ये कहानी है मासूम सी समायरा की। जिसकी शादी अपनी बहन के धोखे की वजह से अर्थ सहरावत से हो जाती है। दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। एक गर्मियों की तपती लू जैसा है तो दूसरा सर्दियों की शीतल हवाओं सा। इनका ये rare combination जिसकी वजह से दोनों की ही लाइ... ये कहानी है मासूम सी समायरा की। जिसकी शादी अपनी बहन के धोखे की वजह से अर्थ सहरावत से हो जाती है। दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। एक गर्मियों की तपती लू जैसा है तो दूसरा सर्दियों की शीतल हवाओं सा। इनका ये rare combination जिसकी वजह से दोनों की ही लाइफ बदल जाती है। अर्थ जो कि एक cold hearted इंसान। वहीं समायरा जिसे अर्थ कि परछाई से भी डर लगता था, उसके लिए अर्थ की दुनिया में कदम रखना मतलब खुद शैतान को बुलावा देने के बराबर है। कैसी होगी इनकी प्रेम कहानी? क्या दोनों एक दूजे को कभी समझ पाएगे? जानने के लिए पढ़िए, " innocence versus darkness "
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ये कहानी नैनीताल से शुरू होती है, जो बेहद खूबसूरत शहर है, जहाँ का मौसम हर वक्त सुहाना होता है।
रात दस बजे।
एक बड़ा सा मेंशन, जो पूरी तरह से जगमगा रहा था, उसके अंदर—
एक बहुत बड़ा कमरा था जिसे किसी की शादी की पहली रात के लिए बेहद खूबसूरत तरीके से सजाया गया था। पूरे कमरे में कैंडल जल रही थीं और गुलाब की पंखुड़ियों की महक आ रही थी।
बेड पर एक लड़की, दुल्हन के जोड़े में, बैठी थी। पूरे कमरे में शांति पसरी थी। थोड़ी देर बाद, कमरे का दरवाज़ा खुला और एक आदमी कमरे में दाखिल हुआ। उसके दाखिल होते ही, बेड पर बैठी लड़की की धड़कन बहुत तेज हो गई।
वो आते ही रूम की लाइट ऑन करता है, और बेड पर बैठी डरी-सहमी लड़की को देखता है।
"ये है अर्थ सहरावत—एक क्रूर स्वभाव का आदमी—जिसके पीछे की वजह बहुत सारी हैं।"
"ये है समायरा रहमानी।" समायरा ने आज ऐसे इंसान से शादी कर ली, जो इंसान के रूप में हैवान है। ऐसा पूरी दुनिया का कहना है, क्योंकि समायरा तो अर्थ को अच्छे से जानती तक नहीं।
अर्थ लंबे-लंबे कदम भरते हुए बेड के पास आया और अपनी रूड वॉइस में बोला, "Get up!"
ऐसी आवाज़ सुनकर समायरा एकदम से डर गई और हकलाते हुए बोली, "जी?"
अर्थ फिर से अपनी रूड टोन में बोला, "इतना मुश्किल काम भी नहीं कहा, और ना ही इतनी हार्ड लैंग्वेज में। I said get up right now."
अब समायरा जल्दी से अपने भारी-भरकम लहंगे को अपने हाथों की मुट्ठियाँ बनाकर संभालते हुए बेड से उठकर खड़ी हो गई। अर्थ बेड पर बैठ गया, पर वह बैठने के तुरंत बाद ही उठ गया क्योंकि उसे बेडशीट से समायरा के परफ्यूम की महक आ रही थी।
ये सब समायरा कन्फ्यूज होकर देख रही थी। अर्थ फिर से अपनी रूड वॉइस में बोला, "Change this bedsheet."
समायरा फिर से कन्फ्यूज होकर अर्थ को देखती है। अर्थ इरिटेट होते हुए बोला, "स्टूपिड! तुम्हें कम सुनाई देता है क्या? चेंज इट राइट नाउ!"
समायरा थोड़ा हिचकिचा कर बोली, "मुझे नहीं पता, नई बेडशीट कहाँ है।"
अर्थ ने एक नज़र समायरा को देखा और फिर खुद ही अलमारी से एक नई बेडशीट लेकर आया।
अर्थ ने बेडशीट बिछाई और फिर समायरा से बोला, "जाकर बालकनी में सो जाओ!"
समायरा ने बड़ी-बड़ी काली आँखों से अर्थ को देखा। अर्थ ने गहरी साँस छोड़ी और समायरा का हाथ बाजू से पकड़कर ज़बरदस्ती बालकनी में छोड़ आया और बालकनी का ग्लास डोर अंदर से बंद कर दिया।
समायरा ने बालकनी में इधर-उधर नज़रें दौड़ाई, क्या पता कुछ सोने के लिए हो, लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था। थक-हारकर समायरा वहीं दीवार से सटकर बैठ गई और अपनी आँखें बंद कर ली।
फ़रवरी के महीने की ठंड में समायरा सिकुड़कर सो रही थी। जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी, ठंड और भी ज़्यादा बढ़ रही थी।
समायरा सिसकते हुए वहीं सो गई। कमरे का माहौल थोड़ा गर्म था; पूरे कमरे में सिगरेट का धुआँ उड़ रहा था।
अर्थ को नींद ना आने की बीमारी थी, जिसे विज्ञान की भाषा में इन्सोमनिया कहते हैं।
जिसके चलते अर्थ मुश्किल से तीन घंटे सो पाता था।
अर्थ सिगरेट पीते-पीते अपना काम कर रहा था। उसके हाथ में उसका लैपटॉप था, जिसे वह बहुत ध्यान से देख रहा था।
असल में, अर्थ को केवल समायरा से प्रॉब्लम नहीं थी। उसे हर उस इंसान से प्रॉब्लम थी जो उसके प्राइवेट प्लेस में जाने की कोशिश करे। लेकिन वह समायरा को यहाँ से कहीं निकाल नहीं सकता क्योंकि वह उसकी लीगल वाइफ़ है।
इसलिए अर्थ ने उसे सिर्फ़ बालकनी में सुलाया, वरना उसे कब का घर से बाहर निकाल देता। अर्थ रात के करीब तीन बजे के आस-पास अपना काम बंद करके सो गया।
अगली सुबह—
समायरा की आँखें आठ बजे धूप के कारण खुलीं। समायरा अपने हाथों के सहारे से खड़ी हुई। उसकी कमर में बेहद तेज दर्द हो रहा था। अर्थ ग्लास डोर से लगा खड़ा उसे देख रहा था।
उसके खड़े होते ही अर्थ ने तेज आवाज़ में कहा, "इतनी ही जल्दी होती है हमेशा तुम्हारी सुबह?"
समायरा अर्थ की तेज आवाज़ से सहम गई और डरते हुए ना-में सर हिलाकर बोली, "जी, वो मैं बस..."
अर्थ ने उसकी बात काटकर कहा, "घर में कोई नहीं है; तुम घर की सफ़ाई करोगी और बाकी पूरा काम भी। फ़िलहाल, जाओ और मेरे लिए ब्लैक कॉफ़ी लेकर आओ।"
समायरा ने डरते हुए हाँ में सर हिलाया और रूम से निकल गई। समायरा सीढ़ियों से नीचे आई तो गौर से पूरे घर पर एक नज़र दौड़ाई; घर वाकई बेहद खूबसूरत और बड़ा था। किसी एक आदमी से सफ़ाई होना बहुत मुश्किल काम था।
समायरा को अपने भारी-भरकम लहंगे को संभालने में दिक्कत हो रही थी, लेकिन फिर भी वह जैसे-तैसे उसे संभालकर सीढ़ियों से ऊपर उठकर किचन की तरफ़ चली गई। किचन ओपन किचन था, इसलिए समायरा को किचन ढूँढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
समायरा ने ब्लैक कॉफ़ी बनाई और वापस अर्थ के रूम की तरफ़ बढ़ गई। अर्थ ने कॉफ़ी ले ली और फिर कहा, "मैं दो घंटे के लिए बाहर जा रहा हूँ; कोई चालाकी नहीं, और पूरा घर साफ़-सुथरा होना चाहिए, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
समायरा ने सर झुकाकर हाँ में गर्दन हिलाई और रूम से निकल गई। अर्थ भी थोड़ी देर बाद अपने रूम से निकलकर घर से बाहर चला गया।
उसके जाते ही समायरा ने एक बार घर पर नज़र डाली और फिर अपनी भारी-भरकम चुनरी को उतारकर टेबल पर रखा, बालों का अच्छे से जूड़ा बनाया और घर की साफ़-सफ़ाई करने लग गई। लगभग डेढ़ घंटे में समायरा ने पूरे घर की सफ़ाई कर दी, क्योंकि वह अपने घर में भी साफ़-सफ़ाई का काम करती थी।
ये सब करने के बाद समायरा ने लंच रेडी किया और उसे डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और फिर अर्थ के आने का इंतज़ार करने लगी। आधे घंटे तक जब अर्थ नहीं आया तो समायरा की आँखें नींद से बोझिल होने लगीं, और कुछ ही देर में समायरा वहीं चेयर पर बैठे-बैठे और टेबल पर सर रखकर सो गई।
क्या होगा जब अर्थ घर आएगा और उसे समायरा सोते हुए मिलेगी? आखिर क्यों इनकी शादी नॉर्मल शादी जैसी नहीं है? क्या दुश्मनी है अर्थ सहरावत और समायरा रहमानी की? कैसे ये रिश्ता आगे बढ़ेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए।
अर्थ के जाते ही समायरा ने एक बार घर पर नज़र डाली और फिर अपनी भारी-भरकम चुनरी को उतार कर टेबल पर रखा। बालों का अच्छे से जूड़ा बनाया और घर की सफ़ाई करने में लग गई।
लगभग डेढ़ घंटे में समायरा ने पूरे घर की सफ़ाई कर दी। क्योंकि वह अपने घर में भी सफ़ाई का काम करती थी।
ये सब करने के बाद समायरा ने लंच रेडी किया और उसे डाइनिंग टेबल पर लगा दिया। और फिर अर्थ के आने का इंतज़ार करने लगी।
आधे घंटे तक जब अर्थ नहीं आया तो समायरा की आँखें नींद से बोझिल होने लगीं। और कुछ ही देर में समायरा वहीं चेयर पर बैठे-बैठे और टेबल पर सिर रखकर सो गई।
शाम पाँच बजे समायरा की आँखें खुलीं। उसने जैसे ही हॉल में लगी घड़ी की तरफ देखा, उसकी आँखें डर के मारे फैल गईं। अब ना जाने अर्थ उसके बारे में क्या सोच रहा होगा और उसकी इस गलती की क्या सज़ा देगा उसे।
समायरा खड़ी हुई और टेबल पर लगा खाना वहाँ से उठा लिया, और ले जाकर फ्रिज में रख दिया।
जब वह वापस किचन से आई तो उसे सीढ़ियों से अर्थ उतरता हुआ दिखाई दिया। जिसे देखकर समायरा ने अपनी पलकें झुका लीं।
"ऐसे वेस्ट करने के लिए नहीं होता है खाना," अर्थ ने थोड़ा नाराज़गी से कहा।
"सॉरी अर्थ, आगे से नहीं होगा," समायरा ने कहा।
"क्या तुम्हारी इतनी औक़ात है जो तुम मुझे मेरे नाम से बुला सको? तुम मुझे 'मास्टर' बुलाओगी, गॉट इट?" अर्थ ने आईब्रो चढ़ाते हुए कहा।
"सॉरी मास्टर, आगे से नहीं होगा," समायरा ने कहा।
"तुम्हारे कपड़े कितने गंदे हो गए हैं! सफ़ाई नाम की भी कोई चीज़ होती है। तुम्हें खुद के अंदर से बदबू नहीं आ रही?" अर्थ ने कहा।
समायरा ने एक नज़र अपने शादी के लहंगे को देखा जो अब रेड की जगह ब्राउन दिखने लगा था।
"सॉरी... मेरे पास कपड़े नहीं हैं," समायरा ने फिर से कहा।
"ये बात तुम पहले नहीं बोल सकती थी?" अर्थ ने झुंझलाते हुए कहा।
"सो..." समायरा ने फिर से कहा।
"नो मोर सॉरी! अभी मेरे रूम के तीन रूम बाद, राइट साइड में जो रूम है, उसमें मेरे घर की केयरटेकर के कुछ कपड़े हैं, वो पहन लेना," अर्थ ने उसे टोकते हुए कहा।
समायरा ने हाँ में गर्दन हिला दी और अर्थ के बताए हुए रूम की तरफ चली गई। समायरा ने अलमारी खोलकर देखा तो उसमें सिर्फ़ दो साड़ियाँ रखी थीं: एक सिंपल व्हाइट साड़ी जिस पर रेड कलर के फूल थे, और एक ब्लू कलर की सिंपल साड़ी जिसके बॉर्डर पर एक लेस थी।
समायरा ने ब्लू कलर वाली साड़ी उठाई और उसी रूम से फ़्रेश होकर नीचे चली गई। समायरा किचन में गई और डिनर बनाना शुरू कर दिया। उसके दिमाग में ख्याल आया कि एक बार उसे अर्थ की पसंद जान लेनी चाहिए, लेकिन उसे अर्थ से बहुत ज़्यादा डर लग रहा था। वह खुद के ख्यालों को झटककर खुद से बोली, "उस सोए हुए शेर को ऐसे जगाने से अच्छा है खाना बनाने के बाद ही एक-दो डाँट खा लूंगी। अब तो ज़्यादा गुस्सा करेंगे।"
समायरा ने आलू-छोले की सब्ज़ी, पूरी, वेजिटेबल सैलेड, मुंग का हलवा, फ्राइड राइस और खीर बनाई। फिर उन सब को एक-एक कर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगी।
समायरा ने डिनर अरेंज करने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो ८:३० बज रहे थे! समायरा वहीं चेयर पर बैठकर अर्थ का इंतज़ार करने लगी। अर्थ आधे घंटे बाद डाइनिंग एरिया में आया तो समायरा अपनी चेयर से खड़ी हो गई।
अर्थ चेयर पर बैठ गया और समायरा ने उसे डिनर सर्व किया। समायरा वहीं टेबल के पास खड़ी थी तो अर्थ बोला, "कब तक मेरे सर पर ऐसे खड़े रहना है? जाओ किचन में और वहाँ फर्श पर बैठकर खाना खा लो।"
"जी मास्टर," समायरा ने कहा और किचन की तरफ चली गई।
खाना वाकई बहुत टेस्टी बना था। अर्थ लगभग टेबल पर लगा सारा खाना खत्म कर चुका था।
समायरा ने फ्रिज से लंच के लिए जो खाना बनाया था वह निकाला और आराम से फर्श पर बैठकर डिनर करने लगी। समायरा ने वह खाना इसलिए खाया था क्योंकि उसे अर्थ की धमकी याद थी – खाना वेस्ट नहीं होना चाहिए। तो उसने डिनर सिर्फ़ एक आदमी खाए इतना ही बनाया था ताकि अर्थ को शिकायत का कोई मौका ना मिल सके।
समायरा थोड़ी देर बाद डरते हुए अर्थ के रूम में इंटर हुई। दरवाजे पर पहुँचते ही उसे अर्थ की गुस्से भरी आवाज़ आई, "कल घर में मेहमान थे इसलिए तुम मेरे रूम में सोई थी। इस घर में बहुत सारे कमरे हैं, किसी और रूम में जाकर सो जाओ।"
"वो... हमें अकेले सोने में डर लगता है। इतने बड़े घर में आपके सिवा कोई नहीं है ना इसलिए," समायरा ने हिचकिचाते हुए कहा।
"तो फिर तुम ठंड में बालकनी में सोओगी? बोलो, मंज़ूर है?" अर्थ ने इरिटेट होते हुए कहा।
"ज...जी मास्टर," समायरा ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा।
अर्थ ने एक नज़र उसे देखा और अपने काम में लग गया। समायरा धीरे-धीरे चलकर बालकनी तक पहुँची ताकि कोई आवाज़ ना हो और अर्थ डिस्टर्ब ना हो। लेकिन समायरा की पायल शोर कर रही थी।
समायरा सभी भगवानों को याद करते हुए बालकनी के ग्लास डोर तक पहुँची थी। उसने डोर ओपन किया और बालकनी में जाकर एक कोने में सिमटकर बैठ गई।
थोड़ी देर बाद थके होने के कारण उसे नींद आ गई। अर्थ हमेशा की तरह लेट रात तक जगा रहा और दो बजे के आसपास उसे भी नींद आ ही गई।
समायरा की आँखें सुबह तीन बजे खुलीं तो उसका जी घबरा रहा था और उसे वोमिटिंग जैसा फील हो रहा था। तो उसने उठकर ग्लास डोर को बजाया। उसके दो-तीन बार बजाने से ही अर्थ की आँखें खुल गईं।
और वह गुस्से से बोखलाया हुआ डोर तक पहुँचा और झटके से डोर ओपन करके कहा, "व्हाट्स योर प्रॉब्लम, इडियट?"
समायरा ने कुछ नहीं कहा और अपने मुँह पर हाथ रखे, अर्थ की साइड से निकलते हुए वाशरूम में चली गई।
अर्थ उसके ऐसे जाने से थोड़ा कन्फ़्यूज़ हो गया और उसके पीछे-पीछे वाशरूम तक पहुँच गया।
आखिर क्या हुआ है समायरा को? क्या अर्थ उसे इस बात की भी सज़ा देगा?
innocence versus darkness
ishqi ✍️
समायरा को अर्थ के गुस्से का कारण समझ नहीं आ रहा था। उसके हिसाब से, सब कुछ उसने अर्थ के आदेश के अनुसार ही किया था। तो वह फिर से हिम्मत जुटाकर, गला साफ करते हुए बोली,
"मास्टर, साढ़े तीन से पौने चार हो गए। क्या मैं एक घंटे के लिए सो जाऊँ?"
अर्थ ने कमरे के अंदर जाते हुए कहा,
"Come inside."
समायरा ने एक बार आसमान की तरफ देखा और मन मारकर कमरे के अंदर आ गई।
अर्थ ने कहा, "बैठो! मुझे तुमसे कुछ पूछना है।"
समायरा एक-दो बार बच्चों की तरह इधर-उधर नज़रें दौड़ाती है और फिर कमरे के फर्श पर आलथी-पालथी मारकर बैठ जाती है। "और बोलती है, जी मास्टर, पूछिए।"
यह देखकर अर्थ गुस्से से बोला,
"इडियट! सोफे पर बैठ जाओ।"
यह सुनकर समायरा बोली,
"नहीं, मेरी साड़ी गंदी हो गई है, और आपको सब कुछ क्लीन चाहिए। यह सोफा भी आप मुझसे ही साफ करवाओगे। मैं नहीं बैठूँगी।"
समायरा सब कुछ एक ही धुन में बोल रही थी। बात खत्म होने पर उसने नज़रें उठाकर देखा तो अर्थ उसे अपनी जलती लाल आँखों से घूर रहा था, जैसे अभी भस्म कर देगा।
यह देखकर समायरा सकपकाते हुए बोली, "सॉरी मास्टर।" और तुरंत सोफे पर बैठ गई।
अर्थ ने खुद के गुस्से को शांत करते हुए कहा,
"तुमने ऐसा खाना क्यों खाया जो खराब हो गया था?"
यह सुनकर समायरा ने अपने दोनों हाथों की उंगलियाँ आपस में उलझा लीं और फिर इधर-उधर देखते हुए बोली,
"सॉरी मास्टर।"
अर्थ ने दाँत पीसते हुए कहा,
"एक बार और अगर सॉरी बोला, इस बालकनी से नीचे फेंक दूँगा, समझी तुम!"
समायरा डरते हुए एक बार बालकनी की तरफ देखी और जल्दी-जल्दी में बोली, "सो... " फिर अपना शब्द करेक्ट करते हुए बोली, "समझ गई मास्टर।"
समायरा ने एकदम रोबोट की तरह बोलना शुरू कर दिया।
"कल मैंने आपके लिए लंच बनाया था। आप आए नहीं खाने।"
"आपने बोला था खाना वेस्ट नहीं होना चाहिए, बिल्कुल भी।"
"तो मैंने डिनर में लंच कर लिया। आई मीन, डिनर में लंच वाला खाना खा लिया।"
"इसमें मेरी कोई गलती नहीं है मास्टर। प्लीज मुझे डाँटना मत अब आप।"
फिर समायरा घड़ी की तरफ देखकर रूँधी हुई सूरत बनाकर बोली,
"सवा चार हो गए।"
"अब मैं नहीं सो सकती।"
अर्थ ने आँखें बंद करके गहरी साँस छोड़कर कहा,
"You are such an इडियट... मैंने खाना वेस्ट ना करने के लिए बोला था, ना कि यह कि वह खराब खाना तुम खा लो!"
"मेरा मतलब था, अगर मैं लंच के लिए ना आऊँ तो तुम्हें भूखा रहने की ज़रूरत नहीं है!"
"ऐनीवे, यह सब तुम्हारे समझ के बाहर है। अब चुपचाप इस सोफे पर सो जाओ। जब तक मैं ना कहूँ, उठना नहीं, ओके?"
समायरा ने स्माइल के साथ बड़ी सी हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और धीरे से बोली,
"वो... कंबल मिल सकती है?"
अर्थ ने घूरकर समायरा को देखा और मन में सोचा, यह भी कोई पूछने की बात है!
