"जब नफ़रत में इतनी शिद्दत थी, तो क़यामत ही हो जाए, अगर वो मोहब्बत निभाए"....!!!
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राहुल ने जाती हुई अरु को टोका, "मुझे माफ़ कर दे अरु…बस एक बार मुझे माफ़ कर दे…प्लीज़…बस एक बार…फिर कभी कुछ नहीं माँगूँगा तुझसे!"
अरु रुक कर बोली, "माफ़ी…वो भी तुझे…अगर ईश्वर भी आकर कहें कि मैं तुझे माफ़ कर दूँ…तब भी मैं तुझे कभी माफ़ नहीं करूँगी। क्योंकि तूने ख़ून किया है…मेरी दोस्ती का…मेरे भरोसे का…और मेरे रिश्तों का…जिसके लिए कभी माफ़ नहीं करूँगी मैं तुझे…कभी भी नहीं!!"
इतना कहकर अरु बिना रुके वहाँ से चली गई। बाहर आकर गाड़ी में बैठकर वह फौरन निकल गई। गाड़ी में बैठी अरु ने अपना सिर पीछे की सीट से टिका लिया और एक बार फिर वह अतीत के गलियारों में पहुँच गई जहाँ उसने अपनी ज़िंदगी के सबसे कड़वे और धोखे के पल जिए थे, और जिसका तसव्वुर उसने कभी अपने बुरे से बुरे सपनों में भी नहीं किया था।
(फ़्लैशबैक…अरु और थर्ड पर्सन के POV से…)
अबॉर्शन वाली बात झूठ कहने और रिदांश के उसे सच मान लेने के बाद, रिदांश हॉस्पिटल से चला गया। डॉक्टर ने जो अरु को इंजेक्शन दिया था, उसकी वजह से कुछ ही देर में उसकी आँखें भारी होने लगीं और वह नींद के आगोश में चली गई। जिसकी वजह से कुछ देर के लिए सही, लेकिन उसकी सारी टेंशन और परेशानियों से वह मुक्त हो गई। अगली बार जब अरु की नींद खुली, तो कुछ पल तक उसे समझ ही नहीं आया कि वह कहाँ है। कुछ देर बाद राहुल की आवाज उसके कानों में पड़ी और उसने खुद को एक नए कमरे में देखा। कुछ पल बाद उसे एहसास हुआ कि आखिर वह कहाँ थी और अपने पापा की याद आते ही अरु झट से बिस्तर से उठ बैठी।
राहुल अरु के पास बैठते हुए फिक्र भरे लहजे में बोला, "अरु कैसी है तू? और अब तेरी तबीयत कैसी है? तू ठीक तो है ना?"
अरु चिंतित स्वर में बोली, "मैं ठीक हूँ पर पापा…पापा कैसे हैं?"
राहुल, "डोंट वरी अरु…सब ठीक हो जाएगा!"
अरु परेशानी भरे स्वर में बोली, "बताना राहुल…अब कैसे हैं पापा…वो ठीक तो है ना?"
राहुल ने एक गहरी साँस लेकर मायूसी भरे लहजे से कहा, "मैंने कहा ना…सब ठीक हो जाएगा…इस वक्त तू सिर्फ़ अपनी हेल्थ पर ध्यान दे… दरअसल, अंकल को इस क़दर इतनी भारी मात्रा में शॉक देने की वजह से उनकी…"
अरु, "उनकी क्या?"
राहुल ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "अरु, रिजल्ट वही के वही है जो डॉक्टर ने पहले ही बताया था…अंकल की दिमागी हालत ठीक नहीं है…और उनके इलाज के लिए हमें उन्हें कुछ दिन के लिए…मेंटल एसेलम शिफ्ट करना पड़ेगा।"
अरु नाराज़गी से बोली, "तू पागल हो गया है राहुल…मैं ऐसा कभी नहीं करूँगी…मैं अपने पापा को कभी भी पागलखाने नहीं भेजूँगी!"
राहुल दुखी भाव से बोला, "और तुझे लगता है कि ऐसा करने में मुझे खुशी मिलेगी? नहीं अरु, बिल्कुल भी नहीं…लेकिन इस वक्त हमारे पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है…और अंकल की बेहतरी के लिए ही हमें उन्हें कुछ दिन वहाँ शिफ्ट करना ही पड़ेगा…ताकि डॉक्टर अच्छे से उनका ट्रीटमेंट कर सकें।"
अरु भावुकता के साथ बोली, "लेकिन राहुल, पापा वहाँ कैसे रहेंगे…नहीं राहुल, पापा वहाँ नहीं रह पाएँगे…और…"
राहुल अरु का हाथ थामते हुए बोला, "डोंट वरी अरु…सब ठीक हो जाएगा…डोंट वरी…लेकिन इस वक्त तू अपना ख़्याल रख…क्योंकि तेरी हालत अभी बिल्कुल भी ठीक नहीं है…और तूने जो भी फ़ैसला किया…बिल्कुल सही किया।"
अरु राहुल से अलग होते हुए बोली, "उस इंसान ने मेरे साथ जो कुछ भी किया है…उसके बाद मुझे नहीं लगता कि मैंने जो कुछ भी किया है…गलत किया है…उसकी वजह से मेरे पापा की आज ये हालत हो गई है…मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूँगी…कभी भी नहीं!!"
राहुल, "जानता हूँ मैं…और तूने जो कुछ भी किया बिल्कुल ठीक किया है…ऐसे घटिया इंसान के अंश को जन्म देने का कोई मतलब ही नहीं…जिसने हमारी सारी खुशियाँ छीन ली!"
अरु असमंजस से बोली, "लेकिन राहुल मैंने…"
राहुल बीच में ही अरु की बात काटते हुए बोला, "तुझे मुझे कोई भी एक्सप्लेनेशन देने की कोई ज़रूरत नहीं है…तूने उस राक्षस के बच्चे को जन्म ना देने का फ़ैसला करके बिल्कुल ठीक किया है…और वह डिज़र्व ही नहीं करता…ना तुझे और ना किसी भी खुशी को!"
अरु अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए बोली, "राहुल मगर मैंने अपने बच्चे को…"
अरु अपनी बात पूरी कह पाती, कि उससे पहले ही कमरे में नैना दाखिल हुई और राहुल को डॉक्टर से मिलने को कहा। राहुल जल्दी आने का कहकर वहाँ से चला गया।
अरु नैना से बोली, "तुमने राहुल को सच नहीं बताया कि मैंने अपने बच्चे को अबॉर्ट नहीं किया है?"
नैना, "दरअसल जब राहुल वापस आया था…तो उसने तेरी तबीयत और बेहोशी का रीज़न पूछा…तो मैंने उसे बताया कि तूने ये फ़ैसला लिया था कि तू इस बच्चे को जन्म नहीं देगी…लेकिन इससे पहले कि मैं उसे पूरी बात बता पाती…वहाँ डॉक्टर अंकल के बारे में बात करने आ गए…और फिर उसके बाद से ही मुझे मौका नहीं मिला कि मैं उसे सच बता पाती…ख़ैर छोड़…ये सब हम उसे बाद में आराम से समझा देंगे…फ़िलहाल तू अपनी तबीयत पर ध्यान दे।"
अरु उदासी और टेंशन भरे भाव से बोली, "नैना मुझे डैड से मिलना है!"
नैना अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए बोली, "ठीक है!"
इसके बाद नैना अरु को मिस्टर कपूर से मिलवाने के लिए लेकर गई जहाँ मिस्टर कपूर के हाथ बंधे हुए थे। इसे देखकर अरु घबराकर वहीं पास खड़े डॉक्टर के पास गई।
अरु घबराहट भरी भावुकता के साथ बोली, "डॉक्टर मेरे पापा को ऐसे जानवरों की तरह बांधकर क्यों रखा गया है?"
डॉक्टर, "मैं समझता हूँ कि आपको अपने पापा की फ़िक्र है…लेकिन इस वक्त उनकी दिमागी हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं है…जिसकी वजह से उनसे दूसरे लोगों को ख़तरा हो सकता है…जैसे अभी कुछ देर पहले ही उन्होंने एक नर्स पर हमला कर दिया…हम और रिस्क नहीं ले सकते…इसलिए हमें इन्हें जल्द से जल्द मेंटल एसेलम शिफ्ट करना होगा।"
अरु ने यह बात सुनी तो शॉक्ड से अपने मुँह पर दोनों हाथ रख लिए और भावुकता से उसकी सुबकियाँ शुरू हो गईं। नैना और राहुल ने उसे संभाला, लेकिन इस वक्त जो अरु अपने पिता के लिए महसूस कर रही थी वह लफ़्ज़ों से परे था और उसे चाहकर भी कोई नहीं समझ सकता था। उसका दिल दर्द और दुख से फटने को तैयार हो रहा था। अरु बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि वह अपने पिता को खुद से दूर भेजे, लेकिन उनकी भलाई के लिए उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर आखिर में इस कड़े क़दम के लिए इजाज़त दे दी। कुछ फ़ॉर्मेलिटीज़ के बाद, कुछ वक़्त बाद मिस्टर कपूर को वहाँ से हॉस्पिटल से निकालकर मेंटल एसेलम के लिए भेज दिया गया। अरु और राहुल के साथ नैना भी मिस्टर कपूर से मिलने वहाँ पहुँची और कुछ वक़्त वहाँ बिताने के बाद तीनों वापस घर लौट आए। अरु का हाल बेहाल था। एक दिन में उसकी पूरी ज़िंदगी मानो पूरी तरह पलट गई थी और सब कुछ तितर-बितर सा हो गया था। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी बिखरी हुई ज़िंदगी के पन्नों को समेटे और कैसे सब कुछ ठीक करे।
अरु को सांत्वना देने और उसे संभालने के लिए, आज नैना भी उसके साथ उसके घर ही रुक गई थी और उसने इस बात के लिए अपने माता-पिता को भी इन्फ़ॉर्म कर दिया था। जैसे-तैसे जिद करके नैना और राहुल ने अरु को दो-चार निवाले खिलाए और फिर नैना ने उसे दवाई देकर बड़ी मुश्किल से सुलाया। राहुल और नैना भी मिस्टर कपूर के लिए परेशान थे, लेकिन उनसे भी ज़्यादा इस वक़्त वह अरु के लिए परेशान थे। सब कुछ बहुत ही उलझा और बिखरा सा नज़र आ रहा था। अगले दिन नैना अरु को ब्रेकफ़ास्ट कराने के बाद अपने घर के लिए निकल गई क्योंकि उसके पापा बीमार थे, तो उसे घर और अपने पापा का भी देखना था और अरु ने भी उसे जाने की इजाज़त दे दी। कुछ देर बाद राहुल भी किसी ज़रूरी काम से बाहर चला गया और वह अब घर में अकेली ही थी। शाम के वक़्त नैना फिर से अरु से मिलने उसके घर पहुँची। कुछ देर बाद राहुल घर लौटा और सीधा लिविंग एरिया में बैठी अरु और नैना के पास पहुँच गया और अरु के सामने जाकर उसने एक लिफ़ाफ़ा अरु की ओर बढ़ा दिया।
अरु असमंजस से लिफ़ाफ़े की ओर देखते हुए बोली, "ये क्या है राहुल?"
राहुल, "खुद ही देख ले!"
अरु ने एक नज़र राहुल को देखा, फिर उसने उस लिफ़ाफ़े को खोला और उसमें रखे पेपर्स को देखकर…जो और कुछ नहीं बल्कि अरु और रिदांश के डायवोर्स पेपर्स थे…इन पेपर्स को देखकर अचानक ही एक पल को अरु के दिल को एक धक्का सा लगा और इन पेपर्स पर रिदांश के सिग्नेचर देखकर ना जाने क्यों पर उसकी आँखों में हल्की नमी सी उतर आई और अनायास ही कुछ सोचते हुए उसका हाथ अपने पेट पर रुक गया।
राहुल अरु के चेहरे पर उभरे दर्द को देखकर नाराज़गी भरे लहजे से बोला, "वाकई में क्या तुझे अभी भी उस घटिया इंसान से रिश्ता टूटने का दुख हो रहा है अरु?"
नैना, "राहुल प्लीज़…उसकी हालत पहले से ठीक नहीं है…इन सब बातों का ये सही वक़्त नहीं है अभी राहुल!"
राहुल, "यही सही वक़्त है नैना…क्योंकि नासूर बने ज़ख़्म को शरीर से जितनी जल्दी काटकर फेंक दिया जाए…इतना ही बेहतर होता है…और वैसे भी जब इस बेमाने रिश्ते के कोई मायने ही नहीं…तो क्यों इसका बोझ लेकर चलना…(अरु की ओर देखकर)…मैंने अपने एक दोस्त के थ्रू अंकल के लिए स्पेन के एक सबसे अच्छे डॉक्टर से बात की है…और उन्होंने अंकल के ट्रीटमेंट के लिए हमें वहाँ बुलाया है…(एक पल को रुककर)…जो कुछ भी हुआ…उसके बाद भी अगर तेरे दिल में उस घटिया इंसान के लिए कोई जगह बाकी है…या फिर भी तुझे इस बेमाने रिश्ते के बोझ तले…और अतीत की जंजीरों से ही बंधकर रहना है…तो आगे तेरी मर्ज़ी…मैं तुझे बिल्कुल भी फ़ोर्स नहीं करूँगा…और रही अंकल की बात…तो उन्होंने ज़िंदगी भर मेरे लिए एक बाप होने का फ़र्ज़ निभाया है…अब मैं भी एक बेटे का फ़र्ज़ निभाते हुए उनकी ज़िम्मेदारी उठा लूँगा…तुझे फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं!"
इतना कहकर राहुल उन दोनों को वहाँ छोड़ अपने रूम में जाने लगा तो अरु ने उसे टोका।
अरु राहुल को टोकते हुए बोली, "एक मिनिट राहुल!"
राहुल ने सवालिया नज़रों से अरु की ओर देखा तो अरु ने अपनी आँख से छलके एक आँसू अपनी उंगली से साफ़ किया और टेबल से पेन उठाते हुए उसने बिना एक पल भी सोचे डायवोर्स पेपर्स साइन कर दिए।
अरु राहुल की ओर पेपर्स बढ़ाते हुए बोली, "मेरे लिए मेरे पापा से बढ़कर कभी कुछ नहीं था…और ना ही कभी हो सकता है!"
इतना कहकर अरु वहाँ से अपने कमरे में चली गई। नैना अरु के पीछे जाती कि उसके घर से अर्जेंट कॉल आ गई और नैना को ना चाहते हुए भी वहाँ से जाना पड़ा और वह राहुल को अरु का ख़्याल रखने को कहकर कुछ देर बाद वहाँ से चली गई। राहुल ने भी अरु को वक़्त देने का सोचकर इस वक़्त उससे कुछ बात नहीं की और अपने कमरे में चला गया। अगले दिन दोपहर को अरु स्पेन वाले डॉक्टर के बारे में पूछने के लिए राहुल के कमरे में आई। अरु ने पूरा कमरा देखा मगर राहुल वहाँ कहीं भी नहीं था। अरु ने सोचा शायद राहुल बाथरूम में होगा, लेकिन बाथरूम का दरवाज़ा भी खुला था और राहुल पूरे कमरे में कहीं भी मौजूद नहीं था।
अरु बाद में आने का सोचकर वापस जाने के लिए मुड़ी कि अचानक उसकी नज़र राहुल के थोड़े से खुले अलमारी पर पड़ी जिसमें से किसी तरह की रोशनी बाहर आ रही थी। अरु ने अपने क़दम राहुल के अलमारी की ओर बढ़ा दिए और उसने अलमारी के पीछे दीवार से निकलती उस रोशनी को असमंजस से देखा और अनायास ही उसका हाथ किसी बटन को छू गया जिसकी वजह से अचानक ही अलमारी का पिछला हिस्सा खुल गया जो एक गुप्त कमरे के रूप में अलमारी के पीछे छुपा हुआ था और आज तक जिसका इल्म तक किसी को नहीं था। अरु ने जब ये कमरा देखा तो हैरानी और शॉक्ड से उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।
उसने अलमारी के पीछे दीवार से निकलती उस रोशनी को असमंजस से देखा। और अनायास ही उसका हाथ किसी बटन को छू गया। जिसकी वजह से अचानक ही अलमारी का पिछला हिस्सा खुल गया। जो एक गुप्त कमरे के रूप में अलमारी के पीछे छुपा हुआ था। और आज तक जिसका इल्म तक किसी को नहीं था। अरु ने जब यह कमरा देखा, तो हैरानी और शॉक से उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं। कुछ पल तक अरु हैरानी से बस उस कमरे को यूँ ही देखती रही। आखिर में, अरु अपने शॉक से बाहर आई, तो उसने अलमारी के पीछे बने उस सीक्रेट कमरे की ओर अपने कदम बढ़ा दिए। लेकिन अरु ने जैसे ही उस कमरे में कदम रखा, उसका शॉक और हैरानी दस गुना ज्यादा बढ़ गए। और अविश्वास से उसने अपने मुँह पर अपनी हथेलियाँ रख लीं।
यह कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था। लेकिन इस कमरे की हर एक दीवार और कमरे के ज़र्रे-ज़र्रे पर सिर्फ़ अरु ही अरु का अक्स छाया था। हर जगह कमरे में बस अरु की ही तस्वीरें लगी थीं। और ये तस्वीरें आज-कल या कुछ अरसे की ही नहीं थीं, बल्कि इनमें सालों पुरानी तस्वीरें भी शामिल थीं। और कुछ तस्वीरें ऐसी भी थीं, जिसका इल्म तक अरु को नहीं था कि ये तस्वीरें कब और कहाँ ली गई थीं। कहीं अरु खिलखिला कर हँस रही थी, तो कहीं क्यूट एंग्री एक्सप्रेशन लिए हुए थी। कहीं प्यारी सी मुस्कान लिए, कहीं कुछ सोचते हुए, तो कहीं छोटे बच्चे की तरह सुकून से सोई हुई थी। और कई तस्वीरों में वो अपने गीले बालों को सुखाते हुए थी। अरु का दिमाग इन सारी तस्वीरों को देखकर जैसे सुन्न सा पड़ गया था।
तभी अरु की नज़र अपने सामने लगी अपनी एक बड़ी सी तस्वीर पर पड़ती है, जिसमें अरु अपने गाल पर हाथ रखे, मुस्कुराते हुए बड़ी ही प्यारी लग रही थी। अरु को याद आया कि यह तस्वीर उसके 18वें जन्मदिन की थी। अरु बस असमंजस भरे शॉक से अपनी इन तस्वीरों को देख रही थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था, इन्हें देखकर वह क्या और कैसे रिएक्ट करे। अरु अभी अपने शॉक में ही थी कि तभी उसे अपने पीछे हड़बड़ाहट से अंदर आए राहुल की आहट होती है। और वह आँखों में नमी के साथ गुस्से भरी नज़र से राहुल की ओर पलटती है।
"क्या है ये सब???" अरु ने राहुल की ओर देखकर गुस्से भरी नज़रों से पूछा।
"अरु मैं समझाता हूँ तुझे..." राहुल ने अपनी खुश्क होंठों पर अपनी जुबान फिराते हुए कहा।
"मैंने कुछ पूछा है राहुल, क्या है यह सब...और मेरी तस्वीरें यहां क्यों हैं? और क्यों तूने मेरी तस्वीरों को ऐसे छुपा कर रखा है???" अरु गुस्से से लगभग चिल्लाते हुए बोली।
"अब अगर तुझे सच जानना ही है, तो मैं भी यह सच और नहीं छुपाऊँगा।" राहुल ने गंभीर भाव से कहा, "और क्या वाकई में तू इतनी नासमझ और नादान है जो इस बात का मतलब, इन तस्वीरों का मतलब नहीं समझ पा रही???"
"हाँ मैं नहीं समझ पा रही हूँ...और ना ही मैं अब मैं कुछ समझना ही चाहती हूँ।" अरु ने अपनी तीखी नज़रों से कहा।
"लेकिन आज मैं तुझे यह सच समझाना चाहता हूँ..." राहुल ने गुस्से से जाती हुई अरु की बाजू पकड़कर कहा, "आई लव यू...प्यार करता हूँ मैं तुझ से...और..."
राहुल अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि एकाएक अरु ने एक जोरदार थप्पड़ राहुल के दाएँ गाल पर रसीद कर दिया।
"खबरदार...खबरदार...जो ये घटिया शब्द दुबारा कभी अपनी जुबान से निकाले भी तो...शेम ऑन यू राहुल...शेम ऑन यू!!!" अरु ने गुस्से भरी नम आँखों से कहा।
"नहीं है मुझे रत्ती भर भी शर्म इस बात को एक्सेप्ट करने में कि मैं तुझे प्यार करता हूँ...और वो भी तब से जब से मुझे प्यार का असल मतलब भी नहीं पता था!!" राहुल ने गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए कहा।
"बकवास बंद कर राहुल अपनी...बंद कर बकवास..." अरु ने बेइंतहा गुस्से भरे भाव से कहा, "जानता है ना तू...अच्छे से जानता है...कि मैंने तुझे हमेशा सिर्फ़ एक अच्छे दोस्त...एक भाई की तरह समझा...उसके बाद भी तूने मेरे लिए ऐसा सोचा...छी राहुल...तुझ से यह उम्मीद नहीं थी मुझे!!!"
"तो क्या उम्मीद थी तुझे हाँ...क्या उम्मीद थी...कि अपनी कलाई पर तेरे नाम की राखी बाँध कर घूमता मैं..." राहुल ने तेज़ आवाज़ में कहा, "(एक पल को रुक कर)...बहुत हुआ...और बहुत सह भी लिया है मैंने...अब और नहीं...अब मैं अपने और तेरे बीच किसी को नहीं आने दूँगा...किसी को नहीं..." (अरु के करीब आने की कोशिश करते हुए) "...अरु मैं तुझे सच में बहुत चाहता हूँ...और तुझे हमेशा खुश रखूँगा...जस्ट ट्रस्ट मी अरु...और बिलीव मी...मुझसे ज्यादा खुश तुझे और कोई नहीं रख सकता!!!"
"जस्ट शटअप...बंद कर बकवास अपनी...शर्म आ रही है मुझे तुझे अपना दोस्त कहते हुए भी...आखिर इतनी घटिया बात तूने सोची भी कैसे...तू अच्छे से जानता है...कि मैंने हमेशा से तुझे एक दोस्त से बढ़कर...एक भाई का दर्जा दिया है...उसके बावजूद भी...तूने ना सिर्फ़ ऐसा सोचा...बल्कि पूरी बेशर्मी के साथ तू मुझसे यह बात कह भी रहा है...चला जा अभी यहाँ से राहुल!!" अरु ने गुस्से और नफ़रत भरे भाव से कहा।
"प्यार में कोई शर्म या बेशर्मी नहीं होती...मैं तुझे चाहता हूँ...प्यार करता हूँ...और इस बात को एक्सेप्ट करने में...मुझे कोई शर्म कोई झिझक नहीं है!!!" राहुल ने कहा।
"मुझे अपनी शक्ल भी मत दिखाना दोबारा!!!" अरु ने कहा।
इतना कहकर अरु गुस्से से उस रूम से बाहर आकर, जैसे ही राहुल के कमरे से बाहर निकलने को होती है, कि राहुल जाती हुई अरु की कलाई पकड़ कर उसे वापस खींच लेता है।
"हाथ छोड़ मेरा राहुल!!" अरु ने कसमसाते हुए कहा।
"नहीं...आज जब तक मेरी बात क्लियर नहीं हो जाएगी...और तू मेरी बात पूरी सुनने के साथ ही...जब तक उसे समझेगी नहीं...मैं तुझे यहाँ से कहीं भी नहीं जाने दूँगा!!!" राहुल ने कहा।
"तेरा दिमाग खराब हो गया है...पागल हो गया है तू!!!" अरु लगभग चिल्लाते हुए बोली।
"हाँ हो गया हूँ मैं पागल...दिमाग खराब हो गया है मेरा...और यह सब कुछ सिर्फ़ तेरी वजह से है...ऐसा कोई लम्हा...ऐसा कोई पल नहीं होता...जब तू मेरे ज़हन...मेरे दिल पर सवार नहीं होती...मैं लाख कोशिश करने के बावजूद भी...तुझे भुला नहीं सकता...तुझे इतनी सी बात समझ क्यों नहीं आती???" राहुल ने उसी चिल्लाहट के साथ कहा।
"सच में तेरा दिमाग खराब हो गया है...और तुझे यह भी समझ नहीं आ रहा...कि तू असल में कह क्या रहा है...फॉर गॉड सेक...बीवी हूँ मैं किसी की!!" अरु ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा।
"है नहीं...थी!!!" राहुल ने सख्त भाव से कहा।
"जो भी है...मगर जैसा तू सोच रहा है...ऐसा कभी पॉसिबल नहीं है!!!" अरु ने एक पल को अपनी आँखें बंद करते हुए कहा।
"और क्यों पॉसिबल नहीं है...और आखिर कमी क्या है मुझ में...तू उस घटिया रिदांश अग्निहोत्री को अपनी ज़िंदगी में आने का...अपने करीब आने का...अपनी ज़िंदगी पर पूरा इख्तियार और हक दे सकती है...तो मैं तो तेरा दोस्त हूँ ना...जो तुझसे इस क़दर मोहब्बत करता है...तो उसे अपने करीब आने से तुझे क्यों दिक्कत हो रही है?? और आखिर मैं क्यों नहीं आ सकता तेरे करीब?? और मैं क्यों..." राहुल ने कहा।
राहुल अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाया था कि अरु ने उसे एक और जोरदार थप्पड़ दे मारा।
"घिन आ रही है मुझे तेरी सोच से...तू इतना घटिया सोच सकता है...मैंने सपनों में भी नहीं सोचा था...हाँ दिया मैंने मिस्टर अग्निहोत्री को अपने करीब आने की इजाज़त...और दी अपनी ज़िंदगी पर पूरा इख्तियार...क्योंकि एक पति होने के नाते हक़ था उनका मुझ पर...लेकिन तू...डिस्गस्टिंग राहुल...डिस्गस्टिंग..." अरु ने नफ़रत और गुस्से के मिले-जुले भाव से कहा, "(एक पल रुक कर)...आइन्दा कभी भी मुझे अपनी शक्ल भी मत दिखाना...शर्म आ रही है मुझे खुद पर...कि मैंने तुझ जैसे इंसान को अपना भाई जैसा दोस्त माना...छी...नफ़रत हो रही है मुझे तुमसे...तुम्हारे वजूद से!!!"
एक बार फिर जैसे ही अरु जाने को हुई कि राहुल ने गुस्से से वापस उसकी कलाई पकड़ते हुए उसे अपनी ओर खींच लिया। और अरु को अपने करीब करते हुए उसके कंधों को कसकर पकड़ लिया। अरु खुद को छुड़ाने के लिए कसमसाती रही। लेकिन राहुल जैसे इस वक्त ना कुछ देखना चाहता था और ना ही कुछ समझना ही चाहता था। उस पर इस वक्त पूरी तरह से पागलपन और दीवानापन सवार था। वह वह राहुल लग ही नहीं रहा था जिसे अरु जानती थी। इस वक्त उसकी आँखों के सामने जो राहुल था, वह बिल्कुल अलग और पागल नज़र आ रहा था।
"अगर मेरी किसी बात से तू हर्ट हुई है...या तुझे बुरा लगा है...तो मैं उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ...एम सॉरी...एम रियली सॉरी...लेकिन प्लीज मुझे अब खुद से दूर जाने के लिए मत कह...मैं सच में तेरे बगैर नहीं रह सकता..." राहुल ने अरु के खुद को छुड़ाने की जद्दोजहद को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, "(एक पल रुक कर)...देख सब कुछ सही हो गया है...हम यहाँ से बहुत दूर चले जाएँगे...और अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत करेंगे...जहाँ अतीत का कोई साया या कोई परछाई भी हमें छू नहीं पाएगी...हम एक नए सिरे से खुशी-खुशी अपनी ज़िंदगी की शुरुआत करेंगे..." (अरु खुद को छुड़ाने की जद्दोजहद करते हुए) "...जहाँ बस मैं तू और हमारी मोहब्बत होगी...और अरु अब हमारे बीच आने के लिए कोई दीवार नहीं बची है...ना वो रिदांश अग्निहोत्री...और ना ही उसका अंश..." (गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए) "...अच्छा ही हुआ कि उस सपोले को तूने अपनी कोख में ही मार दिया...वरना मैं खुद उसे..."
अरु ने राहुल के मुँह से अपने बच्चे के लिए यह बात सुनी, तो उसका गुस्सा उसके सर पर हावी हो गया। और उसने अपनी पूरी ताकत लगाते हुए राहुल को पीछे धक्का देते हुए एक साथ दो-चार थप्पड़ राहुल के गाल पर रसीद कर दिए।
"तू मोहब्बत तो क्या...नफ़रत करने के लायक भी नहीं है...बहुत बड़ी भूल की है मैंने तुझे समझने में..." अरु ने सख्त भाव से कहा, "(नफ़रत भरे भाव से)...अरे तुझ से लाख गुना बेहतर तो मिस्टर अग्निहोत्री हैं...भले ही उन्होंने मेरे साथ कितना भी और कुछ भी गलत किया हो...लेकिन कभी भी मेरे साथ डबल फ़ेसेस नहीं रहे...कभी भी मुझे पीठ पीछे खंजर घोपने की कोशिश नहीं की...जो किया हमेशा सामने से आकर किया...पीठ पीछे छुपकर नहीं...लेकिन तू...तूने तो मेरा मान ही तोड़ दिया आज...तुझसे मुझे घिन आ रही है राहुल...तू ऐसा सोच भी कैसे सकता है...और तुझे क्या लगता है...कि मैं तेरी तरह वहशी हूँ...जो अपने गुस्से और पागलपन में अपने बच्चे को ही ख़त्म कर दूँ..." (राहुल ने अरु की बात सुनी तो उसे असमंजस से देखा) "...हाँ मैंने अपने बच्चे को नहीं मारा...मैंने कोई अबॉर्शन नहीं कराया..." (भावुकता से अपने पेट को छूते हुए) "...मेरा बच्चा अभी भी सही-सलामत...मेरे साथ है..." (एक पल रुक कर) "...और मैं कभी भी अपने बच्चे को मार ही नहीं सकती थी...क्योंकि यह सिर्फ़ मिस्टर अग्निहोत्री का ही नहीं...बल्कि मेरा भी अंश है...और इन सबसे अलग मैं किसी मासूम की जान कभी नहीं ले सकती...कभी नहीं!!!"
"जो तब नहीं हुआ वो अब होगा..." राहुल ने जुनून भरे भाव से कहा। (अरु राहुल की बात सुनकर एक पल को बिल्कुल जड़वत हो गई) "...(अरु को खुद को असमंजस से एकटक देखते हुए)...हाँ जो काम तूने अधूरा छोड़ दिया था...आज मैं उसे पूरा करूँगा...अभी और इसी वक्त!!!"
"राहुल तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा!!" अरु घबराते हुए बोली।
"जो तेरे मेरे बीच दीवार बनेगा...उस हर दीवार को मिटा दूँगा मैं...मैंने इतनी मेहनत की है तुझे हासिल करने के लिए...मैं उसे इस रिदांश अग्निहोत्री के बच्चे के लिए जाया नहीं होने दूँगा!!!" राहुल ने अलग ही दीवानगी लिए कहा।
इतना कहकर राहुल ने अरु को जोर से बेड पर धक्का दिया। वो तो एन मौके पर अरु ने अपनी हथेलियों को बेड पर टिकाते हुए अपने पेट पर चोट लगने से बचा लिया। और वो अविश्वास भरी नज़रों से राहुल की ओर देखने लगी।
"हमेशा तूने मेरे जज़्बात और इमोशंस को नकारा...हमेशा तूने मेरे जज़्बात, मेरी केयर, मेरी फीलिंग्स को बस दोस्ती का नाम दिया...जब तू मुझे भाई कहती थी ना...मेरे तन-बदन में आग लग जाती थी...मगर मैं फिर भी शांत रह लेता था...कि वक़्त के साथ तू हमारे रिश्ते को एक्सेप्ट कर लेगी...और उस दिन जब अंकल ने हमारा रिश्ता तय किया...तो मुझे जैसे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई थी...लेकिन उसमें भी तूने अपनी ना-खुशी ही जाहिर की...मैंने तुझे कहा भी कि मैं अंकल को समझाऊँगा...हालांकि मैं ऐसा कभी नहीं करता...क्योंकि मैं जानता था...कि अंकल ही वो सीढ़ी हैं...जिनके ज़रिए मैं तुझे हासिल कर सकता था...मैं बिल्कुल बेफ़िक्र होकर अपनी नई ज़िंदगी के सपने बुन रहा था..." राहुल ने सख्त भाव से अपनी जेब में अपने हाथ डालते हुए कहा, "(गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए)...लेकिन फिर उस रिदांश अग्निहोत्री ने बीच में आकर एक पल में...मेरी सारी खुशियों की दुनिया को आग लगा दी...जब भी वो तेरे करीब आता था...तुझे छूता था...दिल करता था...कि..." (नफ़रत भरे भाव से) "...कि जान ले लूँ उस कमीने की अपने हाथों से...उसकी वो आँखें नोच लूँ...जिनसे वो तुझे देखता है...उन हाथों को काट फेंकूँ...जिनसे वो तुझे छूता था...मगर मैं मजबूर था..." (एक दीवानगी लिए अरु की ओर देखकर) "...जानती है तेरे लिए क्या कुछ किया है मैंने...तुझे उस रिदांश से बचाने के लिए ही...मैं यूएस गया...ताकि कुछ इंतज़ाम कर सकूँ...और तुझे उसके चंगुल से निकाल सकूँ...लेकिन उस कमीने ने इतने दिनों तक मुझे फ़्रॉड केस में फ़ँसाकर...वहीं बंद करवा दिया...अंकल भी चाहकर भी मेरी मदद नहीं कर पाए...और मैं इतने दिनों बाद कितनी मुश्किल से वहाँ से यहाँ लौट पाया..." (एक ज़हरीली विक्ट्री स्माइल के साथ) "...पर भले ही मैं देर से आया...मगर दुरुस्त आया...आखिरकार तुझे मैंने उस रिदांश के चंगुल से आजाद करवा ही लिया...और जानती है यह कोशिश मेरी तेरी शादी के साथ से ही जारी है..." (एक पल रुक कर) "...याद है तुझे वो डेस्टिनी वाला शख्स...जो तुझे प्यार भरे मैसेज करता था..." (एक ज़हरीली विक्ट्री स्माइल के साथ) "...वो मैं ही था!!!"
"तू???" अरु ने हैरानी भरे अविश्वास से पूछा।
"हाँ मैं...और थैंक्स टू यू...यह आइडिया तूने ही मुझे दिया...जब तू उस दिन नैना को अपने डेस्टिनी वाले शख्स का सपना सुना रही थी...बस मैंने उसे सच में ज़िंदा कर दिया...सोचा कि इस तरह से वो रिदांश तुझे अपने घर से निकाल फेंके...लेकिन नहीं और एक बार फिर सब उल्टा हो गया...और वो करन बीच में आ गया...लेकिन यह कहीं ना कहीं अच्छा ही हुआ...और यह इल्ज़ाम भी उसी कमीने के सर मढ़ दिया गया...और मैं बच निकला!!" राहुल ने बिना किसी अफ़सोस के कहा।
"राहुल तू इतना कैसे गिर गया...तूने मेरे कैरेक्टर को भी दांव पर लगा दिया...हाउ..." अरु ने भावुकता से कहा।
अरु राहुल को बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन उसके पास शब्द ही ख़त्म हो गए थे। एक-एक करके उसके सारे रिश्ते उसे धोखा देकर उससे दूर हो रहे थे। और आज राहुल का जो घिनौना चेहरा उसके सामने आया, उसके बाद तो उसका भरोसा हर रिश्ते से तार-तार ही हो गया था जैसे। उसके बचपन का साथी ही इतना बड़ा विश्वासघाती निकलेगा, उसने सपनों में भी यह नहीं सोचा था। अरु अपने शॉक और सदमे से तब बाहर आई जब उसने राहुल को अपने एक अलमारी से एक इंजेक्शन निकालकर उसे भरते देखा।
"य...ये...की...क्या है???" अरु ने डरते हुए पूछा।
"कुछ नहीं मेरी जान...बस यह एक ड्रग है...जो तेरी कोख से उस गंदगी को हमेशा-हमेशा के लिए दूर करके...तुझे आजाद करने के लिए है!!!" राहुल ने खाली शीशी को फेंकते हुए, इंजेक्शन ले कर अरु की दिशा में बढ़ते हुए कहा।
"न...नहीं तू ऐसा नहीं कर सकता राहुल!!!" अरु ने अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा।
"मैं बिल्कुल कर सकता हूँ ऐसा...इनफैक्ट मैं ऐसा ही करूँगा!!!" राहुल ने सख्त भाव से कहा।
अरु ने राहुल की बात सुनी तो वो झट से बिस्तर से उठकर बाहर भागने के लिए हुई। लेकिन राहुल ने बीच रास्ते में ही उसका हाथ पकड़ कर उसे जाने से रोक लिया।
"तुझे मेरी कसम है राहुल...तु...तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता...प्लीज मु...मुझे जाने दे...छो...छोड़ दे मुझे...मैं मर जाऊँगी...अगर मेरे बच्चे को कुछ भी हुआ...सिर्फ़ यही बचा है मेरे जी...जीने की वजह...मैं म...मर जाऊँगी राहुल...पी...प्लीज उसे कुछ मत कर...मुझे जाने दे...मैं तेरे हा...हाथ जोड़ती हूँ...प्लीज जा...जाने दे मुझे!!!!" अरु ने भावुकता से इंजेक्शन को देखकर कहा।
"शशशशशहहहहहह...तू जानती है ना मैं तुझे रोता हुआ...परेशान नहीं देख सकता...और फिर मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ...अपने और तेरे भले के लिए ही कर रहा हूँ...सो बी अ गुड गर्ल...और मुझे मेरा काम करने दो!!!!" राहुल ने कहा।
अरु ने राहुल की बात सुनी तो वो खुद को छुड़ाने के लिए और भी ज्यादा जद्दोजहद करने लगी। राहुल को जब लगा कि अरु उसकी पकड़ से छूट जाएगी, तो उसने अरु को घुमाते हुए उसकी दोनों बाजुओं को अपने एक हाथ की गिरफ्त में ले लिया। जो भी था, राहुल अरु के मुक़ाबले काफ़ी स्ट्रॉन्ग था। तो अरु अब चाहकर भी राहुल की पकड़ से छूट नहीं पा रही थी। राहुल ने अपने मुँह से इंजेक्शन का केप खोला और अपने दूसरे हाथ से अरु को इंजेक्ट करने के लिए इंजेक्शन उसके दाईं बाजू की ओर बढ़ा दिया।
"नो...नो...प्लीज...नो...नो..." अरु डर और घबराहट से लगभग चिल्लाते हुए बोली।
राहुल ने अभी वो इंजेक्शन अरु की बाजू से टच ही किया था कि एकाएक किसी ने उसके सर पर जोरदार वार किया। और वो इंजेक्शन उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। और अरु को छोड़ते हुए उसने अपने सर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। और अरु झट से उससे दूर हो गई कि एकाएक पीछे से एक जोरदार लात पड़ने से राहुल नीचे ज़मीन पर जा गिरा।
राहुल ने अभी-अभी वो इंजेक्शन अरु की बाजू से छुआ ही था कि एकाएक किसी ने उसके सिर पर जोरदार वार किया। वो इंजेक्शन उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। अरु को छोड़ते हुए उसने अपने सिर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। अरु झट से उससे दूर हो गई। पहले ही पीछे से एक जोरदार लात पड़ने से राहुल नीचे ज़मीन पर जा गिरा। अरु ने उसके लिए मसीहा की तरह आई नैना को देखा तो वो भावुक होकर उसकी ओर दौड़ पड़ी और उसके गले लग गई। राहुल ने जैसे-तैसे खुद को संभाला और पीछे नैना को देखा तो उसने गुस्से से अपने दांत पीसते हुए नैना को देखा।
राहुल (गुस्से से अपने दांत पीसते हुए खड़े होकर): नैना तुम! तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मुझ पर हाथ उठाने की!
नैना (गुस्से से राहुल को घूरते हुए): आस्तीन के सांप! शुक्र कर कि अभी मैंने सिर्फ हाथ उठाया है तुझ पर, तेरे हाथ-पांव तोड़े नहीं हैं। (एक पल रुककर) कमीने! तुझे शर्म नहीं आई ऐसी गिरी हुई नीच हरकत करते हुए? आखिर एक दोस्त होकर भी तूने ऐसी गिरी हुई हरकत करने का सोचा भी कैसे!
राहुल (खड़े होकर अपने कपड़े झाड़ते हुए): मैंने बहुत इंतज़ार किया है इस दिन का। अब मैं किसी को भी, किसी को भी अरु और अपने बीच नहीं आने दूँगा, फिर चाहे मुझे इसके लिए लाशों के ढेर से ही होकर क्यों ना गुज़रना पड़े!
इतना कहकर राहुल अरु और नैना की दिशा में बढ़ने लगा। अरु ने यह देखकर नैना की बाजू को कसकर थाम लिया। हालाँकि अगर अपने बच्चे की फ़िक्र और उसकी ज़िंदगी का सवाल नहीं होता, तो अरु खुद राहुल को उसकी किए का सिला देती। लेकिन इस वक्त अरु चाहकर भी उससे नहीं उलझना चाहती थी क्योंकि वो जानती थी कि उसका ऐसा करना सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके होने वाले बच्चे की ज़िंदगी के लिए घातक सिद्ध होगा। इसीलिए वो इस वक्त राहुल से डरी हुई थी।
नैना (हाथ में पकड़े डंडे पर मज़बूती कसते हुए): अरु… अरु तू जा यहाँ से बाहर! इस कुत्ते को तो मैं देखती हूँ!
अरु: लेकिन नैना तू…
नैना (तेज़ आवाज़ से बीच में ही): अरु! मैंने कहा ना, तू जा! इसे मैं संभाल लूँगी!
राहुल (तंज भरे लहजे से): ओह, रियली? तुम रोकोगी मुझे? (एक पल रुककर) मगर ये तो सरासर गलत बात है ना नैना, कि तुम हम दोनों की दोस्त होते हुए भी सिर्फ़ अरु का साथ दे रही हो!
नैना (नफ़रत और गुस्से भरे भाव से): तू और दोस्त! थू! तुझ जैसा घटिया इंसान दोस्ती जैसे पाक लफ़्ज़ की अहमियत कभी समझ ही नहीं सकता। (अरु की ओर देखकर) अरु तू जा यहाँ से! इसे तो आज मैं छठी का दूध याद दिलाती हूँ!
इस बार अरु ने कोई बहस नहीं की और वो नैना के कहे अनुसार जल्दी से कमरे से बाहर निकल गई। जैसे ही राहुल उसके पीछे जाने के लिए आगे बढ़ने को हुआ, कि एकाएक नैना ने हाथ में पकड़े डंडे को कसकर राहुल की उल्टी टांग में दे मारा। जिससे राहुल दर्द से कराहकर वहीं ज़मीन पर बैठ गया।
राहुल (गुस्से से नैना को घूरकर): दिमाग ख़राब हो गया है तुम्हारा! और कैसी दोस्त हो तुम जो अपनी दोस्त की बसी हुई ज़िंदगी को उजाड़ने पर तुली हो!
नैना: उसकी ज़िंदगी तुम्हारे साथ रहकर बसेगी नहीं, बल्कि बर्बाद हो जाएगी। और मिस्टर अग्निहोत्री ने उसके साथ जो भी किया हो, लेकिन हकीकत यही है कि उसने उस रिश्ते को अपने पूरे दिल और जान से निभाया है और उसके दिल में तुम वो जगह अब तो हरगिज़ नहीं हासिल कर सकते जो उसने उस भस्मासुर को दी थी। और मानो या मत मानो, उसने प्यार सिर्फ़ रिदा…
नैना अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाई थी कि राहुल ने अचानक फुर्ती से खड़े होते हुए नैना की बात सुनकर गुस्से से तिलमिलाकर उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया। जो इतना जोरदार था कि नैना साइड में ड्रेसिंग टेबल से जा टकराई और कुछ पल के लिए उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। उसके माथे से ख़ून बह निकला। मगर अभी भी नैना के ज़हन में अरु और उसकी सेफ़्टी ही चल रही थी। जैसे ही राहुल वहाँ से बाहर निकलने को हुआ, नैना ने गिरे हुए ही उसकी टांग को कसकर अपने हाथों से पकड़ लिया ताकि वो बाहर ना जा पाए। राहुल ने उसे धकेलने की कोशिश की, लेकिन जब वो नाकाम रहा तो उसने झुंझलाकर नैना के पेट में दूसरी टांग के सहारे जूते पहने हुए ही एक जोरदार लात मारी। जिसका इम्पैक्ट इतना था कि नैना की एक दर्द भरी चीख वहाँ गूंज उठी, जो घर के अंदर वाले मेन डोर तक, अरु के कानों तक भी पहुँची। जिसकी आवाज़ सुनकर अरु के क़दम वहीं के वहीं रुक गए और अरु झट से पीछे मुड़ी।
अरु (घबराते हुए): नै… नैना…
अरु एक पल को असमंजस में आ गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। एक तरफ़ उसका अजन्मा बच्चा था, तो दूसरी तरफ़ उसकी जान से प्यारी दोस्त। वो किसी एक को नहीं चुन सकती थी। उसके लिए उसका बच्चा उसकी ज़िंदगी से भी बढ़कर था, लेकिन नैना को यूँ ख़तरे में छोड़कर भी वो नहीं जा सकती थी। अरु अभी ये सब सोच ही रही थी कि सीढ़ियों की ओर फुर्ती से आता राहुल उसे देखकर एक तीखी मुस्कान मुस्कुराते हुए धीमे क़दमों से उसकी ओर बढ़ने लगा।
अरु (राहुल की ओर देखकर): नै… नैना कहाँ है? क्या किया तुमने उसके साथ?
राहुल (ज़हरीली मुस्कान के साथ): अभी फ़िलहाल तो ज़िंदा है, लेकिन कब तक कह नहीं सकते। शायद आख़िरी साँसें गिन रही है अपनी। अब अगर तुम अपनी प्यारी दोस्त को यूँ अकेले मरता हुआ छोड़कर जाना चाहती हो तो बेहिचक जा सकती हो, मैं तुम्हें रोकूँगा नहीं!
अरु ने राहुल की बात सुनी तो उसका दिल नैना की चिंता में धक सा रह गया और वो बिना कुछ सोचे फुर्ती से वापस ऊपर जाने के लिए दौड़ पड़ी। मगर इससे पहले कि वह सीढ़ियाँ चढ़ पाती, सीढ़ियों से उतरे राहुल ने बीच में ही अरु को पकड़कर अपनी बाहों में कैद कर लिया। अरु छटपटाती रही, लेकिन राहुल ने उसे अपनी मज़बूत कैद से छोड़ा ही नहीं और उसे पकड़कर सीढ़ियों के पास से काउच के पास ले आया। एक पल बाद उसने अपने एक हाथ से अरु को पकड़ते हुए दूसरे हाथ से अपनी जेब से वो इंजेक्शन निकाला। अरु ने ख़ुद को बचाने के लिए राहुल के हाथ पर काट लिया जिसकी वजह से कुछ पल के लिए अरु पर राहुल की पकड़ थोड़ी ढीली हो गई। जिसका मौक़ा पाकर अरु ने राहुल के हाथों से वो इंजेक्शन छीनने की कोशिश की और इसी छीना-झपटी में इंजेक्शन का आगे वाला सिरा अचानक टूट गया। जिसे देखकर राहुल ने झुंझलाकर अरु को पीछे की ओर धक्का दे दिया और अरु ख़ुद को संभाल नहीं पाई और सीधा अपने पीछे काउच पर जा गिरी।
राहुल अरु के उठने से पहले ही उस पर पूरी तरह से हावी हो गया। उसने अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों कलाइयों को कसकर पकड़ते हुए उसे अपनी कैद में ले लिया था। इंजेक्शन टूटने की झुंझलाहट और अरु की लगातार ख़ुद को राहुल से छुड़ाने और ख़ुद को उससे दूर करने की जद्दोजहद को देखकर राहुल की झुंझलाहट बढ़ गई और उसने अपनी खीज और झुंझलाहट को उतारने के लिए, अरु के अपने चेहरे को फेरा देख उसका चेहरा अपनी तरफ़ करने के लिए उसकी गर्दन के पिछले हिस्से पर, जो कि ठीक उसके चेहरे के सामने था, राहुल ने अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने दाँतों से अरु की गर्दन के पिछले हिस्से पर काट लिया। और इसी के साथ अरु की रोते हुए एक दिल चीरने वाली चीख निकल पड़ी थी और अरु बेहिसाब दर्द से बिलख उठी थी। उसकी आँखों से बिना रुके लगातार आँसू ऐसे बह रहे थे, उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने उसकी गर्दन के पिछले हिस्से पर तेज़ाब डाल दिया हो। उसे अपनी गर्दन से बहता ख़ून भी साफ़ महसूस हो रहा था। लेकिन इस वक़्त जैसे राहुल एक वहाँशी दरिंदा बन चुका था, ना तो उसे यह होश था कि वह क्या कर रहा है और ना ही उसे यह समझ थी कि इसका अंजाम क्या होगा। लेकिन जब उसने अरु को इस क़दर दर्द से रोते बिलखते देखा तो उसने अरु को शांत करने के लिए उसके दोनों हाथों को अपने एक हाथ में पकड़कर उसके सर के ऊपर रख लिया और उसकी चीखों और सुबकियों को रोकने के लिए उसने उसके मुँह पर अपनी हथेली से दबाव बना लिया। जिसकी वजह से अरु को अपना दम घुटता सा महसूस होने लगा था और वह बड़ी मुश्किल से लंबी-लंबी साँसें लेते हुए ख़ुद को संतुलित रखने की कोशिश कर रही थी।
मगर राहुल का ख़ुद पर इस क़दर हावी होना उसे चाहकर भी सामान्य नहीं कर पा रहा था और इन सबसे अलग अरु को अपने अजन्मे बच्चे की फ़िक्र लगी हुई थी क्योंकि इस वक़्त जिस तरह से राहुल जानवरों की तरह उसे ट्रीट कर रहा था, उसके बाद अरु के दिल में कहीं ना कहीं ये डर समा चुका था कि शायद आज वह एक माँ के रूप में असफल हो जाएगी और अपने अजन्मे बच्चे को नहीं बचा पाएगी। इससे पहले कि राहुल पूरी तरह एक दरिंदा बन जाता और अपनी सारी हदें पार करता, कि एकाएक एक जोरदार मुक्का राहुल के मुँह पर आकर पड़ा और राहुल एक झटके में ही अरु से दूर जा गिरा। राहुल के दूर गिरते ही अरु डर और दहशत से वहीं ख़ुद में ही सिमटकर बैठ गई और बहुत ही बुरी तरह सुबकने लगी। इस वक़्त वो इतनी सहमी हुई थी कि उसने अपनी नज़रें उठाकर यह देखने की भी जहमत नहीं की थी कि आखिर इस वक़्त उसके सामने कौन था और किसने उसे बचाया। लेकिन जब नीचे गिरे हुए राहुल को उठाने के लिए दक्ष नीचे की ओर झुका तो अरु की नज़रें दक्ष पर पड़ीं और उसकी सिसकियाँ और रोना और भी ज़्यादा भयानक और दिल चीरने वाला हो गया।
दक्ष ने जब राहुल को अरु के साथ ऐसी घटिया हरकत करते देखा, उसे उस पर हावी देखा तो दक्ष का गुस्सा अपनी सारी हदें भूल गया और दक्ष ने वहीं राहुल के सीने पर चढ़कर उसे नॉनस्टॉप मारते हुए उस पर नॉनस्टॉप घूसों से वार किया और वो उसे बेहिसाब मारता रहा और तब तक लगातार उसे मारता ही रहा जब तक वह लहूलुहान होकर पूरी तरह बेहोश नहीं हो गया और जब तक राहुल के शरीर ने बिल्कुल दम नहीं छोड़ दिया था। आख़िर में जब राहुल का चेहरा पूरी तरह ख़ून से लहूलुहान हो गया और दक्ष को महसूस हुआ कि वो बेहोश हो चुका है तब आख़िर में उसने उसे छोड़ा और वह अरु की दिशा में बढ़ गया। अरु ने उसे देखा तो उसने अपनी बाहों को उसकी कमर से लपेटते हुए एक छोटे बच्चे की तरह उसके सीने पर अपना सर रख लिया और एक छोटे बच्चे की तरह बेशुमार सुबककर रोने लगी और दक्ष भी उसका सर सहलाते हुए उसे काँम डाउन करने की कोशिश करने लगा।
हालाँकि दक्ष यहाँ अरु से बात करने के लिए, उस पर नाराज़ होने के लिए आया था क्योंकि अपने बच्चे को खोने की ख़बर जानकर जो कुछ रिदांश की हालत हुई थी उसके बाद दक्ष का गुस्सा अरु पर और भी ज़्यादा बढ़ गया था और वह उसी गुस्से को उतारने के लिए और उससे सवाल करने के लिए आया था। लेकिन जब उसने अरु को इस हालत में देखा तो उसका दिल जैसे छलनी हो गया था कि तभी नैना भी घायल रूप में लड़खड़ाती हुई बड़ी मुश्किल से अरु के पास आती है और अरु और राहुल की हालत देखकर उसे समझने में देर नहीं लगी कि असल में यहाँ क्या हुआ होगा। कुछ ही देर में दक्ष ने पुलिस को फ़ोन किया और पुलिस राहुल को वहाँ से उठाकर हॉस्पिटल ले गई और साथ ही एक अच्छे डॉक्टर ने अरु और नैना का ट्रीटमेंट भी किया।
(लगभग दो घंटे बाद……)
दक्ष (अरु का हाथ थामकर): सब ठीक है अरु, कुछ नहीं हुआ है। जस्ट रिलैक्स एंड काँम डाउन!
अरु (भावुकता के साथ बेहद दुख भरे भाव के साथ): दक्ष क्या मैं इतनी बुरी हूँ? इतनी बुरी कि सिर्फ़ मुझे लोगों से धोखा और दर्द ही मिलते हैं और क्या ईश्वर ने मेरी किस्मत में हमेशा ऐसे ही दर्द लिखे हैं? (दक्ष के सीने पर सर रखते हुए) इससे अच्छा तो वो मुझे मौत ही दे दे क्योंकि अब मुझसे ये बोझ भरी ज़िंदगी और नहीं जी जाती!
दक्ष (अरु का सर चूमते हुए): ईश्वर भी हमेशा सिर्फ़ अच्छे लोगों का ही इम्तिहान लेते हैं और तुम फ़िक्र मत करो, सब ठीक हो जाएगा। मैं बात करूँगा रिदु से, तुम और वो…
अरु (अपना सर दक्ष के सीने से हटाते हुए): मैं कभी उस इंसान के साथ वापस नहीं आ सकती, चाहे फिर मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी दर-दर की ठोकर खाकर ही क्यों ना गुज़ारनी पड़े, मगर उस घर में मैं हरगिज़ वापस नहीं जाऊँगी!
दक्ष (अरु की ओर देखकर): मैं मानता हूँ अरु, रिदू गलत है, लेकिन जो कुछ भी तुमने किया वो भी सही नहीं है। इनफ़ैक्ट तुम उससे कहीं ज़्यादा गलत हो। तुमने ऐसा क़दम उठाया जिसका मैं ख़्वाबों में भी तसव्वुर नहीं कर सकता था!
अरु: कौन गलत है, कौन सही नहीं जानती मैं, लेकिन इतना ज़रूर जानती हूँ इस बोझिल और बेमाने रिश्ते का बोझ उठाने की ना तो हिम्मत है मुझमें और ना ही चाह। तो बेहतर होगा तुम भी ख़ुद को किसी भी झूठी उम्मीद से ना बाँधकर रखो!
