ये कहानी है यशवीर सिंह राजवंश की जो भारत का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का सबसे बड़ा बिजनेसमैन है। उसके लोग "devil" के नाम से भी जानते हैं। उसके गुस्से से सभी डरते थे। लेकिन यशवीर कर लेता है गलत लोगो पर भरोसा जिसकी कीमत उसके परिवार और बीवी की जान देके... ये कहानी है यशवीर सिंह राजवंश की जो भारत का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का सबसे बड़ा बिजनेसमैन है। उसके लोग "devil" के नाम से भी जानते हैं। उसके गुस्से से सभी डरते थे। लेकिन यशवीर कर लेता है गलत लोगो पर भरोसा जिसकी कीमत उसके परिवार और बीवी की जान देके चुकानी पड़ती है और अंत मैं अपनी जान देके भी। लेकिन कहते हैं ना भगवान के घर धेर है अंधेर नहीं। भगवान उसको देते हैं एक और मोका। तो क्या यशवीर अपनी गलती को सुधार पायेगा। क्या करेगा यशवीर जान ने के लिए पढ़ते रहिये REBIRTH WAR OF LOVE AND REVENGE.
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जंगल के बीचों-बीच एक पुराना-सा खंडहर था। खंडहर के अंदर से एक आदमी के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी, मानो उसे बेरहमी से मारा जा रहा हो। और ये सच भी था। अंदर एक आदमी जंजीरों से बंधा हुआ था, और कुछ क्रूर आदमी उसे बेरहमी से मार रहे थे। तभी एक बॉडीगार्ड उसे मारते हुए बोला, "साला बहुत मोटी चमड़ी का है। कितना टॉर्चर किया इसको पिछले छह महीने से, लेकिन ये अब तक नहीं मरा।" तभी खंडहर के बाहर एक कार रुकी। उसकी आवाज़ सुनकर वो बॉडीगार्ड उसे मारना बंद कर बोला, "बॉस आ गए। अब वो ही इसे अपने तरीके से ठिकाने लगाएँगे।" ये कहते हुए वे सभी अपनी बंदूकें लेकर खड़े हो गए। उस अधमरे आदमी में जैसे जान ही नहीं बची थी। उसके कपड़े जगह-जगह से फटे हुए थे, और उसके बाल इतने बड़े हो गए थे कि उसके चेहरे को छुपा रहे थे। उसके पूरे शरीर से जगह-जगह खून निकल रहा था। किसी को भी उसकी इस हालत पर दया आती, लेकिन वहाँ खड़े लोग जैसे इंसान ही नहीं थे। तभी किसी के जूतों की आवाज़ आई, जैसे कोई चलकर आ रहा हो। और तभी एक लगभग 26-27 साल का लड़का अंदर आया। सभी बॉडीगार्ड्स ने उसको देखकर अपना-अपना सिर झुका लिया। सामने अधमरी हालत में, जंजीरों से बंधा हुआ इंसान भी अपनी आँखें खोलकर सामने देखता है। उसे महँगे काले जूते दिखाई देते हैं। वो धीरे-धीरे ऊपर देखता है, और जैसे ही वो सामने खड़े इंसान का चेहरा देखता है, उसकी आँखों में गुस्सा नज़र आने लगता है। वो गुस्से से बोला, "रवि! तुम... तुम पर तो मैंने कितना भरोसा किया था! तुमको तो मैंने अपना बेस्ट फ्रेंड माना था! और तुमने ही मेरे साथ धोखा किया! तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?" सामने खड़ा हुआ इंसान, जिसका नाम रवि मेहरा था, एक गंदी हँसी हँसते हुए बोला, "हाँ, मैं रवि, तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त, जिस पर तुमने सबसे ज़्यादा भरोसा किया।" "और क्या पूछा तूने? हाँ, मैंने क्यों किया? तो..." फिर वो आगे बढ़ा, सामने वाले आदमी को थप्पड़ मारते हुए बोला, "क्योंकि तू हमेशा मेरे से आगे रहा, हर चीज़ में! मैंने हमेशा इतनी मेहनत की, बचपन से पढ़ाई में, लेकिन तू हमेशा फ़र्स्ट आया! और तेरी वजह से मैं सेकंड!" "दसवीं में भी तूने पूरे स्टेट में टॉप किया, और मैं तेरी वजह से इतनी मेहनत करने के बाद भी सेकंड आया। फिर बारहवीं में भी वही हुआ। और फिर मैं कॉलेज गया, लेकिन तूने वहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा। वहाँ भी सबसे हैंडसम, सबसे स्मार्ट, तू ही रहा। तू ही फ़र्स्ट रहा। बाद में मैंने बिज़नेस शुरू किया, लेकिन तू... तुझे तो एक पूरा एम्पायर मिल गया! और तू अपनी कंपनी ऊँचाइयों पर ले गया, और नंबर वन बिज़नेसमैन बन गया। लेकिन मैं हमेशा इतनी मेहनत करता था, लेकिन तू हमेशा आगे निकल जाता रहा।" फिर रवि आगे बढ़कर बोला, "और आखिरी बार मैंने एक लड़की से प्यार किया, लेकिन तूने उसे भी मुझसे छीन लिया। इसलिए मैंने तुझसे तेरा सब कुछ छीन लिया, सब कुछ!" और वो तेज़-तेज़ हँसने लगा। वो आदमी गुस्से से उसे देखकर बोला, "मैंने हमेशा ही तुझे अपने भाई की तरह समझा, और तूने मेरे को इतना बड़ा धोखा दिया!" रवि बोला, "और जो तेरे अपने थे, तुझे इतना प्यार करते थे, उन भाई-बहनों को कभी प्यार नहीं किया। बिचारे अपने प्यारे यशवीर भैया के प्यार को तरसते रहे, और आखिर में तरसते ही भगवान के पास चले गए।" रवि के मुँह से ये सुनकर यशवीर गुस्से से बोला, "रवि! तूने क्या किया मेरी फैमिली के साथ? तेरी दुश्मनी मुझसे थी, तो उनको क्यों बीच में लाया?" और वो झटपटाने लगा, जैसे अभी वो खुद को आज़ाद करके रवि को मार ही डालेगा। इस समय उसकी आँखें पूरी लाल हो चुकी थीं। इस हालत में भी उसके इस गुस्से को देखकर एक पल के लिए रवि भी हिल गया, लेकिन खुद को संभालते हुए बोला, "अरे अभी तो..." यशवीर उसकी तरफ देख रहा था, तभी उसके पीछे से एक लड़की की आवाज़ आई, "रवि बेबी! और कितना टाइम लगेगा? जल्दी से खेल खत्म करो इसका। हमें देर हो रही है पार्टी के लिए।" और रवि के पीछे से एक लड़की, शॉर्ट ड्रेस पहने, मटकते हुए, बड़े ही स्टाइल से चलती आई और रवि के बाजू में खड़ी हो गई। यशवीर अपने सामने खड़ी लड़की को देखकर बिल्कुल हैरान हो गया, क्योंकि उसे सामने खड़ी हुई लड़की वही थी जिससे उसने सबसे ज़्यादा प्यार किया था। उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि जिस लड़की से उसने सबसे ज़्यादा प्यार किया, इस दुनिया में उसी ने उसे इतना बड़ा धोखा दिया। वो सामने देखते हुए बोला, "रिया? तुम..." उसके मुँह से शब्द भी ठीक से नहीं निकल रहे थे, क्योंकि सामने वो खड़ी थी जिससे उसने अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा प्यार किया था। वो इस धोखे से पूरी तरह टूट चुका था। रिया उसकी तरफ देखते हुए बोली, "Oh my dear hubby. Oops, sorry, ex-husband. क्योंकि आप तो दुनिया के लिए छह महीने पहले ही मर चुके हैं।" रवि रिया की कमर में हाथ डालकर उसे अपनी तरफ खींच लेता है और यशवीर के सामने ही उसे किस करता है, जैसे वो यशवीर को ये दिखाना चाहता हो कि रिया अब उसकी है, उसने उसका सब कुछ छीन लिया है। रिया भी रवि के किस में उसका पूरा साथ दे रही थी। अपने सामने चल रहे दृश्य को देखकर उसे गुस्सा और घिन दोनों ही आ रही थी। तभी रिया रवि से अलग होती है और कहती है, "सिर्फ़ रवि से प्यार करती हूँ, तुमसे नहीं।" तभी रिया आगे बढ़कर उसे जबरदस्ती एक मिठाई खिलाती है और कहती है, "मेरे प्यारे ex-hubby, ये मेरी और रवि की सगाई की मिठाई है, इसको खाना तो बनता है।" और वो जबरदस्ती उसे खिला देती है। यशवीर अपने सामने खड़े हुए दो धोखेबाज़ों को देखता है। तभी रवि का फ़ोन बजता है। वो फ़ोन उठाता है और उधर की बात सुनकर हँसने लगता है, और कॉल काट देता है। उसे हँसते देख रिया रवि से पूछती है, "क्या हुआ बेबी?" तो रवि कहता है, "बेबी, अब इसकी बहन नहीं रही।" यशवीर जब ये सुनता है तो झटपटाने लगता है और कहता है, "क्या किया तुमने उसके साथ? क्या किया तूने मेरी फैमिली के साथ?" ये कहते हुए यशवीर के मुँह से सफ़ेद झाग जैसा निकलने लगता है। वो समझ जाता है कि रिया ने जो उसे मिठाई खिलाई थी, उसमें ज़हर मिला हुआ था। रिया उसकी हालत देखकर रवि से कहती है, "बेबी, क्यों ना इसको बता दें हमने क्या किया इसकी फैमिली और इसकी ex-wife के साथ, जो इससे कितना प्यार करती थी। लेकिन बिचारी को अपने पति का प्यार नसीब नहीं हुआ, और उसकी नफ़रत सहती हुई ही मर गई।" यशवीर उन दोनों की तरफ देखते हुए कहता है, "मुझे मरने से पहले बता तो दो, मैंने क्या बेवकूफी की है?" तो क्या किया होगा रवि और रिया ने यशवीर के परिवार के साथ और उसकी ex-wife के साथ? क्या यशवीर मरने से पहले सच जान पाएगा? क्या रवि उसे बता देगा सच? उसने क्या किया उसकी फैमिली और wife के साथ? क्या यही है यशवीर का अंत? जानने के लिए आगे पढ़ें: Rebirth: Revenge and Love Thank you for reading ✨️ 📚 Please like, comment, and share. 🙏🏻🙏🏻
रिया ने रवि से कहा, "हमें इसे बता देना चाहिए कि हमने इसकी फैमिली के साथ क्या किया है।" रवि ने सोचते हुए कहा, "क्यों ना हम इसको पूरी फिल्म दिखा ही दें? बताने में तो ये थोड़ा ही तड़पेगा, पर देखने में ये अच्छे से झटपटायेगा कि ये क्यों नहीं बचा पाया। और मैं इसकी वो लाचारी और तड़प देखना चाहता हूँ।" रिया ने रवि के गाल पर किस करते हुए कहा, "तो रोका किसने है बेबी? जो चाहो वो कर लो, अभी तो टाइम है इसको मरने में।" रवि ने अपना फोन निकाला, उसमें वीडियो प्ले की और यशवीर के सामने फोन की स्क्रीन कर दी। पहले स्क्रीन पर दिखाया गया कि कैसे उसके माँ-बाप और चाचा-चाची को कुछ लोगों ने एक बंद कमरे में पहले छेड़ा और फिर जिंदा जला दिया। वीडियो वहीं खत्म हुई या फिर दूसरी शुरू हुई जिसमें उसका छोटा भाई दिख रहा था जिसके हाथ तोड़ दिए गए थे या वो सड़क किनारे पड़ा हुआ था। यशवीर वीडियो देख रहा था और उसकी आँखों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वो झटपटा रहा था, खुद को उन जंजीरों से छुड़ाना चाहता था, लेकिन छूट नहीं पा रहा था। पर उसकी हालत अब बिगड़ रही थी क्योंकि रिया ने उसे जहर दिया था जो उसके शरीर पर अपना असर दिखा रहा था। तभी दूसरी वीडियो शुरू हुई जिसमें उसका बड़ा भाई कार चला रहा था और सामने से या पीछे से दो ट्रक फुल स्पीड में आ गए और उसकी कार का बुरा हाल कर दिया जिससे उसके भाई की मौत मौके पर ही हो गई। ये देख यशवीर झपटने लगा। उसकी ये हालत देख रवि और रिया को बहुत खुशी हुई। वे मज़े से उसकी हालत देखने लगे। एक वीडियो शुरू हुई जिसमें एक लड़की बिस्तर पर पड़ी हुई थी और छह-सात लम्बे-हट्टे-कट्टे आदमी उस लड़की के साथ जबरदस्ती कर रहे थे। लड़की को धीरे-धीरे होश आने लगा। उसने अपना चेहरा इधर-उधर किया तो यशवीर को उसका चेहरा दिखा। यशवीर उस लड़की का चेहरा देखकर चीखने लगा और जोर से अपनी जंजीरें खींचने लगा। क्योंकि सामने उसकी छोटी बहन थी, जिसे घरवाले राजकुमारी की तरह रखते थे, उसे हल्की सी खरोच तक लग जाए तो पूरा घर परेशान हो जाता था। और आज उसके साथ इतने लोग मिलकर क्या कर रहे थे? वो इतना लाचार था कि अपनी बहन को तक नहीं बचा सकता था। रवि उसकी ये हालत देखकर हँसने लगा। यशवीर गुस्से से उसकी ओर देखकर बोला, "रवि, छोड़ दे! वो तो तुझे अपना भाई मानती थी। तू अपनी बहन के साथ ऐसा करेगा? छोड़ दे रवि, बच्ची है वो अभी।" रवि ने उसे देखकर कहा, "बच्ची नहीं, अब तो वो जवान है मेरे दोस्त। और मेरा बस चलता तो उसके इस जवानी के रस को खुद भी थोड़ा चख लेता।" यशवीर को उसकी मुँह से इतनी घटिया बात सुनकर बहुत घिन आई। उसने कहा, "छी! तू तो इंसान के नाम पर राक्षस है! मैंने ऐसा सोचा भी नहीं था। राक्षस भी अपनी बहन को छोड़ देता है, लेकिन तू इतनी गंदी बात अपनी बहन के लिए कर रहा है जिसने तेरे को हर रक्षाबंधन राखी बांधी थी।" तभी वीडियो में से चिल्लाने और रोने की आवाज़ आने लगी। यशवीर ने एक बार फिर अपनी नज़र स्क्रीन पर ले जाई तो सामने का नज़ारा देख उसकी आँखों में आँसू आ गए और उसे बहुत गुस्सा आया। क्योंकि सामने उसकी बहन के साथ वो आदमी बलात्कार कर रहे थे। उसकी बहन चिल्ला रही थी, चीख रही थी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। यशवीर ने अपनी नज़रें फेर लीं। तब रवि बोला, "अरे... इतने में ही नज़र फेर ली? अभी तो पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त।" रिया और वो दोनों हँसने लगे। यशवीर ने एक बार फिर हिम्मत करके फोन स्क्रीन की ओर देखा। अब उस पर उसकी बहन की वीडियो हटकर दूसरी वीडियो दिख रही थी। जिसमें एक लड़की पुरानी सी जगह पड़ी हुई थी, उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था और उसके शरीर पर काटने और नोचने के निशान थे, उसके प्राइवेट पार्ट्स से खून आ रहा था। उसके सामने पन्द्रह से बीस आदमी खड़े थे और उनके शरीर पर भी कपड़े नहीं थे। यशवीर ये देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया। जब उसने उस लड़की का चेहरा देखा तो उसकी रूह ही निकल गई। क्योंकि वो लड़की कोई और नहीं, उसकी पत्नी थी जो उससे बेहद प्यार करती थी। और उसने कभी उसके प्यार की कद्र नहीं की। उसके लिए उसने क्या-क्या नहीं किया होगा, लेकिन उसने हमेशा उसे ठुकराया, बुरा किया। आज भी उसके वश में वो दरिंदे उसके साथ क्या कर रहे हैं। यशवीर की ये हालत देख रिया बोली, "बेबी, अचानक से इतनी हमदर्दी अपनी एक्स वाइफ़ के लिए अच्छी बात नहीं है। क्योंकि जब वो तुमसे इतना प्यार करती थी, तब तो तुमने कभी उसे प्यार नहीं किया था, लेकिन आज जब वो तुमसे प्यार करने की कीमत चुका रही है तो ये तड़प क्यों?" "तुमने तो उस बिचारी को कितना तड़पाया, कितना रुलाया। उसकी ज़िंदगी धरती पर ही नरक बना के रख दी थी। याद करो, तुमने उसके साथ जबरदस्ती भी की थी। फिर भी उसने कभी तुमसे कुछ नहीं कहा और तुमसे ही प्यार करती रही।" "बिचारी चू-चू-चू..." वो इतना कहकर हँसने लगी। फिर बोली, "तुम्हें एक और बात बताऊँ, वो जब प्रेग्नेंट हुई थी ना तो वो भी किसी और का नहीं, बल्कि तुम्हारा ही बच्चा था, जिसको तुमने ही मार दिया था।" "या तुमने उसे बाद में ज़िंदा लाश बना दिया था जिसकी वजह से वो रोज़ ना जाने कितनी मौतें मरती होगी। और फिर तुमने उसे तलाक भी दे दिया। हा हा हा हा..." यशवीर को इस वक़्त खुद पर और सामने खड़े दोनों लोगों पर कितना गुस्सा आ रहा था, ये वो बता भी नहीं सकता था। तभी पीछे से एक औरत की आवाज़ आई, "तुम दोनों अब इसका खेल खत्म भी करो और जल्दी चलो यहाँ से।" यशवीर ने उस तरफ देखा तो उसे अँधेरा ही दिखाई दिया, एक औरत की परछाई दिखी। रिया ने रवि से कहा, "बेबी, चलो अब। ये सब तो जान गया, बिचारा। अब इसका कोई काम नहीं। हमें हमारी सगाई की पार्टी में भी जाना है।" रवि यशवीर की तरफ देखते हुए बोला, "गुड बाय मेरे प्यारे दोस्त। अरे हाँ, मैं तो बताना भूल गया, जो अभी फोन आया था ना, तो तेरी बहन और बीवी दोनों उन आदमियों को झेल नहीं पाईं और मर गईं।" यशवीर को तभी उस औरत की आवाज़ आई जो कह रही थी, "जल्दी चलो, अब बहुत हुआ।" यशवीर को ये आवाज़ सुनकर कुछ याद आया। रवि उसे उस दिशा में देख रहा था। "कुछ राज़ तू ना जान के ही ऊपर जा..." और वहाँ खंडहर में तीन लोगों की भयानक हँसी गूँजी जिसे सुनकर वहाँ खड़े बॉडीगार्ड डर गए। क्योंकि अब तक वे सभी देख चुके थे कि उनके बॉस कितने क्रूर हैं। यशवीर का शरीर अब निढाल पड़ा था। जहर अपना काम अच्छे से कर रहा था। वो अपनी आँखों में एक आग लिए मन ही मन कहता है, "भगवान, मैं आज तक बहुत सी गलतियाँ की, पर कभी जानबूझकर किसी के साथ इतना गलत नहीं किया। अगर तू है तो मुझे एक मौका दे।" तभी उसे गोली चलने की आवाज़ आई। ये गोली रवि ने यशवीर पर चलाई थी। उसने छह की छह गोलियाँ यशवीर के शरीर में उतार दी थीं। रिया भी मुस्कुराते हुए बोली, "गुड बाय यश बेबी। तुम ऊपर जाकर अपने परिवार और वाइफ़ से मिल लो।" रिया मटकते हुए वहाँ से बाहर की ओर चली गई। यशवीर अपनी अधखुली आँखों में एक आग लिए हुए उसे देख रहा था और अँधेरे में खड़ी औरत को भी पीछे से रिया के साथ बाहर जाते हुए देख रहा था। तभी उसने रवि को कहते सुना, "तुझे पता है तेरी बीवी कसम से क्या मज़ेदार थी! मज़ा आ गया उसके साथ मज़े करके। अफ़सोस अब वो नहीं रही, वरना अब भी मैं उसके मज़े लेता, जैसे पिछले आठ महीने से ले रहा था। कसम से क्या माल थी! अफ़सोस तूने तो कभी..." वो अपनी बात अधूरी छोड़ देता है। यशवीर, जिसकी आँखें अब बंद होने को आई थीं, अपनी आँखों में गुस्से और एक ऐसी आग लिए उसे देख रहा था जो उसे राख करने की हिम्मत रखता था। रवि खड़ा होकर "गुड बाय बेस्ट फ्रेंड" कहकर बाहर की ओर चला गया। बाहर जाकर उसने अपने बॉडीगार्ड को उस पूरी जगह को आग लगाने को कहा। वो एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहता था जिससे यशवीर के बचने का चांस हो। उसके बॉडीगार्ड पूरी जगह को आग लगा देते हैं। अंदर यशवीर बेहोश पड़ा था। उसकी साँसें अब भी हल्की-हल्की चल रही थीं। तभी आसमान में बिजली कड़कती है और ज़ोरों की बारिश होने लगती है। जैसे आसमान भी उसकी इस स्थिति पर रो रहा हो। यशवीर अपनी आखिरी साँस लेते हुए कहता है, "मैं वापस ज़रूर आऊँगा, सबसे बदला लेने।" तभी उसकी आँखें बंद हो जाती हैं हमेशा के लिए, उसकी साँसें थम जाती हैं। आसमान की बारिश और तेज हो जाती है, जैसे वो शोक मना रही हो उसकी मौत का। तो क्या लगता है कि यशवीर की कहानी का अंत था? क्या भगवान उसे एक मौका देंगे? क्या वो अपने दुश्मनों को हरा देगा? तब और कौन थी वो छुपी हुई औरत? क्या थी उसकी दुश्मनी यशवीर के साथ? सभी सवालों के जवाब मिलेंगे, इसके लिए पढ़ना ना भूलें "Rebirth, Revenge and Love ❤️"
