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मुझे प्यार है सिर्फ तुम से (संपूर्ण)

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🌹deepika07(⁠✷कविता05✷⁠)🌹

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माधवी भोली-भाली मासूम सी प्यारी सी राजेश गुप्ता की गोद ली हुई बेटी थी , जो कि हमेशा से दिल्ली के हॉस्टल में ही पली बड़ी थी क्योंकि राजेश गुप्ता की बीवी विशाखा और बेटी अनुष्का माधवी से बहुत नफरत करती थी। वही अर्णव सिंघानिया मुंबई का टॉप क्लास नंबर वन...

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Madhvi gupta Heroine

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Arnav Singhania Hero

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Total Chapters (92)

Page 1 of 5

  • 1. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 1

    Words: 1074

    Estimated Reading Time: 7 min

    आज गुप्ता मेंशन दुल्हन की तरह सजा हुआ था। आखिर हो भी क्यों ना? गुप्ता खानदान की इकलौती और लाडली बेटी अनुष्का की शादी थी। मुंबई का जाना-माना नाम है गुप्ता खानदान, और उसमें रहने वाले राजेश गुप्ता बेहद ही विनम्र और हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति हैं। किसी से बैर रखना उनकी फितरत में ही नहीं था। उनके इसी मिलनसार व्यक्तित्व को देखकर, मुंबई के नंबर वन बिजनेसमैन, या यूँ कहें कि मुंबई के सबसे रहीस खानदान सिंघानिया खानदान के बड़े बेटे और सिंघानिया कॉरपोरेशन के सीईओ अर्णव सिंघानिया के साथ उनकी बेटी का रिश्ता तय हुआ। जिसका मुहूर्त दस दिन बाद निकला और इसी तरह दस दिन बीत गए। और आज शादी का दिन आ गया। आज चारों तरफ़ उनके मेंशन में ढोल-नगाड़े बज रहे थे, और मंगल गीत गाए जा रहे थे। वहीँ गुप्ता जी चारों तरफ़ भाग-भाग कर शादी की सारी तैयारियाँ देख रहे थे, क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं था और बरात आने वाली थी। ऐसे में सारी तैयारियों का जिम्मा उन्हीं के सर पर था। अभी वे इधर से उधर तेज-तेज कदमों से चलते हुए सभी को कुछ न कुछ बताते जा रहे थे, कि तभी अचानक वे लड़खड़ा गए। कि तभी उन्हें किसी ने संभाला। उन्होंने सर उठाकर देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वह मुस्कुराते हुए अपने सामने खड़े शख्स से बोले, "अरे माधवी बेटा, तुम! थैंक्यू बेटा, जो तुमने मुझे गिरने से बचा लिया। वरना आज तो मेरे घुटनों के साथ दांत भी टूट जाते। कितनी चिंता रहती है तुम्हें मेरी!" (माधवी गुप्ता, गुप्ता जी की गोद ली हुई बेटी, देखने में किसी स्वर्ग की अप्सरा जैसी सुंदर थी। हाइट पाँच फ़ीट पाँच इंच, तीखे नैन-नक्श, बड़ी-बड़ी गहरी काली आँखें जो ज़्यादा रोशनी में झिलमिलाती हुई दिखती हैं, कमर तक आते लम्बे काले बाल, गोरा रंग जोकि धूप में निकलने पर गुलाबी रंगत ले लेता, और उसके गुलाबी होंठों के पास निचले होंठ के लेफ्ट साइड बना तिल, जोकि उसकी खूबसूरती में चार-चाँद लगाता। उम्र लगभग बीस साल।) माधवी दिल्ली से बिज़नेस स्टडी कर रही थी और सेकंड ईयर में थी। माधवी मुंबई सिर्फ़ त्योहारों और किसी फ़ंक्शन के दौरान आती थी। वरना हमेशा दिल्ली में ही हॉस्टल में रहती थी। वजह थी विशाखा जी का उसके प्रति बर्ताव। विशाखा जी, राजेश जी की पत्नी, उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थीं। वे तो राजेश जी के माधवी को गोद लेने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ भी थीं। पर माधवी जैसी मासूम बच्ची को देखकर राजेश जी का दिल जैसे ममता से भर गया था, और उन्होंने विशाखा जी के ख़िलाफ़ जाकर उसे गोद लिया और फिर अकेले ही उसको पाला। लेकिन विशाखा जी को माधवी शुरुआत से ही आँखों में खटकती थी, क्योंकि राजेश जी जो चीज़ें अनुष्का के लिए लाते थे, सेम वही चीज़ें माधवी के लिए भी लाते थे। वे एक अनाथ लड़की का कंपैरिज़न अपनी बेटी के साथ नहीं देख पा रही थीं। इसीलिए छोटी उम्र से ही वे उसके साथ बेरुखी रखती थीं, और धीरे-धीरे उनकी बेरुखी इतनी बढ़ गई कि वे माधवी पर हाथ भी उठा देती थीं, साथ ही घर के कामों में भी उसे लगा देती थीं। राजेश जी को जब उनका माधवी के साथ इस तरह का बर्ताव बर्दाश्त नहीं हुआ, तो उन्होंने माधवी को मुंबई से दिल्ली के बेस्ट हॉस्टल में भेज दिया। और जब भी उनका उससे मिलने का मन करता, तो वे दिल्ली उससे मिलने चले जाते। और अब जब उनके घर में शादी थी, तब जाकर उन्होंने माधवी को अनुष्का की शादी के लिए बुला लिया था। राजेश जी की बात सुनकर माधवी गुस्से में उन्हें घूरते हुए बोली, "हाँ तो वो तो मुझे बचाना ही पड़ेगा ना, और चिंता भी करनी पड़ेगी, क्योंकि आप अपने आपको लेकर इतने लापरवाह हैं। कितनी बार कहा है आपसे कि सब काम ठीक से चल रहा है। अब ऐसा तो है नहीं कि अगर आपके समधी-समधन को किसी चीज़ में कमी लगी तो वो बरात वापस ले जाएँ, तो फिर क्यों इतना टेंशन ले रहे हैं? पता नहीं किस वजह से यहाँ से वहाँ भागे जा रहे हैं, जबकि सारा काम ऑलमोस्ट हो चुका है। अब आप यहाँ बैठिए और यह नींबू पानी पीजिए, तब तक मैं आपकी ज़िम्मेदारियाँ अपने सर पर लेकर बाकी की तैयारियाँ देखती हूँ। और खबरदार अगर आप यहाँ से एक इंच भी हिले तो! वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" इतना कहकर उन्हें वहीं पास लगी एक चेयर पर बिठा देती है और उन्हें नींबू पानी का गिलास देकर वहाँ से बाकी की तैयारियाँ देखने चली जाती है। वहीँ राजेश जी उसकी प्यार भरी धमकी सुनकर मुस्कुरा देते हैं, और वहीं बैठकर अपना नींबू पानी ख़त्म करने लगते हैं। तभी उनके दोस्त उनके पास आकर उनसे बोले, "अरे राजेश! यह इतनी प्यारी बच्ची कौन है? आज से पहले तो हमने कभी इसे तुम्हारे घर में नहीं देखा, ना ही तुमने कभी हमें इससे मिलवाया। पर जिस तरह से यह तुम्हें डाँट रही थी, उससे इतना तो साफ़ पता चल रहा था कि तुम उससे बहुत प्यार करते हो और वह भी तुम्हें अपना पिता मानती है!" तो राजेश जी मुस्कुराते हुए एक नज़र माधवी को देखते हैं, जो उनके हिस्से का काम मुस्कुराते हुए कर रही थी, और फिर अपने दोस्त की तरफ़ देखते हुए बोले, "वो मेरी छोटी बेटी है नीरज। आज ही दिल्ली से आई है। दिल्ली में बिज़नेस स्टडीज़ कर रही है, इसीलिए वहीं हॉस्टल में रहती है।" उनकी बात पर उनके दोस्त नीरज हैरानी से उन्हें देखने लगे। फिर असमंजस से उनसे बोले, "लेकिन जहाँ तक मुझे पता है, तुम्हारी तो एक ही बेटी है, तो फिर दूसरी बेटी कहाँ से आ गई?" तो राजेश जी माधवी की तरफ़ देख मुस्कुराते हुए बोले, "हाँ, तुमने सही कहा नीरज, कि मेरी एक ही बेटी है, जिससे मेरा खून का रिश्ता है, लेकिन सिर्फ़ दुनिया के लिए। मेरे लिए मेरी दो बेटियाँ हैं—एक अनुष्का और एक माधवी। वो मेरे लिए मेरे खून के रिश्ते से भी बढ़कर है, जिससे मेरा एहसास का रिश्ता जुड़ा हुआ है। इसलिए वो मेरी दूसरी बेटी है।" उनकी बात पर नीरज जी एक नज़र माधवी को देख मुस्कुरा देते हैं, और फिर थोड़ी देर बात करने के बाद वहाँ से चले जाते हैं। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 2. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 2

    Words: 1281

    Estimated Reading Time: 8 min

    माधवी सारी तैयारियाँ देखने के बाद अनुष्का के कमरे में उसके पास आई। अनुष्का दुल्हन के लिबास में सजी, आईने के सामने बैठकर अपने आप को निहार रही थी। माधवी उसके पास आई और पीछे से उसके गले लगते हुए बोली, "हाय! मैं मर जाऊँ, आप तो बहुत खूबसूरत लग रही हो दी! लगता है आज तो जीजू आपको देखकर घायल ही हो जाएँगे।" अनुष्का अपने आप पर इतराते हुए बोली, "खूबसूरत लगना क्या है? मैं तो पहले से ही बहुत खूबसूरत हूँ। तभी तो अर्नब जैसे बिज़नेस टायकून ने मुझे पसंद किया है। अब चल, दूर हट। ऐसे मत चिपक, मेरा मेकअप खराब हो जाएगा।" इतना कहकर उसने माधवी को खुद से दूर कर दिया। माधवी शरारत से बोली, "अच्छा, सब समझ रही हूँ मैं। मेरे चिपने से आपका मेकअप खराब हो रहा है। सीधी क्यों नहीं कह देती कि आप चाहती हो इस जोड़े में सबसे पहले जीजू ही आपके करीब आएँ? इसीलिए इस तरह के बहाने बना रही हो।" अनुष्का उसे घूरते हुए बोली, "अब जब तू सारी बातें समझ रही है तो फिर क्यों मुझे परेशान कर रही है? हम दोनों की एक-दूसरे से प्यार करती हैं। ऐसे में हम दोनों क्यों एक-दूसरे से दूर रहना चाहेंगी? तू ना सच में पागल है! अब चल, बकवास बंद कर और मेरे लिए एक गिलास ऑरेंज जूस ले आ। बहुत देर से मेरा गला सूख रहा है।" माधवी जाने लगी कि उसकी नज़र अनुष्का के हाथों में पहने कंगन पर गई। वह खुश होते हुए बोली, "वाह दी! आपके कंगन तो बहुत सुंदर हैं।" अनुष्का ने माधवी को एकटक अपने कंगन को देखते हुए देखा। वह इतराते हुए, माधवी को जलाने के लिए बोली, "वो तो होंगे ही, मेरे अर्नव ने जो दिए हैं, पूरे बीस लाख के हैं। वो बहुत प्यार करता है मुझसे। (फिर माधवी को घूरते हुए) पर तू इन्हें इस तरह अपनी नज़र मत लगा। पापा की दी हुई चीज़ों को तो मैंने तुझसे शेयर किया, लेकिन इन्हें तुझे नहीं देने वाली, क्योंकि इन पर सिर्फ़ मेरा हक़ है।" उसकी बातें सुनकर माधवी की मुस्कुराहट गायब हो गई और उसकी आँखों में नमी आ गई। बचपन से उसके साथ यही तो होता आ रहा था। उसे आज तक समझ नहीं आया था कि विशाखा जी और अनुष्का उससे इतनी नफ़रत क्यों करती हैं। क्या उसके अनाथ होने से? लेकिन इसमें उसका क्या दोष था? क्या वह खुद जानबूझकर अनाथ बनकर इस दुनिया में आई थी? या फिर राजेश जी को उसे गोद लेने के लिए उसने खुद से कहा था? वह तो छोटी बच्ची थी, उसमें तो अच्छे-बुरे की समझ तक नहीं थी। जिसने भी एक चॉकलेट देकर उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया, वह उसी का हाथ थामकर उनके साथ चल देती। तो फिर उससे इतनी नफ़रत क्यों? क्या किसी अनाथ बच्चे को गोद लेकर उसे अपना बच्चा समझकर पालना पाप है? खैर, आज तक वह उन दोनों की नफ़रत के पीछे की वजह जान नहीं पाई थी। वह अनुष्का से बहस करके उसके इतने खूबसूरत दिन को खराब नहीं करना चाहती थी। इसीलिए बिना बहस-बाज़ी किए वह चुपचाप उसके कमरे से निकल गई। उसने घर के एक नौकर के हाथों अनुष्का के लिए जूस भिजवा दिया और खुद नीचे बची हुई तैयारियों को जल्दी-जल्दी करवाने लगी। थोड़े समय में बारात आ चुकी थी, तो राजेश जी ने उसे अनुष्का के पास भेज दिया और थोड़े समय बाद उसे नीचे लाने को बोल दिया। जैसे ही सभी मेहमानों की नज़र घोड़े पर सवार दूल्हे बने अर्नव पर पड़ी, तो सब लोग उसे एकटक देखने लगे, साथ ही उसकी तारीफ़ करते हुए नहीं थक रहे थे। अर्नव दूल्हे के शाही लिबास में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। लड़कियाँ तो अर्नव को देखकर आहें भर रही थीं, साथ ही अनुष्का की किस्मत से जल भी रही थीं। अर्नव सिंघानिया मुंबई का नंबर वन बिज़नेसमैन, एंड मोस्ट एलिजिबल बैचलर, और सिंघानिया कॉर्पोरेशन का सीईओ, और सिंघानिया परिवार का बड़ा बेटा था। और देखने में बेहद हैंडसम था, बिल्कुल परफेक्ट ड्रीम मैन की तरह, जिसे हर लड़की पाना चाहती है। (ऊँचाई: 6.2, मस्कुलर बॉडी विद सिक्स पैक एब्स, ब्लैक शाइनी हेयर, जो इनके माथे पर भी आ जाते हैं, गहरी भूरी आँखें जिनमें हर लड़की डूबना चाहे, डस्की कलर, पतले होंठ, और शार्प फीचर्स... और उम्र कोई यही 28 साल।) लेकिन चेहरे पर हमेशा बेइंतिहा गुस्सा रहता था, जिसे देखकर ही लोगों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती थी। घर में अपने दादाजी के अलावा यह किसी की नहीं सुनता था। लड़कियों का तो इन्हें अपने पास-पास भटकना भी पसंद नहीं था, सिवाय अनुष्का के, जिससे इनकी मुलाक़ात दो महीने पहले एक इंसीडेंट के दौरान होटल में हुई थी। और तब से यह उसे अपना दिल दे बैठे थे। और कुछ समय डेट करने के बाद अनुष्का को शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया था। अर्नव चलकर मेन डोर तक आया, तो विशाखा जी और राजेश जी दोनों ने उसकी आरती की। और फिर द्वार पूजा के बाद उसे उसके परिवार व सभी रिश्तेदारों ने स्वागत किया, जिसके बाद सभी अंदर आ गए। वहीं राजेश जी ने इशारे से विशाखा जी को अनुष्का को लाने के लिए बोल दिया, तो विशाखा जी उनका इशारा समझकर जल्दी से अनुष्का के कमरे की तरफ़ बढ़ गईं। वहीं राजेश जी नीचे सभी मेहमानों की आवभगत में लगे हुए थे। जब काफ़ी देर तक विशाखा जी अनुष्का को लेकर नीचे नहीं आईं, तो उन्होंने मेहमानों की ख़ातिरदारी का जिम्मा अपनी बहन के बेटे को सौंप दिया और खुद ऊपर अनुष्का के कमरे की तरफ़ चले गए। जब वे ऊपर कमरे में पहुँचे, तो देखा विशाखा जी परेशानी में इधर-उधर टहलते हुए किसी को फ़ोन लगा रही थीं। वहीं माधवी एक कोने में परेशान सी खड़ी हुई थी। उन्होंने कमरे में चारों तरफ़ अपनी नज़रें दौड़ाईं, तो उन्हें अनुष्का कहीं दिखाई नहीं दी। तभी उनकी नज़र बेड पर रखे शादी के जोड़े और गहनों पर पड़ी, तो वे हैरान रह गए। वे अंदर आकर विशाखा जी से बोले, "अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो आप लोग? और यह अनुष्का कहाँ है? शादी का जोड़ा भी अभी तक यहीं पड़ा हुआ है। इसका मतलब यह लड़की अभी तक तैयार नहीं हुई। वहाँ नीचे शादी का मुहूर्त हो चुका है।" उनकी बात सुनकर विशाखा जी अपना सर नीचे झुका लिया, लेकिन बोली कुछ नहीं। काफ़ी देर तक उन्हें अपने सवालों का जवाब नहीं मिला, तो वे खुद ही बाथरूम के पास डोर नॉक करते हुए अनुष्का को आवाज़ देने लगे। पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। तो उन्होंने दरवाज़ा खोलकर देखा, तो अंदर कोई नहीं था। अब किसी अनहोनी के डर से उनका दिल घबराने लगा। इसीलिए वे वापस आकर विशाखा जी के सामने खड़े होते हुए उनके दोनों कंधों को पकड़कर उन्हें झकझोरते हुए चिल्लाकर बोले, "हमने कुछ पूछा है विशाखा! कहाँ है अनुष्का? वहाँ शादी का मुहूर्त हो रहा है और यहाँ आपकी बेटी ग़ायब है! कहीं ऐसा तो नहीं आप हमसे कुछ छुपा रही हो? बताइए, क्या छुपा रही हैं आप हमसे?" उनके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर माधवी डरकर अपनी आँखें बंद कर लेती है। वहीं विशाखा जी डरते हुए अपने हाथ में पकड़े दो लेटर उनके सामने कर देती हैं, जिस पर राजेश जी असमंजस से उन्हें देखने लगते हैं। कहानी जारी है। पाठक अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 3. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 3

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    उनके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर माधवी डरकर अपनी आँखें बंद कर लीं। विशाखा जी डरते हुए अपने हाथ में पकड़े दो लेटर उनके सामने रख दिए। राजेश जी असमंजस से उन्हें देखने लगे। फिर उन्होंने लेटर हाथ से लेकर देखे। एक पर 'पापा' तो दूसरे पर 'अर्णव' लिखा हुआ था। उन्होंने अपना नाम वाला लेटर खोलकर पढ़ना शुरू किया। डियर पापा, पापा, सॉरी, पर अभी मैं यह शादी नहीं कर सकती। इसीलिए यहाँ से जा रही हूँ। तो प्लीज़, अभी के लिए आप इस शादी को रोक दीजिएगा। मैं जानती हूँ मेरे इस फैसले से आप बहुत दुखी होंगे, टूट भी जाएँगे। लेकिन मुझे पता है माधवी आपको संभाल लेगी, क्योंकि वह तो आपकी लाडली बेटी है और आप प्यार भी उसे मुझसे ज़्यादा करते हैं। मैं तो हमेशा आपकी नज़रों में आपकी नालायक बेटी रही हूँ। और आज लायक बन भी जाती, पर मैं क्या करूँ? मेरे भी कुछ सपने हैं जिन्हें मैं शादी करके यूँ ही जाया नहीं जाने दे सकती। आशा करती हूँ आप मेरी बात को समझेंगे और फिलहाल के लिए इस शादी को रोक देंगे। पर मैं वादा करती हूँ, अपने सपनों को पूरा कर मैं जल्द ही वापस आऊँगी। जब तक आपको मेरा लेटर मिलेगा, तब तक मैं यहाँ से बहुत दूर जा चुकी होंगी। और प्लीज़ मुझे ढूँढिएगा मत, वरना मैं अपने आप को कुछ कर लूँगी। आपकी अनुष्का लेटर पढ़कर राजेश जी धम्म से बेड पर बैठ गए और अपने सर को पकड़ लिया। उन्हें साँस लेने में तकलीफ होने लगी। विशाखा जी जल्दी से उनके पास आकर उनकी पीठ सहलाने लगीं। माधवी जल्दी से एक गिलास में पानी लेकर उनके पास आकर उन्हें पिलाने लगी। राजेश जी एकटक माधवी को देख रहे थे। जहाँ उनकी बेटी, उनका अपना खून, उनके मान-सम्मान को ताक पर रखकर चली गई थी, वहीं दूसरी तरफ़ उनके संस्कार द्वारा पाली गई बेटी उनकी इतनी परवाह कर रही थी। उन्हें पानी पिलाकर माधवी उठने लगी, तो राजेश जी ने उसका हाथ पकड़ लिया। माधवी मुड़कर उनकी तरफ़ देखने लगी। राजेश जी आँसू भरी नज़रों से उसकी तरफ़ देखते हुए बोले, "माधवी बेटा, आज तक मैंने तुम्हारे लिए जो भी फैसला लिया या तुमसे जो भी कहा, तुमने कभी भी उस पर ऑब्जेक्शन नहीं जताया, बल्कि हमेशा सर झुकाकर मेरी हर बात मानी। तो क्या आज भी बिना कोई सवाल किए मेरी एक बात मानोगी?" माधवी उनके सामने घुटनों के बल बैठकर उनके दोनों हाथों को अपने हाथों में थामते हुए बोली, "मैं आज जो कुछ भी हूँ, वो सिर्फ़ आपकी बदौलत हूँ पापा। यह ज़िन्दगी आपकी ही दी हुई है। तो फिर आपका मुझसे इजाज़त माँगने का सवाल ही नहीं उठता। आप बस हुक्म कीजिए, आपके लिए इस माधवी की जान भी हाज़िर है।" उसकी बात सुनकर राजेश जी हल्का सा मुस्कुराए और फिर माधवी से बोले, "अर्णव से शादी कर ले मधु।" फिर बेड पर से शादी का जोड़ा उठाकर माधवी के हाथों में थमाते हुए बोले, "जा, इसे पहनकर तैयार हो जा। हमारे पास वक़्त बहुत कम है। शादी का मुहूर्त हो चुका है।" उनके कहे गए शब्द सुनकर माधवी हैरान रह गई और वो अपने हाथ राजेश जी के हाथों से पीछे खींचते हुए घबराकर बोली, "नहीं पापा, यह आप नहीं... मैं ऐसा नहीं कर सकती पापा।" वो इतना ही कह पाई थी कि राजेश जी उसके हाथों पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए उसकी आँखों में देखकर बोले, "तुझे मेरी कसम माधवी, शादी के लिए मना मत कर। आज तेरे पापा का मान-सम्मान, सब कुछ तेरे हाथों में है। अगर यह शादी नहीं हुई तो तेरे पापा का सर शर्मिंदगी से नीचे झुक जाएगा, साथ ही बरसों की कमाई, इज़्ज़त, मिट्टी में मिल जाएगी। आज दोनों खानदानों की इज़्ज़त सिर्फ़ तू ही बचा सकती है। मुझे तुझसे बहुत उम्मीदें हैं, प्लीज़ मेरी उम्मीदों को मत तोड़ बेटा।" उनकी बात पर माधवी खामोशी से सर झुकाकर रह गई। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। तभी विशाखा जी गुस्से में राजेश जी से बोलीं, "यह आप क्या कह रहे हैं आप? अर्णव से इसकी शादी कैसे करा सकते हैं? कहाँ अर्णव और कहाँ यह? दोनों का कोई कंपैरिजन ही नहीं है। अर्णव सिर्फ़ मेरी अनु का है। आप जैसा अनु कह रही है वैसा ही कीजिए और इस शादी को रोक दीजिए। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते, तो मैं..." वो इतना ही कह पाई थीं कि तभी राजेश जी हाथ उठाकर उन्हें रोकते हुए तेज आवाज़ में बोले, "बस अब कोई नहीं बोलेगा। अब हम किसी की नहीं सुनेंगे। जो हमारा मन चाहेगा वही करेंगे। और अगर आपने हमें रोकने की कोशिश की तो आप हमारा मरा हुआ मुँह देखेंगी। और किस बेटी की बात कर रही हैं आप? उसकी जिसने समाज के आगे हमें अपना मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा, जिसने हमारी इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं की, यह तक नहीं सोचा कि उसके जाने के बाद उसके पिता को कैसे-कैसे सवालों का सामना करना पड़ेगा, लोग उन्हें कैसी तिरस्कार भरी नज़रों से देखेंगे। हमने पहले ही कहा था, उससे कितनी बार पूछा था कि उसे यह शादी करनी है कि नहीं, तब तो उसे अपने सपनों की याद नहीं आई। खैर, अब इन बातों का कोई फायदा नहीं। अब से वो हमारे लिए मर चुकी है, उससे हमारा कोई रिश्ता नहीं। हमारी सिर्फ़ अब एक ही बेटी है और वो माधवी है। अगर आपको उससे रिश्ता रखना है तो रखिए, अगर उसकी तरह ही आप भी जाना चाहती हैं तो बेझिझक जा सकती हैं, हम आपको नहीं रोकेंगे।" आज से पहले गुप्ता जी को कभी भी किसी ने इतने गुस्से में नहीं देखा था। आज उनके इस गुस्से को देखकर विशाखा जी भी सहम गईं। राजेश जी आज अपने गुस्से में उन्हें भी अपनी ज़िन्दगी से निकालने के लिए तैयार हो गए थे। कहीं यह बात सच ना हो जाए, यही सब सोचकर वो खामोश हो गईं और जैसा हो रहा था, वैसा ही होने दिया। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 4. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 4

