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Love forever 💞

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Archana

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दो जानी दुश्मन! जब मिलेंगे एक ही मकसद से एक दूसरे के सामने! तब खिलेगा पत्थर पर फूल लव फॉरएवर

Total Chapters (114)

Page 1 of 6

  • 1. Love forever 💞 - Chapter 1

    Words: 1585

    Estimated Reading Time: 10 min

    मून नाइट क्लब, न्यू यॉर्क

    एक छब्बीस वर्षीय आकर्षक भारतीय युवक इसी नाइट क्लब के बीयर काउंटर पर आराम से बियर पी रहा था। उसकी ऊँचाई लगभग छह फीट एक या दो इंच ज़्यादा रही होगी। उसने काले रंग की जीन्स पर हल्के नीले रंग की प्रिंटेड जर्सी पहन रखी थी। बिल्कुल गोरा रंग और चौड़ा माथा, और जेल से सेट किए हुए परफेक्ट बाल। दाढ़ी साफ़ थी, पर खूबसूरती से ट्रिम की हुई मूँछें चेहरे को और आकर्षक बना रही थीं।


    रह-रह कर उसकी नज़र दरवाज़े की ओर जाती थी और अगले ही पल वह अपनी घड़ी में समय देख रहा था। उसके हाथ में एक लिमिटेड एडिशन वाली राडो की कीमती घड़ी थी, जिस पर हीरे जड़े हुए थे। जो उसकी धनाढ्यता को प्रदर्शित कर रहे थे। उसके चेहरे के भाव स्पष्ट रूप से बता रहे थे कि वह इस नाइट क्लब में किसी का इंतज़ार कर रहा था।


    यह था सम्राट सिंह राणावत!! राणावत एम्पायर का सीईओ!! मात्र छब्बीस वर्ष की आयु में ही एशिया के शीर्ष व्यापारियों में गिना जा चुका था!!


    बार काउंटर से कुछ ही दूरी पर कान फाड़ देने वाला संगीत बज रहा था और सामने डांस फ्लोर पर लड़के-लड़कियों के समूह नशे में पागलों की तरह इस संगीत पर नाच रहे थे। आज शनिवार की रात होने के कारण क्लब में भीड़ ज़्यादा थी। सम्राट को यह सब देखकर काफी बेचैनी हो रही थी। उसे इस तरह का पागलपन बिलकुल पसंद नहीं था, परंतु उसे इसे सहना पड़ रहा था। वह चाहे तो यह पूरा क्लब बुक कर सकता था, पर यह क्लब उसी व्यक्ति का था जिससे उसे मिलना था। उसे अपने पिता की बातें कानों में गूँज रही थीं,"सम्राट!! अपनी शान-शौकत लेकर उसके सामने मत जाना। उसे अपनी ताकत दिखाने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं हैं। और मैं नहीं चाहता कि इस बार तुम्हारी एक भी गलती हमारी जीती हुई बाज़ी राठौर के सर पर ताज पहना दे। मुझे किसी भी तरह से राजवीर सिंह चौहान का वोट अपने पक्ष में चाहिए। मुझे नहीं पता कि तुम यह कैसे करोगे।" सम्राट ने चिंता में अपनी आँखें बंद कर लीं।


    "ओह डैड!! कहाँ फँसा दिया!!"


    आज उसे न्यू यॉर्क आए हुए तीन दिन हो चुके थे। बहुत मुश्किल से उसने इस क्लब का पता लगाया था, जहाँ उसे अपनी खोज पूरी होने की उम्मीद थी।


    उसे तलाश थी, अंडरवर्ल्ड के माफ़िया की!! जिसका नाम था राजवीर सिंह चौहान।


    जो कि न्यू यॉर्क के कई दिन और रात क्लबों का मालिक होने के साथ-साथ अंडरवर्ल्ड के व्यापार में भी अपना अच्छा-खासा दबदबा रखता था। साथ ही भारतीय राजनीति में भी उसका वोट काफी मायने रखता था।


    सम्राट ने अपनी घड़ी देखी, अभी रात के नौ बज रहे थे, यानी कि उसे आने का समय अभी बाकी था।


    "कहाँ फँसा दिया डैड ने मुझे?? यहाँ बैठे-बैठे मुझे पागल ही हो जाना है!! कुछ देर के लिए बाहर जाकर ताज़ी हवा में साँस ले लेता हूँ।" यह सोचकर सम्राट ने अपना खाली गिलास टेबल पर रखा और आगे बढ़ ही रहा था कि उधर से तेज़ी से आती हुई एक लड़की से टकरा गया।


    "आई एम सो सॉरी...." कहते-कहते सम्राट एक मिनट के लिए रुक गया। उसके सामने काली जीन्स और काली टीशर्ट पहने हुए एक अंग्रेज़ जैसी लड़की खड़ी थी।


    यह लड़की थी आंचल सिंह राठौर!! राणावत के घोर दुश्मन की बेटी।


    "व्हाट ए प्लेज़ेंट सरप्राइज़!!" सम्राट के होठों से निकला। आंचल को देखते ही सम्राट का बिगड़ा हुआ मूड कुछ ज़्यादा ही सुखद हो गया था, पर आंचल ने सम्राट को देखकर मुँह बनाया और एक गहरी साँस ली और कहा,"ओह नो!! नॉट अगेन मैन।"


    "पर मुझे तुम्हें देखकर कुछ ज़्यादा ही खुशी हुई, वैसे तुम यहाँ क्या कर रही हो??"


    "तुमसे मतलब??" आंचल चिढ़ गई।


    "मत बताओ!" सम्राट ने अपने कंधे उचका दिए।


    सम्राट को यहाँ देखकर वह समझ गई थी कि सम्राट यहाँ किस काम के लिए आया है। वहीँ, सम्राट आंचल के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानता था। जबकि राठौर की ओर से आंचल भी उसी काम के लिए यहाँ आई थी।


    राठौर और राणावत के बीच घोर दुश्मनी थी; दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु थे।


    "लगता है कि राणावत के संपर्क काफी कमज़ोर हो गए हैं, जिसके कारण उनके पास फ़ालतू का समय ज़्यादा बढ़ गया है। खुद हर चीज़ पता लगाने में जुट गए हैं। पहले अपने दोस्तों और दुश्मनों की सूची तो पता कर लो। उसके बाद कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी!!"


    इतना कहकर उसने हल्के से सम्राट को धक्का दिया और आगे चली गई।


    आंचल को यहाँ देखकर सम्राट ने बाहर जाने का इरादा छोड़ दिया और वापस जाकर फिर से उसी कुर्सी पर बैठ गया जिस पर वह पहले बैठा था।


    "हे यू!! तुम मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती हो??" आंचल अभी अपना ऑर्डर दे ही रही थी कि उसके कानों में सम्राट की आवाज़ पड़ी। सम्राट को वापस बीयर काउंटर पर देखकर आंचल ने गुस्से से अपनी आँखें बंद कर लीं।


    "ओह माय गॉड!! मैं जितना ही इस लड़के से उलझना नहीं चाहती!! उतना ही मेरे रास्ते का रोड़ा बनकर खड़ा हो जाता है।"


    "यस मैम!!" काउंटर पर खड़े लड़के ने पूछा।


    "वन कैन बीयर!!" ऑर्डर देकर आंचल ने अपना फ़ोन निकाल कर वहीं काउंटर पर रख दिया।


    "एंड यू सर!!" आंचल का ऑर्डर लेने के बाद काउंटर पर मौजूद लड़के ने सम्राट की ओर देखा।


    "ज़हर लाकर दे दो इसे!! पीकर मर ही जाए।" आंचल गुस्से में बोली। काउंटर पर मौजूद लड़के को आंचल की बात समझ में नहीं आई, लेकिन सम्राट सर झुकाते हुए हल्के से मुस्कुरा दिया। काउंटर पर मौजूद लड़का भी हल्के से मुस्कुरा दिया। वह समझ गया कि सम्राट को भी बीयर ही चाहिए थी।


    आंचल ने अफ़सोस से सर हिलाया।


    "आहह ये नक़लची राणावत!!" तभी उसके फ़ोन की मैसेज टोन बजी। आंचल ने तुरंत फ़ोन उठाकर देखा। उसके फ़ोन पर एक मैसेज था, उसे लॉबी में बुलाया गया था। उसने मैसेज पढ़ा और अपना फ़ोन लेकर दूसरे फ़्लोर पर दौड़ती हुई चली गई।


    काउंटर पर मौजूद लड़का जब तक इन दोनों का ऑर्डर लेकर वापस काउंटर पर आया था, तब तक कोई भी अपना ऑर्डर लेने के लिए वहाँ मौजूद नहीं था।


    आखिर कहाँ गए थे दोनों?


    "कहाँ गए ये दोनों?" कंधे उचकाकर वेटर अपने काम में लग गया जहाँ ऑर्डरों की भीड़ कुछ ज़्यादा ही थी।


    आंचल ने लॉबी का दरवाज़ा खोला तो वहाँ पर सम्राट पहले से ही मौजूद था।


    "आज का दिन ही खराब है!!" सम्राट को देखकर आंचल ने बेहद अफ़सोस के साथ कहा और वह अंदर आ गई। वहाँ मौजूद आदमियों ने उसकी तलाशी ली और उसका फ़ोन और बंदूक निकाल कर एक तरफ़ रख दिया। एक तरफ़ दूसरी फ़ोन और बंदूक रखी हुई थी जो शायद सम्राट की थी। आंचल को एक तरफ़ बैठने के लिए कहा गया। वह चुपचाप बैठ गई। इस समय सम्राट भी बिल्कुल सभ्य व्यक्ति की तरह बैठा हुआ था। कुछ देर बाद उन लोगों ने लॉबी का दरवाज़ा खोला और दोनों को अंदर जाने के लिए कहा।


    दोनों अंदर लॉबी में चल रहे थे।


    "अच्छा तो तुम राजवीर सिंह चौहान से समर्थन माँगने आई हो??" सम्राट ने आंचल की ओर देखते हुए पूछा। लेकिन आंचल ने कोई जवाब नहीं दिया।


    "क्या तुम राठौर की ओर से हो??" सम्राट के अगले सवाल पर आंचल ने आग उगलती नज़रों से सम्राट की ओर देखा।


    सम्राट ने एक गहरी साँस छोड़ी जैसे कि वह काफी कुछ समझ गया था।


    "राजवीर!! हमारे उम्मीदवार को ही समर्थन करेगा। अभी भी समय है, तुम अपने कदम पीछे हटा सकती हो!! मैं वादा करता हूँ, तुम्हें हर समस्या से बचा लूँगा। मैं सम्राट सिंह राणावत, मित्र सदैव!!"


    "और अभी भी वक्त है!! ऐसे सपने देखना छोड़ दो जो कि पूरे नहीं हो सकते। मैं स्वयं, आंचल सिंह राठौर। शत्रु सदैव।" आंचल ने बिना उसकी ओर देखे हुए कहा।


    "व्हाट??" एक पल के लिए आंचल का परिचय सुनकर सम्राट की आँखें चौड़ी हो गईं। लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाल लिया था।


    "क्या हुआ?? नाम सुनते ही उड़ गए तोते?" आंचल ने सम्राट का मज़ाक उड़ाते हुए अपने होंठ गोल किए।


    "ऐसे सपने देखना छोड़ देना चाहिए जो कभी पूरे ना हों।" आंचल ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।


    "सपने देखना कभी नहीं छोड़ना चाहिए!! क्योंकि कौन सा सपना कब हकीकत बनकर सामने आ जाए!! कोई नहीं जानता। और कुछ कहा भी नहीं जा सकता।" सम्राट ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।


    "तुम भारतीय हमेशा मुफ़्त में ज्ञान क्यों बाँटते फिरते हो??" आंचल ने कुछ चिढ़ के साथ कहा फिर सम्राट की ओर देखा।


    "क्योंकि हम भारतीयों के पास ज़रूरत से ज़्यादा ज्ञान होता है!!" सम्राट ने आराम से जवाब दिया।


    "और मेरे बंदूक में ज़रूरत से ज़्यादा गोली!! अपना मुँह बंद करो!! वरना तुम्हारा मुँह बंद करने के लिए मुझे बंदूक की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी!" आंचल ने गुस्से में अपनी आँखें बंद करते हुए कहा।


    सम्राट हल्के से मुस्कुरा दिया।


    "मैं भी तो यही चाहता हूँ कि तुम्हें मेरा मुँह बंद करने के लिए किसी बंदूक की गोली की ज़रूरत ना पड़े!!"


    आंचल ने आँखें छोटी करके सम्राट की ओर देखा। "क्या?? कैसे??"


    "ऐसे!!" वह कुछ समझ पाती, इसके पहले सम्राट ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।


    "प्रेम सदैव!!" 💞

  • 2. Love forever 💞 - Chapter 2

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात्रि के लगभग दस बजे थे। यह शहर तो रात भर रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमगाता रहता था और दिन में देर तक सोया रहता था, किंतु शहर के एक कोने में उस समय अँधेरा छाया हुआ था। आकाश में चाँद नहीं था, तारों का विस्तृत साम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था, जिससे सब कुछ स्पष्ट तो नहीं दिखाई पड़ रहा था, परंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह एक निर्माणाधीन स्थल है। इस निर्माण स्थल पर सन्नाटा पसरा हुआ था। अधूरी इमारतों को देखकर स्पष्ट ज्ञात हो रहा था कि यहाँ काम कई दिनों से रुका पड़ा है, जिस कारण आस-पास मजदूरों की अस्थायी झुग्गियाँ भी नहीं दिखाई पड़ रही थीं।

    मुख्य शहर से काफी दूर होने के कारण दूर-दूर तक आबादी नहीं थी। ऐसे में किसी का यहाँ आना असंभव था। खंभों में लगे बल्बों से प्रकाश की अस्थायी व्यवस्था की गई थी, परंतु लंबे समय से देखभाल न होने के कारण आधे से अधिक फ्यूज खराब हो चुके थे। शायद यहाँ तैनात सुरक्षा गार्ड भी सो रहा था। कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई देती थी, कुल मिलाकर वातावरण भयावह था।

    अचानक इस सन्नाटे को चीरते हुए, अर्धनिर्मित कॉलोनी की कच्ची-पक्की सड़कों पर तीन हथियारबंद गाड़ियाँ लहराती हुई आईं और एक अधूरी इमारत के सामने रुक गईं। इन गाड़ियों के रुकते ही अर्धनिर्मित इमारत में हलचल होने लगी। पता नहीं कहाँ से लगभग बीस हथियारबंद पहरेदार बाहर निकले और इमारत में पर्याप्त रोशनी फैल गई। सभी पहरेदार काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और सभी के पास आधुनिक हथियार थे।

    तभी बीच वाली गाड़ी का पिछला दरवाजा खुला और लगभग सत्ताईस-अट्ठाईस वर्षीय एक अंग्रेज जैसा दिखने वाला, काले सूट में सजा एक नवयुवक उतरा। उसने दूसरी ओर से गाड़ी का दूसरा पिछला दरवाजा भी खोला। उस ओर से काली जींस, काली टोपी, काली जैकेट पहने हुए और आँखों पर काले चश्मे लगाए हुए एक लड़की निकली। उसका आधा चेहरा काले मास्क से ढका हुआ था।

    लड़की ने अपने बालों को ऊँचा पोनी बनाकर एक रबर बैंड से बाँधा हुआ था। इस कारण पता चल रहा था कि वह एक लड़की है, अन्यथा उसके वस्त्र और कद-काठी को देखकर दूर से लड़के का ही शक होता।

    लड़की के निकलते ही आगे-पीछे की गाड़ियों से भी पहरेदार निकल आए और अपनी-अपनी जगह पर मूर्ति की तरह खड़े हो गए।

    "बॉस।" जिस लड़के ने दरवाजा खोला था, उसने लड़की से कहा।

    लड़की ने सिर हिलाकर हाँ में उत्तर दिया।

    "तुम सब यहीं रुकें।" अपने साथ आए पहरेदारों को रुकने के लिए कहकर उस लड़के ने इमारत में मौजूद पहरेदार से कहा, "तुम साथ चलो।"

    इसके बाद वह लड़की तेज कदमों से इमारत के अंदर जाने लगी और उस लड़के ने उसका पीछा किया। स्पष्ट था कि वह लड़का लड़की के आदेशों का पालन कर रहा था।

    इमारत के सबसे ऊपरी तल पर लगभग पैंतालीस वर्षीय एक आदमी को बंधा हुआ पाया गया। उस आदमी के चेहरे को देखकर स्पष्ट था कि उसे बहुत पीटा गया है।

    "यही वह आदमी है!! जिसने हमारे साथ धोखा करने की कोशिश की है।" लड़के ने लड़की को बताया।

    लड़की ने गौर से उस आदमी को देखा, उसके चश्मों के भीतर उसकी आँखें चमक उठी थीं। परंतु यह किस प्रकार की चमक थी? और क्या था? काले चश्मों के पीछे छिपे होने के कारण किसी को कुछ समझ में नहीं आया। परंतु जो भी हो, चश्मों के पीछे से लड़की की आँखें खतरनाक ढंग से चमकी थीं; जैसे शिकारी की आँखें अपने शिकार को देखकर चमक उठती हैं।

    "क्या हुआ? कुछ बताया इसने??" लड़के ने अपने पास खड़े काले सूट में सजे पहरेदार से पूछा।

    पहरेदार ने सिर हिलाकर इनकार किया।

    "इसका कहना है कि यह इन लोगों को बिलकुल नहीं जानता।"

    वह पहरेदार कुछ और बताता, इससे पहले ही लड़की ने हाथ उठाकर उस आदमी को कुछ भी बोलने से रोक दिया।

    "कोई बात नहीं!! आज के बाद इसे कोई पहचान नहीं पाएगा।" लड़के ने व्यंग्य किया।

    लड़की स्वयं चलकर उस आदमी के पास खड़ी हो गई।

    "तो तुम्हारा कहना यह है कि तुमने बिना जाने-पहचाने ही उस आदमी को अपनी करोड़ों की जमीन दे दी?? " लड़की ने पहली बार मुँह खोला, परंतु वह जितनी सुंदर दिख रही थी, उसकी आवाज उतनी ही ठंडी थी।

    बंधे हुए आदमी ने लड़की की आवाज में अपनी मौत की ठंडी साँस महसूस की।

    "आँच!! मैम!!"

    "तुम्हारा चेहरा साफ़ बता रहा है कि तुम मुझे सिर्फ़ नाम से नहीं, काम से भी जानते हो!! That's good!! " लड़की के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान फैल गई।

    "उसके बाद भी तुमने यह हिम्मत कैसे की ??" लड़की ने अपने चश्मे उतारे और सामने बंधे हुए आदमी की आँखों में देखते हुए ठंडी आवाज में पूछा। आवाज भले ही तेज न हो, पर उसकी गूंज चाकू से भी तेज सीने तक पहुँच रही थी।

    आँचल सिंह राठौर!! उम्र मात्र बाईस वर्ष। दूधिया रंग जिसमें एक चुटकी सिंदूर मिलाया गया हो। लम्बाई पाँच फुट छह इंच!! घने, लम्बे, कमर तक आते हुए काले बाल!! बड़ी-बड़ी नीली आँखें और उन पर लम्बी पलकों का घना पहरा। होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे लाल।

    ऐसा लगता था जैसे किसी ने गुलाब की पंखुड़ियों को भीगाकर होंठों पर रख दिया हो और दाँतों की जगह पर सफ़ेद मोती सावधानी से सजा दिए हों। चेहरे पर दुनिया भर की मासूमियत, पहली नज़र में देखने वालों को जीती-जागती काँच की गुड़िया देखने का एहसास कराती थी।

  • 3. Love forever 💞 - Chapter 3

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    पर जो लोग उसे जानते थे, वे जानते थे कि इस मासूम चेहरे के पीछे कौन छुपा हुआ था: एक खतरनाक गैंगस्टर! जो किसी की भी जान लेने में एक पल नहीं सोचती थी। मारपीट, लूटपाट, यहाँ तक कि हथियारों की तस्करी और हत्या के न जाने कितने मामले उसके नाम दर्ज थे। पर उसका असली नाम भी किसी को पता नहीं था। यह नाम "आँच", उसे उसके दुश्मनों ने दिया था क्योंकि वे उसकी आँच तक को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे।

    वह कहने को तो गैंगस्टर अल्फ्रेड की नातिन थी, पर अल्फ्रेड की मौत के बाद उसने पूरी तरह से इस अंधेरी दुनिया में अपना कदम न सिर्फ़ रख लिया था, बल्कि अच्छे से जमा भी लिया था। जिसके कारण मात्र दो साल से भी कम समय में आँच के नाम का डंका पूरे लंदन में बज चुका था। इस समय आँच के साथ जो 27-28 साल का, अंग्रेज़ जैसा दिखने वाला लड़का था, वह अल्फांसो था; आँच का सबसे खास विश्वासपात्र आदमी।

    आँच के सवाल से वह आदमी बुरी तरह से दहल गया था।

    "मैं सच कहता हूँ, मुझे नहीं पता कि वह किसके लिए काम करते हैं और कौन हैं? उन्होंने मेरी जमीन के लिए मुझे अच्छे पैसे देने का प्रस्ताव दिया था! इसलिए मैं उन्हें अपनी जमीन देने के लिए राजी हो गया था। मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि आपका भी मेरी ही जमीन में इंटरेस्ट है! वरना मैं ऐसी गलती कभी नहीं करता!" आदमी हाथ जोड़ते हुए मिनमिनाया।

    "राज़ी हो गया था?? इसका क्या मतलब?? क्या तुमने अभी उन्हें अपनी जमीन नहीं दी??" आँच ने पूछा।

    आदमी ने इनकार में सिर हिलाया।

    "नहीं! अभी मैंने उनके साथ किसी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं!"