अर्थ की गुस्से वाली नज़र देखकर समायरा को लगा कि अब वह फिर से भड़केगा उसके ऊपर। तो समायरा दाँत दिखाकर बोली, "ही ही ही... मैं तो बस... मैं तो बस मज़ाक कर रही थी। बिना कंबल भी, मैं कम्फ़र्टेबल हूँ।" और चुपचाप आँखें बंद करके लेट गई।
अर्थ ने एक नज़र उसे देखकर ना में सर हिलाया और खुद ही आगे बढ़कर उसे कंबल ओढ़ा दिया और कमरे से बाहर निकल गया, और दरवाज़ा बंद कर दिया।
उसके जाने की आहट सुनकर समायरा ने कंबल में से मुँह निकालकर देखा। अर्थ सच में कमरे से निकल गया।
जब उसे लगा कि अर्थ चला गया, तो वह थोड़ा रिलैक्स होकर सो गई। थके होने के कारण उसकी जल्दी ही आँख लग गई।
अर्थ ने बाहर जाकर मोहन की वाइफ, जमना से कहा, "काकी, समायरा के लिए कुछ हल्का खाना बना दीजिये।" और जमना ने हाँ में गर्दन हिलाकर कहा, "जी मास्टर, मैं बना दूँगी।"
समायरा की आँखें सुबह 9 बजे खुलीं। जिस दीवार पर घड़ी लगी थी, वह बिल्कुल समायरा जिस तरफ फ़ेस करके सोई थी, उसी तरफ थी। उठते ही समायरा की नज़र घड़ी पर गई और उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। और वह हड़बड़ाकर उठने लगी। तभी उसे अर्थ के कहे शब्द याद आए, "जब तक मैं ना कहूँ उठना मत यहाँ से..." यह याद आते ही समायरा फिर से लेट गई। उसे नींद नहीं आई, लेकिन वह उस जगह से खड़ी भी नहीं हुई!
थोड़ी देर बाद जमना समायरा के दरवाज़े पर खड़ी आवाज़ लगा रही थी, क्योंकि उसके एक हाथ में खिचड़ी की प्याली थी और दूसरे में जूस। तो उससे दरवाज़ा नहीं खुल रहा था, पर समायरा वहाँ से टस से मस नहीं हो रही थी। जमना ने बेचारी से दूसरी तरफ देखा, कोई सर्वेंट ही दिख जाए। तभी वहाँ अर्थ आ गया।
अर्थ ने पूछा, "क्या हुआ? आप यहाँ क्यों खड़ी हो?"
जमना ने जवाब दिया, "वो मैडम दरवाज़ा नहीं खोल रही।"
अर्थ ने दरवाज़ा खोला और एक झटके से समायरा के ऊपर से कंबल उतार फेंका।
समायरा ने आँखें बड़ी करके कहा,
"मास्टर, मुझ पर गुस्सा मत करना अब आप। आप भूल गए, पर यह कंबल मैंने खुद नहीं ओढ़ी, आपने ही ओढ़ाई थी।"
जमना अपनी हँसी कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी।
अर्थ ने उसे जाने का इशारा किया। जमना ने खाना टेबल पर रखा और वह कमरे से निकल गई।
अर्थ का मन कर रहा था अपना सर दीवार से फोड़ ले। इस लड़की को हर चीज़ का मतलब हमेशा उल्टा ही क्यों निकालना होता है!
अर्थ ने सख्ती से कहा,
"तुमने दरवाज़ा क्यों नहीं खोला?"
अब समायरा की आँखें और बड़ी हो गईं और वह हैरानी से बोली, "मास्टर, आपको बादाम खानी चाहिए। आप फिर से भूल गए। आप ही ने बोला था, जब तक आप ना बोलो मैं यहाँ से उठूँ ही ना।"
अर्थ ने उसे कुछ और ना कहने की बजाय खाना खिलाना ज़्यादा बेहतर समझा।
"अच्छा ठीक है। अब उठो और खाना खा लो, और फिर दवाई ले लो।"
समायरा अच्छे बच्चों की तरह उठी और पहले फ़्रेश होकर आई। आते ही खाने पर टूट पड़ी। उसने पेट भर खाना खाया और फिर दवाई ले ली।
अर्थ उसे नोटिस कर रहा था। अर्थ अपनी ही कस म कस में था। यह लड़की बिल्कुल वैसी नहीं है जैसा सोचकर अर्थ उसे टॉर्चर करना चाहता था। लेकिन अगले ही पल उसे कुछ ऐसा याद आ गया जिसकी वजह से उसकी आँखों में समायरा के लिए हमदर्दी की जगह नफ़रत और गुस्सा दिखने लगा।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए...
"Innocence versus Darkness"
इशकी ✍️
समायरा अच्छे बच्चों की तरह उठी और पहले फ्रेश होकर आई। आते ही खाने पर टूट पड़ी।
उसने पेट भर खाना खाया और फिर दवाई ले ली।
अर्थ उसे नोटिस कर रहा था।
अर्थ अपनी ही खोया-खोया सा था।
यह लड़की बिलकुल वैसी नहीं है जैसा सोचकर अर्थ उसे टॉर्चर करना चाहता था।
लेकिन अगले ही पल उसे कुछ ऐसा याद आ गया जिसकी वजह से उसकी आँखों में समायरा के लिए हमदर्दी की जगह नफ़रत और गुस्सा दिखने लगा।
अर्थ ने थोड़ा गुस्से भरे लहजे में कहा,
"आइंदा कोई भी बेहूदा हरकत की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
"आज घर में सर्वेंट है, लेकिन तुम अपना काम खुद करोगी।"
"घर के बाहर कदम मत रखना, वरना मैं तुम्हारे दोनों पैर काट डालूँगा।"
अर्थ इतना सब कुछ बोलकर समायरा को वहीं छोड़ गया।
समायरा की आँखों में आँसू झलक आए और कुछ धुंधली यादें उसके ज़हन में उभरने लगीं।
फ़्लैशबैक…
अर्थ सहरावत की शादी कायरा रहमानी से तय हुई थी। इस वजह से कायरा का आना-जाना अर्थ के ऑफ़िस में लगा रहता था। अर्थ को किसी से ज़्यादा मतलब नहीं था, सिवाय अपने दादा-दादी से। उन्हीं के कहने पर अर्थ ने शादी के लिए हाँ बोला था। और कायरा रहमानी के दादा, ब्रिजेश रहमानी, अर्थ के दादा, शोभित सहरावत के बहुत अच्छे दोस्त थे, जिस वजह से यह रिश्ता तय हुआ था।
शादी के एक दिन पहले अर्थ को पता चला कि कायरा उसके कैबिन से कंपनी की सीक्रेट इनफ़ॉर्मेशन चुराकर ले जा चुकी है। जिस वजह से अर्थ ने उसके फ़ोन कॉल्स को ट्रेस करवाया। तो उसे पता चला कि कायरा ने फ़ाइल चुराने से पहले समा नाम की किसी लड़की से बात की थी।
अब अर्थ का सारा गुस्सा समा पर निकलने वाला था।
शादी वाला दिन…
"कायरा की माँ, सितारा रहमानी, कायरा के रूम में इधर-उधर चक्कर काट रही थी क्योंकि कायरा का कुछ पता नहीं चल रहा था।"
शादी का मुहूर्त हो चुका था। अर्थ दूल्हे की शेरवानी में मंडप में बैठा था।
ब्रिजेश जी ने शोभित जी के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा,
"मुझे माफ़ कर दे शोभित, मेरी पोती घर पर नहीं है। हमने उसे हर जगह ढूँढ़ लिया है।"
"उनकी इस बात पर विधा सहरावत (अर्थ की माँ) भड़कते हुए बोली,"
"इसका क्या मतलब है? आपकी पोती शादी का मंडप छोड़कर भाग गई?"
अभिराम (अर्थ के पापा) ने उन्हें शांत करते हुए कहा,
"आप शांत हो जाइए विधा जी, अभी मिल जाएगी कायरा बिटिया।"
विद्या को डर था कि अर्थ की शादी एक बार टूट जाने के बाद पता नहीं वह दोबारा शादी के लिए मानेगा या नहीं।
सितारा बाहर आकर हॉल में आवाज़ लगाती है,
"समा बेटा, जरा इधर आना।"
सितारा के मुँह से समा नाम सुनकर अर्थ ने अपनी नज़र उठाकर हॉल के दूसरी तरफ़ देखा।
"एक बेहद खूबसूरत लड़की गोल्डन कलर का लहंगा पहने आ रही थी।"
उसके एक हाथ में एक थाल थी और दूसरे हाथ से उसने अपने लहंगे को संभाल रखा था। उसके बाल कमर से नीचे तक बहुत लंबे, घने और काले थे। कानों में बड़े-बड़े इयरिंग पहने रखे थे। हाथों में मैचिंग चूड़ियाँ और पैरों में पायल।
वो सितारा के पास आकर बोली,
"जी बड़ी माँ, बोलिये।"
तो सितारा जी उसे लेकर कायरा के रूम की तरफ़ बढ़ गईं और यह देखकर अर्थ के चेहरे पर मिस्टीरियस एक्सप्रेशन आ गए, जैसे आगे क्या होने वाला है इसका अंदाज़ा उसे पहले से ही था।
वहीं दूसरी तरफ़…
कायरा को किसी ने किडनैप करके एक कमरे में बंद कर रखा था।
कायरा चिल्लाते हुए बोलती है,
"मैं अर्थ सहरावत की मंगेतर हूँ, वो तुम सब लोगों को जान से मार देगा!"
लेकिन उसकी इस बात पर भी वहाँ किसी बॉडीगार्ड ने कुछ नहीं कहा।
रहमानी हाउस…
सितारा और विजय (कायरा के मम्मी-पापा) खड़े थे।
समायरा ने कहा,
"सब कुछ ठीक है ना बड़े पापा?"
तभी रूम में समायरा के पापा अशोक रहमानी आते हैं। समायरा उन्हें गले लगाते हुए बोलती है,
"कहाँ रह गए थे डैड आप?"
अशोक ने प्यार से समायरा के सर पर हाथ फेरा। विजय अशोक के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला,
"अशोक, अब परिवार की इज़्ज़त तुम्हारे हाथों में है।"
अशोक ने विजय के हाथों को पकड़ते हुए कहा,
"ये कैसी बातें कर रहे हैं आप बड़े भईया? और आप मेरे सामने हाथ जोड़कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए। साफ़-साफ़ बताइए, हुआ क्या है?"
सितारा ने कहा,
"भाई साहब, कायरा का कुछ पता नहीं है। अर्थ मंडप में बैठा है। उनके परिवार वाले बोल रहे हैं कि वो बिना दुल्हन तो यहाँ से नहीं जाएँगे। अब हमारी इज़्ज़त कोई बचा सकता है तो वो है समा बिटिया।"
यह सुनकर अशोक जी की आँखें हैरानी से फैल गईं। उन्होंने कहा,
"लेकिन समा बहुत छोटी है, अभी उसकी उम्र उन्नीस साल ही है। ऐसे कैसे हम इसकी शादी करवा दें?"
इस पर विजय जी ने फिर से हाथ जोड़ते हुए कहा,
"अशोक, मैं तुम्हारे आगे अपनी इज़्ज़त की भीख माँग रहा हूँ।"
समायरा ने उनके हाथ पकड़ते हुए कहा,
"बड़े पापा, आप हाथ मत जोड़िए, हम करेंगे यह शादी।"
विजय जी के फेस पर संतुष्टि वाली स्माइल आ गई और अशोक जी के चेहरे पर परेशानी वाले भाव।
अशोक जी ने अकेले ही समायरा की परवरिश की थी। उनकी वाइफ़ उन्हें समायरा के होने के पाँच साल बाद ही छोड़कर चली गई थी और उसने दूसरी शादी कर ली थी। समायरा पिछले दो सालों से यहाँ अपने बड़े पापा के घर रह रही है।
विजय जी बाहर मेहमानों को देखने चले गए। सितारा कायरा के शादी के ब्लाउज़ की समायरा के अकॉर्डिंग फ़िटिंग करवाने चली गई।
उनके जाते ही अशोक जी ने समायरा को गले लगाते हुए कहा,
"समा बेटा, आपको शादी का मतलब भी पता है?"
समायरा ने स्माइल करते हुए कहा,
"कोई बात नहीं डैडी, अगर नहीं पता है तो आप अब बता दीजिए।"
अशोक ने कहा,
"बेटा, इतना आसान नहीं होता है!"
समायरा ने स्माइल करते हुए कहा,
"इट्स ओके डैडी, हार्ड है तो भी सीख लूँगी। आप बताइए तो सही।"
अशोक को समझ नहीं आ रहा था कि वह समायरा को क्या समझाए!
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए…
सितारा जी के जाते ही अशोक जी ने समायरा को गले लगाते हुए कहा,
"समा बेटा, आपको शादी का मतलब भी पता है?"
समायरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "कोई बात नहीं, डैडी। अगर नहीं पता है तो आप अब बता दीजिए।"
अशोक ने कहा, "बेटा, इतना आसान नहीं होता!"
समायरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "It's ok, Dady। हार्ड है तो भी सीख लूंगी। आप बताइए तो सही।"
अशोक को समझ नहीं आ रहा था कि वह समायरा को क्या समझाए।
अशोक ने समायरा के बाल सहलाते हुए कहा,
"बेटा, कहा गया है पति परमेश्वर समान होता है; इसलिए उसको खुश रखना आपकी ज़िम्मेदारी होती है।"
"खुश रखने से मतलब है हर फैसले में उसका साथ देना। ना कि यह मतलब कि आप उससे डरें और उसके गलत फैसले पर भी साथ दें!"
"बस, रिस्पेक्ट करना चाहिए!"
"मुझे आशा है मेरी समा जैसी एक बहुत अच्छी बेटी है, वैसे ही बहुत अच्छी बहू और बहुत अच्छी पत्नी भी बनेगी।"
"कायरा शादी नहीं कर रही है, इसलिए उनकी इंसल्ट हुई है। हो सकता है कुछ दिन आपसे गुस्सा हो, बट उसके बाद सब सही हो जाएगा।"
"और मेरी गुड़िया रानी तो है ही इतनी प्यारी, ज़्यादा दिन उससे कोई नाराज़ रह ही नहीं सकता!"
समायरा बहुत ध्यान से अशोक जी की बातों को सुन रही थी।
थोड़ी देर बाद, सितारा ने ब्यूटीशियन को समायरा को तैयार करने के लिए भेज दिया।
समायरा दुल्हन के लाल जोड़े में बेहद खूबसूरत लग रही थी।
थोड़ी देर में, पंडित जी ने कहा, "वर-वधू को बुलाइए।"
अर्थ मंडप में जाकर बैठ गया।
पाँच मिनट बाद, सितारा समायरा को मंडप तक लेकर आई और अर्थ के बगल में बिठा दिया।
अर्थ तिरछी नज़रों से समायरा को देख रहा था, वहीं समायरा अपनी पलकें झुकाए बैठी थी।
पंडित जी ने मंत्रों का उच्चारण शुरू किया और देखते ही देखते समायरा और अर्थ की शादी संपन्न हो गई।
फ्लैशबैक एंड...
अर्थ के दादा-दादी नैनीताल में रहते थे, और समायरा की फैमिली भी। इसलिए शादी नैनीताल में हुई। लेकिन अर्थ की बाकी फैमिली मुम्बई में रहती है।
अपने बीते कल को याद करते-करते ही समायरा की फिर से आँख लग गई और वह वहीं सोफ़े के आर्मरेस्ट पर सर रखकर सो गई।
शाम को अर्थ वापस घर आया और पूरे हॉल में इधर-उधर समायरा को ढूँढने लगा। वह माने या ना माने, लेकिन उसे समायरा का यूँ न दिखना बेहद बेचैन कर रहा था।
अर्थ लंबे कदम भरते हुए सीढ़ियों से अपने रूम में पहुँचा। समायरा को ना देख पाने की वजह से वह थोड़ा फ्रस्ट्रेटेड था।
अर्थ ने गुस्से से रूम के अंदर आकर दरवाज़ा लॉक किया। इतनी तेज़ दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ से समायरा की नींद टूट गई। वह सोफ़े पर बैठे-बैठे सोई थी, इसलिए उठते ही हड़बड़ा-हटकर चक्कर में सोफ़े से फर्श पर गिर गई और उसके मुँह से एक दर्द भरी कराह निकल गई।
"आआ... ईश्श... आ... उई मम्मा! मेरी कमर!"
अर्थ समायरा को कब से नोटिस कर रहा था और उसकी आँखें समायरा को ऐसे देखकर छोटी हो गई थीं।
समायरा खुद को सम्भालकर उठती है, लेकिन नीचे कालीन बिछा था और उसका पैर उसमें फँस जाता है। लेकिन समायरा गिरती उससे पहले अर्थ ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे सीधा खड़ा किया। समायरा ने गिरने के डर से अर्थ की शर्ट को कसकर मुट्ठी में पकड़ रखा था और अपनी आँखें भी भींच रखी थीं।
समायरा ने धीरे से आँखें खोलकर एक बार अर्थ के एक्सप्रेशनलेस फेस को देखा और सीधे खड़ी होते हुए बोली,
"सो... सॉरी, मास्टर।"
अर्थ ने गुस्से भरे लहजे में कहा,
"तुम पूरा दिन इसी रूम में थी?"
समायरा ने अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखें टिमटिमाते हुए कहा,
"आपने बोला था ना... घर से बाहर पैर रखूंगी तो टाँगें काट देंगे! मैंने सोचा... घर से निकलने पर टाँगें काट देंगे तो... रूम से निकलने पर इसका ट्वेंटी फाइव परसेंट तो... आई मीन... पैर की उंगलियाँ!"
और फिर एक स्माइल के साथ बोली,
"एंड मुझे ना अपनी उंगलियाँ बहुत पसंद हैं, इसलिए नो रिस्क।"
समायरा अपने आईब्रो चढ़ाते हुए बोली,
"आई एम स्मार्ट ना।"
लेकिन अर्थ का गुस्से भरा चेहरा देखकर समायरा ने अपने मन में कहा,
"समा... अब तूने क्या गलत बोल दिया... रिवाइंड मोड।"
इतना बोलकर समायरा ने अपनी आँखें बंद करके उसने थोड़ी देर पहले जो कुछ बोला, वह सब याद किया। थोड़ी देर बाद उसने आँखें खोलकर खुद से कहा,
"क्या इन्हें मेरा खुद को स्मार्ट कहना पसंद नहीं आया?"
और फिर एक नज़र अर्थ के फेस को देखा। अर्थ भी समायरा की अजीबोगरीब हरकतें नोटिस कर रहा था।
अर्थ ने कहा,
"क्या चल रहा है अब तुम्हारे छोटे से दिमाग में?"
तो समायरा ने मासूमियत से जवाब दिया,
"यही कि आपको मेरी कौन सी बात बुरी लगी है जो आप मुझे ऐसे घूर रहे हैं जैसे कच्चा चबा जाएँगे।"
इतना बोलकर समायरा ने अपनी जीभ दाँतों से काटकर खुद से कहा,
"हे कृष्णा... मैं क्यों इन्हें गुस्सा दिलाती हूँ।"
और फिर अर्थ को देखते हुए झूठी हँसी हँसते हुए बोली,
"ही ही ही... आई एम जस्ट किडिंग। आप... आप तो मुझे प्यार से घूर रहे हैं... आई मीन देख रहे हैं।"
अर्थ ने कहा,
"प्यार से? और वो भी तुम्हें?"
तो समायरा ने रोती हुई सूरत बनाकर कहा,
"ये... ये बिलकुल गलत बात है। आप ना चीटिंग कर रहे हो मेरे साथ। मैं अगर बोलूँ आप गुस्से से घूर रहे हो, तो भी आपको बुरा लगता है। मैं अगर बोलूँ आप प्यार से देख रहे हो, तो भी आपको गुस्सा आता है। दैट्स नॉट गुड। मैं क्या करूँ? मर जाऊँ? तुम्हारी फीलिंग तुम्हारी, मेरी कोई फीलिंग नहीं है।"
समायरा आगे का डायलॉग बोलती उससे पहले ही उसे फील हुआ कि उसके आस-पास का माहौल थोड़ा गर्म हो गया। समायरा ने पलकें उठाकर अर्थ को देखा जिसकी आँखें समायरा की बकवास सुनकर अंगारे की तरह दहक रही थीं।
समायरा ने कहा,
"सॉरी मास्टर। वो मैंने ये डायलॉग रील्स में देखा था।"
अर्थ ने एक-एक शब्द चबाते हुए कहा,
"जस्ट... सेट... अप... एंड गेट आउट फ्रॉम हियर... राइट नाउ!"
समायरा एक भी पल गँवाए बिना तुरंत रूम से उड़नछू हो गई और अर्थ अपनी उंगली से अपने माथे को हल्का-हल्का रब करके अपने गुस्से को शांत करने लगा।
"ये बेवकूफ़ लड़की एक भी मौका नहीं छोड़ती मुझे गुस्सा दिलाने का।"
समायरा कमरे से निकलते ही सीने पर हाथ रखकर लंबी-लंबी साँसें लेते हुए बोली,
"थैंक गॉड, बच गई।"
समायरा और जमना मिलकर डिनर तैयार करती हैं और उसे डाइनिंग टेबल पर रख देती हैं।
जमना बोली,
"मैडम, आप हाथ-मुँह धोकर बैठ जाइए। मैं मास्टर को बुलाकर आती हूँ।"
इतना बोलकर जमना जाने लगी, तो समायरा बोली,
"नहीं-नहीं-नहीं। आप क्यों सोए हुए शैतान को जगा रही हैं? उन्होंने बोला था, उन्हें भूख लगेगी तब वे खुद आ जाएँगे।"
"और आप मुझे मैडम मत बुलाइए।"
"उन्हें मास्टर बनना है तो बनें। मुझे मास्टर की मैडम बनने का कोई शौक नहीं है।"
जमना मुस्कुराते हुए बोली, "तो क्या बुलाऊँ मैं आपको?"
