ये कहानी है एक Criminal की, सिद्धांश जिंदल जो प्रिंसेस Ruh सिंघानिया को हुस्न को देखते वो बन चुका है Ruh का दीवाना , उसकी दीवानगी की कोई हद ना थी , और मौका मिलते ही वो कर लेता है उससे जबरदस्ती शादी , मगर रूह , जो खुद भी उस Criminal के प्यार में... ये कहानी है एक Criminal की, सिद्धांश जिंदल जो प्रिंसेस Ruh सिंघानिया को हुस्न को देखते वो बन चुका है Ruh का दीवाना , उसकी दीवानगी की कोई हद ना थी , और मौका मिलते ही वो कर लेता है उससे जबरदस्ती शादी , मगर रूह , जो खुद भी उस Criminal के प्यार में हो जाती है उसकी दीवानी , मगर दिल की बीमारी से झूझती हुई Ruh अपनी बीमारी का राज छिपा कर सिद्धांश दूरियां बनाए रखती है , But With lots of Intens Romance वो शिद्दत से Ruh को अपना बनाता है, लेकिन जब उसकी मोहब्बत मुक्कमल होती है तब जा कर सिद्धांश को मालूम पड़ता है, रूह कोई और नहीं उसके जानी दुश्मन की इकलौती बेटी है, तो देखते है मोहब्बत जीत पाएगी या नफरत ? sirf Story Mania पर
Ruh Singhniga
Heroine
Sidhanash jindal ,
Hero
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एड्रियाटिक सागर, वेनिस के निकट
रॉयल कैरिबियन आइकॉन ऑफ़ द सी
अथाह समुद्र जिसमें तेजी से उफान मारती गहरी लहरें थीं। गहरा सन्नाटा तक चीरने की ताकत रखने वाला वह समुद्र, जिसकी सीमा दूर-दूर तक नहीं थी, रात के अंधेरे में भयावह लग रहा था। ना जाने कितने ही राज दफन कर, वह समुद्र कितनों को ले डूबा होगा।
हर तरफ, जिस दिशा में भी देखो, भयानक अंधेरा छाया हुआ था। अंधकार के बीच, आसमान से चांदनी जगमगाते हुए रोशनी प्रदान कर रही थी। इसी बीच, गहरे सन्नाटे को चीरती हुई विश्व की सबसे बड़ी क्रूज़ शिप तेजी से अपने अगले गंतव्य, वेनिस की ओर बढ़ रही थी।
और विंटर का मौसम! कुंकनाती सर्द हवाएँ कड़ाके की ठंड का आभास करा रही थीं। बर्फ जमा देने वाली ठंड थी, पर यहाँ कुछ रोमांचक होने वाला था।
जिसके जिगर में जवानी का जोश भरा हो, उसे सर्द हवाओं का क्या असर कर सकता है? यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उस विशाल क्रूज़ के वेस्ट विंग में बने प्राइवेट कॉर्नर पर एक बड़ा स्विमिंग पूल, पूल पार्टी के लिए तैयार किया गया था। जिसमें मुश्किल से वार्म वॉटर की व्यवस्था की गई थी।
क्योंकि एक हसीन सी लड़की कड़ी ठंड से काँपने के बजाय, क्रूज़ के किनारे बने लाविश स्विमिंग पूल में छपाक से कूदने को तैयार थी। मगर उसकी बहन, जिसका खूबसूरत नाम हरनाज़ सिंघानिया था, अपनी छोटी बहन को घूरते हुए चेतावनी दे रही थी। मगर किसी की चेतावनी हो या कोई कानून, उसकी छोटी बहन को तोड़ने में उसे बड़ा मज़ा आता था।
आखिर अड़ियल तो थी ही। उसने अपनी बहन को जीभ दिखाते हुए, परफेक्ट स्विमिंग पोस्चर बनाकर छपाक से कूद गई। जिससे स्विमिंग पूल में पैर डाले बैठी हॉट गर्ल्स गैंग बिना पानी में गए, पानी के उड़ते हुए फव्वारे से भीग गईं।
"यूयूयूयूयूयूयूयू, छोटी बच्ची मार खाएगी, सच्ची! विल किल यू मुच्ची।"
तेज़ चीख हरनाज़ की थी, जिसे अपनी छोटी बहन को डाँटने का बस बहाना चाहिए था। बताएँ जरा कोई, हमारी छोटी बहन को उसकी बहन की डाँट सुनकर अलग ही एनर्जी बूस्टर मिलता था। जहाँ हरनाज़ ने अपनी बात कही, वहाँ छोटी बहन का रिएक्शन ना आए, ऐसा हो ही नहीं सकता था। पूल पार्टी में शामिल खूबसूरत लड़कियों ने ऑलिव ग्रीन कलर के स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहने हुए थे। उन्होंने उस हसीन लड़की को चियर अप करते हुए तेज आवाज़ में कहा,
"रु रु रु रु यू कैन डू इट। आज तो हो जाने दो, इन बड़ी अम्मा को लाइन पर ना लाया तो मैडम जी हमारी पार्टी खराब कर देंगी।"
उन लड़कियों की शिकायत सुनकर हरनाज़ क्रिस्टल ग्रे आँखों से अपनी कज़िन्स को घूरने लगी। जो छोटी बहन के साथ मिलकर हरनाज़ को दादी अम्मा कहा करती थीं।
अपना नाम चियर होते सुन, रुह स्विमिंग पूल की गहराई में कुशल तैराक की तरह तैरती हुई हरनाज़ के पैरों तक पहुँची। उसने हरनाज़ के नर्म पैरों को खींचकर स्विमिंग पूल में गिरा दिया। छपाक!
बिचारी दादी अम्मा हरनाज़ का ध्यान नहीं था। यही तो वह मौका था जिसे शरारती रुह ने अपने हाथ में ले लिया। अचानक हुए इस हमले से हरनाज़ पानी में डुबकी लगाते हुए झल्ला गई थी। मगर डाँट पड़ने से पहले ही उसकी छोटी बहन पानी से बाहर निकलकर फिर से कूद गई। जिससे बाकी लड़कियाँ भी ठहाका लगाती हुई, एक-एक करके अपने किमोनो उतारकर सेक्सी बिकिनी पहनकर पानी में कूद गईं।
"आह्ह्ह्ह छोड़ूँगी नहीं मैं, कहाँ हो तुम छोटी बहन? हाथ लग जाओ, अच्छे से कुटाई करूँगी। ज़्यादा बदमाशी हुई ना रिदान भाई के पास शिकायत जाएगी तुम्हारी, और तुम निधि पिद्दी, ज़्यादा दांत निकल रहे हैं क्या? क्या होगा जब मैं तुम्हारी शिकायत अरहम से कर दूँ? उसे जरा भी भनक लगी ना, साँसे रोक लेगा वो तुम्हारी।"
"और तुम छोटी बहन, हाथ आओ मेरे, आज तो पिटाई करके ही मानूँगी!"
बड़ी बहन होने का रौब कैसे दिखाएँ, कोई हरनाज़ से सीखे। सभी बहनों को धमकाने के लिए अलग-अलग तरीके पकड़े हुए सभी को धमकाया करती थी। फिर भला कोई दादी अम्मा कैसे ना कहे? यह नाम नहीं, उपाधि थी, जिसे सताई हुई बहनों की पार्टी ने खुद हरनाज़ को नवाज़ा था।
लेकिन आदत से मजबूर बनी हरनाज़ की बहनें, जो धमकियाँ सुन-सुनकर बेख़बर हो चुकी थीं, आस भरी निगाहों से "नाम कैसे बचाया जाए" इस नाम के गैंग लीडर यानी इस कहानी की मुख्य पात्र रुह की ओर देखने लगीं।
वही रुह, जिसका हुस्न देखते ही दुनिया एक पल में उसकी कायल हो जाती थी। उसका अंग-अंग तपता हुआ सोना था। उसकी मिल्की बटररी शाइनी स्किन पर ठहरी पानी की बूँदें सीप से निकले मोती की तरह चमक रही थीं। उसकी बेहद कर्वी बॉडी! कोई कैसे ना फिसले!
उसके छरहरे बदन पर स्पेशल निखार आता था उसके कॉलर बोन पर मौजूद पियर्सिंग में लगे दो स्टड्स से। ऊपर से चेरी रेड रंग की बिकिनी, उसका लुक फायर था!
(पियर्सिंग की पिक आपको व्हाट्सएप ग्रुप पर मिल जाएगी)
ना जाने उसका पोज़ेसिव दीवाना किस-किस से छुपाएगा?
वह एमरल्ड ग्रीन आँखों से अपनी बहनों को कुछ इशारा कर गई। जिसे समझकर निधि के साथ मौजूद दो लड़कियाँ पानी में डुबकी लगाकर बिना किसी पल गवाए हरनाज़ को डराने, उसकी ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगीं। और तभी रुह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई फिर से पानी में कूद गई। निधि और बाकी लड़कियों के साथ मिलकर अपनी बहन के पैरों को पकड़कर उसे नीचे खींचकर पानी में फिर से डुबो दिया। उसे डुबोते ही रुह खिलखिला कर हँस पड़ी, जिसका साथ देने निधि और बाकी लड़कियाँ भी ठहाका लगाने लगीं। बिचारी हरनाज़ आज तो सबकी कुटाई पक्की थी।
कुछ देर बाद,
हरनाज़ ठंडी हवाओं में काँपती हुई, दाँत किटकिटा रही थी।
"छो छो छो छोड़ूँगी नहीं मैं तुम्हें आज। रिदान से नहीं, बड़े डैडी से शिकायत होगी तुम्हारी, और तुम निधि अपनी खैर मानने तैयार रहना। आज तो अरहम छोड़ेगा नहीं तुम्हें। और तमन्ना हँस क्या रही हो? चलो मेरे साथ अपनी बड़ी दी को हेल्प करो। ये दोनों नहीं, सिर्फ़ तुम मेरी लाडली हो।"
हरनाज़ जो दरबदरुलु टाइप की बड़ी चुगलखोर थी, उसकी धमकाने वाली बातों से रुह को कोई फर्क नहीं पड़ा, मगर निधि की तो साँस फिर से रुकने को तैयार थी। आखिर अरहम का खौफ़ इतना था उस मासूम सी जान पर। अगर वह अरहम की बातों को टालने का सोच भी ले तो बिचारी किस्मत की मारी ऐसी-ऐसी सज़ाएँ पाती थी, जिसे सुनकर किसी को भी दया आ जाए। खैर...
वही हसीन सी रुह अपनी छोटी असिस्टेंट निधि के हाथ से जूस पीती हुई, अपने नाजुक से कर्वी बदन पर आई रोल कर रही थी। वह कातिलाना अदाओं से सिल्की ब्राउन सुनहरे बालों को झटकते हुए, एटीट्यूड से चलती हुई हरनाज़ के करीब आई। और अहंकारी लहज़े में अपनी मधुर आवाज़ में बोली,
"इस कायनात में दो ही नाम मशहूर हैं!"
"एक रुह सिंघानिया, सेकेंड रुह सिंघानिया का एटीट्यूड।"
"देन बहन, नेक्स्ट टाइम केयरफुल रहना, कहीं आपकी दी हुई धमकी आपकी शामत ना बुलवा ले। आखिर हमारे जीजू का हाथ मेरे सिर पर जो है, आपकी एक धमकी आपको किस किस हालत में डाल सकती है, उफ़्फ़ क्या कहूँ? (थोड़ी हसी आवाज़ में)"
"उनका स्वीट टॉर्चर सह नहीं पाओगी बहन। हाय आप तो जीजू के नाम को सुनते ही पानी-पानी हो जाती हैं, क्या सच में जीजू वाइल्ड हैं? आज तो आप मुँह खोल ही दो, हमारी बैठे-बिठाए ट्रेनिंग भी हो जाएगी। वैसे कौन-कौन सी पोज़िशन्स ट्राई की हैं आपने? हम्मम्मम्म बोलो बोलो।"
19 साल की रुह जो हज़ारजवाबी में बड़ी बवाल थी, मगर उतनी ही बेशर्म भी। उसकी ठरकी बातें सुन-सुनकर सबके कानों से धुआँ निकल आता था। बिचारी हरनाज़ कैसे ना शर्माती? वह सुर्ख लाल होकर अपनी छोटी बहन के सिर पर मारते हुए तेज़ी से भागती हुई बाथरूम में चली गई। जिससे रुह फिर से खिलखिला कर हँस पड़ी। मगर उसकी आँखों में क्लोरीनेटेड वॉटर से हो रही जलन उसे बार-बार परेशान कर रही थी। जिससे उसकी एमरल्ड ग्रीन आँखें अब डार्क रेड होने लगी थीं।
"दीदी आपकी आँखें कितनी ज़्यादा लाल हो चुकी हैं। आप रूम में जाएँ और आई ड्रॉप डाल लें। रिदान भाई देख लिये तो शायद दिक्क़त हो सकती है! मैं आपके साथ चलती हूँ!"
17 साल की नाजुक सी निधि रुह की आँखें लाल होते देख काफी परेशान हो चुकी थी। मगर रुह तो "आज ब्लू है पानी पानी पानी" के हुक स्टेप करती हुई बेपरवाही से ठंडी हवाओं का लुत्फ़ उठा रही थी। उसने निधि की अतिरिक्त देखभाल देख मुँह बनाकर कहा,
"तुम ना रिदान ब्रो की बातें ना करो। उन्हें कैसे हैंडल करना है, मुझ पर छोड़ दो। और ये क्या, तुम तो काँप रही हो पागल? खुद की कोई परवाह नहीं, बस सारा ध्यान मुझ पर रखना है। अब जाओ जल्दी चेक कर लो, वरना अरहम भाई को पता लग गया ना तो असली दिक्क़त तुम्हें हो जाएगी। पता नहीं क्या ऑब्सेशन है उन्हें तुमसे। अब जाओ छोटी सी जान, मैं भी रूम में जा रही हूँ। अब खुश?"
रुह निधि की मासूम आँखों से की हुई रिक्वेस्ट को नकार नहीं सकी। वह मुँह बिचकाए आँखों को मलते हुए लिफ़्ट की ओर चली गई जहाँ पाँचवें फ्लोर पर उसका रूम था। उसकी आँखों में क्लोरीनेटेड वॉटर से पैदा हुई जलन काफी ज़्यादा बढ़ चुकी थी।
"व्हाट द हेल, आखिर हो क्या रहा है? आह्ह्ह्ह कितनी ज़्यादा आँखें जल रही हैं! बहन ने कहा था मैंने ही नहीं माना, मगर रुह किसी की बात मान जाए, ऐसा हो सकता है? लेकिन ये तो सच में बहुत ज़्यादा जल रहा है, हूह्ह्ह्ह मम्मा क्या करूँ अब?"
जिसकी रगों में रणवीर सिंघानिया का खून दौड़ता हो, उसका मिज़ाज तूफ़ान ही होगा ना? लेकिन वह हुस्न की मल्लिका जो आँखों को मलते हुए अनजाने में छठे फ्लोर का बटन दबा गई। जिसे प्रेस कर वह अनजाने में ही किसी के ऑब्सेशन, पोज़ेशन और हंगरली एडिक्शन बनने वाली थी।
वह मस्त मलंग सी "मुझे तो तेरी लत लग गई, लग गई, ज़माना कहे लत ये गलत लग गई" फुल पार्टी मूड ऑन किए बिकिनी को कवर करते हुए बेबी पिंक किमोनो पहने, आँखों को मलती हुई अनजाने में ही रूम नंबर 105 में दाखिल हो गई। जिसका दरवाज़ा खुला होने पर भी वह ज़्यादा ना सोच पाई और धीमी-धीमी आवाज़ में गाना गुनगुनाते हुए वॉशरूम की ओर जाने लगी।
लेकिन दूसरी तरफ़,
उस आलीशान वॉशरूम के अंदर,
एक शख्स जो स्पेशली डिज़ाइन किए गए आलीशान वॉशरूम में हर दिशा से आ रही शॉवर की रिमझिम बूँदों में भीगते हुए किसी पुरानी यादों में खोया हुआ था। 6.6 फ़ीट की शानदार हाइट, शार्प जॉ लाइन, उस पर कहर ढाती हुई उसकी हॉट सिज़्ज़लिंग मस्कुलर बॉडी, 8 पैक्स परफेक्टली ग्रोन एब्स, उफ़्फ़, गले में उभर कर नज़र आ रहा एडम्स एप्पल, जिसमें पानी की बूँदें कुछ पल ठहर कर नीचे फिसलती जा रही थीं।
वह दिखने में कातिलाना था, लेकिन उसकी पर्सनैलिटी उससे भी ज़्यादा कातिलाना थी। आखिर चलता फिरता किलिंग मशीन कहना गलत नहीं होगा। उसका मिज़ाज इतना सख्त था कि लड़कियाँ छोड़ो, हट्टे-कट्टे बंदों की साँसें फूल जाएँ।
वह ना जाने कितनी ही देर से शॉवर में भीगते हुए किसी पुरानी यादों में खोया हुआ था। जिससे उसका तन-बदन गुस्से में काँप रहा था। उसकी बंद निगाहों में 20 साल पहले हुई वह संवेदनशील घटना जिंदा सपने की तरह नज़र आ रही थी, मानो वह हादसा 20 साल पुराना नहीं, बस आज की ही बात हो।
फ्लैशबैक,
20 साल पहले,
दिल्ली, सफ़ेद पत्थर से बना एक महल, जिसके आसपास काली पठानी पहने कई सारे मूंछ वाले राइफल लिए सुरक्षा के लिए तैनात थे। हर तरह की टाइट सिक्योरिटी का इंतज़ाम किया गया था, जैसे किसी तूफ़ान को रोकने की तैयारी चल रही हो।
उसी सफ़ेद महल के गलियारे में एक खूबसूरत सी औरत अपने 8 साल के बेटे के पीछे भागती हुई किसी बात पर चिल्ला रही थी। और वह 8 साल का लड़का, जिसके चेहरे पर आज तक किसी ने छोटी सी मुस्कान भी नहीं देखी थी, वह बड़ी सी मुस्कान लिए तेज़ी से बंद कमरे की ओर बढ़ गया। जिसे ओपन करने के लिए ना जाने क्यों वह बेताब सा था।
"सिद्धांश हमारी बात सुनो बच्चा, आप प्लीज़ वहाँ मत जाओ, आपके पापा ने देख लिया तो आपको मार पड़ जाएगी, और आपको कोई भी चोट पहुँचाए यह हम कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?"
यह सुरीली कोयल जैसी आवाज़ सिद्धांश की माँ सीमा की थी, जो अपने ज़ल्लाद पति राजवीर के डर से सिद्धांश को उसके रास्ते में ना आने के लिए कह समझा रही थी। मगर उस कमरे में बंद एक 9 महीने प्रेग्नेंट औरत से ना जाने क्यों सिद्धांश को अजीब सी अटैचमेंट महसूस हो रही थी।
वह 8 साल का बच्चा जो हर दम पढ़ाई में और टेक्नोलॉजी रिसर्च में इतनी कम उम्र से जुड़ा रहता था, जिसकी आँखों में किसी भी प्रकार का खौफ़ नहीं, ना कोई इमोशन्स थे, तो सिर्फ़ एक ज़िद।
मगर आज वह बाकी दिनों से मुख़्तलिफ़, बढ़ती धड़कनों से उस कमरे में जा पहुँचा। लेकिन सामने बैठी उस क्यूट सी 25 साल की प्रेग्नेंट लेडी का बेबी बम्प देखकर सिद्धांश कुछ पल ठहर सा गया। अनजाने ही उसकी आँखों में अजीब से इमोशन्स जागने लगे। हमेशा सीरियस मूड में रहने वाला सिद्धांश लम्बी सी स्माइल सजाए उस लेडी के बेबी बम्प को चूमने लगा।
ना जाने आखिर ऐसी क्या बात थी, मगर वह स्पेशल चाइल्ड जो बचपन से बाकी बच्चों के मुक़ाबले काफी ज़्यादा अलग था, आज पहली बार किसी बात को लेकर एक्साइटेड था। जिससे सीमा (सिद्धांश की माँ) भी खुद हैरान थी। यही हाल उस प्रेग्नेंट लेडी का था जो प्रेग्नेंसी में अगवा होने से काफी ज़्यादा घबरा चुकी थी। मगर सिद्धांश के स्पर्श को अपने पेट पर महसूस करते ही, उसकी कोख में पल रहे बच्चे ने पहली बार तेज़ी से मूवमेंट करना शुरू किया। जो उस प्रेग्नेंट लेडी, जिनका नाम सीरत था, उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।
तभी हैरानी का एक और झटका उन दोनों माँ को लगा जब उन्होंने सिद्धांश की बात सुनी।
"आंटी आज से यह बेबी मेरे पास ही रहेगा। सी, शी वांट्स टू कम आउट, आज से और अभी यह बेबी मेरा हुआ, मैं इसे अपने से दूर नहीं जाने दूँगा, शी विल बी माई डेस्टिनी।"
"तेरी धड़कन ही ज़िंदगी का किस्सा है मेरा,
तू ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है मेरा,
मेरी साँसें तुझसे जुड़ी हैं ये सिर्फ़ लफ़्ज़ों की कहानी नहीं,
तेरी रूह से रूह तक का रिश्ता है मेरा..!!
"रुह" यू विल कम सून इन माई आर्म।"
यह बेहद रोमांटिक दास्तान उस छोटे से 8 साल के बच्चे ने अपनी किस्मत में खुद लिखवाई थी। उसने कहे अल्फ़ाज़ों का असर उस कोख में पल रहे बच्चे पर भी होने लगा जिससे वह अपनी माँ सीरत के कोख में किक करने लगा। वही सिद्धांश जिसकी आयरिश ब्राउन आँखों में जुनून था, दिल को चीर कर रख देने वाली मुस्कान खिलाते हुए फिर से सीरत के बेबी बम्प को चूम गया।
वहाँ खड़ी उसकी माँ सीमा तो किसी सदमे में जा चुकी थी। खुद सीरत भी हक्की-बक्की सी उस बच्चे को देखने लगी। कि तभी कान फाड़ देने वाली और दिल दहला देने वाली आवाज़ उस महल में गूंजने लगी। आखिर उस क्यूट सी लेडी के किडनैपिंग का जवाब देने उसका शैतान पति आ गया था।
हर तरफ़ डार्क लॉर्ड के डेविल (अंडरवर्ल्ड के बादशाह) खूंखार आदमी फैले हुए थे। और कुछ पल में ही महल में मौजूद हर इंसान मौत के मुँह में गिर गया था।
कुछ पल बाद,
वह धमाकेदार माहौल अब सन्नाटे में तब्दील हो चुका था। कि तभी एक और नज़ारा सिद्धांश की आँखों में तैरने लगा। वह मंज़र जो सिद्धांश की आँखों में हमेशा के लिए छप चुका था।
वह मंज़र था एक औरत की मौत का, जिसका सिर धड़ से अलग हो चुका था। और एक 8 साल का बच्चा अपनी माँ के सिर को गोद में पकड़े बिना आवाज़ किए बस उस इंसान को देख रहा था जो उस क्यूट सी प्रेग्नेंट लेडी को अपनी गोद में उठाए भारी कदमों से महल के बाहर ले जा रहा था। और वह लड़का जो और कोई नहीं सिद्धांश ही था, वह एकटक उसके बेबी बम्प को देख दिल दहला देने वाली तेज आवाज़ में बोला,
"डार्क लॉर्ड मेरी माँ की मौत का बदला तेरा पूरा खानदान तिल-तिल मरकर चुकाएगा। और वो जो इस दुनिया में अब तक नहीं आई है उसे चाहे जितना छिपा ले, उसे तो आना मेरे पास ही है। एक बार, बस एक बार मेरी नज़रों में वो आई, याद रखना उसका चेहरा देखने के लिए भी मोहताज़ हो जाओगे।"
"यू कैन हाइड हर फ्रॉम मी, बट कांट प्रोटेक्ट फ्रॉम मी।"
इन बातों को भले ही डार्क लॉर्ड चाहकर भी नज़रअंदाज़ ना कर सके। उसकी आँखों में तपती आग और बुलंद आवाज़ में वह जुनून था कि माफ़िया किंग कुछ पल हैरान रह गए।
वह कड़वी याद में आज का अस्तित्व खोकर 28 साल का सिद्धांश पूरे 3 घंटे पानी में भीग रहा था। कि तभी उसे दर्द भरी यादों से बाहर निकालने एक लड़की उस स्टीम से भरे वॉशरूम में आ पहुँची।
जिसके मिल्की बॉडी पर चेरी रेड बिकिनी जो डोरियो के सहारे उसके बदन पर टिकी हुई थी। वह लॉन्ग किमोनो उतारकर 2 पीस स्टनिंग बिकिनी में सीधा शॉवर रूम में चली गई।
"मामा, आई एम इन लव विद ए क्रिमिनल
एंड दिस टाइप ऑफ़ लव इज़्ज़न्ट रैशनल, इट्स फिजिकल!"
यह गाना गुनगुनाती हुई हैवी ब्लॉसम को कुछ पल राहत देने, उसने कुछ ना सोचे डोरियो खींच दी। और गोरे पैरों को किसी मोरनी की तरह थिरकाते हुए वह शॉवर में भीगने लगी। मगर वह सोए हुए शेर की गुफा में किसी नर्म मांस की तरह चली पड़ी थी।
और अचानक से उसकी पीठ एक शख्स से जा लगी जो पुरानी दर्द भरी यादों में मशगूल घायल शेर बन चुका था। मगर रुह के बदन की नर्माहट, उसकी वनीला खुशबू सिद्धांश की साँसों में घुलने लगी। वह भारी साँसों से उसे सूँघते हुए अनजाने ही उसकी कमर पकड़ गया।
जिससे वह मासूम सी शेरनी पूरी तरह से सन्न रह गई।
"हर हार्ट स्किप्ड टू बीट।"
बिचारी के बदन पर कपड़े का कोई कतरा नहीं था। वही सिद्धांश जिसकी आँखें अब तक बंद ही थीं, वह तेज़ी से उसकी खुशबू सूँघते हुए, मक्खन जैसी कमर एक्सप्लोर करते हुए ऊपर की ओर बढ़ गया। जिससे हमारी नन्ही जान बस ऊपर टपकने वाली थी कि तभी सिद्धांश के हाथों में वह खज़ाना लग गया जिसकी कल्पना उसने दूर-दूर तक नहीं की थी।
क्योंकि वह नर्म, सुपर सॉफ्ट, राउंड, हैवी, बाउंसी असेट्स सिद्धांश के चौड़े हाथों में बिना किसी लिबास के फिट थे। उफ़्फ़ जान ले ली इस बंदे ने हमारी नाजुक सी रूह की। तभी उसकी जान निकलने से पहले सिद्धांश ने इटैलियन में कहा,
"बेल्लिसीमा!" (ख़ूबसूरत)
क्रूज़,
किसी के सख्त दिल को भी अंदर तक चीर के रख देने वाली ऐसी दर्द भरी यादों में खोया हुआ एक शख्स था। उसकी बंद आइरिश ब्राउन आँखों के सामने बीस साल पहले हुए उस हादसे की एक-एक कड़ी क्रिस्टल क्लियर नज़र आ रही थी। जैसे-जैसे वो दिल दहला देने वाला हादसा उसकी बंद आँखों से गुज़र रहा था, ठीक वैसे ही उसकी आँखों की पुतलियाँ इधर-उधर मूव हो रही थीं। उसकी बढ़ती बेचैनियों के चलते वो बंदा गहरी-गहरी साँसें भर रहा था।
यही वो कारण था कि पिछले तीन घंटों से वो शावर रूम के अंदर तन्हाई के आलम में डूबा हुआ था। उसे इस पल शिद्दत से किसी अपने की ज़रूरत महसूस हो रही थी। आखिर उसकी ज़िंदगी जो अधूरी थी, फैमिली के नाम पर बस मासी-माँ और मौसा जी थे, जिनसे मिलने में सिद्धांश को कोई खास रुचि नहीं थी। मगर अपने भाई-बहनों के लिए वो साल के 365 दिनों में कुछ पल निकाल ही लेता था। बाकी थी तो बस तन्हाई।
मगर आज नियति को शायद कुछ और मंज़ूर था। यकीनन सिद्धांश की किस्मत बदलने का वो वक्त आ गया था, क्योंकि जिस रूमानी दास्तान को उसने मात्र आठ साल की उम्र में लिखा था, उसी दास्तान की मुख्य किरदार अनजाने में ही उस भूखे बब्बर शेर के पास नर्म-नर्म गोश्त बनकर आ पहुँची थी।
उसके नाज़ुक, हसीन बदन पर वो टू-पीस बिकिनी क्या उसे चुभ रही थी? जो उसने बिना सोचे-समझे एक झटके में उतार दी। ये लड़की तो आज गई, लिख के ले लो!
अब रूह के मुताबिक शावर रूम में आकर कोई ड्रेस पहनकर नहा ले तो सीधा पाप चढ़ता था! वो अपनी धुन में मस्त, बिना ड्रिंक के टल्ली हुए, अपर जिस्म को कुछ पल आज़ाद किए। शावर में भीगते हुए आँखों की इरिटेशन कम होने लगी। गहरे धुंध की वजह से उसे कुछ खास नज़र नहीं आया। वो धीमे-धीमे से गुनगुनाती हुई, कमर मटकाती, सुनहरे बालों को बार-बार पीछे धकेल रही थी।
"He is a hustler, he's no good at all
He is a loser, he's a bum, bum, bum, bum
He lies, he bluffs, he's unreliable
He is a suck*er with a gun, gun, gun, gun!"
ये कहते हुए वो बिल्कुल अनजान थी कि जिस गाने के बोल वो अनजाने में कह रही है, वही क्रिमिनल उसकी डेस्टिनी है, आज से नहीं, वो भी बचपन से। वही सिद्धांश जो जहीन यादों के मझधार में फँसा हुआ था, रूह की मंत्रमुग्ध करने वाली आवाज़ धीमे-धीमे सुनकर उसकी धड़कनें तेज रफ्तार पकड़ने लगीं। उसकी बेचैन आँखें जो नफ़रत से लाल थीं, वो धीरे-धीरे अपना असली रंग लेने लगीं, जैसे रूह की करीबी उस दैत्य के लिए कोई जड़ी-बूटी हो। वो बिना हिले उस लड़की की मौजूदगी से उठती वेनिला खुशबू गहरी साँसों में उतरने लगा।
"But mama I'm in love with a criminal
And this type of love isn't rational, it's physical
Mama please don't cry, I will be alright
All reason aside I just can't deny, I love the guy"
वही रूह, जिसे कुछ नज़र ना आया, वो बेकायदे से गुनगुनाती, मोरनी की तरह थिरकती हुई, हर तरफ़ से गिर रहे शावर के पानी में अपनी लंबी जुल्फ़ों को लहरा रही थी। साथ ही साथ अपने ग्लॉसी होंठों को काटती हुई अचानक से वो ऐसे शख्स के सीने से जा लगी, जो आगे चलकर उसका वाइल्ड क्रिमिनल कहलाने वाला था।
अचानक से हुई इस करामत से रूह को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर उसके साथ क्या हुआ? वो कुछ सोचने-समझने की स्थिति में कहाँ थी? मगर आज तो उसे एक नहीं, कई झटके, वो भी 440 वोल्टेज के साथ लगने वाले थे, क्योंकि सिद्धांश सीने से लगते ही रूह उसे किसी रुई से भी नर्म महसूस होने लगी, जिसे दबोचने को सिद्धांश का जी पहली दफ़ा ललचाने लगा।
न जाने ऐसी क्या तलब थी, मगर वो आँखें बंद किए ही सरगोशी के आलम में डूब उसके नाज़ुक से तन-बदन को सख्त हाथों से सहलाने लगा। अगर ये कह दिया जाए तो झूठ होगा—वो सहला नहीं रहा था, वो तो मसल रहा था। उसके नाज़ुक अंग को खुद के जिस्म के अंदर गायब कर देने का वो ऐसा जुनून था, जिसकी सीमा तो रूह को दूर-दूर तक ना पता थी।
शावर में भीगता हुआ दोनों का जिस्म एक-दूसरे से बिल्कुल जुड़ा, तेज़ पानी की बूंदों से पिघल रहा था, जैसे वो नर्म पानी नहीं, खौलता हुआ लावा हो। लेकिन वो शरारती सी लड़की उसकी छुवन से किसी सदमे में जा चुकी थी, क्योंकि पहली मर्तबा कोई मर्द उसके इतना करीब आ रहा था।
वही सिद्धांश उसकी खुशबू सूँघते-सूँघते, बंद आँखों से उसके थाइज़ को प्रेशर के साथ रगड़ते हुए उसकी मक्खन जैसी कमर के हर कर्व्स को एक्सप्लोर करने लगा। ये कहना तो ग़लत ना होगा, सिद्धांश का कंट्रोल छूट चुका था, मगर वो चाहकर भी खुद को कंट्रोल नहीं कर सका और धीरे-धीरे उसकी कमर को रगड़ते हुए उसके हैवी, बाउंसी एसेट्स की ओर बढ़ गया, जो बेलिबास से शायद उनके मास्टर का ही इंतज़ार रहे थे।
वही हमारी लाडो "रूह"।
"उन्ह्ह्ह!" करती हुई वो सिसक गई। सदमे से फ्रोजन हो चुकी बॉडी, जिसमें शायद जान दूर-दूर तक न थी, वो धड़क-धड़क करती उसकी मज़बूत बाहों में सिमटी हुई, तेज धड़कनों का शोरगुल करने लगी। वही सिद्धांश, जिसके लिए ये ट्रेजेडी जीता-जागता हसीन ख़्वाब थी।
उसने अब वक्त ना गँवाया और सीधा बाउंसी ब्लॉसम को परफेक्टली चौड़े हाथों में पकड़ लिया। बस इसी के साथ रूह की चीख निकलने को तैयार थी। वही मदहोशी के आलम में डूबे सिद्धांश होश में आने की कगार पर पहुँच चुका था, लेकिन दिल को गुदगुदाने वाला ये एहसास आज के पहले सिद्धांश ने कभी ना जिया था। क्योंकि सिद्धांश के लिए हसीन लड़कियों का घूमना सख्त मना था। उसके क्रुएल एग्रेशन के चर्चे कुछ ज़्यादा ही खौफनाक थे। कोई लड़की चाहे कितना भी सिद्धांश के हैंडसमनेस की दीवानी हो, मगर खुद चलकर मौत को गले लगाना कौन चाहेगा? क्योंकि सिद्धांश जिसने अपनी डेस्टिनी बचपन में ही चुन ली थी, उसकी रूह के अलावा किसी और लड़की का स्पर्श सिद्धांश शिर्क समझता था (लाइक सिन)।
उसके जिस्म को छूने वाला हर हाथ काटकर फेंक देना ये सिद्धांश के लिए आम बात थी, मगर आज तो जैसे चमत्कार हुआ था, जिसे आज छूने की जुर्रत किसी लड़की ने खुद की, वही हसीन जुर्रत सिद्धांश ने की थी। उसके जूसी, नर्म ब्लॉसम को हाथों में अच्छे से फिट कर, रफ़ली राउंड शेप में सहलाने लगा, जिससे रूह की जान निकलने को तैयार थी, मगर अभी तक उसके होंठों से उफ़्फ़ तक ना निकली।
वो वाइल्डली उसकी गर्दन को चाटते हुए उन ब्लॉसम को मसल चुका था। उसका बदन पहली बार होंठों से चाटते हुए उसकी बेचैन साँसें सुकून से बदल चुकी थीं, जैसे वो दूधिया मलाई हो और सिद्धांश भूखा बेबी, जिसे आज खाने में ये टेस्टी मलाई खानी हो, उसे कोई सुध नहीं कि उसके हार्ड सेडक्शन से बिचारी रूह का क्या हाल हुआ होगा।
He not just licking, His snatching Her soul form her shoulder and Blossm too, ❤️🔥
"क्या क्या क्या? ये मेरे ड्रीम्स हैं जिन्हें मैं रोज़ इमेजिनरी वर्ल्ड में देखती हूँ? नो रूह, इट्स रियली हैपनिंग! अपना मुँह मत खोलना मेरी जान, वरना मेरे दोनों सॉफ्टी आज काम से जाएँगे।"
रूह जो मार्शल आर्ट में स्किल्ड होकर खिताब पा चुकी थी, लेकिन आज उसके अंग के हर हिस्से ने रिस्पांस करना ही छोड़ दिया था, जैसे उसकी बॉडी सिद्धांश के डोमिनेंस से सरेंडर हो चुकी हो। रूह खुद नहीं जानती थी आखिर क्यों आज उसके हाथ बिना बेड़ियों के बंधे हैं? क्यों उसकी साँसें बगावत पर आ चुकी हैं? क्यों उसका सोने सा दमकता बदन पिघलने को तैयार था?
वो गहरी साँसें भरती हुई सिद्धांश को और भी कायल करने लगी। उसका उभरा हुआ सीना बार-बार ऊपर से नीचे मूवमेंट कर रहा था। उसकी ख़ूबसूरत आँखें उन वाइल्ड एहसासों से अपने आप बंद हो गईं। उसे मालूम न पड़ा कि कब उसने सिद्धांश के कंधे पर अपना सर टिका, मदहोशी से आह भरना शुरू कर दिया।
और सिद्धांश, जिन्हें मूवमेंट करता हुआ उसका सीना आउट ऑफ़ कंट्रोल होने को उकसा रहा था, वो और भी रफ़ली उसके सीने को दबोचने लगा, जैसे आज वो रूह की साँसें छीनकर मानेगा।
वही रूह के यूँ बैंड हो जाने से उसके सुनहरे बाल सिद्धांश के पूरे चेहरे पर बिखर गए, जिससे आ रही मदमाश खुशबू से वो फिर अपना सब्र खोने लगा। अब उसकी बढ़ती तलब रूह के बदन का हर हिस्सा माँगने लगी, जैसे किसी सालों के भूखे शेर के मुँह में ख़ून लग चुका हो।
बहका हुआ सिद्धांश अपनी मर्दाना ताक़त दिखाते हुए, फुल मर्दानगी के साथ उसके निप्पल्स खींचते हुए प्रेस करने लगा, जिससे अब रूह खुद को और रोक ना सकी और सिद्धांश का सख्त दिल पिघलने के लिए क्यूट सी आवाज़ में सिसकियाँ भरने लगी।
"आह्ह उन्हनन्ह नन्हन्ह, आह्ह्ह्ह आह्ह्ह"
हार्डकोर टॉर्चर सहना इतना आसान नहीं था, जितना उसने सोचा था। ये ख़्याल रूह के माइंड में अब बार-बार आ रहे थे।
वो तो बस आह भरती रह गई, मगर जैसे ही उसके ब्लॉसम बेहाल से हुए, सिद्धांश की बढ़ती तलब रूह के बदन के सबसे नाज़ुक हिस्से की तलाश में जुट गई। लेकिन उसके बदन का बाकी हिस्सा एक्सप्लोर करने के पहले उसने ब्लॉसम के टिप्स को खींच, चिमटी सी काट ली, जिससे रूह "आह्ह्ह्ह नाआह्ह्ह्ह्ह" कहती हुई सिसक गई।
उसकी सिसकियों से सिद्धांश के अंदर का जानवर जाग गया। वो अनडिस्ट्रैक्टिबल वाइल्ड एनिमल बनकर उसके हिप्स, चीक्स को मसलते हुए उसके आखिरी लिबास को फाड़ने की कोशिश में लग गया। बस इसी एक झटके से रूह अचानक से होश में आ गई, क्योंकि अगर वो खुद को रोक पाती तो आज उसकी जान तक निकाल सकता था ये हैवान, जिसे रूह इमेजिनेशन की दुनिया में ढूँढती थी, मगर आज उसी वाइल्ड एनिमल से रूबरू होना रूह की जान निकलने बराबर था।
आखिर सिद्धांश बेहद दर्दहीन जो था, बिचारी शर्म के मारे शर्म के अंगारे पर जल रही थी। लेकिन उसने कुछ पल ठहरकर शातिर दिमाग से सोचना शुरू किया, क्योंकि सिद्धांश के डोमिनेंस से बिना प्लान के भागना ख़तरनाक शेर को जगाने की गुस्ताखी करने बराबर था। यूँ वो कुछ पल में ही जान चुकी थी, ये शख्स कोई आम इंसान नहीं।
अगर वो गलती से भी उसके हाथ लग गई, वो आज उसकी इज़्ज़त बिना इजाज़त के छीन लेगा, या तो रूह खुद उसे सरेंडर कर देगी। उसने जल्दी से दिमाग के घोड़े दौड़ाए और बिना पल बर्बाद किए सिद्धांश के प्राइवेट हिस्से पर खींचकर बैक किक किया।
वही सिद्धांश जो प्यासा दरिंदा बनकर बिना रोमांस के किसी प्रॉपर स्टेप को फॉलो किए, डायरेक्ट रूह के अंदर सामने की फ़िराक में था, मगर उसके पहले ही सिद्धांश दर्द में तड़पकर घुटनों के बल जा बैठा और आँखें मीन कर दर्द को सहने लगा।
ये किक ऐसी जगह पर उसने खाई थी, जिससे अच्छे-खासे सख्त इंसान की भी जान निकल जाती थी। वही रूह, जिसे तो यही मौके की तलाश थी, वो फटाफट से शावर जेल को सिद्धांश के बालों से लेकर उसके चेहरे पर अपने नर्म हाथों से रगड़ने लगी, ताकि उसकी आँखों में जलन के मारे इरिटेशन शुरू हो जाए और वो रूह को भागने का अच्छा मौका मिल जाए।
"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, व्हाट द हेल, आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, कम टू मी, आई विल नॉट स्पीयर यू।"
ये बंदी खुद सिद्धांश को उकसाकर उसके जहीन जज़्बातों पर तेल छिड़क कर आग लगा चुकी थी। जान निकाल देगा वो अगर गलती से भी पकड़ी गई तो।
मगर सिद्धांश को कहाँ खबर थी कि उसका पाला दुनिया की सबसे शरारती लड़की से पड़ा है। वो आफ़त बंदी खुद ख़्वाबों में क्रिमिनल्स के साथ हॉट मेकिंग आउट तक इमेजिन करती थी, मगर जो बंदा असल में क्रिमिनल था, उसकी वाइल्डनेस के बदले रूह मैडम ने घुटनों के बीच मारकर बड़ी पहली मुलाक़ात का बड़ा हसीन सा तोहफ़ा नज़राने में दिया था।
वो सिज़लिंग हॉट्टी बंदा दर्द में तड़पता एक लड़की के आगे घुटने पर बैठा था। क्या इतना सबूत काफ़ी नहीं था रूह की महानता के? वो गुस्से से टटोलते हुए दहाड़कर बोला,
"हाउ डेयर यू? कौन हो तुम? अभी के अभी मेरे पास आओ और उन दोनों को मेरे हाथ में दो, क्योंकि मेरे अंदर का शैतान जाग गया तो तुम मुझे हैंडल नहीं कर पाओगी। आई एम टेलिंग यू किट्टन, नोबडी कैन हैंडल एनिमल व्हिच इज़ इनसाइड मी!"
You awaken now just handled This monster, उन squeezing bolls को मेरे हाथों में पकड़ाओ, आई वांट दैट नाऊ, वरना तुम जान से जाओगी।
वो दहाड़ते हुए अपनी आँखों की जलन को मिटाने शावर का पानी छिड़कने लगा, मगर बालों में मौजूद ढेर सारा शावर जेल उसका रहा-सहा पेशेंस लूज़ करने लगा। लेकिन क्या सिद्धांश ने रूह को पागल समझ रखा है, जो इस हैवान के पास जाएंगी? वो तो उसकी दहाड़ सुनते ही कांप चुकी थी। पहले शर्म के मारे गरम हो चुकी थी, लेकिन अब डर के मारे बर्फ की तरह ठंडी पड़ने लगी। उसने बड़ी हिम्मत से, बचते-बचाते शावर का जेट बंद कर दिया और इधर-उधर भागते हुए दरवाज़े का नॉब खोलने की कोशिश करने लगी। मगर उसकी थिरकती पायल से वो भागने की कोशिश कर रही है, ये जानकर सिद्धांश का गुस्सा अलग लेवल पर जा चुका था।
वो बड़ी ही मुश्किल से दर्द को संभाल रूह को ढूँढने लगा। अगर आँखें खुली होतीं ना, बिचारी रूह उसके गुस्से को देखकर काँप जाती। काफ़ी देर की कोशिश से वो निकम्मा दरवाज़ा खुल ही गया, जिससे रूह आखिरकार भागने में कामयाब हो चुकी थी।
ये जानकर सिद्धांश के गुस्से की कोई सीमा नहीं थी। वो गरजती आवाज़ से गुर्राकर बोला,
"छोड़ूँगा नहीं मैं तुम्हें, सुन रही हो तुम? मैंने कहा ना मेरे पास आओ। अगर तुम मेरे पास खुद-ब-खुद चल के आई तो मैं तुम्हें साँस लेने की मोहलत दूँगा, लेकिन अगर मैं पकड़ने पर आ गया, तो तुम आज चीखने लायक भी नहीं बचोगी! आई वांट टू नाउ कम टू मी, आई वांट टू रूइन योर इनोसेंस, किट्टन, कम टू मी।"
रूह की जरा सी भी दूरियाँ सिद्धांश को घायल शेर बना चुकी थीं। अगर एक मुलाक़ात का ये असर था, तो आगे क्या-क्या होगा, ये तो इमेजिनेशन से भी परे था।
He was breathless and addicted with Her both rounds and fluffy cotton bolls, but in middle, there is pinkins spot which He wants To explore, she is not easy nut to crack.
उसकी दहाड़ सुनते ही बेचारी की साँस हलक से निकलने को तैयार थी। वो बिना मौसम गुस्से की बरसात ना सुनते हुए बाहर पड़े किमोनो को फटाफट बदन पर लपेटकर बेडरूम में भाग गई, मगर जाने से पहले बाहर से वाशरूम अच्छे से लॉक करना ना भूली। अगर वो बाहर आ गया तो सेफ़्टी पहले।
उसके होंठों से उफ़्फ़ तक ना किया। वजह थी, अगर वो मुँह खोलेगी, ये इंसान कहीं उसकी आवाज़ से उसे ढूँढने ना लग जाए। इतना दिमाग तो माफ़िया किंग की बेटी के पास था ही।
वो सिर्फ़ किमोनो से लिपटी, आधी-अधूरी बिकिनी से बाहर थोड़ी ना भाग सकती थी। वो बिस्तर पर रखे उसके ब्लैक शर्ट और पैंट को पहन, घबराते हुए बोली,
"रूह तू कहाँ फँस गई? कहते हैं सब तू आफ़त की पुड़िया है आफ़त की। मैं सच में कोई ना कोई झंझट पूँछ की तरह पीछे बाँधकर चलती हूँ। बेबो मासी ने बड़ा ग़लत ज्ञान दिया है। ये सारा सियापा ना उन्हीं की वजह से है। कोई छुरी देखकर अपना रास्ता बदल लेता है और मैं सीधा छुरी पर कूद जाती हूँ, वो भी जानबूझकर। हुह्ह्ह्ह्ह्ह।
अब तक मारपीट की कंप्लेंट घर पर ले आई थी, वहाँ तक तो फिर भी ठीक था, अब तो सीधा तू हैवानों से भिड़ने लगी। किस भूतनाथ को छेड़कर आई है तू पागल लड़की? कोई ऐसा गुर्राता है... ये बंदा सच में इंसान के भेस में भूत है भूत।"
सी हाये मेरे दोनों सॉफ्टी की जान निकलकर रख दी। छोड़ूँगी नहीं मैं इसे, लेकिन उसका फ़ेस तो ठीक से देखा नहीं, तो पकड़ूँगी कब?
वो बंदी शर्म के मारे, तो कभी घबराहट के मारे जलती हुई फुसफुसाते हुए उसी के कपड़े जैसे-तैसे पहन वहाँ से भागने लगी।
"भाग यहाँ से रूह, इससे पहले ये तुझे दबोच ले। अभी तो मेरी सॉफ्टीज़ की हालत ख़राब की है, आगे चलकर पता नहीं क्या-क्या नहीं करेगा ये भूतनाथ।"
वो कमरे से भाग पाती कि तभी उसके पैरों में मौजूद एंकलेट, जिसकी घुँघरू की आवाज़ शायद अब सिद्धांश के कानों में बस चुकी थी, वो शायद किस्मत से कारपेट में उलझकर गिर गई।
जिस बात का रूह को कोई अंदाज़ा नहीं था, वो उस कमरे से भागकर फटाफट से ईस्ट विंग में चली गई, जहाँ से स्पेयर बोट के ज़रिए वो लोग आज रात ही वेनिस सिटी उतरने वाले थे। मगर जाने से पहले वो निधि के कमरे ज़रूर गई, वरना इन कपड़ों में वो पक्का पकड़ी जाती।
वहीं दूसरी ओर,
वाशरूम में फँसा सिद्धांश जो गुस्से में किसी हैवान से ज़्यादा ख़तरनाक बन चुका था, उसकी आइरिश ब्राउन आँखें गुस्से में सुरख़ लाल हो चुकी थीं। वो फुँकारते हुए वाशरूम के डोर को जोरदार लात मारकर उसे तोड़ते हुए बेडरूम में पहुँचा।
बेबसी से बेडरूम से लेकर कॉरिडोर का हर एक कोना छान मारने लगा, लेकिन हाथ लगी तो सिर्फ़ निराशा। उसके ग़ायब होने का अंदेशा मिलते ही सिद्धांश तो जैसे पागल होने की हालत में आ गया। वो हर जगह ढूँढ चुका था, सारी इन्फ़ॉर्मेशन भी निकाली, मगर रूह की आइडेंटिटी आज तक किसी के हाथ ना लगी थी, तो फिर सिद्धांश इतनी आसानी से कैसे पहुँच जाता? लेकिन ये सिद्धांश के लिए बड़ी ताज्जुब की बात थी।
थोड़ी देर बाद,
गुस्से में बौखलाता एक शख्स जो किसी से कॉल पर बातें करते-करते दहाड़ रहा था, लेकिन सामने वाले की बात उसे सेटिस्फ़ेक्शन ना दे सकी। नतीजन वो फ़ोन दीवार पर पटककर चीखते हुए बोला,
"तुम्हें तो मेरे पास लौट आना होगा किट्टन। मेरे अंदर चिंगारी दहकाकर तुम मुझे अधूरा नहीं छोड़ सकती। तुम्हें मुझे पूरा करने के लिए वापस आना होगा। जब तक तुम मुझसे छुपी हो तब तक महफ़ूज़ हो, लेकिन जिस दिन हाथ आओगी उस दिन तुम्हारे पैर भागने की ताक़त खो चुके होंगे!"
"हज़ारों चेहरों में उसकी झलक मिली मुझको... पर... दिल भी जिद पे अड़ा था कि अगर वो नहीं, तो उसके जैसा कोई भी नहीं..."
वो क्रीपी स्माइल करते हुए उस पायल को देखने लगा, जो गलती से रूह से छूट चुका था।
उसके चेहरे के ख़तरनाक एक्सप्रेशन बता रहे थे कि अगर गलती से रूह उसके हाथ लग गई तो वो उसका क्या हाल करेगा? वही रूह की ज़िंदगी में आए इस भूचाल की ख़बर उसके डेविल भाइयों को अब तक ना थी।
क्रूज़, एक प्राइवेट लैविश रूम में।
जो आठवें फ्लोर पर बना क्रूज़ का सबसे आलीशान हिस्सा था। उस कमरे के इंटीरियर पर ख़ास गोल्ड प्लेटिंग की गई थी। उस बेडरूम में हसीन रात बीतने तीन शख्स किसी डील क्रैक करने का जश्न मनाते हुए चीयर्स करते हुए मदहोशी के आलम में डूब चुके थे।
"साला चाहे कितनी भी बोतल गटक जाऊँ, लेकिन जो नशा उसकी आँखों में है वो इसमें कहाँ? उसे देखते ही मेरी प्यास बढ़ने लगती है। उसकी आवाज़ सुनते ही मेरे दिल में ठंडक सी पड़ जाती है। उसके होंठों पर छोटी सी मुस्कान देखने के लिए मैं किसी का भी ख़ून कर जाऊँ, लेकिन उस पिद्दी सी लड़की की जान निकालने का मन करता है।"
"जब वो मुझे सबके सामने भैया-भैया कहती है, बस यही वो शब्द है जिसे सुनकर मेरे कान जलने लगते हैं। जी तो चाहते हैं उसकी ज़बान खींच लूँ और बिस्तर पर पटककर अपना असली हक़ बता दूँ। फिर पूछूँगा उसका मैं भैया लगता हूँ या उसका सैया!"
"वो जिस दिन अट्ठारह साल की हो गई ना, कसम से उसी दिन भगाकर बंदूक की नोक पर सबके आँखों के सामने शादी रचाऊँगा। फिर देखता हूँ कौन हम दोनों को भाई-बहन कहता है!"
क्या किस्मत थी ना अरहम की, जिस लड़की के लिए वो बचपन से, जी हाँ बचपन से कायल हो चुका था, वो उसे सबके सामने अनजाने में ही बार-बार भैया, बड़े भैया कहकर उसके दिल पर छुरियाँ चलती थीं। लेकिन वो बेचारी जिस दिन अट्ठारह साल की होगी ना, उसने जितनी बार भैया कहा था उसका हिसाब एक-एक चुकाना पड़ेगा।
अरहम की जुनूनियत भरी बातों को टक्कर देने के लिए एक शख्स शैंपेन से भरी ग्लास को एक झटके में गटककर मदहोशी से बोला,
"सच कहता है तू अरहम, इस शराब में वो मज़ा नहीं है जितना उसके होंठों को पीने में है। जी चाहता है उसके होंठों से लेकर उसके बदन के हर हिस्से को पी जाऊँ, लेकिन वो चिड़िया मेरे हाथ ही नहीं आती। कहती है हमारे मज़हब में निकाह के पहले छूना हराम है। इतना ही नहीं कहती है, आपकी जाति ऊँची है हमारी नीची। हम आपके घर में नौकर हैं। ये ऊँची जाति, नीची जाति क्या होती है? मोहब्बत से बड़ा कोई मज़हब नहीं।"
"अगर किसी ने उसके और मेरे बीच आने की कोशिश की ना, तो कसम है मेरी मोहब्बत की मैं उसकी सात पुश्तों को ज़मीन में गाड़ दूँगा, वो भी ज़िंदा। लेकिन यहाँ साला मसला ही कुछ और है, वो हमेशा खुद को मुझसे छुपाती रहती है। कितनी भी कोशिश कर लूँ, लेकिन ये फ़िज़ा मेरे हाथ में ही नहीं आती!" लेकिन कब तक बचेगी? जल्द ही मैं उसे अपना बनाऊँगा, फिर देखता हूँ कैसे छुपाती है खुद को।
जिसने ये अल्फ़ाज़ बड़ी शिद्दत से कहे थे, वो शख्स कोई आम इंसान नहीं था। उसने रॉयल प्रिंस होने के साथ-साथ माफ़िया वर्ल्ड को अपनी कब्ज़े में लेने की पूरी तैयारी कर रखी थी। उसका नाम रिधान सिंघानिया था, जिसकी हैवानियत उसके सर चढ़कर बोल रही थी और जुनूनियत का कोई हिसाब ना। तभी वो दोनों दोस्त जो कज़िन भाई होने के साथ-साथ क्राइम पार्टनर भी थे, वो टेढ़ी स्माइल बिखेरते हुए पैग लगा ही रहे थे कि तभी एक कड़कड़ाती आवाज़ सन्नाटे को चीरते हुए गूँजी,
"ख़बरदार जो तुमने मेरी मासूम सी निधि और फ़िज़ा पर नज़र डाली। हलक से जान खींच लूँगा तुम्हारी।"
इस गरजती आवाज़ के साथ रिधान और अरहम का ध्यान उस शख्स की ओर गया, जिसे देखते ही दोनों की आँखें हैरानी से फैल गईं।
क्रूज़ पर,
प्रिंस ने कहा,
"खबरदार! तुम दोनों ने उन मासूमों की बेगुनाही भंग करने की कोशिश भी की तो...मैंने सिंगापुर में रहना शुरू किया ही था कि तुम दोनों अपनी मनमानी पर उतर आये। How Dare to think Like that about them?"
"ये अरहम तो बचपन से बेलगाम घोड़े की तरह भागता है, लेकिन रिध्दान तुम? तुमने उस मासूम के लिए ये कैसे-कैसे विचार पाल रखे हैं? मेरी फ़िज़ा जैसी नादान के लिए ये जहनी ख्यालात सोच कर भी मेरा खून खौल उठता है। तुमसे मुझे ये उम्मीद नहीं थी, रिध्दान।"
"तुम जानते हो ना, फ़िज़ा किन शर्तों में हमारी फैमिली में रहने को मानी है? अगर गलती से भी सीरत मॉम को तुम्हारे इन जहनी खयालातों के बारे में पता लग गया ना, वो फ़िज़ा को तुमसे हमेशा के लिए दूर भेज देंगे।"
यह तेज तर्रार, खनकती हुई आवाज़ 26 साल के प्रिंस की थी। जो हरनाज़ का बड़ा भाई और सभी भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। जिसका आदेश सारे भाई-बहन चुपचाप मान लेते थे, सिवा इन दोनों महाशय के। वह शांत स्वभाव का मालिक, हमेशा सही राह पर चलने की सलाह देता था। उसका नाम भले ही प्रिंस हो, लेकिन लोगों पर दबाव डालने से बेहतर मोहब्बत की बोली सिखाता था।
प्रिंस अपने नाम की तरह ही दिल का शहज़ादा और मस्त मौला बंदा था, जिसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान खिली रहती थी। मगर रिध्दान और अरहम की 'वाइल्ड थॉट्स' से भरी बातों को सुनकर उसके सीने पर साँप लौटने लगे थे।
क्योंकि प्रिंस के मुक़ाबले उसके कज़िन ब्रदर, जो प्रिंस से उम्र में भले ही थोड़े छोटे हों, लेकिन उनकी जुनूनियत और पागलपन के आगे कोई न आये तो बेहतर था। उन दोनों महाशय ने कैसे अपने गुस्से को काबू किया था, ये तो उनके हाथों की कसी मुट्ठियों से पता लग रहा था। मगर रिध्दान से अब रहा न गया। वह गुर्राते हुए अपने बड़े भाई से बोल बैठा,
"ब्रो, आपका हर फैसला सर आँखों पर, लेकिन जब मामला मेरी फ़िज़ा का हो तो फिर मैं किसी की भी, यानी कि किसी की भी नहीं सुनता। चाहे मेरे डैड हों या दादाजी आकर भी कह दें, लेकिन वो फ़िज़ा को मुझसे एक पल भी दूर नहीं कर पाएँगे। और आपको ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं। जब तक शादी नहीं हुई है, तब तक वो चिड़िया आजाद है, लेकिन शादी होते ही उस बिचारी को साँस लेने की फुर्सत भी नहीं मिलेगी।"
"अरे अरे! इतना हैरान क्यों हैं आप? खुश हो जाएँ भाई, क्योंकि वो दिन अब दूर नहीं जब मैं उसे हमेशा के लिए अपना बना लूँगा। और रही बात मेरी मॉम की तो उन्हें पता लगेगा जब उनका स्वीट सा, मासूम सा बेटा उनकी सबसे लाडली फ़िज़ा को दिलो-जान से चाहता है।"
(लो कर लो बात! इसी मासूम बेटे को खून की नदियाँ बहाने से फुर्सत नहीं, और बनने चला है मासूम 'बेबी बॉय'!)
"अपने पलकों पर नहीं, सीधा अपने ऊपर तो कभी नीचे बिठाकर रखना चाहता है 😉 वो खुद ब खुद उसे मेरे हाथों सौंप देंगी। और रही बात मेरी जुनूनियत, मेरी बेशर्मी भरी दीवानगी, आप सब लोग आँखें फाड़कर खुल्लम-खुल्ला देखना, क्योंकि इस मोहब्बत में बेशर्मी की सारी हदें पार होंगी!"
जब रिध्दान ने सीना ठोककर मोहब्बत का आगाज़ कर ही दिया था, फिर अरहम कहाँ पीछे हटता? वह शैम्पेन की ग्लास नहीं, सीधा बोतल को एक-एक झटके में गटक कर मदहोशी से बोला,
"अगर रिध्दान भाई के इश्क़ में जुनूनियत है, तो मेरी मोहब्बत में पागलपन। उस छोटी सी पिद्दी को अपने मुट्ठी में बचपन से ही जकड़ रखा है। बस इंतज़ार उसकी बालिग उम्र खत्म होने का है। जिस दिन वो 18 साल की होगी, कसम से उसकी बेगुनाही मैं अपने अंदाज़ में बर्बाद करूँगा। और कुछ सुनना है बाकी है भाई? चाहो तो पूरी रात बेशर्मी से दिल का हाल खोलकर बता दूँ। खैर, छोड़ो आप सुन नहीं पाएँगे। वैसे मैंने आपके भी किस्से सुन रखे हैं मेरी 'आदा' दी के लिए। मैं भी यही हूँ, आप भी यही।"
"And I'm damn sure आप भी कुछ कम पागल नहीं होंगे! 🔥"
दोनों की बेशर्मी और पागलपन वाकई में सिर चढ़कर बोल रहा था। जिसे सुनते ही प्रिंस ना में हिलाकर चिढ़ते हुए बोला,
"तुम दोनों का सच में कुछ नहीं हो सकता। मुझे ये पागलपन के किस्से सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है। डैडी का कॉल आया है, हमें यहाँ से निकलना होगा। कोई 'रुह' इनफॉर्मेशन ट्रैक करने की कोशिश कर रहा है। We have to be very very careful now. Let's go।"
जैसे ही 'रुह' की सिक्योरिटी की बात आई, बस फिर क्या था? सिंघानिया खानदान के सारे वारिस ऐसे गायब हुए जैसे उनका वजूद कभी उस क्रूज़ पर मौजूद ही नहीं था।
छह महीने बाद,
हिंदुस्तान की खूबसूरत धरती पर, गुलाबी शहर के नाम से मशहूर खूबसूरत सा जयपुर। जो वसंत ऋतु के हरे-भरे पेड़ और फूलों के बहार से लुभावना लग रहा था। आज पूरे राजस्थान का सबसे बड़ा गणगौर पर्व होने की खुशी में,
पूरे शहर में जवान कुंवारी लड़कियों से लेकर शादीशुदा औरतें और कई बुजुर्ग महिलाएँ भी, राजपूती पोशाक, राजपूती लहँगा-चोली, लहँगा-फुल मारवाड़ी गेटअप में तैयार होकर हाथों में गणगौर की प्रतिमा पकड़े मंदिर के प्रांगण में बने तालाब में पूजा करने जा रही थीं। साथ ही साथ गणगौर के गीत गाती हुईं, फूलों की बौछार में भीग रही थीं।
गणगौर के इस सुहाने पर्व पर आज खास मेला लगाया गया था। जिसमें ढोल-नगाड़ों का शोर-शराबा, झूले, रंग-बिरंगे चुनरी ओढ़कर भागती हुई छोटी-छोटी लड़कियाँ, हवाओं में उड़ता गुलाल, ये खुशनुमा माहौल दिल को लुभा रहा था। और सारी महिलाएँ सुहाग का लाल-सुर्ख पोशाक, और कुंवारी लड़कियों ने गुलाबी रंग का लहँगा-चोली पहना हुआ था।
जिससे पूरा शहर आज लाल-गुलाबी रंग में गुम हो चुका था। वहीं माता रानी के मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं। और इसी भीड़ में राजपूताना जड़ाऊ गहनों से लदी दो खूबसूरत जवान लड़कियाँ, गुलाबी रंग का लहँगा संभालते हुए आरती की थालियाँ पकड़ मंदिर के तीन फेरे ले रही थीं। ये मान्यता थी कि 16 दिन की गणगौर पूजा करने से हर कुंवारी कन्या को उसके मन मुताबिक जीवनसाथी मिलता है।
"मेरी प्यारी सी सिसो, प्लीज़ अपना ये खूबसूरत सा मुँह है ना, थोड़े दिनों के लिए बंद रख लेना। और प्लीज़-प्लीज़ गणगौर की पूजा के बारे में बिलकुल किसी को मत बताना, वरना सौ सवाल-जवाब होंगे, वो अलग, कुटाई होगी वो अलग। आपको पता है ना मेरी खड़ूस मॉम मेरे सर पर बैठकर तांडव करेगी। इस बार तो मासी भी नहीं बचा पाएँगी।"
"इसलिए मेरी नैया बस आप ही पार लगा सकती हो। अगर आपने गलती से भी मुँह खोल दिया, तो मेरी हालत बड़ी खस्ता होने वाली है।"
मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग में अव्वल, मुँडों को पछाड़ने वाली चुलबुली सी रुह अपनी बहन, अड़ियल बहन हरनाज़ के आगे मदद की गुहार लगा रही थी। और रुह की कमज़ोरी का फ़ायदा उठाना ये हरनाज़ के फ़ेवरिट कामों में से एक था। हमेशा रुह की पोल खोलकर वो पूरे घर की गुड़िया रानी बनकर घूमती थी। लेकिन रुह भी कहाँ कम थी? हरनाज़ को लाइन पर लाने वो अपनी सिसो के रोमांटिक राज सबके सामने उजागर कर देती थी। तो देखा जाए, दोनों बहनें नालायक पँती में एक से बढ़कर एक थीं।
और आज रुह की पोल हाथ लगते ही, नाज़ विक्ट्री स्माइल बिखेर क्रिस्टल ग्रे आँखों को रोल करते हुए मुँह मटकाकर बोली,
"देखो रुह, अगर मैं ज़्यादा बोलूँगी तो फिर तुम बोलोगी कि मैं बोलती हूँ। अरे घूरों मत! ये डायलॉग मुझे मेरी अजीब सी मॉम से मिला है, जो अपने आप मुँह पर आ जाता है। ये बात छोड़ो और पॉइंट पर आओ। लेकिन पहले ये तो बताओ, तुम इतनी नाज़ुक सी जान, पिद्दी सी उम्र में किसके लिए व्रत रख रही हो? और तो और, किस खुशी में आखिर तुम्हें व्रत करने का चस्का लगा कैसे?"
"कहाँ मेरी क्यूटो को खाना ठूँसने से फुर्सत नहीं मिलती। तुम मेरी मम्मा के साथ मिलकर दिन भर खाना ठूँसती रहती हो, फिर आज कौन सा भूख्खा कुत्ता काट के भगा है जो तुम 16 दिन का व्रत करने को तैयार हो? जानती हो ना, कुंवारी लड़कियों को पूरे 16 दिन गणगौर पूजनी होती है। तुमसे एक घंटा भी भूखा नहीं रहा जाता, फिर 16 दिन का व्रत कैसे करोगी?"
"और पागल लड़की, तुम्हें इतनी सी भी खरोच आ गई ना, जानती हो ना सारे घरवाले पूरी दुनिया को सर पर उठाकर बैठ जाएँगे। फिर यहाँ बात तुम्हारे भूखे रहने की है। अगर तुम चाहती हो ये व्रत कर सको, तो चुपचाप इस कांड के पीछे कौन बंदा है, वो बता दो!"
वो शक भरी निगाहें रुह पर डाल, तीनों फेरे कंप्लीट करने लगी। लेकिन नाज़ की बातों को सुन रुह ने कसकर आँखें मींच लीं, जिस पर नाज़ का शक और भी गहरा होने लगा।
"दिमाग में क्या चल रहा है रुह? मुझे सच-सच बताओ। फिर मैं सोचूँगी तुम्हारा साथ देना है या नहीं।"
"और हाँ, मुझे ना इस व्रत के पीछे किसी बंदे का हाथ है ना उसका पूरा नाम पता, एड्रेस, सब कुछ बताओ। मैं भी देखती हूँ किस कमीने ने मेरी रुह को भूखा रखा है!" "ओए! ऐसी आँखें ना दिखाओ! बड़ी बहन हूँ मैं तुम्हारी। अब बता रही हो या मैं अपने तरीके से पता करूँ?"
