अर्जुन ओबेरॉय—एक नाम, जो ऐशो-आराम, पार्टियों और हसीनाओं की दुनिया में गूंजता है। उसकी ज़िंदगी में रिश्तों के लिए जगह नहीं, बस लम्हों की चाहत है। प्यार उसके लिए सिर्फ़ एक खेल है... जब तक कि एक दिन उसकी नज़र उस मासूम बच्ची पर नहीं पड़ती—अवंतिका, जो बिल... अर्जुन ओबेरॉय—एक नाम, जो ऐशो-आराम, पार्टियों और हसीनाओं की दुनिया में गूंजता है। उसकी ज़िंदगी में रिश्तों के लिए जगह नहीं, बस लम्हों की चाहत है। प्यार उसके लिए सिर्फ़ एक खेल है... जब तक कि एक दिन उसकी नज़र उस मासूम बच्ची पर नहीं पड़ती—अवंतिका, जो बिल्कुल उसकी तरह दिखती है। उस एक पल में अर्जुन की पूरी दुनिया उलट जाती है। क्या यह बच्ची उसकी ही है? अगर हाँ, तो यह उसके पास क्यों नहीं? सवालों के इसी तूफ़ान में अर्जुन की मुलाक़ात होती है अंबर सक्सेना से—एक खूबसूरत, सादगीभरी लेकिन रहस्यमयी लड़की। वह बच्ची अंबर के साथ क्यों है? अर्जुन के लिए जवाब पाना अब जुनून बन जाता है। जुनून इतना बढ़ता है कि वह अंबर से जबरदस्ती शादी कर लेता है—सिर्फ़ अवंतिका को पाने के लिए। लेकिन अंबर की मजबूरी क्या है? क्यों उसने इस शादी को स्वीकार किया? उसके दिल में कौन-सा राज़ दफ़्न है? एक प्लेबॉय की हद से बढ़कर की गई जद्दोजहद, एक मासूम बच्ची की मासूमियत और एक लड़की की मजबूरी... इस कहानी में हर मोड़ पर खुलेंगे नए राज़, बदलेंगे रिश्तों के मायने और जन्म लेगी एक अनकही मोहब्बत। क्या अर्जुन अवंतिका को अपना पाएगा? क्या अंबर अपने दिल के सच को छुपा पाएगी? और क्या यह रिश्ता सिर्फ़ एक समझौता रह जाएगा या एक अनकही मोहब्बत में बदल जाएगा —प्यार, जुनून और रहस्यों की एक ऐसी दास्तान, जो आपको हर पन्ने पर चौंकाएगी। ---
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"..आपकी बेटी हाल से बाहर जा रही है...आपका बच्चा छोटा है...कहीं गुम हो जाए..."। उसे एक साथ गुजरते अधेड़ उम्र के शख्स ने कहा। उसकी बात सुनकर वह हैरान हो गया। उसने गर्दन उठाकर, जिस तरफ उस शख्स ने इशारा किया था, देखने लगा। तीन-चार साल की एक बच्ची थी जो जिस हाल में प्रोग्राम चल रहा था, उस हाल से बाहर जा रही थी। वह उठकर खड़ा हो गया और बच्ची को अंदर लाने के लिए गोद में उठा लिया। उसने बच्ची का चेहरा देखा तो वह खुद हैरान रह गया। उसे समझ में आया कि वह शख्स उसे उसकी बच्ची क्यों कह रहा था। अर्जुन मल्होत्रा की आँखें बिल्ली जैसी थीं, भूरे बाल थे, और उसका रंग बहुत गोरा था। वह बच्ची, जिसे वह देख रहा था, बिल्कुल उसके जैसी ही थी; बिल्ली जैसी आँखें थीं। उस बच्ची के गोल्डन ब्राउन बाल थे, जैसे बचपन में उसके थे; हल्के-हल्के कर्ली हेयर थे और बच्ची का रंग बहुत गोरा था, बिल्कुल उसके जैसा। अगर कोई उसकी बचपन वाली फ़ोटो और इस बच्ची को देखे, तो कोई भी कहेगा कि दोनों कितने एक जैसे हैं। वह उसकी ही बच्ची लग रही थी। बच्ची को उठाकर वह अंदर ले आया। तभी एक औरत उसके पास भागती हुई आई, उससे बच्ची को पकड़ लिया और बोली, "...