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सियासी इश्क़

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कहते है, शिव को पाने के लिए पार्वती ने तपस्या की थी। लेकिन शिव ने भी पार्वती के लिए प्रतीक्षा की। प्रेम में एक के हिस्से प्रतीक्षा आती है, तो दूसरे के हिस्से तपस्या की अग्नि। लेकिन तब क्या हो जब एक ही शख्स के हिस्से प्रतीक्षा और तपस्या दोनो आ जाए? ये...

Total Chapters (25)

Page 1 of 2

  • 1. सियासी इश्क़ - Chapter 1

    Words: 1324

    Estimated Reading Time: 8 min

    राजस्थान हमेशा से ही , वीरता और स्वाभिमानता का प्रदेश रहा है । यंहा के लोग जितने सीधे है , उतने ही वीर भी । राजपुताना सदैव राजपूतों की शौर्य गाथाओं से भरा रहा और सब को गौरवान्वित करवाता रहा । चाहे पुरुष हो या स्त्री । हर कोई यंहा योद्धा बन लड़ा और सहर्ष स्वयं का बलिदान दिया । जोधपुर , राजस्थान । एक खूबसूरत सा महल रात के अंधेरे में जगमगा रहा था । वंही महल के एक कमरे में उजाला हो रहा था । एक युवती उस कमरे की बड़ी सी खिड़की उजाले में खड़ी थी । उसके अंग पर पड़ती जगमगाते दीपों की रोशनी उसके हर एक अंग को सोने सा दमका रहा था । उसके लम्बे खुले , घने बाल हवा में लहरा रहे थे । तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई । उसने मुड़ कर पीछे देखा । गेंहुआ रंग , रोशनी में और चमक उठा । गोल चेहरा , माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर दमक रहा था । काली गहरी कजरारी आंखे , पतली छोटी सी नाक और गुलाबी होठ । लेकिन चेहरा भाव शून्य ।लेकिन बेहद ही खूबसूरत थी वो । उसने जा कर दरवाजा खोला । सामने एक युवक सिर झुकाए खड़ा था । उस ने उस युवक को देख कहा " क्या कोई समाचार मिला , हुकुम सा का ? " उस आदमी ने सिर झुकाए हुए , निराशा से कहा " रानी सा ! कंही कोई प्रमाण नही मिला । ना ही कोई निशानी मिली । सब का कहना है कि , हुकुम सा अब ! " उसने इतना कहा ही था कि तभी , रानी सा ने जोर से एक रौबदार आवाज में कहा " बस ! आगे के शब्द बोलने का दुस्साहस न करिएगा । " वो सैनिक एक पल को कांप गया । वो आगे बोली " लोग क्या कहते हैं , और क्या नही ? हमे सब ज्ञात है । किंतु हमारे हुकुम सा के बारे में हम कुछ भी अनिष्ट नही सुनना चहतें । हम जीवित है । हमारी श्वास अब तक चल रही है । हमारे लिए , उनके होने का ये प्रमाण काफी है । " उस सैनिक ने कुछ नही कहा । औऱ वापस चला गया । और वो जा कर वापस उस खिड़की पर खड़ी हो गयी । आंखे कुछ झिलमिलाई थी , या शायद अपने हुकुम सा की स्मृतियां नैनो में भर आईं थी । जिसे उसने तुरन्त खुद में जब्त कर लिया । और धीरे से बोली " नही ! हम शक्ति शाश्वत प्रताप सिंह है । हम ऐसे हारेंगे नही । " अगली सुबह । कोई जोर जोर से उसके कमरे का दरवाजा खटखटा रहा था । लेकिन वो अब तक सोई हुई थी । लेकिन इन आवाजो ने उसे जगा दिया । वो उठी , और झट से अपनी ओढ़नी ठीक करते हुए , दरवाजा खोलने चली गयी । दरवाजा खोलते ही सामने एक लगभग उसी की उम्र की लड़की खड़ी थी । वो उसे देख बोली " भाभी सा ! क्या हुआ ? " वो उसकी भाभी थी , गोरा रंग , तीखे नैन नक्श राजपूती लिबास में । एक रानी की तरह सजी सवरी , वो बेहद ही प्यारी लग रही थी । तभी पीछे से एक रौबदार आवाज आई " सुकन्या ! आप यंहा शक्ति बाईसा के कक्ष के बाहर क्या कर रही है ? " सुकन्या ने मुड़ कर उस ओर देखा , सामने एक लगभग 30 साल का आदमी खड़ा था । जितनी रौबीली आवाज , उतनी ही रौबदार पर्सनेलिटी , लम्बी चौड़ी कदकाठी और चेहरे पर अपार तेज । सुकन्या धीरे से बोली " जी , राजा साहब ! वो ! पूजा का समय हो गया । आज जीजी अब तक सोई रही । इसीलिए देखने चले आए । " शक्ति ! हां यही नाम था उनका । जयपुर की हुकुम रानी सा । जैसा नाम वैसा स्वभाव । आज तक अपने हुकुम सा के अलावा किसी पर ना तो हारी थी , और ना ही कोई उन्हें हरा पाया था । शक्ति ने अपनी भाभी सुकन्या को देखा । वो लगभग उसी की उम्र की थी । शक्ति के बड़े भाई , राव जयधर से उनका विवाह हुआ था । जो कि इस समय राठौड़ वंश के राजा थे सुकन्या के गुण बिल्कुल उनके नाम के समान थे । बिल्कुल सौम्य और कोमल । शक्ति ने अपने भाई को देख कहा " भाई सा ! हम जयपुर के लिए आज प्रस्थान करना चाहतें है । " जयधर हैरानी से उसे देखने लगा । फिर बोला " किंतु राजकुमारी ! " शक्ति ने हाथ जोड़ उसकी बात काटते हुए , दर्द भरी आवाज में कहा " आप भी औरो की तरह ये न कहिएगा कि हमारे हुकुम सा नही रहे । वो है भाई सा ! हमारी पल पल की ह्रदय गति हमे उनके होने का आभास कराती है । हम नही मानते जो बाकी सब मानते हैं । क्योंकि शक्ति का अस्तित्व केवल अपने शाश्वत से है । यदि शाश्वत नही रहे होते , तो शक्ति की भी सांसे अब तक टूट चुकी होती । " जयधर और सुकन्या उसे देखने लगे । तभी शक्ति आगे बोली " भाई सा ! हमारे हुकुम सा के कर्तव्यों का वहन हमे ही उनकी अनुपस्थिति में करना होगा । कृपया कर हमें प्रस्थान की आज्ञा दे । " जयधर की नज़र बस अपनी बहन पर टिकी थी । जयधर ने धीरे से उसके सिर पर हाथ रखा और बोला " अगर आप जाना चाहती है तो , जाएं । हम आपको आपके कर्तव्यों का पालन करने से नही रोकेंगे । लेकिन याद रखिएगा , आपके भाई सा हमेशा आपके साथ है । कभी भी आपको हमारी आवश्यकता लगे , हमे याद जरूर करिएगा । " शक्ति ने नम आंखों से उसे देखा , और धीरे से हां में गर्दन हिला दी । जयधर ने सुकन्या को देख कहा " कुमारी के प्रस्थान की व्यवस्था करवा दीजिए । " सुकन्या ने हामी भरी , और वँहा से चली गयी । शक्ति भी वापस अपने कमरे में चली गयी । और अपने वापस लौटने की तैयारियों में लग गयी ।  थोड़ी ही देर में वो महल के बड़े से आंगन में प्रस्थान के लिए सुसज्ज खड़ी थी । राजपूती परिधान और आभूषणों से सुसज्जित उसकी कंचन सी काया बेहद ही मनमोहक लग रही थी । उसने आ कर झुक कर अपनी मां सा के सामने हाथ जोड़े और बोली " आज्ञा दे मां सा ! " गीतांजलि जी शक्ति की मां ने नम आंखों से उसके सिर पर हाथ रखा और बोली " जाइए , और अपने हुकुम सा कर्तव्यों का अपनी जी जान से निर्वहन कीजिए । आपकी मां होने पर हमें हमेशा गर्व रहा है । हमारे इस गुरुर को हमेशा जीवित रखिएगा । और अपने हुकुम सा को जल्दी ही ढूंढ लीजिएगा । " उनकी बातें सुन शक्ति के ह्रदय और शरीर मे एक नई ऊर्जा का संचार हुआ । उसने नम आँखो से हां में गर्दन हिला दी । जयधर ने उसे देख कहा " राजकुमारी ! हम आपको जाने से नही रोकेंगे । लेकिन आने वाली परिस्थितियों से आपको अवगत कराना हमारा धर्म और कर्तव्य दोनो है । " शक्ति उसे देखने लगी । तो जयधर आगे बोला " आप हुकुम रानी सा है । जब तक हुकुम सा नही है तब तक आपको सब कुछ सम्भालना होगा । लेकिन ये इतना सरल कार्य नही । आपके महल में , आपके अपने ही अपने प्रपंचो से आपको क्षति पहुंचाने की कोशिश करेंगे । इसीलिए सावधान रहिएगा । " शक्ति ने उसे देखा और बोली " हम समझ रहे हैं भाई सा ! आप निश्चिंत रहिए । आपकी बहन एक योद्धा है । हर परिस्थिति का सामना करना हमने आपसे ही सीखा है । हम सब सम्भाल लेंगे । " जयधर ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोला " जाइए , औऱ अपना पत्नी धर्म निभाइए । " शक्ति ने सब से विदा ली और जयपुर के लिए निकल गयी । । । । जारी है Author ✍️ Riya Sirswa

  • 2. सियासी इश्क़ - Chapter 2

    Words: 1344

    Estimated Reading Time: 9 min

    Ep 2 शक्ति जयपुर के लिए निकल चुकी थी । मन मे कई सवाल और दुविधाएँ थी । न जाने महल में कैसी स्थिति होगी । हुकुम सा के बिना कौन वँहा सब सम्भाल रहा होगा । उसने अपना फोन निकाला , और किसी को फोन मिला दिया । दो - तीन रिंग के बाद किसी ने कॉल पिक किया । और उधर से एक लड़के की आवाज आई - " प्रणाम भाभी सा ! " शक्ति ने सौम्य आवाज में कहा - " प्रणाम , कुंवर जी ! " ये जयपुर के छोटे युवराज रक्षत प्रताप सिंह थे । साश्वत यानी कि हुकुम सा के छोटे भाई । रक्षत ने कहा - " आज आपने हमे याद किया । कोई विशेष प्रयोजन ! " शक्ति ने बड़े आराम से कहा - " हम महल लौट रहे हैं । हम आपसे चाहतें है कि , आप सभी को सूचित कर दे । और हुकुम सा इस समय नही है । तो हम अपेक्षा करेंगे , आप हमें द्वार पर लेने पधारे । " रक्षत ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा - " हमेशा की तरह आपका आदेश सिर - आंखों पर । " शक्ति के होठो पर भी हल्की सी मुस्कान आ गयी । रक्षत ने उसे आराम से आने का कह कर कॉल कट कर दिया । और लग गया अपनी भाभी सा के आदेश को पूरा करने में । वो बाहर आया और जोर - जोर से सब को आवाज देते हुए बोला - " मां सा , बाबा सा , दादी सा , दादा सा ! कंहा हो सब लोग । " सब से पहले रक्षत के पिता निकल कर आए । नाम - राजा हर्षवर्धन सिंह ! लम्बी कद - काठी , चेहरे पर एक अनोखा तेज ,ताव देती मुछे । और चेहरे पर गम्भीर भाव । उम्र कोई लगभग 60 साल रही होगी । उन्होंने रक्षत को देख गम्भीर और रौबदार आवाज में कहा - " छोटे युवराज ! आपको ये सब हरकते शोभा नही देती । आप भूलिए मत की आपको हुकुम सा की गद्दी पर बैठाया जाएगा । जो कि एक बेहद जिम्मेदारी की बात है । " ये सुन कर रक्षत का मुँह बन गया । कभी - कभी उसे लगता था कि उसके बड़े भाई सा के जाने का किसी को कोई फर्क ही नही पड़ा । जो गद्दी उसके बड़े भाई की है , आज उस पर उसे बैठाने की बाते हो रही थी । तब तक बाकी सब भी आ चुके थे ।  " क्या बात है युवराज आप ऐसे सब को क्यों बुला रहे है ? " ऐश्वर्या ने कहा । 55 की उम्र और 25 के शौक रुखने वाली ये महिला हर्षवर्धन जी की बहन और हुकुम सा की बुआ थी । जो कि आज तक अपने मायके जयपुर में ही रह रही थी । " आप सब के लिए एक अच्छी खबर है ,, आप बस इंतेज़ार कीजिये । " रक्षत ने सब को एक भ्रांति ( सस्पेंस ) में रखते हुए कहा । ग्रीष्मा जी ने रक्षित को देखा और बोली - " युवराज ये क्या नादानी है ? आप को पता है सब कितने व्यस्त हैं । आप अब ऐसे बचपना कर रहे है । आप को इस रियासत की जिम्मेदारी लेनी है ।  "  ये हुकुम सा की मां थी । 56 - 57 वर्ष की महिला के मुख पर एक तेज़ था । जो उन्हें राजपरिवार से होने का दावा करता था । वो अपने बच्चों से बेहद प्यार करती थी । रक्षत ने ग्रीष्मा जी को देखा और मुस्कुरा कर बोला - " मां सा ! वो गद्दी और ये रियासत केवल और केवल हमारे भाई सा की है । हमे नही लगता कि हम ये सब सम्भालने के लायक भी है । " ये सुन कर रक्षत की चाची के कलेजे को जैसे ठंडक सी मिली । आखिर वो उस गद्दी पर अपने बेटे अव्यम को बैठे देखना चाहती थी । रक्षत कि चाची नीलाक्षी राजवर्धन सिंह ! एक नम्बर की चालाक और लालची औरत थी । हमेशा से ही वो शाश्वत के राजा होने से कुढ़ती आई थी । सब के सामने वो बेहद मीठी छुरी थी लेकिन , अपने बेटे को राजा बनाने के लिए न जाने उन्होंने कितने ही षड्यंत्र रचे थे । लेकिन हर बार नाकाम रही थी । और अव्यम भी बिल्कुल रक्षत की तरह था । उसे इस रियासत और राजा के ताज से कोई लेना - देना नही था । वो और रक्षत दोनो ही शाश्वत से बेहद प्यार करते थे । और शाश्वत भी उन पर जी भर के प्यार लुटाता था । और जब से शाश्वत गया था , तब से अगर सब से ज्यादा असर किसी पर हुआ था , तो वो रक्षत , अव्यम और इरिषा थे । इरिषा शाश्वत से छोटी और रक्षत की बड़ी बहन थी । शाश्वत की उम्र 31 साल थी और रक्षत की 26 साल , इरिषा की उम्र 29 साल थी । वंही अव्यम 28 साल का था । तभी राजवर्धन जी यानी कि रक्षत के चाचा बोले - " अब बताइए भी छोटे युवराज की आप ऐसे चिल्ला - चिल्ला कर सब को क्यों बुला रहे थे ? " रक्षत ने उन सब को देखा और बोला - " वो भाभी सा आ रही है । उनका फोन आया था । और उस वक़्त वो अजमेर पहुंच चुकी थी । तो वो अब किसी भी समय आती ही होंगी । " ये सुन कर सब हैरान थे । ऐश्वर्या जी ने सुनते ही कहा - " वो आखिर अब यंहा क्यों आ रही है ? उसका काम ही क्या है यंहा पर ? " अव्यम को उसकी बात सुन कर गुस्सा आया । उस ने उन्हें घूरते हुए कहा - " बुआ सा ! वो तो फिर भी अपने घर आ रही है । अपने ससुराल आ रही है । आपकी तरह तो बिल्कुल नही है वो , जो अपने मायके में डेरा जमा कर बैठ जाए । " ये सुन कर बुआ जी के तो मानो तन - बदन में आग लग गयी । तभी हर्षवर्धन जी अपनी रौबदार आज में बोले - " कुंवर ! बुआ है वो आपकी । " " आखिर उनका हक है, वो क्यों ना आये बुआ सा ! ये उनका ससुराल है । आप ही तो कहती है कि विवाह के बाद लड़कीं का ससुराल ही उस का सब कुछ होता है । क्या आज आप खुद की दी हुई सीख सी मुकर रही है । " इस बार इरिषा ने कहा । उस का रुतबा किसी से कम नही था । वो शाश्वत के बाद इस रियासत में सबसे बड़ी थी रक्षत उस का छोटा भाई था,यहाँ तक की उस की सटीक बातों के सामने रानी ग्रीष्मा और राजा हर्षवर्धन भी कभी कभी तर्क नही दे पाते थे । तभी बाहर गाड़ियों के रुकने की आवाज आई । और जैसे ही रक्षत ने सुना , वो फ़ौरन बाहर निकल गया । उसके पीछे ही अव्यम भी निकल गया । रक्षत ने जा कर शक्ति के लिए गाड़ी का दरवाजा खोला । शक्ति बाहर निकली । रक्षत ने झुक कर उसके पैर छूते हुए बोला - " प्रणाम भाभी सा ! " शक्ति ने मुस्कुरा कर , उसके चेहरे को थामा और बोली - " खुश रहिए , कुंवर जी ! " अव्यम ने भी आगे आ कर , उसे प्रणाम किया । और फिर दोनो उसके साथ अंदर की तरफ बढ़ गए । शक्ति आज लगभग 2 महीने बाद वापिस जयपुर लौटी थी । वो भरी आंखों से चारो तरफ देख रही थी । सभी लोग शक्ति को देख कर शांत खड़े रहे थे ।कोई खुश था तो कोई ना खुश । सब के भाव उन के चेहरे पर आसानी से देखे भी जा सकते थे, । इरिषा , अव्यम और रक्षत बहुत खुश थे उन की भाभी सा जो आ गयी थी । लेकिन वही ऐश्वर्या बुआ , चारवी और नीलाक्षी चाची सा के साथ उन की बेटी  फाल्गुनी के चेहरे पर नाखुशी साफ थी । हर्षवर्धन जी और ग्रीष्मा जी के चेहरे पर कोई भाव नही था । जारी है । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 3. सियासी इश्क़ - Chapter 3

