क्या होगा जब आप सब किसी ट्रिप पर निकले हैं अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने के लिए और वहां पर आप सभी के साथ हो जाए कुछ ऐसा जो आपने कभी सोचा नहीं? मनाली की जो खूबसूरत वादियां और बर्फ से ढके पहाड़, जंगल अपनी खुबसूरती के लिए जाने जाते हैं क्या हो अगर वही सब... क्या होगा जब आप सब किसी ट्रिप पर निकले हैं अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने के लिए और वहां पर आप सभी के साथ हो जाए कुछ ऐसा जो आपने कभी सोचा नहीं? मनाली की जो खूबसूरत वादियां और बर्फ से ढके पहाड़, जंगल अपनी खुबसूरती के लिए जाने जाते हैं क्या हो अगर वही सब आपका सबसे बुरा और डरावना सपना बन जाए? तो आइए चलते हैं इस सफर पर जहां पर से वापसी का रास्ता इतना आसान नहीं है... अबीर, श्रेया, विनय, अमर और शिवम 5 नौजवान कॉलेज फ्रेंड्स निकल तो चुके हैं एक साथ इस सफर पर, जिसकी मंजिल तक पहुंचना उन सभी का खूबसूरत हसीन सपना है लेकिन क्या होगा जब वही सपना आपका एक भयानक बुरा सपना बन जाए और आपको सामना करना पड़े कुछ ऐसी अनजान मुसीबतों का जिनके बारे में आज तक सिर्फ किस्से और कहानियां में ही सुना था! तो क्या करेंगे यह पांचों क्या उस मुसीबत का सामना करके उसमें से सही सलामत बाहर निकल पाएंगे यार फिर उस में ही उलझ कर कहीं खो जाएंगे? जानने के लिए आइए चलते हैं हमारा साथ मिलकर इस खूबसूरत से मनाली ट्रिप के सफर पर जहां पर सामना होगा खूबसूरत हसीन वादियों जंगलों और सफेद से ढके पहाड़ों के साथ कुछ काली बदसूरत सच्चाई से भी...🤫
अबीर
Hero
विनय
Hero
श्रेया
Heroine
अमर
Side Hero
शिवम
Villain
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"हम जो चलने लगे हैं, तो चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिल से बेहतर लगने लगे हैं ये रास्ते....."
आओ खो जाएँ हम
हो जाएँ हम यूँ लापता
आओ मिलकर चलें
जाना कहाँ न हो पता
बैठे-बैठे ऐसे कैसे कोई रास्ता नया सा मिले?
तू भी चले, मैं भी चलूँ,
होंगे कम ये तभी फासले
बैठे-बैठे ऐसे कैसे कोई रास्ता नया सा मिले?
तू भी चले, मैं भी चलूँ,
होंगे कम ये तभी फासले
आओ तेरा मेरा ना हो किसी से वास्ता
आओ मिलकर चलें
जाना कहाँ न हो पता
हम जो चलने लगे हैं, चलने लगे हैं ये रास्ते
हाँ हाँ...
मंजिल से बेहतर लगने लगे हैं ये रास्ते....
कार में फुल वॉल्यूम में बजता हुआ यह गाना, और उसी कार में बैठे पाँच दोस्त। कार अपनी पूरी रफ़्तार से चलती हुई, प्रदेश के सीमा क्षेत्र और सुनसान इलाकों को पार करती हुई, पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश करती है; रोड के बीच में बड़ा सा हरे रंग का बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है - "Welcome to Himachal Pradesh"।
"फ़ाइनली, अब हम हिमाचल प्रदेश में एंटर हो गए, अब यहाँ से और कितनी दूर है मनाली?" - कार की खिड़की से बाहर की तरफ़ झाँक कर देखते हुए श्रेया ने पूछा।
"हाँ, बस अब कुछ ही घंटों में पहुँच जाएँगे।" - ड्राइव करते हुए अमर ने श्रेया की बात का जवाब दिया।
"ओह गॉड! अभी भी कुछ घंटे, इतने घंटों से तो ट्रैवल कर रहे हैं; मुझे आदत नहीं है कार से इतनी देर ट्रैवल करने की..." - श्रेया परेशान होकर मुँह बनाती हुई बोली।
"यार श्रेया, तू तो ऐसे बोल रही है जैसे हम तो रोज़ ही घंटों ट्रैवल करते हैं कार से..." - शिवम ने कहा।
ऐसे ही सब आपस में बातें करते हुए और सफ़र का मज़ा लेते हुए, साथ ही मंज़िल तक पहुँचने का इंतज़ार भी कर रहे थे। सारे दोस्त पहली बार एक साथ किसी ट्रिप पर जा रहे थे, वह भी दिल्ली से इतनी दूर मनाली की ट्रिप पर; सभी एक्साइटेड थे, इसलिए कुछ ना कुछ बातें भी कर रहे थे एक-दूसरे से। लेकिन सब से अलग, आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर एक लड़का बिल्कुल चुपचाप बैठा था, जैसे इन सब बातों से कोई मतलब ही ना हो; बोलना तो दूर, शायद वह इन चारों की बातें सुन भी नहीं रहा था।
उस लड़के की तरफ़ देखकर, श्रेया के बगल में बैठा उसका बॉयफ़्रेंड विनय बोल पड़ा - "यार अबीर, तुझे क्या हुआ है? तू कुछ नहीं बोल रहा, एकदम शांत बैठा है।"
"हाँ, क्या हुआ? किसी ने मेरा नाम लिया?" - उसकी बात सुनकर अबीर इस तरह एकदम अचानक से बोला, जैसे कि किसी गहरी सोच से बाहर निकला हो। उसने शायद ठीक से सुना भी नहीं कि किसने क्या पूछा उससे।
"यार अबीर, जब तेरा मन नहीं था साथ आने का, तो तू मना कर देता, मेरा बर्थडे तो वैसे भी हर साल आता है।" - अबीर का ऐसा रिएक्शन सुनकर विनय मायूसी से बोलता है।
अबीर कुछ बोलता उससे पहले ही अमर बोल पड़ा - "अरे यार विनय, समझा कर, उसकी गर्लफ़्रेंड साथ नहीं आई है, इसलिए मजनू बना बैठा है ग़म में!"
शिवम (हँसते हुए) - "ओह! तो यह बात है।"
उन दोनों की बात सुनकर बाकी सारे भी हँसने लगे, सिर्फ़ अबीर को छोड़कर; वो बस हल्का सा मुस्कुरा दिया।
विनय - "अरे यार, अबीर मैंने तो राधिका को भी इनवाइट किया था, वह क्यों नहीं आई तेरे साथ?"
अबीर - "अरे यार, तुम लोग जानते हो, उसकी फ़ैमिली उसे कभी परमिशन नहीं देगी, ऐसे ट्रिप पर जाने की।"
श्रेया - "ओह, इसीलिए तुम इतना सैड हो; थैंक गॉड मेरी फ़ैमिली ऐसी नहीं है।"
इसी बीच अचानक से कार रुक जाती है, सभी लोग अमर से पूछते हैं - "क्या हुआ अमर? तूने कार क्यों रोक दी?"
शिवम - "प्लीज, अब यह मत बोलना कि कार ख़राब हो गई और अपने आप रुक गई!"
अमर - "अरे नहीं, ख़राब नहीं हुई, मैंने खुद रोकी है।"
श्रेया - "लेकिन क्यों?"
अमर - "क्योंकि मैं यहाँ रोज़ तो आता नहीं हूँ, इसलिए इसके आगे का रास्ता नहीं पता मुझे; विनय बताओ अब कहाँ जाना है?"
विनय - "मनाली पहुँच गए हैं हम, अब बस फ़ॉर्म हाउस भी पहुँचने ही वाले हैं, यहाँ से बस 10-15 मिनट की दूरी पर है। एक काम कर अमर, तू पीछे आजा, यहाँ से आगे मैं ड्राइव करता हूँ।"
श्रेया - "बेबी, मैं भी तुम्हारे साथ आगे बैठूँगी।"
अबीर - "ठीक है श्रेया, तुम यहाँ मेरी सीट पर बैठ जाओ, मैं पीछे बैठ जाऊँगा अमर और शिवम के साथ।"
इतना बोल कर उन सभी ने सीट एक्सचेंज की और विनय को ड्राइव करते हुए अभी 10 मिनट ही हुए थे कि विनय का फ़ॉर्म हाउस आ गया। कार का हॉर्न सुनते ही गार्ड ने मेन गेट खोला और विनय कार ड्राइव कर के अंदर तक ले गया।
उसके बाद एक-एक करके सभी लड़के कार से उतरे और श्रेया भी अंगड़ाई लेती हुई कार से बाहर आई; सभी लोग कार से अपना-अपना सामान निकालने लगे कि तभी फ़ार्महाउस के केयरटेकर दीनू काका भी गार्ड के साथ वहाँ पर आ गए और सभी की सामान उठाने में मदद करने लगे।
और फिर सभी एक साथ फ़ॉर्म हाउस के अंदर आ गए। सामान हॉल में रखवाते हुए दीनू काका ने कहा - "विनय बाबा, जैसा कि आपने कहा था, सभी कमरों की साफ़-सफ़ाई करवा दी है। अब यह बता दीजिए, कितने दिनों तक रुकेंगे आप सभी यहाँ? उसी हिसाब से मैं आप सबका खाने-पीने का इंतज़ाम भी करवा दूँगा।"
विनय - "वैसे तो हम लोग 4-5 दिनों तक रुकेंगे, लेकिन धन्यवाद काका, इतना बहुत है। बाकी सब हम लोग देख लेंगे, आप अपने घर जाएँ, रात होने वाली है।"
दीनू काका - "मेरा घर तो यही पास में, बंगले के पीछे ही है। अच्छा, ठीक है, जैसा आप कहें, मैं चलता हूँ। कोई ज़रूरत लगी तो मुझे बुला लीजिएगा।"
इतना बोल कर दीनू काका वहाँ से चले गए और गार्ड भी वापस मेन गेट पर आ गया। और उनके जाने के बाद बाकी सभी लोग वहीँ हॉल में पड़े सोफ़े पर ही, जहाँ जगह मिली, बैठ गए; श्रेया तो सोफ़े पर लेट ही गई। उसे ऐसे लेटे देख कर विनय भी उसके सिर के पास ही बैठ गया।
सभी अपने इतनी देर के सफ़र की थकान को कम करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अबीर उन सबसे दूर, अलग खिड़कियों के पास जाकर वहाँ से बाहर का नज़ारा देखने लगा।
अबीर के लिए यह सब नया था; यह पहली बार था जब वह दिल्ली से किसी पहाड़ी इलाके में आया था। इतने ख़ूबसूरत और बर्फ़ से ढके ऊँचे-ऊँचे पहाड़, पहाड़ी पेड़-पौधे और बाहर पड़ती हल्की बर्फ़ और ठंड का मौसम, उसने पहली बार ही देखा था। बाहर गिरती हुई बर्फ़ का नज़ारा और हल्की ठंड का मौसम, इन सब को और भी सुहावना बना रहा था।
अबीर का तो जैसे मनाली आने का यह ट्रिप ही सफल हो गया हो; वह इन सब की ख़ूबसूरती में खो सा गया और टकटकी लगाए खिड़की के बाहर ही काफ़ी देर तक नज़ारे का आनंद लेता रहा। उसे तो ख़्याल भी नहीं आता अपने बाकी दोस्तों का, जब तक कि उनमें कोई एक उसे खाना खाने के लिए आवाज़ नहीं लगाता।
"यार अबीर! तुझे भूख नहीं लगी क्या? इधर आकर डिनर तो कर ले हम सब के साथ..." - शिवम ने अबीर को आवाज़ दी।
"हाँ, बस पाँच मिनट में फ़्रेश होकर आया!" - बोल कर अबीर वॉशरूम में चला जाता है और फिर कुछ देर बाद बाहर आकर सब के साथ बैठकर डिनर करने लगा।
अबीर अभी खाना खाकर उठा ही था कि उसका फ़ोन रिंग हुआ, लेकिन रिसीव करने से पहले ही कॉल डिस्कनेक्ट हो गया; उसकी गर्लफ़्रेंड राधिका का कॉल था।
राधिका का कॉल देखकर अबीर थोड़ा परेशान हो गया, क्योंकि राधिका को पता था अबीर सब के साथ मनाली आया हुआ है; इसलिए राधिका ऐसे इतनी रात को कॉल नहीं करती, ज़रूर कोई बात होगी। यह सोचकर ही अबीर ने राधिका को कॉल बैक किया। लेकिन राधिका ने कॉल रिसीव नहीं किया, तो अबीर ने दोबारा से कॉल किया और इस बार कॉल रिसीव हो गया।
"हेलो! राधिका, क्या हुआ? इस वक़्त कॉल किया तुमने, सब ठीक तो है ना?" - राधिका जल्दी खुद से कॉल नहीं करती थी, इसीलिए उसकी मिसकॉल देखकर अबीर ने पहले कॉल बैक नहीं किया था।
"नहीं, कुछ नहीं, बस ऐसे ही कॉल किया था, यह पूछने के लिए कि तुम सब पहुँच गए ना ठीक से?" - राधिका अबीर की बात सुनकर उसे सीधा ही सवाल करती है।
"हाँ, पहुँच गए, एक घंटा हो गया यहाँ आए हुए। सॉरी, मैं तुम्हें कॉल करना ही भूल गया!" - राधिका की बात का जवाब देते हुए अबीर उसे कॉल पर बताता है।
"लगता है, बहुत ज़्यादा अच्छा लग रहा है वहाँ पर; इसीलिए तुम इतनी जल्दी भूल गए!" - अबीर के भूल जाने वाली बात सुनकर राधिका उसे ताना मारते हुए कहती है।
"अरे यार राधिका, कैसी बातें कर रही हो? सिर्फ़ कॉल करना भूल गया था तुम्हें, नहीं, वैसे तुम भी यहाँ होती तो ज़्यादा अच्छा होता।" - अबीर उसकी बात पर कवर-अप करते हुए काफ़ी प्यार से बोलता है।
"मैं भला कैसे आ सकती थी? यार अबीर, तुम तो जानते हो ना सब कुछ!" - राधिका जैसे अभी कुछ याद दिलाते हुए थोड़ी मायूसी से बोलती है।
"हाँ, पता है, इसीलिए तो ज़्यादा फ़ोर्स नहीं किया तुम्हें साथ आने के लिए।" - अबीर भी उसकी बात समझते हुए बोलता है।
"क्या.... क्या कह रहे हो अबीर! ठीक से आवाज़ नहीं आ रही तुम्हारी?" - राधिका की आवाज़ काफ़ी कट कर आने लगती है।
"हाँ, शायद यहाँ पर नेटवर्क इशू भी है; टेक्स्ट मैसेज कर देना तुम राधिका, अगर कोई बात हो तो, बाकी जब नेटवर्क होगा तो मैं खुद कॉल कर लूँगा, बाय!" - अबीर कॉल डिस्कनेक्ट करते हुए बोलता है।
"ओके बाय! टेक केयर एंड एन्जॉय योरसेल्फ़...." - राधिका की एकदम धीमी सी आवाज़ अबीर के कानों में पड़ती है और कॉल डिस्कनेक्ट हो जाता है।
क्रमशः
"क्या.... क्या कह रहे हो अबीर! ठीक से आवाज़ नहीं आ रही तुम्हारी?" - राधिका की आवाज़ काफ़ी कट कर आने लगती है।
"हाँ, शायद यहाँ पर नेटवर्क इशू भी है; टेक्स्ट मैसेज कर देना तुम राधिका, अगर कोई बात हो तो, बाकी जब नेटवर्क होगा तो मैं खुद कॉल कर लूँगा, बाय!" - अबीर कॉल डिस्कनेक्ट करते हुए बोलता है।
"ओके बाय! टेक केयर एंड एन्जॉय योरसेल्फ़...." - राधिका की एकदम धीमी सी आवाज़ अबीर के कानों में पड़ती है और कॉल डिस्कनेक्ट हो जाता है।
अबीर परेशान सा अपने फोन की तरफ देखने लगा...
"क्या यार अबीर, इतनी ख़ूबसूरत जगह पर आकर भी तो अभी भी कॉल पर ही लगा हुआ है।" - अमर ने अबीर के कंधे पर पीछे से हाथ रखते हुए कहा।
"अरे नहीं यार, राधिका का कॉल था, उसे बस फ़िक्र हो रही थी हम सब की, कि हम सब ठीक से पहुँच गए या नहीं, बस वही बता रहा था। बाकी यहाँ पर तो नेटवर्क इशू भी है, ठीक से बात नहीं हो पाई।" - अबीर ने सफ़ाई देते हुए कहा।
"कोई बात नहीं यार, कल जब यहाँ से बाहर कहीं घूमने जाएँगे, तो वहाँ शायद नेटवर्क आ जाए, तब बात कर लेना तुम राधिका से जी भर के।" - अमर ने उसे छेड़ते हुए कहा।
"तुम लोग भी ना यार, वैसे ये विनय कहाँ गया?" - अबीर ने इधर-उधर देखते हुए पूछा।
"वह भी तेरी तरह गर्लफ़्रेंड के साथ ही बिज़ी है, हम दोस्तों के लिए वक़्त कहाँ, तुम लोगों के पास।" - शिवम हँसता हुआ बोला।
"वैसे तुझे क्या काम है विनय से?" - अमर ने पूछा।
"कुछ नहीं, बस मेरा रूम कौन सा है, वह पूछना था।" - अबीर ने कहा।
"इतने सारे रूम हैं, कोई सा भी ले ले यार, जो भी पसंद हो तुझे।" - शिवम ने कहा।
"ठीक है, मैं वह लास्ट वाले रूम में सो जाता हूँ, मुझे बहुत तेज नींद आ रही है। सुबह मिलते हैं यारों, गुड नाइट।" - इतना बोलकर अबीर कमरे में सोने के लिए चला गया और उसके बाद शिवम और अमर भी अपने-अपने कमरों में चले गए।
विनय श्रेया को उसके कमरे में छोड़कर वापस आने लगा कि तभी श्रेया ने विनय से कहा - "तुम भी यहीं रुक जाओ ना बेबी, मुझे अकेले डर लग रहा है, नई जगह है ना इसलिए।"
"अच्छा जी, सच में डर लग रहा है या फिर मुझे रोकने का कोई बहाना है?" - विनय श्रेया को छेड़ते हुए बोला।
"तुम बहुत शैतान हो गए हो विनय, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है, तुम चुपचाप से काउच पर सो जाना।" - बोलकर श्रेया हँसने लगी।
"अच्छा जी, फिर उससे तो अच्छा है मैं अपने रूम में ही जाकर सो जाऊँ।" - विनय मुँह बनाते हुए बोला।
"मुझे तो नींद नहीं आ रही और अकेले तो और भी ज़्यादा नींद नहीं आएगी, डर भी लगेगा, बस इसलिए तुम्हें रुकने बोला।" - श्रेया बोली।
"मैं तो बस मज़ाक कर रहा था बेबी, मुझे भी कहाँ नींद आएगी? इतना अच्छा मौसम और तुम्हें छोड़कर भला मैं कैसे सो सकता हूँ?" - विनय श्रेया के करीब आता हुआ बोला।
विनय को अपनी तरफ़ आता देख श्रेया पीछे सरकने लगी, लेकिन विनय उसकी तरफ़ बढ़ता गया और फिर पीछे दीवार आने की वजह से श्रेया वहीं रुक गई, लेकिन विनय उसकी ओर करीब आता गया। विनय का चेहरा अपने चेहरे के एकदम सामने देखकर श्रेया ने अपनी दोनों आँखें कसकर बंद कर ली और फिर विनय ने उसके माथे पर किस किया। तो श्रेया ने धीरे से अपनी आँखें खोली और विनय के गाल पर किस कर दिया।
उसके बाद दोनों बेड पर बैठकर काफ़ी देर तक बातें करते रहे और बातें करते-करते उन्हें पता ही नहीं चला कब उनकी आँख लग गई और श्रेया विनय के कंधे पर अपना सर रखकर सो गई।
उसके बाद अगली सुबह...
श्रेया अपने कमरे से निकलकर कॉफ़ी बनाने के लिए किचन में आई तो उसने वहाँ दरवाज़े के पास ज़मीन में किसी आदमी को पेट के बल गिरा पड़ा हुआ देखा; उसे देखकर श्रेया बहुत ज़ोर से चीख निकल गई।
श्रेया की आवाज़ सुनकर विनय, अमर और शिवम तीनों अपने-अपने कमरों से बाहर निकलकर दौड़ते हुए श्रेया के पास आए और उससे पूछने लगे कि क्या हुआ श्रेया? तुम इतनी ज़ोर से चीखी क्यों?
"लगता है कोई कॉकरोच या छिपकली देख लिया।" - विनय ने हँसते हुए श्रेया को पीछे से हग करते हुए कहा।
"अरे नहीं, वह..... वह उधर देखो, वह कौन है?" - श्रेया ने उँगली से इशारा करते हुए उन तीनों को भी वह दिखाया।
तीनों लड़कों ने एक साथ उस तरफ़ देखा और बोले - "यह कौन है और यहाँ कैसे आया?"
जैसे ही उन्होंने उस आदमी को पलटा, वे सब हैरान रह गए।
"हे भगवान! अबीर, क्या हुआ? यह यहाँ कैसे आया?" - श्रेया ने सामने गिरे आदमी के चेहरे की ओर देखते हुए बाकी सब से सवाल किया।
फर्श पर बेहोश पड़ा आदमी कोई और नहीं, बल्कि उनका दोस्त अबीर था।
"मेन गेट खुला हुआ है। शायद वह रात को बाहर गया होगा!" विनय ने दरवाजे की ओर देखते हुए अबीर के बारे में अपना अनुमान लगाते हुए कहा।
"नहीं, हम दोनों ने उसे रात को अपने कमरे में सोते हुए देखा था, क्या अमर?" शिवम ने अमर की ओर देखते हुए पुष्टि करते हुए कहा।
अमर ने उसकी बात पर सिर हिलाया और उसी तरह, उलझन में अबीर की ओर देखता रहा।
"लेकिन वह बेहोश कैसे हुआ?" श्रेया ने फिर पूछा।
"पता नहीं, बेबी। वह तो होश में आने के बाद ही बता पाएगा। अमर, जल्दी से पानी ला, यार!" विनय ने पानी मंगाने के लिए थोड़ा चिल्लाते हुए कहा।
अमर जल्दी से पानी लेकर आया और अबीर के चेहरे पर छिड़कने लगा। अबीर को हल्का-हल्का होश आ रहा था, लेकिन वह पूरी तरह से होश में नहीं आया था।
फिर तीनों लड़के उसे उठाकर उसके कमरे में ले गए और बिस्तर पर लिटा दिया। उसके बाद उसे पानी पिलाया और शिवम ने उससे पूछा, "क्या हुआ था, अबीर?"
"पता नहीं, मुझे कुछ भी याद नहीं..." अबीर ने उठकर बैठने की कोशिश करते हुए कहा।
"तूने ड्रिंक की हुई है, अबीर, वह भी बहुत ज्यादा।" अमर ने उससे कहा।
"हाँ, स्मेल भी आ रही है!" श्रेया ने अपनी नाक पर हाथ रखते हुए कहा।
"मैं कसम खाता हूँ, यार, मैंने शराब तो क्या, बियर तक नहीं पी कल रात को। मुझे अच्छी तरह से याद है!" अबीर ने उन सब से कहा।
"तो फिर तू वहाँ गेट के पास कैसे पहुँचा और बेहोश कैसे हो गया?" शिवम ने उससे पूछा।
"मैंने कहा ना, मुझे कुछ भी याद नहीं। कल रात का आखिरी मुझे बस इतना याद है कि शिवम और अमर को गुड नाईट बोलकर मैं इसी कमरे में आकर सो गया था और थके होने की वजह से मुझे बहुत जल्दी नींद आ गई थी। उसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं..." अबीर ने एक साँस में सब कुछ बोल दिया।
"ज्यादातर तो ड्रिंक करने की वजह से ही ऐसा होता है कि कुछ याद ना रहे सुबह। मुझे भी एक-दो बार ऐसा हैंगओवर हुआ है ज्यादा ड्रिंक करने की वजह से।" श्रेया ने कहा, तो विनय उसकी ओर घूरने लगा।
"श्रेया, तुम अपने लिए कॉफी बनाने जा रही थी ना, जाओ जाकर सबके लिए कॉफी बना लो!" विनय ने श्रेया को कमरे से हटाने के लिए कहा क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वह अपनी बेवकूफी भरी बातें उन तीनों के बीच करे।
"श्रेया, प्लीज, मेरे लिए एक स्ट्रांग कॉफी बना देना। मेरे सर में बहुत तेज दर्द हो रहा है!" अबीर ने रूम से बाहर जाती हुई श्रेया से कहा।
"ओके, बना दूंगी!" बोलकर श्रेया वहाँ से निकलकर किचन में आ गई।
"चल अब साफ-साफ बता दे, अबीर!" श्रेया के वहाँ से निकलते ही अमर ने फिर पूछा।
"लेकिन क्या बता दूँ मैं?" अबीर ने उसके इस तरह से पूछने पर थोड़ा झुँझलाते हुए कहा।
"यही कि तूने ड्रिंक क्यों इतनी ज्यादा की? राधिका की याद आ रही थी या फिर कोई और प्रॉब्लम है?" शिवम ने एक शरारत भरी मुस्कान से अबीर की ओर देखते हुए पूछा।
"अब तो श्रेया भी यहाँ नहीं है। यू कैन शेयर विद अस, तू हमें बता सकता है यार!" विनय ने कहा क्योंकि उसे भी ऐसा लग रहा था कि श्रेया के वहाँ पर होने की वजह से अबीर उनसे कोई बात छुपा रहा है।
"लेकिन मैं क्या बताऊँ? जब मुझे कुछ याद ही नहीं। मैं सच बोल रहा हूँ, तुम सब मेरा यकीन क्यों नहीं करते?" इस बार अबीर झल्लाकर बोला।
"अच्छा ठीक है, मान लेते हैं तेरी बात। लेकिन फिर भी यह सवाल है कि तू अपने कमरे से बाहर वहाँ मेन गेट के पास बेहोश कैसे मिला?" अमर ने अबीर को शांत करवाते हुए थोड़ा सोचते हुए कहा।
"वही तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा यार, और मुझे कुछ याद भी नहीं आ रहा!" अबीर ने दिमाग पर ज़ोर डालकर सोचने की कोशिश करते हुए कहा जिससे उसके सर का दर्द और ज़्यादा बढ़ गया और वह चिल्लाकर वापस वहीं पर बैठ गया।
उसकी ऐसी हालत देखकर उसके दोस्त समझ गए कि वह शायद सच बोल रहा है कि उसे कुछ भी याद नहीं और उसे ज़्यादा परेशान नहीं करना चाहिए इस वक्त।
इस बात को समझते हुए विनय ने कहा, "ठीक है यार, तू रेस्ट कर। इस बारे में हम बाद में बात करते हैं।"
और अबीर को कमरे में अकेला छोड़कर बाकी दोनों लड़के वहाँ से बाहर आ गए।
थोड़ी देर बाद श्रेया उसके रूम में ही उसे कॉफी दे आई और फिर बाहर आकर विनय और बाकी दोस्तों के साथ हॉल में बैठकर कॉफी पीने लगी।
वे चारों आपस में बात करने लगे।
श्रेया (कॉफी पीते हुए): "आखिर क्या हुआ है अबीर को?"
अमर (थोड़ा सा सोचते हुए): "वो रास्ते से ही कुछ खोया हुआ सा लग रहा था।"
शिवम (मायूस होते हुए): "और यहाँ आने के बाद अभी एक दिन भी नहीं हुआ और यह सब..."
विनय (मुँह बनाकर): "इससे अच्छा तो होता कि मैं दिल्ली में ही अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर लेता।"
श्रेया: "तुम अपना मूड क्यों खराब कर रहे हो, बेबी? ठीक है अबीर अब।"
अमर: "उसने ज़्यादा ड्रिंक ही कर लिया होगा, इसलिए अब उसे याद नहीं कुछ।"
(अमर को तो यही लग रहा था कि उसने ज़्यादा ड्रिंक कर ली होगी, इसलिए वह बार-बार इस बात पर ज़ोर दे रहा था क्योंकि वे सब अपने साथ बियर और व्हिस्की की बोतल भी लेकर आए थे, विनय का बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए।)
विनय: "हाँ, हो सकता है।"
शिवम: "वैसे आज का क्या प्लान था?"