    Words: 1056

    Estimated Reading Time: 7 min

    थोड़ी देर बाद, माधवी तैयार होकर बाथरूम से बाहर निकली। राजेश जी की नज़र उस पर पड़ते ही उनकी आँखें नम हो गईं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे माधवी की शादी इस तरह करवाएँगे। उनकी हमेशा यही तमन्ना थी कि वे माधवी की शादी अनुष्का की तरह जोरों-शोरों से करवाएँगे। उसके लिए भी एक ऐसा हमसफर चुनेंगे जो उसे जिंदगी की हर खुशी देगा, उसके जीवन के सभी दुखों पर अपने प्यार का मरहम लगाकर उनके निशान तक मिटा देगा। लेकिन आज उनकी अपनी बेटी की वजह से उनकी दूसरी बेटी की सारी खुशियाँ दांव पर लग जाएँगी। इसकी उन्होंने ख्वाबों में भी कल्पना नहीं की थी। वह चलकर माधवी के पास आए। माधवी उस वक्त सर नीचे झुकाए खड़ी थी। शायद अपने आँसुओं को बहने से रोक रही थी। राजेश जी ने पल भर उसे देखा, फिर आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया। वही माधवी, जो इतनी देर से अपने जज़्बातों को काबू करके खड़ी थी, वह उनके प्यार भरे स्पर्श को पाकर उनके आगोश में पिघल गई और जज़्बातों का सैलाब फूट पड़ा। दोनों ही बाप-बेटी उस वक्त एक-दूसरे के गले लगे, आँसुओं के ज़रिए अपने जज़्बातों को बयाँ कर रहे थे। भले ही उनके बीच खून का रिश्ता न हो, लेकिन प्यार और जज़्बातों का ऐसा बंधन जुड़ा था जो खून के रिश्ते से भी परे था। राजेश जी कुछ देर तक उसे गले लगाए रहे, उसके बालों को सहलाते हुए उसे शांत कराते रहे। फिर, जब माधवी थोड़ी शांत हुई, तो उन्होंने उसे खुद से अलग कर उसके चेहरे पर घूंघट डाल दिया और उसे सहारा देते हुए नीचे लाने लगे। वही माधवी भी किसी छोटे बच्चे की तरह उनका हाथ थाम कर चल रही थी, जैसे अगर उनका हाथ छूटा तो वह इस भीड़ में खो जाएगी। नीचे लाकर उन्होंने माधवी को सीधे मंडप में अर्णव के सामने खड़ा कर दिया और उसके हाथ को लेकर भारी मन से अर्णव के हाथ में थमा दिया। धीरे-धीरे शादी की रस्में होने लगीं। जब वरमाला का वक्त आया, तो माधवी के हाथ ही नहीं उठ रहे थे अर्णव के गले में वरमाला पहनाने के लिए। तो राजेश जी आगे आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे संभाला। क्योंकि राजेश जी जानते थे माधवी इस वक्त किस तरह अपने अंतर्मन से जूझ रही है; जो आदमी कुछ समय पहले उसकी बहन का सुहाग बनने वाला था, उसी के साथ अब उसका रिश्ता जुड़ रहा था। राजेश जी के सांत्वना देने पर माधवी ने अर्णव के गले में वरमाला डाल दी। तो फिर अर्णव ने भी उसे वरमाला पहना दी। उसके बाद दोनों हवन कुंड के पास बैठ गए और अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे का उम्र भर साथ निभाने का वचन लेने लगे। जैसे-जैसे अग्नि को साक्षी मानकर शादी की रस्में होती जा रही थीं, वैसे-वैसे अर्णव और माधवी का रिश्ता जुड़ता जा रहा था। पहले फेरे हुए, उसके बाद मंगलसूत्र और फिर सिंदूरदान की रस्म। जब सिंदूरदान की रस्म हो रही थी, तो सुनीता जी ने माधवी का घूंघट उठाना चाहा, पर राजेश जी ने यह कहकर रोक दिया कि उनके घर की रस्म है कि एक बार बेटी शादी के मंडप पर बैठ जाए, तो उसका घूंघट ससुराल में जाकर ही खोला जाता है। उनकी इस बात को मानकर अर्णव ने धीरे से घूंघट के अंदर से ही माधवी की मांग भर दी, जिससे थोड़ा सा सिंदूर उसकी नाक पर गिर गया। शादी खत्म हो जाने के बाद राजेश जी ने सभी से कहा कि उन्हें सब से एक ज़रूरी बात करनी है। उनकी बात और गंभीर लहजा सुनकर सभी लोग उनके साथ एक कमरे में चले गए जहाँ उन्होंने सभी को अर्णव और माधवी की शादी का सच बता दिया। जिसे सुनकर सुनीता जी तुरंत माधवी का घूंघट उठाकर देखीं तो वे अनुष्का की जगह माधवी को देखकर हैरान रह गईं। वहीँ राजेश जी ने अर्णव को सच बताने के साथ ही अर्णव के हाथों में अनुष्का का दिया हुआ लेटर थमा दिया। तो अर्णव ने लेटर खोलकर पढ़ना शुरू किया। अर्णव, मुझे माफ़ करना जो मैं तुम्हें इस तरह बिना बताए और यूँ शादी के दिन अकेला छोड़कर जा रही हूँ। मैं जानती हूँ हमारी शादी को लेकर तुम्हारे कितने सपने थे, लेकिन क्या करूँ, मैं भी अपनी ख्वाहिशों के हाथों मजबूर हूँ। मेरे भी कुछ सपने हैं जिन्हें तुमसे शादी करने के बाद मैं शायद कभी पूरा नहीं कर पाती। तुम्हें याद है एक बार मैंने तुमसे कहा था कि मेरा बचपन से एक बहुत बड़ा मॉडल बनने का सपना है, पर तुमने कहा कि तुम्हें मॉडलिंग पसंद नहीं है। उस वक्त मैं खामोश रह गई, क्योंकि मुझे लगा नहीं था कि कभी मॉडलिंग करने जैसी अपॉर्चुनिटी मेरे हाथ आएगी। लेकिन आज मुझे वह मौका मिला जिसे तुमसे शादी करके मैं जाने नहीं दे सकती थी, क्योंकि मुझे पता था तुम कभी भी मेरे मॉडलिंग करने के फैसले से खुश नहीं होंगे। इसीलिए मुझे यह कदम उठाना पड़ा। लेकिन मेरा विश्वास करो अर्णव, मैं सच में तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। इसीलिए तुमसे बस एक वादा चाहती हूँ कि तुम मेरे लौटने तक मेरा इंतज़ार करना। बदले में मैं भी तुमसे वादा करती हूँ कि जैसे ही मेरा सपना पूरा हुआ, मैं वैसे ही तुम्हारे पास लौट आऊँगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे। बस तुम मेरा इंतज़ार करना और हो सके तो मेरी फ़ीलिंग्स को समझने की कोशिश करना। तुम्हारी अनुष्का लेटर पढ़ने के बाद अर्णव ने गुस्से से उस लेटर को मोड़कर फेंक दिया। उसे इस वक्त अनुष्का पर बहुत गुस्सा आ रहा था। अगर वह एक बार अर्णव से बात करती, तो बात यहाँ तक नहीं पहुँचती और इस प्रॉब्लम का भी कुछ न कुछ सॉल्यूशन निकल आता। क्योंकि बात करने से बड़ी से बड़ी प्रॉब्लम भी सॉल्व हो जाती हैं। लेकिन उसने बात करने की बजाय किसी चोर की तरह मुँह छुपाकर भागना चुना। फिर उसने अपने सामने अपनी तरफ पीठ करके खड़ी माधवी को देखा, तो उसके चेहरे के एक्सप्रेशन और भी डार्क हो गए और फिर वह बेहद गुस्से के साथ राजेश जी की तरफ बढ़ गया। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग और कमेंट देना न भूलें और मुझे फ़ॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 5. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 5

    Words: 1731

    Estimated Reading Time: 11 min

    लेटर पढ़ने के बाद अरनव ने गुस्से से लेटर मोड़कर फेंक दिया। उसे उस वक्त अनुष्का पर बहुत गुस्सा आ रहा था। अगर वह एक बार अरनव से बात करती, तो बात यहां तक नहीं पहुँचती, और इस प्रॉब्लम का भी कुछ न कुछ सॉल्यूशन निकल आता। क्योंकि बात करने से बड़ी से बड़ी प्रॉब्लम भी सॉल्व हो जाती हैं। लेकिन उसने बात करने की बजाय किसी चोर की तरह मुँह छिपाकर भागना चुना। फिर उसने अपने सामने अपनी तरफ पीठ करके खड़ी माधवी को देखा, तो उसके चेहरे के एक्सप्रेशन और भी डार्क हो गए। और फिर वह बेहद गुस्से के साथ राजेश जी की तरफ बढ़ गया। अरनव बेहद गुस्से से राजेश जी से बोला, "मैं नहीं मानता इस शादी को और ना ही कभी इसे अपनी पत्नी मानूँगा। मैं सिर्फ अपनी अनुष्का से प्यार करता हूँ और उसी से करता रहूँगा। आप लोगों ने धोखा किया है मेरे साथ, जिसकी सजा आपको और इसे भुगतनी पड़ेगी।" वह अपने सामने उसकी तरफ पीठ करके खड़ी, एक दुल्हन के लिबास में सजी हुई लड़की से बोला, जिसका चेहरा उसके घूंघट से ढका हुआ था। वही उसकी बात सुनकर माधवी को अपने दिल में कुछ टूटता सा महसूस हुआ। आँखें बस बरसने को ही तैयार थीं। फिर भी वह अपने आप को मजबूत बनाए हुए खड़ी हुई थी और अरनव और उसके परिवारवालों की कड़वी बातें सुन रही थी। तभी अरनव के पिता राकेश जी गुस्से में राजेश जी से बोले, "हमारे साथ इतना बड़ा धोखा करने की आपकी हिम्मत कैसे हुई गुप्ता जी? जब आपकी बेटी को मेरा बेटा पसंद नहीं था और उससे शादी नहीं करनी थी, तो पहले ही मना कर देते। इस तरह मेरे बेटे की फीलिंग्स का मजाक क्यों बनाया उसने? आपको अंदाजा भी है आज आपके परिवार की वजह से हमें कितनी बदनामी का सामना करना पड़ सकता था?" तो राजेश जी नज़रें झुकाकर हाथ जोड़कर शर्मिंदगी से राकेश जी से बोले, "मुझे माफ़ कर दीजिए राकेश जी। मानता हूँ मैंने जो किया उससे आपको और आपके परिवार को बहुत ठेस पहुँची है। लेकिन मैंने जो कुछ भी किया वो सिर्फ़ दो परिवारों की इज़्ज़त बचाने के लिए किया, जिसका मुझे रत्ती भर भी पछतावा नहीं है। और रही बात शादी की तो आज बेशक आप नाराज़ हैं, लेकिन मुझे विश्वास है कि कल आप मेरे इसी फैसले पर नाज़ करेंगे। क्योंकि अनुष्का ना सही, लेकिन मैंने अपनी जान, अपनी माधवी को आपको सौंपा है, जोकि मेरी नज़रों में खरा सोना है और एक ना एक दिन आप भी इस बात को समझ जाएँगे।" उनकी बात पर सुनीता जी गुस्से में विशाखा जी से बोलीं, "अगर आपकी यह बेटी इतना ही खरा सोना है तो आप रखते इसे हमेशा के लिए अपने पास। कम से कम मेरे बेटे की ज़िन्दगी तो बर्बाद नहीं होती। लेकिन मेरी नज़रों में तो आपकी दोनों बेटियाँ ही लोहे पर लगे उस जंग की तरह हैं जो समय के साथ लोहे को गलाकर खराब कर देती हैं। उसी तरह आपकी एक बेटी ने मेरे बेटे से प्यार का नाटक कर उसके दिल के साथ खेला और अब आपकी दूसरी बेटी हमारी इज़्ज़त बचाने का नाटक कर महानता की मूरत बन रही है। लेकिन इन सब का क्या फ़ायदा? मेरे बेटे की ज़िन्दगी तो खराब हो ही गई ना। इसीलिए अब अपनी इस बेटी को भी आप अपने पास ही रखिए। अब हमें आप लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना।" इतना कहकर अरनव के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रख उसे शांत करने लगती हैं, जो इस वक्त बेहद गुस्से में था। वही उनकी बात सुनकर राजेश जी शॉक़्ड रह जाते हैं। उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उनके लिए गए एक फैसले से उनकी दूसरी बेटी, जिसे उन्होंने गोद लिया था, उसकी ज़िन्दगी खराब हो सकती है। इन्हीं बातों को सोचकर वह घबराते हुए राकेश जी के पास आकर उनके आगे हाथ जोड़ते हुए बोले, "नहीं नहीं राकेश जी ऐसा मत कीजिए। आप के इस फैसले से मेरी बेटी की ज़िन्दगी खराब हो जाएगी। पूरी दुनिया के सामने उसकी शादी अरनव से हुई है। ऐसे में अगर आप लोगों ने उससे रिश्ता तोड़ दिया तो कौन उसका हाथ थामेगा? कौन से अच्छे घर का लड़का उससे शादी करना चाहेगा?" उनकी बात पर राकेश जी भी उनसे मुँह मोड़कर अरनव के पास चले जाते हैं। राजेश जी खुद की उम्मीदों को टूटता देखकर बहुत असहाय महसूस करते हैं। इसी वजह से फिर वह अरनव के दादाजी के पास जाकर हाथ जोड़कर रोते हुए बोले, "पिताजी आप समझाइए ना अपने परिवार को। यूँ तैश में आकर कोई फैसला ना करें। आपके परिवार का यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला मेरी बेटी की पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर देगा। मैंने जो कुछ भी किया आपके और अपने परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए किया। ऐसे में मेरी गलती की इतनी बड़ी सज़ा मेरी बेटी को मत दीजिए। आपका कसूरवार मैं हूँ तो आपको जो सज़ा देनी है मुझे दीजिए। लेकिन मेरी बेटी से यूँ मुँह मोड़कर मत जाइए। उसे अपना लीजिए। वह अनुष्का जैसी बिल्कुल नहीं है। आप उसे एक मौका दीजिए, वह आपके पूरे परिवार का बहुत अच्छे से ख्याल रखेगी।" तो अखिलेश जी, जो बहुत देर से सभी की बातों को सुन और समझ रहे थे, वह राजेश जी के हाथों को पकड़कर नीचे करते हुए उनसे बोले, "तुम्हें हाथ जोड़ने की ज़रूरत नहीं है राजेश, और तुम माधवी की चिंता मत करो। वह अब हमारे घर की बहू है, तो उसकी सारी ज़िम्मेदारी भी हमारी है। इसीलिए वह हमारे साथ जाएगी।" "दादाजीईईई!!" उनकी बात सुनकर अरनव उन पर चिल्लाते हुए बोला। तो अखिलेश जी अरनव की तरफ देखकर सख्त लहजे में बोले, "बस अरनव, चिल्लाओ मत। तुम्हारे चिल्लाने से सच नहीं बदलेगा। पूरी दुनिया के सामने, मीडिया के सामने तुमने माधवी के साथ पूरी विधि-विधान से अग्नि को साक्षी मानकर शादी की है, और वह तुम्हारी पत्नी है। इसीलिए तुम मानो या ना मानो, माधवी हमारे साथ सिंघानिया मेंशन जाएगी। मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि अनुष्का तुम्हारे लायक नहीं है और अब उसने जो कुछ भी किया उसकी सज़ा तुम इस मासूम बच्ची को नहीं दे सकते, ना ही तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ उसका कसूरवार इससे ठहरा सकते हो। इसलिए अपनी ज़िद छोड़ो। यह मेरा फैसला है।" तो अरनव अपने दादाजी की बात सुनकर गुस्से में एक नज़र वहाँ खड़े सभी को देखता है। फिर अपनी मुट्ठियों को बिंचते हुए कठोरता से अपने दादाजी से बोला, "ठीक है, आपको जो करना है कीजिए। इसे अपनी बहू मानना है मानिए, मेंशन भी ले चलिए। लेकिन याद रखिएगा, यह आपकी बहू तो बन जाएगी लेकिन मेरी बीवी कभी नहीं बन पाएगी। इसे वहाँ पर सभी ऐशो-आराम मिलेंगे, किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं रहेगी। लेकिन मेरी पत्नी होने का दर्जा इसे कभी नहीं मिलेगा। और यह मेरा फैसला है जिसे आप भी नहीं बदल सकते।" इतना कहकर गुस्से में वहाँ से चला जाता है। सभी लोग धीरे-धीरे उस कमरे से चले जाते हैं। राजेश जी भी वहाँ पर सर झुकाकर खड़ी माधवी के सर पर हाथ फेरते हुए बाहर निकल जाते हैं। सभी के जाने के बाद विशाखा जी, जो इतनी देर से अनुष्का की बुराई सुन-सुनकर चिढ़ रही थी, साथ ही माधवी को उसकी जगह लेने पर कोस रही थी, वह चलकर माधवी के पास आई और कसकर उसकी बाजू को पकड़कर अपनी तरफ करते हुए गुस्से में उससे बोली, "अब तो बहुत खुश होगी ना तू? इतने बड़े और रईस घर की बहू बन गई है और रही सही कसर तेरे मुँह बोले बाप ने पूरी कर दी उन लोगों को मना कर तुझे अपनाने के लिए। लेकिन मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले, यह शादी का जोड़ा, यह गहने, वह घर, यहां तक कि अरनव भी सिर्फ और सिर्फ मेरी अनुष्का का है, जो कि फिलहाल के लिए तुझे भीख में मिला है। इसीलिए भूलकर भी इन सब चीजों और अरनव पर अपना हक मत समझना, क्योंकि तू सिर्फ एक बदली की दुल्हन है जिसे मेरी अनु की गैरमौजूदगी में अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल किया गया। जैसे ही मेरी अनु वापस आएगी उसी वक्त तेरी ज़रूरत खत्म हो जाएगी। इसीलिए मेरी एक बात गाँठ बाँध ले, वहाँ जा तो रही है लेकिन किसी से भी अपनी नज़दीकियाँ मत बढ़ाना, खासकर अरनव से, क्योंकि अरनव पर और उस घर पर, यहां तक कि वहाँ के लोगों पर सिर्फ और सिर्फ मेरी अनु का हक है। तू वहाँ सिर्फ चंद दिनों की मेहमान है जिसे एक ना एक दिन वापस अपने घर आना होता है। ठीक वैसे ही जब मेरी अनु वापस आ जाएगी, तो वो लोग खुद तुझे धक्के मारकर बाहर निकाल देंगे।" इतना कहकर गुस्से में उसे घूरते हुए वहाँ से चली जाती हैं। विशाखा जी की एक-एक बातें माधवी के दिल में एक खंजर की तरह बार कर रही थीं। पर फिर भी माधवी उनकी बातें हिम्मत करके सुन रही थी। लेकिन जैसे ही विशाखा जी गई, वैसे ही माधवी के सब्र का बाँध टूट गया, और वह वहीं एकदम से जमीन पर बैठकर रोने लगी। अपनी सिसकियों को रोकने के लिए उसने अपने होठों को आपस में बिंच लिया, साथ ही आवाज को रोकने के लिए मुँह पर हाथ रख लिया। साथ ही वह उस पल को कोसने लगी जब उसने यहाँ आने का फैसला लिया, साथ ही उस वक्त को जब एक झटके में उसकी ज़िन्दगी उसे इस दोराहे पर ले आई जहाँ उसे अपने पिता का सम्मान या फिर अपने आत्मसम्मान को चुनना था, जिसमें से उसने अपने पिता को चुना था, और अरनव से शादी कर अपने आत्मसम्मान को दांव पर लगा दिया। इन्हीं सब बातों को याद करते हुए माधवी ख्यालों में खोई हुई थी कि तभी राजेश जी की आवाज से वह अपने ख्यालों से बाहर आती है और आँसू साफ़ कर सर उठाकर उन्हें देखती है, जो विदाई के लिए उसे बुलाने आए थे। आखिर अब अपने कलेजे के टुकड़े को खुद से दूर करने का वक्त आ ही गया था। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। धन्यवाद 🙏🙏

  • 6. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 6

    Words: 1067

    Estimated Reading Time: 7 min

    इन्हीं सब बातों को याद करते हुए माधवी ख्यालों में खोई हुई थी। तभी राजेश जी की आवाज से वह अपने ख्यालों से बाहर आई और आँसू साफ़ कर, सर उठाकर उन्हें देखा। वे विदाई के लिए उसे बुलाने आए थे; आखिर अब अपने कलेजे के टुकड़े को खुद से दूर करने का वक्त आ ही गया था। तभी अखिलेश जी वापस कमरे में आए। राजेश जी उनकी तरफ़ मुड़े। अखिलेश जी ने एक नज़र माधवी को देखा और फिर राजेश जी से बोले, "राजेश, हम नहीं जानते हमारे परिवार में से कौन हमारे फ़ैसले में हमारे साथ है और कौन नहीं। लेकिन इस वक्त अर्णव इतने गुस्से में है कि वह हमारे फ़ैसले को बिल्कुल नहीं मानने वाला। इसीलिए हमने एक फ़ैसला लिया है जिससे आगे चलकर माधवी की ज़िंदगी में कोई परेशानी ना हो, और उसकी ज़िंदगी सवर जाए।" राजेश जी असमंजस से उन्हें देखने लगे और फिर उनसे बोले, "कैसा फ़ैसला पिताजी?" अखिलेश जी ने एक नज़र माधवी को देखा और फिर राजेश जी से बोले, "वो यह कि जब तक अर्णव पूरे दिल से इस शादी को और माधवी को अपना नहीं लेता, तब तक हम माधवी की असली पहचान किसी को नहीं बताएँगे। दुनिया और मीडिया वालों की नज़रों में अर्णव की शादी अनुष्का से हुई है, तो हम फ़िलहाल के लिए उनकी इस गलतफ़हमी को बने रहने देंगे।" उनकी कही गई बात पर राजेश जी के साथ माधवी भी हैरानी से उनकी तरफ़ देखती रही। पर फिर विशाखा जी की बात याद आते ही जल्दी से अपनी नज़रें नीचे कर ली। वहीं राजेश जी बेचैनी से बोले, "पर क्यों पिताजी? आप माधवी के साथ ऐसा क्यों करना चाहते हैं? और इससे माधवी की ज़िंदगी कैसे सवरेगी?" अखिलेश जी ने एक नज़र माधवी को देखा और फिर राजेश जी की तरफ़ देखते हुए बोले, "वो इसलिए राजेश, हम बेशक माधवी को अपनी बहू मान लें, उसे उस घर में उसकी जगह भी दिलवा दें, लेकिन इन सब का तब तक कोई फ़ायदा नहीं जब तक अर्णव माधवी को दिल से ना अपना ले, उसे अपनी पत्नी होने का दर्जा ना दे दे। (फिर मायूसी भरे भाव से) लेकिन तुम समझो ना राजेश, हमें कहना तो नहीं चाहिए, पर जिस तरह से अर्णव अनुष्का से प्यार का दावा कर रहा है, उस तरह से हमें आगे इन दोनों के बीच रिश्ता बनाना मुश्किल ही लग रहा है। भगवान ना करे ऐसा हो, लेकिन फिर भी अगर ऐसा हो तो हम नहीं चाहते दुनिया बिना गलती के ही माधवी के ऊपर छोड़ी हुई औरत जैसे लालछन लगाए। क्योंकि हम जानते हैं यह दुनिया, समाज और इसमें रहने वाले लोग चाहे कितने भी मॉडर्न क्यों ना हो जाएँ, लेकिन एक औरत को लेकर इनकी सोच कभी नहीं बदल सकती। कोई भी गलती होने पर यह समाज के लोग सबसे पहले औरतों को ही कसूरवार ठहराते हैं। इसीलिए हम चाहते हैं अगर भविष्य में ऐसा कुछ हो, माधवी भी नॉर्मल लोगों की तरह खुलकर अपनी ज़िंदगी जिए, उसका भी खुद का घर परिवार हो, उसे भी एक प्यार करने वाला हमसफ़र मिले।" उनकी बात सुनकर राजेश जी सोच में पड़ गए। वहीं अखिलेश जी फिर (माधवी के सर पर हाथ फेरते हुए) बोले, "और आप चिंता मत कीजिए, आप हमारी बहू से ज़्यादा बेटी हैं। इसीलिए अब से आपकी सारी ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर है। हम पूरी कोशिश करेंगे आपको उस घर आपका हक़ दिलाने की। बस वादा नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी एक वादा करते हैं। अगर भविष्य में आपका और अर्णव का रिश्ता नहीं जुड़ा, तो आपकी सारी ज़िम्मेदारी हम लेंगे और आपके लिए सबसे बेहतरीन हमसफ़र चुनेंगे, जो आपको आपके हिस्से की सारी खुशियाँ देगा।" उनकी बात सुनकर माधवी हल्का सा मुस्कुरा दी। लेकिन अंदर ही अंदर वह किस दर्द से गुज़र रही थी, यह शायद कोई नहीं जान सकता था। अपनी बात कहकर अखिलेश जी चले गए। वहीं राजेश जी माधवी को सहारा देते हुए कमरे से बाहर ले आए। सभी रिश्तेदार जा चुके थे। मीडिया को भी अखिलेश जी ने वहाँ से भेज दिया था। वहाँ सिर्फ़ सुनीता जी, राकेश जी और अखिलेश जी ही खड़े हुए थे। बाकी आधे फैमिली मेंबर पहले ही सिंघानिया मेंशन के लिए निकल चुके थे। राजेश जी माधवी को वहीं छोड़ सुनीता जी की तरफ़ बढ़ गए और फिर उनके सामने खड़े होकर हाथ जोड़कर उनसे बोले, "मैं जानता हूँ सुनीता जी, इस वक्त आप बेहद गुस्से में हैं, और होना भी चाहिए। लेकिन आपके इस गुस्से का हक़दार मैं और मेरी बेटी अनुष्का हूँ, माधवी नहीं। इसीलिए आपसे बस हाथ जोड़कर एक ही विनती है कि अनुष्का का गुस्सा और नाराज़गी आप मेरी माधवी पर मत जताइएगा। उसने जो कुछ भी किया मेरे कहने पर किया, दो परिवारों की इज़्ज़त बचाने के लिए किया। इसीलिए बस आप उससे नाराज़ ना हों और हो सके तो उसे एक माँ का प्यार देने की कोशिश कीजिएगा। वो हमेशा से ही माँ के प्यार के लिए तरसती रही है, जो उसे कभी नहीं मिला। बस आपसे यही विनती है। मुझसे नफ़रत कीजिए, बस मेरी बेटी को अपना लीजिए।" उनकी बात पर सुनीता जी ने कुछ नहीं कहा और बस एक खामोशी भरी नज़र माधवी पर डाली। शायद इस वक्त उन पर गुस्सा ज़्यादा हावी था। उसके बाद राजेश जी माधवी को लेकर एक कार के पास गए। माधवी फिर से उनसे लिपट कर रोने लगी। राजेश जी उसके सर को सहलाते उसे शांत कराते रहे और जैसे-तैसे भारी मन से उसे कार में बिठाया। तो देखा अर्णव आगे पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ था। राजेश जी कार का दरवाज़ा बंद कर दिया और कार को धक्का देते हुए माधवी को विदा कर दिया। वहीं माधवी रोते हुए अपना सर पीछे सीट से टिका लेती है। उसकी आँखों से अभी भी आँसू बह रहे थे, पर अब वो निकल चुकी थी, अपने एक ऐसे सफ़र की ओर जहाँ उसकी राहें, उसे और उसकी ज़िंदगी को कहाँ और किस मोड़ पर ले जाने वाली थी, यह तो शायद वक्त ही बता सकता था। कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फ़ॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 7. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 7