    Words: 1369

    Estimated Reading Time: 9 min

    Ep 3 शक्ति को देख सब हैरान थे । वो एक सुहागन के भेष में थी । लाल रंग की राजपूती पोशाक , गले मे हार और मंगलसूत्र , माथे पर रखड़ी और शीशफूल के साथ मांग में भरा हुआ गहरा लाल सिंदूर और छोटी सी बिंदी । हाथों में लाख का चूडा , पैरों में बिछिया और पायल । वो एक नई - नवेली सुहागन लग रही थी । हर्षवर्धन जी की आंखे हैरानी से बड़ी हो गयी । रक्षत ने जा कर उसे प्रणाम करते हुए कहा - " आइए भाभी सा ! " शक्ति ने जा कर , हल्का सा झुकते हुए हाथ जोड़ कर कहा - " खम्मा घणी । " हर्षवर्धन जी ने हल्के गुस्से से कहा - " ये क्या मजाक है ? हुकुम राणी सा ! " शक्ति ने उन्हें देखा और तंज कसते हुए बोली - " हुकुम राणी सा ! धन्यवाद करते हैं ऊपर वाले का , कि यंहा सब को याद है कि हम हुकुम राणी सा है । " हर्षवर्धन जी की भौंहे तन गयी । उन्होंने उसे देख कहा - " आप हमारे बेटे की मौत का मजाक बना रही है । क्या आपको ज्ञात नही , वो इस दुनियां को छोड़ कर जा चुके हैं । किंतु फिर भी आप एक सुहागन के वेश में खड़ी है । " शक्ति ने जब ये सुना तो उसके मन मे आक्रोश फैल गया । वो गुस्से से बोली - " बस बाबा सा ! हमे विवश न करे कि हम अपनी मर्यादाएं लांघ दे । " सब उसे गुस्से में देख हैरान थे । जब से उसका विवाह हुआ था , उसे ऐसे किसी ने नही देखा था । वो बेहद ही कोमलता के साथ सब से व्यवहार करती थी । किंतु आज उसका ये रूप बिल्कुल अलग सा ही था ।  शक्ति ने क्रोध से कहा - " शाश्वत प्रताप सिंह है वो ! शाश्वत ! जिसे कभी कोई मिटा ना सके । और आप कहते हैं , वो जा चुके हैं । वो हमारे अर्धांग है । अर्धांगिनी है हम उनकी । यदि उनकी सांसो की माला टूटती , तो भरोसा करे हमारा , हमारी आत्मा उनसे पूर्व हमारा देह त्याग देती । " रक्षत शक्ति की बातो की तड़प महसूस कर खुद भी तड़प उठा । उसने धीरे से कहा - " भाभी सा ! शांत रहिए । " शक्ति की आंखों में नमी उतरी । अचानक ही कानो में एक आदमी की गहरी सी , आवाज गूंजी - " हमे आपकी आंखों में अश्रु देखना कदापि नही भाता । "  उसने तुरन्त ही आंसुओ को पलको में ही सूखा लिया । रक्षत ने उसका हाथ थामा और बोला - " आप चल कर थोड़ा आराम करिए । सफर से थक गई होंगी ।  " ये बोल वो उसे ले कर उसके कमरे की तरफ बढ़ गया । सब बस उन दोनों को ही देख रहे थे । उसके जाते ही बुआ बोल पड़ी - " जवानी फूट रही है , छोटे युवराज की । कंही ऐसा ना हो , कुछ ऊंच - नीच हो जाए । " उसकी ये बात सुनते ही ग्रीष्मा जी ने उन्हें डपटा और बोली - " बस करे जीजी ! हर वक़्त बस जली - कटि बातें करना भी ठीक नही होता । और हमारे बच्चे कैसे है , ये हम जानते हैं ? " ये बोल वो वँहा से चली गयी थी । लेकिन ऐश्वर्या जी की बाते हर्षवर्धन जी पर कुछ असर जरूर छोड़ गई थी । लेकिन इस वक़्त वो भी मौन रहे ।  इधर रक्षत ने शक्ति को उसके रूम में छोड़ा , और धीरे से बोला - " हम आते हैं। " ये बोल वो रूम से निकल गया । शक्ति ने उस कमरे की दीवार पर लगी उस बड़ी सी फ़ोटो को देखा । उस तस्वीर को देख शक्ति की आंखे नम हो आई । सामने लगी तस्वीर किसी और कि नही बल्कि  हुकुम सा और जयपुर के राजा शाश्वत प्रताप सिंह की थी । 6 फीट 3 इंच की लंबाई हल्की दाढ़ी , ताव देती मुछे , साँवला रंग , सेट बाल एक दम सलोनी सी छवि मुस्कुराते होठ और वीरता का परिचय देती गहरी काली ऑंखे । चेहरे पर एक राजपुताना तेज़ था और साथ थी दया और करुणा का भाव । मात्र उन्हें देख कोई बात सकता था कि वो राजा है । अचानक ही शक्ति को किसी ने पुकारा - " हुकुम राणी सा ! इतने में हार गई आप ? " शक्ति ने झट से पीछे देखा । शक्ति हैरान थी । सामने शाश्वत खड़ा था । जोधपुरी कोट - पेंट पहने , अपने दोनो हाथों को पीछे बांधे , वो बेहद ही प्रभावशाली व्यक्त्वि का शख्स था ।  शक्ति ने धीरे से उसे पुकारा - " हुकुम सा ! " और दौड़ कर जा कर उसके सीने से लग गयी । शाश्वत ने मुस्कुराते हुए , उसे एक हाथ से अपने अंक ( आगोश ) में भर लिया । शक्ति ने अपनी आंखें बंद कर ली , मानो इस एहसास की खातिर वो सदियों से तरसी हो । इधर जोधपुर में । रात का वक़्त !  सुकन्या दर्पण के सामने बैठी अपने आभूषण उतार रही थी । उसके मन मे बहुत सी बातें चल रही थी । उन्ही विचारों में मग्न उसे आभास भी नही हुआ कि कब जयधर कमरे में चला आया था । जयधर ने उसे देखा , वो कंही खोई - खोई सी थी । अन्यथा अक्सर वो उसके दफ्तर से लौटने पर हर काम छोड़ कर उसे जलपान का पूछती थी । लेकिन आज उसका ध्यान न जाने कंहा था । जयधर उसके पीछे जा कर खड़ा हुआ और उसके कंधो को थाम लिया । उसकी तन्द्रा टूटी और उसने चौंक कर आईने में देखा । वो उसे देख उठते हुए जल्दी से बोली - " क्षमा कीजिए राजा सा ! न जाने हम कंहा खोए हुए थे ? हमे आपके आने का भान ही नही हुआ । " जयधर ने उसे कंधो से पकड़े हुए अपनी तरफ घुमाया । सुकन्या ने अपनी नज़रे झुका ली । जयधर ने उसकी ठोड़ी पकड़ हल्के से ऊपर उठाई और धीरे से बोला - " हम आपको समय नही दे पाते ना । उस पर आपका चंचलपन आजकल न जाने कंहा छुप सा गया है । हमारे विवाह को 1 वर्ष भी नही हुआ और फिर शक्ति के साथ जो हुआ , हम उसमे इतना उलझ गए कि , अपने पति होने के कर्तव्यों से एक दम ही विमुख हो गए । " सुकन्या ने उसे देखा और जल्दी से बोली - " नही , नही । ऐसा नही है , राजा सा । जीजी की तरफ आपका कर्तव्य , बाकी हर कर्तव्य से ऊपर था । जीजी ने बाबा सा के जाने के बाद वो जगह अपने बड़े भाई को दी । ऐसे में आपका कर्तव्य हर रूप मे उनकी तरफ पहले है । आप व्यर्थ ही अपराधबोध अपने मन मे ला रहे हैं । हमे आपसे कोई शिकायत नही है । " जयधर सुकन्या के चेहरे को देखता ही रह गया । दोनो की शादी अरेंज मैरिज थी । उसे पहले लगा था , पता नही कैसे सम्भालेगा सब कुछ । उस पर सुकन्या का चंचल स्वभाव उसे और भी दुविधा में डाल जाता था । लेकिन आज उसकी इतनी समझदारी भरी बातें , उसके मन की सारी शंकाओं को दूर कर रही थी । सुकन्या ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा - " हम मानते हैं आपका गुस्सा जरा तेज है । आप हमें डांट भी देते हो । किंतु हमे आपसे फिर भी कोई शिकायत नही । क्योंकि आपके जीवन मे केवल हम ही नही है । और भी रिश्ते हैं । और हर रिश्ते का अलग महत्व है । अलग स्थान है । इसीलिए आप व्यर्थ विचार न करे । " उसकी बातें सुन जयधर हल्के से मुस्कुरा दिया । और बोला - " सही कहा आपने । हमने तो आपको एक अबोध बालिका के समान समझा था । लेकिन हमारी रानी सा तो , बहुत शयानी निकली । " उसकी बात सुन कर , सुकन्या का मुँह बन गया । और जयधर ने मुस्कुरा कर उसका माथा चूम लिया । सुकन्या के होठों पर भी एक सुकून भरी मुस्कान उतर आई । जारी है । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 4. सियासी इश्क़ - Chapter 4

    Words: 1713

    Estimated Reading Time: 11 min

    Ep 4 जयपुर । अचानक ही एक आवाज से शक्ति का ध्यान टूटा । अब उसके समीप कोई नही था । जिन्हें वो अपना हुकुम सा कह रही थी , वो मात्र रक छलावा था । उसने सामने लगी उस बड़ी सी तस्वीर को देखा और बोली - " कंहा है आप ? आपके बिना जीना हमारे लिए दुष्वार होता जा रहा है । " तभी किसी ने उसके कमरे का दरवाजा खटखटगया । शक्ति ने उस ओर देखा । ये रक्षत और इरिषा थे । शक्ति ने उन्हें देखातो खुद को सम्भालते हुए बोली - " आप आइए ना । वँहा क्यों खड़े हैं ? " इरिषा झट से जा कर उसके गले से लग कर फफक पड़ी । शक्ति ने उसे सम्भालते हुए कहा - " आप रो क्यों रही है ? " इरिषा ने खुद को सम्भालते हुए कहा - " भाभी सा ! क्या सच मे भाई सा ! " वो बस इतना कह कर रुक गयी । शक्ति ने उसे सम्भाला और उसके चेहरे को थाम कर बोली - " नही , उन्हें कुछ नही हुआ है ! और ना ही हो सकता है । " इरिषा ने उसे देखा , और धीरे से बोली - " आप इतने दिन तक क्यों नही लौटी । भाभी सा ! लगभग 2 महीने होने को आए हैं , उस हादसे को । अब तक भाई सा का कोई पता नही लगा । आप अब तक क्यों नही आई थी ? " शक्ति हल्के से मुस्कुरा कर बोली - " क्योंकि हम इंतज़ार में थे कि , हमारे हुकुम सा हमे लिवाने आएंगे । लेकिन खैर अब हम आ गए हैं । हम उन्हें भी ढूंढ ही लाएंगे । " इरिषा ने हामी भरी । रक्षत ने उसे देखा और बोला - " खाने का वक़्त हो गया है , बाहर चलिए भाभी सा ! " शक्ति ने उसे देखा और बोला - " नही कुंवर जी ! हम अब कल ही सब से भेंट करेंगे । अभी हम सब के सामने गए तो फिर से किसी बात पर बहस हो जाएगी । " रक्षत भी उसकी बात समझ रहा था । उसने भी ज्यादा जोर नही दिया । और उसका खाना रूम में भिजवाने का बोल कर इरिषा के साथ चला गया । अगली सुबह । सब लोग नाश्ते के लिए एक साथ बैठे थे । बड़े से मेज पर तरह - तरह के पकवान सजे हुए थे । ये ही तो राजघरानों की खासियत थी । खाना और रहन - सहन आम आदमी से काफ़ी अलग होता था । " राजकुमारी आप खड़ी क्यों है ? बैठो किस का इंतजार है,  आप को ? " ऐश्वर्या बुआ ने इरिषा को खड़े हुए देखा , तो पूछ ही लिया ।  वैसे तो उन को इरिषा कोई उत्तर नही देना चाहती थी । लेकिन वहाँ सब की मौजूदगी देख उस ने उन्हें उत्तर देना ही उचित समझा - " भाभी सा ! वो आती ही होंगी , उन के आने के पश्चात ही हम नाश्ता करेंगे । "  इरिषा की बात सुन ऐश्वर्या बुआ का मुँह ही बन गया । वो शक्ति को कभी भी पसंद नही करती थी । एक तो इतनी खूबसूरत और वो एक बड़े राजघराने से आती थी । साथ ही हुकुम रानी सा होने के कारण उस का अलग ही रुतबा था । जो कि महल के कई लोगो को बिल्कुल पसंद नही था । " इतने दिनों से भी तो वह पीहर में थी । और यहाँ कब तक आएगी क्या पता ? आप अकेले नाश्ता कर ले इरिषा । " ऐश्वर्या बुआ ने शक्ति के यहाँ होने पर आपत्ति जता ही दी । तभी किसी की कड़क आवज़ आई - " वैसे बुआ सा ! ये तो हमारा ससुराल है । हम यहाँ ब्याह के आये थे , और अब यहाँ से हमारी अर्थी ही जाएगी । आप हमारी चिंता ना करे और ये बताए आप कब अपने ससुराल जा रही है ? " ये आवज़ शक्ति की थी । हरे रंग की पोशाक में 16 श्रृंगार में वो किसी देवी समान प्रतीत हो रही थी । वह आ कर इरिषा के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गयी । ऐश्वर्या बुआ का तो मुँह देखने वाला था । उन से कोई उत्तर नही देते बना । लेकिन इस मौके का फायदा उठा , नीलाक्षी चाची ने कटाक्ष किया - " शक्ति ! आप भूल गयी है , वो आप से बड़ी है । आप कैसे उन से इस तरह से बात कर सकती है ? जीजी सा का पीहर है ये । वो जब तक चाहे यहाँ रह सकती है । " बेशक उन की बात सत्य हो , लेकिन उन की बात को सभी ने ऐसे अनदेखा कर दिया जैसे कुछ सुना ही ना हो । शक्ति ने भी उन्हें उत्तर तक देने का कष्ट नही किया । सभी नाश्ता कर ने लगे नीलाक्षी जी अब सर झुका कर बैठी थी । थोड़ी देर बाद हॉल में । हर्षवर्धन जी ने सभी को यहाँ आने को कहा था । सभी लिए मन मे एक ही प्रश्न था आखिर क्यों उन्होंने सब को यहाँ आने को कहा है ? " भाई सा क्या बात है ? आप ने अचानक सब को यहाँ आने को कहा । " राजवर्धन जी ने पूछा, उन्हें किसी कार्य से बाहर जाना था इसलिए उन्होंने ये पूछ लिया । " हम और रानी ग्रीष्मा आप सभी को कुछ बताना चाहते है " । हर्षवर्धन जी ने कहा । तो ग्रीष्मा जी उन के पास आ कर खड़ी हो गयी । सब के आने के बाद हर्षवर्धन जी अपनी बात कहना शुरू किया - " जैसे कि आप सब जानते है , शाश्वत के जाने के बाद इस रियासत की गद्दी खाली है । ये कोई अच्छा संकेत नही है । कई और लोग इस पर दावा करने आ सकते है । इस लिए हमने ये फैसला लिया है , कि शाश्वत के बाद रक्षत को हुकुम सा की गद्दी दी जाएगी । ताकी वो इस रियासत और हमारे खानदानी व्यवसाय का नेतृत्व कर सके । " हर्षवर्धन जी ने अपनी बात पूरी की । उन की बात शायद किसी को पसंद नही आई थी । इसलिए शान्ति पसरी हुई थी । किसी ने भी उन की बात पर सहमति नही दी और नीलाक्षी जी तो काफी गुस्से में आ चुकी थी । " अब से हमे रक्षम के करींब रहना होगा । ताकी इस महल में रह सके । अब नए हुकूम सा वही होंगे । " ऐश्वर्या बुआ ने मन ही मन ये सोचा । सब की चुपी देख कर ग्रीष्मा जी को एक अंजाना डर खाने लगा कि , शायद उन के बेटे को कोई गद्दी पर नही देखना चाहता । उन्होंने जल्दी से सब से प्रश्न किया - " आप सब की चुपी का हम क्या अर्थ समझें ? क्या किसी को रक्षत के गद्दी पर बैठने से आपत्ति है ? " ग्रीष्मा जी ने आखिर सब से पूछ ही लिया । नीलाक्षी जी आखिर अपने क्रोध को रोके नही पाई और बोल पड़ी - " आप बहुत न्याय की बात करते है भाई सा ! लेकिन आज आप की स्वार्थ भरी बातें हंमे कदापि पसन्द नही आई । "  उन की ऐसी बात सुन ग्रीष्मा जी और हर्षवर्धन जी हैरान थे । हर्षवर्धन जी ने चिंतन स्वर में पूछा - " क्या बात है हम ने कौनसा अन्याय कर दिया छोटी रानी सा ? " " शाश्वत को गद्दी पर बैठाते से समय बाबा सा के वचन थे कि बड़ा बेटा ही इस गद्दी का हकदार है । और उस समय आप भी उन की बात से सहमत थे । तो आज अव्यम के होते हुए आप रक्षत को हुकुम सा कैसे बना सकते है ? " ये बात कहते है नीलाक्षी जी की आवाज़ काफी तेज हो चुकी थी । वही ग्रीष्मा जी और हर्षवर्धन जी एक दम से शांत हो गए । सभी बच्चे भी शांत थे । ये बाते उन के बड़ो के बीच की थी उन का बोलने का क्या ही मतलब था ? " क्या आप हमारे फैसले के खिलाफ है नीलाक्षी ? " इस बार ग्रीष्मा जी ने सवाल किया । " बिल्कुल जीजी आज आपने न्याय की बात कहा की है । हर बार आप का बेटा ही तो गद्दी पर नही बैठ सकता ना । पहले शाश्वत ! अब रक्षत । " नीलाक्षी जी के मुँह से ये जहर सुन कुछ लोग हैरान थे । कुछ को उन की नीयत पहले से ही पता थी । " आप कैसी बाते कर रही है छोटी भाभी सा " " ऐश्वर्या जी ने ग्रीष्मा जी की नजरों में अच्छा बनने के लिए उन की तरफदारी करना शुरू करदी । नीलाक्षी जी कुछ कहती उस से पहले शक्ति की आवज़ आई - " आप ने सही कहा काकी सा ! आज यहाँ सब अन्याय की बातें हो रही है । और  हुकुम सा की गद्दी खाली है ये आप सब से किसने कहा ? " शक्ति की बात सुन हर्षवर्धन जी और ग्रीष्मा जी भी हैरानी से उसे देखने लगे । शक्ति ने आगे कहना शुरू किया - " मेरे पति यहाँ के हुकुम सा है । और अभी वो इस महल में नही है । तो उन की अनुपस्थिति में , मैं शक्ति साश्वत प्रताप सिंह ! जयपुर की हुकुम रानी सा होने के नाते इस गद्दी और रियासत की जिम्मेदारी लेती हूं । तो आप सब को इस बात के लिए लड़ने की कोई आवश्यकता नही है कि , गद्दी पर कौन बेठेगा ? शक्ति की बातें दृढ़ता और विश्वास से भरी थी । " हम आप के साथ है हुकुम रानी सा ! " अव्यम , रक्षत और इरिषा ने एक स्वर में कहा और शक्ति के पीछे खड़े हो गए । वही नीलाक्षी और ग्रीष्मा जी को लगा कि उन के खुद के कोख से जन्मे बच्चे उन के खिलाफ हो चुके है । जिन के लिए वो लड़ रही थी । शक्ति ने ये सब अपने बड़ो से कहा जरूर था । लेकिन उसे इस गद्दी या किसी चीज का लालच नही था । किंतु वो हुकुम रानी सा थी । उस के कुछ  कर्तव्य भी थे जिन से वो मुँह नही मोड़ सकती थी । उस का दिल ग्रीष्मा और हर्षवर्धन जी की बाते सुन छलनी हो चुका था । कैसे उस के पति के जाते ही सब के स्वर बदल चुके थे ।

  • 5. सियासी इश्क़ - Chapter 5

    Words: 1397

    Estimated Reading Time: 9 min

    Ep 5 हर्षवर्धन जी ने शक्ति को देखा और गम्भीरता से बोले - " ठीक है ! यदि आपको लगता है कि शाश्वत जीवित है , तो उसे खोज कर लाइए । हम आपको 30 दिन का समय देते हैं । यदि 30 दिनों में आपने अपनी बात को सही सिद्ध नही किया तो , 31 वे दिन राज्याभिषेक होगा । और हुकुम सा की गद्दी पर नए हुकुम सा बैठेंगे । " शक्ति का दिल एक पल को धक्क से रह गया । शक्ति ने उन्हें देखा और बोली - " ये आप गलत कर रहे हैं बाबा सा ! किंतु फिर भी हम आपकी ये शर्त स्वीकार करते हैं । किंतु जिस दिन हुकुम सा लौटे , उस दिन मां अम्बे की सौगन्ध इस महल में तांडव होगा । यंहा मौजूद हर एक व्यक्ति का असली चेहरा हम सब के सामने ले कर आएंगे । " ये सुन कर सब एक पल को हैरान रह गए । शक्ति ने ये क्या कहा था ? सब सोच में पड़ गए । लेकिन वो वँहा से चली आई । शक्ति अपने कमरे में आई । खुद को वो आज हारा हुआ महसूस कर रही थी । उसका ये परिवार आज उसके खिलाफ खड़ा था । यंहा तक कि वो तो अपने खून तक का नहीं हो पा रहा था । वो आ कर , धम्म से बेड पर बैठ गयी । उसकी नज़रे एक टक शाश्वत की तस्वीर पर टिकी थी । मानो शाश्वत से सवाल कर रही हो - " क्या यही था आपका प्रेम ? हमे अकेला छोड़ गए आप ! आपका ये परिवार हम से ही शत्रुता निभा रहा है । हमारा अपराध क्या है ? केवल ये कि हम आप से प्रेम करते हैं , और हमे विश्वास है कि आप सुरक्षित है । हमे सत्ता का लोभ नही है । कुंवर जी अगर हुकुम सा की गद्दी पर बैठ भी जाएं , हमे उनसे कभी रंजिश नही होगी । किंतु वो आपका अधिकार है । हम भला कैसे आपकी अनुपस्थिति में ये होने दे सकते हैं । " तभी पीछे से रक्षत की आवाज आई - " भाभी सा ! हमे कभी वो पद नही चाहिए था । हम कभी उसके लायक थे ही नही । बिजनेस हो या फिर रियासत को सम्भालना , ये सब भाई सा के अधिकार का था । उन्ही का रहेगा भी । " तभी अव्यम आते हुए बोला - " बाबा सा ने आपके सामने जो शर्त रखी है , हम उसमे आपके साथ है । हम भाई सा को ढूंढने में जमीन - आसमां एक कर देंगे । उनके लिए यदि हमें काल या महाकाल से भी लड़ना पड़ा , तो माँ भवानी री सौगन्ध हम पीछे नही हटेंगे । " शक्ति की आंखे ये सुन कर नम हो आई , बाहर जिनके लिए उस गद्दी की लड़ाई लड़ी जा रही थी , वो दोनो उसके साथ खड़े थे । शक्ति ने हाथ जोड़ दिए । रक्षत और अव्यम ने फौरन उसके हाथों को थाम लिया और बोले - " ये आप क्या कर रही है भाभी सा ! आप भले उम्र में छोटी हैं , किंतु पद तो आपका बड़ा है ना । आप हमारे भाई सा की पत्नी है । भाई सा हम दोनों के लिए सदैव पिता समान रहे हैं । और भाभी का पद तो माँ समान होता है । और मां अपने बच्चों के सामने हाथ जोड़े , ये शोभा नही देता । " शक्ति फफक पड़ी । रक्षत और अव्यम ने उसे एक साथ आलिंगन में भर लिया । वो दोनो उसकी मनस्थिति समझ रहे थे ।  थोड़ी देर बाद वो उससे अलग हुए तो , अव्यम ने रक्षत को देख कहा - " हमारे पास ज्यादा समय नही है , इसीलिए हमें आज से ही भाई सा की खोज प्रारम्भ करनी होगी । " रक्षत ने हामी भरी और दोनो निकल गए । शक्ति एक बार फिर निढाल सी बेड पर बैठ गयी । एक बार फिर शाश्वत की तस्वीर को देखते हुए , वो उन खूबसूरत पलो में खो गयी , जब शाश्वत उसके साथ था । फ्लैशबैक । विवाह के बाद ये शक्ति की पहली होली थी । और शक्ति को जोधपुर के लिए निकलना था । राजस्थान के त्योंहारो में से एक प्रसिद्ध त्यौहार जो आ रहा था । वो था गणगौर । कोई भी कन्या विवाह के बाद अपनी पहली गणगौर अपने पीहर ( मायका ) में ही पूजती थी । गणगौर ! 16 दिनों तक खेला और पूजे जाने का त्योंहार है । जंहा पर अविवाहित कन्याएँ , माता पार्वती से योग्य वर की कामना करती है । गण और गौर ! अर्थात भगवान ईशर और मां गौरजा ( गवरजा ) । ऐसा माना जाता है कि होली के दूसरे दिन माता गौरजा अपने पीहर आती है । और उसके 8 दिन बाद ईसर ( भगवान शिव ) उन्हें लेने आते हैं । शक्ति होली के 2 दिन पूर्व ही जोधपुर के लिए निकलने की तैयारी कर रही थी । वो अभी अपना सामान पैक कर ही रही थी , कि उसके कानों में शाश्वत की आवाज पड़ी - " तो आप नही रुकेंगी । " शक्ति के हाथ ठहर गए । उसने उसे देखा , फिर हल्के से मुस्कुरा कर बोली - " क्या बात है हुकुम सा ! आज आप बड़े अधीर प्रतीत हो रहे हैं । " शाश्वत ने उसके पास आ कर उसे कमर से थामते हुए , अपने करीब कर के कहा - " मत जाइए रानी सा ! हमे आदत हो गयी है आपकी । आपके बगैर हम कैसे रहेंगे ? " शक्ति मुस्कुरा कर उसे देखते हुए बोली - " सिर्फ 20 दिनों की ही बात है । फिर तो आप हमें लेने आ ही जाओगे । " शाश्वत ने एक हाथ से उसका चेहरा थामा , और उसकी आँखों मे देखते हुए बोला - " हम्म ! लेकिन आप होलिका दहन तक तो हमारे साथ रह ही सकती है । आखिर ये हमारी शादी के बाद की पहली होली है । " शक्ति ने मुस्कुरा कर हामी भरी । और शाश्वत ने उसके माथे पर अपने अधरों का प्यार भरा स्पर्श अंकित कर दिया । होली वाले दिन शक्ति और शाश्वत साथ थे । होलिका दहन के बाद जब दोनो कमरे में आए , तो शक्ति का सारा सामान तैयार था । उसे अब निकलना था । शाश्वत ने उसे देखा , फिर अपने कमरे में पड़ी गुलाल की थाल को । वो उस तरफ बढ़ा और उसने लाल गुलाल ला कर , बड़े प्यार से शक्ति के गाल पर लगा दिया । शक्ति उसे देखने लगी । तो शाश्वत ने झुक कर अपना गाल उसके गाल से सटा दिया । शक्ति ने अपनी आंखें बंद कर ली । और उसके हाथ शाश्वत के कंधे पर कस गए । शाश्वत ने वैसे ही , उसके कान में धीरे से सरगोशी से कहा - " आप कल हमारे साथ नही होंगी । लेकिन आपको हमारी पहली होली पर सब से पूर्व रंग लगाने का अधिकार केवल और केवल हमारा है । " ये बोल उसने धीरे से शक्ति के कान के नीचे अपने अधरो से छू लिया । शक्ति खुद में ही सिमटी । तभी शाश्वत बोला - " पहली होली की बधाई हो रानी सा । " ये बोल उससे कुछ दूर हुआ । शक्ति के चेहरे की रंगत बदल कर लाल हो चुकी थी । शाश्वत उसे देख बस मुस्कुराए जा रहा था । फ्लेशबैक एंड । शक्ति ने शाश्वत की उस बड़ी सी तस्वीर को देख कहा - " आपने कहा था 20 वे दिन ही हमे जोधपुर से ले आएंगे । हमने कितनी प्रतीक्षा की आपकी । किंतु आए नही आप । हमें खुद ही आना पड़ा । आपने झूठ कहा था कि आप हमारे बिना नही रह सकते । सत्य ये है कि हम आपके बिना नही रह सकते । अब भी नही रह पा रहे । " वो उठी और खुद से ही बोली - " अब बहुत हुई आपकी हट ! आपने अभी तक शक्ति की हट को जाना ही नही । हमने आपको अपना सर्वस्व सौंप दिया । किंतु आप हम से ही छिप कर बैठ गए । किंतु अब और नही । आपको अब सामने आना ही होगा।  हम आपको ढूंढ निकलेंगे । चाहे जो हो जाए । " ये कहते हुए उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव थे । मानो शाश्वत को ढूंढना उसका एकमात्र उद्देश्य हो । जारी है । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 6. सियासी इश्क़ - Chapter 6

