कहानी है दो ऐसे लोगो की जो एक दूसरे से बिलकुल अलग है आकर्ष — 29 साल का प्ले बॉय, जिसके लिए हर रिश्ता एक खेल है। लड़कियों को पाना उसकी फितरत है, लेकिन उन्हें निभाना नहीं। वो कभी किसी के लिए नहीं रुका, मगर वाणी उसकी ज़िंदगी की पहली ऐसी चाहत बन गई है जि... कहानी है दो ऐसे लोगो की जो एक दूसरे से बिलकुल अलग है आकर्ष — 29 साल का प्ले बॉय, जिसके लिए हर रिश्ता एक खेल है। लड़कियों को पाना उसकी फितरत है, लेकिन उन्हें निभाना नहीं। वो कभी किसी के लिए नहीं रुका, मगर वाणी उसकी ज़िंदगी की पहली ऐसी चाहत बन गई है जिसे वो किसी भी कीमत पर बस एक बार पाना चाहता है। वाणी — 19 साल की चुलबुली, जिद्दी, और दिल से मासूम लड़की। पर अपने आत्मसम्मान के लिए वो किसी से नहीं डरती। उसके लिए मोहब्बत भरोसे से बनती है, और वो जानती है कि जो दिल जीतना नहीं जानता, वो सिर्फ पाने की हसरत रखता है। क्या आकर्ष की ये चाहत वाणी को उसका बना पाएगी? या फिर वाणी की खुद्दारी उसे हर हार से ऊपर ले जाएगी? जब जुनून, दिल और इज्ज़त की जंग छिड़ेगी — कहानी अधूरी नहीं रहेगी, पर हर जवाब आसान भी नहीं होगा
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मुंबई शहर की रात। होटल ताज के एक लग्ज़री सुइट का दरवाज़ा बंद था। कमरा पूरे श्वेत थीम में सजा हुआ था, जहाँ हर चीज़ अपनी जगह पर परफेक्ट लग रही थी। मंद, कोमल प्रकाश पूरे माहौल को और भी कामुक बना रहा था। दीवार पर लटकी पेंटिंग्स और शीशों में हल्की रोशनी की परछाईं हर कोने को एक खामोश, परन्तु बेहद रोमांटिक एहसास से भर रही थी।
कमरे में एक संदिग्ध सी खामोशी थी, जिसे बीच-बीच में गहरी साँसों की आवाज़ और धीरे-धीरे बढ़ते होंठों के स्पर्श से तोड़ा जा रहा था।
उसकी उम्र लगभग उनतीस वर्ष थी—गहरे स्लेटी आँखें, हल्की दाढ़ी, और चेहरे पर एक तीखी जबड़े की रेखा, जिसे देखकर हर कोई बस ठहर जाता। उसका रूप इतना मनमोहक था कि उसकी उपस्थिति ही कमरे को गर्म कर रही थी। वह अपनी मज़बूत बाहों में एक युवती को थामे हुए था, दीवार से सटाकर, गोद में उठाए हुए, जैसे वह उसे कभी गिरने नहीं देगा।
उसके होंठ युवती के होंठों पर गहरे जुनून से लगे हुए थे। हर चुम्बन की गूँज जैसे पूरे कमरे की दीवारों से टकरा रही थी। वह उसकी कमर पर अपने हाथों की पकड़ और भी मज़बूत करता गया। युवती की उंगलियाँ उसके बालों में उलझी हुई थीं, कभी उसकी गर्दन पर खिंचतीं, कभी अपने अंदर ही कोई अनकहा क्षण महसूस करतीं।
उसके हर श्वास, हर स्पर्श में एक ऐसा जुनून था जिसे शब्दों में बाँधना मुश्किल था। दोनों के बीच धड़कनों का संग्राम हर सेकंड के साथ तेज होता जा रहा था। यह वह क्षण था, जहाँ समय जैसे ठहर गया हो—बस पलकों के बीच एक कहानी जो होंठों की भाषा में लिखी जा रही थी।
कमरे में अब सन्नाटा नहीं था। उसकी तेज होती साँसें और धड़कनों की आवाज़ दीवारों से टकरा रही थीं। उसने युवती को कसकर पकड़ रखा था, जैसे उसे खोने का डर हो। उसकी पकड़ जितनी मज़बूत थी, उतनी ही कोमल भी—जैसे वह उसे संभाल भी रहा था और अपने पास रोक भी रहा था।
उसने उसे उठाकर बिस्तर पर फेंका। हल्की सी चीख के साथ युवती के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसने अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए, युवती की आँखों में गहराई से देखा। उसकी उंगलियाँ अब हर बटन के साथ उसकी आँखों में अपनी इच्छा का इज़हार कर रही थीं। वह फिर से उसके ऊपर झुक गया।
उसके होंठों ने युवती के होठों को ऐसे थामा, जैसे प्यासा पानी की एक-एक बूँद को महसूस करता है। धीरे-धीरे उसने उसके होठों को अपने दाँतों से हल्का सा खींचा; दर्द से युवती का सिसकना और फिर मुस्कुराना, एक पल को जैसे उसने अपनी साँसें रोक दीं।
अब वह उसकी गर्दन की ओर बढ़ा, जहाँ हल्की सी पसीने की बूँदों ने उसके होंठों का इंतज़ार किया था। शर्ट के कपड़े ने उसकी राह में रुकावट डाली; उसने बिना किसी हिचकिचाहट के शर्ट को खींचकर फाड़ दिया। कपड़े का टुकड़ा दूर जाकर गिरा, और उसके होंठ अब उसकी गर्दन पर जैसे अपनी सीमाएँ पार करने लगे।
उसकी हर साँस उसके सीने तक उतर रही थी। युवती का शरीर अब उसकी स्पर्श में सिहर रहा था। उसके हाथ धीरे-धीरे युवती के शरीर पर फिसलते हुए, हर अंग को अपनी पकड़ में ले रहे थे। वह अब उसके क्लीवेज पर पहुँचा, जहाँ उसने अपने होंठों से ऐसा आगाज़ किया, कि युवती की धड़कनों ने जैसे एक क्षण के लिए चलना ही छोड़ दिया।
उस आदमी के हाथ उसके शरीर पर चल रहे थे, उसे बारीकी से परख रहे थे। उसकी गर्दन पर चुम्बन करते हुए वह उसके क्लीवेज तक पहुँचा और वहाँ भी चुम्बन करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसने उसके ऊपरी शरीर के बचे हुए कपड़े भी उतार दिए और उसके सीने तक पहुँच गया। उसने अपने होंठ उसके सीने पर रखकर चुम्बन करना शुरू कर दिया।
साथ ही साथ वह अपने हाथों का दबाव भी बढ़ा रहा था, और उसे चूम रहा था। इससे युवती की आँखें और तेज हो गईं। युवती के हाथ अब उस आदमी के बालों में थे। कुछ देर यूँ ही करने के बाद वह आदमी धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा, साथ ही साथ काट भी रहा था। इससे युवती चीख उठी। युवती उसे रोकते हुए बोली, "कृपया धीमे करो। तुम बहुत ज़्यादा उग्र हो, मैं सहन नहीं कर पा रही हूँ।"
वह आदमी युवती की बात सुनकर वहीं रुक गया और अपना सिर ऊपर करके अपनी गहरे स्लेटी आँखों से घूरते हुए बोला, "तुम आकर्ष शेरगिल के बिस्तर पर हो, इस बिस्तर पर आने के लिए लाखों लड़कियाँ तरसती हैं। अगर तुम मेरी उग्रता सहन नहीं कर सकती, तुम यहाँ से जा सकती हो, क्योंकि मैं अपनी शर्तों पर जीता हूँ और मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि कोई मुझे रोके-टोके।"
"और आकर्ष शेरगिल के पास तुम जैसी लड़कियाँ बहुत आती हैं, बहुत जाती हैं।"
इतना बोलकर वह वहाँ से उठ गया, लेकिन युवती तुरंत उसके पास जाकर बोली, "तुम नाराज़ हो गए? मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी। वैसे भी, इतनी अच्छी उपलब्धि को कोई कैसे छोड़ सकता है?" इतना बोलते हुए उसके हाथ आकर्ष के सीने पर बहुत ही कोमल तरीके से चल रहे थे। "आज की रात तुम जैसे चाहो, वैसे रह सकते हो। मैं वादा करती हूँ, मैं कुछ नहीं बोलूँगी।"
युवती ने इतना ही कहा था कि आकर्ष ने उसके बालों को अपनी मुट्ठियों में कसते हुए कहा, "हाँ, तू कुछ नहीं बोलेगी। मुझे पता है, क्योंकि तू बोलेगी नहीं। तू आज की रात पूरी तरह से मौन रहेगी।" इतना बोलकर उसने फिर से उसे बिस्तर पर धक्का दिया और उसके बचे हुए कपड़े उतारकर नीचे जमीन पर फेंक दिए, और अपने कपड़े भी नीचे जमीन पर फेंक दिए।
और उसके करीब आते हुए उसकी कमर को अच्छे से पकड़ लिया, जिससे युवती की आँखों में डर आ गया, पर उसने कुछ नहीं कहा क्योंकि उसे पता था कि इस वक्त वह जिसके बिस्तर पर है, वह आकर्ष शेरगिल है, एक बहुत बड़ा व्यापारी, जिसके पास लड़कियाँ आने के लिए तरसती हैं।
आकर्ष ने उसकी कमर को पकड़कर अपने करीब खींचते हुए उसकी कमर से नीचे अपने होंठ रख दिए और वहाँ चुम्बन करने लगा, जिससे युवती की आँखें बंद हो गईं और मुट्ठियाँ बिस्तर की चादर पर कस गईं, और वह अपनी आँखें भरने लगी। आह...
उसकी आह सुनकर आकर्ष और ज़्यादा उग्र हो गया और वह उसे चूमने और चाटने लगा। युवती अब कराहने लगी। उसकी कराहें पूरे कमरे में गूँज रही थीं, कहीं आकर्ष समय के साथ और उग्र होता जा रहा था।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद उसने अपना सिर ऊपर उठाकर युवती की ओर देखा, जो इस वक्त पूरी तरह से पसीने से तर-बतर थी। फिर वह उसके ऊपर जाकर उसकी आँखों में देखते हुए उसके अंदर समा गया और अपने कमर को हिलाने लगा।
आकर्ष का हिलना इतना ज़्यादा उग्र था कि युवती सहन नहीं कर पा रही थी। वह बार-बार संभलने की कोशिश कर रही थी, पर नहीं कर पा रही थी। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे, वहीं आकर्ष को इन सब चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
वह लगातार अपनी गति जारी रखता है। इस वक्त कमरे में बस युवती की कराहें और आकर्ष की आहें सुनाई दे रही थीं। वह लगातार अपने कमर को हिला रहा था, अपनी गति जारी रखता है।
लगभग तीन घंटे बाद युवती, अपनी आँखें बंद किए हुए बोली, "बस अब नहीं, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा। कृपया कुछ देर बात करते हैं।"
आकर्ष उसकी बात सुनकर बोला, "तुम्हें लगता है तुम आदेश करोगी और मैं मान जाऊँगा? बिलकुल नहीं। अभी तो मेरा पूरा नहीं हुआ है।" इतना बोलकर वह फिर से अपनी गति जारी रखता है और लगभग एक घंटे बाद उसे छोड़ता है। इस वक्त युवती इतनी ज़्यादा थक गई थी कि वह तुरंत सो गई, उसे कुछ पता ही नहीं चला। वह जाकर बिस्तर से उठा और सीधे बाथरूम की ओर बढ़ गया।
आकर्ष उसकी बात सुनकर बोला, "तुम्हें लगता है तुम ऑर्डर करो और मैं मान जाऊँगा? बिल्कुल नहीं! अभी तो मेरा पूरा नहीं हुआ है।" इतना बोलकर वह फिर से अपनी मूवमेंट जारी रखा और करीब एक घंटे बाद उसे आज़ाद किया। इस वक़्त लड़की इतनी थक गई थी कि वह तुरंत सो गई; उसे कुछ पता ही नहीं चला। वहीँ जाकर वह बेड पर से उठा और सीधे बाथरूम की ओर बढ़ गया।
थोड़ी देर में वह बाथरोब पहनकर बाथरूम से बाहर आया।
वह अपने गीले बालों को झटकते हुए, मुस्कुराते हुए, हल्की सी फुसफुसाहट में बोला,
"थक गई? मेरी दुनिया में थकने की इजाजत नहीं होती, बेबी। यहाँ हर पल का मज़ा लिया जाता है… पूरी कीमत वसूल कर।"
ड्रेसिंग टेबल से अपना खाली चेक निकालते हुए उसने साइन किया—आकर्ष शेरगिल के नाम वाला हस्ताक्षर, जो पैसों से ज़्यादा रुतबे की पहचान था। फिर, एक झटके में चेक को हवा में लहराते हुए बिस्तर पर फेंक दिया और कहा:
"अपनी कीमत खुद लगा लेना… और अगली बार जब इस बेड तक पहुँचने का ख्वाब देखो, अपनी हिम्मत भी साथ लाना।"
फिर उसने अपने कपड़े पहने और अपनी जैकेट उठाते हुए पीछे देखे बिना कमरे के दरवाज़े तक पहुँचा। दरवाज़ा खोलते वक़्त वह एक आखिरी बार रुका, एक गहरी साँस ली, और अपने लापरवाह अंदाज़ में बोला,
"और हाँ… प्यार मत समझ लेना, क्योंकि मैं इश्क़ नहीं करता… सिर्फ़ खेलता हूँ।"
इस वक़्त सुबह के 6:00 बज रहे थे।
आकर्ष अपनी कार में बैठकर चल दिया। वह रोड पर अपनी कार बहुत ही तेज़ी से ले जा रहा था, आँखों में ब्लैक शेड्स पहने हुए, चेहरे पर एटीट्यूड, और होठों के कोने में सिगरेट दबाए हुए, लंबे-लंबे कश ले रहा था।
सुबह के 6 बजे का वक़्त था। हल्की-हल्की ठंडी हवा में अँधेरा छंटने लगा था, और मुंबई की सड़कें अब भी ज्यादातर खाली थीं। आकर्ष शेरगिल, अपने ख़ास एटीट्यूड और अलहदा स्टाइल में, चमचमाती काली स्पोर्ट्स कार के अंदर बैठा था। वह गाड़ी चलाने के मूड में नहीं था—बल्कि सड़क पर अपनी गाड़ी को उड़ाने का इरादा था। उसके चेहरे पर एक जानलेवा मुस्कान थी, आँखों पर काले शेड्स, और होठों के कोने में सिगरेट। उसके मज़बूत हाथों की पकड़ स्टीयरिंग पर कसती जा रही थी। स्पीडोमीटर की सुई धीरे-धीरे ऊपर चढ़ रही थी—120… 140… 160।
सड़क पर गड्ढा और पहली मुलाक़ात।
वहीं दूसरी तरफ़, वाणी कपूर अपने छोटे से बैग को ठीक से संभालती हुई सड़क के किनारे चल रही थी। वह पहली बार मुंबई आई थी, अपनी दोस्त नेहा के घर रहने के लिए। वह नई जगह की ठंडक और अपने अंदर के उत्साह को महसूस कर रही थी, लेकिन नींद और थकान उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। वाणी का मन कर रहा था कि किसी कैफ़े में बैठकर एक गरम कप कॉफ़ी पी ले।
सड़क पर अचानक 'स्स्स'… पानी का जोरदार छींटा पड़ा।
"ओह माई गॉड!" वाणी ने अपनी सफ़ेद टीशर्ट और ब्लू जीन्स पर फैले कीचड़ को देखा। उसके चेहरे पर गुस्से की लहर दौड़ गई।
सामने से आकर्ष की कार, जो उस गड्ढे से गुज़री थी, रफ़्तार में धड़धड़ाते हुए आगे बढ़ चुकी थी।
"अबे ओ नालायक! गाड़ी चलाना आती नहीं तो घर पे बैठ!"
वाणी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने चिल्लाते हुए अपने हाथ हवा में उठाए।
आकर्ष के कानों में वाणी की आवाज़ पड़ी। एक हल्की-सी मुस्कान उसके होठों पर आई, लेकिन उसने अपनी कार नहीं रोकी।
लेकिन तभी फिर से वाणी की आवाज़ उसके दिमाग में गूंजने लगी—
"सुनाई नहीं देता क्या! तुम जैसे लोग मुंबई की सड़कों पर भौंकते रहते हो… अरे गाड़ी संभालना आती नहीं, तो क्या घोड़े पे सवारी करते हो?"
आकर्ष के चेहरे पर अब भी वह लापरवाही भरी मुस्कान थी, लेकिन उसने अपनी कार के ब्रेक अचानक से दबाए।
गाड़ी चीखती हुई आवाज़ के साथ रुक गई।
वाणी ठिठकी, और उसकी भौंहें तनीं।
"अब तो ये पक्का पंगा लेने वाला है…" उसने खुद से बुदबुदाया।
आकर्ष कार का दरवाज़ा खोलते हुए बाहर निकला। उसकी लंबी, चौड़ी कद-काठी और उस ने ब्लैक फिटेड टीशर्ट और रिप्ड जीन्स—उसकी आँखों में खतरनाक ठहराव था, जैसे शेर ने शिकार देख लिया हो।
वाणी ने उसे देखा तो उसकी आँखें कुछ पल के लिए चौड़ी हो गईं।
"तुम्हारा प्रॉब्लम क्या है?" वाणी ने गुस्से में भरे लहजे में कहा।
आकर्ष ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। उसकी आँखों में हल्की-सी शरारत चमकी।
"तुम्हारा प्रॉब्लम ये है कि तुम सड़क पे खड़ी होकर बारिश का मज़ा लेना चाहती हो… और मुझे ड्राइविंग का। दोनों में फ़र्क यही है कि… मैं जीत गया।"
उसकी आवाज़ में वो खुद का घमंड था जो किसी की भी रूह तक को हिला दे।
"ओह! तो यही स्टाइल है तुम्हारा?" वाणी ने अपनी भीगी हुई टीशर्ट को नफ़रत से देखा। "शहर की सड़कों पर बदतमीज़ी करना और फिर स्टाइल दिखाना?"
"तुम्हारी डिक्शनरी में इसे बदतमीज़ी कहते हैं। मेरी में इसे कहते हैं… रूलिंग द वर्ल्ड।"
वाणी ने अपनी आँखें घुमाईं।
"और तुम्हारी दुनिया में क्या लोग सड़क पर गड्ढों का इलाज करना भूल जाते हैं?"
आकर्ष हँसा—एक गहरी, मोहक हँसी।
"गड्ढों का इलाज? बेबी, यहाँ गड्ढों से नहीं… लोग मेरी रफ़्तार से डरते हैं।"
"तुम्हारी रफ़्तार? और क्या? तुम क्या समझते हो, कि तुम्हारे बाप की सड़क है?"
अब वाणी पूरी तरह से भिड़ने के मूड में थी।
आकर्ष ने एक कदम और करीब आते हुए कहा,
"और अगर सड़क मेरी हो? तब तुम क्या करोगी?"
वाणी ने अपनी जगह से हटते हुए अपनी टीशर्ट से कीचड़ पोछा।
"तब? तब तुम्हारी सड़क के हर गड्ढे पर तुम्हारे नाम की पट्टी लगाऊँगी—लिखकर, ‘यहाँ एक मतलबी इंसान रहता है।' समझे?"
आकर्ष ने एक पल को उसकी आँखों में झाँका। फिर उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।
"Interesting… तुम वाकई हिम्मत वाली हो। लेकिन… हिम्मत से कोई रेस नहीं जीतता, sweetheart। जीतता वही है, जो रफ़्तार से खेलता है।"
वाणी ने अपनी बाहें मोड़ीं।
"तो अपने इस गेम में खुद खेलते रहो। मुझे कोई शौक नहीं है ऐसी रेस का। अब हटोगे या मुझे ही तुम्हारी कार हिलानी पड़ेगी?"