समायरा चहकते हुए बोली,
"समा।"
"इसी नाम से बुलाते थे मेरे घर में मुझे सब।"
जमना मुस्कुराते हुए बोली,
"जी, समा बेटा।"
समायरा ने उन्हें गले लगाते हुए कहा,
"ये हुई ना बात! मेरी प्यारी आंटी।"
समायरा ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा,
"हे कृष्णा! मैं तो आपका नाम पूछना भूल ही गई।"
जमना बोली, "कोई बात नहीं बिटिया, मेरा नाम जमना है।"
समायरा बोली, "हाँ, अब सही है। समा की नई दोस्त आंटी जमना।"
जमना जी भी समायरा के प्यारे अंदाज पर मुस्कुरा दीं।
थोड़ी देर बाद अर्थ डिनर करने के लिए डाइनिंग टेबल पर आया। समायरा ने जमना आंटी को डिनर सर्व करने के लिए कहा ताकि उसे शैतान का सामना न करना पड़े।
सबने डिनर किया और अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। अर्थ कमरे में इधर-उधर घूम रहा था क्योंकि समायरा अभी तक कमरे में नहीं आई थी और रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
अर्थ ने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा,
"कहाँ रह गई ये पागल लड़की?"
"पहले तो बोल रही थी, अकेले नींद नहीं आती!"
वहीं दूसरी तरफ, समायरा बहुत खुश थी। आज उसे अर्थ का सड़ा हुआ चेहरा नहीं देखना पड़ेगा! क्योंकि वह जमना के कमरे में थी।
जमना बोली,
"बेटा, मास्टर गुस्सा करेंगे। तुम जाओ उनके कमरे में।"
समायरा मुस्कुराते हुए बोली,
"बिल्कुल नहीं, आंटी। वे बिल्कुल गुस्सा नहीं करेंगे, बल्कि खुश हो जाएँगे क्योंकि वे यही चाहते हैं कि उनके कमरे में कोई न आए।"
जमना डरते हुए बोली, "और अगर उन्हें गुस्सा आया तो?"
समायरा बोली,
"आप चिंता मत कीजिए। गुस्सा करेंगे तो भी मुझ पर ही करेंगे, आप पर नहीं।"
अर्थ ने भी थककर समायरा का इंतजार करना छोड़ दिया और अपना काम करने लगा। कुछ देर काम करने के बाद उसकी नज़र बार-बार बालकनी में जाने लगी। अर्थ उठकर बालकनी में गया। उसे बैठने के लिए कोई जगह नहीं मिली क्योंकि उसके कमरे की बालकनी असल में गार्डनिंग के लिए डिज़ाइन की गई थी। इसलिए वहाँ कोई सोफा नहीं था, फूलों के गमले थे, जिन्हें खूबसूरती से सजाया गया था। अर्थ को कुछ ही पल हुए थे कि उसे वहाँ बहुत ज़्यादा ठंड महसूस होने लगी।
अर्थ ने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा,
"ये पागल लड़की इतनी ठंड में सोई थी...?"
और अर्थ वहाँ से अंदर अपने कमरे में आ गया।
अगली सुबह, अर्थ बिल्कुल तैयार हो गया था। समायरा समय पर अर्थ की ब्लैक कॉफी लेकर उसके कमरे में पहुँची, तो अर्थ ने उसे घूरते हुए कहा,
"रात को कहाँ थी तुम?"
समायरा दाँत दिखाते हुए बोली,
"जमना आंटी के कमरे में।"
अर्थ ने उसके हाथ से कॉफी लेते हुए कहा,
"रेडी हो जाओ। थोड़ी देर में दादी और दादू आने वाले हैं। उनसे मिलकर हम मुम्बई चलेंगे।"
समायरा ने हाँ में सिर हिलाकर हम्म कहा और कमरे से निकलकर जमना के कमरे में चली गई। अब समायरा को उन्हीं साड़ियों में से एक साड़ी फिर से पहननी थी, इसलिए वह पहले उस कमरे से पीली साड़ी लेकर आई और फिर जमना के कमरे के बाथरूम में फ्रेश होकर तैयार होने लगी।
एक घंटे बाद समायरा और अर्थ दोनों एकदम तैयार थे। अर्थ अपनी घड़ी सही करते हुए सीढ़ियों से उतर रहा था कि उसकी नज़र समायरा पर पड़ी और फिर वो नज़रें वहीं ठहर गईं। समायरा ने भले ही बहुत ही लो-क्लास साड़ी पहनी थी, एकदम प्लेन साड़ी थी जिसके बॉर्डर पर हल्का वर्क किया गया था। उसने चिकनकारी पीला ब्लाउज़ पहना था। अर्थ बस उसे देखता ही रह गया। पीली साड़ी में उसकी दूध सी गोरी त्वचा बिल्कुल हीरे की तरह चमक रही थी। अर्थ का ध्यान किसी के खांसने से टूटा, तो उसने नज़रें घुमाकर देखा। रमन उसे देखकर हँस रहा था। फिर उसके पास जाकर बोला,
"है ना मेरी भाभी बिल्कुल स्वर्ग लोक की अप्सरा जैसी!"
"हम्म, थोड़ा बचकर रहना, वरना तुम्हारी भाभी को उसके मायके भेजूँगा और साथ में तुझे भी।"
रमन मुस्कुराते हुए बोला,
"मायके जाने में भला क्या प्रॉब्लम होगी मुझे?"
अर्थ तिरछा मुस्कुराते हुए बोला,
"क्योंकि स्वर्ग लोक में अप्सरा के साथ-साथ राक्षस भी रहते हैं!"
यह सुनकर रमन को समझ आया कि अर्थ किस मायके भेजने की बात कर रहा है और वह हड़बड़ाकर बोला,
"क...क्या यार! तेरे वैसे भी दोस्त नहीं बनते, मैं हूँ तो तू मुझे भी मारना चाहता है। बड़ा बेरहम है तू।"
थोड़ी देर बाद शोभित सहरावत और उनकी धर्मपत्नी कल्याणी सहरावत हॉल में एंटर करते हैं। अर्थ और रमन दोनों पहले दादा-दादी का आशीर्वाद लेते हैं। कल्याणी जी इधर-उधर देखकर बोलती हैं,
"कहाँ है हमारी बहू?"
तभी समायरा और जमना हाथ में कुछ प्लेट्स लेकर आती हैं, जिसे देखकर कल्याणी और शोभित दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है। कल्याणी जी समायरा को देखकर कहती हैं,
"हमारी बहू रानी को किसी की नज़र न लगे!"
समायरा अर्थ के दादा जी और दादी जी को बहुत अच्छे से जानती थी क्योंकि उनके घर शोभित जी का आना-जाना लगा रहता था। समायरा ने प्लेट्स डाइनिंग टेबल पर रख दी और फिर शोभित जी को गले लगाकर बोली,
"आई मिस यू सो मच, दादू!"
शोभित प्यार से उसके सर पर हाथ फेर देते हैं, "मैंने भी बहुत मिस किया तुम्हें, गुड़िया।"
कल्याणी जी मुँह बनाकर बोलती हैं,
"थोड़ा प्यार हमारे हिस्से में भी आना चाहिए ना, इतनी ना-इंसाफी क्यों?"
समायरा कल्याणी जी के गाल पिंच करके बोलती है,
"अरे मेरी क्यूट-क्यूट गोलू-मोलू दादी! आप क्यों इतना नाराज़ हो रही हैं? या फिर मेरा दादू को हग करना आपको पसंद नहीं आया? पोज़ेसिव हाँ, बहुत ज़्यादा पोज़ेसिव।"
कल्याणी जी शर्माते हुए बोलती हैं, "हट पगली, ऐसे नहीं बोलते।"
समायरा उनके गले में बाहें डालकर बोली, "ओये होये, ब्लश...ब्लश।"
अर्थ शांत लेकिन गंभीर लहजे में बोला,
"आपका वार्तालाप...भरत मिलाप...सब हो गया हो तो नाश्ता लीजिए। हमें मुम्बई के लिए निकलना है, वो भी आज ही, अगले साल नहीं!"
और फिर एक नज़र घूरकर समायरा को देखता है, तो वह हड़बड़ाकर कल्याणी जी के गले से हाथ हटा लेती है।
अर्थ अपने मन में बोलता है,
"मैं भी देखता हूँ इनके सामने कब तक तुम मासूमियत का मुखौटा पहनकर रखती हो। बहुत जल्दी इन्हें कुछ ऐसा पता चलेगा, ये तुमसे हद से ज़्यादा नफ़रत करेंगे! जस्ट वेट फ़ॉर अ बैड टाइम इन योर लाइफ़...एंड गुड टाइम फ़ॉर मी।"
कौन सा राज खुलेगा समायरा का अर्थ के परिवार के सामने? मुंबई जाकर अर्थ की कैद में कैसे रह पाएगी समायरा? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
अर्थ ने समायरा को देखकर मन ही मन में कहा,
"मैं भी देखता हूँ इनके सामने कब तक तुम मासूमियत का मुखौटा पहनकर रखती हो... बहुत जल्दी इन्हें कुछ ऐसा पता चलेगा... ये तुमसे हद से ज़्यादा नफ़रत करेंगे! Just wait for a bad time in your life... and good time for me..!"
सब एक साथ बैठकर नाश्ता किया।
और फिर अर्थ, समायरा और रमन तीनों दादा जी और दादी जी का आशीर्वाद लेकर मुम्बई के लिए निकल गए।
वो सब एक चॉपर में मुम्बई जाने वाले थे।
इसे देखकर समायरा एक्साइटेड थी क्योंकि इसके ज़रिए वो बहुत जल्दी मुम्बई पहुँच जाएगी।
उसका मुम्बई से एक अलग जुड़ाव था... वो भी किसी के कारण, जिनसे मिलने के लिए वो अपने बड़े पापा तक से लड़कर भी नैनीताल से मुम्बई आ जाया करती थीं और अब तो वो मुम्बई में ही रहेगी और उनसे कभी भी मिल पाएगी। बस ये सब सोचकर उसकी एक्साइटमेंट बढ़ती ही जा रही थी, और उसकी ये खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी।
वहीं अर्थ, समायरा की ये खुशी देखकर तिरछा मुस्कुराते हुए खुद से बोला,
"तुम्हें लग रहा है तुम आजाद हो? बिल्कुल नहीं।।। अब पता चलेगा तुम्हें असली टॉर्चर होता क्या है, मिस समायरा रहमानी।"
कुछ ही घंटों में अर्थ का चॉपर एक मेंशन की छत पर लैंड किया।
मुम्बई, सहरावत मेंशन...
ये अर्थ का प्राइवेट विला था जहाँ उसकी मर्ज़ी के बिना कोई कभी नहीं आ सकता, सिवाय रमन के, क्योंकि रमन अर्थ का बेस्ट फ्रेंड और भाई जैसा था, जिससे वो सब कुछ शेयर करता था।
और रमन भी इस रिश्ते को बखूबी निभाता था।
तीनों चॉपर से निकलकर हॉल में आ गए।
अर्थ ने रमन को कुछ काम दिया, जिसे पूरा करने के लिए रमन तुरंत वहाँ से निकल गया।
समायरा घूम-घूमकर पूरा मेंशन देख रही थी।
मेंशन बहुत एलिगेंट तरीके से सजाया गया था। बहुत अच्छे-अच्छे शो पीस रखे थे वहाँ।
कमी थी तो बस इंसानों की।
अर्थ अपने रूम जाकर फ्रेश होकर आया। जब अर्थ अपने रूम से निकलकर नीचे आया तो उसके कदम स्टेयर्स के पास ही रुक गए।
क्योंकि वो समायरा की बचकानी हरकतें देख रहा था।
एक बहुत ही खूबसूरत मूर्ति रखी गई थी हॉल के राइट पोर्शन में, और समायरा उस मूर्ति से बातें कर रही थी।
समायरा मुँह बनाते हुए उस मूर्ति को देखकर बोल रही थी,
"Umm.. तुम्हारा पोज़ थोड़ा सा गड़बड़ है। ये तो तुम्हारा राइट हैंड है, ये थोड़ा सा नीचे और झुकना चाहिए था। तुम्हारी आँखें भी छोटी-बड़ी लग रही हैं। लिप्स तो... फिर भी ठीक हैं।।। और तुम्हारी हाइट कुछ ज़्यादा ही है। लाइक अगर कभी तुम्हें हग करना हो तो कैसे करे कोई इंसान..!"
समायरा उस मूर्ति से बातें करने में इतनी खो गई कि उसे अपने आस-पास का कोई होश ही नहीं रहा।
तभी उसके कानों में अर्थ की बेहद डरावनी आवाज़ सुनाई दी,
"तुम कहो तो तुम्हें पागलखाने भेज दूँ... इंसान ही मिल जाएँगे तुम्हें गले लगाने के लिए, बिल्कुल तुम्हारी तरह!"
समायरा हड़बड़ाकर बोली,
"मा... म... मास्टर वो तो बस मैं..!"
"क्या? वो तो बस तुम?"
"इतने बड़े मेंशन में अब ये मूर्ति ही तो है जिससे मैं बात कर सकती हूँ!"
"अब से अकेले रहने की आदत डाल लो... तुम्हें यहीं रहना है पूरी ज़िन्दगी!"
"अब ये कोई लेमन ग्रीन टी है जो आदत डाल लो!"
"अगर एक शब्द और बोला... मैं तुम्हें मेंशन के किसी अंधेरे कमरे में बंद कर दूँगा। वहाँ अपने जाहिल जोक्स खुद पर ही आजमा लेना..!"
समायरा बिल्कुल चुपचाप खड़ी हो गई।
अर्थ ने गहरी साँस लेकर कहा,
"ऊपर रूम में कपड़े रखे हैं, जाकर चेंज कर लो। लंच का टाइम तो कब का निकल चुका है। अगर कुछ खाना हो तो उस साइड किचन है।"
समायरा ने हाँ में गर्दन हिलाई और अर्थ के बताए हुए रूम में चली गई।
समायरा ने अलमारी खोली तो सामने की ड्रेसेज़ देखकर तो उसकी आँखें बाहर आने को हो गईं।
अलमारी में बहुत खूबसूरती से वेस्टर्न, ट्रेडिशनल, हर तरीके की ड्रेस को हैंगिंग में टाँग रखा था।
समायरा के चेहरे पर बहुत ही क्यूट सी स्माइल आ गई।
क्योंकि एक्चुअल में उसे ट्रेडिशनल ड्रेसेज़ पहनने में बहुत टाइट लगता है और ऊपर से उन्हें संभालना तो जैसे उसके बस का बिल्कुल नहीं है और ना ही उन्हें पहनकर कोई अच्छे से घर का काम कर सकता है।
समायरा ने तुरंत एक comfy जंपसूट का वन पीस लिया और फ्रेश होने बाथरूम में चली गई।
वहीं अर्थ मेंशन के एक रूम में था, जो रूम बाकी रूम से अलग साइड बना था और वहाँ अर्थ के अलावा किसी का आना-जाना भी अलाउड नहीं था।
अर्थ की आँखों में बेहद दर्द था।
वो किसी की बड़ी सी पोर्ट्रेट के सामने खड़ा था।
अर्थ खुद से बोला,
"अब उस इंसान को सज़ा मिलेगी जिसकी वजह से तुम मुझसे दूर हो गए!"
"वो सोच भी नहीं सकती उसे किस हद तक दर्द दे सकता हूँ...!"
इतना बोलकर अर्थ प्यार से उस तस्वीर को छूता है और अगले ही पल उसकी आँखों में समायरा के लिए बेहद नफ़रत दिखने लग जाती है।
अर्थ डेविल स्माइल के साथ बोला,
"हमारा मिलना भले ही कोइं इंसिडेंट था... लेकिन उसके बाद का कोई भी मोमेंट नहीं...!"
इतना बोलकर वो अपने रूम में आया और इधर-उधर नज़रें दौड़ाकर समायरा को ढूँढा। जब वो नहीं दिखी तो अपना लैपटॉप लेकर काम करने लगा।
वहीं समायरा अर्थ के ख़तरनाक इरादों से अनजान आराम से किचन में अपने लिए कॉफ़ी बना रही थी।
फिर उसने कुछ सोचकर अर्थ के लिए भी कॉफ़ी बनाई और रूम में देने के लिए बढ़ गई।
समायरा ने रूम नॉक किया तो अर्थ ने गंभीर आवाज़ में "Come in" बोला।
अर्थ ने आँखें उठाकर समायरा को देखा।
उस वन पीस जंपसूट में समायरा बहुत ही ज़्यादा क्यूट लग रही थी... और उसने हाफ़ बालों से दोनों साइड छोटी-छोटी पोनीटेल बनाई थी और बाकी बाल उसकी पीठ पर झूल रहे थे... टोटल मिलाकर cuteness overload लग रही थी वो।
अर्थ ने बहुत मुश्किल से अपनी नज़रें उससे हटाई और कॉफ़ी ले ली।
कॉफ़ी देने के बाद भी जब समायरा वहीं खड़ी थी तो अर्थ ने सवालिया नज़रों से समायरा को देखा।
समायरा हिचकिचाकर बोली,
"वो मुझे एक फ़ोन चाहिए था मास्टर!"
"क्या अर्थ समायरा को फ़ोन दिलाएगा या देगा इसके लिए कोई सज़ा? कौन था तस्वीर में? कैसे करेगी समायरा इन अनजान ख़तरों से सामना? जानने के लिए पढ़ते रहिए... "innocence versus darkness"
समायरा ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया तो अर्थ ने गंभीर आवाज़ में कहा, "Come in।"
अर्थ ने आँखें उठाकर समायरा को देखा।
उस वन-पीस जंपसूट में समायरा बहुत ही ज़्यादा प्यारी लग रही थी। उसने आधे बालों से दोनों तरफ़ छोटी-छोटी पोनीटेल बनाई थीं और बाकी बाल उसकी पीठ पर झूल रहे थे। कुल मिलाकर, वह बेहद प्यारी लग रही थी।
अर्थ ने बहुत मुश्किल से अपनी नज़रें उससे हटाईं और कॉफी ली।
कॉफी देने के बाद भी जब समायरा वहीं खड़ी थी, तो अर्थ ने सवालिया निगाहों से समायरा को देखा।
समायरा ने हिचकिचाते हुए कहा,
"वो, मुझे एक फ़ोन चाहिए था, मास्टर!"
अर्थ ने आँखें छोटी करके कहा,
"क्या शादी से पहले फ़ोन नहीं था तुम्हारे पास?"
समायरा ने इधर-उधर देखकर कहा,
"वो फ़ोन बहुत जल्दी टूट जाता है मुझसे। शादी वाले दिन ही मैं कुछ काम कर रही थी और वो फ़ोन टूट गया!"
अर्थ ने समायरा को घूरते हुए कहा,
"और उम्मीद भी क्या की जा सकती है तुमसे? तुम सिर्फ़ चीज़ों को तोड़-फोड़ सकती हो!"
अर्थ ने रमन को कॉल किया और एक फ़ोन लाने के लिए कहा।
यह देखकर समायरा के चेहरे पर चमक आ गई।
और वह तुरंत ही कमरे से बाहर निकल गई।
समायरा ने लंबी साँस लेते हुए पीछे देखा। जब उसने देखा कि वह अर्थ के कमरे से थोड़ी दूर आ गई है,
वह खुद को मस्ती से नाचने से रोक नहीं पाई और अपनी ही मस्ती में गाना गाकर नाचने लगी।
अर्थ दरवाज़े के पास खड़े होकर उसकी बचकानी हरकतें देख रहा था।
अर्थ ने थोड़ी देर उसे देखा और फिर उसे आवाज़ देते हुए कहा,
"ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि लोग जितना हँसते हैं, उतना ही रोना पड़ता है बाद में!"
यह सुनकर समायरा ने जल्दी से अपने नृत्य को नियंत्रित किया। तब अर्थ ने कहा,
"कल हमें ओल्ड हाउस जाना है!"
समायरा ने चहकते हुए कहा,
"ओह! वहाँ आपके माँ-बाप और भाई-बहन, ये सब रहते हैं!"
अर्थ ने घूरकर समायरा को देखा तो उसने मुस्कराहट दिखाई और फिर नीचे हॉल में चली गई।
अर्थ ने ना में गर्दन हिलाई और वापस कमरे में आकर काम करने लगा।
ऐसे ही दिन बीत गया और समायरा ने डिनर भी तैयार कर लिया।
समायरा किचन के गेट पर खड़ी होकर रमन के आने का इंतज़ार कर रही थी कि वह कब आए और उसे फ़ोन दे।
डिनर के वक्त ही रमन समायरा के लिए नया फ़ोन लेकर आया।
यह देखकर समायरा के चेहरे पर चमक आ गई।
लेकिन रमन को पता नहीं था कि यह फ़ोन किसके लिए है, इसलिए वह सीधा अर्थ के पास चला गया। यह देखकर समायरा का मुँह लटक गया और वह डिनर टेबल पर डिनर सेट करने लगी।
थोड़ी देर बाद रमन और अर्थ डाइनिंग टेबल पर बैठकर डिनर करने लगे।
समायरा उन्हें डिनर सर्व कर रही थी, तो रमन ने कहा,
"भाभी, आप हमारे साथ डिनर नहीं करेंगी?"
तो समायरा ने हल्की मुस्कराहट के साथ ना में गर्दन हिला दी।
समायरा को मुस्कुराते देख अर्थ को बहुत अजीब लगा। ऐसा अगर किसी और लड़की के साथ किया जाता, तो उसके अहंकार को ठेस पहुँचाने जैसा था, लेकिन समायरा तो बहुत ही सामान्य प्रतिक्रिया कर रही थी।
जो कहीं ना कहीं अर्थ को चुभ रहा था।
वहीं समायरा आँख मटकाते हुए दिल ही दिल में खुद से बातें कर रही थी,
"कौन इन जैसे शैतान के साथ डिनर करना चाहेगा? मैं तो बहुत चैन से अकेले बैठकर खाना पसंद करती हूँ। कम से कम इनकी ये खतरनाक आँखें कुछ वक्त के लिए तो मुझे नहीं घूरेंगी।
अपनी पसंद से जैसे चाहूँ वैसे खाना खा सकती हूँ, कोई रोक-टोक नहीं, कोई वेल्मैनर्स वाली बात नहीं!"