    Words: 1296

    Estimated Reading Time: 8 min

    Ep 6 रक्षत और अव्यम ने अपने कुछ भरोसेमंद लोगो को शाश्वत की खोज में भेज दिया था । लेकिन उन्हें कोई अंदाजा नही था कि वो कंहा हो सकता है ? ऊपर से शक्ति की हालत उन दोनों ने ही देखी थी । वो दोनो शाश्वत से बहुत प्यार करते थे । भले ही वो सब चचेरे भाई - बहन थे । लेकिन उनका प्यार सगो जैसा था । उन सब के बीच कभी भी ये रियासत आ ही नही पाई । जब शाश्वत को 5 साल पहले हुकुम सा की गद्दी पर बैठाया गया , उस वक़्त वो दोनो शायद खुद शाश्वत से ज्यादा खुश हुए थे । रक्षत ने अव्यम को देख कहा - " भाई सा ! शाश्वत भाई सा कंहा होंगे ? भाभी सा बहुत परेशान हैं । हम समझ नही पा रहे कि महल में हो क्या रहा है ? भाई सा उस दिन भाभी सा को लाने के लिए निकले थे । उनके साथ सिक्योरिटी भी मौजूद थी । हमे लगता है कि जरूर हमारे किसी बिजनेस राइवल का किया - धरा है ये । " अव्यम ने कुछ सोचते हुए कहा - " पता नही रक्षत ! किंतु जो भी है , हमे भाई सा को वापस लाना ही हैं । एक बार लोगो की कही बातो पर विश्वास कर लिया । अब एक बार भाभी सा के विश्वास पर विश्वास करना है । " उसने इतना कहा ही था कि , पीछे से एक अधेड़ उम्र की औरत की आवाज आई - " कुंवर ! आप किस बारे में बात कर रहे हैं । " अव्यम और रक्षत ने पलट कर देखा , एक लगभग 80 वर्ष की वृद्धा खड़ी थी । उनके साथ ही लगभग 85 वर्ष के एक वृद्ध व्यक्ति भी थे । ये कोई और नही बल्कि घर के सब से बड़े , तेज प्रताप सिंह और नूपुर तेज प्रताप सिंह थे । शाश्वत का दादा - दादी । रक्षत और अव्यम ने उन दोनों के पास जा कर , दोनो के पैर छुए और प्रणाम किया । दोनो ने उन दोनों को आशीर्वाद दिया और दादा जी उन दोनों को देख बोले - " बात क्या है ? आप दोनो इतने गम्भीर प्रतीत हो रहे हैं । " रक्षत और अव्यम ने एक - दूसरे को देखा , और फिर अव्यम ने उन्हें देख जो कुछ भी घर मे हुआ , सब कुछ बता दिया । दादा जी की भौंहे तन गयी । उन्होंने अपनी छड़ी जमीन पर पटकते हुए , गुस्से से कहा - " हम थोड़े दिनों के लिए बाहर क्या गए , यंहा तो हमारे सपूतों ने अपने मन की करनी शुरू कर दी । लगता है आप दोनो के पिता भूल चुके हैं कि अभी हम जीवित है । इन सब बातों का न्याय हम करेंगे । उस बच्ची को उन्होंने इन सब मे ला कर गलत किया । वो मासूम पहले ही परेशान हैं । विवाह को 4 महीने नही हुए अभी , और उनके पति गायब है । ऐसे में उन्हें समझने के , सम्भालने के बजाय वो यंहा रियासत की लड़ाई लड़ रहे हैं ।कम से कम राजा होने के नाते , अपनी बहु की तरफ तो उनका कर्तव्य बनता था । " रक्षत ने उन्हें देख कहा - " बाबा सा ने भाभी सा के सामने 30 दिन की शर्त रखी है । अगर वो भाई सा को नही ढूंढ पाई तो , बाबा से हम में से किसी एक का राज्याभिषेक कर देंगे । " दादी जी ने उसे देख कहा - " हुकुम रानी सा कंहा है ? हमे उनसे मिलना है । " रक्षत ने उन्हें देखा और बोला - " भाभी सा कमरे में है । आज जो हुआ , उससे परेशान हैं वो । " दादी ने जैसे ही ये सुना , वो सीधा शक्ति के रूम की तरफ बढ़ गयी । दादा जी ने रक्षत को देखा और बोले - " अपने पिता को हमार कमरे में भेजो । " ये बोल वो अपने रूम की तरफ बढ़ गए । रक्षत ने अव्यम को देखा और बोला - " हमने सही किया क्या भाई ? " अव्यम ने सहमति जताते हुए कहा - " हां , हमने बिल्कुल सही किया । ये शर्त सिर्फ दादो सा ही टाल सकते हैं । " रक्षत ने सिर हिलाया , और फिर हर्षवर्धन जी के कमरे की तरफ बढ़ गया ।  अव्यम भी अपने रूम में चला गया । इधर दादी , शक्ति के रूम में आई । शक्ति ने उन्हें देखा , तो अपनी ओढ़नी से अपना सिर ढकते हुए , झुक कर उन्हें प्रणाम किया । दादी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली - " अखंड सौभाग्यवती भव: । " ये सुनते ही , शक्ति के होठो पर एक मुस्कान और आंखों में नमी उतर आई । ये पहली बार था , जब शाश्वत के जाने के बाद उसे किसी ने अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया था । शक्ति ने खड़े हो कर , दादी को देख कहा - " कैसी है आप , दादी सा ! " दादी सा मुस्कुरा कर बोली - " अच्छे हैं । अपने पोते का इंतज़ार कर रहे हैं । " शक्ति ने उन्हें देखा और बोली - " सब को लगता है कि , वो जा चुके हैं । " दादी सा उसे देख हल्के से मुस्कुरा कर बोली - " आपको क्या लगता है ? " वो है ! " वो मुस्कुरा कर बोली । दादी सा ने , उसके चेहरे को प्यार से थामा और बोली - " तो वो सच मे है । एक सुहागन का विश्वास, हर किसी के विश्वास से ऊपर होता है ।आपको लगता है , शाश्वत है , तो वो सच मे है । बस कंही छुप गए हैं । हम उन्हें ढूंढ कर लाना है । बस ! " शक्ति ने उसे देखा और बोली - " हम लाएंगे उन्हें । 29 दिन है हमारे पास । और फिर हमारे हुकुम सा हमारे साथ होंगे । " दादी ने मुस्कुरा कर कहा - "हमे विश्वास है । आप उन्हें ले आएंगी । जब सावित्री अपने पति के प्राणों का लिए यमराज से लड़ गयी थी । तो फिर यंहा तो केवल हुकुम सा को ढूंढने की बात है । " शक्ति मुस्कुरा दी । और बोली - " आपने हम पर , हमारे विश्वास पर विश्वास किया है । हम इसे टूटने नही देंगे । " दादी ने मुस्कुरा कर उसका माथा चूमा और फिर वँहा से चली गयी । जोधपुर । जयधर भी अब अपनी जी - जान लगा कर , शाश्वत की खोज में लग चुके थे । वजह थी , अपनी बहन की खुशी , उसका हक और उसका विश्वास । उस पर सुकन्या का ये कहना कि उसका कर्तव्य शक्ति की तरफ़ पहले है । उसे उसके हर अपराधबोध से मुक्त करा गया था । वो अब पहले अपने बड़े भाई होने का कर्त्तव्य निभाना चाहता था । एक बार शाश्वत के लौट आने के बाद , वो अपना सारा समय सुकन्या के लिए बचा कर रखने वाला था । जयधर अपने कमरे में आया । तो सुकन्या मुँह बनाए बैठी थी । उसने उसे देखते हुए कहा - " क्या बात है ? रानी सा ! आप ऐसे क्यों बैठी है ? " सुकन्या ने मुँह बना कर कहा - " काकी सा , अपनी लाडली को यंहा भेज रही है । " जयधर उसकी बात सुन कर बोला - " लेकिन क्यों ? " " उसे जोधपुर घूमना है । " वो कुछ चिढ़ते हुए बोली । जयधर उसकी चिढ़न समझ नही पाया । बस एक टक उसे देखता रह गया । जबकि वो चिढ़ते हुए कुछ ना कुछ बड़बड़ाए जा रही थी । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 7. सियासी इश्क़ - Chapter 7

    Words: 1336

    Estimated Reading Time: 9 min

    Ep 7 जयधर उसके पास गया , और उसके सामने जा कर , बैठते हुए बोला - " आप इतनी रुष्ठ क्यों प्रतीत हो रही है ? वो सिर्फ घूमने ही तो आ रही है । थोड़े ही दिनों में चली जाएगी । " सुकन्या ने उसे घूरते हुए कहा - " आप , आप तो आंखे बंद किए रहते हैं । मानो कुछ दिखता ही नही आपको । किंतु हम अंधे नही है । और ना ही हम जान - बूझ कर अंधे बन सकते हैं । " जयधर ने उसे शांत कराते हुए कहा - " रानी सा ! शांत ! हम मान गए , हमारी गलती है । आप नही चाहती तो , हम काकी सा को मना कर देंगे । कि वो लविश्का को यंहा न भेजे । हम उनके रहने का प्रबंध किसी होटल में करवा देंगे । " सुकन्या ने उसे देखा , फिर धीरे से बोली - " अ , नही ! रहने दीजिए । अच्छा नही लगेगा । " जयधर मुस्कुराया , और उसका चेहरा थाम कर बोला - " क्या रानी सा आप भी ? छोटी - छोटी बातों पर चिढ़ जाती है । " सुकन्या ने कुछ नही कहा , बस उसके सीने से लग गयी । जयधर उसका आज का व्यवहार समझ नही पा रहा था । लेकिन उसने बिना कुछ कहे अपने अंक में भर लिया । अगले दिन लविश्का आ गयी । लगभग 5'4 की हाइट होगी उसकी । चेहरे पर ढेर सारा मेकअप पोते , वो खुद को सुंदर दिखाने की कोशिश कर रही थी । उस पर उसके कपड़े जो सुकन्या को बिल्कुल रास नही आ रहे थे । वो आते ही , जयधर को देख उसके गले जा लगी । जयधर हैरान रह गया । ऐसा कुछ उसने सोचा नही था । वन्ही सुकन्या ने मुँह फेर लिया । और बिना उन दोनों को देखे बोली - " लविश्का ! आशा करते हैं आप महल के कायदों में रहेंगी । वरना भूलिएगा मत , हम यंहा की रानी सा है । और महल के नियमो का कोई उल्लंघन करे , ये हमे कदापि प्रिय नही । " लविश्का ने उसकी बातों को पूरी तरह इग्नोर करते हुए कहा - " हलो , राजा साहब ! " ये सुनते ही जयधर कि भौंहे तन गयी । उसने उसकी बाजुओं को अपने गले से लगभग झटकते हुए , उसे घूर कर देखते हुए कहा - " हमे राजा साहब , केवल हमारी रानी सा बुलाती है , आप हमें जीजा जी कहे , वो ही बेहतर है । " जयधर ने उसे आईना दिखा दिया । वो एक पल को कांप कर कुछ पीछे हट गई । लेकिन लविश्का भी कम ढीठ नही थी । उस पर वो महल में ही रहने वाली भी थी । जाहिर था , आराम और शांति से तो वो रह नही सकती थी । सुकन्या ने एक सेवक को कह कर , उसे एक कमरा दिखा दिया । और सुकन्या फिर बाकी के कामो में लग गयी । जयधर भी अपने ऑफिस के लिए निकल गया । जयपुर । शक्ति अपने कमरे में थी , और उसके दिमाग मे सिर्फ एक बात चल रही थी कि , आखिर शाश्वत जा कंहा सकता है ? उस पर महल के हालात कुछ खासा ठीक नही थे । दादा सा और हर्षवर्धन जी के बीच एक बहस हुई थी । जिसके बाद दादा सा शांत हो गए थे । वो उस शर्त को टाल नही पाए , जो हर्षवर्धन जी ने शक्ति के सामने रख दी थी । वो अभी अपनी उधेड़बुन में लगी हुई ही थी कि , तभी रक्षत जल्दी से उसके पास आया और हड़बड़ा कर बोला - " भाभी सा ! ऑफिस चलिए । जल्दी । " शक्ति उसे देखने लगी , फिर उसकी हड़बड़ाहट भाँपते हुए बोली - " क्या बात है कुंवर सा ! आप इतनी हड़बड़ी में क्यों है ? " तभी अव्यम आते हुए बोला - " भाभी सा ! भाई सा ने जाने से पहले एक प्रोजेक्ट साइन किया था । हम उसी पर कार्यरत भी थे । लेकिन आज अचानक ही क्लाइंट प्रोग्रेस रिपोर्ट देखना चाहते हैं । हम समझ नही आ रहा हम करे क्या ? सिर्फ मीटिंग की बात तक ठीक था , किंतु अब वो भाई सा से भी मिलना चाहते हैं । हमने उन्हें बहुत समझाया । किंतु उनका कहना है कि , भाई सा के बारे में उन्होंने बहुत सी अफवाहे सुनी है । उनसे मिल लेंगे तो दूर हो जाएंगी , सारी शंकाए । " शक्ति ने परेशानी से कहा - " किंतु हुकुम सा तो है ही नही । ऐसे में ! " रक्षत जल्दी से बोला - " आप चलिए ना भाभी सा ! आप उनके सारे प्रश्नों के उत्तर दे देंगी , तो शायद वो संतुष्ट हो जाए । " शक्ति अभी कुछ कहती , तभी दादा सा की आवाज गूंजी - " शक्ति बींदणी ! " शक्ति ने अपने सिर पर ओढ़नी रखी और नज़रे झुका ली । दादा सा ने उसे देख कहा - " आप हुकुम राणी सा है । आपको सम्भालना होगा , ये सब । तैयार हो जाइए और अपने दोनो देवरो के साथ ऑफिस जाइए । हमे विश्वास आप सब सम्भाल लेंगी । " शक्ति ने धीरे से गर्दन हिला कर , हामी भर दी । दादा सा चले गए और शक्ति भी तैयार होने चली गयी । वो तैयार हो कर आई और उन दोनो को देख बोली - " चलिए । " उन दोनों ने उसे देखा । वो राजपूती पोशाक पहने थी । हमेशा की तरह एक सुहागन की तरह सौलह श्रृंगार किए । वो बेहद प्यारी लग रही थी । रक्षत और अव्यम ने उसे देखा और एक साथ इरिषा को आवाज लगाई - " जीजी ! जल्दी आइए । " इरिषा ने उन दोनों के चिल्लाने की आवाज सुनी तो जल्दी से आई । वंही शक्ति हैरान सी उन दोनों को देख रही थी । इरिषा ने उन दोनों को देख कहा - " क्या हुआ ? आप दोनो ऐसे चिल्लाए क्यों ? " अव्यम ने इसे देखा और बोला - " भाभी सा की नज़र उतारिए । वो ऑफिस जाएंगी अभी । और वो इतनी प्यारी लग रही है , उन्हें नज़र लगना तो तय है । " तभी रक्षत बोला - " और हां ! आते ही एक बार फिर से नज़र उतार दीजिएगा । " इरिषा ने शक्ति को देखा , वो सच में बेहद प्यारी लग रही थी । इरिषा ने एक सेवक को कह कर सात लाल मिर्च मंगवाई और शक्ति के सिर से पांव तक सात बार फिरा कर , उन्हें जलाने को कह दिया । शक्ति उन तीनों को देख रही थी ।  इरिषा को कभी शक्ति से जलन नही हुई । वंही अव्यम और रक्षत हर परिस्थिति में उसके साथ खड़े रहते थे । इरिषा ने शक्ति को ऑल द बेस्ट कहा और फिर शक्ति अव्यम और रक्षत के साथ वँहा से ऑफिस के लिए निकल गयी । महल में किसी को भी नही पता था कि शक्ति ऑफिस गयी है । वरना इस बात का भी बतंगड़ वो लोग बना ही देते । कुछ एक - आध घण्टे में वो ऑफिस के सामने थे । अव्यम ने कार से उतर कर , शक्ति के लिए कार का दरवाजा खोला । शक्ति बाहर आई और उसने अपने सामने मौजूद उस बड़ी सी बिल्डिंग को देखा , जिस पर PR इंडस्ट्रीज लिखा हुआ था । शक्ति ने हाथ जोड़ उस इमारत को प्रणाम किया । वो उसके पति का ऑफिस था । और वो जानती थी , शाश्वत हमेशा ही अपने काम का सम्मान करता था , उसकी पूजा करता था । राजस्थानियों का ये सब से अनोखा गुण भी कहा जा सकता है । वो अपने काम की पूजा करते हैं । क्योंकि उस काम की बदौलत ही घर मे धन और धान्य बना रहता है । उसके बाद वो रक्षत और अव्यम के साथ अंदर की तरफ बढ़ गयी ।  । । । । । । । । । । जारी है । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 8. सियासी इश्क़ - Chapter 8