विनय: "था मतलब, अभी भी है। आज का प्लान ऑन।"
श्रेया (खुश होते हुए): "रियली? वाओ! मैं रेडी होकर आती हूँ!"
विनय: "और नहीं तो क्या? सब साथ में घूमना चाहते हैं। अभी बारह ही तो बजे हैं दिन के, पूरा दिन यही घर में थोड़ी ना रहना है।"
अमर: "लेकिन अबीर? उसे ऐसे अकेले तो नहीं छोड़ सकते ना..."
विनय: "उसे भी साथ ले चलेंगे। घूमेगा-फिरेगा तो यह सब जल्दी भूल जाएगा।"
शिवम: "हाँ, यह ठीक रहेगा।"
क्रमशः
उसके बाद सभी लोग अपने-अपने सामान के साथ तैयार होकर हॉल में इकट्ठा हुए और शिवम अबीर को बुलाने गया।
वह देखता है कि अबीर सोया हुआ है। उसे जगाने से पहले वह विनय को भी बुला लाता है और उसे भी दिखाता है। फिर कहता है –
"यार, अबीर तो सोया हुआ है, अब क्या करें?"
"क्या करें क्या? मैंने पहले भी कहा था कि उसे ऐसे अकेला छोड़कर नहीं जा सकते। यह बिल्कुल अनजान जगह है उसके लिए, और अगर फिर से कल रात जैसी कोई घटना हुई तो वह अकेला क्या करेगा?" – विनय ने कहा।
उन दोनों की आवाज सुनकर अबीर खुद ही जाग गया और उठकर बिस्तर पर बैठते हुए बोला –
"क्या हुआ तुम दोनों को? ऐसे दरवाजे पर खड़े होकर क्या बातें कर रहे हो?"
"अरे, अबीर जाग गया तू! अब तेरी तबीयत कैसी है? हम वही पूछने आए थे।" – शिवम ने कहा।
"सिर्फ़ तबीयत ही नहीं, साथ ट्रैकिंग पर ले जाने के लिए भी आए थे। चल अब जल्दी से तैयार हो जा, कुछ नहीं हुआ तुझे।" – विनय बोला।
"क्या ट्रैकिंग? ट्रैकिंग का प्लान कब बना? मुझसे पूछा भी नहीं तुम में से किसी ने। मुझे नहीं लगता मैं जा पाऊँगा। मेरा सिर अभी भी दर्द कर रहा है।" – अबीर ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा।
"बाहर चलेगा घूमने तो सारा सर दर्द ठीक हो जाएगा तेरा। क्यों विनय, तू भी तो यही कह रहा था।" – शिवम ने कहा।
"मैं ज़रूर चलता यार, वैसे भी मैं यहाँ मनाली घूमने-फिरने ही तो आया था। लेकिन अभी सच में मैं नहीं चढ़ पाऊँगा पहाड़ पर। तबीयत ठीक नहीं लग रही। आज रेस्ट कर लूँगा तो कल पक्का चलूँगा। और कल तो तेरा बर्थडे भी है।" – अबीर ने कहा।
"ठीक है, फिर हम लोग भी नहीं जाते। तुझे यहाँ अकेला छोड़कर। कल ही चलेंगे सब साथ में।" – विनय बोला।
"अरे नहीं, अब तुम लोग तैयार हो तो बेकार में मेरी वजह से अपना प्लान क्यों कैंसिल कर रहे हो? एक काम करो, आज तुम चारों चले जाओ। कल फिर मैं भी चलूँगा साथ।" – अबीर ने उन सब को कहा।
"लेकिन यार, तू यहाँ ऐसे अकेला, और तेरी तबीयत भी नहीं ठीक है।" – शिवम बोला।
"मैं ठीक हूँ यार, बस थोड़ा रेस्ट करूँगा तो और बेहतर महसूस करूँगा पहले से। तुम लोग मेरी फ़िक्र मत करो, जाओ और इन्जॉय करो।" – अबीर ने उन सब को मनाते हुए कहा।
"पक्का तू ठीक है ना?" – विनय ने दोबारा पूछा।
"हाँ, मैं ठीक हूँ यार। जाओ तुम लोग, मैं अपना ध्यान रखूँगा और तुम लोग भी ध्यान से जाना ट्रैकिंग पर।" – अबीर ने कहा।
"अच्छा, ठीक है। हम सभी चलते हैं।" – दरवाजे से बाहर निकलते हुए अमर ने कहा।
तभी अबीर ने चिल्लाकर उनसे पूछा –
"वापस कब तक आओगे तुम लोग?"
"रात हो जाएगी लौटने में, क्योंकि पूरा पहाड़ चढ़कर फिर वापस भी उतरना होता है।" – विनय ने कहा।
"अच्छा, ठीक है। गुड बाय, टेक केयर। यू ऑल एंजॉय।" – अबीर ने उन सब से कहा। और फिर वह सभी कार में बैठकर वहाँ से चले गए और अबीर घर में अकेला रह गया।
घर के अंदर आकर उसने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया और किचन में जाकर कुछ खाने के लिए ढूँढने लगा। उसके सर में अभी भी दर्द हो रहा था, लेकिन अब पहले से कम था। फिर भी उसने सोचा कि वह अपने लिए एक और कॉफ़ी बना लेता है।
उसे कुछ कुकीज़ मिल गईं और फिर अपने रूम में जाकर कॉफ़ी के साथ कुकीज़ खाने लगा। अबीर के कमरे की खिड़की से गार्डन के पीछे का हिस्सा दिखाई देता था। कॉफ़ी पीते-पीते अबीर की नज़र गार्डन में टहल रही एक लड़की पर पड़ी। उसे पहले तो लगा कि यह उसका वहम है, लेकिन फिर काफ़ी देर तक जब वह लड़की वहीं पर चलती हुई उसे दिखाई दी तो वह समझ गया कि वहाँ असल में कोई लड़की है। यह उसका वहम नहीं है।
लेकिन अगर यह सच है तो वह लड़की कौन है? और इस वक़्त यहाँ गार्डन में क्या कर रही है? – अबीर अपने मन में यह सब सोचता हुआ अपने कमरे से बाहर आया और पीछे गार्डन की तरफ़ जाने लगा।
अब यह तो उस लड़की से पूछने के बाद ही पता चलेगा कि वह कौन है? और यहाँ क्या कर रही है? – यह सोचकर ही वह उस लड़की के एकदम पास पहुँच गया और उससे बोला –
"हेलो मिस! आप कौन? यहाँ क्या कर रही हैं?"
ऊपर से नीचे तक अबीर को देखने के बाद उस लड़की ने बोला –
"यह तो मैं आपसे भी पूछ सकती हूँ कि आप कौन और यहाँ क्या कर रहे हैं? मिस्टर!"
"मैं...वो...लेकिन पहले मैंने पूछा है तो पहले आप बताइए!" – अबीर ने कहा।
"मैं तो यहाँ काम करती हूँ, मेरा मतलब है अपने बाबा की काम करने में मदद करती हूँ। मेरा नाम खुशी और वह है मेरे बाबा।" – उस लड़की ने दूर खड़े दीनू काका की तरफ़ उंगली से इशारा करते हुए कहा।
"अच्छा, तो तुम दीनू काका की बेटी हो। उनसे तो मैं कल ही मिल चुका हूँ, जब मैं यहाँ आया था!" – अबीर ने कहा।
"अच्छा, तो आप हैं विनय बाबू, इस फ़ार्म हाउस के मालिक। लेकिन आप यहाँ अकेले? इतने दिनों के बाद कोई काम था क्या यहाँ पर?" – खुशी ने कहा।
"अरे नहीं, आप गलत समझ रही हैं; मैं विनय नहीं, मैं तो उनका दोस्त अबीर हूँ। विनय तो बाकी दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर गया है।" – अबीर ने कहा।
"और आप क्यों नहीं गए? उन सब के साथ? आपको पहाड़ पसंद नहीं है क्या?" – खुशी ने अबीर की तरफ़ देखते हुए उससे पूछा।
"नहीं, ऐसी बात नहीं है। मुझे तो यह पहाड़, पेड़, बर्फ़ और घाटियाँ सब कुछ बहुत ही ज़्यादा पसंद है। जब से मैंने यह सब देखा है, मेरा तो वापस जाने का ही मन नहीं है।" – अबीर चारों तरफ़ का सुंदर नज़ारा देखते हुए कहा।
"तो फिर आप क्यों नहीं गए उन सब के साथ?" – खुशी ने फिर से पूछा।
"मेरी तबीयत ठीक नहीं थी आज, बस इसलिए। और शायद किस्मत में आपसे मिलना भी लिखा था।" – अबीर मुस्कुराता हुआ बोला।
"शाम हो गई। अब मैं घर जाती हूँ, नहीं तो माँ मुझे ढूँढने लगेगी।" – खुशी ने कहा।
"तुम्हारा घर तो पास में ही है। तुम्हारे बाबा ने बताया था कल। और थोड़ी देर रुक जाओ, कोई साथ होता है तो समय जल्दी बीत जाता है। नहीं तो मैं अकेले बोर हो जाऊँगा जब तक मेरे दोस्त वापस आते हैं।" – अबीर ने कहा।
"ठीक है, मैं थोड़ी देर बाद वापस आती हूँ। अभी जाना ज़रूरी है।" – इतना बोलकर खुशी वहाँ से चली गई।
इतना ज़्यादा और कोई बहाना भी नहीं मिला अबीर को उसे रोकने का। लेकिन अबीर को पता नहीं क्यों; उस अनजान लड़की का साथ अच्छा लग रहा था। लेकिन वह उसकी वापस आने का इंतज़ार ही कर सकता था, बस। कि वह बोलकर गई है शायद वापस आ जाए।
जब तक अबीर ने सोचा कि वह राधिका को कॉल कर ले, उसने अपने पॉकेट में मोबाइल चेक किया तो उसे याद आया कि मोबाइल तो रूम में ही है। यह सोचकर वह गार्डन से वापस रूम की तरफ़ भागा। और रूम में जाकर उसने अपना मोबाइल फ़ोन ढूँढा, लेकिन उसे अपना मोबाइल नहीं मिला। रूम के बाद उसने पूरे घर में अपना मोबाइल ढूँढा, लेकिन उसे अपना मोबाइल फ़ोन कहीं नहीं मिला। उसे याद भी नहीं आ रहा था कि उसने कहाँ रख दिया।
उसे बस इतना याद था कि आखिरी बार रात को उसने राधिका से भी बात की थी और उसके बाद से मोबाइल में नेटवर्क ही नहीं आ रहा था, इसलिए उसने मोबाइल का कोई यूज़ ही नहीं किया। और आज सुबह से तो इतना कुछ हो गया था उसके साथ कि इन सब में उसे मोबाइल का ध्यान ही नहीं रहा।
क्रमशः
4
जब तक अबीर ने सोचा कि वह राधिका को कॉल कर ले, उसने अपने पॉकेट में मोबाइल चेक किया तो उसे याद आया मोबाइल तो रूम में ही है। यह सोचकर वह गार्डन से वापस रूम की तरफ भागा और रूम में जाकर उसने अपना मोबाइल फोन ढूंढा लेकिन उसे अपना मोबाइल नहीं मिला। रूम के बाद उसने पूरे घर में अपना मोबाइल ढूंढा लेकिन उसे अपना मोबाइल फोन कहीं नहीं मिला। उसे याद भी नहीं आ रहा था कि उसने कहां रख दिया।
उसे बस इतना याद था कि आखरी बार रात को उसने राधिका से बात की थी और उसके बाद से मोबाइल में नेटवर्क ही नहीं आ रहा था, इसलिए उसने मोबाइल का कोई यूज़ ही नहीं किया और आज सुबह से तो इतना कुछ हो गया था उसके साथ कि इन सब में उसे मोबाइल का ध्यान ही नहीं रहा।
अबीर ने अपना मोबाइल फोन बहुत ढूंढा, लेकिन उसे मोबाइल फोन कहीं नहीं मिला तो आखिरकार अबीर थक हार कर वहीं अपने बिस्तर पर बैठ जाता है...
और फिर से खिड़की के बाहर के हसीन और खूबसूरत नजारों में खो जाता है। यह पेड़, पहाड़, बर्फ और घाटियां न जाने क्यों अबीर को अपनी तरफ इतना ज्यादा आकर्षित कर रहे थे, शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि अबीर ऐसी जगह पर पहली बार आया था। कम से कम उसे तो यही लग रहा था।
लेकिन अभी भी उसके दिमाग में कहीं ना कहीं राधिका का ख्याल था, और वह उसे कॉल करने के बारे में ही सोच रहा था; तभी अचानक उसे याद आया कि वहां पर हॉल में एक लैंडलाइन फोन भी है जो कि उसने कल रात को देखा था।
मन में यह सोच कर अबीर भागकर हॉल में आया और लैंडलाइन फोन से राधिका का नंबर डायल करने लगा। किस्मत से वह फोन काम कर रहा था और राधिका को कॉल भी लग गया लेकिन अबीर की किस्मत इतनी भी अच्छी नहीं थी, राधिका ने कॉल रिसीव ही नहीं किया।
अबीर ने दोबारा कॉल नहीं किया, क्योंकि ऐसा अक्सर होता था, राधिका सिर्फ अकेले में ही अबीर का कॉल रिसीव करती थी, इसलिए अबीर समझ गया और दोबारा उसने काॅल नहीं की।
अब अबीर को थोड़ी भूख भी लग रही थी, उसे याद आया कि उसने तो सुबह से 2 बार कॉफी और कुछ बिस्किट के अलावा कुछ खाया ही नहीं है और शाम ढल चुकी है, रात होने को आई। अब वह इंसान है तो भूख तो लगेगी ही ना।
यह सोचकर ही वह किचन की तरफ जाने लगा कुछ खाने की खोज में, तभी उसे मैगी के कुछ पैकेट दिखे तो उसे कुछ राहत मिली और उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया, फिर उसने गैस पर पानी उबलने को रख दिया और पैकेट खोल कर नूडल्स उसमें डालने ही वाला था कि तभी डोर बेल बजी।
अबीर ने सोचा कि शायद उसके दोस्त लौट आए हैं, यह सोचकर वह जल्दी से भाग कर दरवाजे पर पहुंचा लेकिन दरवाजे पर उसके दोस्त नहीं, बल्कि खुशी खड़ी थी!
खुशी को देखकर वह मन ही मन खुश तो हुआ लेकिन अपने दोस्तों को वहां ना देख कर उसके चेहरे पर थोड़ी निराशा के भाव भी आ गए।
खुशी को देखकर वह उसी तरह के मिले-जुले भाव में बोला - "ओह! तुम हो, अंदर आओ, मुझे लगा कि मेरे दोस्त वापस आ गए।"
खुशी उसकी आवाज से समझ गई कि वह अपने दोस्तों के इंतजार में था और उसे देखकर खुश नहीं, इस बात को समझ कर वह अबीर से बोली - "तो क्या मैं तुम्हारी दोस्त नहीं हूं, मुझे नहीं आना चाहिए था क्या?"
"अरे नहीं, वह बात नहीं, मुझे बस तुम्हारे वापस आने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए तुम्हें दरवाजे पर देख कर थोड़ा हैरान हो गया क्योंकि मैंने सोचा कि मेरे दोस्त होंगे?"
"क्यों उम्मीद नहीं थी? मैं तो बोल कर गई थी ना थोड़ी देर में आ जाऊंगी वापस..."
"हां चलो खैर, अच्छा हुआ कोई तो आया, नहीं तो मैं अकेला भटकता रहता, इतने बड़े फार्महाउस में।"
बोलते बोलते ही अबीर किचन की तरफ बढ़ा और अपना नूडल्स बनाने लगा, उसे ऐसा करते देख खुशी भी उसके पीछे किचन तक आई, उससे बोली - "आप यहां किचन में क्या कर रहे हैं?"
"नूडल्स बना रहा था, अपने खाने के लिए, खाओगी तुम भी!"
"नहीं, मैं नहीं खाऊंगी, आप ही खाइए, मैं घर से खाना खा कर आई हूं।"
"कैसी दोस्त हो तुम, अकेले खाना खाई मेरे बारे में सोचा भी नहीं.... मेरे लिए भी ले आती थोड़ा घर का खाना..."
"मुझे क्या पता था, आपको भी भूख लगी होगी!"
"अरे! कैसी बात कर रही हो, मैं भी इंसान हूं, भूख तो लगेगी ना; वैसे भी आज सुबह से कुछ नहीं खाया मैंने और अब डिनर में भी यह नूडल्स खा कर ही काम चलाना पड़ेगा।"
"अच्छा, वह क्यों? मेरा मतलब है सुबह से कुछ भी क्यों नहीं खाया आपने?"
"पता नहीं, क्या हो गया था? भूख ही नहीं लगी सुबह से, बताया तो था तुम्हें कि तबीयत ठीक नहीं थी मेरी, सिर में दर्द था, इसलिए बस दो बार कॉफी ही पी थी और कुछ भी नहीं खाया।"
"अब कैसा है, आपका सिर दर्द?"
"पहले से काफी कम है, लेकिन यह मेरे दोस्त पता नहीं कहां रह गए? उनके बारे में सोच-सोच कर कहीं फिर से ना होने लगे सिर में दर्द!"
"आपके दोस्त, वह लोग तो अब कल सुबह ही लौटेंगे।"
"क्या मतलब है तुम्हारा! कल सुबह तक आएंगे, और यह बात तुम्हें कैसे पता?"
"अरे नहीं, मुझे नहीं पता, मुझे भला कैसे पता होगा? मैं तो उन लोगों से मिली तक नहीं..."
"लेकिन तुमने ही तो अभी-अभी बोला कि वह लोग कल सुबह वापस आएंगे।"
"वो....वो तो बस में नार्मली बोल रही थी, क्योंकि ज्यादातर लोग जो यहां से जाते हैं पहाड़ पर ट्रैकिंग करने, अगले दिन ही वापस आते हैं, इतना समय तो लग ही जाता है पहाड़ पर चढ़कर वापस नीचे उतरने में!"
"ओह अच्छा! उस हिसाब से अंदाजा लगा कर बोल रही थी और वैसे भी तुम तो यही की रहने वाली हूं, इसलिए तुम्हें ज्यादा पता होगा, लेकिन कल सुबह तक मैं क्या करूंगा यहां अकेले, मेरा मोबाइल फोन भी नहीं मिल रहा है कि किसी को कॉल कर लूं। वैसे खुशी तुम अपना मोबाइल फोन दे सकती हो क्या? मुझे 2 मिनट के लिए बस एक कॉल करनी है बहुत ज़रूरी!"
"मैं जरूर दे देती आपको, अगर मेरे पास मोबाइल फोन होता तो।"
"क्या, तुम्हारे पास मोबाइल नहीं है? आजकल के जमाने में, उसकी कोई खास वजह!"
"इतनी ज्यादा कोई जरूरत नहीं है मुझे मोबाइल की और शौक भी नहीं है और ऊपर से यहां नेटवर्क इशू भी है बहुत ज्यादा, बस इसीलिए!"
"हां नेटवर्क इशू तो है यहां पर! थैंक्स टू गॉड, कम से कम यहां पर एक लैंडलाइन फोन तो है, नहीं तो मैं पागल हो जाता!" अबीर खुशी से कहता है कि....
तभी अचानक अबीर को कुछ याद आता है और वह खुशी से कहता है, "तुम बस 2 मिनट रुको मुझे एक कॉल करनी है एक बार फिर से लैंडलाइन से ट्राई करता हूं!" - बोलकर अबीर फिर से राधिका का नंबर डायल करने लगता है।
अबीर लैंडलाइन फोन से एक बार फिर से राधिका का नंबर डायल करता है, वह नंबर डायल कर ही रहा होता है कि तभी खुशी उससे पूछती है - "आखिर ऐसे कैसे, कहां खो गया आप का मोबाइल फोन?"
"वही तो समझ नहीं आ रहा कि कहां चला गया, कल रात तक तो था मेरे पास, अभी तुम्हारे आने से पहले तक तो वही ढूंढ रहा था", तभी दूसरी तरफ से राधिका कॉल रिसीव कर लेती है और अबीर की आवाज सुनते ही पहचान लेती है -
"हेलो अबीर! तुम ही हो ना और क्या ढूंढ रहे थे?"
"हेलो! राधिका, थैंक्स गॉड; तुमने कॉल तो रिसीव किया, मेरा मोबाइल फोन खो गया है, तो वही ढूंढ रहा था और क्या, नंबर नहीं देखा क्या तुमने?"
"हां, देख लिया नंबर किसी लैंडलाइन का है, लेकिन ज्यादा ध्यान नहीं दिया, यह सोच कर कि शायद वहां पर नेटवर्क इशू हो इसलिए मोबाइल से कॉल नहीं किया तुमने!"
"नेटवर्क इशू तो है यहां पर और एक तो तुम कॉल रिसीव नहीं करती कभी मेरा एक बार में!"
"वो अबीर थोड़ी प्रॉब्लम है; तुम तो जानते ही हो सबके सामने तुमसे बात नहीं कर सकती हर वक्त!"
"हां, मैं जानता हूं और समझता भी हूं; इसलिए हर वक्त तो मैं कॉल भी नहीं करता हूं, तुम्हें राधिका!"
अबीर की बातें सुनकर खुशी शायद कुछ समझने की कोशिश कर रही थी, तभी अबीर की तरफ देखकर उसे लगा कि शायद उसकी वजह से अबीर को असहज महसूस हो, इसलिए वह थोड़ा दूर हटकर दीवारों पर लगी पेंटिंग्स देखने का नाटक करने लगी।
अबीर अभी भी राधिका से बात ही कर रहा था!
राधिका समझ गई कि अबीर उसके काॅल ना रिसीव कर पाने की वजह से उससे थोड़ा सा नाराज़ है इसलिए वो बात बदलते हुए बोली - "अच्छा ठीक है, वह सब छोड़ो यह बताओ कि आज कहां-कहां घूमा तुमने?"
"कहीं भी नहीं, मैं तो सुबह से यहां फार्महाउस में ही हूं!" - अबीर ने उदास होते हुए जवाब दिया।
"लेकिन क्यों तुम तो वहां घूमने गए थे ना, विनय का बर्थडे सेलिब्रेट करने!" - अबीर का जवाब सुनकर राधिका ने फिर से उससे पूछा।
"हां यार घूमने ही आया था, वो तो बस आज सफर की थकान की वजह से थोड़ा सिर और बदन में दर्द था; बस इसलिए आज नहीं गया उन तीनों के साथ, लेकिन कल तो जाऊंगा ही ना..." - अबीर उसे समझाते हुए बोला।
"सिर में दर्द, अबीर! पक्का तुमने ड्रिंक की होगी।"
क्रमशः
"अरे नहीं! राधिका, प्लीज़ अब तुम भी शुरू मत हो जाना; मैंने बिल्कुल भी ड्रिंक नहीं की, आई स्वेयर, बियर तक नहीं पी; पता नहीं क्यों? सबको यही लग रहा; कोई मेरी बात नहीं मान रहा।"
"क्या मतलब? कोई तुम्हारी बात नहीं मान रहा!"
"अरे! वह बाकी 4 मेरे दोस्त, वह भी तुम्हारी ही तरह मुझ पर ही शक कर रहे थे कि मैंने ड्रिंक की होगी, कल रात इसलिए मेरी तबीयत ठीक नहीं आज सुबह..."
"हां तो अबीर, वह सब भी तुम्हारे दोस्त हैं, मैं और वो सब भी तुम्हें बहुत अच्छी तरह जानते हैं; इसलिए ही तो हम सब ने एक ही बात बोली।"
"लेकिन मैंने सच में ड्रिंक नहीं की इस बार!"
"अच्छा ठीक है बाबा! मान लिया तुम्हारी बात, लेकिन अब तबीयत कैसी है तुम्हारी?"
"अब बेहतर है पहले से..."
"बाकी सब कब तक वापस आएंगे? तुम अकेले बोर हो रहे होगे ना वहां पर!"
"पता नहीं राधिका! कब तक आएंगे वो लोग? मैं बोर तो हो रहा हूं यहां अकेले, काश! तुम होती यहां मेरे साथ;" जैसे ही अबीर ने यह बोला उसकी नज़र सामने खड़ी हुई खुशी पर पड़ी और वह थोड़ी सोच में पड़ गया। वह सोचने लगा कि राधिका ने खुशी के बारे में बताए या नहीं? अबीर फोन का रिसीवर पकड़े यह सब सोच ही रहा था कि......
तभी फोन के दूसरी तरफ से राधिका की आवाज आई - "हेलो..... हेलो! अबीर, तुम सुन रहे हो ना.... हेलो, कॉल डिस्कनेक्ट हो गई क्या?"
"नहीं, बोलो ना मैं सुन रहा हूं।"
"एकदम से चुप क्यों हो गए थे, मुझे लगा काॅल डिस्कनेक्ट हो गया!"
"वो.... कुछ नहीं बस ऐसे ही तुम्हें सुन रहा था।"
"ओके, बाय टेक केयर ऑफ यू, बाद में बात करती हूं।"
"ओके बाय!" बोल कर अबीर भी कॉल डिस्कनेक्ट कर के रिसीवर रख देता है, और वही सोफे पर बैठ जाता है।
बात खत्म होते देख कर खुशी भी वहां आकर अबीर के सामने वाले सोफे पर बैठ जाती है,
और वहां पर बैठते हुए खुशी अबीर से पूछती है - "अबीर! अगर तुम बुरा ना मानो, तो क्या तुम से पूछ सकती हूं कुछ?"
"हां बिल्कुल, पूछो ना.."
"किससे बात कर रहे थे, मेरा मतलब है समवन स्पेशल या फिर सिर्फ फ्रेंड है राधा?"
"राधा नहीं राधिका, और वह मेरी गर्लफ्रेंड है, द लव ऑफ माई लाइफ, हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।"
"ओह वाओ, दैट्स ग्रेट! मुझे लगा ही था, मैंने बस ऐसे ही पूछ लिया उत्सुकता वश; तुम्हें बुरा तो नहीं लगा ना!"
"अरे नहीं खुशी! बिल्कुल नहीं, मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा, अब तुम्हें दोस्त कहा है, तो इतना तो पूछ ही सकती हो।" - अबीर ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अच्छा तो इसका मतलब यह है कि दोस्त कुछ भी पूछ सकते हैं और दोस्त एक दूसरे की बात का बुरा नहीं मानते।"
"हां बिल्कुल, नहीं मानते बुरा।"
"तो फिर मैं कुछ और भी पूछूं?"
"हां बिल्कुल, कुछ भी पूछो बेझिझक!"
"तुम... तुम्हारे दोस्तों के साथ यहां क्यों आएं?"
"क्या मतलब है तुम्हारा? नहीं आना चाहिए था क्या?"- अबीर ने खुशी की तरफ देखकर गम्भीर स्वर में पूछा।
"अरे नहीं, मेरे कहने का वो मतलब नहीं था; मेरे बाबा यहां बहुत सालों से काम करते हैं और इतने दिनों से यहां कोई नहीं आया और फिर आप सब ऐसे अचानक ही आ गए एक दिन, बस इसीलिए पूछ लिया।" - खुशी थोड़ी सी घबराते हुए बोली।
"अरे! मैं मजाक कर रहा था, हम सब तो विनय के बर्थडे के लिए यहां आए हैं।"
"ओह अच्छा! तो फिर कब है उनका बर्थडे?"
