यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसे मोहब्बत, शादी सब बकवास चीज़ें लगती है, वो इन सब रिश्तों से आज़ाद रहना चाहती है, पर कहते है न जो इंसान जिस चीज़ से जितना भागता है, वो उतनी ही तेजी से उसके पीछे आती है....तो बस कहानी होगी यहीं से शुरू
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""अब्बु आप क्यों नहीं समझ रहे मुझे नहीं करनी शादी वादी, खुदा के वास्ते मुझे बख्श दे....."" इफरा ने तंग आके कहा था।
""दिमाग खराब हो गया है इस लड़की का, हकीकत से नहीं भाग सकती ""। शफीक साहब ने गुस्से से अपनी बीवी शबनम बेगम को देखते हुए कहा था।
""प्लीज़ अब्बू ...आप मना कर दीजिए उन लोगों को..."" इफरा ने बड़ी हिम्मत से कहा था, वरना अब्बू के सामने कुछ कहने की हिम्मत कहा होती थी।
""मैंने उन लोगों को हां कह दिया है, बेहतर होगा खुशी खुशी राज़ी हो जाओ तुम भी"...... शफीक साहब ने अपनी गुर्राती हुई आवाज़ में कहा और चले गए।
अब किसी की कुछ बोलने की हिम्मत न थी, इफरा रोते हुए अपने कमरे में भागी थी।
दो भाइयों में सबसे बड़ी थी इफरा ,23 साल की उम्र हो चुकी थी, उसकी सांवली सी रंगत थी , लेकिन नैन नक्श बहुत खूबसूरत थे,जिनमें सबसे खूबसूरत थी उसकी आँखें, बेहद हसीन , जिन पे लंबी घनी पलकों का साया था, 5’3 इंच का कद, कंधे तक आते उसके बाल, हुस्न में वो कम न थी, पर अक्सर देखने वाले उसकी खूबसूरती में भी कमियां निकाल देते ये कह के कि बस रंग साफ होता तो बड़ी सुंदर लगती।
शफीक साहब एक सरकारी स्कूल में टीचर थे, शबनम बेगम गृहिणी थी। दोनो भाई अभी पढ़ रहे थे, एक भरा पूरा परिवार था शफीक साहब का। वो एक बहुत ही नेक दिल इंसान थे, पर टीचर होने की वजह से थोड़े सख्त हो चुके थे, अनुशासन के पक्के थे।
यही वजह थी कि उनके बच्चे कभी उनसे खुल नहीं पाते थे।
लेकिन शबनम बेगम वो काफी नर्म मिज़ाज और संजीदा खातून थी, तीनों बच्चे उनसे काफी करीब थे।
कुछ महीने पहले ही उनके घर से कुछ घर छोड़ नए लोग रहने आए थे, शफीक साहब की काफी अच्छी दोस्ती हो गई थी उनके परिवार वालों से , खास कर उस घर के बड़े बेटे आसिम से।
वो दो भाई में सबसे बड़ा बेटा था, 16 साल की उम्र में ही अब्बा का इन्तेकाल हो चुका था, अम्मी ने बड़ी मेहनत से उसे पढ़ाया लिखाया था, और उसने भी उनकी मेहनत को बेकार न जाने दिया था , आज वो एक सरकारी अफसर था।
अपने हालात अपनी मेहनत से बदल दिए थे उसने ।
उस पे सबसे बड़ी चीज़ थी उसकी शराफत, बेहद शांत और सुलझे हुए मिज़ाज का था वो, ज़्यादा बात चीत न करता था, लेकिन शफीक साहब से उसकी अब खूब बनती थी।
दोनो की दोस्ती भी तो चाय की दुकान पर हुई थी, जब शफीक साहब एक दिन चाय की टपरी पर चाय पी रहे थे, पैसे देने की बारी आई तो देखा तो पर्स ही नहीं, वो परेशानी से इधर उधर खोजने लगे, तभी एक लड़का उनके पास हांफते हांफते आया था,
""अंकल....ये आपका पर्स""......पसीने से भीग गया था वो।
""थैंक्स बेटा, आपको कहां मिला ये.."" शफीक साहब ने लेते हुए आश्चर्य से कहा तो वो लड़का मुस्कुराया,
"जी आप जब उधर मस्जिद के पास सदका कर रहे थे, तभी ये आपकी जेब से गिर गया था।
मैं बस नमाज़ पढ़ के निकला ही था, की देख लिया।
जब तक आगे बढ़ा तो आप काफी दूर निकल चुके थे, इसलिए जल्दी जल्दी भाग कर आना पड़ा।""
शफीक साहब मुस्कुराते हुए बोले, ""शुक्रिया बेटा,""।
""चाय पियोगे..""? उन्होंने उससे पूछा।
""नहीं अंकल, चलता हूं अब"".....
""बेटा आपने हमारे लिए इतनी जहमत उठाई , एक कप पीलो , फिर चले जाना।".....
वो लड़का उन्हें मना न कर पाया, मुस्कुरा के गर्दन हिला दी।
उसका नाम , आसिम था, बातों में बातों में उन्हें ये भी पता चल गया, कि वो उन्हीं की कॉलोनी में शिफ्ट हुआ है, पहली नज़र में ही वो उन्हें काफी अच्छा लगा था।
फिर क्या था अब उन दोनों की मुलाकात काफी होने लगी थी, वो अक्सर ही चाय की टपरी पर मिला करते थे, आसिम के अब्बा नहीं थे, शफीक साहब में उसे अपने अब्बा नज़र आते थे, जब कभी वो किसी बात पर उलझता था तो वो शफीक साहब से ज़रूर सलाह मशवरा करता, और वो भी उससे बिल्कुल अपने बेटे की तरह या फिर कहो तो उससे भी ज़्यादा नरमी के साथ समझाते थे।
धीरे धीरे वक्त गुज़र रहा था, ईद के दिन शफीक साहब ने आसिम और उसके पूरे परिवार को अपने घर बुलाया था।
आसिम की अम्मी तो शबनम बेगम से मिल के बहुत ही खुश हुई थी साथ ही इफ़रा से भी । वो उन्हें बहुत ही प्यारी सी लगी थी।
अब तो वो अक्सर ही उनके घर आया जाया करती थी, दोनों घरों के ताल्लुकात काफी अच्छे थे।
आसिम के लिए रिश्ते देखे जाने लगे थे, शफीक साहब को जब बात पता चली तो वो कुछ मायूस से हो गए थे, कही न कही वो खुद चाहते थे कि उनकी इफरा आसिम के घर जाए। लेकिन वो ये बात खुद कह न सके।
पर अब जब सामने से खुद आसिम की अम्मी ने इफरा का हाथ मांगा तो वो तो मना न कर सके, आखिर उनकी नादान सी बच्ची को इससे बेहतर कौन मिल सकता था।
अब आगे...
""अम्मी अब्बू को समझाए न....मुझे नहीं करनी शादी वादी...प्लीज़""...... इफरा फिर रोने लगी अपनी अम्मी से लिपट के।
""अम्मी जब बाजी नहीं करना चाहती तो क्यों अब्बा जबरदस्ती कर रहे है, अब बस क्या वही एक बचा है पूरी दुनिया में"".......अनस (इफरा से दो साल छोटा भाई) ने नाराज़गी से कहा।
"बेटा , तुम्हारे अब्बा कोई भी काम बिना सोचे समझे नहीं करते, ज़रूर कुछ बेहतर देखा होगा उन्होंने उसमें, तभी वो इस रिश्ते को लेके राज़ी हुए है"......शबनम बेगम ने कुछ सोचते हुए कहा।
""आप भी अब्बू के साइड हो गई न, मेरी तो किसी को परवाह ही नहीं है, अभी क्या उमर ही है मेरी, बोझ हो गई हूं क्या आप सबके ऊपर""......वो फिर रोने लगी थी।
"ये क्या बोल रही हो इफू, बेटियां तो रहमत होती है बोझ नहीं समझी ".... उन्होंने ने उसके आंसू पूछते हुए कहा था।
"तो फिर क्यों आप लोग मुझे भगाने पर तुले हुए है, मुझे कोफ़्त होती है शादी के नाम से ही, प्लीज़ आप जाके अब्बा से बात करिए न"
"अच्छा अच्छा ठीक है , मै करूंगी बात ".....
जारी है.....
