आपसे पूछे और बताएं बिना ही, जिससे आपके घर वालों ने आपकी शादी तय की हो वहां पर ही आपको जॉब मिल जाए और जब मिलने के बाद इंगेजमेंट वाले दिन आप पहली बार मिले अपने होने वाले फिआंसे से, और आपका बॉस ही हो आपका फिआंसे तो क्या होगा आपका रिएक्शन और क्या बाॅस और... आपसे पूछे और बताएं बिना ही, जिससे आपके घर वालों ने आपकी शादी तय की हो वहां पर ही आपको जॉब मिल जाए और जब मिलने के बाद इंगेजमेंट वाले दिन आप पहली बार मिले अपने होने वाले फिआंसे से, और आपका बॉस ही हो आपका फिआंसे तो क्या होगा आपका रिएक्शन और क्या बाॅस और असिस्टेंट के रिलेशन के साथ यह लवर और फ्यूचर हसबैंड वाइफ वाला रिलेशनशिप एक साथ चल पाएगा या फिर नहीं? और क्या हो जब प्रोफेशनल होने के लिए आपको रखना पड़े अपने रिलेशनशिप को दुनिया वालों की नजरों से छुपा कर, क्या सब कुछ साथ लेकर चल पाएंगे दो लोग? जानने के लिए पढ़िए यह कहानी "My Boss is My Secret Lover!"
करण मल्होत्रा
Hero
शिविका खन्ना
Heroine
समर मल्होत्रा
Side Hero
ऋषभ खन्ना
Side Hero
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शहर के एक बड़े फाइव स्टार होटल, रॉयल ब्लूस्टार के ग्राउंड फ्लोर पर बने बैंक्वेट हॉल में एक पार्टी चल रही थी। उस पार्टी में शहर के जाने-माने बिज़नेसमैन से लेकर कुछ राजनीतिज्ञ और सेलिब्रिटीज़ भी शामिल थे।
हॉल की सजावट एक उच्च-वर्गीय पार्टी के अनुरूप थी। फूल और रोशनी नीले और सफ़ेद रंग की थीम में सजे थे। इसी रंग के पर्दे काँच की खिड़कियों पर सजावटी अंदाज़ में बंधे हुए थे।
यह पार्टी एस के ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज की मालकिन, शिविका खन्ना को एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय डील मिलने के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी। उसने अपने परिचित लगभग सभी लोगों को आमंत्रित किया था।
उस पार्टी में, शिविका के मित्रों और परिचितों से ज़्यादा उसके शत्रु उपस्थित थे। हालाँकि वे मन ही मन शिविका से जलते थे, पर इतनी बड़ी पार्टी में आने का अवसर कोई नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि इससे उनकी भी पब्लिसिटी होती थी।
शिविका को इन बातों से कोई मतलब नहीं था। वह अपने मैनेजर और सुरक्षाकर्मियों के साथ अपनी लाल रंग की फेरारी कार से निकलकर हॉल के द्वार की ओर बढ़ रही थी। उसने लाल रंग का लॉन्ग गाउन पहना था, जिस पर सिल्वर वर्क था। वह उस ऑफ-शोल्डर गाउन में चोकर और खुले बालों के साथ बहुत ही सुंदर लग रही थी।
शिविका की उम्र लगभग 25-26 वर्ष होगी, पर इतने कम समय में उसने व्यापार जगत में अपना और अपनी कंपनी का नाम बहुत अच्छा बनाया था। खासकर अपने पिता की तबीयत खराब होने के बाद उसने सब कुछ अकेले संभाला था।
शिविका दिखने में सुंदर थी और उसकी लंबाई भी अच्छी थी, इसलिए उसने ज़्यादा ऊँची एड़ी के जूते नहीं पहने थे। फिर भी उसने गाउन से मेल खाते दो-तीन इंच की एड़ी के जूते पहने हुए थे। अपने पुराने मैनेजर, दिनेश अंकल के साथ वह पार्टी में प्रवेश की।
शिविका के आते ही भीड़ में चर्चाएँ शुरू हो गईं। वहाँ मौजूद सभी मीडिया रिपोर्टर अपने कैमरे लेकर द्वार की ओर दौड़े। इतने लोग शिविका के स्वागत के लिए इकट्ठे हो गए कि द्वार से अंदर आने का रास्ता लगभग बंद हो गया।
सारे मीडिया रिपोर्टर शिविका की तस्वीरें क्लिक करना और उसका इंटरव्यू लेना चाहते थे, पर शिविका इसमें जरा भी रुचि नहीं ले रही थी। उसके लिए यह कोई पहली बार नहीं था; उसे इन सबकी आदत हो चुकी थी और इनसे निपटना भी वह अच्छी तरह जानती थी।
"हेलो हेलो मैडम! मिस खन्ना... इस तरफ!"
"मैम प्लीज इस तरफ देखिए, हैव अ लुक!"
"मैम बस एक क्वेश्चन..."
"वन पिक्चर वन पिक्चर प्लीज!"
उन मीडिया रिपोर्टरों से घिरी शिविका को ऐसी आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।
लेकिन उनमें से कोई भी शिविका तक नहीं पहुँच पा रहा था क्योंकि शिविका के चारों ओर उसके चार सुरक्षाकर्मी चल रहे थे, जो उसे पूरी तरह से सुरक्षित रख रहे थे और उन्होंने सभी लोगों को शिविका से दूर कर दिया था।
शिविका उन सभी लोगों को अनदेखा करते हुए, पूरे आत्मविश्वास के साथ पार्टी हॉल में आई और अपने वीआईपी सेक्शन की ओर बढ़ने लगी।
शिविका के सारे सुरक्षाकर्मी द्वार पर ही रुक गए। इस समय शिविका के साथ केवल उसका मैनेजर, दिनेश अंकल था। थोड़े तेज कदमों से चलती हुई शिविका एक नज़र पीछे भी देख रही थी। तभी आगे उसका ध्यान भंग हुआ और वह सामने से आ रहे एक आदमी से टकरा गई।
"देखकर नहीं चल सकती क्या, मेरी ड्रिंक गिरा दी कपड़ों पर..." उस आदमी ने अपनी सफ़ेद शर्ट पर गिरी ड्रिंक को हाथ से साफ़ करते हुए कहा।
उस लड़के की नज़र अब तक शिविका के चेहरे पर नहीं पड़ी थी। वह बहुत बेबसी से सिर हिलाते हुए एक बार अपने हाथ में पकड़े गिलास और फिर अपने कपड़ों को देखने में व्यस्त था, जिस पर अभी-अभी शिविका से टकराने के कारण गिलास की आधी से ज़्यादा ड्रिंक गिर गई थी।
"व्हाट द हेल! एक तो गलती तुम्हारी है, तुम ही सामने से आ रहे हो और मुझे बोल रहे हो, तुम खुद देखकर नहीं चल सकते क्या?" शिविका उस आदमी पर चिल्लाते हुए बोली क्योंकि उसे बिलकुल भी आदत नहीं थी कि सामने से कोई उस पर इस तरह चिल्लाए।
"अरे तो आने-जाने के लिए ही रास्ता है मिस..." इतना बोलते हुए उस लड़के ने अपनी नज़र ऊपर उठाई और जैसे ही उसकी नज़र शिविका पर पड़ी, तो वह उसे पहचान गया क्योंकि शिविका काफी प्रसिद्ध बिज़नेस टाइकून थी और ज्वेलरी डिज़ाइनिंग बिज़नेस में उसकी एस के डिज़ाइनिंग कंपनी शहर की सबसे बेहतरीन कंपनी थी।
"ओह! आई एम रियली सॉरी मैम... गलती किसी की भी हो, लेकिन सॉरी बोल देने वाला कोई छोटा तो नहीं हो जाता।" उस लड़के ने तुरंत माफ़ी माँगते हुए कहा।
"हाँ, सामने वाला पैसे, पावर और पद में अगर बड़ा हो, तो उससे बड़े-बड़े भी आसानी से माफ़ी माँग लेते हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे अभी एक पल में तुम्हारे तेवर बदल गए।" शिविका ने उस लड़के को ताना मारते हुए कहा और ऊपर से नीचे तक उसे घूरकर देखते हुए वहाँ से आगे बढ़ गई।
शिविका समझ गई कि वह लड़का उसकी शक्ल देखकर पहचानने के बाद ही उसे सॉरी बोल रहा था। उससे पहले तो वह अच्छा-ख़ासा लड़ने के मूड में था और ऐसा उसके साथ अक्सर होता था।
शिविका के इतना बोलकर वीआईपी सेक्शन की ओर चले जाने के बाद वह लड़का पीछे मुड़कर कुछ देर उसे ही देखता रहा।
वह असल में शिविका की कही बात के बारे में सोच रहा था क्योंकि शिविका ने बिलकुल सच कहा था। उसने भी शिविका को पहचानने के बाद ही उससे माफ़ी माँगी थी, नहीं तो पहले वह सामने से आ रही लड़की को उसके कपड़े खराब करने के कारण चिल्लाने वाला था।
लोगों के ऐसे बर्ताव का शिकार वह अक्सर खुद भी होता रहा था, इसलिए वह इस बात को अच्छी तरह समझता था। लेकिन फिलहाल वह और कुछ नहीं कर सका और चुपचाप सिर हिलाते हुए वाशरूम की ओर बढ़ गया।
शिविका के पीछे खड़े दिनेश अंकल, जो उसके मैनेजर भी थे, काफी देर से शिविका से कुछ बोलने और बात करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शिविका वहाँ बाकी लोगों से बात कर रही थी, इसलिए वह दिनेश अंकल से बात नहीं कर पाई।
अभी शिविका अकेली थी और वह अपने सामने रखी ड्रिंक उठाकर पी रही थी।
अपनी ड्रिंक पीते हुए शिविका ने दिनेश अंकल से पूछा, "क्या हुआ अंकल, कोई बात है क्या?"
"मैडम वो लड़का..." दिनेश अंकल ने सिर्फ़ इतना कहा।
यह बात सुनकर शिविका अपने आसपास गर्दन घुमाकर देखते हुए बोली, "कौन सा लड़का, यहाँ पर तो कोई नहीं है।"
"अरे मैडम, वही जिससे अभी आप टकराई थीं, यही वह है जिससे आपके पिता ने आपकी शादी तय की है।" दिनेश अंकल ने शिविका को पूरी बात बताई।
"व्हाट!!" शिविका ने एकदम हैरानी से कहा और उसके मुँह में भरी हुई ड्रिंक भी लगभग उसके मुँह से बाहर आ गई, जिसे उसने जल्दी से टिशू पेपर उठाकर साफ़ करने लगी।
ऐसा करते हुए उसने दिनेश अंकल की ओर देखा, जो इस बात के सच होने की गवाही देते हुए अपना सिर हिला रहे थे। उन्होंने आगे कहा, "अरे मैडम! मुझे लगा आपको इस बारे में पता होगा। साहब ने आपसे बात की होगी और मुझे लगा आप शायद उसे पहचान भी गई हैं, इसीलिए उससे रुककर बात कर रही हैं।"
"पापा ने सिर्फ़ एक बार मेरे सामने इस बात का ज़िक्र किया और मैंने हमेशा की तरह उन्हें मना ही कर दिया था। तो फिर इस बात का क्या मतलब है कि उन्होंने मेरी शादी तय कर दी? मैं ऐसे कैसे किसी से भी शादी कर सकती हूँ?" शिविका ने उसी तरह हैरानी और मना करने वाले भाव के साथ कहा।
दिनेश अंकल शिविका की इस बात पर कुछ भी नहीं बोले क्योंकि वह भले ही अब शिविका के लिए काम करते थे, लेकिन पहले वे उसके पिता के मैनेजर थे और तब से ही उनके साथ काम कर रहे थे। वे भी चाहते थे कि शिविका की शादी हो जाए, लेकिन शिविका ने उन सब से मना कर दिया था और यह कहा था कि उसे किसी से भी शादी नहीं करनी।
शिविका को लगता था कि उसके पैसे, पावर और ओहदे को देखकर तो कोई भी उससे शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा, इसलिए वह किसी को भी ऐसा मौका नहीं देना चाहती थी।
इसके बाद से शिविका पूरी पार्टी में उस लड़के को ढूँढ़ती रही, लेकिन वह उसे दोबारा कहीं पर भी नज़र नहीं आया।
बाकी सारे लोग वहाँ आकर शिविका से बात कर रहे थे और शिविका ना चाहते हुए भी उनमें से कुछ लोगों से बात कर रही थी और उनकी बातों का जवाब दे रही थी, लेकिन उसका ध्यान अब उस लड़के में ही लगा हुआ था।
वह लड़का लगभग शिविका का ही हमउम्र होगा, इसके अलावा वह दिखने में भी सुंदर और आकर्षक था। शिविका ने सिर्फ़ दो मिनट ही उससे बात की होगी और वह उसका चेहरा अब तक नहीं भूली थी, जबकि सामान्यतः वह इतने सारे लोगों से मिलती थी और उसे सबके बारे में जल्दी याद नहीं रह जाता था।
अपनी वह पार्टी ख़त्म होने से पहले ही शिविका अपने घर वापस आ गई क्योंकि उसके पिता कुछ देर पहले ही घर वापस आ गए थे।
क्रमशः
शिविका को अपने पिता से इस बारे में बात करनी थी, इसीलिए वह पार्टी से घर के लिए निकल गई।
शिविका का घर पंजाब के लुधियाना शहर के वीआईपी एरिया में स्थित एक विशाल और सुंदर मेनसन था, जिसे "वृंदा मेनसन" के नाम से जाना जाता था। शिविका की स्वर्गीय माता का नाम वृंदा था और मेनसन के बाहर इसी नाम का एक बड़ा बोर्ड लगा हुआ था।
शिविका अपनी फेरारी कार से घर लौटी। उसका ड्राइवर कार चला रहा था और दिनेश अंकल ड्राइवर के साथ आगे बैठे थे। शिविका कार में पीछे अकेली बैठी थी।
उसे अपने पिता से शादी के बारे में बात करनी थी और हमेशा की तरह, इस बार भी शादी के प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करना था। इसलिए उसने पार्टी समाप्त होने का इंतजार किए बिना ही घर वापस आने का निर्णय लिया था।
घर के अंदर आते ही शिविका ने चारों ओर देखा, परन्तु उसके पिता घर में नज़र नहीं आए। उसने तेज आवाज़ में पुकारा, "पापा... पापा कहाँ हैं आप? और आप मेरी मर्ज़ी के बिना मेरी शादी कैसे तय कर सकते हैं?"
शिविका के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर, ग्राउंड फ्लोर पर स्थित एक कमरे से एक नर्स व्हीलचेयर लेकर बाहर निकली। व्हीलचेयर पर एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था, जिसकी आयु लगभग पचास से साठ वर्ष के बीच होगी।
"धीमी आवाज़ में बोलो। इतना ज़ोर से क्यों चिल्ला रही हो? काव्या जाग जाएगी।" व्हीलचेयर पर बैठे उस आदमी ने शिविका की ओर देखते हुए कहा।
उस आदमी के चेहरे पर एकदम सपाट भाव था। वह बिल्कुल भी गुस्से या नाराज़गी में नहीं लग रहा था।
वह आदमी कोई और नहीं, शिविका के पिता थे। शिविका के पिता का नाम मिस्टर देवेश खन्ना था और तीन साल पहले आए पैरालिसिस अटैक के बाद से वह व्हीलचेयर पर थे, क्योंकि उनके पैर काम नहीं करते थे। इस कारण वह थोड़े अजीब से हो गए थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि वे अपने घरवालों पर बोझ हैं।
उनकी पत्नी को दस साल हो चुके थे। अब घर में शिविका और काव्या के अलावा उनका एक बेकार बेटा ऋषभ था, जो आए दिन नशे, पार्टियों और अय्याशी में डूबा रहता था। उसे घर, परिवार, बिज़नेस और प्रॉपर्टी से कोई लेना-देना नहीं था।
शिविका के पिता ने उसे सबक सिखाने के लिए उसे पैसे देना बंद कर दिया था और उसके बैंक अकाउंट भी फ्रीज़ करवा दिए थे।
ऋषभ, शिविका से केवल दो साल छोटा था, लेकिन शिविका अपने छोटे भाई से बहुत प्यार करती थी, इसलिए वह अपने पिता से छुपकर उसे पैसे दे देती थी।
वह नहीं चाहती थी कि जिस तरह से उसके पिता बिज़नेस और काम में फंसकर अपनी ज़िंदगी का आनंद नहीं ले पाए, उसी तरह उसका भाई भी केवल काम करने की मशीन बनकर रह जाए। इसी सोच ने लगभग उसके भाई को पूरी तरह बिगाड़ दिया था।
ऋषभ के घर आने-जाने का कोई निश्चित समय नहीं था और वह अभी तक अपना कॉलेज भी पूरा नहीं कर पाया था। वह तीन साल से लगातार फाइनल ईयर में फेल हो रहा था, क्योंकि उसे पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था। लेकिन शिविका उसकी सभी कमियों को हमेशा छिपाती रहती थी।
"मैं खुद भी चिल्लाना नहीं चाहती, पापा! मुझे कोई शौक नहीं है, लेकिन आप मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर करते हैं। आखिर वह लड़का पार्टी में क्या कर रहा था? और वह कौन है? मैं उसे जानती तक नहीं हूँ, और आपने उससे मेरी शादी तय कर दी? आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?" शिविका ने एक के बाद एक शिकायत करते हुए कहा। उसकी आवाज़ भले ही पहले से थोड़ी धीमी थी, लेकिन वह अभी भी सामान्य लहजे में नहीं बोल रही थी।
"शिविका, देखो, बहुत हो गया तुम्हारा... अब मैं तुम्हारी और नहीं सुनने वाला। तुम 26 साल की हो गई हो और अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है। उससे पहले मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी और करण की सगाई हो जाए।" शिविका के पिता ने उसी तरह, बिना भाव वाले चेहरे के साथ अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
"करण! वाह... उसका नाम भी मुझे अब पता चल रहा है। और यह शादी आपके लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? और आपको नहीं पता कि मेरे पास पहले से ही मेरी ज़िंदगी की वजह काव्या है? और आपको क्या लगता है, कौन सा आदमी उसे अपनी बेटी की तरह अपनाएगा?" शिविका ने निराश होकर कहा और अपने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर सामने वाले सोफ़े पर बैठ गई।
शिविका के पिता अपनी बेटी की ऐसी हालत नहीं देख पाए। उन्होंने अपने हाथ से व्हीलचेयर चलाते हुए उसके ठीक सामने आकर रुक गए और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले, "बेटा, करण बहुत अच्छा लड़का है और वह तुम्हारी सारी बातें मानने के लिए भी तैयार हो जाएगा। मुझे उस पर पूरा भरोसा है।"
"हो जाएगा से क्या मतलब है? आपने अभी तक उससे इस बारे में बात नहीं की है, क्या?" शिविका ने एक नज़र उठाकर अपने पिता की ओर देखते हुए थोड़ी उलझन से पूछा।
"नहीं... अभी तुम दोनों में से किसी को भी कुछ नहीं बताया गया है। करण...वह राज़ी हो जाएगा, क्योंकि उसके पिता को मैं पहले से ही जानता हूँ। हमारे यहाँ पहले काम भी करता था, डिजाइनिंग हेड के पद पर, लेकिन फिर..." इतना बोलते हुए शिविका के पिता चुप हो गए और शिविका ने भी उनसे आगे नहीं पूछा, क्योंकि वह अपने पिता को बहुत अच्छी तरह से जानती थी और समझती थी कि वह उसे केवल उतना ही बताएँगे जितना वे बताना चाहते हैं। इस तरह शिविका को करण और उसके परिवार के बारे में पूरी जानकारी कभी नहीं मिल पाएगी।
"अच्छा, ठीक है, लेकिन मैं यह शादी अपनी शर्तों पर करूँगी और उसे मेरी सारी बातें माननी होंगी। इसके साथ ही हम उसे काव्या के बारे में पूरा सच नहीं बताएँगे और यह कहेंगे कि वह मेरी सगी बेटी है, सिर्फ़ उसका रिएक्शन देखने के लिए..." शिविका ने अपने पिता के सामने शर्त रखते हुए कहा। उसकी इस बात पर उसके पिता ने पहली बार हल्का सा मुस्कुराया।
शिविका के पिता ने उसकी सहमति मिलते ही तुरंत कहा, "हाँ, ठीक है। तुम उससे मिलकर देख लो और हो सके तो उसके साथ थोड़ा समय बिताओ। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह तुम्हें भी पसंद आएगा।"
अपने पिता की इस बात पर शिविका ने बेमन से मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे कोई भी इतनी जल्दी और आसानी से पसंद नहीं आता, और यह बात आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं, पापा!"
"हाँ, और इसीलिए मैंने यह रिश्ता तय किया है, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ, बेटा! और अब जाकर सो जाओ। रात काफी हो गई है। पार्टी से सीधे ही आ रही हो, थक भी गई होगी।" शिविका के पिता ने इतना कहा और फिर अपनी केयरटेकर नर्स से अपनी व्हीलचेयर वापस कमरे के अंदर ले जाने का इशारा किया।
उनका इशारा समझते ही वह नर्स उनकी व्हीलचेयर लेकर कमरे के अंदर चली गई।
अपने पिता की यह बात सुनने के बाद भी शिविका कुछ देर वहीं बैठी रही। दिनेश अंकल भी अब तक वहाँ से चले गए थे।
तभी शिविका ने गहरी साँस लेते हुए अपनी जगह से उठकर अपने कमरे की ओर बढ़ी, लेकिन तभी उसने घर की नौकरानी ज्योति को बुलाया और उससे काव्या के बारे में पूछा...
"बिटिया अपने कमरे में सो रही है, मैडम! मैंने उन्हें रात का खाना भी खिला दिया था।" ज्योति ने बताया। शिविका ने "ठीक है" कहकर अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
अपने कमरे में जाकर कपड़े बदलने के बाद, शिविका ने अपना नाइटवियर पजामा और शर्ट पहना और अपने कमरे से निकलकर सीधा दूसरे कमरे की ओर आ गई।
वह कमरा शिविका के कमरे के बिल्कुल बगल में ही था। शिविका ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला, उसने देखा कि एक मुलायम गुलाबी रंग के कंबल में चार साल की एक छोटी बच्ची बहुत आराम से सो रही है। उसके आस-पास छोटे-छोटे मुलायम खिलौने और तकिए रखे हुए थे, ताकि वह इतने बड़े बिस्तर पर साइड से नीचे ना गिरे।
छोटी बच्ची का कमरा बहुत ही प्यारा सुनहरे और गुलाबी रंग से सजा हुआ था। उसकी दीवारों पर स्ट्रॉबेरी शॉर्टकेक कार्टून की तस्वीरें बनी हुई थीं और जगह-जगह स्ट्रॉबेरी वाली सजावट थी। दीवारों पर सिंड्रेला और गुलाबी रंग की परी की पेंटिंग भी थीं।
लेकिन दरवाजे के पास खड़ी शिविका बहुत ही प्यार भरी नज़रों से उस सोती हुई प्यारी बच्ची को देख रही थी, जो सोते वक़्त पाउट बनाए हुए और भी ज़्यादा प्यारी लग रही थी। उसके मोटे-मोटे गाल सोते वक़्त और भी ज़्यादा मोटे लग रहे थे।
कुछ पल के लिए इतना सोचने के बाद शिविका कमरे के अंदर आई और उस छोटी बच्ची के दाहिनी ओर रखे हुए मुलायम खिलौनों और तकियों को हटाकर वहाँ पर खुद बैठ गई और बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुए बहुत ही प्यार से उसकी ओर देखने लगी।
"मेरी कवि! कितनी प्यारी लग रही है सोते हुए..." इतना बोलकर शिविका ने हल्का सा झुककर बच्ची के माथे पर हल्के से चुंबन किया। फिर वह बच्ची नींद में ही हल्का सा हिली, लेकिन शिविका ने उसके हाथ पर हल्के से थपकी दी, तो वह दोबारा उसी तरह गहरी नींद में सो गई।
उसे आराम से सोता देखकर शिविका भी उसके बगल में ही जगह बनाकर वहाँ पर सो गई।
क्रमशः
अगले दिन, एस के डिजाइनिंग हाउस में शिविका अपने केबिन में बैठी हुई थी। वह बहुत परेशान थी। उसने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ रखा था। तभी दरवाज़ा खुला और एक आदमी अंदर आया। वह ठीक-ठाक दिखने वाला, औसत कद-काठी का व्यक्ति था, उसकी उम्र लगभग तीस साल होगी।
उसे अंदर आते देख शिविका चिल्लाई, "व्हाट द हेल ऑफ़ ऑल दिस डिजाइन्स, जतिन! इनमें से एक भी ढंग का नहीं है! इसके साथ ही, अब तक मेरे पर्सनल असिस्टेंट के काम के लिए एक भी ढंग का कैंडिडेट सेलेक्ट नहीं किया तुम लोगों ने! मैंने जितने भी इंटरव्यू दिए हैं, सब एक से बढ़कर एक डफर थे!"