हरनाज़ शक भरी नज़रों से रुह को परेशान करने लगी। आखिर छोटी सी बात से बड़े-बड़े राज खोलने में दादी-अम्मा जो ठहरीं! बड़ी सिसो होने से रुह को अच्छी खासी धमकी देकर दिल का वो राज उजागर करने को मजबूर कर गई थी। वहीं रुह, जो न जाने क्यों बार-बार नज़रें चुरा रही थी।
नाज की बातों को सुनते हुए रुह का दिल अजीब से एहसासों से धड़कने लगा। उसे खुद नहीं पता था आखिर वो किस लिए गणगौर का व्रत रखना चाहती है। क्योंकि गणगौर का व्रत 16 दिन रखना आम बात नहीं थी। मगर फिर भी आज पहली बार, न जाने क्यों रुह अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में पहली बार व्रत करना चाहती थी।
तभी एक पंडित जी, जो आरती पूरी कर मंदिर के फेरे पूरे कर चुके थे, वो आरती की ज्वाला रुह और नाज़ के आगे कर प्यार से बोले,
"बेटा, संध्या आरती है। आज के दिन बड़ी शुभ मानी जाती है। आरती लो।"
जहाँ रुह को सवाल-जवाब के अटखेलियों से बचने का मौका मिल गया। वो जल्दी से आरती लेकर पंडित जी के पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगी। लेकिन आज पहली बार आशीर्वाद में क्या मिला? उसे आशीर्वाद देते ही पंडित जी ने हाथ उसके सिर पर रखा, वो कुछ पल हैरान रह गए और थोड़ा परेशान होकर बोले,
"आज से आपकी ज़िन्दगी बदलने वाली है, बेटा। करोड़ों में एक बार कोई ऐसी बुलंद किस्मत लिखकर आता है। चाहे कितना भी तूफ़ान आए, अपने जीवनसाथी का साथ सदा निभाना। सिर्फ़ आप ही तो हैं जो उस दैत्य की भाँति इंसान का गुस्सा शांत कर सकती हैं।"
"संयम बनाए रखना, क्योंकि आने वाला वक़्त आपके लिए बड़ा कठिन होगा। सदा सौभाग्यवती भव।"
तेज़ शोरगुल से उनके दिए आशीर्वाद को रुह ठीक से सुन नहीं सकी, मगर नाज़ पंडित जी के आशीर्वाद को सुनते ही काफी शौक हो चुकी थी। न जाने क्यों उसे अजीब सी घबराहट होने लगी।
लेकिन तभी रुह का ध्यान 'फ़ोक सॉन्ग्स' में कई मोर-मोरनी और बंजारन औरतें थिरकती हुई डांस कर रही थीं, उस ओर गया। और डांसिंग जो रुह का पैशन था, वो गुलाबी लहँगा संभालकर भागती हुई उन बंजारन के साथ ताल से ताल मिलाकर थिरकने लगी।
"हमको गुलाबी दुपट्टा…… हमें तो लग जायेगी नज़रिया रे……
चाहे राजा मारो चाहे पुचकारो, हम पे ना आवे थारो पनिया……
हमारी पतली सी कमरिया रे…… चाहे राजा मारो चाहे पुचकारो……
हम पे ना होवे थारो जुल्म…… म्हारो दिल जल जावेगी रे;"
"अरे सिसो! आप मुझे क्या देख रही हैं? आओ ना! मोर भी नाच रहे हैं। आओ ना थोड़ा सा थिरकलो!"
रुह बंजारन औरतों के बीचों-बीच मारवाड़ी घूमर कर रही थी। कभी अपने घूँघट को तो कभी लहँगे को संभालती हुई मोरनी की तरह थिरक रही थी। उसका हसीन सा रूप, ऊपर से गुलाबी लहँगे में मखमली गोरा बदन देखकर वहाँ मौजूद सारे लोग बिना पलकें झपकाए उसकी खूबसूरती में खोए थे।
वहीं हरनाज़, जिसे अटेंशन ग्रैब करने की पुरानी आदत थी, वो भी आरती की थाल अपने साथ आई कुछ लेडी बॉडीगार्ड्स को पकड़कर उसके साथ ही थिरकना शुरू कर दिया। इस गाने के बोल के साथ दोनों हसीन सी, खूबसूरत, नाज़ुक सी लड़कियाँ ताल में ताल मिलाकर डांस करने लगीं।
जिसके चलते उनकी खूबसूरती की चर्चा अब धीरे-धीरे उस पूरे भीड़ में फैल चुकी थी, जिसका हर्जाना आज रात दोनों बहनों को बड़ा भारी पड़ने वाला था।
जी भर के डांस करने के बाद पूजा-पाठ की विधि पूरी कर मेले को घूमने में शुरू किया। दोनों ही बड़ी-बड़ी आँखों में हैरानी लिए मेले की आम ज़िन्दगी को जी रही थीं। आखिर उनकी पूरी ज़िन्दगी लंदन में जो गुज़री थी, आम ज़िन्दगी जीना किसी सपने से कम नहीं था उनके लिए।
यकीनन, बिलकुल ये पहली दफ़ा था, और काफी कम मौका होता जब वो दोनों बिना बंदिशों के आजाद होतीं।
"सिसो! कितना मज़ा आ रहा है यहाँ पर! थैंक्यू सो मच सिसो मेरी बकेटलिस्ट पूरी करने के लिए! मैं बता नहीं सकती मेरे लिए इन पलों को जीना कितना ऑसम एक्सपीरियंस है! वो देखो झूला! याह्ह्ह्ह्हूूू! चलो ना हम झूले में झूलते हैं! चलो ना प्लीज़!"
"डैडी के रूल्स के चक्कर में ये मत करो, वो मत करो! हुह्ह्ह्ह! वो तो अच्छा हुआ जॉनी हमसे मिला हुआ है! मैं जब भी उसे कुछ कहती हूँ, बंदा एक पैरों पर हाजिर मेरी सारी डिमांड पूरी कर लेता है! बस गलती से रिध्दान भाई को पता ना लग जाए, वरना आज हमारी खैर नहीं!"
वहीं नाज़ जो रुह की डिमांड पूरी करने से खुद पर नाज़ कर रही थी, बड़े डैडी का नाम सुनते ही थोड़ा घबराकर बोली,
"पागल लड़की! मुझे क्यों डरा रही है? अगर हम दोनों मेला देखने आए हैं, ये खबर गलती से भी पता लग गई ना, मैं अलग से लटकी जाऊँगी। तुझे तो पता है ना मेरी चुड़ैल मॉम मेरा क्या हश्र करती है! पता नहीं तुझसे क्या ऑब्सेशन है उन्हें, मेरी तो खटिया खड़ी कर देती है। इसलिए तो मुझे बड़ी मॉम अच्छी लगती है।"
"आज रात फँसने के पहले मैं सारा इल्ज़ाम तुझ पर डाल दूँगी। अब आँखें क्या घुमा रही है? मैं मार-वाड़ नहीं खाने वाली, वो भी तेरे लिए तो बिलकुल नहीं।"
नाज की बेबुनियाद शिकायत और ऊपर से दरबदलू हरकतें सुन रुह नागवारि से सिर हिलाकर हरनाज़ को घूरकर बोली,
"आप ना कितनी बड़ी वाली गिरगिट हो! और मेरी मासी का बिल ना बेवजह ना फाड़ो! मेरी मॉम जो खुद में बड़ी सी चुड़ैल है, वो भूतनी की रानी बनाकर हर वक़्त आपका साथ देती है! यार सिसो, हम दोनों फ़ालतू में झगड़ा करने लग जाएँगे। और ज़्यादा हुआ तो एक-दूसरे के बाल नोचने लग जाएँगे। इससे अच्छा है जल्दी झूले पर चलो, वरना अब तक तो रूप की रानी बन चुकी हैं, बाद में चुड़ैल बनकर घूमेंगी।"
वो दोनों एक-दूसरे से लड़ती हुई आखिरकार बड़े से राउंड झूले में जा बैठीं, जो मेले में सबसे बड़ा अट्रैक्शन बना हुआ था।
जैसे-जैसे झूला ऊपर की ओर बढ़ने लगा, हरनाज़ की तो डर की मारे चीखें निकलने लगीं। लेकिन रुह, वो तो सुकून से हर तरफ़ का नज़ारा एन्जॉय कर रही थी, जैसे उसका ख्वाब पूरा हो रहा हो।
तभी एक हेलीकॉप्टर तेज हवाओं को चीरते हेलीपैड एरिया की तरफ़ जाने लगा। तेज हवाओं का असर कुछ यूँ होने लगा कि रुह जो अपनी चुनरी को ठीक से संभाली रही थी, लेकिन तेज हेलीपैड की वजह से क्रिएट हुई तेज हवाओं से उसकी चुनरी उड़ने लगी।
जिससे रुह चिल्लाकर बोली,
"सिसो! मेरी चुनरी देखो ना! आह्ह्ह्ह! मेरी 'गोटे वाली' चुनरी! अरे देखो मेरी चुनरी उस हेलीपैड के डायरेक्शन में जा रही है! इस हेलीपैड वाले की तो ऐसी की तैसी! कुत्ते, कमिने, खुले सांड! इसी वक़्त मेरे सर पर हवा उड़ाना था! छोड़ूंगी नहीं मैं उसे!"
"मुझे मेरा दुपट्टा चाहिए! मतलब चाहिए! वरना कूट दूंगी मैं उसे! मुझे वो चुनरी समय ने गिफ्ट किया था! प्लीज़-प्लीज़! चलो ना सिसो!"
उसके बचपन के दोस्त का दिया वो तोहफ़ा रुह को बड़ा अज़ीज़ था। वो एक नॉर्मल से दुपट्टे के लिए इस कदर परेशान हो रही थी। लेकिन नाज़ बिलकुल सरप्राइज़ नहीं थी।
क्योंकि समय के दिए हर गिफ्ट के लिए रुह हमेशा से ऐसे ही रिएक्ट करती थी। नाज़ ने तुरंत उस झूले को रोकने का आदेश अपनी स्पेशल लेडी बॉडीगार्ड्स को दिए, और जल्द ही वो दोनों उस डायरेक्शन की ओर भागी जहाँ रुह का 'गोटे वाला' दुपट्टा गिरा था।
वहीं दूसरी ओर,
हेलीकॉप्टर के लैंड होते ही एक शख्स, जिसकी दमदार पर्सनालिटी देखते ही अच्छा-खाड़ा इंसान भी डगमगा जाए, जिसके हैवी मसल्स काले रंग की पठानी में उभरकर नज़र आ रही थीं, 6.6 फ़ीट की हाइट का मालिक, जिसके आइब्रो के एक साइड सेक्सी सा कट था, वो काले रंग में आज गज़ब का कहर ढा रहा था।
वहीं हेलीकॉप्टर के उतरते ही सारे बॉडीगार्ड्स अपनी-अपनी पोजीशन हिडन तरीके से आ चुके थे, क्योंकि वो इंसान जो मेले की इस भीड़ में किसी खास मकसद को अंजाम देने, खुफ़िया तरीके से आया था।
किलर अंदाज़ में बाहर निकलकर मेले की ओर बढ़ते हुए बॉडीगार्ड्स को इशारे से अपने करीब ना आने के लिए ऑर्डर्स देकर किसी से फ़ोन पर बात करने लगा। उसके ऑर्डर फ़ॉलो ना करने का जोखिम कोई ना उठा सकता था, इसलिए उन बॉडीगार्ड्स में से किसी ने अपने बॉस के किसी खास इंसान को कॉल करना शुरू कर दिया। मगर अफ़सोस, किसी ने कॉल ना उठाया।
"साले! तुम्हारी औक़ात क्या है? हम तुम्हें बताएँगे! तुम्हें झुंड में आना है, आ जाओ! हम अकेले ही तुम्हें ठोक देंगे।"
"राजन…… आ चुका हूँ तेरे शहर में। जहाँ छुपाना है छुप, लेकिन याद रखना, दो घंटे, सिर्फ़ दो घंटे में तेरा क़त्ल मेरे हाथ ना हुआ तो मेरा नाम बदल देना!"
वो गुस्से में खौलता हुआ लावा भीड़ की तरफ़ तेज़ी से बढ़ने लगा। ठीक तभी गुलाबी रंग का दुपट्टा, जो तेज हवाओं से उड़कर घने पेड़ पर अटक चुका था, वो बढ़ती हवाओं के रुख़ से उस शख्स के ऊपर आ गिरा। जिसे महसूस करते ही उसकी आयरिश ब्राउन आँखें गुस्से में गहरी लाल होने लगीं।
मगर उस दुपट्टे से आ रही ठीक वही एरोमैटिक वेनीला की खुशबू स्निफ़ करते ही गुस्से में पागल वो बंदा एक सेकंड में ही शांत हो गया। गहरी साँस लेते हुए उस दुपट्टे से आ रही वेनीला की भीनी-भीनी खुशबू ज़हन में उतारने लगा। उसकी आँखें जो गुस्से में लाल हो भड़क चुकी थीं, लेकिन ना जाने वो क्या जादू था, सारी बेचैनियों के साथ उसकी आँखें भी शांत होने लगीं।
मगर तभी बस दुपट्टे की मालकिन खनकती चूड़ियाँ और छनकती पायल के साथ अपने लहँगे को संभालकर तेज़ी से दौड़कर आई, और उस शख्स के ऊपर गिरी चुनरी को खींचकर अपने बदन पर लपेट गई। जिससे वो शख्स फिर से बेचैन होने लगा, और अनायास ही उस लड़की की ओर गुस्से में देखने लगा जिसने बिना पूछे उसकी जागीर पर हाथ डाला था, यानी कि उस दुपट्टे पर।
(वाह! एक सेकंड हुआ नहीं और वो दुपट्टा आपकी जागीर बन गई? ये बंदा ज़रूर ओवर पॉज़ेसिव होने के सारे रिकॉर्ड तोड़ेगा।)
आखिरकार ये वही वेनीला की खुशबू थी जिसके पीछे वो खतरनाक क्रिमिनल पागल ना जाने कितने अरसे से था। वो कैसे किसी और को हक़ जमाने देता? वो खुनस उस लड़की को देखने की कोशिश में अपना इंतकाम तक भूल गया।
मगर उस लड़की के लम्बे सुनहरे बाल जो तेज हवाओं के रुख़ से लहरा रहे थे, उस शख्स के चेहरे पर आने लगे। बस बंदा तो यहीं फिसल गया बिचारा! दिल का मामला होता ही ऐसा है।
सारा गुस्सा भूलकर वो गबरू जवान वहीं का वहीं ठहरा रहा। और गलती से फिर आँखें मूंदने की गुस्ताखी कर उसके सुनहरे बालों से आती खुशबू को ज़हन में उतारने लगा।
और वो हसीन लड़की जिसका नाम, As always, रुह था, वो लम्बे से चुनरी को ठीक से ओढ़ती हुई अपने आप में बड़बड़ाए जा रही थी।
"इस गधे की हिम्मत तो देखो! मेरा दुपट्टा ओढ़कर गज़ब के नशे में है! क्या इस बंदे को मेरी चुनरी ओढ़ने का दिल कर रहा था?? जो बिना वजह ओढ़े इस भीड़ में खड़ा है। लेकिन मैं तो इसे अपना दुपट्टा देने से रही। हुह्ह्ह्ह!"
तभी गणगौर की पालकी जिसमें बड़े पैमाने की भीड़ थी, उनके ही ओर आ रही थी। उस भीड़ के आने के पहले रुह वहीं खड़ी-खड़ी उस चुनरी को ओढ़ने लगी।
"क्यूटो! लेट्स गो! भीड़ हमारे ही ओर आ रही है! चलो जल्दी!" "वरना इस भीड़ से निकल नहीं पाएँगे। निधि का कॉल था, हम दोनों की वाट लग चुकी है। अब भागो, वरना जूते खाने पड़ेंगे। आज डैडी नहीं हैं, सोचो हमारी मॉम क्या हाल करेगी हमारा।"
डरी-सहमी नाज़ आरती की थाल पकड़कर लगभग भागती हुई रुह को पकड़ अपने साथ ले जाने लगी। लेकिन उसकी तेज आवाज़ जो भीड़ को चीरते हुए उस शख्स के कानों में पड़ी, वो उस अंजान लड़की के दूर जाने के ख्याल से खौफ़ में भर गया और एक झटके में ही आँखें खोल उसे देखने की तमन्ना में बेताब हो उसे जी भर के देखने लगा।
मगर सामने का मंज़र देख उसकी आँखें भयानक गुस्से में लाल होने लगीं, और वो तेज गड़गड़ाहट के साथ दहाड़ा,
"Who the hell is she? Aahhhhh! I want her now!"
यह कहानी का प्लॉट दिन-ब-दिन और भी रोमांचक होता जायेगा। थोड़ा सब्र बनाए रखें।
कुछ पल का वह मिलन था, मगर उन चंद पलों में ही एक शख्स को जैसे उसकी ज़िंदगी मिल गई हो। वह पिछले कई सालों से बेचैनी भरी ज़िंदगी जीता आया था, लेकिन छह महीने पहले किसी ऐसी कयामत से उसकी टक्कर हो गई थी कि उस जीते-जागते तूफ़ान जैसे सख्त दिल में सुकून उतर आया हो, वह भी पहली मुलाक़ात में ही।
यह कयामत रुह सिंघानिया के अलावा भला कौन कर सकती थी? पिछले छह महीनों से जिसे सिद्धांश ढूँढने की जद्दोजहद में लगा हुआ था, मगर आज ठीक वही अहसास महसूस कर उस प्यासे शेर को राहत की कुछ बूँदें पिलाकर वह हसीन बला कहीं भीड़ में गुम हो गई। बस इतना ही काफी था उस गुस्सैल शेर को भड़काने के लिए।
वह दहाड़ते हुए हर तरफ़ उस लकड़ी को ढूँढने लगा, मगर घनी भीड़ में वह चाहकर भी ढूँढ न सका। तभी एक शख्स, जिसकी उम्र चौबीस साल थी, बॉडीगार्ड से मिली जानकारी से अरबों की डील छोड़ सीधा सिद्धांश के पास आया।
"सिड, यहाँ आने की खबर क्यों नहीं दी? शुक्र है मैं डायमंड डीलिंग के लिए जयपुर आया, वरना आज तो तुम कांड करके मानते। डोंट स्टेर मी सिड, इन नो तुम क्या गेम बजाने आए हो? तुम जर्मनी से सिर्फ़ एक चैलेंज के लिए आए हो? बट इतना रिस्क लेने से पहले मुझसे तो कॉन्टैक्ट करते! लेट्स गो नाउ सिड, यू आर नॉट सेफ हियर।"
सिद्धांश का जिगरी दोस्त होने के नाते सम्राट सारंग ऐसे ना जाने कितने की डील छोड़ सकता था, मगर अपने दुश्मनों को धराशाही करने की ज़िद पूरी होने से पहले सम्राट का इंटरफेर करना सिद्धांश को ना भाया। एक तो पहले ही वह रुह के गायब हो जाने से बौखलाया था, फिर सौ हिदायतें देने अचानक से टपक पड़े सम्राट को देखकर उसका तो पारा हाई हो गया।
उसने साइलेंट रिवॉल्वर का इस्तेमाल बेखौफ़ होकर सम्राट के कनपटी पर कर दिया, जिससे सम्राट हैरान होकर बोला,
"सिड, यह क्या?"
"शुशशशश... यह बंदूक दिखने के लिए ताना है। एक बार भी तुम्हारी जुबान से बेमतलब का शब्द निकला तो आज जान से जाओगे, और मैं नहीं चाहता सारंग एम्पायर को संभालने की ज़िम्मेदारी मेरे कंधे पर आए।"
उसकी दहशत भरी बातों को सुन सम्राट के होश उड़ गए, क्योंकि सिद्धांश की आँखों में सच्चाई साफ़ थी। मतलब साफ़ था, अगर वह सिद्धांश को रोकने की गलती फिर से करता तो आज पक्का वह जान से जाता। मगर वह भी सम्राट सारंग था, सिद्धांश के लिए कुछ भी कर गुज़रने की तक़दीर जन्म से लिखा कर आया था। वह गहरी साँस खींचकर बोला,
"मैं तुम्हें रोक नहीं सकता, इससे मैं वाकिफ़ हूँ। बस गिफ़्ट के तौर पर राजन को मारने का मौक़ा मुझे मिलना चाहिए, वरना मेरी मॉम के आगे तुम्हारे इंडिया आने की खबर गलत तरीके से लग जाएगी और जहाँ तक मैं सिद्धांश जिंदल को जानता हूँ, तुम अपनी मासी को किसी हाल में हर्ट नहीं करोगे।" बोलो, मंज़ूर है सौदा?
सौदेबाज़ी तो सम्राट सारंग के खून में शामिल थी। वह टेढ़ी स्माइल करते हुए उसकी बंदूक की नोक कनपटी से हटाकर माथे पर रख बेखौफ़ अंदाज़ में सिद्धांश को घूरने लगा। उसकी हमेशा से हर काम में टांग अड़ाने की आदत देख सिद्धांश के होंठों के कोने मुड़ गए। वह तिरछी स्माइल कर वहशी अंदाज़ में बोला,
"एक बात याद रखना सम्राट, सौ कुत्ते मिलकर भी एक शेर का कुछ नहीं उखाड़ सकते। लेकिन कुछ महाहोशियार लोगों को लगता है कि उनकी चालाकियाँ मुझे समझ में नहीं आतीं, लेकिन वक़्त आ चुका है राजन अपने असली बाप से मिलेगा!"
यह कह वह सम्राट के साथ भीड़ को चीरते हुए उस मंज़िल पर पहुँचा जहाँ किसी दुश्मन पार्टी को मरने का शौक़ चढ़ा था।
वहीं रुह और नाज़, जिसकी हालत निधि की बात सुनते ही ख़राब हो चुकी थी, वे दोनों जल महल की ओर तेज़ी से बढ़ गईं।
**जल महल**
सफ़ेद संगमरमर और गुलाबी रंग की ख़ास नक्काशी से बना वह जल महल, जिसके इर्द-गिर्द झीलें और गहरा तालाब था, जिनमें दुर्लभ मछलियों को ख़ास पाला गया था, जो महल की शानो-शौकत में बढ़ोतरी कर रहा था। यकीनन तालाब और झीलों से घिरे हुए महल का नाम जल महल होना बड़ा ही लाज़िमी था।
कई एकड़ में फैली यह पुश्तैनी ख़ानदानी जायदाद पूरी दुनिया में मशहूर सिंघानिया ख़ानदान की थी। उस रॉयल फ़ैमिली के रूट जयपुर की सरज़मीन से जुड़े हुए थे।
ढलते सूरज के साथ जगमगाती रोशनी में वह जल महल भव्य कलाकृति की मिसाल दे रहा था। इसी जल महल के बड़े से प्रांगण में दो जवान, मासूम सी लड़कियाँ ऑर्गेनज़ा लहंगा और शरारा पहने किसी बात को लेकर भागे जा रही थीं।
"निधि की बच्ची, एक बार हमारे हाथ लग जाइए, फिर हम आपको बताएँगे, या अल्लाह आप कितनी ज़्यादा बदमाश हो चुकी है? आप प्लीज़ हमारा फ़ोन दीजिए। अगर गलती से भी वह तस्वीर किसी ने देख ली तो हम बहुत बड़ी दिक्कत में फँस जाएँगे। निधि, प्लीज़ दे दीजिए, वरना आपकी शिकायत अरहम भाई से करनी पड़ेगी।"
यह सुरली सी नज़ाकत भरी आवाज़ एक ऐसी लड़की की थी, जिसके पीछे अंडरवर्ल्ड की गद्दी का होने वाला बादशाह रिधान सिंघानिया का जुनून बन चुकी थी। वही नटखट सी, शरारती निधि, जो अठारह साल की होने की तैयारी में थी, अपने से दो साल बड़ी फ़िज़ा नाम की मासूम की जान को तंग करते हुए, ना में सिर हिलाकर बोली,
"हाउ क्यूट! मेरी मासूम सी जान, वह ख़ड़क सिंह आज महल आने से रहे। यह धमकी आप कल या परसों दे देना।"
"और रही बात इस फ़ोन की, तो ना-ना-ना! इतनी आसानी से मैं आपको फ़ोन दे दूँ, ऐसा होने से रहा। अब जल्दी से इस फ़ोन का पासवर्ड बताइए, वरना मैंने यह फ़ोन सीधा रिधान भाई को पकड़ा देना है। फिर तो आप जानती हैं, उनके लिए फ़ोन पासवर्ड हैक करना चुटकी बजाने जितना आसान है।"
"अगर आपको रिधान भाई से कोई पंगा नहीं लेना तो मुझसे हाथ मिलाओ, और ज़िंदगी में ऐश ही ऐश कर जाओ मेरी जान!"
अरहम के सामने डरी-सहमी रहने वाली निधि, अरहम की गैर-मौजूदगी में किसी शेरनी से कम नहीं थी। वह फ़िज़ा को डायरेक्टली रिधान का नाम लेकर धमकाने से बाज़ नहीं आई। आख़िर रिधान नाम की आफ़त फ़िज़ा की सबसे कमज़ोर ज़ोन ठहरी। रिधान का नाम लो और फ़िज़ा को हर बात के लिए धमका लो, इतना ज़्यादा आसान था फ़िज़ा को तंग करना।
और सच में हुआ भी यूँ ही। रिधान का नाम निधि के लबों से सुनते ही फ़िज़ा के गुलाबी चेहरे का तो रंग एक पल में ही उड़ चुका था। उस बेचारी का नाज़ुक दिल रिधान नाम का बवाल झेल पाए, इतनी जान उस नादान लड़की में कहाँ थी? वह तो अप्रैल के महीने में भी थर-थर काँपते हुए रिधान के डोमिनेटिंग कारनामों को याद करने लगी।
वह डाइविन ब्यूटी, उसकी सुरमई आँखें डर के मारे तितलियों की तरह फड़फड़ाने लगीं, और उसका छोटा सा सीने में धड़कता हुआ दिल धड़कना ही भूल चुका हो, इतना खौफ़ रिधान की हरकतों का उस बिचारी पर।
वह घबराई हुई सुरमई नज़रों से हर तरफ़ देखने लगी, और गुलाबी, मोटे-मोटे होंठों को काटते हुए बड़ी ही धीमे से बोली,
"ओ खुदाया! यह क्या ज़ालिम का नाम ले लिया? अल्लाह हिसाब लेगा मेरे साथ किए सुलूक का। उन हैवान के अब्बा का नाम हमारे सामने ना लिया करो निधि, अल्लाह के ख़ौफ़ से डरो। सच में हमारी छोटी सी जान उनकी ख़तरनाक आँखें देखकर ही काँप जाती है। वह इंसान नहीं, इंसान के भेष में जिन है जिन! बेहतर है तुम उनका नाम हमारे सामने ना लेना।"
"नाम लिया और वह शैतान हाज़िर हो, इससे पहले आप प्लीज़ हमारा फ़ोन दे दीजिए निधि, वरना सच में बड़ी मुसीबत होगी। अगर अम्मी जान को ख़बर लग गई, तो हमें बिना बात के सूली चढ़ा देंगी!"
कितने सुरीले अंदाज़ में उसने रिधान की तारीफ़ की थी! काश वह ज़रा खुद भी सुन लेता, फिर तो बड़ी फुर्सत से बताता वह कितना बड़ा हैवान है।
वही फ़िज़ा, जो रिधान का नाम लेते ही ना जाने क्यों सुरख़ गुलाबी हो जाती थी, वह गर्द लाल चेहरा निधि से छिपाने दूसरी ओर मुड़ गई, मगर उसकी टमाटर की तरह लाल होने की ख़ासियत से लगभग सभी रूबरू थे। इस कारण ही निधि जान-बूझकर छेड़ते हुए बोली,
"हाय मरजवाँ मेरी जान! गुड़ खाकर, आप ना दीदा आज सारे राज़ बता ही दो। आप भाई का नाम सुनते ही इतनी सुरख़ लाल कैसे हो जाती हो? मुझे भी यह नज़ाकत सीखनी है!"
"या अल्लाह! क्या करें हम? आपका कितनी बेहूदा बातें ईस्ट रही हैं। उनका नाम शैतान के अब्बा, या जल्लादों के शहंशाह होना चाहिए, पता नहीं इतना अच्छा नाम बर्बाद कैसे कर दिया उनकी अम्मी ने?"
रिधान का नाम होंठों से लेना भी फ़िज़ा गुस्ताख़ी समझती थी, फिर भले ही वह अजीबोगरीब नाम से क्यों न पुकारे? मगर जिनसे आज वाकई में उसका सामना रिधान की इसी आइडेंटिटी से होने वाला था, क्योंकि निधि नैनो को मटकती-मटकती फ़िज़ा का फ़ोन हाथों में हिलाए जा रही थी। उसने हाथ से अचानक से फ़ोन छोड़ा और वह नीचे गिरने लगा, जिसे ऐसे इंसान ने संभाला जिसे फ़िज़ा खुद सौ नामों से पुकार रही थी।
वह तो गनीमत था फ़िज़ा अपने आप बेइख़्तियारी से बड़बड़ा कर दूसरी ओर देख रही थी, वरना उस शख्स के हाथ में अपना फ़ोन देखकर बेचारी तो खड़े-खड़े ही अल्लाह को प्यारी हो जाती। वही सत्रह साल की छोटी सी जान, यानी कि हमारी निधि, जो नहीं करना था वह कर जाती थी, लेकिन फ़िज़ा की जान निकलने से पहले निधि उसे आगाह करती थी, कि तभी उस शख्स ने गहरी निगाहों से निधि को वार्निंग दी।
उसने वार्निंग लुक देकर निधि को वहाँ से खिसकने के लिए कह दिया। अपने बड़े भाई का इशारा मिलते ही निधि दुम दबाकर भाग गई, और फ़िज़ा, जिसके सिर पर मौजूद दुपट्टे की किनारियों से उंगली को उलझाते हुए रिधान के लिए बकवास किए जा रही थी, अचानक से वह निधि की ओर मुड़ गई।
मगर अपने सामने मौजूद उस हैवान की गहरी आँखों में जानलेवा लुक देखकर बेचारी फ़िज़ा की साँसें सच में रुकने को तैयार थीं।
बेचारी तो दानव जैसे मानव को देखकर धीमे-धीमे से छोटे क़दम पीछे की ओर नापने लगी। फ़िज़ा के लिए तारीफ़ों के पुल दिन-रात भी बाँध ले, उतना कम था। वह शख्स कोई और नहीं, रिधान सिंघानिया था, जो हर पल फ़िज़ा को अपनी प्यासी आँखों से दिल में उतारता था। ना जाने कितने ही वाइल्ड ख़यालात उसके दिल में गोते लगाते थे। अगर गलती से भी किसी रोज़ फ़िज़ा ने जान ले ली, ना तो कसम से, लिखवालों, फ़िज़ा की जान निकल के रहेगी।
वही रिधान, गहरी निगाहों से ही उस डाइविन ब्यूटी को ताड़ रहा था। उसकी सरसरी आँखों में बगावत की खुशबू, जिसे भांप कर ही उसका जी भाग जाने को करने लगा, मगर अफ़सोस रिधान के हाथों में मौजूद उसका फ़ोन बिचारी के पैरों में बेड़ियाँ डालने लगा।
वही रिधान की गहरी निगाहें अपना पसंदीदा काम कर रही थीं। वह फ़िज़ा के बदन का कर्वी टेक्सचर सुरख़ लाल रंग के घेरदार शरारे में देख नहीं पा रहा था। ऊपर से सिर पर अदाब दुपट्टा, फ़िज़ा के मुलायम बालों को देखने की तलब में मचल जा रहा था। वह चिढ़ते हुए उसके करीब जाने की ज़िद मन ही मन करने लगा।
ऊपर से फ़िज़ा का यूँ दूर सरकना रिधान को उकसाने के लिए काफी था। वही फ़िज़ा की सुरमई ख़ूबसूरत आँखें, जिनमें ढेर सारा काजल, वह भी नज़ाकत में बढ़ोतरी कर रहा था, वह अजीब सी सेंसुअल टेंशन दोनों के दरमियान महसूस कर नज़रें चुरा रही थी।
और हर बार की तरह वहाँ से भागने की फ़िराक़ में वह तिरछी नज़रों से अपने फ़ोन को देख रही थी, जिसे कुछ हद तक रिधान ने भी भांप लिया था। रिधान, जिसने आज त्यौहार के तौर पर डार्क ग्रीन कुर्ता-पायजामा पहना था, जो उसकी मस्कुलर, जिम में कसी बॉडी पर बवाल मचा रहा था। अगर कोई बंदी रिधान को देख भी लेती तो कसम से एक नज़र देखते ही पूरी ज़िंदगी उसके नाम कर गुज़रने को तैयार हो जाती, मगर सबसे आला (जुदा) अंदाज़ हमारी फ़िज़ा का था। उसे रिधान से जितना ज़्यादा दूर रहो, उतनी ही ज़िगर को शांति मिलती थी।
वही रिधान, जो फ़िज़ा के मासूम ख़यालातों से मुख़्तलिफ़ फ़िज़ा को दबोचने की बस तैयारी में रहता था, वह तेज़ी से दोनों के बीच फ़ासले मिटा फ़िज़ा के बेहद करीब खड़ा हो गया, जिससे फ़िज़ा डर के मारे यूँ काँप उठी। यह देख रिधान के चेहरे पर एरोनेंस स्माइल, वाइल्ड स्माइल खिल उठी। वह बेहद एफ़र्टलेसली फ़िज़ा के चेहरे के नज़दीक जा सारगोशी से बोला,
"मैं चाहूँगा आज के बाद तुम यह सुरख़ लाल जोड़ा ना पहनो तो ही बेहतर है। पहली गलती थी इसलिए नज़रअंदाज़ कर रहा हूँ, वरना अगर तुम फिर लाल जोड़े में नज़र आईं, तो मेरे हाथों से इस सुरख़ जोड़े का कतरा-कतरा पूरी तरीके से फटेगा, वह भी पूरे हक़-हुकूक़ के साथ।"
"जानती हो ना हक़-हुकूक़ एक लड़की पर किसे मिलता है? तुम इतनी तो बड़ी हो चुकी हो कि हक़-हुकूक़ का मतलब साफ़ समझ पाओ। (हक़-हुकूक़ शादी के बाद मिलने वाला शौहर का हक़)"
"अगर ना भी समझो तो मैं हूँ ना, मैं समझा दूँगा। नाउ टेल मी बटरफ़्लाय, इस फ़ोन में ऐसी क्या ख़ास बात है? जिसके लिए तुम इतनी परेशान हो? क्या किसी ने तुम्हें तंग किया है?"
आख़िरी शब्द कहते हुए रिधान की आँखों में अंगारे दहकने लगे थे। वही फ़िज़ा, उस बेचारी की साँसें धीमी पड़ने लगीं। रिधान की कही बातों का मतलब वह साफ़ तौर पर समझ चुकी थी। यक़ीनन वह फ़िज़ा का शौहर बनने की बात कर रहा था।
उसका छोटा सा दिमाग इस हाई वोल्टेज के झटके से फ़्यूज़ हो चुका था, मगर जब फ़ोन का ज़िक्र उसके कानों में गया, वह बर्फ़ जैसी ठंडी पड़ने लगी। आख़िर बात ही कुछ ऐसी थी। अगर गलती से भी रिधान के हाथों में उस लड़के की तस्वीर लग जाती, पक्का बेचारा उसका होने वाला शौहर अल्लाह ताला के पास बिना किसी गलती के पहुँच जाता।
यह मर्डर मिस्ट्री कुछ पल में ही सोच फ़िज़ा एक झटके में होश में आई और बिना वक़्त गँवाए रिधान के हाथों से फ़ोन छीन कर वहाँ से भागने लगी, लेकिन बेचारी का लंबा सा सुरख़ लाल रंग का दुपट्टा रिधान ने अपनी उंगलियों में उलझा रखा था।
अब इतने सालों से फ़िज़ा हमेशा उसके कब्ज़े से भाग जाती थी तो इतना रिधान तो उसे पकड़ने के लिए कर ही सकता था।
मगर पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ने वाली फ़िज़ा के साथ आज उसके खुदा साथ में थे। जब ही तो महल के एंट्रेंस से कई सारी लग्ज़री कारों का काफ़िला, जिनमें से कई सारे कमांडो के फ़ुल प्रोटेक्शन के साथ तैनात हो गए, जिसके चलते तिरछी नज़रों से एक डेविल लुक फ़िज़ा को पास कर वह धीमी आवाज़ में बोला,
"अभी छोड़ रहा हूँ, मगर यह मत समझना तुम मुझसे बच पाओगी। याद रखना तुम्हारे फ़ोन में ऐसा कुछ ना हो, वरना अंजाम तुम्हारे सहन के बाहर होगा।"
थोड़ा ठहर कर, मगर गहरी आवाज़ में,
"बटरफ़्लाय, तुम्हें जितना उड़ना है दायरे में रखकर उड़ो। अगर मेरे बर्दाश्त की सीमा ख़त्म हो गई, तो शायद तुम्हारा यह नाज़ुक बदन मुझे अपने ऊपर झेल नहीं पाएगा।"
आँखों ही आँखों में, बातों ही बातों में ख़तरनाक वार्निंग गहरे लफ़्ज़ों में देकर, अपने ज़िंदगी के सबसे इम्पॉर्टेंट हिस्से, यानी के अपने मॉम-डैड को रिसीव करने चला गया, और फ़िज़ा, जिसे रिधान की इंटेंस धमकियों की अब आदत सी होने लगी थी, मगर आज का डोज़ तो कुछ ज़्यादा ही हाई लेवल का मिला था, जिससे वह शर्म के मारे वहाँ से भाग गई।
वही कारों का काफ़िला, जिनमें मौजूद रिधान के पेरेंट्स जो अभी-अभी मंदिर से ख़ास पूजा कर अपनी बेटियों की ख़बर लेने आए थे, जो भीड़ भाड़ का मंदिर में ही पूजा करने के बहाने मटरगश्ती करते हुए पकड़ी जा चुकी थी।
तभी एक बुलेटप्रूफ़ बेंटले कार से स्ट्रांग पर्सनैलिटी का मालिक अपनी बीवी का नाज़ुक हाथ थामे बाहर निकल आया। उस शख्स की उम्र बावन और उनकी बीवी की उम्र चवालीस हो चुकी थी, मगर दो जवान बच्चों के मॉम-डैड होकर भी वह जोड़ा आज भी तीस-पैंतीस साल के अच्छे-खासे नौजवान कपल को भी टक्कर देता था।
मोस्ट स्टाइलिश डेनिम ब्लू अरमानी बॉडी-फ़िटेड कुर्ता पहने रणवीर सिंघानिया अपने बेटे रिधान को भी टक्कर देता था, और उनकी बीवी, जिनका नाम सीरत था, वह हसीन सी संतूर मम्मा बनी रिचुअल्स के मुताबिक़ पीले रंग की चुनरी प्रिंट से बनी शिफ़ॉन साड़ी, लंबे बालों में गजरा, नीली आँखों में ढेर सारा काजल, सुहागन के श्रृंगार में, मुस्कुराती हुईं अपने जवान बेटे को करीब आने का इशारा करने लगी।
उन महान हस्तियों का बेटा रिधान अपनी मम्मा के पुकारने से झट से उनके गले लगता, कि इसके पहले ही ओवर-पोज़ेसिव डैडी अपनी बीवी को कवर करने उसके सामने खड़े हो गए, जिसके चलते रिधान अपनी मॉम को नहीं, अपने डैडी को हग़ कर बैठा।
नतीजन दोनों ही माँ-बेटे अपने हस्बैंड-अपने डैडी को गुस्से में घूरने लगे।
"डैडी, ऐज़ ऑलवेज़, आप हमेशा मम्मा पर हक़ जताते हो। इतनी जलन ठीक नहीं।"
जवाब के तौर पर सीरत की नज़रों से बच रिधान के पेट पर साइलेंट बंदूक ताने रणवीर तिरछी स्माइल करते हुए बोला,
"बेटा, बाप बाप होता है। यह आइटम मेरी है। बेहतर होगा अपनी वाली पर ध्यान दो, वरना नज़र हटी, दुर्घटना घटी, कहीं यह डायलॉग तुम्हारे ऊपर फ़िट ना बैठ जाए।"
आशिक़ी की जलन में जलना सिंघानिया ख़ानदान के ख़ून में बसा था, जो घुट्टी रणवीर ने अपने डैड से पाई थी, वही घुट्टी रणवीर अपने बेटे रिधान को पिला रहा था। वह गहरा ज्ञान बड़े ध्यान से समझते ही रिधान की आँखें हैरानी से और थोड़ी ही देर में गुस्से से तपने लगीं, जिसका अंजाम बिचारी फ़िज़ा इत्मीनान से भुगतने वाली थी। दोनों की आपस में नोक-झोंक लगी ही थी कि तभी एक बयालीस साल की गोलू-मोलू, क्यूट सी लेडी, जिनका नाम पियाली सिंघानिया था, वह दो जवान हसीन लड़कियों के पीछे बेलन पकड़कर भाग रही थी।
"बड़ी मम्मा, बचाएँगे! मम्मी पागल हो गई। आह्ह्ह्ह्ह नहीं! बड़ी मम्मा (सीरत), यह सारा पंगा इस नालायक रुह की वजह से हुआ है, लेकिन देखो सारी पिटाई मेरे नाम लिख दी मॉम ने। डैडी, मेरी पागल मॉम को पागलखाने से क्यों छोड़ आए? आह्ह्ह... सॉरी-सॉरी, गलत बोल दिया। आप तो भागकर आई थीं पागलखाने से।"
यह कहते हुए हरनाज़ अपनी ही मम्मा का बिल सबके आगे फाड़ते हुए बिना पानी के आँसू बहाने लगी।
"इसकी तो... नाज़ की मॉम बस गुराती रह गई थी।" आख़िर उनकी बड़ी जेठानी सीरत घूरकर जो देख रही थी।
और रुह, जिसे डरना के नाम पर उसकी प्यारी सी मासी पियाली थोड़ा-बहुत हल्का-फुल्का डाँट रही थी, मगर सामने गुस्से में उबलती हुई सीरत के गले लिपटी हुई नाज़ की नौटंकी देखकर अब भागने की बारी रुह और उसकी मासी पियाली की थी।
"भागो... मेरा मुँह ना देखो मासी! यह दोनों भूतनियाँ हमारी खाल उखेड़ देंगी!"
दोनों मासी-बेटी की जोड़ी सीरत को देखते ही इधर-उधर भागने लगी, जिससे सारा घर हँसी-ठहाकों में गूँज उठा।
थोड़ी देर बाद जहाँ पियाली और रुह की अच्छी-खासी कुटाई हो चुकी थी, वह दोनों मासी-बेटी की जोड़ी नाज़ के ख़िलाफ़ साज़िश करने निधि-फ़िज़ा को अपने गैंग में लेने लगी।
वही हरनाज़, जो घर में हमेशा सीरत की लाड़ली बन उसके गोद में सिर रखे और अपनी क्यूट सी चुगलियाँ बड़ी मॉम सीरत से कर रही थी, यह दो पार्टी बनने का सिलसिला तो अब हर रोज़ की दास्ताँ हो चुका था, जहाँ रुह अपनी मासी (पियाली) के साथ नाज़ की शिकायत लगा रही थी।
घर में यह खुशनुमा माहौल देखकर रणवीर और रिधान ना में सिर हिलाकर स्टडी रूम की ओर जाते हुए आपस में कुछ सीरियस डिस्कशन करने लगे।
"डैड, आर यू श्योर? कल होने वाले फ़ंक्शन में उस स्पेशल गेस्ट को बुलाना सही होगा? वह भले ही बिज़नेसमैन की लिस्ट में मोस्ट रिचेस्ट बिज़नेसमैन बन चुका हो, लेकिन कहीं ना कहीं उसकी हिस्ट्री काफ़ी डार्क है। क्या आपको ऐसे क्रिमिनल माइंडेड शख्स को स्पेशल गेस्ट बनाकर बुलाना सही लग रहा है? इट्स रिस्की डैड।"
रिधान की बातों में वज़न तो ज़रूर था, लेकिन रणवीर का उस स्पेशल गेस्ट को बुलाने के पीछे ख़ास मक़सद था। अपने माइंड में गहरी सोच से बाहर निकल डेविलिश स्माइल करते हुए उन्होंने कहा,
"उस स्पेशल गेस्ट को बुलाने के पीछे मेरा ख़ास मक़सद है रिधान, क्योंकि इंडियन मेडिकल हॉस्पिटल्स में जितने भी मेडिसिनल ड्रग्स सप्लाई होते हैं, उनकी डीलिंग सिद्धांश जिंदल के हाथ में है। यही वह मौक़ा है जहाँ हम इस प्रोजेक्ट से जुड़कर सिद्धांश जिंदल के साथ डीलिंग कर लें, जो तुम्हारे सक्सेस की नई सौगात लेकर आएगा।"
उस नाम में ही कुछ ऐसी ख़तरनाक थी जिसे सुनकर रिधान काफ़ी परेशान हो चुका था। ना जाने क्यों उसे सिद्धांश का ज़िक्र सुनते ही अच्छी वाइब नहीं आ रही थी, और रणवीर बेहद रिलैक्स कुछ सोचकर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।
अगली सुबह , इंडिया की वन एंड ओनली रॉयल फैमिली जो यकीनन singhaniys ही थे , रॉयल सेलिब्रेशन के तौर पर कई एकड़ों में फैला हुआ वो जल महल world's बेस्ट पार्टी प्लैनेट्स और ऑर्गेनाइजर्स गणगौर की सेलिब्रेशन के लिए पूरे महल को दुल्हन की तरह सजा रहे थे , कई सालों बाद सिंघानिया फैमिली का पूरा खानदान लंदन से जयपुर जो आया था , उनके आने की खुशी एक छोटा सा celebrations वो भी खास रिचुअल के तहत तो बनता ही था , Ridhaan मॉर्निंग से ही अपने चाचू Shrvil के साथ मिल कर ऑफिस के लिए निकल चुका था, वही Arham जिसका सिंघानिया फैमिली से नाता बड़ा खास था, क्योंकि वो Ridhaan की बुआ Geet का बेटा जो था, Arham ज्यादा तर अपने Mamu के घर पर बिताया करता था, चाहे बिज़नस का मामला हो या ऑफिस का मगर सिंघानिया परिवार से जुड़े रहने की खास वजह यकीनन निधि थी , जो इस घर की बेटी तो नहीं थी मगर किसी बेटी से कम भी नहीं थी, , ( निधि के फैमिली की स्टोरी आगे में जानेंगे) now back to story , जब Ridhaan ऑफिस में था, फिर सारे महल की सिक्योरिटी Arham के कंधे पर आना बड़ा ही मामूली था, , " भाभी, Sorry, Fiza Di, क्या आप भाई के लिए टिफिन पैक कर देंगी, वो उन्होंने कहा है खास आपके हाथ के बने कढ़ाई पनीर खानी है, अगर आप ना चाहे तो मना भी कर सकती है मगर क्या पता bro आप पर गुस्सा, ....!.!.! आप समझ रही है ना मै क्या कहना चाहता हु ? फिजा पर हुक्म चलना ये तो ridhaan की आदतों में खास शुमार था, चाहे बन्दा कोसों मिल दूर क्यों ना बैठा हो मगर fiza तो तंग ना किया फिर क्या ? " आ आ आप उन उनकी धमकी ना दे , हमने मना थोड़ी किया है , हम फौरन बना देते है, प्लीज उन हैवान के अब्बा को कुछ न कहना वरना सांसे छिन लेंगे वो हमारी " 15, मिनिट दीजिए भाईजान अभी बना कर देते है "। बिचारी छुई मुई सी जान हमेशा की तरह सुरमई नजरे इधर-उधर करती हु फटाफट से किचन में भाग गई, उसका डर से लाल मुखड़ा देख कर ऑफिस की Led screen को गहरी निगाहों से घूरते हुए ridhaan की हंसी छूट गई, " हा हा हा हा she is Really cute yaar "। ये नजारा किसी ऑफिस एम्पलाई ने देख लिया होता बंदा पक्का खुद खुशी कर जाता , आखिर नवाबजादे ईद के चांद की तरह कभी कभी जो हस्ते थे, " इस नाजुक गुड़िया के गोद में जल्द ही मेरा baby देना पड़ेगा, इसे हैवान के अब्बा कहने का शौक जो चढ़ा है, बिचारी कैसे मुझे हैंडल करेगी ? इतनी सी तो जान है,Ridhaan इसे सॉफ्टली हैंडल करना होगा ,अगर टूट गई तो ? जिसके ख्यालों में हर दम fizaa की जान कैसे कैसे निकालना है ये Wild ख्याल चलता था, वो suhagraat पर fiza की हालत इमेजिन करते ही टेडी स्माइल करने लगा , जहां Ridhaan अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ऑफिस मशगूल हो गया, वही दूसरी ओर अपने भाई से मुख्तलिफ जल महल में , " ओए कुंभकरण की बिछड़ी हुई बहना जरा उठने का उपकार तो करना , अगर आप अभी तक घोड़े बेचकर सोती रही ना कसम से हम दोनों बहने आपको अकेली छोड़कर भाग जाएंगे , अब आप उठ रही है या हम आपको घुसे भूसे मारे , वैसे भी कल आपने अच्छी खासी हमारी चटनी बना रखी है , शैतान की अम्मा अगर आप इतनी मिन्नतों बाद भी ना उठी तो सच में मै चिल्ला चिल्ला कर आपके इन नाजुक कानों के पर्दे फाड़ दूंगी "। रूह की इतनी लंबी चौड़ी हिदायत देने का कोई मतलब नहीं रहा , उसकी Dida टस से मस हो ना हुई , जिस पर निधि बिस्तर पर जोर से जोर से खुद कर बोली , " ये लो Dida हमारी Sisso कुंभकर्ण की सौतेली बहन नहीं खुद कुंभकरण की फीमेल फोटोकॉपी है , कितनी भी मेहनत कर लो लेकिन उनके कान के नीचे से जू तक ना रेंगेगी , " बेहतर होगा आप मेरी बात मान ले और इन्हें सच में सबक सिखाएं पिछले 1 घंटे से हम लोग यहां भागने की फिराक में लेकिन हमारी महारानी एलिजाबेथ तो देखिए उठने को खाली नहीं " आपको इनके कानो के मोटे पर्दो की कसम आज तो आप उठा ही दो इन महारानी को "। ये दोनों चुलबुली लड़कियां कोई और नहीं Ruh और निधि थीे जिन्होंने जयपुर की खूबसूरती खुली आंखों से देखने के लिए सवेरे सवेरे ही भगाने का प्लान बना रखा था , जिसमें खुद कल रात लड़ाई झगड़ा निपटा कर Harnaaj ने उनका मनोबल बढ़ाया था , मगर जब बारी तैयार होकर चुपचाप खिसकने की आई तो देखो महारानी को सोने से फुर्सत नहीं , मगर अब निधि की बातों से Ruh चने के बड़े से पेड़ कर चढ़ चुकी थी , वो नखरेली बला एटीट्यूड भरी निगाहे Harnaaj पर डाल कर एक बाल्टी पानी उस पर सीधा उड़ेल कर वहां से भाग गई , " आह्ह्ह्ह मम्मी मम्मी डूब गई , मैं डूब गई बचाव बचाव मेरा प्रिंस चार्मिंग "। आह्ह मेरी Kisss"! लगता है बंदी ठरक भरे सपने अधूरा छोड कर आई हो , चीखते चिल्लाते छटपटा कर नीद से उठ हमारी कामचोर हरनाज ruh our Nidhi को पर्दे के पीछे देख गुस्से में घूरने लगी , अब बिचारी अभी-अभी अपने होने वाले hubby के लबों से पहली किस मुकम्मल करने ही वाली थी , कि पता नहीं कैसे वो अचानक से झरने में भीगने लगी , और ठंडे ठंडे पानी का एहसास जैसे ही हरनाज को ख्वाबों में हुआ वो छटपटाते हुए अपनी गहरी नींद से जाकर चिल्लाने लगी , मगर वो झरने में नहीं बाल्टी के पानी से भीगी थी यही तो असल गुस्से का कारण था , वो झुनझुला कर दोनों नालायकों के पीछे भागते हुए बोली , " आज तो मैने तुम दोनों को छड़ना नहीं है नालायकों तुम दोनों ने मेरी पहली किस बर्बाद कर दी , बड़ी मुश्किल से तुम्हारे जीजू को इमेजिन किया था, लेकिन तुम दोनों के रहते मेरी रोमांटिक लाइफ आगे बढ़ने से रही , और रूह तुम भाग कहा रही हो हर वक्त ठरकी बातें करती लेकिन जब भी मैं चोंच लड़ाने जाऊ तुम अड़ंगे डालने पहले आ जाती हो , " एक बार मेरे हाथ में आ जाओ छोडूंगी नहीं मैं तुम्हें"। बिखरे बालों के साथ गुर्राती हुई Naaj किसी खिसियानी बिल्ली से कम नहीं लग रही थी, वही दोनो नालायक बदमाश बहने उसे और भी चिढ़ने के लिए जीभ दिखा दिखा कर भाग रही थी , पूरे कमरे में दोनों की बारात निकालने नाज काफी देर तक पीछे भाग रही थी, मगर मजाल है दोनो हाथ में आई हो वही निधि जो ऑलवेज Ruh की असिस्टेंट थी, Ruh के इशारे समझ कर जानबूझकर उस साइड भागने लगी जहां ढेर सारा पानी बिस्तर से नीचे गिरकर अब तक जमा हुआ था , और जैसे ही Harnaaj भागते-भागते बिस्तर की ओर आई, बेचारी धड़ाम करती हुई कार्पेट पर जा गिरी , " आह्ह्ह्ह मम्मी तोड़ दी रे मेरी कमर नालायक लड़की मुझे नालायक लड़की मेरी kiss खराब की है ना देखना तू अपने बंदे को किस करने के लिए तरस जाएगी , और तेरा बंदा तुझे प्यार करने की बजाय तेरे साथ हर पल बकवास बाते करता रहेगा उसे रोमांस का R भी नहीं आएगा फिर तेरी wild इमैजिनेशन band बज जाएगी " हुह्ह"। Baby naaj आपको अंदाजा भी नहीं है वो wild criminal kis had तक Ruh के लिए रोमांटिक होगा, एक बार ruh ठीक से हाथ तो लग जाए दिन में तारे दिखा देगा हमारी Ruh मैडम को , वही रूह जिसे दिन में 100 गालियां खाने के बदले परोसे जाए तो कोई मसला नहीं था मगर कोई उसकी wild इमैजिनेशन ko छेड़ दे बस वही से ruh की दुश्मनी शुरू हो जाती थी , मगर ये छेड़खानी उसकी sisso ने की थी इस लिए रूह टेढ़ी स्माइल करते हुए बोली, " लगता है आपको मेरी वाइल्ड इमैजिनेशन में कुछ ज्यादा ही इंट्रेस्ट है, कोई ना जिस दिन मौका मिलेगा आपकी नजरे मेरे husband जी का वाइल्ड रोमांस फटी आंखों से देखनेगी "। क्योंकि मेरा तो एक ही फड़ा है जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म " मेरा शौक Nawabi और अकड़ Khandani है अगर मेरा attitude तोड़ने वाला वाला Munda कभी मिल गया ना कसम से हमारा रोमांस देख कर पूरी दुनिया शर्मा जाएगी "। " और अब अगर हैरानी से मुंह फाड़ना हो गया हो तो जल्दी तैयार हो जाओ, अब चलो भी मै बाहर जाने का इंतजाम करके आई , बंदी तो सच में टक्कर की थी, आखिर रणवीर सिंघानिया का खून जो थी,उसके एटीट्यूड को तोड़ने वाला बंदा आज ही हाजिर होने वाला था जिसकी बाहों में वो खुद को surender कर देगी , , Now lets go to the point जल महल की टाइट सिक्योरिटी तोड़ना किसी के बस की बात नहीं थी , मगर सिक्योरिटी का जिम्मा आज Arham के हाथों था , फिर क्या था ,बस कर लिया सौदा वो भी निधि का समझे नहीं, वेट समझाती हूं , अरहम अपनी स्वीट सिस्टर Ruh की बात टाल दे ऐसा तो मुमकिन ही नहीं था , क्योंकि सौदे में निधि जो उसके नाम हुई थी , ये घूस देने का idea यकीनन Ruh का था , अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता ये ruh के rool book का सबसे पहला रूल था , बाहर घूमने के चलते उसने आज रात के लिए निधि को बलि चढ़ा दिया था , मगर इस बारे में निधि को दूर-दूर तक खबर नहीं थी , वो तो लॉलीपॉप खाती हुई गुलाबी रंग का फ्रॉक सूट पहने कंधे तक आते बालों की छोटी सी चोटी बनाए आंखों में ढेर सारा काजल लगाए मटक मटक रूह की असिस्टेंट बनी उसकी हर बात मान रही थी, बिचारी मासूम सी निधि वही रूह जिसने गोरे रंग को और भी निखारने गर्द लाल गोल्डल बोर्डस का बना घेर डार सूट जिसके ऊपर मिरर हैंड वर्क किया गया था , गोल्डन झूमके पहने माथे पर छोटी सी बिंदिया और कजरारी आंखों में काजल लगाए naaj के तैयार होने का इंतजार करने लगी, जिसमें वो खिला हुआ लाल गुलाब लग रही थी , वही नाज जो Ruh की धमकी सुन कर वॉशरूम भागी थी , वो yelllo रंग का plasso suit पहने फटाफट से तैयार होने लगी , आखिर वो भी तो मटर गस्ति करना चाहती थी , कुछ देर में , " ओए मेरी गुलाबो ऐसे घूर कर ना देखो पता है मै बड़ी ठाय लग रही हूं, मगर घूर घूर कर क्या तुम नजर लगाओगी अब चलो भी वरना कोई पकड़ लेगा हमे "! बंदी खुद लेट लतीफ है मगर इल्जाम Ruh Nidhi पर मढ़ना ये तो Harnaaj की आदत में शुमार थी , शहनाज की नॉनस्टॉप सुनते सुनते ruh और निधि उसे पकड़ महल के पिछले रास्ते से उसे नॉर्मल सी Caar में बिठा देते है, जो खास कर के उस महल की शहजादियों के सेफ्टी का ध्यान रख कर अरेंज किया गया था, और तो और कई सारे कमांडोज Arham ने उनके पीछे लगवा दिए ,, नॉर्मल सी Caar में बैठकर हरनाज का तो मुंह ही बन चुका था , मगर Ruh और निधि के एंजॉयमेंट में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा , वो दोनों चुलबुली लड़कियां खुश फ़ुसाती हुई हरनाज की बुराइयां उसी के मुंह पर करती हुई सफर तय करने लगी , थोड़ी ही देर बाद , Rajmahal Palce , 200 साल पुराना Royal हेरिटेज जिसे आज luxury hotel के तहत जाना जाता था, यहां पर खास रॉयल घरानों की big fat शादियां कराई जाती थी , वो classic architecture , contemporary décor, के साथ उम्दा कारीगरी का फील दे रहा रहा , जिसे खुली आंखों से देखना किसी सपने से कम ना था , गेरुआ रंग से बना हुआ ये राज महल वोहरा खानदान की Lavish प्रॉपर्टी थी , जिसका असली Owner जर्मनी से खास किसी मकसद से आया था , " Oh my Godness look at this awesome property Ruh मैं आज ही हरमन ( हरनाज का मंगेतर ) जी से कहकर हमारी शादी का डेस्टिनेशन Milaan की जगह यहीं पैलेस फिक्स करूंगी , " Ruh मैने सुना है इस Raj महल का वारिस अभी भी कुंवारा है तू कहे तो बात चलाऊ, यार गुस्से में क्या देख रही है,तू अपनी शsisso के लिए इतना भी नहीं कर सकती? बताओ कहा हमने जीने मरने की कसमें खाई थी, ये बंदी मेरे खातिर एक शादी भी नहीं कर सकती , सिंघानिया खानदान जिनके खुद के पास दुनिया के हर हिस्से में कई एकड़ों की प्रॉपर्टी थी, उनके लिए एक पैलेस लेना हाथों से मैल रगड़ने बराबर था, मगर शायद ये महल अपने नाम करने किसी को मेहनत करने की जरूरत ही नहीं पड़ने वाली थी, क्योंकि इस महल का वारिस खुद रूह की दीवानी में पागल था , जिसकी भनक अब तलक खुद रूह को तक ना थी , वही रूह जो उस raajmahal के एंट्रेंस पर कदम रख ही रही थी , तभी ठंडी हवा का झोंका रूह के रोम रोम में घुलने लगा , ना जाने वो कौनसी मैनली फ्रैगनेंस थी , जिसकी तरफ Ruh अपने आप आकर्षित होने लगी , कुछ तो था उस मैनली फ्रैगनेंस में जो Ruh को काफी जानी पहचानी सी लग रही थी , " आखिर ये खुशबू ? कही वो नहीं नहीं वो बस मेरी वाइल्ड इमैजिनेशन थी , उसकी खुशबू यहां कैसे आ सकती है ?.आह्ह्ह्ह रूह तू कुछ ज्यादा ही सोच रही है "। Huuhhhh उसका साफ मतलब उस 6 महीने पुरानी यादों से था जिन्हें ढलते वक्त के साथ रूह वाइल्ड इमेजिनेशनके तहत भूलने की ना काम कोशिश आज भी करती थी , मगर ये इमैजिनेशन नहीं सच्चाई थी , कुछ देर पहले ही उस raaj महल का वारिस उस रस्ते से गुजरा था, जिसकी महक से लाल रंग के सूट में लिपटा हुआ Ruh का मखमली बदन अजीब से एहसासों से सिहर उठा , Ufff to much Intensity, I Can't Handle It ,🥵 जहां निधि और हरनाज सेल्फी से अपने आप में ही मस्ती कर रहे थे वही रूह जो किसी के ख्यालों में गुम हो चुकी थी , तभी उसकी नजर 4 th floor के बालकनी में गई, जहां एक शक्श किसी से फोन पर बात करते हुए गुस्से में बरसा रहा था, उन दोनों के दरमियान काफी फासला थे , रूह महल के प्रांगण में खड़ी थी और वो 4थे माले पर , मगर ना क्यों उसकी धुंधली परछाई से ही रूह सब कुछ भूल उसके डार्क अस्तित्व में मगन हो गई , मानो एक जोगन अपने इश्क के को सामने देख कर खो जाती थी , ठीक ऐसा नजारा था वो , तभी उस शख्स ने गुस्से में गुर्रा कर अपना फोन पकड़ दिया, और अचानक से वो बालकनी की रेलिंग पर हाथ कस ब्लैक शर्ट की कुछ बटन खोल कर खुली सांस लेने लगा , तभी ना जाने कैसे उकसा भी ध्यान गर्द लाल रंग के घेरदार सूट पहने उस लड़की पर गई , जिसके ऊपर पड़ती हुई तेज धूप में वो किसी सितारे की तरह चमक रही थी , Bang, 💥 दोनो की आंखे इतनी दूरियों से भी जा भिड़ी और ना जाने उसी पल मौसम ने ली अंगड़ाई तेज कड़कती dhoop घने बादलों से घिर गई , और कुछ पल में ही मंजर यू हुआ के तेज तूफान का आगाज तेज बारिश के साथ होने लगा , , वो दोनों बारिश की बढ़ती बूंदों में में भी एक दूसरे को देखे जा रहे थे , तभी Ruh रूमानी ख्यालों बाहर निकाल हरनाज और निधि उसका हाथ पकड़ महल के अंदर ले कर गई जहां lunch के लिए टेबल पहले ही Book किया गया था , अचानक से होश में आई रूह की धड़कने तेजी से बढ़ गई मानो वो सोचने समझने की एबिलिटी खो चुकी हो , " ओए कुड़ि किसके ख्याल में खोई है जल्दी से ऑर्डर कर मेरे पेट के चूहे खुद्खुशी कर रहे " I तोह Love It यहां का लोकल फूड"। खाना तो मेरा पहला इश्क है " आज तो नाज भर भर के खाना ठूंसने वाली थी , आखिर कार यहां का ऑथेंटिक इतना मशहूर जो था , , निधि मुंह बिचकाए–" यार Dida आप ये बताओ आपको किससे Isqk नहीं है , ? " निधि की बच्ची मार तू खायेगी सच्ची , और तेरा नाक खींच कर लंबा कर दूंगी सच्ची मुच्ची , ज्यादा बकबक ना कर वैसे तुझे नहीं लगता इतनी आसानी से हम जल महल की सिक्योरिटी तोड़कर यहां आए हैं ?. राज की बात बताओ आज तो मै होटल का सारा ठूस जाऊंगी, आखिर हमें आजाद करने तू शहीद जो होने वाली है, ooooooooo लो बताओ मैडम को खबर ही नहीं , " जरा पूछ अपनी खतरों के खिलाड़ी से हमारी आजादी के लिए तेरा सौदा किसके साथ कर आई है, अब Harnaaj ruh की पोल ना खोले ऐसा हो सकता था भला? वही Ruh जिसकी बैचने निगाहों उस मैनली fregnece की फिर से तलाश में थी , वो हरनाज की बात सुनकर हड़बड़ा कर इधर उधर देखने लगी , क्योंकि निधि उसे खा जाने वाली नजरों से जो देख रही थी , " सच-सच बताइए dida आपने कौनसा कांड किया है ? अगर आपने उन घर उसे जंगली असुर से हमारा सौदा किया है ना, तो सच मे आप भूल जाओ मैं आपकी असिस्टेंट हु , माना बचपन से मेरे सिर पर आपका असिस्टेंट बनने का भूत सवार था मगर अपने क्या किया सीधा मेरा सौदाकरा दिया वो बिना नमक मिर्ची लगा कर खा जाएंगे मुझे , आपने संस्कार वंस्कार नहीं है क्या dida ? 😭 सौदेबाजी में अगर मैं बलि की बकरी बनी ना तो आपको भी नहीं छोडूंगी देख लेना Dida", Ruh के साथ रहते रहते छोटी सी निधी भी धीरे-धीरे डेरिंग बाज होने लगी थी , मगर रूह को घंटा फर्क ना पड़ा वो राज कचौरी खाती हुई मुंह बिचका कर बोली , "देख बहन संस्कार वंस्कार का ज्ञान ना मुझे ना दे , मैं कोई संस्कारी लड़की नहीं एक सुनाइए 4 सुनकर जाएगी , अब रही बात सौदे बाजी की मैने उल्टा तुम्हारी जान बचाई है , ध्यान से मगर जरा तसली से सुन, आज रात पार्टी में सबको busy देख कर वो तुम्हे वैसे भी महल से बाहर ले जाना चहता था, और तुम तो जानती हो अकेले मे तुम्हरा क्या हाल होता, इस लिए मैने तुम्हारा सौदा कुछ खास टर्म्स and कंडीशन pr किया है अब रोना बंद करो मै जरा अभी आई "। खुद को निधि की सेवियर बतला कर वो चालू बंदी तो भाग निकली और बिचारी निधि कन्फ्यूज़ हो कर बस देखती रही, लेकिन Ruh की चलखी समझ पर नाज मन ही मन हस रही थी, मगर उसने निधि को अलर्ट करने की जहमत ना उठाई , बिचारी निधि आज रात तो पक्का गई , वही रूह वो बहाने से वहां से भाग चुकी थी मगर असली Game तो अब शुरू होने वाला था, वो कोरिडोर से गुजरती हु कुछ देर raaj महल का खूबसूरत हिस्सा देखना चाहती थी , मगर ना जाने क्यों किसी की स्ट्रॉग प्रेसेंस बार बार उसका दिल धड़का रही थी , 3rd floor पर ठीक उसी बालकनी के नीचे खड़ी होने से रूह की सांसे तेज बढ़ना बिल्कुल लाजमी था, आखिर उसके दिल पर हुकूमत करने वाला 4rh फ्लोर की बालकनी में मौजूद जो था, वो कुछ पलमें ही अजीब से एहसासों से घिरने लगी, मगर रेस्टोरेंट एरिया में मौजूद काफी सारे लोगों को के बीच रूह घुटन महसूस करने लगी , जिस कारण वो खुली हवा के चाह में लिफ्ट के बटन प्रेस करने लगी, मगर हड़बड़ाहट के चलते वो गलती से प्राइवेट लिफ्ट के सामने खड़ी थी, जहां पर किसी नॉर्मल इंसान का जाना सख्त बना था , लेकिन Ruh जिसका दिल अजीब से एहसासों के बीच गोते खा रहा था, वो वो ज्यादा कुछ ना सोच अपने दुपट्टे को संभलती हुई सीधा उस लिफ्ट में घुस गई , मगर अफ़सोस जिस मैनली डोमिनंस से भरी फ्रेंगनेस से वो भागने की कोशिश में थी , लेफ्ट में का door बंद होते ही वो Fregnece काफी ज्यादा स्ट्रांग महसूस होने लगी , जिस कारण वो पीछे खड़े शख्स को मुड़कर देख पाती इसके पहले , अचानक से उस लिफ्ट की लाइट बिजली शॉट आउट की वजह से बंद हो गई , पर रूह जिसे अंधेरे से वाकई में बेहद ज्यादा डर लगता था , वो गहरी गहरी सांस से लेकर लिफ्ट के बटन फटाफट दबाने लगी , " हेल्प हेल्प कोई है ?.I wanna go sissoo , "! Sissoo"। , कहती हुई Ruh Nictofobiya ( अंधेरे से खौफ) की वजह से पैनिक होने लगी , वही लिफ्ट में मौजूद एक शख्स किसी अनजान लड़की के प्राइवेट एरिया में आने से ही काफी ज्यादा बौखला चुका था ,मगर Ruh का यूं अचानक से पैनिक करते हुए मीठी आवाज में चिल्लाना , न जाने क्यों उसके दिल को धड़काने लगा , उसे कुछ ना समझ आया और उसने झट से रूह की गर्दन और उसकी नाजुक कमर में सख्त हाथों को लपेट अपने सीने में छुपा लिया , ताकि वो लड़की उसकी बाहों में महफूज़गी का आभास कर सके , " Shuhhhhhh relaxxx calm Down girl"। Your with me, dont have to worry, तुम्हें कुछ नहीं होगा मै हु ना , टेक deep breath "। जिंदगी भर अपने खौंफनाक किस्सों से दुश्मनों की जान निकलने वाले उस सख्श को एक अंजान लड़की का घबराना परेशान सा करने लगा , मगर उसकी आवाज सुन कर उसकी बाहों में महफूज महसूस करती Ruh खुद को पूरी तरह सरेंडर करती हुई गहरी सांसे भरने लगी But now twist start's here , Her bubbly Assets , ऊपर नीचे होने से उस शख्स के हाथों को छूने लगे , जिसे बस जरा देर Feel करते ही उसके खर्तनाक माइंड में ना जाने क्यों उस रात का मंजर गूंज उठा , बिल्कुल वैसी ही अंधेरी रात , बिल्कुल वही अंदाज जो उन दोनों दीवानों ने 6 महीने पहले फूल वाइल्डनेस के साथ जिया था , ये आज बिल्कुल उससे मिलता जुलता वही सारगोशी से भरा मंजर था , उस रात की तरह आज भी रूह पीठ के बल उसके मस्कुलर सीने में छुप गई थी, जो और कोई नहीं सिद्धांश जिंदल था , उस अंजान लड़की को अपनी बाहों में सिमट कर वो तो जैसे पागल सा हो गया , उसके हाथों की पकड़ ruh के बदन पर कस गई जिससे Ruh आह्ह्ह्ह करती हुई सिसक गई , Uska नाजुक सा वजूद सिद्धांश की क़ुर्बत में कांप उठा , Bsss उसका यू सिसकना सिद्धांश के अंदर जलती चिंगारी सुलगा गया ,कई अर्से से सोई उसकी जिद रूह को छूने भर से जाग उठी , उसका तो जी चाह रहा था वो इस नाजुक सी लड़की को खुद में शामिल कर ले , और अपने बेइंतहा दर्द का मर्ज बना ले , लेकिन तभी सिद्धांश के ख्याल में कुछ आया उसने अपने हाथों की मजबूत पकड़ उसकी गर्दन और कमर से हटा कर सीधा उसके सीने पर कस ली , ,मानो जानना चाहता हो, क्या ये वही है ? मगर वो बंदी तो बिकिनी में थी , ? और ये ?. ना जाने कितने ही ख्याल उसके माइंड में कौंध चुके थे , मगर जैसे ही उसके फेवरेट स्पॉट परफेक्टली सिद्धांश के चौड़े हाथों में फिट हुए सिद्धांश के होंठो से एक ही अल्फाज अपने आप निकल गया , " Kitten ? वही रूह जो पैनिक करते हुए सिद्धांश की बाहों में महफूज महसूहस कर रही थी , मगर उसकी ठरकी हरकते ऊपर से us अंजान बंदे से Kittten नाम सुनते ही रूह की आंखें फटी की फटी रह गई ♥️सो guys कैसा लगा आपको ये चैप्टर ढेर सारे कमेंट से बताए , please its required , मै अगर कभी-कभी लेट रिप्लाई करती हूं तो बुरा मत माने मै थोड़ा लेट सही मगर करूंगी जरूर ,और अपना सपोर्ट डेली बेसिस पर बनाए रखेगा और जितने भी लोग चैप्टर पर है मेरी गुजारिश आप लोग लाइक जरुर करें और कमेंट छोटू सा भी करें तो चलेगा , े थैंक यू सो मच
राजमहल, जयपुर
कहते हैं जोड़ियां ऊपरवाले के रहमो-करम से बनकर इस धरती पर आती हैं, जिनकी किस्मत खुद कुदरत के हाथों लिखी हो, फिर वे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न मौजूद हों, मगर सही वक़्त आने पर पूरी कायनात उस बिछड़े जोड़े को मिलाकर ही रहती है।
यही दास्तां सिद्धांश और रूह की थी, जो छह महीने पहले हिंदुस्तान की धरती से दूर कहीं प्रशांत महासागर में मौजूद एक क्रूज़ में मिले थे। लेकिन किस्मत का खेल तो देखो, उसने उन दोनों को फिर से ऐसे हालातों में डाल दिया कि सिद्धांश और रूह उस खूबसूरत जंगली रात के वाइल्ड मंज़र को इमेजिन करने से खुद को चाहकर भी ना रोक पा रहे थे!