"Try it," आकर्ष ने धीरे से कहा।
वाणी ने उसकी कार की तरफ़ एक नज़र डाली और उसके गुस्से से भरे चेहरे पर एक हल्का सा तंज कसा।
"अच्छा… तो तुम्हारी कार तुमसे ज़्यादा बात करती है या तुम खुद कायर हो?"
आकर्ष ने उसकी इस बात पर एक गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए कहा,
"तुमसे मिलकर मज़ा आया, Ms. Attitude। लेकिन मेरी दुनिया में दोबारा कदम रखने से पहले अपनी कीमत सोच लेना।"
वाणी ने पीछे हटते हुए कहा,
"और तुम्हारी दुनिया में कदम रखने की कोई हसरत नहीं है।"
आकर्ष ने एक पल के लिए उसकी आँखों में झाँका। फिर उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।
"Interesting… तुम वाकई हिम्मत वाली हो। लेकिन… हिम्मत से कोई रेस नहीं जीतता, sweetheart। जीतता वही है, जो रफ़्तार से खेलता है।"
वाणी ने अपनी बाहें मोड़ीं।
"तो अपने इस गेम में खुद खेलते रहो। मुझे कोई शौक नहीं है ऐसी रेस का। अब हटोगे या मुझे ही तुम्हारी कार हिलानी पड़ेगी?"
"Try it," आकर्ष ने धीरे से कहा।
वाणी ने उसकी कार की तरफ एक नज़र डाली और उसके गुस्से से भरे चेहरे पर एक हल्का सा तंज कसा।
"अच्छा… तो तुम्हारी कार तुमसे ज़्यादा बात करती है या तुम खुद कायर हो?"
आकर्ष ने उसकी इस बात पर एक गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए कहा,
"तुमसे मिलकर मज़ा आया, Ms. Attitude। लेकिन मेरी दुनिया में दोबारा कदम रखने से पहले अपनी कीमत सोच लेना।"
वाणी ने पीछे हटते हुए कहा,
"और तुम्हारी दुनिया में कदम रखने की कोई हसरत नहीं है।"
वाणी ने अपने गुस्से को शांत करने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष के चेहरे पर उसकी शरारती मुस्कान और लापरवाह रवैया उसे और चिढ़ा रहा था।
"तुम हटोगे नहीं, है ना?" वाणी ने तीखे लहजे में कहा, अपने हाथ कमर पर रखकर।
आकर्ष ने अपनी कार की तरफ देखते हुए मुस्कुराया। "हटने का सवाल ही नहीं उठता, बेबी। और वैसे भी, ये सड़क मेरी रफ़्तार के हिसाब से चलती है, तुम्हारे गुस्से के हिसाब से नहीं।"
वाणी की आँखों में गुस्से की आग थी। "तुम्हारी ये फालतू की बातें किसी और को सुनाना। अगर हटे नहीं, तो मैं सच में तुम्हारी कार को धक्का मारकर रास्ता साफ़ कर दूँगी!"
आकर्ष एक कदम आगे बढ़ा और उसके पास आते हुए कहा, "तुम सच में बहुत हिम्मती हो। लेकिन मेरी गाड़ी को छूने की हिम्मत करना, तुम्हारे लिए थोड़ा महँगा पड़ सकता है।"
वाणी ने एक पल के लिए उसे घूरा, फिर उसकी इस धमकी को नज़रअंदाज़ करते हुए बोली, "महँगा? चलो देखते हैं!"
इतना कहकर वाणी ने उसकी कार की तरफ़ कदम बढ़ाए। आकर्ष वहीं खड़ा, उसे जाते हुए देख रहा था। जैसे ही वाणी ने कार की तरफ़ हाथ बढ़ाया, आकर्ष अचानक अपनी गाड़ी में बैठा, और गड्ढे की तरफ़ गाड़ी मोड़ दी।
'छपाक!'
एक बार फिर से कीचड़ वाणी की तरफ़ उड़ा और उसकी टीशर्ट और जीन्स पर फैल गया।
"तुम…!!!" वाणी ने गुस्से में तमतमाते हुए एक बड़ा सा पत्थर उठाया और उसे सीधे आकर्ष की चमचमाती काली स्पोर्ट्स कार पर दे मारा। पत्थर ने कार का शीशा चकनाचूर कर दिया।
आकर्ष ने अपनी गाड़ी को रोकते हुए धीरे-धीरे बाहर कदम रखा। उसके चेहरे पर अब भी वही मोहक मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक खतरनाक ठहराव आ गया था।
"तुमने मेरी कार का शीशा तोड़ दिया?" उसने गहरी आवाज़ में पूछा।
वाणी ने अपनी जगह से हिलते हुए कहा, "हाँ, और अगली बार पूरी गाड़ी तोड़ दूँगी। अब और कीचड़ उड़ाया तो देख लेना!"
आकर्ष ने अपनी गर्दन एक तरफ़ झुका कर, गहरी साँस लेते हुए कहा, "तुम्हें लगता है, तुम इस लड़ाई में जीत सकती हो?"
वाणी ने तंज कसते हुए जवाब दिया, "तुम्हारी दुनिया में तुम्हारे लोग हार मानते होंगे। पर मैं… मैं तुम्हारी नहीं, अपनी दुनिया में चलती हूँ।"
इस बार आकर्ष ने वाणी की ओर कदम बढ़ाए। उसकी चाल धीमी और डरावनी थी। वाणी पीछे हटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन आकर्ष ने उसे एक झटके में पकड़ लिया।
"अब बस बहुत हो गया, Ms. Attitude," उसने धीरे से कहा।
वाणी उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी। "छोड़ो मुझे! वरना…"
"वरना क्या?" आकर्ष ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। वाणी के पूरे शरीर में एक झटका सा महसूस हुआ। उसने उसे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष ने उसकी कमर पर अपनी पकड़ और मज़बूत कर ली।
आकर्ष वाणी को सड़क पर लगातार किस करता रहा। वह खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, पर आकर्ष के होंठ उसके होंठों को लगातार किस कर रहे थे, चूम रहे थे। वह अपने किस को और ज़्यादा गहरा करने लगा। वाणी बार-बार हिल रही थी और उसे मार रही थी। जिस वजह से आकर्ष ने उसके दोनों हाथों को पकड़कर कमर से लगा दिया और उसे अपनी गाड़ी से लगाकर अब उसे और अच्छे से किस कर रहा था। वह उसके होठों को लगातार चूम रहा था, अपने होठों में भरकर। ऐसा लग रहा था जैसे वह उसके होठों को चबा जाएगा। वाणी खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर वह कहाँ छुड़ा पा रही थी, उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। वह अपने पैरों से आकर्ष को मारने की कोशिश करती है पर आकर्ष ने उसके पैरों को अपने पैरों से अच्छे से जकड़ लिया, और उसे फिर से किस करने लगा। वह उसके होठों को अपने दांतों से दबाकर खींचता है।
यह वाइल्ड किस इतनी इंटेंस थी कि वाणी कुछ पल के लिए पूरी तरह से हिल गई। उसकी साँसें तेज हो गईं। लेकिन उसने फिर से खुद को संभाला और अपनी पूरी ताकत से आकर्ष को धक्का दिया।
वाणी ने अपने होठों पर हाथ रख लिए।
"तुम पागल हो गए हो क्या?" वाणी चिल्लाई। उसकी आँखों में गुस्सा और शर्म दोनों थे।
आकर्ष ने अपने होंठों को पोंछते हुए कहा, "पागल नहीं, बस तुम्हें तुम्हारी जगह दिखा रहा था। अब इस लड़ाई में क्या कहना है, Ms. Attitude?"
"मैं तुम्हारी इस गिरी हुई हरकत का जवाब ज़रूर दूँगी," वाणी ने गुस्से में कहा।
आकर्ष हँसते हुए अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ा। "मैं तुम्हारा जवाब सुनने का इंतज़ार करूँगा। अगली बार, कुछ और मज़ेदार लेकर आना।"
इतना कहकर वह अपनी गाड़ी में बैठा और तेज रफ़्तार से वहाँ से निकल गया, वाणी को वहीं गुस्से में छोड़कर। वाणी अभी भी गुस्से में उसे देख रही थी।
आकर्ष हँसते हुए अपनी गाड़ी की ओर बढ़ा। "मैं तुम्हारा जवाब सुनने का इंतज़ार करूँगा। अगली बार, कुछ और मज़ेदार लेकर आना।"
इतना कहकर वह अपनी गाड़ी में बैठा और तेज़ रफ़्तार से वहाँ से निकल गया, वाणी को वहीं गुस्से में छोड़कर।
दूसरी ओर, नेहा का घर
वाणी, इस नए शहर में थकी हुई और गुस्से से भरी हुई, नेहा के घर पहुँची। उसने घंटी बजाई तो नेहा ने दरवाज़ा खोला। वाणी की हालत देखकर नेहा की आँखें चौड़ी हो गईं।
"अरे, ये क्या हालत बना रखी है? क्या किसी गटर से निकलकर आई है?" नेहा ने चौंकते हुए कहा।
वाणी ने गहरी साँस ली, अपने कपड़ों से बहते कीचड़ को हटाने की कोशिश करते हुए बोली,
"तुम चाहती हो कि इसी हालत में बताऊँ या पहले नहा लूँ?"
नेहा ने थोड़ी उलझन में उसे अंदर आने का इशारा किया,
"पहले अंदर आ जाओ, और हाँ, नहाने का सुझाव बुरा नहीं है। लेकिन, प्लीज़, मुझे ये ड्रामा ज़रूर बताना। लगता है बड़ी दिलचस्प कहानी होगी!"
वाणी अंदर आकर कुर्सी पर बैठ गई। उसने अपने गंदे कपड़ों और झुंझलाए चेहरे को अनदेखा करते हुए नेहा की ओर देखा।
"नहाने से पहले थोड़ा चाय-पानी मिलेगा? वैसे भी गला सूख गया है मेरा, ऊपर से मैं किसी कैफ़े के पास जाकर रुककर चाय भी नहीं पी सकती थी; लोग मुझे हॉरर मूवी का थर्ड क्लास एक्टर समझ बैठते।"
नेहा हँसते हुए किचन में चाय बनाने चली गई।
"तुम्हारी हालत देखकर तो मुझे लग रहा है, तुमने हॉरर फिल्म नहीं, किसी रोड रेस में हिस्सा लिया है। वैसे, ये सब हुआ कैसे? इस शहर में पहली बार आई हो, और ऐसा स्वागत?"
वाणी ने गुस्से से कहा,
"स्वागत? हाँ, बिल्कुल। उस बेशर्म लड़के ने मेरे साथ जो किया, वो स्वागत नहीं, सीधा हमला था। उसकी स्पोर्ट्स कार, उसका लापरवाह रवैया, और फिर मेरे ऊपर कीचड़ उड़ाना—ये सब कोई मज़ाक था?"
नेहा ने चाय लाते हुए पूछा,
"लड़का? कौन लड़का? और उसने कीचड़ क्यों उड़ाया?"
वाणी ने चाय का घूँट लेते हुए जवाब दिया,
"कोई अमीरज़ादा था। रास्ते में अपनी कार लेकर आया और ऐसी हरकत की। मैंने उसे जवाब दिया, तो उसने दोबारा वही किया। लेकिन मैंने भी उसकी कार का शीशा चकनाचूर कर दिया। अब सोच रही हूँ, उसने पुलिस को बुला लिया तो?"
नेहा ने एक पल रुककर कहा,
"वाह! पहली बार इस शहर में कदम रखा और पहले ही दिन एक लड़ाई कर ली? वैसे, डरने की ज़रूरत नहीं है। अगर वो लड़का बड़ा अमीर है, तो ज़्यादा परेशान नहीं करेगा। वैसे, उसका नाम तो पूछा होगा?"
वाणी ने सिर हिलाया,
"नाम? उसका नाम जानने का वक़्त कहाँ मिला? और वैसे भी, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता। अब अगर फिर मिला, तो उसे सबक़ सिखाकर ही रहूँगी, इस बार तो उसका कर ही फोड़ दूँगी।"
नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा,
"तुम सच में कुछ अलग ही हो। लेकिन एक बात बोलूँ? शायद ये लड़का तुम्हारे शहर में नए रोमांच की शुरुआत कर रहा है।"
वाणी ने गुस्से से नेहा को घूरा,
"ये रोमांच नहीं, सिरदर्द है। और अगर उसने मुझसे फिर पंगा लिया, तो अगली बार उसकी गाड़ी के साथ-साथ उसकी अकड़ भी तोड़ दूँगी!"
नेहा ने हँसते हुए कहा,
"ठीक है, पहले नहा लो। फिर सोचते हैं कि उस लड़के से कैसे निपटना है।"
नेहा ने वाणी को कमरा दिखाया और वाणी ने तौलिया उठाकर नहाने चली गई, लेकिन उसके दिमाग में अब भी आकर्ष और उसकी हरकतें घूम रही थीं।
दूसरी ओर, आकर्ष का घर
आकर्ष अपने शानदार बंगले के मुख्य दरवाज़े से अंदर आया। वह थका हुआ और हल्का सा गंदे कपड़ों में था, लेकिन चेहरे पर वही शरारती मुस्कान थी। पूरी रात बाहर रहने और वाणी से टकराने के बाद, वह सीधा अपने कमरे की ओर बढ़ा।
उसका बंगला बहुत बड़ा और खूबसूरत था। ऊपर की मंज़िल पर उसका कमरा था, और नीचे डाइनिंग एरिया में उसका पूरा परिवार नाश्ते के लिए उसका इंतज़ार कर रहा था।
डाइनिंग टेबल पर उसकी माँ, सुमेधा शेयरगिल, अपनी जगह बैठी थीं। उनके पास उसके दादा, रणवीर शेयरगिल, और दादी, सावित्री शेयरगिल, अपनी चाय की चुस्कियाँ लेते हुए हल्की बातें कर रहे थे। वहीं, उसके पिता, आकाशदीप शेयरगिल, गुस्से में अखबार के पीछे छिपे बैठे थे। सबकी निगाहें बार-बार घड़ी पर टिक रहीं थीं।
रणवीर शेयरगिल ने हल्की हँसी के साथ कहा,
"यह लड़का तो हमेशा समय से लेट रहता है। अब इसे समझाए कौन?"
सावित्री ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
"अरे, बच्चों को समझाने से ज़्यादा प्यार से हैंडल करना चाहिए। वे वैसे ही बहुत ज़िम्मेदार बन जाएँगे।"
आकाशदीप ने अखबार को टेबल पर रखते हुए कहा,
"ज़िम्मेदार? इस लड़के और ज़िम्मेदारी का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है! हमारी उम्र में मैं अपनी शादी कर चुका था, दो बच्चों का बाप बन चुका था और पूरे कारोबार को संभाल रहा था। और ये? न दिन का ठिकाना, न रात का।"
सुमेधा ने आकाशदीप को शांत करने की कोशिश की,
"आप क्यों हर बात पर गुस्सा करते हैं? अभी बच्चा है। सीख जाएगा।"
तभी सीढ़ियों से आवाज़ आई। आकर्ष फ़्रेश होकर एकदम निखरा हुआ नीचे आ रहा था। उसने सफ़ेद टी-शर्ट और हल्की फ़ॉर्मल पैंट पहनी हुई थी। बालों को ठीक करते हुए उसने पूरे स्टाइल में एंट्री मारी और सीधा डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ा।
आकाशदीप ने गुस्से में कहा,
"देखो, साहब अब आये हैं! इतनी देर कौन नहाता है?"
आकर्ष ने अपनी कुर्सी खींचते हुए अपने पिता को चिढ़ाते हुए कहा,
"डैड, प्लीज़। इतनी सफ़ाई में समय तो लगता है। और वैसे भी, मेरी पर्सनालिटी बिना परफ़ेक्शन के पूरी थोड़ी लगेगी।"
सबकी हँसी छूट गई, लेकिन आकाशदीप का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"यह कोई मज़ाक की बात नहीं है। हमारी उम्र में तुम्हारे जैसे लड़कों पर घर और परिवार की ज़िम्मेदारी होती थी। और तुम हो कि पूरी रात ग़ायब रहते हो और सुबह आकर ये फ़ालतू की बातें करते हो।"
आकर्ष ने टोस्ट का एक टुकड़ा उठाते हुए बड़े मज़ाकिया लहजे में कहा,
"डैड, आपकी उम्र में घोड़े पर चढ़कर लोग शादी करते थे। अब मेरी उम्र में लोग फ़र्स्ट क्लास फ़्लाइट में वर्ल्ड टूर करते हैं। ज़माना बदल गया है, डैड। थोड़ा रिलैक्स करो।"
रणवीर और सावित्री उसकी बात सुनकर हँस पड़े। रणवीर ने कहा,
"बिल्कुल सही कहा। ज़माना बदल गया है। आकाशदीप, तुम भी थोड़ा वक़्त के साथ चलना सीख लो।"
आकाशदीप ने चिढ़ते हुए जवाब दिया,
"ये सब बातें सुनने के लिए नहीं हूँ मैं! इस लड़के को सुधारने की ज़रूरत है। पूरी रात ग़ायब रहता है और सुबह आकर मुझे भाषण देता है।"
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा,
"डैड, मैं ग़ायब नहीं था। मैं 'देश का फ़्यूचर' डिस्कस करने निकला था। वैसे भी, घर में थोड़ा एंटरटेनमेंट होना चाहिए, वरना यहाँ तो सिर्फ़ आपके लेक्चर और दादी की चाय ही एन्जॉय करनी पड़ती है।"
सुमेधा ने अपनी हँसी रोकते हुए कहा,
"आकर्ष, अब बस भी करो। डैड को और गुस्सा मत दिलाओ।"
आकर्ष ने टोस्ट का दूसरा टुकड़ा उठाते हुए कहा,
"मॉम, डैड को गुस्सा दिलाने में अलग ही मज़ा है। ये गुस्से में जितने अच्छे लगते हैं, उतने किसी और मूड में नहीं।"
सब फिर से हँस पड़े, लेकिन आकाशदीप ने अखबार जोर से बंद कर दिया और कहा,
"तुम सब इसे सिर पर चढ़ा रहे हो। मैं देखता हूँ, ये लड़का कब सीरियस होगा।"
आकर्ष ने उठते हुए शरारत से कहा,
"डैड, जब भी मैं सीरियस होऊँगा, आपको सबसे पहले बता दूँगा। तब तक थोड़ा एन्जॉय करिए।"
ये कहकर वह मुस्कुराते हुए बाहर चला गया। रणवीर और सावित्री अभी भी उसकी बातों पर हँस रहे थे, और सुमेधा हल्के से मुस्कुराकर सबके लिए नाश्ते की व्यवस्था कर रही थीं।
नेहा का घर
वाणी नहा-धोकर तरोताज़ा हो चुकी थी, किन्तु उसके चेहरे पर गुस्से और झुंझलाहट के भाव अभी भी स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। नेहा चाय के साथ कुछ नाश्ते की चीज़ें लेकर आई।
"अब बताओ, पूरा मामला क्या है? वह लड़का कौन था, और तुम्हारा उससे ऐसा क्या झगड़ा हुआ?"
वाणी ने चाय का घूँट लेते हुए कहा,
"नेहा, वह लड़का...मतलब, उसकी अकड़ की तो कोई हद ही नहीं! ऊपर से अमीरज़ादा लग रहा था, मानो पूरी दुनिया उसकी जेब में है। और जो उसने मेरे साथ किया, उसके लिए मैं उसे कभी माफ़ नहीं कर सकती।"
नेहा ने हँसते हुए कहा,
"हाँ, लेकिन तुम्हारी कहानी सुनकर तो यही लगता है कि उसका सामना करने के लिए तुम्हें हिम्मत करनी पड़ेगी। वैसे, अगर वह लड़का फिर से सामने आ गया तो क्या करोगी?"
वाणी ने एक नज़र नेहा पर डालते हुए कहा,
"फिर से? अगर वह मुझे दोबारा मिला, तो इस बार उसकी गाड़ी के शीशे ही नहीं, उसके घमण्ड के भी टुकड़े-टुकड़े कर दूँगी!"