यशवीर ने अपनी आँखें झटके से खोलीं। सबसे पहले उसकी नज़रें सफ़ेद छत पर पड़ीं। वह आस-पास देखने लगा। उसने पाया कि वह एक अस्पताल के कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसके हाथ में ड्रिप लगी हुई थी। उसे लगा था कि वह मर गया है, पर वह बच गया था। वह चारों तरफ़ देखता रहा; सब कुछ बहुत परिचित लग रहा था। तभी एक नर्स अंदर आई। यशवीर को होश में देखकर उसने तुरंत डॉक्टर को सूचित किया। यशवीर अब भी आस-पास देखकर यह अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि उसने यह कहाँ देखा था। क्या वह मारा नहीं गया था? किसी ने उसे बचा लिया था? उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा था। उसके सामने रवि का उसके परिवार को छूना, उसकी बहन का उसका हाल देखना, उसकी पत्नी का इतने लोगों के बीच एक जिंदा लाश की तरह दिखना... और रवि की वह आखिरी लाइन – आठ महीने से मज़े ले रहा था – यही सब चल रहा था। तभी डॉक्टरों की एक पूरी टीम अंदर आई और उसे चेक करने लगी। यशवीर को ऐसा लग रहा था कि यह सब उसके साथ पहले भी हो चुका है। उसने अपने दिमाग पर ज़ोर डाला तो उसके सर में अचानक बहुत तेज़ दर्द शुरू हो गया। डॉक्टर आगे बढ़े और उसे चेक करने लगे। एक डॉक्टर ने कहा, "मिस्टर राजवंश, कृपया आप अपने दिमाग पर ज़ोर न डालें। आपका एक्सीडेंट हुआ था और आप दो दिन से कोमा में थे।" यशवीर को याद था कि उसका यह एक्सीडेंट पहले भी हुआ था। और तब भी एक डॉक्टर ने उसे बताया था कि वह दो दिन तक कोमा में रहा था। तो क्या इसका मतलब उसका पुनर्जन्म हुआ है? क्या सच में भगवान ने उसे एक मौका दिया है? यही सब सोचते हुए उसने डॉक्टर से पूछा, "डॉक्टर, आज तारीख क्या है?" डॉक्टर ने उसे तारीख बताई। वह जान गया कि उसका सचमुच पुनर्जन्म हुआ है। पहले तो उसे झटका लगा, पर बाद में उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया कि उसने उसे एक मौका दिया। उसे याद आया कि यह एक्सीडेंट उसके पिछले जन्म में तब हुआ था जब वह अपनी पत्नी को तलाक देने कोर्ट जा रहा था। तभी उसका एक्सीडेंट हो गया था और वह दो दिन तक कोमा में रहा था। फिर उसकी तलाक की तारीख आगे बढ़ा दी गई थी, और उसका तलाक रुक गया था। डॉक्टर उसे चेक करके चले गए, पर वह अपनी ही सोच में खोया हुआ था। तभी किसी ने गेट फिर से खोला। उसने उस दिशा में देखा। यह कोई और नहीं, उसका सहायक रोहन था, जिसने पिछले जन्म में उसके इस एक्सीडेंट में उसकी जान बचाई थी। समय पर उसे अस्पताल में भर्ती भी करवा दिया था, बिना किसी को मालूम पड़े कि उसका एक्सीडेंट हुआ था या वह दो दिन कोमा में रहा था। और उसकी अनुपस्थिति में उसने उसकी कंपनी को भी संभाला था। यशवीर आगे कुछ इस तरह से सोचता है: पहले उसे रोहन की आवाज सुनाई पड़ी थी, जो उससे पूछ रहा था, "सर, अभी आप कैसे हैं?" यशवीर ने रोहन की तरफ़ देखा और अपना सिर हिलाया। रोहन कुछ कहने से डर रहा था। यशवीर को याद आया कि रोहन उसके लिए पिछले जन्म में बहुत वफ़ादार था। उसने उसकी अनुपस्थिति में उसके परिवार और उसके साम्राज्य को बहुत अच्छे से संभाला था। पर वह बेचारा कब तक उन धोखेबाज़ों के खिलाफ़ टिक पाता? अंत में उसने भी अपनी जान गँवा दी थी। यशवीर फिर से यह सब याद करके उसकी आँखों में गुस्सा, दुख, दर्द और धोखा दिखने लगा। तभी उसने देखा कि रोहन उससे कुछ कहने की कोशिश कर रहा है, पर वह डर से नहीं बोल पा रहा है। यशवीर को याद आया कि पिछले जन्म में जब रोहन उससे मिला था, तो उसने उसे बताया था कि उसका तलाक आगे बढ़ गया है। जिसकी वजह से उसने रोहन पर कितना गुस्सा किया था! और गुस्से में अपनी पत्नी को भी बहुत कुछ सुनाया था। उसके गुस्से में आग में घी का काम रवि ने किया था, जिसने उसे यह बताया था कि यह एक्सीडेंट किसी की साज़िश थी, जो उसे यह तलाक देने से रोकना चाहती थी। और उसका सीधा इशारा उसकी पत्नी की ओर ही था। यशवीर को भी यही लगा कि यह एक्सीडेंट उसकी पत्नी ने ही करवाया था। जिससे गुस्से में आकर उसने अपनी पत्नी को घर जाकर बहुत बुरा-भला कहा और बहुत मारा भी था। असल में, एक्सीडेंट सच में एक साज़िश थी, जो रवि ने उसे मारने के लिए रची थी। और वह इसमें सफल भी हो जाता अगर आखिरी पल पर रोहन उसे नहीं बचाता और सही समय पर अस्पताल नहीं ले जाता। वह रोहन की तरफ़ देखता है, जो अब भी उसके सामने डरता हुआ बोलने की कोशिश कर रहा था। तभी यशवीर ने ठंडी आवाज़ में कहा, "क्या बोलना है, साफ़-साफ़ बोलो।" रोहन डरते हुए बोला, "सर, आपका तलाक कुछ समय के लिए आगे बढ़ा दिया गया है क्योंकि आप समय पर नहीं पहुँचे। ज़्यादा नहीं सर, मैंने पूरी कोशिश की, ज़्यादा आगे नहीं बढ़ा, बस एक महीना ही आगे बढ़ा है।" रोहन ने एक ही साँस में बिना रुके सब कुछ बोल दिया और अपना सिर नीचे करके यशवीर के गुस्से का इंतज़ार करने लगा। क्योंकि वह शुरू से ही यशवीर के साथ काम कर रहा था, उसे पता था कि कब उसके बॉस खुश होंगे और कब गुस्सा होंगे। इस समय उसे लग रहा था कि उसके बॉस यह खबर सुनकर उस पर बहुत गुस्सा करेंगे क्योंकि उसके बॉस को यह तलाक जल्दी से जल्दी चाहिए था। यशवीर ने शादी के तुरंत बाद तलाक के लिए अप्लाई कर दिया था क्योंकि उसे जल्दी से जल्दी यह शादी तोड़नी थी। उसने यह शादी जबरदस्ती की थी। (शादी कैसे हुई, यह आप आगे की कहानी में पता चल जाएगा।) उसका सोचना सही भी था क्योंकि पिछले जन्म में यशवीर ने उस पर बहुत गुस्सा किया था क्योंकि वह छह महीने से तलाक का इंतज़ार कर रहा था। उसने शादी के बाद जब अप्लाई किया था, तब उसे रिजेक्ट कर दिया गया था क्योंकि शादी के तुरंत बाद तलाक नहीं हो सकता था। कोर्ट के कुछ नियम होते हैं जो अमीर-गरीब सबके लिए समान होते हैं। उसने बहुत कोशिश की कि वह जल्दी से जल्दी यह शादी तोड़ दे, लेकिन उसे अनचाहे ही छह महीने इंतज़ार करना पड़ा था। तब जाकर उसे तारीख मिली थी। आज उसका तलाक होना था, पर वह पहुँच ही नहीं पाया, जिससे एक महीने की तारीख और बढ़ गई। तब उसने रोहन पर बहुत गुस्सा किया था। रोहन बेचारा इतने समय से अपने बॉस की डाँट सुनने के लिए खुद को तैयार किए, सर झुकाए खड़ा था। पर जब उसने यशवीर की बात सुनी, तो उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ। वह आँखें फाड़े यशवीर की तरफ़ देख रहा था। तो आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है। ऐसा क्या कह दिया यशवीर ने जिससे रोहन की आँखें फटी की फटी रह गईं? क्या यशवीर इस जन्म में भी अपनी पत्नी को तलाक देगा? क्या वह अपनी गलती सुधार पाएगा? क्या वह अपने अपनों की जान को इस जन्म में बचा पाएगा? और वह अपने दुश्मनों को सबक कैसे सिखाएगा? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए – पुनर्जन्म, बदला और प्यार ❤️ 😍
रोहन ने यशवीर की बात सुनने के लिए खुद को तैयार किया। सर नीचे झुकाए खड़ा रहा, पर यशवीर की आगे की बात सुनकर उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं और वह हैरान खड़ा रह गया। यशवीर ने अपनी ठंडी आवाज़ में कहा, "तलाक रद्द कर दो, क्योंकि अब मुझे तलाक नहीं चाहिए।" रोहन को पता था कि यशवीर कब से इस तलाक का इंतज़ार कर रहा था। फिर अचानक क्या हुआ कि वह मना कर रहा है? रोहन हिम्मत करके यशवीर से कहा, "सर, क्या हुआ अब अचानक? ऐसा नहीं था।" रोहन ये चाहता था कि उसका तलाक हो, बस वह यशवीर की बात को थोड़ा समझ नहीं पा रहा था, इसलिए सिर्फ सवाल कर दिया। वही उसकी बात सुनकर यशवीर उसे घूरकर अपनी आँखें छोटी करके देखता है। रोहन कहा, "वो...वो सर।" इतना ही कह पाया था कि यशवीर की आगे की बात सुनकर वह बेहोश होते-होते बच गया, क्योंकि यशवीर ने उससे कहा कि वह इस शादी को एक मौका देना चाहता है। रोहन ने कहा, "सर, अपने सर में चोट आई है क्या?" यशवीर उसकी बात सुनकर उसे अपनी खा जाने वाली निगाहों से घूरता है। मैंने गुस्से से उसे देखते हुए कहा, "लेकिन अभी ये किसी को मालूम नहीं पड़ना चाहिए। सबको ये बोल देना कि तलाक आगे बढ़ गया। बाकी मैं देख लूँगा।" रोहन को तो बिचारे को आज एक ही दिन में इतने सारे झटके मिले थे कि उसे सच में चक्कर आ गया। वह गिरने ही वाला था कि एक नर्स ने उसे पकड़ लिया। यशवीर उसे देखकर अपना सर हिलाया। नर्स रोहन को वहीं बैठाती है और कहती है, "सर, आपकी तबीयत तो ठीक है?" रोहन मासूमियत से उसकी तरफ़ देखता है और अपना सर हिला देता है। नर्स को उसे देखकर हँसी आती है। वहीं यशवीर बेड पर बैठा उसकी नौटंकी देख रहा था। वह मन ही मन मुँह बनाते हुए कहता है, "मेरा एकदम से ये बदलाव, इसको थोड़ा चौंकाने वाला लगा, लेकिन इतनी भी नौटंकी करने की ज़रूरत नहीं थी।" फिर यशवीर अपना सर झटककर रोहन से अपनी ठंडी आवाज़ में कहा, "डिस्चार्ज पेपर तैयार करवाओ।" जो नर्स आई थी, वह यशवीर की तरफ़ देखते हुए कहती है, "सर, अभी आपको एक सप्ताह और एडमिट रहना पड़ेगा। आपकी चोटें पूरी तरह से ठीक नहीं हुई हैं।" यशवीर ने कहा, "मैं ठीक हूँ। अब मुझे यहाँ नहीं रहना। मेरी बहुत महत्वपूर्ण मीटिंग है। मैं यहाँ नहीं रह सकता। और ये छोटी-मोटी चोटें ठीक हो जाएँगी, बाकी मैं संभाल लूँगा।" फिर रोहन की तरफ़ देखकर कहा, "तुम्हें सुना नहीं दिया?" नर्स उसकी इतनी ठंडी आवाज़ सुनकर डर जाती है और चुपचाप सर हिलाकर कमरे से चली जाती है। यशवीर अपनी एक आइब्रो उठाकर रोहन को देखता है, तो रोहन जल्दी से खड़े होकर अपनी बत्ती सी दिखाते हुए बाहर भाग जाता है, जैसे उसके पीछे कोई भूत पड़ा हो। यशवीर उसे जाते देख अपना सर हिलाता है और अपने आप से कहता है, "मुझे जहाँ तक याद है, अभी कल एक मीटिंग होने वाली है, जिसमें पिछली बार गया था, तब डील मेरे हाथ से निकल गई थी और यह डील रवि की कंपनी को मिल गई थी।" वह याद करता है कैसे पिछली बार यहीं हुआ था। रवि ने उसकी कंपनी से प्रेजेंटेशन चुरा ली थी और रिया ने कहा था कि उसका बड़ा भाई नहीं चाहता था कि वह यह प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरा कर ले, क्योंकि उसका भाई उससे जलता है कि छोटा होने के बाद भी उसे ही CEO बनाया गया। इसीलिए वह उसकी पोजीशन उससे छीनना चाहता है। और पिछले जन्म में यशवीर रिया की बातों में आ भी जाता है। जिससे यशवीर अपने बड़े भाई से गुस्से में बहुत कुछ उल्टा-सीधा बोलता है और फिर झगड़ा कर लेता है। यहाँ तक कि वह अपने ही बड़े भाई से नफ़रत भी करने लगता है। इसी बात का फ़ायदा रिया और रवि ने उठाया था। पर इस बार वह ऐसा कुछ नहीं होने देगा। वह अपनी गलती सुधारेगा। वह अपने अपनों से कभी नफ़रत नहीं करेगा और जो अपनों की खाल में छुपे भेड़िये हैं, उनको अच्छे से सबक सिखाएगा। तभी उसे वह औरत याद आती है जो पिछले जन्म में शायद इन सब में रवि की पार्टनर थी। वह इससे आगे कुछ सोच पाता है कि उसके वार्ड में कोई आता है। वह देखता है तो यह कोई और नहीं, रोहन ही होता है। रोहन अंदर आकर कहता है, "सर, डॉक्टर ने आपके डिस्चार्ज पेपर तैयार कर दिए हैं। अब आप तैयार हो जाइए। आपकी दवाएँ भी मैं ले आया हूँ। पर आपको एक बार चेकअप के लिए विजिट करना होगा।" यशवीर अपना सर हिला देता है। तभी एक नर्स अंदर आती है और उसकी ड्रिप वगैरह निकाल देती है। तभी रोहन उसके आगे एक बैग बढ़ा देता है। यशवीर उसे एक आइब्रो उठाकर देखता है, जैसे पूछना चाहता है कि इसमें क्या है। रोहन भी उसकी बात समझकर कहता है, "सर, इसमें कपड़े हैं। आप तैयार हो जाइए।" यशवीर वह बैग ले वॉशरूम की ओर बढ़ जाता है और वह रोहन से कहता है, "कार निकालो, हम ऑफिस जा रहे हैं।" रोहन उसकी बात सुन मुँह बनाने लगता है। तभी यशवीर की एक और आवाज़ आती है जो वॉशरूम के अंदर से कह रहा था, "मुँह बनाना बंद करो और कार निकालो, जल्दी!" रोहन देखता है तो गेट तो बंद था। वह खुद से ही कहता है, "बॉस के पास क्या कोई शक्ति है?" फिर वह अपना सर झटककर वार्ड से निकल जाता है। उसे पता था अगर उसकी कार समय से नहीं निकली तो उसे अपने बॉस के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। वैसे भी उसे लग रहा था कि उसके बॉस के सर पर कोई गहरी चोट आई है क्योंकि वह उसे पहले से बदले-बदले लग रहे थे। इधर यशवीर अपने कपड़े बदलकर बिलकुल प्रोफेशनल लुक में तैयार हो गया था ऑफिस जाने के लिए। वह ब्लैक कलर का थ्री-पीस सूट में इतना हैंडसम लग रहा था कि उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि अभी उसका एक्सीडेंट हुआ है और वह दो दिन तक कोमा में रहा होगा। वह चलते हुए बाहर कॉरिडोर से होते हुए हॉस्पिटल के एग्जिट की ओर बढ़ रहा था, पर उसे देख सभी लड़कियाँ अपनी-अपनी आँखें चुरा रही थीं। पर वह किसी को बिना देखे, एक हाथ जेब में डाले बाहर निकल रहा था। उसके लिए यह सब आम बात थी।
यशवीर हॉस्पिटल के कॉरिडोर से निकला। बाहर उसने देखा कि रोहन कार पार्किंग से निकल चुका था और उसका इंतजार कर रहा था। जैसे ही वह उसके पास पहुँचा, रोहन ने जल्दी से कार का गेट खोला और यशवीर कार में बैठ गया। रोहन भी जल्दी से गेट बंद करके ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। "ऑफिस चलो," यशवीर ने कहा। रोहन ने कार स्टार्ट की और ऑफिस की तरफ मोड़ दिया। वह रियर व्यू मिरर से चुपके-चुपके अपने बॉस को देख रहा था। यशवीर गहरी सोच में था। उसे पहले यह डील अपने हाथ से नहीं देनी थी। उसके बाद वह अपने परिवार से मिलेगा। यशवीर अपने मन में बहुत कुछ तय करता है और फिर रोहन से कहता है, "मेरे लिए एक नए फोन का इंतज़ाम जल्द से जल्द करो, सिम के साथ।" "हाँ सर," रोहन कहकर ड्राइव करने लगा। उसे मालूम था कि उसके एक्सीडेंट में उसके फोन का एक भी पुर्जा सही सलामत नहीं बचा होगा। रोहन बार-बार यही सोच रहा था कि आज उस पर इतने समय में एक बार भी दांत नहीं पड़ी, उसके बॉस के सिर पर ज्यादा गहरी चोट तो नहीं आई। तभी यशवीर उसे चुपके से देखते हुए पकड़ लेता है। यशवीर उसकी ओर अपनी आँखें छोटी करके देखता है। "तुम इतनी देर से मुझे क्यों देख रहे हो?" रोहन, जो अपने मन में अपने बॉस को किसी दिमाग के डॉक्टर को दिखाने की सोच रहा था, उसकी आवाज सुनकर एकदम से हड़बड़ा जाता है। फिर वह खुद से कहता है, "अभी नहीं, बॉस मुझे बीच रास्ते में निकलकर खुद ना चले जाएँ। बाद में बोलूँगा।" और यही सोचकर वह असल में ही हिलने लगता है। वहीँ यशवीर उसे देखकर सोचता है कि क्या वह पागल हो गया है। रोहन बिना सोचे-समझे उसकी बात सुनकर कहता है, "नहीं बॉस, वो तो आप हो गए ना, मैं तो किस डॉक्टर से आपकी अपॉइंटमेंट लूँ, ये सोच रहा था।" यशवीर उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरता है। रोहन को एहसास हुआ कि उसने क्या गड़बड़ कर दी। वह मन ही मन बोला, "ले बेटा रोहन, तुझे चैन नहीं था ना, तुझे आज अपने बॉस के गुस्से से भी नहीं बचने वाले। अब तो!" वह मिरर में देखता है कि उसका बॉस उसे खा जाने वाली नज़र से घूर रहा है। तभी वह कार की स्पीड और बढ़ा देता है और झटके से कार रोक देता है। फिर वह पीछे की ओर देखते हुए कहता है, "सर, हम पहुँच गए।" यशवीर जो अभी गुस्से से उसे देख रहा था, वह देखता है कि सच में वे लोग ऑफिस पहुँच गए हैं। यशवीर उसे गुस्से से दो सेकंड घूरता है, तभी एक गार्ड अपने बॉस की कार देखकर जल्दी से उसका गेट खोल देता है। और यशवीर बाहर निकल जाता है। और रोहन चैन की साँस लेता है। मन ही मन भगवान को ना जाने कितना धन्यवाद बोलता है, उसको आज उसके बॉस से बचाने के लिए। और खुद को दिलासा देता है कि उसे अपनी जुबान पर कंट्रोल करने की ज़रूरत है, वरना उसका यह बॉस उसकी जुबान काटने में देर नहीं करेगा। तभी वह देखता है कि यशवीर अपनी प्राइवेट लिफ्ट से अपने फ्लोर, यानी कि टॉप फ्लोर पर चला जाता है। वह जल्दी से कार से बाहर निकलकर गार्ड को चाबी देकर यशवीर के पीछे भागता है। इधर यशवीर अपने फ्लोर पर एक-एक चीज़ को बड़े गौर से देखता है, क्योंकि ना जाने उसने कितने समय बाद यह सब देखा हो। और यह सच भी था। उसने यह सब एक जन्म बाद देखा था। वह अपना सीईओ का केबिन खोलकर अंदर जाता है। वह देखता है कि उसका केबिन बिल्कुल वैसा ही है। ब्लैक या ग्रे की थीम में रॉयल लुक दे रहा था। वहीं एक तरफ बड़ी सी विंडो थी। जब वह चलते हुए उधर जाता है, तो देखता है कि उस विंडो से पूरे शहर का व्यू दिख रहा है। वह खुद से कहता है, "इस बार मैं अपना फायदा किसी को नहीं उठाने दूँगा।" "सबके चेहरे सामने आएंगे। सबको सजा मिलेगी और सजा होगी मौत, सिर्फ़ मौत। वो भी भयानक मौत, जिससे रूह भी काँप जाएगी उन सभी की दोबारा जन्म लेने से। जैसा उन्होंने मेरे परिवार, मेरी बहन और मेरी बीवी के साथ किया, सबका हिसाब होगा।" क्या वक़्त है कि इतना डरावना लग रहा था। उसकी आँखें बिल्कुल लाल हो रही थीं, और उनमें एक आग थी, सब ख़त्म कर देने की आग। देखना यह था कि यह सब वह करेगा क्योंकि उसके दुश्मनों में सिर्फ़ दो का ही चेहरा पता था। लेकिन जो तीसरी औरत थी, वह कौन थी? यह पता करना बाकी था। अभी तो सबसे पहले उसे अपने हाथ से यह डील नहीं निकलने देनी थी। जहाँ तक उसे पता था, उसकी प्रेजेंटेशन अब तक रिया ने रवि को दे दी होगी। मतलब उसे एक दिन, जो कि पूरा भी अब नहीं बचा था, इतने कम समय में नई प्रेजेंटेशन बनानी होगी। रोहन, जो अभी-अभी केबिन के सामने आया था, उसकी इतनी डरावनी आवाज़ सुनकर पहले तो डर गया। इस चक्कर में उसके हाथ में जो फ़ाइल थी, वह ज़मीन पर गिर गई। आवाज़ सुन यशवीर ने उसकी तरफ़ देखा तो रोहन उसकी लाल आँखें और उसे किसी जान से मारने का जुनून साफ़ देख पा रहा था। यशवीर अपने केबिन के अंदर आते समय इतना खो गया था कि अपना ऑफिस का दरवाज़ा बंद करना वह भूल ही गया था, जिस वजह से रोहन ने उसकी आवाज़ सुनी थी। अब बिचारा खड़े-खड़े काँप रहा था। उसे यही लग रहा था कि उसने जो कार में रायता फैलाया, उसकी वजह से उसका यह राक्षस बॉस उसकी बलि देने वाला है। वह बिना सोचे-समझे भागकर यशवीर के पैरों में गिरकर रोते हुए कहता है, "बॉस! बॉस! मुझे माफ़ करना! अब कभी बिना सोचे-समझे नहीं बोलूँगा! अरे आप बोलो, मैं अपनी ज़ीब काट के फेक दूँगा! नहीं हमें तो दर्द होगा हाँ बॉस! मुझे अब बिल्कुल बात नहीं करूँगा!" फिर खुद से कहता है, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" फिर रोते हुए कहता है, "बॉस, मैं फ़ालतू बात नहीं करूँगा, पक्का! पर प्लीज़! प्लीज़! मेरी जान मत लेना! मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई! शादी छोड़ो, मेरी तो अभी GF भी नहीं है!" और रोने लगता है, दहाड़ मार-मार के... यह सब वह एक साँस में बोल गया था। इधर यशवीर ने अपने गुस्से को शांत कर लिया था जब उसने रोहन की आवाज़ सुनी थी। अब उसकी आँखें नॉर्मल हो गई थीं। वह रोहन की यह नौटंकी देखकर शॉक खड़ा था। उसे तो समझ ही नहीं आया, यह हुआ क्या? तभी...
