कहते हैं ईश्वर हर इंसान को धरती पर किसी न किसी उद्देश्य से भेजता है। जब तक मनुष्य अपना उद्देश्य पूरा न कर ले उसे मुक्ति नहीं मिल सकती। ये कहानी है एक लड़की जिसका नाम पृथ्वी था, उसे प्यार से सब लाडली कहकर पुकारते थे क्योंकि दस साल बाद रणधीर चौधरी को ए... कहते हैं ईश्वर हर इंसान को धरती पर किसी न किसी उद्देश्य से भेजता है। जब तक मनुष्य अपना उद्देश्य पूरा न कर ले उसे मुक्ति नहीं मिल सकती। ये कहानी है एक लड़की जिसका नाम पृथ्वी था, उसे प्यार से सब लाडली कहकर पुकारते थे क्योंकि दस साल बाद रणधीर चौधरी को एक बेटी हुई थी, जिसके लिए उन्होंने ना जाने कितने देवी-देवताओं के मत्थे टेक थे। चौधरी साहब ने पृथ्वी को बड़े नाजों से पाला था। लेकिन पृथ्वी की दुनिया तब पूरी तरह से उजड़ गयी जब उसके पिता के बड़े भाई ने उसकी माता पिता की हत्या कर के सारी संपत्ति हड़प लिआ। क्या पृथ्वी इस मतलबी दुनिया में अकेली जिंदगी बिता पाएगी? क्या वो अपनों के ही बुने हुए जाल से बच पायेगी? जानने के लिए पढ़िए " साथ निभाना साथिया "
पृथ्वी चौधरी
Heroine
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उत्तर प्रदेश, गाँव के मुखिया चौधरी रणधीर के घर आज लोगों की भीड़ लगी हुई थी। पूरा घर जगमगा रहा था, घर के आंगन में औरतें सोहर गीत गा रही थीं। और बड़े बुजुर्ग आंगन में बैठकर हुक्के बाजी कर रहे थे। शादी के 10 साल बाद रणधीर चौधरी को एक बेटी हुई थी, जिसके लिए उन्होंने ना जाने कितने देवी-देवताओं के मत्थे टेक थे। आज उसी लड़की का नामकरण था, इसलिए गाँव के हर सदस्य को न्योता दिया गया। पंडित जी ने पूजा अर्चना की सभी देवी-देवताओं, कुल देवता आदि की पूजा की, उसके बाद बिटिया का नाम रखा गया - "पृथ्वी," यानी साक्षात धरती माँ। लड़की के नामकरण के बाद सभी गाँववालों को भोजन कराया गया, पूरे गाँव में मिठाई बांटी गई और ब्राह्मणों को भर-भर के दान-दक्षिणा दी गई। चौधरी साहब आज बहुत खुश थे, होते भी क्यों नहीं? इतने सालों बाद उनके सिर से बांझ का धब्बा हटा था। उनकी बेटी में जान बसी थी। वो प्यार से पृथ्वी को लाडली कहकर बुलाते थे। चौधरी साहब का कोलकाता में छोटा सा कारोबार था, जिसके लिए उन्हें कभी-कभी वहां जाना पड़ता था। जन्म के पहले चौधरी साहब ने कोलकाता में भी काली माँ से मन्नत मांगी थी कि उन्हें एक संतान हो जाए। गंगा मैया के आगे हाथ जोड़ा था, कि अगर उन्हें कोई भी संतान हुई तो वे उसे गंगा मैया की गोद में देंगे। सबकुछ बीत जाने के बाद चौधरी जी अपनी बेटी लाडली और पत्नी पूनम के साथ कोलकाता पहुंचे। अपनी मन्नत पूरी करने के लिए। कोलकाता पहुंचकर उन्होंने परिवार सहित मां काली के दर्शन किए। फिर नाव में बैठकर गंगा मैया को इस पार से उस पार माला चढ़ाई और अब बारी थी बेटी को गंगा मैया की गोद में देने का। पूनम का जी एकदम भारी हो गया था, मन्नत तो मान दिया पर अब बेटी को गंगा में कैसे डाले? अगर उसे कुछ हो गया तो? नाव बीच में पहुंच चुकी थी, चौधरी जी ने पूनम की गोद से लाडली को मांगा। उसने इनकार कर दिया, भला वह कैसे अपनी बेटी को गंगा में फेक दे? उनके जिगर का टुकड़ा। उनकी आंखों में पानी आ गया। चौधरी जी ने प्यार से उन्हें समझाया, "कुछ नहीं होगा हमारी लाडो, ये खुद गंगा मैया का उपहार है।" पूनम जी ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर लाडली को चौधरी साहब को दे दिया। चौधरी साहब ने बच्ची को नाविक को थमाया। और नाविक ने बच्ची को झटके से उठाकर गंगा में पटक दिया। पूनम जी तुरंत चिल्ला पड़ी, "लाडो।" चौधरी साहब ने पूनम जी को संभाला, जोर जोर से रोने लगी। इधर गंगा मैया ने लाडली को अपने गोद में से ऊपर भेज दिया और वह ऊपर आ गई। नाविक ने लाडली को पानी में से अपने गोद में लिया और मुस्कुराते हुए उसे पूनम जी की तरफ बढ़ा दिया। पूनम जी ने जब सामने रोटी हुई लाडली को देखा, तो उनके जान में जान आई। उन्होंने झट से लाडली को अपने कलेजे से लगा लिया। चौधरी साहब और पूनम ने गंगा मैया को हाथ जोड़कर नमन किया, और घाट के किनारे आ गए। इसी तरह समय बीतने लगा और लाडली बड़ी होने लगी, वह गाँव में सबसे प्यारी और चंचल बच्ची बन गई थी। चौधरी साहब ने उसे बड़े प्यार से पाला था। तीन साल बाद, चौधरी साहब किसी काम से कोलकाता गए हुए थे। अपने घर पर आकर उन्होंने पूनम जी को फोन किया और हाल-चाल लिया। लाडली ने अपने पिता से तुतला कर बोला, " पापा, आप तब आओ दे।" चौधरी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बहुत जल्दी मेरी लाडो। मेरी लाडली को पापा से क्या चाहिए?" लाडली: "मेले साले थिलौने पुलाने हो गए हैं। निया चाहिए पापा।" "ठीक