नेहा ने सिर हिलाया,
"यार, तुमने कभी सोचा कि शायद यह लड़का तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई नया मोड़ लेकर आया हो?"
वाणी ने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"मोड़ नहीं, सिरदर्द लेकर आया है। और अगर यह मोड़ बड़ा हुआ, तो मेरे पास भी जवाब देने के तरीके कम नहीं हैं।"
आकर्ष का ऑफिस
दूसरी ओर, आकर्ष अपने कार्यालय में बैठा था। वह एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी का मालिक था, किन्तु उसके दिमाग में अभी भी वाणी के साथ हुई मुलाक़ात घूम रही थी।
आकर्ष ने अपनी कुर्सी पर पीछे झुकते हुए मुस्कुराया और खुद से कहा,
"वह लड़की... ग़ज़ब थी! गुस्सा तो जैसे उसकी शख़्सियत का ही हिस्सा है। लेकिन उसने जो किया, वह किसी आम इंसान की हिम्मत नहीं होती।"
तभी उसके सहायक, आदी, ने कमरे में प्रवेश किया।
"सर, आज की मीटिंग का समय-सारिणी तैयार है। और हाँ, हमारी नई सहायक आज कार्यभार ग्रहण कर रही हैं।"
आकर्ष ने बिना आदी की ओर देखे कहा,
"अच्छा? क्या नाम है उसका?"
आदी ने अपनी फ़ाइल देखते हुए कहा,
"वाणी मेहरा।"
आदी ने फिर उसे कहा, "सर, हमें उसे डील के लिए भी ले जाना है।"
आकर्ष, आदी की बात सुनकर, अपने केबिन से बाहर गया और सीधे पार्किंग एरिया में जाकर अपनी कार में बैठ गया। वह मुम्बई शहर से दूर एक सुनसान इलाक़े में गया जहाँ एक खंडहर था। वह अपनी कार से उतरकर उस खंडहर के अंदर चला गया।
खंडहर के अंदर का माहौल एक अजीब-सा सन्नाटा लिए हुए था। बीचों-बीच एक आलीशान साज-सज्जा थी—मखमली सोफ़ा, महँगी मेज़, और हल्की रोशनी, जो इस वीरान जगह को किसी शाही बैठक-कक्ष का एहसास दिला रही थी।
आकर्ष अपनी कुर्सी पर आराम से बैठा था, हाथ में गिलास और होंठों पर एक हल्की मुस्कान। सामने दो आदमी बैठे थे—रघुवीर और करण, शहर के जाने-माने व्यापारी, लेकिन इस वक़्त उनकी हालत किसी कमज़ोर शिकारी जैसी थी, जो खुद ही अपने जाल में फँस चुका हो।
उन दोनों के ठीक पीछे अलीशा खड़ी थी—खूबसूरत, आत्मविश्वासी, और बेहद शांत। बाकी दोनों पुरुषों की तरह उसके चेहरे पर डर या घबराहट नहीं थी, बल्कि एक हल्की सी मुस्कान थी, मानो उसे पहले से ही पता हो कि यहाँ क्या होने वाला है।
आकर्ष ने गिलास को हल्के से घुमाया और गहरी आवाज़ में बोला,
"तो, सुना है तुम दोनों को यह डील मंज़ूर नहीं?"
रघुवीर ने हिम्मत जुटाकर कहा,
"देखो आकर्ष, हमें किसी झगड़े में नहीं पड़ना, हम साफ़-सुथरा व्यापार करते हैं। यह डील हमारे बस की नहीं।"
आकर्ष ने हल्की हँसी के साथ गिलास मेज़ पर रखा, कुर्सी से उठा और धीरे-धीरे चलते हुए उनके करीब आया।
"साफ़-सुथरा व्यापार?" उसने सिर झुकाकर करण की आँखों में देखा, "तो तू कहना चाहता है कि मैं गन्दा काम करता हूँ?"
करण ने जल्दी से सिर हिलाया, "न...नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था।"
आकर्ष ने एक गहरी साँस ली, फिर अपनी जैकेट से बंदूक निकाली और ठक! मेज़ पर रख दी।
कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया।
"अब दो विकल्प हैं तुम्हारे पास—या तो हस्ताक्षर करो, या... आखिरी बार अपने ईश्वर को याद कर लो।"
रघुवीर के माथे से पसीना टपकने लगा। "देखो, हम ऐसा कुछ नहीं चाहते...कृपया..."
"कृपया?" आकर्ष ने बंदूक उठाई और सीधे रघुवीर के सिर पर तान दी।
"बोल, डील पर हस्ताक्षर करेगा या नहीं?"
रघुवीर का गला सूख गया। उसने एक नज़र करण पर डाली, जो खुद डर से स्तब्ध बैठा था।
लेकिन इससे पहले कि कोई कुछ कहता—
ठांय!
गोली सीधे रघुवीर के सिर के आर-पार निकल गई। उसकी कुर्सी पीछे गिर पड़ी, खून मेज़ से बहता हुआ नीचे फ़र्श पर फैल गया।
करण की साँस अटक गई। उसकी आँखों में भय उतर आया।
लेकिन अलीशा?
वह... मुस्कुरा रही थी।
उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी, मानो यह सब देखकर उसे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा। मानो उसे पहले से ही पता था कि यह होने वाला है।
आकर्ष ने करण की ओर बंदूक घुमाते हुए कहा,
"अब, तुझे भी कुछ कहना है?"
करण थर-थर काँपते हुए बोला, "स..साइन करूँगा! मैं साइन करूँगा!"
आकर्ष मुस्कुराया, बंदूक वापस अपनी जगह रखी और मेज़ से एक फ़ाइल उठाकर उसके सामने फेंक दी।
करण ने काँपते हुए फ़ाइल खोली और जैसे ही उसने अंदर देखा, उसकी आँखें फटी रह गईं—फ़ाइल पर पहले से ही उसके और रघुवीर के हस्ताक्षर थे!
आकर्ष ने हल्का हँसते हुए कहा,
"तू क्या समझेगा, यह डील तो बहुत पहले ही मेरी हो चुकी थी।"
करण का चेहरा पीला पड़ चुका था।
अलीशा ने हल्की हँसी के साथ कहा,
"मुझे तो पहले ही पता था कि आखिर में यही होना है, पर आप दोनों को समझने में बहुत देर लग गई।"
आकर्ष ने अपने हाथ झाड़े, अपनी घड़ी देखी और बंदूक को मेज़ पर घुमाते हुए बोला,
"अब लाश हटाने का इंतज़ाम कर, और हाँ...अगली बार अगर किसी डील को लेकर शक हो तो याद रखना—मैं डील नहीं, किस्मत लिखता हूँ!"
अलीशा की मुस्कान और गहरी हो गई। वह डरने वालों में से नहीं थी, बल्कि उसे इस खेल का हिस्सा बनने में मज़ा आ रहा था।
खंडहर के अंदर अब सिर्फ़ मौत की गूँज ही थी।
रघुवीर की लाश, खून से लथपथ, ज़मीन पर पड़ी थी। उसके ठीक सामने, करण काँपते हाथों से उसे उठाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसका गुस्सा अब डर से ज़्यादा था। उसकी लाल आँखें सीधा अलीशा पर टिकी थीं, जैसे वह उसे फाड़ खाने वाला हो।
"तू... तू गद्दार निकली! मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा, समझी!"
अलीशा ने बस हल्की सी मुस्कान दी; उसकी आँखों में एक भी शिकन नहीं थी। जैसे यह सब बस एक खेल था, और वह इसे पूरे मजे से देख रही थी।
लेकिन तभी...
ठांय!
एक और गोली चली। सीधे करण के सिर में। उसका शरीर झटका खाकर पीछे गिर गया, और वह वहीं तड़पते हुए दम तोड़ गया। अब ज़मीन पर दो लाशें थीं।
आकर्ष ने अपने गन का धुआँ फूँकते हुए कहा,
"मुझे ज़्यादा बोलने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं!"
कमरे में अब सिर्फ़ सन्नाटा था। मौत की गंध हवा में फैल चुकी थी, लेकिन इस सब के बीच अलीशा की मुस्कान ज्यों की त्यों बनी हुई थी।
आकर्ष ने एक गहरी नज़र अलीशा पर डाली। उसके होंठों पर वही पुरानी रहस्यमयी मुस्कान थी—जैसे वह यह सब देखकर डरने के बजाय आनंद ले रही हो।
आकर्ष धीरे-धीरे चलते हुए अलीशा की कमर पकड़ी, उसे अपनी गोद में उठाया, और बिना कोई और बात किए सीधा उसके होंठों पर झुक गया।
अलीशा को जैसे इसी पल का इंतज़ार था। उसने एक भी विरोध नहीं किया, बल्कि उसकी बाँहें खुद-ब-खुद आकर्ष की गर्दन के चारों ओर कस गईं।
आकर्ष ने उसे सोफे पर गिराया, खुद उसके ऊपर झुक गया और उसकी आँखों में देखा।
"तू डरती नहीं?" उसने हल्के से कहा।
अलीशा ने अपनी उंगलियाँ उसके बालों में फेरते हुए मुस्कुराकर कहा,
"डर? मुझे ताकतवर आदमी हमेशा से पसंद थे, और तुमने आज साबित कर दिया कि तुम सिर्फ़ ताकतवर नहीं... खतरनाक भी हो।"
आकर्ष की आँखों में हल्की चमक आई। उसने बिना कोई और बात किए फिर से अलीशा को किस किया।
खंडहर की दीवारें खून की महक से सराबोर थीं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ सोफे पर अब, आग का माहौल था। आकर्ष का मज़बूत हाथ अलीशा की कमर को जकड़े हुए था; उसकी आँखों में वही खतरनाक चमक थी जो किसी शिकारी की होती है। अलीशा उसकी बाहों में सिमटी हुई थी, लेकिन उसकी आँखों में डर के बजाय एक अजीब सी भूख थी—एक ऐसी भूख जो सिर्फ़ ताकतवर और खतरनाक मर्दों के लिए होती है।
आकर्ष ने उसकी ठोड़ी को ऊपर उठाया और धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया। किस इतना गहरा था कि अलीशा की साँसें लड़खड़ा गईं, लेकिन उसने भी खुद को पीछे नहीं किया, बल्कि उसकी शर्ट की कॉलर पकड़कर उसे और करीब खींच लिया।
आकर्ष हल्का सा हँसा, "इतनी बेसब्र?"
अलीशा ने उसकी आँखों में देखते हुए उसकी बेल्ट पर अपनी उंगलियाँ फेरते हुए कहा,
"तुम जैसे आदमी के साथ एक रात बिताने के लिए... मैं क्या, कोई भी औरत किसी को भी धोखा दे सकती है। और मैंने तो बस दो लोगों की कुर्बानी दी है।"
उसकी बात सुनकर आकर्ष की आँखों में और ज़्यादा खून की प्यास उभर आई। उसने एक झटके में उसे सोफे पर गिराया और खुद उसके ऊपर झुक गया।
"तो अब और इंतज़ार क्यों?" उसकी आवाज़ में वही पागलपन था जो एक शिकारी के शिकार पर टूटने से पहले होता है।
अलीशा ने हल्की मुस्कान दी, "क्योंकि मुझे पसंद है जब शिकारी भी थोड़ा खेल खेले।"
आकर्ष को यह चैलेंज पसंद आया। उसने धीरे-धीरे उसकी ड्रेस की ज़िप नीचे खींची, और उसकी खुली गर्दन पर अपने होंठ रख दिए। अलीशा की साँसें तेज़ हो गईं, लेकिन उसने भी उसकी शर्ट के बटन एक-एक कर खोलने शुरू कर दिए।
कमरे में अब सिर्फ़ हल्की-हल्की सिसकियाँ और जलते बदनों की गर्मी थी।
आकर्ष ने अपनी उंगलियाँ उसकी कमर पर फिराई, जिससे उसके बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई।
अलीशा ने अपने नाखून उसकी पीठ में धँसा दिए और हल्की आवाज़ में बोली,
"आज की रात, या दिन क्योंकि रात तो हुई नहीं और रात का मैं इंतजार भी नहीं कर सकती इसलिए आज के दिन मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ..."
आकर्ष ने उसे एक झटके में अपने नीचे दबाया और उसके होंठों को फिर से अपने होंठों में कैद कर लिया।
“आज की रात, या दिन, क्योंकि रात तो हुई नहीं और रात का मैं इंतज़ार भी नहीं कर सकती, इसलिए आज के दिन मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ...”
आकर्ष ने उसे झटके से अपने नीचे दबाया और उसके होंठों को फिर से अपने होंठों में कैद कर लिया।
दोनों एक-दूसरे को जोरदार किस कर रहे थे। उनके किस की आवाज़ पूरे खंडहर में गुँज रही थी। दोनों के होंठ एक-दूसरे से उलझे हुए थे, जैसे एक-दूसरे को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
आकर्ष अलीशा को किस करने के साथ-साथ काट भी रहा था।
बीस मिनट किस करने के बाद, आकर्ष उसके ऊपर से उठा और अपनी शर्ट झटके से उतारकर फेंक दी। फिर से वह उसे किस करने लगा।
कमरे में अब सिर्फ़ उनकी साँसों की आवाज़ थी—धीमी, गहरी, और एक-दूसरे को महसूस करने के लिए बेताब। अलीशा की उंगलियाँ आकर्ष की नंगी पीठ पर लकीरें खींच रही थीं, जैसे वह हर स्पर्श को अपने अंदर समेट लेना चाहती हो।
आकर्ष ने उसकी कमर पर अपनी पकड़ और मज़बूत की, उसके बालों को हल्के से खींचते हुए उसका चेहरा ऊपर किया। "इतनी जल्दी सब कुछ पा लेने की आदत मत डालो, अलीशा..." उसकी आवाज़ में वही पुरानी खतरनाक आकर्षण था जिसने अलीशा को, तो क्या हर लड़की को हमेशा से मदहोश किया था।
अलीशा ने उसकी आँखों में झाँका, उसकी उंगलियाँ उसकी नंगी छाती पर फिराते हुए हल्की मुस्कान दी। "और तुम इतने कंट्रोल में रहने की कोशिश मत करो, क्योंकि हम दोनों जानते हैं... कि तुम अब और इंतज़ार नहीं कर सकते।"
आकर्ष हल्का सा मुस्कुराया, लेकिन उसने कोई जल्दी नहीं की। उसके होंठ अलीशा की गर्दन के पास आए, लेकिन उसे छुआ नहीं। वह उसकी गर्म साँसें महसूस कर सकती थी—इतनी करीब कि उसके रोंगटे खड़े हो गए।
"तड़पाने का इरादा है?" अलीशा ने धीरे से पूछा, उसकी साँसें अब तेज़ हो रही थीं।
आकर्ष ने अपनी उंगलियाँ उसकी खुली पीठ पर फिराईं, उसकी गर्दन के पास झुककर फुसफुसाया, "बिलकुल... क्योंकि असली मज़ा तभी आता है जब खेल लंबा चले।"
उसने अपनी उंगलियाँ उसकी ड्रेस के स्ट्रैप पर फिसलाईं, लेकिन उसे हटाया नहीं—बस धीरे-धीरे उसकी बॉडी पर अपनी उंगलियों की गर्माहट छोड़ता रहा। अलीशा के अंदर एक बेचैनी बढ़ रही थी, एक प्यास जो सिर्फ़ आकर्ष ही बुझा सकता था, लेकिन वह जानता था कि उसे और तरसाना ही इस खेल का सबसे खूबसूरत हिस्सा था।
अलीशा ने अपनी उंगलियाँ उसकी बेल्ट तक पहुँचाईं, उसे धीमे-धीमे खोलते हुए कहा, "अगर तुम तड़पाना जानते हो, तो मैं भी खेलना जानती हूँ..."
आकर्ष ने उसकी बात सुनकर हल्का सा हँसा, फिर अचानक एक झटके में उसे अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया और उसे खंडहर के दूसरे तरफ ले गया। खंडहर में एक और गुफा जैसी जगह थी जहाँ एक आलीशान कमरा था, और उसमें एक बिस्तर।
आकर्ष ने अलीशा को बिस्तर पर गिरा दिया। वह अब पूरी तरह उसके नीचे थी, और इस बार कोई भी खेल नहीं था—सिर्फ़ वह पागल कर देने वाली चाहत, जो अब किसी भी पल बेकाबू हो सकती थी।
उसकी उंगलियाँ अब और भटक रही थीं, उसकी गर्म साँसें अलीशा की बॉडी को झुलसा रही थीं, और अलीशा... वह अब खुद को पूरी तरह उसके हवाले करने के लिए तैयार थी।
लेकिन आकर्ष तो उसे और बेताब करने के लिए तैयार था। उसने धीरे-धीरे उसके गर्दन पर किस किया, उसके क्लेविकल तक पहुँचा और वहाँ किस करना शुरू कर दिया, और एक झटके में उसके कपड़े उतार दिए।
फिर वह उसके सीने पर आ गया। उसके हाथ और उसके होंठ दोनों ही अपने काम में लग गए। अलीशा की आहें निकल रही थीं। वह खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी, पर रोक नहीं पा रही थी।
आकर्ष और ज़्यादा जोशीला हो रहा था। वह काट भी रहा था, जिससे अलीशा कराहने लगी थी। उसकी सिसकियाँ अब और तेज़ हो गई थीं, जिस वजह से आकर्ष के चेहरे पर एक किलर स्माइल थी।
वह फिर से उसके ऊपर झुका और अपने होंठ रखकर किस करना शुरू कर दिया। दूसरे हाथों से वह अपने हाथों का दबाव बढ़ा रहा था, जिस वजह से अलीशा को दर्द हो रहा था।
कुछ देर किस करने के बाद, वह उसके कमर की तरफ गया और उसके कमर पर अपने होंठ रखकर किस करने लगा। किस करते हुए वह धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ने लगा, जिस वजह से अलीशा पूरी तरह से बेचैन हो गई। कमर से नीचे आकर उसने उसे किस करना शुरू कर दिया, जिस वजह से अलीशा अपने होंठों को काट रही थी, वहीं आकर्ष उसे जोरदार किस कर रहा था। वह अपने होंठों और जीभ से खेल रहा था।
वहीं अलीशा की हालत अब खराब हो रही थी। वह आकर्ष से बार-बार रिक्वेस्ट कर रही थी, पर आकर्ष कहाँ मानने वाला था।
आकर्ष उसकी बात सुनने वाला नहीं था; वह तो अपने काम में लगा हुआ था। करीब बीस मिनट बाद वह अपना सिर ऊपर करके अलीशा को देखा, जो इस वक्त पसीने से तर-बतर थी। अलीशा को देखकर अपने होंठों को पोंछते हुए बोला, “मानना पड़ेगा, इतनी बुरी भी नहीं हो तुम।”
इतना बोलकर वह अपने बचे हुए कपड़े भी उतार देता है और अलीशा के ऊपर जाकर उसके होंठों पर किस करते हुए उसके अंदर समा गया। अलीशा के नाखून आकर्ष के कंधे पर धँस गए, और आकर्ष अपना मूवमेंट चालू करता है। वहीं अलीशा भी उसकी पूरी तरह से साथ दे रही थी। कमरे में, दोनों की आवाज़ें ही सुनाई दे रही थीं। इस वक्त अलीशा पसीने से पूरी तरह तर-बतर पड़ी थी।
पर वह भी पीछे हटने को तैयार नहीं थी। दोनों एक-दूसरे को जैसे आज ही जाना था। अलीशा भी उसके पूरी तरह से साथ दे रही थी।
दोनों की सिसकियाँ निकल रही थीं। करीब तीन घंटे बाद आकर्ष अलीशा को छोड़ता है और अपने कपड़े पहनता है, और अलीशा को देखते हुए बोला, "मुझे पता था मैं कोई भी डील इतनी बुरी नहीं करता। पैसे की डील काफी अच्छी थी ना?" बोलकर वह उसे एक फ़ाइल देता है और उसे फ़ाइल को देखकर बोलता है, "अब से तुम इस कंपनी की मालिक हो, जिस कंपनी की तुम मालिक की असिस्टेंट थीं।"
अलीशा उसकी बात सुनकर मुस्कुरा कर बोली, "डील आपकी नहीं, डील तो मेरी बहुत अच्छी गई है। आज का दिन और तुम्हारे साथ बिताए वो पल, मैं कभी नहीं भूल सकती। काफी वाइल्ड था! पहली बार ऐसे मर्द से मिली हूँ, जिसने मुझे संतुष्ट किया।"
फिर शरारत से मुस्कुराते हुए, उसने कहा, "नेक्स्ट टाइम, इंतज़ार रहेगा अगली मुलाक़ात का। तब तुम देखोगे, इससे भी ज़्यादा हॉट होगा!"