यशवीर सदमे में खड़ा रोहन की ओर देख रहा था। रोहन उसके पैरों से चिपका हुआ था, जैसे कोई बंदर का बच्चा। दोनों हाथ उसके पैरों पर लिपटे हुए थे। वह जोर-जोर से रो रहा था और बकवास कर रहा था। यशवीर कुछ कह पाता, उससे पहले ही यशवीर का बड़ा भाई वहाँ आ गया। केबिन का नज़ारा देखकर वह भी सदमे में था। वह खुद को सामान्य करते हुए शांत आवाज़ में पूछता है, "ये क्या हो रहा है?" यशवीर ने यह आवाज़ सुनते ही उसकी आँखों में कई भाव आ गए। रोहन को तो जैसे बड़े भाई के रूप में जान बचाने वाला फ़रिश्ता मिल गया हो, ऐसा लग रहा था। वह यशवीर के पैर छोड़कर बंदर की तरह खुद को उठाकर उनके पैरों से लगकर रोने लगा। यह कोई और नहीं, अभिराज सिंह राजवंश, यशवीर का बड़ा भाई था। वह एक बहुत बड़े वकील थे। राजवंश साम्राज्य का सारा कानूनी काम यही संभालते थे। इनका नाम सुनकर ही अपराधी थर-थर काँपते थे। यह एक शांत पर बेहद खतरनाक इंसान था। इनसे जब तक न उलझे, तब तक ठीक, पर अगर कोई उलझ गया तो पता नहीं क्या होगा। यह भी कोई कम हैंडसम नहीं थे, यह अपने परिवार और अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। अभिराज रोहन को खुद पर बंदर के बच्चे की तरह लिपटा देखकर सदमे में खड़ा रह गया। उसने पहले यशवीर की ओर देखा, जो रोहन को घूर रहा था। फिर रोहन को, जो बच्चे की तरह उसके गले लगा हुआ था। वह रोहन का नाम लेकर बोला, "क्या हुआ रोहन, बताओ मुझे।" बस इतना पूछते ही रोहन का रोना और तेज हो गया। तभी उस केबिन में यशवीर की कड़कती हुई आवाज़ गूँजी, "अब क्या, खून निकलने का इरादा है?" रोहन उसकी आवाज़ सुनकर एकदम चुप हो गया। अभिराज अब भी रोहन को देख रहा था। रोहन बड़ी मासूमियत से अपनी टिमटिमाती आँखों से अभिराज की ओर देखकर बोला, "भैया, मुझे बचा लो, प्लीज।" इतना बोलकर फिर रोने लगा। यशवीर रोहन की नौटंकी देखकर पक गया। वह सीधे अपनी कुर्सी पर बैठ गया और एक नज़र उस नौटंकीबाज़ पर देखा, जो पता नहीं क्यों रो रहा था। फिर उसने अपना लैपटॉप खोला और काम करने लगा। अभिराज ने रोहन को कुर्सी पर बैठाया और पानी दिया। रोहन को शांत करके पूछा, "क्या हुआ?" रोहन हिचकी लेते हुए बड़ी मासूमियत से अभिराज की ओर देखकर बोला, "भैया, बॉस मेरी जान लेना चाह रहे हैं।" यह बात सुनकर अभिराज ने एक नज़र यशवीर की ओर देखा, जो रोहन की यह बात सुनकर उसे घूर रहा था, जैसे इस वक्त सच में जान ही लेगा। रोहन उसे देखकर खड़ा हुआ और अभिराज के पीछे छिप गया। फिर धीरे से बोला, "देखा भैया, मैंने इनकी आँखों में देखा ना, ऐसा लग रहा था मुझे अभी जान से मार देंगे।" फिर बोला, "मैंने तो बॉस को पहले ही बोला कि किसी अच्छे दिमाग के डॉक्टर को दिखा लें, मुझे लग रहा है भैया बॉस के दिमाग को कुछ हो गया है।" रोहन की बात सुनकर अभिराज को हँसी आई, क्योंकि रोहन इनडायरेक्टली यशवीर को पागल कह रहा था। यशवीर अपने सामने खड़े रोहन को हैरानी और गुस्से से देख रहा था। तभी अभिराज ने देखा कि यशवीर कुछ बोलने वाला है और यह चीज़ रोहन के लिए खतरनाक हो सकती है, इसलिए उसने उसे बचाने के लिए कहा, "रोहन, एक काम करो, तुम जाओ अभी। मुझे बॉस से कुछ बात करनी है।" रोहन को जैसे मन माँगी मुराद पूरी हुई। वह केबिन से जल्दी से बाहर भाग गया, पर जाने से पहले अभिराज से बोला, "भैया, संभल के। आज बॉस सुबह से ही अजीब व्यवहार कर रहे थे। मैंने तो कहा डॉक्टर को दिखाएँ, पर छोड़ो, आप संभल के।" और भाग गया। अभिराज उसकी बचकानी बातों पर अपना सर हिलाता है। यशवीर ने अपने बड़े भाई के मुँह से अपने लिए "बॉस" सुनकर उसे कुछ याद आया। क्योंकि उसने अपने भाई को ऑफिस में "बॉस" कहने को कहा था। यह सब रवि के वज़ह से हुआ था। एक मीटिंग के दौरान, जब एक बाहर के क्लाइंट के साथ मीटिंग थी, उसमें अभिराज भी शामिल था। रवि की कंपनी से रवि भी आया था। वहीं पर सबके सामने अभिराज ने यशवीर को "यश" कहकर बुलाया था। तो रवि ने यशवीर से कहा था... कि अभिराज ने जानबूझकर उसे "यश" कहा था, जिससे वह दिखा सके कि तुम उसे कुछ लगते हो और तुम सबसे उसका परिचय करवाओ, जिससे सब उसके तुम्हारे बड़े भाई की नज़र से जान लें और वह अपनी पहचान बना ले। जिससे अभिराज को आगे बहुत फायदा होगा। यशवीर ने रवि की बातें सुनीं और अभिराज की ओर देखा, जो सबसे बात कर रहा था। पर ऐसा नहीं था, वह कुछ चर्चा कर रहा था। उस समय उसने रवि की बातों पर भरोसा कर लिया और वापस आकर उसने अभिराज को बहुत कुछ सुनाया। यहाँ तक कि उसे इल्ज़ाम लगाया कि वह कंपनी छोड़ने वाला था, पर कुछ सोचकर रुक गया। अभिराज ने तब से उसे "बॉस" कहना शुरू कर दिया था और घर में कोई बात नहीं करता था। यशवीर यह सब याद करके उसकी आँखों से एक आँसू बह गया। अभिराज को भी आज यशवीर कुछ बदला-बदला लग रहा था, क्योंकि रोहन ने इतनी नौटंकी की थी, पर यशवीर ने उसे कुछ नहीं बोला। यहाँ तक कि वह उसे नोटिस भी कर रहा था। जब अभिराज ने अपने छोटे भाई की आँखों में इतना ग़िरावट देखा, तो ना चाहते हुए भी वह प्रोफ़ेशनल से थोड़े पर्सनल होते हुए पूछ ही लिया, "क्या हुआ बॉस, आप ठीक तो हैं?" यशवीर ने जब एक और बार अपने भाई के मुँह से अपने लिए "यश" या "छोटे" ना सुनकर "बॉस" सुना, तो उसे बहुत तकलीफ़ हुई। यशवीर जल्दी से अपना आँसू छिपाकर अपना गला साफ़ करते हुए बोला, "अरे भाई, आप खड़े क्यों हैं, बैठिए ना।" अभिराज तो यशवीर के मुँह से इतने समय बाद "भाई" सुनकर चौंक ही गया था। वह उसे हैरान होते हुए पूछा, "क्या कहा आपने? क्या मैंने ठीक से सुना नहीं बॉस?" यशवीर को यह सुनकर गिल्ट फील हुआ। यशवीर अपनी सीट से खड़ा होकर अभिराज के पास गया, क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले, ना ही वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में इतना माहिर था। और इतने समय, एक जन्म के बाद अपने बड़े भाई को अपने सामने देखकर अब उससे रहा नहीं गया। उसे कितना दुख हुआ था, जब पिछले जन्म में उसका भाई उसे बचाने के लिए आ रहा था और रास्ते में ही मर गया। वह सीधे अभिराज के सामने आकर उसके गले लग गया। एक-दो सेकंड को अभिराज को समझ ही नहीं आया क्या हुआ। तभी उसके कान में यशवीर की आवाज़ पड़ी, जो कह रहा था, "भाई, सॉरी भाई। आई एम सो सॉरी। माफ़ कर दो अपने छोटे को, अपने यश को।" अभिराज यह सब सुनकर हैरान रह गया। यशवीर अपनी बात जारी रखते हुए बोला, "भाई, सॉरी। मुझसे ग़लती हुई है, पर प्लीज एक बार माफ़ कर दो अपने छोटे को।" अभिराज को अपने कंधे पर कुछ गीला महसूस हुआ। वह हैरान हो गया। यशवीर रो रहा था। क्योंकि यशवीर ऐसा बिल्कुल नहीं था जो रोए। अभिराज यशवीर की पीठ सहलाते हुए उसे अलग किया और उसे ले जाकर सोफ़े पर बैठाया और ग्लास उसकी ओर किया। यशवीर ने ग्लास लेकर उसका पानी पी लिया। और फिर अभिराज ने शांति से पूछा, "क्या हुआ है?" यशवीर का तो मन कर रहा था कि वह अपने बड़े भाई के गले लगकर सब बता दे, क्योंकि बचपन में कभी भी जब भी कुछ होता था, तो वह सीधे अभिराज को बता देता था और बाकी सब अभिराज संभाल लेता था। यशवीर अभिराज की ओर देखकर उसको एक बार फिर रवि या रिया की करतूतें याद आती हैं और उसकी आँखों में गुस्सा आता है। तभी अभिराज एक बार और अपनी आवाज़ को डार्क करते हुए पूछता है, "क्या हुआ यश? क्या रवि ने कुछ किया या फिर तेरी उस गर्लफ्रेंड ने?" यशवीर कहता है, "भाई, मुझे सब पता चल गया।" यशवीर की बात सुनकर अभिराज हैरान हो जाता है, क्योंकि वह समझ गया था कि यशवीर क्या बात कर रहा है। अभिराज ने शुरू में ही उसे बहुत समझाया था कि रवि-रिया के बारे में यह ग़लत है। पर तब तक कहाँ देर हो चुकी थी, क्योंकि वह रवि या रिया पर बहुत भरोसा करने लगा था। अभिराज की आँखों में इस वक्त गुस्सा था। वह गुस्से से लाल हो गया था। भले ही वह कितना भी नाराज़ हो यशवीर से, पर इसका मतलब यह नहीं था कि वह अपने भाई की आँखों में आँसू देखकर शांति से बैठा रहेगा। वह खड़ा होकर वहाँ से जाने लगता है, कि तभी उसे यशवीर की आवाज़ सुनाई पड़ती है, जो कह रहा था, "भाई, आप कुछ नहीं करेंगे, फिर गुस्से से..." तो आज का अध्याय यहीं खत्म होता है।
अभिराज केबिन से बाहर जा रहा था कि उसके कानों में यशवीर की आवाज पड़ी। "रुक जाओ भाई! फिर गुस्से से इनको मैं देखूँगा। इनको मेरे को धोखा दिया, मुझे मेरे अपनों से दूर किया। जनता हूँ गलती मेरी भी है, फिर मन में उसकी सजा मुझे मिल चुकी, पर अब इनकी बारी है।" अभिराज यशवीर की तरफ देखकर बोला, "क्या करेगा तू?" यशवीर उसकी तरफ देखकर बोला, "भाई, पहले आप मेरे को माफ़ कर दो। सॉरी फॉर एवरीथिंग भाई, प्लीज़ अपने छोटे/यश को माफ़ कर दो।" "ठीक है, ठीक है। चल, अब बोल क्या करेगा?" अभिराज ने कहा। "भाई, पहले आप ये बात किसी को भी मालूम नहीं पड़नी चाहिए। मुझे इन लोगों की सच्चाई मालूम पड़ चुकी है। दोनों को धीरे-धीरे बर्बाद करूँगा।" यशवीर ने अपना पूरा प्लान अभिराज को बताया और कहा, "भाई, इंसान, मुझे आपकी मदद की ज़रूरत है।" अभिराज ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "हमेशा तेरे साथ हूँ।" यशवीर ने उसे तुरंत गले लगा लिया। अभिराज भी उसकी पीठ सहला रहा था। वह आज खुश था कि उसका छोटा भाई पहले की तरह हो गया था। फिर अभिराज उससे कुछ चर्चा करके केबिन से चला गया। यशवीर भी कल की डील के लिए अभी से ही दूसरा प्लान बनाने लगा। उसको यह डील किसी भी हालत में अपने हाथ से जाने नहीं देनी थी। तभी रोहन ने केबिन का दरवाज़ा खटखटाया। "कम इन," यशवीर ने कहा। रोहन जल्दी से अंदर आया। उसके हाथ में एक नया फ़ोन था, जिसे उसने यशवीर को दिया। यशवीर ने रोहन को एक-दो काम और दिए। "हाँ सर," कहकर रोहन बाहर चला गया। ऐसे ही पूरा समय निकल गया। शाम के सात बजे सभी ऑफिस से पहले ही जा चुके थे। ऑफिस में उस समय रोहन, यशवीर और अभिराज थे। यशवीर अब भी कल की प्रेजेंटेशन बना रहा था। अभिराज किसी फ़ाइल को पढ़ रहा था और रोहन अपने लैपटॉप में काम कर रहा था। लेकिन वह अब भी बीच-बीच में यशवीर को देख लेता था। उसको अब भी लग रहा था कि यशवीर मेरे लिए कुछ तो गड़बड़ है। (🤣 🤣 रोहन है रोहन) ऐसे ही दस बज गए। अभिराज ने समय देखकर कहा, "यश, अब घर चल, बहुत देर हो गई है। अब घर जाना चाहिए।" "भाई, अभी नहीं। कल की डील मुझे किसी भी हालत में अपनी करनी है। अभी बहुत काम बाकी है," यशवीर ने अभिराज की बात टालते हुए कहा। फिर रोहन की तरफ देखकर बोला, "तुम घर जा सकते हो।" "पर बॉस, अभी तो काम पूरा नहीं हुआ है। मैं आपके साथ ही रुकूँगा," रोहन ने कहा। इससे पहले कि यशवीर कुछ कह पाता, अभिराज ने अपनी कड़क आवाज में कहा, "रोहन, घर जाओ और बाकी का काम कल करना, वरना घर जाकर करना। और यश, तू भी घर चल, रात बहुत हो गई है।" यशवीर अभिराज की बात टाल नहीं सका, तो उसने अपना लैपटॉप और कुछ फाइलें ले लीं। रोहन ने भी अपना लैपटॉप और फ़ाइलें ले लीं। अभिराज पहले ही अपना सामान लेकर बाहर निकल गया था। तीनों लिफ्ट में आ गए और ग्राउंड फ़्लोर पर पहुँचकर कंपनी से बाहर निकले। अभिराज ने पहले ही एक ड्राइवर को कार निकालने को कह दिया था। तभी एक गार्ड जल्दी से आकर गेट खोला। दूसरा गार्ड दूसरी तरफ का गेट खोल रहा था। अभिराज और यशवीर दोनों ही किसी राजा की तरह कार में बैठ गए। रोहन भी पैसेंजर सीट पर बैठ गया क्योंकि वह भी आज यशवीर और अभिराज के साथ राजवंश हवेली जा रहा था, जिससे वह और यशवीर रात में कल की डील के लिए तैयारी कर सकें। बॉडीगार्ड्स की कार भी उनकी कार के आगे-पीछे चलने लगी। लगभग पैंतालीस से पचास मिनट बाद वे एक बड़े से हवेली के सामने थे। एक गार्ड जल्दी से हवेली का गेट खोलता है और कार का काफिला अंदर चला जाता है। एक बड़ा सा सफ़ेद रंग का हवेली; गेट से अंदर घुसते ही सबसे पहले एक बड़ा सा गार्डन था और आगे चलते हुए एक फव्वारा। कार कुछ अंदर जाकर मेन गेट के सामने रुकती है। गार्ड जल्दी से तीनों के लिए गेट खोलते हैं। पहले अभिराज उतरता है, फिर यशवीर; दोनों अंदर की ओर बढ़ जाते हैं। रोहन भी जल्दी से पीछे-पीछे भागता है। और यशवीर देखता है कि उसकी मम्मी, चाची और चाचा सोफ़े पर बैठे हैं, और उसके छोटे भाई-बहन भी वहीं बैठे हैं। जब वह सबको एक साथ देखता है, तो एक बार फिर उसकी आँखों के सामने पिछले जन्म का भयानक नज़ारा घूम जाता है। उसकी आँखों में एक दर्द नज़र आने लगता है, पर वह खुद के इमोशंस को काबू करके, बिना किसी पर ध्यान दिए, ऊपर अपने फ़्लोर की ओर चला जाता है। अभिराज उसे देखकर हल्के से सिर हिलाता है और फिर वह अपनी पत्नी को एक नज़र देखकर वह भी ऊपर अपने फ़्लोर पर चला जाता है। तभी रेखा (यशवीर की चाची) रोहन की ओर देखकर कहती है, "अरे रोहन बेटा, तुम भी आज आये हो।" रोहन हल्की सी मुस्कराहट करके अपना सिर हिला देता है। सीमा (यशवीर की माँ) कहती है, "बेटा, तुम खड़े क्यों हो? बैठो आओ।" रोहन कुछ कह पाता इससे पहले ही यशवीर वापस आकर अपनी ठंडी आवाज में कहता है, "जल्दी से फ़्रेश होकर स्टडी रूम में आओ।" सभी यशवीर की आवाज सुनकर शांत हो जाते हैं। रोहन भी "जी सर," कहकर जल्दी से अपने कमरे की ओर चला जाता है। उसका भी एक कमरा था राजवंश हवेली में क्योंकि वह एक तरह से इस परिवार का ही हिस्सा था और काम के सिलसिले में बहुत बार उसे यहीं रुकना पड़ता था। यशवीर अपने कमरे में आकर चारों ओर देखता है, पर उसे कुछ नहीं दिखता। वह किसी को देखना चाहता था, पर वह तो कमरे में थी ही नहीं। तभी कोई दरवाज़ा खटखटाता है। वह अपनी ठंडी आवाज में ही "कम इन," कहता है। तभी एक लड़की अंदर आती हुई दिखती है, जो हाथ में पानी की ट्रे लिए और अपना सारा शरीर नीचे झुकाए हुए आ रही थी। यशवीर जब उस लड़की को देखता है, जिसकी उम्र कोई सत्रह-अठारह लग रही थी, वह धीरे-धीरे चलती है और ट्रे को टेबल पर रखकर, बिना सिर ऊपर किए, वापस जाने लगती है। यशवीर जब से वह लड़की आई थी, तब से बस उसी पर नज़र गड़ाए हुए था और उसे ही नोटिस कर रहा था। तभी यशवीर कहता है, "रुको..." वह लड़की उसकी आवाज सुनकर काँप जाती है। यह चीज़ यशवीर भी नोटिस कर लेता है। तभी...... तो आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है। कल मिलते हैं नए अध्याय के साथ। तो यह लड़की कौन थी? और क्या यशवीर डील ले लेगा? क्या प्लान बनाया यशवीर ने रवि और रिया के लिए? क्या बताया उसने अभिराज को? सब सवालों के जवाब जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें "रिबर्थ वॉर ऑफ़ लव एंड रेवेंज" ❤️ 😍
एक लड़की बाहर निकल रही थी कि यशवीर ने अपनी ठंडी आवाज़ में उसे रुकने को कहा।
वह लड़की उसकी आवाज़ सुनकर रुक गई, पर उसकी बॉडी बुरी तरह काँपने लगी। यशवीर ने यह चीज़ नोटिस की। उसे यह देखकर अपने अंदर कुछ टूटता सा महसूस हुआ।
वह आगे बढ़ा और उसके पास जाने लगा। यह महसूस कर लड़की की कंपकंपी और बढ़ गई। यशवीर कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसका फ़ोन बजने लगा। फ़ोन पर आ रहे नाम को देख उसकी आँखों में गुस्सा दिखने लगा और उसके कमरे का तापमान बहुत ठंडा हो गया।
वही लड़की, सर झुकाए खड़ी हुई थी। उसने यह महसूस किया कि वह इतनी डरी हुई थी कि डर से काँप रही थी। यह महसूस कर उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसे लगा कि यशवीर उसकी वजह से गुस्सा हो रहा है। यशवीर ने अपने फ़ोन को बजने दिया, बस उसे साइलेंट किया। वह फिर एक बार उस लड़की की ओर बढ़ा।
लड़की बिना आवाज निकाले, सर नीचे किए रो रही थी और बुरी तरह काँप रही थी। जब उसने देखा कि यशवीर उसकी तरफ आ रहा है, तो उसके आँसू और तेज़ी से बहने लगे। यशवीर ने यह चीज़ देखी और वहीं रुक गया। फिर अपनी आवाज को सामान्य करते हुए, पर धीरे से कहा,
"तृषा, क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?"