    Words: 1350

    Estimated Reading Time: 9 min

    Ep 8 वो दोनो शक्ति को पहले सीधा शाश्वत के केबिन में ले गए । शक्ति केबिन में एंटर हुई , और चारो तरफ नज़रे घुमा कर उस केबिन को देखा । ग्रे कलर की शेड में पेंटेड दीवारें । उस पर वँहा की शांति । सामने शाश्वत की डेस्क लगी हुई थी । और उसके साथ ही उसकी चेयर । शक्ति ने उस डेस्क को हल्के से छुआ । और मुस्कुरा दी । उसकी नज़र डेस्क पर पड़ी फ़ोटो फ्रेम पर पड़ी । उसने उसे उठाया और एक टक देखने लगी । ये उसकी और शाश्वत की शादी की फ़ोटो थी । शक्ति ने उस फोटो पर हाथ फेरा । और हल्के से मुस्कुरा दी । मानो उस पल को फिर से जी रही हो । थोड़ी ही देर बाद वो रक्षत और अव्यम के साथ कॉन्फ्रेंस रूम में चली गयी । जंहा पहले से उनके क्लाइंट बैठे थे । रक्षत ने उन्हें देख कहा - " हलो मिस्टर बंसल ! ये है हमारी भाभी सा और शाश्वत भाई सा की पत्नी । किसी कारणवश वो आ नही पाए । " मिस्टर बंसल ने शक्ति की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया । शक्ति ने उसके हाथ को देखा फिर हाथ जोड़ लिए । मिस्टर बंसल को ये एक तरह से अपनी तौहीन सी लगी । लेकिन उसने अपना हाथ पीछे कर लिया और हाथ जोड़ लिए । और बोला - " My self Ishaank Bansal . " शक्ति ने बैठते हुए उसे बैठने को कहा , और बोली - " शक्ति शाश्वत प्रताप सिंह ! " इशांक सिर्फ शक्ति को ही देखे जा रहा था । उसकी नज़र तो जैसे उसी पर अटक गई थी । वो लगभग 29 - 30 साल का था । अट्रेक्टिव पर्सनेलिटी के साथ - साथ गुड लुक्स भी भरपूर थे उसमे । इशांक ने उसे देखते हुए कहा - " मुझे हुकुम सा से मिलना था । लोगो का कहना है कि वो नही रहे । " शक्ति ने बिना किसी भाव के उसे देखते हुए कहा - " हम जिंदा आपके सामने बैठे हैं , और वह भी सुहागन के वेश में , इससे बड़ा सबूत क्या दे आपको , कि हुकुम सा जिंदा हैं । " इशांक ने उसे देखा और मुस्कुराया । फिर बोला - " लेकिन वो यंहा है तो नही ना । 2 महीने ! 2 महीने होने को आए हैं । अगर वो जिंदा भी है तो भी अब तक किसी को नही पता कि वो है कंहा ? कंही ऐसा तो नही कि आपको छोड़ कर किसी और के साथ दुनिया बसा ली हो उन्होंने अपनी । " शक्ति ने उसकी बात सुन कोई खास प्रतिक्रिया नही दी । क्योंकि उसके लिए वो एक आउट साइडर ही था । जो बाकी लोगो की ही तरह बाते बना रहा था । लेकिन अव्यम और रक्षत को उसकी बातें सुन कर गुस्सा आने लगा था । शक्ति बड़े आराम से बैठी थी । उसके चेहरे पर एक अलग ही तेज था । उसने एक फ़ाइल उठा कर , इशांक की तरफ बढाई और बोली - " जिस कार्य के लिए , आप आए थे , वो कीजिए । बाकी बातो का आपसे कोई लेना - देना नही । " इशांक ने उस फ़ाइल को देखा , फिर एक हल्की सी मक्कारी भरी मुस्कान के साथ बोला - " वैसे एक ऑफर है मेरे पास , आपके लिए । आप सब कुछ छोड़ कर , मेरे साथ आ जाये । मैं आपको बेहद ही प्यार से सहेज कर रखूंगा । वैसे भी आपके पति को गए हुए लगभग 2 महीने हो आए हैं । उन्हें आना होता तो आ जाते । ऐसे में आप कब तक अकेली रहेंगी ? " ये सुन कर अव्यम का गुस्सा आपे से बाहर हो गया । वो गुस्से में उसकी तरफ बढ़ने को हुआ कि , शक्ति ने उसकी कलाई पकड़ ली । अव्यम ने मुड़ कर उसे देखा । शक्ति इशांक को ही देख रही थी । उसके चेहरे पर अभी भी कोई भाव नही थे । वो उठी और इशांक कि तरफ बढ़ी । इशांक को लगा , शक्ति उसकी बात मान गयी । और वो मुस्कुराते हुए अपनी चेयर से खड़ा हो गया । शक्ति उसके सामने आ कर खड़ी हुई , और एक खींच के थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया । इशांक का चेहरा एक ओर झुक गया । थप्पड़ इतना तेज था कि , इशांक के चेहरे पर शक्ति की पांचों अंगुलियां छप चुकी थी । उसने सीधे होते हुए घूर कर , शक्ति को देखा । शक्ति ने गुस्से से घूर कर देखते हुए कहा - " धन्यवाद करिए , महाकाल का ! सिर्फ थप्पड़ में बक्श रहे हैं । यदि इस समय हमारी तलवार हमारे साथ होती तो , आपका सिर आपके धड़ से अलग हो चुका होता । " इशांक ने उसे घूरते हुए कहा - " ये आपने ठीक नही किया , शक्ति ! " शक्ति ने उसकी बात काटते हुए , तेज आवाज में कहा - " हुकुम राणी सा ! सब हमे हुकुम राणी सा कह कर बुलाते हैं । और रही बात ठीक करने कि , तो सुनिए ! मां पद्मावती (रानी पद्मावती) के वंशज है हम । हम उनमें से है , जो ये जान ले कि उनके पति नही रहे और कोई अन्य पुरुष उन पर अधिकार जमाने आ रहा है , तो उसके अधीन होने से पूर्व जौहर करना उचित समझते हैं । हम क्षत्राणी है । ये हाथ जितने पाक कला (कुकिंग) में निपुण है , उतने ही शस्त्र चलाने में भी । इस समय आप जीवित खड़े हैं , क्योंकि हमारे यंहा अतिथि को देवता समान मानते हैं । किंतु यदि आपने अपनो सीमाएं लांघी , तो हमारा विश्वास करे , आपके प्राण हरने में हमे एक क्षण नही लगेगा । " इशांक हैरान सा उससे देख रहा था । राजपुताना तेज क्या होता है ? ये आज उसे समझ आ रहा था , जो शक्ति की आंखों में चमक रहा था । शक्ति ने आगे कहा - " आपने क्या हमें कोई वैश्या समझ रखा है ? या हम कोई सामान है आपके लिए ? हम आपको आगाह कर रहे हैं , हम हुकुम राणी सा होने से पूर्व एक स्त्री है । और राजस्थान की स्त्रियां कोई अबला नारी नही है । राजस्थान की स्त्रियां सदैव सबला नारी हुई है । वे पाक शास्त्र के साथ , अस्त्र - शस्त्र का ज्ञान भी रखती है । हम वो नही है , जो जरा सी बातों Lर छुप कर रोने बैठ जाए । हम वो है जो सामने वाले को रोने पर विवश कर दे । चाहे पति के वियोग में जौहर करना हो , या पति के रण में हार कर लौटने पर , महल के द्वार उसके लिए बन्द करने हो , हम किसी मे पीछे नही हटती । मर्यादा पूर्ण जीवन जीने को मिले तो स्वीकार है । किंतु अगर कोई हमारी मर्यादाओं को ठेस पहुंचाए तो हम सामने वाले के प्राणों को भी हर ले । " रक्षत और अव्यम आराम से खड़े अपनी भाभी सा की शेरनी जैसी दहाड़ सुन कर , मुस्कुरा रहे थे । इशांक कि बाते उन्हें भी कुछ खास पसन्द नही आई थी । तभी शक्ति ने इशांक को देख कहा - " प्रोग्रेस रिपोर्ट देखनी थी न आपको ! देखिए और निकलिए यंहा से । ये हमारे हुकुम सा का मंदिर है , जंहा आप के जैसी घटिया सोच के लोगो के लिए कोई स्थान नही । " इशांक ने गुस्से से कहा - " इस थप्पड़ का मोल तो तुम्हे चुकाना होगा । चाहे जैसे भी हो । " शक्ति ने बिना डरे उसकी आँखों मे देखते हुए कहा - " जरूर ! कोशिश कर लीजिएगा । किंतु याद रखिएगा , जिस दिन आप हमारे समक्ष दुश्मन के रूप में आ कर खड़े हुए , हम आपको कतई नही बख्शेंगे । " ये बोल उसने हाथ जोड़ लिए और बोली - " प्रस्थान करिए । " इशांक ने गुस्से में वो फ़ाइल उठाई और वँहा से निकल गया । । । । । । । । । । । । ।  जारी है । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 9. सियासी इश्क़ - Chapter 9

    Words: 1487

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    Ep 9 जोधपुर । शाम का समय । सुकन्या इस समय महल के मंदिर में थी । लविश्का का उससे कोई खास लगाव तो नही था । इसीलिए उसने बिल्कुल भी उससे बात करने की कोशिश नही की थी । सुकन्या को बस उसकी यही आदतें पसन्द नही थी । जयधर जब महल लौटा , तो सुकन्या उसे आंगन में नही दिखी । इसलिए वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया । वो कमरे में आया तो , लविश्का उसे अपने कमरे में दिखी , जो उसके बेड पर बैठी थी । जयधर कि माथे पर कुछ बल पड़े । लेकिन उसे लगा कि शायद वो सुकन्या के पास आई होगी । लेकिन जयधर को देख कर लविश्का के चेहरे पर एक चमक सी उतर आई । उसने उसे देख चहक कर कहा - " आप आ गए । हम आप के लिए जलपान की व्यवस्था करते हैं । " तभी सुकन्या अंदर आते हुए बोली - " उसकी आवश्यकता नही है , लविश्का ! वैसे भी आप यंहा अतिथि है । तो बस अतिथि बन कर ही रहिए । कुछ दिनों बाद तो वैसे भी आपको वापस लौटना ही है । " उसकी बातें सुन कर , लविश्का जल - भुन गयी । और जबरदस्ती मुस्कुराते हुए , वँहा से निकल गयी । सुकन्या में अपने हाथों में पकड़ी ट्रे को साइड में रखा और जयधर कि तरफ बढ़ी । जयधर अपने कोट के बटन्स खोल रहा था । तभी अचानक सुकन्या ने उसकी कॉलर पकड़ उसे झटके से अपनी तरफ खींचा । जयधर उसे अजीब तरह से देखने लगा । सुकन्या ने उसे घूरते हुए गुस्से मे उसे धमकी देते हुए बोली - " हमारी एक बात कान खोल कर सुन ले आप ! हम आपकी पत्नी है । जोधपुर की रानी है । और ये अब पहले वाला समय नही रहा है , जंहा राजा अगर दूसरा विवाह कर के लौटे तो , उनकी पहली पत्नी , अपनी ही सौतन की आरती उतार कर , उसे सिर आंखों पर बैठाए । हम ऐसा कभी नही करने वाले । आप पर केवल और केवल हमारा एकाधिकार है । और दूसरी बात , अगर कभी आपके जीवन मे कोई दूसरी स्त्री आई , तो अम्बे मां की सौगन्ध , पहले हम उसका सिर उसके धड़ से अलग करेंगे , फिर आपका और फिर खुद भी मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे , समझे आप ! " जयधर ने उसकी बातें सुनी तो उसकी भौंहे जुड़ गई । उसने सुकन्या को कमर से पकड़ अपने करीब किया और घूरते हुए बोला - " क्या अनाप - शनाप बोले जा रही है आप ? आप जो बोले जा रही है , आप को खुद को सुनाई भी दे रहा है या नही । " सुकन्या की आंखे नम हो आई थी । उसका जी जल रहा था । किसी और स्त्री को अपने पति के समीप जाना भला वो कैसे बर्दाश्त कर सकती थी । उसकी आँखों मे नमी देख कर , जयधर ने खुद को शांत किया , और प्यार से उसके चेहरे को थाम कर बोला - " रानी सा ! आप जानती है , हम अपने वचन से कभी पीछे नही हटते । हम आज आपको एक और वचन देते हैं , आने वाले समय मे , चाहे जो परिस्थिति बन जाए , किंतु हमारे जीवन मे आपके अतिरिक्त कोई रानी नही आएगी । हम पर आपका एकाधिकार था , और सदैव रहेगा । ये व्यर्थ की चिंताएं छोड़ दे । और रही आपकी बहन की बात , तो उन्हें कैसे लाइन पर लाना है , हम अच्छे से सम्भाल लेंगे । " सुकन्या ने बिना कुछ कहे उसके सीने पर अपना सिर टिका दिया । जयधर अब उसकी चिढ़ को समझ रहा था । लविश्का का व्यवहार देख वो सुकन्या की ईर्ष्या भी समझ पा रहा था । वंही लविश्का उनके कमरे के बाहर खड़ी , उन दोनों की बाते सुन रही थी । उसने जब जयधर की कही बातें सुनी तो , गुस्से में पैर पटकते हुए वँहा से अपने कमरे में चली गयी । जयपुर । शक्ति वापस महल लौट आई थी । और आते ही , जैसा तय था , बखेड़ा खड़ा करने को बुआ तैयार थी । ऐश्वर्या जी ने जब शक्ति को देखा , तो मुँह बना कर बोली - " एक समय था , जब महिलाएं घर की चौखट ना लांघती थी । लेकिन आज कल तो कौन मानता है , इन सब बातों को ? " उस पर भी बुआ को सब से ज्यादा इस बात की चिढ़ हुई कि शक्ति के साथ अव्यम और रक्षत थे । हर्षवर्धन जी ने जब रक्षत को शक्ति के साथ देखा , तो ऐश्वर्या की उस दिन कही बात याद आ गयी । उन्होंने शक्ति को देखा और बोले - " कंहा गए थे आप सब ? " शक्ति जानती थी , सब की आड़ में प्रश्न केवल उससे किया जा रहा है । और अब जब हर्षवर्धन जी बुआ की बातों में आ कर उससे प्रश्न कर ही रहे थे , तो वो भी साफ शब्दों में कंहा जवाब देने वाली थी । उसने उन्हें देख कहा - " हमारे ससुर जी ने हमारे समक्ष शर्त रखी थी , कि हम अपने पति को ढूंढ कर लाएं । तो बस उसी शर्त को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं । वैसे भी 2 दिन बीत चुके हैं , 28 दिन और शेष रहे हैं हमारे पास । तो ये आना - जाना तो आपको रोज देखने को मिलेगा । " हर्षवर्धन जी को लग रहा था कि , शक्ति उनका अपमान कर रही है । किंतु उनकी आंखों पर इस समय गलत बातो का पर्दा पड़ चुका था । दादा सा ने तो उनसे 2 दिनों से बिल्कुल बात नही की थी । उल्टा जंहा हर्षवर्धन जी होते , दादा सा वँहा से उठ कर चले जाते । हर्षवर्धन जी ने रक्षत और अव्यम को देखा और बोले - " और आप दोनो युवराज ! बिना किसी मतलब के इनके साथ हो लिए । अरे जो इंसान है ही नही , उसे कंहा से लाएंगे आप ? बेहतर होगा , आप दोनो काम पर ध्यान दे । " इस बार रक्षत बिल्कुल चुप नही रहा , वो गुस्से में बोल ही पड़ा - " क्षमा करिए बाबा सा ! किंतु आपकी तरह हमे गद्दी का कोई लोभ नही । ना हम खुद को उसके काबिल समझते हैं । और रही बात भाभी सा का साथ देने की , तो क्यों ना दे हम साथ ? शाश्वत भाई सा ने हमेशा हम पर एक पिता सी छाया कर के रखी । अपने बच्चों सा प्यार लुटाया । तो अपने पिता पर यदि कोई संकट आए , तो क्या हम पीछे हो जाएं । कदापि नही । " सब हैरानी से उसे देखने लगे । तभी अव्यम बुआ के सामने जा कर , उसे घूर कर देखते हुए बोला - " और बुआ सा आप ! आप ना इस घर के मामलों से दूर रहिए । हम आपको चेतावनी दे रहे हैं , यंहा पहले ही लोगो के मन मे लोभ भरा पड़ा है । किंतु अगर आपने रिश्तों में जहर घोलने की कोशिश की , तो हम भी नागिन का फन कुचलने में जरा देर नही लगाएंगे । " बुआ तो अव्यम की आंखों के गुस्से को देख कर ही डर गई थी । हर्षवर्धन जी ने उसे टोका - " युवराज ! " अव्यम ने उन्हे घूरा , और बोला - " क्षमा करें ताऊ सा ! किंतु हमारी बात पूरी नही हुई अभी । " ये बोल उसने फिर से बुआ को देखा और घूरते हुए बोला - " छोटे युवराज को गद्दी का लोभ नही , हमे भी नही । किंतु अगर वो गद्दी पर ना बैठे तो हमे बैठना होगा । और हम सत्य कह रहे हैं , अगर आपकी ये कड़वी जुबान बन्द न हुई , तो इसे हम अपनी तरह से बन्द करेंगे । " बुआ ने नज़रे झुका ली , और दो कदम पीछे हो गयी । अब अव्यम ने हर्षवर्धन जी को देखा और बोला - " और रही बात भाभी सा की और उनके दोनो देवरो की , तो आज मैं साफ शब्दो मे कह रहा हूँ । हम दोनों अपनी भाभी सा के साथ खड़े हैं । क्योंकि वो हमारी मां समान है , और जब मां पर संकट आए , और उसके बच्चे उसकी सुरक्षा हेतु सक्षम हो , तो इसमें गलत क्या है ? आज के बाद यदि किसी ने भी हम मां - बेटों के सम्बंध पर प्रश्न उठाया , तो हमसे बुरा कोई न होगा । " सब हैरानी से अव्यम को देख रहे थे । हर्षवर्धन जी को अब अपनिहि सोच गलत लग रही थी । अव्यम ने जा कर शक्ति का हाथ थामा , तो दूसरा हाथ रक्षत ने थाम लिया । और उसके साथ , उसके रूम की तरफ बढ़ गए । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 10. सियासी इश्क़ - Chapter 10

    Words: 1343

    Estimated Reading Time: 9 min

    Ep 10 अव्यम और रक्षत के साथ शक्ति चली गयी । लेकिन आंगन में अब भी सन्नाटा पसरा हुआ था । अभी - अभी जो रक्षत और अव्यम कर के गए थे , उसकी उम्मीद किसी को नही थी । ग्रीष्मा जी ने बुआ को देखा और बोली - " हमने कहा था ना जिजी आप से , कि हर बात को गलत दिशा में मोड़ना सही नही होता । किंतु आप तो जैसे सोच कर बैठी है कि सब मे फूट डलवाई जाए । आप जो चाहे करे , जैसे चाहे रहे । किंतु हमारे बच्चों पर फिर कभी भी प्रश्न ना उठाइयेगा । हमे बिल्कुल बर्दाश्त नही । बेहतर होगा आप अपने काम से काम रखे । " ये बोल वो अपने कमरे में चली गयी । और फिर धीरे - धीरे सब लोग अपने कमरों में चले गए । आंगन में केवल बुआ जी और उनकी बेटी चारवी ही रह गए थे । चारवी भी अपनी मां की ऐसी बेज्जती बर्दाश्त नही कर पा रही थी । वो भी बुआ से कोई कम नही थी । उसके इसी व्यवहार के कारण ही अव्यम , रक्षत और इरिषा उससे दूर रहते थे । ग्रीष्मा जी जब अपने रूम में आई तो कुछ अजीब से भाव थे , उनके चेहरे पर । लेकिन तभी हर्षवर्धन जी की आवाज आई - " ये आप क्या कह कर आई है बाहर , रानी सा ? " ग्रीष्मा जी ने अपने चेहरे के भावों को छुपाते हुए , पलट कर उन्हें देख कहा - " राजा सा ! जीजी की गलती थी । बच्चो पर ऐसे आरोप नही लगाना चाहिए था । और हम जानते हैं , शक्ति बींदणी का इसमें कोई दोष नही । वो अपने प्रेम और सुहाग के हाथों मजबूर हैं । किंतु हम सब भी उनकी मनस्थिति नही समझ रहे । हर्षवर्धन जी बस ग्रीष्मा जी को देख रहे थे । ग्रीष्मा जी ने उन्हें देख कहा - " पता नही क्यों , शक्ति का विश्वास देख हमे भी लग रहा है कि , शाश्वत जीवित है । " हर्षवर्धन जी हैरान से उसे देखने लगे । ग्रीष्मा जी ने खुद ही तो रक्षत को गद्दी पर बैठाने की बात कही थी । लेकिन वो आज खुद ही शाश्वत के जिंदा होने की बात कह रही थी । ग्रीष्मा जी ने उन्हें देखते हुए कहा - " मां का दिल कभी झूठा नही हो सकता । हमे लग रहा है कि , हमारा बच्चा जीवित है । और अगर वो है तो शक्ति उन्हें जरूर ढूंढ कर लाएगी । " हर्षवर्धन जी ने उनकी इस बात पर कोई जवाब नही दिया । अगले दिन । शक्ति एक बार फिर ऑफिस आई थी । वैसे भी वो जानती थी कि अगर उसे शाश्वत को ढूंढना है तो ठंडे दिमाग से काम लेना होगा । और घर के माहौल में उसका दिमाग कंहा से ठंडा रहता । उसने किसी को कॉल किया । उधर से जैसे ही फोन उठा , वो जल्दी से बोली - " कुछ पता चला , हुकुम सा का । " उधर से एक शांत सी आवाज आई - " हम कोशिश कर रहे हैं बाई सा ! किंतु अभी तक कोई परिणाम मिला नही है । हम जल्दी ही पता करवाने की कोशिश करते हैं । आप परेशान ना हो । " " परेशान होने की ही बात है , अद्वैत ! आप जानते हैं ना , हुकुम सा लगभग 2 महीने से लापता है । हम किसी से कह नही पाते , किंतु मन विचलित रहता है , उनके बगैर । किसी अनहोनी के डर से कांप उठते हैं हम । " शक्ति परेशान सी अधीरता से बोली । अद्वैत ! जैसलमेर के कुंवर और शक्ति के मामा के पुत्र थे । जैसलमेर का सोनार किला राजस्थान के विख्यात किलो में से एक है । इस किले की सब से अलग और सबसे बड़ी खासियत यह है कि , इस किले में आज भी लगभग 400 घरों में 1200 लोगो की आबादी रहती है । आसान भाषा मे कहूँ तो ये राजस्थान का एकमात्र ऐसा किला है जिसमे आम जनता अपने परिवार के साथ निवास करती । इसे सोनार किला इसलिए कहा जाता है , क्योंकि सूर्यास्त के समय जब इस किले के पत्थरों पर सूर्य की किरणें पड़ती है तो ये किला , सोने के जैसा चमकता है । वर्तमान में यह किला पूरे जैसलमेर की एक चौथाई आबादी का निवास स्थान है । अद्वैत चौहान ! उम्र 30 साल आकर्षक व्यक्तित्व के साथ - साथ , अपनी प्रजा के लिए मसीहा से कम नही है । जैसलमेर के कुंवर होने का हर गुण रखते हैं । अपने माता - पिता की इकलौती सन्तान है । लगभग 6 फ़ीट हाइट और तीखे नैन - नक्श , हल्की दाढी और मूछ । और रौबदार व्यक्तित्व लिए हुए । शक्ति की बात सुन अद्वैत बोला - " बाई सा ! धीरज रखे । ये समय हिम्मत हारने का नही है । आप केवल हमे इतना बताएं कि वो कंहा जा सकते हैं ? हम हुकुम सा ढूंढ लाएंगे । " शक्ति ने उसे कुछ बाते बताई जो उसे पता लगी थी । उसके बाद उसने फोन रख दिया । उसने बैठ कर अपना सिर आगे टेबल पर टिका दिया और आंखे बंद कर ली । उसने मन ही मन खुद से कहा - " ये बहुत मुश्किल है हुकुम सा , हमारे लिए । चले आइए । और कितना इंतज़ार करवाएंगे आप ? " तभी एक आवाज आई - " आप इतने में ही हार कर बैठ गयी रानी सा ! " शक्ति ने जल्दी से सिर उठा कर देखा । सामने शाश्वत खड़ा था । हमेशा की तरह एक छोटी सी मुस्कान होठो पर सजाए । जो वो हमेशा शक्ति के लिए रखता था । शाश्वत मुस्कुराते हुए बोला - " आप जानती है ना , प्रेम में तपस्या और प्रतिक्षा दोनो से ही गुजरना होता है । महादेव को पाने के लिए माता पार्वती ने तपस्या की थी , किंतु प्रतीक्षा महादेव ने भी तो की थी । " " किंतु यंहा दोनो हमारे हिस्से लिख दिया आपने । हम तपस्या भी कर रहे हैं , और प्रतीक्षा भी कर रहे हैं । " शक्ति उसकी बात सुन बोल ही पड़ी ।  शाश्वत मुस्कुराया और बोला - " जानते हैं । हमारी गलती है , हम मानते भी है । किंतु हम भी कुछ कर नही पा रहे हैं । किंतु आप हार नही सकती रानी सा ! आपको न जाने अभी और कितनी लड़ाईयां लड़नी है । खुद के लिए भी , और हमारे लिए भी । इसीलिए हिम्मत मत हारिए । हमे आप पर विश्वास है । " तभी केबिन का डोर नॉक हुआ और , शक्ति ने उस ओर देखा । फिर तुरन्त शाश्वत की तरफ । लेकिन वो वँहा नही था । एक बार फिर वो बस अपनी कल्पनाओं में उससे बाते कर रही थी । उसने गहरी सांस ली और कामो में लग गयी । जोधपुर । लविश्का इधर कुछ और ही षड्यंत्रों में लगी हुई थी । उसे इतना तो पता लग ही चुका था कि , ये सब उसके लिए आसान नही होने वाला । वो हमेशा से ही सुकन्या से ईर्ष्या रखती आई थी । वजह थी , सुकन्या का सहज और सुंदर स्वभाव के साथ - साथ शारिरिक सुंदरता का होना । लेकिन सुकन्या ने कभी उससे ईर्ष्या नही रखी । जब तक बात अपने पति की नही आई थी । विवाह की बात पक्की होने के बाद से ही , सुकन्या को लविश्का के व्यवहार में जयधर को ले कर एक बड़ा अंतर देखने को मिला । शायद इसे आकर्षण कहना भी गलत नही होगा । शुरू में तो सुकन्या ने सब कुछ अनदेखा किया , किंतु धीरे - धीरे उसे लविश्का के इरादे साफ होते गए । लविश्का ने किसी को फोन लगाया और उसे मिलने को कहा । सामने से हामी मिलते ही उसने फोन रख दिया , और एक शातिर मुस्कान के साथ बोली - " जीजी ! हम भी देखते हैं , आप हमें कब तक रोक पाती है ? " जारी है । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 11. सियासी इश्क़ - Chapter 11