"आई एम सॉरी मैम! मैं हेड डिजाइनर को बोल कर आता हूँ इंटरव्यू के लिए। अभी एक कैंडिडेट और बचा है। आप उसका इंटरव्यू ले कर देख लीजिए। बाकी फिर कल देखते हैं।" इतना कहकर जतिन ने शिविका के सामने रखी टेबल पर पड़े सारे कागज़ समेटे, उन्हें फाइल में रखा और केबिन से बाहर निकल गया।
जतिन के जाने के कुछ सेकंड बाद, कमरे का दरवाज़ा फिर खुला। शिविका ने बिना उधर देखे कहा, "नहीं, जतिन! फिर से नहीं! मुझे अब और कोई बहाना नहीं सुनना है।"
"लेकिन मेरा नाम तो जतिन नहीं है, मैम!" एक बिल्कुल अलग, गहरी आवाज़ शिविका के कानों में पड़ी, जो जतिन की आवाज़ से बिलकुल अलग थी। शिविका ने नज़र उठाई और दरवाज़े पर खड़े शख्स को देखकर तुरंत पहचान लिया। "तुम!! तुम यहाँ...? डोंट टेल मी पापा ने तुम्हें यहाँ पर मुझसे मिलने के लिए भेजा है।"
"व्हाट मैम! किसके पापा?" उस आदमी ने एकदम क्लूलैस चेहरे से कहा।
उसके चेहरे के भाव देखकर शिविका समझ गई कि उसे शायद इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। लड़के की पर्सनैलिटी काफी अच्छी थी, लेकिन उसके चेहरे पर बहुत तनाव भी दिख रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह काफी दिनों से ठीक से सोया नहीं है; उसका चेहरा काफी थका हुआ लग रहा था।
शिविका ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। यह वही लड़का था जो कल रात पार्टी में उसे मिला था, और जिससे उसके पिता ने उसकी शादी तय की थी। इसीलिए उसे यहाँ देखकर शिविका के मुँह से तुरंत यह सवाल निकल गया।
कल पार्टी में जब शिविका उससे मिली थी, तब भी वह उसे कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था, और आज भी उसे देखकर शिविका को वैसा ही लग रहा था। शिविका ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और उसे अपने पिता की बात याद आ गई कि उस लड़के के पिता उनकी कंपनी में काम करते थे। शिविका को लगा कि शायद आते-जाते उसने उसे देखा होगा, इसीलिए उसे ऐसा लग रहा है।
वह लड़का भी अब तक शिविका को पहचान गया था। पिछली रात की पार्टी की बात याद करके, उसने बेचारे जैसी शक्ल बनाते हुए कहा, "आई एम सॉरी फॉर लास्ट नाइट मैम! एंड मे आई कम इन... मैं यहाँ पर जॉब इंटरव्यू के लिए आया हूँ। आप पिछली बात को लेकर मुझे जज नहीं करेंगी।"
उसकी इस बात पर शिविका को हँसी आ गई। लेकिन अपना एक हाथ चेहरे पर रखकर अपनी हँसी रोकने की पूरी कोशिश करते हुए, उसने एकदम सीरियस टोन में कहा, "नो नो, कम इन। सिट डाउन प्लीज़। एंड डोंट वरी अबाउट दैट! फर्स्ट इंप्रेशन इज़ लास्ट इंप्रेशन, सब ऐसा बोलते हैं, लेकिन मैं फर्स्ट इंप्रेशन और लुक्स से ज़्यादा नेचर और बिहेवियर में मानती हूँ, और काम के लिए तो उससे भी ज़्यादा टैलेंट और हार्ड वर्क में..."
शिविका का मन नहीं कर रहा था कि जिस लड़के से उसकी शादी होने वाली है, उसके लिए वह अपनी सेक्रेटरी का जॉब इंटरव्यू ले, लेकिन उसकी शक्ल देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे इस जॉब की बहुत ज़रूरत है। इसलिए शिविका सीधे तौर पर उसे मना नहीं कर पाई।
असल में, शिविका उससे शादी ही नहीं करना चाहती थी। इसलिए उसने फिलहाल उसे अपने पति के रूप में नहीं सोचा और उससे इस बारे में कोई बात भी नहीं की। वह एकदम प्रोफ़ेशनली उसका इंटरव्यू लेने लगी, लेकिन वह लड़का बीच-बीच में शिविका की तरफ़ देख रहा था और उसकी बातों के बारे में सोच रहा था।
शिविका ने उसका बायोडाटा देखकर कहा, "ओह, यू आर वेल क्वालिफाइड, बट नॉट इनफ एक्सपीरियंस्ड फॉर दिस जॉब। इससे पहले तुम किसी के सेक्रेटरी नहीं रहे हो।"
"यस मैम! मुझे पर्सनल असिस्टेंट या सेक्रेटरी की जॉब का कोई एक्सपीरियंस नहीं है, लेकिन मैं आपसे इतना प्रॉमिस कर सकता हूँ कि मैं आपको डिसएप्वाइंट नहीं करूँगा। प्लीज़ गिव मी दिस जॉब, आई रियली नीड दैट!" लड़के ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा। शिविका ने फाइल में उसका नाम पढ़ते हुए कहा, "मिस्टर करण मल्होत्रा, सन ऑफ़ मिस्टर आशीष मल्होत्रा... वेट, आपके फादर यहाँ पर काम कर चुके हैं हमारी कंपनी में, ऐज़ अ डिजाइनिंग कंसलटेंट..."
"यस मैम! उन्होंने यहाँ पर दस सालों तक काम किया है, और आपके पापा के साथ उनके काफी अच्छे रिलेशन भी हैं।" करण ने जैसे उसे नौकरी पर रखने के लिए एक और वजह देते हुए कहा।
यह बात सुनकर शिविका ने हाथ में पकड़ी हुई फाइल टेबल पर रखते हुए कहा, "करण, तुम्हें क्या लगता है? हम इस तरह से रिक्वेस्ट करोगे और अपने पापा का नाम मेरे पापा के साथ लोगे तो मैं तुम्हें आसानी से काम पर रख लूँगी?"
"नो नो मैम! मेरा ऐसा कोई भी इरादा नहीं है, और मैं किसी की सिफ़ारिश पर भी यहाँ पर नहीं आया हूँ। मैंने जॉब वैकेंसी देखी और मुझे इस वक्त जॉब की ज़रूरत है, तो बस यह इंटरव्यू देने आया हूँ। बाकी आपकी मर्ज़ी..." करण ने अपनी बात समझाते हुए कहा।
शिविका उसकी तरफ़ देखते हुए अपने मन में बहुत कुछ सोच रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि करण को सचमुच शादी की बात के बारे में कुछ भी पता नहीं है या फिर वह सिर्फ़ उसके सामने अनजान बनने का नाटक कर रहा है।
यह सोचते हुए शिविका अपनी जगह से उठी और करण की तरफ़ बढ़ते हुए बोली, "ठीक है, अगर मैं तुम्हें एक चांस देती हूँ तो क्या तुम अपने आप को प्रूफ़ करोगे? क्योंकि इस जॉब में तुम्हें कोई वीकली छुट्टी नहीं मिलेगी और मेरे साथ तुम्हें हर जगह पर जाना-आना होगा। इज़ दैट ओके फॉर यू? क्योंकि मुझे बाद में कोई एक्सक्यूज़ नहीं सुनना।"
शिविका की बात सुनकर करण ने थोड़ा सोचते हुए उसकी तरफ़ देखकर पूछा, "इसका मतलब मेरी जॉब फ़ाइनल हो गई है? थैंक यू सो मच मैम, और मैं आपको बिल्कुल भी डिसएप्वाइंट नहीं करूँगा, आई रियली..."
करण को खुश होते देख शिविका ने उसे हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा, "ओ वेट... वेट... इतना एक्साइटेड होने की ज़रूरत नहीं है। तुम अभी इस जॉब के लिए फ़ाइनल नहीं हुए हो। मैं बस तुम्हें सारे टर्म्स एंड कंडीशन बता रही हूँ कि अगर तुम फ़ाइनल होते हो तो बाद में कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए। क्योंकि मेरे पास इतना टाइम नहीं है कि मैं एक पोस्ट के लिए बार-बार इंटरव्यू लेती रहूँ।"
यह बात सुनकर करण का मुँह उतर गया। शिविका उसे समझने की कोशिश करने लगी। इतना सोचते हुए शिविका उसकी तरफ़ देखते हुए कुछ कदम आगे बढ़ी और उसकी हील फ्लिप हो गई। वह लड़खड़ा गई। करण ने उसे जल्दी से पकड़ लिया क्योंकि उसका ध्यान भी उसकी तरफ़ ही था।
"आर यू ओके मैडम?" करण ने उसका हाथ पकड़े हुए पूछा। इस वक़्त शिविका का चेहरा उसके चेहरे के सामने था, और वह आधी झुकी हुई, करण के सामने तेढ़ी खड़ी थी, जिसे करण ने बड़ी मुश्किल से गिरने से बचाया था।
यह बात सुनकर शिविका जल्दी से सीधी खड़ी हुई, लेकिन उसके पैर में शायद मोच आ गई थी। इसलिए उसने खड़े होने के लिए टेबल का सहारा लिया। इस तरह से करण के सामने लड़खड़ा कर गिर जाने की वजह से वह थोड़ी शर्मिंदा महसूस कर रही थी।
इसलिए उसने करण की तरफ़ देखे बिना कहा, "यू कैन गो नाउ! वी हैव योर फोन नंबर... तुम्हें कंपनी की तरफ़ से कन्फ़र्मेशन कॉल आ जाएगा।"
करण ने चुपचाप अपनी कुर्सी से उठकर धीमी आवाज़ में कहा, "थैंक्यू मैम, इट्स अ नाइस मीटिंग यू!" इतना बोलकर वह शिविका के केबिन से बाहर निकल गया।
उसके जाने के बाद शिविका वापस अपनी चेयर पर बैठ गई और सोचने लगी कि यह सब किस्मत का खेल है या जानबूझकर उसके साथ हो रहा है। क्या जब करण को पता चलेगा कि उसकी शिविका से शादी होने वाली है, तब भी वह उसके असिस्टेंट का काम करना चाहेगा?
करण कैसा इंसान है? उसके परिवार, उसकी लाइफ़ में क्या है, इस बारे में शिविका को कुछ भी नहीं पता था। लेकिन उसकी सारी क्वालिफ़िकेशन्स और टैलेंट जॉब प्रोफ़ाइल से मैच होती थीं, इसलिए उसने कुछ सोचकर करण को यह जॉब देने का फैसला किया।
इसलिए उसके जाने के आधे घंटे बाद ही उसने अपने मैनेजर को कॉल करके केबिन में बुलाया और करण की फाइल देते हुए कहा, "इस कैंडिडेट को फ़ाइनल कर लो, और कल इसे कॉल करके ऑफ़िस बुलाकर सारा काम समझा देना।"
मैनेजर फाइल लेकर चला गया। शिविका इस बारे में सोच ही रही थी कि कुछ मिनट बाद, लगभग उसी उम्र की एक लड़की ने उसके केबिन के दरवाज़े पर क़ोका दिया। बिना कुछ बोले उसने दरवाज़ा थोड़ा खोला और अंदर झाँकने लगी। वह शिविका की तरफ़ ऐसे देख रही थी जैसे वह उसका मूड और वहाँ की सिचुएशन समझने की कोशिश कर रही हो। उसने अंदर आने के लिए नहीं पूछा, और शिविका ने उसे चुपचाप अंदर आने का इशारा किया।
क्रमशः
शिविका के बुलाने पर वह लड़की अंदर आई और शिविका के सामने वाली कुर्सी पर आराम से, पैर क्रॉस करके बैठ गई। "क्या हुआ सीईओ मैम! मूड खराब है क्या आपका?" बोली वह।
"अभी तू ऐसे बकवास करेगी तो फिर मूड और भी ज्यादा खराब हो जाएगा। बता, क्या काम है?" शिविका ने एक सख्त नजर उसकी तरफ डालते हुए कहा।
"आई एम सॉरी यार! वह तुम्हें तो पता है ना, वर्किंग आवर में, सबके सामने तुम्हें यही तो बुलाती हूँ मैं... बस इसीलिए.." सामने बैठी लड़की ने एकदम बेचारा सा चेहरा बनाते हुए कहा।
"सबके सामने ना... लेकिन अभी तो यहां पर कोई नहीं है। तो फिर क्यों करती है तू ऐसा यार दिव्या?" शिविका ने उसकी बात का जवाब दिया।
दिव्या ने एकदम फ्रैंक होकर पूछा, "अच्छा ठीक है, सॉरी ना.. मैंने बोला तो अब क्या करूँ? हाथ जोड़ दूँ क्या? वैसे बताओ, मूड क्यों सड़ा हुआ है तुम्हारा? वैसे तो तुम ज़्यादातर ऐसे ही रहती हो, लेकिन अभी फिलहाल क्या हुआ है?"
दिव्या और शिविका दोनों कॉलेज टाइम से दोस्त थीं। अपने कॉलेज टाइम में वे दोनों इतनी ज्यादा क्लोज नहीं थीं, लेकिन फिर भी उन दोनों में कभी-कभार बातचीत होती थी। लेकिन फिर शिविका ने जब अपने पापा की कंपनी संभाली, तब एक दिन दिव्या यहाँ जॉब के लिए आई। शिविका को उससे कोई प्रॉब्लम नहीं थी, इसलिए उसने दिव्या को जॉब पर रख लिया।
कंपनी में साथ काम करते हुए अब वे दोनों काफी ज्यादा क्लोज हो गई थीं क्योंकि शिविका का भी फिलहाल कोई और दोस्त नहीं था। वह अपनी सारी बातें ज्यादातर दिव्या से ही शेयर करती थी।
"अरे यार! बताया तो था तुझे मैंने कल भी कॉल पर। वह बस वही, पापा और उनकी 'शादी कर लो' वाला इमोशनल ब्लैकमेल और ड्रामा यार! मैं तो परेशान हो गई हूँ उनसे। लेकिन वे मानते नहीं और इस बार तो उन्होंने मुझसे पूछे बिना ही शादी फिक्स भी कर दी है।" शिविका ने एकदम मायूसी से कहा और उसने सामने टेबल पर अपना सिर रख लिया।
"अरे यार! ये क्या कर रही है तू? अभी कंपनी ऑफिस में है। यहाँ अपनी रूड और स्ट्रिक्ट बॉस को कोई इस तरह से देखेगा तो फिर तुम्हारा तो बना बनाया सारा इंप्रेशन ही खराब हो जाएगा अपने स्टाफ के सामने... और शादी करने में क्या प्रॉब्लम है यार? तुम्हें एक ना एक दिन... किसी ना किसी से तो करनी ही है। तो फिर अगर तुम्हारे डैड ने तय किया है तो कुछ सोच समझकर ही किया होगा।" दिव्या ने उसे समझाते हुए कहा।
उसकी यह बात सुनकर भी शिविका उसी तरह मेज पर सिर रखे बैठी रही और उसने सिर्फ अपनी नजर उठाकर उसकी तरफ घूर कर देखा।
शिविका की ऐसी नज़रें देखकर दिव्या का गला सूख गया और वह थूकते हुए अपना गलत रवैया सुधारते हुए बोली, "अरे यार! अब इस तरह से घूरकर डराओ मत प्लीज! मैं तो बस ऐसे ही कैजुअली बोल रही हूँ। बाकी तुम्हें नहीं करनी तो फिर तुम मना कर दो ना, सिंपल।"
"हाँ... हाँ ठीक है। जिससे भी बताओ, वह यही बोलता है। मेरी सिचुएशन तुम में से कोई भी समझ नहीं सकता यार! मैं अकेली तो हूँ नहीं, मेरे साथ काव्या भी तो है। और इसके अलावा मुझे कोई भी इंटरेस्ट नहीं है। क्योंकि मुझसे जो भी शादी करेगा, वह सब मेरे पावर, पैसे और रेप्यूटेशन के लिए। तुम्हें लगता है कोई भी मेरी बेटी के साथ, सिर्फ शिविका खन्ना को अपनाएगा?" शिविका ने सीधे होकर बैठते हुए उससे यह सवाल किया। उसकी बात पर दिव्या भी थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गई।
उसने भी आगे शिविका को कुछ नहीं समझाया और जिस काम के लिए वहाँ आई थी, उसके बारे में पूछने और बात करने लगी।
*****
मल्होत्रा हाउस;
एक साधारण दो मंजिला मकान, जो दिखने में ही किसी मिडिल क्लास परिवार का घर लग रहा था। तभी एक साधारण सी बाइक उस घर के सामने आकर रुकी। उस पर बैठे लड़के ने अपना हेलमेट उतार कर बाइक के हैंडल में टाँग दिया और बाइक से उतरकर घर के अंदर जाने लगा।
यह लड़का कोई और नहीं, हमारी कहानी का हीरो करण मल्होत्रा था, जो फिलहाल बहुत ही बेचारा, अपने परिवार और हालातों का मारा था।
उसने जैसे ही घर के अंदर कदम रखा, कुछ तेज आवाजें उसके कानों में पड़ीं। जिसे सुनकर उसने बेबसी से अपना सिर हिलाया।
"मेरी तो जिंदगी खराब हो गई, तुम्हारे जैसे आदमी से शादी करके! मुझे भी पता नहीं क्या अक्ल पर पत्थर पड़े थे जो मैंने तुम्हारे जैसे आदमी से शादी कर ली! वह भी तुम्हारी दूसरी शादी... आज फिर से तुम्हारी वजह से हम लोगों की कितनी बेइज्जती हुई है! वह कर्जदार फिर से घर के दरवाजे पर आकर कितना चिल्लाकर गया है और तुम हो कि बेशर्म की तरह अभी भी यहाँ पर लेटे हुए हो!"
यह चिल्लाने की आवाज उसकी सौतेली माँ आराधना की थी, जो कि अक्सर उसके पिता पर इसी तरह से चिल्लाती रहती थी। करण के लिए यह सब कुछ नया नहीं था।
करण अच्छी तरह से जानता था कि इसमें उसकी सौतेली माँ की भी कोई गलती नहीं है क्योंकि उसके पिता ने ही ऐसे काम किए थे। कुछ तीन-चार साल पहले, जब करण कॉलेज फाइनल ईयर में था, तब उसके पापा को एक माइल्ड सा हार्ट अटैक आया था और डॉक्टर ने उन्हें कुछ दिनों के लिए बेड रेस्ट बताया था। लेकिन इसी बीच उसके पिता को तो जैसे काम से छुट्टी करने का बहाना मिल गया। वह हमेशा से ही एक आलसी आदमी रहे हैं, जिन्हें बस जोर जबरदस्ती से काम पर जाना पड़ता था।
अपनी हेल्थ का बहाना बनाकर उन्होंने कंपनी से लीव ले ली और इसके साथ ही हॉस्पिटल की फीस भरने का नाम लेकर लोन भी ले लिया। जबकि हॉस्पिटल की फीस सिर्फ एक लाख रुपए थी और उसके पिता ने कंपनी से बीस लाख रुपए का कर्ज ले लिया था।
वह भी घर में किसी से भी बताए बिना। और फिर धीरे-धीरे करके वह सारे पैसे उड़ा डाले और बाकी बचे हुए पैसों से उन्होंने कुछ शेयर खरीदे जो कि डूब गए।
इसके बाद उन्होंने आसपास के जानने वाले और अपने दोस्तों से भी धीरे-धीरे कुछ पैसे उधार लेने शुरू कर दिए। और शुरू में उनके अच्छे नाम और रेपुटेशन की वजह से लोगों ने उन्हें कर्ज दे भी दिया। लेकिन उन्होंने दोबारा से अपनी जॉब ज्वाइन नहीं की, जिससे कि वह सब कर्ज लगातार बढ़ता गया और घर का खर्च चलने के भी लाले पड़ गए।
इसी बीच करण ने अपने फाइनल ईयर खत्म होते ही सेल्समैन की जॉब कर ली और उसे अर्जेंट में जो भी काम मिला, उसने एक के बाद एक वह काम किया।
करण का एक छोटा भाई समर है, जो अभी कॉलेज फाइनल ईयर में है और उसकी फीस का इंतजाम भी करण ही करता है।
करण का सपना एमबीए करने का था, लेकिन घर की सिचुएशन के आगे वह अपने सपने ही कुर्बान करता गया।
करण की माँ की डेथ उसके जन्म के टाइम ही हो गई थी और अपनी माँ से रिलेटेड उसे कुछ भी याद नहीं। लेकिन उसे लाइफ में कभी भी माँ का प्यार नहीं मिला। उसकी सौतेली माँ उसके साथ बहुत बुरा बर्ताव तो नहीं करती थी क्योंकि फिलहाल करण ही घर का पूरा खर्च उठा रहा था।
लेकिन करण अच्छी तरह से जानता था कि उसकी सौतेली माँ सिर्फ मतलब और काम से ही उसे अच्छी तरह पेश आती है। नहीं तो उन्हें करण से कोई भी लगाव नहीं है। इन सब के बावजूद भी करण अपने सौतेले भाई समर को बहुत प्यार करता है और उसे बिल्कुल अपने सगे भाई की तरह मानता है। समर उससे सिर्फ दो साल छोटा है।
समर भी करण को एकदम अपने सगे बड़े भाई की तरह ही मानता है और उसकी हेल्प करने के लिए समर भी कॉलेज के बाद एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में पार्ट टाइम कुछ स्टूडेंट्स की क्लासेस लेता है क्योंकि वह पढ़ने में एक ब्राइट स्टूडेंट है।
वह सब सुनते हुए करण मेन गेट से अंदर आया और चुपचाप दबे पांव अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा क्योंकि वह रोज-रोज के होने वाले इस लड़ाई-झगड़े का हिस्सा नहीं बनना चाहता था।
लेकिन उसकी सौतेली माँ का चिल्लाना अभी भी जारी था और उसके पिता काफी देर से यह सब कुछ सुन रहे थे। लेकिन तभी एकदम से उसकी माँ पर चिल्लाते हुए बोले, "बस करो आराधना! अब बहुत हो गया। और वैसे भी मैं लेटा हुआ हूँ तो तुम्हें इससे क्या परेशानी है? तुम्हें पता है मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती और वैसे भी मेरे उठकर बैठने से कौन सा सारी मुसीबतें हल हो जाएँगी।"
"जिन मुसीबतों की वजह तुम खुद हो, वह भला कैसे तुम्हारी वजह से कम हो जाएँगी? तुम तो बस मुसीबतें बढ़ाने का ठेका लेकर बैठे हो! मेरे ही कर्म फूटे थे जो मैं यहाँ पर आकर फंस गई।" आराधना ने अपने मन ही मन में बड़बड़ाते हुए कहा। लेकिन उसकी आवाज इतनी तेज थी कि करण और उसके पिता दोनों को पूरी बात सुनाई दी। लेकिन उन दोनों ने ही उनकी बातों को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और करण भी अपने कमरे में चला गया।
करण रोज-रोज की इन सब चीजों से तंग आ चुका था और इसीलिए उसने आज एस के डिजाइनिंग हाउस में पर्सनल असिस्टेंट की पोस्ट के लिए अप्लाई किया था क्योंकि इस पोस्ट के लिए काफी अच्छा पेमेंट दे रहे थे और करण को जब इस बारे में पता चला तो उसे लगा अगर उसे यह जॉब मिल जाएगी तो उसके घर की पूरी तो नहीं लेकिन शायद थोड़ी बहुत प्रॉब्लम तो सॉल्व हो जाएंगी।
लेकिन उसे शिविका का बिहेवियर थोड़ा सा अजीब लगा। अपने लिए इसलिए उसे लग नहीं रहा था कि वह उसे जॉब पर रखेगी। लेकिन करण को भी शिविका थोड़ी जानी-पहचानी सी लगी और उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने शिविका को कहीं तो देखा है। इसके अलावा, जब वह लड़खड़ा कर उसके ऊपर गिरी और करण ने एकदम करीब से उसका चेहरा देखा तो उसकी मेमोरी में से एकदम कुछ उसके चेहरे के सामने फ्लैश हुआ और उसका टच भी उसे एकदम अनजाना नहीं लगा।
वह समझ नहीं पा रहा था कि वह ऐसा क्यों फील कर रहा है, लेकिन इस वक्त उसका सबसे ज्यादा फोकस जॉब पर था। लेकिन फिर भी जॉब से ज्यादा वह अब शिविका के आसपास रहने के लिए यह जॉब चाहता था।
वह बस मन ही मन इस बात को लेकर खड़ा रहा कि उसे कैसे भी करके बस यह जॉब मिल जाए।
यही बात सोचते-सोचते करण अपने बेड पर लेट गया। उसने अपने दोनों हाथ पैरों के नीचे रखे और कल रात की पार्टी से लेकर आज ऑफिस की शिविका के बारे में सोचने लगा। और उसे ऐसा लगा जैसे शिविका अपने अंदर बहुत कुछ छिपाए हुए रहती है और उसे शिविका के बारे में और बहुत कुछ करीब से जानने का मन हुआ।
क्रमशः
उसी समय करण के कमरे का दरवाज़ा खुला और लगभग उसी जैसा दिखने वाला, पर उससे कुछ छोटा और दुबला-पतला एक लड़का अचानक आकर करण के ऊपर ही बेड पर लेट गया। "क्या हुआ भाई! आपको जॉब मिल गई ना... मुझे पता था, मेरा भाई इतना टैलेंटेड है, कोई उसे कैसे मना कर सकता है?"