"कल ही तो है मेरा मतलब है, आज रात 12:00 बजे से, यही तो सेलिब्रेट करना था, लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं उस के साथ ही नहीं हूं जिस के बर्थडे के लिए यहां आया।"
तभी घड़ी की तरफ देखते हुए खुशी बोलती है, "अरे इसका मतलब 3 ही घंटे बचे हैं सिर्फ, अब वो लोग आप के बिना ही बर्थडे सेलिब्रेट करेंगे? और 9:00 बज गए मुझे भी अब चलना चाहिए काफी देर हो गई है।"
"थोड़ी देर और रुक जाओ ना खुशी! अच्छा लग रहा है तुम से बात करके; थोड़ी देर बाद चली जाना वैसे भी तुम्हारे बाबा ने कहा था कि उन का घर पास में ही है, मैं अकेले पागल हो जाऊंगा।" - अबीर ने खुशी को रोकने की कोशिश करते हुए कहा।
"अच्छा ठीक है, लेकिन सिर्फ थोड़ी देर और 10:00 बजे से पहले मैं चली जाऊंगी यहां से..." - खुशी ने जैसे एक शर्त रखते हुए कहा।
अबीर यह सुनकर बहुत ज्यादा खुश हुआ, क्यों कि उसे उम्मीद नहीं थी कि वह उसके कहने पर रूक जाएगी, वह बोला - " ठीक है चली जाना 10:00 बजे से पहले, अब दोबारा मैं नहीं रोकूंगा तुम्हें।"
"आपके दोस्त का जन्मदिन है और आप तो साथ ही नहीं है उनके, जिस कारण से यहां आए थे!"
"हां, सही कहा मुझे अब अफसोस हो रहा है, काश! मैं भी विनय और अपने बाकी दोस्तों के साथ होता।"
"तो आप एक काम कर सकते हैं:"
"क्या?"
"जैसे अभी आपने राधिका को फोन किया था, वैसे ही अपने दोस्तों को भी लैंडलाइन से फोन करके बर्थडे विश कर दीजिए ना।" - खुशी ने उसे सलाह दी।
"मैं ज़रूर विश कर देता; अगर मुझे उन का नंबर याद होता तो...."
"आपको अपने दोस्तों का फोन नंबर भी याद नहीं!"
"हां, यह मेरी प्रॉब्लम है; मुझे नंबर याद नहीं होते और फिर मोबाइल फोन हमेशा पास ही होता है, तो जरूरत ही नहीं पड़ती नंबर याद करने की; बहुत मुश्किल से तो सिर्फ राधिका का नंबर याद किया था।"
"तब तो कुछ नहीं हो सकता!" - बोलकर खुशी हंसने लगी।
"अब तुम भी उड़ा लो मजाक, एक तो मुझे यहां अकेले ही रहना पड़ेगा सुबह तक" - अबीर मुंह बनाकर बोला।
"अरे नहीं, मैं मजाक नहीं उड़ा रही, हो सकता है, आपके दोस्त ही आपको फोन करें!" - खुशी उसे दिलासा देते हुए कहती है।
"हां, बिल्कुल करते वह लोग काॅल, कर भी रहे होंगे, लेकिन मेरे मोबाइल पर ही ट्राई कर रहे होंगे ना; उन लोगों को नहीं पता ना कि मैंने अपना मोबाइल फोन खो दिया"- अबीर उदास होते हुए कहता है।
"अरे हां, यह बात भी है।"
और फिर थोड़ी देर बाद खुशी घड़ी की तरफ देखते हुए कहती है - "अच्छा, अब मैं भी चलती हूं, काफी देर हो गई है; मां बाबा परेशान हो जाएंगे।"
अबीर का तो मन करता है, कि खुशी को थोड़ी देर और वही रोक ले, लेकिन फिर वह भी घड़ी की तरफ देखता है, तो 10:00 बजने वाले होते हैं; इसलिए वह कुछ नहीं कहता।
और खुशी उठकर उसे बाय बोल कर वहां से बाहर की तरफ जाने लगती है तो अबीर उससे कहता है - "थैंक्स खुशी, मेरे साथ इतनी देर रुकने के लिए, नाइस टू मीट यू।"
"कोई बात नहीं, आपसे मिलकर अच्छा लगा।"
"बाय, खुशी, कल फिर से आना, मैं तुम्हें अपने दोस्तों से भी मिलवाऊंगा।"
अबीर की इस बात का खुशी कोई जवाब नहीं देती, केवल मुस्कुराकर उसकी तरफ देखती है और दरवाजे से घर के बाहर चली जाती है।
अबीर सिर्फ उसे जाते हुए देखता रहता है और फिर कुछ सोचने लगता है; तभी अचानक उसे जैसे कुछ याद आता है;
और वह जल्दी से भागकर दरवाजे की तरफ जाते हुए कहता है - "खुशी, 1 मिनट रुको; मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूं।"
लेकिन यह बोलता हुआ, जब तक वो गेट से बाहर आता है, तब तक खुशी वहां से जा चुकी होती है, वो इधर-उधर चारों तरफ नजरें दौड़ा कर उसे देखने की कोशिश करता है, लेकिन बाहर अंधेरा काफी ज्यादा होने की वजह से उसे खुशी कहीं नहीं दिखती।
"इतनी जल्दी चली गई," मन में यह सोच कर अबीर भी वापस घर के अंदर आ जाता है।
अगली सुबह
अमर, श्रेया और विनय तीनों वापस आते हैं और वह तीनों ही बुरी हालत में लग रहे हैं, विनय डोर बेल बजाता है, लेकिन कोई दरवाजा नहीं खोलता, फिर विनय वॉचमैन से पूछता है कि क्या अबीर कहीं बाहर गया है?
इस पर वॉचमैन कहता है कि नहीं, उसने तो नहीं देखा अबीर को घर से बाहर जाते, घर में ही होगा वो।
यह सुनकर विनय, श्रेया और अमर तीनों और भी परेशान हो जाते है; और अमर और विनय दोनों ही अबीर - अबीर... चिल्लाते हुए ज़ोर से दरवाजा पीटने लगते हैं; लेकिन कोई भी दरवाजा नहीं खोलता, तभी विनय को याद आता है कि उसके पास मेनडोर की एक एक्स्ट्रा चाबी है:
वह जल्दी से कार में रखे अपने सामान में चाबी ढूंढने लगता और चाबी मिलते ही वो सब गेट खोल कर अंदर जाते हैं और अबीर को ढूंढने लगते हैं।
श्रेया रोती हुई कहती है - "यह सब क्या हो रहा है, कहां है अबीर, उसका फोन भी नहीं लग रहा है कल से!"
"चुप हो जाओ श्रेया; अबीर ठीक होगा" - विनय उसे समझाते हुए बोला।
"भगवान करे कि वो ठीक हो; विनय ही बात सही हो, पहले शिवम नहीं मिला और अब अबीर नहीं मिल रहा, हो क्या रहा है हमारे साथ?" - अमर परेशान होते हुए कहता है।
"सब मेरी गलती है; हम लोगों को यहां आना ही नहीं चाहिए था, मेरे बर्थडे के लिए।"
"इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है बेबी" श्रेया उसे समझाते हुए कहती है।
"नहीं, सब मेरी ही गलती है, मेरा ही आइडिया था कि इस साल बर्थडे पर मनाली ट्रिप पर चलेंगे" - विनय ने मायूस होते हुए कहा।
और तभी अमर को अबीर मिल जाता है:
लेकिन इस बार सीढ़ियों के पीछे पिछली सुबह जैसी हालत में ही पड़ा हुआ अबीर उन्हें वहां मिलता है।
अबीर को ऐसी हालत में देखकर उन सबका दिमाग और खराब हो जाता है; उन्हें समझ नहीं आता कि आखिर अबीर आज फिर से बेहोश कैसे हो गया? और कल सुबह जैसी हालत में ही मिला!
फिर वह सब मिलकर उसे होश में लाने की कोशिश करते हैं और ले जाकर वापस उसके कमरे में बेड पर लेटा देते हैं;
थोड़ी देर बाद अबीर को होश आता है और वह उन सबको देखकर खुश होते हुए कहता है - "अरे! तुम सब यहां वापस कब आए, चलो अच्छा हुआ वापस आ गए ट्रैकिंग से, मैं कल से अकेला बोर हो रहा था; लेकिन तुम सब मुझे ऐसे घेरकर क्यों बैठे हो? जगाया क्यों नहीं मुझे? मैं ज्यादा गहरी नींद में सो गया था क्या? और 1 मिनट दरवाजा किसने खोला?"
अबीर की यह सब बातें सुनकर वह तीनों हैरानी से उसका मुंह देखने लगते हैं, कि यह अबीर क्या बोल रहा है और एक साथ इतने सारे सवाल क्यों कर रहा है?
To be continued
"सच में, तुझे आज भी कुछ याद नहीं कि कल रात क्या हुआ तेरे साथ?" तभी विनय बोलता है।
"नहीं, मुझे तो सब कुछ अच्छे से याद है, कल रात में मैं यहीं पर तो सोया था, ठीक तरह से दरवाजा बंद करके, तुम लोगों का इंतजार करते करते; हां, बस एक प्रॉब्लम हो गई है।" अबीर समझ नहीं पाया कि विनय किस बारे में पूछ रहा है और बोलता गया।
"क्या प्रॉब्लम? तू ठीक तो है ना अबीर!" उन तीनों ने एक साथ पूछा।
"रिलैक्स यारों, इतनी बड़ी कोई प्रॉब्लम नहीं हो गई, वह बस मेरा मोबाइल फोन कहीं खो गया है; मिल नहीं रहा तुम में से किसी के सामान में तो नहीं चला गया? और शिवम कहां है? इतनी देर से दिखा नहीं मुझे....." अबीर ने अपने चारों तरफ नजरें घुमाते हुए उनसे पूछा।
अबीर जैसे ही शिवम के बारे में पूछता है, उन तीनों के चेहरे उतर जाते हैं और अमर उसकी बात का जवाब देते हुए बोलता है - "शिवम पता नहीं कहां चला गया अबीर; हम चारों साथ में ही वापस आ रहे थे, लेकिन जब पीछे मुड़कर देखा तो वह हमारे साथ नहीं था।"
"क्या मतलब, पता नहीं कहां चला गया? यह कोई मजाक कर रहे हो क्या? तुम सब मेरे साथ!" बोलता हुआ अबीर हड़बड़ा कर एकदम से उठ बैठता है और आगे बोलता है, "तुम लोग अच्छी तरह से जानते हो, मुझे ऐसा मजाक बिल्कुल पसंद नहीं।"
श्रेया रुआंसी सी कहती है - "हम कोई मजाक नहीं कर रहे हैं अबीर! इसलिए ही तो हमें लौटने में इतनी देर हो गई; हम लोग कल रात से शिवम को ही ढूंढ रहे थे और फोन करके तुम्हें सब कुछ बताना भी चाहते थे, लेकिन तुम्हारा फोन ही नहीं लग रहा था, हम आज सुबह पुलिस में रिपोर्ट लिखवा कर ही यहां पर आए क्योंकि हमें तुम्हारी भी फिक्र थी।"
"शिवम, अरे नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है? मैं ठीक हूं, चलो हम सब अभी चलेंगे; शिवम को ढूंढने, वह जरूर मिल जाएगा....." कहते हुए अबीर अचानक से उठ कर खड़ा होता है तभी उसके सिर में कल जैसा ही ज़ोर का दर्द होने लगता है और वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाला होता है कि तभी विनय और अमर उसे जल्दी से पकड़ लेते हैं और अमर उसे वापस बेड पर बिठाते हुए कहता है - "तू ठीक नहीं है अबीर! कुछ भी ठीक नहीं है यार; तू आज भी हमें कल वाली हालत में ही बेहोश मिला था; इसलिए तू अभी कहीं नहीं जा रहा।"
"क्या मैं बेहोश हो गया था? लेकिन कैसे? मुझे तो कुछ भी याद नहीं आ रहा; बोलते हुए" अबीर दोबारा से अपना सिर पकड़ लेता है और यह देखकर विनय उसे शांत कराते हुए कहता है - "हम शिवम को ढूंढ लेंगे; तू बस आराम कर अभी; तेरी तबीयत सही होते ही और शिवम के मिलते ही हम यहां से वापस लौट जाएंगे; इस मनहूस जगह से, हमेशा हमेशा के लिए दिल्ली वापस चले जाएंगे।"
रात का समय था, वही फार्महाउस के पीछे का गार्डन, और अबीर को वहां पर एक लड़का खड़ा हुआ दिखता है; अबीर उसकी तरफ बढ़ता है और वो लड़का वहां से आगे की तरफ चलने लगता है और फिर थोड़ा आगे जाने पर पीछे मुड़ कर अबीर की तरफ देख कर मुस्कुराता है।
उसकी तरफ देख कर अबीर जोर से चिल्लाता है - "शिवम... शिवम.... तू यहां क्या कर रहा है? बाकी सब कितने परेशान हैं तेरे लिए, तू कहां चला गया था?"
लेकिन शिवम कुछ नही बोलता; और फिर से आगे बढ़ने लगता है और अबीर उस के पीछे भागता है। अबीर जैसे ही उस के पास पहुंच कर उसके कांधे पर हाथ रखता है; वैसे ही शिवम वहां से गायब हो जाता है और अबीर के कान में यह आवाज गूंजने लगती है - "तुम लोग वापिस चले जाओ, यहां से, नहीं तो कोई नही बचेगा।"
यह आवाज सुन कर अबीर घबरा जाता है और ज़ोर से शिवम... शिवम... चिल्लाने लगता है; अबीर की आवाज सुन कर विनय, अमर और श्रेया तीनों ही जल्दी से भागकर उसके पास आते हैं और विनय उसे संभालते हुए कहता है - "अबीर....अबीर... क्या हुआ तुझे?"
विनय की आवाज सुन कर अबीर की आंख खुल जाती है, और वो हड़बड़ाकर उठ बैठता है, श्रेया जल्दी से उसके कमरे की लाइट्स ऑन करती हैं और अमर अबीर से कहता है - "शिवम यहां नही है अबीर; होश में आओ!"
"मैंने उसे देखा, अभी....यहां.... गार्डन में।" अबीर घबराया हुआ सा बोलता रहता है; तभी विनय उसे कहता है - "अबीर होश में आओ; तुम यहां कमरे में सो रहे थे, जरूर तुमने कोई बुरा सपना देखा होगा? शिवम नही है यहां!"
अबीर के दोस्त उसे पानी पिलाते है, समझाते है, तब जा कर अबीर को समझ में आता है, और वो थोड़ा शांत होता है, उसके बाद वो उन तीनो को अपने सपने के बारे में बताता है; उसके सपने की बात सुन कर सभी लोग डर जाते हैं, लेकिन उन में से किसी को भी अबीर के सपने का मतलब समझ नही आता!
श्रेया डरी हुई सी विनय से यह सारे सवाल पूछती है - "शिवम ने ऐसा क्यों बोला? अबीर के सपने में आकर और शिवम जिंदा तो है ना?"
"वो तो पता नहीं श्रेया कि आखिर क्या मतलब है? इन सब का; लेकिन हमें पता करना होगा।" विनय ने उसे समझाते हुए कहा।
"क्या हम लोग शिवम की बात मान कर वापस दिल्ली नही जा सकते?" अबीर ने घबरा कर पूछा।
अमर ने घड़ी की तरफ देखते हुए बोला - "जो भी कुछ करना है, कल सुबह ही कर सकते हैं क्योंकि अभी रात के 2 बज रहे हैं।"
"हां, अमर सही कह रहा है; अभी सब लोग सो जाते हैं, कल सुबह देखते है क्या करना है?" विनय ने सलाह दी।
अबीर धीरे से बुदबुदाया - "नींद कहां आने वाली है, अब ऐसे हालात में?" बाकी तीनों शायद अबीर की बात सुन नहीं पाए और उसके कमरे की लाइट्स ऑफ़ कर के वहां से निकल कर अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए।
लेकिन अबीर को नींद नहीं आ रही थी, वो केवल बिस्तर पर लेटा लेटा घड़ी देख रहा था और जल्दी से सुबह होने का इंतजार कर रहा था।
थोड़ी देर बाद उसको प्यास लगी; तो वो पानी पीने के लिए उठा; पानी उसके बेड के साइड में ही रखा हुआ था; पानी पीने के बाद जब उसने घड़ी की तरफ देखा, तो रात के 3 बज रहे थे। उसने मन ही मन सोचा इतनी देर से जाग रहा हूं और अभी तक 3 ही बजे है।
ये सोच कर वो अपने रूम की खिड़की के पास जा कर खड़ा हो गया और वहां से बाहर देखने लगा और उसे बाहर गार्डन में व्हाइट सूट पहने एक लड़की खड़ी दिखाई दी; उस लड़की का चेहरा दूसरी तरफ था; लेकिन कपड़ों और पीछे से देखने पर अबीर को वो लड़की खुशी जैसी ही लग रही थी क्योंकि अबीर ने पहली बार भी खुशी को उसी जगह पर खड़े हुए देखा था।
"इतनी रात में खुशी यहां पर क्या कर रही है?" अबीर ने मन में सोचा और सोचकर वहीं से उसे आवाज लगाता है - "खुशी..... खुशी....." लेकिन वो शायद अबीर की आवाज नहीं सुन पाती और वैसे ही खड़ी रहती है।
अबीर को अब थोड़ा शक होता है और वो आवाज देना बंद करके वही अपने कमरे की खिड़की से कूद कर गार्डन में चला जाता है और उसके थोड़ा करीब जा कर उसे फिर से आवाज देता है लेकिन उसकी आवाज सुन कर पीछे मुड़ने की बजाए, खुशी आगे बढ़ने लगती है; और अबीर भी उसके पीछे पीछे जाने लगता है।
वो उसे रोकने और उसके पास पहुंचने की बहुत कोशिश करता है; लेकिन नहीं पहुंच पाता और खुशी भी नही रुकती और अबीर को पता भी नहीं चलता कि वो खुशी के पीछे पीछे फार्महाउस से काफी दूर आ चुका है। तभी एक जगह पर पहुंच कर खुशी रुक जाती है। और अबीर उसके पास पहुंच कर जैसे ही उसका नाम पुकारता है; वैसे ही वो पीछे मुड़ कर अबीर की तरफ देखती है और उसे देख कर डरावनी तरह से मुस्कुराती है।
अबीर उसका चेहरा देख कर अपनी जगह पर एकदम जम सा जाता है; खुशी का चेहरा बिल्कुल भी कल जैसा नही लग रहा, उसके पूरे चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे और उसका चेहरा उन पहाड़ों पर पड़ी बर्फ से भी ज्यादा ठंडा और सफेद लग रहा था। यह सब देख कर अबीर बहुत बुरी तरह से डर जाता है; और डर की वजह से पीछे हटने लगता है, तभी खुशी एक दम अचानक से उसके सामने से गायब हो जाती हैं।
यह सब कुछ एक दम से अपने सामने होता हुआ देख कर अबीर के तो होश ही उड़ जाते है और वो डर की वजह से ज़ोर से चीखते हुए पीछे की तरफ हटने लगता है। उसे पता भी नही चलता कि वो पहाड़ी के एकदम किनारे पर खड़ा है, और सिर्फ एक कदम पीछे लेते ही वो फिसल कर घाटी में गिरने वाला ही होता है कि तभी एक हाथ आकर उसे जल्दी से पकड़ लेता है और फिर उसका दूसरा हाथ भी पकड़ लेते हैं; यह उसके दोस्त विनय और अमर ही थे; जोकि उसके चीखने की आवाज सुन कर ही यहां तक आए थे; उन दोनो ने मिल कर अबीर को पहाड़ी से उपर खींचा और उसे वापस फार्महाउस ले कर आएं।
जहां पर श्रेया दरवाजे पर ही खड़ी उन दोनों का इंतजार कर रही थी; अबीर के हाथ और पैरों में थोड़ी चोट भी लग गई थी।
अबीर को ऐसी हालत में देख कर श्रेया ने घबराते हुए पूछा - "ठीक हो तुम सब; क्या हुआ अबीर! तुम वहां कैसे पहुंचे?"
विनय अबीर की तरफ देखते हुए कहता है - "अब ये तो सिर्फ अबीर ही बता सकता है कि वो वहां कैसे पहुंचा।"
अबीर एक दम शॉक्ड होकर बैठा है, जैसे कि उसने किसी की कोई भी बात नहीं सुनी हो और वो कही और ही खोया हुआ सा था, शायद उसने जो कुछ भी देखा वो अभी भी उस पर यकीन नहीं कर पा रहा था।
तभी अमर ने उसे हिलाते हुए कहा - "अबीर..... अबीर..... क्या हुआ तुझे? कुछ सुन भी रहा है तू! हम सब कुछ पूछ रहे हैं; तू वहां पर कैसे पहुंचा?"
क्रमशः
"वो.... मैंने उसे देखा वो.... वहां पर थी, वही यह सब कर रही है।" - अबीर अपने में ही बड़बड़ाता हुआ सा बोलने लगा।
अबीर जो कुछ भी बोल रहा था वह सब वहां पर मौजूद तीनों में से किसी को भी कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। विनय ने दोबारा से अबीर को पूछा - "अबीर....अबीर, कौन? वो किसे देखा तूने? किसकी बात कर रहा है तू? साफ-साफ बोल...."
"हां, अबीर मैं पहले से ही बहुत ज्यादा डरी हुई हूं, अब तू ऐसी उल्टी-सीधी बातें करके और मत डरा हम सबको, ठीक से बताओ, क्या देखा तुमने? और किसको देखा?" - श्रेया ने भी अबीर से कहा।
उन सबके बार-बार पूछने पर अबीर मानो थोड़ा होश में आया और उसने उन सबको बताना शुरू किया.... "वह लड़की खुशी! जो कल मुझे यहां गार्डन में ही पहली बार दिखी थी, और उसने मुझसे यह बताया था कि वो दीनू काका की बेटी है और यहां पर फार्म हाउस में काम करने आ जाती है, कभी-कभी..... कल तक तो वह लड़की ही लग रही थी, लेकिन आज आज मैंने उसे जिस रूप में अपने सामने देखा मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि यह वही लड़की थी जो कल पूरा दिन मेरे साथ थी..... लेकिन फिर आज.... आज वो मेरे सामने से ही गायब हो गई।"
इतना बोलते बोलते ही अबीर घबराहट की वजह से पसीने पसीने हो गया।
अमर ने उसे जल्दी से पानी पिलाया और फिर उन तीनों ने मिलकर अबीर को संभालते हुए कहा - "रिलैक्स अबीर! कुछ नहीं हुआ तुझे, हम सब यही हैं।"
"खुशी कौन खुशी? मेरे हिसाब से तो यहां कोई भी लड़की काम नहीं करती!" - विनय कुछ सोचते हुए बोला।
"क्या तुम्हें पूरा यकीन है कि कोई खुशी काम नहीं करती यहां पर?" – अमर ने विनय से पूछा।
"पूरा यकीन तो नहीं है, हो भी सकता है" – विनय थोड़ा सोचते हुए बोला।
"तो फिर तुम्हें नहीं लगता कि हमे इस बारे में पता करना चाहिए; क्योंकि ये सब जो कुछ भी हो रहा है, वो नॉर्मल नहीं है, बेबी!" - श्रेया ने विनय से कहा।
"हां विनय, श्रेया ठीक कह रही है, अबीर ने देखा है और बता रहा है, हमे पता लगाना चाहिए!" - अमर ने कहा।
"हां, पता तो करना ही होगा; लेकिन समझ नहीं आ रहा कि शुरुआत कहां से करें?" - विनय खड़े होते हुए बोला।
"दीनू काका के घर से, उस लड़की/आत्मा जो भी है वो, उसने मुझे यही बताया था, कि वो दीनू काका की बेटी है" अबीर एकदम से बोल पड़ा।
"हां ठीक है, फिर चलो सब चलते हैं और पता करते हैं इस खुशी के बारे में, दीनू काका का घर ज्यादा दूर नहीं है" विनय बोला।
"लेकिन अभी; रात के इस वक्त?" श्रेया ने कहा।
"रात कहां है? अब तो सुबह भी होने वाली है" अबीर बोला।
"लेकिन फिर भी, ऐसे सुबह के 4:00 बजे किसी के घर जाना सही नहीं लगता!" - अमर ने कहा।
"हां यार! सही कह रहा है तू" विनय भी उसकी हां में हां मिलाता हुआ बोला।
"और जो मेरे साथ हो रहा है; वह सब क्या सही है कि जो मैं दिन और रात का समय देखूं!" - अबीर हल्के गुस्से में बोला।
इस पर विनय और श्रेया उसे समझाते हुए बोले - "डर तो हम सबको लग रहा है अभी लेकिन थोड़ी देर की ही तो बात है, सुबह चलेंगे ना पता करने, कि आखिर यह सब क्या है और क्यों हो रहा है?"
"जब तक सब लोग थोड़ी देर सो लेते हैं" - अमर ने कहा।
"तुम लोग सो जाओ; मुझे तो नींद नहीं आने वाली ऐसे हालात में, और ना ही मैं उस कमरे में जाने वाला" - अबीर ने कहा।
"अच्छा ठीक है तो तू अमर के कमरे में उसके साथ सो जा" विनय ने कहा।
"हां ठीक है अबीर, मैं समझ सकता हूं तुझे अकेले रहने में डर लग रहा होगा; चल मेरे साथ ही रह लेना थोड़ी देर की तो बात है" - अमर ने कहा।
"मुझे डर नहीं लग रहा यार! मैं बस परेशान हूं कि आखिर यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है?" - अबीर अपना सिर पकड़ते हुए बोला।
"वही तो पता करना है!" - विनय ने कहा।
उसके बाद वह सभी सोने के लिए चले गए; लेकिन ऐसे हालातों में भला किसी को नींद कहां आने वाली थी! वह सब सिर्फ लेटे हुए घड़ी की तरफ से देखते हुए जल्दी से जल्दी सुबह होने का इंतजार कर रहे थे।
अगली सुबह 8:00 बजे....
अबीर ने अपने पास लेटे अमर को देखा; तो वह सो रहा था: उसे देख कर अबीर ने मन ही मन सोचा, चलो खैर किसी को तो नींद आई और फिर अचानक से उसे रात वाली बात याद आ गई और एकदम से अबीर के सिर में दर्द होने लगा, उसने सोचा कि जाकर अपने लिए कॉफी बना ले; वह किचन में आया ही था कि उसने देखा की विनय पहले से ही किचन में था।
अबीर को देख कर विनय ने उससे भी कॉफी के लिए पूछा...
अबीर ने कहा - "हां यार! बना दे मेरे लिए भी, सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है, वैसे श्रेया कहां है? सो रही है क्या?"
"अरे नहीं, सोई ही नहीं वह सारी रात, बाथरूम में है रेडी हो रही है" - विनय ने बताया।
"ओ अच्छा! हां, हमें चलना भी तो है, यार अमर सो रहा है, मैंने उसे नहीं उठाया, वह भी रात भर सो नहीं पाया" - अबीर ने विनय से बताया।
"एक काम करते हैं; अमर को सोने देते हैं और हम तीनों ही (अबीर, विनय और श्रेया) चलते हैं; दीनू काका के घर खुशी के बारे में पता करने" - विनय ने कॉफी मग अबीर को देते हुए कहा।
"मुझे नहीं लगता कि यह अच्छा आइडिया है?" - अबीर बोला।
"क्या मतलब है तुम्हारा?" - विनय ने पूछा।
"मेरा मतलब है कि हम में से किसी को भी अकेले नहीं रहना चाहिए; क्योंकि उसी के साथ कुछ ना कुछ होता है जो कि उस वक्त अकेला होता है।" - अबीर ने कहा।
"हां यार अबीर, कह तो तू ठीक ही रहा है" - विनय ने अबीर की बात सुनकर थोड़ा सोचते हुए कहा।
"वैसे विनय! यह सब पता करने के बजाय; हम लोग सीधा वापस दिल्ली क्यों नहीं चले जाते? रहने देते हैं ना; क्यों पड़ना इन सब में" - अबीर कहता है।
"लेकिन यार अबीर, शिवम अगर जिंदा हुआ तो उसके बारे में पता किए बिना अगर हम ऐसे ही वापस चले उसके घर वालों को क्या जवाब देंगे" - विनय ने कहा।
"हां यार विनय, तू सही बोल रहा है, हमे पता करना ही होगा, कम से कम शिवम के लिए" – अबीर बोला।
"अच्छा ठीक है, कॉफी पीने के बाद तू जाकर अमर को जगा देना जब तक मैं जाकर श्रेया को देखता हूं, मैडम रेडी हुई या नहीं अभी तक?" - विनय ने अबीर से कहा।
ओके बोलकर अबीर फिर से कॉफी पीते हुए कुछ सोचने लगा और विनय वहां से उठकर श्रेया को देखने चला गया।
विनय के जाने के कुछ देर बाद ही अबीर भी उठकर अमर के कमरे में जाने ही वाला था कि तभी उसे विनय की आवाज सुनाई दी और वो भागकर विनय के पास पहुंचा और उससे पूछा कि "क्या हुआ विनय, तू ऐसा क्यों चिल्लाया? सब ठीक तो है ना? और श्रेया कहां है?"