अच्छा हुआ भाई साहब आप इसे ले आए...इतनी शरारती बच्ची हैं...कहीं टिकती ही नहीं..."। उसका दोस्त उसके पास आकर बोला, "...वैसे सचमुच उस बच्ची की शक्ल तुमसे कितनी मिलती है...ऐसा लग रहा था...वो तुम्हारी ही बेटी है...कहीं वो तुम्हारी किसी एक्स-गर्लफ्रेंड की बेटी तो नहीं...तुम दोनों की किसी गलती की निशानी हो...मेरे कहने का मतलब है...तुम दोनों के प्यार की निशानी हो..."। वह उसे छेड़ने लगा। वह उसकी रग-रग से वाकिफ था; उसे पता था कि इसकी कितनी सारी गर्लफ्रेंड हैं; वह रोज किसी नई लड़की के साथ होता है। "..तुम्हारी यह बात तो ठीक है...मेरे रिश्ते बहुत सारी लड़कियों से रहे हैं...मगर मैंने इस बात का हमेशा ख्याल रखा है कि उसका नतीजा ऐसा ना निकले...तुम मुझे अच्छी तरह जानते हो...अर्जुन मल्होत्रा क्या चीज है..."। मगर यह बात अर्जुन मल्होत्रा के दिमाग में खटक रही थी। बच्चे का चेहरा उससे कितना मिलता था! वह बिल्कुल उसके बचपन की कार्बन कॉपी थी। वह सोचने लगा, "...मैं अपने दिमाग पर इतना बोझ क्यों डाल रहा हूँ? अगर किसी के पास मेरा बच्चा होता तो मेरे ही पास आता..."। उसने अपने दिमाग को झटका और इस बात से बाहर निकल गया। असल में, अर्जुन मल्होत्रा जयपुर में एक डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए आया हुआ था। जिनकी शादी होनी थी, वे लोग बाहर से आए हुए थे। वह लड़का किसी बड़ी कंपनी का मालिक था और उसकी मंगेतर भी वहीं की थी। आज उनकी मंगनी थी, जिसके लिए अर्जुन मल्होत्रा विशेष रूप से आया हुआ था। मंगनी के बाद वह जाने वाला था। जैसे आज मंगनी थी, बीच में एक दिन मेहँदी और हल्दी थी, और फिर शादी थी। वे बहुत पैसे वाले लोग थे और उन्हें देसी स्टाइल में शादी करनी थी। इसलिए उन्होंने पैलेस के साथ-साथ होटल भी बुक कराया हुआ था जिसमें उनके मेहमान ठहरे हुए थे। वह लड़का अर्जुन मल्होत्रा को कॉलेज के जमाने से जानता था; उसका सीनियर था; उसके साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ता था। जब अर्जुन मल्होत्रा विदेश में पढ़ता था, तो आज उसने अपने सभी पुराने दोस्तों, जो इंडिया में थे, को याद किया था। इसलिए आज अर्जुन मल्होत्रा भी वहाँ आया हुआ था। जाने से पहले, अर्जुन मल्होत्रा उससे मिलने आया था। वह उससे कहने लगा, "...नहीं, तुम्हें तीन दिन तक रुकना होगा...मेरी शादी और फिर रिसेप्शन के बाद ही जाना..."। "...नहीं यार...मुझे बहुत जरूरी काम है; आज रात मेरी बहुत जरूरी मीटिंग है...इसके लिए जाना तो मुझे पड़ेगा..."। उसके बहुत जोर देने पर अर्जुन मान गया। वह उससे कहता है, "...वह उसकी हल्दी के दिन आ जाएगा...फिर हल्दी, शादी और रिसेप्शन होने तक यहीं रहेगा...