"सैमी! पहले तू हट मेरे ऊपर से। अब तू दस साल का नहीं है जो मेरे ऊपर गिरता-पड़ता रहे।" करण ने उसका कंधा पकड़कर उसे किनारे करते हुए कहा।
"भाई! आप कितने अनरोमांटिक और रूड हो! क्या होगा मेरी होने वाली भाभी का?" बेड पर उठकर बैठते हुए समर ने नौटंकी करते हुए कहा।
"भाभी! कौन भाभी... तुझे लगता है, इस घर और ऐसे माहौल में लाकर मैं किसी भी लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद करूँगा? कोई भाभी-वाभी नहीं... फिलहाल मुझे बस वो जॉब मिल जाए, जो अभी तक कन्फर्म नहीं है, और उसी बारे में सोच रहा था मैं।" करण ने एकदम सीरियस होकर जवाब दिया। समर तो मज़ाक कर रहा था, लेकिन अपने भाई को इस तरह सीरियस देखकर समझ गया कि करण का मूड कुछ खास ठीक नहीं है।
"डोंट वरी भाई! इतना टेंशन मत लो। मुझे आप पर पूरा भरोसा है, आपको यह जॉब मिल जाएगी।" करण के कंधे पर हाथ रखकर समर फिर से उसके गले लगा बोला।
"हम्म्! आई होप सो..." इस बार करण ने भी समर को खुद से दूर नहीं किया और उसकी पीठ पर हल्के से हाथ रखते हुए धीमी आवाज़ में कहा।
करण को भी उस वक़्त किसी के इस तरह गले लगने की ज़रूरत थी क्योंकि वह हमेशा की तरह बहुत ज़्यादा टेंशन में था।
शाम का वक़्त था;
वृंदा मैनसन;
शिविका अपने स्टडी रूम में बैठी थी। उसके सामने उसका लैपटॉप खुला था और वह उसमें कुछ चेक कर रही थी।
"अच्छा तो यह बात है। इसीलिए बहुत आसानी से मान गया। यह शादी के लिए मुझसे मिलेगा। बात किए ज़रूर, पापा ने कुछ तो प्लान किया है और वह मुझे इसके बारे में इतनी आसानी से पता नहीं लगने देंगे। लेकिन मैं भी उन्हीं की बेटी हूँ और जितना मुझे पता होना चाहिए, उतना तो मैं पता करके ही रहूँगी।" शिविका ने चेहरे पर मुस्कराहट लिए लैपटॉप की स्क्रीन की तरफ़ देखते हुए कहा और फिर कुछ टाइप करके रिप्लाई भेज दिया।
अगली सुबह;
करण अपने मोबाइल फ़ोन पर और भी कई जॉब प्रोफ़ाइल देख रहा था और अपने लिए जॉब सर्च कर रहा था क्योंकि उसे अब तक एस के डिजाइनिंग कंपनी से कन्फर्मेशन कॉल नहीं आई थी।
शिविका का एटीट्यूड देखकर उसे वहाँ अपनी जॉइनिंग के चांसेस कम ही लग रहे थे, लेकिन फिर भी उसे कहीं न कहीं उम्मीद थी कि शायद उसे वहाँ जॉब मिल जाए और वह भी पता नहीं क्यों, वहीं काम करना चाहता था।
यह सब कुछ होते हुए करण ने अपने आप से कहा, "करण! तू यह क्या सोच रहा है? तुझे वहाँ जॉब इसलिए चाहिए क्योंकि वह लोग इस जॉब के लिए काफी अच्छा देख रहे हैं और कोई और वजह नहीं होनी चाहिए।"
करण ने अपने आप को समझाते हुए कहा, जबकि उसका मन कहीं न कहीं शिविका में अटका हुआ था और उसकी वजह से ही वह यह जॉब करना चाहता था क्योंकि इससे उसे शिविका के साथ रहकर उसे जानने का मौका मिलेगा। पिछले दो दिनों में जब-जब वह शिविका से मिला था, उसका एक अलग ही इंप्रेशन उसके दिमाग पर पड़ा था और वह जाकर भी उसके बारे में बोल नहीं पा रहा था।
करण इन सब चीजों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसका मोबाइल फ़ोन बजा और स्क्रीन पर अनजान नंबर दिखाई दिया।
करण ने जल्दी से कॉल रिसीव कर ली और कॉल पर बात करने लगा।
कॉल पर बात करने के एक घंटे बाद करण रेडी होकर घर से निकल ही रहा था कि उसे ऑफिस से जॉब के लिए कन्फर्मेशन कॉल आ गया और वह बहुत खुश था। जाने से पहले वह कुछ सेकंड के लिए अपने घर में बने छोटे से मंदिर के सामने रुका।
उसने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए मन ही मन जॉब कन्फर्म होने के लिए धन्यवाद कहा और फिर तुरंत वहाँ से निकल गया क्योंकि उसे दस बजे से पहले ऑफिस पहुँचना था क्योंकि आज से ही उसकी जॉइनिंग थी।
करन अब अपनी इस जॉब से ज़्यादा शिविका से मिलने को लेकर एक्साइटेड था क्योंकि उसका काम शिविका के साथ रहना, उसका शेड्यूल देखना और उसके सारे काम की एक चेक लिस्ट तैयार करना था; बेसिकली यही उसका काम था, जो उसे फ़ोन पर समझाया गया था।
करण घर से बाहर निकलने वाले दरवाज़े की ओर बढ़ ही रहा था कि पीछे से उसके पिता ने आवाज़ लगाई, "करण... करण बेटा, कहाँ जा रहा है तू? एक मिनट इधर आ, मुझे तुझसे बहुत ज़रूरी बात करनी है।"
पीछे से अपने पिता की टूटती हुई आवाज़ सुनकर करण ने बेबसी और निराशा से अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं और फिर एक हाथ अपने सिर पर रखते हुए वहीं रुक गया।
अपने पिता की बुरी आदतों और हरकतों की वजह से करण उन्हें कुछ ख़ास पसंद नहीं करता था। वह हमेशा हर काम में अड़ंगा लगाते रहते थे और यह बात भी करण को पसंद नहीं थी, लेकिन फिर भी वह उसके पिता थे, इस वजह से वह पूरी तरह से उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था और इतनी बुराइयों के बाद भी वह चाहकर भी उनसे पूरी तरह नफ़रत नहीं कर पाता था।
अपने आप को सामान्य करते हुए करण उनकी तरफ़ मुड़ा और उनकी ओर चलते हुए बोला, "क्या हुआ पापा? मैं जॉब के लिए जा रहा हूँ और वापस आकर बात करता हूँ क्योंकि अगर अभी मैं यहाँ रुका तो मुझे लेट हो जाएगा।"
"अरे बेटा! मेरी बात तो सुन ले। वह तेरी नौकरी से भी ज़्यादा ज़रूरी है। एक बार तूने मेरी बात मान ली ना तो फिर तुझे कभी ऐसे नौकरी के चक्कर में धक्के नहीं खाने पड़ेंगे।" करण के पिता, जो अब तक हॉल के सोफ़े पर लेटे हुए थे, उठकर बैठते हुए बोले।
उनकी बात करण के कुछ पल्ले नहीं पड़ी, इसलिए वह उलझन और असमंजस से उनकी तरफ़ देख रहा था क्योंकि उसे अपने पिता की ऐसी बातों पर जरा भी विश्वास नहीं था।
"क्या बात कर रहे हैं पापा? कौन सी ऐसी आपकी लॉटरी लग गई है जो यह सब कुछ बोल रहे हैं या फिर हमेशा की तरह बस ऐसे ही हवा में..." करण ने उसी तरह अविश्वास से कहा।
"लॉटरी ही समझ लो बेटा, वैसे क्योंकि मैंने तुम्हारी शादी तय कर दी है। वह भी बहुत ही अमीर परिवार की लड़की से। ऊपर से उसके पिता को तुम बहुत पसंद हो, तो उनकी तरफ़ से रिश्ता फ़ाइनल है और हमारी तरफ़ से भी। कल ही तुम्हारी सगाई है, इसलिए ही मैं आज बता रहा हूँ।" करण के पिता ने बहुत ज़्यादा खुश होते हुए कहा।
"वह उस लड़की के सौतेले पिता हैं क्या? फिर उनका दिमाग ख़राब है जो आप जैसे आदमी से रिश्ता जोड़ रहे हैं और मैं तो उनसे मिला तक नहीं। आखिर उन्हें मुझमें ऐसा क्या पसंद आ गया? और यह कोई टाइम है मज़ाक करने का, कल सगाई... कुछ भी बोल रहे हैं पापा आप। मुझसे पूछे बिना भला मेरी शादी तय कैसे कर सकते हैं आप?" करण ने एकदम हैरानी से एक के बाद एक सवाल करते हुए कहा क्योंकि उसकी शादी किसी अमीर परिवार की लड़की से तय होना, यह बात वह चाहकर भी हज़म नहीं कर पा रहा था।
"तुमसे क्या पूछना? आखिर मैं तुम्हारा पिता हूँ और इतना डिसीज़न तो ले ही सकता हूँ। और वैसे भी सब कुछ तुम्हारे भले के लिए ही है। इसमें कहीं से भी तुम्हारा कोई नुकसान नहीं है, तो फिर तुम्हें हाँ करने में क्या परेशानी है? कोई और लड़की है क्या? पहले से ही..." करण के पिता ने उससे सीधे पूछा।
अपने पिता की यह बात सुनकर करण की आँखों के सामने पता नहीं क्यों शिविका का चेहरा आया और उसके दिमाग में बार-बार शिविका का ही नाम भी...
लेकिन फिर भी वह वापस दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते हुए बोला, "नहीं... कोई नहीं है। लेकिन फिर भी यह शादी-सगाई जैसा इतना बड़ा डिसीज़न आप कैसे ले सकते हैं अकेले और अब मुझे सिर्फ़ एक दिन पहले बता रहे हैं। और अभी मेरे पास टाइम नहीं है। मैं वापस आकर बात करता हूँ इसके बारे में, हो सके तो कैंसिल कर दीजिये।"
इतना बोलते हुए करण तेज़ी से घर से बाहर निकल गया क्योंकि अब इसके लिए उसके पास दो कारण थे: एक तो वह अपने पिता की ऐसी बातों को कुछ देर के लिए टालना चाहता था। उसे तो इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पिता ने उसकी शादी और सगाई तय कर दी है, यह उसके लिए आज तक का सबसे बड़ा सरप्राइज़ था।
इसके अलावा उसे अपनी नई जॉब के लिए लेट भी हो रहा था और वह पहले ही दिन लेट होकर अपना इंप्रेशन ख़राब नहीं करना चाहता था।
क्रमशः
6
पूरे रास्ते उसके दिमाग में पिता की बातें ही घूमती रहीं। दूसरी ओर, वह अनचाहे ही बार-बार शिविका के बारे में सोच रहा था। उस लड़की के बारे में उसे कुछ पता ही नहीं था, जिससे उसके पिता ने उसकी शादी और सगाई तय कर दी थी। इन सबके बीच करण बहुत तनाव में था। उसने ऑफिस बिल्डिंग में अपनी बाइक पार्क की और लिफ्ट में पहुँचकर चौथी मंजिल का बटन दबाया। लिफ्ट बंद ही होने वाली थी कि एक लड़की दौड़ती हुई आई और उसने अपनी हील लिफ्ट के दरवाजे में रखकर उसे बंद होने से रोका। फिर वह जल्दी से अंदर आ गई। उसने भी चौथी मंजिल का बटन दबाया।
करण अपनी सोच में इतना खोया हुआ था कि उसने पहले उस लड़की की शक्ल ध्यान से नहीं देखी। लेकिन तभी उस लड़की का मोबाइल फोन बज उठा। उसने अपने बाल पीछे करते हुए फोन कान से लगाया। अनजाने ही करण की नज़र उस लड़की के चेहरे पर पड़ी।
वह कोई और नहीं, उस कंपनी की मालकिन और उसकी होने वाली बॉस, शिविका खन्ना थीं, जो अपने मोबाइल पर बात करने में व्यस्त थीं। उन्होंने पीछे खड़े करण पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। लेकिन करण शिविका को देखकर जैसे सब कुछ भूल गया। वह बस उन्हीं में खोया हुआ खड़ा था, उनके बारे में सोच रहा था।
असल में, शिविका ने लिफ्ट में आते ही करण को देख लिया था। इसलिए उसे नज़रअंदाज़ करने के लिए उन्होंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और चुपचाप सामने देखते हुए कॉल पर बात करती रहीं। असल में, लिफ्ट के दरवाज़े पर लगे ग्लास में उन्हें करण का चेहरा साफ़ दिख रहा था।
करण कुछ और सोच पाता, इससे पहले ही लिफ्ट चौथी मंजिल पर पहुँच गई। लिफ्ट का दरवाज़ा खुला और शिविका तेज़ कदमों से लिफ्ट से निकलकर सीधे ऑफिस के अंदर, अपने केबिन की ओर बढ़ गईं।
फ्लोर का नंबर देखकर करण भी अपने ख्यालों से बाहर आया और लिफ्ट से बाहर निकला। उसे पता ही नहीं चला कि शिविका इतनी जल्दी कहाँ चली गईं।
करण ऑफिस के अंदर आया और एकदम असमंजस में इधर-उधर देख रहा था। तभी उसे पीछे से आवाज़ आई, "काम के पहले दिन ही इतनी देर? सुबह फोन पर बात हो गई थी, और समय भी बता दिया गया था, फिर भी..."
"आई एम सॉरी सर! लेकिन मुझे यहाँ 10:00 बजे आने के लिए कहा गया था और अभी...." इतना बोलते हुए करण ने रिसेप्शन के पीछे लगी बड़ी डिजिटल वॉल क्लॉक में समय देखा। उसमें 10:30 बज रहे थे। वह एकदम चुप हो गया।
"और अभी 10:30 बज रहे हैं! समय देखना तो आता ही होगा तुम्हें? क्योंकि यहाँ एस.के. कंपनी में जो समय की क़द्र नहीं करता, उसकी यहाँ कोई ज़रूरत नहीं है। और बॉस को लेट आने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं हैं।" जतिन ने एकदम गंभीर होकर कहा। वह यहाँ पिछले पाँच सालों से काम कर रहा था और हेड मैनेजर था।
"आई एम सॉरी सर, मुझे समय को लेकर थोड़ी भ्रांति हुई थी। लेकिन कल से मैं बिल्कुल समय पर आ जाऊँगा।" करण ने जल्दी से माफ़ी माँगते हुए कहा। वह किसी को भी नाराज़ नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे इस नौकरी की बहुत ज़रूरत थी।
"ओके फाइन! कम विद मी..." उसके माफ़ी माँगने के बाद जतिन ने एकदम गंभीर होकर कहा। उसकी बात सुनकर करण उनके पीछे-पीछे चल दिया।
इसके बाद जतिन ने करण को सारा काम अच्छी तरह समझा दिया और शिविका की सारी पर्सनल वर्क रिलेटेड जानकारी उसके डेस्कटॉप पर मेल कर दी।
इसके बाद जतिन करण को उसकी बैठने की जगह दिखाकर वहाँ से चला गया। इस बीच करण को शिविका एक बार भी नज़र नहीं आई। पूरे दिन अनचाहे ही उसकी नज़रें बार-बार शिविका को ढूँढ़ रही थीं। लंच टाइम में जब सब लोग खाना खाने चले गए,
करण अपने डेस्क पर ही बैठा रहा। सिर झुकाकर वह सोचने लगा जो उसके पिता ने सुबह निकलते वक़्त कहा था।
"क्या बात कर रहे थे पापा? मेरी शादी-सगाई और कौन सा ऐसा अमीर और काबिल बेटी वाला परिवार है जो मेरे साथ उनकी शादी के लिए तैयार हो गया है? मुझे तो लगता है वो बेसिर-पैर की बातें कर रहे थे। शायद उनका दिमाग खराब हो गया है इसलिए कुछ भी बोल रहे थे। क्योंकि कोई भी हमारे घर किसी का रिश्ता लेकर नहीं आया, तो फिर कैसे पापा को अचानक कोई रिश्ता मिल सकता है?" करण सबके बारे में सोच रहा था। फिर वह सीधा होकर बैठ गया, लेकिन अभी भी उसने अपना चेहरा हथेली पर रखा हुआ था, कोहनी मेज पर टिकाकर एक अलग ही मुद्रा में बैठा हुआ था।
शिविका अपने कमरे से बाहर निकलीं और गहरी साँस लेते हुए उन्होंने करण की तरफ़ देखा। इस वक़्त ऑफिस के सारे लोग कैफ़ेटेरिया में थे। सिर्फ़ वह अकेला वहाँ बैठा हुआ था।
"व्हाट हैपेंड... तुम लंच करने नहीं गए?" शिविका उनकी ओर आती हुई बोलीं। शिविका को देखकर करण को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।
शिविका को भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसने आज पहले दिन ही ऑफिस जॉइन करने वाले कर्मचारी से उसके लंच के बारे में पूछा है।
लेकिन फिर भी उसका हाथ फिसल गया और उसका चेहरा साइड हो गया। फिर वह हड़बड़ाकर एकदम खड़ा होता हुआ बोला, "गुड मॉर्निंग बॉस... नो गुड इवनिंग... ओह... आफ्टरनून है अभी लंच टाइम।"
"अरे अरे बस करो! मैं भी इंसान हूँ। मेरे सामने इतना घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है। और लंच टाइम है, जब तुम्हें पता है, फिर भी यहाँ क्या कर रहे हो?" शिविका ने फिर से सवाल किया।
"अरे वो... वो मुझे अभी भूख नहीं लगी है। लेकिन आपको भी तो लंच करने नहीं गईं।" करण ने जवाब दिया। लेकिन शिविका ने उसके बाद कुछ नहीं कहा। सिर्फ़ सिर हिलाते हुए उन्होंने आगे बढ़कर करण की ओर देखा। करण को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि कोई उनके इतने पास आ रही थी।
करण अनचाहे ही अपनी जगह से एक कदम पीछे हटा और साथ ही अपनी अपर बॉडी भी पीछे करते हुए शिविका से दूर होने की कोशिश की। शिविका ने इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया।
वह आगे बढ़ीं और मेज़ पर रखी एक फाइल उठाई। फिर ऊपर से नीचे तक एक नज़र करण की तरफ़ देखते हुए बोलीं, "इस तरह से डरकर भागने की ज़रूरत नहीं है। कोई भूत नहीं हूँ मैं। और वैसे..."
इतना बोलते हुए शिविका एकदम चुप हो गईं और वह फ़ाइल लेकर पीछे मुड़कर वहाँ से चली गईं।
उसके बाद से वह दोनों ही एक-दूसरे के बारे में सोच रहे थे। शिविका को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि करण को अपनी होने वाली सगाई के बारे में पता नहीं है। उसे लग रहा था कि करण को अब तक इस बारे में ज़रूर पता चल गया होगा।
"क्यों कर रहे हो तुम इतने अनजान और मासूम बनने का नाटक? जबकि मैं अच्छी तरह जानती हूँ तुम मुझसे ये सगाई और शादी सिर्फ़ मेरे पैसों के लिए कर रहे हो। और ये सब कुछ, तुम्हें यहाँ नौकरी के लिए भेजने वाला प्लान भी मेरे बेवकूफ़ पापा का होगा।"
शाम का वक़्त;
पूरा दिन करण ने शिविका को नहीं देखा और ना ही उनसे मिला, लेकिन उसका मन कहीं ना कहीं उन्हीं में अटका हुआ था।
तभी ऑफिस से निकलते वक़्त करण ने आस-पास के लोगों को आपस में बातें करते सुना। वे लोग किसी चीज़ के बारे में चर्चा कर रहे थे, शायद ऑफिस से ही जुड़ी हुई। लेकिन करण अभी उन लोगों से इतना घुल-मिल नहीं पाया था। इसलिए लोग करण को देखकर एकदम चुप हो गए।
इसलिए उसने उन लोगों से कुछ नहीं पूछा और चुपचाप ऑफिस से बाहर निकल गया।
करण अपनी बाइक से घर की ओर जा ही रहा था कि रास्ते में उसका ध्यान भटक गया। उसका ध्यान सड़क पर बिल्कुल नहीं था।
वह बस सड़क पर चल रहे वाहनों के बीच अपनी बाइक निकालते हुए आगे बढ़ रहा था। तभी सामने से आती कार की हेडलाइट उसकी आँखों पर पड़ी। जिसकी वजह से करण बाइक में ब्रेक नहीं लगा पाया और उसकी बाइक की उस कार से हल्की टक्कर हो गई।
कार वाले की समझदारी थी कि उन्होंने एकदम अंतिम समय पर ब्रेक लगा दिया, जिससे करण और उन्हें किसी को भी कोई गंभीर चोट नहीं आई।
लेकिन फिर भी करण अपनी बाइक सहित जमीन पर गिर गया और वह अपनी ही बाइक के नीचे दब गया। कुछ लोग उसकी मदद के लिए वहाँ आये। उठकर खड़े होते हुए करण ने देखा कि उसे कुछ छोटी-मोटी खरोंचें आई हैं।
तभी उस कार के अंदर से एकदम भारी आवाज़ आई, "क्या हुआ ड्राइवर? कार क्यों रोकी?"
वह आवाज़ सुनकर सभी उस तरफ़ देखने लगे।
क्रमशः
करण का घर;
करण अपने घर वापस आया तो थोड़ा लँगड़ाकर चल रहा था। उसका छोटा भाई हॉल में बैठा हुआ था।
उसने करण को इस तरह चलते देखकर जल्दी से भागकर उसके पास पहुँचा। उसने अपना एक हाथ करण के कंधे पर रखकर सहारा दिया और बोला, "क्या हुआ भाई! आप ठीक तो हो ना? यह इस तरह से क्यों चल रहे हो? पैर में चोट लग गई क्या? लेकिन कैसे?"
"हाँ, बाहर जाते वक्त आज सुबह किसी ने टोक दिया था। शायद इसी वजह से, क्योंकि दिमाग खराब करने वाली बातें ही करते हैं ऐसे लोग..." करण ने जानबूझकर थोड़ी तेज आवाज़ में अपने पिता की तरफ़ देखते हुए कहा। वह यह बात परोक्ष रूप से उन्हें ही सुना रहा था।
उन्होंने ही सुबह निकलते वक्त करण को बात करने के लिए रोका था। उनकी बात की वजह से ही दिन भर करण का दिमाग खराब रहा। इसी कारण वापसी के वक्त उसका ध्यान सामने नहीं रहा और उसका मामूली सा एक्सीडेंट हो गया। किस्मत से उसे ज्यादा चोट नहीं आई।
समर, करण की बातों का मतलब समझ गया, लेकिन उसने कुछ ऐसा नहीं कहा जिससे बात बढ़े और माहौल गरम हो जाए।
वह करण को सोफे पर बिठाते हुए बोला, "भाई! आप यहाँ पर बैठो, मैं दवा लेकर आता हूँ।"
"यह चोट कैसे लग गई बेटा? ज़रूर इस आदमी ने ही टोका होगा... वैसे तुम्हारी जॉब का क्या हुआ? कंफर्म हुई या नहीं?" करण की सौतेली माँ ने उसके पैर में लगी खरोंच की तरफ़ देखकर झूठी फिक्र दिखाते हुए कहा। फिर उसने अपना मतलब का सवाल भी पूछ लिया।
करण ने उनके सवाल पर बेबसी से सिर हिलाया और गहरी साँस लेते हुए कहा, "वह आदमी आपके पति हैं, लेकिन मैं ठीक हूँ। आपको इतनी फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है। मेरी जॉब भी कंफर्म हो गई है, इसलिए अब पैसों की भी टेंशन नहीं होगी।"
"पैसों की टेंशन तो अब हम लोगों को ऐसे भी नहीं होगी। इतने बड़े घर में मैंने तुम्हारा रिश्ता जो तय कर दिया है और फिर भी तुम मुझे ही सुना रहे हो।" उनकी बात सुनकर करण के पिता अपनी जगह पर उठकर बैठते हुए बोले। वे ज़्यादातर हॉल में लेटकर टीवी देखा करते थे या फिर सोते रहते थे।
उनकी इस रिश्ते वाली बात सुनकर उनकी पत्नी आराधना ने हैरानी से उनकी तरफ़ देखते हुए कहा, "पैसे वाले घर में रिश्ता? यह कब हुआ और किसके साथ? और मुझे कुछ क्यों नहीं बताया इस बारे में? करण बेटा, तुम भी क्या... मुझे अपनी माँ नहीं मानते?"
