देख प्रभाकर जी बोले। विशेश-"जी दादाजी" प्रभाकर जी सामने सोफे की ओर इशारा करते आगे आगे कहते हैं"अभी खाना बना नही है। जब तक खाना बनता है तब तक बैठ जाओ।" अर्थ, विशेष और अश्मि वहीं सोफे पर बैठ जाते हैं। "विशेष मैं अभी आता हूँ"-इतना कहकर प्रभाकर जी अपने कमरे की ओर बढ़ जाते हैं। तभी आरसी वहां आती है। आरसी को देखते ही अर्थ कहता है"भैय्या यही हैं वो खड़ूसनी जिनके लिए आपने कहा था कि इनके सामने कोई शैतानी मत करना। ये बच्चों को कच्चा चबा लेती हैं। क्योंकि इन्हें बच्चे बिल्कुल पसंद नही हैं" अर्थ की ये बात सुनकर आरसी की आँखें गुस्से से लाल हो जाती हैं। और वो विशेष को खा जाने वाली नजरों से घूरने लगती है। अर्थ की इस बात पर विशेष डर के मारे एक नजर सामने खड़ी आरसी को देखता और फिर अपनी नजरें झुका लेता है। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे साफ दिख रही थी। तभी अश्मि कहती है"हां यहीं होंगी। देख नही रहा इनका चेहरा कितना डरावना है" ये सुनकर तो आरसी का गुस्सा सांतवें आसमान मे पहुंच जाता है। जिसे देख विशेष अजीब सा चेहरा बनाकर अपने मन ही मन मे कहता है" हे भगवान आज मुझे बचा लो। आगे से इन दोनो से कभी कुछ नही कहूंगा। फंसा दिया दोनो ने मुझे। इससे पहले की ये चन्डालिका हम तीनों को बिना खाना खिलाये ही यहां से भगा दे। मुझे बात सम्भालनी होगी।" ये सोचकर विशेष पूरी हिम्मत जुटाते हुए आरसी की ओर देखता है जो कि अभी भी गुस्से में विशेष को ही घूर रही थी। खुद को ऐंसे गुस्से में घूरते देख विशेष अपनी नजरें चुराते हुए अर्थ और अश्मि को डांटते हुए कहता है"ये क्या कह रहे हो बेड........ बेड मैनर्स..... ऐंसा नही कहते किसी को। वो भी उसी के मुँह के सामने।" "तो क्या पीठ पीछे कह सकते हैं भैय्या " विशेष की बात अभी खत्म भी नही हुई थी कि अश्मि बोल पड़ी "नही .......नही कहते ना मुँह के आगे ना पीठ पीछे समझे"-विशेष जोर देते हुए बोला तो अर्थ झट से विशेष की बात काटते देख बोल पड़ा" तो फिर आपने क्यों कहा इन दीदी को खड़ूसनी....... उनके पीठ के पीछे हमारे पास।" इस पर विशेष आरसी को देखते हुए एक फीखी हंसी हँसता है। और फिर अर्थ सर पर हाथ फेरते हुए कहता है- "अर्थ मैंने खड़ूसनी नही कहा। मैंने कहा था कि उन दीदी के सामने शैतानी मत करना। वो थोड़ा गुस्सेल हैं। तुमने शायद सुना नही।" इतना कहते ही विशेष दांत पीसते हुए अपनी आंखों से अश्मि और अर्थ को इशारों ही इशारों में चुप रहने को कहता है। दोनों विशेष का इशारा समझ जाते हैं और आगे कुछ नही कहते। " ये बच्चे भी ना कुछ भी कह देते हैं। समझ ही नही है। इन्हें की कहाँ सच कहना है और कहां झूठ" ये कहते ही विशेष को अचानक ध्यान आता है कि शायद उसे भी ये बात नही कहनी चाहिए थी। इसलिए वो सम्भलते हुए आगे कहता है" भला मैं क्यों आपको खड़ूसनी कहूंगा। आप तो गाय हैं गाय। शांत स्वभाव की।............ आपके जैंसा शांत स्वाभव वाला इंसान आज से पहले मैने कभी नही देखा। इनकी बात का बुरा मत मानना।" इससे पहले कि आरसी कुछ कहती विशेष अर्थ और अश्मि का हाथ पकड़ता है और उन्हें लगभग खींचते हुए वहां से ले जाता है। "जैंसा खुद है वैंसे ही उसके भाई बहन भी है"-आरसी तीनो को जाते देख खुद मे ही बड़बड़ाई। उसे इस समय तीनों पर ही बहुत गुस्सा आ रहा था। ★★क्रमशः★★
विशेष अर्थ और अश्मि के साथ आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाता है। डाइनिंग टेबल पर बैठते ही विशेष की नजर सामने से अपनी ओर ही आ रही आरसी पर पड़ती है। जो कि अभी भी बहुत गुस्से में लग रही थी। आरसी को इतने में गुस्से में अपनी ओर आते देख विशेष रुंहासा सा चेहरा बनाकर अपने मन ही मन मे सोचता है"- जिस बात का डर था वही हो रहा है। ये चन्डालिका अब यहां आकर मुझे अर्थ और अश्मि को बिना खाना खिलाये ही भगाने वाली है।" फिर विशेष ने गुस्से में सामने बैठे अर्थ और अश्मि कि ओर देखते हुए आगे सोचा "और सब इन दोनों की वजह से हो रहा है। कितनी बार कहा है इन दोनों को की अपना मुँह बन्द रखा करो लेकिन नही दोनो ही मुझ पर गए हैं। अपना मुंह बंद ही नही रख सकते। अब भुगतो............... अब तो मुझे ये भी डर लग रहा है कि कहीं ये खड़ूसनी मुझे जॉब से भी न निकाल दे" इतने में आरसी डाइनिंग टेबल के पास आकर खड़ी हो जाती है। और फिर विशेष को गुस्से में घूरकर मिताली को आवाज देती है "मिताली......." "जी मेम....."मिताली कीचन से बाहर आते हुए बोली "मेरे लिए खाना मेरे रूम में ले आना"-इतना कहकर आरसी वहां से चली जाती है। आरसी के जाते ही विशेष एक राहत की सांस लेता है और फिर धीरे से अपने मे ही बुदबुदाता है"थैंक यू भगवान जी ....इस नकचढ़ी ने हमे यहां से भगाया नही।" कमरे में पहुंचते ही आरसी गुस्से में अपने हाथ मे पकड़े फोन को बेड पर फेंकते हुए बोली" ये लड़का समझता क्या है अपने आप को। ये मुझे खड़ूसनी कैंसे कह सकता है। ......... खड़ूसनी सच मे........