एक कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसकी ज़िंदगी मे मुहब्बत अलग अलग सूरतें लेकर आती तो है लेकिन उसके दिल को बहार नही दे पाती।। मुहब्बत के धोखे मे उलझी और मुहब्बत की कश्ती मे मझदार मे फंसी लड़की की कहानी।। आज ही पढ़िए।।
Page 1 of 1
फज़ां पर गुलाब और लेवेंडर के फूलों की महक ने क़ब्ज़ा किया हुआ था। ढोलक की थाप और गीतों की धुन ने अलग ही हल्ला मचाया हुआ था। लड़कियां आँचल मे खुशबुएं बसाये मेहँदी की होड़ मे इधर से उधर भाग रही थीं। सारा लाऊंज लड़कियों ने ही हिसार मे लिया हुआ था। किसी के मेहंदी लग रही थी तो कोई अपनी बारी का इन्तिज़ार कर रही थी। कोई मेहंदी सूख जाने की मुन्तज़िर थी ताकि ढोलक के साथ साथ अपने क़दमों की धमक मिला सके। लाऊंज से गुज़रती सीढ़ियों से सफ़ेद कुरता पजामा मे गले मे जेंट्स दुपट्टा डाले जल्दी जल्दी कोई नीचे उतरता आया था। जयपुरी जूतियों मे क़ैद उसके पाँवों मे एक अजीब सी बेचैनी थी और चेहरे पर परेशान शिकनें जिन्हे लोगों के खुश नज़र आते चेहरों से पोशीदा रखने की कोशिश करता वह लाऊंज से सीधा लॉन की जानिब निकला था। मगर लॉन मे भी अच्छी खासी भीड़ थी। वह वहीं कोरिडोर मे रुक गया था। उसने एक नज़र हाथ मे थमे मोबाइल को देखा था और लम्बे से कोरिडोर के पिछले हिस्से की जानिब चला आया था।। यहां शोर भी कम था और लोग भी नही थे। पिछली जानिब महज़ एक ही दरवाज़ा खुलता था जो सीधा उपर से आती सीढ़ियों को जोड़ता था। लाऊंज वाली सीढियां ही लेकिन अक्सर इस्तिमाल मे आती थी। रेलिंग के जानिब ठहरते हुए उसने इधर उधर चोर नज़र से देखा और स्क्रीन पर नज़र डाली। "जानिया" उसने गहरा सांस लिया।। कल उसे यह नाम भी बदल देना था। क्या वाक़ई?? उसने गहरा सांस लिया और नंबर पर टच किया। अभी एक ही बेल गई थी कि किसी ने पीछे से उसके गले मे अपने बाज़ू डाल दिये थे। वह पूरी शिद्द्त से ठिठक गया और साथ ही हड़बड़ी मे फौरन ही कान से मोबाइल हटाया था और कॉल कट की।। मेहंदी से सजे हाथ उसकी निगाह के सामने थे। "शादी तो उस साइड हो रही है..यह दूल्हा यहाँ तन्हाई मे क्या कर रहा है?" बारिया की आवाज़ से पहले ही वह उसे पहचान चुका था। माथे पर चमकती पसीने की बूंदों को उसने आस्तीन से ही साफ कर डाला था। इस वक़्त उसके दिल की धड़कन का हिसाब वह खुद भी लगा सकता था। कि उसकी रफ्तार क्या थी? शुक्र था वह पहले ही आ गई। कॉल अटेंड होने के बाद आती तो बहुत मुश्किल हो जाती।। "मुझे लगा इतने तुम्हारे मेंहदी लग रही है। मै कुछ दोस्तों से बात कर लूँ जो कल निकाह पर आने वाले हैँ।" उसने बामुश्किल अपने लबों पर मुस्कुराहट खींची थी और उसकी जानिब घूम गया था। बारिया उसके गले मे अब भी लटकी हुई थी। "तुम अपनी फेमिली