"मम्मी प्लीज़! यह कोई इमोशनल ब्लैकमेल करने का टाइम नहीं है। देखो तो सही... भाई को चोट लगी है..." समर हाथ में फर्स्ट एड बॉक्स लेकर वहाँ आता हुआ बोला।
"मुझे खुद ही इस बारे में नहीं पता था। पापा ने मुझे भी सुबह ही बताया। मुझे लगा कि वे ऐसे ही बोल रहे हैं, क्योंकि ऐसा कुछ होने की मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी।" करण ने मायूसी से अपना सिर हिलाते हुए कहा। समर एंटीसेप्टिक लिक्विड से उसकी चोट और त्वचा पर लगा हुआ खून साफ़ करने लगा। उसकी चोट ज़्यादा गहरी नहीं थी, बस दो-तीन जगह पर खरोंच थी।
"हाँ, तो इसमें बताने जैसा क्या है? और वैसे भी, भूलो मत, मैं ही इस घर का मुखिया हूँ और इतना डिसीज़न तो मैं ले ही सकता हूँ। वैसे भी, यह तुम सब की भलाई के लिए ही है।" करण के पिता ने एकदम अपना फैसला सुनाते हुए कहा और दूसरी तरफ़ चेहरा फेर लिया।
"सिर्फ़ घर के फैसले लेने के लिए ही आपको यह बात याद आती है कि आप इस घर के मुखिया हैं? और कभी किसी टाइम आपको याद आई है जब प्रॉब्लम हमारे सर पर खड़ी रहती है? तब तो कभी आप उन्हें सॉल्व करने के लिए आगे नहीं आते..." समर अपने पापा पर लगभग चिल्लाते हुए बोला। वह इतने दिनों से उनकी हरकतें देख रहा था। बचपन से आज तक उसने हमेशा अपने पिता को कामचोरी करते और बहाने बनाते ही देखा था। इसके अलावा कुछ नहीं, सिर्फ़ वे दूसरों की लाइफ़ कंट्रोल करते थे।
"शांत हो जाओ समर! इनके कहने से क्या होता है? मैं किसी भी लड़की से कोई सगाई नहीं करने वाला। और वैसे भी, इस वक़्त मुझे अपनी जॉब पर कंसंट्रेट करना है। जो भी रिश्ता उन्होंने तय किया है, उसके लिए लड़का भी वे खुद ही ढूँढ़ लेंगे। चलो!" करण ने एकदम एटीट्यूड से कहा और समर का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लेकर वहाँ से जाने लगा।
लेकिन उसकी सौतेली माँ के दिमाग में अमीर परिवार से रिश्ता होने वाली बात कहीं न कहीं जम गई। वह इस बात को लेकर सोचने लगी। वहीं, करण के इस तरह मना करने पर उसके पिता भी परेशान हो गए।
"करण बेटा, तुम ऐसा नहीं कर सकते। यह सब कुछ सच में मैंने घर की भलाई के लिए ही किया है, क्योंकि तुम्हें तो पता है मुझ पर कितना बड़ा कर्ज है।" करण के पिता ने रिक्वेस्ट करते हुए उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा।
उनकी बात पर करण एकदम से रुक गया और बोला, "तो आपने मेरी सगाई तय की है? कोई लॉटरी नहीं लग रही। और आपको क्या लगता है? अमीर परिवार में मेरा रिश्ता कर देने से क्या उनका सारा पैसा हमारा हो जाएगा? आप मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, मैं उन लोगों से कुछ भी नहीं लूँगा, अगर मैंने यह सगाई और शादी की फिर भी..."
"हाँ हाँ, मुझे यह सब कुछ पता है। आखिर मैं तेरा बाप हूँ और तुझे बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ। लेकिन मैंने जो कंपनी से इतना बड़ा लोन लिया है, इस शादी की वजह से हमारा वह लोन पूरी तरह से माफ़ हो जाएगा। और फिर तुझे अपनी सैलरी में से उसे नहीं चुकाना पड़ेगा।" करण के पिता ने फिर से उसी तरह रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"ठीक है, लेकिन मुझे सगाई से पहले एक बार उन लोगों से मिलना है!" करण ने कुछ सोचकर अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
"उन लोगों से मतलब पूरे परिवार से मिलना है क्या तुम्हें? वैसे कल सगाई पर ही मिल लेना, अब टाइम ही कितना बचा है?" उसके पिता ने बहाना बनाते हुए कहा। उन्हें इस बारे में बिल्कुल आईडिया नहीं था कि शिविका और उसके पिता करण से मिलने के लिए तैयार होंगे भी या नहीं।
"वैसे मिलना तो सब लोगों से ही था, लेकिन अगर सिर्फ़ लड़की से भी मिल पाऊँ तो ठीक रहेगा। क्योंकि मुझे उससे काफी सारी बातें क्लियर करनी हैं?" करण ने फिर से कुछ सोचते हुए कहा। उसके दिमाग में इस वक़्त बहुत कुछ चल रहा था।
उसके पापा ने उसकी तरफ़ देखकर उसका दिमाग पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा, "करण! क्या चल रहा है तेरे दिमाग में? तू कहीं उस लड़की से मिलकर शादी के लिए मना तो नहीं करने वाला है ना... देख, ऐसा कुछ भी मत करना। और अगर वे लोग मिलने के लिए तैयार नहीं हुए, तो फिर तो मिलने की ज़िद नहीं करेगा ना?"
"ठीक है, मैं रेडी हूँ। लेकिन मुझे बस यह जानना है कि आखिर उन लोगों की ऐसी क्या मज़बूरी है और वे क्यों इस घर में रिश्ता करना चाहते हैं?" करण ने बेबसी से अपने चारों तरफ़ मौजूद उन सभी लोगों पर एक नज़र डालते हुए कहा।
"अरे बेटा! ऐसे क्यों बोल रहे हो? आखिर किसी न किसी से तो तुम्हें शादी करनी ही है ना? और अब जब इतना अच्छा रास्ता सामने से ही आया है, तो फिर तुम क्यों मना कर रहे हो?" पूरा लोन माफ़ होने की बात सुनकर आराधना की भी आँखें चमक गईं। उसने भी आगे बढ़कर करण को समझाते हुए कहा।
"यू आर अनबीलिबेबल मॉम! आप ना ही उस लड़की से मिली हैं और ना ही उसकी फैमिली में किसी से भी। बल्कि आपको तो मेरी ही तरह अभी इस बारे में पता चला, फिर भी आप रिश्ते को अच्छा कैसे बोल सकती हो?" समर ने एकदम हैरानी से कहा।
"रहने दो करण! कोई फायदा नहीं है इस बारे में बात करके। अब जो होगा, कल सगाई के वक़्त ही। लेकिन मुझे उस लड़की से इस बारे में बात तो करनी ही है।" करण समर को शांत करवाता हुआ बोला। फिर वह लड़खड़ाते हुए अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। उसे चलने में स्ट्रगल करता देख समर ने आगे बढ़कर उसे सहारा दिया और उसके साथ ही उसके कमरे की तरफ़ आ गया।
क्रमशः
अगले दिन, शाम का समय था। करण अपने भाई समर और माता-पिता के साथ बंगले के सामने पहुँचा। इतना विशाल और आलीशान बंगला देखकर उसके कदम घर के अंदर रखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसने देखा कि घर के बाहर "वृंदा मैंशन" लिखा हुआ था।
"वाह भाई! यह घर नहीं, यह तो महल लग रहा है देखने में..." समर थोड़ा उत्साहित होकर बोला। लेकिन उसकी बात सुनकर भी करण के चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया।
वे सब एक साथ घर के अंदर गए। वे केवल चार ही लोग थे क्योंकि लड़की के पिता ने पहले ही ज़्यादा लोगों को साथ लाने से मना कर दिया था। करण के पिता भी अपने रिश्तेदारों को पहले से इस बारे में नहीं बताना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि वे उनसे जलते हैं और यह बात पता चलने पर वे उनके बेटे की शादी तोड़ने की कोशिश करेंगे।
करण ने लड़की और उसके परिवार से मिलने की भी शर्त रखी थी, लेकिन उसके पिता ने कहा कि उन लोगों के पास अभी मिलने का समय नहीं है और सीधा सगाई पर ही मिल लेना। करण कुछ भी नहीं कर पाया; अपने पिता का लिया हुआ बीस लाख का ऋण माफ़ करवाने के लिए उसे यह सगाई करनी पड़ रही थी।
कुछ देर बाद, करण साधारण सूट पहने हुए घर के हॉल में खड़ा हुआ, उन लोगों का इंतज़ार कर रहा था। कुछ देर बाद एक व्हीलचेयर पर एक आदमी उनके सामने आया, जिसकी व्हीलचेयर एक नर्स चला रही थी।
उन्हें देखकर करण कुछ समझ नहीं पाया। तभी करण के पिता ने इशारा करके करण को उस आदमी के पैर छूने के लिए कहा। इशारा समझते हुए करण आगे बढ़कर उनके पैर छूने लगा।
"जीते रहो बेटा! कोई परेशानी तो नहीं हुई ना...यहाँ आने में आप लोगों को?" शिविका के पिता ने सब लोगों की ओर देखते हुए पूछा।
"अरे नहीं सर! इसमें तकलीफ कैसी? आपका तो घर आसानी से मिल गया, इतना प्रसिद्ध है यहाँ पर... और मेरे बेटे के तो नसीब ही खुल जाएँगे आपकी बेटी से शादी करके...." करण के पिता ने चापलूसी करते हुए कहा। उनकी बातें सुनकर करण को गुस्सा आ गया और उसने गुस्से में अपने हाथों की मुट्ठियाँ कस लीं और दूसरी ओर देखने लगा।
वह जानता था कि उसके पिता कितने मौकापरस्त, मतलबी और चालाक इंसान हैं।
लेकिन करण को यह समझ नहीं आ रहा था कि वे लोग कौन हैं और उन्होंने करण को कब और कहाँ देखा था कि उसे पसंद कर लिया और क्यों वे अपनी बेटी की शादी उससे करवाना चाहते हैं?
यह सब कुछ करण के दिमाग में चल रहा था, लेकिन उसके पिता उस व्हीलचेयर वाले आदमी को अकेला नहीं छोड़ रहे थे जिससे करण उनसे इस बारे में कुछ भी पूछ पाता।
करण की सौतेली माँ ने आगे आते हुए पूछा, "लग ही नहीं रहा है यहाँ पर कोई सगाई होने वाली है। आपके भी कोई मेहमान नहीं आए क्या?"
"क्यों? मेहमानों के साथ सगाई करवानी है क्या आपको अपने बेटे की?" सीढ़ियों की ओर से आती हुई एक लड़की की तेज आवाज सबके कानों में पड़ी और सभी ने नज़र उठाकर उस तरफ़ देखा।
सबके साथ करण की नज़र भी उस पर पड़ी। वह सामने शिविका को देखकर हैरान रह गया और उसका मुँह खुला का खुला रह गया। वह धीमी आवाज में सिर्फ़ इतना ही बोल पाया, "बॉस!"
शिविका ने उस वक्त काले रंग की घुटनों तक आने वाली वन-पीस ड्रेस पहनी हुई थी। उसके बाल खुले हुए थे और उसने मैचिंग हील्स पहनी हुई थीं। उसने कोई ज्वेलरी नहीं पहनी थी, सिर्फ़ हाथ में डायमंड ब्रेसलेट था और एकदम हल्का मेकअप किया हुआ था।
वह किसी भी तरह से अपनी सगाई के लिए तैयार नहीं लग रही थी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी हाई-क्लास पार्टी में आई हुई मेहमान है। लेकिन अपने इस लुक में भी वह बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उसे देखकर करण के छोटे भाई समर का भी मुँह खुला का खुला रह गया। वह अपने भाई के पास जाकर खड़ा हुआ और उसके कंधे से अपना कंधा टकराते हुए धीमी आवाज में बोला, "क्या बात है भाई! भाभी तो इतनी ज़्यादा हॉट हैं, आपकी तो लॉटरी लग गई।"
समर ने उसके कान में कहा, जिसे करण के अलावा कोई नहीं सुन पाया। लेकिन फिर करण ने उसे गुस्से से घूर कर देखा तो समर जल्दी से सफाई देते हुए बोला, "सॉरी भाई! मुझे पता है मेरी होने वाली भाभी हैं, लेकिन तारीफ़ के काबिल हैं तो बस मैंने थोड़ी सी तारीफ़ कर दी।"
शिविका और अपनी होने वाली बहू का वह रूप उसके माता-पिता ने बिल्कुल भी कल्पना नहीं किया था, इसलिए उन दोनों का ही मुँह खुला का खुला रह गया। लेकिन वे इतने अमीर थे और वे सब अभी उनके घर में ही खड़े थे, इसलिए शिविका के कपड़ों और उसके लुक को लेकर वे लोग कुछ नहीं कह पाए।
"अरे नहीं... नहीं बेटा, सगाई तो तुमसे ही होगी और मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी। वह क्या है ना, बहुत ही कम लोग हैं यहाँ पर..." करण की सौतेली माँ ने जबरदस्ती हँसते हुए कहा।
"तो आप ही बारात में ज़्यादा लोग ले आते। वैसे, सॉरी, नहीं ला सकते क्योंकि पापा ने मना किया होगा ना? एक्चुअली मैंने ही मना किया था क्योंकि मुझे बेवजह की भीड़ पसंद नहीं है और अब जल्दी से यह सगाई... जो भी होनी है, शुरू करो, मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है।" शिविका ने एकदम अलग ही अंदाज़ में यह सारी बातें बोलीं।
यह सुनकर करण का तो मुँह खुला का खुला रह गया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पिछली दो बार जिस लड़की से मिला था, वह दोनों ही अलग लड़की थीं और यह कोई अलग ही शिविका है।
करण का मन कर रहा था कि उसकी जैसी बिगड़ैल अमीर लड़की से सगाई करने के लिए मना ही कर दे, क्योंकि पहले जहाँ वह उसे थोड़ी-बहुत पसंद आई थी, अब खुद शिविका ने अपनी वह छवि करण की नज़रों में खराब कर दी थी।
लेकिन करण के पास अभी यह विकल्प नहीं था कि वह सगाई के लिए मना कर दे या वहाँ से चला जाए। इसलिए उसने सिर्फ़ इतना ही बोला, "मैम, लेकिन आप मुझसे सगाई क्यों करना चाहती हैं?"
करण ने आगे आते हुए पूछा तो शिविका ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर उसकी बात का जवाब देते हुए बोली, "यह कैसा सवाल है? और अगर तुम्हें मुझसे सगाई नहीं करनी तो फिर तुम यहाँ पर आए ही क्यों हो? मेरा समय बर्बाद करने?"
"अरे नहीं... नहीं बेटा! यह तो बस मज़ाक कर रहा है। इसकी आदत है, ऐसे ही कुछ भी बोल देता है बिना सोचे समझे। तुम बुरा मत मानो और चलो सगाई की रस्म शुरू करते हैं।" करण के पिता ने उन दोनों के बीच बोलते हुए कहा। तभी पीछे से शिविका के पिता उसे डाँटते हुए बोले, "बस करो शिविका! मुझे साफ़ समझ में आ रहा है तुम यह सब कुछ जानबूझकर कर रही हो, लेकिन इन सब से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला, तुम्हें यह सगाई करनी ही होगी। हमारी इस बारे में बात हो चुकी है ना, तो फिर क्यों तुम यह सब?"
"हाँ, तो मैंने कब मना किया है? मैं बस जल्दी करने के लिए बोल रही हूँ क्योंकि मेरी सच में एक क्लाइंट के साथ इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है।" शिविका ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा। उसके बाद सगाई की तैयारियाँ शुरू हो गईं और कुछ ही देर में शिविका और करण हाथों में अंगूठी लेकर एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े थे।
उन दोनों के ही दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था। तभी करण के पिता ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या सोच रहे हो करण बेटा, अंगूठी पहनाओ!"
अपने पिता की बात सुनकर करण ने पीछे मुड़कर पहले उनकी ओर देखा और फिर सामने खड़ी शिविका को देखा, जिसके चेहरे पर एकदम चिड़चिड़ा भाव था, जैसे वह किसी तरह बस उन सब को अपने सामने बर्दाश्त कर रही है।
क्रमशः
वहाँ शिविका, उनके पिता, दिनेश अंकल और घर के दो नौकर थे। करण की ओर से केवल उनका परिवार उपस्थित था। इतने कम लोगों के बीच ही उनकी सगाई संपन्न हुई। सगाई कहें या केवल अंगूठी पहनाना, शिविका ने तुरंत सनग्लासेस लगाए और बाहर निकलने वाले दरवाजे की ओर बढ़ गई।
दरवाजे से बाहर निकलने ही वाली थी कि पीछे से उसके पिता ने आवाज़ लगाई, "शिविका! यह क्या बदतमीज़ी है? तुम इस तरह नहीं जा सकती। रुको, कम से कम कुछ देर इन लोगों के साथ बैठो। क्या तुम्हें अपने होने वाले पति से बात नहीं करनी?"
अपने पिता की बात सुनकर शिविका दरवाज़े पर रुक गई और पीछे मुड़कर सबकी ओर देखने लगी। फिर करण की ओर देखते हुए आँख मारकर बोली, "होने वाले पति से बात? वह तो मैं कभी भी कर सकती हूँ, क्यों करण?"
करण जब शिविका से पहले मिला था, तब वह उसे बेहद पेशेवर और गंभीर लड़की लगी थी। लेकिन आज उसका व्यवहार उसे किसी मज़ाक सा लग रहा था। इसलिए करण ने आँखें बंद करते हुए बेबसी से सिर हिलाया।
उसे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि अपने घर की एक समस्या दूर करने के लिए वह खुद दूसरी समस्या में फँसने जा रहा है।
करण समझ गया था कि शिविका ऐसा क्यों कह रही है। वह उससे कभी भी बात कर सकती है क्योंकि वह उसका पर्सनल असिस्टेंट है। लेकिन उसे वहाँ जुड़े हुए मात्र दो दिन हुए थे। इन दो दिनों में शिविका उससे केवल एक बार मिली थी, वह भी कुछ देर के लिए। इसके बाद आज करण ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी और शिविका ने भी उसे तुरंत छुट्टी दे दी थी, क्योंकि उसे पता था कि वह सगाई के लिए छुट्टी ले रहा है।
लेकिन उस वक़्त करण ने बिलकुल नहीं सोचा था कि उसकी सगाई उसकी ही बॉस से होगी, जो अब हो भी चुकी है।
"इट्स ओके अंकल! जाने दीजिए, हो सकता है उन्हें कोई ज़रूरी काम हो।" - करण ने शिविका के पिता से कहा। यह सुनकर शिविका ने प्यार से करण की ओर देखते हुए कहा, "सो स्वीट एंड सपोर्टिंग! आई एम वेरी लकी। मुझे तो बहुत ही समझदार पति मिलने वाला है।"
इतना बोलते हुए ही शिविका के भाव एकदम गायब हो गए। वह सिर्फ़ प्यार से बोलने का नाटक कर रही थी और फिर तुरंत वहाँ से बाहर निकल गई।
शिविका के जाते ही उसके पिता ने सब से माफ़ी माँगते हुए कहा, "सॉरी बेटा! लेकिन मेरी बेटी यह सब जानबूझकर कर रही है ताकि तुम उसे बुरा समझो और शादी से इंकार कर दो। लेकिन प्लीज़, तुम ऐसा मत करना, क्योंकि मुझे पता है तुम दोनों एक-दूसरे के लिए एकदम सही हो।"
"अरे नहीं...नहीं सर! क्या बोल रहे हैं आप? वह बिलकुल भी मना नहीं करेगा और अब तो सगाई भी हो गई है, अब क्यों फिक्र कर रहे हैं आप...?" - करण के पिता शिविका के पिता के सामने आकर जवाब दिए।
"अंकल, मुझे आपसे अकेले में कुछ बात करनी है।" - करण ने एकदम सीरियस आवाज़ में कहा।
"हाँ बेटा! मैं समझ सकता हूँ, तुम्हारे मन में बहुत सारे सवाल होंगे। तुम्हारे पिता ने ज़बरदस्ती तुम्हें यह सगाई करने के लिए कहा है और तुम मेरी बेटी को देखकर उसके बारे में गलत ही सोच रहे होंगे, लेकिन वह ऐसी नहीं है।" - शिविका के पिता ने सफ़ाई देते हुए कहा।
"नहीं अंकल! मैं उसके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहा, लेकिन प्लीज़, कुछ ज़रूरी बात है।" - करण ने आराम से कहा।
तभी समर उसके पास आया और बोला, "भाई, यह सगाई थी या मज़ाक? मैंने आज तक ऐसी सगाई नहीं देखी। और भाभी तो इतनी जल्दी में थी कि आपकी जगह कोई और होता तो शायद उससे भी इसी तरह सगाई करके निकल जाती।"
समर की बातें सुनकर करण ने नज़र उठाकर उसकी ओर देखा और कहा, "हाँ, इसीलिए मुझे उसके पापा से बात करनी है, समर! तुम सब घर जाओ, मैं बाद में आ जाऊँगा।"
करण की बात सुनकर समर ने हाँ में सिर हिलाया और अपनी माँ-बाप को बाहर चलने के लिए कहा। लेकिन करण के पिता नहीं चाहते थे कि वह यहाँ अकेले रुके और शिविका के पिता, मिस्टर खन्ना से कुछ भी उल्टा-सीधा बोलें।
इसलिए करण के पिता आगे आते हुए बोले, "सगाई हो चुकी है, करण बेटा! अब क्या बात करनी है तुम्हें? और क्यों परेशान कर रहे हो सर को? आराम करना होगा ना..."
"पापा, प्लीज़ आप जाइए यहाँ से, मुझे कुछ ज़रूरी बात करनी है। मैं थोड़ी देर बाद घर वापस आ जाऊँगा।" - करण ने सख्त आवाज़ में कहा।
करण की बात सुनकर मिस्टर खन्ना ने भी करण के पिता से कहा, "आशीष! तुम जाओ यहाँ से। अगर करण को मुझसे बात करनी है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है। आखिर उसका हक़ बनता है शिविका के बारे में कुछ भी जानने और पूछने का..."
मिस्टर खन्ना की बात सुनकर करण के पिता ने हल्का सा सिर झुकाया और अपनी पत्नी और समर के साथ वहाँ से बाहर निकल गए।
उनके जाते ही मिस्टर खन्ना ने करण से कहा, "चलो! मेरे कमरे में चलकर बात करते हैं।"
उनकी बात सुनकर करण ने आसपास देखा। वहाँ नौकर, दिनेश अंकल और उनकी नर्स भी थी। वह समझ गया कि वह इन सबके सामने कोई बात नहीं करना चाहता था। करण भी उनसे अकेले में ही बात करना चाहता था। इसलिए उसने आगे बढ़कर पहले मिस्टर खन्ना की व्हीलचेयर पकड़ ली और उन्हें एक तरफ़ बढ़ने लगा।
करण को अपनी व्हीलचेयर चलाते देख मिस्टर खन्ना ने भी नर्स को वहीं रुकने का इशारा किया और फिर करण को अपना कमरा बताया।
लेकिन वह दोनों मिस्टर खन्ना के कमरे में जा ही पाते कि पीछे से एक छोटी बच्ची की आवाज़ आई, "ज्योति दीदी! मुझे जाने दो ना... मुझे नाना जी के पास जाना है और मम्मी कहाँ चली गई?"