इस लड़के को तो अब बताना होगा कि खड़ूसनी क्या होता है। बहुत हो गया इसका। चाहे कुछ भी हो जाये मैं इसे यहां ज्यादा दिन तक नही टिकने दूंगी। ........ मैं इस लड़के को सिर्फ दादाजी की वजह से झेल रही हूं। ......... लेकिन अब जो भी हो मुझे कुछ ऐंसा करना होगा जिससे ये लड़का भी यहाँ से चला जाये और दादाजी को भी कोई प्रॉब्लम न हो" अगले दिन...... सुबह के नौ बज रहे थे। विशेष हॉल में खड़ा था और उसके ठीक सामने सोफे पर आरसी बैठी हुई थी। "कल से ठीक नौ बजे तुम्हे यहां पहुंचना है। उसके बाद दादाजी को नहलाना है। फिर नाश्ता करने के बाद उन्हें दवाई देनी है।" आरसी ने अभी इतना कहा ही था कि विशेष आरसी की बात काटते हुए बोला" ये सब मुझे पता है। आप दादाजी की बिल्कुल फिक्र मत कीजिये मैं दादाजी का ध्यान बहुत अच्छे से रखूंगा।" विशेष की बात सुनकर आरसी गुस्से में अपने हाथ मे पकड़ी कांच और प्लास्टिक की बनी एक चौकोर सी वस्तु विशेष को देते हुए कहती है-"ये दादाजी का अलार्म है" इतना कहकर आरसी अपने हाथ मे पकड़े एक प्लास्टिक की चीज़ जो कि किसी रिमोट की तरह लग रही थी। उसे विशेष को दिखाते हुए आगे कहती है"ये इस अलार्म का रिमोट है। अगर कभी तुम दादाजी के पास नही होंगे या फिर रात को कभी दादाजी को तुम्हारी जरूरत होगी तो दादाजी इस रिमोट का ये बटन दबाएंगे तो तुम्हारे पास ये अलार्म बज जाएगा जिससे तुम्हे मालूम पड़ जायेगा कि दादाजी को तुम्हारी जरूरत है। समझे। इसलिए इस अलार्म को हमेशा अपने पास रखना" ये कहते ही आरसी अपने हाथ मे पकड़े हुए रिमोट का बटन दबाती है। बटन दबाते ही विशेष के हाथ मे पकड़ा हुआ अलार्म अचानक से लाल लाइट के साथ जोर जोर से बजने लगा। फिर आरसी विशेष को एक फोन देते हुए आगे बोली" ये मोबाइल तुम्हारे लिए " "मेम जॉब के पहले दिन ही गिफ्ट देने की क्या जरूरत है। मेरे पास अपना फोन है। लेकिन हां उसकी थोड़ा स्क्रीन टूट गई है। पर चलता फिर भी अच्छे से और। लेकिन अब आप इतने प्यार से दे रहे हो तो पकड़ लेता हूँ"-विशेष बड़ी सी स्माइल के साथ आरसी के हाथ से फोन पकड़ते हुए बोला। ये सुनकर आरसी गुस्सा मे अपने दांत पीसते हुए बोली "ये फोन तुम्हारे पर्सनल यूज़ के लिए नही है। इसमे भी दादाजी तुम्हे कॉल करेंगे । अगर उन्हें कभी तुम्हारी जरूरत हो तो। वैंसे तो मैं तुम्हे सिर्फ फोन ही देती लेकिन फोन मे कभी कभी ऐंसा भी होता है कि नेटवर्क नही होते। कॉल नही लगता तो इसलिए अलार्म भी दिया है। और इस अलार्म की रेंज सिर्फ आधे किलोमीटर तक ही है। इसलिए ये फोन और ये अलार्म हमेशा अपने साथ ही रखना। और हाँ घर के मेन डोर का पासवर्ड है। 91827..... अच्छे से याद करलो।" " ओह अच्छा तो आपने ये फोन मुझे इसलिए दिया है तभी मैं सोचूं की आपकी जैंसी खड़ूस....................।इतना कहते ही विशेष अचानक से ठिठक गया और फिर हल्की सी मुस्कान के साथ बात बदलते आगे उसने आगे कहा "मतलब आप मुझे जॉब के पहले ही दिन गिफ्ट क्यों दे रहे हो।" "अब जल्दी से दादाजी के कमरे में जाओ और उन्हें नहलाओ "-इतना कहकर आरसी विशेष को गुस्से में घूरते हुए वहां से चली जाती है। आरसी के जाते ही विशेष भी दादाजी के कमरे की ओर जाने लगता है। अभी वो एक दो कदम ही चला था कि तभी उसके कानों मे पीछे से एक आवाज पड़ती है। "दादाजी........ " ये आवाज सुनते ही विशेष झटके से आवाज की ओर पीछे पलटकर देखता है। तो सामने एक लड़का खड़ा था जो दिखने में बहुत ही हैंडसम था। गोरा रंग, चेहरे पर हल्की हल्की दाढ़ी , लगभग 6 फ़ीट लम्बाई और जिम टोंड बॉडी। ब्लैक जीन्स के साथ रेड टी शर्ट पहने वो लड़का किसी मॉडल की तरह लग रहा था। वो लड़का अभी भी जोर जोर से चिल्लाए जा रहा था"- दादाजी........दादाजी।" "कौन है ये लड़का और ऐंसे कैंसे ये घर के अंदर आ गया। और इतनी जोर जोर से दादाजी को क्यों पुकार रहा है। दादाजी को ऐंसे पुकार रहा है तो कोई जान पहचान का ही होगा।"-विशेष उस लड़के को देख खुद मे ही बोला। "अरे भाई जी इतना क्यों चिल्ला रहे हो। तुम्हे पता नही है इस घर मे एक शेरनी है। अगर उस ने सुन लिया तो तुम्हे कच्चा चबा जाएगी। वो भी बिना डकार लिए।"-विशेष उस लड़के के पास आकर बोला। विशेष की ये बात उस लड़के के पल्ले नही पड़ी इसलिए वो विशेष को अजीब तरह से देखते हुए कहता है" ये क्या बोल रहे हो तुम।" इससे पहले की विशेष उस लड़के की बात का कोई जवाब देता । उस लड़के की नजर सामने से आते हुए प्रभाकर जी पर पड़ती है। प्रभाकर जी को देखते ही वो लड़का तेज कदमों से प्रभाकर जी के पास जा कर प्रभाकर जी को गले लगाते हुए बोला-"दादाजी अब आपकी तबियत कैसी है। ...... सॉरी आपको हॉस्पिटल से आये तीन दिन हो गए पर मैं आपसे मिलने नही आ पाया। वो क्या है ना कि अभी कॉलेज जाना स्टार्ट किया है तो थोड़ा बिजी हूँ" " अरे कोई नही.......वैंसे आज नही जा रहा तू कॉलेज"-प्रभाकर जी बड़ी सी मुस्कान से साथ बोले। "जा रहा हूँ। कॉलेज के लिए ही तो निकला था। तभी दिमाग मे ख्याल आया कि आपसे मिलकर जाऊं। इसलिए आ गया।"