इतना कहकर अरु वहाँ से अपने कमरे की ओर चली गई और दक्ष भी कुछ पल बाद वहाँ से चुपचाप चला गया। उसने सोचा था कि इस वक़्त अरु ठीक नहीं है, मगर वह अगले दिन अरु से इस बारे में ज़रूर बात करेगा और जब अरु का गुस्सा ठंडा होगा तो वह यक़ीनन उसकी बात समझेगी भी और मानेगी भी। फिर भले ही रिदांश और अरु के बीच में जो कुछ भी हुआ था, बेशक वो कोई छोटी बात नहीं थी, लेकिन दक्ष को यक़ीन था कि जब ये दोनों अपने गुस्से से बाहर आएंगे तो इनकी मोहब्बत इन्हें करीब ले ही आएगी। लेकिन अगले दिन जब दुबारा अरु से मिलने आया तब उसे पता चला कि अरु हमेशा-हमेशा के लिए यहाँ से जा चुकी थी। कहाँ? किसी को नहीं पता था, मगर इतना ज़रूर पता था कि वह कभी भी ना लौटने के लिए यहाँ से हमेशा-हमेशा के लिए जा चुकी थी!
(फ़्लैशबैक एंड)
गाड़ी रेड लाइट पर रुकी तो अरु अपने ख़्यालों से बाहर आई और उसने अपनी नम आँखों को बड़ी ही सफ़ाई से साफ़ किया।
अरु (मन में आसमान की ओर देखकर): आपने हमेशा मेरा इम्तिहान लिया है, हमेशा मुझसे मेरे रिश्ते और अपनों को छीना है और हमेशा मेरे साथ वो सब किया है जो शायद मैं कभी डिज़र्व ही नहीं करती थी। लेकिन फिर भी मैंने अपनी किस्मत के लिखे को एक्सेप्ट किया और उन सारी बुरी यादों और अतीत को भूल गई, सिर्फ़ आपकी दी एक नेमत की वजह से, मेरी आरांशी, मेरी बेटी की वजह से। उसने मेरे सारे ज़ख़्मों को भर दिया और अपनी मासूम मुस्कान से उसने मेरी ज़िंदगी में खुशियाँ ही खुशियाँ भर दी और उन सारे ज़ख़्मों और बुरी यादों को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा दिया जो मुझे अतीत से मिली थीं। बस मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि मेरी बच्ची को कभी मुझसे दूर मत कीजिएगा, उसे हमेशा, हमेशा बस मेरे साथ रखिएगा क्योंकि ये आप भी अच्छे से जानते हैं कि मैंने अपनी बच्ची को पाने के लिए और उसे ज़िंदगी देने के लिए कितनी मुश्किलों और आफ़तों का सामना किया है। (एक पल को अपनी आँखें बंद करते हुए) बस अब मुझे और इम्तिहानों और अग्नि परीक्षाओं में मत डालिएगा, अब बस मुझे मेरी बेटी के साथ एक सुकून भरी ज़िंदगी चाहिए और कुछ नहीं। (एक पल रुककर गहरी साँस लेते हुए) मैं वापस अतीत की उन्हीं गलियों में आ गई हूँ जिन्हें मैं एक अरसे पहले छोड़ जा चुकी हूँ। बस अब मुझे इतनी हिम्मत दीजिएगा कि मैं अपने अतीत का डटकर सामना कर सकूँ, बिना किसी डर के, बिना कमज़ोर पड़े, बस इतना साथ दीजिएगा!
इसी के साथ ड्राइवर ने अरु की गाड़ी बड़े से होटल के सामने रोकी और अरु ने एक बार फिर अपने उसी कॉन्फ़िडेंस के साथ गाड़ी से बाहर क़दम निकाला जो हमेशा अब उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आता था और शायद यहीं से एक बार फिर अरु की ज़िंदगी एक नई करवट लेने की शुरुआत करने वाली थी!
अरु ने एक बार फिर अपने उसी कॉन्फिडेंस के साथ गाड़ी से बाहर कदम निकाला। जो हमेशा अब उसके चेहरे पर साफ नज़र आता था। और शायद यही से एक बार फिर अरु की ज़िंदगी एक नई करवट लेने की शुरुआत करने वाली थी। दूसरी तरफ करन, जो अपने होटल के रूम में आराम से सो रहा था, जब उसका फ़ोन बजा, तो उसने एक पल को अपनी अलसाई आँखें खोलीं, और फिर आँखें बंद किए हुए ही बड़बड़ा कर फ़ोन ढूँढा। और साइड टेबल से फ़ोन उठाते हुए उसने फ़ोन उठाया।
"हेलो?? कौन है भाई? इतनी रात में तो चैन लेने दो??", करन ने अलसाई आवाज़ में कहा।
"क्या कर रहे हो तुम?", अरु ने करन की बात को इग्नोर करते हुए कहा।
"लाईक सीरियसली अरु, तुमने मुझसे ये सवाल करने के लिए मुझे फ़ोन किया है?? अब ज़ाहिर है...", करन ने उबासी लेते हुए कहा।
"चुप करो और जितना पूछा है, सिर्फ़ इतना बताओ?", अरु ने अपने रूम से बाहर आते हुए, बाहर कॉरिडोर में आकर कहा।
"आधी रात में अब मैं कैटरीना कैफ़ के साथ डेट पर तो जाने वाला नहीं, तो जाहिर है सो ही रहा हूँ मैं!!", करन ने अलसाई आवाज़ में कहा।
"दरवाज़ा खोलो!!", अरु ने करन की बात को इग्नोर करते हुए कहा।
"दरवाज़ा खोलो? कौन सा दरवाज़ा खोलूँ??? तुमने आधी रात में नींद के नशे में फ़ोन किया है क्या मुझे?? जो कुछ भी उल-जुलूल बोले जा रही हो???", करन ने असमंजस से कहा।
"जस्ट शटअप। ऑफ़कोर्स अपने रूम का दरवाज़ा खोलो!!", अरु ने कहा।
"इट मीन्स कि तुम मुंबई आ गई??? मगर कब? कैसे??? और अचानक??? तुमने मुझे बताया क्यों नहीं??? मुझे इन्फ़ॉर्म क्यों नहीं किया?? और...", करन ने एक पल सोचकर, एक्साइटेड होते हुए कहा।
"बाय गॉड करन, अगर तुमने मुझे 1 मिनट और ऐसे ही इरिटेट किया ना और दरवाज़ा नहीं खोला, तो मैं...", अरु ने इरिटेट होकर कहा।
अरु अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाई थी कि करन ने फटाक से अपने रूम का दरवाज़ा खोल दिया और सामने खड़ी अरु को देखकर अपनी बत्तीसियाँ दिखाने लगा। अरु ने एक पल के लिए उसे घूरा और फिर अंदर चली आई। करन ने दरवाज़ा बंद किया और अपनी बत्तीसियाँ दिखाते हुए अरु के पीछे अंदर आया।
"तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुम मुंबई आने वाली हो? मैं तुम्हें पिक करने आ जाता!!", करन ने कहा।
"क्योंकि मैं भी देखना चाहती थी कि आखिर मेरे पीठ पीछे कितनी ज़िम्मेदारी के साथ तुम अपने कंधों की ज़िम्मेदारी को निभा रहे हो!!", अरु ने करन की ओर देखकर कहा।
"इसकी जगह अगर तुम यही कह देती कि तुम मुझे सरप्राइज़ देना चाहती थी, तो तुम्हारी जुबान दुख नहीं जाती!!", करन ने मुँह बनाकर कहा।
"बेहक नहीं दुखती, लेकिन मैं झूठ नहीं बोलती और ना ही मुझे किसी को भी कोई गलतफ़हमी देने का कोई शौक ही है। और वैसे भी मैं अपने काम खुद कर सकती हूँ!!", अरु ने कहा।
"आई नो, मगर अगर मैं आ जाता तो तुम्हें स्पेशल ट्रीटमेंट मिल जाता (अपनी बत्तीसियाँ दिखाते हुए)। यू नो व्हाट, करन सिंघानिया के साथ गाड़ी में बैठने के लिए लड़कियों की लाइन लगी हुई है और लड़कियाँ एक लॉन्ग ड्राइव पर मेरे साथ जाने के लिए मरने को तैयार रहती हैं!!", करन ने कहा।
"ओह, वाकई में? फिर तो ऐसी लड़कियों को सच में मर ही जाना चाहिए!!", अरु ने तंज भरी मुस्कान के साथ कहा।
"तुम मुझे इंसल्ट करने की कोशिश कर रही हो??", करन ने अपनी आँखें छोटी करते हुए अरु को घूरकर कहा।
"ऑफ़कोर्स नॉट, क्योंकि मैं तुम्हें इंसल्ट करने की कोशिश बिल्कुल नहीं कर रही। इनफ़ैक्ट मैं ऐसा ही कर रही हूँ और वैसे भी इंसल्ट उसकी होती है जिसकी कोई इज़्ज़त हो और तुम्हारी तो... (एक पल रुककर) खैर जाने दो!!", अरु ने उसी तंज भरी मुस्कान के साथ कहा।
"बोलो बोलो, तुम्हारा वक़्त है लेकिन जिस दिन मेरा वक़्त आएगा ना, तुम्हारी बोलती बंद हो जाएगी और उस दिन तुम चाहकर भी अपनी ये हिटलरगिरी मुझे नहीं दिखा पाओगी। इनफ़ैक्ट उस दिन मेरे आगे तुम्हारी जुबान ही नहीं खुलेगी!!", करन ने बच्चों की तरह मुँह बनाते हुए कहा।
"सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन जागती आँखों से सपने देखना सरासर बेवकूफी है। एनीवे मुझे अभी सारी डिटेल्स दो, प्रोजेक्ट के रिगार्डिंग सारी डिटेल दो और इन बीते 2 दिनों में जो भी रहा मुझे सब जानना है!!", अरु ने टाइट स्माइल के साथ कहा।
"ये काम तो हम सुबह भी कर सकते हैं ना? क्यों एक मासूम इंसान की नींद उजाड़ रही हो? इतनी भी पत्थर दिल ना बनो ए अरु!!", करन ने मासूमियत से कहा।
"फॉर योर काइंड इंफ़ॉर्मेशन, तुम्हें बता दूँ कि इस वक़्त सुबह के 5:00 बज रहे हैं और 7:00 बजे हमें ऑफ़िस के लिए निकलना है और नॉर्मल लोगों के उठने का वक़्त यही होता है (करन की ओर देखकर तंज भरे लहजे में)। लेकिन अब कोई जानबूझकर उल्लुओं की तरह रात-रात भर जागकर फ़िजूल पार्टीज़ करें और सुबह को रात बनाएँ तो इसमें सिवाय उसके और किसी की फ़ॉल्ट नहीं है!!", अरु ने अपने सीने पर अपनी बाज़ू फोल्ड करते हुए कहा।
"तुम तो बहुत अच्छी हो ना मेरी प्यारी अरु, मेरी अच्छी दोस्त, मेरी मासूम अरु...", करन ने मस्का लगाते हुए कहा।
"अगर एक लफ़्ज़ और तुमने मुँह से निकाला तो तुम्हें आज ही के आज पहली फ़्लाइट से वापस स्पेन भेज दूँगी!!", अरु ने करन को घूरकर कहा।
"तुम बिल्कुल अच्छी नहीं हो, तुम खडूस हो, तुम एक नंबर की हिटलर हो!!", करन ने मुँह बनाकर कहा।
"थैंक्स! अब जल्दी से मुझे डिटेल्स दो!!", अरु ने सोफ़े पर बैठते हुए कहा।
मरता क्या न करता, बिचारे करन के पास अब कोई ऑप्शन नहीं था। इसलिए उसने जबरदस्ती मरे-मरे हाथों से लैपटॉप उठाया और उसमें अरेंज की सारी डिटेल्स अरु की ओर बढ़ा दी। अरु लैपटॉप लेकर सोफ़े पर बैठ गई और बिचारा करन वहीं बेड पर बैठे-बैठे अगले एक डेढ़ घंटे तक ओँघता रहा। 6:30 बजे अरु ने आखिर में लैपटॉप बंद किया और ओँघते हुए करन की ओर देखा।
"आधा घंटा है तुम्हारे पास, बी रेडी ऑन टाइम। 7:00 बजे हमें ऑफ़िस के लिए निकलना है!!", अरु ने करन की ओर देखकर गंभीर भाव से कहा।
इतना कहकर अरु करन के रूम से बाहर आ गई और अपने रूम की ओर चली गई। करन ने बेड से तकिया उठाया और दरवाज़े की ओर फेंककर मारा।
"हे भगवान! इतना स्ट्रिक्ट तो हिटलर भी नहीं रहा होगा जितना ये लड़की है!!", करन ने छत की सीलिंग देखकर कहा।
करन दस मिनट तक यूँ ही बिस्तर पर पड़ा रहा, लेकिन जैसे ही उसे अरु की बात याद आई, वह फट से बिस्तर से खड़ा हो गया और कबर्ड से अपने कपड़े निकालकर जल्दी से बाथरूम की ओर भाग गया। ठीक 7 बजे अरु की गाड़ी होटल से निकल गई और कुछ देर के सफ़र के बाद उसकी गाड़ी एक बड़ी सी बिल्डिंग के बाहर जाकर रुकी। अरु ने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ गाड़ी से बाहर कदम निकाला और अपने ऑफ़िस सूट में हील्स के साथ वह बहुत ही प्रोफ़ेशनल और कॉन्फिडेंट नज़र आ रही थी। बाहर खड़े गार्ड ने उसे देखा तो फ़ौरन खड़े होकर उसे और करन को सलाम किया। अरु ने अपना सर हिलाते हुए चलते-चलते अपनी आँखों से चश्मा हटाया और करन के साथ सीधा बिल्डिंग के अंदर बढ़ गई। अरु ने चारों तरफ़ से बिल्डिंग का मुआयना किया और आखिर में उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।
"व्हाट डू यू थिंक? कैसी है ये जगह??", अरु ने पूछा।
"जगह तो अच्छी है मगर है किस लिए ये??", करन ने ऑफ़िस को देखते हुए कहा।
"हमारे न्यू प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए। आई मीन ये हमारा नया ऑफ़िस है!!", अरु ने बताया।
"बाकी सब तो ठीक है, लेकिन जब मिस्टर अग्निहोत्री का ऑफ़िस है जहाँ पर हमें सारी फैसिलिटी ऑलरेडी बनी-बनाई मिल रही है, तो हम यहाँ पर अपनी टाइम और एनर्जी के साथ ही अपना पैसा क्यों ख़र्च करें??", करन ने पूछा।
"हर जगह कई बार हमें पैसे और एनर्जी से बढ़कर उसके आगे सोचना पड़ता है और डोंट वरी मैं ये जो कुछ भी कर रही हूँ आगे की बेहतरी के लिए ही कर रही हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहती कि कोई भी या थोड़ी भी अड़चन आए हमारे काम में। हमें ये प्रोजेक्ट किसी भी हाल में पूरा करना है!", अरु ने बिना किसी भाव के कहा।
"आई ट्रस्ट योर डिसीजन। अगर तुमने सोचा है तो कुछ बेहतर ही होगा। वैल मैं अपने लोगों से कहता हूँ कि जो काम या चीज़ें रह गई हैं वो सारी अरेंजमेंट करवा दें!!", करन ने कहा।
"थैंक यू!!", अरु ने कहा।
"माय प्लेजर!!", करन ने मुस्कुराकर कहा।
इसके बाद करन ने अपने लोगों को इन्फ़ॉर्म किया और लगभग 2 से 3 घंटे में जो भी ज़रूरी चीज़ें थीं वो यहाँ अवेलेबल करा दी गई थीं और अरु और करन की टीम के लोग भी यहाँ आ चुके थे। रिदांश की टीम को भी ये बात इन्फ़ॉर्म करा दी गई थी और उनमें से भी कुछ लोग यहाँ पहुँच चुके थे जो इस प्रोजेक्ट का हिस्सा थे। इधर दूसरी तरफ जब रिदांश किसी ज़रूरी काम के चलते आज ऑफ़िस लेट पहुँचा और उसे करन का मैसेज मिला कि आगे प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए अरु ने उसका ऑफ़िस छोड़कर किसी दूसरी जगह को चुना है, तो उसकी भौहें तन गईं और उसने ड्राइवर से उस एड्रेस पर चलने के लिए कहा। और कुछ ही देर में उस बिल्डिंग के सामने रिदांश की गाड़ी रुकी और अपने हमेशा वाले उसी सख्त और स्ट्राँग अंदाज़ के साथ जैसे ही रिदांश ने बिल्डिंग में कदम रखा, सभी लोग जैसे सावधान की मुद्रा में आ गए और अपना सर झुकाकर उसे गुड मॉर्निंग विश करने लगे।
मगर रिदांश सबको इग्नोर करता हुआ सीधा अरु के केबिन में गया जहाँ पर अरु टहलते हुए एक ज़रूरी फ़ाइल पढ़ते हुए उसे मार्क कर रही थी। रिदांश ने केबिन का दरवाज़ा खोला और सख्त और गुस्से भरी निगाहों से अरु को घूरा। जबकि अरु ने उसके बिल्कुल उलट रिएक्शन दिया। शायद उसे पहले से पता था कि इस बात को जानकर रिदांश का यही रिएक्शन होगा, इसलिए वह पहले से ही इस बात के लिए मेंटली प्रिपेयर थी और बीते पाँच सालों में वो खुद को इतना स्ट्राँग कर चुकी थी कि कब और कैसे उसे किस सिचुएशन को हैंडल करते हुए उसे मैनेज करना है। रिदांश को लगा था कि खुद अपने सामने देखकर अरु उस पर फिर से सिर्फ़ अपना गुस्सा और नफ़रत ही ज़ाहिर करेगी, लेकिन अरु ने इस वक़्त बिल्कुल उसकी सोच के विपरीत व्यवहार किया।
"हैलो! गुड मॉर्निंग मिस्टर अग्निहोत्री (अपने हाथ अपनी कमर के पीछे करके बाँधते हुए)। वैसे मैंने तो सुना था कि आप टाइम के बहुत ही पाबंद इंसान हैं और वक़्त आपके हिसाब से चलता है, आप वक़्त के नहीं, लेकिन इस वक़्त तो वक़्त आप से कई घंटे आगे निकल चुका है!!", अरु ने स्माइल के साथ कहा।
"ये सब क्या बकवास है??", रिदांश ने अरु की बात को इग्नोर करते हुए कहा।
"क्या बकवास है?? मैंने तो आपको सिर्फ़ टाइम बताया है??", अरु ने अनजान बनते हुए कहा।
"ज़्यादा ओवर स्मार्ट मत बनो क्योंकि मेरे सामने तुम कितने भी नकाब ओढ़ लो लेकिन मेरे सामने तुम्हारा असली चेहरा बहुत पहले ही आ चुका है, तो अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम कितना भी उसे छुपाने की कोशिश करो क्योंकि जो तुम हो मैं अच्छे से जानता भी हूँ और समझता भी हूँ!!", रिदांश ने सख्त भाव से कहा।
"यू नो व्हाट, आप क्या समझते हैं या क्या सोचते हैं मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, जस्ट गो टू हेल!!", अरु ने तंज भरी मुस्कान के साथ कहा।
"दुबारा मुझसे इस लहजे में बात करने की कोशिश भी मत करना वरना...", रिदांश ने गुस्से से अपनी मुट्ठियों को भींचते हुए कहा।
"वरना? वरना क्या करेंगे आप (अपनी आईब्रो उठाकर)? जान ले लेंगे मेरी या फिर हमेशा की तरह कोई बेबुनियाद और झूठा इल्ज़ाम लगाकर मुझे यहाँ से भी बाहर निकलवा देंगे!!", अरु ने रिदांश की बात को बीच में ही काटते हुए तंज भरे लहज़े से कहा।
रिदांश ने जैसे ही अरु के ये लफ़्ज़ सुने तो एक पल को उसके चेहरे के भाव बदल गए और उस पर कई मिले-जुले भाव उभर आए और अतीत की याद का एक जोरदार झोंका उसे छूकर गुज़र गया। मगर कुछ पल बाद ही उसने खुद को सामान्य करने की कोशिश करते हुए बात बदलते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
"तुमने यहाँ पर सारी टीम को क्यों बुलाया है??", रिदांश ने बिना किसी भाव के कहा।
"क्योंकि यहीं से हमारे नए प्रोजेक्ट का काम शुरू होगा।", अरु ने कहा।
"और तुमने किसकी इजाज़त से ये फैसला लिया??", रिदांश ने अरु की ओर देखकर बिना किसी भाव के कहा।
"वो दिन बहुत पहले ही गुज़र चुके हैं जब मुझे अपने फैसले लेने के लिए भी किसी दूसरे की इजाज़त लेने की फ़िजूल ज़रूरत थी (सख्त भाव से)। नाउ आई गिव अ डैम अबाउट एनिवन ओपिनियन एंड देयर चॉइसेस!!", अरु ने रिदांश की आँखों में देखते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।
"बेहक तुम्हारी ज़िंदगी में वो दिन गुज़र चुके होंगे लेकिन मेरी ज़िंदगी में हमेशा से लेकर और आज तक भी वही दिन है जहाँ अपने फैसले मैं खुद अपनी मर्ज़ी और चॉइसेस पर लेता हूँ और मेरा फैसला यही है कि हमारे प्रोजेक्ट का काम मेरे ऑफ़िस से ही शुरू होगा!!", रिदांश ने अरु को घूरकर कहा।
"यू नो व्हाट मिस्टर अग्निहोत्री, कॉन्फिडेंस इंसान को दुनिया में जीना सिखाता है, दुनिया के आगे डटकर खड़ा होना सिखाता है लेकिन वही अगर ओवरकॉन्फिडेंस बनकर सर चढ़ जाए तो यही आपको लेकर भी डूब जाता है। यूँ बहुत मामूली सा फ़र्क है कॉन्फिडेंस और ओवरकॉन्फिडेंस के दरमियान लेकिन ये मामूली सा फ़र्क ही या तो इंसान को बना देता है या फिर पूरी तरह तबाह कर देता है!!", अरु ने तंज भरी मुस्कान के साथ कहा।
"वैल, देखते हैं फिर किसका ओवरकॉन्फिडेंस किसे लेकर डूबता है!!", रिदांश ने उसी तंज भरी मुस्कान के साथ कहा।
इतना कहकर रिदांश ने अपनी जेब से अपना कीमती चमचमाता फ़ोन निकाला और प्रिंस को कॉल की। कुछ पल के बाद प्रिंस के मैनेजर ने कॉल उठाकर प्रिंस को फ़ोन पकड़ा दिया।
"हैलो प्रिंस, रिदांश... रिदांश अग्निहोत्री!!", रिदांश ने कहा।
"हैलो मिस्टर अग्निहोत्री, हाउ आर यू? कैसे हैं आप और काम कैसा चल रहा है??", प्रिंस ने कहा।
"एवरीथिंग इज ऑलराइट, लेकिन मुझे आपसे एक बात कहनी थी। आपने मिस कपूर को बताया नहीं कि प्रोजेक्ट के फैसले लेने के लिए वो अकेले ही मालिकाना हक़ नहीं रखती और बिना मेरी मर्ज़ी शामिल हुए वो कोई भी काम नहीं कर सकती!!", रिदांश ने टेबल पर पेपरवेट को घुमाते हुए अरु की ओर देखकर कहा।
"ऑफ़कोर्स, हमने बताया था। आप दोनों को ये बात बताई थी कि आप जो भी फैसले लेंगे वो आप दोनों मिलकर ही लेंगे!!", प्रिंस ने कहा।
"यस, लेकिन कुछ लोगों का ओवरकॉन्फिडेंस उन्हें खुद से कुछ भी करने की इजाज़त दे देता है और वो आसमान में उड़ने लगते हैं और फिर वही ओवरकॉन्फिडेंस उन्हें वापस मुँह के बल लाकर ज़मीन पर भी पटक देता है (एक पल रुककर तंज भरे लहजे से)। लीजिए, अब आप ही समझाएँ अपनी समझदार बिज़नेस पार्टनर को (अरु से विक्ट्री एक्सप्रेशन के साथ)। कहा था ना, रिदांश अग्निहोत्री ने कभी हारना नहीं सीखा!!", रिदांश ने तंज भरी मुस्कान के साथ कहा।
इतना कहकर रिदांश ने विक्ट्री एक्सप्रेशन के साथ अरु की ओर अपना फ़ोन बढ़ा दिया। लेकिन रिदांश के प्रिंस से बात करने के बाद और अरु पर ताना कसने के बाद भी अभी भी अरु के चेहरे पर वही कॉन्फिडेंस और मुस्कान बरकरार थे जिसे देखकर एक पल के लिए रिदांश भी उसे असमंजस से देखने लगा।
रिदांश के साथ बात करने और अरु पर ताना कसने के बाद भी, अरु के चेहरे पर वही आत्मविश्वास और मुस्कान बनी हुई थी। इसे देखकर रिदांश एक पल के लिए उसे असमंजस से देखने लगा। अरु ने रिदांश के हाथ से फोन लिया और अपने आत्मविश्वास के साथ कॉल पर अपनी चुप्पी तोड़ी। कुछ औपचारिक बातों के बाद अरु ने अपनी बात शुरू की।
प्रिंस: "क्या हुआ है मिस कपूर? कोई समस्या? क्या श्री अग्निहोत्री के साथ सब ठीक है?"
अरु (हल्के मूड में, पर तंज भरे लहजे से, फोन को स्पीकर मोड पर डालते हुए): "हाँ, सब ठीक है प्रिंस। असल में, श्री अग्निहोत्री को हर चीज़ में लोगों पर हावी होने की आदत है। जब भी उन्हें किसी और की मर्ज़ी चलती नज़र आती है, तो यह उनकी सहनशीलता से बाहर हो जाता है।" (रिदांश ने अरु की बात सुनी तो उसने उसे सख्त और गुस्से भरी नज़र से घूर दिया।) "लेकिन चिंता मत कीजिए प्रिंस, जैसा कि हम पहले ही बात कर चुके हैं, यह जगह हमारे प्रोजेक्ट के लिए बिल्कुल सही है। मैं वादा करती हूँ कि आपके प्रोजेक्ट में कोई कमी नहीं आएगी। श्री अग्निहोत्री के ऑफिस के हिसाब से यह जगह हमारे लिए बेहतर है, और हमारे कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त घंटे तक काम करना आसान और सुरक्षित रहेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि आस-पास घरेलू लोगों का रहना-बसना बहुत कम है, जिससे हमारे काम में कोई रुकावट नहीं होगी। अगर हमारे प्रयोग के दौरान कुछ गड़बड़ भी होती है, तो कोई नुकसान नहीं होगा।"
प्रिंस: "हाँ, मुझे आपके व्यावसायिक कौशल पर भरोसा है। इसीलिए मैंने आपको पहले ही इसकी अनुमति दे दी थी।"
अरु (जीत की मुस्कान के साथ रिदांश की ओर देखकर): "धन्यवाद, यह सब मेरा है। लीजिए, श्री अग्निहोत्री से बात कीजिए।"
रिदांश ने अरु की बात सुनते ही लगभग छीनते हुए उसके हाथ से फोन ले लिया।
रिदांश (बिना किसी भाव के): "हेलो?"
प्रिंस: "हाँ, श्री अग्निहोत्री। आप बिल्कुल बेफ़िक्र रहें। मिस कपूर ने मुझे सारा बैकअप प्लान पहले ही बता दिया है, और वह आपको भी इस बारे में अच्छी तरह समझा देंगी। उन्होंने जो भी प्लान बनाए हैं, वह सब हमारे प्रोजेक्ट के हिसाब से बहुत अच्छे हैं, और भविष्य में यह हमारे लिए फायदेमंद रहेंगे। वैसे भी, फर्क जगह से नहीं, लोगों से पड़ता है। अगर हमें इस जगह से ज़्यादा सुविधाएँ और फायदा मिल रहा है, तो मुझे लगता है कि यह एक अच्छा निर्णय है।"
रिदांश (नाखुशी भरे भाव से): "ठीक है।"
इतना कहकर रिदांश ने प्रिंस की बात सुने बिना ही फोन काट दिया। वह जैसे ही कैबिन से बाहर निकलने लगा, तभी करन कैबिन का दरवाज़ा खोलकर अंदर आया।
करन (रिदांश को बिना देखे): "अरु, तुम अब तक यहीं हो? मैं कब से..."
करन ने कैबिन में रिदांश को देखते ही अचानक चुप हो गया। रिदांश की तीखी नज़र करन पर ही टिकी हुई थी, हालाँकि उसके चेहरे का भाव अभी भी शांत था। कुछ पल बाद अरु की आवाज़ सुनकर रिदांश ने अपनी नज़रें करन से हटा लीं। लेकिन उसे जाते देख अरु ने फटाक से उसे रोका।
अरु (तंजिया लहजे से): "तो श्री अग्निहोत्री, आप अपना केबिन खुद चुनेंगे या यह भी मैं अपनी मर्ज़ी से आपको प्रदान कर दूँ?"
रिदांश (तीखी नज़रों से अरु की ओर देखकर): "अभी मेरे इतने बुरे दिन नहीं आए हैं कि मैं किसी फिजूल इंसान की मर्ज़ी से अपनी चीज़ें चुनूँ। बस अपनी सीमा में रहिए!"
अरु (जीत की पर तंज भरी मुस्कान के साथ): "मुझे लगता है कुछ पल पहले भी आपने यही कहा था कि आप अपनी मर्ज़ी से फैसले लेते हैं, वगैरह-वगैरह... लेकिन अभी कुछ पल पहले ही मैंने आपके फैसले को, आपकी आँखों के सामने, ना सिर्फ़ बदला है, बल्कि आपको उसे मानने के लिए मजबूर भी किया है!"
रिदांश (अपनी जेब में हाथ डालते हुए, सख्त लहजे से): "अगर आपको लगता है कि इस छोटी-सी जीत से आप रिदांश अग्निहोत्री को हरा सकती हैं, तो आप गलत हैं मिस कपूर। क्योंकि आपकी आँखों में जो जीत का ख़्वाब दिख रहा है, वह बहुत जल्द टूटने वाला है। इस खेल के आखिर में जीत सिर्फ़ रिदांश अग्निहोत्री की होगी, और आखिर में आप खुद इस बात को मानेंगी।"
अरु (तंज भरी मुस्कान के साथ): "देखते हैं।"
रिदांश (गंभीर लहजे से): "बस देखते रहिए।"
इतना कहकर रिदांश अरु के केबिन से बाहर निकल गया। करन हैरानी से अरु की ओर देख रहा था। उसे देखकर अरु ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु: "तुम अपना मुँह खोले क्यों खड़े हो?"
करन (टेबल के पास आकर उस पर बैठते हुए): "मतलब, तुमने आते ही शेर के मुँह में हाथ डाल दिया। तुम जानती हो यह असल में कौन है? जब मुझे पहली बार मिला था, मुझे नहीं पता था कि यह कौन है, लेकिन जब मैं मुंबई आया, तो मुझे इसके बारे में सब पता चला। यह रिदांश अग्निहोत्री है। मुंबई में क्या, बड़े-बड़े शहरों और देशों में बिज़नेस वर्ल्ड में इसका अच्छा-खासा नाम है। इसके आगे कोई जुबान खोलना तो दूर, सोचना भी नहीं चाहता। लेकिन तुम तो इसे सामने से ही चुनौती दे बैठी। तुम समझती भी हो? अगर यह हमसे बैर कर बैठा, तो हमारे बिज़नेस के लिए यह बिल्कुल ठीक नहीं होगा। और..."
अरु (करन की बात बीच में काटते हुए): "इंसान कमज़ोर तब तक होता है जब तक वह खुद को कमज़ोर समझता है। लेकिन जिस दिन इंसान अपने दिमाग को कंट्रोल करना, उसे आदेश देना सीख जाता है, और यह समझ जाता है कि वह दिमाग को कंट्रोल करता है, दिमाग उसे नहीं, तो उसे अपनी शक्ति पर भरोसा हो जाता है। फिर दुनिया का सबसे ताकतवर शख़्स भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
करन (असमंजस भरे भाव के साथ): "पता नहीं तुम्हारी आधी बातें मेरे सर के ऊपर से जाती हैं, पर मुझे पता है कि तुम जो भी करती हो, सोच-समझकर करती हो। तो चिंता मत करो।"
अरु: "अब यह सब छोड़ो, और यह बताओ कि तुम्हें कुछ काम था?"
करन: "हाँ, असल में सारे कर्मचारी आ चुके हैं, तो मैंने आधे घंटे में सबको मीटिंग हॉल में इकट्ठा होने के लिए कहा है।"
अरु: "ठीक है, धन्यवाद।"
करन (अपनी बत्तीसी दिखाते हुए): "स्वागत है। वैसे, तुम्हें नहीं लगता कि हमें मिलकर ओपनिंग पार्टी अरेंज करनी चाहिए?"
अरु (कड़ी मुस्कान के साथ): "नहीं, अभी मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता।"
करन (मुँह लटकाकर): "लेकिन अरु..."
अरु (करन को घूर कर): "बस अपने काम पर ध्यान दो।"
करन (मुँह बनाकर): "जैसा हुक्म बॉस।"
अरु (गंभीर भाव से): "अब जाओ और प्रोग्रेस रिपोर्ट चेक करो।"
करन (बेमन से उठते हुए): "ठीक है, जा रहा हूँ।"
करन बेमन से अरु के केबिन से बाहर निकला और जैसे ही वह बाहर निकला, अनजाने में सामने से आते किसी शख्स से टकरा गया। दोनों की एक जोरदार टक्कर हुई। करन ने अपनी नज़रें उठाईं, इससे पहले ही एक तेज चीख़ उसके कानों में पड़ी। करन ने अपनी नज़रें ऊपर उठाईं तो सामने मासूमियत भरी आँखों के साथ, चेहरे पर बहुत गुस्सा लिए, एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी, जो और कोई नहीं, बल्कि प्रिशा थी। करन ने सोचा कि टकराने के बाद प्रिशा भी अन्य लड़कियों की तरह उसे माफ़ी मांगेगी, लेकिन प्रिशा ने उसके उलट उस पर अपने गुस्से की बौछार कर दी।
प्रिशा (गुस्से से): "तुम्हें दिखाई नहीं देता? अंधे हो? दिन के उजाले में भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा तुम्हें?"
करन ने प्रिशा की बात सुनी तो उसकी भी त्योरियाँ चढ़ गईं।
करन (चिढ़कर): "ओ हेलो! अगर मैं अंधा हूँ, तो तुम्हें तो नज़र आता है ना? शायद तुम्हारी आँखों में मिनी कैमरा भी फिट होंगे। तुम्हें नज़र नहीं आया, इतना बड़ा इंसान बाहर निकल रहा है, बेवजह मेरी पतली कमर में लटक ले आया। हैंडसम लड़का देखा नहीं कि टकराने के बहाने तलाशने लगे लोग!"
प्रिशा (तंज भरे लहजे से): "हैंडसम? और वह भी तुम? लगता है तुम्हारी आँखें ही नहीं, तुम्हारा दिमाग भी पूरा खराब है। और एक बात, तुमसे टकराने से अच्छा मैं सड़क पर आ रहे किसी ट्रक या बस से टकराना पसंद करूँगी। हैंडसम माय फ़ुट, इडियट!"
इतना कहकर प्रिशा वहाँ से चली गई। पहली बार किसी लड़की द्वारा यूँ बातें सुनाते देख, करन कुछ पल तक शॉक में उसे जाता ही देखता रहा। क्योंकि पहली बार किसी लड़की ने उसकी शक्ल और उसकी चार्मिंगनेस की धज्जियाँ उड़ाते हुए उसे यूँ सामने से अपमानित किया था। कुछ पल बाद जैसे वह होश में आया और प्रिशा के बारे में सोचते हुए बड़बड़ाने लगा।
करन (बड़बड़ाते हुए): "खुद तो इतनी पतली है कि नीम के पेड़ की डंडी भी इससे कहीं ज़्यादा मोटी होगी, और उंगली उठा रही है मेरे चार्म पर। पीपल के पेड़ की चुड़ैल कहीं की!"
इतना कहकर बड़बड़ाते हुए करन आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद सभी लोग मीटिंग हॉल में इकट्ठे हो गए। सबसे आखिर में रिदांश आया और उसने अपनी सीट संभाली। अरु और रिदांश बिल्कुल एक-दूसरे के सामने बैठे हुए थे, मगर दोनों की ही नज़रें एक-दूसरे पर नहीं थीं। दोनों ही ऐसे दिख रहे थे जैसे एक-दूसरे को जानते ही नहीं हों। हालाँकि रिदांश के कुछ पुराने कर्मचारियों को अरु को देखकर कुछ जाना-पहचाना सा लगा, लेकिन ठीक से वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि क्या यह वाकई अरु है। अगर हाँ, तो इन दोनों के बीच इतना अनजानपन क्यों है? आखिरकार उन्होंने इसे अपनी आँखों का धोखा समझकर छोड़ दिया। क्योंकि पाँच साल पहले वाली अरु और अब वाली अरु के लुक से लेकर कॉन्फिडेंस और एटीट्यूड में जमीन-आसमान का अंतर आ गया था, इसलिए उसे देखकर अचानक पहचान पाना नामुमकिन था।
कुछ देर बाद मीटिंग शुरू हुई। रिदांश ने सभी कर्मचारियों के सामने बड़े ही प्रोफेशनल तरीके से अपने पॉइंट्स रखे और उन्हें बताया कि किस तरह से उन्हें अपने प्रोजेक्ट पर काम करना है। सामने लगे इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड पर रिदांश पूरे प्रोफेशनलिज्म के साथ पेन को लगातार बोर्ड पर चलाते हुए अपने पॉइंट्स क्लियर कर रहा था। आखिर में जब उसने अपना प्रेजेंटेशन खत्म किया, तो वह अपनी सीट पर आ बैठा और उसने सबसे कहा कि अगर किसी को कोई सवाल है, तो वह उससे पूछ सकता है। लेकिन रिदांश ने जिस तरीके से और जिस प्रोफेशनलिज्म के साथ हर एक चीज़, हर एक छोटे से छोटे पॉइंट को भी क्लियर किया था, किसी को भी कोई सवाल नहीं था।
लेकिन कुछ पल बाद अरु ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोर्ड की तरफ बढ़ गई। उसने बिना कुछ कहे या बोले पेन को रिदांश के एक खास पॉइंट पर रखते हुए उसे घुमाकर दूसरी तरफ मोड़ दिया। इससे चीज़ें तो वैसी की वैसी ही रहीं, लेकिन उनका रास्ता बदल गया। अरु के उस पॉइंट को जब लोगों ने देखा और समझा, तो सबके चेहरे पर प्रभावित भाव उभर आए। यही एक्सप्रेशन कुछ पल के लिए रिदांश के चेहरे पर भी उभरे थे, हालाँकि जिसे उसने कुछ देर बाद ही अपने शांत एक्सप्रेशन के नीचे छुपा लिया। रिदांश का इस बात को लेकर अरु से ना बहस करना और ना ही उसकी खिलाफ़त करना, अरु के समझने के लिए इतना ही काफी था कि रिदांश को उसका यह पॉइंट सही ही नहीं, बल्कि परफेक्ट लगा है।
कुछ और ऐसे ही प्रोफेशनल डिस्कशन के बाद आखिर में यह मीटिंग खत्म हुई और सब लोग मीटिंग हॉल से बाहर निकलने लगे। मीटिंग हॉल में अभी रिदांश, करन, अरु और एक-दो कर्मचारी बाकी थे, कि तभी अचानक से मीटिंग रूम में एक लड़की एक्साइटेड होकर जल्दबाजी में अंदर चली आई। उसे देखकर कुछ पल तक अरु को लगा कि उसने इसे कहीं तो देखा है, मगर कहाँ? लेकिन जैसे ही वह लड़की रिदांश के करीब गई और कुछ देर दिमाग पर जोर डालने के बाद, आखिर में अरु को याद आया कि यह तो शनाया थी, वही शनाया जिसका पार्टी वाले दिन दक्ष ने रिदांश की मंगेतर कहकर परिचय करवाया था।
अरु (मन में दक्ष की याद करते हुए): "रिदांश की होने वाली मंगेतर है शनाया, और बहुत जल्द दोनों की सगाई होने वाली है।"
दक्ष की बात सोचकर अरु के भाव अचानक गंभीर हो गए। जिस तरह से शनाया बिना किसी झिझक या संकोच के सीधा रिदांश के गले लग गई थी, तो दक्ष की यह बात उसे सौ प्रतिशत सच और वज़नदार लगी और शनाया के अगले शब्दों ने दक्ष की इस बात को और भी पुख्ता कर दिया।
शनाया (रिदांश की ओर देखकर शिकायती लहजे से): "हाउ कुड यू डू दिस टू मी? तुम ऐसा कैसे कर सकते हो मेरे साथ? तुम अच्छे से जानते थे ना मैं तुमसे ही मिलने के लिए न्यूयॉर्क आई थी, और सिर्फ तुम्हारा साथ देने के लिए ही मैंने वह पार्टी ज्वाइन की थी। लेकिन तुम बिना बताए मुझे वहाँ से चले आए। तुम्हें पता है मैं कितना अकेला महसूस कर रही थी वहाँ, और मैं तुमसे कितना नाराज़ भी थी। मैंने तो सोचा था कि यहाँ आकर मैं तुमसे बहुत लड़ूँगी, (प्यारी सी मुस्कान के साथ) लेकिन हमेशा की तरह तुम्हारा यह हैंडसम फेस देखकर मेरा सारा गुस्सा छूमंतर हो गया। आई मिस यू, आई मिस्ड यू सो मच। और तुम जानते हो क्या? तुमसे मिलने के लिए मैं सीधा एयरपोर्ट से तुम्हारे ऑफिस गई, पर तुम्हारे ऑफिस जाकर पता चला कि तुम्हारा नया ऑफिस यहाँ हो गया है। (मुस्कुरा कर) तो मैं सीधा यहाँ तुमसे मिलने के लिए दौड़ी चली आई।"
शनाया का इस तरह से रिदांश के करीब होना, और एक पल के लिए यह बात सच होती महसूस होते हुए, अरु के दिल में कहीं कुछ चुभ गया था। क्यों था या किस लिए, यह उसे नहीं समझ आया, मगर हाँ उसे कहीं ना कहीं कुछ चुभता महसूस हुआ था। हालाँकि जिसे उसने पूरी तरह इग्नोर करते हुए, सादा भाव के साथ अपनी फ़ाइल उठाकर रूम से जाने लगी। वह फ़ाइल उठाकर रूम से बाहर निकलने ही वाली थी कि अचानक ही सामने से आती प्रिशा से टकराते-टकराते बची। प्रिशा ने जब सामने खड़ी अरु को देखा, तो एक पल को सब भूलकर वह एक्साइटेड होकर अपनी चुप्पी तोड़ी।
प्रिशा (अरु को सामने देखकर एक्साइटेड होकर एक पल को सब भूलकर): "आफ्टर अ लॉन्ग टाइम... कितने दिनों बाद मैं आपको देख रही हूँ... कैसी हैं आप..."
अपनी एक्साइटमेंट में प्रिशा बोल ही रही थी, लेकिन जैसे ही एक पल बाद उसके ज़हन पर आज की कड़वी सच्चाई का एहसास हुआ, तो अचानक ही उसकी जुबान बीच में ही खामोश हो गई और इस कड़वे सच का एहसास होते ही, प्रिशा की आँखों में अनकही मगर दर्द भरी नमी आ गई।
अपनी एक्साइटमेंट में प्रिशा बोली ही जा रही थी। लेकिन जैसे ही एक पल बाद उसके ज़हन पर आज की हकीकत भरी, कड़वी सच्चाई का एक ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा, तो अचानक ही उसकी जुबान बीच लफ्ज़ों में ही खामोश हो गई। और इस कड़वे सच का एहसास होते ही अनायास ही प्रिशा की आंखों में एक अनकही, मगर दर्द भरी नमी उतर आई। इधर दूसरी तरफ, प्रिशा को देखकर अरु के चेहरे पर भी कई मिले-जुले भाव उभर आए। भले ही रिदांश के साथ उसका रिश्ता बहुत ही कड़वे दौर से गुजरा था, और आज भी उसके लिए अतीत का एक कड़वा हिस्सा था, लेकिन जो भी था, मगर इस रिश्ते की वजह से ही उसे प्रिशा के रूप में एक छोटी बहन और एक दोस्त जैसा खूबसूरत रिश्ता भी मिला था।
भले ही आज रिदांश और अरु के रिश्ते के बीच दूरियां आ चुकी थीं, और दोनों के रास्ते एक अरसे पहले ही अलग हो चुके थे, और इसी के साथ अरु अतीत और अतीत के रिश्तों के साथ अपने सारे नाते पूरी तरह तोड़ चुकी थी, लेकिन प्रिशा के लिए कहीं ना कहीं अभी भी अरु के दिल में एक सॉफ्ट कॉर्नर था। और जो इतने सालों बाद आज प्रिशा को यूं सामने देखकर इमोशंस के रूप में उमड़ता नज़र आ रहा था। अरुण ने जब माहौल की गंभीरता को भांपा, तो उसने माहौल को हल्का करने के लिए अपनी चुप्पी तोड़ी।
"कैसी हो तुम प्रिशा?" अरु ने पूछा।
"मैं ठीक हूं। आप बताएं? आप कैसी हैं?" प्रिशा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा।
"मैं भी एकदम अच्छी हूं।" अरु ने सामान्य भाव से कहा।
"इतने वक्त बाद आपको देखा है, तो बहुत अच्छा लगा आपको देखकर। और वाकई कहना पड़ेगा कि आपके लुक और कॉन्फिडेंस में पहले से कहीं ज्यादा बदलाव आ गए हैं।" प्रिशा मुस्कुरा कर बोली, "इन शार्ट आप पहले से भी ज्यादा खूबसूरत और प्यारी हो गई हैं।"
"सेम टू यू।" अरु ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा।
प्रिशा और अरु, एक वक्त था जब इन दोनों के पास बातें करने के लिए किसी टॉपिक की कोई कमी नहीं होती थी। और आज एक यह वक्त था जब दोनों कहना तो एक दूसरे से बहुत कुछ चाहते थे, लेकिन उसके बावजूद भी उनके पास एक दूसरे को कहने के लिए कुछ भी नहीं था। थोड़ी फॉर्मल बातें होने के बाद आखिर में दोनों चुप हो गए। कि तभी अचानक अरु का मोबाइल फोन रिंग करने लगा। और अरु ने इसी मौके को पाकर वहां से जाने में अपनी बेहतरी समझी। और वह प्रिशा से बाद में मिलने का कहकर मीटिंग हॉल से निकल कर सीधा अपने केबिन की ओर बढ़ गई। राहुल ने प्रिशा को वहां देखा, तो तीखी नज़रों से उसे घूरता हुआ वहां से निकल गया। और प्रिशा ने भी उसे एक टफ लुक देकर अपना मुंह फेर लिया। और फिर प्रिशा सीधा रिदांश की दिशा की ओर बढ़ गई। अरु के यहां से जाने के साथ ही रिदांश ने शनाया को खुद से दूर किया।
"व्हाट इज दिस? क्या है ये सब? और क्या बचपना लगाया हुआ है? ये ऑफिस है शनाया, और तुम हो कौन जिसे मैं ये सारी इंफॉर्मेशन देता रहूं कि मैं कब कहां जा रहा हूं या कहां से वापस आ रहा हूं?" रिदांश ने सख्त भाव से कहा। "एक पल रुक कर... दोस्त हो, दोस्त बनकर रहो। मेरी लाइफ में कोई बेवजह या फिजूल दखलअंदाजी करे, मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं है। एंड यू नो दैट। सो इट्स बैटर फॉर यू, जस्ट स्टे इन योर लिमिट्स।"
"ओके बॉस, याद रखूंगी।" शनाया ने कहा।
इसके बाद रिदांश भी मीटिंग हॉल से बाहर चला गया। और उसके जाते ही शनाया ने अपने दोनों हाथ अपनी आइब्रो पर अंगूठे लगाकर, मुंह चिढ़ाने की मुद्रा में रखते हुए, उसे मुंह चिढ़ाते हुए बड़बड़ाने लगी।
"जस्ट स्टे इन योर लिमिट्स... आया बड़ा खड़ूस!" शनाया ने रिदांश की नकल उतारते हुए कहा।
प्रिशा ने शनाया की नौटंकी देखी, तो वो भी खिलखिला उठी। इधर दूसरी तरफ अरु अपने केबिन में आई, और उसने नैना की कॉल पिक की। कॉल के दूसरी तरफ आरांशी थी, और हमेशा की तरह आरांशी की आवाज सुनते ही अरु की दुनिया की सारी परेशानियां और गंभीरता पल में छट गई। और आरांशी की आवाज सुनकर उसके दिल में गहराई तक एक सुकून सा भर गया। भले ही अतीत में अरु ने बहुत कुछ सहा था और बहुत कुछ खोया भी था, लेकिन आरांशी अरु के लिए ईश्वर का दिया एक ऐसा तोहफा था जिसने उसके सारे दुखों को, और अतीत ने जो कुछ भी उससे छीना था, उस सब को आरांशी ने ना सिर्फ अरु को वो सब भुला दिया था, बल्कि उन सब की कमी को पूरी तरह से खत्म भी कर दिया था। और उसकी किलकारियां और हर मुस्कुराहटों ने अरु की ज़िंदगी में एक सुकून और खुशी भरा माहौल बना दिया था।
"हैलो... कैसे हो मम्मा आप?" आरांशी ने एक्साइटेड होकर पूछा।
"मैं ठीक हूं मम्मा की जान। आप कैसे हो?" अरु ने मुस्कुरा कर पूछा।
"मैं भी एकदम ठीक हूं... फिट एंड फाइन!" आरांशी ने अपनी क्यूट और प्यारी टोन में कहा।
"दैट्स रियली गुड।" अरु ने कहा, "एक पल रुक कर... हाउ आर योर स्टडीज गोइंग ऑन?"
"इट्स गोइंग गुड। इनफैक्ट एवरीथिंग इज गोइंग गुड। बट आई मिस यू... आई मिस यू सो मच मम्मा!"
"आई मिस यू टू बेटा। और मैं बहुत जल्द आपसे मिलने वापस आऊंगी।" अरु ने हल्की उदासी से कहा।
"मम्मा क्या मैं आपसे मिलने वहां आ जाऊं? अगर आप अभी मुझसे मिलने यहां नहीं आ सकते?"
"नहीं... नहीं बेटा आप यहां नहीं आ सकते... नहीं आ सकते!" अरु ने रिदांश के बारे में सोचकर फटाक से कहा।
"मगर क्यों मम्मा? मैं क्यों नहीं आ सकती वहां?"
"क्योंकि बेटा, अभी मम्मा जहां है वो जगह आपके लिए सेफ नहीं है। इसीलिए आप यहां नहीं आ सकते। और आई प्रॉमिस मम्मा आपसे बहुत जल्द मिलने आएगी।"
"मम्मा हम एक साथ कब रहेंगे?"
"बस कुछ दिन और मेरी जान। जैसे ही यह प्रोजेक्ट पूरा होगा, आई प्रॉमिस कि फिर मैं हमेशा हमेशा सिर्फ आपके साथ ही रहूंगी और कभी भी आपसे अलग नहीं होंगी।" अरु ने उदासी भरे लहजे से कहा।
"इट्स ओके मम्मा। मैंने तो आपसे बस ऐसे ही पूछा। एंड आई नो ये सब आप मेरे ही तो कर रहे हो ना। यू डोंट वरी मैं यहां हैप्पी-हैप्पी और अच्छे से रहूंगी। अब आप आराम से अपना काम कीजिए। फिर हम आपके काम होने के बाद फिर हम एक लंबे टूर पर जाएंगे एक साथ... आप, मैं, नैना मासी और पिकाचू!"
"बिल्कुल जाएंगे। आप जहां कहोगे मैं आपको आपके हॉलीडेज़ में वहां लेकर जाऊंगी।" अरु ने मुस्कुराकर कहा।
"पक्का वाला प्रॉमिस?"
"पक्का वाला प्रॉमिस।"
"आई लव यू सो मच मम्मा!"
"लव यू टू।"
"ओके मम्मा मैं जाती हूं। मेरी डांस क्लास का टाइम हो रहा है।"
"ओके ऑल द बेस्ट। एंड लव यू।"
"आई लव यू मोर। बाय मम्मा।"
"बाय... टेक केयर माय लव।"
इतना कहकर अरु फोन कट कर देती है। और फोन की गैलरी खोलकर उसमें आरांशी का फोटो निकालकर प्यार से उसे देखते हुए अपनी उंगलियां फिराने लगती है।
"मैं अच्छे से जानती हूं मेरे बच्चे, बिना मां-बाप के रहना कितना मुश्किल होता है। और चाहे कोई भी हो, पूरी दुनिया में कोई आपके मां-बाप की जगह नहीं ले पाता।" अरु थोड़ी भावुक होकर बोली। "पर मैं क्या करूं? मैं मजबूर हूं। ना चाहते हुए भी मुझे तुमसे दूरियां बनानी पड़ी, खुद से दूर रखना पड़ा था ताकि तुम्हें हमेशा अपने साथ, अपने पास रख सकूं।" एक पल रुककर गहरी सांस लेते हुए बोली, "लेकिन अब बस मैं तुम्हारे साथ और नाइंसाफी नहीं कर सकती। इस प्रोजेक्ट को पूरा होने के बाद मैं लंदन से ही अपना काम शुरू करूंगी और हमेशा-हमेशा तुम्हारे पास, तुम्हारे साथ रहूंगी। कोई हो ना हो, तुम्हारी मां हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी, हर हाल में।" आरांशी की फोटो को चूमते हुए बोली, "बस कुछ दिन और।"
कुछ देर बाद अरु वापस से अपने काम में लग गई। उसने अपनी सेक्रेटरी और मैनेजर को सभी एम्पलाइज की ड्यूटी अलॉट कराने की ज़िम्मेदारी दे दी। और रिदांश ने भी अपने एम्पलाइज को उनकी ड्यूटी दे दी ताकि जल्द से जल्द सब अपने कामों पर लग सकें। पूरा दिन ऐसे ही कामों के बीच गुज़र गया। और शाम को ऑफिस खत्म होने के बाद अरु ने अपने टेबल से अपना लैपटॉप और फोन उठाया और लिफ्ट की ओर बढ़ गई। अरु ने जैसे ही लिफ्ट खोलने के लिए बटन दबाया कि अचानक रिदांश भी वहां आ गया। और दोनों ने एक साथ ही लिफ्ट का बटन दबाया। रिदांश को वहां देखकर अरु ने अपना हाथ वापस से खींच लिया। और एक पल बाद दो और एम्पलाइज भी आ पहुंचे। तो एक गहरी सांस लेकर अरु भी लिफ्ट के अंदर चली गई और उसने लिफ्ट चालू कर दी।
कुछ मिनट के बाद सभी लोगों के बीच बिल्कुल खामोशी और चुप्पी पसरी हुई थी। लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर पहुंची तो अरु फुर्ती से बाहर आई और बिना एक पल भी रुके या मुड़े, अपने फुल ऑन कॉन्फिडेंस के साथ सीधा पार्किंग एरिया की ओर बढ़ गई जहां करन पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। करन ने अरु को देखा तो उसने जल्दी से गाड़ी का दरवाजा खोला और अरु को गाड़ी में बिठाकर खुद ड्राइवर सीट पर जा बैठा। कुछ दूरी पर खड़ा रिदांश खामोशी से बिना किसी भाव के उनकी दिशा में ही देख रहा था। हालांकि उसके चेहरे के भाव हमेशा की तरह ब्लैंक थे, मगर उसके जबड़े कसे हुए थे। जैसे ही ड्राइवर ने हॉर्न बजाया, रिदांश अपनी दुनिया से बाहर आया और सीधा अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गया। और उन दोनों की ही गाड़ी चल पड़ी, मगर अलग-अलग रास्तों पर।
अगले दो-तीन दिन यूं ही काम के सेटअप और प्रेजेंटेशन में निकल गए। और बीते दो-तीन दिनों में अरु और रिदांश दोनों ने ही पूरी तरह प्रोफेशनल रहे। और उनके प्रोफेशनलिज्म को देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि इन दोनों के बीच इतनी कड़वाहट भी पसरी हो सकती है। आज भी अरु पूरे प्रोफेशनलिज्म के साथ अपने केबिन में बैठे अपने कुछ एम्पलाइज और प्रिशा के साथ कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट्स डिस्कस कर रही थी कि तभी नम्या अरु के केबिन आती है। और अरु को देखकर उसके चेहरे पर हमेशा की तरह कड़वे भाव उभर आए। जिसे अरु ने पूरी तरह इग्नोर करते हुए गंभीर और प्रोफेशनल लहजे में अपनी चुप्पी तोड़ी।
"आई डोंट थिंक सो मिसेज अनिकेत, कि आपको मुझे ये मैनर्स सिखाने की ज़रूरत है कि किसी के केबिन में जाने से पहले नॉक करना होता है।" अरु ने गंभीर और प्रोफेशनल लहजे में कहा।
"तो अब मुझे तुमसे मैनर्स सीखने होंगे जिसकी खुद की कोई क्लास नहीं?" नम्या ने कड़वे लहजे से कहा।
"जस्ट शट योर माउथ राइट नाउ।" अरु ने सख्त भाव से कहा।
"हाउ डेयर यू टू टॉक टू मी लाइक दिस?" नम्या ने गुस्से से कहा।
"दी जस्ट स्टॉप इट।" प्रिशा ने नम्या की ओर देखकर कहा।
"व्हाट स्टॉप इट प्रिशु? हुंह... जिसकी औकात हमारे सामने खड़े होने तक की नहीं थी, आज वो हमारी बराबरी करने की होड़ कर रही है।" नम्या ने कड़वाहट भरे लहजे से कहा।
"गेट आउट!" अरु ने सख्त भाव से कहा।
"व्हाट डिड यू से?" नम्या ने हैरानी से पूछा।
"ज़ुबान तो दस गज की है तुम्हारी, कानों से बहरी हो तुम जो सुनाई नहीं दिया। मैंने क्या कहा? मैंने कहा निकलो यहां से अभी, वरना गार्ड को बुलाकर सीधा धक्के मारकर बाहर फिंकवाऊंगी तुम्हें।" अरु ने तीखी नज़रों से कहा, "नाउ जस्ट गेट आउट फ्रॉम हेअर यू माइंडलेस बिंबो!"