    Words: 1948

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह हो चुकी थी। अंधेरा छट चुका था, और सूरज अपनी लालिमा आसमान और चारों ओर फैला चुका था। लेकिन किसी ने भी पलकें नहीं झपकाई थीं। सब की रात आंखों में ही कटी थी। पहले शादी और फिर उसके बाद हुए हंगामे की वजह से सभी की जिंदगी में उथल-पुथल मच चुकी थी। खासकर माधवी और अर्णव; दोनों ही एक-दूसरे से अनजान होकर भी शादी जैसे अटूट बंधन में बंध चुके थे। थोड़ी देर बाद ही उनकी गाड़ी सिंघानिया मेंशन में एंटर हुई। माधवी उस मेंशन को देखती ही रह गई। चारों तरफ हरे-भरे गार्डन के बीचों-बीच बना वह सिंघानिया मेंशन गुप्ता मेंशन से चार गुना ज्यादा बड़ा था, जो किसी राजमहल की तरह दिख रहा था। उसके दायीं ओर पार्किंग एरिया बना हुआ था, जहाँ पर बेंटले और मर्सिडीज़ कतारों में खड़ी थीं। बायीं ओर एक बड़ा सा स्विमिंग पूल बना हुआ था, साथ ही कुछ चेयर बैठने के लिए अरेंज की गई थीं। माधवी सब कुछ हैरानी से देखती जा रही थी, तभी मेंशन के आंगन में उनकी कार रुक गई। जिसके बाद अर्णव कार से उतर कर सीधा अंदर जाने लगा। कि तभी अखिलेश जी की आवाज उसके कानों से टकराई। अखिलेश जी अर्णव को रोकते हुए बोले, "रुक जाओ अर्णव, अंदर कहाँ जा रहे हो? पहले बहू को आने दो। उसके बाद गृह प्रवेश के बाद ही तुम अंदर जा सकोगे।" उनकी बात सुनकर अर्णव ने गुस्से में अपनी मुट्ठियां भींच लीं और अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए उनकी तरफ देखते हुए बोला, "बस दादा जी, अब तक आपने मुझे जितना नाटक करने को कहा, मैंने किया। क्योंकि उस वक्त आपकी और हमारे खानदान की इज्जत की बात थी। लेकिन अब और नहीं। अब मुझसे यह नाटक नहीं होगा। और वैसे भी यहाँ सिर्फ घरवाले हैं, जो कि सारा सच जानते हैं। तो मुझे नहीं लगता अपने परिवार वालों के आगे मुझे उस लड़की को अपनी पत्नी मानने का नाटक करना चाहिए।" इतना कहकर अर्णव बिना किसी की एक भी बात सुने सीधा अंदर चला गया। वहीं कार में बैठी माधवी, जो उसकी एक-एक बात सुन रही थी, उसकी आँखों से एक बार फिर आँसू बह निकले। अर्णव के कहे एक-एक लफ्ज़ उसके दिल पर किसी खंजर की तरह बार कर रहे थे। लेकिन विडंबना यह थी कि अपना दर्द बाँटने के लिए उसके पास कोई भी नहीं था। और उसका हमसफर, जिसके भरोसे वह यहाँ इन अनजान लोगों के बीच चली आई थी, वह तो खुद निर्मोही बन बैठा था। पर वह दोष किसे दे? क्योंकि जो कुछ उसके साथ हो रहा था, उसमें दोष किसी का नहीं था। यह सब कुछ तो किस्मत का खेल था, जिसमें आज उसकी वजह से अर्णव भी फँस चुका था। वह खुद अपने प्यार से दूर होकर बेइंतहा दर्द में तड़प रहा था। अर्णव के लिए इन सब बातों को सोचते हुए माधवी के दिल में अर्णव के लिए हमदर्दी पैदा हो रही थी। अगर आज अनुष्का उसके पास होती, तो वह उसे जरूर पूछती कि उसने क्यों अर्णव जैसे अच्छे इंसान को धोखा दिया? क्यों उससे एक बार अपनी ख्वाहिशों को साझा नहीं किया? उसकी सोच पर विराम तब लगा जब सुनीता जी उसकी कार के पास आईं और दरवाज़े को खोल उसे बाहर निकलने के लिए बोलने लगीं। तो माधवी ने जल्दी से अपने आँसू साफ़ किए और फिर अपने लहंगे को संभालते हुए धीरे से बाहर निकल आई। सुनीता जी उसे सहारा देते हुए मेन डोर तक ले आईं और अपनी देवरानी रमा को आवाज देने लगीं। रमा जी और उनकी बेटी पायल गृह प्रवेश का सारा सामान ले आईं। रमा जी ने आरती की थाल सुनीता जी को दे दी और खुद ने झुक कर अक्षत का कलश और आलते की थाल माधवी के सामने रख दी। सुनीता जी ने माधवी की आरती की और फिर माधवी से बोलीं, "अपने सीधे पैर से उसे ठोकर मार कर फिर अपने पैरों की छाप छोड़ते हुए इस घर में आओ।" तो माधवी ने उनकी बात मान कर वैसा ही किया और कलश को हल्की सी ठोकर मार कर आलते की छाप छोड़ते हुए अंदर आ गई। जिसके बाद सुनीता जी उसे घर में बने मंदिर में ले गईं। वहीं उसके पांव की छाप को अखिलेश जी बड़े गौर से देख रहे थे। तो सुरेखा जी, अर्णव की दादी, ने जब उन्हें इस तरह देखा, उनके पास आकर उनसे बोलीं, "क्या हुआ? आप बहू के पैरों की छाप को इस तरह क्यों देख रहे हैं?" उनकी बात पर अखिलेश जी मुस्कुराते हुए उनसे बोले, "वो इसीलिए क्योंकि हमारे घर लक्ष्मी आई है, जो हमारे घर में दिन दुगनी रात चौगुनी बरकत लेकर आएगी। किस्मत वाला है अर्णव, जो उसे माधवी जैसी लड़की का साथ मिला। अगर एक बार अर्णव माधवी को दिल से अपना ले ना, तो सच कह रहा हूँ, उसके भाग्य को खुलने से कोई नहीं रोक सकता।" उनकी बात पर सुरेखा जी मुँह बनाते हुए बोलीं, "रहने दीजिए। कह तो ऐसे रहे हैं आप, जैसे बहुत बड़े ज्योतिषी बन गए हो। अगर ऐसा है, तो सबूत दीजिए।" उनकी बात पर अखिलेश जी मुस्कुराते हुए उन्हें देखकर बोले, "सबूत तो हमारे आगे जीता जागता खड़ा है, और कितना सबूत चाहिए आपको?" (उनकी बात पर सुरेखा जी ने हैरानी से उन्हें देखा) "भूल गई आप, जब आप इस घर में आई थीं, तब हमने आपके बारे में भी यही कहा था। और देखिए, आपके आने के बाद हमें कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ा। और रही सही कसर सुनीता बहू ने पूरी कर दी। उनके आने के बाद टॉप 10 में शामिल कंपनी टॉप फाइव में आ गई, जिसे अर्णव ने अपनी मेहनत से मुंबई की नंबर वन कंपनी बना दिया।" उनकी बात पर सुरेखा जी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि वह जानती थीं अखिलेश जी ने अभी जो कुछ भी कहा, वह बातें सौ टका सच थीं। इसके बाद दोनों मिलकर मंदिर की तरफ चले गए, जहाँ पर सुनीता जी और रमा जी माधवी से मंदिर की दीवारों पर हल्दी की छाप लगवा रही थीं। इसके बाद दोनों माधवी को लेकर नीचे बने गेस्ट रूम में ले गईं, ताकि वह कुछ देर आराम कर सके। रूम में आकर सुनीता जी माधवी से बोलीं, "बेटा, अब तुम अपना घूँघट ऊपर कर लो। आई नो, इसकी वजह से तुम्हें प्रॉब्लम हो रही होगी।" उनकी बात पर माधवी ने धीरे से अपना घूँघट ऊपर कर लिया। तो रमा जी उसे देखती ही रह गईं। उनकी आँखों में उसे देखकर प्रशंसा के भाव थे। "वाओ! आप कितनी खूबसूरत हो! इन फैक्ट, अनु भाभी से भी ज़्यादा।" पायल की आवाज सुनकर सभी ने पीछे देखा। तो पायल माधवी के लिए कुछ खाने को ला रही थी। पर उसकी आगे की बात सुनकर सुनीता जी के चेहरे के भाव कठोर हो गए। वह पायल की तरफ मुड़ते हुए बोलीं, "अनुष्का इस घर की अब कोई नहीं है पायल। अब तुम्हारी भाभी माधवी है, वो लड़की नहीं, और इस घर की बहू भी। तो ध्यान रहे, आगे से इस घर में उसका ज़िक्र भी ना हो।" उनकी बात पर पायल ने हाँ में सर हिला दिया। वह समझ गई थी कि अनजाने में ही उसने कुछ गलत कह दिया था। फिर वह माधवी की तरफ मुड़ते हुए बोली, "अब तुम फ्रेश होकर कुछ खा लो और आराम करो। रस्में तो अब होने से रही, क्योंकि अर्णव अब कोई रस्में नहीं करने वाला। इसीलिए बाकी बातें हम बाद में करेंगे।" इतना कहकर सुनीता जी रमा को इशारा कर अपने साथ ले गईं। वहीं पायल माधवी के पास आई और उससे बोली, "भाभी, अब आप कुछ खा लीजिए और आराम कीजिए। और हाँ, सॉरी, अभी मैंने जो कुछ भी कहा वो गलती से कहा। मेरा आपको हर्ट करने का कोई इंटेंशन नहीं था।" तो माधवी उसकी बात पर हल्की सी मुस्कुराते हुए बोली, "इट्स ओके। मुझे बुरा नहीं लगा। आपकी बातों का वैसे भी, जिन हालातों में यह शादी हुई, उससे सारी चीजें एक्सेप्ट करने में थोड़ा तो वक़्त लगेगा।" उसकी बात पर पायल खुश होते हुए उसके गले लगती हुई बोली, "यार, आप तो बड़े इंटेलिजेंट हो! मुझे लगा कहीं आपने मुझे गलत ना समझ लिया हो। एनीवे, इन सब बातों को छोड़िए और अपने बारे में कुछ बताइए, जिससे मैं आपको थोड़ा जान पाऊँ।" तो माधवी हिचकिचाते हुए बोली, "अपने बारे में मैं क्या बताऊँ? सब कुछ तो आपको पता ही है।" तो पायल उसे अपने साथ बेड पर बैठाते हुए बोली, "हाँ, पता होगा, लेकिन फिर भी मैं आपसे जानना चाहती हूँ। सच कहूँ तो मुझे आपकी आवाज बड़ी प्यारी लग रही है सुनने में। ऐसा लग रहा है जैसे कोई कानों में मिश्री घोल रहा हो। प्लीज, अब आप यह मत समझना कि मैं आपको मक्खन लगा रही हूँ। बस सच में मुझे आप बहुत अच्छी लगी हो, बस इसीलिए आपसे आपके बारे में जानना चाहती हूँ।" उसकी बात सुनकर माधवी खिलखिला कर हँस पड़ी। वहीं पायल उसकी खनकती हँसी में खो कर रह गई। उसे खुद में यूँ खोए हुए देख माधवी ने उसके सामने हाथ हिलाया। तब वह होश में आई। माधवी ने उससे इशारे में पूछा कि क्या हुआ। तो पायल उससे बोली, "कुछ नहीं। अच्छा आप यह बताओ, आप कहाँ रहते हो? क्योंकि आज से पहले जब भी हम गुप्ता हाउस गए, वहाँ हमारी कभी मुलाकात नहीं हुई।" तो माधवी उसे बताते हुए बोली, "मैं दिल्ली में रहती हूँ। वहीं से बीकॉम कर रही हूँ। फिलहाल सेकंड ईयर में हूँ। शादी के लिए लीव एप्लीकेशन डाली थी, जो कि एक्सेप्ट हो गई, तो मैं यहाँ आ गई।" तो पायल उससे बोली, "ओके। लेकिन अब आप क्या करोगे? क्या वापस दिल्ली जाओगे?" तो माधवी उसे बताते हुए बोली, "पता नहीं। यह तो पापा और यहाँ अंकल-आंटी जी के ऊपर है। अगर वह वहाँ जाने देंगे, तो वहाँ चली जाऊँगी। नहीं, तो फिर मुझे यहाँ किसी कॉलेज में ट्रांसफर करवाना पड़ेगा।" तो पायल खुश होते हुए बोली, "हाँ, यह सही है। इससे आपको स्टडी करने में कोई प्रॉब्लम भी नहीं होगी और ना ही आपको यहाँ से कहीं दूर जाना पड़ेगा। इन फैक्ट, क्यों ना आप मेरे कॉलेज में एडमिशन ले लो? वहाँ हम दोनों साथ मिलकर स्टडी कर लेंगे। वैसे आपकी एज कितनी है?" तो माधवी, "हाँ, मैं पापा से बात करूँगी। वह सारी अरेंजमेंट कर देंगे। और वैसे तो २० साल की हूँ, लेकिन नेक्स्ट मंथ ११ तारीख को २१ की हो जाऊँगी।" तो पायल शॉक्ड होकर बोली, "व्हाट! इसका मतलब आप भाई से आठ साल छोटी हो, क्योंकि एक महीने पहले ही भाई 28 के हो चुके हैं।" तो माधवी हल्के से मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ, क्योंकि उनकी शादी दी से होने वाली थी, और वह मुझसे पाँच साल बड़ी है। तो उनके लिए अर्णव जी बिल्कुल परफेक्ट थे।" उसकी बात पर पायल शांत हो गई और फिर थोड़ी बहुत बातें करने के बाद वहाँ से चली गई। सभी शादी की वजह से कल के थके हुए थे, तो सब अपने कमरे में चले गए और आराम करने लगे। वहीं माधवी, पायल के जाने के बाद बाथरूम जाकर फ्रेश हो आई और फिर बेड पर बैठकर अब तक जो हुआ उसके बारे में सोचने लगी। उसने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था। धीरे-धीरे थकावट की वजह से उसकी भी आँख लग गई। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 8. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 8

    Words: 2293

    Estimated Reading Time: 14 min

    सभी शादी की वजह से कल के थके हुए थे, तो सब अपने कमरे में चले गए और आराम करने लगे। माधवी, पायल के जाने के बाद, बाथरूम जाकर फ्रेश हुई। फिर बेड पर बैठकर अब तक जो हुआ उसके बारे में सोचने लगी। उसने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था। धीरे-धीरे थकावट की वजह से उसकी भी आँख लग गई। शाम को दरवाजे पर हो रही नॉक की आवाज से माधवी की नींद खुली। अपने सामने सुनीता जी को देखकर वह एकदम से उठकर खड़ी हो गई और अपना दुपट्टा ठीक करने लगी। सुनीता जी उसे इस तरह हड़बड़ाते देख उसके पास आईं और बोलीं, "अरे नहीं, तुम्हें उठने की ज़रूरत नहीं है। मैं तो तुमसे कुछ बातें करने आई थी।" इतना कहकर वे खुद माधवी के साथ बेड पर बैठ गईं। तभी उनकी नज़र टेबल पर रखे खाने पर गई। वे माधवी की तरफ देखते हुए बोलीं, "यह क्या? तुमने अभी तक कुछ खाया क्यों नहीं?" माधवी अपनी नज़रें झुकाए हुए हिचकिचाकर बोली, "वो बस भूख नहीं थी आंटी।" उनकी बात पर सुनीता जी कुछ पल खामोश रहीं। फिर उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए बोलीं, "समझ सकती हूँ मैं तुम्हारी हालत, कि तुम किस तकलीफ़ से गुज़र रही हो, जिसकी कुछ हक़दार मैं भी हूँ। अगर उस वक्त अनुष्का के साथ मैंने तुम्हारे बारे में बुरा नहीं कहा होता, तो शायद आज मुझसे बात करने में तुम इतना सोचती नहीं। लेकिन माधवी, तुम भी सोचो, मैं एक माँ हूँ जिसके सामने उस वक्त उसका बेटा किसी के धोखे की वजह से दर्द में तड़प रहा था। जिसकी वजह से मेरे मन में जो आया, मैंने वो कहा। इस वक्त परिस्थितियाँ बहुत उलझी हुई हैं। ये जो कुछ भी हुआ है, उसे एक्सेप्ट करने में सभी को बहुत टाइम लगने वाला है। ख़ासकर तुम्हें और अर्नव को, क्योंकि इस शादी से सबसे ज़्यादा इफ़ेक्ट तुम दोनों की ज़िंदगी पर पड़ा है। इसीलिए तुम्हें संयम और शांति से इस घर के लोगों को और हर रिश्ते को समझना होगा। मेरा अर्नव बहुत गुस्से वाला है, इसीलिए उससे मैं ऐसी उम्मीद नहीं कर सकती, सिर्फ़ तुमसे ही कर सकती हूँ।" उनकी बात पर माधवी धीरे से बोली, "मैं पूरी कोशिश करूँगी आंटी, कि मेरी वजह से इस परिवार के लोगों को और उन्हें कोई तकलीफ़ ना हो।" (फिर मन में) "पूरी कोशिश करूँगी जल्द से जल्द अनु दी को ढूँढ कर अर्नव जी की ज़िंदगी में वापस लाने की, जिससे सब कुछ पहले जैसा हो जाए।" उनकी बात पर सुनीता जी प्यार से उसका गाल छूते हुए बोलीं, "वो तो तुम तब करोगी जब खुद मज़बूत बनोगी। कोई भी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेने के लिए पहले खुद को मज़बूत बनाना चाहिए और उसके लिए खाना ज़रूरी होता है। किसी भी परेशानी का सॉल्यूशन खाना छोड़कर नहीं निकलता। और हाँ, आंटी की जगह माँ बोल सकती हो, मैं बुरा नहीं मानूँगी। अब तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने के लिए भेजती हूँ क्योंकि यह तो ख़राब हो गया होगा। और इस बार खाना ख़त्म कर देना, वरना तुम मेरा वो कड़क सासू माँ वाला रूप देखोगी।" फिर थोड़ा सीरियस होकर माधवी से बोलीं, "मैं यहाँ यह कहने आई थी कि अर्नव अभी इस शादी को मानने के लिए तैयार नहीं है और वो बहुत गुस्से वाला भी है। तो मुझे डर है अगर तुम उसके साथ एक कमरे में रही, तो वो तुम्हें कोई चोट ना पहुँचा दें। इसीलिए मैंने तुम्हारा सामान उसके बगल वाले रूम में रखवा दिया है, अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम ना हो तो।" माधवी उनकी बात का मतलब समझकर हल्के से मुस्कुराते हुए बोलीं, "मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है माँ। वैसे इन सब चीज़ों से निकलने के लिए मुझे भी थोड़ा वक़्त चाहिए, तो आप बेफ़िक्र रहिए, मैं आराम से वहाँ रह लूँगी।" सुनीता जी मुस्कुराकर प्यार से उसकी गाल को छूते हुए बोलीं, "थैंक्यू बेटा, तुमने मेरी सारी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी। वरना मैं डर रही थी कि तुमसे इस बारे में कैसे बात करूँगी, पता नहीं तुम मेरी बात को समझोगी भी या नहीं। अच्छा अब तुम बैठो, तब तक मैं तुम्हारा कमरा सेट करवा देती हूँ।" उनकी बात पर माधवी मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला देती है। सुनीता जी उस खाने को उठाकर वहाँ से लेकर चली जाती हैं। थोड़ी देर बाद एक मेड माधवी के लिए खाना ले आती है। इस बार माधवी चुपचाप से खाना खा लेती है क्योंकि कल से उसने कुछ भी नहीं खाया था। थोड़ी देर बाद पायल आकर माधवी को उसके रूम में ले जाती है। माधवी रूम में आई और उसने रूम को देखा। तो सच में रूम बेहद खूबसूरत था, उसका सारा सामान भी सेट कर दिया गया था। तभी पायल माधवी से बोली, "अच्छा भाभी, अब आप आराम करो और इस भारी-भरकम लहंगे को भी चेंज कर लो। मैं अपने कमरे में जाती हूँ। अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो आवाज़ लगा देना, नहीं तो किसी मेड को बुला लेना।" इतना कहकर पायल जाने लगी, कि माधवी उसे रोकते हुए हिचकिचाकर बोली, "रुकिए, वो, मुझे, जाना था, कि वो, वो आपके भाई का रूम कौन सा है? मुझे उनसे कुछ बात करनी है।" पायल कुछ पल खामोश रही। फिर माधवी से बोली, "ये लेफ्ट साइड वाला रूम खुशी और मेरा है और वो राइट साइड कॉर्नर पर जो रूम है वही भाई का है। लेकिन अच्छा होगा कि आप इस वक़्त उनसे बात ना करें। वो वैसे ही बहुत गुस्से वाले हैं और इस वक़्त अनुष्का के जाने की वजह से उन पर गुस्सा हावी है। ऐसे में कहीं वो आपको चोट ना पहुँचा दें।" माधवी उसे समझाते हुए बोली, "डोंट वरी, आप चिंता मत कीजिए, मैं सब संभाल लूँगी। मुझे सिर्फ़ उनसे बात करनी है, और कुछ नहीं।" तो पायल सर हिलाते हुए वहाँ से चली गई। माधवी ने अपने पर्स में से कुछ पेपर निकाले और अपने रूम से बाहर निकल आई। वह चलकर अर्नव के रूम के पास आई। फिर गहरी साँस लेकर उसके रूम का दरवाज़ा नॉक करने लगी, पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। उसने फिर खुद से दरवाज़ा खोला और हिम्मत करके अंदर चली गई। उसने नज़रें घुमाकर पूरे रूम को देखा। अर्नव का रूम बेहद खूबसूरत था, जोकि मेंशन के बाकी कमरों से काफ़ी बड़ा था। बेड के सिरहाने वाली दीवार पर अर्नव की बड़ी सी फ़ोटो लगी हुई थी, जिसमें उसने बड़े स्टाइल के साथ अपने बालों में हाथ डाला हुआ था। वहीं बालकनी की तरफ़ वाली दीवार पर अर्नव और अनुष्का की बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी, जिसमें दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब थे। अनुष्का के हाथ अर्नव के सीने पर थे, तो अर्नव के हाथ उसकी कमर को थामे हुए थे और दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे। उस तस्वीर को देखकर अनायास ही माधवी के मन में टीस उठी और उसने उस तस्वीर से अपनी नज़रें फेर लीं। उसने रूम को देखा, तो पूरा रूम अनुष्का की पसंद से रेनोवेट किया गया था। अभी वो इधर-उधर देख ही रही थी, कि तभी किसी ने पीछे से उसके हाथ को पकड़कर मोड़ते हुए उसकी कमर से लगा दिया, जिससे माधवी दर्द से कराह उठी। तभी एक कड़क रौबिली आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस कमरे में आने की? किससे इजाज़त लेकर तुम इस कमरे में आई? मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, ना तो मैं इस शादी को मानता हूँ और ना ही तुम्हें कभी अपनी बीबी होने का हक़ दूँगा। मैं सिर्फ़ अपनी अनुष्का से प्यार करता हूँ, इसीलिए मुझ पर और इस कमरे पर सिर्फ़ उसका हक़ है। एक बार अनु वापस आ जाए, उसके बाद इस घर से मैं खुद तुम्हें यहाँ से धक्के मारकर बाहर निकाल लूँगा। तो आइंदा से इस कमरे में अपने क़दम रखने की कोशिश भी मत करना, वरना अंजाम बहुत बुरा होगा, जितना तुम सोच भी नहीं सकती।" इतना कहकर एक झटके से उसका हाथ छोड़ देता है जिससे माधवी खुद को संभाल नहीं पाती और नीचे गिर जाती है, जिस वजह से पास रखी टेबल से उसके हाथ में चोट लग जाती है और दर्द के कारण उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं, लेकिन वो खुद को संभाल लेती है। माधवी अपने आँसुओं को आँखों में जप्त कर खड़ी होती है और फिर अर्नव की ओर मुड़ते हुए अर्नव की ओर देखकर बोली, "उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी मिस्टर सिंघानिया। एक बार दी वापस आ जाएँगी तो मैं खुद ही यहाँ से चली जाऊँगी। और मैं यह भी जानती हूँ कि आप इस शादी को नहीं मानते, तो मैं भी यहाँ आपके पास आपकी बीवी होने का हक़ माँगने नहीं आई हूँ। और अगर ज़रूरी नहीं होता, तो आपके सामने भी नहीं आती।" इतना कहकर खामोश हो जाती है। वहीं अर्नव का ध्यान तो उसकी बातों पर था ही नहीं, वो तो एकटक माधवी को देख रहा था। शादी के बाद से अब जाकर उसने पहली बार माधवी को देखा था और उसे देखता ही रह गया था। उसका गोरा दमकता रंग, उसकी हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी गहरी काली आँखें, साँचे में ढले गुलाबी होंठ और उसके नीचे लेफ्ट साइड बना छोटा सा तिल जो कि अर्नव के दिल पर वार कर रहा था। आज से पहले शायद ही अर्नव ने माधवी जैसी लड़की को देखा था और पहली बार में ही अपने होश खो बैठा था। माधवी को देखते ही उसका दिल जोरों से धड़क उठा था। तभी उसे अनुष्का का ख़्याल आया तो उसने अपने सभी ख़्यालों को झटक दिया। तभी माधवी की आवाज़ में उसका ध्यान अपनी ओर खींचा। माधवी ने अपने हाथ में पकड़े उन पेपर्स को अर्नव के सामने टेबल पर रख दिया और उसकी तरफ़ देखते हुए बोली, "इन पेपर्स में अनु दी के सभी फ्रेंड्स के बारे में डीटेल्स, उनका एड्रेस और उनके कांटेक्ट नंबर्स हैं। इससे आपको दी को ढूँढने में काफ़ी मदद मिलेगी। मैं बस यही आपको देने आई थी।" उसकी बात सुनकर अर्नव सोच में पड़ गया कि उससे शादी करने के बाद भी यह लड़की उसकी मदद करने को तैयार है, लेकिन क्यों? जबकि वह इतने बड़े घर की बहू बनकर आई है, जहाँ वह रानी बनकर राज करेगी। इन्हीं बातों को सोचते हुए अर्नव माधवी का मज़ाक उड़ाते हुए बोला, "क्यों इतनी बड़ी मेहरबानी? वो भी मुझ पर? करने की वजह जान सकता हूँ? क्या यह शानो-शौक़त की ज़िंदगी तुम्हें पसंद नहीं आई?" माधवी हल्के से मुस्कुराते हुए बोली, "नहीं मिस्टर सिंघानिया, मुझे आपकी यह शानो-शौक़त की ज़िंदगी नहीं चाहिए। और आप यकीन मानें या ना मानें, लेकिन अगर पापा की क़सम के हाथों मजबूर नहीं होती, तो क़सम महादेव की कभी आपसे शादी नहीं करती।" (उसकी बात सुनकर अर्नव एकटक उसे देखने लगा) वही माधवी अर्नव से अपनी नज़रें फिरते हुए आगे बोली, "हर लड़की के अपने जीवनसाथी को लेकर कुछ सपने होते हैं, मेरे भी थे, जिसमें कभी यह दौलत और शोहरत नहीं थी। था तो एक सच्चा हमसफ़र जो दिल और जान से मुझे चाहे, जो सिर्फ़ मेरा हो, जो सिर्फ़ मुझसे प्यार करे, जिसके दिल और दिमाग में सिर्फ़ मैं रहूँ।" (फिर अपनी नम आँखों से अर्नव की तरफ़ देखते हुए) "पर आप वो नहीं हैं, क्योंकि आपका दिल और दिमाग तो सिर्फ़ दी में बसा हुआ है। फिर ऐसी शानो-शौक़त की ज़िंदगी जीकर मैं क्या करूँगी, जिसमें मेरा हमसफ़र ही मेरे साथ ना हो? क्योंकि यह सब तो एक ना एक दिन हमसे दूर हो ही जाता है, लेकिन जीवनसाथी वो मरते दम तक साथ निभाता है। इसलिए आप मेरी तरफ़ से निश्चिंत रहिए, कि आगे चलकर कभी भी मैं आप पर अपना हक़ जताऊँगी या आपके और अनु दी के बीच आऊँगी। मैं यहाँ हूँ तो सिर्फ़ अपने पापा को दिए वचन की वजह से, लेकिन एक बार दी आ गई तो फिर मैं उस वादे से मुक्त हो जाऊँगी। तो यह मैं आप पर मेहरबानी नहीं कर रही, बल्कि खुद की मदद कर रही हूँ।" अपनी बात कहकर माधवी अर्नव के बगल से होते हुए उसके कमरे से चली जाती है। वहीं उसके बगल से निकलने से अर्नव के दिल को एक एहसास छूकर जाता है और माधवी की खुशबू उसकी साँसों में समा जाती है, जो उसके दिल को सुकून पहुँचा रही थी। वहीं उसके दिलो-दिमाग़ में माधवी की बातें चल रही थीं। पता नहीं क्यों, लेकिन माधवी की बातें सुनकर उसे गुस्सा आ रहा था। वो माधवी का खुद को नकारना सहन नहीं कर पा रहा था। आज तक जितनी भी लड़कियाँ उसे मिली थीं, सभी उसके लुक, पर्सनालिटी और अमीर होने की वजह से उसके आगे-पीछे मँडराती रहती थीं और कोई ना कोई ट्रिक लगाकर उसे हासिल करने पर लगी रहती थी। लेकिन यह लड़की, जिसकी उसके साथ शादी हो चुकी थी, जिसके पास सिंघानिया खानदान की बड़ी बहू होने के साथ मुंबई के नंबर वन बिज़नेसमैन अर्नव सिंघानिया की बीवी होने का टाइटल आ चुका था, वो उसे सरासर नकार कर चली गई थी, जोकि अर्नव की घनघोर बेइज़्ज़ती थी, जो उससे सहन नहीं हो रही थी। अर्नव ने टेबल पर रखे पेपर्स को उठाया और एक नज़र देख उन्हें वापस से सोफ़े पर पटककर अपनी टाई लूज़ करते हुए बाथरूम की ओर बढ़ गया। कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 9. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 9