है मेरा बच्चा। पापा बच्चा के लिए ढेर सारे खिलौने लाएंगे!" कहकर चौधरी जी ने फोन रखा। वह पीछे मुड़े ही थे कि उनके सामने उनके बड़े भाई पुरुषोत्तम खड़े थे, जिनके हाथ में इस समय बंदूक थी। और उन्होंने बंदूक चौधरी साहब के सामने तान दिया था। अपने बड़े भाई को यूं अपने ऊपर बंदूक तान देखकर चौधरी साहब एकदम हैरान थे। उन्होंने पुरुषोत्तम से कहा, "ये क्या है भईया।। ये बंदूक क्यूं है आपके हाथ में।" पुरुषोत्तम जी बोले, "कितने मासूम हो तुम रणधीर? मैं तुम्हारे सामने बंदूक तान खड़ा हूं फिर भी तुम मूर्खता भरा सवाल कर रहे हो।" चौधरी साहब मुस्कुराते हुए बोले, "अपनों से कैसी चालाकी भाई साहब, जो आनंद मासूमियत में है वो धूर्तता में नहीं।" पुरुषोत्तम: "ये गीता के लाइन किसी और को जाकर सुनाना मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। हमारे पिता के हम दो बेटे थे, तुम छोटे हो फिर भी उन्होंने अपना सब कुछ तुम्हे सौप दिया। एक ही कोख से जन्म लेने के बाद भी तुम राजा की तरह रह रहे हो और मैं जीवन भर भिखारी की तरह। लेकिन अब नहीं। जो जीवन मैंने जिया है वो मैं अपने बच्चों को नहीं जीने दूंगा। मैं अपने बच्चों को उनका हक दिलाऊंगा।" कहकर पुरुषोत्तम ने चौधरी साहब पर गोली चला दी। गोली लगते ही रणधीर जी जमीन पर गिर पड़े और छटपटाने लगे। लेकिन पुरुषोत्तम को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह ऐसे ही वही खड़ा रहा जबतक की रणधीर जी इस दुनिया को छोड़ नहीं दिए। इधर गांव में आज पूनम का जी एकदम भारी सा हो गया था। उन्हें सारी रात नींद नहीं आई। सुबह होते ही वह अपने घर से जब बाहर आई, तो देखा गांव के सारे लोग उनके घर के बाहर भीड़ लगाकर खड़े हैं। सबकी आंखों में इस वक्त आंसू थे। पूनम जी हैरानी से सभीको देख रही थीं। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। गांव की एक बुजुर्ग औरत उनके पास आई और रोते हुए बोली, "बहुत बड़ा अनर्थ हो गया चौधराइन। चौधरी साहब की किसीने गोली मारकर हत्या कर दी।" उनकी बात सुनते ही पूनम जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। वह बदहवास सी जमीन पर बैठ गई। इधर लाडली की भी नींद खुल गई थी, उसने जब अपने पास अपनी मां को नहीं पाया, तो वह सीधा। घर के बाहर आ गई। उसने बाहर बहुत से लोगों को खड़े देखा और अपनी मां को रोते हुए देखकर वह घबरा कर अपनी मां के गोद में जाकर बैठ गई। उसके चेहरे को देखकर पूनम और तेज से रोने लगीं। उन्होंने लाडली को खुद से चिपका लिया और फूट-फूटकर रोने लगी। गांव के कुछ लोगों ने कोलकाता जाकर वही चौधरी जी का दाह संस्कार किया। तेरह दिनों बाद ब्राह्मण भोज कराया गया। चौधरी साहब को मरे अभी एक महीने भी नहीं गुजरे थे। पूनम जी तो पूरी तरह से सदमे से निकली भी नहीं थीं, तभी एक नया तूफान उनके सामने आ खड़ा हुआ, पुरुषोत्तम नाम का। पुरुषोत्तम ने पूरे गांव को इकट्ठा किया और पंचायत समिति की बैठक हुई। जिसमें सभी पंचों के सामने पुरुषोत्तम ने अपनी बात रखी। पुरुषोत्तम: "गांववालो, जैसा कि आप सभीको पता है, मेरे छोटे भाई रणधीर चौधरी को गुजरे महीने भर बीते हैं। इसलिए मैं आप सभीके सामने कुछ दिखाना चाहता हूं।" फिर उसने सारे गांववालों के सामने एक कागज दिखाया और बोला, "ये कागज रणधीर के जायदाद और उसके मकान का है, जो उसने हमारे नाम कर दिया है।" गांववालों में खलबली मच गई। सब जानते थे पुरुषोत्तम कितना नीच इंसान था, ऐसे कोई गलत काम नहीं जो उसने ना किया हो, इसलिए तो उसके पिता ने उसे जायदाद से बेदखल कर दिया था। कोई उसकी बात मानने को तैयार नहीं था। तभी उसने कहा, "मुझे पता था तुम सब मेरी बात को कभी नहीं मानोगे, इसलिए मैं पुलिस को साथ लेकर आया हूँ।" कहकर उसने एक इशारे किया और कुछ पुलिस वाले वहां आ गए। पुरुषोत्तम ने उन्हें कागज दिखाया और गांववालों को पढ़कर बताने को कहा। पुलिस ने कागज पढ़कर कर गांववालों से बताया कि इस कागजात के अनुसार आज से 5 साल पहले ही रणधीर ने अपनी सारी जमीन और जयादाद अपने बड़े भाई पुरुषोत्तम और उनके बेटों के नाम कर दी थी। क्योंकि उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उनके मरने के बाद उनके सारी संपत्ति पर उनके बड़े भाई का अधिकार होगा।