    "तो फिर तुम्हारे घर में इतने पैसे कहाँ से आए??" अबकी बार अल्फांसो ने आगे आते हुए पूछा।

    "वह उन्होंने एग्रीमेंट में एडवांस के रूप में दिए थे!" आदमी तेज़ी से बोला।

    "बतौर एडवांस इतनी बड़ी रकम??" आँच के होंठ तीखी मुस्कुराहट में फैले।

    आदमी ने सूखे गले से हाँ में सिर हिलाया।

    "कौन था वह आदमी??" आँच ने गरजते हुए पूछा।

    "मुझे नहीं पता, वह कोई भारतीय था! शायद वह किसी इन्वेस्टर का आदमी था!" आदमी ने सोचते हुए बताया।

    "भारतीय? क्या कोई इन्वेस्टर हमारे इलाके में निवेश करना चाहता है?" आँच के माथे पर सोचने के अंदाज़ में शिकन उभरी।

    "कहीं यह वही तो नहीं जिसके बारे में सीनियर बात कर रहे थे??" आँच ने अल्फांसो की तरफ़ देखा।

    "हम कल तक उस आदमी का पता लगा लेंगे। शायद सीनियर मास्टर को इस बारे में जानकारी हो।" अल्फांसो ने कहा।

    "जितनी जल्दी हो सके!" आँच ने कहा।

    आँच ने अल्फांसो को कुछ इशारा किया। अल्फांसो ने एक फाइल खोलकर आदमी के सामने रख ली। "साइन करो।"

    "पर मैंने उससे एडवांस ले लिए हैं। वह मुझे नहीं छोड़ेगा!" आदमी ने काँपते हाथों से पेन उठाते हुए कहा।

    "तुम उसकी चिंता मत करो, उसे हम भी नहीं छोड़ेंगे और अगर तुमने साइन नहीं किया तो तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे।" अल्फांसो ने आँच की तरफ़ देखते हुए कहा।

    "आँच को जो चीज़ पसंद आ जाती है, वह चीज़ आँच की ही होती है। वरना आँच की आँच में कोई जिंदा नहीं बचता!" आँच ने निशब्द आवाज़ में आदमी की तरफ़ देखते हुए कहा। आदमी ने घबराते हुए, काँपते हाथों से फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए। अंदाज़ ऐसा था जैसे वह अपने मौत के फरमान पर खुद अपने हस्ताक्षर कर रहा हो।

    अल्फांसो ने आदमी के सामने से फाइल उठाई और आँच की तरफ़ बढ़ाई। आँच ने उस फाइल पर सरसरी निगाह डालते हुए अल्फांसो के हवाले कर दिया और अपने जींस के पाकेट में दोनों हाथ डालते हुए लापरवाही से आगे बढ़ने लगी।

    "इस आदमी का क्या करना है??" अल्फांसो ने पूछा।

    "इसने जितने एडवांस में पैसे लिए हैं, इसके उतने ही टुकड़े करके उस आदमी को भेज दो। उसने आँच की पसंद की हुई चीज़ पर नज़र डालने की कोशिश की है। एक दुश्मनी तो बनती है और दुश्मन को तोहफा भी! आखिर दुश्मन को भी तो पता होना चाहिए, ऐसे ही लोग आँच को आँच नहीं कहते! दुश्मन-जान कहते हैं! "एनिमी फ़ॉर एवर"!

    लापरवाही से कहकर आँच आगे बढ़ गई। अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी को उसका मनपसंद गिफ़्ट भेजवा रही हो। वह भी फ़्री ऑफ़ कॉस्ट।

    अल्फांसो ने अपने आदमियों को इशारा किया। इन दोनों के वहाँ से निकलते ही आदमी अपने काम पर लग गए।

    आँच जब तक नीचे अपनी गाड़ी तक पहुँची, उस आदमी की हृदयविदारक चीखें गूंज कर शांत हो चुकी थीं और फिर माहौल में पसर गया था

    "मौत का सन्नाटा!"

    कुछ ही देर में इस सन्नाटे को चीरती हुई, वे गाड़ियाँ वापस उसी जगह लौट पड़ीं जहाँ से आई थीं।


    London

    U. K

    एक बीस मंजिला इमारत के मीटिंग रूम में गहरा अंधेरा फैला हुआ था और बिल्कुल पिन-ड्रॉप साइलेंट! सामने प्रोजेक्टर के ज़रिये स्क्रीन पर एक बिल्डिंग की तस्वीरें दिखाई जा रही थीं और उसके साथ इंफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से संबंधित कुछ वीडियो चल रहे थे। उन वीडियोस को देखने से ऐसा लग रहा था कि कोई मार्केट में एक नया प्रोडक्ट लॉन्च होने वाला है। डिज़ाइनिंग से लेकर ग्राफ़िक्स तक कमाल की थी। प्रोजेक्टर के रुकने पर मीटिंग हॉल की सारी लाइट ऑन हो गई। अब देखने पर पता चल रहा था कि वहाँ पर करीब छह लोग बैठे थे। सबके शरीर पर कीमती बिज़नेस सूट थे, जो साफ़-साफ़ इस बात की गवाही दे रहे थे कि ये छह लोग कॉर्पोरेट सेक्टर के जाने-माने नाम थे।


    इन छह में से एक की उम्र करीब 50 से 40 साल के बीच थी तथा एक बिल्कुल नौजवान लड़का था, जिसकी उम्र मुश्किल से 25 साल थी। जो पाँच आदमी अधिक उम्र के थे, वे चेहरे से विदेशी लग रहे थे और उनके चेहरों पर कुछ गंभीर असमंजस के भाव थे। वहीं यह 25 साल का नौजवान, बिल्कुल कॉन्फ़िडेंट, एक भारतीय था।


    कौन था यह?

  • 4. Love forever 💞 - Chapter 4

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    "क्या हुआ?? आप लोग कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं??" "लगता है कि आप लोगों को मेरा प्रोजेक्ट पसंद नहीं आया!!" लड़के ने एक नज़र अपने सामने बैठे सारे बिजनेसमैन पर डाली जो आंखों ही आंखों में एक-दूसरे से कुछ सलाह-मशवरा कर रहे थे। सबके चेहरे पर एक डर भी फैला हुआ था। जैसे कि हां बोलने से पहले सोच रहे थे और ना बोलने की हिम्मत नहीं थी।

    "पहले तो आप लोग बिल्कुल रिलैक्स हो जाइए। मैंने पहले ही कह दिया था कि आप लोगों पर कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है। अगर आप साथ काम करना चाहें तो मोस्ट वेलकम!! और अगर इंटरेस्टेड नहीं हों, तो बेझिझक यहां से उठकर जा सकते हैं, आपको कोई नहीं रोकेगा।"

    कहकर लड़के ने अपने सामने रखी फ़ाइल क्लोज करने के लिए आगे हाथ बढ़ाया। तभी उन पाँच में से एक ने उस फ़ाइल पर अपना हाथ रख दिया। लड़के ने हैरानी में उसकी तरफ अपनी आँखें उठाईं।

    "पसंद!! हमें आपका प्रोजेक्ट केवल पसंद नहीं आया, मिस्टर सम्राट! बल्कि बेहद पसंद आया है। हम सब आपके इस प्रोजेक्ट में साथ काम करने को तैयार हैं।" सामने बैठे हुए दूसरे इंसान ने अंग्रेज़ी में कहा।

    "तो फिर यह डील, मैं पक्की समझूँ??" इंडियन लड़के ने, जिसका नाम सम्राट था, मुस्कुराते हुए पूछा।

    "जी! हमारी तरफ़ से डील पूरी पक्की है। जिस तरह से आपकी कंपनी ने पिछले एक सप्ताह में ही अपनी सारी कॉम्पिटेटिव कंपनियों को पीछे छोड़ते हुए इस फ़ील्ड में अपना नाम बनाया है, उसको देखते हुए हम सब आपके साथ पहले से ही काम करना चाहते थे। पर आपने सामने डील ऑफ़र की है। ऐसा मौका हम भला कैसे छोड़ सकते हैं??" तीसरे अंग्रेज़ ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "उगते हुए सूरज को सभी प्रणाम करते हैं, उसी तरह सम्राट के ऑफ़र को कभी भी ना नहीं कहते हैं।" उसकी बात सुनकर सम्राट मुस्कुरा उठा। जैसे उसे इस चीज़ की पहले से जानकारी थी।

    "इसमें कोई शक नहीं कि आपका यह प्रोडक्ट जब मार्केट में आएगा, आग लग जाएगी!! बिना कुछ ज़्यादा किए हुए ही आप, पहले से ही इस सेक्टर में चल रही कई सारी कंपनियों को पीछे छोड़ जाएँगे। पर एक बात हमें समझ में नहीं आ रही है!!" चौथे ने कुछ सोचते हुए कहा।

    "जब तक डाउट्स क्लियर नहीं हों, साथ काम करने की सहमति नहीं देनी चाहिए। आप अपने डाउट्स बेझिझक होकर पूछ सकते हैं, मिस्टर विल्सन!"


    "जिस ज़मीन पर आपने अपना हेड ऑफ़िस बनाने का प्रोजेक्ट रखा है?? क्या वह ज़मीन आप ले चुके हैं??" मिस्टर विल्सन ने पूछा।

    "आप उसकी चिंता मत कीजिए, मिस्टर विल्सन!! मैं एक हिंदुस्तानी राजपूत हूँ!! ऐसे ही नहीं हम सरनेम सिंह यूज़ करते हैं। और मेरा तो नाम ही सम्राट सिंह राणावत है। सम्राट का मतलब पूरे देश का राजा होता है और सिंह का मतलब होता है शेर!! जो कि जंगल का राजा होता है। शेर जिस जंगल में पैर रख देता है, वह जंगल उसी का हो जाता है। यह मैटर नहीं करता कि उससे पहले उस जंगल में किसका राज चलता था। उसी तरह से सम्राट सिंह राणावत की नज़र जिस ज़मीन पर पड़ जाती है, वह उसकी हो जाती है! यह पुरानी बात हो जाती है कि पहले उस ज़मीन का मालिक कौन था!" सम्राट ने ख़तरनाक अंदाज़ में कहा।

    "नाइस एटीट्यूड! आई लाइक्ड!" मिस्टर विल्सन ने समझते हुए हाँ में सिर हिलाया। जाने क्यों सम्राट का एटीट्यूड उन्हें किसी और की याद दिला रहा था और इसी कारण इन पाँचों अंग्रेज़ों में केवल मिस्टर विल्सन के पास ही उनका सेल्फ़ कॉन्फ़िडेंस थोड़ी ही मात्रा में, सही लेकिन बचा हुआ था।

    "मिस्टर सम्राट!! अगर हम आपके रिकॉर्ड्स पर ध्यान दें, आपके अंदर इतनी कैपेसिटी है कि आप अकेले ही इस प्रोडक्ट को बना भी सकते हैं और मार्केट में लॉन्च भी कर सकते हैं। आपको मैन्युफ़ैक्चरिंग से लेकर मार्केटिंग तक कहीं कोई प्रॉब्लम नहीं है और ना ही कोई आपके सामने खड़े होने की हिम्मत कर पाएगा। लेकिन फिर भी आप हम लोगों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। ऐसा क्यों??" मिस्टर विल्सन ने आगे झुकते हुए पूछा।

    "यस मिस्टर सम्राट!! यही बात मेरी भी है। अगर आप अकेले ही इस प्रोडक्ट की प्रोडक्शन करते हैं और मार्केट में लॉन्च करते हैं, तो सारा प्रॉफ़िट आपका ही होगा। पर आप हमें अपने प्रॉफ़िट में हिस्सा देना चाहते हैं। क्यों??" अबकी बार पाँचवें अंग्रेज़ ने कहा।

    सबकी बात सुनकर सम्राट ने एक गहरी साँस छोड़ी और अपने सामने रखी हुई फ़ाइल को क्लोज़ किया। अगले ही पल वह अपनी सीट से उठकर प्रोजेक्टर के सामने गया। सम्राट के हाव-भाव को देखकर इन पाँचों को साँप सूँघ गया था। उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे कि उन्होंने यह सवाल पूछकर कोई गलती तो नहीं कर दी थी, क्योंकि सम्राट के बारे में बहुत कुछ उन लोगों ने सुन रखा था।

    "आपकी बात सही है!! मेरे अंदर इतनी कैपेसिटी है कि मैं अकेले ही इस प्रोडक्ट को बना सकता हूँ और मार्केट में लॉन्च कर सकता हूँ। प्रोडक्ट को चला भी सकता हूँ और टोटल प्रॉफ़िट्स का मालिक बन सकता हूँ। पर मैंने आप लोगों को अपने साथ काम करने के लिए चुना है। क्यों?? यह बात आप लोगों को समझ में नहीं आ रही!! अह्ह्ह्ह!! अरे यार, यह 'क्यों' ही तो सारे फ़साद की जड़ होती है। यह बात आप लोगों को क्यों समझ में नहीं आती??" सम्राट ने 'क्यों' शब्द पर ज़ोर देते हुए अपने दोनों हाथों की उंगलियों को अपने बालों में फँसाते हुए कान के पीछे किया। उसके चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि उसे ऐसे सवाल इरिटेट कर रहे हैं। सम्राट के ऐसे रिएक्शन से सब डर गए। ऐसा लग रहा था जैसे कि सम्राट को गुस्सा आ रहा है। पर वे अपनी सीट छोड़कर भी नहीं जा सकते थे।

    "आप नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं!! हम काम करेंगे।" सम्राट को इस तरह से करते हुए देखकर एक ने घबराते हुए तेज़ी से उठकर कहा।

    सम्राट का गुस्सा बहुत ख़तरनाक है, यह बात कुछ ही दिनों में सब जान चुके थे। लेकिन सम्राट ने अपने हाथ हिलाते हुए उसे बैठने का इशारा किया। अब तक वह खुद को संभाल चुका था।

  • 5. Love forever 💞 - Chapter 5

    Words: 1080

    Estimated Reading Time: 7 min

    सम्राट का गुस्सा बहुत खतरनाक था, यह बात कुछ ही दिनों में सब जान चुके थे। किन्तु सम्राट ने अपने हाथ हिलाते हुए उसे बैठने का इशारा किया। अब तक वह खुद को संभाल चुका था।

    "आप सब ने समुद्र तो जरूर देखा होगा। ऊपर वाले ने सारे एक्वेटिक प्लांट्स और एनिमल्स के लिए समुद्र बनाया है। एक तरह से उन सब का घर है। सब की ज़रूरत वहीं से पूरी होती है। समुद्र में बड़ी मछलियाँ भी रहती हैं, छोटी मछलियाँ भी!! समुद्री शिकार पर सबसे पहले बड़ी मछलियों का हक होता है, लेकिन अगर बड़ी मछली का पेट भर जाने के बाद भी कुछ बचता है, या फिर बड़ी मछली के दांत में फँसे हुए टुकड़ों पर छोटी मछली का पेट भर सकता है, तो मुझे लगता है कि बड़ी मछली को अपना मुँह खोल देना चाहिए।

    इससे दो फायदे होंगे। दांतों की सफाई भी होती रहेगी और आसपास की छोटी मछलियाँ बिना कुछ किए हुए, खा-पीकर खुश भी रहेंगी। मुझे आशा है कि आप लोगों को मेरी बात समझ में आ गई होगी।" सम्राट ने टेढ़ी नज़र से उन सब पर देखते हुए कहा।

    "लेकिन!! यह बात छोटी मछलियों को हमेशा याद रखनी चाहिए, अगर किसी मछली ने उसके दांत में दर्द किया, तो वह बड़ी मछली उसे चबाने से भी नहीं छोड़ेगी!! इसलिए सोच-समझकर फैसला लीजिएगा। आगे बढ़े हुए कदम पीछे लेने की इजाजत नहीं है।" सम्राट के लहजे में वार्निंग थी, जिसे सब समझ रहे थे।

    "हम आपको ऐसा कोई मौका नहीं देंगे!!" सबने एक साथ तेज़ी से कहा।

    "मौका देना भी नहीं चाहिए! वरना मैं आप लोगों को साँस लेने का भी मौका नहीं दूँगा! सम्राट सिंह राणावत!! अगर दुश्मनों के लिए बहुत खतरनाक है, तो अपने दोस्तों के लिए बेमिसाल दोस्त भी है।"

    "फ्रेंड्स फॉरएवर।"

    "यह तो चुनने वाले पर निर्भर करता है, वह मुझे किस रूप में चुनता है!!"

    सम्राट ने अपने असिस्टेंट को बुलाने के लिए घंटी बजाई। असिस्टेंट के आते ही उसने सबके सामने कागज़ रख दिए। सब हस्ताक्षर करके सम्राट से हाथ मिलाते हुए मीटिंग रूम से बाहर निकलने लगे। तभी मिस्टर विल्सन रुक गए।

    "क्या हुआ मिस्टर विल्सन?? कोई समस्या है??" सम्राट ने पूछा।

    मिस्टर विल्सन ने कुछ सोचते हुए इनकार में सिर हिलाया, पर उनके चेहरे पर उनकी उलझन साफ़-साफ़ देखी जा रही थी। सम्राट आगे बढ़कर कुछ पूछता, उसके पहले ही बाहर से गार्ड आया और उसने असिस्टेंट के कान में कुछ कहा। सम्राट का ध्यान उस पर गया।

    "सर! बाहर किसी ने आपके लिए कोई स्पेशल पार्सल गिफ्ट भिजवाया है!!"