आज घर में काफी तनाव का माहौल था, सभी चुप चाप खाना खाके अपने अपने कमरे में जा चुके थे।
शफीक साहब अपने कमरे में आए , जहां शबनम बेगम उनका इंतेज़ार कर रही थी ।
वो चुप चाप आके बेड पर लेट गए,
शबनम बेगम कशमकश में थी, आज के माहौल से,लेकिन फिर भी बात करना जरूरी था, उनकी बच्ची की जिंदगी का सवाल था।
"सुनिए..."
"सुन रहा हूं कहिए..." शफीक साहब ने उसी तरह लेते हुए कहा ।
"इफरा बहुत रो रही थी, उसे अभी नहीं करनी है शादी, कम से कम दो साल और रुक जाइए। अभी वो नादान सी तो रखी है ".....
शफीक साहब उठ बैठे, बड़ी ही नरमी की साथ बोले," आपको मुझ पर भरोसा है?
"बात भरोसे की नहीं है, बात हमारी बच्ची की खुशी की है".....
"यकीन रखिए, आसिम से ज़्यादा उसे कोई खुश नहीं रख सकता, हमारी बेटी जितनी बचपने से भरी है न वो उतना ही समझदार और सुलझा हुआ इंसान है।
और रही बात इफरा की उम्र की तो आपकी तो इससे भी कम उम्र में हुई थी न लेकिन फिर भी अपने सब संभाला न, खुदा के शुक्र से हम सब बहुत खुश भी है"
"हां...पर वो दौर कुछ और था, आज की बात कुछ और है और फिर अपने भी तो हर छोटी से छोटी मुश्किल में साथ दिया था"......शबनम बेगम अभी भी मुत्मइन नहीं हुई थी।
"दौर चाहे कोई भी , मियां बीवी का रिश्ता आपसी सूझ बूझ, प्यार, इज़्ज़त, और एडजस्टमेंट से चलता है........और सच कहूं तो मैने ये सारी खूबियां उस एक शख़्स में देख ली है"......
हो सकता है आसिम को कोई और अच्छी लड़की मिल जाए, लेकिन हमारी इफरा को कोई और आसिम नहीं मिल पाएगा""......
शबनम बेगम सोच में पड़ गई थी, आज तक उनके शौहर ने कोई गलत फैसला न लिया था, हर चीज़ को बहुत ही बारीकी से सोच समझ के ही करते थे......
अगले दिन शफीक साहब ने फरमान सुना दिया कि 2 महीने बाद इफरा का निकाह है।
इस ख़बर से तो मानो इफरा की जान ही निकल गई, उसका दिल ऐसा होने लगा जैसे कि कही भाग जाए।
""बाजी बस भी करिए, सुबह से रोए जा रही है, अम्मी समझाइए न"...... अनस ने कहा जो अपनी बहन को ऐसे न देख पा रहा था।
मन ही मन अब्बू पर गुस्सा भी आ रहा था, पर वो क्या कर सकता था, भले वो २० साल का था पर अपने अब्बा से लड़ नहीं सकता था।
""इफु देख बेटा, तेरे अब्बा फैसला ले चुके है, और वाकई आसिम बहुत नेक लड़का हैं, अपने अब्बा की बात मान लो..."" शबनम बेगम ने भी अब शौहर की बात में सहमति दे दी थी।
""आसिम .....आसिम.....आसिम.....दिमाग खराब कर दिया है इसने मेरा, बहुत अच्छा है ...बहुत अच्छा है...... पक चुकी हूं सुन के।
मेरी मर्ज़ी कोई मैटर नहीं करती क्या अम्मी...??"" ....... इफरा ने बिफर के कहा था।
"किस ने कहा कि तुम्हारी मर्ज़ी मैटर नहीं करती..." शफीक साहब की आवाज़ आई थी।
"आप लोग ज़रा बाहर जाइए, मुझे कुछ बात करनी है अपनी बच्ची से..."
शबनम बेगम और अनस दोनों ही बाहर चले जाते है...।
शफीक साहब आके बिस्तर पर बैठते है, और उसके सर पे हाथ फेरते है।
इफरा उनके पैरों पर सर रख लेती है,
"अब्बू मुझसे कोई गलती हो गई है क्या".....उसने रोनी सी आवाज़ में कहा।
शफीक साहब मुस्कुरा दिए, वो अक्सर उनसे अपनी बाते मनवाने के लिए, ऐसे ही उनके पैरों पर सर रख लिए करती थी, और फिर मासूमियत से अपनी बाते कहती थी।
""तुम ऐसा क्यों सोच रही हो..??"
""तो फिर आप क्यों मुझे खुद से दूर क्यों करना चाह रहे है"".....
"तुम्हें मुझसे ज़्यादा दूर न जाना पड़े, इसलिए ही तो इतनी पास में तुम्हारी शादी करना चाह रहा हूं, ताकि जब तुम्हारा मन ही तुम हम सबसे मिलने चली आना।"
""क्या सच में अब्बू, जब मन करे तब...??" उसके चेहरे पर हल्की चमक आ गई थी।
""हां....पर शौहर की इजाज़त होनी चाहिए""
""क्या...... और अगर उसने मना कर दिया तो..?""
"तो तुम अपनी बात मनवा लेना, जैसे मुझसे मनवाती हो..."
नहीं अब्बू मुझे नहीं जाना.....
इफु...बेटा , आज तक तुमने जो भी कहा मैंने हर ख्वाहिश पूरी की है तुम्हारी, क्या तुम अपने अब्बा की एक बात नहीं मान सकती.....शफीक साहब ने बेहद मायूसी से कहा था।
बस ......यही तो वो देख नहीं सकती थी , अपने अब्बा को मायूस होते हुए, वो भी उसकी वजह से, उसकी आंखों में आंसू आ गए थे
" ठीक है अब्बू "......बुझे हुए लफ़्ज़ों में जवाब दिया था इफरा ने।
शफीक साहब ने प्यार से उसके सर पे हाथ फेरा,
"मुझे पता था मेरी बेटी मुझे कभी मायूस नहीं होने देगी"।
*******
शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थी, सभी काफी खुश थे, सिवाय इफरा के।
वो ऊपर से तो खुश होने का दिखावा करती , पर अंदर ही अंदर जैसे कोई उसे किसी गड्ढे में धकेल रहा हो, ऐसा लगता था।
वो अभी तक आसिम से मिली न थी, हां उसकी अम्मी और छोटे भाई से जरूर मिल चुकी थी, पर आसिम को नहीं देखा था।
दूसरी और आसिम आज कल काम में कुछ ज़्यादा ही उलझ गया था, और आज कल उसे दूसरे शहर भी काफी आना जाना पड़ रहा था।
अपने रिजर्व नेचर की वजह से वो इफरा से बात न कर सका था, हां पर देखा जरूर था।
आज निकाह का दिन था, लाल जोड़े में सजी इफरा बेहद हसीन लग रही थी, वो चुप चाप सी बैठी अपने हाथों की मेहंदी को देख रही, जब से रिश्ता पक्का हुआ था उसने एक बादलाव आया था कि वो अब पहले के मुकाबले थोड़ी चुप चुप सी रहने लगी थी।
उसके दोनो भाई उसे समझ रहे थे, पर अब्बा के फैसले के आगे कहा ही उनकी चलती।
बारात आ चुकी थी, आसिम ने सफेद शेरवानी पहनी थी,
जो भी उसे देख रहा था , उसकी तारीफें कर रहा था।
वाकई वो काफी अच्छा शक्ल ओ सूरत का मालिक था।
आसिम की अम्मी बेहद खुश थी, कितनी तमन्ना थी उनकी की इफरा उनके घर आए, जो कि अब पूरी होने जा रही थी।
निकाह हो चुका था, साथ ही रुखसती भी, इफरा सब से लिपट के रो रही थी, सबसे ज़्यादा तो अपने भाइयों से, आखिर वो उनकी जान थी, बड़ी होने के बावजूद भी वो दोनो उसे बच्ची की तरह रखते थे, उल्टा उस पर कभी कभी हुकम भी चला दिया करते थे।
जारी है.....