बिल्कुल वही एहसास, बिल्कुल वैसा ही गहरा अंधेरा और उसी अंधेरे में महसूस होता हुआ जहनी सा एहसास, जिसकी क़ुरबत में समाकर आज रूह का मिजाज पूरी तरह से बदल चुका था। वह बिना झिझक, ना जाने क्यों, मगर खुद को सिद्धांश की आगोश में सरेंडर कर चुकी थी। वही सिद्धांश जो गुस्से में आग से भी ज़्यादा उग्र ज्वालामुखी बन रहता था।
लेकिन आज रूह को अपनी मज़बूत बाहों में भरते ही वह बर्फीले चट्टान की भांति शांत हो चुका था। मानो उस दैत्य को काबू करने की चाबी उस लड़की के पास हो।
मगर उस दैत्य को रूह के मखमली बदन से आती वैनिला की भीनी-भीनी खुशबू कुछ इस कदर पागल कर गई कि उसने रूह पर अपना पूरा हक़ समझ उसे बाहों में धर दबोच लिया। मानो सिद्धांश उसके नाजुक बदन को अपने सख्त मर्दाना शरीर में शामिल करना चाहता हो।
"वो क्यों ना उस पर अपना हक़ समझे? उसकी खुशबू में गुम हो जाना यह तो दीवानगी की पहली सीढ़ी थी जनाब! तब क्या होगा जब सिद्धांश इश्क़ की आखिरी सीढ़ी चढ़ेगा? कहीं क़यामत ना बरस पड़े रूह पर!"
वही रूह जो अंधेरे में जाने से ही कतरा जाया करती थी और आज लिफ़्ट में बंद दीवारों के बीच जब उसे अंधेरे का अहसास हुआ, वह बहुत डर गई। आखिर उसे अंधेरे का फ़ोबिया तो था ही। वह घबराहट के मारे पैनिक होते-होते थरथराने लगी।
"सिद्धांश! सिद्धांश! कहाँ हो तुम? मदद करो! बचाओ!"
अच्छे-अच्छों की पैंट ढीली कर जाएँ, ऐसी फाइटिंग स्किल उसके डेली रूटीन में शुमार थी, मगर यहाँ बात उसके एकलौते दुश्मन अंधेरे की थी, जहाँ रूह की साँसें हमेशा ही धीमी और कुछ देर में थमने की कगार पर पहुँच जाती थीं।
मगर तभी किसी ने उसे खींचकर अपनी बाहों में जकड़ लिया, जिसके आगोश में रूह सबसे ज़्यादा महफ़ूज़ महसूस कर रही थी। क्योंकि उसकी क़ुरबत में लिखा सिद्धांश उसका मुहाफ़िज़ था। उसने रूह को पूरी तरह से जकड़कर उसे गहरी साँस अंदर-बाहर करने को कहने लगा।
"शुश! शांत हो जाओ, कल्म डाउन गर्ल! मैं हूँ ना तुम्हारे करीब, फिर डरना कैसा? शांत, हम्ममम।"
खुद वह बंदा रेड फ़्लैग था, मगर जनाब की बातें तो देखो! रूह अगर सिद्धांश की जरा भी असलियत जान लेती तो पक्का बेहोशी से जा गिरती। मगर आज पहली मर्तबा उस शख़्स को किसी की परेशानी खलने लगी थी। इसका जवाब खुद सिद्धांश के पास नहीं था। वह बस रूह का डर खत्म करना चाहता था। मगर उसे क्या पता था कि रूह के नर्म बदन से आती खुशबू उसे कायल कर जाएगी? जो उसकी साँसों में घुलकर उसे पागल कर जाएगी?
वह रूह के बदन की कपकपाट से साँसें लेना भूल चुका था। आखिर रूह का धड़कते हुए हिलता हुआ सीना सिद्धांश की कमज़ोरी के तार छेड़ गया था। ना जाने क्या ख्याल उसके माइंड में कौंध आया। वह कुछ सोचकर अपने हाथों की पकड़ धीरे-धीरे उसके बदन से हटाकर सीधे उसके उभारों पर ले आया और पल भर न गँवाकर बड़े डेडीकेशन के साथ चौड़े हाथों की पकड़ में उन्हें नापने लगा। मानो वह पुष्टि करना चाहता हो-
वह जो सोच रहा है, वह सही तो नहीं? कहीं यह लड़की वही तो नहीं? अगर यह वही हुई तो?
वही रूह जो सिद्धांश की पनाह में आते ही उसकी घबराहट मानो कहीं गायब हो चुकी थी, वह उसकी बाहों में शामिल होकर आँखें बंद करके सिद्धांश के कहे अनुसार गहरी-गहरी साँसें भरने लगी। मगर सिद्धांश के सख्त हाथों में समाए उसके बड़े उभार मूवमेंट करते हुए अपने अस्तित्व की गवाही बार-बार सिद्धांश को देने लगे।
जो खुद उन्हें परखने के लिए धीरे-धीरे राउंड शेप में मूवमेंट करते हुए नाप-तोल करने में जुटा था। लेकिन जैसे ही उनकी मूवमेंट होना शुरू हुई, उनका साइज़ सिद्धांश के हाथ में परफेक्टली फ़िट हो गया, या यूँ कहूँ कुछ ज़्यादा ही फ़िट हो गया। बस उन दोनों रसीले उभारों को परफेक्टली फ़िट महसूस करते ही उसके पत्थर दिल में अजीब से इश्क़ की पहली चिंगारी दहक उठी।
और उसने इसी एहसास को जीते हुए, डोमिनेंट हस्की आवाज़ में कहा, "किट्टन?"
फिर जरा ठहरकर गहरी साँसें लेते हुए, उसके काँपते हुए हर जर्रे को शिद्दत से महसूस करते हुए उसने कहा,
"हाँ, तुम मेरी किट्टन हो! कहाँ नहीं ढूँढा तुम्हें मैंने! कहाँ थी तुम? हां, दामन पागल कर रखा था तुमने मुझे! उस वक़्त भाग गई, मगर अब नहीं।"
"शुशशशशश! ना, ना, डोंट मूव! आई विल नॉट हार्म यू किट्टन, अंटिल यू प्रोवोक मी।"
"शांत हो जाओ, टेक डीप ब्रैथ्स! यह तुम इतनी तेज़ी से मूवमेंट करोगी तो मैं इन्हें छूने की तमन्ना में खुद को रोक नहीं पाऊँगा। अब मैं कुछ कह रहा हूँ किट्टन, ध्यान से सुनो! इस मूवमेंट से मैं तुम्हारे बदन के हर इंच को एक्सेस कर सकता हूँ और तुम मुझे रोक नहीं सकतीं, हम्ममम।"
उसका घातक डिजायर उस कामुक वक़्त पर चरम पर था।
"अब गहरी-गहरी साँस लो और मुझे महसूस करने दो। अगर तुमने ज़्यादा मूवमेंट की, मेरे हाथों की पकड़ तुम पर और भी कस जाएगी। तुम्हें मैं हद से ज़्यादा बेहाल कर जाऊँगा, इसलिए बेहतर होगा तुम मेरी अरसों की तड़प को ना छेड़ो। शांति से तुम्हें छूने दो, फ़ायदे में रहोगी। वरना मेरी डोमिनेंस सहने की ताक़त इस नाजुक जिस्म में नहीं।"
वह उसके बिंदास पक्ष को देखकर पूरी तरह से हैरान थी।
मिजाज तो देखिए इस बंदे का! लड़की हाथ आई नहीं, हुक्म चलाना शुरू! वह भी फ़ुल ऑन, डंके की चोट पर रूह पर डोमिनेट कर रहा था। मगर असली चमत्कार तो अब हुआ! जिसके खून में खानदानी एटीट्यूड भरा हुआ था, वह खुद उसकी क़ुरबत में पिघल बैठी और उसकी डोमिनेंस के आगे रजिस्टर करने की बजाय खुद उसके आगे सबमिसिव होने लगी।
आखिर ऐसी भी क्या बात थी जिसकी रूह को तक ना खबर हुई? ना जाने क्यों, आखिर क्यों वह हमेशा रूह के माइंड को कंट्रोल कर जाता था? शायद कहीं ना कहीं मोहब्बत का आगाज़ उसके दिल में धीमी आँच पर पकना शुरू हो चुका था।
आखिर यही तो मोहब्बत की पहली सीढ़ी थी, जो अपने महबूब की बाहों में खुद को महफ़ूज़ महसूस कर अपने आप को सौंप देती थी। तो फिर भला रूह की इसमें क्या गलती थी? वह बिना कुछ बोले, बेफ़िक्र से खुद को सौंपकर गहरी-गहरी साँसें भरने लगी।
उतना ही नहीं, सिद्धांश को हैरान करने के लिए उसने अपनी नाजुक उंगलियों को उसके बालों में थिरकाने लगे।
उसके उंगलियों की हरकतें जान सिद्धांश को उसके मंज़ूर की गवाह दे गईं। अगर वह ना भी कहती, तब भी सिद्धांश जबरन उसे पा लेता। यही तो सीखा था उसने 28 साल की उम्र में! उसकी नज़रों में आती हर चीज को हर हाल में पाना उस रईसजादे की आदतों में शुमार था। फिर तो यहाँ बात खुद उसकी दिलकशी की थी।
मगर रूह का रिस्पांस सिद्धांश को वाइल्ड एनिमल बना रहा था। वह सेडक्टिवली उसे महसूस करते हुए खुद को शांत करने लगा। इसी के साथ रूह के लबों से मादक सिसकियाँ निकलने शुरू हुईं, जिसके मिश्री की तरह कानों में घुलते ही सिद्धांश का रोम-रोम बहक गया।
वह रूह की खुशबू लेते-लेते उसकी गर्दन को चूमने लगा। मानो उसके प्यासे दिल को मोहब्बत का समुंदर मिल चुका हो।
आखिर वह भी सख्त मर्द था, जो पहली दफ़ा अपनी पसंदीदा औरत के आगे पिघलता जा रहा था, जो इश्क़ की पहली बारिश में भीगने का मज़ा अपने हाथों और होंठों से चख रहा था।
बड़े-बड़े बिज़नेसमैन जिनका ओहदा काफ़ी ऊँचा होता था, मगर सिद्धांश का ज़िक्र सुनते सब थर-थर काँप जाया करते थे। जिसके बेरहमी के चर्चे अंडरवर्ल्ड की दुनिया में मशहूर थे, उसके क्रूलनेस का परचम लहराकर दुश्मनों को खौफ़ दिखाया जाता था। वह ऐसा सख्त मर्द, अपनी पसंदीदा औरत की इंटेंस करीबियों में बर्फ की भांति ठंडा पड़कर रूह के नर्म बदन को गर्मी दे रहा था।
क्योंकि उसके हाथ सेडक्टिव प्रेशर बनाते हुए रूह के उभारों पर मनमानी कर रहे थे, जिसके चलते रूह का नर्म-नर्म बदन पसीने में भीगना बिलकुल जायज़ था।
"येस! येस! उम्म्म्म्म! डैम! डोंट स्टॉप! उनन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! येह्ह्ह्ह! हार्डर! आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!"
मगर उसकी बढ़ती हुई सिसकियाँ सिद्धांश के हाथों की बढ़ती हरकतों के साथ तेज करने को उकसा रही थीं।
मगर यह बंदी बड़ी गज़ब थी! धीरे-धीरे, "नहीं, मत करिए" का ज़िक्र उसकी सिसकियों में कहीं भी नहीं था। वह तो उल्टा और प्रेशर के मूवमेंट बढ़ाने के लिए उकसा रही थी। पर उस सिसलिंग हॉट बंदी की डिमांड सुनते ही सिद्धांश की बढ़ती डिजायर उसके लिए बेताब होने लगी।
"बस कर पगली, वरना शेर जाग जाएगा!"
वही सिद्धांश जो अब तक उसके नाजुक बदन का ख्याल रखकर आहिस्ता से उन्हें छू रहा था, मगर अब वह असली मर्दानगी का थोड़ा सा डेमो दिखाते हुए रूह की सिसकियों को चीखों में बदलने के लिए प्रॉपर प्रेशर के साथ मनमानी करने लगा।
"यू लाइक इट किट्टन? हम्ममम! यू वांट मोर? टेल मी किट्टन, हाउ मच प्रेशर यू वांट? नो बच्चा, डोंट मूव! तुम जितना हिलोगी, उतना मेरे हाथ तुम्हें दर्द देते जाएँगे।"
"नाउ से माई नेम किट्टन, लाऊडर एंड लाऊडर!"
वह सनक भरे अंदाज में लगभग उसकी मासूमियत को अपनी डोमिनेंस तले रौंद चुका था। उसकी शैतानियत देखकर बेचारी रूह का बदन काँप चुका था, जिसके फितूर दिमाग में जिद कूट-कूट कर भरी हुई थी। मगर सिद्धांश के डोमिनेंट पर्सनालिटी से रूबरू होते ही बेचारी की आहें चीखों में बदल गईं।
"आह्ह्ह्ह्ह्ह! नहीं! नहीं! मुझे मत मरोड़ो! दर्द हो रहा है! यू ब्लडी रास्कल! किलिंग मॉन्स्टर! छोड़ दो मुझे! आह्ह्ह्ह्ह्ह!"
इसी के साथ हमारी रूह मोहतरमा अपने होश-हवास में वापस आई और झट से सिद्धांश के बालों से हाथ निकालकर उसके हाथों को हटाने लगी। मगर उसके हाथों की छूवन से वह किसी सदमे में जा गिरी, क्योंकि रूह के मुक़ाबले उस रात की हसीन दास्तां सिर्फ़ उसकी सुपर वाइल्ड इमेजिनेशन थी। मगर आज तो उसका भ्रम बड़ी ख़तरनाक हालातों में टूटा था। वह बंदी जो अब तक "आह्ह! आह्ह्ह्ह! येस! येस!" किया जा रही थी, अब खुद को ही अपनी हालत देख हज़ार गालियाँ मारने लगी।
"वो… वो कोई ख्वाब नहीं, हक़ीक़त था! नहीं रूह! शायद तेरी मेडिकेशन कुछ ज़्यादा ही हाई हो चुकी है! मगर यह सच हुआ तो? भाग रूह! इससे पहले यह बंदा तुझे पूरी तरह खा जाए!"
उसके डार्क इमेजिनेशन की घुट्टी रूह को उसकी माँ से खास मिली थी, जिसका असर बिचारी रूह पर आज बड़ा ही भारी पड़ चुका था। वह पिछले छह महीनों से ना जाने कैसे-कैसे ख्यालातों को अपनी इमेजिनेरी दुनिया में जिया करती थी, मगर असलियत में जब उसने महसूस किया, बिचारी की हवा टाइट हो चुकी थी।
और सिद्धांश जो आज स्वीट टॉर्चर से रूह की साँसें तक छीन सकता था, बिचारी इतने बड़े भक्कम शरीर के मालिक को झेल कहाँ पा रही थी?
सिद्धांश की बढ़ती डेविलनेस अपने बदन पर महसूस कर उसके चेहरे से सारा रंग ही उड़ चुका था। तभी फिर से उसकी आह्ह्ह्ह्ह की आवाज़, फिर एक बार चीख निकल आई।
क्योंकि वह भूखा बब्बर शेर सामने मौजूद नर्म-नर्म रसीला मांस खाने की तलब में उसकी गर्दन को चूम रहा था।
तभी रूह के समझ से परे उसकी पीठ जो अब तक सख्त सिद्धांश के सीने से लगी थी, अब लिफ़्ट की दीवार से जा लगी और उसके कुछ रिएक्ट करने से पहले सिद्धांश फिर से उसकी गर्दन पर टूट पड़ा। और तो और, अंधेरे में ही उसके उभारों को बेहाल करते हुए, पागल कर देने वाली खुशबू के चलते उसकी गर्दन को फिर से चूमने लगा।
मानो आज वह सारी खुशबू अपनी साँसों में उतारकर अपनी तड़प का बदला लेगा। उसकी सुराही गर्दन को चूमते-चूमते अब सिद्धांश की तलब बढ़ने लगी।
लेकिन धीरे-धीरे ही सही, रूह की करीबियों ने फिर से सिद्धांश के जागे हुए अरमान शांत करके उसे सुकून पहुँचाना शुरू कर दिया। उस पुरसुकून से भरी फ़ीलिंग से सिद्धांश को ताज़्जुब होने लगा था, जिस कारण वह मन ही मन खुद से बोल पड़ा-
"इसकी करीबियों में आखिर ऐसा क्या है जो मुझे सुकून का एहसास कराता है? आई वांट टू सी हर, हू इज़ शी? जिसकी नज़दीकियाँ मेरा सुकून बन जाती हैं, मगर उसकी दूरियाँ मुझे घायल शेर बना देती हैं। आज तो मैं तुम्हारा चेहरा देखकर ही रहूँगा, फिर चाहे कुछ भी हो जाए।"
आखिर यह लड़की कौन थी? कैसी दिखती थी? यह जानने के लिए वह बेताब हो रहा था। और इसी बेचैनी से बेकरार होकर सिद्धांश ने रूह को सताना बंद किया और आहिस्ता से उसकी कमर पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा और रूह को जरा गुर्राते हुए बोला-
"बहुत गलत किया तुमने मुझे तड़पाकर! मुझे अपने एहसास में पागल करके तुम भाग गईं! आखिर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे दूर जाने की किट्टन?"
वह गुर्रा रहा था, मगर उसकी खुशबू से उतना ही पागल भी हो रहा था। उसकी धमकी सुनकर बिचारी रूह के चक्के छूट चुके थे। तभी सिद्धांश ने धीरे से उसकी कमर दबाकर कहा-
"उम्म्म्म्न! योर स्मेल ड्राइविंग मी क्रेज़ी डैम! तुम इसी वक़्त मुझे मेरे करीब चाहिए, बेहद करीब! आई वांट यू टू इनसाइड मी!"
उसकी सेडक्टिव आवाज़ में घुली दीवानगी रूह ना चाहते हुए भी मदहोश कर रही थी। लेकिन सिद्धांश के द्वारा किए गए खुलासे से अब जाकर उस हसीन रात का पर्दा रूह के आगे पूरी तरह से खुल गया, जहाँ शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि यह डोमिनेंटिंग बंदा कोई और नहीं, उसका...
मगर यह हक़ीक़त रूह चाहकर भी डाइजेस्ट नहीं कर पा रही थी। वजह थी सिद्धांश की इंटेंस करीबियाँ, जिसके आगे रूह का यूँ सरेंडर करना उसके एटीट्यूड को ठेस पहुँचाने के बराबर था। और सबसे बड़ी वजह कुछ ऐसी थी जिसके चलते रूह चाहकर भी उस सनकी इंसान के आगे झुकना नहीं चाहती थी।
रूह तो बस कैसे भी करके यहाँ से भागना चाहती थी, मगर बेचारी कुछ ना कर सकी, सिवाय तेज आवाज़ में सिसकियाँ भरने के। मगर कुछ पल का ही सुकून जो सिद्धांश को मिला था, अचानक लिफ़्ट में हो रही अनाउंसमेंट ("लिफ़्ट विल बी ओपन सून") के चलते उसके इंटेंस रोमांटिक सेशन में रुकावट सी महसूस होने लगी। मगर उस अनाउंसमेंट में साफ़ तौर पर लिफ़्ट खुलने का ज़िक्र सुनकर रूह का दिमाग ठिकाने पर आते ही उसने खुद से कहा-
"मर गई लड़की! यह कहाँ फँस गई तू? इन्होंने तो तुझे किट्टन पुकारा है! इसका मतलब यह वही मॉन्स्टर है!"
"इसका मतलब वो… वो कोई ख्वाब नहीं, हक़ीक़त था! नहीं रूह! शायद तेरी मेडिकेशन कुछ ज़्यादा ही हाई हो चुकी है! मगर यह सच हुआ तो? और अगर यह वही सनकी आशिक है तो गलती से भी तेरा चेहरा देख लिया तो फिर तू बचेगी नहीं! भाग रूह! इससे पहले यह बंदा तुझे पूरी तरह जान जाए!"
और वह जो अब तक सिद्धांश के आगे सरेंडर कर बस बुत बनी खड़ी सिसकियाँ भर रही थी, वह भागने के इंतज़ार में धीरे-धीरे खुलते लिफ़्ट की ओर देखने लगी। लेकिन ना जाने क्यों उसका दिल उस ख़तरनाक दैत्य के चेहरे को देखने की कोशिश करने लगा। मगर अफ़सोस, वह जंगली शेर रूह के जुल्फ़ों में घुसकर उसकी गर्दन को चूम रहा था, जिस कारण रूह उसका चेहरा चाहकर भी ना देख सकी।
तो वही सिद्धांश! वह चाहता तो अपनी ताक़त आजमाकर रूह का चेहरा देख लेता, मगर ना जाने क्यों वह रूह पर ज़्यादा ज़ोर नहीं चला पा रहा था, क्योंकि रूह की बेबी स्किन उसकी नाजुकता साफ़ दर्शा रही थी। कहीं वह फ़ुल सी गुड़िया टूट ना जाए।
"ज़्यादा मूवमेंट ना करो किट्टन एंड शो योर फ़ेस! आई वांट टू सी यू! यू कैन्ट हाइड फ़्रॉम मी!"
सिद्धांश की बढ़ती चाहत को सुन रूह के चेहरे से सारा रंग ही उड़ चुका था। सिद्धांश की जिद रूह के समझ से परे थी।
"यह क्यों मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं? क्या मुझे सूली पर चढ़ाएँगे? नहीं! नहीं! मैं इतनी जल्दी ऊपर नहीं टपक सकती! अभी तो मुझे अपनी बकेटलिस्ट भी पूरी करनी है! मगर अब तू भागेगी कैसे रूह? कुछ सोच इससे पहले तेरा पर्दा फ़ाश हो जाए!"
अब सिद्धांश की जिद ऐसी थी मानो आज वह अपनी तड़प का बदला लेगा। वह रूह के चेहरे पर लिपटा ओढ़ना खींचते हुए जरा गुर्राकर बोला-
"डोंट हाइड योर फ़ेस किट्टन! शो मी! आई वांट टू सी यू! और यह तुम्हारी खुशबू मुझे ना जाने क्यों पागल किए जा रही है! आखिर क्या लगाती हो तुम, हम्ममम? जब से साँसों में घुली है, पागल कर रखा है इसी खुशबू ने! योर स्मेल ड्राइविंग मी क्रेज़ी डैम!"
"बट किट्टन, तुम क्यों मुझे घायल करके भाग गई थीं? हाँ, बोलो? यू डिडंट हैव टू रन अवे फ़्रॉम मी!"
"बहुत गलत किया तुमने मुझे तड़पाकर! मुझे अपने एहसास में पागल कर, लेकिन इस बार नहीं भाग सकोगी! क्योंकि अब तुम्हारे दूर जाने के सारे रास्ते बंद होंगे! तुम्हारी पहली मंज़िल भी मैं और आख़िर भी मैं!"
उसकी हस्की आवाज़ में घुली दीवानगी से रूह ना चाहते हुए भी मदहोश हो रही थी।
मगर कुछ पल में ही आखिरकार वह वक़्त आ गया जब लिफ़्ट पूरी तरह से खुली, जिसके चलते रूह होश में आई और शातिर दिमाग का इस्तेमाल कर सिद्धांश के मदहोश होने का फ़ायदा उठाकर उसके स्पेशल ब्रेसलेट में मौजूद एक छोटा सा पिन, जो दिखने में बड़ा ही आम था, उसने बड़ी ही चालकी से उसकी गर्दन पर घोंप दिया। जिसका दर्द चींटी काटने के बराबर था, जो सिद्धांश के समझ आने से पहले ही अपना असर दिखाना शुरू कर गई। चंद सेकंड बीते ही थे कि तभी सिद्धांश बेसुध सा रूह के बदन पर टिक गया।
उसका जिम में कसा हुआ भारी-भक्कम शरीर बिचारी रूह के बस के बाहर था। बिचारी कैसे हैंडल करेगी उसे? वह जैसे-तैसे उसे हैंडल करती, मगर तभी कुछ लोगों की आवाज़ आने लगी, जिसे सुनते ही रूह फटाफट से सिद्धांश को दीवार से सहारे उल्टा टिकाकर वहाँ से भागने लगी। मगर तभी उसकी नज़र पुखराज की अंगूठी पर पड़ी जो एक यादगार की निशानी बनने वाली थी। वह एक नज़र सिद्धांश की पीठ देख स्मर्क करते हुए बोली-
"यू वाइल्ड एनिमल! फिर से मेरी सॉफ्टिस को छेड़ने तुम सात समुंदर पार करके आए हो! तुम्हें उसी समुंदर में ना डुबोया जाना तो मेरा नाम बदलकर रख देना! नोबडी कैन कंट्रोल मी! नोबडी!"
वह कुछ सोचकर लिफ़्ट के बटन टॉप फ़्लोर के लिए प्रेस की और वहाँ से ऐसे गायब हुई जैसे मानो उसका नामो-निशान ही ना रहा हो। कुछ देर बाद सिद्धांश जो रूह के एहसासों से छोटा जिद्दी बच्चा बन चुका था, मगर राजमहल में बने उसके केबिन में होश आते ही वह रूह के ख्यालों से आदमखोर दैत्य बन चुका था, जिसकी दहशत से सारे एम्प्लॉइज़ थर-थर काँपते हुए हर मज़हब के भगवान को याद कर चुके थे।
"आह्ह्ह्ह्ह्ह! वेयर इज़ माई किट्टन? वेयर इज़ शी? आई वांट हर! आई वांट हर!"
पूरे लैविश केबिन में तोड़-फोड़ मचाते हुए वह पागलों की तरह राजमहल के हर एक हिस्से में उस लड़की को ढूँढने लगा, मगर अफ़सोस, आज भी वह कातिल हसीना उसके शिकंजे से भाग गई थी।
जिस कारण उसकी गरजती दहाड़ पूरे राजमहल में कुछ इतनी ख़तरनाक गूँजी कि उस राजमहल में मौजूद सारे एम्प्लॉइज़ अपनी बेरहम मौत इमेजिन तक कर चुके थे।
तभी उसके माइंड में राजमहल के सीसीटीवी रूम का ख्याल आया, जहाँ जाकर रूह की फ़ोटोज़ देखने के लिए वह बेताब होने लगा। मगर सरप्राइज़! सरप्राइज़! ताज़्जुब की बात कुछ ऐसी थी कि पूरे एक दिन का डाटा मानो कहीं गायब हो चुका हो। आज की सीसीटीवी फ़ुटेज पूरी तरह से डिस्ट्रॉय हो चुकी थी, मानो किसी ने जानबूझकर उस लड़की का अस्तित्व मिटाया हो।
"आह्ह्ह्ह्ह्ह! यह तुमने बिलकुल ठीक नहीं किया किट्टन! बिलकुल ठीक नहीं किया! एक बार गलती के बदले मैं तुम्हें छोटी-मोटी सज़ा के तहत दे देता, मगर तुम फिर से मेरी बाहों में आकर मुझे पागल बनाकर भाग गईं! अब तो मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं! अब तो मैं तुम्हें किसी भी हाल में नहीं छोड़ूँगा!"
बिना उसके वह उस वक़्त साँस लेने में असमर्थ था।
"अगर तुम जिद्दी हो तो मैं जिद का सरताज हूँ! पैदा तो मैं भी शरीफ़ हुआ था, मगर शराफ़त से मेरी कभी बनी नहीं! सोचा तुम्हें शराफ़त से काबू करूँ, लेकिन तुम वो चिड़िया हो जिसे शराफ़त नहीं, जुनूनियत से काबू किया जाता है। बस एक बार हाथ लग जाओ किट्टन, कसम से क़यामत बरसेगी क़यामत!"
आँखों में अजीब सी जिद लिए सिद्धांश अपने हाथ में मौजूद एक पेंडेंट को प्यासी निगाहों से घूरने लगा। यह वही पेंडेंट था जो रूह के गर्दन पर कब्ज़ा जमाने से उसके शर्ट में अटक गया था, जो निशानी के तहत सिद्धांश की दीवानगी बढ़ा रहा था।
जिसे देखते हुए सिद्धांश के चेहरे पर मिस्टीरियस किलिंग स्माइल आ गई। मानो उसके दिलो-दिमाग में कुछ चल रहा हो। तभी उसे किसी का कॉल आया और सामने वाले की बात सुन सिद्धांश के होंठों के कोने मुड़ गए।
"आज का जश्न पूरा जयपुर देखेगा! सेलिब्रेशन में जाने की तैयारी करो!" यह कहकर उसने तिरछी स्माइल बिखेरते हुए फ़ोन काट लिया।
रात का वक्त था। जलमहल गणगौर समारोह की सजावट से लहरा रहा था। लाल और सफ़ेद फूलों से बड़ी ही सुंदर तरीके से सजाया गया था। चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तिथि पर आने वाला यह शुभ मुहूर्त गणगौर के सोलह दिनों तक खास पर्व के तहत पूजा जाता था।
और आज रॉयल सिंघानिया परिवार अपने दमदार अस्तित्व को पेश करते हुए, हिंदुस्तान के हर कोने से लेकर पूरे विश्व के जाने-माने व्यापारी, उद्योगपति, अधिकारी, राजस्थान का राजघराना, मशहूर फिल्म स्टार, ना जाने कितने ही सितारे उस शानदार समारोह में शामिल थे। खास रीति-रिवाजों का पालन करते हुए सभी मेहमान पारंपरिक वेशभूषा में थे।
कई एकड़ में फैली वह पुश्तैनी जागीर आतिशबाजियों और रंग-बिरंगी जगमगाती सुनहरी लाइटों से जलमहल को रोशन कर रही थी।
वहीं लोक संगीत पर घूमर करती हुई कुछ बंजारा महिलाएँ उस शाम में चार चाँद लगा रही थीं।
सारे मेहमान लगभग आ चुके थे। अब बारी थी सिंघानिया खानदान के सबसे बड़े जोड़े की, जो रेड कार्पेट से चलते हुए, चेहरे पर रुतबा लिए, हाथों में अपनी सुन्दर पत्नी का हाथ थामे, सभी मेहमानों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे थे।
उनका बेहद खूबसूरत जोड़ा देख सभी की आँखें फटी की फटी रह गई थीं। क्योंकि यह लाजवाब जोड़ा कोई आम जोड़ा नहीं, स्वयं रणवीर सिंघानिया और उनकी बेहद खूबसूरत पत्नी सीरत सिंघानिया थे। सीरत, अपने पति के बाजू को मजबूती से पकड़े, भारी बनारसी रेशम की साड़ी पहने, बालों में गजरा लगाए, रेड कार्पेट से होते हुए सभी को मुस्कुराते हुए अभिवादन कर रही थीं।
यह पार्टी हिंदुस्तान की संस्कृति से प्रेरित जरूर थी, मगर यहाँ सभी मेहमानों की पसंद का ध्यान रखते हुए हर तरह के खास इंतज़ाम किए गए थे। जिनका जिम्मा शिर्विल (रिधान के चाचा) और अरहम के पिता (किंश मेहरा) कर रहे थे।
वहीं, सभी लोगों की नज़रें हमेशा की तरह अपनी पत्नी सीरत पर देख रणवीर साहब की आग बुझ रही थी। उनका मिजाज गुस्से में उबलने लगा था।
वह फुंकारते हुए, मुट्ठियाँ बन्द कर, जानलेवा नज़रों से उन सभी पुरुषों को देख रहे थे जो इस उम्र में भी सीरत (44) की खूबसूरती देखकर अपने मन में इच्छाएँ पाल रहे थे। और अपने पति के चिड़चिड़े स्वभाव से परिचित सीरत ने सिर हिलाते हुए रणवीर के कंधे पर चुटकी काट कर कहा,
"वीर (रणवीर का निक नेम), कुछ तो शर्म कीजिए! आप हमारी कमर तोड़ देंगे क्या? इतनी जोर से पकड़े क्यों हैं? अब तो हद ही हो गई है आपको सहते-सहते! इतनी उम्र बीतने के बाद भी, और दो बच्चों की माँ होने पर भी आपकी अकड़ में जरा भी कमी नहीं आई।"
"उल्टा पहले से ज़्यादा सनकी हो गए हैं! जो इस उम्र में भी जवानी फूट रही है। बेशर्म इंसान, शर्म करो जरा! आपके ही ठरकपन को देख-देख कर हमारी रूह बिगड़ चुकी है। वो तो अच्छा है मेरे बच्चे रिधान, अगर आपकी संगत में होता तो पक्का वो भी ठरकबाज होता!"
(बिचारी जानती नहीं रिधान तो अभी फ़िज़ा की जान निकाल रहा है।)
वह गुस्से में अपने पति को घूरती हुई, झूठी मुस्कान से सबको अभिवादन करने लगी। तभी रणवीर तुरंत जवाब देते हुए, धीमी मगर ठंडी आवाज़ में बोला,
"ज़्यादा मुस्कुराकर किसी से भी बात की तो उसका सिर तुम्हारे सामने पेश होगा। इसलिए जितनी भी मुस्कुराहट करनी है, भरपूर मुझे करो, वरना......"
और हाँ,
"रही बात मेरी बढ़ती उम्र की, तो भूलो मत जाना, आज भी मैं तुम्हारी हसीन आवाज़ निकाल देता हूँ। अगर भूल चुकी हो तो कोई बात नहीं, मेरी उम्र का तकाज़ा कुछ घंटों में ही हो जाएगा। मेरी जान, कसम से तुम्हें हिलने भी नहीं दूँगा।"
लो भई, जब रणवीर सिंघानिया का मिजाज इतना खतरनाक था, तो फिर उनके बेटे रिधान का क्यों कम होता?
जहाँ रणवीर और सीरत पार्टी में सभी लोगों से मिल रहे थे,
वहीं दूसरी ओर,
अपने पिता से दस कदम आगे निकलने की होड़ में लगा हुआ रिधान, कलाई में रोलैक्स घड़ी पहने, बार-बार समय देख रहा था, कभी उस बंद दरवाजे को देख बेताब हो रहा था।
मगर थोड़ा सा इंतज़ार करने पर भी वह बेसब्री से पागल होने लगा। जिस कारण उसके सब्र की सीमा कुछ ही सेकंड में खत्म हो गई और उसने धड़कते हुए उस कमरे में प्रवेश किया जहाँ उसकी कठोर दिल को पिघलाने वाली फ़िज़ा क्रीम और लाल रंग के संयोजन से बना भारी प्लाज़ो सूट पहने, हाथों में काँच की चूड़ियाँ पहन रही थी।
जो खास उसके छोटी सी नाक में दम करने वाले हैवान के पिता ने लाई थी। मगर रिधान के आने की खबर तेज शोर-शराबे से नहीं हुई, कि तभी वह झुँझलाते हुए बोली,
"ओ खुदाया! रहम दिखाएँ जरा हम पर और उन्हें गरम तेल की कढ़ाई में भून दें। बस आए और सीधा हुक्म सुना दिया। (रिधान की नक़ल करते हुए)"
"बटरफ़्लाई, तुम पर क्रीम कलर सूट करता है, और हम सल्तनत के शहंशाह आपको यह आदेश देते हैं, जो आपके लिए कपड़े लाया है वही तुम पहनोगी, वरना तुम्हारी छोटी सी जान हम मसल कर रख देंगे। हूँ हूँ! आए बड़े हमें तंग करने वाले! अल्लाह ताला अलग से आपकी खिदमत करेंगे, वो भी कड़कड़ाती कढ़ाई में, हाँ नहीं तो..."
"आए बड़े जिल्ले इलाही! पूरा दिन उनके खिदमत में हाजिर होना पड़ता है। जी तो चाहता है हम उन्हें सूली पर चढ़ा दें!"
उसकी सादगी से मगर नाक फुलाकर कही प्यारी-प्यारी बातों से उकसा हुआ उसका नाजुक रूप का बढ़ता निखार लाजवाब था। उसका आकर्षक रूप, मटकाती हुई सुरमई आँखें सीधा रिधान के दिल में उतर रही थीं। उसका लुक व्हाट्सएप चैनल पर मिल जाएगा।
वह ना जाने कब से उसे निहारता ही रहा। आज तक उसने सुना जरूर था कि फ़िज़ा उसकी बुराई खूब करती है, मगर यूँ सामने उसकी प्यारी सी शिकायत देखना सचमुच अद्भुत नज़ारे से कम नहीं था।
वह पक्की सी पत्नी लग रही थी, जो अपने पति के अत्याचारों से तंग आकर अकेले ही शिकायत कर रही थी। ऊपर से उसका हुस्न, कहने की क्या, वह परफेक्ट पत्नी का पैकेज था। रिधान के होश उड़ गए। जिससे खोया हुआ रिधान दरवाजे को धीरे से बंद कर,
पीछे खड़ा होकर उसकी खूबसूरती में खोया, गर्दन झुका रहा था। तभी शिकायत करने में मसरूफ़ हमारी फ़िज़ा माँग टिका लगाने के आईने में देखने लगी, कि तभी उसकी हैरानी का कोई ठिकाना ना रहा। वह जिल्ले इलाही आँखें बंद कर उसके ओर बढ़ रहा था।
"आह्ह्ह्ह अम्मी! ओह खुदाया! आप यहाँ? आउच!"
डर के मारे चिल्लाती हुई फ़िज़ा हड़बड़ाहट में रिधान को अपने साथ खींचते हुए बिस्तर पर गिर गई। बिचारी नन्ही सी जान उस भारी-भरकम शरीर को अपने ऊपर देख उसकी जान सूख रही थी। अगर वह थोड़ी देर और ऐसी ही रहती, मानो उसकी जान ही निकल जाएगी।
मगर उससे अलग हमारे रिधान का दिल ख़लबली मचाने लगा। वह हर दम ना जाने कितनी ही बार खुद को फ़िज़ा के ऊपर कल्पना करता था, और आज यूँ अचानक से अपना सपना पूरा होते देख उसके सोए हुए अरमान जाग उठे। वह फ़िज़ा के स्पर्श में बहकते हुए, फ़िज़ा के हिलते-डुलते, लिपस्टिक से सने होंठों को देख रहा था।
वहीं फ़िज़ा धीरे से बड़बड़ाती हुई अपनी जान बचाने की गुहार लगा रही थी, जिसे धीरे से सुन रिधान भौंहें चढ़ाकर पूछा,
"कहना क्या चाहती हो? हम्ममम बोलो, और ये तुम क्या कह रही थी मेरी तारीफ़ में? बोलो ना बटरफ़्लाई, अब चुप क्यों है तुम्हारे ये होंठ? कहो, वर्ना मैं इन होंठों को बेरहमी से सज़ा दूँगा। I said बोलो!"
उसका लहज़ा इतना दबंग और नियंत्रणकारी था कि फ़िज़ा ना चाहते हुए भी एकदम से डरी हुई आवाज़ में बोली,
"वो वो हम आपको... आपको अच्छे नामों से नवाज़ रहे थे, सच्ची में! आपने हमें इतना खूबसूरत तोहफ़ा दिया था, तो हम आपका शुक्रिया अदा कर रहे थे, सच्ची में, हम झूठ नहीं कहते!"
(अपने मन में, या अल्लाह! आज माफ़ कर देना झूठ कहने को। अगर झूठ ना कहा तो हमें आपके पास पहुँचा देंगे।)
"आह्ह आप उठ जाएँ ना हमारे ऊपर से! हमने आपको सब बता दिया है।"
उसकी सुरमई आँखों में साफ़ झलकता झूठ, उसके मोटे-मोटे होंठों का फड़फड़ाते हुए हिलना रिधान को पागल किए जा रहा था। वह कैसे कहे इस लड़की को कि रुक जाए, वरना रिधान उसे उठने लायक नहीं छोड़ेगा। Ufffff!
"कितनी मासूम बन रही है यार! और इसकी आँखें, उफ़्फ़! जान लेगी ये बंदी! कैसे रोकूँ मैं खुद को? जी तो चाहता है अभी इसी पल, इसी हालत में अपना बना लूँ। मगर ये नादान खुद को चोट पहुँचा लेगी।"
"अगर इसके आँसू मेरी कमज़ोरी ना होते तो कसम, ये बंदी अभी इसी पल मेरे बाहों में होती। Damn! How can I control myself?"
वह अपनी ही उधेड़बुन में खोया हुआ, फ़िज़ा को अपने करीब कल्पना तक कर चुका था, और वह नाजुक सी गुड़िया जिसकी जान रिधान के वज़न से ही निकल चुकी थी। अगर उसका बस चलता ना तो फिर ये शर्म-हया गई भाड़ में! वह रिधान को लात मार किसी आत्मा की तरह गायब हो जाती।
मगर बेचारी की फूटी किस्मत! वह उस हैवान के ही नीचे लेटी थी, जिससे वह चाहकर भी तूफ़ान की गति से भाग ना सके और शर्म आती सुरमई नज़रें इधर-उधर करने लगी।
मगर यूँ नाज़ुकता से बार-बार शर्माना रिधान को बेकाबू कर रहा था। वह खुद को और ना रोक पा कुछ सोच, जानबूझकर उसके नर्म गुलाबी होंठों को अपने होंठों से छूते हुए, भारी आवाज़ में बोला,
"तुम्हें आज ही नहीं, बल्कि हर रोज मेरे पसंद के कपड़े पहनने होंगे। जिसमें तुम शिकायत करो या नहीं, मुझे फर्क नहीं पड़ता, मगर एक भी दिन तुमने मेरे आदेश मानने से इंकार किया तो मैं इन होंठों को छुऊँगा नहीं, सीधा खा जाऊँगा। और जिस दिन मैंने इनका स्वाद चखा, फिर तुम रोती-गिड़गिड़ाती क्यों ना रहो, मैं सारी हदें एक साथ पार करूँगा।"
वह जानबूझकर उसे छेड़ते हुए, अपने होंठों से तंग कर रहा था, और फ़िज़ा तो मर ही रही थी उसके स्पर्श पर...!!
मगर तभी आकर्षक अंदाज़ में सीधी धमकी देकर रिधान उसके होठों को अपने होंठों से छूकर सीधा उसके ऊपर से उठ गया, बिना उसकी ओर देखे बाहर जाने लगा। अगर वह रुक जाता ना तो सच में आज फ़िज़ा चीखने से खुद को रोक ना पाती।
वहीं रिधान दरवाजे के पास खड़ा होकर कुछ सोचकर टेढ़ी मुस्कान करते हुए बोला,
"मैं तुम्हारे होंठों से जिल्ले इलाही नहीं, हैवान के पिता सुनना पसंद करूँगा। तो याद रहे, अगली बात मेरी तारीफ़ में ये ही अल्फ़ाज़ कम ना हो, वरना......!!"
क्या हसीन सितम कर गया था वह! उसकी दबंग बातों ने फ़िज़ा के नसों के हर एक तार को छेड़ दिया था।
वह मूर्ति बनी बिस्तर पर वैसी ही पड़ी रही थी कि तभी रूह पीले रंग की साड़ी को बड़ी मुश्किल से संवारते हुए, खुले जुल्फ़ों में निशिगंधा से बना गजरा लगाने फ़िज़ा के पास आई। मगर उसे यूँ फूल तैयार होकर बिस्तर पर लेटी देख रूह मुँह बनाते हुए बोली,
"फ़िज़ा दीदा, आप कब से सीसो के गिरोह में शामिल हो गई? नहीं, मतलब फूल तैयार होकर बिस्तर पर लेटना तो सीसो की आदत में शुमार है।"
"मगर बताओ, उनका असर आज आप पर भी नज़र आ रहा है। मेरी बात मानो तो मेरी खड़ूस माँ से नज़र उतारने वालों से, क्या पता आपको सच में किसी की नज़र लग गई हो? वैसे दीदा, मैंने अभी-अभी भाई को जाते देखा। क्या वो आपको नज़र लगा रहे थे?"
"मेरा मतलब है, मैंने उनके होंठों पर कुछ देखा। ओह! ये वही लिपस्टिक है जो आपके होठों पर है। क्या भाई और आप लिपस्टिक शेयर करते हो?"
उसकी लगातार मगर छेड़खानी भरी बातों को सुनकर फ़िज़ा हड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठी। वह जो अब तक रिधान के एहसासों से लगभग मिट चुकी थी, वह तो सही वक़्त पर रूह ने उसकी जाती हुई जान को बचा लिया। मगर रूह के ऊपर जैसे ही फ़िज़ा की नज़र पड़ी, उसकी आँखों में कूट-कूट कर हैरानी भरी हुई थी।
क्योंकि आज वाकई में रूह की खूबसूरती की कोई सीमा नहीं थी।
"माशाअल्लाह! खुदा खैर करे! आप कितनी खूबसूरत लग रही हैं! नज़र ना लगे, अम्मी से कहकर आपके नाम का सदक़ा करवाऊँगी। रूह, सच में आज तक आपसे ज़्यादा खूबसूरत कोई नहीं देखा। वैसे हमने हरनाज़ बाजी से सुना है, वो कह रही थी, बड़े तायाजी (रणवीर) आज पहली बार पूरी दुनिया से आपका परिचय करवाने वाले हैं, तो कहीं नज़र ना लगे आपको! पहली बार आपका परिचय हो रहा है, जरा ख्याल करें अपना, और लाएँ वो गजरा, हम लगा देते हैं।"
"कसम से मर जावाँ! आप सच में बेमिसाल लग रही हैं।"
जिसकी माँ जवानी के दिनों से अब तक हुस्न की मलिका कहलाती हो, फिर रूह का बेइंतेहा खूबसूरत होना कैसे ना जायज़ होता? और तो और, उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगाने के लिए आज उसने नाज़ुक डायमंड वर्क से बनी हल्के पीले रंग की साड़ी पहनी थी, जिस पर रूह किसी भी कठोर इंसान का दिल मचला दे।
गले में छोटी सी प्लैटिनम चैन और कानों में बड़े-बड़े डायमंड के झुमके पहने, बालों में गजरा और आँखों में काजल लगाए, लिपस्टिक से सने होंठ, बस इतने हल्के मेकअप में तैयार होकर खूबसूरती की मिसाल बन रही थी, जिस फ़िज़ा का इतना प्यारा कमेंट सुनकर वह थोड़ी परेशान होकर बोली,
"यार दी, आपसे ज़्यादा खूबसूरत कोई नहीं, मगर ना मैं आपकी बातों को सुनकर फिर से घबरा गई। कितनी मुश्किल से मैं सामान्य हो रही थी। पता नहीं डैड ने अचानक से इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया? मैं कैसे संभालूँगी? खैर, छोड़ो अब जल्दी चलो, वरना माँ मेरे नाम का जुलूस निकालने लग जाएगी। पता है ना कितनी खड़ूस है ना, हर बात पर चढ़ती है, हूँ हूँ!"
फ़ाइनल टचअप के तहत बालों में गजरा सेट करके वह फ़िज़ा के साथ वहाँ से चली गई। थोड़ी देर में,
हर तरफ़ आतिशबाजियों के साथ सभी लड़कियाँ और औरतें गणगौर के गीत गाती हुई, गणगौर माता की पूजा कर, सेलिब्रेशन के अगले पड़ाव, यानी कि मुख्य मंच की ओर बढ़ीं जहाँ आज खास घोषणा होने वाली थी।
और तभी पार्टी में असली रंग जमाने रिधान, मुख्य मंच पर खड़े सबका ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बोला,
"इट मीन्स सो मच टू हैव ऑल हियर टुनाइट टू सेलिब्रेट दिस रितुअल्स विद अस।"
"बट देयर इज़ समथिंग एल्स इन हियर। आज यह पार्टी सिर्फ़ गणगौर के उपलक्ष्य में नहीं, सिंघानिया के फिर से एक बार हिंदुस्तान लौटने की खुशी में आयोजित की गई है। जैसा कि आप जानते हैं, पूरी दुनिया में सिंघानिया इंडस्ट्रीज़ किस पद पर है, मगर सालों पहले इंडिया छोड़ देने के बाद हम फिर से वापस आए हैं अपना दबदबा बनाने। बट फॉर अ ट्विस्ट, इस बार मैं रिधान सिंघानिया नहीं, रूह सिंघानिया यह पद संभालेगी।"
"रेज़ योर हैंड्स टू वेलकम आवर न्यू हेड मिस रूह सिंघानिया। आज का जश्न मेरी छोटी बहन रूह के नाम पर है।"
यह नाम पूरी दुनिया आज पहली बार सुन रही थी, जिसे जानकर सबको हैरानी का झटका लगा था।
1– "व्हाट? आज तक यह नाम तो कभी नहीं सुना! ऐसे कैसे हो सकता है इतना बड़ा पद, वो भी एक लड़की के नाम? अगर यह सिंघानिया परिवार फिर से अपने जड़ हिंदुस्तान में जमाने लगे, तो हम लोगों का व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा।"
2– "लेकिन यह नया नाम आज तक किसी ने नहीं सुना? मुझे तो पहले ही शक था यह सिंघानिया परिवार यह पार्टी किसी खास मकसद से दे रहे हैं। मगर यह इतना बड़ा फैसला, दिस इज़ सो बिग।"
कोई यह नाम सुन भी कैसे पाता? आज तक रूह सिंघानिया का कोई नाम और निशान भी तो नहीं था। अतीत में हुए कई ऐसे जानलेवा हादसे हुए थे जिसके चलते रणवीर और सीरत ने उस नाम को छिपाने का फैसला मिलकर लिया था। जिसके तहत रूह की जानकारी आज तक किसी के हाथ में नहीं आई।
मगर, मगर, मगर आज आखिर वह वक़्त आ ही चुका था जब रूह इतनी कम उम्र में व्यापारिक महिला के रूप में पूरी दुनिया में अपना परचम लहराए। क्योंकि भले ही उसकी उम्र 19-20 साल के बीच में थी, मगर वह बचपन से ही अपने पिता की तरह बेहद बुद्धिमान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मेटावर्स की दुनिया में जानी-मानी प्रख्यात शख्स बन चुकी थी।
जिसके नाम पर कई ऐसे पेटेंट थे जिन्हें हासिल करने में वर्षों की मेहनत लग जाती थी। मगर उसके रगों में रणवीर-सीरत का ही खून था, फिर उसमें खासियत कैसे ना होती?
लेकिन अचानक हुई इस घोषणा से जहाँ रूह आज काफी ज़्यादा घबरा रही थी, वहीं नाज़ और निधि की खुशी का कोई ठिकाना ना था। वही नाज़ जिसकी खुद की पहचान छिपी हुई थी, वह रूह को प्रेरणा का पाउडर पिलाकर कानों में चुपके से कुछ अटपटी बातें बोल रूह को मंच पर धकेलने लगी। जिससे रूह हरनाज़ को घूरते हुए मुख्य मंच पर पूरी दुनिया के सामने पहली बार उजागर हुई।
और जैसा कि फ़िज़ा ने उसकी खूबसूरती को बताया था, सच में रूह की बेइंतेहा खूबसूरती आँखों के सामने पहली बार देखकर सभी लोग मंत्रमुग्ध और उसके कायल हो चुके थे।
जिस कारण किसी भी सामान्य इंसान का फिसलना बिलकुल स्वाभाविक था। वहीं रूह सीरत की घूरती हुई आँखें, पियाली मासी की उड़ती हुई पप्पियाँ देखकर वह मुस्कुराते हुए आत्मविश्वास से भरकर मधुर आवाज़ में बोली,
"साइलेंट गाइज़, आई एम नॉट अ डिमॉन। एंड फॉर योर काइंड इंफॉर्मेशन, आई एम नॉट गोइंग टू स्नैच योर बिज़नेस। मैं यहाँ किसी का व्यापार छीनने नहीं, बल्कि अपने दम पर खड़े होने आई हूँ। भले ही मेरा नाम सिंघानिया परिवार से जुड़ा हो,"
"लेकिन बिज़नेस जगत की दुनिया में मैं अपने दम पर और बराबरी की टक्कर देने के लिए खड़ी हूँगी। लेकिन फिलहाल के लिए तब तक अपनी पार्टी एन्जॉय करते हैं। सो जस्ट ग्रैब योर ड्रिंक्स, चैट विद योर फ्रेंड्स एंड हैव फन!"
जहाँ कुछ लोग सीरत की परछाई रूह की खूबसूरती निहारने में लगे थे, वहीं कुछ लोग सिंघानिया परिवार का एक दमदार हिस्सा बिज़नेस जगत में प्रवेश करते देख उनकी उम्मीदें बढ़ चुकी थीं। मगर रूह का मीठा व्यवहार देख सभी के होठों से अपने आप एक शब्द निकला, "ब्यूटी विद ब्रेन!"
यह बात यकीनन सौ प्रतिशत सच थी। वह बेफिक्री से अपने नाम को बिज़नेस जगत में बनाने, जाने के लिए बिलकुल तैयार थी।
मगर पार्टी में असली आग बरसाने के लिए एक शख्स, पीच कलर का खास कुर्ता जिसमें बेशकीमती डायमंड से हैंडवर्क किया गया था, वह कुर्ता-पायजामा पहन, मर्दाना चेहरे पर बेइंतेहा गर्व लिए, हाथों में दुनिया की सबसे महंगी घड़ी पहने पार्टी में दाखिल हुआ।
जिसके आने से ही अब तक जो रूह के नाम से गपशप हो रही थी, अब वहाँ सिद्धांश जिंदल का जिक्र होने लगा। जिसे सुनते ही ना जाने क्यों रूह को भी उस भीड़ में छिपे शख्स को देखने का मन करने लगा। इतनी ज़्यादा ध्यान तो किसी सुपरस्टार को भी नहीं मिली थी जितनी सिद्धांश नाम का बंदा ले जा रहा था।
लेकिन सिद्धांश का नाम सुनते ही रणवीर और रिधान के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान आ गई। वहीं सिद्धांश के बेमिसाल आकर्षक मर्दाना लुक को देखते ही निधि और नाज़, जो खुद के घर की पार्टी में भी खाना ऐसे खा रही थीं जैसे कभी मिला ना हो,
उनके मुँह में जाता हुआ बड़ा सा गोलगप्पा सिद्धांश को देखते ही फर्श पर जा गिरा। आखिरकार उन दोनों ने इस दुनिया का सबसे सुन्दर पुरुष देख लिया था।
"ओह माय गुडनेस! हाए! तौबा! कोई बचाए! यह बंदा है या आग? कोई फायर ब्रिगेड बुलाओ यार! मैं तो सच में मर जाऊँगी! क्या माल है, कसम से!"
"ओए निधि की बच्ची! ऐसे अजीब नज़रों से ना देख, बहन! इससे ज़्यादा आकर्षक बंदा नहीं देखा मैंने। सच कह रही हूँ, अगर मेरी शादी हरमन जी से ना जुड़ी होती ना, मैं तो इस बंदे को छीनकर ले जाती। हाए! वैसे देखा जाए मेरी शादी हुई नहीं है, चांस तो अभी भी बनता है। क्या बोलती है? थोड़ा लाइन मारकर आएँ?"
अब बेशर्मी में सौ कदम आगे रहना यह तो हमारी नाज़ के खून में बसा हुआ था। जहाँ वह रूह की सफलता पार्टी के नाम पर गोलगप्पे उड़ा रही थी, मगर सिद्धांश के आते ही अपने पसंदीदा गोलगप्पे त्याग कर वह उसे लाइन मारने के लिए चल पड़ी।
वहीं निधि जो खुद अरहम के नाम से छिपती फिर रही थी, वह अपनी दीदी की पूँछ बनकर उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली,
"भैंस की आँख! ऐसा नमकीन! गज़ब माल मैंने आज तक नहीं देखा रे! अरे हैरान क्या हो रहे हो दीदा? मैं आपको यह डायलॉग मुफ़्त में दे रही थी। जब लाइन मारेगी यह लफ़्ज़ इस्तेमाल कर लेना। मैंने सुना है, बंदे की तारीफ़ फूल ठरक के साथ करो तो जल्दी पट जाते हैं।"
वह दोनों पागलों की टोली बेकाबू घोड़ियों की तरह सिद्धांश के आगे-पीछे कूदने को चल पड़ी। मगर इस बात से अनजान नाज़ की भी दुनिया आज से आँधी-तूफ़ान की तरह हिलने वाली है।
नाज़ और निधि की तरह यह बेसब्री का हाल हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड एक्ट्रेस और कई सारे बिज़नेस वूमेन्स का था, जो अब तक सिंघानिया परिवार के लोगों को घूर रही थीं। मगर सिद्धांश के आते ही उन सबकी नज़र उसी पर टिक गई।
लेकिन रूह के कानों में यह नाम पड़ते ही वह काफी उत्सुक हो चुकी थी, जिसकी वजह फिलहाल उसके पास नहीं थी। मगर तभी उसके फ़ोन में समय शाहनी का नंबर फ्लैश हुआ। वह भीड़ से हटकर मंच की ओर चली गई जहाँ की भीड़ अब खाली हो चुकी थी।
कि वहीं सिद्धांश, जिसे मक्खियों की तरह भिनभिनाती हुई लड़कियों से घंटा फर्क ना पड़ा, वह अपने हमेशा के अंदाज़ से चलकर रणवीर सिंघानिया के बिलकुल आमने-सामने खड़ा, बेखौफ़ होकर उनकी आँखों में आँखें मिला रहा था।
और वहीं रणवीर, जिसने आज तक सिर्फ़ सिद्धांश का नाम सुना था, मगर जब उसका सामना अपनी नज़रों से हुआ, उसे देखते ही रणवीर काफी हैरानी से उसे पहचानने की कोशिश करने लगा। उन पुराने विचारों को भूलकर गहरी साँस लेते हुए बोला,
"काफ़ी नाम सुना था तुम्हारा, मगर मिलकर पता चला, लोग जो कहते हैं तुम्हारी शख़्सियत उससे बिलकुल मेल खाती है!"
"लेट्स हैव अ ड्रिंक यंग मैन। रिधान, यू कैन शो हिम प्राइवेट काउंटर। याद रहे, मेहमान की सेवा में कोई कमी ना हो।"
जिसे सुनते ही सिद्धांश के चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान आ गई। जहाँ रणवीर के मन में कुछ सवाल पैदा हो चुके थे, वहीं सीरत जो इकलौती कड़ी थी उस पुरानी कहानी से जुड़ने की, वह किसी काम से वापस जलमहल में चली गई। वरना अगर वह सिद्धांश को देख जाती तो यकीनन यह खुशनुमा माहौल मातम में बदल चुका होता।
(यह रहस्य का समय जरूर लगेगा, मगर उत्साह रखें।)
और रिधान जिसकी आँखें सिद्धांश को घूर रही थीं, वहीं सिद्धांश जो यहाँ किसी खास मकसद से आया था, वह रिधान की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ कर आत्मविश्वास से आगे की ओर बढ़ने लगा। उसका यह अंदाज़ देखकर रिधान और अरहम का खून खौल गया, मगर अपने पिता के लिए वह कुछ नहीं बोला।
गहरी रात होते-होते तेज हवाओं का रुख बढ़ने लगा, और रूह जो मंच की तरफ़ किसी से बात कर रही थी, वह थोड़ी परेशान होकर बोली,
"समय, प्लीज़! मैं टेस्ट करा लूँगी। तुम किसी से कुछ नहीं कहोगे। तुम्हें मेरी कसम है। और अगर तुम आ रहे हो तो प्लीज़ सारे डोज़ लेते आना। मैं हड़बड़ी में भूल गई थी!"
ना जाने क्या राज था, रूह बेहद परेशान होकर अपने सबसे अच्छे दोस्त की डाँट खा रही थी कि तभी
तेज़ हवा में घुली वह एक मर्दाना खुशबू रूह की साँसों में घुलने लगी, जिसे महसूस करके उसका दिल अजीब से एहसासों से धड़कने लगा। उसकी आँखें ना जाने क्यों अपने आप उस शख्स को ढूँढने लगीं।
"यह कोलेजन, वही खुशबू! नहीं-नहीं! वह यहाँ नहीं आ सकते। ऐसा हो ही नहीं सकता!"
वह लिफ़्ट का दृश्य याद कर असहज महसूस करती हुई, हैरान-परेशान होकर मंच के पीछे जाने लगी। मगर जलमहल के दिए की रोशनी से जगमगा रहा था, अचानक से रूह की साड़ी का कोना उस जलते हुए दिए में लग गया जिसकी आँच से उसकी पीली साड़ी तेज़ी से जल उठी और वह तपती हुई लौ की लपटें देखकर चीख पड़ी,
"आह्ह्ह्ह! आग! आग! डैड्डी!"
यह कहते हुए वह जलती हुई साड़ी के साथ भागने लगी। वह आग तेज़ी से बढ़कर रूह के बदन को छूने पर थी, जिससे रूह हाँफते-हाँफते बेहोश ही भागने लगी। और तभी एक ऐसे इंसान के बाहों में जा समाई, जो खुद रूह की चीख सुनकर उसे बचाने आया था।
उस शख्स ने रूह को अपनी बाहों में थाम लिया और तभी कुछ ऐसा उस बंदे ने किया जिसे देखकर सबकी आँखें हैरानी से फैल गईं।
छपाक!
जलमहल
दो मंजिला जलमहल में, सत्रह वर्षीय निधि अपनी दादी, हरनाज का साथ छोड़ने की गलती करने के बाद, गीत मेहरा (अरहम की माँ) के कहने पर, दूसरी मंजिल पर स्थित अतिथि कक्ष में शॉल ढूंढ रही थी।
"इतनी आकर्षक लहंगा-चोली पहनने का सुझाव किसने दिया? बताओ, शौक भी पालने हैं और ठंड से काँपना भी। उन जल्लाद के शहंशाह की माँ हैं, अतरंगी तो होंगी ही ना! मैडम जब भी आती हैं, मुझे अपना निजी सहायक बना लेती हैं। हूँ! माना मैंने बचपन से ही सहायक बनने का सपना देखा था, मगर क्या ज़रूरी है कि मैं हर किसी का काम करूँ?"
"अब कहाँ खो गई यह निकम्मी शॉल?"