    Words: 1867

    Estimated Reading Time: 12 min

    अगली सुबह सभी लोग उठ चुके थे। अर्णव भी जल्दी उठ चुका था। आज उसकी महत्वपूर्ण मीटिंग थी, जिस वजह से वह लेट नहीं होना चाहता था। इसीलिए वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे आ रहा था। कि तभी उसकी नज़र सामने किचन में काम करती माधवी पर ठहर गई। उसे देखते हुए वह गिरते-गिरते बचा, पर उसे होश कहाँ था? वह तो माधवी को देखने में व्यस्त था। और उसके दिल ने तो रफ़्तार ही पकड़ ली थी। सामने माधवी किचन में पूरियाँ तल रही थी। उसने गहरे गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी, जिस पर हल्का-हल्का गोल्डन कलर का वर्क था। जिसमें से उसकी गोरी कमर साफ़ दिख रही थी। साथ ही कानों में बड़े-बड़े झुमके, हाथों में गोल्डन और पिंक चूड़ियाँ, जो पूरियाँ बेलते हुए खनक रही थीं। लंबे बालों का जूड़ा बनाया हुआ था, जिसकी एक लट उसके गालों को बार-बार चूम रही थी। कुल मिलाकर आज माधवी कयामत ढा रही थी। तभी माधवी ने गैस ऑफ की और खाने को बाहर आने लगी। उसकी पायल शोर करने लगी, जिससे अर्णव की धड़कनें शोर करने लगीं। तभी माधवी ने खाने को टेबल पर लगाना शुरू कर दिया। जिससे अर्णव अपने होश में वापस आया और उसने अपनी नज़रें माधवी पर से हटा लीं। पर उसे पता नहीं था कि सुनीता जी उसकी इस हरकत को पहले ही नोट कर चुकी थीं। घर के सभी सदस्य डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए। माधवी उन्हें नाश्ता सर्व करने लगी, जिसमें घर के दो नौकर भी उसकी मदद कर रहे थे। जब दादाजी ने खाना देखा तो वे खुशी से चीख पड़े और खुश होते हुए माधवी से बोले: "वाओ! पूरियाँ, आलू की सब्ज़ी, खीर, गुलाब जामुन... यह सब कुछ तो मेरा फेवरेट है! थैंक्यू बेटा, आज इतना अच्छा नाश्ता सर्व करने के लिए।" तो दादी जी उन्हें डाँटते हुए बोलीं: "हाँ तो आपको ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है। यह जो कुछ भी है ना, इसमें से आपको कुछ भी नहीं मिलने वाला। आपके लिए अलग से खिचड़ी बन रही है। भूल गए आप को डायबिटीज़ है, डॉक्टर ने मीठा खाने से मना किया है! फिर भी आप बच्चों जैसे खुश हो रहे हैं!" तो दादाजी उन्हें मनाते हुए बोले: "अरे भाग्यवान, अब छोड़ो ना उस डॉक्टर की बातों को। उस मूर्ख का बस चले तो मुझे दिनभर करेले का जूस पिला-पिला कर ही मार डाले। अब एक दिन की ही तो बात है, मेरी बहू ने इतनी प्यार से इतना अच्छा नाश्ता बनाया है, तो थोड़ा सा खा लूँगा, तो उससे क्या बिगड़ जाएगा!" तो दादी जी उन्हें फिर से डाँटने वाली थीं कि माधवी उन्हें रोकते हुए बोली: "रुकिए दादी जी, दादू को सब कुछ खाने दीजिए। यह सब मैंने आप सब की सेहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाया है, और यह मिठाइयाँ सभी शुगर-फ़्री हैं, तो आप सब आराम से खा सकते हैं।" वह खामोश हो गई क्योंकि घर में अभी तक उसने किसी से ज़्यादा बातें नहीं की थीं। नाश्ता भी उसने सुनीता जी के कहने पर बनाया था। दादी जी उसकी बात पर सिर्फ़ हाँ में सर हिला देती हैं। तभी राकेश जी और उनके भाई बृजेश जी भी आकर नाश्ता करने बैठ जाते हैं। माधवी जल्दी से उन्हें भी नाश्ता सर्व कर देती है। सभी लोग खाना खाना शुरू करते हैं, उन्हें खाना काफ़ी पसंद आता है और सभी माधवी की तारीफ़ करने लगते हैं। पर अर्णव को भी खाने की खुशबू से ज़ोरों की भूख लग आई थी। पर उसे अपने घरवालों का माधवी की तारीफ़ करना अच्छा नहीं लगता, इसीलिए वह अपनी नज़रें फेर कर वहाँ से निकलने लगता है। कि तभी अखिलेश जी की नज़र उस पर पड़ जाती है। वे उसे रोकते हुए बोले: "अरे अर्णव, तुम इतनी जल्दी कहाँ जा रहे हो? अभी तो ऑफ़िस का टाइम भी नहीं हुआ, और आज नाश्ता नहीं करना क्या? देखो बहू ने आज कितना बढ़िया खाना बनाया है, तुम भी खाकर देखो, आखिर अपनी बीवी के हाथों का खाना!" उनकी बात सुनकर अर्णव ने एक नज़र माधवी को देखा, फिर जानबूझकर उसे इग्नोर करते हुए अपने दादा जी से बोला: "नो थैंक्स, मुझे भूख नहीं है। इसीलिए आप ही खाइए अपनी बहू के हाथ का खाना, और इसे मेरी बीवी कहना बंद कीजिए। यह मेरी बीवी नहीं है, सिर्फ़ आपकी बहू है, और मेरी ज़रूरी मीटिंग है, तो मुझे जल्दी जाना है। मैं बाहर से ही कुछ खा लूँगा।" वह वहाँ से निकलने लगा। तभी बृजेश जी तिरछी नज़रों से उसे देखकर माधवी से बोले: "अरे वाह! पहली बार कोई ऐसा बेवकूफ़ देखा है जो इतने टेस्टी खाने को छोड़कर बाहर का बेस्वाद खाना खाने की बात करे। मेरी तो इस खाने की खुशबू से ही भूख डबल हो गई। माधवी बेटा, ऐसा करना, अगर खाना ज़्यादा बना हो तो एक बड़ा सा टिफ़िन मेरे लिए पैक कर देना। वहाँ मैं खुद भी खा लूँगा और अपने पार्टनर्स को भी खिलाऊँगा। देखना तुम्हारे हाथों का खाना उन्हें बहुत पसंद आएगा, फिर तो वे रोज़ ही मुझसे खाने की डिमांड करेंगे!" उनकी बात का मतलब समझकर माधवी ने भी तिरछी नज़रों से अर्णव को देखा, फिर परेशानी भरे भाव अपने चेहरे पर लाते हुए बोली: "पर चाचा जी, मैंने तो खाना सिर्फ़ आप लोगों के लिए ही बनाया था, और अब सिर्फ़ थोड़ा सा ही खाना बचा है, तो ऐसे में टिफ़िन कैसे पैक करूँ? आप पहले बता देते तो मैं ज़्यादा बना लेती।" तो बृजेश जी भी परेशानी का नाटक करते हुए बोले: "हाँ, और उसे तो तुम खाओगी, क्योंकि तुम भी तो भूखी हो।" माधवी ने भोली सी सूरत बनाकर हाँ में सर हिला दिया। घर में किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये दोनों इतनी अजीब बातें क्यों कर रहे हैं। सुनीता जी भी हैरान थीं क्योंकि उन्होंने अभी भी किचन में काफ़ी सारा खाना रखा हुआ देखा था। उन्हें समझ नहीं आया कि माधवी बृजेश जी को टिफ़िन देने से मना क्यों कर रही है। तभी बृजेश जी उदासी भरे भाव से बोले: "ठीक है, कोई बात नहीं, उसे तुम खा लेना और नेक्स्ट टाइम थोड़ा ज़्यादा बनाना, जिससे मैं ऑफ़िस ले जा सकूँ।" माधवी ने हाँ में सर हिला दिया। अर्णव अभी भी वहीं खड़ा उनकी बातें सुन रहा था। उसने जब सुना कि थोड़ा सा ही खाना बचा है, वह भी माधवी के लिए, तो उसके दिमाग में माधवी को परेशान करने के लिए एक शरारत सूझी। वह जल्दी से उन लोगों के पास आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया और सुनीता जी से बोला: "माँ, आज मुझे मीटिंग में बहुत टाइम लगने वाला है, इसीलिए मैं सोच रहा हूँ नाश्ता करके ही जाऊँ, इसीलिए आप मुझे खाना सर्व कर दो।" फिर तिरछी नज़रों से माधवी को देखते हुए उसने कहा: "वैसे भी, यहाँ जितना भी खाना बना है, वह सब हमारे घर के राशन से बना है, कोई अपने पापा के घर से नहीं लेकर आया, तो फिर मैं क्यों किसी और की वजह से भूखा रहूँ।" उसकी बात सुनकर माधवी समझ गई कि अर्णव ने उसे सुनाते हुए यह बात कही थी, लेकिन उसे उसकी बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ा। क्योंकि वह तो यही चाहती थी कि अर्णव उसकी वजह से खाना छोड़कर ना जाए। वैसे भी उसे अर्णव के लिए बहुत बुरा लग रहा था कि उसकी वजह से वह अनुष्का से दूर हो गया था। सुनीता जी हैरान थीं कि अचानक से उनका बेटा इतना अजीब बर्ताव क्यों कर रहा है। उन्होंने माधवी को देखा, तो माधवी ने उन्हें अर्णव को खाना परोसने का इशारा किया। तो उन्होंने अर्णव को खाना सर्व कर दिया। अर्णव खाने लगा। उसे खाना काफ़ी पसंद आया, लेकिन वह माधवी को जताना नहीं चाहता था। इसीलिए खाने में नुक्स निकालते हुए वह सब की ओर देखकर माधवी को सुनाते हुए बोला: "इतना भी ख़ास क्या है इस खाने में? नॉर्मल ही तो है। इस सब्ज़ी में तो नमक-मिर्च ही नहीं है। खीर में भी मिठास कम है। ऐसा खाना तो हमारी खुशी भी बनाकर दिखा दे।" उसकी बात सुनकर माधवी का चेहरा उतर गया और चेहरे पर उदासी छा गई, लेकिन उसने किसी के देखने से पहले ही अपने चेहरे के एक्सप्रेशन को नॉर्मल कर दिया और झूठी मुस्कान अपने चेहरे पर ले आई। थोड़ी देर बाद अर्णव खाना खाकर वहाँ से निकल गया। माधवी मुस्कुराते हुए किचन में चली गई। फिर थोड़ी देर बाद एक टिफ़िन लेकर बृजेश जी को देते हुए बोली: "यह लीजिए चाचा जी आपका खाना।" बृजेश जी ने मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फेरा और टिफ़िन लेकर ऑफ़िस के लिए निकल गए। तभी दादाजी ने दादी को इशारा किया, तो उन्होंने माधवी को अपने पास बुलाया। माधवी उनके पास चली आई। दादी ने एक बॉक्स उसके हाथ में थमाते हुए बोला: "यह लो, तुम्हारी पहली रसोई का नेक और हाँ, उस गधे की बातों में मत आना, खाना सच में बहुत अच्छा बना था। वह तो जानबूझकर तुम्हें चिढ़ाने के लिए नाटक कर रहा था, तुमसे नाराज़ है ना, बस इसीलिए।" माधवी ने उस बॉक्स को खोलकर देखा, जिसमें डायमंड के कंगन थे। वह उन्हें वापस करते हुए बोली: "नहीं दादी जी, मैं यह नहीं ले सकती। मेरे लिए आपका आशीर्वाद ही काफ़ी है। आप इन्हें अपने पास ही रखिए।" दादी ने हल्के से उसके गाल पर चपत लगाते हुए बोली: "चुप, पागल लड़की! यह तेरी पहली रसोई का नेक है, इसीलिए इन्हें वापस नहीं करते। इन्हें अपने पास रख।" माधवी ने सुनीता जी की ओर देखा, तो उन्होंने हाँ में अपना सर हिला दिया। माधवी ने चुपचाप से उस बॉक्स को लेकर उनके पैर छू लिए। सुनीता जी और रमा जी ने भी उसे झुमके और पायल गिफ़्ट की। माधवी ने उनका आशीर्वाद लिया, फिर अपने कमरे में जाकर उन सभी चीज़ों को संभालकर एक बॉक्स में रख दिया। अर्णव जब अपने ऑफ़िस पहुँचा, तो उसके सभी एम्प्लॉइज़ हाथों में बुके लेकर खड़े हुए थे। जैसे ही वह अंदर गया, तो सभी एक-एक करके उसे बुके देते हुए शादी की मुबारकबाद देने लगे। जिससे अर्णव का मूड ख़राब हो गया। वह सभी को इग्नोर कर अपने केबिन में चला गया। उसके असिस्टेंट विकास ने सभी से बुके लेकर एक सेपरेट केबिन में रखवा दिए और सभी से अर्णव की मीटिंग को लेकर परेशान होने का बहाना बना दिया, जिससे सब वापस अपना काम करने लगे क्योंकि अब वे अर्णव के गुस्से का शिकार नहीं होना चाहते थे। कहानी जारी है। पाठक अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फ़ॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 10. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 10