वो लड़का प्रभाकर जी से दूर हटते हुए कहता है। प्रभाकर जी और उस लड़के की बातें सुनकर विशेष के मन मे उस लड़के के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ रही थी। इसलिए वो सामने खड़ी मिताली के पास जाकर धीरे से कहता है" मिताली दी..... ये लड़का कौन है।" "ये आवेश है.......ये सर के पड़ोस में रहते हैं। इनकी फैमली सर और आरसी मेम के लिए अपनो से भी बढ़कर हैं। बहुत प्यार करते हैं। ये आरसी मेम और सर से।....... आरसी मेम के मम्मी पापा के गुजर जाने के बाद आवेश भैय्या के मम्मी पापा ने ही आरसी मेम को मां और पिता का प्यार दिया। और उन्हें पाला।"-मिताली बिना किसी भाव के बोली विशेश-"ओह तो ये बात है" "दादाजी अब मैं चलता हूँ। मुझे कॉलेज के किये लेट हो रहा है। बाय"- आवेश् ने कहा और वहां से जाने लगा। "अरे आरसी से तो मिल ले"-प्रभाकर आवेश को जाते देख बोले। "दी से शाम को आकर मिलूंगा। बाय"- इतना कहकर आवेश जाते हुए विशेष और मिताली के सामने आकर बोला-" हाय मिताली दी कैंसे हो आप........." "मैं ठीक हूँ"-मिताली ने स्माइल के साथ कहा। तो आवेश विशेष को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए आगे बोल-"ये कौन है। पहले तो नही देखा इस लड़के को यहाँ।" मिताली-"ये सर का केयर टेकर है" आवेश अपना हाथ ऊपर उठाने लगता है। जिसे देख विशेष को लगता है की आवेश उससे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे कर रहा है इसलिए विशेष भी अपना हाथ आवेश की ओर बढ़ाने लगता है। लेकिन आवेश बिना विशेष के हाथ की ओर ध्यान दिये वहां से जाते हुए हाथ हिलाकर कहता है-"बाय दादाजी ..... बाय मिताली दी।" ये देख विशेष झेंपते हुए अपना हाथ पीछे कर लेता है। और आवेश वहां से चला जाता है। आवेश के जाते ही विशेष प्रभाकर जी के पास आकर कहता है"- दादाजी चलिये मैं आपको नहला देता हूँ।इस पर प्रभाकर जी मुस्कराते हुए कहते है"- अच्छा चलो।दोनो प्रभाकर जी के कमरे की ओर चले जाते हैं" दूसरी ओर आवेश जैंसे ही कॉलेज पहुंचता है। उसे सामने पार्किंग एरिया में अपने दोस्त खड़े दिखाई पड़ते हैं। वो अपनी बाइक अपने दोस्तों के ठीक सामने जाकर रोकता है। आवेश को देखते ही उसका एक दोस्त चिढ़ते हुए बोला"- कहाँ था बे तू। ..... मैं और मीरा कब से यहाँ खड़े तेरा इंतजार कर रहे हैं।" "तो ना करता ........ मैंने कहा था तुझे कि तू मेरी गर्लफ्रैंड की तरह यहां खड़ा रहकर मेरा इंतजार कर"-आवेश बोला। आवेश की बात सुनकर उस लड़के के सामने खड़ी मीरा जोर जोर हंसने लगी। ये देख वो लड़का गुस्से में बोला "इसमे इतना हंसने की क्या बात है।......मैं जा रहा हूँ" वो लड़का गुस्से में वहां से चला गया। उसके पीछे पीछे आवेश और मीरा भी जाने लगे। कुछ आगे आने के बाद आवेश ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "विहान ..... अरे यार तू भी ना छोटी छोटी बातों में गुस्सा हो जाता है। इसीलिए तो मैं तुझे अपनी गर्लफ्रैंड कहता हूं। ऐंसे छोटी छोटी बातों में तो गर्लफ्रैंड ही गुस्सा होती है ना अपने बॉयफ्रेंड से ........ क्यों मीरा सही कहा ना मैंने" ये सुन मीरा भी आवेश की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली" सही कह रहे हो आवेश तुम" तभी विहान आवेश का हाथ अपने कन्धे से हटाकर बोला"तुम दोनों हमेशा मेरे साथ ऐंसा ही करते हो। दोनो साथ मिलकर हमेशा मेरी टांग खींचते रहते हो।" इतना कहकर विहान फिर से गुस्से में आवेश और नव्या को छोड़कर आगे निकल जाता है। लेकिन आवेश फिर से विहान के पीछे जाकर उसके कंधे पर हाथ डालते हुए बोला"- अच्छा सॉरी अब नही खीचेंगे तुम्हारी टांग" तभी मीरा ने भी उन दोनों के पास आकर कहा"हां अब टांग नही खींचेंगे। अब सीधे पेंट ही खींच देंगें। इतना कहकर मीरा एक बार फिर से हंसने लगी और साथ मे आवेश भी हंसने लगा। उनके जाते ही मनन कॉलेज गेट के बाहर अपनी बाइक रोकता है। बाइक रुकते ही मनन के पीछे बैठी जिया बाइक से उतरकर मनन को बाय बोलकर कॉलेज अंदर जाने लगती है। तो मनन जिया को आवाज देते हुए बोला- "- ओय मोटी ....." ये सुनते ही जिया मनन की ओर मुड़ गई। तो मनन आगे बोला " आते समय खुद से आ जाना " "आ जाउंगी " जिया चिढ़कर बोली और फिर मनन को जीभ दिखा कर वहां से चली गई। मनन भी मुस्कराते हुए वहां से चला जाता है। ★★क्रमशः★★ (थैंक यू)
आवेश, मीरा और विहान आपस मे मस्ती करते हुए जा रहे थे। तभी विहान नोटिस करता है कि वहां खड़ी कुछ लड़कियां आवेश को घूर रही हैं। इतने में एक लड़की कहती है"-यार वो लड़का कितना हैंडसम है" उस लड़की वो कही ये बात मीरा, विहान और आवेश भी सुन लेते हैं। जिस पर आवेश उस लड़की की ओर देखकर हल्का सा मुस्करा जाता है। इतने मे विहान कहता है "- यार कॉलेज आये तुझे अभी एक हफ्ता ही हुआ है। लेकिन कॉलेज की सारी लड़कियां तुझ पर लट्टू हुई पड़ी हैं। ऐंसा भी क्या है तुझमे।" "तू नही समझेगा........लेकिन तू बिल्कुल चिंता मत कर। मैं तुझे कभी धोखा नही दूंगा। क्योंकि तू ही तो मेरा पहला प्यार मेरी पहली गर्लफ्रैंड है।"-आवेश ने विहान की टांग खींचते हुए कहा। "तू फिर से शुरू हो गया"- विहान ने चिढ़ते हुए कहा। "वो खत्म ही कहाँ हुआ था जो शुरू होता"- मीरा भी विहान का मजाक बनाते हुए बोली। इस पर आवेश और नव्या दोनो हंसने लगते हैं। जिया ने एक हफ्ते लेट कॉलेज जॉइन किया था। और आज उसका कॉलेज का पहला दिन था। इसलिए उसे अपनी क्लासरूम कहाँ है पता नही था। वो स्टूडेंट्स से पूछ कर अपनी क्लास रूम का पता करती है। और क्लासरूम में सैकिंड लास्ट रो में जाकर बैठ जाती है।कुछ देर बाद एक लड़की जिया के बगल में आकर बैठती है। जैंसे ही जिया उस लड़की की ओर देखती है वो लड़की मुस्कराकर जिया से कहती है-"हाय।" जवाब में जिया भी हल्की सी मुस्कान के साथ कहती है"- हाय।" "तुम आज क्लास में पहली बार आई हो क्या। क्योंकि इससे पहले मैंने तुम्हें क्लास में नही देखा"- उस लड़की ने जिया से पूछा। जिया -"हाँ ....... आज कॉलेज में मेरा पहला दिन है" "बाय द वे मेरा नाम पंखुडी है"-उस लड़की ने अपना हाथ जिया की ओर बढाते हुए कहा। "मेरा नाम जिया"-जिया बोली और फिर पंखुड़ी से हाथ मिला लिया। पंखुडी अच्छे दिल की और मिलनसार लड़की थी इसलिए कुछ ही देर में जिया और पंखुडी फ्रेंड्स बन जाते हैं। वो दोनों आपस मे बातें कर ही रहे थे। कि इतने में आवेश, नव्या और विहान उनके ठीक बगल से गुजरते हुए जिया और पंखुडी के पीछे वाली सीट में आकर बैठ जाते हैं। दूसरी ओर प्रभाकर जी को नहलाने के बाद विशेष उन्हें दवाई खिला देता है। जिसके बाद प्रभाकर जी आराम करने लगते हैं। लेकिन दवाइयों के कारण उन्हे नींद आ जाती है। प्रभाकर जी को आराम से सोता हुआ देख विशेष बाहर हॉल में आ जाता है। "दादाजी तो सो गए.... अब मैं क्या करूँ अब तो मेरे पास कोई काम ही नही है।......."-विशेष अपने मे ही बड़बड़ा रहा था। इतने में उसकी नजर सामने टेबल पर रखे टी वी के रिमोट पर पड़ती है। वो टी वी का रिमोट उठाते हुए आगे कहता है"- चलो थोड़ी देर टी वी ही देख लेता हूँ।" विशेष आराम से सोफे पर बैठकर टी वी में मूवी देखने लगता है। तभी मिताली वहां आकर कहती है-"विशेष तुम यहाँ क्या कर रहे हो। सर कहाँ हैं।" मिताली के हाथ मे एक प्लेट थी जिसमे फल काट कर रखे हुए थे। "हां वो दादाजी नहाने के बाद सो गए हैं।..... आप ये फल दादाजी के लिए ले जा रही हैं"-विशेष ने मिताली के हाथ मे पकड़ी फलों की प्लेट को देखकर कहा। मिताली -"हां" "आप ऐंसा करो ये फल यहीं रख दो। अभी थोड़ी देर में जब दादाजी जाग जाएंगे तो मैं उन्हें ये फल खिला दूंगा"- विशेष ने कहा। तो मिताली ने अपने हाथ मे पकड़ी फलों की प्लेट वहीं टेबल पर रख दी। और फिर विशेष से बॉली"- विशेष अगर तुम्हे ऐंसे टी वी देखते हुए मेम ने देख लिया तो वो तुम पर गुस्सा हो जाएंगी। अभी मिताली ने इतना ही कहा था कि विशेष कहता है"- अरे आप चिंता मत करो। जैंसे ही वो आएंगी मैं टी वी बन्द कर दूंगा। और वैंसे भी वो तो हमेशा गुस्से मे ही रहती हैं।" इस पर मिताली हल्का सा मुस्कराती है और वहां से चली जाती है। दूसरी ओर आवेश विहान और मीरा के साथ कॉलेज कैंटीन में बैठा हुआ था। कैंटीन में बैठी अधिकतर लड़कियों की नजरें आवेश पर ही थी। ये देख कैंटीन में बैठे लड़कों को अंदर ही अंदर आवेश से जलन हो रही थी। उन लड़कों में विहान भी शामिल था। आवेश भी कैंटीन में बैठी लड़कियों को फुल एटिटूड दिखा रहा था। ये देख विहान ने चिढ़कर कहा"- ज्यादा स्टाइल मत दिखा । इतना भी हैंडसम और स्मार्ट नही है " ।"क्या ..... क्या कहा तूने कि मैं हैंडसम और स्मार्ट नही हूँ। देख नही रहा यहां बैठी सारी लड़कियों मुझे ही घूर रही हैं। अगर मैं अभी किसी को प्रपोज कर दूं ना तो कोई मुझे मना नही कर पायेगी समझा।"- आवेश ने फुल एटीट्यूड में कहता है। "ऐंसा नही है...... बहुत सी लड़कियों यहां ऐंसी भी हैं जो तुझे देख तक नही रही हैं। समझा"- विहान ने कहा। "अच्छा तो बता कौन हैं वो लड़कियां जो मुझे इग्नोर कर रही हैं। बता"- आवेश ने सारे कैंटीन में अपनी नजरें दौड़ाते हुए बोला। "वो देख उस कोने में ..... वहां एक लड़की बैठी हुई है जिसका सारा ध्यान अपने फोन पर है"- विहान कैंटीन के एक कोने की ओर इशारा करते हुए कहता है। तो आवेश की नजरें भी उस कोने की ओर घूम जाती है। कोने के एक टेबल पर जिया बैठी हुई थी। जो कि पंखुडी के आने का वेट कर रही थी। जिया को देखते हुए आवेश कहता है"- मैं अभी जाकर इस लड़की को प्रपोज करता हूँ। अगर इस लड़की ने मुझे मना कर दिया तो पूरे महीने कैंटीन का बिल मैं पे करूँगा। और अगर इस लड़की ने मुझे हाँ कर दी तो बिल तुम पे करोगे। बोल शर्त मंजूर।" "नही..... उस लड़की को प्रपोज नही करना। तुम्हे उस लड़की से अपने हाथ पर किस लेना है।..... अगर उस लड़की ने तुम्हारे हाथ पर किस कर दिया तो अगले एक महीने तक कैंटीन का