वैदेही रघुवंशी, एक ईमानदार न्यूज रिपोर्टर, जिसने हमेशा सच का साथ दिया है। क्या होगा जब वैदेही फंस जाएगी, राजनीति के गंदे गेम में.. जानने के लिए पढ़िए, "Rajneeti -A dirty game"
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Note– ये कहानी पूर्णतया काल्पनिक है। इसे मात्र मनोरंजन के उद्देश्य से लिखा गया है। कहानी में प्रयुक्त संवाद, किरदार और उनके नाम और स्थान के नाम पूर्णतया काल्पनिक है। कहानी को मात्र मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़ा जाए। धन्यवाद __________ “जैसा कि सबको पता है एक हफ्ते बाद महाराष्ट्र के विधानसभा के चुनावो का नतीजा आने वाला है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो हर बार की तरह महाराष्ट्र विकास पार्टी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। अगर पार्टी की जीत होती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कौन बनते हैं। इस बार मुख्यमंत्री पद के लिए दो प्रबल दावेदार नजर आ रहे हैं, जिनमें बाहुबली नेता राघवेंद्र प्रताप सिंह और यशवर्धन सिंह का नाम निकल कर रहा है। दोनो ही नेता युवा है, यशवर्धन की उम्र मात्र 28 साल है, तो वही राघवेंद्र उर्फ भैया जी 33 साल के है। यशवर्धन सिंह युवाओं में काफी प्रचलित है, तो वहीं राघवेंद्र प्रताप सिंह अपने एरिया के दबंग बाहुबली है। इनका सियासत में अच्छा सिक्का चलता है। राघवेंद्र प्रताप सिंह की छवि कुछ खास अच्छी नहीं है। खबर तो यहां तक भी है कि इनके खिलाफ काफी सारे क्रिमिनल केसेस भी दर्ज है। आगे खबरों के लिए बने रहिए, पल पल न्यूज़ के साथ..." महाराष्ट्र के एक लोकल न्यूज़ चैनल एंकर न्यूज़ पढ़ रहा था। “तड़ाक.....“ कांच के गिलास के टूटने की आवाज आई जो कि राघवेंद्र प्रताप सिंह ने अपने हाथ में पकड़ा था। गिलास टूटने की वजह से उसके अंदर पड़ा जूस नीचे गिर गया और राघवेंद्र के हाथ में एक दो टुकड़े चुभ जाने की वजह से खून आने लगा। राघवेंद्र प्रताप सिंह अपने कुछ आदमियों के साथ अपने घर में लगी एक बड़ी सी एलईडी स्क्रीन में खबर को देखकर अपने मूछों को ताव दे रहे थे। उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो इस खबर से खासा खुश नहीं थे। ____________ रात के 2:30 बज रहे थे। शहर से थोड़ी दूर किसी सुनसान इलाके में कुछ लोग लगातार एक व्यक्ति को डंडों से मारे जा रहे थे। वो चिल्लाते हुए दया की भीख मांग रहा था। “प्लीज हमें छोड़ दीजिए..... इसमें हमारा क्या कसूर है हम तो वही दिखाएंगे ना जो हमें दिखाने को बोला जाएगा..... हम वादा करते हैं कि आज से भैया जी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलेंगे।” नीचे गिरा हुआ आदमी वही रिपोर्टर था, जो न्यूज़ चैनल में राघवेंद्र प्रताप के चुनाव में खड़े होने की खबर पढ़ रहा था। “अरे बोलोगे तो तब ना..... जब तुम बोलने के लायक रहोगे..... तुमरी हिम्मत कैसे हुई भैया जी के खिलाफ जबान खोलने की..... हम तो कहते हैं जबान ही काट देते हैं ई ससुरा की..... फिर आगे से बोलने के लायक भी नहीं रहेगा।” वहां मौजूद एक गुंडे ने चिल्लाकर बोला। “आप एक बार आदेश दीजिए भैया जी..... फिर देखिए हम ई का क्या हाल करते हैं ई रिपोर्टर का... आप कहो तो लाइव ब्रेकिंग न्यूज़ चला देते हैं इसकी कुटाई का.....।” उन गुंडों में से एक आदमी चिल्लाया। “हमारी जान बख्श दो। हम आगे से नहीं करेंगे। हमारी मां के हमारे अलावा और कोई नहीं है..... हमारे लिए तो उनके लिए हमारी जान बख्श दो।“ रिपोर्टर रोते हुए अपनी जान बख्शने की गुहार लगा रहा था। उसके रोने धोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा था और वो उसे लगातार पीटा जा रहे थे। वहीं से कुछ ही दूरी पर एक आदमी बड़ी सी कुर्सी लगा कर बैठा था और अपनी मूछों को ताव दे रहा था। वो राघवेंद्र प्रताप सिंह था। अचानक वो उठा और अपने पास पड़ी कुल्हाड़ी को उठाकर उसे आदमी के पास पहुंचा। “देखो बबुआ..... हम इतनी आसानी से तुम्हें जाने नहीं दे सकते..... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे खिलाफ बोलने की..... क्या कहा था तुमने.......“ राघवेंद्र प्रताप कुछ सोचते हुए अंदाज में बोला, “हमारे खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं.....हमारी छवि अच्छी नहीं है..... एक बार पूछ तो लेते कि क्या बोलना है क्या नहीं.....” राघवेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी भारी आवाज में कहा। “भैया जी हम कल सबके सामने माफी मांगने को तैयार हैं। हम आपसे वादा करते हैं कि आपकी छवि को भी सुधार....." रिपोर्टर ने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि राघवेंद्र प्रताप सिंह उसकी बात को बीच में काट कर बोले, “मतलब क्या है बे तेरे कहने का... हमारी छवि खराब है, जो तू सुधार देगा। इस बात पर दो डंडे और लगाओ ई को....." राघवेंद्र प्रताप के कहने पर वहां मौजूद गुंडों ने फिर से उसकी धुलाई करनी शुरू कर दी। कुछ देर बाद राघवेंद्र सिंह उन्हें रुकने का इशारा किया और पास पड़ी कुल्हाड़ी को उठाकर उसके सर के बीचो बीच का जोर से वार किया। सड़क पर चारों तरफ खून बिखरा था और रिपोर्टर के सिर का ऊपरी हिस्सा दो हिस्सों में बंटा हुआ था। उसे देखकर कुछ लोगों ने अपने मुंह किनारे कर लिए, तो उनमें से कुछ दांत निकाल कर हंस रहे थे। “कहता था हमरे खिलाफ मुकदमा दर्ज है.... ई की भी रपट लिखाय दियो.." बोलते हुए राघवेंद्र प्रताप सिंह भी उसकी तरफ देख कर हंसा और फिर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया। __________ “हेलो सर.... वैदेही स्पीकिंग... मैं यहां बिहार पहुंच चुकी हूं। कल सुबह राघवेंद्र प्रताप सिंह का लाइव इंटरव्यू सबके सामने होगा। हमारा चैनल सबसे पहले उनका इंटरव्यू दिखाएगा..!” एक लड़की ऑटो रिक्शा में बैठे हुए किसी से फोन पर बात कर रही थी। तभी एक झटके के साथ ऑटो रुका और ड्राइवर ने कहा, “मैडम लगता है कोई जानवर गिरा है रास्ते में.....” वैदेही ने बाहर झांककर देखा तो उसे कुछ साफ दिखाई नहीं दिया। वो ऑटो से बाहर निकली और बाहर खड़ी चीज को देखने के लिए ऑटो से निकलकर उस और बढ़ने लगी। उसने बाहर जाकर देखा तो आगे एक आदमी गिरा था और उसके सिर के दो टुकड़े हुए थे। उसे इस तरह देखकर वैदेही को उल्टी आने लगी। “बेचारे को कितनी बेरहमी से मारा है। मरने से पहले भी कितना तड़पा होगा.....” वैदेही ने खुद को काबू किया और पुलिस बुलाने का सोचा, तभी उसकी नजर जमीन पर गिरे एक आईडी कार्ड पर गई। उसने उसे उठाया और उस पर लिखे हुए नाम को पढ़ते हुए बोला, “शिवम ठाकुर..... ओह तो ये भी न्यूज़ रिपोर्टर था। जो भी हो, इसके साथ अच्छा नहीं हुआ।” लड़की ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और फिर पुलिस को बुलाने के लिए कॉल किया। ★★★★
रात के 1:00 बज रहे थे। भयंकर बारिश हो रही थी। बारिश के साथ बिजली कड़कने की आवाज आ रही थी। बारिश होने की वजह से ज्यादातर लोग अपने घरों में घुस गए थे और बाहर ज्यादा लोग मौजूद नहीं थे। इतनी बारिश के बावजूद मुंबई से थोड़ी दूर एक अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग की छत पर एक लड़की नीचे गिरी हुई थी। उसने काले रंग का ऑफिस सूट पहन रखा था। लड़की बारिश में पूरी तरह भीग चुकी थी। उसके माथे और होठों के पास से खून निकल रहा था। इन सबके बावजूद उसकी गहरी स्लेटी आंखों में डर नाम की कोई चीज नहीं दिखाई दे रही थी। उसके सामने 3 आदमी खड़े थे। उनका हुलिया देखकर साफ नजर आ रहा था कि वो अच्छे आदमी नहीं थे। उनमें से एक आदमी में हाथ डालकर लड़की के गले में हाथ डालकर उसका आई कार्ड झपटा और उसमें उसका नाम पढ़ते हुए बोला, “वैदेही रघुवंशी..... तुमने जो भी रिकॉर्ड किया है..... वो चुपचाप हमारे हवाले कर दो..... वरना सोच भी नहीं पाओगी, हम तुम्हारी क्या हालत करेंगे।” उनकी उम्मीद के विपरीत डरने के बजाय वैदेही उनकी बात सुनकर हंसने लगी। “देखा.....कैसे बेशर्मी से हंस रही है यह.....” उनमें से दूसरा आदमी पैर पटकते हुए बोला, “पिछले 2 घंटों से इससे उगलवाने की कोशिश कर रहे हैं। भागते हुए कहां से कहां आ गए... उसके बावजूद ये कुछ बोलने को तैयार ही नहीं है। पता नहीं कैमरा कहां छुपा रखा है.....जो मिल ही नहीं रहा।” “मैं तो कहता हूं, खत्म कर देते हैं इसे.." तीसरे गुंडे ने ये सोच कर उसे डराने की कोशिश की, कि जान जाने के डर से वैदेही सच उगल दे। उनकी बात सुनकर वैदेही ने अपनी आंखें घुमाई और फिर सख्ती से जवाब देते हुए कहा, “अगर मारने के आर्डर मिले होते तो 2 घंटे मुझसे ये पूछने में वेस्ट नहीं करते कि कैमरा कहां है..... तुम लोग बेवकूफ हो, मैं नहीं.....” वैदेही की बात ने उन तीनों को चिढ़ा दिया। वो पिछले 2 घंटे से उस से कैमरे के बारे में पूछ रहे थे, जिसमें उसने उन लोगो के बॉस की इंपॉर्टेंट मीटिंग को रिकॉर्ड कर लिया था। लेकिन इतनी सख्ती करने के बावजूद वो कोई जवाब नहीं दे रही थी। “ऐसा भी क्या है उसमें, जो उसके लिए सर जी हमें इसके पीछे भेज दिया।“ उनमें से एक ने पूछा। “तुम जानते हो ना, हमारे बॉस मिस्टर हरिदास सिप्पी शहर के कितने बड़े बिल्डर हैं। उन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में मौजूद किसी जगह पर कब्जा कर दिया था और उसके चक्कर में वहां पर एक बुड्ढा बुड्ढी के जोड़े को मार दिया था। पता नहीं... इस रिपोर्टर को में कैसे उनकी बातों को रिकॉर्ड कर लिया गया। बस इसीलिए बॉस ने हमें इसके पीछे भेजा था।“ दूसरे ने उसकी बात का जवाब दिया। “मार नहीं सकते लेकिन और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।” उनमें से एक गुंडे ने वैदेही पर नजर डालकर बोला। वो उसे बुरी तरह घूरे जा रहा था। उनके साथ मौजूद 2 गुंडों ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन वो भी उसे गलत नजर से देख रहे थे। उनमें से एक गुंडा उठा और वैदेही के पास आने लगा। तभी उसने अपने पैर से उसके पेट में जोर से लात मारी। “पिछले 2 घंटों से तुम लोग मुझे नहीं मैं तुम लोगों को भगा रही हूं।" वैदेही ने अपने होंठ के पास लगा खून पौंछा। “सच बताऊं तो मैं तुम्हारे बॉस की मीटिंग में ज्यादा कुछ रिकॉर्ड नहीं कर पाई थी लेकिन अभी अभी तुम दोनों ने अपने मुंह से जो कन्फेशन किया है ना..... उसके बाद मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे बॉस को अरेस्ट होने से कोई बचा पाएगा।" “तेरी तो.....” उनमें से एक गुस्से में चिल्लाया, “अगर बॉस को पता चला तो इसे बाद में मारेंगे, पहले हमारी जान ले लेंगे।" उनकी बात सुनकर वैदेही मुस्कुराई और वहां पड़ा एक लोहे सरिया उठाकर उनमें से एक के सिर पर वार किया। अगले ही पल वैदेही ने बिजली सी फुर्ती दिखाई और उसी सरिए से दूसरे के पीछे दो तीन वार किये। तीसरा बंदा अपने साथियों को संभालने लगा कि तभी वैदेही ने उसके पेट पर किक मारी। वो तीनों नीचे गिर गए और उन्हें संभलने का मौका मिल पाता उससे पहले वैदेही वहां से भागने लगी। “अरे पकड़ उसको.....” उनमें से एक गुंडा चिल्लाया। जैसे तैसे करके वो तीनों खड़े हुए और उस के पीछे भागने लगे। तब तक वैदेही नीचे के फ्लोर तक पहुंच चुकी थी। उनमें से एक गुंडे ने अपनी जान की बाजी लगाते हुए ऊपर से ही कूदने की कोशिश की लेकिन बिल्डिंग अंडर कंस्ट्रक्शन होने की वजह से वहां लगा सरिया उसके पेट के आर पार हो गया। एक जोर से चिल्लाने की आवाज आई और अपने साथी का बुरा हाल देखकर दोनों सहम चुके थे। बचे हुए बाकी दो गुंडे उस तक पहुंच पाते, उससे पहले वैदेही उनकी नजरों से ओझल हो चुकी थी। हालांकि उसके पास वहां से भागने के लिए कोई साधन नहीं था लेकिन कुछ दूर जाकर वो अपने लिए सुरक्षित जगह देखकर छुप गई थी। वैदेही उनसे छुपते छुपाते थोड़ी आगे निकली, तभी एक बाइक उसके पास आकर रुकी। उसने अपना हेलमेट निकाला। बाइक पर बैठा लड़का लगभग 21 साल का था। वो अपने बालों में हाथ डालकर वैदेही को देख कर मुस्कुरा रहा था। वैदेही जल्दी से उसके पास आई और कहा, “देव ये वक्त स्टाइल झाड़ने का नहीं है। जल्दी चलो यहां से..... वरना मेरे साथ साथ वो तुम्हें भी मार देंगे।” देव ने जल्दी से बाइक के हैंडल में टंगा हेलमेट वैदेही को पकड़ाया और बाइक स्टार्ट की। कुछ ही देर में वो उन गुंडों की पहुंच से दूर एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच थे। _________ अगले दिन वैदेही की रिकॉर्ड की गई न्यूज़ लाइव आ रही थी। सब जगह उसके काम की तारीफ की जा रही थी। उसके जुटाए सबूतों की वजह से बिल्डर को गिरफ्तार कर लिया गया था। लंच टाइम होने पर सब इंप्लाइज कैंटीन की तरफ रुख करने लगे। तभी चैनल हेड मिस्टर प्रतीक शर्मा वहां आए। “गाइज अटेंशन प्लीज.....” उनके कहते ही सब लोग अपना अपना काम छोड़कर उनके आसपास इकट्ठा हो गए। सब इक्कठे होते हुए मिस्टर शर्मा ने अपने हाथों पर किए और ताली बजा कर बोला, “दिस वन फोर यू वैदेही..... ए बिग राउंड ऑफ़ अपलोज फॉर वैदेही.....” उनके कहते ही सब वैदेही के लिए तालियां बजाने लगे। वैदेही मुस्कुराते हुए सब की तरफ देख रही थी। तालियों की गड़गड़ाहट बंद होते ही मिस्टर प्रतीक शर्मा फिर बोले, “सच में वैदेही तुम काबिले तारीफ हो..... इतने कम वक्त में हमारे चैनल ने जो पहचान बनाई है, वो सब तुम्हारी वजह से है। जहां लोग टीआरपी के चलते कुछ भी दिखाने को तैयार रहते हैं.....सच– झूठ का भी फर्क भूल जाते है, वही हमारे चैनल में सिर्फ और सिर्फ सच्ची खबरें दिखाई जाती है.....वो भी सबूत के साथ.....और इसका पूरा क्रेडिट तुम्हें जाता है।" “ये तो सही कह रहे हैं आप सर..... वैदेही इसके लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा जाती है। अब कल रात को ही देख लीजिए।” वहां खड़ी एक लड़की ने वैदेही की तरफ देखकर बोला, जिसके माथे और होंठ के पास अभी भी चोट के निशान थे। “ये सब मेरे अकेली की वजह से कभी पॉसिबल नही हो पाता..... आप सब लोगों का सपोर्ट है तभी मैं ये सब कर पाती हूं। भले ही कल रात मेरी जान खतरे में थी, लेकिन मेरे एक कॉल के साथ इतनी बारिश में भी देव मुझे लेने के लिए वहां पहुंच गया था।" वैदेही ने जवाब दिया। “हां इस चैनल की सक्सेस का पूरा क्रेडिट तुम सबको जाता है स्पेशली तुम्हें वैदेही..... तो जैसा कि सब जानते हैं कि परसो 10 जून को चैनल को पूरे 5 साल होने वाले हैं। इसकी एनिवर्सरी पार्टी के साथ-साथ वैदेही का प्रमोशन पक्का..... और साथ ही आपकी अचीवमेंट्स को भी सेलिब्रेट किया जाएगा....." प्रतीक की बात खत्म होने से पहले ही वो सब ताली बजाते हुए हूटिंग करने लगे। “थैंक यू सो मच सर.....” वैदेही ने जवाब दिया। “तो कल संडे के दिन आप लोग फ्री है और आराम से जाकर पार्टी की तैयारी कर सकते है। ये पार्टी काफी ग्रैंड होने वाली है, यहां पर बड़े-बड़े सेलिब्रिटीज, एमएलएज, और भी बड़ी हस्तियों को बुलाया जाएगा। अगर आप किसी के फैन हो तो मुझे बता दीजिए। मैं उन्हें स्पेशल इनविटेशन भेज दूंगा। हां और आपके फैमिली मेंबर्स भी इन्वाइटेड है।" प्रतीक ने एक सांस में सारी बात बोल दी। उसकी बात सुनकर सभी लोगों के चेहरे पर खुशी दिखाई दे रही थी। उन्होंने प्रतीक की बात पर हामी भरी और वहां से लंच ब्रेक के लिए चले गए। वैदेही भी वहां से कैंटीन की तरफ बढ़ी। तभी एक लड़की उसके पीछे दौड़ते हुए आई और हंसते हुए बोली, “सभी फेमस पर्सनेलिटीज को बुलाया जाएगा.....इसका मतलब वो भी आएगा ना.....” वो लड़की क्या कहना चाह रही थी वैदेही को समझ नहीं आया। वो उसकी तरफ सवालिया नजरों से देख रही थी। ★★★★
चैनल हेड के पार्टी अनाउंस करने के बाद सभी एंप्लोईज लंच के लिए कैंटीन की तरफ बढ़ने लगे। वैदेही भी उनमें से एक थी। वो कैंटीन की तरफ जा रही थी तभी एक लड़की पीछे से दौड़ती हुई आई। “वैदेही… वैदेही..... प्लीज स्टॉप.....” उसने थोड़ा पीछे से आवाज लगाई, उसकी आवाज सुनकर वैदेही वहीं पर रुक गई। वो पीछे मुड़ी और लड़की की तरफ देख कर कहा, “नरगिस..... कितनी बार कहा है कि जो भी बात बतानी है, वो पास आकर भी तो बता सकती हो। ऐसे दौड़ कर आने की क्या जरूरत है?” नरगिस उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दी। वो भागने की वजह से हांफ रही थी। नरगिस उसके पास आ चुकी थी। वो अपनी बात कहने की कोशिश करती उससे पहले वैदेही बोल पड़ी, “देखो कितना हांफ रही हो तुम..... चलो, अंदर बैठ कर आराम से बात करते हैं।” वैदेही उसे लेकर अंदर आई। अंदर बैठते ही उसने उन दोनों के लिए लंच ऑर्डर किया और खाना आने तक दोनों एक टेबल पर बैठकर बातें कर रही थी। “वैदेही..... तुमने सुना ना, प्रतीक सर ने क्या कहा था?” “हां.....पार्टी और प्रमोशन..... प्रमोशन तो मेरा हो रहा है और पार्टी को लेकर तो तुम इतना एक्साइटमेंट कभी नहीं हुई। फिर ऐसी क्या बात थी कि तुम मेरे पीछे भाग कर आ रही थी।” वैदेही ने हैरानी से पूछा। “प्रतीक सर ने कहा था कि पार्टी में सभी फेमस पर्सनेलिटीज को बुलाया जाएगा। इसका मतलब पार्टी में वो भी आएगा।” नरगिस ने चहकते हुए कहा। उसकी बात सुनकर वैदेही हल्की हंसी। “कौन? वरुण धवन?” “मैं वरुण धवन की बात नहीं कर रही हूं।” नरगिस ने आंखें तरेर कर जवाब दिया, “स्टार्स की पार्टी में तो हमें अक्सर शामिल होने का मौका मिल जाता है और मैं उससे मिल भी चुकी हूं लेकिन.....” “लेकिन क्या?” “लेकिन इस बार पार्टी में फिल्म स्टार के साथ-साथ कुछ पॉलीटिकल लीडर्स को भी बुलाया जाएगा। कितना अच्छा हो जो यशवर्धन सिंह भी इस पार्टी में आए..... अरे उसके आगे तो अच्छे-अच्छे एक्टर्स भी फेल है। क्या पर्सनैलिटी है उसकी..... टोल..... डस्की..... हैंडसम.....” बात करते हुए नरगिस एक अलग ही दुनिया में खो गई थी। “तुम ये बताने के लिए इतना सस्पेंस क्रिएट कर रही थी? हद करती हो तुम भी नरगिस..... और ज्यादा सपने मत बुनो.....मुझे नहीं लगता कि वो हमारी पार्टी अटेंड करने आएंगे।” वैदेही की बात सुनकर नरगिस का मुंह बन गया। वो उसे घूर कर देखने लगी और फिर जवाब में कहा, “मैं तो उन्हीं की पार्टी को सपोर्ट कर रही हूं। देख ना इस बार सीएम वही बनेंगे।” “हां..... सब कुछ आपको पूछ कर ही तो होने वाला है, जो यशवर्धन सिंह सीएम बनेंगे।” वैदेही ने इरिटेट हो कर जवाब दिया। उनका खाना आ गया था। दोनों चुपचाप बैठ कर खाना खा रही थी। वैदेही खाना खाते हुए अपने मन में यशवर्धन सिंह के बारे में सोच रही थी। “नरगिस भी ना..... पहले वरुण धवन से मिलना था तो उसके लिए इतने एक्साइटेड होकर रहती थी और अब यशवर्धन सिंह..... वो भला किसी भी चैनल की एनिवर्सरी पार्टी में क्यों आएगा? वो तो इंटरव्यूज वगैरा के लिए भी पहले हजारों चक्कर निकलवाता है। उसके पास इस पार्टी में आने के लिए कहां टाइम होगा।” अपने ख्यालों में गुम वैदेही का खाना खत्म हो चुका था उसके बावजूद वो खाली प्लेट में चम्मच घुमा रही थी। उसे ऐसा करते देख नरगिस ने उसके आगे चुटकी बजाई और कहा, “हेलो मैडम..... अब आप किसके ख्यालों में खो गई, जो ये भी पता नहीं चला कि खाना खत्म हो चुका है।” फिर नरगिस की नजर वैदेही के कपड़ों पर गई, जहां पर थोड़ा खाना गिरा हुआ था। “लगता है आज वैदेही मैडम के साथ साथ उनके कपड़ों ने भी खाना खा लिया। मामला कुछ ज्यादा ही सीरियस लगता है..... तभी अपने आसपास सफाई रखने वाली वैदेही रघुवंशी ने खुद ही मैस फैला दिया।” नरगिस की बात सुनकर वैदेही ने अपने कपड़ों पर लगा हुआ खाना साफ किया। “ऐसा कुछ नहीं है.....” वैदेही ने कहा और वहां से सीधे अपने केबिन में आ गई। उन सब का दिन हमेशा की तरह सामान्य था जहां पर रोज की तरह 8:00 बजे वैदेही और नरगिस की शिफ्ट खत्म हो गई। उनके वहां से जाने के बाद उनकी जगह नाइट शिफ्ट वाले रिपोर्टर्स ने ले ली थी। __________ संडे के दिन वैदेही और नरगिस ने पार्टी के लिए शॉपिंग की, जहां उन्होंने पार्टी में पहनने के लिए कपड़े और कुछ एक्सेसरीज वगैरह खरीदें। शॉपिंग से आते ही वैदेही की सोफे पर पसर गई। वो अपने फ्लैट में अकेले रहती थी। नरगिस उसी के ऑफिस में काम करती थी और उसकी फ्रेंड थी। उसे घर पर अकेलापन महसूस ना हो इसलिए उसने उसे किराएदार के तौर पर रख लिया था। “क्या यार नरगिस, इस 1 दिन की पार्टी के लिए तुमने इतनी सारी शॉपिंग करवा दी। पूरे दिन से घूम रहे हैं..... अब तो खड़े होने की भी हिम्मत नहीं है।” वैदेही ने सोफे पर लेटे लेटे बोला। “मैंने गेस्ट लिस्ट देखी थी। उसमें यशवर्धन सिंह का भी नाम था। मैं उनसे पहली बार मिलने वाली हूं, तो मैं नहीं चाहती कि मेरा इंप्रेशन खराब हो।” “तेरा इंप्रेशन तू जाने लेकिन मुझे क्यों बेवजह इतनी भारी-भरकम ड्रेस दिलवा दी? ऑलरेडी कपड़ों का इतना स्टॉक पड़ा है.....” “तुम मेरी फ्रेंड हो इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम भी स्पेशल दिखो।” नरगिस ने कहा। उसकी बात सुनकर वैदेही ने मुंह बनाया। “हां जरूर.....वो आते ही सबसे पहले यही तो पूछने वाले हैं कि कहां है मैडम नरगिस फारूकी..... मुझे उनसे मिलना है..... और हां..... उनकी वो फ्रेंड वैदेही रघुवंशी..... उनकी ड्रेस..... उनकी ड्रेस बिल्कुल परफेक्ट होनी चाहिए।” वैदेही ने मजाकिया तरीके से कहा और फिर दोनों साथ में हंसने लगी। _________ अगले दिन रात के समय मुंबई के एक सेवन स्टार होटल में चैनल 24/7 इंडिया की एनिवर्सरी पार्टी हो रही थी। वो पार्टी किसी बड़े अवॉर्ड शो की पार्टी से कम नहीं थी, जहां पर काफी सारे स्टार्स, पब्लिक फिगर्स, पॉलीटिशियन और उसे कवर करने के लिए मीडिया मौजूद थी। नरगिस ने अपने लिए गोल्डन कलर का इवनिंग गाउन खरीदा था तो वहीं वैदेही ने अपने लिए ब्लैक कलर का ड्रेस लिया था। नरगिस ने खुद के लुक को काफी परफेक्टली सेट कर रखा था, वहीं वैदेही उस बड़े से इवनिंग गाउन में काफी अनकंफरटेबल महसूस कर रही थी। वो अक्सर ऑफिस सूट में ही रहती थी। इस तरह के कपड़े उसे शो ऑफ करने वाले और लाउड लगते थे। “क्या कर रही है यार..... ठीक से खड़े तो हो जा.....” नरगिस ने धीमी आवाज में वैदेही के पास जाकर कहा। उसने दूर से ही बैदेही के एक्सप्रेशंस से पता लगा लिया था कि वो उस ड्रेस में सहज महसूस नहीं कर रही थी। “आर यू सीरियस? ये क्या पहना दिया है मुझे..... ऐसा लग रहा है जैसे स्वच्छ इंडिया अभियान की ब्रांड एंबेसडर बनकर आई हूं..... तभी चलते हुए आगे पीछे की सफाई कर रही हूं। ये इतना बड़ा क्यों है।” वैदेही ने अपने गाउन को संभालते हुए कहा। “अभी तुम्हारे नाम की अनाउंसमेंट होने वाली है। तब तक इसे संभाल लो.....उसके बाद में जाकर चेंज कर लेना।” स्टेज पर मौजूद प्रतीक शर्मा सभी रिपोर्टर का नाम लेकर उन्हें उनकी उपलब्धि के हिसाब से अवार्ड दे रहे थे। “अब बारी आती है इस चैनल की सबसे डेरिंग रिपोर्टर की..... भई मैं तो इसका नाम बदलकर डेरिंग गर्ल रखने वाला हूं। कोई भी काम करने से पहले बिल्कुल नहीं हिचकिचाती और इसका सबूत आप सबकी आंखों के सामने है। क्या आप गैस कर सकते हैं, वो कौन है?” प्रतीक के कहते ही भीड़ में वैदेही का नाम गूंजने लगा। “हां जी बिल्कुल सही पहचाना वैदेही रघुवंशी..... जिस ने मात्र 2 साल पहले इस चैनल को जॉइन किया था और आज वैदेही को देश में सभी जानते हैं। मैं वैदेही से रिक्वेस्ट करूंगा कि वो स्टेज पर आए और अपना अवॉर्ड ले.....” प्रतीक के कहने पर वैदेही स्टेज पर अवॉर्ड लेने पहुंची। वैदेही वहां पहुंची ही थी कि प्रतीक ने फिर से अनाउंसमेंट करते हुए कहा, “सॉरी टू इंटरप्ट यू गाइस..... मैं चाहता हूं वैदेही ये अवार्ड हमारे शहर के सबसे फेवरेट और यंग पॉलीटिशियन मिस्टर यशवर्धन सिंह के हाथ से ले।” यशवर्धन सिंह का नाम सुनते ही वैदेही ने सामने की तरफ देखा जो कि बॉडीगार्ड से घिरा हुआ था। उसने सफेद कलर के कुर्ता पजामा पहन रखे थे और मुस्कुराता हुआ स्टेज की तरफ आ रहा था। उसे वेलकम करने के लिए प्रतीक उसके पास गया। “सो गुड टू सी यू हियर सर.....मैंने सोचा नहीं था कि आप यहां आएंगे।” प्रतीक ने हाथ मिलाते हुए कहा। यशवर्धन सिंह ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े। उसके बाद प्रतीक उसे स्टेज पर लेकर गया, जहां वैदेही अपने अवार्ड लेने का इंतजार कर रही थी। “ये एक बहुत ही स्पेशल मोमेंट होने वाला है, जहां पर हमारे युवा नेता युवा रिपोर्टर को अवार्ड देने जा रहे हैं। अगर दोनों के काम की बात करूं तो दोनों ही देश के हित के लिए बिना डरे हमेशा अटल रहे हैं। “ प्रतीक माइक में यशवर्धन सिंह की तारीफ कर रहा था। यशवर्धन सिंह ने मुस्कुराते हुए सामने हाथ जोड़े और उसे अवाॅर्ड दिया। अवाॅर्ड लेने के बाद उसने अपना हाथ वैदेही की तरफ बढ़ाया और हाथ मिलाते हुए कहा, “कांग्रेचुलेशन वैदेही जी..... आप हमेशा से यंग जनरेशन की प्रेरणा रही हैं। आपसे मिलना हमारा सौभाग्य है।” उसकी बात सुनकर जवाब में वैदेही मुस्कुरा दी और अपना हाथ छुड़ा कर वापस नरगिस के पास आई। प्रोग्राम आगे की तरफ बढ़ रहा था लेकिन इन सबके बीच यशवर्धन सिंह की निगाहें सिर्फ और सिर्फ वैदेही पर टिकी थी। ★★★★