आकर्ष उसकी बात सुनकर बोला, “आकर्ष शेरगिल एक बार किसी के हाथ आ जाए तो दोबारा नहीं आता, और वह लड़की पैदा ही नहीं हुई जो दोबारा अपने बिस्तर तक मुझे बुला सके!!!”
फिर शरारत से मुस्कुराते हुए, उसने कहा, "नेक्स्ट टाइम, इंतजार रहेगा अगली मुलाकात का। तब तुम देखोगे, इससे भी ज्यादा hot होगा!"
आकर्ष उसकी बात सुनकर बोला, "आकर्ष शेरगिल एक बार किसी के हाथ आ जाए तो दोबारा नहीं आता, और वह लड़की बनी ही नहीं जो दोबारा अपने बिस्तर तक मुझे बुला सके!!!"
दूसरी तरफ, शाम का वक्त था।
नेहा वाणी के कमरे में आई तो देखा, मैडम रजाई में घुसी आराम से सो रही थीं। उसने झट से वाणी की रजाई खींची और बोली, "उठ, कितना सोएगी? कल तेरा इंटरव्यू है, तुझे तैयारी नहीं करनी क्या?"
वाणी ने आँखें आधी खोलकर देखा, फिर करवट बदलते हुए मुँह बनाकर बोली, "नेहा, दुनिया में और भी समस्याएँ हैं, तू क्यों मेरी नींद के पीछे पड़ी है?"
नेहा ने माथा पकड़ लिया, "ओ मैडम, तुझे इंटरव्यू देना है, कोई सोने का मुकाबला नहीं जीतना!"
वाणी रजाई से मुँह निकालकर बोली, "देख, मैंने सोचा है—कल की कल देख लेंगे, अभी सोने दे।"
नेहा चिढ़ गई, "इतनी टेंशन-फ्री लाइफ चाहिए तो स्वर्ग में आवेदन कर दे, वहाँ भी शायद तुझे विचार कर लें!"
लेकिन वाणी को कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने फिर से आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद, वाणी आखिरकार उठ गई और स्ट्रेचिंग करते हुए बोली, "नेहा, मुझे शॉपिंग जाना है!"
नेहा ने झट से उसकी तरफ देखा, "ओह, सोने वाली राजकुमारी जाग गई! अब तुझे शॉपिंग करनी है?"
वाणी मासूमियत से बोली, "हाँ, कल इंटरव्यू के लिए मेरे पास सही कपड़े नहीं हैं, जो भी हैं, वो इतने सही नहीं लग रहे।"
नेहा ने नाटकीय अंदाज़ में ताली बजाई, "वाह! अभी तक तेरे लिए इंटरव्यू की कोई वैल्यू नहीं थी और अब ड्रेस के बिना तेरा करियर खतरे में आ गया?"
वाणी ने बेफिक्री से कहा, "देख, बिना तैयारी के इंटरव्यू दे सकती हूँ, लेकिन बिना अच्छे आउटफिट के नहीं!"
नेहा ने सिर हिलाया, "तेरी प्राथमिकताएँ सच में अद्भुत हैं!"
वाणी मुस्कुराई, "धन्यवाद, अब चल, जल्दी चल।"
नेहा ने गहरी साँस ली और बोली, "ठीक है, लेकिन मुझे कैफ़े से कोल्ड कॉफ़ी लेनी है, वरना तेरे साथ शॉपिंग सर्वाइव नहीं कर पाऊंगी!"
वाणी हँस पड़ी, "सौदा! चल, तू भी मेरी सबसे अच्छी दोस्त है, मेरी सारी अजीब हरकतें झेलने के लिए!"
और फिर दोनों हँसते-झगड़ते शॉपिंग के लिए निकल पड़ीं।
दोनों फिर से हँसी-मज़ाक करते हुए शॉपिंग के लिए निकल पड़ीं। कुछ देर बाद, दोनों शॉपिंग मॉल में पहुँच गईं। मॉल की रौनक और शोर में वे अपनी पसंद के कपड़े देखने लगीं। नेहा और वाणी एक-दूसरे के लिए कपड़े चुन रही थीं, कभी एक, कभी दूसरा। दोनों के चेहरों पर शॉपिंग का पूरा मज़ा था।
काफी देर तक कपड़े देखने के बाद, आखिरकार उन्हें एक सफ़ेद शर्ट और नीली जीन्स का सेट पसंद आ गया। दोनों ने खुशी-खुशी चेंजिंग रूम का रुख किया, कपड़े पहनने के लिए।
वाणी ने पहले अपनी टी-शर्ट उतारी और शर्ट पहनने के लिए हाथ बढ़ाया। जैसे ही वह शर्ट पहनने लगी, उसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ। कुछ पल के लिए उसे लगा कि चेंजिंग रूम में कोई और है। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने घबराकर पीछे मुड़कर देखा और फिर उसकी चीख निकल गई।
वाणी के मुँह पर किसी ने हाथ रख दिया था, और वह भी पूरी तरह से उसे घूर रहा था। वाणी का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और जब उसने देखा कि वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि आकर्ष था, तो उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
आकर्ष की आँखों में एक अजीब सी चुप्पी थी। वह उसे गुस्से से घूर रहा था, जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा हो, और पूरी तरह से उसकी बॉडी को एक-एक करके देख रहा था।
वाणी ने आकर्ष को जोर से धक्का देते हुए कहा, "क्या हरकत कर रहे हो तुम?" आकर्ष की मुस्कान और भी बढ़ गई, जैसे वो वाणी के गुस्से का पूरा मज़ा ले रहा हो।
वाणी ने जब देखा कि वो मुस्कुरा रहा था, उसे अचानक एहसास हुआ कि उसने अभी अपना टॉप उतारकर शर्ट पहनने की कोशिश की थी, और अब वो सिर्फ़ अंडरवियर में खड़ी थी। उसने जल्दी से अपने हाथों से अपने ऊपर को ढँकते हुए शर्ट को लेने के लिए आगे बढ़ी, लेकिन इससे पहले कि वो शर्ट पकड़ पाती, आकर्ष ने उसे छीन लिया और उसकी तरफ देखकर बोला, "वाह, ये शर्ट तो बहुत सुंदर है!"
लेकिन उसकी निगाहें कहीं और, ठीक वाणी की बॉडी पर थीं।
वाणी गुस्से में पैर पटकती हुई स्टोर से बाहर निकली। दिल तेज़ी से धड़क रहा था, चेहरा अभी भी लाल था। "ये लड़का पागल है क्या? और मैं? मैं भी इतनी बेवकूफ हूँ कि उसके सामने... उफ्फ़!"
वह खुद को कोस रही थी और मन ही मन कसम खा चुकी थी कि अब दोबारा उस "Mr. Badtameez" के सामने नहीं जाएगी।
तभी नेहा उसके सामने आई और उसकी इस तरह से गुस्से में देखकर पूछा, "क्या हुआ, तू इतने गुस्से में क्यों है?"
वाणी ने कुछ नहीं बोला, बस गुस्से में उसका हाथ पकड़कर मॉल से बाहर निकल गई। नेहा बार-बार उससे पूछती रही।
घर पहुँचकर वाणी ने उसे सब कुछ बताया।
जैसे ही नेहा ने वाणी की सारी बातें सुनीं, नेहा की हँसी निकल गई।
वाणी को उसकी हँसी देखकर और गुस्सा आने लगा। वह गुस्से में नेहा की तरफ देखकर बोली, "तेरी इस हँसी से मुझे चिढ़ा रही है।"
नेहा उसकी बात सुनकर खुद की हँसी रोकते हुए बोली, "मैं क्या बोलूँ? मैं तो उस लड़के के बारे में सोच रही हूँ। कमाल का बंदा है यार, काश मैं उसे एक बार देख सकती।"
वाणी ने उसकी बात सुनकर बोली, "वह लड़का नहीं है, चिपकू है। मेरे पीछे ऐसे चिपक गया है कि मेरा दिमाग खराब हो चुका है। अब उसे दोबारा कभी नहीं मिलूँगी, चाहे कुछ भी हो जाए।"
"वह सच में पागल है।"
वाणी की बात सुनकर नेहा बोली, "जैसे मालूम तू उसे स्पेशल मिलने ही गई थी, ऐसे कह रही है।" उसकी बात से वाणी को इतना गुस्सा आया कि उसने सोफ़े पर रखे हुए कुशन को उठाकर उसके ऊपर फेंका और बोली, "नाम मत ले उस पागल का।"
नेहा ने वाणी की बात सुनकर पूछा, "नाम क्या है उसका?" वाणी ने उसकी बात सुनकर बोली, "मुझे नहीं पता उसका नाम क्या है? वैसे भी अब मेरा दिमाग खराब हो गया है उसे सोचकर।"
वाणी को अब बहुत गुस्सा आ रहा था। उसे देखकर नेहा उसे बांहों में भरते हुए बोली, "अच्छा, थूक गुस्सा। और चल, तेरे लिए एक्सरसाइज़ है। मेरे साथ चल, और मैं तेरा मूड सही कर दूँगी। वहाँ जाकर तू उसके बारे में भूल जाएगी।"
वाणी ने उसकी बात सुनकर पूछा, "कहाँ?"
नेहा बोली, "पहले रेडी हो जा, फिर बताती हूँ।"
वाणी ने उसे मना कर दिया, लेकिन नेहा कहाँ मानने वाली थी।
रात 9 बजे – एक पार्टी में।
यह काफी अच्छा और हाई-फाई पार्टी थी जहाँ चारों तरफ़ लोग थे, एक-दूसरे के हाथ में ड्रिंक था। पार्टी नेहा की एक फ़्रेंड की थी।
नेहा वाणी को जबरदस्ती खींचकर इस पार्टी में लायी थी। "चल ना, फ़न होगा! लाइफ़ सिर्फ़ गुस्से में ही नहीं जी जाती!" नेहा की यह बात सुनकर वाणी थोड़ा मान गई थी, लेकिन अब यहाँ आकर उसे बोरियत हो रही थी।
नेहा ने वाणी को ड्रिंक लाकर दिया और वह उसे लेकर एक साइड में बैठ गई।
वह एक कोने में बैठी अपने ड्रिंक को घूर रही थी, जब अचानक...
"मुझे लगा था तुम मुझे फिर कभी नहीं मिलोगी, Miss Attitude!"
वाणी के हाथ से ग्लास गिरते-गिरते बचा। उस आवाज़ को वह कहीं भी पहचान सकती थी!
उसने झटके से पलटकर देखा… और वहीं था आकर्ष!
काले शर्ट के ऊपर ब्लेज़र, हल्के बिखरे हुए बालों की स्टाइल, और वही शरारती मुस्कान!
वाणी की साँस अटक गई।
"त... तुम? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने हैरानी से पूछा।
आकर्ष ने कंधे उचकाए, "पार्टी में पार्टी करने आया हूँ... तुम्हारी तरह मैं भी एटीट्यूड दिखाने नहीं आया!"
वाणी ने आँखें घुमाईं, "प्लीज़! मुझे तुम्हारे जैसे लोगों में कोई इंट्रेस्ट नहीं है!"
आकर्ष ने एक नकली दुख भरी साँस ली, "ओह! यह तो बहुत बुरा हुआ! लेकिन अफ़सोस... मुझे तुम्हारी लाइफ़ में इंट्रेस्ट हो चुका है!"
वाणी ने झट से दूसरी तरफ़ जाने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन तभी...
आकर्ष ने उसकी कलाई पकड़ ली!
वाणी ने चौंककर उसे देखा, "छोड़ो मेरा हाथ!" वाणी इधर-उधर भी देख रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है।
लेकिन पार्टी में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि किसी ने ध्यान नहीं दिया।
आकर्ष ने उसकी कलाई को हल्के से घुमाया और शरारत से फुसफुसाया, "इतनी जल्दी भाग रही हो? अभी तो ठीक से मिले भी नहीं!"
वाणी ने गुस्से से उसे घूरा, "मैं तुम्हारी बकवास सुनने नहीं आई हूँ!"
आकर्ष मुस्कुराया, फिर धीरे से उसकी उंगलियों को छूते हुए बोला, "तो फिर? क्या करने आई हो? किसी और से फ़्लर्ट करने?"
वाणी के मुँह से शब्द ही नहीं निकले। यह लड़का बेशर्मी की हदें पार कर चुका था!
"तुम बहुत बदतमीज़ हो!"
आकर्ष ने हल्के से उसकी ओर झुककर कहा, "तुमने मुझे पहले ही बता दिया था, Miss Attitude! अब इतनी तारीफ़ मत करो, मैं शर्मा जाऊँगा!"
वाणी ने गुस्से से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन तभी...
आकर्ष ने उसे अचानक अपनी बाहों में खींच लिया!
वाणी का बैलेंस बिगड़ गया, और वह सीधे आकर्ष के सीने से टकरा गई। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और दिल जोर से धड़कने लगा।
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ उसके कान के पास फुसफुसाया—
"तुम्हारे गाल फिर से लाल हो गए हैं, Miss Attitude! क्या मैं इतना हॉट हूँ?"
वाणी ने झटके से उसे धक्का दिया, "यू आर सच अ जर्क!"
आकर्ष ने हँसते हुए उसे जाने दिया, "और तुम बहुत इंट्रेस्टिंग! मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि तुम्हारी एटीट्यूड वाली फ़ायर इस तरह धीरे-धीरे मेरी ओर खिंच रही है!"
वाणी का चेहरा और भी लाल पड़ गया, लेकिन इस बार गुस्से से नहीं… कुछ और ही फीलिंग थी, जो उसने खुद भी नोटिस नहीं की!
आकर्ष ने उसे आँख मारते हुए बोला—
"चलो Miss Attitude, अगली मुलाक़ात का इंतज़ार रहेगा!"
वाणी बिना कुछ बोले गुस्से से पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई, लेकिन उसका दिल अब भी तेज़ी से धड़क रहा था…
"ये लड़का आखिर चाहता क्या है?" और भगवान बार-बार मुझे इसी से क्यों टकराता है? यह सब बोलते हुए वह नेहा को खोजने लगी, वहीं आकर्ष की नज़र सिर्फ़ और सिर्फ़ वाणी पर थी।
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"चलो Miss Attitude, अगली मुलाकात का इंतज़ार रहेगा!"
वाणी बिना कुछ बोले, गुस्से से पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई, लेकिन उसका दिल अब भी तेज़ी से धड़क रहा था।
"ये लड़का आखिर चाहता क्या है?" वाणी झुंझलाते हुए खुद से बुदबुदाई। उसकी नज़रें बार-बार भीड़ में उसे ही ढूँढ रही थीं। जैसे ही उसने सिर घुमाया, फिर वही चेहरा उसकी नज़रों के सामने आ गया। वह झटके से मुड़ी और गुस्से में खुद से ही बड़बड़ाने लगी— "और भगवान, मैं बार-बार इसी से ही क्यों टकरा जाती हूँ?"
गुस्से से भरी वाणी ने तुरंत अपनी सहेली नेहा को खोजने के लिए इधर-उधर देखना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ, भीड़ में खड़ा वही लड़का सिर्फ़ और सिर्फ़ वाणी को ही देख रहा था, जैसे उसके अलावा इस पार्टी में कुछ था ही नहीं।
"नेहा... नेहा कहाँ हो यार?" वाणी तेज़ी से भीड़ में उसे ढूँढती हुई आगे बढ़ी। जैसे ही वह नेहा के पास पहुँची, नेहा ने उसके गुस्से से भरे चेहरे को देखा और माथे पर हाथ मारते हुए बोली, "अब क्या हुआ? तेरा मूड फिर से क्यों खराब है?"
वाणी ने झटके से कहा, "मत पूछ! एक तो इस पार्टी में ज़बरदस्ती आई और ऊपर से यहाँ भी वही लड़का दिख गया, जो हर जगह पीछा करता रहता है!"
नेहा को वाणी की बात पर पहले तो हँसी आई, लेकिन फिर उसने गंभीर होते हुए कहा, "कौन है वो? जरा मैं भी तो देखूँ!"
इतना कहते ही नेहा की दोस्त, जो वहीं पास खड़ी थी, एकदम एक्साइटेड होकर बोली, "तुम लोगों को पता भी है, इस पार्टी में कौन आया है? आकर्ष शेरगिल!"
नेहा और वाणी ने एक साथ उसकी तरफ़ देखा, फिर हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखा।
"आकर्ष शेरगिल?" नेहा ने हल्के से भौंहें चढ़ाते हुए कहा।
"कौन आकर्ष शेरगिल?" वाणी ने झुंझलाते हुए पूछा।
उस लड़की ने चौंकते हुए कहा, "अरे! तुम लोग सीरियसली नहीं जानती? वह वही लड़का है जिससे इस वक़्त तुम्हारी नज़रें टकरा रही हैं!"
वाणी और नेहा दोनों ने तुरंत उसकी ओर देखा।
और तब... जैसे ही उनकी नज़रें उस लड़के से मिलीं, एक सन्नाटा सा छा गया।
वाणी के दिमाग में झट से सारी पुरानी बातें घूम गईं—वही बार-बार टकराना, वही अजीब इत्तेफ़ाक़, वही निगाहें, जो हर जगह उसका पीछा करती थीं।
नेहा धीरे से वाणी की ओर झुकी और हल्की मुस्कान दबाते हुए फुसफुसाई, "तो ये है तेरा पीछा करने वाला? ये तो..."
"चुप कर!" वाणी ने तुरंत उसकी बात काटते हुए कहा, लेकिन उसकी खुद की आवाज़ में भी हल्की घबराहट थी।
नेहा ने हल्का सा सिर हिलाया और मज़ाकिया अंदाज़ में बोली, "यार, तुझे स्टॉक करने वाला कोई मामूली लड़का नहीं है, सीधा आकर्ष शेरगिल है!"
वाणी ने गुस्से से उसकी ओर देखा, लेकिन नेहा ने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा—"अब बच के दिखा!"
वाणी की नज़र अभी भी आकर्ष पर ही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि ये सब इत्तेफ़ाक़ है या सच में यह लड़का उसकी ज़िंदगी में घुसने की कोशिश कर रहा है। उसके दिल में एक अजीब-सी बेचैनी थी, जिसे वह खुद भी समझ नहीं पा रही थी।
लेकिन तभी… एक लड़की बेहद उत्साहित होकर भीड़ में से आई और अपनी दोस्तों से बोली, "आकर्ष शेरगिल है ही ऐसा! इसके साथ तो हर लड़की एक रात बिताने के लिए भी तैयार हो जाए! कितना हॉट, हैंडसम और चार्मिंग है… पता नहीं मेरा नंबर कब आएगा!"
वाणी ने उसकी बातें सुनीं और उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसे अब तक सिर्फ़ इतना ही लग रहा था कि यह लड़का उसे फ़ालतू परेशान कर रहा है, लेकिन अब समझ आया कि यह तो पूरा का पूरा प्लेबॉय है!
"हद है!" वाणी ने गुस्से से बुदबुदाया, उसकी मुट्ठियाँ बिंच गईं।
नेहा ने उसकी हालत देखकर फुसफुसाते हुए पूछा, "अब क्या हुआ? वैसे तू क्यों इतना भड़क रही है? तुझे इससे फ़र्क क्यों पड़ रहा है?"
"मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता!" वाणी ने तुरंत जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में जितना गुस्सा था, नेहा को उतना ही कुछ और भी महसूस हुआ—कुछ ऐसा जिसे वाणी खुद समझने को तैयार नहीं थी।
पर इससे पहले कि नेहा कुछ कहती, फिर वही हुआ! वाणी ने जैसे ही मुड़कर जाने के लिए कदम बढ़ाया, गुस्से में वह कुछ दूरी पर गई ही थी…
"ठक!"
सीधे जाकर एक मज़बूत सीने से टकरा गई। एकदम ठहराव! कुछ सेकंड तक वह खुद को संभाल ही नहीं पाई। और जब संभली… तो नज़रें ऊपर उठाईं… फिर से वही चेहरा! आकर्ष शेरगिल!
"तुम्हें सच में कोई और नहीं मिलता टकराने के लिए?" वाणी झल्लाई।
आकर्ष हल्का सा मुस्कुराया, जैसे उसे ये सब मज़ेदार लग रहा हो। "गलती मेरी नहीं है मिस… अरे हाँ! तुम्हारा नाम क्या बताया था Miss attitude?"
वाणी के चेहरे पर और गुस्सा आ गया। "तुम्हें जानने की ज़रूरत नहीं!"
आकर्ष उसकी बात सुनकर बोला, "कहीं तुम्हें डर तो नहीं लग रहा है कहीं मैं तुम्हें जाने लगा तो तुमसे कहीं बेहतर तुम्हें जान जाऊँगा।"
आकर्ष ने होंठों पर एक शरारती मुस्कान लाई और थोड़ा झुककर फुसफुसाया,
"Miss Attitude, कहीं तुम इसलिए तो मुझसे दूर नहीं भाग रही… कि अगर मैं तुम्हें और करीब से जानने लगा, तो तुम खुद को ही भूल जाओगी?"
वाणी ने घूरकर देखा, "यू विश! मुझे तुम्हारे जैसा कोई जान भी ले, तो भी फ़र्क नहीं पड़ता!"
आकर्ष ने एक गहरी साँस ली और सिर हिलाया, "ओह, तो फिर ट्राई करके देखूँ? वैसे भी, मैं सिर्फ़ जानने तक नहीं रुकता… समझ भी बहुत गहराई तक लेता हूँ!"
वाणी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। "तुम्हारी यही आदत ना मुझे सबसे ज़्यादा irritate करती है!"
आकर्ष ने होंठों को हल्का सा काटा और एकदम से करीब आकर धीमे से फुसफुसाया, "अच्छा? फिर तो इसे छोड़ देना चाहिए… पर अफ़सोस, तुम जितना irritate होती हो, मैं उतना ही मज़ा लेने लगता हूँ!"
वाणी ने तुरंत पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष ने हल्के से उसका रास्ता रोकते हुए कहा, "वैसे… डर तो नहीं लग रहा? अगर मैं तुम्हें और बेहतर जान गया… तो शायद तुम्हारी कुछ ऐसी बातें पता चल जाएँ, जो तुम खुद भी नहीं जानती!"
वाणी का चेहरा लाल पड़ने लगा, लेकिन उसने खुद को संभाला। "Dream on, Mr. Playboy!"
वाणी चिढ़ते हुए फिर बोली, "ओवरकॉन्फ़िडेंस अच्छा नहीं होता मिस्टर प्लेबॉय!"
आकर्ष ने हाथ बाँधकर उसकी तरफ़ देखा और फिर धीरे से झुककर फुसफुसाया, "तो तुमने मेरी फ़ैनगर्ल्स की बातें सुन लीं? जलन हो रही थी?"
"ज-जलन? मेरी और जलन? सपना देखो मत!" वाणी लगभग चीख पड़ी।
आकर्ष उसकी हालत देखकर हल्के से मुस्कुराया और बोला, "वैसे, अगर तुम्हें मेरा प्लेबॉय होना पसंद नहीं, तो तुम्हारे लिए एक्सक्लूसिव बनने को तैयार हूँ!"
"यूघ! तुमसे बात करना ही बेकार है!" वाणी गुस्से से जाने लगी, लेकिन तभी म्यूज़िक बज उठा—
तेज़ बीट्स, धीमी लाइट्स और बीच में आकर्ष शेरगिल—जिसकी निगाहें सिर्फ़ वाणी पर टिकी थीं। वाणी गुस्से से मुड़कर जाने लगी, लेकिन तभी किसी ने उसकी कलाई पकड़ ली।
"Not so soon, Miss Attitude!"
उसने झटके से देखा—आकर्ष उसे ही देख रहा था, उसकी आँखों में वही शरारत थी, वही इरादा।
गाने की धड़कन बढ़ी… और अगले ही पल, आकर्ष ने उसे अपने करीब खींच लिया!
वाणी के दिल की धड़कनें तेज़… बहुत तेज़! लेकिन वह गुस्से में थी, उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की।
"छोड़ो मुझे, मैं तुम्हारे साथ डांस नहीं करने वाली!" उसने गुस्से में कहा।
आकर्ष ने होंठों पर हल्की मुस्कान लाई, फिर धीरे से झुककर फुसफुसाया—
"तुमसे पूछा किसने?"
और अगले ही पल… वह उसे स्टेज के बीचों-बीच ले आया!
💃🎶 तेरे सामने आ जाने से… ये दिल मेरा धड़के है… 🎶🔥
पार्टी के सारे लोग अब उनकी तरफ़ देख रहे थे। लेकिन आकर्ष को सिर्फ़ और सिर्फ़ वाणी दिख रही थी।
उसने वाणी की कमर पर हाथ रखा और धीरे-धीरे उसे अपने करीब खींचा। वाणी ने फिर से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने आँखें उठाईं…
आकर्ष की आँखों में कुछ ऐसा था, जो उसे जकड़ चुका था। वह चाहकर भी अपनी जगह से हिल नहीं पाई।
💃🎶 जिस बात का तुझको डर है… वो करके दिखा दूँगा… 🎶🔥
आकर्ष का हाथ वाणी की कमर से उसकी पीठ पर गया। उसने झुककर उसके चेहरे के पास फुसफुसाया—
"डर रही हो?"
वाणी ने झटके से सिर घुमाया, "बिल्कुल नहीं!"
आकर्ष हल्का मुस्कुराया, और अचानक… उसने वाणी को अपनी बाहों में घुमा लिया!
वाणी के होश उड़ गए। वह उसकी पकड़ में थी, उसके सीने से सटी हुई। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ कि उसे खुद सुनाई दे रही थीं!
💃🎶 ऐसे न मुझे तुम देखो… सीने से लगा लूँगा… 🎶🔥
आकर्ष ने धीरे से वाणी की ठोड़ी उठाई और गहरी नज़रों से उसकी आँखों में देखा। फिर धीरे-धीरे झुककर उसके चेहरे के और करीब आया… बहुत करीब!
वाणी ने घबराकर चेहरा मोड़ने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष ने उसकी ठोड़ी पकड़कर वापस उसकी आँखों में देखने पर मजबूर कर दिया!
"भागने की इतनी जल्दी क्यों, Miss Attitude?" उसकी आवाज़ में वही शरारत थी, वही खतरनाक इरादा।
💃🎶 तुमको मैं चुरा लूँगा तुमसे… दिल में छुपा लूँगा… 🎶🔥
आकर्ष ने बिना कोई मौका दिए… धीरे से अपना चेहरा झुकाया और… उसके गाल के बिल्कुल पास अपने होंठ ले आया।
वाणी की साँसें अटक गईं! उसने उसे हल्का सा महसूस किया… बहुत हल्का…
आकर्ष ने आँखें बंद करके धीरे से उसकी गर्दन के पास साँस छोड़ी। वाणी ने सिहरकर आँखें भींच लीं!
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए धीरे से फुसफुसाया—
"अब भी कहोगी कि तुम्हें फर्क नहीं पड़ता?"
वाणी ने हिम्मत करके खुद को पीछे हटाया और गुस्से में कहा—
"यू विश! मैं तुम्हारे टच से भी जलती नहीं!"
आकर्ष ने उसकी बात पर हँसते हुए उसकी कमर और कसकर पकड़ ली।
"तो फिर… अगला कदम भी ट्राई कर लूँ?"
💋🔥 आकर्ष ने हल्के से वाणी की ठोड़ी ऊपर की और झुककर उसके होठों के बिल्कुल करीब आ गया।
एक सेकंड… फिर दो… वाणी साँस तक नहीं ले पाई।
आकर्ष के होंठ वाणी के होठों के बस… कुछ मिलीमीटर दूर थे।
वाणी की साँसें बेहद तेज़ हो चुकी थीं। उसका दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि उसे लगा, कहीं ये आवाज़ आकर्ष तक ना पहुँच जाए।
लेकिन फिर… आकर्ष वहीं रुक गया।
उसकी आँखों में वही शरारत थी… लेकिन होठों पर एक धीमी सी मुस्कान। उसने हल्के से सिर झुकाया और वाणी के कान के करीब आकर फुसफुसाया—
"ये चाहत और इनकार के बीच जो फासला है… उसे मिटाने में कितना वक्त लगेगा, वाणी?"
वाणी ने झटके से आँखें खोलीं। उसने उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष ने उसे जाने नहीं दिया।
"छोड़ो मुझे!" वाणी ने गुस्से से कहा।
आकर्ष ने उसकी कमर पर पकड़ थोड़ी और कस दी।
"इतनी आसानी से नहीं…" उसकी आवाज़ में वही गहरी, खतरनाक सी गर्माहट थी।
"तुम खुद को मुझसे दूर रखना चाहती हो, लेकिन तुम्हारा जिस्म…" आकर्ष ने हल्के से उसके गाल पर अपनी उंगलियाँ फेरीं, "ये तो कुछ और ही कह रहा है…"
वाणी की साँसें अटक गईं! उसके गाल सुर्ख हो चुके थे।
"बकवास बंद करो!" उसने गुस्से में कहा, लेकिन उसकी आवाज़ तक काँप गई थी।
आकर्ष ने हल्की सी मुस्कान दी।
"शर्म आ रही है?"
वाणी ने कुछ नहीं कहा। बस एक झटके में खुद को पीछे खींचा, लेकिन आकर्ष ने उसकी कलाई पकड़ ली!
"तुम्हें सच में लगता है कि तुम मुझसे दूर भाग सकती हो?" उसकी गहरी आवाज़ ने वाणी के जिस्म में एक अजीब सी सिहरन दौड़ा दी।
"मैं किसी से भागने वालों में से नहीं हूँ!" वाणी ने आँखों में गुस्सा भरकर कहा।
आकर्ष ने उसकी आँखों में देखा… फिर धीरे से मुस्कुराया।
"फिर तो साबित करना पड़ेगा, Miss Attitude…"
और अगले ही पल… उसने वाणी को अपनी बाहों में उठा लिया!
"आकर्ष, पागल हो गए हो क्या?" वाणी ने छूटने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष उसे स्टेज से नीचे ले जा चुका था।
सारे लोग उन्हें देख रहे थे। लेकिन आकर्ष को कोई फर्क नहीं पड़ा। वाणी की धड़कनें तेज़… बहुत तेज़!
"अब तुम्हें मुझसे दूर भागने का कोई मौका नहीं मिलेगा…" आकर्ष की गहरी आवाज़ उसके कानों में गूँजी।
"आज की रात सिर्फ़ मेरी होगी, Miss Attitude…"
वाणी के चेहरे पर गुस्सा था, लेकिन दिल की धड़कनें बेकाबू हो चुकी थीं। लोग उन्हें देख रहे थे, कानाफूसी कर रहे थे… लेकिन आकर्ष को कोई फर्क नहीं पड़ा।
"आकर्ष! मुझे नीचे उतारो!" वाणी ने झटके से छूटने की कोशिश की, लेकिन आकर्ष ने उसकी पकड़ और मजबूत कर दी।
"अब बहुत हो गया, Miss Attitude।" आकर्ष की आँखों में वो अजीब सी गहराई थी… कुछ ऐसा, जो वाणी को डरा भी रहा था और बेचैन भी कर रहा था।
उसने वाणी को अपनी कार तक पहुँचाया और झटके से कार का दरवाज़ा खोलकर उसे अंदर धकेल दिया!
"तुम पागल हो गए हो!" वाणी ने गुस्से में चिल्लाया, लेकिन अगले ही पल…
"शट अप, Miss Attitude!" आकर्ष ने कार का दरवाज़ा बंद किया, और अगले ही पल… वह झुका… उसके चेहरे के इतने करीब कि वाणी ने साँस तक रोक ली।
"अब बहुत हुआ।" उसकी आवाज़ गहरी थी, खतरनाक थी।
"तुम जितना भागोगी… मैं उतना तुम्हें और करीब लाऊँगा।" उसके लफ़्ज़ों में हुक्म था… इंटेन्स था… चाहत थी।
वाणी ने उसकी आँखों में देखा… खुद को रोकना चाहा… लेकिन फिर… आकर्ष की उँगलियाँ उसके होठों को छू चुकी थीं।
"अब तो बोलो, Miss Attitude… मुझे नफ़रत है तुमसे?"
"नफ़रत है मुझे!" वाणी ने गुस्से से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ काँप गई।
आकर्ष हल्का सा मुस्कुराया।
"झूठ बोल रही हो…"
वाणी ने खुद को पीछे खींचना चाहा, लेकिन पीछे सीट थी… और आगे आकर्ष!
"अब तुम बच नहीं सकती…" आकर्ष ने उसके जबड़े को अपनी उंगलियों से थाम लिया।
"अब तुम्हें इस फ़ासले को मिटाना ही होगा…"
और अगले ही पल…
वाणी की साँसें बेतरतीब हो रही थीं। आकर्ष की आँखों में कोई पागलपन था, कोई जुनून…
"तुम्हें क्या लगता है, वाणी?" आकर्ष ने उसकी ठुड्डी को हल्के से ऊपर उठाया, ज़बरदस्ती उसे अपनी आँखों में देखने पर मजबूर कर दिया। "तुम भागोगी… और मैं तुम्हें जाने दूँगा?"
"आकर्ष, पीछे हटो!" वाणी ने उसका हाथ झटकना चाहा, लेकिन उसे पता था… वह अब कैद में थी।
"नहीं, वाणी। अब कोई पीछे नहीं हटेगा…" उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि वाणी को अपनी ही धड़कनें तेज़ सुनाई देने लगीं।
"तुम मुझे छोड़ दो।" वाणी की आवाज़ धीमी पड़ गई थी, लेकिन उसकी आँखों में वह बगावत अब भी थी।
आकर्ष हल्का सा झुका, उसके चेहरे के इतने करीब कि उनके बीच बस कुछ साँसों का फ़ासला था।
"तुम्हें छोड़ दूँ?"
और फिर… उसकी उंगलियाँ वाणी की कमर पर कस गईं।
"तुम छोड़ने के लिए नहीं बनी हो, वाणी… तुम मेरी हो!" उसके लफ़्ज़ों में आग थी, धुआँ था, तूफ़ान था।
वाणी ने आँखें बंद कर लीं, लेकिन यह कौन सा तूफ़ान था जो उसकी साँसों में समाया था?
वाणी ने उसकी आँखों में देखा। खुद को रोकना चाहा, लेकिन फिर…
आकर्ष की उँगलियाँ उसके होठों को छू चुकी थीं।
"अब तो बोलो, Miss attitude… मुझे नफरत है तुमसे?"
"नफरत है मुझे!" वाणी ने गुस्से से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ काँप गई।
आकर्ष हल्का सा मुस्कुराया।
"झूठ बोल रही हो…"
वाणी ने खुद को पीछे खींचना चाहा, लेकिन पीछे सीट थी… और आगे आकर्ष!
"अब तुम बच नहीं सकती…" आकर्ष ने उसके जबड़े को अपनी उँगलियों से थाम लिया।
"अब तुम्हें इस फासले को मिटाना ही होगा…"
और अगले ही पल…
वाणी की साँसें बेतरतीब हो रही थीं। आकर्ष की आँखों में कोई पागलपन था, कोई जुनून…
"तुम्हें क्या लगता है, वाणी?" आकर्ष ने उसकी ठुड्डी को हल्के से ऊपर उठाया, ज़बरदस्ती उसे अपनी आँखों में देखने पर मजबूर कर दिया। "तुम भागोगी… और मैं तुम्हें जाने दूँगा?"
"आकर्ष, पीछे हटो!" वाणी ने उसका हाथ झटकना चाहा, लेकिन उसे पता था… वो अब कैद में थी।
"नहीं, वाणी। अब कोई पीछे नहीं हटेगा…" उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि वाणी को अपनी ही धड़कनें तेज़ सुनाई देने लगीं।
"तुम मुझे छोड़ दो।" वाणी की आवाज़ धीमी पड़ गई थी, लेकिन उसकी आँखों में वो बगावत अब भी थी।
आकर्ष हल्का सा झुका, उसके चेहरे के इतने करीब कि उनके बीच बस कुछ साँसों का फासला था।
"तुम्हें छोड़ दूँ?"
और फिर…
उसकी उँगलियाँ वाणी की कमर पर कस गईं।
"तुम छोड़ने के लिए नहीं बनी हो, वाणी… तुम मेरी हो!" उसके लफ्ज़ों में आग थी, धुआँ था, तूफ़ान था।
वाणी ने आँखें बंद कर लीं, लेकिन ये कौन सा तूफ़ान था जो उसकी साँसों में समाने लगा था?
आकर्ष की शरारती आवाज़ कानों में पड़ी।
वाणी ने चौंककर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वही पागलपन, वही जुनून… लेकिन यह सब बस एक सपना था?
"तुम… तुम…!!"
आकर्ष ने भौहें उचकाईं, होंठों पर वही जानलेवा मुस्कान। "क्या हुआ, Miss attitude? डांस के दौरान ही मुझसे इश्क़ कर बैठीं?"
वाणी इस वक्त अभी भी आकर्ष के साथ डांस फ्लोर पर थी। वह समझ नहीं पा रही थी आखिर, अभी जो कुछ हुआ वह क्या था? एक सपना?
फिर उसने आकर्ष की बातों का जवाब दिया।
वाणी ने गुस्से में पैर पटका, "शट अप! बिलकुल नहीं!"
आकर्ष हंस पड़ा, उसके करीब आते हुए फुसफुसाया, "अच्छा? फिर इतना खोई-खोई क्यों थी? कहीं मैं तुम्हारे सपने में तो नहीं था?"
वाणी का चेहरा गर्म हो गया। ये इंसान… ये इंसान पागल था!
तभी नेहा उसके करीब आई और उसका हाथ पकड़कर बोली, "चल, चलते हैं यहां से। वैसे भी पागलों के मुँह नहीं लगते।" इतना ना बोलते हुए वह उसका हाथ पकड़ कर चल दी।
वाणी का दिल अभी भी तेज़ धड़क रहा था। वो खुद पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन… आकर्ष की नज़रें!
उसकी वो जानलेवा मुस्कान… वो आँखों में जलता हुआ शरारती जुनून… नहीं! वाणी ने खुद को झटका दिया। उसे इस प्लेबॉय को सबक सिखाना ही होगा!
वो अचानक मुड़ी और तेज़ कदमों से वापस आई।
आकर्ष ने भौंहें उठाईं।
"ओह? इतनी जल्दी वापस, मिस एटीट्यूड? क्या हुआ, मेरी याद सताने लगी?"
वाणी कोई जवाब नहीं देती, बस धीरे-धीरे उसके और करीब आती गई।
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ उसे ऊपर से नीचे तक देखा।
"मानना पड़ेगा, तुम्हारी आँखें जब गुस्से से जलती हैं ना… तब तुम और भी कातिल लगती हो।"
वाणी बिल्कुल उसके सामने आकर रुकी और उसको देखते हुए बोली,
"तुमने अभी तक सिर्फ़ मेरी आँखों की कातिलाना अदा देखी है, मिस्टर प्लेबॉय… अब दर्द भी महसूस करोगे!"