    "स्पेशल पार्सल गिफ्ट!! वह भी मेरे लिए!!" सम्राट को हैरानी हुई।

    "हाँ सर।" गार्ड अभी आगे कुछ बोलता, उसके पहले ही ऑफिस की बिल्डिंग में किसी के चीखने की आवाज़ आई।

    "यह क्या हो रहा है??" सम्राट ने असिस्टेंट से पूछा।

    असिस्टेंट ने गार्ड की तरफ़ देखा और गार्ड कुछ न कहते हुए अपना सिर झुका लिया।

    सम्राट तेज़ी से मीटिंग रूम का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला और उसके पीछे-पीछे मिस्टर विल्सन और असिस्टेंट भी निकले। बाहर भगदड़ सी मची हुई थी।

    "क्या हो रहा है उधर??" सम्राट ने एक कर्मचारी को रोकते हुए पूछा।

    "मुझे नहीं पता सर!! पर मिस जैस्मिन जोर से चिल्लाई है। लगता है जैसे कि उनके साथ कुछ हुआ है।" कर्मचारी ने कहा।

    सम्राट ने कुछ न समझते हुए मुँह बनाया और उधर चल दिया, जहाँ से जैस्मिन के चिल्लाने की आवाज़ आई थी। रिसेप्शन के पास अच्छी खासी भीड़ जमा थी।

    "क्या हो रहा है यहाँ??" सम्राट ने जोरदार आवाज़ में पूछा। सम्राट की आवाज़ सुनते ही सारी भीड़ तितर-बितर हो गई। भीड़ के हटते ही मिस जैस्मिन अपने सिर को पकड़े हुए दिखाई दीं। उनकी हालत बहुत खराब थी और उनके पास एक पेटी आधी खुली हुई पड़ी थी।

    "क्या हुआ मिस जैस्मिन? क्या आप ठीक हैं?" सम्राट ने एक नज़र जैस्मिन की हालत पर डालते हुए पूछा। वह बुरी तरह से काँप रही थी। उसने काँपते हाथों से उस पार्सल गिफ्ट की तरफ़ इशारा किया।

    "सर, यह आपके लिए आया था। आपकी अनुपस्थिति में मैडम ने खोलकर देखा, पर...." एक दूसरे कर्मचारी ने तेज़ी से पार्सल का ढक्कन बंद करते हुए कहा।

    "उसमें क्या है???" सम्राट ने पूछा।

    "कुछ नहीं सर!!" कर्मचारी ने घबराते हुए जवाब दिया, वहीं जैस्मिन के मुँह से तो आवाज़ भी नहीं निकल रही थी।

    "खोलो, इसे!!" सम्राट ने लगभग आदेश देते हुए कहा।

    "सर!! कृपया!!" कर्मचारी बोल ही रहा था कि सम्राट ने खुद गुस्से में आगे बढ़कर उस पार्सल का ढक्कन खोल दिया। अंदर का नज़ारा देखकर एक पल के लिए सम्राट का भी दिमाग घूम गया। ऐसा लग रहा था जैसे किसी कसाई ने किसी बकरे को हलाल करके उसके छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर इस डिब्बे में रख छोड़ा है।

    "यह किसने भेजा है?? कौन लेकर आया था इसे??" सम्राट ने गुस्से में चिल्लाते हुए पूछा।

    "सर, यह लिफ़्ट में रखा हुआ था और इसके साथ यह कागज़ लगा हुआ था।" काँपते हाथों से जैस्मिन ने एक कागज़ सम्राट की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा।


    "मिस्टर XYZ,

    जो भी हो!!

    आपने मेरी पसंद की हुई चीज़ पर अपनी नज़र डाली थी। वैसे तो मेरी पसंद की हुई चीज़ हर किसी को पसंद आ जाती है, इसमें आपकी कोई गलती नहीं, इसलिए आपको माफ़ किया!! पर आपने उसे हासिल करने की गुस्ताखी की है।

    आपने जितने पैसे उस ज़मीन को हासिल करने के लिए बतौर एडवांस दिए थे, उतने ही उस ज़मीन के भूतपूर्व मालिक के शरीर के टुकड़े आपको गिफ़्ट के रूप में भिजवाए जा रहे हैं। उम्मीद है आपको यह गिफ़्ट पसंद आएगा। आइन्दा से हमारे रास्ते में आने की गुस्ताखी मत करना!! वरना पेटी में अगला शरीर आपका भी हो सकता है।

    सभी चेतावनियों सहित,
    दुश्मन हमेशा के लिए!!"


    सम्राट ने कुछ ऊँची आवाज़ में पत्र पढ़ा, लेकिन अगले ही पल में चिल्ला उठा,"क्या हो रहा है!! किसने मारा है इस आदमी को?? यह दुश्मन हमेशा के लिए कौन है??"

    "दुश्मन हमेशा के लिए!!" एक साथ कई होठों ने एक साथ यह नाम दोहराया। लेकिन पूरा नाम लेने से पहले सब के होठों पर ताला पड़ गया था। पूरे हाल में शांति का साम्राज्य था।

    "कोई मुझे बताएगा भी कि यह दुश्मन हमेशा के लिए कौन है?? तुम सबके चेहरे देखने के बाद साफ़ पता चल रहा है कि तुम सब इस नाम से अच्छे से वाकिफ़ हो!!" सबको एक-दूसरे का चेहरा देखते हुए सम्राट ने गुस्से के साथ-साथ हल्के से चिढ़ से पूछा।

  • 6. Love forever 💞 - Chapter 6

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    "कोई मुझे बताएगा भी कि ये एनिमी फॉरएवर कौन है?? तुम सबके चेहरे देखने के बाद साफ पता चल रहा है कि तुम सब इस नाम से अच्छे से वाकिफ हो!!" सम्राट ने गुस्से के साथ-साथ हल्के से चिढ़ से पूछा, सबको एक-दूसरे का चेहरा देखते हुए।

    किसी को कुछ न बोलते देखकर, मिस्टर विल्सन कुछ कदम आगे बढ़कर आए। उन्होंने सम्राट के कंधे पर हाथ रखा और आँखों ही आँखों में उसे चुप रहने का इशारा किया। उनका इशारा समझते ही सम्राट बुरी तरह से सुलग गया।

    "किसी निर्दोष को मारकर, उसकी लाश के इतने टुकड़े करके, कोई गिफ़्ट के रूप में मुझे भेजवा देता है और आप कहते हैं मुझे चुप रहना चाहिए??" सम्राट ने नाराज़गी और आश्चर्य के मिले-जुले भाव लेकर मिस्टर विल्सन से पूछा।

    "शुक्र मनाइए मिस्टर सम्राट! जिस आदमी ने आपसे अपनी जमीन के एडवांस पैसे लिए थे, उस आदमी के टुकड़े इस पेटी में हैं। आपके जितने एडवांस के पैसे थे, उतने ही एडवांस में टुकड़े! पर आप अभी भी ज़िंदा हैं! वरना आप जिनसे दुश्मनी लेने की कोशिश कर रहे हैं, वे आपके इतने टुकड़े भी करवा सकते हैं। यहाँ पर मौजूद कोई भी आदमी उनके ख़िलाफ़ तो दूर, उनके बारे में भी मुँह नहीं खोलेगा क्योंकि जितने शब्द उसके मुँह से निकलेंगे, उतने ही उसके टुकड़े हो सकते हैं। आपके लिए भी एक दोस्त की तरह सलाह है कि इस मामले को भूल जाइए। अगर ज़िन्दगी रहेगी तो, आप अपनी ऑफ़िस की बिल्डिंग के लिए दूसरी जगह भी पसंद कर सकते हैं!!" मिस्टर विल्सन ने सम्राट को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।

    "व्हाट??" सम्राट को हैरत के झटके लग रहे थे। पर नाम और काम से वह इतना तो समझ गया था कि यह एनिमी फॉरएवर कोई बड़ी हस्ती है क्योंकि वह भी कोई राह चलता हुआ शरीफ़ इंसान नहीं था।

    "एनिमी फॉरएवर से कोई भी दुश्मनी नहीं करना चाहता क्योंकि अगर ये किसी को एक बार दुश्मन मान बैठते हैं, तो पूरी ज़िन्दगी निभाते हैं। ज़िन्दगी के अंतिम साँस तक दुश्मनी!! जब तक अपने दुश्मन की साँसें नहीं रोक देते, तब तक अपने दुश्मन की हर एक साँस का हिसाब रखते हैं। इसीलिए तो इन्हें एनिमी फॉरएवर कहा जाता है।" मिस्टर विल्सन ने बताया।

    "वाह!! काफ़ी दिलचस्प अंदाज़ है इनका!!" मिस्टर विल्सन की बात सुनकर सम्राट के होठों पर तीखी मुस्कान आई।

    "Enemy forever!! अच्छा नाम है!! और काम तो इन्होंने जबरदस्त किया है। मुझे इनका अंदाज़ पसंद आया!! पर मेरा भी नाम सम्राट सिंह राणावत है। किसी ने मेरे लिए अगर इतना स्पेशल पार्सल गिफ़्ट भिजवाया है तो उसका रिटर्न गिफ़्ट भी इतना ही स्पेशल बनता है। उन्हें भी तो पता चलना चाहिए!! सम्राट सिंह राणावत किसी का उधार नहीं बाकी रखता। वह दुश्मनों का दुश्मन है, पर दोस्तों के लिए एक बेहतरीन दोस्त है।"

    "फ्रेंड फॉरएवर!!" सम्राट ने दिलफ़रेब अंदाज़ में मुस्कुराते हुए कहा, जैसे एनिमी फॉरएवर के इस परिचय के बाद भी उस पर कोई असर नहीं पड़ा था।

    "माहिर!! इस इंसान के परिवार वालों का पता करो और उन्हें उनकी जमीन की पूरी कीमत दे देना क्योंकि अब वह जमीन सम्राट सिंह राणावत ही हासिल करके रहेगा और इस आदमी की लाश को सम्मानपूर्वक इसके अंतिम क्रिया-कर्म तक पहुँचा देना।" सम्राट ने अपने असिस्टेंट से कहा।

    "ओके सर!!" माहिर ने समझते हुए हाँ में सिर हिलाया। उसने दो गार्ड्स को इशारा किया ताकि अब पार्सल-गिफ़्ट बाहर ले जाया जा सके।

    "अगर आपकी तबीयत सही न हो तो आप आज घर जाकर आराम कर सकती हैं, मिस जैस्मिन!!" जैस्मिन की तरफ़ पानी का ग्लास बढ़ाते हुए सम्राट ने कहा।

    "थैंक यू सर!!" जैस्मिन पानी पीकर उठकर खड़ी हुई। सम्राट ने अपने ड्राइवर को इशारा किया।

    "मिस जैस्मिन को उनके घर तक सुरक्षित छोड़कर आओ।" सम्राट ने बिलकुल आराम से कहा। उसके हाव-भाव से बिलकुल भी ऐसा नहीं लग रहा था जैसे कि वह परेशान है या फिर इस अनोखे गिफ़्ट ने उस पर कोई असर डाला हो। मिस्टर विल्सन उसकी सहजता देखकर कुछ सोच रहे थे। क्या यह आदमी उतना ही सहज है जितना कि यह दिखा रहा है या फिर कुछ ज़्यादा ही इसने एनिमी फॉरएवर को हल्के में लिया है?

    मिस्टर विल्सन के होठ मुस्कुरा उठे।

    जाने क्या उसके दिमाग में शैतानी खिचड़ी पक रही थी, जो मुश्किल से कुछ पलों के लिए ही उसके चेहरे पर आई थी, लेकिन अगले ही पल उसने इसे छुपा लिया था।

    "फ्रेंड्स फॉरएवर एंड एनिमी फॉरएवर!! दोनों अगर एक साथ उलझ जाते हैं, तो इस लड़ाई में बड़ा ही मज़ा आएगा!! एक सेर, तो दूसरा सवा सेर। जो भी हो!! अपना तो बस एक ही सिद्धांत है। फ्रेनिमी फॉरएवर!!" अपने मन में सोचते हुए विल्सन कुटिलता से मुस्कुरा दिया।


    5 मुंबई (इंडिया)

    कुछ गाड़ियों का काफ़िला, करीब रात के 8:00 बजे, सुनसान रास्ते पर बढ़ता चला जा रहा था। रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगाता हुआ शहर ये काफ़ी पीछे छोड़ आए थे। जगह-जगह स्ट्रीट लाइट लगे हुए थे, जिससे पता चल रहा था कि यह पाँच गाड़ियों का काफ़िला है, जिसमें आगे और पीछे दो-दो गाड़ियाँ सिक्योरिटी की थीं। बीच वाली गाड़ी कुछ बड़ी सी थी, जो दूर से ही अपनी बनावट और चमक से लग्ज़रियस होने का सबूत दे रही थी, यानी कि यह मास्टर गाड़ी थी, जिसके आगे-पीछे सिक्योरिटी की गाड़ियाँ लगी हुई थीं।

    बीच वाली गाड़ी में, ड्राइवर के अलावा तीन लोग बैठे थे। तीनों के शरीर पर महंगे-महंगे डिनर सूट और हाथों में कीमती राडो की घड़ियाँ थीं, जिनमें लगभग एक जैसे ही डायमंड के नग लगे हुए थे। तीनों के सूट पर कीमती ब्रोज़ लगे हुए थे, जिनके डिज़ाइन भले ही अलग-अलग थे, पर तीनों पर एक ही डिज़ाइन से हीरे के नगों से 'R' लिखा हुआ था। इन तीनों को देखने से साफ़ पता चल रहा था कि ये लोग किसी डिनर पार्टी में जा रहे थे। दो की उम्र 50 से 55 साल के बीच थी, तो साथ में तीसरा लड़का अभी मुश्किल से 25 साल का होगा।


    कौन थे ये?

  • 7. Love forever 💞 - Chapter 7

    Words: 1027

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे। एक सुरंग के अंदर भारी शोर हो रहा था। वहाँ एक रिंग फाइट चल रही थी। लड़ने वाले तो केवल दो ही थे, किन्तु देखने और दांव लगाने वाले सैकड़ों लोग मौजूद थे।

    "इट्स सो बोरिंग!!" आंचल ने मुँह बनाते हुए कहा।

    "बट व्हाय??" अल्फांसो ने चौंक कर आंचल की ओर देखा।

    "बिकॉज़ बोथ आर यूजलेस। इन दोनों में से कोई भी हमारे काम का नहीं है।" आंचल ने कंधे उचकाते हुए कहा और वह अपनी पैंट की जेब में हाथ डालकर भीड़ से कुछ दूर निकल गई।

    अल्फांसो ने एकटक रिंग में लड़ रहे दोनों बॉडीबिल्डर्स को देखा और फिर आंचल के पीछे-पीछे चल दिया।

    "हे आंचल!! रुको ना, मेरी बात सुनो। पर यह तो इस समय का सबसे बेस्ट फाइटर है!!" अल्फांसो ने आंचल को समझाने की कोशिश की।

    "बेस्ट नहीं, वेस्ट फाइटर है। बेकार!!" आंचल ने कहा। अल्फांसो ने थोड़ा सोचकर पूछा,

    "तुम किस तरह का फाइटर चाहती हो?? क्या कमी थी इनमें? ये कुछ पैसों के लिए अपनी जान तक लगाने को तैयार हैं। तुम एक बार सोचो!! अगर इन्हीं को इससे ज़्यादा पैसे मिलें तो वे क्या कर सकेंगे?"

    "रियली!! क्या कर सकेंगे?? कुछ नहीं कर सकेंगे!! बल्कि सामने वाले की पहली ही चोट में जमीन पर गिरकर धूल चाटते दिखाई देंगे।" आंचल ने आराम से कहा।

    "तुमने देखा ना!! दोनों आपस में लड़ रहे थे, एक-दूसरे को चोट पहुँचाना चाहते थे लेकिन दोनों में से किसी का भी अपने शरीर पर कोई संतुलन नहीं था। अगर कोई पूर्ण प्रशिक्षित व्यक्ति होता तो, पहला ही वार इनके पैरों पर करता और अगले ही पल दोनों एक साथ जमीन पर गिरते। दोनों की फाइटिंग स्किल!! मुझे पसंद नहीं आई।"

    आंचल की बात में दम था। अल्फांसो ने सहमति में सिर हिलाया।

    "हमें एक ऐसा व्यक्ति चाहिए, जिसके शरीर में लचीलापन हो। जो बिल्कुल रबर की तरह लचीला हो। ऐसे व्यक्ति को मैं तुम्हारी सुरक्षा में नहीं रख सकता!! जिसकी कमी सामने वाला देखने से पहले तुम ही पकड़कर उसे धूल चटा दो।" अल्फांसो आंचल की ओर देखकर मुस्कुराया।

    "पर मुझे सुरक्षा की ज़रूरत ही क्या है अल्फ्रेड!! मैं खुद मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट रह चुकी हूँ। मेरे साथ तुम हो। ऐसे में कोई मुझ पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सकता।" आंचल ने चिंता से पूछा। उसे अपने साथ सुरक्षाकर्मी लेकर चलना, सबसे उबाऊ काम लगता था। इस कारण अल्फांसो अब उसके लिए केवल एक ऐसा अंगरक्षक ढूँढना चाहता था जो कि पूरी फौज पर भारी हो।

    "आई नो कि तुम बहुत अच्छी फाइटर हो और मैं भी तुम्हारे साथ होता हूँ! पर हर समय तुम्हारे साथ नहीं हो पाता। जब से तुमने काम संभाला है, तब से तुम कई बार प्रोटोकॉल तोड़ चुकी हो। तुमसे तुम्हारा गुस्सा ही नहीं संभलता। मुझे तुम पर नज़र रखनी पड़ती है। और तुम कब मेरी नज़रों से ओझल होकर बाहर निकल जाती हो, मुझे पता भी नहीं चलता!! आज भी तुम अकेली ही फाइटिंग देखने आ रही थीं। सुरक्षाकर्मी को साथ लेकर आना तो छोड़ो!! तुमने मुझसे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा था। क्यों??" अल्फांसो ने ज़ोरदार आवाज़ में कहा।

    "अह्ह्ह्!! धीरे बोलो!! सुनता है मुझे!!" आंचल ने अपने दोनों हाथ कान पर रख लिए।

    "पर इस शोर में मुझे खुद मेरी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है।" अल्फांसो ने इधर-उधर देखते हुए कहा। जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि कोई कहीं उनकी बात सुन रहा है या उन्हें पहचान रहा है! उसे आंचल की सुरक्षा की ज़्यादा चिंता हो रही थी! हालाँकि दोनों ने अपने चेहरे पर मास्क लगाया हुआ था। आंचल ने ढीली पैंट और हुडी पहनी हुई थी। जिसकी कैप ने उसके आधे चेहरे को ढँक रखा था और बाकी मास्क ने पूरा ढँक दिया था। पूरे शरीर में सिर्फ़ उसकी नीली चमकदार आँखें ही दिखाई दे रही थीं।

    "तुम सही कह रहे हो। यहाँ पर फाइट से ज़्यादा शोर हो रहा है और भीड़ भी बहुत ज़्यादा है!! चलो, बाहर चलते हैं। बैठकर आराम से बात करेंगे। वैसे यह बताओ!! सीनियर ने तुम्हें इस बार कुछ ज़्यादा ही डोज़ दिया है क्या??" आंचल ने चुपके से अल्फांसो के कानों के पास झुकते हुए पूछा। अल्फांसो ने चौंककर आंचल की ओर देखा, उसकी आँखों में शरारत की चमक थी लेकिन वह समझ गया कि आंचल को उस पर शक हो गया है।

    "मुझे बता सकते हो, मैं किसी से कहूँगी भी नहीं!? एंड आई प्रॉमिस मैं इस बात के लिए सीनियर से भी नहीं उलझूँगी। वरना उनका गुस्सा तुम्हारे ऊपर उतरेगा।" मास्क के अंदर से आंचल के होंठ मुस्कुराए, पर उसकी चमक उसकी आँखों में दिखाई दे रही थी।

    "उन्हें तुम्हारी चिंता होती है आंचल!!" बेहद अफ़सोस के साथ अल्फांसो ने आंचल को समझाना चाहा।

    "मुझे तो नहीं लगता!!" आंचल ने कंधे उचकाते हुए कहा।"अगर उन्हें मेरी चिंता होती तो!! वे मेरे पास आते, मेरी समस्या को समझने की कोशिश करते। पर नहीं!! उन्हें अपने काम की मुझसे ज़्यादा चिंता होती है।" आंचल ने इस बार थोड़े गुस्से में कहा।

    "तुम अभी सारी बातें नहीं जानती आंचल कि क्यों सीनियर ने तुम्हें शुरू से ही अपने से दूर रखा है?? पर मुझे लगता है कि अब तुम्हें इस मामले पर सीनियर से बात करनी चाहिए या फिर सीनियर को खुद तुम्हें सब कुछ बता देना चाहिए।" अल्फांसो आंचल को समझाना चाहता था।

    "पूछने और बताने के लिए भी उन्हें यहाँ आना पड़ेगा!! या फिर मुझे उनके पास जाना होगा। पर वे न खुद यहाँ आना चाहते हैं और न मुझे अपने पास बुलाना चाहते हैं। उन्हें तो बस मुझे अपने से दूर रखने का बहाना चाहिए।" आंचल ने हल्के गुस्से के साथ कहा।

    दोनों अभी सुरंग से बाहर ही निकल रहे थे कि किसी ने अल्फांसो को आवाज़ लगाई।

    "हे अल्फांसो!!" आंचल और अल्फांसो मुड़कर देखा। वह लगभग एक साल की रूसी लड़की थी।

  • 8. Love forever 💞 - Chapter 8

    Words: 1034

    Estimated Reading Time: 7 min

    हे अल्फांसो!