24/7 इंडिया नामक न्यूज़ चैनल के एनिवर्सरी पार्टी चल रही थी। पार्टी में मुंबई के युवा नेता यशवर्धन सिंह भी आए हुए थे।प्रोग्राम खत्म होने के बाद सब डिनर करने के लिए जा रहे थे। जबसे वैदेही को यशवर्धन सिंह के हाथ से अवार्ड मिला था नरगिस उसे घूर के देखे जा रही थी। “तुम्हें क्या हो गया? तुमने ये सड़ी सी शक्ल क्यों बना रखी है?" उसका बना हुआ मुंह देखकर वैदेही ने पूछा। “कल तो बड़ा बोल रही थी कि उसको आने का टाइम नहीं है और आज ये सब..... जब से तुझे उसके हाथ से अवार्ड मिला है, उसके बाद से तुम मुझसे बात तक नहीं कर रही।” नरगिस ने रुखे अंदाज में कहा। “ऐसा कुछ नहीं है। तुम्हें पता है ना, मैं उससे तो आज पहली बार मिली हूं.... और हम दोनों की दोस्ती तो पूरे 2 महीने 25 दिन पुरानी....." वैदेही अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले नरगिस ने उसकी बात काट कर कहा, “जी नहीं, 2 महीने 25 दिन 8 घंटे और 15 मिनट.....” “ऐसे क्या तुम पल पल का हिसाब रखती हो?" वैदेही ने आंखें तरेर कर कहा। “मैं भी रखती हूं और तुम्हें भी याद रखना होगा..... तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया है वैदेही और तुम मेरे लिए बहुत स्पेशल हो। मुझे आज भी वो लम्हा याद है जब हम पहली बार मिले थे। तुम नहीं होती तो आज.....” नरगिस भावुक होकर बता रही थी कि वैदेही ने उसे चुप कराते हुए कहा, “अरे बस भी करो..... तुम्हारा ये किस्सा मैं ऑलरेडी 20 बार सुन चुकी हूं। तुम्हारा बस चले तो इस पर भी एक अलग से हैडलाइन बनवाकर लाइव ब्रेकिंग न्यूज़ चलवा दो।" “हां हां ठीक है.....” नरगिस ने बात को बदलने के लिए यशवर्धन सिंह की तरफ देख कर कहा, “वैसे रियल में ज्यादा हैंडसम लग रहा है।” “हां..... कहो तो रिश्ता लेकर जाऊं तुम्हारी तरफ से?" “क्या सच में.....” नरगिस ने शर्माते हुए कहा। “क्यों नहीं.....” वैदेही ने शरारती अंदाज में कहा। वो दोनों आपस में बातें कर रही थी तो वही यशवर्धन सिंह की निगाहें वैदेही पर टिकी हुई थी। उसे हंसता देखकर उसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट थी। वो कई लोगों से घिरा हुआ था जो कि उसकी तरह राजनीति से संबंधित थे। “अच्छा अब उसे छोड़..... मैं हमारे लिए सॉफ्ट ड्रिंक लेकर आती हूं।“ कहकर नरगिस वहां से चली गई। वैदेही को अकेली देखकर यशवर्धन ने अपने पास खड़े आदमियों से कहा, “एक्सक्यूज मी..... हम अभी आते हैं।" यशवर्धन उनसे अलग हुआ और वैदेही की तरफ जाने लगा। उसे अपनी तरफ आता देखकर वैदेही ने अपने व्यवहार को संयमित किया। यशवर्धन सिंह उनके पास आया और कहा, “एक बार फिर से कांग्रेचुलेशन वैदेही जी.....” वैदेही ने नकली मुस्कुराहट के साथ उसे थैंक्यू बोला। बातचीत को शुरू करने के लिए यशवर्धन सिंह ने फॉर्मल तरीके से बात करना शुरू किया, “हमने आपके सारे कवरेज देखे है..... काफी अच्छा काम कर रही हैं आप।" “क्या आपके पास इतना टाइम है?" वैदेही ने हैरानी से पूछा। उसकी बात सुनकर यशवर्धन हल्का सा हंसा और कहा, “जी बिल्कुल..... एक जिम्मेदार नेता होने के नाते हमारी नजर चारों तरफ रहती है.....खासकर इस तरफ की हमारे शहर में कौन-से क्राइम हो रहे हैं।" “ये तो अच्छी बात है कि आप अपने शहर की खबर रखते हैं। वैसे सुना है कि आप इस बार सीएम की पोजिशन आपकी है।” वैदेही ने नरगिस की बताई न्यूज़ को कंफर्म करने के लिए पूछा। “उसका पता तो विधानसभा के चुनावो का नतीजा आने के बाद ही चलेगा। वैसे आप चाहे हमारी पार्टी मीटिंग को अटेंड कर सकती है..“ “आपको पता होगा कि मैं क्राइम डिपार्टमेंट से हूं, तो उसी से जुड़ी न्यूज़ कवरेज करती हूं। और वैसे भी.... ऑफिशियल प्रेस कांफ्रेंस में बाकी रिपोर्टर्स होंगे ही.....” वैदेही के मुंह से ना सुनकर यशवर्धन सिंह को अच्छा नहीं लगा। “वैसे मैं पिछले काफी समय से आपसे मिलने के बारे में सोच रहा था लेकिन इलेक्शंस के चक्कर में टाइम ही नहीं मिला।“ उसकी बात सुनकर वैदेही ने हैरानी से पूछा, “और मुझसे मिलने की वजह?" “ये तो आपको मीटिंग में आकर ही पता चल सकता है। आपका इंतजार रहेगा मिस रघुवंशी.....” “क्या वहां और भी रिपोर्टर्स को बुलाया जा रहा है।“ “ये मीटिंग पूरी तरह प्राइवेट होगी। कल तक आप को मीटिंग की जगह और टाइमिंग के बारे में बता दिया जाएगा।“ यशवर्धन सिंह ने कहा और वहां से पार्टी से निकल गया। उसके जाने के बाद भी वैदेही उसके बारे में सोच रही थी। “जब पार्टी मीटिंग प्राइवेट होने वाली है तो इसने मुझे क्यों इनवाइट किया? एक तरफ तो कहता है कि मैंने आपकी सारी कवरेज देखी है और दूसरी तरफ मुझे इस तरह की मीटिंग में इनवाइट करके गया है। इसे पता नहीं क्या कि पॉलीटिकल पार्टीज की मीटिंग में क्राइम न्यूज़ कवरेज करने वाले रिपोर्टर नहीं जाते।” वैदेही उसके ख्यालों में गुम थे कि तभी नरगिस उसके पास आई। वो उन दोनों के लिए सॉफ्ट ड्रिंक लेकर आ गई थी। वैदेही को शांत देखकर उसने पूछा, “तुम फिर से कहीं खो गई? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?" वैदेही ने उसकी बात पर हामी भरी। उसने नरगिस के हाथ से एक ग्लास लिया और उसे एक बार में ही खत्म कर दिया। उसे पीने के बाद उसे थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। पार्टी खत्म होने के बाद दोनों घर आ चुकी थी लेकिन वैदेही के मन में यशवर्धन की ही बातें चल रही थी। ___________ वैदेही सुबह उठी, तो उसके मोबाइल पर एक मैसेज आया हुआ था। वैदेही ने उसे खोलकर देखा तो उसमें यशवर्धन सिंह ने मीटिंग का एड्रेस और टाइम भेजा था। “इसे मेरे प्राइवेट नंबर कहां से मिले?" वैदेही उसका मैसेज देख कर हैरान हो गई। फिर उसने खुद से कहा, “देखने में तो काफी शरीफ लगता है और इमेज भी बहुत अच्छी है। फिर मेरे पीछे क्यों आ रहा है? मुझे प्रतीक सर से इस बारे में बात करनी होगी।" यशवर्धन का मैसेज देखकर वैदेही परेशान हो हो गई थी। जैसे तैसे उसने अपना रूटीन पूरा किया और तैयार होकर नरगिस के साथ ऑफिस पहुंची। ऑफिस पहुंचते ही वो अपनी केबिन में जाने के बजाय सबसे पहले चैनल के सीईओ प्रतीक शर्मा के केबिन में घुसी। “गुड मॉर्निंग..... आज तो सब जगह तुम ही छाई हुई हो।” बोलते हुए प्रतीक ने अपने लैपटॉप का मुंह वैदेही की तरफ कर दिया, जहां पर सोशल मीडिया पर वैदेही का नाम ट्रेंडिंग पर था। “मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।" वैदेही ने गंभीर होकर कहा। प्रतीक ने हामी भरते हुए वैदेही को बैठने का इशारा किया। “एनीथिंग सीरियस?" उसने पूछा। “पता नहीं..... कल नरगिस ने मुझे हवा में एक बात बोली थी कि यशवर्धन सिंह को ही इस बार सीएम बनाया जाएगा।" “अभी तक तो इस बात की कोई कंफर्मेशन नहीं है। मैंने साथी चैनलों से भी बात की है। उन्हें भी इस न्यूज़ के कंफर्म होने पर संदेह है..... लेकिन देखना तुम ये न्यूज़ एक बहुत बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ बनेगी..... यशवर्धन सिंह सिर्फ 28 साल का है, अगर वो सीएम बना तो वो अब तक का सबसे यंग सीएम होगा।" “आप लोग इतनी अश्योरिटी के साथ कैसे कह सकते हैं कि यशवर्धन धन ही सीएम बनेगा जबकि उसके अगेंस्ट जिसे खड़ा किया गया है..... वो भी काफी स्ट्रांग है।“ “तब तो दाल में जरूर कुछ काला है।“ उसकी बात सुनकर वैदेही यशवर्धन सिंह की कही बातों के बारे में सोचने लगी। उसने अपना मोबाइल दिखाया और यशवर्धन सिंह का भेजा हुआ मैसेज प्रतीक के सामने कर दिया। “उसने मुझे मिलने के लिए बुलाया है और कहां है कि कुछ इंपोर्टेंट बात बतानी है।“ वैदेही ने यशवर्धन से हुई बातों के बारे में बताया। “देट्स ग्रेट..... तो उसने तुम्हें इस मीटिंग के लिए पर्सनली इनवाइट किया है। मैं तुम्हें बता दूं कि इस तरह की मीटिंग्स काफी प्राइवेट होती है। रिपोर्टर को इनवाइट करना तो दूर उन्हें आसपास फटकने तक नहीं दिया जाता।” “फिर उसने मुझे पर्सनली इनवाइट क्यों किया है?" वैदेही ने हैरानी से पूछा। “ये तुम पूछ रही हो? ये साफ जाहिर है कि बाकी सब की तरह वो भी तुम्हारे काम से काफी इंप्रेस है। उसकी इमेज एक सच्चे और युवा नेता के रूप में हैं और तुम भी सच्चाई के लिए लड़ती हो।” प्रतीक ने जवाब दिया। “तो क्या मुझे ये मीटिंग अटेंड करने जाना चाहिए?" “ऑफ कोर्स..... मैं जानता हूं कि ये तुम्हारा डिपार्टमेंट नहीं है..... लेकिन यशवर्धन सिंह ने खुद तुम्हें इनवाइट किया है, इसका मतलब बात कुछ जरूरी ही होगी।" वैदेही ने प्रतीक की बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसकी चुप्पी का मतलब प्रतीक अच्छे से समझ रहा था। उसने गहरी सांस लेकर छोड़ी और कहा “अच्छा ठीक है बाबा, मैं तुम्हें फोर्स नहीं कर रहा। इट्स ऑल अप टू यू कि तुम ये मीटिंग अटेंड करना चाहती हो या नहीं.....” “इट बेटर बी.....” वैदेही मुस्कुराते हुए अपने केबिन में आ गई। उसके वहां से जाते ही प्रतीक ने खुद से कहा, “इस लड़की का कुछ नहीं हो सकता। उसूलों के चलते ये अपनी जान भी दे सकती है। अगर यशवर्धन सिंह ने इसकी पर्सनैलिटी और लुक को देखकर ये कदम उठाया है तो मुझे उसके लिए बहुत बुरा महसूस हो रहा है। वो गलत जगह अपने हाथ पैर मार रहा है।” प्रतीक उस बात को वही छोड़कर अपने काम में लग गया। जबकि वैदेही भी वहां से अपने केबिन में लौट चुकी थी। ★★★★
वैदेही अपने केबिन में बैठ कर काम कर रही थी। अब उसका ध्यान यशवर्धन सिंह की मीटिंग से हट चुका था और वो अपने काम में पूरी तरह डूबी हुई थी। लैपटॉप पर किसी केस को स्टडी करते हुए उसने बोला, “पिछले 10 सालों में इस एरिया में बहुत सी लड़कियां गायब हुई है। पुलिस भी इस मामले में कुछ खास कर नहीं पाई है..... जो भी लड़कियां गायब हुई, वो सभी बालिग थी, तो अक्सर उन्हीं पर ये इल्जाम लगा दिया जाता था कि वो खुद की मर्जी से घर छोड़कर गई है। इस तरह लड़कियों का गायब होना कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता। मुझे इस बारे में और भी पता लगाना होगा..... वैसे भी इस एरिया में लड़कियों पर होने वाले क्राइम रेट कुछ ज्यादा ही है। देव भी इस प्रोजेक्ट पर पिछले 1 महीने से काम कर रहा है। उसे भी यही लगता है कि यहां बहुत बड़ी गड़बड़ चल रही है, जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया या कोई जानबूझकर ध्यान देना नहीं चाहता।" वैदेही जिस देव की बात कर रही थी, वो उसका असिस्टेंट था, जो किसी भी केस पर काम करने से पहले उस बारे में शुरुआती जरूरी इंफॉर्मेशन जुटाता था। वैदेही को अपने काम का अगला टारगेट मिल चुका था। अक्सर वो इसी तरह केस स्कोर स्टडी करती और फिर उस पर काम करके उसके तह तक पहुंचती। उसका काम बाकी रिपोर्टर से अलग था। “मैं प्रतीक सर को बता देती हूं कि मेरा अगला प्रोजेक्ट क्या होने वाला है। शायद इसके लिए मुझे कुछ दिनों के लिए वहां जाना पड़े।" वैदेही ने खुद से कहा और अपना लैपटॉप उठाकर प्रतीक के केबिन की तरफ चल दी। जैसे ही प्रतीक ने कुछ देर बाद फिर से वैदेही को आते देखा तो उसके मन में एक उम्मीद जग गई थी, शायद वो यशवर्धन सिंह की प्राइवेट मीटिंग में जाने के लिए रेडी हो गई होगी। “मुझे अच्छा लगा वैदेही कि तुमने अपना डिसीजन.....” प्रतीक ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि उसे वैदेही के हाथ में उसका लैपटॉप दिखा। “क्या सच में कोई चांसेस नहीं है?" “एक परसेंट भी नहीं.....” वैदेही ने मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया। “उसे छोड़िए.....उसके बारे में आज नहीं तो कल सब कुछ पता चल ही जाएगा। ये देखिए, मेरे हाथ क्या लगा है।?” “कौन सा तुम्हारे हाथ में कुबेर का खजाना लगा होगा। फिर से कोई केस लेकर ही आई होगी..... जिसे पैसों के दम पर दबा दिया होगा।" प्रतीक ने बड़बड़ाते हुए कहा। “जी बिल्कुल..... ऐसे समझ लीजिए कि इस बार कुबेर का ही खजाना हाथ लगा है। कंडीशन सच में काफी खराब है।" “लाओ मुझे दिखाओ.....” प्रतीक के कहने पर वैदेही ने अपना लैपटॉप उसके सामने कर दिया। वो वैदेही देव के इकट्ठे किए हुए न्यूज आर्टिकल की फाइल पढ़ रहा था। “तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हें यहां जाने की परमिशन दे दूंगा?" बोलते हुए उसने वैदेही को घूर कर देखा। “क्यों नहीं? जब आप मुझे यशवर्धन सिंह की प्राइवेट मीटिंग में जाने की इजाजत दे सकते हैं तो यहां क्यों नहीं.....” “पागल मत बनो वैदेही..... वो एक नॉर्मल से मीटिंग थी और यहां पर तुम्हारी जान को खतरा हो सकता है। मैं तुम्हें इतना बड़ा रिस्क उठाने की इजाजत बिल्कुल नहीं दे सकता।” “रिस्क तो हर बार ही होता है। वैसे भी मैं अकेले कहां होती हूं..... हर बार देव होता है ना मेरे साथ।” “बिल्कुल भी नहीं.....इस बार मैं तुम्हारी एक नहीं सुनने वाला।" प्रतीक ने वैदेही को साफ इनकार कर दिया। “अब तुम जा सकती हो।” प्रतीक से ना सुनने के बावजूद भी वैदेही वहीं पर खड़ी रहीं। “मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी प्रतीक सर.....” “अब तुम इमोशनल ब्लैकमेलिंग पर उतर आई हो।" प्रतीक ने वैदेही की तरफ आंखें तरेर कर देखा। जब भी प्रतीक वैदेही को किसी खतरनाक न्यूज़ पर काम करने से रोकता तो वो उसे मनाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सारे तरीके अपना लेती थी। “सर याद है ना कि आप ने शपथ ली थी? आपने कहा था कि आप इस तरह के क्राइम के खिलाफ हमेशा आवाज उठाएंगे। इसी के लिए आपने ये न्यूज़ चैनल खोला था..... मैं बरखा का नाम नहीं लेना चाहती हूं, लेकिन उसके साथ जो भी हुआ..... तब बोलने वाला कोई नहीं था। मैं नहीं चाहती कि इन लड़कियों के साथ भी वही सब हो।” “तुम हर बार मेरी बहन का नाम लेकर मुझे इमोशनली वीक कर देती हो। वो तुम्हारी फ्रेंड थी..... इस वजह से तुम्हें उसके बारे में सब पता है, इसका मतलब ये नहीं कि तुम हर बार उसका हवाला देकर मुझसे कुछ भी करवा लो। मैंने एक बार कह दिया ना..... नहीं मतलब नहीं.....” “बरखा के लिए भी नहीं?" वैदेही ने एक आखिरी कोशिश की। प्रतीक ने उसकी बात पर ना करते हुए कहा,“इस बार बरखा के लिए नहीं बल्कि वैदेही के लिए ना..... तुम मेरी बहन की दोस्त ही नहीं मेरी बहन की तरह हो। आज बरखा जिंदा होती तो मैं उसे इस तरह के काम पर कभी नहीं भेजता। तो जिद मत करो। अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हें.....” बोलते हुए प्रतीक रुक गया। “क्या? काम से निकाल देंगे?" वैदेही ने आंखें बड़ी करके पूछा। प्रतीक ने उसकी बात पर हां में सिर हिलाया। वैदेही ने आगे कुछ नहीं कहा और लैपटॉप उठाकर वापस अपने केबिन की ओर बढ़ने लगी। वो दरवाजे के पास पहुंची ही थी कि वापस प्रतीक की तरफ मुड़ी और बोली, “मैं फिर भी जाऊंगी। आप मुझे काम से निकाल देंगे तो मैं अकेली चली जाऊंगी।" कहकर वैदेही वहां से चली गई। उसके जाने के बाद प्रतीक ने अपने टेबल पर हल्का सा पंच किया। “ये लड़की अपनी जिद कब छोड़ेगी? मैंने उसे जॉब पेज थ्री की पार्टीज कवर करने के लिए दी थी..... ना कि ये है एक्शन करने के लिए..... 2 महीने वहां की पार्टीज कवर करने के बाद इसने अपना डिपार्टमेंट कब बदला, मुझे खुद ही पता नहीं चला।" प्रतीक को गुस्सा आ रहा था। उसने पानी पिया और खुद से कहा, “काम डाउन प्रतीक..... इस ऑफिस और चैनल के मालिक तुम हो..... तुम्हारी इजाजत के बिना वैदेही जा ही नहीं जा सकती।" अगले ही पल उसके भाव गंभीर हो गए और उसने पैर पटकते हुए बोला, “ये लड़की मेरी बात क्यों नहीं सुनती है..... पता नहीं इसे इस तरह के आर्टिकल्स मिल कहां से जाते हैं।” प्रतीक खुद को मनाने की पूरी कोशिश कर रहा था, जबकि अंदर ही अंदर वो इस बात को अच्छे से जानता था कि वैदेही ने एक बार ठान लिया तो वो अपने कदम पीछे नहीं लेने वाली थी। _______ प्रतीक से बात करके वैदेही अपने केबिन में आ चुकी थी। वो उसके मना करने के बावजूद इस आर्टिकल पर काम कर रही थीं। रिसर्च करते हुए उसकी नजर एक दूसरे आर्टिकल पर पड़ी। उसे पढ़ते हुए वैदेही की आंखों से आंसू बहने लगे और वो किसी दूसरी दुनिया में जा चुकी थी। ________ एक छोटी सी बच्ची अपने हाथ में पिंक कलर का टेडी बेयर लिए टेबल के पीछे छिपी हुई थी। उसने अपने आंखों के आगे टेडी बियर ले रखा था ताकि अपने सामने चल रहे दृश्य को वो देख ना सके लेकिन उसकी मासूमियत ये नहीं जानती थी कि आंखें ढकने से कानों में पड़ रहे स्वर को वो सुनने से खुद को नहीं रोक सकती थी। सामने उसकी मां के जोर जोर से रोने की आवाज आ रही थी। “मैं मैं आगे से ध्यान रखूंगी। मुझे..... मुझे माफ कर.....” औरत रोते हुए जैसे तैसे अपने शब्दों को पूरा करने की कोशिश कर रही थी। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे इतना गरम खाना परोसने की।” सामने से आदमी के चिल्लाने की आवाज आई जो कि उस लड़की का पिता था। “मेरी जीभ जल गई..... अरे सारे दिन घर पर बैठकर करती क्या हो जो अपने पति को दो वक्त का खाना भी ठीक से नहीं डाल सकती? मैं वहां ऑफिस में दिन-रात काम करता रहता हूं ताकि तुम दोनों को एक अच्छी लाइफ दे सकूं। बदले में मुझे क्या मिला? तुम तो मुझे दो वक्त का खाना भी ठीक से नहीं दे सकती।” “प्लीज धीरे बोलिए। वैदेही सुन लेगी।" औरतों रोते हुए बोली। “सुन लेगी तो सुनने दो। तुम मुझे एक वारिस तो दे नहीं हो पाई..... अब क्या चाहती हो कि मैं उस लड़की को अपने सिर बिठा कर रखूं..... ताकि तुम्हारी तरह कल को वो भी अपने पति के साथ यही सब करें।" आदमी ने चिल्लाते हुए कहा। औरत ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वो बस रोए जा रही थी। उसकी इस हरकत ने आदमी के मन में और चिड़ पैदा कर दी थी। “तुम मेरा दर्द कभी नहीं समझ सकती.....” उसने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि उसे कुछ सुझा और फिर वो आगे बोला, “क्यों नहीं समझ सकती? तुम्हें भी तो पता चले गरम गरम खाना खाने पर कैसा महसूस होता है।” वो आदमी गुस्से में खाना उठाकर गया और उसे ओवन में डालकर गर्म करने लगा। जब उसे लगा कि खाना बुरी तरह खोल चुका है, तो वो बाहर लेकर आया और उसे डाइनिंग टेबल पर रखा। उसके बाद वो उस औरत का हाथ पकड़कर उसे डाइनिंग टेबल के पास लेकर गया और उसे जबरदस्ती वो गरम गरम खाना खिलाने लगा। “आहह.....” खाना गर्म होने की वजह से औरत के मुंह से चीख निकली। “प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। मैं आगे से ख्याल रखूंगी।” “अब पता चला कितना दर्द होता है। मैं तुम्हारी तरह बेरहम नहीं हूं, जो तुम्हें गर्म खाना खिलाऊं, मेरी जगह कोई और होता, तो ये पूरा खाना तुम्हारे गले में उड़ेल देता।” आदमी ने अपनी गलती पर पर्दा डालते हुए सफाई दी और वहां से चला गया। उसके जाते ही लड़की दौड़ कर बाहर आई और अपनी रोती हुई मां को पास पड़ा जूस का ग्लास दिया। औरत ने उसे एक घूंट में निगल लिया ताकि उसके अंदर की जलन कुछ कम हो सके। _______ अपने केबिन में बैठी हुई वैदेही का फोन बजा और इसी के साथ उसका ध्यान टूट गया। उसने अपने आंखों से आंसूओं को साफ किया और लैपटॉप पर फिर से एक नजर डाली..... जिसमें किसी औरत को दहेज के लिए जिंदा जलाए जाने की खबर लिखी हुई थी। ★★★★ Note– कहानी में दिखाई गए दृश्य सीन की डिमांड होने की वजह से लिखे गए हैं। डोमेस्टिक वायलेंस एक कानूनन अपराध है, जिसे किसी भी तरह से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता। हो सके तो अपने आसपास हो रहे इस अपराध को रोकने के लिए हर संभव कोशिश कीजिए। उम्मीद है इस दृश्य के जरिए किसी की भी भावनाओं को क्षति नहीं पहुंची हो।
वैदेही अपने केबिन में बैठकर किसी केस की स्टडी कर रही थी। सर्फिंग करते टाइम उसने एक न्यूज़ देखी और उसे देखकर वो इमोशनल हो गई। उस खबर ने उसके मन में अपनी पुरानी और कड़वी यादों को ताजा कर दिया था। मोबाइल की घंटी बजने से वैदेही का ध्यान टूटा। उसने देखा कि उस पर यशवर्धन सिंह का कॉल आ रहा था। “1 घंटे बाद यशवर्धन सिंह की मीटिंग शुरू होने वाली है, शायद इसीलिए वो कॉल कर रहा होगा। इसे इग्नोर करना ही सही होगा। ऐसा करती हूं फोन साइलेंट कर देती हूं।" वैदेही ने कॉल नहीं उठाया और काम में डिस्टरबेंस ना हो, इसलिए अपना फोन साइलेंट करके वापस अपने काम में लग गई। “पता नहीं ये लोग कब सुधरेंगे? कब इन्हें एहसास होगा कि औरतो का भी अपना एक अस्तित्व होता है.....उन्हें भी अपने हिसाब से जीने का हक होता है। लेकिन नहीं..... पता नहीं किस बेवकूफ इंसान ने ये रूल्स बनाए होंगे, जहां एक लड़की को पहले अपने मां बाप के हिसाब से चलना पड़ता है तो फिर अपने पति के..... अगर उम्र ज्यादा हो जाए तो फिर अपने बच्चों की सुनो..... मानो उनकी तो कोई लाइफ ही ना हो।” वैदेही की बातों से उसका दर्द झलक रहा था। वैदेही ने अपना काम जारी रखा। काम के चलते उसने यशवर्धन सिंह की मीटिंग के तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फोन साइलेंट होने की वजह से उसे पता नहीं चला लेकिन उसके मोबाइल पर यशवर्धन सिंह के काफी फोन कॉल्स आ चुके थे। ________ यशवर्धन सिंह के पार्टी ऑफिस में उनकी मीटिंग चल रही थी। जहां पार्टी के सभी छोटे बड़े नेता मौजूद थे। पार्टी अध्यक्ष श्री रामचरण जी त्यागी सब को संबोधित कर रहे थे। रामचरण जी उम्र और अनुभव दोनों ही लिहाज से काफी बड़े थे। “जैसा कि आप सब को ज्ञात है कि एक हफ्ते बाद नतीजे आने वाले हैं। हवा हर बार की तरह हमारी और ही बह रही है। ऐसे में हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होगा कि हम मुख्यमंत्री पद के लिए किसे दावेदार बनाएं? " जैसे ही रामचरण जी ने अपनी बात खत्म की, सभी एक दूसरे की तरफ देखने लगे। यशवर्धन के चेहरे पर मुस्कुराहट थी मानो उसे पहले से पता हो कि सब उसी का समर्थन करने वाले हैं। उसका अंदाजा बिल्कुल सही था। उसके समर्थन में एक नेता ने कहा, “इसमें सोचना क्या है त्यागी जी..... हमारी पार्टी हमेशा से एक दूसरे को सपोर्ट करती आ रही है। यशवर्धन के पिताजी हर्षवर्धन जी अगर जिंदा होते तो आज ये पोजीशन उनकी थी। दुर्भाग्यवश अब वो इस दुनिया में नहीं है, तो इस स्थिति में हर्षवर्धन जी के बजाय उनके बेटे यशवर्धन को ये मौका दिया जाए।“ वहां मौजूद कुछ लोगों ने उनकी हां में हां मिलाई। लेकिन तभी किसी दूसरे नेता ने उनकी बात का विरोध करते हुए कहा, “हर्षवर्धन जी के जाने का दुख हमें भी है। लेकिन हर्षवर्धन जी के बाद राघवेंद्र प्रताप सिंह की बारी थी। अब हर्षवर्धन जी नहीं रहे तो राघवेंद्र प्रताप इस पद के दावेदार बनने चाहिए। यश की उम्र अभी काफी कम है, लेकिन राघव उससे कई ज्यादा परिपक्व है और इस पद के लिए उत्तम चुनाव होगा।" जहां कुछ लोग यशवर्धन का समर्थन कर रहे थे तो वही इस नेता के साथ कुछ लोग राघवेंद्र प्रताप सिंह का समर्थन कर रहे थे। वहां हॉल में उन लोगों के फुसफुसाने की आवाजें आने लगी। राघवेंद्र प्रताप सिंह का नाम आने से यशवर्धन के चेहरे पर चिंता के भाव थे। “शांत हो जाइए.....” त्यागी जी ने उन सब को चुप करवाते हुए आगे बोले, “आज से पहले कभी पार्टी में इस तरह से मतभेद नहीं हुआ। हम चाहेंगे कि आगे भी ऐसा ना हो।" “नहीं होगा त्यागी जी..... लेकिन पार्टी अध्यक्ष होने के नाते आपको एक अंतिम निर्णय लेना होगा।" भीड़ में से एक औरत की आवाज आई। “मैं भी आपके विचार से सहमत हूं सर.....” यशवर्धन बीच में बोला, “मुझे आपका निर्णय मंजूर होगा लेकिन ये लोग जिसे सपोर्ट कर रहे हैं, वो इस मीटिंग में मौजूद क्यों नहीं है।" यशवर्धन सिंह की बात सुनकर सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे। मीटिंग में राघवेंद्र प्रताप सिंह मौजूद नहीं था। इस बात का फायदा उसे बखूबी मिल रहा था। “अरे जाएंगे कहां? कर रहे होंगे अपने ही इलाके में किसी के ऊपर दादागिरी..... अब उनके बारे में किसी से कुछ छुपा थोड़ी है।" किसी दूसरे नेता ने कहा जो कि यशवर्धन को सपोर्ट कर रहा था। “यहां हम एक दूसरे के चरित्र के पर उंगली उठाने के लिए इकट्ठा नहीं हुए हैं। मत भूलिए कि हमारी पार्टी की पोजीशन को स्ट्रांग करने में राघव का बहुत बड़ा हाथ है।” त्यागी जी ने उन सब को चुप करवाया लेकिन भीड़ में फिर से किसी के फुसफुसाने की आवाज आई, “हां सिर्फ हाथ ही नहीं पैर, लात, घूंसे, कट्टे, बंदूके, और ना जाने क्या-क्या है।” पार्टी मीटिंग में गहमागहमी का माहौल हो चुका था, जहां त्यागी जी समझ नहीं पा रहे थे कि वो मुख्यमंत्री पद का दावेदार किसे बनाए। राघवेंद्र प्रताप और यशवर्धन दोनों ही उसके दाएं और बाएं हाथ की तरह थे, जिन में से किसी एक को चुनना नामुमकिन था। “क्यों ना हम इन दोनों को ही दावेदार बनाएं, जो भी एमएलए इन्हें सपोर्ट करेगा, वो अपने हिसाब से वोटिंग कर देगा और इस तरह सीएम चुन लिया जाएगा।” वहां मौजूद एक औरत ने सुझाव दिया। “आपका सुझाव काफी अच्छा है माया जी..... लेकिन अगर मीडिया को इस बात की भनक भी लगी तो ये हमारी पार्टी की इमेज को काफी खराब करेगा। अब तक पार्टी में कितनी भी तनातनी रही हो लेकिन बाहर सभी को ये पता है कि सभी सद्भावना से एक दूसरे का समर्थन करते हैं..... दो दावेदारों को खड़ा किया तो लोगों तक ये खबर पहुंच ही जाएगी कि हमारे बीच आपसी मतभेद है।” त्यागी जी ने उनके सुझाव को खारिज कर दिया। पार्टी में सब लोग अपनी तरफ से अलग-अलग सुझाव दे रहे थे वही इन सब के बीच यशवर्धन किन्ही और ही ख्यालों में गुम था। “तो आप यहां नहीं आई मिस रघुवंशी..... सुना है आप सच और न्याय के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। हम यहां किसी के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते लेकिन अगर आज आप इस मीटिंग में मौजूद होती तो आप राघवेंद्र प्रताप सिंह की सच्चाई पता चल जाती और आप के जरिए दुनिया को भी..... भले ही हम मुख्यमंत्री बने या ना बने लेकिन हम नहीं चाहते कि वो इस पद पर आए।” काफी बहस बाजी के बाद मीटिंग खत्म होने पर आ गई। इतनी बहस बाजी के बावजूद मीटिंग का कोई सार नहीं निकला। मीटिंग को खत्म करते हुए त्यागी जी बोले, “ये तो तय है कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार में से यशवर्धन और राघवेंद्र प्रताप में से किसी एक को खड़ा किया जाएगा। अगर ये दोनों आपस में सुलह कर किसी एक को सपोर्ट करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो ठीक है। वरना अंतिम निर्णय लेते हुए हम दोनों को ही इस पद के दावेदार के रूप में खड़ा करेंगे। आगे जो होगा वो देखा जाएगा।” वहां मौजूद नेताओं में से कुछ ने उनकी बात पर सहमति जताई, जबकि कुछ को ये सुझाव पसंद नहीं आया। उस वक्त किसी ने कुछ नहीं कहा। हर कोई चुनाव के नतीजे आने के इंतजार में थे। मीटिंग खत्म होते-होते रात के 11:00 बज चुके थे। सभी वहां से अपने अपने घरों के लिए निकल चुके थे। ____________ पूरा दिन ऑफिस में काम करने के बाद वैदेही ने नाइट शिफ्ट में भी काम करने का डिसाइड किया। उसके साथ उसका असिस्टेंट देव भी मौजूद था जो कि एक इंटर्न भी था। “ये महाराष्ट्र का ही कोई रिमोट एरिया है.....” केस स्टडी करते हुए देव ने बताया। “जरा देखना ये इलाका किस के अंडर आ रहा है? हो ना हो, पुलिस को दबाने का काम वही के किसी नेता या एमएलए का होगा।" वैदेही के कहने पर देव ने उस एरिया के बारे में अपने लैपटॉप पर सर्च करना शुरू किया। उसने लैपटॉप की स्क्रीन में पढ़ते हुए बोला, “कोई महेश चंद्र नाम का व्यक्ति है..... वैसे तो इसकी खुद की कोई खास पहचान नहीं है, लेकिन हमारे एमएलए राघवेंद्र प्रताप सिंह का रिश्तेदार है। लगता है उसी के दम पर उसने ये इलेक्शन जीता होगा।" “जरा राघवेंद्र प्रताप सिंह के बारे में तो सर्च करना। सुना तो काफी है, लेकिन कभी जानने की कोशिश नहीं की इसके बारे में.....” वैदेही के कहने पर देव ने लैपटॉप पर राघवेंद्र प्रताप सिंह के बारे में पता लगाना शुरू किया। वैदेही की नजर लैपटॉप की स्क्रीन पर ही टिकी हुई थी। उसने राघवेंद्र की तस्वीर देखकर कहा, “ये क्या किसी रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं, जो माथे पर टीका लगा रखा है और कुर्ता पजामा..... दाढ़ी मूंछ?" “हां..... रॉयल फैमिली तो नहीं लेकिन उनसे कुछ कम भी नहीं है। इस के दादा परदादा के टाइम से ही इनके पास काफी जमीन थी, तो ये बरसों से जमीदारी का काम करते आ रहे हैं। इन सब से काफी पैसा बनाया है इन्होंने।" “हां भगवान ने जैसे जमीदारों को किसानों का खून चूसने के लिए ही बनाया था।“ “राघवेंद्र प्रताप सिंह के बारे में ज्यादा लिखा हुआ नहीं है। आप जानती हैं ना कि वो महाराष्ट्र विकास पार्टी से बिलॉन्ग करता है और उसकी इमेज ज्यादा नहीं, कुछ ज्यादा ही अच्छी है। ऐसे में कुछ हुआ भी होगा, तो वो हटवा दिया होगा।“ देव ने कहा। “भले ही महाराष्ट्र विकास पार्टी ने हटवा दिया होगा लेकिन सच कभी बदल नहीं सकता और हम उसके बारे में पता लगा कर रहेंगे। चलो इन सब के बारे में कल काम करेंगे। अभी काफी लेट हो गया है। प्रतीक सर को पता चला तो वो गुस्सा करेंगे। इससे पहले कि वो हम दोनों को नौकरी से निकाले, हमें यहां से रफूचक्कर हो जाना चाहिए” वैदेही ने हल्के मजाकिया तरीके में कहा। देव ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा, “ठीक है पहले मैं आपको घर छोड़ देता हूं। उसके बाद चले जाऊंगा।” “अब क्या तुम मेरे असिस्टेंट के साथ-साथ बॉडीगार्ड भी बनोगे? अगर तुम मुझे छोड़ कर अपने घर जाओगे, तो काफी देर हो जाएगी।" “लेकिन प्रतीक सर का ऑर्डर है कि आपकी सेफ्टी का पूरा ध्यान रखा जाए। अब चलिए.....अगर हमने बहस करने में टाइम लगाया तो और भी देर हो जाएगी।" बोलते हुए देव ने कार की चाबी उठाई। वैदेही ने भी आगे ज्यादा बहस करना जरूरी नहीं समझा। उन्हें काम करते हुए रात के 12:30 बज चुके थे और जिस तरह का उनका काम था, उस वजह से उनके दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा बन गए थे। वैदेही देव के साथ अपने अपार्टमेंट की ओर जा रही थी। लेट होने की वजह से उन्होंने जंगल के रास्ते शॉर्टकट लिया और एक सुनसान रास्ते में अपनी गाड़ी दौड़ा ली। वो दोनों थोड़ी दूर आगे पहुंचे ही थे कि रास्ते में उन्हें गोलियां चलने की आवाजे सुनाई दी। ★★★★