करण और मिस्टर खन्ना दोनों ने वह आवाज़ सुनी। लेकिन जब तक उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, वहाँ कोई भी नहीं था।
करण ने इस बारे में नहीं पूछा और मिस्टर खन्ना समझ गए कि ज्योति ज़रूर काव्या को उसके कमरे में वापस ले जा चुकी होगी। वैसे भी आवाज़ सीढ़ियों के ऊपर से आ रही थी, जहाँ काव्या का कमरा है।
इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए, वह दोनों मिस्टर खन्ना के कमरे में बात करने के लिए चले गए।
क्रमशः
कमरे में आते ही मिस्टर खन्ना ने करण से पूछा, "हाँ बोलो बेटा, क्या बात करनी है? लेकिन बस इस रिश्ते के लिए मना मत करना।"
"अंकल! आपसे ज़रूर मेरे पापा ने कुछ झूठ बोला होगा और गलत बताया होगा। हम मिडिल क्लास लोग हैं और मुझे नहीं लगता हमारे बीच किसी भी तरह का कोई रिश्ता हो सकता है। और आज जिस तरह से यह सगाई... मुझे सगाई नहीं, यह सब बस एक मजाक लगा।" - करण ने मिस्टर खन्ना से अपने मन की बात कही।
"नहीं, मुझे तुम्हारे पापा, परिवार और तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है। तुम्हारे पापा, मिस्टर आशीष मल्होत्रा, दस सालों तक हमारी कंपनी में काम करते थे और उन्होंने हमारी कंपनी से बीस लाख का लोन भी लिया हुआ है। और अभी जो कुछ भी तुमने देखा, वह शिविका जानबूझकर इसीलिए कर रही थी ताकि तुम इस शादी के लिए मना कर दो और उसे पसंद ना करो।" - शिविका के पापा ने करण को पूरी बात बताई।
"वह... वह जानबूझकर ऐसा कर रही है? इसका मतलब वह भी यह शादी नहीं करना चाहती। तो फिर क्यों आप उनके साथ जबरदस्ती कर रहे हैं?" - करण ने तुरंत ही अपने मन की बात कही।
"वह तो बस अपनी ज़िद में ही ऐसा कर रही है। उसे लगता है उसके लायक कोई भी लड़का उसे नहीं मिलेगा। और भी एक-दो स्टूपिड रीज़न हैं उस लड़की के... लेकिन मैं जानता हूँ बेटा! तुम उसे संभाल लोगे। बस हमेशा उसका साथ देना। वह दिल की बहुत अच्छी है, लेकिन बस थोड़ी सी ज़िद्दी है और बेवकूफ भी..." - मिस्टर खन्ना ने करण से लगभग रिक्वेस्ट करते हुए कहा। यह बात सुनकर करण थोड़ा सोच में पड़ गया क्योंकि उसे तर्क देने के लिए और कोई बात नहीं मिली।
"पर अंकल! अगर वह ऐसा कर रही है, तो हो सकता है उन्हें कोई और पसंद हो। क्या उनकी लाइफ में और कोई लड़का नहीं हो सकता? आप क्यों जबरदस्ती उनकी शादी मेरे साथ करवा रहे हैं? क्या पता उन्हें अभी थोड़ा टाइम चाहिए। और मेरे पापा से आपने जो लोन माफ करने वाली शर्त रखी है, इस शादी की वजह से, उसकी वजह से ही पापा ने मुझ पर प्रेशर बनाया है। नहीं तो मैं भी अभी शादी नहीं करना चाहता।" - करण ने थोड़ा सोचते हुए अपने मन की सारी बात उनके सामने बोल दी।
"बेटा देखो! मैंने लोन माफ कर दिया है। तो उसमें तुम्हारा ही फायदा है। अब तो मैं उसके लिए टेंशन नहीं लेनी पड़ेगी। और शादी एक न एक दिन तुम भी किसी न किसी लड़की से तो करोगे। वैसे शिविका की लाइफ में तो कोई भी लड़का नहीं है क्योंकि वह किसी को मौका नहीं देती और अच्छी तरह से जानती है कि सब उसके पैसे के पीछे हैं। लेकिन तुम उसकी सच्चाई जानने के बाद भी शादी नहीं करना चाहते, इसका मतलब तुम्हें पैसों का लालच नहीं है। इसके अलावा, अगर तुम लोगों को टाइम चाहिए, तो ठीक है। मैं तुम्हें छह महीने का वक्त देता हूँ। उससे पहले मैं तुम दोनों में से किसी पर भी शादी के लिए दबाव नहीं बनाऊँगा।" - शिविका के पापा ने करण से पूरी बात बताई। छह महीने का वक्त मिलने की बात सुनकर करण ने थोड़ी राहत की साँस ली।
"ठीक है अंकल! पर क्या आपको इस बारे में पता है कि मैं शिविका... मेरा मतलब है मैडम के साथ उनके ऑफिस में ही काम करता हूँ? और मैंने बस तीन दिन पहले ही ज्वाइन किया है और मैं यह जॉब नहीं छोड़ सकता इस सगाई की वजह से..." - करण ने सारे पहलुओं पर सोचते हुए जवाब दिया।
"हाँ, ठीक है। मैं कौन सा तुम्हें जॉब छोड़ने के लिए कह रहा हूँ? और मुझे इस बारे में पता है। लेकिन मुझे लगा था शायद सगाई होने के बाद तुम यह काम नहीं कर पाओगे। क्योंकि आखिर दुनिया का कौन सा मर्द अपनी होने वाली बीवी के नीचे काम करना पसंद करेगा? लेकिन तुम्हें इस बात से भी कोई ऐतराज नहीं है, तो इसका मतलब मैंने अपनी शिविका के लिए एकदम सही लड़का चुना है। बेटा, तुम बहुत अच्छे हो।" - मिस्टर खन्ना ने करण के सामने ही उसकी तारीफ करते हुए कहा।
"मैं इतना भी अच्छा नहीं हूँ अंकल! आखिर इन सब में मेरा भी तो फायदा है। और जॉब भी मैं अपने परिवार के लिए ही कर रहा हूँ। मेरी सगाई शिविका से हो गई तो क्या मेरी अपनी ज़िम्मेदारियाँ तो नहीं खत्म हो जाएँगी?" - करण ने अपनी लाइफ की सच्चाई उनके सामने बताई। तो मिस्टर खन्ना ने मुस्कुरा कर कहा, "हाँ, बिल्कुल ठीक है, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ। और तुम उसके साथ ही काम करोगे। ज्यादातर वक्त उसके साथ बिताओगे, तो तुम दोनों को भी एक-दूसरे को जानने में मदद मिलेगी। और तुम चाहो तो अपने दोस्तों को और ऑफिस में इस सगाई के बारे में बता सकते हो, लेकिन एक बार शिविका से पूछ लेना।"
करण ने उनकी बात सुनकर हाँ में सर हिलाया। उसने भी सब तरफ से सोच कर देखा तो इस रिश्ते की वजह से उसके परिवार पर जो इतना बड़ा कर्ज़ है, वह माफ़ हो जाएगा, तो यही उसके लिए अच्छी बात है।
इसके अलावा, मिस्टर खन्ना ने उसे छह महीने का वक्त देने का वादा किया है, जो कि उसके लिए बहुत है। और करण को लगता है इतने टाइम में तो शिविका शायद खुद ही शादी ना करने का कोई रास्ता ढूँढ लेगी।
"पर अंकल, आप की यह हालत कैसे?" - वहाँ से निकलते हुए करण को लगा कि उसने मिस्टर खन्ना के बारे में तो कुछ पूछा नहीं। इसलिए वह रुक कर उनके बारे में पूछने लगा।
"बेटा, कुछ सालों पहले मुझे पैरालिसिस का अटैक आया था और उसकी वजह से ही मेरे पैर और आधा भाग काम नहीं करता। तब से ही सब कुछ शिविका ने संभाला हुआ है। बस इसलिए ही तो वह ऐसी हो गई है।" - मिस्टर खन्ना ने थोड़ी मायूसी से बताया।
"डॉक्टर ने क्या बोला है अंकल? आप ठीक हो सकते हैं ना?" - करण ने थोड़ी फ़िक्र करते हुए पूछा।
"हाँ, ट्रीटमेंट चल रहा है। लेकिन कमर से नीचे के हिस्से में कोई मूवमेंट नहीं है। और इसलिए भी मुझे शिविका की फ़िक्र लगी रहती है। क्योंकि मेरा कोई भरोसा नहीं, मैं कब तक ज़िंदा हूँ। और मेरे बाद कोई तो उसके साथ होना चाहिए ना? और तुम उसके लिए बिल्कुल सही हो बेटा। मेरी शिविका का ख्याल रखना।" - मिस्टर खन्ना ने करण का हाथ पकड़ते हुए कहा।
उनकी बातें सुनकर करण भी थोड़ा सा इमोशनल होते हुए बोला, "अंकल, प्लीज़, ऐसा कुछ मत सोचिए। आप बिल्कुल ठीक हो जाएँगे।"
करण की बात सुनकर मिस्टर खन्ना ने उसका हाथ छोड़ते हुए अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लिया और अपनी आँखों में आए हुए आँसू छुपाने लगे। क्योंकि उन्हें खुद भी पता है कि उनके पूरी तरह से ठीक होने की उम्मीद बहुत ही कम है और वह उसके सामने कमज़ोर नहीं लगना चाहते।
करण ने उन्हें इस तरह से देखा तो वह सिचुएशन को समझ गया और दरवाजे की तरफ़ बढ़ता हुआ बोला, "ओके अंकल! मैं चलता हूँ। आपसे मिलने आऊँगा बाद में। टेक केयर।"
करण ने मुस्कुराकर कहा और इतना बोलते हुए वह उनके कमरे से बाहर निकल गया और फिर घर से बाहर जाने वाले दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गया। लेकिन तभी वह अंदर आते हुए एक लड़के से टकरा गया। और उससे टकराते ही करण ने उसे मुड़कर सॉरी बोला। जबकि करण की गलती नहीं है, वह लड़का ही ठीक तरह से चल नहीं पा रहा है। उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कि वह बहुत ज़्यादा नशे में है और चलते हुए भी लड़खड़ा रहा है।
क्रमशः
करण से टक्कर होते ही वह लगभग जमीन पर गिरने वाला था। तभी उसने दरवाज़ा टेककर किसी तरह अपने आप को सीधा खड़ा करने की कोशिश की। उसने पूरे काले कपड़े पहने थे; काली रिप्ड जींस और हुडी। उसने आँखों पर काले सनग्लासेस भी लगाए थे, जो घर के अंदर कोई नहीं लगाता।
उस लड़के के चेहरे की तरफ देखते ही करण को वह कुछ देखा-देखा सा लगा। करण उसे पहचानने की कोशिश करते हुए उसकी तरफ गौर से देखने लगा।
"हु आर यू ब्रो और इस तरह से क्या देख रहे हो, कोई हैंडसम लड़का नहीं देखा क्या?"
वह लड़का अपने चेहरे पर हाथ रखकर जबरदस्ती हँसा।
उसकी ऐसी बातें और हरकतें देखकर करण को समझ आ गया कि वह बहुत ज्यादा नशे में है। इसके साथ ही करण को याद आया कि यह वही लड़का है जिसकी कार से कल करण का एक्सीडेंट हुआ था, लेकिन उस वक़्त कार उसका ड्राइवर चला रहा था।
"तुम... तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम तो वही हो जो उस दिन कार में थे और..."
करण उसे पहचानते ही बोला, लेकिन अपनी बात पूरी कर पाता, उससे पहले ही वह लड़का उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोला,
"उस दिन कार में थे? आर यू क्रेजी... किस दिन? मैं तो रोज ही अपनी कार से आता-जाता हूँ और तुम हो कौन, यहां मेरे घर में क्या कर रहे हो?"
"तुम्हारा... तुम्हारा घर? यह तुम्हारा घर है? तुम कौन हो?"
उसकी बात सुनकर करण ने हैरानी से पूछा। वह लड़का अब करण की किसी भी बात का जवाब देने के मूड में नहीं लग रहा था। इसलिए करण को साइड हटाते हुए किनारे से निकलने की कोशिश करते हुए बोला,
"जस्ट लीव माय वे..."
और इतना बोलते हुए वह आगे बढ़ा, लेकिन लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा। बहुत ज्यादा नशे में होने की वजह से वह उठ भी नहीं पाया।
उसे गिरते देखकर करण ने जल्दी से आगे बढ़कर उसे उठाने की कोशिश की। लेकिन अब तक वह बिल्कुल भी हिल-डुल नहीं रहा था। तो करण समझ गया कि वह बेहोश हो गया है।
वहाँ पर किसी के गिरने की आवाज़ सुनकर घर में काम करने वाला एक नौकर भी जल्दी से वहाँ पर आ गया। उसने करण के साथ मिलकर उस लड़के को उठाया और उठाकर उसे हॉल के सोफे पर लिटा दिया, क्योंकि वह नशे की वजह से अब तक बेहोश हो चुका था।
करण ने सोफे पर बेहोश पड़े उस लड़के की तरफ देखते हुए घर के नौकर से पूछा,
"यह कौन है?"
"यह हमारे छोटे साहब हैं, ऋषभ सर! शिविका मैडम के छोटे भाई!"
उस नौकर ने करण की बात का जवाब दिया और वहाँ से चला गया।
"शिविका का भाई? ऐसा... यह रोज ही ऐसे घर वापस आता है या फिर आज कोई स्पेशल अपनी बहन की सगाई की खुशी में इतना पी लिया क्या? नहीं... यह तो उस दिन भी इसी तरह लग रहा था, नशे में उल्टा-सीधा बोल रहा था अपने ड्राइवर को..."
करण ने सोफे पर बेसुध पड़े उस लड़के की तरफ देखते हुए अपने आप से कहा।
और फिर बेबसी से अपना सिर हिलाते हुए वहाँ से बाहर निकल गया।
इस बीच उसने अपना मोबाइल फ़ोन एक बार भी चेक नहीं किया। घर पहुँचने के रास्ते में टैक्सी में उसने अपना मोबाइल फ़ोन निकालकर चेक किया तो उस पर काफी सारे मिस्ड कॉल और मैसेजेस थे, जो कि उसके ऑफिस से थे।
वह उसके मैनेजर जतिन का नंबर था। उस नंबर पर चार मिस्ड कॉल देखकर करण ने नंबर डायल किया।
लेकिन दूसरी तरफ़ से कॉल रिसीव नहीं हुई और मैसेज का रिप्लाई आया,
"कल ऑफिस जल्दी आ जाना क्योंकि आज एक ज़रूरी काम था और तुम यहां पर नहीं थे।"
"ओके, मैं 10:00 बजे से पहले ही आ जाऊँगा, लेकिन हुआ क्या है, सर!"
करण ने मैसेज के रिप्लाई में लिखकर जतिन से पूछा।
"वह तुम्हें कल ऑफिस आकर ही पता चलेगा।"
दूसरी तरफ़ से रिप्लाई आया।
करण ने भी बस "ओके" टाइप करके भेज दिया और इस बारे में सोचने लगा कि आखिर क्या ऐसा ज़रूरी काम आ गया? उसने तो पहले ही ऑफिस से छुट्टी ले ली थी, तो फिर उसे इतनी बार फ़ोन क्यों आया ऑफिस से?
यह सब सोचता हुआ करण अपने घर वापस आ गया। घर वापस आते ही उसके पिता ने उससे कुछ बोलना चाहा, लेकिन करण का उनसे बात करने का बिल्कुल भी मन नहीं था। इसलिए वह सीधा अपने कमरे में चला गया।
समर ने भी नोटिस कर लिया कि इस वक़्त करण का मूड बिल्कुल भी ठीक नहीं है। इसलिए वह भी उसके पीछे नहीं गया। वह समझ रहा था कि जिस तरह से आज सगाई हुई है, यह सब कुछ इतना नॉर्मल तो नहीं है कि इंसान इतनी आसानी से समझ जाएगा। इसलिए करण को बस थोड़ा टाइम चाहिए।
अगले दिन;
ऑफिस में;
करण ऑफिस पहुँचा और उसे देखते ही जतिन ने कहा,
"करण! कहाँ थे तुम कल सारा दिन? और मोबाइल साइलेंट पर मत रखा करो। तुम्हारी यहां पर कभी भी ज़रूरत पड़ सकती है और हम तुम्हें कॉल कर सकते हैं। इसलिए आगे से ऐसा मत करना, क्योंकि यह पहली बार था, इसलिए सिर्फ़ वार्निंग दे रहा हूँ।"
"आई... आई एम रियली सॉरी सर, एक्चुअली कल वह मेरी... मेरा मतलब है कल मुझे एक इम्पोर्टेन्ट काम था और मैं उसमें ही बिज़ी था। इसीलिए मैंने पहले ही छुट्टी के लिए बोला था और तब तो आपने छुट्टी दे भी दी थी।"
करण ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा।
"हाँ ठीक है, जो भी हो, जाकर मैडम को सफ़ाई दो और मुझे कुछ भी बहाना नहीं सुनना।"
जतिन ने शिविका के केबिन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
जतिन की बात सुनकर करण ने हैरानी से जतिन की तरफ़ देखा और कहा,
"मैडम से बात...? उन्होंने कुछ बोला है क्या मेरे बारे में?"
"जाओ और जाकर मिल लो मैडम से। तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा। मेरा दिमाग मत खाओ, मेरे पास पहले ही बहुत काम है।"
जतिन ने एकदम इरिटेट होकर कहा और वहाँ से आगे बढ़ गया। करण ने भी उससे और कुछ नहीं पूछा। उसे भी ऐसा लगा कि शायद उसे कुछ ज़्यादा ही परेशान कर रहा है।
यह सोचते हुए करण भी भारी कदमों से शिविका के ऑफिस की तरफ़ बढ़ा। शिविका के साथ कल सगाई होने के बाद उनका जो रिलेशन चेंज हुआ है, उसके बाद करण सोच रहा है कि वह शिविका को क्या कहकर बुलाए? काम मैडम या फिर नाम से? और उनकी इस सगाई के बारे में शिविका ने ऑफिस में सबको बता दिया है या नहीं? वैसे जतिन का बर्ताव देखकर तो उसे यही लगता है कि अब तक तो उसने कुछ भी नहीं बताया।
अब तक करण केबिन के दरवाज़े पर पहुँच गया और उसने बाहर की तरफ़ से दरवाज़ा थोड़ा सा खोलते हुए पूछा,
"मे आई कम इन मैडम!"
"ओ मिस्टर मल्होत्रा! आइए... आइए। आप का ही तो इंतज़ार कर रही हूँ मैं। वैसे कल कहाँ थे आप? हमारी इतनी इम्पोर्टेन्ट मीटिंग थी और मुझे भी अपने पर्सनल असिस्टेंट की ज़रूरत थी उस मीटिंग के वक़्त, लेकिन आप तो..."
शिविका ने उसकी तरफ़ देखते हुए एकदम अनजान बनकर यह सवाल किया। तो करण की आँखें हैरानी से खुली की खुली रह गईं।
क्रमशः
शिविका ने इतने दिनों बाद आज पहली बार करण को "मिस्टर मल्होत्रा" कहकर पुकारा। यह बात करण को हजम नहीं हो रही थी। उसे लगा कि शिविका उसे ताना दे रही है।
"आई एम सॉरी मैडम! पर कल...कल मेरी सगाई थी, इसीलिए मैं ऑफिस नहीं आ पाया।" करण ने शिविका के चेहरे की ओर देखते हुए कहा। वह उसके भाव देखना चाहता था।
लेकिन शिविका के चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया। वह अजीब तरह से मुस्कुराई और बोली, "सगाई... तो कल मेरी भी थी! क्या सगाई का बहाना बनाकर मैं अपनी मीटिंग छोड़ देती? मैंने पहले ही कहा था, जब भी मैं ऑफिस आऊँगी, तुम्हें भी आना होगा। तुम्हें छुट्टियाँ नहीं मिलेंगी। तुम अभी से इतनी छुट्टियाँ ले रहे हो, मुझे नहीं लगता तुम यह काम कर पाओगे।"
"शिविका प्लीज...ऐसा मत करो। हमारे निजी रिश्ते हैं, क्या हम उन्हें अपने काम से अलग नहीं रख सकते? मुझे पता है तुम शादी-सगाई नहीं करना चाहती थीं, पर जो भी कारण हो, मेरा यकीन मानो, मैं भी अपनी मर्ज़ी से यह रिश्ता नहीं जोड़ रहा हूँ। मेरी भी कुछ समस्याएँ हैं जिनके चलते..." करण अपने मन की बातें शिविका के सामने कहने लगा। शिविका ने आस-पास देखा और जल्दी से उठकर ऑफिस के दरवाज़े पर पहुँची।
उसने दरवाज़ा थोड़ा खोला, बाहर देखा कि कोई नहीं है, फिर उसे अच्छे से बंद कर दिया।
करण को उसकी हरकत समझ नहीं आई। वह कन्फ़्यूज़ होकर उसे देख रहा था। तभी शिविका वापस आई और बोली, "यह क्या है? कहीं भी शुरू हो जाते हो! कम से कम इधर-उधर देखकर बोला करो! मैं नहीं चाहती कि सबको इस बारे में पता चले। और वैसे भी, मैं कोई निजी दुश्मनी नहीं निकाल रही हूँ। मैं प्रोफ़ेशनली बात कर रही हूँ, पर तुम इसे हमारी निजी ज़िन्दगी से जोड़ रहे हो।"
"ओके, देन आई एम सॉरी मैम! अब से मैं कोई छुट्टी नहीं लूँगा। आप जब चाहें मुझे बुलाएँगे, मैं आ जाऊँगा। पर प्लीज़ मुझे नौकरी से मत निकालिएगा। आई रिक्वेस्ट यू, मुझे इस नौकरी की बहुत ज़रूरत है।" करण ने विनती की। शिविका मुस्कुराई और बोली, "सच में? मतलब तुम्हें अपनी मंगेतर और होने वाली पत्नी के अधीन काम करने में कोई दिक्कत नहीं है?"
"इसमें क्या दिक्कत है? किसी भी कंपनी में कोई न कोई बॉस तो होगा ही। यहाँ तुम हो, तो क्या फर्क पड़ता है? कितना अजीब सवाल है यह! वैसे तुम्हारे पिताजी भी यही कह रहे थे।" करण ने लापरवाही से अपने कंधे उचकाते हुए कहा। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
"अच्छा, तुम पिताजी से पहले ही बात कर चुके हो? मुझे लगा था उन्होंने ही मुझे यहाँ नौकरी के लिए भेजा है। पर उस वक़्त शायद तुम्हें पता नहीं था कि तुम्हारी शादी मुझसे हो रही है।" शिविका ने कुछ सोचते हुए कहा।
करण पूरी तरह कंफ़्यूज़ हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि शिविका क्या कहना चाहती है। "सॉरी मैम! पर प्लीज़ बता दीजिये, हम यहाँ प्रोफ़ेशनल बात कर रहे हैं या निजी ज़िन्दगी के बारे में? मैं बहुत कंफ़्यूज़ हो गया हूँ।"
करण सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और सिर पकड़ लिया।
"मैं यह शादी नहीं करना चाहती, बस इतना समझ लो। तुम्हारे जो भी कारण हों, मुझसे शादी करने के, मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है।" शिविका ने बेरुख़ी से कहा और दूसरी तरफ़ देखने लगी।
"हाँ, मुझे भी यह शादी नहीं करनी थी, पर करनी पड़ रही है। अगर आपको यह शादी नहीं करनी थी, तो फिर आपने सगाई क्यों की? आप अपने पिताजी से बात करिये। मैंने उनसे बात की है। उन्होंने छः महीने का समय दिया है, इस रिश्ते के बारे में सोचने के लिए..." करण ने पूरी बात बताई। छः महीने का समय सुनकर शिविका ने हैरानी से देखा और कहा, "अच्छा... मतलब पापा को भी हमारी शादी की कोई जल्दी नहीं है? वे छः महीने का समय दे रहे हैं। पर यह बात कब हुई पिताजी से...?"
"कल शाम को, सगाई के बाद। जब आप यहाँ मीटिंग कर रही थीं। इसीलिए मैं ऑफिस नहीं आ पाया।" करण ने गहरी साँस लेते हुए कहा। शिविका सोच में पड़ गई।
"अच्छा, ठीक है। फिर कोई दिक्कत नहीं है। हम पापा के सामने खुश दिखावा करेंगे। छः महीने में मैं कोई न कोई हल निकाल लूँगी, यह सगाई तोड़ने का। अब कोई टेंशन वाली बात नहीं है।" शिविका ने रिलैक्स होकर अपनी कुर्सी पर बैठकर कहा।
"हाँ, मुझे भी यही लगा था। पर अगर हमारी शादी नहीं हुई, तो शायद तुम्हारे पिताजी हमारा लोन माफ़ नहीं करेंगे, जो मेरे पिताजी ने तुम्हारी कंपनी से लिया है..." शिविका से शादी ना होने की बात सुनकर करण को राहत हुई, पर लोन की बात याद आते ही वह थोड़ा मायूस हो गया।
"अच्छा, पिताजी ने तुम्हारे सामने यह शर्त रखी है?" शिविका ने पूछा।
करण ने सिर हिला दिया।
"अच्छा, ठीक है। मैं कोई हल निकाल लूँगी। पर प्लीज़, ऑफिस में किसी को भी हमारी सगाई के बारे में मत बताना। मैं नहीं चाहती यहाँ किसी को पता चले। फिर सब मुझे... आई गेस यू कैन अंडरस्टैंड!" शिविका ने उसकी ओर देखते हुए कहा।
"ओके शिविका...आई मीन मैम! मैं किसी को नहीं बताऊँगा, जब तक आप नहीं चाहेंगी। पर मेरा एक सवाल है।" करण ने उसकी ओर देखते हुए कहा।
"हाँ, ठीक है। अब नाम के ही सही, मंगेतर हो, एक सवाल तो पूछ ही सकते हो! पूछो!" शिविका ने पैर क्रॉस करते हुए सीधे बैठकर करण की ओर देखा।
"तुम...तुम यह शादी क्यों नहीं करना चाहती शिविका?" करण ने पूछा। शिविका ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में भाव थे, जिन्हें वह अब तक छिपा रही थी।
करण ने अपना सवाल बदला, "आई मीन! क्यों नहीं करना चाहती? कोई खास कारण? और सिर्फ़ मुझसे ही नहीं करना चाहती, या फिर किसी से भी नहीं...?"