‘धड़ाक!!’ उसका घुटना सीधा आकर्ष की टांग पर पड़ा।
"आह्ह्ह!!" आकर्ष मुँह से आवाज़ निकल गई।
आकर्ष हल्का झुका, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान अब भी वहीं थी। वो वाणी को देखते हुए बोला, "तुम्हें सच में मुझे चोट पहुँचाने में मज़ा आता है, है ना?"
वाणी झुकी, उसकी कॉलर पकड़ ली… और धीरे-धीरे उसके और भी करीब आ गई। इतनी करीब कि उसकी साँसें आकर्ष के होंठों को छू रही थीं।
आकर्ष ने एक लंबी साँस ली। उसकी मुस्कान थोड़ी गहरी हुई।
"ओह… इतना क्लोज? कहीं मुझे किस करने का मन तो नहीं कर रहा?" इतना बोलकर आकर्ष ने एक आँख मारी।
वाणी की आँखें चमकीं।
"मन तो कर रहा है…" वो हल्के से फुसफुसाई, और फिर…
सीधा उसके सीने पर एक और धक्का दे मारा!
आकर्ष हल्का लड़खड़ा गया। फिर उसे देखकर बोली,
"लेकिन अफ़सोस… मुझे गंदगी से दूर रहना पसंद है!"
आकर्ष ने एक लंबी साँस ली, आँखें हल्की बंद कीं और फिर खोलीं।
"वाह, मिस एटीट्यूड… तुम सच में जानलेवा हो!"
वाणी हल्का मुस्कुराई, एकदम शरारती अंदाज़ में, मगर उसकी आँखों में वही आग थी।
"और सुनो…" वो उसके करीब झुककर फुसफुसाई, "मुझे बार-बार मिस एटीट्यूड बुलाने की जरूरत नहीं है, मेरा नाम वाणी है… और इस नाम को अच्छे से याद कर लो, मिस्टर प्लेबॉय! क्योंकि अगली बार मिले, तो तुम्हारी बर्बादी की गिनती शुरू हो जाएगी!"
वाणी ने उसे एक और झटका दिया, उसकी कॉलर छोड़ दी और पूरी शान के साथ घूमकर जाने लगी।
आकर्ष ने अपनी टांग को हल्का सहलाया, मगर उसकी आँखों में एक अजीब सा जुनून था।
"पागल कर दोगी, मिस एटीट्यूड…" उसने हल्के से मुस्कुराते हुए बुदबुदाया, "अब अगली मुलाकात का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा!" वैसे तुम पहली लड़की हो जिससे दोबारा मिलने के लिए मैं इतना बेसब्र हो रहा हूँ। इतना बोलकर वह भी चला गया।
आकर्ष अपने पेंटहाउस में पहुँचा, मगर अजीब बेचैनी थी। उसने जैकेट उतारी, शर्ट के ऊपर के दो बटन खोले और बिस्तर पर गिर पड़ा। पर नींद? आज जैसे उससे रूठ गई थी!
वाणी…
वो लड़की उसकी नसों में किसी नशे की तरह दौड़ रही थी। उसकी वो आँखें… गुस्से में चमकती हुई… जब वो उसकी तरफ आई थी, उसकी आँखों में देखकर धमकी दी थी—
"मुझे बार-बार Miss Attitude बुलाने की जरूरत नहीं है! मेरा नाम वाणी है और इस नाम को अच्छे से याद रख लेना!"
आकर्ष की उंगलियाँ कस गईं।
"Damn!" उसने एक गहरी साँस ली, माथे पर हल्का पसीना था, दिल की धड़कनें थोड़ी तेज़।
उसने करवट बदली, तकिए में मुँह छुपाया, पर वो मुस्कान… वो जो वाणी के चेहरे पर थी, जब उसने उसकी टांग पर लात मारी थी— वो अब भी उसके सामने थी।
"ये लड़की… क्या कर दिया है इसने मेरे साथ?"
उसने झुंझलाते हुए बालों में हाथ फिराया, फिर बालकनी की तरफ बढ़ा। ठंडी हवा के झोंके ने उसकी बेचैनी और बढ़ा दी।
वाणी उसे अब तक जितनी भी लड़कियों से अलग लगी थी, उतनी ही खतरनाक भी। वो उसे जलील करके चली गई थी, मगर… उसकी आँखों में कुछ और भी था।
"तुम भाग तो गईं, वाणी… मगर अब तुम्हें खुद से निकाल पाना तुम्हारे लिए भी मुश्किल होगा!"
उसने होंठों पर जीभ फेरी, एक हाथ रेलिंग पर टिका दिया और धीमे से फुसफुसाया—
"अब देखता हूँ, Miss Attitude… कब तक मुझसे दूर भागती हो!"
रात बीत रही थी, मगर आकर्ष की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसने शर्ट उतारकर फेंकी, अपनी whiskey की बोतल उठाई और ग्लास में डाली।
"Damn it!" उसने एक ही घूंट में पूरी शराब खत्म कर दी, मगर फिर भी दिमाग से वाणी का चेहरा हट नहीं रहा था।
वो जो उसकी आँखों में देखकर उसे धमकी दे गई थी… जो उसकी टांग पर लात मारकर चली गई थी… उसकी जिद्दी आँखें… वो attitude… और वो हल्की सी मुस्कान, जो उसे झेलने के बाद भी उसके चेहरे पर थी!
आकर्ष ने बालकनी से बाहर देखा, मुंबई की चमचमाती रात, मगर उसकी दुनिया में सिर्फ अंधेरा था— या शायद एक नया तूफान!
"तुमने मुझसे पंगा ले लिया, वाणी…" उसकी उंगलियाँ ग्लास के किनारे पर फिसलीं, आँखों में एक अजीब सी चमक थी। "अब ये खेल और दिलचस्प होने वाला है!"
दूसरी ओर:
वाणी कमरे में आते ही बेड पर गिर पड़ी, मगर उसकी धड़कनें अभी भी नॉर्मल नहीं हो रही थीं।
"That idiot! Mr. Playboy!" उसने खुद से कहा, मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
पर अगले ही पल उसने खुद को संभाला।
"नहीं वाणी, तुझे उसकी आदत नहीं पड़नी चाहिए!"
उसने खुद को समझाने की कोशिश की, मगर उसकी उंगलियाँ अब भी उस जगह को छू रही थीं जहाँ आकर्ष ने उसकी ठुड्डी पकड़ी थी।
"Damn! मैं उसके बारे में सोच भी क्यों रही हूँ?"
वाणी ने झटके से चादर अपने ऊपर डाली, पर उसकी आँखों के सामने वही डांस फ्लोर था… वही करीब आता आकर्ष… वही झुकी हुई फुसफुसाती आवाज़…
"तुम मेरे सपने में तो नहीं थी, Miss Attitude?"
उसने झटके से आँखें खोलीं।
"उफ्फ!! This guy is dangerous!!"
सुबह:
आकर्ष की गाड़ी स्पीड में थी, लेकिन उसका दिमाग वाणी पर अटका था।
"Miss Attitude, तुम्हें पता भी नहीं कि तुमने कल रात क्या कर दिया है!"
उसे अभी भी वाणी का गुस्सा, उसकी आवाज़, उसकी वो कातिलाना मुस्कान… सब कुछ याद आ रहा था।
और अब, वो उसे फिर से देखना चाहता था!
"Let's meet again, sweetheart…" उसके होंठों पर हल्की सी शरारती मुस्कान थी।
"इस बार, तुम बच नहीं पाओगी!"
अगले दिन वाणी को एक बड़ी कंपनी से इंटरव्यू का कॉल आया था। यह उसके करियर के लिए बहुत बड़ा मौका था, और वह इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। सुबह-सुबह ही उसने ब्लैक फॉर्मल ड्रेस और हाई हील्स पहनकर ऑफिस जाने की तैयारी कर ली थी।
"आज कोई भी परेशानी नहीं चाहिए, बस यह जॉब पक्की करनी है!" उसने खुद को आईने में देखते हुए कहा था।
लेकिन किस्मत ने कुछ और ही प्लान कर रखा था।
ऑफिस में वाणी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ रिसेप्शन तक पहुँची थी।
"हाय, आई एम हियर फॉर द इंटरव्यू!" उसने प्रोफेशनल अंदाज़ में कहा था।
रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर जवाब दिया था, "वेलकम, मिस…?"
"वाणी!"
"ओके, मिस वाणी, प्लीज़ वेट इन द कॉन्फ़्रेंस रूम। हमारे सीईओ थोड़ी देर में आते ही होंगे!"
वाणी ने सिर हिलाया और कॉन्फ़्रेंस रूम में जाकर बैठ गई थी। उसकी धड़कनें तेज़ थीं, लेकिन वह खुद को शांत रखने की कोशिश कर रही थी।
"रिलैक्स वाणी, ये बस एक इंटरव्यू है!" उसने खुद को समझाया था।
लेकिन तभी दरवाज़ा खुला।
वाणी ने सामने देखा और…
"यू???"
उसका मुँह खुला का खुला रह गया था। सामने ग्रे सूट में आकर्ष खड़ा था! वही आकर्ष जो हमेशा उसे चिढ़ाता था, परेशान करता था… और अब वही इस ऑफिस का सीईओ बनकर उसके सामने था!
आकर्ष ने उसे देखते ही शरारती मुस्कान दी थी।
"ओह! तो मिस एटीट्यूड को जॉब चाहिए?"
वाणी का पूरा मूड खराब हो गया था।
"तुम… तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने गुस्से में पूछा था।
आकर्ष ने कुर्सी पर बैठते हुए रिलैक्स अंदाज़ में कहा था, "गलत सवाल, बबु! सही सवाल यह है कि तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
वाणी की आँखें बड़ी हो गई थीं। "वेट… डोंट टेल मी…"
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था, "येस बेबी, मैं ही इस कंपनी का सीईओ हूँ!"
वाणी का दिमाग घूम गया था।
"मतलब… मेरा इंटरव्यू तुम लोगे??"
आकर्ष ने टेबल पर हाथ रखते हुए उसे आँख मारकर कहा था, "बिलकुल!"
वाणी ने गहरी साँस ली थी। "ठीक है! तुम सीईओ हो या कुछ भी, मुझे इस जॉब से फर्क पड़ता है, तुम्हारे फ़्लर्ट से नहीं!"
आकर्ष हँस पड़ा था। "अरे वाह, इतनी हिम्मत? लेकिन एक बात बता दूँ, मिस एटीट्यूड…"
वह कुर्सी से उठकर उसके करीब आया था और टेबल पर झुककर फुसफुसाया था—
"इस ऑफिस में सिर्फ एक ही रूल है – मैं जो चाहूँ, वो होगा!"
वाणी ने उसे घूरा था। "प्लीज़, मुझे सिर्फ़ मेरे काम के लिए देखो, तुम्हारे ड्रामे के लिए नहीं!"
आकर्ष ने उसकी फ़ाइल उठाई थी और बिना देखे बंद कर दी थी।
"हम्म… जॉब पक्की हो सकती है, बस एक कंडीशन पर!"
वाणी ने हैरानी से पूछा था, "क्या?"
आकर्ष ने मुस्कुराकर जवाब दिया था, "तुम्हें मुझे हर दिन एक स्माइल देनी होगी!"
वाणी का मुँह खुला का खुला रह गया था। "ये कोई प्रोफ़ेशनल कंडीशन है?"
आकर्ष ने शरारती अंदाज़ में कहा था, "नोप, ये बस मेरी पसंदीदा कंडीशन है!"
वाणी गुस्से से उठ खड़ी हुई थी। "मैं यह जॉब नहीं करने वाली!"
आकर्ष ने उसके रास्ते में हाथ रख दिया था। "ओह कम ऑन, इतनी जल्दी हार मान रही हो? आई थॉट तुम मेरी बराबरी कर सकती हो!"
वाणी ने उसे गुस्से से देखा था। "मैं यह जॉब सिर्फ़ अपने टैलेंट से लूँगी, तुम्हारी फ़ेवर से नहीं!"
आकर्ष मुस्कुराया था। "चैलेंज एक्सेप्टेड, मिस एटीट्यूड!"
वाणी ने उसकी आँखों में देखा था और बिना कुछ बोले बाहर निकल गई थी।
लेकिन जाते-जाते उसने सुना था…
"अब तो और मज़ा आएगा!"
आकर्ष की आवाज़ में वही शरारत थी।
वाणी गुस्से में कॉन्फ़्रेंस रूम से बाहर निकली थी। उसका दिमाग घूम रहा था। "आकर्ष यहाँ सीईओ है? यह इंसान हर जगह मुझे ही क्यों मिलता है?" उसने गहरी साँस ली और सीधे बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाए।
"मुझे यह जॉब नहीं करनी! मैं कहीं और अप्लाई कर लूँगी!" उसने खुद से कहा और ऑफिस के एग्ज़िट की ओर बढ़ गई। लेकिन तभी…
"मिस एटीट्यूड!"
आकर्ष की आवाज़ सुनते ही वाणी के कदम अनचाहे ही रुक गए। वह चिढ़कर पलटी और उसे घूरते हुए बोली, "अब क्या है?"
आकर्ष दरवाजे से टेक लगाए खड़ा था, उसकी वही शरारती मुस्कान चेहरे पर थी। "तुम इतनी जल्दी हार मान रही हो? मुझे लगा था तुम लड़ने वाली हो!"
वाणी ने भड़कते हुए कहा, "यह कोई लड़ाई नहीं है! मैं प्रोफ़ेशनल तरीके से काम करना चाहती थी, लेकिन तुम… तुम मेरे बॉस बन बैठे हो! सो, नो थैंक्स!"
वह दोबारा दरवाजे की तरफ मुड़ी, लेकिन तभी…
"दरवाज़ा लॉक है, मिस एटीट्यूड!"
वाणी ने झटके से हैंडल घुमाने की कोशिश की, लेकिन सच में दरवाज़ा लॉक था! उसकी आँखें बड़ी हो गईं। "तुम… तुमने दरवाज़ा लॉक कर दिया?"
आकर्ष ने लापरवाही से कंधे उचका दिए। "ऑफ़ कोर्स! मैं तुम्हें इतनी आसानी से जाने दूँगा?"
वाणी ने गुस्से से उसकी तरफ देखा। "अनलॉक इट, नाउ!"
आकर्ष ने उसकी हालत का मज़ा लेते हुए अपनी जेब से चाबी निकाली और उंगलियों पर घुमाने लगा। "अनलॉक कर दूँगा, मिस एटीट्यूड… बस एक छोटी-सी डील कर लो!"
वाणी ने भड़कते हुए कहा, "मुझे कोई डील नहीं करनी! अनलॉक करो!"
वाणी ने गुस्से से उसकी ओर देखा। "अनलॉक इट, नाउ!"
आकर्ष ने उसकी हालत का मज़ा लेते हुए अपनी जेब से चाबी निकाली और उंगलियों पर घुमाने लगा। "अनलॉक कर दूँगा, मिस एटीट्यूड… बस एक छोटी-सी डील कर लो!"
वाणी ने भड़कते हुए कहा, "मुझे कोई डील नहीं करनी! अनलॉक करो!"
"अब छोड़कर दिखाओ, मिस एटीट्यूड!"
वाणी गुस्से में बोली, "ऐसे कैसे दरवाज़ा लॉक हो सकता है और मुझे दरवाज़ा, इस तरह से लॉक करके तुम नहीं रख सकते।"
वाणी गुस्से से दरवाज़े की ओर बढ़ी, लेकिन तभी आकर्ष ने एक फाइल उसकी ओर बढ़ा दी।
"रुको, मिस एटीट्यूड!"
वाणी ने चिढ़कर उसकी ओर देखा। "अब क्या?"
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ फाइल खोली और एक पेज उसकी ओर घुमाया। "ये देखो!"
वाणी ने भौंहें चढ़ाते हुए फाइल को देखा। उसे समझ नहीं आया कि वह उसे क्यों दिखा रहा था।
"ये क्या है?" उसने सख्त आवाज़ में पूछा।
आकर्ष ने आराम से अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, "तुम्हारा एग्रीमेंट!"
वाणी ने झटके से पेज पलटा और जैसे ही उसने कॉन्ट्रैक्ट के क्लॉज़ पढ़े, उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
"क्या?!"
उसने कॉन्ट्रैक्ट में साफ-साफ पढ़ा—
"अगर कर्मचारी कंपनी जॉइन करने के बाद बिना उचित नोटिस पीरियड पूरा किए जॉब छोड़ता है, तो उसे एक करोड़ रुपये का जुर्माना भरना होगा!"
वाणी की आँखें चौड़ी हो गईं। "ये… ये फेक है! मैंने ऐसा कोई एग्रीमेंट साइन नहीं किया!"
आकर्ष ने लापरवाही से पेज पलटा और उसे नीचे वाणी का सिग्नेचर दिखाया। "सच में? तो फिर ये तुम्हारे सिग्नेचर यहाँ कैसे हैं?"
वाणी ने जल्दी से डॉक्यूमेंट देखा। "लेकिन मैंने तो सिर्फ एक ऑफर लेटर साइन किया था!"
आकर्ष ने ठंडी आवाज़ में कहा, "एग्जेक्टली! वो ऑफर लेटर ही इस एग्रीमेंट का पार्ट था। और मिस एटीट्यूड, तुमने बिना पूरा पढ़े ही साइन कर दिया!"
वाणी ने गुस्से से उसकी ओर देखा। "तुमने ये सब पहले क्यों नहीं बताया?"
आकर्ष ने मज़े लेते हुए कहा, "क्योंकि तुम्हारी एक्सप्रेशन देखने में ज्यादा मज़ा आ रहा था!"
वाणी को अब तक समझ आ गया था—यह इंसान सिर्फ उसे परेशान करने के लिए पैदा हुआ था!
"तो अब मैं जॉब छोड़ ही नहीं सकती?"
आकर्ष ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "बिलकुल छोड़ सकती हो, बस एक छोटा सा काम करना होगा—एक करोड़ रुपये का चेक मेरे नाम पर काट दो!"
वाणी के होश उड़ गए। "एक करोड़?! मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं!"
आकर्ष ने नकली मासूमियत से कहा, "ओह! फिर तो तुम्हें ये जॉब रखनी पड़ेगी!"
वाणी ने गहरी सांस ली और गुस्से में कुर्सी पर बैठ गई। "तुम जानबूझकर ये सब कर रहे हो, है ना?"
आकर्ष ने मज़े लेते हुए कहा, "अब ये तुम सोचो, मिस एटीट्यूड!"
वाणी का दिमाग घूम गया था। अब वह इस जॉब को छोड़ भी नहीं सकती थी। और सबसे बड़ी मुसीबत? उसका बॉस अब आकर्ष था!
अब आगे क्या होगा? क्या वाणी इस जॉब को हैंडल कर पाएगी, या आकर्ष हर दिन उसके लिए नई मुसीबत लेकर आएगा?
वाणी की दुनिया जैसे एक पल में बिखर गई थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था—कैसे उसने बिना पढ़े उस एग्रीमेंट पर साइन कर दिए? यह आदमी… आकर्ष… उसने सब पहले से प्लान कर रखा था! और अब, वह किसी पिंजरे में फँसी चिड़िया की तरह महसूस कर रही थी।
उसने एक गहरी सांस ली, अपनी घबराहट को काबू में रखने की कोशिश करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि यह किसी तरह की गलतफहमी है। मैं लीगल टीम से बात करूंगी।"
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी बात सुनी, जैसे उसे पहले से ही पता हो कि वाणी यही कहने वाली है। वह अपनी सीट पर थोड़ा आराम से बैठ गया और उंगलियों से मेज पर हल्के-हल्के थपकी देने लगा।
"श्योर, मिस एटीट्यूड, तुम लीगल टीम से बात कर सकती हो… लेकिन शायद तुम्हें यह भी जान लेना चाहिए कि लीगल टीम मुझसे ही ऑर्डर लेती है। और यह कॉन्ट्रैक्ट पूरी तरह से वैध है।"
वाणी की आँखें चौड़ी हो गईं।
"क्या?"