आखिर कार अब जाके वो सुकून से बैठी थी, थकान से बदन चूर हो चुका था, कुछ दिनों से तो नींद भी पूरी नहीं हुई थी,
आसिम की अम्मी और उसकी कुछ कजिंस उसे कमरे में लाई थी, काफी खूबसूरत तरीके से सजाया गया था कमरा।
कुछ देर बातों के बाद वो लोग उसे आराम करने का कह के चली गई थी।
आसिम की अम्मी बहुत ही प्यार से पेश आ रही थी, उसकी बहने भी बहुत खुशमिजाज लगी थी, हां बस उनकी बातों में जो छेड़खानिया थी, वो उसका चेहरा लाल करने के लिए काफी थे, और वो लाली गुस्से की थी या फिर शर्म की इसका अंदाजा तो इफरा को खुद भी नहीं था ।
सब के जाने के बाद वो ख़ामोशी से इधर उधर देखने लगी थी, रूम से लग के एक बालकनी भी थी, जहां से उनका छोटा सा गार्डन दिखाई दे रहा था।
बेड पर जब निगाह गई तो वो पूरा फूलों से सजा हुआ था, दिल में एक अजीब से बेचैनी हुई थी इस वक्त, साइड में एक छोटा सा सोफा रखा हुआ था, वो चुप चाप जाके वहां बैठ गई।
कुछ ही पल में उसे नींद भी आ गई।
आसिम को आने में थोड़ी देर हो गई थी, सब भाई बहन हसीं मज़ाक करने में लगे हुए थे, अब जाके उसे भी फुर्सत मिली थी, वरना नींद तो उसकी भी कई रातों से पूरी न हुई थी।
उसने कमरे में कदम रखा तो एक भीनी सी खुशबू आ रही थी उसके कमरे से, जो उसे अंदर तक एक अलग सा एहसास दे गई थी।
निगाहे बिस्तर की जानिब उठी तो वो खाली था, सोफे की तरफ देखा बस देखता ही रह गया।
उसकी नई नवेली बीवी बड़ी आराम से सो रही थी, उस भारी से लहंगे और ज्वैलरी में वो कोई मासूम सी गुड़िया लग रही थी।
कुछ देर वो उसे यूं ही खामोशी से देखता रहा फिर थोड़ी देर बाद जाके उसने अपने कपड़े चेंज किए और इफरा के पास आके,
" सुनिए...." धीरे से उसने कहा।
पर वो तो इफरा थी , इतनी आसानी उठ जाए, ऐसी तो कोई नींद ही नहीं ली थी उसने आज तक।
वो अपना हाथ उसके कांधे के पास ले जाता, फिर हटा लेता, कुछ देर ऐसा करने के बाद उसने उसे से धीरे छू के
" सुनिए, कपड़े चेंज कर लीजिए..."। इस बार आवाज़ थोड़ी तेज़ थी।
"अम्मी... प्लीज़.... पांच मिनट और ....."नींद में कसमसाते हुए उसने बड़बड़ाया था।
"क्या लड़की है यार....."आसिम ने अपने माथे को अपनी दो फिंगर्स से रब करते हुए सोचा।
वो थोड़ा और करीब हुआ कि अचानक से इफरा ने अपनी आँखें खोल दी,
"अआआआअ........"वो चिल्लाने को हुई कि तभी आसिम ने उसका मुंह अपने हाथों से बंद किया।
वो अपनी बड़ी बड़ी खूबसूरत आंखों को और बड़ा करके उसे देखने लगी थी, साथ ही साथ उसका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी थी।
लेकिन इस बार चीख आसिम की निकली, क्योंकि इफरा ने उसके हाथ पे जो काट लिया था, और जैसे ही आसिम ने अपना हाथ हटाया,
"कौन हो तुम.....और यहां मेरे कमरे ने क्या कर रहे हो..." वो पीछे होते हुए बोली।
आसिम ने उसे आँखें छोटी करके देखा
"लगता है, आपकी याददाश्त थोड़ी कमज़ोर है, अभी कुछ घंटों पहले ही हमारा निकाह हुआ है, जिसमें आपने तीन बार कुबूल है भी बोला है, फिर भी इतनी जल्दी भूल गई....!!"
इफरा की सारी नींद रफूचक्कर हो गई थी , अब तो उसकी शादी हो चुकी है, और वो अपने घर नहीं है बल्कि एक अंजान शख़्स के घर है जिसे वो जानती तक नहीं।
उसे अब रोना आने लगा था, क्यों अब्बू अम्मी ने उसे भेज दिया......
आसिम उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देख रहा था,
लेकिन अब वो रोने लगी थी, उसकी आंखों से मोटे मोटे आंसू गिरने लगे थे।
आप रो क्यों रही है...?? उसने परेशानी से कहा।
अब उसका रोना और तेज हो गया था।
"I am sorry.... मैंने आपको बेवजह disturb कर दिया.....आपकी नींद खराब हो गई..." वो परेशानी से बोल गया।
इफरा थोड़ी शांत हुई तो आसिम ने उससे पूछा,
" आप रो क्यों रही थी ?"
"मुझे अपने घर की याद आ रही है...." उसने अपनी काजल से सनी आंखों को पूछते हुए कहा, जो कि अब काफी फैल चुका था।
"अच्छा......तो ये बात है....मुझे लगा आपको मैने जगा दिया इस वजह से"......
इफरा को अचानक याद आया कि इसने अभी कुछ देर पहले उसकी याददाश्त को कमज़ोर कहा था न
"और आप ये बताए, की अपनी नई नवेली दुल्हन को सोते हुए कौन जगाता है, याददाश्त तो आपकी भी कमज़ोर ही लगती है".......अब वो अपने रूप में आ चुकी थी, कोई उसकी बेज़्जती करे और वो चुप चाप सुन ले ऐसी तो वो थी ही नहीं।
आसिम तो उसके ऐसे जवाब देने पर हैरान ही था, यही लड़की अभी कुछ देर पहले घर की याद में रो रही थी, और अब इसका जवाब सुनो....
"आपके साथ तो काफी मज़ा आएगा जिंदगी जीने में..."मन में खयाल आया था।
पर अगले ही पल उसका शरारती दिमाग एक्टिवेट हो चुका था।
उसने मुस्कुरा के कहा...."आपने सही कहा, मैं तो भूल ही गया कि आप मेरी नई नवेली बीवी है, आपको मुझे ऐसे नहीं उठाना चाहिए था.......बल्कि अपनी बाहों में उठा के बिस्तर पर लिटा देना था.... राइट..."
इफरा तो हक्की बक्की थी उसकी ये बात सुन के....
तो आइए फिर....आसिम ने अपनी मुस्कान छुपाते हुए कहा,
इफरा का चेहरा एक दम से लाल होने लगा था....
""excuse me, ये...ये क्या बकवास करे जा रहे है आप""
"मैं तो बस आपकी बात का जवाब दे रहा था.....मैने कुछ गलत कह दिया क्या..??"
"मुझे चेंज करना है आप सो जाइए"..... उसने तुरंत से अपने कपड़े निकाले और वॉशरूम में चली गई।
आसिम के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल थी, इफरा की शक्ल याद करके उसे हंसी भी आ रही थी।
"उसे तो यही लगा कि वो सच में उठा रहा है.....एक बार सोच के वो फिर हंस पड़ा"......
कुछ देर बाद इफरा आई तो देखा कि आसिम बिस्तर पर एक किनारे लेटा हुआ था, उसकी पीठ उसकी तरफ थी।
वो चुप चाप जाके उसी सोफे पर लेट गई।
"लगता है आप चाहती है कि मैं अपनी बात पर अमल करूं...!!".......
जारी है......
"लगता है कि आप चाहती है कि मैं अपनी बात पर अमल करूं..!!"
इफरा ने हैरत से आँखें खोल ली थी,
"अब क्या प्रॉब्लम है आपको..?"
आसिम उठ के उसके पास आ चुका था,
"कही आपको ऐसा तो नहीं लग रहा की मैं कहूंगा कि आप बिस्तर पर सो जाइए और मैं खुद सोफे पर सोऊंगा...??"
इफरा तो उसकी बात पर हैरान ही हो गई,
"ओह हेलो.... ये एकता कपूर के सीरियल और ड्रामा का शोक न आपको होगा , मुझे नहीं है ....समझे"....
"ओके.....ऐसी बात है, तो फिर आप यहां क्यों लेटी...!!"
"आप भी हद्द करते है... इतने सालों से अकेली बिस्तर पर सोने की आदत है मुझे अब अचानक से एक मर्द के साथ लेटना..... मुझसे नहीं होगा..."