"श्रेया.... श्रेया ही तो कहीं नहीं मिल रही है" - विनय परेशान होता हुआ बोला।
"क्या मतलब है कि कहीं नहीं मिल रही है, श्रेया! यही कहीं होगी यार विनय" - अबीर विनय को संभालते हुए बोला।
"मैने दोनो रूम में देख लिया, श्रेया नही है कहीं भी" - विनय ने कहा।
"तू परेशान मत हो विनय, हम दोनों साथ में ढूंढते हैं, पूरे घर में; मिल जाएगी श्रेया!" - इतना बोलकर वो दोनो श्रेया को हर जगह ढूंढने लगे!
विनय और अबीर की आवाज सुनकर अमर की भी आंख खुल जाती है और वह भी उन दोनों के पास आकर पूछता है कि - "क्या हुआ?"
अबीर उसे बताता है कि "श्रेया नहीं मिल रही" यह सुनकर अमर भी परेशान हो जाता है और फिर वह तीनों मिलकर श्रेया को ढूंढने में लग जाते हैं।
वह तीनों श्रेया को पूरे घर में ढूंढते हैं, लेकिन वह कहीं भी नहीं मिलती, थोड़ी देर श्रेया को ढूंढने के बाद अबीर, विनय और अमर को घर के पीछे वाले गार्डन से आवाज लगाता है।
अबीर की आवाज सुनकर, विनय और अमर भागकर फार्महाउस के पीछे वाले गार्डन में पहुंचते हैं और वहां पहुंचते ही देखते हैं कि श्रेया गार्डन में जमीन पर बेहोश पड़ी हुई है और अबीर उसे होश में लाने की कोशिश कर रहा है।
"थैंक गॉड! श्रेया यहां मिल गई!" - बोलकर अमर उसकी तरफ भागता है।
"श्रेया.... श्रेया.... क्या हुआ तुम्हें? उठो श्रेया...." बोल कर विनय परेशान सा बेहोश श्रेया को मशीन आने की कोशिश करता है।
विनय को ऐसे देख कर अबीर उसे समझाते हुए कहता है कि "कुछ नहीं हुआ श्रेया को; बस बेहोश है, इसे अंदर लेकर चलते हैं, विनय!"
"हां ठीक है" - बोल कर विनय श्रेया को गोद में उठाकर घर के अंदर ले जाता है और हाॅल में ही सोफे पर लिटा देता है, और अबीर जल्दी से भागकर किचन से पानी लेकर आता है, फिर वह लोग मिलकर श्रेया को होश में लाने की कोशिश करते हैं।
"अरे यार! विनय, आखिर श्रेया वहां बाहर गार्डन में क्या कर रही थी" - अमर ने विनय से पूछा।
"यह तो मुझे भी नहीं पता यार; मेरे हिसाब से तो श्रेया वॉशरूम में थी, मुझे नहीं पता वो वहां बाहर गार्डन में कैसे पहुंची और बेहोश कैसे हो गई" - विनय परेशान सा जवाब देता है।
क्रमशः
तभी अबीर श्रेया के चेहरे पर पानी की छींटे डालकर उसे होश में लाने की कोशिश करता है और अपने दोस्तों से कहता है कि यह तो श्रेया ही बता सकती है कि वह बाहर क्या करने गई थी और बेहोश कैसे हो गई।
तभी श्रेया को हल्का-हल्का होश आने लगता है और वह अपनी आंखें खोलती हुई कहती है- "क्या हुआ मुझे और तुम तीनों ऐसे मुझे घेर कर क्यों बैठे हो?"
"आह! नॉट अगेन, प्लीज श्रेया; अब तुम यह मत कहना कि अबीर की तरह तुम्हें भी कुछ याद नहीं कि तुम बाहर गार्डन में क्या कर रही थी और बेहोश कैसे हो गई"- अमर इरिटेट होता हुआ श्रेया से कहता है।
और यह सब सुनकर श्रेया एकदम से हड़बड़ा कर सोफे पर उठ बैठती है और विनय उसे सम्भाल कर बैठाता है और कहता है- "कुछ नहीं हुआ? तुम लेटी रहो बेबी!"
"नहीं, बेबी सच बताओ, मुझे क्या हुआ है? और यह अमर क्या कह रहा है"- श्रेया विनय से पूछती है।
"हां, सब बताता हूं; पहले थोड़ा रिलैक्स करो, और यह बताओ कि तुम तो हमारे साथ जाने के लिए रेडी होने जाने वाली थी ना, फिर तुम बाहर गार्डन में क्या करने गई थी?"- विनय ने श्रेया को समझाते हुए कहा।
"हां, तो बेबी मैं रेडी होने के लिए ही गई थी वॉशरूम में और फिर उसके बाद..... 1 मिनट; उसके बाद मुझे कुछ.... उसके बाद मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं है?"- श्रेया परेशान होती हुई बोली।
"रिलैक्स यार श्रेया, मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं, कुछ भी नहीं हुआ तुम्हें, बस शायद वही जो पिछले 2 दिनों से मेरे साथ हो रहा था, वही है यह; आज मैं सोया नहीं सारी रात शायद इसीलिए आज यह सब तुम्हारे साथ हुआ है"- अबीर ने उसे बताया।
"क्या सच में? मैं भी बेहोश हो गई थी; लेकिन कैसे, कब, कहां?"- श्रेया दोबारा से घबराते हुए उनसे पूछने लगी।
"कब और कैसे का तो पता नहीं? लेकिन कहां पर बेहोश मिली यह बता सकते हैं"- अबीर बोला।
"कहां पर?"- श्रेया ने पूछा।
"यहीं फार्म हाउस के पीछे वाली गार्डन में अबीर को तुम जमीन पर बेहोश पड़ी हुई मिली थी"- अमर ने बोला।
"लेकिन मैं.... मैं वहां कैसे पहुंची? मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं है?" श्रेया को फिर से ऐसे परेशान होते देख विनय उसे समझाते हुए बोला- "कुछ नहीं हुआ तुम बिल्कुल ठीक हो तुम और अब बहुत ज्यादा हो रहा है अब हमें पता करना होगा कि आखिर यह सब क्या है और हमारे साथ ही क्यों हो रहा है?"
"हां यार, विनय तू सही कह रहा है, चलो अब हमें चलना चाहिए, नहीं तो जब तक कुछ पता नहीं लगाएंगे; तब तक हम लोग इन सब से निकल भी नहीं पाएंगे"- अबीर ने कहा।
"हां ठीक है, चलो चलते हैं"- अमर ने कहा।
"श्रेया, तुम ठीक हो चल पाओगी, हमारे साथ या फिर मैं यही रुकूं?"- विनय ने श्रेया से पूछा।
"हां, मैं ठीक हूं बेबी और मुझे भी साथ चलना है क्योंकि यहां पर बैठे रहने से कुछ भी पता नहीं चलने वाला"- श्रेया ने कहा।
और फिर उसके बाद वह चारों (अमर, श्रेया, विनय और अबीर) एक साथ दीनू काका के घर पहुंचे....
दीनू काका का घर एक छोटा सा कच्चा, झोपड़ीनुमा मकान था जैसा कि अक्सर पहाड़ी इलाकों में रहने वाले गरीब लोगों का होता है।
वह चारों (अमर, श्रेया, विनय और अबीर) एक साथ घर के अंदर गए उन्हें देखकर दीनू काका की पत्नी एकदम से हड़बड़ा गई और बोली- "अरे साहब! आप लोग यहां; कोई काम था क्या?"
"हां काकी, हमें दीनू काका से बहुत जरूरी काम था, कहां है वह?"- अबीर ने उनसे पूछा।
"वह तो बाहर गए हुए हैं, किसी काम से, बस आते ही होंगे, आप लोग बैठो; जब तक हम पानी लाते हैं"- काकी ने कहा।
"अरे नहीं आंटी, उसकी कोई जरूरत नहीं है, हमें बस दीनू काका से कुछ पूछना है"- श्रेया ने उन्हें रोकते हुए कहा।
"क्या, आप हमें बता सकती हैं कि काका कहां गए हैं, हम वहीं जाकर उनसे बात कर लेंगे"- अमर ने कहा।
"हां, वो तो यही बाहर ही गए हैं; अभी आते होंगे"- काकी बोली।
तभी विनय अबीर की तरफ देखकर कुछ इशारा करते हुए बोला- "वैसे हमें जो पूछना है, वो आप भी हमें बता सकती हैं; क्यों अबीर?"
"हां काकी, प्लीज हेल्प अस, हम लोग बहुत परेशान हैं"- अबीर बोला।
"क्या हो गया साहब जी?"- काकी ने पूछा।
"हमारा एक दोस्त नहीं मिल रहा है, और रोज़ सुबह कोई न कोई बेहोश मिलता है, जबसे हम लोग यहां आए हैं"- अमर बोला।
"तो इसमें हम क्या मदद कर सकते हैं; आप सब की?"- काकी ने पूछा।
"अबीर ने एक लड़की को देखा है और हमें लगता है कि सब कुछ उस लड़की से ही जुड़ा है और आप हमें उस लड़की के बारे में बता सकती हैं"- विनय ने बताया।
"किस लड़की की बात कर रहे हैं आप? विनय बाबा!"- दीनू काका ने घर के अंदर आते हुए विनय से पूछा।
और उनके इतना पूछते ही अबीर बोल पड़ा- "आपकी बेटी खुशी के बारे में....."
"कौन खुशी? मेरी कोई बेटी नहीं है, मैं इस नाम की किसी लड़की को नहीं जानता!"- दीनू काका नजरें चुराते हुए बोले।
"क्या सच में? मुझे लगता है कि आप कुछ छुपा रहे हैं!"- अबीर उनके सामने आते हुए कहता है।
"कुछ नहीं अबीर! बहुत कुछ छुपा रहे हैं, क्यों काका, सही कह रहा हूं ना मैं"- विनय भी काका के सामने आकर बोला।
तभी श्रेया को नजर काकी पर पड़ी, जो कि ये सब सुनकर एक दम चुपचाप वहीं कोने में खड़ी थी और शायद उनकी आंखों में आंसू थे;
श्रेया उनके पास गई और एकदम शांत स्वर में बोली- "काकी आप कुछ कहना चाहती हैं, कुछ बता सकती हैं हमे खुशी के बारे में, कहां है आपकी बेटी खुशी?"
खुशी का नाम सुनकर काकी की आंखों में आंसू आ गए और वो कुछ बोलना भी चाहती थी कि तभी दीनू काका, बीच में बोल पड़े- "नहीं, वो कुछ नहीं बताना चाहती हैं, कुछ नहीं जानते हैं हम दोनों, आप लोग यहां से जाइए।"
"इसका मतलब यह है कि आपकी कोई बेटी नहीं थी और आप दोनों खुशी नाम की किसी लड़की को नहीं जानते!"- इस बार अमर ने पूछा।
"हां, मैं यही तो कह रहा हूं कि हमे कुछ नहीं पता, आप लोग जाइए यहां से, हमे माफ करिए साहब।" - दीनू काका विनय के सामने हाथ जोड़ते हुए बोले।
"काका आप ऐसे हाथ नहीं जोड़िए, हम लोग आपको परेशान नहीं करना चाहते हैं, बस आप हमारी थोड़ी सी मदद कर दीजिए, हम लोग बहुत मुसीबत में हैं!"- विनय ने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा।
"हां काका, हमारा एक दोस्त गायब है और 2 लोग सुबह के वक्त बेहोश मिले थे, ये अबीर और ये श्रेया"-
अमर अपने दोनों दोस्तो की तरफ इशारा करते हुए बोला।
"तो आप लोग किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते, हम गरीब लोग इसमें आपकी क्या मदद कर सकते हैं!"- दीनू काका बात बदलते हुए बोले।
"आप मदद कर सकते हैं, क्योंकि मुझे घर के पीछे वाले बगीचे में एक लड़की मिली थी 3 दिन पहले जिसने अपना नाम खुशी बताया था मुझे और साथ ही यह भी बताया था कि वो आपकी बेटी खुशी है!"- अबीर ने दीनू काका से कहा।
"अब पूरा सच क्या है, वो तो आप दोनों ही बता सकते हैं, प्लीज हेल्प अस"- श्रेया ने भी बोला।
अबीर की बात सुनकर दीनू काका एकदम हैरान रह गए और थोड़ा सोचते हुए बोले- "क्या आप सच में उससे मिले, उसका नाम खुशी ही था क्या?"
"हां, उस लड़की ने तो यही नाम बताया था, लेकिन आप बताइए कि आपकी बेटी खुशी कहां है अभी"- अबीर दोबारा से बोला।
"कहां देखा आपने उसे, कहां पर मिले थे उससे अभी वो कहां है? मुझे भी उससे मिलना है मेरी बच्ची खुशी"- बोलते हुए काकी रोने लगी।
"काकी आप रोइए नहीं, चुप हो जाइए!"- श्रेया उन्हें संभालते हुए बोली।
"इसका मतलब है कि वो लड़की सच ही बोल रही थी वो आपकी बेटी खुशी ही थी, अब आप दोनों हमें बताइए कि पूरा सच क्या है?"- विनय बोला।
"हां, खुशी हमारी ही बेटी है लेकिन अब मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं है!"- दीनू काका हल्के गुस्से में बोले।
"लेकिन ऐसा क्या हुआ था आखिर?"- अमर ने पूछा।
"मुझे लगता है कि आपकी बेटी खुशी, उसके साथ कुछ हुआ था, शायद वो अब जिंदा नहीं है"- अबीर बोला।
"नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मेरी बच्ची खुशी, ऐसा क्यों बोल रहे हैं साहब आप, अभी तो आपने बोला की खुशी से मिले थे आप"- काकी रोते हुए अबीर से बोली।
"सब बताता हूं मैं लेकिन काका पहले आप बताइए कि ऐसा क्या हुआ था कि आप अपनी बेटी खुशी के बारे में ऐसा बोल रहे हैं कि आपका उसके साथ कोई रिश्ता नहीं है!"- अबीर बोला।
"हां, काका हमे पूरा सच जानना है!"- विनय बोला।
"काकी, अगर आपको सब पता हो तो आप ही हमे पता दीजिए!"- श्रेया काकी से पूछती है।
श्रेया की बात सुनकर काकी वैसे ही रोते हुए आंख उठाकर श्रेया की तरफ देखती हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बोलती हैं और उनकी आंखों से आंसू निकलते रहते हैं।
तभी काका बोल पड़ते हैं- "क्योंकि उसने ऐसा काम किया था, किसी लड़के से प्यार करती थी वो और 2 साल पहले एक रात को अचानक भाग गई; उसी लड़के के साथ, एक बार भी उसने अपने गरीब बूढ़े मां बाप के बारे में नहीं सोचा, इसलिए अब वो जिए या मरे मेरा उस लड़की से कोई रिश्ता नहीं है।"
क्रमशः
9
सब कुछ एक ही सांस में बोलकर काका ने एक ठंडी आह भरी और बोले – "यही है पूरा सच, सुन लिया आप लोग ने, अब यहां से चले जाइए, हम दोनों पति पत्नी आपकी कोई भी मदद नहीं कर सकते हैं, हमें माफ कर दीजिए।"
"क्या सच में, खुशी घर से भाग गई थी, वो भी दो साल पहले?" – विनय सब कुछ सुनकर बोला।
"लेकिन काका ऐसे कैसे, आपने ढूंढा नहीं अपनी बेटी को? कि वो कहां गई?" – श्रेया ने पूछा।
"किस लड़के से प्यार करती थी खुशी, उस लड़के का नाम, पता, कुछ तो पता होगा आपको?" – अबीर ने पूछा।
"हम लोग बहुत छोटे लोग हैं साहब जी, इन सब बातों को और नहीं बढ़ाना चाहते थे, इसलिए कुछ नहीं किया, अपने हाल पर जी रहे हैं!" – दीनू काका ने हाथ जोड़ते हुए बोला।
"लेकिन इन सब का हमारे साथ क्या कनेक्शन है, वो खुशी लड़की हो या आत्मा, जो भी हो, हमारे साथ वो ये सब कुछ क्यों कर रही है?" – अमर सोचते हुए बोला।
"वही पता करने तो हम लोग यहां आए थे यार! काका हमारी मदद करिए और हमारे साथ फॉर्म हाउस चलिए" – विनय बोला।
"अभी मैं नहीं आ सकता, आप लोगों के साथ, मैं कोई मदद नहीं कर सकता आप लोगों की भी, मुझे माफ कर दीजिए और अब आप लोग भी जाइए, मैं तो कहता हूं कि अपने घर लौट जाइए, अपने शहर!" – दीनू काका ने उन सब से कहा।
"आपने हमे सब कुछ बता दिया है ना, कुछ छुपा तो नहीं रहे हैं ना काका?" – विनय ने पूछा।
"नहीं, मुझे बस इतना ही पता है और इसके बाद वो लड़की कहां गई, किसके साथ, मुझे कुछ नहीं पता" – काका ने परेशान होते हुए कहा।
"अच्छा ठीक है काका, हम सब अब चलते हैं" – इतना बोलकर वो सभी उनके घर से बाहर आ जाते हैं और फिर वहां से वो चारों फार्म हाउस की तरफ चल देते हैं।
"अब हम लोग क्या करेंगे विनय?" – अबीर ने रास्ते में विनय से पूछा।
"अब जितना हमे पता चला है, इसके आगे का पता करना होगा हमे, सबसे पहले, तभी कुछ हो सकता है!" – विनय बोला।
"हां, लेकिन दो साल पहले की बात कैसे पता चलेगी, बेबी!" – श्रेया ने पूछा।
"हां यार! वही तो शुरुआत कहां से करें!" – अमर ने भी बोला।
"देखते हैं यार, क्या करना है? पहले फॉर्म हाउस पहुंचे" - विनय बोला।
"यार! मेरा तो मन नहीं कर रहा; उस घर में वापस जाने का, मुझे लगता है जो भी गलत हम सबके साथ वह सब उसी फार्महाउस से जुड़ा है!" - अबीर ने बोला।
"लगता तो मुझे भी यही है, लेकिन वापस तो जाना ही पड़ेगा, रहना तो वही है" - अमर बोला।
"क्यों वहीं रहना पड़ेगा? यार! हम लोग वापस दिल्ली क्यों नहीं जा सकते? चलो ना, वापस घर चलते हैं, क्यों पड़ना इन सब में?" - अबीर परेशान होते हुए कहता है!
"ऐसे कैसे यार! अबीर, शिवम को भूल जाएं और यह सब जो भी हो रहा है, उसको भी?" - विनय ने बोला।
"डर तो मुझे भी लग रहा है, बेबी! लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूं, मुझे भी सब पता करना है!" - श्रेया विनय का हाथ थामते हुए बोली।
"सच बोलूं तो मेरा भी यहां रुकने का बिल्कुल मन नहीं है, लेकिन ऐसे सब कुछ छोड़कर भाग भी नहीं सकता मैं, शिवम के बारे में पता किए बिना मैं भी तुम्हारे साथ हूं विनय" - अमर ने कहा।
"थैंक्स गाइज़, मुझे पता था तुम सब कुछ मेरे साथ हो, लेकिन अबीर का डर भी सही है, सबसे ज्यादा उसके साथ ही हुआ है; शायद इसलिए वह डर के मारे ऐसा बोल रहा है, और अबीर यार अगर तुझे वापस जाना है तो तू जा सकता है; हम तुझे नहीं रोकेंगे" - विनय बोला।
"हां, अबीर मैं भी समझ सकता हूं!" - अमर ने कहा और साथ ही श्रेया ने कहा - "मुझे भी नहीं याद कि मुझे साथ क्या हुआ था, लेकिन मुझे पता करना है, सब कुछ खुशी और उस फार्महाउस से जुड़ा जो भी है।"
"मैं इतना भी डरपोक नहीं हूं यारों, मैं भी इन सब में तुम सबके साथ हूं, कहीं नहीं जा रहा मैं, तुम सब के साथ ही यहां रहूंगा और सब पता करके ही चलेंगे, लेकिन एक बात है...." - बोलते बोलते अबीर एकदम से चुप हो गया।
"ऐसी क्या बात है?" - श्रेया ने पूछा।
"क्या ऐसा कुछ है? जो तुम ने हम लोगों को नहीं बताया...." विनय ने अबीर से पूछा।
"मैंने जो सपना देखा था, उस हिसाब से मुझे लगता है कि..."-अबीर ने बोला और फिर से रुक गया।
"क्या लगता है यार! अबीर तुझे, साफ-साफ बोल इस बार" अमर ने पूछा।
"देखो, तुम लोग मेरी बात ध्यान से सुनना और समझने की कोशिश करना" - अबीर बोला।
"यार अबीर; तु बता तो सही" - श्रेया बोली।
"मुझे लगता है कि शिवम अब जिंदा नहीं है शायद, क्योंकि मैंने सपने में शिवम की आत्मा देखी थी!" - अबीर ने कहा।
"सपने में तो कोई कुछ भी देख सकता है, यार!" - श्रेया बोली।
"लेकिन अबीर! तू इतना यकीन के साथ कैसे कह सकता है? कि शिवम जिंदा नहीं है!" - विनय ने पूछा।
"पता नहीं यार! यकीन के साथ तो नहीं, लेकिन जो मुझे लगा; मैंने तुम सबको बता दिया" - अबीर ने कहा।
"हो सकता है शिवम किसी मुसीबत में हो, इसलिए तुझे ऐसा सपना आया, तू आराम कर अबीर! बाकी बाद में देखते हैं" - अमर ने उसे समझाते हुए कहा।
तब तक वो चारों घर पहुंच गए और वहां पहुंचकर अबीर ने कहा कि "कोई भी अकेला नहीं रहेगा क्योंकि जो कुछ भी होता है; अकेले इंसान के साथ ही होता है।"
"हां ठीक है, मैं श्रेया के साथ रहूंगा और तुम दोनों एक साथ ही रहना" - विनय ने कहा।
अमर वहां से उठकर किचन में पानी लेने के लिए जाता है; कि तभी बिजली चली जाती है और पूरे घर में एकदम से अंधेरा हो जाता है।
श्रेया अंधेरे में डर के मारे चीख पड़ती है कि तभी विनय उसका हाथ पकड़ता है और उसे संभालते हुए कहता है कि - "रिलैक्स! श्रेया रिलैक्स! कुछ नहीं हुआ मैं यही हूं, लाइट गई है बस, अबीर कहां है?"
"अबीर ..... अबीर...." - विनय आवाज लगाता है।
"मैं यही हूं, और ठीक हूं!" - अबीर जवाब देता है।
"अमर किचन में गया था पानी लेने, आई होप वह भी ठीक हो" - श्रेया कहती है।
"चलो देखते हैं!" - अबीर बोलता है और फिर वह तीनों किचन की तरफ जाते हैं,
तभी विनय कहता है कि "तुम लोग चलो किचन की तरफ जब तक मैं कैंडल्स ढूंढता हूं!"
"ओके, जब तक हम दोनों अमर को देखते हैं!" - अबीर कहता है।
"ओके" बोलकर विनय दूसरी तरफ चला जाता है।
अबीर और श्रेया अमर को आवाज लगाते हैं - "अमर... अमर तुम कहां हो?"
लेकिन अमर का कोई जवाब नहीं मिलता तभी एकदम से पूरे घर की बत्तियां जलने बुझने लगती हैं अबीर और श्रेया दोनों ही डर जाते हैं; और भागकर हॉल में आते हैं तभी अबीर किसी से टकरा जाता है और एकदम से डर जाता है, फोन में भी ठीक तरह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि लाइट्स ऑन ऑफ हो रहे हैं!
अबीर एकदम से बोलता है कि "कौन है? कौन है?"....
"अरे यार, मैं अमर तू ठीक तो है ना अबीर, यह सब क्या हो रहा है? लाइट्स ऑन ऑफ" – तब अबीर को पता चलता है कि वह जिस से टकराया वह अमर है!
उन सब की आवाज सुनकर विनय भी हॉल में ही आ जाता है और उन सब से पूछता है - "तुम लोग ठीक हो ना?"
श्रेया बोलती है - "हां हम तीनो तो ठीक हैं, तुम ठीक हो?"
"हां मैं ठीक हूं; लेकिन यह सब क्या हो रहा है?" - विनय पूछता है।
"पता नहीं, पहले यहां से बाहर निकलते हैं; चलो सब दरवाजे की तरफ" - अबीर बोलता है।
"कोई फायदा नहीं है, दरवाजा नहीं खुल रहा है मैं उस तरफ से ही आ रहा हूं" - अमर ने बोला।
"तो कोई और रास्ता होगा, यहां से बाहर निकलने का?" - अबीर ने पूछा।
"पता नहीं; यह सब क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है हमारे साथ? देखते हैं बाहर निकलने का रास्ता; चलो सब साथ में ही रहना" - विनय परेशान होता हुआ बोला।
तभी दोबारा से सारी लाइट्स बंद हो गई और लाइट बंद होते ही, सफेद सूट पहने हुए एक लड़की अबीर को कमरे के अंदर जाती हुई दिखी; लेकिन जब तक अबीर ने बाकी सब को बताया तब तक वह लड़की उसकी आंखों से ओझल हो गई।
"मैंने अभी-अभी देखा यहां पर, वो लड़की खुशी, वही थी शायद यह सब वही कर रही है!" - अबीर ने कहा।
अबीर की बातें सुन कर श्रेया डर के मारे विनय से और भी ज्यादा चिपक गई।
"कहां देखा तूने उसे, और वह सिर्फ तुझे ही क्यों दिखती है? हम सबको क्यों नहीं" - अमर ने पूछा।
"मुझे क्या पता यार, क्यों सिर्फ मुझे ही दिखती है, तुम लोगों का ध्यान नहीं होगा शायद उस तरफ, उस कमरे में गई है वो" - अबीर आखिरी कमरे की तरफ इशारा करते हुए बोला।
"वह तो तेरा ही कमरा है ना अबीर?" - विनय बोला।
"मेरा क्या यार; मैं तो अभी आया हूं तुम लोगों के साथ ही यहां; सिर्फ 2 दिन सोया हूं उस कमरे में बस, सोया भी क्या नींद हराम है तब से ही" – अबीर ने कहा।
"मुझे तो लगता है जो कुछ भी है; उसी कमरे से जुड़ा है शायद" - श्रेया बोली।
"पता है, लेकिन पता करना पड़ेगा रुको मैं कैंडल जलाता हूं, फिर चलते हैं उस कमरे में!" - इतना बोल कर विनय एक मोमबत्ती और माचिस लेकर आ गया फिर उसने माचिस से मोमबत्ती जलाई और वो चारों एक साथ उसी कमरे की तरफ बढ़ने लगे........
क्रमशः
पूरे घर में अंधेरा छाया हुआ था और सिर्फ विनय अपने हाथ में जलती हुई मोमबत्ती पकड़े हुए सबसे आगे निकला और वह चारों धीरे-धीरे अबीर के कमरे की तरफ बढ़े।
उसी कमरे की तरफ जिस कमरे में अबीर ने उस लड़की खुशी को जाते हुए देखा था।
जैसे तैसे वह चारों डरते डरते कमरे के अंदर पहुंचते हैं और अबीर तो इतना ज़्यादा डरा हुआ होता है कि दरवाजे के पास ही खड़ा हो जाता है; एक पैर दरवाजे के अंदर और दूसरा पैर दरवाजे के बाहर रख कर....
विनय, श्रेया और अमर पूरी तरह से कमरे के अंदर चले जाते हैं लेकिन अबीर को ऐसे ही दरवाजे पर रुका हुआ देखकर वो तीनों पीछे मुड़कर देखते हैं और उससे पूछते हैं -
"क्या हुआ अबीर! तुझे वह दिख रही है क्या?"
"नहीं, अभी तो कुछ नहीं दिख रहा, कोई भी नहीं दिख रहा लेकिन फिर भी रिस्क क्यों लेना मैंने फिल्मों में देखा है कि पूरा अंदर जाते ही दरवाजा कस कर बंद हो जाता है और फिर सभी लोग कमरे के अंदर ही फंस जाते हैं" - अबीर एक दम डरा हुआ सा बोला....