वह जानता था कि वह उसकी वजह से ही रो रही है, पर फिर भी उसने बात शुरू करते हुए पूछा ताकि सामने खड़ी लड़की से बात की शुरुआत कर सके। पर शायद वह लड़की उसकी बात को गलत समझ बैठी।
वह और रोने लगी। अब धीरे-धीरे वह कुछ कहने की भी कोशिश कर रही थी। वह रोते हुए नीचे बैठ गई और अपने हाथ जोड़ लिए। सर अब भी नीचे ही झुका हुआ था। वह बोली, "मुझे माफ़ कर दो, मुझे माफ़ कर दो। मैंने कुछ नहीं किया।"
यशवीर उसे माफ़ी माँगते देख शॉक हुआ, पर फिर उसे उसकी बात याद आने लगी कैसे उसने इस छोटी सी बच्ची की ज़िंदगी को इस धरती पर ही नरक बना दिया था। बिना उसकी कोई गलती हुए भी उसे इतनी सज़ा दी कि वह अब उसके प्यार से पूछने पर भी डर के गलत मतलब निकाल लेती थी।
यशवीर को अब खुद पर गुस्सा आने लगा। उस पर अब उस लड़की का रोना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। जितना वह रो-रोकर माफ़ी मांग रही थी, वह भी बिना कोई गलती के। यशवीर का गुस्सा और उसके पीछे छुपा गिल्ट बढ़ता जा रहा था। यशवीर गुस्से से बोला, "जाओ यहाँ से।"
वह लड़की ने जैसे ही यह सुना, वह जल्दी से खुद को सम्हालती हुई खड़ी हुई और कमरे से बाहर भाग गई, बिना देर किए। जैसे वह कुछ पल और रुकी तो शायद कोई उसकी जान ही ले लेगा।
तो यह लड़की कोई और नहीं, तृषा यशवीर सिंह राजवंश थी। यशवीर की पत्नी। इसकी उम्र कोई ज़्यादा नहीं, 18 साल थी। बेहद खूबसूरत। 5.2 हाइट, गोरा रंग, लंबे काले बाल, गोल चेहरा, छोटी सी नाक, फुले हुए गाल, लाल होंठ, बड़ी-बड़ी नीली आँखें, जो ना जाने अपने अंदर इतनी सी उम्र में कितना दुख छुपाए हुए थीं (इतना इंट्रो अभी के लिए काफ़ी है। बाकी आप सभी स्टोरी में आगे जान जाओगे तृषा के बारे में)।
यशवीर को यह सब देख बहुत गुस्सा आ रहा था। गुस्से से उसकी आँखें बिल्कुल लाल हो चुकी थीं। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था तृषा का खुद से इस हद तक डरना कि उसके पास होने से, यहाँ तक कि उसके नाम से ही इतना डर जाती। पर वह जानता था कि इसका सब वजह भी वही है। उसने तृषा को इन छह महीनों में शायद ही किसी दिन चैन से रहने दिया हो इस राजवंश मेंशन में।
इधर, रूम से बाहर,
तृषा, जो अभी जल्दी से यशवीर के कमरे से बाहर आई थी, वह वहीं पास की दीवार से सटकर बैठ गई और अपने मुँह पर हाथ रखकर रोने लगी। उसका रोना समय के साथ बढ़ ही रहा था। वह रोते हुए ही भगवान से शिकायत कर रही थी। धीरे-धीरे आँखों में आँसुओं के लिए ऊपर देखती हुई बोली, "हे महादेव, हमने ऐसा क्या पाप किया जिसकी सज़ा ख़त्म ही नहीं हो रही।" वह कुछ देर वैसे ही रोती रही, फिर उठकर अपने आँसुओं को पोंछते हुए यशवीर के फ़्लोर से नीचे की ओर चली गई।
राजवंश मेंशन में यशवीर का अलग ही फ़्लोर था। वह यहाँ रहे या ना रहे, पर उसके फ़्लोर पर आना-जाना किसी को भी अलाउ नहीं था। कुछ मेड्स ही वहाँ की सफ़ाई करती थीं। पर जब से शादी हुई थी, तब से अकेली तृषा ही करती थी।
तृषा जब नीचे गई तो देखा सीमा (यशवीर की माँ) और चाची (रेखा) अब भी सोफ़े पर ही बैठी हैं। अब यशवीर के चाचा और छोटे भाई-बहन नहीं हैं हॉल में। तभी सीमा की नज़र तृषा पर पड़ी। वह बोली, "तृषा, बेटा, इधर आओ।" तृषा डरते हुए ही सीमा के पास चली गई।
होटल रूम
एक लड़की की चीख गूंज रही थी। पर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह लड़की दर्द से चिल्ला रही है। बल्कि वह उसकी मदहोशी से भरी हुई चीख थी। कमरे के अंदर बिस्तर पर एक लड़का और एक लड़की एक-दूसरे के अंदर पूरी तरह से खोए हुए थे। उनको दुनिया का बिल्कुल होश नहीं था। उन दोनों के ही बॉडी पर एक भी कपड़ा नहीं था। लड़का उस लड़की के ऊपर था और अपने शरीर को तेज़ी से हिला रहा था। लड़की भी मदहोशी से भारी आवाज़ निकालती हुई मज़े से उसका साथ दे रही थी। उन दोनों की ही बॉडी एक पतले चादर से कवर थी। और कमरे में जगह-जगह उन दोनों के कपड़े बिखरे हुए थे।
वह लड़का थोड़ी देर में रुका और लड़की के साइड में लेट गया। वह अब गहरी-गहरी साँसें ले रहा था। वह लड़की अपने फ़ोन को साइड टेबल से उठाती है और उसमें कुछ करती हुई लगती थी। थोड़ी ही देर में उसके चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा।
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वह लड़की अपने फोन में कुछ कर रही थी। तभी उसके चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा। उसने अपने फोन को देखकर कहा, "अह्ह्ह्ह... तुम ये ठीक नहीं कर रहे हो, मुझे इग्नोर करके।" तभी उसके बगल में बैठा लड़का यह देखकर उसके हाथ से फोन छीन लिया। उसने फोन बिस्तर के दूसरे साइड फेंक दिया और फिर से उसके ऊपर आ गया। उन दोनों का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया। वह लड़की, जो अभी गुस्से में थी, फिर से उस लड़के का साथ देने लगी। और उन दोनों की मदहोशी भरी सिस्कियाँ पूरे कमरे में सुनाई देने लगीं। दूसरी तरफ़, तृषा थोड़े काँपते हुए सीमा के पास गई। सीमा ने एक नज़र उसे देखा। फिर सीमा और रेखा एक-दूसरे को देखने लगीं। रेखा ने तृषा से कहा, "बेटा, यहां आकर बैठो।" तृषा रेखा के पास जाकर बैठ गई। रेखा ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "क्या हुआ बच्चा? यश ने फिर से तुमसे कुछ कहा क्या?" तृषा चुपचाप बैठी हुई थी। वह कुछ भी नहीं बोली। अभी भी यशवीर का गुस्सा याद करके उसे डर लग रहा था और वह हल्का-हल्का काँप रही थी। रेखा ने एक बार सीमा की ओर देखा। सीमा भी रेखा को ही देख रही थी। सीमा सोफे से उठी, एक गिलास में पानी भरा और तृषा के बगल में जाकर उसे प्यार से पानी पिलाया। तृषा ने थोड़ा सा पानी पी लिया क्योंकि रोने की वजह से उसका गला सूख रहा था। वह अभी रोई थी इसलिए उसकी छोटी सी नाक और उसके गाल दोनों पर ही लाली छा गई थी। इस वक्त वह तो प्यारी लग रही थी, पर बिचारी की आँखों में वह खुशी दूर-दूर तक नहीं थी। उसकी वह प्यारी-प्यारी नीली आँखें बिल्कुल बुझी हुई थीं। रेखा और सीमा के ऐसे प्यार से पूछने पर अब उस पर और संकोच नहीं रहा। वह जल्दी से सीमा के गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी। वह हिचकी लेते हुए बोली, "म...माँ, ह...हम...हमने किस...किसने गलती की...हमें भगवान...इसी...इसी...ऐसी...सजा...दे रहे हैं..." और वह सीमा के गले लगे रोने लगी। सीमा और रेखा उसे यूँ रोता देख बिचारी लाचार सी बेटी हुई थीं क्योंकि उनको भी पता था कि इस बिचारी बच्ची की तो कोई गलती नहीं थी। रेखा पीछे से उसके सर पर हाथ फेरती रही। सीमा उसे अपने से सटाकर उसके आँसू साफ़ करती रही। रेखा ने उसे अपनी तरफ कर के कहा, "बच्चा, हम जानते हैं कि तुम्हारी कोई गलती नहीं। गलती तो हमारी है कि हमने अपने राक्षस जैसे बेटे की शादी तुम जैसी प्यारी सी, मासूम सी बच्ची से करवा दी। हमें लगा कि यशवीर समझेगा, इस शादी को एक मौका देगा। पर तुम चिंता ना करो, हम बात करेंगे अब यशवीर से। और जब तुमने कुछ किया ही नहीं तो तुम मत डरो, ठीक है?" तभी तृषा जल्दी से अपने सर को ना में हिलाने लगी। उसे यूँ ना करते देख सीमा और रेखा कन्फ्यूजन से उसे देखने लगे। इधर कमरे में, यशवीर को खुद पर इतना गुस्सा आ रहा था कि वह इस समय ठंडे पानी के शॉवर के नीचे खड़ा था। बर्फ जैसा ठंडा पानी भी उसके गुस्से को शांत नहीं कर पा रहा था। उसे याद आ रहा था कैसे तृषा उसके प्यार से पूछने पर इतना डर गई थी कि वह बिना किसी गलती के ही उसके सामने अपने घुटनों पर माफी माँगने लगी थी और वह कितनी बुरी तरह काँप रही थी। उसका रोता हुआ मासूम चेहरा याद करके खुद पर इतना गुस्सा आ रहा था कि उसने गुस्से से अपने हाथ की मुट्ठी बनाकर 2-3 बार बाथरूम की दीवार पर मारी, पर उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। तभी उसे अपना पिछला जन्म याद आने लगा। कैसे वह तृषा को हमेशा ही छेड़ता था। उसे ठीक से खाने तक नहीं देता था। Flashback एक दिन तृषा रूम की सफ़ाई कर रही थी। यशवीर ने सभी पर्सनल मेड्स को, जबसे तृषा आई थी, तबसे उन्हें बाकी घर पर काम करने को बोल दिया था। शादी के बाद से ही उसका पूरा फ्लोर, उसका रूम, सब कुछ तृषा ही साफ़ करती थी। तृषा रूम की सफ़ाई कर रही थी। यशवीर का लैपटॉप भी वहीं कॉफी टेबल पर रखा हुआ था। तृषा से गलती से सफ़ाई करते समय उसका लैपटॉप पर जग का पानी गिर गया। तृषा यह देखकर शॉक में खड़ी रह गई। तृषा डर रही थी कि अब यशवीर उस पर गुस्सा करेगा। वहीं यशवीर, जो पहले से ही गुस्से में था क्योंकि रिया उससे नाराज़ थी, वह इस समय बालकनी में था। जब वह अंदर आया और सामने खड़ी लड़की को देखा, फिर उसकी नज़र कॉफी टेबल पर गई जहाँ उसका लैपटॉप खुला रखा था। क्योंकि कुछ देर पहले वह काम कर रहा था, तभी उसने रिया की किसी और लड़के के साथ की स्टोरी देखी थी, जिससे वह रिया को कॉल करते हुए बालकनी में चला गया था। जब यशवीर ने यह देखा तो वह पहले से ही गुस्से में था क्योंकि रिया ने उसके कॉल को पिक भी नहीं किया था। और यह देखकर तो उसका गुस्सा आउट ऑफ़ कंट्रोल हो गया। वह गुस्से से गरज कर बोला, "What the hell?" तृषा जब यशवीर की इतनी गुस्से भरी आवाज़ सुनी तो काँप उठी। वह कुछ कह पाती इससे पहले यशवीर ने उसकी बाजू को कसकर पकड़ लिया। उसने अपनी तरफ़ खींच कर गुस्से से उसे देखते हुए एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा, "ये क्या किया तुमने? पागल लड़की!" उसकी पकड़ उसकी बाजू पर कसती जा रही थी। पहले से ही तृषा को उसके पकड़ने से दर्द हो रहा था, अब तो जैसे उसकी जान निकल रही थी। वह रोते हुए बोली, "सो...सो...सॉरी, हमें माफ़ कर दो। हमने जानबूझकर नहीं किया।" यशवीर गुस्से में उसे धक्का देते हुए बोला, "जानबूझकर नहीं किया? तुम लड़की, जबसे तुम मेरी ज़िंदगी में आई हो, सब कुछ ख़राब हो रहा है, सिर्फ़ तुम्हारी वजह से! और तुम कहती हो जानबूझकर नहीं किया। बहुत सोच समझकर बीवी बनने का अच्छा-से जानता हूँ मैं तुम जैसी घटिया लड़की को।" तृषा यशवीर के धक्का देने की वजह से ज़मीन पर गिर पड़ी। उसकी कमर में चोट लग गई थी, पर बिचारी डर के मारे उसके मुँह से चीख भी नहीं निकली। वह बस बिना आवाज़ के रोए जा रही थी। यशवीर उसका हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए बाथरूम में ले गया। और उसे बाथरूम में धक्का देकर उसे एक नज़र गुस्से से घूरकर बाहर निकल गया। बाहर से दरवाज़ा लॉक कर दिया। फिर कहा, "अब भूखी-प्यासी रहो और ख़ुशी बनाओ मेरी बीवी बनने की।" यशवीर रूम का भी गेट लॉक करके बंद कर देता है और ऑफिस के लिए निकल जाता है। यशवीर तो पूरे दिन इतना बिजी रहता है कि उसे तृषा का होश तक नहीं था कि वह बिचारी नन्ही सी जान कैसी होगी। यशवीर शाम को ऑफिस से सीधे रिया से मिल जाता है। रिया को लेके वह एक 5 स्टार होटल में डिनर के लिए आया था। वह घर आने में बहुत देर कर गया था। उसे अब भी याद नहीं आया था तृषा का। जब वह रूम खोलेगा और वॉशरूम में गया fresh होने, तो उसे वहीं कोने में डरी-सहमी सी दुबकी हुई तृषा बेहोश दिखी। पहले तो उसे तृषा की यह हालत देख एक पल को उसका मन पिघल गया। तभी उसे रिया की कही गई बात याद आई कि कैसे लड़की भोली और बिचारी बनने का नाटक करती है। और वह फिर गुस्से से शॉवर चालू कर देता है। शॉवर का ठंडा पानी बेहोश तृषा पर पड़ता है। तृषा की एकदम से आँखें खुल जाती हैं। वह अपने सामने खड़े यशवीर को देखती है। यशवीर उसकी ओर घिन भरी नज़रों से देखकर गुस्से से कहता है, "Get out!" तृषा उसकी इतनी गुस्से वाली आवाज़ सुनकर और डर जाती है। वह खड़े होने की कोशिश करती है, पर उसका शरीर बिल्कुल जकड़ गया था। एक ही पोजीशन में इतने समय तक रहने की वजह से और उसके शरीर में सुबह से कुछ ना खाने-पीने की वजह से बिल्कुल ताकत नहीं बची थी। लेकिन यशवीर को लगता है कि यह वह ड्रामा कर रही है जिससे वह उसके सामने बिचारी या लाचार दिखाई दे। यशवीर शॉवर बंद करके उसके पास जाता है और उसकी बाजू को कसके पकड़कर उसे एक ही झटके में उठाकर खड़ा करता है। फिर बाथरूम से घसीटते हुए बाथरूम के बाहर लाकर धक्का दे देता है। तृषा तो धक्के की वजह से नीचे गिर जाती है और उसके मुँह से एक चीख निकलती है। पर यशवीर उस पर बिना कोई ध्यान दिए बाथरूम का दरवाज़ा उसके मुँह पर बंद कर देता है। तृषा नीचे गिरी हुई बिचारी भीगे कपड़ों की वजह से काँप रही थी और रोए जा रही थी। उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था। सुबह से उसने खाना तो दूर पानी तक नहीं पिया था। Flashback end यशवीर यह सब याद करते हुए... तो आज का चैप्टर यहीं ख़त्म होता है। कल मिलते हैं नए चैप्टर के साथ। कौन हैं ये दोनों लड़का-लड़की? और तृषा ने रेखा की बात सुनकर क्यों अपना सर ना में हिलाया? क्या यशवीर सुधरेगा अपनी गलतियों को? क्या वह माफ़ी माँगेगा तृषा से? और क्या तृषा उसे माफ़ करेगी? क्या होगा आगे? जानने के लिए आगे मेरे साथ पढ़ते रहिए "REBIRTH REVENGE AND LOVE"
यशवीर शावर में खड़ा अपने पुराने जन्म के बारे में सोच रहा था कि उसने त्रिशा के साथ क्या किया। वो सब याद कर उसका गुस्सा गिल्ट का रूप ले लेता था। वो खुद से कहता था, "मैं सब कुछ सुधार दूँगा। इस बार मैं तुमको गलती से भी चोट नहीं पहुँचाऊँगा, त्रिशा। मुझे माफ़ करना। मेरी वजह से तुमने क्या-क्या नहीं सहा। पर भगवान ने मुझे अगर मौका दिया है तो मैं सब ठीक करूँगा, इस बार।" और वो इससे ही खुद से बहुत कुछ अपने मन में कहता रहा। इधर हॉल में, सीमा और रेखा ने त्रिशा को उदास देख उसकी ओर देखते हुए पूछा, "क्या हुआ बेटा? तुम क्यों सर हिला रही हो?" त्रिशा ने कहा, "माँ, छोटी माँ, आप दोनों इनसे कुछ बात नहीं करोगी, प्लीज। वरना..." इतना कहते ही उसे पुराना एक किस्सा याद आता है। Flashback कैसे एक बार शादी के तुरंत बाद ही वो रो रही थी, तो रेखा ने ये देख लिया था और रेखा ने सीधे यशवीर से इस बारे में बात की थी। तब यशवीर त्रिशा को कैसे राजवंश हवेली से ले गया था। और उसने सबको कहा था कि वो दोनों हनीमून पर जा रहे हैं। घरवालों ने भी नहीं रोका क्योंकि उनको लगा था कि दोनों अकेले में समय बिताएँ तो इनका रिश्ता ठीक हो जाएगा। पर त्रिशा ही जानती है कि उसके लिए वो एक हफ्ता कितना भयानक था। यशवीर त्रिशा को लेके शहर से बाहर अपने एक फार्महाउस पर आया। और कैसे उसको बिल्कुल अकेला छोड़ गया था इतने बड़े फार्महाउस में और खुद कहीं और चला गया था। त्रिशा ने जब फार्महाउस से बाहर निकलना चाहा, तो उसने देखा कि यशवीर ने उसे बंद कर दिया था फार्महाउस में। उसने पूरा फार्महाउस छान मारा, लेकिन उसे इंसान तो छोड़ो, कोई परिंदा तक नहीं मिला। यहाँ तक कि फार्महाउस इतना गंदा था कि पूछो मत। अभी वो देख ही रही थी पूरे फार्महाउस को कि तभी हॉल में रखा हुआ टीवी अपने आप ऑन हो जाता है। और उसमें दिखा यशवीर जो बिना किसी अभिव्यक्ति के गुस्से में कहता है, "बहुत शौक है ना सबसे मेरी शिकायत करने का? अब करके दिखाना। तुम इसी फार्महाउस में अपना हनीमून मनाओ, समझी लड़की। और जब मैं वापस आऊँ तब ये पूरा साफ मिलना चाहिए। क्योंकि अगर मुझे हल्की सी भी गंदगी दिखे कहीं भी, तो तुम्हारी खैर नहीं। सोचना भी मत भागने की, क्योंकि यहाँ से दूर-दूर तक सिर्फ़ जंगल है। और जंगल में जंगली जानवर। आई होप कि तुम समझ गई होगी, वरना नुकसान तुम्हारी ही होगी, लड़की।" इसी के साथ टीवी भी बंद हो जाता है। त्रिशा जो ये सब सुन रही थी, वो तो ये सुनकर एक जगह ही जम जाती है कि उसको इतने बड़े घर में अकेला रहना पड़ेगा। और इतना सारा काम, वो भी रोज़। त्रिशा की आँखों से आँसू कब शुरू हो जाते हैं, उसे पता ही नहीं था। तभी फार्महाउस की लाइट भी चली जाती है। त्रिशा को अँधेरे से बहुत डर लगता था। यह समय तो दिन का समय था। कुछ खिड़कियाँ काँच की होने के कारण उनमें से बाहर की रोशनी आ रही थी, पर रात होने में ज़्यादा वक़्त नहीं था और अँधेरा होते ही ये रोशनी भी चली जाएगी। त्रिशा पूरे फार्महाउस में छान मारा पर उसे कुछ नहीं मिला जिससे वो अँधेरे से छुटकारा पा सके। वो थक-हार के साथ सोफ़े पर और अपनी किस्मत पर रोने लगी। क्यों वो उस समय रो रही थी? ना वो तब रोती, ना रेखा देखती, ना वो यशवीर को समझती और ना आज वो यहाँ होती। तभी उसे चिमनी दिखती है, जिसे देखकर उसकी मायूसी से भरी आँखों में एक उम्मीद दिखती है। वो जल्दी से जाकर चेक करती है तो वहाँ लकड़ियाँ भी होती हैं। जिसको देख उसे थोड़ी खुशी होती है। उसने मेन हॉल में दिन में थोड़ा सा साफ़ कर लिया था। वो जाकर किचन में देखती है कि खाने को कुछ है या नहीं। तो उसको बहुत कम ही खाने का सामान मिलता है। वो ये देख बहुत उदास हो जाती है। सामान देख वो ये सोचती है कि पता नहीं कब तक उसे यहाँ रहना पड़ेगा। और खाने का सामान मुश्किल से तीन दिन के लिए ही होगा। अच्छा होगा वो आज खाना ना खाए। वो पानी पीकर वापस आती है। और हॉल में आकर वो देखती है कि अँधेरा होने लगा है, तो वो दो लकड़ियों को जला लेती है। और वहीं सोफ़े पर लेट जाती है। कब उसकी आँखों से आँसू गिरने लगते हैं, उसे खुद को ही नहीं पता चलता। वो कब नींद के आगोश में चली जाती है, पता नहीं। अगले दिन सुबह उसकी आँख खुलती है। वो देखती है बाहर अब हल्की-हल्की रोशनी हुई है, मतलब सुबह हुई है बस। वो उठती है, इधर-उधर देखती है। सब गन्दा ही था। रात में भी उसको जानवर की आवाज़ सुनाई दे रही थी। उसने पूरी रात कैसे बिताई, वो ही जानती थी। वो सो तक नहीं पाई थी ठीक से। उसने सभी लकड़ियाँ इस्तेमाल नहीं की थीं क्योंकि उसे मालूम नहीं था कि कब तक वो रहने वाली है यहाँ, कब उसकी सज़ा पूरी होगी। तब तक उसको लकड़ियों को संभालकर इस्तेमाल करना होगा। वो डर से पूरी रात अपनी आँखें बंद ही रखी थी जिससे अँधेरा ना देखे। फिर भी उसे मालूम ही था कि अँधेरा हो गया, आग बुझ गई। वो उठकर एक तरफ़ से फार्महाउस साफ़ करना शुरू करती है। उसकी हालत तो थोड़ा सा काम करने में ही ख़राब हो गई थी। एक तो कल सुबह उसने खाया था जब वह राजवंश हवेली से निकली थी, वो भी यशवीर की जल्दी-जल्दी के कारण ठीक से खा भी नहीं पाई थी। और फिर दोपहर में कार में थी, यशवीर के गुस्से की वजह से उसने कुछ नहीं बोला था। और रात को अगर वो खाती तो शायद जब उसकी ज़रूरत होती तब उसे खाने को नहीं मिल पाता। ये ही करते हुए, रोते-रोते और डरते-डरते, उसके छह दिन गुज़र जाते हैं। कोई भी देखकर उसकी हालत बता सकता है कि वो कितनी कमज़ोर हो गई है। उसकी आँखें ठीक से ना सोने की वजह से लाल हो चुकी थीं। उसका खूबसूरत खिला हुआ सा चेहरा बिल्कुल मुरझा गया था। सातवें दिन फार्महाउस का गेट खुलता है, जिसकी आवाज़ सुन त्रिशा उस ओर इस उम्मीद से देखती है कि अब यशवीर आया होगा। पर उसकी उम्मीद तुरंत ही बिल्कुल टूट जाती है। यशवीर की जगह वहाँ एक बूढ़ा माली खड़ा होता है। जो शायद यहाँ का, इस फार्महाउस का केयरटेकर था। वो बिना कुछ बोले त्रिशा की ओर देखता है। उसकी आँखों में भी त्रिशा के मुरझाए, सूखे हुए चेहरे को देख तरस दिखने लगता है। वो उसकी ओर जाता है और उसे नमस्ते करता है क्योंकि वो जानता था ये यशवीर की बीवी थी। वो कहते हैं, "मैडम, सर शाम तक आएंगे। सर ने आपको ये मैसेज देने को कहा है, आप तैयार रहें।" त्रिशा बिना कुछ बोले अपना सर हिला देती है। माली काका को भी उस बच्ची को देख तरस आ रहा था, पर वो कुछ नहीं कर सकता था। त्रिशा तैयार होकर बैठ जाती है। शाम को एक कार फार्महाउस के आगे रुकती है। उसमें ड्राइवर होता है जो त्रिशा को देख अपना सिर झुकाता है। त्रिशा बिना कुछ बोले कार में बैठ जाती है। त्रिशा ने एक बार पूछा भी नहीं यशवीर क्यों नहीं आया। मानो उसके अंदर जान ही नहीं बची हो, वो ज़िंदा लाश बन गई हो। कुछ घंटे के बाद ड्राइवर अपनी कार रोक देता है। त्रिशा जब देखती है तो एक बड़े से होटल के सामने कार रुकी थी। तभी त्रिशा देखती है यशवीर उसी होटल से बाहर निकल रहा था। यशवीर सीधा कार में बैठ जाता है। उसने त्रिशा की ओर एक नज़र देखा तक नहीं। ड्राइवर जल्दी से कार स्टार्ट करता है और कुछ देर में ही राजवंश हवेली पहुँचा देता है। यशवीर बिना ध्यान दिए कार से उतर हवेली के अंदर चला जाता है। त्रिशा जब देखती है कि यशवीर ने एक बार भी उसकी तरफ़ देखा तक नहीं, तो वो चुपचाप अंदर चली जाती है उसके पीछे। FLASHBACK END त्रिशा ये सब याद कर और अपने वो सात दिन जो उसने फार्महाउस में बिताए थे, वो याद कर काँप उठती है। उसकी आँखों से आँसू गिरने लगते हैं। वो चुपचाप जल्दी से अपने आँसुओं को पोंछती और कहती है, "नहीं, माँ, छोटी माँ, आप दोनों प्लीज उनसे कुछ नहीं बोलेंगी, प्लीज।" इसके साथ ही वो हाथ जोड़ लेती है। जिसको देख सीमा उसके हाथ पकड़ नीचे कर देती है और कहती है, एक नज़र रेखा की ओर देखते हुए, रेखा कहती है, "ठीक है त्रिशा, हम नहीं करेंगे यशवीर से बात। तुम चुप हो जाओ।" इधर ये सब कोई देख रहा था। और उसकी आँखों में त्रिशा को इस हालात में देख इस वक़्त एक अनकहा दर्द था। यशवीर जल्दी ही शावर से बाहर आता है। और अपने कपड़े पहन स्टडी रूम में चला जाता है क्योंकि सबसे ज़रूरी काम था उसके लिए इस समय ये डील हासिल करना। आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है। तो क्या लगता है, यशवीर अपनी गलतियों को सुधार लेगा? और क्या त्रिशा कभी यशवीर से डरना बंद करेगी? कैसे रही थी त्रिशा सात दिन उसके फार्महाउस में और उन दिनों कहाँ था यशवीर? कौन था जिसने सीमा, रेखा और त्रिशा की बात सुन ली? और क्यों था उस इंसान की आँखों में दर्द? क्या हासिल करेगा यशवीर ये डील? सभी सवालों के जवाब जानने के लिए मेरे साथ पढ़ते रहिए, REBIRTH WAR OF LOVE AND REVENGE।