"यू..." नम्या झुंझला कर अपना मुंह खोलने की कोशिश करते हुए बोली।
"अगर एक लफ्ज़ और तुम्हारी जुबान से मेरी शान के खिलाफ निकला तो आई स्वेर... आई स्वेर... तुम्हारी इज़्ज़त और इस सो कॉल्ड एटीट्यूड का जनाज़ा पूरे ऑफिस के सामने ऐसे निकालूंगी कि लाइफ में दुबारा अपनी इस ज़हरीली जुबान को खोलने से पहले हज़ार बार सोचोगी। एंड आई रियली मीन इट।" अरु ने नम्या की बात को बीच में काटते हुए कहा। "एक पल रुक कर डीप टोन में... जस्ट गेट लॉस्ट फ्रॉम हेअर।"
नम्या ने जब अरु की आंखों में इस कदर गंभीरता देखी तो ना जाने क्यों चाहकर भी उसकी जुबान से आगे कुछ लफ्ज़ ही नहीं निकल पाए। और अगले पल ही वो अपने दांत पीसते हुए अरु के केबिन से बाहर निकल गई। और गुस्से से दनदनाती हुई सीधा रिदांश के केबिन की ओर बढ़ गई।
नम्या ने जब अरु की आँखों में इतनी गंभीरता देखी, तो ना जाने क्यों चाह कर भी उसकी जुबान से आगे कुछ शब्द नहीं निकल पाए। और अगले ही पल वह अपने दाँत पीसते हुए अरु के केबिन से बाहर निकल गई। गुस्से से दहलती हुई सीधा रिदांश के केबिन की ओर बढ़ गई। रिदांश किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। जब उसने अपने केबिन में नम्या को आता देखा और उसके चेहरे के गुस्से भरे भाव देखे, तो वह समझ चुका था कि कुछ तो बात हुई है। इसलिए उसने वापस कॉल करने का कहकर कॉल काट दी।
रिदांश (गंभीर भाव के साथ): "तुम कब आई? और तुम्हें हुआ क्या है? तुम्हारा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है?"
नम्या (बुझे चेहरे से): "बस अभी कुछ देर पहले ही हमारी फ़्लाइट लैंड हुई। पलक आपको बहुत मिस कर रही थी, तो कुछ दिनों के लिए हम उसके स्कूल से छुट्टियाँ लेकर उसे आपसे मिलने मुंबई ले आए।"
रिदांश: "कहाँ है पलक?"
नम्या: "दरअसल, पलक सफ़र की वजह से थक कर सो गई थी। इसलिए मैंने उसे मेंशन में ही छोड़ दिया। अनी उसके पास ही है, और मैं आपसे मिलने यहाँ चली आई।"
रिदांश: "ओके, मैं घर जाकर मिलता हूँ पलक से। फ़िलहाल तुम मुझे ये बताओ कि तुम्हें क्या हुआ है? व्हाट हैपन?"
नम्या (कड़वे भाव से): "भाई, मुझे ये समझ नहीं आता कि जब वो हमारी ज़िंदगियों से जा चुकी है, तो फिर क्यों बेवजह हमारी ज़िंदगियों में दखलअंदाज़ी करके बार-बार हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है!"
रिदांश (गंभीर भाव से): "नम्या, पहेलियाँ बुझाना बंद करो और साफ़-साफ़ बताओ मुझे कि आखिर हुआ क्या है और किसकी बात कर रही हो तुम?"
नम्या (सख्त भाव से): "और कौन भाई? वही कैरेक्टरलेस… (रिदांश ने नम्या की ओर गंभीर नज़रों से देखा तो नम्या ने अपनी जुबान संभाली) … मेरा मतलब है भाई, कि वही आरना, उसकी बात कर रही हूँ मैं!"
रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन से): "क्या कहा उसने तुमसे? कुछ कहा उसने?"
नम्या: "क्या कहा… ये पूछें भाई कि उसने क्या नहीं कहा! (गुस्से भरे भाव से) उसने चार लोगों के बीच मेरी इतनी इंसल्ट की! वहाँ प्रिशा भी मौजूद थी। अगर आपको मुझ पर यकीन नहीं है, तो आप चाहें तो प्रिशा से पूछ लीजिए। मैंने उसके केबिन में नॉक किए बिना क्या चली गई? उसने मुझे सबके सामने मैनर्स और तमीज़ के पाठ पढ़ाने शुरू कर दिए और मुझे कहा भाई कि अगर मैं उसके केबिन से बाहर नहीं निकली, तो सारे ऑफ़िस के सामने मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा देगी और यह भी कि अपनी औक़ात में रहो! (हर्ट भरे एक्सप्रेशन से) भाई आप जानते हैं, मैं हूँ अपनी सेल्फ़ रिस्पेक्ट के मामले में पजेसिव और मैं अपनी सेल्फ़ रिस्पेक्ट को इस तरह से सबके बीच दांव पर नहीं लगने दे सकती भाई, कभी नहीं! (एक पल रुक कर) मैं यहाँ सिर्फ़ आपसे और प्रिशा से मिलने आई थी, मगर मैं आइन्दा कभी अब यहाँ कदम भी नहीं रखूँगी!"
रिदांश (गंभीर भाव से, जाती हुई प्रिशा को टोक कर): "स्टॉप!!"
नम्या ने रिदांश की आवाज़ सुनी, तो फ़ौरन अपनी ही जगह रुक गई और वापस मुड़कर, अपने चेहरे पर दुखी भाव लाकर रिदांश की ओर देखने लगी।
रिदांश: "फ़र्स्ट ऑफ़ ऑल, ये ऑफ़िस जितना उस लड़की का है, उतना ही तुम्हारे भाई का भी है। जिसका सीधा मतलब निकलता है कि तुम भी यहाँ बराबर की हकदार हो। तो तुम्हें यहाँ आने के लिए या रहने के लिए किसी की इजाज़त, इवन मेरी इजाज़त की भी कोई ज़रूरत नहीं है। और दूसरी बात, जो रिश्ते अतीत में टूट चुके हैं, हमेशा के लिए ख़त्म हो चुके हैं, मर चुके हैं, बेहतर होगा कि उन टूटे हुए रिश्तों के टुकड़ों से दूर ही रहा जाए, वरना उनकी चुभन ज़िंदगी भर हमें तकलीफ़ देती रहेगी!"
नम्या (झूठा एक्सप्लेनेशन देते हुए): "पर भाई, हम कहाँ इन टूटे हुए रिश्तों के टुकड़ों को अपनी ज़िंदगी में रखना चाहते हैं? वो तो वह लड़की ही है जो बार-बार जानबूझकर हमारे रास्ते के बीच में आकर बेवजह हमारे गुस्से और सब्र का इम्तिहान लेती है!"
रिदांश (अपनी पैंट की पॉकेट में हाथ डालते हुए): "तुम घर जाओ इस वक़्त, मैं खुद देख लूँगा!"
नम्या: "लेकिन भाई…"
रिदांश (गंभीर भाव से): "मैंने क्या कहा नम्या… जाओ पलक के पास, मैं खुद इस मसले को हल कर लूँगा!!!"
नम्या: "जी भाई!"
इसके बाद नम्या बिना रुके सीधा वहाँ से ऑफ़िस से घर जाने के लिए निकल गई। इधर दूसरी तरफ़ अरु अपने केबिन से कॉफ़ी लेने अपने केबिन से बाहर आई, तो अचानक ही सामने से आते करन से टकराते-टकराते बची।
अरु (करन की ओर देखते हुए): "ध्यान कहाँ है तुम्हारा? (करन के हाथ में पकड़े फ़ोन को देखते हुए) और कभी तो इस फ़ोन से नज़रें हटाकर सामने देखकर चला करो। अभी मुझसे टक्कर होते-होते बची!"
करन (अपनी दिलकश मुस्कान के साथ मुस्कुराते हुए): "अच्छा ही होता ना अगर हम टकरा जाते। इसी बहाने तुमसे टकराने का मौका मिल जाता!"
अरु (करन को घूर कर): "जस्ट शट अप करन और बी सीरियस!"
करन: "अरे! तो मैं कब मज़ाक कर रहा हूँ? मैं तो बिल्कुल सीरियस हूँ ना! (अरु का हाथ थाम कर अपनी नौटंकी) जब भी तुम्हें देखता हूँ, तो मेरे दिल की धड़कन एक अलग ही राग गुनगुनाने लगती है और ऐसा मन करता है कि किसी मूवी की तरह उस लम्हे को, जिसमें तुम मेरे सामने, मेरे साथ होती हो, बस वही पॉज़ बटन दबाकर उस लम्हे को रोक दूँ और बस… बस फिर जी भर के तुम्हें देखता ही रहूँ!"
अरु (अपनी आँखें छोटी करके करन को घूर कर): "तुम सच में थक रहे जाते हो ये चीज़ी लाइन बोल-बोलकर और पूरा दिन फ़्लर्ट करते-करते?"
करन (अपने दूसरे हाथ को अपने बालों में घुमाते हुए): "भला अपने टैलेंट से भी कोई थकता है!"
अरु (अपनी बाजुओं को अपने सीने पर फ़ोल्ड करते हुए): "करन, आई एम सीरियस!"
करन (अरु के कंधों को थाम कर): "ठीक है, बाकी लड़कियों के साथ फ़्लर्ट करता हूँ, पर तुम्हारे साथ कोई फ़्लर्ट नहीं करता। तुम्हारे साथ तो सीरियस रहता हूँ। वो तो तुम ही हो जो मुझ जैसे मासूम को लेकर सीरियस ही नहीं हो। तुम एक बार सीरियस तो हो, फिर देखना तुम्हारे सिवा किसी से फ़्लर्ट करना तो दूर, उसकी तरफ़ देखूँगा भी नहीं!"
अरु (टाइट स्माइल के साथ): "करन, अब तुम सच में मुझसे मार खाओगे!"
करन (अपना गाल आगे करते हुए मुस्कुरा कर): "ठीक है, मार भी लगा दो। इसी बहाने तुम्हारे ख़ूबसूरत हाथ मेरे गालों को छुएँगे तो सही!"
अरु (अजीब एक्सप्रेशन के साथ): "यक़… बाय गॉड… तुम्हारी ये चीज़ी लाइन ना किसी भी अच्छे भले इंसान के दिमाग में धमाका करने के लिए काफ़ी है!"
करन (अपने दाँत दिखाते हुए): "नहीं मी अमोर (माय लव), दिमाग में धमाका नहीं करती मेरी बातें, सीधा दिल में धमाका करती है। बस एक तुम्हारा ही दिल अंबुजा सीमेंट से बना हुआ लगता है। धमाका तो दूर, छेद भी नहीं होता मेरी बातों से!"
अरु (करन को घूर कर): "गो बैक टू योर वर्क राइट नाउ!"
करन (मुस्कुरा कर): "जो हुक्म मेरे आका!"
अरु: "जाओ!"
करन: "अच्छा ठीक है, मैं जा रहा हूँ, बाय!"
अरु (टाइट स्माइल के साथ): "या… जाओ!"
करन (अपने क़दम उलटे लेकर पीछे जाते हुए): "पक्का जाऊँ?"
अरु (तिरछी नज़रों से करन को देखते हुए): "करन…"
करन (फ़ुर्ती से): "ठीक है, ठीक है, जा रहा हूँ!!!"
इसके बाद इतना कहते-कहते करन कॉरिडोर में बाईं ओर मुड़ गया। अरु अपनी जगह से हिल भी नहीं पाई थी कि फिर अगले ही पल झट से वापस मुड़कर आया और अरु की ओर देखकर अपनी बत्तीसी दिखाते हुए बोला।
करन: "अच्छा मी अमोर, बाकी बातें छोड़ो, सिर्फ़ इतना ही बता दो, संडे डेट पर चलोगी मेरे साथ!"
अरु (तंज भरे लहजे से): "हाँ, स्पेन चलते हैं सीधा, फिर वापसी में तुम्हें वहीं ड्रॉप कर आऊँगी!"
करन (मुँह बनाकर): "दूर फ़िट्टे मुँह! (एक पल रुक कर) मैं बिना डेट के सही हूँ!"
इसके बाद करन वहाँ से चला गया और कुछ पल तक भी अरु वहीं खड़ी रही। लेकिन फिर करन दोबारा वापस नहीं आया। अरु ने करन की नौटंकी को याद करते हुए अपनी गर्दन ना में हिलाई और अब उसका कॉफ़ी पीने का मन भी नहीं था। तो वह वापस से अपने केबिन में जाने के लिए मुड़ी, लेकिन मुड़ने के बाद वह एक पल के लिए स्तब्ध ही रह गई। अपने केबिन के बराबर में बने रिदांश के केबिन के बाहर, जिसमें रिदांश आज ही शिफ़्ट हुआ था, उसने वहाँ रिदांश को खड़ा देखा जिसकी पैनी नज़रें उस पर ही थीं और उसके चेहरे के भाव देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता था कि इस वक़्त उसका पारा हाई था और उसके चेहरे के भाव सख्त थे। अरु ने एक नज़र उसको देखा और फिर हमेशा की तरह उसने उसे इग्नोर करके वहाँ से जाने लगी। और जैसे ही उसने अपने केबिन के दरवाज़े के नॉब को खोलने के लिए छुआ, कि एकाएक रिदांश ने आगे बढ़कर उसकी कलाई थाम ली।
अरु (रिदांश को खुद की कलाई पकड़े देख सख्ती से): "व्हाट द हेल… छोड़ें मेरा हाथ!"
रिदांश (चैलेंजिंग लुक से अरु की ओर देखते हुए): "वरना…?"
अरु (एक पल को अपनी आँखें बंद करके फ़्रस्ट्रेशन से): "मैं आपसे कोई बहस, कोई बात नहीं करना चाहती। मेरे रास्ते से हट जाएँ और मेरा हाथ छोड़िए!"
रिदांश (सख्त भाव से): "और तुम्हें क्या लगता है? यहाँ सब लोग बेवक़ूफ़ हैं? तुम्हारे नौकर हैं जो तुम्हारी मर्ज़ी और तुम्हारे मूड के हिसाब से तुमसे बात करेंगे!"
अरु (धीमी मगर झुंझलाहट भरे लहजे से): "मैं किससे किस तरह से बात करती हूँ, ये आपका ज़ाती मामला नहीं है। और सबसे बड़ी बात, जब मैं आपसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहती, जब मैं आपके कामों में दखलअंदाज़ी नहीं देती, तो आप होते कौन हैं मुझसे कोई भी सवाल करने या मेरे मामलों में दखल देने वाले? (सख्ती से रिदांश को घूर कर) मुझसे दूर रहिए, जितना हो सके उतना दूर रहिए। मैं नहीं चाहती कि आपका साया भी मेरे आस-पास रहे!"
रिदांश ने अरु की बात को सुनकर उसे बिल्कुल अनसुना करते हुए उसके हाथ को और भी ज़्यादा मजबूती से थाम लिया और अरु के लाख मना करने के बावजूद भी वह उसे खींचकर अपने साथ अपने केबिन में ले आया और लाकर उसका हाथ झटके से छोड़ दिया। और जैसे ही अरु गुस्से से वापस जाने के लिए मुड़ी, कि रिदांश ने फ़्रस्ट्रेशन से उसके कंधों को कसकर पकड़कर उसे दरवाज़े से टिका दिया और अपने दोनों हाथों को उसके आसपास रखकर उसे ब्लॉक कर लिया, जैसे कि हमेशा किया करता था!
रिदांश की इतनी करीबी और उसकी ख़ूबसूरत आँखों को खुद पर देखकर एक पल के लिए ही सही मगर अरु के दिल ने एक बीट मिस की थी और उसका दिल एक पल के लिए जोरों से धड़क उठा था। लेकिन उसने फ़ौरन ही अपने इमोशन्स को काबू करने के लिए एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं और जैसे ही उसने वापस से अपनी आँखें खोलीं, तो उसके चेहरे पर वही एटीट्यूड, वही सख्ती, और वही गुस्सा और कॉन्फ़िडेंस बरकरार थे जो आजकल हमेशा उसके चेहरे पर बने रहते थे!
अरु (सख्ती से रिदांश की आँखों में देखते हुए): "मेरा रास्ता छोड़ो अभी और आइन्दा कभी मेरे साथ ऐसा बिहेव करने की सोचना भी मत, वरना बहुत पछताओगे। अब अभी और इसी वक़्त छोड़ो मेरा रास्ता!"
रिदांश (उसी सख्ती के साथ अरु की आँखों में देखते हुए): "एंड हू द हेल आर यू जो मुझे इस तरह से ऑर्डर दें और जिसके ऑर्डर मैं फ़ॉलो करूँ? एक बात याद रखना मेरी तुम, तुम्हें अगर ये लगता है कि तुम मुझे हरा रही हो या मैं तुम्हारे आगे थोड़ा भी कमज़ोर पड़ रहा हूँ, तो ये तुम्हारी सिर्फ़ गलतफ़हमी ही नहीं है, बल्कि पागलपन है तुम्हारा। तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी कोई दखलअंदाज़ी नहीं है क्योंकि मैं खुद से ऐसा नहीं चाहता, लेकिन अगर तुम इसी बात पर आमादा हो कि तुम्हें फ़िज़ूल में मेरी लाइफ़ में दखलअंदाज़ी देनी ही देनी है, तो उसके बाद फिर एक पल भी सुकून से तो यहाँ नहीं रह पाओगी तुम, ये मेरा प्रॉमिस है तुम्हें!"
अरु: "ना तो मैं आपसे डरती हूँ और ना आपकी इन फ़िज़ूल धमकियों से। तो मेरे सामने ये धमकी देना बंद करें और रही बात आपकी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी देने की, तो मेरे पास इतना फ़िज़ूल वक़्त नहीं है कि मैं आपकी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी करती फिरूँ!"
रिदांश (तंज भरे लहजे के साथ): "हाउ ग्रेट यू आर ना! (अगले ही पल सख्ती के साथ) पर तुम कितनी भी महान क्यों ना हो, एक बात मेरी कान खोलकर सुन लो, मेरी लाइफ़ सिर्फ़ मुझ तक सीमित नहीं है, मेरे भाई-बहनों तक भी है और तुमने जो आज नम्या के साथ किया, उसके बाद अब तुम मुझसे कोई भी नर्मी या सपोर्ट की उम्मीद तो करना ही मत!"
अरु (अपनी आईब्रो उठाते हुए): "ओह! तो आप अपनी बहन की चुटकियों के बलबूते पर मुझे यहाँ लाए हैं!"
रिदांश (गुस्से से): "ज़ुबान संभालकर बात करो अपनी!"
अरु (सेम उसी लहजे से जवाब देते हुए): "तो पहले ये बात अपनी बहन को जाकर समझाएँ कि ज़ुबान संभालकर बात करें वो मुझसे, क्योंकि ना तो मैं उसकी कोई पर्सनल नौकर हूँ और ना ही उसके भाई या पति की खरीदी हुई कोई गुलाम जो मैं उसके बेवजह के ताने और गालियाँ खाऊँ और फिर भी उसे समझ नहीं आता है। तो अगर वो मुझसे एक बात कहेगी, तो बदले में फिर दस बात सुनने के लिए तैयार भी रहे। समझा दीजिएगा ये बात अपनी लाडली बहन को!"
रिदांश (अपने दाँत पीसते हुए): "तुम अपनी हद पार कर रही हो!"
अरु (रिदांश की आँखों में देखते हुए): "मैं अपनी हद बहुत पहले ही पार करना सीख चुकी हूँ (रिदांश की आँखों में देखते हुए) और एक बात और कान खोलकर सुन ले मेरी, आइन्दा अगर आपने मेरे साथ ऐसा बिहेव करने की कोशिश की या मेरे साथ किसी भी तरह की ज़बरदस्ती करने की कोशिश भी की, तो बहुत बुरा पछताएँगे आप उस लम्हे के लिए, बहुत बुरा, एंड आई रियली मीन इट, इसलिए डोंट क्रॉस योर लिमिट्स!"
इतना कहकर अरु ने अपने साइड में रखे रिदांश के हाथों को अपने हाथों से थोड़ी सख्ती से दूर किया और एक टफ़ लुक रिदांश को देते हुए वो वहाँ से जाने लगी। मगर रिदांश भी अपनी ईगो और गुस्से में कहाँ कम था और इतनी आसानी से इतनी बात सुनने के बाद वो अरु को यूँ ही कैसे जाने दे सकता था। इसलिए अरु के दो क़दम बढ़ाते ही उसने वापस से उसकी कलाई पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया और इस बार उसने उसकी कमर को अपने मज़बूत हाथों से पकड़ते हुए चैलेंजिंग लुक से उसकी आँखों में देखते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
रिदांश (चैलेंजिंग लुक से अरु की ओर देखते हुए): "अभी कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हारी गलतफ़हमी दूर की थी कि तुम्हारी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी ना देने का फ़ैसला मेरा है और अगर ये मेरी मर्ज़ी ना होती, तो यक़ीनन इस वक़्त तुम्हारी जुबान से ये लफ़्ज़ निकलना तो दूर, तुम ऐसा कभी सोचती भी नहीं!"
अरु (तंज भरे लहजे के साथ): "गलतफ़हमी मेरी नहीं, आपकी है, वो भी बहुत बड़ी गलतफ़हमी जो आपको लगता है कि ये दुनिया और सारे लोग और उनकी ज़िंदगियाँ बस आप ही के इशारे पर चलती हैं!"
रिदांश (इंटेंस लुक के साथ): "दुनिया का तो नहीं पता, लेकिन जिस पर मैं चाहूँ, उस पर ज़रूर मेरी मर्ज़ी फ़ॉर श्योर चलती है!"
अरु (सख्ती से रिदांश के हाथों को अपनी कमर से हटाते हुए): "चलती होगी, लेकिन मुझ पर हरगिज़ नहीं चल सकती!"
रिदांश (गंभीर भाव से): "अगर यही बात है और यही चैलेंज भी, तो फिर देख लेते हैं किसकी मर्ज़ी चल रही है और किसकी गलतफ़हमी पल रही है!"
इतना कहकर रिदांश ने एक बार फिर अरु को अपने करीब कर लिया और अपने एक हाथ से पूरी मज़बूती के साथ अरु के हाथों को पकड़ते हुए और दूसरे हाथ से उसके बालों को पकड़कर रिदांश ने अरु के गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए और एग्रेसिवली उसे किस करने लगा। हालाँकि इस बीच अरु खुद को छुड़ाने की जी-जान से जद्दोजहद करते हुए रिदांश की पकड़ में कसमसाती रही, लेकिन रिदांश ने कुछ पल तक भी उसे नहीं छोड़ा और उसे लगातार कुछ पल तक किस करने के बाद आख़िर में कुछ पल बाद अरु को झटके से छोड़कर खुद से दूर किया।
रिदांश (सख्त भाव से, गुस्से से खुद को देखती अरु की ओर देखकर): "फ़ॉर श्योर, अब तुम्हें तुम्हारा जवाब दे दिया होगा मैंने (सख्त भाव से) तो अब तुम डेट पर जाओ किसी के साथ या भाड़ में, बट गेट आउट फ़्रॉम हेअर!"
अरु जो रिदांश की इस हरकत से पहले ही गुस्से से उबल रही थी, कि रिदांश के लफ़्ज़ों ने उसके गुस्से को और भी ज़्यादा भड़काकर जैसे पेट्रोल का काम किया। अरु ने अपनी मुट्ठियों को गुस्से से भींच लिया। वह जानती थी कि अगर इस वक़्त वह रिदांश के आगे चुप रही, तो एक बार फिर वह कमज़ोर और हारी हुई नज़र आएगी, जो उसे अब हरगिज़ मंज़ूर नहीं था। उसे जवाब तो देना ही था और ऐसा जवाब जिसे रिदांश कभी भूल न पाए। अरु की आँखों में इस वक़्त बेतहाशा गुस्सा और सख्त भाव नज़र आ रहे थे। रिदांश की हरकत और बातों से इस वक़्त उसके सर पर इतना गुस्सा चढ़ा था कि उसे खुद भी नहीं पता था कि वह क्या करने वाली है और जैसे ही उसने रिदांश की तंज भरी आगे की बात सुनी, तो उसके गुस्से का पारा और हाई हो गया!
और एक पल भी बिना सोचे समझे, उसने ना आव देखा ना ताव और वो सीधा रिदांश के करीब जा पहुँची और उसने अपने हाथों से मज़बूती के साथ रिदांश की दोनों बाजुओं को थाम लिया। लेकिन इससे पहले कि रिदांश उसकी इस बात का मतलब समझ पाता या कुछ रिएक्ट ही कर पाता, अरु ने गुस्से से अपनी दाँत मिसमिसाते हुए मज़बूती और ताक़त से उसने अपने दाएँ घुटने से सीधा बिना सोचे रिदांश के प्राइवेट पार्ट पर एक जोरदार वार किया जिसकी वजह से एक पल बाद ही रिदांश की एक दर्द भरी आवाज़ उसके केबिन में गूंज उठी और वह झट से वहीं अपने घुटनों के बल ज़मीन पर बैठ गया और दर्द से उसकी आँखों में पानी उतर आया था!
अरु (रिदांश को अपने घुटनों पर बैठे दर्द से कराहता देखकर तंज भरे लहजे से): "आई थिंक, अब आपको भी आपके सवाल का जवाब अच्छे से मिल गया होगा। तो आइन्दा मेरी किसी भी बात को फ़्री फ़ंड की धमकी समझकर हवा में मत उड़ा दीजिएगा। बी केयरफ़ुल अराउंड मी (तंज भरी मुस्कान के साथ) हैव अ गुड डे मि. अग्निहोत्री!"
रिदांश ने अरु की बात सुनी, तो दर्द में कराहते हुए भी उसने अरु को एक टफ़ लुक दिया।
अरु (तंज भरे लहजे से): "रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया…"
रिदांश ने अरु की बात सुनी। दर्द में कराहते हुए भी उसने अरु को एक टफ लुक दिया।
अरु (तंज भरे लहज़े से): "रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।" एक पल रुक कर, "जो भी है लेकिन मेरी एक बात याद रखिएगा। कि आइंदा बिना मेरी परमिशन के मुझे छूना तो दूर, मेरे करीब भी आने की मत सोचिएगा। वरना ये तो सिर्फ अभी ट्रेलर था। मगर आज के बाद अगर आपने ऐसा कुछ करने का सोचा भी, तो जो सेल्फ डिफेंस मैंने सीखा है ना, वो मैं बंद कैबिन में नहीं, बल्कि पूरे ऑफिस के सामने आपको दिखाऊंगी!"
इतना कहकर अरु रिदांश के केबिन से बाहर निकल गई। रिदांश गुस्से और दर्द के साथ कराहते हुए उसे देखता रह गया। अरु के जाने के काफी देर बाद रिदांश सामान्य हो पाया।
रिदांश (अरु के मूव के बारे में सोचते हुए कुढ़ कर): "सच में पागल हो गई है। वरना ऐसी हरकत कौन नॉर्मल इंसान करता है!"
रिदांश खुद से बड़बड़ा रहा था। लेकिन इससे पहले कि वह अपनी जगह से, जमीन से खड़ा हो पाता, दक्ष और अनिकेत ने उसके केबिन का दरवाजा खोलकर अंदर आ गए। रिदांश को यूँ जमीन पर बैठा देख दोनों असमंजस से उसे देखते रहे। रिदांश ने उन्हें अचानक वहाँ देखकर झट से अपनी जगह से खड़ा हो गया। हालाँकि उसे अभी भी दर्द महसूस हो रहा था, लेकिन क्योंकि रिदांश हमेशा से अपने एक्सप्रेशन छिपाने में माहिर था, उसने अपने दर्द भरे भाव छिपाते हुए उन्हें अपने ब्लैंक एक्सप्रेशन से बदल लिया। दक्ष और अनिकेत की सवालिया नज़रों को पूरी तरह इग्नोर करते हुए वह खड़े होकर अपनी कुर्सी पर जा बैठा और पानी का ग्लास उठाकर एक ही साँस में उसे पूरा गटक गया। दक्ष और अनिकेत जानते थे कि वह खुद से कुछ नहीं कहने वाला, इसलिए दोनों जाकर उसके सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गए।
अनिकेत (रिदांश की ओर देखकर): "कम से कम जीजा ना सही, दोस्त के नाते ही पूछ लें, कितनी दूर से आया हूँ, कैसा हूँ!"
रिदांश (बिना किसी भाव के): "मुझे नम्या ऑलरेडी बता चुकी है कि तुम बिल्कुल ठीक हो, तो मैं क्यों एक ही सवाल को फिजूल में बार-बार करूँ? एंड आई डोंट वांट टू वेस्ट माय एनर्जी!"
अनिकेत (कुढ़ कर): "बाय गॉड! बहुत ही बड़ा कमीना है तू, जो लफ्जों को भी इतनी कंजूसी से इस्तेमाल करता है!"
रिदांश (बिना किसी भाव के): "थैंक यू!"
अनिकेत (रिदांश की ओर शक भरी नजरों से देखते हुए): "बाय द वे, तू जमीन पर बैठा क्या कर रहा था?"
रिदांश (एक पल को गड़बड़ा कर संभलते हुए): "कुछ काम था मुझे!"
अनिकेत (अपनी भौहें उचका कर): "जमीन पर बैठकर?"
रिदांश (अरु के मूव को याद करते हुए इरिटेशन भरे भाव से): "हाँ था मुझे कुछ काम, और जमीन पर बैठकर ही था। तुम्हें कोई प्रॉब्लम है?"
अनिकेत (सामान्य भाव से): "नहीं प्रॉब्लम तो कोई नहीं है। मैं तो बस जानना चाहता था कि आखिर जमीन पर बैठकर ऐसा तू क्या काम कर रहा था!"
रिदांश (फ्रस्ट्रेशन भरे भाव से): "था मेरा कोई पर्सनल काम। तुझे क्यों जानना है? और अब बकवास बंद कर अपनी, और मुझे चुपचाप काम पर फोकस करने दे!"
दक्ष और अनिकेत ने रिदांश की बात सुनकर एक नजर एक दूसरे की तरफ देखी। हालाँकि जब वे यहाँ आए थे, तब उन्होंने इस बात को बहुत ही लाइटली लिया था, लेकिन रिदांश के फ्रस्ट्रेशन भरे भाव देखकर समझ गए थे कि दाल में कुछ तो काला है, और जिसका पता उन्हें लगाना पड़ेगा। कुछ देर बाद दक्ष वहाँ से उठकर जाने लगा, तो अनिकेत ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
अनिकेत (दक्ष को खड़े होते देख): "अब तू कहाँ जा रहा है?"
दक्ष (बिना रुके या पीछे मुड़े ही): "अपनी बहन से मिलने!"
रिदांश ने दक्ष की बात सुनी, तो एक नजर उसकी ओर देखा और फिर वापस से अपने लैपटॉप में काम करने लगा। दक्ष वहाँ से चला गया। दक्ष के जाने के बाद अनिकेत ने वापस से रिदांश की ओर अपना रुख किया।
अनिकेत (रिदांश की ओर देखकर): "आखिर कब तक तुम दोनों एक दूसरे को यूँ साइलेंट ट्रीटमेंट देते रहोगे? अच्छे से बात क्यों नहीं करते हो तुम दोनों?"
रिदांश (बिना अनिकेत की ओर देखे): "और यह ज्ञान तो तू उसे भी दे सकता है, मुझे ही क्यों?"
अनिकेत: "उसे भी हज़ार बार यही समझाता हूँ, लेकिन तुम दोनों मेरी कुछ सुनो तब ना!"
रिदांश (लापरवाही भरे भाव से): "फिर अपनी एनर्जी वेस्ट करना बंद कर दो!"
अनिकेत (गंभीर भाव से): "नहीं कर सकता, और ना ही देख सकता हूँ कि मेरे दोस्त, मेरे दो अजीज दोस्तों के बीच इस तरह से साइलेंट वॉर चल रहा है। क्या वाकई में तुम दोनों के लिए इतना आसान है अपनी दोस्ती खत्म करना, एक दूसरे से दूर चले जाना? सच में इतना आसान है?"
रिदांश (अपनी नज़रें लैपटॉप से हटाकर अनिकेत की ओर अपनी नज़रें करते हुए गंभीर भाव और लहज़े से): "सच्ची दोस्ती में नाराज़गी हो सकती है, गुस्सा हो सकता है, लेकिन वह कभी टूट नहीं सकती, वह कभी तोड़ी नहीं जा सकती। सच्ची दोस्ती आखिरी साँस तक आपके साथ चलती है, और यह बात हम दोनों ही बहुत अच्छे से जानते भी हैं और मानते भी हैं। सो यू डोंट वरी अबाउट दिस। हमारी बात हो या ना हो हमारी दोस्ती आज भी उसी मुकाम और जगह पर है और वही इम्पॉर्टेंस रखती है और हमेशा रखेगी भी। और हम दोनों में से कोई भी कहीं नहीं जाने वाला, ये बात भी हम दोनों ही अच्छे से जानते हैं। सो डोंट वरी!"
अनिकेत (मुस्कुराकर): "हम्मम!"
इधर दूसरी तरफ दक्ष अरु के केबिन में उससे मिलने पहुँचा। उसने अरु के केबिन पर नॉक किया, तो अंदर से अरु ने आने की इजाज़त दी। दक्ष दरवाज़ा खोलकर अंदर गया, तो देखा अरु बड़ी ही शिद्दत से फ़ाइल में कुछ काम कर रही थी। दक्ष ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए अपनी चुप्पी तोड़ी।
दक्ष (दरवाज़े पर खड़े हुए ही): "मैं अंदर आ सकता हूँ मैम?"
अरु ने जैसे ही दक्ष की आवाज़ सुनी, तो उसने झट से अपनी गर्दन उठाकर उसकी ओर देखा और एक बड़ी सी मुस्कान लिए हुए वह अपनी जगह से खड़े होकर दक्ष की दिशा में बढ़ गई। दक्ष भी उसकी ओर बढ़ा और दोनों मुस्कुराते हुए खुशी से एक दूसरे के गले लग गए।
दक्ष (कुछ पल बाद अरु से अलग होते हुए): "कैसी हो तुम?"
अरु (मुस्कुरा कर): "मैं एकदम ठीक हूँ। तुम कैसे हो?"
दक्ष (वॉर्म एक्सप्रेशन से): "मैं भी एकदम बढ़िया हूँ!"
अरु (दक्ष का हाथ पकड़कर उसे कुर्सी की ओर ले जाते हुए): "आओ बैठो यहाँ पर!"
इसके बाद अरु और दक्ष काफ़ी देर तक बस यूँ ही अपनी ही बातें करते रहे। इतने वक़्त बाद दोनों एक दूसरे से मिल रहे थे, तो बातों का सिलसिला भी काफ़ी लंबा चला। हालाँकि उस दिन पार्टी वाली रात भी वे दोनों मिले थे, लेकिन उनकी कोई ख़ास बातचीत नहीं हो पाई थी। तो आज जब दोनों एक दूसरे से वापस से मिल रहे थे, तो इतने दिनों की कमी को पूरा करने की चाह में थे। इधर दूसरी तरफ करन अपने लिए कॉफ़ी लेने के लिए कॉफ़ी मशीन की ओर बढ़ा, तो सामने से आती शनाया से टकराते-टकराते बचा।
करन (प्रिशा की बात को याद करते हुए): "देखकर मिस, वैसे भी आजकल कुछ सरफ़िरी लड़कियाँ टकराने के बाद लड़कों को ही उल्टा ब्लेम देकर जाती हैं!"
शनाया ने करन की बात सुनी, तो उसकी ओर ध्यान से देखा, लेकिन बजाय कोई जवाब देने या कहने की, वह खुशी से एक्साइटेड होकर उछल पड़ी। करन ने शनाया की ओर गौर से देखा, तो उसे याद आया कि उस दिन भी मीटिंग हॉल में शनाया को जब उसने एक झलक देखा था, तो उसे कुछ जाना पहचाना सा चेहरा लगा था, लेकिन उस दिन जल्दबाज़ी में उसने इस तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। लेकिन जब शनाया उसके इतने करीब थी, तो उसे असल में याद आया कि शनाया और उसने लंदन के ही एक कॉलेज से अपनी एमबीए कंप्लीट की थी। काफ़ी अच्छे दोस्त रहे थे दोनों और कॉलेज के लास्ट ईयर में दोनों रिलेशनशिप में भी रहे थे। हालाँकि कॉलेज से जाने के बाद दोनों का टच टूट गया था।
करन (खुशी से): "व्हाट अ प्लेजेंट सरप्राइज शनाया! और तुम लंदन से मुंबई कब आई?"
शनाया (मुस्कुरा कर): "मैं अभी कुछ वक़्त पहले ही मुंबई आई, लेकिन तुम, तुम बताओ तुम यहाँ कैसे आए और तुम इस ऑफिस में क्या कर रहे हो?"
करन: "वेल मैं यहीं पर काम करता हूँ!"
शनाया (खुशी भरी हैरानी से): "डोंट टेल मी कि तुम मज़ाक कर रहे हो?"
करन (मुस्कुरा कर): "नॉट एट ऑल। इनफ़ैक्ट मिस्टर अग्निहोत्री के साथ इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में जो दूसरे पार्टनर हैं साथ, वह हमारी ही कंपनी है!"
शनाया (मुस्कुरा कर): "वाउ! दैट्स ग्रेट!"
करन: "हम्मम... लेकिन तुम यहाँ कैसे?"
शनाया: "एक्चुअली मेरे भाई अविनाश की इंगेजमेंट जल्द ही यहीं इंडिया में ही हो रही है और रिदांश, मीन्स तुम्हारे मिस्टर अग्निहोत्री, मेरे डैड के बिज़नेस पार्टनर भी हैं और मेरा अच्छा दोस्त भी, तो बस थोड़े एक्सपीरियंस के लिए ही कल से मैं ऑफिस ज्वाइन कर रही हूँ!"
करन (शरारती मुस्कान के साथ): "सिर्फ़ बिज़नेस एक्सपीरियंस के लिए?"
शनाया (मुस्कुरा कर): "तुम कभी नहीं बदल सकते ना!"
करन (मुस्कुरा कर): "हम्मम नेवर!"
शनाया: "ओके, वेल नेक्स्ट टाइम अपनी बातें कंप्लीट करेंगे। फ़िलहाल के लिए मुझे जाना होगा, वरना तुम्हारा ख़डूस पार्टनर लेट होने पर मुझे अपने ऑफिस से बाहर निकलवा देगा!"
करन (मुस्कुरा कर): "ओह श्योर! और अब तो हम एक ही ऑफिस में हैं, तो ज़ाहिर है रोज़ मिलना होता ही रहेगा और हमारी बातें भी रोज़ होती ही रहेंगी!"
शनाया (मुस्कुराकर): "ऑफ़ कोर्स। ओके बाय, सी यू!"
करन: "ओके बाय!"
ऑफ़िस ख़त्म होने के कुछ देर पहले ही रिदांश अनिकेत और दक्ष के साथ वापस घर चला गया, जहाँ वह पलक से मिला। हमेशा की तरह पलक उसे देखकर खुशी से एक्साइटेड होकर उससे लिपट गई और रिदांश ने भी प्यार से उसके सर को चूमते हुए उसे अपने गले से लगा लिया। आज की तारीख़ में अगर बात करें, तो पलक रिदांश के लिए बहुत ही ज़्यादा इम्पॉर्टेंस रखती थी और उसकी छोटी से छोटी खुशी और ज़रूरत को नम्या और अनिकेत से ज़्यादा रिदांश उसे समझता भी था और पूरा भी करता था। भले ही वह नम्या और अनिकेत की बेटी थी, लेकिन लाड़ली वह रिदांश की ही थी और शायद रिदांश के स्नेह और लाड़ का ही नतीजा था कि अपने माँ-बाप से भी कुछ ज़्यादा पलक रिदांश से स्नेह रखती थी।
प्रिशा भी नम्या को यहाँ आया देखकर खुश हो गई थी। पूरे घर का माहौल हल्का और खुशनुमा हो गया था। दूसरी तरफ़ क्योंकि अभी मुंबई में प्रोजेक्ट के लिए कुछ वक़्त रुकना था, इसलिए अरु ने एक छोटा सा घर रेंट पर ले लिया था, जिसके एक हिस्से में एक छोटा सा टेंट हाउस भी बना हुआ था, जिसमें करन रहता था और घर के दूसरे हिस्से में अरु रहती थी। बाहर से वह घर एक ही था, लेकिन अंदर जाकर वह घर दो हिस्सों में बटा हुआ था और अरु ने जानबूझकर ऐसा घर लिया था कि करन और वह आसानी से एडजेस्ट कर पाएँ। रात को करीब 12:00 बजे करन के फ़ोन की घंटी बजी, तो उसने आँखें मसलते हुए फ़ोन उठाया।
करन (फ़ोन उठा कर उबासी लेते हुए): "हैलो?"
दूसरी तरफ़ से: "विश यू अ वेरी-वेरी हैप्पी वाला बर्थडे पिकाचू!"
करन (बड़ी सी स्माइल के साथ): "थैंक्यू सो मच माय स्वीटहार्ट! उम्माह!"
दूसरी तरफ़ से: "उम्म... मोस्ट वेलकम... बट आपको पता चल गया मैं कौन हूँ?"
करन (मुस्कुराकर): "नहीं मुझे तो बिल्कुल पता नहीं चला कि ये मेरी डार्लिंग आरांशी बात कर रही है!"
आरांशी: "हम्मम आई नो... माँ का प्लान नहीं वर्क करेगा और आप न्यू नंबर से भी मुझे पहचान लोगे!"
करन: "न्यू नंबर क्या मेरी जान! तुम्हें तो मैं प्लास्टिक सर्जरी के बाद भी पहचान लूँगा!"
आरांशी (अपनी क्यूट बेबी टोन में हँसते हुए): "नहीं अब आप इतने भी इंटेलिजेंट नहीं हो क्योंकि प्लास्टिक सर्जरी के बाद तो बिल्कुल बदल जाऊँगी ना, फिर आप मुझे कैसे पहचानोगे?"
करन (बातें बनाते हुए): "वो क्या है ना अपनी इस डार्लिंग से मेरा हार्ट टू हार्ट कनेक्शन है, फिर वह प्लास्टिक सर्जरी हो या न्यू नंबर, क्या फ़र्क पड़ता है? मैं तो तुम्हें हमेशा पहचान लूँगा!"
आरांशी: "हम्मम... मम्मी सही कहती है, आप बहुत बटरिंग करते हैं!"
करन (हँसकर): "तुम्हारी मम्मी का बस चले तो मुझे दीवार में ही जिंदा चुनवा दे!"
आरांशी (हँसते हुए): "अब मेरी मम्मी इतनी भी हिटलर नहीं है!"
करन (हँसकर): "हाँ इतनी हिटलर नहीं है, बट यू एग्री ना कि हिटलर तो है!"
आरांशी: "हाँ बस थोड़ी सी!"
करन: "दैट्स व्हाय आई लव यू सो मच!"
नैना (पीछे से बोलते हुए): "फ़र्स्ट ऑफ़ ऑल हैप्पी बर्थडे बंदर! और दूसरी बात अगर तुम्हारी ये तारीफ़ें अरु ने सुन ली ना कि तुम कैसे उसकी बेटी के कान भरते हो, तो मुंबई में ही तुम्हारी समाधि बन जाएगी!"
करन: "बर्थडे के लिए थैंक्यू! बाकी तुम तो चुप ही करो चापली! जब भी मुँह खोलती हो अनाप-शनाप और मनहूस बातें ही बकती हो!"
नैना: "हाँ खुद तो जैसे तुम बड़े फ़रिश्ते पैदा हुए हो! आया बड़ा कनखजूरा!"
आरांशी नैना और करन की ये फ़नी नोकझोंक देखकर खिलखिला उठी और कुछ देर बातें करने के बाद करन ने बीच में ही नैना को बाय बोलते हुए उसकी कॉल कट कर दी क्योंकि उसके डैड की कॉल आ रही थी। नैना की कॉल कट करते ही करन ने अपने डैड की कॉल पिक की।
करन (एनर्जेटिक लहज़े से): "हैलो डैड! हाउ आर यू?"
मिस्टर सिंघानिया (उत्साह के साथ): "हैप्पी बर्थडे यंग मेन! तुम जियो हज़ारों साल और ईश्वर तुम्हें दुनिया-जहाँ की सारी खुशियाँ दे!"
करन (मुस्कुरा कर): "थैंक्यू सो मच डैड! बाय द वे हाउ आर यू?"
मिस्टर सिंघानिया: "वेल मैं अच्छा हूँ। आप बताइए जनाब व्हाट्स गोइंग ऑन?"
करन: "डोंट वरी एवरीथिंग इज़ गुड डैड!"
मिस्टर सिंघानिया: "क्या वाकई में? या फिर वहाँ भी तुम ऑफ़िस का काम छोड़कर अपनी हर रोज़ बदलती फ़िजूल गर्लफ्रेंड्स के पीछे अपना वक़्त जाया करते रहते हो?"
करन (तपाक से): "नॉट एट ऑल डैड! और वो है ना हिटलर, उसके रहते हुए मैं ऑफ़िस के काम के सिवा कुछ कर सकता हूँ यहाँ!"
मिस्टर सिंघानिया: "हम्मम... ये तो है। आरना के होने से ही मेरी टेंशन आधी है, वरना तुम कभी सुधरोगे भी ये उम्मीद ही छोड़ दी थी मैंने!"
करन: "अब ऐसा भी कुछ नहीं है डैड। मतलब ठीक है डैड, गर्लफ्रेंड्स थीं, मगर किसी के दिल के साथ तो कभी नहीं खेला ना। मतलब ठीक है डैड, वो सब... यू नो व्हाट वो सब बस बचपना था और कुछ नहीं!"
मिस्टर सिंघानिया: "हम्मम... आई नो और वक़्त के साथ ही धीरे-धीरे ही सही मगर तुम ज़िम्मेदार हो रहे हो, मेरे लिए यही काफ़ी है!"
करन (कुछ सोचते हुए): "हम्मम... डैड मुझे अपने बर्थडे पर आपसे कुछ चाहिए?"
मिस्टर सिंघानिया: "हाँ बोलो बेटा एनीथिंग फ़ॉर यू!"
करन (कुछ पल की चुप्पी के बाद): "डैड मैं अपनी ज़िंदगी में अब सेटल होना चाहता हूँ। मैं अपनी ज़िंदगी के सफ़र में आगे बढ़ना चाहता हूँ... डैड मैं... मैं शादी करना चाहता हूँ डैड और इसके लिए मुझे आपकी परमिशन चाहिए?"
मिस्टर सिंघानिया (खुशी से एक्साइटेड होकर): "व्हाट! ऑफ़कोर्स मैं तो कब से यही चाहता था! तो मेरी परमिशन तो हमेशा से है। एनीवे कौन है वो खुशनसीब लड़की?"
करन: "डैड आप उसे अच्छे से जानते हैं!"
मिस्टर सिंघानिया: "अब ऐसे तो मैं तुम्हारी कितनी दोस्तों को जानता हूँ तो तुम खुद ही बता दो बिना पहेलियाँ बुझाए। बस ख़त्म भी करो यार अब सस्पेंस। मुझे बहुत उत्सुकता हो रही है तो बताओ जल्दी से उसका नाम?"
करन (एक पल की चुप्पी तोड़ते हुए): "आरना... मैं आरना से शादी करना चाहता हूँ डैड।" अपने डैड को कुछ पल बाद तक भी चुप देखकर, "आर यू देयर डैड?"
मिस्टर सिंघानिया (गंभीर लहज़े से): "उसका पास्ट जानते हुए भी कि वो एक छोड़ी हुई लड़की है, कि वो एक बेटी की माँ है... तुम मुझसे परमिशन मांग रहे हो!"
करण: हाँ, डैड, मैं सब जानता हूँ… लेकिन हर किसी का एक पास्ट होता है, डैड… इसका यह मतलब तो बिल्कुल भी नहीं है… कि वह इंसान गलत ही है… और मुझे नहीं फर्क पड़ता, डैड… कि उसका क्या अतीत था… और ना ही मैं जानना ही चाहता हूँ… (एक पल रुक कर)… मैं जानता हूँ… तो सिर्फ इतना जानता हूँ, डैड… कि अगर मैं किसी के साथ अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ सकता हूँ… तो वह सिर्फ और सिर्फ अरु है… और कोई नहीं… (एक पल रुक कर)… और अगर अरु नहीं… तो फिर कोई नहीं, डैड… कोई भी नहीं!!!
मिस्टर सी सिंघानिया (गंभीर लहज़े से): और सोचो, अगर मैं कहूँ कि मुझे यह मंज़ूर नहीं… तो फिर या तो अरु या तो फिर मैं… तो फिर तुम्हारा फैसला क्या होगा??
करण (बिना एक पल सोचे भी): ऑफ़कोर्स, डैड, आपसे बढ़कर… मेरे लिए पूरी दुनिया में कुछ भी नहीं है… नॉट ईवन अरु… लेकिन जैसा कि मैंने कहा… कि अगर अरु नहीं तो कोई भी नहीं… बेशक मैं अरु से शादी नहीं करूँगा… लेकिन फिर मैं किसी भी लड़की से कभी शादी नहीं करूँगा… और आप भी मुझे इस चीज़ के लिए कभी फ़ोर्स नहीं करेंगे… एंड दैट इज़ फ़ाइनल… एंड डोंट वरी, आपने कह दिया… ठीक है, तो अब मैं अरु से दूर ही रहूँगा… और दुबारा कभी ऐसी कोई बात भी नहीं करूँगा… नाउ डिस्कशन इज़ ओवर!!!
मिस्टर सिंघानिया: अरे! ऐसे कैसे डिस्कशन ओवर… अभी तो मैंने सिर्फ़ बात शुरू ही की है… और तुमसे किसने कहा… कि तुम्हें अरु से दूर रहना है???
करण (गंभीर भाव से): अभी आपने ही तो बोला ना कि उससे दूर हो जाऊँ… या तो मैं या तो वो?
मिस्टर सिंघानिया (सामान्य लहज़े से): मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए नहीं कहा… बस मैंने कहा इमेजिन करो… सोचो अगर ऐसा हो तो… मैंने यह बिल्कुल भी नहीं कहा कि तुम्हें ऐसा करना ही है!!
करण (थोड़ा इरिटेट होकर): डैड, आप क्या कह रहे हैं… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा… अभी तो आपने ही बोला था… और अब आप मना कर रहे हैं… आप कहना क्या चाह रहे हैं???
मिस्टर सिंघानिया: मैं सिर्फ़ इतना कह रहा हूँ, मेरी जान… कि हमेशा की तरह इस बार भी मुझे तुम्हारी खुशियों से बढ़कर कोई चीज़ प्यारी नहीं है… और ऑफ़कोर्स, अगर अरु के साथ तुम्हारी खुशियाँ छुपी हैं… तो मैं कैसे तुम्हें उससे दूर होने के लिए कह सकता हूँ!!
करण (अपने बिस्तर से उछलकर बैठते हुए): इसका मतलब आपको अरु और मेरे रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं है??
मिस्टर सिंघानिया (मुस्कुराकर): नहीं, बुद्धूराम… इवन अरु तो मुझे हमेशा से, पहले दिन से पसंद है… उसका कॉन्फ़िडेंस… उसका माइंड… उसकी पर्सनैलिटी… इनफ़ैक्ट, शी इज़ द परफ़ेक्ट एग्ज़ांपल ऑफ़ ब्यूटी विद ब्रेन!!
करण (शिकायती लहज़े से): लेकिन अभी तो आपने कहा कि उसका एक पास्ट है… और अगर ऐसा था… और वो इतनी पसंद है… तो आपने बेवजह मेरी जान क्यों सुखाई??
मिस्टर सिंघानिया (हँसकर): हाँ, कहा था… क्योंकि मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी टांग खिंचाई कर रहा था… (एक पल रुक कर)… और रही बात पास्ट की… तो बेटा, पास्ट तो सबका होता है… किसी का अच्छा… किसी का बुरा… ठीक है, उसका क्या पास्ट रहा… क्या नहीं… हमें उससे कोई मतलब नहीं है… (एक पल की चुप्पी के बाद)… बस मैं इतना चाहता हूँ कि उसके प्रेजेंट और फ़्यूचर में उसके पास्ट का कोई साया तक भी ना हो… बल्कि उसके प्रेजेंट और फ़्यूचर में सिर्फ़ तुम रहो… (एक पल रुक कर)… और हाँ, सबसे इम्पॉर्टेंट बात… कि अरु सिर्फ़ हमारे बिज़नेस के लिए ही नहीं… मुझे वो तुम्हारी लाइफ़ पार्टनर के रूप में भी चाहिए… क्योंकि एक वही है जो तुम्हें और हमारे बिज़नेस दोनों को बखूबी हैंडल कर सकती है… और हाँ, तुम… बहुत कहते हो ना तुम… कि तुम्हारे चार्म… तुम्हारी पर्सनैलिटी… लड़कियों के दिल की धड़कन बढ़ा देता है… उन्हें तुम्हारा दीवाना कर देता है… तो नाउ आई रियली वांट टू सी नाउ… कि किस तरह से तुम्हारा चार्म… तुम्हारी पर्सनैलिटी… तुम्हारी ख्वाहिश को पूरा करता है… और अरु को तुम्हारा लाइफ़ पार्टनर बनाता है!!!
करण (खुशी भरे लहज़े से): आपने मुझे हरी झंडी दिखा दी ना… तो अब आप देखें… कि मैं किस तरह से अरु को पटाता हूँ… (अपने दांतों तले अपनी ज़ुबान दबाकर)… आई मीन, मनाता हूँ… बस कुछ दिन और… और फिर आपकी ख्वाहिश पूरी… (एक पल रुक कर)… आप तो बस शादी की तैयारियाँ कीजिए, डैड!!