देव वैदेही को उसके घर छोड़ने जा रहा था। रात ज्यादा होने की वजह से उन्होंने जंगल के रास्ते से शॉर्टकट लिया। वो कुछ आगे पहुंचे ही थे कि उन्हें रास्ते में गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी। उसे सुनकर देव ने गाड़ी वहीं रोक दी और आगे जाना जरूरी नहीं समझा। “हमें यहां से आगे नहीं जाना चाहिए। मैं यू–टर्न लेता हूं।" कहकर देव गाड़ी घुमाने लगा लेकिन वैदेही ने उसे रोकते हुए बोला, “मुझे पता है कि आगे खतरा है लेकिन आगे भी तो किसी की जान खतरे में है। सब कुछ जानते बूझते हुए हम उसे मुसीबत में छोड़कर यहां से ऐसे नहीं भाग सकते।" “जिद मत कीजिए मैम..... जानता हूं कि आपका पहले भी इसी तरह की सिचुएशन से पाला पड़ चुका है पर यहां हमारा कोई लेना देना नहीं है। हम क्यों बेवजह किसी के फटे में टांग अड़ाए।" “हमारे देश में हो रहे क्राइम के बढ़ने की एक वजह ये भी है कि हम सक्षम होकर भी उन्हें रोकने के लिए कदम नहीं उठाना चाहते। बस यही सोचकर कि हम क्यों किसी के फटे में टांग अड़ाए। अगर सब यही सोचने लगे तो हो गया बेड़ा गर्क.....” वैदेही ने कहा और गाड़ी का दरवाजा खोला। वो बाहर जाने लगी लेकिन देव ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया। “प्लीज मैम.....” देव की बात सुनकर वैदेही की मुस्कुराई और बोली, “क्या तुम्हें सच में ये लगता है कि मैं तुम्हारे रोकने से रुक जाऊंगी?" देव ने ना में सिर हिलाया। वैदेही ने मुस्कुराते हुए अपने कंधे उचकाए और गाड़ी के ड्रोर से अपनी लाइसेंस्ड रिवाॅल्वर निकाली। रिवाल्वर लेने के बाद वैदेही गाड़ी से बाहर निकल आई थी। देव के पास उसके साथ जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। “ठीक है.....ठीक है, मैं भी आ रहा हूं।" वो उसके पीछे आते हुआ बोला। “आपके साथ रहते रहते मैं भी खतरो का खिलाडी बन गया हूं।” “हां तभी थोड़ी देर पहले मुझे बाहर निकलने से रोक रहे थे।” वो दोनों दबे पांव पेड़ों से छुपते छुपाते आगे जा रहे थे कि तभी उन्हें एक दो बार फिर गोली चलने की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही दोनों सतर्क हो गए। “इससे पहले कि कुछ गलत हो, हमें जल्द से जल्द मदद के लिए पहुंचना होगा।" वैदेही ने कहा। “हमें पुलिस को बुला लेना चाहिए।" “आइडिया अच्छा है लेकिन पुलिस पहुंचेगी, तब तक देर हो जाएगी। हम भी कुछ करने की कोशिश करते हैं।" वैदेही ने अपनी रिवाॅल्वर सामने की तरफ की और गोली की आवाज आ रही थी, उस दिशा में तेजी से अपने कदम बढ़ाने लगी। आगे जाने पर उन्हें एक बड़ी सी सफेद गाड़ी दिखाई दी जिसके सामने लाल बत्ती लगी हुई थी। जो इसका संकेत थी कि ये किसी पॉलिटीशियन की कार थी। उसके पीछे एक छोटी सफेद गाड़ी भी मौजूद थी, जिस की हेड लाइट और बैक लाइट को जलाया हुआ था, जिस वजह से अंधेरा होने के बावजूद वहां अच्छी खासी रोशनी हो रही थी। बाहर दो सिक्योरिटी गार्डस की लाश पड़ी, जबकि बाकी के दो ऊपर हाथ करके खड़े थे। वहां लगभग 4 लोग मौजूद थे, जिन्होंने काले रंग के कपड़े पहने थे और अपने मुंह को भी काले कपड़े से ढक रखा था। उनके हाथ में बड़ी–बड़ी गंस थी। “मैंने कहा बाहर निकलो, वरना इन दो को भी मार दूंगा।" उन गुंडों में से एक ने धमकी दी। गाड़ी बुलेट प्रूफ थी और अंदर से लॉक होने की वजह से वो लोग कुछ नहीं कर पा रहे थे। “यहां तो कुछ ज्यादा ही रायता फैला है।" देव ने सामने की तरफ देखकर बोला क्योंकि परिस्थिति सच में काफी गंभीर थी। “मुझे नहीं लगता कि गाड़ी में बैठा बंदा बाहर निकलेगा..... अब तक तो उसने अंदर से पुलिस को भी बुला लिया होगा।" वैदेही ने अंदाजा लगाया। “हो सकता है। लेकिन पुलिस को भी आने में टाइम लगेगा। तब तक हमें ही कुछ करना होगा।” “अगर तुम ने पुलिस को बुलाने की कोशिश की तो तुम्हारी इस कार के साथ तुम्हारी भी चिथड़े चिथड़े उड़ जाएंगे।" उनमें से एक गुंडे ने कहा और अपने बैग में से ग्रेनेड निकाल लिए। उनके हाथ में ग्रेनेड देखकर वैदेही और देव घबरा गए, तो वहीं पास मौजूद सिक्योरिटी गार्डस भी डर से कांपने लगे। “तुम लोग ऐसा कुछ नहीं करोगे.....हम आ रहे हैं बाहर.....” अंदर से आवाज आई और इसी के साथ गाड़ी का दरवाजा खुला। कार में बैठा व्यक्ति कोई और नहीं यशवर्धन सिंह था। उसने अपने दोनों हाथ ऊपर कर रखे थे। “ये इतनी रात को यहां क्या कर रहा है?" यशवर्धन को सामने देखकर वैदेही ने हैरानी से कहा। देव ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसकी नजर सामने की तरफ टिकी हुई थी। यशवर्धन के बाहर आते ही वो गुंडे खिलखिला कर हंस पड़े। “जान पर बनती है.....तो बड़े-बड़े लोगों की फट जाती है। अब तक सुना ही था और आज देख भी लिया।" उनमें से एक गुंडा बोला। “तुम लोगों को जो भी चाहिए, हम देने के लिए तैयार हैं। प्लीज हमें जाने दीजिए।" जैसे ही यशवर्धन ने कहा वो गुंडा फिर से हंस पड़ा। “अच्छा..... जो भी हम मांगेंगे, वो ये देने को तैयार है। हमें तो तेरी जान चाहिए। बोल देगा क्या....." “साला इसको लगता है, हम यहां इसको यहां लूटने के लिए आए हैं। क्या डाकू लुटेरा समझा है अपुन को..... हम यहां कोई छोटा-मोटा गेम खेलने वाले नही है... बड़ा गेम खेलते हैं बड़ा.....” दूसरे गुंडे ने कहा। उनकी बातों से साफ नजर आ रहा था कि वो यहां यशवर्धन की जान लेने आए हैं। “हमें पता है कि तुम्हें यहां किसने भेजा होगा..... उस जैसे घटिया इंसान से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है।" यशवर्धन सिंह ने गुस्से में जवाब दिया। “ऐ..... ज्यादती बोल मत..... वरना अभी गेम बजा डालेगा।" बोलते हुए गुंडे ने बंदूक की नोक को यशवर्धन सिंह की छाती पर रखा। “अच्छा चल बता तेरी आखिरी इच्छा क्या है..... और हां तू जिस इंसान को घटिया कह रहा है, उसी ने ये करने को कहा है.....” वहां का माहौल संजीदा होता जा रहा था, जहां वो गुंडे किसी भी पल यशवर्धन की जान ले सकते थे। वैदेही और देव भी जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे क्योंकि उसका हर एक कदम यशवर्धन और बचे हुए 2 गार्डस के लिए खतरनाक साबित हो सकता था। वो लोग अपने बातचीत में लगे हुए थे। इन सबके बीच मौका पाते हुए वैदेही और देव छुपते छुपाते उनके काफी करीब पहुंच चुके थे। “हमारे सामने सिर्फ एक गन मौजूद है..... और ये लोग पूरे 4 हैं। अगर हमने गोली चलाई, तो इनमे से सिर्फ एक को ही जख्मी कर पाएंगे। इस से बाकी के 3 और सतर्क हो जाएंगे। जल्दबाजी में कहीं ये यशवर्धन सिंह को ना मार दे.....हमें सोच समझ कर कदम उठाना होगा।” वैदेही ने निशाना साधते हुए कहा। “मुझे तो लग रहा है कि हमें यहां आना ही नहीं चाहिए था..... ना तो हम कुछ कर पा रहे हैं, उपर से हम भी यहां आकर फंस गए हैं।" देव ने धीमी आवाज में कहा। उसकी बात सुनकर वैदेही ने उसे घूर कर देखा। “मुझे ये रिस्क उठाना होगा..... आई हॉप इस से यशवर्धन की जान को कोई नुकसान ना पहुंचे...” वैदेही ने अपना निशाना उस गुंडे पर साधा जो यशवर्धन के पास गन लेकर खड़ा था। अगले ही पल वो गुंडा यशवर्धन पर गोली चलाने के लिए तैयार था लेकिन तभी वैदेही ने दूर से उसके हाथ पर गोली मारी। गोली लगने से वो जोर से कराहा और बाकी के 3 गुंडे सतर्क हो गए। उन्होंने अपनी अपनी बंदूकें ऊपर कर ली थी। “कौन है वहां?" एक गुंडे ने चिल्लाकर पूछा। इसी के साथ दूसरी गोली चलने की आवाज आई। वो किसी को नही लगी... लेकिन तीनों गुंडे जवाबी हमले के लिए तैयार हो गए। वो लोग बैक फायर कर पाते उससे पहले यशवर्धन और उसके बाकी दो सिक्योरिटी गार्ड तुरंत हरकत में आ गए। उन्होंने उन्होंने उन गुंडों पर हावी होने की कोशिश की। उन्हे अपनी मदद करता देख देव और वैदेही भी बाहर आ गए थे। मौका पाकर यशवर्धन ने जल्दी से अपनी गाड़ी से गन निकाल ली और एक-एक करके उनमें से 2 लोगों को भून डाला। एक को वैदेही ने गोली मारकर गिरा दिया था। जबकि बचा हुआ एक गुंडा वहां से भागने की कोशिश करने लगा लेकिन सिक्योरिटी गार्डस ने उन्हें धर दबोचा। यशवर्धन सिंह ने उसे भी गोली मार दी जिस से तुरंत वो मर चुका था। नीचे जमीन पर उन चारों गुंडों की लाशे पड़ी थी। “ये क्या कर दिया आपने? हमें इन्हें पुलिस के हवाले करना चाहिए था ना कि इन्हें मारकर खुद कानून को हाथ में लेना था।” वैदेही गुस्से में यशवर्धन पर चिल्लाई। “अगर हम ऐसा नहीं करते तो वो हम लोगों को मार देते।” यशवर्धन ने जवाब दिया। “अरे ऐसे कैसे मार देते? हम लोग उन पर हावी हो चुके थे। आपको इस तरह उन्हें नहीं मारना चाहिए था। ऐसे तो कभी पता नहीं चल पाएगा कि आप पर हमला किसने करवाया था।" “लेकिन हम जानते हैं कि ये इसकी हरकत हो सकती हैं।" यशवर्धन सिंह ने कहा। “अगर आप जानते थे तो फिर भी ये दोनों आपकी बात को पुख्ता करने में सबूत के तौर पर काम आ सकते थे।" देव ने कहा। “जैसा आप सोच रही है, वैसा कुछ नहीं है। अगर ये लोग पकड़े जाते तब भी अपने मुंह से कुछ कबूल नहीं करते। हम इन जैसे लोगों को अच्छे से जानते हैं।” यशवर्धन सिंह ने अपनी सफाई पेश की। वैदेही को उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था और वो उससे बहस किए जा रही थी। वो लोग आपस में बहस कर रहे थे तभी पुलिस के गाड़ी के सायरन की आवाज आई। “हमने हीं गाड़ी में पुलिस को मदद के लिए बुलाया था लेकिन अब आप उनके आगे कुछ नहीं कहेंगी.....” यशवर्धन सिंह ने सख्त आवाज में कहा, “हम पुलिस को कहने वाले हैं कि हमने इन्हें सेल्फ डिफेंस में मारा था और आप भी हमारी बात पर सहमति जताएगी।" “और मैं ऐसा क्यों करूंगी?" वैदेही ने गुस्से में जवाब दिया। उसकी बातों से यशवर्धन समझ चुका था कि वैदेही को दबाना इतना आसान नहीं होने वाला था। “हम आपको सारी बातें एक्सप्लेन कर देंगे लेकिन फ़िलहाल आपसे रिक्वेस्ट करते हैं कि प्लीज आप चुप रहिएगा।" पुलिस उनके पास पहुंची। पुलिस हालात का जायजा लेने के लिए यशवर्धन के पास आई, जहां उसने अपना रटा रटाया जवाब देते हुए बोला, “आप तो जानते हैं कि इस तरह के हमले हम पर होते रहते हैं। जरूरी ये किसी विरोधी पार्टी का काम होगा। ये तो वैदेही जी और उनके साथी वक्त रहते आ गए। इनके रहते आज हमारी जान बच गई। हम उम्र भर इनके शुक्रगुजार रहेंगे।” “क्या आपको किसी पर शक है?" सब इंस्पेक्टर ने पूछा। “वो मैं.....” वैदेही ने बीच में बोलने की कोशिश की लेकिन यशवर्धन सिंह ने उसकी बात को काटते हुए कहा, “सॉरी वैदेही जी..... आज हमारी वजह से आपको इस परिस्थिति का सामना करना पड़ा। आप की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी हैं। हम आपको आपके घर तक छोड़ कर आएंगे।” वैदेही ने गुस्से में उसकी तरफ देखा। “ठीक है फिर भी हम आपके सिक्योरिटी का ध्यान रखते हुए आपके पीछे पुलिस वैन को भेज देते हैं। बाकी ये जो भी है, इनका तो पता लग ही जाएगा।” सब इंस्पेक्टर ने जवाब दिया। यशवर्धन ने उसकी बात पर हामी भरी और वैदेही का हाथ पकड़ कर उसे अपनी गाड़ी में ले जाने लगा। वैदेही उसके साथ बिल्कुल नहीं जाना चाहती थी। सब कुछ इतना जल्दी में हो रहा था कि वैदेही को अपनी बात रखने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था। “मैं देव के साथ चली जाऊंगी.....” वैदेही ने यशवर्धन का हाथ छुड़ाकर कहा। “जिद मत कीजिए वैदेही जी, आपको क्या लगता है कि हम क्या जानबूझकर चुप हैं? हमें अच्छे पता है कि ये हमला किसने करवाया है। वो लोग इतने खतरनाक है कि वो अब हमारे साथ साथ आप की भी जान के दुश्मन बन चुके हैं और हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से आपकी जान को भी कोई खतरा हो।" यशवर्धन ने बिल्कुल धीमी आवाज में कहा था। “अगर आप सब जानते हैं, तो बता क्यों नहीं देते?" वैदेही को उस पर हैरानी हो रही थी। वो पुलिस को कुछ बताने को तैयार ही नहीं था। “आप हमारे साथ चलिए। हम आपको सब कुछ एक्सप्लेन कर देंगे लेकिन प्लीज हम आपसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं, अभी के लिए चुप हो जाइए।" यशवर्धन ने बोलते हुए वैदेही को गाड़ी की तरफ इशारा किया। वैदेही ने इस बार ज्यादा बहस नहीं की और यशवर्धन के साथ गाड़ी में बैठ गई। जबकि देव वैदेही की गाड़ी को लेकर एक पुलिस कॉन्स्टेबल के साथ अपने घर जा चुका था। ★★★★
यशवर्धन सिंह को हमले से बचाने के बाद वैदेही उसके साथ अपने घर जा रही थी। यशवर्धन ने उन सभी गुंडों को सूट कर दिया था। उसकी इस हरकत से वैदेही उस पर काफी नाराज थी। लेकिन उसके बार-बार इंसिस्ट करने पर वो उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गई। “अपने किए की सफाई देने के लिए आपके पास पूरे 45 मिनट है।” कार में बैठते ही वैदेही बोली। “मैं जानता हूं कि आप के लिए चुप रहना बहुत मुश्किल था। जैसा कि लोग आपके बारे में कहते हैं, वो बिल्कुल सही है। आप बहुत बहादुर है और बहुत सच्ची भी.....“ “सच आपने बोलने ही कहां दिया मिस्टर सिंह? मेरे बारे में तो आपने बिल्कुल सही सुना था। लेकिन आपके बारे में? आपके बारे में सुनी हुई बातें आज झूठ लग रही है।" वैदेही ने तंज कसा। उसकी बात सुनकर यशवर्धन सिंह ने गहरी सांस ले कर छोड़ी। “यकीन मानिए मैंने आपको आपकी भलाई के लिए ही रोका था।” वैदेही ने उसके बाद उसका कोई जवाब नहीं दिया। यशवर्धन उसकी चुप्पी का मतलब समझ रहा था। कि वो आसानी से उस पर भरोसा करने वाली नहीं थी। “मैं आपको बता भी दूं कि ये हमला किसने करवाया था। फिर आप या आपकी पुलिस कुछ भी नहीं कर पाएंगी.... जहां तक मैं आपको जानता हूं उस इंसान का नाम सुनने के बाद आप उसके अगेंस्ट कुछ ना कुछ जरूर करती है। और मैं आपकी जान खतरे में नहीं डालना चाहता वैदेही जी.....” “आप बातों को गोल-गोल जलेबी की तरह क्यों घुमा रहे हैं?” “क्योंकि इसी में आपकी भलाई है।" ये कहकर यशवर्धन चुप हो गया। अगले 10 मिनट तक वहां पर एक चुप्पी छाई रही जिसमें किसी ने कुछ नहीं बोला। वैदेही के बार बार पूछने पर भी यशवर्धन उससे उस आदमी का नाम नहीं बताया। उसकी इस हरकत से वैदेही चिढ़कर चुप बैठी थी और बस घर आने का इंतजार कर रही थी। “वैसे इतनी रात को आप उस रास्ते पर क्या कर रही थी?" यशवर्धन ने चुप्पी को तोड़ते हुए पूछा। “यही सवाल मैं आपसे पूछ सकती हूं लेकिन आप तो उसका जवाब देंगे नहीं। आपने तो बस एक जवाब अच्छा खासा रट रखा है। वही कह देंगे कि मैं किसी की भलाई के लिए जुबान नहीं खोल सकता।" वैदेही गुस्से में उस पर बिफर पड़ी। “आपने मेरी जान बचाई है, तो बदले में कभी भी आपको मेरी जरूरत पड़े तो आप मुझे बेझिझक कभी भी कॉल कर सकती हैं।” यशवर्धन ने बातचीत का रुख मोड़ा। “वैसे वो रास्ता सैफ नहीं है आपको वहां से नहीं जाना चाहिए था।” यशवर्धन बोले जा रहा था जबकि वैदेही उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी। “हम आपसे बात कर रहे हैं वैदेही जी..... आप कुछ जवाब क्यों नहीं दे रही?" “जब तक आप मुझे मेरे सवालों के जवाब नहीं दे देते तब तक मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगी। एंड थैंक्स के आपने मेरी हेल्प करने के बारे में सोचा..... लेकिन आज आपने जो किया उसके बाद आई विस कि हम कभी ना मिले।” यशवर्धन उसकी बात का जवाब दे पाता उससे पहले ड्राइवर ने गाड़ी रोकते हुए कहा, “मैडम आपका अपार्टमेंट आ गया है।" “ड्राप करने के लिए थैंक यू सो मच मिस्टर यशवर्धन सिंह.....” बोलते हुए वैदेही गाड़ी का दरवाजा खोलने लगी। यशवर्धन ने उसे रोकने के लिए उसका हाथ पकड़ना चाहा लेकिन वैदेही ने उसे उंगली दिखाते हुए गुस्से में जवाब दिया, “डोंट यू डेयर.....” वैदेही ने गाड़ी का दरवाजा खोला और अपने घर में जाने के लिए लिफ्ट का रास्ता लिया। उसके जाने के बाद भी यशवर्धन सिंह की गाड़ी अभी भी वैदेही के अपार्टमेंट के आगे खड़ी थी। “एक दिन तुम मुझे खुद से मिलने के लिए आओगी..... तब तुम्हें पता चलेगा कि मैंने ये सब सच में तुम्हारी भलाई के लिए किया था। वैदेही.....” यशवर्धन ने सोचा और फिर ड्राइवर को गाड़ी चलाने को कहा। ____________ अगले दिन वैदेही सुबह उठी। रात को देर से घर पर आने की वजह से वो देरी से ही जगी थी। हमेशा की तरह उसने मॉर्निंग वॉक पर जाना भी स्किप किया। वैदेही को देर हो जाने की वजह से नरगिस ब्रेकफास्ट लेकर उसके कमरे में ही आ गई। “तुम क्या आज ऑफिस नहीं जा रही?" नरगिस ने वैदेही को देख कर बोला,जहां हमेशा वो ऑफिस वियर में रहती थी वहीं आज उसने कैजुअल्स पहने हुए थे। “सोचा तो यही है..... एक बार प्रतीक सर से बात करके कंफर्म कर लेती हूं अगर वहां कुछ काम हुआ तो चली जाऊंगी वरना मैं और देव.....” वैदेही ने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि नरगिस ने उसे बीच में काटते हुए बोला, “क्या यार तुम थोड़े दिनों के लिए भी चैन से नहीं बैठ सकती। क्या तुम्हें ये सुकून भरी जिंदगी पसंद नहीं है।“ “नहीं.....” वैदेही ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “एयर कंडीशनर के अंदर ऑफिस में बैठकर काम करना बहुत आसान होता है। अगर सभी इसी सुकून के बारे में सोचते तो आज बॉर्डर पर खड़े सोल्जर्स भी सुकून के साथ अपनी फैमिली के साथ रह रहे होते।” “तुम क्या कम हो तुम्हारा बस चले तो तुम भी एक मशीन गन लेकर बॉर्डर पर खड़ी हो जाओ.....” नरगिस ने जवाब दिया। “अगर मुझे बॉर्डर पर खड़ा होना होता तो मैं आर्मी जॉइन करती .... हर एक व्यक्ति का इस देश की सुरक्षा में अलग-अलग रोल है। चाहे वो सोल्जर हो या पुलिस.....या रिपोर्टर हो या डॉक्टर..... किसी का काम आसान है तो किसी का ज्यादा मुश्किल.....“ “कभी तो नॉर्मल लाइफ जी लिया करो हमेशा इसी तरह भाषण देती रहती हो।" नरगिस ने कहा और प्लेट में पड़ा टोस्ट उठाकर खाने लगी। वैदेही ने मुस्कुरा कर उसकी बात को टाल दिया और उसके पास बैठ कर नाश्ता करने लगी। “अच्छा अब बताओगी कि कल रात को कौन सी एक्शन मूवी का सूट हो रहा था। जो आने में इतनी देर हो गई?" नरगिस ने पूछा। वैदेही ने अब तक उसे कल रात के बारे में कुछ नहीं बताया था। “कुछ खास नहीं बस ऑफिस में देर तक काम करते हुए लेट हो गई।" वैदेही ने बहाना बनाकर बात को छुपा लिया। नरगिस ने भी आगे कुछ नहीं पूछा क्योंकि अक्सर पहले भी देर तक काम करते हुए वैदेही को आने में लेट हो जाती थी। नाश्ता खत्म होते ही नरगिस ने प्लेट उठाई और कहा, “लगता है आज फिर ऑफिस अकेले जाना पड़ेगा। तुम प्रतीक से बात कर लोगी या मैं उन्हें जाकर इनफॉर्म करूं?" “मैं उन्हें कॉल कर लूंगी।” वैदेही ने जवाब दिया। नरगिस ने उसकी बात पर हामी भरी और थोड़ी देर बाद ऑफिस के लिए निकल गई। उसके जाने के बाद वैदेही ने देव को मैसेज करके अपने घर पर आने का बोला और उसके बाद प्रतीक को कॉल किया। “प्रतीक सर आज मैं ऑफिस नहीं आ रही।” “पता था मुझे..... अपने काम से फ्री होते ही मुझे कॉल करना कल रात के बारे में मुझे हर एक बात जाननी है।" सामने से प्रतीक की आवाज आई। उसकी बात सुनकर वैदेही ने हैरानी से पूछा, “और आपको इसके बारे में किसने बताया?" “वैदेही तुमने कल रात जिस की जान बचाई है वो कोई आम आदमी नहीं महाराष्ट्र का भावी मुख्यमंत्री हो सकता है। शायद आज तुम मॉर्निंग वॉक पर नहीं गई और ना ही तुमने न्यूज़पेपर पढ़ा होगा। न्यूज़ देखने का टाइम तो फिर कहां से मिलने वाला था।“ प्रतीक के कहते ही वैदेही दौड़कर लिविंग रूम में आई और जल्दी से टीवी ऑन किया। टीवी पर सभी न्यूज़ चैनल अपने अपने हिसाब से उस न्यूज़ को तोड़ मरोड़ कर दिखा रहे थे। प्रतीक का कॉल चालू था। और इसी बीच पर वैदेही चैनल बदल बदल कर सभी चैनल्स की न्यूज़ देख रही थी। एक नए खुले न्यूज़ चैनल पर आते ही वैदेही ने उसे वहीं पर रोक दिया। उसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्से के भाव थे। “कल रात अगर हमारे जिम्मेदार नेता यशवर्धन सिंह नहीं होते तो एक न्यूज़ रिपोर्टर और उसके साथी की जान जा चुकी होती। वक्त रहते यशवर्धन सिंह में तेजी दिखाते हुए उन सभी गुंडों को मार गिराया और न्यूज़ रिपोर्टर और उसके साथी की जान बचा ली।” एक महिला न्यूज़ एंकर न्यूज़ बता रही थी। उसे देखने के बाद वैदेही ने गुस्से में टीवी बंद कर दिया और प्रतीक से कहा, “पता नहीं ये लोग कब सुधरेंगे जो टीआरपी के चक्कर में कुछ भी दिखा देते हैं जबकि इन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता.....” “काम डॉउन वैदेही ये कौन सा पहली बार हो रहा है? बस यही फर्क है हम लोगों में और इन लोगों में..... ये मिर्च मसाला लगाकर झूठ को परोसते हैं जबकि हमारा सादा सच भी लोगों को लुभाने के लिए काफी होता है।“ प्रतीक की बात सुनकर वैदेही चुप हो गई। उसे कल रात से यशवर्धन पर गुस्सा आ रहा था। ऊपर से ये खबर देखने के बाद तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। “मैंने यशवर्धन की.....” वैदेही सच बताने लगी लेकिन प्रतीक ने उसकी बात के बीच में बोलते हुए कहा, “तुम्हें कब से मुझे सफाई देने की जरूरत पड़ गई? मैं अच्छे से जानता हूं कि कल रात अगर तुम वहां मौजूद नहीं होती तो यशवर्धन सिंह के दो सिक्योरिटी गार्ड की तरह बाकी के दो गार्ड और वो खुद भी मारा जा चुका होता।" “एग्जैक्टली यही हुआ था।" “अच्छा आप अपना मूड ठीक करो। थोड़ी देर में देव आता ही होगा एंड मैंने तुम्हें कल रोका था, लेकिन आज मैं खुद चाहता हूं। कि तुम इस प्रोजेक्ट पर काम करो और उन सब लड़कियों को इंसाफ दिलाओ। ताकि लोगों को भी तो पता चले कि वैदेही दूसरों की जान बचाती है ना कि कोई और उसकी.....” प्रतीक की बात सुनकर वैदेही के चेहरे पर मुस्कुराहट थी हालांकि उसका गुस्सा कम नहीं हुआ था। लेकिन फिर भी वो मोटिवेटेड फील कर रही थी। “थैंक यू सो मच सर.....” वैदेही ने कहा और प्रतीक का कॉल कट कर दिया। वैदेही कल रात हुए हादसे को भुलाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन न्यूज़ चैनल पर आ रही रिपोर्ट को देखने के बाद वो उसकी तह तक पहुंचना चाहती थी। “जरूर दाल में कुछ काला है..... कुछ तो ऐसा है जो यशवर्धन सिंह मेरे सामने नहीं आने देना चाहता। इस बात को इतनी आसानी से जाने नही दे सकती।" वैदेही ने सोचा। वो खुद के ख्यालों में खोई हुई थी तभी उसके घर की डोर बेल बजी। इसी के साथ उसका ध्यान टूटा। “लगता है देव आ गया है।" वैदेही ने खुद से कहा और दरवाजा खोलने उठी। उसका अंदाजा सही था सामने देव मौजूद था। कल रात हुए हादसे की वजह से वो भी परेशान था उसके बाद दोनों को बात करने का भी मौका नहीं मिला। “बैठ कर बात करते हैं.....” वैदेही ने उसके परेशान चेहरे को देख कर कहा। देव ने उसकी बात पर हामी भरी और दरवाजा बंद करके अंदर आकर बैठ गया। दोनों ने काफी देर तक कुछ नहीं कहा और फिर अचानक से दोनों ने एक साथ बोला, “मुझे कुछ सही नहीं लग रहा वो यशवर्धन.....” बोलते हुए दोनों रुक गए और समझ भी चुके थे। कि आखिर दोनों क्या करना चाहते थे। दोनों के मन में एक ही बात चल रही थी। कि जरूर इस यशवर्धन उनसे बहुत बड़ी बात छुपा रहा था। “हम यशवर्धन के बारे में पता लगा कर रहेंगे।" वैदेही ने कहा। “मैं भी आपसे यही कहने वाला था।" देव ने जवाब दिया। वैदेही और देव अब यशवर्धन के बारे में सारा सच पता लगाने में जुट गए। जहां सब तरफ से यशवर्धन की अच्छी इमेज बनी हुई थी। वहीं अब उन दोनों को उसकी हरकतों से उस पर शक होने लगा था। ★★★★
नए केस पर काम करने के लिए देव वैदेही के घर पर आ चुका था। कल रात के हादसे के बाद उन दोनों के मन में यशवर्धन सिंह पर संदेह हो गया था। “मुझे कल रात उसका बिहेवियर बहुत अजीब लगा।" देव ने बताया। “तुम कल रात की बात कर रहे हो, मुझे तो जब से वो मिला है अजीब ही लगा। यू नो व्हाट वो पार्टी में मेरे पास आया और मुझे अपनी प्राइवेट मीटिंग में इनवाइट कर रहा था। सोचो, ऐसी प्राइवेट मीटिंग, जिसके अंदर किसी भी रिपोर्टर का आना अलाऊ नहीं था।” वैदेही की बातों ने देव को और भी हैरानी में डाल दिया था। “तो क्या वो अपनी पार्टी के सिक्रेटस लीक करना चाहता है?” “कुछ कह नहीं सकते.....” वैदेही ने कंधे उचका कर जवाब दिया। “कल रात उसने मुझे पुलिस के सामने मुंह नहीं खोलने दिया। और पूरे रास्ते गाड़ी में एक ही रट लगा रखी थी कि ये सब उसने मेरी भलाई के लिए किया ,बोल तो ऐसे रहा था जैसे वो हमला उस पर नहीं मुझ पर हुआ था।" “हां कुछ न्यूज रिपोर्टर्स के हिसाब से तो यही है..... जहां हम दोनों जंगल में जा रहे थे और ऑल ऑफ सडन यशवर्धन सिंह वहां पर हीरो बन कर आया और हम दोनों को बचा लिया।" देव ने मुंह बनाकर कहा। वो उसी न्यूज़ की बात कर रहा था जिसे सुबह वैदेही ने भी देखा था और वो गुस्सा हो गई थी। “उनके बारे में तो बात ही मत करो। मेरा भी दिमाग घुमा हुआ है। अपनी बात को रखते तो ऐसे हैं, जैसे दुनिया में इनसे सच्चा इंसान कोई हो ही नहीं सकता..... मुझे तो दया आती है उन लोगों पर, जो ऐसे लोगों पर विश्वास कर लेते हैं। बिना सच को जाने बस अपनी मनगढ़ंत कहानियां अपने हिसाब से रखते रहते हैं।" वैदेही गुस्से में उस न्यूज़ चैनल को कोस रही थी। “तो अब आगे क्या करना है? उसी प्रोजेक्ट पर लगे रहे या अपने नए मिशन..... मिशन यशवर्धन पर लगे?" देव ने पूछा। वैदेही ने कुछ देर सोच कर जवाब में कहा, “देव, इस केस पर काम करना भी बहुत जरूरी है। ऑलरेडी बहुत ढील बरती जा चुकी है। लेकिन यशवर्धन सिंह..... उसकी बात करूं तो वो भी जितना सीधा और शांत बनता है, उतना है नहीं। उसके बारे में पता लगाना भी उतना ही जरूरी है।" “हां कुछ दिनों में इलेक्शंस के रिजल्ट भी आ जाएंगे और मुझे लगता है हर बार की तरह इस बार भी महाराष्ट्र विकास पार्टी की ही जीत होने वाली है। ऐसे में यशवर्धन के सीएम बनने के चांसेस काफी ज्यादा है।” “ठीक है..... फिर ऐसा करते हैं कि मैं यशवर्धन को देखती हूं और तुम उस केस पर स्टडी करो। जब सुबूत साथ हो जाएंगे तो दोनों एक साथ धावा बोल देंगे।" वैदेही ने देव को इंस्ट्रक्शंस दिए। काम डिसाइड होने के बाद दोनों अपने-अपने काम पर लग गए। जहां देव लड़कियों के गायब होने के बारे में छानबीन कर रहा था। तो वहीं वैदेही यशवर्धन के बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही थी। __________ शाम के 6:00 बज रहे थे। यशवर्धन सिंह अपने निजी आवास में मौजूद था और अपने घर के बगीचे में टहल रहा था। वो टहलते हुए वैदेही के बारे में सोच रहा था। “हम अच्छे से जानते हैं कि इस वक्त आप हमारे बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही होंगी..... जल्दबाजी में हमारा डिसीजन ही कुछ ऐसा था। लेकिन अगर हम उन गुंडों को नहीं मारते तो कभी ना कभी वो छूट ही जाते और अपने साथियों की मौत का बदला लेने के लिए आपकी जान लेने से भी नहीं चूकते..... जाने वो दिन कब आएगा, जब आप हम पर विश्वास करेंगी। कहीं तब तक देर ना हो जाए। सिर्फ और सिर्फ इस वक्त आप ही है जो हमारी मदद कर सकती हैं।