क्रमशः
अपने सवाल पूछने के बाद, जवाब की उम्मीद में करण उसकी ओर देख रहा था। लेकिन शिविका, करण की तरह नहीं देख रही थी। इधर-उधर देखते हुए, उसने नज़रें चुराते हुए कहा, "वह... वह मुझे... मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी की भी ज़रूरत है अपनी लाइफ के इस स्टेज पर... और जो कोई भी मेरी लाइफ में है, मुझे नहीं लगता कि तुम वह सब कुछ के साथ मुझे एक्सेप्ट कर पाओगे।"
"ऐसा क्या है तुम्हारी लाइफ में?" करण ने फिर से सवाल किया।
"ओह मिस्टर! मैंने क्या आपको कोई सवाल करने की परमिशन दी? आप तो ज़्यादा ही आगे बढ़ रहे हैं! और अपनी लाइफ की प्रॉब्लम्स मैं आपको क्यों बताऊँ? अभी तो सिर्फ़ सगाई हुई है हमारी, और आप अभी... अभी से ही हस्बैंड की तरह बर्ताव कर रहे हैं।" शिविका ने पल में अपना एटीट्यूड बदलते हुए कहा।
उसकी टोन सुनकर करण समझ गया कि वह कुछ छुपा रही है। इसीलिए उसके सुर अचानक बदल गए थे।
"हाँ, एक सवाल ही किया था मैंने, लेकिन उसका प्रॉपर जवाब नहीं मिला। तो बस... वैसे, तुम नहीं बताना चाहती तो भी ठीक है। लेकिन जब भी मन करे, तुम मुझसे शेयर कर सकती हो। आई विल डेफिनटली ट्राई टू अंडरस्टैंड!" करण ने अपनेपन से कहा।
करण की बात सुनकर शिविका ने ना-यकीनी और हैरानी से करण की ओर देखा और कुछ सोचने लगी।
शिविका से आज तक किसी ने भी इस तरह प्यार और अपनेपन से बात नहीं की थी। इसलिए सुनकर उसे अपने ठंडे दिल में गर्माहट महसूस हुई। लेकिन फिर उसने तुरंत ही ये ख्याल अपने मन से झटक दिए।
शिविका ने एक गहरी, ठंडी साँस लेते हुए कहा, "आई डोंट थिंक एनी वन कैन अंडरस्टैंड! बट वन सेकेंड... तुमने कहा था कि तुम भी यह शादी नहीं करना चाहते। तो फिर तुम बताओ कि क्या रीज़न है? पहले से ही कोई है क्या लाइफ में? क्योंकि ठीक-ठाक ही दिखते हो।"
शिविका ने करण से यह बात पूछ ली, लेकिन मन ही मन उसे उम्मीद थी कि करण का जवाब 'नहीं' होगा। और वह, पता नहीं क्यों, यह बात नहीं सुनना चाहती थी कि करण की लाइफ में पहले से कोई लड़की है, जिसकी वजह से वह शादी नहीं करना चाहता।
"नहीं! हम जैसे लड़कों की लाइफ में सिर्फ़ प्रॉब्लम्स होती हैं, गर्लफ्रेंड नहीं। क्योंकि सबको पैसे वाला, अमीर बॉयफ्रेंड चाहिए होता है। सिर्फ़ ठीक-ठाक दिखने से ही काम नहीं चलता।" करण ने तंजिया लहजे में मुस्कुराते हुए कहा। उसके चेहरे पर दर्द और तकलीफ़ साफ़ दिख रही थी, जो शिविका को भी दिखाई दे रही थी। लेकिन उसने उस वक़्त उसे तसल्ली देने के लिए कुछ नहीं कहा। शिविका ने अपना हाथ थोड़ा आगे बढ़ाया, लेकिन वह हाथ करण के हाथ पर नहीं रख पाई। कुछ सोचते हुए उसने अपना हाथ पीछे ले लिया।
"अच्छा... कोई लड़की नहीं है लाइफ में? तो फिर क्या रीज़न है? तुम्हारे लिए तो यह इतनी अच्छी अपॉर्चुनिटी है। बैठे-बिठाए करोड़पति लड़की के हस्बैंड बन जाओगे! लेकिन फिर भी तुम यह शादी नहीं करना चाहते? ज़रूर कोई बड़ी वजह होगी। या फिर सिर्फ़ ऐसा बोल रहे हो? असल में तुम यह शादी करना चाहते हो?" शिविका ने उसकी ओर देखते हुए, अपनी एक आइब्रो उठाकर पूछा।
उसकी बात पर करण फिर से जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोला, "मैं सच कहूँ तो अपनी लाइफ में अभी किसी को भी नहीं चाहता। और मुझे लगता है मैं अभी किसी भी लड़की के लायक नहीं हूँ। क्योंकि ना मेरी फाइनेंशियल कंडीशन इतनी स्टेबल है, और ना ही घर का माहौल... उसके अलावा, मेरे पापा ने ना जाने कितने लोगों से कर्ज़ ले रखा है। मुझे तो लगता है मेरी पूरी लाइफ उनके लोन चुकाने में ही जाएगी। और सच कहूँ तो, बस उसी बीस लाख के लोन को हटाने के लिए, सच में मैं यह शादी कर लेता।"
"अच्छा, तुम मेरे लायक नहीं हो? फिर भी? और तुम्हें क्या लगता है, मैं एडजस्ट कर लूँगी तुम्हारे घर में, तुम्हारी उन प्रॉब्लम्स के साथ...?" शिविका ने सवाल किया।
"सबसे पहली बात, मैं खुद तुम्हें अपनी लाइफ में आने के लिए अप्रोच नहीं कर रहा हूँ। यह सब कुछ हमारे पेरेंट्स ने डिस्कस किया। इसके अलावा, तुम्हारे डैड चाहते हैं कि हम दोनों की शादी हो जाए। मेरे डैड का भी मुझ पर प्रेशर है। और ऐसे में, मेरे पास जब कोई ऑप्शन नहीं है, तो बस यह समझ लो कि मैं थोड़ा सा सेल्फिश हूँ; कि कम से कम एक प्रॉब्लम कम होगी मेरी लाइफ की।" करण ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा। उसकी बातों से यह क्लियर नहीं हो पा रहा था कि वह यह शादी करना चाहता है या नहीं।
सच कहो तो, वह दोनों ही एकदम बीच में फँसे हुए थे। ना ही पूरी तरह से एक-दूसरे को छोड़ना चाहते थे, और ना ही अपने घरवालों की बात मानकर एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे।
शायद उन दोनों को ही यह सब कुछ समझने के लिए कुछ वक़्त चाहिए था। और यही सोचकर शिविका के पिता ने उन दोनों की सगाई से शादी के बीच, उन दोनों को छह महीने का टाइम दिया था।
करण की बातें सुनते हुए, शिविका कुछ देर के लिए जैसे उसमें ही हो गई। उसे ऐसा लगा कि शायद करण की लाइफ में बहुत ज़्यादा प्रॉब्लम हैं, और वह, पता नहीं क्यों, उन प्रॉब्लम्स को दूर करने में करण का साथ देना चाहती है। लेकिन उसे नहीं पता था कि वह ऐसा क्यों सोच रही है।
शिविका इन सब बातों को लेकर बहुत कन्फ़्यूज़ थी। तभी उसने अचानक टेबल पर हाथ मारते हुए कहा, "ओके, नाउ इनफ़! अब बहुत हो गया! अब मुझे इस बारे में और बात नहीं करनी। आई गेस हमारे बीच सब क्लियर है। और हाँ, एक बात, ऑफिस में तुम मुझे मेरा नाम लेकर नहीं बुलाओगे। क्योंकि इससे सबको हम पर शक होगा, और फिर किसी ना किसी को हमारे रिश्ते के बारे में पता चल जाएगा, जो कि मैं बिल्कुल भी नहीं चाहती।"
"ठीक है, मैं समझ गया, मैम! बट सब कुछ क्लियर तो अभी भी नहीं है।" करण ने कुर्सी से उठकर खड़े होते हुए धीमी आवाज़ में कहा। शिविका ने हैरानी से उसकी ओर देखा। लेकिन करण केबिन से बाहर चला गया, और उस वक़्त शिविका ने उसे नहीं रोका। क्योंकि इन सब बातों के बारे में सोचने के लिए शायद शिविका को भी कुछ वक़्त चाहिए था।
करण के बाहर जाते ही, शिविका दोनों हाथों से अपना सर पकड़ कर, लगभग अपने बाल नोचती हुई बोली, "आह्ह्! क्यों है यह सब इतना कॉम्प्लिकेटेड और कन्फ़्यूज़िंग? क्यों कुछ भी समझ नहीं आ रहा है? ओह गॉड! क्या करूँ मैं अब..."
शिविका यह सब सोचते हुए खुद से ही बहुत फ्रस्ट्रेटेड फील कर रही थी। लेकिन फिर कुछ गहरी साँस लेते हुए, उसने खुद को समझाते हुए कहा, "रिलैक्स, शिवि, रिलैक्स! कुछ भी नहीं हुआ है। अभी भी तुम्हारे पास छह महीनों का टाइम है। और छह महीने तो बहुत होते हैं। सब कुछ ठीक हो जाएगा। और तुम्हें यह शादी भी नहीं करनी पड़ेगी। रिलैक्स... कूल डाउन।"
शिविका अपने हाथ से खुद को शांत करती हुई यह सब बोल रही थी। इतना बोलते हुए उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई सामने खड़ा होकर उसे घूर रहा है। ऐसा फील होते ही शिविका ने अपनी आँखें खोलकर देखा।
क्रमशः
"तुम... तुम यहां क्या कर रही हो दिव्या? एकदम से डरा दिया मुझे..." दिव्या को सामने खड़ा देख शिविका थोड़ी घबरा गई और अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोली।
"क्या कर रही हूँ, मतलब? अब क्या मैं तुम्हारे केबिन में भी नहीं आ सकती? वैसे, भूल गई क्या? मैं भी यहाँ काम करती हूँ या फिर अब केबिन सिर्फ़ तुम्हारे उस हैंडसम पर्सनल असिस्टेंट के लिए ही बुक है?" दिव्या ने उसे छेड़ते हुए कहा।
दिव्या की बात सुनकर शिविका घबरा गई और नज़रें चुराते हुए बोली, "क... क्... क्या कुछ भी बकवास कर रही हो दिव्या तुम! ऐसा... ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा मैंने। मैं तो बस पूछ रही थी, कोई काम है क्या तुम्हें..."
"अच्छा... अगर ऐसा कुछ भी नहीं है तो फिर इतना रिएक्ट क्यों कर रही हो? तुम जैसे तुम्हारी कोई चोरी पकड़ी गई हो। वैसे कोई बात नहीं यार, कोई क्राइम नहीं है किसी को पसंद करना। और वह तो इतना हैंडसम है। तुम्हें पता है, ऑफिस में काम करने वाली सारी लड़कियाँ तब से ही उसके पीछे लगी हैं, जिस दिन से उसने ऑफिस ज्वाइन किया है। देखो, बाहर पूजा और निधि तो अभी भी उसे घूर रही हैं।" दिव्या ने खिड़की से बाहर की ओर इशारा करते हुए शिविका का ध्यान उस तरफ़ खींचा। शिविका ने भी देखा कि उसके डिजाइनिंग हाउस में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों का ध्यान करण पर ही है और वे किसी न किसी बहाने से उससे बात करने की कोशिश कर रही हैं।
"व्हाट द हेल! यह चल क्या रहा है ऑफिस में? और वह सब लड़कियाँ पागल हैं क्या? इस तरह किसी के भी पीछे पड़ जाती हैं।" शिविका थोड़े गुस्से में बोली। पिछले दो मिनट से वह बाहर सबको देख रही थी और दिव्या ने जो कहा, वह बिलकुल सच था।
शिविका के स्टाफ में ज्यादातर लड़कियाँ ही थीं क्योंकि ज्वेलरी डिजाइनिंग में लड़कियाँ ज़्यादा क्रिएटिव होती हैं और उनका इंटरेस्ट भी होता है। शिविका मेहनती और प्रतिभाशाली लोगों को नौकरी देती थी, इसलिए वह लड़का-लड़की में कोई फर्क नहीं करती थी।
"कूल डाउन यार! चलने दे ना जो भी चल रहा है। और तू तो इस तरह रिएक्ट कर रही है जैसे वह तेरा बॉयफ्रेंड है... और वैसे, वह इतनी देर यहाँ क्या कर रहा था? शायद अंदर से लॉक भी था केबिन, सच में ऐसा कुछ..." दिव्या ने शरारत भरी निगाहों से शिविका की तरफ़ देखते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर शिविका बॉस वाले एटीट्यूड में आ गई। "ज़्यादा एक्स्ट्रा दिमाग है तेरे पास, तो काम में लगाया कर। इन सब चीजों में ज़्यादा दिमाग चलता है तेरा। और वैसे भी, वह मेरा पर्सनल असिस्टेंट है। मैं उसे काम... काम की बातें समझा रही थी। और कुछ भी नहीं है ऐसा!"
"अरे अरे सॉरी यार! मैं बस मज़ाक कर रही थी। लेकिन तुम्हारा चेहरा तो सफ़ेद पड़ गया! और तुम इस तरह सफ़ाई क्यों दे रही हो मुझे? रिलैक्स, वह हैंडसम है तो लड़कियाँ तो उसके पीछे लगेगी ही! बॉस ना सही, लेकिन कोई न कोई वर्कर तो ट्राई कर ही सकती है।" दिव्या ने मस्ती भरे अंदाज़ में कहा।
लेकिन शिविका ने उसकी इस बात को भी सीरियस ले लिया और गुस्से में बोली, "क्या मतलब ट्राई कर सकती है? तुम लोग यहाँ काम करने आती हो या फिर लड़कों पर ट्राई करने? जाकर अपना काम करो दिव्या! और पूजा-निधि को भी वार्निंग दे देना मेरी तरफ़ से..."
"ओके बॉस! बट मैं यह फ़ाइनल डिजाइन दिखाने के लिए आई थी, जो हमें नेक्स्ट वीक रिलीज़ करने हैं।" दिव्या ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पेनड्राइव दिखाते हुए कहा।
"ठीक है, लाओ, यह मुझे दो। मैं चेक कर लूँगी और तुम जाओ..." शिविका ने उसके हाथ से पेनड्राइव ले ली और उसे वहाँ से जाने को कहा। लेकिन उसके जाने के बाद भी शिविका का ध्यान बाहर ही लगा हुआ था।
वह देख रही थी कि करण कैसे सबसे बहुत अच्छी तरह और मुस्कुराकर बात कर रहा है।
करण का स्वभाव ही ऐसा था, वह बहुत जल्दी दोस्त बना लेता था। इसके अलावा, उसकी पर्सनालिटी भी आकर्षक थी जिससे लोग उसकी ओर आकर्षित होते थे। लेकिन वह अभी नया था, इसलिए वह सबके साथ अच्छे रिश्ते बनाना चाहता था।
शिविका ने बार-बार अपना ध्यान हटाने की कोशिश करते हुए अपने आप से कहा, "रिलैक्स शिविका! वह सच में तुम्हारा मंगेतर नहीं है। हाँ, भले ही तुम्हारी सगाई हुई है, लेकिन तुम उसे कितना जानती हो? जो उसे लेकर इस तरह सोच रही हो। और वैसे भी, वह बस उन लोगों से बातें ही तो कर रहा है।"
इतना बोलते हुए शिविका ने अपनी केबिन की खिड़की बंद कर दी और अपना ध्यान काम में लगा लिया। उसने पेनड्राइव अपने लैपटॉप में लगाई और फ़ाइनल डिजाइन्स चेक करने लगी।
शाम का वक़्त;
छुट्टी के वक़्त लगभग आधे लोग ऑफिस से निकल चुके थे और बाकी के भी अपना काम ख़त्म करके सामान समेट रहे थे। तभी शिविका अपने केबिन से बाहर आई और उसने देखा कि निधि अभी भी वहाँ रुकी हुई है, जबकि उसका काम ख़त्म हो गया था।
वह मुस्कुराकर करण की तरफ़ देख रही थी और कुछ सोचते हुए उसकी तरफ़ बढ़ी। तभी शिविका ने एकदम से करण को आवाज़ लगाते हुए कहा, "करण! एक मिनट इधर आना..."
शिविका की आवाज़ सुनते ही करण अपना काम छोड़कर उसकी तरफ़ आया। शिविका ने उसे केबिन में आने को कहा और फिर केबिन में चली गई।
इस बीच, करण निधि के पास से निकल गया और उसने उस पर ध्यान नहीं दिया। इस बात पर निधि पैर पटक कर रह गई और वहाँ से चली गई क्योंकि वह समझ गई थी कि अब उसे करण से बात करने का कोई मौका नहीं मिलेगा।
दूसरी तरफ़, शिविका अपने केबिन में आते ही अपना सिर पकड़कर बैठ गई और अपने आप से बोली, "शिवि! यह क्या कर रही है तू? अब वह ऑफिस में काम करता है तो इस तरह की चीज़ें तो रोज़ होंगी। क्या रोज़ तुम इसी तरह बहाने से उसे दूसरे से बात करने से रोकोगी? और मैं इतना सोच क्यों रही हूँ उसके बारे में? क्यों फर्क पड़ रहा है? मैं तो उसके साथ कोई रिश्ता भी नहीं रखना चाहती।"
शिविका अपने आप में बड़बड़ाते हुए धीमी आवाज़ में यह सब बोल रही थी। तभी केबिन का दरवाज़ा खुला और करण अंदर आते हुए बोला, "यस मैम! कोई काम है क्या?"
"तीन-चार दिनों में ही काफी क्लोज हो गए हो तुम ऑफिस में सब से, है ना?" करण को सामने देखकर शिविका ने एकदम से कहा और यह बात बोलते ही उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया, जैसे कि उसने कुछ गलत बात बोल दी हो जो उसे नहीं बोलनी थी।
"व्हाट मैम! मुझे समझ नहीं आया..." करण ने कन्फ़्यूज़ होते हुए पूछा।
क्रमशः
"यह इस तरह से भोले बनने की एक्टिंग तो मत करो, सब देखा हुआ है मैंने। और बस इसीलिए मैं अपनी लाइफ में किसी भी आदमी से कोई रिश्ता नहीं चाहती। क्योंकि मुझे पता है कोई भी आदमी कभी किसी एक लड़की के साथ लॉयल हो ही नहीं सकता, खासकर जब इस तरह सामने से लड़कियां ही उसे अप्रोच करें।" - शिविका ने एकदम नफरत से कहा। उसकी बातों में दर्द और तकलीफ साफ नज़र आ रही थी।
लेकिन करण समझ रहा था कि वह इनडायरेक्टली उसे ही यह सब कुछ सुना रही है। लेकिन उसने ऐसा क्या किया, यह उसे समझ नहीं आया। शिविका चाहे किसी भी वजह से करण के सामने यह सब बोल रही हो, लेकिन फिर भी करण अपने बारे में इतना गलत नहीं सुन सकता था। उसके लिए उसकी self-respect सबसे ज्यादा इम्पॉर्टेंट थी।
"क्या मतलब है आपका मैम! साफ-साफ बोलिए। और मैं कोई एक्टिंग नहीं कर रहा हूँ... किस बारे में बात कर रही हैं आप? और रही बात लॉयल्टी की तो शायद आपको अब तक कोई ऐसा मिला नहीं है, इसीलिए आपका ओपिनियन ऐसा है!" - करण ने भी एकदम सीधा जवाब दिया। उसकी आँखों में ईमानदारी के साथ-साथ मजबूती भी नज़र आ रही थी; वह अपनी बात को लेकर एकदम पक्का था।
"ऐसा मतलब कैसा... मुझे कोई भी नहीं चाहिए। और देखा मैंने अभी तुम्हें; तुम सारे आदमी लोग बस इस तरह बड़ी-बड़ी बातें करते हो। और बात जब लॉयल्टी की आती है तो फिर बहुत ही आसानी से अपनी पार्टनर के बारे में भूल जाते हो।" - शिविका ने फिर से उसी तरह नफरत भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों के सामने बार-बार आज पूरे दिन के वही सारे दृश्य आ रहे थे जब सारी लड़कियाँ उसके पास आ जा रही थीं बात करने के लिए, और करण भी मुस्कुराते हुए उन सब से बहुत अच्छी तरह से बात कर रहा था।
"क्या मतलब है आपका? अगर आपको आपके बॉयफ्रेंड ने धोखा दिया या फिर आपके साथ चीट किया, तो आप उसी बेसिस पर सारे लड़कों को कैसे जज कर सकती हैं? और कम से कम मेरे सामने तो ऐसा कुछ भी मत बोलिए, क्योंकि मैं बिल्कुल भी ऐसा वैसा नहीं हूँ।" - शिविका की ऐसी बातें सुनकर करण को जितना समझ में आया, उसने उस हिसाब से कहा।
करण की यह बात सुनकर शिविका के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कुराहट आ गई। उसने उसी तरह हँसते हुए कहा, "कोई भी इतना बड़ा प्लेबॉय नहीं है जो शिविका खन्ना को चीट कर पाए या धोखा दे पाए। और वैसे भी मेरा कोई ex-boyfriend नहीं है। मैं किसी पर भी इतनी जल्दी भरोसा नहीं करती।"
"अच्छा तो फिर यह सब आप आखिर किस बेस पर बोल रही हैं? और मुझे इसमें मिलाकर यह सब कहने का क्या मतलब है?" - करण ने कन्फ्यूजन से अपनी एक आइब्रो उठाते हुए कहा।
उसकी यह बात सुनकर शिविका हँसने लगी। उसी तरह हँसते हुए बोली, "हा हा... धोखा देने के साथ-साथ झूठ बोलने का टैलेंट भी होता है तुम लड़कों के अंदर, वह तो मुझे दिख गया। इतनी सफाई से झूठ बोलते हो! और आज दिन में जो कुछ भी मैंने अपनी आँखों से देखा, वह सब क्या था? जिस तरह से तुम ऑफिस में सारी लड़कियों के साथ फ़्लर्ट कर रहे थे। हाँ, पता है उनमें से कुछ खुद ही तुम्हारे पीछे आई थीं, लेकिन फिर भी तुम यह कैसे भूल सकते हो कि तुम्हारी इंगेजमेंट... मेरा मतलब है कि अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो ठीक है, लेकिन तुम तो सब के साथ ही लगे हुए थे, सीरियसली!"
शिविका की यह सारी बातें सुनकर करण को सब कुछ समझ में आ गया। वह आगे बढ़कर शिविका की कुर्सी की तरफ आया और बोला, "अच्छा तो इनडायरेक्टली नहीं, बल्कि आप डायरेक्टली ही यह सब कुछ मुझे सुना रही हैं। सॉरी, आप नहीं, तुम शिविका, क्योंकि यह सब कुछ तो तुम अपने फ़िआंसे को बोल रही हो ना? क्योंकि पर्सनल असिस्टेंट तो ऑफिस में कुछ भी करे, उससे क्या फ़र्क पड़ता है उसकी बॉस को?"
इतना बोलते हुए करण ने झुककर शिविका की कुर्सी के हैंडल के दोनों तरफ अपने हाथ रख लिए और अपना चेहरा उसके चेहरे के एकदम नज़दीक ले जाने लगा। तो शिविका ने अपना चेहरा इतना पीछे कर लिया जितना कि पीछे जगह थी। लेकिन कुर्सी में पीछे भी एक लगा हुआ था जिसकी वजह से वह ज़्यादा पीछे नहीं जा पाई।
शिविका पहले थोड़ा सा घबराती हुई बोली, "क्या... क्या कर रहे हो करण!" "...और ऐसा करके तुम अपनी प्लेबॉय वाली इमेज मेरे सामने भी साबित कर रहे हो। क्योंकि तुम्हें क्या ही फ़र्क पड़ता है, सामने कौन है, बॉस या एम्प्लॉयी? तुम्हें तो बस..." - शिविका फिर से उसे ताना मारती हुई बोल ही रही थी कि करण उसकी बात काटते हुए बीच में ही चिल्लाकर बोला, "शट अप... जस्ट शट अप... तुम भले ही मेरी बॉस हो या फिर फ़िआंसे, लेकिन मैंने अब तक किसी को भी अपना कैरेक्टर एसेसिनेशन करने का हक नहीं दिया है।"
शिविका के सामने आज पहली बार ही करण ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में चिल्लाकर कुछ कहा। जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी शिविका की पलकें झपक गईं। लेकिन फिर भी उसने अपनी आँखें खोलकर करण की आँखों में देखने की कोशिश की जहाँ पर उसे गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन साफ़ नज़र आ रहा था।
"मुझे भी कोई शौक नहीं है तुम्हारा या किसी का कैरेक्टर एसेसिनेशन करने का। मैंने तो बस जो देखा वही बोला।" - शिविका ने मुँह फेरते हुए कहा। तो करण गुस्से में अपने दोनों हाथों की कसकर मुट्ठियाँ बाँधता हुआ सीधा खड़ा हो गया। फिर एक हाथ अपने चेहरे पर रखकर उसने खुद को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, "तुम्हें पता है शिविका! मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता, लेकिन तुमने मेरे जैसे शांत रहने वाले इंसान को भी कितनी आसानी से गुस्सा दिला दिया। लेकिन तुम्हें पता है, हमेशा आँखों का देखा ही सच नहीं होता। और फिर वही बात हमारे रिश्ते, धोखे और लॉयल्टी की। तो मैंने तुमसे यही कहा था कि हमारे बीच अभी कुछ भी क्लियर नहीं है, तो फिर कैसे तुम यह बोल सकती हो? हाँ माना कि हमारी सगाई हुई है, लेकिन तुम तो यह शादी नहीं चाहती ना? तो फिर मैं किसी ना किसी के साथ तो रहूँगा ही... इतनी सी बात तुम्हें समझ नहीं आती क्या? फिर तुम यह एक्सेप्ट क्यों नहीं कर पा रही हो, जब कि तुम खुद भी मुझसे शादी नहीं करना चाहती!"