    Words: 1276

    Estimated Reading Time: 8 min

    Ep 11 लविश्का बिना किसी को बताए , महल से निकल गयी । न जाने उसके दिमाग मे क्या चल रहा था । लेकिन जो भी चल रहा था , वो सुकन्या के लिए सही तो बिल्कुल नही था । वो एक कैफे के सामने पहुंची । उसने ज़िर उठा कर कैफे को देखा , और मुस्कुराते हुए अंदर बढ़ गयी । वो जा कर अपनी रिजर्व्ड टेबल पर बैठ गयी । जंहा पहले से ही एक शख्स मौजूद था । उस शख्स ने उसे देखा और बोला - " हमे यंहा बुलाने का कारण जान सकते हैं हम ? " लविश्का ने मुस्कुराते हुए उसे देखा , लगभग 25 साल उम्र रही होगी उस लड़के की । देखने मे भी वो गुड लुकिंग था । लविश्का ने अपना हाथ बढाते हुए , बड़ी अदा के साथ कहा - " हाय ! एम लविश्का ! " वो लड़का हल्के से मुस्कुराया और बोला - " सिर्फ इंट्रोडक्शन के लिए बुलाया है , तो मैं चलता हूँ । " ये बोल वो उठने को हुआ कि , लविश्का जल्दी से बोली - " हे , कूल डाउन यार ! बैठो तो । " वो लड़का वापस बैठा और चिढ़ कर मुँह ही मुँह में बोला - " दो बोल अंग्रेजी के क्या सीख ले ? लोग खुद को अंग्रेज ही समझने लगे जाते हैं । " लविश्का को उसका बुदबुदाना सुना , लेकिन उसे समझ नही आया कि उसने कहा क्या ? इसीलिए उसने उसे उस बात के लिए कुछ नही कहा । और आगे बोली - " मैं तुम्हारे पास एक फायदे का सौदा ले कर आई हूं । इससे मेरा और तुम्हारा दोनो का ही फायदा होगा । " वो लड़का मुस्कुराया , और बोला - " मेरा पता नही । लेकिन तुम्हारा फायदा जरूर है , इसीलिए तुम यंहा आई हो । अब जल्दी बको । मेरे पास तुम जैसे लोगो पर खर्च करने के लिए बिल्कुल टाइम नही है । " लविश्का को उसकी इस टोन पर गुस्सा आ रहा था । लेकिन काम उसका था , तो बेज्जती का घूंट पी रही थी । लविश्का ने उसे देखा और बोली - " तुम मेरी बहन को पसन्द करते हो , ये बात मैं जानती हूँ । " उस लड़के ने कुछ नही कहा , बस उसे देखता रहा । लविश्का आगे बोली - " तुम उसे हासिल कर सकते हो अगर कोशिश करो तो । " उस लड़के के माथे पर बल पड़ गए । लविश्का ने उसे आगे कुछ और भी कहा , जो सुन कर वो भी हैरान था । आखिर में लविश्का बोली - " देखो ! तुम साथ दो या न दो । मैं ये जरूर करूंगी । इसीलिए बेहतर है , बहती गंगा में हाथ धो लो । तुम भी खुश और मैं भी । " वो लड़का बस उसे देखते रह गया । ये उसके सामने बैठी लड़की अपनी ही बहन के खिलाफ योजनाएं बना रही थी । अपने ही जीजा के ऊपर डोरे डाल रही थी ।  लविश्का ने उसे देखते हुए कहा - " आराम से सोच कर बता देना । अब मैं चलती हूँ । " ये बोल वो उठी और वँहा से निकल गयी । वो लड़का अभी भी लविश्का की कही बाते सुन कर हैरान था , और अपनी ही सोच में गुम था ।  एक बड़े से घर मे । एक आदमी हॉल में बैठा था । उसके साथ ही कुछ 4 लोग और बैठे थे । उनमें से एक नए कहा - " मिस्टर बंसल ! वो राजघराना है । हुकुम सा की हुकूमत चलती है पूरे राजस्थान में । आप उनके खिलाफ जाने की कोशिश कर रहे हैं । कंही ऐसा न हो कि , आपको ये भारी पड़ जाए । " मिस्टर बंसल यानी कि इशांक ! ये इशांक ही था । शक्ति से उस थप्पड़ का बदला लेने के लिए , वो एक चाल तैयार कर चुका था । इशांक ने उसे देखते हुए कहा - " I really don't care , about it . भले मुझे बर्बाद होना पड़े , लेकिन आबाद तो मैं उस शक्ति को भी नही होने दूंगा । " उनमें से एक दूसरे आदमी ने कहा - " आप जिसकी बात कर रहे हैं , वो राजस्थान की हुकुम रानी सा है । आपको लगता है कि आप ये सब कुछ करेंगे और वो शांत रहेंगी । मिस्टर बंसल आप उन्हें जानते नही है । वो कोई छुई - मुई सी नारी नही है । जो जरा से स्पर्श से ही सिमट कर बैठ जाए । वो अपनी पर आई तो सामने वाले को चीर कर रख देती है । " इशांक ने उसे गुस्से में घूरा और बोला - " मैने आप सब को यंहा पर उस औरत की तारीफ करने के लिए नही बुलाया है । जितना कह रहा हूँ , उतना करो । बाकी सब मैं खुद सम्भाल लूंगा । " वो सब उसे समझा कर देख चुके थे । लेकिन अब उन सब ने भी उसकी बात मान ली । वैसे भी शाश्वत अभी यंहा नही था । तो ये उन सब के लिए भी एक सुनहरा मौका था । और सब की तरह ही उन्हें भी लग रहा था कि अब शाश्वत कभी भी लौट कर आने वाला नही है । और उन्होंने वही किया जो इशांक ने उनसे करने को कहा । वो सब जब वँहा से चले गए । तो इशांक ने अपने सामने पड़ी फ़ाइल को देखते हुए कहा - " शक्ति ! शक्ति ! शक्ति ! तुमने मुझ पर हाथ उठा कर गलती कर दी । कहा था ना , मेरे साथ आ जाओ । रानी की तरह रखूंगा । लेकिन तुमने क्या किया ? मुझे थप्पड़ मारा । अब इसका बदला तो मैं तुमसे सूद समेत लूंगा । " ये बोल वो हंस दिया । अपने इर्द - गिर्द हो रहे षड्यंत्रों से अनजान शक्ति तो केवल अपने हुकुम सा की खोज में लगी हुई थी । जोधपुर । जयधर आज थोड़ा देर से महल लौटा था । वो आते ही सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया । उसने वंही आंगन में बैठी लविश्का पर जरा ध्यान नही दिया था । वो अपने कमरे में आया तो , नज़र बेड पर गयी । सुकन्या आराम से सो चुकी थी । लेकिन उसने अपने कपड़े नही बदले थे । शायद उसे यूं ही नींद लग गयी होगी । ये देख जयधर मुस्कुरा दिया । वो उसके पास गया , और उसे जगाते हुए बोला - " रानी सा ! कपड़े तो बदल लीजिए । फिर आराम से सो जाइएगा । " उसकी आवाज सुन सुकन्या ने आंखे खोली । वो काफी थकी हुई लग रही थी । जयधर ने उसका माथा छुआ , लेकिन बुखार तो नही लग रहा था । उसने उसे देख कहा - " क्या बात है ? आज आप इतनी थकी हुई सी क्यों प्रतीत हो रही है ? " सुकन्या हल्के से उठते हुए बोली - " नही , कुछ नही बस ! काकी सा से कुछ कहा - सुनी हो गई हमारी । " जयधर उसे देखने लगा , तो वो बोली - " आप वो सब छोड़े , और पहले कपड़े बदल कर आए । हम खाना लगाते हैं आपके लिए । " ये बोल वो उठ कर जाने को हुई कि , जयधर ने उसकी कलाई थाम ली । सुकन्या के कदम रुक गए । जयधर ने उसे वापस अपने सामने किया और बोला - " आप हमसे भाग रही है । " ये सुनते ही सुकन्या की नज़रे उस पर ठहर गयी । जयधर भी उसी को देख रहा था । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 12. सियासी इश्क़ - Chapter 12

    Words: 1295

    Estimated Reading Time: 8 min

    Ep 12 सुकन्या ने खुद को सम्भालते हुए कहा - " नही , हम नही भाग रहे । आप से भाग कर , हम कंहा जाएंगे । " जयधर ने इसकी आंखों में देखा , तभी उसकी नज़र अचानक ही खिड़की अपने कमरे में लगे दर्पण पर गयी । और उसे लविश्का का अक्स दिखा । वो दरवाजे के पास खड़ी , गुस्से में चिढ़ के साथ उन दोनों को देख रही थी । जयधर हल्के से मुस्कुराया , उसने सुकन्या को देखते हुए कहा - " सिद्ध करिए । " सुकन्या ने अपनी पलके जल्दी - जल्दी झपकाई और उसे देखने लगी । जयधर आगे बोला - " सिद्ध करिए कि आप हमसे भाग नही रही । " सुकन्या ने धीरे से हकलाते हुए कहा - " वो ! वो कैसे ? " " हमारे निकट आ कर । " जयधर उसके चेहरे के करीब अपने चेहरे को करते हुए बोला । सुकन्या उसे हैरानी से देख रही थी । आज से पूर्व कभी भी जयधर ने उससे ऐसा कुछ नही कहा था । वो उसे कब भी मुस्कुराते हुए देख रहा था । जबकि सुकन्या हैरान थी और वंही दरवाजे के पास छुप कर खड़ी लविश्का उन दोनों को देख जल रही थी । जयधर ने एक बार फिर सरगोशी से कहा - " क्या हुआ ? आइए निकट हमारे । " लविश्का ने जब जयधर को सुकन्या के और करीब होते देखा तो , चिढ़ कर उन्हें देखते हुए बोली - " ये महज कुछ दिनों की नजदीकियां है राजा साहब ! उसके बाद सुकन्या की जगह मैं होउंगी । " ये बोल वो एक नज़र उन दोनों को देख , वँहा से चली गयी । जयधर ने एक नज़र उस ओर देखा , जंहा लविश्का नही थी । वो मन ही मन मुस्कुराया और खुद से ही बोला - " साली सा ! आपका ये प्रेम रोग तो अब हम ही ठीक करेंगे । " वो सीधा होने को हुआ कि सुकन्या ने उसके गले के इर्द - गिर्द अपनी बांहे लपेट दी ।  जयधर ने उसे देखा और उसकी बाजुओं को थाम कर , मुस्कुरा कर बोला - " क्या कर रही है आप ? रानी सा ! " सुकन्या ने उसके चेहरे को देखते हुए कहा - " आपको सिद्ध कर रहे है , कि हम आप से नही भाग रहे । " जयधर ने उसके चेहरे को देखा , वो बड़ी मासूमियत से उसे ही देखे जा रही थी । वो मुस्कुराया और हल्के से झुक कर , उसके चेहरे के सामने अपना चेहरा करते हुए बोला - " हम्म ! तो करिए सिद्ध । " सुकन्या झट से बोली - " ऐसे थोड़ी । पहले आप अपने नेत्र बन्द करिए । " जयधर ने उसे देखा , और अपनी आंखें बंद कर ली । सुकन्या ने अपना एक हाथ उसके गाल पर रखा और दूसरे गाल के निकट अपना चेहरा ले गयी । जयधर को उसकी सांसे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी । जयधर भी अब दम सामे उसके अगले कदम की प्रतीक्षा कर रहा था । तभी अचानक ही सुकन्या ने अपना चेहरा हल्के से मोड़ा और उसके कान पर काट लिया । अचानक हुई इस हरकत से जयधर की आह निकल गयी । उसने फ़ौरन आंखे खोल सुकन्या को घूरा । जो उसे देख शरारत से मुस्कुरा रही थी । जयधर ने अपना कान अपने हाथ से रगड़ते हुए कहा - " बहुत शैतानियां सूझ रही है आपको । ठहरे आप , हम बताते हैं आपको तो । " ये बोल वो उसकी तरफ बढ़ा कि सुकन्या बाहर की तरफ भागते हुए बोली - " हम खाना लगाते है , आप स्नान कर लीजिए । " जयधर दरवाजे तक उसके पीछे आया । लेकिन वो भाग गई । जयधर ने उसे आवाज देते हुए कहा - " कंहा तक भागेंगी आप ? अपने जो किया है , उसके लिए हम आपको छोड़ने वाले नही है । आना तो आपको हमारे ही पास है । " सुकन्या ने सुना तो लेकिन बोली कुछ नही । उसके होठो पर एक प्यारी सी मुस्कान थी । आज न जाने कितने दिनों बाद एक बार फिर जयधर के सामने वो चंचल सुकन्या थी , जिस पर वो दिल हार बैठा था । जयपुर । रात्रि के समय मे , महल में हर और सन्नाटा फैला हुआ था । शक्ति आपने कमरे में थी । तभी शक्ति का फोन बजा । उसने फोन की तर्ज देखा औऱ , उठा कर कान पर लगा लिया । उधर से अद्वैत की आवाज आई - " प्रणाम बाई सा ! " " जी प्रणाम भाई सा ! इतनी रात्रि को फोन किया । कोई विशेष बात । " शक्ति ने कहा । अद्वैत ने अधीरता से कहा - " बाई सा ! हुकुम सा , जिस दिन आपको लाने के लिए जयपुर से निकले थे । उस दिन वो जोधपुर जाने के बजाय पहले रणथम्भौर गए थे । " शक्ति ने शांत सी आवाज में कहा - " अवश्य ही वो , त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु गए होंगे । " अद्वैत ने उसकी बात सुन कहा - " जी बाई सा ! किंतु उसके बाद वो वँहा से जोधपुर के लिए प्रस्थान कर चुके थे । किंतु जोधपुर के पहुंचने से पूर्व ही उन्होंने अपना मार्ग बदल लिया था । " ये बात तो शक्ति को और भी हैरान कर रही थी । जंहा तक उसे पता था , शाश्वत सीधा जोधपुर आने वाला था । लेकिन यूं रास्ता बदलने का क्या कारण था । ये उसे नही पता था । शक्ति ने धीरे से कहा - " आप पता कर सकते हैं , कि क्या कारण था कि उन्होंने अपना मार्ग बदल लिया । " अद्वैत ने हिम्मत कर के कहा - " बाईसा ! जिस दिन वो जोधपुर के लिए निकले थे उस दिन वो सिर्फ रॉयल गार्ड्स के साथ थे । उनके खुद के स्पेशल गार्ड्स उनके साथ नही थे । " ये सुन कर शक्ति अधीर हो गई । उसका दिल घबरा उठा था । तभी अद्वैत ने आगे कहा - " बाई सा ! आप भला माने या बुरा , किंतु हमे आपके महल के लोगो पर संदेह है । वैसे भी वो लोग अजीब से है । कोई हद से ज्यादा ही प्यार लुटाता है , तो किसी की कड़वी जुबान के आगे करेला भी मीठा लगे । वो महल के लोग लोभ से भरे हुए हैं । हो ना हो , हुकुम सा के अचानक से जाने के पीछे उन्ही में से किसी का हाथ है । " शक्ति उसकी बात समझ रही थी । यंहा के लोगो मे दोगले पन की भावना उसने भी महसूस की थी । लेकिन उसे तो जिंदगी भर यंही रहना था । वो लोग जैसे भी थे , शाश्वत के परिवार के लोग थे । और उसका शाश्वत से रिश्ता जुड़ने के साथ - साथ उन सब से भी रिश्ता जुड़ चुका था । शक्ति ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा - " जानते हैं । लोगो के मनोभावों को समझने की क्षमता है हम में । किंतु हम कुछ कर नही सकते । और जब तक हुकुम सा ना लौट आएं , तब तक तो बिल्कुल भी नही । " अद्वैत ने हम्म कहा । फिर बोला - " हम पता करते हैं , शायद कुछ और बाते भी पता लग जाए । " शक्ति ने हामी भरी , और फिर फोन रख दिया । शाश्वत के बारे में उसे कुछ तो पता लगा ही था । उसने कुछ सोचा और फिर जा कर बेड पर लेट गयी । शाश्वत के बारे में सोचते - सोचते वो नींद के आगोश में जा चुकी थी । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 13. सियासी इश्क़ - Chapter 13