इतना सबकुछ हो गया फिर भी पूनम जी अभी तक मूक दर्शक बनकर बैठी हुई थी। पुरुषोत्तम ने एक नज़र पूनम को देखा और तिरछा मुस्कुरा दिया।फिर वो सबके सामने बोला , अब तो आप सबको विश्वास हो गया होगा ना की ये सब अब मेरा है। गांव के सभी लोगो मायूस होकर अपना सिर झुका लिए।उनके पास अब कोई मुद्दा ही नही था इस बात पर बहस करने के लिए। पूनम जी वहां से उठ गई और अपने घर में चली गई। अंदर जाकर उन्होंने अपनी कुछ जरूरत का सामान कपड़े लिए और चौधरी साहब की तस्वीर लेकर बाहर आ गई। पुरुषोत्तम आगे आया और बोला ... अगर तुम चाहो तो यहां रह सकती हो मुझे कोई दिक्कत नहीं। लेकिन तुम्हे यहां अब महारानी नही नौकरानी बनकर रहना होगा। पूनम ने जलती हुई आंखो से उसे देखा और बोली ... चौधरी की बीवी हूं, इतना काबिलियत है की अपनी बेटी को पाल सकती हूं। पुरुषोत्तम ... कहां जाओगी इसे लेकर ? इस बाहरी दुनिया को तुम जानती नही , एक से बढ़कर एक गिद्ध पड़े हुए है बाहर को तुम्हे और तुम्हारी इस नन्ही सी जान को नोच खाएंगे। पूनम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ... जब अपने खुद के घर में भेड़िए पड़े हों तो बाहर के गिद्धों से क्या डर.... कहकर वो वहां से अपना सामान लेकर चली गई। गांव के बंजर जमीन पर एक कुटिया बनाई और वहीं रहने लगी... दिन भर बाहर मजदूरी करती तब जाकर कहीं पेट भर खाना मिलता ,लाडली भी पहले से काफी कमजोर हो गई थी। इसलिए अब वो भी बीमार रहने लगी।एक लड़की को बुखार हो गया, पूनम उसे लेकर बाजार के एक डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने दावा दिया। , और उसका अच्छे से ख्याल रखने को कहा... पूनम लाडली को लेकर घर आई उसे कुटिया में सुला कर ।गांव के एक घर जहां से लाडली के लिए दूध लेती थी उसके पास गई। पूनम ने ग्वाले से दूध के लिए कहा .... ग्वाला ने पैसे मांगे ,पूनम बोली .. भाई साहब आज लाडली की तबियत बहुत खराब थी, जो पैसे थे सब उसके दवा में खर्च हो गए। मैं कल आपको पैसे दे दूंगी.. ग्वाला ... कहां से लाओगी पैसे आप ? कौन देगा आपको पैसे ? देखिए यही हमारी रोज़ी रोटी है ... हम अगर ऐसे ही उधारी देते रहे तो हमारे बच्चे भूखे मरने लगेंगे ! उसकी बातों ने पूनम के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी। कितनी मतलबी दुनिया है ये जिंदगी भर मेरे पति ने सारे गांव वालो को अपनी संतान की तरह माना । और आज ये लोग उन्ही के परिवार को अपना नही समझते। वो अपनी कुटिया में आई और रणधीर के तस्वीर को गले से लगाकर रोने लगी। पूनम ... क्यूं चले गए आप हमे छोड़कर , देखिए आपकी लाडली किस हाल में है, कोई नही हमारा यहां, ना जाने कब तक यूं ही रोते रोते उनकी आंख लग गई और वो सो गई। अगले दिन सुबह .... सुबह होते ही पूनम जी की आंख खुली उन्होंने देखा अभी तक लाडली उनसे चिपक कर सो रही है। वो यू ही बैठी कल की बात सोचने लगी। आखिर कब तक वो ऐसे ही। मजदूरी करेंगी ? गांव में मजदूरी करके उन्हें मिलेगा क्या , सिर्फ दो वक्त की रोटी बस और कुछ नहीं। इससे वो लाडली की परवरिश कैसे करेंगी, उसकी पढ़ाई लिखाई, और सब का खर्चा कहां से आएगा , फिर उन्हे अपने भाई की याद आई, उन्होंने अपना सामान पैक किया और अपने मायके के लिए निकल गई। उनका मायका काफी संपन्न था, हालांकि उनके माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी। और मायके में उनका इकलौता भाई कमलेश और भाभी सुमित्रा जी रहते थे।पूनम जी पैदल ही अपने मायके के लिए निकल पड़ी , पास में इतने भी पैसे नही थे की कोई सवारी गाड़ी में बैठ जाएं, चील चिलाती धूप में किसी तरह अपने मायके पहुंची। वहां उनके भाई ने जब अपनी बहन को देखा तो झट से बाहर गेट पर आए और उनके हाथ से लाडली को थाम लिया। पूनम की भाभी ने उन्हें संभाला , उन्हे खिलाया पिलाया और संभाला , उनके भाई के भी दो बेटे थे, पूनम ने अपनी सारी आपबीती अपने भाई भाभी को बताया। जिसके बाद उनके भाई ने उन्हें अपने यहां ही रहने के लिए कहा, लेकिन पुनम एक स्वाभिमानी औरत थी, मायके में रहकर खाना उनके स्वाभिमान के खिलाफ था। इसलिए वो अपने भाई भाभी से बोली ... मैं कोलकाता जाना चाहती हूं । मेरे पति का वहां कारोबार था, मैं उसे संभालना चाहती हू और आगे बढ़ाना चाहती हू. जिसपर उनके भाई भाभी ने विरोध जताते हुए कहा ... नही पूनम तुम अकेली औरत एक अनजान शहर में क्या करोगी। वो भी कोलकाता जैसे बड़े शहर में, जमाना इतना खराब है सब क्या कहेंगे की , एक बहन का भी खयाल नहीं रख पाया मैं। और अगर तुम्हे या लाडली को कुछ हो गया तो मैं चौधरी साहब को ऊपर जाकर कौन सा मुंह दिखाऊंगा। अपने भाई की बात सुनकर पूनम बोली... भैया कब तक मैं जमाने के डर से मायके में बैठी रहूंगी,! क्या जमाना मुझे खाना देने आएगा या फिर , जमाने के लोग मेरी लाडली की परवरिश करेंगे । पूनम के भाई .... हम है न पूनम, हम तुझे और लाडली को कोई कमी नहीं होने देंगे । अपने पति की बात सुनकर पूनम जी के भाभी का मुंह बन गया । वो मन ही मन बोली ... हे प्रभु अब ये कौन सी नई बला भेज दिया आपने मेरे मत्थे पर। इस आदमी को जरा सी