यह बेबाक और बेधड़क लड़की कोई और नहीं, अरहम की लाड़ली निधि वालिया थी। सिंघानिया परिवार उसे बचपन से ही अपने साथ रखता आया था, किन्तु निधि अपनी दादी (रूह) के अलावा किसी की नहीं सुनती थी, खासकर अरहम से जुड़े लोगों की तो बिलकुल भी नहीं।
लेकिन अरहम की माँ, गीत मेहरा, जब भी अपने मायके, सिंघानिया खानदान में आती, वह मासूम निधि पर किसी सास की तरह हुकुमत चलाती। बताओ, बिचारी निधि क्या करती?
परन्तु निधि का यहाँ भीड़ से दूर आना उसे बड़ी मुसीबत में डाल गया था। वह हर जगह उस शॉल को ढूँढ़ने में व्यस्त थी और किसी ने जानबूझकर उस अतिथि कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया था, जिसकी भनक उसे अभी नहीं लगी।
मगर अचानक किसी ने उसकी कमर से पकड़कर उसे बिस्तर पर गिरा दिया। और निधि के कुछ सोच पाने से पहले ही, मज़बूत बाहों ने उसे जकड़ लिया और उसकी कोमल गर्दन को चूमना शुरू कर दिया।
"आप...आप...छोड़ दीजिए। मैं...मैं...यहाँ...यहाँ नहीं...नहीं करिए ना।" "प्लीज़, वहाँ दुखता है।"
वह शख्स कोई और नहीं, आक्रामक अंदाज़ से मशहूर अरहम मेहरा था। निधि में अरहम के व्यवहार को झेलने की हिम्मत कभी नहीं आई थी; वह हमेशा ही उससे भागने की कोशिश करती रहती थी।
मगर आज वह तितली खुद अरहम के जाल में फँस गई थी। अरहम की प्यास बुझाए बिना वह कैसे भाग जाती? वह अरहम के स्पर्श को जानते हुए भी, उसकी बाहों में बेबस थी, मानो खुद पर कोई नियंत्रण ही ना हो। निधि का शांत भाव अरहम के चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कान ला दिया। उसने उसकी गर्दन को सहलाते हुए फुसफुसाया,
"प्रभावशाली! तुम खुद ब खुद मेरी बाहों में समर्पण कर गईं। जब तुम मेरी बात मान जाती हो ना, तो मुझे तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करने का मन करता है। मगर जब तुम मुझे उकसाती हो ना, तो कसम से, तुम्हारी जुबान खींच लेने का मन करता है।"
उसके मज़बूत हाथ निधि की कोमल कमर पर फिसल रहे थे, मगर उसका स्वर शांत होते हुए भी, निधि की जान ले रहा था। वह समझ गई थी कि वह नाराज़ है, मगर उसे समझ नहीं आया कि आखिर अरहम किस बात पर खफ़ा है। उसने अपनी स्थिति बिगड़ने से पहले ही, मिमियाते हुए आँखें झुकाईं और प्यार से उसकी दाढ़ी में उँगलियाँ फँसा कर कहा,
"आप मुझसे नाराज़ हैं? अगर नाराज़ हैं तो मैं बहुत-बहुत सॉरी। मगर आप प्लीज़ नाराज़ मत होइएगा, वरना मैं रोने लगूँगी। आपको तो पता है, आपकी डरावनी आँखें देख लेने से मेरा दिल घबराने लगता है।"
वह मन ही मन अरहम को हज़ारों गालियाँ दे रही थी, मगर उस शख्स की गोद में बैठी वह छोटी सी जान, अरहम को मासूमियत का पाठ पढ़ा रही थी।
मगर वह अरहम था। अपने शैतानी पिता का उन्नत संस्करण। वह निधि के चालाक दिमाग की खबर कैसे ना रखता? कुछ तो ऐसा था जिसने अरहम को नाराज़ कर दिया था। उसने तेज और आज्ञाकारी स्वर में, निधि की साँसें रोकते हुए कहा,
"आज तुमने मेरे अलावा किसी और को चिढ़ाने की जो हिम्मत की है, उसकी सज़ा के तौर पर, तुम आज रात से हर रात, सबके सो जाने के बाद, मेरे कमरे में आओगी। नहीं कहने की कोई गुंजाइश नहीं है, प्यारी। तुम्हें मैंने ऊपर उठाया है, तो नीचे उतरना भी होगा। मिलते हैं जल्द ही मेरे बेडरूम में। याद रखना, कोई चालबाज़ी नहीं। तुम्हें मेरा गुस्सा पता है ना?"
"जो उम्र का लिहाज़ मैंने अब तक किया है, वह भी मिट जाएगा। अब ज़्यादा मत सोचो, वरना यह छोटा सा दिमाग ख़त्म होने लगेगा।"
उसकी कोमल देह से खेलते हुए, अरहम ने निधि की आखिरी बची आजादी छीन ली। यह जानकर निधि की दुनिया उजड़ गई। वह आँखें फाड़कर अरहम को देख रही थी, जिसके चेहरे पर अहंकार निधि को डरा रहा था।
ठीक उसी समय, अरहम ने अपने गुस्से को शांत करने के लिए, निधि के होंठों को गहरी निगाहों से देखते हुए, हल्के से छुआ और फिर से उसकी गर्दन को चूमने लगा।
जो अहसास अरहम के लिए स्वर्गीय थे, वही निधि के लिए जबरदस्ती से कम नहीं थे। लेकिन अरहम के बेबाक शब्द सुनकर उसका शरीर बेजार सा हो गया, मानो उसने खुद को सौंप दिया हो। मगर जैसे ही अरहम के हाथ उसके कुर्ते के अंदर जाने लगे, उसने समय न गँवाते हुए, उसकी गोद से उठकर भागना शुरू किया और दरवाजा खोलते हुए चिढ़ाते हुए बोली,
"मैं आपकी कठपुतली नहीं हूँ भैया! अगर आपको अकेले सोने में डर लगता है या नींद में पेशाब आ जाता है, तो एक जिम्मेदार छोटी बहन होने के नाते मेरा सुझाव है कि आप किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज करवा लें।"
"जैसे आज मुझे सोने के लिए बुलाया है, कल किसी और को बुला लीजिएगा। कहीं आप पर जूते चप्पल न पड़ जाएँ।" "तौबा-तौबा! अच्छा नहीं लगेगा। और हाँ, पैड पहन लीजिएगा, मैं भेज दूँगी अपने प्यारे भैया के लिए। गुड नाईट!"
"और ये लीजिए उड़ता हुआ चुम्मा!"
बूम!💥
ओह्ह्ह्ह्ह! तेरी! यह लड़की तो ड्रामा क्वीन निकली! कसम से! असली निधि ने तो अरहम मेहरा की जान ही निकाल दी थी। वह हैरानी से निधि को देख रहा था; उसकी हर बात को सुनकर उसके कानों से धुआँ निकल रहा था। वह गुस्से में बौखलाया और उसके पीछे भागा, मगर वह चूहा फ्लैश की गति से भाग गई थी। इतनी आसानी से कैसे मिलती?
"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! इसकी इतनी हिम्मत! यह मुझे फिर भैया कह गई! इसकी तो...! अब तो बताकर रहूँगा मैं इसका सैया हूँ या भैया। तुम रोने लगोगी तब भी नहीं रुकूँगा।" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!
गुस्से में, निधि के लिए दहाड़ उठा अरहम की आँखों में तीखापन था। उसने मुट्ठियाँ कसीं और पार्टी स्थल की ओर चल पड़ा, मगर अब वह निधि को नहीं छोड़ने वाला था, इतना तो तय था।
वहीँ पार्टी स्थल पर,
हर तरफ़ उत्सव का माहौल था। आतिशबाज़ियों से सारा जलमहल जगमगा रहा था। और इस आतिशबाज़ी की एक चिंगारी रूह की साड़ी में लग गई।
जिससे निकलती लौ रूह के सुडौल शरीर को झुलसा गई। वह बदहवासी में बढ़ती आग की लपटों को देखकर चीखती-चिल्लाती एक ऐसे शख्स के सीने से जा लगी, जो उसके भाग्य में लिखा हुआ उसका रक्षक था।
उसकी बाहों में समाए कुछ ही पल हुए थे, मगर रूह का घबराहट से धड़कता हुआ छोटा सा दिल अब सुकून की तलाश में भटकने लगा। मगर वही, जिसकी बाहों में उसका सुकून अनजाने में फिर एक बार समाया था...
न जाने क्यों, मगर जब उसने रूह की दर्द भरी चीख सुनी, उसकी आँखों में किसी की चिता की अग्नि का दृश्य झलक आया। उसे आज तक किसी के दर्द से कोई फर्क नहीं पड़ा, मगर रूह का डर के मारे भागना उसे अपनी ओर खींचने लगा।
वह शख्स कोई और नहीं, सिद्धार्थ जिंदल था। उसने रूह को जकड़े बिना एक पल गँवाए, जलमहल के चारों ओर मौजूद तालाब में छलांग लगा दी। गिरते ही रूह मज़बूती से सिद्धार्थ के बाइसेप्स को पकड़कर उसकी बाहों में छिप गई।
उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थीं। यही हाल कुछ सिद्धार्थ का भी था, जो यकीनन रूह की नज़दीकी का असर था। मगर अंधेरा होने से घने बालों में छुपा रूह का चेहरा ठीक से नहीं दिख रहा था।
मगर ठंडे पानी में रूह का काँपना महसूस करके, उसने उसे अपने सीने से लगा लिया और उसकी पीठ सहलाते हुए बोला,
"शशशश...शांत हो जाओ...कुछ नहीं होगा...मैं हूँ ना...गहरी साँस लो...डरो मत, मेरे रहते कुछ नहीं होगा।"
क्या सच में ये शब्द उस पत्थरदिल इंसान के थे? वह रूह की तेज़ साँसें देखकर उसे छोटे बच्चे की तरह संभालने लगा। मगर उसकी बातों को, खासकर उसकी गहरी आवाज़ को सुनते ही रूह के होश उड़ गए।
वह अजीब सी सरसराहट में जम गई, सिद्धार्थ की बाहों में ही डर से छिपी रही। वह कैसे भूल सकती थी वह आवाज़? जिसने लिफ़्ट में दिन-दहाड़े उसकी साँसें रोक ली थीं। वह इस शख्स के आक्रामक व्यवहार से घबराकर बुदबुदाने लगी,
"यह वही है? क्या फिर से मुझे कैद करने मेरे पीछे-पीछे यहाँ तक आया है? नहीं! माँ! अब नहीं! मैं सहन नहीं कर पाऊँगी! इनका ज़ुल्म...बचाओ कोई! जान निकाल दी थी मेरी!"
वह महिला जो खूंखार जानवर के व्यवहार से डर चुकी थी, सच में उस शख्स ने उसकी जान निकाल दी थी। बिचारी ठंडे पानी से ज़्यादा सिद्धार्थ की कामुक इच्छाओं को याद करके काँप रही थी।
मगर वही सिद्धार्थ, जिसकी साँसों में हल्की-हल्की वेनिला खुशबू घुली हुई थी, उसके रिएक्शन बदलने लगे। वह पानी में खुद से लिपटी हुई उस खूबसूरत स्त्री के ऊपर झुकने लगा, जो सिद्धार्थ के सामने बहुत छोटी-सी थी।
मगर उसके बालों को सूँघते ही सिद्धार्थ के चेहरे पर त्यौरी आ गई। यह स्त्री वह नहीं थी जिसकी तलाश में सिद्धार्थ पागल था। अब रूह के बालों में लगे निशिगंधा के गजरे की महक, उसके बदन से आने वाली वेनिला खुशबू को छिपा गई थी।
बच गई वह स्त्री...!
वहीँ रूह, जो इस तूफ़ान से बगावत करने की फिराक में थी, मगर तभी उसकी नज़र सिद्धार्थ के हाथों पर गई जो रूह के चेहरे को सहला रहे थे।
उसकी उंगलियों में पुखराज की वही अंगूठी देखते ही रूह के होश पूरी तरह उड़ गए। बस इतना सदमा काफी था। वह चौंकाने वाले रिएक्शन के साथ सीधे बेहोशी के आलम में चली गई और सिद्धार्थ की बाहों में लटकने लगी क्योंकि लटकने से उसका निर्मल गोरा बदन, जो अंधेरे में भी किसी हीरे की तरह चमक रहा था...
और उसकी कमर के बाईं ओर मौजूद तिल पर साड़ी का हिस्सा फिसल जाने से सिद्धार्थ की आँखों में तूफ़ान मचने की शुरुआत हो गई थी। वह चाहकर भी उसके हुस्न से नहीं बच सका और मदहोश होकर उसके नर्म पेट से होते हुए उसके तिल को छूने लगा, जिसे छूते ही सिद्धार्थ का शरीर विद्रोह करने की माँग कर रहा था।
"क्या मैं उसे छू सकता हूँ? आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! वह मेरा नियंत्रण खो रही है! उफ़्फ़! वह तिल! कोई स्त्री इतनी खूबसूरत कैसे हो सकती है? कितनी भी कोशिश कर लूँ, मेरी नज़रें नहीं हटतीं।"
वह कितना बेताब था, यह सिद्धार्थ की जुबान ही कह गई। वह तेज़ी से उसकी कमर को सहलाने के लिए बढ़ा, तभी उसके कानों में तेज शोर सुनाई दिया।
क्योंकि उन दोनों के पानी में गिरते ही हर तरफ़ अफ़रा-तफ़री मच गई। पहले रूह का जलता पल्लू, जिसे देखकर सारे घरवालों की जान मुट्ठी में आ चुकी थी, ऊपर से तालाब में अचानक गिर जाना उन सबको मौत का एहसास करा रहा था। और सिद्धार्थ, जो बेपरवाही से एक पल नहीं सोचे-समझे उसकी जान बचाने के लिए पानी में कूद गया था।
लेकिन यह नज़ारा देखते ही उसका दोस्त सम्राट, जो अभी-अभी जलमहल में आया था, उसके माथे पर शिकन आ गई। क्योंकि सिद्धार्थ की आँखों में एक पल के लिए ही सही, मगर जो फिक्र छिपी थी, उसे देखने भर से ही सम्राट के दिमाग में कई सारे सवाल घूमने लगे, जिनका जवाब सिर्फ़ सिद्धार्थ के पास था।
कुछ पल बाद,
सिद्धार्थ बेहोश हो चुकी उस अद्भुत हुस्न की मल्लिका के भीगे बदन को गोद में संभालते हुए पानी से बाहर निकल आया। उसके परफेक्ट कर्वी कमर को बेलीबास छूते हुए, सिद्धार्थ का सख्त शरीर अकड़ रहा था।
"शिट! मेरी किट्टन के अलावा मैं किसी और को छूने का सपना कैसे देख सकता हूँ?"
उस नाज़ुक खूबसूरत स्त्री का गोरा बदन, जो साड़ी में लिपटा हुआ सिद्धार्थ की नज़रों को बहका रहा था, वह इस बात को किसी भी तरह से नकार नहीं सकता था। हाँ, वह बहक रहा था, उसे देखने की तलब में तड़प रहा था।
मगर...
उसके घने बालों का साया सिद्धार्थ की बेताबी को और बढ़ा रहा था, मगर उसने चेहरा देखने की गुस्ताखी नहीं की, मानो वह अपनी किट्टन को धोखा नहीं देना चाहता हो।
लेकिन जब धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते उजाले से सिद्धार्थ फिर एक बार रूह का चेहरा देखने की होड़ में लग गया, वह बाल हटा पाता इससे पहले ही किसी ने सिद्धार्थ की मज़बूत बाहों से उस नाज़ुक खूबसूरत स्त्री को अपनी गोद में खींच लिया।
मगर यूँ अचानक किसी और मर्द की बाहों में रूह का समा जाना, सिद्धार्थ की आँखों में क्रोध की ज्वाला दहका गया।
आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! कैसे हिम्मत...?
वह गुर्राते हुए सामने खड़े रणवीर सिंघानिया को कुछ कहता, कि तभी उसके गुस्से को कंट्रोल करते हुए सम्राट ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीमे से बोला,
"वह उनकी बेटी है, सिद्ध।" "अब बताओ, क्या तुम ठीक हो?"
"धन्यवाद! मेरी बेटी को बचाने के लिए। मौका मिले तो ज़रूर इतना बड़ा एहसान चुकाऊँगा।"
यह कहकर रणवीर जी बेटी को गोद में उठाकर जलमहल के अंदर ले गए जहाँ मिनी अस्पताल पहले से उपलब्ध था, जिसकी फिक्र में सारे घरवालों की आँखों में आँसू आ चुके थे। रूह सिर्फ़ नाम नहीं था, वाकई में उनकी जान बस्ती थी रूह में।
जहाँ सारा परिवार रूह के लिए परेशान था, वहीँ परेशानी की झलक सिद्धार्थ के चेहरे पर भी साफ़ नज़र आ रही थी। और कुछ ही पल में जहाँ जलमहल उत्सव से जगमगा रहा था, वहाँ अब धीरे-धीरे करके सारे मेहमान चले गए थे। अगर रूह को कुछ हुआ तो फिर जश्न का कोई मतलब ही नहीं था।
मगर आखिर तक कोई शख्स वहाँ टिका था तो वह कोई और नहीं, सिद्धार्थ ही था, जो एक टाँक लगाए महल के अंदर मौजूद उस मिनी अस्पताल के बाहर बिना किसी हक के रूह के ठीक होने का इंतज़ार में खड़ा था।
सारा परिवार जो पहले ही परेशानी में डूब चुका था, वह चाहकर भी सिद्धार्थ की मौजूदगी पर ध्यान नहीं दे सका, मगर रिधान और अरहम को उसका होना खटक गया, जो ना जाने कब से उसके चेहरे के भाव-भंगिमाएँ नोट कर रहे थे। यही हाल कुछ रणवीर का भी था, मगर हालातों को ध्यान में रखकर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
तभी उस मिनी अस्पताल का दरवाज़ा खुला और एक महिला डॉक्टर बाहर निकलकर मीठी मुस्कान करके बोली,
"घबराने की कोई बात नहीं है। काफ़ी दिनों से ठीक से डाइट का ध्यान नहीं रख रही है, इसलिए काफ़ी कमज़ोर हो गई है। बेहतर होगा आप लोग ध्यान रखें और उसकी डाइट में प्रोटीन वाला खाना ज़्यादा शामिल करें।"
"बाकी घबराने की कोई ज़रूरत नहीं।"
डॉक्टर की बातों में रूह की सलामती की खबर मिलते ही किसी और का तो नहीं पता, लेकिन सिद्धार्थ के सख्त दिल को बेहद ठंडक मिल रही थी, मगर उसकी कमज़ोर होने की खबर से वह फिर एक बार गुस्से से रणवीर को देखने लगा।
वह क्यों गुस्सा था, इस बात की खबर खुद सिद्धार्थ को तक मालूम नहीं थी। वह खुद को कंट्रोल करते हुए, बिना कुछ बोले एक नज़र उस मिनी अस्पताल के दरवाज़े को देखकर वहाँ से जाने लगा, तभी रणवीर ने उसे रोकते हुए कहा,
"धन्यवाद, नौजवान! मुझे वक़्त नहीं मिला धन्यवाद कहने का। मेरी बेटी को बचाने का एहसान उतारने के लिए, तुम जब भी मुझसे कुछ मांगोगे, तुम्हें बिना सवाल किए दे दूँगा। उम्मीद है ऐसा मौका ज़रूर आएगा जहाँ मैं तुम्हारा एहसान चुका सकूँ।"
रणवीर का ठंडा लहजा, जिसमें छुपी बातों में एक गहरा वादा था, जिसे सुनते ही सिद्धार्थ की आँखों में कुछ आकर गुज़रा, मगर रूह के कमज़ोर होने की बात याद आते ही गहराई से उसने कहा,
"मैं कोई भी काम बिना फायदे के नहीं करता। और अगर मैंने यह एहसान किया है, तो मौका मिलने पर एहसान चुकाने का ज़रिया भी यकीनन दूँगा।"
"मगर मिस्टर रणवीर सिंघानिया, आपको एक सलाह देनी है। जितनी खैरात आप ग़रीबों में बाँटते हैं, जरा थोड़ा हिस्सा अपनी बेटी को खिला दीजिएगा। लेकिन अगर कुछ कम पड़ जाए तो मुझे बता दीजिएगा। सिद्धार्थ जिंदल आपकी बेटी के डाइट का ध्यान ख़ास तरीके से रखेगा।"
सीधी बातों से टोंट किसी तीर की तरह मारते हुए, वह मुस्कराते हुए वहाँ से चला गया। मगर उसका जवाब सुनकर रणवीर की आँखें आग बरसा रही थीं। वह गुस्से में गरजते हुए उसे कुछ कहता, कि तभी उसे सीरत की आवाज़ आई, जिसे सुनकर वह भागते हुए अपनी बेटी के पास चले गए।
वहीं सम्राट के तो होश उड़ चुके थे। वह सिद्धार्थ का चचेरा भाई होने के साथ-साथ उसका बचपन का दोस्त भी था। सिद्धार्थ की बातों में गहरा छुपा हुआ मतलब उसके चेहरे की हवा ही उड़ा रहा था। उसने आज तक सिद्धार्थ को किसी लड़की के लिए इतना अजीब व्यवहार करते नहीं देखा था, मगर आज तो बात कुछ और थी।
तभी उस मिनी अस्पताल के अंदर बेहोश पड़ी रूह, जिसकी आँखों की पुतलियाँ बार-बार फड़फड़ा रही थीं, मानो वह सिद्धार्थ के साथ बिताए पलों को बार-बार याद कर रही हो, वह घबराहट में पसीने से तर-बतर अचानक से चिल्लाई,
"नहीं! प्लीज़! मत करो ना! यह दर्द हो रहा है!"
उसकी चीख इतनी तेज थी कि बाहर तेज़ी से कदम बढ़ा रहे सिद्धार्थ के कदम रुक गए, मानो जैसे रूह ने उसे ही पुकारा हो। वह रूह की फिक्र में भागते हुए जाता, कि तभी एक लड़का, जिसकी उम्र लगभग छब्बीस साल होगी, जो अभी-अभी रूह को सरप्राइज़ देने इंडिया आया था, वह सिद्धार्थ को टक्कर मारकर सीधा रूह के पास भागा और रूह को बाहों में पकड़कर कसकर गले लगाकर बोला,
"रूह! तू ठीक है! देख, तेरा समय तुझसे मिलने आया है!"
उसने कसकर गले लगाकर रूह को लगभग अपनी बाहों में समेट लिया। और रूह, जिसके बदन पर फिलहाल फर वाला सूट था, वह छोटी सी खरगोश की तरह अपने दोस्त की बाहों में छिपी, टिमटिमाते हुए उसे देखने लगी। मगर ठीक तभी उसकी पन्ना रंग की नज़रें भूरे रंग की आँखों से मिल गईं जो दरवाज़े पर खड़ा, ना जाने क्यों, ड्रैगन किंग बनकर जलती निगाहों से समय को देख रहा था।
"कामुक राक्षस यहाँ? क्या मैं सपना नहीं देख रही हूँ?"
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गहरी रात थी। मिनी हॉस्पिटल की खिड़की से आती ठंडी हवाओं की लहरों में भी रूह का बदन आग की तरह तप रहा था। उसकी बंद आँखों की पुतलियाँ बेचैनी में इधर-उधर होती रहीं, रूह के रोम-रोम में सरसराहट पैदा कर रही थीं। यह मानसिक असर किसी और का नहीं, सिद्धांश की छुवन, उसकी मौजूदगी से उठे तूफ़ान का था।
वह बेचैन सी, अजीब सी घबराहट लिए हड़बड़ा कर होश में आई और लबों पर सिद्धांश की मौजूदगी का जिक्र कर गई।
"नहीं! आह्ह्ह्ह्ह! कृपया ऐसा मत करो, यह दर्द दे रहा है!"
उसकी सिसकी सुनकर रूह की माँ, मासी (पियाली), और फूफी (गीत) उसे अजीब नज़रों से देखने लगे। वहीं हरनाज रूह के गले पर सिद्धांश के निशान (जो लिफ़्ट में दिए गए थे) आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगी।
उसके सुर्ख गले का लाल रंग सिद्धांश की उग्रता की गवाही चीख-चीखकर दे रहा था। गनीमत थी कि यह रोमांटिक निशान त्रि-महान देवियों (सीरत, पियाली, गीत) ने नहीं देखा था, वरना रूह के बेहोशी से निकलते ही उन्हें दिल का दौरा पड़ जाता। मगर जिसकी नज़रों में नहीं पढ़ना था, वह पढ़ ही चुका था। अब तो खैर नहीं, बिचारी... हरनाज उसे नहीं छोड़ेगी।
खैर, रूह की सिसकियों का जिक्र सिद्धांश के कानों में पड़ते ही उसके कदम ठहर गए। ना जाने क्या मीठी सी आवाज़ थी, सिद्धांश को ऐसा लगा मानो अरसे बाद किसी ने उसे शिद्दत से पुकारा हो। वह कुछ नहीं समझ पाया, बस दिल की डोर जिस ओर खींचकर ले गई, उस ओर चल दिया, यानी कि अपनी रूह के करीब।
मगर तभी, तूफ़ान की गति से बढ़ता हुआ छब्बीस साल का एक शख्स, जो रूह का जिगरी दोस्त कहलाता था, अनजाने में ही अपनी मौत की ओर बढ़ता रूह को बाहों में खींचकर उसकी पीठ सहलाने लगा। जिससे नाज़ुक सी रूह किसी छोटी बच्ची की तरह छिप गई।
लेकिन रूह, जो सिद्धांश की मौजूदगी अपने बदन पर महसूस कर पसीने से भीग चुकी थी, मगर अपने जिगरी दोस्त के साथ का अहसास पाते ही वह शांत होने लगी थी, कि तभी उसकी पन्ना हरी आँखें भूरी आँखों से जा भिड़ीं, जिन्हें देखते ही रूह का दिल दहल उठा। उसकी मजबूत उपस्थिति से...
वहीं सिद्धांश, जिसे रूह की सिसकी सुनकर कुछ अपना सा लगा था, मगर उसे अपने अलावा किसी और मर्द की बाहों में छिपा देखकर, उसके तन-बदन में आग लग गई थी। ऊपर से वह रूह की आँखों के अलावा कुछ नहीं देख पा रहा था। उसकी झुंझलाहट अलग... बहुत ज़्यादा गुच्छा।
उसका जी तो चाह रहा था कि वह रूह पर नज़र डालने वाले हर मर्द की आँखें छीन ले, मगर अफ़सोस, रूह पर उसका क्या हक था? वह जलती निगाहों से रूह को शिद्दत से घूरते हुए वहाँ से जाने लगा।
लेकिन उसकी आँखों में बेइंतेहा गुस्सा देखकर रूह का कोमल दिल दहल चुका था। लेकिन वह सिद्धांश की मिली कुछ पल की झलक में ही उसके मर्दाना हैंडसमनेस की कायल बन गई। यकीनन, उससे ज़्यादा हसीन मर्द उसने आज तक नहीं देखा था, जिसकी आँखों में एक ख़तरनाकपन था, जो किसी जंगल के जंगली शेर कहलाने का रुतबा रखता था।
"क्या तुम ठीक हो, रुही? पागल लड़की, तूने तो डरा दिया। और तू अपना ख्याल क्यों नहीं रखती? तुझे तेरे भरोसे क्या छोड़ा? तू तो अपनी मनमानी ही करने लगी। और तुझे ज़ीरो फ़िगर बनने का शौक चढ़ा है क्या? आंटी, देखो इस लड़की के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे। स्लिम-ट्रीम बनने की होड़ में बेलगाम घोड़ी बनकर भाग रही है। मैं तो कहता हूँ, शादी-वादी करवा दो, कहो यह लड़की मनमानी करते-करते हाथ से न निकल जाए!"
वह दोस्त कम, रूह का यार ज़्यादा था, जो हरदम रूह के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश में जुटा रहता था। मगर उसकी बातों में छुपी नियत साफ़ तौर पर जाहिर होते देख, जहाँ सीरत मुस्कुरा रही थी, वहीं पियाली और गीत का मुँह बन चुका था। और रूह सिद्धांश की नज़रों में छुपी हिदायत जानकर समय से दायरा मेंटेन करते हुए फिर से लेट गई।
(बंदी तो अभी से सिद्धांश का हुक्म मान रही है) हाए, मैं तो सच्ची में वाही जावा।
"हा हा, तुम ना ज़्यादा ही होशियार ना बनो, सब समझ आता है। तुम मौका मिलते ही लाइन मारने के लिए बैठे हो मेरी बच्ची पर, लेकिन बेटा जी, वह कुड़ी इतने जल्दी किसी के हाथ नहीं लगेगी। पहले उस बंदे का इंटरव्यू उसकी मासी प्लस चाची, यानी कि मैं, मिसेज़ पियाली से होगा। पहले वह बंदा मुझे पटाएगा, मेरा मतलब है कि..."
"...मुझे इम्प्रेस करेगा, उसके बाद प्यार में कूद मरने की सीढ़ियाँ चढ़ेगा, फिर कहीं जाकर मेरी सबसे लाडली कुड़ी उस बंदे के हाथ आएंगी। हाँ, नहीं तो!"
रूह की मासी ने क्या-क्या कह दिया था, यह तो समय के दिमाग में नहीं घुसा। माना कि समय जाना-माना डॉक्टर था, लेकिन ज़रूरी तो नहीं था कि उसे अटपटी बातें भी समझ आएँ। वह रूह के पास बैठकर उससे बात करने लगा, मगर रूह की हर धड़कन तो सिर्फ़ सिद्धांश का नाम जप रही थी। बिचारी, आज इश्क़ की पहली सीढ़ी चढ़ रही थी, और नाज़ इशारे से निधि को अपने साथ ले गई रूह के ख़िलाफ़ खिचड़ी पकाने।
वहीं सिद्धांश, जिसकी आँखों में समय और रूह की करीबियों का मंज़र छप चुका था, अब वह वहाँ एक पल भी नहीं रुक पाया। सिद्धांश को ना जाने क्यों उस नज़ारे को देखते ही घुटन महसूस होने लगी। वह रूह की पन्ना हरी आँखों में ख़ौफ़ की छाप अपने ज़हन में बसाकर वहाँ से निकल सीधा अपनी बुलेटप्रूफ़ लिमिटेड एडिशन बेंटले कार में बैठ गया। उसकी स्पीड से मैच करना लगभग नामुमकिन सा था, मगर सिद्धांश को गुस्से में अकेला छोड़ना मतलब तूफ़ान को बुलावा देने के बराबर था।
इस खातिर सम्राट झट से उस कार में जा बैठा, जो बस तूफ़ान की गति से जयपुर के रास्ते पर भागने को तैयार थी।
वहीं सिद्धांश, जिसके पत्थर दिल में रूह की यादों ने जोर-जोर से दस्तक देना शुरू कर दिया, ना जाने ऐसी क्या बात थी? रूह का सेक्सी भीगा बदन, उसके तराशे हुए मखमली कर्व्स, चौड़े हाथों की कसन में जकड़ना... बहुत ज़्यादा गरम।
उसकी पन्ना हरी आँखों में अपने लिए ख़ौफ़, यह सारा मंज़र एक-एक करके किसी रील की तरह उसकी आँखों में गुज़र रहा था, जो सिद्धांश के तन-बदन में अजीब सी गर्मी पैदा कर रूह को छूने की तमन्ना में तरस रही थी।
वह अपना गला सूखा होता हुआ महसूस कर रहा था, उसकी चिकनी कमर को याद करके।
मगर जैसे ही रूह के अपने अलावा किसी और गैर-मर्द का बेहद करीब जाना उसे याद आया, बस सिद्धांश के बर्दाश्त के बाहर होने लगा। वह अब तक रूह की छुवन के लिए तरस रहा था, मगर अब वह गुस्सैल दैत्य बने समय का खून करने को तरसने लगा।
उसके चौड़े हाथ स्टीयरिंग पर कस गए और कार की स्पीड हवा को चीरते हुए जयपुर की सड़कों को रौंद रही थी। उसका ओरा बेहद आक्रामक और काला हो चुका था, जिससे बगल में बैठा सम्राट भी बखूबी महसूस करते हुए परेशान हो रहा था, क्योंकि उसके गुर्राहाट में छुपा बेइंतेहा गुस्सा कभी भी फटने की हालत में था, और जब सिद्धांश का गुस्सा फट जाए तो फिर अच्छे-अच्छों की पैंट गीली हो जाती थी।
और सम्राट यह चांस बिल्कुल नहीं लेना चाहता था। वह कुछ सोचकर अपनी माँ, सिद्धि (यानी कि सिद्धांश की सगी मासी) को मैसेज भेज देता है, ताकि उनके आने से सिद्धांश जरा शांत हो जाए।
थोड़े ही पल में...
जयपुर का पॉश इलाका, मानसरोवर में बना फार्महाउस।
जहाँ हर नकाबपोश पहरेदार राइफलें पकड़े तैनात थे, तभी सन्नाटे को चीरती हुई एक कार उस फार्महाउस की पार्किंग में आ रुकी। उस कार के दरवाज़े को जोर से लात मारकर सिद्धांश गुस्से में गुर्राते हुए अपने कमरे में चला गया और बदन पर मौजूद चिकनकारी कुर्ते को बेरहमी से फाड़कर वॉशरूम में ठंडे पानी के नीचे खड़ा होकर खुद को शांत करने की नाकाम कोशिश करने लगा।
मगर उसके बदन पर गिरता ठंडा पानी आज सिद्धांश के गुस्से को किसी भी हालत में काबू नहीं कर सका। गुस्सा कंट्रोल करने से असफल हो चुका सिद्धांश झुंझलाते हुए बालों में उंगलियाँ फँसाकर चीख पड़ा।
"आह्ह्ह्ह्ह! क्यों वह लड़की मेरे ख्यालों में गुम है? क्यों मैं खुद को कंट्रोल नहीं कर पा रहा? क्यों मैं उसे चाहता हूँ? क्यों मैं बार-बार उसके बारे में सोच रहा हूँ? लानत है, क्यों मैं उसकी आँखों को भूल नहीं पा रहा?"
"उसे छूते ही मैं बेसब्र कैसे हो गया? आखिर क्या है ऐसा उसमें जो मैं उसकी ओर खींचा जा रहा हूँ? आज पहली दफ़ा मैं उससे मिला हूँ, मगर लगता है उससे मेरा नाता काफ़ी पुराना है, लेकिन यह तो किसी हालत में मुमकिन नहीं। उसे भूल जा सिद्धांश, वह सिर्फ़ तुम्हारे प्रतिद्वंद्वी की बेटी है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं!"
वह खुद को दायरे में रखने के लिए अपने आप को झूठी तसल्ली देने लगा, मगर अचानक से रूह की पन्ना हरी आँखें उसकी नज़रों में झलकने लगीं, जिनमें नज़र आ रहा ख़ौफ़ सिद्धांश की आँखों में मानो छप चुका था।
जिससे सिद्धांश का गुस्सा अब धीरे-धीरे ही सही, मगर नॉर्मल होने लगा। बस यहीं से शुरुआत फिर उस मंज़र की हुई, जहाँ उसका बेकरार दिल, बार-बार भीगा बदन, उसकी मक्खन सी कमर में मौजूद वह मस्सा, निधिगंधा फूलों की खुशबू, उसकी चिकनी कमर पर फिसलती हुई सिद्धांश की उंगलियाँ... बंदा फिर से फ्लैट हो गया।
वह सारा गुस्सा भुलाकर भीगे बदन से सीधा बेडरूम के उस कोने में आ पहुँचा, जहाँ सिद्धांश पेंटिंग की कारीगरी से पूरी दुनिया भर में मशहूर आर्टिस्ट एसजे के नाम से जाना जाता था। वह आँखें मूँदकर रंगों को पहले से ही सजी प्लेट्स में उंगलियाँ डुबोकर उस बड़े से कोरे कैनवस को रंगने लगा, मानो उसके हाथों में कोई जादू हो। वह बंद आँखों से उसकी कमर, भीगी साड़ी में उसके बदन का हर कर्व्स उस पोर्ट्रेट में उतरने लगा। धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया, रूह के तराशे हुए जिस्म का हर हिस्सा हूबहू बन गया।
जिन्हें वह खुली आँखों से बेताबी में देखने लगा, मगर अब बारी चेहरे की थी, जो कैसे बनाए इसकी ख़बर अब तक सिद्धांश को नहीं हुई, मगर तभी उसके उम्दा कारीगरी को जस का तस तस्वीर में उतरता देख, सम्राट जो बेधड़क उसके बेडरूम में घुस आया था, वह अवाक होकर उस लड़की का ख़ूबसूरत बदन देखने लगा।
भले ही वह पेंटिंग थी, मगर किसी और मर्द की पड़ती नज़र महसूस कर वह खूंखार शेर दहाड़कर बोला,
"हिम्मत मत करना उस पर नज़र उठाने की, सम्राट सारंग, तुझे मारकर इसी कमरे में गाड़ दूँगा, ना तेरे पिता ढूँढ पाएँगे, ना तुम्हारी माँ। उसके ऊपर नज़र ना उठाना, वरना हर आँख जो उस पर पड़ेगी वह बेरहमी से छीन ली जाएगी।"
उसके दहशत भरे अंदाज़ को देखकर सम्राट ख़ौफ़ भरी निगाहों से सिद्धांश को अटकी आवाज़ में बोला,
"मैं... मैं उसे नहीं देख रहा था। और भूलो मत सिद्धांश, हम दोस्त नहीं, भाई भी हैं, जहाँ हम दोनों के बीच कोई बात नहीं छुप सकती। तो जरा बता सकोगे यह हसीन बला कौन है? कहीं मैं जो सोच रहा हूँ यह वही तो नहीं?"
"चुप कर, सम्राट। आइन्दा से अपनी नज़रें सही-सलामत चाहते हो तो दुबारा उस तस्वीर को ना देखना और ना ही अपनी जुबान पर जिक्र करना, वरना जान से भी जाओगे और जुबान से भी। और अपनी नाक मत घुसाया कर मेरी ज़िन्दगी में।"
"अब बताओ, तुमने अपनी माँ से क्या कहा? मुझे अभी मासी का टेक्स्ट आया था, वह परसों किसी स्पेशल पूजा के लिए इनवाइट कर रही है, और तुम जानते हो मुझे किसी भी रिचुअल में कोई इंटरेस्ट नहीं। जर्मनी से मैं यहाँ किसी ख़ास मक़सद के लिए आया हूँ, ना कि फैमिली गेट टुगेदर के लिए। बेहतर होगा तुमने जो रायता फैलाया है उसे समेट लो, क्योंकि मेरे कदम किसी भी हाल में मंदिर में नहीं पड़ेंगे। बात समझ में आई?"
जिसका बचपन अपनी माँ के साथ पूजा-आराधना करते हुए बीता था, मगर आज वही मंदिर की चौखट पर कदम रखने को भी इंकार कर रहा था। वह दर्द से इतना बेदर्द था, उसकी माँ का कटा हुआ सर जो सिद्धांश के गोद में दम तोड़ चुका था, वह मंज़र काफ़ी था उसका भरोसा हर भगवान से उठाने को।
जिसे समझकर सम्राट मन ही मन खुद से बोला,
"बहुत हो गया सिद्ध, बहुत हो गया। अब मैं तुम्हें अंधेरे से निकालकर रहूँगा। अगर वह दुश्मन की बेटी तुम्हारे मुक़द्दर में लिखी है तो वही सही, लेकिन उसे तुम्हारे करीब लाने की हर मुमकिन कोशिश मैं करके रहूँगा। चाहे मर्ज़ी से या ज़बरदस्ती, वह बनेगी तो तुम्हारी ही।"
उसकी आँखों में बेइंतेहा नफ़रत पिघलने वाली जो अब आ चुकी थी, और शायद सम्राट भी जान चुका था। अब देखना यह था कि कब, कहाँ, कैसे रूह उसके ज़िंदगी में शामिल होती है।
मगर नियति ने शायद पहले ही कुछ सिद्धांश के मुक़द्दर में लिख रहा था।
दो दिन बाद...
जल महल में...
पूरे दो दिन हो चुके थे उस हादसे को, मगर रूह को उसके बेडरूम से बाहर निकलना भी सख़्त मना कर दिया गया था। उस प्रिंसेस का ख़ास ख्याल रखने की सज़ा सारे घरवाले मिलकर सुनाई थी।
जहाँ उसकी ज़रूरत का ख़्याल रखा जा रहा था, मगर सबकी ज़्यादा देखभाल देखकर रूह हद से ज़्यादा परेशान हो चुकी थी। वह खुशियाँ मनाए, वह दुःख उसके समझ से परे था।
तो वहीं उसके बेडरूम में कब्ज़ा जमाए बैठी निधि और हरनाज उंगलियों में लगे नेलपेंट पर फूँक मारते हुए रूह की चुगलियाँ उसके सामने ही कर रही थीं।
"ना मुँह बनाओ। ऐसे क्यों खींच-खींचकर दाँत निकाल रहे हो? आप लोगों को बहुत मज़ा आ रहा है ना मेरी हालत पर? जैसे कि मैंने कहा था, आग को आग लग गई, मेरे लग गई, सारे लोग सौ हिदायत दे-देकर मेरे कान फाड़ने में लगे हुए हैं। और आप दोनों निकम्मी बहनें मेरी हालत पर हँसकर मज़े उड़ा रही हो!"
"और वह समय बस कहने को मेरा दोस्त है, लेकिन धोखेबाज़ इंसान, मेरी ही मासी के साथ हाथ मिलाकर जबरदस्ती मेरी केयर किए जा रहा है। आह्ह्ह्ह! मैं कोई छोटी बच्ची हूँ थोड़ी, जिसे बेबीसिटर की ज़रूरत है? हर पल मेरे आगे-पीछे घूमते रहते हैं। याद रखो, मैं पूरी उन्नीस साल की हूँ, ये दोगले लोग क्या खाक मुझे बिज़नेस करने देंगे?"
"यार, प्लीज़ आप हँसो मत। मुझे यहाँ से ले चलो। आपको पता है ना मुझे मंदिर भी जाना है। पिछले दो दिन से बड़ी मुश्किल से मैंने व्रत पूरा किया है, मैं ही जानती हूँ, लेकिन प्लीज़ अपनी छोटी बहन के खातिर मुझे बाहर ले जाने का अरेंजमेंट कर दो ना, पक्का मेरा बेडरूम आपके नाम कर दूँगी।"
"ओए निधि, सिसो नहीं तो एटलीस्ट तू तो मेरा साथ दे, बहन! तू तो मेरी असिस्टेंट है ना, अपनी बॉस का इतना तो काम कर ले!"
अपनी बहन और निधि के नाक में अच्छा-ख़ासा दम करने के बाद अब रूह मैडम चाहती है कि वह लोग सब कुछ भुलाकर उसकी मदद करें, ऐसा तो मुमकिन बिल्कुल नहीं था। ऊपर से निधि, जिसे उसकी होने वाली जबरदस्ती की सासू माँ ने पहले ही तंग कर रखा था, वह कमर पर हाथ रख छोटी निगाहों से बोली,
"ओए चुप करो आप बड़ी बॉस कहने वाली। अब ख़्याल आया कि हम दोनों आपकी बहन हैं? यह ख़्याल तब क्यों नहीं आया जब आपने उस ज़ल्लाद के शहंशाह से मेरा सौदा मुफ़्त में किया था? वह भी सिर्फ़ कुछ घंटे बाहर घूमने-फिरने के लिए। ऊपर से उस दिन पता नहीं आपको कौन सा कीड़ा काट गया? हम दोनों को छोड़कर ऐसे ग़ायब हुई, पता नहीं आपके पीछे कौन सा गुंडा पड़ गया हो। तो मेरी प्यारी बहना, इतनी धोखाधड़ी काफ़ी है असिस्टेंट की जॉब छोड़ने को।"
"ऊपर से उन ज़ल्लाद की मम्मी ने मेरा हाल बड़ा ही बुरा कर रखा है। जी चाहता है उनके खाने में मिर्ची भर-भर के उनका मुँह बंदर जैसा लाल कर दूँ। और कोई पुरानी सीरियल देखकर उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचा लूँ। मेरी चुड़ैल फूफी जब-जब आती है खाने की बजाए मेरा खून चूसती रहती है!"
निधि बिचारी रूह को कोसते-कोसते अपना ही दुखड़ा रोने लगी। वहीं हरनाज जो ब्रेकफ़ास्ट के नाम पर रूह के लिए बने स्वीट कॉर्न चबा रही थी, वह रूह के गले पर मौजूद हल्के-हल्के लाल निशान को तीखी निगाहों से देखकर बोली,
"मेरी लाडली बहना, आपकी ख़िदमत में तो हम दोनों बहनें ही हरदम हाज़िर हैं, लेकिन आप जरा उस रात की हसीन दास्ताँ बताने का तकल्लुफ़ उठाएँगी। वह क्या है ना, गॉसिप मिले बिना मेरा पेट गुड़-गुड़ा जाता था।"
"अगर उन मीठे-मीठे निशानों की दास्ताँ वह भी फुल ठरक के साथ बताएँगी तो हम आपको यहाँ से सीधा मंदिर ले चलेंगे। तो बोलो, सौदा मंज़ूर है?"
उन निशानों का जिक्र सुनने के लिए हरनाज पूरे दो दिन से रूह के कान चबा रही थी। आख़िरकार रूह हार मानकर नाज़ के आगे सरेंडर कर गई, और नाज़ के साथ छिप-छिपाकर वही पुराने मंदिर भाग गई, जहाँ से आज रूह की ज़िंदगी का नया मोड़ शुरू होने वाला था।
दोपहर का वक़्त...
"बेटा, आप यह धागा बरगद के पेड़ पर बाँध आइए। याद रहे, आँखें बंद हों फेरे लेते वक़्त। आप जाएँ तब तक हम बाकी की पूजा शुरू करके आते हैं।"
रूह के हाथों में ख़ास मंत्रों के उच्चारण वाला धागा देकर पंडित जी माँतारानी की पूजा-विधि में लग गए। उस मंदिर में आज ख़ास मुहूर्त पर माँतारानी की पूजा करने का ख़ास रिवाज था, जिसमें कई बड़े-बड़े घरानों के लोग उस हवन-पूजा में शामिल थे, जिसमें आज ख़ास तौर पर सारंग फैमिली भी आई थी, जिनके द्वारा अरेंज किए माँतारानी के पूजा में रूह अनजाने में आ पहुँची।
तो वहीं रूह, जिसने हरे रंग का घेरदार अनारकली सूट पहना था, वह पंडित जी का आशीर्वाद लेकर लाल रंग से बने लंबे दुपट्टे से अपना चेहरा कवर करती हुई उस बरगद के पेड़ के करीब गई, जहाँ वह आँखें मूँद हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हुई उस मौली धागे को पेड़ से बाँधने लगी।
साथ ही साथ वह उस पेड़ के फेरे भी ले रही थी, तभी एक शख्स, जिसके मस्कुलर बदन पर काले रंग की पठानी थी, सख़्त चेहरा काले रंग के मफलर से कवर था, और हाथ में बंदूक लिए वह उसी बरगद के बड़े से पेड़ के साये में छिपकर अनजाने में फेरे उस लड़की के साथ लेने लगा।
वह अचानक से हुए किसी हमले से बचने अनजाने में ही मंदिर की चौखट पर आया था, मगर उसे क्या ख़बर थी, आज से होने वाली हर दास्ताँ के पीछे वही भगवान है जिससे महज़ आठ साल की उम्र में उसने मुँह मोड़ा था।
उसके भारी कदमों की आहट भले ही रूह को ना हुई हो, मगर स्ट्रॉन्ग कोलेजन की महक उसके साँसों में घुलकर रूह को बेचैन कर रही थी। मगर पंडित जी की कही बातों से वह बिना रुके बस फेरे पूरे करने लगी, मगर आख़िरी फेरा जैसे ही हुआ, तभी गोलियों की धाँय-धाँय से पूरा मंदिर का प्रांगण दहल उठा, फिर एक बार हर तरफ़ अफ़रा-तफ़री मच गई।
और एक गोली जिसका निशाना रूह के ठीक पीछे खड़े काली पठानी वाले शख्स पर था, वह अपने आगे किसी छोटी सी लड़की को देखकर झट से उसके आगे खड़ा हो गया, जिससे रूह को लगने वाली गोली उस शख्स के सीने पर जा लगी। मगर पठानी में छुपा बुलेटप्रूफ़ अंगरखा उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। वह बेख़ौफ़ अंदाज़ से उस दिशा की ओर गोलियाँ चलाने लगा, जहाँ दुश्मनों के भेजे गुंडे उस शख्स को मारने आए थे।
वहीं रूह, जिसके लिए यह मंज़र बड़ा आम था, उसका पूरा ख़ानदान ही हर रोज़ ऐसे वारदात का शिकार होता रहता था, मगर आज बात कुछ और थी। ना जाने क्यों रूह का दिल ख़ौफ़ से घबरा रहा था। जिस शख्स ने उसकी जान बचाई, वह अपने साये में उसे पनाह देते हुए बचा रहा था। यह ख़्याल ही रूह को उस बंदे की फ़िक्र करने पर मजबूर कर गया।
अब रूह उसके पीछे छिपने की बजाय अपने हाथ में मौजूद स्पेशल रिंग को प्रेस करती है, जिससे मंदिर के आस-पास कुछ ही पल में ख़ास कमांडो सिक्योरिटी उन दुश्मनों का ख़ात्मा करने लगी, जिससे महज़ पाँच मिनट में ही लड़ाई बंद हो चुकी थी।
यूँ अचानक से दंगों का रुक जाना उस काले पठानी वाले बंदे को हैरानी में डाल गया। वह शख्स ठंडी आह भरकर मंदिर के अंदर मौजूद अपनी मासी, सिद्धि सारंग को देखने जाता है, कि तभी उसकी नज़र अपने पीछे खड़े उस लड़की पर गई, जो लाल रंग के चुनर को ओढ़े उस बंदे के हाथ से निकलते खून को अपने दुपट्टे से पोछ रही थी।
यह देख ना जाने क्या आया उस बंदे के दिमाग में, वह ख़ुन्नस से उसे घूरकर गुर्राती आवाज़ में बोला,
"तुम कौन हो और यह क्या कर रही हो? रुक जाओ यह करना।"
यह कह वह अपना हाथ छुड़ाता है, कि तभी उसके कानों में मिश्री घोलने जैसी आवाज़ आई,
"शुशशश... शांत रहें। दिख नहीं रहा आपको चोट लगी है, कितना खून बह गया आपका, अब ज़्यादा हिलें नहीं। मैं आपको दुपट्टा बाँध देती हूँ, बाद में तसल्ली से मरहम लगाना। और हाँ, थैंक्स बोलने की ज़रूरत नहीं, आपने जान बचाई मेरी, इसका यह जवाब समझ लेना। अब गुर्राना बंद भी करो, मेरा ध्यान भटक रहा है।"
वह बंदी नहीं जानती थी कि जिसे वह ऑर्डर दे रही है वह आम इंसान नहीं, इंसान के भेष में छिपा शैतान है। मगर उसकी मीठी बातों का असर उस शैतान पर कुछ यूँ हुआ, वह संदेह भरी नज़रों से बेसब्री से उसे घूरने लगा। यह छोटी सी लड़की उस पर हुकूमत चला रही थी। यह जानकर वह बंदा, जो और कोई नहीं, सिद्धांश जिंदल था, वह भौंहें चढ़ाए उसे शिद्दत से स्कैन करने लगा।
उसके नाज़ुक बदन का हर हिस्सा, जो कहीं न कहीं सिद्धांश के रोम-रोम में बसा हुआ था, वह बिना कुछ कहे जहरीली नज़रें गड़ाए उसके चेहरे को देखने की कोशिश में बेताब होने लगा।
"हुह्ह्ह्ह... हो गया। आख़िरकार वैसे काफ़ी मोटा है आप, तभी तो आपके हाथों को बाँधने के लिए मेरा कितना सारा दुपट्टा फट गया।"
यह अड़ियल बंदी क्या थी आख़िर? देख तो ले उसका चेहरा, रूह मैडम आप साँस लेना भूल जाएंगी, इसकी गारंटी पक्की। वह बेचैनी से बस बकती रही, मगर जैसे ही उसे किसी की हैवानियत भरी नज़रों की तपिश महसूस हुई, वह धीरे से अपना दुपट्टा चेहरे पर ओढ़कर कानखुशी से उस काले पठानी में कहर बरसते हुए उस बंदे को देखने लगी। मगर जैसे ही रूह की हरी आँखों ने उसका दीदार किया, वह सदमे में डूबकर काँपते हुए लबों से बोली,
"कामुक राक्षस! आप यहाँ भी?"
वह मर ही ना जाए कहीं। रूह जिसका दिमाग सुन्न हो चुका था, मगर उस कामुक बंदे के चंगुल में फँसने से पहले वह बस भागने को मुड़ी, कि तभी उसकी कलाई सिद्धांश ने सख़्ती से पकड़कर दबंग आवाज़ में कहा,
"कहाँ भाग रही थी आप मोहतरमा? ऐसे कैसे भाग जाएँगी आप? यूँ मुझे बेवजह सौ बातें सुनाकर जरा तोहफ़ा तो लेती जाएँ अपना।"
जलमहल
"ओ खुदाया! छोड़ो, छोड़ो हमें! क्या कर रहे हैं आप? अगर किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी। हैवान के अब्बा! नहीं-नहीं, हमारा मतलब वो नहीं था। मतलब, किसी ने आपको यूँ हमारे कमरे में देख लिया तो बातें बन जाएँगी। आपकी फूफी (गीत मेहरा) आई हुई हैं, आप प्लीज़ जरा दायरे में रहिए ना। या अल्लाह! आह्ह्ह्ह! नहीं-नहीं जी!"
दर्द से सुलगती उस नजाकत भरी आवाज़ में शर्म भी थी और हया की लाली भी। यह फूलझड़ी सी लड़की फ़िज़ा के अलावा और कोई कैसे हो सकती थी, जिसके पीछे पड़े हैवान के अब्बा आज अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी डील को क्रैक करने से पहले अपना मुँह मीठा करने आए थे। मगर हमारी शर्मीली सी फूलझड़ी रिधान की मौजूदगी से कभी इधर कभी उधर भागने की फिराक में थी, जिससे कैद करने वो बाहों के घेरे में ले कर उसे कैद कर चुके थे।
और रिधान, जो मज़बूत बाहों के घेरे और ठंडी दीवार के बीचों-बीच उस नाज़ुक तितली को फँसा चुका था, वो बड़ी शिद्दत से उस दिव्य ब्यूटी की नज़ाकत देखे जा रहा था।
ऊपर से फ़िज़ा का यूँ अटका-अटका कर अधूरे शब्दों को कहना...हाय! बंदा फिसले नहीं तो क्या करे? बंदी आँख भी फड़फड़ाती थी तो वो रिधान के सीने पर बिजली गिर जाती थी। और आज तो फ़िज़ा सीधा उसके बेहद नज़दीक, उसकी बाहों में समाए घबराई जा रही थी। वो सख्त मुँडा आख़िर कैसे रोके खुद को? वो फ़िज़ा के और भी करीब जाकर उसके लबों से अपने सख्त लबों को टकराते हुए हस्की आवाज़ में बोला,
"डोंट मूव, मेरे हैवानों की होने वाली अम्मी। जरा रहम फ़रमाइए इस नाज़ुक चीज़ पर। आपकी एक नज़र पाने को तरसे जा रहे हैं।"
उसके सख्त लबों का यूँ छू जाना असली बिजलियाँ फ़िज़ा के छोटे दिल पर गिरा रहा था। उसके तन-बदन में सरसराहट फैल चुकी थी। मगर चुलबुले दिमाग के कोने में तभी एक बत्ती जली,
"क्या-क्या-क्या कहा इन्होंने? ये अंग्रेज़ की औलाद इन सँजीदा अल्फ़ाज़ों को बखूबी पिरोना भी जानते हैं। हाय! तौबा! जान जाएँगी आज हमारी। मगर ये हैवान की अम्मी? तौबा-तौबा! ओ खुदाया! रहम करे हम पर! ये ज़िले इलाही इन तीखी नज़रों से ही घायल करते हैं। कसम से इन्होंने जो कहा है अगर वो सच हुआ तो हमारी तशरीफ़ समेट कर हम आपके पास ही आ धमकेंगे अल्लाह! रहम दिखाए जरा हम पर!"
ये लड़की भी ना कितनी डरती थी अपने हैवानों के अब्बा से! मगर उस छुई-मुई ने कुछ गलत नहीं कहा था। रिधान 6.5 फ़ीट की बढ़ती हाइट में जिम में जी तोड़ मेहनत कर कसी हुई मस्कुलर, 8 पैक एब्स वाली फौलादी बॉडी का मालिक था, जिसके आगे 5.2 फ़ीट की फ़िज़ा बिल्ली के बच्चे से कम नहीं लगती थी। वो ख्यालों में ही खोई रिधान के बुराई-मीठे लफ़्ज़ों में कर ही रही थी कि तभी उसकी गर्दन पर शेव सेंशुअली चुभोते हुए, उसके साँसों को थामने वाले अंदाज़ में रिधान ने कहा,
"इज़ाजत चाहिए तुम्हारी? दोगी ना? चाहूँ तो तुम पर सारे हक़ अदा कर लूँ, मगर जानता हूँ तुम्हें मंज़ूर नहीं होगा। आज तक इसी दायरे को याद रख मैंने तुम्हारे करीब आकर भी खुद को कैसे रोका है ये सिवा मेरे कोई नहीं जानता। मगर आज, आज बात कुछ और है बटरफ़्लाई। आज तुम पर पहली दफ़ा मोहर लगाने को जी चाहता है। इतने सालों की कसर एक साथ बड़ी ही बेरहमी से पूरी करने को दिल कहता है।"
"मगर ये भी जानता हूँ, तुम्हें इकरार होगा और इंकार भी। पर आज खुद को रोक नहीं पाऊँगा बटरफ़्लाई। इन लबों को चूमकर अपनी प्यास बुझाना चाहता हूँ।"
"ट्रस्ट मी, आई वोंट बी हार्श ऑन योर लिप्स, बट इफ़ यू रिफ़्यूज़ आई विल स्नैच दोज़ जूसी लिप्स फ़्रॉम योर बॉडी।"
उफ़्फ़! बंदा इज़ाजत ले रहा है या धमकी? उसका यह बाग़ी अंदाज़ फ़िज़ा के होश उड़ा चुका था। वो पहले ही रिधान के हिलते लबों को अपनी नर्म गर्दन पर महसूस कर रेस्टलेस फ़ील कर रही थी। ऊपर से उसकी चुभती हुई शेव, जिन्हें सेंशुअली रब करते हुए वो फ़िज़ा को भी बहका रहा था। ऊपर से किस की डिमांड वो भी बाग़ी अंदाज़ में...बंदी कैसे ना पागल हो? वो मन ही मन खुद को कोस कर बोली,
"क्यों-क्यों-क्यों हमारी किस्मत इतनी खोटी है? न जाने क्यों हम ऐसे हालातों में बार-बार फँस जाते हैं। जब पता था ये हमें देखते ही खाने को कूद पड़ते हैं, हमें ही चैन नहीं। पता नहीं क्या सोचकर अकेले हम इस कमरे में आए। अगर जरा देर नाज़-बाज़ी के साथ रुक जाते तो कुछ बिगड़ जाता हमारा?"
"लेकिन हमें तो खुद आफ़त को गले लगाने का शौक चढ़ा रहता है ना। वो तो इनकी नज़रें...हाय! तौबा-तौबा! ऐसे लगता है देखते ही हमें कच्चा खाएँगे। ओ खुदाया! प्लीज़ इस नन्ही सी जान को बचा ले। पक्का अगली बार हम इनके चंगुल में नहीं आएँगे।"
वो हक्की-बक्की उसकी आगोश में खड़ी थी कि कभी उसने ज़िंदगी का पहला रूमानी एहसास महसूस किया, क्योंकि रिधान उसके लबों को अपने सख्त होंठों में दबोच कर उसकी पतली कमर को जकड़, उसके होंठों को पी रहा था। कुछ पल में ही उसके निचले होंठ को खींचते हुए उसके लबों को चूसने लगा और फ़िज़ा...वो तो पागल हो रही थी रिधान के जहनी एहसासों से। उसके बदन में मानो जान ही ना हो।
वही रिधान, जिसके लिए आज उसकी ज़िंदगी का सबसे अहम दिन था, जिसके बाद वो फ़िज़ा को पूरी तरह से अपना बनाना चाहता था। बस उसकी डील को क्रैक करने आज उसे एनर्जी बूस्टर चाहिए था, जो यकीनन फ़िज़ा के गुलाबी होंठ थे। जिसने रस खींचकर आज रिधान की प्यास और भी बढ़ चुकी थी। अब वो सच में पछता रहा था क्योंकि आज के बाद बिचारी फ़िज़ा को अपने लबों को रिधान के हवाले जो सौंपना था।
तो वही फ़िज़ा, जिसका नाज़ुक सा बदन रिधान के इंटेंस हार्डकोर टॉर्चर से सुरख लाल हो चुका था। अगर उस छुई-मुई का बस चलता ना, वो अपने हैवान के अब्बा को धक्का मार अपने ही कमरे में कैद करके भाग जाती। मगर मज़ाल है रिधान ने उसे हिलने को भी आजादी दी हो।
वो उसके होंठों को चाटकर, खाते हुए लगा था, जिससे फ़िज़ा के साँसों की माला कब टूटने की कगार पर आ गई इसकी ख़बर खुद फ़िज़ा को ना लगी।
वो छोटी जान रिधान के फौलादी वजूद से छूटने की कोशिश ठीक से भी ना कर सकी। इतना काबू जो कर लिया था उस डेमन ने।
मगर धीरे-धीरे बढ़ते पलों के साथ रिधान की वाइल्डनेस से फ़िज़ा की साँसें धीमी पड़ने लगीं और उसका पूरा बदन साँसों की कमी की वजह से ठंडा पड़ने लगा।
ठीक उसी पल रिधान के हाथ फ़िज़ा के नाज़ुक कमर से उसकी छोटी हथेलियों पर आ गए, जिन्हें छूते ही फ़िज़ा का बदन खुश्क होता हुआ महसूस होने लगा। उसने झट से फ़िज़ा के लबों को आज़ाद कर, गोद में उठा लिया और खुली हवा में साँस लेने बालकनी के झूले पर जा बैठा। उसे बड़े आहिस्ता से सख्त सीने में छुपाकर फ़िज़ा की पीठ सहलाने लगा।
कुछ देर तक तेज़ी से हाँफने के बाद अब जाकर फ़िज़ा कुछ होश में आई थी। मगर रिधान के गोद में खुद को पा वो मुसलसल शर्माती हुई उसके सीने में छिपने लगी।
मानो वो छोटी चुहिया उस खूंखार बाग़ बिल्ली के शिकार से बचना चाहती हो। लेकिन वो नादान रिधान से शर्मा कर खुद उसी के सीने में छिप रही थी।
"हाउ क्यूट शी इज़? इज़ंट इट?"
उसकी यह नादानी देख रिधान शरारती लहज़े में हँसते हुए बोला,
"उफ़्फ़! तुम्हारी यह मासूमियत कहीं मैं पागल ना हो जाऊँ। तुम मुझसे शर्मा कर मेरी ही बाहों में छिप रही हो। सच ए क्यूट जानम।"
(ज़रा पीठ सहलाते हुए) "कैल्म डाउन बटरफ़्लाई, मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगा। सिर्फ़ अपना एनर्जी बूस्टर ले रहा था। मगर सच में मेरा शक बिलकुल सही निकला। जब तक मैंने तुम्हारे इन होंठों को नहीं छुआ था, तब तक मेरे दिल का हाल बिलकुल ठीक था। मगर जब से मैंने इन खुश्क लबों को पिया है, अब से इन होंठों की लत लग चुकी है बटरफ़्लाई।"
"जैसे इन होंठों को मैंने पिया है, जल्द ही तुम्हारे बदन के हर ज़र्रे को पिऊँगा। तुम फिर शर्मा रही हो। ओह माय गॉडनेस! तुम कितनी शर्मा रही हो! इतना भी मत शर्माओ जानम, वरना मैं अपनी डील पर फ़ोकस नहीं कर पाऊँगा। अब तुम तसल्ली से शर्माओ, मगर बिस्तर पर। और हाँ, मेरे आने से पहले तक तुम अपने बेडरूम से बाहर नहीं जाओगी और तसल्ली से आराम करोगी।"
"लेकिन अगर तुम्हारे इन मोरनी जैसे पैरों को कमरे से बाहर थिरकते हुए नज़र आए ना, तो कसम तुम्हारे खुदा की इन पैरों से खड़े होने की जान खींच लूँगा। समज़ी!"
वो बातों ही बातों में फ़िज़ा को क्या-क्या नहीं कह गया था, जिस बारे में उस नादान को कोई ख़बर नहीं थी। वो तो बस शर्म के मारे पल-पल मरी जा रही थी रिधान की बेशर्मी से।
कुछ देर तक यूँ उसका सुरख लाल मुखड़ा निहारने के बाद रिधान ने ठंडी आह भरी और बड़ी मुश्किल से वहाँ से जाने का फैसला कर फ़िज़ा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसके माथे को और हल्के से उसके सूजे हुए लबों को चूम बिना एक पल रुके उस कमरे से चला गया।
मगर रिधान के जाते ही उसके लबों को छुआ जो अब तक फ़िज़ा के होंठों पर थी, वो मंद-मंद मुस्कुराती हुई नए ख्वाब बुन ही रही थी कि तभी किसी ने उसके बालों को खींच, उसके नाज़ुक गालों पर ज़ोर का तमाचा मारकर बेरुख़ी से कहा,
"ख़बरदार! जो अगली दफ़ा अपना मुँह काला करने का सोचा भी तो। भूलो नहीं तुम्हारे महरूम अब्बा के साथ क्या किया था इस खानदान ने।"
ये कहकर उस शख्स ने फ़िज़ा को सपनों की दुनिया से होश में लाया। लेकिन वो थप्पड़ इतना ज़ोर का था कि फ़िज़ा खुद को संभाल ना सकी और साइड टेबल के कोने से भिड़ते हुए फ़र्श पर लहूलुहान सी हो गई।
वही दूसरी तरफ़,
मंदिर के प्रांगण में,
जहाँ आज मोहब्बत की दास्ताँ पर मोहर लगने की बारी आ चुकी थी। दोनों आमने-सामने, जिनके मुक़द्दर जन्म से जुड़ चुके थे, मगर नक़ाब का पहरा अब तक उन्हें एक-दूसरे से छिपाए जा रहा था। लेकिन फिर भी ना जाने कैसी यह पहेली थी। सिद्धांश बंदूक की नोक से निकलने वाली हर गोली खुद पर ले रहा था और उसके ज़ख्म का दर्द रूह के दिल में हो रहा था।
लेकिन वो बदमाश कुड़ी शांति से निकलने की बजाये उसे दस बातें सुनाने लगी। इतना ही नहीं, सिद्धांश के तगड़े बॉडी को बिना देखे मोटा कह गई। आख़िर क्या करे? इस आफ़त ने कोई अब शांत शेर को जगाया ही तो फिर भुगतो।
उसके जलजले दिल की भाँप महसूस करते ही रूह भी होश में आई और कानखनियों से झाँककर जब उसकी नज़र सिद्धांश की उंगलियों में मौजूद पुखराज अंगूठी पर गई, उसकी तो साँसें सीधा हलक में जा अटक गईं। उनसे बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल, धीरे से नज़रें उठाकर देखा और जैसे ही आयरिश ब्राउन आँखों की बस एक झलक पाई, वो बंदी सुन्न रह गई। कसम से!
"ये हॉर्नी मॉन्स्टर यहाँ भी! आह्ह! रूह भाग! इससे पहले ये खुलेआम मेरी सॉफ़्टिज़ पर टूट पड़े। कसम से मर जाऊँगी मैं तो! ये बंदा जान निकाल देगा उनकी। भाग रूह! भाग! इससे पहले तेरी जान इस बंदे के इतने सख्त हाथों में आए!"