“ यशवर्धन अपने ख्यालों में खोया हुआ था। तभी उसके पास उसका सेक्रेटरी अनंत देसाई आया। वो उसके दाहिने हाथ की तरह था, जिसे उसके बारे में हर एक खबर मालूम होती थी। साथ ही उम्र में उससे बड़े होने की वजह से वो उसका मार्गदर्शक भी थे। “किसके ख्यालों में खोए हुए हैं सर?" अनंत जी ने उसके पास आकर कहा। “किसी के नहीं.....” यशवर्धन सिंह ने बात को टाल दिया। उसने बात का रुख मोड़ते हुए अनंत जी से पूछा, “इसे छोड़िए मैंने आपको जो काम दिया था, वो हो गया था क्या?" “ऐसा कभी हुआ है कि आप का दिया हुआ काम समय पर पूरा ना हुआ हो..... आपका संदेह बिल्कुल सही था। आप पर राघवेंद्र ने ही हमला करवाया था।" अनंत ने गंभीर स्वर में कहा। “मैं अच्छे से जानता था कि ये घटिया हरकत उसके अलावा और कोई नहीं कर सकता। उसे क्या लगता है? अगर पिताजी की तरह मुझे भी कुछ हो गया तो वो आसानी से सीएम की कुर्सी हासिल कर लेगा। उसके खिलाफ सबूत नहीं मिले लेकिन हम श्योर है कि उसी ने पिताजी को मरवाया होगा।” यशवर्धन ने गुस्से में कहा। अनंत ने उसको शांत करते हुए बोला, “आप टेंशन मत लीजिए सर, एक बार आपको सीएम की कुर्सी मिल जाए उसके बाद राघवेंद्र को उसके हर गुनाह की सजा मिलेगी।" “ऐसा तो तभी होगा ना जब मैं सीएम बन पाऊंगा। वो किसी भी कीमत पर ये कुर्सी मेरे लिए नहीं छोड़ेगा। अगर हम दोनों के बीच मतदान करवाया भी गया तो ज्यादातर उसे ही सपोर्ट करेंगे। अगर कोई उसे सपोर्ट नहीं भी करेगा तो वो अच्छे से जानता है कि उनके समर्थन के लिए उसे क्या करना है।" “बस यही तो फर्क है आपमे और उनमें..... वो हर काम को मार से करना जानते हैं तो आप प्यार से..... इस बार भी प्यार का तरीका आजमा कर देखिए क्या पता चीजें काम कर जाए।" अनंत ने भौंहे उठाकर गंभीर आवाज में कहा, मानो वो किसी और बात के बारे में बात कर रहा हो। उसकी बात सुनकर यशवर्धन ने गहरी सांस ले कर छोड़ी। “मैं आपके कहने का मतलब अच्छे से समझ रहा हूं देसाई जी..... लेकिन अभी इसके लिए जल्दबाजी होगी।” “कई बार जल्दबाजी करनी पड़ती है सर वरना हाथ आई बाजी किसी दूसरे के हाथ में चली जाती हैं। अब इजाजत दीजिए..... त्यागी जी को भी सब कुछ बताना है।" ये कहकर अनंत जी ने हाथ जोड़ें। यशवर्धन ने भी उनकी बात पर पलके झुका कर हामी भरी और उन्हें जाने की अनुमति थी। देसाई जी वहां से जा चुके थे जबकि यशवर्धन अभी भी वैदेही के बारे में सोच रहा था। _____________ दूसरी तरफ वैदेही के फ्लैट पर देव और वैदेही को साथ काम करते करते रात के 8:00 बज चुके थे। नरगिस भी अपनी शिफ्ट खत्म करके घर पर लौट आई थी। उन दोनों को साथ काम करते देख नरगिस ने चुटकी बजाते हुए कहा, “दोनों ने पूरे दिन में कुछ खाया पिया है या पूरे दिन से ऐसे ही समाज सुधार करने में लगे हो।” “हां बाहर से पिज्जा ऑर्डर किया था।" देव ने बिना उसकी तरफ देख कर जवाब दिया। “और अकेले-अकेले दोनों ने ठुस भी लिया.....” नरगिस ने मुंह बना कर जवाब दिया। “तुम तो डा इट कर रही थी ना?" वैदेही ने नरगिस की तरफ देख कर कहा तो वो गुस्से में उसे घूर रही थी। “अच्छा बाबा..... वी आर जस्ट किडिंग..... सुबह से तुम्हारे बनाए सेंडविचेस और जूस पर गुजारा कर रहे हैं।” “हां तुम आलसियों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती हैं?” नरगिस ने कहा और अंदर चली गई। उसके जाते ही वैदेही ने देव से पूछा, “अच्छा तुम्हारी रिपोर्ट कहां तक पहुंची?" “कुछ खास पता नहीं चल पा रहा बस पुलिस स्टेशन में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज की गई है। मैंने किसी से उस जगह का डे टा मंगवाया है लेकिन उसमें भी कुछ खास पता नहीं चल पा रहा। मुझे लगता है कि हमें वहां जाकर इनकी फैमिली से बात करनी होगी। अगर ये लड़कियां अपनी मर्जी से घर छोड़ कर गई है, तो कभी ना कभी किसी फैमिली मेंबर से कांटेक्ट करने की कोशिश की ही होगी.....” देव ने अपनी अब तक की रिपोर्ट को वैदेही के सामने रख दिया था। “मेरी रिपोर्ट की बात करूं तो यशवर्धन सिंह जी का करैक्टर उतना ही क्लीन है जितना कि उसका व्हाइट कुर्ता होता है। उसके अगेंस्ट आज तक कोई भी क्रिमिनल केस नहीं है। पार्टी में उसकी इमेज भी अच्छी है। पब्लिक इमेज की बात करूं तो अक्सर डोनेशन वगैरा भी देता रहता है।” “उसने उन गुंडों को क्यों मारा होगा?" “या तो यशवर्धन खुद ही बता सकता है। बट एट दि सेम टाइम वो हमें क्यों बताएगा? बताना होता तो वो अब तक मुझे बता चुका होता।” “क्यों ना हम उससे मिलकर बात करें?" देव ने सुझाव दिया। “तब भी वो हमें कुछ नहीं बताएगा। सच कहूं तो मैं उससे मिलना भी नहीं चाहती।" “तो क्या हम यशवर्धन के मिशन को छोड़कर उस केस पर ध्यान दे ? केस वाकई सीरियस है” देव की बात सुनकर वैदेही सोच में पड़ गई। कुछ देर सोचने के बाद उसने जवाब में कहा, “हां मैं भी तुम्हारी बात से एग्री करती हूं..... लेकिन यशवर्धन इतना ही अच्छा होता तो उस पर हमला क्यों होता? कहीं कुछ तो है, जो हमसे छूट रहा है।" “और उस कुछ का पता लगाने के लिए हमें यशवर्धन से मिलना ही होगा। लेकिन क्या हमें अपॉइंटमेंट मिल पाएगी?" देव ने पूछा। नरगिस उनके लिए नाश्ता लेकर आ रही थी। उसने देव की बात सुन ली थी। वो एक्साइटेड होकर उनके पास आई और खुशी से उछल पड़ी। “क्या सच में तुम लोग यशवर्धन सिंह से मिलने की बात कर रहे हो? अगर तुम लोग इंटरव्यू लेने के लिए जा रहे हो तो प्लीज मुझे भी साथ लेकर जाना।" उसकी बात सुन कर देव और वैदेही ने अपना माथा पीट लिया। “नरगिस..... हम यहां कुछ सीरियस बात कर रहे हैं। तुम अपनी प्यार मोहब्बत बाद में दिखा ले ना।" देव ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा। “क्या हो जाएगा अगर तुम लोग उससे मिलने जाओगे तो मुझे भी ले जाओगे। उस दिन पार्टी में भी उससे मिलने का मौका नहीं मिला। प्लीज....." नरगिस मासूम सा चेहरा बनाकर उसके सामने रिक्वेस्ट कर रही थी। “अब ये तो वैदेही मैम पर ही डिपेंड करता है कि वो यशवर्धन सिंह से मिलने के लिए जाएंगी या नहीं..... इसलिए तुम मुझे नहीं वैदेही को मनाओ।" देव ने नरगिस का ध्यान वैदेही की तरफ कर दिया। उसके ऐसा करने पर वैदेही ने उसे घूर कर देखा। “इससे कैसी रिक्वेस्ट करनी? ठीक है वैदेही, हम चल रहे हैं। मैं अपने लिए ऑनलाइन किसी साइट पर अच्छी ड्रेस देख लेती हूं और तुम..... तुम तो रिपोर्टर बन कर जाओगी तो वही अपना टिपिकल सा ऑफिस सूट पहन लेना।“ नरगिस ने कहा और अंदर चली गई। “इसका कुछ नहीं हो सकता। तो आपने क्या सोचा मैम? क्या आप उनसे मिलेंगी?" देव ने पूछा। वैदेही ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा, “यशवर्धन सिंह से कल या परसों की अपॉइंटमेंट लेने की कोशिश करो।” बोलते हुए वैदेही को याद आया कि यशवर्धन सिंह ने उसे उसके पर्सनल नंबर दिए थे। “खैर छोड़ो..... वो सब मैं मैनेज कर लूंगी। तुम कल शाम यशवर्धन सिंह से मिलने की तैयारी करो।” वैदेही ने कहा। देव को उसके अचानक बात बदलने का मतलब समझ नहीं आया लेकिन वो अच्छे से जानता था कि वैदेही ने हां कहीं है तो वो कुछ ना कुछ मैनेज कर ही लेगी। उसने बिना सवाल किए उसकी बात पर हामी भरी और कल मिलने का बोल कर वहां से चला गया। ★★★★
वैदेही ने देव से यशवर्धन से मिलने के लिए हां कह दी थी। देव भी अपना सारा काम निपटा कर अपने घर जा चुका था। उसके जाने के बाद वैदेही ने नरगिस के साथ डिनर किया और रात को सोने के लिए अपने कमरे में आ गई। वो अपने कमरे में चहलकदमी करते हुए खुद से बातें कर रही थी। “क्या इस तरह उससे मिलना सही रहेगा? पिछली बार हमारी मुलाकात अच्छी नहीं रही और मैंने उससे ये तक कह दिया था। कि मैं उससे अब कभी नहीं मिलना चाहूंगी। कॉल करके अपॉइंटमेंट ले लेती हूं.. लेकिन अब तक काफी देर हो गई है।” वैदेही ने घड़ी की तरफ देखा, तो रात के 12 बज रहे थे। उसने उस वक्त कॉल करना सही नहीं समझा और सोने चली गई। ____________ दूसरी तरफ यशवर्धन सिंह अपने कमरे की खिड़की से आसमान में तारों को देख रहा था। कल रात हुई घटना की वजह से वो पूरे दिन घर पर ही था। “जब भी आप सच्चाई के लिए अपनी आवाज उठाते हैं तो आपको इन सब चीजों के लिए तैयार रहना चाहिए..... बात पहले भी कई बार जान पर आई है लेकिन इतना दर्द कभी नहीं हुआ, जितना आपके गलत समझने पर हुआ वैदेही। काश आप आज हमारे साथ होते बाबा.....” यशवर्धन ने आसमान की तरफ देखकर कहा। जब भी उसे अपने पिता हर्षवर्धन की याद आती थी तब वो बालकनी में खड़े होकर तारों को देखा करता था। आज भी वो उन्हें याद करते हुए वही कर रहा था। कुछ देर वैसे ही आसमान को देखने के बाद यशवर्धन ने टाइम देखने के लिए अपना मोबाइल निकाला। “रात के 1:00 बज रहे हैं और आज फिर नींद नहीं आ रही। अकेला रहना बहुत मुश्किल होता है।" बोलते हुए यशवर्धन ने गहरी सांस लेकर छोड़ी। उसके बाद उसने बालकनी का पर्दा गिराया और अपने कमरे में आ गया। काफी देर कोशिश करने के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी। उसने अपना लैपटॉप निकाला और सोशल मीडिया पर वैदेही का अकाउंट निकाल कर उसे देखने लगा। “तुम्हारी जगह कोई और लड़की होती तो इतनी खूबसूरत होने के बाद मॉडल या ऐक्ट्रेस बनना पसंद करती..... बट तुम्हारी तो बात ही अलग है.....“ बोलते हुए यश वैदेही की पिक्चर्स स्ट्रोल करने लगा। “कौन कह सकता है कि ये मासूम और नाजुक सी दिखने वाली लड़की इतनी हिम्मत वाली है कि जंगल के बीच में पांच गुंडों से लड़ने से भी नहीं हिचकीचाई..... तुम स्पेशल हो वैदेही..... बहुत स्पेशल.....तभी मैंने तुम्हें चुना।" यशवर्धन ने लैपटॉप को साइड में रखा और लाइट बंद करके सोने की कोशिश करने लगा। उसकी आंखों के सामने बार-बार वैदेही का चेहरा घूम रहा था। ________ अगली सुबह वैदेही उठी और घर पर काम करने के बजाए ऑफिस जाने का सोचा। अभी भी वो यशवर्धन को मैसेज करने में हिचकिचा रही थी। “भले ही मुझे उससे काम है लेकिन मैंने खुद से मैसेज किया तो उसे ये ना लगे कि मैं उसकी जासूसी कर रही हूं..... शायद प्रतीक सर इन सब में मेरी हेल्प कर पाए।“ वैदेही ने खुद से कहा। वो ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी। हमेशा के लिए उसने अपने बालों को टाइट पोनीटेल में बांधा। तभी नरगिस नाश्ता लेकर अंदर आई और उसने वैदेही को तैयार होते देखा तो हैरानी से पूछा, “तुम ऑफिस जा रही हो?" “हां..... ऐसे तैयार होकर मैं किसी पार्टी में तो नहीं जा सकती ना?“ “मैं इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि तुम और देव कल साथ काम कर रहे थे। मुझे लगा कि आज भी साथ काम करोगे। इन सब को छोड़ो और ये बताओ कि हम यश जी से मिलने के लिए कब जा रहे हैं।“ नरगिस के मुंह से यश जी सुनकर वैदेही जोर जोर से हंसने लगी। “क्या? क्या तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो?" नरगिस ने उसे घूर कर देखा और कहा। “बिल्कुल नहीं.....“ वैदेही ने खुद को सामान्य करके बोला। “वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे यश जी से मिलने का मेरा अभी कोई इरादा नहीं है।" वैदेही ने यश जी शब्द को कुछ ज्यादा ही खींचकर बोला ताकि उसे हाईलाइट कर सके। “अभी नहीं तो कभी तो होगा ही..... बस उस कभी वाले टाइम मुझे मत भूलना।" नरगिस ने क्यूट सी स्माइल देकर बोला। वैदेही ने उसकी बात पर हामी भरी। दोनों ने नाश्ता किया और वहां से ऑफिस चली गई। वैदेही ने देव को भी ऑफिस आने का बोल दिया था। उसके आते ही दोनों प्रतीक के ऑफिस में थे। उन दोनों को एक साथ देख कर प्रतीक ने अपने दिल पर हाथ रखा और पास पड़ा पानी का गिलास एक बार में खाली कर दिया। उसके बाद उसने कहा, “मैं जब भी तुम दोनों को साथ देखता हूं, मेरे दिल की धड़कनें बढ़ जाती है। अब कौन सा नया रायता फैलाया तुम दोनों ने?" वैदेही और देव दोनों आकर प्रतीक के सामने की टेबल पर बैठ गए। “सर रायता फैलाने की नहीं, खाने की चीज है और खाने की चीज को फैलाया नहीं जाता।" देव ने मजाकिया तरीके से जवाब दिया। “वैदेही तुम ब्रेव हो लेकिन साथ ही मैं तुमसे बहुत नाराज हूं। जब मैंने कहा है कि तुम लोग टाइम से ऑफिस से चले जाया करो, उसके बाद लेट नाईट तक काम करने की क्या जरूरत थी। जानते हो ना कि जंगल का रास्ता सेफ नहीं है। फिर उस रास्ते से गए ही क्यों तुम दोनों?" प्रतीक उन दोनों को डांटने लगा। वैदेही और देव कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोलते उससे पहले प्रतीक उन्हें चुप करवा देता। “चुप रहो तुम दोनों..... मैं तुम दोनों की एक नहीं सुनने वाला। उस रास्ते से गए, सो गए..... क्या जरूरत थी हीरो बन कर उस यशवर्धन की जान बचाने की? अरे उसने एक थैंक्यू का बुके तक नहीं भेजा।” प्रतीक ने गुस्से में कहा। “आपको बुके चाहिए तो मैं आर्डर कर देता हूं सर।" देव ने कहा। “बात एक बुके की नहीं होती है देव..... पिछली बार उससे मिला था तो लगा था कि वो एक अच्छा इंसान है। लेकिन मुझे नहीं पता था कि वो इतना थैंकलेस होगा.....” “मुझे भी इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। वैदेही मैम क्या आपके घर पर कोई बुके आया? मुझे तो कुछ नहीं मिला।" देव और प्रतीक आपस में ही बात करें जा रहे थे। वैदेही ने अपना सिर पकड़ा और धीरे से बड़बड़ाते हुए कहा, “कौन कहता है कि जब दो लड़कियां मिल जाए तो ज्यादा बातें करती है.....” “तुम बताओ वैदेही.....” प्रतीक ने वैदेही से पूछने के लिए उसकी तरफ देखा तो वैदेही ने उसकी बात को काटकर उसे घूरते हुए देखा और बीच में बोला, “मुझे कुछ नहीं बताना, देव तुम भूल रहे हो कि हम यहां किस काम के लिए आए थे। जब से आई हूं तब से आप दोनों की खिटर–पिटर सुन रही हूं।" वैदेही ने थोड़ा जोर से कहा। उसकी बात सुनकर देव और प्रतीक दोनों ने अपने मुंह पर अंगुली लगा ली। “अच्छा बताओ.....” प्रतीक ने अपने मुंह पर अंगुली लगाए हुए ही बोला। “हां तो ध्यान से सुनिए। आप यशवर्धन से जिस बुके की उम्मीद कर रहे हैं, वो तो कभी नहीं आने वाला..... दूसरी बात ये कि वो कोई अच्छा इंसान नहीं है। जितना सीधा और अच्छा वो लोगों के लिए बन रहा है, सच्चाई इससे उलट है।" “और वो क्या?" प्रतीक ने हैरानी से पूछा। “उस रात 4 गुंडे मौजूद थे। जिनमें से 2 की मौका ए वारदात पर मौत हो चुकी थी। एक हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है, तो दूसरा हॉस्पिटल ले जाते वक्त रास्ते में मर गया था। तुम जानते हो, मैंने सिर्फ दो गोलियां चलाई थीं..... वो भी डिफेंस करने के हिसाब से..... अब आपको ये बताने की जरूरत तो नहीं होंगी कि उन लोगों की ये हालत किसने की होगी।" वैदेही ने एक सांस में उसे सारी बातें बता दी। “ऊपर से उनका ये कहना है कि जिसने भी उन पर हमला करवाया था, वो उसे अच्छे से जानते हैं। वैदेही मैम ने जब उसके बारे में पूछा तो बस नेताओं की तरह रटा रटाया भाषण दे दिया कि मैंने ये आप लोगों की भलाई के लिए किया है।" बची हुई बात देव ने प्रतीक के सामने रखी। “अब तुम दोनों क्या चाहते हो?" प्रतीक ने सीधे-सीधे पूछा। “यशवर्धन से मिलना.....” वैदेही और देव ने एक साथ जवाब दिया। “उससे क्या होगा?" वैदेही ने प्रतीक की बात का जवाब देते हुए कहा, “उस पर हमला करवाने वाले का नाम तो उसने बताया नहीं। बस अब यही उम्मीद है कि वो ये बता दे कि उसने जो किया, उसमें मेरी क्या भलाई छुपी थी।" प्रतीक को समझते देर नहीं लगी वैदेही और देव उससे क्या चाहते हैं। उसने बात को बिना ज्यादा घूमाए फिराए कहा, “मैं उसके इंटरव्यू के लिए अपॉइंटमेंट फिक्स करवाता हूं।” वैदेही और देव ने एक दूसरे की तरफ मुस्कुरा कर देखा। भले ही प्रतीक उनका बॉस था लेकिन वो सारे एंप्लाइज के साथ काफी फ्रेंडली था। यही वजह थी कि वो सभी बिना डरे अपनी बात उसके सामने रख देते थे। प्रतीक ने बिना देरी किए यशवर्धन के असिस्टेंट अनंत देसाई को कॉल किया, “प्रणाम देसाई जी..... सुना है आजकल यशवर्धन जी कुछ ज्यादा ही विकास कार्य में ध्यान दे रहे हैं।” “विकास नहीं होगा तो फिर आगे कैसे बढ़ेंगे।" सामने से अनंत देसाई की आवाज आई। “जी जी, आप भी सच कह रहे हैं।" प्रतीक ने नकली हंसी हंसते हुए कहा, “माना की कहावत है, नेकी कर दरिया में डाल लेकिन जानते हैं ना आजकल के जमाने में सब कुछ उल्टा ही चल रहा है। आजकल तो नेकी कर और सोशल मीडिया पर डाल का जमाना चल रहा है..... अब दूसरों को पता नहीं चलेगा तो लोग तो यही समझेंगे ना किसी और का काम है।" “आप जानते हैं ना कि यशवर्धन सिंह जी को दिखावा पसंद नहीं है। वो अपने पापा के उसूलों पर चलते हैं। उनके हिसाब से दाएं हाथ से दान दो, तो बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए।” “हम कहा कह रहे हैं कि आप बाएं हाथ को बताइए। हम तो बस ये कह रहे हैं कि दाएं हाथ में जिन जिन लोगों के हाथ में मोबाइल्स और टीवी का रिमोट होता है, बस उन्हें ही पता चलेगा..... कुछ जुगाड़ कीजिए ना इंटरव्यू का.....” प्रतीक उन्हें मनाने की पूरी कोशिश कर रहा था। अनंत देसाई ने थोड़ी देर तक सोचा और फिर जवाब देते हुए कहा, “ठीक है मैं कुछ करता हूं लेकिन हमारी भी एक शर्त है।” “जी सर आप हुकुम तो कीजिए, आपका हुक्म सर आंखों पर।” प्रतीक ने जवाब दिया। “हम चाहते हैं यशवर्धन बाबू का इंटरव्यू आज शाम को उन्हीं के निवास पर लिया जाए। कल उनके साथ जो हादसा हुआ उसकी वजह से वैसे भी वो चर्चा में बने हुए हैं। ऐसे में उनका इंटरव्यू आएगा तो सब तरफ उन्ही की हवा होगी और हां, इंटरव्यू लेने के लिए उसी रिपोर्टर को भेजिएगा, जो उस वक्त उसके साथ थी।” “जी जरूर..... शाम को वही रिपोर्टर यशवर्धन जी के घर पर होगी। प्रणाम देसाई जी.....” प्रतीक ने कहा और फोन कट कर दिया। जैसे ही उसने कॉल कट करके वैदेही की तरफ देखा तो वो उसकी तरफ घूर कर देख रही थी। “क्या? तुम तो अच्छे से जानती हो ना कि ऐसे लोगों से काम निकलवाने के लिए उनकी जी हुजूरी करनी पड़ती है। अब मैं उससे एटीट्यूड से बात करता तो वो कभी हां नहीं कहता।" प्रतीक ने सफाई दी। “चलिए मान लेते हैं।" कहकर वैदेही कुर्सी से खड़ी हुई और वहां से जाने लगी। अचानक उसे नरगिस का ख्याल आया तो वो वहीं पर रुक गई और प्रतीक से बोली, “टीम में नरगिस का भी नाम होना चाहिए। वो यशवर्धन सिंह से मिलना चाहती हैं।" उसकी बात सुनकर प्रतीत हल्का सा हंसा और जवाब में कहा, “अच्छा, मुझे तुम उस एक फेमस पब्लिक फिगर का नाम बता दो, जिससे वो नहीं मिलना चाहती हो?" जवाब में वैदेही ने कंधे उचका दिए। “मुझे नहीं पता..... आप देख लीजिएगा।" कहकर वैदेही अपनी ऑफिस की तरफ बढ़ने लगी। उसके मन में यशवर्धन के ही ख्याल चल रहे थे। “अब बच कर कहां जाओगे तुम यशवर्धन सिंह..... तुम्हें मेरे सवालों के जवाब देने ही होंगे। तुम्हें बताना होगा कि तुमने उन 4 गुंडों को क्यों मारा? ऐसा क्या है जो तुम सब से छुपा रहे हो.....” उसने सोचा। अपने केबिन में आने के बाद वैदेही देव के साथ मिलकर शाम को होने वाले इंटरव्यू की तैयारी करने लगी। _________ वहीं दूसरी तरफ अनंत देसाई के द्वारा शाम को होने वाले इंटरव्यू की खबर यशवर्धन सिंह तक भी पहुंच चुकी थी। “आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा वैदेही जी मैंने कहा था ना कि आप खुद मेरे तक चलकर आएंगी, बहाना चाहे जो भी हो लेकिन 1 दिन की भी दूरी आपसे बर्दाश्त नहीं हुई..... खुद की कहने की हिम्मत नहीं हुई तो इंटरव्यू लेने के बहाने अपने बॉस से बात करवा दी..... हमें आपकी ये अदा भी पसंद आई..... पता नहीं वो शाम कब आएगी जब आप हमारे साथ होगी।" यशवर्धन सिंह ने सोचा और शाम को होने वाले इंटरव्यू की तैयारी करवाने लगा। ★★★★ हेलो रीडर्स.... आपका एक छोटा सा रिव्यू राइटर के लिए एनर्जी बूस्टर होता है। अगर आप किसी भी लेखक की कोई रचना पढ़ रहे है, तो उस पर रिव्यू जरूर दे। ये करके जाने अंजाने आप एक राइटर को आगे लिखने के लिए प्रेरित कर रहे हो... बहुत से राइटर्स अच्छा रिस्पॉन्स न आने के कारण लेखन छोड़ देते है, तो प्लीज आप थोड़ा सा वक्त निकाल कर रेटिंग और रिव्यू जरूर दे, ताकि उसे आगे लिखने को मोटिवेशन मिलें। धन्यवाद 😇
यशवर्धन का इंटरव्यू कन्फर्म होने के बाद प्रतीक शर्मा ने अपनी एक टीम को उस के घर पर भेज दिया। यशवर्धन के घर पर इंटरव्यू की तैयारियां चल रही थी। “सर मुझे आपके घर का वो हिस्सा चाहिए, जहां पर लाइटिंग बिल्कुल परफेक्ट हो।” कैमरा मैंन ने यशवर्धन से कहा। यशवर्धन और अनंत देसाई उन्हीं के साथ वहां पर मौजूद थे। “आप इंटरव्यू लिविंग रूम में या हमारे घर की लाइब्रेरी में ले सकते हैं..... वैसे लाइब्रेरी हमारी पसंदीदा जगह है। आप वहां हमारा इंटरव्यू लेंगे, तो हमें ज्यादा अच्छा लगेगा।” यशवर्धन ने जवाब दिया। “लाइब्रेरी घर का एक बंद हिस्सा होती है। आर्टिफिशियल लाइटिंग हम अरेंज कर लेंगे लेकिन फिर भी चीजें उतनी अच्छी निकलकर नहीं आएगी।“ कैमरा मैन ने जवाब दिया। तभी उसकी असिस्टेंट ने सुझाव देते हुए बीच में बोली, “आपको लाइब्रेरी में ही तो इंटरव्यू देना है। हम ऐसा करते हैं कि आपके पीछे एक लाइब्रेरी का सेटअप दे देते हैं, इससे लोगों को लगेगा कि आप लाइब्रेरी में ही इंटरव्यू दे रहे हैं।” उसकी बात सुनकर यशवर्धन हल्का सा हंसा और फिर कहा, “आप चाहे तो कहीं और इंटरव्यू ले सकती हैं लेकिन हमें जनता के सामने ये झूठ नहीं परोसना। हम हमारे घर के स्टाफ को बोलते है, वो आपकी मदद कर देगा।” यशवर्धन सिंह ने अपने स्टाफ के एक मेंबर को बुलाकर सब कुछ समझा दिया। वो इंटरव्यू लेने वाली टीम की हर तरीके से मदद कर रहा था। यशवर्धन और अनंत देसाई दूर से खड़े होकर उन लोगों को देख रहे थे। “सर एक बार फिर से सोच लीजिए। इंटरव्यू लाइव होने वाला है और अभी तक हमारे पास इंटरव्यू से पूछे जाने वाले सवाल नहीं आए।” यशवर्धन ने जवाब में कहा, “इंटरव्यू में पूछे जाने वाले सवालों को भेजने के लिए मैंने मना किया था। मैं नहीं चाहता कि एक छोटी सी गलती की वजह से वैदेही के सामने मेरी इमेज खराब हो.....” “आपने त्यागी जी को बता दिया है ना इस इंटरव्यू के बारे में?” “नहीं देसाई जी..... लेकिन बता दूंगा। जब से मुझ पर हमला हुआ है, तब से उनका एक बार भी कॉल नहीं आया। जबकि वो अच्छे से जानते हैं कि इन सब के पीछे कौन है।” यशवर्धन ने परेशान स्वर में कहा। यशवर्धन और अनंत देसाई आपस में बात कर रहे थे तभी यशवर्धन के फोन पर पार्टी अध्यक्ष रामचरण त्यागी का कॉल आया। “लगता है त्यागी जी कुछ और साल जीने वाले हैं।” देसाई ने हल्के मजाकिया तरीके से कहा। जवाब में यशवर्धन ने मुस्कुराहट दी और दूसरी तरफ जाकर त्यागी जी का फोन उठाया। उस ने देसाई को भी अपने पीछे आने का इशारा किया। इशारा पाकर वो भी उसके पीछे दूसरे कमरे में आ गया। फोन स्पीकर पर था..... जिस से अनंत देसाई भी त्यागी की बातों को सुन सकता था। उनके फोन उठाते ही त्यागी जी ने उसका हेलो बोलने का भी इंतजार नहीं किया और तुरंत बोल पड़े, “इतने बुरे दिन कब से आ गए कि इन न्यूज वालों के जरिए पता चल रहा है, तुम्हारा इंटरव्यू होने वाला है। पूछना तो दूर की बात है कम से कम एक बार बता तो देते।” त्यागी जी की आवाज से ही पता चल रहा था कि वो गुस्से में थे। यशवर्धन ने गहरी सांस ले कर छोड़ी। कुछ सेकंड शांत रहने के बाद उसने जवाब में कहा, “न्यूज़ चैनल वालों से तो आपको बहुत सी बातों का पता चला होगा..... हमारा इंटरव्यू, परसों रात हम पर हुआ हमला.....” “हम राघवेंद्र से बात करने ही वाले थे लेकिन.....” बोलते हुए त्यागी जी चुप हो गए। “लेकिन क्या? और आप बात करने वाले थे? कब? जब हमारा यहां से जनाजा उठ रहा होता, तब.....? त्यागी जी अब इस बात की दुहाई तो बिल्कुल मत दीजिएगा कि पापा के जाने के बाद आप ने हमें उनकी कमी महसूस नही होने दी। सच कह रहे हैं हमें एक खरोच भी आती तो हमारे पापा पूरा घर और आपकी पार्टी को सर पर उठा लेते हैं। वहां इतनी शांति छाई है क्योंकि वो इस दुनिया में नहीं है।” यशवर्धन के कठोर शब्दों को सुनकर त्यागी जी का गुस्सा शांत हुआ। यशवर्धन की बातों से साफ नजर आ रहा था कि वो काफी गुस्से में था। “वो इस वक्त मुंबई में मौजूद नहीं है।” त्यागी जी ने धीमी आवाज में कहा। “वो तो मुंबई में नहीं है लेकिन आप तो है। एक बार फिर आपने हमारा हालचाल पूछना तक जरूरी नहीं समझा..... अगर आपको ऐसा लगता है कि इंटरव्यू के दौरान हम पार्टी के सारे राज खोल देंगे या हम पर हुए हमले के पीछे असली शख्स का नाम बता देंगे, तो आपको बता दें कि हम इंटरव्यू के दौरान आपकी पार्टी पर आंच नहीं आने देंगे। निश्चिंत हो जाइए।” यशवर्धन की बातों से त्यागी जी शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। उन्होंने यशवर्धन की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और कॉल कट कर दिया। त्यागी जी का फोन कट ते ही देसाई ने कहा, “काफी अच्छे से संभाला है आपने त्यागी जी को.....” “भले ही पापा के होते हुए मैंने इतने साल तक पीछे से काम किया लेकिन अच्छे से जानता हूं, यहां किसकी कमजोर नस कौन सी है और किस वक्त दबानी है।” यशवर्धन ने शांत तरीके से जवाब दिया “सच कहे तो हमें त्यागी जी से ये उम्मीद नहीं थी। उन्होंने तो आपका हाल-चाल तक पूछना जरूरी नहीं समझा.....” “जरूर पूछेंगे देसाई जी..... एक वक्त ऐसा आएगा जब ये हमारे पीछे कुत्ते की तरह दुम हिलाते हुए घूमेंगे। फिर हाल-चाल तो बहुत छोटी चीज रह जाएगी।” यशवर्धन के चेहरे पर चमक और शब्दों में मजबूती थी। फिर उसने अपनी बात को बदलते हुए कहा, “वैदेही जी के आने में कितना वक्त है?” उसके पूछने पर अनंत देसाई ने घड़ी की तरफ देख कर बोला, “इंटरव्यू शाम के 5:00 बजे होने वाला है और 3:00 बज रहे है। लगभग 1 घंटे बाद वो यहां पर होंगी।” “फिर तो हमें तैयार होना शुरू कर देना चाहिए।” “वैसे इसकी कोई जरूरत नहीं है, लेकिन आप फिर भी चाहते हैं तो एक बार हुकुम कीजिए, आपको क्या चाहिए। अगले कुछ मिनट में वो आपके सामने होगी।” “हमारे पास वो सब चीज मौजूद है जो हमें चाहिए..... और जो चीज हमारे पास मौजूद नहीं है, वो अगले 1 घंटे में हमारे सामने पहुंच जाएगी।” यशवर्धन ने मुस्कुराते हुए कहा और तैयार होने के लिए अपने कमरे में चला गया। उसके जाने के बाद देसाई जी भी नीचे लिविंग रूम में आ गए जहां पर इंटरव्यू के लिए सेट किया जा रहा था। __________ शाम के 4:00 बज रहे थे। यशवर्धन के घर पर इंटरव्यू की सारी तैयारियां पूरी की जा चुकी थी। बाकी की टीम यशवर्धन के घर पर पहुंच चुकी थी जबकि वैदेही का आना अभी भी बाकी था। यशवर्धन उसके आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। उसका इंतजार अब खत्म हो चुका था। वैदेही नर्गिस के साथ यशवर्धन के घर पर पहुंची। उसने आते ही एक नजर वैदेही की तरफ देखा, जो कि हमेशा की तरह फॉर्मल वियर में थी। “यहां हमने उनके आने की इतनी तैयारियां की है और ये हमेशा की तरह उसी ऑफिस सूट में पोनीटेल बांधकर आई है।” यशवर्धन ने वैदेही की तरफ देखकर सोचा। वैदेही के साथ नरगिस भी मौजूद थी। उसने यशवर्धन की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए हाथ ऊपर उठाया। उसके ऐसा करने से यशवर्धन का ध्यान उसकी तरफ खिंच गया। नरगिस यशवर्धन से मिलने के लिए बाकी टीम से अलग लग रही थी। जहां सभी नॉर्मल कपड़ों में थे वही नरगिस उन सबसे अलग ब्लैक कलर की फ्लोरल वन पीस में थी। “कुछ तो सीखे अपनी दोस्त से.....” यशवर्धन धीरे से बड़बड़ाया। “तुम टीम से पूछ कर तुम्हारे लायक कोई काम है तो उनकी हेल्प कर दो..... मैं यशवर्धन जी को सब कुछ समझा देती हूं।” वैदेही ने नरगिस से कहा। “तुम रहने दो, मैं उन्हें सब समझा दूंगी। तुम अपने सवालों को देख लो.....” वैदेही के जवाब का इंतजार किए बिना नरगिस यशवर्धन के पास चली गई। “नरगिस बहुत इनोसेंट है। कहीं अपनी मासूमियत वो उसे कुछ गलत ना बता दे.....” मामले को संभालने के लिए वैदेही भी नर्गिस के पीछे यशवर्धन के पास गई। “हेलो.....” उन दोनों के पास आते ही यशवर्धन मुस्कुरा कर बोला। “हेलो सर.....” नरगिस ने वैदेही को बोलने का मौका नहीं दिया, उससे पहले ही खुद बोल पड़ी, “आप बिल्कुल फिक्र मत कीजिए सब कुछ आपके कंफर्ट के हिसाब से होगा..... आप चाहे तो सवालों को पहले पढ़ भी सकते हैं, ताकि आपको जवाब देने में दिक्कत ना हो।” अपनी बात खत्म करके नरगिस ने वैदेही की तरफ देखा, जिसके हाथ में सवालों के लिस्ट थी। उसने झट से उससे वो पेपर छीना और यशवर्धन की तरफ बढ़ाने लगी। नरगिस की इस हरकत पर वैदेही यशवर्धन और नरगिस दोनों को घूर कर देख रहे थे। उसके ऐसे देखने से यशवर्धन के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी। “हमें इसकी कोई जरूरत नहीं है..... ये हम पहले भी कर सकते थे लेकिन उस जनता के साथ गलत होगा, जो हमें देखने के लिए अपना टाइम निकालकर टीवी स्क्रीन के आगे होगी।” यशवर्धन ने सादगी से कहा और वो पेपर लेने से साफ इनकार कर दिया। उसके ऐसा करने से नरगिस उससे और भी इंप्रेस हो गई। “हाउ इंप्रेसिव... सब लोग आपकी तरह नहीं होते।” “लेकिन हम औरों से अलग है।” “अगर आप दोनों की बातें हो गई हो तो अब हम इंटरव्यू से जुड़ी हुई कुछ बातें कर ले?” वैदेही ने सख्त आवाज में कहा। “जी बिल्कुल... चलिए हम वहां बैठ कर बात करते हैं।“ बोलते हुए यशवर्धन ने शूटिंग एरिया से कुछ दूर लगे काउच की तरफ इशारा करके कहा। “हां.....वैसे भी यहां काफी शोर है।” वैदेही के हां कहते ही यशवर्धन सोफे की तरफ बढ़ने लगा। वैदेही उसके पीछे जाने की बजाय नरगिस की तरफ मुड़ी और उसे घूरते हुए कहा, “अब तुम चुप कर के एक कोने में बैठ कर सब कुछ देखोगी..... क्या बकवास कर रही थी उसके सामने?” “लेकिन मैं तो.....” “मैंने कहा ना कुछ लेकिन वेकिन नहीं.....” वैदेही ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा। वो नहीं चाहती थी कि नरगिस की वजह से मामला उसके हाथ से जाए। वैदेही के कहने पर नरगिस टीम के पास चली गई। उसके जाने के बाद वैदेही भी यशवर्धन के पास आ चुकी थी। उसके पास बैठते ही यशवर्धन ने पूछा, “कैसी हैं आप?” “अब मेरी भलाई करने वाले इतने लोग हैं, तो मैं कैसे हो सकती हूं..... आज हम प्रोफेशनली मिल रहे हैं, तो बेहतर होगा कि प्रोफेशनल बातें ही करें।” वैदेही ने जवाब दिया। “वैसे आपने हमसे मिलने का ये जो प्रोफेशनल तरीका निकाला है, वो हमें पसंद आया..... लेकिन आपके पास हमारे नंबर थे और हमने आपसे कहा भी था कि हम फिर मिलेंगे। आप चाहती तो हम से डायरेक्ट मिलने आ सकती थी। इसके लिए ये ड्रामा करने की क्या जरूरत थी वैदेही जी.....” जैसे ही यशवर्धन ने अपनी बात खत्म की वैदेही की आंखें बड़ी करके हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी। यशवर्धन ने मुस्कुराते हुए फिर कहा, “अब इसमें हैरान होने जैसा कुछ नहीं है। हम क्या जानते नहीं कि आप हमसे बात करना चाहती थी इसलिए ये इंटरव्यू अरेंज करवाया। सब जानते है, आप सिर्फ क्राइम न्यूज़ कवरेज करती है, वो भी ज्यादा इंटेंस हो तो..... फिर यहां एक पॉलिटिशन का इंटरव्यू लेने? क्या ये आप के बनाए हुए सो कॉल्ड रूल्स के खिलाफ नहीं है?" वैदेही ने तुरंत अपने चेहरे के भावों को बदला ताकि यशवर्धन को उस पर शक ना हो। “जी बिल्कुल नहीं मिस्टर सिंह..... हमारा चैनल आपका इंटरव्यू लेना चाहता था। आपके इंटरव्यू के लिए किसी दूसरे रिपोर्टर को सेलेक्ट किया गया था। आपके तरफ से ये शर्त रखी गई थी कि ये इंटरव्यू वही रिपोर्टर लेगी जो उस रात आपके साथ थी।” वैदेही की बातों ने यशवर्धन का मुंह बंद करवा दिया। वो अच्छे से जानती थी कि किससे किस तरह से डील की जा सकती थी। “अब अगर टाइम वेस्ट ना करके काम की बात करें तो ज्यादा बेहतर होगा। अगले आधे घंटे में आपका इंटरव्यू शुरू होने जा रहा है जो कि लाइव होने वाला है। यहां पर की गई शूट 5 मिनट बाद जनता तक पहुंच जाएगी। अगर आपको किसी सवाल का जवाब नहीं देना है, तो आप उसी वक्त मना कर सकते हैं। इसके लिए आपको डायरेक्ट ना नहीं करनी है। आपको अपने पास पड़ा पानी का ग्लास उठाकर उसी से एक शिप लेना है, तब हम समझ जाएंगे कि इस सवाल का जवाब आप नहीं देना चाहते और हम उसी वक्त ब्रेक लेंगे।” वैदेही प्रोफेशनली उसे हर एक बात समझा रही थी। “हम आपके हर सवाल का जवाब देंगे।” “फिर तो तैयार रहिएगा मिस्टर सिंह..... कहीं ये आपके कैरियर का पहला और आखिरी लाइव इंटरव्यू ना बन जाए।” वैदेही ने मुस्कुराते हुए कहा और वहां से उठकर टीम के पास चली गई। उसकी बातों से यशवर्धन के चेहरे पर चिंता की लकीर थी। फिर भी उसने इसे जाहिर नहीं होने दिया। अगले 15 मिनट में उसका इंटरव्यू शुरू होने वाला था। ★★★★