यशवीर स्टडी रूम में काम करने लगा। उसे कल की डील किसी भी कीमत पर हासिल करनी थी। तभी किसी ने उसके स्टडी रूम के गेट पर दस्तक दी। यशवीर आवाज़ सुनकर "Come in" कहा। एक मेड अंदर आई और बोली, "सर, डिनर का समय हो गया है। आपका डिनर ले आई हूँ।" यशवीर ने कहा, "इसकी ज़रूरत नहीं, आज मैं सबके साथ डिनर करूँगा।" मेड यह सुनकर थोड़ी हैरान हुई क्योंकि यशवीर शादी के बाद से बहुत कम अपने परिवार के साथ डिनर करता था। फिर उसने "यस सर" कहा और बाहर निकल गई। यशवीर थोड़ी देर और काम करता रहा, फिर वह उठकर नीचे डाइनिंग एरिया में चला गया। सभी फैमिली मेंबर्स डाइनिंग एरिया में अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठे थे। उसे देखकर सभी थोड़े हैरान हुए, पर साथ ही खुश भी। हेड चेयर पर दादा जी बैठे थे, योगेन्द्र सिंह राजवंश, परिवार के मुखिया। आज भी उनकी बात टालने की किसी में हिम्मत नहीं थी। वे अपनी धर्मपत्नी से सबसे ज़्यादा प्यार करते थे। पर सभी बच्चों और नाती-पोतों से भी प्यार करते थे। वे बहुत अच्छे और सख्त इंसान थे। राजवंश साम्राज्य की नींव इन्होंने ही रखी थी। उनके बगल में दादी जी बैठी थीं, सुमित्रा योगेन्द्र सिंह। वे बहुत अच्छी थीं और उनका स्वभाव नर्म था। वे सब से प्यार करती थीं। उनका सबसे लाडला यशवीर था। दादा जी के दूसरी तरफ़ यशवीर के चाचा जी बैठे थे, योगेन्द्र और सुमित्रा के छोटे बेटे, रघुवीर सिंह राजवंश। वे राजवंश होटल चेन संभालते थे और बहुत अच्छे और नेक इंसान थे। रघुवीर के बगल में रेखा रघुवीर राजवंश बैठी थीं। वे रघुवीर की पत्नी और यशवीर की चाची थीं। वे प्रोफ़ेसर थीं और साथ ही बहुत अच्छी माँ और पत्नी भी। वे सभी बच्चों से बहुत प्यार करती थीं। उनका दिल बहुत साफ़ था। उन्हें बस इतना चाहिए था कि उनके सभी बच्चे खुश रहें। रेखा के सामने सीमा राजवंश बैठी थीं। वे बड़ी बहू थीं, योगेन्द्र और सुमित्रा के बड़े बेटे की पत्नी, रघुवीर और रेखा की भाभी, और यशवीर की माँ। उनके पति, यानी यशवीर के पिता का एक एक्सीडेंट हुआ था जिसमें उन्हें बहुत चोट आई थी और वे कोमा में चले गए थे। डॉक्टर ने कहा था कि ठीक होने की बहुत कम उम्मीद है। बड़े से बड़े डॉक्टरों से इलाज करवाया, पर उनकी बॉडी ने सब रिजेक्ट कर दिया। अब भी उनका इलाज चल रहा था, पर कोई असर नहीं हो रहा था। वे पूरे राजवंश परिवार को जोड़कर रखती थीं। वे बहुत समझदार औरत थीं। वे गृहिणी थीं और थोड़ी सख्त भी। रेखा के बगल में रेखा और रघुवीर का बड़ा बेटा, विवेक सिंह राजवंश बैठा था। रेखा और रघुवीर की एक बेटी और थी, जो अभी 18 साल की थी। वह पहले साल में थी और इस समय कॉलेज की तरफ़ से किसी टूर पर गई हुई थी। यशवीर सभी को देखता है। सब उसे देखकर हैरान थे, पर खुश भी। तभी उसे सीमा, यानी उसकी माँ की आवाज़ सुनाई दी जो उससे कह रही थी, "यश बेटा, तुम खड़े क्यों हो? बैठो।" यशवीर ने सिर हिलाया और दादा जी के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। तभी अभिराज आता हुआ दिखा। वह भी पहले यशवीर को परिवार के साथ डिनर करते देख हैरान हुआ, पर फिर आकर बैठ गया। रसोई से त्रिशा और कुछ मेड्स खाना लेकर आ रही थीं। त्रिशा ने अभी तक यशवीर को नहीं देखा था। उसने सब कुछ टेबल पर रख दिया। तभी दादा जी ने उससे प्यार से कहा, "बेटा त्रिशा, तुमको यह सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। इतने सारे नौकर हैं घर में। तुम बैठो, चलो सबके साथ बैठकर डिनर करो।" त्रिशा ने एक छोटी सी मुस्कान की और अपना सिर हिलाया। यशवीर भी त्रिशा को देख रहा था, पर उसने कुछ नहीं कहा। त्रिशा सीमा के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई। अब जाकर उसने यशवीर को देखा। वह उसे देखकर थोड़ी डर गई, पर उसने अपना सिर झुका लिया। यशवीर ने यह देख लिया कि उसकी पत्नी उसे देखकर ही डर गई थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। तभी रेखा ने पूछा, "अभी बेटा ऋतु कहाँ है?" ऋतु अभिराज सिंह राजवंश थी, अभिराज की पत्नी, राजवंश परिवार की बड़ी बहू और यशवीर की भाभी। ऋतु डॉक्टर थी। अभिराज ने कहा, "चाची, उसको एक इमरजेंसी आ गई थी हॉस्पिटल में, तो वह थोड़ी देर से आएगी। आप चिंता ना करें, मैं उसे ले आऊँगा।" रेखा ने सिर हिलाया। तभी रोहन आ गया। रेखा ने उसे देखकर कहा, "रोहन बेटा, तुम खड़े क्यों हो? बैठो।" रोहन त्रिशा के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया। यह देख यशवीर उसे घूरकर देख रहा था, पर रोहन को इस बात का कुछ पता नहीं था। ऐसे ही सभी अपना डिनर करते रहे। डिनर के बाद यशवीर उठकर स्टडी रूम में चला गया। जाते-जाते उसने रोहन की तरफ़ देखा और अपनी ठंडी आवाज़ में कहा, "जल्दी मुझे स्टडी रूम में चाहिए।" रोहन जो अभी खा ही रहा था और त्रिशा से थोड़ी बहुत बात कर रहा था, अपने बॉस की आवाज़ सुनकर घबरा गया और उसका खाना गले में अटक गया। वह जोर-जोर से खांसने लगा। त्रिशा उसके बगल में ही थी। उसे खांसते देख उसने जल्दी से उसे पानी दिया। सीमा ने कहा, "बेटा, आराम से।" यशवीर ने यह देखा तो उसकी नज़र रोहन की हालत पर नहीं, बल्कि रोहन जो त्रिशा से पानी ले रहा था, उस पर थी। उसने रोहन को एक बार फिर घूरकर देखा और स्टडी रूम की ओर चला गया। रोहन थोड़ी देर में सामान्य हुआ। सभी ने उससे पूछा तो रोहन ने सबको ठीक बताया। वह जल्दी से उठकर अपना खाना छोड़कर स्टडी रूम में भाग गया। रेखा ने उसे देखकर कहा, "रोहन बेटा, खाना तो खा लो।" रोहन जाते हुए बोला, "आंटी, अगर मैं यहाँ खाना खाता रहा, तो मेरी रोजी-रोटी खतरे में पड़ सकती है।" उसे कोई कुछ नहीं बोला क्योंकि सब जानते थे कि यशवीर कुछ भी कर सकता है। दादा-दादी पहले ही कमरे में जा चुके थे। चाचा जी और अभिराज कुछ बात करते हुए गार्डन की ओर चले गए। विवेक भी अपने कमरे में चला गया। रेखा, सीमा और त्रिशा वहाँ पर थीं। सीमा ने कहा, "त्रिशा, तुम यह सब रहने दो।" रेखा ने भी कहा, "बेटा, रहने दो। तुम अब जाकर आराम करो।" त्रिशा उन दोनों को देखती रही। रेखा ने त्रिशा के सर पर प्यार से हाथ फेरा। फिर उसने एक नौकरानी को सब साफ़ करने को कहा। सीमा और रेखा भी चली गईं। त्रिशा ऊपर यशवीर के कमरे की तरफ़ चली गई। उसे अब भी बहुत डर लग रहा था, पर उसे पता था कि अभी यशवीर स्टडी रूम में है तो वह जल्दी से जाकर सो सकती है। त्रिशा जल्दी-जल्दी कमरे का गेट खोलती है। फिर वह अपना छोटा सा सिर अंदर करके कमरे को एक नज़र देखती है। जब वह कन्फर्म कर लेती है कि यशवीर नहीं है, तो वह जल्दी से कमरे के अंदर जाती है। वह एक कम्बल और तकिया लेकर बाहर बालकनी के सोफ़े पर सो जाती है। इधर, स्टडी रूम का माहौल थोड़ा गर्म था। यशवीर और रोहन दोनों रात के तीन बजे तक काम करते रहे। रोहन में भले ही बचपना भरा हो, पर वह अपने काम को लेकर बहुत सीरियस था, इसलिए वह अब तक यशवीर का असिस्टेंट था। यशवीर रोहन को छुट्टी दे देता है। वह भी कुछ बचा हुआ काम ख़त्म करके उसी कुर्सी पर अपनी आँखें बंद करके बैठ जाता है। वह अपनी आँखें बंद करता है, तभी उसकी आँखों के सामने एक बार फिर उसके पिछले जन्म का मंज़र घूम जाता है। वह झट से अपनी आँखें खोलता है। अब उसकी आँखें बिल्कुल लाल हो चुकी थीं। वह खुद से कहता है, "रवि, बहुत चाहत है ना दूसरों की चीज़ हासिल करने की। अब देखता हूँ तू कैसे मुझसे जीतता है। इस बार तू मेरा या मेरे लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।" वह कुछ देर बाद खुद को सामान्य करके अपने बेडरूम में चला जाता है। वह अंदर जाकर देखता है तो उसे बिस्तर बिल्कुल खाली दिखता है। वह सोफ़े की ओर देखता है, वह भी बिल्कुल खाली था। उस कमरे में अपनी नज़र घुमाकर देखता है तो पूरा कमरा बिल्कुल खाली था। वह यह देखकर थोड़ा हैरान और साथ ही परेशान भी होता है कि त्रिशा कहाँ चली गई इतनी रात को। तभी उसे बालकनी का गेट थोड़ा खुला दिखता है। और यह देखकर उसके दिमाग में कोई बात आती है, जिसे सोचकर वह जल्दी से बालकनी में जाकर देखता है, तो हैरान हो जाता है। आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है। कल नए अध्याय के साथ मिलते हैं। यशवीर ने बालकनी में जाकर ऐसा क्या देखा कि वह हैरान हो गया? क्या यशवीर त्रिशा का डर ख़त्म कर पाएगा? और क्या वह यह डील हासिल करेगा या रवि कोई नई चाल चलेगा? सभी सवालों के जवाब जानने के लिए मेरे साथ पढ़ना ना भूलें, "रीबर्थ: वॉर ऑफ़ लव एंड रेवेन्ज"।
जेसा कि आप सभी ने पिछले अध्याय में पढ़ा, यशवीर स्टडी रूम से आया। रूम में तृषा को न पाकर उसके दिमाग में कुछ ख्याल आया। और वह तुरंत बालकनी में जाकर देखता है, तो शॉक हो जाता है।
तृषा बालकनी में रखे सोफ़े पर खुद में सिकुड़ी हुई सो रही थी। यशवीर यह देखता है, तो उसे याद आता है कि कैसे शादी की पहली रात ही उसने तृषा को बिस्तर तो छोड़ो, रूम के सोफ़े पर भी सोने को नहीं दिया था।
यशवीर को यह देखकर और बुरा लगता है। उसने सोचा, वह तृषा को जगाकर उसे कमरे में सोने को बोले। पर अगर तृषा की नींद खराब हो गई, तो यह सोचकर वह रुक गया। पर वह तृषा को इसी तरह सोने नहीं दे सकता था। अब अक्टूबर का महीना शुरू हो गया था; रात के समय मौसम थोड़ा ठंडा हो जाता था।
यशवीर धीरे-धीरे तृषा के सोफ़े की ओर बढ़ने लगा। उसने नीचे झुककर तृषा को कंबल समेत अपनी गोद में उठा लिया। तृषा गहरी नींद में थी; वह अपने आप को उसकी गोद में अच्छे से एडजस्ट करके सो गई। उसे अभी मालूम नहीं था कि जिस राक्षस पति से वह इतनी डरती और दूर भागती थी, वह अभी उसके इतना करीब है। अगर तृषा अभी यशवीर को अपना इतना करीब देख लेती, तो पक्का डर के मारे बेहोश ही हो जाती।
यशवीर उसे लेकर कमरे में आया और उसे अपने बेड पर लिटा दिया। तृषा की नींद नहीं खुली थी क्योंकि यशवीर ने सब कुछ बहुत आराम से किया था। यशवीर थोड़ी देर उसे खड़े-खड़े देखने लगा। तृषा बिस्तर पर भी खुद में ही सिमटी हुई सी सो रही थी। उसके चेहरे पर मासूमियत साफ़ दिख रही थी। खूबसूरत तो वह थी ही, पर उसके चेहरे पर वह चमक नहीं थी जो होनी चाहिए। देखते ही देखते यशवीर की आँखों से आँसू निकलने लगे।
उसे याद आया कि रवि ने उसे पिछली ज़िंदगी में बताया था कि उसने कैसे तृषा के साथ वह सब किया। बिचारी यह छोटी सी बच्ची कैसे सहन किया होगा! उसने फ़ैसला किया कि वह तृषा को गलती से भी चोट नहीं पहुँचाएगा। और जो हो गया है, उसके लिए तृषा से माफ़ी मांगेगा, फिर चाहे उसके लिए उसे कुछ भी क्यों न करना पड़े। वह उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारा रखेगा। फिर वह खुद से ही कहता है, "पता नहीं मेरी बुद्धि कहाँ मर गई थी जो मैं हीरा होते हुए भी कचरे में मुँह मार रहा था।"
उसे याद आया कैसे रिया उसे कॉल कर रही थी। उसने अपने कुछ आदमियों को रिया और रवि पर नज़र रखने को बोला था। तब उसे पता चला था कि वे दोनों ही इस वक़्त एक साथ हैं और मज़े कर रहे हैं। उसे यह जानकर उन दोनों से और नफ़रत होने लगी, घिन सी आने लगी।
वह बिस्तर पर सोई हुई तृषा को देखता है। फिर टाइम देखा जो सुबह के 4 बजे का समय बता रहा था। वह पूरी रात एक सेकंड भी नहीं सोया था।
उसने एक आखिरी बार फिर से तृषा को देखा, नीचे झुककर उसे सर को प्यार से सहलाया। तृषा नींद में थी; उसे कुछ एहसास नहीं था कि यशवीर उसका इतना नज़दीक है। यशवीर फिर वॉशरूम में फ़्रेश होने चला गया।
कुछ देर बाद यशवीर वॉशरूम से बाहर आया। इस वक़्त उसने अपने जिम वियर पहने थे। वह एक नज़र तृषा को देखता है, जो किसी छोटे बच्चे की तरह बिस्तर पर बॉल बनी सोई हुई थी। वह फिर कमरे से बाहर निकल जाता है। वह सीधे अपने ही फ़्लोर पर बने जिम रूम में आता है।
और एक्सरसाइज़ शुरू कर देता है।
इधर, एक हवाई अड्डे पर...
एक लड़का और एक लड़की, जो पिछले अध्याय में होटल के कमरे में एक-दूसरे के साथ थे...
वे दोनों ही एयरपोर्ट से बाहर आते हुए दिखाई दिए।
ये दोनों कोई और नहीं, रिया और रवि थे, जो थोड़ा समय एक-दूसरे के साथ बिताने के लिए मुंबई से बाहर गए थे।
दोनों बाहर आते ही अलग-अलग हो गए। रिया को कुछ रिपोर्टर्स ने घेर लिया क्योंकि रिया एक जानी-मानी मॉडल थी और हाल ही में उसने एक्टिंग में भी डेब्यू किया था।
रवि भी जाना-माना बिज़नेसमैन था, पर यशवीर के सामने तो कुछ नहीं था।
रिपोर्टर्स ने रिया से सवाल करना शुरू कर दिया। तभी एक रिपोर्टर की नज़र रवि पर पड़ी। रवि मास्क लगाए हुए था, पर फिर भी उसने उसे पहचान लिया।
वह रवि की जल्दी से फ़ोटो लेने लगा। रवि अभी तक एयरपोर्ट से बाहर जा चुका था।
रिया बाकी रिपोर्टर्स के सवालों का जवाब बड़े अच्छे से दे रही थी। अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लिए हुए वह सबको जवाब दे रही थी।
रिया देखने में कोई कम सुंदर नहीं थी, बस यह था कि वह बिना मेकअप के कोई इतनी ख़ास नहीं लगती थी। वहीं तृषा बिना किसी मेकअप के भी इतनी ख़ास और खूबसूरत लगती थी।
रिया की पर्सनालिटी बहुत अच्छी थी; उसने खुद को बहुत अच्छे से मेंटेन करके रखा था, और रखे भी क्यों नहीं, भाई एक मॉडल थी वह।
तभी एक रिपोर्टर उसे पूछती है, "रिया जी, हमने अभी बिज़नेसमैन रवि मेहरा को भी एयरपोर्ट से निकलते हुए देखा। क्या आप दोनों साथ में गए थे? क्या आप दोनों के बीच कुछ चल रहा है? कहीं आप दोनों सीक्रेट रिलेशनशिप में तो नहीं?"
रिया उस रिपोर्टर का सवाल सुनकर उसकी तरफ देखती है। अब भी उसके चेहरे के भाव वही, एक छोटी सी मुस्कान थी। उसने बड़ी ही सरलता से जवाब दिया उस रिपोर्टर को, "इसे तो ना जाने कितने लोग अभी निकले होंगे, तो क्या मैं सबके साथ रिलेशनशिप में हूँ?" रिपोर्टर उसका जवाब सुनकर थोड़ा चुप हो गया, पर पहले उसने बोला, "हमने देखा था कि आप दोनों साथ में ही बाहर आ रहे थे। उसके बाद बाहर आकर अलग-अलग हो गए। क्या पता आप दोनों रिलेशन में हों।"
तभी रिया के बॉडीगार्ड आकर रिपोर्टर्स की भीड़ को साइड करने लगे। रिया जल्दी से स्टाइल से चलते हुए बाहर निकल जाती है। बाहर उसकी असिस्टेंट उसकी कार के साथ तैयार ही थी। वह जल्दी से कार में बैठ जाती है, और ड्राइवर कार स्टार्ट कर देता है। रिया की कार वहाँ से निकल जाती है।
रवि तो पहले ही निकल गया था।
तभी वह रिपोर्टर, जिसने रिया से रवि के बारे में सवाल किया था और रवि की फ़ोटो भी ली थी, वह किसी को फ़ोन करके कहती है, "सर, आपने कहा था, मैंने वैसा ही कर दिया।"
वह शख़्स कहता है, "अच्छा, तुमको तुम्हारे काम का इनाम मिल जाएगा।" और फिर वह कॉल काट देता है।
तो यही आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है।
यशवीर एंट्रेंस से होते हुए होटल के अंदर जा रहा था कि उसे किसी ने पीछे से आवाज दी।
यशवीर ने जैसे ही आवाज सुनी, अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं और हाथों की मुट्ठी बना ली। वह इस आवाज को सुनकर अपना गुस्सा रोक रहा था।
यशवीर बिना कुछ प्रतिक्रिया किए वहीं खड़ा रहा। उसने पीछे पलटकर भी नहीं देखा।
तभी एंट्रेंस से होते हुए एक आदमी, बिजनेस सूट में, अपने असिस्टेंट के साथ अंदर आ रहा था। उसकी उम्र लगभग सत्ताइस-अट्ठाईस होगी।
वह सीधे यशवीर के तरफ आकर बोला, "अरे यश! तुम भी यहाँ?"
यशवीर को देखकर उसे थोड़ा शॉक सा लगा क्योंकि यह कोई और नहीं, उसका इतना भयानक एक्सीडेंट करवाने वाला रवि था।
यशवीर को उसके मुँह से अपना नाम सुनकर गंदा महसूस हुआ। उसने अपने गुस्से पर काबू करते हुए जवाब दिया, "तुम्हें क्या उम्मीद नहीं थी कि मैं यहाँ होऊँगा?"
रवि उसका जवाब सुनकर एक पल के लिए हड़बड़ा गया। यशवीर अपनी गहरी नज़रें रवि पर ही बनाए हुए था।
रवि ने उम्मीद नहीं की थी कि यशवीर उसके सवाल का ऐसा जवाब देगा। उसने अपनी बात सही करते हुए कहा, "अरे, मुझे लगा तू यहाँ नहीं होगा। तुझे इससे ज़रूरी और भी मीटिंग्स और काम होते होंगे ना इसलिए।"
यशवीर मुस्कराते हुए धीमी आवाज़ में बोला, "नहीं, मिस्टर मेहरा, फ़िलहाल तो मेरे लिए सबसे ज़रूरी यही डील है।"
रवि उसकी ऐसी आवाज़ सुनकर थोड़ा डर गया। उसे यशवीर आज कुछ बदला-बदला लग रहा था। पर उसने खुद को आश्वस्त करते हुए मन ही मन कहा, "कुछ नहीं हुआ। प्रेजेंटेशन की पेंड्राइव मेरे पास है और उसे अभी तक तो यह भी मालूम नहीं होगा कि उसकी प्रेजेंटेशन चोरी हो गई।" वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था।
पर उसकी आँखों की यह खुशी और चमक यशवीर से छिप नहीं सकी। यशवीर खुद से बोला, "हो जा खुश जितना होना है, रवि मेहरा। आज तो मेरी पहली जीत है और तेरी पहली हार। तूने सोचा भी नहीं होगा। कोई बात नहीं, हो ले थोड़ी और देर खुश।"
तभी यशवीर को रोहन की आवाज सुनाई दी, "सर, मीटिंग का टाइम हो गया है। हम देर हो गए, हमें चलना चाहिए।"
यशवीर ने सिर हिलाया और रवि की तरफ देखते हुए कहा, "ऑल द बेस्ट, मिस्टर मेहरा।"
रवि अपनी दुनिया में खोया हुआ था। यशवीर की बात सुनकर वह होश में आया और उससे कहा, "तुम्हें भी।" यशवीर ने उसे बिना जवाब दिए उसकी तरफ से निकल गया।
वहीँ उसका आँरा ही ऐसा था कि सभी लड़कियाँ हों या लड़के, सबकी नज़र उसी पर थी। यह सब देखकर रवि का खून खोल गया। वह खुद से बोला, "उड़ ले यशवीर, जितना उड़ना है उड़ ले। बहुत जल्दी तेरे पर मैं कूँडूँगा और ऐसे काटूँगा कि तू कभी उड़ना तो दूर, चलने की भी हिम्मत नहीं कर पाएगा।" उसकी आवाज़ में यह वक्त की नफ़रत साफ़ झलक रही थी। उसने कसकर अपनी मुट्ठी बंद कर रखी थी।
उसका असिस्टेंट साइड में खड़ा अपने बॉस के गुस्से भरे रूप को देख डर गया। फिर वह डरते हुए बोला, "बॉस... हमें चलना... चाहिए।"
रवि असिस्टेंट की आवाज़ सुनकर एकदम उसकी ओर देखा। असिस्टेंट एकदम से रवि की लाल आँखें और गुस्से भरा चेहरा देखकर डर गया। रवि ने अपने आप को सामान्य करते हुए कहा, "चलो, और जल्दी से!" वह भी उस कमरे की तरफ चला गया जहाँ मीटिंग होनी थी।
जब यशवीर मीटिंग हॉल में पहुँचा तो सभी लोग उसे देखकर खड़े हो गए। सभी ने उसे यहाँ देखकर समझ लिया कि यह डील प्रोजेक्ट उसके पास ही रहेगा और किसी और को नहीं मिल सकता। उन्होंने उसे अभिवादन किया। वहीं अब तक रवि भी आ चुका था। वह गेट पर ही खड़ा होकर यह सब देख रहा था।
उसकी आँखों में यशवीर को इतना सम्मान मिलता देख जलन साफ़ दिख रही थी। उसने आँखें बंद कर गहरी साँस ली। फिर झूठी मुस्कान के साथ अंदर की ओर बढ़ा।
पर उस पर किसी ने इतना ध्यान ही नहीं दिया क्योंकि सबका ध्यान तो यशवीर की तरफ था। रवि ने गुस्से भरी नज़र से यशवीर की तरफ देखा। यशवीर ने भी उस समय उसकी तरफ देखा पर उसकी आँखों में एक आग थी, जिसे देखकर रवि एकदम हड़बड़ा गया।
तभी वहाँ कुछ लोग आए और मीटिंग शुरू हुई। ये लोग इस प्रोजेक्ट के मालिक थे। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने सबको अपनी-अपनी प्रेजेंटेशन देने को कहा।
वहाँ जितनी भी कंपनी के मालिक थे, उन्होंने सभी एक-एक करके बड़े अच्छे तरीके से अपनी-अपनी प्रेजेंटेशन दी। अब बारी थी यशवीर की। रवि बड़ी बेसब्री से यशवीर को देख रहा था। वह इंतज़ार कर रहा था कि कब यशवीर सबके सामने शर्मिंदा होगा और यह डील/प्रोजेक्ट उसे मिल जाएगा।
यशवीर ने उसे एक नज़र देखा, फिर रोहन को कुछ इशारा किया। रोहन स्टेज पर गया, पेंड्राइव लगाई और अपनी प्रेजेंटेशन शुरू की। रवि को यकीन था कि अब यशवीर की बेइज़्ज़ती होगी क्योंकि उसकी पेंड्राइव में प्रेजेंटेशन होगी ही नहीं।
वहीं यशवीर शांति से बैठा रवि की खुशी को देख रहा था और मन ही मन उस पर हँस रहा था। रोहन कुछ देर में प्रेजेंटेशन पूरी करके खड़ा हो गया। सभी लोगों ने प्रेजेंटेशन देखी तो वह बहुत ही अच्छी थी। ओनर, मिस्टर तिवारी ने कुछ सवाल पूछे, जिनका जवाब यशवीर ने बड़ी ही आसानी से दे दिया।
रवि की बारी अब थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे लगा था यशवीर प्रेजेंटेशन नहीं दे पाएगा और सबके सामने शर्मिंदगी होगी, फिर वह चला जाएगा और वह अपनी प्रेजेंटेशन देकर डील हासिल करेगा। पर यहाँ तो यशवीर की प्रेजेंटेशन देखकर उसका पूरा खेल ही उल्टा हो गया।
सभी उसकी तरफ देख रहे थे। तभी मिस्टर तिवारी का असिस्टेंट बोला, "मिस्टर मेहरा, प्लीज़ आप अपनी प्रेजेंटेशन दे दीजिए।"
रवि के चेहरे के सभी रंग उड़ चुके थे। वह थोड़ी देर एक्टिंग करता हुआ पेंड्राइव ढूँढ़ने लगा, फिर सबकी तरफ देखते हुए बोला, "आई एम सॉरी एवरीवन, मुझे लगता है मैंने अपनी पेंड्राइव ऑफ़िस में ही भूल गई है।"
सभी ने उसकी तरफ जैसे किसी बेवकूफ़ को देखा हो, वैसे देखा। वहीं यशवीर अपने चेहरे पर छोटी सी मुस्कराहट लिए उसे देख रहा था।
तभी वह थोड़ा और आगे बढ़ते हुए बोला, "कोई बात नहीं, मिस्टर मेहरा, आप ऐसा करिए, व्हाइट बोर्ड पर अपनी प्रेजेंटेशन एक्सप्लेन कर दीजिए।"
रवि जो इस वक्त इस सिचुएशन से निकलने का रास्ता ढूँढ रहा था, यशवीर का यह सुझाव सुनकर उसकी ओर देखा। अब उसके माथे पर पसीना आ गया था। इतने में ओनर, मिस्टर तिवारी बोले, "येस, मिस्टर मेहरा, आप अपनी प्रेजेंटेशन हमें व्हाइट बोर्ड पर दे दीजिये।" यह सुनकर जैसे रवि को काटो तो खून नहीं।
यशवीर उसकी हालत देख मज़े में बैठ गया। इस वक्त रवि को यशवीर को जान से मारने का मन कर रहा था। वह बोला, "मिस्टर तिवारी, मैंने प्रेजेंटेशन में अपनी पूरी मेहनत लगाई थी, इतनी बारीकी से मैंने उसे बनाया था। हमारे कुछ वीडियो भी थे जिनकी मदद से मैं सबको अपनी बात समझा सकता हूँ। पर इस समय मुझे नहीं लगता मैं व्हाइट बोर्ड पर यह सब... आई थिंक मुझे पीछे हट जाना चाहिए। नेक्स्ट टाइम आई विल ट्राई।"
यशवीर उसका यह जवाब सुनकर बोला, "पर मिस्टर मेहरा, आपने अपनी प्रेजेंटेशन खुद कितनी मेहनत से बनाई होगी और इतनी बारीकी से बनाई होगी तो आप उसको थोड़ा बहुत समझा सकते हैं। मतलब आपने इतनी मेहनत की?"