    "हे हेनल!! यू आर हेयर??" आंचल के पास ही खड़े होकर अल्फांसो ने अपनी आवाज में एक खुशनुमा आश्चर्य व्यक्त किया।

    "तुम यह काम उसके पास जाकर भी कर सकते थे!! यह उसे और ज्यादा अच्छा लगता।"

    "आई डोंट नो ! वो यहां कैसे आई?? वो तो वापस सिडनी जा चुकी थी।" अल्फांसो ने आंचल की तरफ देखते हुए सफाई दी।

    आंचल ने चिढ़ के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं।

    "वह यहां से कहीं नहीं जा सकती, बिकॉज शी लव्स यू। एंड आई वेरी वेल नो कि तुम भी उससे प्यार करते हो। मेरी चिंता छोड़ो और जाकर उससे मिलो। वरना कानों के पास ब्रेकअप टोन बजते हुए देर नहीं लगेगी और इस बार अगर तुम्हारा मेरे कारण किसी लड़की से ब्रेक अप हुआ तो ब्रेक अप टोन से पहले तुम्हारे कानों में तुम्हारी हड्डियों के क्रैक अप होने की आवाज सुनाई देगी।"

    "बट यू!!" अल्फांसो ने आंचल की तरफ देखा।

    "मेरी चिंता मत करो!! मैं कहीं भाग नहीं रही और भागकर भी कहाँ जाऊँगी?? घर ही ना!! फिलहाल, मैं तुम्हारी गाड़ी में बैठकर वेट करूँगी। मुझे भी यह जानना है कि आखिर सीनियर मुझे अपने साथ रखना क्यों नहीं चाहते??"

    अल्फांसो कुछ बोलना चाहता था, लेकिन उसके पहले ही हेलन उनके बिल्कुल पास आ गई थी।

    "हेलो आंचल!! कैसी हो तुम??" हेलन ने रशियन इंग्लिश में पूछा।

    "मैं ठीक हूँ!! तुम दोनों आपस में बातें करो। मैं थोड़ी देर में आती हूँ।" आंचल ने भी गर्मजोशी के साथ हेलन से हाथ मिलाया।

    इसके बाद वह अल्फांसो की तरफ झुकी।

    "आज इसे अपने दिल की बात बता देना! वरना तुम्हारा ब्रेकअप होने से पहले तुम्हारे कानों में तुम्हारी हड्डियों के क्रैक अप टोन की आवाज आएगी।"

    "यार, प्यार जताने के लिए भी कौन इस तरह से धमकी देता है??" अल्फांसो ने हैरान होते हुए आंचल से पूछा।

    "मैं!!" पूरे आत्मविश्वास के साथ आंचल ने अपने कॉलर सीधे किए।

    अल्फांसो ने अफ़सोस के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं।

    "क्या हुआ इसे??" आंचल को बाहर जाते हुए देखकर हेलन ने अल्फांसो से पूछा।

    "कुछ नहीं!! मेरे साथ आओ।" हेलन का हाथ पकड़कर वह कुछ साइड हो गया। कुछ ही देर में दोनों आपस में बातें करने लगे।


    बबलगम चबाती हुई आंचल पार्किंग में लगी अपनी गाड़ी की तरफ ना जाकर सुनसान पड़े रोड की तरफ निकल गई। वह आराम से, लंबे-चौड़े रोड पर अपने पैंट की जेब में हाथ फँसाए टहल रही थी। इस बात से अनजान कि वह पार्किंग के बाहर चलते-चलते काफी दूर चली आई है। जगह-जगह कुछ दूरी पर स्ट्रीट लैंप लगे हुए थे, जिनसे रोड पर हल्की रोशनी थी। यह रोड शहर से बाहर का था, इस कारण आदमी तो क्या, इक्का-दुक्का गाड़ियों की भी आवाजाही ना के बराबर थी।

    "अह्ह्ह!! कितना अच्छा लगता है नेचर को इस तरह से अपने करीब फील करना!!" सुनसान रोड देखकर आंचल ने अपने दोनों हाथ फैलाए। तभी अचानक उसे ऐसा लगा कि कोई उसके पीछे खड़ा है।

    आंचल ने अपने पैंट की जेब टटोली।

    गन तो उसके पास मौजूद थी, लेकिन वह अभी उसका उपयोग नहीं करना चाहती थी।

    तभी उसे कुछ आदमी आगे की तरफ से आते हुए दिखे। आंचल ने कदमों की आहट से पता कर लिया था कि कुछ उसके पीछे भी थे।


    "ओह शीट! इनको भी अभी ही बारात लेकर आना था! अगर अभी कुछ भी शोर मचाया तो अल्फांसो!! सीनियर के साथ मिलकर मेरी विदाई की तैयारी करवा देगा, वह तो पहले ही मेरा कन्यादान करने को तैयार बैठे हैं।" आंचल ने मुँह बनाते हुए कहा।

    उसने अपनी आँखें छोटी करके सामने से आ रहे लोगों के कपड़े देखे। सारे काले कपड़ों में किसी सिक्योरिटी कंपनी के एजेंट दिखाई पड़ रहे थे। लेकिन इस अंधेरे में भी उनके सीने पर लगा कंपनी का लोगो चमक रहा था। जिससे उसे समझ में आने में देर नहीं लगी कि यह किसी प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनी एजेंसी के एजेंट हैं।


    "पर मैंने ऐसा क्या किया है, जो ये मेरे पीछे पड़े हैं??"

    आंचल की आँखें और होंठ सोचने वाले अंदाज़ में सिकुड़े और मन ही मन उसने अपने हाल ही में किए गए कामों पर नज़र दौड़ाई।

    "फिलहाल में तो मैंने ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया है, जिससे कि मेरे लिए कोई प्राइवेट कंपनी के गुंडे हायर करेगा। तो फिर कौन हो सकते हैं ये लोग?? डोंट वरी!! इन लोगों का लोगो पहचान में आ गया है। बाकी का काम अल्फांसो देख लेगा, पर फिलहाल मुझे इन लोगों से बचकर निकलना है।" आंचल अभी प्लानिंग ही कर रही थी कि ये लोग खौफनाक इरादों के साथ आंचल की तरफ बढ़ रहे थे।


    "नो वे आंचल!! तू इतनी आसानी से गिव अप नहीं कर सकती। अगर तू इन लोगों के हाथ पकड़ी गई तो सीनियर और अल्फांसो भले ही इन लोगों की बारात निकाल दें!! पर साथ में तुझे भी डोली पर ज़रूर बिठा देंगे और मुझे अभी डोली पर नहीं बैठना।" आंचल ने खुद अपने आप की हिम्मत बंधाई।

    "आगे से आए हुए हैं!! पीछे से आए हुए हैं!! भागने के दो रास्ते हैं!! राइट और लेफ्ट!? लेफ्ट मेरा हमेशा ही बेकार होता है!! मुझे राइट की ओर भागना चाहिए।" और उसने बिना सोचे-समझे राइट की तरफ दौड़ लगा दी। आंचल को इस तरह से रोड से अलग हटकर अंधेरे की तरफ दौड़ते हुए देखकर आदमियों में से एक चिल्लाया।


    "कैच हर!! पकड़ो उसे। भागकर जाने ना पाए। गोली नहीं चलानी है!! हमें उसे ज़िंदा सही-सलामत किसी भी हाल में पकड़ना है।"

    पर आंचल तो हवा की स्पीड से अंधेरे में कहीं गुम हो चुकी थी। लेकिन तभी उसके सामने एक दीवार आई। उन लोगों के बूटों की आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि उसे ढूँढते हुए वे लोग इधर ही आ रहे हैं। आंचल ने सामने अपना रास्ता रोके हुए इस दीवार की तरफ़ देखा। दीवार करीब 12 फ़ीट ऊँची थी। कितना भी हाई जम्प ले ले वह इस दीवार को नहीं फाँद सकती थी। उसने अपने आस-पास नज़र दौड़ाई। सामने एक कूड़ेदान दिखाई पड़ा। उसने कूड़ेदान पर एक पैर रखकर जम्प किया और सीधी दीवार पर चढ़ गई।


    हर हर महादेव 🙏🏼

  • 9. Love forever 💞 - Chapter 9

    Words: 1065

    Estimated Reading Time: 7 min

    आंचल ने सामने, अपने रास्ते में आई दीवार की ओर देखा। दीवार लगभग बारह फीट ऊँची थी। इतनी ऊँचाई वह कूदकर नहीं पार कर सकती थी। उसने आस-पास देखा। सामने एक टायर का डिब्बा दिखाई दिया। उसने उस पर एक पैर रखकर छलांग लगाई और दीवार पर चढ़ गई।

    तब तक उसे ढूँढ़ते हुए वे लोग दीवार के पास पहुँच चुके थे। दीवार पर खड़ी होकर आंचल ने उन्हें जीभ दिखाई।

    "अरे, क्या हो गया? शिकार हाथ से निकल गया!" आंचल ने उनका मज़ाक उड़ाते हुए खुशी से तालियाँ बजाईं। उसने जानबूझकर खुद को अंदर की ओर झुकाया, ताकि उन्हें लगे कि वह अब इस ओर गिरने वाली है। वे उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़े ही थे कि अगले ही पल वह दीवार के दूसरी ओर थी।

    इतनी ऊँचाई से गिरने से उसके घुटने छिल गए थे, लेकिन आंचल तेज़ी से उठी और अपनी पैंट झाड़ते हुए दीवार की ओर फिर से देखा।

    तब तक उसके पीछे के आदमी भी दीवार पर चढ़ चुके थे। आंचल ने जीभ निकालकर उन्हें चिढ़ाया और फिर भागने लगी। आंचल के बार-बार ऐसा करने से वे आदमी काफी चिढ़ गए थे।

    "यह छोटी सी लड़की हमें इस तरह चिढ़ाकर नहीं निकल सकती! आई विल किल हर!" एक ने ब्रिटिश अंग्रेज़ी में कहा और अपनी बंदूक निकालकर आंचल पर तान दी। तभी दूसरे ने अपना हाथ उसकी बंदूक पर रखकर उसे नीचे कर दिया।

    "पागल हो गए हो क्या तुम?? किसी भी कीमत पर उसे पकड़ो!! बस गोली मत चलाना। वरना मास्टर हमें गोलियों से भून कर रख देंगे।"

    आंचल सड़क के किनारे पीछे देखते हुए भाग रही थी, तभी वह सामने से आते हुए एक व्यक्ति से जोरदार टकरा गई। आंचल के पैर घूम गए। वह सड़क पर गिर ही जाती कि उस व्यक्ति ने उसे पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। वह उसके सीने से लग गई। अगले ही पल आंचल ने आँखें उठाईं। एक भारतीय दिखने वाला, गुड लुकिंग, हैंडसम, लगभग छह फीट से ऊँचा नौजवान उसके सामने था, जो बिना पलक झपकाए आंचल की ओर गौर से देख रहा था। दोनों के चेहरों का फ़ासला मुश्किल से छह इंच का था।

    लगातार दौड़ने और भागने के कारण आंचल की धड़कनें तेज थीं, जिसे वह साफ़-साफ़ सुन पा रहा था। पर जाने किस एहसास के तहत उसकी भी धड़कनें तेज हो गई थीं।

    आंचल झटके से होश में आई। उसने धक्का देकर उसे अलग करने की कोशिश की, लेकिन लड़के की पकड़ मज़बूत थी। उसने आंचल को नहीं छोड़ा, पर आंचल के धक्के से वह होश में आ गया था।

    बेखुदी में उसके होठों से निकला,

    "हे ब्यूटीफुल!! हु आर यू??"


    अंधेरी रात में एक लड़का गलियों में तेज़ी से भाग रहा था। उसकी स्पीड ऐसी थी मानो उसके पीछे मौत दौड़ रही हो। बिना पीछे देखे वह छोटी-छोटी गलियों से दौड़ता हुआ सड़क पर आया। सड़क बिलकुल सुनसान थी। दौड़ते-दौड़ते उसकी साँस फूलने लगी। तभी अचानक किसी ने उसके पैरों में अपना पैर फँसा दिया और वह मुँह के बल गिर पड़ा।

    "ओह नो!!" लड़के के होठों से निकला। तभी उसे अपने होठों के पास कुछ गीला सा महसूस हुआ। उसने हाथ लगाकर देखा तो वहाँ से खून निकल रहा था। शायद मुँह के बल गिरने से उसके होंठ कट गए थे। उसने अपनी शर्ट की आस्तीन से उन्हें पोछना चाहा। तभी अचानक उसकी आँखों के सामने एक सफ़ेद रुमाल लहराया जो मदद के तौर पर पेश किया गया था।

    लड़के ने सर उठाकर देखा। सामने उसकी उम्र का एक भारतीय दिखने वाला लड़का मौजूद था।

    "कौन हो तुम?" नीचे गिरे हुए अंग्रेज़ लड़के ने पूछा।

    "दोस्तों का दोस्त!! फ्रेंड्स फॉरएवर।" उधर से जवाब आया। सामने सम्राट खड़ा था, पर शायद यह अंग्रेज़ लड़का उसे पहचानता नहीं था। लेकिन "फ्रेंड्स फॉरएवर" सुनकर उसके दिमाग में कुछ खटका सा हुआ।

    "फॉरएवर!!" लड़के ने फिर से दोहराया।

    "क्या चाहते हो मुझसे??" अंग्रेज़ लड़के ने पूछा।

    "तुम गिरे हुए हो, मेरा कहने का मतलब है कि तुम जमीन पर गिरे हुए हो। तुम्हारे होठों से खून निकल रहा है। मैंने तुम्हारे आगे, तुम्हारे होठों से निकलते हुए खून को पोछने के लिए रुमाल बढ़ाई है। साफ़ तौर पर दिख रहा है कि मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ।" सम्राट ने आराम से कहा।

    "ओह रियली!!" अंग्रेज़ लड़के के होठ चिढ़ने वाले अंदाज़ में बदल गए।

    "जहाँ तक मुझे पता है, मुझे गिराने वाले तुम ही हो।" अंग्रेज़ लड़के ने कहा।

    "तुम्हारी गलतफहमी है। तुम्हें मैंने नहीं, बल्कि तुम्हारे अंदाज़ ने गिराया है। मैं तो बस तुमसे दोस्ती करना चाहता था, तुमसे बात करना चाहता था, लेकिन तुम्हें हाइड एंड सीक का खेल पसंद था, तो मैंने कुछ तुम्हें खेलने दिया। इसमें मेरी क्या गलती? आफ्टरऑल दोस्त होते किसलिए हैं?? दोस्त की मदद करने के लिए!! दोस्तों को परेशान करने के लिए!! दोस्तों की टांग खींचने के लिए!! है ना?" सम्राट ने आराम से कहते हुए उस अंग्रेज़ लड़के का ध्यान आँखों से ही अपने हाथ की ओर दिलाया।

    "यू आर राइट!!" अंग्रेज़ लड़का मज़ाक उड़ाने वाले अंदाज़ में मुस्कुराया। उसने आगे बढ़कर सम्राट का बढ़ा हुआ हाथ थामा और अगले ही पल उसे अपनी ओर झटका देते हुए खींच लिया। अगले ही पल सम्राट जमीन पर गिर गया और अंग्रेज़ लड़का भागने को तैयार था, लेकिन वह कुछ कदम ही भाग पाया था कि सम्राट ने एक जोरदार छलांग लगाई और पीछे से कॉलर पकड़कर उस अंग्रेज़ लड़के को दबोच लिया।

    अंग्रेज़ लड़का अब सम्राट के गिरफ़्त से छूटने के लिए मचल रहा था, लेकिन सम्राट ने उसे बिना कोई मौका दिए एक जोरदार मुक्का उसके चेहरे पर मारा।

    सम्राट का एक हाथ ही इतना ताकतवर था कि उस अंग्रेज़ लड़के को दिन में तारे दिखाई देने लगे थे।

  • 10. Love forever 💞 - Chapter 10

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    इंग्लिश लड़का सम्राट के गिरफ्त से छूटने के लिए मचल रहा था, किन्तु सम्राट ने उसे कोई मौका दिए बिना ही एक जोरदार मुक्का उसके चेहरे पर जड़ दिया। सम्राट का एक हाथ इतना ताकतवर था कि इंग्लिश लड़के के आँखों में तारे दिखाई देने लगे।


    "एक बात याद रखना!! सम्राट सिंह राणावत सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन धोखेबाज़ी नहीं!! मैंने तुम्हें दोस्ती का हाथ ऑफर किया था। दोस्ती नहीं करना चाहते थे, तो थामने की ज़रूरत ही नहीं थी, लेकिन जब थामा तो पूरी ज़िन्दगी निभाना था। "फॉर एवर" अदरवाइज़ बीच रास्ते में साथ छोड़ने वाले हाथों को सम्राट उनकी जगह पर नहीं रहने देगा।" कहते हुए सम्राट ने उस लड़के का दाहिना हाथ पकड़कर झटके से मरोड़ दिया। तड़-तड़ की आवाज़ करते हुए हाथ की हड्डियाँ ना जाने कितनी जगह से टूट गईं। लड़का दर्द से बिलबिला उठा।


    तब तक सम्राट के बॉडीगार्ड और उसकी टीम भी दौड़ते हुए वहाँ पहुँच चुकी थी।

    "ले जाओ इसे।" सम्राट ने गुस्से से उस इंग्लिश लड़के को अपने आदमियों की ओर धक्का देते हुए कहा। अपने जींस की जेब में हाथ फँसाते हुए, उसने आराम से कहा,

    "सर!! आप ठीक तो हैं ना!!" माहिर दौड़ता हुआ आया और उसने सम्राट से पूछा।

    सम्राट ने हाँ में सिर हिलाया।


    "आपको इस तरह से अकेले आने का रिस्क नहीं लेना चाहिए था!!" माहिर ने कहा और सर झुका लिया, क्योंकि सम्राट अब ख़तरनाक तेवरों से उसकी ओर देख रहा था। दरअसल, सम्राट को एक सूचना मिली थी, ‘एनिमी फॉरएवर’ के नाम से, कि आज रिंग फाइटिंग देखने आने वालों में ‘एनिमी फॉरएवर’ के आदमी भी होंगे। सम्राट उन आदमियों के द्वारा मालिक तक पहुँचना चाहता था। बस सम्राट उन्हीं के पीछे यहाँ आया था, लेकिन यह लड़का जाने क्यों सम्राट को देखते ही भागने लगा था? जिस कारण सम्राट को इस पर शक हो गया था और सम्राट ने उसे क़ब्ज़े में कर लिया था।


    "ले जाओ इसे और अगर यह आसानी से बताने को तैयार है, तो कोई बात नहीं!!! पर ज़रा सी भी आनाकानी करें तो पहले इसकी अच्छे से ख़ातिरदारी कर देना, क्योंकि हमारा इंडिया तो अपने अतिथियों की सेवा के लिए प्रसिद्ध है।" सम्राट ने एक जहरीली निगाह उस इंग्लिश लड़के के चेहरे पर जमाते हुए कहा।


    सम्राट की आँखों में वह ख़ौफ़ था जिससे वह लड़का ही नहीं, बल्कि माहिर भी पूरी तरह से काँप उठा था। माहिर उस इंग्लिश लड़के को अपने आदमियों के साथ लेकर आगे बढ़ गया।


    सम्राट का मूड पूरी तरह से ख़राब था। शायद उसके बाद माहिर से उसकी कोई बात हुई थी। अपने मूड को अच्छा करने के लिए सम्राट ने एक नज़र अपने आस-पास डाली। इस समय सड़क पूरी तरह से सुनसान थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा बह रही थी और सड़क पर रोशनी भी बहुत ज़्यादा नहीं थी। इस कारण सम्राट को कुछ हल्का महसूस हुआ। उसने एक गहरी साँस छोड़ते हुए अपने बालों में उँगलियाँ फँसाईं। तभी उसके जेब का फ़ोन बजने लगा। चिढ़ते हुए सम्राट ने अपने पैंट की जेब से फ़ोन निकाला।


    स्क्रीन पर ‘भाई कॉलिंग’ दिखा रहा था।


    "अह्ह्ह्ह!! विराट भाई!! मैं क्या करूँ इनका?? इनकी टाइमिंग हमेशा ही गलत क्यों होती है??" सम्राट ने अपने हाथों की उंगलियों में फ़ोन फँसाते हुए कहा। उसका मूड अभी ख़राब था और इस कारण वह विराट का फ़ोन नहीं उठाना चाहता था। वह जानता था कि विराट उसकी आवाज़ से ही जान जाएगा कि सम्राट का किसी न किसी से झगड़ा हुआ है। वह अभी सोच ही रहा था कि फ़ोन उठाए या न उठाए, कि तभी दौड़ती हुई आँचल सीधे उसकी पीठ से टकरा गई। सम्राट का फ़ोन, जो कि उसकी उंगलियों पर था, जमीन पर गिर गया और ना जाने कितने टुकड़ों में बंट गया। पर सम्राट ने खुद को संभालकर गिरने से बचा लिया था। अगले ही पल आँचल भी जमीन पर गिरती, अगर सम्राट उसे अपनी बाहों में न थाम लेता। आँचल बिलकुल सम्राट के सीने से लगी हुई थी।


    लगातार दौड़ते और भागते रहने के कारण आँचल की धड़कन बढ़ी हुई थी, जिसे सम्राट साफ़-साफ़ सुन पा रहा था। ऐसा नहीं था कि सम्राट ने लड़की नहीं देखी थीं। लड़कियाँ उसके आगे-पीछे तितलियों की तरह मँडराती रहती थीं, लेकिन इस समय जो लड़की उसकी बाहों में थी, वह शायद इस दुनिया की बिलकुल नहीं लग रही थी। जैसे ही उसकी नज़र आँचल के चेहरे पर पड़ी, उसकी पलकों ने झपकने से इनकार कर दिया। जाने किस एहसास के तहत उसकी भी धड़कनों ने बुलेट ट्रेन की स्पीड से भागना शुरू कर दिया था।


    आँचल झटके से होश में आई। उसने धक्का देकर उसे अपने से अलग करना चाहा, लेकिन सम्राट की पकड़ मज़बूत थी। उसने आँचल को नहीं छोड़ा, पर आँचल के धक्के से वह होश में ज़रूर आ गया था।


    "हे ब्यूटीफुल!! हू आर यू??" बेख़ुदी में उसके होठों से निकला।

    "लीव मी!! छोड़ो मुझे!!" आँचल चिल्लाई।

    पर सम्राट दिल से मुस्कुरा दिया।


    सम्राट को मुस्कुराते हुए देखकर आँचल ने लापरवाही से कंधे उचका दिए और दोनों हाथ खड़े करते हुए बोली, "सॉरी।"

    सम्राट ने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाकर आँचल का माफ़ी स्वीकार कर लिया। लेकिन अगले ही पल जैसे ही उसकी नज़र जमीन पर गिरे हुए अपने फ़ोन पर पड़ी, सम्राट गुस्से से चिल्ला उठा, "मेरा फ़ोन!!"