मि. सिंघानिया (मुस्कुराकर): श्योर… लेकिन साहबज़ादे, ज़रा आहिस्ता से… इतनी जल्दबाज़ी भी ठीक नहीं है!!
करण (मुस्कुराकर): डोंट वरी, डैड… सब अच्छा होगा!!
मि. सिंघानिया: होप सो!!
कुछ देर बात करने के बाद करण ने फ़ोन रख दिया… और करण ने अपने फ़ोन की गैलरी खोली… और उसमें से एक पिक पर उसकी नज़र और उंगलियाँ ठहर गईं… जिसमें वह आरांशी, नैना और अरु के साथ था… यह पिक आरांशी के लास्ट बर्थडे की थी… जिसमें सब बेहद खुश नज़र आ रहे थे… करण ने नैना की पिक पर अपनी उंगली रखी… और आरांशी, अरु और खुद को एक साथ देखने लगा… आरांशी बीच में थी… जबकि करण और अरु उसके दोनों साइड में… आज़ू-बाज़ू खड़े थे… और दोनों ने नैना के साथ उसको गोद में उठाया हुआ था… और आरांशी ने अपनी बाज़ू दोनों के कांधे पर रखी हुई थीं… और तीनों के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट थी… यूँ तो कई बार करण ने इस फ़ोटो को देखा था… लेकिन आज इस पिक्चर को वह एक अलग ही नज़र से देख रहा था… इस फ़ोटो में तीनों बिल्कुल किसी परफ़ेक्ट फ़ैमिली की तरह नज़र आ रहे थे!!!!
करण इस फ़ोटो के माध्यम से अपने आने वाले कल… अपने फ़्यूचर के सपने संजो रहा था… जहाँ पर वह और अरु होंगे… और उनकी खुशियों को दुगुना करने के लिए आरांशी उनके साथ होगी… कुछ पल उस फ़ोटो को देखने के बाद… करण फ़ोन की स्क्रीन को आगे की तरफ़ स्क्रॉल किया… और अरु के एक फ़ोटो पर जाकर उसकी उंगलियाँ रुक गईं… यह फ़ोटो तब की थी जब आरांशी भी इस दुनिया में नहीं आई थी… और करण को अरु से मिले कुछ ही अरसा बीता था… करण की नज़रें अब सिर्फ़ अरु के चेहरे पर जाकर ठहर गईं… और उस फ़ोटो को एकटक देखते हुए… आखिर में करण ने अपनी चुप्पी तोड़ी!!
करण (अरु की फ़ोटो देखते हुए): तुमसे मिलने से पहले कभी नहीं सोचा था मैंने… कि मैं खुद को कभी भी किसी के लिए… इस क़दर और इतना बदल सकता हूँ… अपनी लाइफ़ स्टाइल… अपने जीने का तरीका… सब कुछ बिल्कुल बदलकर… मैं वैसा बनने की कोशिश करूँगा… जैसा कोई और चाहता है… मैं किसी की एक झलक देखने के लिए… किसी की आवाज़ सुनने के लिए… इस क़दर एक्साइटिड हो सकता हूँ… मैं खुद पर किसी को इस तरह से डोमिनेंट होने की परमिशन दे सकता हूँ… कि किसी की डोमिनेंसी को ना सिर्फ़ बर्दाश्त कर पाऊँगा… बल्कि तहे दिल से उसे क़ुबूल भी करूँगा… कभी नहीं सोचा था… कि खुद से ज़्यादा मैं किसी को इतनी परमिशन दूँगा… कि वह मेरी ज़िंदगी पर… मुझ पर हुकुम चलाएँ… (अरु के फ़ोटो पर उंगलियाँ फिराते हुए)… मगर तुम्हारे मेरी ज़िंदगी में क़दम रखने के बाद से ही… सब कुछ बदल गया… सब बदल दिया तुमने अरु… सब कुछ… एंड यू नो व्हाट बेस्ट पार्ट यह है… कि यह सारे बदलाव… सब कुछ बहुत ही ख़ूबसूरत लगते हैं… बस दिल करता है… कि तुम्हारी सुनता जाऊँ… और तुम जो भी कहो उसे पूरा करता रहूँ… (एक पल रुक कर)… मुझे आज भी याद है… तुमसे वो पहली मुलाक़ात… जब हम एक दूसरे से बिल्कुल अनजान थे… और उस पहली मुलाक़ात में… मैंने कभी ऐसा तसव्वुर भी नहीं किया था… कि तुम मेरी ज़िंदगी का एक इतना ख़ास और अहम हिस्सा बन जाओगी!!!
(फ़्लैशबैक… पाँच साल पहले… (करण और थर्ड पर्सन के POV से…!!!!)
राहुल से इतना बड़ा धोखा मिलने के बाद अरु अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी… उसका भरोसे शब्द से ही पूरी तरह यक़ीन उठ चुका था… उसे समझ ही नहीं आ रहा था… कि अब वह किस पर भरोसा करे… और किस पर नहीं… इस दुनिया में सिवाय उसके डैड, राहुल और नैना के सिवा… फ़ैमिली के नाम पर उसके पास हमेशा से ही और कोई भी नहीं था… और इस वक़्त नैना को छोड़कर… वह अपनी ज़िंदगी के बाक़ी बचे सारे रिश्ते पूरी तरह खो चुकी थी… चाहे फिर वह रिदांश के साथ उसका रिश्ता था… या राहुल की दगाबाज़ी के बाद उसकी दोस्ती का टूटा हुआ रिश्ता… या फिर इन सबसे अलग उसके पिता… जो इस वक़्त इस स्थिति में ही नहीं थे… कि कुछ भी समझ सकें… इस वक़्त अरु खुद को बिल्कुल अकेला और असहाय महसूस कर रही थी… उसे आगे कोई राह नज़र नहीं आ रही थी… लेकिन फिर भी उसे जीना तो था ही… अपने पिता के लिए… अपनी कोख में पल रहे अपने अजन्मे बच्चे के लिए… उसे खुद को संभालना ही था!!!!
और आखिर में उसने अपने जज़्बातों को… अपने दर्द और तकलीफ़ों को… दिल के किसी एक कोने में बंद करते हुए… खुद को संभालने के लिए… खुद को दोबारा खड़ा करने के लिए… हिम्मत दी… और ज़िंदगी में आगे क़दम बढ़ाने के लिए… अपने डैड के भरोसेमंद मैनेजर और लोगों से कुछ रुपये उधार करके… रातों-रात खुद यहाँ से स्पेन के लिए जाने लगी… क्योंकि करण ने मिस्टर कपूर के लिए जिस डॉक्टर से बात की थी… वह डॉक्टर अभी स्पेन में ही था… अरु ने यह सब एक रात के दरमियान ही तय किया… क्योंकि वह जानती थी… कि अगली सुबह दक्ष यहाँ ज़रूर आएगा… और यह भी जानती थी… कि दक्ष की बातों या रिश्ते के ख़ातिर… अगर वह इस बार यहाँ रुक गई… तो ज़िंदगी में फिर कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएगी… और वह हमेशा यहीं के यहीं रह जाएगी… जो कि वह हरगिज़ नहीं चाहती थी!!!!
वह अब मन ही मन ठान चुकी थी… कि अपनी ज़िंदगी में सब कुछ भूलकर… वो आगे बढ़ना चाहती थी… एक नई शुरुआत के साथ, एक नए क़दम के साथ… हालाँकि इस शुरुआत में नैना भी उसके साथ आना चाहती थी… मगर इस वक़्त उसके पिता की तबीयत भी ठीक नहीं थी… और उसके माता-पिता का उसके सिवा और कोई भी नहीं था… तो इस हालात में वह उन्हें चाहकर भी अकेला नहीं छोड़ सकती थी… और ना ही वह अरु को भी अकेला जाने दे सकती थी… लेकिन क्योंकि अरु का भी जाना ज़रूरी था… इसलिए आखिर में उसने उसे अपना ख़्याल रखने का कहकर जाने की इजाज़त दे दी!!!
नैना (अरु के गले लगते हुए): आई एम सो सॉरी, मैं तेरे साथ नहीं आ पा रही!!
अरु (नैना से अलग होकर): इट्स ओके… तू बस यहाँ रहकर अंकल आंटी का ख़्याल रख… बाक़ी सब मैं संभाल लूँगी… डोंट वरी!!
नैना (अरु का हाथ थामकर): अरु, एक बार और सोच ले… तू अकेले सब कुछ कैसे संभालेगी??… (एक नज़र अरु की ओर देखकर)… तू सच में ठीक है ना, अरु???
अरु (एक गहरी साँस लेकर): डोंट वरी, मैं ठीक हो जाऊँगी… (एक पल रुककर)… यू नो व्हाट, नैना… मैं इतना समझ चुकी हूँ… कि आज नहीं तो कल… मुझे ही खुद को अकेले संभालना है… मैं किसी का सहारा लेकर नहीं चल सकती… और आखिर कब तक हम किसी का सहारा लेकर चलेंगे… एक न एक दिन तो खुद को संभालना ही है… और सच कहूँ तो नैना, अब मेरा ज़िंदगी से… भरोसे से… सब से यक़ीन ही उठ चुका है… और मैं अपनी ज़िंदगी में इतने लोगों से धोखा खा चुकी हूँ… कि अब मेरा किसी पर भी भरोसा करना शायद मुश्किल ही है… दोस्ती पर… रिश्तों पर जो थोड़ा भरोसा या यक़ीन जो भी बचा है… तुम्हारी वजह से है… (अपनी नम आँखों को पोंछकर)… एंड डोंट वरी, तू फ़िकर मत कर… मैं अपना अतीत, अपना ग़म और अपने सारे आँसू यहीं इसी जगह दफ़्न करके जाऊँगी… अपनी आने वाली ज़िंदगी में… मैं खुद को इतना स्ट्राँग कर लूँगी… कि फिर कोई रिश्ता… कोई जज़्बात… कोई दुख… मुझे कभी तोड़ नहीं पाएगा… मुझे रुला नहीं पाएगा… मैं अपने अतीत को यहीं हमेशा-हमेशा के लिए दफ़नाकर जाऊँगी… आई प्रॉमिस कि मैं अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ूँगी… अपने बच्चे के लिए… खुद के लिए… अपने डैड के लिए!!
नैना (प्यार से अरु का गाल छूकर): और मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी… कि तू अपने इस फ़ैसले पर कायम रहे… और तुझे हमेशा कामयाबी मिले… और तू बस हमेशा-हमेशा खुश रहे… ईश्वर करे कि मेरी सारी खुशियाँ भी तुझे मिल जाएँ!!
अरु (नैना को गले लगाकर): प्रॉमिस मी… कि चाहे सारी दुनिया मुझसे दूर हो जाए… मुझे धोखा दे जाए… पर तू कभी मुझसे दूर नहीं होगी… क्योंकि अगर तू मुझसे दूर हुई… तो सच में मेरा दोस्ती शब्द से भरोसा ही उठ जाएगा… और फिर मैं कभी ज़िंदगी में… इस शब्द पर भरोसा नहीं कर पाऊँगी!!!
नैना (अरु को कसकर गले लगाते हुए): आई प्रॉमिस कि मैं अपनी आख़िरी साँस तक तेरा साथ कभी नहीं छोड़ूँगी… चाहे जो हो जाए… या मुझे खुद को… अपनी ज़िंदगी को क़ुरबान ही क्यों ना करना पड़ जाए… पर मैं तेरा साथ कभी भी नहीं छोड़ूँगी… आई प्रॉमिस!!!
अरु (कुछ पल बाद नैना से अलग होकर): ठीक है, अब मेरी फ़्लाइट का टाइम हो रहा है… मैं चलती हूँ!!
नैना (हाँ में अपना सर हिलाते हुए): हाँ… बस अपना ध्यान रखना!!
अरु: हाँ, और तुम भी!!!
इसके बाद अरु वहाँ से अपने डैड के साथ एयरपोर्ट के लिए निकल गई… और मेडिकल स्टाफ़ के साथ पूरी सावधानी बरतते हुए… अरु अपने डैड को स्पेन ले आई… स्पेन पहुँचने के बाद अरु ने सबसे पहला काम… अपने डैड को लेकर डॉक्टर से मिली… जिसने मिस्टर कपूर को चेक करने… और उनकी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद… कुछ दिन के लिए अपने ऑब्ज़र्वेशन में रखने की बात कही… जिसे अरु ने मान भी लिया… जब तक अरु के डैड डॉक्टर के ऑब्ज़र्वेशन में थे… तब तक अरु को अपने बिज़नेस सेट करने के लिए जुगाड़ करना था… तो वह जी जान से उसी में लग गई… इस वक़्त अरु के पास इतने पैसे भी नहीं थे… कि वह अपनी ज़रूरतों को भी ठीक से पूरा कर सके… कितने ही रात उसने सिर्फ़ एक पाव खाकर… पानी पीकर गुज़ारी… इस वक़्त उसे बस जल्द से जल्द खुद को स्टेबल करना था!!!!
इसी बीच अरु को ख़बर मिली… कि उसके घर और ऑफ़िस की नीलामी हो चुकी है… और कर्ज़ निपटने के बाद कुछ पैसे जो बचे हैं… वह नैना ने अरु के खाते में ट्रांसफ़र करवा दिए थे… कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन अरु की पैसों की तंगी कुछ हद तक कम हो गई थी… यूँ तो अरु के पास नीलामी के पैसों से आए… पैसों में से 50-60 लाख रुपये इस वक़्त बचे थे… जिससे कुछ अरसा आराम से बिताया जा सकता था… लेकिन अरु का प्लान कुछ और था… और वह चाहती थी कि वह अपने इन पैसों का इस्तेमाल लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के रूप में करे… इसीलिए उसने खुद के बिज़नेस में अपने पैसे इन्वेस्ट करने की योजना बनाई… अब यह बात तो ज़ाहिर तौर पर साफ़ थी… कि अरु इतने पैसों में अपना खुद का बिज़नेस तो हरगिज़ खड़ा नहीं कर सकती थी… इसलिए उसे कुछ ऐसे लोगों के सपोर्ट की ज़रूरत थी… जो उसे सपोर्ट कर सकें… या जिनका साथ मिलने के बाद वह अपने बिज़नेस को स्टैंड कर सके!!!!
अब ज़ाहिर तौर पर यह भी साफ़ था… कि कोई भी अच्छी कंपनी… जो मार्केट में बहुत अच्छा कर रही थी… वह अरु को अपने बिज़नेस में शामिल नहीं कर सकती थी… अब इसकी दो ज़ाहिर वजह थीं… पहली तो अरु के पास कोई अपना बिज़नेस नहीं था… यह उसका एक न्यू स्टार्ट था… और दूसरी बात यह थी… कि जो कंपनियाँ पहले से खुद फ़ेमस थीं… वह किसी फ़्रेशर या ऐसी कंपनी को क्यों लें… जो पहले से ही डूब चुकी थी… भले ही अरु ने अभी बिज़नेस वर्ल्ड में नया-नया क़दम रखने की बात सोची थी… मगर आज तक बिज़नेस से दूर होने के बावजूद भी… उसके अंदर वो स्किल्स… और टैलेंट था… जो सालों-साल इस लाइन में रहने के बाद भी लोग नहीं सीख पाते… ऐसा नहीं था… कि अरु को अपनी ज़रूरत या तंगी दूर करने के लिए… लोगों के ऑफ़र या अपॉर्चुनिटी नहीं मिले… लेकिन वो अपॉर्चुनिटी या ऑफ़र साफ़ तौर पर… उसकी स्मिता और गरिमा को रौंदकर… उसे दिए जा रहे थे… जो अरु को हरगिज़ मंज़ूर नहीं थे!!!!
मुंबई से स्पेन आने… और यहाँ रहने के अरसे तक… अरु में बहुत बदलाव आए… जो पॉज़िटिव ही थे… और जिन बदलावों से अरु दिन पर दिन सिर्फ़ स्ट्राँग ही हुई… और बढ़ते वक़्त और हालातों के साथ… उसने हर सिचुएशन से लड़ना और उनका सामना करना सीखा… ख़ैर, बढ़ते वक़्त के साथ… अरु अपने अतीत को पीछे छोड़कर… निरंतर आगे बढ़ती रही… बिज़नेस की सारी बातों और रूल्स को ध्यान में रखते हुए… अरु ने ऐसी कंपनी को सर्च करना शुरू किया… जो शुरु में बहुत अच्छा कर रही थी… लेकिन अब कुछ अरसे से वह कंपनियाँ नीचे की ओर गिर रही थीं… और जिनमें से कुछ पर तो ताला भी लग चुका था… या कुछ की हालत अब इतनी ख़स्ता हो चुकी थी… कि बस कुछ ही दिनों में उन पर ताला लगने ही वाला था… ऐसी एक कंपनी सिंघानिया एंटरप्राइजेज़ थी… जो अपने शुरुआती दौर में एक अच्छी-खासी नामी कंपनी थी… और लगभग शुरुआती दौर में पूरे स्पेन में उसका दबदबा था… लेकिन कुछ सालों से दूसरी कंपनियों के कॉम्पिटिशन के चलते हुए… उस कंपनी का स्तर इतना गिर चुका था… कि अब वह कंपनी डूबती जा रही थी… और यह भी साफ़ था… कि कुछ ही दिनों में अगर यही हाल रहा… तो इस कंपनी पर जल्दी ताला लगने वाला था!!!!
अरु को जिसकी तलाश थी… ऐसी कंपनी की तलाश क्यों थी… यह तो वही बेहतर जानती थी… या उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था… यह उसे ही ज़्यादा बेहतर पता था… मगर इतना तो तय था… कि वह जो कुछ भी कर रही थी… बहुत ही सूझबूझ के साथ… अपना फ़्यूचर सिक्योर करने के लिए कर रही थी… आख़िरकार अरु जो तलाश कर रही थी… उसकी वह तलाश इस कंपनी पर आकर ख़त्म हो गई थी… अरु ने उस कंपनी के बारे में सब सर्च किया… और उसको मार्क किया… और अपने हिसाब से कुछ पॉइंट्स एक डायरी में नोट किए… लगभग आधी रात तक अरु ने इस पर काम किया… और अरु अगली सुबह सिंघानिया इंडस्ट्रीज़ पहुँच गई… और उसने सीधा रिसेप्शन पर पहुँचकर… मिस्टर सिंघानिया से मिलने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की!!!
अरु (गंभीर भाव से रिसेप्शनिस्ट): आई वांट टू मीट सीनियर मिस्टर सिंघानिया??
रिसेप्शनिस्ट: सॉरी, मैम, बट सर तो आज ही लंदन से लौटे हैं… तो वह कल ही ऑफ़िस आ पाएँगे!!
अरु (गंभीर लेकिन कॉन्फ़िडेंस भरे भाव से): मुझे उनसे अभी और इसी वक़्त बात करनी है… और यह समझ लो… कि अगर मैं यहाँ से चली गई… तो तुम्हारे सर की कंपनी पर ताला लगने से कोई नहीं रोक सकता!!!
अरु की बात सुनकर रिसेप्शनिस्ट के चेहरे पर कुछ पल तक असमंजसता भरे भाव थे… शायद वह सोच में थी… कि क्या करे… और क्या नहीं… कुछ पल तक उसने सोचा… और कुछ पल सोचने के बाद… आखिर में उसने मिस्टर सिंघानिया के साथ अरु की कॉल कनेक्ट की!!
रिसेप्शनिस्ट: गुड मॉर्निंग, सर…!!
मिस्टर सिंघानिया: हम्मम… कहो?
रिसेप्शनिस्ट: सर, दरअसल कोई लेडी आई है… और वह कह रही है… कि उन्हें आपसे कोई इम्पॉर्टेंट बात करनी है… और अगर उनकी आपसे बात नहीं हो पाई… तो हमारी कंपनी को बहुत बड़ा लॉस हो जाएगा!!
मिस्टर सिंघानिया (दूसरी ओर से एक पल सोचने के बाद): ठीक है… बात कराओ!
मिस्टर सिंघानिया की परमिशन मिलने के साथ ही… रिसेप्शनिस्ट ने अरु को फ़ोन पकड़ा दिया!!
अरु (गंभीर लहज़े से): हेलो?
मिस्टर सिंघानिया: हेलो… कौन हैं आप… और क्या चाहती हैं???
अरु: मैं कौन हूँ… कहाँ से आई हूँ… और क्या चाहती हूँ… यह सब बातें बाद की… और एकदम फ़िजूल हैं… अभी आपके लिए सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है… कि आपकी डूबती कंपनी को सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं बचा सकती हूँ!!
मिस्टर सिंघानिया (असमंजसता से): लेकिन आप हैं कौन??
अरु (गंभीर लहज़े से): आपने सुना है, मिस्टर सिंघानिया… कि डूबते को तिनके का सहारा काफ़ी होता है… डूबने वाला उस सहारे से यह कभी नहीं पूछता… कि वह कौन है… कहाँ से आया है… उसे सिर्फ़ खुद को बचाने से मतलब होता है… तो इस वक़्त सिर्फ़ इतना समझ लीजिए… कि मैं वही तिनका हूँ… जिसके सहारे से आप खुद को… और खुद की कंपनी को डूबने से बचा सकते हैं!!
मिस्टर सिंघानिया ने अरु की बात सुनी… और उसके लहज़े में जो कॉन्फ़िडेंस, जो आत्मविश्वास इस वक़्त झलक रहा था… उन्हें अरु से मिले बिना ही इतना तो समझ आ गया था… कि यह जो कोई भी है… यूँ ही हवा में बातें नहीं कर रही… और फिर जैसा कि अरु ने कहा… कि डूबते को तिनके का सहारा ही काफ़ी होता है… तो इस वक़्त मिस्टर सिंघानिया उसी कगार पर थे… और जब उन्हें एक सहारा नज़र आ रहा था… तो उससे आजमाने में या उसका सहारा लेने में कोई हर्ज़ नहीं था… अगर इसमें कोई फ़ायदा नहीं होना था… तो यक़ीनन इसमें उन्हें कोई नुकसान भी नज़र नहीं आ रहा था!!!!
मिस्टर सिंघानिया (कुछ पल सोचकर): ठीक है… मैं कुछ ही देर में ऑफ़िस पहुँच रहा हूँ… तब तक आप मेरे बेटे से मिलकर बाक़ी बातें क्लियर कर लीजिए… (एक पल रुककर)… रिसेप्शनिस्ट को फ़ोन दीजिए!!
अरु ने मिस्टर सिंघानिया की बात सुनी… और अगले ही पल रिसेप्शनिस्ट को फ़ोन पकड़ा दिया!!!
मिस्टर सिंघानिया (रिसेप्शनिस्ट से): इन्हें अभी करण के केबिन में लेकर जाओ… मैं थोड़ी देर में ऑफ़िस पहुँचता हूँ!!
रिसेप्शनिस्ट: ओके, सर!!
इतना कहकर मिस्टर सिंघानिया ने फ़ोन रख दिया… और रिसेप्शनिस्ट ने अरु को करण के केबिन की ओर चलने का इशारा किया… और लिफ़्ट से सेकंड फ़्लोर पर पहुँचकर… रिसेप्शनिस्ट ने कॉर्नर वाले एक केबिन की ओर इशारा करके… और उसे अंदर जाने के लिए कहा!!!!
अरु (रिसेप्शनिस्ट की ओर देखकर): तुम अंदर नहीं चलोगी??
रिसेप्शनिस्ट (थोड़ा झिझककर): नहीं, मैम, आप जाएँ… (एक पल रुककर)… वैसे, मैम, आप भी थोड़ा रुक जाएँ तो बेहतर होगा!!
अरु (असमंजसता से): पर क्यों??
रिसेप्शनिस्ट (थोड़ा झिझककर): एक्चुअली, मैम, सर ने कहा है… कि कोई उन्हें डिस्टर्ब ना करे… वह बिज़ी हैं!!
अरु (गंभीर भाव से): तो मेरे पास भी पूरा दिन नहीं है… कि मैं आपके सर के फ़्री होने का इंतज़ार करूँ!!
रिसेप्शनिस्ट (सामने की ओर इशारा करते हुए): ओके, मैम… वही सामने वाला रूम है… आप चली जाएँ!!
अरु (गंभीर भाव से): ओके, थैंक्स!!!
रिसेप्शनिस्ट का बिहेवियर अरु को थोड़ा अजीब लगा… लेकिन उसने अपने ख़यालों को झटककर… अपनी गर्दन हाँ में हिलाई… और इसके बाद रिसेप्शनिस्ट वहाँ से चली गई… और अरु करण के केबिन की ओर बढ़ गई… और उसने दरवाज़े पर नॉक किया… लेकिन कोई रिस्पांस नहीं आया… एक बार… दो बार… तीन बार… आखिर में अरु के सब्र का बाँध टूट गया… और उसने गुस्से से दरवाज़ा खोला… लेकिन केबिन में पहुँचकर… वहाँ का नज़ारा देखकर… अरु का गुस्सा छट गया… और उसकी भौहें हैरानी और अविश्वास से तन गईं… इस वक़्त करण किसी लड़की के साथ… अपने केबिन में मौजूद था… और दोनों एक दूसरे को किस करने में इस क़दर बिज़ी और खोए हुए थे… कि उन्हें यह भी एहसास नहीं हुआ… कि कोई केबिन के अंदर आया है… अरु ने कुछ पल तक उन दोनों को गुस्से और घृणा भरे भाव से देखा… और आखिर में उसने अपनी चुप्पी तोड़ी!!!
अरु (तंजिया लहज़े में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): यहाँ आने से पहले मैं सोच रही थी… कि आखिर क्या वजह है… लेकिन अब मुझे यक़ीन हो गया… कि कोई हैरानी वाली… या बड़ी बात नहीं है… कि आखिर यह कंपनी डूबने की कगार पर क्यों है… (एक पल रुककर)… इनफ़ैक्ट, जो घटिया हालात हैं यहाँ के… उसके हिसाब से तो… अब तक यहाँ ताला लग भी जाना चाहिए था!!!
अरु (तंजिया लहज़े में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): यहां आने से पहले मैं सोच रही थी कि आखिर क्या वजह है, लेकिन अब मुझे यकीन हो गया कि कोई हैरानी वाली या बड़ी बात नहीं है कि आखिर यह कंपनी डूबने की कगार पर क्यों है। (एक पल रुक कर) इनफैक्ट, जो घटिया हालात हैं यहां के, उसके हिसाब से तो अब तक यहां ताला लग भी जाना चाहिए था।
करन के कानों में अरु की आवाज पड़ी। एक अनजानी और नई आवाज सुनकर करन का ध्यान टूटा और वह उस लड़की से दूर हुआ जो असल में उसकी सेक्रेटरी थी।
करन (बिना पलटे ही अरु की बात का जवाब देते हुए): उफ्फ! जिसकी आवाज इतनी खूबसूरत है, वह खुद कितनी खूबसूरत होगी!
इतना कहकर करन पीछे की ओर पलटा। अरु की तंज भरी बात सुनकर उसके चेहरे पर ना कोई गुस्से के भाव थे और ना ही कोई नाराजगी। बल्कि उसके चेहरे पर एक दिलकश शरारती मुस्कान थी। करन एक आकर्षक पर्सनैलिटी वाला शख्स था, जो दिखने में बेहद हैंडसम और खूबसूरत भी था। लेकिन उसे देखकर अरु के भाव ज्यों के त्यों ही बने रहे। यहां आने से पहले उसका मूड जितना लाइट था, करन की ऐसी हरकत देख उसका मूड ऑफ हो चुका था। पहली ही मुलाकात में अरु की नज़रों और दिमाग में करन की एक गहरी इमेज बन चुकी थी, जो कि ज़ाहिर तौर पर पॉजिटिव नहीं थी। करन की बात सुनकर अरु ने कोई जवाब नहीं दिया। अपने फ्लर्टी नेचर के तहत करन ने वापस से अरु से बात करने की कोशिश की।
करन (अरु की ओर देखकर उत्सुकता से): मैं आई नो कि इतनी खूबसूरत लड़की हमारे ऑफिस में, मतलब अपनी खुशकिस्मती पर यकीन ही नहीं हो रहा!
अरु (तंज भरे लहजे से): आई एम श्योर यही घटिया लाइन्स ही कुछ वक्त पहले तुमने यहां भी (करन की सेक्रेटरी की ओर इशारा करते हुए) ट्राई की होंगी, राइट? (एक पल रुक कर) वेल, मुझे तुम्हारी इन फिजूल बातों या रवैये से कुछ लेना-देना नहीं है। मुझे तुम्हारे डैड ने यहां भेजा है, तुमसे बिजनेस के सिलसिले में कुछ डिस्कस करने के लिए। तो कुछ देर के लिए अगर तुम अपनी सो कॉल्ड लव क्लासेस बंद कर दोगे, तो बेहतर होगा!
करन (अपना सर खुजाते हुए अरु की ओर देखकर): ओह! बिजनेस। जस्ट वन सेकंड, मी अमोर!
इतना कहकर करन ने अपनी सेक्रेटरी की ओर अपना रुख किया, जिसके साथ कुछ पल पहले वह बिजी था और जिसने अरु की बात सुनकर और करन का अरु से फ्लर्ट करना देखकर अपनी नाक-मुंह सिकोड़ लिए थे।
करन (अपनी सेक्रेटरी को मस्का लगाते हुए): बेबी! अभी काम है, बट आई प्रॉमिस, आई विल कैच यू लेटर!
सेक्रेट्री (अरु की ओर देखकर मुंह बनाते हुए): हुंह!
अपनी नाक-मुंह सिकोड़ते हुए, कुछ देर बाद सेक्रेट्री वहां से चली गई।
(लगभग एक घंटे बाद!)
अरु, मिस्टर सिंघानिया, करन और उनके कुछ खास लोगों के साथ मीटिंग रूम में बैठी थी। अरु के कुछ पॉइंट्स से ही मिस्टर सिंघानिया और उनके लोग अरु की काबिलियत को परख चुके थे।
मिस्टर सिंघानिया (अरु की ओर देखकर): सो मिस कपूर, आप तफसील से बताएं कि आखिर आप किस तरह से हमारी कंपनी को बचा सकती हैं और उससे भी बड़ी बात, कि आखिर आप क्यों और किसलिए हमारा साथ देना चाहती हैं? क्योंकि एक बिजनेसमैन होने के नाते, इतना तो मैं भी जानता और समझता हूं कि इस फील्ड में कोई भी बिना मतलब तो किसी के काम नहीं आता।
अरु (संजीदगी से): इस फील्ड में ही नहीं मिस्टर सिंघानिया, बल्कि पूरी दुनिया का यही रूल है कि बिना मतलब उन्हें आपसे कोई मतलब नहीं होता। वेल, आपने बिल्कुल ठीक सोचा। मैं आपकी मदद सिर्फ इसीलिए करना चाहती हूं क्योंकि बदले में मुझे आपकी मदद चाहिए!
मिस्टर सिंघानिया (असमंजस से): मगर कैसी मदद?
अरु (अपनी बात को पूरे आत्मविश्वास से रखते हुए): देखिए मिस्टर सिंघानिया, यह बात आप भी जानते हैं कि जिस पोजीशन में आज आपकी कंपनी है, उसे हमेशा के लिए ताला लगने में बस कुछ ही महीने बाकी हैं, जिसे आप चाहकर भी नहीं रोक पा रहे। (एक पल रुक कर) लेकिन मैं इसमें आपकी पूरी मदद कर सकती हूं और जिसका पॉजिटिव रिजल्ट अगले एक महीने में ही आपके हाथ में होगा!
मिस्टर सिंघानिया (अरु की ओर देखकर): और बदले में मुझे क्या कीमत चुकानी होगी?
अरु (बिना किसी झिझक या किसी डर के): बदले में आपको मुझे अपनी कंपनी के 49% शेयर देने होंगे, यानी कि आपकी कंपनी की 49% की मालिक मैं रहूंगी!
करन (अरु की बात सुनकर तपाक से): सुबह-सुबह चढ़ाकर आई हो तुम! (अपने डैड की नज़र खुद पर देखकर) आई मीन, आर यू आउट ऑफ़ योर माइंड? हम ऐसे ही मुंह उठाकर अपनी कंपनी के 49% शेयर कैसे दे दें? आफ्टर ऑल, इतनी मेहनत से हमने यह कंपनी खड़ी की है!
अरु (करन की बात सुनकर तंज भरे लहजे से): या ऑफकोर्स, आपकी सारी मेहनत और लगन तो मैं कुछ देर पहले अच्छे से देख ही चुकी हूं, मिस्टर करन!
करन ने अरु की बात सुनी तो उसने झेंपकर अपने मुंह पर अपनी हथेली रख ली। मिस्टर सिंघानिया ने करन की हरकतों से वाकिफ होने के साथ ही अरु की बात का मतलब समझ लिया और उसे गुस्से से घूरा। तो करन ने झट से अपनी गर्दन दूसरी दिशा में घुमा ली।
अरु (अपनी जगह से उठते हुए): मैं अपनी बात कह चुकी हूं। अब आप आराम से सोच लीजिए मिस्टर सिंघानिया कि आपको क्या करना है!
मिस्टर सिंघानिया (अरु की ओर देखकर गंभीरता से): एक बार को अगर हम तुम्हारी बात मान भी लें, तो क्या गारंटी है कि तुम हमारी कंपनी को डूबने से बचा सकती हो?
अरु (पूरे आत्मविश्वास से): सिर्फ एक महीना चाहिए मुझे आपका, फिर आप खुद अपना फैसला लीजिएगा!
मिस्टर सिंघानिया: ठीक है फिर, एक महीना दिया मैंने तुम्हें और अगर तुम कामयाब होती हो, तो मैं तुम्हारी शर्त पूरी करने के लिए तैयार हूं!
अरु (बिना किसी लाग-लपेट के): लेकिन मैं क्यों और कैसे और किसलिए आप पर यकीन करूं?
मिस्टर सिंघानिया (असमंजस से): मतलब?
अरु (अपनी बात रखते हुए): देखिए मिस्टर सिंघानिया, आप एक अच्छे बिजनेसमैन हैं और काफी अरसे से इस फील्ड में हैं। तो यह बात तो आप भी अच्छे से समझते भी हैं और जानते भी हैं कि बिजनेस वर्ल्ड में कोई किसी पर सिर्फ वादों के आधार पर भरोसा नहीं कर सकता। और जहां तक मेरी बात है, तो मैं अपनी जिंदगी में इतने लोगों और अपनी किस्मत से इस कदर धोखा खा चुकी हूं कि अब मेरा विश्वास शब्द से ही उठ गया है। (एक पल रुक कर) सॉरी टू से, पर मैं अब सिर्फ वादों के आधार पर या बातों के आधार पर किसी पर भरोसा नहीं कर सकती और ना ही बिजनेस फील्ड का यह रूल ही मुझे इजाजत देता है कि मैं सिर्फ एक वादे के आधार पर अपने बिजनेस स्किल्स की नींव रखूं!
मिस्टर सिंघानिया (अरु की ओर देखकर): लेकिन फिर यह चीज तो तुम पर भी लागू होती है ना कि हम ऐसे कैसे सिर्फ तुम्हारी बातों पर भरोसा करके तुम्हें 49% की पार्टनरशिप दे दें? कल को अगर तुम यह पार्टनरशिप लेकर अपने वादे को नहीं निभा पाईं, तो हमें क्या मिलेगा? हम तो बस हाथ मलते रह जाएंगे और हमारा तो हर तरफ से सिर्फ नुकसान ही होगा!
अरु (पूरे कॉन्फिडेंस के साथ): रूल इज़ रूल मिस्टर सिंघानिया, जो रूल मेरे लिए है, वही रूल आपके लिए भी है। (एक पल रुककर मिस्टर सिंघानिया के चेहरे पर असमंजसता के भाव देखकर) यह बात तो पक्की है कि आप हमारी पार्टनरशिप के पेपर्स बनवाएंगे, तभी मैं अपना काम यहां शुरू करूंगी। लेकिन क्योंकि आप भी सिर्फ मेरी बातों के आधार पर मुझ पर भरोसा करके यह पार्टनरशिप मुझे यूं ही नहीं दे सकते, तो उसके लिए हम एक बीच का रास्ता निकाल सकते हैं!
मिस्टर सिंघानिया (सवालिया नजरों से अरु की ओर देखकर): कैसा रास्ता?
अरु (गंभीर भाव से): आप पेपर्स बनवाएंगे और उन पेपर्स में यह साफ तौर पर लिखा जाएगा कि अगर 1 महीने के वक्त के अंदर मैं अपनी कही गई बातों, यानी कि मैं आपकी डूबती कंपनी को उभारने में कामयाब रही, तो आप मुझे 49% की पार्टनरशिप देंगे और अगर एक परसेंट मैं ऐसा करने से चूक गई, तो फिर मेरे और आपके बीच कोई कमिटमेंट नहीं होगी। (मिस्टर सिंघानिया को सोच में डूबा खामोश देखकर) और हां, एक बात और, अगर आप मेरी शर्त मानते हैं, तो मेरे पास जितनी भी मेरी जमा पूंजी है, मैं उसे यहां इन्वेस्ट करूंगी, जो यकीनन कंपनी के हित में फायदेमंद साबित होगा!
करन (अपनी चुप्पी तोड़ते हुए तपाक से): अब हमें क्या पता कि तुम्हारी जमा पूंजी कितनी है? यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारे पास 10-20 हजार रुपए हों और तुम उसे ही कंपनी में इन्वेस्ट करके कह दो कि तुमने अपनी सारी जमा पूंजी इन्वेस्ट कर दी है!
अरु (तिरछी नजर से करन की ओर देखकर): मिस्टर करन, भले ही मैंने बिजनेस वर्ल्ड में नया-नया कदम रखा हो, लेकिन बिजनेस वर्ल्ड की बारीकियों से मैं अच्छी तरीके से वाकिफ हूं। (एक पल रुक कर तंज भरे लहजे से) और रही बात इन्वेस्टमेंट की, तो यह बात तो मैं भी अच्छे से जानती हूं कि मैं चॉकलेट खरीदने नहीं निकली जो मैं 10-20 हजार की बात करूंगी। जाहिर तौर पर मैंने 10-20 हजार की बात नहीं की थी, बल्कि मैंने यहां 50-60 लाख की बात की थी और मैं यह भी जानती हूं कि बिजनेस में यह अमाउंट भी ज्यादा बड़ा नहीं है, लेकिन फिलहाल मेरे पास सिर्फ इतना ही है जिसे मैं इन्वेस्ट कर सकती हूं। (एक पल रुक कर मिस्टर सिंघानिया की ओर देखकर) तो मैं अपनी सारी जमा पूंजी, जो 50 से 60 लाख के करीब है, उसे भी आपकी कंपनी में इन्वेस्ट करूंगी और उसके बाद ही मुझे आपकी कंपनी में 49% की पार्टनरशिप चाहिए। (एक पल रुक कर) मिस्टर सिंघानिया, मैं अपनी हर एक बात और पॉइंट को बिल्कुल क्लीयरली आपके सामने रखना चाहती हूं। अगर आपको मेरी बातें या मेरी शर्तें समझ आती हैं और आपके अकॉर्डिंग आपके दायरे में फिट बैठती हैं, तो ही आप इस बात पर एग्री कीजिएगा, वरना नो प्रॉब्लम, मैं अपने रास्ते और आप अपने रास्ते। (अपना सामान उठाते हुए) खैर, मैं अपनी सारी बातें आपके सामने रख चुकी हूं और अपने टर्म्स एंड कंडीशन भी आपको क्लीयरली बता चुकी हूं, तो अब आपका जो भी डिसीजन हो आप मुझे इन्फॉर्म कर दीजिएगा!
मिस्टर सिंघानिया (अरु को जाते देख बिना वक्त गंवाए): मुझे मंजूर है तुम्हारी शर्त!
अरु ने मिस्टर सिंघानिया की बात सुनी तो उनकी ओर एक गहरी नज़र से देखा, जैसे वह कह रही हो कि एक बार और सोच लीजिए कि आप वाकई में यह करना चाहते हैं!
मिस्टर सिंघानिया (अरु की ओर देखकर गंभीर भाव से): हां, मुझे मंजूर है तुम्हारी शर्त और मैंने दिया तुम्हें अगला एक महीना खुद को प्रूफ करने के लिए। एंड आई होप कि जो कॉन्फिडेंस, जो जुनून और जो लगन मुझे तुम्हारी आंखों में नजर आ रहे हैं, उसे तुम बकायदा अपने बिजनेस स्किल्स में भी प्रूफ कर पाओ!
अरु (पूरे आत्मविश्वास के साथ): डोंट वरी मिस्टर सिंघानिया, आप हरगिज निराश नहीं होंगे!
मिस्टर सिंघानिया (खड़े होकर अरु से हाथ मिलाते हुए): होप सो, एंड वेलकम टू द कंपनी मिस कपूर!
अरु (मिस्टर सिंघानिया से हाथ मिलाते हुए): थैंक यू मिस्टर सिंघानिया!
करन (जल्दी से कुर्सी से खड़ा होकर अपना हाथ अरु की ओर बढ़ाते हुए): वेलकम टू द कंपनी मी अमोर (माय लव)! (मिस्टर सिंघानिया की तीखी नज़रें खुद पर महसूस करते हुए जल्दी से अपनी बात बदलते हुए) आई मीन मिस कपूर, वेलकम टू द कंपनी मिस कपूर!
अरु (करन की ओर एक नज़र डालकर, बिना उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाए बिना किसी भाव के): थैंक यू। (एक पल रुककर मिस्टर सिंघानिया की ओर देखकर) ठीक है मिस्टर सिंघानिया, मैं कल से ही कंपनी ज्वाइन कर लूंगी। आज मेरे कुछ जरूरी काम हैं, मैं उन्हें निपटा लूं, फिर मैं कल से कंपनी ज्वाइन कर लूंगी!
मिस्टर सिंघानिया (अपना सर हां में हिलाते हुए): ओके, श्योर, नो प्रॉब्लम!
करन (अरु की ओर देखकर उत्सुकता से): तुमने अपनी बिजनेस स्किल्स के बारे में तो बखूबी सब कुछ बता दिया, लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया? (एक पल रुककर) आई मीन, आखिर कौन हो तुम? और कहां से आई हो? यहां की तो नहीं लगती, तो फिर?
अरु (गंभीर भाव से मिस्टर सिंघानिया और करन की ओर देखकर): एक बात और मिस्टर सिंघानिया, मैं यहां आपसे प्रोफेशनली जुड़ी हूं। प्रोफेशनल लाइफ में आप मुझसे किसी भी तरह का कोई भी सवाल करने का हक रखते हैं और मैं आपको जवाबदेह भी हूं, लेकिन इसे अब आप मेरी शर्त समझे या रूल, मगर मैं बिल्कुल नहीं चाहती कि मेरी पर्सनल लाइफ में कोई भी किसी भी तरह का कोई इंटरफेयर करे। मैं कौन हूं, कहां से आई हूं, क्या करती हूं, क्या नहीं, यह मेरा निजी मामला है और मैं नहीं चाहती कि कोई भी इसमें हस्तक्षेप करे। (करन की ओर देखकर गंभीर भाव से) कोई भी, मतलब कोई भी!
करन (अरु के जवाब से संतुष्ट ना होते हुए): लेकिन यह तो कंपनी का रूल के खिलाफ है क्योंकि हर एंप्लॉयी को अपने बारे में जानकारी देना एक अहम नियम है!
अरु (सख्त भाव से करन की ओर देखकर): कंपनी के ऐसे बहुत से नियम और रूल्स होते हैं मिस्टर करन, जिन्हें लोग बहुत पीछे छोड़ जाते हैं, पर उन रूल्स की धज्जियां उड़ाने से पहले और अपने केबिन को अपना बेडरूम बनाने से पहले लोग एक बार भी नहीं सोचते। तो बेहतर होगा कि उन नियमों के पाठ आप मुझे ना ही पढ़ाएं और मेरा अतीत क्या था और क्या नहीं, मैं इस बारे में किसी से भी कुछ भी डिस्कस नहीं करना चाहती। अब अगर कोई नियम टूटता है तो टूटे, आई डोंट केयर! (सख्त भाव से) लेकिन मेरा अतीत कोई ना कुरेदे तो ही बेहतर होगा!
मिस्टर सिंघानिया (अरु को आश्वासन देते हुए): डोंट वरी, हमें तुम्हारे आज से मतलब है, तुम्हारे पास्ट से हमारा कोई लेना-देना नहीं है और ना ही हमारी तरफ से तुम्हारी पर्सनल लाइफ में कोई भी या किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप कभी भी नहीं होगा। जस्ट डोंट वरी!
अरु (गंभीर भाव से): थैंक्यू!
कुछ देर बाद अरु अपना सामान लेकर वहां से चली गई। करन अभी भी लगातार अरु की दिशा में देखते हुए अभी भी अपनी आंखें छोटी करके कुछ सोच रहा था। उसे इस तरह से सोच में डूबा देख आखिर में मिस्टर सिंघानिया ने उसे टोका।
मिस्टर सिंघानिया (करन को सोच में डूबा देख): क्या सोच रहे हो?
करन (अरु की बातें याद करते हुए): यही कि कुछ तो अलग है इस लड़की में डैड, कुछ तो है!
मिस्टर सिंघानिया (करन को घूरकर): तुम नहीं सुधरोगे ना कभी करन?
करन (झट से मिस्टर सिंघानिया की ओर अपना रुख करते हुए गंभीर भाव से): नो डैड, मैं उस वे में नहीं कह रहा हूं जैसा आप समझ रहे हैं। (एक पल रुककर) आह... कैसे समझाऊं मैं आपको? मेरा मतलब है कि वह बाकी लड़कियों की तरह नहीं है, उसमें कुछ तो बात है!
मिस्टर सिंघानिया (हामी भरते हुए): ऑफकोर्स, यकीनन उसमें कुछ तो बात है, तभी मैंने उसे 49% पार्टनरशिप देने की बात एग्री की, वरना यूं ही किसी राह चलते को मैं अपनी कंपनी में पार्टनरशिप नहीं दे देता!
करन (मिस्टर सिंघानिया की ओर देखकर): आपको लगता है वो कर पाएगी?
मिस्टर सिंघानिया (पूरी गंभीरता से): मुझे सिर्फ लगता नहीं है, बल्कि मुझे पूरा यकीन है कि वो कर पाएगी, क्योंकि इस लड़की की आंखों में जो जुनून, जो लगन और जो आत्मविश्वास मैंने देखा है, कभी यही सब मैंने खुद में भी महसूस किया था और यू नो, जब इंसान में खुद में कुछ कर गुजरने की चाह होती है, तो फिर वह इंसान कुछ भी कर सकता है, उसके लिए कुछ नामुमकिन नहीं है!
करन (एक गहरी सांस छोड़कर): वेल! देखते हैं फिर कि आपका अंदाजा कितना सही निकलता है!
मिस्टर सिंघानिया (अपना सर हां में हिलाते हुए): हां, लेकिन एक बात मेरी याद रखना करन, यह लड़की हमारे बिजनेस के लिए बहुत इंपॉर्टेंट साबित हो सकती है, तो अपनी किसी भी तरह की बेवकूफाना हरकतों से बाज आना और कोई भी ऐसा काम मत करना जो हमारे बिजनेस या हमारे लिए नुकसानदेह साबित हो। समझ रहे हो ना कि मैं क्या कह रहा हूं?
करन (बोरिंग एक्सप्रेशन से): या डैड, समझ रहा हूं। आप टेंशन ना लें, मैं खुद से ऐसा-वैसा कुछ नहीं करने वाला। (एक पल रुककर) और वैसे भी डैड, मुझे लड़कियों की कमी नहीं है जो मैं किसी के भी साथ ज़बरदस्ती करूंगा। इनफैक्ट, लड़कियां खुद मेरे पीछे आती हैं, मैं उनके पीछे नहीं!
मिस्टर सिंघानिया (करन को डपटते हुए): बस करो, मुझे तुम्हारी फिजूल डिस्कशन सुनने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मुझे काम पर फोकस चाहिए, दैट्स ऑल। (एक पल रुककर) वैसे, एम श्योर कि तुमने आज भी मेरे ऑफिस आने से पहले ज़रूर कुछ तो कारनामा किया था, तभी वह लड़की बार-बार सरकास्म कर रही थी तुम्हें लेकर, नई?
करन (जल्दी से मिस्टर सिंघानिया की बात को काटते हुए): डैड, मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं आपसे बाद में मिलता हूं, बाय!
इतना कहकर करन जल्दी से वहां से रफूचक्कर हो गया।
मिस्टर सिंघानिया (अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए): कुछ नहीं हो सकता इस लड़के का, कभी नहीं सुधर सकता यह। ईश्वर ने एक बेटा दिया, वह भी बिल्कुल नालायक!
अगले दिन से अरु ने ऑफिस ज्वाइन किया और वह अपनी पूरी जी-जान से अपने काम में जुट गई। धीरे-धीरे से दिन गुजरने लगे थे और हर बढ़ते दिन के साथ ही अरु की लगन और मेहनत भी बढ़ती ही जा रही थी। और यहां उसके बारे में कोई क्या कहता था, क्या सोचता था या क्या करता था, उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। ना ही वह उन लोगों की तरफ ध्यान ही देती थी और ना ही वह यहां किसी से घुली-मिली ही थी। अगर यह पुरानी अरु होती, तो अब तक यहां उसके बहुत से दोस्त बन जाते, लेकिन अब यहां उसका मोटिव सिर्फ इतना था कि इस 1 महीने में उसे ना सिर्फ मिस्टर सिंघानिया के सामने खुद को प्रूफ करना था, बल्कि उसे खुद अपनी नज़रों में भी खुद को हर हाल में प्रूफ करना था। और यह पहला और आखिरी चांस था जब वह खुद को साबित कर सकती थी और दुनिया और उन लोगों को गलत ठहरा सकती थी जो उसे हमेशा से कमतर समझते आए थे।
वह दिखा देना चाहती थी दुनिया को कि वह कोई बिचारी नहीं है और वह सिर्फ अकेले खुद अपने दम पर, अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी, कुछ कर सकती थी, बिना किसी साहारे के, बिना किसी के साथ के, सिर्फ अकेले अपने दम पर। अरु को अर्जुन की तरह बस अपना लक्ष्य नज़र आ रहा था और जिसे हासिल करने के लिए अरु ने दिन-रात एक कर दी थी। और इसी बीच मिस्टर कपूर को भी बेहतर इलाज के लिए लंदन शिफ्ट कर दिया गया था। क्योंकि अरु इस वक्त बिजनेस में बिजी थी, इसलिए वह खुद लंदन शिफ्ट नहीं हो पाई थी। बस मिस्टर कपूर के वहां शिफ्ट होने के एक-दो दिन बाद ही वह वापस स्पेन लौट आई थी। और इसी बीच करन के बारे में भी अरु की सोच थोड़ी बदली थी। पहले दिन जिस तरह से अरु ने करन के बारे में सोच बनाई थी, अब वह धीरे-धीरे उसके साथ काम करने और जानने से बदलने लगी थी। उसे यह बात समझ आ चुकी थी कि करन का नेचर भले ही फ्लर्टी था, लेकिन वह दिल का बुरा बिल्कुल भी नहीं था, मजाकिया था, लेकिन किसी की फीलिंग या भावनाओं के साथ खेलने वालों में से हरगिज नहीं था।
ऐसे ही धीरे-धीरे करन का झुकाव भी अरु की ओर दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था। अक्सर अरु को अच्छे से समझ आता था कि करन उसके साथ फ्लर्ट करने की हर मुमकिन कोशिश करता था और कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देता था। लेकिन हर बार अरु कभी अपनी खामोशी तो कभी अपने सख्त भाव से उसे खामोश कर देती थी। देखते ही देखते एक महीना भी बीत चुका था, पर अपनी मेहनत और लगन के बलबूते पर आखिर में अरु ने खुद को और खुद की मेहनत को प्रूफ कर दिया था और जो भी वादा उसने मिस्टर सिंघानिया से किया था, उस पर वह बिल्कुल खरी भी उतरी थी। हालांकि 1 महीने में इतनी ज्यादा कामयाबी नहीं मिली थी, लेकिन कंपनी के स्तर के हिसाब से जो कामयाबी कंपनी को पिछले छह महीनों में नहीं मिली थी, वह कामयाबी कंपनी ने अरु की वजह से सिर्फ 1 महीने में हासिल कर ली थी। और अब मिस्टर सिंघानिया को अरु की काबिलियत पर पूरी तरह से भरोसा हो चुका था और इसी के साथ उन्होंने अरु को अपनी कंपनी में 49% की पार्टनरशिप भी दे दी थी।
भले ही अरु इन लोगों से पार्टनरशिप में आ चुकी थी, लेकिन अब तक अरु के अतीत से सब बिल्कुल अनजान थे। ऐसे ही एक दिन अरु अपने केबिन में रोज़ की तरह काम कर रही थी। उसकी तबियत सुबह से ही थोड़ी लो थी, उसे बार-बार चक्कर आ रहे थे, लेकिन फिर भी वह बिना रुके बस काम ही किए जा रही थी। जैसे-तैसे उसका दिन कटा और शाम हुई, लेकिन शाम होते-होते और उसकी तबियत और भी ज्यादा खराब हो गई थी। ऑफिस का टाइम खत्म होने के बाद करन जब अरु को देखने के लिए उसके केबिन में आया, तो उसने देखा कि अरु अपने टेबल पर सिर टिकाकर बैठी हुई थी। करन को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि उसने इतने वक्त में अरु को कभी भी इतना सुस्त नहीं देखा था। वह तो बस हमेशा हर पल काम में ही बिजी रहती थी, जैसे वह इंसान ना होकर एक रोबोट हो।
करन ने अरु की अटेंशन लेने के लिए उसे आवाज दी, तो उसे कोई रिस्पांस नहीं आया। करन ने दुबारा अरु को आवाज दी, तब भी उसे अरु की तरफ से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। अब करन को कुछ गड़बड़ लगी तो वह फुर्ती से अरु की ओर बढ़ गया। उसने अरु का कांधा हिलाया तो उसने पाया कि अरु टेबल पर बेहोश थी। अरु को बेहोश देख अनायास ही करन के माथे पर परेशानियां और टेंशन की लाइंस उभर आईं और उसने बिना सोचे और एक पल की भी देरी किए अरु को अपनी गोद में उठा लिया और उसे फुर्ती से नीचे पार्किंग में ले जाकर अपनी गाड़ी में बैठाया और फिर फुर्ती से हॉस्पिटल के लिए निकल गया। कुछ देर में वह अरु को लेकर हॉस्पिटल पहुंचा और डॉक्टर ने उसका चेकअप शुरू किया। कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आई तो करन ने टेंशन भरे भाव से उनसे सवाल किया।
करन (परेशानी भरे स्वर से): डॉक्टर क्या हुआ है अरु को? वह ठीक तो है ना?
डॉक्टर (सामान्य भाव से): हां, कोई खास घबराने वाली बात नहीं है। अक्सर इस हालत में ऐसा हो जाता है। बस उनका बीपी डाउन हो गया था, उन्हें इस हालत में केयर की जरूरत है!
करन (असमंजस भरे भाव से): इस हालत से मतलब?
डॉक्टर: आपको नहीं पता? (एक पल रुककर) शी इज़ प्रेग्नेंट ना!
करन (तपाक से): कैसी पागलों जैसी बात है यह!
डॉक्टर (अजीब नज़रों से करन को घूरकर): व्हाट?
करन (अविश्वास से): आई मीन, आर यू श्योर डॉक्टर? (एक पल रुककर) ऐसा कैसे हो सकता है?
डॉक्टर: यस, एम श्योर। एक्सक्यूज मी!