सद्बुद्धि दीजिए। अपनी भाभी का बिगड़ा मुंह देखकर पूनम को सब समझ आ रहा था पर वो कुछ नही बोली ... और अपने भाई से कहने लगी। पूनम ... मैं जानती हूं भईया आप हमे कोई कमी नहीं होने देंगे लेकिन मुझे अपनी लाडली का भविष्य सुधारना है। उसे पढ़ा लिखकर कुछ बनाना है। जिसके लिए मुझे कोलकाता जाना ही होगा .! तभी पूनम जी की भाभी बीच में बोल पड़ी ... सुमित्रा ... ठीक ही तो कह रही है पुनम ! ये गांव में रहकर लाडली को एक अच्छी परवरिश कैसे दे पाएगी,। गांव में अच्छे स्कूल है ही कहां ,? शहरो में एक से एक स्कूल है। वहां अगर लाडली पढ़ेगी तो जरूर अपने जीवन में कुछ बन पाएगी। । कमलेश जी भी अब क्या ही करें! पूनम के इतना ज़िद करने के बाद आखिर कर उन्होंने अपना मान मारकर हां कह दिया। और बोले .. ठीक है अगर तुमने मन बना ही लिया है तो अब मै नही रोकूंगा तुम्हे । बताओ कब चलना है। पूनम ने हल्का से मुस्कुराया और बोली . ! मैं अकेली जाऊंगी भईया। उसकी बात सुनकर कमलेश जी नाराज होते हुए बोले ... ये क्या बात हुई पूनम , तुमने जाने के लिए कहा मैने माना नहीं किया लेकिन यूं अकेली तुम इतनी दूर एक अनजाने शहर में कैसे जाओगी। पूनम ... आजकल तो अपने भी अंजान हो गए है भईया ! फिर वो तो शहर ही अंजान है! जबतक मैं अपनी पहचान नहीं बनाऊंगी कोई कैसे जानेगा मुझे। और ये लड़ाई मेरी अकेली की है। मैं इसे अकेले लड़ लुंगी ।बस आप लोगो की एक मदद की जरूरत थी। सुमित्रा ... मदद के नाम पर मन ही मन भगवान से मानने लगी की ,कहीं पूनम जी पैसे न मांग ले ,वरना उसका निठल्ला पति तुरंत निकाल कर दे देगा। उसके चेहरे को पूनम ने एक नजर देखा और बोली ... मैं चाहती हू आप लोग कुछ दिनों के लिए मेरी बेटी लाडली को अपने पास रख लें। आप लोगो के पास रहेगी तो मुझे उसकी काम चिंता रहेगी। मैं जैसे ही वहां सेटल हो जाऊंगी मैं अपनी बेटी को अपने साथ ले जाऊंगी। कहकर मेरे चुप हो गई। उसकी बात सुनकर कमलेश जी बोले... इसमें कौन सी बड़ी बात है पूनम , लाडली हमारी इकलौती भांजी है हम उसे अपने पलकों पर बिठा कर रखेंगे। तूं इसकी बिलकुल चिंता मत करना । है ना सुमित्रा .. उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा ... सुमित्रा ने मन मार कर कहा ... हां हां बिल्कुल ! क्यू नही, पूनम में एक हल्का सा मुस्कुरा दी । उसके बाद उसने अपनी बेटी को अपने गोद में लिया .! और उसे चूमने लगी,उनकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे। एक मां ही समझ सकती है उसपर क्या गुजरती है जब उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी बच्ची को छोड़कर उससे दूर होना पड़ रहा है। पहली बार पूनम अपनी बच्ची को छोड़कर कही जा रही थी। लाडली को देखकर उनका कलेजा बाहर आने को हो रहा था। वो ईश्वर से प्रार्थना करने लगीं उनकी बेटी सही सलामत रहे । उसके बाद सबसे विदाई लेकर वो कोलकाता के लिए निकलने वाली थी। वो जब जाने को हुई लाडली दौड़ते हुए उनके पास आई और उनके पैरो को पकड़ कर रोने लगी। पूनम जी ने उसे जैसे तैसे बहकाया और जल्दी से वहां से निकल गई। कमलेश जी उन्हे स्टेशन तक छोड़ने आए थे। उन्होंने पूनम को कुछ पैसे दिए। और उनका टिकट कटवाया। कुछ देर बाद स्टेशन पर ट्रेन आई और पूनम जी ट्रेन में जाकर बैठ गई ... जैसे जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी पूनम जी का जी एकदम भारी होता जा रहा था। उन्हे चौधरी साहब की याद आई। आज अगर वो होते तो पूनम जी को कभी ये दिन न देखना पड़ता। आज उन्हे अपनी लाडो से अलग न होना पड़ता। यूं ही पूरे रास्ते रोते रोते उनका सफर कट रहा था। और मंजिल नजदीक आ रही थी। ,.............✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
घर में इस समय पूनम जी और अंजना साथ में बैठी हुई थी। तभी अंजना बोली .. आपको अगर बुरा न लगे तो मैं आपके लिए भोजन लेकर आई थी। उनकी बात सुनकर पूनम थोड़ा सा हिच किचाई वो भला कैसे किसी से खाना लेकर खा सकती है। पूनम जी के लिए तो मांग कर खाना मरने के समान था। अंजना जी ने उन्हे यूं खोए हुए देखा तो बोली ... देखिए भाभी जी मैं समझ सकती हूं आप क्या सोच रही है। पर बुरा मत मानिएगा मेरा इरादा आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने का बिल्कुल नही। हम यहां सालो से रहते है। हमारी कोई औलाद नहीं हुई। भाई साहब और मेरे पति दोनो बहुत अच्छे मित्र थे। उन्होंने हमारे बुरे दिन में हमारा बहुत साथ दिया था। इसलिए एक इंसान होने के नाते मैं आपके पास आई। मैं आपके ऊपर कोई एहसान करने नही आई हूं। उनकी बातो को सुनकर पूनम जी का दिल भर आया। उनकी आंखो से एक बार फिर आंसू छलक उठे। अंजना जी ने उन्हे समझाया