    Words: 1390

    Estimated Reading Time: 9 min

    अगली सुबह । जयपुर । शक्ति अपने कमरे में लगे दर्पण के सामने खड़ी अपने अक्श को देख रही थी । हल्की गुलाबी रंग की पोशाक पहने , और साज - श्रृंगार किए वो बेहद प्यारी लग रही थी । उसने एक नज़र खुद को देखा और बोली - " हम भी देखते है , आप कब तक हमसे छुपे रहते हैं , हुकुम सा ! " उसने वन्ही पास की टेबल पर रखी कटार उठाई , और उसे अपने दूसरे हाथ से छूते हुए बोली - " हमारी पहली रसोई का उपहार , आपने दिया था ये हमे । क्योंकि हमें ये बेहद पसंद आई थी । किंतु आज तक हमे इसे उपयोग करने का अवसर प्राप्त नही हुआ । किंतु अब लगता है कि वो अवसर भी जल्द ही प्राप्त होगा । " शक्ति अपने कमरे से बाहर निकली । वंही उसे अव्यम और रक्षत तैयार मिले । उसने उन दोनों को देख कहा - " आप दोनो यंहा ? " रक्षत ने उसे पास जा कर , उसे कंधे से पकड़ते हुए , मसखरी करते हुए कहा - " वो क्या है ना भाभी सा ! बचपन मे हम दोनों भाई सा के पीछे - पीछे घुमा करते थे । और सब हमे भाई सा की पूंछ कहते थे । अब भाई सा तो अभी है नही , तो हम दोनों ने सोचा कि क्यों न हम भाई सा के आने तक आपकी पूंछ बन जाएं । " अव्यम उसकी बात सुन मुस्कुरा रहा था । वंही शक्ति के होठो पर भी मुस्कान आ गयी । वो उसके चेहरे को थाम कर बोली - " आप उनकी पूंछ नही , आप उनका एक अहम हिस्सा हो । मतलबी दुनिया मे भाई का साथ और प्यार हर शख्स के लिए काफी होता है । " रक्षत और अव्यम मुस्कुरा दिए । फिर बोले - " अब चले । आप जंहा भी जा रही है । हम दोनों आप के साथ चलेंगे । आप अकेले कंही भी नही जाओगे । " शक्ति मुस्कुरा दी । और बोली - " ठीक है , चलिए फिर । " तीनो आ कर अपनी कार में बैठे और महल से निकल गये । उनके पीछे ही उनके गार्ड्स भी निकल गए । अव्यम ने उसे देख कहा - " भाभी सा ! जाना कंहा है ? " शक्ति ने उसे देखते हुए कहा - " रणथम्भौर ! " रक्षत ने उसे देखा और बोला - " रणथंभौर ! लेकिन क्यों ? " शक्ति ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोली - " जिन्होंने , हमे आपके भाई सा से मिलवाया था । एक बार फिर वो ही हमे उनसे मिलवाएंगे । " अव्यम ने रेयर व्यू मिरर से उसे देखा , फिर उसका मूड हल्का करने के लिए बोला - " वैसे भाभी सा ! हमे तो किसी ने बताया नही कि आप और भाई सा , पहले ही मिल चुके थे । " शक्ति हल्के से मुस्कुराई और अपनी और शाश्वत की पहली मुलाकात याद करते हुए , वो उन स्मृतियों में खो गयी । फ्लेशबैक ।  10 महीने पहले । जयधर का विवाह , बीकानेर की राजकुमारी सुकन्या के साथ तय कर दिया गया था । शक्ति अपने भाई सा के विवाह की सूचना से अत्यधिक प्रसन्न थी । एक वजह उसकी प्रसन्नता की यह भी थी कि , सुकन्या का व्यवहार उसे बेहद ही पसन्द आया था । विवाह की पत्रिकाएं जब बन कर आई , तो शक्ति ने सारी पत्रिकाओं पर तिलक कर के , उन पर अक्षत और पुष्प चढ़ाए ।  उसके पश्चात उसने एक पत्रिका निकाली और उस पर विघ्नहर्ता गणपति जी का नाम लिखा । राजस्थान में मान्यता है कि किसी के भी विवाह में सब से पहली पत्रिका निमंत्रण के तौर पर रणथंभौर गणपति जी को चढ़ाई जाती है , अथवा भेजी जाती है । जयधर उन दिनों काम मे बेहद ही व्यस्त था । उसने वो पत्रिका किसी सैनिक अथवा सेवक के हाथ भिजवाने का सोचा । किंतु शक्ति ने जिद की कि , वो अपने हाथों से ये पत्रिका रणथंभौर ले कर जाएगी और गणपति जी को विवाह का निमंत्रण दे कर आएगी । उसकी जिद के आगे , जयधर भी हार गया । अगले दिन शक्ति विवाह पत्रिका ले कर निकल चुकी थी । लगभग साढ़े आठ - नौ घण्टे के बाद वो सवाईमाधोपुर जिले में स्थित रणथंभौर दुर्ग में बने , त्रिनेत्र गणेश जी के मंदिर पहुंची । ये दुनिया का एक मात्र ऐसा गणेश मंदिर है जिसमे गणेश जी के तीन नेत्र है । और गणेश जी यंहा अपने पूरे परिवार अर्थात दोनो पत्नी रिद्धि - सिद्धि और अपने दोनो पुत्रो शुभ और लाभ के साथ विराजमान हैं । इस मंदिर का निर्माण राजा हम्मीर सिंह ने करवाया था । ये रणथंभौर दुर्ग के आंगन में बना हुआ है किंतु गणेश जी की प्रतिमा स्वयम्भू है । शक्ति मन्दिर में गयी । और उसने पत्रिका मन्दिर में भेंट की । और आंखे बंद कर के हाथ जोड़ कर आंखे बंद कर के गणपति जी से अपने भाई के सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की । तभी वँहा शाश्वत भी पहुंचा । वो शक्ति के पास जा कर हाथ जोड़ कर आंखे बंद कर के खड़ा हो गया । दोनो को ही इस बात का भान नही था , कि पास में कोई खड़ा है । शक्ति ने आंखे खोली , तभी पण्डित जी ने उन दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा - " शिव - पार्वती की सी जोड़ी है । बाधाएं होंगी , विरह अग्नि में तपना भी होगा । लेकिन प्रेम की तपस्या और प्रतीक्षा से उभर कर , सुंदर मिलन होगा । " उनका ये कहना ही था कि शाश्वत ने आंखे खोल पण्डित जी को देखा । पण्डित जी मुस्कुरा कर उन दोनों को देख रहे थे । शाश्वत ने अपने बगल खड़ी शक्ति को देखा , जो अधीरता से उसे देख रही थी । शाश्वत के अत्यधिक शक्तिशाली व्यक्तित्व के प्रभाव से वो खुद को बचा नही पाई थी । तभी शक्ति को उसके साथ आई सेविका ने पुकारते हुए कहा - " कुमारी ! राजा सा ने कहा है कि , हम आज रात्रि यंही रुक जाए । " शक्ति ने उसे देखा और हामी भरी । शाश्वत की नज़रे उसी पर थी । शक्ति ने अपनी नज़रे चुराई और वँहा से बाहर की तरफ बढ़ गई । जबकि शाश्वत अब भी उसे जाते हुए देख रहा था । उसने अपने पास खड़े , असिस्टेंट से कहा - " ये कौन थी ? किसी राजघराने से प्रतीत हो रही थी । " असिस्टेंट ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा - " हुकुम सा ! वो जोधपुर के राजा , राव जयधर की छोटी बहन है । अपने भाई के विवाह की पत्रिका ले कर , गणेश जी को निमंत्रण देने पधारी है । " शाश्वत ने उसे जाने को कहा । और खुद वंही गणपति को देखते हुए कुछ पलों तक खड़ा रहा । शक्ति जा चुकी थी , किंतु अपना एक विशेष प्रभाव शाश्वत पर छोड़ गई थी । रह - रह कर , शक्ति की मासूमियत भरी नज़रे उसके सामने आ रही थी । उसने गणपति को देखते हुए कहा - " आप कुछ भी व्यर्थ ही नही करते । ये हमे ज्ञात है । और जो पण्डित जी ने कहा , वो सत्य है , तो बप्पा ! हम आप को हमारे विवाह का न्यौता आज ही देते हैं । हम राजकुमारी संग अपने विवाह की पत्रिका ले कर जल्दी ही एक बार फिर आपके दरबार मे पधारेंगे । " ये बोल , उसने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ लिए । तभी पण्डित जी बोले - " विचार उचित है हुकुम सा ! किंतु विवाहोपरांत जीवन सरल न होगा । आपसे भी अधिक कुमारी को परीक्षाओं से गुजरना होगा । " शाश्वत मुस्कुरा कर बोला - " वो राजपूतानी शेरनी है , उनकी आंखें और चेहरे का तेज ये साफ जाहिर करता है । और हमे विश्वास है , वो हर परीक्षा में सफल रहेंगी । " ये बोल उसने पण्डित जी को हाथ जोड़ प्रणाम किया । तो पण्डित जी ने मुस्कुरा कर आशीर्वाद दिया । और शाश्वत वँहा से वापस जयपुर के लिए निकल गया । जबकि शक्ति आज रात यंहा रुक कर , कल सुबह जोधपुर के लिए निकलने वाली थी । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa      

  • 14. सियासी इश्क़ - Chapter 14

    Words: 1301

    Estimated Reading Time: 8 min

    Ep 14 शक्ति की बातें सुन कर रक्षत चहक कर बोला - " बाप रे ! भाई सा तो बड़े फ़ास्ट निकले । एक दम सुपर फास्ट । उन्होंने पहली भेंट में ही आपसे विवाह का मन भी बना लिया था । " उसकी इतनी एक्साइटेड आवाज सुन कर , शक्ति अपनी स्मृतियों से वापस निकली । उसने मुस्कुरा कर रक्षत को देखा और बोली - " कई चीजे जीवन में ऐसी होती है , जिन पर हमें मंथन की आवश्यकता नही होती । वो बस खुद - ब - खुद होती चली जाती है । आपके भाई सा से हमारी भेंट केवल एक - दूसरे को एक नज़र देखने भर की थी । लेकिन उन्होंने उस भेंट को जिंदगी भर के साथ मे बदलने का साहस दिखाया था । उन्होंने एक बार हम से कहा था कि , हमारा साथ स्वयं ईश्वर ने लिखा है । इसीलिए हम उन्हें इस प्रकार विवाह पत्रिका के साथ गणपति जी के दरबार मे मिले थे । अन्यथा यदि वो एक नज़र केवल भ्रम अथवा झुकाव होती , तो वो कभी हम से विवाह का मन न बनाते । " अव्यम ने मुस्कुरा कर कहा - " मतलब जिसे हम अरेंज मैरिज समझ रहे थे वो तो असल मे लव मैरिज है । " रक्षत हंस कर बोला - " ये सब सुनने में बड़ा एक्साइटेड है । " शक्ति उन दोनों को देख मुस्कुरा दी । सिंगापुर । एक बड़े से बार मे , पार्टी म्यूजिक पर , लोग थिरक रहे थे । सब नशे में इस कदर बेहाल थे , कि किसी को अपनी कोई सुध ही नही थी । वंही उसी बार मे एक आदमी , डांस फ्लोर पर , 3 - 4 लड़कियों से घिरा हुआ था , और डांस कर रहा था । उसकी हरकते बता रही थी कि , वो कितना अय्याश है । उसके एक हाथ मे वाइन का ग्लास था और दूसरे हाथ से उसने एक लड़की की कमर थाम रखी थी । उसे देख ऐसा लग रहा था मानो उसे किसी और कि कोई परवाह ही न हो । देखने मे यही कोई 30 - 31 साल का लग रहा था । वंही मजबूत कद - काठी , और देखने मे काफी अट्रेक्टिव भी था । इसीलिए उस बार की तितलियां उसके इर्द - गिर्द मंडरा रही थी । उनमें से एक नए आ कर उसके गले मे बांहे डाली , और उसके चेहरे पर अंगुली घुमाते हुए बोली - " let's have fun baby ! " वो आदमी उस लड़की को देख अजीब तरह से मुस्कुराया , और उसके साथ प्राइवेट रूम में चला गया । जंहा एक ओर मर्यादित जीवन था , वंही एक ओर सारी सीमाएं लांघी जा रही थी । आखिर कौन था ये शख्स ? इसका जवाब मिलना अभी बाकी था । जोधपुर । जयधर आज घर पर ही था । लेकिन सुकन्या मन्दिर गयी हुई थी । वो अपने कमरे में बैठा , अपने कामो में व्यस्त था । तभी उसका फोन बजा । उसने फोन उठाया , तो उधर से सुकन्या की आवाज आई - " राजा सा ! हमारी गाड़ी खराब हो गयी है । हमे आने में थोड़ी देर हो जाएगी । " जयधर ने उसकी बात सुनी तो बोला - " कोई बात नही । हम दूसरी गाड़ी भिजवाते है । आप अकेले इधर - उधर मत जाइएगा । " सुकन्या ने हामी भर कर , फोन रख दिया । जयधर ने फौरन ही दूसरी कार भेज दी । वो जानता था , ज्यादा देर सुकन्या का वँहा रुके रहना भी ठीक नही था । इधर वो शख्स जिससे लविश्का मिल कर आई थी , वो अजीब ही कशमकश में था । असल मे ये कोई और नही बल्कि जयधर के काका का बेटा भाविक था । लविश्का ने उसे जो कहा था , वो सब बातें ज उसके दिमाग से नही निकल रही थी । लेकिन लविश्का अपने प्लान को ले कर काफी श्योर थी । उसके यंहा आने का केवल और केवल एक ही उद्देश्य था , और वो था , महल और जयधर कि जिंदगी में सुकन्या की जगह लेना और सुकन्या को जयधर की जिंदगी से बाहर निकालना । जिसके लिए वो पुरजोर कोशिशो में लगी हुई थी । अब जब आज जयधर महल में अकेला था तो , भला वो सुकन्या के खिलाफ उसे भड़काने से कैसे रुक सकती थी । वो सीधे बेधड़क जयडर के कमरे में चली आई । जयधर ने जब किसी की मौजूदगी महसूस की तो उस ओर देखा । और लविश्का को देख कर , उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे । जयधर ने उसे घूरते हुए , थोड़ी कड़क आवाज में कहा - " साली सा ! लगता है , विलायत से लौटने के बाद भी , आप खुद को अब तक वंही का समझ रही है । " लविश्का ने ये सुना तो एक झूठी मुस्कान के साथ बोली - " राजा साहब ! मुझे लगा आप अकेले है , तो क्यों ना आपके साथ वक़्त बिता लिया जाए । " जयधर ने बिना उसे देखे , अपनी नज़रे लेपटॉप पर टिकट हुए कहा - " साली सा ! हमे लगता है , आप अपनी सीमाएं भूल रही है । ये राजस्थान है , यंहा पर साली को आधी घरवाली कभी नही माना जाता । ये सब तो आजकल के लोग एक - दूसरे को देख कर सीखने लगे है । तो आप भी अपनी सीमा में रहे , यही आपके लिए उचित भी होगा । अन्यथा हम भूल जाएंगे , कि आप हमारी पत्नी की बहन है । " लविश्का मन ही मन उसकी बात सुन कर कुढ़ गयी । उसने खुद को संयमित करते हुए कहा - " लेकिन राजा साहब ! सभी ये कहते हैं , मानते हैं , कि साली आधी घरवाली होती है । " जयधर ने गुस्से से कहा - " राजा साहब नही , राजा सा । और एक बात कान खोल के सुन और समझ ले आप ! ये जीजा - साली की संस्कृति हमारे राजस्थान की देन नही है । रिश्ता होता है । लेकिन हदों का । एक आदमी की जिंदगी में उसकी पत्नी की बहन , उस आदमी के लिए भी बहन समान होती है । इसीलिए ये खुद को ये आधी घरवाली समझने का वहम अपने दिल और दिमाग से निकाल दें । " उसके इस तरह बोलने से एक पल को तो लविश्का भी कांप गयी । लेकिन अगले ही पल वो खुद को सम्भालते हुए मुस्कुरा कर बोली - " तो फिर इसके बारे में आपका क्या ख्याल है ? " ये बोल कर उसने एक एनवलप उसकी तरफ बढ़ा दिया । जयधर गहरी नज़रो से उसे देख रहा था । उसने उसके हाथ से वो लिफाफा लिया , और उसे खोल कर देखने को हुआ कि , वो मुस्कुरा कर बोली - " जरा दिल सम्भाल कर , देखिएगा राजा सा ! कंही ऐसा ना हो कि ये देख कर आपके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक जाए । " जयधर ने उसे देखते हुए कहा - " ऐसा कुछ भी नही है , जो एक राजा को डगमगा सके । और हमारे पैरों के नीचे से जमीन खींच सके , आप ऐसा कुछ कर भी नही सकती । और भरोसा करे हमारा , आप जो कुछ भी करने की कोशिश कर रही है , वो तब तक है जब तक हम सब्र कर रहे हैं । जिस दिन हमारे सब्र का बांध टूटा , हम आपको आपकी असल जगह से रूबरू करवा देंगे । " ये बोल उसने वो एनवलप खोला , और शांत सा देखने लगा । आखिर कौन था वो लड़का ? और क्या है उस एनवलप में ? । । । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 15. सियासी इश्क़ - Chapter 15

    Words: 1329

    Estimated Reading Time: 8 min

    Ep 15 जय धर शांत उस एनवेलप को देख रहा था । उसने उस एनवेलप को खोल कर देखा । उसमे कुछ फोटोज थे । उसने वो निकाले , और एक - एक कर सारी फोटोज देखने लगा । लविश्का के होठो पर एक शातिर मुस्कान थी , जैसे न जाने उसने कितना बड़ा काम कर दिया हो । जयधर कि चेहरे पर अब तक भी कोई भाव नही थे । उसे देख ये समझ पाना मुश्किल था कि उसके मन मे क्या चल रहा था ? लविश्का ने उसे देखते हुए , बड़ी अदा से कहा - " क्या हुआ , निकल गयी जमीन पैरों के नीचे से ? " जयधर ने उसे देखा और फिर फोटोज को देखते हुए , हल्के से मुस्कुराया । उसने उन फोटोज को देखते हुए कहा - " सुकू ! कॉलेज के दिनों में काफी खूबसूरत लगती थी । और अब भी उनकी खूबसूरती बढ़ी ही है । " लविश्का उसकी बात सुन कर हैरान थी । वो फोटोज सुकन्या के कॉलेज टाइम की थी । जिसमे कोई लड़का घुटने के बल बैठा उसे गुलाब का फूल दे रहा था । तो किसी मे वो सुकन्या को गले लगाए हुए था । लविश्का को लगा था , ये सब देख कर , जयधर गुस्सा होगा । लेकिन यंहा तो वो सुकन्या की खूबसूरती की तारीफ कर रहा था । " लविश्का ने उसे देखा , और अगला पासा फेंकते हुए बोली - " हां , तभी तो उनके इतने आशिक थे । " जयधर ने उसे देखा , फिर मुस्कुरा कर उन फोटोज को एक ओर रखा , और अपने हाथों को पीछे बांधते हुए बोला - " साली सा ! उनका आशिक एक ही था , और वो ही उनका पति भी बन गया । हम से पहले उनकी जिंदगी में ना कोई था , और ना हमारे बाद कोई होगा । तो ये बचकाने खेल न खेले आप । आप पर मुसीबत आ सकती है , इन सब खेलो के चलते । " लविश्का ने उसे देखते हुए कहा - " बड़ा भरोसा है आपको उन पर । लेकिन क्या आप जानते हैं , उन फोटोज में वो लड़का कौन है ? क्या आप जानते भी है , वो लड़का आज भी जीजी को पसन्द करता है ?" जयधर को उसकी मूर्खता पर मन ही मन हंसी भी आ रही थी । और उसकी सोच पर तरस भी । आज उसे लग रहा था कि लोग सही ही कहते हैं , एक औरत ही , औरत की दुश्मन होती है । आज इस बात का जीता - जागता प्रमाण उसके सामने लविश्का के रूप में मौजूद था । जो अपनी ही बड़ी बहन की खुशियों को उजाड़ने की कोशिशों में लगी थी । जयधर ने उसे देखते हुए कहा - " अब तक हम इन फोटोज को फाड़ कर , आपके मुंह पर दे मारते । किंतु किसी जीवित व्यक्ति की तस्वीरों को फाड़ना , अपशगुन होता है । और जब बात हमारी पत्नी की हो तो , हम शगुन - अपशगुन सभी चीजें देख कर चलते हैं । और आपको जो करना था , आप कर चुकी है । आपको यंहा आने की अनुमति केवल इसीलिए मिली , क्योंकि आप सुकू की बहन है । किंतु आपकी हरकते , भविष्य में आपके यंहा आने के सारे द्वार बंद करती नज़र आ रही है । इसीलिए सम्भल जाइए । और अब आप जा सकती है । " लविश्का ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला , कि जयधर कुछ गम्भीर और तेज आवाज में बोला - " हमने कहा ! बाहर जाइए हमारे कक्ष से । " लविश्का कांप कर दो कदम पीछे हट गई । अब जयधर उसे गुस्से में घूर रहा था । लविश्का फ़ौरन वँहा से चली गयी । जयधर ने खुद को कुछ शांत किया , और फिर वापस अपने काम मे लग गया । उसे अब सुकन्या के लौटने का इंतज़ार था । इधर शक्ति रक्षत औऱ अव्यम के साथ रणथंभौर पहुंची । उसने पहले दर्शन करना ही जरूरी समझा । सांझ हो आई थी । पूरा दिन सफर में निकल गया । वो सब जल्दी ही मन्दिर प्रांगण में पहुंच चुके थे । आरती का समय था । और आरती शुरू होने को थी । मन्दिर के पुरोहित ने आरती शुरू की । दर्शन करने आए सब लोग , हाथ जोड़े बप्पा का ध्यान कर रहे थे । शक्ति ने आंखे बंद कर हाथ जोड़ मन ही मन कहा - " यंहा से आपने हमारा साथ , जन्म - जन्मांतर तक हुकुम सा के साथ लिखा था । आज हम आपसे वो ही साथ वापस मांगने आए हैं । हम नही समझ पा रहे कि हम उन्हें कंहा ढूंढे ? जितनी भी जगह उनके जाने की सम्भावनाएं थी , हम सब जगह खोज चुके हैं उन्हें । लेकिन हर बार खाली हाथ ही लौटे हैं हम । हम नही जानते , कि हुआ क्या था ? वो क्यों इस प्रकार हम से दूर चले गए । और अब तो ढूंढने पर भी वो हमें नही मिल रहे । 15 दिन बीत चुके हैं , बप्पा ! शेष पन्द्रह दिन और बचे हुए हैं हमारे पास । अब तो कोई आशा की किरण दिखाइए । हमे लोभ नही सत्ता का । हमारे दोनो देवर सक्षम है , सब कुछ सम्भालने में । किंतु यही फैसला अगर हुकुम सा की उपस्थिति में होता , तो मन को इतनी पीड़ा न पहुंचती । किंतु हमे पीड़ा इस बात से पहुंची की घर मे किसी को भी हुकुम सा के जाने से कोई फर्क ही नही पड़ा । किसी ने उन्हें ढूंढने की कोशिश नही की । हम समझ नही पा रहे कि आखिर इसकी वजह क्या है ? क्या एक माता - पिता का अपने पुत्र को भूल जाना इतना सरल होता है ? सहायता करे बप्पा , अब सब आप के भरोसे है । " उसने अपने मन की सारी दुविधा आज , बप्पा के सामने खोल कर रख दी । और आंखे खोल गणपति जी को देखते हुए बोली - " हे देव रणतभंवर ! आज आपके सामने खाली झोली ले कर आई हूं । मेरी मन की दशा आप से छुपी हुई नही है । बस आप सब सम्भाल ले अब । " आरती खत्म हुई , और फिर वो सब वँहा से निकल गए । रात में वो सब वंही रुकने वाले थे । अव्यम ने होटल बुक करवा लिया था । तीनो ने चेक इन किया । और आराम करने अपने - अपने रूम में चले गए । शक्ति के लिए अलग रूम था । जबकि रक्षत और अव्यम साथ मे एक रूम शेयर करने वाले थे । सब ने डिनर किया और फिर शक्ति ने उन दोनों को आराम करने को कहा । और फिर खुद भी अपने रूम में चली गयी । उसके दिमाग मे बहुत सी बातें चल रही थी । लेकिन क्या ? ये तो सिर्फ वो ही जानती थी । हाथ - मुँह धो कर , वो जा कर लेट गयी । लेकिन नींद आंखों से कोसो दूर थी । न जाने कितनी ही बाते उसके दिल मे थी । लेकिन वो ना किसी से कह पा रही थी । और ना ही उसके पास कोई था , जिससे वो , अपने मन की बाते कह सके । काफी देर करवटे बदलते रहने के बाद , वो आखिर में बड़ी मुश्किल से सो गई । लेकिन आने वाला समय क्या ले कर आने वाला था , ये किसी को भी ज्ञात नही था । एक तरफ हो रहे षड्यंत्रों से बेखबर वो शाश्वत को ढूंढने में लगी थी । वंही दूसरी तरफ शाश्वत ऐसे छुपा हुआ था , मानो दुनिया मे उसका अस्तित्व ही नही । लेकिन नियति ने जो लिखा था , वो तो हो कर ही रहना था । उसे तो कोई चाह कर भी टाल नही सकता था । । । । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 16. सियासी इश्क़ - Chapter 16