ये सब सोचते हुए समायरा बहुत प्यारा भाव बना रही थी, जो अर्थ अपनी तीखी भूरी आँखों से नोटिस कर रहा था।
थोड़ी ही देर में रमन और अर्थ खाना खाकर फ़्री हो चुके थे। उसके बाद समायरा ने सारे बर्तन साफ़ किए और डिनर हटाया।
अर्थ और रमन स्टडी रूम में ऑफ़िस वर्क डिस्कस कर रहे थे, वहीं समायरा बेसब्री से अर्थ का इंतज़ार कर रही थी अपने नए फ़ोन के लिए।
वहीं अर्थ के हाथ लैपटॉप पर बहुत तेज़ चल रहे थे।
रमन अर्थ को कुछ बता रहा था,
"अर्थ, कोई विधि को नैनीताल से ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ आया है!"
यह सुनकर अर्थ ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा,
"रेम, वो सिर्फ़ यहाँ तक आ ही पाया है, समायरा तक नहीं पहुँच पाएगा!"
रमन ने कहा,
"Whatever!"
"मेरा काम था तुम्हें इन्फॉर्म करना, सो मैंने कर दिया। अब तू जाने, और तेरा काम जाने। वैसे तू भाभी को बाकी फैमिली से कब मिलाने वाला है!"
"वैसे उन लोगों ने कितनी मुश्किल से तो किंजल को एक्सेप्ट किया था। अब जब ये पता चलेगा कि तेरी शादी किसी और से हुई है, तो वैसे ही वो सब भाभी के लिए तकलीफ़ें बढ़ा देंगे!"
अर्थ ने बेफ़िक्र होते हुए कहा,
"उससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है! वो समायरा खुद निपट लेगी!"
"उसने भी तो हाँ की है अपने बड़े पापा से, कि वो उनकी इज़्ज़त के लिए मुझसे शादी करेगी!
अब भुगते जो किया है उसका फल!"
रमन ने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"ठीक है यार, तुझे जो सही लगे वो कर। अभी मैं चलता हूँ, लेट हो गया है। तुझे तो नींद आने वाली है नहीं, लेकिन फिर भी अब सोने की कोशिश कर ले। कल डिस्कस करते हैं ऑफ़िस में बाकी का काम।"
इतना बोलकर रमन स्टडी रूम से निकलकर अपने घर के लिए चला गया।
अर्थ ने रमन के जाने के बाद लगभग एक घंटे तक काम किया और फिर लैपटॉप उठाकर अपने कमरे में जाने लगा।
क्योंकि उसे पता था कि समायरा को जब यह बोला गया है कि वो उसके ऑर्डर के बिना कोई काम ना करे, तो वो सोई भी नहीं होगी अब तक।
लेकिन जब अर्थ कमरे में पहुँचा तो समायरा को देखकर उसकी आँखें छोटी हो गईं।
क्योंकि समायरा छोटे बच्चों की तरह सिकुड़कर काउच पर सो रही थी। ऊपर से जंपसूट और दो पोनीटेल की वजह से वो बिल्कुल छोटी सी गुड़िया लग रही थी और बहुत प्यारी लग रही थी।
दरअसल, समायरा का इंतज़ार करने के लिए काउच पर बैठी थी, लेकिन थके होने के कारण उसे जल्दी ही नींद आ गई।
अब क्या करेगा अर्थ समायरा के साथ?
कैसी होगी समायरा और अर्थ की बाकी फैमिली मेंबर्स से मुलाक़ात?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।
अर्थ ने रमन के जाने के बाद लगभग एक घंटे तक काम किया और फिर लैपटॉप उठाकर अपने कमरे में जाने लगा।
"क्योंकि उसे पता था समायरा को जब यह बोला गया है, वो उसके ऑर्डर के बिना कोई काम ना करे, तो वह सोई भी नहीं होगी अब तक।"
लेकिन जब अर्थ रूम में पहुँचा, तो समायरा को देखकर उसकी आँखें छोटी हो गईं।
क्योंकि समायरा छोटे बच्चों की तरह सिकुड़कर काउच पर सो रही थी। ऊपर से जंपसूट और दो पोनीटेल की वजह से वह बिल्कुल छोटी सी गुड़िया लग रही थी और बहुत क्यूट लग रही थी।
दरअसल, समायरा अर्थ का इंतज़ार करने के लिए काउच पर बैठी थी, लेकिन थके होने के कारण उसे जल्दी ही नींद आ गई।
अर्थ गुस्से से समायरा को घूर रहा था, लेकिन फिलहाल वह घूरने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था।
अर्थ ने बेड पर बैठकर ही अपना काम करने सोचा और बेड के हेडरेस्ट से टेक लेकर बैठ गया और गोद में लैपटॉप रख लिया।
लेकिन वह काम पर फ़ोकस नहीं कर पा रहा था।
क्योंकि समायरा के हिलने से कभी उसकी पायल, तो कभी उसकी चूड़ियाँ शोर कर रही थीं।
अर्थ ने झल्लाते हुए लैपटॉप को साइड में रखा और फिर समायरा के पास जाकर उसकी पायल खोलने लगा।
समायरा के गुलाबी पैर काफी सॉफ्ट थे और उसकी छोटी-छोटी उंगलियों में उसने बिछिया पहन रखे थे। उसके गोरे रंग पर ब्लैक कलर की नेल पॉलिश और भी खूबसूरत लग रही थी।
अर्थ ने कसकर अपनी आँखें बंद कीं और फिर झटके से पायल तोड़ दी।
फिर वह समायरा के हाथों की तरफ़ बढ़ गया।
समायरा के हाथ उसके सीने पर थे, तो अर्थ और भी ज़्यादा अनकम्फ़र्टेबल हो रहा था।
लेकिन उसने गहरी साँस लेकर अपना हाथ आगे बढ़ाकर समायरा की चूड़ियाँ निकालने की कोशिश की।
और अर्थ की जल्दबाज़ी के चक्कर में समायरा के हाथ की चूड़ियाँ चटक गईं।
समायरा के दर्द की वजह से एक सिसकी निकल गई और उसने कसमसाते हुए आँखें खोलीं।
सामने अर्थ को देखकर वह बुरी तरह डर गई।
और उसकी आँखों में पानी आ गया।
समायरा ने एक नज़र अर्थ के हाथ को देखा, जिसे देखकर अर्थ ने जल्दी से उसका हाथ छोड़ते हुए कहा,
"इडियट! किसने कहा था चूड़ियाँ पहनने को? ना चैन से काम करने दे रही हो, ना कुछ और!"
समायरा ने जल्दी से अपने आँसू पोछे और खड़ी होते हुए बोली,
"सॉरी मास्टर। वो मैं...मैं...फ़ोन लेने के लिए आपका वेट कर रही थी। पता नहीं कैसे मेरी आँख लग गई।
I am sorry!"
अर्थ ने उसे घूरते हुए कहा,
"सोने के लिए मेरे रूम का सोफ़ा ही मिला था? मैंने कहा था ना, अगर मेरे रूम में सोना है, तो बालकनी में जाकर सो जाना!"
समायरा ने फिर से नज़रें झुकाते हुए कहा,
"सॉरी मास्टर।"
अर्थ ने फ़्रस्ट्रेशन में अपने बालों में हाथ फेरते हुए कहा,
"बस सॉरी का जाप करना आता है तुम्हें!"
समायरा अब कुछ नहीं बोली, तो अर्थ ने कहा,
"अब जाकर बालकनी में फ़र्श पर सो जाओ। यही पनिशमेंट है तुम्हारी। ठंड में तुम्हारी अकल ठिकाने आएगी!"
समायरा ने हाँ में गर्दन हिलाई और बालकनी में जाकर फ़र्श पर लेट गई।
समायरा एकटक आसमान को देख रही थी। उसे खुले आसमान के नीचे सोने में कोई दिक्कत नहीं थी, बस फ़र्श कुछ ज़्यादा ही ठंडा था और ऊपर से उसकी कलाई में बहुत दर्द हो रहा था।
समायरा को अपनी मम्मी की याद आ रही थी।
इसलिए उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
धीरे-धीरे उसकी पलकें भारी होने लगीं और वह नींद के आगोश में चली गई।
अर्थ को एक घंटे बाद महसूस हुआ समायरा कुछ बोल रही है, तो वह उठकर धीमे कदमों से बालकनी की तरफ़ बढ़ गया।
उसने वहाँ जाकर देखा...
समायरा बिल्कुल सिकुड़कर सो रही है और नींद में ही सुबकते हुए कुछ बड़बड़ा रही है।
अर्थ ने एक घुटना टेककर अपना सर झुकाते हुए समायरा की बात सुनने की कोशिश की।
समायरा बड़बड़ा रही थी,
"मम्मा! मम्मा! इट्स हर्टिंग मी!"
मम्मा! इतना बोलकर वह फिर से रोने लगी।
रोने की वजह से और ठंड की वजह से वह काँप भी रही थी। अर्थ ने उसके हाथों पर ध्यान दिया, जहाँ अब खून हल्का सूख चुका था।
अर्थ को समायरा की हालत देखकर दिल में बहुत दर्द फील हो रहा था। इसकी वजह तो वह खुद भी नहीं जानता था।
अर्थ ने समायरा को गोद में उठाया और रूम की तरफ़ बढ़ गया।
किसी के स्पर्श से समायरा की आँखें तुरंत खुल गईं।
समायरा ने खुद को अर्थ की बाहों में देखकर डरते हुए कहा,
"म...मास्टर आप क्या कर रहे हैं? मैंने क्या कर दिया अब?"
अर्थ ने उसे एक नज़र देखकर कहा,
"तुम नींद में बोल रही थी। तुम्हें मेरी वजह से हर्ट हुआ है, तो क्या तुम मुझे पनिशमेंट देना चाहती हो?"
समायरा ने जल्दी-जल्दी ना में गर्दन हिलाकर कहा,
"सॉरी मास्टर, रियली सॉरी। फिर से नहीं बोलूंगी। आप मुझे नीचे उतार दीजिए, प्लीज़। पक्का नहीं बोलूंगी कुछ भी!"
अर्थ ने अब तक समायरा को बेड पर लेटा दिया था।
समायरा तुरंत उठकर बैठते हुए बोली,
"आई डोंट नो मास्टर। वो सब मैंने कैसे बोल दिया! सॉरी!"
अर्थ ने उसे आँखें दिखाते हुए कहा, "नो मोर सॉरी।"
समायरा को सच में अर्थ से डर लग रहा था। अब पता नहीं वह उसके साथ क्या कर देगा।
लेकिन अर्थ का ऐसा कोई इरादा नहीं था।
अर्थ ने दवाई निकाली और फिर समायरा की कलाईयों पर लगा दी।
फिर से बेड पर पूरी तरह लेटाते हुए बोला,
"अब तुम्हारे मुँह से एक भी शब्द नहीं निकलना चाहिए। गॉट इट?"
फिर अर्थ ने साइड लैंप ऑफ किया और नाइट मोड ऑन करके समायरा के बगल में आकर लेट गया।
समायरा अपने मन ही मन बोल रही थी,
"क्या अजीब इंसान है! पल में गुस्सा, पल में केयर!"
वहीं अर्थ ने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं, लेकिन उसे पता था उसकी बीमारी की वजह से उसे इतनी जल्दी नींद नहीं आएगी।
क्या बढ़ेंगी अर्थ और समायरा की नज़दीकियाँ?
अर्थ ने दवाई निकाली और समायरा की कलाइयों पर लगा दी।
फिर से बेड पर पूरी तरह लेटाते हुए बोला,
"अब तुम्हारे मुंह से एक भी शब्द नहीं निकलना चाहिए, समझी?"
फिर अर्थ ने साइड लैंप ऑफ किया और नाइट मोड ऑन करके समायरा के बगल में आकर लेट गया।
समायरा अपने मन ही मन बोल रही थी,
"क्या अजीब इंसान है! पल में गुस्सा, पल में केयर!"
वहीँ अर्थ ने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं, लेकिन उसे पता था कि उसकी बीमारी की वजह से उसे इतनी जल्दी नींद नहीं आएगी।
अर्थ ने करवट बदली तो उसकी भूरी तीखी आँखें समायरा की मासूम आँखों से टकरा गईं। वहीं समायरा ने बच्चों की तरह जल्दी से अपनी आँखें बंद कर लीं और मन में हनुमान चालीसा का जाप करते हुए बोली, "हे भगवान! इस राक्षस से बचा लेना मुझे। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर… जय कपिस तीव लोक उजागर… इसके आगे क्या था… umm… याद नहीं आ रहा… भूत प्रेत निकट ना आवे…"
इतने में ही समायरा को अर्थ की आवाज सुनाई दी,
"मन ही मन बड़बड़ाना बंद करो। मुझे पता है तुम्हें नींद नहीं आ रही!"
समायरा ने धीरे से अपनी आँखें खोलकर कहा,
"वो… वो… आपके साथ सोने में डर लग रहा है!"
अर्थ ने आँखें छोटी करके कहा, "तुम्हें अकेले भी डर लगता है और किसी के साथ सोने में भी!"
तो समायरा ने कहा,
"किसी के साथ सोने में नहीं, सिर्फ आपके साथ सोने में!"
अर्थ ने गहरी साँस लेकर कहा,
"तुम नींद में अपनी मम्मा को याद कर रही थी। कहाँ हैं वो?"
तो समायरा ने कहा,
"अपने घर हैं। वो जब मैं पाँच साल की थी, तब ही मुझे और पापा को छोड़कर चली गई थीं!"
तो अर्थ ने आईब्रो सिकोड़ते हुए कहा,
"तो फिर तो तुम्हें उस पर गुस्सा होना चाहिए। तुम्हारे पापा को धोखा दिया, तुम्हें बचपन में अकेला छोड़ दिया!"
तो समायरा ने मासूमियत से कहा,
"जैसी भी है, मेरी मम्मा तो हैं ना! और जब मेरे साथ थीं, तब मुझसे बहुत प्यार करती थीं। पता नहीं फिर अचानक क्या हुआ कि उन्हें हमें छोड़कर जाना पड़ा!"
अर्थ ने कुछ सोचते हुए कहा,
"और तुम्हारे पापा? उन्हें गुस्सा नहीं आता क्या तुम्हारी मम्मा पर?"
समायरा ने कुछ सोचते हुए कहा,
"मुझे नहीं पता! जब हम लंदन में रहते थे, तब मैं ज्यादा पापा के पास नहीं रहती थी, अपने दोस्तों के साथ रहती थी! और यहाँ आने के बाद भी… दो साल से बड़े पापा के घर थी और पापा लंदन में ही थे। पापा तो शादी वाले दिन ही कायरा दी कि शादी अटेंड करने के लिए आए थे बस। तो मुझे नहीं पता पापा मम्मा को मिस करते हैं, उन पर गुस्सा करते हैं या कुछ और!"
अर्थ जैसे-जैसे समायरा की बात सुन रहा था, उसका कन्फ्यूजन बढ़ता जा रहा था। लगभग आधे घंटे से दोनों बात कर रहे थे और अब समायरा भी थोड़ा कम्फर्टेबल फील कर रही थी।
अर्थ ने पूछा,
"तुम उनके तलाक के बाद मिली कभी अपनी मम्मा से?"
लेकिन अर्थ को कोई जवाब नहीं मिला। सिर्फ समायरा की गहरी साँसें सुनाई दे रही थीं, जिसका साफ मतलब था वो सो चुकी है। अर्थ ने भी अपने सवालों और क्यूरियोसिटी पर फुल स्टॉप लगाया और सोने की कोशिश करने लगा।
सुबह के करीब पाँच बजे समायरा की आँख खुली। क्योंकि वो रोज़ घर के काम करने के लिए जल्दी उठती थी, तो आज भी नॉर्मली उसकी आँखें खुल गईं। समायरा ने अर्थ के अट्रैक्टिव फेस को देखा जो सोते समय बिल्कुल प्रिंस चार्मिंग लग रहा था।
समायरा ने उठने की कोशिश की, लेकिन अर्थ बच्चों की तरह उससे लिपट कर सो रहा था और समायरा में इतना स्टेमिना नहीं था कि वो अर्थ को खुद से अलग कर सके। उसने कोशिश करनी छोड़ दी और अर्थ के सीने से लगकर लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। और फिर उसकी भी आँख लग गई।
सुबह के करीब आठ बजे फिर से समायरा ने उठने की कोशिश की और अब उसे अर्थ पर गुस्सा आने लगा। तो उसने झल्लाकर कहा,
"क्या कर रहे हैं आप? मास्टर! छोड़िए मुझे! मास्टर नहीं, मॉन्स्टर कहीं के! मैंने कहा छोड़िए मुझे!!"
समायरा बहुत तेज़ आवाज़ में बोल रही थी। अर्थ ने इरिटेट होकर आँखें खोलीं और अलसाई आवाज़ में बोला,
"इडियट! क्यों चिल्ला रही हो सुबह-सुबह? सोने दो मुझे!"
समायरा की आँखें हैरानी और गुस्से से बड़ी हो गई थीं। उसने फिर से अर्थ के हाथों को अपनी कमर से हटाने की कोशिश करते हुए कहा,
"आपको अभी नींद आ रही है, फिर आप मुझे ही डाँट लगाएँगे!"
अर्थ को समायरा के बोलने से इरिटेशन हो रही थी क्योंकि पता नहीं कितने सालों के बाद अर्थ को सुकून की नींद आई थी। वरना अपनी बीमारी के चलते वो अच्छे से सो ही नहीं पाता था।
समायरा ने कहा,
"मैं ज़ोर से चिल्लाऊँगी अब अगर आपने मुझे नहीं छोड़ा!"
अर्थ ने एक हाथ से उसके गालों को कसकर पकड़ लिया और फिर उसके सॉफ्ट लिप्स अपने लिप्स से ब्लॉक कर दिए। समायरा की बॉडी में एक करंट सा दौड़ गया था। समायरा की मोटी-मोटी आँखें और ज़्यादा मोटी हो गईं और पलकें फड़फड़ाने लगीं। अर्थ उसके लिप्स को ऐसे चाट रहा था जैसे कोई कैंडी हो। अर्थ की आँखें बंद थीं और पाँच मिनट के बाद ही अर्थ सो चुका था।
समायरा ने थोड़ा फ़ोर्सफुली अर्थ का चेहरा खुद से दूर किया और दूसरी तरफ फ़ेस करके लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। उसने हिम्मत करके अर्थ की तरफ़ देखा जो सोते हुए बहुत इनोसेंट लग रहा था। उसके लिप्स हल्के से खुले हुए थे। समायरा के फ़ेस पर तो अभी भी घबराहट वाले भाव थे, लेकिन साथ में उसे अर्थ बहुत ही क्यूट और इनोसेंट लग रहा था। उसे अर्थ की रात वाली बात याद आ रही थी,
"मैंने तुम्हें हर्ट किया? तुम मुझे पनिशमेंट देना चाहती हो!"
समायरा के मुँह से अचानक ही निकल गया,
"इनोसेंस और क्रुएल्टी… दोनों ओवरलोड लेकर ये इंसान आखिर करना क्या चाहता है!"
सुबह लगभग दस बजे, अर्थ का फ़ोन बार-बार बज रहा था। इससे समायरा, जिसकी आँखें फिर से हल्की सी लग गई थीं, तुरंत ही साइड टेबल पर रखे फ़ोन को देखती है।
और फिर अर्थ को, जो अब उसकी कमर से लिपट कर सो रहा था और जिसका पैर समायरा के पेट को छू रहा था, जिससे समायरा को हल्की गुदगुदी हो रही थी।
समायरा को समझ नहीं आया, यह इंसान इतनी देर में छोटे बच्चे की तरह खिसकते हुए कमर तक कैसे पहुँच गया।
समायरा ने बहुत कोशिश की कि वह साइड टेबल से फ़ोन ले ले, पर वह ऐसा नहीं कर पा रही थी।
समायरा ने अपने मन में बड़-बड़ कर कहा,
"ये कुंभकरण के वंशज लगते हैं मुझे!"
अर्थ, समायरा के हिलने से उसके पेट पर अपना पैर रगड़ते हुए बोला,
"उम्… हम! व्हाई आर यू मूविंग?"
समायरा ने हिम्मत करके कहा,
"मास्टर, आपका फ़ोन बहुत देर से बज रहा है। शायद इम्पॉर्टेन्ट हो!"
यह सुनते ही अर्थ झट से नींद से पूरी तरह जाग गया और आँखें खोलकर इधर-उधर देखने लगा। उसे फील हुआ कि उसका पैर अभी किसी बहुत सॉफ्ट चीज़ पर है।
लेकिन जैसे ही उसने पूरी तरह से देखा, तो उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और वह बेड पर उठकर बैठ गया। और फिर साइड में टाइम देखा। घड़ी में समय दस बज रहा था।
यह देखकर तो अर्थ और ज़्यादा हैरान हो गया। फिर उसकी आँखें समायरा की आँखों से मिलीं। ऐसा होते ही समायरा को बहुत शर्म आ रही थी, इसलिए उसने तुरंत ही अपनी नज़रें झुका लीं।
अर्थ ने आगे बढ़कर समायरा की साइड से फ़ोन लिया और फ़ोन में मिस्ड कॉल चेक किए। तो सुबह सात बजे से लेकर दस बजे तक रमन तीस कॉल कर चुका था।
अर्थ फ़ोन करने ही वाला था कि उसका डोर नॉक हुआ। अर्थ ने एक नज़र दरवाज़े को देखा।
समायरा जल्दी से उठी और जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने रमन परेशानी से कमरे के सामने इधर-उधर टहल रहा था। समायरा को देखकर जैसे उसे शांति मिली हो।
उसने तुरंत पूछा,
"अर्थ कहाँ है? वह फ़ोन नहीं उठा रहा है?"