आकर्ष ने सिर झुकाकर उसे ध्यान से देखा, उसकी आँखों में एक अजीब-सी ठंडक थी।
"तुमने बिना पढ़े साइन किया, ये तुम्हारी गलती है। और अब, तुम्हें इस गलती के साथ जीना पड़ेगा।"
वाणी ने गुस्से से अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। उसे यह सब एक चाल लग रही थी।
"तुमने मुझे फँसाने के लिए ये सब किया, है ना?"
आकर्ष ने एक हल्का ठहाका लगाया, उसकी आँखों में मज़ा झलक रहा था।
"ओह, मिस एटीट्यूड, तुम खुद को ज़रूरत से ज़्यादा इम्पॉर्टेंस दे रही हो। मैं तुम्हें क्यों फँसाऊँगा?" उसने झुककर मेज पर रखा अपना कॉफी मग उठाया और आराम से एक घूंट लिया, फिर मुस्कुराया। "लेकिन हाँ, तुम्हारी हालत देखना काफ़ी दिलचस्प है।"
वाणी ने गहरी सांस लेते हुए खुद को शांत रखने की कोशिश की। वह किसी भी हालत में इस जॉब में नहीं रहना चाहती थी।
"देखो, मैं इस कंपनी में नहीं रह सकती। यह मेरी गलती थी कि मैंने बिना पढ़े साइन कर दिया, लेकिन मैं इसका कोई और तरीका निकालूंगी। मैं यहाँ जबरदस्ती नहीं रुकने वाली!"
आकर्ष ने उसकी बात सुनकर अपना मग नीचे रखा और कुर्सी पीछे खिसकाकर खड़ा हो गया। उसकी आँखों में वही अजीब-सी शरारत थी।
"ओह, रियली?" उसने अपने हाथ जेब में डालते हुए सिर थोड़ा झुकाया और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तो फिर तुम्हें मेरे अगले सरप्राइज़ के लिए भी तैयार रहना चाहिए।"
अगली सुबह
वाणी ने ठान लिया था कि आज वह HR टीम से मिलकर इस एग्रीमेंट से बाहर निकलने का कोई रास्ता निकालेगी। वह ऑफिस पहुँची और सीधे अपने डेस्क की ओर बढ़ी।
लेकिन जैसे ही उसने अपनी सीट पर बैग रखा, उसकी कंप्यूटर स्क्रीन पर एक मेल पॉप-अप हुआ:
From: CEO’s Office
Subject: New Work Schedule
मिस वाणी,
आज से, आप सीधे श्री आकर्ष को रिपोर्ट करेंगी। आपकी सीट उनके प्राइवेट ऑफिस में स्थानांतरित कर दी गई है। कृपया तुरंत अपना सामान हटा दें।
साभार,
CEO’s Office
वाणी ने मेल पढ़ते ही स्क्रीन को अविश्वास से घूरा।
"ये क्या बकवास है? मेरा डेस्क क्यों हटा दिया?"
उसके पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई, "बिकॉज़, मिस एटीट्यूड, तुम अब सीधे मुझे रिपोर्ट करोगी!"
वाणी ने झटके से मुड़कर देखा—आकर्ष दरवाज़े पर खड़ा था, अपने हाथ जेब में डाले, चेहरे पर वही अजीब-सी मुस्कान लिए।
वाणी के अंदर गुस्से की एक लहर उठी।
"तुम मुझे जबरदस्ती अपने केबिन में क्यों बुला रहे हो?"
आकर्ष ने कंधे उचकाए, "तुम मेरी ‘स्पेशल प्रोजेक्ट टीम’ का हिस्सा बन चुकी हो। और इसका मतलब यह है कि अब से तुम्हारा हर दिन मेरे साथ बीतेगा।"
वाणी ने हैरानी से उसे देखा।
"तुम पागल हो गए हो क्या?"
आकर्ष ने एक ठंडी हँसी हँसी, "नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि अब तुम्हें धीरे-धीरे मेरी आदत डालनी पड़ेगी।"
वाणी ने गुस्से में कंप्यूटर बंद किया और अपने सामान उठाने लगी। "मैं तुम्हारे साथ एक ही केबिन में काम नहीं करने वाली!"
आकर्ष ने दरवाज़े के पास खड़े-खड़े कहा, "फिर एक करोड़ का चेक दे दो। तुम्हारी छुट्टी हो जाएगी!"
वाणी के हाथ वहीं रुक गए। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
वह चाहकर भी इस जाल से बाहर नहीं निकल पा रही थी।
अब यह सिर्फ एक नौकरी नहीं थी—यह उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी थी।
अब आगे क्या होगा? क्या वाणी इस नई मुश्किल से बाहर निकल पाएगी, या आकर्ष की दुनिया में फँसकर रह जाएगी?
वाणी के हाथ वहीं रुक गए। उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं। वह चाहकर भी इस जाल से बाहर नहीं निकल पा रही थी।
आकर्ष अब भी दरवाज़े के पास खड़ा था, चेहरे पर वही अजीब-सी मुस्कान, जैसे वह पहले से जानता था कि वाणी के पास कोई चॉइस नहीं है।
"क्या हुआ, Miss Attitude?" उसने मज़ाकिया लहजे में पूछा। "इतनी जल्दी हिम्मत हार गई?"
वाणी ने गहरी साँस ली, अपने अंदर उमड़ रहे गुस्से और डर को काबू में रखते हुए।
"तुम ये सब क्यों कर रहे हो? क्या तुम्हें सच में कोई और काम नहीं है?"
आकर्ष हल्का सा हँसा।
"काम? ओह, Miss Attitude, तुम शायद भूल रही हो कि ये सब भी एक 'काम' ही है। और अब तुम इसका हिस्सा हो।"
वाणी ने अपना बैग उठाया और सीधा दरवाज़े की ओर बढ़ी, लेकिन आकर्ष ने अपनी जगह से हिले बिना ही एक सख्त आवाज़ में कहा—
"रुक जाओ, वाणी!"
उसकी आवाज़ में ऐसा कुछ था जिसने वाणी के कदमों को वहीं रोक दिया था। उसने धीरे से सिर घुमाया और उसे घूरा।
"अगर तुम इस ऑफिस से बाहर निकली, तो याद रखना, एक करोड़ का चेक तुम्हें कल सुबह मेरी टेबल पर रखना होगा। और अगर नहीं रखा तो…"
उसने बात अधूरी छोड़ दी थी, लेकिन उसकी आँखों में जो चेतावनी थी, वह सब कुछ कह रही थी।
वाणी के हाथों ने कसकर बैग के स्ट्रैप को पकड़ लिया था। उसका मन कर रहा था कि सब कुछ छोड़कर भाग जाए, लेकिन वह जानती थी—यह इतना आसान नहीं था।
"ठीक है," उसने दाँत भींचकर कहा। "लेकिन याद रखना, मैं तुम्हारी ज़िंदगी को इतना आसान नहीं बनने दूँगी, Mr. Akarsh!"
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ सिर झुका दिया।
"Challenge accepted, Miss Attitude!"
अब यह सिर्फ एक कॉर्पोरेट गेम नहीं था—यह एक ऐसी लड़ाई थी जिसमें कोई भी आसानी से हार मानने वाला नहीं था।
वाणी ने मजबूरी में अपने कदम आकर्ष के केबिन की तरफ बढ़ा दिए थे। उसके हर कदम के साथ उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। अंदर जाते ही उसने दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया और हाथ बांधकर आकर्ष को घूरने लगी।
"तो अब से मैं तुम्हारी ‘स्पेशल प्रोजेक्ट टीम’ में हूँ, है ना?" उसने व्यंग्य से कहा।
आकर्ष, जो अपनी कुर्सी पर बड़े आराम से बैठा था, वाणी की ओर देखता रहा। उसकी आँखों में वही शरारती चमक थी।
"हाँ, और ये बात तुम्हें जितनी जल्दी समझ आ जाए, तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा, Miss Attitude।" उसने जानबूझकर उसे और चिढ़ाने के लिए मुस्कुराते हुए कहा।
वाणी ने गहरी साँस ली और अपनी सीट खींचकर बैठ गई।
"ठीक है, तो मेरा काम क्या है?"
आकर्ष कुर्सी से उठा और धीरे-धीरे उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। उसकी तेज़ नज़रों ने वाणी की हर हरकत को स्कैन किया था।
"तुम्हारा पहला काम?" उसने वाणी के बालों की हल्की लट को अपनी उंगलियों में लपेटते हुए कहा, "मुझे एंटरटेन करना।"
वाणी ने झटके से सिर घुमाया और उसकी तरफ देखा।
"Excuse me?"
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ अपने हाथ पीछे बांध लिए।
"ओह, मेरा मतलब ये था कि तुम्हें मेरे साथ काम करना है… और मेरा काम थोड़ा अलग है।"
वाणी ने गहरी साँस ली और अपनी घड़ी देखी।
"अच्छा? तो बताओ, इस ‘अलग’ काम में करना क्या होता है?"
आकर्ष उसकी कुर्सी के पास झुका, उसके चेहरे के बहुत करीब आकर फुसफुसाया—"मेरी आँखों में देखना और बिना नजरें झुकाए मेरे सवालों का जवाब देना।"
वाणी को उसकी नज़दीकी से हल्की बेचैनी महसूस हुई थी, लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं थी। उसने ठंडी आँखों से उसे देखा और सीधे उसकी आँखों में घूरते हुए कहा—"अगर तुम्हें कोई असली काम नहीं है, तो मैं अपने डेस्क पर वापस जा रही हूँ।"
आकर्ष ने अपनी उंगलियों से उसकी कुर्सी के आर्मरेस्ट पर हल्की दस्तक दी।
"तुम्हारा डेस्क अब यही है, वाणी। तुम्हें मेरी आँखों के सामने रहना होगा।"
वाणी ने उसे घूरा और फिर एक शरारती मुस्कान आई।
"ठीक है, अगर यही खेल है तो खेलते हैं, Mr. Akarsh।"
परेशानी का पहला दौर शुरू हुआ।
वाणी ने अपना फोन निकाला और ज़ोर-ज़ोर से म्यूजिक चला दिया।
आकर्ष ने भौंहें उठाईं।
"ये क्या है?"
वाणी ने लापरवाही से कंधे उचकाए।
"तुमने कहा था कि तुम्हें एंटरटेन करना है, तो अब यही होगा!"
आकर्ष ने हल्का सा सिर झुकाया और कुर्सी पर बैठते हुए आँखें मिचकीं।
"Interesting... लेकिन चलो, देखते हैं कौन किसे ज़्यादा परेशान कर सकता है।"
वाणी ने मज़े से अपना फोन घुमाया, और अपनी कुर्सी पर पाँव रखकर बैठ गई, जैसे उसे कोई टेंशन ही न हो।
आकर्ष ने अपनी टाई ढीली की और फिर धीरे-धीरे वाणी के करीब आया।
"तुम मुझे परेशान करने की कोशिश कर रही हो, Miss Attitude?"
वाणी ने मुस्कान दबाई।
"क्या ये काम कर रहा है?"
आकर्ष ने अचानक झुककर उसके कान के करीब फुसफुसाया, "तुम्हें नहीं लगता कि ये उल्टा तुम्हारे ही लिए डेंजरस हो सकता है?"
वाणी का दिल ज़ोर से धड़क उठा था, लेकिन उसने खुद को संभाला।
"देखो, मुझे डराने की कोशिश मत करो, आकर्ष। मैं इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं हूँ।"
आकर्ष ने मुस्कराते हुए उसके बालों के पास उंगलियाँ फिराईं।
"तुम शायद ये भूल रही हो कि मैं भी हार मानने वालों में से नहीं हूँ।"
आकर्ष ने मुस्कराते हुए उसके बालों के पास उँगलियाँ फिराईं। "तुम शायद यह भूल रही हो कि मैं भी हार मानने वालों में से नहीं हूँ।"
वाणी ने भी उसकी बात सुनकर कहा, "मैं भी इतनी जल्दी हार नहीं मानूँगी।" इतना बोलकर वह अपने डेस्क पर बैठ गई।
वाणी अपने डेस्क पर बैठकर काम करने लगी और मन ही मन आकर्ष को कोस रही थी। वहीं आकर्ष उसे देखकर अपने मन में बोला, "तुम पहली लड़की हो जिसने मेरे साथ ऐसा बर्ताव किया। देखता हूँ कितनी देर तक तुम दिखावटी रहती हो। देखना, एक दिन तुम्हें जरूर अपना बनाऊँगा और फिर..." इतना सोचते हुए उसके चेहरे पर एक किलर स्माइल आ गई।
आकर्ष ने उसे ढेर सारी फाइलें काम करने के लिए दे दी थीं। काम करते-करते उसे पूरा दिन लग गया। गरीब वाणी रात के दस बजे वहाँ से निकली।
वाणी ऑफिस से बाहर निकली और ऑटो की तरफ़ बढ़ी, लेकिन तभी उसने देखा—ऑटो के टायर पंक्चर थे। उसकी आँखें गुस्से से सिकुड़ गईं।
"अभी तक तो ठीक थे! अब अचानक क्या हो गया?" उसने खुद से बड़बड़ाते हुए ऑटो वाले को देखा, जिसने लाचारी से कंधे उचका दिए।
और फिर, जैसे किसी ने उसकी परेशानी में और तड़का लगाया हो, पीछे से वही जानी-पहचानी आवाज़ आई—
"कोई दिक्कत है, Miss Attitude?"
वाणी ने गहरी साँस ली और पलटी। आकर्ष अपनी गाड़ी के पास खड़ा था, चेहरे पर वही हल्की मुस्कान।
"तुमने किया है ना यह सब?" उसने सीधा सवाल दागा।
आकर्ष ने मासूमियत से भौंहें उठाईं। "तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?"
"क्योंकि तुम्हारे अलावा और कौन इतना नीच गिर सकता है?" वाणी ने तंज कसा।
आकर्ष हल्का हँसा। "अगर नीचे गिरने की बात है, तो फ़िलहाल तुम फँसी हो, मैं नहीं। वैसे, अगर लिफ़्ट चाहिए, तो मैं हूँ ना।"
वाणी ने उसे घूरा। "तुम्हारी गाड़ी में बैठने से अच्छा मैं पैदल चली जाऊँगी!"
आकर्ष ने सिर झुकाकर ताली बजाई। "वही तो चाहता हूँ। देखता हूँ, तुम कितनी दूर तक चल सकती हो।"
वाणी ने गुस्से से पैर पटका और दूसरी तरफ़ देखने लगी, और उधर की तरफ़ जल्दी-जल्दी चलने लगी।
रात का सन्नाटा था, सड़कें लगभग सुनसान। वाणी अकेली तेज़ कदमों से चल रही थी। उसके चेहरे पर हल्की झुंझलाहट थी।
"हद है! मैं खुद को संभाल सकती हूँ, किसी आकर्ष की ज़रूरत नहीं! लोग समझते क्यों नहीं कि लड़कियाँ कमज़ोर नहीं होतीं? वैसे भी मुझे उस ठरकी और बदतमीज़ इंसान की ज़रूरत नहीं है। उसकी वजह से आज मैं यहाँ फँसी हूँ।"
वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी, जब अचानक कुछ फुसफुसाते हुए आवाज़ें सुनाई दीं।
"अरे देखो, इतनी रात को अकेली लड़की!"
वाणी के कान खड़े हो गए। उसने सिर झुकाए बिना हल्का दाएँ-बाएँ देखा। सड़क किनारे तीन-चार लड़के खड़े थे। एक सिगरेट के कश ले रहा था, दूसरा मोबाइल पर कुछ देख रहा था, और तीसरा वाणी को घूर रहा था।
वाणी ने उन्हें नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन तभी उनमें से एक ने रास्ता रोक लिया।
"ओ मैडम, इतनी रात को अकेले घूमने का शौक़ है?"
वाणी ने गहरी साँस ली और बिना घबराए जवाब दिया—
"हट जाओ रास्ते से!"
लड़के हँसने लगे।
"अरे भाई, गुस्सा तो देखो! लगता है मैडम के पास खूब एटीट्यूड है!"
दूसरे लड़के ने मज़ाक उड़ाया।
वाणी का धैर्य टूटने लगा।
"तमीज़ से बात करो और रास्ता छोड़ो!"
लेकिन लड़कों की हँसी और बढ़ गई। एक ने आगे बढ़कर कहा—
"अरे ऐसे नहीं, हम तो बस मदद कर रहे हैं। इतनी रात को अकेली लड़की... कोई भी उठाकर ले जा सकता है!"
अब वाणी की आँखें गुस्से से भर गईं।
"और अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करेगा, तो वह वापस खड़ा नहीं हो पाएगा!"
लड़के एक-दूसरे को देखकर हँसने लगे।
"ओहो! इतनी बहादुर? चलो देखते हैं, यह बहादुरी कितनी देर चलती है!"
एक लड़के ने उसकी कलाई पकड़ने की कोशिश की। वाणी ने झटके से हाथ पीछे किया और बिना सोचे-समझे उसका हाथ पकड़कर इतनी ज़ोर से मरोड़ा कि लड़का दर्द से कराह उठा।
"आउच! कमीनी...!"
बाकी लड़के चौंक गए।
"लड़की हाथापाई भी कर सकती है, सोचा नहीं था ना?" वाणी तमतमाई हुई बोली।
"अबे, ज़्यादा नाटक कर रही है!"
एक लड़के ने उसकी तरफ़ बढ़ने की कोशिश की, लेकिन इस बार वाणी ने अपनी बैग से पेपर स्प्रे निकाला और एक लड़के की आँखों में मार दिया।
"आह! यह क्या किया साली!" लड़का तड़पता हुआ पीछे हटा।
अब माहौल पूरी तरह गरम हो चुका था। दो लड़के गुस्से में थे, लेकिन अब भी वाणी को कमज़ोर समझ रहे थे।
"अब तू बच नहीं पाएगी!"
एक लड़का झपटकर उसकी तरफ़ बढ़ा, लेकिन तभी—
"अगर अपनी हड्डियाँ सही-सलामत चाहिए तो एक कदम भी आगे मत बढ़ाना!"
आवाज़ इतनी भारी और ठंडी थी कि पूरे माहौल में सिहरन दौड़ गई।
वाणी ने पलटकर देखा।
आकर्ष!
चेहरे पर वही सख्त भाव, आँखों में वही आक्रोश।
लड़कों ने भी जब आकर्ष को देखा, तो उनके चेहरों का रंग उड़ गया।
अब असली खेल शुरू होने वाला था...
आकर्ष की आँखों में एक ठंडा गुस्सा था; ऐसा गुस्सा जो सामने वाले को उसकी औकात याद दिला देता।
वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा; उसकी हरकतों में एक खतरनाक ठहराव था।
"जो कहा, समझ में नहीं आया?" उसकी आवाज़ की गंभीरता ने उन लड़कों की हँसी को वहीं रोक दिया।
वाणी अब भी गुस्से में थी, लेकिन उसने राहत की साँस ली। हालाँकि, उसने इसे ज़ाहिर नहीं होने दिया।
लड़कों में से एक, जो अब भी अपनी जलती आँखों को मसल रहा था, गुर्राया—
"तेरा क्या लेना-देना है? यह मामला हमारे और इस मैडम के बीच का है!"
आकर्ष हल्का हँसा; एक ऐसा हँसी जो किसी भी लड़के की हिम्मत को पिघला सकती थी।
"मामला?" उसने गर्दन टेढ़ी करते हुए उन्हें घूरा। "तुम लोग कौन होते हो इस लड़की से ‘मामला’ बनाने वाले?"