वो बंदी सच में बड़ा बुरा फँसी थी। अब हालत हाथ से बाहर जाए और ये सुपर हॉर्नी बंदा फिर से उसकी सॉफ़्टिज़ बेहाल करे। वो गुपचुप वहाँ से खिसकने की फिराक में थी, मगर वो शरारती कुड़ी वहाँ से निकल पाती, उसके पहले ही सिद्धांश ने उसकी कलाई थाम ली और गज़ब की खिंचाई ले बोला,
"कहाँ भाग रही थी मोहतरमा? ऐसे कैसे भाग जाएँगी आप यूँ मुझे उकसाकर? जरा तोहफ़ा तो लेते जाइए।"
"अब इतना एहसान किया है ऊपर से जी भर के सुनाया है। जरा अपना मुखड़ा तो दिखाए। मैं भी देखूँ तुम्हारी आँखों में क्या खराबी जो मुझे तुमने बेतकल्लुफ़ी से मोटा कहा!"
वो रूह के चेहरे को बेपर्दा करने की तलब में जाने क्या-क्या कह रहा था, इसकी सुध खुद सिद्धांश को नहीं थी। मगर सच में उसे रूह का यूँ मोटा कहना बिलकुल नहीं भाया था। मगर वो बंदी जो बुरा फँसी थी, वो दुपट्टे को अच्छे से लपेटकर झूठी हँसी हँसकर बोली,
"वो-वो...मेरी आँखों में तो मोतियाबिंद है। आप तो कसम से चिकने माल...मेरा मतलब है काँटा...नहीं-नहीं...बवाल...शिट! मेरा मतलब है फूल अंगार! हाय! रब्बा! मार डालूँगी उस निधि की बच्ची को।"
"माफ़ करिए मिस्टर हॉर्नी! मेरा मतलब है मिस्टर अजीब से अजनबी। मेरी जुबान पता नहीं क्यों बार-बार फिसल रही है।"
"शायद मैंने कुछ गलत खा लिया होगा। माफ़ कर दो मगर मुझे अब जाने दो। (फिर धीमे से बुदबुदाकर) वरना मैं खड़े-खड़े आपका नाम मिस्टर रापचिक कर डालूँगी।"
(ये कुत्ती, कमीनी, निधि की बच्ची मुझ जैसी खूबसूरत बला को फूल ठरकी बना गई। उफ़्फ़! क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में।)
वो बंदी क्या से क्या बस नॉनस्टॉप बकती ही जा रही थी, जिसे सुन-सुनकर सिद्धांश आँखें फाड़-फाड़कर देखे जा रहा था। मानो आज से पहले किसी ने भी उसका सारा आम बला-चमत्कार कर दिया हो!
अब बात यकीनन हाथ से निकल चुकी थी। इस कारण रूह अपना हाथ सिद्धांश से झटक, झट से नीचे बैठ आरती की थाली पकड़ वहाँ से खिसक पाती कि तभी उसकी चुनरी तेज हवाओं से सरकी और सिद्धांश के हाथों से बहता खून अब तक धीरे-धीरे रिस रहा था। उसके खून की कुछ बूँदें तेज हवाओं के रुख़ से उसके माँग में जा गिरीं।
डैम!
जहाँ सिद्धांश हैरत में पड़ा उसे अब तक देखे जा रहा था और रूह भागने की जल्दबाज़ी के बीच उसकी उंगलियाँ अपने आप माँग को छू गईं, जिनमें सिद्धांश का बहता लहू अब तक नहीं सूखा था। अब बारी हैरानी की रूह की थी। वो अजीब से हालातों में फँसी सिद्धांश को कुछ कहने ही उठी थी कि सिद्धांश के हाथों से आरती की थाली छिटक गई और उसमें मौजूद सिंदूर सिद्धांश के हाथों से छूकर नीचे बैठी रूह की माँग में फिर से सज गया।
उसके समझ से परे था अभी क्या हुआ क्या नहीं। वो हड़बड़ाकर उठी, मगर सिद्धांश उस लाल सिंदूर से रंगे पूरे चेहरे को शिद्दत से देखने लगा, जिसमें रंग रूह का चेहरा पूरी तरह से देखना लगभग नामुमकिन सा था क्योंकि थोड़ी सी चुनरी अब तक चेहरे पर थी और बाकी कसर सिंदूर ने पूरी कर दी।
मगर उसके तराशा हुआ जिस्म, हरे रंग के सलवार में गज़ब का कहर बरसा रहा था। उसकी गर्दन पर सुरख लाल निशान, जिन्हें देखने से ही सिद्धांश का खून अजीब सी गर्मी पैदा करने लगा। वो धीरे-धीरे कदम रूह के करीब बढ़ने लगा। क्यों? पेंटिंग में छापी तस्वीर हूबहू उसके फ़िगर से मैच कर रही थी।
तो हमारी रूह मोहतरमा, जिनमें काटो तो खून नहीं था, वो सूखे पत्तों की तरह बेअख़्तियारी से मास्क में छुपे चेहरे को देखने की कशमकश में थी कि तभी किसी की गहरी आवाज़ उन दोनों को सुनाई दी,
"गज़ब हो गया! ये सिंदूर नहीं, आपकी किस्मत है बिटिया। उस दिन हमने आपका हाथ देखा था, जिनकी लकीरों में आज के ही शुभ मुहूर्त पर आप किसी ऐसे इंसान की अर्धांगिनी बनने वाली थीं, जिसके ख़ौफ़ से वो दुनिया में जाना जाएगा। मगर आज के दुर्लभ मुहूर्त पर आपके माथे पर लगा सिंदूर ही काफ़ी है इस तूफ़ान को रोकने के लिए।"
"जब-जब आप अपने जीवनसाथी के करीब रहेगी, वो समुंदर की तरह शांत रहेगा। लेकिन गलती से भी आप कभी उनसे बिछड़ी तो ये कायनात गवाह होगी उसके शैतानियत की!"
ये शब्द नहीं, कानों से खून निकालने वाले अल्फ़ाज़ थे, जिन्हें सुनकर जहाँ रूह काँप उठी थी, वही सिद्धांश के चेहरे पर गंभीर भाव थे और नज़र अब तक सिर्फ़ रूह पर टिकी थी। लेकिन जैसे ही पंडित की हस्तख़त्म हुईं, सिद्धांश ने रूह की कमर पकड़ अपने सीने से सटा लिया, जिसे महसूस कर रूह की चीख़ निकल पड़ी।
क्या करेगा सिद्धांश? क्या वो रूह को अपने साथ ले जाएगा? या रूह भाग जाएगी उसकी पकड़ से?
माँ कसम! यह बंदा तो सीधा झंडू बाम निकला रे। कमरे में अकेला, भला चंगा मुंडा मुझसे थोड़ी ठरकी बातें कर लेता, बिना कपड़ों के मुफ्त के दर्शन करा देता, मगर नहीं, वीडियो कॉल पर पूरे कपड़ों के साथ बैठा है।
"हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मैं इतनी हसीन, जवां, हँसमुख हूँ, मगर यह लड़का तो देखो, मुझे छेड़ता ही नहीं। मैं पूछती हूँ, आखिर क्या कमी है मुझमें, जो मैं आज तक किसी से छेड़ी नहीं? यहाँ मेरी बहन, मुझसे छोटी होकर, हिक्कियाँ शिक्कियाँ पा चुकी है, और मैं पूरी बाईस साल की कमसिन कली, आज तक एक किस करने को भी मोहताज हूँ। किस खुशी में मेरी सगाई इस बेरंग झंडू बाम से हुई?"
"आखिर क्या जवाब दूँगी मैं अपने अनगिनत होने वाले बच्चों को? मैंने जवानी में एक बंदा तक नहीं पटाया। मेरी तो दुनिया ही लूट गई। कोई तो दुखड़ा मनाओ! आआ आआ..."
यह पहली बंदी होगी जो छेड़ने को बेताब थी, मगर उसकी माँ के लक्षण हरनाज़ पर न आए तो बात कैसे बनेगी? वह यकीनन छोटी-छोटी क्रिस्टल ग्रे आँखों में सुरमा लगाए, किसी शहजादी से कम नहीं लगती थी। मगर रॉयल खानदान की लाडली बिटिया होने का ड्रॉबैक कुछ यूँ था: बाईस साल की हो जाने पर भी किसी बंदे में हिम्मत नहीं हुई उसे छेड़ने की।
यहाँ पूरे मंदिर के प्रांगण के गुंडों की गुंडागर्दी सारे आम छिड़ चुकी थी, जिससे मंदिर में आए लोगों के बीच भगदड़ मची हुई थी। मगर यह कुड़ी बिना नशा फूँके पागलों जैसी बात कर रही थी। बताओ, यह क्या आइटम पिस है?
"चल बहन, तेरा कोई नहीं, अपना नहीं। तुझे ही किसी को छेड़ना होगा!"
"वरना सारी उम्र बस दूसरों के हॉर्नी किस्से सुनकर बिताना होगा!"
बिचारी का दुःख देखा नहीं जा रहा था मुझसे। वह ठंडी आह भरकर मंदिर के बाहर बने पंडाल के आसपास एथनिक वियर पहने जवान बंदों को घूर रही थी, जो खुद भी हरनाज़ को ना जाने कब से ताड़ रहे थे। जब सबकी नज़रें खुद पर उसने पाईं, वह तो बिना पंख लगाए आसमान में उड़ती तितली की तरह पलकें फड़फड़ाने लगी, मानो उस बेइज़्ज़त बंदी को आज शर्म आ रही हो।
तभी उसका दुपट्टा उड़ते हुए किसी शख्स के कुर्ते में जा फँसा, और हरनाज़ जो खुद फुल ठरक के साथ उन लड़कों को ताड़ रही थी, वह बिना डोरी कटी पतंग की तरह किसी के साथ उलटे पाँव खींचे जाने लगी।
"ये गोरे-चिकने बंदे मुझसे दूर क्यों जा रहे हैं? अरे वो लोग! मैं दूर जा रही हूँ। ये कौन बवासीर है? जरा मैं भी देखूँ।"
ये कह उसने उल्टी गर्दन घुमाकर उस लड़के को देखा जिसके हाथ की कफ़लिंक में हरनाज़ का दुपट्टा फँस चुका था।
"ये बिना दिमाग के आदमी! तुम्हारे ऊपर का माला खाली है क्या? दिख नहीं रहा? आँखों के अंधे! तुम मेरे दुपट्टे को खींच रहे हो? और मजनू की बिछड़ी औलाद! रुक जा, वरना कान के नीचे चार खींचकर बजाऊँगी!"
यह बड़ी इंडिया आई नहीं कि हिंदुस्तानी स्वैग के साथ धमकाना भी सीख गई। लेकिन उसका पाला शायद किसी गलत बंदे के हाथ लग गया। वह गुस्से में फुँकारते हुए उस शख्स की पीठ देख रही थी। तभी उस शख्स ने उसके दुपट्टे को 'छ्छ्छ्छ्छ्छ्र्र्र्र्र' की आवाज़ करते हुए फाड़ना शुरू किया और बड़े स्टाइल से मूड कर दुपट्टे को बीच में बराबर से फाड़कर, गॉगल्स आँखों पर चढ़ाते हुए बोला,
"ओए बिना हड्डी की जुबान चलाने वाली ठरकी लड़की! सुना है तुम्हें छेड़ना बड़ा पसंद है, तो समझो मैं तुम्हें छेड़ ही रहा था। तो अगर तुम्हारा छेड़ना हो चुका तो जरा साइड हटो। क्या है ना, सम्राट सरंग किसी को एक बार छेड़ ले, दुबारा छेड़ने का मूड नहीं करता।"
"और तुम जैसी पोगो चैनल की कार्टून को बार-बार देखने का भी मेरा कोई मूड नहीं। अब फूटो यहाँ से जरा! ठंडी हवा आने दो! क्या है ना, मेरी हॉटनेस से यहाँ गर्मी बढ़ चुकी है।"
ओये होये होये! क्या कहा है बंदे ने! मुँह! जो पहले ही बॉल पर छक्का मार गया। कसम से जान ले ली आज बंदे ने तो! भई आखिर वह भी जाने-माने मशहूर डायमंड बिज़नेसमैन विराट सरंग का बेटा था। उसके तो खून में ही स्वैग भर-भर के समाया था। मगर हरनाज़ जो खुद छेड़ने को तैयार थी, आगे इतनी बेइज़्ज़ती, ना बाबा ना! यह हमारी हरनाज़ को गवारा नहीं हुआ।
वह आग-बबूला बनी, उस पर चढ़ने को तैयार थी, मगर तभी उसकी उंगलियों में मौजूद ख़ास किस्म की अंगूठी तीन बार वाइब्रेट हुई, जिसमें मिली वार्निंग से हरनाज़ के एक्सप्रेशन कुछ बदल गए। वह बड़ी मुश्किल से अपना गुस्सा का कंट्रोल कर सम्राट को बोली,
"ओ बिना सिंग के खुले साँड़! मुझमें जितनी ठरक है ना, उसे शांत कराना तो दूर, तुम तो ठीक एक बंदी तक नहीं पता सकते। आए बने मर्द बनने वाले! तुम्हें तो मैं ठीक से लड़कों में भी शामिल ना करूँ, तो छेड़ने की बात दूर की।"
"और अभी वक़्त नहीं मेरे पास तुमसे भिड़ने का, लेकिन यह मत समझना तुम बच गए। जानते नहीं हो मेरे बारे में, इस लिए इतनी बातें तुम बकते चले गए। जिस दिन जान जाओगे, इसी पैंट को गीला कर मेरे सामने गिड़गिड़ाओगे। समझे? अब तुम फूटो यहाँ से! हूँह्ह्ह..."
उसकी गुर्राती हुई बातों में अजीब सी छुपी धमकी थी, जिसे सुन सम्राट भौचक्का रह गया। और हरनाज़ लंबे जुल्फ़ों को जानबूझकर सम्राट के मुँह के करीब झटक, वहाँ से किसी ख़ास मकसद को पूरा करने चल पड़ी। उसके जुल्फ़ों का घना साया सीधा सम्राट के मुँह पर जा लगा। वह हरनाज़ की ये अदाएँ देखकर चिढ़ते हुए बोला,
"हू द हेल इज़ शी? इसे तो मैं अच्छे से छेड़कर रहूँगा। फिर देखता हूँ मैं मर्द हूँ या नहीं! हुह्ह्ह्ह..."
वहीं दूसरी ओर, माता रानी का पुराना मंदिर...
उस पुराने मातारानी के मंदिर में कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि बातों ही बातों में सौ साल पुराने बरगद के पेड़ के इर्द-गिर्द फेरे भी होते चले गए, और सिद्धांश के हाथों से बहता हुआ लहू और हाथ से यूँ टकराकर गिरता हुआ सिंदूर रूह की सुनी माँग में जाकर बस गया।
सिद्धांश का बहता खून, जो अब ताज़ा था, उन पर गिरता हुआ सिंदूर जैसे उसकी माँग में परफेक्टली फिक्स होकर सज गया हो। तो वहीं रूह, जो पहले ही हुस्न की मल्लिका कहलाती थी, मगर जब उसकी माँग में सिंदूर सजा, उसकी खूबसूरती सही मायने में आज पूरी हुई। इतनी पॉवर थी उस लाल सिंदूर की, लेकिन वह सिंदूर जितना रूह की नज़रों में मायने रखता था, उतना ही बेमतलब सिद्धांश की नज़रों में था।
दुपट्टे से अब तक ढका और दूसरी जगह लाल सिंदूर से सना हुआ रूह का चाँद सा मुखड़ा, जिनके पीछे चेहरे को देखने की सिद्धांश जद्दोजहद कोशिश में जुटा था, क्योंकि रूह का तराशा हुआ कर्वी बदन जो हूबहू सिद्धांश की बनाई तस्वीर से मेल खाता था, सिर्फ़ इतना ही तो काफी था सिद्धांश के दिल में खलबली मचाने को।
भला अब इतनी सिमिलरिटी मिलने से बिना रूह की तहकीकात किए वह ऐसे कैसे जाने देता? वह भी तब जब सिद्धांश अपने दिल की चोरनी को शिद्दत से ढूँढ रहा था। फिर रूह से रूबरू होकर बिना अपने शंका को मिटाए भला वह ऐसे कैसे जा सकता था?
उसने उस चालाक लोमड़ी की अगली चाल चलने के पहले ही कसकर अपनी आगोश में दबोच लिया और उनके रूह के सर से लाल रंग की चुनरी को खींचने लगा, ताकि वह उसकी खुशबू अपने जहन में बसी खुशबू से कंपेयर कर सके।
तो वहीं रूह पंडित जी की भविष्यवाणी, या यूँ कहें उसकी ज़िन्दगी की असली सच्चाई सुनकर स्तब्ध हो चुकी थी। उसे कुछ न समझ आया कि आखिर उसके साथ हो क्या रहा है? और दूसरे ही पल में वह सिद्धांश की बाहों में जा समाई थी। यूँ अचानक से हुए हमले से दो जिस्म फिर से एक दफ़ा अपनी फ़ेवरेट पोजीशन में आ चुके थे।
बस फिर क्या था? दोनों को धड़कन में तेज घंटियाँ बजने लगीं, वह भी एक साथ। यह कोई ख़्वाब नहीं, सच्चाई थी, जिससे रूह और सिद्धांश के तन-बदन में अजीब सी सेन्शुअल वाइब्रेशन क्रिएट होने लगीं। 🔥
"आपने नज़र से नज़र कब मिला दी,
हमारी ज़िन्दगी झूमकर मुस्कुरा दी,
ज़ुबां से तो हम कुछ भी न कह सके,
पर निगाहों ने दिल की कहानी सुना दी!"
रूह ने अचानक से अपना सिर उठाकर बेख़बरियत से सिद्धांश को देखा। दोनों की निगाहें अचानक से यूँ करीब आ जाने से भीड़ गईं। बस मानो दुनिया थम सी गई हो। दोनों शिद्दत से एक-दूसरे को देखे जा रहे थे, जैसे आँखों ही आँखों में दोनों एक-दूसरे को अपने जहन में बसा रहे थे। मगर तभी खुले आसमान के बीच हर तरफ़ लोगों की भीड़ जो रूह और सिद्धांश को सारे आम इतने करीब देख बातें बनाए जा रहे थे, उन्हें सुनकर अचानक से रूह को होश आया।
और वह हड़बड़ाकर झट से अपना चेहरा नीचे झुका, उसके सीने से लग बुदबुदाकर बोली,
"बेशर्म लड़की! आँखों से ही खा जाएँगी क्या? क्या सोचेंगे वो तेरे बारे में?"
(फिर खुद को डाँटते हुए,)
"पागल लड़की! उनकी नहीं, खुद की फ़िक्र कर। अगर गलती से भी तुझे पहचान लिया, सारे आम मेरे सॉफ्टिस शहीद हो जाएँगे। और आखिर किस मनहूस चुड़ैल के चेहरे देखकर उठी थी मैं? आखिर मेरी गलती क्या है जो हर बात में इसी ठरकी बंदे से भिड़ जाती हूँ? इतना ही नहीं, सीधा बाहों में छुप जाती हूँ। और ये हॉर्नी मॉन्स्टर! इनके तो कहने ही क्या? जब देखा, मुझे दबोच लिया! हुह्ह्ह..."
"तुझे अपना दिमाग जल्दी चलना पड़ेगा रूह, इसके पहले ये जानवर फिर जाग जाए। एक पकड़ में ही मेरी जान निकल आती है। उफ़्फ़! वो दर्द मैं कैसे झेलती हूँ, ये मुझे ही पता है। इन्हें क्या परवाह मेरी?"
"माना मेरी वाइल्ड इमेजिनेशन के तुम ठरकी सरताज़ हो, लेकिन मैं सरेआम तो बेहाल नहीं हो सकती ना। माफ़ करना मेरे ख़्वाबों के वाइल्ड शहज़ादे, मगर अभी तुम्हें बेहाल होने नहीं दूँगी। लेकिन जल्द ही मैं तुम्हारे ज़ख्म को कुरेदने पूरी तैयारी के साथ आऊँगी, मगर फ़िलहाल के लिए इस कनीज़ को माफ़ करना!"
उसके छोटे से मगर शातिर दिमाग का तिकड़म कुछ यूँ चला: उसने सिद्धांश का डार्क मूड एक्टिवेट होने के पहले ही अपनी स्पेशल ब्लू डायमंड रिंग को तीन बार राउंड घुमाया और चंद सेकंड में ही उसके ऑर्डर अनुसार वहाँ धाय-धाय करते हुए फिर एक दफ़ा गोलियाँ चलने लगीं।
वही मंदिर का प्रांगण, जिसमें भक्तों की भीड़ अचानक से हुए अटैक से अफ़रा-तफ़री मचा रहे थे। मगर फिर से चल आ रही गोलियों की बौछार सुनते ही चीख़ना-चिल्लाना शुरू कर दिया। मगर ताज़ुब की बात तो यह थी कि कहीं भी गोलियाँ नहीं चलीं, बस आवाज़ आ रही थी जो सिद्धांश को गुमराह करने के लिए काफी थी।
अचानक शुरू हुआ गोलियों का सिलसिला बेइख़्तियारी से खोए हुए सिद्धांश को अलर्ट पोजीशन में खींच लाया। मगर उसने रूह को छोड़ देने की बजाय पहले से भी ज़्यादा कसकर अपनी बाहों में छुपा लिया।
और खूँखार डेविल बन उस डायरेक्शन में गोलियों का निशाना साधने लगा जहाँ रूह के मुताबिक खुद उसी के बॉडीगार्ड्स साउंड बॉक्स पर गोलियों की आवाज़ पूरी भीड़ को सुना रहे थे। यह ऊटपटांग कारनामा हरनाज़ के अलावा किसी और का ना था।
लेकिन शायद रूह की किस्मत ही ख़राब थी, जहाँ वह सिद्धांश से भागने की कोशिश करती, वहाँ फिर से उसकी बाहों में जाकर समाती।
"आह्ह्ह्ह्ह! फिर से नहीं! मेरी किस्मत आखिर किसने इतनी फोड़ रखी है? कसम से वो बंदा मुझे मिल जाए, तबीयत के साथ कूट दूँगी। यहाँ मैं भागने की कोशिश कर रही हूँ, यह मॉन्स्टर फिर से मुझे दबोच रहा है!"
"रूह, भाग ले यहाँ से! इसके पहले यह हवस का पूजारी तुझे देख ले, वरना यह तुझे सीधा अपने साथ उठाकर ले जाएगा और मेरे साथ क्या-क्या नहीं करेगा? बाप रे! सोच भी नहीं सकती!"
रूह मैडम, आपका शक बिलकुल सही है। जिस दिन आप उनके हाथ लगेंगी, वह किसी हाल में आपको नहीं छोड़ने वाला। 😉
ये कहते हुए बेचारी को वह मंज़र याद आ गया जब सिद्धांश ने उसे दिन-दहाड़े लिफ़्ट में धमकी दी थी।
"अब गहरी-गहरी साँस लो और मुझे महसूस करने दो। अगर तुमने ज़्यादा मोमेंट किया, मेरे हाथों की पकड़ इन पर और भी कस जाएगी। इन्हें हद से ज़्यादा बेहाल कर जाऊँगा, इस लिए बेहतर होगा तुम मेरी अरसों की तड़प को ना छेड़ो। शांति से इन्हें छूने दो, फ़ायदे में रहोगी। वरना मेरी डोमिनेस सहने की ताक़त इस नाजुक जिस्म में नहीं।"
जिन्हें क्रिस्टल क्लियर अल्फ़ाज़ों में याद कर उस बेचारी का दिमाग सुन्न पड़ गया। तभी सिद्धांश बरगद के पेड़ के आड़ में छिपे अपने दुश्मनों को ढूँढ़ते हुए रूह को मज़बूत सीने में दबाने लगा। वह बस रूह की हिफ़ाज़त में मसरूफ़ था, मगर सिद्धांश के कसे हुए फौलादी सीने से भिड़ते हुए रूह के बाऊंसी बूब्ज़ लगभग कसके दब चुके थे। वह छोटी सी जान सिद्धांश की स्ट्रांग पर्सनैलिटी से दबी पूरी तरह से थर-थरा चुकी थी।
वह कभी इधर मूव करता तो कभी उधर, जिसकी वजह से वह नाजुक सी कली रोलर कोस्टर की तरह इधर से उधर उछल रही थी। मगर उसके उभार सिद्धांश की सख्त कसन से बेहाल हो चुके थे। उसके धड़कते दिल की प्रेज़ेंस जिन्हें सिद्धांश महसूस करते-करते होश खोने लगा था। आखिर क्या थी यह लड़की जो उसे इतना पागल कर रही थी?
दुश्मनों से रूह को छिपाने की कोशिश करते हुए सिद्धांश चुप-चुप कर रूह को देखने की कोशिश भी कर रहा था। लेकिन गलती से भी एक भी गोली अगर रूह को लग जाती, यह सोचकर उसने अपने ज़ज़्बातों को बड़ी मुश्किल से संभाला। मगर जानबूझकर रूह को और भी कसके अपने सीने में छिपाने लगा।
"आह्ह्ह्ह! नहीं ना! दर्द होता है! उनमें मत करो आप ऐसे!"
कहती हुई मीठी सी उसने आह भरी जो सिसकी से कम नहीं थी, जिन्हें सुनते ही सिद्धांश के माइंड के फ्यूज़ उड़ चुके थे। यह वही आवाज़ थी जो उसने कल रात उस जलमहल के तालाब में सुनी थी।
(वही रूह उसके सीने से लग बुदबुदाते हुए)
"इससे अच्छा तो इनके चौड़े हाथ हैं, कम से कम इतना दर्द तो ना होता। लगता है इनका यह पत्थर शरीर सच में आज मेरी सॉफ्टिस की जान निकालकर रख देगा। कितने मुश्किल से मैंने इनका दर्द कम किया था, मगर देखो फिर से कचुंबर बनाकर रख दिया! हुह्ह्ह्ह... अगर मौका मिला ना तो मिस्टर भूतनाथ, तबीयत के साथ बदला लूँगी मैं आपसे।"
"देख लेना! यहाँ मुझे बिना बात के विक्रम-बेताल की जोड़ी बनाकर टाँगा रखा है। बस एक बार ना हाथ आ जाए, बहुत बुरी हालत करूँगी आपकी!"
"वो तो अच्छा हुआ मैंने फ़िज़ा भाभी का स्ट्रांग इत्र लगाया था, वरना इतने करीब देखकर यह आदमी अब तक मुझे बिना नमक लगाए चबा चुका होता।"
एक बार बच गई है, मगर ज़रूरी तो नहीं यह कुड़ी बार-बार बच जाएगी? क्योंकि उसका बुदबुदाती कुछ-कुछ बातें जो सिद्धांश के कानों तक जा पहुँची थीं, वह हैरत भरी नज़रों से उस छोटी बदमाश को देखकर मन ही मन बोला,
"इसका मतलब यह मेरी किटन... नहीं-नहीं! वो इतनी बदमाश नहीं होगी। मगर इसकी बातें...? इसका मतलब यह सारी लड़कियाँ एक ही हैं। आह्ह्ह्ह्ह! अगर यह सच है तो मैं छोड़ूँगा नहीं इसे।"
वह शक के दायरे में उसे रख शिद्दत से बाहों में जकड़ उसे घूरने लगा, जो अपनी ही आधी-अधूरी बातें सिद्धांश को सुनाकर खुद के लिए गद्दा खोद रही थी।
मगर अचानक से फिर से सिद्धांश की जकड़न महसूस कर सुपर उसकी फौलादी बॉडी से आती स्ट्रांग कोलेजन की फ्रैगरेंस रूह के साँसों में घुल उसे बहकाने लगी। एक तो उसकी कसी हुई सेन्शुअल पकड़, ऊपर से पठानी से झलकता हुआ खुला सीना, जिन्हें देखने भर से ही रूह को ठंडे-ठंडे पसीने आने लगे।
"उफ़्फ़! यह बंदा कितना हॉट है! ऊपर से कोलेजन! उफ़्फ़! कंट्रोल नहीं हो रहा मुझसे।"
रूह मैडम, जितनी आप हुस्न की मल्लिका हैं, तो सिद्धांश भी कहाँ कम है? वह हॉटनेस का खिताब अपने नाम कई दफ़ा कर चुका है। फिर रूह का जी कैसे ना ललचाए?
ना जाने रूह के दिमाग में क्या आया... उसने सिद्धांश के खुले सीने पर अपने होंठों की गहरी छाप जानबूझकर छोड़ दी और धीरे-धीरे शक करते हुए गहरी हिचकी दे गई। मगर उसके नाजुक रोज पेटल्स की तरह नर्म होंठ जैसे ही सिद्धांश के सीने पर महसूस किए, वह सारी दुनिया भुलाकर रूह के दिए एहसासों में खो गया। आज तक इतनी रहनुमा फीलिंग उसने फील नहीं की थी। कसम से...
उसकी साँसें ज़रूरत से ज़्यादा तेज बढ़ने लगीं और उसकी आइरिश ब्राउन आँखें अपने आप बंद हो गईं। साथ ही साथ उसके हाथों की पकड़ भी रूह की कमर पर कसने लगी, मानो वह रूह के दिए इस एहसास को जी भर के जीना चाहता हो।
लेकिन रूह ने अपने होंठों की मोहर शायद जानबूझकर लगाई थी, मगर सिद्धांश को छूते ही रूह का गला अब ख़ुश्क होता हुआ महसूस होने लगा। शायद अब वह खुद भी हदें पार करने को तैयार थी।
लेकिन तभी उसके सॉफ्टिस में हो रहा बेइंतेहा मीठा-मीठा दर्द रूह को सिद्धांश के ख़िलाफ़ भड़काने लगा, जिसके चलते उसने कसकर चूमने की बजाय उसके सीने पर काट लिया। उसकी बाइटिंग फ़ोर्स की ताक़त कुछ इतनी ज़्यादा थी कि सिद्धांश की पकड़ ढीली पड़ गई और वह झल्लाते हुए चीख़ पड़ा,
"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! हाउ डेयर यू वाइल्ड कैट! रुको! भाग कहाँ रही हो? डोंट डेयर टू रन अवे फ़्रॉम मी! कम टू मी, बेबी, कम हियर..."
उसके हाथों से पकड़ छूटते ही मौका हाथ लगते ही रूह ने अपने दुपट्टे को संभाल वहाँ से तेज़ भागना शुरू किया। मगर जरा दूरी पर ख़ास डिस्टेंस मेंटेन कर वह दुपट्टे की आड़ में ही सिद्धांश को देख चिल्लाकर बोली,
"बाग़ड़ बिल्ले! मोटे-मोटे आदमी! एक तो मेरी हालत ख़राब करके रख दी, और चाहते हो मैं आपके पास आऊँ? हट! कभी नहीं! मेरा पूरा बदन तोड़-मरोड़कर रख दिया है, और मैं काटूँ नहीं तो क्या आरती उतारूँ? आज तो सिर्फ़ काटा है, याद रखना मिस्टर जंगली! जल्दी आपको पूरे तबीयत के साथ काट खाऊँगी!"
"और जितने बार मुझे तंग किया है ना, सबका हिसाब भी बराबर लूँगी!"
ये कह वह एक आँख मार मुँह्ह्ह्ह्ह्ह कहती हुई भीड़ में कहीं ओझल हो गई। यह लड़की ज़्यादा दिन बचेगी नहीं अब।
तो वहीं रूह के होंठों की छुअन भर से सिद्धांश के अंदर का सोया शैतान जा चुका था। उसका बस चलता वह अभी इसी वक़्त जी भरकर उसके रूह से लेकर तन-बदन के हर हिस्से को बेपनाह प्यार करे, मगर अचानक से रूह उसे काटकर फिर बकायदा धमकाकर भागी थी। यह देखकर वह गुस्से में गुर्राते हुए दहाड़कर बोला,
"आह्ह्ह्ह्ह्ह! यह लड़की! इसकी इतनी हिम्मत! यह मेरी पकड़ से फिर भाग जाए! तुम्हें तो छोड़ूँगा नहीं किटन! मैं इतना तो जान चुका हूँ तुम कोई और नहीं, मेरी किटन ही थी। हर बार कोइन्साइडेंस नहीं हो सकते। तुम्हारे एहसास मेरे रूह में समाए हैं, भले ही तुमने अपना छोटा सा दिमाग लगाकर अपनी खुशबू छुपाने के लिए सो-कॉल्ड इत्र लगाया हो।"
"मगर तुम्हें पहचानने के लिए तुम्हारे बदन की खुशबू नहीं, बस धड़कनों का शोर ही काफी है। बहुत खेल लिया लुका-छुपी का गेम, अब होगा आमना-सामना मेरी किटन! इस बार कायनात नहीं, बल्कि मेरे बिछाए जाल में तुम फँसोगी।"
"और जितना तुमने मुझे तड़पाया है, उस हर तड़प की इन्हेहा होगी। गेम इज़ ऑन बेबी! भाग लो जितना भागना है, तुम्हारी हर मंज़िल मुझ तक ही तुम्हें छोड़ लाएंगी।"
"इंतज़ार रहेगा तुम्हारे एक्शन का, मेरी किटन! कसम है, तुम्हारी एक बार हाथ लग जाओगी ना, उसके बाद मेरी पकड़ से बाहर जाने की इज़ाजत नहीं होगी!" 😈
ये कहते हुए सिद्धांश के चेहरे पर मिस्टीरियस स्माइल थी, मानो वह रूह को अपने करीब लाने का खतरनाक प्लान कर चुका हो। ना जाने क्या होगा रूह का, मगर जितनी दफ़ा वह चकमा दे-देकर भागी है, सबका हिसाब देना होगा उसे, इतना तो पक्का।
जहाँ रूह के मुक़द्दर में सिद्धांश का नाम लिख चुका था, तो वहीं रिधान के किस्मत में ग्रहण लगने, जलमहल में किसी का आगमन हो चुका था।
जलमहल...
शाम का वक़्त...
डूबते हुए सूरज की रोशनी को देख-देखकर एक लड़की, जिसके आँसुओं से बहते आँसू सूखकर उसके नर्म-नर्म गालों पर लकीर बना चुके थे, उसके सीने में दुःखता हुआ दिल रिधान का चेहरा याद कर दर्द में पसीज गया।
"मोहब्बत की ज़ंज़ीर से डर लगता था,
कुछ अपनी तफ़लीक़ से डर लगता था।
जो मुझे आपसे जुदा कर दे,
उन हाथों की लकीरों से डर लगता था।"
"गर मालूम होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत;
तो लेते ना कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत।"
"हम भूल गए थे अपनी औक़ात रिधान जी, मगर सही वक़्त पर अम्मी ने हमें अपनी जगह दिखा दी। लेकिन आप जानते हैं, आपसे ज़्यादा हम आपको टूटकर चाहते हैं।"
"आज से नहीं, बचपन से। मगर सच तो यही है, हम आपके पैरों की धूल के बराबर नहीं। ना जाने कैसे अपनी औक़ात भूलकर आपसे दिल लगाने की गुस्ताख़ी कर बैठे?"
अपनी बेबसी पर रोते हुए फ़िज़ा के अश्क बस यूँ बहते रहे। उसके दर्द-ए-दिल का हाल हरदम जानने वाला रिधान कुछ दिनों के लिए इटली गया था। अगर आज वह फ़िज़ा के सुरमई आँखों के आँसू देखता, तो यकीनन उस वज़ह को मौत के घाट उतार देता।
लेकिन अफ़सोस, उसकी गैरमौजूदगी में फ़िज़ा के मुक़द्दर का बड़ा फैसला करने वाली थी। ना जाने यह फैसला उसके ज़िन्दगी में क्या मोड़ लाने वाला था। तभी एक तीखी आवाज़ उसके कानों में पड़ी, जिसे सुनकर फ़िज़ा फटाफट से आँसू पोछ झूठी मुस्कान सजाकर बोली,
"बोले अम्मी, आप क्या कहना चाह रही थीं?"
उसकी बात ख़त्म होती ही तभी जोहरा बेगम ने शांत लहजे में कहा,
"आपकी अम्मी हैं हम फ़िज़ा। आपका बुरा नहीं चाहेंगे। अब बातें कहने को कुछ रहा नहीं, आप तो पहले ही हाथ से निकल चुकी हैं। बेहतर होगा आपने जो अपने महरूम अब्बा को वादा किया था, वह निभाएँ। नीचे शोएब आ चुके हैं, कल आपका निकाह होना है, तो जरा मिल ले उनसे!"
उनके अल्फ़ाज़ गर्म तेल की तरह फ़िज़ा के कानों में जलने लगे। वह यह सदमा बर्दाश्त ना कर सकी और बेहोश होकर फ़र्श पर नीचे गिर गई। 🔥
जल महल,
"निधि मेरी बच्ची, जरा आप यहां आइए। देखो, आपकी आंटी ने कानों की बालियाँ सिर्फ़ आपके लिए लायी हैं। पहनकर तो बताना जरा। मैं भी देखूँ मेरी छोटी सी लाडो कैसे दिखती है।"
चाशनी से घुली आवाज में गीत (रिधान की फूफी) निधि को पुकारती हुई उसे करीब बुलाने लगी, ताकि वह अपने बेटे की पसंद निधि के लिए लाया खास तोहफ़ा दे सके।
मगर हमारी निधि को ना अरहम में इंटरेस्ट था, ना ही उसकी ज़बरदस्ती की बीवी बनने में। आखिर उम्र क्या थी उस नादान की? मगर उस नाज़ुक सी चुहिया को छोटेपन से ही अपना जुनून बना चुका अरहम अपनी मॉम की बात सुन बेडरूम के बाहर भागने की फिराक में निधि का हाथ झट से पकड़ अपनी मम्मा के सामने खड़ा कर सख्त आवाज में बोला,
"कहाँ भाग रही हो शोना? तुम्हें सुनाई नहीं देता मॉम तुम्हें बुला रही है? ना, ना। यहाँ से भागने का ख्याल तो तुम भूल ही जाओ। और चुपचाप मेरे साथ चलो। ये बार-बार भागने की कोशिश और घूरती हुई नज़रें मुझ पर ना डालो तो बेहतर है। बहुत कर रखी है तुमने बदमाशी। अगर एक-एक का हिसाब करने आया ना, तो ठीक से खड़ी रहने की हिम्मत तक खो दोगी तुम। अब तुम चल रही हो या मैं तुम्हें अपने तरीके से उठाकर ले जाऊँ?"
यह हिदायत नहीं, अरहम की धमकी थी जो बिना किसी रिश्ते के मगर पूरे हक़-हुकूक के साथ निधि को घूरते हुए दे रहा था। लेकिन निधि उसे आखिर क्यों ना घूरे?
अरहम की मॉम के आने से पहले तक वह दिन भर जल महल में फूल तोड़ती कभी इधर तो कभी उधर फुदकती रहती थी। मगर जब से, जी हाँ, जब से अरहम की मॉम आयी थी, बेचारी रूह की फुल टाइम असिस्टेंट रह चुकी निधि अब अपनी होने वाली ज़बरदस्ती की सासू माँ को असिस्ट कर रही थी। उसका कैसे दम दबाकर भागना जायज़ कैसे ना था?
बल्कि हमारी नादान सी निधि का ख़तरनाक दिमाग तो चाहता था कि वह अपनी होने वाली ज़बरदस्ती की सासू माँ का टैटू दबा दे। मगर अफ़सोस, अरहम के रहते वह यह गज़ब का कारनामा कभी नहीं कर सकती थी। ऐसा निधि मन ही मन गीत और उनकी महान संतान अरहम को घूरते हुए सोच रही थी।
कि वह कैसे-कैसे कोई षड्यंत्र रचे और इन दोनों को सीधा ऊपर टपका दे। भई कसम से यह छोरी सच में ड्रामा क्वीन ही नहीं, सुतली बम भी थी जिसके छोटे से दिमाग में उन दोनों को ऊपर टपकने का प्लान बन रहा था।
लेकिन मज़ाल है उस मासूम सी गुड़िया के चेहरे पर उसने इतने ख़तरनाक भाव लाए। वह तो बड़ी मासूमियत से मोटी-मोटी आँखें फड़फड़ाते हुए इठला कर बोली,
"मेरी प्यारी सी चुड़ैल फूफी! उफ़्फ़्स, माई बैड! मेरा मतलब दुनियाँ जहाँ की सबसे ख़ूबसूरत जवान तहरीन मेरी फूफी, आपने मेरे लिए इतना प्यारा तोहफ़ा लाया है, तो ये नाचीज़ की मज़ाल कहाँ जो आपके दिए तोहफ़े को ना कबूल करे? ये तोहफ़ा बिल्कुल मुझे कबूल है। तो क्यों ना आप ही अपने मोटे-मोटे हाथों से... उफ़्फ़्स, अगेन माई बैड! ये मेरी जुबान भी ना कितनी फिसलती है! मेरा मतलब ये था, क्यों ना आप अपने नाज़ुक से जरा तकलीफ़ उठाकर इस नाचीज़ को ये बालियाँ पहना दें?"
"माना आप कामचोर हैं, लेकिन अगर मुझे अपनी बालियाँ पहनाई ना, सच कहूँ तो आपके मोटे बदन से एक-दो किलो तो घट हो जाएगा। लो, बताओ मैं भी ना कितनी महान हूँ! बिना मुफ़्त की एडवाइस दिए मेरा दिन नहीं गुज़रता। आप मुझसे थैंक्स फुर्सत में कह देना जरा, ये झुमके तो पहना दें।"
गीत का हैरानी से खुला मुँह बंद करते हुए जरा फ़िक्र करने की एक्टिंग करते हुए बोली,
"अरे-अरे, मेरी प्यारी फूफी! आँखें और मुँह एक साथ ना फाड़ो! पता लगा मुँह में मक्खी और आँख में कीड़ा चला गया तो सारे घरवाले मुझे ही कुटने को भागेंगे। और..."
"आप तो जानती हैं ना, मैं अपने अरहम भाई की सबसे लाडली मासूम बहन हूँ। अगर किसी ने मुझे डाँट लिया तो बिना मतलब में दंगे हो जाएँगे। अरे यार फूफी! इतना स्टैचू-स्टैचू खेलना था, तो पहले ही बता देती, मैं अरहम भाई के साथ मिलकर खेलती। ना मेरे प्यारे अरहम भाई?"
यह बंदी आज तो हार्ट अटैक देकर मानेगी। अरहम की मॉम का तो पता नहीं, लेकिन अरहम का ज़रूर ऊपर जाने का बंदोबस्त हो चुका था। यह अरहम की फटी आँखों से बखूबी पता चल रहा था। और गीत (अरहम की मॉम), उनके तो कहने की क्या? वह मुँह पर इतनी सारी बेइज़्ज़ती एक साथ सुनकर सदमे में जा चुकी थी।
"क्या-क्या? क्या-क्या? तुम... तुम... क्या ये क्या कह रही है? तुम मेरी तारीफ़ कर रही थी? या मेरे मुँह पर अच्छी खासी बेइज़्ज़ती कर रही थी? देखो, तुम मेरे बेटे की चाहत हो और बचपन से मैंने तुम्हें बड़ा प्यार लाड़-प्यार किया है। इसका ये मतलब नहीं के मुझे तुम्हारी शैतानियाँ समझ नहीं आती। तुम शरारती लड़की! अरे-अरे! किधर भाग रही हो? अरहम, पकड़ो इसे! देखो, तुम्हारी मम्मी को क्या-क्या कह रही है ये!"
"अरे मेरे लेट-लतीफ़ बच्चे! उसने तुम्हारी मॉम को चुड़ैल कहा! भाग रही है वो, तुम्हारे सामने! देखो-देखो! भाग रही है! पकड़ो इसे! आज तो बिल्कुल मत छोड़ना उसे तुम!"
रिधान की फूफी जो सिंघानिया खानदान की सबसे छोटी बेटी और लाडली होने की वजह से बड़ी ही नख़रे वाली और अड़ियल थी, जो अपने इकलौते बेटे की पसंद की ख़बर भी खूब लेती और सासू माँ बनने का फ़र्ज़ भी समय-समय पर निभाती थी।
माना वह खुद अपने वक़्त में एक नंबर की बदमाश कामचोर रह चुकी थी, लेकिन कोई सीधा मुँह पर कह दे, ऐसा थोड़ा ना होता है?
मगर निधि वह कहाँ कम थी? वह अपनी ज़बरदस्ती की सासू माँ से सौ क़दम आगे निकली। ऊपर से उसने अपनी चुड़ैल सासू माँ के हाथ से कानों की बालियाँ भी छीन लीं और वहाँ से किसी पतंगे की तरह दोनों को जीभ दिखाकर झट से ग़ायब हो गयी। बताओ, यह लड़की पिटेगी किसी दिन तो बुरा मत मानना! 🤪
यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि ना गीत को समझ आया ना अरहम को। लेकिन अपनी मॉम की बेइज़्ज़ती के बाद खुद के लिए लाडले भैया सुनना यह अरहम के मुँह पर किसी थप्पड़ से कम नहीं था। वह भी गुस्से में गरम लावा की तरह बौखलाता हुआ खुला सांड बनकर तेज़ी से निधि के पीछे-पीछे बढ़ते हुए बोला,
"यह लड़की इसकी तो... अरहम, अगर तूने इसे अभी कंट्रोल नहीं किया तो पक्का तेरे हाथ से निकल जाएगी। लगता है अब अपना असली चेहरा दिखाना ही होगा। लेकिन यह शायद सह ना पाए। मगर उकसाया नहीं तो इसने है।"
वह फ़्रस्ट्रेटेड होने की बजाय कुछ सोचकर मिस्टीरियस स्माइल कर निधि को पकड़ने भाग गया।
ग्राउंड फ़्लोर पर बने किचन में,
जहाँ सीरत और पियाली कुछ मुलाज़िमों को रिधान के खातिर ऑर्गेनाइज़ होने वाली सक्सेस पार्टी के लिए कुछ ख़ास हिदायत दे रही थीं। उनके एक हाथ में अपनी बेटी का हाथ और दूसरे में कपड़ों से भरी हुई ट्रॉली थी। वह कुछ सोचकर किचन रूम में दाखिल हुई और हैरत भरी नज़रों से देख रही सीरत से थोड़ा हिचकिचाकर बोली,
"बाजी (बहन), परमिशन चाहिये थी आपसे। फ़िज़ा का उसकी मुम्मानी के घर जाने का बड़ा मन था। इस खातिर खुद शोएब लेने आया है। मज़रत चाहूँगी, वक़्त नहीं मिला इसलिये आपको बता ना सकी। यूँ अचानक से प्लान हुआ ना कि हमें बताने की मोहलत मिल सकी। जैसे ही फ़िज़ा का मन भर जाएगा हम लोग जल्दी आ जाएँगे।"
इतनी आसान बात कहने में भी ज़ोहरा ना जाने क्यों नज़रें चुरा रही थी। वह सीरत (रूह की मॉम) की तीख़्न नज़रें खुद पर महसूस कर ज़ोहरा के हाथ फ़िज़ा की कलाई पर कस गए जो सीरत की नज़रों से ना बच सका।
वही फ़िज़ा जिसका हसीन चेहरा हरदम गुलाब की तरह खिला-खिला होता था, मगर आज वह बरसों की बीमार लग रही थी। ना उसके चेहरे पर पहले वाली रंगत थी ना ही उसकी सुरमई आँखों में वह चमक थी। मानो जैसे वह ज़िन्दा लाश बनकर खड़ी हो। लेकिन अपने महरूम अब्बा की कसम याद कर फ़िज़ा नज़रें झुकाकर रुँधे गले से बोली,
"ताया अम्मी (सीरत को बड़ी माँ कहती थी), हमें सच में मुम्मानी के घर जाने का बहुत मन था। इसलिये शोएब जी हमें लेने आये हैं। मगर आप फ़िक्र ना करें, हम अपना ख़्याल बखूबी रखेंगे। बस आप हमें जाने की इजाज़त दीजिये।"
बहते आँसुओं को छुपाने झट से अपना रुख़ मोड़कर दूसरी ओर देखने लगी, ताकि वह सीरत जी की नज़रों में ना आ सके।
तो वही सीरत जिसने ज़ोहरा बेगम और लिविंग एरिया में किसी राजा की तरह बैठे शोएब के हाव-भाव को सख़्ती से बोली,
"ज़ोहरा, कितने सालों से जानती हैं आप हमें? बोलिए? आपके लिए महज़ बड़ी बहन कहना एक लफ़्ज़ होगा, लेकिन हमें बहन शब्द बड़े अज़ीज़ हैं क्योंकि ये नाता आज का नहीं, पूरे बीस साल पुराना है। जब हमारी फ़िज़ा आपकी कोख में थी, तब से पुराना ये नाता है। हमारी फ़िज़ा है!"
"ज़ोहरा, आपको लगता नहीं हमें सारा माज़रा समझ आयेगा? क्या छुपा रही थी आप? जैसे कि हमने आपको पहले ही कहा था, फ़िज़ा आपकी औलाद ज़रूर होगी, लेकिन ये हमारी सगी बेटी से कम नहीं।"
"उनकी ज़िन्दगी में होने वाले हर फ़ैसलों पर हमारी सहमति लेना अपने ज़रूरी क्यों नहीं समझा ज़ोहरा? बोलो?"
"क्या आप हमें इतना काबिल नहीं समझती जो छुप-छुप कर हमारी फ़िज़ा को किसी और के नाम कर रही है? इतना बड़ा फ़ैसला हमारी गैर-मौजूदगी में? आखिर कैसे?"
"ओह, अच्छा-अच्छा! आपको लगता है हमने आप पर एहसान किया है ना? अब समझ आया सारा माज़रा। तो हमारी ज़ोहरा बेगम को लगता है कि हम आप दोनों पर एहसान कर रहे हैं ना? ठीक है। अगर तुमने हमें पराया किया है तो फिर यही सही। हम आप दोनों की ज़िन्दगी में बिल्कुल दख़ल नहीं देंगे। आप दोनों यहाँ से जा सकती हैं।"
सीरत ने नज़रें फेर कर वहाँ से जाने लगी, जो फ़िज़ा से उनकी बेरुख़ी सहना बर्दाश्त के बाहर होना लगा। वह रोते-रोते अपनी ताया अम्मी का हाथ पकड़कर बोली,
"माफ़ दीजिये ताया अम्मी! मगर आपको हमारी कसम है, आप ये निकाह नहीं रुकवाएँगी। ये निकाह हमारे अब्बा की आख़िरी ख़्वाहिश थी, जिसे पूरा करने को हम कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।"
छन से जो टूटे कोई सपना,
जग सूना-सूना लगे, जग सूना-सूना लगे, कोई रहे ना जब अपना,
जग सूना-सूना लगे, जग सूना-सूना है।
तो ये क्यों होता है? जब ये दिल रोता है,
रोएँ सिसक-सिसक के हवाएँ... जग सूना लगे।
ये महज़ गाना नहीं था, फ़िज़ा के दिल की ज़हनी हालत थे।
फ़िज़ा की गुज़ारिश सुन सीरत बिना कुछ बोले मुँह फेर कर वहाँ से चली गयी। मगर फ़िज़ा वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी सिवा अपने मरहूम अब्बा के वादों को निभाने को। वह फूट-फूट कर रोती हुई पार्किंग की ओर चली गयी। मगर ज़ोहरा वहाँ से जा पाती कि तभी पियाली (रिधान की मासी) बीच में पैर अटकाकर तिरछी स्माइल करके बोली,
"उफ़्फ़्स, ज़ोहरा दीदी! वो क्या ना, हर बात में टाँग अड़ाने की मेरी आदत बड़ी पुरानी है। इसी लिये तो आपकी और मेरी कभी बनी ही नहीं। क्योंकि आप मेरे बेटे के इश्क़ में इतने अड़ंगे जो डालती हैं। लेकिन मेरा बच्चा वो कोई आम इंसान..."
"...वो आइडियल बाप की ज़िद्दी औलाद है, जो अपने इश्क़ को पाने सारी हदें तक पार कर देते हैं। अरे मेरी बहना! अब पंगा लिया ही है तो डरना क्यों? आप तो बस निकाह की तैयारी में जुट जाओ। मेरा बेटा फ़िज़ा को अपनी बीवी बनाने परफ़ेक्ट टाइम पर पहुँच जाएगा। और हाँ, (शोएब) उस लंगूर को कहें अगर ज़िन्दा रहना है तो अभी से भागना शुरू कर दें। मरना तो उसे है ही, मगर सही वक़्त पर भागेगा तभी ना कुछ दिन और ज़िन्दा रहेगा।"
"अब मुँह क्या फाड़ रही हो? जाओ-जाओ! उस तोते-पूरी बंदर की भागने में मदद करो। क्या है ना, ये बकरा तो कट के रहेगा। क्या पता आपका भी नंबर आ जाए।"
रिधान की मासी ऐसे ही शैतान की नानी नहीं कहलाती थी। लेकिन उनकी कही बातों में रत्ती भर भी डाउट नहीं था क्योंकि फ़िज़ा को कोई आँख उठाकर भी देख ले ये मंज़ूर नहीं था। फिर यहाँ तो बात उसके निकाह की थी। गाइज़, लाशें बिछने वाली हैं, इसकी गारंटी!
रात का वक़्त,
मानसरोवर की सर-ज़मीन पर कई एकड़ में फैला हुआ फ़ार्म हाउस जिसकी तीसरी मंज़िल पर बना सिद्धांश का बेडरूम, जो बड़े से फ़्लोर पर बना लग्ज़रियस और बेहद एक्सक्लूसिव होने के साथ-साथ स्विमिंग पूल, जकूज़ी से लेकर हर तरह की लैविश फ़ेसिलिटी सिद्धांश के लिए मौजूद थी।
उस बड़े से कमरे का एक कॉर्नर जिनकी दीवारों पर सिद्धांश की बनाई ख़ास कराकरी मौजूद थी। वही एक शख़्स ग्रे कलर की ट्रैक पैंट के सिवा कुछ ना था। उसके सख़्त हाथों की हर उंगलियों में कई सारे रंग लगे हुए थे और वह बड़ी शिद्दत से सामने अधूरी बनी पोट्रेट देख रहा था।
जो किसी हसीन बला के हुस्न को मध्य नज़र रखकर बनाई थी।
जिसे देखने वाला मंत्रमुग्ध ज़रूर रह जाता था। मगर उस तस्वीर पर पड़ने वाली हर नज़र सिद्धांश अपने हाथों से मसल देता। ऐसा ऑब्सेशन था उसका। 🔥
क्योंकि वह कोई आम तस्वीर नहीं, रूह के तराशे हुए जिस्म की हूबहू परछाई थी जिसमें हल्के पीले रंग की साड़ी, नाज़ुक कलाइयों में ढेर सारी खनकती हुई चूड़ियाँ और पैरों में छनकती हुई पायल मौजूद थी। मगर अब बारी उसके चेहरे की थी।
जहाँ सिद्धांश आँखें मूँदकर रूह की आँखें बना रहा था जिनका रंग यकीनन एमरल्ड ग्रीन था। ये वही आँखें थीं जो मंदिर के प्रांगण में उसने देखी थीं, जिन्हें आँखें बंद करके भी साक्षात् असलियत में उसने तस्वीर पर उतारी।
मगर वह तस्वीर बिना चेहरे के अब भी अधूरी थी। रूह की आँखों के कुछ ना था। लेकिन उस अधूरी तस्वीर को पूरा करने की होड़ अब सिद्धांश अपने तरीके से पूरा करने वाला था। वह कुछ सोचकर अपने असिस्टेंट को कॉल करके बोला,
"जेट रेडी करो। आज रात ही मिलान के लिए निकलना है। ऐंड वन मोर थिंग, सेवेन्स्का होटल पूरा बुक कर लो सिवा एक रूम के। यकीन है तुम ये काम बिना रुकावट के करोगे, वरना...!"
ना जाने क्या था उसके माइंड में, मगर रूह की शामत लाने की तैयारी थी, इतना तो क्लियर हो चुका था। वह जुनूनियत में पागल हो दहशत भरी डरावनी हँसी हँसते हुए बोला,
"हा-हा-हा! कितना भागोगी मेरी जान? कितना? बस कुछ घंटों की दूरी और फिर तुम हमेशा के लिए मेरी मुट्ठी में।"
(गहरी साँस ले कर) "इस अधूरी तस्वीर को पूरा करने का वक़्त आ गया है। किटन, तैयार कर लो खुद को मेरी होने के लिए।"
वह अधूरी तस्वीर को देखकर किसी ऑब्सीस्ड क्रिमिनल की तरह बिहेव कर रहा था। अगर रूह ये नज़ारा गलती से भी देख लेती, कसम से बंदी बेहोश हो जाती।
वही जल महल के टेरेस पर,
रात की सुहानी घड़ी में आती ठंडी-ठंडी फ़िज़ाओं में मोहब्बत की खुशबू घुल चुकी थी और एक लड़की टेरेस पर गोल-गोल घूमती हुई आँखें मूँदकर सिद्धांश का नक़ाबपोश चेहरा, उसकी डेविलिश आँखों के साथ उसकी डार्कनेस से भरी हरकतों को याद करते-करते ही वह मदहोश हुए जा रही थी।
"उफ़्फ़! क्या फ़ीलिंग है ये! आज पता लग रहा है ये मीठा-मीठा एहसास कैसा होता है। उनके करीब जाकर मैं खुद को कैसे कंट्रोल नहीं कर पाती? मानो मेरा खुद पर कोई ज़ोर ही ना हो। ऊपर से उनकी हॉर्नी हरकतें! उफ़्फ़! मैं मर ही ना जाऊँ कहीं।"
"लेकिन ना जाने क्यों उस ठरकी मॉन्स्टर के बाहों में मैं सबसे ज़्यादा महफ़ूज़ महसूस करती हूँ, जबकि वह खुद मुझे खाने को दौड़ते हैं। जी तो चाहता है मैं भी शिद्दत से उन्हें खा जाऊँ।"
"आह्ह! कैसी ये कसक है उनके करीब जाने को दिल करता है, मगर डर भी लगता है कहीं वो मुझे दबोच ना ले।"
ये कहते हुए हमारी रूह का मन मचल रहा था। तभी उसके मस्कुलर बाइसेप्स याद आने लगे, जिन्हें रूह ने बड़ी करीबी से फ़ील किया था।
"ओएमजी! उनकी हॉटनेस? आह्ह्ह्ह्ह! मैंने बदला लेने का तो ठान लिया है, मगर उनकी हॉटनेस कैसे संभाल पाऊँगी? मुझसे रहा नहीं जाएगा यार! उन्हें देखते ही मेरे अंदर का वाइल्ड एनिमल बाहर निकल आता है। वो तो मैं मंदिर में खड़ी थी, वर्ना उन्हें बिल्कुल नहीं छोड़ती।"
She is irresistible that time, 🔥 baby अभी तो आप नहीं, सिद्धांश, आपको तड़पाएँगे। उफ़्फ़! क्या होगा आपका मेरी छोटी सी जान।
सिद्धांश की मदहोश कर देने वाली रूमानी बातें रूह का खुद पर से कंट्रोल खोने पर मजबूर कर रही थीं। मगर तभी उसे सिद्धांश के हसीन जुल्म ढाए उसके सॉफ्टिस याद आये जिन्हें छूकर अब तक महसूस होता दर्द फ़ील करते ही रूह मुँह बनाकर बोली,
"रूह, तू इतनी जल्दी किसी के कंट्रोल में थोड़ी आ सकती है? भूल मत, तू रूह सिंघानिया है। इतनी आसानी से किसी के हाथ में नहीं फँसेगी। और उनके तो बिल्कुल भी नहीं! पहले मेरे साथ की हरकतों का हिसाब लेना है, फिर सज़ा भी। बिचारी मेरी सॉफ्टिस, तुम दोनों फ़िक्र ना करो, उन्हें तो छोड़ना नहीं है मैंने!"
वह झल्ली सी लड़की मोहब्बत के सागर में डुबकी खाती हुई अजीब सी उधेड़-बुन में गुँथी हुई मोरनी की तरह उस टेरेस पर ही नाचने लगी कि तभी उसे रूमानी दुनियाँ से सीधा धरती पर खींचने के लिए उसकी खड़ूस मम्मा यानी कि सीरत ने रूह के कानों को मरोड़ते हुए कहा,
"ओह मेरी प्यारी जलपरी! बिना पानी के ऐसे फड़फड़ाओगी तो लोग तुम्हें पक्का पागल समझ जाएँगे। अपने डैडी का नहीं, कम से कम मेरी तो इज़्ज़त लो। क्योंकि अब तुम छोटी बच्ची नहीं, बिज़नेस वूमेन बनने जा रही हो। और कल के कल आपको मिलान के लिए निकलना है क्योंकि आपके भाई जिस डील को पूरा करने वाले थे, उनके बदले आपको जाना होगा!"
"व्हाट? मिलान? नो वे, मॉम! आई एम नॉट गोइंग एनीवेयर।"
रूह ख़ुन्नस से अपनी मम्मा को घूरकर पैर पटकती वहाँ से जाती कि तभी उसे सीरत ने कहा,
"आपके भाई की ज़िन्दगी की सबसे बड़ी डील होने वाली है। क्या मेरी बेटी अपने भाई के लिए इतना भी नहीं करेगी?"
(रूह को पिघलते देख) "जाओ, जाकर फ़टाफ़ट तैयारी करो, वरना आपको नींद में ही मिलान रवाना कर दूँगी। समझ आयी बात?"