आज उसे जाने दो..."। अर्जुन मल्होत्रा एक बड़ा बिज़नेसमैन था। उसके अपने होटल थे; पूरे इंडिया के बड़े-बड़े शहरों में उसके होटल थे। अब वह देश से बाहर भी अपने होटल की चेन खोल रहा था। वह अपनी फ़ील्ड में बहुत सफल था। वह दिखने में बहुत डैशिंग था। लड़कियाँ उस पर मरती थीं। वह लड़कियों पर लाखों रुपए लुटाता था। लड़कियों को उसका पैसा चाहिए था और उसे लड़कियाँ चाहिए थीं। यह तो वह खुद भी नहीं जानता था कि कितनी लड़कियाँ उसकी ज़िंदगी में आई हैं। आज वह वापस जा रहा था। उसके दिमाग में वह बच्ची घूम रही थी। सचमुच बहुत प्यारी बच्ची थी, वह सोच रहा था। उसे रह-रहकर उस बच्ची पर प्यार आ रहा था; जब वह बच्ची उसके सामने थी, उस पर इतना प्यार तो उसे तब भी नहीं आया था, जितना दूर जाने पर महसूस हो रहा था। फिर वह सोचने लगा, कोई बात नहीं। जब दोबारा वापस आएगा, उस बच्ची से जरूर मिलेगा। अब उसके मन में उस बच्ची के माँ-बाप से मिलने की तमन्ना जाग पड़ी थी। उसके फ़ोन पर रिंग होने लगी। उसने देखा, उसकी गर्लफ्रेंड तान्या का फ़ोन था। उसने बात करने के लिए फ़ोन उठा लिया। "...अर्जुन डार्लिंग, इतना टाइम क्यों लगा दिया...मेरा फ़ोन उठाने में...पहले भी मैंने कितनी बार कॉल किया...तुमने मेरा फ़ोन नहीं उठाया..."। "...असल में मैं एक शादी में था...वहाँ शोर-शराबा बहुत था...तो मैंने इसलिए फ़ोन नहीं उठाया...क्यों, क्या हुआ...?" "...आज रात मेरे फ़्लैट पर आ जाओ...मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ...बहुत दिन हो गए...हमें मिले हुए..."। "...नहीं तानिया...आज नहीं...आज मैं घर जा रहा हूँ...माँ-डैड के पास...बहुत दिन हो गए उनके पास गए हुए..."। "...नहीं, प्लीज डार्लिंग, आ जाओ ना...बहुत प्यार आ रहा है तुम पर...कितने दिन हो गए...हम दोनों को एक-दूसरे से प्यार किए हुए..."। प्लीज मुझे सब्सक्राइब करें और साथ में समीक्षा और रेटिंग भी दें।
"...नहीं प्लीज डार्लिंग... आ जाओ ना... आज मुझे तुम पर बहुत प्यार आ रहा है... इतने दिन हो गए हमें एक दूसरे से प्यार किए हुए..." अर्जुन अपने माता-पिता के पास मल्होत्रा मेंशन गया था। उसके जाने का असल मकसद अपनी बचपन की सारी तस्वीरें देखना था, जो उसकी माँ के पास थीं। रात को जब वह घर पहुँचा, तो उसके माता-पिता उसे देखकर बहुत खुश हुए। वह अपनी दादी का लाडला था। दादी तो उसे देखकर बहुत ज़्यादा खुश हो जाती थी। उसने सभी के साथ खाना खाया। घर में तो उसे कोई कुछ नहीं कहता था कि वह इतने दिनों से उन लोगों से नहीं मिलने आता। मगर उसकी छोटी बहन आरा उसे हमेशा कहती थी, "भाई हमारे पास रहने आ जाओ। हमारा बहुत मन करता है कि आप हमारे पास रहें।" अर्जुन मल्होत्रा अपने परिवार के साथ न रहकर अपने पेंटहाउस में रहता था। असल में, अगर वह परिवार के साथ रहता, तो उसकी आॅयाशी पर रोक लगती थी। अकेला रहने से उसे रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था। इसलिए वह अकेला रहना पसंद करता था। उसके माँ-बाप यह बात समझते थे, मगर चाहते हुए भी कुछ नहीं कह सकते थे। वे जानते थे कि वह अपनी मर्ज़ी का मालिक है; करेगा तो वही जो उसे पसंद है। इसलिए उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा। वे बहुत सोचते थे कि काश कोई ऐसी लड़की उनके बेटे के जीवन में आ जाए जो उसको संभाल ले। मगर असली बात तो यह थी कि आज तक उसके बेटे के जीवन में ऐसी कोई लड़की नहीं आई थी। असल में, जब अर्जुन मल्होत्रा ने अपने पिता का बिजनेस जॉइन किया था, तो उनका काम इतना बड़ा नहीं था। उनके होटल तो कई थे, मगर वे घाटे में चल रहे थे। मगर अर्जुन के बिजनेस संभालने के बाद उसने बिजनेस में बहुत तरक्की की थी। बहुत पैसा कमाया था। इसीलिए पैसे ने उसका दिमाग खराब कर दिया था। जो छोटी उम्र में इतनी कामयाबी मिलने से उसका दिमाग सातवें आसमान पर था। उसके माँ-बाप यह बात समझते थे; इसलिए वे चाहते हुए भी नहीं बोल सकते थे। चाहे अर्जुन का दिमाग सातवें आसमान पर था, पर उसे अपनी फैमिली बहुत प्यारी थी। वह अपनी माँ-बाप की बहुत इज़्ज़त करता था, और छोटी बहन उसकी जान थी। अपनी दादी का दिल उसने कभी नहीं दुखाया था। उसकी दादी उसे कुछ भी बोल देती, पर वह कभी पलट कर जवाब नहीं देता था। आज उसे घर देखकर सभी बहुत खुश थे। खाने के बाद वे लोग लॉबी में बैठ गए। "...माँ आपके पास मेरी बचपन की बहुत सी तस्वीरें हैं... लाओ ना... कहाँ हैं... वह मुझे सब देखनी हैं..." "...क्या बात है... आज तुझे क्या शौक चढ़ा है... अपनी बचपन की तस्वीरें देखने का... पहले तो आज तक कभी नहीं देखी..." उसकी बात सुनकर उसकी छोटी बहन वह बॉक्स उठा लाई जिसमें सारी तस्वीरें थीं। अर्जुन ने वे सारी तस्वीरें देखीं; जिसमें से एक दिन के अर्जुन से लेकर उसकी जवानी तक की तस्वीरें थीं। उसने अपनी बचपन की तस्वीरें देखीं। वह बच्ची, जो उसने आज जयपुर में देखी थी, वह बिल्कुल ही उसके जैसी थी। वह देखकर हैरान हो रहा था। वो बिल्ली आँखों के साथ, वैसे ही गोल्डन ब्राउन बाल, जिसमें हल्के-हल्के कर्ल थे। बिल्कुल उस बच्ची के जैसा लग रहा था। एक तस्वीर में तो अर्जुन के बाल वैसे ही बाँधे हुए थे, जैसे आज जयपुर में उस बच्ची के बाँधे हुए थे। अर्जुन के बालों की लंबाई उतनी ही थी, जितनी आज उस बच्ची के बालों की लंबाई थी। वह जैसे-जैसे पिक्चर देख रहा था, इतना हैरान हो रहा था। "...माँ मेरी आँखें आपसे मिलती हैं ना... जैसे आपकी आँखें बिल्ली की हैं... मेरी भी वैसे ही आँखें हैं..." "...सही कह रहे हो बेटा, तुम्हारी आँखें तुम्हारी माँ जैसी हैं... केवल तुम्हारी आँखें ही नहीं... तुम्हारे बाल, तुम्हारे चेहरे का रंग... तुम्हारे पूरे फीचर्स... तुम्हारी माँ जैसे हैं, मगर तुम्हारी हाइट मेरे जैसी है..." उसके पापा हँसने लगे। "...