बिल मैं पे करूँगा। अगर नही किया तो तुम करोगे। "- विहान ने कहा। "क्या..... किस करवाना है वो भी हाथ मे......... फिर तो तू अगले एक महीने के लिए कैंटीन का बिल पे करने के लिए तैयार हो जा"- आवेश ने अपनी चेयर से उठते हुए फुल एटीट्यूड में कहा। और जिया की ओर बढ़ गया। जिया अपने फोन में बिजी थी। इतने में आवेश जिया के पास जाकर स्टाइल दिखाते हुए एटीट्यूड में कहता है"- हाय........" लेकिन जिया आवेश की बात पर कोई ध्यान नही देती। वो अभी भी अपने फोन में ही देख रही थी। ये देख आवेश को थोड़ा अजीब लगता है लेकिन फिर वो अपना गला खंखारते हुए कहता है"- एक्सक्यूजमी......।" इस बार जिया फोन से अपनी नजरें हटा कर आवेश की ओर देखती है तो आवेश बड़ी सी मुस्कान के साथ कहता है"- हाय......" बदले में जिया भी हल्की सी मुस्करती है और कहती है"- हाय......।" "मैं यहां बैठ सकता हूँ"- आवेश जिया की बगल में रखी चेयर की ओर इशारा करते हुए बोला जिया "- सॉरी........ वो मेरी फ्रेंड आने वाली है। आप प्लीज् कहीं ओर बैठ जाइए। जिया की बात सुनकर आवेश अपने मन ही मन मे सोचता है"- कमाल है ये लड़की तो मुझे कोई भाव ही नही दे रही। इसके सामने इतना हैंडसम लड़का खड़ा है लेकिन इसपर कोई फर्क ही नही पड़ रहा। ये तो मुझ में कोई इंटरेस्ट ही नही दिखा रही। कहीं ऐंसा तो नही है कि इस लड़की को लड़कों में इंटरेस्ट हो ही ना। हाँ ऐंसा ही होगा। तभी ये मुझे भाव नही दे रही। लेकिन मैंने विहान के साथ शर्त लगाई हुई है। इसलिए मुझे कैंसे भी करके इस लड़की से अपने हाथ पर किस तो लेना ही होगा।ये सब सोचते हुए आवेश के चेहरे के भाव भी बदल रहे थे। जिसे देख जिया अजीब सा मुँह बनाते हुए अपने मन ही मन मे कहती है"- ये लड़का ऐंसे अजीब अजीब से एक्सप्रेशन क्यों दे रहा है। कहीं ये पागल वागल तो नही है।" "वो देखो वहां एक टेबल खाली है आप वहां जाकर बैठ जाइये"- जिया सामने खाली टेबल की ओर इशारा करते हुए बोली "मुझे आपसे एक हेल्प चाहिए थी"- जिया की बात सुनकर आवेश जिया की बगल वाली चेयर पर बैठते हुए कहता । आवेश के ऐंसे अचानक से बगल वाली चेयर पर बैठने से जिया एक पल के लिए घबरा जाती है। फिर वो सहज होते हुए आवेश से कहती है"- कैसी हेल्प। "वो बात क्या है ना कि मैंने अपने दोस्तों से एक शर्त लगाई हुई है। जिसमे तुम्हे मेरी हेल्प करनी होगी। अगर तुम मेरी हेल्प करोगी तो मैं तुम्हे 2000 हज़ार रुपये दूंगा। बोलो मंजूर है।"- आवेश ने जिया से फुसफुसाते हुए कहा। लेकिन आवेश की कही हुई कोई भी बात जिया के पल्ले नही पड़ी वो अजीब सा मुँह बनाते हुए कहती है"- मुझे कुछ समझ नही आ रहा। ये क्या कह रहे हो तुम।" " सुनो मैंने अपने फ्रेंड्स के साथ एक शर्त बोले तो बेट लगाई हुई है। जिसमे तुम्हे मेरी हेल्प करनी है। मुझे पता है तुम्हे थोड़ा अजीब लगेगा क्योंकि तुम्हार टेस्ट अलग है। लेकिन अगर तुमने मेरी हेल्प कर दी तो मैं तुम्हे 2000 हज़ार रुपये दूंगा। वो मेरे पीछे रेड टीशर्ट और ब्लू जीन्स में लड़का बैठा है जिसके साथ एक लड़की भी है। वही हैं मेरे फ्रेंड्स । बोलो करोगी मेरी हेल्प"- आवेश ने कहा। जिया -"लेकिन शर्त क्या है" ये सुनकर आवेश खुश होते हुए अपने मन ही मन मे कहता है"- शायद मान गई। अब मैं ये शर्त भी जीत जाऊंगा।" आवेश को अपने में ही खोया देख जिया कहती है"-मैंने पूछा क्या शर्त लगाई हुई है तुमने" "तुम्हें मेरे हाथ मे किस करना होगा"- आवेश ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा। और पीछे विहान और नव्या की ओर मुस्कराते हुए देखने लगता है। आवेश की बात सुनकर गुस्से से जिया की भौंहे तन जाती है। गुस्से में जिया अपने दांत पीसते हुए कहती है"- किस चाहिए ......रुको अभी देती हूं।" आवेश अभी भी मीरा और विहान की ओर देख रहा था। जैंसे ही वो जिया की ओर मुड़ता है। तो देखता है कि जिया अपने पैर से अपनी सैंडल निकाल रही है। ये देखते ही उसे ये समझते देर नही लगती कि जिया अपने पैर से सैंडल क्यों निकाल रही है। इससे पहले कि जिया उसे सैंडल से मारती वो झटके से चेयर से खड़ा होता है और वहां से भाग जाता है। जिया भी सैंडल लेकर उसके पीछे भागते हुए कहती है"- किस चाहिए तुम्हे रुको अभी देती हूं मैं तुम्हे किस।" कैंटीन में मौजूद सभी स्टूडेंट्स जिया और आवेश को ही देख रहे थे। जहां लड़कियों को आवेश को देखकर दया आ रही थी वहीं लड़के आवेश की हालत देखकर खुश हो रहे थे। आवेश भागते हुए विहान के पास आजाता है। और विहान के पीछे छिपते हुए कहता है"- यार मुझे बचा वो लड़की तो मेरे पीछे अपनी सैंडल लेकर पड़ गई है।" आवेश की हालत देखकर विहान हंसते हुए कहता है- "क्या हुआ अब कहाँ गई तेरी हीरो गिरी। " अभी विहान ने इतना ही कहा था कि उसके चेहरे पर सैंडल आकर लगती है। ये सैंडल जिया ने फेंकी थी। वो आवेश पर फेंकना चाहती थी लेकिन आवेश विहान के पीछे था इसलिए सैंडल विहान पर लग जाती है। सैंडल लगते ही विहान के चेहरे की हंसी गायब हो जाती है। लेकिन आवेश जोर जोर से हंसने लगता है। इतने में जिया उनके पास आजाती है। जिया के आते ही आवेश कैंटीन से बाहर की ओर भागने लगता है। आवेश को कैंटीन से बाहर भागते देख जिया भी अपनी सैंडल उठाकर उसके पीछे भागने लगती है। जिया के पीछे पीछे विहान और मीरा भी भागते हुए बाहर आ जाते हैं। पंखुडी कैंटीन के अंदर आ रही थी तभी आवेश भागते हुए उसके पास से गुजरता है। आवेश को ऐंसे भागते देख पंखुडी कहती है"- ये लड़का ऐंसे क्यों भाग रहा है।