इसके बाद डॉक्टर वहां से चली गई, लेकिन करन के लिए यह खबर उसके सर पर किसी न्यूक्लियर बम फटने जैसी खबर थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि अरु प्रेग्नेंट है और किसी को यह बात पता होना तो दूर, कभी इस चीज़ की भनक तक भी अरु ने किसी को नहीं पड़ने दी थी। न जाने क्यों मगर यह खबर सुनकर करन को कहीं ना कहीं बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। अब इसकी असल वजह क्या थी, यह तो वह भी नहीं समझ पा रहा था। अरु के होश में आने के बाद डॉक्टर ने उसे घर जाने के लिए कह दिया। अरु बिस्तर से उठी और जैसे ही जाने लगी कि करन उस रूम में अंदर आया। करन के चेहरे पर गंभीर भाव थे, जिसे अरु ने आज से पहले कभी नहीं देखा था। आज पहली बार था जब वह उसे ऐसे गंभीर भाव के साथ देख रही थी और कहीं ना कहीं शायद अरु इसकी वजह समझ भी चुकी थी।
करन (अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): तुम प्रेग्नेंट हो, तुम्हें पता है? (एक पल रुककर खुद ही) मैं भी कैसे बेवकूफाना सवाल कर रहा हूं, ऑफकोर्स तुम्हें पता होगा। (एक पल रुककर) लेकिन तुमने यह सब क्यों छुपाया?
अरु (गंभीर भाव से): एक्सक्यूज मी, मैंने क्या छुपाया? और मैं तुम्हें या किसी को भी क्यों बताती यह सब और आखिर किस रिश्ते से?
करन (अरु का जवाब सुनकर नाखुशी भरे भाव से): लेकिन तुम...
करन कहते-कहते ही बीच में रुक गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे और कैसे रिएक्ट करे। बस इस पल उसे एक अजीब सी फीलिंग हो रही थी, जैसे पल भर में उससे कुछ छीन लिया गया हो। अपनी इस अनजानी फीलिंग्स को नासमझ पाने की वजह से करन को फ्रस्ट्रेशन सी महसूस हो रही थी। दूसरी तरफ अरु करन के भाव और अनकहे सवालों को अच्छे से समझ पा रही थी।
अरु (करन की चुप्पी के पीछे के सवालों को समझते हुए): वैसे तो मैं किसी को भी अपनी जिंदगी के बारे में कुछ भी बताना जरूरी नहीं समझती, लेकिन फिर भी तुम्हारी जानकारी के लिए तुम्हें बता दूं... (एक पल रुककर) कि मैं डायवोर्सी हूं। (एक पल रुककर) एंड आई थिंक अब तुम्हें तुम्हारे हर सवाल और डाउट का जवाब मिल गया होगा। अब बेहतर होगा आइंदा जितना हो सके मुझसे उतना दूर रहना!
इतना कहकर अरु हॉस्पिटल के रूम से बाहर निकल गई। यूं तो अरु किसी को भी अब कोई एक्सप्लेनेशन देना जरूरी नहीं समझती थी, लेकिन क्योंकि एक बार उसके बच्चे के अस्तित्व पर उंगली उठ चुकी थी, तो अब वह हरगिज नहीं चाहती थी कि दुबारा उसके बच्चे के जायज होने पर उंगली उठे और यह खबर भी ऐसी थी जो ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकती थी। आज नहीं तो कल सबको पता चलनी ही थी। एक तरफ जहां करन को अरु की प्रेगनेंसी की न्यूज़ सुनकर बुरा महसूस हुआ था, वही दूसरी तरफ अब उसके डायवोर्सी होने की खबर ने उसके दिल के अजीब एहसास को कुछ हल्का कर दिया था। उसे आज ऐसे एहसास महसूस हो रहे थे जिसे उसने आज तक कभी भी महसूस नहीं किया था। हॉस्पिटल से निकलने के बाद करन ने अरु को उसके फ्लैट पर ड्रॉप किया और वापस अपने घर आ गया।
ऐसे ही धीरे-धीरे दिन बीतने लगे थे। करन में बदलाव भी आने लगा था। वक्त बढ़ने के साथ ही लगभग अब सबको अरु की प्रेगनेंसी और उसके डायवोर्सी होने की खबर हो गई थी। सब लोग अरु के अतीत के बारे में जानना चाहते थे, मगर अरु से किसी की भी कोई भी या किसी भी तरह के सवाल करने की हिम्मत किसी की भी नहीं थी। और इसी बीच मुंबई में
(फ्लैशबैक एंड.......!!)
अतीत की यादों को याद करते-करते करन को पता ही नहीं चला कि वह कब नींद के आगोश में पहुँच गया और अपनी जिंदगी के मीठे सलोने सपनों में खो गया। जब उसकी नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी। उसने खिड़की से झाँकते सूरज को देखा तो फौरन बिस्तर पर उठ बैठा और हड़बड़ी में इधर-उधर देखने लगा। कुछ पल बाद उसने अपने तकिए के पास, दाईं ओर, अपना फोन देखा तो उसकी हड़बड़ाहट शांत हुई। उसने झट से अपना फोन हाथ में उठा लिया और उसे चेक करने लगा। हजारों मैसेजेस और विशेज थे, जो करन को अलग-अलग तरीके से जन्मदिन की बधाई देते हुए उसे स्पेशल फील कराने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन इन हजारों लोगों के मैसेजेस और कॉल के बीच करन की नज़रें सिर्फ़ एक शख्स के नाम को तलाश रही थीं – अरु। और उसकी उदासी के लिए सिर्फ़ इतना ही काफी था कि उसे इन हजारों जन्मदिन की बधाइयों के बीच अरु का नाम कहीं भी नज़र नहीं आया। करन ने उदासी भरी नाराजगी से अपने फोन को वापस बिस्तर पर पटक दिया।
करन (कुछ पल सोचने के बाद नाराजगी से बड़बड़ाते हुए): वैसे तो पूरा दिन आइंस्टाइन बनके घूमती है, लेकिन मजाल है मुझे जन्मदिन की बधाई देने के लिए कॉल तो छोड़ो, एक छोटा सा मैसेज भी कर देती। (एक पल रुक कर) पर यह भी तो हो सकता है कि उसने सोचा हो कि वह मुझे मिलकर ही जन्मदिन की बधाई देगी, क्योंकि अभी तो मेरे जन्मदिन की शुरुआत ही हुई है। (खुद को सांत्वना देते हुए) तू भी ना करन, कुछ भी सोचता है बेकार में। बिचारी अरु पर शक कर रहा था। आई नो वो पक्का मुझे ऑफिस में विश करेगी और हो सकता है वो अब तक ऑफिस के लिए निकली भी ना हो, रुक कर मेरा वेट ही कर रही हो।
करन ने घड़ी की ओर देखा और अपने बिस्तर से उठकर फुर्ती से अपने अलमारी की ओर बढ़ गया। उसने फुर्ती से अपने कपड़े निकालकर जल्दबाजी में बाथरूम की ओर भाग गया। शॉवर लेने के बाद करन जल्दी-जल्दी से तैयार हुआ। उसने ब्लैक कलर का सूट पहना और बिस्तर से फटाफट अपना फोन उठाया। बाहर निकलते-निकलते उसने अरु को कॉल की। अरु ने दो-तीन रिंग के बाद उसका फोन उठाया।
"कहाँ हो तुम अरु?"
"बस ऑफिस पहुँचने ही वाली हूँ। क्यों?"
"अच्छा, तुम ऑफिस के लिए निकल भी गई!!"
"हाँ!"
"लेकिन तुम मेरे बिना ऐसे कैसे निकल गई?"
"मैं तो रोज़ की तरह ही निकली हूँ। आज क्या नया है? मैं रोज़ ही जल्दी आती हूँ!"
"अच्छा खैर छोड़ो ये सब। तुम पहुँचो, मैं मिलता हूँ तुम्हें ऑफिस पहुँचकर।"
"हम्मम... ठीक है!"
"ओके... बाय!!"
"हम्मम... बाय!!"
करन ने फोन काट दिया और अपने मन ही मन में सोचा कि शायद अरु उसे ऑफिस में कोई सरप्राइज दे, वरना कम से कम ऑफिस पहुँचकर अरु उसे जन्मदिन की बधाई तो ज़रूर देगी। एक बार खुद को फिर समझाकर करन वापस उसी एक्साइटमेंट के साथ अपनी गाड़ी में बैठ गया और उसने फुर्ती से ऑफिस की तरफ अपनी गाड़ी बढ़ा दी। इधर, रिदांश के घर में सब नाश्ते की टेबल पर बैठे एक साथ नाश्ता कर रहे थे। कुछ देर बाद पलक अपने रूम से बाहर आई और सीधा रिदांश के पास चली गई। रिदांश ने पलक को देखा तो उसने उसे प्यार से अपनी गोद में बिठा लिया।
"गुड मॉर्निंग डैडी!!"
"गुड मॉर्निंग बच्चे। (एक पल रुक कर) ओके, बताओ क्या खाना है आपको?"
"मुझे वो ब्राउनी खानी है!!"
"नो पलक। सुबह-सुबह पहले कुछ हेल्थी... (दूध का गिलास पलक की ओर बढ़ाते हुए) लो पहले ये दूध पियो।"
"नो मम्मा, आई डोंट लाइक मिल्क। मुझे बस ब्राउनी ही खानी है।"
"लेकिन पलक बेटा!!"
"इट्स ओके नम्या। अगर उसका ब्राउनी खाने का मन है तो उसे वो खाने दो। बाद में वो दूध पी लेगी।"
"अब जब इस बदमाश के डैडी ने ही इजाज़त दे दी है तो फिर मैं कौन होती हूँ उसे रोकने वाली। बाय द वे भाई आप ही इसे बिगाड़ रहे हैं।"
"हाँ, जब उसकी माँ को बिगाड़ा है तो बेटी को भी बिगाड़ लेगा, कौन सी बड़ी बात है। आगे जाकर मेरी ही तरह मिल जाएगा इसे भी कोई बिचारा जिसमें इसे झेलने की शक्ति होगी।"
"वेरी फनी!!"
"नो डार्लिंग। इट्स नॉट फनी। ये तो सच है।"
"व्हाटेवर। अब चाहे मर्ज़ी हो या ना हो, झेलना तो तुम्हें ही है फॉर श्योर। एनीवे... (ब्राउनी की प्लेट पलक की ओर पास करते हुए) लीजिए खाइए मैडम।"
"थैंक्यू मम्मा।"
"वेलकम मेरी जान।"
इसके बाद पलक रिदांश की गोद में बैठी, बड़े ही मज़े से ब्राउनी खा रही थी और रिदांश एक हाथ से पलक को थामे हुए दूसरे हाथ से अपने फ़ोन की स्क्रीन पर आए मेल को पढ़ने में बिज़ी था। बीच-बीच में वह अपनी कॉफ़ी के सिप भी ले रहा था। पलक ने अपनी ब्राउनी ख़त्म की तो रिदांश ने उसकी ओर दूध का गिलास बढ़ा दिया। पलक ने दूध को देखकर क्यूट सा मुँह बनाया तो रिदांश ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
"यू ऑलवेज सेड ना कि आपको मेरी तरह बनना है।"
"हाँ, मुझे बिलकुल आपकी तरह बनना है।"
"तो मेरे जैसा बनने के लिए तुम्हें एक टॉप सीक्रेट बताऊँ?"
"हाँ, बताएँ?"
"जब मैं छोटा था ना, मतलब तुम्हारे जितना, तो मैं सुबह शाम दूध पीता था।"
"फिर दूध पीने से क्या हुआ डैडी?"
"फिर ना..."
रिदांश ने कभी भी किसी से सामान्य तौर पर, नॉर्मल इंसान की तरह बात तो की ही नहीं थी, ना ही बच्चों से कभी उसका इंटरेक्शन हुआ था। एक पलक ही थी जो इतनी छोटी बच्ची से वह इंटरेक्ट कर रहा था। हालाँकि अपने खुद के बहन-भाई भी उससे छोटे थे, लेकिन फिर भी वह पलक से बड़े ही थे। इसीलिए रिदांश को बच्चों से बातें करना या उनको समझाना-समझाना कोई एक्सपीरियंस नहीं था। अब बड़ों से तो वह जैसे-तैसे अपने ब्लैंक एक्सप्रेशंस और ठंडे व्यवहार से डील कर ही लेता था, लेकिन बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार करना ना तो उचित था और ना ही वह इस व्यवहार को समझ ही पाता था। इससे भी अलग अपने बच्चे को खोने के बाद रिदांश की जिंदगी में पलक का आना किसी बहुत बड़ी ब्लेसिंग और मैजिक से कम नहीं था और शायद अपने बच्चे को खोने का दुःख और गम ही था कि पलक के अपनी जिंदगी में आने के बाद रिदांश का उससे इस कदर लगाव हो गया था।
हालाँकि इस बीते अरसे में एक पल भी ऐसा नहीं था जब रिदांश ने अपने बच्चे को याद ना किया हो, पर फिर भी पलक ने रिदांश की जिंदगी में आकर बहुत हद तक उसकी तकलीफ़ पर एक मरहम का काम किया था। हालाँकि पलक भी दूसरों की तरह ही रिदांश के गुस्से के वक़्त उसके आगे खामोश ही रहती थी, लेकिन फिर भी दूसरे लोगों के देखते हुए पलक रिदांश के साथ थोड़ी खुली हुई थी और रिदांश भी उसे बेहद चाहता था। और अभी भी उसे दूध पिलाने के लिए रिदांश ने उसके सामने बहाना तो बना दिया था, लेकिन अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उससे आगे क्या कहे। पलक बड़ी ही मासूम और शांत स्वभाव की बच्ची थी। वह बड़ी ही उत्सुकता से रिदांश के जवाब का इंतज़ार कर रही थी। उसकी उत्सुकता देख कुछ पल बाद रिदांश ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
"और फिर आपके डैडी समझदार और इंटेलिजेंट हो गए।"
"हाँ और साथ ही खडूसपने की दुकान भी।"
रिदांश ने दक्ष की बात सुनी तो उसे तिरछी निगाह से घूरा, लेकिन दक्ष ने रिदांश की नज़रों को महसूस करते हुए भी अपनी नज़रें उठाकर एक बार भी उसकी ओर नहीं देखा और लगातार चुपचाप अपना नाश्ता करता रहा। हालाँकि रिदांश की तिरछी नज़र देखकर उसका दिल डर से धड़क रहा था, मगर बाहर से वह ऐसे दिखाने की कोशिश कर रहा था जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो। पलक ने वापस से रिदांश से बात शुरू की तो रिदांश ने वापस से अपना सारा ध्यान पलक की ओर कर लिया। रिदांश की बात सुनकर पलक ने खुशी-खुशी दूध का गिलास खत्म कर लिया। उसके दूध पीने के बाद रिदांश ने उसे उठाकर अपनी चेयर पर बिठाया और उसका सर चूमकर वह अपनी माँ कल्पना जी से मिलने उनके कमरे की ओर चला गया। और रिदांश के वहाँ से जाने के बाद दक्ष ने अंदर ही अंदर चैन की साँस ली, मगर दक्ष के बाजू में बैठे अनिकेत ने दक्ष के डर को भाप लिया था और उसे टीज़ करने के लिए अनिकेत ने धीरे से उसके कान में कहा।
"क्या फ़ायदा तेरे इस 56 इंच की छाती का जब कि हिम्मत दस इंच की भी नहीं है। (एक पल रुक कर) जब पंगा लेने की हिम्मत नहीं होती बेटा तो कोशिश ही क्यों करता है।"
दक्ष ने अनिकेत की बात सुनी तो उसने जोरों से अनिकेत के पैर पर अपना पैर मारा जिससे अनिकेत अपनी ही जगह दर्द से कराहते हुए उछल पड़ा।
"कमीने..."
"क्या हुआ अनी तुम्हें? तुम ऐसे कराह क्यों रहे हो?"
अनिकेत की कराहट सुनकर नम्या और प्रिशा ने भी अपनी नज़रें दक्ष और अनिकेत की दिशा में कीं।
"कुछ नहीं हुआ नम्या। डोंट वरी। बस वो क्या है ना हमारे अनी की आदत है, खुराक लेने की। अगर इसे वो खुराक ना मिले तो इसे खुजली होती ही रहती है। अब इसे खुराक मिल गई ना तो बस अब ये कुछ देर के लिए सुकून से रहेगा।"
"कमीने... तुझे तो मैं बताता हूँ बाद में।"
दूसरी तरफ जब रिदांश अपनी माँ के कमरे में पहुँचा तो हमेशा की तरह वह अपनी गुड़िया के साथ खेल रही थी, उसके बाल सँवार रही थीं। इन बीते 5 सालों में कल्पना जी के जीवन में कोई खास सुधार नहीं आया था, सिवाय इसके कि अब वो घर के लोगों से थोड़ा घुलने-मिलने लगी थी और अब वह सब से डरकर रहने की बजाय सबके बीच बिना डरे आने लगी थी। और रिदांश के साथ ही अब प्रिशा और नम्या भी उन्हें अक्सर बाहर आउटिंग के लिए अक्सर पार्क या ऐसी ही किसी जगह ले जाया करते थे। लेकिन अब भी वो पब्लिक प्लेस पर ज़्यादा लोगों को देखकर थोड़ा घबराती थी, इसलिए उन्हें ऐसी जगहों पर कम ही ले जाया जाता था जहाँ भीड़ ना हो। रिदांश कल्पना जी के कमरे में अंदर आया। जब कल्पना जी ने रिदांश को वहाँ देखा तो वो बड़ी सी मुस्कराहट के साथ उसके करीब आई और रिदांश के पीछे इधर-उधर झाँककर देखने लगी। लेकिन जब कुछ पल बाद तक भी उन्हें कुछ नहीं नज़र आया तो उन्होंने रिदांश की ओर मासूमियत भरी सवालिया नज़रों से देखा।
"क्या हुआ है माँ? कुछ चाहिए आपको?"
"हाँ... तुम... तुमने आज भी मेरी बात नहीं सुनी ना और तुम आज भी अरु को अपने साथ नहीं लाए?"
रिदांश ने कल्पना जी के मुँह से अरु का नाम सुना तो उसने एक पल को अपनी आँखें बंद कर लीं। बीते 5 सालों में कल्पना जी अक्सर अरु को याद करती रहती थीं। हालाँकि कई बार ऐसा भी हो जाता था कि उनकी मानसिक स्थिति के चलते वो कई दिनों या हफ़्तों तक भी अरु का ज़िक्र तक नहीं करती थीं, लेकिन फिर अचानक ही खुद कभी भी अरु को याद करना शुरू कर देती थीं, तो फिर हफ़्तों तक उसे नहीं भूलती थीं और लगातार अरु के बारे में पूछती रहती थीं और उनके सवालों का जवाब रिदांश के पास होता ही नहीं था। आज भी जब रिदांश ने जब उनके मुँह से अरु का नाम सुना तो उसने कुछ पल तक कुछ नहीं कहा और फिर प्यार से कल्पना जी के कंधे पर हाथ रखते हुए, उनका हाथ थामते हुए उन्हें बेड पर आराम से बैठाया।
"बोलो ना रिदू। कब आएगी अरु? (एक पल रुक कर) वह मुझे अच्छी लगती है। मेरे साथ खेलती भी थी और मुझे अच्छा-अच्छा खाना भी खिलाती थी। वो मुझे... मुझे बहुत ही अच्छी लगती है।"
"ये तो माँ बाकी सब भी करते हैं ना?"
"हाँ करते हैं, लेकिन फिर भी मुझे अरु ज़्यादा अच्छी लगती है। वो बहुत प्यारी सी थी, बिलकुल मेरी प्यारी सी डॉलू की तरह। बताओ ना रिदू, वो कब आएगी मुझसे मिलने? तुम उसे कब लेकर आओगे? तुमने कहा था ना कि वह अपने घर चली गई है, मतलब अपने माँ-पापा के पास क्या, तो उसे कहो ना कि वह मुझसे मिलने आए। मुझे उसकी बहुत याद आती है।"
"आप उसे मत याद किया कीजिए।"
"लेकिन क्यों? बोलो लेकिन क्यों ना याद करूँ मैं उसे? वो मुझे अच्छी लगती है बताया तो तुम्हें।"
"क्योंकि अब वो कभी भी यहाँ वापस नहीं आएगी।"
"तो क्या अरु वहाँ चली गई जहाँ से कोई वापस नहीं आता, मतलब भगवान जी के पास चली ग..."
कल्पना जी अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाई थी कि रिदांश ने फौरन बीच में ही उनके मुँह पर अपनी हथेली रखकर उन्हें शांत करा दिया। हालाँकि रिदांश को भी यह समझ नहीं आया था कि आखिर उसने ऐसे अचानक ऐसा क्यों किया, लेकिन ना जाने क्यों जब उसने कल्पना जी के मुँह से अरु के लिए ऐसी बात सुनी तो एक पल को ही सही, मगर उसके दिल में एक बेचैनी सी उठ गई और उसने जल्दी से कल्पना जी के मुँह पर अपनी हथेली रख दी। कुछ पल बाद रिदांश ने उनके मुँह से अपनी हथेली हटाई।
"ऐसा नहीं कहते माँ। (एक पल रुक कर) और मैंने बताया था ना आपको कि वो अपने घर जा चुकी है। उसकी अपनी एक अलग दुनिया बस चुकी है और हम अपनी अलग दुनिया बसा चुके हैं और अब हम लोगों की दुनिया में एक-दूसरे का मिलना नहीं लिखा है माँ।"
"लेकिन..."
"अब बहुत बातें कर ली आपने। अभी आपने दवाई ली है। अब आप आराम से सो जाएँ। मैं ऑफिस जाने के लिए लेट हो रहा हूँ। शाम को आपसे आकर मिलता हूँ।"
"ठीक है।"
इसके बाद रिदांश ने कल्पना जी को बेड पर लेटाते हुए उन्हें कम्बल ओढ़ाया और कुछ देर बाद उनके सोने के बाद उनके माथे को चूमकर वह उनके कमरे से बाहर आया और सीधा अपने ऑफिस के लिए निकल गया। इधर दूसरी तरफ करन बड़ी एक्साइटमेंट के साथ ऑफिस पहुँचा, लेकिन उसकी एक्साइटमेंट तब धरी की धरी रह गई जब अरु ने उससे मिलने के बाद भी उसे जन्मदिन की बधाई नहीं दी। करन ने सोचा कि शायद वो थोड़ी देर बाद उसे विश कर दें, लेकिन करन को खुद को समझाते-समझाते और झूठी तसल्ली देते हुए सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो चुकी थी और अब करन को यकीन हो चला था कि अरु उसका जन्मदिन भूल चुकी है और अब यकीनन उसे उसका जन्मदिन याद नहीं आने वाला और इसी सोच को सोचते हुए करन का पारा भी चढ़ने लगा था। वह गुस्से से अपने केबिन में बैठा जोर-जोर से फाइल इधर से उधर पटक रहा था। कुछ देर बाद अरु कुछ काम से उसके केबिन में आई तो उसे देखकर उसने अपना मुँह फेर लिया। अरु को उसका व्यवहार कुछ अजीब लगा तो उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।
"तुम्हें क्या हुआ है? तुम्हारा मुँह क्यों लटका है?"
"मेरा मुँह... मेरी मर्ज़ी... तुम्हें क्या लेना-देना है इससे?"
"मैंने तो तुमसे ऐसे ही पूछा है। तुम इतना रूड क्यों साउंड कर रहे हो?"
"तो क्या करूँ नाचूँ खुशी से कि हाँ तुम..."
"कि मैं... व्हाट? (करन की ओर देखकर गंभीर भाव से) कुछ हुआ है क्या?"
"नहीं... कुछ भी नहीं हुआ। तुम जाकर आराम से अपना काम करो और मुझे भी शांति से काम करने दो।"
अरु करन से आगे कुछ पूछती कि तभी उसका फोन बजने लगा। अरु ने स्क्रीन पर 'माय वर्ल्ड' फ़्लैश होता देखा तो उसके होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई क्योंकि ये 'माय वर्ल्ड' और कोई नहीं बल्कि आरांशी ही थी। उसका नंबर देखकर अरु ने जल्दी से कॉल पिक की।
"कैसी हो मेरी जान?"
"मैं एकदम ठीक हूँ मम्मा। आप कैसे हो?"
"मैं भी एकदम ठीक हूँ। फिट एंड फाइन।"
"ओके। बट क्या पिकाचू भी एकदम फिट एंड फाइन है?"
"लगता तो नहीं है वैसे। पता नहीं क्यों मगर लगता है तुम्हारे पिकाचू का दिमाग खराब हो गया है आज।"
"ओहो! अब वो तो आपने ही किया होगा ना मम्मा।"
"मैंने मगर... कैसे?"
"ओहो! मम्मा। सब मुझे ही समझाना पड़ता है। आज डेट क्या है?"
"आज तो 10 जनवरी है और क्या..."
और जैसे ही अरु ने डेट बोली तो उसने एक पल के लिए फौरन अपने दाँतों तले अपनी जुबान दबा ली। अब उसे अच्छे से समझ आ रहा था कि आखिर करन का पारा हाई क्यों था और वह क्यों उससे नाराज़ था। अरु ने आरांशी से कुछ पल बात करने के बाद उसे बाद में कॉल करने के लिए कहा। करन भी अरु के एक्सप्रेशन देखकर समझ चुका था कि अब फ़ाइनली अरु को उसका जन्मदिन याद आ चुका है। हालाँकि वह खुद अरु से ज़्यादा देर नाराज़ नहीं रह सकता था, लेकिन फिर भी अब उसने मन ही मन सोच लिया था कि वह अरु से आज अच्छे से बदला लेने वाला है। अरु ने आरांशी का फ़ोन रखा और फिर आकर करन के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
"एम सॉरी।"
"अपना सॉरी अपने पास ही रखो और वैसे भी यह कोई नई बात तो नहीं। पिछले 4 सालों में तुम एक बार भी बता दो कि मेरा जन्मदिन भूलने का रिवाज़ जो तुमने बनाया है उसे तोड़ा हो।"
"एम रियली सो सॉरी। एंड बिलीव मी, मैं ये जानबूझकर नहीं करती।"
"हाँ, जब काम के लिए खुद को ऑल टाइम रोबोट बनाकर रखोगी तो दुनिया की दूसरी चीजें क्या खाक रहेंगी।"
"एम सो सॉरी करन। मैं..."
"अभी भी मजाल है जो एक बार भी मुझे बर्थडे विश किया हो। बस सॉरी की रट लगाई जा रही हो।"
"सॉरी। एंड विश यू अ वेरी हैप्पी बर्थडे। ईश्वर तुम्हें दुनियाँ-जहाँ की सारी खुशियाँ दें और तुम बस हमेशा-हमेशा खुश रहो।"
"मेरी सारी खुशियाँ तो सिर्फ़ तुमसे जुड़ी हैं।"
"क्या हुआ? तुमने मुझे माफ़ किया ना?"
"नहीं, ऐसे नहीं माफ़ करना। इस बार तुम्हें हर्जाना भरना पड़ेगा।"
"आखिर अपने दोस्त का बर्थडे भूलकर अब गलती की है तो हर्जाना भी भरना ही पड़ेगा।"
"तो फिर ठीक है। चलो फिर मेरे साथ।"
"लेकिन कहाँ?"
"क्या चाहती हो कि आधे से ज़्यादा दिन बर्बाद हो चुका है। अब जो गिने-चुने घंटे बचे हैं मेरे बर्थडे के उन्हें भी मैं ऑफिस में यूँ ही फ़िजूल फ़ाइल पढ़कर निकाल दूँ?"
"नहीं, मेरा मतलब वो नहीं था। मैं तो बस पूछ रही थी।"
"तुम अपना मतलब अपने पास रखो। अब चलो मेरे साथ। हम दोनों अभी पार्टी के लिए जा रहे हैं।"
"ठीक है, लेकिन पहले घर तो जाना पड़ेगा ना, चेंज करने के लिए?"
"नहीं, उसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि तुम तो हमेशा ही अच्छी लगती हो और इन कपड़ों में भी तुम बहुत अच्छी लग रही हो। तो अब बिना टाइम वेस्ट किए चलो यहाँ से।"
इतना कहकर करन ने एक बार फिर अरु का हाथ थामा और बिना उसकी सुने उसे ऑफिस से बाहर ले आया। करन अरु को लेकर पार्किंग एरिया में पहुँचा कि तभी उसका फोन बज उठा। उसने अरु को रुकने का कहा और कॉल अटेंड करने लगा। कॉल अटेंड करने के बाद जब करन अरु के पास वापस आया तो वह खुशी से खिला हुआ था।
"क्या हुआ है? कोई नई गर्लफ्रेंड मिल गई क्या जो ऐसे चहक रहे हो?"
"एक्चुअली क्या है ना, बर्थडे तो मेरा है, लेकिन मैंने सोचा क्यों ना अपने बर्थडे पर सरप्राइज़ मैं तुम्हें दे दूँ।"
"मतलब? मैं कुछ समझी नहीं।"
"मतलब ये कि जब तुम मेरे चहकने की वजह जानोगी तो तुम तो खुशी से पागल ही हो जाओगी।"
"अब ऐसी कोई न्यूज़ नहीं है जो मुझे खुशी से पागल कर सकती हो।"
"तुम ऐसा क्यों सोचती हो? है ना ऐसा... बिलकुल है और बिलीव मी, आज तो तुम्हें ये न्यूज़ सुनकर खुशी से पागल ही हो जाना है।"
"अच्छा, अगर ऐसा है तो फिर तो मैं भी ज़रूर सुनना चाहूँगी कि ऐसा भी क्या है जो मेरी उदासी को छाँटकर मुझे खुशी दे सके। खैर, जो भी है, सस्पेंस खत्म करो अब और बताओ जल्दी क्या बात है।"
"हाँ, तो बात ये है कि..."
और तभी ऑफिस की पार्किंग में रिदांश की गाड़ी ने एंट्री ली और जब उसने करन को अरु का हाथ थामे वहाँ देखा तो अनायास ही उसके जबड़े कस गए।
करन (मुस्कुराकर अरु का हाथ थामते हुए): हां तो बात ये है कि…
करन अरु से अभी बात कर ही रहा था कि तभी ऑफिस की पार्किंग में रिदांश की गाड़ी ने एंट्री ली। और जब उसने करन को अरु का हाथ थामे वहां देखा, तो अनायास ही उसके जबड़े कस गए। इधर दूसरी तरफ अरु करन की ओर सवालिया नजरों से देख रही थी। आखिर वो किस खुशी की बात कर रहा है? कुछ पल बाद करन ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
करन (अरु का हाथ थाम कर): मैंने अपने एक फ्रेंड से बात की थी, जो यूके में एक नामी साइकेट्रिस्ट है। और मैंने उसे अंकल की केस की फाइल भेजी थी। एंड गेस व्हाट… (एक पल रुक कर) उसने कहा है कि वह गारंटीड अंकल को ठीक कर सकता है।
अरु ने करन की बात सुनी, तो उसकी आंखें खुशी से चमक उठीं। इस वक्त उसे करन की बात सुनकर ठीक ऐसे ही महसूस हो रहा था, जैसे डूबते को तिनके का सहारा हो। और उसने जल्दी से उत्सुकता भरी नजर से करन की ओर देखकर अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु (करन की ओर देखकर अविश्वास भरी खुशी भरे भाव से): तुम सच कह रहे हो करन? पापा सच में ठीक हो सकते हैं?
करन (मुस्कुराकर): हां एकदम सच कह रहा हूँ मैं!
अरु ने करन की बात सुनकर खुश होते हुए, खुशी से करन के गले लग गई।
अरु (करन के गले लग कर खुशी भरी भावुकता से): थैंक यू… थैंक्यू सो मच करन… थैंक यू सो मच… तुमने सच में मुझे बहुत बड़ी खुशी दी है… इतनी बड़ी कि मैं लफ्जों में बयां भी नहीं कर सकती… थैंक यू सो मच करन… थैंक्यू सो मच!
करन (अरु की भावुकता समझ उसकी पीठ थपथपाते हुए): यू नो व्हाट… तुम यूं इमोशनल होकर बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती। और थैंक्यू जैसी कोई बात नहीं है मैंने… बस एक छोटा सा काम किया है… अपनी दोस्त की खुशी के लिए… तो नो नीड फॉर थैंक्स!
अरु (करन से अलग होकर उसका हाथ थामकर): मैं तो उम्मीद ही छोड़ने लगी थी… तुमने वो उम्मीद वापस से जगाई है… और थैंक्यू तो फिर भी बहुत छोटा सा शब्द है… तुमने जो किया है… उसका एहसान…
करन (झूठी नाराजगी से अरु की ओर देखते हुए उसे बीच में ही टोकते हुए): खबरदार जो ये एहसान… या ऐसे टिपिकल वर्ड्स यूज करके मेरी दोस्ती को रुसवा किया तो!
अरु (मुस्करा कर): ओके सॉरी… आइंदा से याद रखूंगी… (एक पल रुक कर) और एक बात सच कहूँ तो तुम सच में बहुत अच्छे दोस्त हो करन… बहुत अच्छे!
करन (माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए अपने दांत दिखाते हुए): हां वो तो मैं हूँ… लेकिन यू नो व्हाट… (अरु के कांधे पर अपनी कोहनी टिकाते हुए) पंडित जी ने भविष्यवाणी की है कि मैं जितना अच्छा दोस्त हूँ… उससे दस गुना ज्यादा अच्छा एक बॉयफ्रेंड और पति बनूँगा… तो क्या कहती हो… ट्राई करना पसंद करोगी… क्योंकि ऑफर वाले की इतनी मांग है कि स्टॉक से बाहर भी जाने का खतरा है!
अरु (मुस्कुराकर प्लेफुली करन की कोहनी को अपने कांधे से नीचे गिरा कर): थैंक्स… बट नो थैंक्स… मैं सिंगल ही बेहद खुश हूँ!
करन (अपनी आंखें रोल करते हुए): यही तो बदकिस्मती है!
अरु (झूठी नाराजगी से करन की ओर घूर कर): क्या कहा?
करन (जल्दी से अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): अरे मैं अपनी बदकिस्मती की बात कर रहा हूँ पगली!
अरु ने करन की बात सुनी तो वो मुस्कुरा दी। और फिर दोनों गाड़ी की ओर बढ़ गए। इस बात से बिल्कुल अनजान कि द ग्रेट रिदांश अग्निहोत्री की नजरें उन दोनों पर ही थीं। और अरु को उसने करन के गले लगते देखा, तो ना जाने क्यों यह देखकर रिदांश का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया था। और उसने अपनी मुट्ठियों को कसकर भींच लिया था। लेकिन जैसे ही कुछ पल बाद अरु और करन गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल गए, तो रिदांश ने बस कुछ पल के लिए अपनी मुट्ठियों को कसकर बंद किए हुए ही अपनी आँखें बंद कर लीं। और एक गहरी साँस लेकर गाड़ी से नीचे उतरा। और सीधा ऑफिस की बिल्डिंग की ओर बढ़ गया। अंदर पहुँच कर उसने कुछ जरूरी कागजात साइन किए और फिर फौरन वापस नीचे आकर घर के लिए निकल गया।
कुछ देर बाद घर आकर वह सीधा अपने रूम में पहुँच गया। न जाने क्यों मगर बार-बार रह-रह कर उसके जहन में अरु और करन को साथ देखने वाला नजारा ही बार-बार उसकी आँखों के सामने घूम रहा था। वो लाख कोशिश कर रहा था कि वह अपने दिमाग से इस बात को निकाल सके। और जिसके लिए वह घर आकर वापस से अपने लैपटॉप में अपना काम खोल कर बैठ गया। लेकिन खुद को बिजी रखने की उसकी ट्रिक भी आज काम नहीं आई। और बार-बार उसकी आँखों के आगे अरु का करन को गले लगाना आ रहा था। और आखिर में रिदांश ने गुस्से से अपना लैपटॉप बंद करते हुए उसे बेड पर पटक दिया। और फ्रस्ट्रेशन से अपने बालों में हाथ घुमाते हुए कमरे में इधर से उधर घूमने लगा। रिदांश ने फ्रस्ट्रेशन से बालकनी की दीवार पर अपना हाथ मारते हुए मन ही मन सोचा।
रिदांश (अपने मन में फ्रस्ट्रेशन भरी गहरी साँसें लेते हुए): आखिर क्यों मुझे फर्क पड़ रहा है और क्यों मैं बार-बार इस बात को सोच रहा हूँ? उसके और मेरे रास्ते अलग हो चुके हैं। उसकी अपनी एक अलग दुनिया बन चुकी है और मेरी अपनी। अब वो किससे मिलती है, किसके साथ रहती है या क्या करती है, मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं है। तो आखिर में क्यों बार-बार उसके बारे में सोच रहा हूँ? (फ्रस्ट्रेशन भरी एक गहरी साँस लेते हुए) जस्ट फोकस रिदांश… फोकस… और मैं खुद को यूँ इफेक्ट बिल्कुल नहीं होने दे सकता… नो… नेवर!
रिदांश अपनी ही सोच और उलझनों में गुम था। इधर दूसरी तरफ करन अरुण को लेकर सीधा पार्टी क्लब पहुँचा, जहाँ उसने जमकर इंजॉय करने का सोचा था। और वहीं पर इत्तेफाक से उनकी मुलाकात शनाया और प्रिशा से भी हुई, जो अपनी किसी कॉमन फ्रेंड के बर्थडे सेलिब्रेशन के लिए वहाँ आई थीं। प्रिशा और करन ने एक दूसरे को देखा, तो दोनों ने अपने मुँह बना लिए और एक दूसरे को ऐसे इग्नोर किया, जैसे दोनों कोई अछूत बीमारी हों। बाकी तीनों लोग एक दूसरे से हाय हेलो करते हुए मिले और फिर करन ने अरु को डांस फ्लोर पर चलने के लिए कहा। लेकिन अरु ने मना कर दिया। करन भी जानता था कि अरु को डांस वगैरह में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं है, तो इसीलिए उसने उसे फोर्स भी नहीं किया।
उसके लिए इतना ही काफी था कि अरु उसके और उसकी खुशी के लिए यहाँ तक उसके साथ आई है। और फिर शनाया ने करन के साथ जाने के लिए खुशी-खुशी फौरन हामी भर दी, तो वो भी खुशी से उसके साथ डांस फ्लोर पर चला गया। प्रिशा को भी यह सब ज्यादा खास पसंद नहीं था और वह यहाँ सिर्फ अपने दोस्त के इंसिस्ट करने के बाद ही आई थी। इसीलिए वह भी अरु के पास ही रुक गई और दोनों वहीं टेबल पर बैठकर एक दूसरे से बातें करते हुए डांस फ्लोर पर लोगों को देखने लगे।
प्रिशा (डांस फ्लोर की ओर देखते हुए गंभीर भाव के साथ): वक्त कैसे बदल जाता है ना… पता ही नहीं चलता कल कुछ और था और आज बिल्कुल अलग… बिल्कुल जुदा… कल हमारा एक अलग खास रिश्ता था और आज हमें एक दूसरे को इंट्रोड्यूस कराने के लिए भी अपना रिश्ता सोचना पड़ रहा था!
प्रिशा ने यह बात अरु से इसीलिए कही क्योंकि अभी कुछ देर पहले जब शनाया ने प्रिशा से उससे अरु के साथ उसके रिश्ते के बारे में पूछा, तो प्रिशा को कुछ पल तक भी समझ ही नहीं आया कि वह शनाया को क्या जवाब दें। क्योंकि शनाया को यह बात पता ही नहीं थी कि अरु रिदांश की पत्नी थी, तो वह सोच में पड़ गई कि आखिर वो शनाया को क्या जवाब दें। वो तो अरु ने बात संभालते हुए कह दिया कि प्रिशा और वह कॉलेज में साथ थे और तब से ही वह एक दूसरे को जानते हैं और अच्छे दोस्त हैं। और अरु की बात सुन कर फिर प्रिशा ने आगे कुछ भी नहीं कहा। और अब उस बात को ही सोचते हुए और अरु से अपने पिछले रिश्ते को याद करते हुए प्रिशा किस्मत से शिकायत कर रही थी।
प्रिशा (उदासी और दर्द भरी मुस्कान के साथ अरु की ओर देखकर): है ना बहुत अजीब बात है ना… कि किस्मत कैसे एक खास रिश्ते को पल में बेगाना कर देती है?
अरु (अपनी नजरें दूसरी दिशा में घुमाते हुए): कुछ फैसले हम नहीं किस्मत लेती है प्रिशा… जिन पर लाख कोशिशों के बावजूद भी हमारा कोई जोर नहीं चलता… (एक पल बाद एक गहरी साँस लेते हुए बात को टालते हुए) और रही बात तुम्हारे और मेरे रिश्ते की… तो क्या फर्क पड़ता है कि रिश्ते का क्या नाम रहता है और क्या नहीं… फर्क तो सिर्फ इस बात से पड़ता है कि आज भी हमारे दिल में बस वही जज़्बात और एहसास बाकी है!
प्रिशा (हाँ में अपना सर हिलाते हुए): हम्मम… (एक पल रुक कर) अगर आप माइंड ना करें तो एक बात पूछूँ आपसे?
अरु (धड़कते दिल के साथ): हम्मम… पूछो?
प्रिशा (अरु की ओर देखकर गंभीर भाव से): भाई ने आज तक भी किसी को नहीं बताया कि आखिर ऐसी क्या वजह थी जो आप और वो अलग हो गए और आप दोनों का रिश्ता…
अरु (बीच में ही प्रिशा की बात को काटते हुए): जो बीत गया है उसे बीत जाने दो प्रिशा… उन बातों को दुबारा करके मैं अपने उन जख्मों को दुबारा हरा नहीं करना चाहती… जो मेरी ज़िंदगी के सबसे गहरे और दर्दनाक जख्म थे!
अरु की इतनी गहरी बात सुनकर प्रिशा ने कुछ पल तक उसे गंभीर भाव से निहारा, जैसे वो उसके चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश कर रही हो। अरु ने उसे यूँ खुद को देखते महसूस किया, तो एक पल को थोड़ी असहज हो गई और एक गहरी साँस लेकर उसने बात को बदलते हुए आखिर में अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु (अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): खैर छोड़ो यह सारी फ़िज़ूल बातें… (एक पल रुक कर) वैसे सच कहूँ तो तुम्हें देखकर बिल्कुल भी लगता ही नहीं कि तुम वह 5 साल पहले वाली प्रिशा हो… बिल्कुल एक नाजुक सी… प्यारी सी बच्ची की तरह!
प्रिशा (हल्की सी मुस्कान के साथ): अच्छा और अब मैं कैसी लगती हूँ आपको?
अरु (मुस्करा कर): अब तुम बिल्कुल एकदम समझदार… मेच्योर… और इंडिपेंडेंट लड़की लगती हो… जिसे किसी के भी सहारे की कोई ज़रूरत नहीं है!
प्रिशा (फीकी सी मुस्कान के साथ): हालात और वक्त ऐसे टीचर होते हैं जो इंसान को वक्त और हालात के साथ ना सिर्फ जीना सिखा देते हैं बल्कि उनसे लड़ना भी बखूबी सिखा देते हैं… (एक पल बाद अरु को अपनी ओर गंभीर भाव से देखते हुए फीकी सी मुस्कान मुस्कुराकर) खैर छोड़िए हम भी क्या फ़िज़ूल और टिपिकल बातें लेकर बैठ गए हैं… चलिए हम भी पार्टी इंजॉय करते हैं!
इतना कहकर प्रिशा ने जूस का गिलास उठाया और अरु की ओर बढ़ा दिया और खुद दूसरा गिलास उठाकर जूस की सिप लेते हुए सामने की ओर देखने लगी। और अरु भी खामोशी से वहाँ मौजूद लोगों को देखने लगी। इधर दूसरी तरफ करन और शनाया डांस फ्लोर पर डांस कर रहे थे। लेकिन करन की नजरें बार-बार रह-रहकर अरु के ऊपर ही आकर रुक रही थीं, जिसे शनाया भी अच्छे से नोटिस कर रही थी। और जब काफी देर तक करन यूँ ही अरु को बार-बार देख रहा था, और आखिर में शनाया ने उसे छेड़ते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
शनाया (करन की ओर देखकर शरारती मुस्कान के साथ): जब उसे इतना पसंद करते हो और उसकी इतनी ही याद आ रही है तो उसे ही क्यों नहीं ले आते डांस फ्लोर पर!
करन (शनाया की ओर देख कर मुस्कुराते हुए): ले तो आता… मगर क्या है ना… उसे पसंद नहीं है ये शोर-शराबा एंड ऑल… और वैसे भी वो मेरे साथ यहाँ तक आ गई… मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है!
शनाया (अपनी भौहें उठाते हुए): ओएमजी इट मींस की द ग्रेट करन सिंघानिया को फाइनली अपनी स्पेशल वन मिल ही गई… जिसके साथ वो अपनी सो कॉल्ड प्लेबॉय वाली इमेज छोड़कर अपनी बाकी की ज़िंदगी गुज़ारना चाहता है… क्योंकि जहाँ तक मुझे याद है… द ग्रेट करन सिंघानिया को किसी भी लड़की की पसंद और नापसंद का कोई ख्याल होता ही नहीं है और ना ही उनकी कोई फ़िक्र… और सबसे बड़ी बात कि किसी की एक झलक के लिए वो इस कदर बेकरार है… इन सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए देखा जाए तो यही तुम्हारी समवन स्पेशल है… (एक पल रुक कर)… एम आई राइट मिस्टर करन सिंघानिया?
करन (बड़ी सी मुस्कान के साथ): दैट्स व्हाय आई लाइक यू सो मच… क्योंकि तुम्हारे अंदाज़े और तुम्हारी बातें कभी गलत निकलती ही नहीं… और इसीलिए मैं तुम्हारे दिमाग का कायल हूँ!
शनाया (प्राउड भरी स्माइल के साथ): वो तो मैं हूँ… लेकिन पहले तुम ये बताओ… इडियट कि तुमने उसे यह बात कही है अब तक या नहीं?
करन (अपना सर खुजाते हुए): क्या बताऊँ यार… यूँ तो हज़ारों दफ़ा कहा है… लेकिन असल मायने में एक बार भी नहीं बताया!
शनाया (करन के कांधे पर प्लेफुली मारते हुए): और अगर यही रवैया रहा तो कभी कह भी नहीं पाओगे!
करन (असमंजस भरे भाव से): मतलब?
शनाया (अरु की ओर एक नज़र देखते हुए): जहाँ तक मुझे लगता है… वो टाइम पास करने वालों में से बिल्कुल भी नहीं है… वो बंदी कमिटमेंट में विश्वास रखने वालों में से है… और तुम्हारी प्लेबॉय की इमेज को वह तब तक सीरियस नहीं लेगी जब तक तुम सीरियस होकर उससे बात नहीं करते… तो करो उससे बात… और करो मुकम्मल अपनी मोहब्बत की दास्तां को अभी!
करन (हैरानी भरे भाव से): अभी?
शनाया (करन का हाथ आगे की ओर खींच कर): हाँ इडियट अभी!
इतना कहकर शनाया ने करन को आगे की ओर ले आई और करन का हाथ छोड़कर उसने आगे बढ़कर माइक लेते हुए बोलना शुरू किया।
शनाया (माइक में बोलते हुए लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए): सो गर्ल्स एंड बॉयज… अटेंशन प्लीज… (एक पल रुक कर) तो आज मेरे दो दोस्त रितिका और करन का बर्थडे है… तो सबसे पहले तो विश अ वेरी वेरी हैप्पी बर्थडे बोथ ऑफ़ यू… और अब इसी खुशी में… मेरे चार्मिंग और हैंडसम दोस्त करन… जो कि बर्थडे बॉय भी है… आज मैं उनसे रिक्वेस्ट करूँगी कि वह अपनी खूबसूरत आवाज में कुछ लाइन यहाँ पर गाएँ… (एक पल रुक कर क्राउड की ओर देख कर)… एंड यू नो व्हाट गाइज़… कॉलेज टाइम में इस हैंडसम हंक की आवाज पर हज़ारों लड़कियाँ फ़िदा थीं… (मुस्कुरा कर करन की ओर देखकर)… तो बड़ी क्या बोलते हो… हो जाए आज एक बार वही समा?
करन ने शनाया की बात सुनी, तो खुशी से मुस्कुरा दिया। वो शनाया की बात को अच्छे से समझ रहा था कि शनाया का यह सब करना तो सिर्फ एक बहाना था। असल में तो उसने यह सब सिर्फ इसलिए किया था ताकि करन अपने गाने के थ्रू अरु से अपने जज़्बात साझा कर पाए। और उसकी बात को समझते हुए करन ने उसे इशारे ही इशारे में शुक्रिया कहा, जिसे शनाया ने अपनी पलकें झपकाते हुए अपनी हामी भर दी। और फिर करन को वहीं से एक गिटार अरेंज कराया। और कुछ पल बाद करन हाथ में गिटार लिए हुए बीच स्टेज पर बैठा था और वहाँ मौजूद सब लोग उत्सुकता भरी नज़रों से शांति से उसकी ओर देखने लगे। और आखिर में करन ने एक गहरी साँस लेकर खुद को देखती अरु की ओर देखते हुए गाना शुरू किया।
करन (गिटार बजाते हुए): अखियाँ दे कोल… रह जाने दे… कहना है जो… कह जाने दे हे… तेरे ख्यालों में… बीते ये रातें… दिल मेरा मांगे… एक ही दुआ… तू सामने हो ओर… करूँ मैं बातें… लम्हा रहे यूँ… ठहरा हुआ… पहले तो कभी यूँ… मुझको ना ऐसा कुछ हुआ… दीवानी लहरों को… जैसे साहिल मिला आ आ… ओ ओ ओ ओ ओ… एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा… एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा… ओ मेरे सोहणेया वे… छड़ सारी गलियाँ मैं… नाल तेरे तुर चलेया मैं… ले चल मुझको दुनिया से तू दूर… चोरीचोरी जद तैनू तकेया मैं… खुद को संभाल ना सकेय मैं… चढ़ गया सजना तेरा ये फितूर… रंग जानी रे मरजानी रा… कहनी जो थी… कह दे वो बात… रंग जानी रे मरजानी रा… कहनी जो थी… कह दे वो बात… हो एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा… एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा… एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा!
जैसे ही करन ने गाना बंद किया, तो चारों ओर तालियों और सीटियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। अरु ने भी मुस्कुराते हुए खुशी से तालियाँ बजाईं। करन ने अरु के चेहरे पर अपने गाने से मुस्कराहट देखी, तो उसके चेहरे पर भी एक बड़ी सी मुस्कराहट तैर गई। कुछ देर बाद करन और रितिका ने अपने बर्थडे का केक काटा और सब लोगों ने उन्हें बर्थडे विश करते हुए उन्हें केक खिलाया। उसके बाद करन अरु को अपने साथ डांस फ्लोर पर ले आया। अरु ने फिर मना करना चाहा, तो करन ने कहा कि अगर वह उसके जन्मदिन की खुशी में नहीं आना चाहती, तो कम से कम अंकल की रिकवरी की खुशी में ही वह आज उसके साथ खुशियाँ मना लें। और अरु ने जब उसे इतना खुश देखा, तो वो उसे चाह कर भी ना नहीं कह पाई और उसके साथ स्टेज की ओर चली गई। और आखिर में न जाने कितने दिनों बाद उसने सब कुछ भूल कर यहाँ अपना वक्त बिताया था और काफी देर बाद… काफी रात गए वह दोनों प्रिशा और शनाया से विदा लेकर वहाँ से निकले।
अरु (ड्राइविंग करते करन की ओर देखकर): थैंक यू… सो मच करन!
करन (अरु की ओर देखकर): और वो किस लिए?
अरु (सहज भाव से अरु की ओर देख कर): फ़ॉर एवरीथिंग… कि तुम मेरे इतने अच्छे दोस्त हो इसलिए… कि तुम हमेशा अपनी दोस्ती निभाते हो इसलिए… और इसलिए भी कि न जाने कितने दिनों बाद आज मैंने अपने साथ वक्त बिताया… तो थैंक यू फ़ॉर एवरीथिंग!
करन (मुस्कुराकर): माय प्लेज़र!
इधर रिदांश अपने कमरे में बैठा अपने लैपटॉप पर नॉनस्टॉप टाइपिंग कर रहा था कि तभी पलक ने उसके दरवाजे पर नॉक किया। तो उसने उसे देखकर अंदर आने का इशारा किया और पलक अंदर आई। रिदांश ने उसे प्यार से अपनी गोद में बैठा लिया और उसे कुछ देर यूँ ही खाने-पीने का पूछ कर पलक को गेम खेलने के लिए अपना कीमती फ़ोन देते हुए वापस अपने लैपटॉप में कुछ ज़रूरी टाइप करने लगा। कुछ देर बाद बड़ी मासूमियत से पलक ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
पलक (रिदांश की ओर देख कर): डैडी मैं कल वापस लंदन जा रही हूँ… मेरे स्कूल छूट रहे हैं ना इसीलिए!
रिदांश (पलक की ओर देखकर उसका सर चूमते हुए): आई नो बच्चे… एंड आई विल मिस यू!
पलक (मासूमियत भरे लहजे से): आई विल मिस यू टू… (एक पल रुक कर) मैं आपसे कुछ कहूँ तो आप मेरी बात मानेंगे?
रिदांश (अपना लैपटॉप साइड करते हुए पलक को टेबल पर बिठाते हुए): हाँ कहो?
पलक (बड़ी ही मासूमियत से अपनी बात रखते हुए): मेरे स्कूल में ना सब लोग वहाँ पर आपके फ़ैन हैं और आपसे मिलना चाहते हैं… तो मैंने उनसे कहा था कि मैं उन्हें अपने डैडी से ज़रूर मिलवाऊँगी… और परसों मेरी स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग है… तो अगर आप वहाँ पर आएंगे तो मुझे अच्छा लगेगा और मेरा प्रॉमिस भी पूरा हो जाएगा!
रिदांश (पलक के बालों को उसकी आँखों से हटाते हुए): अगर मैं वहाँ आऊँगा तो आपको अच्छा लगेगा?
पलक (खुशी से मुस्कुराते हुए): नहीं… बल्कि बहुत बहुत बहुत अच्छा लगेगा!
रिदांश (मुस्कुराकर पलक का माथा चूमते हुए): देन आई विल श्योरली कम… मैं ज़रूर आऊँगा!
पलक (खुशी से उछलते हुए): पक्का प्रॉमिस?
रिदांश (अपना सर हाँ में हिलाते हुए): पक्का प्रॉमिस… मैं ज़रूर आऊँगा!