"वह ऐसा कभी नहीं करता, इसलिए चिंता हो रही थी!"
समायरा, जो पहले से ही थोड़ी परेशान थी, झल्लाते हुए बोली,
"मास्टर सो रहे थे इतनी देर तक!"
यह सुनकर रमन को एकदम से खांसी आ गई। "अर्थ और सो रहा था, वह भी अब तक?"
रमन ने अब समायरा को ऊपर से नीचे तक अच्छे से देखा। उसके बाल बिखरे थे और उसके चेहरे से साफ़-साफ़ पता चल रहा था कि वह अभी नींद से उठी है।
रमन ने कमरे के अंदर झाँक कर देखा तो समायरा सामने से हट गई। अर्थ अब तक वाशरूम में चला गया था। बिस्तर अभी भी अस्त-व्यस्त था।
वहीं अर्थ शावर के नीचे आँखें बंद करके खड़ा था। उसे धीरे-धीरे अपनी सुबह की हरकतें याद आ रही थीं, जिससे उसका दिल बुरी तरह से धड़क रहा था।
वह समायरा के लिए अपने दिल में फ़ीलिंग्स बिलकुल नहीं लाना चाहता था, लेकिन उसकी लाख कोशिशों के बावजूद वह अपने दिल को रोक नहीं पा रहा था।
अर्थ ने गुस्से में एक मुक्का बाथरूम की दीवार पर मारा और फिर जल्दी से नहाकर बाथरोब में बाथरूम से बाहर आ गया।
समायरा ने अब तक कमरे को पूरी तरह से सेट कर दिया था और वह अपने कपड़े लेकर दूसरे कमरे का वाशरूम यूज़ करने चली गई थी।
अर्थ ने समायरा को जब कमरे में नहीं देखा, तब जाकर उसके दिल को थोड़ी सी राहत मिली; अन्यथा वह सोच रहा था कि अब समायरा का सामना कैसे करेगा।
अर्थ रॉयल ब्लू कलर का बिज़नेस सूट पहनता है और फिर मिरर के सामने जाकर जेल से बाल सेट करने लगता है। और अनजाने ही उसकी नज़रें अपने होंठों पर चली जाती हैं और वह अपनी एक उंगली से उन्हें छूकर देखता है।
उसे समझ नहीं आ रहा था यह कैसी फ़ीलिंग है, पर उसे बहुत अच्छी लग रही थी।
फिर अर्थ ने अपने ख्यालों को झटका और रेडी होकर नीचे चला गया।
समायरा ने भी आज ब्लू कलर की ऑर्गेन्ज़ा साड़ी पहनी थी। यह सिर्फ़ एक कोइन्साइडेंस था। अर्थ ने इस बात पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया, लेकिन समायरा यह देखकर बहुत हैरान हो जाती है।
समायरा ने शावर लेने के तुरंत बाद ही ब्रेकफ़ास्ट रेडी किया था, जिस वजह से उसने मुँह पर कोई मेकअप नहीं किया था और बाल भी हल्के गीले थे। उसका नेचुरल गुलाबी रंग बहुत निखरा हुआ लग रहा था।
अर्थ ने बहुत कोशिश की, खुद को समायरा की तरफ़ देखने से रोकने की, लेकिन वह ज़्यादा देर खुद को रोक नहीं पाया। और जैसे ही उसने अपनी नज़रें समायरा की तरफ़ कीं, तो फिर नज़रों ने उसके चेहरे से हटने का नाम नहीं लिया।
रमन, जो ब्रेकफ़ास्ट टेबल से अर्थ को ध्यान से देख रहा था, यह सब देखकर उसके चेहरे पर स्माइल आ जाती है। वह खुद से बोलता है,
"नफ़रत की दीवार पर प्यार का रंग चढ़ रहा है धीरे-धीरे!"
समायरा अर्थ को ऐसे खोए हुए देखती है तो पूछती है,
"आपको कुछ चाहिए, मास्टर?"
समायरा के मुँह से अपने लिए "मास्टर" सुनकर अर्थ को पता नहीं क्यों, पर अच्छा नहीं लगा। लेकिन उसने अपने ख्यालों को झटककर कहा,
"जाओ, तुम नाश्ता कर लो। फिर हम ओल्ड हाउस चलेंगे!"
समायरा, जो रात की वजह से और फ़ोन ना मिलने की वजह से अर्थ पर गुस्सा थी, वह कहीं जाने के नाम से ही खुश हो जाती है और हाँ में गर्दन हिलाते हुए किचन में चली जाती है।
रमन ने अर्थ को छेड़ते हुए कहा,
"सॉरी यार, सुबह तुझे डिस्टर्ब कर दिया!"
अर्थ ने पहले तो कन्फ़्यूज़न से रमन को देखा, लेकिन अगले ही पल रमन की मुस्कान देखकर उसे समझ आ गया। वह उसे चिढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
अर्थ ने रमन को एक नज़र घूरा और फिर चुपचाप अपना ब्रेकफ़ास्ट करने लगा।
आधे घंटे बाद, अर्थ, रमन और समायरा एक ही कार में थे और रमन कार ड्राइव कर रहा था। समायरा खिड़की से बाहर देख रही थी। उसके बाल हवा में लहरा रहे थे और कभी उसके चेहरे पर आकर उसे परेशान कर रहे थे।
यह देखकर अर्थ को अपने शरीर में हलचल महसूस हो रही थी। अर्थ खुद की फ़ीलिंग्स के साथ ही लड़ रहा था।
थोड़ी देर बाद उनकी कार एक महल जैसे घर के सामने आकर रुकती है। घर के बाहर बॉडीगार्ड्स पहरा दे रहे थे।
अर्थ स्टाइल से कार से उतरकर, अपने कोट के बटन बंद करते हुए, घर के अंदर जाने लगता है। वह जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, आस-पास खड़े सारे बॉडीगार्ड उसके आगे सर झुका रहे थे।
समायरा भी लगभग भागते हुए अर्थ के पीछे-पीछे आ रही थी क्योंकि अर्थ बहुत लंबे कदमों से अंदर जा रहा था। रमन भी कार पार्क करके अंदर आता है।
अर्थ और समायरा अंदर जाते हैं। पूरी सहरावत फ़ैमिली इस वक़्त हॉल में बैठी थी। शायद अर्थ के आने का ही इंतज़ार कर रहे थे सब।
अर्थ की माँ, विद्या सहरावत को कुछ ख़ास खुशी नहीं होती समायरा को देखकर, क्योंकि उन्हें कायरा बहुत पसंद थी।
अभिराम को तो समायरा और कायरा दोनों में से किसी से भी अर्थ की शादी हो, कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था, क्योंकि उन्हें सिर्फ़ अर्थ की शादी होने से मतलब था।
बाकी फ़ैमिली मेंबर्स कायरा की जगह किसी और को देखकर थोड़े हैरान थे।
आइए, बाकी फ़ैमिली मेंबर्स के बारे में जानते हैं।
अर्थ की बुआ, रश्मि सहरावत और उनकी बेटी रिया सहरावत, ये दोनों भी अर्थ के घर में रहती हैं।
अर्थ की बड़ी माँ, सरस्वती सहरावत और उनके पति जगदीश सहरावत, जिनके दो बेटे हैं: बड़ा बेटा कपिल सहरावत और छोटा बेटा सूरज सहरावत। दोनों की शादी हो चुकी है। बड़ी बहू का नाम है कल्पना सहरावत और छोटी बहू का नाम है जिज्ञासा सहरावत।
कपिल और कल्पना दोनों कॉलेज में मिले थे और दोनों को लव एट फ़र्स्ट साइट हो गया था। अभी दोनों USA में रहते हैं।
अर्थ की बहन, नेहा सहरावत, जो नेचर से बहुत अच्छी है।
नेहा, समायरा को देखकर मुस्कुराते हुए उसके पास जाती है और उसके गले लगते हुए बोलती है,
"भाभी… मैं आपकी ननद हूँ। आपकी शादी अटेंड नहीं कर पाई, उसके लिए सॉरी… क्योंकि आपकी शादी नैनीताल में हुई थी और मुझे किसी ने बताया भी नहीं!"
समायरा ने बस मुस्कुराते हुए नेहा को देखा।
अर्थ पैर पर पैर चढ़ाकर सोफ़े पर बैठा था और अपने फ़ोन में बिज़ी हो गया था। जिज्ञासा, रश्मि और रिया समायरा को अजीब तरीके से ऊपर से नीचे तक देख रही थीं।
सरस्वती ने मुस्कुराते हुए कहा,
"बेटा, जाओ भाभी को उसका कमरा दिखा दो। थक गई होगी। आज का लंच उसे ही बनाना है, इसलिए अभी थोड़ा आराम कर लेना चाहिए उसे।"
समायरा तो अब तक किसी को जानती नहीं थी, लेकिन उसने पूरी हिम्मत जुटाई और विद्या, सरस्वती, रश्मि, जिज्ञासा सबके पैर छूने के लिए झुक गई। सबने उसे आशीर्वाद दिया।
लेकिन जिज्ञासा ने अपने पैर पीछे करते हुए कहा,
"अरे-अरे! मैं तो उम्र में तुमसे छोटी हूँ!"
यह सुनकर रमन और नेहा की हँसी छूट गई, लेकिन दोनों ने जैसे-तैसे अपनी हँसी कंट्रोल कर ली।
नेहा ने समायरा को अर्थ के कमरे तक छोड़ा।
रश्मि ने अपने मन में कहा,
"देखते हैं कैसी होती है प्यारी बहू की पहली रसोई!"
"अकसर न्यूज़ सुनते हैं नई-नवेली दुल्हन के पहली रसोई वाले दिन में हाथ-पैर जल जाते हैं।"
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।
समायरा अर्थ के कमरे में पहुँचकर अच्छे से कमरे में घूम-घूम कर एक-एक चीज़ देख रही थी।
थोड़ी देर बाद अर्थ कमरे में आया और इधर-उधर समायरा को देखता रहा।
तभी समायरा की पायलों की आवाज़ खिड़की से आई।
अर्थ बालकनी में गया तो देखा कि समायरा आँखें बंद किए रेलिंग को पकड़े खड़ी थी।
अर्थ ने समायरा के कंधे पर हाथ रखा। समायरा झट से उसकी ओर मुड़कर बोली,
"कुछ चाहिए आपको मास्टर!"
अर्थ ने बिना जवाब दिए जेब से एक फ़ोन निकालकर उसे देते हुए कहा,
"इसमें मेरे और रमन के नंबर पहले से सेव हैं!"
समायरा फ़ोन देखकर बहुत खुश हो गई।
अर्थ ने उसकी मुस्कराहट देखी और फिर खुद को समझाने लगा,
"इसे खुश नहीं करना, दर्द देना है!"
अर्थ ने समायरा से कहा,
"लंच बना देना सबके लिए। मुझे कोई गलती नहीं चाहिए इस काम में। सब समय पर हो जाना चाहिए। और मैं अब डिनर के समय ही आऊँगा।"
समायरा कुछ बोलती, उससे पहले ही अर्थ वहाँ से जा चुका था।
समायरा ने अजीब सा मुँह बनाते हुए खुद से कहा,
"क्या इंसान है यार! मतलब हद होती है रूड़नेस की भी!! खैर मुझे क्या, मुझे मेरा फ़ोन मिल गया?!"
फिर अचानक समायरा की आँखों में नमी आ गई।
"कायरा दी कहाँ है आप! अगर आप होतीं तो मुझे इनकी रूड़नेस कभी नहीं झेलनी पड़ती। और शायद मास्टर को भी इतना गुस्सा नहीं आता।"
समायरा ने अपनी आँखों की नमी पोछकर खुद से कहा,
"लेकिन मैं आपको बहुत जल्दी ढूँढ लूँगी दी!"
इतना बोलकर वह फ़ोन के फ़ीचर्स चेक करने लगी। फ़ोन एकदम लेटेस्ट ब्रैंड का था और उसमें सबसे एडवांस फ़ीचर्स उपलब्ध थे।
दूसरी ओर रश्मि का कमरा।
इस वक़्त उस कमरे में रश्मि और जिज्ञासा मौजूद थीं।
जिज्ञासा ने थोड़ा एक्साइटेड होकर पूछा,
"क्या सोचा है बुआ जी आपने नई दुल्हन को पहली रसोई का क्या तोहफ़ा देंगी आप?"
रश्मि ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा,
"तोहफ़ा तो ऐसा दूँगी बहुरानी को, जिंदगी भर नहीं भूल पाएगी कि उसकी बुआ सास ने उसे कितना कीमती तोहफ़ा दिया था पहली रसोई वाले दिन!
लेकिन उसके लिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए!"
तो जिज्ञासा ने कहा,
"बोलिए ना बुआ जी, आपका हुक्म सिर आँखों पर।"
उसके बाद रश्मि ने अपना प्लान जिज्ञासा को बताना शुरू किया।
जैसे-जैसे जिज्ञासा रश्मि की घटिया साज़िश सुन रही थी, उसके चेहरे की इविल स्माइल बढ़ती जा रही थी।
थोड़ी देर बाद,
समायरा रेडी होकर नीचे आई।
समायरा ने वाइन कलर की जॉर्जेट की साड़ी पहनी थी जो थोड़ी हैवी थी।
सरस्वती हॉल में ही बैठी थीं। जब उन्होंने समायरा को देखा तो बस देखती ही रह गईं।
हाथों में चूड़ियाँ, गले में अर्थ के नाम का मंगलसूत्र और कानों में बड़े-बड़े झुमके!
इतने में ही कयामत लग रही थी वह!
समायरा को रेडी होने का सामान अर्थ के कमरे में ही मिल गया था।
सरस्वती जी ने सारी तैयारियाँ पहले ही कर ली थीं। वे बहुत ज़्यादा खुश थीं अर्थ की शादी को लेकर।
समायरा एक सर्वेंट से किचन का रास्ता पूछती है और किचन में चली जाती है।
समायरा एक नज़र पूरे किचन को देखती है, तो एक फीमेल सर्वेंट आकर बोलती है,
"मैडम, मैं आपकी सामान ढूँढने में हेल्प कर देती हूँ!"
समायरा उसे कुछ जवाब देती, उससे पहले ही जिज्ञासा किचन में आते हुए बोलती है,
"तुम जाओ, मैं हूँ ना अपनी देवरानी की हेल्प के लिए!"
यह सुनकर वह सर्वेंट अपना सिर झुकाते हुए वहाँ से चली जाती है।
वहीं समायरा जिज्ञासा को देखकर थोड़ा कन्फ्यूज़ हो जाती है।
जिज्ञासा स्माइल करते हुए बोलती है,
"क्या हुआ? तुम्हें मेरी कंपनी अच्छी नहीं लगेगी क्या!"
तो समायरा ने जल्दी से अपने एक्सप्रेशन नॉर्मल किए और एक स्माइल के साथ बोली, "नहीं भाभी, आप कैसी बातें कर रही हैं..."
फिर समायरा ने एक-एक कर जिज्ञासा से सामान के बारे में पूछा।
जिज्ञासा को ज़्यादा कुछ पता नहीं था किचन के बारे में, क्योंकि वह तो खुद हुक्म चलाती थी यहाँ। उसे खाना बनाने की क्या ज़रूरत!
और यह समायरा भी समझ चुकी थी कि जिज्ञासा को खाना बनाने से कोई लेना-देना नहीं है।
वह मैदा को बेसन, बेसन को सूजी, सूजी को फूटे हुए चावल... और पता नहीं क्या-क्या बोलती जा रही थी।
थक-हारकर समायरा ने जिज्ञासा को पनीर देते हुए कहा,
"भाभी, आप पनीर काट दीजिए और मटर छिल दीजिए!"
जिज्ञासा ने चैन की साँस ली कि अब उसे कोई सामान का नाम नहीं बताना पड़ेगा और वह सब्ज़ी काटने लगी।
समायरा ने आटा लगाया हलवे के लिए और खीर के लिए ड्राई फ्रूट्स काटे। और फिर जिज्ञासा को देखा, जिसने सिर्फ़ अभी तक मटर छिले थे।
जिज्ञासा ने सब्ज़ी काटना छोड़ा और समायरा के हाथों को पकड़ते हुए बोली,
"तुमने मेहँदी नहीं लगाई?"
"तुम्हें पता नहीं था क्या? तुम पहली बार अपने ससुराल आ रही थीं आज।"
समायरा ने कहा,
"वो टाइम नहीं मिला भाभी!"
लेकिन जिज्ञासा का मकसद कुछ और ही था, जो काम वह बखूबी कर चुकी थी।
इतने में ही रश्मि किचन के दरवाजे पर आते हुए बोली,
"अरे जिज्ञासा, तुम यहाँ क्या कर रही हो! पहली रसोई है छोटी बहू की, उसे ही करने दो सब। तुम आओ मेरे साथ, कुछ काम है।"
जिज्ञासा तिरछा मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई।
बाहर निकलते ही जिज्ञासा धीरे से बोली,
"बुआजी, वो पाउडर काम करेगा ना!"
तो रश्मि तिरछा मुस्कुराते हुए बोली,
"वन हंड्रेड परसेंट... डोंट वरी... बहू रानी!"
वहीं समायरा को कुछ समझ नहीं आया। उसने एक नज़र किचन के दरवाजे की तरफ़ देखा और फिर अपने ख़्यालों को झटककर खाना बनाना शुरू कर दिया।
उसने जैसे ही गैस ऑन करके लाइटर जलाया, अचानक ही गैस में जल रही आग उसकी चूड़ियों में लग गई और उसकी कलाइयाँ जलने लगीं।
समायरा की हल्की सी चीख निकल गई और वह जल्दी से वाशबेसिन में जाकर अपने हाथों की आग बुझाने लगी।
वहीं जिज्ञासा और रश्मि ने यह नज़ारा अपनी आँखों से देखा तो उनके चेहरे पर विनिंग स्माइल आ गई।
वहीं समायरा की आँखों में दर्द के कारण पानी आ गया था।
वह दवाई लगाने के लिए किचन से निकल रही थी कि उसे अर्थ के शब्द याद आए,
"लंच बना देना सबके लिए। मुझे कोई गलती नहीं चाहिए इस काम में। सब समय पर हो जाना चाहिए। और मैं अब डिनर के समय ही आऊँगा।"
यह याद आते ही समायरा के जाते कदम रुक गए और वह फिर से किचन में आकर आँखों में आँसू लिए खाना बनाने लगी।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।
समायरा ने जैसे ही गैस ऑन करके लाइटर जलाया, अचानक ही गैस में जल रही आग उसकी चूड़ियों में लग गई और उसकी कलाइयाँ जलने लगीं।
समायरा की हल्की सी चीख निकल गई और वह जल्दी से वाशबेसिन में जाकर अपने हाथों की आग बुझाने लगी।
वहीं, जिज्ञासा और रश्मि ने यह नजारा अपनी आँखों से देखा तो उनके चेहरे पर विनिंग स्माइल आ गई।
वहीं, समायरा की आँखों में दर्द के कारण पानी आ गया था।
वह दवाई लगाने के लिए किचन से निकल रही थी कि उसे अर्थ के शब्द याद आए।
"लंच बना देना सबके लिए। मुझे कोई गलती नहीं चाहिए इस चीज़ में। सब टाइम पर हो जाना चाहिए। और मैं अब डिनर के टाइम ही आऊँगा।"
ये याद आते ही समायरा के जाते कदम रुक गए और वह फिर से किचन में आकर आँखों में आँसू लिए खाना बनाने लगी।
बीच-बीच में समायरा अपने हाथों को फूँक भी मार रही थी।
रश्मि और जिज्ञासा वहाँ से सीधा अपने कमरे में चली गईं।
नेहा और रीया का कमरा पास-पास ही था।
रश्मि ने रीया को यही काम दिया था कि वह नेहा को संभाले ताकि वह समायरा तक न पहुँचे।
लेकिन नेहा को संभालना रीया को दुनियाँ का सबसे बड़ा टास्क लगता था क्योंकि नेहा की बातें समझने के लिए ही उसे कुछ दिमाग का खर्च ज़रूर करना पड़ता था।
कल नेहा ने बहुत प्रैक्टिस की थी, तब जाकर तो आज सुबह वह समायरा से नॉर्मल वे में बात कर पाई, लेकिन अब उसने डिसाइड किया था अब वह जैसा बोलती है वैसा ही बोलेगी।
रीया नेहा के कमरे में बैठी थी।
"नेहा यार, तुझे कैसी लगी भाभी?"
नेहा: "इन प्रेजेंट भाभी बहुत अच्छी लग रही हैं। भविष्य काल का कुछ कह नहीं सकते! और पास्ट का पता नहीं लगा सकते, तो कुल मिलाकर भाभी बहुत ही प्यारी हैं!"
रीया ने आँखें गोल-गोल घुमाकर अपने मन में कहा, "ये लड़की मुझे पूरे काल समझा के रहेगी!"