    Words: 1262

    Estimated Reading Time: 8 min

    अरनव अपने केबिन में पहुँचा और अपनी टाई ढीली करते हुए कुर्सी पर बैठ गया। उसने अपना फ़ोन निकाला और किसी को कॉल किया। जैसे ही कॉल उधर से उठाया गया, अरनव बोला, "सुनो निखिल, अभी मैं तुम्हें कुछ लोगों के कॉन्टैक्ट नंबर और उनके एड्रेस भेजूँगा। तुम वहाँ जाकर अनुष्का गुप्ता नाम की लड़की का पता लगाओ। अपनी तरफ़ से भी कोशिश करो और मुझे उसकी सही लोकेशन ढूँढ कर दो। इसके लिए तुम जितने पैसे चाहोगे, मैं तुम्हें दूँगा, लेकिन बदले में तुम्हें जल्द से जल्द यह काम करके देना होगा।" इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया। फिर उसने फ़ाइल में रखे पेपर्स की कुछ फ़ोटोज़ क्लिक करके उस नंबर पर भेज दीं और फ़ोन टेबल पर रख दिया। तभी उसकी नज़र अपनी वर्क टेबल पर रखी अनुष्का की फ़ोटो पर पड़ी। उसने उसे हाथ में उठाया और उसे देखते हुए बोला, "क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में अनु, जो तुमने मेरे साथ ऐसा किया? क्या तुम्हें मुझ पर जरा सा भी भरोसा नहीं था जो इस तरह मुझे छोड़कर चली गई? एक बार मुझसे अपने सपने के बारे में कहकर तो देखती।" फिर उसने फ़ोटो को वापस टेबल पर रखते हुए कहा, "इसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगा अनु, कभी नहीं।" इतना कहकर उसने सर कुर्सी से लगाकर अपनी आँखें बंद कर लीं। तभी उसकी बंद आँखों में माधवी का मासूम सा चेहरा आने लगा—जब वह किचन में अपने काम में मग्न थी; उसके बालों का उसे बार-बार परेशान करना; माधवी का उन्हें अदा से पीछे झटकना; उसका हँसता-खिलखिलाता चेहरा जब वह दादी और दादा जी को बहस करते हुए देख रही थी—सब कुछ उसकी बंद आँखों में रील की तरह चलने लगा, जो अरनव के दिल को सुकून पहुँचाने लगा। तभी एक बार फिर से उसके जेहन में अनुष्का का ख्याल आ गया। उसने आगे टेबल पर झुकते हुए अपने सर को पकड़ लिया और गुस्से में खुद से बोला, "व्हाट द हेल! यह क्या हो रहा है मेरे साथ? एक दिन में ही यह लड़की मेरे ऊपर इतना इफ़ेक्ट क्यों कर रही है? क्यों इसका चेहरा मेरे दिमाग से नहीं जा रहा? मुझे जल्द से जल्द इस लड़की को अपने घर से भेजना होगा, वरना इसकी वजह से जैसे अनु मुझसे दूर हुई, वैसे ही मेरे परिवार वाले भी मुझसे दूर हो जाएँगे।" इतना कहकर वह अपने काम में लग गया। धीरे-धीरे सुबह से शाम कब हुई पता ही नहीं चला। शाम को ऑफ़िस बंद होने के बाद वह घर के लिए निकल गया। घर पहुँचकर उसने एक नौकर को उसके कमरे में कॉफ़ी लाने को कहा और ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ गया। वह अपने कमरे की ओर जा ही रहा था कि तभी पायल की आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा। उसके आगे बढ़ते कदम रुक गए। उसने अपने कदम पीछे लिए और अपने कमरे के बाईं ओर बने कमरे के दरवाज़े पर आकर हल्का सा दरवाज़ा खोला। अंदर माधवी को देखते ही उसकी नज़र उस पर ठहर गई। अंदर माधवी टहलते हुए अपनी किताब में ध्यान लगाकर पढ़ाई कर रही थी। उसके पैरों में पहनी पायल शोर कर रही थी। साथ ही उसने एक हाथ में पेन ले रखा था, जिसे वह बार-बार अपने मुँह में देती, तो कभी उसी से अपने उड़ते बालों को, जो उसके गाल पर आ रहे थे, अदा से पीछे कर देती। उसे देखते ही अरनव, जो कि दिन भर ऑफ़िस में काम करके थक गया था, उसे राहत महसूस हुई और उसके दिल में सुकून उतर आया। वह बेख़याली में ही अपने सीने पर हाथ बाँधकर दीवार से लगकर उसे देखने लगा। उसके होठों पर खिलती उसकी हल्की-हल्की मुस्कान, उसकी आँखों की चंचलता, अरनव को उसकी ओर खींच रही थी। तभी अरनव का ध्यान माधवी के होठों के पास बने तिल पर गया, जिसे देखते ही अरनव का दिल जोरों से धड़कने लगा। वह तिल इतना आकर्षक था कि अगर कोई भी लड़का माधवी को देखता, तो उसका ध्यान उस तिल पर ज़रूर जाता। अंदर माधवी मग्न होकर अपनी पढ़ाई कर रही थी। उसे अचानक ऐसा लगा जैसे कोई दरवाज़े से उसे बहुत देर से देख रहा है। उसने अपनी नज़र उठाकर उस तरफ़ देखा। अरनव, माधवी को रुकते देख समझ गया था कि अब वह दरवाज़े की तरफ़ देखने वाली है, इसलिए वह उसके देखने से पहले ही दरवाज़े से उठकर बगल में बने खंभे के पीछे छिप गया। माधवी दरवाज़ा खोलकर बाहर आई और इधर-उधर देखने लगी। अरनव खंभे से बिल्कुल सटकर खड़ा हो गया। माधवी आगे आकर फिर नीचे झुककर हॉल में देखने लगी। उसे कोई नहीं दिखा। तभी पास की खिड़की, जो कि बाहर की तरफ़ खुलती थी, उसमें से तेज हवा अंदर आई, जिसकी वजह से माधवी की साड़ी का पल्लू उड़कर अरनव के चेहरे पर आ गया। एक जाने-पहचाने एहसास की वजह से अरनव की आँखें बंद हो गईं और वह माधवी की खुशबू अनजाने में ही अपनी रगों में समाने लगा, जो उसके दिल को जोरों से धड़काने के साथ एक जाना-पहचाना सुकून भी पहुँचा रही थी, जो अरनव को जाना-पहचाना सा लग रहा था। जब माधवी को कोई नहीं दिखा, तो वह अपना भ्रम समझकर कंधे उचकाते हुए वापस अपने कमरे में चली गई। उसके जाने के बाद अरनव, जो उसके एहसासों में खोया हुआ था, वह होश में आया और मुस्कुराते हुए अपने कमरे में आ गया। उसे अभी भी माधवी की खुशबू अपने रोम-रोम में महसूस हो रही थी, जो उसे सुकून के साथ तरोताज़गी का एहसास करा रही थी। तभी अचानक ही उसके कानों में किसी के गाने के बोल गूँजने लगे: “हाँ हँसी बन गए, हाँ नमी बन गए, तुम मेरे आसमाँ, मेरी ज़मीं बन गए।” इसे याद करते ही अरनव के जेहन में एक बार फिर से अनुष्का का ख्याल आ गया। उसने माधवी के सभी ख्यालों को अपने जेहन से झटक दिया और खुद से बोला, "यह मैं कैसे कर सकता हूँ? कैसे इस लड़की को अपनी अनु के साथ कंपेयर कर सकता हूँ? कैसे जो सुकून मुझे उसकी आवाज़ से मिलता है, उसे इसकी नज़दीकी से कैसे कंपेयर कर सकता हूँ?" इतना कहकर गुस्से में उसने अपने कमरे की चीज़ें इधर-उधर फेंकने लगा। उसे खुद पर ही गुस्सा आ रहा था कि क्यों वह अनुष्का को भूलकर माधवी के ख्यालों में खोने लगा था। उसके बाद वह बिस्तर पर अपना सर पकड़कर बैठ गया और खुद से बोला, "ज़रूर इस लड़की की खूबसूरत शक्ल मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रही है, इसीलिए अब जितना हो सके मुझे उतना इस लड़की से दूर रहना होगा। यही मेरे लिए इन फ़्यूचर अच्छा होगा।" "सर आपकी कॉफ़ी," इतना कहते हुए नौकर अंदर आया, तो कमरे की हालत देख हैरानी से अरनव को देखने लगा। अरनव इस वक़्त बहुत गुस्से में था। इसीलिए वह उस पर चिल्लाते हुए बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बिना नॉक किए अंदर आने की? और नहीं चाहिए तुम्हारी कॉफ़ी, इसलिए जाओ यहाँ से। और आइन्दा से बिना नॉक किए मेरे कमरे में कदम भी मत रखना!" उसकी बात सुनकर वह नौकर जल्दी से वहाँ से भाग गया। कहानी जारी है। पाठक अपनी रेटिंग और कमेंट देना न भूलें और मुझे फ़ॉलो करके सपोर्ट करें।🙏🙏

  • 11. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 11

    Words: 1271

    Estimated Reading Time: 8 min

    रात के समय, सब लोग खाने के लिए आ चुके थे और डाइनिंग टेबल पर बैठे, अर्णव के आने का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन, काफी समय तक वह नीचे नहीं आया तो अखिलेश जी ने एक नौकर को कहकर उसे बुलाने के लिए भेज दिया। वह नौकर डरते हुए ऊपर, अर्णव के कमरे की तरफ चला गया क्योंकि उसके साथी ने पहले ही उसे बता दिया था कि आज अर्णव का दिमाग गर्म है। जब उसने अर्णव से नीचे डिनर के लिए कहा, उसने साफ मना कर दिया, यह कहकर कि उसे भूख नहीं है। वह नौकर नीचे आया और उसने अर्णव की कही हुई बात सभी को बता दी। किसी ने कुछ नहीं कहा और सिर हिलाकर अपना-अपना डिनर करने लगे। माधवी को उसका नीचे आकर डिनर ना करना अच्छा नहीं लगा, पर उसने सभी के सामने कुछ नहीं कहा और चुपचाप सबको खाना सर्व करने लगी। खाने के बाद, सभी अपने कमरे में चले गए। वहीं, सभी के जाने के बाद माधवी किचन में आई और एक प्लेट में खाना लेकर ऊपर की तरफ जाने लगी। वह अपने कमरे की जगह अर्णव के कमरे के दरवाज़े के पास आई और हल्की सी घबराहट के साथ दरवाज़ा खटखटाने लगी। पर अंदर से कोई जवाब नहीं आया। उसने फिर से खटखटाया, तो वही रिस्पॉन्स पाकर उसने हिम्मत कर खुद से दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। लेकिन रूम में कोई नहीं था। उसने इधर-उधर देखा तो उसे अर्णव कहीं दिखाई नहीं दिया। तभी उसे बाथरूम से नल चलने की आवाज़ आने लगी। वह समझ गई कि अर्णव इस वक्त बाथरूम में है। तो उसने जल्दी से खाना टेबल पर रखकर वापस जाने का सोचा और खाना रखकर जाने लगी कि तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला और अर्णव, अपनी कमर पर तौलिया लपेटे हुए, एक तौलिये से अपने बाल पोंछते हुए बाहर आया। तो उसकी नज़र माधवी पर पड़ी और उसे अपने कमरे में, अपने सामने देखकर वह हैरान हो गया और गुस्से में उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला: "हाउ डे यू? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे मना करने के बावजूद भी फिर से इस कमरे में आने की? मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि इस कमरे और मुझसे दूर रहना, और फिर भी तुम मुँह उठाकर यहाँ आ गई। कितनी बेशर्म लड़की हो तुम!!" वहीं, अर्णव को अपने सामने सिर्फ़ एक सिंगल तौलिये में देखकर माधवी शर्म से पानी-पानी हो गई और उसने जल्दी से अपना मुँह फेर लिया और कसकर अपनी आँखें बंद कर ली। पर अर्णव की बात सुनने के बाद उसे बहुत बुरा लगा। बेशक वह उसे अपनी बीवी नहीं मानता था, लेकिन आखिर उन दोनों की शादी हुई थी, जिसके बाद उसका भी इस कमरे पर बराबरी का हक़ था। पर फिर भी माधवी ने ना तो अर्णव से अपना हक़ माँगा और ना ही इस शादी को मानने के लिए उस पर दबाव डाला। तो फिर क्यों वह उससे इस तरह बातें करता है? क्या वह उसे थोड़ी भी रिस्पेक्ट नहीं दे सकता? क्या वह इतनी बुरी है जो अर्णव उससे दो बोल भी एक दोस्त की तरह नहीं बोल सकता? यही सोचकर एक अनकहा दर्द माधवी के दिल में घर कर गया, पर उसने अपने जज़्बातों को बहने से पहले ही अपनी आँखों में ही कैद कर लिया। और वह अर्णव से बोली: "मैं यहाँ जानबूझकर नहीं आई थी। आप खाना खाने नीचे नहीं आए थे और मुझे पता है इसकी वजह कहीं ना कहीं मैं ही हूँ। इसीलिए आपके लिए खाना लेकर आई थी। मुझसे नाराज़ हैं, गुस्सा है तो मुझ पर अपनी नाराज़गी जताइए, यूँ इस तरह खाने से मुँह मत मोड़िए।" वहीं अर्णव, जिसने अब तक शर्ट पहन ली थी, वह माधवी की बात सुनकर हैरान रह गया। उसे समझ नहीं आया कि उसके सामने खड़ी इस लड़की को उसकी मन की बात कैसे पता चली कि वह उसी की वजह से ही नीचे खाने पर नहीं आया था। पर फिर वह माधवी के सामने आया और उसकी बंद आँखों को देख, नीचे झुककर उसे नीचा दिखाते हुए लहजे में बोला: "अच्छा और तुम हो कौन जिसकी वजह से मैं इस तरह की हरकत करूँगा? या तुमसे सामना ना हो इसीलिए अपना खाना छोड़कर कमरे में बैठूँगा?" (उसकी बात सुनकर माधवी एकदम से आँखें खोलकर उसे देखने लगी) वहीं अर्णव आगे बोला: "तुम अर्णव सिंघानिया के लिए रत्ती भर भी मायने नहीं रखती, जिसके लिए वह अपना खाना, पीना, चैन, सुकून छोड़ दे। अगर मैं नीचे नहीं आया तो उसकी मेरी अपनी वजह थी जिसमें तुम तो कहीं भी शामिल नहीं हो। पर अब तुम मुझे बताओ तुम किस हक़ से मेरे लिए खाना लेकर आई और इस कमरे में आने की जहमत उठाई?" अर्णव की बात सुनकर माधवी की आँखें नम हो चली थीं। वहीं अब उसके सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं था। वह बस किसी तरह अपने आँसुओं को बहने से रोक रही थी। इसीलिए वह नज़रें झुकाए हुए ही भारी गले से अर्णव से बोली: "मैं आप पर कोई हक़ नहीं जता रही। मुझे लगा आप मेरी वजह से नीचे नहीं आए, तो मैं बस..." तो अर्णव उसकी बात बीच में काटते हुए एक हाथ से कसकर उसकी बाजू पकड़ लेता है। जिससे माधवी को दर्द होने लगता है। पर अर्णव उसकी दर्द की परवाह किए बिना ही गुस्से में अपनी पकड़ उस पर और कसते हुए उससे बोला: "तुम्हें क्या लगा क्या नहीं यह तुम अपने पास ही रखो और मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, मैं इस शादी को नहीं मानता, तो तुम्हें बीवी मानना तो दूर की बात है। इसीलिए अपनी इन ओछी हरकतों को बंद कर दो। तुम्हें क्या लगा तुम ये बीवियों वाले काम करके मेरा दिल जीत लोगी तो मैं अनु को भूलकर तुम्हें अपनी बीवी मानकर उसकी जगह दे दूँगा? तो सुन लो माधवी गुप्ता, ऐसा जिंदगी में कभी नहीं होगा। मेरी अनु की जगह तुम कभी नहीं ले सकती। तो आज के बाद मेरे और इस कमरे के आस-पास भी भटक मत जाना।" उसकी इतनी कड़वी बातें सुनकर अब माधवी की बर्दाश्त से बाहर हो जाता है और उसकी आँखों से आँसू बहकर उसके गालों पर आ जाते हैं। और वह अपने आँसू भरी आँखों से अर्णव की ओर देखते हुए बोली: "मेरी बाजू छोड़ दीजिए, मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मुझे माफ़ करना। आज के बाद कभी भी इस कमरे में अपने कदम नहीं रखूंगी ना ही आपके सामने आऊंगी।" उसकी आँसू भरी झिलमिलाती आँखों को देखकर अर्णव को बहुत बुरा लगता है और वह एक झटके से उसके हाथ को छोड़ देता है। तो देखता है माधवी की बाजू पर उसकी पूरी उंगलियों की छाप उभर आई थी, जो कि गहरी लाल हो गई थी। अब अर्णव को खुद पर भी गुस्सा आने लगा था। वह आगे बढ़कर माधवी से कुछ कहने लगा कि माधवी जल्दी से उसके कमरे से निकल जाती है। वहीं अर्णव उसे जाते हुए देखता रह जाता है। उसके बाद एक नज़र खाने को देखता है, तो उसे माधवी की आँसू भरी आँखें याद आ जाती हैं। तो वह अपना सिर झटक कर बेड पर लेट कर अपनी आँखें बंद कर लेता है। वहीं माधवी रोते हुए अपने कमरे में आती है और बेड पर लेट जाती है। रोते-रोते उसे कब नींद आई पता ही नहीं चला। कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 12. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 12

    Words: 1507

    Estimated Reading Time: 10 min

    अगले दिन अर्णव जल्दी-जल्दी तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल रहा था। तभी अखिलेश जी, जो वहाँ सोफे पर बैठकर चाय का लुत्फ़ उठा रहे थे, उनकी नज़र उस पर पड़ी। उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और उससे बोले, "अर्णव, यहां आओ। मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।" अर्णव सर हिलाते हुए उनके पास चला आया और सोफे पर बैठकर बोला, "कहिए, क्या कहना है आपको? लेकिन जल्दी, मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है। मेरी ऑफिस में अर्जेंट मीटिंग है।" उसने यह बात उनसे काफी रूडनेस के साथ कही थी। माधवी को इस घर में रखने के अखिलेश जी के फैसले से वह अच्छा-ख़ासा उनसे नाराज़ था। इसीलिए इस वक़्त उसके लहज़े में अखिलेश जी के लिए कोई सॉफ्टनेस नहीं थी। वह तो उनकी रिस्पेक्ट करने की वजह से उनसे बात करने चला आया था, वरना अब वह जितना हो सके अपने परिवार वालों को इग्नोर कर रहा था। अखिलेश जी उसके बात करने के लहज़े से ही समझ गए कि वह अभी तक उनसे गुस्सा है। लेकिन उनका उसे 'दादू' ना कहना और डायरेक्ट बात करने के लिए कहना उनके दिल में चुभ गया। क्योंकि अर्णव घर में चाहे किसी से भी कितनी भी रूडली बात करे, लेकिन उनसे हमेशा प्यार से ही पेश आता था और 'दादू-दादू' कहकर हमेशा उनके आगे-पीछे लगे रहकर उन्हें परेशान करता रहता था। इन बातों को सोचकर वह अर्णव की ओर देखते हुए बोले, "क्या हमारे बीच में अब इतनी दूरियां आ गई हैं अर्णव, कि अब हम दोनों सिर्फ़ ज़रूरी टॉपिक पर ही बात कर सकते हैं?" अर्णव उनसे नज़रें फेरते हुए नाराज़गी से बोला, "और इसके ज़िम्मेदार आप हैं दादू। यह भी आपकी वजह से ही है। ना आप उस लड़की को मेरे ख़िलाफ़ जाकर इस घर में लाते, तो ना हम दोनों के बीच इस तरह की नाराज़गी बनती।" वही उसकी बात सुनकर माधवी, जो अखिलेश जी के लिए स्नैक्स लेकर आ रही थी, उसके कदम किचन के दरवाज़े तक ही रुक गए। अर्णव के दिल में खुद के लिए इतनी नफ़रत महसूस कर उसके दिल में कुछ टूटता सा महसूस हुआ। कि वह उसे इस घर में रखना भी नहीं चाहता। यही सोचकर एक बार फिर उसकी आँखें भर आईं और वह अपने ज़ज़्बाती को काबू कर वापस किचन में चली गई। और एक नौकर के हाथों अखिलेश जी के लिए स्नैक्स भिजवा दिए। अखिलेश जी अर्णव की तरफ़ देखकर उसे समझाते हुए बोले, "वह लड़की अब तुम्हारी पत्नी है अर्णव, और यह सच तुम्हारी मानने या ना मानने से नहीं बदलेगा। इसीलिए एक बार अपने पास्ट को भूलकर माधवी को अपनाकर तो देखो। क्या पता तुम्हारी ज़िन्दगी की सारी उलझनें खुद ब खुद दूर हो जाएँ? और फिर जिस लड़की की वजह से तुम माधवी जैसी अच्छी लड़की को ठुकरा रहे हो, वह खुद ही तुम्हें छोड़कर गई थी। तुम खुद ही सोचो, उसने हमारे ख़ानदान की इज़्ज़त बचाई है, वरना अनुष्का ने…" वह इतना ही कह पाते हैं कि अर्णव उनकी बात बीच में काटते हुए खड़े होकर बोला, "अगर आपको यही सब बातें करनी हैं, तो माफ़ कीजिए, मेरे पास समय नहीं है। इन फ़ालतू की बातों के लिए मैं चलता हूँ, मुझे लेट हो रहा है।" इतना कहकर वह वहाँ से जाने लगा। अखिलेश जी उसे रोकते हुए बोले, "रुको, मैं यह कह रहा था कि आज राजेश का फ़ोन आया था। वह चाहता है कि तुम माधवी को लेकर उनके यहाँ जाकर पग-फ़ेरों की रस्म करो। तो मैंने उसे हाँ कह दी। इसीलिए हो सके तो आज माधवी को लेकर गुप्ता मेंशन चले जाना। मीटिंग बृजेश और राकेश देख लेंगे।" उनकी बात सुनकर अर्णव गुस्से में उनकी तरफ़ पलटते हुए तेज आवाज़ में बोला, "जब आप जानते हैं कि मैं इस शादी को ही नहीं मानता, तो फिर उसके साथ जाने का सवाल ही नहीं उठता। तो फिर किससे पूछकर आपने उन्हें हाँ कहा?" उसकी तेज आवाज़ सुनकर सभी लोग हॉल में आ गए, साथ ही माधवी भी किचन से निकलकर बाहर आ गई। तभी राकेश जी गुस्से में अर्णव से बोले, "अर्णव, यह क्या हरकत है? इस तरह चीख क्यों रहे हो? और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पापा से ऐसे बात करने की? दिन-ब-दिन बदतमीज़ होते जा रहे हो। अभी के अभी सॉरी बोलो पापा से।" लेकिन अर्णव टस से मस नहीं हुआ। तो अखिलेश जी ने हाथ से इशारा कर राकेश जी को शांत करा दिया और खुद अर्णव से बोले, "भूलो मत अर्णव, इस घर का बड़ा होने के साथ ही इस घर का मुखिया हूँ मैं। इसीलिए कोई भी फैसला लेने के लिए मुझे किसी की या फिर तुम्हारी राय लेने की ज़रूरत नहीं है। इसीलिए यह मेरा फैसला है कि तुम बहू को लेकर राजेश के यहाँ जाओगे।" अर्णव गुस्से में उनसे बोला, "तो ठीक है, मेरा भी फैसला सुन लीजिए। मैं उस लड़की को लेकर कहीं नहीं जाने वाला। आपने उसे अपनी बहू माना है तो आप ही उसे ले जाकर रस्म पूरी कर दीजिए। पर मुझसे कोई उम्मीद मत रखिए। और अगर आपने मुझ पर कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती की, तो मैं यहाँ से हमेशा के लिए फार्म हाउस शिफ़्ट हो जाऊँगा। फिर रहिएगा आप अपनी बहू के साथ यहाँ पर अकेले। क्योंकि अब तो आपको अपने पोते की कोई फ़िक्र नहीं, तभी तो उस लड़की को यहाँ उठा लाए हैं।" उसकी धमकी पर सब लोग हैरान रह गए। उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि अर्णव उन्हें इस तरह से घर छोड़कर जाने की धमकी देगा। तभी अखिलेश जी गुस्से में अर्णव से कुछ कहने वाले थे कि तभी माधवी उन्हें शांत करते हुए बोली, "प्लीज़ दादा जी, शांत हो जाइए, वरना आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी। और मुझे कोई रस्में नहीं करनी, मैं पापा से फ़ोन पर कह दूँगी। वह मेरी बात समझ जाएँगे। बस आप दोनों इस तरह से एक-दूसरे के साथ बहस मत करें।" फिर अर्णव से बोली, "और आप जानते हैं मुझसे इस वक़्त बेहद नफ़रत करते हैं, इतनी कि मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते। लेकिन अपनी नफ़रत में इतने अंधे मत होइए कि आप छोटे-बड़ों का लिहाज़ ही भूल जाएँ। इस वक़्त जो आपके सामने खड़े हैं, वह आपके अपने हैं, आपके दादा जी। कम से कम उनसे तो इस तरह बात मत कीजिए। उनकी उम्र का ही लिहाज़ कर लीजिए। अपने गुस्से में आप यह भी नहीं देख पा रहे कि आपके उनसे इस तरह बात करने से इस वक़्त उन्हें कैसा महसूस हो रहा है। मेरी वजह से खुद को अपने परिवार से तो दूर मत कीजिए।" अर्णव ने एक नज़र अपने दादाजी को देखा और फिर माधवी की तरफ़ देखते हुए बोला, "तुम तो अपना मुँह बंद ही रखो। यह जो कुछ भी हो रहा है ना, तुम्हारी ही वजह से हो रहा है। तुम्हारे आने से इस घर की सुख-शांति सब छिन गई है। मैं अपने परिवार से दूर होता जा रहा हूँ। मेरे दादाजी जो मुझे सर-आँखों पर बिठा रखते हैं, वही आज बात-बात पर तुम्हारी वजह से मुझसे लड़ पड़ते हैं। अगर चाहती हो कि इससे ज़्यादा कुछ बुरा ना हो, तो जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी यहाँ से चली जाओ और फिर मुझे अपनी शक्ल भी मत दिखाना।" उसकी बात सुनकर माधवी के दिल में एक टीस सी उठी और वह अपने ज़ज़्बाती को काबू कर अर्णव से बोली, "ठीक है, मुझे बस तीन महीने दीजिए। इन तीन महीनों में मैं अनुष्का को वापस आपकी ज़िन्दगी में लाकर उसी वक़्त हमेशा के लिए यहाँ से चली जाऊँगी। यह वादा है मेरा आपसे। लेकिन तब तक आपको भी मुझसे वादा करना होगा कि आप कभी भी मेरी वजह से अपने परिवार में किसी से भी बहस नहीं करेंगे। अगर वह आपसे कुछ कहेंगे तो बस चुपचाप से उनकी बात मानेंगे। तो बोलिए, मंज़ूर है आपको मेरी यह शर्त?" अर्णव ने भी उसकी बात पर हामी भरते हुए उससे कहा, "ठीक है, मंज़ूर है। लेकिन एक बात याद रखना, तुम्हें भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी। अगर तीन महीने में भी तुम अनुष्का को यहाँ लाने में कामयाब नहीं हुईं, तो भी तुम्हें यहाँ से जाना होगा। और अगर उससे पहले भी वह वापस आ गई, तो भी उसी वक़्त चली जाओगी। बोलो, है मंज़ूर?" माधवी ने गहरी साँस ली और उसकी बात मानते हुए हाँ कर दी और ऊपर अपने कमरे की ओर चली गई। अर्णव उसके बाद अपने ऑफिस के लिए निकल गया। दादाजी परेशानी से वहीं सोफे पर बैठ गए। कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 13. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 13