की वजह से सेड हो ना? वह लोग शादी मे नही आएंगे।" बारिया ने उसकी निगाह से गोया कुछ पढ़ लिया था। मगर उस वक़्त वह निगाह चुरा गया क्योंकि वह नही चाहता था बारिया तमाम किताब पढ़ ले। कुछ वरक़ फिलहाल छिपे ही रहे यही बहतर था। "शादी के बाद हम उन्हें मना लेंगे।" उसने बेदिली से कहा मगर वह जो सच था वह महज़ वही जानता था। "अच्छा छोड़ो। मेहंदी लगवाते लगवाते मेरी तो कमर टूट गई। ज़रा देखो इसमे तुम्हारा नाम कहाँ है?" उसने बाहें उसकी गर्दन से निकालते हुए हाथ उसके सामने फैला दिये थे। वह भी उसकी जानिब मुतवज्जह् होते हुए मेहंदी को तकने लगा था। कोहनी से ज़रा नीचे तक लगी मेहंदी मे उसने अल्फाज़ ढूढ़ने शुरु किये। "एस ए..आर..आई..एम.. सारिम.." उसने तमाम अल्फाज़ ढूंढ लिए थे। जवाब मे बारिया की खिलखिलाती हंसी गूँज उठी थी मगर वह गोया कहीं और खो गया था। "मेरे नाम की मेंहदी अच्छी लगेगी तुम्हारे हाथों मे जानिया।" रेशम जैसे मुलायम हाथ गोया अचानक से उसके चेहरे पर अपना लम्स देने लगे थे। "कौन लगवाएगा तुम्हारे नाम की मेहंदी??" उसका चिड़ाता हुआ जुमला उसे कभी नही चिड़ाता था।। जानता था मुहब्बत की उस हर राह से आगर बढ़कर मुहब्बत थी उस लड़की को सारिम से।। "एक तो हर वक़्त जानिया मत बोला करो..." वह नाराज़ होकर कहती और जाने लगती। सारिम रास्ता रोकता। "सच मे नही अच्छा लगता??" वह अनजान बनकर पूछता और जवाब मे गालों पर खिलने वाले फूल से रंग उसे सरशार कर देते। "सारिम... सुन रहे हो।" बारिया ने फिर से उसके ख्यालात का तसलसुल तोड़ दिया था। गहरा सांस लेकर उसने उन ख्यालात को झटका और उसके पीछे चल दिया।। "बाहर देखो।। मेरे भाई ने क्या महफिल सजाई हुई है।" भाई लफ्ज़ पर ही सदक़े वारी होती वह लॉन की जानिब चल दी थी। उसके हाथ मे सारिम का हाथ था और वह खिंचा जा रहा था मगर नज़र हाथ मे थमे मोबाइल पर थी। उधर मिस कॉल तो चली गई थी। वापस से कॉल ना आ जाये दिल मे यह भी खदशा था और आई क्यो नही यह ख्याल भी फन उठा रहा था। लॉन की रेलिंग पर लड़कियों की तमाम टोली लटकी हुई थी।। होती क्यों नही।। बारिया का भाई...ऐसा हीरो सिफत बंदा जब बॉलीवुड सांग्स पर डांस करेगा तो लड़कियों के दिल तो धड़केंगे ही। एक तो दुल्हन का भाई उपर से लन्दन पलट। हाय हाय डबल धमाका है। बारिया की गर्दन फखर से अकड़ी जा रही थी।। उसका एक एक मूव क़ातिल था। वह भी नाइनटीज़ के सांग्स पर।। गोविंदा का गाना और जनाब दुल्हन के भाई के मूव्ज़्। "बेकारार मै बेक़रार दिल बस किसी से जल्दी से प्यार हो जाए अबके साल मेरा ये हाल बस खत्म यह मेरा इन्तिज़ार हो जाए किस शहर मे रहती है वो..उसे ढूँढू यहाँ वहां सारा जहाँ..कहाँ कहाँ...