और चुप कराकर उन्हें टिफिन दिया जो वो अपने साथ लाई थी । और पूनम जी को ढांढस बंधा कर उन्हे अपना खयाल रखने को कहकर वापस अपने घर में चली गई। उनके जाने के बाद पूनम जी ने टिफिन को खोला और खाने को देखने लगी। कैसा समय था ये न जाने ईश्वर कितनी परीक्षा लेंगे और उनकी। उन्हे अपनी बेटी की याद आने लगी। ना जाने लाडली कैसे होगी। उसने खाना खाया होगा या नहीं? उनके बिना तो वो खाना भी नही खाती थी। उनकी इतने मन्नत के बाद उन्हें लाडली पैदा हुई थी। और अपनी जान से ज्यादा प्यारी बच्ची को छोड़कर आज वो इतनी दूर आ गई है। उनका रोना फिर से तेज हो गया ! उनकी जिंदगी ने ऐसा मोड़ ले लिया है की उन्हें अपनी बेटी से ही अलग होना पड़ गया ।अपने कलेजे पर पत्थर रखकर वो अलग हुई थी उससे। उनका खाना खाने का बिलकुल मन नहीं कर रहा था। अब तो भूख भी मर चुकी थी ! जीने की इच्छा बिल्कुल नही थी पर अपनी बेटी के लिए उन्हें जिंदा रहना पड़ेगा। उन्होंने धीरे धीरे जैसे तैसे करके एक रोटी खाया । बाकी का सारा खाना वैसे ही छोड़कर वो वापस से सोने चली गई। उनके मन में बार बार लाडली का चेहरा आ रहा था। काश वो एक बार अपनी बेटी को देख पाती। उन्होंने अपने छोटे से बैग जो वो गांव से लेकर आई थी। उसमे से लाडली की फोटो निकली और उसे अपने सीने से लगाकर रोने लगी। मेरी बच्ची न जाने की हाल में होगी। ना जाने उसने कुछ खाया की नहीं। यही सब विचार करते करते वो फिर से नींद की आगोश में चली गई। अगले दिन सुबह ... पूनम जी सुबह सुबह उठी नहा धोकर वो सामने बने हुए शिव मंदिर में गई और पूजा पाठ किया। उसके बाद अपने फ्लैट में आ गई। फिर उन्होंने एक कलम और कॉपी लिया और बैग में डालकर अपने कमरे से बाहर आई। वहां से वो सीधा मामा के पास उनके कंपनी में गई। मामा जी ने जब पूनम जी को आते देखा तो अपनी कुर्सी से उठकर खड़े हो गए और पूनम जी की तरफ बढ़ गए। उनके पास आकर वो बोले .... आइए भाभी जी ... आपको कोई काम था क्या ? पूनम ... जी वो मैं सोच रही थी मैं अपने पति के काम को आगे बढ़ाऊ। उनका ट्रांसपोर्ट का काम फिर से शुरू करू जिसके लिए मुझे आपकी मदद की जरूरत है। उनकी बात को सुनकर मामा जी बोले ... जी जरूर आपने बहुत अच्छा सोचा है। ! भाभी जी , आपको जो भी मदद चाहिए मैं करने के लिए तैयार हूं। पूनम जी बोली ... मुझे उन सभी व्यापारियों का नंबर चाहिए जिनके साथ मेरे पति बिजनेस करते थे। मैं उनकी फैक्ट्री को फिर से शुरू करना चाहती हूं। जिससे साड़ी और कपड़ो का काम फिर से शुरू हो सके। उनकी बात सुनकर मामा जी ने सहमति जताई ,और कुछ व्यापारियों जिनको वो जानते थे उनका नंबर निकलवा कर पूनम जी को दिया। पूनम जी ने सबसे बात की और बिजनेस फिर से शुरू करने का फैसला लिया । सबकुछ तय हो गया लेकिन अब बात थी पैसे की। क्युकी कंपनी बंद हो चुकी थी। उसे फिर से शुरू करने के लिए उन्हें पैसे की सख्त जरूरत थी। कुछ व्यापारी जो ईमानदार थे उन्होंने बिना कहे पूनम जी को पुरानी बकाया राशि दे दी जो चौधरी जी के समय में उनके साथ लेन देन में बढ़ी थी। लेकिन इतने पैसे काफी नही थे फैक्ट्री को शुरू करने के लिए। इसलिए पूनम जी को और पैसे की व्यवस्था करनी थी। उन्होंने काफी सोचा समझा फिर ... सभी लोगो को फोन किया और उन्हें कंपनी में पैसे लगाने के लिए ऑफर दिया... जिससे जितना मुनाफा कंपनी में होगा उसका कुछ परसेंट बाकी के व्यापारियों को दिया जाएगा ,जो इसमें हिस्से दारी लगाएंगे। उनके इस सूझबूझ से जल्दी ही कंपनी फिर से शुरू हो गई। काफी मुनाफा होने लगा। ये कंपनी चौधरी जी के कारण काफी ज्यादा फेमस थी, और पुरानी भी इसलिए उन्हें ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ी । और जल्दी ही उन्हे कामयाबी मिली। छः महीने बाद ..... पूनम जी आज गांव आने वाली थीं ।अब वो अपनी बेटी को अपने साथ लेकर जाएंगी कोलकाता और उसकी अच्छे से पालन पोषण करेंगी। आज उनका मन बहुत खुस था । अलग ही खुसी थीं उनके अंदर उनकी लाडो अब हमेशा उनके पास रहेगी। वो अपने मायके पहुंची । उन्होंने किसी को बताया नही था और अचानक से जाकर पहुंच गई। सामने का नजारा देखकर उनकी आंखे भर आई। उनकी छोटी सी बच्ची जो खुद खेलने की उम्र में थी वो छोटी बाल्टी में पानी भरकर छत पर ले जा रही थी । लाडली का पैर न जाने कैसे फिसल गया और वो बाल्टी लेकर गिर पड़ी , पूनम जी का दिल एकदम से दहल उठा , वो दौड़ कर लाडली के पास जाने को हुई । लेकिन उनके पहले ही उनकी भाभी लाडली के पास आई और उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया । सुमित्रा ... नाशपीटी कहिंकी पैर में लकवा मार दिया है क्या।या फिर तेरा हाथ लूज हो गया है। एक भी काम ढंग से नहीं होता तुझसे। तेरी मां खुद तो शहर जाकर मजे कर रही है और तुझे छोड़ दिया यहां हमारे सीने पर मूंग दलने के लिए । पूनम जी के तो होश ही उड़ गए । वो एकदम स्तब्ध होकर खड़ी रह गई। जैसे उनके अंदर जान ही न बची हो। उन्होंने अपनी फूल सी बच्ची को किन जालिमों के हाथो में सौप दिया था। जिसके ऊपर उन्होंने सपने में भी एक दुख न पड़ने दिया हो । आज उनकी लाडो को उनके आंखो के सामने किसी ने थप्पड़ मारा। एक छोटी सी बच्ची पर हाथ उठने से पहले एक बार भी रहम नहीं आई। इस औरत को। .....✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