यशवर्धन का लाइव इंटरव्यू शुरू हो चुका था, जो कि उसी के घर से शूट किया जा रहा था। यशवर्धन एक युवा नेता था। इस वजह से युवाओं में उसे लेकर एक अलग ही क्रेज था..... तो वही न्यूज़ एंकर के तौर पर वैदेही की पॉपुलैरिटी भी किसी से कम नहीं थी। इंटरव्यू प्राइम टाइम पर ना होकर भी सभी इंटरव्यू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। कोई अपने टीवी स्क्रीन के जरिए, तो कोई सोशल मीडिया के जरिए इस इंटरव्यू को देख रहा था। “नमस्कार इंडिया..... मैं वैदेही रघुवंशी.....” हमेशा की तरह वैदेही ने अपना इंट्रोडक्शन दिया। “आज मैं फिर आपके सामने हाजिर हूं। हमेशा की तरह आज मैं आपके सामने कोई क्राइम स्टोरी या उससे जुड़े हुए पुख्ता सबूत लेकर नहीं बल्कि एक ऐसी शख्सियत को अपने साथ लेकर आई हूं, जिससे के बारे में सभी लोग ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं। महाराष्ट्र विकास पार्टी के सबसे युवा नेता यशवर्धन सिंह.....” कैमरा वैदेही से यशवर्धन की तरफ मुड़ा। मैन फोकस उस पर आते ही उसने हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए “नमस्ते“ कहा। वैदेही इंटरव्यू को आगे बढ़ाते हुए बोला, “यशवर्धन सिंह एक ऐसा नाम जिसे शायद परिचय की कोई जरूरत नहीं है। ये सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता है और इनकी पॉपुलैरिटी किसी से छुपी हुई नहीं है। ये इनका पहला लाइव इंटरव्यू है..... अगर आप इन से कुछ सवाल पूछना चाहते हैं, तो अपने सवालों को आप स्क्रीन पर दिख रहे नंबर पर एसएमएस कर सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा आपके सवालों को लेने की कोशिश करेंगे।” इंटरव्यू शुरू होने से पहले हमेशा की तरह उसने इंस्ट्रक्शंस किए और फिर एक छोटा सा ब्रेक अनाउंस किया। “यशवर्धन जी ऑल सेट?" कैमरामैन ने जोर से बोलते हुए पूछा। “जी बिल्कुल.....” उसने जवाब में कहा। “ओके वैदेही, हम नेक्स्ट तो 10 सेकंड में फिर से लाइव होने जा रहे हैं। तुम अपना इंटरव्यू शुरू कर सकती हो।" कैमरामैन के कहने पर वैदेही ने हामी भरी। उसने अपने इंटरव्यू को आगे बढ़ाते हुए कहा, “वेलकम बैक..... आपका ज्यादा टाइम वेस्ट नहीं करते हुए यशवर्धन जी का इंटरव्यू शुरू करते हैं। हां तो सर मेरा पहला सवाल ये है कि ये आपका पहला इंटरव्यू है। कैसा लग रहा है अपनी जनता के साथ लाइव रूबरू होकर?" वैदेही की आवाज से उसका कॉन्फिडेंस झलक रहा था। यशवर्धन ने बिल्कुल संयमित स्वर में जवाब देते हुए कहा, “जी बहुत अच्छा लग रहा है। पहले भी जनता से रूबरू होने का मौका मिला है लेकिन आज आपके साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए ये नया एक्सपीरियंस होगा।" “सबसे पहले आप अपने बारे में कुछ बताइए यशवर्धन जी? आपके चाहने वाले आपकी पर्सनल लाइफ के बारे में जानना चाहते हैं।” “जी बिल्कुल..... हम बेसिकली मुंबई से ही बिलॉन्ग करते हैं लेकिन हमारी स्कूलिंग से लेकर कॉलेज तक की स्टडी दिल्ली से कंप्लीट हुई है। हमने पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्ड कर रखा है।“ “इंप्रेसिव....“वैदेही ड्रैमेटिक तरीके से शब्द को खींचते हुए बोली, “अच्छा पॉलिटिक्स में आने का कोई खास कारण?“ “जैसा कि सबको पता है कि हमारे पिता स्वर्गीय श्री हर्षवर्धन सिंह जी पहले से ही राजनीति का हिस्सा रहे हैं। हमने कभी उनके नक्शे कदम पर चलने का सोचा नहीं था लेकिन जनता के लिए उनका डेडिकेशन और प्यार देखकर हम खुद इस तरफ खिंचे चले आए।" यशवर्धन ने जवाब दिया। “तो क्या आप भी अपने पिताजी की तरह जनता के लिए हमेशा डेडिकेट रहेंगे? हमें बहुत खेद है कि आखिरी बार भी जनता की सेवा करते हुए ही उनकी मौत हो गई। क्या आपकी तरफ से भी वो समर्पण देखने को मिलेगा जो हर्षवर्धन सिंह जी के अंदर था?” “हां.....क्यों नहीं? हम जनता की भलाई के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अपने फर्ज को निभाने के लिए तो हम अपनी जान भी दे सकते हैं।” जैसे ही यशवर्धन ने अपनी बात खत्म की वैदेही ने तुरंत अपना अगला सवाल रखा, “और अगर इसके लिए किसी की जान ले ली पड़े तो?" वैदेही का सवाल सुनकर यशवर्धन थोड़ा सकपका गया लेकिन उसने अपने चेहरे पर ये जाहिर नहीं होने दिया। वैदेही उससे आगे कुछ बोल पाती उससे पहले डायरेक्टर ने उसे ब्रेक अनाउंस करने का इशारा किया। “बने रहिए हमारे साथ.....एक इस छोटे से ब्रेक के बाद भी..... जहां हमारा सवाल जारी रहेगा..... अगर यशवर्धन सिंह जी के सामने जान लेने के बजाय जान लेने का मौका मिला तो ऐसी परिस्थिति में वो कौन सा कदम उठाएंगे।" वैदेही के बात खत्म करते ही एक छोटा सा ब्रेक आ गया। ये सवाल लिस्ट में ना होने की वजह से डायरेक्टर उसकी तरफ घूर कर देख रहा था तो वहीं यशवर्धन के चेहरे पर भी इस सवाल से वैदेही के प्रति उसकी नाराजगी साफ जाहिर हो रही थी। “वैदेही ये तुम क्या कर रही हो? ये सवाल तो लिस्ट में मौजूद ही नहीं है।" डायरेक्टर ने उसके पास आकर कहा। “आप जानते हो ना कि मुझे इस तरह के इंटरव्यूज लेने का कोई एक्सपीरियंस नहीं है..... मैं जिस तरह की स्टोरी कवर करती हूं, उसमें चीजें सस्पेंस से जुड़ी हुई होती है..... जब जान देने की बात आई तो इंसटैंटली मेरे मुंह से जान लेने का सवाल आ गया। एम सो सॉरी फॉर दैट.....” वैदेही ने बड़े ही कॉन्फिडेंटली झूठ बोलकर बात को छिपा दिया। जबकि यशवर्धन अच्छे से समझ रहा था कि वैदेही सबका ध्यान किस तरफ केंद्रित करना चाहती थी। “आई एम सो सॉरी सर.....ब्रेक के बाद हम सवाल बदल देंगे।” जैसे ही डायरेक्टर ने कहा वैदेही उसकी तरफ घूर कर देखने लगी लेकिन। अगले ही पल यशवर्धन ने जवाब में कहा, “इसकी कोई जरूरत नहीं है। हम किसी भी सवाल से पीछे नहीं हटेंगे, ये हमने पहले भी कहा था।" यशवर्धन का जवाब देने के लिए हामी भरना चौका देने वाला था। उसने इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी। “ओके बी रेडी.....हम अगले 10 सेकंड में फिर से लाइव होने जा रहे हैं।" कैमरा मैन ने आवाज लगाकर कहा। वैदेही के लास्ट सवाल ने काफी हाइप क्रिएट कर दी थी। नरगिस लैपटॉप के जरिए लाइव टीआरपी रेटिंग देख रही थी। उसने बीच में खुशी से चिल्लाते हुए बोला, “भले ही वैदेही का सवाल अनएक्सपेक्टेड था लेकिन इस सवाल ने काफी हाइप क्रिएट की है.....” “दैट्स ग्रेट.....” कैमरामैन ने नरगिस की बात पर रिएक्ट करते हुए कहा। फिर उसने वैदेही को इंटरव्यू आगे बढ़ाने का इशारा किया। “वेलकम बैक इंडिया..... हम अच्छे से जानते हैं कि आप लोग यशवर्धन जी के जवाब का इंतजार कर रहे हैं। जहां हम भी उनसे पूछा था कि अगर उन्हें जान देने के बजाय की जान लेना पड़े तो वो ऐसी परिस्थिति में क्या करेंगे? यशवर्धन जी जवाब दीजिए। जनता आपके जवाब का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।“ वैदेही ने हल्का मुस्कुराते हुए यशवर्धन की तरफ देखकर अपने मन में कहा, “जवाब दो यशवर्धन और बताओ सबको कि तुम अपने फायदे के लिए किसी की जान लेने से पहले एक पल के लिए भी नहीं सोचते।” “आपके जवाब में मैं यही कहना चाहूंगा वैदेही जी कि अगर जरूरत पड़ी तो मैं जान लेने से भी नहीं हिचकिचाऊंगा। अगर मेरे सामने कोई आंतकवादी खड़ा होगा..... या कोई और क्रिमिनल..... जिसकी वजह से आम जनता को नुकसान पहुंचे, तो ऐसी परिस्थिति में मैं एक पल के लिए भी नहीं सोचूंगा और उसी पल सामने वाले की जान दे लूंगा।“ यशवर्धन ने मजबूती से जवाब दिया। __________ कैफेटेरिया में कुछ लड़कियों का ग्रुप इस इंटरव्यू को वहां लगी स्क्रीन पर देख रहा था। यशवर्धन के जवाब के साथ ही टीवी स्क्रीन पर उसका इंटरव्यू देख रहे लोग खड़े होकर तालियां बजाने लगे तो कुछ उसके लिए सीटी मार रहे थे। उनमें से एक लड़की ने सीटी मारी और चिल्लाते हुए कहा, “वाह, अपना हीरो तो छा गया।" “अरे वैदेही जी भी किसी से कम नहीं है..... बिना डरे हर एक सवाल कैसे तड़ाक से पूछे जा रही हैं। इनकी जगह कोई और होता तो वही घिसे पिटे सवाल पूछता..... लाइक उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं..... उन्हीं के बारे में इंटरव्यू होता।” दूसरे लड़के ने जवाब में कहा। “अरे हमारी वैदेही जी तो है ही बेस्ट..... हर लड़की को इन्हीं की तरह बनना चाहिए।" वहां मौजूद एक लड़की ने वैदेही की तारीफ में कहा। “अब तुम लोग चुप करो। आगे का इंटरव्यू सुनने दोगे या नहीं?” एक लड़का चिड़ते हुए बोला और इसी के साथ वहां पर फिर से शांति छा गई। सब उस इंटरव्यू को गौर से देख रहे थे। _________ “क्या ऐसे में आपको हमारी न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है, जो आप कानून हाथ में लेने से नहीं चूकेंगे?” वैदेही ने अगला सवाल पूछा। “मुझे अपनी न्याय व्यवस्था पर भरोसा है लेकिन अगर बात जान पर बने हो, तो हमें इंसटैंटली फैसला लेना पड़ता है। हमारा कानून हमें सेल्फ डिफेंस में किसी की जान देने तक की इजाजत देता है..... तो फिर मुझे नहीं लगता कि खुद की या किसी और की सुरक्षा में उठाया गया कदम किसी भी तरह के क्राइम की श्रेणी में आता है।" यशवर्धन ने जवाब दिया। “ये इंटरव्यू मुझे इंटरव्यू कम और इन दोनों की बहस बाजी ज्यादा लग रही हैं।” नरगिस ने धीमी आवाज में देव से कहा। “जो भी हो..... बट हाॅप सो वैदेही मैम को इन सब के लिए डांट ना पड़े।" देव ने जवाब दिया। वैदेही अपना अगला सवाल पूछ पाती उससे पहले यशवर्धन बीच में बोल पड़ा, “अच्छा वैदेही जी, अब मैं इस बात का एक अच्छा एग्जांपल देते हुए आपको समझाता हूं। आज से 2 दिन पहले रात को एक ऐसा हादसा हुआ था जब हम दोनों एक ही जगह पर मौजूद थे। आपने मेरी जान बचाने के लिए अपनी लाइसेंस्ड रिवाल्वर से उनमें से एक गुंडे को शूट किया था तो वहीं मैंने अपनी और वहां मौजूद बाकी 4 लोगों की जान बचाते हुए उन लोगों को शूट कर दिया। मैं जानता हूं कि मेरा लिया हुआ फैसला काफी इंस्टेंट था। जो भी हुआ वो जल्दबाजी में हुआ था। इस वजह से मैंने उन्हें कहां गोली मारी, इसे मुझे खुद अंदाजा नहीं था। इन सब के चक्कर में उनकी जान चली गई तो क्या उसमें भी आप मेरी गलती बताएंगी? “ “ओ गॉड..... ये इंटरव्यू अब कौन सी डायरेक्शन में जा रहा है? इसका तो मुझे खुद पता नहीं चल रहा।" डायेक्टर ने सिर पकड़ कर कहा। इस बार बाजी यशवर्धन के हाथ में थी जहां वो वैदेही को बोलने का मौका तक नहीं दे रहा था। वैदेही उसके सवाल का जवाब देती उससे पहले वो फिर से बोल पड़ा, “हां तो मैं इसी के साथ एक और बात क्लियर करना चाहता हूं। इस हादसे से जुड़े हुए सब लोग अलग-अलग न्यूज़ दिखा रहे हैं। मैंने सामने से आकर किसी को कुछ नहीं कहा। मुझे लगा कि जब मैं आपसे रूबरू होने की वाला हूं, तो क्यों ना अपनी बात को बिना किसी दबाव के अपने हिसाब से बताऊं। क्या मैं बोल सकता हूं वैदेही जी?" “जी बिल्कुल.....” वैदेही को ना चाहते हुए भी हां कहनी पड़ी। “हां तो आज से दो दिन पहले हमें ऑफिस में किसी जरूरी मीटिंग की वजह से देर तक रुकना पड़ा। कहीं पहुंचने की जल्दी थी, इसलिए शॉर्टकट लेने के चक्कर में जंगल वाला रास्ता अपनाया। अब कहते हैं जब किस्मत खराब हो तो आपके साथ कुछ भी हो सकता है। उस वक्त हमारे साथ ज्यादा सिक्योरिटी मौजूद नहीं थी। इस वजह से हमारे ऊपर किसी ने जानलेवा हमला कर दिया था। शायद हमारी तरह वैदेही जी को भी कहीं जाने की जल्दी लगी थी। इसी वजह से उन्होंने भी वही शॉर्टकट लिया..... है ना वैदेही जी?" बोलते हुए यशवर्धन ने वैदेही से पूछा। “जी बिल्कुल, ऐसा ही हुआ था।" “अब हम सब तो जानते हैं कि हमारी वैदेही जी कितनी ज्यादा बहादुर है। इन्होंने जंगल में गोलियां चलने की आवाज सुनी तो हमेशा की तरह अपनी जान की परवाह किए बिना हमारी जान बचाने के लिए आगे आई। जबकि इन्हें तो पता तक नहीं था कि आगे हम मौजूद हैं। वैदेही जी ने बड़ी ही हिम्मत और समझदारी से काम लेते हुए वहां मौजूद 2 गुंडों को शूट किया और मामला उनके हाथ से निकलते ही हम लोग भी हरकत में आ गए। इस तरह हम दोनों की समझदारी की वजह से हम लोगों की जान बच गई।" इसी के साथ यशवर्धन ने अपनी बात खत्म की। उसके चेहरे पर राहत के भाव थे। उसे लगा था कि बीच में सारी बात बता कर उसने लोगों का ध्यान डायवर्ट कर दिया। वैदेही पहले से ही ये ठान कर आई थी कि कैसे भी करके यशवर्धन के मुंह से सच उगलवाने था। यशवर्धन की ये खुशी तब तक ही थी जब तक वैदेही का अगला सवाल नहीं आया। उसने अपना अगला सवाल पूछा, “सच कह रहे है यशवर्धन जी, उस वक्त मामला काफी गंभीर था और चीजें काफी जल्दी-जल्दी में हुई कि कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। अगर मैं इनकी मदद नहीं करती तो बात इनकी जान पर आ सकती थी और शायद बाद में ये उन गुंडों को शूट नहीं करते तो वो हम लोगों को मार सकते थे।" यशवर्धन ने मुस्कुराते हुए उसकी बात पर हामी भरी। “तो आपको क्या लगता है सर, आप पर ये हमला किसने करवाया होगा?" जैसे ही वैदेही ने ये पूछा यशवर्धन के चेहरे का रंग उड़ गया और उसने वहां मौजूद पानी के गिलास को उठाकर पानी का एक शिप दिया ये उस बात का इशारा था कि वो इस बात का जवाब नहीं देना चाहता था और इसी के साथ एक बार फिर ब्रेक अनाउंस कर दिया गया था। ★★★★
पिछले 45 मिनट से यशवर्धन का लाइव इंटरव्यू चल रहा था। वो बेहिचक उसके सारे सवालों के जवाब दिए जा रहा था लेकिन जब वैदेही ने लाइव इंटरव्यू के दौरान उससे उसके हमलावरों का नाम पूछा तो यशवर्धन ने ब्रेक लेने का इशारा दिया। उसके वैसा करते ही वैदेही को तुरंत ब्रेक अनाउंस करना पड़ा। “इज एवरीथिंग फाइन मिस्टर सिंह? आपने इस तरह इंटरव्यू बीच में क्यों रुकवा दिया? आपने तो कहा था कि आप सभी सवालों के जवाब देंगे।” वैदेही ने पूछा। यशवर्धन के चेहरे पर गुस्से के भाव थे। उसने अपने गुस्से को काबू करके धीमी आवाज में कहा, “आप ये क्या करने की कोशिश कर रही है वैदेही जी?” “क्या करने से आपका मतलब? मैं तो बस आपका इंटरव्यू.....” वो अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले यशवर्धन ने वैदेही की बात को बीच में काटते हुए कहा, “मासूम मत बनिए... हमें अच्छे से समझ आ रहा है कि आप क्या करने की कोशिश कर रही है। इतनी देर से हम धैर्य से काम ले रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हमें समझ नहीं आ रहा कि आप इस इंटरव्यू के बहाने अपने मन की भड़ास निकाल रही हैं।” “किस बात की भड़ास?” “आप अच्छे से जानती हैं किस बात की भड़ास... हमने आपको उस दिन हमलावर का नाम बताने से मना कर दिया था तो आज आप जानबूझकर सबके सामने हमसे पूछ रही है, ताकि हमें जवाब देना पड़े। हम अभी भी आपको चेतावनी दे रहे हैं कि ये सब मत कीजिए। वरना अच्छा नहीं होगा।” “ओह तो आप मुझे धमकी दे रहे है?” यशवर्धन ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और प्यार से समझाने की कोशिश की, “देखिए वैदेही..... हम आपसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं कि आप ये सब मत पूछिए..... हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन आपके लिए मुसीबतें बढ़ जाएगी।” “मैं मेरा देख लूंगी। अभी 10 सेकंड में इंटरव्यू फिर से शुरू होने वाला है। आप सोच लीजिए कि आप को क्या जवाब देना है।” “मतलब आप नहीं रुकेंगी?” यशवर्धन एक आखिरी कोशिश की लेकिन वैदेही ने उसकी बात पर ना में सर हिला दिया। वो दोनों आगे कुछ बात कर पाते उससे पहले कैमरामैन ने इंटरव्यू फिर से शुरू करने का इशारा किया। हर बार की तरह ऑडियंस का फिर से वेलकम करके वैदेही ने अपने सवाल को दोहराया, “हां तो यशवर्धन जी, क्या आप बताएंगे कि आप के ऊपर जो हमला हुआ था, वो किसने करवाया था। आपको किसी पर डाउट है?” यशवर्धन ने अपने गुस्से को काबू करके चेहरे के भाव को नियंत्रित किया और मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “ वैदेही जी, हम किसी का नाम लेकर उस पर कीचड़ नहीं उछालना चाहते..... पुलिस अपना काम कर रही है। बाकी हमारा व्यवहार सब के साथ अच्छा रहा है। पीठ पीछे कौन दुश्मनी पाले बैठा है, इसके बारे में हम क्या कह सकते हैं। हमें किसी पर शक नहीं है।” ___________ दूसरी तरफ रामचरण त्यागी ने जब यशवर्धन के मुंह से इस सवाल का जवाब सुना तो उन्होंने भी राहत की सांस ली। “बस यही वजह है यशवर्धन कि हम तुम्हें पसंद करते हैं। भले ही तुम्हारे दिल में हजारों बातें चल रही होगी लेकिन बात को कैसे संभालना है, वो तुम्हें अच्छे से आता है । अगर राघवेंद्र ने पार्टी की स्थिति को मजबूत नहीं बनाया होता तो मुझे कोई दो राहे नहीं थे कि तुम एक अच्छे मुख्यमंत्री बन सकते हो।” त्यागी जी ने कहा। वहां उनके साथ पार्टी में ऑफिस में दो और भी लोग मौजूद थे, जो उनके साथ यशवर्धन का इंटरव्यू देख रहे थे। वहां मौजूद एक और नेता माया देवी ने कहा, “पसंद तो हमें भी बहुत है यशवर्धन..... लेकिन अभी उसे राजनीति में आए हुए वक्त ही कितना हुआ है? अभी तो वो बच्चा है और उसे बहुत कुछ सीखना बाकी है।” “माया जी, सही कह रही है त्यागी जी..... अगर इस बार राघवेंद्र को मौका दे दिया तो सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि उसके साथ और भी राज्यों में हमारी पेठ मजबूत हो जाएगी।” वहां मौजूद दूसरे नेता ने माया देवी का समर्थन करते हुए कहा। “अब ये फैसला तो हम आप विधायकों पर ही छोड़ेगे। देखते है आप लोग किसे चुनते हैं। हमारे लिए तो ये निर्णय लेना मुश्किल होगा। राघवेंद्र किसी की सुनने को तैयार होगा तो वहीं अगर हमने यशवर्धन को पीछे रखा तो फिर उसे दूसरी पार्टी ज्वाइन करते देर नहीं लगेगी। हमने इस बारे में बहुत सोचा और यही सही लगा कि हम अपनी तरफ से दोनों को ही अपने उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करेंगे।” त्यागी जी ने अपना फैसला सुना दिया। उन दोनों ने भी उनकी हां में हां मिलाई और फिर वापस अपनी नजर टीवी स्क्रीन पर गड़ा ली। ___________ “इंटरव्यू खत्म होने में अभी 10 मिनट ही बचे हैं। मेरे सवाल यहीं पर खत्म होते हैं। अब मैं व्युवर्स से कुछ चुनिंदा सवालों को पूछने जा रही हूं।” बोलते हुए वैदेही ने अपनी लैपटॉप की स्क्रीन ऑन की, जहां पर काफी लोगों के सवाल आए हुए थे। “हमें उम्मीद है कि आप और जनता हमारे जवाबों से संतुष्ट हुई होगी।” यशवर्धन ने औपचारिक तरीके से कहा। “ज्यादातर लोगों ने यही सवाल पूछा है कि आप सिंगल है या कमिटेड.....” वैदेही इस सवाल को स्किप करना चाहती थी लेकिन इतनी ज्यादा बात पूछे जाने की वजह से उसे वो सवाल पढ़ना ही पड़ा। “फिलहाल तो सिंगल है और कमिटेड होने का कोई इरादा भी नहीं है, लेकिन हां कोई ऐसी मिली जो हमें चैलेंज करने वाली हो तो हम पूरी लाइफ उनके चैलेंज एक्सेप्ट करने के लिए तैयार हैं।” यशवर्धन ने वैदेही की तरफ देखकर कहा। उसका इशारा वैदेही की तरफ ही था। “ क्या पॉलीटिशियंस भी लाइन मारते हैं?” यशवर्धन का जवाब सुनकर देव धीरे से बड़बड़ाया। “लगता है सर को कुछ ज्यादा ही चैलेंजेस लेने का शौक है।” वैदेही ने उसकी बात का मुस्कुराते हुए जवाब दिया। उसने ऑडियंस के पूछे हुए काफी सवालों को पूछा, जिनमें ज्यादातर लोगों ने यशवर्धन की पसंद नापसंद के बारे में पूछा था। यशवर्धन ने भी खुशी से उन सब का जवाब दिया। 1 घंटे पूरे होने के बाद वैदेही ने उस इंटरव्यू को वही खत्म करते हुए कहा, “आज आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा यशवर्धन जी..... हमारे साथ जुड़े रहने के लिए आप सबका शुक्रिया..... अब इजाजत दीजिए। मैं वैदेही रघुवंशी मिलती हूं आपसे, प्राइम टाइम पर, ठीक 9:00 बजे, जहां हम एक और राज से पर्दा उठाएंगे।” इसी के साथ इंटरव्यू वही खत्म हो गया। वैदेही के इंटरव्यू खत्म होने का अनाउंस करते ही अनंत देसाई सबके सामने आया और बोला, “आप सब का बहुत बहुत आभार जो आप हमारे साथ जुड़े..... ये इंटरव्यू काफी अच्छे से हुआ। वैदेही जी, आपका धन्यवाद, जो आप इस इंटरव्यू लेने के लिए आई।” “हम देख रहे हैं कि आप लोग दोपहर से कड़ी मेहनत कर रहे थे। हमारी तरफ से आपके लिए एक छोटी सी पार्टी अरेंज की गई है, जो कि गार्डन एरिया में है। आप अपना काम समेट कर वहां पार्टी इंजॉय कीजिए। हम भी आपको ज्वाइन करते हैं।” यशवर्धन ने कहा। पार्टी अनाउंस होने की वजह से सब काफी खुश थे। रात के 8:00 बज गए थे और काम समेट कर सभी गार्डन एरिया में इकट्ठा हो गए थे, जहां यशवर्धन ने उन सब के लिए काफी अच्छी अरेंजमेंट्स की थी। वैदेही देव के साथ थी जबकि नरगिस यशवर्धन के साथ खड़ी होकर बात कर रही थी। “देखा ना कितनी चालाकी से उसने हमारी बात को टाल दिया।” वैदेही ने यशवर्धन की तरफ देख कर बोला। “जितना हमने सोचा था, ये उससे कहीं ज्यादा चलाक है। इसकी बातों से तो अब मुझे इस पर और भी डाउट हो रहा है मैम, जरूर दाल में कुछ काला है।” देव ने जवाब दिया। “और ये लोग उस काली दाल को इतनी आसानी से चखने नहीं देंगे देव..... हमें इसी के अंदाज में इसे टेकल करना होगा।” “मैम, आप के प्राइम टाइम के शो का टाइम हो रहा है। प्रतीक सर के भी बार-बार कॉल आ रहे हैं। उन्होंने आप को तुरंत ऑफिस में आने के लिए बोला है।” देव ने वैदेही का मोबाइल पकड़ाते हुए कहा जो कि इंटरव्यू के दौरान उसी के पास रहता था। “हां चलते हैं। वैसे भी मेरा यहां रुकने का मन नहीं था।” वैदेही ने जवाब दिया और वहां से जाने लगी। यशवर्धन ने जब वैदेही को जाते हुए देखा तो वो जल्दी से उनके पास गया। “आप लोग इतनी जल्दी क्यों निकल रहे हैं? क्या आपको पार्टी अच्छी नहीं लगी?” उसने उन्हें रोकते हुए पूछा। “ऐसा कुछ नहीं है सर..... एक्चुअली मेरा प्राइम शो शुरू होने वाला है। वो भी लाइव होगा तो मेरा वहां रहना जरूरी है। बाकी आपने इतने सारे अरेंजमेंट्स किले उसके लिए थैंक यू सो मच.....” वैदेही ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। “आप काफी देर से काम कर रही हैं। थक गई होंगी, आपने ठीक से खाना तक नहीं खाया। आप कहे तो हम प्रतीक जी से बात करें अगर आज का शो कैंसिल हो सके तो.....” “उसकी कोई जरूरत नहीं है। और यकीन मानिए, आज काफी कम काम था। हमारा क्या है? हम तो दिन रात लगे रहते हैं।” वैदेही ने रुकने से मना कर दिया। “लेकिन हमें आपसे कुछ बात करनी थी..... अकेले में?” यशवर्धन ने देव की तरफ देखकर बोला, जो कि उसके लिए एक साफ इशारा था, वो उस वक्त उन दोनों के बीच उसे नहीं चाहता था। “ठीक है आप लोग बात कीजिए मैम..... मैं आपका गाड़ी में इंतजार कर रहा हूं।” देव ने स्थिति भांपते हुए कहा और वहां से चला गया। “प्लीज वैदेही जी..... बस 5 मिनट.....” यशवर्धन ने एक टेबल की तरफ इशारा किया। “बस 5 मिनट.....” बोलते हुए वैदेही ने अपने मोबाइल में 5 मिनट का टाइमर लगा कर यशवर्धन को दिखाया। उसके ऐसा करने पर यशवर्धन के चेहरे पर हंसी के भाव थे, जिसे वो काबू करने की कोशिश कर रहा था। यशवर्धन ने भी उसकी बात पर हामी भरी और उसे सामने लगी टेबल पर ले गया। उसने वेटर को कुछ स्टार्टर लाने का इशारा किया, जिस पर वैदेही ने कहा, “सिर्फ 5 मिनट का टाइम है सर, मुझे नहीं लगता कि वो आप स्टार्टर खाने में वेस्ट करना चाहेंगे।” “ये मैंने अपने लिए नहीं आपके लिए मंगवाया है। मेरी बात सुनते हुए आप कुछ तो खा ही सकती हैं। अब मना मत कीजिएगा। आप ऐसे ही यहां से चली जाएगी तो हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा।” दोनों टेबल पर बैठे थे। जहां वैदेही कुछ स्टार्टर ट्राई कर रही थी। यशवर्धन उसे खाते हुए देख रहा था। “आपको चाहिए?” वैदेही ने उसे ऑफर किया, जिस पर इस पर यशवर्धन ने ना में सर हिला दिया। “मुझे नहीं लगता कि ये 5 मिनट आपने मुझे खाना खाते देखने के लिए तो नहीं लिए होंगे। प्लीज जो भी है जल्दी कहिए।” वैदेही ने कहा। “हमारी बातें काफी लंबी है। ये 5 मिनट में खत्म नहीं होने वाली, हम बस आपसे यही कहना चाहेंगे कि प्लीज एक बार टाइम निकाल कर आप हमसे बात करना चाहेंगी?” यशवर्धन ने पूछा। “नहीं.....” “बात बहुत जरूरी है।” “तब भी नहीं.....” वैदेही ने साफ मना कर दिया। “क्या आप नहीं जानना चाहेंगी कि हम आपसे क्या बात करना चाहते हैं?” यशवर्धन ने एक बार फिर पूछा। “ठीक है, मैं आपसे मिलने के लिए तैयार हूं। आपको टाइम भी दूंगी लेकिन बशर्ते आपको मुझे उस इंसान का नाम बताना पड़ेगा जिस पर आप को डाउट है कि उसने आप पर हमला करवाया था.....” “आपके 5 मिनट खत्म हो गए हैं वैदेही जी.....” यशवर्धन ने बात को टालते हुए कहा। “इसका मतलब आप मुझे नहीं बताएंगे?” वैदेही के पूछने पर यशवर्धन ने कोई जवाब नहीं दिया। जिसका मतलब उसे साफ समझ आ रहा था। वैदेही टेबल से खड़ी हुई, तभी यशवर्धन ने एक व्यक्ति को इशारा करके अपने पास बुलाया। उसके हाथ में खाने का टिफिन था। यशवर्धन ने उसे वैदेही को पकड़ते हुए कहा, “आपके साथ मुलाकात अच्छी रही..... हमने सोचा था कि आप पार्टी के बाद यहां रुकेंगी तो हमारे बीच के गिले-शिकवे दूर हो जाएंगे, लेकिन हम भूल गए थे कि आप बहुत बिजी रहती हैं। आपके साथ जो आए थे, उन्होंने कुछ नहीं खाया है..... और हमारे पापा कहते थे कि घर आए मेहमान को कभी भी भूखा नहीं भेजना चाहिए। आप उन्हें ये दे दीजिएगा।” इस बार यशवर्धन की बातों ने थोड़ा ही सही लेकिन वैदेही को इंप्रेस कर दिया था। उसने थैंक्यू बोलते हुए उसके हाथ से वो टिफिन लिया। “बस 1 मिनट और दीजिए.....” यशवर्धन ने कहा और जल्दी से अंदर गया। लौटते वक्त उसके हाथ में एक बुके था। उसने उसे वैदेही को दिया और कहा, “उस दिन हमारी जान बचाने के लिए शुक्रिया.....” बुके और टिफिन लेने के बाद वैदेही वहां से जा चुकी थी लेकिन इस चक्कर में उसका इस बात पर ध्यान नहीं रहा कि बुके और टिफिन संभालने के चक्कर में उसका फोन नीचे गिर चुका था। उसके जाते ही यशवर्धन ने वो मोबाइल उठाया और अपने मन में सोचा, “आप खुद तो हमारे पास कभी नहीं आना चाहेंगी वैदेही लेकिन आपकी ही चीज आपको फिर हमारे दर ले ही आएगी।” यशवर्धन ने एक मुस्कुराहट के साथ उस मोबाइल को अपने कुर्ते की जेब में डाल लिया। ★★★★