इसके बाद पलक ने खुशी से उछलते हुए रिदांश के गालों को चूमा और फिर कुछ देर बाद उसे गुड नाईट बोल कर वहाँ से चली गई। अगले दिन सुबह की फ़्लाइट से नम्या, अनिकेत और पलक वापस लंदन चले गए। शाम तक रिदांश ने भी अपने ऑफिस जाकर अपना सारा काम निपटाया और फिर लेट नाईट फ़्लाइट लेकर वह भी सीधा लंदन के लिए निकल गया।
अगले दिन सुबह की फ्लाइट से नम्या, अनिकेत और पलक लंदन चले गए। शाम तक रिदांश ने अपने ऑफिस जाकर अपना सारा काम निपटाया और फिर लेट नाइट फ्लाइट से लंदन के लिए निकल गया। जब रिदांश लंदन एयरपोर्ट पर पहुँचा और सारी फॉर्मेलिटीज करने के बाद बाहर निकला, तो सुबह के दस बज चुके थे। उसकी गाड़ी पहले से ही उसका इंतज़ार कर रही थी। रिदांश ने अपनी घड़ी में समय देखा। पलक के बताए अनुसार, पेरेंट्स मीटिंग शुरू होने में सिर्फ़ आधा घंटा रह गया था। रिदांश ने ड्राइवर से सीधा पलक के स्कूल चलने को कहा। ड्राइवर ने सिर हिलाते हुए रिदांश के लिए गाड़ी का दरवाज़ा खोला, उसका सामान गाड़ी में रखा, और गाड़ी आगे बढ़ा दी।
रिदांश ने यह बात अभी तक नम्या, अनिकेत और पलक, किसी को भी नहीं बताई थी कि वह लंदन पहुँच चुका है या आज आ रहा है। वह पलक को सरप्राइज़ देना चाहता था, इसलिए उसने अपने आने की खबर नहीं दी थी।
इधर, पलक समझ रही थी कि रिदांश ने सिर्फ़ वादा किया था, जबकि असल में वह आज नहीं आने वाला। हालाँकि यह सोचकर वह थोड़ी उदास हुई, मगर नम्या और अनिकेत ने उसका मूड हल्का किया और उसे समझाया कि रिदांश किसी ज़रूरी काम में बिजी हो गया होगा। पलक ने यह बात बखूबी समझी। इसके बाद अनिकेत और नम्या पलक को स्कूल ले गए।
इधर, आरांशी की भी पेरेंट्स मीटिंग थी। उसने अरु को बताया था, लेकिन जानती थी कि अरु का आना संभव नहीं है। उसने अरु से आने के लिए ज़िद नहीं की और न ही उम्मीद लगाई थी कि अरु आएगी।
लेकिन सुबह, जब आरांशी और नैना नाश्ता कर रहे थे, दरवाज़े की घंटी बजी। नैना ने दरवाज़ा खोला तो सामने अरु को देखकर आरांशी खुशी और एक्साइटमेंट से चिल्लाई, डाइनिंग टेबल की कुर्सी से कूदकर अरु के गले लग गई। अरु ने उसे गोद में उठा लिया और उसका चेहरा चूमा। आरांशी ने भी अरु का चेहरा चूमा। इस वक़्त आरांशी के चेहरे और आँखों में जो खुशी थी, उसे देखकर अरु के दिल में सुकून उतर आया। वह जानती थी कि अचानक सरप्राइज़ देने पर आरांशी खुशी से झूम उठेगी, और हुआ भी वैसा ही।
"आई एम सो हैप्पी टू सी यू मम्मा, एंड आई मिस्ड यू सो सो मच मम्मा," आरांशी ने खुशी और उत्साह के साथ अरु के गाल चूमते हुए कहा।
"एंड आई मिस्ड यू टू!" अरु ने आरांशी के माथे को चूमते हुए कहा।
"या बट मुझसे ज़्यादा नहीं, बिकॉज़ मैंने आपको बहुत बहुत बहुत सारा मिस किया!" आरांशी ने अपनी क्यूट सी स्माइल के साथ कहा।
तभी, पीछे से हाथों में कई गिफ्ट्स और चॉकलेट्स के बैग लिए करन घर के अंदर आया और आरांशी की ओर देखते हुए बोला,
"ओह! तो ये बात है, सिर्फ़ अपनी मम्मा को मिस किया गया है!"
आरांशी ने करन की आवाज़ सुनी, उसकी ओर देखा और करन को देखकर उसकी खुशी दुगुनी हो गई। वह खुशी से अरु की गोद से उतरकर करन की ओर दौड़ी। करन ने अपने हाथ में पकड़े बैग ज़मीन पर रखे, मुस्कुराते हुए आरांशी को गोद में उठा लिया और उसे घुमा दिया। आरांशी की प्यारी सी हँसी गूंज उठी।
"मैंने अपने पिकाचू को भी बहुत-बहुत मिस किया!" आरांशी ने करन की ओर देखकर खुशी भरे भाव से कहा।
"आई नो डार्लिंग, दैट यू लव्स योर पिकाचू सो मच," करन ने आरांशी के गाल को चूमते हुए कहा, "लेकिन यू नो व्हाट डार्लिंग, हमारे प्यार से ये दुनिया जलती है, और इसीलिए बार-बार मुझे तुमसे मिलने के लिए रोका जाता है। एंड यू नो डार्लिंग, आज भी मुझे यहाँ ना लाने के लिए पूरी साज़िश की गई थी, लेकिन मैं भी सारी साज़िशों को नाकाम करते हुए आ ही पहुँचा!"
आरांशी हँस पड़ी।
"अगर तुम्हारी नौटंकी पूरी हो गई हो, तो अंदर भी आ जाओ, पहले कुछ खा लो, फिर लोगों का दिमाग खाना!" नैना ने करन की ओर देखकर कहा।
"एक नहीं, यहाँ मेरे दो-दो कट्टर दुश्मन हैं!" करन ने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा।
"मेरे दो-दो दुश्मन, माय फ़ुट! हम तुम्हें इतनी इम्पॉर्टेंस नहीं देते कि तुम पर अपनी दुश्मनी में वक़्त जाया करें," नैना ने करन की ओर जीभ निकालते हुए कहा, "अरु आओ तुम, इसका कोटा तो लोगों का दिमाग खाकर ही पूरा हो जाता है, मगर हमारे लिए खाना ज़रूरी है!"
नैना अरु का हाथ पकड़कर उसे डाइनिंग एरिया ले गई। करन ने उन्हें जाते देख मुँह बना लिया।
"मुझे तो एक बात समझ नहीं आती डार्लिंग, कि ये सारी पापी दुनिया मुझ जैसे हैंडसम, चार्मिंग और खूबसूरत, टैलेंटेड लड़के से इतना जलती क्यों है!" करन ने आरांशी की ओर देखकर कहा।
"दुनिया जलती है, पर मैं तो अपने पिकाचू को बहुत प्यार करती हूँ ना!" आरांशी ने अपनी प्यारी सी हँसी में हँसते हुए कहा।
"हाँ ये तो है, और बस यही मेरे लिए काफी भी है," करन ने मुस्कुराकर आरांशी के गाल खींचते हुए कहा, "चलो तुम्हें तुम्हारे गिफ्ट दिखाता हूँ!"
"हाँ चलो!" आरांशी ने एक्साइटेड होकर कहा।
करन ने आरांशी को गोद में थामे हुए सारे बैग उठाए, जिसमें वह और अरु आरांशी के लिए तोहफ़े लाए थे, और फिर आरांशी को लेकर डाइनिंग एरिया की ओर बढ़ गया। करन और अरु सुबह ही लंदन आ गए थे और आरांशी की पेरेंट्स मीटिंग में अभी वक़्त था, इसलिए दोनों ने थोड़ा वक़्त घर पर बिताया। करन और अरु के लाए तोहफ़े देखकर आरांशी खुशी से खिल उठी। अरु की लाई हुई ड्रेसेज़ में से आरांशी ने एक व्हाइट कलर की फ्लोरल शॉर्ट ड्रेस चुनी, जिसे पहनकर वह बहुत क्यूट लग रही थी। अरु ने उसके बालों की दो चोटी बनाई और बटरफ्लाई वाली क्लिप लगाई। करन ने उसे पिंक कलर का बार्बी डॉल का बैग दिया और नैना ने उसे शूज़ पहनाए। अब आरांशी स्कूल जाने के लिए तैयार थी। वह अरु और करन के लाए सभी तोहफ़ों को देखकर बेहद खुश थी। उसने करन की लाई चॉकलेट्स में से कुछ चॉकलेट्स अपने बैग में रखीं और जाने के लिए तैयार हो गई।
"ये चॉकलेट्स किसके लिए हैं?" करन ने आरांशी को अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा।
"ये चॉकलेट्स मेरी बेस्ट फ्रेंड के लिए हैं, मैं कई दिनों बाद आज उससे मिलूंगी, तब मैं ये चॉकलेट्स उसे दूंगी!" आरांशी ने बड़ी मासूमियत से कहा।
"वाह, दैट्स ग्रेट," करन ने आरांशी के गाल खींचते हुए कहा, "वैसे तुम्हें पता है, आज तुम इतनी क्यूट लग रही हो ना डार्लिंग, कि मन कर रहा है तुम्हें कच्चा ही खा जाऊँ!"
"फिर मम्मा और मासी बदले में आपको कच्चा खा जाएंगी!" आरांशी ने अपनी क्यूट सी स्माइल के साथ कहा।
"नहीं, फिर वो दोनों मुझे जिंदा निगल जाएंगी!" करन हँसते हुए बोला।
आरांशी हँस पड़ी और उसके चेहरे की मुस्कान देखकर तीनों लोग खुश थे। कुछ देर बाद अरु, नैना और करन आरांशी के स्कूल के लिए निकल पड़े।
इधर, रिदांश जिस रास्ते से पलक के स्कूल जा रहा था, वहाँ एक छोटा सा एक्सीडेंट होने से रास्ता ब्लॉक हो गया था। ड्राइवर ने रिदांश को दूसरे रास्ते पर गाड़ी मोड़ ली, लेकिन वहाँ ट्रैफिक की वजह से थोड़ी देर लग गई।
"थोड़ा जल्दी करो!" रिदांश ने अपनी घड़ी में समय देखते हुए ड्राइवर से कहा।
"जी सर!" ड्राइवर ने सिर हिलाते हुए कहा।
रिदांश के कहने पर ड्राइवर ने गाड़ी शॉर्टकट रास्ते पर ले ली। इधर, अरु और नैना आरांशी के साथ स्कूल के अंदर बढ़ गए, जबकि करन को एक कॉल आ गई थी, तो वह गाड़ी में बैठे बात करते हुए उनका इंतज़ार करने लगा। अरु और नैना आरांशी की प्रिंसिपल और टीचर से मिले और उनसे बातें करने लगे। टीचर ने बताया कि आरांशी क्लास की समझदार, इंटेलिजेंट और प्यारी बच्ची है और अपनी स्टडी से लेकर स्पोर्ट तक में अच्छा परफॉर्म कर रही है। यह सुनकर नैना और अरु खुश हुए और आरांशी पर प्राउड फील कर रहे थे।
कुछ देर बाद, जब वह दोनों आरांशी के साथ रूम से बाहर जाने लगे, तो टीचर्स ने उन्हें बताया कि मीटिंग के बाद एक छोटा सा पेरेंट्स टीचर गेट टुगेदर रखा गया है और उनसे कहा कि वह भी ज्वाइन करें। अरु ने उनकी बात मान ली और आरांशी और नैना के साथ वहाँ से बाहर चली गईं। आरांशी अरु की उंगली थामे चल रही थी।
"सी मम्मा, मेरी टीचर्स ने कहा ना कि आई एम गुड गर्ल!" आरांशी ने अरु की ओर देखते हुए कहा।
"हम्मम, माय आरांशी इज़ वेरी गुड गर्ल, एंड आई एम प्राउड ऑफ़ यू मेरी जान!" अरु मुस्कुरा कर बोली।
"थैंक्यू मम्मा, और आई प्रॉमिस की मैं आपको हमेशा प्राउड फील करवाऊंगी!" आरांशी ने प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा।
"आई लव यू!" अरु ने कहा।
"एंड आई लव यू टू, मम्मा मुझे आइसक्रीम खानी है!" आरांशी ने कहा।
"ठीक है, लेट्स गो!" अरु मुस्कुरा कर बोली।
अरु, आरांशी और नैना पास के आइसक्रीम पार्लर की ओर बढ़ गईं। वह लोग आइसक्रीम पार्लर के बाहर पहुँचे ही थे कि आरांशी की नज़र अपनी बेस्ट फ्रेंड पर पड़ी और वह एक्साइटेड होकर अरु का हाथ झकझोरते हुए बोली,
"मम्मा, सी माय बेस्ट फ्रेंड!"
जैसे ही अरु ने आरांशी के इशारा करने की दिशा में देखा, वह हैरान रह गई। यह वही बच्ची थी जिसे पार्टी वाले दिन रिदांश ने अपनी गोद में उठाया था और जो रिदांश को डैडी कह रही थी। जब अरु ने पलक को नम्या और अनिकेत के साथ देखा, तो उसे समझ आ गया कि पलक अनिकेत और नम्या की बेटी है। अरु के दिल में डर पैदा हो गया कि आरांशी की बेस्ट फ्रेंड अनिकेत और नम्या की बेटी थी। पिछले पाँच सालों से जिस डर से वह भागती आ रही थी, वही डर उसके इतने करीब था। नैना ने अरु के चेहरे पर घबराहट देखी, आरांशी को उसी दिशा में बढ़ता देख, उसने कुछ दूरी पर नम्या और अनिकेत को देखा।
उन्हें देखते ही नैना के चेहरे पर भी हवाइयाँ उड़ गईं, मगर अनिकेत और नम्या के उन्हें देखने से पहले ही नैना ने अरु का हाथ पकड़कर उसे पास की दीवार के पीछे खींच लिया। दोनों का दिल जोरों से धड़क रहा था। अनिकेत को अचानक काम आ गया, तो वह स्कूल के गेट से वापस चला गया। अनिकेत के जाने के कुछ पल बाद, पलक ने आरांशी को अपनी ओर आते देखा, तो वह भी खुशी से उसकी ओर बढ़ गई और दोनों एक-दूसरे के गले लग गईं।
"मैंने आपको बताया था ना मम्मा, शी इज़ माय बेस्ट फ्रेंड, आंशी!" पलक ने नम्या की ओर देखकर आरांशी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
"हैलो स्वीटहार्ट, यू आर रियली सो क्यूट!" नम्या ने मुस्कुरा कर प्यार से आरांशी का गाल छूते हुए कहा।
"थैंक यू, एंड यू आर सो ब्यूटीफुल!" आरांशी ने अपनी क्यूट सी स्माइल के साथ कहा।
"ओह, सो स्वीट ऑफ़ यू," नम्या ने नीचे झुक कर आरांशी को गले लगाते हुए कहा, "आप अकेले आई हो यहाँ?"
"नो, मैं अपनी मम्मा और मासी के साथ आई हूँ!" आरांशी ने ना में गर्दन हिलाते हुए कहा।
"तो फिर कहाँ हैं आपकी मम्मा और मासी, मुझे भी उनसे मिलना था?" नम्या ने इधर-उधर देखते हुए पूछा।
"पता नहीं, अभी तो वह यहीं थे, और अभी पता नहीं कहाँ गए, शायद वह आइसक्रीम पार्लर में चले गए होंगे!" आरांशी ने मासूमियत भरी असमंजसता से इधर-उधर देखते हुए कहा।
"ओके, तो मैं फिर कभी आपकी मम्मा से मिलूंगी, लेकिन अभी हमें स्कूल जाने के लिए देर हो रही है, तो हम आपसे बाद में मिलते हैं, ओके?" नम्या ने कहा।
"ओके, बाय!" आरांशी ने मासूमियत से अपनी गर्दन हां में हिलाते हुए कहा।
"बाय!" नम्या ने मुस्कुरा कर प्यार से आरांशी का गाल छूते हुए कहा।
नम्या और पलक आरांशी को बाय बोलकर चले गए। उनके जाने के साथ ही नैना और अरु ने चैन की साँस ली, लेकिन जैसे ही वे वहाँ से निकलने वाले थे, एक गाड़ी आइसक्रीम पार्लर के सामने आकर रुकी। नैना ने वापस से अरु का हाथ खींच लिया। अरु ने सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखा, तो नैना ने अफ़सोस से अपने सिर पर हाथ मारा।
"हे भगवान! इसी की कमी थी, अब ये ड्रेकुला यहाँ क्या कर रहा है?" नैना ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा।
अरु ने नैना की बात सुनी, एक पल सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखा, लेकिन जब नैना ने उसे गाड़ी की तरफ़ इशारा किया, तो अरु का डर पहले से भी ज़्यादा बढ़ गया। उन्हें महसूस हुआ कि गाड़ी में रिदांश बैठा था। यह शक तब पुख्ता हुआ जब रिदांश गाड़ी से निकलकर बाहर आया। अरु और नैना दीवार से सटकर खड़े हो गए। रिदांश गाड़ी से उतरा और आइसक्रीम पार्लर में पलक के लिए चॉकलेट लेने गया। अरु और नैना की नज़र रिदांश पर नहीं पड़ी। अरु और नैना का दिल जोरों से धड़क रहा था। इधर, ड्राइवर ने गाड़ी रोकी, तो उसके दाएँ तरफ़ पलक खड़ी थी और वहीं एक गड्ढे में बारिश का गंदा पानी जमा था। जैसे ही ड्राइवर ने गाड़ी रोकी, तो उस गंदे पानी के छींटे आरांशी के कपड़ों पर जा लगे। यह देखकर आरांशी ने कुछ पल तक गुस्से से अपनी ड्रेस और गाड़ी को देखा।
आरांशी ने अपनी ड्रेस पर ध्यान के चलते रिदांश को गाड़ी से उतरते नहीं देखा था। कुछ पल बाद, जब वह गाड़ी के पास आई, तो रिदांश आइसक्रीम पार्लर में जा चुका था। आरांशी ने नाराज़गी से ड्राइवर की विंडो पर खटखटाया, तो ड्राइवर ने विंडो नीचे की। आरांशी ने ड्राइवर से बाहर आने को कहा, तो ड्राइवर बाहर निकल आया। जब ड्राइवर ने आरांशी के चेहरे पर गुस्सा देखा, तो उसे समझ नहीं आया कि माज़रा क्या है, लेकिन जब उसने आरांशी की ड्रेस पर गौर किया, तो उसे कुछ समझ आया। लेकिन फिर भी उसने आरांशी को बच्ची समझकर अनजान बनने की कोशिश की, इस बात से अनजान कि यह बच्ची सिर्फ़ कोई बच्ची नहीं, बल्कि सबकी नानी है।
"क्या हुआ है बच्चे? कोई परेशानी है?" ड्राइवर ने अनजान बनते हुए पूछा।
"आप अनजान बनने की कोशिश मत कीजिए, मुझे सब समझ आता है!" आरांशी ने अपनी आँखें छोटी करते हुए अपने क्यूट से एंग्री एक्सप्रेशन के साथ कहा।
"अन...अनजान...मैं क्यों अनजान बनूँगा? देखो बच्चे, तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मेरे साहब आते ही होंगे, मुझे उन्हें लेकर जाना है," ड्राइवर ने थोड़ा सा हड़बड़ाकर कहा, "और मेरे सर बहुत गुस्से वाले हैं, हटो यहाँ से, वर्ना वो तुम पर भी गुस्सा करेंगे!"
"बुलाओ फिर अपने सर को, मैं भी देखूँ, वो कौन से ड्रेकुला हैं!" आरांशी ने अपने क्यूट एंग्री एक्सप्रेशन से ड्राइवर को घूरते हुए कहा।
ड्राइवर ने बहुत कोशिश की कि वह आरांशी को समझा-बुझाकर या डराकर वहाँ से भगा दे, लेकिन आरांशी इतनी आसानी से मानने वाली नहीं थी। उधर, अरु और नैना ने दूर से ही आरांशी को रिदांश के ड्राइवर से बहस करते देखा, तो उनका डर और भी बढ़ गया। इसी बीच रिदांश वापस जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया। ड्राइवर पर ध्यान होने की वजह से आरांशी ने रिदांश पर ध्यान नहीं दिया। रिदांश ने गाड़ी में बैठकर ड्राइवर से कड़क आवाज़ में चलने को कहा। ड्राइवर ने उसकी आवाज़ सुनी, तो वह आरांशी को साइड करते हुए गाड़ी में बैठने लगा। आरांशी गाड़ी के सामने आ खड़ी हुई। ड्राइवर ने उसे ऐसा करते देखा, तो वह उसकी ओर बढ़ गया और उसे समझाने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसकी हर कोशिश नाकाम रही। आरांशी ने वहाँ से ना हटने की ज़िद पकड़ ली थी।
कुछ पल तक ड्राइवर गाड़ी में नहीं आया, तो रिदांश ने घड़ी में समय देखते हुए गाड़ी का शीशा नीचे किया, मगर उसे ठीक से कुछ नज़र नहीं आया। फ़्रस्ट्रेशन से रिदांश घड़ी में समय देखते हुए अपनी गाड़ी से नीचे उतरा और दो कदम आगे बढ़ा। यह देखकर अरु और नैना का दिल मुँह में आ गया। रिदांश ने देखा कि उसका ड्राइवर किसी से बहस कर रहा है। जैसे ही रिदांश की नज़र उस दूसरे इंसान पर पड़ी, उसे हैरानी हुई, क्योंकि सामने वाली शख्स कोई बड़ा इंसान ना होकर एक छोटी सी चार-पाँच साल की बच्ची थी जो पूरे टशन के साथ ड्राइवर से अपनी बेबी टोन में कुछ कह रही थी। रिदांश ने एक नज़र उस बच्ची को देखा, जिससे वह बिल्कुल अनजान था, और फिर ड्राइवर की ओर अपना रुख किया।
"व्हाट्स द मैटर? कितनी देर लगती है तुम्हें?" रिदांश ने ड्राइवर की ओर देखकर पूछा।
"सॉरी सर, लेकिन ये जिद्दी सी बच्ची है, कि गाड़ी के आगे से हटने को तैयार ही नहीं है!" ड्राइवर ने अपने हाथ बाँध धीमे लहजे से कहा।
"क्या हुआ है बच्चे? क्यों ऐसे जिद कर रही हो?" रिदांश ने आरांशी की ओर देखते हुए पूछा।
"फ़र्स्ट ऑफ़ ऑल, डोंट कॉल मी बच्चा, आई एम 5 इयर्स ओल्ड मेच्योर गर्ल, और रही बात यहाँ से ना हटने की, तो आप के ड्राइवर ने मेरी फ़ेवरेट ड्रेस खराब कर दी, सी!" आरांशी ने अपनी बेबी टोन मगर फुल ऑन एटीट्यूड के साथ कहा और अपनी ड्रेस की ओर अपनी उंगली से इशारा किया।
रिदांश ने इतनी छोटी सी बच्ची का ऐसा लहजा, गुस्सा और कॉन्फिडेंस देखा, तो उसने एक पल आरांशी को देखा और अगले ही पल आरांशी का क्यूट एंग्री फ़ेस देखकर अनायास ही रिदांश के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, जो ना जाने कितने अरसे बाद आई थी। लेकिन अगले ही पल रिदांश को मीटिंग याद आई, तो वह वापस सीरियस हो गया।
"ओके फ़ाइन, आपकी ड्रेस खराब हुई है, उसका हर्जाना मैं भर देता हूँ!" रिदांश ने एक पल रुककर सामान्य भाव से कहा।
रिदांश ने अपनी पॉकेट से अपना वॉलेट निकाला और उसमें से कुछ 2000 के नोट निकालकर आरांशी की ओर बढ़ाकर उसकी हथेली में थमा दिए। आरांशी ने एक नज़र पैसों को देखा, एक पल रिदांश को घूरा, और फिर वापस से अपनी हथेली में रिदांश के रखे नोटों को देखा। जैसे ही रिदांश पलटने को हुआ, तो आरांशी ने उसे टोका।
"रुकिए!" आरांशी ने अपनी भौंहें सिकोड़कर कहा।
रिदांश ने पलटकर आरांशी की ओर सवालिया नज़रों से देखा।
"वेट, 1 मिनट रुके आप!" आरांशी ने कहा।
आरांशी ने अपने कंधों से अपना छोटा सा बैग उतारा, उसे गाड़ी के बोनट पर रखते हुए उसमें से अपना ज्योमेट्री बॉक्स निकाला, जिसमें उसने अपनी पॉकेट मनी जमा की हुई थी। आरांशी ने वो सारे पैसे लिए, अपना बैग बंद किया और अपने जमा पैसों को रिदांश के पैसों के साथ रखते हुए, रिदांश का दायाँ हाथ पकड़कर उन पैसों को उसकी हथेली पर रख दिया। रिदांश ने यह देखा, तो उसने असमंजस भरे भाव से आरांशी की ओर देखा। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, अगले ही पल रिदांश की फ़्रस्ट्रेशन भरी चिल्लाहट निकल गई। आरांशी ने वही जमीन पर पड़ी कीचड़ को हाथ में उठाकर रिदांश के महंगे व्हाइट कोर्ट पर फेंक मारा, जिससे वह जगह-जगह से कीचड़ के धब्बों से काला हो गया।
"व्हाट द हेल!" रिदांश ने अपना कोर्ट देखते हुए फ़्रस्ट्रेशन भरे भाव से कहा।
"आपने मेरा फ़ेवरेट सूट खराब किया और मैंने आपका, अब हिसाब बराबर!" आरांशी ने बड़ी मासूमियत के साथ अपने हाथ झाड़ते हुए कहा।
"जस्ट शटअप, तुम्हारे पेरेंट्स ने तुम्हें मैनर्स नहीं सिखाए, कि बड़ों के साथ कैसे पेश आना चाहिए?" रिदांश ने गुस्से से आरांशी की ओर देखकर कहा।
"सिखाए हैं ना, बहुत सारे मैनर्स सिखाए हैं, लेकिन उन्होंने यह भी सिखाया है जैसे को तैसा होना चाहिए, और अगर आप मुझे पहले ही सीधे-सीधे सॉरी बोल देते, तो मैं भी इट्स ओके कहकर बात वहीं खत्म कर देती ना, मगर आपने मुझे अपने पैसे दिखाकर मुझे इंसल्ट करने की कोशिश की, तो मैंने भी बदले में आपको अपनी अमीरी दिखा दी और जिसके बाद फिर मुझे अपना हिसाब भी तो बराबर करना ज़रूरी था ना, अब पैसे पेड़ पर थोड़ी उगते हैं, हिसाब तो पाई-पाई का होना चाहिए ना, सो सिंपल, टिट फ़ॉर टैट, तो अब मैं चलती हूँ मिस्टर व्हाटेवर, जो भी हो आप, पर मेरे लिए तो आप मिस्टर एंग्री बर्ड ही हैं, लाइक शूऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ!" आरांशी ने बिना डरे पूरे टशन से अपने छोटे बालों को आँखों से झटकते हुए कहा।
इतना कहकर आरांशी ने शरारती मुस्कान के साथ रिदांश की ओर विंक किया और फिर बोनट से अपनी जूस की बोतल उठाकर उसे पीते हुए वहाँ से आगे बढ़ गई। रिदांश कुछ पल सोचने की कोशिश कर रहा था कि क्या वाकई में वह महज़ पाँच साल की बच्ची थी, लेकिन अगले ही पल जैसे उसे अपने कपड़ों का होश आया, तो उसकी फ़्रस्ट्रेशन और गुस्सा वापस से उसके चेहरे पर आ गए। उसने सामने देखा, मगर आरांशी कहीं नहीं थी।
"गॉड नोज़, किसकी आफ़त थी ये!" रिदांश ने फ़्रस्ट्रेशन से अपनी आँखें बंद करते हुए आरांशी के बारे में सोचते हुए कहा।
रिदांश (फ़्रस्ट्रेशन से एक पल को अपनी आँखें बंद करते हुए आरांशी के बारे में सोचते हुए): गॉड नोज़..... किसकी आफ़त थी ये.....!!!!
रिदांश ने एक पल बाद वापस अपनी आँखें खोलीं..... और फिर एक गहरी साँस लेकर..... फ़ौरन गाड़ी में बैठ गया..... और ड्राइवर को वहाँ से चलने का इशारा किया..... ड्राइवर ने फ़ौरन ही गाड़ी आगे बढ़ा दी..... रिदांश ने अपना कोट उतारा..... और उसे गाड़ी की सीट पर साइड में रख दिया..... शुक्र था कि उसकी पैंट पर कीचड़ के छींटे नहीं आए थे..... वरना आज वह मीटिंग के लिए..... पलक के स्कूल जाना मिस कर देता..... और अपना वादा नहीं निभा पाता। रिदांश ने रॉयल ब्लू कलर की फ़िटिंग शर्ट पहनी हुई थी..... जो उसके परफ़ेक्ट बॉडी और एब्स को..... और भी ज़्यादा दिलकश और साफ़ तौर पर उभार कर दिखा रही थी..... और जिसमें रिदांश और भी ज़्यादा सेक्सी और हॉट लग रहा था। कुछ दूर ही जाकर ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। रिदांश ने अपने एक्सपेंसिव स्पेक्स को अपनी आँखों पर चढ़ाया..... और गाड़ी से अपने दमदार और दिलकश अंदाज़ के साथ बाहर निकला..... और किसी राजा की भाँति पूरी शान से वह स्कूल की ओर बढ़ गया.....!!!!
स्कूल के बाहर खड़े लोगों की नज़रें रिदांश पर टिक गई थीं। लड़के थे..... या लड़कियाँ..... आदमी थे या औरतें..... बुज़ुर्ग थे या बच्चे..... जो कोई भी वहाँ मौजूद थे..... उन सबकी नज़रें रिदांश पर ही ठहर गईं। और उसकी वजह थी रिदांश का दमदार आकर्षण..... और उसकी दिलकश पर्सनालिटी..... जो अक्सर लोगों के बीच उसे आकर्षण का केंद्र बना ही देते थे..... और सबकी नज़रें ना चाहते हुए भी..... उस पर ही ठहर जाती थीं। लेकिन इन सब से रिदांश को कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। कौन उसे देख रहा है..... या किन नज़रों से उसे देख रहा है..... उसे इन सब बातों से थोड़ा भी कोई लेना-देना ही नहीं होता था। वह सिर्फ़ अपने लक्ष्य पर ध्यान देता था..... और आज भी उसने यही किया। वह सब लोगों की नज़रों को पूरी तरह इग्नोर करते हुए..... सीधा स्कूल के अंदर बढ़ गया।
इधर दूसरी तरफ, जैसे ही आरांशी रिदांश को उसकी भाषा में जवाब देकर..... वहाँ से थोड़ा आगे बढ़ी थी..... कि तभी अरु ने रिदांश की नज़रों से बचते हुए..... उसका हाथ खींचकर..... उसे अपनी गोद में उठाकर..... कस कर अपने सीने से लगा लिया था..... और वापस फ़ुर्ती से अपनी जगह छुप गई। और रिदांश के वहाँ से निकलते ही..... अरु नैना के साथ अपनी छुपी हुई जगह से बाहर आई..... और उसने नैना को जल्दी से करन को फ़ोन करने को कहा। और कुछ पल बाद ही करन गाड़ी लेकर वहाँ आ गया। अरु आरांशी को यूँ ही अपने सीने से लगाए हुए..... गाड़ी की पिछली सीट पर बैठ गई। नैना करन के साथ आगे वाली सीट पर ही बैठ गई.....!!!!
अरु ने अभी भी आरांशी को अपने सीने में छुपाया हुआ था..... और उसने उसे इतनी कसकर अपनी बाहों में पकड़ा हुआ था..... कि मानो जैसे आरांशी को कोई उससे छीन ना ले..... या उसे उसकी आरांशी से दूर ना कर दे। इस वक़्त अरु के चेहरे पर..... डर..... घबराहट..... परेशानी..... टेंशन..... और ऐसे ही कई मिले-जुले भाव..... उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहे थे..... जो ज़ाहिर तौर पर सिर्फ़ आरांशी को खोने के डर की वजह से थे। इतने सालों से अरु जिस डर से भागती आ रही थी..... आज वही डर बस उससे एक कदम दूर ही था। अरु को समझ नहीं आ रहा था..... कि वह क्या करे..... और कैसे अपनी बेटी को इन सब की नज़रों से बचाए..... और इसी टेंशन में वो हर बढ़ते पल के साथ बस घुलती ही जा रही थी.....!!!!
करन ने अरु के चेहरे पर परेशानी के भाव देखे..... तो उसने चिंतित होते हुए..... अरु से उसकी परेशानी का सबब पूछा।
"क्या हुआ अरु?"
लेकिन अरु ने कोई जवाब नहीं दिया। तो करन ने नैना से इशारे से पूछा। नैना ने उसे अभी शांत रहने का इशारा करते हुए..... उसे ख़ामोश रहने को कहा। करन ने भी इस वक़्त हालातों की गंभीरता को समझते हुए..... चुप रहना ही ठीक समझा..... और इसी के साथ करन ने वहाँ से गाड़ी आगे बढ़ा दी। घर पहुँच कर भी न जाने कितनी देर तक..... अरु आरांशी को यूँ ही अपने सीने से लगाए हुए तब तक बैठी रही..... जब तक वह उसके सीने से लगे हुए ही..... नींद के आगोश में ना चली गई। उसके सोने के बाद ही अरु ने उसे बिस्तर पर लिटाया..... और प्यार से उसके माथे को चूमा।!!!!
अरु (आरांशी के नन्हे हाथ को अपने हाथ में लेकर भावुकता के साथ): "मैं नहीं खो सकती तुम्हें..... कभी भी नहीं..... अगर तुम मुझसे अलग हुई..... तो तुम्हारी ये माँ मर जाएगी..... मैं नहीं जी पाऊँगी..... नहीं जी पाऊँगी मैं....." (अपना सर ना में हिलाते हुए)...."किसी को तुम्हें खुद से छीनने नहीं दूँगी..... किसी को भी नहीं..... बस कुछ दिन और..... फिर हम यहाँ से हमेशा के लिए बहुत दूर चले जाएँगे..... बहुत दूर..... जहाँ इन लोगों का साया तक भी तुम पर ना पड़ पाए..... बहुत दूर ले जाऊँगी मैं तुम्हें इन सबसे..... बहुत दूर!!"
अरु सोई हुई आरांशी के साथ अपने जज़्बात साझा कर रही थी..... कि तभी नैना कमरे में दाखिल हुई। अरु ने नैना को देखा..... तो उसने अपनी नम आँखों को पोछा। अरु ने आरांशी को कम्बल ओढ़ाया..... और फिर नैना के साथ बालकनी की ओर बढ़ गई। दोनों सहेलियाँ वहीं पड़े मूँढों पर बैठ गईं। कुछ देर बाद आखिर में नैना ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
नैना (अरु के चेहरे पर परेशानी की लकीरें देख कर..... उसके हाथ पर अपनी हथेली रखकर..... उसे सांत्वना देते हुए): "जस्ट रिलैक्स अरु..... कुछ नहीं हुआ है आरांशी तुम्हारे पास ही है..... जस्ट रिलैक्स..... इतना मत सोचो..... कुछ भी नहीं हुआ है..... सब ठीक है!!"
अरु (चिंता भरी भावुकता के साथ): "कुछ नहीं हुआ है नैना..... लेकिन बहुत कुछ हो सकता था..... तुमने देखा ना..... कि आरांशी कितना करीब थी उन लोगों के..... और अगर वह लोग हमें देख लेते..... तो एक पल में ही सब बर्बाद हो जाता..... हमारा इतने सालों का यह छुपाया हुआ सच..... सब कुछ बाहर आ जाता..... और सब बर्बाद हो जाता..... और वह लोग मुझसे मेरी आरांशी को छीन लेते..... मुझे उससे दूर कर देते....." (डर भरी बेचैनी के साथ)...."नैना वो लोग मुझे उससे दूर कर देंगे..... उसे मुझसे छीन लेंगे....." (घबराहट भरी भावुकता के साथ)...."मैं उसके बिना नहीं जी पाऊँगी नैना..... मैं नहीं रह पाऊँगी अपनी आरांशी के बिना..... मैं मर जाऊँगी नैना.....!!!"
नैना (अरु को कसकर गले लगाते हुए): "जस्ट रिलैक्स अरु..... जस्ट रिलैक्स..... हमारी आरांशी हमारे पास ही है..... और कोई उसे हमसे नहीं छीन सकता..... तुम माँ हो उसकी..... तुमने उसे जन्म दिया है..... बल्कि तुमने आज तक उसे अपने खून से सींचा है..... और कोई तुम्हें उससे अलग नहीं कर सकता..... कोई भी नहीं!!"
अरु (चिंता भरे स्वर में घबराहट के साथ): "नहीं नैना तुम समझ नहीं रही हो..... अगर मिस्टर अग्निहोत्री को भनक भी पड़ गई..... कि आरांशी कौन है..... तो वो एक पल भी नहीं लगाएँगे..... उसे मुझसे दूर करने में..... और वह उसे मुझसे हमेशा के लिए छीन लेंगे..... मैं इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकती......" (अपने डर को सच होता सोचते हुए)...."नही मै ऐसा नही होने दूंगी..... कभी भी नही...... आरांशी का एडमिशन हम अब इस स्कूल में नहीं रखेंगे..... हम उसे दूसरे स्कूल में पढ़ाएँगे..... बल्कि अब हम यहाँ से ही कहीं और चले जाएँगे.....!!"
नैना (अरु की ओर देखकर गंभीर भाव से): "और अगर वह लोग वहाँ पर भी आ गए तो??"
अरु ने नैना की बात सुनी जो कि शत-प्रतिशत लॉजिकल भी थी। भले ही इन पाँच सालों में अरु ने खुद को पूरी तरह बदल लिया था..... और अब वो जज़्बाती और इमोशनल अरु नहीं रही थी। दुनिया के लिए वह बिल्कुल बदल चुकी थी..... और उसने अपनी एक सख्त साइड दुनिया को दिखाई थी। लेकिन अभी भी नैना और आरांशी ऐसे दो इंसान थे..... जिसके आगे उसके जज़्बात बिल्कुल पहले की तरह खुले हुए थे। उसके मन में क्या चल रहा है..... वह किस बात को लेकर खुश है..... किस बात को लेकर परेशान है..... यह शायद इस वक़्त नैना से बेहतर और कोई ना तो जानता था..... और ना ही समझता था।
दूसरी ओर, आरांशी वो इंसान थी..... जिसके साथ उसके जज़्बात खुलकर सामने आते थे..... फिर चाहे वह उसे लेकर उसकी फ़िक्र में होते थे..... या फिर उसके साथ बिताए खुशियों के पलों के रूप में। और आज भी अरु के आरांशी को खोने के जज़्बात..... उसका डर..... उसकी घबराहट नैना के सामने बिल्कुल किसी खुली किताब की तरह थे..... जिन्हें अरु ने छुपाने की कोशिश भी नहीं की थी..... और ना ही छुपाना ही चाहती थी। नैना ने जब अरु के चेहरे पर बेबसी और चिंता के भाव एक साथ देखे..... तो उसने वापस से अपनी बात आगे कहनी शुरू की।
नैना (अरु को समझाने की कोशिश करते हुए): "आखिर कब तक हम यूँ ही शहर..... और शहर से देश बदलते रहेंगे..... और आखिर कब तक हम इस डर से इधर से उधर खानाबदोश की तरह भागते रहेंगे..... कहीं ना कहीं..... कभी ना कभी तो हमें रुकना ही होगा ना.....!!"
अरु (टेंशन में अपने माथे पर उंगलियाँ फिराते हुए): "तो मैं करूँ क्या आखिर नैना..... जिससे मेरा ये डर भी ख़त्म हो जाए..... और मैं इस डर से आज़ाद भी हो जाऊँ!!"
नैना (गंभीर भाव के साथ): "तो इस डर का सामना करो..... क्योंकि जितना तुम इस डर से भागोगी और डरोगी..... ये डर तुम्हें उतना ही और भी ज़्यादा डराएगा!!"
अरु (असमंजस भरे भाव के साथ नैना की ओर देखकर): "तुम कहना क्या चाहती हो नैना??..... मुझे कुछ समझ नहीं आया??"
नैना (गहरी साँस ले कर गंभीर भाव के साथ अरु की ओर देखकर): "डोंट गेट मी रॉन्ग अरु..... लेकिन असल में किसी भी सच को छुपाने के लिए..... जिस झूठ की चादर का इस्तेमाल हम करते हैं....... असल में उस झूठ की चादर की उम्र बहुत ही कम होती है..... और हकीकत ये है अरु..... कि कोई भी सच ज़्यादा वक़्त तक छुप नहीं पाता!!"
अरु (घबराहट भरे भाव से नैना की ओर देखकर चिंतित भाव के साथ): "तो तुम क्या कहना चाहती हो नैना..... कि मैं सच बताकर..... खुद अपनी बेटी को खुद से दूर करने की वजह बन जाऊँ.....!!!"
नैना (अरु की ओर देखकर मिले-जुले भाव के साथ): "नहीं मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं कह रही हूँ..... मैं सिर्फ़ इतना कह रही हूँ अरु..... कि हम बेशक इस बात को ना माने..... और कितना भी इस बात को नकारे..... लेकिन हकीकत तो यही है ना..... कि आरांशी मिस्टर अग्निहोत्री की अपनी बेटी है!!"
अरु (अपनी मुट्ठियाँ कसते हुए भावुकता भरी नाराज़गी से): "नही आरांशी सिर्फ और सिर्फ मेरी बेटी है..... सिर्फ मेरी!!"
नैना (सामने की ओर देख कर एक गहरी साँस छोड़ते हुए): "अरु हमारे कुछ नकारने से सच बदल नहीं जाएगा..... और चाह कर भी हम इस सच को बदल नहीं सकते..... और आरांशी भी पूरा हक़ रखती है..... अपने पिता के प्यार को पाने का..... मैं ये बिल्कुल नहीं कह रही अरु..... कि तूने आरांशी की परवरिश में कोई कमी रखी है..... नहीं..... बल्कि तूने तो उम्मीद..... और अपनी हद से कहीं ज़्यादा उसके लिए किया है..... और लगातार कर रही है..... लेकिन एक बच्चे के लिए जितना ज़रूरी माँ का आँचल होता है अरु..... उतना ही ज़रूरी एक बाप का साया भी होता है..... और इनमें से किसी एक के प्यार के बिना ही एक बच्चे की ज़िंदगी अधूरी है....." (एक पल रुक कर)...."जो कुछ भी मिस्टर अग्निहोत्री ने किया..... बेशक वो सब सरासर गलत और तुम्हारे साथ सरासर नाइंसाफ़ी थी..... लेकिन ना जाने क्यों..... कभी-कभी जब मैं आरांशी का हँसता हुआ चेहरा देखती हूँ..... उसकी मासूमियत भरी शरारतें देखती हूँ..... तो मुझे मिस्टर अग्निहोत्री का ख़्याल आता है..... कि आरांशी की उस मासूमियत को..... उसकी हँसी..... उसकी किलकारी के कहीं ना कहीं वह भी हक़दार है..... मतलब कि कहीं ना कहीं उन्हें भी पूरा हक़ है..... अपनी बेटी की इन खुशियों को देखने का..... महसूस करने का.....!!"
अरु (अपना मुँह दूसरी दिशा में घुमा कर नाराज़गी भरे लहजे से): "मगर खुद को इन खुशियों से महरूम करने की वजह भी वो खुद ही है नैना!!!"
नैना (अरु की बात से सहमति जताते हुए): "जानती हूँ अरु सब जानती भी हूँ..... और समझती भी हूँ..... लेकिन ना जाने क्यों मगर अरु सब कुछ जानते-बूझते भी..... मेरे दिल में अक्सर ख़्याल आता है..... कि जो कुछ भी मिस्टर अग्निहोत्री ने अतीत में किया..... उन गलतियों के हर्जाने के रूप में..... उनका आरांशी के सच से महरूम रहना..... मतलब ये सज़ा ज़्यादा बड़ी है!!!"
अरु (खड़े होकर नाराज़गी भरे लहजे से): "मैं भगवान नहीं हूँ नैना..... नहीं हूँ मैं भगवान..... और ना ही मैं इतनी महान हूँ..... कि सब कुछ भूल कर..... जाकर उन्हें आरांशी का सच कह दूँ..... नहीं हूँ मैं इतनी महान....." (अतीत के दर्द को याद करते हुए)...."जो कुछ भी हुआ वह सब किस्मत ने लिखा था..... और किस्मत से भी ज़्यादा..... ये सब मिस्टर अग्निहोत्री ने लिखा था..... और अपनी हालत के ज़िम्मेदार मिस्टर अग्निहोत्री सिर्फ़ खुद हैं..... अगर वह अपनी बेटी से दूर है..... उसकी मोहब्बत से महरूम हैं तो इसके ज़िम्मेदार वो खुद हैं..... मैं इसकी ज़िम्मेदार नहीं हूँ..... नहीं हूँ मैं ज़िम्मेदार!!!"
नैना (खड़े होकर अरु की आँखों में देखते हुए): "अगर वाकई ऐसा है..... तो फिर क्यों मुझे अक्सर तेरी आँखों में इस बात के लिए गिल्ट नज़र आता है..... कि तूने एक बाप को उसकी बेटी से अलग किया है..... कि तूने एक बेटी को उसके बाप के प्यार से महरूम रखा है..... क्यों मुझे ये गिल्ट कई बार तेरी आँखों में तैरता नज़र आता है..... बोल अरु क्यों??"
अरु (अपना मुँह दूसरी ओर घुमाते हुए): "ऐसा कुछ भी नहीं है!!"
नैना (अरु की ओर देख कर): "बेशक तू इस दुनिया के सामने अपने चेहरे पर गंभीरता का नकाब ओढ़ ले..... अपने चेहरे के भाव..... जज़्बातों को अपनी बेरुखी के नीचे ढकने की कोशिश कर ले..... मगर मेरे सामने तू आज भी वही पाँच साल पुरानी अरु है..... जो चाहकर भी मुझसे कुछ नहीं छुपा सकती..... क्योंकि तेरी ये आँखें उस सच को भी कह देती हैं..... जो शायद तेरी जुबान पर कभी नहीं आए.....!!!"
अरु (नैना की बात को काटते हुए): "मैं इस बारे में अब और कोई बात नहीं करना चाहती..... प्लीज़!!"
नैना (अरु की बात सुनकर एक गहरी साँस लेते हुए): "ठीक है..... मैंने सिर्फ़ तुझे वो कहा जो मुझे बेहतर लगा..... जैसा मैं महसूस करती हूँ..... बाक़ी तू अपनी..... और आरांशी की ज़िंदगी के कोई फ़ैसले लेने के लिए पूरी तरह आज़ाद है..... मैं तुझे किसी भी फ़ैसला लेने के लिए फ़ोर्स नहीं करूँगी..... और एक बात और याद रखना..... चाहे सिचुएशन जैसी भी हो..... या जो भी हालात हों..... या तेरा जो भी..... जैसा भी फ़ैसला हो..... मैं हमेशा तेरे साथ थी..... और अपनी आखिरी साँस तक हमेशा तेरे साथ रहूँगी भी..... मैंने सिर्फ़ तुझे अपनी राय बताई!!!"
इतना कहकर नैना वहाँ से चली गई..... और अरु ने नैना की बातों को सोचते हुए..... रेलिंग पर अपनी पकड़ कसते हुए...... अपनी आँखें कसकर बंद कर ली। इस वक़्त कई सारी बातें उलझनें..... और सोच..... उसके दिमाग में उथल-पुथल मचाए हुए थे..... जिनका जवाब शायद अरु के पास होते हुए भी..... वह उस जवाब को देखना ही नहीं चाहती थी। और इन सब बातों को सोचते हुए ही..... अनायास ही उसकी आँखों से कुछ आँसू निकल कर उसके गौरों गालों पर लुढ़क आए। दोपहर से शाम..... और शाम से रात हो चुकी थी..... मगर अरु की उलझनों और सोच पर..... अभी भी विराम लगने का नाम नहीं था। अरु आरांशी को अपने सीने से लगाए लेटी हुई थी..... मगर उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी..... और वो अपनी ही सोच के किसी भँवर में फँसी थी। वो सोच के इस भँवर से तब बाहर आई..... जब आरांशी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
आरांशी (अरु की ओर देख कर): "मम्मा आपको भी नींद नहीं आ रही???"
अरु (आरांशी का सर सहलाते हुए): "हम्मम..... नहीं आ रही बेटा..... आपको भी नहीं आ रही???"
आरांशी (मासूमियत से): "नहीं..... मैं दोपहर को सो गई थी ना इसीलिए नहीं आ रही अब..... लेकिन आपको क्यों नहीं आ रही नींद..... आप तो दोपहर को भी नहीं सोई थी???"
अरु (आरांशी का सर चूमते हुए): "बस ऐसे ही....." (एक पल रुक कर)...."आ जाएगी अभी!!!"
आरांशी (अरु की ओर देख कर): "हाँ....." (कुछ पल चुप रह कर)...."मम्मा एक बात पूछूँ आपसे???"
अरु (आरांशी का सर सहलाते हुए): "हाँ पूछो मेरी जान???"
आरांशी (उठ कर बैठते हुए मासूमियत भरे लहजे के साथ): "मम्मा स्कूल में सब मुझसे पूछते हैं..... मुझे गुस्सा भी आता है!!"
अरु (आरांशी की ओर देख कर): "सब क्या पूछते हैं बेटा..... और आपको गुस्सा क्यों आता है???"
आरांशी (अरु की ओर देख कर मासूमियत भरी गंभीरता से): "यही..... कि उन सब की तरह आखिर मेरे पापा क्यों नहीं हैं....." (एक पल रुक कर अरु की ओर देख कर)...."मम्मा मेरे पापा क्यों नहीं हैं..... और वो कहाँ हैं????........."
अरु ने जब पहली बार आरांशी के मुँह से ये सवाल सुना..... तो उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया.....!!!!
इधर जब रिदांश पलक के स्कूल पहुँचा, तो उसे वहाँ देखकर पलक के साथ ही नम्या भी खुशी से खिल उठी। पलक ने कॉरिडोर में रिदांश को आता देखा, तो वह नम्या के हाथ से अपना हाथ छुड़ाकर खुशी से रिदांश की दिशा में दौड़ पड़ी। और रिदांश ने भी उसे अपनी ओर आता देखा, अपने घुटनों पर बैठते हुए पलक के लिए अपनी बाहें खोल दीं। और पलक जल्दी से खुशी और एक्साइटमेंट से दौड़कर आकर रिदांश के गले लग गई। रिदांश ने भी उसे अपनी गोद में उठाते हुए उसके सर को चूम लिया।
"आई न्यू इट," पलक ने खुशी भरी एक्साइटमेंट के साथ कहा, "कि आप जरूर आएंगे। क्योंकि आप अपना प्रॉमिस कभी नहीं तोड़ते, इसीलिए आप मुझसे मिलने यहां जरूर आएंगे।" उसने रिदांश के गाल को खुशी से चूमते हुए कहा, "थैंक यू सो मच!"
"मोस्ट वेलकम," रिदांश ने पलक के नन्हे हाथों को किस करते हुए कहा।
तभी नम्या भी वहाँ आ गई, और रिदांश ने एक हाथ से उसे हग किया।
"आपने तो वाकई सरप्राइज कर दिया भाई," नम्या मुस्कुराकर बोली, "आपने बताया भी नहीं कि आप वाकई आने वाले हैं!"
"आखिर आता कैसे नहीं," रिदांश ने पलक के चेहरे की मुस्कुराहट को देखते हुए कहा, "अपनी पलक से प्रॉमिस जो किया था मैंने!"
"या राइत," पलक मुस्कुराकर बोली, "और मेरे डैडी कभी अपना प्रॉमिस नहीं तोड़ते!"
नम्या ने पलक की बात सुनी, तो वह बस मुस्कुरा दी। इसके बाद सिद्धार्थ, नम्या और पलक के साथ, उसकी पेरेंट्स-टीचर मीटिंग अटेंड करने आगे की ओर बढ़ गया। मीटिंग रूम में जितने टीचर्स थे, सबकी नजरें बस रिदांश को देखकर उस पर ही टिक गई थीं। वे सब हसरत भरी नजरों से एकटक रिदांश को देखे जा रहे थे, मानो वे साक्षात् उनके सामने ना होकर, बल्कि वे सब महज एक खूबसूरत हसीन सपना देख रहे थे। नम्या ने जब अपने भाई के लिए लोगों की हसरत भरी नजरें देखीं, तो उसके होठों पर अनायास ही एक बड़ी सी प्राउड भरी स्माइल आ गई। इधर दूसरी तरफ, आरांशी का सवाल सुनकर अरु का दिमाग तो कुछ पल के लिए जैसे बिल्कुल सुन्न ही हो गया था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह आरांशी को उसके मासूम सवाल का क्या और कैसे जवाब दे।
"बोलो ना मम्मा, कहाँ है मेरे पापा?" आरांशी ने हल्की नाराजगी भरे भाव से पूछा, "हम उनके साथ क्यों नहीं रहते? आपने मुझे मेरे पापा से दूर क्यों रखा है? बोलो ना मम्मा? बोलो?" एक पल रुककर उसने कहा, "मुझे मेरे पापा के पास जाना है। मुझे जाना है, जाना है, जाना है!"
आरांशी अरु से लगातार एक ही जिद किए जा रही थी कि उसे अपने पिता से मिलना है। और उसकी बात सुनकर अरु के चेहरे पर उसे खो देने के डर और घबराहट साफ नजर आ रहे थे। जब अरु ने आरांशी की बात का कोई जवाब नहीं दिया, तो आरांशी नाराजगी से बेड से नीचे उतरकर बाहर जाने लगी। और उसके हर बढ़ते कदम के साथ अरु का दिल बैठता जा रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आरांशी हर बढ़ते कदम के साथ उससे दूर और रिदांश के करीब जा रही थी। और इसी डर के चलते अरु ने आरांशी को रोकने के लिए जोर से उसका नाम पुकारा।
"नहीं, आंशी!" अरु ने जोर से आरांशी का नाम पुकारते हुए कहा।
कुछ पल बाद, जब अरु की तेज साँसें और धड़कनों की रफ्तार कुछ कम हुई और उसने अपने आसपास ध्यान दिया, उसके दिमाग ने थोड़ा काम करना शुरू किया। तो उसे एहसास हुआ कि वह इस वक्त बेड पर बैठी हुई थी, कमरे में डिम लाइट्स चल रही थीं, और सर्द मौसम में भी उसके माथे पर पसीना छलका हुआ था। कुछ देर बाद जब अरु सही माइंड सेट में आई और उसके कानों में आरांशी की आवाज पड़ी, तो उसे एहसास हुआ कि उसने कुछ देर पहले जो कुछ भी देखा, महसूस किया, वह महज एक ख्वाब था। आरांशी का उससे उसके पिता के बारे में सवाल करना, उसके बारे में जानने की जिद करना, उससे दूर जाना, ये सब कुछ महज एक ख्वाब था। और यह एहसास होते ही कि अरु महज एक ख्वाब देख रही थी, अरु ने एक राहत भरी साँस ली, और उसके दिल में जैसे एक सुकून सा उतर गया।
लेकिन जैसे ही उसने अपनी नन्ही सी आरांशी के चेहरे पर परेशानी के भाव देखे, तो उसने अपना सारा ध्यान आरांशी की ओर किया। आरांशी अरु के चौंक कर उठने पर खुद भी उठ बैठी थी, और वह नींद के मामले में बिल्कुल रिदांश की तरह ही थी, जो थोड़ी सी भी आहट या शोर होने पर फौरन टूट जाती थी। और इसीलिए जब आरांशी ने अरु की ऐसी हड़बड़ाहट भरी आवाज सुनी, तो उसकी नींद फौरन टूट गई, और वह उठकर बैठ गई। और इस वक्त उसके मासूम चेहरे पर अरु के लिए परेशानी साफ झलक रही थी। यह देखकर अरु ने प्यार से उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया।
"क्या हुआ है बेटा?" अरु ने प्यार से आरांशी के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए पूछा, "आप ठीक तो हो ना? आप ऐसे परेशान क्यों बैठे हो?"
"मैं तो ठीक हूँ मम्मा," आरांशी ने अपनी मासूमियत भरी परेशानी भरे भाव के साथ कहा, "पर आपको क्या हुआ? आप ऐसे अचानक नींद से क्यों जाग गए?"
"कुछ नहीं बेटा," अरु ने हल्की सी मुस्कान के साथ अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा, "बस एक बुरा सपना देखा था मैंने, तो बस इसीलिए मेरी नींद टूट गई। बट आई एम सॉरी कि मेरी वजह से आपकी नींद खराब हो गई!"
"नो मम्मा, डोंट बी सॉरी," आरांशी ने अरु के हाथों को अपने नन्हें हाथों में थामते हुए कहा, "क्योंकि ख्वाब तो ख्वाब होते हैं ना, वो तो अपनी मर्जी से आते हैं, इसमें आपकी गलती थोड़ी है। और फिर जब मैं भी कभी ऐसे बुरे ख्वाब देखकर डर जाती हूँ, तो आप भी तो मेरे लिए उठ जाते थे ना, और मुझे प्यार से अपनी गोद में सुलाकर मेरा डर भगाते थे।"
"हाँ, मेरी दादी माँ याद है सब मुझे," अरु मुस्कुराई।
"तो फिर आज मेरी बारी," आरांशी ने अरु को समझाते हुए कहा, "मैं आपको अपनी गोद में सुलाती हूँ, फिर आपका भी सारा डर भाग जाएगा, और आप ठीक रहोगे!"
अरु ने आरांशी की मासूमियत भरी बातें सुनीं, तो पल भर में उसकी सारी उदासी और परेशानी छट गई। और उसने प्यार से आरांशी को अपनी गोद में उठा लिया।
"हाँ, अगर आप मेरे पास हमेशा रहोगी," अरु ने प्यार से आरांशी की ओर देखकर कहा, "तो मेरा डर भी हमेशा मुझसे दूर ही रहेगा, और मैं हमेशा ठीक भी रहूंगी!"