अपनी मामी की मार की वजह से लाडली रोने लगी। सुमित्रा ने अभी तक पूनम जी को नहीं देखा था।इसलिए वो लाडली के रोने पर उसे एक और थप्पड़ लगाने के लिए अपना हाथ उठती है। पूनम जी तुरंत होश में आई और चिल्ला पड़ी ..लाडो उनकी आवाज सुनकर सुमित्रा को तो मानो साप सूंघ गया।वो एकदम स्तब्ध हो गई ।उन्हे तो बिल्कुल भी उम्मीद नही थी की पूनम यूं उनके सामने आ जायेंगी। पूनम जी दौड़ते हुए आई और लाडली को अपनी बाहों में भर लिया। वो लाडली के पूरे चेहरे को चूमने लगी। लाडली भी अपनी मां को देखकर रोने लगी।। वो अपनी मां से लिपट गईं।पूनम जी ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और घृणा भरी नजरों से अपनी भाभी को देखते हुए बोली ... सिर्फ कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी को आप लोगों के हवाले करके गई थी। आप लोगों ने तो अपना रंग दिखा दिया। एक तीन साल की बच्ची के साथ इस तरह का व्यवहार करने से पहले आपकी आत्मा नही कांपी ।कोई एक औरत होकर आपके अंदर ममता नाम की चीज नहीं है। आप खुद दो बच्चों की मां है ।फिर भी आप एक बच्ची के साथ ऐसा कर रहीं है। सुमित्रा सर झुकाए पूनम की बात को सुनती रही ।पूनम जी ने लाडली को गोद में उठाया और वहां से लेकर चली गई। वो लाडली को लेकर सीधा कोलकाता आ गईं। लाडली एक प्यारी सी और चुलबुली लड़की थी। सारे आस पड़ोस के लोग उसे बहुत प्यार करते थे। जब लाडली 4 साल की हुई तो पूनम जी ने उसका नाम कोलकाता के एक अच्छे से स्कूल में करवा दिया। लाडली पढ़ने में बहुत अच्छी थी ,वो हमेसा अपने क्लास में सबसे अव्वल आती थी परीक्षा में। अपनी बेटी में पूनम जी की जान बसती थी। वो उसे हीरे की तरह संभाल कर रखती थी। अपनी मां के पास आने के बाद लाडली को कभी भी दुख का एहसास नहीं हुआ। पूनम जी ने उसे कभी एहसास नहीं होने दिया की उसके पिता नही है। उन्होंने हमेशा लाडली को मां और बाप दोनो का प्यार दिया था। ना कभी किसी चीज की कमी महसूस होने दिया। राजकुमारी की तरह उन्होंने लाडली को बड़ा किया। लाडली भी अपनी मां को बहुत प्यार करती थी। लेकिन पूनम जी के दुलार और प्यार की वजह से वो एकदम जिद्दी बन चुकी थी। वो कभी अपना खुद का काम तक नही करती थी। 14 साल बाद... लाडली अब बड़ी हो चुकी थी ., सब उसे पृथ्वी के नाम से जानते थे, जो की उसके मां बाप ने बचपन में नामकरण के दौरान रखा था। पृथ्वी गांव में आई हुई थी और अपने मामा के यहां ही रूकी हुई थी। उसके मामा की डेथ हो चुकी थी। मामी भी अब बूढ़ी हो चुकी थी। कुछ ही दिनों बाद होली थी। और पृथ्वी को ये होली गांव में सबके साथ मनाना था। पूनम जी उसे रोज फोन करती थी। की वो वापस कोलकाता आ जाए उनके पास । लेकिन पृथ्वी ने तो ठान लिया था की होली वो गांव में ही एंजॉय करेगी। वो जल्दी पूनम जी का फोन भी नही उठाती थी। होलिका दहन का दिन ... पूनम जी की तबियत थोड़ी खराब थी। उन्हे पृथ्वी की याद सता रही थी। इसलिए वो बार बार उसे कॉल कर रही थी। पृथ्वी उनके कॉल से इरिटेट हो गई थी। उसने फोन को साइलेंट कर दिया और उनका कॉल रिसीव नहीं किया। वो अपने मामा के घर के सभी बच्चो के साथ मस्ती करने में बिजी थी। इसी तरह पूरा दिन बीत गया।और पृथ्वी ने एक बार भी पूनम जी का कॉल नही उठाया और न ही उन्हे बैक काल की। रात को करीब 9 बजे उसका मोबाइल रिंग करने लगा। उसने देखा पूनम जी उसे फिर से कॉल कर रही है। उसने कॉल रिसीव किया और बोली ...हेलो मम्मी , कैसी है आप ? पूनम जी गुस्से में बोली .. कहां थी तुम पूरे दिन ? कितनी बार मैने तुम्हे कॉल किया लेकिन तुमने एक बार भी मेरा कॉल रिसीव नहीं किया और न ही मुझे कॉल बैक करने की कोशिश की। पृथ्वी ... दुलराते हुए बोली ... ओह मेरी मां ..! आप भी ना बेकार में हमेशा परेशान होती रहती है ।मैं अब बच्ची थोड़ी ना हूं। मैं अपना ख्याल रख सकती हूं। पूनम जी रोने लगी , और बोली अच्छा इतनी बड़ी हो। गई हो तुम ।