    सम्राट की नज़रों का पीछा करते हुए आँचल ने नीचे देखा। नीचे सड़क पर सम्राट का फ़ोन कई टुकड़ों में बंटा हुआ पड़ा था। इस नुकसान को देखकर आँचल ने धीरे से अपनी जीभ दाँतों के नीचे दबाई और चुपके से वहाँ से निकलना चाही, लेकिन सम्राट ने तेज़ी दिखाते हुए उसकी बाँह पकड़कर खींच लिया।


    "क्या है??" ब्रिटिश इंग्लिश में कहते हुए आँचल ने अपनी भौंहें उठाईं, जैसे कि उसे कुछ समझ में ही नहीं आया था।
    "तुम्हें इसके लिए पे करना चाहिए!" सम्राट ने आँखों के इशारे से अपना जमीन पर गिरा हुआ फ़ोन दिखाते हुए आँचल से कहा।
    "व्हाट??" आँचल को ज़बरदस्त हैरानी हुई।

  • 11. Love forever 💞 - Chapter 11

    Words: 1017

    Estimated Reading Time: 7 min

    "क्या है??” आंचल ने ब्रिटिश अंग्रेज़ी में कहा, भौंहें चढ़ाकर। जैसे उसे कुछ समझ ही नहीं आया हो।

    "तुम्हें इसके लिए भुगतान करना चाहिए!" सम्राट ने आँखों से जमीन पर गिरा अपना फ़ोन दिखाते हुए कहा।

    "व्हाट??" आंचल हैरान रह गई। ऐसा नहीं था कि उसके पास कार्ड नहीं था या वह भुगतान नहीं कर सकती थी, लेकिन वह अभी कार्ड इस्तेमाल नहीं करना चाहती थी। कई कारण थे। कार्ड इस्तेमाल करने से उसके यहाँ होने की खबर और लोगों को लग सकती थी, जो कि मना था।

    और इतना समय भी नहीं था कि वह सम्राट को भुगतान करके मामला निपटा ले। पीछे ना जाने कौन लोग पड़े हुए थे, जो हर पल उसके करीब आ रहे थे। उसने सम्राट को गौर से देखा।

    "क्या हुआ?? क्या देख रही हो??" सम्राट को आंचल का गौर से देखना अटपटा लगा।

    "देखने से तो भिखारियों के खानदान से नहीं लग रहे हो, तो फिर..."

    "व्हाट?? भिखारियों के खानदान से??" सम्राट आंचल के जवाब से हैरान हुआ।

    "और नहीं तो क्या?? जब भिखारियों के खानदान से नहीं हो, तो फिर इस छोटे से नुकसान के लिए रो क्यों रहे हो??" आंचल ने उसी लहजे में जवाब दिया।

    "दिमाग होश में है तुम्हारा?? कौन हो तुम और क्या बोल रही हो?? तुम्हें पता भी है कि मैं कौन हूँ??" सम्राट ने अकड़ दिखाते हुए कहा।

    "मेरा दिमाग बिल्कुल होश में है, लेकिन शायद तुम्हारा नहीं। होश में आ जाओ मिस्टर, तुम जो भी हो! मुझे तुम्हारे बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है और अगर तुमने मेरे बारे में जान लिया तो तुम्हारा जीने में दिलचस्पी खत्म हो जाएगी। तुम्हारे फ़ोन के टुकड़े जमीन पर पड़े हैं। इन्हें समेटो, उठाओ और चले जाओ, वरना इतने ही टुकड़े तुम्हारे कहीं गटर में पड़े मिलेंगे।" आंचल ने चेतावनी भरे लहजे में कहा।

    "सच में??" आंचल का रवैया और बेबाकी सम्राट को सोचने पर मजबूर कर गई। लेकिन अगले ही पल उसने दोनों हाथों से आंचल की दोनों बाहें कसकर पकड़ते हुए कहा, "तब फिर मैं भी देखता हूँ कि तुम यहाँ से बिना भुगतान किए कैसे जाती हो और रही बात गटर में टुकड़े मिलने की, अगर तुमने शिष्टाचार से भुगतान नहीं किया तो शायद मैं इतने टुकड़े..." सम्राट आगे बोलने ही वाला था कि टुकड़ों की बात याद आते ही उसके दिमाग में कुछ चमका। आज सुबह ऑफिस में उसे गिफ़्ट के रूप में मिले पार्सल में आदमी की लाश के कई टुकड़े मिले थे।

    "क्या यह लड़की एनिमी फॉरएवर ग्रुप से है??" सम्राट के दिमाग में सही समय पर सही बात आई।

    लेकिन आंचल सम्राट को समझ गई थी। उसने गुस्से से आँखें छोटी कर लीं।

    "लिसन मिस्टर!! आई डू नॉट डू इट इंटेंसली। आई एम नॉट एबल टू पे फॉर दिस। और अगर फिर भी तुम्हें तुम्हारे फ़ोन का भुगतान चाहिए तो सुबह का इंतज़ार करना... क्योंकि इस समय मैं बहुत जल्दी में हूँ।" कहकर आंचल ने पीछे देखा। जो लोग उसे पकड़ने आ रहे थे, काफी पास आ चुके थे। सम्राट अपनी सोच में उलझा हुआ था, वह किसी भी तरह आंचल को अपने साथ ले जाना चाहता था। वहीं आंचल किसी भी तरह यहाँ से भागना चाहती थी, लेकिन सम्राट ने उसकी बाहें इतनी कसकर पकड़ रखी थीं कि भागना मुश्किल हो रहा था।

    "यार, क्या मुसीबत है!!" आंचल ने चिढ़ते हुए पहली बार हिंदी में कहा। सम्राट की आँखें हैरानी से फैल गईं।

    "यू आर इंडियन??"

    "हाँ!! और तुम भी क्या इंडियन हो??" आंचल ने झूठी ख़ुशी दिखाते हुए पूछा। सम्राट ने हाँ में सिर हिलाया।

    "देखो यार!! इस विदेश में एक भारतीय को दूसरे भारतीय की मदद करनी चाहिए!! तुमने मेरा फ़ोन तोड़ा है और इस समय तुम बहुत जल्दी में हो इसलिए प्लीज़... मेरी मदद करो। तुम्हें पता नहीं है कि कितनी ज़रूरी कॉल थी??" सम्राट ने मुँह बनाते हुए कहा। सम्राट के अचानक लहज़े बदलने से आंचल हैरान रह गई।

    "मुझे तो यह भी पता नहीं कि मैं फ़ोन कहाँ से लूँगा?? कहाँ से ठीक करवाऊँगा?? तुमने तोड़ा है तो प्लीज़, इसके भुगतान को भूल जाओ, बस इसे ठीक करवा दो।" सम्राट किसी भी तरह आंचल को अपने साथ ले जाना चाहता था ताकि उससे काम की जानकारी ले सके। दूसरे शब्दों में कहें तो सम्राट के दिल और दिमाग पर आंचल का जादू चल चुका था और अब तो उसके भारतीय होने की बात सुनकर सम्राट होश खो चुके थे।

    आंचल को सम्राट की हरकत से चिढ़ हो रही थी। जो लोग उसे ढूँढ़ते हुए आ रहे थे, सम्राट के साथ उसे बात करते देखकर अपनी चाल धीमी कर ली थी, लेकिन वे आ ही रहे थे। तभी आंचल को कुछ और लड़के आते दिखे। उनके अंदाज़ से पता चल रहा था कि वे रिंग फ़ाइट वाले गुंडे हैं। उसके दिमाग में एक ख़्याल आया। उसने उन गुंडों में से एक के पैर में अपना पैर फँसा दिया और वह आदमी मुँह के बल गिर पड़ा। उसके साथ के सारे लड़के आंचल की तरफ़ पलट गए।

    "व्हाय यू डू दिस?? तुमने यह क्यों किया ??" उनमें से एक खतरनाक तेवरों के साथ आंचल की तरफ़ बढ़ा।

  • 12. Love forever 💞 - Chapter 12

    Words: 1042

    Estimated Reading Time: 7 min

    मुंबई, भारत

    कुछ गाड़ियों का काफिला रात के लगभग आठ बजे सुनसान रास्ते पर बढ़ रहा था। रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगाता शहर काफी पीछे छूट गया था। जगह-जगह लगी स्ट्रीट लाइट उनके रास्ते को प्रकाशित कर रही थीं। यह पाँच गाड़ियों का काफिला था, जिसमें आगे और पीछे दो-दो गाड़ियाँ सुरक्षा के लिए थीं। बीच वाली गाड़ी कुछ बड़ी और दूर से ही अपनी बनावट और चमक से लग्ज़रियस लग रही थी—मास्टर गाड़ी।

    बीच वाली गाड़ी में, ड्राइवर के अलावा, तीन लोग बैठे थे। तीनों ने महंगे डिनर सूट पहने थे और हाथों में कीमती राडो की घड़ियाँ थीं जिनमें लगभग एक जैसे ही हीरे जड़े थे। तीनों के सूट पर कीमती ब्रोज़ लगे हुए थे; डिजाइन भले ही अलग-अलग थे, पर तीनों पर हीरो के नगों से ‘R’ लिखा हुआ था। इन तीनों के पहनावे से साफ़ पता चल रहा था कि वे किसी डिनर पार्टी में जा रहे थे। दो की उम्र 50 से 55 साल के बीच थी, जबकि तीसरा लड़का मुश्किल से 25 साल का होगा।

    यह तीनों राणावत परिवार से थे: सबसे बड़े आशुतोष सिंह राणावत, उनके छोटे भाई आदित्य सिंह राणावत, और ड्राइवर के साथ आगे वाली सीट पर बैठे आशुतोष जी के बड़े बेटे विराट सिंह राणावत। इनके परिवार में और भी लोग थे, पर उनसे आगे मिलेंगे।

    "मुझे समझ नहीं आ रहा है, भाई साहब, कि हम आखिर राणा साहब से मिलने क्यों जा रहे हैं? जबकि उस राठौर के बहनोई को हटाने के कई रास्ते हमारे पास मौजूद हैं।" आदित्य सिंह राणावत ने अपने से कुछ साल बड़े भाई आशुतोष सिंह राणावत से पूछा।

    "और वो रास्ते कौन से हैं, आदित्य?" बिल्कुल शांत आवाज़ में कहते हुए, आशुतोष सिंह राणावत ने अपनी नज़र अपने छोटे भाई आदित्य के चेहरे पर डाली।

    "मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ता! चाहे जो हो जाए!" आदित्य ने एक-एक शब्द चबाते हुए कहा।

    "हाँ, बिल्कुल उसी तरह से जिस तरह से तुमने 22 साल पहले अपनी बंदूक उठाई थी। और उसके बाद तुम्हारा ये 'चाहे जो हो जाए!' उसने वो करवा भी दिया था।" आशुतोष सिंह राणावत ने आदित्य का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।

    आदित्य कुछ बोल नहीं पाया।

    "आधी उम्र पार कर चुके हो लेकिन अभी तक आधी अक्ल भी नहीं आई। खुद सब यही करने का सोचते हो तो, बच्चे क्या करेंगे? शिवांश सिंह को तो तुम गोली मार दोगे! लेकिन उसके बाद क्या होगा? यह सोचा भी है? वह कोई साधारण आदमी या विधायक नहीं है। वह प्रारब्ध सिंह राठौर का बहनोई है।

    और तुम भी बात अच्छी तरह से जानते हो कि उसके बाद प्रारब्ध सिंह राठौर चुप नहीं बैठेगा। फिर वही फिर तुम वही करवा दोगे 'जो ना हो!' वो कहर मचेगा जो आज से 22 साल पहले मचा था। इसलिए इस बार तुम चुपचाप शांति से बैठो। मैं नहीं चाहता कि हमें हमारी हार पर अफ़सोस करने का भी मौका मिले!"

    "इसी का तो अफ़सोस है भाई साहब! अगर राणा साहब उस समय बीच में ना पड़ते, इस प्रारब्ध सिंह राठौर का नाम ही मिट गया रहता।" आदित्य सिंह गुस्से में धीरे से बोला।

    "कौन जानता है कि प्रारब्ध सिंह राठौर का नाम मिट गया रहता या फिर हमारा ही नामोनिशान ख़त्म हो जाता?" आशुतोष सिंह राणावत ने पूछा।

    "भूल गए तुम क्या उस वक़्त हुआ था? अच्छा होगा कि तुम इस मामले में अपने इमोशन्स को कंट्रोल करके रखो! ऐसे ही मेरे सर पर बहुत सारे टेंशन हैं, मैं इस समय कोई दूसरा सरदर्द नहीं चाहता।" आशुतोष सिंह राणावत के लहजे में वार्निंग थी।

    आदित्य जी चुप होकर बैठ गए।

    "अगर राणा भाई साहब ने हमें डिनर पर बुलाया है, इसका मतलब है कि वे इस मामले पर कुछ सीरियस बात हमसे करना चाहते हैं और तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं उनकी बात नहीं काट सकता। और तुमसे भी यही उम्मीद करता हूँ कि तुम वहाँ पर चुपचाप शांति से बैठोगे।" आशुतोष सिंह राणावत ने बातचीत समाप्त करते हुए कहा।

    आदित्य जी वापस अपनी सीट पर सीधे होकर बैठ गए और आशुतोष जी ने भी अपनी नज़रें सामने कर लीं। गाड़ी में फिर शांति छा गई।

    "यस!" अचानक आगे सीट पर बैठा विराट खुशी से उछला। आशुतोष जी और आदित्य जी ने विराट की तरफ़ देखा।

    "क्या हुआ विराट?" आशुतोष जी ने पूछा। कानों में से ब्लूटूथ निकालते हुए विराट पीछे मुड़ा; निश्चित रूप से उसने इन दोनों भाइयों के बीच हो रही बात नहीं सुनी थी।

    "गुड न्यूज़ हैं डैड! हमारी कंपनी ने लंदन की टेलीकॉम इन्फो को ओवरटेक कर लिया है। अब जल्दी हम अपनी मंज़िल तक पहुँच जाएँगे।" विराट ने खुशी से बताया।

    "यह तो होना ही था!" आदित्य जी ने खुशी से उत्साहित होते हुए कहा। वहीं आशुतोष जी ने समझते हुए हाँ में सर हिलाया।

    "सम्राट की कोई खबर?" अगले ही पल आशुतोष जी ने विराट के चेहरे पर अपनी नज़रें गड़ाईं।

    "वो! वही लंदन में है!" विराट ने धीरे से बताया।

    "अब वो वहाँ क्या कर रहा है?" आदित्य जी ने हैरानी में पूछा। आशुतोष जी भी सवालिया निगाहों से विराट के ऊपर देख रहे थे।

    "छोटे पापा, इस कंपनी की डील वही देख रहा है। यह टेलीकॉम इन्फो वाली डील भी उसी ने क्रैक की है।" विराट ने बताया।

    "वो सही में कंपनी की डील देखने ही गया है ना?" अबकी बार आशुतोष जी ने अपनी एक नज़र विराट पर टेढ़ी की।

    विराट कुछ बोल नहीं पाया।

    लेकिन आशुतोष जी ने गुस्से में विराट और फिर आदित्य जी की तरफ़ बारी-बारी से देखते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। आशुतोष जी का गुस्सा अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच रहा था, जिसे देखकर विराट और आदित्य जी एक पल के लिए सहम गए थे।

  • 13. Love forever 💞 - Chapter 13

    Words: 1067

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं सच कह रहा हूँ भाई साहब!! मुझे इस मामले में कुछ नहीं पता!! पिछले तीन-चार दिनों से जब वह मुझे घर में नहीं दिखाई पड़ा, तो मैं यही सोच रहा था कि वह दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने कहीं गया है। मैंने इस बारे में घर पर पूछा भी था। आप चाहे तो भाभी से पूछ भी सकते हैं। भाभी और दीक्षा को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।" आदित्य जी ने पहले आशुतोष जी को अपनी सफाई दी और उसके बाद आदित्य जी विराट की तरफ मुड़े।

    "तुमने उससे मना क्यों नहीं किया?? तुम जानते हो ना, लंदन में सम्राट के लिए हर कदम मौत बिछी हुई है!!" अबकी बार आदित्य जी ने कुछ परेशानी से कहा।

    "मुझे कहाँ पता था कि वह लंदन जा रहा है। जब मैंने टेलीकॉम इनफॉर्मेशन के हेड ऑफिस के बारे में पूछा तो उसने कहा कि यह सिडनी में है। और मुझसे सिडनी जाने का कहकर वह लंदन के लिए निकल गया। आज सुबह लंदन से फोन करके उसने मुझे बताया कि इस कंपनी का मालिक वहीं रहता है और अब मीटिंग के लिए जा रहा है।"

    विराट की बात सुनकर आदित्य जी ने बेचैनी से अपना पहलू बदला, वहीं आशुतोष जी किसी तरह से खुद को कंट्रोल करके बैठे थे। ऐसा लग रहा था कि उनके गुस्से का ज्वालामुखी कभी भी फट सकता है।

    "आप तो जानते ही हैं पापा!! वह मेरी कोई बात नहीं सुनता।" विराट ने तेजी से सफाई दी।

    "आह्ह्ह!! तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारी कोई बात नहीं सुनता और मेरा छोटा भाई मेरी कोई बात नहीं मानता।" आशुतोष जी ने अबकी बार आदित्य जी की तरफ देखा। आदित्य जी कुछ कहते हुए नहीं बन रहा था।

    "यह दोनों छोटे पागल!! मुझे पागल करके छोड़ देंगे।" आशुतोष जी ने गुस्से में अपने सर को मसला।

    "और मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप दोनों लंदन के नाम से इस तरह से रिएक्ट क्यों कर रहे हैं?? लंदन में सम्राट के लिए कौन मुसीबत लेकर खड़ा है??" अबकी बार विराट ने उन दोनों की तरफ देखा।

    उसकी सिक्स्थ सेंस कह रही थी कि कुछ तो ऐसा जरूर है जो इन दोनों बड़ों को पता है और उसे नहीं!! और क्या सम्राट इस बारे में जानता है?? विराट के लिए यह भी एक सवाल था।

    "यह सब चीजें तुम अभी ना जानो तो ही बेहतर है। यह जगह इस बात के लिए सुरक्षित नहीं है। हम इस बारे में बाद में बात करेंगे। अभी तुम जल्दी से फोन लगाओ सम्राट को!! मुझे पता करना है कि कहीं उसने कुछ ऐसा तो नहीं किया जिसके कारण राणा भाई साहब ने हमें बुलाया है??" आदित्य जी के चेहरे पर अब हवाइयाँ उड़ रही थीं।

    "अगर ऐसा हुआ तो सब कुछ खत्म हो जाएगा!! फिर एक बार, हमारे अपनों की ही की हुई गलती से, प्रारब्ध सिंह राठौर बिना कुछ किए ही यह जंग जीत जाएगा।" आशुतोष जी ने गुस्से में आदित्य जी की तरफ देखते हुए कहा।

    अपने पापा की बात समझते हुए विराट ने सम्राट को फोन लगा दिया, लेकिन कुछ ही बेल जाने के बाद ही उसका फोन स्विच ऑफ बताने लगा। ना में सर हिलाते हुए विराट ने परेशान होकर अपने पापा की तरफ देखा।

    "फिर से ट्राई करो!!" आशुतोष जी ने कहा।

    विराट ने फिर से ट्राई किया। पर इस बार भी वही हाल था।

    "क्या हुआ??" आदित्य जी ने घबराते हुए पूछा।

    विराट अभी कुछ जवाब देता, उसके पहले ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी।

    "सर, हम पहुँच गए।"

    आशुतोष जी ने एक गहरी साँस छोड़ी और विराट और आदित्य जी की तरफ देखा।

    "सम्राट ने जो कुछ भी किया हो!! पर तुम दोनों से यही उम्मीद है कि तुम दोनों कुछ नहीं बोलोगे! कि तुम्हें सम्राट के बारे में कोई जानकारी भी है।" गाड़ी के दरवाज़े खोलने से पहले आशुतोष जी ने विराट और आदित्य को वार्निंग देते हुए कहा।

    विराट और आदित्य जी ने हाँ में सिर हिलाया। इन दोनों को अब सम्राट की चिंता हो रही थी, वहीं आशुतोष जी के चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

    इधर सम्राट पूरे मनोयोग के साथ अपने काम में लगा हुआ था। कौन सा वह काम था, जिसके पीछे सम्राट लंदन गया था? पर अब कहाँ गायब हो गया था? कौन है यह राणा साहब!! जिनसे मिलने ये लोग आए थे और क्या होने वाला था, अब यहाँ पर??