उसने बड़े आराम से कहा।
वहीं उसकी इस बात पर तो आसिम कुछ कह ही न पाया, ऐसी बाते इतनी आसानी से कैसे बोल सकती है ये लड़की।
"हमारा निकाह हो चुका है, आप मेरी बीवी है, जितना हक मेरा यहां की चीजों पर है उतना ही हक आपका भी है, और मैं कोई गैर मर्द नहीं बल्कि आपका शौहर हूं......
मुझे पता है आप अभी अनकंफर्टेबल है मेरे साथ, और जब तक आप मेरे साथ कंफर्टेबल नहीं हो जाती, मैं खुद भी अपनी लिमिट क्रॉस नहीं करूंगा....".........उसने शांति से कहा और जाके
बेड पर एक तरफ होके लेट गया।
इफरा अभी भी खड़ी उसकी बाते सोच रही थी...।
आसिम आंखों पे हाथ रखे लेटा हुआ था,
तभी इफरा धीरे से आके बिस्तर पर एक किनारे लेट गई....
वहीं आसिम बंद आंखों से ही मुस्कुरा दिया।
**********
अगली सुबह इफरा जल्दी ही उठ गई थी, नए जगह उसे ठीक से नींद नहीं आई थी। वो नीचे हॉल में आई तो देखा, आसिम की अम्मी बड़े आराम से अखबार पढ़ रही थी।
"बेटा...आप इतनी जल्दी उठ गई...??" आसिम की अम्मी ने उसे नीचे आते हुए देख प्यार से कहा।
"हां आंटी वो मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत है, और अभी नई जगह तो सही से नींद भी नहीं आई...."
"कोई बात नहीं, कुछ दिन में आदत हो जाएगी..., एक काम करो तुम मुंह हाथ धो लो, मै जब तक तुम्हारे लिए नाश्ता बना देती हूं".....
वो हां में गर्दन हिला देती है, आसिम की अम्मी किचेन में चली जाती है।
वो अपने कमरे में आ जाती है, सुबह के 6:30 बज रहे थे, वो जाके नहा लेती है,
बाहर आके देखती है तो आसिम अभी भी आराम से सोया रहता है।
वो थोड़ उसके करीब चली जाती है...
"इस आदमी को देखो, कितने मज़े से सो रहा है, सोते हुए कितना शरीफ लग रहा है।
अब्बू ने कहा था इससे ज्यादा कोई शरीफ नहीं, इससे कम कोई बोलता नहीं, इसके जैसा चिराग लेके ढूंढने पर नहीं मिलेगा......तारीफों के पुल बांधे नहीं थक रहे थे...!!
और कल का हाल मुझसे पूछे कोई, कैसे कैची की तरह ज़ुबान चल रही थी इनकी, और शराफत.....शराफत का तो अचार डाल दिया था, बड़े आए मुझे उठाने वाले...हुंह"......
वो मन ही मन खुद में बड़बड़ाए जा रही थी।
इस बात का ख्याल तक न रहा कि वो आसिम के कुछ ज़्यादा ही करीब आके बैठ गई थी, और जब उसकी नज़र पड़ी तो देखा कि वो एकटक मुस्कुराते हुए उसे ही देखे जा रहा था। वो जाग चुका था।
और जब इफरा की नज़र उस पर पड़ी तो गिरते गिरते बची .....वो तो आसिम ने उसका हाथ थाम लीया था वरना पीछे सर के बल गिरती।
"आराम से...." आसिम ने उसका हाथ थामे कहा।
इफरा का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था, पहली बार था किसी ने उसका हाथ पकड़ा था, और वो किसी के इतना करीब थी।
आसिम अभी भी उसके खूबसूरत से चेहरे को मुस्कुराते हुए निहारे जा रहा था, वो बिल्कुल ताज़ा और खिला हुआ फूल लग रही थी, उसके बालों से अभी भी पानी की बूंदे टपक रही थी, उसके नज़दीक से आती खुशबू उसे बहका रही थी।
"हाथ छोड़िए मेरा..." इफरा ने अपनी घबराहट और शर्म को छुपाते हुए इधर उधर देखते हुए कहा।
"क्यों....अभी तो आप मुझे सोते हुए देख रही थी, अब जागते हुए भी देख लीजिए....."
"अच्छी खुशफहमी पाली है आपने, " वो उठने लगी थी, आसिम की नजरों का ताप सहना उसके लिए मुश्किल हो रहा था।
लेकिन आसिम ने उसका हाथ न छोड़ा बल्कि उसे अपने और करीब खींच लिया, जिस वजह से वो उसके ऊपर ही आ गिरी थी,
"ये क्या बद्तमीजी है..." उसने गुस्से से घूरते हुए कहा।
वहीं उसकी दिल की धड़कनें शतापदी एक्सप्रेस की तरह दौड़ रही थी।
हाल तो कुछ ऐसा ही आसिम का था, धड़कनें तो उसकी भी बेकाबू हो गई थी, जिस वजह से उसकी पकड़ ढीली हो गई , और मौका पाते ही इफरा झट से खड़ी हो गई।
"बीवी है आप मेरी, और आपके साथ बद्तमीजी करने की तो मैं सोच भी नहीं सकता, करना तो दूर की बात है..." उसने भी उठते हुए उसपे से नज़रे जमा के कहा।
"अच्छा......तो ये क्या था अभी...."
"क्या... "उसने अंजान बनते हुए कहा
"यही...."अब वो समझ नहीं पा रही थी कि क्या बोले।
"बोलिए....."
"कुछ नहीं ....."वो गुस्से से घूरते हुए बाहर चली गई।
वहीं पीछे खड़ा आसिम उसकी इस हरकत पर बेसाख्ता हंस पड़ा।
******
वो नीचे तैयार होके आया तो देखा कि उसकी अम्मी और इफरा मजे से चाय की चुस्कियां लेते हुए किसी बात पर हंस रही थी।
"बेटा आज इतनी जल्दी..." अम्मी ने उसे तैयार देख कहा।
"हां अम्मी...कॉल आया था थोड़ा जरूरी काम है तो जाना पड़ेगा.."
"ठीक है तो फिर आज नाश्ता करले, अभी बाकी सब भी उठने वाले ही होंगे..."
"नहीं अम्मी वहीं कर लूंगा, पहले ही लेट हो चुका है।"
इफरा खामोशी से अपना नाश्ता कर रही थी, कुछ देर पहले ही हरकत पर वो खुद शर्म से गड़ी जा रही थी।
"चलता हूं..." आसिम ने कहा और एक नज़र इफरा पर डाल चला गया।
कुछ खास मेहमान ही थे , जो आसिम की शादी में घर पर ठहरे थे, जो कि कल रिसेप्शन कर के चले जाते....
थोड़ी देर बाद बाकी सब भी उठ चुके थे, और आसिम की कजिंस इफरा को घेर कर बैठी थी।
सब बहुत ही अच्छे से पेश आ रही थी, उसे लग ही नहीं रहा था कि वो उन सब से पहली बार मिल रही हो.....
जारी है...
"भाभी आप अपने बारे में भी बताए न....ये लोग तो अपने किस्सों और कारनामों की पोटलिया खोलती ही रहेंगी, और आपको यूं ही पकाती रहेंगी....." अज़ीम ने आते हुए कहा।
अज़ीम (आसिम का छोटा भाई)....
इफरा बस हल्का सा मुस्कुरा दी।
"वैसे आपने मुझे पहचान तो लिया न..." उसने वही आकर बैठते हुए कहा।
लंगूर तो दूर से ही पहचान में आ जाते है....आशना (आसिम के मामू की बेटी) ने कहा।
इस बात पे सभी हंस पड़े।
"ओ..चना ज़रा तमीज़ में.. पूरे 2 साल बड़ा हूं तुमसे.."