सीरत उसका हाथ पकड़ते हुए बिना उसकी ना-नुक़ूर को सुने उसे कमरे में ले गयी। लेकिन रूह जो बेपरवाही से मगर हैरत भरी नज़रों से सीरत को देख रही थी, वह जरा कन्फ़्यूज़ होकर बोली,
"ऐसी कौन सी डील है भाई की? जरा बताने की तकलीफ़ करेंगी मम्मा। वो क्या है ना, आपका कोई भरोसा नहीं। डील के बहाने मुझे यहाँ से भगा दें।"
वह मुँह बनाते हुए अपनी मम्मा को घूर रही थी कि तभी सीरत ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर रूह आँखें फाड़कर अपनी मम्मा को देखने लगी। उसकी हैरानी समझकर सीरत उसके माथे को चूमते हुए बोली,
"यही सच्चाई है मेरी लाडली। अब ज़्यादा मत सोचो। तुम्हारे भाई कुछ ग़लत नहीं करेंगे। नाउ गो फ़ॉर स्लीप। कल आपको निकलना है और क्या पता आपकी ज़िन्दगी कल से ही बदल जाए।"
ये महज़ अनजाने में कहे अल्फ़ाज़ ज़रूर थे, मगर यकीनन रूह की ज़िन्दगी अब हमेशा-हमेशा के लिए बदलने वाली थी जब वह मिलान (इटली) में बुने जाल में फँसने वाली थी।
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गाइज़, आपको क्या लगता है मिलान में क्या होगा? क्या होगी गुटर-गू या मचेगी हॉटनेस की ख़लबली? क्योंकि जब शिकार घने जंगल में अकेला हो तो उसका शिकार करने का मज़ा कुछ और ही होता है।
गुजारिश है मेरी एक एक अल्फाज बड़े ध्यान से पढ़े 😌 Milaan ,italy Milaan जो पूरे जहां में फैशन आइकन और डिजाइंस के लिए मशहूर था , वो धरती की बेइंतहा खूबसूरत जगह Mohobbat की दुनिया भी कहलाती थी , जहां आज आग और शोले का धमाकेदार मिलन होने वाला था , फिर ये जगह आम कैसे हो सकती थी ? Its Really Marvelous But Heavenly Place on Earth for sure 🌍 , अर्ली मॉर्निंग से महज 8 घंटे सफर तय करके बिजनेस अटायर में मौजूद एक बेपनाह हसीन लड़की अपने प्राइवेट जेट से निकल स्पोर्ट्स Caar चलती हुई अपनी मंजिल पर जाने लगी , उसके मासूम चेहरे पर तो यूं हर पल शरारत छाई होती थी , मगर जब Bussiness deal को पूरा करने की हो तो उसके मिजाज काफी सख्त हो जाते थे, metavers की होने वाली डीलिंग के बारे के तल्लीनता से सोचती हुई उस हसीना का सुर्ख चेहरा काफी सीरियसनेस से भरा हुआ था , अगर गलती से भी उसकी Sisso यानी कि हमारी Naaj और निधि ये सीरियसनेस देख लेती , तो पक्का ठहाका मार मार के हंसती , मगर खैर वो दोनों कुड़िया Milaan में नहीं इंडिया में रह कर किसी ना किसी के नाक में Dum कर रही थी, तो उनकी बात करके वक्त क्यों जाया करना ? यही तो खासियत थी उस लड़की की जो कोई और नहीं हमारी Ruh सिंघानिया थी , वो शरारत करने में भी अवल थी और बिजनेस डीलिंग को बड़ी बारीकी से हथियाने में उसका कोई हाथ नहीं पड़ सकता था , वो Emraeld ग्रीन आंखों पर सनग्लासेस चढ़ाते , असिस्टेंट के थ्रू बुक किया sevenska hotel ki पार्किंग में आ पहुंची , Sevenska Hotel , Milaan का मशहूर hotel, जिसकी बुकिंग मिलना इतना आसान ना था, मगर रूह Royal खानदान से बिलॉन्ग करती थी, उसके लिए यहां बुकिंग Easily मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं थी, मगर आज के पहले उस पॉपुलर होटल में जहां हरतरफ लोगों की भीड़ लगी रहती थी , लेकिन आज उस Altra lavish होटल में मजह चुनिंदा लोग ही मौजूद थे , जिस पर फिलहाल रूह की नजर नहीं पड़ी , वो अपने बुकिंग किए होटल Room रूम में चली गई, जो उस होटल के सबसे laxury स्वीट था, लेकिन असली ताज्जुब की बात तो तब हुई जब हमारी रूह के कदम उस Bedroom में पड़े, उसके ऊपर Red Roses की बौछार होने लगी , जिससे हमारी रूह काफी हैरान रह गई, मगर तभी उसे दूसरा झटका लगा, वो पूरा बेडरूम स्पेशल wine berry कलर की थीम जिसे किसी प्रिंसेस के लिए सजाया गया हो , और ये स्पेशल थीम Ruh की पसंद से मैच करता था ,ये जान रूह की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा , और वो मक्खन जैसे नर्म बिस्तर पर कूदते हुए बोली , "ओ माय गॉड थैंक यू थैंक यू सो मच bro , आफ्टर 8 hours journey , I was so tired , thank you so much bro मुझे पता था आपको मेरी चॉइस की इतनी परवाह है , चलो जितनी मेरी नींद हराम हुई थी उसका बदला लेना कैंसिल, " बल्कि अब तो मै आपके लिए ढेर सारी मिन्नते करूंगी , आप तो बस वहां अपना टारगेट पूरा करो , मै तो सीधा बधाइयां देने हाजिर हो जाऊंगी मगर बिचारी मेरी भाभी जान आपका तो बड़ा बुरा हाल होगा, खैर भाई आपका बुरा हाल करेंगे तभी तो मै Buwa बनूंगी "! अपने भाई के खुशी में पागल हो चुकी वो पगली सी लड़की किसी के बुने जाल में खुद फंस चुकी थी , बिचारी हमारी ruh जिसे अपनी होने वाली भाभिजान पर तरस आ रहा था वो नादान खुद बड़ी बुरी हालत का शिकार जल्द ही होने वाली थी , Lets Go To The Demon Side 😈 उसी होटल रूम के जस्ट बगल वाले रूम में मौजूद एक शक्श गहरी निगाहों को सुकून से मूंदे बड़ी ही शिद्दत से Ruh की कोयल जैसी आवाज सुध बुध खो कर सुन रहा था , जो कोई और नहीं खुद सिद्धांश था , अगर वो चाहता था वो सीसीटीवी कैमरास से Ruh का दीदार बिना रुकावट कर जाता, मगर पहली मुलाकात इतनी रुखी सुखी, ना ना ये Shishandh जिंदल का type तो बिल्कुल नहीं था , वो बंदा जो खुदमे ही दहका लावा है, वो सीधा आमने सामने से रूह का दीदार करने की चाह में था, वो Ruh की खुशनुमा Mesmerising आवाज सुनकर Arronace Smile करते हुए बोला , " तो मेरी जान को मेरा छोटा सा तोहफा इतना पसंद आ गया मगर तब क्या होगा Kitttan जब कोई तोहफा के बदले खुद मैं तुम्हारे सामने रहूंगा , उसकी मीठी मीठी आवाज सुन कर smirk करते हुए , "But Now I can't wait to see you my kitten "! कैसे रोक पाऊंगा खुद को " ? He desired for her his totally obsessed for her , he want To see her Cute Face जो सिद्धांश जिंदल को भी दीवाना, कर चुका था, 🔥 He can't even resist to see her in front of him वक्त का एक-एक कतरा जालिम जुलुम की तरह सिद्धांश को पल-पल तड़पाए जा रहा था , वो रूह की मौजूदगी इतने करीबी से महसूहस कर , अपनी रूह का मुखड़ा देखने के लिए वो हद से ज्यादा बेताब हो चुका था , मगर वक्त भी शायद आज हमारे सिद्धांश के साथ था , क्योंकि वो चुलबुली लड़की जिसके पैर कभी एक जगह थी टिकते थे वो बिजनेस डीलिंग में सीरियसनेस दिखाते हुए प्रिपरेशन करने की बजाय खूबसूरत Milaan को घूमने के लिए फटाफट से शावर Room की तरफ भागी मगर तभी उसके होंठो पर ठीक वही सॉन्ग आने लगा, जिसे फिर से Ruh के लबों से सुनकर सिद्धांश का कंट्रोल खोने लगा , " Mama I'm in love with a criminal And this type of love isn't rational, it's physical Mama please don't cry, I will be alright All reason aside I just can't deny, I love the guy "! ये लफ्ज सुनते हुए सिद्धांश के माथे की नसे तनने लगी और हाथों की पकड़ Wing चेयर पर कसने लगी , वो खूंखार शेर गहरी गहरी सांसे भरने लगा , ताकि वो खुद पर काबू पा सके , मगर शॉवर से गिरती पानी की बूंदे सिद्धांश की बंद आंखों में वो मंजर फिर से जिंदा कर गई जहां रूह cruise के washroom में सिद्धांश से भिड़ी थी, " He is a villain by the devil's law , He is a killer just for fun, fun, fun, fun That man's a snitch and unpredictable He's got no conscience, he got none, none, none, none ये लड़की भी ना रुक जा मेरी जान वरना आप आज काम से जाएंगी , वही रात वही शॉवर के पानी की बरसात सिद्धांश के अरमान जाग उठे, उस गुस्सैल शेर को अब हर हाल में सिर्फ उसकी रूह चाहिए थी , तो वही हमारी रूह शॉवर के पानी में मोरनी की तरह थिरकती हुई यही गाना गुनगुना रही थी , "Ufff ये लड़की , क्या ये खुद को रोक नहीं सकती ? अगर ये वैसे ही गुनगुनाती रही, तो मै उस मंजर को बार हार याद कर बेकाबू हो जाऊंगा umn,stop it मेरी जान वरना तुम्हे पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा , "। " You have to control breathe Siddhant breathe otherwise you gonna lose your control "! उसकी दहशत आवाज में गजब की बेसब्री थी , मानो अब उसका कंट्रोल खुद पर से पूरी तरीके से छूट चुका हो , वो चाह कर भी Ruh के गुनगुनाते हुए वो अल्फाज जिन्हें खास करके अपने ऊपर लगाया असली टैग यानी कि क्रिमिनल सुनकर उसके सब्र का बांध टूट गया , वो अपने कमरे से निकाल कर सीधा Ruh के कमरे के आगे खड़ा गहरी गहरी तेज सांस भरने लगा , उसका डोमिनेंट और कंट्रोलिंग औरा फिलहाल उसके काबू में नहीं था , He wants To see her Stunning girl, जो शॉवर के नीचे गुनगुनाते हुए सिद्धांश को तंग किए जा रही थी , और सिद्धांश बड़ी मुश्किल से उससे दूर रहने के लिए खुद को रोके जा रहा था , वो अब तलक कैसे खुद को बेकाबू होने से रोक रहा था ये तो सिद्धांत गर्म जोशी से भरा सख्त मिजाज साफ बतला रहा था वही रूह जो नजाकत से गघनी जुल्फों से खेलते हुए अपने पीछे पड़े सिद्धांश के इंटेंशन से बिल्कुल मुख्तलिफ बेपरवाह हो कर अपना फेवरेट सॉन्ग गा रही थी , की तभी उसके कानो में लगे Blootuth हेडफोन्स में Ruh की हल्की सिसक सुनाई दी, बस Now No Body Can Stop him , I can bet वो बिना बिना कुछ सोचे समझे स्पेशल की से दरवाजा ओपन कर सीधा उसके कमरे में घुस गया , मगर यही तो गुस्ताखी हो गई ना सिद्धांश बाबू से , क्योंकि जैसे ही उसके कदम Ruh के कमरे में पड़े , हर जगह भीनी भीनी महकती हुई Vanilaa की खुशबू सिद्धांश के सांसों घुलने लगी , " Damn अब नहीं रोक सकता खुद को "! your smelll , अब मैं नहीं रोक पाऊंगा मेरी जान I want her now " , " Why I am going to control ? no I am not gonna control myself , haash I think she is driving crazy now , जब उसकी मुकद्दर में मैं लिख चुका हूं फिर खुद को रोकना कैसा ? कमाल की थी ना वो बंदी जिसने Ruthlees माफिया को Breathless कर दिया था, वो भी अपनी नजाकत भरी अदाएं बिना दिखाए, Socho Socho जब रूह से सामना होगा तब क्या होगा सिद्धांश का ? वाकई में उसके दिलों दिमाग पर हावी हो चुकी थी, वो बदमाश सी जान , क्या सिद्धांश आज ही सारे दायरे तोड़ कर रख देगा? बातों से तो यही लग रहा था, अब क्या बताए वो इतना ज्यादा बेसब्र था के अगर Ruh शावर रूम की बजाय उसकी नजरों के सामने होती ना कसम से उस कमरे में Ruh की मीठी सिसकियां गूंज रही होती , इतना ज्यादा आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका था सिद्धांश , मगर तभी हमारी शेरनी शेर को तसल्ली से उकसाने वॉशरूम से बाहर आने लगी, तो वही गुर्राता हुआ शेर दो उंगलियों से अपने ही गर्दन को अजीब ढंग से रब करने लगा , जिसके चलते सिद्धांश As ऑलवेज ब्लैक आउटफिट में गजब का कहर ढा रहा था , अगर Ruh ने इतना हसीन बंदा अपने ही रूम में देख लिया होता ना , कसम से सिद्धांश छोड़ो Ruh खुद को ना रोक पाती , कुछ पल में ही , Ruh के ही रूम में चक्कर काटते उसकी खुशबू सांसों घोल कर वो पागल हुआ जा रहा था , कि तभी उसकी आग और सुलगाने के लिए Ruh सुर्ख बेबी पिंक कलर तौलिया लपेटे खुली जुल्फों को झटकते हुए सॉन्ग गुनगुनने लगी, और चेहरे पर Adorable smile खिला कर song की बिट्स पर कमर मटकाने लगी , गई अब तो ये बंदी, ये सच में अपनी शामत अपने ही हाथों से बुला रही थी, नहीं मतलब थोड़ा आराम वाराम कर लेती मगर हमारी Ruh , सबसे आला ( जुदा ) , इन्हे तो सिद्धांश के सामने पेश होने का शौक चढ़ा था, तो अब भुगतो , जो पहले ही इस बंदी से पागल हो चुका था , ऊपर से उसकी गोरी गोरी टांगें और उससे भी ज्यादा गोरे उकसे शोल्डर जिन पर बैक साइड में star ✨ शेप का टैटू कराया गया था , कसम से क्या लाजवाब लगती थी ये बला , ये अल्फाज मेरे नहीं खुद सिद्धांश के दिल ने कहे थे, जो अपने ही होटल के चोरों की तरह पर्दे के पीछे छुपा मुंह फाड़े उसे देख रहा था , उसे उसने जितना सोचा नहीं उससे ज्यादा हसीन थी वो , हालांकि वो बात अलग वो कभी लड़कियों को देखने में इंटरेस्टेड नहीं रहा , मगर रूह वाकई में बेइंतहा खूबसूरत गुड़िया की तरह लग रही थी, वो गहरी नजरों से रूह को अपलक देखने लगा, मानो वो रूह का Sparkling अंदाज देख कर उसमें खो चुका था, तभी उसकी स्मार्ट वॉच में असिस्टेंट का मैसेज वाइब्रेट होने लगा , थैंक गॉड उस असिस्टेंट ने Ruh को बचा लिया , मगर बेचारे असिस्टेंट की मौत तो अब पक्की थी , क्योंकि सिद्धांश इतना हसीन नजारा अपनी फटी आंखों से देख रहा था , और उसमें टपक पड़ा ये असिस्टेंट , उसकी Tejab सी निगाहे जिनमें Ruh ko पिघलाने कि takad थी , वही तेजाब भरी आंखे उस असिस्टेंट के मौत का कारण बनने वाली थी , He was Tockic Maan but Now His Obbsessed Man too , Ruh जो बड़े से कमरे से दूसरे कोने में , मशहूर आर्टिस्ट Sj की वॉल पेंटिंग देखते देखते अपने बालों को सुखा रही थी , अचानक से पर्दा हिलने की आवाज सुनकर वो उस डायरेक्शन की ओर जाने लगी , जहां अभी-अभी बड़ी तेजी से हलचल हुई थी, जैसे ही Ruh के कदम आगे बढ़ने लगे, वो सिद्धांश की मैनली फ्रेंगनेस से रूबरू होने लगी , जिससे Ruh के एक्सप्रेशन बदलने लगे , सिर्फ सिद्धांश ही नहीं Ruh भी उसकी मैनली फ्रैगनेंस से एडिक्टेड हो चुकी थी , और वही महक जो उसकी सांसों में हर पल घुली होती थी , अचानक से इस होटल रूम में महसूस कर , वो आंखे मटका मटका कर तोलिया लपेट उस डायरेक्शन की ओर बढ़ गई , उसने झट से पर्दे को खोल दिया मगर वहां रूह के सोच के मुताबिक कोई ना दिखा , वो मुंह बना कर आंखों को रोल करते हुए बोली , , तू भी ना Ruh कितनी पागल हो चुकी है उस monster के लिए , वो तो मेरा दिल धड़काकर इंडिया में तसल्ली से सो रहे होंगे , और मै huhhhhhh उनके चक्कर में सच में कूदे जा रही हु , पता नहीं मै हर जगह सिर्फ उन्हें इमेजिन क्यों करने लगी , ? " लेकिन मेरे छोटा सा दिल करे भी तो क्या करे, उन्हें देखते ही कूदने जो लग जाता है , Haaye rabbba उनकी महक , , , ,, , , , कही मै पागल ना हो जाऊ "! छोड़ यार इतनी despo भी ना बन , " अपने होश में आ लड़की , पागल ना बन तू यहां भूखी शेरनी बनने नहीं एक बिजनेस मीटिंग के तहत आई है , अब फटाफट से रेडी हो जा घूमने भी तो जाना है, उसे अंदाजा भी नहीं था, उसका बेबाकी से किया कन्फेशन क्या तूफान ले कर आयेगा, क्योंकि उसकी मीठी सुरीली आवाज में खुद के लिए इतने खतरनाक ख्यालात सुन सिद्धांश का दिल अजीब सी खलबली मचने लगा , क्या उसकी रूह इतनी ज्यादा bold थी, ?. " Oh littel Girl, क्या तुम भी मेरी यादों में गुम हो ? " Why You Are Provoking Me ? , तुम्हरे ये खयालात तुम्हारी जान निकालनेगे Kitten, चाहूं तो अभी शर्म के हर पर्दे मिटा दूं, मगर अभी नहीं तुम्हरे सजा भी जो देनी है , वो Smirk करते हुए आज की रात कुछ खास बनाए प्लान पर मोहर लगाने लगा , तभी उसके दिमाग में कुछ ख्याल आया , " अगर इसकी आवाज इतनी मीठी है तो फिर इसके लिप्स , Shit मै ये कैसे मिस कर गया ना ? Now I Want To See Her lips" Ab Bass बारी थी उसके लबों के दीदार की , उसकी ये तड़प यकीनन बड़ी कमाल की थी और उतनी ही सच्ची भी , क्योंकि अब तलक सिद्धांश ने सिर्फ रूह के आंखे देखी थी ,मगर Ruh का एक भी हिस्सा अब तक सिद्धांश की नजरों के ठीक से सामने नहीं आया था , और आज पहली बार उसके होठों देखने की तलाश सिद्धांश पर्दे को हल्के से सरका कर उसे देखने लगा , तो वही रूह जो शायद अपना चेहरा यूं आसानी से नहीं दिखाना चाहती थी , वो जुल्फों को यूं झटक झटक कर घुमाए जा रही थी, जिससे ज्यादातर चेहरे का हिस्से दिख ना सका , वो बड़ी नजाकत से मिल्की लोशन पैरो को लगाने लगी , उसकी ये ada सिद्धांश के काबू से बाहर होने लगी , और रूह के चेहरे का हल्का हल्का दीदार सिद्धांश की प्यासी नजरों को होने लगा , मगर तभी उसकी नजरें रूह के होंठों से ले कर उसकी सुराही गर्दन से होते हुए नीचे क्लीवेज वैली की ओर चल पड़ी, और basss becouse Ruh She Is Really Badasss, वो आज सिद्धांश को पागल करने की फिराक में थी, की तभी कुछ ऐसा हुआ के सिद्धांश की आंखे हैरानी से फटी की फटी रह गई , सो मेरे sare readers Kaisa tha aaj ka chapter? Pyare pyare comments ke ज़रिए जरूर बताए, और हां Nice awsome aaj ke chapter ke liye nahi chelga Jara thodi si तकलीफ अपनी राइटर के लिए उठाए और थोड़ा सा बड़ा comment करे , ♥️
आशियाना महल, लखनऊ।
"ओ खुदाया! इतनी आज़माइशें ना दे। अगर हमारे मुक़द्दर में वो नहीं, तो हमारी इन साँसों को भी छीन ले। आज तक हमारे जुबान पर उनका नाम कभी ठीक से ना आया, ताकि वो नापाक ना हो जाए। लेकिन आज आपसे दूरी बनाए रखने की हर कोशिश पर गुस्सा आता है। जानते हैं क्यों? आइए, आपको बतलाते हैं हमारे इस दिल का ज़ाहिरी हाल।"
ये कहते हुए वह लड़की, मेंहदी लगे हाथों में एक छोटी सी डायरी में छुपाई एक तस्वीर को देखने लगी। जिसमें एक ७ साल की लड़की ११ साल के हैंडसम लड़के के गोद में चढ़ी खिलखिला रही थी। ये वही सालों पुरानी तस्वीर थी जिसे उस लड़की ने, यानी कि हमारी रिधान की जानम ने, बचपन की हसीन यादों के तहत संजोकर अब तल्ख़ रखा था।
"क्या करें? बताएँ क्या करें हम? हमारा दिल तो आपकी दूरियों से ही धड़कना भूल जाता है। हमारे जिस्म का हर अंग आपके एहसासों को जीने के लिए तरसता है। दिलो-दिमाग़ के हर पन्ने पर सिर्फ़ और सिर्फ़ आपका ही सुरूर छाया है। तो बताइए, हमारे सरताज कैसे किसी और के निकाह में बाँध जाएँ हम?"
"आपको शौहर जी कहने का ख़्वाब कैसे पूरा करें? बताएँ ना, चुप क्यों हैं आखिर? आप तो कहते थे ना, हम आपके मुक़द्दर में लिखे हैं। तो बताएँ, आप कहाँ हैं? ओ मेरे खुदाया! हमने शिद्दत से उन्हें चाहा है। अगर वो हमारे नसीब में ना हुए, तो कसम है हमारी मोहब्बत की, हम इन साँसों से भी रुख़ मोड़ लेंगे। अगर वो नहीं, तो हमें जीने की तमन्ना भी नहीं। हम इस इश्क़ में फ़ना होने को भी तैयार हैं!"
ओ...खुदा, बता दे क्या लकीरों में लिखा?
हमने तो...
हमने तो बस इश्क़ किया।
ओ...खुदा, बता दे क्या लकीरों में लिखा?
हमने तो...हमने तो बस इश्क़ किया।
प्यार की इन राहों में...मिलते हैं कितने दरिया!
लाख़ तूफ़ानों से दिल को...मिल जाता है ज़रिया!
पत्थर दिल को भी चीर देने वाली ये दर्द भरी आवाज़ यक़ीनन फ़िज़ा की थी। जो निकाह के सफ़ेद जोड़े में बैठी, अपनी ज़िंदगी छीन लेने की दुहाई अपने अल्लाह से दुआ में माँग रही थी। क्योंकि चंद घड़ी में ही उसकी ज़िंदगी का सबसे अहम, सबसे फ़ैसला होने वाला था।
तेरे बिन जीना है ऐसे...दिल धड़का ना हो जैसे!
ये इश्क़ है क्या दुनिया को...हम समझाएँ कैसे?
अब दिलों की राहों में...हम कुछ ऐसा कर जाएँ!
एक दूजे बिछड़ें तो...सांस लिए बिन मर जाएँ!
मगर वो नादान इस बात से बिलकुल अनजान थी कि उसके मुक़द्दर में तो किसी और का नाम आज से नहीं, कई बरसों से लिखा जा चुका था। वो अपने मुक़द्दर में लिखे फ़ैसले से अनजान आँसुओं को बहा रही थी। मगर उसके जहीन आँसू देखने कोई भी मौजूद कहाँ था? अगर मौजूद होता भी, तो फ़िज़ा के आँसुओं की परवाह किसे थी?
भले ही उसके मासूम चेहरे पर निकाह का नूर नज़र ना आ रहा हो, मगर उसके बदन पर मौजूद निकाह का लिबास उसके छरहरे जिस्म पर बेहद ख़ूबसूरत लग रहा था।
सफ़ेद रंग का घेरदार गरारा, जिसकी किनारी पर सोने के तार से बेशकीमती असली डायमंड पिरोए गए थे। और हया की लाली बरकरार रखने सुर्ख़ लाल रंग का चुनर ओढ़ने से वो जन्नत से उतरी किसी हूर से कम नहीं लग रही थी।
उसके बेशकीमती अटायर की असली कीमत का किसी को भी कोई अंदाज़ा नहीं था। मगर इतना तो तय था, ये फ़िज़ा के निकाह का जोड़ा कतई किसी और की पसंद का लिबास नहीं था।
मगर ज़ोहरा बेगम को जल्दबाज़ी में कुछ सोचने-समझने की सूझ नहीं थी। और फ़िज़ा की लालची मामी, जो फ़िज़ा के बेशकीमती कपड़ों को देख उनके अंदर का लालच जाग चुका था, तो सभी लोग अपने-अपने फ़ायदे के चलते चुप्पी साधे बैठे थे। और फ़िज़ा, वो तो ज़िंदा लाश बनी, मुट्ठी में जकड़े एक काँच की शीशी को घूर रही थी।
तो वही दूसरी ओर...
निकाह नामा पढ़ने से पहले होने वाली कुछ ख़ास रस्में, जिनमें ख़ास करके बुख़्वा रस्म, मायू (जो हल्दी की रस्म कहलाती है), मेंहदी, ऐसे ही ना जाने कितनी ही छोटी-बड़ी मुस्लिम कल्चर की सारी रिवाज़, जिनमें कम से कम २ दिन का वक़्त लग जाता था, लेकिन सारे रस्मों को एक ही दिन में निपटा लिया गया था।
क्योंकि फ़िज़ा की अम्मी, ज़ोहरा बेगम को शायद रिधान के ख़ौफ़नाक गुस्से की थोड़ी सी झलक याद थी। वो इसी घबराहट के चलते जल्दबाज़ी में फ़िज़ा का निकाह अपने भाई के बेटे से कराना चाहती थी। लेकिन शोएब, वो फ़िज़ा की ख़ूबसूरती नहीं, उसके निकाह पढ़ने के बाद मिलने वाली मोटी रकम के लिए फ़िज़ा को बेगम बनाने की फ़िराक़ में था।
मगर बेचारे ख़्वाबों में बने इस दूल्हे राजा निकाह के बाद पलंग नहीं तोड़ेंगे, बल्कि पलंग की जगह बड़ी बेरहमी से आपको ही तोड़ा जाएगा। उफ़्फ़! अल्लाह ही बचाए इस बदकिस्मत बंदे को!
"माशाल्लाह! माशाल्लाह! क्या नूर पाया है आपकी बेटी ने? हमारी फ़िज़ा के चेहरे का नूर सच में लाजवाब है। इतनी नज़ाकत, ऊपर से मासूमियत, आज तक ना देखी। ज़ोहरा बेगम, कहाँ छुपाकर रखा था इस कोहिनूर को? अगर हमें पता होता, तो आज ही शोएब की नहीं, मेरे बेटे से निकाह पढ़वाती!"
रिश्तेदारों की नज़र जितनी फ़िज़ा पर ना होगी, उतनी तो उसके बेशकीमती लिबास पर थी। लेकिन उस औरत की बात सुन ज़ोहरा बेगम, जो ज़रा घबराई हुई थी, वो बातों को टालकर बोली-
"छोड़ें ना बिज़ी इन बातों को। अब तो वक़्त हाथ से निकल गया। क्या ही किया जा सकता है। अब वक़्त ना गँवाएँ। सुनो, मौलवी साहब आ चुके हैं। जल्दी निकाह पढ़ा जाएगा। फ़िज़ा, चलो आओ हमारे साथ। हम तुम्हें ले चलते हैं।"
ये महज़ ज़ोहरा बेगम के कहे लफ़्ज़ नहीं, फ़िज़ा की मौत का पैमाना था। जिसे सुनकर ही फ़िज़ा फ़्रीज़ हो गई और कसके आँखें मूँदकर बोली-
"हम तैयार हैं फ़ना होने को! मगर ओ मेरे अल्लाह! आपसे गुज़ारिश है, इस दुनिया से रुख़सत होने के पहले उनका दीदार करा दे।"
उसे मज़ीद बेपनाह दर्द हो रहा था, मगर ख़ुद को ख़त्म करने के फ़ैसले पर नहीं, दुनिया से रुख़सत होने के पहले रिधान को ना देख पाने के ग़म में।
चलिए वहाँ जहाँ आज निकाह का ख़ास इंतज़ाम किया गया था, वहाँ चलते हैं, जो कुछ पल में ही ख़ून की नदी से भीगने वाला जंग का अखाड़ा बनने की तैयारी में था।
आशियाना महल, जो नवाबों के शहर लखनऊ में स्थित था, ये पुश्तैनी विरासत फ़िज़ा के मामू जान की थी, जो लखनऊ के जाने-माने नवाबों में से एक कहलाते थे। ग्रे रंग की कुर्ता-पजामा पहने कई सारे पहलवान चौकन्ने हो उस आशियाना महल को हर तरफ़ से पहरेदारी दे रहे थे।
आज ख़ास निकाह के बदौलत आशियाना महल सफ़ेद और पीले रंग के फूलों से सजाया गया था। हर तरफ़ मेहमानों और मुलाज़िमों की भीड़ लगी हुई थी। और एक बड़े से हाल के बीचों-बीच फूलों का पर्दा निकाह के लिए लगाया हुआ था। जिसके एक तरफ़ मर्द और दूसरी तरफ़ ख़ातून यानी औरतों के बैठने की सुविधा की गई थी। सारे मेहमान अपनी-अपनी जगह ले चुके थे। और सबसे आतुर हमारे शोएब मियाँ, वो तो आज दूल्हे राजा बने, तबीयत के साथ पीटने को तैयार, 'क़बूल है' कहने को आतुर होने लगे।
कि तभी मौलवी साहब अपनी तशरीफ़ फ़रमाकर, डॉक्यूमेंट हाथ में लेकर, कुछ घबराए से लग रहे थे।
अब बस इंतज़ार था होने वाली बेगम यानी कि हमारी फ़िज़ा के आगमन का, जो कुछ लड़कियों के साथ धीमे-धीमे सीढ़ियों से चलकर आ रही थी। उसका दिल अंदर ही अंदर कितना टूट चुका था, ये तो बहते हुए आँसू बता रहे थे। मगर अफ़सोस, उसके चेहरे पर चढ़ा हुआ सुर्ख़ लाल ओढ़ना सब कुछ छिपा रहा था। आख़िरकार कुछ पल में ही निकाह पढ़ने का वक़्त आ गया।
"फ़िज़ा जुबेर, शेरियाज़ हक़ मेहर, जाति बनाया गया, ९६ बिलियन डॉलर, लंदन का रिचमंड पैलेस, ब्लिसफ़ुल बुक पब्लिकेशन कंपनी और राजस्थान में ४०० एकड़ ज़मीन आपके नाम की है, सिक्के रायज़ुल वक़्त। क्या आपको ये निकाह क़बूल है? रिधान रणवीर सिंघानिया के साथ? क़बूल है?"
अपना कहा जुल्मा निकाह नामा पढ़ते-पढ़ते ख़त्म कर, खुद काज़ी साहब पूरी ज़िंदगी की हैरानी एक साथ आँखों में लिए उस हक़ मेहर की कीमत पढ़कर हैरान थे। और उनका जुल्मां पूरा होते ही वहाँ मौजूद हर एक आँख फ़ाड़े देख रहा था। आख़िर इतनी ज़्यादा हैरानगी की बात क्या थी?
एक तो ये नाम, जो ख़ुद में ही बवाल था, ऊपर से अरबों की प्रॉपर्टी हक़ मेहर में मिलना। वहाँ खड़ा हर बंदा हैरान ना होता तो क्या होता? तो वही असली दूल्हे राजा को कूद-कूदकर फ़िज़ा को बेगम बनाने को बेताब थे।
मगर अपने नाम के बजाय खुद रिधान सिंघानिया का नाम उसके डर के मारे तोते उड़ चुके थे। लेकिन सबसे बड़ा झटका लगा था ज़ोहरा बेगम को, जो निगाहों में ख़ौफ़ लिए अंदर ही अंदर काँप चुकी थी। लेकिन ज़िंदा लाश बनी फ़िज़ा, उसके कानों में तो रिधान का नामो-निशान ना था। वो हाथों में मौजूद ज़हर की शीशी को खाली करने की हिम्मत जुटा रही थी। मगर तभी उसके अब्बू जान, जुबेर जी का ख़्याल आया। वो दर्द भरी मुस्कान चेहरे पर सजाकर ठंडी आह भरकर बोली-
"क़बूल है!"
लेकिन उकसा क़बूलनामा सब तरफ़ मची अफ़रा-तफ़री के बीच किसी ने ना सुना।
"किसी को अपनी जान प्यारी है तो भागो! पूरे महल में लाशें बिछ चुकी हैं। वो हमें भी नहीं छोड़ेगा। ज़ोहरा, तुम अब क्यों हैरान हो? इस मनहूस लड़की को लेने उसका आशिक आ चुका है। तुमने उसके आशिक के बारे में इत्तिला ना करके अच्छा नहीं किया। हम भूलेंगे नहीं तुम्हारी ये गुस्ताख़ी!"
ये नफ़रत भरी आवाज़ खुद फ़िज़ा के मामू जान की थी, जो पसीने में लथपथ हुए महल से भागने को कह रहे थे।
निकाह में आए सारे रिश्तेदार, शमशीर (तलवार) चलने की आवाज़ सुनकर चीखते हुए अपनी जान बचाने को भागे जा रहे थे। सब तरफ़ ख़ौफ़ का माहौल बन चुका था। मगर फ़िज़ा और मौलवी साहब उस निकाह पढ़वाने की जगह से हिले तक ना थे।
कि तभी उस हाल में मची खलबली को शांत करने के लिए एक तेज धमाकेदार आवाज़ में गाना बजा-
(मेरी गुज़ारिश है ये Animal movie का गाना ज़रूर सुनें ताकि ख़ौफ़ भरा माहौल आप ज़रा तसल्ली से महसूस कर पाएँ) अर्जुन वैली ने...
ओ ‘खाड़े विच दांग खड़के...चक्को!
ओ ‘खाड़े विच दांग खड़के...ओठे हो गयी लड़ाई भारी!
अर्जुन वैली ने...हो अर्जुन वैली ने!
ओ पैर जोड़ के गंडासी मारी...अर्जुन वैली ने!
उस सॉन्ग के बोल बजने लगे और एक शख़्स, जिसके फौलादी बॉडी पर सुर्ख़ सफ़ेद पठानी ख़ून से सनकर लाल हो चुकी थी, उसके सख़्त हाथों में किसी का कटा हुआ सिर और दूसरे हाथ में लहूलुहान शमशीर थी।
वो अकेला उस सन्नाटे को चीरते हुए अपने सामने आने वाले हर इंसान को बीच से काट रहा था। मगर उस फौलादी बंदे के साथ आए उसके भाई, जिनका बायो आपको बाद में पता चलेगा, लेकिन ज़रा नाम लेते हैं - (आहान आहूजा, प्रिंस सिंघानिया, अरहम मेहरा)। उसके पीछे राइफल पकड़े सीना ठोंककर चलते आते रहे थे। और लबों पर ये सॉन्ग कहते हुए वो अपने यार, यानी कि फ़िज़ा के होने वाले शौहर जी का हौसला बढ़ा रहे थे (इमेजिन लाइक Animal movie)।
अर्जुन वैली ने...ओ पैर जोड़ के गंडासी मारी...अर्जुन वैली ने!
रिधान, ख़ून से सना गाने के बोल के साथ ताल में ताल मिलाते हुए, सफ़ेद पठानी लाल रंग से रंगाकर, दहशत भरे एक्सप्रेशन लिए, हैवानियत भरी हँसी हँसकर बोला-
"अरे मौलवी साहब, रुक क्यों गए? पढ़ो हमारा निकाह। हमारी बेगम ने क़बूल तो कह दिया है!"
उसका लहजा तो सीधा था, पर बात उतनी ही टेढ़ी थी। उसकी गहरी बातों से रिधान का किलर ओहदा साफ़ झलक रहा था। जो हाल में बंधक बने ख़ास लोगों की आँखों में मौत का ख़ौफ़ खस्ता कर रहा था। और मौलवी साहब, वो तो अल्लाह को प्यारे होने को तैयार थे।
वो सबको दहकती निगाहों से देख, तूफ़ान की तरह अफ़लातून बने, उस कटे सिर को फेंक सिंघा शोएब के आगे शमशीर (तलवार) लेकर खड़ा हो गया। मानो अब बारी उसकी हो। शिट! गया आज तो शोएब!
तो वही हमारी फ़िज़ा, उसकी दमदार आवाज़ सुनकर घूँघट की आड़ से उसे एक नज़र देखने की तलब में प्यासी हो गई। मगर जैसे ही ख़ून से सने रिधान को देखा, वो बदहवास सी ख़ौफ़ के मारे काँपने लगी। फ़िज़ा के हाथों की पकड़ गरारे पर कस गई।
उसकी ये मासूम हरकत रिधान की नज़रों में पड़ चुकी थी। वो मौत का सौदागर बना, ज़हरीली मुस्कान किए, ख़ौफ़नाक अंदाज़ में उसे देखकर उस तलवार की नोक शोएब की गर्दन पर गड़ा रहा था। तो वही शोएब खड़े-खड़े डर के मारे पैंट गीली करने लगा।
"तो यारो, देखो मेरी दुल्हन का होने वाला शौहर बिचारा डर के मारे पैंट ही गीली कर बैठा। क्या ऐसे मर्द बनेगा तू? वैसे मेरी जानम, ऐसा क्या देख लिया तुमने इस नामर्द में जो मुझे छोड़कर इसकी होने चली थी? क्या मुझसे भी ज़्यादा...ख़ुश? ख़ैर, छोड़ो! एक बार निकाह और शादी तो हो जाने दो। पलंग नहीं, सीधा तुम्हें तोड़कर सेटिस्फ़ाई करूँगा!"
वो सनकी अंदाज़ में फ़िज़ा को देखता हुआ हैवानों की तरह हँस पड़ा। जो देख रिधान के सारे भाई, जो ज़ोहरा बेगम, शोएब के पैरेंट्स को पकड़े हुए थे, वो स्मर्क करते हुए शोएब को देखने लगे। फिर ज़रा रुककर रिधान गहरी साँसें भरकर चीख पड़ा-
"बोलो मेरी बेगम, बोलो! क्या देखा इसमें तुमने जो मुझमें नहीं? क्या मैंने तुम्हें कभी ख़ुश नहीं किया? मेरी जानम, अगर ये बात थी तो पहले ही बता देती। मेरे चेहरे की अनगिनत कॉपी तुम्हारे गोद में खेल रही होती।"
"जी तो चाहता था ताउम्र तुम्हारे रूह से लेकर जिस्म के हर हिस्से की इबादत करता जाऊँ। मगर तुम वो बेवफ़ा निकली जो मेरी ही आँखों में धूल झोंककर मुझसे इतनी बड़ी दगाबाज़ी करने की जुर्रत में भाग गई। तो बताएँ, मेरी शरीक़े हयात (बीवी), आपको क्या सज़ा सुनाई जाए?"
"छोड़ दिया जाए या या...या काट दिया जाए?"
वो शोएब की गर्दन पर तलवार लटकाए अपनी जानम से उसके साथ हुई ज्यादती का हिसाब माँग रहा था। मगर तब भी फ़िज़ा के होंठ सीले हुए थे। हमेशा की तरह, बस वो रोए जा रही थी, बिना आवाज़ किए। उसे यक़ीन नहीं हुआ रिधान की बेरहम भरी बात पूरी सनक के साथ सुनकर।
"तेरी कुर्बत में पिघल जाऊँ, ऐसी मोहब्बत थी मेरी। मगर आज तेरी इसी बेवफ़ाई ने मेरे इश्क़ को नफ़रत में तब्दील कर डाला, दिलरुबा। अब ये आशिक़ जितनी शिद्दत से मोहब्बत करता था, उतनी जुनूनियत से नफ़रत भी निभाएगा।"
वो कहाँ उसे अर्श पर बिठाकर महलों की रानी बनाना चाहता था, मगर फ़िज़ा की एक छोटी सी दगाबाज़ी ने उसे सीधा फ़र्श पर पटक दिया था।
"पढ़िए मौलवी साहब, निकाह नामा। आज ये कायनात भी गवाही देंगी मेरे मोहब्बत के दफ़न होने की!"
उसके अल्फ़ाज़ पूरे हुए और तभी शोएब की गर्दन कट गई। सर कटी लाश से निकलता ख़ून सीधा उसके अब्बू-अम्मी के क़दमों में जा गिरा। अपने बच्चे को मौत के घाट उतारते देख शोएब के अम्मी-अब्बू बेहोश हो गए। और ज़ोहरा बेगम खुद भी थर्रा उठी।
बैंग!
जहाँ रिधान के ख़ौफ़ से डर फ़िज़ा ने मानो सारे हथियार डाल दिए थे। उसके लफ़्ज़ों में मौजूद ज़हर को फ़िज़ा चाशनी समझकर अपने गले से नीचे बड़ी मुश्किल से उतार रही थी। क्योंकि सामने खड़ा कोई आम नहीं, उसका अपना होने वाला शौहर था। मज़ीद उसकी आँखें दर्द के मारे सुर्ख़ हो गईं।
मगर सरसरी पिघलते काँच की तरह कहे अल्फ़ाज़ों को सुनकर फ़िज़ा की जान मुट्ठी में आ गई। वो सह नहीं पा रही थी उसकी नफ़रत। बस मौलवी साहब पूछते गए, वो बेख़्तियाती से क़बूलती गई।
"क़बूल है, क़बूल है, क़बूल है।"
और कुछ पल में वो निकाह क़बूल हुआ। लेकिन उसकी क़बूलियत सुनकर भी रिधान की आँखों से नफ़रत का सैलाब कम ना हुआ। उसने एक नज़र बेहद ख़ौफ़नाक अंदाज़ से ज़ोहरा बेगम को देखा और गरजती आवाज़ के साथ चीखते हुए बोल पड़ा-
"मेरी बीवी को छीनने की कोशिश करना चाहती थी ना आप? देख लीजिए, वो बन चुकी है मेरी बीवी। उसकी दगाबाज़ी का हिसाब तो हो ही रहा है, मगर बचेंगी तो आप भी नहीं। सबका हिसाब होगा, सबका! बस देखते जाइए!"
ये कहकर उसने ज़ोहरा बेगम से नज़रें फेर, सनकी अंदाज़ में अपनी हूर को देखा और उसके करीब जाकर अपनी शरीक़ ए हयात की पेशानी (माथा) चूमने की बजाय रिधान उसे कंधे पर किसी बोरी की तरह टाँगकर, एक हाथ में तलवार लिए अपनी मंज़िल पर जाने लगा। अब शायद फ़िज़ा यक़ीनन जान से जाने वाली थी, मगर रिधान के अंदाज़ में...
जल महल,
एक लड़का, जिसकी आयु लगभग छब्बीस वर्ष थी, उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचने के बावजूद उसका स्वभाव अत्यंत शांत था। बचपन से ही सिंघानिया खानदान में पला-बढ़ा वह दत्तक पुत्र, आज छब्बीस वर्ष का युवा पुरुष बन चुका था। उसने अपने दम पर सिंघानिया खानदान से अलग अपना साम्राज्य स्थापित किया था, किंतु अपनी योग्यता का सारा श्रेय उसने अपनी माँ-पिता अर्थात् शरविल जी और पियाली को दिया था, जिन्होंने अपनी संतान से बढ़कर प्रिंस को स्नेह दिया था।
वही प्रिंस, जो अपनी आयु से कहीं अधिक परिपक्व बन रहा था, जिसके पीछे कुछ खास कारण थे। वह अपने नाम से बिल्कुल भिन्न बन चुका था। दुनिया उसे प्रिंस के नाम से पुकारती थी, मगर उसने कभी जबरदस्ती से किसी पर राज नहीं किया। सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम से सबका दिल जीतना उसकी आदतों में शुमार था।
परंतु दुनिया का सारा प्रेम उसे तब फीका लगने लगा जब उसकी प्रेमिका उससे रूठ गई थी।
"काश मैं उस दिन तुम्हारा वादा ना स्वीकारता, तो आज तुम मेरे करीब, मेरी बाहों में होतीं अदा। आखिर क्यों मैं हालातों के आगे कमज़ोर पड़ गया? क्यों मैंने तुम्हें अपने दिल का हाल नहीं बताया? काश उस दिन मैं तुम्हें जाने से रोक लेता, तो आज तुम मेरी दुल्हन बनकर मेरी नज़रों के ठीक सामने होतीं। न जाने क्यों मैं कमज़ोर पड़ता गया।
मैं आज भी उस दिन को कोसता हूँ अदा, जब तुम इज़हार चाहती थीं और मैं अपना दिल का हाल तक बयाँ न कर सका। मगर अब मैं वह कमज़ोर इंसान नहीं हूँ अदा। इस बार मैं अपनी मोहब्बत पूरी दुनिया के सामने ज़ाहिर करूँगा।"
"बस तुम एक बार, सिर्फ़ एक बार इंडिया आ जाओ। जैसे ही तुम्हारे क़दम यहाँ पड़ेंगे, मेरी कसम टूट जाएगी। फिर तुम्हें मेरा होने से कोई नहीं रोक सकेगा, कोई भी नहीं।"
यह टूटे हुए दिल का हाल प्रिंस का था, जो पिछले दो वर्षों से अपनी मोहब्बत से जुदा होने के ग़म में हर रोज़ तड़पता रहता था। उसमें हिम्मत नहीं थी अपनी मोहब्बत को पूरा करने की। यही तो वह कारण था जिससे अदा और उसके बीच अब वर्षों की दरार पड़ चुकी थी।
वही अदा, जो रिश्ते में अरहम की बड़ी बहन लगती थी। जैसा उसका नाम था वैसी ही उसकी अदाएँ थीं। वह बचपन से किसी मुल्क की शहज़ादी की तरह पली-बढ़ी, सुलझे विचारों वाली युवती थी। और इसी शहज़ादी का दिल हमारे शांत स्वभाव वाले प्रिंस ने कुछ ऐसा तोड़ा था कि अदा उसकी ओर देखना भी नहीं चाहती थी।
सेवेन्स्का होटल,
मिल्की व्हाइट, मक्खन जैसे बदन पर फैलता हुआ लिक्विड बॉडी लोशन था, जिसे नाज़ुक उँगलियों से बड़ी ही नज़ाकत से अपने तन पर लगा रही थी वह हसीना, हमारे सिद्धांश बाबू का जी जला रही थी। जी हाँ, उसके जिस्म के इतने करीब सिद्धांश को खुद के अलावा कोई और कैसे मंज़ूर हो सकता था? वह जितने आकर्षण से रुह के बदन के हर अंग का अन्वेषण कर रहा था, उससे बढ़कर वह आँखों में खून लिए उस बॉडी लोशन की बोतल को देख रहा था।
उफ़्फ़! बहुत गुस्सा!
उसके ख़ौलते हुए हालातों से अनजान रुह, वह बड़ी अदाओं से कमर मटकाती हुई अपने सबसे पसंदीदा गाने के बोल गुनगुना रही थी। बार-बार भीगे हुए ज़ुल्फ़ों को कभी इधर तो कभी उधर करके अपना चेहरा उसकी नज़रों से छिपा रही थी।
बड़ी जालिम थी न यह हसीना, मगर कोई नहीं, सिद्धांश उससे भी ज़्यादा जालिम है, जल्द ही पता लगेगा।
रुह के ख़तरनाक इरादे शायद आज खुद अपनी बर्बादी के लिए कहर की तरह बरसने को तैयार थे। वह नज़ाकत से भरी अदाओं से सिद्धांश के दिलो-दिमाग पर काबू कर चुकी थी।
पर यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं प्रिय, उसे उकसाओ मत।
मगर वह कहर बरसना तो उस अफ़लातून के और ख़ून में शामिल था। वह तीव्रता से जलने वाली आग और भी अच्छी तरह से धधकने के लिए अपने बदन से चिपका हुआ बेबी पिंक तौलिया बेपरवाही से खींच ले गई, जहाँ सिद्धांश की कमज़ोरी तौलिये के आज़ाद होकर ताज़ी हवा का एहसास पाने लगी।
क्या यह जानबूझकर सिद्धांश के होश उड़ा रही थी? नहीं, मतलब कोई खुद की बांसुरी कैसे बजा सकता है भला? उसने अपने मिल्की बदन से सिद्धांश को घायल ही नहीं, उसके होश भी पूरी तरह से उड़ा दिए थे।
वही सिद्धांश, उन जनाब के कहने की क्या बात? वह बेबस होकर उसके हुस्न का दीदार प्यासी निगाहों से करने लगा। वह आँखें फाड़कर बर्फ़ की तरह पर्दे के पीछे खड़ा-खड़ा अपनी ही जगह पर जम चुका था, क्योंकि रुह के मखमली अंग, जिन्हें सिद्धांश ने अपने हाथों से महसूस किए थे, वह भी बड़ी तसल्ली से...
वह यकीन नहीं कर पा रहा था, जिनकी तलाश में वह जुटा था, क्या वह इतनी बेइंतेहा खूबसूरत है? जो धीमे-धीमे हिलते हुए सिद्धांश को पागल कर रहे थे।
वह नज़ारा फटी आँखों से देखता हुआ सिद्धांश अपने बदन में अजीब सी अकड़न महसूस कर रहा था। आखिर वह भी तो हसीन मर्द था, वह अपनी पसंदीदा बेबी गर्ल को इस हाल में देखकर कैसे न गर्म होता?
उसकी नज़रों में बला की काशिश थी।
हमारी डार्लिंग रुह देख लेती, कसम से उसी पल बेहोश हो जाती।
वही सिद्धांश बाबू उस कोमल मांस को ज़िंदा और कच्चा चबाने, उसके करीब बढ़ने को तैयार था।
"उसकी निगाहें लगातार उसके अंगों पर थीं।"
आखिर सब्र किसे कहते हैं, यह हमारा सिद्धांश भूल चुका था। पर वह बंदी भी कहाँ कम थी? वह तीव्र माहौल को और भी गरम करने ढेर सारे लोशन को अपने बदन के उस हिस्से पर रगड़ रही थी, जिसके लिए हमारा सिद्धांश पिछले छह महीनों से पागल खूंखार बनकर घूम रहा था।
यह लड़की तो गई अब, बहुत तनाव!
वह सचमुच उसके लिए तरस रहा था, उसकी जंगली इच्छा चरम पर थी।
अपने गले के सूखते हुए महसूस कर रहा था वह, उसका यह हुस्न देखकर। उसकी सुरक्षा में ही बेपर्दा और बेपरवाही से खड़ी वह जालिमा, पूरी तरह से लोशन से लगाकर खुले ज़ुल्फ़ों को साइड करके एक ही झटके में अपना रुख ठीक सिद्धांश की ओर कर गई।
धूम...!!!
पन्ना जैसी हरी आँखें घुमाते हुए उस हिलते हुए पर्दे को अनदेखा करते हुए, ब्रालेट टॉप पहने लगी। बस फिर क्या था? आखिरकार वह पल आ ही गया जब रुह का बेइंतेहा खूबसूरत चेहरा सिद्धांश ने खुली आँखों से देखा था।
उसका दिल धड़कने लगा।
"कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है?"
वह जितने आकर्षण से रुह को देख रहा था, उतना ही उसका अपने ऊपर से नियंत्रण खोता जा रहा था।
उसके भाव ऐसे थे मानो वह यकीन नहीं कर सकता था कि इस दुनिया में इतनी भी खूबसूरती मौजूद है। वाकई में रुह का आकर्षण काबिले तारीफ़ था। आखिर वह अपनी खूबसूरत माँ की इकलौती बेटी जो थी। उसके चेहरे से लेकर हर अंग का दीदार पहली दफ़ा होते देख सिद्धांश के होंठों से शब्द छिन चुके थे।
(इस गाने की कल्पना करें)
"ख़ुदा भी जब तुम्हें मेरे पास देखता होगा,
इतनी अनमोल चीज़ दे दी कैसे? सोचता होगा।
तू बेमिशाल है, तेरी क्या मिसाल दूँ?
आसमाँ से आई है, यही कह के टाल दूँ।
फिर भी कोई जो पूछे, क्या है तू? कैसी है?
हाथों में रंग लेके हवा में उछाल दूँ।"
ये अल्फ़ाज़ रुह के हुस्न को देखकर सिद्धांश के लबों से निकले थे। उसकी नज़रों ने एक पल भी पलक झपकने की ग़लती नहीं की होगी।
"इतना तो तय है दिलनशीं, तुम्हारा यह बेमिशाल हुस्न, तुम्हारी ये मासूम आँखें, जिस्म का हर हिस्सा सिर्फ़ और सिर्फ़ सिद्धांश जिंदल का है।"
क्या ये लफ़्ज़ सचमुच में अहंकारी इंसान ने कहे थे? ताजुब की बात थी ना? मगर रुह, उसका बदन सचमुच चमकता हुआ सोना था, जिस पर शायद सिद्धांश का हमेशा के लिए मोहर लगाना बिल्कुल ज़रूरी था। पर सिद्धांश उसके जिस्म को पाने में बेचैन था। इसे वासना कहना ग़लत न होगा।
क्योंकि मोहब्बत की शुरुआत जिस्म की चाह नहीं रखती, मगर उसकी इच्छा इतनी तीव्र थी। फिर इस क्रूर बंदे को मोहब्बत होगी तब क्या होगा नज़ारा?
वह कामुक राक्षस बेपर्दा रुह को छूने के लिए बेताब होने लगा।
"इसके जितना कोई हसीन इस जहाँ में कोई नहीं होगा। अब नहीं रुका जाएगा मुझसे। वह मेरी है, बस यही मुझे याद रखना है। ना आज कोई दायरे होंगे ना कोई दूरियाँ, होगा तो बस मेरा कब्ज़ा इस दुनिया की बेइंतेहा खूबसूरत लड़की पर, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी है, बस मेरी।"
उससे अब रहा नहीं गया। वह पर्दा खींचकर उसके करीब बढ़ा कि तभी उसके हाथ में मौजूद एक ब्रेसलेट पर्दे के किनारे से फंस गया। शायद यह कुदरत का इशारा था जो सिद्धांश को रुह पर हसीन अत्याचार करने से रोक रहा था। वह झल्लाते हुए उस ब्रेसलेट को तोड़ता कि उसकी नज़र न जाने कैसे अपनी माँ की आखिरी निशानी, यानी उस ब्रेसलेट पर जा रुकी।
जो रुकावट में खेद बना जानबूझकर सिद्धांश को रोक चुका था, उस पर नज़र पड़ते ही सिद्धांश के दिल से सारे कामुक ख़यालात अजीब से एहसास में बदल गए। उसकी आँखें न जाने कैसे बंद हो गईं और वह गहरी साँस भर मन ही मन बोला,
"नहीं सिद्धांश, नहीं, तू ऐसा नहीं कर सकता। मैं जानता हूँ वह बहुत ही आकर्षक है, मगर तू बिना उसकी मर्ज़ी के उसे अपना नहीं बना सकता।"
"जानता हूँ वह मुझे पागल कर रही है, जी चाह रहा है उसके बदन के हर हिस्से को छूकर अपने नाम कर लूँ, मगर नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता!"
"चाहे यह लड़की मुझे कितना भी बेसब्र क्यों न कर दे, लेकिन मैं अपनी माँ को दिया वादा किसी हालत में नहीं तोड़ सकता। वह कहती है कि मैं उसका कामुक राक्षस हूँ, और हाँ, मैं वही कामुक राक्षस हूँ जो उसके होंठ, उसका सब कुछ, जो उससे संबंधित है, छीन लेना चाहता है!"
वह गहरी साँसें भरते हुए आँखों में छप चुके उसके बदन को याद करने लगा, मगर फिर से अपनी माँ की कही बातें याद आने लगीं, मानो उसे सही राह पर लाने के लिए उसकी माँ ने साज़िश रची हो।
"आह्ह्ह्ह्ह्ह मैं नियंत्रण नहीं कर सकता, मगर बिना उसकी मर्ज़ी के अगर मैंने उसे छू लिया तो माँ को दिया वादा तोड़ दूँगा, और ऐसा मैं किसी भी कीमत पर नहीं कर सकता। मैं जानता हूँ माँ आप किसी को नज़र नहीं आतीं, मगर आप कहीं न कहीं मुझे देख रही हैं, आपका एहसास मुझे आज तक महसूस होता है।
और मैं वादा करता हूँ जब तक वह खुद मुझे नहीं सौंप देती, तब तक वह सही-सलामत है, लेकिन जिस दिन वह मेरी आगोश में खुद फिसलेगी, उस पल ही वह अपने जंगली अपराधी से मिलेगी।"
"क्योंकि वह सिर्फ़ मेरी है, हाँ, वह मेरी है।"
ये शब्द नहीं, सिद्धांश की जुनूनियत की गवाही थी, जो रुह को अपना बनाने की चाह में उसने ठानी थी। उसकी आँखों में कुछ आकर गुज़रा, वह नज़ारा कोई और नहीं, मंदिर में उसके ख़ून से रुह की माँग में सजा सिंदूर था, जो शायद सिद्धांश की नज़रों में रुह पर सारे अधिकार कुदरती तौर पर उसके नाम कर चुका था। यह लम्हा याद कर वह मुस्कराते हुए मन ही मन बोला,
"तुम पहले ही मेरी हो चुकी हो किट्टन, बस अब बारी है तुम्हें अपना बनाने की। तुम्हारी सारी इच्छाएँ शिद्दत से पूरी होंगी, मगर मोहब्बत का नाम आया तो उतनी ही शिद्दत से तुम सज़ा पाओगी।"
वह टेढ़ी चीज़ था, इतना तो तय था, और हो भी क्यों न, आखिर उसकी असलियत क्रूर अपराधी की थी, जिसे मोहब्बत नहीं, अपनी वासना पूरी करने का जुनून था। मगर कुदरत ने सिद्धांश के मुक़द्दर में इश्क़ का लफ़्ज़ सुनहरे रंगों से लिखा था। बंदा अब मोहब्बत से कैसे बच पाता?
लेकिन यकीनन वह आज रुह के जिस्म में दाखिल हो उसे अपना बनाने की फिराक़ में था। ना उसे रुह की मर्ज़ी की परवाह थी, ना उसके बहने वाले आँसुओं की। वह शैतानी ख़यालातों वाला मर्द बस आज रुका था तो अपनी माँ के वादे की वजह से, जो बचपन में ही आठ वर्ष के सिद्धांश को संस्कार के तहत उसकी माँ सीमा ने सिखाए थे,
"हालात जैसे भी हों, मगर किसी भी लड़की पर हुकूमत ना चलाना। वह इंसान असली मर्द कहलाता है जो औरत की मर्ज़ी को भी इज़्ज़त दे! यह मेरी सीख है मेरे बच्चे, जो आने वाले वक़्त में तुम्हें भी ज़रूरत पड़ेगी।"
ये महज़ लफ़्ज़ नहीं, सिद्धांश के दिल में पत्थर की लकीर की तरह छप चुके थे। वह रुह से मोहब्बत करता है या नहीं, यह तो उसे ख़बर नहीं, मगर वह रुह के बेमिशाल हुस्न को पाने के लिए सारी हदें पार कर जाता, अगर आज उसकी माँ की सीख उसे याद न आती। बच गई छोटी सी जान, उफ़्फ़!
अपनी गुज़री हुई माँ के वादे में गूँथे सिद्धांश को होश तब आया जब रुह ने शॉर्ट्स और ब्लैक ब्रालेट टॉप पहनकर टीवी पर टॉम एंड जैरी तेज आवाज़ में लगाया।
वह तसल्ली से बिस्तर पर हाथ-पैर फैलाकर लेटी हुई, बबल गम फुला-फुलाकर आलसी आँखों से टीवी देख रही थी। जाना था उसे मिलान घूमने, मगर नींद पूरी न होने से वह यों ही बिस्तर पर लेट गई।
"गुड नाइट जैरी डार्लिंग, मुह्हा, चलो तुम उस बिल्लू मुसाफ़िर से (टॉम) बचो, मैं चली सोने!"
वह बेफ़िक्री से अदाएँ बिखेरती हुई कुछ पलों में ही जोर-जोर से ख़राटे मारने लगी। यह पक्का सारे गुण अपनी मासी से ले आई है। पाँच मिनट हुए थे कि यह बंदी सच में सो गई, लेकिन नींद में भी वह सिद्धांश को आकर्षित कर रही थी, क्लीवेज की गहरी लाइन से। कसम से आज ये नर्मियों को शहीद करके मानेगी।
लेकिन सिद्धांश तो रुह मैडम के ख़राटे सुन हैरत में पड़कर पर्दे से बाहर निकल आया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था, कोई इतना जल्दी कैसे सो सकता है? लेकिन बिस्तर पर पड़ी उस हसीना को देखकर वह मूर्ति बन गया।
वह बेख़याली से उसकी बंद आँखें, ब्रालेट और छोटे से हॉट पैंट से झलकता हुआ बदन का हर हिस्सा देख-देखकर सम्मोहित हो चुका था। कैसे वह ऐसा कर सकती है? उसके अरमान जगाकर फिर से आकर्षक बनकर सो गई।
यह लड़की मार खाएगी आज सच्ची।
वह अहंकारी बंदे को नींद में भी उकसा रही थी, तो फिर सिद्धांश कैसे बार-बार खुद को रोकता? उसके सूख चुके गले को तार कर सख़्त आवाज़ में बोला,
"यह लड़की मेरे सब्र का इम्तिहान ले रही है, फ़क़, जो होगा देखा जाएगा, वह मेरी है, मेरी, सिर्फ़ मेरी, उसे आज नहीं तो कल यह दर्द झेलना ही होगा, फिर आज क्यों नहीं?"
उसे उसकी हर बात का पूर्ण अधिकार था क्योंकि वह उसकी पत्नी थी। क्या कुदरत के बनाए रिश्ते पर सिद्धांश को भरोसा था? तो जवाब हाँ था, मगर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए, ना कि मोहब्बत के लिए।
मगर हुज़ूर आपको ख़बर नहीं, यह इच्छा कब इश्क़ में तब्दील हो जाएगी। ख़ैर, दृश्य पर वापस,
सिद्धांश उसके आकर्षक और उत्तेजक बदन को गहरी नज़रों से देखकर उसके करीब जा रुका। मगर जब दीदार उसके होंठों का हुआ, वह अजीब सी प्यास में तरसते हुए उसके होंठों के और करीब बढ़ गया। पहले ही उसकी वेनिला खुशबू का वह कायल था, अब शायद उसके होंठों का होने वाला था।
गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों को देखते वक़्त बला की काशिश थी उसकी आँखों में। वह एक पल भी न रुका और राक्षसी आकर्षण लिए उसके होंठों को दबोचकर चूमने लगा, वह भी पूरी सख़्ती के साथ। जो घुटन आधे घंटे के चुम्बन में होती है, वह घुटन महज़ कुछ पलों में रुह ने महसूस की। वह नींद से जागकर उस शैतान को रोक पाती कि तभी एक पल में ही रुह बेसुध हो गई।
उसके बाद क्या हुआ उसके साथ, यह तो रुह को पता न चला, मगर पाँच घंटे बाद उठने पर उसके होंठ सूजे हुए थे, और ब्रालेट जिस्म में टँगा ज़रूर था, मगर उसके स्तन बेहाल हो चुके थे, ज़्यादा दर्द में।
शाम का वक़्त,
सेवेन ओक रेस्टोरेंट
"हेलो हेलो, तुम कहाँ हो समीर? मैं पिछले तीस मिनट से इंतज़ार कर रही हूँ। मेरा मिस्टर जिंदल कहाँ है? अगर उस अकडू बूढ़े को इस डील में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो फिर मुझे यहाँ बुलाकर वक़्त क्यों ज़ाया किया? मैं कुछ नहीं जानती समीर, ना ही कोई बहाना सुनना चाहती हूँ। मैं इस डील को हथियाकर रहूँगी, मतलब रहूँगी, चाहे जैसे भी हो। ख़ुदा के लिए, बस मुझे उसका ख़ून से सना हुआ नंबर दे दो। मैं उसे बता दूँगी मुझे उकसाना कितना भारी पड़ सकता है।"
तभी सामने वाले ने कुछ कहा और रुह फिर बौखला उठी,
"मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, वह कहीं का भी शहज़ादा हो या कोई हसीन नवाब, तुम चुपचाप उसका नंबर मुझे भेज दो, वरना मैं वहीं आकर गोलियों से भून दूँगी। तुम उस सो कॉल्ड इंसान को बचाने के लिए अपनी जान गँवाना चाहते हो तो फिर मुझे भी घंटा फ़र्क नहीं पड़ता।
मैं रुह सिंघानिया हूँ, यह मत भूलना।"
गुस्से में फ़ोन काटकर गुर्राते हुए,
"मैं उस नवाबज़ादे जिंदल को उसकी औक़ात बताकर जाऊँगी, बस एक बार वह मेरे सामने तो आए, जरा मेरी असलियत से तो वाक़िफ़ कराऊँ।"
वह गुस्से में लाल-पीली बनी रुह पहले ही अपनी अजीब सी हालात को याद करके काफ़ी भड़की हुई थी, और तो और किसी जिंदल नाम के डीलर की गैर-ज़िम्मेदाराना हरकतों से उसका गुस्सा आसमान छू गया था।
स्फ़ोरज़ास्को कैसल,
ऐतिहासिक स्मारक, अद्भुत कृति जो पन्द्रहवीं शताब्दी से मिलान की धरती पर बना हुआ है, वह आम लोगों के लिए पर्यटन स्थल था, मगर रॉयल फैमिली के लिए यह व्यापारिक सौदेबाज़ी का खूबसूरत स्थान था। इस विश्व धरोहर के पश्चिम विंग में मौजूद था एक इटैलियन रेस्टोरेंट जो सेवेन ओक्स से पूरे इटली में प्रसिद्ध था।
उसी रेस्टोरेंट में खुले आसमान के नीचे मौजूद प्राइवेट कॉर्नर में एक शहज़ादी गुस्से में फुंफकार कर अपने सहायक को डाँट रही थी। पिछले एक घंटे उसने जो इंतज़ार किया था, वह कोई और नहीं, रुह थी, जिसका बढ़ता हुआ गुस्सा किसी के आँखों में घमंड भरे भाव बढ़ा रहा था।
वह बार-बार अपने बदन के नाज़ुक हिस्से, अर्थात् स्तनों को ड्रेस के ऊपर से सहला रही थी, साथ ही साथ घड़ी को देख-देखकर दाँत पीस रही थी। उसे दर्द में देख मुस्कराता हुआ वह इंसान शैतानी से हँस पड़ा,
"उफ़्फ़, तुम्हारा गुस्सा, किट्टन, यह तो शुरुआत है तड़पने की, अब बारी जरा तरसने की आएगी!" पर मैं पूरी तरह से कह सकता हूँ तुम बहुत ही स्वादिष्ट हो, और वह मिल्की मिश्रण, उम्म्म, बहुत स्वादिष्ट।
यह कौन है बताने की ज़रूरत नहीं, मगर उसकी आवाज़ में ग़ज़ब की ख़ानदानी थी, मानो अब वह रुह को तड़पाकर बदला लेना चाहता हो।
वही रेलिंग पर हाथ कसे रुह वहाँ से जाने की सोच पाती कि तभी फ़िज़ा में घुली मोहब्बत ठंडी हवा बनकर रुह की साँसों में घुलने लगी, जिनमें वही खुशबू थी जो सिद्धांश के बदन से आती थी। उसका गुस्सा यूँ ग़ायब हुआ, वह सुर्ख़ गुलाबी बन बेसब्री से इधर-उधर देखने लगी, मगर कोई नज़र न आया उस बंदी को।
"आह्ह्ह्ह्ह, यह खुशबू क्यों पागल कर रही है मुझे? आखिर ऐसी क्या बात है जो मैं हरदम इस खुशबू के पीछे पागल हो जाती हूँ।
लगता है तुझे उस बंदे को अपहरण करना ही पड़ेगा, पागल कर रखा है। बस एक बार यह डील मेरी हो जाए, मैं सीधा इंडिया भाग जाऊँगी अपने होने वाले के पास। उफ़्फ़, मेरे कामुक राक्षस, जरा मेरा इंतज़ार करना। माना आपको अपहरण करने का ख़याल है, मगर क्या करूँ, इस पापी दिल का सवाल है, वह क्या है ना, पसंद आ गए हैं आप इस शहज़ादी को।
कोई आपको मेरे पहले हथिया ले इससे पहले आपको कैद करना पड़ेगा कि नहीं, मगर आप फ़िक्र ना करें, अपने बिस्तर से बाँधकर सारी जंगली इच्छाएँ पूरी करूँगी, आप भी खुश, मैं भी खुश।
क्योंकि आप जैसे खुले सांड को छोड़ दिया कहीं मेरी जान एक बार में ही ना निकल जाए!"
यह कौन है? ये हैरानी से कहे शब्द खुद सिद्धांश के थे। वह यहाँ खुद रुह को पाने की ज़िद में लगा हुआ था, मगर यह हसीन बला तो देखो, शराफ़त से नहीं, सीधा अपहरण की भाषा कह रही थी। ग़ज़ब थी इनकी जोड़ी, उफ़्फ़, ना जाने क्या होगा इनके मिलन की रात में।
कहर बरसेगा कहर, मैं आज ही ऐलान कर रही हूँ।
भूलना नहीं।
बेसब्री से पागल उसी के इंतज़ार में तड़पती रही, मगर हमारी रुह मैडम कहाँ जानती थी, जिसे वह फिर घायल करने की फिराक़ में है, वह खुद उसके करीब क़दम बढ़ाते-बढ़ाते करीब आने को तरस रहा है, और कुछ पलों में ही आखिरकार उस वक़्त का आगाज़ शिद्दत से हुआ, जहाँ रुह का सनकी दीवाना कुछ बॉडीगार्ड के साथ बड़े स्टाइल से चलता आ रहा था।
जिसकी ख़बर अब तक रुह को न लगी, वह शरारती दिमाग़ में सिद्धांश को अगवा करने की तैयारी कर रही थी, लेकिन आज उसके पहने हुए वाइन बेरी रंग के कपड़े ने दो लोगों की जान बेरहमी से ले ली।
क्योंकि उसका कपड़ा पीठहीन भी था, और हॉल्टर नेक में वह नॉट से बंधा हुआ था।
जिससे रुह का गोरा बदन हीरे की तरह चमकता हुआ सिद्धांश के साथ आए दो बॉडीगार्ड की नज़रों में थोड़ी बगावत ले आया। बिचारे उस गुस्ताख़ी को अपने शैतानी मालिक की नज़रों से न छिपा सके, जिनका सिला उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।
तो हुआ यूँ, रुह को कुछ सुनाई देने से पहले ही सिद्धांश ने टेबल पर रखा हुआ नुकीला काँटा सीधा उन दोनों बॉडीगार्ड के गले में घुसा दिया, जो उन्हें उसी पल मौत के घाट उतार गया और चुटकी बजाते ही दो लाशें कैसे ग़ायब हुईं, कुछ पता न चला।
अब इस नज़ारे को क्या कहेंगे जनाब? क्या इसे भी इच्छा का नाम देंगे? सिर्फ़ नज़रें पड़ी थीं उन बॉडीगार्ड्स की, फिर भी मार डाला, वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!
कि तभी जरा सी आवाज़ रुह के कानों में गई। वह मुँह बनाते हुए पलटी, मगर अपने ठीक पीछे खड़े काली-काली आँखों वाले उस इंसान को बेहद नज़दीक देखकर वह डरते हुए उसके बाहों में जा गिरी।
वह दोनों काफ़ी देर तक एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे।
और रुह तो पूरी तरह से मूड ऑन करके उस बंदे को ताड़ रही थी।
"कसम से क्या बवाल चीज़ है?"
ऐसा हमारे रुह के होंठों ने बुदबुदाते हुए कहा, और होंठ पढ़ने में माहिर सिद्धांश जो रुह के नैन-नक्श को सरगोशी से देख रहा था, उसकी नज़रों से भला कैसे छुपता? लेकिन वह चुप था, बस मुस्कराते हुए अजीब अंदाज़ में उसकी कमर सहला रहा था, जिससे ज़्यादा सरसराहट पैदा हो रही थी रुह के बदन में।
वह मदहोश पूरी तरह से होती, इसके पहले ही उसे कामुक राक्षस का ख़याल आया। वह घबराकर खड़ी हुई, लेकिन उसकी नज़रें सिद्धांश के हैंडसम चेहरे पर ही टिकी थीं।
वह पूरी तरह से चकित हो गई। कुछ भी कह लो, वह उसके सामने खड़ा हसीन मर्द उसके दिल की धड़कनों को बढ़ा रहा था, मगर फिर से मंदिर का नज़ारा याद आया, जहाँ माता रानी के आशीर्वाद से वह किसी और की हो चुकी थी। उस पल को बस याद करने भर से ही रुह की नज़रें अपने आप उस दूसरे मर्द से हट गईं।
जो सिद्धांश को गुस्सा दिला रहा था, पहले उसके बाहों से निकलना और फिर नज़रें फेरना। वही रुह अजीब सी कामुक उत्तेजना को महसूस कर होंठ काटते हुए बोली,
"पागल लड़की, यह बंदा तेरा नहीं, कोई और मुंडा है। तू भूल कैसे गई है कि वह बंदा मेरी माँग भर चुका है।
इस बंदे से अपनी नज़र हटा ले रुह, वरना यह ग़लत है। मगर कसम से यार, अगर मैं उस बंदे से फ़िक्स नहीं होती ना तो मैं इस पर दो-चार बार लाइन मार ही लेती, लेकिन छोड़, यह उतना भी ख़ास नहीं। मैं किसी और की हूँ, बस इतना ही काफ़ी है। अब कोई भी आए, मेरी नज़रों में उनके सिवा किसी की अहमियत नहीं।"
वह सिद्धांश को दूसरा मर्द समझकर उससे नज़रें फेरकर वहाँ से जाने लगी, लेकिन उसकी एक नज़र से घायल हो चुका सिद्धांश यूँ उसकी अनदेखी बर्दाश्त न कर सका और बिना हिचकिचाहट के उसकी कमर को पकड़कर अपने सीने से लगा लिया, उसके बालों पर से हाथ फेरने लगा। यूँ अचानक से क्या हुआ, रुह को कुछ न समझ आया। वह इस बदतमीज़ी के लिए भड़कती, लेकिन वह खुद ब खुद शांत होने लगी। वह महफ़ूज़ थी उसकी बाहों में। यकीनन, उसकी बाहों के घेरे में वही महफ़ूज़गी थी जिसे महसूस कर वह हैरानी से उसे देखने लगी।
तभी उसने सुना,
"मत हिल, अब तुम ठीक हो बेबी गर्ल?"