रात के 12:00 बज रहे थे। एक बड़े से खुलें मैदान में बड़ा सा एलईडी टीवी लगा हुआ था, जिसके सामने दो से तीन चारपाईयां लगी हुई थी। सामने लगी चारपाई पर एक आदमी बैठा था जबकि उसके पास में लगी दो चारपाई पर तीन–तीन आदमी इकट्ठा होकर बैठे थे। वहां और भी लोग मौजूद थे, जिनमें से कुछ नीचे बैठे थे तो कुछ उनके आसपास खड़े थे। टीवी स्क्रीन पर यशवर्धन का इंटरव्यू चल रहा था। उन सभी की नजरें टीवी स्क्रीन पर ही गड़ी हुई थी। सबके हाथों में शराब के गिलास थे। यशवर्धन के इंटरव्यू का न्यूज़ 24/7 इंडिया पर रिपीट टेलीकास्ट हो रहा था। "कसा वाटला भाऊ....." उनमें से एक आदमी ने पूछा। उसके पूछने के साथ ही सबकी नजरें उस आदमी पर टिक गई जो कि चारपाई पर अकेला बैठा था। उसने अपने ग्लास से सारी शराब एक ही घूंट में गटक ली। उसके चेहरे का रंग गेरुआ था और आंखें लाल हो रखी थी। माथे पर लाल टीका लगा रखा था। हल्की दाढ़ी के साथ गहरी बड़ी मूछों को ताव देते हुए वो खड़ा हुआ। उसके खड़े होने के साथ ही उसके आसपास के बैठे हुए सभी लोग खड़े हो गए। “काय झाला भाऊ.....?" एक आदमी ने उसके पास आकर कहा। “अरे पूछना का है, हम तो पहले ही बोले थे कि ई मनहूस का इंटरव्यू देखने के लिए काहे इतना खर्चा किया..... अब होय गए ना भैया जी नाराज.....” वहां मौजूद दूसरे आदमी ने बिहारी एक्सेंट में कहा। उसकी आवाज सुनकर आदमी उसकी तरफ बढ़ा और उसके पास जाकर उसके कंधों को मजबूती से पकड़ कर उसी के अंदाज में जवाब देते हुए कहा, “का लागत है लल्लनवा..... ई के इंटरव्यू का हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ऊ का है ना, तोहार भैया जी इतने कमजोर नाहीं है।" अपनी बात खत्म करके उसने तिरछी मुस्कुराहट दी। उसकी मुस्कुराहट को देखकर वहां मौजूद लोग कहकहे लगाकर हंसने लगे। लल्लन जिसे पकड़ कर थोड़ी देर पहले उसने जवाब दिया था, उसके पास एक आदमी आया और उसने कहा, “इतने सालों में हम तुझे मराठी नहीं सिखा पाए लेकिन इसने भैया जी को बिहारी बखूबी सिखा दी। क्या कहते हो लल्लन वो तुम, बिल्कुल लल्लनटॉप.....” “हां तो ई में बुरा ही का है। भैया जी जब हमरी भाषा बोलते हैं तो ऐसा लगता है जैसे कानों में किसी ने मिश्री घोल दी हो।” उसने जवाब दिया। वहां मौजूद सब लोग अपनी अपनी राय रख रहे थे तभी उस आदमी ने अपना हाथ ऊपर किया और सबको चुप रहने का इशारा किया। इसी के साथ वहां पर शांति छा गई। सबके चुप होते ही उसने अपने कड़क और भारी आवाज में कहा, “इंटरव्यू तो काफी कड़क था..... खूब छान आहे....” “और इंटरव्यू लेने वाली भाऊ?” वहां मौजूद आदमियों में से किसी ने पूछा। “धत..... चलो अब मस्ती बहुत हो गया है। काम की बात पर आते हैं। यशवर्धन का इंटरव्यू तो काफी अच्छे से हो गया लेकिन अब हमारी बारी है। जब हम मुख्यमंत्री बन जाएंगे तो यही लड़की हमारा इंटरव्यू लेगी।" बोलते हुए उसने कुछ सोचा और उसने अपनी बात बदलते हुए कहा, “वैसे मुख्यमंत्री तो हम ही बनेंगे, इंटरव्यू चाहे पहले दे या बाद में..... ऐसा करो कि लड़की को इंटरव्यू के लिए बुलाओ। आने के लिए तैयार हो जाए तो अच्छी बात है, वरना पता है ना, क्या करना है?" “करना का है भैया जी, धर लेंगे.....” लल्लन ने जवाब में कहा। “काफी तेज हो रहे हो ललनवा। कह रहे हैं बहुत आगे तक जाओगे तुम.....” उस आदमी ने जवाब दिया। उन लोगों की बातचीत वही खत्म हो चुकी थी। जाने से पहले वो सब एक ही नारा लगा रहे थे। “हमारा नेता कैसा हो, राघवेंद्र प्रताप जैसा हो.....” वहां मौजूद आदमी कोई और नहीं बल्कि राघवेंद्र प्रताप सिंह था। ★★★★ यशवर्धन की पार्टी से निकलने के बाद वैदेही देव के साथ ऑफिस आ चुकी थी, जहां कुछ ही देर बाद उसका लाइव शो शुरू होने वाला था। रास्ते में दोनों ने काफी बातें की और यशवर्धन के दिए हुए खाने को भी एंजॉय किया। वैदेही के शो का शूट लगभग 10:30 बजे तक खत्म हो चुका था। शूट खत्म होते ही प्रतीक ने देव और वैदेही को अपने केबिन में बुलाया था। “मैं तो कहता हूं कि तुम क्राइम कवरेज के साथ-साथ लाइव इंटरव्यू लेने भी शुरू कर दो। आज हमारे चैनल ने छप्पर फाड़ टीआरपी की है।" प्रतीक ने उनके आते ही कहा। “हां अब यही बाकी रह गया। मुझे लगा था कि आप ने भी बाकियों की तरह मुझे डांटने के लिए बुलाया होगा कि मैं लाइव इंटरव्यू के दौरान उससे क्या कुछ पूछे जा रही थी।" “ऐसा कुछ नहीं है। मुझे पहले ही पता था कि तुम किस पर्पस से उसका इंटरव्यू लेने जा रही थी।" प्रतीक ने जवाब दिया। “लेकिन वो पर्पस कामयाब कहां हो पाया सर? वैदेही मैम ने उससे सच उगलवाने की इतनी कोशिश की लेकिन वो तो पता नहीं क्या खाकर बैठा था, जो मुंह खोलने को तैयार ही नहीं था।” देव ने निराश होकर कहा। “ये लो..... हमेशा की तरह कोई काम थोड़ा सा भी फेल हुआ नहीं और इसकी शक्ल पर 12:00 बज गए। फेलियर को भी एक्सेप्ट करना सीखो देव बाबू..... और कुछ सीखो अपनी वैदेही मैम से.....” प्रतीक के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर वैदेही के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। “हां मुझे इसका कुछ ज्यादा ही एक्सपीरियंस है, तो तुम मुझसे सीख सकते हो।” “अच्छा सर आपने हमें क्यों बुलाया था?" देव ने पूछा। “हां तो तुम दोनों जिस केस पर काम कर रहे थे। वो एरिया निकोला जिला के अंदर आता है। वहां की तहसील हाफुस और उसके आसपास के गांव और तहसीलो से अक्सर लड़कियों के गायब होने की खबरें आती रहती हैं।” “मतलब आप भी इसी केस की स्टडी कर रहे थे?" देव ने पूछा। प्रतीक ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा, “हां..... मैं देख रहा था कि वो जिला कौन से विधायक के अंडर में आता है।” “महाराष्ट्र विकास पार्टी के ही नेता राघवेंद्र प्रताप सिंह.....” देव ने गूगल करके जवाब दिया। “ऐसा तो हो नहीं सकता कि उन तक इन सब की खबर ना पहुंची हो या उनके एरिया में इस तरह खुलेआम हो रहे क्राइम से वो अनजान हो।” वैदेही ने जवाब दिया। “वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि राघवेंद्र प्रताप सिंह भी हाफुस का रहने वाला है।" देव अपने मोबाइल में राघवेंद्र प्रताप सिंह की पूरी कुंडली निकाल कर बैठा था। “इसके लिए तो हमें राघवेंद्र प्रताप सिंह से बात करनी होगी.....” जैसे ही वैदेही ने कहा, देव ने तुरंत बोला, “और यशवर्धन सिंह इसमें हमारी मदद कर सकते हैं।" “हां एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तो इनके कारनामे भी एक दूसरे से कहां छुपे होंगे..... वैदेही क्यों ना तुम यशवर्धन की तरह उसका भी एक इंटरव्यू लो।" प्रतीक ने सुझाव दिया। वैदेही ने कुछ देर सोचा और फिर जवाब में कहा, “लेकिन राघवेंद्र सिंह हमें इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो जाएगा क्या?" “उसकी पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। ये सब तुम मुझ पर छोड़ दो।” प्रतीक ने आश्वासन देते हुए कहा। “ठीक है लेकिन कोशिश कीजिएगा कि उसका इंटरव्यू उसी के गांव में हो। इसी बहाने हमें वहां पहले जाने का मौका मिल जाएगा और लौटते वक्त भी हम वहां पर रह कर थोड़ी बहुत पूछताछ कर सकते हैं। अगर मामला गंभीर लगा तो चीजों को कैसे हैंडल करना है, वो आप मुझ पर छोड़ दीजिए।" वैसे तो वैदेही को इंटरव्यू लेना पसंद नहीं था लेकिन इस बार उसने बिना ना नुकुर किए हां कह दी थी। सारी बातें फाइनल होने के बाद देव और वैदेही अपने अपने घर पर निकल चुके थे। इन सबके बीच वैदेही को एक बार भी अपने मोबाइल का ख्याल नहीं आया। ___________ वैदेही घर पहुंची तो वहां पर नरगिस उसका इंतजार कर रही थी। उसके बीच पार्टी में आने की वजह से वो उससे थोड़ा नाराज थी। “कभी तो खुद को टाइम दिया करो।" नरगिस ने उसे डांटते हुए बोला। “मेरा छोड़ो तुम्हारी दिली ख्वाइश आज पूरी हो गई। अच्छा बताओ ना पार्टी कैसी थी।" वैदेही ने उसका ध्यान भटकाने के लिए बात को बदला। “बस ठीक-ठाक सी ही थी। तुम लोगों के जाने के बाद यश जी भी ज्यादा नहीं रुके और फिर मैं भी वहां से निकल आई थी। मैंने तुम्हें कितने सारे कॉल किए थे लेकिन तुमने एक भी कॉल पिक करना जरूरी नहीं समझा.....” जैसे ही नरगिस ने कॉल की बात की वैदेही को अपने मोबाइल का ख्याल आया। उसने जल्दी से अपना पर्स टटोला लेकिन उसमें उसका मोबाइल नहीं था। उसने अपना सिर पकड़ कर कहा, “लगता है आज फिर मैं अपना फोन देव के पास ही भूल गई। ये लड़का कितना भुलक्कड़ है। लोग यहां अपने मोबाइल के बिना 1 दिन भी नहीं रह पाते और मुझे अक्सर बिना मोबाइल के रहना पड़ता है।" “कोई नहीं, सुबह ले लेना। कौन सा तुम्हारे बॉयफ्रेंड की कॉल आ रही है।" नरगिस ने उसे परेशान करने के लिए कहा। जवाब में वैदेही ने मुंह बना दिया। “फिर भी एक बार कॉल करके बोल देती हूं ताकि कल ऑफिस आते वक्त मोबाइल साथ लेकर आए। पता चला कि वो कल भीम अपने घर पर भूल गया तो फिर मुझे 1 दिन बिना फोन के रहना होगा।" वैदेही ने कहा और कॉल करने के लिए नरगिस का मोबाइल मांगा। वैदेही ने देव को कॉल किया। “क्या हुआ वैदेही मैम... कुछ इंपोर्टेंट था क्या?” उसने कॉल उठते ही पूछा। “काम के बच्चे..... मेरा मोबाइल... तुम फिर देना भूल गए...” वैदेही ने कहा। “लेकिन मैम..... आपका मोबाइल मेरे पास नहीं है। मैंने तो आपको यशवर्धन सिंह के घर पर ही उसे लौटा दिया था।" जैसे ही देव ने कहा वैदेही ने उसके आगे की बात सुने बिना ही फोन कट कर दिया। वो हड़बड़ाकर अपने कमरे में भागी और जल्दी से अपना लैपटॉप निकाला। उसे भागता देख कर नरगिस परेशान हो गई वो भी उसके पीछे दौड़ कर गई। “क्या हुआ सब ठीक है ना?" नरगिस ने देखा तो वैदेही लैपटॉप में लगी हुई थी। “कुछ ठीक नहीं है नरगिस, मेरा फोन देव के पास नहीं है और ये एक अच्छी खबर नहीं है। जानती हो ना मेरे फोन में क्या कुछ नहीं होता..... पता नहीं ये उसकी लापरवाही का नतीजा है या मेरी ही.....“ “और तुम अपना मोबाइल ढूंढने के बजाय इस लैपटॉप में क्या कर रही हो?" “अपने मोबाइल की लोकेशन ढूंढने की कोशिश कर रही हूं। ये लो मिल गई.....” कहते हुए वैदेही के चेहरे पर परेशानी के भाव थे। उसने देखा कि उसका मोबाइल यशवर्धन सिंह के घर पर मौजूद था। “मुझे अभी इसी वक्त अपना फोन चाहिए।" बोलते हुए वैदेही वहां से बाहर जाने लगी। नरगिस भी उसके पीछे पीछे दौड़ते हुए आ रही थी। उसने उसे रोकते हुए कहा, “पागल हो गई हो क्या? रात के 12:00 बज रहे हैं। अब तक तो वो सो भी गया होगा। इस वक्त तुम ऐसे हाल में वहां जाओगी क्या?" “अपने फोन में मौजूद चीजों को बचाने के लिए तो इस वक्त तो मुझे उड़ कर दूसरे देश भी जाना होता तो मुझे मंजूर होता।" वैदेही ने कहा और अपनी कार की चाबी उठाकर यशवर्धन के घर जाने के लिए निकल पड़ी। नरगिस ने उसके साथ जानने की जिद की लेकिन वैदेही उसे वहीं छोड़कर अपना मोबाइल लेने यशवर्धन के बंगले की तरफ निकल चुकी थी। ★★★★
जैसे ही वैदेही को अपने मोबाइल का यशवर्धन सिंह के घर पर होने का पता चला, वो बिना कुछ सोचे समझे उसके घर पर जाने के लिए निकल पड़ी। नरगिस ने उसके साथ जाने की कोशिश की लेकिन वैदेही ने उसकी एक नहीं सुनी और अकेली ही चली गई। रात के 1:00 बज रहे थे और वैदेही की कार यशवर्धन सिंह के बंगले के आगे खड़ी थी कार से बाहर निकलते वक्त वैदेही को ख्याल आया कि वो जल्दी-जल्दी में शॉर्टस और टीशर्ट में यशवर्धन सिंह के घर आ गई थी। “हड़बड़ाहट में होने के कारण मैंने अपने कपड़ों की तरफ भी ध्यान नहीं दिया।" अंदर जाने से पहले उसने अपने कपड़ों की तरफ देखा। फिर उसकी नजर अपने पैरों पर गई, “कपड़े तो क्या मैं स्लिपर्स भी पहनना भूल गई थी? हे भगवान..... वैदेही, तुम इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हो? पहले अपना मोबाइल ऐसे ही छोड़ दिया और अब इस तरह आधी रात को तुम एक ऐसे शख्स के घर के आगे खड़ी हो, जो तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं है।" वैदेही दरवाजे के आगे खड़े होकर खुद से बातें कर रही थी तभी सिक्योरिटी गार्ड उसके पास आया। उसने उसे देखते ही पहचान लिया, “आप तो वही है ना, जो साहब का इंटरव्यू लेने के लिए आई थी?“ वैदेही ने अपने बालों को कान के पीछे करते हुए “हां“ में जवाब दिया। हवा तेज होने की वजह से उसके बाल बिखर चुके थे, जिसे वो बार-बार कानों के पीछे करके उड़ने से रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। “लेकिन आप इस वक्त यहां क्या कर रही है?" उसने हैरानी से पूछा। “देखिए जब मैं यहां आई थी तब मेरा मोबाइल यहीं पर रह गया था। मैं किसी को डिस्टर्ब करने के इरादे से नहीं आई हूं..... मेरा फोन.....” वैदेही ने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि सिक्योरिटी गार्ड बीच में बोल पड़ा, “आप सुबह आइएगा मैडम, साहब अब तक सो चुके हैं।" “आर यू सीरियस? मेरा मोबाइल रह गया है। मैं अपना मोबाइल लिए बिना यहां से बिल्कुल भी नहीं जाऊंगी। आप दरवाजे खोलो, मुझे अभी यशवर्धन से मिलना है।" वैदेही ने सख्त अंदाज़ में कहा। “मैंने कहा ना आपको, सर अब तक सो चुके है। आपका मोबाइल कहीं भाग नहीं जा रहा। आप सुबह आकर भी तो ले सकती हैं।" वैदेही सिक्योरिटी गार्ड्स की बात सुनने को तैयार तक नहीं था। “आपको अपना फोन लेने के लिए सुबह तक का इंतजार करना पड़ेगा।“ “चाहे कुछ भी हो जाए, जब तक मुझे अपना फोन नहीं मिल जाता तब तक मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगी।" वैदेही पहले काफी शांत तरीके से बात कर रही थी लेकिन सिक्योरिटी गार्ड के तरीके की वजह से उसे गुस्सा आने लगा। “जैसी आपकी इच्छा.....” गार्ड ने कहा और वहां से वापस अपने केबिन में चला गया। वहां उसके अलावा और भी सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे। वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उनके सीनियर गार्ड ने उन्हें आर्डर दिया था कि वैदेही को यहां से अंदर नहीं जाने दिया जाए। “मैं भी पता नहीं कहां फंस गई..... ये लोग तो यशवर्धन को कॉल करके बता तक नहीं रहे कि मैं यहां पर आई हुई हूं। लगता है अब मुझे ही कुछ करना होगा। “ वहां बाहर रहते हुए वैदेही अंदर जाने की तिकड़म लगा रही थी। अचानक उसने कुछ सोचा और वो एक गार्ड के पास जाकर बोली, “एक्सक्यूज मी..... क्या मैं एक कॉल कर सकती हूं।" उसकी बात सुनकर उस गार्ड ने दूसरे गार्ड की तरफ देखा। वो वैदेही के पास आया और बोला, “देखिए मैडम, आप पूरी रात यहां रुक कर क्या करेंगी? पिछले आधे घंटे से परेशान हो कर इधर उधर चक्कर लगा रही है। हमारी बात मानिए और यहां से चले जाइए। कल सुबह आपका मोबाइल आपके घर तक पहुंच जाएगा।” “और कल सुबह की न्यूज़ में ये भी देख लेना कि मेरे साथ यशवर्धन सिंह के घर के आगे क्या सुलूक किया गया था? मैं आपसे एक फोन कॉल करने के लिए आपका मोबाइल ही तो मांग रही हूं..... मेरा मोबाइल अंदर रह गया है.....तो अब क्या आप मुझे कॉल करने के लिए मेरी इतनी भी हेल्प नहीं कर सकते।” वैदेही ने उन्हें धमकी दी। सिक्योरिटी गार्ड ने अपना मोबाइल निकाला और वैदेही की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “ये लीजिए लेकिन आप न्यूज़ एजेंसी में कॉल करके यहां रिपोर्टर्स नहीं बुलाएगी। मैं आप पर विश्वास करके आपको कॉल करने के लिए अपना मोबाइल दे रहा हूं।" वैदेही ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने ही मोबाइल पर कॉल करने लगी। कॉल करते हुए उसने सोचा, “ये सब पहले मेरे माइंड में क्यों नहीं आया..... हड़बड़ाहट में मैं सीधे यहां आ गई। इससे अच्छा अपने ही घर से कॉल करती तो यशवर्धन खुद भी तो मेरा मोबाइल मुझे घर तक पहुंचा सकता था।” वहीं अंदर यशवर्धन अब तक जाग रहा था और वैदेही के मोबाइल को ही देख रहा था। वो उसका लॉक खोलने की कोशिश कर रहा था। तभी वैदेही के मोबाइल की रिंग बजी। “इतनी रात को किस का कॉल आया होगा? ये न्यूज़ रिपोर्टर है, ऊपर से क्राइम कवरेज करती है, कहीं कोई एमरजैंसी तो नहीं होगी ना.....” यशवर्धन ने मोबाइल स्क्रीन पर नए नंबर देख कर सोचा। वो असमंजस में था कि उस कॉल को पिक करें या नहीं। लगभग 2 बार उस नंबर से फोन आ चुका था जो कि बाहर से वैदेही ही कर रही थी। यशवर्धन ने उसे भी नहीं उठाया। “अगर फिर से कॉल आया तो उठा लूंगा।" यशवर्धन ने खुद से कहा। वही बाहर खड़ी वैदेही दो फोन कर चुकी थी, उसके बावजूद यशवर्धन ने कॉल पिक नहीं किया। “कहीं वो सच में सोने तो नहीं चला गया होगा?" वैदेही ने खुद से कहा। सिक्योरिटी गार्ड ने देखा कि वैदेही जिसे कॉल कर रही थी वो उठा नहीं रहा था। उसने दूसरे गार्ड से कहा, “मैंने इन्हें अपना मोबाइल दे तो दिया लेकिन मुझे डर लग रहा है कि कहीं ये रिपोर्टर्स ना बुला ले..... वैसे भी काफी देर हो गई है। ऐसा करता हूं कि अपना फोन वापस ले आता हूं।" “हां अगर कुछ भी गड़बड़ हो गई तो हमारी नौकरी भी खतरे में आ सकती हैं।“ वहां मौजूद दूसरे सिक्योरिटी गार्ड ने उसकी बात पर हामी भरी। वो सिक्योरिटी गार्ड वैदेही के पास जाकर बोला, “मैडम रात के 2:30 बज रहे हैं। आपको अपने घर चले जाना चाहिए। आप जिसे फोन कर रही है, वो भी अब तक सो गया होगा। आपके पास तो खुद की गाड़ी भी है। फिर क्यों जिद कर रही हैं। लाइए मुझे मेरा फोन वापस दे दीजिए।" “बस एक बार और ट्राई कर लेने दीजिए।" “क्यों किसी की नींद खराब कर रही है? अगर किसी को फोन उठाना होता तो वो उठा चुका होता। आप पहले भी उन्हें कई बार कॉल कर चुकी हैं।" गार्ड ने जवाब दिया। “आप य ही पर खड़े रहिए। मैं आपके सामने ही एक कॉल और कर लेती हूं। अगर फिर भी उन्होंने पिक नहीं किया तो मैं यहां से चली जाऊंगी एंड डोंट वरी, मैं न्यूज रिपोर्टर्स को कॉल नहीं कर रही। अगर मुझे तमाशा बनाना होता तो मुझे दूसरे रिपोर्टर्स की क्या जरूरत है? मेरे पास मेरी गाड़ी है और उसमें कैमरा एनी टाइम होता है।" वैदेही ने कहा। “ठीक है।" सिक्योरिटी गार्ड वहीं पर खड़ा हो गया और वैदेही के फोन लौटाने का इंतजार करने लगा। वैदेही ने एक बार फिर कॉल किया और इस बार यशवर्धन ने उसका फोन उठा लिया। “हेलो..... कौन?" यशवर्धन ने फोन उठाते ही पूछा। “हेलो यशवर्धन जी, मैं वैदेही बोल रही हूं। मेरा मोबाइल तुम्हारे पास है। मैं तुम्हारे घर के आगे खड़ी हूं और गार्ड्स मुझे अंदर आने नहीं दे रहे हैं।" जैसे ही वैदेही ने अपनी बात खत्म की गार्ड उसे घूर कर देखने लगा। “आप अपने मोबाइल पर फोन कर रही थी क्या?" उसने धीमी आवाज में पूछा। “आप वहीं रूकिए..... हम आते हैं।" कहकर यशवर्धन ने फोन कट कर दिया और वैदेही को लाने के लिए बाहर आने लगा। उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कुराहट थी। उसने जिस मकसद से वैदेही का फोन लिया था, वो पूरा होने वाला था। “हमें नहीं पता था कि आप इतनी बेचैन हो जाएंगी कि वक्त का भी ख्याल नहीं रहेगा। कभी सोचा नहीं था कि इस तरह फिर से आपसे रात को मुलाकात होगी..... रात..... एक हसीन रात..... भले ही हमारा आपसे मिलने का मकसद कुछ भी हो लेकिन ना चाहते हुए भी हम आपकी तरफ खिंचे चले जाते हैं वैदेही.....” सोचते हुए यशवर्धन नीचे आ रहा था। अपने घर के दरवाजे के बाहर आया। वैदेही गार्ड्स के साथ खड़ी थी। वो नजर भर वैदेही को देखने लगा, जहां वो हर बार से अलग लग रही थी। उसने हमेशा उसे प्रोफेशनल लुक में ही देखा था। आज उन सब से अलग सादे कपड़ों और खुले बालों में वो बहुत सीधी और मासूम लग रही थी। तो वही वैदेही ने यशवर्धन को अपनी आंखों के सामने देखा तो उसने भी राहत की सांस ली। “थैंक गॉड आप आ गए वरना मुझे लगा था कि आज पूरी रात आपके बंगले के बाहर बितानी पड़ेगी।” “हमारे रहते हुए ऐसा कभी नहीं हो सकता। हमें नहीं पता था कि आप हमारे घर के आगे खड़ी है, वरना हम खुद आपको लेने आ जाते।" बोलते हुए यशवर्धन ने गार्ड की तरफ देखा और सख्त आवाज में कहा, “हमने आपसे कितनी बार कहा है कि बाहर कोई भी हो, एक बार हमें कॉल करके बता तो दिया करो।” “इनकी भी कोई गलती नहीं है, मुझे भी इतनी रात को यहां नहीं आना चाहिए था। इन्हें लगा तुम सो गए होंगे तो इस तरह बीच में नींद से उठाना सही नहीं रहता।” वैदेही ने बीच बचाव करते हुए कहा। वो नहीं चाहती थी कि यशवर्धन गार्ड्स पर गुस्सा करें। “फिर भी अगली बार अगर कोई भी आए, स्पेशली वैदेही जी, तो आप हमें पहले कॉल करके बताएंगे। चाहे वो कोई भी वक्त क्यों ना हो रहा हो।" यशवर्धन ने कहा। गार्ड ने सिर हिलाकर उसकी बात पर हामी भरी और वैदेही को सॉरी कहा। उसके बाद यशवर्धन वैदेही को अपने घर पर लेकर गया। “बाहर आपके साथ जो भी सलूक हुआ उसके लिए हम आपसे माफी चाहते हैं। हमें भी कुछ देर पहले ही आपका मोबाइल गार्डन में पड़ा हुआ मिला था। रात काफी हो गई थी इस वजह से हमने कॉल नहीं किया और सुबह होने का इंतजार कर रहे थे ताकि आपको आपका फोन लौटा सके।" यशवर्धन ने साफ झूठ बोला। “ओके मुझे लगा मेरा फोन मेरे असिस्टेंट देव के पास रह गया है। आप तो जानते हैं ना कि हमारे फोन में क्या कुछ नहीं हो सकता। बस यही सोचकर लेने चली आई। आई होप कि मैंने आपकी नींद में खलल नहीं डाला होगा।" वैदेही के पूछने पर यशवर्धन ने ना में सिर हिलाया। “जो भी हुआ उसे भूल जाइए। अब आप मेरा फोन मुझे वापस कर दीजिए ताकि मैं उसे लेकर अपने घर जा सकूं।" “नहीं वैदेही जी..... अब आपको आपका फोन वापस नहीं मिलने वाला है।“ यशवर्धन के जवाब ने वैदेही को चौंका दिया। “आप क्या कहना चाहते हैं, मैं कुछ समझी नहीं?" उसने पूछा। “अरे अरे घबराइए मत, हम ये कह रहे हैं कि अभी आपका मोबाइल आपको वापस नहीं मिल सकता। हमने ये नहीं कहा कि हम आपका मोबाइल आपको कभी नहीं लौटाएंगे।" “उसकी वजह?" “ज्यादा कुछ खास नहीं लेकिन आपको देखकर लग रहा है कि आप काफी देर से बाहर है। पहले भी आप हमारा इंटरव्यू लेकर ऐसे ही चली गई थी। एक थकावट भरे दिन में काम करने के बाद इंसान सोचता है कि रात को सुकून से सो सके लेकिन हमारी वजह से आपका सुकून छिन गया। ऐसे तो हम आपको जाने नहीं दे सकते।" यशवर्धन के कहते ही वैदेही के चेहरे पर राहत के भाव थे। उसके ना कहने की वजह से वो सच में थोड़ा घबरा गई थी। “तो बोलिए कि इस वक्त हम आपकी क्या खिदमत कर सकते हैं? चाय या कॉफी?" “सच कहूं तो इस वक्त मुझे एक हार्ड कॉपी की बहुत ज्यादा जरूरत है।" वैदेही ने कहा। “फिर तो खुली हवा में आपके साथ कॉफी पीने का मजा ही कुछ और होगा। बस आप हमें थोड़ा टाइम दीजिए तब तक आप चाहे तो हमारे गार्डन में घूम सकती हैं।" वैदेही ने उसकी बात पर हामी भरी और गार्डन में चली गई। वहीं यशवर्धन अंदर वैदेही के लिए कॉफी बना रहा था जबकि वैदेही बाहर गार्डन के अंदर लगी छोटी सी डाइनिंग टेबल पर बैठकर आंख बंद करके आराम से हवा को महसूस कर रही थी। ★★★★
वैदेही अपना मोबाइल लेने यशवर्धन सिंह के घर पर आई हुई थी। यशवर्धन उसके लिए कॉफी बनाने गया था जबकि वो बाहर गार्डन में बैठकर उसके आने का इंतजार कर रही थी। थोड़ी देर बाद यशवर्धन अपने हाथ में ट्रे लेकर बाहर आया, जिसमें कुछ स्नैक्स और एक कॉफी मग, तो एक चाय का कप रखा हुआ था। उसे देखकर वैदेही ने कहा, “इंटरव्यू में हम लोगों ने आप की पसंद ना पसंद तो पूछ ली लेकिन बहुत सी चीजें पूछना भूल गए। चलिए मैं अब पूछ लेती हूं। क्या आपको कुकिंग करना आता है, जो आप ये सब बना कर लाए हैं।” यशवर्धन ने ट्रे को टेबल पर रखा और वहीं एक कुर्सी पर बैठते हुए बोला, “हां हम हॉस्टल में रहे हुए हैं, तो ये सब आना तो ऑवियस है।” कहकर उसने कॉफी का मग वैदेही को पकड़ाया और खुद के लिए चाय का कप उठा लिया। “लगता है आपको कॉफी पीना पसंद नहीं है।" वैदेही ने पूछा। “सही कहा आपने। जो बात चाय में है वो आपकी इस कड़वी कॉफी में कहां.....” यशवर्धन ने मुस्कुरा कर कहा और वैदेही की तरफ देखने लगा। हवा में उसके बाल लहरा रहे थे, जिसे वो बार-बार अपने कानों के पीछे करके उन्हें उड़ने से रोकने की कोशिश कर रही थी। “पड़े रहने दीजिए ना.....” यशवर्धन ने खोए हुए स्वर में कहा। “क्या?" वैदेही ने हैरानी से पूछा। “मैं आपके बालों की बात कर रहा हूं। आप हमेशा ही इन्हें बांध कर रखना चाहती है लेकिन आज ये भी मदमस्त होकर इन हवाओं में उड़ रहे हैं।“ यशवर्धन ने खुद को संभाला और सामान्य होकर जवाब दिया। वैदेही ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप कॉफी पीने लगी। “आज आप काफी अलग लग रही है..... और अच्छी भी।” “आप भी तो अलग लग रहे हैं।" वैदेही ने जवाब दिया। जहां वैदही अपने सामान्य कपड़ों में थी, वहीं यशवर्धन भी रात होने की वजह से नॉर्मल ट्राउजर और टीशर्ट में था। “हमेशा जब आपको सफेद कुर्ते पजामे में देखती हूं तो ऐसा लगता है कि आपने राजनीति का चौगा ओढ़ रखा है।" “हां तब आप उस यशवर्धन सिंह से मिल रही होती है जो महाराष्ट्र विकास पार्टी का नेता है और आज आप हमसे मिल रही है। हम..... यश..... हमारे अपने हमें इसी नाम से बुलाते हैं।" यशवर्धन ने कहा। “क्या आप सचमुच पॉलिटिक्स में आना चाहते थे?" “शायद नहीं.....” यशवर्धन ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और कहा, “हमें पॉलिटिक्स पसंद जरूर है लेकिन एज़ ए सब्जेक्ट.. हम इसे कैरियर के रूप में कभी ऑप्ट नहीं करना चाहते थे। लेकिन डैड के एक्सीडेंट के लगभग 2 साल पहले ही उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी। उनकी देखभाल करने के लिए हम हर वक्त उनके साथ रहते और साथ रहते रहते कब इसके आदी हो गए, पता ही नहीं चला। वैसे हम एक स्क्रिप्ट राइटर बनना चाहते थे।“ “स्क्रिप्ट राइटर..... काफी यूनिक प्रोफेशन है। स्क्रिप्ट राइटर का पता नहीं लेकिन इस प्रोफेशन में आने के बाद आपको स्पीच राइटर बनने का मौका जरूर मिल सकता है यशवर्धन जी।” “प्लीज अब आप भी फॉर्मेलिटी मत कीजिए..... आप हमें यश बुला सकती है।” “अगर फॉर्मेलिटी नहीं होती तो आप मुझे जरूर बताते कि ऐसी कौन सी वजह है, जिसकी वजह से आपने उन गुंडों की जान ली? आपने उस दिन कहा था कि आप अच्छे से जानते हैं कि आप पर हमला किसने करवाया है। उसके बावजूद आप मुझे उसका नाम नहीं बता रहे।" वैदेही ने पूछा। “आप अभी भी वहीं अटकी है? “ “क्या करूं, काम ही कुछ ऐसा है कि जब तक एक केस सॉल्व नहीं हो जाता, दूसरे की तरफ नहीं बढ़ सकते।“ वैदेही ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। “अगर हम आपको बता भी देंगे तो क्या हो जाएगा?" “आप अच्छे से जानते हैं कि क्या हो सकता है।" “हां हम अच्छे से जानते हैं कि क्या हो सकता है वैदेही, तभी हम आप को नहीं बताना चाहते। हमें पता है कि हम उनका नाम बता देंगे तो आप उनके पीछे जाएंगी और..... और फिर वही होगा जो हम नहीं चाहते।" यशवर्धन ने तैश में आकर जवाब दिया। उसके गुस्से में बात करने की वजह से वैदेही भी चुप हो गई। उसे चुप देखकर यशवर्धन ने अपने गुस्से को काबू किया और प्यार से समझाते हुए कहा, “वैदेही, हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से आप पर कोई भी खतरा आए।” “आप जिस खतरे की बात कर रहे है, वो मेरा काम है। आप मुझे यहां से बचा लेंगे तो क्या हुआ..... मेरा काम मुझे किसी ना किसी खतरे तक पहुंचा ही देगा। फिर भी आप को नहीं बताना तो मैं आगे से नहीं पूछूंगी। मुझे मेरा मोबाइल लौटा दीजिए। मैं जा रही हूं।" वैदेही अपनी कुर्सी से खड़ी हुई और मोबाइल मांगने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। “आपका फोन ऊपर कमरे में है..... हम लेकर आते हैं।" यशवर्धन ने कहा और वहां से अपने कमरे में चला गया। उसके यहां से जाते ही वैदेही ने खुद से कहा, “कुछ सोच वैदेही..... उसके बाद तुम्हें इससे मिलने का मौका फिर नहीं मिल पाएगा।” वैदेही वहां घूमते हुए अपना दिमाग लगा रही थी। तभी यशवर्धन वहां आ चुका था और उसके हाथ में वैदेही का फोन था। “थैंक्स.....” वैदेही ने अपना मोबाइल पकड़ते हुए कहा, “कॉफी अच्छी थी।” यशवर्धन ने उसे मुस्कुराकर वेलकम कहा। उसे बाय बोलने के बाद वैदेही वहां से जाने लगी। यशवर्धन उसे पीछे से देख रहा था। उसने अपने मन में कहा, “काश हम आपको आज यहीं रोक पाते..... इतने सालों बाद इस घर में कोई ऐसा आया है, जिस से बात करने का हमारा मन कर रहा है। देसाई जी के अलावा और कोई नहीं है, जिसे हम अपने मन की बात बता सके। लेकिन आप से बात करने के बाद हमारा दिल..... हमारा दिल एक अलग ही सुकून महसूस कर रहा है। क्या ऐसा कोई रास्ता नहीं है, जिससे आप हमारे साथ रुक सके.....” जैसे ही वैदेही दरवाजे के पास पहुंची। यशवर्धन तेज कदमों के साथ उसके पीछे पीछे जाने लगा। उसने उसे रोकने के लिए आवाज लगाई, “वैदेही जी.....” अपना नाम सुनकर वैदेही उसकी तरफ मुड़ी और सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखने लगी। “हम आपको बताने के लिए तैयार हैं।" जैसे ही यशवर्धन ने कहा, वैदेही के चेहरे पर एक लंबी सी मुस्कुराहट थी, मानो उसने कोई बड़ी जंग जीत ली हो। वो बाहर जाने के बजाय अब वापस यशवर्धन की तरफ आने लगी। “हम जानते हैं कि हम जो भी करने जा रहे हैं, वो पार्टी के खिलाफ होगा। ये उस शपथ को तोड़ना होगा, जो हमने हमेशा पार्टी की वफादारी को निभाने के लिए ली थी। लेकिन.....