    Words: 1326

    Estimated Reading Time: 8 min

    Ep 16 न जाने कितनी ही बाते उसके दिल मे थी । लेकिन वो ना किसी से कह पा रही थी । और ना ही उसके पास कोई था , जिससे वो , अपने मन की बाते कह सके । काफी देर करवटे बदलते रहने के बाद , वो आखिर में बड़ी मुश्किल से सो गई । लेकिन आने वाला समय क्या ले कर आने वाला था , ये किसी को भी ज्ञात नही था । एक तरफ हो रहे षड्यंत्रों से बेखबर वो शाश्वत को ढूंढने में लगी थी । वंही दूसरी तरफ शाश्वत ऐसे छुपा हुआ था , मानो दुनिया मे उसका अस्तित्व ही नही । लेकिन नियति ने जो लिखा था , वो तो हो कर ही रहना था । उसे तो कोई चाह कर भी टाल नही सकता था । अब आगे । । । । । । । । । । । । । । । । । रात्रि के शक्ति तीसरे पहर ( 1 पहर में 3 घण्टे होते हैं । तीसरे पहर का मतलब 12 बजे से 3 बजे के बीच का समय ) अचानक ही शक्ति चौंक कर उठी , उसकी गहरी चलती श्वास और ह्रदय गति ये बता रही थी , कि उसने कोई बुरा स्वप्न देखा है । उसने गहरी सांस लेते हुए , खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करते हुए कहा - " ये क्या था ? " उसने साइड टेबल पर पड़ा , पानी का ग्लास उठाया । और थोड़ा सा पानी पी कर , वापस लेट गयी । लेकिन नींद अब आंखों से एक दम गायब हो चुकी थी । जहन में एक बार फिर कुछ पुरानी यादें ताजा हो आई । और वो उन खूबसूरत पलो में खो गयी , जंहा शाश्वत था । फ्लैशबैक । जयधर  की शादी का निमंत्रण सभी को दिया गया था । आखिर जोधाणा रियासत के राजा का विवाह जो था । और शाश्वत के पास भी निमंत्रण पहुंचा । आखिर वो राजस्थान का हुकुम सा था । शाश्वत ने जब निमंत्रण पत्रिका देखी , तो अनायास ही शक्ति का चेहरा जहन में आ गया । और वो हल्के से मुस्कुरा दिया । आखिर उसके मन ने शक्ति को पहली नज़र में ही पसन्द जो कर लिया था । और वो एक बार फिर शक्ति से मिलने जरूर जाने वाला था । इधर जोधपुर में बड़ी धूमधाम से जयधर के विवाह की सारी रस्मे हो रही थी । और शक्ति तो इतनी ज्यादा उत्साहित थी , कि पूछो ही मत । बारात तय समय पर बीकानेर के लिए रवाना हुई । चित्तौड़ पहुंचने में लगभग 5 घण्टे का समय लगना था । अब जयधर का परिवार कोई लम्बा - चौड़ा तो था नही । उसके चाचा - चाची और मां के अलावा , शक्ति और भाविक बस । तो माँ और चाची के अलावा बाकी सब बारात में शामिल हुए । बाकी की कसर उसकी प्रजा और मित्रों के साथ - साथ बिजनेस में अच्छा रिश्ता रखने वाले लोगो ने पूरी कर दी । लम्बे सफर के बाद सब बीकानेर पहुंचे । बारात स्वागत में कन्या पक्ष ततपर था । मान - मनुहार के बाद , विवाह की रस्मे शुरू हुई । द्वार पूजा होने के बाद , जयधर को विवाह वेदी पर बैठाया गया । और वर पूजा करवाई गई । अभी वर पूजा हो ही रही थी कि , किसी ने आ कर खबर दी कि हुकुम सा पधारे है । जयधर अब पूजा के बीच से नही उठ सकता था । कन्या पक्ष से सुकन्या के पिता , ने शाश्वत की मान - मनुहार कर , उसका स्वागत किया । जयधर ने शक्ति को देखा और इशारे से अपने पास बुला कर बोला - " कुंवर ( भाविक ) कंहा है ? " शक्ति ने इधर - उधर देखा , लेकिन उसे वो कंही नही दिखा । जयधर ने उसे देखते हुए कहा - " बाई सा ! हुकुम सा पधारे है । हम बीच मे पूजा छोड़ उठ नही सकते । इसीलिए आप काका सा के साथ हुकुम सा की मान - मनुहार को पहुंचे । हम जानते हैं , पुरुषों की मनुहार के लिए , पुरुष को ही जाना चाहिए । किंतु अब आपको ही जाना होगा । " शक्ति ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा - " कोई बात नही भाई सा ! आप चिंता न करे । हम सब सम्भाल लेंगे । आप निश्चिंत हो कर सारी विधियां कीजिए । " जयधर मुस्कुरा दिया । शक्ति भी वँहा से शाश्वत की तरफ बढ़ गयी । वो वँहा आई , और आ कर उसके सामने ज़िर झुका कर , हाथ जोड़ कर बोली - " खम्मा घणी हुकुम सा ! " शाश्वत ने उसे देखा , तो नज़रे मानो उस पर हटने से बगावत करने लगी । आखिर वो लग ही इतनी प्यारी रही थी । शाश्वत ने हाथ जोड़ कहा - " घणी खम्मा ! राजकुमारी ! " राजकुमारी सुनते ही , शक्ति ने एक नज़र उसे देखा । फिर वापस नज़रे झुका कर बोली - " भाई सा , अभी वर पूजा में व्यस्त हैं , और काका सा मेहमानों संग है । हमारे छोटे भाई भी पता नही कंहा चले गए ? इसीलिए भाई सा ने हमे भेजा है , आपके स्वागत हेतु । " शाश्वत हल्के से मुस्कुरा दिया , और बोला - " कोई बात नही । हम समझते हैं । " शक्ति हल्के से मुस्कुरा दी । उसे शाश्वत की वो गहरी आवाज बेहद ही मनभावन लग रही थी । शक्ति ने उसे देख मुस्कुराते हुए कहा - " आप विवाह में आए , हम सभी को प्रसन्नता हुई । " शाश्वत ने हल्के से गर्दन हिला दी । फिर बोला - " आप हमारी ओर से निश्चिंत रहे कुमारी ! और जा कर अपने भाई सा के विवाह का आनंद ले । " शक्ति ने जैसे ही सुना , उसे धन्यवाद करते हुए वँहा से चली गयी । लेकिन शाश्वत की नज़रे अब वंही पर होती , जंहा पर शक्ति होती । उसे किसी ओर से मानो कोई मतलब ही नही था । वंही शक्ति इन सब से बेखबर , अपनी सखियों संग अटखेलियां करते हुए , अपने भाई सा के विवाह का आनंद ले रही थी । धीरे - धीरे सारी विधियां पूर्ण होती गयी । फेरे , मंगलसूत्र और सिंदूर दान के बाद विवाह सम्पूर्ण हुआ । सुकन्या और जयधर ने सभी बड़ो का आशीर्वाद लिया । विदाई में अभी समय था , तो सुकन्या की सखियां उसे अंदर ले गयी । जयधर अब शाश्वत की तरफ बढ़ गया । उसने हाथ जोड़ उसे प्रणाम किया , तो शाश्वत ने भी हाथ जोड़ लिए । जयधर ने उसे देखते हुए कहा - " क्षमा कीजिएगा , हुकुम सा ! हम आपके स्वागत के लिए आ नही पाए । " शाश्वत ने बड़े आराम से कहा - " कोई बात नही । हम समझते हैं । राजकुमारी आई थी हमारे पास , उन्होंने बताया हमे । " जयधर हल्के से मुस्कुरा कर बोला - " यूं तो वो किसी काम मे हम से पीछे नही । किंतु आज लगा कि वो सच मे हमसे कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हो सकती है । " शाश्वत मुस्कुरा दिया । और बोला - " राजपूतानी शेरनियां वैसे भी किसी से पीछे नही होती । " हल्की - फुल्की बातो के बाद शाश्वत ने वापस जाने की इजाजत मांगी । और वँहा से निकल गया । विदाई के बाद वो सब भी जोधपुर लौट आए । सुकन्या का जोधपुर में बेहद धूमधाम से स्वागत किया गया । वंही शाश्वत भी जयपुर पहुंच चुका था । लेकिन अपने मन मे , एक बात पक्की कर के । कि उसे शक्ति को जल्द से जल्द अपनी जिंदगी में शामिल करना था । और इसके लिए उसे क्या करना था , ये वो अच्छे से जानता था । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 17. सियासी इश्क़ - Chapter 17

    Words: 1575

    Estimated Reading Time: 10 min

    * कहानी फ्लैशबैक में चल रही है । कन्फ्यूज्ड मत होइएगा । हल्की - फुल्की बातो के बाद शाश्वत ने वापस जाने की इजाजत मांगी । और वँहा से निकल गया । विदाई के बाद वो सब भी जोधपुर लौट आए । सुकन्या का जोधपुर में बेहद धूमधाम से स्वागत किया गया । वंही शाश्वत भी जयपुर पहुंच चुका था । लेकिन अपने मन मे , एक बात पक्की कर के । कि उसे शक्ति को जल्द से जल्द अपनी जिंदगी में शामिल करना था । और इसके लिए उसे क्या करना था , ये वो अच्छे से जानता था । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । शाश्वत वापस जयपुर आ गया था । कुछ दिन उसने अपनी कामो की व्यस्तता के चलते निकाल दिए । लेकिन जब उसे काम से थोड़ी फुर्सत मिली , तो उसने आज अपना वक़्त , अपने दादा - दादी के साथ बिताने का सोचा । वो वैसे भी अपने घर मे , अपने बहन - भाइयों के अलावा , दादा और दादी से ही खुल कर बात करता था । बाकी सब से तो बस काम की ही बाते होती थी । वो अपने दादा - दादी के कमरे में गया । तो दादी बैठी भगवद्गीता पढ़ रही थी । और दादा जी अखबार ले कर बैठे थे । शाश्वत ने मुस्कुरा कर उनके पास जा कर बैठते हुए कहा - " क्या कर रहे हैं आप दादा सा ! " दादा जी ने उसे देखते हुए कहा - " क्या बात है बरखुरदार ! आज आपको अपने दादा - दादी की याद आई । " शाश्वत ने मुस्कुरा कर कहा - " हाँ , अब जो हमे चाहिए , वो आप दोनो ही हमे दिला सकते हैं , तो हम आप के पास चले आए । " तब तक दादी ने पाठ पूरा कर लिया था । दादी ने उसे देखते हुए कहा - " ऐसा भी क्या है , जो हमारेके हुक्म सा खुद से नही हासिल कर सकते ? और उसके लिए उन्हें अपने दादा - दादी का सहारा लेना पड़ रहा है । " शाश्वत ने मुस्कुरा कर कहा - " दादी सा ! प्रेम ! प्रेम को हम हासिल नही कर सकते । उसके लिए समर्पण की भावना होनी चाहिए । जो तभी मुमकिन है , जब सामने वाले को भी आपसे प्रेम हो । " दादा जी ने ये सुनते ही झट से कहा - " ओहो ! तो हुकुम सा को प्रेम हो गया है । " शाश्वत ने उन्हें देखा और बोला - " हमे नही पता , ये प्रेम है या कुछ और हैं , किंतु हां कुछ भावनाएं तो है । " दादी ने उसे देखा और मुस्कुरा कर बोली - " और वो कौन है , जो हमारे राजकुमार के मन को भाई है । " शाश्वत ने सुना तो शक्ति का चेहरा जहन में आ गया । और उसके होठो की मुस्कान गहरी हो गयी । उसने मुस्कुरा कर कहा - " जोधपुर की राजकुमारी , राव जयधर की छोटी बहन , शक्ति राठौड़ । " दादा जी ने सुना तो , मुस्कुरा कर बोले - " और ऐसा क्या देखा , आप ने उनमें की आपने उन्हें अपनी जीवनसंगिनी चुना । " शाश्वत ने मुस्कुरा कर कहा - " आपने दादी सा को अपनी जीवनसंगिनी के तौर पर चुना तो क्या देखा था ? " दादा जी , उससे कुछ रूठते हुए कहा - " हमसे मसखरी कर रहे हो । सोच लो , अभी हम ही है जो तुम्हारी प्रेम की नैय्या को पार लगा सकते हैं । " दादी ने बीच मे ही उन्हें डपटते हुए कहा - " चुप करिए आप ! कुछ भी अनाप - शनाप मत बोलिए । हमारे पोते ने अपने पूरे जीवन मे पहली बार अपने मन की बात प्रकट की है । हम इन्हें जो चाहिए वो जरूर देंगे । " शाश्वत मुस्कुराया और दादी के दोनो हाथ पकड़ बोला - " दादी सा ! वो कोई वस्तु नही है । जिसे आप हमें ला कर दे देंगी । हम पूरे सम्मान के साथ उन्हें अपने जीवन मे ले कर आना चाहते है । आखिर वो राजस्थान की हुकुम रानी सा होंगी । वो जिनकी हुकूमत , खुद हुकुम सा पर भी हो । " दादी ने मुस्कुरा कर , उसका माथा चूमा और बोली - " जरूर ! वो आपकी जीवनसंगिनी , आपकी अर्धांगिनी बन कर , यंहा आएंगी । आप अब सब हम पर छोड़ दे । " शाश्वत मुस्कुरा दिया । वो जनता था , उसके दादा - दादी अब सब सम्भाल लेंगे । अगले ही दिन दादी ने घर मे शाश्वत की शादी का फरमान सुना दिया । जंहा बाकी सब लोग हैरान थे । वंही शाश्वत के भाई - बहन बहुत खुश थे । सिवाय चारवी को छोड़ कर । आखिर वो ऐश्वर्या जी की बेटी थी , और उस पर उसकी मति बिल्कुल अपनी माँ जैसी हो गयी थी । वंही फाल्गुनी ( शाश्वत के चाचा - चाची की बेटी और अव्यम कि छोटी बहन ) ये जान कर खुश थी । वो हमेशा से शांत रहने वालों में से थी । ना ज्यादा बोलती और ना ही घर के मामलों में दखल देती । दादी ने साथ ही ये फरमान भी सुनाया , कि उनकी नज़र में एक बहुत ही अच्छा रिश्ता है । और वो शाश्वत के साथ वँहा जा कर , रिश्ते की बात कर के आएंगे ।  हर्षवर्धन जी और ग्रीष्मा जी को ये बात कुछ खास पसन्द नही आई । आखिर शाश्वत उनका बेटा था । लेकिन उसके लिए , फैसले दादा - दादी कर रहे थे । लेकिन वो घर के बड़े थे , तो कोई कुछ कह भी नही सकता था । अगले दिन ही जयधर को संदेश पहुंचाया गया कि , हुकुम सा अपने दादा - दादी के साथ 2 दिन बाद पधारने वाले हैं । प्रयोजन क्या था ? ये तो साफ तौर पर नही बताया गया । किंतु जयधर ने उनके लिए सभी व्यवस्थाएं ठीक से कराने को कह दिया । 2 दिन बाद । शाश्वत दादा - दादी संग जोधपुर पहुंचे । महल में उनका स्वागत सुकन्या ने किया । दादी को तो वो भी बड़ी प्यारी लगी । सुकन्या ने झुक कर , दादा - दादी को प्रणाम किया । और अंदर आने को कहा । जयधर ने सभी के बैठने के बाद जलपान की व्यवस्था को कहा । सुकन्या उन कार्यो में व्यस्त हो गयी । शक्ति को इन सब बातों की कोई खबर नही थी । वो वैसे भी महल नही थी । जयधर ने उसे हमेशा से आजाद पंछी की सी जिंदगी दी थी । वो जोधपुर की गली - गली से वाखिफ थी । कभी - कभी तो वो सुकन्या को भी अपने साथ के जाया करती थी । जलपान के बाद , जयधर ने अधीरता से उन सब को देख कहा - " अ , हुकुम सा ! आज यंहा पधारने का विशेष प्रयोजन । " दादी ने शाश्वत की जगह जवाब देते हुए कहा - " राजा सा ! म्हे ठेरी बुढ़िया , अब कब जमराज आवे और मोहे ले जावे , कुछ कह थोड़ी सके हैं । तो हमणे सोचा कि , हुकुम सा का ब्याह करा दे । वैसे भी शादी - ब्याह की उम्र भी है उनकी । " दादी ने अपनी बात उसके सामने रखी । जयधर ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा - " आप सही कह रही है माजी सा ! " लेकिन अभी भी वो ठीक तरह से उनके आने का प्रयोजन समझ नही पाया था । तभी शक्ति दौड़ते हुए अंदर आई । और सुकन्या को आवाज लगाते हुए बोली - " भाभी सा ! देखिए हम आपके लिए क्या लाए ? " लेकिन उसके कदम आंगन में बैठे उन सब को देख थम गए । उसने अपने हाथ मे पकड़ा एक पैकेट वँहा खड़े सेवक को पकड़ाया । और अपनी ओढ़नी ठीक करते हुए , उन सब के सामने जा कर झुक कर हाथ जोड़ उन्हें प्रणाम किया । दादी सा की पारखी नज़रे शक्ति पर ही टिकी थी । उसका वो सुंदर सा रूप , उसकी वो मासूमियत भरी नज़रे किसी को भी मोहित होने लर विवश कर दे । दादी सा मन ही मन मुस्कुरा कर बोली - " हुकुम सा आखिर कैसे न दिल हारते इस मासूमियत पर ? " तभी जयधर ने उसका परिचय सब से करवाया । और फिर शक्ति को देख बोला - " वैसे क्या लाई है आप ? जो इतना चहक कर , अपनी भाभी सा को पुकार रही थी । " उसने सुना तो , फिर से चहक कर बोली - " रामलाल काका के हाथ के बने मिर्ची वड़े । " जयधर मुस्कुरा दिया । फिर बोला - " आप और आपके मिर्ची वड़े । पहले जा कर , हाथ - मुँह धो कर आइए । " वो जाने को हुई , तभी शाश्वत बोला - " हमे अपना महल नही दिखाएंगी राजकुमारी ? " एक बार फिर शाश्वत की वो मैग्नेटिक आवाज शक्ति के मन मे उथल - पुथल पैदा कर गयी । उसने खुद को संयमित करते हुए कहा - " हम बस कुछ क्षण में आते हैं । फिर आपको महल भी दिखा देंगे । " ये बोल वो जल्दी से अपने कमरे में भाग गई । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 18. सियासी इश्क़ - Chapter 18