करण की ऐसी बातों से शिविका कन्फ़्यूज हो गई। उसने अटकते हुए कहा, "क्या... क्या मतलब है तुम्हारी इन बातों का? और मैं क्यों तुम्हें किसी और के साथ एक्सेप्ट नहीं कर पाऊँगी? मैं तुम्हें लेकर ऐसा कुछ भी नहीं सोचती। लेकिन मैं तो बस तुम्हारी और तुम्हारे जैसे लड़कों की सच्चाई बता रही हूँ। और क्या, आँखों देखा सच नहीं होता क्या? तुम सब लड़कियों से बातें नहीं कर रहे थे आज..."
"रिश्ता क्या है हमारे बीच? जो तुम इस तरह के सवाल कर रही हो। और क्या मैं किसी से बात भी नहीं कर सकता? वैसे भी हम सब कलीग्स हैं। और अगर मैं उनके साथ अच्छी तरह पेश आता हूँ तो तुम्हें इतनी प्रॉब्लम क्यों है, मिस शिविका खन्ना? याद रखो, हमारी सिर्फ़ इंगेजमेंट हुई है, मैं तुम्हारा पति नहीं हूँ। तो प्लीज, उस तरह से बर्ताव मत करो।" - करण जानबूझकर यह सब कुछ कहा जिससे कि शिविका को बुरा लगे और वह अपने मन में चल रही बातों को लेकर क्लियर हो पाए। जिससे कि उन दोनों के बीच यह कन्फ़्यूज रिलेशनशिप ना रहे और वे दोनों कम से कम किसी नतीजे पर तो पहुँच पाएँ!
"मुझे... मुझे कोई शौक भी नहीं है तुम्हारी वाइफ़ या कुछ भी बनने का। तुम्हें जो करना है करो। मैं... मैं... मुझे लेट हो रहा है!" - इतना बोलते हुए शिविका ने सामने टेबल पर रखा अपना पर्स उठाया और करण के साइड से निकलकर तेज़ी से उस केबिन से बाहर चली गई। क्योंकि उसे खुद भी समझ नहीं आया कि सिर्फ़ उन लड़कियों के साथ बातचीत करता देख उसे इतना क्यों बुरा लग रहा है कि वह अब तक सिर्फ़ उस बारे में ही सोच रही है। और इतनी सी बात को लेकर उसने करण को कितना कुछ सुना दिया।
जबकि उन दोनों के बीच का रिश्ता भी अभी क्लियर और रियल नहीं है। और उनके फ्यूचर में क्या होने वाला है और क्या नहीं, इस बात को लेकर भी उन दोनों में से कोई श्योर नहीं है।
क्रमशः
शिविका वहाँ केबिन से निकलकर सीधा पार्किंग एरिया में खड़ी अपनी कार में बैठी। उसने ड्राइवर से घर चलने को कहा। ड्राइवर ने कार स्टार्ट की। पीछे बैठी शिविका ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। 'शिविका! यह क्या कर रही थी तुम? किस तरह का बर्ताव था यह? तुम एक इतनी बड़ी कंपनी की सीईओ होकर ऐसा कैसे कर सकती हो? वह भी किसी एक लड़के के लिए...' यह सवाल शिविका अपने मन में कर रही थी।
कार अपनी रफ्तार से घर की ओर बढ़ रही थी। कार की खिड़की खुली हुई थी और शिविका बिल्कुल किनारे बैठी थी। कार की खिड़की से आती हवा से उसके बाल उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे, लेकिन वह अपनी सोच में डूबी हुई थी। उसे इस बात पर ध्यान ही नहीं था। यह सब कुछ सोचते हुए आखिरकार उसने गहरी साँस ली। फिर थोड़ा पीछे होकर सीट से टेक लगाई और अपनी आँखें बंद कर लीं।
शिविका समझ नहीं पा रही थी कि उसने करण से वह सब कुछ क्यों कहा था। करण के सवाल और उसका व्यवहार... यह सब सोचकर अब शिविका को खुद पर गुस्सा आ रहा था। थोड़ी शर्मिंदगी भी हो रही थी। वह सोच रही थी कि अगले दिन करण का सामना कैसे करेगी। आज तो वह उसे इग्नोर करके भाग आई थी, लेकिन वह तो उसके साथ ही काम करता है। वह उससे इस तरह बच नहीं सकती थी।
यह सारे सवाल मन में आते ही शिविका ने अपनी आँखें खोलीं और धीमी आवाज़ में बोली, "यह मैं इस बारे में इतना क्यों सोच रही हूँ और घबरा क्यों रही हूँ? उसका सामना करने की सोचकर... आखिर मैंने ऐसा भी कुछ नहीं कहा। मैंने बस कुछ सवाल किए थे। और वैसे भी मैं उसकी बॉस हूँ। वह मेरे खिलाफ तो नहीं जा सकता। यू आर शिविका खन्ना गर्ल! तुम इस तरह से कब से सोचने लगी? जस्ट बी योरसेल्फ! और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, कीप कूल एंड डोंट ओवरथिंक!"
अपने आप से यह सब कहने के बाद शिविका को थोड़ी राहत महसूस हुई। वह आराम से सीट पर बैठ गई और अपना मोबाइल फोन निकालकर किसी का नंबर डायल करने लगी।
करण अभी भी ऑफिस में था, शिविका के केबिन में। शिविका के चले जाने के बाद भी वह सारी बातों को समझने की कोशिश कर रहा था। शिविका का इस तरह से उसे इग्नोर करके चले जाना उसे समझ नहीं आया था। लेकिन फिर उसने घड़ी देखी। रात के 9:00 बजने वाले थे। यह देखकर वह शिविका के केबिन से बाहर निकला और अपना सामान समेटने लगा। वह ऑफिस से निकलने की तैयारी करने लगा क्योंकि अब तक ऑफिस में वॉचमैन के अलावा कोई भी नहीं था।
करण ऑफिस से बाहर निकला और टैक्सी करके सीधा अपने घर वापस आ गया। उसके दिमाग में भी बहुत कुछ चल रहा था, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई नहीं था जिससे वह अपनी मन की बात कर सके। उसका छोटा भाई समर भले ही उससे क्लोज़ है, लेकिन फिर भी करण उससे यह सारी बातें नहीं कर सकता था।
ड्राइवर ने घर के बाहर कार रोकी। कुछ मिनट बीत गए, लेकिन शिविका पता नहीं कहाँ खोई हुई थी। उसे न तो कार रुकने का पता चला और न ही घर पहुँचने का। वह अभी भी कुछ सोचती हुई कार के अंदर बैठी हुई थी। तभी ड्राइवर की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "मैडम हम... हम घर पहुँच गए, कहीं और चलना है क्या?"
ड्राइवर ने यह सवाल इसलिए किया क्योंकि शिविका इतनी देर बाद भी कार से बाहर नहीं निकली। ड्राइवर को लगा कि शायद वह कहीं और जाने के बारे में सोच रही है। लेकिन रात काफी हो गई थी और इस वक़्त शिविका ऑफिस से घर ही लौट कर आती है। लेकिन नॉर्मली वह इतना डिस्टर्ब नहीं रहती कि उसे ऐसी छोटी-छोटी बातों का भी पता न चल पाए।
ड्राइवर की आवाज़ सुनकर शिविका ने इधर-उधर अपना सिर घुमाया और फिर खिड़की से बाहर देखते हुए बोली, "अच्छा, हाँ घर... घर आ गए हम..."
शिविका का यह बर्ताव ड्राइवर को बहुत ही अजीब लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। शिविका ने अपनी तरफ़ का दरवाज़ा खोला और घर के अंदर चली गई।
शिविका घर के अंदर आई। उसने हॉल में अपने पापा को देखा। उनके साथ उनकी केयरटेकर नर्स भी थी। उन लोगों को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए शिविका सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई। उसका कमरा पहले फ्लोर पर था और वह अपने पापा से नाराज़ भी थी।
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसने अपने कमरे के बगल वाले कमरे से आती हुई एक आवाज़ सुनी। वह अपने कमरे में जाने से पहले उस कमरे की तरफ़ बढ़ गई। यह उसकी बेटी काव्या का कमरा था। कमरे के अंदर काव्या की केयरटेकर/नैनी ज्योति उसे खाना खिलाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन काव्या जिद कर रही थी और दूसरी तरफ़ मुँह घुमाकर बैठी हुई थी।
"नहीं नहीं आंटी! मुझे खाना नहीं खाना है। मैं मम्मा के हाथ से ही खाना खाऊंगी। कोई भी मुझसे प्यार नहीं करता, मम्मा भी नहीं... वह आज सुबह मुझसे मिले बिना ही चली गई।"
चार साल की काव्या अपनी तोतली ज़बान में शिकायत कर रही थी। शिविका को सब कुछ साफ़ समझ आ रहा था।
"ऐसा नहीं है बेटा! तुम्हारी मम्मा तुमसे प्यार करती हैं और सब लोग तुमसे प्यार करते हैं। तुम्हारी मम्मा को कोई जरूरी काम होगा इसीलिए वह जल्दी चली गई।"
ज्योति ने काव्या को समझाते हुए खिलाने की कोशिश की, लेकिन काव्या अपनी ज़िद पर अड़ी हुई थी।
शिविका दरवाज़े से अंदर आई और उसने यह सब कुछ देख और सुन लिया। तभी ज्योति की नज़र शिविका पर पड़ी। शिविका ने उसे इशारे से वहाँ से जाने के लिए कहा। ज्योति ने शिविका का इशारा समझा और वहाँ से उठकर दरवाज़े की तरफ़ आई और कमरे से बाहर चली गई। ज्योति के जाते ही शिविका ने दरवाज़ा बंद किया और कमरे के अंदर आकर काव्या के सामने बैठ गई।
काव्या अभी भी मुँह फुलाकर दोनों हाथ सामने बांधे हुए अपना चेहरा दूसरी तरफ़ करके बैठी थी। उसने सामने नहीं देखा था, इसलिए उसे पता नहीं चला कि ज्योति वहाँ से चली गई है और उसकी जगह शिविका अब वहाँ पर बैठी हुई है।
शिविका ने भी कुछ नहीं बोला। चुपचाप सामने रखे खाने में से एक चम्मच चावल उठाया और उसे काव्या के चेहरे के सामने बढ़ाते हुए बोली, "अच्छा... मम्मा के हाथ से तो खाओगी ना? कवि?"
शिविका की आवाज़ सुनकर काव्या ने उसकी तरफ़ देखा और अपना मुँह खोल दिया। शिविका ने उसे बहुत ही प्यार से खिलाया। लेकिन खाना खाते हुए काव्या बोली, "लेकिन काव्या अभी भी मम्मा से नाराज़ है, मम्मा काव्या से प्यार नहीं करती।"
"मम्मा आपसे बहुत प्यार करती है बेटा, सॉरी मैं सुबह तुमसे मिले बिना चली गई। पर आज सैटरडे था ना, तुम्हारा स्कूल ऑफ था। मैंने तुम्हें जल्दी नहीं जगाया क्योंकि तुम सोते हुए बहुत ही क्यूट लग रही थी इसलिए..."
शिविका ने प्यार से काव्या के गाल पर हाथ रखते हुए कहा।
"नो मीन्स नो, काव्या इज़ हर्ट!"
काव्या ने फिर से उसी तरह नाराज़गी से कहा। शिविका ने इस बार बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा, "अच्छा तो फिर क्या करें मम्मा? काव्या मम्मा को कैसे माफ़ करेगी? मम्मा ने तो सॉरी भी बोल दिया।"
शिविका की यह बात सुनकर काव्या ने चेहरे पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए कहा, "मम्मा मुझे आइसक्रीम लाकर दो।"
"आइसक्रीम?"
शिविका ने हैरानी से कहा।
"हाँ, काव्या को अभी आइसक्रीम चाहिए। और आप प्रॉमिस करो कि कल संडे आप पूरा दिन काव्या के साथ रहोगी, तब ही काव्या आपको माफ़ करेगी।"
काव्या ने बहुत ही प्यार से अपना हाथ आगे करते हुए कहा। शिविका ने उसे प्यार से गले लगाते हुए बोला, "ओके प्रॉमिस मेरा बच्चा! लेकिन अभी पहले खाना फ़िनिश करो, उसके बाद मम्मा तुम्हें आइसक्रीम देगी।"
शिविका की यह बात सुनकर काव्या खुश हो गई और मुस्कुराते हुए उसके हाथ से खाना खाने लगी। उसे खुश देखकर शिविका के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई और कुछ देर के लिए वह अपनी बाकी सारी प्रॉब्लम्स भी भूल गई।
क्रमशः
अगले दिन करण सुबह सोकर उठा। उसने घड़ी देखी; दस बज रहे थे। वह हड़बड़ाकर उठ बैठा। उसे लगा कि वह ऑफिस के लिए लेट हो गया है। उसकी नींद एकदम खुल गई।
वह फटाफट तैयार होने ही वाला था कि उसे याद आया कि आज रविवार है। वह राहत की साँस लेते हुए बैठ गया।
सामान्य दिनों में ऑफिस बंद रहता है, इसलिए रविवार को उसकी छुट्टी होती है। पर उसे पहले ही बताया जा चुका था कि अगर ज़रूरी काम पड़ने पर बुलाया जाए तो उसे आना होगा। वह इस बात पर राज़ी भी हो गया था।
करण अपने सिर पर हाथ रखकर इन सब के बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला और उसका छोटा भाई समर अंदर आया।
"उठ गए भाई आप? मैं आपको देखने आ रहा था। आप इतनी देर तक नहीं सोते, तो आज क्या हो गया? आपकी तबीयत तो ठीक है ना?" समर ने उसकी तरफ आते हुए पूछा।
"हाँ, मेरी तबीयत बिल्कुल ठीक है। आज तो रविवार है, क्या मैं थोड़ी देर ज़्यादा नहीं सो सकता? अभी-अभी आँख खुली है मेरी..." करण ने जम्हाई लेते हुए कहा।
समर ने उसकी बात पर कुछ नहीं कहा और आकर उसके बगल में बैठ गया।
"क्या हुआ अब तुझे?" करण ने समर को चुपचाप बैठे देखकर पूछा।
समर कुछ सोच रहा था, अपनी सोच में डूबा हुआ था। करण की बात पर थोड़ी देर सोचने के बाद बोला, "इंगेजमेंट हो गई भाई आपकी, तो अब आगे क्या सोचा है आपने भाभी को लेकर?"
"अच्छा, मेरी इंगेजमेंट भी हुई है क्या? मुझे तो याद ही नहीं रहता। अच्छा हुआ तुमने याद दिला दिया। और वैसे भी सोचना क्या है? कौन सा मैंने इस इंगेजमेंट के लिए कुछ सोचा था? बस हो गई भगवान और पापा के करम से। अब आगे जो होगा देखा जाएगा।" करण ने एकदम लापरवाही से कहा, क्योंकि उसका इन सब के बारे में बात करने का बिल्कुल भी मन नहीं था।
"भाई, मेरा पूछने का मतलब यह है कि भाभी और इस घर में... यह तो कभी उन्होंने भी इमेजिन नहीं किया होगा। और पता नहीं उन्हें इन सब के बारे में पता भी है या नहीं। यार, हमारी फैमिली प्रॉब्लम्स, वह कैसे एडजस्ट करेंगी?" समर एकदम समझदारी भरी बातें करते हुए बोला।
"ओहो समर, तू इतना क्यों सोच रहा है इस बारे में? और वैसे भी मैंने उसके पापा से बात करी है इस बारे में। उन्होंने हम दोनों को समझने के लिए छह महीने का वक्त दिया है। और उन्हें शादी की इतनी कोई जल्दी नहीं है। तो देखते हैं क्या होता है?" करण ने फिर से उसी तरह लापरवाही से कहा और समर के बाल बिगाड़ते हुए वह बेड से उठकर वाशरूम की तरफ चला गया।
वृंदा मैनसन;
शिविका को हमेशा इस बात का गिल्ट रहता था कि वह काव्या के साथ ज़्यादा वक्त नहीं बिता पाती।
भले ही काव्या के लिए उसने अलग से केयरटेकर रखी हुई थी और किंडरगार्टन में उसका एडमिशन भी करवा दिया था, लेकिन फिर भी वह अभी सिर्फ़ चार साल की छोटी बच्ची थी, जिसे प्यार और अपनेपन की ज़रूरत थी।
इसलिए आज रविवार का पूरा दिन शिविका ने काव्या के साथ बिताने का फ़ैसला किया। वैसे, जब काम ज़्यादा होता है तो शिविका रविवार को भी ऑफिस से छुट्टी नहीं लेती, लेकिन इस वक्त उसकी बेटी का प्यार भी उसके लिए महत्वपूर्ण था।
"मम्मा, यह वाला टेडी मेरा फेवरेट है! और मैंने ना इसका नाम भी रखा है!" काव्या एक सॉफ्ट टॉय उठाकर शिविका को दिखाती हुई बोली। शिविका ने उसके हाथ से वह सॉफ्ट टॉय ले लिया और मुस्कुराते हुए बोली, "और क्या नाम रखा है मेरी बेबी ने इसका?"
"मम्मा, मैंने इसका नाम रखा है किट्टू बियर! अच्छा नाम है ना?" काव्या ने खुश होते हुए कहा। शिविका उसकी बात का जवाब दे पाती, उससे पहले ही उसके पापा अपनी व्हीलचेयर से वहाँ पर आ गए और उन्होंने बीच में बोला, "बहुत प्यारा नाम है, बिल्कुल मेरी काव्या की तरह..."
शिविका काव्या के साथ इस वक्त घर के हॉल में थी। इसलिए उसके पापा भी वहाँ पर आ गए। लेकिन उनके आते ही शिविका उठकर खड़ी हो गई और वहाँ से जाने लगी।
तभी पीछे से काव्या ने कहा, "मम्मा आप कहाँ जा रही हो? मुझे आपके और नाना जी दोनों के साथ खेलना है!"
"नाना जी हमारे साथ नहीं खेलेंगे बेटा। और मैं बस अभी आती हूँ।" काव्या के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए शिविका ने कहा। वह आगे जाने लगी, तो पीछे से उसके पापा की आवाज़ आई, "बेटा, तुम अब तक मुझसे नाराज़ हो क्या?"
"क्या यह फ़र्क पड़ता है आपको? आपकी मर्ज़ी तो पूरी हो रही है ना, जो आप चाहते थे।" शिविका ने एकदम से पीछे मुड़ते हुए थोड़ी नाराज़गी से कहा।
"मुझे फ़र्क पड़ता है बेटा। और मैं नहीं चाहता कि तुम हमेशा इस तरह अकेली रहो। और मेरी हालत तो तुम्हें पता ही है... पता नहीं कब तक ज़िंदा रहूँ। और यकीन मानो, करण तुम्हारे लिए एकदम सही है। और वह बहुत अच्छा लड़का भी है। बस उसे एक मौक़ा देकर देखो!" शिविका के पापा ने थोड़ा इमोशनल होकर यह सारी बातें कहीं। उनकी बात सुनकर शिविका भी इमोशनल हो गई।
"पापा, आप यह सब क्यों बोल रहे हैं? ट्रीटमेंट चल रहा है ना आपका? और मैंने डॉक्टर से बात की है। उन्होंने कहा है कि आप ठीक हो सकते हैं। तो फिर क्यों आप ऐसी बातें करते हैं? और मेरी शादी कर देने से कौन सा सब ठीक हो जाएगा? आप बस मुझे खुद से दूर करना चाहते हैं।" शिविका ने मुँह बनाकर शिकायत करते हुए कहा। बीच में बैठी काव्या उनकी यह सारी बातें सुन रही थी और अपनी छोटी-छोटी गोल आँखों से टकटकी लगाकर बारी-बारी से उन दोनों को देख भी रही थी।
"मम्मा, आप नानाजी से नाराज़ हो क्या? आप दोनों की फ़ाइट हुई है?" काव्या ने बहुत ही मासूमियत से पूछा। तो शिविका और उसके पापा दोनों का ध्यान काव्या की तरफ़ हुआ।
शिविका ने आवाज़ देकर ज्योति को बुलाया। फिर उसने बहुत ही प्यार से काव्या को समझाते हुए कहा, "नहीं बेबी! हमारी कोई फ़ाइट नहीं हुई है। हम बस कुछ इम्पॉर्टेन्ट बात कर रहे हैं। तुम आंटी के साथ अपने रूम में जाओ। मैं वहाँ पर आकर तुम्हारे साथ खेलूँगी।"
"ओके मम्मा! बाय नानाजी, टेक केयर..." इतना बोलते हुए काव्या ने मुस्कुराकर दोनों की तरफ़ देखा और ज्योति के साथ अपने कमरे की तरफ़ चली गई। उसने अपने हाथ में अभी भी वह टेडी बियर पकड़ा हुआ था।
क्रमशः
करण से शादी के विषय पर शिविका अपने पिता से बात कर ही रही थी कि तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा। दिव्या का कॉल था। उसने अपने पिता के सामने ही कॉल रिसीव कर ली।
शिविका के पिता जानते थे कि वह अपने काम को लेकर कितनी गंभीर रहती है। काम ही उसकी प्राथमिकता था, काव्या के बाद, या कभी-कभी काव्या से पहले भी। इस वजह से उसे अक्सर अपराधबोध भी होता था।
"हाँ दिव्या! बोलो क्या हुआ?" दिव्या का कॉल रिसीव करते ही शिविका बोली।
उसके पिता उसे कॉल पर बात करते हुए सुन रहे थे। उन्हें दूसरी तरफ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी, लेकिन शिविका ने कहा, "नो वे... हाउ कुड यू गाइस सीरियसली? आज संडे है और आज भी तुम लोगों ने मेरी वीडियो कॉन्फ्रेंस फिक्स कर रखी है!"