कहाँ..." लड़कियों मे एक साथ तालिया बजाई थीं।। बारिया ने एक साथ ना जाने कितने बड़े बड़े नोट उसपर सदक़ा करके फेंक दिये थे। उसने आकर सारिम के शानें पर कोहनी रख दी थी और दूसरे हाथ से आँखों के क़रीब हाथ रखा था। "रसता.. मै देखु कोई आये.. और आके मेरा दिल लेके जाए दौड़ी दौड़ी आये और आके मेरे गले लग जाए" अब उसके डांस से थिरकते क़दम लड़कियों की जानिब थे। "ना जाने कब होगा यह मिलन... मै कब बनूँगा किसी का सजन... एक तीर बस एक तीर...चल जाए हाय इस दिल के पार हो जाए" वह सब लड़कियों के नज़दीक से निकल गया था। गोया ऐसा चेहरा नही नज़र आया वह जो उसे अचानक स ठहरा लेता या शायद वह ध्यान ही नही दे रहा था लेकिन लड़कियों की एक एक आह उसके लिये मचल रही थी।। सजन बनाने के लिए बेचैन थी। सारिम खुद देख रहा था कि किस तरह लड़कियां उसे तक रही थीं।। आख़िरकार करोड़ो की जायदाद का मालिक था। बारिया से भी ज़्यादा हक़ था उसका इस जायदाद पर। जिसके नसीब मे वह होगा उसकी तो जन्नत ही यहीं होगी।। खेर आधी जन्नत का हक़दार तो सारिम भी था। यह ख्याल भी कितना तसल्लीबख्श था? उसके अंदर वह फुलझड़ी जल ही उठी थी जो अभी तक नही जली थी।। उसने लॉन से ही पठान मेंशन की जानिब एक जायजा लेती नज़र ऐसे डाली गोया आज ही उसे देखा हो। जन्नत का एक नमूूना ज़मीन पर पठान मेंशन की सूरत मे खड़ा था।। ना जाने कितने लड़के बारिया की राह मे पलकें बिछाए हक्का बक्का रह गये जब उसने अपने शरीके सफर तोर पर अपना लाइफ पार्टनर सारिम को चुना जो महज़ एक वेडिंग प्लेनर का टीम मेट था और बारिया की कज़न की शादी के दौरान कई मर्तबा बारिया से टकरा गया था।। नोक झोंक के दरमियान मे ही खूबसूरत चेहरे और लम्बी क़ामत वाला सारिम जाने कब बारिया को इतना भा गया कि वह उसपर दिलों जान से मर मिटी और सारिम के लिए तो यह प्यासे को बारिश की बूंदों से सेराब होने जैसा था। आज की महफ़िल तो खेर बारिया के भाई ने लूट ली थी।। एक हेंडसम करोड़पति बेचलर के आगे दूल्हे को भी कौन नोटिस करेगा?? जबकि वह कौन सा किसी से कम था?? "अरे बारिश होने लगी है...।।" भीड़ मे शोर मे मचा था।। इसके साथ ही लॉन पर एक छत किनारियों से उठती हुई उपर तक यक्सार होती चली गई थी और कुछ ही मिनटों मे बारिश लॉन की छत पर बरस रही थी।। यह सिस्टम तो सारिम ने आज ही देखा था।। उसकी आँखें ही तो फट गईं।। जबकि वह दोनों बहन भाई अपने आप मे मगन थे। उसकी निगाह फिर अपने मोबाइल पर चली गई थी।। जहाँ उस जानिब से कोई रिस्पांस नही था।। ##...##...##