उस की बात सुनकर विनय, शिवम और श्रेया को हंसी आती है और गुस्सा भी और विनय उस से कहता है कि -
"फालतू बकवास हॉरर फिल्में कम देखा कर तु।"
"अगर ऐसी बात है तो मैं भी अबीर के साथ यही खड़ी रहती हूं" - श्रेया बोली।
"कसम से; तुम दोनों तो उस भूतनी से भी ज़्यादा डरा रहे हो" - अमर हल्के गुस्से में कहता है और उसके इतना बोलते ही अचानक से अबीर कमरे के अंदर आ जाता है, इस तरह से जैसे किसी ने उसे अंदर की तरफ धक्का दिया हो।
और अबीर के कमरे के अंदर आते ही उस कमरे का दरवाजा एक तेज आवाज के साथ बंद हो जाता है और विनय के हाथ में पकड़ी हुई मोमबत्ती भी बुझ जाती है।
वो चारों बुरी तरह डर जाते हैं और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगते हैं, तभी उस कमरे की एक लाइट ऑन हो जाती है और उसकी रोशनी में उन्हें खिड़की के पास खड़ी हुई एक लड़की दिखाई देती है।
उस लड़की को देखकर अबीर अपनी जगह से पीछे हटने लगता है और उस तरफ इशारा करके कुछ बोलने की कोशिश करता है, लेकिन उस के शब्द जैसे मुंह में ही दब कर रह जाते हैं।
अबीर को लगता है कि इस बार भी वह लड़की सिर्फ उसे ही दिखाई दे रही है और उस के साथ ही फिर से कुछ बुरा होने वाला है - यह सब सोचकर अबीर की हलक सूख जाती है और वहां पूरी हिम्मत जुटा कर एक बार फिर से बोलने की कोशिश करता है और कहता है - "वह उधर खिड़की के पास देखो...." और इतना बोल कर अबीर अपने दोस्तों की तरफ मुड़ता है तो देखता है कि वो तीनों अपने स्थान पर एक दम जड़ होकर पहले से ही उस खिड़की की तरफ ही देख रहे हैं।
"उधर ही तो देख रहे हैं, लेकिन अब आगे क्या करना है?" - अमर धीमी आवाज़ में बोला, लेकिन अबीर अब तक उन तीनों के करीब पहुंच चुका था, इसलिए उस ने सुन लिया।
"सच कह रहा था अबीर तु, यह तो सच में एक आत्मा ही लग रही है।" - विनय ने भी डरते हुए कहा।
"मैं तुम लोगों से झूठ क्यों बोलूंगा यारों, अब तो आ गया ना मेरी बातों पर विश्वास" - अबीर ने कहा।
"लेकिन यह लड़की, आई मीन आत्मा, खुशी, जो भी है यह हम लोगों से क्या चाहती है?" - इस बार श्रेया बोली।
"यह तुम उससे ही जाकर क्यों नहीं पूछ लेती श्रेया, क्या पता तुम्हें अपनी सहेली बनाकर कुछ बता दे" - अमर बोला तो उसकी इस बात पर बाकी तीनों उसे घूर कर देखने लगे और तभी कमरे की लाइट भी ऑन / ऑफ होने लगी और अचानक से लाइट ऑफ हो गई और अंधेरे में श्रेया ने डर से चिल्लाकर किसी का हाथ पकड़ लिया और बोली -
"विनय बेबी, मुझे बहुत डर लग रहा है, वह मुझे कुछ करेगी तो नहीं; मेरा मतलब है हम सब को..."
"वेट श्रेया, डरो नहीं, हम सभी यही हैं, मैं कैंडल जलाता हूं" - अंधेरे में विनय की आवाज़ आई और जैसे ही विनय ने कैंडल जलाया वैसे ही रूम की लाइट भी जल गई और विनय ने देखा कि अबीर और अमर दोनों बेहोश पड़े हैं और श्रेया जल्दी से आकर विनय के गले से चिपक गई।
"इन दोनों को क्या हुआ" - विनय ने श्रेया की तरफ देखकर पूछा।
"पता नहीं, और खिड़की के पास जो लड़की थी अब वह भी यहां नहीं है और तुम तीनों मुझसे इतनी दूर थे तो मैंने अंधेरे में किसका हाथ...." - श्रेया घबराते हुए बोल ही रही थी कि विनय ने कहा - "देखो श्रेया यहां कहीं पानी है कमरे में? बेहोश कैसे हो गए" बोलकर विनय हाथ में पकड़ी हुई कैंडल एक तरफ रख कर, ज़मीन पर अमर और अबीर के बीच में बैठ गया और उन दोनों का नाम लेकर उन्हें जगाने लगा।
तभी श्रेया पानी का ग्लास ले कर विनय के पास आई और बोली -
"यह लो बेबी पानी और तुम तो ठीक हो ना?"
"हां, मैं ठीक हूं श्रेया तुम ठीक हो?" - विनय ने श्रेया से पूछा।
"मैं ठीक हूं; बस थोड़ी परेशान हूं कि यह सब हमारे और हमारे दोस्तों के साथ ही क्यों हो रहा है, हमें यहां आना ही नहीं चाहिए था" - श्रेया रोते हुए बोली।
"चुप हो जाओ श्रेया, इन दोनों को होश में आने दो अभी पहले, पता करते हैं मामला क्या है और वो लड़की या आत्मा जो भी है, हमारे पीछे ही क्यों पड़े हैं" - इतना बोल कर विनय; अबीर और अमर से चेहरे पर पानी के छींटे डालता है और उन दोनों को एक-एक करके होश आने लगता है।
विनय, श्रेया से उस कमरे का दरवाजा खोलने को कहता है और दरवाजा एकदम आराम से खुल जाता है और वह तीनों उस कमरे से निकलकर बाहर हॉल में आ जाते हैं।
बाहर आने के बाद विनय अमर और अबीर दोनों से पूछता है कि - "क्या हुआ था तुम दोनों को? अचानक से बेहोश कैसे हो गए थे तुम दोनों..."
इस पर अबीर बोलता है - "कमरे में अचानक से अंधेरा हो जाने के ऐसा लगा कि जैसे एक साया मेरी तरफ बढ़ रहा है और फिर धीरे-धीरे मेरे ही शरीर में समा गया, उसके बाद मेरा सर बहुत भारी हो गया और मैं चक्कर खाकर गिर गया।"
अबीर का जवाब सुनने के बाद वह तीनों अमर की तरफ देखने लगते हैं; तो अमर अपना सर पकड़ कर बैठा हुआ रहता है और बोलता है - "अबीर ठीक कह रहा था, हमें यहां नहीं रुकना चाहिए चलो यहां से अभी वापस क्योंकि मुझे तो याद भी नहीं मेरे साथ क्या हुआ और मेरा सिर दर्द के मारे फटा जा रहा है।"
"रुको मैं तुम्हारे लिए स्ट्रांग कॉफी बना कर लाती हूं और बाकी सब के लिए भी" - बोलकर श्रेया अपनी जगह से उठ कर किचन की तरफ जाने लगती है तभी शिवम उस से कहता है -
"रहने दो श्रेया, मुझे नहीं पीनी कॉफी; क्यों टाइम वेस्ट कर रहे हैं हम लोग अपनी जान मुसीबत में डाल कर यहां; यार चलो ना वापस दिल्ली चलते हैं।"
"क्यों? खुद पर बीती तो समझ आ रहा है और जब मैं कह रहा था तब तो तुझे शिवम की फिक्र हो रही थी, अब नहीं पता करना तुझे उसके बारे में" - अबीर ने अमर पर व्यंग करते हुए कहा।
"अबीर, तु कुछ ज़्यादा ही बोल रहा है; चुप कर जा" - अमर हल्के गुस्से में बोला।
"चुप करो तुम दोनों ही यह वक्त एक दूसरे को ताना मारने और आपस में लड़ने का नहीं है बल्कि मिलकर इस प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालने का है।" - विनय उन दोनों को चुप करा कर समझाते हुए बोला।
"हां विनय बेबी, एकदम ठीक कह रहा है, तुम लोग बच्चों की तरह हरकतें मत करो; यह वक्त समझदारी दिखाने का है और मैं जा रही हूं अपने और विनय बेबी के लिए कॉफी बनाने; तुम दोनों में से किसी को पीनी हो तो बता देना" - इतना बोल कर श्रेया वहां से चली गई।
"ये श्रेया को क्या हुआ है यार विनय? इतना नॉर्मल कैसे बिहेव कैसे कर रही है यह" - श्रेया के वहां से चले जाने के बाद अमर ने विनय से पूछा।
"क्यों, क्या हो गया? ठीक तो है वह" - विनय ने अमर से कहा।
"यही तो अजीब बात लग रही है यार! कि वो ठीक कैसे हैं? इतना सब होने के बाद भी अभी थोड़ी देर पहले तो इतनी डरी हुई थी" - इस बार अबीर ने कहा।
उन दोनों की बात सुनकर विनय भी थोड़ी सोच में पड़ गया और उन दोनों की बात का कोई जवाब देने ही वाला था कि तभी श्रेया हाथ में 2 कॉफी मग लेकर वहां पर आ गई और एक कॉफी का कप विनय को देते हुए, उसके साइड में ही बैठ गई और फिर बोली -
"क्या हुआ तुम तीनों को, कुछ सोचा आगे क्या करना है?"
"पता नहीं अभी तो कुछ" - विनय ने उसकी तरफ देख कर जवाब दिया।
"मैं तो कह रहा हूं, चलो निकल चलते हैं यहां से" - अमर बोला।
"हां, अभी जो कुछ भी हुआ उस के बाद तो अब मुझे भी यहां और नहीं रुकना" - अबीर बोला और अपनी जगह पर उठ कर खड़ा हो गया।
क्रमशः
11
"सही कह रहे हो तुम दोनों, मुझे भी लगता है हम लोगों को अपनी जान खतरे में नहीं डालनी चाहिए और रही शिवम के बारे में पता करने की बात तो मैंने पुलिस स्टेशन में अपना नंबर दे दिया है और दिल्ली वाला एड्रेस भी, वो लोग शिवम के बारे में कुछ भी पता चलते ही हमें इन्फॉर्म कर देंगे," विनय भी अमर और अबीर की बातों से सहमति जताते हुए बोला।
"तो चलो, फिर हम सब इंतजार किस का कर रहे हैं?" अमर बोला।
"लेकिन ऐसे कैसे जा सकते हैं एकदम अचानक से?" श्रेया बोली और वो तीनों लड़के श्रेया की तरफ हैरानी से देखने लगे और अबीर बोला, "जब से यहां पर आएं हैं रोज ही कुछ ना कुछ अजीब हो रहा है और शिवम भी गायब है, जान पर बन आई है यहां रहते और तुम्हें यह सब अचानक लग रहा है? इससे बड़ी क्या वजह चाहिए तुम्हें यहां से वापस जाने के लिए?"
"अबीर बिल्कुल सही कह रहा है श्रेया, मैं तो जा रहा हूं, तुम्हे उस आत्मा के साथ रहने का शौक लगा है तो रहो यही," अमर थोड़ा चिढ़ कर बोला।
"अरे लेकिन मेरी बात तो सुनो...." श्रेया बोल ही रही थी कि तभी विनय उसकी बात काटते हुए बोला, "सच में श्रेया, अब जब कि हम सब ने अपनी आंखों से सब कुछ देख लिया है, और हम सब ही यहां से वापिस दिल्ली चले जाना चाहते हैं; तो अब तुम्हें क्या शौक लग रहा है यहां पर रुकने का?"
"चुप करो, तुम तीनों और मेरी बात सुनो मैं तो बस इतना कह रही थी कि बिना पैकिंग किए यहां से वापस कैसे जा सकते हैं, सामान तो पैक करना ही होगा ना," श्रेया चिल्लाते हुए थोड़े गुस्से में बोली।
"हद है श्रेया, ऐसे टाइम में भी तुम्हें पैकिंग की पड़ी है जो सामान जैसे मिले रखो और निकलो यहां से," अबीर अपना सिर पीटते हुए बोला।
"ठीक है, मैं करती हूं वैसे कब निकलना है?" श्रेया ने पूछा।
"डेट, टाइम और शेड्यूल की पड़ी है तुम्हें ऐसे में श्रेया; बस अभी निकलना है बाहर मिलो कार के पास," अमर ने कहा और अपने कमरे की तरफ चला गया।
"चलो मैं तुम्हारी हेल्प करता हूं, जल्दी हो जाएगा," इतना बोल कर विनय श्रेया के साथ वहां से चला गया।
अब हॉल में सिर्फ अबीर बचा था, और डरी हुई नजरों से अपने कमरे की तरफ देख रहा था, उसका उस कमरे में जाने का बिल्कुल मन नहीं था; लेकिन उसका सारा सामान तो उसी कमरे में था और उनमें से कुछ जरूरी भी था, सब तो वह ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता था।
थोड़ी देर बाद हिम्मत करके और मन में भगवान का नाम लेकर अबीर अपनी जगह से उठा और कमरे में जाने की सोचने लगा, लेकिन अपने कमरे में जाने के बजाय वह अमर के कमरे में चला गया।
अबीर ने देखा कि अमर जल्दी जल्दी अपना सामान पैक कर के कमरे से बाहर निकलने ही वाला था कि तभी अबीर वहां पहुंच गया और अमर से बोला, "सामान रख लिया तूने अपना?"
"हां, हो गया मेरा तो; चल जल्दी यहां से बाहर निकलते हैं!" अमर, अबीर से बोला।
"बड़ी जल्दी में है यार! अकेले ही चला जाएगा क्या तू वापस?" अबीर बोला।
"क्यों तुझे यही रहना है क्या, ऐसे क्यों बोल रहा है?" अमर ने अबीर से कहा।
"नहीं....नहीं.... बिल्कुल भी नहीं, मैं तो ऐसा इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि मैंने अपना सामान नहीं निकाला कमरे से," अबीर बोला।
"क्यों नहीं निकाला?" अमर ने पूछा।
"यार मेरा सामान उसी कमरे में है, जिस में अभी हम सब थोड़ी देर पहले गए थे और मुझे अकेले डर लग रहा है वहां जाने में तू भी चल मेरे साथ," अबीर बोला।
"नहीं मैं नहीं चल रहा, उस भूतिया कमरे में तेरे साथ, मरने का शौक नहीं है मुझे, तू विनय को क्यों नहीं ले जाता, अपने साथ," अमर ने कहा।
"वह श्रेया की हेल्प कर रहा है और उसे अपनी पैकिंग भी तो करनी है, तेरी हो गई है चल यहां से, मेरे साथ नहीं तो और ज्यादा टाइम रुकना पड़ेगा हम लोगों को यहां," अबीर ने कहा।
"अच्छा ठीक है चल!" बोलकर अमर भी उसके साथ चल पड़ा।
अबीर और अमर दोनों भगवान का नाम लेते हुए अबीर के कमरे में पहुंचे और कमरे में पहुंच कर अबीर जल्दी-जल्दी अपना सामान और कपड़े उल्टा सीधा बैग में ठूंसने लगा लेकिन अमर इधर उधर पूरे कमरे में देखने लगा और फिर खिड़की के पास पहुंच गया, जहां पर उस लड़की की आत्मा उन सबको दिखाई दी थी।
तभी एक आश्चर्यजनक बात हुई, अपने सब सामान के साथ अभी को अपना सेल फोन भी मिल गया, जो कि इतने दिनों से खोया हुआ था। मोबाइल फोन बैटरी नहीं थी, वह लॉक्ड था लेकिन अबीर ने अपना मोबाइल जेब में रख लिया और बाकी सामान रखने लगा। थोड़ा अजीब तो लगा कि उसका फोन ऐसे अचानक से कैसे मिल गया? लेकिन इतना सब अजीब हो रहा था वहां पर, कि अबीर ने अमर से भी फोन वाली बात नहीं बताई और वह बस जल्दी से जल्दी वहां से निकलना चाहता था।
तभी खिड़की के पास खड़े हुए अमर ने एकदम अचानक से चिल्ला कर कहा, "ओ माय गॉड अबीर! यह देखो क्या है?"
उधर दूसरी तरफ श्रेया पैकिंग करने के बजाए परेशान और अजीब से एक्सप्रेशन के साथ अपने कमरे के बेड पर बैठी थी और विनय दोनों के बैग निकाल रहा था और अपना सामान भी रख रहा था।
श्रेया का बैग उसके सामने रखकर विनय बोला, "क्या सोच रही हो श्रेया? जल्दी करो हमें निकलना है यहां से, अबीर और अमर हमारा वेट कर रहे होंगे!"
"तुमने नहीं सोचा एक बार भी कि वह आत्मा हमारे पीछे ही क्यों पड़ी है?" श्रेया नीचे की तरफ सर किए हुए भारी आवाज में विनय से बोली।
"प्लीज श्रेया! अब तुम यह मत कहना कि तुम्हें हमदर्दी हो रही है उस आत्मा से और तुम यहां रुकना चाहती हो, सब पता करने," विनय बोला।
विनय की इस बात पर श्रेया कुछ नहीं बोली और उसी तरह से नीचे जमीन की तरफ देखती रही और विनय ही फिर से बोल पड़ा, "श्रेया रखो सामान अपना।"
"फिर भी कोई तो वजह होगी ही जो यह सब हमारे साथ ही हो रहा है," श्रेया अजीब तरह से सिर नीचे किए हुए हिलती हुई बोली, उसका सिर सिर्फ ऊपर नीचे हो रहा था लेकिन विनायक उसका चेहरा साफ नहीं दिख रहा था और विनय पैकिंग करने में इतना बिजी था कि श्रेया की तरफ देख भी नहीं रहा था ज्यादा गौर से....
"बस करो श्रेया, तुम कहीं यहां रुकने का तो नहीं सोच रही हो ना? हमें निकलना होगा यहां से, जल्दी करो," विनय बोला।
"कोई नहीं जा सकता यहां से बाहर कहीं भी, बिना मेरी मर्जी के," तेज आवाज में चिल्लाकर बोलते हुए श्रेया ने अपनी गर्दन पर उठाई, उसका चेहरा एकदम सफेद और आंखें एकदम काली हो गई थी पूरे चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे और देखने में वह बेहद डरावनी लग रही थी।
विनय उसकी तरफ देख कर डर कर पीछे हटने लगा और बोला, "यह सब क्या हो गया है श्रेया तुम्हें? रुक जाओ वही!" तभी श्रेया धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ने लगी और अपने हाथ से विनय का गला दबाते हुए अलमारी से लगाकर विनय को हवा में उसने ऊपर उठा दिया और बोली, "सही सलामत रहोगे, तभी तो भागोगे ना यहां से...."
"छोड़ दो मुझे श्रेया…...अमर, अबीर बचाओ कोई है अबीर..." विनय जोर जोर से चिल्लाने लगा लेकिन तभी श्रेया का हाथ उसकी गर्दन पर कस चुका था।
क्रमशः
अमर अबीर के कमरे की खिड़की के पास खड़ा था, तभी उसको कुछ मिला और उसने अबीर को आवाज लगाई - "ओह माय गॉड! यह देखो क्या है अबीर?"
"क्या हुआ अमर?" - इतना बोल कर अबीर अपनी पैकिंग छोड़ कर अमर की तरफ बढ़ने लगा।
तभी उन दोनों के कान में अपने नाम की आवाज गूंजी, कोई जोर से उन दोनों का नाम लेकर मदद के लिए चिल्ला रहा था।
वह विनय की आवाज थी, लेकिन विनय सिर्फ 2 बार ही मदद के लिए चिल्ला पाया और इतनी देर में श्रेया ने उसका गला कस के दबा कर, उसे हवा में उठा कर जमीन पर छोड़ दिया और ऐसा करने से विनय जमीन पर गिरकर बेहोश हो गया; उसकी गर्दन पर नाखूनों के निशान से कुछ खून भी निकल रहा था और जमीन पर गिरने से उसके सिर पर भी चोट आई थी।
अबीर और अमर दोनों ने जैसे ही यह आवाज सुनी, उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और अबीर परेशान होते हुए बोला - "यह तो विनय की आवाज है; क्या हुआ उसे...."
"श्रेया भी उसके साथ ही है, चलो जल्दी चल कर देखते हैं।" - अमर भी घबराते हुए बोला और फिर वह दोनों जल्दी से भागकर अबीर के कमरे से निकल कर विनय और श्रेया के कमरे में पहुंचे जहां से आवाज आती हुई, उन लोगों ने सुनी थी।
अमर और अबीर जैसे ही उस कमरे के अंदर पहुंचे, उन्होंने देखा कि विनय अलमारी के पास जमीन में ही बेहोश पड़ा है और उसे कई जगह पर चोट आई है और उसके सिर से भी खून निकल रहा था।
विनय को ऐसी हालत में देख कर उन दोनों के होश गुम हो गए, उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वहां पर क्या हुआ है और कैसे हुआ है?
फिर भी अबीर ने हिम्मत की और जल्दी से भागकर जमीन पर बेहोश पड़े विनय के पास पहुंचा और उसके सिर से बहते हुए खून को अपना रुमाल लगाकर देखने की कोशिश करने लगा, अबीर को अंदर आते देख अमर में भी पूरी हिम्मत आई और वो भी अबीर के पीछे कमरे के अंदर आया और चारों तरफ नजरें घुमा कर देखने लगा, श्रेया उसे कहीं भी दिखाई नहीं दी।
अमर ने अबीर से कहा - "क्या हुआ यहां पर, कैसे हुआ विनय के साथ यह सब और श्रेया कहां पर है?"
अमर ने जब श्रेया का नाम लिया तब अबीर को श्रेया का ध्यान आया, उसने भी कमरे में सब तरफ एक नजर दौड़ाई और अमर से बोला - "विनय और श्रेया एक साथ ही उस कमरे में आए थे, जरूर यहां पर कुछ गलत हुआ है, तुम देखो श्रेया कहां है; मैं विनय को संभालता हूं।"
"कहीं वह किसी मुसीबत में ना फंस गई हो, विनय इस हालत में है श्रेया के साथ पता नहीं क्या हुआ होगा?" - अमर घबराते और डरते हुए बोला।
"ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा, तू देख तो सही यही कहीं होगी श्रेया" - अबीर उसे दिलासा देते हुए बोला जबकि उसके मन में भी बहुत बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे।
अमर ने पूरे कमरे में श्रेया को ढूंढा, लेकिन जब वह नहीं मिली तो वह कमरे से बाहर जाने लगा लेकिन तभी उन दोनों ने किसी लड़की के रोने की आवाज सुनी।
और उस आवाज को सुनकर दरवाजे पर ही रुक गया, अबीर ने उसे अंदर आने का इशारा किया, वह आवाज अलमारी के अंदर से आ रही थी।
विनय अलमारी के बाहर ही जमीन पर बेहोश पड़ा था इसलिए अबीर और अमर ने मिलकर पहले विनय को उठा कर बेड पर लेटाया और उसके बाद दोनों एक साथ ही हिम्मत करके अलमारी की तरफ बढ़ने लगे।
उन दोनों को डर लग रहा था कि कहीं वह कोई छलावा ना हो, उन दोनों को फंसाने के लिए खुशी की आत्मा श्रेया की तरह रोने की आवाज निकाल रही हो।
लेकिन उन लोगों ने फिर अपने मन में सोचा कि क्या पता शायद वह श्रेया ही हो, एक बार तो अलमारी खोलकर देखना ही होगा इस में से किसकी आवाज आ रही है।
अलमारी के एकदम करीब पहुंच कर अबीर और अमर दोनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे, अलमारी के अंदर से अभी भी लड़की के रोने की आवाज आ रही थी: उन दोनों को ही वह आवाज जाने पहचाने से और श्रेया की ही लग रही थी; लेकिन फिर भी उन दोनों में से किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी, बाहर से अलमारी का दरवाजा खोल कर देखने की।
आखिरकार फिर से अबीर ने हिम्मत की और अलमारी का दरवाजा खोला और दरवाजा खुलते ही उन दोनों ने देखा कि सामने अलमारी के अंदर श्रेया ही छुप कर बैठी हुई है, एकदम डरी सहमी हुई सी और अपना चेहरा दोनों घुटनों के बीच में छुपा कर रो रही है, और अलमारी का दरवाजा खुलते ही दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख कर चिल्लाते हुए बोली - "छोड़ दो मुझे, मत मारो मेरे विनय को भी! छोड़ दो उसे...."
श्रेया की ऐसी हालत देख कर अमर और अबीर कुछ समझ नहीं पाए कि वह इस तरह क्यों रिएक्ट कर रही है वह भी उन दोनों को देख कर, फिर भी अबीर उसे समझाने और संभालने की कोशिश करते हुए बोला - "श्रेया.... इधर देखो श्रेया, मैं हूं अबीर कुछ नहीं होगा तुम्हें; चुप हो जाओ।"
अबीर की आवाज सुनकर श्रेया ने सिसकते हुए अपना चेहरा ऊपर उठा कर देखा और दबी हुई आवाज में बोली - "वो.....वो सब को मार डालेगी, किसी को नहीं छोड़ेगी, मेरे विनय को उसने मारने की कोशिश की, कहां है विनय?"