"सच कड़वा ही होता है..." आशना ने भी उसी के अंदाज में कहा।
वो कुछ बोलने को हुआ कि तभी" बस करो तुम दोनो , जहां मौका मिला नहीं बस शुरू हो जाते हो।"
मुमानी ने कहा।
मुमानी समझा ले इसको, लंगूर कह रही है मुझे, वो भी भाभी के सामने .... अज़ीम ने शिकायती लहजे में कहा।
"और खुद जो मुझे चना कहते हो तब याद नही आता कि बड़े है, तमीज़ से बात करे"
"आशना.....बड़ा है न तुमसे, ऐसे बात करते है..." मुमानी ने उसे डपटा था।
"हां तो जो है ये वही तो कह रही है, ये कम है क्या हर वक्त उसे परेशान करता रहता है" आसिम की अम्मी हाथ में ट्रे लेके दाखिल हुई।
बातों का सिलसिला जारी था, हंसी मजाक में कब आज का दिन निकल गया पता ही न चला था।
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आज आसिम और इफरा का वलीमा था, सभी कामों में व्यस्त थे, इफरा पार्लर में बैठी तैयार की जा रही थी, उसके साथ आसिम की बहने भी थी जो काफी अच्छी कंपनी दे रही थी उसे।
अपनी पसंद के मुताबिक उसने हल्का मेकअप ही करवाया था, वरना आज कल तो दुल्हने तैयार नहीं पोती जाती है, मेकअप रूपी पेंट से।
आसिम बाहर खड़ा वेट कर रहा था, अज़ीम किसी काम में बिज़ी था जिस वजह से आसिम को भेजा गया था।
आशना कितना टाइम लगेगा अभी, कबसे वेट कर रहा हूं।
जी भाई बस निकल आए, सामने देखिए।
आसिम फोन कान पे लगाये हुए ही पलटा और सामने का नज़ारा देख, देखता ही रह गया।
हल्के नीले रंग के जोड़े में, इफरा बेहद हसीन लग रही थी।
खूबसूरत तो वो निकाह वाले दिन भी लग रही थी, पर आज कुछ मजीद इज़ाफ़ा हुआ था उसकी खूबसूरती में....।
भाई .....देर नहीं हो रही क्या.....आशना ने उसके सामने चुटकी बजाते हुए कहा।
"हां..हां...चलो.." वो एकदम होश में आया।
उसकी इस हरकत पर उसकी सभी बहने हंस पड़ी थी।
वहीं दुसरी तरफ इफरा आसिम की नज़रों से खुद में ही सिमट सी गई थी, ये सब बहुत नया था उसके लिए, अजीब सा हाल था दिल का, जिसे खुद भी नहीं समझ पा रही थी।
वो लोग हॉल में पहुंच चुके थे, इफरा के अब्बू अम्मी ,उसके भाई सभी मौजूद थे।
वो उन सब से मिलके काफी खुश हो गई थी, आसिम उसके चेहरे की चमक देख रहा था, जब वो अपने घर वालो से मिली।
आखिरकार वलीमा भी हो चुका था, सभी लोग थक हार कर घर आ चुके थे।
कुछ मेहमान तो वालीमे से ही चले गए थे, और कुछ लोग कल जाने की तैयारी करने लगे थे।
इफरा अपने कमरे में आते ही बिस्तर पर लेट गई थी, कपड़े बदलने की भी हिम्मत नहीं थी उसमें।
थोड़ी देर बाद आसिम आया तो देखा कि वो ऐसे ही सो गई थी।
उसने उसे अच्छे से चादर से कवर किया, और खुद आके कपड़े बदल के लेट गए। थकान से तो वो चूर ही था।
जारी है.........
इफरा अपने कमरे में आते ही बिस्तर पर लेट गई थी, कपड़े बदलने की भी हिम्मत नहीं थी उसमें।
थोड़ी देर बाद आसिम आया तो देखा कि वो ऐसे ही सो गई थी।
उसने उसे अच्छे से चादर से कवर किया, और खुद आके कपड़े बदल के लेट गया। थकान से तो वो चूर ही था।
अब आगे......
सुबह की पहली किरण ने दस्तक दी, इफरा ने कसमसा के उठना चाहा मगर उठ न सकी, जब आंख खोल के ध्यान दिया तो पाया कि आसिम उसके बेहद नजदीक उसे अपनी बाहों के घेरे में लिए हुए था, उसके हाथ उसकी कमर पे लिपटे थे, भी दूसरी तरफ इफरा ने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रखा हुआ था......
हैरत से उसकी आँखें फैल गई.....अजीब सी दिल में हलचल हुई थी, आंखे उसके चेहरे को देखने की तलबगार हुई थी, लेकिन अगले ही पल उसने इस कैफियत को झटका और साथ ही आसिम का हाथ तेज़ी से हटाया।
वो जो बेहद गहरी नींद में था अचानक इस हमले से उठ गया...सामने पाया तो इफरा भरपूर गुस्सा आंखो में लिए उसे खा जाने वाली निगाहों से देख रही थी....
"क्या हुआ...." उसने थोड़ा अलसाई हुई आवाज़ में कहा, नींद अभी भी आंखों में थी।
वो जो गुस्से से घूर रही थी, आसिम के नींद से भरे ये शब्द सुन और भड़क गई....
"आप किस से पूछ के मेरे इतने नजदीक आए, दूर रहिए मुझसे .....समझे आप "......
"कहना क्या चाहती हो...." अब नींद तो उड़ ही चुकी थी, पर बात उसे समझ कम आई थी।
मुझसे दूर रहिए, बस......कहके वो उठने लगी।
आसिम ने उसकी कलाई पकड़ के उसे अपने पास खींच लिया....."मसला क्या है आपका..??" थोड़ी सख्ती उसके लहजे में आ गई थी।
इफरा जो उसकी इस हरकत के लिए तैयार न थी, वो अब उसके ऊपर थी,
"कोई मसला नहीं है, बस मुझे ये सब पसंद नहीं, दूर रहिए मुझसे।"
"आपको सुनाई भी दे रहा की आप क्या और किससे बोल रही है......और शायद आप भूल रही है, शौहर हूं आपका, जितना हक आपका मुझपे है, उतना ही हक मेरा भी आप पे है.....और जो ये रट आपने कल से लगा रखी है न दूर रहने की, तो ये आपको शादी से पहले सोचना चाहिए था....." उसने कहा और हाथ छोड़ दिया, हद्द करदी थी इस नासमझ लड़की ने।
इफरा कहा चुप रहने वालो में से थी, सही कहा आपने , मुझे शादी से पहले सोचना चाहिए था, पर मेरी परवाह किसे थी, अब्बू ने कहा लड़का अच्छा है बस करवा दिया , मेरी मर्ज़ी न जानी न पूछी, और सही कह रहे है आप भी, शौहर है आप, हक है आपका , ले लीजिए अपना हक......
कहके उसने अपना दुपट्टा फेक दिया....
आसिम हैरत से इस लड़की को देख रहा था, उसकी आंखों में गुस्सा उतर आया था, हमेशा शांत रहने वाला लड़का, आज उसकी निगाहों ने एक दहकता हुआ गुस्सा था,
उसकी निगाहों को देख इफरा एक पल को तो सहम सी गई थी, पर हार मानने वालों में से वो कहां थी,
आसिम उठा, और उसका दुप्पटा उसे थमाते हुए,
"काश ऐसी हिम्मत आपने शादी से पहले दिखा दी होती, तो आज दो जिंदगियां बर्बाद न होती"
उठ के वो चला गया, कांच की तरह चुभी थी ये बाते
इफरा वही बैठ अपने आंसू पोछने लगी.......
जारी है......
आसिम हैरत से इस लड़की को देख रहा था, उसकी आंखों में गुस्सा उतर आया था, हमेशा शांत रहने वाला लड़का, आज उसकी निगाहों ने एक दहकता हुआ गुस्सा था,
उसकी निगाहों को देख इफरा एक पल को तो सहम सी गई थी, पर हार मानने वालों में से वो कहां थी,
आसिम उठा, और उसका दुप्पटा उसे थमाते हुए,
"काश ऐसी हिम्मत आपने शादी से पहले दिखा दी होती, तो आज दो जिंदगियां बर्बाद न होती"
उठ के वो चला गया, कांच की तरह चुभी थी ये बाते
इफरा वही बैठ अपने आंसू पोछने लगी.......
अब आगे........
दस दिन बीत चुके थे उस बात को, एक दो बार इफरा अपने घर होके आ चुकी थी, अज़ीम अपने हॉस्टल जा चुका था, उसके एग्जाम्स आने वाले थे, जिस वजह से अब घर में काफी शांति सी रहने लगी थी....
उस दिन के बाद से आसिम उसके करीब न आया था, हां लेकिन उसकी हर ज़रूरत का ख्याल किया था उसने.....