इतना कहकर पंखुडी जैंसे ही एक कदम बढ़ाती है तो उसे सामने से जिया सैंडल लेकर आती हुई दिखती है। जिया के उसके पास आते ही पंखुडी कहती है-" जिया क्या हुआ तू ऐंसे भाग क्यों रही है।" "तू भी मेरे साथ चल"- जिया दूसरे हाथ से पंखुडी का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ भगाते हुए कहती है। इधर विशेष अभी भी मजे से टी वी देख रहा था। वो टी वी देखने मे इतना बिजी हो गया था कि वो ये भी भूल जाता है कि जिन फलों को वो मजे से खा रहा है वो उसके लिए नही बल्कि दादाजी के लिए हैं। वो पूरी पीठ टिका कर मजे से सोफे पर बैठा हुआ था। और उसने अपने दोनों पैर सामने टेबल पर रखे हुए थे। और फल की प्लेट अपने पेट के ऊपर रखी थी। सामने टी वी पर एक लड़ाई वाला सीन चल रहा था। जिसमे हीरो गुंडों की अच्छे से धुनाई कर सामने बेहोश पड़ी हीरोइन को उठाने जा रहा था तो पीछे से एक गुंडा लंगड़ाते हुए हीरो के पास जाने लगता है। उस गुंडे के हाथ मे एक चाकू था। ये सीन देखकर विशेष गुस्से में चिल्लाते हुए कहता है"अरे पीछे देख वो गुंडा अभी मरा नही है। वो तेरे पीछे चाकू लेकर आ रहा है। इस हीरोइन को बाद में सम्भाल लेना अभी पीछे देख।...... मुझे लग रहा है ये गुंडा हीरो को मार ही देगा। सच मे ये हीरो कितना बेवकूफ है हीरोइन को उठाने से पहले चेक तो कर लेता कि गुंडा मर गया कि जिंदा है। इसकी जगह मुझे लेना चाहिए था इस मूवी में हीरो।" इधर आरसी अपने कमरे में बैठी खुद में ही कहती है"- अब ये लड़का आ गया है दादाजी की देखभाल करने इसलिए मुझे अब वापस ऑफिस चले जाना चाहिए। एक दो दिन देखती हूँ कि ये लड़का दादाजी का अच्छे से ध्यान रख भी रहा है कि नही। अगर ये लड़का ठीक से दादाजी का ध्यान रख रहा होगा तो ऑफिस जाने लगूंगी।" इतने में आरसी के कानों में विशेष की आवाज पड़ती है। जो कि जोर जोर से चिल्ला रहा था। विशेष की आवाज सुनते ही आरसी के चेहरे के भाव बदल जाते हैं। और वो अपने मे ही कहती है" ये कौन इतनी जोर जोर से चिल्ला रहा है।" इतना कहकर आरसी जल्दी से अपने कमरे से बाहर हॉल में आती है। हॉल में आते ही उसकी नजर सामने आराम से सोफे पर लेटे विशेष पर पड़ती है। जो कि मजे से टी वी देख रहा था। और अपने पेट पर रखी फलों से भरी हुई प्लेट से फल भी खा रहा था। ये देखकर आरसी की आँखें गुस्से से लाल पीली हो जाती है।और वो गुस्से से तनतनाते हुए विशेष के पास जाती है। टी वी देखते हुए विशेष की नजर अपने पास खड़ी आरसी के पैरों पर पड़ती है। तो वो पैरों से धीरे धीरे अपनी नजरें ऊपर ले जाते हुए आरसी के गुस्से से भरे चेहरे को देखता है। आरसी को देखते ही विशेष झटके से सोफे से खड़ा हो जाता है। जिस वजह से उसके पेट मे रखी फलों की प्लेट नीचे गिर जाती है। ★★क्रमशः★★
आरसी को देखते ही विशेष हड़बड़ाते हुए झट से सोफे से खड़ा हो जाता है। अचानक से उठने की वजह से उसके पेट मे रखी फल की प्लेट नीचे गिर जाती है। जिस पर आरसी विशेष को गुस्से मे खा जाने वाली नजरों से घूरने लगती है। प्लेट के नीचे गिरते ही विशेष एक नजर आरसी को देखता है और फिर जल्दी से नीचे गिरे हुए फलों को प्लेट में रखकर प्लेट टेबल पर रख देता है। "तुम्हे यहां टी वी देखने के लिए नही रखा गया है"- आरसी विशेष पर बिफरते हुए बोली। "ये भी कोई बताने वाली बात है। ये तो मुझे पता है। लेकिन नहाने के बाद दादाजी सो गए थे। तो मेरे पास कोई काम नही था इसलिए मैंने सोचा कि बेकार बैठने से तो अच्छा है कि मैं कुछ काम ही कर लूं। इसलिए मैं टी वी देखने लगा"-विशेष ने एक सांस में ही सफाई देते हुए कहा। विशेष की बात सुनकर आरसी का गुस्सा ओर बढ़ जाता है। "टी वी देखना और फ्रूट्स खाना इसे तुम काम कहते है"-आरसी गुस्से में विशेष को घूरकर बोली। "हाँ ये काम ही होता है। आपने स्कूल टाइम में क्रिया नही पढ़ी। इंग्लिश में बोले तो वर्ब जिसके अनुसार चलना, बोलना ,हंसना ,रोना, यहां तक कि सोना भी काम होता है। मुझे तो यकीन नही हो रहा कि आपको ये सब नही पता। शायद आप पढ़ाई में ज्यादा अच्छी नही थी। वैंसे पढ़ाई में तो मैं भी नालायक ही था लेकिन आप तो मुझ से भी ज्यादा नालायक रही होंगी। क्योंकि आपको तो क्रिया का ही पता नही है।"