"डरो नहीं, हम हैं श्रेया! हम दोनों हैं यहां, तुम्हें कुछ नहीं होगा ना, विनय भी यहीं है, वहां बेड पर अभी बेहोश है।" - अमर उसे दिलासा देते हुए बोला जबकि यह सब देख कर बहुत अंदर से बहुत ज्यादा डरा हुआ था।
"आओ तुम बाहर निकलो यहां से, विनय को कुछ नहीं हुआ वह बस बेहोश है, चलो उसके पास" - अबीर श्रेया को उस अलमारी से बाहर निकालने की कोशिश करते हुए बोला।
"नहीं, मैं नहीं, मुझे यही रहने दो दरवाजा बंद कर दो अलमारी का, उसने विनय को हवा में उठा दिया था और फिर उसे मारने वाली थी, तुम लोग भी कहीं छुप जाओ, छुप जाओ जाकर...." - श्रेया बदहवास सी बड़बड़ाए जा रही थी।
"मुझे लगता है इसे किसी बात का शाॅक लगा है!" - अमर ने अबीर से कहा।
"हां, इसकी हालत देखकर तो ऐसा ही लग रहा है, पता नहीं ऐसा क्या देखा है श्रेया ने" - अबीर कुछ सोचते हुए बोला।
"वही जो विनय के साथ हुआ है, वही सब देख लिया होगा इसने" - अमर ने कहा।
"हां हो सकता है लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रही कि उस खुशी की आत्मा ने श्रेया को कोई नुकसान क्यों नहीं पहुंचाया, विनय से ही उसकी ऐसी क्या दुश्मनी है?" - अबीर बोला।
"पता नहीं यार, यह तो अभी विनय या श्रेया में से ही कोई बता सकता है लेकिन अभी दोनों ही इस हालत में नहीं है" - अमर ने अबीर से कहा।
और फिर श्रेया की तरफ देखता हुआ बोला - "बाहर आ जाओ श्रेया कुछ नहीं होगा, वह देखो विनय को तुम्हारी जरूरत है उसे चोट लगी है।"
"ठीक तो है ना वह?" - श्रेया ने अमर से पूछा।
"खुद ही देख लो बाहर आकर" - इतना बोल कर अबीर ने अपना हाथ श्रेया की तरफ बढ़ाया और फिर श्रेया ने उसका हाथ थाम लिया और उन दोनों के चेहरे की तरफ देखने लगी।
अबीर और अमर दोनों ने उसे समझा कर उस अलमारी से बाहर निकाला और फिर विनय के पास ले जाकर बैठा दिया, विनय की हालत देखकर श्रेया फिर से रोने लगी और रोते रोते ही बोली - "क्या हुआ मेरे विनय को, इतनी ज्यादा चोट लगी है इसे होश क्यों नहीं आ रहा कोई डॉक्टर को बुलाओ।"
"हां यार अमर! जल्दी डॉक्टर को बुला, विनय की हालत ठीक नहीं लग रही" - अबीर ने अमर से कहा।
"लेकिन यहां के किसी डॉक्टर का नंबर कहां है मेरे पास" - अमर ने कहा।
"हां यार, मैं तो भूल ही गया था हम मनाली में है दूसरे शहर में भी, और यहां किसी को जानते भी नहीं है किस से मदद ले?"- अबीर सोचते हुए हुए बोला।
"विनय का मोबाइल फोन ढूंढो, शायद उसमें हो यहां के किसी डॉक्टर का नंबर" - श्रेया विनय के माथे पर लगा खून साफ करती हुई बोली।
"एक काम कर, अमर तू यहां श्रेया और विनय के पास रुक और मोबाइल फोन ढूंढ कर उसमें डॉक्टर का नंबर देखना, जब तक मैं बाहर से मदद ले कर आता हूं" - अबीर बोला।
"लेकिन तू जाएगा कहां यहां मनाली में तो हम लोग किसी को जानते भी नहीं है" - अमर ने अबीर से पूछा।
"वॉचमैन से पूछता हूं।" - अबीर ने कहा।
"लेकिन वॉचमैन तो कल से आया ही नहीं, कोई नहीं है गेट पर" - अमर ने उसे बताया।
"तो फिर एक ही रास्ता बचता है मदद के लिए!" - अबीर ने कहा।
"क्या? कौन सा रास्ता?" - अमर और श्रेया दोनों ने अबीर से पूछा।
क्रमशः
"एक ही रास्ता है अब तो बस," अबीर बोला।
"क्या?" श्रेया और अमर ने एक साथ पूछा।
"दीनू काका, हमें दीनू काका से मदद लेनी होगी," अबीर बोला।
"लेकिन दीनू काका हमारी मदद क्यों करेंगे, उन्होंने तो पहले ही हमारी मदद करने से मना कर दिया था," अमर बोला।
"लेकिन उनके अलावा तो और किसी को हम लोग जानते भी नहीं है ना यहां," अमर ने फिर से कहा।
"हां, इसीलिए तो हमें उनसे ही मदद लेनी पड़ेगी," अबीर बोला।
"अच्छा, ठीक है मैं यहां विनय के पास हूं, तुम दोनों जाओ मदद लेने," श्रेया बोली।
"नहीं, तुम दोनों अकेले ही थे जब तुम पर हमला हुआ, इसलिए अमर तुम यहीं श्रेया और विनय के पास रहो, मैं अकेले ही जाता हूं," अबीर ने कहा।
"लेकिन अबीर, अगर तुझे कुछ हो गया तो?" अमर बोला।
"मुझे कुछ नहीं होगा, तुम दोनों विनय का ध्यान रखो, मैं अभी आता हूं," इतना बोल कर अबीर वहां से चला गया और उसके जाने के बाद अमर ने अपनी मुट्ठी में पकड़ा हुआ एक सफेद कपड़ा अपनी जेब में रख लिया और मन में बोला, "इस बारे में तो मैं अबीर से बात करना ही भूल गया, श्रेया से बताऊं क्या? नहीं रहने देता हूं, अभी इन सब बातों का टाइम नहीं है।"
अबीर उस फार्महाउस से निकल कर सीधा दीनू काका के घर की तरफ आ गया और उनके घर पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाने लगा।
दीनू काका के घर का दरवाजा अंदर से बंद था, लेकिन फिर भी अबीर को उनसे कुछ उम्मीद थी, इसलिए उसने फिर से दरवाजे पर दस्तक दी और दरवाजे पर ही खड़ा होकर परेशान सा दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद दीनू काका ने दरवाजा खोला और अबीर को देख कर बोले, "आप यहां साहब जी! मैंने आप से कहा था कि मैं आप लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता, आप जाइए यहां से, मुझे माफ करिए।" बोलते हुए दीनू काका ने दरवाजा मुंह पर ही बंद करना चाहा, लेकिन अबीर ने हाथ लगा कर उन्हें दरवाजा बंद करने से रोक दिया और बोला, "1 मिनट काका, मेरी बात तो सुन लीजिए, मेरे दोस्त को बहुत ज्यादा चोट लगी है और हम लोग यहां पर आपके अलावा किसी को जानते भी नहीं हैं, इसलिए आप सिर्फ डॉक्टर को बुला दीजिए, बाकी कोई मदद नहीं चाहिए हमें आपकी।"
"कैसी लगी चोट तुम्हारे दोस्त को?" अबीर की बात सुन कर दीनू काका ने दरवाजा खुला छोड़ दिया और उसकी तरफ देखते हुए उससे पूछा।
"वह सब बताने का अभी टाइम और सिचुएशन दोनों ही नहीं हैं, मेरा मतलब क्या है, वक्त नहीं है, मेरे दोस्त को डॉक्टर की जरूरत है, मेरी मदद करिए," अबीर ने कहा।
"ठीक है, मैं डॉक्टर को बुला कर लाता हूं, आप फार्म-हाउस वापस जाइए अपने दोस्त के पास," दीनू काका ने कहा।
"नहीं, आप अपने दोस्त के पास जाइए, मैं डॉक्टर को लेकर वहीं आता हूं," दीनू काका ने अबीर को साथ चलने के लिए मना करते हुए कहा।
"ठीक है काका जल्दी जाइएगा, मैं आप की बात पर विश्वास करके ही यहां से जा रहा हूं," अबीर बोला।
"मैं भी आपके साथ ही यहां से चलता हूं, चलिए," इतना बोल कर दीनू काका ने अपने घर का दरवाजा बाहर से बंद किया और अबीर के साथ ही घर से निकल गए। उसके बाद अबीर फार्म हाउस की तरफ चला गया और दीनू काका दूसरी तरफ चले गए डॉक्टर को बुलाने।
अबीर फार्म हाउस के मेन गेट से अंदर पहुंचा और गार्डन में जाकर उसके कदम कुछ पल के लिए रुक गए, उसका घर के अंदर जाने का मन नहीं हो रहा था, क्योंकि अबीर को ऐसा लगता था कि जो कुछ भी उनके साथ गलत हो रहा है, वह सब इसी घर के अंदर होता है और इसी फार्म हाउस से जुड़ा हुआ है। उसने मन में सोचा, "थोड़ी देर यहीं रुक कर दीनू काका का इंतजार कर लेता हूं," लेकिन ऐसा वो सिर्फ खुद को दिलासा देने के लिए बोल रहा था, असल में तो उसे घर के अंदर जाने से डर लग रहा था।
यह सब सोचते हुए अबीर थोड़ी देर तक गार्डन में ही रुका रहा, लेकिन फिर जब घायल और बेहोश विनय और रोती हुई श्रेया का चेहरा उसकी आंखों के सामने आया तो वो हिम्मत करके फार्म हाउस के अंदर गया, लेकिन उसने जैसे ही फार्महाउस का दरवाजा खोला और उसके अंदर कदम रखा वैसे ही पूरे फार्महाउस में एकदम अंधेरा हो गया और जिस दरवाजे से अबीर अंदर आया था, वो भी एक झटके के साथ बंद हो गया।
अबीर के मन का डर अब सच साबित हो रहा था, अंधेरे में अबीर डर के मारे चीखने और चिल्लाने लगा, साथ ही वहां से बाहर निकलने का दरवाजा भी ढूंढने लगा, लेकिन उसे न तो कोई दरवाजा मिला और न ही उसके किसी दोस्त ने उसकी आवाज सुनी।
अबीर जोर जोर से विनय, अमर और श्रेया का नाम लेकर चिल्ला रहा था, लेकिन कोई भी उसकी आवाज का जवाब नहीं दे रहा था, उस अंधेरे में गूंजती हुई दूर से किसी के हंसने की आवाज आ रही थी।
अबीर ने जोर से चिल्ला कर उस आवाज़ से पूछा, "कौन हो तुम? और क्या चाहती हो हम से, हमारे साथ ही ये सब क्यों कर रही हो?"
लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला....
तभी अबीर के कानों में किसी लड़के की आवाज आई, "मैने तुमसे कहा था अबीर! की चले जाओ यहां से, तुम सब क्यों नहीं गए यहां से....?"
वो आवाज अबीर के दोस्त शिवम की थी....
अबीर ने वो आवाज पहचान ली और बोला, "शिवम....तुम कहां हो शिवम? मेरी मदद करो, मुझे बचाओ।"
"अब बहुत देर हो चुकी है अबीर....." गूंजती हुई सी वो आवाज़ एक दम गायब हो चुकी थी, लेकिन अबीर अपने सवाल का ये जवाब सुनकर बहुत ही ज्यादा डर गया कि "अब बहुत देर हो चुकी है" इन शब्दों का भला क्या मतलब है।
"शिवम....शिवम कहां हो तुम," इतना बोलकर अबीर और जोर से चिल्लाने लगा कि तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसने जब डर कर पीछे देखा तो श्रेया वहां पर खड़ी थी, वो फार्म हाउस के अंदर था, दरवाजा खुला हुआ था और वहां पर सब जगह रोशनी थी।
"क्या हुआ अबीर? ऐसे क्यों चिल्ला रहे हो? क्या हुआ?" श्रेया ने उससे पूछा।
तब तक अमर भी वहां पर आ गया और बोला, "हां अबीर! क्या हुआ तुझे? इस तरह से हम सब का नाम लेकर क्यों चिल्ला रहे थे तुम और तुम तो दीनू काका के पास गए थे न डॉक्टर को लेने के लिए, क्या हुआ उसका?"
"तुम दोनों यहां पर, सब कुछ ठीक है यहां तो और अंधेरा भी नहीं है," अबीर, श्रेया और अमर के कुछ और सवालों का कोई और जवाब देते हुए बोला, शायद वो अब तक होश में नहीं था या फिर जो कुछ भी उसके साथ अभी हुआ था वो उस सदमे से बाहर ही नहीं आ पाया था।
अमर और श्रेया उसे अपने साथ ले कर विनय के कमरे में गए, और फिर अमर ने अबीर को पानी पिलाया और फिर उससे पूछने लगा..."क्या हुआ अबीर? तू ठीक है!"
"नहीं, मैं ठीक नहीं हूं, कुछ भी ठीक नहीं है यहां पर!" अबीर एक दम खोया हुआ सा शून्य में देखते हुए बड़बड़ाया।
"लेकिन अबीर! हुआ क्या है तुझे? तू कुछ बताएगा, जब ही तो हमें पता चलेगा ना," श्रेया अबीर से बोली।
"नहीं, कुछ भी ठीक नहीं है। हमें यहां से चले जाना चाहिए था पहले ही," अबीर अपने आप में ही बड़बड़ाया।
"होश में आ अबीर, क्या बोल रहा है तू?" अमर ने अबीर का कंधा पकड़ कर उसे हिलाते हुए उससे पूछा और साथ में उसे होश में लाने की कोशिश भी की....
क्रमशः
"हां, तुम दोनों.... तुम यहां... अमर तुम यहां कैसे? अभी तो यहां शिवम यही पर, आवाज.... आवाज सुनी मैंने उस की" - अबीर, अमर और श्रेया को सामने देखकर चारों तरफ हैरानी से देखता हुआ, एक तरफ उंगली दिखाता हुआ बोल रहा था।
"अबीर, क्या हो गया है तुझे? कैसी बातें कर रहा है तू, होश में आ यार" - अमर उसे झकझोरता हुआ बोला।
"मैं ठीक हूं, लेकिन मैंने अभी यहां पर सच में शिवम की आवाज सुनी और यहां पर एकदम अंधेरा था जैसे ही मैं घर के अंदर आया" - अबीर बोल रहा था, तभी श्रेया उसकी बात बीच में काटती हुई बोल पड़ी - "वह सब तुम्हारा वहम होगा अबीर, क्योंकि यहां पर तो अंधेरा नहीं है और काफी देर से लाइट भी ऑन है, और डॉक्टर को बुलाने के लिए गए थे ना, क्या हुआ उसका?" - श्रेया ने अबीर से पूछा।
"हां यार, अबीर तू तो दीनू काका के पास मदद लेने गया था ना, डॉक्टर को बुलाने के लिए" - अमर ने उससे पूछा।
"हां, दीनू काका गए हैं डॉक्टर को बुलाने" - अबीर ने उन दोनों को बताया।
"लेकिन तू उन के साथ क्यों नहीं गया?" - अमर ने अबीर से पूछा।
"उन्होंने खुद ही मना कर दिया मुझे साथ ले जाने को और मुझे वापस यहां फार्महाउस में भेज दिया, और तुम दोनों पहले मेरी पूरी बात सुनो" - अबीर थोड़ी तेज आवाज में श्रेया और अमर का ध्यान अपनी तरफ करता हुआ बोला।
"बोल ना यार, हम सुन रहे हैं" - अमर बोला।
"हां अबीर, क्या हुआ था तुम्हारे साथ बताओ हमें" - अबीर की बात सुनकर श्रेया भी बोली।
"मैं जब दीनू काका के घर से वापस फार्म हाउस आया तो डर और घबराहट की वजह से मेरा घर के अंदर आने का मन नहीं हो रहा था, लेकिन फिर थोड़ी हिम्मत करके और तुम तीनों के बारे में सोच कर मैं घर के अंदर आया और जैसे ही मैंने घर के अंदर कदम रखा, सारी जगह पर एकदम से अंधेरा हो गया और घर के दरवाजे भी बंद हो गए, कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, केवल एक लड़की की आवाज और उसके बाद शिवम की आवाज मुझे सुनाई दी...." - अबीर बोल ही रहा था कि उसकी बात सुनकर अमर बीच में ही बोल पड़ा - "1 मिनट क्या बोला तूने, शिवम की आवाज? लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है, हम दोनों तो कब से यहां है और हमें तो ऐसी कोई आवाज सुनाई नहीं दी, और सिर्फ तुझे ही क्यों सब कुछ पहले दिखाई और सुनाई देता है?"
"मुझे क्या पता यार! लेकिन पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो, मुझे लगता है कि वह दोनों आत्माएं मुझ से कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन घबराहट और डर की वजह से मैं ठीक तरह से सुन और समझ नहीं पाया, लेकिन शिवम की आवाज में यह साफ सुनाई दे रहा था कि वह कह रहा था तुमने तो को वहां से चले जाना चाहिए था और अब बहुत देर हो चुकी है, मुझे उसकी इस बात का मतलब समझ नहीं आया और मैं कुछ कर पाता उस से पहले ही श्रेया और तुम मेरे सामने थे" - अबीर ने पूरी बात श्रेया और अमर को बताई।
"लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है अबीर, मैं और अमर तो घर के अंदर ही थे और विनय भी यहीं पर है, देखो; अगर सच में ऐसा कुछ होता तो हम दोनों को भी तो दिखाई या सुनाई देता" - अबीर की बात सुनकर श्रेया अपना तर्क देते हुए बोली।
"क्यों नहीं हो सकता है, बिल्कुल हो सकता है ऐसा और मुझे अबीर पर पूरा विश्वास है, उसे कोई धोखा नहीं हुआ, वह सच बोल रहा है श्रेया, क्योंकि तुम पर और विनय पर भी तो अकेले ही हमला हुआ हम दोनों के सामने नहीं, तो जब मैं और अबीर उस बात पर विश्वास कर सकते हैं तो तुम्हें और मुझे अबीर की इस बात पर भी भरोसा करना चाहिए" - अमर श्रेया को समझाते हुए बोला।
"एक तो समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब हो क्या रहा है और जो भी आत्मा है वह आखिर मुझसे और हम सब से चाहती क्या है? आखिर क्यों परेशान कर रही है वह हम सब को और विनय की तो ऐसी हालत हो गई है कि अब तक होश नहीं आया उसे तो" - बोलते बोलते अबीर एकदम दुखी हो गया।
"यहां आ कर ही गलती कर दी हम लोगों ने, बहुत बुरा फंस गए हैं हम इन सब में" - अमर भी मायूस होते हुए बोला।
"शुक्र मनाओ कि हम चारों अभी तक जिंदा है, कम से कम नहीं तो शिवम को देखो क्या सजा मिली" - श्रेया एकदम अजीब सी डरावनी आवाज में उन दोनों की बात सुन कर बोली।
"तुम्हारा ये सब कहने का क्या मतलब है श्रेया" - अबीर ने श्रेया की तरफ देख कर पूछा।
"और शिवम को किस बात की सजा मिली, क्या बोल रही हो श्रेया" - अमर ने भी श्रेया से पूछा।
"नहीं कुछ नहीं, मेरा कहने का मतलब है कि जरूर कुछ तो रहस्य है इन सब के पीछे" - श्रेया अपनी बात बदलती हुई नॉर्मल आवाज में बोली।
अमर या अबीर में से कोई भी कुछ और बोल पाता इससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक हुई और वह तीनों एक दूसरे की तरफ देखने लगे, शायद किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी अकेली दरवाजा खोलने जाने की क्योंकि ऐसे दहशत भरे माहौल में किसके साथ पता नहीं कब क्या हो जाए यह सोचकर ही वह तीनों डर रहे थे।
"पता नहीं, कौन होगा दरवाजे पर?" - श्रेया एकदम हैरान सा चेहरा बनाते हुए बोली।
"दीनू काका होंगे शायद, विनय के लिए डॉक्टर को ले कर आए होंगे अपने साथ" - श्रेया का सवाल सुन कर अबीर ने कहा।
"ठीक है, तुम दोनों यहीं रुको मैं दरवाजा खोलता हूं जाकर" - अमर ने काफी हिम्मत करके कहा और विनय के कमरे से बाहर निकल गया।
इतनी देर में दरवाजे पर एक दो बार और दस्तक हुई, और फिर दरवाजे पर पहुंचकर अमर ने दरवाजा खोला तो देखा कि अबीर का अंदाजा सही था, दीनू काका ही एक डॉक्टर के साथ उस फार्महाउस के दरवाजे पर खड़े हुए थे और अमर ने जैसे ही दरवाजा खोला उन दोनों को देखकर बोला - "आइए डॉक्टर साहब अंदर आइए, दोस्त बेहोश है, उसी कई जगह चोटें भी आई हैं; थैंक्स काका आपने हमारी मदद की।"
"चलिए, बताइए मरीज कहां है?" - अमर की बात सुनकर डॉक्टर ने तो इतना बोला लेकिन दीनू काका ने उसके थैंक्स का कोई जवाब नहीं दिया, डॉक्टर के पीछे वह भी अमर के साथ विनय के कमरे में चले गए।
"यह है मेरा दोस्त, काफी देर से बेहोश है देखिए डॉक्टर साहब क्या हुआ है इसे?" - बेड पर बेहोश पड़े विनय की तरफ इशारा करते हुए अमर ने डॉक्टर से बोला।
"यह तो बहुत ही ज्यादा चोटें आई है इन को, क्या हुआ था यहां पर; नहीं आप लोगों के बीच कोई लड़ाई झगड़ा तो नहीं हुआ" - बेहोश विनय की हालत देखते हुए डॉक्टर ने अमर, श्रेया और अबीर तीनों से पूछा।
"नहीं डॉक्टर साहब, यह तो बस एक एक्सीडेंट है" - अबीर बोला।
"पता नहीं जब हम दोनों यहां पर आए तो विनय पहले से ही जमीन पर बेहोश पड़ा हुआ था और सिर्फ श्रेया ही विनय के साथ इस कमरे में थी" - अमर ने कहा।
"तब तो यह एक पुलिस केस है, आपको पुलिस में रिपोर्ट लिखवानी चाहिए, पुलिस पता लगाएगी कि आखिर क्या हुआ है यहां पर और उसके बाद ही मैं इनका इलाज करूंगा" - डॉक्टर ने कहा।
डॉक्टर की यह बात सुनते ही श्रेया ने अपनी पर्स से नोट की गड्डी में निकाली और डॉक्टर की तरफ बढ़ाते हुए बोली - "वह सब बाद में हो जाएगा डॉक्टर, पहले आप इनका इलाज के लिए इन्हें अभी इलाज की जरूरत है।"
"हां बिल्कुल सही कह रही हैं आप, एक डॉक्टर होने के नाते मेरा फर्ज है कि मैं पहले मरीज का इलाज करूं और रिपोर्ट तो बाद में भी लिखवाई जा सकती है" - श्रेया के हाथों से लपक कर नोट की गड्डी लेने के बाद वो डाॅक्टर एक दम बदले हुए सुर में बोला और फिर अपने साथ लाए हुए सामान से ही विनय का ट्रीटमेंट करने लगा, थोड़ी देर के बाद डॉक्टर ने विनय को एक इंजेक्शन दिया और कहा - "कुछ घंटों में इन्हें होश आ जाएगा और मैं यह मेडिसिन लिख कर देता हूं, मंगवा कर इन्हें होश में आने के बाद दे दीजिएगा और यह कार्ड है, कोई जरूरत पड़े तो कॉल कर लीजिएगा।"
"थैंक यू सो मच डॉक्टर!" - श्रेया ने डॉक्टर के हाथ से दवाई का पर्चा और विजिटिंग कार्ड दोनों लेते हुए कहा।
अबीर और अमर, दीनू काका के साथ उस कमरे में सामने ही खड़े यह सब कुछ देख रहे थे और उन दोनों को तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि झल्ली और अल्हड़ सी उनकी दोस्त श्रेया, आज कैसी अजीब और इंटेलिजेंट लड़की और जैसा बिहेव कर रही है, लेकिन श्रेया के यह सब करने की वजह से ही विनय का इलाज हो पाया था, इसलिए अधीर और अमर ने उस वक्त डॉक्टर के सामने श्रेया से कुछ भी नहीं कहा।
"अच्छा, अब मैं चलता हूं" - नाम बोलकर डॉक्टर अपनी जगह से उठ गया और उसे जाता हुआ देखकर श्रेया दवाइयों का पर्चा और कुछ पैसे दीनू काका के हाथ में देती हुई बोली - "काका, डॉक्टर साहब को बाहर तक छोड़ दीजिए और यह दवाइयां भी ले आइएगा।"
"ठीक है बिटिया, हम अभी आते हैं दवाइयां ले कर" - इतना बोल कर दीनू काका और डॉक्टर दोनों विनय के कमरे से बाहर चले गए और श्रेया, विनय के सिरहाने बैठकर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी।
अबीर श्रेया से कुछ बोलने ही वाला था कि अमर ने उसे चुप रहने का इशारा किया और उस का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ विनय और श्रेया के कमरे से बाहर ले कर चला गया।
क्रमशः
अमर, अबीर का हाथ पकड़ कर उसे श्रेया के कमरे से बाहर ले कर आता है और बोलता है - "क्या यार अबीर, तू श्रेया के सामने क्या बोलने जा रहा था?"