    Words: 1597

    Estimated Reading Time: 10 min

    अर्णव अपने ऑफिस पहुँचा और अपना काम करने लगा। थोड़ी देर बाद उसने विकास को अपने पास बुलाया और उसे देखते हुए बोला, "अनुष्का के बारे में कुछ पता चला क्या तुम्हें?" विकास उसकी तरफ देखते हुए बोला, "नहीं सर, अभी तो पता नहीं चला। हाँ, लेकिन निखिल बता रहा था कि अनुष्का शादी से जाने के बाद एयरपोर्ट पर अपने एक मेल फ्रेंड रोहित से मिली थी। उसने ही अनुष्का की यहाँ से जाने में मदद की थी। पर निखिल का कहना है कि वह कुछ दिन में अनुष्का का पता लगा लेगा।" अर्णव ने उसकी बात पर अपना सिर हिला दिया और बोला, "ठीक है, तुम जाकर अपना काम करो।" विकास सर हिलाकर जाने लगा। तभी अर्णव के जहन में माधवी का ख्याल आया और वह कुछ सोचकर विकास की तरफ देखते हुए बोला, "रुको।" विकास उसकी बात सुनकर रुक गया और पलटकर सवालिया नजरों से उसे देखने लगा। अर्णव बोला, "अगले डेढ़ घंटे में मुझे माधवी गुप्ता की पूरी जानकारी चाहिए। वह राजेश गुप्ता को कैसे जानती है, उसका उनसे क्या रिश्ता है, अब तक कहाँ थी, कहाँ रहती है, क्या करती है, सब कुछ। इस डेटा को कलेक्ट करो।" उसकी बात सुनकर विकास हैरान रह गया। आखिर उसे अपने घर में रह रही माधवी, जो कि फिलहाल उसकी पत्नी है, की जानकारी निकालने की ज़रूरत क्यों पड़ी? पर फिर वह ठहरा उसका बॉस; उसके सामने विकास की बोलने की हिम्मत कहाँ थी? इसलिए वह "ओके बॉस" कहकर उसके केबिन से बाहर निकल गया। अर्णव अपना काम करने लगा। दूसरी तरफ, माधवी अपने कमरे में उदास सी, खिड़की के पास लगे सोफे पर बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे जल्द से जल्द अनुष्का को ढूँढ़े। साथ ही, उसे अर्णव का व्यवहार, जो वह अपने परिवार वालों के साथ कर रहा था, वह भी पसंद नहीं आ रहा था। वह उसकी वजह से अपने परिवार वालों से झगड़ रहा था और माधवी उनके बीच कलह की वजह बन गई थी, जो उसे बिल्कुल मंजूर नहीं था। वह फिलहाल यही सोच रही थी कि कैसे अर्णव और उसके परिवार के बीच की इस कड़वाहट को खत्म किया जाए। तभी उसके पास खुशी और पायल आ गईं। उन्होंने माधवी को गहरी सोच में डूबे हुए देखा, तो उसके पास बैठ गईं और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं, "क्या हुआ माधवी? भाई की वजह से परेशान हो क्या? लगता है तुम सुबह भाई की बातों से उदास हो। वैसे, इस बात में मैं भी तुम्हारे साथ हूँ। भाई को तुम्हारे साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था!" माधवी उन दोनों की तरफ देखकर बोली, "मैं अर्णव जी के खुद को लेकर व्यवहार को लेकर नाराज़ नहीं हूँ। मुझे तो बस इस बात की चिंता है कि अर्णव जी बेवजह मेरी वजह से दादाजी और अपने बीच कड़वाहट पैदा कर रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि मैं आज हूँ, तो कल यहाँ नहीं रहूँगी। तो वे क्यों बेवजह अपने परिवार वालों से लड़ रहे हैं? वे मेरी वजह से खुद को अपने परिवार वालों की नज़रों में बुरा बना रहे हैं। मैं मानती हूँ कि अनुष्का दीदी के जाने की वजह से उन्हें तकलीफ हुई है, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि वे अपनी तकलीफ में, अपने दर्द में सभी के दर्द को भूल जाएँ। अगर उन्हें अनुष्का दीदी के जाने के बाद बुरा लगा है, तो उन्हें परेशान करके परिवार वाले भी खुश नहीं हैं। पर वे हैं कि यह बात समझना ही नहीं चाहते।" उसकी बात पर पायल भी हाँ में सिर हिलाने लगी। तभी खुशी गहरी साँस लेकर बोली, "हाँ, तुम ठीक कह रही हो, माधवी। पर क्या कर सकते हैं? भाई शुरुआत से ही ऐसे हैं। जब वे गुस्से में होते हैं, तो अपने सोचने-समझने की शक्ति को खो बैठते हैं। गुस्से में उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि वे अपनी वजह से सामने वाले को तकलीफ पहुँचा रहे हैं। पर तुम चिंता मत करो। धीरे-धीरे, जब समय बीतेगा और भाई का ध्यान अनुष्का से हटेगा, तो वे भी ठीक होते चले जाएँगे और धीरे-धीरे सामान्य हो जाएँगे। बस हमें इस वक्त खुद पर संयम बनाए रखना होगा। (फिर पायल और माधवी की तरफ देखते हुए) चलो, हम लोग नीचे चलते हैं। वैसे भी दादी माँ और चाची नीचे हॉल में हैं। उन्होंने बुलाया भी है तुम्हें। तुम कब तक अपने कमरे में अकेली बैठी रहोगी? हमारे साथ नीचे चलो, वहाँ बैठो।" माधवी हाँ में सिर हिलाकर उनके साथ नीचे चली गई। वह नीचे आकर हॉल में सुनीता जी और दादी माँ सभी के साथ बैठ गई। तभी उसने देखा कि एक मेड कटोरी में तेल गरम करके लेकर दादी के पास आई और उनके पैरों के पास बैठ गई। यह देख माधवी ने दादी की तरफ देखा, जिन्होंने घुटनों की मालिश के लिए अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर कर लिया था। वह दादी के पास आते हुए बोली, "दादी, क्या आपके पैरों में दर्द है?" दादी बोलीं, "अरे पूछ मत बेटा, ये घुटने तो मेरी जान ले रहे हैं। कभी-कभी तो इनमें इतना दर्द होता है कि मुझसे चला भी नहीं जाता। इन घुटनों ने मुझे परेशान करके रख दिया है।" माधवी उनके पैरों के पास बैठते हुए बोली, "दादी, आज मैं आपके पैरों की मालिश करूँ?" दादी जी हैरानी से उसे देखने लगीं और बोलीं, "क्या? पर तू क्यों? यह है ना मीना, यह कर देगी।" माधवी बोली, "नहीं दादी, मेरा बहुत मन है आपके घुटनों की मालिश करने का। प्लीज, मुझे करने दीजिए ना। वैसे भी सुबह से कमरे में बैठी हुई बोर हो रही थी मैं।" दादी ने सुनीता जी और रमा की तरफ देखा। उनके होठों पर मुस्कराहट थी। यह देख दादी भी हल्की मुस्करा दीं और उन्होंने मीना को वहाँ से हटने का इशारा कर दिया। मीना एक साइड खड़ी हो गई और माधवी उसकी जगह बैठकर दादी के पैरों में तेल लगाने लगी, साथ ही घुटनों की मालिश करने लगी। यह देख दादी प्यार से उसे देखने लगीं। वहीं दूसरी तरफ, दोपहर हो गई। अर्णव अपना काम करते हुए बेसब्री से विकास का इंतज़ार कर रहा था। तभी उसका इंतज़ार खत्म हुआ और दरवाज़े पर दस्तक हुई। अर्णव ने अंदर आने को कहा। विकास अपने हाथ में एक फाइल लिए हुए अंदर आया और उसने वह फाइल अर्णव के सामने टेबल पर रख दी और बोला, "सर, यह लीजिए। इसमें माधवी मैडम की पूरी जानकारी है जो आप जानना चाहते थे।" अर्णव पहले तो उसे घूरने लगा और फिर बोला, "मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो तुम! वह लड़की कोई तुम्हारी मैडम-वैडम नहीं है, इसलिए आगे से कभी उसे मैडम मत बोलना। मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं है, समझे तुम?" विकास सर झुकाकर बोला, "सॉरी सर, आगे से गलती नहीं होगी। इसमें माधवी गुप्ता की पूरी जानकारी है, आप देख लीजिए।" इतना कहकर वह शांत हो गया। अर्णव अपने हाथ के इशारे से उसे जाने का इशारा करते हुए बोला, "ठीक है, तुम जाओ, मैं देख लूँगा।" विकास सर हिलाकर केबिन से बाहर चला गया। अर्णव फाइल को लेकर उसे खोलकर पढ़ने लगा। फाइल पढ़ते हुए एक जगह अर्णव की नज़रें टिक गईं। वह लाइन थी माधवी के अनाथ होने की, जिसमें लिखा था कि वह एक रास्ते पर राजेश जी को मिली थी। उसके बाद राजेश जी को वह इतनी प्यारी लगी थी कि उन्होंने अपनी पत्नी और बच्ची के खिलाफ जाकर उसे गोद लिया था। उसे फाइल में यह भी लिखा था कि विशाखा जी और अनुष्का माधवी को पसंद नहीं करती थीं, ना ही उन्होंने कभी उसे अपनी बेटी माना था। यही वजह थी कि राजेश जी ने माधवी को घर ना रखकर दिल्ली के हॉस्टल में रखा था और बचपन से ही उसकी सारी पढ़ाई वहीं हुई थी। फिलहाल वह अपने बीकॉम के सेकंड ईयर में थी और दिल्ली की ही एक बड़ी कंपनी में पार्ट टाइम जॉब भी करती थी। फिलहाल वह अनुष्का की शादी के लिए लीव एप्लीकेशन पर यहाँ आई हुई थी। माधवी के बारे में जानकर ना जाने क्यों अर्णव के दिल में एक दर्द सा उठा। उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्यों माधवी के लिए इतनी सहानुभूति महसूस कर रहा है। अगर उसे बचपन से माँ-बाप का प्यार नहीं मिला, तो इससे उसे क्या? वह क्यों इन बातों को सोचकर उसकी परवाह कर रहा है? साथ ही, इन बातों को सोचकर उसे अपनी सुबह की हरकतें भी याद आ रही थीं, जब उसने माधवी को अपमानित किया था। यही सोचकर उसे खुद पर भी गुस्सा आ रहा था कि क्यों उसने माधवी को इतना सुनाया। अर्णव इस वक्त खुद नहीं जानता था कि माधवी के पास्ट को जानकर उसके दिल में माधवी के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर बनना शुरू हो गया है। कहानी जारी है। पाठक अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें।🙏🙏

  • 14. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 14

    Words: 1307

    Estimated Reading Time: 8 min

    शाम को जब अर्णव वापस आया, तो वह हॉल से होते हुए सीधे अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा। किन्तु अचानक ही उसके कदम रुक गए। उसकी नज़रें अनायास ही किचन की तरफ उठ गईं, पर तभी उसकी आँखें सिकुड़ गईं। उसने डाइनिंग टेबल की तरफ देखा, तो भी उसे कोई नहीं दिखा। इसके बाद अर्णव पूरे घर में अपनी नज़रें दौड़ाने लगा, पर उसकी बेकरार नज़रें जिसे देखने के लिए बेचैन थीं, वह उसे दिखाई नहीं दी। अर्णव अपने ख्यालों को झटक कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वह माधवी के कमरे के सामने पहुँचा, उसके कदम रुक गए। उसने अपनी नज़रें घुमाकर माधवी के कमरे के दरवाजे की तरफ देखा; दरवाज़ा बंद था। एक पल को अर्णव का दिल किया कि वह दरवाज़ा खोलकर अंदर देख ले, पर फिर उसने अपने मन को काबू किया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। थोड़ी देर बाद अर्णव सभी के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठा डिनर कर रहा था। पर उसे इस वक्त हल्की सी चिड़ हो रही थी, क्योंकि वह काफ़ी देर से माधवी को देखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह उसे कहीं नहीं दिख रही थी। अपनी नाराज़गी के चलते वह उसके बारे में किसी से पूछ भी नहीं सकता था। पर तभी, जैसे भगवान ने उसके मन की सुन ली हो, राकेश जी एकदम से सुनीता जी की तरफ देखते हुए बोले- "सुनीता, माधवी कहाँ है? वह डिनर के लिए नीचे नहीं आई क्या? उसकी तबीयत तो ठीक है ना? काफ़ी देर से देखा भी नहीं मैंने उसे।" उनकी बात पर सुनीता जी ने एक नज़र अर्णव की तरफ देखी। अर्णव के कान राकेश जी की बात सुनकर खड़े हो गए थे, और वह अपनी प्लेट की तरफ देखते हुए उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा था। यह देख सुनीता जी थोड़ी तेज आवाज़ में राकेश जी से बोलीं- "नहीं, आप तो जानते हैं ना, सुबह जो हंगामा हुआ, उसकी वजह से वह आज कितनी परेशान थी। इसीलिए उसने फैसला किया है कि जब तक वह इस घर में है, तब तक वह उन लोगों की नज़रों के सामने बिल्कुल नहीं आएगी जो लोग उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते और उसे देखना भी नहीं चाहते। उसका कहना है कि वह खुद की वजह से किसी को परेशान नहीं करना चाहती, ना ही इस परिवार के बीच कलह की वजह बनना चाहती है। आज उसकी वजह से पापा को किसी ने बहुत सुनाया था, जिसका किसी को बुरा लगा हो या ना लगा हो, पर माधवी को बहुत लगा। इसीलिए अब से वह सुबह-शाम अपना नाश्ता और रात का खाना अपने कमरे में ही करेगी, ताकि वह उन लोगों की नज़रों के सामने ना आए जो उसे देखते ही गुस्से से उबलने लगते हैं।" उनकी इन बातों का मतलब अर्णव बहुत अच्छे से समझ गया था कि सुनीता जी अप्रत्यक्ष रूप से उसे ताना दे रही हैं। लेकिन इस वक्त उसे सुनीता जी की बात बुरी नहीं लग रही थी, बल्कि खुद पर गुस्सा आ रहा था कि उसने क्यों उस वक्त माधवी से इतनी बेरुखी दिखाई कि अब वह उसके सामने भी नहीं आना चाहती। क्या अब माधवी सच में उसके सामने बिल्कुल नहीं आएगी? पर क्या फ़र्क पड़ता है, वह उसके सामने आए या ना आए? वह तो वैसे भी यही चाहता था कि माधवी कैसे भी करके उससे दूर रहे। तो अब जब यह हो रहा है तो उसे इतना अजीब क्यों लग रहा है? जैसे अंदर से कुछ तो उसका उससे दूर हो रहा हो जिस वजह से अजीब सा दर्द, अजीब सी बेचैनी को वह खुद में महसूस कर रहा है। सोचते हुए अर्णव ने अपने माथे को पकड़ लिया और वह अपने सर को रगड़ने लगा। वहीँ राकेश जी भी सुनीता जी की बात का मतलब समझकर खामोश हो गए। सभी ने अपना खाना खाया और अपने-अपने कमरों में चले गए। अगली सुबह फिर से अर्णव तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलने लगा। तो एक बार फिर से उसे माधवी नीचे पूरे परिवार वालों के बीच दिखाई नहीं दी। उसने माधवी के कमरे की तरफ देखा, तो उसके कमरे का दरवाज़ा भी बंद था। यह देख अब अर्णव को खुद में घुटन महसूस होने लगी। पर फिर वह अपने ख्यालों को झटक कर ऑफिस के लिए निकलने लगा, तभी सुनीता जी उसे रोकते हुए बोलीं- "रुक जा अर्णव, नाश्ता किए बिना कहाँ जा रहा है? ब्रेकफ़ास्ट करके जा। वैसे भी अब तो वो भी नहीं है जिसकी वजह से तुझे यहाँ हमारे बीच रुकने में चिड़ होती है, तो अब क्या प्रॉब्लम है जो बिना खाए जा रहा है?" उनकी बात पर अर्णव की मुट्ठियाँ बिंच गईं और फिर वह उनकी तरफ बिना देखे ही उनसे बोला- "मुझे भूख नहीं है माँ, आप लोग खा लो। मैं ऑफिस में ही कुछ खा लूँगा। और दूसरी बात, मैंने किसी को कमरे में बंद रहने के लिए नहीं कहा है, बस खुद से दूर रहने के लिए कहा है, इसीलिए आप हर किसी की बातों का ब्लेम मुझ पर ना डालें।" कहकर बिना उनके जवाब का इंतज़ार किए वह वहाँ से चला गया। अर्णव अपने ऑफिस पहुँचा और अपने केबिन में जाकर अपना काम करने लगा। लेकिन फ़िलहाल वह इस वक्त बहुत गुस्से में था; इतने गुस्से में कि अगर इस वक्त कोई उसके सामने होता तो वह ज़रूर किसी का सर फोड़ देता। इसी तरह कुछ दिन बीत गए। और इन दिनों में माधवी दादी जी और बाकी घर परिवार वालों के साथ घुल-मिल गई थी। अब वह सभी से खुलकर बात करती थी, वहीँ सब लोग भी अब उससे अच्छे से बात करते थे और उसके साथ प्यार से पेश आते थे। पर इन दिनों माधवी और अर्णव की ना तो कोई बात हुई थी और ना ही कोई बहस; ना उन दोनों का ज़्यादा आमना-सामना हुआ था। उस दिन की बहस के बाद से ही माधवी वादे के अनुसार जितना हो सके अर्णव के सामने आने से बचती थी। अर्णव जब भी अपने परिवार वालों के साथ होता, तो वह उस वक्त या तो अपने कमरे में होती या फिर किसी भी काम में खुद को उलझाए रखती थी। रात के खाने के वक्त भी वह किचन में या फिर अपने कमरे में रहती थी; ना ही सुबह उसकी आँखों के सामने आती थी। वहीं दूसरी तरफ, वह कहते हैं ना कि जितना जिस चीज़ से दूर भागो, हमारा दिल उतना ही उसके करीब जाना चाहता है। ऐसा ही अर्णव के साथ हो रहा था। जब तक माधवी उसके सामने आती थी, उससे बात करती थी, तो तब वह उसे अपनी बेरुखी दिखाता, उसे दुत्कारता, जब देखो उससे झगड़ा करता रहता। लेकिन अब जब वह उसके सामने नहीं आ रही थी, तो अनजाने में ही उसकी निगाहें उसे खोजने लगती थीं। चाहे वह सुबह का नाश्ता हो या फिर रात का खाना, उसकी नज़रें बस अपने आस-पास माधवी को ही खोजती थीं, जो उसे अब दिखती नहीं थी। इसी बात से वह खिंच जाता, उसे खुद पर गुस्सा आता था कि क्यों उसका मन माधवी को देखने के लिए बेचैन रहता है, जबकि उससे दूर रहने का फ़ैसला उसका था। उसने ही तो माधवी से वादा लिया था कि वह उसके सामने ना आए, तो फिर क्यों वह अपनी बात पर कायम नहीं रह पा रहा? इसी बात की फ्रस्ट्रेशन के कारण वह अपना गुस्सा अपने एम्प्लॉइज़ और विकास पर उतार देता। कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फ़ॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 15. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 15

    Words: 1075

    Estimated Reading Time: 7 min

    इसी तरह से एक दिन अरनव अपने ऑफिस में गुस्से में काम कर रहा था। क्योंकि उसे अनुष्का का पता नहीं चल रहा था, और ऊपर से उसके दिमाग और जहन में अब अनुष्का की आवाज के साथ माधवी का चेहरा भी घूमने लगा था जिसे वह चाहकर भी अपने दिल और दिमाग से निकाल नहीं पा रहा था। इसी वजह से आज वह गुस्से में बिना नाश्ते किए ही ऑफिस आ गया था और सुबह से खुद को फाइलों में उलझाए रखा था। वह फाइलें चेक कर रहा था कि तभी अचानक उसकी वर्क टेबल पर रखा फोन बजने लगा। उसने अनजान नंबर देखकर जैसे ही कॉल रिसीव की, तो उधर से कुछ कहा गया। जिसे सुनकर अरनव परेशान हो गया और अपना सारा काम विकास पर छोड़कर हड़बड़ी में ऑफिस से निकल गया। थोड़ी देर बाद उसकी गाड़ी हॉस्पिटल के सामने रुकी और वह ड्राइवर को कार पार्किंग में लगाने को कहकर जल्दी से हॉस्पिटल के अंदर की ओर भागा। और रिसेप्शनिस्ट के पास पहुँचकर अपनी घबराहट को छुपाते हुए उससे बोला, "अखिलेश सिंघानिया को किस तरफ और किस रूम में ले जाया गया है?" रिसेप्शनिस्ट पास रखे कंप्यूटर में चेक करने लगी। उसके बाद अरनव से बोली, "सर, यहाँ से लेफ्ट साइड आईसीयू में अखिलेश सिंघानिया एडमिट हैं।" उसकी इतनी बात सुनते ही अरनव जल्दी से आईसीयू की तरफ चला गया। उसने वहाँ से मिरर के ज़रिए अंदर देखा तो अंदर उसके दादाजी का ट्रीटमेंट चल रहा था। तो वह वहीं कॉरिडोर में परेशानी से इधर-उधर चक्कर काटने लगा। थोड़ी देर बाद एक नर्स अंदर से बाहर निकल कर आई और इधर-उधर देखने लगी। तो अरनव उसके पास आया और परेशानी से उससे बोला, "मेरे दादाजी कैसे हैं?" तो उस नर्स ने उसे देखा फिर उससे बोली, "देखिए, अभी उनका ट्रीटमेंट चल रहा है, इसीलिए अभी हम उनकी कंडीशन आपको नहीं बता सकते। फिलहाल आप वह दवाई दीजिए जो डॉक्टर ने मंगाई है।" तो अरनव असमंजस से उससे बोला, "दवाई? लेकिन मैं तो अभी आया हूँ। आपने किससे दवाई मंगाई?" तभी पीछे से माधवी भाग कर आई और दवाई का पैकेट उसके सामने बढ़ाते हुए बोली, "यह लीजिए, सारी दवाइयाँ जो आपने बताई थीं।" तो अरनव पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखने लगा। वहीं वह नर्स दवाइयाँ लेकर जल्दी से वापस अंदर चली गई। तो माधवी वहीं पर दीवार से टिककर खड़ी हो गई। तभी पीछे से खुशी आई और जैसे ही उसकी नज़र अरनव पर गई तो वह दौड़कर उसके पास आई और उसके गले लगकर रोने लगी। और रोते हुए बोली, "भाई, वो... वो दादाजी... उन्हें कुछ होगा तो नहीं ना... मुझे बहुत डर लग रहा है?" तो अरनव उसका सर सहलाकर उसे शांत करवाते हुए बोला, "कुछ नहीं होगा बच्चा, दादा जी को। तू शांत हो जा। और मुझे बता, क्या हुआ है दादाजी को और घर के सभी लोग कहाँ पर हैं?" तो खुशी उससे अलग होकर अपने आँसू पोंछते हुए बोली, "मुझे नहीं पता भाई, मैं तो अपने कमरे में थी, तभी मुझे कुछ जोर से गिरने की आवाज आई। और मैं रूम से बाहर निकल कर आई तो देखा... दादाजी सीढ़ियों के पास बेहोश पड़े हुए थे! और भाभी उन्हें होश में लाने की कोशिश कर रही थीं। उस वक्त घर पर कोई नहीं था। मम्मा दादी को लेकर उनके फिजियोथैरेपिस्ट के पास गई हैं। और पापा चाचू के साथ मीटिंग के लिए गए हुए हैं। तो भाभी और मैं दादू को यहाँ ले आईं।" वह इतना ही कह पाई थी कि तभी आईसीयू का दरवाज़ा खुला और डॉक्टर बाहर निकले। तो अरनव उनके पास आया। तो डॉक्टर उससे बोले, "अच्छा हुआ जो आप लोग उन्हें यहाँ सही वक्त पर ले आए। वरना उनकी जान भी जा सकती थी। उन्हें हार्ट अटैक आया था। साथ ही उनका ब्लड प्रेशर भी बहुत बढ़ा हुआ है। शायद वे कई दिनों से किसी चीज़ को लेकर बहुत टेंशन ले रहे हैं। हमने उनका ट्रीटमेंट कर दिया है। फिलहाल तो मिस्टर सिंघानिया ठीक हैं। थोड़ी देर में हम उन्हें रूम में शिफ्ट कर देंगे। लेकिन एक बात आप सब को भी ध्यान रखनी चाहिए। अगर वे इसी तरह से ओवरथिंकिंग करते रहे और उन्होंने अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखा, तो जल्द ही उन्हें दोबारा से हार्ट अटैक आने के चांसेस हैं और उस वक्त हम कुछ नहीं कर पाएंगे। क्योंकि इस उम्र में उनके लिए इतना परेशान होना ठीक नहीं। इसीलिए जितना हो सके उन्हें खुश रखने की कोशिश करें और ध्यान रहे आगे से वे किसी चीज़ को लेकर टेंशन ना लें।" इतना कहकर वे वहाँ से चले गए। वहीं अरनव परेशानी से अपने सर को थामकर वहीं लगी चेयर पर बैठ गया। कहीं ना कहीं वह समझ रहा था कि उसके दादाजी की हालत के ज़िम्मेदार वह खुद ही है। क्योंकि माधवी को घर लाने के बाद अरनव उनसे अच्छा-खासा गुस्सा था। इसीलिए कई बार अपने दादाजी से ऊँची आवाज़ में बात की थी। साथ ही उनके कहने पर भी इस रिश्ते को एक और मौका ना देना, इसी कारण अखिलेश जी कुछ दिन से ज़्यादा ही चिंता में चल रहे थे जिसकी वजह से आज उनकी यह हालत हो गई। तभी सुनीता जी के साथ सुरेखा जी, रमा और पायल भी वहाँ आ गईं। जिन्हें खुशी ने फ़ोन कर सारी बातें बता दी थीं। सुरेखा जी अरनव के पास आकर परेशान होते हुए बोलीं, "अरनव, क्या हुआ तेरे दादाजी को? वो ठीक तो है ना?" तो खुशी उनके पास आकर उन्हें शांत कराते हुए बोली, "शांत हो जाइए दादी। दादाजी अभी बिल्कुल ठीक हैं। उन्हें हार्ट अटैक आया था।" (उसकी बात पर सभी हैरान परेशान रह गए। तभी वह आगे माधवी की ओर देखते हुए बोली) "लेकिन आज अगर भाभी नहीं होती तो पता नहीं क्या होता। वही तो उन्हें जल्दी से यहाँ हॉस्पिटल लेकर आईं और फिर उसके बाद चार किलोमीटर दूर उनके लिए दवाइयाँ लेने गईं। वरना दादाजी के लिए दवाइयाँ इस हॉस्पिटल में मिल भी नहीं रही थीं।" उसकी बात सुनकर सभी के साथ अरनव भी माधवी की ओर देखने लगा जो उन सब से थोड़ी दूरी पर खड़ी उनकी बातें सुन रही थी। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फ़ॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 16. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 16