भाई आप माँ जैसे हैं... मगर मैं बिल्कुल अपने पापा जैसी हूँ..." आरा ने उठकर अपने पापा के गले में बाहें डाल दीं। "...ठीक है ना पापा... मैं बिल्कुल आपसे जैसी हूँ..." यह बात सच थी; आरा की शक्ल बिल्कुल उसके पापा से मिलती थी। वही काली आँखें, काले बाल, वही उसके पापा जैसी नाक, उसके सारे फीचर्स ही उसके पापा जैसे थे। उसने शुरू से देखा था कि आरा उसके पापा के ज़्यादा क्लोज़ थी, और वह हमेशा अपनी माँ के ज़्यादा क्लोज़ रहा था। आरा अपने पापा से कितना प्यार करती थी, यह किसी से छुपा नहीं था। वह सामने एक बाप-बेटी की बॉन्डिंग देख रहा था। उन सामने बाप-बेटी को देखकर उसे वह लड़की याद आ गई। उसे अचानक से उसकी फिक्र होने लगी। "...माँ क्या हमेशा से ही होता है... कि बेटे की शक्ल अपनी माँ पर जाती है... और बेटी की शक्ल अपने डैड पर..." "...नहीं हमेशा थोड़ी ना होता है... जैसे मेरी आँखें मेरे पापा पर गई हैं... तुम्हारे नाना की आँखें बिल्ली थीं... मैं बिल्कुल अपने पापा जैसी थी... और तुम मेरे जैसे हो... इसलिए कोई ज़रूरी नहीं होता... कि बेटी बाप जैसी... और बेटा माँ जैसा हो..." "कभी-कभी सारे बच्चे माँ पर चले जाते हैं... कभी-कभी सारे बच्चे बाप पर चले जाते हैं... क्या हुआ... तुम यह सवाल आज क्यों पूछ रहे हो..." "...कुछ नहीं माँ... पिक्चर देखकर मुझे लगा... मैं बिल्कुल आपके जैसा हूँ... और आरा पापा के जैसी है... इसलिए मैंने पूछ लिया..." "...आज तो तुम यहीं रहने वाले हो ना..." माँ ने उसे पूछा। "...नहीं माँ मुझे काम है... मुझे जाना है... मैं तो बस आपके साथ खाना खाने के लिए आया था... मुझे आप लोगों की बहुत याद आ रही थी... कितने दिन हो गए थे आपसे मिले हुए..." यह कहकर वह वहाँ से चला गया। असल में उसका मन तानिया के पास जाने का बन गया था। कितने दिन हो गए थे उसे तानिया के पास गए हुए। फिर तानिया आँखों से बुला रही थी। पहले तो वह तानिया को फोन करने लगा।
असल में उसका मन तानिया के पास जाने का हो गया था। फिर तानिया ने उसे खुद फोन करके बुलाया। पहले तो वह तानिया को फोन करने लगा। फिर उसने सोचा कि आज वह तानिया को सरप्राइज देगा। सोचते हुए वह मुस्कुराया।
वह लेट रात को तानिया के फ्लैट पर पहुँचा। उसने फ्लैट की घंटी बजाई। तानिया ने आकर जब दरवाज़ा खोला, तो उसे देखकर वह एकदम हैरान हो गई। इससे पहले कि वह कुछ बोलती, अर्जुन उसे धकेलता हुआ उसके फ्लैट के अंदर चला गया।
उसने देखा कि पहले ही वहाँ कोई और लड़का बैठा था। अर्जुन को समझने में देर नहीं लगी। तानिया असल में फोन करके उसे कन्फर्म कर रही थी कि कहीं वह आ तो नहीं रहा। उसे लड़के को देखकर अर्जुन तानिया से बोला,
"...मुझे मेरा फ्लैट कल खाली चाहिए..."