"क्या हुआ अमर! तू मुझे ऐसे अचानक ऐसे वहां से क्यों ले आया?" अबीर ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"तूने देखा नहीं, वह श्रेया कैसा अजीब बिहेव कर रही है और तू उस से ही पूछने जा रहा था न कुछ?" अमर बोला।
"हां, वह उस से पूछता मैं कि डॉक्टर को इतने ज्यादा पैसे क्यों दिए उस ने; यह सब तो वह खुशी की आत्मा ने किया है न विनय के साथ?" अबीर बोला।
"और वह तुझे आसानी से सब बता देती क्या?" अमर ने कहा।
"क्या मतलब है यार तेरा, सीधे-सीधे बता दे क्यों बातें गोल गोल घुमा रहा है? मैं पहले ही इन सब में, इतना परेशान हूं।" अबीर इरिटेट होते हुए बोला।
"श्रेया कितना अजीब बिहेव कर रही है और उस ने हम से बिना पूछे या बताए डॉक्टर को इतने पैसे दे दिए, और विनय को इतनी चोट कैसे लगी, वह सब भी सिर्फ श्रेया के अलावा किसी को नहीं पता..." अमर ने थोड़ा सोचते हुए कहा।
"हां तो, तू यह कहना चाहता है कि श्रेया ने विनय को मारने की कोशिश की.." अबीर कुछ सोचता हुआ बोलता है।
"अरे नहीं यार! श्रेया प्यार करती है विनय से, वह उसे नहीं मारेगी और अगर वो मारती तो फिर विनय को बचाने के लिए डॉक्टर को पैसे क्यों देती, लेकिन फिर भी कुछ तो अजीब है जो श्रेया हम से छुपा रही है इसलिए हमें भी सारी बातें श्रेया के सामने नहीं करनी चाहिए, कम से कम अभी; जब तक विनय होश में नहीं आ जाता।" अमर ने अबीर को समझाया।
"हां यार, सही कह रहा है तू आज मेरी बात पर भी श्रेया विश्वास नहीं कर रही थी, जो मैंने शिवम और इस जगह पर अंधेरा होने वाली बात तुम दोनों को बताई थी।" अबीर बोला।
"हां मुझे भी तुझे एक बात बतानी है, मुझे कुछ मिला था तेरे कमरे से.." अमर ने कहा।
"क्या मिला तुझे और कब? तू अभी मेरे जाने के बाद फिर से उस कमरे में गया था क्या? यार अकेले वहां मत जाया कर, मुझे वह कमरा सब से अजीब लगता है!" अबीर थोड़ा डरते हुए बोला।
"नहीं, मैं अकेले नहीं गया, जब तेरे साथ पैकिंग करवाने गया था और मैं खिड़की के पास खड़ा था, तभी मुझे यह कपड़ा तेरे कमरे की खिड़की के पास अटका हुआ मिला, जाना पहचाना सा लग रहा है देख तो ज़रा..." अमर अपनी जेब से वह सफ़ेद रंग के कपड़े का टुकड़ा निकाल कर अबीर को दिखाता हुआ बोला।
"अच्छा उस वक्त तू मुझे यही दिखा रहा था, जब हमने विनय की चीख सुनी और उस के कमरे की तरफ भागे थे।" अबीर वह सब याद करता हुआ बोला।
"हां, उसी वक्त यह मुझे दिखा था और मैं तुझे बता ही रहा था; तब तक यह सब कुछ हो गया और फिर तब से मुझे समय और मौका ही नहीं मिला बताने का, तुझे कुछ याद आया यह कपड़े का टुकड़ा देख कर?" अमर ने बताया और अबीर से सवाल किया।
"हां बिल्कुल, याद आया मुझे, ऐसा कपड़ा तो वह लड़की खुशी की आत्मा ने भी पहना हुआ था बल्कि जितनी बार भी वह मुझ से मिली या हम सब ने उसे देखा उस ने इसी तरह का एक कपड़ा पहना हुआ था।" अबीर शुरुआत से सब कुछ याद करता हुआ बोला।
"मैंने तो उसे सिर्फ एक बार ही देखा है वो भी तेरे कमरे में , फिर भी मुझे थोड़ा बहुत याद है कि यह शायद उसी के कपड़े का टुकड़ा है लेकिन यह तो नहीं हो सकता न क्योंकि, आत्माओं के कपड़े ऐसे खिड़की में फंस कर फटते नहीं हैं।" अमर बोला।
"इसका मतलब वह लड़की आत्मा है ही नहीं, वह जिंदा है! क्या सच में कोई जिंदा इंसान, हम सब के साथ ही इतना सब कुछ कर सकता है जो कि अभी हो रहा है?" अमर के इतना बोलते ही अबीर हैरानी से चौंक कर कहता है।
"पता नहीं यार! अभी जो भी है लेकिन ये खेल बहुत गहरा है; और हम सब इस में और बुरी तरह फंसते और उलझते जा रहे हैं; लेकिन हमें सच का पता लगाना होगा और अभी हम दोनों सिर्फ एक दूसरे पर ही विश्वास कर सकते हैं!" अमर ने कहा।
"हां, सच कहा तूने विनय के होश में आने तक, हम दोनों में से कोई भी श्रेया के सामने इस बारे में कोई बात नहीं करेगा" और तभी उन दोनों को किसी के वहां पर आने की आहट सुनाई देती है और अबीर वह कपड़े का टुकड़ा अपनी पैंट की जेब में रख लेता है।
श्रेया दीवार के पीछे से उन दोनों की बातें सुन लेती है और छुप जाती हैं, अबीर और अमर पीछे मुड़ कर देखते हैं तो उन्हें वहां पर कोई भी दिखाई नहीं देता।
"ऐसा लगा कि यहां पर कोई था..." अबीर पीछे मुड़ कर देखता हुआ बोलता है।
"क्या पता, जो कुछ हमारे साथ हो रहा है ऐसा लगना नॉर्मल है यार" अमर भी श्रेया को देख नहीं पाया और अबीर से बोला।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और श्रेया जल्दी से वापस से विनय के कमरे में चली गई और अबीर और अमर एक साथ दरवाजे की तरफ बढ़े दरवाजा खोलने के लिए और अबीर ने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि सामने दीनू काका खड़े हुए थे।
"यह लीजिए साहब! आप लोगों की दवाई और बचे हुए पैसे" दीनू काका अबीर की तरफ दवाइयों का एक पैकेट बढ़ाते हुए बोलते हैं।
"पैसे आप रख लीजिएगा और थैंक यू आपने हमारी इतनी हेल्प की.." अबीर दवा का पैकेट लेते हुए दीनू काका से बोलता है।
"यह तो हमारा काम है साहब; इसी से तो हमारी रोजी-रोटी चलती है और विनय बाबा के पिता तो हमारे मालिक हैं!" दीनू काका ने कहा और मुड़ कर वहां से जाने लगे।
"काका हमारी थोड़ी और मदद कर सकते हैं क्या? हमें इस वक्त मदद की बहुत जरूरत है और हम यहां आप के अलावा और किसी को जानते नहीं हैं।" अमर ने वहां से जाते हुए दीनू काका को रोकते हुए कहा।
"क्या मदद चाहिए, आप को साहब मैं तो गरीब नौकर हूं, भला क्या मदद कर सकता हूं आप लोगों की?" दीनू काका अमर की तरफ देखते हुए बोले।
"पहले आप अंदर आइए काका; फिर बात करते हैं वहां बैठ कर" अबीर बोला।
"यहीं पर बोल दीजिए ना साहब, हमारी पत्नी घर में अकेले हैं और रात काफी हो चुकी है" दीनू काका अंदर आने से मना करते हुए बोले।
"अच्छा ठीक है, आप हमें अपनी बेटी खुशी के बारे में सब कुछ बता दीजिए जो कुछ भी आप को पता है, उस के गायब को होने से पहले की सारी बातें..." अमर ने पूछा।
"और साथ ही की उस की कोई फोटो हो तो वह भी, हमारा यह जानना बहुत जरूरी है कि वह दिखती कैसी थी?" अमर के चुप होते ही अबीर एकदम से बोल पड़ा और उस की यह बात सुनकर दीनू काका और अमर दोनों ही उस का मुंह देखने लगे।
"नहीं, मेरे पास कोई तस्वीर नहीं है अपनी बेटी के लिए क्योंकि मैंने उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए थे और उसकी सारी तस्वीरें और बचे हुए सामान में आग लगा दी थी" दीनू काका गुस्से में बोले।
"अरे! लेकिन ऐसा कैसे कर सकते हैं आप वह आप की बेटी थी , आप को चिंता नहीं हुई एक बार भी उस की?" अमर बोला।
"कम से कम एक बार आप को पता तो लगाना चाहिए था न कि उस के साथ क्या हुआ?" अबीर ने कहा।
"मैं अकेला बूढ़ा और गरीब इंसान, भला कहां और क्या पता करता और पता करने के बाद भी क्या बदल जाना था साहब, जो होना था वह तो हो ही चुका था।" दीनू काका मायूस होते हुए बोले।
"लेकिन फिर भी आप एक बार अपने घर में देख लीजिए शायद कोई तस्वीर हो तो हमारी बहुत मदद हो जाएगी" अबीर ने फिर से कहा।
"मैंने कहा न खुशी का कोई भी सामान अब मेरे घर में नहीं है और न ही उससे जुड़ी कोई भी चीज़, मैं आप लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता; इन सब में, मुझे मेरे घर जाने दीजिए अब..." इतना बोल कर दीनू काका वहां से जाने लगे तो अमर उन के आगे एकदम सामने आ कर खड़ा हो गया और बोला - "अच्छा ठीक है अगर आप हमारी कोई मदद नहीं करना चाहते तो कम से कम किसी ऐसे इंसान को तो जानते होंगे, जो हमारी इन सब से निकलने में मदद कर सकता हो।"
"मैं किसी भी ऐसे इंसान को नहीं जानता और इन सब में भला कोई और क्या आप सब की मदद कर सकेगा, जिस में आप लोग खुद ही फंसे हैं।" दीनू काका ने बोला।
"हम लोगों इस आत्मा और इस फार्म हाउस की बात नहीं कर रहे हैं , हम लोग खुशी के बारे में जानने के बारे में बात कर रहे हैं, उस बारे में कोई हमारी मदद कर सकता है क्या?" अबीर ने कहा।
"क्या मतलब है साहब आप लोगों का सीधा-सीधा बोलिए" दीनू काका ने पूछा।
"मेरा कहने का मतलब यह है कि यहां पर आपके अलावा और कोई है जो कि खुशी को जानता हो; खुशी की कोई सहेली या फिर दोस्त या कोई भी जो उसे बचपन से ले कर उस के गायब होने तक उसे जानता हो; शायद वह हमारी कोई मदद कर पाए, क्या पता खुशी उसे कुछ बता कर गई हो यहां से जाने से पहले?" अबीर ने पूरी बात बताई।
"ऐसा तो कोई भी नहीं था साहब!" दीनू काका ने पूरी बात सुने बिना ही बोल दिया।
क्रमशः
"ऐसा कैसे हो सकता है? इतने दिनों से यहां रहती थी खुशी, बचपन से ले कर अब तक, खुशी क्या सिर्फ घर में ही रहती थी? बाहर कोई तो जानता पहचानता होगा उसे, कोई तो दोस्त होगा उस का, थोड़ा याद कर के बताइए काका हम आप के बहुत एहसानमंद रहेंगे।" - अमर ने कहा।
"हां साहब जी, यहां मनाली के दो लोग थे जिन्हें खुशी काफी सालों से जानती थी।" - काका थोड़ा सोचते हुए बोले।
"हां, ऐसे ही लोगों के बारे में जानना चाहते हैं हम, ठीक से याद कर के बताइए काका, कौन है वह दो लोग?" - अबीर ने पूछा।
"याद है मुझे, एक तो इसी बंगले में काम करने वाले माली का 10 साल का पोता, उस से बहुत ज्यादा घुली मिली थी खुशी और यहां के बगीचे में और उस छोटे बच्चे के साथ ही खेलती रहती थी और उसे 5 सालों से जानती थी, बहुत लगाव था, खुशी को उस बच्चे से" - दीनू काका ने बताया।
"अच्छा, लेकिन हम जब से आए हैं तब से तो यहां कोई भी माली और छोटा बच्चा नहीं दिखा?" - अमर बोला।
"कैसे दिखेगा साहब जी! क्योंकि वह माली तो खुशी के गायब होने से पहले ही काम छोड़ कर चला गया था या शायद साहब ने उसे काम से निकाल दिया था, मुझे ठीक से नहीं पता।" - दीनू काका ने बताया।
"विनय होश में होता तो शायद इस बारे में कुछ बता पाता..." - अमर थोड़ा सोचते हुए बोला।
"क्या यार अमर! तू भी टाइम पास कर रहा है, वह इतना छोटा बच्चा इन सब में कैसे शामिल हो सकता है? आप आगे बताइए दीनू काका दूसरा और कौन था? जिसे खुशी जानती थी..." - इस बार अबीर ने पूछा।
"वो दूसरा इंसान..."- दीनू काका बोल ही रहे थे कि तभी श्रेया और विनय के कमरे से एक जोरदार चीख और उस चीख के बाद जमीन पर किसी के अचानक गिरने की आवाज सुनाई दी।
वो आवाज सुनते ही दीनू काका भी बोलते बोलते एकदम चुप हो गए, अबीर और अमर भी भाग कर श्रेया के कमरे में पहुंचे और दीनू काका भी उन दोनो के साथ उन के पीछे-पीछे उस कमरे तक गए।
वहां पर पहुंच कर उन तीनों ने देखा कि श्रेया जमीन पर बेहोश पड़ी हुई है और विनय बेड पर पहले जैसा ही बेहोश था, उन दोनों को नहीं पता कि श्रेया ने ऐसा क्या देखा? जो वह इतनी जोर से चीखी और उस के बाद ऐसे अचानक से बेहोश हो गई।
अमर और अबीर तो ये सब पिछले कुछ दिनों से देखते आ रहे थे लेकिन दीनू काका ने यह सब पहली बार देखा था तो वह डर गए और पीछे से मौका देख कर फार्महाउस से बाहर भाग कर वापस अपने घर आ गए और अपने घर आ कर उन्होंने दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद कर ली।
अबीर और अमर दोनों ही श्रेया को ऐसी हालत में देख कर एकदम हैरान थे और वह दोनों जल्दी से उसे उठा कर होश में लाने की कोशिश करने लगे और तभी अबीर भाग कर किचन से पानी लेने चला गया और तब तक अमर ने उसे उठा कर बेड पर विनय के पास बेड पर लिटा दिया।
वह दोनों अपने दोस्तों को ऐसी हालत में देख कर इतने परेशान हो गए थे कि उन दोनों में से किसी ने भी दीनू काका के वहां से भाग जाने पर ध्यान नहीं दिया और उस वक्त वह दोनों सिर्फ श्रेया को ही होश में लाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन श्रेया को होश नहीं आ रहा था।
"यह सब क्या हो रहा है? अबीर!" - अमर ने परेशान होते हुए अबीर से पूछा।
"पता नहीं यार! शुरुआत तो मुझ से ही हुई थी लेकिन आज तक मुझे कुछ याद नहीं कि मैंने बेहोश होने से पहले क्या देखा?" - अबीर श्रेया के मुंह पर पानी के छींटे डालता हुआ बोला।
"हमें डॉक्टर को बुलाना होगा" - अमर ने कहा।
"लेकिन डॉक्टर फिर से सवाल करेगा और हमारे पास जवाब होंगे नहीं" - अबीर बोला।
"जवाब में पैसे दे देंगे ना, उस लालची डॉक्टर को..." - अमर ने कहा।
"ठीक है यार! फिर कॉल कर उसी डॉक्टर को" - अबीर बोला।
"बस यह दोनों एक बार होश में आ जाए; फिर हम यहां से निकल जाएंगे!" - अमर डॉक्टर को कॉल लगाता हुआ बोला।
"नेटवर्क भी नहीं आ रहा है यहां पर तो, मैं बाहर जाकर ट्राई करता हूं; तुम यहीं पर रुको श्रेया और विनय के पास!" - इतना बोल कर अमर अपना मोबाइल फोन ले कर वहां से बाहर की तरफ जाने लगा।
"अरे नहीं यार! कहां जा रहा है मुझे ऐसे अकेला छोड़ कर, पता नहीं जब तक तू वापस आए मैं जिंदा मिलूं भी या नहीं?" - अबीर डरते हुए बोला।
"बस यही बाहर गार्डन तक ही जा रहा हूं, डोंट वरी यार अबीर, इतना बुरा तो पहले ही हो रहा है हमारे साथ, इस से ज्यादा और क्या बुरा होगा और मैं यही हूं; तू बस आवाज देना अगर कुछ हो तो..." - अबीर को समझाते हुए अमर ने कहा और दरवाजे से बाहर निकल कर, वो बाहर गार्डन तक चला गया डॉक्टर को कॉल मिलाने के लिए।
"वैसे यहां सच में नेटवर्क इशू है क्योंकि जब से हम लोग यहां पर आए हैं, किसी के भी मोबाइल फोन पर कॉल ही नहीं आते किसी के भी और उस से भी अजीब बात तो यह है कि हम में से किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं गया।" - अबीर थोड़ा सोचते हुए अपने मन में बोला और अमर अब तक वहां से बाहर गार्डन में जा चुका था और अबीर, श्रेया और विनय के बेड के पास पड़े सोफे पर बैठा हुआ था।
"विनय और श्रेया का फोन कहां है? यही कही रूम में होगा, देखता हूं, शायद उन के मोबाइल फोन में नेटवर्क हो...." - इतना बोल कर अबीर अपनी जगह से उठा और उस पूरे कमरे में श्रेया और विनय का मोबाइल फोन ढूंढने लगा।
श्रेया का मोबाइल फोन तो अबीर को श्रेया के पर्स में मिल गया लेकिन उस में भी नेटवर्क नहीं आ रहा था और उ सके बाद अभी विनायक का मोबाइल ढूंढने लगा, विनय का मोबाइल फोन भी अबीर को उस के सामान में आसानी से ही मिल गया लेकिन उस के मोबाइल फोन में बैटरी नहीं थी।
"अब इन सब में भला मोबाइल चार्ज करना किसे याद रहता है? जहां हर समय अपनी जान बचाने के लिए ही फिक्र लगी हो", उन दोनों का मोबाइल फोन देख कर अबीर को याद आया कि जब वह कमरे में अपना सामान पैक कर रहा था, उसी समय सभी सामान के बीच उसे अपना मोबाइल फोन भी तो एकदम आसानी से वापस मिल गया था 4 दिनों बाद।
अबीर को जैसे ही यह सभी याद आया, तो उस ने विनय और श्रेया का फोन बेड की साइड टेबल पर रख दिया और अपनी जेब चेक करने लगा, और उस ने अपना मोबाइल फोन निकाला और फोन ऑन करने की कोशिश करने लगा, लेकिन उस में भी शायद बैटरी नहीं थी इसलिए अबीर चार्जर ढूंढने लगा और चार्जर ढूंढ कर उस ने अपना मोबाइल वहीं चार्जिंग पर लगा दिया और ऑन कर के देखने लगा।
दूसरी तरफ, वहां बाहर गार्डन में भी नेटवर्क नहीं आ रहा था, इसलिए अमर कॉल के लिए नेटवर्क की खोज में मेन गेट से बाहर निकल गया और सड़क के दूसरी तरफ जा कर डॉक्टर को कॉल करने लगा और फिर काफी देर बाद नेटवर्क आया तो डॉक्टर को कॉल लगा, अमर डॉक्टर को कॉल लगाने लगा और डॉक्टर के कॉल रिसीव करते ही अमर उस से बात करने लगा और अमर ने डॉक्टर को श्रेया के बेहोश होने वाली बात नहीं बताई बल्कि विनय की तबीयत का बहाना बनाकर ही अमर ने उस डॉक्टर को फॉर्म हाउस पर बुलाया।
फार्महाउस के अंदर कमरे में, अबीर ने जब अपना मोबाइल फोन ऑन कर के देखा तो उस में लगभग 60-70 मिस्ड कॉल लगी हुई थी, और वह सारी कॉल्स देख कर अबीर थोड़ा हैरान हुआ लेकिन फिर उसने सोचा कि इतने दिनों में तो हो सकती है इतनी कॉल, लेकिन चेक कर के तो देखूं जरा किस की है इतनी सारी कॉल? और यह बोलते हुए जैसे ही अबीर ने अपना कॉल लॉग चेक किया तो देखा कि कम से कम 40-50 मिस्ड कॉल तो उस की गर्लफ्रेंड राधिका की ही थी।
"ओ माय गॉड राधिका, इन सब में उस के बारे में तो मैं बिल्कुल भूल ही गया लेकिन उसे तो बहुत ही ज्यादा फिक्र हो रही होगी मेरी, क्योंकि जब से मैं यहां आया हूं सिर्फ एक या दो बार ही मेरी बात हुई है उस से" - अबीर यह सोच ही रहा था कि तभी दरवाजे की डोर बेल बजी।
"अब यह अमर को क्या हो गया है? डोर बेल क्यों बजा रहा है? सीधा अंदर नहीं आ सकता है क्या?" - ये सब अपने मन में बड़बड़ाते हुए अबीर दरवाजे तक पहुंचा और जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो सामने खड़े इंसान को देख कर अबीर एकदम शॉक्ड हो गया और फिर कुछ देर बाद एक दम हैरानी से बोला - "तुम?"
क्रमशः
17
अबीर घर का दरवाजा खोलता है, सामने खड़े शख्स को देख कर एकदम हैरान हो जाता है और उस के मुंह से निकलता है - "तुम यहां? तुम यहां कैसे.... ऐसे अचानक!"
"मैंने सोचा कि तुम्हें सरप्राइज दे देती हूं, लेकिन सब से पहले तो तुम यह बताओ कि मेरी कॉल रिसीव क्यों नहीं की तुमने? तुम्हें नहीं पता अबीर! कि मुझे तुम्हारी कितनी फिक्र हो रही थी? यहां आकर मुझे तो जैसे भूल ही गए थे तुम" - बोलते हुए राधिका ने अबीर को दरवाजे पर ही गले लगा लिया लेकिन अबीर को तो जैसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था राधिका को सामने देखकर और वह एकदम स्तब्ध खड़ा रहता है, वह राधिका को गले भी नहीं लगाता।
"क्या हुआ, ऐसे क्यों रिएक्ट कर रहे हो, भूत देख लिया क्या और 12 क्यों बजे हुए हैं? चेहरे पर तुम्हारे..." - सामने दरवाजे पर खड़ी राधिका ने अबीर के चेहरे के सामने अपना हाथ लहराते हुए कहा।
"लेकिन राधिका! तुम यहां ऐसे अचानक और यहां क्यों आई तुम?" - राधिका की बात सुनकर अबीर को जैसे एकदम से होश आया और वहां पर अपने सामने राधिका को खड़े देख कर परेशान होते हुए बोला।
"क्या हुआ यार अबीर! कौन है ये?" - राधिका के पीछे से आता हुआ अमर बोला।
"हेलो अमर! तुम यहां बाहर क्या कर रहे थे?" - अमर की आवाज सुन कर राधिका पीछे मुड़ कर उस से बोली।
"राधिका तुम यहां..." - लड़की का चेहरा देख कर अमर भी अबीर की तरह ही शाॅक्ड होते हुए बोला और फिर अबीर को इशारे में पूछने लगा कि ये राधिका यहां क्या कर रही है?
अबीर बेचारा भला क्या जवाब दे पाता? उसे तो खुद ही कुछ नहीं पता था कि राधिका ऐसे बिना बताए ही वहां आ जाएगी।
"अंदर नहीं बुलाओगे क्या मुझे?" - उन दोनों को ऐसे एकदम शाॅक्ड दरवाजे पर ही खड़ा हुआ देख कर राधिका बोली और अबीर को दरवाजे से किनारे करते हुए खुद ही घर के अंदर आ गई और अमर ने धीमी आवाज में अबीर से पूछा - "यह राधिका यहां क्यों आ गई और कैसे? हम लोग पहले ही इस मुसीबत से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और ऊपर से यह लड़की भी इस में फंसने के लिए चली आई!" अमर परेशान होते हुए बोला।
"मुझे क्या पता यार! मेरी तो बात ही नहीं हुई इतने दिनों से राधिका से" - अबीर भी फुसफुसाकर अमर से बोला और वह दोनों राधिका के पीछे पीछे घर के अंदर आ गए।
"बाकी सब कहां है; तुम लोग तो 5 लोग आए थे ना, श्रेया, विनय और शिवम कहां है दिख नहीं रहे?" - घर में और अंदर की तरफ आते हुए राधिका ने उन दोनों से पूछा।
"1 मिनट रुको राधिका! मेरी बात तो सुनो, यहां पर कुछ भी ठीक नहीं है, तुम्हें यहां ऐसे मुझे बिना बताए नहीं आना चाहिए।" - अबीर घबराते हुए बोला।
"क्या बोला तुमने अबीर! बताकर? हां, अगर मेरी तुम से बात ही हो रही होती, तो मुझे तुम्हारी इतनी फिक्र नहीं होती और मुझे ऐसे अचानक यहां नहीं आना पड़ता..." - राधिका पीछे मुड़कर अबीर की तरफ देखते हुए बोली।
"ओह! राधिका, वह मेरा फोन खो गया था यहां आने के बाद और इतनी अजीब चीजें हो रही हैं कि तुम भरोसा नहीं करोगी" - अबीर बोला।
"हां, तो किसी के भी फोन से काॅल कर लेते और ऐसा क्या हो रहा है यहां पर? जो तुम्हें मेरा भी ध्यान नहीं रहा।" - अबीर की बात सुन कर राधिका सीरियस होते हुए बोली।
"यहां पर एक आत्मा है, आई मीन इस फार्महाउस में और उस की वजह से शिवम गायब है, विनय को इतनी चोटें आई हैं और अब तो श्रेया भी बेहोश है।" - अमर ने डरते हुए राधिका को बताया।
"और हां राधिका, मैं भी बेहोश हो जाता था, यहां आने के बाद...." - अबीर ने राधिका को बताया।
राधिका एकदम गंभीर सा चेहरा बना कर अमर और अबीर की बातें सुन रही थी और उन दोनों की बातें सुन कर वह एकदम से खिलखिला कर हंसते हुए बोली - "बहुत अच्छा प्लान है, तुम दोनों का मिलकर मुझे बेवकूफ बनाने का; लेकिन मैं तुम लोगों की बातों में नहीं आने वाली, कहां छुपे हैं श्रेया और विनय रहने दो, तुम दोनों मैं खुद ही ढूंढ लूंगी।" - और इतना बोल कर उन दोनों को अपने आगे से हटाते हुए फार्महाउस में अंदर कमरे की तरफ जाने लगी।
"यार! यह यहां क्यों आ गई है और इस के सामने कुछ भी नहीं हुआ है, तो इसे तो सब मजाक ही लगेगा!" - अमर अबीर से बोला।
"कोई बात नहीं यार! शायद हम दोनों भी अगर उस की जगह होते तो सिर्फ सुन कर तो कभी भी ऐसी बातों पर विश्वास नहीं करते, उस के साथ भी यही हो रहा है।" - अबीर अमर को समझाते हुए बोला।
"कैसे रिलैक्स करूं यार! अभी मैं, हम चारों तो यहां से निकल नहीं पा रहे हैं और यह भी यहां पर आ गई खुद ही इस मुसीबत में फंसने..." - अमर परेशान होता हुआ बोला।
"कोई नहीं यार! अमर, अभी श्रेया और विनय की हालत देखेगी राधिका तो खुद ही समझ जाएगी कि हम दोनों सच बोल रहे थे।" - अबीर बोला।
"हां, लेकिन देखो उसे वह तो कहीं और ही जा रही है, शायद उस आखिरी वाले कमरे की तरफ, अरे तुम उसे अभी रोको अबीर" - अमर अबीर का ध्यान राधिका की तरफ करवाते हुए बोला।
"अरे राधिका रुको! उधर कहां जा रही हो तुम?" - बोलते हुए अबीर, राधिका के पीछे भागा और अमर, विनय और श्रेया के कमरे की तरफ जाने ही वाला था; लेकिन तभी दरवाजे की डोर बेल बजी और अमर दरवाजा खोलने के लिए गेट की तरफ मुड़ गया और उस तरफ ही बढ़ने लगा - "दरवाजा खोल कर अमर ने देखा कि वही डॉक्टर सामने खड़ा था, जिसे उस ने कॉल कर के बुलाया था।"
"आइए डॉक्टर साहब, अंदर आइए।" - अमर ने डॉक्टर साहब से कहा।
"हां क्या हुआ है पेशेंट को, अभी तक होश नहीं आया क्या?" - डॉक्टर ने अमर से पूछा।
अबीर की आवाज सुन कर तो राधिका आगे बढ़ने से नहीं रुकती है लेकिन डोर बेल और डॉक्टर और अमर की बातचीत सुन कर जरूर एकदम अपनी जगह पर रुक गई और पीछे मुड़ कर दरवाजे की तरफ देखने लगी और फिर राधिका ने अबीर से पूछा - "क्या हुआ है अबीर! यह डॉक्टर यहां पर क्या कर रहे हैं?"
राधिका ने दरवाजे की तरफ भाग कर जाते हुए और अमर के साथ डॉक्टर को देखकर अबीर से पूछा।
"क्या बताऊं अब मैं तुम्हें, तुम्हें भरोसा तो होगा नहीं मेरी बातों पर इसलिए साथ चलो और चल कर खुद ही देख लो सब कुछ?" - अबीर बोला और राधिका का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ श्रेया और विनय के कमरे की तरफ ले जाने लगा।
अमर डॉक्टर के साथ पहले ही उस कमरे में पहुंच चुका था।
"लेकिन हुआ क्या है अबीर? मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है और मुझे कुछ बता भी नहीं रहे हो तुम ठीक से और यह डॉक्टर, अगर तुम लोग मिल कर मेरे साथ किसी तरह का मजाक प्लान कर रहे हो तो मैं पहले बता दूं, यह बहुत घटिया मजाक होगा।" - राधिका थोड़ा सा घबराते हुए बोली।
"यहां हमारी पूरी जिंदगी मजाक बनी हुई है और तुम्हें यह सब मजाक लग रहा है राधिका! हद है यार और एक बात बताओ, तुम यहां अचानक आई क्यों और कैसे और आखिर किस के साथ; और तुम्हारे पैरेंट्स आखिर मान कैसे गए, अकेले तुम्हें यहां आने देने के लिए?" - अबीर ने राधिका को बताया और एक के बाद एक उस से कई सवाल पूछ लिए।
राधिका घबराई हुई सी अबीर के चेहरे की तरफ देख रही थी और अबीर की बातें सुन कर उसे कुछ भी सही से समझ नहीं आ रहा था कि अबीर आखिर बात किस बारे में कर रहा है और इस से पहले कि वह अबीर के किसी भी बात का जवाब दे पाती, वह दोनों, विनय और श्रेया के कमरे में पहुंच गए और उस कमरे में पहुंचकर राधिका ने जो देखा वह एकदम हैरान रह गई और उसी तरह हैरानी से अबीर की तरफ देखने लगी।
क्रमशः
श्रेया और विनय के कमरे में पहुँच कर राधिका ने वहाँ पर देखा कि डॉक्टर विनय और श्रेया का ट्रीटमेंट कर रहे थे और श्रेया को इंजेक्शन देते हुए बोले - "इन्हें जरूर किसी बात का शॉक लगा है और उसी शाॅक की वजह से यह बेहोश हुई हैं, कोई चोट नहीं आई है तो इन्हें थोड़ी देर में होश आ जाएगा।" वो सब कुछ देख कर राधिका भी थोड़ी देर के लिए शॉक्ड रह गई, उसे समझ नहीं आया कि वहाँ पर क्या चल रहा है, लेकिन फिर खुद को संभालते हुए उसने सब समझा। पहले तो राधिका ने अबीर की तरफ सवालिया निगाहों से देखा और फिर बोली,
"और विनय को क्या हुआ है डॉक्टर?" विनय के शरीर पर लगी चोट और उसे बेहोश लेटा हुआ देख कर राधिका ने डॉक्टर से पूछा।
"यह तो आप के दोस्त ही बता पाएँगे कि आखिर इस लड़के को क्या हुआ है, लेकिन यह लड़का तो गिरकर सर पर चोट लगने की वजह से बेहोश हुआ था, इसे तो 24 घंटे से पहले होश नहीं आएगा। मैंने इंजेक्शन दे दिया है और दोबारा से बैंडेज भी कर दिया है, बाकी सब भगवान की इच्छा है और आप सब इनका ख्याल रखिए, मैं चलता हूँ और मेरी जरूरत पड़े तो फिर से मुझे जरूर याद कीजिएगा।" वह डॉक्टर बोला और अमर ने उसे पैसे दिए और बाहर तक छोड़ने भी गया।
अमर और डॉक्टर के बाहर जाते ही राधिका अबीर की तरफ देख कर बोली, "यह सब क्या है अबीर?"
"विनय को इतनी चोट कैसे आई और श्रेया भी बेहोश है। और शिवम, शिवम कहाँ है? कॉल पर तुमने बताया था कि वह भी आया है, तुम सब के साथ लेकिन अब तक मुझे वह कहीं भी नहीं दिखा।" वह सब कुछ देखने के बाद राधिका हैरान परेशान सी अबीर से सब कुछ पूछ रही थी।
अबीर उसके सवालों का कोई जवाब दे पाता, और सोच में पड़ जाता है, और अबीर कुछ बोलता इस से पहले ही अमर कमरे के अंदर आया और श्रेया के सवाल सुनता हुआ बोला, "शिवम अब यहाँ नहीं दिखेगा भी नहीं?"