यह ठंडी प्रभुता से भरी आवाज़ उसके कामुक राक्षस की थी, जिसे सुनकर रुह की हैरानी की सीमा नहीं थी।
"वही आवाज़, क्या बात? यह मेरे कामुक राक्षस...? मगर यह आँखें, इनका रंग...?!?"
दोस्तों, कैसा लगा अध्याय? जरा अच्छे से बताएँगा कमेंट सेक्शन में।
पहली मुलाक़ात में सिद्धांश को इश्क़ हो जाए, यह उसकी फ़ितरत में नहीं, लेकिन मोहब्बत का आगाज़ जो पहले ही उसके दिल में हो चुका है, जिस दिन सिद्धांश जान लेगा, उस दिन इश्क़ का सैलाब आएगा, यह तो तय है।
जल महल।
"ओए होय होय! दिखाओ दिखाओ जरा हमारे होने वाले जीजा जी को! हाए! क्या जलवे हैं! मर जावाँ मैं तो अपने ही जीजू जान पर! मुँहहा! नज़र नहीं हट रही मेरी तो! यूँ जिन्हें आप अजीब सा मुँह बना बनाकर घूर रही हैं ना, कसम से आपकी जगह मैं होती ना, सिसो, शादी-वादी की झंझट छोड़ो, सीधा दूल्हे को भगाकर उस बंदे का चीरहरण कर देती मैं।"
"आपको पता नहीं है मेरे इस छोटे से दिमाग में कैसे-कैसे ख्याल आते हैं। एक बंदा, बस एक भला-चंगा बंदा, मेरे हाथ लगने की देरी है। मैं तूफ़ान बनूँगी, बेशर्मी की सारी हदें पार करूँगी, वो भी सरेआम।"
जल महल के टेरेस पर तेज हवाओं में उड़कर पागल जैसी बातें करने वाली कोई और नहीं, छोटी सी फुलझड़ी निधि थी। जो अपने होने वाले (हरमन जीजू) को हरनाज के नाक के नीचे से भागने की बात बेपरवाही से कह रही थी, बिना ये जाने कि आज उसकी बलि चढ़ने की तैयारी आर्हम जल महल के बैकग्राउंड शेप में बने एक कमरे में कर चुका है। यह वो स्पेशल कमरा था जहाँ आर्हम, रिधान और उसके भाई लोग मिलकर पार्टी किया करते थे।
मगर निधि को सातवें आसमान के ऊपर उड़ते देख हरनाज ने उसके सिर पर चटाक से थप्पड़ मार, जमीन पर नहीं, सीधा पाताल लोक में पटकते हुए बोली,
"ओए पिद्दी सी चमगादड़नि! अपनी उम्र तो देखो! बाली उम्र, पतली कमर थिरकाने को कूद रही है। आर्हम को मालूम पड़ गया ना, सीधा हलाल हो जाएँगी आप।"
"और अगली दफ़ा हरमन के बारे में कहा ना तो दो काँटे लगाऊँगी कान के नीचे। ज़्यादा जीजा जी, जीजा जी ना बोलो। भूलो ना वो मेरे दूर के पति हैं, तो उन पर इन फ़ालतू के लफ़्ज़ों का इस्तेमाल और हवस भरी नज़रों का कमाल ना ही दिखाओ तो बेहतर है।"
"वैसे सच कहूँ, तुम उसे मुफ़्त में भी हड़प लोगी ना, मुझे कोई घंटा फ़र्क नहीं पड़ेगा। पता नहीं क्या देखकर मैंने इस अजीब से बंदे को पसंद कर लिया। पहले तो बड़ी मीठी-मीठी बातें करता था ना जान, आजकल अजीब सी हरकतें कर रहा है। मुझे तो पक्का शक है इसको बंधियों में नहीं, किसी लड़कों में इंटरेस्ट है।"
क्या वो गलती से अपने फ़िआंसे को सही आँक रही थी? किसे ख़बर? मगर अपनी सिसो का अजीब सा मुँह बनता देख छोटी सी निधि उसके कंधे हिलाकर बोली,
"ओह मेरी सिसो! यूँ कहाँ खो गई? अब टेंशन ना फ़रमाओ मेरी जान। आओ आज आपको यही चमगादड़नि एक शेर हाज़िर करती हूँ। जरा दिल थाम के सुनना, ये मैंने बड़े दिल से आपके लिए लिखा है।"
जिस पर उसकी सिसो आँखें चढ़ाते हुए बोली,
"इरशाद इरशाद!"
"फ़रमाइश साहिबा आपकी अजीब सी बेबुनियाद शायरी।"
तो सुनिए हुज़ूर (निधि कहती है जरा इतराकर)!
"चमगादड़ के इश्क में मक्खी दीवानी हो गई,"
"बिलौटे के इश्क में बिल्ली सयानी हो गई,"
"और अपनी मोहब्बत का रसगुल्ला तो मुझे ही खिलाना ओ मेरे मच्छर,"
"तेरे इश्क में ये फीमेल मच्छर भी मच्छरदानी हो गई!"
"वाह! वाह! वाह! वाह!"
ये शायरी पूरी हुई नहीं कि वो अपनी सिसो का फ़ोन लेकर भाग गई। क्या कह गई ये?
ये सवाल नाज़ का था। वो हैरत में पड़ी उसे भागते हुए देख रही थी। क्या वो हरनाज का मज़ा उड़ा ले गई?
जब तक हरनाज के पल्ले वो शायरी पढ़ पाती, निधि फ़्लैश की स्पीड से भागकर सीधा लिविंग हॉल की ओर भागी। मगर जाने से पहले उसने नाज़ के फ़ोन में कुछ छेड़छानी की, जिसका असर शायद जल महल पर भारी पड़ने वाला था। वो अजीब सी मिस्टीरियस स्माइल किए वहाँ से भागी, सीधा लिविंग एरिया में आकर रुकी।
जहाँ का मंज़र कुछ यूँ था: सारे घर वाले फटी आँखों से दरवाज़े को देख रहे थे, क्योंकि मेन एंट्रेंस पर रिधान और फ़िज़ा शादी का जोड़ा पहने, हाथों में हाथ लिए खड़े थे।
जहाँ फ़िज़ा के खूबसूरत बदन पर अब सफ़ेद सूर्ख गरारा नहीं, हैवी जरी का काम किया हुआ ग़र्द लाल लहंगा था। उतना ही नहीं, वो सोलह श्रृंगार किए, मांग में रक्त लाल सिंदूर और गले में बड़ा सोने का मंगलसूत्र पहने, भीगी नज़रों को झुकाए रिधान की मज़बूत पकड़ अपनी हथेली पर महसूस कर रही थी।
उसे सारे घरवालों से डर लगना चाहिए था, लेकिन नहीं। वो कांप रही थी तो सिर्फ़ रिधान के गुस्से से। वो शादी का जोड़ा साफ़ बता रहा था कि रिधान ने दोनों मज़हब का मान रखते हुए फ़िज़ा को अपनी बीवी बनाया था, मगर क्या सच में वो बीवी होने का हक़ देगा, ये तो वक़्त ही बताएगा।
वही सारा सिंघानिया परिवार, जिनमें से कुछ लोगों को पहले से ही इस अचानक से हुई शादी का अंदाज़ा था, उनमें से दो शख़्स, जो और कोई नहीं रिधान के मॉम-डैड थे, वो आँखों में फ़र्क़ लिए अपने बेटे को देख रहे थे। माना फ़िज़ा के लिए सीरत को कहीं ना कहीं फ़िक्र थी, मगर वो जानती थी उसका बेटा कितनी शिद्दत से उसे चाहता है, वो भला फ़िज़ा को क्या ही चोट पहुँचाएगा। मगर वो ग़लत थी, बिल्कुल ग़लत।
वो दिल टूटा आशिक बन चुका था, जिसकी कीमत फ़िज़ा को बेरहमी से चुकानी थी।
हमारी दूल्हे राजा की मम्मी, सीरत, हरे रंग की जॉर्जेट साड़ी पहनकर, चेहरे पर दुनियाँ-जहाँ की मुस्कान सजाए, अपने बेटे-बहू की आरती उतार, फ़िज़ा के पैरों के करीब नीचे कलश रख रही थी, ताकि उनका गृहप्रवेश सही तरीके से हो जाए।
"फ़िज़ा, जो हुआ उसे भूलकर नए रिश्ते की डोर सही वक़्त रहते सम्भाल ले। हमारा बेटा है वो, आपको डरने की ज़रूरत नहीं।"
"सुनिए वीर (रणवीर) जरा अपने बेटे को थोड़ी हिदायत दे दीजिए, कहीं आपके कदमों से कदम मिलाकर ना चलने लगे।"
सीरत अपने पति को घूरती हुई रिधान को सलाह देने को कह रही थी, जो खुद आज तक नहीं सुधरे थे। वो बेटे-बहू की खुशी में बड़े खुश थे, मगर उनका ध्यान सीरत की साड़ी से झाँकती हुई उसकी नाज़ुक कमर पर था। वो हसरत भरी निगाहों से सीरत की कमर देखकर बोले,
"बेटा है वो मेरा, अगर मुझसे दस कदम आगे ना निकला तो कहना। अपनी मॉम की बकवास मत सुनो, रिधान माय बॉय।"
(सीरत की छोटी आँखें देख जनाब ने फटाफट से अंदाज़ बदलकर कहा,)
"घूरों मत समझी, तुम चलो मेरे साथ। और रिधान, जो करना है करो, मगर मेरी बच्ची को तंग मत करना!"
ये कह रणवीर सीरत की कमर में हाथ डाल उसे अपने से सटा गए और सीरत की नज़र हटते ही अपने बेटे को थम्स अप दिखाने लगे। घर के बड़े रणवीर जी का ये मिजाज़ देखकर रिधान ना में सिर हिला गया और आहान, प्रिंस, आर्हम टेढ़ी स्माइल किए हँसने लगे।
तो वही शिरविल (रणवीर के छोटे भाई), वो कहाँ कम थे? वो भी अपनी बीवी, पीयाली को सीने से लगाकर बोले,
"जाओ जाओ, भाभी और मेरी पीयू को पकड़ लिया है हमने। अगर इन दोनों के चक्कर में रहे ना तो सुहागरात का वक़्त निकल जाएगा, मगर रस्में नहीं ख़त्म होंगी। हमारी शादी का वक़्त याद है हम दोनों को? क्यों भाई? कुछ घंटों में सुहागरात होती है भला?"
दोनों भाई आज तक नहीं सुधरे, बेशर्मी के सरताज जो ठहरे।
तो वही पीयाली (रिधान की मासी), जिनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, उसके बेटे ने पुराना इतिहास फिर से एक दफ़ा जो दोहराया था, वो बड़े फ़ख़्र से अपने लाडले बेटे को देख दोनों की बलियाँ उतार रही थी, लेकिन उनके पति ने कसकर पकड़ रखा था, और मुँह भी बंद था, इस कारण फड़फड़ाने के अलावा कुछ ना कर सकी। मगर कुछ देर में होने वाली हालत के बारे में सोचकर रणवीर और शिरविल ने उन दोनों बहनों को छोड़ दिया, ताकि कोई तो रस्में बराबर से हो सके।
जहाँ सारे घरवालों के बीच खुशी का माहौल था,
मगर रिधान, जिसकी आँखें हर वक़्त फ़िज़ा के लिए मोहब्बत नज़र आती थीं, आज उसकी नज़रों में अजीब सा खालीपन था, जो कुछ पल में ही फ़िज़ा के लिए बड़ा ख़ौफ़नाक साबित होने वाला था। ये तो रिधान की कसती हुई हाथों की पकड़ बता रही थी। उसने जो अब तक अजीब सी चुप्पी साधी थी, वो अजीब से सर्द अंदाज़ में बोला,
"मॉम, मासी, डोंट वरी, आपके बहू की ख़ास ख़िदमत होगी। जो हुआ वो मैं कब का भूल गया। अब बीवी है मेरी तो नाराज़गी कैसी? उसे पलकों पर बिठाऊँगा, है ना मेरी जानम? आप तो जानती हैं मैं आपको कितना चाहता हूँ। अगर तुम्हें जरा भी दिक़्क़त हो ना, तस्सल्ली से मॉम को कह सकती हो, मगर फ़िक्र ना करो, मैं मौक़ा नहीं दूँगा तुम्हें कुछ कहने का, मेरा मतलब है तुम्हें शिकायत करने का!"
वो बड़े ही संजीदगी से फ़िज़ा का रखवाला बन, अजीब सी स्मर्क कर रहा था, जो उसके तीनों भाई साफ़ महसूस कर चुके थे। जहाँ तक उसके डैड भी, मगर कोई भी रिधान के मामले में नहीं आना चाहता था। सबकी अपनी वजह थी, मगर बिचारी फ़िज़ा का बदन ठंडा पड़ चुका था उसके कहे अंदाज़ से।
"ना करे हम पर सितम शौहर जी, आपकी फ़िज़ा ये बेरुखी सह नहीं पाएगी।"
उसके आँखों से आँसू यूँ ही बह निकले, जिन पर रिधान के अलावा किसी की नज़र ना पड़ी।
कुछ पल में ही,
अंगूठी ढूँढने की रस्म गृहप्रवेश के बाद बड़ी धूमधाम से हुआ, जहाँ रणवीर ने फ़िज़ा के नाम पर अरबों की जायदाद उसे शगुन के तौर पर दी, और सभी ने मुँह-दिखाई के पहले ही काफ़ी सारे तोहफ़े फ़िज़ा को दिए।
अब बारी सुहागरात की थी, जिसकी तैयारी में जुटे आहान और हरनाज के बड़े प्रिंस, उनका कमरा फटाफट रेडी करके हरनाज और निधि को फ़िज़ा को तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंप,
रिधान को समझने के लिए चल पड़े, जो मज़ीद बड़ा ज़रूरी था उसे समझना। तो वही सारे लोगों को आपस में बिजी देख आर्हम निधि को बेहोशी के आलम में डालकर कंधे पर उठाकर आज रात सुकून से रूबरू होने निकल पड़ा। तो सभी निधि की गई चाल-बाज़ी से एक शख़्स जल महल की सिक्योरिटी तोड़कर ना जाने कैसे हरनाज के कमरे तक पहुँच गया।
ये आखिर हुआ क्या? ये तो कल ही पता चलेगा, मगर ज़रूर कुछ तो बड़ी गड़बड़ होने वाली थी, इतना तो तय था।
टेरेस पर।
"इस वक़्त तुम पेशेंस चाहकर भी नहीं रख पाओगे, मगर फिर भी कहूँगा कम से कम जब तक पूरी सच्चाई ना पता लग जाए, उस मासूम को तुम कोई सज़ा नहीं दोगे। माना कि वो इस घर की बहू बन चुकी है, लेकिन मेरी नज़रों में हमेशा ही मेरी छोटी बहन की तरह है। उम्मीद करूँगा तुम उसे तकलीफ़ नहीं दोगे। अगर जुर्रत की तो तुम्हारा सामना सीधा मुझसे होगा!"
ये सख़्त हिदायत हरनाज के बड़े भाई, प्रिंस ने दी थी, जो नरम दिल, शालीन स्वभाव का बंदा था। तो वही आहान, जो (रणवीर के कज़िन भाई, रित्विक आहूजा का बेटा था), वो रिधान जैसा उग्र स्वभाव का मालिक, रिधान के गुस्से को भड़काते हुए बोला,
"तुम्हें भाई की बात सुनने की कोई ज़रूरत नहीं। प्रिंस भाई, हर वक़्त शांति से काम नहीं लिया जाता। कभी-कभी सामने वाले को काबू करना ही सही होता है, और मैं तुम्हें यही सलाह दूँगा। रिधान, मौक़ा मिलते ही उसे काबू में करो, वरना आज की दुनियाँ का भरोसा नहीं, लोग मासूमियत के नाम पर कब धोखा दे जाते हैं, पता भी नहीं चलता!"
वो माज़ी (पास्ट) में हुए किसी हादसे को याद करके बस कहता जा रहा था। आहान पर फ़िलहाल रिधान की नज़र तो नहीं थी, मगर प्रिंस की नज़र पड़ चुकी थी, जिस पर प्रिंस ने फ़िलहाल उसे कुछ कहने की बजाय रिधान को समझाकर उसके कमरे ले बाहर छोड़कर, आहान का हाल जानने चला गया।
तो वही रिधान, जिसका सख़्त चेहरा अब तक एक्सप्रेशनलेस था, अब वो टर्न ऑन होकर दहशत भरे अंदाज़ में दरवाज़े को किक मार बिस्तर पर बैठी हुई अपनी नई-नवेली दुल्हन को देखने लगा।
जो बिस्तर पर अपने नाज़ुक बदन को समेटे रिधान के ख़ौफ़ से कांप रही थी।
"ख़ौफ़ तो मेरी दुल्हन ख़ौफ़ खा रही है। ओह मेरी जानम! आप तो अभी से घबरा गई। आज तो अपने शौहर को खुश करना है ना, तो इतने कपड़े पहनकर क्यों बैठी हो?"
उसका टेढ़ा अंदाज़ एक झटके में बदल गया। उसने फ़िज़ा के ओढ़े लाल चुनर को लगभग खींचते हुए रूम के किसी कोने में पटक दिया।
"सुना नहीं? उतारो इन कपड़ों को! आई सेड स्ट्रिप!"
उसकी चीखती आवाज़ से फ़िज़ा का वजूद कांप उठा। उसे यक़ीन ना हुआ ये वही रिधान है जो फ़िज़ा को संजोकर रखता था, मगर आज उसकी इज़्ज़त पूरे हक़-हुक़ूक़ से माँगता हुआ उसका शौहर उसे जुल्मी आशिक़ से कम ना लगा। वो थर्रा उठी उसके जुल्मी (शब्दों) पर।
"ओह बगावत! वो भी मुझसे? है इतनी हिम्मत जो मुझे रोक पाओगी? बड़ा शौक़ चढ़ा था ना निकाह करने का, किसी की बीवी बन उसकी कुर्बत में पिघलने का? फिर रुक क्यों गई?"
"अगर तुम सोचती हो तुम्हारे ये आँसू, तू डर के मारे कांप उठना मुझे रोक लेगा तो नहीं मेरी दुल्हन, बिल्कुल नहीं! आज तो तुम्हारी तड़प बुझानी होगी पड़ेगी। आखिर तुम्हारी जवानी जो फूट रही थी।"
ये कहते हुए वो फ़िज़ा को काँपते देख शैतानी हँसी हँस पड़ा, जिससे फ़िज़ा का अंग-अंग ठंडा पड़ने लगा। वो एक अभगिन बीवी से कम नहीं थी, जो अपनी मुकम्मल होती मोहब्बत को बर्बादी के कगार पर जाते बेबसी से देखे जा रही थी।
उसके चेहरे पर बेइंतिहा दर्द था, जिसकी परवाह आज उसके मुहाफ़िज़ को भी ना थी। उसने कुछ सोचकर ठंडी आह भरी, और बड़ी हिम्मत करके कुछ लफ़्ज़ कहे,
"उतार देंगे हर ज़र्रा जो अब तक पर्दा बनकर हम दोनों के दरमियान है। देंगे आपके शौहर होने के सारे हक़-हुक़ूक़। कर देंगे पूरी ज़िंदगी आपके नाम, मगर मेरे शौहर जी, क्या आप बस एक बार हमारी गवाही सुनेंगे? बताएँगे, सुनेंगे हमारी मजबूरी।"
"कसम है हमारे अल्लाह की, ये फ़िज़ा क़यामत तक आपका साथ निभाएगी, जैसा आप चाहेंगे, ठीक वैसे कहिए, मंज़ूर है?"
ये लफ़्ज़ नहीं, उसके हर कतरे-कतरे से निकल रहे दिल के असल हालात थे, जिसकी छोटी सी मीठी बातों में हमेशा रिधान से भागने की तैयारी होती थी, आज वही फ़िज़ा इतने सारे अल्फ़ाज़ इकट्ठा कह गई, जिनका साफ़ मतलब था वो अपनी बेगुनाही पेश करना चाहती थी। मगर अफ़सोस, अब हाल उसके साथ नहीं था।
धड़ाम की आवाज़ से दरवाज़ा बंद हुआ, और गरजती दहाड़ से फ़िज़ा का बदन सरसराहट से फिर कांप गया।
"शट द फ़क अप!"
"ज़ुबान खींच लूँगा अगर एक और लफ़्ज़ कहा। नहीं सुनना तुम्हारी बेगुनाही का तंत्रम। क्या होता अगर मैं कुछ पल देर से आता? बोलो, क्या होगा अगर मैं आ ही नहीं पाता? तुम आज रात मेरी नहीं, किसी और गैर-मर्द की हो जाती।"
वो दहाड़कर कमरे का हर सामान तोड़ने लगा। वो कैसे भूल सकता था वो फ़ीलिंग, जब उसने फ़िज़ा का निकाह होने की ख़बर सुनते ही महसूस किया था। सच तो ये था, वो मर रहा था, हर पल, हर सेकेंड कैसे बीते थे, ये वही जानता था। क्या फ़िज़ा का सॉरी कहना काफ़ी था? तो जवाब था कतई नहीं।
उसके दर्द का मर्ज़ कहलाने वाली फ़िज़ा खुद कभी ना ठीक होने वाला घाव दे गई, जिसकी कीमत वो बिस्तर पर सिमटी काँपते हुए अनगिनत आँसुओं से चुका रही थी।
उसकी सुरमई आँखों में ख़ौफ़ था, अपने शौहर जी का तो बिना ज़ख़्मों की परवाह किए हर बेशकीमती सामान तोड़े जा रहा था। वो भूल नहीं पाया फ़िज़ा का दिया धोखा।
मगर कुछ पल बाद ना जाने क्या हुआ, वो फ़िज़ा के करीब बढ़कर उसे बिस्तर पर खड़ा कर गया, जिससे फ़िज़ा घबराती हुई देखे जा रही थी। तभी च्र्र्र्र की आवाज़ से उसके जिस्म में मौजूद चोली जा फटी, और चोली ही क्यों, लहंगा भी फटकर उसके जिस्म से जुदा हो गया, और अगले ही पल वो रेड इनर वियर में बिस्तर पर जा गिरी। उसके सोचने-समझने के पहले ही रिधान उसके ऊपर कूद पड़ा,
और बड़ी ही बेरहमी से उसके होंठों को चबाने लगा, और उसके सख़्त हाथ वो अब थमे ना। आज फ़िज़ा की जान लेने की तैयारी में उकसे हाथ सीधा फ़िज़ा के उस नाज़ुक अंग पर पहुँच गए, जो लोवर इनर से अब तक छुपा था। मगर महज़ चंद सेकेंड में एक दर्द भरी चीख़ फ़िज़ा की गूँज उठी जब रिधान की उंगलियाँ उसकी गहराई में शिद्दत से उतरीं,
जिससे फ़िज़ा की आह्ह्ह्ह्ह नहीं, जोरदार चीख़ का आगाज़ हुआ। मगर अब तो सिलसिला इससे भी सख़्त होना था, जब फ़िज़ा की हर चीख़ पर उसकी उंगलियाँ बढ़ेंगी। वो ठीक से चीख़ नहीं पाई कि तभी रिधान के उसके होंठों को बेहाल करके कहा,
"चीखो मेरी जानम और चीखो! आज पूरी रात इन्हीं चीखों में बदलने वाली है। आ-आ-आँसू रोकना नहीं, बेइंतिहा बहाना है! उफ़्फ़! बड़ा दर्द होगा मेरी जानम को! मगर क्या करूँ? आज तुम्हें रुलाने की कसम खाई है। बिना दर्द दिए रुकूँगा नहीं। जरा आँसू बचाकर रखना, आगे होने वाला एक-एक मंज़र आपको जहन्नुम की सैर करवाएगा।"
वो स्मर्क करते हुए उसके होंठों को पीने लगा, और फ़िज़ा, जिसने रिधान को टूटकर चाहा था, वो बेबुनियाद सज़ा भुगतने के लिए खुद को तैयार करने लगी।
आज होने को थी उसकी बर्बादी, जिसके नाम पर एक वक़्त में रिधान पूरी दुनियाँ करना चाहता था।
तो वही दूसरी ओर,
मिलान में,
सिद्धांश के चौड़े सीने में समाई रूह बेख़याली से उसे देखे जा रही थी। ना जाने आखिर कौन सी कशिश थी सिद्धांश की लेंस लगी हुई उस काली आँखों में?
"डोंट मूव। नाउ आर यू ओके बेबी गर्ल?"
तभी उसने सिद्धांश की असली आवाज़ सुनी, जिसमें जरा फ़िक्र भी छुपी थी। मगर वही आवाज़ का दीदार फिर से हुआ जो रूह को उसके हॉर्नी मॉन्स्टर की याद दिला गया।
मगर ताजुब की बात ये थी उसकी फ़्रेगरेंस रूह के शहज़ादे से बिल्कुल जुदा थी। वो कन्फ़्यूज़्ड होकर अंदर ही अंदर पागल हुए जा रही थी, जो उसके बदलते हाव-भाव सिद्धांश को उसके दिल का हाल चीख-चीखकर बता रहे थे।
"क्या बात है? शायद आपको मेरी बाहों में रहना कुछ ज़्यादा ही भा रहा है। कहो तो मैं सारी डीलिंग इसी तरह बाहों में पकड़े हुए कर सकता हूँ।"
वो मज़ीद उसका मज़ाक उड़ा रहा था, जिससे होश में आई रूह सकपका गई, और बाहों से निकलकर चेयर की ओर जाने लगी।
"शेम ऑन यू रूह! नाक कटवा के रख दी! क्या सोचेंगे वो? उफ़्फ़! लेकिन इसी बंदे से तेरी मीटिंग फ़िक्स्ड होनी थी? अब कैसे मैनेज करेगी?"
वो अजीब सी कशमकश में उलझी हुई थी कि सिद्धांश ने स्मर्क करते हुए उसके लिए बड़ी शराफ़त से चेयर खींच दी। वो कैसे ना फ़्लैट हो उस जेंटलमैन पर? मगर रूह मैडम, ये बदले-बदले मिजाज़ सिर्फ़ आपके लिए हैं, वर्ना ये बंदा सिवाय जान लेने के कुछ ना जानता था।
वो स्टाइलिश अंदाज़ में रूह के सामने जा बैठा और बड़ी नर्मियत से बोला,
"यू वांना नो अबाउट मी? आई मीन अबाउट माय डील।"
"क्या आप छूकर देखना चाहती हैं मुझे? मेरा मतलब है इस लीगल डॉक्यूमेंट को? उम्म्म्म्! यू लुक वेट, आई मीन पसीने से भीगी लग रही है। क्या आप परेशान है? क्या आप पकड़ना चाहेंगी मुझे?"
"यानी कि मेरे लैपटॉप को? इसी में सारी डिटेल है इस डीलिंग की। यू वांना सक माय... आई मीन ये टॉफ़ी। आई थॉट आपको ज़रूरत है इसे खाने की।"
"आर यू ओके? मिस...किट...रूह सिंघानिया।"
"ओए होए होए! आज तो कुछ लम्हों में ही रूह को हैरत में डाल गया बंदा। उसकी डार्क डिज़ायर यूँ घुमा-घुमाकर सामने लाई। वो बंदी शर्म से पानी-पानी हो गई। कसम से उसका मुँह देखने लायक था।"
तो वही सिद्धांश का इतना बवाल अंदाज़ कोई जानने वाला देख लेता, यक़ीनन बेहोश पड़ा रहता अर्से तक। फ़िलहाल तो हमारी रूह बेहोश होने की हालत में थी।
वो काफ़ी देर तक सुन्न पड़ गई, मगर ना सिद्धांश ने कुछ कहा ना हमारी रूह ने। माहौल को हॉर्नी होते देख सिद्धांश ख़राश के साथ बोला,
"मिस रूह, आप देखना नहीं चाहेंगे ये प्रेज़ेंटेशन। आफ़्टर ऑल हम दोनों इस डील पर काम करने वाले हैं। ओह यू डोंट नो अबाउट दिस कोलैबोरेशन, बट आई वांना टेल यू, ये डील कुछ कंडीशंस के तहत मर्ज की गई है, तो आज से हम दोनों साथ काम करने वाले हैं।"
"एंड आई थिंक आप की तबियत कुछ ठीक नहीं है। लेट्स गो फ़ॉर वॉक।"
"इस डॉक्यूमेंट पर साइन कर लो, बाद की मीटिंग आराम से होगी।"
ये कहकर उसने बिना रूह की मर्ज़ी सुने उसके नर्म हाथों में पेन पकड़ाकर उससे साइन करवा गया। एक बिजली का झटका सा लगा था उस पल दोनों के बदन में। जहाँ रूह तो घायल हो गई, मगर सिद्धांश ने खुद पर काबू पा लिया।
इस पल रूह को होश भी नहीं था वो कहाँ साइन कर गई। ना जाने क्या जादू सा छाया था, वो बिना उसे रोके बस उसके हाथ में हाथ मिलाए उसके साथ कदम बढ़ाती गई, और कुछ पल में ही वो गार्डन में थी, बेख़याली से सिद्धांश से नज़रें चुराते हुए।
उस कैसल में बना गार्डन उन दोनों की मोहब्बत का पहला रूमानी दास्ताँ लिख रहा था, जहाँ दोनों की ज़ुबान सिली थी, मगर अहसास कुछ पनप सा रहा था कि तभी एक टर्निंग पर वो दोनों जैसे ही टर्न लेने को चल पड़े, एक ज़हर भरी गोली किसी दिशा से आकर सिद्धांश के बाजू को चीरती हुई उसे ज़ख़्मी कर गई।
ये सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि रूह के समझ में कुछ ना आया। जहाँ वो डरी हुई थी, चीखती-चिल्लाती हेल्प को पुकारने लगी। ना जाने क्यों मगर उसका दिल दर्द में था, सिद्धांश के बहते ख़ून को देखकर।
"ये क्या हो गया? प्लीज़-प्लीज़-प्लीज़! आप आँखें बंद ना करना। मैं हूँ आपके साथ। जस्ट गिव मी सम टाइम। मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी! प्लीज़ आप आँखें बंद मत करना, मेरी सुन लीजिए। मुझे आपको इस हालत में देखा नहीं जा रहा।"
वो घबराती हुई अपने दिल का हाल बेख़याली में कह गई, मगर सिद्धांश वो बिना कहे आँखें मूँदकर मन ही मन बोला,
"नाउ गेम इज़ ऑन, मिसेज़ रूह जिन्दल!"
"जिन्दल? मगर ये कैसे हुआ?"
अब आएगा मज़ा जब रूह ले जाएगी अपने होटल उस अनजान मेहमान का ख़ास ख़्याल रखने। क्या होगा आज की रात?
तो आज रात रिधान-फ़िज़ा, नाज़ और मिस्ट्री मैन, निधि-आर्हम, और लास्टली हॉटेस्ट कपल बिताएँगे पूरी रात साथ-साथ।
गाइस, अब तो लगेगी फ़ायर! दिल थामकर रखना।
जल महल
"आह्ह्ह्ह छोड़ो! छोड़ो! कौन है तुम? दे दे दे! खो! तुम जानते नहीं हो मुझे? मैं जान ले सकती हूँ तुम्हारी! अगर अपनी जान बचाना चाहते हो तो भाग जाओ यहाँ से! इसके पहले कि तुम भागने लायक ना बचो!"
वह पूरी तरह से आँखों पर पट्टी बंधी हुई थी। उसे यह भी नहीं पता था कि वह कौन है।
धक-धक करता हुआ उसका सीना धड़क रहा था, लेकिन किसी दिलजले को बड़ी शिद्दत से उकसाया जा रहा था। ये सन्नाटे में गूंजती हुई उस मिस्ट्री मैन की गर्म साँसों की मालाएँ बता रही थीं, जो नाज़ के गुस्से को हद से ज़्यादा बढ़ा रही थीं। मगर उसके गुस्से की परवाह उस मिस्ट्री मैन को थोड़ी भी नहीं थी, बल्कि अब तो बेशर्मी का आगाज़ होना था।
लेकिन वह अपने ही कमरे में, आँखों पर पट्टी बंधी हुई और हाथ-पैरों में बंधी हुई, खूंखार शेरनी की तरह गुर्राती नाज़ उसकी अनचाहे बंधक बनी छटपटा रही थी। उसे जरा भी इल्म नहीं था कि वह अपने ही कमरे में कैसे कैदी बन गई?
वह गुस्से में चीखती-चिल्लाती रही, मगर उसे कैद करने वाला वह जालिम मिस्ट्री मैन सिगार का कश भरते हुए नाज़ के खूबसूरत बदन को बेतहाशा तीखी नज़रों से घूर रहा था। वह इसी फड़फड़ाती मछली के दिए मर्दानगी भरे चैलेंज को पूरा करने, अपनी जान तक कुर्बान करने को तैयार था।
जल महल के किसी अनजान के आने भर से उसकी मौत तय हो जाती थी, मगर जब घर का भेदी ही उस मिस्ट्री मैन से जुड़ा हो, फिर जान की परवाह किसे थी? बल्कि ऐसी गर्मजोशी से भरी ज़िद थी उस जवान बंदे में कि नाज़ का यूँ छटपटाता हुआ बदन उसे नाज़ के करीब जाने को और ज़्यादा उकसा रहा था।
क्योंकि वह कुछ भी कह ले, उस शॉर्ट नाइट ड्रेस में उसका बोल्ड बदन उस मिस्ट्री मैन को अपना कायल बना चुका था। काफी देर बाद नाज़ का चीखना बंद हुआ, जिसे सुनकर वह तिरछा मुस्कुरा कर बोला,
"उम्म्म... तो आखिरकार तुम हार गईं, माय वाइल्ड टाइगर। उस दिन तो बड़े-बड़े किस्से सुनाए थे अपनी बहादुरी के। दुबारा टकरा मत जाना! ब्लाह ब्लाह ब्लाह..."
"बाय द वे, माय टाइगर बेबी, तुम रोर अच्छा तो कर लेती हो, मगर अफ़सोस, तुम मुझे ठीक से डरा नहीं सकीं। वो क्या है ना बेबी, जिसके सामने तुम यूँ गुर्रा-गुर्रा कर रोर कर रही थीं, पहले उसके बारे में तो जान लेतीं तो जरा फ़ायदे में रहतीं?"
"मगर कोई बात नहीं। अपनी मर्दानगी का चैलेंज पूरा करके मैं तुम्हारी गलतफ़हमी भी दूर कर दूँगा, वो भी बड़े इत्मीनान से। और मेरी मर्दानगी की पावर तुम्हारी बातें नहीं, तुम्हारी आहें डिसीड करेंगी।" सो लेट्स गेट रेडी टाइगर।
वह बेपरवाही से सुलगाते सिगार को कालीन पर फेंक, उसे बेरहमी से मसल कर बिस्तर पर बंधी नाज़ के होठों के बेहद करीब चला गया।
जिससे उसकी गर्मजोशी भरी साँसें नाज़ को अपने लबों पर महसूस होने लगीं। वह सिकुड़ सी गई, मगर उस मिस्ट्री मैन का यूँ बहादुरी दिखाना उसे कुछ हद तक इम्प्रेस कर चुका था। लेकिन कुछ सोचकर उसने नकली घबराहट के साथ बाजी अपने हाथ में लेते हुए कहा,
"आर यू श्योर? क्या तुम मुझे यूँ बाँधकर मेरे होठों को चूम लोगे? अगर मैं चीखूँगी तो क्या तुम सज़ा के तौर पर मेरे कपड़े एक-एक करते फाड़ते जाओगे?
"उम्म्म... मैंने अगर तुम्हारी बात नहीं मानी तो क्या तुम मेरे बटरी हिप्स पर स्पैंक करते जाओगे? और अगर मैं फिर भी ना मानी तो तुम कस के मुझे पकड़कर मेरी साँसें छीनने की धमकी दोगे? बोलो ना मिस्ट्री मैन? चुप क्यों हो गए? क्या तुम यही करोगे? इम राइट? तो करिए ना हुज़ूर, रुके क्यों हैं? आइए और जरा सबमिसिव होने की क्लास बड़े तसल्ली से देकर जाइए।
"आई विल बी योर बैड गर्ल... एंड टुनाइट यू विल बी मास्टर!"
नर्म होठों को सेडक्टिव अंदाज़ में काटते हुए वह बंदी सच में उस मिस्ट्री मैन के छक्के छुड़ा गई। नहीं, मतलब ये कोई मेंटल पिस थी जो घबराने की बजाय सारे स्टेप बड़ी फ़ुरसत से बता रही थी। कहाँ वो इतनी मेहनत करके कूद-फाँद के अपनी जान दांव पर लगाकर नाज़ को डराने आया था, मगर यहाँ तो देखो, बंदी से सारा पाशा ही पलट दिया।
वह खुद को तीस मार खा समझने वाला मुंडा, जो कोई और नहीं, सम्राट सारंग था, वह हड़बड़ाकर बड़ी हैरानी में खुद से बोला,
"ये कौन सा आइटम पिस है? इसे इंसानों ने पैदा किया है या किसी ठरकी एलियन ने? माना कि लकड़ियाँ जरा खिसकी होती हैं, मगर इसका तो दिमाग खिसका नहीं, सीधा सटक चुका है।" आह्ह्ह्ह्ह... कुछ भी हो, मैं बिना सबक सिखाए नहीं जाऊँगा!
वह खुद से बातें पूरी करता ही था कि तभी नाज़ जानबूझकर तेज़-तेज़ साँसें, पूरे मुँह की आवाज़ के साथ भरने लगी।
"उम्म्मम्म्म... मास्टर कम टू मी, आई विल बी योर गुड गर्ल, उम्म्मम्म्म... आउच!" आह्ह्ह...
कसम, ये बंदी पूरी की पूरी पागल थी! उसका हिलता हुआ सीना और मादक आवाज़ में निकलता मुँह, सम्राट को तुरंत हार्ड कर चुका था, जो नाज़ की जाँघों पर बखूबी महसूस हो रहा था। आखिर उसके ऊपर जो लेटा था, वह स्मर्क करती हुई फिर उकसाने लगी ताकि यह बंदा कुछ तो गलती करे और बस, उस मिस्ट्री मैन की जान नाज़ खूंखार शेरनी बनकर ले सके।
और जैसा कि उसने कहा था, बिल्कुल वैसे ही सम्राट बेकाबू होकर अपना बदला भूल गया।
पर सरप्राइज़! उसने कुछ ऐसा कहा जिससे हमारी नाज़ के होश पूरी तरह से उड़ गए।
"आह्ह्ह्ह... तुम जीत नहीं सकतीं, समझी? जानता हूँ तुम्हारी चाल-बाज़ियाँ। मुझे उकसाकर छूटना चाहती हो मेरी क़ैद से, बट डार्लिंग, तुम्हें मेरी पकड़ से छूटना है तो सीधा-सीधा कह देतीं, मगर तुम तो टाइगर हो ना, एक्स्ट्रा माइंड लगाए बगैर मानोगी नहीं। तो लो, कर दिए तुम्हारे हाथों को आज़ाद, मगर मुझे उकसाने का हरनाज़ा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ!"
ये कह वह तिरछी स्माइल बिखेर, उसके लबों से निकलती मादक आवाज़ों को सख्त होठों में कैद कर गया और पूरी इंटेंसिटी के साथ उसे बेतहाशा किस करते हुए उसकी नाइटगाउन छ्र्र्र्र करते हुए फाड़ गया। जिसे सुन नाज़ सुन्न रह गई, मगर कुछ एक्शन ले पाती, उसके पहले ही नाज़ की सेन्स्यूअल आह उस कमरे में गूंज उठी, क्योंकि उसकी जान सम्राट के मुट्ठी में थी।
तो वही मिलान में...
सेवेन्स्का होटल, रूह का बेडरूम
"मैम, यू हैव टू बी केयरफुल। सर की हेल्थ कंडीशन काफ़ी हद तक ठीक हो चुकी है, मगर उन्हें पूरी रात अंडर ऑब्ज़र्वेशन रखना होगा। सो आई विल सजेस्ट जस्ट टेक केयर ऑफ़ हिम। अगर जरा भी लापरवाही हुई तो शायद कंडीशन सीरियस हो सकती है। अगर सर की हेल्थ कंडीशन से रिलेटेड आपको कोई भी परेशानी हो तो आप मुझे बेझिझक कॉल कर सकती हैं। एंड वन मोर थिंग, गिव हिम दिस टैबलेट आफ्टर हाफ़ एन आवर।
"सर को होश आया तो बेहतर है, अगर ना आए तो आप बीवी हैं उनकी, अपने तरीके से दे दीजिए। आई होप यू अंडरस्टैंड। नाउ आई हैव टू लीव!"
रूह के होश एक पल में ही उड़ा देने वाला सुझाव देकर वह डॉक्टर हड़बड़ाते हुए भाग गया। वह सारी स्क्रिप्ट बड़े अच्छे से, उम्दा कलाकार की तरह कह रहा था। लेकिन उसने जब रूह को सिद्धांश की बीवी कहा ना...
कसम से, सिद्धांश का दिल तो किया कि वह उस डॉक्टर के टकले को चूम ले। इतनी खुशी हो रही थी, मगर वह जाहिर थोड़े ही करेगा। वह तो मस्त आराम फ़रमा रहा था। वह सारी प्लानिंग इतने शातिर तरीके से कर चुका था कि रूह चाहकर भी उसके बिछाए ट्रैप को देख ना सके। उसे रूथलेस माफ़िया नहीं, हॉलीवुड सुपरस्टार बनना था। इतनी एक्टिंग जो करता था!
तो वही, सिद्धांश को बेहोश देखकर जान जा रही थी रूह की। उसे मौत के मुँह में जाते देख उसने क्या महसूस किया था, ये रूह के लाल हो चुके आँखों से साफ़ पता चल रहा था। मगर तभी अचानक से बीवी का करार मिलते देख वह जरा परेशान होकर बोली,
"इस बिना बाल के टकले को मैं किस एंगल से शादीशुदा लगी? नहीं, मतलब मैं शादीशुदा तो नहीं, मगर उससे कम भी नहीं। लेकिन ऐसे कैसे किसी और की बीवी बोल देगा?"
लेकिन जैसे ही मॉन्स्टर का ख्याल आया, वह झुंझलाकर बोली,
"आह्ह्ह्ह... शादी, शादी, शादी! आप जरा पहले मेरी ज़िंदगी में नहीं आ सकते थे, मिस्टर अजनबी। मेरी शादी तो नहीं हुई, मगर कहीं ना कहीं रिश्ता जुड़ चुका है मेरा, जिसे मैं चाहकर भी नहीं झुठला सकती।
"एंड दैट्स व्हाई, मिस्टर अजनबी, आई डोंट वांना चीट हिम। मैं कैसे अपने बंदे के अलावा किसी और को बीवी की तरह ये जालिम टैबलेट खिलाऊँ?"
"शिट! कुछ समझ नहीं आ रहा। आई एम टोटली फक्ड अप! लेकिन रूह कम से कम जान तो बची इनकी। मैं जानती नहीं क्या है आपमें, मगर इस हालत में देखकर मेरा दिल धड़कना भूल चुका था!" रियली, आई डोंट नो, मिस्टर अजनबी, मगर इन कुछ घंटों में मैंने कितनी बार आपके सलामती की प्रार्थना की है, ये मैं ही जानती हूँ!
वह बिना पलक झपकाए सिद्धांश को निहारते हुए अपने दिल की बात होठों पर ला रही थी। उसे परवाह थी तो सिद्धांश की, जो महज़ सिर्फ़ अजनबी था, लेकिन पहली मुलाक़ात में ही रूह के दिल की धड़कन शिद्दत से बढ़ा चुका था।
ना जाने क्यों उसकी करीबियों में रूह को एक अलग ही महफ़ूज़गी महसूस हुई थी। माना वो डोमिनेंट, मगरूर इंसान था, जो रूह को कुछ हद तक कंट्रोलिंग सा लग रहा था, लेकिन पिछले तीन घंटों से बेहोश पड़े सिद्धांश ने उसके दिल में खलबली मचाकर रख दी थी।
तो वही सिद्धांश, जो रूह को अपने करीब लाने किसी भी हद तक जाने को तैयार था, लेकिन रूह की लॉयल्टी, वो भी इस हद तक, खुद अपने लिए जानकर उसका दिल तेज़ी से धड़क उठा।
वह पहली बार किसी को अपने लिए लॉयल देख रहा था, सिवाय अपनी मॉम के। आज तक हर किसी ने अपने-अपने फ़ायदे के लिए सिद्धांश से नाता जोड़ रखा था। मगर ये महज़ 19 साल की लड़की, जिस उम्र में लकड़ियाँ सिद्धांश की हैंडसमनेस देखकर ही फिसल जाती थीं, वो बंदी आज सिर्फ़ एक चुटकी सिंदूर की लाज रख रही थी। वह कायल हो चुका था रूह का, फिर एक दफ़ा।
मगर उसे अपना बनाने का जुनून जो सिद्धांश के सिर पर चढ़ा था, वह नाटक जारी रखते हुए आँख मूँद खुद से बोला,
"कोई इतना लॉयल कैसे हो सकता है? सोचा था तुम्हें करीब लाऊँगा सिर्फ़ अपनी तड़प बुझाने, मगर अब आदत बन रही हो तुम!" बट ये आदत मुझे ताउम्र चाहिए!
वह बेख़याली के आलम में डूबा, इश्क़ की पहली सीढ़ी अनजाने में चढ़कर, जिनका अंदाज़ा उसे खुद नहीं था।
तो वही रूह, वो होटल रूम में परेशानी से टहल अपने डैड और भाई के बारे में सोच रही थी, जो रूह के पल-पल की खबर रखते थे। डॉक्टर के कहने पर वो सिद्धांश को अपने रूम में तो ले आई थी, मगर अब असली इम्तिहान शुरू हुआ था।
वह भले ही खुद को किसी और की अमानत कह चुकी थी, मगर वह चाहकर भी झुठला न सकी, वो थी सिद्धांश की हॉटनेस। वो कैसे खुद को बेकाबू होने से रोके? बार-बार ये सवाल खुद से कर रही थी।
"उफ़्फ़! क्या मुसीबत है यार! ये बंदा सोकर भी मेरे दिल को फिर धड़का रहा है। मिस्टर अजनबी, क्या ज़रूरत थी आपको इतना हॉट होने की?
"बहन, तू बाद में धड़क-धड़क गर्ल बनने का सोच। अगर मेरी मॉम को पता लग गया ना, उनकी बेटी किस तरीके से डील अपने नाम कर रही है, चप्पल से मुँह लाल करेंगी वो। इस बार मासी भी नहीं बचा पाएंगी!" हह्ह्ह...
वह बड़ा सा रायता फैलाकर उसे समेटने फ़टाफ़ट से अपने असिस्टेंट को कॉल करके बोली,
"हेलो समीर, फ़ॉर सम रीज़न, माय मीटिंग इज़ पोस्टपोनड। सो आई विल गो डे आफ्टर टुमॉरो। और हाँ, मैं किसी का कॉल पिक नहीं कर पाऊँगी। आई होप तुम सब कुछ मैनेज कर लोगे। अगर नहीं किया ना, तुम्हारी बंदी तो उठवा लूँगी!!"
वह पूरी की पूरी बवाल थी। टेढ़े अंदाज़ से सारा पाशा पलटना जानती थी। उसके इंस्ट्रक्शन का साफ़ मतलब था रूह को सिद्धांश की तबियत ठीक होने तक डिस्टर्ब ना किया जाए, जिसकी सारी ज़िम्मेदारी रूह के नाज़ुक कंधे पर अचानक से आई थी। मगर झूठी नींद में सोया सिद्धांश उसकी बेख़ौफ़ अंदाज़ पर फिर कायल हो गया।
"डैम! आई वांट हर बिलो मी। शी सो परफ़ेक्ट!"
सिद्धांश, जो पूरी प्लानिंग के तहत उसका फ़ायदा उठा रहा था, वह गहरी-गहरी साँसें भर बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल करने लगा। लेकिन ये बंदी पहले ही हॉल्टर नेक बॉडीकॉन ड्रेस से उकसा रही थी और अब बेख़ौफ़ अदाओं से।
वह चुपचाप आँखें मूँदकर लेटा हुआ रूह के बदन से आती खुशबू में घायल होने लगा।
नाउ ही नीड्स हर, हर सोल, हर एसेन्स, हर इंच बिलो हिम, बट विदाउट ड्रेस। 😉
जिस पर सिद्धांश शिद्दत से अपनी मोहर लगा सके।
मगर तभी कुछ क्लिक हुआ। वो था अपने अलावा किसी और गैर-मर्द से बातें करना, यानी उस समीर से। उसे गुस्से में पागल करने लगा। सिर्फ़ रूह के जुबान पर किसी और का नाम सुनकर उसके हाथों की मुट्ठियाँ कस चुकी थीं।
उसके चेहरे पर ख़तरनाक एक्सप्रेशन उभरने लगे। मगर मज़ाल है कि उस बंदे ने अपनी आँखें खोली हों। लेकिन इतना तो तय था, समीर बिचारा कुछ दिन का पंछी था।
मगर परेशानी में टहल रही वो अजीब से कश्मकश में गुँथी थी। उसके दिल का एक कोना सिद्धांश को अपने पास रखने की ज़िद कर रहा था, तो वहीं उसका हॉर्नी मॉन्स्टर रूह को सिद्धांश से दूर रहने की सलाह दे रहा था।
"आह्ह्ह्ह्ह... क्या करूँ मैं खुद का? यार, मैं दोनों के बारे में सोचकर-सोचकर ही पागल ना हो जाऊँ कहीं! सारी गलती ना इस बंदे की है। एक तो जनाब बंदा कुछ ज़्यादा ही हॉट है, ऊपर से बेहोश होने के बाद भी सिड्यूस करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। देखो इस अजनबी की हॉटनेस! क्या करूँ मैं खुद का? कैसे रात बिताऊँगी वो भी जागकर? कहीं मेरे मॉन्स्टर को ख़बर लग गई तो, वो तो पहले ही मेरी जान लेते हैं, अगर किसी अजनबी के बारे में पता लग गया तो?"
"रूह, चुपचाप सो जा इससे पहले कि तू कोई सि़प्पा कर दे।"
तभी उसके दिल ने कुछ बगावत सी की और वह बेख़याली में खुद से कह गई,
"रूह, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं इन्हें अकेले तो नहीं छोड़ सकती ना। इंसानियत के नाते से सही, मगर तुम्हें इनका ख्याल रखना होगा। और वैसे भी डॉक्टर ने तो कहा है ना, ये सवेरे से पहले उठने से रहें। फिर डरने की बात ही नहीं। हह्ह्ह... फ़ालतू में डर रही थी। ये बंदा भी बेहोश रहेगा और तुम अपने मॉन्स्टर को धोखा भी नहीं दोगी। येस, आई एम द बेस्ट! अब सो जा बहन, इससे पहले कि तू कोई और गुल खिलाए!"
रूह को खुद पर ऐतबार था, मगर अपनी धड़कनों पर नहीं। वो चाहे कितना भी कह ले, वो किस शेर की तरह सोए हुए सिद्धांश की हॉटनेस देख बार-बार फिसल रही थी। वो इंसानियत का हवाला देकर खुद से झूठ बोल रही थी।
शी इज़ इनकम्पलीट विदाउट हिम, इतना तो तय है।
लेकिन क्या हो अगर उसके हॉर्नी मॉन्स्टर ने उससे पूछ लिया, "बताए मेरी जान, आप मिलान में किसके साथ थीं?" क्या करेगी ये लकड़ी फिर? वो कितने बड़े चक्रव्यूह में फँस चुकी थी, उसे कोई आईडिया तक नहीं था।
तो वही, रूह की हर बातें सिद्धांश को और उसकी तरफ़ खींच रही थीं। मतलब कि आग दोनों तरफ़ बराबर लगी थी। 🔥 तो क्यों ना उन्हें करीब लाया जाए?
जहाँ रूह की मौजूदगी ही काफ़ी थी सिद्धांश के होश उड़ाने को। जैसे-जैसे वो कुछ घंटों में रूह के असली स्वभाव से रूबरू हुआ था, वो किस हद तक उसका दीवाना बन चुका था, इसका अंदाज़ा खुद सिद्धांश को नहीं था।
तो वही रूह से आती वैनिला खुशबू जो हमेशा से ही सिद्धांश की कमज़ोरी बड़ी शिद्दत से बन चुकी थी। मगर उसे इंतज़ार था तो खुद रूह उसके करीब आए, लाइक हिज़ जिद्दी बच्चा।
लेकिन वो बंदी उसी के करीब नहीं जा रही थी। वो सिद्धांश को छोड़कर पूरे कमरे का हर हिस्सा एक्सप्लोर करते हुए टहलते-टहलते कर चुकी थी। क्या इतनी सारी प्लानिंग करके भी सिद्धांश ने अगर आज रूह को नहीं पाया तो फिर लानत है उसके माफ़िया होने पर! ये टैग खुद सिद्धांश अपने ऊपर लगा चुका था।
वह मन ही मन फ़्रस्ट्रेटेड होकर बोला,
"ये लड़की मेरे हाथ क्यों नहीं आ रही? इतनी प्लानिंग क्या मैंने इसके टहलने के लिए की है? आई वांट हर इनसाइड मी, बट फ़र्स्टली आई वांट टू मेक हर क्रेज़ी फ़ॉर मी।
इसे मेरे करीब आना चाहिए, तो ये मुझे छोड़कर हर जगह कूद रही है। आज इसके खड़े होने की ताक़त ना छीन लूँ तो मैं भी सिद्धांश जिंदल नहीं!"
वह गर्मजोशी से उबलता रूह के जरा भी दूरियों पर बौखला रहा था।
ही वाज़ टोटली ऑब्सेस्ड नाउ।
तभी कुछ सोचकर उसने नींद में कराहना शुरू कर दिया, जिसे सुनकर अपने दिल के हालातों से लड़ती रूह हड़बड़ाकर उसके बेहद करीब जाकर बोली,
"मिस्टर अजनबी... सॉरी, आई मीन टू से, मिस्टर जिंदल, आर यू ओके? आपको कुछ ज़रूरत है? कैसा फ़ील हो रहा है? देखिए, आप सुन रहे हैं? आह्ह्ह्ह... रुके जरा..."
वह मछली उसके करीब जाकर ही तुरंत काँटे में जा फँसी, क्योंकि उसने जानबूझकर कराहते हुए उसे बिस्तर पर दबोच लिया था। इतना ही नहीं, अपनी मज़बूत बाहों में कसकर लगभग बिस्तर पर सुला चुका था।
नाउ गेम स्टार्टेड गाइज़।
तो वही रूह, जो सिद्धांश की प्रेजेंस से ही इर्रिसिस्टिबल हो चुकी थी, मगर सीधा उसकी जकड़न में जा फँसना इट्स नॉट गुड फ़ॉर हर वाइल्ड हार्ट। 😜
उसका तन-बदन और भी कसकर सिद्धांश ने जकड़ लिया और अपने फ़ेवरेट स्पॉट के बीच बनी गहराइयों में अपना चेहरा सेन्स्यूअल रब करते हुए उसके सीने में घुस गया।
यूँ अचानक से हुए उसके सॉफ्टियों पर अटैक रूह का दिमाग घुमा चुका था, जिससे रूह का हैरान होना बिल्कुल लाज़मी था। आखिर उसके साथ हुआ वो कुछ समझ पाती, इसके पहले ही सिद्धांश ने गहरी नींद की एक्टिंग भरपूर पूरे सुरूर के साथ करते हुए उसके हॉल्टर नेक की नॉट आहिस्ता से खींच ली। आई टोल्ड यू, वो ड्रेस जान लेगा हमारी रूह की।
और रूह, जो पहले ही उसकी आगोश में खो चुकी थी, ऊपर से सिद्धांश की गर्म साँसें अपने सीने पर डायरेक्टली महसूस कर पाना उसे रेस्टलेस कर रहा था। जिस चक्कर में बेचारी उसके जिस्म से उतरते हुए ड्रेस को भी महसूस ना कर सकी और तभी सिसकी भरते हुए सिद्धांश सीधा उसकी ड्रेस काफ़ी नीचे तक खींच चुका था।
बट ही वाज़ नाउ सरप्राइज़्ड! क्योंकि हमारी रूह ने पैडेड ड्रेस जो पहना था... आज तो गई आप रूह! अब नहीं रुकेगा वो शेर।
उसके पैडेड ड्रेस की मेहरबानी कुछ यूँ हुई कि सिद्धांश का चेहरा बिना किसी रुकावट के डायरेक्टली उसके उभारों से टच हो रहा था। काँप उठी थी उस पल हमारी रूह, मगर डार्लिंग, अभी तो बस शुरुआत थी। आपके होश ही नहीं, साँसें भी उखड़ेगा वो वाइल्ड क्रिमिनल। 🔥
द कंडीशन इज़ आउट ऑफ़ कंट्रोल। शी कैन्ट ईवन एबल टू ब्रीथ। हाउ गोना शी कंट्रोल दैट मॉन्स्टर इनसाइड हिम?
उसकी साँसें हकल में जा अटक गई थीं और आँखें हैरत में डूबी हुई सिद्धांश की बेतहाशा इंटेंस हरकतों को महसूस कर रही थीं। वो खुद को जैसे-तैसे संभाल सिद्धांश को अपने से दूर खींचती, इसके पहले ही सिद्धांश गुर्राहाट के साथ बोला,
"मुझे ज़रूरत है तुम्हारी। डोंट मूव। आई वांट टू फ़ील देम। आई एम हंग्री, एंड यू विल फ़ीड मी राइट नाउ। ऐसे ही रहो, हिलना नहीं। अगर जरा भी हिली तो मेरा बढ़ता कहर तुम्हें सहन के बाहर जा चुका होगा, समझी?"
वो तो बेहोशी में था, ये सोचकर ही रूह तसल्ली में थी, मगर ये क्या हुआ? सिद्धांश बेहोश नहीं था? उसके लबों से निकली गुर्राहाट भरी वार्निंग साँसें थाम चुकी थी रूह की।
वो कुछ ना कुछ रिएक्ट कर पाती, इसके पहले ही सिद्धांश स्मर्क करते हुए उसके पिंकिश बड को होठों से छूकर सीधा उन पर टूट पड़ा।
दिस वाज़ ए हैवनली फ़ीलिंग, जिसे फ़ील कर रूह साँसें लेना भूल गई, दिल ने धड़कना बंद कर दिया और हमेशा फड़फड़ाते रहने वाले होठों ने चुप्पी साध ली और आँखें हैरत में फटी की फटी रह गईं। 🔥
तो अब बातें नहीं, सिर्फ़ मद्धम मध्यम आँच पर सिकी आहें निकलेगी।
"मेरी प्यासी ज़िंदगानी ढूँढ़े तेरी नमी,
सारी दुनिया पास मेरे फिर भी तेरी कमी।
मैं अधूरा, मैं अधूरा, मैं अधूरा तेरे बगैर।
मैं अधूरा, मैं अधूरा, मैं अधूरा तेरे बगैर।"
जल महल
बेइंतहा दर्द का सिलसिला आज सारी हदें पार करने को था। आखिर रिधान की दीवानगी बेहद थी तो गुस्सा कैसे कम हो जाता? बल्कि उसके क्रोध की अग्नि चरम सीमा लाँघने को तैयार थी।
वहीं फ़िज़ा के अंदर समाई रिधान की सख्त उंगली से उसकी आँखों से नदियाँ बह रही थीं। मगर उसके इश्क में डूबी फ़िज़ा की सारी हिम्मत को तोड़ने की साज़िश उसके मुहाफ़िज़ ने बड़ी फ़ुर्सत से कर रखी थी। उसके बहते आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसी कसक थी रिधान के गुस्से में।
वह कैसे उस जानवर जैसे शख्स को संभालेगी? पर उसे संभालना ही तो था। वही तो उसका मुक़द्दर था। कहाँ भागकर जाएगी वह नाज़ुक सी फ़िज़ा?
रिधान आज से पहले फ़िज़ा की मज़ह एक छोटी सी खुशी के लिए सारी दुनिया उसके कदमों पर लाकर रखने को तैयार था। मगर वही रिधान आज खुद डेविलिश अंदाज़ में फ़िज़ा के आँसू देखकर शैतानी स्माइल बिखेर रहा था। उसे मज़ीद सुकून मिल रहा था फ़िज़ा का दर्द से भरा चेहरा देखकर।
इंतेहा पार होगी उसके इश्क़ की।
उसके बहते आँसुओं की होड़ में वह सख्त उंगली को इन्सेंसली मूव करते हुए अपना कहर बरसा गया। और फ़िज़ा मानो खुद को सौंप चुकी थी। मोहब्बत के दायरे में मिलने वाली हर सज़ा के लिए उसने खुद को फ़ना कर चुकी थी। मगर वह नहीं जानती थी आज आह भरने का आलम नहीं, उसकी चीखों का आलम शुरू होने को था।
"नहीं करिए शौहर जी, नहीं, रुक जाइए। हमें कहने तो दीजिए, ज़रा नहीं रोकेंगे आपको, मगर एक दफ़ा सुन तो लीजिए न, न, नहीं, न्नाह्ह्ह्ह!"
वह रेसिस्ट ना कर सकी उसकी अज़ीयत को। रूह से रूह का तारुख़ इतना भी आसान ना था जितना फ़िज़ा ने सोचा था। उसकी दर्द भरी सिसकी तेज आवाज़ में निकल पड़ी। और ठीक उसी पल रिधान ने अपनी उंगली खींच ली।
"आह्ह्ह्ह्ह!"
यह दर्द भरा लफ़्ज़ कहते हुए उसका बदन धड़क उठा, मानो किसी ने जान खींचकर रख दी हो।
"रु, रु, रुक जाइए शौहर जी, रुक जाइए। बेहद दर्द होता है हमें।"
"अभी तो सिलसिला शुरू हुआ है मेरी दुल्हन। तुम अभी से डर गई? ना, ना मेरी जानम, अभी तो तुम और रोएँगी। सिर्फ़ अभी शुरुआत की है, आगे-आगे देखिए होता क्या है। इतना दर्द होगा कि तुम बिलखती रह जाओगी। तब भी मैं रुकूँगा नहीं। तुम जितने आँसू बहाओगी, उतना सुकून मिलेगा मेरे इस टूटे दिल को।"
"और जब मेरा दिल टूट ही चुका है, फिर तुम्हें क्यों ना रुलाऊँ? हम्मम्म, टेल मी? आखिर तुम ही तो वह हसीन गुनाहगार हो, कैसे छूट जाओगी बिना सज़ा पाए? बहुत शौक़ चढ़ा है ना आपको अपने शौहर से भागने का? तो रुको मेरी बेगम साहिबा, ज़रा और दर्द महसूस करो। आपके पैरों से जान कैसे खींचती है, वो जान लो।"
उसके आँसुओं को पीकर अजीब सी सरगोशी में कहा। और फिर से रिधान ने उसे तड़पना शुरू किया जिससे चीख उठी फ़िज़ा। मगर मज़ाल है रिधान ने ज़रा भी स्पीड कम की हो? वह तेज़ी से बढ़ता गया और फ़िज़ा दर्द में डूबती गई।
मगर जैसे ही कुछ पल बीता, फ़िज़ा की बॉडी कुछ रिएक्ट सी करने लगी। वह पहली दफ़ा इस आखिरी मुक़ाम पर पहुँचकर मिलने वाले सुकून से रूबरू होती, तभी रिधान ने फ़िंगर्स बड़ी बेपरवाही से खींच दी। जिससे फ़िज़ा अचानक से चीख उठी। उसे समझ नहीं आया आखिर क्या हुआ, मगर दर्द में भी उसे रिधान का यूँ बाहर आना अच्छा नहीं लगा।
"यह एहसास तुम्हें सुकून देने के लिए नहीं, तुम्हारा सुकून छीनने के लिए है।" वह स्मर्क कर रहा था उसकी हालत पर।
जिससे फ़िज़ा का चेहरा सुरख़ लाल हो गया। मगर अपने शौहर का पत्थर दिल देख वह बेबसी से उसके नीचे लेटी रिधान की आँखों में झाँककर दर्द भरी मुस्कान सजाकर बोली-
"हम पर सारा हक़ है आपका। हमारे जिस्म को आप चाहे जितनी भी अज़ीयत दे दें, मगर यूँ अपनी नज़रों में नफ़रत लाएँ... हम हर दर्द सह लेंगे, वह भी खुशी-खुशी, मगर आपका यह गुस्सा हमसे सहा नहीं जा रहा। माफ़ कर दीजिए, लेकिन यूँ नाराज़ ना होइए। आह्ह्ह्ह्ह! रुक जाइए, नहीं-नहीं मत करिए, प्लीज़।"
उसकी बात ख़त्म होते ही फिर एक दफ़ा बड़ी जोरदार चीख निकल पड़ी। मानो रिधान ने ठान लिया था, जैसे फ़िज़ा का दर्द ज़रा भी कम होगा, वह अज़ीयत देने अपनी उंगलियों का काउंट बढ़ाएगा। वह बेतकल्लुफ़ी से फ़िज़ा का दर्द मज़ीद अलग मुक़ाम पर पहुँचा गया।
वह उसकी रूह छीनना चाहता था ताकि वह फिर रिधान के दूर जाने के ख़्याल से ही ख़ौफ़ खाए। मगर अपने ही इश्क़ को इस हद तक रुलाना सही था? तो जवाब था ना, यक़ीनन ना।
मगर फ़िज़ा को खो देने की फ़ीलिंग जो रिधान ने महसूस की थी, ज़रा उसके हाल में खुद को रखकर देखिए जनाब, सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाना है।
यह मोहब्बत का वह हिस्सा है जहाँ दिल तोड़ने की सज़ा भी मिलेगी, मगर जितना वह टूटेंगे, एक-दूसरे में शामिल होने का मज़ा ही कुछ और होगा।
वह सिसकती रही, मगर रिधान के चेहरे पर एक शिकन तक ना आई। बल्कि वह मुस्कुरा रहा था उसकी साँसें थामकर। और आख़िरकार वह पल आया जब फ़िज़ा आख़िरी मुक़ाम पर जा कुछ झटकों में शांत हो गई। वह भीग चुकी थी रिधान की हरकतों से। और रिधान वह अपनी बीवी को थकाकर फ़ख़्र से भी उसे देख रहा था।
उसकी नज़र फ़िज़ा के नाज़ुक सुरख़ लाल बदन पर थी जहाँ से उसकी लास्ट इनर कब उतर चुकी थीं, इसकी ख़बर भी फ़िज़ा को ना हुई। वह तो पसीने से भीगी दर्द की शिकन माथे पर सजाए निढाल हो चुकी थी। ज़िंदगी का पहला रूमानी एहसास वह भी डार्क टेम्पटेशन्स के साथ महसूस किया था उसने।
वहीं रिधान जिसे अब जाकर असली ताज्जुब हुआ, वह गुस्से की अग्नि में देख ना सका उसने किस हद फ़िज़ा का गोरा बदन लाल कर दिया है। उसके नाज़ुक रोज़ पेटल्स गहरे लाल थे उसकी मेहरबानी से, जिन्हें पहली दफ़ा देखने भर से वह अंदर ही अंदर सख्त हो चुका था। मगर उसकी गोरी स्किन का लाल रंग उसके दिल में ख़लबली मचा गया।
"शिट! दिस वाज़ हर फ़र्स्ट टाइम? हाउ कैन आई...? आह्ह्ह्ह! लेकिन यह खुद भागकर गई थी मुझसे दूर, कैसे ना दूँ इसे सज़ा? दर्द होगा तो होगा, बट आई वोंट स्टॉप अगेन। मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता उससे!"