    Words: 1549

    Estimated Reading Time: 10 min

    उसकी बात सुनकर सभी के साथ अरनव भी माधवी की ओर देखने लगा। वह उन सब से थोड़ी दूरी पर खड़ी उनकी बातें सुन रही थी। तभी सुरेखा जी चल कर माधवी के पास आईं और रोते हुए उसके पैरों में झुकने लगीं। माधवी ने जल्दी से हरकत करते हुए उनके कंधों को थाम लिया और उनसे बोली:- दादी यह आप क्या कर रही हैं? आप मुझसे बड़ी हैं, प्लीज ऐसा मत कीजिए। तो दादी प्यार से उसके गाल को छूते हुए बोलीं:- मैं तो बस तेरा शुक्रिया अदा कर रही थी बेटा। तूने आज जो कुछ भी मेरे लिए किया है उसका एहसान मैं पूरी जिंदगी भर नहीं चुका पाऊंगी। तू नहीं जानती एक औरत के लिए उसका पति क्या मायने रखता है। ऐसे में मैं अपना सब कुछ तुझ पर वार दूं, वो भी कम है। तो माधवी प्यार से उनके हाथ को अपने सर पर रखते हुए उनसे बोली:- तो दादी अपने इन हाथों को मेरे पैरों में नहीं बल्कि मेरे सर पर रखिए और मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए। ताकि आगे जिंदगी में किसी भी मुश्किल में वो मेरी ढाल बने। क्योंकि बड़ों का आशीर्वाद हमेशा बच्चों के लिए उनका सुरक्षा कवच बनकर उनकी रक्षा करता है। और इस वक्त मुझे आपके आशीर्वाद की बहुत जरूरत है। इतना कहकर नम आंखों से झुक कर उनके पांव छू लिए। तो दादी प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं:- हमेशा खुश रहो और ऐसे ही अपनी मुस्कुराहट से सभी की जिंदगियों में खुशियां भरती रहो। आज मुझे अखिलेश जी के फैसले पर नाज़ हो रहा है। जो वो तुम्हें हम सभी के खिलाफ जाकर अपनी बहू बनाकर हमारे घर लेकर आए। अगर उस वक्त वो यह फैसला नहीं लेते तो आज हमें पता ही नहीं चलता कि हम तुम्हारे जैसी साफ दिल की लड़की को खो देते। जिसका दिल सोने की तरह खरा है, जिसके अंदर सभी के लिए प्यार है। उनकी बात पर माधवी मुस्कुरा दी। वही अरनव एकटक उसे ही देख रहा था। जो कि दादी से बहुत प्यार से बात कर रही थी। आज उसकी वजह से उसके दादाजी की जान बची थी, जिसके लिए वो उसका बहुत शुक्रगुजार था। इतना ही नहीं, आज अपनी दादी को माधवी की तारीफ करते देख उसे बिल्कुल भी चिढ़ महसूस नहीं हो रही थी। बल्कि दिल ही दिल अच्छा महसूस हो रहा था। तभी माधवी मुस्कुराते हुए दादी और सुनीता जी की ओर देखकर बोली:- अच्छा आप लोग यहां पर बहुत देर से आए हुए हैं तो आप सब बैठिए। मैं आप लोगों के लिए चाय ले आती हूं। तब तक दादा जी को होश आ जाएगा तो आप उनसे मिल लीजिएगा। उसकी बात पर दादी ने मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला दिया। तो सभी लोग वहीं रखी चेयर पर बैठ गए। वही माधवी सभी के लिए चाय लेने जाने लगी, कि अरनव जो बहुत देर से उसे ही देख रहा था, वो उसे रोकते हुए बोला:- रुको। उसकी बात पर माधवी पलट कर उसकी तरफ देखने लगी। तो अरनव चलकर उसके पास आया और उसे देखते हुए उससे बोला:- तुम यहां सभी के साथ रुको, चाय मैं ले आता हूँ। उसकी बात पर माधवी ने हाँ में सर हिला दिया और उसके पास से वापस दादी के पास चली आई। वही अरनव एक नज़र उसे देख वहाँ से चाय लेने चला गया। थोड़ी देर बाद दादाजी को नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। वही अरनव चाय लेकर आया और उसने सभी को दे दी। फिर अपनी नज़रें घुमाते हुए माधवी को देखने लगा। जो उसे वहाँ कहीं दिखाई नहीं दी। तो वह अपना कप लेकर एक तरफ बैठी खुशी के पास आया और खुशी से बोला:- खुशी बच्चा, माधवी कहाँ गई? अभी तो यहीं थी! तो खुशी अपनी चाय पीते हुए बोली:- वो डॉक्टर ने कहा है कि थोड़ी देर बाद दादू को होश आ जाएगा। जिसके बाद उन्हें कुछ खिलाकर सबसे पहले मेडिसिन देनी है। तो भाभी दादू के लिए घर पर सूप बनाने गई है। उसकी बात पर अरनव सर हिलाकर रह गया और अपनी चाय पीने लगा। वही थोड़ी देर बाद माधवी जब सूप लेकर वापस आई, तो तब तक दादाजी को होश आ चुका था और सभी लोग उनके वार्ड में बैठे उनसे बातें कर रहे थे। वही दादाजी हल्की आवाज में सिर्फ हाँ, हूँ, उनकी बातों का जवाब दे रहे थे। तभी माधवी अंदर आई तो सभी लोग उसकी तरफ देखने लगे। वही वह चलकर दादू के पास आई और मुस्कुराते हुए दादू से बोली:- अब कैसी तबीयत है आपकी दादू? आपको पता है आपने हमें कितना परेशान कर दिया था। आपकी तबीयत के बारे में जानकर सभी लोग बहुत घबरा गए थे। इसीलिए पनिशमेंट के तौर पर अब आपको कुछ भी मीठा और स्पाइसी नहीं मिलेगा, चाहे वह कितना भी हल्दी क्यों ना हो। तभी आप अपना अच्छे से ख्याल रखोगे। उसकी बात पर दादाजी बस मुस्कुरा दिए। वही अरनव उसे देख रहा था। वही माधवी ने टिफिन से सूप निकालकर एक बाउल में ट्रांसफर कर दिया और उसे सुनीता जी की तरफ करा दिया। तो बाकी लोग बाहर चले गए। तो अरनव सुनीता जी के पास आकर उनसे बोला:- माँ अब भी बाहर सबके साथ बैठिए, दादू को सूप मैं पिला देता हूँ और उन्हें दवाई भी दे दूँगा। उसकी बात पर सुनीता जी बस हाँ में सर हिलाते हुए उसे सूप का बाउल थमाकर बाहर चली गई। वही अरनव ने उनके बेड को एडजस्ट किया जिससे बेड ऊपर से थोड़ा ऊपर की तरफ हो गया। जिससे दादू बैठने की पोजीशन में आ गए। तो अरनव उनके पास स्टूल पर बैठकर उन्हें सूप पिलाने लगा। वही दादू भी खामोशी से सूप पीने लगे। दोनों तरफ खामोशी छाई थी, दोनों में से ही कोई कुछ बोल नहीं रहा था। बस शांति से अपना काम करने में लगे थे। तभी अखिलेश जी को अपने हाथ पर कुछ गीला महसूस हुआ। तो उन्होंने नज़रें उठाकर अरनव की तरफ देखा और उससे बोले:- तुम रो रहे हो अरनव, लेकिन क्यों? मैं बिल्कुल ठीक हूँ और कल तक डिस्चार्ज भी हो जाऊँगा। तो फिर आँसू क्यों? तो अरनव ने भरी आँखों से उनकी तरफ देखा। फिर उनके हाथ को थामकर, उस पर अपना सर रखते हुए बोला:- आई एम सॉरी दादू, आई एम रियली सॉरी, प्लीज मुझे माफ़ कर दो। आई नो आज आपकी जो हालत है वो मेरी वजह से है। अगर मैं आपसे उस दिन इतना रूड होकर बात नहीं करता तो शायद आज आपकी यह हालत ना होती। पर मैं क्या करूँ दादू, मैं खुद इस वक्त अपने दिल और दिमाग की उलझन में फँसा हुआ हूँ। मुझे नहीं समझ आ रहा मैं क्या करूँ। बस इसी वजह से अपने गुस्से में मैंने आपको हर्ट कर दिया। तो दादू अपने दूसरे हाथ से उसके सर को सहलाते हुए बोले:- तुम्हें पता है अरनव, जब हम दिल और दिमाग की जंग में फँसे होते हैं, तो हमें अपने दिल की सुननी चाहिए। वही मैं तुमसे भी कहता हूँ। तुम्हें पता है तुम्हारी शादी वाले दिन मैंने भी अपने दिल की सुनी और माधवी को हमारे घर लाने का फैसला किया। क्योंकि उस वक्त जो कुछ भी हुआ उसमें उस बच्ची की कोई गलती नहीं थी। तुम खुद सोचो जिस तरह तुमने अनुष्का के साथ अपनी आने वाली ज़िंदगी को लेकर सपने संजोए थे, उसी तरह उस लड़की के भी कुछ ख़्वाब होंगे अपने जीवनसाथी को लेकर। जो उस वक्त अनु की गलती के कारण टूटकर बिखर गए। ऊपर से तुम्हारा उस लड़की को अपनी बीवी ना मानने से इनकार करना उस लड़की के दिल को किस हद तक तोड़ गया होगा। तुम खुद सोचो। बस इसी वजह से मैं उस लड़की को हमारे घर लाया ताकि तुम उसे और खुद के रिश्ते को एक मौका दे सको। और तुम सोचो जो लड़की मुश्किल वक्त पर तुम्हारा साथ निभाने के लिए तैयार थी, तो वो तुम्हें ज़िंदगी की किसी राह में अकेला नहीं छोड़ेगी। तो क्यों फिर तुम उससे अपना मुँह मोड़ रहे हो? मैं सिर्फ़ तुमसे इतना चाहता हूँ कि तुम अपने रिश्ते को एक मौका दो। लेकिन अब मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहा क्योंकि आप मुझे समझ आ गया है कि किस्मत में जो लिखा है, वो तो हमारे साथ होना ही होना है, चाहे हम उसे कितना भी बदलने की कोशिश कर लें। अब फैसला सिर्फ़ तुम्हें करना है कि तुम अपने दिल की सुनते हो या दिमाग की। उनकी बात पर अरनव ने बस खामोशी से हाँ में सर हिला दिया और उन्हें सूप पिलाकर दवाई देने के बाद बाहर निकल आया। कहानी जारी है। रीडर्स अपनी रेटिंग, कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें।🙏🙏

  • 17. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 17

    Words: 1543

    Estimated Reading Time: 10 min

    उनकी बात पर अर्णव ने खामोशी से सिर हिला दिया। और उन्हें सूप पिलाकर दवाई देने के बाद बाहर निकल आया। सुनीता जी उसके पास आते हुए बोलीं, "क्या हुआ पापा? ठीक तो हैं ना?" उनकी बात पर अर्णव ने एक नज़र थोड़ी दूरी पर खड़ी माधवी को देखा और सिर हिलाते हुए बोला, "हाँ, वो ठीक हैं। बस उन्हें दवाई देकर सुलाकर ही आ रहा हूँ। दवाई के असर से उन्हें नींद आ रही थी।" तभी उन्हें बृजेश जी के साथ राकेश जी आते हुए नज़र आए। वो आकर परेशानी से सुनीता जी से बोले, "क्या हुआ सुनीता? पापा ठीक तो हैं ना? खुशी ने बताया उन्हें हार्ट अटैक आया था।" सुनीता जी सिर हिलाते हुए बोलीं, "जी, आया तो था, लेकिन माधवी उन्हें यहां पर सही वक्त पर ले आई थी। जिससे टाइम पर उनका ट्रीटमेंट हो गया। अब वो बिल्कुल ठीक हैं और डॉक्टर से भी बात हो गई है। उन्होंने कहा है वो कल तक पापा को डिस्चार्ज कर देंगे।" तभी एक नर्स चलकर उन सब के पास आई और बोली, "देखिए, प्लीज़ यहां पर भीड़ ना लगाइए। पेशेंट को परेशानी हो सकती है। और अब रात होने की वजह से विजिटिंग आवर्स भी खत्म होने वाले हैं। तो आप पेशेंट से कल सुबह ही मिल सकेंगे। तो आप सब में से कोई एक या दो पर्सन ही यहां पर रुक सकते हैं। बाकी आप सबको यहां से जाना होगा। इसलिए प्लीज़ बिना शोर किए यहां से शांति से जाइए।" राकेश जी सिर हिलाते हुए बोले, "जी, सिस्टर, हम लोग यहां से बस जा ही रहे थे। सॉरी अगर आपको हमारी वजह से तकलीफ हुई हो तो।" नर्स सिर हिलाते हुए वहां से चली गई। राकेश जी सभी की ओर देखते हुए बोले, "ऐसा करो, अब आप सब लोग घर चले जाओ। मैं यहां पर पापा के पास रुक जाता हूँ।" सुनीता जी बोलीं, "नहीं, आप रहने दीजिए। आप अभी मीटिंग से आए हैं, चेंज भी नहीं किया, थके हुए भी होंगे। इसलिए आप घर चले जाइए, यहां पापा के पास मैं रुक जाऊंगी।" सबकी बात सुनकर माधवी आगे आई और बोली, "यहां दादू के पास मैं रुक जाऊंगी माँ। आप सब घर चले जाइए।" उसकी बात पर सुनीता जी के साथ सब उसे देखने लगे। तो वो आगे बोली, "आप लोग ऐसे क्यों देख रहे हैं मुझे? मैं सच कह रही हूँ, मैं यहां दादू के पास रह लूंगी। वैसे भी आप सभी किसी ना किसी वजह से थके हुए हैं। पापा मीटिंग से आए हैं, तो माँ दादी को फिजियोथेरेपिस्ट के पास लेकर गई थीं। तो ऐसे में आप सभी को आराम की ज़रूरत है। और रात का खाना भी माँ को देखना होता है। तो आप लोग चले जाइए।" सुनीता जी परेशानी से बोलीं, "लेकिन माधवी, तुम अकेले कैसे सब कुछ मैनेज करोगी?" माधवी उनके हाथ को अपने हाथों में थाम कर मुस्कुराते हुए बोली, "डोंट वरी माँ, सब मैनेज हो जाएगा। और मुझे यहां करना ही क्या है, बस यहां रुकना ही तो है। और एक-दो बार रात में उठकर दादू को चेक करना है बस। अब मैं छोटी बच्ची तो हूँ नहीं जो इतना भी नहीं कर पाऊंगी। तो आप बेफ़िक्र होकर घर जाओ।" सुनीता जी प्यार से उसका गाल छूकर मुस्कुराते हुए बोलीं, "ठीक है, जैसा तुम कहो। लेकिन महेश के हाथ से तुम्हारे लिए खाना भेजूंगी। याद से खा लेना। अगर नहीं खाया तो कल घर पर मार पड़ेगी।" माधवी ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। सुनीता जी मुस्कुराते हुए वहां से चली गईं। वही सब लोग भी उनके पीछे-पीछे चले गए। अर्णव बहुत देर से माधवी को ही देख रहा था। या यूँ कह लीजिये कि आज उसकी नज़र माधवी पर से हट ही नहीं रही थी। (बहुत टाइम बाद आज उसने ठीक से माधवी को देखा था। वरना उस दिन की बहस के बाद माधवी ने उसके आगे आना या उससे बात करना ही बंद कर दिया था। जोकि कहीं ना कहीं अर्णव को महसूस भी होता था। और उसे माधवी के साथ ही खुद पर भी गुस्सा आता था कि क्यों उसने उस दिन उस बहस को इतना बढ़ाया कि अब माधवी उसकी नज़रों के सामने ही नहीं आती।) वो सभी के जाने के बाद कुछ कदम आगे बढ़ाकर माधवी के पास आया। कि माधवी उसकी करीबी से अनजान थी। जो कि सुनीता जी को जाते हुए देख रही थी। जिसका पूरा ध्यान घरवालों पर था। वो उनके जाने के बाद बिना अर्णव को देखें ही मुस्कुराते हुए सीधे दादू के रूम में चली गई। जिससे अर्णव, जोकि उससे बात करने के लिए उसके पास आ रहा था, उसके कदम वहीं रुक गए। माधवी द्वारा खुद को इग्नोर होते देख अर्णव को माधवी पर गुस्सा आया। पर फिर खुद को शांत करके एक नज़र दादू के रूम को देखते हुए वो भी सभी घरवालों के साथ वहां से चला गया। रात को डिनर के वक्त सिंघानिया मेंशन में सब लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए अपना डिनर कर रहे थे। तभी सुनीता जी ने एक सर्वेंट से कहकर अर्णव को डिनर के लिए बुलाने को कहा। वो सर्वेंट जाने लगा कि उसकी नज़र ऊपर सीढ़ियों से उतर कर आते अर्णव पर पड़ी। जोकि व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस में अपनी स्लीव्स को फोल्ड करते हुए नीचे आ रहा था। तो वो सर्वेंट चुपचाप वहां से चला गया। सुनीता जी जो कि सभी को डिनर सर्व कर रही थीं, उनका ध्यान अभी अर्णव पर नहीं गया था। इसलिए वो एक सर्वेंट से बोलीं, "सुनो, तुम एक टिफिन में खाना पैक कर महेश को दे दो। वो माधवी को दे आएगा।" सुरेखा जी बोलीं, "हाँ, उस बच्ची के लिए जल्दी से खाना भिजवा दो। उस बच्ची ने तो आज सुबह से अपने व्रत की वजह से कुछ नहीं खाया।" तभी सुनीता जी की नज़र अर्णव पर गई। तो वो उसे देखते हुए बोलीं, "यह क्या अर्णव? तू इस वक्त कहाँ जा रहा है? डिनर नहीं करना क्या? आजा जल्दी। फिर जाते रहना जहाँ जाना है?" इतना कहकर उसके लिए प्लेट लगाने लगीं। अर्णव जल्दी से बोला, "नहीं माँ, मेरे लिए खाना मत लगाओ। मैं दादू के पास हॉस्पिटल जा रहा हूँ। तो आप मेरा खाना भी पैक कर दो। मैं वहीं खा लूँगा।" इतना कहकर जल्दी से वहाँ से बाहर निकलने लगा। सुनीता जी और परिवार वाले हैरान रह गए थे। वो उसे देखने लगे। सुनीता जी उससे बोलीं, "क्या मतलब तेरा 'हॉस्पिटल जा रहा हूँ'? तू वहाँ जाकर क्या करेगा अब? और वहाँ पर पापा के साथ माधवी है तो तुझे वहाँ जाने की ज़रूरत नहीं है। वैसे भी तू उसे देखना भी पसंद नहीं करता तो तू वहाँ मत जा। वहाँ जाकर तू इरिटेट ही फील करेगा और उसके लिए परेशानी खड़ी करेगा। वही पापा अगर तुम दोनों को इस तरह से खुद की वजह से परेशान देखेंगे, तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा।" उनकी बात सुनकर अर्णव ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं। फिर वो उनसे बोला, "आपको इस बारे में चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है माँ। मैं इस वक्त दादाजी के लिए परेशान हूँ, तो मेरा ध्यान कहीं और है भी नहीं। और मैं हॉस्पिटल भी उन्हीं के लिए जा रहा हूँ, ना कि माधवी के लिए। वो वहाँ है तो वो उसकी अपनी इच्छा है। पर मुझे फिलहाल दादू के पास जाना है। वैसे भी उन्हें इस हालत में देखकर मैं पहले से ही खुद को बहुत गिल्टी फील कर रहा हूँ। इसीलिए अब जितना हो सके उनके साथ रहना चाहता हूँ। आप अगर खाना मेरे हाथों भेजना चाहती हो तो जल्दी से बाहर भेज दो, वरना मैं चला जाऊँगा।" इतना कहकर जल्दी से बिना सुनीता जी की कोई बात सुने वहाँ से निकल गया ताकि कोई उससे और सवाल ना पूछ सके। वहाँ उसे इस तरह जाते देख सुनीता जी हैरानी से उसे देखने लगीं। फिर सिर हिलाते हुए खुद से बोलीं, "यह लड़का भी ना! इसका कभी कुछ समझ नहीं आता। अगर इससे वहाँ रुकना ही था तो फिर हमारे साथ आया ही क्यों?" इतना कहकर किचन में जाकर उसके लिए भी खाना पैक करने लगीं। फिर महेश के हाथों टिफिन अर्णव के पास भिजवा दिया। अर्णव अपनी गाड़ी स्टार्ट कर हॉस्पिटल के लिए निकल गया। कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें।🙏🙏