नेहा ने एक्साइटेड होकर कहा, "प्रेजेंट टाइम में भाभी पहली रसोई बना रही हैं ना, मैं जा रही हूँ उनकी हेल्प करने।"
तो रीया ने कहा, "नहीं नेहा, फिर तो रस्म खराब हो जाएगी। हम आज उनके हाथों का ही खाना खाएँगे।"
तो नेहा ने प्यारी सी स्माइल लिए कहा, "इन फ्यूचर जब भी भाभी खाना बनाएँगी, मैं उनकी हेल्प ज़रूर करूँगी।"
तो रीया ने झूठी स्माइल लिए कहा, "हाँ, ज़रूर, क्यों नहीं।"
वहीं किचन में समायरा का रो-रो के बुरा हाल हो चुका था क्योंकि उसके हाथों में अब रेड रैशेज भी दिखने लगे थे।
और फिर भी वह गैस के ताप के आस-पास बार-बार रोटी सेंकने के लिए हाथ लेकर जा रही थी।
समायरा ने खुद से कहा, "हे कृष्ण, आप मेरी क्यों इतनी परीक्षा ले रहे हैं!"
"आपको मेरी तकलीफ बिलकुल नहीं दिख रही है। पर चलो, कोई बात नहीं है।"
फिर अचानक ही समायरा को कुछ याद आता है और उसके दर्द भरे चेहरे पर भी प्यारी सी स्माइल आ जाती है।
और वह अपने दर्द को भुलाकर जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगती है।
थोड़ी देर बाद सब लंच करने हॉल में आ जाते हैं।
नेहा खुशबू लेते हुए बोलती है, "वाह! भाभी, वर्तमान काल में जो खाना आपने बनाया है, वह लाजवाब लग रहा है।"
ये सुनकर सबने ना में गर्दन हिलाकर धीरे से कहा, "लो! शुरू हो गए इसके काल!"
लेकिन समायरा के चेहरे पर एक स्माइल आ गई।
डाइनिंग टेबल पर इस वक्त रश्मि, रीया, जिज्ञासा, सरस्वती जी, जगदीश जी (अर्थ के बड़े पापा), विधा जी, अभिराम जी और सूरज (जिज्ञासा का पति) मौजूद थे।
समायरा जल्दी-जल्दी सबको लंच सर्व करती है तो जगदीश जी इधर-उधर नज़रें दौड़ाकर देखते हुए कहते हैं, "क्या आज भी जनाब लंच हमारे साथ नहीं करेंगे!"
तो सरस्वती जी ने कहा, "उसे ज़रूरी काम था।"
जगदीश जी ने ना में सर हिलाते हुए कहा, "आपके लाड़-प्यार ने ही उसे इतना लापरवाह बना दिया है। उसे फैमिली के लिए तो जैसे टाइम ही नहीं है जनाब के पास।"
विधा जी और अभिराम जी बिना किसी भाव के खाना खा रहे थे, जैसे उन्हें अर्थ के होने-ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
क्योंकि दोनों ही अपने भैया और भाभी की बहुत इज़्ज़त करते हैं, उनके सामने कुछ नहीं बोलते।
सरस्वती जी स्माइल करते हुए बोलती हैं, "बेटा, तुम भी खा लो हमारे साथ खाना!"
तो समायरा बोलती है, "नहीं… बड़ी माँ, आप सब खा लो, मैं बाद में खाऊँगी।"
तो दुबारा किसी ने उसे फोर्स नहीं किया।
सब ने लंच किया और फिर सरस्वती जी ने एक सर्वेंट के हाथों से एक बॉक्स लेते हुए समायरा के हाथों में रखते हुए कहा, "ये हमारे घर का पुश्तैनी हार है बेटा!"
जो हमने अपने अर्थ की अर्धांगिनी के लिए संभाल के रखा था।
समायरा ने वह बॉक्स लिया और फिर उनके पैर छू लिए।
जगदीश जी ने भी एक लिफाफे में बंद नोटों की गड्डी समायरा को देते हुए कहा, "बेटा, अब तुम्हें इस घर को संभालना है क्योंकि इस घर का सबसे मुश्किल काम है अर्थ को संभालना, उसके गुस्से को कम करना।"
समायरा ने झुककर उनके भी पैर छू लिए।
"सदा खुश रहो बेटा।"
ये सब देखकर जिज्ञासा के कलेजे पर साँप लोट रहे थे। आखिर वह भी तो इसी घर की बहू थी। उसे तो पुश्तैनी हार नहीं मिला!
जबकि सरस्वती जी ने यह हार अपनी दोनों बहुओं को इसलिए नहीं दिया क्योंकि दोनों ही काफी मॉडर्न ख्यालात की थीं।
और दोनों ने ही पहली रसोई के रस्म के वक्त भी कुछ नहीं बनाया था।
वहीं समायरा ने इंडियन कल्चर के हिसाब से साज-सिंगार किया था और लंच में भी इंडियन फूड बनाया था, जिससे साफ़ पता चल रहा था वह मॉडर्न जमाने से ज़रूर है, पर अपने कल्चर की रिस्पेक्ट बखूबी करती है।
विधा जी का कोई मन नहीं था समायरा को कुछ खास देने का, लेकिन वह होनी को नहीं टाल सकती थी। आखिर अब समायरा उनके घर की लक्ष्मी जो बन गई थी।
उन्होंने एक बॉक्स समायरा को देते हुए कहा, "इसमें हमारे घर के पुश्तैनी कंगन हैं। ये मेरी सासू माँ ने मुझे दिए थे क्योंकि मैं उनकी लाडली छोटी बहू हूँ!"
"अब मैं ये तुम्हें दे रही हूँ… क्योंकि तुम मेरे अर्थ की लाइफ पार्टनर हो और मैं चाहती हूँ तुम उसकी बेरंग ज़िंदगी में खुशियों के रंग भर दो!"
समायरा ने उनके भी पैर छू लिए।
"सदा सुहागन रहो!"
नेहा ने आँख मटकाते हुए एक्साइटेड होकर कहा, "क्या मुझे भी भाभी को गिफ्ट देना है?"
"भाभी, हम भविष्य काल में शॉपिंग करने चलेंगे, तब ही मैं आपको अच्छा सा गिफ्ट दूँगी।"
अभिराम जी ने भी एक नोटों की गड्डी मुस्कुराते हुए समायरा के हाथ में थमा दी और समायरा ने उनका आशीर्वाद ले लिया।
रश्मि ने भले मन से एक नेकलेस का सेट समायरा के हाथ में दे दिया।
जिज्ञासा ने भी एक नेकलेस का बॉक्स समायरा को दे दिया।
समायरा सबका प्यार देखकर बहुत खुश थी।
लेकिन दिल में एक दर्द भी था कि यह सब उसका नहीं, बल्कि कायरा का होना चाहिए था!
थोड़ी देर बाद समायरा लंच करके अपने रूम में बैठी थी।
कल का दिन उसके लिए कुछ खास था।
कल वह किसी से मिलने वाली थी।
उसके हाथ का दर्द भी उसकी इस खुशी की वजह से कम हो गया था।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।
थोड़ी देर बाद, समायरा लंच करके अपने कमरे में बैठी थी।
"कल का दिन उसके लिए कुछ खास था।"
"कल वो किसी से मिलने वाली थी।"
उसके हाथ का दर्द भी उसकी इस खुशी की वजह से कम हो गया था।
समायरा पूरे कमरे में फर्स्टेड बॉक्स ढूँढती रही, लेकिन उसे नहीं मिला। फिर समायरा निराश होकर सोफे पर बैठ गई और अपना फ़ोन देखने लगी।
थोड़ी देर बाद वो फ़ोन देखकर भी ऊब गई, तो वहीं सोफे पर सो गई।
शाम का वक्त था!
शाम के छह बजे समायरा सबके लिए डिनर बना रही थी। तभी सरस्वती जी किचन में आकर प्यार से समायरा के सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं,
"बेटा, लंच के लिए इसलिए बोला था क्योंकि आपको पहली रसोई की रस्म करनी थी, लेकिन अब आपको ये सब बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है। घर में बहुत अच्छे कुक हैं!"
तो समायरा ने कहा,
"नहीं बड़ी माँ, एक्चुअली मुझे कुकिंग करना अच्छा लगता है। आप चिंता मत कीजिए, मुझे खाना बनाकर बुरा नहीं लग रहा, बल्कि मुझे सुकून मिलेगा जब आप सब लोग मेरे हाथ का खाना खाओगे!"
तभी नेहा किचन में आते हुए बोली,
"जी बड़ी मम्मी, भाभी ने जो अभी-अभी कहा, वो सौ प्रतिशत सही कहा। भूतकाल में मुझे भाभी के हाथ का फ़ूड बहुत ज़्यादा टेस्टी लगा था!"
सरस्वती जी ने अपने सर को ना में हिलाते हुए कहा,
"हा हा, हम समझ गए, भूतकाल, भविष्यकाल!!"
नेहा के चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई, साथ ही समायरा के चेहरे पर भी!
समायरा कमरे में आकर कुछ गिफ्ट्स पैक करती है और फिर सोफे पर बैठकर अर्थ का इंतज़ार करने लगी। उसके चेहरे पर कल के एक्साइटमेंट की खुशी झलक रही थी।
शाम को लगभग नौ बजे के आसपास, अर्थ की कार विला के सामने आकर रुकी।
अर्थ ने एक काला लॉन्ग कोट पहना था और आँखों पर शेड्स चढ़ा रखे थे। बेहद कातिलाना लुक लग रहा था उसका।
वह तेज कदमों से अपने कमरे में एंटर हुआ। और अपनी पैनी निगाहों से पूरे कमरे को एक्सप्लोर करने लगा। तभी उसकी नज़र सोफे पर सिमट कर लेटी समायरा पर गई।
अर्थ धीमे कदमों से उसके करीब गया और गौर से उसके चेहरे की एक-एक बनावट देख रहा था। तभी अचानक उसकी नज़र समायरा के जले हुए हाथ पर गई और उसकी मुट्ठी गुस्से में कस गई।
वह तेज कदमों से कमरे से बाहर आया और अपने स्टडी रूम में चला गया।
वहाँ जाकर उसने एक सिगरेट निकाली और उसकी लंबी-लंबी कस लेने लगा, और राउंड चेयर पर लीन होते हुए बैठ गया।
एक्चुअल में वो खुद से जंग कर रहा था। वो इसीलिए तो समायरा को यहाँ लाया था, ताकि उसे तकलीफ दे सके। अब उसकी तकलीफ उससे सहन क्यों नहीं हो रही है?
लगभग आधे घंटे बाद अर्थ वापस कमरे में आया और समायरा को गोद में उठाकर बेड पर आराम से सुला दिया। और फिर ऑइंटमेंट लेकर, धीरे-धीरे उसके जले हुए हाथ पर लगाया।
उसके दिमाग में इस वक्त एक ही सवाल घूम रहा था: आखिर समायरा ने अब तक ऑइंटमेंट क्यों नहीं लगाई?
उसे ख्याल आया, कहीं समायरा उसकी सिम्पैथी तो नहीं गेन करना चाहती?
ये सोचते ही अर्थ को फिर से समायरा पर गुस्सा आने लगा। और वो गुस्से से बोला,
"तुम्हारे ये पैतरे मुझ पर काम नहीं करने वाले, मिस समायरा!"
"तुम जितनी कोशिश कर लो, मैं तुम्हें दर्द देना तभी छोड़ूँगा जब मेरा दिल तुम्हें दर्द देकर भर जायेगा। मेरा बदला पूरा हो जायेगा!"
"और ये आग इतनी जल्दी तो ठंडी नहीं होने वाली। Just wait and watch!"
अगली सुबह, समायरा कसमसाते हुए करवट लेती है, तो अचानक ही उसका सर किसी कठोर चीज़ से टकरा जाता है। वो आँखें उठाकर देखती है, तो अर्थ का चौड़ा सीना उसके सामने आता है।
अर्थ ने वी-शेप गले की टी-शर्ट पहनी थी, जिससे ऊपर का हल्का सीना साफ़ नज़र आ रहा था।
समायरा ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,
"ये कब और कैसे यहाँ आए? मैं बेड पर?"
वो खुद से बातें कर ही रही थी कि अचानक उसकी नज़र घड़ी पर जाती है, जिसमें सुबह के साढ़े सात बज रहे थे।
उसने उठने की कोशिश की, तो उसे महसूस हुआ कि अर्थ का एक पैर उसके दोनों पैरों पर है। उसने पूरा जोर लगाकर अर्थ के पैर को हटाते हुए कहा,
"पता नहीं क्या खाते हैं ये साँड जैसी बॉडी बना रखी है... और कुंभकरण जैसी नींद!"
वहीं दूसरी तरफ़ अर्थ, जिसे नींद ना आने की बीमारी थी, वो समायरा की कंपनी में इतनी सुकून की नींद सोने लगा था कि उसे आस-पास का कोई सुध-बुध ही नहीं था। वो सच में कुंभकर्ण बनता जा रहा था।
समायरा फ़टाफ़ट नहाकर आती है। आज उसने रेड कलर का सिंपल प्लेन सलवार सूट पहना था, विथ व्हाइट फ़्लोरल दुपट्टा। बालों की बीच की माँग निकालकर खुले छोड़ रखे थे।
समायरा जल्दी से रेड बिंदी लगाती है और सिंदूर लगाती है। फिर सैंडल पहनते हुए लगभग भागते हुए कमरे से निकलती है, तो वो सामने से आ रही नेहा से टकरा जाती है।
नेहा जैसे ही समायरा को देखती है, तो एक्साइटेड होकर बोलती है,
"वाह भाभी जान! आप इस सूट में बहुत सुंदर लग रही हो!"
ये सुनकर समायरा के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और वो नेहा के दोनों हाथ अपने हाथों से पकड़ते हुए बोलती है, "थैंक यू सो मच..."
वहीं अर्थ की नींद की दवा तो समायरा थी। उसके जाने के थोड़ी देर बाद ही अर्थ की नींद भी खुल जाती है। वो अपने साइड में खाली जगह देखकर समझ जाता है कि समायरा उठ चुकी है। वो घड़ी में टाइम देखता है और चौंकते हुए उठकर बेड पर बैठ जाता है और खुद से बोलता है,
"ये मुझे क्या हो गया है? मैं इतनी देर तक कैसे सो सकता हूँ? जब से ये पागल लड़की मेरे पास सोने लगी है, पता नहीं मुझे क्यों इतनी नींद आने लगी है..."
समायरा ने जल्दी से सबके लिए नाश्ता तैयार किया। पोहे की खुशबू पूरे हॉल में फैल गई थी। सब घर वाले एक-एक करके डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। वहीं, समायरा की नज़र अभि भी सीढ़ियों पर थी, कि तभी ब्लैक बिज़नेस सूट पहने अर्थ सीढ़ियों से नीचे आया और वह भी डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।
सरस्वती जी ने समायरा को देखकर कहा,
"बेटा, तुम भी हमारे साथ नाश्ता करो।"
समायरा ने हिचकिचाते हुए कहा,
"बड़ी मां, आज मुझे मंदिर जाना है। मैं उसके बाद ही खाना खाऊँगी।"
सरस्वती जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"बेटा, इसमें हिचकिचाने वाली कौन सी बात है? तुम मंदिर जा सकती हो, बेझिझक, जब तुम्हारा मन करे।"
उनकी बात सुनकर जिज्ञासा और रिया ने अजीब सा चेहरा बनाया। वहीं, समायरा के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी और वह डाइनिंग एरिया से निकलकर अपने कमरे में आ गई।
उसने जो रात में गिफ्ट्स पैक किए थे, उन्हें देखने लगी।
फिर उन्हें एक बैग में डाल लिया।
वहीं, समायरा के बाहर जाने की बात सुनकर अर्थ की भौंहें तन गईं।
"आखिर कहाँ जाना है इसे अब?"
कुछ देर बाद अर्थ अपने ऑफिस जाने के लिए निकल गया, लेकिन उसके दिमाग में सिर्फ समायरा का बाहर जाना घूम रहा था।
इसलिए कुछ दूर जाने पर ही अर्थ ने ड्राइवर से कहा,
"तुम जाओ, मैं खुद ड्राइव करके जाऊँगा।"
ड्राइवर ने एक पल के लिए आँखें बड़ी करके अर्थ को देखा, लेकिन फिर जल्दी से कार से उतर गया।
अर्थ ने अपना सूट सही करते हुए कार की बैक सीट से उतरकर ड्राइवर सीट पर बैठ गया। और बेचारा ड्राइवर, ना में गर्दन हिलाते हुए, ऑटो पकड़ लिया।
अर्थ ने कुछ दूर ड्राइव करने के बाद समायरा का इंतज़ार करने लगा, और कुछ ही देर में उसका इंतज़ार खत्म भी हो गया। समायरा अपना चेहरा दुपट्टे से छुपाते हुए एक ऑटो में बैठी थी, लेकिन अर्थ तो उसे सिर्फ़ आँखों से ही पहचान सकता था।
अर्थ ने गुस्से में स्टीयरिंग पर पकड़ कस दी और समायरा का पीछा करने लगा।
समायरा आगे चलकर एक दुकान के पास उतरी, उससे कुछ खरीदा और फिर से ऑटो में बैठ गई। अर्थ को आज एक स्टॉल्कर वाली फीलिंग आ रही थी; वह अपनी ही वाइफ को स्टॉक कर रहा था।
समायरा का ऑटो करीब आधे घंटे ड्राइव करने के बाद एक जगह आकर रुका, जहाँ से आगे फोर व्हीलर जाने के लिए रास्ता नहीं था।
अर्थ ने खुद से कहा,
"ये पागल लड़की बाहर क्यों आई है! मुझे पहले ही पता था, झूठी है एक नंबर की। इसे किसी मंदिर में नहीं जाना था। बस मुझे और मेरे घर वालों को पागल समझती है, जैसे हमें कुछ समझ ही नहीं आएगा!"
समायरा ने किराया देते हुए आगे बढ़ गई और अपना दुपट्टा भी अपने चेहरे से हटाकर गले में डाल लिया। उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी।
अर्थ ने भी कुछ दूरी पर कार रोककर समायरा को देखा।
समायरा आगे पैदल ही बढ़ गई। उसके जाने के कुछ मिनट बाद ही अर्थ भी कार से उतरकर उसके पीछे गया। और कुछ ही देर में वह वहाँ पहुँच गया जहाँ जाने के लिए समायरा ने घर में झूठ बोला था।
अर्थ ने सामने देखा तो उसकी आँखें छोटी हो गईं। यह कोई अनाथ आश्रम था, जहाँ करीब 25 से 30 छोटे बच्चे होंगे, जिनकी उम्र 4 साल से 15 साल के बीच की ही लग रही थी। एक छोटी सी बच्ची, जिसने पिंक फ्रॉक पहनी थी, हाथों में एक प्यारा सा गुब्बारा लेकर सबसे आगे आई और समायरा की तरफ बढ़ाकर बोली,
"हैप्पी बर्थडे समा दीदी!"
समा झट से घुटनों के बल बैठते हुए बोली,
"ओह माय बेबी! थैंक यू सो मच सो मच!"
इतना बोलकर उसने उस बच्ची के गाल को चूम लिया और उस बच्ची के चूबड़ी गालों पर प्यारी सी मुस्कान आ गई। तभी एक और उसी की उम्र का बच्चा भागते हुए आया और बोला,
"छमा दान (समा जान), तुम इतना लेट क्यों आई हो!"
उस बच्चे को प्रॉपर बोली भी नहीं आ रही थी और उसका छोटा सा चेहरा गुस्से से लाल था।
समा ने अपने दोनों कान पकड़ते हुए कहा,
"अपनी जान को माफ़ कर दो बेटू! मुझे लेट हो गई क्योंकि तुम्हें पता है मेरी शादी हो गई है और वह भी एक शैतान से।"
अर्थ ने जैसे ही यह सुना, वह जैसे कई देर से होश में आया हो, वरना वह तो कहीं खो सा गया था। समायरा का यह नया रूप और इन बच्चों की मासूमियत देखकर!
वो बच्चा आँखें बड़ी करके बोला,
"पल मेला त्या छमा, मै भी तुमसे प्यार करता हूँ!"
समा के चेहरे पर हँसी खिल गई।
समा ने उसे करीब करके उसके माथे को चूमते हुए कहा,
"पर ज़रूरी तो नहीं जिससे प्यार करो उसी से शादी भी करो! आई लव यू टू माय बच्चा!"
यह सुनकर उस बच्चे के गुस्से से लाल चेहरे पर थोड़ी राहत बिखर गई। और वह समा के गाल पर किस करके बोला,
"हैप्पी हैप्पी बर्थडे।"
और उस अनाथ आश्रम के गेट पर ही सब इकट्ठा होकर समा को विश कर रहे थे, तभी अंदर से एक लड़का निकला, करीब 30 से 32 की उम्र का। समा को देखकर प्यारी सी मुस्कान करके बोला,
"आ गई तू गुड़िया! हैप्पी बर्थडे गुड़िया, गॉड ऑलवेज ब्लेस यू।"
समा भी उसके पास जाकर उसके गले लगकर बोली,
"थैंक्स यश! तुम नहीं होते तो पता नहीं ये बच्चे कैसे मैनेज करते हम!"
यश ने समा के बालों पर किस करके कहा,
"दैट्स नॉट फेयर! नो सॉरी, नो थैंक्स, ओके।"
अर्थ के जबड़े गुस्से से कस चुके थे। उस लड़के की हिम्मत कैसे हुई उसकी बीवी को किस करने की? उसे समायरा पर भी तेज गुस्सा आ रहा था, कैसे लिपट रही है उससे!
समा उससे अलग होकर बोली,
"हम्म।"
एक करीब 55 से 58 साल की औरत, हाथ में थाल लिए, अंदर से आई और समा के पास आकर उसके माथे पर तिलक लगाते हुए बोली,
"जन्मदिन की बधाई हो मेरी बच्ची, तू हमेशा खुश रहे।"
समा ने उनके पैर छूकर कहा,
"अम्मा, आप भी ना! मैं जब भी आती हूँ किसी मेहमान की तरह मेरे माथे पर तिलक लगाती हैं! यह मेरा भी अपना ही घर है!"