आसिम की अम्मी उन दोनों का रुख सूखा रवैया देख तो रही थी, मगर समझ नहीं पा रही थी।
इफरा आज कल उनके साथ घर के काम भी सीख रही थी, और अब तो उसे थोड़ा बहुत खाना बनाना भी आने लगा था,
आज भी आसिम जल्दी ही ऑफिस के लिए निकल गया , वो आज कल ऐसा ही करता था, सुबह जल्दी निकल जाता और रात को देर से आता।
इफरा और अम्मी दोनो किचन में खाना बना रहे थे, इफरा रोटियां बेलती और अम्मी उसे सेकती जाती....
इफरा बेटा एक बात पूछूं तुमसे, मुझे गलत मत समझना....
हां अम्मी बोलिए न....
"तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या, इतने दिन से मै देख रही हूं, आसिम का बदला हुआ बर्ताव, शादी से पहले मैंने उसे कभी ऐसा नहीं देखा....यहां तक कि वो तो किचन में आ आके मुझसे बाते किया करता था , मेरा हाथ बटाता था, पर अब जैसे बस घर पे सोने ही आता है...."
इफरा के चलते हुए हाथ रुक गए थे,
"नहीं अम्मी...ऐसी कोई बात नहीं है, उन्होंने बताया था कि कोई बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है, जिससे उन्हें काफी फायदा होगा, बस इसलिए लगे हुए है काम में....." कितनी मुश्किल से उसने ये झूठ कहा था ये उसका दिल ही जानता था, किस मुंह से कहती की उनके बेटे की इस हालत की जिम्मेदार उनके सामने खड़ी है....।
रात के 12 बज रहे थे, आसिम ऊपर आया, खाना वो खुद ही निकाल कर खा लिया करता था, अम्मी और इफरा अक्सर ही उसके इंतेज़ार में सो जाया करती थी।
उसने कमरे का दरवाज़ा खोला तो देखा ,
इफरा सोफे पर बैठी की किताब पढ़ रही थी...
"आ गए आप..., हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना ले आती हूं"
बेवजह परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैंने खा लिया है..!!
उसकी बात सुनकर इफरा को गुस्सा आ गया,
"ये सब क्या तमाशा लगा के रखा है अपने...??"
"कौनसा तमाशा, क्या बोल रही है आप..!!"
"यही देर से आना सुबह जल्दी चले जाना, अम्मी कितनी परेशान है आपकी वजह से, मगर आपको तो फुर्सत ही कहां की दो पल उनके साथ बैठ जाए....."
आसिम उसे गौर से देखते हुए समझने की कोशिश कर रहा था, कभी दूर रहने को कहती है आज बीवियों जैसी शिकायत, क्या है ये लड़की..।
जारी है.....
इफरा सोफे पर बैठी की किताब पढ़ रही थी... "आ गए आप..., हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना ले आती हूं" बेवजह परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैंने खा लिया है..!! उसकी बात सुनकर इफरा को गुस्सा आ गया, "ये सब क्या तमाशा लगा के रखा है अपने...??" "कौनसा तमाशा, क्या बोल रही है आप..!!" "यही देर से आना सुबह जल्दी चले जाना, अम्मी कितनी परेशान है आपकी वजह से, मगर आपको तो फुर्सत ही कहां की दो पल उनके साथ बैठ जाए....." आसिम उसे गौर से देखते हुए समझने की कोशिश कर रहा था, कभी दूर रहने को कहती है आज बीवियों जैसी शिकायत, क्या है ये लड़की..। अब आगे..... आपकी परेशान होने की जरूरत नहीं है....और हां....आगे से मेरे लिए जागने की ज़रूरत नहीं है...कहके वो कपड़े चेंज करने चला गया। इफरा अभी भी हैरानी से देख रही थी, उसे तो लगा था कि वो चिल्लाएगा, उसे कोसेगा..पर नहीं बस क्या इतना ही कहना था उसको... वो अभी भी उसी तरह खड़ी हुई थी, ध्यान उसका तब टूटा जब देखा कि आसिम सोफे पे जाके चुप चाप लेट गया। आज कल यही तो करता था वो, उस दिन के बाद से तो उसने बिस्तर पर लेटना ही छोड़ दिया था। "आप बिस्तर पर सो जाइए...." बड़ी मुश्किल से ये लफ्ज़ निकले से उसके मुंह से। लेकिन वहां से सिर्फ खामोशी जवाब में मिली । ****** "अम्मी आपको कई ऐसे अकेले नहीं छोडूंगा, आप भी चलिए....या फिर उसे यही रहने दीजिए...एक महीने की तो बात है बस...!!" ""दिमाग तो ठीक है तुम्हारा.....अभी तो वक्त है तुम दोनो के पास साथ में घूमने फिरने का , वरना फिर तो जिम्मेदारियों में वक्त निकल जाएगा और खबर भी न होगी....."" ""अम्मी मै घूमने नहीं....ऑफिस की तरफ से जा रहा हूं...!!"" ""हां पता है मुझे लेकिन वो भी जाएगी बस...."" ""और आप... अज़ीम भी नहीं है , कैसे रहेंगी अकेले...??"" "मैं तुम्हारी खाला के पास रह लुंगी, बड़े दिन से वो मुझे बुला रही है, 1 महीने बाद अमरीन (आसिम की खाला की बेटी) की शादी भी तो है, कितना काम है उसे, मैं जाऊंगी तो आसानी भी हो जाएगी, और सबके साथ रह भी लुंगी।" "पर अम्मी........."अम्मी से अपनी बात मनवाना इतना भी आसान नहीं था । "तुम चुप करो...!!" ***** इफरा कमरे में बैठी कुछ पढ़ रही थी, अभी आदतानुसार.....वो अक्सर ही किताबें पढ़ती ही दिखा करती थीं उसे, आज के टाइम में जब मोबाइल लोगों के हाथ में हर पल हो, वो किताबें पढ़ने की शौकीन थी। आसिम ने कभी कहा नहीं या फिर उनके बीच ऐसा रिश्ता ही न कायम हो पाया कि वो अपने दिल की बात उसे बताता.... की वो जब ऐसे मगन होके किताब पढ़ती थी, बला की हसीन लगती थी....दिल चाहता की बस देखता रहूं.... और साथ ही किताब पढ़ते वक्त उसके चेहरे पर आते जाते भाव...उसे और दिलकश बना देते थे। क्या हुआ....!! आज इतने दिन बाद खुद को देखता हुआ आसिम बड़ा ही मासूम लगा था....उसने अपनी मुस्कुराहट को छुपाते हुए उसकी चोरी पकड़ी थी, और टोक भी दिया... वो...मुझे ऑफिस के सिलसिले से एक महीने की टूर पर जाना है...अगर आपका मन है तो आप चल सकती है, नहीं तो फिर आप अपने घर हो आइए.... "क्या मतलब अपने घर हो आइए...मैं अपने घर में ही हूं...!!" "मेरा मतलब आपके अब्बू के घर...." जारी है....