रोहन अपने बॉस का यह रूप देख इतना शॉक हुआ जिसकी कोई सीमा नहीं। वह बोला, "पक्का बॉस को सर्जरी में गहरी चोट आई है एक्सीडेंट में। तभी यह इतना अजीब बिहेव कर रहा है कल से। कहीं बॉस सही में पागल तो नहीं होने वाला? मैंने सुना था लोग पागल होने से पहले अजीब बिहेव करते हैं। सबसे ज़्यादा झटका तो इसलिए लगा क्योंकि रवि यशवीर के लिए अभिराज से भी बढ़कर था।" (रोहन बाबू की सूई अब तक बॉस को पागल समझने पर अटकी हुई है।)
अभी वह कुछ और सोचता है कि उसके कानों में यशवीर की आवाज़ जाती है जो कह रहा था—
यशवीर रवि को ही कह रहा था, "मिस्टर मेहरा, आप ऐसा कर सकते हैं।"
वहीं रवि का खून खोल रहा था। उसका जी कर रहा था कि वह अभी यशवीर की जान ले ले। एक तो उसके साथ डील गई, ऊपर से यशवीर उसे सबके सामने एक तरह से नीचा दिखा रहा है।
तभी उसने अपने फ़ोन को हाथ में लिया। ऐसा दिखा कि उस पर कॉल आई है। उसने फ़ोन को कान पर लगाया और शॉक होने की एक्टिंग की। यह भले ही बाकी लोगों को सच लग रहा था, पर यशवीर को पता था कि वह नाटक कर रहा है।
तभी उसने फ़ोन नीचे रखा, सभी की तरफ देखते हुए कहा, "आई एम सॉरी एवरीवन, पर मुझे एक इमरजेंसी आ गई है, मुझे अभी जाना पड़ेगा।" फिर वह मिस्टर तिवारी की तरफ देखते हुए थोड़ी एक्टिंग करते हुए बोला, "आई एम सो सॉरी मिस्टर तिवारी, मुझे इस लास्ट मोमेंट पर जाना पड़ रहा है, पर बहुत ज़रूरी है। आप कंटिन्यू करिए। शायद आज मेरा लक खराब है। फिर कभी मैं ट्राई ज़रूर करूँगा। इस बार के लिए..."
मिस्टर तिवारी बोले, "इट्स ओके, मिस्टर मेहरा, आई विल अंडरस्टैंड। आप जा सकते हैं।" रवि के मन में मुराद पूरी हो गई। वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ, फिर मिस्टर तिवारी से हाथ मिलाया और मीटिंग रूम से निकल गया। पर जाने से पहले जल्दी-जल्दी नज़रों से यशवीर को घूरकर देखा।
वहीं उसके निकलते ही मिस्टर तिवारी माइक हाथ में लेते हुए बोले, "तो आज का प्रोजेक्ट मिलता है यशवीर सिंह राजवंश को।" सभी यह सुनकर तालियाँ बजाने लगे। सबको पता ही था कि अगर यशवीर यहाँ है तो किसी और को प्रोजेक्ट मिल जाए, यह बहुत मुश्किल है।
यशवीर अपने ही अंदाज़ में खड़ा होकर स्टेज पर गया। उसने मिस्टर तिवारी से हाथ मिलाया, फिर कुछ देर में कांटेक्ट साइन कर दिया। मिस्टर तिवारी ने उसे कांग्रेचुलेट किया। बाकी सभी कंपनी के मालिक भी उसे कांग्रेचुलेट कर रहे थे। यशवीर मिस्टर तिवारी और बाकी सभी से बात कर रहा था, तो यशवीर की जगह रोहन बात कर रहा था।
यशवीर कुछ देर में ही होटल से निकल गया।
वह आज खुश था क्योंकि उसने डील तो हासिल की थी, पर साथ ही साथ रवि को भी एक छोटा सा सबक सिखाया था।
अभी उसके दिमाग में तृषा का ख्याल आया कि उसकी छोटी सी पत्नी इस समय क्या कर रही होगी।
तो आज का अध्याय यहीं समाप्त होता है।
मिलते हैं कल नए अध्याय के साथ।
रवि कैसे लेगा अपनी इस हार का बदला? कैसे लेगा वह अपनी बेइज़्ज़ती का बदला? यशवीर अब रवि के साथ क्या करेगा? यशवीर तृषा से क्या बात करेगा और वह क्या सोच रहा था अपनी छोटी सी पत्नी के बारे में? क्या तृषा यशवीर से बिना डरे बात करेगी? सभी सवालों के जवाब जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए मेरे साथ "रीबर्थ, रिवेंज एंड लव"।
यशवीर तृषा के बारे में सोच रहा था। उसकी छोटी सी बीवी क्या कर रही होगी अभी?
वह कुछ देर में ऑफिस पहुँच गया।
उसको रह-रह कर अपनी छोटी सी बीवी का ख्याल आ रहा था। उसको कल रात तृषा का वह सोते हुए मासूम सा चेहरा याद आता। वह अपने केबिन की कुर्सी पर बैठे आँखें बंद कर तृषा के बारे में सोच रहा था।
फिर वह खुद से कहता है, "मैं जानता हूँ तुम्हें मनाना आसान नहीं होगा, पर मैं हार नहीं मानूँगा। मैं तुम्हें मना लूँगा। मानता हूँ, गलती हुई, गुनाह किया, पर मुझे सुधारना है। बीवी, क्या तुम मुझे एक मौका दोगी?" वह यह सब खुद से ही कह रहा था।
वहीं एक अँधेरे कमरे में,
एक औरत किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। वह बहुत गुस्से में थी। वह चिल्लाते हुए कहती है, "तुम किसी काम के नहीं हो! वह फिर से बच गया, कैसे?" और गुस्से में ही साइड में रखे हुए फूलदान को फेंक देती है।
दूसरी तरफ का आदमी भी गुस्से और नफ़रत में कहता है, "पता नहीं वह यशवीर कैसे बच गया। मैंने तो सारा इंतज़ाम कर रखा था उसको मारने का, फिर भी उसे कुछ नहीं हुआ। ऐसा लगता भी नहीं कि उसका कोई एक्सीडेंट हुआ होगा।"
वही औरत कहती है, "तुम सब किसी काम के नहीं हो! अब मैं वार करूँगी, देखती हूँ कैसे बचता है।" इतना कहने के बाद वह भयानक तरह से हँसने लगती है।
दूसरी तरफ का आदमी उस औरत को हँसते देख खुद भी हँसने लगता है। फिर वह कहता है, "आपने जो किया, मुझे भी बताइयेगा।" वह औरत शातिर मुस्कान के साथ कहती है,
"तुम्हें समय आने पर खुद पता चल जाएगा। तब तक इंतज़ार करो सही समय का और मेरे वार का।" इतना कहकर वह औरत कॉल काट देती है। फिर वह खुद से ही कहती है, "एक बार फिर राजवंश खानदान को बर्बाद कर दूँगी। पिछली बार तो मेरे वार से बच गए राजवंश, पर इस बार नहीं बच पाएँगे। मैं सबको बर्बाद कर दूँगी।"
इधर राजवंश हवेली में,
शाम का समय था।
दादा, दादी, सीमा और रेखा हॉल में सोफ़े पर बैठे थे। बाकी लोग अभी अपने-अपने काम से नहीं आए थे, कि तृषा सभी के लिए चाय लेकर आती है। दादी उसे देख कहती हैं, "बेटा, तू भी हमारे साथ बैठकर चाय पी।"
तृषा छोटी सी मुस्कान करके दादी की तरफ देखती है। फिर चुपचाप वहीं रेखा के बगल में बैठ जाती है।
तृषा के चेहरे पर थकान साफ़ दिखाई दे रही थी क्योंकि वह अकेली ही सारा काम करती थी। यशवीर ने सबको साफ़ मना कर रखा था कि कोई भी उसके मामले में ना बोले। अगर कोई बोलता था, तो सबको कहीं ना कहीं पता था कि उसका अंजाम तृषा के लिए खतरनाक होता था।
सबको तृषा की हालत देख बहुत बुरा लगता था। बिचारी बच्ची कहाँ फँस गई है! अभी उसकी पढ़ने-लिखने की उम्र थी, जिंदगी जीने की उम्र थी, इस में वह चार दीवारों में कैद हो चुकी है।
इसी बीच सभी शाम की चाय पीते हैं। वहीं सीमा उठकर अपने कमरे में चली जाती है। दादा-दादी उठकर गार्डन एरिया में चले जाते हैं। वहीं अब वहाँ तृषा और रेखा थीं।
रेखा तृषा को अपनी बच्ची की तरह प्यार करती थी। वह एक माँ की तरह उसे समझती थी, पर मजबूर थी, कुछ कर नहीं सकती थी। वह जानती थी यशवीर गुस्से में कुछ भी कर सकता था।
रेखा तृषा से बात करने लगती है। ये दोनों किचन में जाकर रात के खाने की तैयारी करने लगती हैं। थोड़ी ही देर में रितु भी हॉस्पिटल से आ जाती है। वह फ़्रेश होकर किचन में उन दोनों को ज्वाइन कर लेती है।
तभी रेखा थोड़े मज़ाकिया अंदाज़ में ऋतु की तरफ देखकर कहती है, "क्या हुआ ऋतु बेटा? लगता है पूरी रात सोई नहीं हो।" रितु कहती है, "चाची जी, रात में अस्पताल से बाहर आना हुआ फिर..." अभी वह इतना ही कह पाई थी कि रेखा अपनी आँखें मटकाते हुए कहती है, "हम्म...हम्म...लगता है फिर कहाँ मेरे बेटे ने तुम्हें सोने नहीं दिया रात भर इसलिए शायद।"
वहीं तृषा तो उन दोनों की बातें सुन रही थी, पर उसके सर के ऊपर से निकल गईं। वह समझ ही नहीं पाई चाची जी की double meaning बातें। और उसके दूसरी तरफ ऋतु तो पके हुए टमाटर की तरह लाल हो चुकी थी चाची की बात सुनकर। वह शरमाते हुए कहती है, "कुछ भी चाची, आप भी ना!" वहीं रेखा उसे यह शरमाता देख हँसने लगती है।
तभी हमारी भोली-भाली तृषा मासूमियत से कहती है, "भाभी, आपको बुखार है। आपका चेहरा कितना लाल हो चुका है! मैं ना भैया से कह देती हूँ, वह आपको डॉक्टर को दिखाए।"
ऋतु उसकी बात सुनकर और शर्मा जाती है, वहीं रेखा तो तृषा की मासूमियत भरी बात सुनकर ऋतु को और शरमाता देख हँसने लगती है। तभी रसोई में सीमा आती है। उसे देख सभी चुप हो जाते हैं। तो वह सबको अपनी एक भौं उठाकर पूछती है, "ऐसी क्या बातें हो रही थीं, जो मेरे आते ही चुप हो गए तुम सब? कहते हो कि मेरी बुराई तो नहीं हो रही थी?"
वहीं तृषा जल्दी से कहती है, "नहीं मम्मी जी, वो तो चाची ने कहा कि भैया ने भाभी को रात भर सोने नहीं दिया। फिर मैंने देखा भाभी का चेहरा पूरा लाल पड़ गया है, लगता है उनको बुखार आ रहा है। तो मैंने भैया को बताने को कहा, पर चाची पता नहीं क्यों हँस रही थीं।" वह कन्फ्यूज़न से रेखा की ओर देखने लगती है। वहीं उसकी बात सुन ऋतु तो और शर्म से मर रही थी बिचारी।
वहीं रेखा तो अपनी हँसी कण्ट्रोल कर रही थी क्योंकि तृषा ने इतनी आसानी से सब कुछ कह दिया सीमा से कि सीमा आँखें फाड़े तृषा को देख रही थी। वहीं ऋतु शर्म से पानी-पानी हो गई थी तृषा के यह कहने से। और भोली-भाली तृषा अब भी कन्फ्यूज़न से सबकी तरफ़ देख रही थी।
सीमा एक नज़र ऋतु को देखती है, जिसको देखकर ऐसा लग रहा था कि उसके शरीर का पूरा खून उसके चेहरे में आ गया है।
वहीं सीमा अपनी बड़ी बहू से थोड़ा मज़ाक करते हुए कहती है, "सच में मेरे बड़े बेटे ने कल रात तुम्हें परेशान किया।"
तृषा तो इसको अलग ही ले गई। वह आँखें बड़ी-बड़ी करती हुई ऋतु की तरफ़ देखकर कहती है, "भाभी, भैया ने आपको परेशान किया?"
वहीं ऋतु का मन कर रहा था कि वह गड्ढा खोदे और उसमें छुप जाए सब से, क्योंकि उसकी दोनों सास को पता नहीं क्या हुआ है, आज दोनों ही उससे छेड़ रही थीं।
और उसकी छोटी सी देवरानी जो अनजाने में ही उन दोनों का साथ दे रही थी। वहीं सीमा-रेखा दोनों ऋतु की हालत पर हँसती हैं। तभी वहाँ दादी आती हैं। सभी उन्हें देखकर शांत हो जाते हैं। वह थोड़ी सी गुस्से में कहती हैं, "भाई, एकदम सभी चुप क्यों हो गए? कहीं मेरी बुराई तो नहीं कर रहे थे?"
वहीं तृषा जल्दी से कहती है, "नहीं दादी।" वह इतना ही कह पाई थी कि ऋतु जल्दी से उसके मुँह पर हाथ रखकर अपने लाल चेहरे के साथ कहती है, "नहीं दादी, हम तो बस..." वहीं सीमा और रेखा उसकी हालत देखकर और उसे यह रिएक्ट करते देख तृषा की बात पर उन दोनों को हँसी आ रही थी।
दादी एक नज़र उन सभी को देखती है। फिर अपना सर हिलाते हुए वहाँ से चली जाती है।
तृषा "उम्म...उम्म..." करती है तो ऋतु जल्दी से उसके मुँह से हाथ हटा लेती है। तृषा जोर-जोर से साँस लेने लगती है।
तृषा ऋतु को मासूमियत से देखकर कहती है, "भाभी, आपने मुँह क्यों बंद किया मेरा? मैं तो दादी को बस बता रही थी भैया ने आपको परेशान किया रात में। फिर दादी उनको डाँट लगाती हैं। फिर भैया कभी आपको परेशान नहीं करते।"
ऋतु का तो मन कर रहा था वह भाग जाए। वहीं रेखा को बड़ा मज़ा आ रहा था। सीमा यह सब देख थोड़ा सा हँसते हुए कहती है, "अच्छा, जाने दो, जल्दी खाना बनाते हैं, सभी ऑफिस से आते होंगे।"
तृषा कुछ कहती है, इससे पहले रेखा कहती है, "बच्चा, ये दोनों हस्बैंड-वाइफ का मैटर है, वह दोनों समझ लेंगे। अगर फिर भी नहीं माने तो क्या पता हमें गुड न्यूज़ जल्दी मिल जाए इतना।" वह ऋतु की तरफ़ देख आँख मार देती है।
तृषा अब भी कन्फ्यूज़न में सभी को देखती है। सीमा ऋतु को देख कहती है, जो पके हुए लाल टमाटर बन चुकी थी, "अच्छा-अच्छा, बस बहुत हुआ रेखा, मेरी बहू को अब और कोई परेशान नहीं करेगा।" फिर तृषा को देख कहती है, "बेटा, रेखा का मतलब था कि वह दोनों आपस में मज़ाक-मस्ती में परेशान कर रहे होंगे। ये दोनों पति-पत्नी का पर्सनल है।"
तृषा को कुछ ज़्यादा समझ नहीं आया। वह ऋतु को देख कहती है, "भाभी, अगर भैया आपको सीरियस्ली परेशान करें ना तो आप बता देना, मम्मी जी उनको डाँट लगा देंगी।"
उसने इतनी मासूमियत से कही थी यह बात कि ऋतु सीधे ही उसके गले लगकर कहती है, "ज़रूर गुड़िया। अब चलो खाना बनाते हैं, तुम इतना ना सोचो, ठीक है? चाची मज़ाक में कह रही थीं।"
तृषा भी हाँ में सर हिलाकर छोटी सी मुस्कान के साथ काम करने लगती है।
कुछ ही देर में सभी ऑफिस से आ जाते हैं।
वहीं एक नौकरानी रसोई में कहती है, "मैम, सभी ऑफिस से आ चुके हैं।" खाना बन चुका था। सीमा अपने रूम में जा चुकी थी क्योंकि उनको दवा देनी थी यशवीर के पापा को।
वहीं चाची भी चाय लेकर अपने कमरे की तरफ़ चली जाती है। ऋतु भी कॉफ़ी लेकर चली जाती है। बिचारी तृषा, वह डर रही थी रूम में जाने से, पर उसे जाना तो था ही। वह भी यशवीर के लिए ब्लैक कॉफ़ी, जैसी उसे पसंद है, बनाती है और उसे लेकर ऊपर यशवीर के फ़्लोर की तरफ़ चली जाती है। उसे डर तो लग रहा था जाने में, पर क्या करे? वह सिर्फ़ इसलिए नहीं जाती थी और यशवीर को कॉफ़ी नहीं देती थी तो उसने कहा था उसके लिए बहुत बुरा होता, उसका सोचना था।
क्योंकि एक बार यशवीर ऑफिस से आया था, पर तृषा काम कर रही थी इसलिए वह पाँच मिनट देर से कॉफ़ी लेकर जा पाई थी। तो यशवीर ने वह कॉफ़ी उसके हाथ में झटक दी थी जिससे उसका हाथ भी जल गया था और फिर उसे रात का डिनर भी नहीं करने दिया था।
तृषा रूम के सामने पहुँचकर धीरे से गेट खोलती है और...
तो आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है।
मिलते हैं नए अध्याय के साथ कल।
तो क्या करेगा यशवीर बात तृषा से? कौन थी वह औरत? क्या किया था उसने पहले राजवंश परिवार के साथ जो वह बर्बाद होते हुए बची थी? क्या यह कोई पुराना दुश्मन था राजवंश खानदान का? क्या यह नुकसान पहुँचाएगा यशवीर को या इसका निशाना कोई और होगा राजवंश परिवार में से? और पहले उसने क्या किया था? इतना सब होने के बाद भी क्या माफ़ कर पाएगी तृषा यशवीर को? जानने के लिए मेरे साथ आगे पढ़ते रहिए "REBIRTH WAR OF LOVE AND REVENGE"।
जेसा कि आप सभी ने पिछले अध्याय में पढ़ा, तृषा यशवीर के लिए उसकी ब्लैक कॉफ़ी लेकर डरती हुई कमरे तक पहुँची।
तृषा ने कमरा खोला और अंदर गई। यशवीर उस समय कमरे में नहीं था। तृषा ने एक नज़र जल्दी से पूरे कमरे में देखी, तो उसे यशवीर नहीं दिखा। वह चैन की साँस लेती हुई जल्दी से कमरे में गई और कॉफ़ी टेबल पर कॉफ़ी रख दी।
वह अभी मुड़ने ही वाली थी कि उसे गेट खुलने की आवाज़ आई। जैसे ही उसने आवाज़ सुनी, उसकी साँसें गले में अटक गईं। क्योंकि उसे मालूम हो गया था कि यशवीर कमरे में आ चुका है।
यशवीर, जो अभी-अभी वॉशरूम से फ्रेश होकर बाहर आया था, उसने भी अपनी छोटी सी बीवी को देखा। वह आगे बढ़ा और तृषा के पीछे आ खड़ा हो गया।
त्रिशा ने भी यह चीज महसूस कर ली। उसे लगा यशवीर उसे फिर से किसी चीज के लिए सज़ा देगा, जैसा हमेशा होता था। वह अपनी साँस रोककर, आँखें मीचकर, अपने छोटे-छोटे हाथों को कसके बंद किए खड़ी रही। वहीं यशवीर पीछे खड़ा था। इस वक़्त कमरे में इतनी शांति थी कि दोनों की धड़कनों की आवाज़ दोनों ही आराम से सुन सकते थे।
तृषा और यशवीर दोनों की ही धड़कनें बहुत तेज़ धड़क रही थीं। यशवीर तृषा की खुशबू में इतना खोया हुआ था कि उसे याद ही नहीं रहा कि उसे तृषा से बात करनी थी।
तभी वह धीरे से अपनी मैग्नेटिक आवाज़ में तृषा के कान में झुककर बोला, "बीवी, breathe।"
तृषा, जो आँखें मीचकर खड़ी थी, जब यशवीर की गरम साँसें अपने गले और कान पर महसूस हुईं, तो उसकी पूरी बॉडी में सरसराहट सी हुई।
वह झटके से अपनी आँखें खोली। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यशवीर ने इतने आराम से उससे कुछ बोला। वह तो इसी बात से शॉक थी। वह पहले तो साँस लेती है, जो डर के कारण लेना ही भूल गई थी। फिर वह एकदम से पलटकर देखती है, अब तो जैसे मानो उसने भूत देख लिया हो। वह इतनी ज़्यादा शॉक हो गई थी सामने का नज़ारा देखकर।
सामने यशवीर अपने घुटनों पर बैठा था और दोनों हाथों से अपने कान को पकड़े हुए था, सर नीचे झुकाए हुए था।
तृषा ने यह कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यशवीर कभी उसके सामने इस तरह घुटनों पर बैठेगा, वह भी कान पकड़े और सर झुकाए। तभी उसके कानों में यशवीर की आवाज़ गई।
"बीवी, मैं जानता हूँ शुरू से लेकर अब तक मैंने सिर्फ़ तुम्हें चोट ही पहुँचाई है। हमेशा तुम्हें दुःख दिया, तुम्हें बेवजह हमेशा छुआ, बेवजह तुम पर चिल्लाया, खाना तक नहीं दिया बहुत बार, और ना जाने क्या-क्या नहीं किया मैंने। पर बीवी, आज मैं सबके लिए तुमसे माफ़ी माँगता हूँ। प्लीज़ बीवी, एक मौका दे दो मुझे। मैं अपनी ख़राबी का कभी मौका नहीं दूँगा। तुमसे कभी तेज आवाज़ में बात तक नहीं करूँगा। बीवी, गलती मेरी है, मैं सुधरूँगा।"
कहते-कहते यशवीर का गला भर आया था। उसने अपनी नज़र उठाकर ऊपर तृषा को देखा, जिसकी आँखों से आँसू चल रहे थे। और वह अब भी बिना पलकें झपकाए यशवीर को ही देख रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह सच है, यशवीर ही है। और सच भी था। तृषा को यह सब एक सपने जैसा लग रहा था। उसने तो यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
यशवीर जब देखता है तृषा रोये जा रही है और कुछ जवाब नहीं दे रही, तो वह फिर कहता है, "बीवी, कुछ तो बोलो।"
पर तृषा तो मानो उसे होश ही नहीं। यशवीर खड़ा हुआ और तृषा के करीब जाकर उसके छोटे से चेहरे को अपने बड़े-बड़े हाथों में प्यार से पकड़ लिया।
वह अंगूठे से बड़े ही प्यार से उसके आँसू पूछता है। तृषा को जब यह एहसास होता है, तो वह अपनी आँसू भरी पलकों को बार-बार झपकती हुई यशवीर को ही टकटकी लगाकर देख रही थी। इस वक़्त रोने की वजह से उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था, पर उसकी नाक बहुत ज़्यादा लाल हो गई थी, जिसमें वह बहुत क्यूट लग रही थी।
यशवीर कहता है, "बीवी, जवाब तो दो मेरे को, please।" तृषा देखती है यशवीर की भी आँखों में आँसू थे। पर वह इतनी जल्दी कैसे माफ़ कर देती है?