फ़र्क़ नहीं पड़ता, नहीं जनाब, छुरियाँ चल रही हैं आपके दिल पर। यस, वह फ़िज़ा के हुस्न से घायल भी हो रहा था।
"कैसे बताएँ, कैसे जताएँ,
सुबह तक तुझमें जीना चाहें,
भीगे लबों की गीली हँसी को,
पीने का मौसम है, पीना चाहें,
इक बात कहूँ क्या इजाज़त है,
तेरे इश्क़ की मुझको आदत है,
इक बात कहूँ..."
उसे फ़र्क़ पड़ रहा था फ़िज़ा के दर्द से, मगर वह एक्सेप्ट नहीं करना चाहता था। वह रोज़ पेटल्स को बड़ी शिद्दत से पहली बार देखने से कायल भी हो रहा था। मगर उसका पत्थर दिल जिसकी धड़कन फ़िज़ा थी, वह कैसे उसके दर्द को इग्नोर कर जाता? उसने कुछ सोचा और ठंडी आह भरकर डीम लाइट की कमांड देकर घुटनों के बल आ गया।
वहीं फ़िज़ा जो रिलीज़ होते ही आँखें मूँद चुकी थी, उसे अचानक से ख़्याल आया अपने बेपर्दा बदन का। वह आँखें खोल पाती कि तभी रिधान की ठंडी सी जीभ अपने नाज़ुक बदन पर एहसास कर वह हसीन सिसकी में कराही-
"उम्मम्म, स्स्स्स्स्स! ये वो आवाज़ें थीं जो असल में उसे निकलनी थीं। देर से ही सही, मगर उसके शौहर जी लाइन पर तो आए। यह जानकर फ़िज़ा शर्म के मारे अपनी पकड़ रिधान के बालों पर कस दी।
"एहसास तेरे और मेरे तो,
इक दूजे से जुड़ रहे,
इक तेरी तलब मुझे ऐसी लगी,
मेरे होश भी उड़ने लगे,
मुझे मिलता सुकून तेरी बाहों में,
जन्नत जैसी एक राहत है,
इक बात कहूँ..."
वहीं रिधान कोई ऑइंटमेंट ना होने से खुद राहत देने चला था। मगर जैसे ही उसने फ़िज़ा को टेस्ट किया, वह पागल हो गया उसकी कुर्बत में। अब तो वह रुकने से रहा। सख्त हाथों की पकड़ मखमली कमर पर कस ली ताकि उसकी इंटेंसिटी से हिल न जाए उसकी बीवी।
"अब तक सज़ा दी है, तो अब तुम्हें पाना है। सिसकियाँ जितनी भरनी हैं वह तुम्हारी मर्ज़ी, मगर ज़रा भी मुझे रोका या टोका तो जितनी अज़ीयत मेरी उंगलियों ने दी है उससे ज़्यादा मेरा वाइल्ड वर्ज़न तुम्हें दे जाएगा।" समज़ी?
वह धमाका रहा अपनी बेगम को। उसके ज़हर जैसे जुल्म को सुनकर थर्रा उठी थी फ़िज़ा। चार-पाँच बार जल्दी-जल्दी हाँ में सिर हिलाकर वह होंठों को काटने लगी ताकि वह शर्म भी कम कर सके और रिधान को गुस्सा भी ना दिलाए।
"कितनी क्यूट है उसकी बीवी।" ऐसा रिधान के दिल ने उससे कहा, मगर चेहरे पर रौबदार अंदाज़ में कोई कमी ना आने दी उस हैवान के अब्बा ने। बस तिरछी स्माइल कर उसे खाने लगा, मगर फ़िज़ा की आँखों में बेहिचक देखते हुए।
"क्यों सबसे जुदा, क्यों सबसे अलग,
अंदाज़ तेरे लगते,
बेसाख़्ता हम साये से तेरे,
हर शाम लिपटते हैं,
हर वक़्त मेरा कुर्बत में तेरी,
जब गुज़रे तो इबादत है,
इक बात कहूँ..."
वह मर ही ना जाए कहीं रिधान के हसीन जुल्म पर। फिर से आह भरने लगी थी फ़िज़ा, मगर इस बार ज़रा सुकून से।
लेकिन ज़रूरी तो नहीं वह आज पिघला है। क्या पता कल फिर से अज़ीयत दे दे।
जहाँ रिधान ने पूरी रात फ़िज़ा को मोहब्बत की गहराई सनकी अंदाज़ में बताने का फ़ैसला किया था, वही जल महल के बैकसाइड में मौजूद राउंड शेप पार्टी रूम में अलग ही धमाल चौकड़ी मची हुई थी।
बैकयार्ड
"कहाँ भाग रही हो शोना? आई सेड कम टू मी, आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! तुम आ रही हो या मैं अपने तरीक़े से आऊँ? एक बार, बस एक बार हाथ आ जाओ, तुम्हें अपना रिश्ता फ़ुल प्रैक्टिकल के साथ ना बताया तो फिर कहना।"
वह झल्ला रहा था निधि की बगावत पर। तो वहीं निधि खुद के तितर-बितर कपड़ों को संवारती हुई उस कमरे से मिलता हर सामान अरहम पर फेंक रही थी। वह तो भला था सही वक़्त पर होश आया निधि को, इसके पहले अरहम उसे बेपर्दा करे? वह शैतान छोकरी अरहम को गालियाँ दे-देकर उस पर सामने फेंककर भागने लगी, मगर वह छोटी सी जान आखिर कब तक ख़ैर मानती?
कुछ पल में ही अरहम की पकड़ में आकर वह फुदकते हुए बोली-
"शैतान खोपड़ी, छोड़ो मुझे! भाई हैं आप मेरे, ऐसी गंदी-गंदी हरकतें करते हो, शर्म नहीं आती? दीदा से नहीं, सीधा बड़े डैडी से शिकायत होगी आपकी। आप और आपकी चुड़ैल मॉम ने मेरा जीना हराम कर रखा है, छोड़ूँगी नहीं मैं आपको।"
वह छटपटाती हुई सीधा सोफ़े पर जा गिरी। आखिर उसके जुबान से अपनी मॉम को चुड़ैल सुन बौखला गया था अरहम।
"यू, छोटा सा मुँह ज़्यादा बक-बक ना करो मेरी मॉम के बारे में। और यह क्या बार-बार भैया-भैया लगा रखा है? तुमसे कोई ब्लडलाइन रिलेशन है? बोलो, तुम सिंघानिया हो? अगर होती तो नज़र ना उठाकर देखता तुम्हें। तुम निधि वालिया हो, समज़ी? तो तुम मेरे और अपने दरमियान यूँ बार-बार ब्रदर-सिस्टर की लाइन मत खींचो। नाउ कम टू मी।"
"आज तुम्हें हमारे बिछड़ कौन सा रिश्ता है ज़रा यह बतला दूँ, बहुत कर ली तुमने मस्ती।"
वह निधि को बस अपना रिश्ता याद दिलाने के चक्कर में अनजाने में ही उसके पुराने घाव कुरेद गया, जिसकी ख़बर निधि के आँखों में आए आँसुओं से लगी। तब जाकर अरहम को एहसास हुआ अपनी गलती का। वह झट से उसे गोद में उठाकर उसके माथे को चूमकर बोला-
"शोना, रियली सॉरी, आई डिडंट मीन दैट। डोंट क्राई बेबी, मैं हूँ ना। अगर तुम रोती रहोगी तो बीमार पड़ जाओगी। श्शह्ह्ह्ह्ह्ह! आई विल बी विद यू ऑलवेज़, नथिंग्स टू वरी। मैं वादा करता हूँ मेरी शोना, जिन्होंने भी तुम्हारे मॉम-डैड को छीना है, उन्हें सज़ा मिलकर रहेगी।"
वह गुस्से में बड़ा तेज था। जितने जल्दी उसे गुस्सा चढ़ा, उतने ही जल्दी निधि के आँसू उसे कमज़ोर कर गए। मगर निधि जो अरहम के करीब आकर ज़रा शांत महसूस कर रही थी, वह अरहम का दिया वादा सुनकर मन ही मन अजीब सी हँसी हँसकर बोली-
"जिसे सज़ा देने के वादे किए जा रहे हैं, जब वक़्त आएगा, आप खुद मेरे ख़िलाफ़ खड़े मेरे मॉम-डैड के कातिल को बचाओगे। जिस दिन मेरी सच्चाई से सामना होगा, उस दिन पूछूँगी आपसे क्या अब भी आप उतने ही दीवाने हैं मेरे?"
कुछ तो राज़ थे जो अब तक गहरे थे, जो आने वाले वक़्त में बवंडर बनकर सबको ले डूबेंगे। ना जाने किस मुक़ाम पर जाएगी अरहम-निधि की किस्मत, यह तो वक़्त ही बताएगा।
कुछ देर तक निधि को शांत कराते-कराते हुए उसे बिस्तर पर जकड़कर सोने लगा। वह यहाँ पूरी प्लानिंग से निधि को लाया था अपने करीब लाने, मगर कबख़्त उसके आँसू अरहम को उसके करीब जाने से फिर रोक गए। मगर कब तक, यह तो नहीं पता।
लेकिन जब उसका सामना निधि की संजीदा सच्चाई से होगा, उस दिन सैलाब आएगा अरहम के गुस्से का।
मिलन
रूह जिसके दिलो-दिमाग़ पर उसके ख़ूंख़ार मॉन्स्टर का कब्ज़ा था। पहली मुलाक़ात जो रूह भुलाए ना भूली थी। और जब-जब उसके बाद उसके हॉर्नी मॉन्स्टर से सामना होता गया, वह तब-तब उसका डार्क टेम्पटेशन, उसका सख्त मिजाज़, और आख़िर में उसका वह टफ लुक याद करते-करते उसे किडनैप करने का तक मन बना चुकी थी।
(आई वांट टू रिमाइंड समथिंग। जल महल में बेहोशी से उठकर रूह ने उसकी स्ट्रांग अपीयरेंस देखी थी, उसका साइड लुक देखा था, नहीं पूरा चेहरा, मगर कुछ मौक़े में ही उसे याद आ जाएगा।)
लेकिन यहाँ तो सिद्धांश ने बाज़ी पूरे 360 डिग्री एंगल से घुमाई थी कि रूह अपने ही आधे-अधूरे पति के आगोश में जा छुपी। आज तक वह जालिम जितनी दफ़ा सिद्धांश को तरसाकर, उसके करीब जा सिद्धांश के तार छेड़-छेड़कर भागती थी, मगर-मगर-मगर अब सारे हिसाब बड़ी शिद्दत से पूरे होने थे। आख़िर सिद्धांश की जुनूनियत का आगाज़ वह जालिमा भी तो देखे, वह किस शेर को उकसाकर भागी है।
उसके तोते उड़ चुके थे जब उसके छरहरे जिस्म से वह हॉट्टी-नॉट्टी ड्रेस उतरा था। वह बेपर्दा थी पूरी तरह से उसके आगे। और सिद्धांश जो डेमन कहलाता अपनी हरकतों से, उसने फ़ुल प्लानिंग के तहत आख़िर पा ही लिया उसे। और जब उसने रूह की ख़ूबसूरती का दीदार किया, वह रोक ना सका दिल में छिपी तलब को और चौड़े हाथों में उसके उभारों को पकड़कर समेट गया होंठों के अंदर।
जहाँ से महसूस होती गर्माहट जान ले रही थी रूह की।
न्नाह्ह्ह्ह्ह्ह! कहती हुई सिसक उठी। मगर वह कैद में थी उसकी, आगोश में समाई थी पूरी तरह से। कैसे बचकर भाग जाती?
उस भूखे मगर बेबी शेर को खाना चाहिए था उसका। ही वाज़ हंगरी ना, दैट गुस्सैल बेबी वांट हिज़ यम्मी फ़ूड।
"उम्म, सो यम्मी!"
यह कह वह टूट पड़ा। वह पहली दफ़ा, जी हुज़ूर, पहली दफ़ा जो बिना रुकावट के उसे चूम रहा था, विद पॉप साउंड जो रूह को पागल कर रहा था।
माना कि उस हंगरी बच्चे ने रूह को बेहोश कर हद से ज़्यादा बेहाल किया था, मगर आज रूह होश में भी तो थी। वह बड़ा ही खुश था रूह के होश उड़ाकर। ही वाज़ टोटली टर्निंग इनटू नॉट्टी बॉय। और रूह उसके धड़कनों का पता नहीं कितनी रफ़्तार से भाग रहे थे। टिमटिमाती आँखें, फैली हुई थीं, और ठंडा बदन गरम भट्टी की तरह जल उठा। शी नोज़ अगर उसने इस हंगरी बच्चे को ना रोका, वह जान खींच लेगा उसकी, मगर कैसे रोकेगी यह बंदी? यही इकलौता सवाल मज़ीद उसके ज़हन में आया।
"ओये कंजड़ आदमी, जान लोगे क्या मेरी? गोली तो हाथ में लगी थी दिमाग़ में नहीं जो खाना सोचकर मुझे खा रहे हो। व्हाई ऑलवेज़ मी? कोई ऐसी डील साइन करता है क्या? सारे ठरकी मुझे ही क्यों मिलते हैं? क्यों आख़िर मैं ही क्यों? हुह्ह्ह्ह्ह! मेरी फ़ूटी किस्मत।"
"बाद में उल्टी खोपड़ी चलाना रूह। इससे पहले यह आदमी भूखमरी के चक्कर में सीधा तुझे गटक बिना आवाज़ डकार मार जाए। इसके पुर्ज़े ठिकाने लाने होंगे। ठरकी मगरमच्छ कहीं का। आह्ह्ह्ह्ह! स्लोली।"
वह मना भी तो कर सकती थी ना, लेकिन नहीं, इन्हें तो स्लोली कहकर और उकसाना है उस छोटे बच्चे को। और हुआ भी यूँ। रूह की बात सुनकर सिद्धांश ने रूह को घूरते हुए फिर तेज़ी से अपनी स्पीड बढ़ा ली, लाइक रूह उससे छूने नहीं देगी फिर से।
उसकी पकड़ तेज महसूस कर रूह कसके आँखें मूँदकर घबराहट से नहीं, चतुराई से काम लेकर बोली-
"मिस्टर अजनबी, प्लीज़ रुक जाइए। इट्स पेनिंग, उफ़्फ़! योर हंगरी ना, देन आई विल ऑर्डर फ़ूड, बट डोंट ईट मी!"
वह मज़ीद उसे ठरकी मरीज़ समझ रही थी। लेकिन वह सिद्धांश जो अपने कारनामों पर सीना ठोककर कहता था, वह कसके उसके दोनों उभारों को पकड़ उसे ज़रा और करीब खींच ईविल स्माइल करते हुए बोला-
"तुम्हें लगता है मुझे दवा का असर हुआ है? हम्मम्म! तुम जितनी दिखने में स्मार्ट, तो असलियत में उतनी ही बेवकूफ़। डोंट यू सी एम ऑल ओके? दिस वाज़ ओनली ट्रैप डार्लिंग, नथिंग हैप्ड टू मी। इतनी हैरान ना हो, माय मिल्क फ़ैक्ट्री। तुम्हें और झटके लगने बाकी हैं, मगर सबसे बड़ा झटका तुम्हें फ़ुर्सत से फिर कभी दूँगा। बट फ़ॉर नाउ, बस इतना जान लो, मैं आज ही नहीं, हर रोज़ अपनी ज़िद पूरी करूँगा। आई वांट यू डेली।"
"जस्ट फ़िक्स दिस इन्फ़ो इन योर पी नट साइज़ हेड। अगर भूल गई, तो उसी पल, तुम्हें मेरा होना होगा, वह भी पूरी तरह से। फिर तो भूलने की कोई गुंजाइश नहीं होगी।"
फिर ज़रा रूह के करीब बढ़कर सेडक्टिव हस्की वॉइस में-
"एक राज़ की बात बताऊँ, मेरी तलवार बिना ख़ून से सने वापस नहीं लौटेगी!"
दिस वाज़ टू डीप।
वह क्या कह गया, यह कुछ पल बीतने के बाद रूह को समझ आया। वह भौचक्की रह गई उसके वाइल्ड इरादे जान। उसके होश उड़ते देख सिद्धांश तिरछा मुस्कुराया। अब आगाज़ हुआ इस समा को और रोमांटिक बनाने का, इस सॉन्ग के साथ-
"मेरी प्यासी ज़िंदगानी ढूँढे तेरी नमी,
सारी दुनिया पास मेरे फिर भी तेरी कमी,
मैं अधूरा, मैं अधूरा, मैं अधूरा तेरे बगैर,
मैं अधूरा, मैं अधूरा, मैं अधूरा तेरे बगैर..."
यह कहते हुए सिद्धांश परफ़ेक्ट टाइट मसल्स भरी बॉडी के साथ उसके ऊपर आया। उसकी अधूरी सी बीवी हैरत में थी अब तक। और उसका अधूरा सा पति उसकी गर्दन से आती भीनी-भीनी खुशबू को स्निफ़ करते हुए उसकी गर्दन को चूम रहा था। वह शर्माई सी थी, कुछ बलखाई सी थी। ना जाने क्या डोमिनेस थी उसकी। रूह उसकी आगोश में समाई थी।
"लम्हों में हैं तेरी अगन वो,
मैं जल रहा तेरी प्यास में..."
इन अल्फ़ाज़ों को कह उसकी गर्दन को काटता सिद्धांश रूह के कोलरबोन के पियर्सिंग को गहरी निगाहों से देखने लगा। आज एक नया हिस्सा एक्सप्लोर किया था उसने। वह इम्प्रेस था उसकी ख़ूबसूरती पर।
"इट्स माइन, ऑल योर बॉडी, योर सोल इज़ माइन।"
यह कह उसने वेट किसेस करते उसे चूम डाला। उसकी आँखों में खुमारी। उसके लबों पर सजे लफ़्ज़ को सुन सिहर गई थी हमारी रूह। उसका बदन धड़क गया। कुछ हद तक पतली कमर उठ गई। वह ना जाने क्यों उसकी कुर्बत में पिघल गई। उसके धड़कते दिल को ना जाने क्यों ऐतबार था उस अजनबी पर। वह कुछ ना कही, बस नए एहसासों को जीने लगी। उसके लबों पर नहीं, रूह के दिल से ये अल्फ़ाज़ निकलने लगे-
"आगोश को है चाहत तेरी,
मैं बन गई हूँ राहत तेरी,
तुझको महसूस करने लगी हूँ,
खुद से ज़्यादा, खुद से ज़्यादा,
मैं अधूरी, मैं अधूरी, मैं अधूरी तेरे बगैर,
मैं अधूरी, मैं अधूरी, मैं अधूरी तेरे बगैर..."
वह पिघल रही थी। उसके हाथों की कसन जो सिद्धांश के पीठ पर कसी थी, वह बता रही थी। और सिद्धांश जिसकी नज़र रूह के हिलते लबों पर गई, वह पागल हो गया उसे चूमने को। अब उससे रुकना मुमकिन नहीं था। बस फिर क्या था, वह टूट पड़ा रूह के होठों पर। दोनों का बदन भीग चुका था पसीने से, लिपटे हुए थे एक-दूसरे के आगोश में।
"लब से तेरे शबनम चुनूँ वो,
लिपटा रहूँ तेरे जिस्म से,
मेरे बदन में ऐसी तपिश,
जो है बढ़ाती तेरी कशिश,
जिस्म तेरी पनाहों में आके,
गुमशुदा हैं, गुमशुदा हैं,
मैं अधूरी, मैं अधूरी, मैं अधूरी तेरे बगैर,
मैं अधूरी, मैं अधूरी, मैं अधूरी तेरे बगैर!"
वह जुड़ चुके थे रहनुमा तौर पर जहाँ रूह का दिल उससे बगावत कर चुका था। और सिद्धांश रूह को कंट्रोल करने में पूरी तरह से कामयाब हो चुका था। उसके लब खा रहे थे रूह के होठों को। उसकी गरम जीभ लिपट चुकी थी, कि तभी-
किसी ने जोर-जोर से उस रूम का दरवाज़ा पीटना शुरू किया। वह आवाज़ इतनी तेज थी कि रूह अचानक से होश में आई और अपने ऊपर कब्ज़ा जमाए उस भूखे शेर को देख एक किक मारकर बिस्तर से नीचे गिर गई।
धड़ाम की आवाज़ थी वह। अब तो गया वह बंदा जिसने दरवाज़ा खटखटाया और हमारी रूह भी।
जल महल, हरनाज का बेडरूम,
"आउच! छोड़, पागल लड़की! ओए पागल! तुम लड़की नहीं, लड़की के भेष में छिपी जंगली जानवर हो, जानवर! कितनी जोर से मारा है!" आह्ह्ह्ह्ह! तुम्हारी तो...
ये चीखें थीं, जो किसी और की नहीं, स्वैग में डूबे सम्राट सारंग की थीं। वो कहने को तो तूफ़ान नहीं था, मगर उसका पाला खुद अफ़लातून से पड़ा था। ऐसे छोटे-मोटे तूफ़ानों को नाज़ यूँ ही चुटकियों में हैंडल कर जाती थी। उसके हाथ खुलने की देरी थी और जैसे ही हाथ खुले, बेटे की अच्छे से कुटाई शुरू हुई।
"तुम साले छिछोरे! समझ के क्या रखा है हाँ? तुम्हारी छिछोरी हरकतों पर मज़े उड़ाती जाऊँ? इतनी कमज़ोर नहीं हूँ मैं, मिस्टर कुत्ते कमिने! तुम्हें पता नहीं है किससे पंगा लिया है। जितने कस कर तुमने मुझे दर्द दिया है ना, उससे ज़्यादा हाल तुम्हारा बुरा होगा!"
वो अपने होंठों में होते दर्द को भुलाकर गालियाँ देने में व्यस्त थी। उसे कोई शर्म नहीं थी। वो फाइटिंग करते वक़्त सम्राट की जान उसके नाज़ुक हिस्से को मरोड़ कर निकाल रही थी, ताकि उस मिस्ट्री मैन का फितूर उसके सिर से कुछ ऐसा उतरे कि वो आज के बाद नाज़ से तो क्या, लकड़ी से भी पंगा ना ले।
नाज़ उसकी जान लगभग निकाल ही चुकी थी कि सम्राट ने दर्द में तड़प कर कहा,
"छोड़ो... छोड़ो... छोड़ दो! वरना मैं मर जाऊँगा। मेरी बूढ़ी माँ अकेली है घर पर, और बापूजी वो कब का मेरी माँ को छोड़ किसी और के साथ गुटुरगुटुर कर रहे होंगे। अगर तुमने मुझे मार दिया तो मेरी बूढ़ी माँ... आह्ह्ह्ह्ह! वो ज़िंदा नहीं बचेंगी।"
नाज़ ही नहीं, ये बंदा खुद भी पूरी तरह से सटका हुआ था। जहाँ नाज़ अपनी भोली-भाली बातों में सम्राट को फँसा चुकी थी, वहीं जनाब आली दर्द भरी दास्ताँ सुनाकर नाज़ को इमोशनल कर गए थे।
लेकिन वो भी चालक लोमड़ी थी। उसे रत्ती भर भरोसा नहीं हुआ सम्राट की इस चालबाज़ हरकतों पर। मगर यकीनन उसने अपने हाथ से बड़ी ही बेरहमी से उसकी जान को निकाल कर रख दिया था, जो उस मिस्ट्री मैन को मौत के घाट उतारने के लिए काफी था। और नाज़ वो बेफ़ालतू में किसी बंदे की लाश अपने कमरे में इतनी रात में देखने की कायल नहीं थी।
उस बंदी के लिए लोगों की जान लेना भले ही आसान हो, मगर अपनी रात यूँ क्यों काली करना? ये ख्यालात थे उस डेविल क्वीन के।
आखिर वो माफ़िया की बेटी तो थी। वो बेपरवाही से मुँह बनाकर एक ठंडी आह लेकर उसकी जान को बख्शती हुई, एटीट्यूड से आई रोल करते हुए बोली,
"तुम्हारी इस बकवास एक्टिंग के लिए ना मैं ₹5 भी ना दूँ। ये मुफ़्त के उटपटांग इधर-उधर लड़कियों को चिपकाए हुए डायलॉग हैं। ना तुम उन्हें फ़ालतू लड़कियों को ही बोलना, जिस पर तुम इतनी दफ़ा लाइन मारते आए हो। क्योंकि इस बार जिस बंदी के तुम पीछे पड़े हो, वो नॉर्मल लड़कियों में शुमार नहीं होती।
"अब तुम अपना जरा दर्द कम करो, मैं जरा फ्रेश होकर आती हूँ!"
वो सम्राट को आँख मारकर, बेपरवाही से कमर मटका-मटकाकर बड़ी अदाओं से चेंजिंग रूम में चली गई।
और छोड़ गई उस बंदे को हैरानी में, जो आँखें फाड़कर उसका कातिलाना अंदाज़ देख रहा था। उसकी हालत खस्ता हो चुकी थी, क्योंकि उसने वाकई में आज तक इतनी बवाल और खतरनाक बंदी नहीं देखी थी।
"क्या थी ये और कौन थी? किससे मैंने पाला पड़ा लिया? आह्ह्ह्ह! ये कोई नॉर्मल नहीं है। मेरे जैसे हट्टे-कट्टे बंदे की तक जान निकाल कर रख दी। यहाँ मैं जीत के नारे लगा रहा था, ये तो मेरे बच्चों के भविष्य को ही खा गई।
"मुझे जल्द से जल्द यहाँ से भागना होगा, इससे पहले ये मेरे बच्चों का भविष्य खा जाए!"
वो बंदा अपनी जान नहीं, भविष्य में होने वाले बच्चों को लेकर भाग रहा था। वो फटाफट से वहाँ से ऐसे गायब हुआ जैसे वो यहाँ कभी आया ही ना हो।
और हरनाज, जो अभी-अभी गुनगुनाते हुए मस्त-मलंग सी कमरे में आई थी, वो सम्राट की सारी बातों को बड़ी तसल्ली से सुनकर उसके गायब होते ही खिल-खिलाकर हँस पड़ी।
"बेवकूफ़ कहीं के! मैं चाहती तो मेरे हाथ-पैरों के बंधने के पहले ही तुम्हारी जान ले लेती, मगर मैं इस बंदर के साथ खेलना चाहती हूँ। अब जयपुर आई हूँ, थोड़ा तो एंटरटेनमेंट होना चाहिए ना! चलो देखते हैं आखिर इस पगलेट के साथ क्या-क्या किया जा सकता है।"
वो मज़ीद एक खिलौना था जो उस डेविल क्वीन को भा चुका था। नाज़ के लिए वो मज़ीद चींटी मसलने के बराबर था। वो तो बस एंटरटेनमेंट ढूँढ़ रही थी, जो सम्राट सारंग के रूप में उसे मिल ही चुका था। वो मस्त पैर फैलाकर बिस्तर पर सोई और कुछ पल में ही उसकी खर्राटों की आवाज़ कमरे के सन्नाटे को चीरने लगी।
वहीं दूसरी ओर, मिलाण
सिद्धांश अपनी अर्से पहले खोए सुकून को पाने की तलाश में भटक रहा था। और जब रूह उसे आखिरी का सुकून के नाम पर मिल चुकी थी, वो पूरे २० साल बाद अपनी ज़िद पूरी करना चाहता था।
उसका माज़ी (पास्ट) बेहद भयानक था। महज़ ८ साल की उम्र में वो अनाथ हो चुका था। इतना ही नहीं, वो काफी सालों तक जेल की सलाखों के पीछे जुवेनाइल (बच्चों की जेल) में बीता कर आया था। सालों तक उसने सिर्फ़ कभी ना ख़त्म होने वाली जंग लड़ी थी, लेकिन अब उसका सुकून उसके करीब था, तो फिर वो अपनी सालों की तड़प कैसे पूरी ना करता?
रूह के करीब आने की एक अजीब सी आग उसमें थी, मगर न जाने क्यों वो रूह के नज़दीक रहने से सब कुछ भूल जाता था। वहीं रूह, जिसने खुद कहीं न कहीं सिद्धांश की बेचैनी भाँप ली थी, उसकी आँखों का सूनापन जान चुकी थी।
वो चुपचाप उसके बालों में हाथ घुमाते हुए उसे शांत करने लगी, ताकि सिद्धांश उसे तंग करने की बजाय गहरी नींद में सो जाए।
लेकिन सिद्धांश, जो खुद के हाल से अनजान था, वो रूह के हुस्न से भी और उसकी मासूमियत पर फ़िदा था। उसकी बालों पर थिरकती उंगलियाँ सच में सिद्धांश को मुस्कुराने से रोक ना पाईं।
कितनी आसानी से सौंप दिया था रूह ने खुद को? क्या वो इतना स्पेशल था? ये ख्याल दिल ही दिल में सिद्धांश को सता रहे थे। क्या ये लड़की उसे जान चुकी है? क्या ये वजह है उसने सौंपने की? अगर यही वजह है तो इसका मतलब वो मानती है उस सिंदूर की कीमत।
ये अनगिनत ख्याल थे जो सिद्धांश के दिल में खलबली मचा चुके थे। अगर उसका शक जरा भी सच हुआ तो पागल हो जाएगा ख़ुशी के मारे। ऐसा दिल ही दिल में सिद्धांश ने कहा,
"अगर तुम उस अनजाने में बने रिश्ते को मानकर मुझे सौंप रही हो, then kitten तुम जानती नहीं तुम मेरी ज़िन्दगी में क्या अहमियत रखोगी।"
वो अलग ही दुनिया में गुम रूह की करीबियों से ख़ुश था, और दिल ही दिल में ठान चुका था कि वो जल्द ही रूह को अपनी सच्चाई बताएगा, ताकि रूह उसके करीब हमेशा रह सके, वो भी पूरे हक़ से साथ।
और इसी के साथ सिद्धांश रूह पर कब्ज़ा जमाए, उसके लबों को ही नहीं, उसके बदन के हर एक हिस्से को अपने बनाने की चाहत में था। एक अजीब सी ख़ुमार और आँखों में कशिश लिए वो रूह के गुलाबी लबों का रसपान बड़ी शिद्दत से कर रहा था।
वहीं रूह, न जाने क्यों उसकी डोमिनेंट प्रेज़ेंस मोम की तरह पिघलती हुई सिद्धांश को उसकी मन-मर्ज़ी करने दे रही थी। मानो उसका खुद पर कोई बस ना चले। वो बस उसकी दीवानी सी उसकी आगोश में खो गई। ये पहली दफ़ा था जो रूह के कोई इस कदर करीब आया था, और रूह ने उफ़्फ़ तक ना किया।
उल्टा, जैसे ही उसके लबों को आजादी मिलती, वो मीठी-मीठी सी सिसकियाँ तेज आवाज़ में भरने लगी,
"ह्ह्ह्ह्ह्ह रू...रु...रुको, वहाँ नहीं।"
उसका नज़ाकत से यूँ कराना सिद्धांश का दीवानापन उसके सिर चढ़ चुका था। वो रूह का अंग-अंग अपने नाम करने की ज़िद में उसे सच में काबू कर चुका था। What a राउडी Man, जो डार्क लॉर्ड की बेटी को काबू कर गया!
मगर रुके जरा! रूह जो यूँ पिघल रही है, इसकी भी कोई खास वजह है। वो जैसी दिखती है वैसी है ना? आगे ज़रूर खुलासा होगा। मगर वो मौक़ा मिलते ही अपने मुहाफ़िज़ के लिए कुछ भी कर गुज़र जाएगी, इतना तो तय है। वो दोनों डूब चुके थे मदहोशी के आलम में।
तभी किसी ने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाना शुरू किया। नहीं-नहीं, लगभग पीटना कहेंगे तो भी कुछ गलत ना होगा।
और ये पीटने वाली महान आत्मा, जो खुद अपनी मौत की दास्ताँ अपने हाथों से लिखने उस दरवाज़े को खटखटा रही थी, उस शख्स को दूर-दूर तक आइडिया नहीं था कि सिद्धांश, जो अब तक मॉन्स्टर से सीधा शांत बच्चा बन चुका है, वो अब इस दरवाज़ा खटखटाने वाले शख्स का खून पीने के लिए सीधा वैम्पायर बन चुका था।
तो गुस्से में तन-मन करके दरवाज़े की ओर जाता इसके पहले ही रूह ने ऐसी किक मारी कि सिद्धांश मखमली बिस्तर से सीधा इटैलियन मार्बल की फ़र्श पर जा गिरा, वो भी ठंडी-ठंडी।
गई आज कसम से रूह!
आखिर इतनी ज़ोर से उस घोड़ी ने किक जो मारी थी, उसे तो जाना ही था ऊपर, वो भी बड़ी फ़ुरसत से। वो बंदा, जो पहले ही फ़ुल्ल गुस्सैल मोड में ऑन था, उसे कुछ नहीं समझ आया, बस धड़ाम से उसकी आवाज़ गूँजी और उसकी आँखों में बेहद जानलेवा गुस्सा नज़र तैर गया।
तो हमारी रूह को अंदाज़ा भी नहीं था, उसने जल्दबाज़ी में कौन सा धमाका कर रखा है। उसे जैसे ही दरवाज़ा पीटने की आवाज़ हुई, वो सब कुछ भुलाकर दरवाज़े की ओर भागी, बिना सिद्धांश की हालत देखे।
तभी एक खौफ़नाक आवाज़ गुर्राती हुई उसके कानों में आई, जिसे सुनकर जब उसने सिद्धांश को देखा, डर के मारे गले से स्लाइवा गटकती गई बिचारी।
"How dare you to kick me? Aahhhhhh! छोड़ूँगा नहीं मैं।"
वो गुर्राता हुआ शेर दहाड़ा और हमारी शेरनी अपने टशन में वापस आई।
"Youuuuu! आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे छेड़ेंगे? सोच भी कैसे सकते हैं आप कि मैं आपको छूने दूँगी? छोड़ूँगी तो मैं नहीं, आपको मिस्टर! मेरे बंदे को मालूम चला ना, गोलियों से भून देगा। फ़टीचर आदमी! जाओ कुछ कपड़े पहन आओ, तुम्हारी इस अजीब सी बॉडी को देखकर बेहोश नहीं होना है मुझे।"
वो गुस्से में अपनी घबराहट छिपाते हुए उसी की धमकी से डराकर चेंजिंग रूम में भाग गई, जाते-जाते तकिया चार-पाँच फेंक गई। मगर सिद्धांश के आगे किसी और बंदे का ज़िक्र उसे हैवान बना चुका था। ऊपर उसकी बॉडी पे कमेंट? तौबा-तौबा! जान से जाएगी ये कुड़ी!
"तुम्हारी इतनी हिम्मत? तुम किसी और को अपना बंदा कहो? ना उसे छोड़ूँगा, ना तुम्हें! कहाँ भाग रही हो? आओ मेरे सामने, मैं भी तो देखूँ कौन है वो bastard! I said come outside! और जिस बॉडी को अजीब कह रही हो ना, उसी पर फिसल गई थी, भूल गई क्या!"
दोनों मियाँ-बीवी नहीं लग रहे? वो खुद को गालियाँ निकाल रहा था। इतना ही कहीं मौत के घाट उतारने की साज़िश तक कर चुका था। और रूह, जिसे खुले शेर के आगे जाने का कोई शौक़िया आदत नहीं थी, वो प्रॉपर फ़ुल पैक जम्पसूट पहनते हुए बोली,
"जाओ...जाओ कमीने आदमी! मुझे हिप्नोटाइज़ किया था, वरना तुम्हारे मुँह को तक ना देखूँ। तुम जानते नहीं किससे पंगा ले रहे हो। मैं किसी के पीछे पड़ गई ना, साँसें छीन लेती हूँ साँसें। और अब बारी मेरे होने वाले हसबैंड की...नहीं-नहीं...ऑन द प्रोसेस हसबैंड की! वो छोड़ने नहीं तुम्हें समझें! अब फूटो यहाँ से दगाबाज़ इंसान, वरना सीधा कॉप्स को बुलाऊँगी।"
वो बातों-बातों में सिद्धांश का गुस्सा झट से फुर्र कर गया। वो गौर फरमा रहा था उसके कहे लफ़्ज़ों पर। वो मज़ीद हसीन लम्हा था सिद्धांश के लिए।
"मतलब वो मुझे अपना हसबैंड कह रही है? What? I'm her Hubby? She is accepting me? But how? क्या इतने मायने रखता है उसके लिए एक छोटा सा रिवाज़? क्या ये सच में इतनी मासूम है? मगर कैसे? ये तो बिगड़ैल नवाबजादी है।"
वो सोच भी नहीं सकता था रूह इस हद तक मासूम है। वो कायल हो गया फिर से। क्या उसकी ऑन द प्रोसेस बीवी इतनी प्योर थी?
वो आज पहली मर्तबा उसका दिल पल भर में शांत हो गया, किसी समुंदर की तरह था। उसके जुमले ने सिद्धांश के पत्थर दिल अजीब से एहसासों से भर दिया। वो चुपचाप रूह के इंतज़ार में बिस्तर पर बैठ गया। कुछ चल रहा था उसके माइंड में।
"मैं उससे जबरदस्ती नहीं कर सकता। She is pure soul. I have to control my desire! लेकिन क्या करूँ? उसके करीब जाते ही मैं सुकून महसूस करता हूँ? कैसे रोक लूँ मैं खुद को?"
वो अनजाने में मुस्कुरा रहा था, पूरे २० साल बाद। हाँ, अपनी मम्मा के बाद रूह वो वजह थी जिसने उसके होठों पर मुस्कान लाई थी। मगर बस कुछ पल में ही उसकी आँखें खून की तरह लाल हो गईं, जब चेंजिंग रूम से रूह भागते हुए सिद्धांश को इग्नोर कर सीधा दरवाज़ा खोल गई।
बस इतना ही नहीं, दरवाज़ा खोलकर किसी गैर बंदे ने ख़ुशी में झूमकर उसकी महबूबा को गोद में उठाया। Wahhh wahhh brao! 👏 आपका चीर-फाड़ आपको बड़ा मुबारक!
"तू बिना बोले मिलाण में? तू क्यों ऐसा करती है यार? जानती है मैं कितना परेशान था? चल, तुझे कुछ दिखाता हूँ, तू शौक़ीन हो जाएगी। मगर अपनी सिस्टर को मत बताना, वो पागल अपनी सगाई के नाम से ख़ुश है, कहीं खुदकुशी ना कर ले। और हाँ, मम्मी से बात कर अपनी, उन्होंने ही भेजा है मुझे।"
वो बोलता चला गया, रूह को पकड़कर झूमता गया, मगर बिना ये जाने वो खुद की वाट लगा रहा है। और रूह, वो तो भूल ही चुकी थी अपने हैवान को। उल्टा वो बेख़बरियत से उसके गुस्से में बढ़ोतरी करते हुए समय के गालों को चूमकर बोली,
"वाह! मेरे शेर! आखिर तुम ले आए उस मर्ज़ की दवा। अब देखना, what the hell! छोड़ो उसे, छोड़े, मारो मत, नहीं!"
"वो मर जाएगा! प्लीज़ मत मारो! छोड़ो उसे! मेरा इकलौता जिगरी दोस्त है! छोड़ो शैतान आदमी! वो मर जाएगा! प्लीज़ छोड़ दो! आप मेरी जान ले लो पर इसे छोड़ दो! इसे कुछ मत करो! आप उसे छोड़ दो, वरना आपकी ख़ैर नहीं होगी! देखो मैं कह रही हूँ! आह्ह्ह्ह्ह! नहीं!"
वो बेपरवाही से समय से बातें करती गई, मगर बिना ये जाने कि वो सिद्धांश का गुस्सा किस हद तक बढ़ा चुकी है। वो बेफ़िक्री से समय की बाहों में झूम रही थी।
जहाँ रूह के ऊपर किसी की नज़र तक पड़ना हमारे सिद्धांश को गवारा नहीं था, यहाँ तो वो उसकी बाहों में झूम गई, और उसके गालों पर किस!
अब तो बेटा रूह की भी जान जाएगी और उस बंदे की भी। और समय, जो हमेशा गलत समय पर ही सिद्धांश के आगे अपनी मौत की भीख माँगने आ जाता था, उसे पल भर में क्या हुआ कुछ नहीं समझ आया। मगर उसकी गर्दन अच्छी खासी खस्ता हाथों में फँस चुकी थी। वो साँस नहीं ले पा रहा था, उसकी आँखों की पुतलियाँ बाहर आ चुकी थीं, और चेहरा खून जमने से लगभग लाल हो चुका था।
महज़ कुछ देर भी अगर सिद्धांश ने ऐसी ही जलती निगाहों से उसे पकड़ रखा तो कसम से समय खड़ा-खड़ा वहीं जान से जाता। तो वहीं रूह उसे रोकने की जद्दोजहद में फाइटिंग की हर स्किल अपना रही थी, लेकिन सब बेकार। उल्टा उसकी पतली कमर में हाथ डालकर अपने सीने से सटा उसे गुर्राकर सिद्ध ने कहा,
"बच्चों वाली स्किल किसी और पर आज़माना। मैं कोई आम नहीं, क्रिमिनल हूँ, वो भी बचपन से।
"और अब अपने दिमाग में बिठा लो, तुम पर पढ़ने वाली हर नज़र सिर्फ़ मेरी होगी। तुम्हें छूने वाला इकलौता मर्द सिर्फ़ मैं रहूँगा मैं। तुम्हारे रूह के हर हिस्से से लेकर जिस्म की हर गहराइयों तक सिर्फ़ मेरा पहरा होगा। Get That?
"और आज इसने तो तुम्हें छुआ है, तुम्हारे करीब जाकर अपनी मौत को खुद से बुलावा दिया है। और तुम...तुमने ही कुछ पल पहले मुझे शिद्दत से कबूला था ना, लेकिन क्या हुआ? कुछ पल में ही तुम किसी और के पास चली गई? मुझे मंज़ूर नहीं तुम्हारा किसी और के करीब रहना, समझी?
"ये तो मरेगा ही, लेकिन बचोगी तो तुम भी नहीं, darling!"
वो वाकिफ़ नहीं थी वो किसकी जूनूनियत है।
सिद्धांश गुस्से में पागल दैत्य बन चुका था, इसमें कोई डाउट नहीं था। और रूह, उसके फाइटिंग स्किल को कुछ पल में ही रोकने वाला ये सिर्फ़ इकलौता मर्द था जिस रूह को कंट्रोल नहीं कर सकती थी। वरना अच्छे-अच्छों के छक्के छुड़ा दिया करती थी। मगर आज सब कुछ बेकार था।
तभी उसका ध्यान समय पर गया जो मौत के नज़दीक लगभग पहुँच चुका था। अगर सिद्धांश को अब ना रोका तो वो पक्का बलि चढ़ेगा। उसके गुस्से को लड़ाई से नहीं, सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार से कंट्रोल किया जा सकता था, और ये कहीं ना कहीं रूह जान चुकी थी।
वो गहरी साँस ले अपने दोस्त के खातिर ज़ोर से चिल्लाकर समय को बोली,
"भाग समय! इससे पहले तेरी जान जाए!"
ये कहकर उसने झट से एड़ी के बल खड़े होकर सिद्धांश के बालों में उंगली फँसाई, और उसका चेहरा अपने बेहद करीब चिपकाकर उसके होठों पर अपनी शिद्दत भरी मोहर लगाई। ये अचानक से ऐसा बवाल हुआ, सिद्धांश को ना समझ आया, मगर...
उसके दिल में मचा गुस्से का तूफ़ान, जो गरम लावा की तरह जल उठा था, अचानक से बर्फ की तरह मेल्ट होने लगा। उसके हाथों की पकड़ समय की गर्दन से छूट गई और वो रूह की कमर में हाथ डालें उसकी पीठ को ठंडी दीवार से लगाकर फ़ुल पैशन से उसके होठों पर बरस पड़ा।
वहीं हमारा समय, उस कमज़ोर दिल के बंदे की तो दुनिया ही पूरी की पूरी हिल चुकी थी। वो खांसते-खाँसते, मगर उतना ही आँखें फाड़-फाड़कर उन दोनों का हॉट रोमांस देख रहा था। ये मुँडा सुधारा नहीं लगता है। तेरी दोस्त कुर्बान हो गई, मगर ये फिर भी ना भागा, बताओ।
इतना ही नहीं, समय के फ़ोन पर रूह की मॉम ने उसकी ख़ैरियत जानने के लिए वीडियो कॉल किया, और अनजाने में ही हैरानी में डूबा हुआ समय उस फ़ोन को स्लाइड कर गया। और उन दोनों की शिद्दत भरी किस कॉल पर मौजूद सभी लोग आँखें और मुँह फाड़े उस नज़ारे को देखकर हिल गए।
🫣
कैसे लगा ये चैप्टर? मुझे ज़रूर बताएँ। और आने वाले चैप्टर में होंगे एक से एक बवाल। अब तो रूह भी फँसेगी और सिद्धांश भी, मगर कैसे फँसेंगे? ये तो एक अलग ही मसला है।
"नहीं-नहीं-नहीं"!
पियाली (रिधान की मासी) की ऐसी चीख निकली मानो किसी के कान के पर्दे फाड़ दे। उसने अपने कानों पर हाथ रखकर इतनी जोर से चीखी कि पूरा जलमहल हिल गया। रूह की मासी की आवाज़ इतनी कर्कश और भयंकर थी कि उस समय उसके आसपास मौजूद बदकिस्मत लोग कुछ देर के लिए सुन्न हो गए।
तभी सीरत (उसकी बड़ी बहन और जेठानी) ने जोर से उसके सिर पर हाथ मारा।
"पागल औरत! इतने बड़े बच्चों की माँ बन चुकी हो, अब तो सासू माँ भी बनने चली, मगर हरकतें अभी भी एलकेजी वाली हैं। हमारे कान के पर्दे फाड़ दिए। अपनी मोटी तशरीफ़ उठाओ और भाग निकलो, इससे पहले कि हम तुम्हारा मुँह और तशरीफ़ एक साथ तोड़ दें।"
चपेट में आते ही पियाली का मुँह बिगड़ गया। गीत (अरहम की माँ) का दिल खुशी से झूम उठा। अगर गीत का बस चलता तो पियाली को और भी चपेट में लेती।
लेकिन सीरत की वह झल्लाती हुई आवाज़ थी, जो पहले ही अपनी बेटी का बेशर्मी भरा कारनामा सबके सामने देख चुकी थी। गनीमत थी कि रूह के पिता और चाचा वहाँ मौजूद नहीं थे, वरना तहलका मच गया होता। मगर बात अभी भी नहीं संभली थी। रूह की बारात की तबियत के साथ निकलने पर उसकी माँ गुस्से में बौखला रही थी।
उन्हें इस जालिम दुनिया पर भरोसा नहीं था। रूह के पैदा होने के बाद से उसे अति-विशिष्ट तरीके से और हर वक्त नज़रों के सामने रखकर पाला था।
जिससे रूह के सामने आने वाला हर शख्स कई सुरक्षा बाधाएँ पार करके पहुँचता था। इतने प्रतिबंधों के पीछे एक बड़ा कारण था - रूह का अतीत, जिससे परेशान सीरत और रणवीर ने हमेशा रूह को दुनियादारी से छुपा रखा था ताकि अतीत का गहरा साया उनकी प्यारी बच्ची पर न पड़े।
बस इकलौता सायम था जिस पर सीरत आँख मूँदकर विश्वास करती थी।
(आगे पता चलेगा कि रूह इतनी मासूम क्यों है और उसे दुनियादारी की ज्यादा ख़बर क्यों नहीं है?)
मगर जिस खतरे से वे रूह को बचाना चाहते थे, वही उसका आखिरी ठिकाना था। उसका मुक़द्दर, उसकी रक्षक माता-रानी के आशीर्वाद से बन चुका था, जो रूह को बर्बाद नहीं, आबाद करेगा। मगर यह बात रूह की माँ कहाँ जानती थी? उनका चिंतित होना स्वाभाविक था।
"बच्चू, मेरी बचोगी नहीं तुम। अब तुम एक बार मिलान से आ जाओ। किसके साथ गुल खिला रही हो, ना वो जनाब तबियत के साथ पिटेगा और तुम, खैरियत तुम्हारी भी कम नहीं होगी। बस एक बार यहाँ तशरीफ़ रखो तो सही, मम्मा का प्यार कुटाई के साथ कैसा लगता है, यह हम तुम्हें बताएँगे।"
"और मेरी प्यारी देवरानीजी, अगर गलती से भी तुमने उस चुहिया की साइड ली तो उसके साथ तुम पर भी हाथ साफ़ करने में हमें कोई दिक्कत नहीं।"
बिचारी पियाली हमेशा रूह को बचाने में पिस जाती थी। आखिर रूह की माँ सीरत का लहजा ही कुछ टेढ़ा था। उनके विचार जानकर पियाली का मुँह बन गया, मगर उसके तीखे कान चौकन्ने हो गए थे। आखिर उन्हें अपनी लाडली की चिंता तो थी।
वह नाखून चबाते हुए अपनी ननद (गीत) और जेठानी (सीरत) को घूरते हुए मन ही मन खिचड़ी पकाती हुई बोली,
"इन दोनों चिपड़ियों का कोई भरोसा नहीं। मुझे मेरी बच्ची को बचाना होगा, वरना क्या पता ये दोनों भूतनियाँ बिना नमक-मिर्च लगाए मेरी रूह को हलाल कर जाएँ। वैसे हलाल तो मैं ही करूँगी। बिना मेरे सर्टिफिकेशन के किसी के साथ चोंच कैसे लगा सकती है?"
यहाँ तो अलग ही सियापा था। जहाँ पियाली के मन में कुछ अलग ही चाल चल रही थी, वहीं गीत के मन में अलग ही लड्डू फूट रहे थे। उन्हें इंतज़ार था कि कब सिंघानिया खानदान के सारे बच्चों की खिंचाई हो ताकि वे अपने बेटे अरहम को सबसे बेहतर दिखा सकें।
तो जलमहल में अच्छी खासी आग लग चुकी थी। बस इंतज़ार था हमारी रूह के आगमन का, जहाँ उसके नाम के पर्चे फाड़े जा रहे थे।
मिलान
लेकिन मिलान में रूह मैडम का गुल खिलाना कहाँ बंद हुआ था? अभी भी उसके पंखुड़ी जैसे होंठ सिद्धांश के सख्त लबों में बड़ी शिद्दत से कैद थे। उसका हर अंग उसके 'डेमन' के आगोश में कैद था, जिससे रूह का साँस लेना मुश्किल था। वह जद्दोजहद में उसके सीने पर मुक्के बरसा रही थी। " क्या तुम्हें पहले सोचना चाहिए था?"
उसके नर्म हाथ, जो सिद्धांश को रुई जैसे लग रहे थे, वह मुस्कराता हुआ उसे और भी शिद्दत से चूमने लगा। आखिर वह कैसे किसी और के करीब गई? यह सोचकर वह रूह को सज़ा दे रहा था।
लेकिन कुछ देर में उसने खुद को सौंप दिया और इतना ही नहीं, उसने धीरे से उसके मुलायम बालों में उंगलियाँ घुमाना शुरू कर दिया।
"वह उस जानवर के तीव्र चुम्बन को मुश्किल से 15 मिनट तक झेल पाई। वह एक साथ साँस लेने में असमर्थ और बेचैन थी।"
वह इकलौता ऐसा मर्द था जो हमेशा रूह के दिल, दिमाग और तन पर क़ाबू पा लेता था। आखिर क्यों वह इतनी समर्पित हो जाती थी? उसे कुछ पता नहीं, बस धड़कनों से बगावत करने का उसका मन कर रहा था। यही वह कारण था जिसके चलते रूह उससे लड़ने के बजाय उसे विशेष व्यवहार देने लगी।
तो वहीं सिद्धांश, रूह के छूटने की कोशिश में उसकी पकड़ रूह के लबों पर और भी कस रहा था। उसके जोशीले चुम्बन में इतनी तीव्रता थी मानो वह साँसें छीनने की होड़ में हो।
लेकिन तभी रूह ने उसके बालों को सहलाकर उसे शांत करना शुरू किया। वह कुछ पल तो हैरान था। क्या वह महसूस कर रहा है? क्या यह सच में हो रहा है? पूरे बीस सालों बाद किसी ने उसे इस तरीके से शांत किया था।
"वह पूरी तरह से हैरान था!! उसे नहीं पता था कि उसके साथ क्या हो रहा है।"
आज तक उसकी माँ के अलावा किसी ने भी उसे शांत करने का यह तरीका नहीं अपनाया था, तो उसका हैरानी में डूबना कोई हैरानी वाली बात नहीं थी। उसने रूह को कसकर अपनी बाहों में फिर से समेट लिया, मानो वह इस स्वर्ण हृदय वाली लड़की को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता हो।
उसके होठों पर फिर सुकून भरी मुस्कान थी।
क्योंकि सिद्धांश कुछ पल में ही यह राज जान चुका था। रूह कोई सामान्य लड़की नहीं, बल्कि उसके आसमान से आया हुआ फरिश्ता थी, जिसे भगवान ने बड़े सहेजकर उसकी झोली में डाला था। उसके करीब वह सारी दुनिया भूल बैठा। वह कुर्बानी का सफ़र धीरे-धीरे शुरू भी कर चुका था, जिसकी भनक उसे दूर-दूर तक नहीं थी।
उस हैवानियत के बादशाह को इस पल से ही प्यार हो गया। यह सौ प्रतिशत सच था। उसके दिल के हालात जितने रोमांटिक थे, उतने ही सुंदर विचार रूह के दिल और दिमाग में छाए थे।
बस पल भर के लिए उसके बालों को सहलाने से सिद्धांश की कड़ी पकड़ ढीली हो गई थी और उसके सख्त लबों का बर्बर हमला मीठा एहसास बन गया था। "वह पूरी तरह से चकित थी।"
वह खुद हैरान थी सिद्धांश के इस व्यवहार को जानकर। वह मन ही मन, अनजाने में खुद से पूछ पड़ी,
"क्या वाकई में उसके एहसास इतने मायने रखते हैं? इस खूंखार जानवर के लिए? यह दिखने में किसी भूतनाथ से कम नहीं, लेकिन मेरी थोड़ी सी चाल ने इसे छोटा बच्चा बना दिया? मगर कैसे? यह क्यों छोटा सा बच्चा बनकर पिघल जाता है? क्या इतना आसान है इन्हें मानना?"
शायद वह सही थी, मगर गलती से ही सही, सिद्धांश की कमज़ोरी जानकर वह मन ही मन मुस्कुराई।
कुछ पल बाद,
वहीं सायम, जो सारा नज़ारा आँखें फाड़कर देख रहा था, दरवाज़े के उस पार रूह को रोकने के लिए खड़ा था, तभी धड़ाम... की आवाज़ से उसके मुँह पर दरवाज़ा बंद हो गया। अब हमारे सिद्धांश बाबू को शांति चाहिए थी, मगर उसकी नाक टूट गई। मगर जैसे ही सिद्धांश के गुस्से का ख्याल आया, वह अपनी जान बचाने के लिए भाग निकला, और साथ ही रूह और सिद्धांश की ज़िंदगी में आग लगाने के लिए। क्या दोस्त पाया है रूह ने?
तो वहीं सिद्धांश रूह को गोद में उठाकर धीरे से उसके होठों को चूमकर बोला,
"तुम क्या हो? हम... बोलो, क्या हो तुम? क्यों तुम्हें मेरी कमज़ोरियाँ पता हैं? कैसे? आखिर कैसे तुम जानती हो मुझे शांत करने की तरकीब? बोलो ना, क्या हो तुम रूह? क्या तुम सच में कोई फरिश्ता हो?"
रूह जो उस खूंखार जानवर की गोद में छोटी सी नाजुक कली लग रही थी, वह चौंकाने वाले प्रतिक्रिया के साथ सिद्धांश को ताज्जुब से देखने लगी। उसे लगने लगा था कि सिद्धांश उसे काट खाएगा, लेकिन वह तो उसकी तारीफ़ कर रहा था।
"क्या इनका दिमाग फिर से खिसक गया है? यह खूंखार आदमी मुझे काटने पर तुला था, मगर अब देखो। सच में किसका नशा किया है? किसको खबर?"
वह हैरान थी, सोचने-समझने की शक्ति खो चुकी थी। इतना घुमा रखा था। उसकी उलझन महसूस कर सिद्धांश ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखकर कहा,
"एन्जल, तुम मुझसे अब कभी दूर नहीं जा सकती। कभी नहीं। कभी मतलब कभी भी नहीं। तुम्हें हरदम मेरे सामने रहना होगा। तुम तलब नहीं, लत हो मेरी। वह नशा हो जो अब मुझसे नहीं छूट पाएगा। तुम्हें मेरे करीब रहना होगा, आज से ताउम्र तक!"
वह मुक़द्दर का फैसला रूह की आँखों में आँखें डालकर सुना गया और बिस्तर पर उसे लेटाकर फिर से अपनी बाहों में कस लिया। फिर एक बार उसके होठों पर क़ब्ज़ा जमा गया। मगर खुद को उसी हालत में फिर एक बार देखकर रूह को ऐसा लगने लगा जैसे आज यह आदमी सारे दायरे मिटाकर उसमें शामिल करने की फिराक में है।
वह पूरी तरह से घबरा गई थी उसके इरादों को जानकर।
कुछ देर धीरे-धीरे उसके लबों को चूमने के बाद, रूह की धीमी साँसों को शांत करने के लिए सिद्धांश ने एक पूरा चुम्बन करके उसके लबों को छोड़ा और गहरी-गहरी साँसें भरते हुए मदहोशी के आलम में डूबकर, हसरत भरी निगाहों से रूह को देखकर बोला,
"सो जाओ किटन, वरना मैं रोक नहीं पाऊँगा खुद को।"
वह गहरी-गहरी साँसें भर रहा था, लेकिन रूह सोच भी नहीं पा रही थी। काटो तो मानो खून नहीं, वह आँखें फाड़कर गहरी-गहरी साँसें लेते हुए सिद्धांश की मनमानी को देख रही थी।
"ज़हर लगते हैं कसम से आप और आपकी आँखें। आपकी दिक्कत क्या है? बताएँ, क्या गुनाह है मेरा? मैं कोई गद्दा नहीं। हटाएँ अपना दस किलो का खाली खोपड़ी।"
"और यह मनमानी नहीं चलेगी ना। आप फिर मेरी सॉफ्टीज़ को तंग नहीं कर सकते। बिचारी मेरी सॉफ्टीज़ कितना तंग कर लिया। मैं कभी भी आज के बाद किसी को हेल्प नहीं करूँगी। आपने तो हेल्प का मुकाम ही बदल दिया।"
उसकी सोचने-समझने की शक्ति खो चुकी थी। इतना तंग कर रखा था सिद्धांश ने। उसकी उलझन महसूस कर सिद्धांश ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखता रहा।
उसकी निगाहें खुद पर पाकर रूह बिना मतलब की बड़बड़ाती रही, मगर सिद्धांश को जरा भी फर्क नहीं पड़ा। वह बेपरवाही से गहरी साँसें भरते हुए मुस्कराते हुए उसके ऊपर सोने लगा।
वह जरा होश खो बैठी थी सिद्धांश की मनमानी को देखकर और कई विचार उसके दिल-दिमाग में साथ-साथ कौंधने लगे। पर जब उसके राक्षस का ख्याल आया, वह दुखी होकर सिद्धांश को कुछ कहती,
इससे पहले ही सिद्धांश ने उसके हाथों को थामकर अपने बालों में रखकर दबंग लहजे में कहा,
"ज़्यादा सोचो मत बस एन्जल। मुझे बिना डिस्टर्ब किए सोने दो। अगर तुमने जरा भी हलचल की तो तुम्हारे बदन का हर हिस्सा मेरे लबों से बेहाल होगा। सो डार्लिंग, थिंक बिफोर प्रोवोकिंग मी। नाउ स्लीप टाइट, उसके पहले मैं बीस्ट...नहीं-नहीं...हॉर्नी मॉन्स्टर बन जाऊँ!"
वह बातों से कत्लेआम कर चुका था। होश नहीं, सीधा जान खींच चुका था। 'मॉन्स्टर' कहकर वह मुस्कराकर फिर से सोने लगा, मगर रूह का चेहरा रंग उड़ चुका था। वह हैरान थी, मगर सिद्धांश को बेमतलब में जगाकर क्यों वह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारे?
उसने फटाफट से सिद्धांश का आदेश मानकर उसके बालों में उंगलियाँ घुमाना शुरू कर दिया, मगर कसम से सिद्धांश की बातें तूफ़ान लाने वाली थीं। थोड़े ही पल में उसके सीने के बीचोबीच गहरी साँसों में महसूस हुई उसकी धड़कनों ने कोहराम मचा दिया।
"जो मैं सोच रही हूँ, अगर वह सच हुआ ना, तो छोडूंगी नहीं मैं आपको!"
वह ऐसे-तैसे हज़ार गालियाँ देते हुए खुद भी गहरी नींद में चली गई। कुछ पता नहीं लगा। तो वहीं सिद्धांश कब का सुकून की नींद अपनी पत्नी पर पूरा कर रहा था।
अगली सुबह
जलमहल, पाँचवीं मंज़िल, रिधान के कमरे में,
एक लड़की, जिसके बदन पर सफ़ेद टी-शर्ट के अलावा कुछ नहीं था, वह सुरमई आँखों में भरपूर आँसू लिए रात का हर एक दृश्य याद कर रही थी।
"ओ खुदाया, क्यों इतना दर्द है इस प्यार में? नहीं सही जाती उनकी बेरुख़ी। हम पर रहम फ़रमाइए, ओ मेरे अल्लाह! उनकी आँखों में नफ़रत नहीं, मोहब्बत फिर से देखना चाहते हैं!"
उसका दिल रिधान के कड़वे शब्दों से भर चुका था। वह बेरहमी से आँसू पोंछकर गहरी साँस भरकर बोली,
"इतनी मुद्दत बाद वह मिले हैं हमें। उन्हें मानना होगा। हमारे शौहर हैं वे। उन्हें नाराज़ नहीं होने दे सकते। पत्नी होने का हर फ़र्ज़ अदा करने होंगे। फ़िज़ा चाहे कुछ भी हो जाए, मगर उन्हें मनाए बिना तुम यूँ आराम नहीं फ़रमा सकती!"
वह उसके प्यार में रंग चुकी थी। जहाँ शादी से पहले रिधान से भागना उसका खूबसूरत शौक था, उतना ही शादी के बाद अपने शौहर के लिए हर कठिनाई पार करके उनकी चाहत बनना।
वह बड़ी मुश्किल से कराहते हुए जैसे-तैसे उठकर वाशरूम की ओर जाने लगी, मगर क्या वह भूल चुकी थी कि उसकी हालत ठीक नहीं थी? रिधान ने उसकी जान ही निकाल दी थी।
नतीजतन, एक जोरदार चीख के साथ वह लड़खड़ाते कदमों से फ़र्श पर गिरने लगी, लेकिन तभी उसके रक्षक ने झट से उसकी कमर पकड़कर थाम लिया और अपनी गोद में उठाकर सख्त लहजे में कहा,
"जब पैरों में जान नहीं है तो उठने की कोशिश क्यों कर रही हो? हम... तुम मुझे आवाज़ नहीं दे सकी? ओह माई बैड! तुम तो चाहती हो कि मैं मर ही जाऊँ, नहीं?"
वह इस जुल्म पर सुन्न हो गई थी, मगर मरने की बात पर भी फ़िज़ा का कुछ न कहना रिधान के गुस्से को फिर सुलगा गया।
"मेरी मौत इतनी आसान नहीं, बीवी। शायद तुम भूल गई, मैं वह तेज़ाब हूँ जिसे छूने वाले हाथ तक गल जाते हैं। शायद तुम भूल चुकी हो कि तुम्हारा निकाह किससे हुआ है। तो मेरी छोटी सी दुल्हन, अपने शौहर जी को मारने के सपने ना बुने तो बेहतर होगा आपके लिए!"
"अरे-अरे, तुम तो अभी से रोने लगी? अभी तो अज़ीज़त देनी ठीक से शुरू भी नहीं मैंने। वह क्या है ना, मेरी धोखेबाज़ बीवी मुझे छोड़कर उस नामर्द की कायल हो गई। जब तक उसके छोटे दिमाग में मैं अपनी छाप नहीं छोड़ देता, तब तक तुम्हें सुकून मिल जाए, ऐसा होने से रहा। और तुम्हारा सुकून जो मेरी मौत में है..."
वह ज़हर जैसी ज़ुबान से फ़िज़ा के दिल छलनी कर रहा था। सब मंज़ूर था उसे, मगर रिधान की जान, उसकी जान को कुछ हो जाए, उससे पहले फ़ना होना मंज़ूर था उस बेक़सूर को। वह बिलखती हुई बोली,
"कितना रुलाएँगे आप हमें? ना कहें, उन शब्दों को जी नहीं पाएँगी हम आपके बिना!"
वह रोती रही, मगर रिधान को कुछ फर्क नहीं पड़ा।
"तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? यह नाटक बंद करो। इतना आसान नहीं तुम्हारे आँसुओं में पिघलना। आई एम स्टोन हार्टेड, बीवी। डोंट फ़ॉरगेट दैट!"
मुस्कराता हुआ उसका जालिम शौहर एक आँख मार गया। उसे फ़िज़ा के नाजुक दिल को तार-तार करने में मज़ा आ रहा था। वह बेपरवाही से उसे गोद में लिए वाशरूम की ओर ले जाने लगा और फ़िज़ा जो रात का दृश्य याद करके पहले ही काफी रो चुकी थी, वह उसका ताना सुनकर सीने में छोटा सा चेहरा छुपाते हुए धीमी सी आवाज़ में रुआँसी होकर बोली,
"शौहर जी, कब तक आप हमसे नाराज़ रहेंगे? दिल से सॉरी जी। माफ़ कर दो ना। कब तक हैं यूँ हमसे नाराज़ रहेंगे? हम आपसे माफ़ी मांग चुके हैं। कितनी दफ़ा? क्या आपको अपनी बीवी पर ऐतबार नहीं? भूले नहीं आप, अब तो हम आपकी बीवी बन चुके हैं ना।"
'बीवी'? क्या कह रही है वह? वह भी पूरे हक़ के साथ? क्या फ़िज़ा खुद को उसकी पत्नी कबूल कर चुकी थी? तो यकीनन हाँ, वह कुदरत के फ़ैसले को बिना किसी हिचकिचाहट के मान चुकी थी। यह जानकर कुछ पल के लिए रिधान की भौंहें चढ़ गईं। उसके दिल में कुछ तो हलचल हुई, मगर मज़ाल है उसने अपना खड़ूसपन कम किया हो। बल्कि उसने चालाकी से फ़िज़ा की मुश्किलों में इज़ाफ़ा करते हुए कहा,
"बीवी...हम...इंटरेस्टिंग! तो मेरी बीवी, आपको तो पता ही होगा बीवी होने का फ़र्ज़। रात में जरा तरस आ गया था, मगर जब खुद मेरी बीवी सारे हक़-हुकूक़ अदा करना चाहती हो, तो तुम्हारे शौहर की क्या बिसात? समझी नहीं? कोई बात नहीं, मैं समझता हूँ ना तसल्ली से।"
"सुहाग की सेज ना सही, यह बाथटब काफ़ी कुछ हो सकता है। यू अंडरस्टूड राइट व्हाट आई एम सेइंग, जानम?"
वह फ़िज़ा की टेढ़ी बातों से साँसें थाम चुका था, लेकिन जैसे ही उसकी बातें समझ आईं, उसने कुछ नहीं सोचा-समझा और भागने की कोशिश जारी रखी, मगर अब शायद देर हो चुकी थी, और कुछ पल में ही उसकी आहें गूंज उठीं।