लेकिन हम दिल के हाथों मजबूर हो गए हैं। हम जानते थे कि आप को रोकने का बस यही तरीका है। आप..... आप हमें अच्छी लगने लगी है वैदेही.....” यशवर्धन ने अपने मन में कहा। “चलिए बैठकर बात करते हैं।" वैदेही ने उसके पास आकर कहा। यशवर्धन ने हामी भरी। वो दोनों वापस गार्डन में आ गए थे और उसी टेबल पर बैठे थे। “आप चाहते तो मुझे पहले भी बता सकते थे। जब पहले आप कुछ बताने को तैयार नहीं थे, तो अब अचानक हुए इस बदलाव का कारण जान सकती हूं?" वैदेही ने हैरानी से पूछा। “हम आपसे झूठ नहीं बोलेंगे। साथ ही ये भी जानते हैं कि अभी ये सब बताना जल्दबाजी होगी। एज़ ए न्यूज़ रिपोर्टर आप हमें पहले से बहुत पसंद थी। हमने आपसे कहा ना कि हमने आपके हर एक शो को अच्छे से फॉलो किया है, लेकिन जब से आपसे मिले हैं, पता नहीं हमें क्या हो गया है, जो हम आप ही के बारे में सोचते रहते हैं।" यशवर्धन बिना कुछ सोचे समझे अपने दिल की बात बता रहा था। वैदेही को उससे ये बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले..... इसलिए जवाब देने के बजाय वो चुपचाप बैठी थी। “आप की चुप्पी हम समझ सकते हैं। आप की जगह कोई और होता तो उस वक्त उसे भी नहीं समझ आता। हमारे मन में जो था, हमने बता दिया। आप हमसे हमारे बदलाव का कारण जानना चाहती है, तो सुनिए आपको यहां रोकने के लिए हमें इससे बेहतर कुछ और नहीं सूझा।” यशवर्धन के मन में जो भी था वो वैदेही के सामने रख चुका था। “मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपके सडन कन्फेशन का मैं क्या जवाब दूं? सिचुएशन ऑकवर्ड ना हो इसलिए अभी यही कहूंगी कि आपने जिस वजह से मुझे रोका है, वो बता दीजिए यशवर्धन जी.....” वैदेही ने बात को घुमाते हुए कहा। “ एट लिस्ट अब तो आप हमें यश बोल सकती हैं।" “कोशिश करूंगी.....” वैदेही ने जवाब दिया। “हम पर उस दिन जो भी हमला हुआ वो हमारे ही पार्टी के एक विधायक ने करवाया था। पहले भी इस तरह की चीजें हो चुकी है। आप प्लीज जज मत कीजिएगा लेकिन आप भी अच्छे से जानती हैं कि इस तरह की खबरें बाहर आने पर किसी भी पार्टी की इमेज कितनी डाउन हो सकती है। बस इसी वजह से हम चुप थे।” “आप मुझे बता सकते थे। मैं कौन सा आपकी पार्टी ऑफिस जाकर आपकी शिकायत लगाने वाली थी।" “शिकायत तो नहीं लगाती लेकिन पुलिस को बयान जरूर दे देती। हमें पार्टी का सपोर्ट है, इस वजह से हमें कुछ नहीं होता, लेकिन आप चुप नहीं बैठती और ये बात आपके खिलाफ जा सकती थी।” यशवर्धन ने जवाब दिया। “लेकिन आप इतना डर क्यों रहे हैं? आपको तो पार्टी का अच्छा खासा सपोर्ट है और मैं इस तरह की सिचुएशन का सामना पहले भी कर चुकी हूं।” “हम जानते हैं कि आप काफी बहादुर है लेकिन हम पर जिस ने हमला करवाया था, वो किस हद तक जा सकता है, ये भी जानते हैं।" “जब इतना बता दिया है तो उसका नाम भी बता दीजिए?" वैदेही ने पूछा। यशवर्धन थोड़ी देर तक चुप रहा लेकिन वो जानता था कि जब इतनी बात पता चल गई है, तो वैदेही को आगे की बात भी बतानी पड़ेगी। ये सब चीजें उसके खिलाफ जा सकती थी। उसके बावजूद वो वैदेही को इन सब के बारे में बताने लगा। “हम आपको बता देंगे लेकिन आपको प्रॉमिस करना होगा कि आप इस विषय में कुछ नहीं करेंगी?" “लेकिन इस तरह की कोई डील नहीं हुई थी।" वैदेही ने कंधे उचका कर कहा। “डील नहीं हुई थी तो अब कर लीजिए। हमने उन गुंडों को क्यों मारा, इसकी वजह भी हमने आपको बता दी। हमने ये सब आपकी सेफ्टी के लिए किया था।" “ठीक है, मैं आपके पार्टी के मामलों में दखल अंदाजी नहीं करूंगी लेकिन वो व्यक्ति अगर क्रिमिनल हुआ तो मैं उसके अगेंस्ट सबूत जुटाने की पूरी कोशिश करूंगी।" “राघवेंद्र प्रताप सिंह..... हम पर हमला राघवेंद्र प्रताप सिंह ने करवाया था।" जैसे ही वैदेही ने वादा किया यशवर्धन ने बिना सोचे समझे उसे राघवेंद्र प्रताप सिंह का नाम बता दिया। उसका नाम सुनना वैदेही के लिए कोई हैरानी की बात नहीं थी। वो जिस केस पर काम कर रहे थे, उनमें बार-बार ज्यादा से ज्यादा सबूत राघवेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ ही जा रहे थे। “क्या हुआ आप चुप क्यों हैं?” वैदेही को चुप देखकर यशवर्धन ने पूछा। “आप जिस राघवेंद्र प्रताप सिंह की बात कर रहे हैं, क्या ये वही है जो निकोला का विधायक है।” यशवर्धन ने हामी भरी। “आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हम पहले से ही उसके खिलाफ सबूत जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। शायद आपकी पार्टी तक भी ये बात पहुंच चुकी होगी लेकिन वो इस विषय में कुछ नहीं कर रही। अगर आपको पता हो तो निकोला और उसके आसपास के एरिया में काफी सारी लड़कियां गायब हो रही है आज से नहीं पिछले 5 सालों से..... इन सब में अगर किसी का नाम निकल कर आ रहा है तो वो राघवेंद्र और उसके रिश्तेदारों का.....” “हमें ये सुनकर हैरानी नहीं हुई। हम जानते हैं कि वो इस तरह के काम कर सकते हैं लेकिन आप नहीं जानती ऐसा कोई क्राइम नहीं है, जो उन्होंने बाकी छोड़ा हो।” यशवर्धन ने बताया। “और उसका आप पर हमला करवाने की वजह?" “पार्टी का एक नियम है कि जीतने पर किसी भी पद के चुनाव पर हर बार योग्यता और बारी के हिसाब से किसी उम्मीदवार को खड़ा किया जाता है। इस बार मुख्यमंत्री बनने की बारी हमारे पिता श्री हर्षवर्धन सिंह की थी, लेकिन उनकी मौत हो गई है तो उनकी जगह हमें मुख्यमंत्री बनाने की बात चल रही है, तो वहीं अगर पिताजी मुख्यमंत्री बन जाते तो उनके बाद राघवेंद्र की बारी आती। राघवेंद्र चाहता है कि पिताजी के जाने के बाद ये सीट उसे को दी जाए।" जैसे ही यशवर्धन ने बताया वैदेही के चेहरे पर गुस्से के भाव थे। उसने उसी अंदाज में कहा, “और वो क्रिमिनल मुख्यमंत्री कभी नहीं बन सकता। वो इस पोस्ट के लायक ही नहीं है। मैं ऐसा नहीं होने दे सकती।" “काश हम आपकी कुछ मदद कर पाते। हम भी यही चाहते हैं वो मुख्यमंत्री ना बने। बस इसीलिए उसके अगेंस्ट सबूत जुटाने की कोशिश की थी। शायद उन्हें पता चल गया और उन्होंने हम पर हमला करवा दिया होगा।" “क्या?" वैदेही ने चौकते हुए कहा, “आप उसके अगेंस्ट सबूत जुटा रहे हैं?" “इसमें इतना सोचने की क्या बात है? हम भले ही चीफ मिनिस्टर ना बने लेकिन ये कभी नहीं चाहेंगे कि उस जैसा क्रिमिनल इस पद पर बैठे।” वैदेही और यशवर्धन की राहे भले ही अलग हो लेकिन मंजिल एक थी और वो थी राघवेंद्र प्रताप सिंह को मुख्यमंत्री बनने से रोकना। दोनों के इरादे एक दूसरे के सामने आ चुके थे। जहां उन्हें ये तय करना था कि उन्हें वो रास्ता एक साथ तय करते हैं या अलग अलग.....। ★★★★
वैदेही यशवर्धन सिंह के साथ उसके घर पर थी। यशवर्धन सिंह ने उसे अपने हमलावरों का नाम बता दिया, जहां राघवेंद्र प्रताप सिंह का नाम निकल कर आया था। “हम दोनों का मकसद एक ही है वैदेही.....” यशवर्धन ने स्पष्ट किया। “मकसद के साथ साथ मजबूरी भी एक ही है..... हम दोनों ही सामने आकर काम नहीं कर सकते।“ “हम सामने आकर काम नहीं कर सकते तो क्या हुआ, आप तो कर सकती हैं ना? यकीन मानिए वैदेही जी, हम आपकी हर संभव मदद करेंगे।” बोलते हुए यशवर्धन ने अपना हाथ वैदेही के हाथ पर रखा। “हम भी नहीं कर सकते..... हमारी भी कुछ सीमाएं होती है यशवर्धन जी..... आप पर कभी कबार हमले होते हैं जबकि हम तो खुद इनकी दुनिया में कदम रखते हैं, तो सोचिए हमारे लिए कितना रिस्क होता होगा।” “तो क्या आप राघवेंद्र के खिलाफ हमारे साथ काम नहीं करेंगी?" “मैंने ऐसा तो नहीं कहा.....” वैदेही ने मुस्कुरा कर कहा, “हमारी सबसे बड़ी ताकत मीडिया होती है। अगर हम जिस केस पर काम कर रहे हैं, उस पर प्रॉपर सबूत मिल जाए तो राघवेंद्र के गुनाहों पर कोई पर्दा नहीं डाल सकता। बाकी आपकी पार्टी के मामलों में हम इंटरफेयर नहीं करेंगे।” “वो मैं संभाल लूंगा। मैं पार्टी को कभी आपके आड़े नहीं आने दूंगा, मैं वादा करता हूं। साथ ही आपकी सिक्योरिटी की जिम्मेदारी भी मेरी होगी। आपको जिस वक्त जहां जाना होगा... मैं सब कुछ अरेंज करवा दूंगा।" यशवर्धन उत्साहित होकर बोल रहा था। उसकी आंखों की चमक साफ दिखाई दे रही थी। “मुझे नहीं लगा था कि इस तरह मुझे आपका साथ मिल पाएगा। आपकी एक्साइटमेंट साफ बता रही हैं कि आप राघवेंद्र को सजा दिलाना चाहते हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे।” “सही कहा..... हमारा पॉलिटिक्स ज्वाइन करने का एक रीजन ये भी था कि हम उसके क्राइम्स को दुनिया के सामने ला सके। बहुत पहले जब पापा जिंदा थे, तब उन्होंने एक बार हमें अपने काम से भेजा था। हम तभी पहली बार राघवेंद्र से मिले थे। शुरुआत में हमारी अच्छी दोस्ती थी लेकिन धीरे-धीरे हमारे सामने उसके काले चिट्ठे खुलने लगे। तब से हमने यही सोचा है कि कुछ भी हो लेकिन इस आदमी का सच दुनिया के सामने होना चाहिए।” यशवर्धन ने बताया “आप ये सब बातें मुझे पहले भी बता सकते थे। खैर कोई बात नहीं... देर आए दुरुस्त आए। आप चिंता मत कीजिए। बहुत जल्द ही वो समय आने वाला है जब राघवेंद्र को उसके किए की सजा मिलेगी।” यशवर्धन सिंह ने उसकी बात पर हामी भरी। “हम आपको बता भी नहीं सकते कि आज हम कितने खुश हैं।" उसने कहा। “और मैं भी... अब तक मैं और देव ही इस पर काम कर रहे थे लेकिन अब आपका भी साथ मिल चुका है।” “लेकिन हमारा साथ और हाथ सीक्रेट रहना चाहिए। उसी में हम सबकी भलाई है।" वैदेही ने उसकी बात पर पलके झपका कर हामी भरी। उनकी बातें खत्म हो चुकी थी। वैदेही ने अपना मोबाइल निकाला तो सुबह के 4:30 बज रहे थे। “पता नहीं चला, कब इतना वक्त हो गया। मुझे अब चलना चाहिए। घर पर नरगिस अकेली होगी।” “हां..... अक्सर चाहने वालों के साथ वक्त का पता ही नहीं चलता।” यशवर्धन के मुंह से अचानक निकला। “चलिए अब इजाजत दीजिए। मैं आपको आगे की अपडेट देती रहूंगी और आप भी राघवेंद्र प्रताप सिंह से जुड़ी हर एक बात मुझे बताएंगे।" “इसका मतलब अब ये मुलाकातों और बातों का दौर जारी रहेगा।" “बाय.....” वैदेही ने उसकी बात को टाल कर सिर्फ इतना ही कहा। जिस पर वो मुस्कुरा कर रह गया। वैदेही वहां से जाने लगी तभी यशवर्धन ने पीछे से चिल्ला कर कहा, “मिस रघुवंशी, आज हमने आपसे बहुत सी बातें की और बहुत कुछ बताया भी। उम्मीद है आप उनमें से कुछ भी नहीं भूलेंगी।" यशवर्धन का इशारा उस तरफ था जब उसने वैदेही से अपने दिल की बात कही थी। जवाब में वैदेही ने बिना मुड़े अपना हाथ ऊपर करके फिर से बाय कहा और वहां से चली गई। उसके ऐसा करने पर यशवर्धन के चेहरे पर हल्की हंसी थी। ___________ लगभग 1 घंटे बाद वैदेही घर पहुंची। नरगिस अभी तक जाग रही थी। इसके अलावा वहां पर प्रतीक और देव भी थे। उन दोनों के चेहरे के भाव गंभीर थे तो वही नरगिस बच्चों की तरह रोए जा रही थी। जैसे ही नरगिस ने वैदेही को देखा, वो दौड़ कर गई और उसके गले लग गई। “तुम वापस आ गई। हम अभी पुलिस स्टेशन जाने ही वाले थे। तुम ठीक हो ना वैदेही?" नरगिस ने उससे अलग होकर रोते हुए पूछा। “इसे क्या हुआ?" वैदेही ने प्रतीक और देव से पूछा। “बस कुछ मत ही पूछो, तो ठीक है। बाय द वे तुम्हें किसने कहा था कि आधी रात को यशवर्धन के घर अपना मोबाइल लेने जाओ।” प्रतीक ने सोफे पर बैठते हुए कहा। उन दोनों को वहां देख कर और नरगिस का व्यवहार देकर वैदेही को समझते देर नहीं लगी और वो खिलखिला कर हंस पड़ी। वैदेही नरगिस के गाल पर हल्का हाथ मारते हुए बोली, “वो पॉलिटिशन है, कोई क्रिमिनल नहीं..... जो मेरी जान को खतरा होने वाला था।” “आज एक फैन का उसके आइडल पर से विश्वास उठते अपनी आंखों के सामने देखा। जहां पूरे दिन नरगिस मैडम यशवर्धन की रट लगा कर बैठी थी, वहां दिन खत्म होने तक वो तो उसके अगेंस्ट पुलिस रिपोर्ट फाइल करने जा रही थी।" देव ने नरगिस का मजाक बनाते हुए कहा। “हां हां उड़ा लो मेरा मजाक..... तुम मोबाइल लेने गई थी या फिर किसी मोबाइल कंपनी में फिर से मोबाइल बनाने के लिए? इतना टाइम किसे लगता है? ऊपर से मुझे भी लेकर नहीं गई।मुझे कितनी फिक्र हो रही थी तुम्हारी.....” नरगिस रोते हुए एक सांस में बोल गई। वैदेही ने उसे चुप करवाया और प्यार से गले लगा कर कहा, “अरे मेरी छोटी सी बेबी डॉल, मुझे कुछ नहीं होने वाला। तुम्हारे उस हीरो के गार्ड्स ने पहले मुझे अंदर नहीं जाने दिया और फिर जब अंदर गई तो उसने मुझे कॉफी ऑफर की। मैं काफी थक गई थी इसलिए मैंने भी मना नहीं किया।” “फिर भी इतना टाइम कौन लगाता है?" प्रतीक ने पूछा। वैदेही ने उसे नरगिस के सामने चुप रहने का इशारा किया। तब वो दोनों समझ चुके थे कि जरूर बात कुछ और थी। “ठीक है फिर ऑफिस में मिलते हैं। वैदेही तुम चाहो तो ऑफिस लेट आ सकती हो।" प्रतीक ने सोफे से उठते हुए बोला। “जी नहीं, मैं मेरे टाइम पर ही आऊंगी एंड थैंक यू सो मच आप दोनों यहां पर आए। ऑफिस में बात करते हैं।" कहकर वैदेही अपने कमरे में आराम करने जाने लगी। उसके जाने के बाद देव और प्रत्येक नरगिस की तरफ देखकर हल्का सा हाँसे और उसे बाय बोल कर वो भी घर की तरफ निकल बड़े। “क्या ये ऑफिस लेट आने का ऑफर मेरे लिए भी है" रास्ते में देव ने पूछा। “बिल्कुल भी नहीं..... तुम सिर्फ आधे घंटे पहले आए थे। उससे पहले अपनी अच्छी खासी नींद पूरी कर चुके हो।" प्रतीक ने जवाब दिया। उसका जवाब सुनकर देव का मुंह बन गया। ____________ सुबह के नौ बजे वैदेही समय पर ऑफिस पहुंच चुकी थी। प्रतीक ने आते ही उसे देव के साथ अपने केबिन में बुलाया था जहां वो उससे यशवर्धन के बारे में बात करने वाले थे। “अब जल्दी से बताओ कि यशवर्धन के घर पर तुम्हें इतना टाइम क्यों लगा?" प्रतीक ने आते ही पूछा। “हां वैदेही मैम जल्दी बताइए। सस्पेंस के मारे पिछले 4 घंटे से पेट दर्द कर रहा है।" देव ने भी पूछा। “ओके तो ज्यादा सस्पेंस ना क्रिएट करते हुए आपको बता दूं कि राघवेंद्र की जो हरकतें हैं, वो किसी से छुपी हुई नहीं है। उसके पार्टी के बाकी विधायक, पार्टी अध्यक्ष या किसी को भी ले लीजिए.....” “इट मींस यशवर्धन भी उसके बारे में सब कुछ जानता होगा।" प्रतीक ने पूछा। “सिर्फ जानता ही नहीं बल्कि वो भी चाहता है कि उसे सजा दिलवाई जाए। उस जैसे भ्रष्ट नेता की राजनीति में कोई जगह नहीं है।” वैदेही की बात सुनकर देव ने कहा, “इस हिसाब से तो वो सभी भ्रष्ट है, जो उसके बारे में सब जानते हुए भी उसे नहीं रोकते और उसके काम को बढ़ावा देते हैं।” “सही कहा देव.....” प्रतीक ने जवाब में कहा, “मुझे तो हमेशा से ही महाराष्ट्र विकास पार्टी पर शक था। इतना क्लियर रिकॉर्ड किसी का नहीं होता। ऐसा तो हो नहीं सकता कि इनसे कोई गलती या चूक ना हुई हो.....” “होती है लेकिन ये लोग सामने नहीं आने देते हैं सर। कल रात यशवर्धन ने मुझे इसके बारे में बताया। यहां तक कि उस पर हमला भी राघवेंद्र ने करवाया था।" वैदेही ने बताया। “तो अब आगे क्या सोचा है? यशवर्धन ने क्या कहा?" प्रतीक ने पूछा। प्रतीक के पूछने पर वैदेही कल रात की यादों में खो गई, जहां यशवर्धन ने उसे अपने दिल की बात बताई थी। अगले ही पल उसने खुद को संयमित किया और कहा, “उसने वो कहां जो किसी ने सोचा भी नहीं होगा..... वो हमारा साथ देने के लिए तैयार है। लेकिन उसकी एक शर्त है कि ये सब कॉन्फिडेंसली हो।” “ये हुई ना बात.....” प्रतीक ने खुशी से अपना हाथ टेबल पर मार कर कहा, “अगर वो पार्टी के लोगों को हम तक पहुंचने से रोक ले तो हम बिना किसी दिक्कत के इस मिशन पर काम कर सकते हैं।” वैदेही ने उसकी बात पर हामी भरी। तभी प्रतीक के मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन आया उसने उसे पढ़ते हुए बोला, “अभी अभी ब्रेकिंग न्यूज़ निकल कर आ रही है..... देव जरा टीवी तो ऑन करना।" देव ने हामी भरी और सामने लगी टीवी स्क्रीन को ऑन किया। सभी लोकल और नेशनल न्यूज़ चैनल पर इस वक्त एक ही खबर दिखाई जा रही थी। उसे देखने के बाद वैदेही देव और प्रतीक तीनों के चेहरे पर ही चिंता के भाव थे। थोड़ी देर पहले वो जिस बात की खुशी मना रहे थे, वो खुशी अब लंबी टिकने वाली नहीं थी। ___________ “जैसा कि सबको पता है एक हफ्ते बाद महाराष्ट्र के विधानसभा के चुनावो का नतीजा आने वाला है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो हर बार की तरह महाराष्ट्र विकास पार्टी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। अगर पार्टी की जीत होती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कौन बनते हैं। इस बार मुख्यमंत्री पद के लिए दो प्रबल दावेदार नजर आ रहे हैं, जिनमें बाहुबली नेता राघवेंद्र प्रताप सिंह और यशवर्धन सिंह का नाम निकल कर आ रहा है। दोनो ही नेता युवा है, यशवर्धन की उम्र मात्र 28 साल है, तो वही राघवेंद्र उर्फ भैया जी 33 साल के है। यशवर्धन सिंह युवाओं में काफी प्रचलित है, तो वहीं राघवेंद्र प्रताप सिंह अपने एरिया के दबंग बाहुबली है। इनका सियासत में अच्छा सिक्का चलता है। राघवेंद्र प्रताप सिंह की छवि कुछ खास अच्छी नहीं है। खबर तो यहां तक भी है कि इनके खिलाफ काफी सारे क्रिमिनल केसेस भी दर्ज है। आगे खबरों के लिए बने रहिए, पल पल न्यूज़ के साथ..." महाराष्ट्र के निकोला से एक लोकल न्यूज़ चैनल एंकर न्यूज़ पढ़ रहा था। “तड़ाक.....“ कांच के गिलास के टूटने की आवाज आई जो कि राघवेंद्र प्रताप सिंह ने अपने हाथ में पकड़ा था। गिलास टूटने की वजह से उसके अंदर पड़ा जूस नीचे गिर गया और राघवेंद्र के हाथ में एक दो टुकड़े चुभ जाने की वजह से खून आने लगा। राघवेंद्र प्रताप सिंह अपने कुछ आदमियों के साथ अपने घर में लगी एक बड़ी सी एलईडी स्क्रीन में खबर को देखकर अपने मूछों को ताव दे रहे थे। उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो इस खबर से खासा खुश नहीं थे। राघवेंद्र प्रताप सिंह के चेहरे के भाव देखकर उनके आसपास के आदमी चौकन्ना हो गए। लल्लन ने दौड़कर जल्दी से टीवी बंद किया और चिल्लाकर बोला, “अरे कोई मरहम पट्टी तो लेकर आओ। देखो..... हमारे भैया जी के हाथ से कितना खून बह रहा है।“ उसकी आवाज सुनकर एक आदमी वहां से भागकर जाने लगा लेकिन राघवेंद्र सिंह गुस्से में खड़ा हुआ और अपना हाथ ऊपर करके उसे रुकने का इशारा किया। वो बिना कुछ बोले वहां से चला गया। कुछ आदमी उसके पीछे दौड़ कर गए जिनमें से लल्लन भी एक था। ★★★★ कीप सपोर्टिंग कीप रिव्यूविंग
टीवी की न्यूज़ सुनकर राघवेंद्र प्रताप गुस्सा हो चुके थे। इसके दो कारण थे पहला न्यूज़ रिपोर्टर का उनकी नेगेटिव पब्लिसिटी करना तो दूसरा उम्मीदवार के तौर पर उनके साथ साथ यशवर्धन सिंह का भी नाम आना। “काय झालं... राघव कुठे गेला? मी त्याला नाश्ता आणून दिला.....” (क्या हुआ? राघव कहां गया? मैं उसके लिए नाश्ता ले कर आई थी।) एक औरत हाथ में नाश्ते की प्लेट लेकर बाहर आई। वो राघवेंद्र प्रताप सिंह की मां सुमित्रा देवी थी, जिसने महाराष्ट्रीयन स्टाइल में साड़ी पहनकर बालों में गजरा लगा रखा था। नाक में महाराष्ट्रीयन नथ पहन रखी थी और खूब सारे सोने के गहने भी..... उसके रहन सहन और पहनावे से उनकी धन-दौलत और वैभव साफ नजर आ रहा था। “काहीच घडलं नाही..... आई आप दादा की ज्यादा फिक्र मत किया करो, हमारे होते हुए उन्हें कोई टेंशन नहीं हो सकती।” वहां मौजूद आदमी ने कहा। “अरे ऐसे कैसे ना करूं? तुम भी कमाल करते हो शुभम..... जानता है ना राघव कितना गुस्से वाला है। अभी उसकी ठनकी ना, तो एक-दो को ठोक डालेगा।" सुमित्रा ने तेज आवाज में कहा। उसकी आवाज सुनकर अंदर से एक और औरत बाहर आई। उसने भी सुमित्रा की तरह साड़ी पहन रखी थी लेकिन वो देखने में जवान थी। उस औरत को बाहर आता देख शुभम बोला, “आई थोड़ा धीरे बोलो ना..... ये देखो वहिनी (भाभी) भी बाहर आ गई।” उसे देखकर सुमित्रा ने अपना नाक सिकोड़ा और वहां से चली गई। “मैं आता हूं वहिनी.....” शुभम वहां से जाने को हुआ लेकिन उसने उसे रोकते हुए बोला, “सब ठीक तो है ना दादा?" “हां हां इसे सब खबर दे दो। अगर सब ठीक नहीं भी होगा तो ये ठीक कर देगी..... अरे तेरा जो काम है वो आकर कर ना आरती....." अंदर से सुमित्रा के चिल्लाने की आवाज आ रही थी। वो किचन में जोर-जोर से बर्तन बजा रही थी मानो काम कर रही हो। “मैं देख लूंगा वहिनी.....” शुभम ने कहा और वहां से चला गया। उसके जाने के बाद आरती भी अंदर चली गई। उसके अंदर आते ही सुमित्रा की खिट पिट फिर से चालू हो गई। वो उस पर झल्लाते हुए बोली, “तुझे राघव की कब से फिक्र होने लगी। तुम्हें तो वो पसंद ही नहीं था।" “आई अब घर के सदस्य की फिक्र नहीं होगी तो.....” आरती की बात खत्म होने से पहले ही सुमित्रा ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखे और मुंह बना कर बोली, “घर का सदस्य? अरे वो कब से हो गया? मुझे आज भी याद है वो दिन, जब तेरे घर वाले तेरी बहन के रिश्ते के लिए मना कर दिया था और साथ ही ये बोल कर गए थे कि मेरा राघव गुंडा है।" आरती ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे सर झुका कर खड़ी हो गई। “हां अब ये मुंडी झुकाने से कुछ नहीं होगा..... तेरे घरवाले एहसान फरामोश है..... मेरा राघव गुंडा है तो उनका दामाद शिवेंद्र....वो भी तो उसी के साथ काम करता है।" “आई.....शिव सिर्फ उनके अकाउंटेंट है। वो उनकी तरह किसी की जान नहीं लेते।" बात बस से बाहर हो गई तो आरती ने जवाब दिया। “और मेरे घर वालों ने राघव के लिए नहीं मानव के लिए हाथ मांगा था।" “अच्छा तो मैं अपने मानव का हाथ तेरी बहन के हाथ में दे दूं..... मेरा मानव विदेश में पढ़ाई कर रहा है। वो अपनी मर्जी से जिस पर लड़की के ऊपर हाथ रखेगा उसी को इस घर की दुल्हन बनाऊंगी। आए बड़ी मानव से शादी करवाने.....” सुमित्रा ने मुंह बनाकर बोला और वहां से चली गई। राघवेंद्र प्रताप सिंह के परिवार में उसकी मां सुमित्रा देवी और तीन भाई थे। जहां बड़े भाई शिवेंद्र की शादी हो चुकी थी तो छोटा भाई मानव बाहर स्टडी कर रहा था। राघवेंद्र के दादा परदादा जमींदार थे और पुरखों के समय से ही काफी धनसंपदा इकट्ठा कर रखी थी। राघवेंद्र के पिता की मौत हो चुकी थी। उनके क्षेत्र में उनका हमेशा से ही बोलबाला रहा था, फिर राघवेंद्र के पॉलिटिक्स में जाने के बाद उनका दबदबा और भी बढ़ गया। __________ वो खबर सुनने के बाद राघवेंद्र अपनी जीप लेकर बाहर निकला था। उसने ऊपर से छत खोल रखी थी तो जो भी रास्ते में उसे मिलता वो उसे प्रणाम करता। “मन तो कर रहा है उस त्यागी को जाकर अभी उड़ा आए..... साला दो कौड़ी की इज्जत नहीं थी उसकी, जब उसने वो पार्टी बनाई थी। हम थे, जिसने उस पार्टी को पहचान दिलाई, हमारे पैसे खर्च किए..... हमें हमेशा रोकता रहा की बारी आएगी तब मुख्यमंत्री बना दूंगा लेकिन अब बारी आ गई है तो उसने हर्षवर्धन के बेटे को खड़ा कर दिया। यहां क्या लंगर लगा हुआ है जो बारी आने के बाद ही खाना मिलेगा। हम भी देखते हैं हमारे होते हुए वो मुख्यमंत्री कैसे बनता है। एक-एक को ठोक देंगे.....” राघवेंद्र प्रताप सिंह ने गुस्से में कहा। वो कार को फुल स्पीड में रोड पर दौड़ाए जा रहा था। उसे रोकने के लिए पीछे से उसके आदमी आ रहे थे। कोई उसी की तरह जीप में था तो कोई मोटरसाइकिल पर उसका पीछा कर रहा था। लल्लन ने अपनी बाइक की स्पीड बढ़ाते हुए राघवेंद्र की गाड़ी को ओवरटेक कर लिया और अपनी बाइक को उसके जीप के आगे खड़ा कर दिया। उसके अचानक सामने आने की वजह से राघवेंद्र ने ब्रेक मारे और वो वहीं रुक गई। “का? पगला गए हो क्या लल्लनवा?" राघवेंद्र उसी के अंदाज में चिल्लाया। “का भैया जी? अब हमारी बिहारी में कानों में मिश्री घोलोगे तो हम तो आपकी डांट सुन कर भी नहीं सुनने वाले..... इतना गुस्सा काहे को? अरे एक बार हम को कह कर तो देखते..... अरे भूचाल ला देते।” लल्लन ने समझाते हुए कहा। तब तक बाकी के लोग भी राघवेंद्र तक पहुंच चुके थे। वो गाड़ी से बाहर निकले और राघवेंद्र के पास आ गए। “दादा आपको कितनी बार कहा है कि आप बस हुक्म किया कीजिए, उसके बाद त्यागी का चीज है, पूरी मुंबई को सर पर उठा लेंगे।" उनमें से एक बोला। उसी के सुर में सुर मिलाता हुआ दूसरा बोला, “दादा आपने तो सुबह का नाश्ता भी नहीं किया। आई आपके लिए आपका फेवरेट पोहा बना कर लाई थी। यहां आप कुछ नहीं खाए तो हम सब लोग भी भूखे बैठे हैं।” “हमारे पेट में से तो भूख के मारे गुड़गुड़ की आवाज भी आ रही है.....” लल्लन ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा। “अरे बस कर नौटंकी.....एक तुम लोग ही हो जिसकी वजह से आज हमारी इतनी ताकत है..... त्यागी को हम देख लेंगे। सबसे पहले उस रिपोर्टर को उठाओ, जो हमारे खिलाफ खुलेआम बोल रहा था।” जैसे ही राघवेंद्र ने अपनी बात खत्म की उनमें से एक गुंडा बोला, “दादा उस खबर को आए हुए पूरे 2 घंटे हो चुके और आपको क्या लगता है कि अब तक वो आजाद घूम रहा होगा? अरे उसको तो खुद उसके ऑफिस से जाकर धर दबोचा है।” “शाबाश मेरे शेरो.....” राघवेंद्र ने गर्व भरी मुस्कुराहट से कहा, “वैसे रखे कहां हो उसको?" “अरे अपने भैंसन के तबेले में रखे हैं भैया जी.....” लल्लन ने बताया, “ऊं खिलौने से तो हम रात को खेलेंगे।” “तब तक खातिरदारी अच्छे से हो जानी चाहिए उसकी..... चलो अब घर चलते हैं, बहुत भूख लगी है..... सुन मुकेश, घर पर कॉल करके आई को बोल दे कि आरती भाभी से कहे मेरा फेवरेट कांदा पोहा बना दे।" राघवेंद्र ने कहा और अपनी जीप में जाकर बैठ गया। इस बार उसके साथ लल्लन भी था। वो उसका खास आदमी था और साथ ही कम उम्र का होने की वजह से उसे उसके साथ छोटे भाई की तरह लगाव था। ___________ दूसरी तरफ वो न्यूज़ देखने के बाद वैदेही देव और प्रतीक के चेहरे पर परेशानी के भाव थे। “यशवर्धन को भी अब तक इन सब का पता चल चुका होगा।” वैदेही ने प्रतीक की तरफ देख कर कहा। “हां उससे ये सब कैसे छिपा हो सकता है। उनसे बात करके देखे?" प्रतीक ने पूछा। वैदेहीे ने हां में सिर हिला दिया और उसी वक्त यशवर्धन को कॉल किया। यशवर्धन अपने घर पर अनंत देसाई के साथ था। ये न्यूज़ देखने के बाद वो भी काफी परेशान था। “हमें त्यागी जी से ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि वो बिना किसी मीटिंग किए ये बात पब्लिक कर देंगे।" अनंत देसाई ने कहा। “मीटिंग तो दूर की बात है उन्होंने एक बार हमसे ये बात साझा तक करना जरूरी नहीं समझा। एक हफ्ते बाद जब पार्टी की जीत होगी उसके बाद पता नहीं हमें कौन कौन सपोर्ट करेगा। हमें तो किसी पर विश्वास नहीं है।" यशवर्धन परेशान स्वर में अनंत देसाई से बात कर रहा था तभी उसके फोन पर वैदेही का कॉल आया। यशवर्धन ने अनंत देसाई को चुप रहने का इशारा किया और वैदेही का फोन उठाया। “जी वैदेही जी, बोलिए, हमें पता है कि आपने हमें क्या बताने के लिए फोन किया होगा।" यशवर्धन ने फोन उठाते ही कहा। “तो क्या आप इस बारे में पहले से जानते थे?" “नहीं हमें इस बारे में कोई खबर नहीं थी। इस खबर को देखने के बाद जितना शोशॉक आपको लग रहा है, उतने ही सदमे में हम भी हैं..... ये हमारे लिए अच्छी खबर नहीं है।” “आपको क्या लगता है अब हमें क्या करना चाहिए। अब हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है।" वैदेही ने पूछा। “हम इस वक्त कॉल पर बात नहीं कर सकते। इस तरह की बातें तो बिल्कुल नहीं..... आपको बता दें कि हमारे साथ हमारे सेक्रेटरी देसाई जी भी हैं, जिन्हें इस बारे में सब कुछ पता है तो क्यों ना शाम को एक मीटिंग करें.....” यशवर्धन ने पूछा। वैदेही का फोन भी स्पीकर पर था उसने जवाब के लिए प्रतीक की तरफ देखा। प्रतीक के हामी भरते ही वैदेही ने कहा, “ठीक है फिर आज रात की मीटिंग तय रही लेकिन मेरे साथ मीटिंग में मेरा असिस्टेंट देव और प्रतीक सर भी मौजूद रहेंगे।" “हमें मंजूर है..... हम आपको मीटिंग का टाइम बता देंगे।” यशवर्धन ने कहा और कॉल कट कर दिया। उधर वैदेही भी अपने कामों में लग चुकी थी। अब उनके पास सिर्फ 1 हफ्ते का वक्त बचा था जिसमें उन्हें राघवेंद्र प्रताप सिंह के गुनाहों के सबूत इकट्ठे करने थे। वक्त का बीतता हर पल उनके लिए बहुत कीमती था और वो उसे जाया नहीं करना चाहती थी। ★★★★ राघवेंद्र अपने आदमियों के साथ घर आ चुका था। घर आते ही उसने नाश्ता किया। नाश्ता करने के तुरंत बाद वो सीधा अपनी हवेली के पीछे बने भैंसों के तबेले में गया। वहां भैंसों की आवाज आ रही थी। “क्या बे? यही जगह मिली थी क्या इसको बांधने के लिए?" जैसे ही गोबर की बू राघवेंद्र के नाक में गई वो नाक सिकोड़ कर बोला। “दादा कौन सा आपको यहां रहना है? ये खास इंतजाम तो हमने इसके लिए करवाया है।" एक आदमी ने हंसते हुए कहा। राघवेंद्र भी उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दिया। वो थोड़ा आगे पहुंचा दो भैंसों के बीच में रिपोर्टर को बांधा गया था। उसकी हालत खराब थी। वो पसीने से लथपथ था और उसके हाथ पैर बांधे हुए थे। वो शोर ना मचाए इसलिए उसके मुंह पर टेप भी चिपकाया हुआ था। वहां काफी सारी भैंसें मौजूद थी। उनमें से एक भैंस ने उसे जोर से लात मारकर थोड़ा दूर फेंक दिया। इसी के साथ वो सब कहकहा लगा कर हंस पड़े। “का से ललनवा..... बहुत अच्छे से इंतजाम किए हो। रिपोर्टर बाबू पूरा इंजॉय कर रहे हैं।“ बोलते हुए राघवेंद्र ने अपनी आवाज तेज की और कहा, “क्या रिपोर्टर बाबू? कहीं कोई कमी रह गई हो तो बता दीजिएगा।" “इसका ठीक है दादा..... आपके आदमियों का काम तो ये भैंसें ही कर रही है।” लल्लन ने हंसते हुए कहा। “तो का ई भैंसिया को काम पर रख ले।" राघवेंद्र ने कहा और रिपोर्टर के पास आकर उसके बाल खींचते हुए बोला, “टीवी में तो बड़ा जोर जोर से चिल्ला कर कह रहा था कि हमारे खिलाफ क्रिमिनल केसेस है। अरे जब इतना सब कुछ पता ही था तो काहे हमारे खिलाफ चिल्ला चिल्ला कर बोल रहे थे। पता नहीं था क्या कि हमारे खिलाफ बोलने वाले का क्या हाल होता है?" रिपोर्टर ने बोलने की कोशिश की लेकिन मुंह बंद होने की वजह से वो कुछ बोल नहीं पा रहा था और उसके मुंह से आ.....ऊं की ही आवाज निकल पा रही थी। राघवेंद्र वहां से बाहर आया और अपने आदमियों से बोला, “थोड़ी देर बाद रिपोर्टर बाबू को अच्छे से तैयार करके लाना। हम इनके साथ लाइव न्यूज़ टेलीकास्ट करेंगे और हां पार्टी की तैयारी करना।” “जी दादा.....” उनमें से किसी ने जवाब दिया। राघवेंद्र वहां से जा चुका था। रिपोर्टर की निगरानी में कुछ आदमी वहीं मौजूद थे। रिपोर्टर बोलने की अभी भी कोशिश कर रहा था लेकिन भैंसों की आवाज में उसकी आवाज दब कर रह गई थी। ★★★★