यशवीर जैसे उसके मन की समझ गया हो, वह कहता है, "बीवी, माफ़ नहीं करो इतनी जल्दी। मौका तो दो कि मैं तुम्हें मना सकता हूँ और promise करता हूँ कभी कोई गलती नहीं करूँगा, दोबारा गलती से भी नहीं।" तभी तृषा धीरे से कहती है, "पर आपने फिर से गुस्सा किया तो?"
यशवीर तो अपने सामने खड़ी प्यारी सी, मासूम सी, छोटी सी बीवी को देख रहा था जिसने इतनी मासूमियत से बिना डरे पहली बार कुछ कहा था।
यशवीर उसके आँसू पूछते हुए प्यार से कहता है, "नहीं करूँगा, पक्का।" तृषा उसकी तरफ़ ही देख रही थी। यशवीर का उसे माफ़ी माँगना, उसे एक मौका देने के लिए कहना, उसे अच्छा लग रहा था। शायद यह एक सपना हो, पर उसके लिए बहुत अच्छा था।
यशवीर फिर एक बार उसकी आँखों में देखकर पूछता है, "तो क्या तुम मुझे एक मौका दे सकती हो, बीवी?" तृषा उसे अपनी आँखों में उम्मीद भरकर देखती है। अगर यह सब झूठ हुआ तो उसकी उम्मीद टूट जाएगी। यशवीर थोड़ा सा झुककर उसके माथे पर एक छोटी सी kiss करता है। यशवीर के होठों का एहसास अपने माथे पर करके तृषा का चेहरा, जो रोने की वजह से लाल था, वह और लाल हो जाता है और उसकी आँखें बंद हो जाती हैं।
वहीं यशवीर भी अपनी आँखें बंद किए कुछ सेकंड तक अपने होठों को उसके माथे पर ही रखा। उसे इस वक़्त बहुत सुकून मिल रहा था जो कभी उसे रिया के करीब होने से नहीं मिलता था।
वह अपने होठों को दूर करके कहता है, "बीवी, मैं अपना वादा नहीं तोडूँगा, यकीन करो। एक बार और, अगर ऐसा कभी होता है—वैसे नहीं होगा, पर हुआ तो जैसा तुम बोलो मैं वह करने को तैयार हूँ। अब तो एक मौका दे दो।" यशवीर इसी के साथ एक बार फिर नीचे अपने घुटनों पर बैठ जाता है और अपने हाथ जोड़कर, अपनी आँखों में एक उम्मीद लिए तृषा को देखता है।
यशवीर इस वक़्त वह rude, heartless, arrogant, cruel, angry यशवीर लग ही नहीं रहा था। इस वक़्त कोई उसे देख ले तो सच में उसे सदमा लग जाएगा।
तृषा उसे देखकर जल्दी से दो कदम पीछे होती है। फिर वह थोड़ा हकलाते हुए कहती है, "ये…ये…आप…क्या कर रहे हैं…आप इसे…मेरे सामने झुक…नहीं…नहीं…सकते…"
यशवीर तृषा की आँखों में देखकर कहता है, "पहली बात, यशवीर सिंह राजवंश आज तक अपने परिवार की औरत के सामने ही झुका है। और तुम भी परिवार में ही हो मेरी, और मैं तो ज़िन्दगी भर अपनी बीवी के सामने झुकने को तैयार हूँ।"
तृषा यशवीर की बात सुनकर इमोशनल हो जाती है। उसकी आखिरी लाइन सुनकर उसका चेहरा लाल टमाटर की तरह हो जाता है शर्म से। वह कुछ नहीं कहती, पर हिम्मत करके अपने छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़कर यशवीर के हाथों को नीचे करती है। फिर उसे खड़ा करती है, पर कितना लंबा-चौड़ा यशवीर और कितनी छोटी सी तृषा। वह यशवीर को हिला तक नहीं पाती। फिर वह बड़े क्यूट से एक्सप्रेशन के साथ यशवीर को देखती है।
यशवीर कहता है, "बीवी, मैं तब तक खड़ा नहीं होऊँगा जब तक तुम जवाब नहीं दे दोगी।"
तो आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है। कल मिलेंगे नए अध्याय के साथ।
जेसा कि आप सभी ने पिछले अध्याय में पढ़ा, यशवीर ने कहा, "बीवी, मैं तब तक खड़ा नहीं होने वाला जब तक तुम मुझे जवाब नहीं देतीं।"
तृषा, जो यशवीर को खड़ा करने की कोशिश कर रही थी, उसकी बात सुनकर रुक गई।
यह पहली बार था जब यशवीर ने तृषा से इतने प्यार से बात की थी। इस वक्त तृषा के गाल हल्के गुलाबी हो गए।
क्योंकि यशवीर के मुँह से 'बीवी' सुनकर पहली बार उसके दिल ने रफ़्तार पकड़ी थी।
यशवीर अब भी तृषा के सामने बैठा हुआ था, और उसकी नज़र तृषा पर ही थी।
तृषा की नज़र भी यशवीर पर गई। वह अपनी मीठी आवाज़ में धीरे से बोली, "आ... आप खड़े तो हो जाइए।" इस समय भी वह यशवीर से थोड़ी शर्मा रही थी।
यशवीर, तृषा को देखकर थोड़ा उदास होते हुए बोला, "बीवी, क्या तुम्हें मुझसे तलाक चाहिए?" इस वक्त यशवीर मान ही रहा था कि तृषा का जवाब ना हो, क्योंकि वह एक बार फिर से तृषा को खुद से दूर नहीं होने दे सकता था।
"आ...आप...ये... कैसी बातें कर रहे हैं? त...तलाक? और हम? नहीं...नहीं..." तृषा ने कहा।
यशवीर तृषा की बात सुनकर सातवें आसमान पर पहुँच गया।
फिर वह बोला, "इसका मतलब तुम मुझे मौका दोगी?" यशवीर ने एक बार फिर हाथ जोड़कर कहा, "बीवी, माफ़ करना। मैं जानता हूँ मैंने बहुत गलतियाँ की हैं, बहुत गुनाह किए हैं, पर प्लीज़ एक मौका तो दे दो मुझे, एक मौका तो भगवान भी देते हैं।"
तृषा यशवीर को नीचे देखकर बहुत कन्फ्यूज़्ड थी। वह धीरे से बोली, "ठीक है। हम...आपको सोचकर बताएँगे, ठीक है?" और तृषा मासूमियत से यशवीर की आँखों में देखने लगी। उसे तो हिम्मत नहीं थी कि वह उसकी आँखों में देखे, पर पता नहीं क्यों, शायद वह यशवीर की आँखों में आज कुछ ढूँढ़ने की कोशिश कर रही थी।
उसे अचानक यशवीर का यह बदला-बदला सा व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। कहाँ हर रोज़ यशवीर तृषा को ना जाने कितना कुछ सुना देता था, वही आज वह उसके सामने झुक गया था। जो यशवीर कभी किसी के सामने नहीं झुका, वह आज उसी के सामने झुक गया था, जिसे वह कुछ दिन पहले देखना भी नहीं चाहता था।
तृषा की बात सुनकर यशवीर को एक उम्मीद दिखी। वह बोला, "ठीक है बीवी, मैं तुम्हारे ऊपर ज़ोर नहीं दूँगा। बहुत सारी गलतियाँ की हैं मैंने, पर इस बार नहीं। तुम अच्छे से सोचकर बता देना।" तृषा जल्दी-जल्दी अपना सर हिला रही थी। अब वह यशवीर से नज़र नहीं मिला पा रही थी। एक तो यशवीर के मुँह से बार-बार 'बीवी' सुनकर उसके दिल को धड़क रहा था।
यशवीर अब खड़ा हो चुका था।
इस समय तृषा और यशवीर बहुत करीब खड़े थे। यशवीर की नज़र लगातार तृषा को निहार रही थी, वहीं तृषा उसकी नज़रों की तपिश झेल नहीं पा रही थी। वह अपनी उंगलियों से खेल रही थी, नीचे सर झुकाए हुए।
वह बोली, "वो...वो हम...नीचे जा रहे हैं...डिनर की तैयारी करनी है।" अभी यशवीर तृषा से कुछ कह पाता, कि तृषा उसके सामने से गायब हो गई। कमरे में वह थी ही नहीं।
यशवीर को तो समझ ही नहीं आया कि अभी क्या हुआ। वह खुद से ही बोला, "बीवी, I promise, मैं तुम्हें मना लूँगा। मैं जानता हूँ बहुत गलतियाँ की हैं और उनकी सज़ा भी मुझे मिल चुकी है। मैं तुम्हारी माफ़ी के लिए हर हद पार कर जाऊँगा।"
तृषा रूम से भागी, बुलेट ट्रेन की स्पीड से। उसकी गति सीधे नीचे किचन में आकर रुकी। वह वहाँ आकर लंबी-लंबी साँसें लेने लगी।
तृषा को समझ ही नहीं आ रहा था कि यशवीर को हुआ क्या। अभी भी वह साँस लेते हुए यही सोच रही थी कि अगर वह कमरे में रुकेगी तो पक्का फिर से यशवीर के गुस्से का शिकार हो जाएगी। अभी भी उसे यही लग रहा था कि यशवीर ने जो भी कहा, वह शायद उसी हीरो के अंदाज़ में कहा हो। पर उसका दिल कह रहा था कि एक बार यशवीर की बातों पर भरोसा कर ले। उसने आज जब यशवीर की आँखों में देखा था, तब उसे सच्ची नज़र दिखी थी।
पर यशवीर ने उसके साथ इतना सब किया था कि इतनी जल्दी भरोसा करना आसान नहीं था।
तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। तृषा एकदम से चोक गई।
तो आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है।
त्रिशा यशवीर के कमरे से भागते हुए निकल गई और सीधी रसोई में आकर रुक गई। तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा।
त्रिशा को किसी के कंधे पर हाथ रखते हुए महसूस हुआ तो वह एकदम डर गई। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसके पीछे ऋतु खड़ी थी। त्रिशा ऋतु को देखकर थोड़ी चैन की साँस ली।
वह खुद को संभालते हुए बोली, "भा...भाभी ए...आप...."
ऋतु ने त्रिशा को हकलाते देख कहा, "क्या हुआ त्रिशू बच्चा? तुम इतनी घबरा क्यों रही हो? क्या यशवीर ने कुछ किया क्या फिर?"
त्रिशा ने ऋतु का सवाल सुनकर जल्दी-जल्दी अपना सिर ना में हिला दिया।
त्रिशा, जो अभी तक खुद को संभाल रही थी, ऋतु के गले लग गई। ऋतु त्रिशा के लिए उसकी बड़ी बहन थी, जिसे त्रिशा और यशवीर के रिश्ते के बारे में सब मालूम था।
त्रिशा ऋतु को गले लगाकर रोने लगी। ऋतु को समझ नहीं आया कि एकदम से त्रिशा को क्या हो गया।
वह त्रिशा की पीठ सहलाने लगी ताकि त्रिशा शांत हो जाए। ऋतु बोली, "बच्चा, क्या हुआ है? बताओ अपनी दीदी को, नहीं बताओगी क्या हम...."
त्रिशा अब ऋतु के गले लगे ही हाफ़ने लगी थी। ऋतु समझ गई कि त्रिशा को शायद पैनिक अटैक आ रहा है।
ऋतु इधर-उधर देखने लगी कि कहीं कोई त्रिशा को इस हालत में देख तो नहीं रहा है। उसने एक चैन की साँस ली क्योंकि उस समय किचन में कोई नहीं था। वह त्रिशा से बोली, "बच्चे, शांत हो जाओ, प्लीज़। देखो हम किचन में हैं, किसी ने अगर तुम्हारी यह हालत देख ली तो... और हुआ क्या है? मुझे बताओ तो सही।"
ऋतु ने त्रिशा को बहुत शांति दी। उसने त्रिशा को खुद से दूर करके उसे पानी पिलाया और फिर उसे गहरी-गहरी साँस लेने को कहा। त्रिशा ने वैसा ही किया और थोड़ी देर में वह थोड़ी सामान्य हुई।
त्रिशा अपनी आँसू भरी आँखों से ऋतु को देखते हुए बोली, "दीदी, आज...वो वो..." त्रिशा ने ऋतु को सब कुछ बता दिया, जो भी यशवीर ने उसे कहा था।
और वह फिर से ऋतु को गले लगकर रोने लगी।
ऋतु को यह सुनकर खुशी हुई कि यशवीर अब अपनी गलती समझ गया है और उसने त्रिशा से माफ़ी माँगी है। क्योंकि वह जानती थी कि त्रिशा कितना सहती थी। उसकी इतनी उम्र भी नहीं थी जितना उसने यशवीर के लिए सहन किया था।
ऋतु बोली, "बच्चा, शांत हो जाओ और मुझे एक बात बताओगी।" त्रिशा ऋतु से अलग होकर अपना सिर ना में हिलाई।
ऋतु बोली, "क्या तुम्हें यशवीर से तलाक लेना है?" त्रिशा ने ऋतु को देखा। ऋतु बोली, "बेटा, कोई ज़बरदस्ती नहीं है। तुम सिर्फ़ अपने दिल की सुनो। क्या तुम यशवीर से हमेशा के लिए अलग होना चाहती हो?"
त्रिशा अपनी टिमटिमाती आँखों से ऋतु को ही देख रही थी। वह ऋतु की बात सोचती रही, फिर बोली, "दीदी, हम...वो हम उनसे तलाक नहीं चाहती हैं।" ऋतु यह सुनकर खुश हो गई। त्रिशा अब अपना सिर नीचे झुकाए हुए थी।
ऋतु उसके चेहरे को प्यार से ऊपर उठाकर बोली, "बच्चा, क्या तुम यशवीर को एक मौका देना चाहती हो? सच बताना।" यह सुनते ही त्रिशा के दिमाग में सब कुछ, जो भी यशवीर ने उसके साथ अब तक किया था, वह एक रील की तरह घूमने लगा। तभी उसे यशवीर का, जो किसी के सामने नहीं झुकता था, उसके सामने झुकना भी उसकी आँखों के सामने आ गया।
ऋतु शांति से त्रिशा को देख रही थी।
त्रिशा अपना चेहरा ऊपर उठाकर ऋतु को देखती है। फिर अपनी नज़र नीचे करके बोली, "दीदी, क्या एक मौका उनको देना चाहिए? आपको क्या लगता है?"
ऋतु बोली, "यह तो तुम्हें सोचना चाहिए ना बच्चा कि तुम मौका देना चाहती हो या नहीं।"
ऋतु त्रिशा से बोली, "तो क्या तुम यशवीर से दूर होना चाहती हो?" त्रिशा ने अपना सिर ना में हिला दिया। ऋतु मुस्कुराते हुए बोली, "क्या तुम्हें यश पसंद है?" त्रिशा यह सुनकर अभी-अभी रूम में जब यशवीर उसके करीब खड़ा था, वह याद आ गया और उसके गालों पर लाली आ गई।
ऋतु यह देख मुस्कुराते हुए उसे छेड़ते हुए बोली, "हम्म्… तो मेरी छोटी सी देवरानी को मेरे देवर पसंद हैं।"
ऋतु के ऐसे बोलने से त्रिशा के गालों पर जो लाली थी, वह और गहरी हो गई। वह एकदम से ऋतु को गले लगा ली।
ऋतु हँसते हुए उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली, "अच्छा अच्छा, मैं समझ गई। पर अगर तुम्हें यश के साथ रहना ही है तो फिर भी उसको इतनी जल्दी माफ़ नहीं करना चाहिए। उसको पछतावा हो रहा है, यह अच्छी बात है। पर उसने जो तुम्हारे साथ किया, उसकी थोड़ी सी सज़ा तो मिलनी चाहिए ना।"
त्रिशा ने अपना सिर हाँ में हिला दिया। ऋतु त्रिशा को अलग करते हुए बोली, "अच्छा, चलो अब डिनर का टाइम हो रहा है। हमें भी बाहर जाना चाहिए।" और ऋतु त्रिशा के बाल सहलाते हुए बोली, "मैंने जो बोला है उसको ध्यान में रखना और यश अगर कुछ भी करे तो मेरे पास आ जाना, ठीक है? बाकी सब तुम्हारे भैया संभाल लेंगे।"
त्रिशा ने भी अपना सिर हाँ में हिला दिया और ऋतु भी आज त्रिशा के चेहरे पर झूठी नहीं, सच्ची मुस्कान देखकर खुश थी।
ऋतु के लिए त्रिशा हमेशा से उसकी छोटी बहन ही थी। वह हमेशा त्रिशा को सपोर्ट करती थी।
फिर त्रिशा और ऋतु बाहर डाइनिंग एरिया में आ गईं। उन्होंने देखा कि दादा-दादी आ चुके थे और बाकी के फैमिली मेंबर्स भी आ रहे थे।
त्रिशा एक कुर्सी पर बैठ गई। ऋतु भी जाकर अभिराज के बगल में बैठ गई।
तभी यशवीर भी आया और अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसकी नज़र त्रिशा पर गई। आज भी सभी उसे परिवार के साथ डिनर करते हुए खुश थे। सभी शांति से डिनर कर रहे थे। वहीं यशवीर की नज़र पूरे समय त्रिशा पर ही थी और यह चीज़ ऋतु ने देख ली थी। वह मुस्कुराई यह देखकर। इधर त्रिशा चुपचाप सिर नीचे करके अपना डिनर कर रही थी, कह सकते हैं चुग चुग के खा रही थी।
यशवीर भी यह चीज़ देखता है कि उसकी पत्नी कितनी कम खाती है। वहीं त्रिशा के एक्सप्रेशन भी थोड़े बहुत बदल रहे थे, जिससे साफ़ समझ आ रहा था कि त्रिशा को खाना पसंद नहीं आया। सभी अपना-अपना डिनर खत्म कर चुके थे। यशवीर भी खा चुका था। वहीं त्रिशा ने अब तक बस एक रोटी ही खाई थी और वह भी उसका भी हो गया था। यह देख यशवीर की आइब्रो तन गई।
फिर सभी उठकर अपना-अपना कमरा जाने लगे। त्रिशा भी उठी, तभी यशवीर की चाची बोली, "त्रिशा, बेटा, यह सब छोड़ो। नौकरानियाँ करेंगी। तुम भी जाओ, सुबह से ऐसी ही लगी रहती हो। अब जाकर आराम करो।" त्रिशा कुछ कहती इससे पहले चाची सख्त लहजे में बोली, "त्रिशा..."
तभी सीमा भी बोली, "बेटा, तुम्हें यह सब करने की ज़रूरत नहीं है। तुम जाओ जाकर आराम करो।"
त्रिशा ने अपना सिर हाँ में हिलाया और फिर सभी अपने-अपने कमरे में चले गए।
इधर यशवीर भी रूम में आ चुका था। उसे याद आया कि त्रिशा कितनी कम खाती है। उसने कभी इस चीज़ पर ध्यान ही नहीं दिया था।
कुछ समय में उसके कमरे का गेट कोई धीरे से खोला गया। यशवीर, जो अभी सोफ़े पर आँखें बंद किए बैठा था, आँखें खोलकर देखता है।
तो सामने त्रिशा थी, जो अभी-अभी कमरे का गेट खोलकर धीरे-धीरे छोटे कदमों से अंदर आ रही थी। तभी त्रिशा की नज़र भी यशवीर की नज़रों से टकराती है और...
यशवीर सोफ़े पर बैठा था। तभी उसने गेट खुलने की आवाज़ सुनी और ऊपर देखा। गेट पर तृषा थी। तृषा धीरे-धीरे अंदर आई।
तृषा की नज़र यशवीर की नज़रों से टकरा गई। तृषा अपनी नज़रें चुराकर जल्दी से क्लोज़ेट रूम में चली गई। यशवीर कुछ नहीं बोला, वो बस तृषा को जाते हुए देखता रहा।
थोड़ी देर बाद, गौरी कपड़े बदलकर बाहर आई। उसने यशवीर को देखा; वो अपने मोबाइल में कुछ कर रहा था।
तृषा धीरे-धीरे, बिना आवाज़ किए, बालकनी की ओर गई। तभी उसके कानों में यशवीर की गहरी आवाज़ सुनाई दी।
यशवीर फ़ोन पर काम कर रहा था। पर जब तृषा कमरे में आई, तो भले ही वो फ़ोन पर काम करने का दिखावा कर रहा था, पर उसका पूरा ध्यान अपनी छोटी सी बीवी पर ही था।
जब यशवीर ने तृषा को बालकनी में जाते हुए देखा, तो उसे समझ आ गया कि तृषा आज भी बालकनी में ही सो रही है। ये देखकर उसे पहले तो बहुत गुस्सा आया, पर वो कुछ नहीं कर सका। वो अपनी गहरी आवाज़ में तृषा से बोला,
"बीवी, कहाँ जा रही हो?"