"क्यों? क्यों नहीं दिखेगा... ऐसा क्यों बोल रहे हो तुम अमर! क्या हुआ है यहाँ पर अबीर!" राधिका अमर की बात सुनकर उन दोनों से पूछते हुए बोली।
"क्योंकि शिवम शायद मर चुका है या फिर गायब है; हमें ठीक से कुछ भी नहीं पता लेकिन जब से यह सब ट्रैकिंग से लौटे हैं, तब से ही यह सब हो रहा है, शिवम गया तो इन के साथ ही था लेकिन वापस नहीं आया, किसी को भी ठीक से नहीं पता कि उस के साथ क्या हुआ?" अबीर ने राधिका को पूरी बात बताई।
"क्या मतलब है कि किसी को कुछ नहीं पता, हो सकता है शिवम के साथ कोई हादसा हुआ हो और तुम लोगों ने पता लगाने की भी कोशिश नहीं की; आखिर दोस्त था वह हमारा।" राधिका उन दोनों से बोली।
"पूरी बात सुने बिना, तुम यह कैसे बोल सकती हो राधिका कि हम लोगों ने शिवम को नहीं ढूंढा होगा, हम सब ने उसे बहुत ढूंढा, लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चल पाया..." अमर बोला।
"विनय और अमर ने तो पुलिस में रिपोर्ट भी लिखवाई थी और शिवम को ढूंढने की वजह से ही हम लोग यहाँ से नहीं निकल पाए हैं, नहीं तो जाने कब का वापस लौट जाते..." अबीर ने भी राधिका को बताया।
"ओह माय गॉड! इतना सब कुछ हो गया यहाँ पर और तुम में से किसी ने मुझे एक कॉल कर के बताना भी जरूरी नहीं समझा।" राधिका उन लोगों की बात सुनकर बोली।
"असल में सिर्फ इतना ही नहीं और भी बहुत कुछ हुआ है हम लोगों के साथ यहाँ पर और इन सब में मोबाइल और फोन कॉल्स का तो जैसे याद ही नहीं रहता..." अबीर बोला।
"और साथ में यहाँ नेटवर्क इशू भी है, घर के अंदर रहो तो मोबाइल फोन में बिल्कुल भी नेटवर्क नहीं रहता और किसी का भी कॉल आता नहीं और ना ही यहाँ से किसी को कॉल कर सकते हैं, डॉक्टर को फोन भी मैंने घर से बाहर जा कर किया था।" अमर ने राधिका को बताया।
तभी दवाइयों के असर से या फिर शायद उन तीनों की बात करने की आवाज से, श्रेया को हल्का सा होश आने लगा और वह अपने सिर पर हाथ रख कर होश में आते हुए बोली, "आह्ह! मेरा सर बहुत तेज दुख रहा है।"
श्रेया को होश में आते देख राधिका जल्दी से उसके पास पहुँची, उसे संभाल कर टेक लगा कर बेड पर बिठाते हुए बोली, "तुम ठीक हो श्रेया?"
अबीर या अमर में से तो किसी की भी हिम्मत नहीं हुई श्रेया के नजदीक जाने की यह सोच कर कि पता नहीं श्रेया अब नॉर्मल है या पहले की तरह अभी भी उस पर खुशी की आत्मा का कब्जा है!
"तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हो? और क्या हुआ था मुझे?" श्रेया अभी भी पूरी तरह से होश में नहीं आई थी इसलिए वह राधिका को पहचान नहीं पाई और उस से पूछ ने लगी।
"मैं राधिका हूँ श्रेया! क्या हुआ है तुम्हें? देखो मेरी तरफ.." राधिका अपने बारे में बताते हुए बोली।
"राधिका, ओह राधिका! लेकिन तुम यहाँ कैसे कब तुम तो हमारे साथ मनाली नहीं आई थी, तुम.... तुम तो दिल्ली में थी ना..." श्रेया अपने सर पर हाथ रख कर याद करते हुए बोली।
"तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तुम अभी आराम करो श्रेया! हम बाद में बात करते हैं!" राधिका ने श्रेया से कहा।
अमर और अबीर एकदम कंफ्यूज और हैरान, परेशान से उसी कमरे के एक कोने में खड़े हुए थे और उन दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि श्रेया सच में नॉर्मल हो गई है या फिर एक्टिंग कर रही है राधिका और उन दोनों के सामने, क्योंकि बेहोश होने से पहले श्रेया जिस तरह से एक्ट कर रही थी, वह तो नॉर्मल बिल्कुल भी नहीं था।
"क्या हुआ तुम दोनों को, ऐसे वहाँ दीवार से चिपके हुए क्यों खड़े हो? कोई भूत देख लिया क्या..." राधिका ने उन दोनों को ऐसे दूर खड़े हुए देख कर कहा।
"भूत या आत्मा जो भी है , देख तो चुके हैं हम सब, क्यों श्रेया?" अबीर ने श्रेया की तरफ देखकर कहा।
"हाँ, हम सब उस लास्ट वाले कमरे में थे और वह खिड़की के पास एक लड़की पहले दिखी और फिर अचानक से गायब, अंधेरे में मैंने विनय बेबी का हाथ पकड़ा और फिर से उजाला, विनय बेबी कहाँ है?" श्रेया सब कुछ याद करते हुए बोली।
"विनय को तो चोट लगी है श्रेया!" अमर बोला।
"क्या विनय बेबी को चोट कब कैसे? क्या हुआ मेरे विनय को" श्रेया अपनी जगह से उठ कर विनय की तरफ देखती हुई बोली।
"विनय... विनय... क्या हुआ तुम्हें, इतना खून इतनी सारी चोटें; यह सब कैसे हुआ अबीर" श्रेया रोते हुए अबीर से पूछते हुए बोली।
"यह सब तो उस आत्मा ने किया है, तुम्हारे सामने ही तो हुआ था सब कुछ, तुमने ही तो हमें बताया था!" श्रेया की बातें सुन कर अमर बोला।
"क्या हुआ है यार अमर, श्रेया को यह ऐसे क्यों रिएक्ट कर रही है जैसे कि इसे अब कुछ याद ही नहीं...." अबीर ने अमर से पूछा।
"बताया... लेकिन मैंने कब बताया? मुझे तो कुछ भी याद नहीं है, आह्ह ! मेरा सर बहुत तेज दर्द हो रहा है।" श्रेया उन दोनों की बातें सुन कर सब कुछ याद करने की कोशिश करते हुए परेशान होते हुए बोली।
"चुप करो, तुम दोनों अभी.." श्रेया की हालत देख कर राधिका अबीर और अमर को डांटते हुए बोली।
और फिर श्रेया की तरफ देख कर उस से बोली, "कुछ नहीं होगा विनय को श्रेया, तुम आराम करो और अभी होश आ जाएगा विनय को भी , तुम यही विनय के पास बैठो और उस का ध्यान रखना; हम लोग बाहर हैं किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे आवाज देना..." राधिका श्रेया को समझा कर शांत कराने की कोशिश करते हुए बोली।
"थैंक यू सो मच राधिका, लेकिन तुम यहाँ कैसे आई और कब?" श्रेया ने राधिका से पूछा।
"वह सब मैं तुम्हें बाद में बताती हूँ अभी तुम आराम करो।" राधिका ने स्माइल करते हुए श्रेया से कहा और उसे विनय के पास लिटा कर, अबीर और अमर को साथ ले कर कमरे से बाहर चली गई।
बाहर निकल कर राधिका ने श्रेया के कमरे का दरवाजा हल्का सा बंद कर दिया और फिर हॉल में आ कर अबीर और अमर से बोली, "श्रेया की हालत नहीं दिख रही तुम दोनों को और उस से इतने सवाल जवाब कर रहे हो ऐसे वक्त पर, आखिर हुआ क्या है? तुम दोनों को, जो इस तरह रिएक्ट कर रहे हो!" राधिका उन दोनों पर लगभग चिल्लाते हुए बोली।
राधिका ने उन दोनों से पूछा तो उस के इस सवाल पर अबीर और अमर पहले तो एक दूसरे की तरफ देखने लगे और फिर अबीर राधिका की तरफ देख कर बोला.....
क्रमशः
"हमें क्या हुआ है? तुम्हें कुछ नहीं पता, राधिका! बस भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि हम दोनों जिंदा हैं, और तुम तो हम से यह पूछ रही हो कि आखिर श्रेया को क्या हुआ था, वो इतना अजीब बिहेव कर रही थी कल से, तुमने नहीं देखा ना, इसलिए ऐसा बोल रही हो तुम।" - अबीर ने राधिका को बताया।
"नॉर्मल ही तो बिहेव कर रही थी, बस उसके सिर का दर्द थोड़ा ज्यादा था शायद, तबीयत ठीक नहीं थी उसकी" - राधिका बोली।
"नहीं, अभी नहीं हम दोनों तो कल की बात कर रहे हैं, कल से बहुत कुछ अजीब सा बिहेव कर रही थी और उसने ही हमें बताया था आत्मा ने विनय को मारने की कोशिश की..." - अमर बोला।
"और अभी... सुना तुमने, अभी बोल रही है कि उसे कुछ भी याद नहीं है और उल्टा हम से पूछ रही थी कि विनय को क्या हुआ, अजीब नहीं लगा तुम्हें वो सब..." - अबीर ने राधिका से कहा।
"नहीं बिल्कुल भी नहीं, तुम दोनों कुछ ज्यादा ही रिएक्ट कर रहे हो, देखा नहीं उसकी तबीयत नहीं ठीक थी तो हो सकता है उसे कुछ भी याद ना हो" - राधिका उन दोनों को समझाते हुए बोली।
"रहने दे यार अबीर! इसे समझाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि इसके सामने कुछ भी नहीं हुआ है तो यह नहीं समझेगी" - अमर राधिका की बात सुनकर अबीर को चुप कराते हुए बोला।
"लेकिन तुम दोनों आखिर मुझे समझाना क्या चाहते हो, और वह सब छोड़ो सबसे पहले मुझे बताओ विनय को इतनी चोट कैसे लगी?" - राधिका ने उन दोनों (अबीर, अमर) से कहा।
"राधिका! तुम थक गई होगी जाकर थोड़ी देर रेस्ट कर लो, हम बाद में बात करते हैं इस बारे में" - अबीर ने राधिका से कहा और खुद फार्महाउस के बाहर चला गया।
राधिका भी उसके पीछे जाते हुए बोली - "लेकिन अबीर! मुझे कुछ बताओ तो...."
तभी अमर राधिका के सामने आ गया और बोला - "जाने दो उसे राधिका, अभी वह या मैं तुमसे कुछ भी कहेंगे तो तुम्हें यकीन नहीं होगा, तुम सच में जब से आई हो बिल्कुल भी रेस्ट नहीं किया तुमने, जाकर रेस्ट कर लो और चेंज कर लो, हम लोग बाद में बात करते हैं; तब तक शायद विनय और श्रेया भी ठीक हो जाए।"
"ओके अमर! आई थिंक तुम ठीक कह रहे हो; वैसे अबीर का कमरा कौन सा है?" - राधिका ने पूछा।
"वह लास्ट वाला..." - अमर ने इशारा करके राधिका को बताया और फिर वह सोफे पर बैठ गया और राधिका उस कमरे की तरफ चली गई। अमर को उस वक्त बिल्कुल भी याद नहीं था कि वो राधिका को उस कमरे में जाने से मना करे।
अबीर बाहर गार्डन में आया और खुद से बड़बड़ाते हुए बोला - "पहले ही कम मुसीबतें थीं यहां पर क्या, जो राधिका भी यहां पर आ गई मेरी टेंशन और बढ़ाने; पता नहीं क्या जरूरत थी उसे यहां पर आने की और उसे तो समझा कर वापस भी नहीं भेज सकता क्योंकि वह तो किसी बात पर यकीन भी नहीं कर रही है और विनय को भी होश नहीं आ रहा है, ऊपर से श्रेया को भी पता नहीं क्या हुआ था उसे, कैसे बेहोश हुई वो और उसे सच में कुछ याद नहीं या फिर वह एक्टिंग कर रही है; कुछ भी समझ नहीं आ रहा क्या करूं अब मैं?"
अबीर गार्डन में चलता हुआ यह सब सोच ही रहा था कि उसे ऐसा लगा कि कोई उसके पीछे खड़ा उसे देख रहा है या फिर उस पर नजर रखे हुए है; अबीर को जैसे ही यह एहसास हुआ वह तुरंत ही पीछे मुड़ा लेकिन वहां पर तो कोई भी नहीं था।
अबीर उस तरफ ही बढ़ने लगा, तभी उसे खुद से दूर जाती हुई एक परछाई नजर आई, अबीर तेजी से उस तरफ भागा लेकिन वह परछाई इतनी देर कहीं गायब हो चुकी थी।
"कौन है.... वहां कौन है?" - अबीर के अंदर पता नहीं कहां से इतनी ज्यादा हिम्मत आई और वह तेज आवाज में चिल्लाकर उस परछाई के पीछे भागा, लेकिन उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया।
"कौन था अभी यहां? क्या हो रहा है यह सब..." - अबीर अपने सिर पर हाथ रख के चारों तरफ घूम घूम कर देखता हुआ बोला और अबीर की आवाज सुनकर अमर वहां पर भागता हुआ आया जो कि हॉल में ही बैठा हुआ था और बाहर गार्डन में अबीर के सामने आकर अमर ने उससे पूछा - "क्या हुआ तुझे अबीर! तू इतनी तेज क्यों चीखा? मैं तो डर ही गया था, तू ठीक है ना?" अमर दौड़ कर वहां पर आया और एक ही सांस में उसने अबीर से कई सवाल पूछ डाले।
"हां यार! मैं तो ठीक हूं लेकिन यहां पर कुछ भी ठीक नहीं है!" - अबीर परेशान होता हुआ बोला, उसके चेहरे पर टेंशन साफ दिखाई दे रही थी।
"लेकिन हुआ क्या ? तू ऐसे क्यों चीखा?" - अमर ने पूछा।
"वह मैंने यहां पर... यहां किसी की परछाई देखी, ऐसा लगा था कोई मेरे पीछे खड़ा हो कर मुझे देख रहा था।" - अबीर ने अमर को बताया।
"कौन था वह, तूने देखा क्या उसे?" - अमर ने अबीर से पूछा।
"नहीं यार, वही तो देख नहीं पाया मैं, इसीलिए तो चिल्लाया था, पता नहीं कोई इंसान था या फिर वही आत्मा?" - अबीर मायूसी से बोला।
"किस तरफ जाते देखा तूने?" - अमर ने फिर से पूछा।
"मैं ठीक से देख नहीं पाया यार! मैं यहां पर खड़ा था, इस तरफ देखते हुए और मुझे लगा कि मेरे पीछे कोई है, लेकिन जब तक मैं पलटा और पीछे मुड़ा देखा कि वहां पर तो कोई भी नहीं था!" - अबीर ने वापस उसी जगह पर आकर खड़े होते हुए अमर को सब कुछ बताया।
थोड़ी देर पहले ही वहां पर हल्की बारिश हुई थी इसलिए गार्डन की मिट्टी भी हल्की गीली थी और जिस तरफ अबीर ने बताया, उस तरफ बारीकी से देखते हुए अमर ने कहा - "हां, तो इसका मतलब हमारा शक सही निकला; अबीर!"
"क्या कह रहा है तू , अमर ! कौन सा शक?" - अबीर को कुछ समझ नहीं आया तो वह भी उस तरफ देखते हुए अमर से बोला।
"मैंने तुझे वह कपड़े का टुकड़ा दिखाया था ना जो मुझे तेरे कमरे की खिड़की पर से मिला था।" - अमर बोला।
"हां, लेकिन उसका क्या करना है अभी, अभी तो यहां शायद कोई आत्मा या उसकी परछाई थी शायद..." - अबीर अमर की तरफ देखते हुए बोला तभी अमर उसे अपने हाथ के इशारे से जमीन की तरफ दिखाते हुए बोला - "कोई आत्मा नहीं है वह, जो कोई भी है जिंदा इंसान है!"
"अरे यह पैर के निशान उस तरफ जाते हुए..." - अबीर जमीन की तरफ देख कर बोला।
"इसका मतलब समझ रहा है तू अबीर..." - अमर बोला।
"लेकिन यार यह तो किसी इंसान के पैर के निशान लग रहे हैं और राधिका भी बारिश होने के बाद ही आई है तो हो सकता है उसके पैरों के निशान ही हों" - अबीर थोड़ा सोचते हुए बोला।
"हां, हो सकते थे लेकिन थोड़ा दिमाग लगाओ अभी, राधिका बाहर मेन गेट से आकर घर के दरवाजे तक जाएगी तो उसके पैर के निशान उस तरफ होने चाहिए, लेकिन नहीं; यह तो गार्डन से बाहर की तरफ जाते हुए निशान हैं; तो इसका मतलब यह किसी और के ही पैरों के निशान हैं, कोई तो था यहां पर..." - अमर अबीर को समझाते हुए बोला।
"इसका मतलब इन सब के पीछे किसी आत्मा नहीं मतलब किसी जिंदा इंसान का हाथ है।" - अबीर पूरी बात समझते हुए बोला।
"हां, बिल्कुल सही समझा अबीर तुमने, क्योंकि आत्मा के पैरों के निशान नहीं बनते ऐसे गीली मिट्टी पर..." - अमर बोला।
"लेकिन कोई आखिर यह सब क्यों करेगा, अगर हमें डरा कर यहां से भगाना ही चाहता है तो फिर हमें यहां से निकलने क्यों नहीं दे रहा?" - अबीर ने सारी बातों पर गौर करते हुए कहा।
"पता नहीं यार! यह तो वह इंसान ही जाने, आखिर क्यों वो आत्मा और भूत बन कर हम लोगों को डराने के पीछे पड़ा हुआ है या फिर पीछे पड़ी हुई है! चलो हम दोनों चल कर देखते हैं यह पैर के निशान आखिर कहां तक जाते हैं?" - अमर ने कहा।
"हां चलो..." - बोलते हुए अबीर भी अमर के साथ ही चल दिया और वह दोनों पैरों के निशान का पीछा करते हुए गार्डन के एकदम किनारे तक आ गए और वहां से आगे पक्की जमीन थी और सड़क भी थी तो पैर की निशान वहां धुंधले होते हुए गायब हो रहे थे।
वह दोनों उस बड़े से फार्महाउस के गार्डन के एकदम किनारे पर आ गए, तभी उनके कान में किसी लड़की की चीखने की आवाज आई काफी दूर से आती हुई और वह आवाज उन दोनों को ही सुनाई दी उसे सुन कर वह दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगे और अबीर ने अमर से पूछा - "कुछ सुना तूने अमर!"
"हां, श्रेया या राधिका पता नहीं; किसकी चीख थी।" - अमर फार्म हाउस की तरफ देखते हुए बोला।
अबीर और अमर फार्म हाउस की तरफ से तेज कदमों से बढ़ने लगे तभी अबीर ने अमर से पूछा - "चलो जल्दी, हमें चल कर देखना होगा और राधिका कहां पर है?"
"वह तो तेरे कमरे की तरफ गई थी, चेंज करने..." - अमर एकदम से बोलते बोलते रुक गया और अबीर की तरफ देखने लगा।
अबीर अमर की बात सुनकर बोला - "ओह शिट! उस कमरे में क्यों जाने दिया तुने उसे? रोका क्यों नहीं..."
20
चीख की आवाज़ सुनकर अबीर और अमर दोनों ही जल्दी से फार्म हाउस के अंदर की तरफ भागे। वह फार्महाउस का बाहर का रेजिडेंशियल एरिया और गार्डन काफी बड़ा था। अमर और अबीर दोनों को ही पता नहीं चला कि मिट्टी में बने उन पैरों के निशान का पीछा करते हुए कब वह दोनों घर के एकदम बाउंड्री लाइन तक आ गए थे।
मेन दरवाजा वहां से काफी दूर था, लेकिन फिर भी वो लोग पूरी तेजी के साथ उस तरफ भागे और जल्दी ही वहां पर पहुंच गए, लेकिन जैसे ही वह दोनों वहां पर पहुंचे और उन्होंने घर का दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा तो खुल ही नहीं रहा था, पता नहीं अंदर से लॉक था या फिर कुछ और... अबीर और अमर दोनों ने ही हैरान और परेशान नज़रों के साथ एक दूसरे को देखा और दरवाजा खटखटाने लगे।
"अब दरवाजे को क्या हुआ?" अमर बोला।
"खुल क्यों नहीं रहा ये? राधिका....राधिका...दरवाजा खोलो" अबीर ने भी दरवाजा खटखटाते हुए चिल्लाया।
"श्रेया, विनय, राधिका... कोई तो कुछ बोलो" अमर भी लगभग उसी तरह चिल्लाते हुए बोला लेकिन कोई फायदा नहीं, बस से कोई भी आवाज़ बाहर आती हुई सुनाई नहीं दे रही थी।
"क्या हुआ, अब कोई आवाज क्यों नहीं आ रही है?" अबीर बोला।
"हां, इतना सन्नाटा होना अच्छी बात का सिग्नल तो बिल्कुल नहीं है, वह भी किसी के चीखने की आवाज आने के बाद" अमर ने भी उस की बात से सहमति जताते हुए कहा।
"तो फिर अब हमें यह दरवाजा तोड़ना होगा।" अबीर ने सलाह दी।
"हां बिल्कुल चलो, एक साथ कोशिश करते हैं।" बोलते हुए अबीर और अमर ने भी एक साथ दरवाजे पर जोर लगाया और कई बार धक्का लगा कर दरवाजा खोलने की कोशिश की तो आखिरकार दरवाजा खुल गया।
दरवाजा खुलते ही वह दोनों झट से अंदर पहुंचे और अबीर अमर से बोला - "अमर तू श्रेया और विनय के कमरे में जा; जब तक मैं राधिका को देख कर आता हूं।"
अबीर की बात सुनकर अमर ने बस हां में अपना सर हिलाया और दोनों अलग-अलग दिशा की तरफ चल दिए, अभी अबीर उस लास्ट वाले कमरे की तरफ जाने वाली गैलरी तक पहुंच भी नहीं पाया था कि तभी राधिका उसे उस तरफ से भागती हुई, उस की तरफ आती हुई दिखी वह थोड़ी परेशान लग रही थी। वह जल्दी से भागकर अबीर के पास आई तो अबीर ने उसे रोकते हुए कंधे से पकड़ लिया और उस से पूछा - "क्या हुआ राधिका?"
"मैंने यहां पर से आती हुई कोई आवाज सुनी, क्या हुआ था अभी यहां पर?" राधिका वहां पर रुक अबीर की तरफ देखती हुई बोली।
"मतलब कि तुम ठीक हो और वो चीख भी तुम्हारी नहीं थीं।" अबीर खुद में ही बड़बड़ाया।
राधिका को कुछ भी समझ नहीं आया कि अबीर क्या बोल रहा था इसलिए वह उसी तरह हैरानी के साथ देखती हुई बोली - "मुझे क्या होगा, मैं तो बस चेंज करने गई थी, कौन सी चीख मैंने तो कोई आवाज नहीं सुनी क्या बोल रहे हो अबीर!"
"तुम नहीं तो इसका मतलब श्रेया! जल्दी चलो, देखते हैं क्या हुआ?" अबीर ने राधिका की बात को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए उस का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ ले कर श्रेया और विनय के कमरे की तरफ चला।
अबीर जैसे ही श्रेया और विनय के कमरे में पहुंचा तो जो कुछ भी उसने और राधिका ने देखा, वह देखकर तो उन दोनों के होश उड़ गए और हैरानी की वजह से आंखें बड़ी हो गई। उन दोनों ने देखा कि विनय तो अभी भी उसी तरह बेहोश बेड पर लेटा हुआ है, लेकिन वो कमरा पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था। विनय के बेड की चादर उलझी हुई थी, तकिया जमीन पर पड़े हुए थे और ज्यादातर सामान भी बिखरा पड़ा था और श्रेया एक कोने में दुबकी बैठी अपने पैरों के बीच में अपना सिर झुकाए रो रही थी या फिर शायद वह कुछ ज्यादा ही डरी हुई थी और थोड़ी दूर पर श्रेया के सामने खड़ा अमर उसे समझा-बुझाकर वहां से उठाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन श्रेया कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी या फिर वह कुछ भी सुनने या समझने की हालत में ही नहीं थी।
वह नज़ारा देख कर अबीर राधिका को वहीं दरवाजे के पास खड़ा छोड़ कर खुद धीरे से अमर के पास आया और उस के कान में बोला - "क्या नाटक है यार अमर! ये सब इस का? अब कौन सा भूत देख लिया इस ने।"
"पता नहीं अबीर! वैसे देख कर लगता तो नहीं है कि ये कोई नाटक कर रही है, सच में किसी शाॅक में लग रही है।" अमर थोड़ा परिस्थिति पर गौर करते हुए बोला।
"पता नहीं क्या सच है क्या नाटक कुछ समझ नहीं आ रहा लेकिन एक बात तो है शक करने लायक" अभी-अभी चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला।
"क्या?" अमर ने थोड़ा कंफ्यूज होते हुए अबीर से पूछा।
"यही कि यह सब कुछ श्रेया के सामने ही क्यों होता है, ज्यादातर?" अबीर एकदम से बोला।
"उस आत्मा को भी श्रेया सॉफ्ट टारगेट लगती होगी शायद हम सब में से, लेकिन शुरुआत तो तुझ से हुई थी और तुझे भी तो कई बार अकेले में दिखी है वह लड़की या आत्मा जो भी है वह, व्हाट एवर!" अबीर की बात सुनकर अमर उसे सारी बातें याद दिलाते हुए बोला।
"क्या है तुम दोनों को, आपस में ही लगे हुए हो, कब से देख रही हूं मैं ; कितने इनसेंसिटिव हो गए हो तुम लोग यहां आ कर कुछ फिक्र ही नहीं है तुम दोनों को श्रेया और विनय की..." उन दोनों को इस तरह धीमी आवाज में आपस में बात करते देख राधिका उन के पास आ कर पीछे से बोली।
"कुछ नहीं, हम तो बस...." अबीर बोल ही रहा था कि
"बस करो मुझे कोई सफाई मत दो, देखा मैंने और सुना भी..." बोलती हुई राधिका श्रेया के पास गई और उसे संभालते हुए उस ने वहां से उठाया वह बड़ी मुश्किल से उस जगह से उठी और फिर राधिका ने उसे बेड पर ही एक तरफ बिठा दिया और पानी पीने को दिया।
श्रेया पानी भी नहीं पी रही थी, तो राधिका ने उसे अपने हाथों से एक दो घूंट पानी पिलाया और फिर गिलास वही साइड में रख दिया, और उसे समझाती हुई बोली - "क्या हुआ श्रेया! तुम कहां जमीन पर क्यों बैठी थी और क्या हुआ यहां इस कमरे में कौन था हमारे आने से पहले यहां पर?"
राधिका की बात सुनकर पहले तो श्रेया थोड़ी देर कुछ भी नहीं बोली फिर नजरें घुमा कर चारों तरफ हैरानी से इस तरह देखने लगी जैसे पहली बार इस कमरे में आई हो और अब तक अबीर और अमर भी आकर बेड पर ही बैठ गए थे उसकी बात सुनने के लिए कि आखिर अब क्या हुआ श्रेया के साथ?
"बताओ श्रेया... तुम बताओगी नहीं, तो हम तुम्हारी मदद कैसे कर पाएंगे और तुम डरो नहीं हम सब है ना यहां पर " राधिका ने श्रेया का हाथ पकड़ते हुए और उसे सांत्वना देते हुए कहा।
राधिका की बातों से जैसे श्रेया को उस पर कुछ भरोसा हुआ और वह आस भरी नजरों से राधिका की तरफ देख कर बोली - "वो यहां... नहीं वहां... उस तरफ.... नहीं हर तरफ... पूरा... पूरा अंधेरा तुम सब के यहां से जाने के बाद पूरे कमरे में एकदम अंधेरा.... ऐसा लग रहा था जैसे कि रात और फिर एकदम से कमरे के बीचो बीच कोई था... हां यहां पर... यहां पर ही" घबराई हुई अटकती सी आवाज और फूलती सांसों के बीच श्रेया उसी तरह अटक अटक कर यह सब बोले जा रही थी अपनी उंगली से एक तरफ इशारा करके लेकिन उन तीनों में से किसी के कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर श्रेया ने क्या देखा ऐसा; उसके साथ क्या हुआ और वह अब उन्हें क्या बताना चाह रही थी।
श्रेया की ऐसी बातें सुन कर अबीर, अमर और राधिका तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और सिर्फ तीनों हैरानी से श्रेया की तरफ से देखने लगे और श्रेया अभी भी मदहोशी की हालत में उसी तरह बड़बड़ाए जा रही थी।
क्रमशः