"सारिम कहाँ है??" रात से बारिश हो रही थी।। आज तो सुबह सुबह परिंदे भी बाहर नही निकले थे।। सब दुबके हुए बैठे थे।। कभी सावन कितना नामेहरबान होता है।। होंठो पर मुस्कुराहट देने के बजाये आँखों मे पानी ले आता है। चाय का बर्तन गैस से उतारने के बाद वह खिड़की के बाहर क्या तकने लगी कि गोया सब भूल गई।। चाय के बर्तन से भाँप उड़ रही थी और उसकी आँखों से धुआं उठ रहा था।। आज बाहर बरसती बारिश भी अच्छी नही लग रही थी। ज़िंदगी मे कितने इम्तिहान देता है इंसान?? और उसके नतीजे मे हमेशा एक फैलियर ही कहलाता है।। अचानक फूपों की आवाज़ ने उसकी सोच के खामोश जज़ीरें मे अरताश सा फैला दिया था। वह ऐसे हड़बड़ाई गोया वह उसे चोरी करते पकड़ने आ गई है।। हाथ चाय के बर्तन पर पड़ा था जो झटके मे डोला था।। इधर से उसने उसे संभाला और उधर से फूपों उसे थामने आगे बढ़ी।। "सम्भलकर।। क्या कर रही हो??" उसके यूँ बोखलाने पर फूपों ने गौर से उसकी जानिब देखा था। चाय का बर्तन को सम्भल गया था मगर वह शायद सम्भल नही पा रही थी।। लेकिन उन्होंने नज़र अंदाज़ करना बहतर समझा। "सारिम कहाँ है?? सोकर नही उठा अभी।।??" "वह..." अनाहिता ने गहरा सांस लिया और कप रैक मे से निकालने के लिए रुख फेर लिया।। "वह तो काम से बाहर गये हैँ। दो तीन दिनों मे लौटेंगे।" उसने फीकी सी मुस्कुराहट के दरमियान मे कहा था। और खामोशी से चाय कप मे पलटने लगी। फूपों हैरान तो हुई।। चंद लम्हें उसे देखती रही।। वह अजीब सी लग रही थी।। सुबह मे चिड़ियों से ज़्यादा तो वह चहकती थी लेकिन आज चिड़िये बारिश से और यह लड़की किसी सोच के तहत खामोश थी।। "अचानक..?? वह तो अपने जाने का पहले से बता देता है ना।।" वह उसके हाथ से आमलेट की प्लेट लेते हुए बोलीं।।। "मुझे बता दिया था पहले ही।" उसने बुरा सा झूठ बोला था और इतनी बुरी तरह बोला था कि उसका झूठ उन्होंने पकड़ लिया था मगर कहा कुछ नही। "आज मुझे बस एक ही पराठा देना।" फूपों ने उसपर से नज़रें हटाते हुए कहा।। उनका दिल अजीब सा हो रहा था।। सारिम पहले कभी इस तरह बिना बताये रात भर कहीं नही रहा था। और उन्हे अनाहिता भी कुछ बेचैन सी और कुछ बुझी हुई लग रही थी। "तुम नाश्ता नही करोगी??" वह उनके सामने सब चीज़ें रखकर किचन की तरफ पलटी तो फूपों ने फिर टोक दिया।। अनाहिता के क़दम सुस्त हुए थे। "हाँ... वह मैने चाय पी ली थी।।" उसने फीके से लहजे मे कहा और जल्दी से किचन मे घुस गई।। सच तो यही था कि सारिम ने कहा था वह रात को देर से आएगा लेकिन वापस आ जाएगा मगर सारिम सारी रात घर नही आया यह उसे सुबह फज्र मे उठने के बाद मालुम हुआ था।। वह रात भर क्यों नही आया उसे नही मालुम था लेकिन उसका दिल जाने क्यों अजीब से खदशे के ज़ेरे असर सिकुड़ रहा था। हमेशा यही होता था जब सारिम को काम से देर रात तक बाहर रहना होता तो वह उसका इन्तिज़ार करते करते सो जाती थी और सुबह देखती तो वह उसके नज़दीक ही लेटा होता था। किसी पहर वह लौट आता था मगर रात तो उसका कुछ पता नही था।। दिल सिकुड़ने