विशेष अपने मे मस्त मुस्कराते हुए कहे जा रहा था। उसे इस बात का जरा सा भी अंदेशा नही था कि उसकी ये फालतू बातें सुनकर आरसी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। विशेष अपनी बातें जारी रखते हुए आगे कहता है"-वैंसे आप चिंता मत कीजिये मैं किसी को नही बताऊंगा कि आप पढ़ाई में नालायक थी। और ये फल मैंने जान बूझकर नही खाये। गलती से खा लिए। वो क्या है ना कि मिताली जी ये फल दादाजी के लिए ले जा रही थी तो मैंने उनसे कहा कि दादाजी तो सोये हुए हैं। इसलिए अभी ये फल यहीं रख दो बाद में जब दादाजी जाग जाएँगे तो मैं उन्हें खिला दूंगा। लेकिन टी वी देखते देखते मुझे पता ही नही चला कि मैं कब वो फल खाने लगा। वैंसे इसमे भी मेरी कोई गलती नही थी । वो टी वी में मूवी इतनी मस्त आ रही थी। कि मुझे कुछ ध्यान ही नही रहा लेकिन आप चिंता मत कीजिये मैं दादाजी को ओर फल काट कर खिला दूंगा।" विशेष की बातें सुनकर आरसी गुस्से से चिल्लाते हुए कहती है-" चुप....... बिल्कुल चुप अब तुम अपने मुँह से एक शब्द नही कहोगे समझे।" आरसी को इतने गुस्से में देखकर विशेष एक दम से शांत हो जाता है। और मासूम सा चेहरा बनाकर आरसी को देखते हुए अपने मुँह पर उंगली रख देता है। इधर कॉलेज में आवेश जिया से बचकर भागते हुए क्लासरूम में आ जाता है। उस समय क्लास रूम में कोई नही था। आवेश के पीछे पीछे जिया भी क्लास रूम में आ जाती है। क्लास रूम आते ही जिया कहती है"- तुम्हारी हिम्मत कैंसे हुई मुझसे किस मांगने की तुमने मुझे समझ क्या रखा है।" इतने में पंखुडी , मीरा और विहान भी वहां आ जाते हैं। विहान देखता है कि बाकी के स्टूडेंट्स भी क्लास में आ रहे हैं। ये देख विहान जल्दी से क्लास रूम का दरवाजा बंद कर देता है। जिस वजह से बाकी के स्टूडेंट्स अंदर नही आ पाते। "दे....देखो तुम गलत समझ रही हो मेरा कोई गलत इरादा नही था। मैं तुम्हे एक्सप्लेन करता हूँ।"-आवेश ने सफाई देते हुए कहा। लेकिन आवेश की सफाई का जिया पर कोई फर्क नही पड़ता और वो अपने हाथ मे पकड़ी सैंडल को आवेश की ओर फेंक देती है। जिया के सैंडल फेंकते ही आवेश झट से नीचे झुक जाता है जिस वजह से सैंडल आवेश पर नही लग पाती। ये देख जिया गुस्से में दाँत पीसते हुए आवेश की ओर आने लगती है। जिया को अपनी ओर आता देख आवेश शांत भाव से कहता है"-प्लीज् एक बार मेरी बात तो सुन लो। मैं अपनी गलती मान रहा हूँ और उसके लिए मैं तुमसे सॉरी भी कह रहा हूँ। प्लीज्।" लेकिन जिया आवेश की कोई भी बात सुनने को तैयार नही थी। आवेश के पास आकर जैंसे ही जिया आवेश पर थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ आवेश की पर बढ़ांती है आवेश जिया का हाथ पकड़ लेता है। इस पर जिया आवेश को दूसरे हाथ से मारने की कोशिश करती है तो आवेश जिया का दूसरा हाथ भी पकड़ लेता है। और फिर एक झटके से साथ जिया को पीछे दीवार पर सटा देता है। आवेश की इस हरकत पर जिया थोड़ा सहम जाती है। आवेश का चेहरा जिया के चेहरे के ठीक सामने था। दोनो अपने अपने चेहरे पर एक दूसरे की गर्म साँसों को महसूस कर पा रहे थे। जिया अभी भी आवेश को गुस्से में घूरते हुये आवेश की पकड़ से अपने हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर रही थी लेकिन छुड़ा नही पा रही थी क्योंकि आवेश ने पकड़ काफी मजबूत थी। आवेश एक नजरें जिया के चेहरे पर थीं जो कि दौड़ने की वजह से पूरा लाल हो गया था। जिया की सांसे भी तेज चल रही थी। जिया भी एक नजर आवेश की गहरी भूरी आंखों में देखती है । जिनमे उसे हल्का सा गुस्सा साफ दिख रहा था। इतने में आवेश अपना चेहरा जिया के चेहरे के करीब लाकर उसकी आँखों मे आँखें डालते हुए कहता है"-अब बहुत हो गया तुम्हारा समझी। जब मैं अपनी गलती मान कर तुमसे सॉरी तक कहने को तैयार हूं। फिर भी तुम कुछ सुनने को तैयार ही नही हो। मेरे ऊपर चढ़ी ही जा रही हो।.......मैंने तुमसे सिर्फ अपने हाथ पर किस करने को कहा था। अगर तुम्हें नही करना था तो तुम मना भी कर सकती थी। हाँ मानता हूं कि गलती मेरी है। लेकिन तुमने भी पूरे कॉलेज के सामने मेरी इन्सल्ट करके अच्छा नही किया। ...... और हां मैंने सिर्फ वेट की वजह से तुम्हें अपने हाथ पर किस करने को कहा। वरना मुझे तुम जैंसी लड़की मैं कोई इंटरेस्ट नही है।...... और वैंसे भी मुझे पता है कि तुम्हे लड़कों मे इंट्रेस्ट नही है। इतने में पंखुडी वहां आकर आवेश का हाथ खींचते हुए कहती है"- छोड़ो उसका हाथ।" आवेश एक नजर पंखुडी को देखता है और फिर वहां से चला जाता है। जिया आवेश को बस देखती ही रह जाती है। आवेश के गुस्से को देखकर जिया को भी एहसास होता है कि शायद उसने कुछ ज्यादा ही ओवर रिएक्ट कर दिया।......