वहाँ पर वह बिल्कुल शांत बना रहा। मगर बिल्डिंग से बाहर निकलते ही उसको बहुत गुस्सा आया। उसका ध्यान उस छोटी बच्ची पर चला गया।
वह बहुत सोचने लगा, "...अगर वह सच में उसकी बेटी हुई, तो...और ऐसी ही किसी और औरत के पास हुई... तो उसका भविष्य क्या होगा...?" उसके दिमाग पर वह बच्ची हावी होने लगी।
वह उस बच्ची के बारे में पता करेगा। अगर वह उसकी अपनी बच्ची हुई, तो वह उसे अपने पास रखेगा। उसके दिमाग से और सारी बातें निकल गईं। वह सिर्फ़ उस बच्ची के बारे में सोच रहा था। वह एक पिता की तरह सोच रहा था।
अपने पेंटहाउस चला गया। उसने बड़ी मुश्किल से रात निकाली। सुबह होते ही वह पूरी तैयारी के साथ जयपुर के लिए रवाना हो गया। अपने प्राइवेट जेट से वह जयपुर गया था। उसकी सिक्योरिटी टीम उसके पीछे गाड़ियों से बाय रोड जा रही थी।
वह सुबह-सुबह ही जयपुर पहुँच गया था। उसे देखकर उसका दोस्त, जिसकी शादी थी, बहुत खुश हुआ।
"...तुम तो हल्दी के दिन आने वाले थे... अच्छा किया आज ही पहुँच गए..." उसका दोस्त विलियम खन्ना बोला।
व्हाइट पजामा-कुर्ते में वह बहुत हैंडसम लग रहा था। आज हल्दी के दिन सभी ने इंडियन ट्रेडिशनल कपड़े ही पहने हुए थे। असल में उसका दोस्त विलियम की फैमिली बहुत साल पहले विदेश बस गई थी। वैसे तो वह लोग पूरे विदेशी हो गए थे, मगर आज वे ट्रेडिशनल तरीके से शादी करने के लिए इंडिया आए हुए थे।
प्रोग्राम पैलेस की छत पर चल रहा था। सभी औरतें मेहँदी लगवाने में बिजी थीं। विलियम की मंगेतर सारा की भी मेहँदी लगाई जा रही थी, मगर विलियम और उसके दोस्त आज फ्री थे। उनको कोई खास काम नहीं था। बस वे टोलियाँ बनाकर इधर-उधर बैठे हुए थे।
पैलेस की छत पर सारे मेहमान ही हाजिर थे। वहीं पर खाने-पीने की स्टॉल लगी हुई थी। सभी लोग खा-पी रहे थे और मेहँदी लगवा रहे थे। लड़कियाँ साथ में डांस भी कर रही थीं और मेहँदी भी लगवा रही थीं। मगर वह बच्ची कहीं नज़र नहीं आई।
वह सोचने लगा। कहीं वह सगाई के बाद चली तो नहीं गई। एक बार उसका मन किया कि वह विलियम से पूछ ले। फिर वह कुछ सोचकर चुप हो गया। उसके पास उस बच्ची की कोई तस्वीर भी नहीं थी। उस तस्वीर के ज़रिए वह अपनी टीम को उसे ढूँढने के लिए लगा सकता था। जब मेहँदी वाले दिन की शाम हो गई,
वह छत की रेलिंग के साथ खड़ा हुआ, शहर को देखने लगा। शहर की तरफ़ देखते-देखते उसका ध्यान लॉन की तरफ़ गया। वहाँ पर वह बच्ची खेल रही थी। वह जल्दी से सीढ़ियाँ उतरकर लॉन की तरफ़ गया।
जब तक वह लॉन में पहुँचा, वह बच्ची वहाँ से जा चुकी थी। वहाँ पर कोई भी नहीं था। उसने इधर-उधर बहुत ढूँढा, पर उसे नहीं मिली। वह इतना तो समझ गया कि बच्ची है तो यहीं पर। कोई बात नहीं, वह यहीं पर है तो उसे मिल ही जाएगी। उसे मिले बिना तो वह वापस नहीं जाएगा।