"फिर तो आप हमेशा ठीक रहोगे," आरांशी ने मासूमियत भरी मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि मैं हमेशा आपके साथ ही रहूंगी, आई प्रॉमिस!"
"हाँ, फिर कोई प्रॉब्लम नहीं होगी कभी भी," अरु ने प्यार से आरांशी के सर को चूमते हुए कहा, एक पल रुककर बोली, "बहुत रात हो चुकी है, चलो अब सो जाते हैं!"
"ओके मम्मा," आरांशी ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा।
इसके बाद अरु आरांशी को यूँ ही अपनी गोद में लिए हुए ही लेट गई। और आरांशी का छोटा सा शरीर अरु के ऊपर ही था, और उसका सर अरु के सीने पर रखा था। और अरु प्यार से उसके सर को सहला रही थी, और उसे अपने दिल के करीब महसूस करते हुए अरु हर बढ़ते पल के साथ अपनी टेंशन भूलकर एक सुकून को महसूस कर रही थी। वहीं दूसरी तरफ आरांशी भी अपने नन्हें हाथों से अरु के कांधे पर थपकी दे रही थी, मानो जैसे वह अरु के डर को भगाकर उसे सुलाने की कोशिश कर रही थी। और उसकी यह मासूमियत भरी छोटी सी कोशिश देखकर ही अरु का दिल खुशी भरे जज्बातों से भर आया था।
वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि ईश्वर कभी भी उसे उसकी बच्ची से अलग न करे। इधर रिदांश ने पलक के स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग अटेंड की, और फिर नम्या और पलक के साथ नम्या और अनिकेत के मेंशन की ओर निकल गया। अनिकेत ने जब रिदांश के यहाँ आने की बात सुनी, तो वह भी सीधा अपने मेंशन ही पहुँच गया। दोपहर का खाना खाने के बाद, रिदांश ने वहाँ से जाने की बात की, तो नम्या ने असमंजस से उसकी ओर देखते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
"पर भाई आप कहाँ जा रहे हैं इस वक्त?" नम्या ने असमंजसता भरे भाव के साथ पूछा।
"मुंबई!" रिदांश ने बिना किसी भाव के साथ नपे-तुले अंदाज में कहा।
"लेकिन भाई, सुबह ही तो आप आए हैं, और अभी वापस जा रहे हैं," नम्या ने कहा, "मेरा मतलब है कि आप इतनी जल्दी क्यों जा रहे हैं? एक-दो दिन रुक जाएँ आराम से, फिर चले जाइएगा!"
"नो, आई हैव टू गो," रिदांश ने गंभीर भाव के साथ ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "मेरी कुछ अर्जेंट मीटिंग है, जो मुझे कल अटेंड करनी है, तो मुझे आज ही निकलना होगा!"
"अगर ऐसा ही था, और काम इतना अर्जेंट था, तो तुम्हें आना ही नहीं चाहिए था रिदू," अनिकेत ने रिदांश की ओर देखकर कहा, "तुम बेवजह कुछ देर के लिए इतना परेशान हुए और..."
"मेरे यहाँ आने से पलक के चेहरे पर जो खुशी और मुस्कान आई," रिदांश ने बीच में ही अनिकेत की बात को काटते हुए कहा, "वह हरगिज बेवजह नहीं थी, वह मेरे लिए बेशकीमती थी, जिस बरकरार रखने के लिए मैं किसी भी तकलीफ से गुजर सकता हूँ, तो फिर ये तो कुछ भी नहीं था!"
"अब ये पलक और तुम्हारा मामला है, तो एज यूजुअल नो कॉमेंट्स!" अनिकेत ने अपने कांधे उचकाते हुए कहा।
"ठीक है भाई, अगर अर्जेंसी है, तो मैं भी आपको फोर्स नहीं करूँगी," नम्या ने रिदांश की ओर देखकर कहा, "बट प्लीज आप प्रॉमिस कीजिए कि आप अपने काम से फ्री होकर कुछ दिनों के लिए हमारे साथ रहने के लिए जरूर आएंगे!"
"आई विल ट्राई," रिदांश ने अपना सर हाँ में हिलाते हुए कहा।
"नो डैडी, यू हैव टू प्रॉमिस अस," पलक ने रिदांश की ओर देखकर मासूमियत से कहा, "कि आप जरूर आएंगे, क्योंकि मैं भी चाहती हूँ कि आपकी तरह, जैसे आपने मुझे मुंबई घुमाया था, मैं भी आपको लंदन घुमाने ले जाऊँ!"
"बेटा, आपके डैडी तो ऑलरेडी सारा लंदन घूमे हुए हैं!" नम्या ने पलक की बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा।
"तो आप मेरे साथ लंदन नहीं घूमोगे डैडी?" पलक ने थोड़ी उदासी के साथ रिदांश की ओर देखकर पूछा।
"जरूर घूमूँगा," रिदांश ने पलक के बालों को उसकी आँखों से हटाते हुए कहा, "एंड आई प्रॉमिस कि काम से फ्री होते ही मैं यहाँ जरूर आऊँगा!"
"आई विल बी वेटिंग!" पलक ने कुर्सी पर खड़े होकर खुशी से रिदांश के गले लगकर कहा।
इसके बाद रिदांश उन सब से विदा लेकर सीधा एयरपोर्ट के लिए निकल गया। एयरपोर्ट पहुँचकर रिदांश ने मुंबई की फ़्लाइट ली, और वहाँ से रात को ही मुंबई निकल गया। अगले दिन शाम को रिदांश के मुंबई पहुँचने की खबर के बाद अरु भी करन के साथ मुंबई के लिए निकल गई। मुंबई पहुँचकर अरु को पता चला कि दो दिन बाद प्रोजेक्ट की ओपनिंग की खुशी में प्रिंस ने मुंबई में ही एक बड़ी सी पार्टी थ्रो की है, जिसमें बड़े-बड़े बिज़नेस टायकून और लोग आने वाले थे। यूँ तो अरु का बिल्कुल भी मन नहीं था कि वह इस पार्टी में जाए, लेकिन प्रोफेशनलिज्म को निभाने और उसकी गाँठें मज़बूत करने के लिए अरु का वहाँ जाना ज़रूरी था। इसीलिए यकीनन वह वहाँ जाने वाली थी। उधर दूसरी तरफ़ करन तो पार्टी का नाम सुनते ही खुशी और एक्साइटमेंट से नाच उठा था, जबकि रिदांश भी सिर्फ़ वहाँ पर फ़ॉर्मेलिटी पूरी करने के लिए ही जाने वाला था।
अगला दिन यूँ ही ऑफ़िस के कामों में गुज़र गया, और इस बीच अरु ने इन दो-तीन दिनों में सिवाय लंदन के रिदांश को नहीं देखा था। क्योंकि पिछले दो-तीन दिनों से रिदांश इस ऑफ़िस में ना आकर अपने पर्सनल ऑफ़िस में ही जा रहा था। और यही रिदांश का भी था कि उसने पिछले कुछ दिनों से अरु को नहीं देखा था, या यह भी कह सकते हैं कि वह जानबूझकर अरु को नहीं देखना चाहता था, और उससे दूर रहने की, उसे इग्नोर करने की कोशिश कर रहा था। अगले दिन पार्टी का दिन आया। पार्टी शाम को थी, एक बड़े से ग्रैंड सेवन स्टार होटल में उस पार्टी का आयोजन किया गया था, जो कि बेहद शानदार थी। धीरे-धीरे वहाँ गेस्ट का आना शुरू हुआ, जिनमें ज्यादातर बड़े-बड़े बिज़नेस मेन शामिल थे। जैसे ही रिदांश ने पार्टी में एंट्री ली, तो हमेशा की तरह वह सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बन गया।
हमेशा की तरह रिदांश डार्क ब्लैक फ़ुल फ़िटिंग सूट में बेहद शानदार और आकर्षक लग रहा था। उसके साथ दक्ष और प्रिशा भी यहाँ आए थे, क्योंकि वे भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा थे। सबकी नज़रें उन लोगों पर, और खासकर रिदांश पर ही ठहर गई थीं। लेकिन हमेशा की तरह रिदांश सबको इग्नोर करता हुआ सीधा प्रिंस के पास पहुँचा, और उससे थोड़ी सी फ़ॉर्मल बातें करने के बाद वह दक्ष के साथ वहाँ से आगे बढ़ गया। जबकि प्रिशा अपनी एक दोस्त की ओर बढ़ गई। हालाँकि दक्ष और रिदांश में अभी भी थोड़ी नाराज़गी थी, इसीलिए दोनों अभी भी एक-दूसरे से नॉर्मल तरीके से बात नहीं कर रहे थे। लेकिन दोनों ही साथ में ही पार्टी में आए थे, और अपनी नाराज़गी या लड़ाई को दूसरे बाहर वाले लोगों के सामने ना तो कभी जाहिर करते थे और ना ही उनसे साझा करते थे। क्योंकि वे दोनों ही समझदार थे, और समझते थे कि उनकी दोस्ती में जो भी कुछ थोड़ी बहुत नाराज़गी या बात है, वह उनका निजी मामला है। और लोगों के बीच उसे शो करके या लाकर सिवाय अपनी दोस्ती का मज़ाक बनवाने के और कुछ हासिल नहीं कर सकते, जो दोनों को ही हरगिज मंज़ूर नहीं था।
पार्टी शुरू हुई और धीरे-धीरे लोगों का आना शुरू हो गया। कुछ को छोड़कर यहाँ ज्यादातर छोटी उम्र के बिज़नेसमैन कम थे और लेट फ़ोर्टी-फ़िफ़्टी के बिज़नेसमैन ज़्यादा थे। इसी के साथ कुछ देर बाद एंट्रेंस से एक ऐसी एंट्री भी हुई जिस पर सबकी नज़रें ठहर गईं, और खासकर वहाँ मौजूद मेल्स की। और वह एंट्री थी अरु की, जो करन के साथ पार्टी में आई थी। अरु ने ब्लैक कलर की सिंपल मगर स्टाइलिश साड़ी पहनी थी, जिसमें उसके गोरे रंग के साथ ही उसकी परफ़ेक्ट बॉडी शेप और भी ज़्यादा आकर्षक और खूबसूरत नज़र आ रही थी। और वहाँ मौजूद लोगों की नज़रें अरु की खूबसूरती और उसके चेहरे के डेडली ब्रेथटेकिंग एक्सप्रेशन उसे लोगों की नज़रों में और भी ज़्यादा खूबसूरत और बोल्ड दिखा रहे थे। और वहाँ मौजूद लोगों की नज़रें जैसे उस पर टिक कर रह गई थीं। प्रिशा ने अरु को आता देखा, तो वह उसकी ओर बढ़ने को हुई कि अचानक पीछे से किसी ने उसका हाथ थामकर उसे रोक लिया।
प्रिशा ने पीछे मुड़कर देखा, तो लगभग उसकी ही उम्र का एक हैंडसम लड़का, होंठों पर एक दिलकश मुस्कान लिए खड़ा था। जिसे सामने देखकर अचानक ही प्रिशा के चेहरे के एक्सप्रेशन असहजता और मायूसी भरे हो गए। वह लड़का कुछ बोलता कि तभी वहाँ शनाया आ गई, और एक्साइटेड होकर खुशी से सीधा उस लड़के के गले लग गई। प्रिशा ने उन दोनों को यूँ देखा तो वहाँ से जाने के लिए कुछ कदम पीछे की ओर हट गई, लेकिन वह वहाँ से जाती कि एक बार फिर उसका हाथ थामकर किसी ने उसे रोक लिया, जो कि इस बार रिदांश था। उसे देखकर प्रिशा ने कुछ कहने के लिए अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए थी, लेकिन रिदांश ने उसके बोलने से पहले ही जैसे उसकी बात समझते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
"मैंने ही तन्मय को यहाँ बुलाया है!" रिदांश ने गंभीर भाव के साथ अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा।
"लेकिन भाई मैं..." प्रिशा ने परेशानी भरे भाव के साथ कहा।
"जितनी तुम्हें ज़रूरत थी, मैं उससे कहीं ज़्यादा वक्त तुम्हें दे चुका हूँ," रिदांश ने प्रिशा की बात को बीच में ही काटते हुए गंभीरता से कहा, "अब मैं और तुम्हें खुद की लाइफ से खेलने नहीं दे सकता।" एक पल रुककर उसने कहा, "सो बेटर होगा तुम खुद डीसीजन लो, एंड रिमेंबर प्रीशु, इस बार मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा पॉज़िटिव रिस्पॉन्स ही चाहिए।" प्रिशा को कुछ बोलने की कोशिश करते देख थोड़े सख्त भाव से उसने कहा, "एंड दैट इज़ फ़ाइनल!"
इतना कहकर रिदांश वहाँ से आगे बढ़ गया, जबकि प्रिशा चिंता और उलझन भरे भाव से बस उसे जाता देखती रही। उसे बिल्कुल भी समझ ही नहीं आ रहा था कि वह आखिर कैसे इस सिचुएशन को हैंडल करे।
रिदांश ने प्रिशा की बात बीच में काटते हुए गंभीरता से कहा, "जितनी तुम्हें ज़रूरत थी..... मैं उससे कहीं ज़्यादा वक्त तुम्हें दे चुका हूँ..... अब मैं और तुम्हें खुद की लाइफ से खेलने नहीं दे सकता....." उसने एक पल रुककर कहा, "....सो बेहतर होगा तुम खुद डिसीज़न लो..... और याद रखना प्रीशु, इस बार मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा पॉज़िटिव रिस्पॉन्स ही चाहिए....." प्रिशा को कुछ बोलने की कोशिश करते देख वह थोड़े सख्त भाव से बोला, "....और यह फ़ाइनल है!!"
इतना कहकर रिदांश वहाँ से आगे बढ़ गया। प्रिशा चिंता और उलझन भरे भाव से उसे जाता देखती रही। उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि वह आखिर कैसे इस सिचुएशन को हैंडल करे। रिदांश जैसे ही कुछ कदम आगे बढ़ा, उसकी नज़र अंदर आती अरु पर पड़ी। अरु को देखते ही उसके चेहरे के भाव अचानक बदल गए, और उस पर कुछ इमोशन्स उभरे। लेकिन एक पल बाद, जैसे ही उसकी नज़र अरु के साथ आए करन पर पड़ी और साथ ही वहाँ मौजूद पुरुषों की नज़रों पर, उसने अरु के ऊपर ऐसी गढ़ी देखी जैसे वह कोई शिकारी हो और अरु उनका कोई शिकार। रिदांश के चेहरे के भाव फिर बदल गए। इस बार उसके चेहरे के भाव सख्त और गुस्से भरे थे। और उसका यह गुस्सा जाहिर तौर पर उन नज़रों के लिए था जो अरु पर गढ़ी थीं। और शायद असल में इसमें वहाँ मौजूद लोगों की कोई गलती भी नहीं थी क्योंकि इस वक्त अरु को कोई भी देखता, तो उसके चेहरे पर बरकरार कॉन्फिडेंस, बोल्डनेस और डेडली एक्सप्रेशन देखकर ना चाहते हुए भी उसका कायल हो ही जाता।
उस वक्त उसके एक्सप्रेशन अरु को उसकी खूबसूरती से कहीं ज़्यादा आकर्षक दिखा रहे थे। वह इतनी आकर्षक लग रही थी कि कोई चाहकर भी उससे अपनी नज़रें हटा ही नहीं सकता था। इधर दूसरी तरफ, करन को अरु के साथ देखकर कुछ लोगों को यह गलतफहमी भी हो गई थी कि शायद अरु करन के साथ ही है या प्रोफ़ेशनल लाइफ़ से अलग दोनों का कोई रिलेशन है। और कुछ लोग इसी बात को लेकर आपस में अपनी ही एक अलग खिचड़ी पका रहे थे। उनकी फुसफुसाहट अरु और करन वहाँ से गुज़रते हुए सुन सकते थे। लेकिन अरु ने हमेशा की तरह सबको इग्नोर किया और वहाँ से आगे बढ़ गई। जबकि करन के लिए तो यह बातें सुनना, मतलब सातवें आसमान की सैर करने जैसा था। उधर दूसरी तरफ रिदांश आगे बढ़ गया, लेकिन प्रिशा अभी भी उसकी बातों को सोचते हुए वहीं खड़ी थी कि तभी तन्मय वहाँ आ गया।
"एम सॉरी प्रिशा," तन्मय प्रिशा के सामने आते हुए बोला, "लेकिन मुझे एक अर्जेंट काम आ गया है। तो मुझे अभी जाना होगा। बट आई प्रॉमिस कि मैं तुमसे घर आकर ज़रूर मिलूँगा!"
"इट्स ओके तन्मय, तुम जा सकते हो!" प्रिशा ने सहज भाव से कहा।
"थैंक्यू," तन्मय ने प्रिशा की ओर देखकर कहा, "मैं मिलता हूँ बाद में तुमसे!!"
"ओके बाय!" प्रिशा ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा।
"बाय!!" तन्मय मुस्कुरा कर बोला।
प्रिशा और तन्मय ने एक साथ अपनी इंटर्नशिप पूरी की थी। तब से ही तन्मय और प्रिशा एक-दूसरे को जानते थे। जहाँ प्रिशा के लिए तन्मय एक अच्छे दोस्त की तरह था, वहीं तन्मय के लिए बढ़ते वक्त के साथ प्रिशा एक दोस्त से बढ़कर हो गई थी। और इसी के चलते उसने कई बार प्रिशा से अपने दिल की बात कहनी चाही जिसे प्रिशा ने अक्सर टाल दिया था। लेकिन जब यह बात रिदांश को पता चली, जो कि तन्मय के पिता ने तन्मय के लिए प्रिशा का हाथ माँगते हुए रिदांश को बताई थी, तो रिदांश को तन्मय प्रिशा के लिए हर तरह से बेहतर लगा। वह एक अच्छे परिवार से होने के साथ ही एक बेहद अच्छा इंसान भी था। इसीलिए रिदांश ने प्रिशा के लिए तन्मय को पहली ही नज़र में पसंद कर लिया था।
हालांकि रिदांश की राज़ीमंदी जानने के बाद प्रिशा ने उससे कुछ वक्त माँगा और उसकी बात का मान रखते हुए रिदांश ने उसे वह वक्त दिया भी। जिस बात को अब लगभग दो साल गुज़र गए। और इस बीच तन्मय अपनी आगे की स्टडी के लिए, अपने बिज़नेस को सेटल करने के लिए कनाडा शिफ़्ट हो गया था और अभी कुछ वक्त पहले ही वह वापस इंडिया शिफ़्ट हुआ था। और उसके यहाँ वापस आने के साथ ही रिदांश भी अब फ़ैसला कर चुका था कि अब वह फ़ाइनली तन्मय और प्रिशा का रिश्ता जोड़कर ही रहेगा। हालांकि प्रिशा के दिल की बात रिदांश से भी छुपी नहीं थी कि आज भी प्रिशा के दिल में उसकी पहली मोहब्बत, जो टॉम के लिए उसके दिल में उभरी थी, उसके ज़ख्म आज भी कहीं ना कहीं प्रिशा के दिल में ताज़ा थे। लेकिन रिदांश चाहता था कि उन ज़ख्मों के नासूर बनने से पहले ही वह प्रिशा की आने वाली ज़िंदगी से मिलने वाली खुशियों के मरहम से ये सारे ज़ख्म भर दे। और ऐसा तब ही पॉसिबल था जब प्रिशा अपने अतीत को भूलकर अपने आज को अपनाए और अपने आज को ही अपना कल बनाए।
ऐसा नहीं था कि तन्मय अच्छा लड़का नहीं था। यह नहीं कि प्रिशा को उसमें कुछ खामियाँ या कमियाँ नज़र आती थीं, बल्कि तन्मय ने खुद आगे बढ़कर प्रिशा को चुना था। बात सिर्फ़ इतनी सी थी कि प्रिशा के साथ उसकी पहली मोहब्बत को लेकर जो कुछ भी उसके साथ हुआ था, उसके वह ज़ख्म और दर्द अभी भी उसके दिल में ऐसे ही हरे थे। और इसीलिए वह शादी जैसे रिश्ते में अभी आगे नहीं बढ़ना चाहती थी क्योंकि कहीं ना कहीं उसके दिल में यह डर था कि वह उस रिश्ते के साथ नाइंसाफी ना कर बैठे, कहीं उसका अतीत उसके आने वाले कल को बर्बाद ना कर दे। तन्मय लगभग प्रिशा की उम्र का ही एक सुलझा, अच्छा और देखने में भी हैंडसम और आकर्षक लड़का था और जिसकी ज़िंदादिली अक्सर लोगों को उससे प्यार करने के लिए मजबूर कर ही देती थी। अगर प्रिशा का अतीत उसका घाव नहीं होता और प्रिशा की ज़िंदगी में चीज़ें सामान्य होतीं तो वह हरगिज़ तन्मय को ना नहीं कहती क्योंकि उसके पास उसे ना कहने का कोई ऑप्शन ही नहीं होता और वह फ़ौरन उसे हाँ कह देती।
एक तरह से तन्मय बिल्कुल परफ़ेक्ट था, लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। तभी वह अब आकर तन्मय से मिल रही थी। तन्मय के वहाँ से जाने के बाद प्रिशा ने एक गहरी साँस ली। हालांकि सारा टाइम उसके दिमाग में बस रिदांश की कही बात ही चल रही थी। इधर पार्टी शुरू हुई और देखते ही देखते अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई। सब लोग पार्टी एन्जॉय कर रहे थे। दक्ष अरु और करन के साथ खड़ा बातें कर रहा था। कुछ देर बाद प्रिशा और शनाया भी वहाँ आ गए। रिदांश उन सब से अलग अपनी ही दुनिया में था। हालांकि उसकी नज़रें बार-बार अरु की दिशा में ही ठहर रही थीं, लेकिन उसके दिमाग में असल में क्या चल रहा था यह सिर्फ़ वही जानता था और हमारा दक्ष। उसके दिमाग में अपनी अलग ही खिचड़ी पक रही थी।
"अरे शनाया," दक्ष ने अपनी खुराफ़ाती दिमाग को चलाते हुए शनाया की ओर देखकर कहा, "तुम यहाँ क्या कर रही हो???"
"मतलब???" शनाया असमंजस भरे भाव से बोली।
"मतलब यह कि तुम अपने पार्टनर को अकेला छोड़कर यहाँ क्या कर रही हो," दक्ष ने अकेले खड़े रिदांश की ओर इशारा करते हुए कहा, "(अरु को इशारा करते हुए) वैसे भी यू नो ना कि हमारे रिदांश की एक झलक पर लड़कियाँ मर मिटने को तैयार रहती हैं, तो ऐसे में उसको यूँ उनके बीच अकेले छोड़ना बिल्कुल भी ख़तरे से खाली नहीं है।"
"बात तो तुम्हारी बिल्कुल ठीक है," शनाया सोचते हुए बोली, "मैं जाती हूँ जल्दी से उसके पास।"
इतना कहकर शनाया जल्दी से रिदांश की दिशा में बढ़ गई और दक्ष ने अपनी खुराफ़ाती मुस्कान को छुपाते हुए अरु के चेहरे के एक्सप्रेशन देखने के लिए उसकी ओर अपना रुख किया। अरु के एक्सप्रेशन देखकर कोई भी कह सकता था कि रिदांश को लेकर शनाया की आँखों और बातों में जो फ़िक्र और हक़ झलक रहा था, वह सुनकर अरु के दिल में कुछ तो कहीं तो खटका था। हालांकि वह अपने चेहरे के इन एक्सप्रेशन को कुछ पल बाद बड़ी ही सफ़ाई से छुपा भी गई थी, लेकिन उसके ये इमोशन्स दक्ष की खुराफ़ात नज़रों से छुप नहीं पाए थे। और अरु के ये एक्सप्रेशन देखकर दक्ष अंदर ही अंदर खुराफ़ाती मुस्कराहट से मुस्कुरा रहा था।
इधर दूसरी तरफ शनाया रिदांश के पास पहुँची जो अपने दाहिने हाथ से ड्रिंक का ग्लास पकड़े, अपने बाएँ हाथ को अपनी पैंट की पॉकेट में दिए हुए, बड़े ही टशन के साथ खड़ा था। शनाया उसके पास पहुँची तो उसने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया और एक नज़र भी उसकी ओर नहीं देखा। जितना शनाया ने रिदांश को अब तक जाना और समझा था, अब वह भी उसके इस बिहेवियर की यूज़्ड टू हो चुकी थी। उसे पता था कि रिदांश का बिहेवियर, उसका एटीट्यूड, उसका ओरा, इवन उसकी पूरी पर्सनैलिटी ही दूसरे लोगों से बिल्कुल अलग, बिल्कुल जुदा थी। और रिदांश के दिल और दिमाग में कब क्या और कैसे चल रहा होता है, वह दूसरों को दूसरों से कभी साझा नहीं करता था। उसकी सारी बातें सिर्फ़ उस तक ही सीमित रहती थीं।
शनाया रिदांश के बिहेवियर को समझते हुए यह बात भी अच्छे से जानती थी कि अगर वह पूरी रात भी यहाँ खड़ी रहे तो भी रिदांश उससे बात करना तो दूर, उसकी तरफ़ देखेगा भी नहीं। हालांकि शनाया दिखने में जिस बला की खूबसूरत और आकर्षक थी, रिदांश की जगह कोई और होता तो वह फ़ौरन शनाया को अप्रोच कर लेता, लेकिन रिदांश जैसे उसके सामने तो साक्षात् अप्सरा भी आ जाए तो भी वह उसके सामने ऐसे ही कोल्ड बिहेवियर ही रखता। उसे जैसे किसी और से भी कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था और शायद यही चीज़ें थीं जो उसे दूसरों से अलग करती थीं और उसका यही अलगपन शनाया को भी कहीं ना कहीं भा गया था। रिदांश के नेचर को समझते हुए, आखिर में शनाया ने खुद अपनी चुप्पी तोड़ी।
"फ़ॉर योर काइंड इनफ़ॉर्मेशन," शनाया ने रिदांश को अकेला खड़ा देखकर उसकी ओर देखते हुए कहा, "तुम्हें बता दूँ, यहाँ पार्टी चल रही है!!"
"डिड आई से कि यहाँ कोई शोक सभा चल रही है!?" रिदांश ने बिना शनाया की ओर देखे हल्की बेरुखी से कहा।
"हाउ रूड ना," शनाया ने अपनी भौंहें सिकोड़कर कहा, "तुम ऐसे अजीब से क्यों हो? मतलब तुम नॉर्मल लोगों की तरह बिहेव नहीं कर सकते कभी लोगों के साथ??"
शनाया की बात सुनकर रिदांश ने अपने हाथ में पकड़ा ग्लास टेबल पर रखा और अपने दोनों हाथों को अपनी पैंट की पॉकेट में डालते हुए, अपने दिलकश और स्ट्रॉन्ग ओरे के साथ उसने अपना रुख शनाया की ओर करते हुए अपनी खूबसूरत, डोमिनेंस आँखों से उसकी ओर देखा। और उसकी दिलकश नज़रें खुद पर देखते ही शनाया का दिल धड़क उठा और वह हसरत भरी नज़रों से एकटक रिदांश के चेहरे को देखने लगी। लेकिन कुछ पल बाद जैसे ही रिदांश ने अपनी चुप्पी तोड़ी तो शनाया की सारी हसरत धरी की धरी रह गई और उसने हल्की हैरानी से अपना मुँह खोलकर रिदांश की ओर देखा।
"तुम अच्छे से जानती हो कि तुम्हारी फ़िज़ूल बकवास बातें सुनने और उन्हें टॉलरेट करने का सिर्फ़ एक ही रीज़न है," रिदांश ने शनाया की ओर देखकर कहा, "अगर वह रीज़न नहीं होता तो अब तक तुम्हें मुंबई से बाहर पार्सल करवा चुका होता मैं!!"
"हाउ रूड," शनाया ने हैरानी से रिदांश की ओर देखकर कहा, "ऐसे कौन बात करता है!"
"ऑफ़िसर्स मैं करता हूँ!!" रिदांश ने बिना किसी भाव के कहा।
"चलो तुम्हारे इश्क़ में यह लहजा भी क़ुबूल है!!" शनाया ने दिलकश मुस्कान के साथ हसरत भरी निगाहों से रिदांश को देखते हुए कहा।
रिदांश ने शनाया की बात सुनी तो उसने उसे एक टफ़ लुक दिया और वहाँ से जाने को हुआ कि शनाया ने झट से उसकी बाजू पकड़कर उसे रोक लिया। रिदांश ने अपनी बाजू पर शनाया की पकड़ देखी तो उसने उसे तीखी नज़रों से घूरा और यह देखकर शनाया ने एक इनोसेंट, पपी फ़ेस बना लिया। इधर जैसे ही अरु, जो कि दक्ष के साथ थी, लेकिन रह-रहकर उसका पूरा ध्यान रिदांश और शनाया पर ही रुक रहा था, जैसे ही शनाया ने रिदांश की बाजू पर अपनी पकड़ बनाई तो अनायास ही अरु की मुट्ठियाँ खुद ही बंद हो गईं। शायद इस वक्त वह अपने दिल में जो जज़्बात महसूस कर रही थी, वह उन जज़्बातों को रोकने और नकारने की कोशिश कर रही थी।
रिदांश शनाया की इस हरकत पर कोई जवाब दे पाता या कोई रिएक्शन ही दे पाता कि तभी करन ने स्टेज पर जाकर माइक लेकर अरु की ओर देखते हुए गाना शुरू किया और गाते हुए ही वह उतरकर स्टेज से नीचे आया और अरु का हाथ पकड़कर डांस फ़्लोर की ओर ले गया। इतने लोगों के बीच होने की वजह से अरु चाहकर भी उसे ना नहीं कह पाई और इस वक्त अरु को देखकर जो उसके चेहरे पर मुस्कराहट और इमोशन्स थे, उनका मतलब समझते हुए और गाने के बोल सुनकर रिदांश के चेहरे के भाव और नसें तन गए।
करन ने मुस्कुरा कर प्यार भरी नज़रों से अरु की ओर देखते हुए अपनी दिलकश आवाज़ में गाना गाया:
"तेरी मेरी गल्लाँ हो गई मशहूर,
कर ना कभी तू मुझे नज़रों से दूर,
(जाती हुई अरु का हाथ पकड़ कर वापस अपनी ओर लाते हुए)
किथे चली ऐ तू, किथे चली ऐ तू, किथे चली ऐ,
जांदा ऐ दिल ये तो जांदी ऐ तू,
तेरे बिन मैं ना रहूँ मेरे बिना तू,
किथे चली ऐ तू, किथे चली ऐ तू, किथे चली ऐ,
(मुस्कुरा कर प्यार भरी नज़रों से अरु की ओर देखकर उसके साथ डांस करते हुए)
काटूँ कैसे राताँ ओ सावरे,
जिया नहीं जाता सुन बावरे
के राताँ लम्बियाँ लम्बियाँ रे
कटे तेरे संगेयाँ संगेयाँ रे,
के राताँ लम्बियाँ लम्बियाँ रे,
कटे तेरे संगेयाँ संगेयाँ रे"
करन के मुँह से यह गाना सुनकर कई सारे कपल्स भी डांस फ़्लोर पर आ गए और एक रोमांटिक कपल डांस करने लगे। अरु ने भी कुछ पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं और वह अतीत के उन लम्हों को याद करके उनमें खोने लगी जब वह सेम इसी गाने पर अक्सर रिदांश की शर्ट लिए उसके साथ एक कपल रोमांटिक डांस को इमेजिन किया करती थी। अरु कुछ पलों तक भी उन लम्हों को याद करते हुए अपने अतीत में खोई रही, लेकिन वह अपने अतीत से तब बाहर आई जब उसके कानों में किसी लड़की की आवाज़ पड़ी जो कि और कोई नहीं बल्कि शनाया ही थी। करन को अपनी मोहब्बत का यूँ इज़हार करता देख शनाया से भी नहीं रहा गया और अपनी टूटी-फूटी मगर क्यूट सी आवाज़ में उसने आगे के बोल गाना शुरू किया।
शनाया ने रिदांश के इर्द-गिर्द घूमते हुए गाया:
"छम छम छम अम्बराँ दे तारे कहंदे ने सज्जन,
तू ही चन मेरे इस दिल दा मान ले वे सज्जन,
तेरे बिना मेरा होवे न गुजारा,
छड़ के ना जावीं मैनु तू ही है सहारा,
काटूँ कैसे राताँ ओ सावरे,
जिया नहीं जाता सुन बावरे,
के राताँ लम्बियाँ लम्बियाँ रे
कटे तेरे संगेयाँ संगेयाँ रे
के राताँ लम्बियाँ लम्बियाँ रे,
कटे तेरे संगेयाँ संगेयाँ रे"
इस वक्त अरु और रिदांश दोनों ही अंदर से चिड़चिड़ापन महसूस कर रहे थे, लेकिन उनकी मजबूरी यह थी कि वह इतने लोगों के बीच अपनी फ्रस्ट्रेशन और चिल्लाहट को नहीं निकाल सकते थे, ख़ासकर अरु। लेकिन इन दोनों से बिल्कुल अलग एक कोई था जो इन सब के बड़े ही मज़े ले रहा था और वह था हमारा दक्ष। क्योंकि शायद दक्ष इन दोनों के अंदर उमड़ते उन जज़्बात और इमोशन्स को देख पा रहा था जो यह देखकर भी नहीं देख रहे थे या जानबूझकर उसे अनदेखा करने की कोशिश कर रहे थे। दक्ष अच्छे से समझ चुका था कि उसे सिर्फ़ एक चिंगारी लगाने की ज़रूरत है और एक चिंगारी लगते ही यह आग खुद पर खुद भड़क जाएगी और शायद उस चिंगारी की शुरुआत हो भी चुकी थी।
शनाया का गाना सुनकर रिदांश की फ्रस्ट्रेशन और ज़्यादा बढ़ गई और वह इरिटेट होकर वहाँ से बाहर की ओर जाने लगा कि अनायास ही उसके क़दम स्टेज डांस फ़्लोर की ओर बढ़ गए। और इधर करन म्यूज़िक की बीट पर अरु को डांस करते हुए गोल-गोल घुमा रहा था। करन ने अरु को गोल-गोल घुमाते हुए उसका हाथ छोड़ा तो कुछ पल बाद ही किसी ने अरु को थाम लिया। अरु की आँखें बंद थीं, लेकिन वह इस खुशबू को, इस महक को अच्छे से ना सिर्फ़ जानती थी बल्कि महसूस भी कर सकती थी। आखिर इस खुशबू से उसका पुराना रिश्ता रहा है। कभी यह खुशबू उसके दिल का सुकून हुआ करती थी जो कि किसी और की खुशबू नहीं बल्कि रिदांश की थी। अरु ने बिना अपनी आँखें खोले वहाँ से जाने के लिए अपने क़दम बढ़ाने चाहे, लेकिन नाकाम रही क्योंकि उस पर रिदांश की पकड़ कसी हुई थी और ना सिर्फ़ कसी हुई थी बल्कि उसने अरु की कमर को इतनी कसकर पकड़े हुए था कि वह उससे दूर होना तो दूर बल्कि हिल भी नहीं पा रही थी।
दूसरी तरफ़ सच से अनजान करन आज बहुत खुश था क्योंकि वह फ़ाइनली डिसाइड कर चुका था कि आज चाहे जो भी हो, जो लोग आपस में अरु और उसके बारे में अंदाज़ा लगाते हुए बातें बना रहे हैं, वह उसे वाकई में सच कर देगा और आज फ़ाइनली वह सबके सामने अरु से अपने दिल की बात कहकर हमेशा-हमेशा के लिए उसे अपना बना लेगा। इधर कुछ पल बाद अरु ने अपने कॉन्फिडेंस को बरकरार रखने की कोशिश करते हुए अपनी आँखें खोलीं तो सामने रिदांश को अपनी इंटेंस और खूबसूरत आँखों से एकटक खुद को देखता पाया जिनमें अरु को इस वक्त शिकायत, गुस्सा, नाराज़गी और कुछ अनकहे एहसास साफ़ नज़र आ रहे थे।
लेकिन अरु इन एहसासों के लिए अपने कॉन्फिडेंस, अपनी हिम्मत को हरगिज़ मरने नहीं दे सकती थी। इसलिए उसने एक पल को वापस से अपनी आँखें बंद कीं और फिर उसने अपनी आँखें खोलीं तो अब उसकी आँखों में वही कॉन्फिडेंस और वही डेडली एक्सप्रेशन वापस से उसके चेहरे पर आ गए। उसने अपनी तीखी नज़रों से रिदांश को देखा जैसे आँखों ही आँखों में वह उसे वार्निंग दे रही हो कि डोंट मैस अप विद मी। अरु ने आँखों ही आँखों में रिदांश को वार्निंग दी और अपनी वार्निंग के बाद उसने वापस से रिदांश की ग्रिप को खुद पर ढीला करने के लिए अपने हाथ बढ़ाए, लेकिन क्या वाकई रिदांश को उसकी वार्निंग या गुस्से की थोड़ी भी फ़िक्र या परवाह थी या रिदांश का इरादा आज कुछ और ही था?
अरु ने अपनी तीखी नज़रों से रिदांश को देखा, जैसे आँखों ही आँखों में वह उसे वार्निंग दे रही हो—कि "डोंट मैस अप विद मी।" अरु ने आँखों ही आँखों में रिदांश को वार्निंग दी। अपनी वार्निंग के बाद उसने वापस से रिदांश की ग्रिप को खुद पर ढीला करने के लिए अपने हाथ बढ़ाए। लेकिन क्या वाकई रिदांश को उसकी वार्निंग या गुस्से की थोड़ी भी फिक्र या परवाह थी? या रिदांश का इरादा आज कुछ और ही था? नहीं, हरगिज़ नहीं। और यह बात उसके एक्सप्रेशन के साथ ही, उसके एक्शन में भी साफ़ तौर पर नज़र आ रही थी।
अरु ने जैसे ही सख्त भाव से दुबारा अपने हाथ रिदांश की ग्रिप से खुद को छुड़ाने के लिए आगे बढ़ाए, रिदांश के एक्शन से बीच में ही अरु के हाथ रुक गए। वह हैरानी भरे भाव से रिदांश की ओर देखने लगी। और कुछ पल तक वह उसे अनजाने भाव से, बस यूँ ही देखती रही।
असल में रिदांश का मकसद फ्लोर पर सिर्फ इसीलिए आया था कि अचानक ही उसकी नज़र अरु के बैक साइड के ब्लाउज़ पर पड़ गई, जिसमें लगी चैन लगभग खुल चुकी थी, और अरु को इसका इल्म तक नहीं था। और करण, जो कि उसके साथ डांस कर रहा था, वह तो कब से अपनी ही दुनिया में मग्न था। लेकिन इससे पहले कि अरु के ब्लाउज़ की पूरी चैन खुल जाती, रिदांश ने सही वक्त पर, मौके पर आकर सब लोगों के बीच उसकी इंसल्ट होने और उसे शर्मिंदा होने से बचा लिया था। उसने अरु को यूँ ही अपने आगोश में लिया हुआ था, और किसी को पता लगने से पहले ही उसने अरु के ब्लाउज़ की चैन बंद कर दी। और अरु को जब रिदांश के एक्शन से इस बात का एहसास हुआ, तो वह हैरानी और कई मिले-जुले भाव के साथ रिदांश को देखने लगी। शायद कहीं उसे दिल के किसी कोने में अफ़सोस हो रहा था कि उसने अभी रिदांश को गलत समझा, जबकि असल में तो उसने उसे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचाया था। लेकिन अगले ही पल रिदांश के लफ़्ज़ सुनकर, वापस से उसके सख्त भाव उसके चेहरे पर वापस आ गए।
रिदांश (अरु की ओर देखकर): "जिस तरह से तुम्हारी ज़ुबान 24/7 चलती है, उसी तरह अगर अपने दिमाग और सेंस के ढक्कन भी खोले रखोगी, तो कई बड़ी घटना के शिकार होने से खुद को बचा सकती हो!"
अरु (सख्त भाव से): "थैंक्यू, आपके एहसान के लिए, और जिसका बदला मैं बहुत जल्द चुका भी दूँगी!"
रिदांश (तंजिया मुस्कान के साथ): "एहसान वाकई? तुम्हारे एक्सप्रेशन और टोन देखकर तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता!"
अरु (गंभीर भाव से): "कहा ना, कि वक्त आने पर आपका एहसान चुका दूँगी, तो चुका दूँगी। नाउ लीव मी!"
रिदांश (अरु पर अपनी पकड़ कसकर उसे अपने और करीब खींचकर): "आई एम नॉट योर फकिंग सर्वेंट जो तुम्हारे हुकुम बजाए। मैं अपनी मर्ज़ी से हर काम करता हूँ, सो डोंट यू डेयर टू गिव मी ऑर्डर!"
अरु बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी, और रिदांश की बात का जवाब भी उसकी ही जुबान में दे भी देती, लेकिन अनायास ही अरु की नज़र वहाँ मौजूद सैकड़ों लोगों पर पड़ी, जिनमें से ज़्यादातर की नज़रें उन दोनों पर ही टिकी थीं। अरु बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि वह रिदांश या उसकी हरकतों की वजह से फ़िज़ूल में किसी कॉन्ट्रोवर्सी में पड़े। इसीलिए वह बिना कुछ बोले, अपने चेहरे के भाव को सामान्य बनाए रखने की लगातार कोशिश करते हुए, अपने गुस्से का घूँट अंदर ही अंदर पीकर, वह खामोशी से लोगों की नज़रों में आए बिना, खुद को रिदांश की गिरफ़्त से छुटाने की लगातार कोशिश कर रही थी। और कहीं ना कहीं रिदांश भी उसकी खामोशी की वजह अच्छे से समझ चुका था। इसीलिए वह भी अपनी ज़िद पर अड़ा था—ज़िद क्या, उसे बस अरु की कही गई बात को नकारना भर था। अरु अपनी कोशिश में लगी थी, और रिदांश अपनी में।
कि तभी कुछ पल बाद, एक बार फिर डांस फ़्लोर की लाइट डिम हो गई, और इस बार डीजे पर गाना लगा—या कहना गलत नहीं होगा, कि गाना लगवाया गया—और यह कांड था वन एंड ओनली दक्ष का, जिसकी नज़रें कब से बस रिदांश और अरु पर ही टिकी थीं। वह चाहता था कि भले ही लड़ाई-झगड़े के साथ ही, लेकिन जितना हो सके, दोनों बस साथ में ज़्यादा से ज़्यादा वक्त बिताएँ। क्योंकि दक्ष को लगता था कि नाराज़गी चाहे जितनी भी बड़ी क्यों ना हो, मगर जब दो लोग साथ होते हैं, एक साथ वक्त बिताते हैं, तो उनकी नाराज़गी कम होने के चांसेस ज़्यादा होते हैं। क्योंकि एक-दूसरे को पास देखकर उनका सारा गुस्सा, नाराज़गी, चिड़चिड़ाहट सब धीरे-धीरे बाहर निकलने लगता है, और इन सबके निकलने के साथ ही उनके दरमियाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार ही रह जाता है। और यही रूल दक्ष रिदांश और अरु पर भी आजमाना चाहता था।
वह चाहता था कि दोनों कुछ भी करें, बस एक-दूसरे को वक्त दें। दक्ष के कहने से डीजे ने गाना शुरू कर दिया, और जहाँ तक दक्ष का अंदाज़ा था, बिल्कुल सही था कि अरु खुद को रिदांश की पकड़ से छुड़ाने की ज़िद करेगी, और रिदांश उसकी अपनी ज़िद में छोड़ेगा नहीं, और उन दोनों की ज़िद में उसका उन दोनों को करीब लाने का प्लान शुरू होने में उसकी पूरी मदद होते हुए, उसका पूरा फ़ायदा भी हो जाएगा। और हुआ भी कुछ यही। डीजे ने जैसे ही गाना शुरू किया, तो अरु वहाँ से जाने के लिए कसमसाई, लेकिन रिदांश ने अपनी पकड़ ज्यों की त्यों ही बनाए रखी। और कुछ पल बाद रिदांश ने अरु पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की, लेकिन इससे पहले कि अरु एक इंच भी हिल पाती, उससे पहले ही उसने अरु के दोनों हाथों को मज़बूती से पकड़कर अपने दोनों काँधों पर रख लिए।
और फिर उसने अरु को अपने दोनों हाथों से उसकी पतली कमर से पकड़ते हुए, उसने म्यूज़िक की बीट पर अपने साथ ही अरु के पैरों को भी फ़ोर्सफ़ुली चलाना शुरू किया। क्योंकि जिस मज़बूती से रिदांश ने अरु को थाम रखा था, तो अरु ना चाहते हुए भी उसी के इशारे पर चल रही थी। और उसकी मजबूरी और झुंझलाहट यह थी कि वह इतने लोगों के बीच रिदांश को खुलकर कोई जवाब भी नहीं दे सकती थी। इतने लोगों की नज़रें खुद पर देखकर, अरु अपने गुस्से का घूँट पीते हुए रिदांश की ताल से ताल मिला रही थी, या यह कह सकते हैं कि उसे ना चाहते हुए भी ऐसा करना पड़ रहा था। गाना शुरू हो चुका था, और इसी के साथ डांस फ़्लोर पर मौजूद कपल्स के कदम थिरकने लगे थे, जिनमें सबसे सिज़लिंग-हॉट अरु और रिदांश ही नज़र आ रहे थे। और इतने लोगों के बीच भी उन दोनों के डांस मूव्स उन दोनों को और भी ज़्यादा आकर्षक और सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बना रहे थे।
कुछ ख़ास है कुछ पास है,
कुछ अजनबी एहसास है,
कुछ दूरियाँ नज़दीकियाँ,
कुछ हँस पड़ी तन्हाइयाँ,
क्या ये खुमार है,
क्या ऐतबार है,
शायद ये प्यार है,
प्यार है शायद,
क्या ये बहार, क्या इंतज़ार है
शायद ये प्यार है, प्यार है शायद
(रिदांश ने उसकी आँखों में देखते हुए ही उसे दो-तीन बार गोल-गोल घुमाते हुए, वापस से अपने आगोश में ले लिया, लेकिन इस बार अरु की पीठ रिदांश के सीने से लगी थी, और रिदांश के हाथ अरु के हाथों को थामे हुए, उसके पेट पर ठहरे हुए थे, और दोनों के पैर बीट पर लगातार हरकत में थे।)
कुछ साज़ है जागे से जो थे सोये,
अल्फ़ाज़ है चुप से नशे में खोये,
नज़र ही समझे ये गुफ़्तगू सारी,
कोई आरजू ने है अंगड़ाई ली प्यारी,
क्या ये खुमार है, क्या ऐतबार है,
शायद यह प्यार है,
प्यार है शायद
न इनकार है,
न इकरार है,
शायद ये प्यार है, प्यार है शायद,
(बीट चेंज हुई तो एक बार फिर रिदांश ने अरु को घुमाया, और उसे लिफ़्ट करते हुए उसने अरु को थामे हुए ही एक दिलकश मूव किया। डांस फ़्लोर पर एक-एक कर सारे कपल्स रुक गए, और वह भी सब लोगों के साथ बस मंत्रमुग्ध से इन दोनों को एक साथ डांस करता देख रहे थे, जो कि साथ में एकदम परफ़ेक्ट, मेड फ़ॉर ईच अदर लग रहे थे। अगर हालात बिल्कुल नॉर्मल होते, तो अरु तो खुशी से पागल ही हो जाती, और अपनी किस्मत पर इतराती भी कि जिसकी एक झलक के लिए लोग पागल हुए जाते हैं, और जिसके साथ वह ऐसे डांस के लिए कब से इंतज़ार में थी, और सबको यह दिखाती कि जिसे वह दूर से चाहते हैं, वह सिर्फ़ उसका है!)
और आज फिर यकीनन उसके लिए ड्रीम कम ट्रू वाली बात होती, लेकिन अफ़सोस ना तो हालात ऐसे थे, और ना ही शायद अरु की ख़्वाहिशें ही अब पहले जैसे ही रही थीं। ख़ैर, बीट चेंज होने के साथ ही रिदांश ने एक बार फिर अपना मूव चेंज किया, और इस बार उसने अरु को घुमाते हुए, वापस अपने आगोश में लेकर, उसकी दोनों बाजुओं को अपने गले में डालते हुए, अपने दोनों हाथ अरु की कमर पर रख लिए, और एक बार फिर गाने के साथ ही दोनों के पैर थिरकने लगे।
कहना ही क्या मेरा दख़ल न कोई,
दिल को दिखा दिल की शकल का कोई,
दिल से थी मेरी इक शर्त ये ऐसी,
लागे जीत सी मुझको ये हार है कैसी,
क्यों ये पुकार है,
क्यों बेकरार है
शायद ये प्यार है,
प्यार है शायद
जादू सवार है,
न इख़्तियार है
शायद ये प्यार है, प्यार है शायद!!!!
गाने की लास्ट बीट पर रिदांश ने अरु को अपनी बाजू पर रोल करते हुए, उसे नीचे की ओर झुकाते हुए, अपने बाएँ हाथ से उसकी कमर को थामे, दाएँ हाथ से उसके दाएँ हाथ को थामे रखा, और अरु ने दूसरे हाथ से रिदांश के काँधे को थामे हुए था। बीट ख़त्म होने के साथ, कुछ पल तक दोनों आसपास का सब भूलकर बस खामोशी से, गहराई से एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। और दोनों की तंद्रा तब टूटी जब लोगों की तालियों और उन दोनों को चीयर अप करने की उत्साह भरी आवाज़ उनके कानों में पड़ी। जहाँ कुछ लोग इस हॉट कपल को देखकर खुश थे, उत्साहित हो रहे थे, तो कुछ चिढ़ रहे थे, तो कुछ का रिएक्शन नॉर्मल था, और कुछ पूरी तरह शॉक्ड—ख़ास करके रिदांश के लिए, क्योंकि उसका ओरा और पर्सनेलिटी लोगों की नज़रों में ऐसे बन चुके थे कि वह नॉर्मल लोगों की तरह कोई रिएक्ट करे तो लोगों के लिए वह बात अजूबा ही होती थी।
और जिस पर सब जानते थे कि रिदांश कभी किसी लड़की को भाव नहीं देता, और अपनी शादी के बाद तो उससे यह उम्मीद ही नहीं रखी जा सकती थी। इसीलिए आज अरु की पहचान से अनजान, उसके साथ उसे डांस करता देखकर बहुत लोग शॉक्ड, हैरान-परेशान से थे। कुछ लड़कियाँ अरु की तो लड़के रिदांश की किस्मत से रश कर रहे थे। और इन सबसे अलग दो लोग ऐसे भी थे जो अरु और रिदांश की प्रॉक्सिमिटी देखकर मन ही मन जेलेस हो रहे थे, जिन्हें एक-दूसरे के साथ, उनकी करीबी ना जाने क्यों मगर बहुत खल रही थी। और वह थे करण और शनाया। लेकिन उन्हें तो अभी तक आधा सच पता ही नहीं था, जिसके बाहर आने पर यकीनन इन दोनों के पैरों तले ज़मीन ही निकल जाने वाली थी।
जैसे ही अरु और रिदांश के कानों में लोगों के चिल्लाने और चीयर अप करने की आवाज़ पड़ी, तो दोनों सीधे खड़े हुए, और एक-दूसरे से ऐसे दूर हुए जैसे उनको 440 वोल्ट का झटका एक साथ लगा हो। अरु ने सब लोगों की नज़रों को इग्नोर किया, और वह झट से डांस फ़्लोर से नीचे उतर आई। अरु काउंटर के पास आ खड़ी हुई। बहुत सारी बातें और ख़्याल इस वक्त उसके दिमाग में एक साथ चल रहे थे। उसने एक पल को अपनी आँखें बंद की, और खुद के बनते-बिगड़ते इमोशंस और भाव को सामान्य किया। वह वहाँ से आगे बढ़ने को हुई कि एक अनजानी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
शख़्स (अरु की ओर देखकर): "इफ आई एम नॉट रॉन्ग, यू आर रिदांश'स एक्स-वाइफ़? उम्म्म...(सोचते हुए एक पल बाद)... आरना... आरना कपूर?"
अरु ने उस शख़्स का सवाल सुना, तो एक पल को उसने असहजता भरे भाव से अपने साइड में खड़े उस शख़्स को देखा, जिसकी उम्र लगभग 35 से 40 के बीच होगी, जिसके एक हाथ में स्कॉच का ग्लास था, और दूसरे हाथ को उसने अपनी पैंट की पॉकेट में दिया हुआ था, और जिसके चेहरे पर अरु का जवाब जानने की उत्सुकता साफ़ तौर पर नज़र आ रही थी। अरु ने उस शख़्स के चेहरे को कुछ पल तक गौर से देखा, और याद करने की कोशिश करने लगी कि वह अपने सामने खड़े इस शख़्स को पहले कहीं मिली है क्या? या वह इस सामने खड़े शख़्स को किसी भी तरह से जानती है क्या? जब कुछ पल बाद अरु को यकीन हो चला, तो आख़िर में उसने एक गंभीर लहजे के साथ अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु (उस शख़्स की ओर देखकर): "आई डोंट थिंक सो कि मैंने आपको कहीं देखा है या मैं आपको जानती हूँ। (एक पल रुककर) सो हू आर यू?"
उस शख़्स ने अरु का सवाल सुना, तो एक शातिर सी तीखी मुस्कान उसके लबों पर आ ठहरी।
अरु ने उस शख्स की ओर देखते हुए कहा, "आई डोंट थिंक सो कि मैंने आपको कहीं देखा है..... या मैं आपको जानती हूं.....(एक पल रुक कर)..... सो हू आर यू???"
उस शख्स ने अरु का सवाल सुनकर एक पल के लिए अरु को अजीब, शातिर नज़रों से देखा और एक पल बाद एक शातिर सी तीखी मुस्कान उसके लबों पर आ ठहरी।
शख्स ने अरु की ओर देखते हुए अजीब सी मुस्कान के साथ कहा, "वैल ये तो मेरे सवाल का जवाब नहीं है!!"
अरु ने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ उस शख्स की ओर देखते हुए कहा, "और अगर मैं ये कहूं कि मैं आपको जवाब देना ज़रूरी ही नहीं समझती तो??"
शख्स ने एक तीखी मुस्कान के साथ कहा, "जब तुम्हें फ़र्स्ट टाइम मिस्टर अग्निहोत्री की वाइफ के रूप में देखा था..... तो लगा नहीं था कि तुम्हारे मुँह में ज़ुबान भी होगी..... आई मीन उस वक़्त तुम किसी एक सहमी सी..... डरी..... सी कोई क्यूट सी बच्ची लग रही थी..... लेकिन आज तुम एक आग की तरह लगती हो..... जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में..... और अपनी तपिश उनके दिल दिमाग तक पहुँचाने में बिना किसी खास जद्दोजहद के ही कामयाब रहती है..... (एक पल रुक कर अपना हाथ अरु की ओर बढ़ाते हुए)..... वेल, आई एम मिथिलेश.... मिथिलेश खुराना..... खुराना इंडस्ट्री का मालिक!!"
अरु ने एक नज़र मिथिलेश के हाथ को देखा और फिर अगले ही पल अपनी तीखी नज़र उस पर जमा कर, मिथिलेश के अपनी तरफ़ बढ़े हाथ को पूरी तरह इग्नोर करते हुए आखिर में अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु ने तीखी नज़रों से मिथिलेश की ओर देखते हुए कहा, "डोंट फ़ॉरगेट, मिस्टर कुमार की आग सिर्फ़ तपिश नहीं देती.... बल्कि अपनी हद भूल कर उसके ज़्यादा नज़दीक जाने की कोशिश करो..... या उससे खेलने की कोशिश करो..... तो वो जलाकर राख भी कर देती है..... इसीलिए बेहतर होगा आपके लिए..... कि इस आग से जितना हो सके उतना दूर रहिए!!!"