"हा हा! दादी अम्मा, चल अब अंदर चल, मैंने आज खीर बनाई है!"
"सच्ची अम्मा!"
"हम्म..."
आज का दिन यूँ ही बीत रहा था। समायरा दोपहर को ही घर, यानी सहरावत विला, वापस आ गई।
सरस्वती जी ने उसे अपने पास बिठाकर अर्थ के बारे में सब कुछ बताया; जैसे उसे क्या पसंद है, कैसा खाना, कैसे कपड़े और भी बहुत कुछ। समायरा भी खुशी-खुशी सब कुछ सुन रही थी।
रात का समय था।
समायरा ने डाइनिंग टेबल पर डिनर लगाना शुरू किया था। नेहा उसके पास आकर उसकी मदद करते हुए बोली,
"भाभी, आपको पहले भाई के बारे में सब कुछ पता था क्या?"
समायरा ने मुस्कुराते हुए कहा,
"नहीं, हमें नहीं पता था। पर कायरा दी को शायद पता था। पहले उन्हीं से मास्टर की... मतलब अर्थ की शादी हो रही थी।"
समायरा अचानक 'मास्टर' कहकर घबरा गई थी और अपनी घबराहट छिपाने के लिए एक नज़र नेहा को देखा। नेहा को यह सुनकर ही सदमा लग रहा था कि समायरा को अर्थ के बारे में कुछ नहीं पता है।
वहीं दूसरी तरफ, अर्थ आज बेहद गुस्से में था। ऑफ़िस में काम कर रहे हर कर्मचारी की जान हलक में अटकी थी। पता नहीं कब कौन और कैसे अपनी जॉब से हाथ धो बैठे?
अर्थ को गुस्सा यश की वजह से आ रहा था। बार-बार यश का समायरा के बालों पर किस करना याद आ रहा था और वह रह-रहकर बार-बार एक कर्मचारी से ठंडा पानी मँगवा रहा था।
रमन अपने केबिन में था, पर अर्थ का यह अजीब व्यवहार उसे बहुत अजीब लग रहा था। इसलिए वह अपने केबिन से उठकर अर्थ के केबिन में आया। अर्थ ने दरवाज़े पर दस्तक होते ही कहा,
"ठंडा पानी लेकर आओ और ठंडी कॉफ़ी भी, एक्स्ट्रा आइस क्यूब्स के साथ।"
रमन अंदर आकर एकदम से चौंकते हुए बोला,
"ब्लैक कॉफ़ी से सीधा ठंडी कॉफ़ी और वो भी एक्स्ट्रा आइस क्यूब्स के साथ? आखिर हो क्या गया है आज तुझे?"
अर्थ ने उसे घूर कर देखते हुए कहा,
"और कोई काम नहीं है तुझे? निकल यहां से और उस उमेश को बोल अभी जो मैंने मँगवाया है वो जल्दी मेरे केबिन में भेजे।"
रमन ने हैरानी से कहा,
"पर हुआ क्या है? ये तो बता।"
अर्थ ने अपनी शर्ट के तीन बटन ओपन कर रखे थे और अपना सीना अपने एक हाथ से रगड़ते हुए बोला,
"ऐसा लग रहा है सीने में ज्वालामुखी फूट गया है। उसका लावा निकल रहा है।"
रमन ने हैरानी से कहा,
"व्हाट!!"
अर्थ ने यश को याद करते हुए कहा,
"मन कर रहा है उस यश के बच्चे का अभी गला घोंट दूँ जाकर।"
रमन ने आँखें बड़ी कर के कहा,
"अब ये यश कौन है? और तू उसके बच्चे के पीछे क्यों पड़ा है?"
अर्थ ने अपने माथे को पीटकर कहा,
"बददिमाग इंसान! निकल यहां से! मैं यश की ही बात कर रहा हूँ, उसके बच्चे की नहीं!"
रमन ने कुछ समझते हुए बड़ी सी हाँ में सर हिलाकर कहा, "ओह अच्छा, तो तू यश की बात कर रहा है! और फिर अचानक ही कन्फ़्यूज़ होकर कहा, पर कौन यश?"
अर्थ ने अपनी टेबल पर रखा पेपरवेट उठाकर रमन की तरफ फेंकते हुए कहा, "कमीने! निकल यहां से, वरना आज तेरा मर्डर कर दूँगा मैं।"
रमन नीचे झुक गया था, जिस वजह से पेपरवेट उसके ऊपर से निकलते हुए मेन डोर पर जाकर गिरा, जहाँ अभी-अभी उमेश ठंडा पानी और ठंडी कॉफ़ी लेकर आया था। उसने डर के मारे अपना लार निगल लिया और अर्थ को एक नज़र देखकर कहा,
"स-स-सर, आपका ऑर्डर!"
अर्थ ने लंबी साँस ले कर खुद के गुस्से को कंट्रोल किया और एक बार फिर अपना सीना रगड़ते हुए ठंडे पानी की तरफ़ अपना हाथ बढ़ा दिया। उमेश ने जल्दी से आगे बढ़कर अर्थ के हाथों में पानी का गिलास थमा दिया।
रमन ने कहा,
"कहीं एसिडिटी तो नहीं हो गई है तुझे उस यश के बच्चे की वजह से? पर मुझे समझ नहीं आ रहा आखिर ये यश का बच्चा है कौन साला? और मैं क्यों नहीं मिला अब तक ऐसे पावरफुल इंसान से जो द अर्थ सहरावत के दिल में ज्वालामुखी जला सकता है?"
उमेश को हँसी आ रही थी रमन की अजीबोगरीब बात सुनकर, पर वह अर्थ के सामने कंट्रोल कर रहा था। और जल्दी से मौका मिलते ही अर्थ के केबिन से बाहर निकल आया। "थैंक गॉड! बच गया!" उमेश ने बाहर आते ही सीने पर हाथ रखकर एक चैन की साँस लेकर कहा।
वहीं अर्थ गुस्से से रमन को घूरकर बोला, "मैं यहां जल रहा हूँ और तुझे उस इंसान की तारीफ करनी है! तुम जैसे दोस्त से दुश्मन अच्छे!"
रमन ने हँसकर कहा, "ये तुझे आज ही पता चला? मैं तो हमेशा से ही ऐसा था।" अर्थ ने इस बार बेहद गुस्से से रमन को घूरा, तो रमन ने बत्तीसी दिखाते हुए कहा, "ही ही सॉरी, मैं तो मज़ाक कर रहा था। पर तू बता तो सही ये यश आखिर है कौन और तू क्यों जल रहा है उसकी वजह से?"
अर्थ ने गुस्से से कहा, "उसकी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी को किस करने की? उसे हाथ लगाने की! उसके हाथ-पैर तोड़कर कुत्तों को खिला देने का मन कर रहा है!"
अब जाकर रमन को सारा मामला समझ आया, पर फिर भी उसे अर्थ को देखकर मन ही मन बहुत हँसी आ रही थी। अर्थ किसी पाँच साल के बच्चे की तरह बिहेव कर रहा था।
रमन ने कहा, "अब बहुत लेट हो गया है, मैं निकलता हूँ। तू भी जल्दी चल जाना घर।"
एक घंटे बाद, सहरावत विला में सब ने डिनर कर लिया था। रश्मि और जिज्ञासा नई खिचड़ी पका रही थीं, समायरा को इन घरवालों की नज़रों में गिराने के लिए। वहीं अर्थ एक बार में बैठा था और नशे में चूर होकर बड़बड़ा रहा था। बार वाला अर्थ को अच्छे से पहचानता था, इसलिए उसने तुरंत रमन को कॉल कर दिया।
रमन, जो बस डिनर करके लेटा था, फ़ोन बजता देखकर एकदम से चिढ़ गया और फ़ोन उठाते ही सामने वाले पर फूट पड़ा,
"कौन है बे, जिसे इतनी रात को भी चैन नहीं है?"
बार मैनेजर ने कहा,
"सॉरी सर, आपको डिस्टर्ब किया। मैं सनशाइन क्लब का मैनेजर बोल रहा हूँ।"
रमन ने इरिटेट होकर कहा,
"तो इसमें मैं क्या करूँ? लड्डू बँटवाऊँ?"
मैनेजर ने हकलाकर कहा, "न-न-नहीं सर, एक्चुअली मिस्टर अर्थ सहरावत ने अनलिमिटेड ड्रिंक कर ली है और अब वो अजीबोगरीब हरकतें कर रहे हैं। प्लीज़ उन्हें ले जाइए आप!"
रमन एकदम से चौंक गया! कई दिनों से अर्थ ने ड्रिंक नहीं की थी, इसलिए अब उसका यूँ ड्रिंक करना रमन के लिए शॉकिंग था। वह जल्दी से अर्थ को लेने के लिए सनशाइन क्लब के लिए निकल पड़ा।
रमन क्लब पहुँचकर सीधा काउंटर पर देखा, जहाँ अर्थ सर टिकाए और आँखें बंद किए गाना गा रहा था, या यूँ कहें कुछ बड़बड़ा रहा था...
"ते... तेरा फ़ितूर जब से चढ़ गया रे..."
रमन गुस्से में उसके पास आकर आगे लाइन गाकर बोला,
"मेरा दोस्त बिगड़ गया रे।"
अर्थ ने मुस्कुराकर कहा, "तू आ गया मेरे यार! मेरी बीवी नहीं आई तेरे साथ? मुझे उसके साथ जाना था! मैं तेरे साथ नहीं जाऊँगा। उस इडियट को बुलाओ, मैं उसी के साथ घर जाऊँगा!"
रमन ने माथा पीटकर कहा,
"नशेड़ी, तू चल मेरे साथ?"
अर्थ ने अपने हाथ की बाजू से नाक रगड़कर कहा, "नहीं, मैं उसी के साथ घर जाऊँगा। मेरी वाइफ को बुलाओ।"
रमन ने थक हारकर समायरा का नंबर डायल किया। समायरा जो अर्थ का इंतज़ार कर रही थी, उसे लगा अर्थ का ही कॉल होगा, पर कॉल पर रमन का नाम फ़्लैश हो रहा था। समायरा ने जल्दी से कॉल पिक कर लिया। तो सामने से रमन ने उसे एड्रेस बताते हुए कहा,
"प्लीज़ भाभी, जल्दी आना! ये आउट ऑफ़ कंट्रोल हो रहा है! पागलों जैसी हरकतें कर रहा है।"
समायरा तुरंत एक ड्राइवर को लेकर सनशाइन क्लब के लिए निकल गई।
समायरा ड्राइवर के साथ सनशाइन क्लब पहुँची। जैसे ही वह अंदर गई, उसकी नज़र अर्थ की नशीली नज़रों से टकरा गई! अर्थ इस वक्त रमन के गले में दोनों हाथ लपेटे खड़ा था। रमन ने अर्थ की नज़रों का पीछा करते हुए समायरा को देखा और जल्दी से कहा, "प्लीज़ हेल्प मी, भाभी।"
क्लब मैनेजर और वहाँ खड़े कुछ और लोग भी अब समायरा को देखने लगे। "आखिर इस शैतान इंसान को संभालने वाली आखिर कौन है?" "किसमें इतनी हिम्मत है जो इसे झेल सकती है!"
समायरा ने एक पल के लिए अपनी साड़ी को अपनी मुट्ठियों में कस लिया क्योंकि उसे भी अर्थ से बेहद डर लगता था! पर उसने सबकी नज़रों में उम्मीद देखी तो अपने कदम अर्थ की तरफ़ बढ़ा दिए।
अर्थ ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा,
"बी... बीवी, तुम आ गई मुझे लेने!"
इतना बोलकर अर्थ समायरा की तरफ़ बढ़ा! और फिर समायरा ने भी तेज़ी से कदम बढ़ाए ताकि अर्थ गिर ना जाए। और वो जैसे ही उसके करीब पहुँची, अर्थ ने झट से उसकी पतली सी कर्वी कमर को अपने मज़बूत हाथों से थाम लिया।
"हाँ, हम आ गए। अब चलें यहाँ से!"
अर्थ के मुँह से शराब की महक आ रही थी। एक पल के लिए समायरा ने गन्दा सा मुँह बनाया और फिर गुस्से में बोली,
"संभाली नहीं जाती तो पीना ज़रूरी है आपको!"
अर्थ ने बच्चों जैसा मुँह बनाते हुए कहा,
"मैंने नहीं पी! ज़बरदस्ती पिला दी।"
समायरा ने आँखें बड़ी करके कहा,
"किसने पिला दी आपको?"
अर्थ ने बार काउंटर पर खड़े आदमी की तरफ़ एक उंगली करते हुए कहा,
"उसने! हाँ, उसी ने!"
समायरा ने उस तरफ़ देखा तो वो आदमी बेचारा डरते हुए बोला, "सर झूठ बोल रहे हैं मैडम। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। इन्होंने बोला तब ही इन्हें पिलाया है!"
समायरा ने गहरी साँस छोड़कर कहा,
"ठीक है, अब चलिए यहाँ से!"
अर्थ ने कहा,
"नहीं, पहले तुम मुझे किस करोगी।"
ये सुनकर समायरा, रमन और वहाँ खड़े मैनेजर की आँखें फैल गईं।
रमन ने माथा पीटकर खुद से कहा,
"क्यों अपनी इज़्ज़त लिव वाट लगा रहा है अर्थ! ये कमिना इंसान सुबह मुझी पर भड़कने वाला है कि मैंने इसे रोका नहीं। भरे बाज़ार इज़्ज़त उछालनी है अब इसे।"
समायरा ने डरते हुए कहा,
"क... क्या बोल रहे हैं आप? ये... ये क्या बकवास है? आप घर चलिए अभी इसी वक्त।"
अर्थ ने समायरा को छोड़ा और क्लैपिंग करते हुए कहा,
"बकवास और मैं! एवरीवन लुक एट माई इनोसेंट वाइफ! ये जो खूबसूरत सी, प्यारी सी बच्ची है, ये द अर्थ सहरावत की वाइफ है... जो बिलकुल भी नखरे नहीं करती। मैंने सुना है सबकी बीवियाँ बहुत नखरे करने वाली होती हैं, पर मेरी वाली तो एंटीक पीस निकली। ना मैडम को नखरे करने आते हैं, ना ज़िद्द! बिलकुल किसी डॉल की तरह! इसे बोलो यहाँ पूरे दिन बैठना है तो पूरे दिन वहाँ से टॉयलेट जाने को भी ना उठे! मेरा दिल क्यों इसके लिए धड़कने लगा है, मुझे समझ नहीं आ रहा!"
अर्थ की बातें सुनकर क्लब में चल रहा लाउड म्यूज़िक स्लो हो गया। वहाँ डांस कर रही रिच पर्सनैलिटीज़ अब अर्थ को देखने लगीं!
समायरा ने जब देखा उसे इतने लोग घूर रहे हैं, उसका दिल घबराने लगा और वो अर्थ का बाह पकड़ते हुए बोली,
"प्लीज़, भगवान के लिए अब बस भी कीजिए और चलिए अभी यहाँ से। बहुत तमाशा हो गया!"
अर्थ ने गुर्रा कर कहा,
"मेरी फीलिंग्स तमाशा लग रही हैं तुम्हें, बीवी!" समायरा ने अपने मन में सोचा, "ये इंसान अब बच्चा बन गया है। क्या करूँ इसका अब मैं!"
फिर समायरा ने कुछ सोचकर प्यार से कहा,
"अर्थ!"
अर्थ ने कहा,
"हम्म, बीवी!"
समायरा फिर से अपनी आवाज़ में मिठास घोलते हुए बोली,
"अर्थ, चलिए घर चलते हैं!"
अर्थ ने प्यार से समायरा को निहारते हुए उसके कंधे पर अपना भारी-भरकम हाथ रख दिया। और समायरा ने एक हाथ से अर्थ की कमर पकड़ते हुए, दूसरे हाथ से कसकर अर्थ का हाथ पकड़ लिया और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई। पर अर्थ बहुत ज़्यादा भारी था इसलिए समायरा दो कदम चलकर ही लड़खड़ा गई। और एक वेटर जल्दी से उसकी हेल्प करने आगे आया और उसका हाथ समायरा के हाथ टकरा गया। और इस बार अर्थ बिलकुल जानवर की तरह दहाड़ उठा,
"तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी को हाथ लगाने की!"
वो वेटर बिलकुल सहम गया और रमन दौड़कर अर्थ के पास आकर उसे संभालने लगा... और जाँघ पीटते हुए बोला,
"मेरी ही गलती है, क्यों मैंने भाभी को यहाँ बुलाया। ये बेवड़ा इंसान निहायती बेशर्म है!"
अर्थ ने गुस्से से रमन के हाथ को झटका और गरजते हुए बोला,
"कोई भी ऐरा-गैरा मेरी बीवी को हाथ लगा सकता है और मैं किस करूँ तो ये बेशर्मी है!"
समायरा ने डरकर कहा,
"वो बस हेल्प कर रहा था। प्लीज़, आप गुस्सा मत करिए।"
अर्थ ने आगे बढ़कर समायरा के खुले बालों पर अपने हाथों की ग्रिप बनाई और उसकी कमर पकड़ते हुए उसे थोड़ा ऊपर उठाकर झट से उसके लबों को कैद कर लिया।
और समायरा की आँखें फैल गईं! रमन ने झट से अपनी आँखों पर हाथ रखकर कहा,
"राम राम राम! सिंगल प्राणी को ये क्या देखना पड़ रहा है!"
कुछ लोग इस लवी-डवी कपल को देखकर हूटिंग कर रहे थे तो कुछ को बहुत शर्म आ रही थी!
समायरा लगभग अपने पंजों के बल खड़ी थी क्योंकि उसकी हाइट अर्थ से बहुत कम थी... और अर्थ तो आँखें बंद किए बस उस अहसास को जी रहा था! अर्थ ने हल्के से बाइट किया तब जाकर समायरा सदमे से बाहर आई और अर्थ के सीने पर मुक्के बरसाने लगी!
कुछ देर बाद अर्थ ने उसे छोड़ा और उसके सर से सर जोड़कर लंबी-लंबी साँसें लेने लगा! वही हाल समायरा का था। वो भी बस आँखें बंद किए अपनी साँसें बटोर रही थी!
रमन ने इस बार फ़ोर्स लगाकर अर्थ को पकड़ा और समायरा की तरफ़ देखकर बोला,
"आई एम सॉरी, भाभी। ये सब मेरी वजह से हुआ है। चलिए, मैं ड्रॉप कर देता हूँ। आपका ड्राइवर मेरी कार छोड़ आएगा!"
समायरा को बेहद शर्म आ रही थी। उसने पलकें झुकाए हुए ही हाँ में सर हिलाया और तीनों बाहर की तरफ़ चल दिए!
दस मिनट बाद...
रमन कार ड्राइव कर रहा था और अर्थ और समायरा बैक सीट पर थे। पर अर्थ की हरकतें कंट्रोल नहीं हो रही थीं। वो कभी समायरा को यहाँ छू रहा था तो कभी वहाँ! समायरा का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। अब उसका क्या होने वाला है? वो कैसे इस बेवड़े इंसान को रात भर झेलेगी! ऊपर से उसे रमन के सामने भी शर्म आ रही थी अर्थ की हरकतों की वजह से। और अर्थ था जो रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
रमन ने थक-हारकर कार का पार्टीशन ऑन कर दिया! और साथ में म्यूज़िक भी! समायरा ने एक राहत की साँस ली और फिर घूरकर अर्थ को देखा।
अर्थ ने नशीली आवाज़ में कहा,
"ऐसे घूर-घूर के देख रही हो! आखिर इरादा क्या है तुम्हारा, बीवी? कहीं कच्चा तो नहीं खाने वाली!"
अर्थ ने समायरा को लेप पर बैठाया और उसके बाल संवारते हुए बोला,
"क्या सच में तुम वैसी ही हो, बीवी, जो मेरी आँखों से दिखती हो, या... इतनी अच्छी कलाकार हो कि अर्थ सहरावत की आँखों को भी इस कदर धोखा दे सकती हो!"
समायरा, कन्फ्यूज होकर बोली,
"पर... पर मैंने तो कुछ किया ही नहीं। आप किस धोखे की बात कर रहे हैं? आपसे शादी तो मेरे घर वालों ने करवाई है। और रही कायरा दी की बात, तो मुझे उन पर विश्वास है। वो आपको धोखा नहीं दे सकती। ज़रूर कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं पता। मैं नहीं जानती जिसके बारे में, पर मैं बहुत जल्द सब कुछ सॉल्व कर दूँगी। तब तक आपको सब्र करना पड़ेगा। मैं कायरा दी से मिलते ही आपकी ज़िंदगी से हमेशा के लिए चली जाऊँगी, प्रॉमिस! आपको फिर से कभी मेरी शक्ल भी नहीं देखनी पड़ेगी! ना ही मेरी बेवकूफ़ियाँ झेलनी पड़ेगी।"
अर्थ ने जैसे ही सुना कि समायरा उससे हमेशा के लिए दूर हो जाएगी, उसकी पकड़ समायरा पर और ज़्यादा कस गई। वो उसकी गर्दन पकड़ते हुए खुद के और करीब किया और जबड़े कसकर बोला,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की कि तुम मुझसे दूर चली जाओगी? हाँ?"
समायरा एकदम से डर गई और उसकी आँखों में नमी तैर गई। अर्थ ने झट से अपने होंठ उसके होंठों पर रखे और स्मूच करते हुए अपना गुस्सा शांत करने लगा। वहीं समायरा के कानों में अर्थ के शब्द गूंजने लगे,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की कि तुम मुझसे दूर चली जाओगी? हाँ?"