आज इतने दिन बाद खुद को देखता हुआ आसिम बड़ा ही मासूम लगा था....उसने अपनी मुस्कुराहट को छुपाते हुए उसकी चोरी पकड़ी थी, और टोक भी दिया... वो...मुझे ऑफिस के सिलसिले से एक महीने की टूर पर जाना है...अगर आपका मन है तो आप चल सकती है, नहीं तो फिर आप अपने घर हो आइए.... "क्या मतलब अपने घर हो आइए...मैं अपने घर में ही हूं...!!" "मेरा मतलब आपके अब्बू के घर...." खामोशी से जवाब दिया था उसने। "अब्बू के घर क्यों जाना, मैं यहां अम्मी के साथ रहूंगी, वो अकेले कैसे रहेंगी...!!" आसिम के दिल में न जाने कैसा सुकून सा उतरा था ये बात सुन के.....चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई थी जिसे उसने पल भर में छिपा भी लिया था.... "वो खाला के घर जाने का कह रही है....अगले महीने आफरीन की शादी भी है, और खाला भी काफी बुला रही है..." "ठीक है ...!! फिर मैं अब्बू के यहां ही चली जाऊंगी.."वापस से किताब में मसरूफ हो चुकी थी वो। ग्लास में पानी निकलाते हुए आसिम के हाथ एक पल को रुक से गए थे, एक टीस सी उठी थी मन में, जाने कहा उससे क्या चूक हो गई थी, जो इफरा उससे यूं मुंह मोड़े बैठी थी... वो चाहता था कि वो साथ चले ....शायद उनके बीच की दूरी खत्म हो जाए... "ठीक है....मै कल छोड़ आऊंगा आपको.." गहरी सांस छोड़ के उसने जवाब दिया। इफरा ने भरपूर निगाह डाली उसपे, "वैसे जाना कब है आपको..??" "परसो..." "ठीक है...बता दीजियेगा क्या क्या रखना है ,मैं रख दूंगी।" "कोई जरूरत नहीं....मैं खुद रख लूंगा.." "मैं आपके नहीं...अपने सामान की बात कर रही हूं..." आसिम ने सवालिया निगाहें उस पर डाली..... ""अब्बू अम्मी दो दिन पहले ही लखनऊ के लिए रवाना हुए है....नानी की तबियत ठीक नहीं है...." ""इसीलिए आपके साथ ही चल लुंगी..."" उसने इस बारी उसकी निगाहों में निगाहें डाल के कहा था। आसिम ने सिर हां में हिला दिया.....समझ कहा आती है उसे ये लड़की.... "क्या हुआ...आप अगर नहीं चाहते मुझे ले जाना तो कोई बात नहीं....मैं भी अम्मी के साथ आपकी खाला के यहां चली जाऊंगी..!!" बड़ी मासूमियत से कहा उसने। आसिम की भौहें तन गई...."आप अपने मन से क्यों हर बात सोच लेती है....और फिर उस पर फैसला भी खुद ही करने लग जाती है "......... "आप अब तक उस दिन की बात पे नाराज़ है...!!" वो अपनी किताब साइड रख उस की और बड़ी थी। आसिम तो अभी भी हैरानी में था....आखिर सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया...?? वो उसकी जानिब बढ़ के उसके काफी नज़दीक खड़ी थी.... आपकी तबियत तो ठीक है न... आसिम ने कहा और अपने हाथ को उसके माथे के पास लगाने से पहले ही वापस ले लिया था उसने.....लेकिन इफरा ने तुरंत उसका पीछे होता हुआ हाथ पकड़ लिया और अपने माथे पर रख.... "बिल्कुल ठीक हूं मैं.....उस दिन के लिए... so ....sorry...." आसिम अभी भी उसी हालत में खड़ा हुआ था, अचानक से यूं बदला हुआ रवैया उसे परेशाना कर रहा था... वो खुश होना चाहता था पर हो नहीं पा रहा था। उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया.... वो अब भी उसकी आंखों में देख रहा था...जैसे कुछ तो था जो उससे छुपा हुआ था... जारी है.....
आसिम अभी भी उसी हालत में खड़ा हुआ था, अचानक से यूं बदला हुआ रवैया उसे परेशाना कर रहा था...
वो खुश होना चाहता था पर हो नहीं पा रहा था।
उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया....
वो अब भी उसकी आंखों में देख रहा था...जैसे कुछ तो था जो उससे छुपा हुआ था...
अब आगे....
इफरा ने उसकी सवालिया निगाहों को महसूस किया था लेकिन कोई जवाब न दिया....
और आसिम अब भी उसकी निगाहों को पढ़ने की कोशिश करता हुआ उसकी निगाहों में ही डूब चुका था....
इफरा ने तुरंत अपनी नज़रे हटा ली...
और आसिम चुपचाप जाके सोफे पर लेट गया।
आज उसकी आंखों में नींद नहीं थी, वो दिन याद आ गया जब वो पहली बार इफरा से मिला था....पहली बार उसकी निगाहें इफरा कि खूबसूरत निगाहों से उलझी थी, और जो उलझी तो बस आज तक न सुलझी थी।
4 महीने पहले....
ठंड का समय था, आसिम अपनी ही कॉलोनी के मार्केट से होते हुए गुज़र रहा था, वो इलाका काफी चहल पहल वाला रहता है, अक्सर गाड़िया आती जाती रहती है,
आसिम ने जैसे ही रोड पर करने के लिए कदम बढ़ाए ही थे, की सामने एक बाइक ने तेज़ी से ब्रेक मारा था...
और आसिम की नज़रे गाड़ी चलाने वाले शख्स के पीछे बैठी
लड़की की नज़रों से टकरा गई थी।
उस लड़की की आँखें डर से काफी बड़ी हो चुकी थी, चेहरा उसका मफलर से आधा ढका हुआ था, जहां उसकी दो बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखें आसिम की आंखों से जा मिली थी।
यही वो मौका था....जब आसिम के दिल ने तेज़ी से एक बीट मिस की थी।
वो गाड़ी और लड़की तो जा चुकी थी, मगर आसिम के दिल में घर कर चुकी थी।
वो अक्सर ही इस रास्ते अब चला आया करता था कि शायद दोबारा उसका सामना हो जाए, मगर अफसोस की वो उसे दोबारा न दिखाई दी।
उसने अपने दिल को भी तस्सली देके समझा लिया था, की जो मुमकिन नहीं उसके बारे में क्यों सोचना।
लेकिन जब कुछ दिनों बाद शफीक साहब के घर उसका जाना हुआ तो....
घर में घुसते ही वो किसी से टकरा गया था....और ये ख्वाब नहीं हकीकत था...वो उन आंखों को पहचान गया, भूलता भी कैसे यही तो वो आँखें थी जो उसका एक पल में दिल चुरा ले गई थी।
वो लड़की जल्दी में सॉरी कहके बाहर निकल गई थी, एक बार पलट के देखा तक न था उसने।
"ये इफरा भी न हर वक्त घोड़े पे सवार रहती है, तुम आओ बेटा..."
".....जी...जी... आंटी.." हैरत में पड़ा अब जाके होश में आया था।
"वो ये अम्मी ने भिजवाया था...आपके लिए".....उसने हाथ में पकड़ा बर्तन शबनम बेगम को थमाया था।
आसिम की अम्मी शफीक साहब के घर जब कुछ अच्छा बनता तो ज़रूर भिजवाती थी और वही शबनम बेगम भी अनस के हाथों अक्सर कुछ न कुछ भेजा करती थी, दोनो की काफी अच्छी जमने लगी थी।
"आओ बेटा…...चाय पीके जाना" शबनम बेगम ने प्यार से कहा ।
"नहीं आंटी, अभी ऑफिस जाना है, फिर कभी".....बड़े ही अदब से मुस्कुरा के आसिम ने जवाब दिया।
*****
जारी है....
"ये इफरा भी न हर वक्त घोड़े पे सवार रहती है, तुम आओ बेटा..."
".....जी...जी... आंटी.." हैरत में पड़ा अब जाके होश में आया था।
"वो ये अम्मी ने भिजवाया था...आपके लिए".....उसने हाथ में पकड़ा बर्तन शबनम बेगम को थमाया था।
आसिम की अम्मी शफीक साहब के घर जब कुछ अच्छा बनता तो ज़रूर भिजवाती थी और वही शबनम बेगम भी अनस के हाथों अक्सर कुछ न कुछ भेजा करती थी, दोनो की काफी अच्छी जमने लगी थी।
"आओ बेटा…...चाय पीके जाना" शबनम बेगम ने प्यार से कहा ।
"नहीं आंटी, अभी ऑफिस जाना है, फिर कभी".....बड़े ही अदब से मुस्कुरा के आसिम ने जवाब दिया।
वो वहां से आ चुका था पर ज़हन पर अब भी वही लड़की काबिज़ थी ।
वो ऑफिस जाने के लिए निकल चुका था, और लबों पर हल्की सी मुस्कुराहट ने कब्ज़ा जमा लिया था, उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि वो उसके इतने नज़दीक थी और तब वो उसे ढूंढ नहीं पाया।
उस दिन के बाद से आसिम का उस तरफ जाना न हुआ, जब कभी उसके दीदार की तलब होती तो, उसी रास्ते पर निकल जाता, और इत्तेफाकन कभी कभी वो दिख भी जाया करती।
अम्मी उसके लिए काफी रिश्ते देख रही थी, पर वो हर बार इंकार कर दिया करता था, लेकिन जब शफीक साहब ने खुद सामने से इफरा का हाथ दिया....इंकार की सारी वजह ही खत्म हो गई , उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये हकीकत है या ख्वाब....पर जो भी था वाकई खूबसूरत था।
वो अपने एक एक जज़्बात से उसे रूबरू करवाना चाहता था....