तभी उसे आवेश की कही लास्ट बात याद आती है कि मुझे पता है कि तुम्हे लड़कों मे इंट्रेस्ट नही है। ये याद करते हुए जिया अपने मन ही मन मे सोचती है-"इसने ऐंसा क्यों कहा। कि मुझे लड़कों मे इंट्रेस्ट नही है।" दूसरी ओर विशेष अभी भी मासूम सा चेहरा बनाकर आरसी के सामने अपने होंठों पर उंगली रखे खड़ा था। वो अपने सामने गुस्से में खड़ी आरसी को देखते हुए मन ही मन मे कहता है"- जहां पर नही खुलना चाहिए मेरा मुँह वहीं पर खुलता है। अब पता नही ये चन्डालिका मेरे साथ क्या करेगी। हे भगवान जी प्लीज् मुझे इसके प्रकोप से बचा ले। अगर आज तूने मुझे इसके प्रकोप से बचा लिया तो मैं तुम्हारे मंदिर में एक किलो.... नही नही आधा......... आधा भी ज्यादा ही हो जाएगा वैंसे भी वो तो पंडित जी ही खाएंगे। ..... दो लड्डू..... हाँ दो बहुत हैं। भगवान जी आपके मंदिर में दो लड्डू चढ़ाऊंगा। प्लीज् मुझे बचा लो। भगवान जी कहीं तुम्हे ऐंसा तो नही लग रहा कि मैं सिर्फ दो ही लड्डू चढ़ा रहा हूँ। तो पहले ही बता दूं मैं अच्छे वाले लड्डू चड़ाऊंगा।" इतने में आरसी गुस्से में कहती है"-अगर तुम्हें यहां काम करना है तो ठीक से करो। वरना...........। अभी आरसी ने इतना ही कहा था कि विशेष अपने मन मे आगे कहता है"- शायद भगवानजी नाराज हो गए। मुझे एक पाव लडडू चढ़ाने को कहना चाहिए था। तभी उसकी नजर सामने से आते हुए प्रभाकर जी पर पड़ती है। प्रभाकर जी को देखते ही विशेष के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है और वो झट से प्रभाकर जी के पास जाते हुए कहता है"- दादाजी खुल गई आपकी " "हाँ बेटा...."- प्रभाकर जी मुस्कराते हुए कहते हैं दूसरी ओर आरसी विशेष के ऐंसे चले जाने पर अपने गुस्से को अंदर ही अंदर पी जाती है। क्योंकि वो दादाजी के सामने विशेष को कुछ नही कहना चाहती थी। विशेष प्रभाकर जी को दूसरी ओर ले जाते हुए एक राहत की सांस लेकर अपने मन ही मन मे कहता है"- थैंक यू भगवान जी ...... आपने मुझे बचा लिया। कुछ देर बाद विशेष प्रभाकर जी के कमरे मे बैठा उनके पैरों की मालिस कर रहा था। तभी कमरे के दरवाजे पर एक दस्तक होती है। और साथ मे एक औरत की आवाज भी आती है-" चाचा जी" ये आवाज सुनते ही प्रभाकर जी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। ये देख विशेष समझ जाता है कि प्रभाकर जी इस आवाज को अच्छे से पहचानते हैं। प्रभाकर जी बिस्तर पर बैठते हुए कहते हैं"-अरे सुहानी बेटा आओ अंदर आओ"। ये सुन एक 46,47 साल की औरत कमरे मे आती है। कमरे मे आते ही वो औरत प्रभाकर जी के पास आते हुए कहती है-"चाचा जी अब आपकी तबियत कैंसी है।" " पहले से अब थोड़ा बेहतर है" -प्रभाकर जी बोले। इतने मे सुहानी की नजर विशेष पर पड़ती है। "ये लड़का कौन है चाचा जी"-विशेष को देखते ही स्वेता बोली। " बेटा ये मेरा केयर टेकर है"-प्रभाकर जी विशेष की ओर इशारा करते हुए बोले। "ये ठीक किया आपने जो अपने लिए केयर टेकर रख दिया। इस समय आपको केयर टेकर की जरूरत है"इतना कहकर सुहानी विशेष की ओर देखते हुए आगे कहती है-" बेटा नाम क्या है तुम्हारा" "विशेष"- विशेष ने धीरे से कहा। " विशेष" विशेष नाम सुनते कर सुहानी के चेहरे की मुस्कराहट अचानक से गायब हो जाती है। और उसके चेहरे पर मायूसी के भाव आ जाते हैं। उसके आँखों मे हल्की सी नमी भी उतर आई थी लेकिन वो उसे आँखों मे ही कैद कर देती है। साथ ही उसके कानों मे अतीत की कुछ बातें गूँजने लगती है। "डॉक्टर ने तुम्हारी डिलेवरी की डेट दो दिन बाद की दी है। .......मैं तुम्हे बता नही सकती सुहानी कि तुम्हारे बेबी को गोद मे पकड़ने के लिए मैं कितनी एक्शाइट हूँ।............मैने तो तुम्हारे बेबी का नाम भी सोच लिया। तुम्हे पता है मैं उसका नाम क्या रखूँगी....विशेष मैं उसका नाम विशेष रखूँगी। कैंसा लगा तुम्हे ये नाम।" " नाम तो बहुत अच्छा है लेकिन ये तो लड़के का नाम है अगर लड़की हुई तो" "नही नही.....मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा लड़का की हो।" "आंटी जी.....आंटी जी"- सुहानी को अपने मे ही खोया देख विशेष ने कहा। ये सुन सुहानी होश मे आते हुए हड़बड़ाकर अचानक से कहती है-" हां....।" विशेष "आंटी जी कहाँ आप कहाँ खो गये थे" "नही नही....कहीं नही.......वैंसे तुम्हारा नाम बड़ा ही प्यारा है। किसने रखा तुम्हारा नाम विशेष"सुहानी ने पूछा। ये सुन विशेष थोड़ा मायूस हो जाता है। लेकिन इससे पहले कि वो कुछ कहता सुहानी खुद ही अपने सवाल का जवाब देते हुए आगे कहती है-" मैं भी ये क्या पूछ रही हूँ। तुम्हारे मम्मी पापा ने ही तो तुम्हारा नाम रखा होगा।............. और तुम्हारे अलावा घर मे कौन कौन हैं।" "मेरे दो छोटे भाई बहन"-विशेष बोला। सुहानी आगे बोली -" और मम्मी पापा" विशेष -"वो अब इस दुनिया मे नही हैं।" ये सुन सुहानी झेपते हुए कहती है-"सॉरी बेटा मुझे पता नही था। " ये सुन विशेष एक फीकी सी हंसी हँस देता है। कुछ देर बाद सुहानी वहां से चली जाती है। सुहानी के जाते ही विशेष प्रभाकर जी से पूछता है-"दादाजी ये आंटी जी कौन थीं।" "वो जो लड़का सुबह आया था आवेश ये उसकी मां है। हमारे घर के ठीक सामने रोड के दूसरी ओर जो घर है वो इनका ही है। बहुत ही अच्छी है। मेरे बेटा और बहु के गुजर जाने के बाद इसने ही आरसी का ध्यान रखा। उसे अपनी बेटी की तरह पाला। और उसे कभी मां की कमी महसूस नही होने दी। अपनों से भी बढ़कर है सुहानी हमारे लिए"- प्रभाकर जी बोले। ★★क्रमशः★★