मिथिलेश ने अरु की ओर देखते हुए एक तीखी सी मुस्कान के साथ कहा, "वेल, आई एम इम्प्रेस्ड..... आई लाइक इट..... पसंद आया मुझे तुम्हारा एटीट्यूड..... (एक पल रुक कर)..... आई डोंट नो..... कि उस घमंडी रिदांश अग्निहोत्री के दिमाग पर क्या पत्थर पड़े थे..... जो उसने अपनी इतनी टैलेंटेड..... खूबसूरत..... और अट्रैक्टिव वाइफ को अपनी ज़िंदगी से बाहर कर दिया..... बट डोंट वरी, मैं हूँ ना!!!"
अरु ने मिथिलेश की बात सुनी तो उसने गुस्से से अपनी मुट्ठियों को कसकर भींच लिया। कहीं ना कहीं वह अच्छे से मिथिलेश के बातों के पीछे छुपे घटिया मतलब को, उसकी घटिया नज़रों से पहचान चुकी थी। क्योंकि ये पहली बार नहीं था जो कोई इस तरह से उससे बात कर रहा था। इतने सालों में अरु ने ना जाने कितनी बार ऐसे घटिया लोगों का सामना किया था। कहते हैं ना कि दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए, लेकिन कुछ चीज़ें और बातें कभी नहीं बदल सकतीं। उसी तरह उनमें से ही कुछ लोगों की ये घटिया सोच भी कभी नहीं बदल सकती कि एक अकेली औरत उनके लिए उस खुली तिजोरी के समान होती है जिसका कोई रखवाला नहीं होता और वह जब चाहे जैसे चाहे उसे अपने लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
और कहीं ना कहीं अरु के लिए यह पहली मर्तबा नहीं था, इसलिए वह अब तक अपने गुस्से के तूफ़ान को शांत किए बैठी थी। लेकिन मिथिलेश भी शातिर था। उसने अरु के चेहरे के सख्त भाव से ही उसके गुस्से का अंदाज़ा लगाते हुए जल्दी से अपनी बात घुमा दी।
मिथिलेश ने अपनी बात घुमाते हुए कहा, "मेरे होने से मतलब है कि मुझे टैलेंट की बहुत ही क़द्र है और मैं तुम्हारी जैसी टैलेंटेड लेडी के टैलेंट की ऐसी बेक़द्री हरगिज़ नहीं देख सकता..... (अपनी जेब से अपना कार्ड निकालते हुए)..... दिस इज़ माय कार्ड..... तुम जब भी चाहो आ सकती हो..... ऑलवेज़ वेलकम!!!"
अरु ने मिथिलेश की बात सुनकर एक नज़र उसे देखा और फिर उसके हाथ से कार्ड लेकर उस कार्ड को देखते हुए वापस से अपनी तीखी नज़रें मिथिलेश की ओर कीं। और इस बार उसके चेहरे पर कॉन्फिडेंस के साथ ही गुस्सा और सख्त भाव भी साफ़ नज़र आ रहे थे।
अरु ने तीखी नज़रों से मिथिलेश की ओर देखते हुए तंज भरे लहजे में कहा, "लगता है काफ़ी अच्छे बिज़नेसमैन होने के साथ ही काफ़ी दिलवाले भी हैं आप..... और यही सब चैरिटी वर्क करके लोगों का भला करके आप यहाँ तक पहुँचे हैं..... नई मिस्टर खुराना???"
मिथिलेश ने अपने मकसद को कामयाब होता सोचते हुए कहा, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है..... ये तो बस मेरा फ़र्ज़ है..... और....."
अरु ने मिथिलेश की बात को बीच में ही काटते हुए सख्त भाव से कहा, "सो मुझे बताएँ मेरे टैलेंट को आप किस तरह से और कहाँ पर यूटिलाइज़ करेंगे..... (एक पल रुक कर)..... आपके ऑफ़िस के कैबिन में ही काम हो जाएगा..... या फिर मुझे स्पेशली आपके बेडरूम में आकर आपका काम पूरा करना पड़ेगा!!!"
मिथिलेश ने अरु की बोल्डनेस भरी बातें सुनीं तो उसने असहजता भरे भाव से अपने आसपास देखा क्योंकि ज़ाहिर तौर पर अरु की टोन इतनी कम भी नहीं थी कि आसपास वाले उसे ना सुन सकें। लेकिन अरु को क्या इन सब से फ़र्क पड़ता था? तो जवाब था- हरगिज़ नहीं।
अरु ने बिना रुके अपनी बात रखते हुए अपने हाथ में पकड़े मिथिलेश के कार्ड को सख्त भाव से अपनी मुट्ठी में मरोड़ते हुए कहा, "अपनी घटिया और गंदी सोच से ये बात पूरी तरह निकाल दो..... कि एक सिंगल औरत मर्द के लिए एक मौक़ा होती है..... जिसे तुम जैसे घटिया और गिरे हुए लोग जब चाहे तब उसका फ़ायदा उठा सकते हैं..... और अगर तुम्हारे जिस्म और सोच में इतनी ही आग लगी है..... तो बाज़ार में तुम्हें तुम्हारे इन घटिया पैसों को अदा करने के बहुत मौक़े और लोग मिलेंगे..... और अगर इससे भी मन नहीं भरता..... तो इससे भी बेस्ट आइडिया है..... कि अपने घर को ही बाज़ार बना लो..... और अपनी बोली लगाकर अपनी हवस पूरी कर लो.....!!!"
इतना कह कर अरु आगे बढ़ने लगी कि एक पल को रुक कर वापस से मिथिलेश की ओर पलटी।
अरु ने वार्निंग भरे लहजे में मिथिलेश की ओर देखते हुए कहा, "और एक बात और अपनी मिनी ब्रेन में फ़िट कर लेना..... कि मेरी पर्सनल लाइफ़ में क्या हुआ..... और क्या होता है..... या मेरा और मिस्टर अग्निहोत्री का क्या रिश्ता था..... या क्या नहीं..... यू आर नोबडी टू मी..... जिसे मैं आकर कुछ भी बताऊँ..... या अपनी पर्सनल लाइफ़ शेयर करूँ..... सो स्टे इन योर फ़किंग लिमिट्स..... (एक पल रुक कर तंज भरे लहजे से)..... और उम्मीद करती हूँ कि इतनी इज़्ज़त अफ़ज़ाई के बाद आइंदा मेरे रास्ते में आने की..... या मुझसे उलझने की भूल कभी नहीं करोगे!!!"
इतना कह कर अरु आगे बढ़ गई और मिथिलेश ने इधर-उधर पास खड़े लोगों की नज़रें खुद पर देखीं तो गुस्से से अपने दाँत पीसता रहा। इधर अरु अभी कुछ क़दम ही आगे बढ़ी थी कि सामने से आता करन उसका रास्ता रोकते हुए उसका हाथ थाम कर उसे कुछ दूरी पर साइड में ले गया।
करन ने अरु की ओर देखते हुए कहा, "क्या हुआ अरु? कुछ हुआ है क्या??"
अरु ने एक पल सोचकर ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "नहीं..... डोंट वरी, सब ठीक है!!!"
करन ने एक नज़र कुछ दूर खड़े मिथिलेश की ओर देखते हुए कहा, "मैंने मिस्टर वर्मा से बात करते वक़्त देखा था..... कि जिन एक्सप्रेशंस के साथ तुम उस आदमी से बात कर रही थी..... आई एम श्योर कि उस बेगन ने तुमसे कुछ तो बकवास की होगी....... वर्ना तुम यूँ ही बेवजह नाराज़ नहीं होती..... लेकिन मेरे वहाँ पहुँचने से पहले ही तुम वहाँ से आ गई..... (एक पल रुक कर)..... लेकिन अगर उसने कुछ भी फ़िजूल बकवास की है तो मुझे बताओ..... मैं अभी जाके उसका मुँह तोड़ता हूँ??"
अरु ने सामान्य भाव से कहा, "डोंट वरी करन..... मुझे उन जैसे लोगों को उनकी ज़ुबान में जवाब देना आता है..... एंड यू नो कि मैं उन जैसे लोगों को हैंडल कर सकती हूँ!!!"
करन ने फ़िक्र भरे लहजे से कहा, "लेकिन अरु....."
अरु ने करन की बात को बीच में ही काटते हुए कहा, "अगर मुझे कभी भी तुम्हारी हेल्प की ज़रूरत होगी..... तो आई प्रॉमिस मैं तुमसे ज़रूर कहूँगी..... लेकिन फ़िलहाल के लिए..... मैं ठीक हूँ..... सो डोंट वरी..... एंड चेंज द टॉपिक!!"
करन ने मुस्कुरा कर कहा, "जी मैम, जो हुकुम आपका..... (एक पल रुक कर)..... वैसे मैंने तुम्हें बताया कि आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो!!!"
अरु ने सामने की ओर देखते हुए सामान्य भाव से कहा, "घर से यहाँ आने तक ऑलमोस्ट दस बार से ज़्यादा तुम मुझसे ये बात बोल चुके हो!!!"
करन ने अपना सर खुजाते हुए कहा, "अब मैं क्या करूँ यार..... तुम लग ही इतनी गॉर्जियस रही हो..... कि मन कर रहा बार-बार तुम्हारी तारीफ़ करता रहूँ!!"
अरु ने करन की बात सुनकर कोई जवाब नहीं दिया। कुछ पल तक करन उसे यूँ ही एकटक देखता रहा तो अरु ने बिना उसकी ओर देखे अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु ने बिना करन की ओर देखे कहा, "स्टॉप स्टेयरिंग मी करन..... इट्स वीर्ड!!"
करन ने एक पल को अपनी आँखें बंद करके एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, "आई वांट टू से समथिंग टू यू अरु!"
अरु ने एक पल को अपनी आँखें बंद करते हुए कहा, "करन....."
करन ने अरु को बीच में ही टोकते हुए कहा, "डोंट से एनीथिंग अरु..... प्लीज..... कहने दो मुझे..... बहुत मुश्किल से आज खुद को ये कहने की हिम्मत दे पाया हूँ..... प्लीज..... कह लेने दो!!!"
अरु ने अपनी फ़िंगर क्रॉस करते हुए मन में कहा, "प्लीज..... डोंट से एनीथिंग करन..... प्लीज डोंट से..... मैं तुम्हें बिल्कुल भी हर्ट नहीं करना चाहती!!"
करन ने एक पल रुक कर गहरी साँस लेते हुए कहा, "अरु आई वांट टू से दैट आई ल....."
करन अपनी बात पूरी कह पाता कि तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा। करन ने एक फ़्रस्ट्रेशन भरी साँस ली और अपना फ़ोन चेक करने के लिए अपनी पॉकेट से निकाला। इधर दूसरी तरफ़ रिदांश अरु के डांस फ़्लोर से जाने के बाद कुछ पल तो वो मन ही मन जैसे वो अपनी ही हरकत पर हैरत में था कि उसने खुद अरु के साथ डांस किया। और अपनी चिड़चिड़ाहट के साथ जैसे ही वो खुद भी नीचे आया कि शनाया फ़ट से उसका रास्ता रोक कर खड़ी हो गई।
रिदांश ने वार्निंग भरे लहजे से शनाया को घूरते हुए कहा, "डोंट मेस अप विद मी एट दिस मोमेंट..... वर्ना अंजाम की ज़िम्मेदार तुम खुद होगी!!"
शनाया ने मासूम सा चेहरा बनाते हुए कहा, "अब मैंने क्या किया जो तुम इतना रूड बिहेव कर रहे हो..... मुझे तो बस तुम्हारे साथ डांस करना था..... दैट्स इट!!"
रिदांश ने सख्त भाव से कहा, "कहा ना..... जस्ट स्टे अवे फ़्रॉम मी!!!"
इतना कह कर रिदांश जैसे ही वहाँ से जाने लगा कि शनाया हड़बड़ी में उसे रोकने के लिए आगे बढ़ी और उसकी हड़बड़ी के चलते शनाया की हील्स अपने ही गाउन में अड़ गईं और जिसकी वजह से एक अजीब सी आवाज़ आई। शनाया ने जब ग़ौर किया तो उसकी आँखें हैरानी से फ़ट गईं और वो जल्दी से वहीं पिलर के सहारे लगकर खड़ी हो गई। जल्दबाज़ी और हड़बड़ी के चलते शनाया की हील्स उसके अपने ही गाउन में फँसने से, उसके गाउन के खिंचने की वजह से फ़ट गया था जिस बात को रिदांश ने भी नोटिस कर लिया था। उसने इरिटेट होकर शनाया को देखा।
रिदांश ने इरिटेट होकर कहा, "आई डोंट नो..... कि फैशन के नाम पर लोग ऐसे फ़िजूल ड्रेसेज़ कैरी ही क्यों करते हैं..... जो असल में उनसे संभलते ही नहीं!!"
रिदांश आज अरु और शनाया दोनों की कपड़ों के प्रति लापरवाही देखकर खीझ उठा था। लेकिन जब उसने शनाया के चेहरे पर पैनिक देखा तो उसने अपनी फ़्रस्ट्रेशन को काबू करने की कोशिश करते हुए उसे अपने तरीक़े से कम्फ़र्ट करने की कोशिश की।
रिदांश ने शनाया को पैनिक देखकर बिना किसी भाव के कहा, "इट्स ओके..... इट्स नॉट अ बिग डील..... एक्सीडेंटली ऐसा होता रहता है!!!"
शनाया ने रोता सा मुँह बनाकर कहा, "लेकिन मैं यहाँ सब लोगों के बीच ऐसे कैसे....."
रिदांश ने बिना किसी भाव के अपना कोट उतार कर शनाया को देते हुए कहा, "वियर इट..... और फिर जाकर अपने कपड़े सेट करो!!"
शनाया ने रिदांश के हाथ से उसका कोट लिया और फ़ौरन उसे पहन लिया।
रिदांश ने बिना किसी भाव के ही कहा, "अब रेस्ट रूम जाकर फ़िक्स कर लो अपनी ड्रेस!!"
शनाया ने जाते हुए रिदांश को टोकते हुए कहा, "लेकिन मुझे नहीं पता कि रेस्ट रूम कहाँ है.....??"
रिदांश ने शनाया को घूरते हुए कहा, "मुँह में ज़ुबान दी है ना भगवान ने..... तो जाके पता करो!!"
शनाया ने शिकायती लहजे से कहा, "डोंट बी सो हार्टलेस..... कम से कम इसकी ही क़द्र और फ़िक्र कर लो..... कि मैं एक लड़की हूँ..... और इतने अनजान लोगों के बीच मैं कैसे अकेले जाऊँ..... तुम खुद सोचो ऐसी अनजानी जगह पर..... क्या मेरा ऐसे जाना सेफ़ रहेगा???"
रिदांश ने एक पल सोचकर फ़्रस्ट्रेशन भरे भाव से कहा, "फ़ाइन..... जल्दी करो!!"
शनाया ने रिदांश को अपनी बात पर हामी भरते देखा तो उसके होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गई जिसे देखकर रिदांश ने एक पल को उसे घूरा और फिर उसे इग्नोर करते हुए आगे की ओर बढ़ गया। और ये देखकर शनाया भी जल्दी से उसके पीछे बढ़ चली। इधर दूसरी तरफ़ करन ने स्क्रीन पर नंबर देखा तो उसे एक पल की असमंजसता के बाद आखिर में कॉल रिसीव की। और जैसे ही करन ने कॉल पिक करके दूसरी तरफ़ की बात सुनी तो अचानक ही करन के चेहरे का रंग ही उड़ गया।
जैसे ही करन ने कॉल पिक कर दूसरी तरफ की बात सुनी, तो अचानक ही करन के चेहरे का रंग उड़ गया। कॉल सुनकर घबराहट, बेचैनी, डर और टेंशन जैसे कई मिले-जुले भाव एक साथ करन के चेहरे पर उभर आए।
करन (हड़बड़ी में फोन पर बात करते हुए): "म…मैं बहुत जल्द पहुंच रहा हूँ… मैं जल्द से जल्द वहाँ पहुँच रहा हूँ… बस तुम वहाँ सब संभाल लेना!"
इतना कहकर करन ने जल्दी से फोन काट दिया। अरु ने उसके चेहरे पर इतनी परेशानी और बेचैनी के भाव देखे, तो उसने चिंता जताते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
अरु (चिंतित स्वर में करन की ओर देखकर): "क्या हुआ है करन… इज एवरीथिंग ऑलराइट? सब ठीक है ना?"
करन (घबराहट भरे भाव के साथ): "नहीं… अरु वो… वो डैड… डैड को हार्ट अटैक हुआ है!"
अरु (हैरानी भरे भाव के साथ): "क्या?? लेकिन कैसे और कब?"
करन (परेशानी और घबराहट भरे भाव के साथ अपनी हथेली को अपने चेहरे पर रगड़ते हुए): "पता नहीं मुझे ये सब कैसे हुआ… उनके मैनेजर का कॉल था… उसने बताया कि आज ऑफिस से आते हुए अचानक डैड की तबीयत खराब हो गई… और वो लोग उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए हैं… और इस वक्त वो हॉस्पिटल में ही हैं… और उनका ट्रीटमेंट चल रहा है!"
अरु (करन को सांत्वना देते हुए): "जस्ट रिलैक्स करन, सब ठीक हो जाएगा… मिस्टर सिंघानिया बिल्कुल ठीक हो जाएँगे!"
अरु ने करन के चेहरे पर बरकरार घबराहट, परेशानी और पैनिक देखा, तो उसने करन को सांत्वना देने के लिए उसके हाथ को अपने हाथ में थामा और एक अच्छे दोस्त की तरह उसे सांत्वना देने की कोशिश करने लगी।
अरु (करन को सांत्वना देते हुए): "जस्ट डोंट वरी करन… सब ठीक हो जाएगा… कुछ नहीं होगा मिस्टर सिंघानिया को!"
करन (आँखों में हल्की नमी के साथ): "मेरे डैड मेरे लिए सब कुछ है अरु… वो सिर्फ मेरे लिए मेरे डैड नहीं हैं… बल्कि मेरी माँ… मेरे दोस्त… मेरी पूरी दुनिया है… अगर उन्हें कुछ भी हुआ… तो मैं जी नहीं पाऊँगा अरु!"
अरु (करन के हाथ पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए): "ट्रस्ट मी करन, सब ठीक हो जाएगा… कुछ नहीं होगा मिस्टर सिंघानिया को… (एक पल रुक कर)… और अगर तुम ऐसे पैनिक रहोगे… तो उन्हें कैसे संभालोगे?"
करन (मासूम बच्चे की तरह की उम्मीद भरी नज़रों से अरु की ओर देखकर): "पक्का ठीक हो जाएँगे ना डैड अरु?"
अरु (अपनी आँखें झपकाते हुए): "हम्मम… ऑफकोर्स बिल्कुल ठीक हो जाएँगे… तुम बस जल्दी से निकलने की तैयारी करो… मैं हम दोनों के लिए टिकट्स बुक करवाती हूँ… मैं भी चलती हूँ तुम्हारे साथ!"
करन (अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए): "नहीं अरु… इस वक्त तुम्हें यहाँ रहने की सख्त ज़रूरत है… मैं वहाँ चला जाऊँगा… तुम यहाँ देख लो!"
अरु (फ़िक्र भरे भाव से): "लेकिन करन, तुम्हारी हालत ठीक नहीं लग रही है मुझे… तुम अकेले कैसे मैनेज करोगे… और कैसे जाओगे… मैं चलूँगी तुम्हारे साथ!"
करन (खुद को सामान्य करने की कोशिश करते हुए): "डोंट वरी अरु, मैं ठीक हूँ… मैं सब मैनेज कर लूँगा… और मैं चला जाऊँगा!"
अरु (अपनी भौंहें सिकोड़ कर): "आर यू श्योर करन? तुम चले जाओगे? मैं चल सकती हूँ नो प्रॉब्लम… मैं कल की फ़्लाइट से वापस आ जाऊँगी!"
करन (ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए): "नहीं… तुम यहीं रहो… तुम्हारा यहाँ होना ज़्यादा ज़रूरी है… बाकी मैं मैनेज कर लूँगा!"
अरु (अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): "ठीक है फिर, मैं तुम्हारे टिकट्स बुक करवा देती हूँ… तुम आराम से जाना… और वहाँ पहुँचते ही मुझे सारी अपडेट देना!"
करन (अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): "हाँ!"
इसके बाद अरु ने अपने मैनेजर को कॉल किया और करन के लिए टिकट बुक करने को कहा। उसके बाद अरु करन को छोड़ने के लिए बाहर पार्किंग एरिया तक आई।
अरु (करन की ओर देखकर): "आराम से जाना करन… एंड डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा!"
करन (अरु की ओर देखकर): "हम्मम… (एक पल रुक कर)… लेकिन तुम अकेले घर कैसे जाओगी? मैं थोड़ी देर और रुक जाऊँ… तुम्हें घर ड्रॉप करने के बाद मैं एयरपोर्ट के लिए निकल जाऊँगा!"
अरु (ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए): "नहीं… मेरे पास गाड़ी है… डोंट वरी, मैं चली जाऊँगी… और वैसे भी पार्टी और प्रिंस के साथ हमारी मीटिंग होने में कितना वक्त लगे… कह नहीं सकते… इसीलिए तुम देर मत करो… तुम जाओ… मैं आराम से चली जाऊँगी!"
करन (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): "ठीक है अरु… लेकिन घर पहुँचते ही मुझे मैसेज कर देना!"
अरु (अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): "हम्मम… एंड टेक केयर!"
करन (अरु को साइड हग करते हुए): "हाँ, एंड यू टू!"
इसके बाद करन वहाँ से टैक्सी लेकर सीधा एयरपोर्ट के लिए निकल गया। इधर अरु बेमन से वापस पार्टी में आई। अरुण ने अपनी नज़रें चारों तरफ दौड़ाईं, लेकिन शायद जिसकी नज़रें देखना चाहती थी, वो इस वक्त यहाँ मौजूद ही नहीं था। अरु ने थोड़ी दूर से देखा, दक्ष भी कुछ लोगों के साथ बात करने में बिजी था, तो उसने उसे डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा और प्रिशा भी वहाँ मौजूद नहीं थी। कुछ पल बाद अरु कॉर्नर में पड़ी एक चेयर पर जा बैठी और पार्टी में मौजूद लोगों को देखते हुए अपनी घड़ी में वक्त देखने लगी कि जल्द से जल्द ये पार्टी खत्म हो और अरु यहाँ से जाएँ।
इधर दूसरी तरफ रिदांश ने शनाया को रेस्ट रूम के बाहर छोड़ा और वहाँ से जाने लगा, तो शनाया ने एक बार फिर उस पर इमोशनल डायलॉग्स की बारिश कर दी और रिदांश खीज कर उसे जल्दी बाहर आने का कहकर वहीं रेलिंग के पास खड़े होकर बाहर देखने लगा। यह देखकर शनाया मुस्कुराई और अंदर चली गई। इधर मिथिलेश, जो अरु से ऐसे बेइज़्ज़त होने के बाद अंदर ही अंदर जला-भुना जा रहा था, वह बस एक मौके की तलाश में था। उसने अरुण की ऐसी बेइज़्ज़ती के बाद मन ही मन यह तय कर लिया था कि वह अरु से हुई अपनी बेइज़्ज़ती का उसे मुँहतोड़ जवाब देकर रहेगा और उससे ऐसा बदला लेगा कि वह जिंदगी भर याद रखेगी।
हालाँकि अरु पर उसकी नियत पहले ही खराब हो चुकी थी, बस अब बात यह थी कि उसे सामने से बहाना मिल गया था। इसी भावना के चलते मिथिलेश ने वहाँ मौजूद वेटर्स में से एक वेटर को अपने पास बुलाया और उसे 500 के नोट की गड्डी देते हुए एक पुड़िया उसकी ओर बढ़ाकर कोने में बैठी अरु की ओर इशारा कर दिया। वेटर ने पैसे अपनी जेब में रखे और हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए नज़रें बचाकर वह पुड़िया एक ऑरेंज जूस के गिलास में मिला दी और कुछ पल बाद जूस का गिलास लेकर अरु की ओर बढ़ गया। वेटर को सामने देखकर अरु को एहसास हुआ कि उसका गला सूखा है और उसे प्यास लगी है, तो उसने बिना एक पल भी सोचे वो गिलास अपने हाथ में उठा लिया और अरु के वो गिलास अपने होंठों से लगाने के साथ ही मिथिलेश के होंठों पर एक ज़हरीली मुस्कान तैर गई।
अरु पार्टी में मौजूद लोगों को देखते हुए अपने जूस की सिप लेने लगी। धीरे-धीरे करके आखिर में कुछ देर बाद अरु ने वो जूस खत्म किया। जूस खत्म होने के साथ ही अरु को कुछ-कुछ अजीब महसूस होने लगा। अरु को लगा शायद लोगों की भीड़ और गर्मी की वजह से उसे घबराहट जैसा महसूस हो रहा है, इसीलिए अरु अपनी जगह से उठकर कुछ दूरी पर एसी के सामने जा बैठी, लेकिन हर बढ़ते पल के साथ ही अरु की घबराहट और बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।
अरु को जब ज़्यादा बेचैनी हुई, तो वो उठकर बाहर की ओर चली गई। उसे लगा शायद खुली हवा में उसे बेहतर महसूस होगा। अरु जैसे ही बाहर आई कि उसे बाहर जाता देख मिथिलेश भी नज़रें बचाकर उसके पीछे हो लिया और अरु की नज़रों से छिपकर वो एक पिलर के सहारे खड़ा होकर सही मौके की ताक में इंतज़ार करने लगा।
मिथिलेश (मन में खीज कर): "इस पर असर होने में इतना वक्त क्यों लग रहा है… कहीं ऐसा ना हो कि कोई बाहर आ जाए और मेरा प्लान चौपट हो जाए… (एक पल रुक कर)… नहीं… नहीं… ऐसा नहीं होगा… बस कुछ पल की बात है… फिर मैं अपने मकसद में कामयाब हो जाऊँगा!"
जैसा कि मिथिलेश ने सोचा था, कुछ पल बाद ठीक ऐसा ही हुआ। अरु का सर अब बुरी तरह चकराने लगा था, उसकी आँखें धुंधलाने लगी थीं और लाख कोशिशों और जद्दोजहद के बाद भी अरु अपनी आँखें खोलने में नाकामयाब ही हो रही थी। उसे आँखें खोलने पर सिर्फ़ धुंधला-धुंधला ही नज़र आ रहा था। अरु के पैर भी अब जवाब देने लगे थे, इसीलिए वो वहीं दीवार का सहारा लेते हुए सीढ़ियों के पास बैठ गई और ये देखकर मिथिलेश के होंठों पर एक ज़हरीली मुस्कान तैर गई और उसने एक खूंखार शिकारी की भाँति अरु की ओर धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा लिए और अरु के करीब पहुँचकर उसने अरु के काँधे पर हाथ रखा।
आधी बेहोशी की हालत में भी अरु ने जब एक अनजाना स्पर्श महसूस किया, तो अपनी बची-कुची ताकत के साथ उसने मिथिलेश का हाथ झटक कर उसका चेहरा देखने की कोशिश की, लेकिन अफ़सोस कि उसे धुंधलाहट के सिवा और कुछ नज़र नहीं आया। मिथिलेश ने अरु को यहाँ से उठाने के लिए वापस से उसकी ओर अपने हाथ बढ़ाए, जिसे अरु ने झटक दिया, लेकिन इस बार मिथिलेश ने कड़ाई के साथ बेहोशी की हालात में जाती अरु की बाजू को पकड़कर उसे उसके पैरों पर उठाया और फिर जल्दबाज़ी में अरु को अपनी गोद में उठा लिया।
लेकिन इस खुमारी की हालत में भी अरु को ये अनजाने स्पर्श का एहसास बेहद घिनौना और अपवित्र महसूस हो रहा था, लेकिन इस पल उसकी लाचारी ये थी कि इस वक्त उसका दिमाग और उसका शरीर दोनों ही उसका साथ नहीं दे रहे थे। ना जाने क्यों मगर अपने साथ कुछ गलत होने के एहसास के साथ अनायास ही इस खुमारी में भी अरु के मुँह से रिदांश का नाम निकल आया।
अरु (बेहोशी में डूबते हुए होंठों में बड़बड़ाते हुए): "मि…अग्निहोत्री!!"
कुछ पल बाद ही मिथिलेश अरु को अपनी गाड़ी के पास ले आया। पार्किंग में बैठे गार्ड्स को वो पहले ही खरीद चुका था, इसीलिए उसे यहाँ कोई दिक्कत नहीं हुई। पार्किंग एरिया में आकर उसने अरु को नीचे उतारकर एक हाथ से उसे पकड़कर दूसरे हाथ से गाड़ी का दरवाज़ा खोला और अरु को ड्राइविंग सीट के बराबर वाली सीट पर बैठा दिया। खुमारी में घुलती अरु की ख़ूबसूरती देखकर मिथिलेश की आँखों में हवस भरा लालच चमक उठा।
उसने अपने नापाक इरादों को पूरा करने का सोचते हुए घिनौने तरीके से अरु को छूने की कोशिश की और जैसे ही उसने अपनी ललचाई नज़रों और स्पर्श से अरु को दुबारा से छुआ, तो अरु ने अपने चेहरे पर बनते-बिगड़ते भाव के साथ अपनी आँखें मूँद हुए ही उसका हाथ झटक दिया और ये देखकर मिथिलेश खीज उठा।
अरु (कमज़ोर आवाज में अपनी आँखें खुली रखने की बेतोड जद्दोजहद करते हुए): "डो…डों…डोंट…डोंट…ट…ट…टच…मी…"
मिथिलेश (सख्ती से अरु के जबड़े को पकड़ कर): "सिर्फ़ कुछ देर और… फिर उसके बाद तेरा सारा घमंड और अकड़ मेरे जूते की नोक पर होंगे… (एक पल रुक कर)… जितनी इन्सल्ट आज तूने मेरी की है… उससे कहीं गुना ज़्यादा बेइज़्ज़ती आज रात मैं तुझे करूँगा… जो तेरा घमंड है ना… उसे ऐसे चकनाचूर करूँगा कि फिर कभी दुबारा खुद से नज़रें मिलाने के लायक भी नहीं रहेगी तू… कल सुबह जब तुम होश में आओगी डार्लिंग… तब तक सब बदल चुका होगा… और जो लोग आज तुम्हारी तारीफ़ और वाहवाही करते नहीं थकते वो सब कल तुम्हारे मुँह पर… तुम्हारी ज़िंदगी पर थूकेंगे… (एक ज़हरीली मुस्कान के साथ)… गलत जगह पंगा ले लिया डार्लिंग तुमने… अफ़सोस कि तुम्हें अफ़सोस करने का मौका भी नहीं मिलेगा!"
इतना कहकर मिथिलेश ने अरु के जबड़े को सख्ती से झटकते हुए अरु की साइड का दरवाज़ा बंद किया और जैसे ही खुद ड्राइविंग सीट पर बैठने के लिए दूसरी तरफ जाने के लिए मुड़ा, उसके तोते उड़ गए। दुनिया भर का शॉक और डर अचानक ही मिथिलेश के चेहरे पर तब उभर आया जब उसने अचानक ही अपने सामने खड़े रिदांश को देखा और उसके चेहरे के डेडली और सख्त एक्सप्रेशन देखकर मिथिलेश को तो मानो जैसे काटो तो खून नहीं… उसकी आँखें हैरानी से सौसर के साइज़ के जैसे बड़ी हो गई थीं और उसका दिल डर से उसके सीने में उछाले मार रहा था। रिदांश को सामने देखकर उसकी सारी हिम्मत और साज़िश पल में हवा हो गई थी और उसकी सारी प्लानिंग अब उसी की जान पर आ बनी थी।
मिथिलेश (घबराहट भरे भाव से): "म…म…मैं…तो ब…बस…इस…इसकी म…मद…मदद…आ…आई स्वेर…म…मै…ब…बस…"
मिथिलेश अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाया था कि रिदांश ने अपनी गुस्से भरी लाल आँखों से दुनिया जहाँ के गुस्से के साथ एक जोरदार पंच सीधा मिथिलेश के मुँह पर जड़ दिया और मिथिलेश के लिए उसके थोड़े का नक्शा बिगाड़ने के लिए सिर्फ़ रिदांश का एक पंच ही काफी था… और ये तो रब ही जानता था कि सोए हुए शेर के गुस्से की आग को भड़काने की आखिर क्या कीमत अदा करने वाला था मिथिलेश!
मिथिलेश के लिए, उसके थोड़े का नक्शा बिगाड़ने के लिए, सिर्फ़ रिदांश का एक पंच ही काफी था। और यह तो सिर्फ़ रब ही जानता था कि सोए हुए शेर के गुस्से की आग को भड़काने की आखिर क्या कीमत अदा करने वाला था मिथिलेश। रिदांश के एक पंच से मिथिलेश सीधा ज़मीन पर जा गिरा। और यह पंच इतना जोरदार था कि मिथिलेश को कुछ पल तक अपने सर के चारों ओर चिड़िया उड़ती नज़र आने लगीं, और कुछ पल तक उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। लेकिन इससे पहले कि रिदांश के पंच का खुमार उसके सर से उतर पाता, रिदांश ने उसे कॉलर से पकड़कर उठाते हुए, दोबारा उसके मुँह पर एक जोरदार पंच और दे मारा। और उसके बाद तो जैसे रिदांश ने उस घटिया मिथिलेश पर एक के बाद एक लगातार अपने पंचों की बारिश कर दी। और रिदांश का एक-एक पंच मिथिलेश को खुद पर किसी हथौड़े की भाँति महसूस हो रहा था। और यही हकीकत थी कि रिदांश हर मामले में उससे कहीं ज़्यादा पावरफुल और स्ट्रांग था। रिदांश मिथिलेश के चेहरे पर तब तक पंच मारता गया जब तक कि उसने पूरी तरह मिथिलेश के चेहरे का नक्शा नहीं बिगाड़ दिया और उसके नाक और मुँह से खून की बौछार ना निकल गई।
इस वक़्त सिर्फ़ रिदांश के एक्सप्रेशन देखने भर से ही यह साफ़ मालूम पड़ रहा था कि उसका गुस्सा नौवें आसमान पर था। और उसका गुस्सा उसके सर इतना चढ़ा हुआ था कि उसे आस-पास का और कुछ नज़र नहीं आ रहा था, सिवाय इसके कि इस घटिया शख़्स ने अरु को छूने की कोशिश की थी। जिस वक़्त रिदांश ने उसके हाथ अरु को थामे हुए देखे थे और जैसे वो अरु को ले जा रहा था, उस वक़्त ही उसका खून गुस्से से खौल उठा था। रिदांश शनाया के लिए रेस्ट रूम के बाहर रेलिंग के पास खड़ा, अपने फ़ोन में बिज़ी था। बिज़ी क्या, वो वहाँ खड़ा फ़्रस्ट्रेट हो रहा था। इसीलिए उसने प्रिशा को वहाँ आने को कहा। प्रिशा ने फ़ौरन उसकी बात पर हामी भरते हुए जल्दी आने का कहकर फ़ोन काट दिया।
एक पल बाद ही जैसे अरु ने उसका नाम पुकारा, तो उसी लम्हे उसके दिल में एक एहसास सा महसूस हुआ, जैसे कि उसे किसी अपने ने पुकारा। और उसके ज़हन में यह ख़्याल आते ही, उसके ज़हन में सबसे पहला नाम अरु का ही आया। और जैसे ही उसने रेलिंग की दूसरी तरफ घूमकर अपनी नज़रें चारों ओर घुमाईं, तो अचानक ही उसकी नज़र कुछ दूरी पर मिथिलेश पर पड़ी जो उसे अरु को ले जाता नज़र आया। और फिर क्या था, बस यही रिदांश के सब्र का बाँध टूट गया। और तभी वहाँ पहुँची प्रिशा को उसने वहीं रुकने को कहा और फिर खुद गुस्से भरी जल्दबाज़ी में वहाँ से निकल गया।
एक तो पहले ही रिदांश के गुस्से का पारा हाई था, दूसरा वहाँ पहुँचकर मिथिलेश की वो घटिया बातें सुनने के बाद तो रिदांश के गुस्से का ज्वालामुखी फटना ही था। और रिदांश के गुस्से के तूफ़ान से मिथिलेश का बर्बाद होना भी लाज़िमी ही था। तभी वहाँ पर टॉम के साथ ही रिदांश के कुछ गार्ड्स और आ गए। उन्होंने बीच में आना चाहा तो रिदांश ने उन्हें अपनी हथेली दिखाकर वहीं रुकने का ऑर्डर दे दिया। और उसका आर्डर मिलते ही टॉम के साथ ही बाकी गार्ड्स भी अपने हाथ बाँधे वहीं चुपचाप खड़े हो गए। इसके बाद रिदांश मिथिलेश को तब तक मारता गया जब तक वह बेहोश होकर वहीं नहीं गिर पड़ा। हालाँकि रिदांश के कुछ ही पंचों में मिथिलेश चारों खाने चित हो चुका था। मिथिलेश के बेहोश होने के बाद भी रिदांश नहीं रुका, तो टॉम कुछ कदम आगे आया।
"टॉम (अपने हाथ बाँधे बड़े अदब के साथ रिदांश से): बॉस, वह बेहोश हो चुका है। अगर आप उसे ऐसे ही लगातार मारते रहेंगे, तो वह मर जाएगा!"
रिदांश ने टॉम की बात सुनी तो उसने गुस्से से एक पल को अपनी आँखें बंद कीं और अपने इमोशन्स और गुस्से को कंट्रोल करते हुए उसने खुद को मिथिलेश से बड़ी मुश्किल से कुछ कदम पीछे किया। और उसने अपने बिखरे बालों में हाथ घुमाकर, जो पसीने से उसके माथे पर चिपक गए थे, उन्हें अपने माथे से हटाया। उसके माथे पर पसीना था, आँखें गुस्से से लाल और चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। इस वक़्त अगर कोई भी बच्चा या नाज़ुक दिल का इंसान उसे इस हालत में देखता, तो यक़ीनन वह उसके गुस्से से काँप जाता।
कुछ पल तक ही रिदांश गाड़ी के बोनट पर हाथ टिकाए खड़ा रहा और अपने गुस्से को कंट्रोल करने और सामान्य करने की कोशिश करने लगा। कुछ पल बाद रिदांश ने अपनी आँखें खोलीं तो गाड़ी के शीशे में से उसने अरु की झलक देखी। और उसके चेहरे पर उसकी नज़र पड़ी तो उसे सही-सलामत देखकर उसके दिल के कहीं किसी कोने में कुछ तो सुकून महसूस हुआ था। लेकिन उसका गुस्सा अभी भी यूँ ही बरकरार था। और आखिर में उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।
"रिदांश (गुस्से और डेंजर लहजे के साथ टॉम की ओर देखकर): टॉम?"
"टॉम (अपने हाथ बाँधे हुए अपना सर झुकाकर): हुकुम कीजिए बॉस?"
"रिदांश (मिथिलेश की ओर देखकर अपने दाँत पीसते हुए): इस गटर के कीड़े की इतनी इज़्ज़त अफ़ज़ाई करना और इसका इतना अच्छा इलाज करना कि अगले छह महीने तक यह अपने बिस्तर से उठ भी ना पाए। और जिन हाथों को इसने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए यूज़ किया है, उन्हीं हाथों को जब भी यह उठाए तो इसे याद आए कि इसने इन हाथों से क्या गुनाह किया था और आखिर इसे किस गुनाह की यह सज़ा मिली है। अगले छह महीने तक यह बिस्तर से हिलना भी नहीं चाहिए टॉम, और इसकी पूरी ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी!"
"टॉम (पूरी दृढ़ता के साथ): आप बेफ़िक्र रहें बॉस, जैसा आपने कहा है, बिल्कुल वैसा ही होगा!"
"रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन के साथ): लेकिन एक बात याद रखना, यह ज़िंदा रहना चाहिए और पल-पल इसे अपने ज़िंदा रहने पर अफ़सोस होना चाहिए और अपनी घटिया हरकत पर खुद खून के आँसू रोना चाहिए!"
"टॉम (अपना सर हाँ में हिलाते हुए): ऐसा ही होगा बॉस!"
"रिदांश (बिना किसी भाव के): अब जा सकते हो तुम यहाँ से!"
"टॉम (अपना सर हाँ में हिलाते हुए): जी बॉस!!!"
इसके बाद टॉम ने गार्ड्स को इशारा किया और उन्होंने मिथिलेश को उठाकर एक गाड़ी में डाला और फिर उसे वहाँ से लेकर वो सब टॉम के साथ वहाँ से निकल गए। उन लोगों के जाने के बाद रिदांश मिथिलेश की गाड़ी की ओर बढ़ा और उसने दरवाज़ा खोलकर अरु को देखा जो पूरी तरह बेहोशी की हालत में थी। रिदांश उसे उठाने के लिए उसकी ओर झुका और एक पल को जैसे उसकी नज़रें उसके चेहरे पर ही ठहर गईं और वह उसकी मासूमियत को निहारने लगा।
लेकिन फिर अगले ही पल उसने अपने ख़्यालों को झटका और बिना किसी भाव के झुककर अरु को अपनी बाहों में उठा लिया और उसे वहाँ से लेकर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया। ड्राइवर ने रिदांश को आता देखा तो उसने जल्दी से गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला। लेकिन रिदांश ने ड्राइवर से आगे का दरवाज़ा खोलने को कहा तो ड्राइवर ने जल्दी से ड्राइविंग सीट के बराबर वाला दरवाज़ा खोल दिया। रिदांश ने सावधानी के साथ अरु को गाड़ी में बैठाया और सीट बेल्ट लगाकर उसने दरवाज़ा बंद किया।
"रिदांश (ड्राइवर की ओर देखकर अपना हाथ बढ़ाकर): चाबी दो, मैं ड्राइव खुद करूँगा!"
ड्राइवर ने रिदांश का आर्डर सुनते ही जल्दी से उसके हाथ में चाबी थमा दी।
"रिदांश (ड्राइवर की ओर देखकर बिना किसी भाव के): प्रिशा और दक्ष की गाड़ी के साथ तुम भी वापस घर चले जाना, मुझे कुछ काम है, मैं वह निपटाकर ही वापस आऊँगा!"
"ड्राइवर (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): ओके मास्टर!"
इसके बाद रिदांश ड्राइविंग सीट पर आ बैठा और उसने बिना एक पल की भी देरी किए गाड़ी आगे बढ़ा दी। ड्राइविंग करते हुए रिदांश के मन में बहुत सारे ख़्याल चल रहे थे, जो क्या थे, सिर्फ़ वही बेहतर जानता था। लेकिन इस बीच कई बार उसकी नज़रें अरु के चेहरे पर जा ठहरी थीं। कहीं ना कहीं उसके मन में खुद को ही लेकर सवाल चल रहा था कि जिस रिश्ते को वह सालों पहले मार चुका था, भूल चुका था, आज उसे तकलीफ़ हुई तो वह क्यों इस तरह से पागल हो गया, क्यों गुस्से से बौखला गया। हालाँकि हमेशा से ही रिदांश उन लोगों में से बिल्कुल भी नहीं था जो अपने जोश में होश खो बैठे। रिदांश हमेशा डिफ़िकल्ट से डिफ़िकल्ट सिचुएशन में भी बहुत ही काम होकर दिमाग़ से सोचने वालों में से था।
लेकिन आज जब उसने मिथिलेश को अरु को ले जाते देखा तो उसके सर पर सिर्फ़ और सिर्फ़ गुस्से का जुनून सवार था। और अगर शायद टॉम बीच में नहीं आता तो वह आज मिथिलेश की जान ही ले लेता। कुछ पल बाद रिदांश ने एक गहरी साँस लेते हुए सारे ख़्यालों को झटका और ड्राइविंग पर फ़ोकस किया। कुछ देर के सफ़र के बाद आखिर में रिदांश ने अपनी गाड़ी एक फ़ार्महाउस के बाहर रोकी जो कि उसका अपना ही फ़ार्महाउस था। वह कुछ वजहों से अरु को हरगिज़ घर नहीं ले जाना चाहता था और वह वजह क्या थी, वह सिर्फ़ वही जानता था। रिदांश ने फ़ार्म हाउस पहुँचकर हॉर्न दिया तो गार्ड ने जल्दी से दरवाज़ा खोला और रिदांश अपनी गाड़ी लेकर सीधा अंदर चला आया और उसके अंदर आने के साथ ही गार्ड ने वापस से दरवाज़ा बंद कर लिया।
रिदांश गाड़ी से उतरा और उसने अरु की साइड का दरवाज़ा खोलते हुए, उसने सीटबेल्ट निकालते हुए अरु को वापस से अपनी बाहों में उठा लिया और उसे अंदर ले आया। रिदांश की बाकी प्रॉपर्टी की तरह ही यह फ़ॉर्महाउस भी दिखने में बेहद शानदार, लग्ज़री होने के साथ ही कोज़ी था। रिदांश अरु को बेडरूम की ओर ले गया। उसने अरु को सावधानी के साथ कोज़ी से वहाँ बेड पर लेटा दिया और उसे ब्लैंकेट ओढ़ाकर, कुछ पल बाद ही बाथरूम की ओर बढ़ गया। अक्सर जब रिदांश को अकेले रहना होता था या फिर उसे सब चीज़ों से कुछ देर का सुकून चाहिए होता था तो वह यहाँ आकर अकेले में वक़्त बिता लिया करता था।
कुछ देर बाद रिदांश चेंज करके वापस रूम में आया तो उसने देखा कि सोई हुई अरु के चेहरे के भाव लगातार बन बिगड़ रहे थे और उसके माथे पर चिंता की लकीरों की सिलवटें छाई हुई थीं। शायद वह कोई सपना देख रही थी, कोई बुरा सपना। रिदांश ने उसे यूँ देखा तो अनायास ही उसके कदम उसकी ओर बढ़ गए। रिदांश उसके सिरहाने बैठा और अनायास ही उसकी उंगलियाँ अरु के माथे की लकीरों पर फिर गईं। और उसके स्पर्श का एहसास था, या जैसे कोई चमत्कार, कि रिदांश की उंगलियों के स्पर्श को महसूस करते ही अरु की चिंता की लकीरें अचानक ही गायब सी हो गईं और उसके चेहरे के भाव तब पूरी तरह सामान्य हो गए जब कुछ पल अरु ने बेहोशी की हालत में ही करवट लेते हुए रिदांश के उस हाथ को अपने हाथों में थाम लिया। शायद रिदांश के स्पर्श के एहसास में वह खुद को महफ़ूज़ महसूस कर रही थी, तभी अचानक ही रिदांश के स्पर्श के साथ ही उसके चेहरे के भाव बिल्कुल सामान्य हो गए थे।
एक बार को रिदांश ने अपना हाथ खींचना चाहा लेकिन फिर ना जाने क्या सोचकर वह बस ख़ामोशी से अपना सर हेडबोर्ड से टिकाए वहीं बैठ गया और ख़ामोशी से सोती अरु को कुछ पल तक यूँ ही एकटक देखते हुए कुछ सोचने लगा। जैसे-जैसे रात गहराने लगी थी, रिदांश को भी नींद का एहसास होने लगा था। और कुछ वक़्त बाद भी जब उसने अरु को अपना हाथ यूँ ही पकड़े देखा तो फिर वह बिना कुछ सोचे बेड के दूसरी साइड लेट गया और आखिर में कुछ देर बाद उसे भी नींद आ गई। हालाँकि पूरी रात में उसकी सावधानी भरी नींद कई बार टूटी जब अरु अपनी जगह छोड़कर उसके और रिदांश के बीच के सारे गैप को लांघकर रिदांश के ठीक करीब पहुँच चुकी थी।
और आखिर में वह रिदांश के सीने पर सर रखकर उसे अपनी बाजू से कसकर पकड़े हुए सुकून से सो गई। रिदांश ने जब उसे यूँ करते देखा तो अनायास ही उसके जेहन में पुराना वक़्त कौंध गया जब उनके बीच सब ठीक था और अक्सर अरु उसके सीने पर यूँ ही सर रखकर सोया करती थी। सामान्य तौर पर तो रिदांश को अरु के ऐसा करने से चिढ़ होनी चाहिए थी लेकिन ना जाने क्यों इस वक़्त उसके ऐसा करने के बावजूद भी रिदांश के चेहरे पर कोई भी फ़्रस्ट्रेशन या गुस्से जैसे कोई भी भाव नहीं थे बल्कि उसके चेहरे के भाव हमेशा की तरह ब्लैंक बने हुए थे।
"रिदांश (आधे से ज़्यादा खुद पर सवार सोती हुई अरु को देखते हुए): जब होश में होती है तो सिर्फ़ ज़हर उगलती है और अब बेहोशी में..."
रिदांश ने अपना फ़ोन उठाया और कुछ पल उसमें कुछ करने के बाद आखिर में एक गहरी साँस लेते हुए रिदांश ने अपनी सोच को विराम लगाया और फिर कुछ पल बाद नींद के आगोश में चला गया। और फिर उसकी नींद तब खुली जब सुबह उसने अरु को अपनी बाहों में कसमसाते हुए देखा। रिदांश ने अरु को यूँ कसमसाते देखा और इस वक़्त जिसके चेहरे पर फ़्रस्ट्रेशन और गुस्से के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे, मगर यह देखकर भी रिदांश के भाव ब्लैंक ही बने रहे और उसने कोई रिएक्ट ना करते हुए बस ख़ामोशी से अपनी बाजू को अरु की कमर से हटा लिया और बिस्तर से उठते हुए वह बिना कुछ कहे वहाँ से बाथरूम की ओर जाने लगा कि अरु के शब्द सुनकर उसके कदम वहीं रुक गए और एक पल बाद ही वह अपने सदा के टशन और एटीट्यूड के साथ अपनी पॉकेट में अपने दोनों हाथ डाले हुए वह उसकी ओर पलटा।
"अरु (बिस्तर से उठकर खड़े होते हुए गुस्से से): हाउ डेयर यू टू टच मी??"
"रिदांश (अपनी भौहें उचकाकर): एक्सक्यूज मी??"
"अरु (फ़्रस्ट्रेशन भरे भाव के साथ): ज़्यादा अनजान मत बनिए आप, मुझे यहाँ क्यों लाए आप?"
"रिदांश (अपने एटीट्यूड के साथ): फ़ॉर योर काइंड इंफ़ॉर्मेशन, अगर मैं तुम्हें यहाँ नहीं लाता तो इस वक़्त तुम जहाँ होतीं, वहाँ खुद को देखने से बेहतर तुम मरना पसंद करतीं!"
अरु ने रिदांश के लफ़्ज़ सुने तो एक पल को उसके चेहरे के भाव बदले लेकिन क्योंकि उसे ना तो सब कुछ पता था और ना ही जूस के बाद का कुछ याद, इसीलिए अगले ही पल उसके भाव वापस से सख़्त हो गए।
"अरु (सख़्त भाव से): ठीक है मान लिया आपने मेरी मदद की, मुझ पर एहसान किया लेकिन आप मुझे यहाँ क्यों लाए? और उस पर आपका मेरे साथ इस तरह से एक बेडरूम में, एक बिस्तर पर सोने का क्या मतलब था!"
रिदांश ने अरु की बात सुनी तो ब्लैंक एक्सप्रेशन मगर एटीट्यूड के साथ उसने अपने कदम कुछ दूरी पर खड़ी अरु की ओर बढ़ा दिए और फिर अगले ही पल उसने अरु को झट से अपनी ओर खींचकर उसे कमर से पकड़ते हुए पूरी तरह अपनी बाजुओं और सीने के बीच कैद कर लिया। अरु के लिए रिदांश का यह मूव बिल्कुल अनएक्सपेक्टेड था लेकिन एक पल बाद जब वह अपने असल हवास में आई तो उसने सख़्त भाव से, पूरी जद्दोजहद के साथ रिदांश को खुद से दूर धकेलने की कोशिश की जिसमें वह पूरी तरह नाकाम रही क्योंकि रिदांश उससे एक इंच भी नहीं हिला।
"रिदांश (अरु की नाकाम कोशिश के बाद फ़ुल ऑन एटीट्यूड के साथ): मैं तुम्हें यहाँ क्यों लाया, तुम्हारे साथ एक बेडरूम, एक बिस्तर पर क्यों था या ऐसे ही कई फ़िजूल सवाल जिनका जवाब तुम मुझसे जानना चाहती हो तो मेरा जवाब है कि मैं तुम्हें कोई भी जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता। सो थिंक व्हाटएवर यू वांट, आई डोंट गिव अ डैम अबाउट योर थिंकिंग!"
"अरु (गुस्से से रिदांश की ओर देखकर): जस्ट लीव मी राइट नाउ!"
"रिदांश (इंटेंस लुक से अरु की ओर देखते हुए): धमकी दे रही हो?"
"अरु (बिना किसी झिझक के): हाँ दे रही हूँ, तो?"
"रिदांश (चैलेंजिंग लुक से): देन ट्राई मी!"
"अरु (सख़्त और डेडली एक्सप्रेशन से): मैंने कहा छोड़िए मुझे!"
"रिदांश (चैलेंजिंग लुक से): वरना?"
"अरु (डेडली एक्सप्रेशन के साथ ही): वरना उस दिन तो सिर्फ़ एक छोटा सा ट्रेलर था और कहीं ऐसा ना हो कि आपकी नादानी भरी अकड़ आपके फ़्यूचर पर भारी पड़ जाए!"
"रिदांश (कुछ देर बाद मोकिंग वे में): डोंट फ़ॉरगेट कि वो तुम ही थीं जो सारी रात मुझसे चिपक के सो रही थीं (अपनी आइब्रोज़ उठाते हुए)... एंड हू नोज़ कि तुम सिर्फ़ सो रही थीं या फिर तुमने..."
अरु ने रिदांश की बात सुनी तो उसने सख़्त भाव से अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और उसके एक्सप्रेशन देखकर रिदांश के होंठों पर एक तंज भरी विक्ट्री स्माइल तैर गई। लेकिन कुछ देर बाद, कुछ सोचकर अरु के होंठों पर एक क्लेवर स्माइल तैर गई।
"अरु (टाइट लिप स्माइल के साथ): फ़ाइन, आई एग्री की आपने मेरी हेल्प की, मुझ पर एहसान किया और मैं ही थी जो पूरी रात आपसे चिपक कर आपके नज़दीक सोई थी। एंड अकॉर्डिंग टू यू, हू नोज़ कि सिर्फ़ सोई थी या आपका एडवांटेज लिया था, नई? (एक पल रुककर गंभीर भाव के साथ ही) सब बातें मान ली मैंने आपकी, अब मुझे एक मौका दीजिए ताकि मैं आपका एहसान उतार सकूँ!"
रिदांश ने अरु की बात सुनकर शक भरी नज़रों से उसकी ओर देखा। वह भी अच्छे से समझ रहा था कि अरु जितनी सीधी बातें कर रही है, यक़ीनन उनका मतलब इतना सीधा हरगिज़ नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी वह जानना चाहता था कि आखिर वह करना क्या चाहती है। इसीलिए उसने कुछ पल बाद ही अरु को अपनी मज़बूत पकड़ से आजाद कर दिया और यह देख अरु ने एक क्लेवर मुस्कान रिदांश को दी और रिदांश बड़े ही गौर से अरु के नेक्स्ट मूव को देखने लगा।
अरु ने कमरे में इधर-उधर देखा और फिर एक पल बाद ही टेबल पर रखे अपने क्लच पर उसकी नज़र ठहर गई और वह उसकी ओर बढ़ गई और अगले ही पल अपने हाथ में अपना क्लच थामे वह वापस से रिदांश के सामने आ खड़ी हुई। रिदांश अभी भी उसे और उसके मूव्स को असमंजस भरे भाव से देख रहा था। लेकिन एक पल बाद ही फिर जो अरु ने किया, वह बिल्कुल बियॉन्ड दी ड्रीम ही था।
"अरु (एक पल बाद अपने पर्स से कुछ पैसे निकालकर रिदांश की ओर देखकर गंभीर भाव से): फ़ाइन, कल रात जो भी किया मैंने (रिदांश की हथेली पर वो पैसे रखते हुए) उसकी भरपाई (एक पल रुककर) सो हिसाब बराबर, नाउ स्टे अवे फ़्रॉम माय वे!"