    "व्हाय यू डू दिस?? तुमने यह क्यों किया??" उनमें से एक खतरनाक तेवरों के साथ आंचल की तरफ़ बढ़ा।

    "नहीं नहीं मैंने नहीं किया।" उन गुंडों को जवाब देने के बाद आंचल ने सम्राट की तरफ़ देखा और एक आँख मार दी। आंचल की इस हरकत पर सम्राट का मुँह हैरत से खुल गया।

    पर अगले ही पल आंचल ने लड़कों के सामने मासूम सा चेहरा बना दिया। आँखों में आँखों में उसने उन लड़कों को सम्राट की तरफ़ इशारा कर दिया। जैसे कि यह काम सम्राट ने किया हो। अभी सम्राट कुछ समझ पाता, उसके पहले ही ये लड़के सम्राट से भिड़ गए थे।

    "हाउ डेयर यू??" एक लड़के ने सम्राट के सीने पर ज़बरदस्त हाथ मारते हुए पूछा। सम्राट को ऐसे किसी धक्के की आशा नहीं थी। वह लापरवाही में केवल आंचल को पकड़कर खड़ा था, इसलिए उसके धक्के से सम्राट एक कदम पीछे हो गया और आंचल उसके गिरफ्त से छूट गई। सम्राट कुछ कहता, इसके पहले ही आंचल हेलो के अंदाज में दूर से ही हाथ हिलाया और भागने लगी।

    "तुम्हारा फोन कल सुबह तक तुम्हें मिल जाएगा। बट आई एम गोइंग बिकॉज़ माय फ्रेंड आर कमिंग।" आंचल आराम से कहते हुए निकल गई, लेकिन ये लड़के अब सम्राट से उलझ पड़े थे।

    एक जोरदार बहस और मारपीट वहाँ शुरू हो गई थी। तभी सामने से पुलिस की गाड़ी भी सायरन बजाते हुए वहाँ पहुँच गई।

    सम्राट इन लड़कों को समझाने की कोशिश कर रहा था कि यह काम उसने नहीं किया। पर ये लड़के मारपीट पर उतारू थे। अनजान देश में इस तरह से सरेराह वह मारपीट भी नहीं कर सकता था और अब जब पुलिस यहाँ पहुँच गई थी तो पुलिस ने बिना कोई बात सुने ही इन सबको पुलिस स्टेशन ले जाने का फरमान सुना दिया था। क्योंकि ये लड़के हर दिन कोई न कोई पंगा करते ही रहते थे।

    और सम्राट की कोई बात पुलिस सुनने को तैयार ही नहीं थी।

  • 14. Love forever 💞 - Chapter 14

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    सम्राट देखने से ही भारतीय लग रहा था। पुलिस ने उससे कागज़ माँगे जो उस समय उसकी जेब में नहीं थे, और उसका फ़ोन पहले ही ख़राब हो चुका था।

    "तुम जो भी हो, लड़की!! छोडूँगा नहीं तुम्हें!! भगवान से प्रार्थना करना कि हमारी अगली मुलाक़ात न हो, और अगर अगली मुलाक़ात हुई तो फिर तुम देखना।" सम्राट ने बेहद अफ़सोस के साथ उस ओर देखा जहाँ आंचल भागी थी और पुलिस की गाड़ी में चुपचाप बैठ गया।

    उसने माहिर को फ़ोन करने के लिए अपनी जेब में हाथ डाला, लेकिन फ़ोन पहले ही गिरकर टूट चुका था। पर सम्राट की जेब में एक पर्ची ज़रूर पड़ी हुई थी, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में 'सॉरी' लिखकर एक स्माइली बनाया हुआ था। सम्राट समझ गया कि यह काम ज़रूर उसी लड़की का होगा। इस मुसीबत में भी सम्राट के होठों पर एक दिलचस्प मुस्कराहट आ गई।

    "अगली मुलाक़ात जल्दी ही होगी, डियर।"


    मुंबई (भारत)

    राणा पैलेस

    सदियाँ बीत गई थीं, लेकिन इस महल की शान और शौकत कभी कम नहीं हुई थी। आज भी इस पैलेस का एक रुतबा था, और इस घर में रहने वालों का भी!

    और लोगों का कहना था कि जब तक राणा साहब हैं, तब तक यह रुतबा कभी कम नहीं होगा। और ये राणा साहब हैं, इस खूबसूरत आलीशान पैलेस के मालिक अमरकांत सिंह राणा।

    अमरकांत सिंह राणा, उम्र करीब 60 साल, दमदार पर्सनालिटी के मालिक थे। इस उम्र में भी उनकी ऊर्जा अच्छे-अच्छे नौजवानों को पीछे छोड़ देती थी।

    इनकी पार्टी 165 विधायक और 30 सांसदों के साथ केंद्र की सरकार को भी हिलाने की ताकत रखती थी, और प्रदेश की सरकार तो इनकी उंगलियों पर ही चलती थी। एक तरह से पूरी मुंबई पर इनकी समानांतर सरकार चलती थी, क्योंकि इनकी बात काटने का पॉवर न तो इस प्रदेश की सरकार में था और न ही इस देश की सरकार में।

    वैसे तो राणा साहब बड़े ही सफ़ेदपोश लोगों में आते थे, लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि वे अंडरवर्ल्ड के बेताज बादशाह से भी दो कदम आगे हैं। क्योंकि अगर मुंबई में राज करने का सपना हो, तो अंडरवर्ल्ड पर पकड़ मज़बूत होनी चाहिए। मुंबई की राजनीति से अंडरवर्ल्ड को अलग नहीं किया जा सकता था।

    फ़िलहाल तो मुंबई के अंडरवर्ल्ड में कहने को तो सिर्फ़ दो लोगों का राज चलता था, जो आपस में कट्टर दुश्मन थे।

    आशुतोष सिंह राणावत और प्रारब्ध सिंह राठौर!

    जो पूरी मुंबई पर अपना सिक्का चलाते थे।

    पर उन दोनों पर भी जिस किसी का राज चल सकता था, वह थे -

    अमरकांत सिंह राणा उर्फ़ राणा साहब।

    मुंबई शहर से कुछ दूर हटकर समुद्री तट पर यह आलीशान घर होने के कारण, इस पैलेस की बात कुछ अलग ही थी। आज राणा पैलेस की सजावट कुछ इस तरह से की गई थी कि जैसे लग रहा था कि यहाँ पर कोई डिनर पार्टी आयोजित होने वाली है।

    और इस डिनर पार्टी का उसी तरह से इंतज़ाम भी करवाया हुआ था। देश-विदेश से मेहमान इस डिनर पार्टी में इकट्ठे हुए थे। समुद्र तट पर काफ़ी दूर तक इनके पार्टी करने का सामान था।

    इस पार्टी में राणा साहब ही ग़ैर-मौजूद थे। वे अभी तक अपने पैलेस से बाहर नहीं निकले थे।

    बड़े लोग, बड़ी बात!!!

    पर सारे मेहमान राणा साहब की मेहमान-नवाज़ी की दिल खोलकर तारीफ़ कर रहे थे।

    राणा पैलेस में अधिकांशतः इस तरह की पार्टियाँ आयोजित की जाती थीं।

    तभी राणा पैलेस के दरवाज़े पर आकर एक बड़ी सी काली गाड़ी आकर रुकी। उसके ठीक पीछे तीन और गाड़ियाँ आकर रुकीं। उनमें से बॉडीगार्ड उतरे और आगे की तरफ़ हाथ बाँधकर खड़े हुए।

    गाड़ियों के रुकते ही गार्ड ने राणा पैलेस का बड़ा गेट खोल दिया था। तभी बीच वाली गाड़ी में से करीब 25 साल का एक लड़का उतरा और दूसरी तरफ़ से उसकी उम्र का एक और लड़का निकला। पहले वाली गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला गया, तो उसमें से करीब पचास की उम्र का एक रौबदार आदमी निकला। अपने कोट के आगे के बटन को बंद करता हुआ वह आदमी जैसे ही पैलेस के गेट की तरफ़ बढ़ा-

    ये हैं, मिस्टर प्रारब्ध सिंह राठौर!!

    फ़िलहाल में आधे से अधिक मुंबई पर इन्होंने ही कब्ज़ा कर रखा था और इनके साथ जो दो लड़के थे, एक तो इनका बेटा अमोघ सिंह राठौर था, तो दूसरा भांजा अर्जुन सिंह! ये दोनों इनके दोनों हाथों की तरह दाहिने-बाएँ रहते थे।

    जिसके कारण इस समय प्रारब्ध सिंह राठौर से हाथ मिलाने वाला पूरी मुंबई में कोई नहीं था।

    ठीक उसी समय दूसरी साइड से भी एक काली गाड़ी आकर रुकी।

    सब उसी तरफ़ देखने लगे।

    उधर से भी करीब पाँच गाड़ियाँ आकर रुकी थीं और उनमें से बीच वाली गाड़ी में से सबसे पहले विराट सिंह राणावत उतरा और फिर उसके बाद समर्थ सिंह राणावत और आशुतोष सिंह राणावत उतरे। सब एक साथ राणा पैलेस के दरवाज़े की तरफ़ बढ़े।

    मेन गेट पर आशुतोष सिंह राणावत और प्रारब्ध सिंह राठौर एक साथ एक-दूसरे के आमने-सामने थे।

    आशुतोष सिंह राणावत और प्रारब्ध सिंह राठौर दोनों ने एक-दूसरे की तरफ़ आग उगलती हुई आँखों से देखा और चुपचाप गेट के अंदर से जाकर गार्डन की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। दोनों अलग-अलग साइड से सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे और उनके पीछे-पीछे उनके परिवार वाले और फिर वफ़ादार थे।

    तभी पैलेस के अंदर से अमरकांत सिंह राणा खुद निकलकर बाहर आए। जैसे कि इन्हीं लोगों का इंतज़ार कर रहे थे।

    "आ गए तुम दोनों!!"

    "जी, भाई साहब!!" प्रारब्ध सिंह राठौर और आशुतोष सिंह राणावत के मुँह से एक साथ निकला। राणा साहब मुस्कुरा दिए। उन्होंने दोनों को गले से लगाया और फिर कहा, "अंदर चलो। अंदर चलकर बात करते हैं।"

    दोनों ने एक साथ सिर हिलाया और अपने आदमियों को इशारा किया। जितने इनके वफ़ादार इनके साथ आए थे, सब समुद्र तट पर पार्टी के लिए बढ़ गए। बाकी बस परिवार वाले बचे रह गए।

    तीन इस तरफ़, तीन उस तरफ़।

    अमरकांत सिंह राणा के अंदर जाते ही सब पीछे-पीछे अंदर चले गए और बाकी राणा साहब के वफ़ादारों ने महल का दरवाज़ा बंद कर दिया।

  • 15. Love forever 💞 - Chapter 15

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    राणा महल के अंदर, हॉल में एक बड़ी कुर्सी पर अमरकांत सिंह राणा बैठे थे। उनके इर्द-गिर्द दो आदमी खड़े थे: शहर के डीजीपी और मेयर। सामने वाली कुर्सियों पर राणावत और राठौर परिवार बैठे थे।

    आशुतोष सिंह राणावत और प्रारब्ध सिंह राठौर एक-दूसरे को तीव्रता से घूर रहे थे।

    राणा साहब ने दुःख के साथ दोनों की ओर देखा और कहा, "बस करो यार!! कितनी बार कहा है कि कम से कम मेरे सामने तो शांत रहा करो, लेकिन अब लगता है तुम लोग मेरी बात नहीं मानना चाहते!!"

    दोनों ने तुरंत अपनी निगाहें राणा साहब की ओर कर लीं और आँखें झुका लीं।

    "ऐसा कुछ नहीं है भाई साहब। कहिए, किस लिए बुलाया है?" प्रारब्ध सिंह राठौर धीरे से बोला।

    "बताता हूँ, लेकिन आज कितने समय बाद मेरे बच्चे मेरे घर आए हैं। जरा उनसे हाल-चाल पूछ लेने दो। कहो अमोघ और अर्जुन, कैसे हो?"

    दोनों ने हल्के से मुस्कुराकर सिर झुकाया।

    "मानना पड़ेगा तुम लोगों को!! इतनी कम उम्र में इतनी समझदारी से जिस तरह से तुम लोगों ने बिज़नेस संभाल लिया है, वह तो इस उम्र में तुम्हारे बाप के अंदर भी नहीं थी।" राणा साहब ने मुस्कुराते हुए अमोघ और अर्जुन से कहा, पर नज़रें प्रारब्ध की ओर थीं।

    "हाँ!! आपकी नज़र में, मैं बहुत बड़ा नालायक था, और शायद पूरी ज़िन्दगी नालायक ही रहूँगा।" प्रारब्ध सिंह राणावत ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।

    प्रारब्ध की बात सुनकर राणा साहब खुलकर हँस पड़े।

    "शायद तुम्हें पता नहीं प्रारब्ध!! पर बुढ़ापे में सबसे ज़्यादा लायक, नालायक औलाद ही निकलती है।"

    "जहानसीब!!" प्रारब्ध सिंह राठौर ने हल्के से सिर झुकाया। "मेरी खुशकिस्मती होगी कि मैं आपके लिए कभी तो लायक साबित हो सकूँगा।"

    "और तुम बताओ!! विराट, तुम कैसे हो??" राठौर परिवार से हाल-चाल पूछने के बाद राणा साहब अब राणावत परिवार की ओर मुड़े।

    विराट ने हल्के से मुस्कुराते हुए सिर झुकाया।

    "और सम्राट कहाँ है?" राणा साहब ने इधर-उधर देखते हुए, कुछ कड़े शब्दों के साथ पूछा।

    कुछ देर तक किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। विराट आशुतोष जी की ओर देख रहा था, और प्रारब्ध सिंह राठौर, भले ही जता नहीं रहे हों, पर साफ़ पता चल रहा था कि वह भी इस सवाल का जवाब जानना चाहते थे।

    "कहीं अब मेरा शक भी यकीन में ना बदल जाए कि यह मीटिंग सम्राट के कारण ही इकट्ठी की गई है!!" आशुतोष सिंह राणावत ने अपनी आँखें बंद कर लीं। जिस सवाल से वह बचना चाहते थे, वह सवाल सामने आ गया था।

    पूरे हॉल में बिल्कुल शांति छा गई थी। अचानक कमरे का तापमान गिरने लगा था। धड़कनों की आवाज़ इतनी तेज थी कि एक-दूसरे की धड़कन, घड़ी की सुई से भी तेज, सबको सुनाई पड़ रही थी।

    "बताते क्यों नहीं हो?? सम्राट कहाँ है?" अबकी बार राणा साहब ने कुछ तेज आवाज़ में पूछा।


    इधर, पुलिस स्टेशन में,

    "व्हाट इज़ योर नेम?" पुलिस स्टेशन में अधिकारी ने पूछा।
    "सम्राट सिंह राणावत।" सम्राट ने एक लाइन में जवाब दिया।
    "राणावत!!!" सरनेम सुनकर पुलिस अधिकारी ने उसे ऊपर से नीचे तक इस तरह देखा जैसे उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
    सम्राट उसके इस तरह से देखने पर हड़बड़ा गया। "लगता है कि किसी राणावत के साथ इसका पाला पड़ चुका है और उसके कारनामों से यह परेशान है। कहीं मैं दूसरी जगह ना फँस जाऊँ??" वह फिलहाल कोई भी मामला नहीं चाहता था क्योंकि उसके पास बहुत सारे काम पेंडिंग पड़े थे।

    "सर, प्लीज़ चेक माई डॉक्युमेंट्स।" सम्राट ने तेज़ी से कहा। हालाँकि अभी उसके पास कोई डॉक्युमेंट्स नहीं था। यह बात वह भी जानता था, लेकिन अगर पुलिस अधिकारी उसकी बात सुनता तो शायद वह माहिर से संपर्क करने की कोशिश करता।
    "सॉरी सर!! बट नो नीड ऑफ़ एनी डॉक्युमेंट्स। हमारे अधिकारियों को कोई गलतफ़हमी हुई है। उम्मीद करता हूँ कि आप हमें इस गलती के लिए माफ़ कर देंगे।" पुलिस अधिकारी झटके से अपनी कुर्सी छोड़कर खड़ा हुआ और उसने नमस्कार की मुद्रा में अपने दोनों हाथ जोड़ दिए। सम्राट हैरान हो गया।

    "हैं!! क्या आप मुझे जानते हैं?"
    "आपको कौन नहीं जानता, सर?? हम तो आपके फ़ादर को भी जानते हैं। रियली सॉरी दैट!! प्लीज़ उनसे कुछ मत कहना। मैं अपने पूरे स्टाफ़ की तरफ़ से आपसे माफ़ी माँगता हूँ।" पुलिस अधिकारी ने बेहद घबराते हुए शालीनता के साथ कहा। इस ठंड में भी उसके माथे पर पसीने की बूँदें झलक रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे सम्राट को वहाँ देखकर उसकी नौकरी खतरे में पड़ गई है।

    "ये डैड को जानता है?? पर ऐसा कैसे हो सकता है??" सम्राट अपने मन में सोच रहा था।
    "डैड तो यहाँ कभी नहीं आए तो फिर ?? खैर, जो भी हो। मुझे किसी तरह से यहाँ से निकलना है।" सम्राट ने अपनी सोच को दरकिनार किया और फिर पुलिस वाले से पूछा।

    "क्या मैं एक फ़ोन कर सकता हूँ?"
    "आपको पूछने की क्या ज़रूरत है सर?? ये पुलिस स्टेशन आपका ही है। आप जो चाहें कर सकते हैं।" पुलिस वाले ने झटके से अपना फ़ोन और सामने पड़ा हुआ टेलीफ़ोन दोनों ही सम्राट के आगे कर दिया, साथ में एक कॉन्स्टेबल को बुलाकर सम्राट के लिए कोल्ड ड्रिंक का ऑर्डर किया, जिसे सम्राट ने थैंक्यू कहते हुए मना कर दिया। सम्राट को जबरदस्त हैरानी हो रही थी। अभी तक जो पुलिस वाले उसकी बात सुनने को तैयार नहीं थे, अभी उसकी एक वीआईपी की तरह रिस्पेक्ट कर रहे थे।

    उसने अपना सिर झटका। सम्राट ने अपने दिमाग पर ज़ोर डालकर माहिर का नंबर निकाला और उसे कॉल किया।
    दो या तीन बेल पर ही माहिर ने फ़ोन उठा लिया था।
    "कहाँ हो तुम?"