की अब तुम्हे अपनी मां की कोई जरूरत नहीं। पृथ्वी ने अपनी मां को समझाते हुए कहा .. नही मां ऐसा बिल्कुल नही है ! आप ऐसा क्यू सोच रही है ! मुझसे गलती हो गई , अब मै कभी ऐसा नहीं करूंगी। फिर दोनो मां बेटी ने काफी देर तक एक दूसरे से बात किया ।उसके बाद पूनम जी ने पृथ्वी को उसका ध्यान रखने का बोलकर फोन रख दिया। अगली सुबह , होली का दिन … आज रंग खेलने का दिन था ।पृथ्वी तो सभी अपने हमउम्र के लोगो के साथ होली खेलने में मस्त हो गई। उसने गांव में होली को खूब एंजॉय किया ।ये उसकी लाइफ का सबसे मजेदार होली थी। दिन भर होली खेलकर वो एकदम थक चुकी थी।उसे एक बार भी पूनम जी ख्याल नही आया। और आज पूनम जी ने भी उसे एक बार भी फोन नही किया था। होली खेलकर पृथ्वी ने शॉवर लिया और थकान दूर करने के लिए बेड पर लेट गई। ना जाने कब उसकी नींद लग गई। शाम को करीब पांच बजे उसकी नींद खुली वो अपने कमरे से बाहर निकली और हॉल में आई। हॉल का नजारा देखकर उसकी एक पल के लिए हैरानी हुई। सब मुंह लटकाए बैठे हुए थे।किसी के चेहरे पर रौनक नही थी। ऐसा लग रहा था जैसे सब किसी गम में डूबे हुए है। पृथ्वी अपने मामा के छोटे बेटे विवेक के पास आई और सबकी तरफ देखते हुए बोली ..किया हुआ है ... आप लोग ऐसे मायूस होकर क्यों बैठे हो। क्या ज्यादा थकान आ गई है होली खेलने से। ! कहकर वो हसने लगी।वहां मौजूद सब लोग पृथ्वी की तरफ देखने लगे। तभी विवेक अचानक से बोल पड़ा .. बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई पृथ्वी ! उनकी बात सुनकर पृथ्वी गंभीर हो गई और बोली .. क्या हुआ भईया... कोई दिक्कत है क्या ! तभी ,वहां खड़ी विवेक की पत्नी रोते हुए बोली ... बुआ अब इस दुनिया में नही है पृथ्वी ! उनकी डेथ हो गई है ! हर्ट अटैक की वजह से। ... ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
अपनी भाभी के मुंह से ये शब्द सुनते ही पृथ्वी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके कदम लड़खड़ा गए,और वो तुरंत गिरने को हुई। उसी वक्त उसके कजिन भाई की बेटी जो उस वक्त वही मौजूद थी वो तुरंत उसके पास आई और उसे संभाला। पृथ्वी एकदम बदहवास सी जमीन पर पड़ी थी, ना जाने किसकी नजर लग गई उसके खुसियो की, उसे कोई रिएक्ट ना करता देख उसकी काजिन भाभी उसके पास आई और उसे जोर से झकझोरते हुए बोली ... पृथ्वी ... पृथ्वी क्या हुआ है तुझे . तूं कुछ बोल क्यू नही रही,। पृथ्वी तभी भी शांत सी बैठी हुई थी, कुछ देर बाद सबने मीरा को कोलकाता लेकर जाने का निश्चय किया, ताकि वो अंतिम बार अपनी मां को देख सके, सब व्यवस्था हुई और पृथ्वी सहित सब कोलकाता के लिए निकल पड़े। अगले दिन भोर में ही सब कोलकाता पहुंच चुके थे, उसके बाद पृथ्वी को सीधा भूतनाथ ले जाया गया , जहां पर सब पहले से ही पूनम जी की बॉडी को लेकर आ चुके थे। भूतनाथ कोलकाता का प्रसिद्ध शमशान घाट था, पृथ्वी को उसकी मां के पास ले जाया गया , पूनम जी की बॉडी को देखकर सब का रोना छूट गया, उनकी बॉडी पूरी तरह से फूल चुकी थी बर्फ में रखने से, पृथ्वी एक टक अपनी मां को देख रही थी। वहां खड़े सब लोग पृथ्वी को उसकी मां से अलग करने लगे, पृथ्वी जोर से चीख पड़ी .... नहीं,,...... मां ... आआ, मां उठो न मां... उसे पूनम जी की बॉडी से अलग किया गया, अब जाकर पृथ्वी अपने होश में आई, वो जोर जोर से चीत्कार करके रोने लगी, इस समय जो भी इंसान उसके चीत्कार को सुन लेता उसकी आत्मा हील जाती। पूनम जी का दाह संस्कार किया गया, फिर सब पृथ्वी को लेकर घर आ गए, पृथ्वी पूरी तरह से टूट चुकी थी, उसके आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे, सब आस पड़ोस के लोग आते और उसे समझाकर जाते , उसके कई दोस्त भी आए गए , पर पृथ्वी के ऊपर को प्रभाव नहीं, ना वो किसी से बात करती ना ही कुछ खाती पीती थी, बहुत जोर जबरदस्ती करने पर थोड़ा बहुत खा लेती थी, ।ऐसे कई दिन बीत चुके थे, पूनम जी का ब्रह्मण भोज भी संपन्न हो चुका था। पृथ्वी की हालत पहले से अब काफी ठीक थी, एक दिन वो हॉल में सबके साथ बैठी हुई थी , तभी उसकी एक दोस्त ज्योति उसके पास आई, उसने बताया की उनके उनके ग्रेजुएशन के इंट्रेंस टेस्ट की डेट आ गई है, दो दिन बाद उनका एग्जाम है, पृथ्वी के साथ इस समय उसके मामा के बेटे बहु दोनो ही मौजूद थे, कुछ समय बाद जब पृथ्वी की दोस्त वहां से चली गई , तो उसकी भाभी उसके पास आई और बोली .. किस चीज का एग्जाम है लाडली तुम्हारा,। पृथ्वी ने सहजता से जवाब दिया .. ग्रेजुएशन में एडमिशन के लिए मैने एंट्रेंस डाला था , उसी का एग्जाम है,। उसकी भाभी बोली ,.. क्या करोगी इतना पढ़ लिख कर हम तो कहते है तुम हमारे साथ गांव चलो,। वहां चलकर तुम्हे जो करना है कर लेना, पृथ्वी ने एक नजर उनकी तरफ देखा और बोली .. नही भाभी मैं यहीं रहूंगी ,मुझे पढ़ लिखकर मॉम का बिजनेस संभालना है। विवेक जी वहीं बगल में बैठे उन दोनो की बातों सुन रहे थे ,वो भड़कते हुए बोले ... तुम यहां अकेले नही रहोगी ! लाडली ,आजकल जमाना कितना बदल गया है, लड़किया शहरो में सेफ नहीं है, इसलिए तुम हमारे साथ गांव चलो। पृथ्वी को गुस्सा आ गया . वो भड़कते हुए बोली .. क्या प्रोब्लम है आप लोगों को, मैने कहा न मुझे कहीं नहीं जाना, सुनाई नही देता क्या एक बार में कोई बात, आप लोग यहां मुझे संभालने आए थे न, अब मै ठीक हूं आप लोग जा सकते है, मेरी पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर करने की जरूरत नही किसी को कहकर वो जाने को हुई तभी विवेक जी ने उसका हाथ पकड़ लिया और एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया। वो गुस्से से तम तमाते हुए बोले .. बड़ों से बात कैसे करते है तुम्हे जरा भी अकल नही, हमे तो लगा था तुम शहर में रहती हो बहुत समझदार होगी, ।मगर तुम तो एकदम बत्तमीज निकली। कोई बात नहीं अब हम आ गए है न सब सिखा देंगे ! कैसे बड़ों से बात की जाती है और कैसे उनके साथ पेश आया जाता है। तुम्हारी मां ने जो नही सिखाया वो हम सीखा देंगे। पृथ्वी ने गुस्से से उन्हे एक नजर देखा और पैर पटकते हुए वहां से अपने कमरे में चली गई। उसके जाने के बाद विवके की पत्नी उसके पास आई और बोली. कमाल कर दिया आपने , पहले ही दिन बिचारी के ऊपर हाथ उठा दिया, । पर ये भी काम जिद्दी नही, । विवके जी पृथ्वी के कमरे की तरफ देखते हुए बोले .. इकलौती है न , जिद्द तो रहेगा ही,।एक इशारों पर हर फरमाइश पूरी हुई है,। इसलिए इतनी बत्तमिज है। पर कोई बात नही अड़ियल लोगों को सही करने अच्छे से आता है मुझे। कहकर दोनो मुस्कुराने लगे। इधर पृथ्वी अपने कमरे में बिस्तर पर औंधे मुंह लेटकर फुट फूट कर रो रही थी,।पहली बार किसीने उसके ऊपर हाथ उठाया था, ।आज उसके साथ जो सुलूक हुआ वैसा उसने कभी सपने में भी नही सोचा था। पूनम जी ने तो उसे एक फूल की तरह पाला था। एक खरोच नही आने दी आजतक। वो काफी देर तक रोती रही और वैसे ही पड़े पड़े सो गई। किसने उसे खाने तक के लिए नही पूछा । सब आराम से बनाकर खाकर सो गए। दूसरे दिन सुबह सुबह किसीने पृथ्वी के ऊपर पानी फेक दिया, वो छटपटा के उठ गई, उसे बहुत तेज गुस्सा आया ,... वो चिल्लाने को हुई उसी समय उसके चेहरे पर एक तमाचा लगा.. और ये तमाचा कोई और नही उसकी भाभी ने लगाया था । उसकी भाभी उसके ऊपर चिल्लाते हुए बोली ... मनहूश कहिकी ,पहले तो अपने बाप को पैदा होते ही चबा ले गई, फिर अपनी मां को भी खा गई, अब क्या हमे खायेगी। पृथ्वी की आंखे लबालब आंसुओ से भर उठे .. वो रोते हुुए बोली .. ये सब क्या है भाभी, आप मुझसे ऐसे कैसे बात कर रही हो। कल्पना उसके ऊपर चिल्लाते हुए बोली .. अच्छा अब तू मुझे बताएगी मुझे कैसे बात करनी चाहिए और कैसे नही। कहकर वो पृथ्वी के ऊपर लपकी और उसे बिस्तर से खींचकर नीचे कर दिया, फिर उसे घसीटते हुए कमरे से बाहर लेकर आई और , बोली.. सुन लड़की आज के बाद तूं सुबह हम सबसे पहले सोकर उठेगी और हमारे लिए नाश्ता खाना सब तूं बनाएगी। पृथ्वी हैरानी से उसे देखने लगी , बाकी सब भी हॉल में आ गए थे, पृथ्वी गुस्से से उठी और बोली .. अभी तुरंत निकलो तुम सब मेरे घर से . ये मेरा घर है, यहां क्या कैसे होगा ये मैं तय करूंगी तुम सब नही, ।अगर तुम लोग चुप चाप यहां से नही गए तो मैं पुलिस को बुलाऊंगी,।तुम्हे क्या लगता है मेरी मम्मी नही तो मैं कमजोर हूं। बिल्कुल नहीं मैं अभी एक मिनट में तुम सबको मेरे साथ मार पीट करने के जुर्म में अंदर करवा दूंगी।अब निकलो यहां से। उसकी बात सुनकर कल्पना और विवेक मुस्कुरा उठे .. और बोले .... च च च च...रस्सी जल गई पर बाल नही गया। तुझे क्या लगता है तेरी धमकी से हम डर जायेंगे, और ये घर छोड़कर चले जायेंगे ,।बिलकुल नहीं अब हम में से कोई यहां से कहीं नहीं जायेगा। इस घर में सिर्फ हमारा राज चलेगा। कल्पना ने पृथ्वी के बाल पकड़ कर उसका मुंह ऊपर किया और बोली ..सुन लड़की अगर खुद को जिंदा देखना चाहती है तो चुप चाप हम जो कहते है वो कर, और ज्यादा स्यानी बनने की कोशिश मत करना । आज से तेरी पढ़ाई लिखाई बंद , जितना पढ़ना था पढ़ लिया,अब चुप चाप घर का काम कर ,आज से सारे काम तूं करेगी , और इस घर से बिना हमारी परमिशन के कही नही जायेगी बाहर। समझी। पृथ्वी डबडबाई आंखों से उसे देख रही थी ,उसके बाद उसने पृथ्वी को छोड़ा और बोली ..जा अब जाकर कपड़े बदल कर आ और रसोई में जाकर हमारे लिए नाश्ता बनाकर ला क्या पृथ्वी छुड़ा पाएगी खुद को इस जाल से.?? अब क्या करेगी पृथ्वी, कैसे बचाएगी वो खुद को अपने भाभी भाई के चंगुल से ..!,✍️✍️✍️✍️✍️✍️