  • 18. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 18

    Words: 1440

    Estimated Reading Time: 9 min

    थोड़ी देर बाद अर्णव हॉस्पिटल पहुँचा, और अपनी गाड़ी पार्किंग एरिया में लगाकर सीधे लिस्ट से अपने दादाजी के रूम की तरफ चला गया। उसने हल्के से रूम का दरवाज़ा खोला, अंदर आया, और अपनी नज़रें घुमाकर चारों तरफ देखा। एक तरफ सोफे पर सिमटकर सो रही माधवी पर उसकी नज़र ठहर गई। वह अपने हाथ में किताब पकड़े पढ़ते-पढ़ते ही सो गई थी, जिस वजह से उसका सर एक तरफ झुका हुआ था। इसी कारण उसके बालों की कुछ लटें आगे चेहरे पर आकर उसके चेहरे को ढँक रही थीं, जिससे उसका आधा चेहरा ही दिख रहा था। वह हल्की-हल्की सर्दियों का मौसम था, जिस वजह से उस वक्त रूम में भी ठंड थी। इसीलिए माधवी ने खुद को एक ऊनी शॉल से ढँक रखा था। अर्णव उसे देखते हुए धीरे से चलकर टेबल के पास आया और बिना आवाज किए खाना टेबल पर रख दिया। फिर अपने कदम माधवी की ओर बढ़ा दिए। माधवी को देखने में वह इतना खो गया था कि उसे होशो-हवास ही नहीं था कि वह उस वक्त क्या कर रहा है। उसने माधवी के हाथ से किताब ली और उसे बंद करके वहीं एक साइड टेबल पर रख दिया। फिर धीरे से अपने हाथ को आगे बढ़ाकर झुककर माधवी के चेहरे पर आए बालों को पीछे कर दिया और उसके चेहरे को देखने लगा। उसका वह गोरा बेदाग चेहरा, बड़ी-बड़ी घनी पलकें और चेहरे पर दिखने वाली बेइंतिहा मासूमियत, इस वक्त अर्णव को अपनी ओर खींच रही थी। उसे देखते हुए अर्णव की नज़र माधवी के बाएँ होठों के पास बने तिल और उसके गुलाबी होठों पर ठहर गई। जिन पर नींद में हल्की सी मुस्कान थी, जो शायद किसी हसीन ख्वाब की वजह से थी। तो अर्णव बेखयाली में ही अपने हाथ को उसके चेहरे की ओर ले जाने लगा। वहीं माधवी, जो कि नींद में थी, उसे अपने चेहरे पर किसी की गहरी नज़रों की तपिश महसूस हो रही थी। जिसे बर्दाश्त न कर पाने के कारण उसने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। तो उसकी नज़रें अर्णव की भूरी आँखों से जा मिलीं और दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे। वहीं अर्णव तो माधवी की काली गहरी आँखों में खोकर रह गया था, जिस वजह से उसने ध्यान ही नहीं दिया कि माधवी जाग चुकी है और उसे ही देख रही है। तभी खिड़की से आते सर्द हवा के झोंके ने जैसे ही अर्णव और माधवी के शरीरों को छुआ, तो दोनों सिहरते हुए होश में आ गए। अर्णव जल्दी से सीधा खड़ा हो गया। वहीं माधवी भी सीधे बैठते हुए अपने शॉल को सही करने लगी। दोनों के बीच एक अजीब सी स्थिति बन गई थी, जिसे दूर करने के लिए माधवी अर्णव से बोली: "सॉरी, वो पता नहीं कब मेरी आँख लग गई। पर आप यहाँ... आप तो चले गए थे ना?" तो अर्णव भी उससे बोला: "नहीं, मैं वो बस चेंज करने गया था। तो माँ ने तुम्हारे लिए मेरे हाथ से ही खाना भेजवा दिया। (हाथ का इशारा करते हुए) वो वहाँ रखा है टेबल पर।" इतना कहकर दादाजी के पास रखे स्टूल पर बैठ गया। वहीं उसकी बात पर माधवी ने हाँ में सर हिलाया और मुँह-हाथ धोने के लिए रूम में बने वॉशरूम में चली गई। वहीं अर्णव ने उसे वॉशरूम में जाते देखा, तो गहरी साँस ली और खुद से बोला: "कंट्रोल अर्णव, कंट्रोल योर इमोशंस! यह क्या हो रहा है तुझे? अनु से प्यार करने के बाद भी तू क्यों उसके करीब जा रहा है? जबकि तू जानता है यह कितना गलत है?" तभी उसके अंदर से आवाज आई: "लेकिन इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वो तेरी पत्नी है। तेरा हक है उस पर और उसका तुझ पर। जब तेरा दिल उसकी तरफ खींचा जा रहा है तो फिर तू क्यों उसकी तरफ अपने कदम नहीं बढ़ा रहा? क्यों दिमाग की उलझन में पड़कर खुद को और उसे तकलीफ दे रहा है? तेरी वजह से तेरा पूरा परिवार भी सफ़र कर रहा है और यह सब किस लिए? उस लड़की के लिए जिसने तेरी और तेरे परिवार की इज़्ज़त की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। और अगर अभी भी तू उसे इतना प्यार करता है तो फिर अर्णव, सच में तू बहुत स्वार्थी है, जिसे अपने सामने किसी की परवाह नहीं... ना अपने परिवार की और ना उस लड़की की जो तेरे परिवार की इज़्ज़त के खातिर अपना सब कुछ छोड़कर यहाँ चली आई, यह जानते हुए भी कि शायद ही तू कभी उसे अपनाए।" अर्णव अभी भी ना जाने कितनी देर अपने दिल और दिमाग की उलझन में डूबा रहता, अगर उसे बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज ना आई होती। उसने अपने सभी ख्यालों को झटक कर वापस से अपने फ़ोन में लग गया। वहीं माधवी हाथ-मुँह धोकर बाहर आई। अब उसे काफ़ी अच्छा महसूस हो रहा था, नींद भी उड़ चुकी थी। उसने अर्णव की तरफ देखा जो अपने फ़ोन में लगा हुआ था, तो वह चुपचाप धीरे से दरवाज़ा खोलकर वहाँ से बाहर निकल गई। वहीं अर्णव, जोकि माधवी के सामने फ़ोन में बिज़ी होने का दिखावा कर रहा था, उसे बाहर जाते देख सोच में पड़ गया कि इस वक्त वह कहाँ जा सकती है? उसने टाइम देखा तो 9:30 pm हो रहा था। वहीं माधवी हॉस्पिटल से बाहर निकलकर रोड क्रॉस करते हुए दूसरी तरफ बने मेडिकल स्टोर पर दादाजी के लिए कुछ दवाइयाँ और इंजेक्शन लेने आई थी, जो कि आधी रात के वक्त दादाजी को लगने थे। उसने सारी चीजें लीं और दुकान वाले को पैसे देकर वहाँ से जाने लगी कि तभी उसके कानों में कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई दी, जो उसे लेकर ही कमेंट कर रहे थे। "कड़क है बॉस! अगर ऐसी लड़की अपने को जिंदगी में मिल जाए, तो साला जिंदगी भर किसी की तरफ नज़र उठाकर नहीं देखूँगा।" "हाँ रे, सही कहा तूने! क्या कड़क माल है यार! बोले तो एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा! देख तो सही, सादगी में भी क्या कयामत ढा रही है! काश अपने को एक बार यह मिल जाए, तो सच में यहीं पर जन्नत नसीब हो जाएगी।" तीसरा उसके मुँह पर चांटा मारते हुए बोला: "चुप कर साले, मुँह तोड़ दूँगा तेरा! भाभी है वो, तेरी ज़ुबान संभालकर बोलियो इसके बारे में! अपना दिल आ गया है इस पर और अब तो इसे अपनी रानी बनाकर ही रहूँगा।" तो वो जिसके मुँह पर चांटा पड़ा, वो बोला: "लेकिन बॉस, वो तो शादीशुदा लगती है। यहाँ आपकी दाल नहीं गलने वाली, कहीं और ट्राई करो आप। हाँ, इसके साथ मज़े करना चाहो तो कर सकते हो।" वो उसके गाल को सहलाते हुए बोला: "तो क्या हुआ शादी हो चुकी है तो? आखिर पके हुए फल को खाने का अपना ही मज़ा है। यह बात तुम नहीं समझोगे, जिन्हें हमेशा कलियाँ पसंद आती हैं, उन्हें फूलों की कीमत कहाँ पता होती है? और इस फूल के लिए तो मैं इसके पति से भी लड़ जाऊँ। बस एक बार यह मेरी तरफ देखे तो सही, फिर इसको यहाँ से लेकर फुर्र हो जाऊँगा। फिर इसका पति भी कुछ नहीं कर पाएगा।" उन लोगों की इतनी वाहियात बातें सुनकर माधवी ने अपनी नज़रें घुमाकर देखा, तो मेडिकल स्टोर के बगल में चाय स्टॉल बनी हुई थी, जहाँ पर बैठे तीन-चार लड़के बेहद गंदे तरीके से उसे देख रहे थे, साथ ही उस पर अपने वाहियात कमेंट पास कर रहे थे। वहीं माधवी के पीछे मुड़कर देखने से वो लड़के खुशी से पागल हो उठे। कोई उसे देखकर अपना हाथ उठाते हुए उसे हाय कहने लगा, तो कोई उसे देखकर स्टाइल से अपने बाल सही करने लगा, तो कोई बेहद शरीफ़ बनते हुए उसे देखकर मुस्कुराने लगा, साथ ही अपने बालों में हाथ घुमाते हुए अपने शर्ट के कॉलर को सही करने लगा। उनकी इस तरह की हरकतें देखकर माधवी को बहुत गुस्सा आया। ________________________ कहानी जारी है। रीडर्स, अपनी रेटिंग और कमेंट देना ना भूलें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें। 🙏🙏

  • 19. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 19

    Words: 1787

    Estimated Reading Time: 11 min

    उन लोगों की इतनी वाहियात बातें सुनकर माधवी ने अपनी नजरें घुमा कर देखा। मेडिकल स्टोर के बगल में चाय स्टाल बनी हुई थी। वहाँ पर बैठे तीन-चार लड़के बेहद गंदे तरीके से उसे देख रहे थे। साथ ही उस पर अपने वाहियात कमेंट पास कर रहे थे। माधवी के पीछे मुड़कर देखने से वे लड़के खुशी से पागल हो उठे। कोई उसे देखकर अपना हाथ उठाते हुए उसे हाय कहने लगा। कोई उसे देखकर स्टाइल से अपने बाल सही करने लगा। कोई बेहद शरीफ बनते हुए उसे देखकर मुस्कुराने लगा। साथ ही अपने बालों में हाथ घुमाते हुए अपनी शर्ट के कॉलर को सही करने लगा। उनकी इस तरह की हरकतें देखकर माधवी को बहुत गुस्सा आया।


    उनकी इस तरह की हरकतों पर माधवी को बहुत गुस्सा आया। पर फिर उसने खुद को शांत कर उन्हें इग्नोर कर दिया और वापस से हॉस्पिटल की तरफ जाने लगी। पर वे लड़के उसे कहाँ चैन थे? माधवी के देखने से उन्हें हिम्मत और मिल गई थी। इसलिए वे भी उसके पीछे-पीछे चलने लगे और अपनी बेसुरी आवाज में माधवी को देखकर गाने लगे। उनकी इस तरह की हरकत से माधवी को अब डर लगने लगा था। पर वह खुद को उन लोगों के सामने कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी। जिससे उन लोगों की हिम्मत बढ़ जाए।


    वह बेख्याली में बिना आगे देखें जल्दी-जल्दी चल रही थी। कि तभी सामने खड़े शख्स से टकरा गई। जिससे वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और पीछे गिरने लगी। कि तभी उस शख्स ने उसका हाथ थाम उसे पीछे गिरने से बचा लिया। पर उसके हाथ से मेडिसिन्स नीचे गिर गईं।


    उसने घबराते हुए सामने देखा तो अर्नव उसका हाथ थामे हुए खड़ा उसे ही देख रहा था। उसे अपने सामने देख उसकी जान में जान आई। दुनियाँ-जहाँ का सुकून उसके चेहरे पर उतर आया। और वह बिना सोचे-समझे जल्दी से आगे बढ़कर अर्नव के गले लग गई।


    वही अर्नव जो कि माधवी से कुछ कहने वाला था, पर उसके अचानक इस तरह गले लगने से उसके शब्द उसके मुँह में ही रह गए। माधवी की इस हरकत ने उसके दिल को बेतहाशा धड़कने पर मजबूर कर दिया। उसका दिल इस वक्त जोरों से बेलगाम घोड़े की तरह धड़क रहा था। वह माधवी से वापस कुछ कहने को हुआ, पर माधवी की तेज चलती साँसों और शरीर में हो रही कपकपी को महसूस कर खामोश रह गया। पर तभी उसकी नजर माधवी के पीछे थोड़ी दूरी पर खड़े तीन-चार लड़कों पर पड़ी। जो इधर-उधर देखते हुए चोर नजरों से उन दोनों को ही देख रहे थे। अब उसे कुछ-कुछ बात समझ आने लगी। इसलिए उसने गुस्से भरी नजर उन लड़कों की तरफ डाली और माधवी के सर को हल्के से सहलाने लगा। जिससे उसका मन शांत हो जाए। वहीं अर्नव के इस तरह गुस्से से देखने पर वे लड़के डर गए। क्योंकि वे अर्नव से उम्र में काफी छोटे थे, इसलिए चुपचाप वहाँ से रफूचक्कर हो गए।


    उनके जाने के बाद अर्नव माधवी के सर को सहलाते हुए ही उससे बोला :-
    माधवी क्या हुआ? तुम ठीक हो?


    उसके बोलने पर माधवी को अपनी सिचुएशन का ख्याल आया। तो वह जल्दी से अर्नव से दूर हट गई और अपने हाथ से बालों को पीछे करते हुए नजरें झुका कर अर्नव से बोली :-
    हाँ मैं ठीक हूँ। एंड सॉरी मैंने ये जानबूझकर नहीं किया। वो बस वो लोग मुझे...


    इतना कहकर अपने पीछे देखने लगी। पर वहाँ उसे कोई नजर नहीं आया तो वह हैरान रह गई।


    वही उसका इस तरह खुद से दूर जाना अर्नव को अच्छा नहीं लगा। पर उसने माधवी से कुछ नहीं कहा और उससे बोला :-
    क्या हुआ? वहाँ क्या देख रही हो?


    तो माधवी ने वापस उसकी तरफ देखते हुए मन ही मन सोचा कि अगर उसने अर्नव को उन लड़कों के बारे में बताया तो पता नहीं वह उसकी बात पर विश्वास करेगा या नहीं। यही सोचकर वह बात बदलते हुए अर्नव से बोली :-
    कुछ नहीं। मैं बस ऐसे ही थोड़ा सा घबरा गई थी। वो वहाँ पर तेज़-तेज़ कुत्ते भौंक रहे थे ना इसलिए।


    इतना कहकर माधवी ने झुक कर दवाइयों का पैकेट उठाया, और एक नज़र वापस पीछे देख अंदर चली गई। तो अर्नव ने जल्दी से किसी को कॉल किया, और फिर उसके पीछे-पीछे अंदर चला गया।


    अंदर आकर माधवी ने उस दवाई के पैकेट को टेबल पर रखा और जल्दी से बाथरूम में चली गई। उसने आईने में खुद को देखा तो कुछ अजीब से पल उसकी आँखों के आगे से गुजर गए। जिससे माधवी सहम उठी। एक डर उसके चेहरे पर दिखने लगा। उसने नल ऑन किया और पानी के छींटे अपने चेहरे पर मारते हुए खुद को नॉर्मल करने लगी।


    कुछ देर बाद वह नॉर्मल हुई। फिर खुद को शांत कर बाहर आ गई, तो उसने देखा अर्नव वही सोफे पर बैठा अपने फोन को स्क्रोल कर रहा था। तो माधवी भी चुपचाप टेबल से खाने का टिफिन लेकर वहाँ लगे दूसरे सोफे पर बैठ गई।


    उसने टिफिन अनपैक किया तो उसमें खाने की क्वांटिटी ज़्यादा देख सोच में पड़ गई। उसने नज़र उठाकर अर्नव की ओर देखा, जो चोर नज़रों से उसे ही देख रहा था। लेकिन माधवी की नज़र खुद की घूमते देखकर जल्दी से अपनी नज़र फोन में कर ली। वही माधवी अर्नव से खाने के लिए पूछने ही वाली थी, कि उसे अर्नव और अपनी पिछली बार खाने पर हुई बहस याद आ गई। तो उसके लफ्ज़ मुँह में ही रह गए, और वह मन में सोची "रहने दे माधवी, क्यों सोए हुए शेर के मुँह में हाथ डाल रही है। कहीं ऐसा ना हो तू उनसे खाने के लिए पूछे और वो दुनियाँ-जहाँ के सवाल तुझसे पूछ डालें। वैसे भी वो बच्चे नहीं हैं, अगर भूख होगी तो खुद खा लेंगे।" इतना कहते हुए माधवी ने खुद को समझाया, और फिर खुद के लिए खाना निकालने लगी।


    वहीं अर्नव जो मन ही मन यह सोचकर खुश हो रहा था कि शायद अब माधवी उससे खाने के लिए पूछेगी, और उसे उससे बात करने का मौका मिल जाएगा। लेकिन उसकी यह सोच सोच ही रह गई। जब उसने माधवी को सिर्फ़ अपने लिए खाना प्लेट में लगाते देखा। वह हल्के गुस्से से उसे घूरने लगा। वहीं उसकी नज़रों से बेखबर माधवी ने अपना खाना खाना स्टार्ट कर दिया।


    (अब भाई अर्नव के घूरने से होता क्या है? जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से आए? पहले माधवी जब परवाह करती थी तब भी प्रॉब्लम थी। और जब अब इग्नोर कर रही है तो भी प्रॉब्लम। भाई ऐसे घनचक्कर आदमी तो हमें समझ नहीं आते तो बिचारी माधवी को कहाँ से आएंगे...🤭🤭😁😁)


    माधवी चुपचाप से अपना खाना खा रही थी। उसका पूरा ध्यान अपने खाने पर था और वही अर्नव का ध्यान उस पर। वह गुस्से से उसे देख रहा था और उसे देखते हुए अपने मन में बोला :- ह्हू बड़ी आई सबकी परवाह करने वाली। इसे किसी की चिंता नहीं है बस नाटक करती है सबके सामने। अगर इसे इतनी ही सबकी परवाह है, तो मेरी क्यों नहीं है? खुद तो खाने बैठ गई मुझसे पहले और मुझसे एक बार भी नहीं पूछा कि मैंने खाना खाया है या नहीं। अरे सच में नहीं तो फॉर्मेलिटी के लिए ही मुझे नहीं पूछ सकती थी कि "अर्नव जी मैं खाना खा रही हूँ तो आप थोड़ा खा लीजिये।" पर नहीं। और एटीट्यूड तो देखो मैडम का। खाने की पूछना तो दूर एक नज़र उठाकर भी नहीं देखा। सबके आगे बस झूठा नाटक करती रहती है कि इसे सब की बहुत परवाह है!!


    इसी तरह माधवी को खाते देख अर्नव ना जाने कितनी बार उसे खाने के लिए ना पूछने के लिए कोस चुका था, और मन ही मन बड़बड़ा रहा था। लेकिन माधवी को इतने चाव से खाते देख उसे वैसे ही भूख का एहसास हो रहा था, और उसे जोरों की भूख लग आई थी। लेकिन अपने ईगो की वजह से वह चाहता था कि एक बार माधवी खुद उससे खाने के लिए पूछ ले।


    खैर थोड़ी देर में माधवी ने अपना खाना खत्म किया और अपने हाथ वॉश करने बाथरूम में जाने लगी कि तभी उसके फोन पर बीप की आवाज आई। तो उसने फोन उठाकर चेक किया तो व्हाट्सएप पर सुनीता जी का मैसेज डाला हुआ था जो उससे पूछ रही थी :-

    सुनीता जी :- माधवी तुमने टाइम से खाना खा लिया ना?

    तो माधवी :- जी मां अभी खाया है। बस हैंड वॉश करने ही जा रही थी, कि आपका मैसेज आ गया!!

    तो सुनीता जी :- अच्छा ठीक है और अर्नव ने खाया? सब्जी में नमक थोड़ा तेज होने की वजह से उसने मुँह तो नहीं बनाया?


    अब जाकर माधवी को पता लगा कि अर्नव ने खाना नहीं खाया है। उसने अर्नव की ओर देखा और सुनीता जी को मैसेज किया :-

    माधवी :- नहीं मां उन्होंने अभी नहीं खाया!!

    तो सुनीता जी :- क्यों? घर पर तो कह रहा था कि मेरा खाना पैक कर दो। हॉस्पिटल में ही खा लूँगा! अब क्यों नहीं खाया?

    माधवी :- पता नहीं मां मैं खाना खा रही थी तब से सामने चुपचाप बैठे हुए हैं।

    तो सुनीता जी :- अरे हाँ अब समझी। तुम्हें लगा होगा वो खाकर आया होगा। इसलिए तुमने अपने लिए ही खाना लगाया होगा। और उसने तुमसे अपना खाना लगाने के लिए कहा नहीं होगा। और वो कभी खुद से लेकर खाता नहीं है। शायद इसी वजह से उसने खाना नहीं खाया। तुम एक काम करो उसके लिए प्लेट लगा दो। अगर उसे खाना होगा तो खा लेगा।

    तो माधवी झिझकते हुए :- पर मां मैं कैसे? आई मीन उन्होंने तो मना किया है मुझे अपना कोई भी काम करने के लिए।

    तो सुनीता जी :- हाँ तो अगर वो कोई आनाकानी करें तो बोल देना मैंने तुमसे कहा है। अगर कोई परेशानी है तो मुझसे कहे।

    तो माधवी :- जी मां। कहकर ऑफलाइन हो जाती है।

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  • 20. मुझे प्यार है सिर्फ तुम से - Chapter 20

    Words: 1192

    Estimated Reading Time: 8 min

    माधवी ने अपने हाथ धोए और चुपचाप एक थाली में अरनव के लिए खाना निकाला। जब अरनव ने गुस्से से उसकी ओर देखा, तो खाना लगाते हुए उसे देखकर उसका चेहरा खिल गया। फिर उसने खुद को सामान्य करते हुए फोन में देखना शुरू कर दिया, पर उसकी नज़रें माधवी पर ही टिकी रहीं।


    थोड़ी देर बाद माधवी उसके पास गई और उसका ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बोली, "वो मैंने आपका खाना लगा दिया है। आप खा लीजिए। मैं यहाँ दादू के पास बैठ जाती हूँ।"


    उसकी बात सुनकर अरनव अनजान बनते हुए उसकी ओर देखने लगा। फिर उसने कहा, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। मैंने तुमसे बोला है ना, मैं अपना काम खुद कर लूँगा। तुम्हें मेरी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"


    माधवी ने जल्दी से उसकी बात काटते हुए कहा, "हाँ, मुझे पता है आप अपना काम खुद कर सकते हैं। लेकिन अभी माँ ने मुझे मैसेज करके बताया कि मैं आपके लिए खाना लगा दूँ। आप खुद से कभी नहीं खाते। बस इसीलिए माँ के कहने पर आपके लिए लगाया। अगर आपको कोई प्रॉब्लम है, तो आप उनसे ही बात कर लीजिए।"


    उसका जवाब सुनकर अरनव चिढ़ गया। एक पल उसे लगा था कि माधवी को उसकी परवाह है, इसीलिए वह खुद से उसकी फ़िक्र कर रही है। लेकिन उसकी माँ के कहने पर कर रही है, यह बात सुनते ही उसे माधवी पर गुस्सा आने लगा। क्या इस लड़की को सच में उससे कोई मतलब नहीं? फिर खुद को सामान्य करते हुए वह वहाँ से उठते हुए बोला, "नहीं, रहने दो। माँ से कुछ मत कहो। मैं खा लूँगा।" इतना कहकर वह हाथ धोने के लिए बाथरूम में चला गया।


    थोड़ी देर बाद अरनव वापस आया और अपना खाना खाने लगा। वह कम खा रहा था और माधवी को ज़्यादा घूर रहा था। इसी वजह से उसे ठसका लग गया, और वह जोर-जोर से खांसने लगा। उसकी आँखें लाल हो गईं, और उनमें से आँसू आने लगे।


    उसकी हालत देख माधवी जल्दी से उसके पास आई और पानी का गिलास लेकर उसके होठों से लगाकर, अपने दूसरे हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगी। अरनव पानी पीते हुए एकटक माधवी के चेहरे को देख रहा था। माधवी के चेहरे पर उसे तकलीफ में देख डर और घबराहट थी। ऐसा लग रहा था जैसे दर्द में अरनव नहीं, बल्कि वह खुद हो। उसे इस तरह खुद की फ़िक्र करते देख अरनव को दिल ही दिल बहुत सुकून महसूस हुआ।


    तभी माधवी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। माधवी उसकी पीठ सहलाते हुए बोली, "अब ठीक हैं आप?" अरनव ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया। "आप ठीक से खाना नहीं खा सकते। देखा, लग गया ना ठसका। एकाग्र होकर खाना खाते वक़्त सारा ध्यान खाने पर लगाइए।"


    इतना कहकर वह वहाँ से मुड़कर जाने लगी, कि अचानक अरनव ने उसकी ओर देखते हुए उसका हाथ पकड़ लिया। उसके हाथ पकड़ने से माधवी का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने धड़कते दिल के साथ पीछे मुड़कर सवालिया नज़रों से अरनव की ओर देखा।


    अरनव ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "वो स्टूल बहुत छोटा है। इसीलिए तुम यहीं बैठ जाओ और आराम करो। रात भी काफी हो चुकी है। वैसे भी दादू सो रहे हैं, उन्हें अगर किसी चीज़ की ज़रूरत होगी तो मैं देख लूँगा।"


    माधवी ने हाँ में सिर हिला दिया। अरनव ने उसका हाथ छोड़ दिया। माधवी दूसरे सोफ़े पर जाकर बैठ गई। अरनव वापस अपना खाना खाने लगा। खाना खाने के बाद दोनों कुछ पल शांति से बैठे रहे। उनके बीच खामोशी छा गई थी। कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था। माधवी अपनी नज़रें झुकाए, अपनी उंगलियों को अपनी शॉल की किनारे में घुमाते हुए नीचे जमीन पर देख रही थी। अरनव बार-बार उसे देख लेता। वह यही सोच रहा था कि माधवी उससे कुछ तो बोले। जब दोनों के बीच की खामोशी और गहरी होने लगी, तो आखिर में अरनव ने बात की शुरुआत करते हुए कहा, "थैंक्यू माधवी, मेरे और घरवालों के ना होने पर दादाजी का इतना ख्याल रखने के लिए। यू नो व्हाट, दादा जी हम लोगों के लिए बहुत मायने रखते हैं, इन फैक्ट पूरी फैमिली के लिए। अगर उन्हें कुछ हो जाता तो शायद मैं कभी अपने आप को माफ़ नहीं कर पाता। आई नो कि आज उनकी जो कंडीशन है वह मेरी वजह से है। इतना ही नहीं, आई एम सॉरी टू यू। मैंने तुम्हारे साथ बहुत मिसबिहेव किया। अगर उस दिन मैं तुमसे और दादू से इतना रूड होकर बात नहीं करता, तो शायद आज यह कंडीशन नहीं बनती। बट ट्रस्ट मी, मैंने यह सब कुछ जानबूझकर नहीं किया।"


    माधवी ने उसकी बात काटते हुए उसे समझाते हुए कहा, "डोंट वरी अरनव जी, मुझे आपकी किसी बात का बुरा नहीं लगा। सिवाय इस बात के कि आपने अपने दादू से बहुत रूड होकर बात की। बट आई नो कि वो सब आपने जानबूझकर किसी को हर्ट करने के लिए नहीं कहा। एक्चुअली वो टाइम ही ऐसा था और ऊपर से सिचुएशन इतनी खराब, कि ऐसे में अच्छे से अच्छा व्यक्ति खुद पर काबू खो देता है। बट आपको यह बात समझनी चाहिए कि जो कुछ भी आपके साथ हुआ, उसके लिए आप किसी को ब्लेम नहीं कर सकते। आप भी अपनी जगह पर सही थे और दादू भी। बस गलती इतनी थी कि आप दोनों ही एक-दूसरे की बात को नहीं समझना चाहते थे। आगे से कोशिश कीजिएगा कि आप अपनी बात को दादू के आगे शांति से रखें जिससे उन्हें कोई परेशानी ना हो। क्योंकि आप दादू के सबसे करीब हैं, ऐसे में आपका दादू को हर्ट करना उनसे बर्दाश्त नहीं होगा।"


    अरनव माधवी को देखते हुए बोला, "डोंट वरी, अब आगे से पूरा ध्यान रखूँगा कि मेरी किसी भी बात से दादू को कोई ठेस ना पहुँचे, एंड दादू क्या, घर के किसी भी मेंबर को।" माधवी मुस्कुरा दी। "और इसके लिए मुझे तुमसे एक फेवर चाहिए। मैंने हमारे रिश्ते को लेकर एक फैसला लिया है।" माधवी सवालिया नज़रों से उसे देखने लगी। "आई नो कि तुम घर में दादू और सबकी बहुत केयर करती हो। इसीलिए शायद तुम मेरी बात को मना नहीं करोगी।"


    माधवी ने उसे देखते हुए पूछा, "कैसा फैसला?" अरनव खामोशी से उसे देखने लगा। माधवी भी जवाब की उम्मीद में उसकी तरफ देखने लगी।


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