  • 16. Love forever 💞 - Chapter 16

    Words: 1135

    Estimated Reading Time: 7 min

    दो-तीन बजते ही माहिर ने फ़ोन उठा लिया था।
    "कहाँ हो तुम?"

    "मैं तो अपार्टमेंट में ही हूँ सर! आप कहाँ हैं?" सम्राट की आवाज़ पहचानकर माहिर ने पूछा।
    "मैं यहाँ पुलिस स्टेशन में हूँ! जितनी जल्दी हो सके, यहाँ आओ।"

    पुलिस स्टेशन का नाम सुनकर माहिर घबरा गया था। वह हवा की गति से गाड़ी लेकर आया और साथ में वकील को भी, पर उसकी ज़रूरत नहीं पड़ी। पुलिसवालों ने माफ़ी माँगते हुए सम्राट को पहले ही छोड़ दिया था।

    "मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि पुलिस वाले डैड को कैसे जानते हैं?" गाड़ी में बैठते ही, जो उलझन सम्राट के दिल में थी, वह उसके होठों से निकल ही आई।
    "आपके पिता को कौन नहीं जानता सर? पूरे लंदन में उनके नाम का डंका बजता है।" वकील ने भी मुस्कुराते हुए कहा।
    "मेरे डैड?" सम्राट ने अपनी ओर इशारा करते हुए कहा।
    "हाँ सर!"
    "पर पुलिस वाले को किसने बताया कि मैं अपने डैड का बेटा हूँ? उन्होंने ना तो मेरे डैड का नाम पूछा और ना ही मेरा पता निकलवाया। फिर?" सम्राट को जबरदस्त हैरानी हो रही थी।

    उसके पिता नामी-गिरामी बिज़नेसमैन थे, राजनीति में आने की राह पर थे। पर इस अनजाने देश में उनकी इतनी अच्छी पकड़ होगी, यह उसे नहीं पता था।
    "उसकी क्या ज़रूरत है सर? आपके हाव-भाव, चलने का ढंग, बोलने का तरीका, आपका रवैया, सब कुछ आपके उनके बेटे होने की बात कह देता है!" वकील ने कहा।
    "कमाल की बात है! मेरे डैड तो मुझे पूरे परिवार से अलग समझते हैं और मुझे अपने डैड की कार्बन कॉपी लगता हूँ।" सम्राट ने धीरे से कहा।

    "पर सर आप पुलिसवालों के पास कैसे आये? क्या आप रास्ता भटक गए थे?" माहिर ने पूछा। जवाब में सम्राट ने उसे घूर कर देखा। माहिर ने अपने होठों पर उंगली रख ली। अगले ही पल वे सब सम्राट सिंह के अपार्टमेंट में थे, जहाँ सम्राट सिंह ने उस रिंग फाइटिंग के रास्ते पर मिले लड़के को कैद करके रखवाया था।

    "उस लड़के ने अपना मुँह खोला क्या? क्या बताया उसने 'एनिमी फॉरएवर' के बारे में?" लिफ्ट का बटन दबाते हुए सम्राट ने पूछा।
    माहिर ने इनकार में सिर हिला दिया।
    "सर, हमने बहुत कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं है।"
    "तैयार नहीं था! अब तैयार हो जाएगा!" लिफ्ट से बाहर निकलते हुए, सर्द आवाज़ में सम्राट ने कहा। यह सुनकर माहिर काँप उठा। सम्राट के इरादे बहुत खतरनाक लग रहे थे।

    "फ़िलहाल के लिए तुम मेरे लिए एक फ़ोन का इंतज़ाम कराओ और उसी नंबर की सिम लगवाकर लाना। तब तक मैं इसके मुँह से जानकारी निकलवाता हूँ, और इस बात का ध्यान रखना कि मुझे कोई डिस्टर्ब ना करे।" अपार्टमेंट का दरवाज़ा खोलते हुए सम्राट ने कहा।
    माहिर ने हाँ में सिर हिलाया और तेज़ी से वहाँ से भाग गया। वकील पहले ही जा चुका था। अब अपार्टमेंट में केवल दो लोग बचे हुए थे: वह लड़का और सम्राट।

    लड़के को हॉल के बीचों-बीच बाँधकर रखा गया था। उसकी हालत देखकर लग रहा था कि उसका मुँह खुलवाने के लिए उसे बहुत मारा-पीटा गया है। सम्राट आगे बढ़कर लड़के को खोल दिया।
    "यू कैन गो नाउ!" सम्राट ने आराम से कहा।
    "व्हाट?" अंग्रेज़ी लड़का हैरान रह गया।
    "यस! पर मुझे इसके बारे में जानकारी चाहिए।" सम्राट ने एक लोगो लड़के के सामने रखते हुए कहा। लड़के ने एक पल सम्राट को गौर से देखा और फिर पूछा, "सर, आप तो किसी की भी जानकारी निकलवा सकते हो, फिर मुझसे क्यों पूछ रहे हो?" लड़के ने अदब से सिर झुकाते हुए कहा।

    लड़के के बदले हुए तेवर को देखकर सम्राट हैरान रह गया, पर उसने अपनी हैरानी चेहरे पर नहीं झलकने दी।
    "मैंने तुमसे पूछा है, जानकारी मिलेगी या नहीं?"
    "मिल जाएगी सर।"

    सम्राट ने हाँ में सिर हिलाया। कुछ तो ज़रूर बड़ा झोल था, जो ये लोग उसे कोई और समझ रहे थे। पर कौन? और क्या समझ रहे थे? जिसे समझने में सम्राट उलझ रहा था। पर जो भी हो, उसे यह पहेली सुलझानी थी।

    इधर राणा साहब को जवाब देने में आशुतोष सिंह राणावत उलझ रहे थे। पर उनकी यह उलझन सुलझने का नाम नहीं ले रही थी क्योंकि राणा साहब अब अपने सवाल के जवाब के लिए उनकी ओर ही देख रहे थे।

    "कहो विराट! सम्राट कहाँ है?" राणा साहब ने दोबारा विराट से पूछा। विराट ने घबराहट से अपनी आँखें बंद कर लीं क्योंकि आशुतोष जी ने गाड़ी में ही विराट को वार्न किया था कि सम्राट के बारे में किसी से कुछ नहीं कहना है।

    पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया था। अचानक कमरे का तापमान गिरने लगा था। धड़कनों की आवाज़ इतनी तेज थी कि एक-दूसरे की धड़कन, घड़ी की सुई से भी तेज, सबको सुनाई दे रही थी।

    "बताते क्यों नहीं हो? सम्राट कहाँ है?" अबकी बार राणा साहब ने कुछ तेज आवाज़ में पूछा।
    "उसके बारे में कुछ ना कहा जाए तो बेहतर होगा भाई साहब। जाने कहाँ अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता है। घर पर टिके तब तो कोई उसे कहीं साथ लेकर जाए या फिर उससे कोई काम कहा जाए। उसके तो अपने ही काम ख़त्म नहीं होते!" जवाब आशुतोष सिंह राणावत की ओर से आया। आशुतोष की बात सुनकर राणा साहब ने एक तीखी नज़र समर्थ पर डाली और मुस्कुरा दिए।

    "कभी-कभी दाहिने हाथ को खबर नहीं होती कि बायाँ हाथ क्या कर रहा है आशुतोष!"
    "क्या मतलब भाई साहब?" आशुतोष सिंह राणावत ने पूछा। जवाब में राणा साहब खुलकर हँस पड़े।
    "दोनों हाथ तुम्हारे हैं आशुतोष! अपने दोनों हाथों पर नज़र बनाए रखो। क्या पता तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम्हारा बायाँ हाथ कुछ नहीं करता, लेकिन वह तुम्हारे दाहिने हाथ से कुछ ज़्यादा ही काम करता हो। जिसे तुम नालायक और दोस्तों में मस्ती करने वाला कह रहे हो, क्या पता उसी ने तुम्हारे घर को संभाल रखा हो। नींव के पत्थर कभी भी किसी को दिखाई नहीं पड़ते! लेकिन सच्चाई यही होती है कि उन्होंने पूरे घर के बोझ को संभाल रखा होता है।

    चलो, खैर छोड़ो इन सब बातों को! मैंने तुम लोगों को जिस चीज के लिए इस डिनर पार्टी में बुलाया था, मैं उस मामले पर आता हूँ।" अमरकांत सिंह राणा ने दोनों तरफ़ अपनी नज़र घुमाते हुए कहा।

    प्रारब्ध सिंह राठौर और आशुतोष सिंह राणावत सीधे होकर बैठ गए और दोनों के कान अमरकांत सिंह राणा की अगली बात को सुनने के लिए लगे थे।

  • 17. Love forever 💞 - Chapter 17

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    "तुम दोनों जानते हो कि विधायिका के चुनाव होने वाले हैं। प्रदेश में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की बने, उसकी कमान हमेशा राणा पैलेस में रहती है।"

    "जी, भाई साहब! इसमें तो कोई शक नहीं है।" आशुतोष सिंह राणावत बोले।

    "पर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि इस बार हमारे घर के आपसी फूट के कारण प्रदेश में सरकार भी दूसरी पार्टी की बनेगी और उसकी कमान भी कहीं और चली जाएगी। बंदरों की लड़ाई में बिल्ली रोटी खा जाती है। क्यों?" अमरकांत सिंह राणा ने प्रारब्ध सिंह राठौर और आशुतोष सिंह राणावत के चेहरे पर अपनी नज़र जमा दी। दोनों कुछ बोल नहीं पा रहे थे।

    "मैंने हमेशा से ही मुख्यमंत्री का पद छोड़ रखा है, तुम दोनों चाहे किसी को भी उस पद पर बिठा दो। लेकिन वह आदमी अपना होना चाहिए। अगर वह अपना नहीं होगा तो हम कुछ नहीं कर पाएँगे। यह बात तुम लोग भी जानते हो और समझते भी हो। तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है?" अमरकांत सिंह राणा ने कुछ तेज आवाज़ में पूछा।

    दोनों के पास कोई जवाब नहीं था। समर्थ जी कुछ बोलना चाहते थे, लेकिन आशुतोष सिंह राणावत ने उनका हाथ पकड़कर आँखों ही आँखों में चुप रहने का इशारा किया।

    "मेरे पास खबर आई है कि तुम दोनों इस बार इलेक्शन में अलग-अलग कैंडिडेट को सपोर्ट कर रहे हो। राठौर की तरफ से हमारे बहनोई जी शिवांश सिंह उतरना चाह रहे हैं, जो कि पहले से ही विधायक हैं और राणावत की तरफ से सीधे आशुतोष इस बार इलेक्शन लड़ना चाहते हैं।" राणा साहब ने दोनों की तरफ़ नज़रें जमाते हुए कहा। दोनों ने अपना सिर झुका लिया।

    "इसमें सिर झुकाने वाली बात नहीं है। कुर्सी एक है और उस कुर्सी पर एक ही विराजमान होगा। तुम दोनों मेरे अपने हो और मेरे लिए मेरे दोनों हाथों का बराबर महत्व है। इसलिए मैं किसी को भी सपोर्ट नहीं करूँगा।

    लेकिन क्या तुम दोनों को सबसे बड़े सपोर्टर के बारे में पता है?" अमरकांत जी ने पूछा। आशुतोष जी ने समर्थ और विराट की तरफ़ देखा, जैसे आँखों ही आँखों में उन लोगों से उसके बारे में जानना चाहते हों। लेकिन दोनों ने इनकार में सिर हिलाया। वही हाल प्रारब्ध सिंह राठौर का भी था। उन्होंने अर्जुन और अमोघ की तरफ़ देखा। उन दोनों ने भी इनकार में सिर हिलाया था। तब दोनों ने एक साथ अमरकांत सिंह राणा की तरफ़ देखा।

    "बहुत हैरानी की बात है! तुम लोगों को यह भी नहीं पता?" अमरकांत जी ने जैसे हँसते हुए इन दोनों का मज़ाक उड़ाया।

    "सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन उन सपनों को पूरा करने के लिए क्या-क्या पहले हासिल करना है? यह भी पता होना चाहिए। अंधेरे में तीर चलाने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला!! ऐसे ही तुम दोनों आपस में लड़ते रहते हो। किसी तीसरे को तुम दोनों के बीच से रोटी लेकर जाते देर नहीं लगेगी।

    जब तुम दोनों इस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्ज़ा चाहते हो तो तुम्हें इस बारे में ज़रूर पता होना चाहिए था कि आखिर कौन है जो प्रदेश की सरकार का सबसे बड़ा गेम चेंजर है।"

    "इस तरह से पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हैं भाई साहब? आप ही बता दीजिए ना वह कौन है!" प्रारब्ध सिंह राठौर ने तेज़ी से कहा।

    "राजवीर सिंह चौहान!!" अमरकांत जी ने एक शब्द में उसका नाम लिया। राजवीर सिंह चौहान का नाम सुनकर आशुतोष जी और प्रारब्ध जी दोनों ही लगभग अपनी-अपनी कुर्सियों से उछल पड़े थे।

    "हाँ, राजवीर सिंह चौहान!! प्रदेश की सरकार का सबसे बड़ा गेम चेंजर वही है और सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी पार्टी के अलावा जितने भी कैंडिडेट हैं या फिर जितने भी विधायक चुने जाएँगे, वह सब उसी को सपोर्ट करेंगे!! जिससे कि राजवीर सिंह चौहान चाहेगा। मेरी बात का मतलब समझ रहे हो ना!!" अमरकांत जी ने बताने के बाद दोनों से पूछा।

    दोनों ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया।

    "तुम दोनों अच्छी तरह से जानते हो कि राजवीर सिंह चौहान कितना ढीठ आदमी है! उसने अभी डिसीजन नहीं लिया है कि वह आने वाले इलेक्शन में किसको सपोर्ट करेगा। इसलिए अगर तुम लोगों में से किसी को भी अपनी जीत चाहिए तो राजवीर सिंह चौहान को अपने सपोर्ट में करना होगा और जिसके सपोर्ट में राजवीर सिंह चौहान का वोट होगा, मेरा भी वोट उधर ही जाएगा। कहने का मतलब है कि हमारी पार्टी के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा वही होगा। चाहे वह शिवकांत जी हों या फिर आशुतोष!! मेरे लिए दोनों ही बराबर हैं।" अमरकांत सिंह राणा ने अपने पत्ते खोलते हुए कहा।

    "आज से पहले इस प्रदेश में जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं, सबके नाम राजवीर ने ही मुझे सुझाए थे। और मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था।" अमरकांत जी ने अफ़सोस से बताया।

    अमरकांत सिंह की बात सुनकर राठौर और राणावत के चेहरे पर एक गुस्से और तनाव की लकीर खिंच गई थी।

    "पर अब जब मेरे दोनों भाई, खुद मेरे दोनों हाथ बनकर मेरे सपोर्ट पर उतरे हैं। दोनों खुद इस प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनना और बनना चाहते हैं। तो मैं चाहूँगा कि तुम दोनों मिलजुल कर यह काम करो ताकि जो फाँस मेरे दिल में आज तक चुबी हुई है, वह निकल सके। बोलो!! यह काम कर सकोगे?" अमरकांत जी ने उन दोनों से पूछा, लेकिन अभी दोनों में से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि एक-दूसरे को घूरते हुए देख रहे थे।

    "मैं नहीं जानता कि तुम लोग किस तरह से राजवीर सिंह चौहान को अपने सपोर्ट में करोगे!! लेकिन मेरी एक बात ज़रूर ध्यान में रखना! राजवीर सिंह को मनाने के लिए एक-दूसरे पर अटैक करने की ज़रूरत नहीं है। आपस में बिल्कुल मत उलझना और इलेक्शन तक तो बिल्कुल नहीं!! अगर मुझे अपना बड़ा भाई मानते हो तो मेहरबानी करके शांत ही रहना।

    मैं इलेक्शन में हार जाऊँ, कोई बात नहीं!! हमारी पार्टी हार जाए, कोई बात नहीं!! लेकिन मेरा परिवार नहीं टूटना चाहिए और तुम दोनों मानो या ना मानो पर तुम दोनों ही मेरे परिवार का अटूट हिस्सा हो।"

    "ऐसा मत बोलिए भाई साहब!!" प्रारब्ध सिंह और आशुतोष सिंह एक साथ बोले।

    अमरकांत जी मुस्कुरा दिए।

  • 18. Love forever 💞 - Chapter 18

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    राठौर और राणावत को एक साथ बोलते हुए देखकर अमरकांत सिंह राणा मुस्कुरा दिए थे।

    "इसीलिए तो तुम दोनों को एक साथ बुलाकर यहाँ अपने दिल की बात कही है, क्योंकि तुम देख रहे हो कि इस शहर के मेयर और आईजी दोनों यही फरियाद लेकर मेरे पास आए हैं।" आशुतोष सिंह राणा ने अपने दाएँ-बाएँ खड़े मेयर और आईजी की तरफ देखते हुए कहा।


    "साले कमीने, फरियाद लेकर आए हैं?? सीधे क्यों नहीं बोलते, ये दोनों कमीने हमारी चुगली लेकर आपके सामने आए हैं।" प्रारब्ध सिंह के मुँह से धीरे से निकला। अमरकांत सिंह राणा के साथ-साथ आशुतोष सिंह राणावत के होंठ भी ना चाहते हुए मुस्कुराने लगे, लेकिन किसी और की नज़र में आने से पहले उसने अपनी मुस्कुराहट अपने होठों में ही दबा ली।


    "ठीक है!! तो अब तुम लोग अपना-अपना काम देखो।" अमरकांत जी कुछ मुस्कुराते हुए अपनी कुर्सी से उठकर खड़े हुए, लेकिन उनके पीछे खड़े मेयर और आईजी काँप रहे थे क्योंकि प्रारब्ध सिंह राठौर उनकी तरफ ही देख रहे थे।

    "अरे छोड़ दो प्रारब्ध उनको!! अब क्या आँखों से बच्चे की जान ले लोगे??" अमरकांत जी ने प्रारब्ध सिंह के कंधे पर हाथ रखा।
    प्रारब्ध सिंह ने हल्के से अपनी निगाहें नीची कर लीं।

    "मैंने तुम लोगों के लिए आज रात डिनर का इंतज़ाम एक साथ अपने ही यहाँ किया है। उम्मीद करता हूँ कि तुम लोग मुझे निराश नहीं करोगे।"

    "कैसी बात करते हैं भाई साहब!!" प्रारब्ध और आशुतोष एक साथ उठकर खड़े हुए।

    "बच्चन, माही से कहो कि डिनर टेबल पर लगाए। हम सब आ रहे हैं।" राणा साहब ने अपने खास आदमी बच्चन से कहा। माही का नाम सुनते ही विराट और अमोघ ने एक-दूसरे की तरफ घूर कर देखा, वहीं अर्जुन के चेहरे पर मुस्कान आ गई।


    एक बड़े से टेबल पर राणा साहब सेंटर में बैठे और एक साइड राठौर और दूसरी तरफ राणावत फैमिली बैठी हुई थी। खाना खाने तक बिल्कुल शांति थी।


    बीच-बीच में राणा साहब ही कुछ बोलते थे तो दोनों सर हिलाकर उसका जवाब देते थे। राणा साहब ने ज़्यादातर बातें अमोघ, अर्जुन और विराट से ही कीं। लेकिन इसमें भी उनकी पारखी नज़रों से अमोघ और विराट को एक-दूसरे की तरफ बात-बात में देखना, छुपा हुआ नहीं था। दोनों कभी मुस्कुराते थे, तो कभी एक-दूसरे की तरफ घूर कर देखते थे। राणा साहब इस चीज़ को नोटिस कर रहे थे, पर बाकी यह सब आशुतोष जी और प्रारब्ध जी की नज़रों से छुपा हुआ था।


    "क्या चल रहा है इन दोनों लड़कों के बीच? कहीं ये अपनी पारिवारिक दुश्मनी और आगे बढ़ाने को तो नहीं सोच रहे हैं या फिर इन दोनों के बीच सब कुछ नॉर्मल है?" अमरकांत जी के दिमाग में कुछ शक का कीड़ा कुँद रहा था।