रात के 1:00 बज रहे थे और हाफुस शहर की सुनसान गलियों पर गाड़ियों के दौड़ने की आवाज हो रही थी। बीच में राघवेंद्र की जीप थी, जो काफी धीमी गति से चल रही थी और उसके पीछ रिपोर्टर को बांधा गया था। वो उसे घसीटता हुआ घर से कही दूर ले जा रहा था। राघवेंद्र के आगे बाइक पर लल्लन था, तो उसके पीछे भी दो गाड़ियां आ रही थी, जिसमें उनके बाकी के आदमी थे। रिहायशी इलाके से दूर जाने के बाद उन्होंने गाड़ी रोकी। राघवेंद्र गाड़ी से बाहर आया और पीछे की तरफ पड़ी एक कुल्हाड़ी को उठा लिया। उसने उस कुल्हाड़ी से एक ही झटके में रस्सी काट दी, जिससे रिपोर्टर गाड़ी से अलग हो गया। “तो कैसी रही आपकी यात्रा रिपोर्टर बाबू?" राघवेंद्र ने हंसते हुए पूछा। रिपोर्टर के मुंह पर टेप थी। जिस वजह से वो कुछ बोल नहीं पा रहा था। “अरे तुम कैसे बोलोगे, तुम्हारे मुंह पर तो ये टेप लगा है। रुको , हम तुम्हारा मुंह खोल देते हैं ताकि तुम बोल सको।" राघवेंद्र ने कहा और एक झटके के साथ रिपोर्टर के मुंह से टेप हटा दिया। इसी के साथ वो जोर से चिल्लाया। “पार्टी का इंतजाम किए हो ना.....” राघवेंद्र ने अपने आदमियों से चिल्लाकर पूछा। “अरे भैया जी आप फिकर मत कीजिए। पीछे गाड़ियों में सारा सामान आ रहा है।“ लल्लन ने कहा। राघवेंद्र ने रिपोर्टर की तरफ देखा जो कि अभी भी जमीन पर गिरा हुआ था। उसने अपना एक हाथ उसकी तरफ बढ़ाकर बोला, “खड़े हो जाओ रिपोर्टर बाबू, चलो पार्टी करते हैं। वो कौन सा गाना है ललनवा, जो तू गाता रहता है।" “अरे अभी तो पार्टी शुरू हुई है.....” लल्लन गुनगुनाते हुए कूदने लगा। उसके ऐसा करने पर राघवेंद्र हंसने लगा। थोड़ी देर बाद बाकी की गाड़ियां भी वहां पर पहुंच गई थी। अगले 10 मिनट में राघवेंद्र के आदमियों ने बीच सड़क पर डेरा डाला। पीछे एक जीप की छत पर एक बड़ी सी कुर्सी बंधी हुई थी“ जो किसी सिंहासन की तरह लग रही थी। उन्होंने सभी गाड़ी की हेडलाइटस ऑन कर दी, जिसकी वजह से वहां अच्छी खासी रोशनी हो गई थी। सड़क के बीचो-बीच वो सिंहासन जैसी कुर्सी लगाई गई। “क्या? रिपोर्टर बाबू के लिए कुछ नहीं लेकर आए?" राघवेंद्र ने कुर्सी पर बैठते हुए पूछा। “है ना दादा..... अब आप का मेहमान है, तो खातिरदारी में कमी थोड़ी ना छोड़ेंगे।" एक आदमी बोला और अंदर से हाथ से बुनी हुई एक छोटी कुर्सी लेकर आ गया। राघवेंद्र ने रिपोर्टर को वहां पर बैठने का इशारा किया। वो डर से कांप रहा था। वो उस कुर्सी पर बैठने के बजाय वहीं पर खड़ा था। लल्लन ने उसका कॉलर पकड़ा और बोला, “बहरा हो गया है का? सुन नहीं रहा भैया जी ने तुझे बैठने का इशारा किया है..... चल बैठ चुपचाप कुर्सी पर.....” लल्लन ने रिपोर्टर को कुर्सी की तरफ धक्का दिया और वो नीचे जा गिरा। जैसे तैसे उसने खुद को संभाला और कुर्सी पर बैठ गया। “पार्टी शुरू की जाए.....” राघवेंद्र ने कहा तो रिपोर्टर ने डरते डरते पूछा, “ये ये पार्टी किसके लिए की जा रही है?" “ताकि तुझे तेरे मरने पर अफसोस ना हो। जैसे तुम्हारे काम है, लगता नहीं कि ऊपर वाला तुम्हें स्वर्ग में भेजेगा..... इसलिए मरने से पहले स्वर्ग के दर्शन कर लो बबुआ.....” राघवेंद्र के जवाब देते ही रिपोर्टर उसके पैरों में गिर गया। “प्लीज हमको जाने दीजिए..... हम आपके आगे हाथ जोड़ते हैं।” उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा। “ये तो ऐसे भीख मांग रहा है जैसे हम इसे तड़पा तड़पा कर मार रहे हैं। अरे तुम्हारी जगह आज हम होते तो अच्छे से पार्टी इंजॉय करके, फिर मस्त मज़े से मरते.....” राघवेंद्र ने उसे उठाते हुए कहा। “धत्त भइया जी.....ई का बोल रहे हैं आप? मरे आपके दुश्मन.....” लल्लन ने बीच मे टोका। “उसके लिए तुम्हें दुआ मांगने की जरूरत नहीं है ललनवा, उनको तो हम वैसे ही खत्म कर देंगे। चल बे, जल्दी पार्टी शुरू करो। अब हमसे इंतजार नहीं हो रहा।” राघवेंद्र ने कहा। उसके कहने के बाद वहां मौजूद लोगों ने शराब की बोतलें खोली। कुछ आदमी गाड़ी से बड़े स्पीकर उठा कर लाए। सब सिस्टम होने के बाद वहां तेज आवाज में गाने बजने लगे। “ये कैसी पार्टी है? कौन अरेंज किया ऐसी घटिया पार्टी?" राघवेंद्र ने नाराज होकर कहा। “भैया जी, प्रवीण दादा लड़की को लेने गए हैं..... बस 5 मिनट में पहुंच ही रहे हैं।” लल्लन ने जवाब दिया। थोड़ी देर बाद प्रवीण एक लड़की के साथ वहां पहुंच चुका था। वहां मौजूद दो आदमियों ने सबको शराब की बोतल पकड़ा दी और वहां लाउड म्यूजिक बज रहा था, जिस पर लड़की नाच रही थी। राघवेंद्र भी उसके साथ ही थिरक रहा था। वो जबरदस्ती रिपोर्टर को भी अपने साथ नाचने पर मजबूर कर रहा था। जैसे ही 2:00 बजे अचानक राघवेंद्र ने म्यूजिक बंद किया और अपना हाथ उठाकर बोला, “पार्टी खत्म.....” इसी के साथ वहां पर बिल्कुल शांति छा गए। सात आठ लोगों को छोड़कर बाकी के सभी लोग सारा सामान उठाकर लड़की को लेकर वहां से जा चुके थे। “चलो अब खातिरदारी शुरू करते हैं बबुआ जी की.....” बोलकर राघवेंद्र कुर्सी पर बैठ गया और इसी के साथ वहां मौजूद सभी गुंडे रिपोर्टर को बेरहमी से पीटने लगे। पूरे दिन से हो रहे टॉर्चर से वो पहले ही परेशान था, ऊपर से वो लोग बुरी तरह से मार रहे थे। वो दर्द से जोर-जोर से चिल्ला रहा था। वो लोग लगातार उस रिपोर्टर को मारे जा रहे थे। वो चिल्लाते हुए दया की भीख मांग रहा था। “प्लीज हमें छोड़ दीजिए..... इसमें हमारा क्या कसूर है हम तो वही दिखाएंगे ना जो हमें दिखाने को बोला जाएगा..... हम वादा करते हैं कि आज से भैया जी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलेंगे।” रिपोर्टर ने रोते हुए बोला। “अरे बोलोगे तो तब ना..... जब तुम बोलने के लायक रहोगे..... तुमरी हिम्मत कैसे हुई भैया जी के खिलाफ जबान खोलने की..... हम तो कहते हैं जबान ही काट देते हैं ई ससुरे की..... फिर आगे से बोलने के लायक भी नहीं रहेगा।” उनमें से एक ने चिल्लाकर बोला। “आप एक बार आदेश दीजिए भैया जी..... फिर देखिए हम का हाल करते हैं ई रिपोर्टर का... आप कहो तो लाइव ब्रेकिंग न्यूज़ चला देते हैं ई की कुटाई का.....।” लल्लन बोला। “हमारी जान बख्श दो। हम आगे से नहीं करेंगे। हमारी मां के हमारे अलावा और कोई नहीं है..... हमारे लिए नहीं, तो उनके लिए हमारी जान बख्श दो।“ रिपोर्टर रोते हुए अपनी जान बख्शने की गुहार लगा रहा था। उसके रोने धोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा था और वो उसे लगातार पीटे जा रहे थे। वहीं से कुछ ही दूरी पर कुर्सी पर बैठा राघवेंद्र अपनी मूछों को ताव दे रहा था। अचानक वो उठा और अपने पास पड़ी कुल्हाड़ी को उठाकर उस आदमी के पास पहुंचा। “देखो बबुआ..... हम इतनी आसानी से तुम्हें जाने नहीं दे सकते..... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे खिलाफ बोलने की..... क्या कहा था तुमने.......“ राघवेंद्र प्रताप कुछ सोचते हुए अंदाज में बोला, “हमारे खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं.....हमारी छवि अच्छी नहीं है..... एक बार पूछ तो लेते कि क्या बोलना है क्या नहीं.....” राघवेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी भारी आवाज में कहा। “भैया जी हम कल सबके सामने माफी मांगने को तैयार हैं। हम आपसे वादा करते हैं कि आपकी छवि को भी सुधार....." रिपोर्टर बोल रहा था, तभी राघवेंद्र प्रताप सिंह उसकी बात को बीच में काट कर बोले, “मतलब क्या है बे तेरे कहने का... हमारी छवि खराब है, जो तू सुधार देगा। इस बात पर दो और लगाओ ई को....." राघवेंद्र प्रताप के कहने पर वहां मौजूद गुंडों ने फिर से उसकी धुलाई करनी शुरू कर दी। कुछ देर बाद राघवेंद्र सिंह ने उन्हें रुकने का इशारा किया। और पास पड़ी कुल्हाड़ी को उठाकर उसके सर के बीचो बीच कर जोर से वार किया। सड़क पर चारों तरफ खून बिखरा था और रिपोर्टर के सिर का ऊपरी हिस्सा दो हिस्सों में बंटा हुआ था। उसे देखकर कुछ लोगों ने अपने मुंह किनारे कर लिए, तो उनमें से कुछ दांत निकाल कर हंस रहे थे। “कहता था हमरे खिलाफ मुकदमा दर्ज है.... ई की भी रपट लिखाय दियो.." बोलते हुए राघवेंद्र प्रताप सिंह भी उसकी तरफ देख कर हंसा और फिर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया। रिपोर्टर की लाश वहीं पर छोड़ कर वो सब वहां से जा चुके थे। ____________ दूसरी तरफ रात को वैदेही देव और प्रतीक यशवर्धन के घर पहुंच चुके थे। वहां पर अनंत देसाई और यशवर्धन पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे। “वेलकम मिस रघुवंशी.....“ यशवर्धन ने मुस्कुरा कर बोला। वैदेही वहां फॉर्मल में ही आई थी। उसको फिर से उसी अवतार में देखने के बाद यशवर्धन धीरे से बड़बड़ाया, “आ गई फिर से रिपोर्टर बन कर..... कभी तो अपनी नॉर्मल लाइफ में रहा कीजिए।" थोड़ी देर हल्की-फुल्की बातचीत और चाय नाश्ते के बाद वो लोग यशवर्धन की मीटिंग रूम में आए। यशवर्धन के पिता हर्षवर्धन जी की पहले भी वहां पर सीक्रेट मीटिंग्स होती थी, इस वजह से उसे काफी अच्छे से बनाया गया था। वो एक साउंडप्रूफ कमरा था, जिसके बीचोबीच एक बड़ी सी टेबल और उसके चारों तरफ कुर्सियां लगी थी। सामने एक बड़ा सा प्रोजेक्टर लगा था, ताकि किसी भी टॉपिक पर अच्छे से डिस्कस किया जा सके। “जैसा कि हमने आपको बताया कि हम पहले राघवेंद्र के दोस्त थे, इस वजह से हमउनके खिलाफ काफी कुछ जुटा पाए। उन सब को हमने एक हार्ड ड्राइव के अंदर सेव करके रखा है।" बोलते हुए यशवर्धन ने एक चिप निकाली और लैपटॉप में लगा दी। सामने प्रोजेक्टर पर राघवेंद्र प्रताप सिंह की एक बड़ी सी फोटो आ रही थी जिसमें उसने हाथ जोड़ रखे थे। “ये तो मुझे शक्ल से ही गुंडा नजर आ रहा है।" वैदेही ने फोटो देखते ही बोला। “सिर्फ नजर ही नहीं आ रहा वैदेही जी, ये एक बहुत बड़ा गुंडा है भी.....” अनंत देसाई ने जवाब दिया। यशवर्धन ने दूसरी फोटो को निकाली, जिसमें यशवर्धन के परिवार की फोटो थी। उनका परिचय देते हुए उसने कहा, “राघवेंद्र के पिता महेंद्र प्रताप सिंह बहुत पहले इस दुनिया से जा चुके हैं। वो एक बहुत बड़े जमींदार थे और उनका पुरखों से यही काम चलता आ रहा है। इस वजह से इनकी काफी जमीन जायदाद है। इनके गांव और उसके आसपास के क्षेत्र में इनका अच्छा खासा दबदबा है, जो कि इनके पुरखों के समय से चलता आ रहा है।“ “हां शायद उन्हीं की आड़ में वो ये सब क्राइम कर रहा है।" प्रतीक ने कहा। “ये है उसकी मां सुमित्रा सिंह..... जहां तक मैंने इन्हें जाना है, इनके लिए इनका परिवार बहुत महत्व रखता है। अगर कोई इनके खिलाफ कुछ भी बोल देता है, तो ये भी किसी घायल शेरनी से कम नहीं है, जो किसी भी पल शिकार कर सकती हैं।" राघवेंद्र हर एक फोटो को जूम करके सब की तस्वीर अच्छे से दिखा रहा था। उसने आगे कहा, “उसका बड़ा भाई शिवेंद्र और उसकी पत्नी आरती। शिवेन्द्र एक ईमानदार और सीधा साधा आदमी था, जब तक कि उसे उसकी नौकरी से निकाला नहीं गया। आजकल ये राघवेंद्र के अकाउंटस संभाल रहा है।” “इसका तो एक अच्छा खासा परिवार है। ये चाहे तो इसे इन गलत कामों को करने से रोक सकता है लेकिन इन सब को देख कर लग रहा है, यही इन्हीं शह रहे हैं।” देव ने कहा। “राघवेंद्र प्रताप सिंह पर हम बाद में आते हैं। ये है उसका सबसे छोटा भाई मानव.....ये यूके में स्टडी कर रहा है और यहां ना के बराबर आता है। इस वजह से मैं इसे ज्यादा नहीं जानता।” यशवर्धन ने मानव की फोटो स्किप कर दी थी। यशवर्धन उन सब को उसके परिवार के बाकी सदस्यों और खास आदमियों की जानकारी दे रहा था, जिनमें लल्लन था। उसके बारे में बताते हुए यशवर्धन ने कहा, “लल्लन बिहार से है और तब से राघवेंद्र के साथ है, जब से वो 10 साल का था। उसके घर वाले यहां महाराष्ट्र में मजदूरी करते थे लेकिन एक हादसे में उन सब की जान चली गई। काम करते हुए राघवेंद्र को लल्लन मिला और उसने उसे अपने साथ काम पर लगा लिया। ये उसे बिल्कुल अपने छोटे भाई की तरह मानता है।” वो लोग उनके परिवार के बारे में बात कर रहे थे। इन सबके बीच वैदेही ने अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर मानव की फोटो निकाल रखी थी। वो उसके बारे में जानकारी इकट्ठा कर रही थी। “तो ये है राघवेंद्र की सबसे कमजोर कड़ी.....” वैदेही ने अपने मन में सोचा और मानव से जुड़ी हर छोटी जानकारी निकालने लगी। ★★★★
देर रात को यशवर्धन के घर चल रही मीटिंग में वैदेही प्रतीक और देव एक साथ यशवर्धन के घर पर मौजूद थे। वहां मीटिंग में यशवर्धन के अलावा उसका पर्सनल असिस्टेंट अनंत देसाई भी था। मीटिंग में यशवर्धन उन सब बातों के बारे में उनको डिटेल में बता रहा था, जो उसने राघवेंद्र के साथ रहते उसके बारे में पता लगाई थी। “राघवेंद्र के फैमिली बैकग्राउंड के बारे में तो आप सबको पता चल ही गया होगा अब इसके पॉलीटिकल बैकग्राउंड के बारे में बात करते हैं।” यशवर्धन ने कहा। बोलते वक्त उसका ध्यान वैदेही पर गया जिसकी नजरें अपनी लैपटॉप की स्क्रीन पर गड़ी थी। वो उसके पास गया तो उसने देखा कि वैदेही ने अपने स्क्रीन पर मानव की तस्वीरें निकाल रखी थी। वो उसका सोशल मीडिया अकाउंट चेक कर रही थी। “कुछ खास मिला?” यशवर्धन ने पूछा। वैदेही का पूरा ध्यान डेक्सटॉप पर था। अचानक यशवर्धन के पुकारने पर वो चौक गई और उसने हड़बड़ाकर कहा, “क..... क्या?” “हम मानव की बात कर रहे है, वैदेही जी लगता है आपका सारा ध्यान मीटिंग के बजाय मानव पर लगा है।” “हां मैं जानना चाहती हूं कि जब राघवेंद्र का पूरा परिवार एक साथ रहता है तो वो मानव को अपने साथ क्यों नहीं रखता? राघवेंद्र और उसके भाई की स्कूलिंग यहीं से हुई है तो फिर क्या रीजन हो सकता है, जो उसने अपने छोटे भाई को पढ़ने के लिए बाहर भेजा?" “इसमें क्या रीजन हो सकता है वैदेही मैम” देव ने कहा, “पहले उनके पास इतने पैसे नहीं होंगे..... हो सकता है पैसे आने पर उन्होंने मानव को बाहर पढ़ने भेजा हो या फिर मानव ने खुद ही बाहर पढ़ने की जिद की हो।” “मैं तुम्हारे किसी भी बात से एग्री नहीं करती देव। पैसों की बात करूं तो राघवेंद्र का परिवार हमेशा से संपन्न था। उसके दादा परदादा के टाइम से ही उनके पास इतने पैसे हैं कि वो भी अगर विदेश में जाकर पढ़ना चाहते तो उनकी ये इच्छा पूरी हो सकती थी।” वैदेही ने जवाब दिया। “या फिर ऐसा हो सकता है कि मानव अपनी मर्जी से वहां अपनी स्टडी के लिए गया हो?” प्रतीक ने कहा। “ऐसा भी नहीं हो सकता। मानव की सोशल मीडिया पोस्ट से यही पता चल रहा है कि वो एक ओवर सेंसेटिव और काफी इमोशनल इंसान है। वो रोजाना अपनी फैमिली मेंबर्स के साथ पुरानी फोटो शेयर करता है और कैप्शन में उन्हें मिस करने की बात करता है। इससे पता चल रहा है कि वो अपनी मर्जी से बाहर पढ़ने नहीं गया होगा। इसके इस बिहेवियर को देख कर लग रहा है कि राघवेंद्र नहीं चाहता कि उसका छोटा भाई इन सब चीजों में पड़े। इससे साफ पता चल रहा है कि मानव उसके लिए कितना अजीज होगा, तभी वो उसे इन सब से दूर रखना चाहता हैं। राघवेंद्र की कमजोर कड़ी कोई और नहीं उसका छोटा भाई मानव है।” वैदेही ने एक सांस में बोलते हुए पूरी बात का निष्कर्ष निकाल दिया। सब उसकी तरफ हैरानी से देख रहे थे। यशवर्धन के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। उसने वैदेही को अप्रिशिएट करने के लिए ताली बजाई और कहा, “आपको नहीं लगता कि आप गलत प्रोफेशन में आ गई? आपको न्यूज़ रिपोर्टर नहीं आपको तो सीबीआई में होना चाहिए था मिस रघुवंशी.....” “इस तरह के केसेस सॉल्व करते करते एक्सपीरियंस हो गए। हम छोटी चीजों को भी मिस नहीं कर सकते। जब आपने कहा ना कि आप राघवेंद्र की बाकी चीजों को जानते हैं लेकिन मानव से जुड़ी ज्यादा बातों का नहीं पता। बस वही से मुझे आईडिया आया कि ऐसा क्या हो सकता है जो राघवेंद्र सबके सामने मानव के बारे में बात ही नहीं करना चाहता होगा।” वैदेही ने जवाब दिया। “हमें राघवेंद्र की कमजोर कड़ी का तो पता चल गया लेकिन हम मानव तक पहुंचेंगे कैसे?" अनंत देसाई ने हैरानी से पूछा। “उसके लिए हमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी। हमें मानव तक जाने की जरूरत नहीं है, वो खुद हम तक चल कर आ रहा है।” वैदेही ने कहा तो सब उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे। जवाब में उसने अपने लैपटॉप की स्क्रीन को उन सब की तरफ कर दिया, जहां मानव की लास्ट पोस्ट में वो सब से मिलने की बात कर रहा था और उसने कमिंग बैक टू इंडिया का स्टेटस डाल रखा था। “चलो ये सब तो सॉल्व हो गया..... अब फिर से राघवेंद्र पर आएं?” यशवर्धन ने कहा। सबके हामी भरने पर यशवर्धन फिर से आगे चला गया और राघवेंद्र के बारे में बताने लगा। “उसके पॉलीटिकल करियर की शुरुआत आज से 10 साल पहले अपने कॉलेज में स्टूडेंट लीग अध्यक्ष बनने के साथ हुई थी। आगे चलकर उसने पार्षद का पद जीतकर बाद में एमएलए का पद हासिल किया था। इस बार फिर से उसने उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ा है, ये तय है, कि वो जीतेगा क्योंकि उसके अलावा उसके एरिया के लोग किसी और को वोट देते ही नहीं है..... फॉर्मेलिटी के लिए किसी कैंडिडेट को खड़ा किया जाता है लेकिन वो भी उन्हीं का आदमी होता है, जो उसका प्रचार प्रसार करता है। उसके पॉलिटिक्स में आने के बाद उसके कई रिश्तेदार भी इसी फील्ड में आगे आए। जिसे ये पूरा सपोर्ट करता है।“ “हां हम जिस केस की स्टडी कर रहे हैं, वो एरिया भी इसी के किसी रिश्तेदार के अंडर है।“ देव ने बताया। “पॉलीटिकल करियर से हट कर बात करूं तो ऐसा कोई इनलीगल काम नहीं होगा जो इसने और इसके रिश्तेदारों ने सत्ता की आड़ में नहीं किया होगा।" यशवर्धन आगे बताता हुआ बोला, “आप सब को जानकर हैरानी होगी कि इसके गांव में रहने वाले सभी लोग इसके लिए काम करते हैं। आसपास के गांवो पर भी इसने कब्जा कर रखा है। ईलीगल प्रॉपर्टी बनाने के साथ-साथ शराब, मारामारी, लोगों से पैसे हड़पना ये सब तो बहुत कॉमन है..... राघवेंद्र खुद नहीं जानता होगा कि उसने कितने लोगों को मारा होगा।” “इन सब से इसने काफी सारा काला धन भी इकट्ठा कर रखा है। विदेशों के बैंक में जमा करने के साथ यहां पर डोनेशन देना, लोगों को दिखाने के लिए और चुनाव के प्रचार प्रसार में लगने वाला सारा पैसा इसी की तरफ से खर्च होता है। तभी त्यागी जी कुछ नहीं कहते क्योंकि उनकी पार्टी का पूरा मेंटेनेंस राघवेंद्र के दम पर चलता है।“ अनंत देसाई ने बताया। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए यशवर्धन ने बताया, “सिर्फ यही नहीं इसके रिश्तेदार भी इसी की तरह है। उनके कामों की बात करूं तो ड्रग्स, प्रॉस्टिट्यूशन, ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे संगीन अपराध तक वो लोग बिना किसी डर के करते है..... उन सब के सिर पर राघवेंद्र का हाथ है। कई बार कुछ पुलिस वालों ने उन्हें धर दबोचा भी है लेकिन उनमें से कोई भी उसके खिलाफ मुंह खोलने को तैयार नहीं होता।” इसी के साथ राघवेंद्र की पूरी जन्मकुंडली यशवर्धन ने सबके सामने खोल कर रख दी। ये उन लोगों के लिए हैरानी की बात नहीं थी क्योंकि पहले भी वो इस तरह के लोगों का सामना कर चुके थे। “हमारे पास ज्यादा से ज्यादा 10 दिन का टाइम है, जहां हम राघवेंद्र के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर सकते हैं। अगर इन 10 दिनों में हम कुछ नहीं कर पाए और वो मुख्यमंत्री बन गया तो हम बाद में चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे.....” यशवर्धन कुर्सी पर बैठ कर बोला। “10 दिन का टाइम बहुत कम होता है लेकिन फिर भी कोशिश करेंगे कि राघवेंद्र के खिलाफ ज्यादा नहीं तो कुछ सबूतों को जुटाकर उसे मुख्यमंत्री बनने से रोक सके।“ प्रतीक ने जवाब दिया। “कुछ सोचा है कि आगे क्या करेंगे?“ यशवर्धन ने पूछा। “प्रतीक सर.....” वैदेही ने प्रतीक की तरफ देख कर बोला, “सबसे पहले तो आप राघवेंद्र का इंटरव्यू अरेंज करवाइए, हमारे पास ज्यादा टाइम नहीं है, इसलिए वक्त का हर एक पल कीमती है।” “मैं कल ही इस बारे में राघवेंद्र के असिस्टेंट से बात करने की कोशिश करता हूं।“ प्रतीक ने जवाब दिया। “तो क्या जब तक उसके असिस्टेंट की तरफ से जवाब नहीं आ जाता, तब तक हम कुछ नहीं कर पाएंगे?“ देसाई जी ने पूछा। “नहीं.....” वैदेही ने कहा, “मै देव को लेकर राघवेंद्र के गांव के लिए निकलती हूं।” जैसे ही वैदेही ने राघवेंद्र के गांव जाने की बात कही तो देव ने झट से बोला, “इस वक्त? मैम रात के 1:00 बज रहे हैं और आप मुझे इतनी रात को उस खतरनाक क्रिमिनल के गांव जाने को कह रही हैं?” “मैंने कब कहा कि हम अभी जाएंगे? हम सुबह 4:00 बजे उसके गांव के लिए निकलेंगे।” वैदेही ने जवाब दिया। “तो फिर हम सोएंगे कब?” देव ने आंखें बड़ी करके कहा। “रास्ते में.....“ वैदेही ने जवाब दिया और आगे का प्लान बताने लगी, “वहां किसी लॉज या होटल में ठहर जाएंगे। जब तक उसका इंटरव्यू अरेंज नहीं हो जाता, तब तक मैं और देव छुप कर वहां रहेंगे और उसके बारे में पता लगाने की कोशिश करेंगे।” “लेकिन इस काम के लिए इतनी सुबह जाने की क्या जरूरत है? आप लोग आराम से कल दोपहर तक जा सकते हैं।” यशवर्धन ने सुझाव दिया। “हम जानते हैं, लेकिन वैदेही को अर्ली मॉर्निंग ट्रेवल करना बहुत पसंद है।” प्रतीक ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा। मीटिंग में आगे की बातें फाइनल हो चुकी थी। जहां देव और वैदेही का अगले दिन निकोला जाना तय हुआ। वो मीटिंग खत्म हो चुकी थी और सब अपने घर जाने को थे। “वैदेही जी, हम आपकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे। हम आपको गाड़ी भिजवा देंगे। आप और देव सुबह जल्दी चले जाइएगा।” यशवर्धन की बात सुनकर वैदेही हल्की सी हंसी और फिर कहा, “हमें वहां कॉमनर बनकर जाना है, वीआईपी नहीं..... हम लोग बस से चले जाएंगे।” उसको बाय बोलने के बाद प्रतीक, वैदेही और देव वहां से निकल चुके थे। उन लोगों से बात करके यशवर्धन और अनंत देसाई भी आश्वस्त महसूस कर रहे थे। “वैदेही जी से मिलकर सच में बहुत अच्छा लगता है। वो इस कलयुग के घनघोर अंधेरे में साक्षात रोशनी की एक किरण नजर आती है।” अनंत देसाई ने कहा। “हां अब तक हमने भी उनके बारे में सिर्फ सुना ही था लेकिन उनसे मिलकर उनके इरादों के बारे में जानकर लगता है मानो इस दुनिया में कोई तो ऐसा है, जो इन क्राइम्स को सच में खत्म करना चाहता है। पहले हमें लगता था कि हम अकेले राघवेंद्र के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे लेकिन वैदेही से मिलकर पता चलता है कि अकेले भी बहुत कुछ किया जा सकता है।“ यशवर्धन ने जवाब दिया। “बाकी सब तो वैदेही जी संभाल लेगी लेकिन पार्टी और त्यागी जी को हमें ही देखना होगा। उन्हें गलती से भी इस बारे में भनक तक लगी तो बात हम तक भी आ सकती है।” “और ये हम कभी नहीं होने देंगे। हम अच्छे से जानते हैं कि त्यागी जी को कैसे दबा सकते हैं। उनकी हर एक कमजोर कड़ी और नसों से हम अच्छी तरह वाकिफ है, और लगता है कि अब उन्हें दबाने का वक्त भी आ गया है।" यशवर्धन ने एक रहस्यमई मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया। देर रात हो जाने की वजह से देसाई जी अपने घर के लिए निकल चुके थे तो वही यशवर्धन भी अब सोने जा चुका था। __________ सुबह के 4:00 बज रहे थे। निकोला जाने के लिए वैदेही को लेने के लिए देव उसके घर पर आया हुआ था। वही वो अंदर तैयार हो रही थी जबकि नरगिस और देव बाहर बातें कर रहे थे। “तुम लोगों को जाने के लिए कोई और टाइम नहीं मिलता क्या, जो सुबह सुबह आकर मेरी भी नींद खराब कर देते हो।” नरगिस ने उबासी लेते हुए कहा। “हां तो तुम्हें क्या लगता है मुझे अपनी नींद प्यारी नहीं है क्या? ये तो वैदेही मैम है, तब मैं कुछ नही कहता। इनकी जगह कोई और होता तो मैं उसकी बात बिल्कुल नहीं मानता।" देव ने भी उबासी लेकर जवाब दिया। दोनों की आवाज से साफ नजर आ रहा था कि वो बीच नींद से उठ कर आए हैं। “वैसे तुम्हारे कपड़े सच में अजीब है।” नरगिस ने देव की तरफ ऊपर से नीचे की तरफ देखा और फिर हंसने लगी। देव ने नीचे धोती पहन रखी थी और ऊपर छोटा सा कुर्ता, माथे पर महाराष्ट्रीय तरीके से टीका लगाया हुआ था और बड़ा सा चश्मा लगा रखा था। नरगिस के हंसने पर देव ने उसकी तरफ मुंह बनाया। तभी वैदेही बाहर निकल कर आई। वो दोनों वैदेही को देखकर पहले हैरान थे और फिर जोर जोर से खिलखिला कर हंस रहे थे। ★★★★