तृषा ने यशवीर की आवाज़ सुनकर अपनी जगह पर रुक गई। उसने अपने सूट को मुट्ठी में कसा और अपनी आँखें मींच लीं। उसके मन से अभी भी यशवीर का डर नहीं निकला था।
यशवीर को तृषा का कोई जवाब नहीं मिला, तो वो फिर से गहरी आवाज़ में बोला, "बीवी, मैंने कुछ पूछा है।"
तृषा ने बिना पीछे मुड़े, धीरे से अपनी प्यारी सी आवाज़ में कहा, "वो... मैं बाहर, बालकनी में सोने जा रही हूँ।"
यशवीर ने तृषा की आवाज़ सुनकर अपनी आँखें बंद कर लीं।
तृषा अभी जाने ही वाली थी कि तभी उसके कानों में एक बार फिर यशवीर की आवाज़ आई। यशवीर ने कहा, "बीवी, मैंने जाने को नहीं कहा। अभी और तुम बाहर नहीं सोओगी, अब से।"
ये सुनकर तृषा पीछे मुड़कर यशवीर को देखती है। उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ डर और कन्फ़्यूज़न नज़र आ रहा था।
उसे लग रहा था कि यशवीर का कुछ समय पहले माफ़ी माँगना शायद एक नाटक था। वो अपने ख़यालों से बाहर आती है, यशवीर की आवाज़ सुनकर।
जब तृषा उसकी तरफ़ मुड़ी, तो यशवीर ने आँखें खोलीं और अपनी छोटी सी बीवी को देखा। उसने भी तृषा के चेहरे पर कन्फ़्यूज़न और डर नोटिस किया।
उसे समझ आ गया कि उसकी छोटी सी बीवी के दिमाग में क्या चल रहा है और ये डर और कन्फ़्यूज़न कैसा है। वो तृषा की सोच पर रोक लगाते हुए बोला, "बीवी, अपने छोटे से दिमाग में बेफ़िज़ूल के ख़याल ना लाओ।"
तृषा ने यशवीर की बात सुनकर अपना डर भूलकर यशवीर को अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से देखा।
इस समय वो इतनी प्यारी लग रही थी कि यशवीर की तो दिल की धड़कन ही बढ़ गई थी।
यशवीर खड़ा हुआ और तृषा के पास गया। तृषा ने उसे अपने पास आता देख अपनी नज़रें नीचे कर लीं। यशवीर चलते हुए तृषा के पास आया।
यशवीर तृषा के बिल्कुल करीब जाकर खड़ा हो गया। उसकी नज़र तृषा से एक पल के लिए भी नहीं हटी।
तृषा यशवीर को अपने पास खड़ा देखकर हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी कि वो नज़रें उठाकर यशवीर को देख ले।
यशवीर धीरे से झुककर उसके कान में बोला, "बीवी, तुम्हें अब कभी जाने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा हक़ है इस कमरे में रहने का, और आज से बालकनी नहीं, अब से तुम्हें सारे हक़ देता हूँ।"
ये सुनकर तृषा की आँखों में आँसू आ गए। क्योंकि यशवीर ने शादी की पहली रात तृषा से गुस्से में कहा था, "तुम्हें कभी भी मेरी पत्नी होने का कोई हक़ नहीं मिलेगा।"
यशवीर ने तृषा की आँखों में आँसू देखकर अपना हाथ बढ़ाया, उसे सहलाने को। पर उसे अपना हाथ आगे बढ़ाता देख तृषा डर से आँखें बंद कर लेती है। ये देखकर यशवीर अपना हाथ रोक लेता है।
उसे तृषा को ऐसे देखकर खुद पर बहुत गुस्सा आया। वो अपना हाथ नीचे करके बोला, "बीवी, डोंट वरी। मैं कभी अपने बुरे से बुरे सपने में भी अब तुम्हें गलती से भी हर्ट नहीं कर सकता हूँ।"
तृषा ने अपनी नज़रें उठाकर सीधे यशवीर की आँखों में देखा। उसे यशवीर की आँखों में एक सच्चाई दिख रही थी। पर कुछ और भी था यशवीर की आँखों में, जिसे तृषा पढ़ नहीं पा रही थी।
यशवीर ने उसे ऐसे देखते हुए कहा, "बीवी, अभी तुम मेरी आँखें नहीं पढ़ पाओगी। हमें समय लगेगा। पर अगर तुम एक मौका दो, तो क्या पता आगे एक दिन ज़रूर ऐसा दिन आएगा जब तुम मेरी आँखें शायद इतने अच्छे से पढ़ लो, जितने अच्छे से कोई नहीं पढ़ सका है।"
तृषा ने अब यशवीर से अपनी नज़रें नीचे कर लीं। यशवीर बोला, "बीवी, तुम यहीं सो जाओ। अगर तुम चाहो तो मैं बालकनी में सो जाता हूँ।"
ये सुनकर तृषा जल्दी से यशवीर की तरफ़ देखती है। पर यशवीर ने ये बात इतनी सीरियसली बोली थी कि इसमें कोई शक़ नहीं था कि वो मज़ाक कर रहा हो।
यशवीर ने तृषा को एक नज़र देखा। फिर वो खुद ही बालकनी की तरफ़ चला गया।
ये सब देखकर तृषा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर यशवीर को आज क्या हो गया है।
तृषा यशवीर से कहती है, "सु...सुनिए यशवीर..." तृषा के मुँह से "सुनिए" निकलते ही उसके दिल ने इतनी तेज़ रफ़्तार पकड़ ली कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आज उसके दिल के साथ क्या हो रहा है। बार-बार तृषा की आवाज़ इतनी तेज़ क्यों धड़कने लगती है।
यशवीर सोचता है कि उसे शायद किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाने की ज़रूरत है।
तभी वो पीछे मुड़कर, तृषा की आँखों में देखकर कहता है, "कहिये।" तृषा को यशवीर के मुँह से "कहिये" सुनकर बहुत अलग सा लगता है, जिसे वो खुद ही नहीं समझ पा रही थी।
पर अब वो यशवीर की नज़रों से नज़र नहीं मिला पा रही थी। वो अपनी नज़रें नीचे करके कहती है, "आ...आपको तो...सोने की ज़रूरत है...नहीं? मैं तो जाऊँगी...बालकनी में।"
यशवीर लगातार तृषा को ही अपनी गहरी आँखों से देख रहा था। तृषा की बात सुनकर यशवीर चलते हुए तृषा के पास आता है और अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसकी ठुड्डी को पकड़कर ऊपर करता है। इस बार तृषा भी यशवीर के हाथ आगे बढ़ाने से पिछली बार की तरह नहीं डरी थी।
यशवीर अपनी भारी आवाज़ में कहता है, "बीवी, सबसे पहली बात, मुझसे नज़र मिलाकर बात करोगी, और दूसरी बात, या तो बालकनी में मैं सोऊँगा या फिर कोई नहीं, अब तुम सोचो क्या करना है।"
तृषा ने यशवीर की बात सुनकर अपनी आँखें बड़ी-बड़ी कर दीं। वहीं यशवीर भी बड़े ही प्यार से तृषा की उन प्यारी-प्यारी आँखों में ही देख रहा था।
तभी तृषा कहती है, "आ...आप...रूम में...ही सो जाइये..." यशवीर उसे अपनी एक आइब्रो उठाकर देखता है। तृषा कहती है, "मैं भी रूम में ही सो जाऊँगी।"
यशवीर तृषा को कुछ समय तक देखता है। उसको खुद पर इतना गुस्सा आ रहा था, पर वो अंदर से अपने आप को कंट्रोल कर रहा था। उसे लगा था कि तृषा जो इतने समय से बालकनी में सो रही थी, आज उसके पास मौका था कि वो यशवीर को बाहर सोने दे सकती थी, पर उसने नहीं सोने दिया, बल्कि उसे कमरे में ही सोने को कहा।
तृषा थोड़ी हिचकिचाती हुई कहती है, "उम्म...एक काम करते हैं, आप बेड पर सो जाएँ, मैं सोफ़े पर सो जाती हूँ।"
यशवीर तृषा को देखता है। वो कुछ कहने को ही था कि तृषा कहती है, "...उम्म...आप सोफ़े पर नहीं आ पाएँगे...आप बिस्तर पर सो जाइए..."
तृषा का कहना गलत नहीं था, भले ही सोफ़ा बड़ा था, पर शायद उस पर यशवीर ठीक से नहीं सो पाता। यशवीर तृषा से कहते हैं, "तुम बिस्तर पर नहीं सोओगी इसलिए सो जाओ, मैं सोफ़े पर एडजस्ट कर लूँगा।"
तृषा कहती है, "नहीं, आप नहीं कर पाएँगे, बात मानिए।" यशवीर तृषा से कहते हैं, "तुम क्या हो बीवी, मैंने तुम्हें शुरू से अभी तक सिर्फ़ दर्द ही दिया, फिर भी तुम मेरी ही सोच रही हो।"
तृषा यशवीर की बात सुनकर चुप हो जाती है। वो कुछ नहीं कहती। वो यशवीर के साइड से निकलकर चुपचाप सोफ़े पर आ जाती है। यशवीर ने तृषा को देखा, पर उसे समझ आ गया था कि तृषा मानने वाली नहीं थी।
यशवीर भी बेड पर आता है और लेट जाता है। तृषा भी सोफ़े पर लेट जाती है। यशवीर की नज़र अब भी तृषा पर ही थी। वहीं तृषा सोफ़े पर आँखें बंद करके लेटी हुई थी।
तृषा ने सिर्फ़ आँखें बंद की हुई थीं, पर उसका दिमाग बहुत कुछ सोच रहा था। यशवीर का शादी के बाद उससे कैसा व्यवहार था, फिर आज उसका यूँ माफ़ी माँगना, मौका माँगना, अभी यशवीर का ये कहना कि वो उसे सारे हक़ देता है, वही ऋतु भाभी की बातें, सब उसके दिमाग में चल रहा था।
इधर यशवीर के दिमाग में भी बहुत हलचल मची हुई थी। तृषा का इतना अच्छा होना, उसने इतना हर्ट किया तृषा को, पर तृषा के पास आज मौका होते हुए भी उसने यशवीर को ना तो बाहर सोने दिया और ना ही सोफ़े पर। दूसरी तरफ़ रिया थी, जिसने उसे पिछले जन्म में किसी और के लिए धोखा दिया था और ना जाने कितना दर्द, तकलीफ़ दी थी।
यशवीर और तृषा यहीं सब के बीच कब अपने सपनों की दुनिया में चले जाते हैं, इसकी ख़बर उन्हें भी नहीं होती है।
यशवीर ने त्रिशा को बेडरूम में सोने के लिए मना लिया, पर त्रिशा जिद करके सोफे पर सो गई। ऐसे ही दोनों सो गए; यशवीर बिस्तर पर और त्रिशा सोफे पर।
रात के समय, एक औरत किसी को फ़ोन पर कहती है, "यशवीर पर नज़र रखनी है तुम्हें। मुझे उसकी छोटी से छोटी हरकत के बारे में सब खबर चाहिए। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो तुम अपनी सोच लेना।"
इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया। उसने अपने सामने राजवंश परिवार की फ़ोटो देखी, जिस पर बड़ा सा लाल रंग का क्रॉस लगा हुआ था।
वह औरत नफ़रत से उस तस्वीर को देखती है और कहती है, "तुम सब की बर्बादी के दिन बहुत जल्दी शुरू होंगे। तब तक जितनी खुशियाँ मनानी हैं, मनाओ।"
सुबह का समय था। यशवीर के कमरे में, यशवीर की आँखें पहले खुलीं। वह रोज़ चार बजे उठता था। आज सुबह उसकी पहली नज़र उसकी छोटी सी पत्नी पर गई और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
त्रिशा सोते वक़्त बहुत मासूम लग रही थी; उसका गोल-मटोल चेहरा मासूमियत से भरा हुआ था। यशवीर थोड़ी देर तक त्रिशा को देखता रहा।
फिर वह उठकर बाथरूम चला गया। उसने खास ध्यान रखा कि उससे कोई आवाज़ न हो जिससे त्रिशा की नींद खराब हो जाए।
कुछ देर बाद यशवीर बाहर आया और एक नज़र त्रिशा को देखा, फिर कमरे से बाहर निकल गया। वह सीधे जिम चला गया।
जिम में एक्सरसाइज़ करते हुए उसकी घड़ी में अलार्म बजने लगा। उसने देखा कि पाँच बज रहे थे। उसने बटन दबाकर अलार्म बंद किया और अपने कमरे की ओर चला गया।
वह कमरे में आया तो त्रिशा उसी तरह सो रही थी जैसे उसने छोड़कर गई थी।
वह सोफे के पास गया और त्रिशा को धीरे से आवाज़ दी, "बीवी?" पर त्रिशा के कानों में आवाज़ नहीं गई। यशवीर त्रिशा के ऊपर थोड़ा झुककर उसके कान के पास गया और फिर से कहा, "बीवी, उठो।" इस बार शायद त्रिशा के कानों में उसकी आवाज़ गई। त्रिशा उसकी आवाज़ सुनकर थोड़ी इधर-उधर हुई और फिर यशवीर की तरफ़ पीठ करके पलटकर सो गई।
इस वक़्त यशवीर का चेहरा देखने लायक था। उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी में किसी को प्यार से नहीं उठाया था और यहाँ उसने अपनी छोटी सी पत्नी को उठाया और उसने क्या किया? पीठ करके पलटकर सो गई।
यशवीर खुद से कहता है, "कितनी लड़कियाँ मरती हैं मुझसे, और एक मेरी छोटी सी बीवी है।" उसने फिर से त्रिशा को उठाने की कोशिश की, इस बार थोड़ी तेज आवाज़ में, "बीवी, उठो, सुबह हो गई है।"
त्रिशा उसकी आवाज़ सुनकर वापस पलटी और धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उसने दो-तीन बार पलकें झपकीं और अपने सामने यशवीर को देखा जो उसके ऊपर झुका हुआ था।
यशवीर की बॉडी पूरी पसीने से भीगी हुई थी, वह जिम से आया था। त्रिशा उसे बार-बार पलकें झपकते हुए देखती रही।
यशवीर त्रिशा को देखकर उसमें खो गया था। तभी त्रिशा ने अपनी प्यारी सी सुबह की आवाज़ में पूछा, "क्या हुआ? आपने मुझे क्यों उठाया?"
यशवीर को त्रिशा की बात सुनकर होश आया। वह सीधा खड़ा हुआ और बोला, "बीवी, सुबह हो गई है।" त्रिशा गर्दन घुमाते हुए आलस से घड़ी की तरफ़ देखती है।
फिर वह यशवीर को देखती है और मुँह बनाकर कहती है, "अभी तो पाँच ही बज रहे हैं।"
यशवीर ने कहा, "हाँ, आज से तुम रोज़ सुबह पाँच बजे उठोगी बीवी और मेरे साथ एक घंटे रोज़ एक्सरसाइज़ करोगी।"
त्रिशा को लगा कि उसने कुछ गलत सुन लिया है। उसे लगा कि वह शायद यशवीर के किसी दूसरे रूप को देख रही है।
उसका दिमाग इतनी सुबह काम नहीं कर रहा था, वरना वह यशवीर से इतने आराम से बात कैसे कर रही थी।
त्रिशा यशवीर की बात सुनकर जल्दी से सोफे से उठ खड़ी हुई। यशवीर वहीं खड़ा था। त्रिशा यशवीर के पास गई और अपने पंजों पर खड़े होकर अपने हाथ से उसका माथा छुआ। यशवीर को समझ नहीं आ रहा था कि उसकी छोटी सी पत्नी क्या कर रही है, वह बस त्रिशा को देख रहा था।
त्रिशा उसके माथे के बाद उसकी कलाई पकड़ती है। यशवीर से रहा नहीं गया और उसने पूछा, "ये क्या कर रही हो बीवी तुम?"
त्रिशा ने कहा, "आपको चेक कर रही हूँ कि आपको बुखार तो नहीं है और कहीं बुखार आपके दिमाग में तो नहीं चढ़ गया है।"
यशवीर त्रिशा की बात सुनकर एक भौं उठाकर उसे देखता है और कहता है, "बीवी, तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"
त्रिशा कहती है, "कल से देख रही हूँ, आप बहुत अजीब व्यवहार कर रहे हैं। और आज आप इतनी सुबह उठा रहे हो, वो भी इतने प्यार से और एक्सरसाइज़ के लिए।" फिर वह थोड़ी तेज आवाज़ में कहती है, "आपका दिमाग ठीक है? इतनी सुबह एक्सरसाइज़ कौन करता है?"
यशवीर अपनी भारी आवाज़ में कहता है, "बीवी, नॉर्मल लोग सुबह उठकर एक्सरसाइज़ ही करते हैं।" फिर वह थोड़ा रुककर कहता है, "बीवी, अब तुम जल्दी तैयार हो रही हो या फिर मैं खुद तुम्हें तैयार करूँ?"
त्रिशा आँखें फाड़े यशवीर को देख रही थी। उसका छोटा सा गोल चेहरा पूरा लाल हो गया था, उसकी नाक भी गुस्से से लाल हो रही थी। वह अपने पैर पटकते हुए बाथरूम की तरफ़ चल जाती है। तभी उसके दिमाग में एक बात आती है और वह रुक जाती है। यशवीर उसे रुकता देख कहता है, "क्या हुआ बीवी? क्या मैं तैयार करूँ?"
त्रिशा पीछे मुड़कर कहती है, "वो क्या है ना, आज मैं एक्सरसाइज़ नहीं कर पाऊँगी।" यशवीर त्रिशा को घूरकर देखता है जैसे पूछ रहा हो क्यों? त्रिशा छोटी सी मुस्कुराती है और कहती है, "वो मेरे पास जिम के लायक कोई कपड़े नहीं हैं।" और फिर वह वापस सोफे की तरफ़ चलती है। अभी वह फिर से सोने को जाती है कि यशवीर उसकी नींद पर एक बार फिर पानी फेरते हुए कहता है, "कोई बात नहीं बीवी, आज तुम मेरे कपड़े पहनकर एक्सरसाइज़ कर लेना, वरना इस नाइट सूट में ही करना है और आज दोपहर में हम दोनों तुम्हारे लिए शॉपिंग करने चलेंगे।"
त्रिशा ने कहा, "मेरे पास जिम के कपड़े नहीं हैं।" यशवीर उसकी ओर बढ़ा, उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "बीवी, क्यों ना तुम आज मेरे कपड़े पहन लो। और तुम्हारे लिए हम आज दोपहर में शॉपिंग करने चलेंगे।"
तृषा की धड़कनें तेज हो गईं जब उसने यशवीर को इतना करीब पाया।
यशवीर बिल्कुल तृषा के करीब पहुँच गया। वह तृषा की तरफ थोड़ा झुका, अपनी गर्म साँसें उसकी गर्दन पर छोड़ते हुए अपनी गहरी आवाज में कहा, "किया हुआ बीवी, क्या तुम चाहती हो कि मैं खुद तुम्हें जिम के लिए तैयार करूँ, हम्म?"
यशवीर की बात सुनकर तृषा वहाँ से भागी जैसे उसके पीछे कोई भूत लगा हो। उसे ऐसा भागता देख, और अपना ऐसा असर देखकर यशवीर मन ही मन बहुत हँसा।
यशवीर सोफे पर बैठकर तृषा का इंतज़ार कर रहा था।
इधर, तृषा जल्दी से भागकर वॉशरूम में घुसी, दरवाज़ा बंद कर उसी से सटकर खड़ी हो गई। वह अपनी छाती पर हाथ रखकर लंबी-लंबी साँसें ले रही थी। तृषा के गाल बिल्कुल पके हुए टमाटर की तरह लाल हो चुके थे।
तृषा अपनी साँसों को संभालते हुए खुद से बोली, "इन्हें अचानक क्या हो गया है? इतने बदले-बदले से लग रहे हैं।"
अब तृषा को कौन समझाए कि यह अचानक नहीं है, इसके लिए यशवीर ने पूरा एक जन्म लिया है।
तृषा को यशवीर की आवाज बाहर से सुनाई दी, "बीवी, अगर अपनी साँसों को काबू में कर लिया हो तो जल्दी तैयार होकर बाहर आओ, या फिर मुझे आकर..." और वह अपनी बात अधूरी छोड़ गया।
तृषा यशवीर की बात सुनकर बड़बड़ाती हुई बोली, "बेशरम कहीं के।"
और वह अपना सारा झटका अपने लाल गालों के साथ तैयार होने लगी।
थोड़ी देर में वॉशरूम का गेट खुला।
यशवीर जो अभी अपने फोन पर कुछ देख रहा था, गेट खुलने की आवाज सुनकर अपना सिर ऊपर उठाकर देखा तो उसकी साँसें उसकी गले में ही अटक गईं।
क्योंकि तृषा ने उसकी एक टीशर्ट और लोअर पहना हुआ था। तृषा छोटी सी थी और यशवीर हट्टा-कट्टा। यशवीर की टीशर्ट में तृषा बिल्कुल बच्ची लग रही थी।
तृषा ने यशवीर की एक काली रंग की टीशर्ट पहनी थी जो उसके घुटनों से थोड़े ऊपर तक आ रही थी। उस वक्त तृषा एक साथ बहुत क्यूट और हॉट दोनों ही लग रही थी। वह बार-बार टीशर्ट के शोल्डर ठीक कर रही थी। इससे उसके चेहरे पर फ़्रस्ट्रेशन साफ़ नज़र आ रहा था।
यशवीर जो तृषा को ऐसा देखकर खोया हुआ था, तभी उसके कानों में तृषा की आवाज आई। वह खुद से ही कह रही थी, "ये क्या है? इनकी तो टीशर्ट भी परेशान कर रही है।"
यशवीर एकदम से होश में आया। वह खुद से बोला, "ये क्या हुआ मुझे अभी?" फिर वह अपना सिर झटककर सोफे से खड़ा हुआ और तृषा की तरफ गया।
तृषा की नज़र यशवीर पर नहीं गई थी, वह तो टीशर्ट में ही उलझी हुई थी। तभी उसे किसी के अपने करीब होने का एहसास हुआ।
तृषा ने अपनी नज़रें ऊपर उठाईं। उसकी नज़र यशवीर की गहरी नज़रों से मिली।
यशवीर तृषा को ध्यान से देख रहा था। वह थोड़ा झुका और तृषा के कान में धीरे से कहा, "बीवी, तुम तैयार हो तो अब चलें।" तृषा, जिसने पहले ही यशवीर से अपनी नज़रें हटा ली थीं क्योंकि उस पर यशवीर की नज़रों की तपिश सहन नहीं हो रही थी,
वह यशवीर की बात सुनकर अपना सिर धीरे से हिला दी। यशवीर तृषा का छोटा सा हाथ अपने हाथ में पकड़कर बेडरूम से बाहर निकला। तृषा की नज़र अपने और यशवीर के हाथों पर ही थी। यशवीर के बड़े हाथ में उसका छोटा सा हाथ उसे अच्छा लग रहा था; उसके गालों पर फिर से लाली छा गई थी।
यशवीर रूम से निकलकर जिम रूम की तरफ गया जो कि उसका पर्सनल जिम रूम था और यह उसके ही फ़्लोर पर था।
यशवीर भले ही आगे देखकर चल रहा था, पर उसका ध्यान भी अपने बड़े से हाथ में पकड़े उसके छोटे और मुलायम से हाथ पर था।
यशवीर भी महसूस कर सकता था कि तृषा की नज़र उन दोनों के हाथों पर ही थी। यशवीर के होठों पर उस वक्त एक बहुत ही छोटी सी मुस्कान थी जो कि उसे बहुत ही गौर से देखने पर ही मालूम चल सकती थी।
यशवीर तृषा को लेकर अपने जिम में आया। वहीं तृषा अपनी पलकें बार-बार झपकाते हुए पूरे जिम को देख रही थी।
तृषा ने ऐसा जिम नहीं देखा था और फिर यह तो यशवीर का जिम था जिसमें अलग-अलग तरह की मशीनें रखी हुई थीं एक्सरसाइज़ के लिए।
यशवीर जब तृषा को ऐसे क्यूरियोसिटी से जिम को देखता है तो वह थोड़े ख़फ़ा हुए तृषा का ध्यान खुद पर लाते हुए कहता है, "आज से तुम रोज़ सुबह 5 बजे उठकर मेरे साथ यहीं एक्सरसाइज़ करोगी, समझी बीवी?"
तृषा यह सुनकर मुँह बना लेती है। वह कुछ नहीं कहती। वहीं यशवीर समझ जाता है उसे देखकर कि अब तृषा पहले जैसी हो चुकी है जो उससे डरती थी।
वह तृषा को कुछ नहीं कहता और फिर तृषा को कुछ बेसिक एक्सरसाइज़ बता देता है। तृषा भी ना चाहते हुए भी वह करने लगती है। अब उसको भी यशवीर से डर लगता है।
यशवीर भी अपनी एक्सरसाइज़ करने लगता है और तृषा भी कर रही थी जो उसको यशवीर ने बताया था।
यशवीर की नज़रें पूरे समय तृषा पर ही थीं। तृषा बार-बार उसकी टीशर्ट को संभालती हुई उसकी बताई गई एक्सरसाइज़ कर रही थी। आज पहला दिन था तो यशवीर ने इस बात का ख़ास ख़्याल रखा था कि तृषा कोई भी हैवी एक्सरसाइज़ ना करे।
तो आज का अध्याय यहीं ख़त्म होता है।