    खाना बहुत लाजवाब बना था।

    "क्या हुआ विराट?? क्या सोच रहे हो??" सब्जी की कटोरी विराट को खाली करते हुए देखकर राणा साहब ने मुस्कुराते हुए पूछा। विराट सब्जी की खाली कटोरी लेकर उसे घूर रहा था और जाने किन ख्यालों में डूबा हुआ था। राणा साहब की आवाज सुनकर विराट होश में आया और उसने सवालिया निगाहों से राणा साहब की तरफ देखा।

    "और चाहिए क्या??" राणा साहब ने उसे खाली कटोरी हाथ में लिए हुए देखकर मुस्कुराते हुए पूछा। वहीं आशुतोष जी कड़ी नज़रों से विराट की तरफ देख रहे थे। यह टेबल मैनर्स से बिल्कुल खिलाफ था कि विराट खाली कटोरी हाथ में लेकर बैठा हुआ था और उन्हें यह चीज़ सख्त नापसंद थी।

    "यह नालायक का नालायक ही रहेगा।" अमोघ ने अपने मन में ना जाने कितनी गालियाँ विराट को दे दी थीं।

    "सब्जी काफी अच्छी बनी है।" विराट ने मुस्कुराते हुए अपनी झेंप मिटाने की कोशिश की।

    "तो फिर इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है?? तुम्हारा ही घर है। पेट भर के खाओ। अपने घर में भी खाने में कोई इतना सोचता है क्या??" राणा साहब ने खुद अपने हाथों से सब्जी निकालकर विराट की कटोरी की तरफ बढ़ाते हुए पूछा।

    विराट मुस्कुरा दिया, लेकिन उसने कुछ भी कहने से पहले अपने इधर-उधर नज़र दौड़ाई, लेकिन आशुतोष जी पर नज़र पड़ते ही उसने अपने हाथों की कटोरी सलीके से अपने पास रख दिए और इनकार में सिर हिलाया।

    "यह माँ के लाडले!! हमेशा अपने बाप की इज़्ज़त मिट्टी में मिलाते चलते हैं। इसके ऊपर भी उस छोटे का असर पड़ गया।" आशुतोष जी ने धीरे से आदित्य जी से कहा।

    लगभग सभी का खाना हो चुका था। इस कारण विराट को अपना मन दबाकर रहना पड़ा। वरना उसका मन अभी एक कटोरी और लेने का था, लेकिन कुछ आशुतोष जी की घूरती हुई नज़र का कमाल था, तो कुछ अपनी रेपुटेशन का सवाल!! उसने राणा साहब को थैंक्स कहते हुए सब्जी के लिए मना कर दिया।

    उसने नज़र बचाते हुए अमोघ की तरफ देखा जो कि घूरते हुए उसकी तरफ ही देख रहा था।

    "सब्जी का स्वाद केवल मुझे जाना-पहचाना लग रहा है या फिर अमोघ को भी लगा होगा?? और जब लगा होगा तो यह इतना शांति से क्यों बैठा हुआ है?? ऊपर से राणा अंकल ने माही का नाम लिया था। सब्जी का स्वाद भी वही है। जोगी माही के हाथों में था, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि यह सब्जी माही ने ही बनाई होगी! कहीं यह माही अपनी माही तो नहीं?? लेकिन ये राणा अंकल के घर क्या कर रही है??" विराट के दिमाग में सैकड़ों सवाल चल रहे थे, लेकिन जवाब उसके पास नहीं था। जवाब की तलाश में विराट ने सबकी नज़र बचाते हुए अमोघ की तरफ देखा था।

    "भुक्खड़ कहीं का!! कहीं भी जाता है तो खाने के मामले में जैसे लगता है कि सारी शर्म-हया पहले ही बेचकर खा गया रहता है।" अमोघ अपने मन में बोलता हुआ विराट को आँखों से ही शर्म दिला रहा था।

    कुछ ना कुछ तो इन दोनों लड़कों के बीच चल रहा था।

  • 19. Love forever 💞 - Chapter 19

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    "भुक्खड़ कहीं का!! कहीं भी जाता है तो खाने के मामले में जैसे लगता है कि सारी शर्म-हया पहले ही बेचकर खा गया रहता है।" अमोघ अपने मन में बोलता हुआ विराट को आँखों से ही शर्म दिला रहा था।

    "अगर बंदा खाना खाने में शर्म करे ना, तो भूखे पेट ही रहना पड़ता है। और आज तुम्हारी इसी शर्म दिलाने के कारण मुझे भूखे पेट रहना पड़ रहा है। ना ही मेरी जीभ तृप्त हुई है और ना ही मेरी आत्मा!! ऊपर वाले के एक नेक बंदे को भूखे पेट रखने का एक गुनाह और तुम्हारे खाते में लिखा गया, अमोघ सिंह राठौर।" विराट ने भी आँखों से ही जताते हुए हिसाब बराबर किया।

    "पहले अपने गुनाहों का हिसाब कर लो, विराट सिंह राणावत!! फिर मेरे खाते में गुनाह दर्ज करना। कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारे इस चटोरीपन के कारण हुए गुनाह तुम्हारे जीभ के साथ-साथ तुम्हें कब्र में पहुँचा दें।"

    दोनों एक-दूसरे को आँखों ही आँखों में निगल जाने तक की हद तक घूर रहे थे। तभी एक मीठी आवाज़ सुनाई पड़ी।

    "पापा! खीर लीजिए।"

    यह आवाज़ सुनकर अमोघ ने झटके से उस लड़की की तरफ़ देखा; पर लड़की पर नज़र पड़ते ही अमोघ के चेहरे पर हैरत के साथ-साथ कुछ अलग तरह के भाव आए, जिन्हें उसने तुरंत छुपाते हुए अपनी नज़र अपनी थाली की तरफ़ कर ली। वहीं, खीर का नाम सुनते ही विराट की नज़र भी उस ओर चली गई थी। लेकिन जब खीर की ट्रे पकड़े हुए लड़की पर उसकी नज़र गई, तो उसका मुँह हैरत से खुला का खुला ही रह गया।

    इस बात से अनजान, उसके होठों से निकलने वाला लार अब टपकने ही वाला था।

    "यानी कि मेरा शक सही निकला। यह सारा खाना माही ने ही बनाया है, और सब्ज़ी तो खासकर!! लेकिन यह यहाँ क्या कर रही है?? पर यह यहाँ आई कैसे??" विराट ने आँखों ही आँखों में अमोघ से पूछना चाहा, लेकिन अमोघ ने कंधे उचकाते हुए "मुझे क्या पता??” का इशारा कर दिया। उसने हल्के से अपना नैपकिन उठाते हुए विराट को उसके होठों से टपकते हुए लार की तरफ़ इशारा किया।

    विराट ने झट से अपना मुँह बंद कर लिया। वहीं, अब अमोघ हमेशा की तरह इमोशनलेस चेहरा लिए हुए नैपकिन से अपने हाथ पोछने लगा था।

    "अरे माही बेटा!! तुम आओ।" माही को सामने देखकर राणा साहब ने खुशी से कहा।

    राणा साहब की आवाज़ सुनकर सब उनकी तरफ़ मुड़ गए। आशुतोष जी और आदित्य जी के चेहरों पर माही को देखकर सवालिया निशान थे, तो वहीं प्रारब्ध सिंह राठौर को जाने क्यों यह चेहरा जाना-पहचाना सा लग रहा था।

    उन्होंने माही को देखने के बाद एक नज़र अब अमोघ और अर्जुन के ऊपर डाली, जो कि अब नैपकिन से अपने हाथ साफ़ कर रहे थे। अर्जुन के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, तो वहीं अमोघ को जैसे किसी के आने से कोई फर्क ही नहीं पड़ा था।

    "कौन है यह लड़की?? और मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि जैसे मैंने इस लड़की को पहले भी कहीं देखा है??" अपने मन में सोचते हुए प्रारब्ध सिंह राठौर अब राणा साहब की तरफ़ मुड़ गए, जो कि अब उस लड़की का परिचय करवाने जा रहे थे।

    "यह है मेरी बेटी माही!!" राणा साहब ने इन सबकी नज़रों के सवाल को समझते हुए माही से सबका परिचय कराया।

    सामने करीब चौबीस साल की एक लड़की खड़ी थी। मैदे सा गोरा रंग, बिलकुल काली बड़ी-बड़ी आँखें, करीब पाँच फ़ीट छह इंच लम्बाई और कमर तक आते हुए लम्बे बाल, जिन्हें उसने सलीके से एक क्लिप लगाते हुए खुला छोड़ रखा था। देखने में वह एक जीती-जागती गुड़िया सी लग रही थी, जिसने जीन्स के साथ रेड वाइन कलर की लॉन्ग कुर्ती पहन रखी थी।

    "यह आपकी गुड़िया है?" आशुतोष जी की आवाज़ में आश्चर्य के साथ खुशी थी, और उन्होंने अपनी खुशी जताते हुए आदित्य जी की तरफ़ देखा।

    आदित्य जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। राणा साहब ने हाँ में सिर हिलाया था।

    "भाभी जी कहाँ हैं?"

    माही ने हाथ जोड़कर सबको नमस्ते किया।

    "खुश रहो बेटा!!" सब ने एक साथ माही के नमस्ते का जवाब देते हुए कहा।

    "कितनी छोटी सी थी, जब हमारे घर रुचि-शुचि के साथ खेलने आया करती थी।" आदित्य जी ने खुशी और हैरानी से आशुतोष जी से कहा।

    "छोटी तो अब रुचि-शुचि भी नहीं रह गई हैं, आदित्य।" राणा साहब हँसते हुए बोले।

    "बेटियाँ कब बड़ी हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता। जहाँ तक मेरा अंदाजा है, रुचि-शुचि भी अब कॉलेज में पहुँच गई होंगी।" राणा साहब ने आदित्य जी की तरफ़ देखते हुए कहा।

    "जी, भाई साहब। दोनों का कॉलेज क्या?? यूनिवर्सिटी पूरा हो गया है। इसी साल दोनों अपने पोस्ट-ग्रेजुएशन का फ़ाइनल पेपर देने वाली हैं, उसके बाद कैरियर की उड़ान लगेगी।" आदित्य जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "अच्छा है!! माही का भी पोस्ट-ग्रेजुएशन ख़त्म हो चुका है। ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो, जब अपने नन्हे पाँव से यह पूरे राणा पैलेस में भागती फिरती थी। इसके पीछे दौड़ना पड़ता था कि कहीं गिर ना जाए, खुद को चोट ना लगा ले, पर अब देखो!! अब तो यह पूरा घर संभाल लेती है, जब से यहाँ आई है घर के साथ-साथ मुझे भी संभाल लिया है।" राणा साहब ने एक मुस्कुराती हुई नज़र माही पर डालते हुए कहा।

    "बीस बरस का समय कम नहीं होता, भाई साहब!!" आशुतोष जी ने गहरी साँस छोड़ते हुए बातचीत में हिस्सा लिया।

    "यह बात तो तुम सही कह रहे हो। मैं ही जानता हूँ कि मैंने यह दिन कैसे बिताए हैं अपनी बेटी के बिना!!" राणा साहब के चेहरे पर एक दुःख की लकीर खिंच रही थी। माही ने राणा साहब के हाथों पर अपना हाथ रख दिया।

    "कोई बात नहीं, भाई साहब!! खुशियाँ जब दरवाज़े पर दस्तक दें तो अपने घर और दिल दोनों का दरवाज़ा खोल देना चाहिए और उनका स्वागत करते हुए उन्हें अंदर आने का रास्ता देना चाहिए।" प्रारब्ध सिंह राठौर ने इस विषय को समाप्त करना चाहा, लेकिन आदित्य जी तो जैसे चिढ़े बैठे थे।

  • 20. Love forever 💞 - Chapter 20

    Words: 1146

    Estimated Reading Time: 7 min

    "कभी-कभी अपनी खुशियों को दूसरों से छुपा कर रखना पड़ता है, वरना नज़र लगने में देर नहीं लगती।" आदित्य जी ने कहा और प्रारब्ध सिंह पर एक उड़ती हुई नज़र डाली।

    "चलिए। हमें तो बस इस बात की खुशी है कि खुशियों ने राणा पैलेस के दरवाज़े पर दस्तक तो दी। वरना किसी के कर्मों के कारण तो खुशियाँ तो जैसे इस गली का ही रास्ता भूल गई थीं।" प्रारब्ध सिंह ने भी कहा और आँखों-आँखों में आदित्य सिंह राणावत को कुछ जताया।

    "होश में रहकर बात करो प्रारब्ध सिंह राठौर! गलती मेरी नहीं थी।" आदित्य सिंह राणावत हल्की आवाज़ में, किन्तु गुर्राते हुए बोले।

    "नहीं!! तुम्हारी गलती कहाँ होती है?? तुम भला गलती कैसे कर सकते हो?? गलती तो मेरी थी। मैं ही बिना सोचे समझे बंदूक लेकर निकल पड़ा था।" प्रारब्ध सिंह ने गुस्से में आदित्य जी का मज़ाक उड़ाया।

    प्रारब्ध जी राणा साहब के यहाँ बैठे होने का लिहाज़ कर रहे थे, पर आदित्य सिंह तो जैसे गुस्से में सब कुछ भूल गए थे। प्रारब्ध सिंह राठौर ने उनके पुराने जख्म को ना सिर्फ़ खुरचा था, बल्कि उस पर ढेर सारा नमक भी डाल दिया था। आदित्य जी गुस्से से तिलमिला उठे थे।

    "होश में रहकर बात करो प्रारब्ध!! अगर मैंने बंदूक उठाई थी तो अभी भी मैंने अपनी बंदूक रखी नहीं है!" आदित्य जी अपने चेयर से उठ खड़े हुए और चेतावनी भरे लहजे में प्रारब्ध सिंह राठौर की तरफ़ उंगली दिखाते हुए बोले।

    "बंदूक चलाना सिर्फ़ तुम्हें नहीं आता!! मुझे भी आता है!! इस बंदूक की धमकी जाकर कहीं और देना। मैं डरता नहीं तुमसे!! मेरे हाथों में तुमसे कहीं ज़्यादा दम है।" गुस्से में प्रारब्ध सिंह भी अपने चेयर से उठ खड़े हुए। ऐसा लग रहा था कि दोनों अभी ही उलझ जाएँगे और शायद अगर इन दोनों के पास अभी इनकी बंदूक होती तो गोली चलाने में भी देर नहीं लगती, लेकिन राणा साहब ने दोनों को रोक दिया।

    "अरे बस भी करो तुम दोनों!! बैठ जाओ आदित्य!! और तुम भी प्रारब्ध, शांत रहो। मैंने तुम सबसे बार-बार कहा है कि अपने झगड़े और अपनी दुश्मनी इस घर के दरवाज़े से बाहर रखकर ही आया करो, लेकिन तुम लोग हो कि कभी भी बात मानते हो क्या?? सुनने को भी तैयार नहीं होते।" राणा साहब ने हल्के गुस्से में कहा।

    राणा साहब को गुस्से में देखकर दोनों अपनी-अपनी जगह पर शांत होकर बैठ गए, लेकिन आदित्य जी की नज़र अभी भी प्रारब्ध जी के चेहरे को गुस्से से देख रही थी।

    "इतने दिनों के बाद बेटी घर पर आई है, तो खुशी से उसका स्वागत करने की बजाय, तुम दोनों आपस में लड़-झगड़ कर दिखा रहे हो कि तुम दोनों अभी भी नहीं बदले।" अमरकांत जी ने दोनों को डाँटते हुए कहा।

    आशुतोष जी ने अपना सिर अफ़सोस से हिलाया और आँखों ही आँखों में आदित्य को शांत रहने का इशारा किया।

    "तुम इन सब चीज़ों को छोड़ो बेटा!! यह बताओ भाभी साहब कैसी हैं?? दिखाई नहीं दे रही हैं, क्या वो साथ में नहीं आई हैं??" आशुतोष जी ने बातचीत का रुख अब माही की तरफ़ मोड़ दिया था।

    "नहीं अंकल, मम्मी नहीं आई हैं।" माही ने इनकार में सिर हिलाया।

    "पर क्यों??"

    सबके मन में यह सवाल था। सब पूछना भी चाहते थे, पर होठों से नहीं, आँखों से अपने इस सवाल का जवाब पाने के लिए राणा साहब की तरफ़ देख रहे थे, लेकिन राणा साहब ने अपनी निगाहें खीर की कटोरी की तरफ़ गड़ा दी थीं। जैसे वे इस सवाल का जवाब ही नहीं देना चाहते थे।

    "क्या हुआ भाई साहब??" प्रारब्ध सिंह ने धीरे से राणा साहब के हाथों पर अपना हाथ रखते हुए पूछा।

    "होना क्या है प्रारब्ध?? जो होना था, वो तो बीस साल पहले ही हो चुका है। अब तो उस तबाही के जख्म दिल के अंदर बोझ बनकर पड़े हुए हैं और शायद इस बोझ को लिए हुए ही हम इस दुनिया से भी चले जाएँ। पर फिर भी तुम्हारी भाभी साहब की माफ़ी हमें नहीं मिलने वाली!!" राणा साहब ने कुछ उदासी के साथ मुस्कुराते हुए कहा।

    राणा साहब की बात सुनकर सबके चेहरों पर एक दुख और अफ़सोस की लकीर खिंच गई थी।

    "चलो!! ज़्यादा उदास होने की ज़रूरत नहीं है। बेटी के आने की खुशी में तुम सब हमारी बिटिया के हाथों की खीर से मुँह मीठा करो। बाकी बातें तो बाद में भी होती रहेंगी।" राणा साहब ने अचानक से माहौल में आए तनाव को कम करने की कोशिश की।

    "लगता है कि खाना आज बिटिया के हाथों का ही बनाया हुआ था।" आशुतोष जी ने माही की तरफ़ देखते हुए पूछा।

    माही ने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाया।

    "खाना बहुत अच्छा बना था। मैं तो पहले ही काट से समझ गया था कि ऐसा खाना किसी अपने का बनाया हुआ है। इतना स्वादिष्ट खाना कोई भी कुक बना ही नहीं सकता।" आशुतोष जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "भूखड़ कहीं का!! खाने के अलावा आज तक इसे कुछ दिखाई पड़ता है कहाँ है?? " प्रारब्ध सिंह राठौर ने आशुतोष जी की तरफ़ देखते हुए मन में सोचा, लेकिन जैसे आशुतोष जी उनके मन की भावनाओं को समझ गए थे, इसलिए उन्होंने अपना सिर झटक दिया।

    माही ने हल्के से मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे सबके सामने खीर की कटोरी रखनी शुरू कर दी।

    "मुझे दो कटोरी चाहिए!!" अपने सामने एक कटोरी माही को रखते हुए देखकर विराट ने तेज़ी से कहा।

    "पहले एक कटोरी ले लो और उसके बाद अगर कम पड़े तो फिर से ले लेना।" आशुतोष जी के कुछ बोलने से पहले ही आदित्य जी ने विराट को नरमी से समझाया।

    "नहीं!! मुझे दो कटोरी ही चाहिए।" विराट ने ज़िद करते हुए कहा।

    विराट की आवाज़ पर राणा साहब मुस्कुरा दिए। पर माही ने घूरते हुए उसके आगे-पीछे देखा।

    "पर तुम तो अकेले ही हो!! एक साथ दोनों कटोरी में ही खाओगे क्या??"

    माही की बात पर विराट ने अपने दाँत दिखा दिए।

    "वह क्या है ना कि मेरा जोड़ीदार घर पर है, मैं उसके लिए लेकर जाऊँगा।" विराट ने दो कटोरी खीर लेने की ठोस वजह देने की कोशिश की। माही ने अफ़सोस से सिर हिलाते हुए दूसरी कटोरी भी ट्रे में से निकालकर विराट के सामने रखने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि...

    "बिल्कुल मत देना!" अचानक से अमोघ सिंह राठौर की धीर-गंभीर आवाज़ सुनाई पड़ी। जिसे सुनते ही पूरे डाइनिंग हॉल में एक शांति सी छा गई और माही और विराट ने एक साथ झटके से अमोघ की तरफ़ देखा, जो कि गुस्से से हद तक घूरते हुए विराट सिंह राणावत को देख रहा था।

    सब लोग अब अमोघ की तरफ़ ही देख रहे थे।