एक लड़का अब भी अकड़ दिखाने की कोशिश कर रहा था। "देख भाई, ज़्यादा हीरो मत बन! जो करना है, कर ले वरना—"
आकर्ष ने कोई जवाब नहीं दिया। अगले ही पल वह इतनी तेज़ी से आगे बढ़ा कि किसी को समझ ही नहीं आया, और इससे पहले कि लड़का कुछ सोच पाता, आकर्ष का मुक्का उसकी नाक पर पड़ चुका था।
"आह्ह!" लड़का ज़मीन पर गिर पड़ा; उसकी नाक से खून बहने लगा।
बाकी लड़के घबरा गए।
"अब बोलो, क्या कह रहे थे?" आकर्ष ने अपनी कलाई घुमाते हुए पूछा।
वाणी का चेहरा भी अब हैरान था। वह जानती थी कि आकर्ष घमंडी है, ज़िद्दी है, लेकिन इतना खतरनाक?
लड़के समझ गए थे कि अब खेल उनके बस का नहीं।
एक ने अपना दोस्त उठाया और बोला, "चलो भागो यहाँ से!"
बाकी लड़के भी भागने लगे।
आकर्ष ने एक लम्बी साँस ली और फिर वाणी की तरफ़ देखा।
"बोलो, शुक्रिया कहोगी या अब भी अपने एटीट्यूड में ही रहोगी?"
वाणी ने हथेलियाँ भींचीं और जवाब दिया, "अगर तुम मुझे बीच में टोकने के बजाय पहले आ जाते, तो शायद यह सब ज़्यादा जल्दी खत्म हो जाता!"
आकर्ष ने सिर हिलाया। "मैं देखना चाहता था कि Miss Attitude खुद कितना संभाल सकती हैं। और मुझे कहना पड़ेगा, तुम्हारी फाइटिंग स्किल्स काफ़ी अच्छी हैं।"
वाणी ने उसे घूरा। "मुझे तुम्हारी तारीफ़ की ज़रूरत नहीं है। और वैसे भी, मैं अकेले भी मैनेज कर सकती थी!"
आकर्ष ने होंठ भींचते हुए सिर झुका लिया। "हाँ, दिख ही रहा था... वैसे अगली बार, इतनी रात को अकेले निकलने की ज़रूरत नहीं है। तुम जैसी ज़िद्दी लड़कियों को बचाने का काम काफ़ी थकाने वाला होता है!"
वाणी ने एक गहरी साँस ली और पलटी। "अब जा रही हूँ, और किसी फेवर की उम्मीद मत करना!"
लेकिन जैसे ही उसने कदम आगे बढ़ाया, आकर्ष ने उसकी कलाई पकड़ ली।
वाणी चौंक गई। "अब क्या?"
आकर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
"तुमने अभी तक नहीं पूछा कि मैं यहाँ इतनी रात को क्या कर रहा था?"
वाणी ने उसे सवालिया नज़रों से देखा।
आकर्ष ने उसकी कलाई छोड़ी और जेब में हाथ डालते हुए हल्की आवाज़ में बोला—
"शायद... तुम्हारी सुरक्षा मेरी ज़िम्मेदारी बन चुकी है, Miss Attitude!"
वाणी का दिल एक पल को तेज़ी से धड़का। लेकिन अगले ही सेकंड उसने खुद को सम्भाला और तेज़ी से आगे बढ़ गई।
आकर्ष उसे जाते हुए देखता रहा, चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल के साथ।
"देखता हूँ, कब तक खुद को दूर रख पाती हो..." उसने खुद से कहा और अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ गया।
आकर्ष कार का दरवाज़ा खोलने ही वाला था कि उसकी नज़र फिर से वाणी पर गई। वह तेज कदमों से जा रही थी, लेकिन उसकी चाल में हल्की बेचैनी थी।
"इतनी जल्दी पीछा छुड़ा लिया?" आकर्ष ने हल्के से मुस्कुराते हुए खुद से कहा।
वाणी गली के कोने पर जाकर एक ऑटो रोका, लेकिन रात के उस पहर कोई रुकने को तैयार नहीं था। वह हर गुज़रती गाड़ी को देख रही थी, और फिर धीरे-धीरे उसका गुस्सा बढ़ने लगा।
आकर्ष ने कार की सीट पर हाथ रखकर एक गहरी साँस ली।
"ज़िद्दी तो बहुत है... पर बेवकूफ़ भी नहीं होनी चाहिए थी!"
वाणी ने अपना फ़ोन निकाला और किसी का नंबर डायल किया, लेकिन शायद सामने वाले ने कॉल नहीं उठाया। उसने फ़ोन बंद किया और मायूसी से सड़क पर निगाहें टिका दीं।
आकर्ष ने सिर झटकते हुए कार स्टार्ट की और धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। वाणी ने कार की आवाज़ सुनी, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया।
कार उसके पास आकर रुकी।
"मैडम, इतनी रात को अकेले खड़ी रहने का कोई शौक़ है क्या?" आकर्ष ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए पूछा।
वाणी ने गहरी साँस ली और बिना उसकी तरफ़ देखे बोली, "तुम जाओ आकर्ष, मुझे तुम्हारी मदद नहीं चाहिए। मैं मैनेज कर लूँगी।"
आकर्ष हल्का सा हँसा। "हाँ, वही तो देख रहा हूँ कि कैसे ‘मैनेज’ कर रही हो। अभी भी दो ऑटो वालों ने हाथ हिलाकर मना कर दिया, और जो कॉल कर रही थी, उसने भी कॉल नहीं उठाई। क्या प्लान है अब?"
वाणी ने कोई जवाब नहीं दिया।
आकर्ष ने कार का दरवाज़ा खोला। "बैठो।"
वाणी ने उसे घूरा। "मैंने कहा ना, मैं खुद चली जाऊँगी!"
आकर्ष ने सिर झुकाकर हल्का सा मुस्कुराया। "और मैंने कहा ना, बैठो। ज़िद करने का कोई मतलब नहीं है, मिस एटीट्यूड! मैं तुम्हें छोड़ दूँगा और फिर तुम अपने इस एटीट्यूड के साथ घर में जाकर जो चाहे कर सकती हो।"
वाणी कुछ सेकंड तक उसे देखती रही। वह जानती थी कि अगर उसने और देर की, तो आकर्ष ज़बरदस्ती भी कर सकता है, और अभी उसके पास कोई और चारा नहीं था।
उसने गहरी साँस ली और कार का दरवाज़ा खोलकर बैठ गई।
आकर्ष ने बिना कुछ कहे गाड़ी आगे बढ़ा दी।
कुछ मिनट तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही।
फिर अचानक आकर्ष ने कहा, "वैसे, तुम्हारे हाथ काँप रहे हैं। डर तो तुम्हें भी लगा था ना?"
वाणी ने तुरंत अपने हाथों को मुट्ठियों में भींच लिया। "बिलकुल नहीं!"
आकर्ष ने हल्की हँसी दबाई। "ओह रियली? तो फिर गुस्से में क्यों बैठी हो? रिलैक्स, मिस एटीट्यूड... मैं तुम्हें जज नहीं कर रहा। बस इतना कह रहा हूँ कि, मुझ पर गुस्सा करने से पहले एक बार सोच लिया करो, वैसे तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो!"
वाणी ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, "मुझे किसी पर भरोसा करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अकेले ही ठीक हूँ।"
आकर्ष ने हल्के से सिर हिलाया। "हाँ, दिख ही रहा था..."
वाणी ने उसे घूरा, लेकिन इस बार आकर्ष ने जवाब में सिर्फ़ हल्की मुस्कान दी।
"वैसे... तुम सच में सोच रही थी कि मैं तुम्हें अकेले छोड़ दूँगा?"
वाणी ने कुछ नहीं कहा।
आकर्ष ने गाड़ी उसकी गली के बाहर रोकी।
"अब जाओ, और हाँ..." उसने थोड़ा झुककर उसे देखा, "अगली बार अकेले घूमने का प्लान हो, तो मुझे पहले बता देना, ताकि मैं टाइम से तुम्हारी ‘मैनेजिंग स्किल्स’ देखने आ सकूँ!"
वाणी ने गहरी साँस ली, दरवाज़ा खोला और बाहर निकल आई।
लेकिन जब वह जाने लगी, तो आकर्ष की आवाज़ फिर से आई—
"और हाँ, मिस एटीट्यूड..."
वाणी पलटी।
आकर्ष ने हल्की आवाज़ में कहा—
"मुझसे बचने की कोशिश मत करना। मैं तुम्हारे करीब नहीं आना चाहता... लेकिन दूर भी नहीं जा सकता!"
वाणी की धड़कन तेज़ हो गई, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और तेज़ी से घर की तरफ़ बढ़ गई।
आकर्ष उसे जाते हुए देखता रहा, होंठों पर हल्की मुस्कान के साथ।
रात की खामोशी और बढ़ती उलझन
आकर्ष ने कार की सीट पर पीछे सिर टिकाया और गहरी साँस ली। उसकी नज़र अब भी वाणी पर थी, जो तेज़ कदमों से अपने घर की ओर जा रही थी। उसकी चाल में अभी भी हल्की-सी बेचैनी थी, जो आकर्ष की नज़रों से छिपी नहीं थी। होंठों पर हल्की मुस्कान लिए उसने कार का दरवाज़ा खोला और एक आखिरी नज़र वाणी पर डालकर गाड़ी स्टार्ट कर दी।
लेकिन जैसे ही उसने गाड़ी आगे बढ़ाई, वाणी अचानक रुकी।
आकर्ष ने भी ब्रेक दबाया।
वाणी ने अपने फोन की स्क्रीन पर नज़र डाली और फिर झुंझलाकर उसे वापस बैग में डाल लिया। शायद उसे अब भी किसी का कॉल बैक आने की उम्मीद थी।
आकर्ष ने हल्के से सिर हिलाया और खुद से बुदबुदाया, "ज़िद्दी लड़की…"
फिर जैसे ही वाणी ने फिर से अपने घर की ओर कदम बढ़ाए, पास की गली से दो परछाइयाँ निकलीं। दो आदमी, जिनकी चाल में अजीब-सा संकोच था। उन्होंने एक-दूसरे को देखा और फिर वाणी की ओर बढ़ने लगे।
आकर्ष की नज़र तुरंत उन पर गई। उसका चेहरा गंभीर हो गया।
वाणी को शायद अभी तक उनकी मौजूदगी का एहसास नहीं हुआ था। वह बस अपने खयालों में उलझी, घर के गेट तक पहुँचने ही वाली थी। लेकिन तभी, उन दोनों में से एक ने अपनी चाल तेज़ की।
"मैडम, अकेले घूमने का बड़ा शौक़ है?" उनमें से एक ने एक अजीब से लहजे में कहा।
वाणी चौंककर मुड़ी और उन्हें देखते ही उसके चेहरे पर हल्की घबराहट आ गई।
"कोई दिक्कत है?" उसने सख्त लहज़े में पूछा।
दूसरा आदमी हँस पड़ा, "अरे नहीं नहीं, दिक्कत तो हमें होगी अगर तुम ऐसे ही चली गईं! इतनी रात को अकेली लड़की… मदद की ज़रूरत तो होगी ही?"
वाणी को अब उनकी नियत साफ़ समझ आ गई थी। उसने तुरंत अपने बैग से फोन निकालने की कोशिश की, लेकिन तभी पहले आदमी ने आगे बढ़कर उसका रास्ता रोक लिया।
"अरे, फोन-वोन की क्या ज़रूरत है, मैडम? हम खुद तुम्हें घर छोड़ देंगे!"
वाणी ने पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन तभी अचानक एक ज़ोरदार हॉर्न बजा।
तीनों ने उस ओर देखा।
आकर्ष की कार ठीक उनके सामने रुकी थी। उसकी आँखें गुस्से से भरी हुई थीं, और चेहरा सख्त।
वह धीरे-धीरे गाड़ी से उतरा।
"बहुत बड़ी गलती कर दी तुम लोगों ने…" उसकी आवाज़ धीमी मगर ठंडी थी।
दोनों आदमियों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और हँस दिए। "ओहो, कोई हीरो लग रहा है!"
लेकिन उनकी हँसी अगले ही पल गायब हो गई, जब आकर्ष ने बिना कोई चेतावनी दिए, सामने वाले आदमी का कॉलर पकड़ा और उसे धक्का देकर दीवार से चिपका दिया।
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?" उसकी आवाज़ अब खतरनाक थी।
दूसरा आदमी तुरंत वाणी की ओर बढ़ने लगा, लेकिन इस बार वाणी पीछे नहीं हटी। उसने झटके से अपने बैग से पेपर स्प्रे निकाला और सीधे उसकी आँखों में छिड़क दिया।
"आह!" वह आदमी दर्द से चिल्लाया।
आकर्ष ने पहले आदमी को छोड़ा और दूसरे की तरफ़ बढ़ा, लेकिन तब तक वह भाग चुका था। पहला आदमी भी घबराकर पीछे हटा और लंगड़ाते हुए गली के अंधेरे में गायब हो गया।
वाणी ने तेज़ी से साँस ली और अपने हाथों को कसकर मुट्ठी में भींच लिया।
आकर्ष ने उसकी ओर देखा, "तुम ठीक हो?"
वाणी ने गहरी साँस ली और बिना उसकी ओर देखे सिर हिलाया। "हाँ…"
"हाथ काँप रहे हैं," आकर्ष ने हल्के से कहा।
"नहीं काँप रहे!" वाणी ने झट से जवाब दिया और अपने हाथ पीछे कर लिए।
आकर्ष ने हल्की मुस्कान दी, "Oh really?"
वाणी ने उसे घूरा, "शुक्रिया बोलने वाली थी, पर अब नहीं बोलूँगी!"
आकर्ष ने सिर झुकाकर मुस्कुराया, "तुम्हारे 'शुक्रिया' की कोई ज़रूरत नहीं, Miss Attitude। लेकिन अगली बार इस तरह अकेले मत घूमना।"
वाणी ने कुछ नहीं कहा और बस अपने घर की ओर बढ़ गई।
आकर्ष वहीं खड़ा उसे जाता हुआ देखता रहा।
वाणी के कदम ठिठके, जैसे उसने कुछ सुना हो। लेकिन उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
और आकर्ष… उसे जाते हुए देखता रहा, हल्की मुस्कान और गहरी बेचैनी के साथ।
आकर्ष ने गहरी साँस ली और गाड़ी स्टार्ट कर दी। उसकी पकड़ स्टीयरिंग पर और मज़बूत हो गई थी, जैसे वह खुद को कुछ याद करने से रोकना चाह रहा हो।
"उसे भूल जाना चाहिए मुझे..." उसने खुद से कहा और गाड़ी तेज़ी से होटल की तरफ़ मोड़ ली।
रात गहरी हो चुकी थी, लेकिन मुंबई की सड़कों पर अब भी हलचल थी। गाड़ी की हेडलाइट्स सड़क पर पड़ती रोशनी को चीरते हुए आगे बढ़ रही थीं, मगर आकर्ष का दिमाग कहीं और था। वाणी... उसकी सख्त आँखें, उसकी नाराज़गी, उसकी वह ज़िद, जो कभी उसे चिढ़ाती थी, आज अजीब सा खिंचाव पैदा कर रही थी।
वह जितना खुद को समझाने की कोशिश कर रहा था कि वाणी कोई ख़ास नहीं है, उतना ही वह उसके ज़ेहन में उतरती जा रही थी।
आकर्ष ने स्टीयरिंग पर जोर से हाथ मारा और गाड़ी एक लग्ज़री होटल के सामने लाकर रोकी। वह जानता था कि अब उसे कुछ चाहिए था—शराब, म्यूजिक, और कोई भी चीज़ जो उसका ध्यान भटका सके।
वह सीधे लॉबी क्रॉस करता हुआ होटल के लाउंज बार में आ गया। हल्की मद्धम रोशनी, बैकग्राउंड में स्लो जैज़ म्यूजिक और टेबल्स पर बैठे लोग—कुछ अकेले, कुछ किसी के साथ, और कुछ उसकी तरह... शायद खुद से भागने आए थे।
वह बार काउंटर के पास जाकर बैठा और उँगलियों से टेबल पर हल्की थाप दी।
"एक वोडका देना, स्ट्रॉन्ग!"
बारटेंडर ने हल्की मुस्कान के साथ ग्लास भरा और उसके सामने रख दिया।
आकर्ष ने ग्लास उठाया, एक लंबा घूँट लिया। जलन गले से होते हुए उसके सीने तक उतर गई, मगर दिमाग से वह चेहरा फिर भी नहीं गया।
वाणी।
उसकी यादें जितनी पीछे छोड़नी चाहता था, उतनी ही तेज़ी से उसे घेर रही थीं। उसने एक और घूँट लिया, और ज़बरदस्ती अपना ध्यान बार में मौजूद लड़कियों पर लगाया।
तभी एक लड़की उसकी बगल में आकर बैठी। लाल रंग की शॉर्ट ड्रेस, लहराते हुए लंबे बाल और चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान।
"Hey handsome, alone?" लड़की ने हल्के नशे में मुस्कुराते हुए पूछा।
आकर्ष ने एक नज़र उस पर डाली और होंठों पर हल्की स्माइल आई।
"For now."
लड़की उसकी ओर झुकी, उसकी टाई के साथ खेलते हुए बोली, "That’s a shame… किसी को तुम्हारा साथ देना चाहिए, right?"
आकर्ष ने हल्की हँसी ली, आँखों में एक शरारत थी।
"Depends… तुम कितना अच्छा साथ दे सकती हो?"
लड़की ने अपनी उँगलियाँ उसकी हथेली पर रखीं, उसकी उंगलियाँ हल्के-हल्के सहलाने लगीं।
"Try me."
आकर्ष ने ग्लास होंठों तक लाया, एक और घूँट लिया और सिर हिलाया।
"Well, let’s see."
लड़की ने उसका हाथ पकड़ा, और हल्के नशे में झूमती हुई बोली, "Let’s dance?"
आकर्ष ने बिना सोचे ग्लास खाली किया और उसके साथ डांस फ्लोर की ओर बढ़ गया।
डांस फ्लोर पर बढ़ती नज़दीकियाँ
बीट्स तेज़ थीं, रोशनी रंग बदल रही थी, और उनके बीच नज़दीकियाँ बढ़ रही थीं। लड़की उसकी बाहों में थी, उसकी साँसों की गर्मी उसकी गर्दन पर महसूस हो रही थी।
लड़की ने उसके सीने पर हाथ रखा और उसकी आँखों में देखा।
"You’re a mystery, aren’t you?"
आकर्ष ने हल्के से उसकी ठोड़ी पकड़ी और उसे अपने करीब खींचा। उसके होंठ लड़की के क़रीब आ रहे थे...
"आकर्ष..."
एक जानी-पहचानी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
उसने अपनी आँखें खोलीं।
सामने वह लड़की नहीं थी... वाणी थी।
वही आँखें, वही चेहरे की हल्की झुंझलाहट, वही खामोशी।
आकर्ष का दिल एक पल को तेज़ धड़क उठा।
"Shit..." उसने खुद को पीछे खींचा।
लड़की ने भौंचक्के होकर उसे देखा, "What happened?"
आकर्ष को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। उसका दिमाग चल रहा था, मगर दिल एक ही सवाल कर रहा था—
"मैं उसे क्यों देख रहा हूँ हर जगह?"
"Sorry, I need a break," कहकर वह वहाँ से हट गया।
वह वापस बार काउंटर की ओर बढ़ा, मगर इस बार शराब भी उसे उस चेहरे को भूलाने में मदद नहीं कर पा रही थी।
उसने एक और ड्रिंक ऑर्डर की, मगर गिलास हाथ में लेते ही दिमाग में फिर वही ख्याल...
"मैं तो तुम्हारे साथ ही इसलिए कर रहा था कि मैं तुमसे अपनी इंसल्ट का बदला ले सकूँ लेकिन तुम तो मेरे दिलो दिमाग पर अभी भी छा रही हो। ऐसा कैसे कर सकता हूँ मैं? कभी नहीं! मैं कभी किसी का नहीं हो सकता!"
उसने गिलास टेबल पर पटका और गहरी साँस ली।
वाणी उसकी सोच से बाहर नहीं जा रही थी।
कोई distraction काम नहीं कर रही थी।
क्योंकि उसकी सबसे बड़ी distraction... अब उसका सबसे बड़ा obsession बन चुकी थी।