"नहीं... मैंने पहले से नहीं बताया तो क्या हुआ, लेकिन संडे का शेड्यूल मत रखा करो और... मुझे और भी काम होते हैं, तुम्हें पता है ना?" शिविका ने कहा।
उसे इस तरह परेशान देखकर उसके पिता ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए इशारे से पूछा कि क्या हुआ। शिविका ने उन्हें हाथ दिखाकर कुछ देर रुकने का इशारा किया।
शिविका के इस इशारे से उसके पिता समझ गए कि वह फ़ोन कॉल पर कोई ज़रूरी बात कर रही है। इसलिए उन्होंने कुछ देर उसे परेशान नहीं किया और उसके सामने बैठे, उसकी फ़ोन कॉल खत्म होने का इंतज़ार करने लगे।
"ठीक है, मुझे सारी जानकारी मेल करो और जो भी ज़रूरी दस्तावेज़ हो उसे किसी को घर पर ही लेकर आने को बोलो। क्योंकि मैं अभी ऑफिस नहीं आ सकती और मैं यहीं से कॉन्फ्रेंस अटेंड कर लूंगी।" इतना बोलकर शिविका ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
"क्या हुआ बेटा? कोई अत्यावश्यक काम है क्या?" उसके पिता ने पूछा।
"हाँ पापा! एक इंटरनेशनल क्लाइंट से वीडियो कॉन्फ्रेंस पर बात करनी है। उसने जो हमारे डिज़ाइन देखे हैं, उसे लेकर वह आज ही कुछ बात करना चाहता है..." शिविका ने अपने मोबाइल फ़ोन पर आया हुआ मेल चेक करते हुए अपने पिता के सवाल का जवाब दिया।
उसे इस तरह परेशान और अतिरिक्त काम करते देख उसके पिता को थोड़ा अपराधबोध हुआ और वह मायूसी से बोले, "आई एम सॉरी बेटा! तुम्हें यह सब कुछ मेरी वजह से अकेले ही संभालना पड़ता है। मैं अब काम में तुम्हारी बिल्कुल भी मदद नहीं कर पाता और तुम्हारा वह भाई तो है ही बिल्कुल नकारा, उससे तो कोई उम्मीद रखना ही बेकार है।"
"डोंट वरी डैड! अब मुझे आदत है और इतना भी कोई बड़ा काम नहीं है, मैं संभाल लूंगी।" इतना बोलते हुए शिविका ने मुस्कुराते हुए अपने पिता के कंधे पर हाथ रखा और फिर सीधा अपने स्टडी रूम की ओर बढ़ गई।
स्टडी रूम की ओर बढ़ते हुए शिविका ने मेल चेक किया। उसमें कॉन्फ्रेंस वीडियो कॉल की टाइमिंग और महत्वपूर्ण विषय की कुछ मुख्य जानकारी थी, लेकिन काफी कुछ गायब था। वीडियो कॉल दो घंटे बाद होनी थी। उससे पहले शिविका सारी तैयारी करना चाहती थी।
जिससे वह क्लाइंट को प्रभावित कर सके और यह डील उसे ही मिल पाए।
उसने दिव्या से बात की तो दिव्या ने कहा कि सारी जानकारी उसके सहायक के पास है, इसलिए वह उसे कॉल करके सभी दस्तावेज़ लेकर वहाँ भेज देगा।
शिविका नहीं चाहती थी कि करण इस तरह से उसके घर आए, लेकिन फिर उसने सोचकर देखा कि वह उसका निजी सहायक भी है और यह उसका काम है। इसलिए शिविका मना नहीं कर पाई और वह करण का इंतज़ार कर रही थी।
दूसरी तरफ, करण अपने माता-पिता की लड़ाई से परेशान होकर छत पर अकेला बैठा हुआ था। तभी उसका मोबाइल फ़ोन बज उठा। उसे तुरंत ही ऑफिस आने और वहाँ से वीडियो कॉन्फ्रेंस से जुड़े दस्तावेज़ लेकर सीधा शिविका के घर जाने को कहा गया।
कॉल पर बात खत्म करने के बाद करण ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, "चलो ठीक है, अच्छा हुआ काम के लिए ही फ़ोन आ गया। क्योंकि घर पर यह रोज-रोज की महाभारत देखने से तो अच्छा ही है संडे को भी काम कर लूँ, कम से कम बॉस तो इम्प्रेस हो जाएगी।"
करण ने शिविका के बारे में यह सोचा, लेकिन फिर उसने बॉस के साथ अपनी होने वाली पत्नी के रूप में उसकी कल्पना करते हुए सोचा, "अरे नहीं... नहीं उसे इम्प्रेस नहीं करना है, इम्प्रेस हो गई तो फिर शादी भी करना पड़ेगा। क्या बोलता है तू करण? वह तेरी सिर्फ़ बॉस तो नहीं है आखिर..."
इतना बोलते हुए करण उठकर खड़ा हुआ और जल्दी से ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। उसने ऑफिस जाने के लिए अपनी एक फॉर्मल लाइट ब्लू शर्ट निकाली और जो जींस पहने हुए था उसी पर चेंज करके सीधा घर से निकल गया। उसे एक घंटे में ऑफिस से होकर शिविका के घर पहुँचना था।
शिविका का स्टडी रूम, या यूँ कहें कि उसने घर में भी अपना छोटा सा ऑफिस बना रखा था। जब वह ऑफिस नहीं जा पाती तो अपना सारा काम यहीं से आसानी से कर लेती थी।
फ़िलहाल शिविका ने अपनी तरफ़ से सारी तैयारियाँ कर ली थीं और वह अब बाकी के दस्तावेज़ आने का इंतज़ार कर रही थी। लेकिन उसके साथ ही करण भी वहाँ आएगा, इस बात को सोचकर वह थोड़ी नर्वस और अजीब सा महसूस कर रही थी। पता नहीं क्यों, वह करण का सामना नहीं करना चाहती थी, पिछली शाम को ऑफिस में उन दोनों के बीच जो कुछ भी बातें हुई थीं, उसे सोचते हुए...
"अरे नहीं शिविका! तू इतना क्यों सोच रही है? अभी वह तेरा निजी सहायक बनकर आ रहा है, तेरा होने वाला पति बनकर नहीं। इसलिए इस तरह घबराना बंद कर और अपना बॉस मोड ऑन कर ले।" शिविका ने अपने आप को हिम्मत देते हुए समझाया। तभी उसे दरवाज़ा खोलने की आवाज़ सुनाई दी और उसने पीछे मुड़कर देखा तो दरवाज़े पर करण खड़ा हुआ था।
वह हमेशा की तरह काफ़ी हैंडसम लग रहा था। ब्लैक जींस के साथ फॉर्मल ब्लू शर्ट उस पर बहुत जँच रही थी। शिविका ने उसे इस तरह सामने देखा तो कुछ देर के लिए भूल गई कि वह काम से यहाँ आया है और एकटक उसकी तरफ़ ही देखने लगी।
तभी करण ने कुछ कदम आगे बढ़ाते हुए अपना हाथ उसके चेहरे के सामने हवा में लहराते हुए कहा, "हेलो मैम! आर यू ओके?"
"करण तुम... हाँ, अच्छा है, समय पर आ गए। तुम जल्दी से फाइल दो मुझे!" उसे सामने देखकर शिविका एकदम सामान्य और व्यावसायिक व्यवहार करते हुए बोली।
करण ने भी वैसा ही व्यवहार किया और फाइल उसे दे दी और चुपचाप उसके पीछे खड़ा हो गया। कुछ देर बाद वीडियो कॉन्फ्रेंस शुरू हुई और शिविका ने सब कुछ बहुत ही व्यावसायिक रूप से संभाला।
शिविका को क्लाइंट से बात करते देख करण उसकी संचार कौशल का प्रशंसक बन गया और उसने मन ही मन शिविका के काम के प्रति समर्पण की तारीफ़ की।
क्रमशः
शिविका की कड़ी मेहनत और काम के प्रति समर्पण देखकर करण प्रभावित हुआ था। वह सामने बैठकर मन ही मन उसकी तारीफ करता हुआ उसे देख रहा था।
वह यहाँ शिविका को प्रभावित करने आया था, किन्तु वह स्वयं ही उससे प्रभावित हो चुका था। शिविका का काम करने का तरीका करण को पहले दिन से ही पसंद था, और शायद इसीलिए उसे उसके साथ काम करने में कोई परेशानी नहीं थी, भले ही वह उसकी मंगेतर हो या होने वाली पत्नी।
वीडियो कॉन्फ़्रेंस ख़त्म होते ही शिविका ने पीछे मुड़कर देखा तो करण वहीं खड़ा था, उसकी तरफ देख रहा था। उसे खड़ा देखकर शिविका ने कहा, "तुम... तुम अब तक यहाँ ही खड़े हो? घर वापस नहीं जाना क्या तुम्हें?"
शिविका का सवाल सुनकर करण ने धीमी आवाज़ में बड़बड़ाते हुए कहा, "हाँ, घर तो बिल्कुल भी नहीं जाना इस वक़्त..."
शिविका का ध्यान पूरी तरह से उसकी ओर नहीं था, इसलिए वह करण की बात नहीं सुन पाई। उसने फिर पूछा, "क्या हुआ... कुछ कहा क्या तुमने?"
"नहीं... कुछ नहीं। मैं तो बस इसलिए रुका हुआ हूँ, मुझे लगा आपको शायद किसी और चीज की ज़रूरत ना पड़े, मैम!" करण ने एकदम प्रोफ़ेशनली जवाब दिया और मन ही मन राहत की साँस ली कि शिविका ने उसकी धीमी आवाज़ में कही बात नहीं सुनी।
"नो नो, आई डोंट नीड एनीथिंग एल्स... यू कैन..." शिविका अपनी बात पूरी कर पाती, तभी हाथ में छोटा सा टेडी बियर पकड़े हुए काव्या कमरे में आती हुई बोली, "मम्मा... आप अपना प्रॉमिस भूल गई ना... आपको पता है काव्या कितनी देर से आपका वेट कर रही है और आप अब तक मेरे साथ खेलने के लिए नहीं आई!"
छोटी सी काव्या ने एकदम नाराज़गी से शिकायत की। शिविका जल्दी से आगे आकर उसे गले लगाती हुई बोली, "नहीं बेटा, मम्मा अपना प्रॉमिस नहीं भूली। मम्मा बस एक ज़रूरी काम ख़त्म कर रही थी और वह काम हो गया। मैं तुम्हारे पास आने ही वाली थी, लेकिन देखो, उससे पहले मेरी बेबी ही आ गई मेरे पास। अब हम साथ में खेलेंगे।"
"रियली मम्मा?" काव्या ने खुश होते हुए पूछा। शिविका ने उसके गाल पर किस करते हुए कहा, "यस बेबी!"
करण वहाँ खड़ा, एकदम हैरान होकर उन दोनों की तरफ़ देख रहा था। उस छोटी लड़की ने अभी-अभी उसके सामने शिविका को मम्मा बुलाया था और शिविका ने उसे मना नहीं किया था। वह उसे अपनी बेटी की तरह ही प्यार और दुलार कर रही थी।
"शिविका! मम्मा... यह तुम्हें मम्मा क्यों बोल रही है? क्या सच में..." करण ने शिविका की तरफ़ देखते हुए हैरानी से सवाल किया। यह सवाल इस वक़्त वह उसका असिस्टेंट नहीं, बल्कि उसका मंगेतर बनकर कर रहा था। यह सब उसके लिए एक झटके की तरह था, क्योंकि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
"अपनी मम्मा को मम्मा ही तो बोलूँगी। मैं क्या, स्टुपिड से सवाल कर रहे हो आप? और आप कौन हो, मम्मा के फ़्रेंड?" शिविका कुछ बोल पाती, उससे पहले काव्या ने ही जवाब दे दिया। शिविका ने उसे चुप रहने का इशारा किया और साइड में जाकर बैठने को कहा। फिर वह आगे आकर करण का हाथ थामते हुए उसे दरवाज़े तक ले आई और हैरानी से उसकी तरफ़ देखती हुई बोली, "तुम इतने ज़्यादा शॉक्ड क्यों लग रहे हो? डोंट टेल मी! डैड ने तुम्हें इस बारे में कुछ भी नहीं बताया!"
शिविका ने करण की तरफ़ देखते हुए यह सवाल किया। उसे यह पता ही नहीं था कि शिविका की चार साल की बेटी भी है। देखने में शिविका इतनी उम्र की नहीं लगती थी और वह कहीं से भी एक बच्चे की माँ नहीं लगती थी। इसलिए करण ने बेबसी से सिर हिलाया और कहा, "हाँ, नहीं बताया। और मेरी तो बात ही कितनी हुई है तुम्हारे पापा से? और वैसे, जितनी भी हुई थी, उन्हें यह बता देना चाहिए था और तुम ही यह बता सकती थीं।"
काव्या अपने हाथ में पकड़े छोटे टेडी बियर से खेलने में व्यस्त थी। करण उसकी तरफ़ देखता हुआ यह सब बोल रहा था।
"सीरियसली! पापा पता नहीं क्या करना चाहते हैं। इतनी बड़ी बात उन्होंने तुमसे छुपाई। और हाँ, काव्या मेरी बेटी है। क्या तुम्हें इस बात से कोई प्रॉब्लम है? वैसे हो भी तो क्या? कौन सा हमें सच में शादी करनी है।" शिविका ने लापरवाही से अपने कंधे उचकाते हुए कहा।
"क्या सच में तुम्हारी बेटी है... हाँ, दिखने में भी तुम्हारे जैसी ही लग रही है। लेकिन क्या तुम्हारी पहली शादी... मेरा मतलब है, तुम्हारी बेटी और इसके पिता..." करण यह सवाल पूछने में थोड़ा झिझक रहा था। उसकी बात पूरी होने से पहले ही शिविका बोली, "नहीं... मेरी कोई पहली शादी नहीं हुई है और इसकी माँ और डैड दोनों मैं ही हूँ। तुम्हें कोई दिक्क़त है इस बात से?"
"ओके। तो तुम मेरे साथ कुछ भी शेयर नहीं करना चाहती, आई कैन अंडरस्टैंड! हम इतने क्लोज़ नहीं हैं, बट मुझे सच में कोई प्रॉब्लम नहीं है। और इतनी छोटी प्यारी बच्ची से भला किसको प्रॉब्लम हो सकती है।" करण ने बहुत ही प्यार भरी नज़रों से थोड़ी दूर पर बैठी हुई काव्या की तरफ़ देखा, जो सोफ़े से उठी और चलकर उन दोनों की तरफ़ आ रही थी।
उसे अपनी तरफ़ आते देख शिविका और करण दोनों चुप हो गए। शिविका करण की तरफ़ देखते हुए यह समझने की कोशिश कर रही थी कि करण को सच में इस बात से कोई प्रॉब्लम नहीं है या वह सिर्फ़ अच्छा बनने का नाटक कर रहा है। तुम्हारी होने वाली बीवी की पहले से ही एक बेटी है और अभी-अभी मैंने उसे बताया कि मेरी कोई पहली शादी भी नहीं हुई है, फिर भी वह इतना कूल बनने की एक्टिंग कैसे कर सकता है? क्या सच में उसे इस बात से कोई प्रॉब्लम नहीं है या फिर सिर्फ़ दिखावा कर रहा है?
शिविका यह सब समझने की कोशिश ही कर रही थी कि तभी काव्या आकर उन दोनों के बीच में खड़ी हो गई। वह करण के घुटनों तक ही आ रही थी, इसलिए उसके पैरों पर ही टच करती हुई बोली, "अंकल! आप क्यों मेरी मम्मा को परेशान कर रहे हैं? और वैसे भी, आपकी वजह से मम्मा मेरे साथ खेल नहीं पा रही है। इसलिए अब आपको भी मेरे साथ खेलना होगा। आपका काव्या के साथ खेलेंगे?"
"काव्या! क्या बोल रही हो तुम? और मम्मा ने तुम्हें अजनबियों से बात करने के लिए मना किया है ना? और मम्मा बस अभी आ रही है तुम..." शिविका ने उसे डाँटते हुए कहा। काव्या का मुँह बन गया। उसे देखकर करण जमीन पर घुटनों के बल उसके सामने बैठता हुआ बोला, "बेबी, मैं तुम्हारी मम्मी को परेशान नहीं कर रहा हूँ। हम बस कुछ बात कर रहे थे। और मैं ना अजनबी नहीं हूँ, मेरा नाम करण है। आप मुझे अपना दोस्त समझिए और मैं ज़रूर आपके साथ खेलूँगा।"
करण ने बहुत ही प्यार और नरमी से मुस्कुराते हुए यह बात कही। उसकी बात सुनकर काव्या खुश हो गई और खुशी से चलती हुई बोली, "तो फिर मैं आपको करण बोलूँ? और आप सच में मेरे साथ अभी खेलोगे ना? मम्मा की तरह झूठा प्रॉमिस तो नहीं करोगे ना?"
"कोई झूठा प्रॉमिस नहीं, चलो हम अभी खेलते हैं।" इतना बोलते हुए करण ने काव्या को अपनी गोद में उठा लिया और काव्या खिलखिला कर हँसने लगी।
काव्या को उसके साथ इतना सहज देखकर शिविका हैरानी से उन दोनों की तरफ़ देख रही थी। उन दोनों को देखकर ऐसा ही नहीं लग रहा था जैसे वे दोनों आज पहली बार मिले हों।
काव्या अनजान लोगों से जल्दी बात नहीं करती और ना ही उनके साथ जल्दी घुलती-मिलती है, लेकिन पता नहीं क्यों आज उसने खुद ही करण के साथ बात शुरू की और इतनी आसानी से उसके साथ सहज हो गई।
क्रमशः
करण को इस बात से कोई समस्या नहीं थी कि शिविका की सगाई हो गई है और बाद में उसे पता चला कि शिविका की एक बेटी भी है। उसे इस बात से समस्या थी कि शिविका ने उसे पहले क्यों नहीं बताया था?
पर फिर भी, पता नहीं क्यों, वह छोटी बच्ची से बहुत जुड़ा हुआ महसूस कर रहा था और उसके साथ प्यार से खेल रहा था। शिविका को दोनों को इस तरह देखकर अच्छा लग रहा था, पर फिर भी वह काव्या के पास गई और उसे अपनी ओर खींचते हुए बोली, "काव्या! अपने कमरे में जाइए। मम्मा अभी आपके कमरे में आकर आपके साथ खेलेगी। अभी हम थोड़े बिजी हैं।"
"नहीं... काव्या कहीं नहीं जाएगी। और काव्या को उसके नए दोस्त के साथ खेलना है। और आप बोलती हो, फिर भी मेरे साथ नहीं खेलती।"—काव्या ने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर, मुँह फुलाते हुए कहा।
ऐसा करते हुए नन्ही सी काव्या बहुत क्यूट और अडोरेबल लग रही थी।
"नहीं काव्या! इस तरह जिद नहीं करते। आप जब तक अपने खिलौनों के साथ खेलो या फिर ज्योति दीदी के साथ..."—शिविका इस बार थोड़ी सख्ती से काव्या को समझाते हुए बोली। और उसे इस तरह काव्या को डाँटते देखकर करण ने बीच में बोला, "रहने दो ना, छोटी बच्ची है वह। उसे क्यों डाँट रही हो? और अगर तुम्हें समस्या है तो मैं काव्या के साथ उसके कमरे में चला जाता हूँ। ठीक है बेटा, चलो हम चलते हैं। तुम्हारी मम्मा को परेशानी हो रही है।"
"अरे तुम क्यों बीच में बोल रहे हो? वह मेरी बेटी है या तुम्हारी?"—शिविका ने उसे बीच में टोकते हुए कहा और काव्या का हाथ करण के हाथ से छुड़ा लिया और काव्या को अपनी ओर खड़ा कर लिया।
"हाँ तो मैं कब कह रहा हूँ कि मेरी बेटी है? लेकिन तुम तो इस तरह बर्ताव कर रही हो जैसे मैं उसे तुमसे छीन लूँगा।"—करण ने मुँह बनाते हुए कहा और वापस से काव्या का हाथ दूसरी ओर से पकड़ लिया।
उन दोनों को इस तरह लड़ते देख काव्या अपना छोटा सा हाथ अपने मुँह पर रखते हुए हँस रही थी।
करण की यह बात सुनकर शिविका ने गुस्से से उसकी ओर देखा। लेकिन वह उसका जवाब दे पाती, इससे पहले ही उसकी नज़र काव्या पर पड़ी जो उन दोनों को इस तरह लड़ते हुए देखकर हँस रही थी।
"अब तुम्हें किस बात पर इतनी हँसी आ रही है, काव्या?"—शिविका ने काव्या की तरह दूसरे को घूरते हुए पूछा।
"आप दोनों पति-पत्नी की तरह लग रहे हो। मैंने एक ड्रामा में देखा था, उसमें भी पति-पत्नी इसी तरह क्यूट फाइट करते हैं।"—काव्या अपनी हँसी रोकते हुए शिविका के सवाल का जवाब दिया।
काव्या की यह बात सुनकर दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और उनके बीच की स्थिति बहुत अजीब हो गई। दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलें।
"चुप रह काव्या! कहाँ से सीखती हो तुम यह सब? और क्या कहा तुमने? ड्रामा... तुम टीवी पर कौन सा ड्रामा देखती हो?"—काव्या को डाँटते हुए शिविका ने कहा।
"अरे मैं नहीं देखती मम्मा... वह तो ज्योति आंटी देखती हैं और मैं उनके साथ ही बैठी थी तो बस।"—काव्या ने एकदम मासूमियत से कहा।
"इस ज्योति को समझाना पड़ेगा। क्या देखती है छोटी बच्ची के सामने? क्या असर पड़ेगा उस पर? ज्योति... ज्योति कहाँ पर हो तुम?"—इतना बोलते हुए शिविका काव्या को करण के साथ वहीं छोड़कर कमरे से बाहर निकल गई ज्योति को ढूंढने के लिए।
शिविका के जाते ही काव्या करण के पास आकर खड़ी हुई और उसके पैर पर हल्के से टैप करते हुए उसका ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बोली, "करण तुम ना मेरी मम्मा की बात का बुरा मत मानना। वो इतने टाइम से सिंगल है ना, बस इसीलिए ऐसा बिहेव करती है। लेकिन नाना जी उनके लिए पति ढूँढ रहे हैं। उन्होंने मुझसे वादा किया है, वह मुझे मेरे पापा से मिलवाएँगे।"
इतनी छोटी सी काव्या के मुँह से ऐसी बातें सुनकर करण को बहुत हैरानी हुई। वह नीचे झुककर उसके बालों पर हाथ फेरते हुए बोला, "तुम्हारे पापा... तुम उन्हें मिस करती हो?"
"नहीं, क्योंकि मैंने तो उन्हें कभी देखा ही नहीं। लेकिन नाना जी ने कहा है बहुत जल्द मेरे पापा आएंगे मम्मा के साथ। वैसे करण, कहीं तुम ही तो मेरे पापा नहीं हो? क्योंकि मैंने तुम्हें ही मम्मा के साथ देखा।"—काव्या ने बहुत ही मासूमियत से सवाल किए और करण को समझ नहीं आया कि वह एकदम से उसकी इस बात का क्या जवाब दे।
क्योंकि उसके नाना जी ने तो सच में शिविका के लिए उसे ही पसंद किया है, लेकिन वह यह बात छोटी सी काव्या को तो नहीं समझा सकता। इसलिए मुस्कुराकर उसे खींचते हुए बोला, "नहीं बेबी, मैं तो आपका दोस्त हूँ ना। अभी तो हमारी दोस्ती हुई है।"
"यस यस! यू आर माय फ्रेंड, राइट!"—काव्या उसकी बात पर खुश होती हुई बोली। और तभी शिविका वहाँ पर वापस आ गई और उसने काव्या से कहा, "काव्या! तुम अब तक यहाँ पर रुकी हो? मैंने तुम्हें इतना समझाया फिर भी... अजनबी से बात नहीं करते ना?"
"लेकिन मम्मा, करण अजनबी नहीं है। वह तो मेरा दोस्त है ना अब!"—काव्या ने उसकी बात का जवाब दिया। लेकिन शिविका ने उसकी एक नहीं सुनी और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लेकर कमरे से बाहर जाने लगी। लेकिन फिर दरवाजे पर रुककर शिविका ने पीछे मुड़कर करण की ओर देखा और कहा, "करण! तुम वापस जा सकते हो। मुझे अभी कोई और काम नहीं है।"
"ओके!"—करण ने सिर्फ इतना कहा। और उसके बाद शिविका काव्या को लेकर उसके कमरे की ओर चली गई।
उसके बाद करण अपना सामान समेटकर स्टडी रूम से बाहर निकला और बहुत ही भारी कदमों से वह सीढ़ियाँ उतरने लगा।
शिविका और काव्या के रिश्ते को लेकर उसके मन में बहुत सारे सवाल चल रहे थे और उसे अब तक एक भी सवाल का जवाब नहीं मिला था।
शिविका के पिता नीचे हाल में ही थे और उन्होंने करण को सीढ़ियों से नीचे उतरते देखा। करण सीढ़ियाँ उतर ही रहा था तभी उसे पीछे से धक्का लगा जिसकी वजह से करण लड़खड़ा गया। उसने साइड में लगी हुई रेलिंग पकड़ ली और गिरने से बच गया।
"आई एम सॉरी ब्रो! एक्चुअली आई वाज़ इन अ हरी!"—करण ने पीछे मुड़कर देखा कि उसे धक्का किसने दिया, लेकिन आवाज उसके सामने की तरफ से आई। उसने देखा कि वही लड़का है, जिसे सगाई वाले दिन उसने नौकर की मदद से उठाकर दरवाजे से हाल के सोफे पर लिटाया था।
वही लड़का जल्दबाजी में उतरता हुआ नीचे गया जिसकी वजह से करण को हल्का सा धक्का लगा।
लड़का आज भी पिछली बार की तरह लड़खड़ा कर ही चल रहा था। उसकी आवाज भी स्थिर नहीं थी। लेकिन वह इतनी जल्दबाजी में था कि रुककर उसने करण की कोई बात भी नहीं सुनी और सीधा दरवाजे से बाहर निकल गया।
करण ने उसे इस तरह तेज़ कदमों से घर से बाहर निकलते हुए देखा और अपने मन में सोचा, "इस घर में सब इतने अजीब क्यों हैं? ऐसा लगता है हर एक इंसान के पीछे हज़ारों राज़ छुपे हुए हैं। एक वह शिविका और यह दूसरा उसका भाई..."
शिविका के पिता ने यह नोटिस किया कि करण के मन में बहुत सारे सवाल चल रहे हैं और साथ ही उन्हें यह भी पता है कि करण को काव्या के बारे में पता चल गया है। इसलिए उन्होंने अपने पास बुलाते हुए कहा, "करण बेटा, इधर आओ। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
उनकी बात सुनकर करण अपनी सोच और ख्यालों से बाहर आया और सिर हिलाते हुए उनकी ओर बढ़ गया।
क्रमशः