की वजह थी उसके पास।। बहुत बड़ी थी..?? या बड़ी सिर्फ उसे ही लग रही थी।। जब परसो सारिम बाथरूम मे नहा रहा था और वह कमरे की सफाई कर रही थी। तब उसका मोबाइल गुनगुनाने लगा था।। तकिये पर कवर करती अनहिता चौंक गई थी और चार्जिंग पर लगे मोबाइल की तरफ बढ़ी थी।। लेकिन उससे पहले ही सारिम गोया कूदकर बाथरूम से बाहर आया था और उसके उठाने से क़ब्ल मोबाइल अपनी हिरासत मे ले लिया था।। अनाहिता बुरी तरह चौंकी थी।। उसकी हलकी सी निगाह स्क्रीन पर चमकने वाले नाम पर पड़ी थी। "Madam B" उसने हलका सा नाम ज़ेरे लब बड़बड़ाया और चौंकी हुई आँखों से सारिम की तरफ देखा जो उस वक़्त महज़ टॉवेल मे खड़ा था और उसके ऊपरी जिस्म पर जगह जगह अभी भी साबुन के झाग लगे हुए थे।। वह ढंग मे नहाये बिना सिर्फ मोबाइल उठाने इतनी उजलत के भाग आया था।। अनाहिता का दिल किसी बुरे अहसास से घिर गया था। "कौन है यह..?? किसकी कॉल थी??" वह ना चाहते हुए पूछ बैठी थी।। सारिम जिस कम्पनी मे जॉब करता था अक्सर लड़कियों के कॉल्स भी आते थे।। वह उसके पास बैठ कर बात कर लिया करता था।। इस तरह तो उसने कभी भी रद्दे अमल नही दिया था। सारिम ने अपनी जानिब मशकूक निगाह से तकती अनाहिता को देखा और हलका सा हंस दिया। "अरे वही पार्टी है।। ऑस्ट्रेलिया वाली।। मुझे क्या पता तुम कमरे मे हो।। मै जल्दी से मोबाइल की टोन सुनकर आ गया कि कॉल कट हो ना हो जाए।" वह खिसयाते हुए बोला और मोबाइल लेकर दोबारा बाथरूम मे चला गया। कॉल वह कट कर चुका था।। अनाहिता किसी गहरी सोच मे मुबतीला बाथरूम के बंद दरवाज़े को देख रही थी।। तभी फूपों ने उसे आवाज़ लगाई थी और फिर काम मे लग कर उसकी सोच ही उस जानिब से कौरी हो गई थी लेकिन अब रात भर उसका गायब रहना किसी खतरे की गवाही दे रहा था। नाश्ते के बाद उसने किचेन की सफाई की और चावल गैस पर चढ़ा कर कमरे मे आई। जबसे उठी थी मोबाइल की तरफ देखने की फुर्सत नही मिली थीम अक्सर ही ऐसा होता था। दोपहर के खाने से फारिग होकर ही वह मोबाइल हाथ मे लेती थी।। उसने देखा कि मोबाइल की बैटरी डेड थी।। "उफ़।। पहले से देख लेती तो अब तक चार्ज हो जाता।" अनाहिता ने अपने माथे पर हाथ मारा था।। उसकी अक़्ल भी जाने कहाँ खफ्त हो चुकी थी। उसने मोबाइल चार्ज पर लगाया और बेड के पास आ गई।। रीम थोड़ी देर पहले ही सोई थी।। उसने आहिस्ता से उसके मुलायम बालों मे हाथ फेरा।। अगले हफ्ते रीम पूरे तीन साल हो जाएगी।। उसका आना भी अनाहिता की ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पल था। अपने बदतरीन दिनों से निकलने की पहली सुबह जैसा था रीम का पैदाइश का दिन।। वह गोया उसी वक़्त को याद करके मुस्कुराने लगी थी।। तभी डोर बैल हुई थी।। अचानक से खिड़की का पट तैज़ हवा