समायरा के ज़हन में एक ही सवाल चल रहा था: क्या अर्थ इस शादी को निभाना चाहता है? क्या वो हमेशा के लिए उसके साथ रहना चाहता है? पर क्यों? समायरा बिलकुल सुन्न पड़ चुकी थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वहीं अर्थ, आँखें बंद किए हुए, बस उसके होंठों को चूसने में लगा था।
उसे बहुत आराम मिल रहा था समायरा को अपने इतने करीब महसूस करके। उसके हाथ अब समायरा के मखमली बदन को टटोल रहे थे, जिससे समायरा की पूरी बॉडी में तेज सेंसेशन महसूस हो रहा था। अर्थ ने उसके सीने से होते हुए अब उसकी कमर पर अपनी पकड़ कस दी। वो अब उसके होंठ छोड़कर उसके गले में अपना चेहरा ले जाकर उसे वेट किस करने लगा। अब तो समायरा की हालत और भी ज़्यादा खराब हो रही थी। अर्थ के हाथ समायरा के ब्लाउज़ की डोरी की तरफ जा ही रहे थे कि अचानक... कार एक जोरदार ब्रेक के साथ रुकी। समायरा अपने होश में वापस आई और अर्थ से खुद को छुड़ाकर गहरी साँस लेते हुए बोली,
"अ... अर्थ! घर आ गया है। प्लीज़!"
अर्थ ने आँखों में अजीब सी खुमारी लिए समायरा के लाल पड़ चुके छोटे से चेहरे को देखा। वो कुछ बोलने को हुआ, इतने में रमन ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा,
"आइए, भाभी! आप बाहर। इस बेइज़्ज़त को मैं लेकर आता हूँ!"
समायरा ने आज से पहले कभी इतना एम्बेरेस्ड फील नहीं किया था। वो अर्थ के लेप से उठते हुए बाहर निकल आई और फिर लगभग भागते हुए घर के अंदर आ गई! रात इतनी हो चुकी थी कि कोई नहीं जाग रहा था, इसलिए उसे किसी ने नहीं देखा। रमन भी अर्थ को दुनिया भर की गालियाँ देते हुए अंदर ले आया।
"कमीने! एक बार तेरा नशा उतरने दे! फिर देख तेरा रिएक्शन! देख-देखकर तुझे इतना चिढ़ाऊँगा ना, तू शराब को हाथ लगाना भी छोड़ देगा!"
अर्थ ने घूरकर रमन को देखकर कहा,
"क्या हुआ, रमन? तू मुझे कमीना क्यों बोल रहा है?"
रमन ने आगे बढ़ते हुए कहा,
"लो, ये अपना कमीनापन सरेआम दिखाकर आया है और अब पूछ रहा है मैं क्यों कमीना बोल रहा हूँ। एक बार सुबह होने दे, बेटा! मैं तुझे बताऊँगा क्यों कमीना बोल रहा था!"
रमन अर्थ को रूम में लेकर जाता है और बेड पर बैठाते हुए उसे एक पल घूरता है। फिर मुँह बनाते हुए बाहर जाने लगता है। वहीं समायरा वॉशरूम में थी क्योंकि उसे रमन से बहुत शर्म आ रही थी। जैसे ही उसे लगा कि रमन चला गया है, वो जल्दी से फ़्रेश होकर बाहर आई। उसने इस वक़्त एक नी-लेंथ कॉटन की रेड फ़्रॉक पहनी थी, जिसमें वो बहुत क्यूट लग रही थी!
अर्थ ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा और कहा,
"इरादा क्या है तुम्हारा?"
समायरा ने चिढ़कर कहा,
"एक ही डायलॉग दो बार बोलकर बोर नहीं हुए आप?"
अर्थ ने एक स्मर्क करते हुए कहा,
"एक ही इंसान का दिल हज़ार बार लूटकर बोर नहीं हुई तुम, बीवी?"
समायरा ने आँखें बड़ी करके अर्थ को देखा। अर्थ जैसा खड़ूस इंसान इस हद तक किसी से फ़्लर्ट कर सकता है! समायरा ने कभी अपने सपने में भी नहीं सोचा था!
समायरा बेड के पास आकर बोली,
"ठीक है। मुझे आपसे कोई बहस नहीं करनी है। अब चुपचाप अच्छे बच्चों की तरह सो जाइए!"
अर्थ ने उसे कमर से पकड़ते हुए खुद पर लिफ़्ट करके कहा,
"बच्चों की तरह? सीरियसली! तो फिर तुम्हें नहीं लगता तुम्हारे बेबी बॉय को तुम्हारी ज़रूरत है!"
समायरा को इस कदर गुस्सा आ रहा था, उसका मन कर रहा था अर्थ का सर फोड़ दे! मतलब इतनी बकवास तो उसने भी नहीं की कभी!
अर्थ बेड पर लीन होते हुए समायरा को खुद के नीचे कर लेता है और उसके होंठों पर धीरे-धीरे झुकने लगता है। समायरा डर के मारे कसकर अपनी आँखें भींच लेती है। पर जब कुछ देर तक उसे अर्थ की तरफ़ से कोई हलचल महसूस नहीं होती है, वो अपनी एक आँख खोलकर अर्थ को देखने की कोशिश करती है, जो अब उसकी गर्दन में चेहरा छुपाए किसी खरगोश के बच्चे की तरह सिमटा हुआ था!
ये देखकर समायरा चैन की साँस ले कर बोली,
"Thank you so much, कृष्णा! बचा लिया आपने!"
वहीं हॉल में रमन तेज़ी से बाहर निकलना चाहता था, पर वो जैसे ही सीढ़ियों से उतरा, वो किसी से टकरा गया और उसी के साथ फ़र्श पर जा गिरा। उसकी आँखें दो बिल्ली जैसी मोटी-मोटी आँखों से टकरा गईं!
ये नेहा थी, जो किचन में जाने के लिए उठी थी। वो बस चिल्लाने वाली थी कि रमन ने जल्दी से उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा,
"प्रिंसेस, प्लीज़ चिल्लाना मत! मैं हूँ, रमन! अर्थ ने बहुत ड्रिंक कर ली थी, बस उसे ड्रॉप करने आया था। Hmm!"
नेहा ने तीन-चार बार पलकें झपकाईं और रमन ने अपना हाथ उसके चेहरे पर से हटा लिया। नेहा ने एक लंबी साँस भरी। रमन एकदम से एम्बेरेस्ड होते हुए नेहा के ऊपर से उठ गया।
नेहा भी जल्दी से उठते हुए बोली,
"मिस्टर रमन! तुमने बिलकुल डरा दिया था मुझे! इन पल में भी मेरा दिल जोरों से धड़क रहा है! एकदम धड़क-धड़क-धड़क-धड़क!"
रमन को नेहा की क्यूट टॉक्स सुनकर हँसी आ गई! उसने नेहा के गालों को पिंच करते हुए कहा,
"You are such a cutie!"
नेहा ने गन्दा सा मुँह बनाकर कहा,
"इन पास्ट में आपके लिए प्रिंसेस थी, तो अचानक से क्यूटी कैसे बन गई? तुम तो हमेशा मुझे प्रिंसेस ही बुलाते हो?"
रमन ने हँसते हुए कहा,
"You are a cute princess! अब ठीक है!"
नेहा ने पाउट बनाते हुए कहा,
"Something something correct!"
रमन ने हँसकर कहा,
"Nothing nothing incorrect, प्रिंसेस। पर तुम रात को यूँ भूतों की तरह क्यों घूम रही हो?"
नेहा ने अपने सर पर हाथ रखते हुए कहा,
"तुम्हारे चक्कर में! मेरा पास्ट, फ़्यूचर, प्रेजेंट, सब मिक्स-मिक्स हो गया।"
रमन ने नेहा के फ़ेस पर झुकते हुए कहा,
"और तुम मेरे चक्कर में कब पड़ीं, प्रिंसेस!"
नेहा एकदम से हड़बड़ाकर बोली,
"डबल मीनिंग बातें मत करो! मिस्टर रमन! इन प्रेजेंट में मेरा मूड बहुत ख़राब है!"
रमन कुछ बोलने को हुआ, तभी उसे लगा जैसे कोई ग्राउंड फ़्लोर वाले रूम से निकलकर किचन की तरफ़ जा रहा है। वो झट से नेहा को खींचते हुए एक पिलर के पीछे चला गया। नेहा एकदम चौंक गई! रमन ने झुककर देखा तो ये सरस्वती जी थीं, जो शायद पानी लेने आई थीं, क्योंकि उनके हाथ में एक जग था! नेहा ने रमन के सीने पर मुक्का मारकर कहा,
"मिस्टर रमन! तुम पास्ट से भी ज़्यादा चिपके रहते हो मुझसे!"
रमन ने कहा,
"बाहर सरस्वती आंटी जगी हुई हैं!"
नेहा ने कुछ देर सोचकर कहा,
"तो क्या हुआ?"
रमन ने कहा,
"तो वो हमें इतनी रात को ऐसे साथ देखकर ग़लत ख़्याल ला सकती हैं ना अपने दिल में!"
नेहा ने कुछ नहीं कहा, पर फिर अचानक ही बोली,
"तो तुम छुप जाते ना! मुझे क्यों घसीट लाए साथ में?"
रमन ने दाँत तले जीभ दबाते हुए कहा,
"सॉरी! ग़लती से, मिस्टेक!"
नेहा ने एक और मुक्का रमन के सीने पर जड़ दिया, जिससे रमन कराह उठा! और नेहा एकदम से उसी जगह सॉफ्टली रब करते हुए बोली,
"ज़ोर से लगा! पर इन पास्ट में मुझमें इतनी पॉवर कभी नहीं थी! अचानक क्या हो गया?"
रमन मन ही मन मुस्कुरा रहा था! नेहा ने कहा,
"तुम छुपे रहो, मैं जाती हूँ! मुझे बड़ी माँ से छुपने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
रमन ने एकदम से उसकी कमर पकड़ते हुए कहा,
"नहीं! अब जाओगी तो उन्हें सच में शक हो जाएगा। उन्हें जाने दो पहले, उसके बाद जहाँ जाना है चली जाना।"
नेहा ने घूरकर रमन को देखा और वेट करने लगी सरस्वती जी के जाने का! सरस्वती जी वापस जा चुकी थीं, पर रमन अब भी नेहा की आँखों में आँखें डाले देख रहा था! और नेहा उसे घूर-घूरकर देख रही थी! पर कुछ देर बाद नेहा ने कहा,
"मिस्टर रमन! बड़ी माँ चली हैं। अब मुझे छोड़िए।"
रमन ने उसे छोड़ा और बालों में हाथ घुमाते हुए मुस्कुराकर वहाँ से चला गया।
अगली सुबह...
अर्थ समायरा का रूम...
क्रमशः
धन्यवाद! इस उपन्यास को पढ़ने के लिए।
Next morning.
Arjun and Samaira’s room.
Samaira’s eyes fluttered open as sunlight touched her face. She blinked, feeling a heavy weight on her chest. Opening her eyes fully, she saw Arjun’s innocent face, resembling a child’s in sleep.
His messy hair was scattered across his forehead, making him appear even cuter.
Samaira gently pushed his hair back from his forehead and gazed at him intently. Everything Arjun had said the previous night replayed in her mind – his childhood, his flirting, his plea to keep him forever. A tingling sensation filled her heart. She couldn’t understand this feeling. Had she begun to like Arjun? Samaira abruptly said, "No! I could never like this grumpy man!"
Arjun’s eyes snapped open. "Why are you shouting so early in the morning?" he asked.
"Sorry, Master," Samaira stammered. "I… I…"
Arjun said, with irritation, "Is there more to that 'I… I…'? If not, be quiet and let me sleep!" He pulled her close again and closed his eyes.
Samaira didn't understand. He had just told her to go back to sleep…
Then, a knock came at their door.
Arjun said, this time angrily, "What now? Who can't let me sleep in peace? My head…" He clutched his head. A sharp pain throbbed, a hangover from the previous night's drinking.
Samaira stammered, "Master, someone's at the door. Should I get up?"
Arjun snapped, "Am I holding you captive? Get up! This headache, and your incessant fidgeting, is unbearable!"
Samaira gestured toward Arjun’s arm, which was tightly around her waist, preventing her from even slightly moving. Arjun hastily removed his arm. Samaira started to get up, but a sharp pain shot through her lower back from sleeping in that position. She cried out, "Oh, my god! It feels like a bulldozer ran over me last night!"
Arjun's eyes narrowed. He tried to recall the previous night, but his memory was blank.
He quickly pulled the blanket away and checked himself. He was fully clothed. A sigh of relief escaped him; nothing had happened between them.
Samaira opened the door to a maid who had come to call her; it was already 7 a.m. "I'll be ready in five minutes," Samaira said. "Please send me a glass of lemon water, okay?"
The maid nodded and left.
Samaira quickly went to the wardrobe and chose a sari, stealing glances at Arjun, who seemed utterly confused and disoriented, scratching his head.
"I can't remember anything," he mumbled.
Samaira almost laughed, but controlled herself, focusing on getting ready.
Standing before the mirror, she quickly combed her hair, parted it in the middle, applied vermilion, a small pink stone bindi, and lip gloss, then headed out.
The jingling of her anklets caught Arjun's attention. Her milky complexion looked radiant in the pink sari. Some damp hair clung to her neck, making her look even more beautiful.
Arjun shook his head. "Hey, listen!"
Samaira turned. "Yes, Master? Do you need something?"
Arjun said, confused, "What happened last night? How did I get home from the bar? Did… did anything happen between us?" He avoided her gaze.
Samaira replied, "Raman Bhaiya dropped you off."
What will happen when Kayra returns? What about Arjun and Samaira's journey? Read on to find out.
Innocence versus darkness.
Ishqi.
अर्थ ने कहा, “अब वो तुम्हारा भईया कब से बन गया?”
समायरा ने आँखें छोटी करके कहा, “जब से आप मेरे सैंया बने हैं!”
अर्थ ने घूर कर समायरा को देखा। वो गला सही करते हुए बोली, "I mean वो मुझे भाभी बुलाते हैं तो मेरे देवर जैसे हैं और इसलिए मुझे उन्हें भाई बोलना अच्छा लगता है!" इतना बोलकर समायरा ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गई। अर्थ भी सर खुजाकर बेड से उठा और वॉशरूम चला गया।
करीब 15 मिनट बाद समायरा सबके लिए कॉफी सर्व कर रही थी और एक मेड को अर्थ के रूम में नींबू पानी लेकर भेज दिया था। तभी सहरावत विला के मेन डोर से कायरा एंटर करती है।
कायरा को देखते ही समायरा के हाथ से चाय की ट्रे छूटकर फर्श पर गिर गई और उसमें पड़े कप भी टूटकर फर्श पर चारों तरफ बिखर गए। उसकी आँखें फटी की फटी रह गई थीं। अचानक ही उसकी आँखों में नमी तैर गई और वह दौड़ते हुए कायरा की तरफ चली गई।
“कायरा दी.. दी आप बिल्कुल ठीक हो! सही सलामत मेरे सामने हो! थैंक गॉड!” इतना बोलकर समायरा ने कायरा को कसकर गले लगा लिया। लेकिन कायरा की मुट्ठी गुस्से से कसी हुई थी। उसने दाँत पिसकर कहा, “समा, तू यहां क्या कर रही है? तुझे तो नैनीताल में होना चाहिए था ना, मम्मी-पापा के पास! फिर तू मेरे फ़िऑँसे के घर? मैं कुछ समझी नहीं!”
समायरा एकदम से हड़बड़ा गई, पर उसने कुछ कहा नहीं। वहीं, अर्थ जैसे ही नींबू पानी देखता है, उसे समायरा पर गुस्सा आ जाता है।
“जब उसे पता है मुझे ब्लैक टी पसंद है, तो क्या ज़रूरत है नींबू पानी भेजने को? इडियट!”
इतना बोलकर अर्थ अपनी घड़ी पहनते हुए रूम से बाहर निकला और सीढ़ियों से तेज़ी से उतरता हुआ नीचे आया। सामने कायरा को देखकर उसकी आँखें छोटी हो गईं। सरस्वती जी बोलीं, “बेटा, आप इतने दिन कहाँ थे?” विधा जी और अभिराम जी भी अपने रूम से निकले (आप भूल गए हों तो बता दूँ, ये हैं अर्थ के मम्मी-पापा)।
विधा जी ने जैसे ही कायरा को देखा, उनकी आँखों में चमक आ गई और वो मुस्कुराकर बोलीं,
“कायरा बेटा, आप ठीक हो?”
कायरा भी मुस्कुराते हुए बोली, “जी आंटी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।” विधा जी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और मुँह बनाकर कहा, “इतना सफ़ेद झूठ भी नहीं बोलना चाहिए बेटा जी! आपके कपड़े और हुलिया देखकर लग रहा है आप बिल्कुल ठीक नहीं हैं!”
कायरा भी विधा जी के पास आकर उनके गले लग गई और एकदम से सिसकने लगी। विधा जी उसके बाल सहलाते हुए बोलीं, “बेटा, आप रोइए मत। हम हैं ना, सब ठीक हो जाएगा। क्या हुआ था आपके साथ?”
कायरा रोते हुए बोली, “आंटी, किसी ने मुझे शादी वाले दिन किडनैप कर लिया था और तब से मैं वहाँ से भागने की कोशिश कर रही थी!”
ये सुनकर समायरा की आँखों में भी आँसू आ गए और वो अर्थ की तरफ़ देखती है, जो बिना किसी इमोशन के वहाँ जो हो रहा था उसे देख रहा था। जैसे उसे कोई फ़र्क ही ना पड़ रहा हो! और ये सच भी था। वो कायरा की सच्चाई तो जान चुका था। वो ज़रूर उसके किसी बिज़नेस राइवल से मिली हुई थी, तभी तो वो कंपनी की सीक्रेट इन्फ़ॉर्मेशन्स चुरा रही थी! तभी अर्थ का फ़ोन रिंग हुआ। अर्थ साइड में आते हुए कॉल पिक किया तो सामने से किसी की डरी हुई और घबराई हुई आवाज़ आई।
“सॉरी बॉस.. वो.. वो लड़की भाग गई यहाँ से!”
अर्थ ने जबड़े कसकर कहा, “अब नींद से उठा है तू? वो मुझे अपने दर्शन तक दे चुकी है, मिलना मुझसे तुम!”
तो सामने से रोती हुई आवाज़ आई,
“सॉरी यार, रियली सॉरी! मैंने तो बहुत ध्यान रखा था! पता नहीं कैसे.. तेरा दोस्त हूँ ना, मैं! बख्श देना मुझे!”
अर्थ ने दाँत पीसते हुए कहा, “बॉस से सीधा यार पर आ गया कमीने तू! तेरे लिए प्रोफ़ेशनल और प्राइवेट रिलेशन अलग-अलग होते हैं ना!”
सामने से आवाज़ आई, “वो बोलते हैं ना, टाइम आने पर तो गधे को भी अपना रिश्तेदार बनाना पड़ता है! तू तो फिर भी मेरा दोस्त है!”
अर्थ ने गुस्से से कहा, “तेरी तो मैं…”
पर इतने में ही कॉल कट हो चुका था और अर्थ सिर्फ़ दाँत पीसकर ही रह गया था। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था और एकदम लाल हो गया था। उसकी गुस्से से तनी हुई नसें साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं।
समायरा ने अर्थ को गुस्से में देखकर सहमते हुए अपने मन में कहा,
“अब किस बात पर गुस्सा आ रहा है इन्हें? मैंने तो सुबह से कुछ नहीं किया ऐसा! और अब तो कायरा दी भी आ गई हैं! इनका गुस्सा कम होने की बजाय बढ़ कैसे गया? और ये कायरा दी से बात क्यों नहीं कर रहे? आखिर हो क्या रहा है ये!”
नेहा समायरा के बगल में आते हुए बोली, “आप प्रेजेंट टाइम में किस पास्ट के बारे में सोच रही हो भाभी?”
समायरा ने पाउट बनाते हुए कहा, “यही कि आपके भाई का गुस्सा हर वक़्त उनकी लंबी सी नाक पर क्यों बैठा रहता है? आखिर इनका और गुस्से का कौन सा ऐसा ख़ास रिश्ता है?”
नेहा मुँह पर हाथ रखकर हँसते हुए बोली,
“पता नहीं भाभी! भाई ने कभी पास्ट टाइम में ऐसी कोई बात बताई नहीं हमें! अगर इन फ़्यूचर आपको बताएँ तो हमसे ज़रूर शेयर करना।”
वहीं, जिज्ञासा और रश्मि सोफ़े पर बैठी सामने चल रहा ड्रामा देख रही थीं। विधा जी कायरा को खाना खिला रही थीं और उसका सर सहलाते हुए उसे प्यार-दुलार कर रही थीं।
रश्मि ने जिज्ञासा से कहा, “कुछ समझ रही हो बहुरानी? सामने का नज़ारा क्या कह रहा है?”
जिज्ञासा ने कहा, “यही कि अर्थ की मंगेतर फिर से वापस आ गई है और अब उसे बहुत तेज़ भूख लगी है! जरा देखो बुआ जी कैसे जाहिलों की तरह तेज़ी से ठूस रही है!”
रश्मि ने माथा पीटकर कहा,
“तभी तो तुम यहाँ सिर्फ़ एक मेंबर की श्रेणी में आती हो, वरना अब तक रानी ना बन गई होती इस सहरावत विला की!”
जिज्ञासा ने कहा, “क्या मतलब बुआ जी?”
रश्मि ने कहा, “इसका मतलब तुम्हारे मतलब का नहीं है बेटा! क्योंकि वो तुम्हारे पले नहीं पड़ेगा! तुम वो सुनो जो मैं कह रही हूँ।”
जिज्ञासा ने हाँ में सर हिलाया और रश्मि की बात ध्यान से सुनने लगी।