लेकिन उसका दिल उस दिन टूट गया जब इफरा ने उस दिन बस गलती से सोते हुए हाथ रख जाने पर इल्ज़ाम लगा दिए।
वो तो उसकी बेरुखी को यही समझ रहा था कि शायद वो उसके साथ कंफर्टेबल नहीं हो पाई है अभी, और वो खुद भी थोड़ा वक्त चाहता था, वो बीवी थी उसकी , उसके भी कई अरमान थे लेकिन वो अपने हर एक जज़्बात को उस पर बड़ी शिद्दत और आराम से लुटाना चाहता था।
पर उस दिन के रवैए से उसे ऐसा महसूस हुआ कि वो इस शादी से खुश क्या ,उसे तो अपना शौहर तक नहीं समझती, या फिर हो सकता है कि कोई और.... इस एक ख्याल ने उसके चेहरे पर सख्ती ला दी थी।
इन्हीं सब ख्यालों में कब उसकी आंख लगी उसे ख़बर न हुई और हो नींद के आगोश में चला गया।
वहीं इफरा अभी भी जाग रही थी, वो जो महसूस कर रही थी किसी को न बता सकती थी और न समझा सकती थे।
आसिम के बर्ताव को देख उसे दुख हो रहा था , आसिम की अम्मी की आंखों में परेशानी उसे अन्दर ही अंदर परेशान करे जा रही थी।
वो चाहती थी कि आसिम अपनी अम्मी और भाई के साथ नॉर्मल रहे ....लेकिन उस दिन उसकी बेवकूफी के चलते वो अपनी अम्मी से भी ज़्यादा बात न कर रहा था, किसी गहरी सोच में हर वक्त मुब्तिला रहता था..
वो हरगिज़ नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से उन दोनों मां बेटे के बीच दूरियां आए।
जारी है.....
वहीं इफरा अभी भी जाग रही थी, वो जो महसूस कर रही थी किसी को न बता सकती थी और न समझा सकती थे। आसिम के बर्ताव को देख उसे दुख हो रहा था , आसिम की अम्मी की आंखों में परेशानी उसे अन्दर ही अंदर परेशान करे जा रही थी। वो चाहती थी कि आसिम अपनी अम्मी और भाई के साथ नॉर्मल रहे ....लेकिन उस दिन उसकी बेवकूफी के चलते वो अपनी अम्मी से भी ज़्यादा बात न कर रहा था, किसी गहरी सोच में हर वक्त मुब्तिला रहता था.. वो हरगिज़ नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से उन दोनों मां बेटे के बीच दूरियां आए।
आज वो दोनों अपनी आगे की जिन्दगी के लिए भोपाल रवाना हो गए थे, आसिम की अम्मी भी अपनी बहन के घर जा चुकी थी। रास्ते भर दोनों के बीच खामोशी सी थी, बस ज़रूरत भर बात हुई थी।
आखिरकार वो लोग पहुंच चुके थे, रात के आठ बज रहे थे....आसिम ने फ्लैट का दरवाज़ा खोला, वो एक छोटा सा अपार्टमेंट था,
वो सामान लेके अंदर दाखिल हुआ। इफरा उसके पीछे पीछे आई, काफी करीने से सेट था वो घर, एक बड़ा सा हॉल और एक कमरा और किचन था।
आसिम अंदर सामान रख के आया तो देखा इफरा सोफे पर सर पर हाथ रखे आंखे बंद करके बैठी थी। चेहरे पर थकान साफ नज़र आ रही थी, खैर थक तो वो भी गया था।
कुछ देर बाद आसिम आया , उसके हाथ में एक ट्रे था, जिसमें दो कप चाय के थे, और पानी का गिलास था।
" ये लीजिए...!!"
इफरा चिंहुक के उठ गई, हल्की सी आंख लग चुकी थी उसकी।
" ये आपकी चाय...!! आसिम ने उसकी तरफ बढ़ा दिया..
"शुक्रिया.....बहुत ज़रूरत थी इसकी "।
उसने कप उठाया और सुकून से पीने लगी।
"" आप यहां पहले भी आ चुके है...?? ""इफरा ने उनके बीच पसार चुकी खामोशी को तोड़ते हुए कहा।
"हां.....तीन चार दफा..... "आसिम ने चाय का घूंट लेते हुए कहा।
दोनों के बीच फिर एक खामोशी ने अपनी जगह बना ली थीं।
आसिम का तो मिज़ाज ही खामोशी वाला था लेकिन इफरा इतना चुप न रह पाती थी, तभी तो इतने कम समय में आसिम की अम्मी से उसकी इतनी जमने लगी थी,।
" आप एक काम करिए जाके नहा लीजिए, जब तक मैं कुछ खाने के लिए बना लेती हूं।"
""आप रहने दीजिए, मै कुछ बाहर से ऑर्डर कर देता हूं....अभी ज़्यादा कुछ सामान भी नहीं है...."
"हम्मम...ठीक है फिर....। "उसने कप रखते हुए कहा....
"आप जाके नहा लीजिए, फिर मैं नहा लेता हूं, जब तक खाना भी आजाएगा....
"हां..."
वो उठी और अपने कपड़े लेके बातरूम में चली गई।
खाना आ चुका था, और आज शायद ये पहली या दूसरी बार होगा जब दोनों साथ में बैठ के खाना खा रहे थे....
आसिम इफरा के चेहरे को ध्यान से देख रहा था या फिर कुछ समझने की कोशिश कर रहा था....
""नहीं पढ़ पाएंगे...!!"" उसकी नजरों को खुद पर महसूस कर के आखिर वो बोल उठी
आसिम उसकी बात को समझ ......"पढ़ी तो किताबें जाती है, मैं तो इंसानों को परखने में यकीन रखता हूं".....
"फिर परख लिया...!!! या फिर चूक हो गई..!!" इफरा ने कहा तो आसिम उसे देखते हुए बोला..
आसिम हल्का सा मुस्कुराया ..."पता नहीं"।
ये सुन के न जाने क्यों इफरा को अच्छा नहीं लगा, शायद वो कुछ और सुनना चाहती थी।
नोट: अगर आप लोगों को ये कहानी पसंद आ रही है तो प्लीज़ मुझे कॉमेंट करके बताइए....आप लोगो के रिव्यू बहुत मायने रखते है....
और तभी मैं आगे पार्ट्स अपलोड कर पाऊंगी...
जारी है...!!
फिर परख लिया...!!! या फिर चूक हो गई..!!" इफरा ने कहा तो आसिम उसे देखते हुए बोला..
आसिम हल्का सा मुस्कुराया ..."पता नहीं"।
ये सुन के न जाने क्यों इफरा को अच्छा नहीं लगा, शायद वो कुछ और सुनना चाहती थी।
अब आगे......
(कहानी का अगला भाग):
इफरा चुपचाप आसिम के चेहरे को देख रही थी। उसकी वो हल्की मुस्कान...जैसे वो बहुत कुछ कहकर भी कुछ नहीं कह रहा हो। खाना खत्म हुआ तो इफरा ने प्लेट उठाई, लेकिन आसिम ने रोक दिया—
"रहने दीजिए, मैं कर लूंगा।"
"नहीं, मैं कर लेती हूं...वैसे भी आदत है मुझे।"
इफरा ने धीमे से जवाब दिया और किचन की तरफ बढ़ गई।
आसिम बस खड़ा देखता रह गया।
थोड़ी देर बाद जब इफरा वापस आई, तो आसिम बालकनी में खड़ा बाहर टिमटिमाती लाइट्स को देख रहा था। इफरा पास जाकर कुछ पल चुपचाप खड़ी रही, फिर बोली—
"आप...अब भी नाराज़ हैं?"
आसिम ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ सेकंड बाद उसने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा—
"नाराज़ होना आसान है...लेकिन भूलना मुश्किल।"
इफरा की आंखों में नमी तैरने लगी। उसने धीरे से कहा—
"मैंने जो किया...वो जानबूझकर नहीं था आसिम। मैं बस...डर गई थी।"
आसिम ने लंबी सांस ली और नजरें फिर से बाहर की तरफ कर लीं।
मैं समझता हूं, .... उसने हल्का सा मुस्कुरा के कहा।