के साथ खुल गया था। बालों को हवा छुती हुई गुज़र गई थी मगर गोया सांस मे कोई अनजानी सी महक घोल गई थी।। अनजानी??? या जानी पहचानी?? किसी याद का दर खुला था लेकिन अगले ही लम्हें वह सिर झटक कर सीढ़िया उतरती नीचे आई थी।। फूपों दरवाज़ा खोलने तख्त से उठ रही थी।। "मै देखती हूं.." वह उनसे कहती उनके नज़दीक से गुज़र गई थी।। फूपों ठहर गई और उसे जाते देखने लगी। "यह लड़की तो मुझे निकम्मा बना चुकी है।। बीमार ना कर दे मुझे।।" वह प्यार से सोचते हुए वापस बैठ गई थीं और दोबारा तस्बीह के दाने गिनने लगी थीं।। आज ही उन्होंने एक नई तस्बीह बनाई थी।। अक्सर वह मोती इकट्ठा करके उनकी तस्बीह बनाती थीं और आस पड़ोस मे भी लोगों को बतोर तोहफा दे देती थी।। उन लोगों के पढ़ने से उन्हें भी ज़्यादा सवाब का लालच रहता था। शायद सारिम आ गया था। अनाहिता उसी के मुतालिक सोचती हुई दरवाज़े तक आई थी और दोनो पट एक साथ खोल दिये थे। अचानक से उसी खिड़की वाली हवा का झोंका अनाहिता के वुजूद के टकराया था जिसने उसके बालों को पीछे की जानिब खूबसूरती से लहरा दिया था।। एक मानूस खुशबु सांस से टकराई थी और एक मानूस चेहरा निगाह के रु ब रु था।। अनाहिता हैरान सी उसे तकती रही थी। वह सामने खड़ा था।। एक अरसे बाद।। वही दिलकशी चेहरे पर संभाले और आँखों पर ग्लासेज़ चढ़ाये। जो अक्सर आते जाते उसका हाथ थाम लेता था और एक दिन हमेशा के लिए उस हाथ को गिरफ्त मे क़ैद करने की बातें किया था।। अनाहिता ने दो पल बाद नज़रें झुका ली थीं लेकिन हसनैन समदानी की निगाह अभी तक उसके साफ शफ्फाफ आरिज़(चेहरा) पर ठहरी हुई थी।। उसने उसे देखते देखते ही ग्लासेज़ उतार दिये थे। "कौन है?? अनाहिता..." फूपों की आवाज़ के साथ ही वह अंदर की जानिब पलट गई थी।। "हसनैन है फूपों.." कहती वह तेज़ी से आगे बढ़ गई थी मगर हसनैन के क़दम गोया देहलीज़ के अंदर आने के लिए मनों भारी हो गये थे।। "मिलने की तरह मुझसे वो पलभर नही मिलता दिल उससे मिला जिससे मुकद्दर नही मिलता ये राह ए तमन्ना है.....यहाँ देख के चलना इस राह मे सिर मिलते हैँ..पत्थर नही मिलता" उँगलियों मे ग्लासेज़ थामे वह उसके पीछे उसकी देहलीज़ के पार चल तो दिया था मगर क़दमों को गोया उसके क़दम के निशान ही नही मालूम थे।। किसी किसी से बिछड़कर भी इंसान बिछड़ नही पाता।। किसी को भुलाकर भी भूलने का ढोंग तो कर सकता है मगर भूल नही सकता। आंगन के दूसरी एक जानिब मुंडेर पर से झाँकता सूरज धूप को बिखेर रहा था जिसकी तपिश मे वह उसका साया देख सकती थी।। वह उसके पीछे आ रहा था लेकिन उसका साया अनाहिता के ऐन हम क़दम था।। आज उसके साये को भी वह चोर निगाह से देख रही थी।। जिस शख्स ने कहा था कि उसपर अनाहिता के सारे हक़ुक मैयस्सर हैँ।।