    Words: 1324

    Estimated Reading Time: 8 min

    * कहानी फ्लैशबैक में चल रही है । कन्फ्यूज्ड मत होइएगा । । । । । । । । । । । । । । । जयधर मुस्कुरा दिया । फिर बोला - " आप और आपके मिर्ची वड़े । पहले जा कर , हाथ - मुँह धो कर आइए । " वो जाने को हुई , तभी शाश्वत बोला - " हमे अपना महल नही दिखाएंगी राजकुमारी ? " एक बार फिर शाश्वत की वो मैग्नेटिक आवाज शक्ति के मन मे उथल - पुथल पैदा कर गयी । उसने खुद को संयमित करते हुए कहा - " हम बस कुछ क्षण में आते हैं । फिर आपको महल भी दिखा देंगे । " ये बोल वो जल्दी से अपने कमरे में भाग गई । अब आगे । । । । । । । । । । । । । । शाश्वत उसे देख मुस्कुरा दिया । दादी ने अब जयधर को देखा और बोली - " राजा सा ! म्हारे को म्हारा छोरा , ब्याहणा है । और म्हारे को थारी बहन बड़ी प्यारी लगी । थम ने अगर कोई एतराज ना हो तो , थारी बहन का हाथ , मैं अपने पोते के लिए चाहूं हूँ । " जयधर उनकी बात सुन कर हैरान था । एक पल को उसे समझ नही आया , कि उन्होंने कहा क्या ? शक्ति की मां गीतांजलि जी इस वक़्त महल में नही थी । ऐसे में क्या वो अपनी बहन की जिंदगी का इतना बड़ा फैसला वो कैसे ले सकता था ? और इस पर उसे अभी शक्ति से भी पूछना था । शाश्वत राजस्थान का हुकुम सा था । उसमें कोई ऐब भी नही था । सब लोग उसकी प्रसंशा ही करते थे । उसने कुछ सोच कर दादी के सामने हाथ जोड़ कर कहा - " माजी सा ! हम आभारी है आपके , जो आपने हमारी बहन को हुकुम सा के लिए चुना । किंतु हम अपनी मां से और अपनी बहन की इच्छा जाने बिना हां नही कर सकते । " शाश्वत ने मुस्कुरा कर कहा - " राजा सा ! हम समझ रहे हैं । और आप बाध्य नही है , किसी भी निर्णय के लिए । आप आराम से सोच कर हमें जवाब दे दीजिएगा । बाकी राजकुमारी से हम बात कर लेंगे । " तभी शक्ति वँहा आ गयी । सुकन्या ने उसे देख कहा - " जीजी ! आप हुकुम सा को महल घुमा कर लाइए । तब तक हम खाने का प्रबंध करते हैं । " शक्ति ने हामी भरी और शाश्वत को साथ ले कर चल दी । शक्ति उसके साथ चल रही थी । शाश्वत की नज़रे उसी पर थी । शक्ति उसे महल दिखाते हुए सब दिखा और बता रही थी । सब ओर देख आने के बाद शाश्वत बोला - " आपने अपना कमरा नही दिखाया हमे । " शक्ति कुछ पल उसे देखती रही । फिर बोली - " अ , वो अ , हम दिखाते है । " ये बोल वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी । शाश्वत मुस्कुराते हुए उसके पीछे चल दिया । वो शक्ति के साथ उसके कमरे में आया । उसने चारो ओर नज़रे घुमा कर शक्ति के पूरे कमरे को देखा । वो एक राजकुमारी थी , और उसका कमरा वैसी ही खूबसूरती लिए हुए था । शाश्वत ने उसे देखा और बोला - " बहुत ही खूबसूरत है आपका कक्ष , बिल्कुल आपकी ही तरह । शक्ति ने उसे ज़िर उठा कर देखा । वो उसे देख मुस्कुरा रहा था । शक्ति ने उसकी यरफ देखते हुए कहा - " अ , बाहर चलिए । हम आपको बाहर बना बाग दिखाते है । " ये बोल वो बाहर निकल गयी । शाश्वत भी मुस्कुराते हुए उसके पीछे निकल गया । दोनो बाहर बने बाग में चले आए । वँहा पर खूबसूरत फूलो से सजा बगीचा था । जो महल की शोभा को और भी बढ़ा रहा था । दोनो साथ मे चहलकदमी कर रहे थे । शाश्वत ने उसे देखते हुए कहा - " आपको हमारे यंहा आने का प्रयोजन पता है ? " शक्ति ने उसे देखा और बोली - " हमे तो आपके आने का भी पता नही था । " शाश्वत ने उसे देखा और रुकते हुए बोला - " दादी सा का कहना है कि , हमारी विवाह की उम्र हो गयी है । और वो चाहती है कि हम विवाह कर ले । " शक्ति के कदम भी ये सुनते ही ठहर गए । उसने मुड़ कर , उसे देखा । शाश्वत चल कर उसके पास आया , और अपने हाथ पीछे बाँधते हुए बोला - " हम यंहा इसी उद्देश्य से आए हैं । " शक्ति अब भी उसकी बातों को समझ नही पाई थी । वो उसे ये सब क्यों बता रहा था ? ये बात भी उसे समझ नही आ रही थी । शाश्वत ने उसके हाथों को अपने हाथों में थामा । ये शक्ति के लिए अप्रत्याशित ( unexpected ) था । शाश्वत ने उसके हाथों को देखते हुए कहा - " हम आपसे विवाह की इच्छा ले कर आए हैं । किंतु ये पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चाहती है ? आपके भाई सा ने भी हम से समय मांगा है , ताकि वो आपसे और आपकी मां सा से उनकी और आपकी इच्छा जान सके । " शक्ति तो कांप रही थी । उसकी नज़रे तो बस अपने हाथों पर थी , जो की शाश्वत के हाथों में थे । उसकी वो एक छुअन उसके पूरे शरीर को सिहरा गयी थी । शाश्वत ने उसकी मनस्थिति को समझा और धीरे से उसके हाथों को छोड़ दिया । शक्ति गर्दन झुकाए खड़ी थी । शाश्वत ने मुस्कुरा कर कहा - " हम आप पर कोई दबाव नही डाल रहे । बस हम आपको अपने यंहा आने का उद्देश्य बता रहे हैं । इसलिये इसे किसी तरह का दबाव नही समझिए । " फिर उसने अपना बिजनेस कार्ड निकाल कर उसे देते हुए कहा - " इस पर हमारा पर्सनल नम्बर है । आपका जो भी जवाब हो , आप खुद हमे बताएंगी , तो हमे अधिक प्रसन्नता होगी । " शक्ति अभी कुछ कहती , तब तक एक सेवक उन दोनों को बुलाने आ गया था । शक्ति ने उससे वो कार्ड ले लिया और उसके साथ अंदर की तरफ बढ़ गयी । सुकन्या ने खाने की तैयारी कर ली थी । सब आ कर , खाने हेतु बैठे , तो सुकन्या और शक्ति परोसने लगी । दादी ने उन दोनों को टोकते हुए कहा - " ये आप दोनो क्या कर रही है बेटा ? " उनके इस तरह अचानक बोलने से वो दोनो उन्हें देखने लगी । दादी ने उन दोनों को देखते हुए कहा - " आप दोनो बैठे हमारे साथ । इतने सारे सेवक खड़े हैं यंहा । आप आराम से बैठ कर , हम सब के साथ भोजन ग्रहण करे । " उन दोनों ने जयधर को देखा । जयधर ने पलके झपकाई , तो वो दोनो भी साथ मे बैठ गयी । जयधर ने महसूस किया था कि शाश्वत काफी शांत स्वभाव का है । वो उससे काफी कम बार ही मिला था । लेकिन जितनी बार भी मिला था , शाश्वत के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुआ था । उसकी इस रिश्ते को ले कर मनसा साफ थी । वो जानता था कि शाश्वत के जैसा जीवनसाथी पाना उसकी बहन का सौभाग्य होगा । वंही शाश्वत का मानना था कि , शक्ति को अपनी जिंदगी में , अपनी अर्धांगिनी बना कर लाना , उसका सौभाग्य होगा । बातो - बातो के बीच ही सब ने खाना खाया । और उसके बाद शाश्वत जयधर से विदा ले कर , अपने दादा - दादी के साथ निकल गया । लेकिन छोड़ गया , शक्ति के मन मे , के सवाल और अधीरता । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 19. सियासी इश्क़ - Chapter 19

    Words: 1466

    Estimated Reading Time: 9 min

    * किसी ने पूछा था कि वैम्पायर के सेकेंड सीजन को कंटीन्यू करूँ । पर ऐसा नही हो सकता । नॉवेल उस कंटेंट को बिल्कुल हाइप नही दे रहा । रीडर्स भी इंटरेस्ट नही ले रहे । इसलिए वो कहानी यंहा बन्द कर दी है मैने । अगर आप उसे पढ़ना चाहते हैं , तो प्रतिलिपि पर " मैजिकल लव " के नाम से वो स्टोरी मिल जाएगी आपको । । । । । । । । । । । । । जयधर ने महसूस किया था कि शाश्वत काफी शांत स्वभाव का है । वो उससे काफी कम बार ही मिला था । लेकिन जितनी बार भी मिला था , शाश्वत के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुआ था । उसकी इस रिश्ते को ले कर मनसा साफ थी । वो जानता था कि शाश्वत के जैसा जीवनसाथी पाना उसकी बहन का सौभाग्य होगा । वंही शाश्वत का मानना था कि , शक्ति को अपनी जिंदगी में , अपनी अर्धांगिनी बना कर लाना , उसका सौभाग्य होगा । बातो - बातो के बीच ही सब ने खाना खाया । और उसके बाद शाश्वत जयधर से विदा ले कर , अपने दादा - दादी के साथ निकल गया । लेकिन छोड़ गया , शक्ति के मन मे , कई सवाल और अधीरता । फ्लेशबैक एंड । । । । । । । । । । । । । । । शक्ति अभी भी होटल रूम में बैठी , अपने ख्यालो में खोई हुई थी । उन खूबसूरत यादों में जंहा शाश्वत था । तभी उसे बाहर से कुछ गिरने की आवाज आई । शक्ति मानो अपनी चेतनाक में वापस आई । उसने वक़्त देखा , रात के ढाई बजे थे । उसने फ़ौरन अपने सिरहाने पड़ी कटार उठा ली । वो इतना तो जानती थी कि , अगर दुश्मन महल से ही है , तो हमला सिर्फ उस पर होगा । क्योंकि रक्षत और अव्यम तो उस घर मे रहने वाले लोगो का अपना खून है । इस स्तिथि में अगर कोई पराया था , तो वो सिर्फ शक्ति थी । और केवल वही थी , जो शाश्वत के लिए अधीर थी । जो उसे वापस लाना चाहती थी । शक्ति सचेत हो गयी । उसने अपनी कटार म्यान से निकाली और म्यान को वंही छोड़ दिया । और खुद को होने वाले हमले के लिए खुद को तैयार कर लिया । वो उठी और अपनी जगह , बेड पर तकिए लगा कर , उन्हें अच्छे से कवर कर दिया । कोई अंधेरे में देखता तो यही लगता कि वँहा कोई सोया हुआ है । और खुद वो कमरे में छुप गयी । और जैसा उसने सोचा था । अचानक ही उसके रूम का दरवाजा खुला । वो भी इस तरह की , किसी को पता ही न चले कि कोई कमरे में आया है । बिल्कुल भी आवाज नही हुई थी । लेकिन हल्के कदमो की आहट से वो अंदाजा लगा पा रही थी कि वो दो लोग हैं । उसने अंधेरे में उन्हें देखने की कोशिश की । वो लोग शायद बेड की तरफ बढ़ रहे थे । और अचानक ही उनमें से एक ने अपने हाथ मे पकडे खंजर को जोर से बेड पर चलाया । इससे साफ जाहिर था । उनकी मनसा बेड पर सो रही शक्ति को मारने की ही थी । शक्ति ने कस के अपनी मुट्ठियां बांधी और फुर्ती से , उनमें से एक को पीछे से पकड़ , उसका गला काट दिया । वो आदमी वंही एक चीख के साथ गिर पड़ा । उसकी चीख सुन कर , दूसरा आदमी फ़ौरन पलटा । और इसी के साथ सामने से शक्ति ने उसकी गर्दन पर कटार रख दी । उस आदमी को सम्भलने का मौका ही नही मिला । तभी रूम की लाइट्स ऑन हो गयी । रक्षत और अव्यम हैरान - परेशान से अंदर आए । उस पहले आदमी की चीख सुन कर , वो दोनो जागे थे । और जल्दी से शक्ति को सम्भालने आए । लेकिन शक्ति को किसी की गर्दन पर कतार रखे खड़े देख हैरान रह गए । वो दोनो जल्दी से आगे बढ़े , और जा कर उस आदमी को पकड़ा ।  शक्ति ने उस आदमी को घूरते हुए कहा - " कौन हो तुम ? और यंहा कैसे पहुंचे ? " लेकिन वो आदमी बस शक्ति को घूर कर देख रहा था । उसने एक शब्द भी उसके प्रश्न के उत्तर में नही कहा । अव्यम ने उस आदमी का हाथ मोड़ते हुए कहा - " कुछ पूछा तुमसे उन्होंने । जवाब दो । " उस आदमी ने दर्द में बिलखते हुए जवाब दिया - " हम दोनो को बस कहा गया था कि , जो इस कमरे में है , उन्हें मारना है । इससे ज्यादा हमे कुछ नही पता । हमे बस रुपये दिए गए इस काम के लिए । शक्ति बस उस आदमी को ही देख रही थी । उसने रक्षत और अव्यम को देख कहा - " छोड़ दो उसे । उसे सच मे नही पता । " रक्षत और अव्यम उसे देखने लगे । शक्ति ने उन दोनों को इशारा किया । तो वो दोनो उस आदमी को छोड़ , दो कदम पीछे हो गए । उस आदमी ने शक्ति को देखा । और एक नज़र रक्षत और अव्यम को देखा । और अगले ही पल , उसने झुक कर , अपने पास पड़ा , खंजर उठा लिया । और शक्ति पर एक वार किया । लेकिन शक्ति इसके लिए पहले ही तैयार थी । उसने पहले ही पलटवार कर दिया । और उस आदमी के उसी हाथ को जख्मी कर दिया । जिसमें उसने वो खंजर पकड़ रखा था । और उसका वार इतना तेज था , कि उस आदमी का हाथ जख्मी हो गयी । और उस के हाथ से वो खंजर भी छूट गया । शक्ति ने उसे घूरते हुए कहा - " हम शक्ति राठौड़ है । शाश्वत प्रताप सिंह की पत्नी है । किसी के भावों को आंखों से पढ़ना अच्छे से जानते हैं । हमने तुम्हे एक अवसर दिया था । लेकिन तुमने हम से छल किया । इसका दंड अब तुम्हे जरूर मिलेगा । " उसने रक्षत और अव्यम को देख कहा - " ये हमारे साथ जयपुर जाएगा । वँहा इसकी सजा हुकुम रानी के तौर पर , हम तय करेंगे । " रक्षत ने उस आदमी को उठाया , और उसे ले कर बाहर निकल गया । वंही अव्यम ने उस मरे हुए दूसरे आदमी को ठिकाने लगाया । अब वँहा रुकना उनका सुरक्षित नही था । अव्यम ने उसे देख कहा - " भाभी सा ! अब हमें यंहा नही ठहरना चाहिए । आप पर हुए हमले से ये तो सिद्ध हो गया कि , हमारे शत्रु हमारी पल - पल की खबर रख रहे हैं । " शक्ति ने उसे देखा , और कुछ सोचते हुए मन ही मन बोली - " आप और छोटे कुंवर जी सच मे घर मे चल रहे प्रपंचो से पूरी तरह से अनजान हैं । हम कभी नही चाहेंगे , कि उन सब का असर आप दोनो पर तनिक भी हो । " शक्ति ने हामी भर दी । रात के 3 बज रहे थे । लेकिन शक्ति का मन अब बिल्कुल शांत नही था । सब कुछ दिन पर दिन उसे और उलझता हुआ सा दिख रहा था । वो उसी समय उन दोनों के साथ वापस जयपुर के लिए निकल गयी । अगले दिन । जोधपुर । सुकन्या आईने के सामने खड़ी ,तैयार हो रही थी । जयधर बेड पर अपने कोहनी के सहारे अपने सिर को टिकाए उसे देख रहा था । वो उसे देखते हुए बोला - " रानी सा ! आप कॉलेज के दिनों में हम से क्यों नही मिली ? " सुकन्या ने उसे देखा , और बोली - " इसका क्या तात्पर्य ? " जयधर उठ कर बैठते हुए बोला - " तात्पर्य ये रानी सा की कॉलेज के दिनों में आप कुछ ज्यादा ही सुंदर थी । " सुकन्या ने उसे देखते हुए कहा - " तो क्या हम अब सुंदर नही है । " जयधर उठ कर उसके पास आया , और उसे कमर से थाम कर , अपने करीब करते हुए कहा - " अब तो आप , और भी खूबसूरत हो गयी है । इतनी की हमारी नज़रे आप पर से हटती ही नही । " सुकन्या ने उसके माथे और गले को छूते हुए कहा - " आप ठीक तो है ना । आज हमारी इतनी प्रसंशा किस खुशी में कई जा रही है ? " जयधर बस एक टक उसे देखने लगा । उसने सुकन्या के प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया । जबकि सुकन्या अपने प्रश्न के उत्तर के लिए , अब भी उसे देख रही थी । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 20. सियासी इश्क़ - Chapter 20

    Words: 1414

    Estimated Reading Time: 9 min

    जयधर उठ कर उसके पास आया , और उसे कमर से थाम कर , अपने करीब करते हुए कहा - " अब तो आप , और भी खूबसूरत हो गयी है । इतनी की हमारी नज़रे आप पर से हटती ही नही । " सुकन्या ने उसके माथे और गले को छूते हुए कहा - " आप ठीक तो है ना । आज हमारी इतनी प्रसंशा किस खुशी में कई जा रही है ? " जयधर बस एक टक उसे देखने लगा । उसने सुकन्या के प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया । जबकि सुकन्या अपने प्रश्न के उत्तर के लिए , अब भी उसे देख रही थी । । । । । । । । । । । । । । । जयधर ने उसे देखते हुए कहा - " कुछ नही , बस ऐसे ही । कल आपकी कॉलेज के समय की कुछ तस्वीरें मिली हमे । तो मन मे ख्याल आया कि , आप हमें उस समय मिलती तो , और अच्छा होता । " सुकन्या उसकी बात समझ नही पाई । उसकी कॉलेज की कौनसी तस्वीरे उसे मिली थी । वो सवालिया नज़रो से उसे देख रही थी । जयधर ने उसके माथे को चूमते हुए कहा - " अपनी बहन को वापस भेज दीजिए । वो मेहमान है हमारी । हम ऐसा कुछ नही करना चाहते जो , एक राजा के मान के खिलाफ हो , किंतु आपकी बहन ये नही समझ रही है । वो हमारे बीच गलतफहमी पैदा करना चाहती है । " सुकन्या हल्के से मुस्कुरा कर बोली - " तो आज आपके नेत्र खुले , राजा साहब ! हम तो कब से उसे ये सब करते देख रहे हैं । " जयधर ने उसे खुद के और करीब किया , और बोला - " लेकिन अब बस , और नही । सुकू ! हम पर सिर्फ आपका अधिकार है । आप ये सब देख कर भी कैसे शांत रह सकती है । हमे समझ नही आ रहा । " सुकन्या मुस्कुरा कर बोली - " आज से पहले आपको इतना अधीर नही देखा । ऐसा भी क्या किया इस बार लविश्का ने , कि आप इतने अधीर हो उठे हैं । " तभी किसी ने उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया । जयधर ने सुकन्या को छोड़ा , तो सुकन्या ने जा कर दरवाजा खोला । सामने भाविक था ।  सुकन्या ने उसे देख कहा - " देवर जी आप यंहा ? " भाविक ने उसे देखा , राजसी श्रृंगार में सजी - धजी वो बेहद ही प्यारी लग रही थी । भाविक ने अपनी नज़रे झुका ली , और बोला - " वो भाई सा से कुछ बात करनी थी । " सुकन्या एक ओर हुई , तो भाविक अंदर आया । जयधर ने उसे देखा , तो बोला - " क्या बात है छोटे ! आप यंहा ? वो भी इतनी सुबह - सुबह । " भाविक ने उसे देखा और बोला - " भाई सा ! हमे आपको और भाभी सा को कुछ बताना था । " जयधर के माथे पर कुछ बल पड़े । आज से पहले वो ऐसे कभी भी बात करने तो नही आया था । जयधर ने उसे बैठने को कहा । भाविक उसके पास काउच पर बैठते हुए बोला - " भाई सा ! आपको वो प्ले याद है जो , हमारी कॉलेज में हुआ था । जिसमे हमने और भाभी सा ने साथ मे नाटक किया था । " जयधर ने उसकी बातें सुनी तो अंदाजा लगाते , उसे देर न लगी , कि वो क्या बताने आया है । भाविक ने उसे देखा और बोलना शुरू किया - " भाभी सा की बहन ! वो लविश्का आपको और भाभी सा को अलग करना चाहती है । उसके पास उस प्ले की फोटोज है । जिसमे हम और भाभी सा साथ है । उन्हें देख कोई भी यही समझेगा की हम प्रेमी है । किंतु ऐसा नही है भाई सा ! वो हमारे पास आई थी । वो चाहती थी , कि हम इस काम मे उसका साथ दे । लेकिन जब उसे हम से कोई उम्मीद नही मिली , तो उसने कहा कि वो खुद ही ये काम कर लेंगी । " वो चुप हुआ , और सुकन्या को देखा । जो एक टक उसे देख रही थी । वो उठा और , उसके सामने जा कर खड़ा हो कर बोला - " भाभी सा ! हम आपको कॉलेज के समय से पसन्द करते थे । किंतु वो केवल एक पसन्द थी । प्रेम करने में और पसन्द करने में फ़र्क़ होता है । और वो भेद हम समझते हैं । हमने कभी आप पर गलत दृष्टि नही डाली । और भाई सा से आपके विवाह के बाद तो हम ने केवल आपको अपनी भाभी सा ही माना है । " सुकन्या ने मुस्कुरा कर कहा - " शुक्र है भगवान का , जो आप गलत मगर्ग पर नही गए । और लविश्का क इरादों से हम अनजान नही है । इसीलिए आप उसकी चिंता न करे । उन्हें हम सम्भाल लेंगे । " भाविक ने जयधर को देखा , तो जयधर ने उसे आश्वासन दिलाते हुए कहा - " आप चिंता न करे । हम सब सम्भाल लेंगे । " भाविक ने हामी भरी और चला गया । जयधर ने सुकन्या को देखा , उसके होठो पर एक चंचल मुस्कान थी । जयधर ने सवालिया नज़रो से उसे देखते हुए कहा - " आपके इस खुराफाती दिमाग मे अब क्या चल रहा है ? " सुकन्या की वो शरारती मुस्कान और गहरी हो गयी । और वो उसे देख बोली - " आप बस देखते जाइए । अब हमारी बहन के प्रति हमारे भी तो कुछ कर्तव्य है । जिनका हमे पालन करना है । बस आप तो हमारा साथ दे दीजिएगा । " जयधर हल्के से मुस्कुराया , वो अब इतना तो समझ चुका था , कि उसकी शरारती पत्नी के दिमाग मे कुछ तो चल रहा था । वो इन 10 महीनों के साथ मे उसे बड़े अच्छे से समझने लगा था । सुकन्या आराम से मुस्कुराते हुए बाहर निकल गयी । इधर शक्ति , इतने लंबे सफर से महल पहुंची । महल में हमेशा की तरह शांति थी । सिर्फ इरिषा हॉल में बैठी , अपने काम मे लगी हुई थी । शक्ति ने उसे देखा और बोली - " जीजी ! आप हमारा एक काम करेंगी ? " इरिषा ने अब शक्ति पर ध्यान दिया । वो उठते हुए बोली - " भाभी सा ! आप तो कल आने वाले थे ना ? " शक्ति ने उसे देखते हुए कहा - " हम आपको सारी बात बाद में बताएंगे । अभी के लिए , आप केवल सब को कह दे , कि सब सभा के लिए एकत्रित हो । हमे बहुत आवश्यक निर्णय लेना है । " इरिषा ने हामी भरी तो , शक्ति जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी ।  थोड़ी ही देर में सब लोग मौजूद थे । शक्ति ने हाथ जोड़ सब को प्रणाम किया । और बारी - बारी सब को देखा । मानो आंखों से ही सब के मन के भीतर झांकना चाहती हो । शक्ति ने सब को देख कहा - " हमने ये सभा किसी को दंड देने के लिए बुलवाई है । " इतना सुनते ही एक पल को चारवी कांप गयी । और शक्ति को जो पता करना था , वो उसे पता लग चुका था । शक्ति ने सब को देख कहा - " हम पर हमला हुआ । वो भी तब जब हम निद्रा में थे । शायद हमलावर भी जानता था , कि चेतन अवस्था मे वो हमसे लड़ नही पाएगा । " सब उसकी बात सुन कर हैरान थे । ग्रीष्मा जी के चेहरे पर कुछ भाव उतरे , जिन्हें उन्होंने बड़ी सफाई से छुपा लिया । हर्षवर्धन जी ने उसकी बात सुन कहा - " लेकिन सभा बुलाने का अधिकार केवल हुकुम सा को हैं । " शक्ति ने उन्हें घूर कर देखा , और गुस्से से बोली - " मनुष्य की आंखों पर जब लोभ और शाशन की पट्टी बन्ध जाती है । तो उसकी बुद्धि भी क्षीण हो जाती है । कदाचित आपके साथ भी वही हो रहा है , बाबा सा । " शक्ति के इतना कहते ही , सब हैरानी से शक्ति को देखने लगे थे । वंही शक्ति की आंखों में आक्रोश साफ दिख रहा था । । । । । । । । । । । । । । । जारी है । । । । । । । । । । । । । । ✍️ Riya Sirswa