रात को होटल के हाल में ड्रिंक और खाने-पीने का प्रोग्राम चल रहा था, मगर अर्जुन ने ड्रिंक नहीं की। वह किसी भी हाल में उस बच्ची को ढूँढना चाहता था। रात को खाने-पीने के बाद जब वह अपने रूम में जाने लगा, तो लिफ्ट में वही बच्ची दिख गई।
जब तक भागकर वह उसके पास आता, लिफ्ट बंद हो चुकी थी। उसके साथ दो लड़कियाँ भी थीं, जिनकी शक्ल अर्जुन नहीं देख पाया, क्योंकि लिफ्ट नीचे की तरफ़ गई थी और वह नीचे भागकर भी गया। मगर उसके नीचे पहुँचने से पहले ही लिफ्ट खाली थी, तो उसे समझ नहीं आया कि वह बच्ची किधर गई।
वह अपने कमरे में चला गया। अगले दिन हल्दी का प्रोग्राम था, तो उसने सोच लिया था कि वह हर हाल में उसे ढूँढकर रहेगा। अगली सुबह वह जल्दी ही उठ गया।
हल्दी के प्रोग्राम की पूरी अरेंजमेंट पैलेस के लॉन में की गई थी। जब वह लॉन में पहुँचा, तो उसने देखा कि लॉन को दो भागों में डिवाइड किया हुआ था। एक भाग में लड़के वालों की रस्में चल रही थीं। दूसरी तरफ़ लड़की वालों की।
हल्दी की रस्में चल रही थीं। सभी विलियम को हल्दी लगा रहे थे, मगर अर्जुन का ध्यान सिर्फ़ उस बच्ची को ढूँढने की तरफ़ था। जब उसे बच्ची नज़र नहीं आई, तो वह सोचने लगा कि शायद वह लड़की वालों की तरफ़ होगी।
लड़की वाली साइड पर तो कुछ ज़्यादा ही भूचाल मचा हुआ था। लड़कियों के नाचने-गाने की आवाज़ उसके कानों में पड़ रही थी। उसका मन चाह रहा था कि वह जाकर उस बच्ची को वहाँ पर ढूँढ ले।
मगर वहाँ पर लड़कियों ने पूरा इंतज़ाम किया हुआ था। किसी भी लड़के वाले को उस तरफ़ फटकने नहीं दिया उन्होंने। अर्जुन वहाँ पर पूरे सोच में ही बैठा रहा। हल्दी के प्रोग्राम के दौरान जब अर्जुन विलियम को हल्दी लगाने आया, तो विलियम उससे पूछने लगा,
"...क्या बात है? तुम कुछ परेशान लग रहे हो...?"
"...नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है..."
एक बार तो उसका मन किया कि वह विलियम से बात करके देखे। वह शायद उस बच्ची को जानता होगा। पर फिर वह कुछ सोचकर चुप हो गया।
हल्दी का प्रोग्राम खत्म होने के बाद अर्जुन अपने कमरे में आ गया। वह सोचने लगा वह बच्ची है तो यहीं पर। मगर उससे मिल नहीं रही है। वो बहुत परेशान था। उसे कुछ काम करना था। उसने अपना लैपटॉप उठाया और बाहर कमरे की बालकनी में चला गया। अभी वो लैपटॉप को ऑन कर के काम ही करने लगा था। उसे किसी के खिल-खिलाने की आवाज सुनाई दी। उसने सर उठा कर देखा तो उसके साथ वाले कमरे की बालकनी में वह बच्ची हंस रही थी। पहले तो वो उस बच्ची को आवाज देकर बुलाने लगा ।फिर उसने सोचा इससे पहले वो बच्ची गायब हो उसे साथ वाले कमरे में जाना चाहिए। वो जल्दी से कमरे से बाहर निकला। उसने साथ वाले कमरे का दरवाजा नाक किया तो सामने एक खूबसूरत सी लड़की ने डोर ओपन किया। "... जी कहिए आपको किससे मिलना है ..."वो अर्जुन से पूछने लगी। ".... आपके कमरे में जो अभी छोटी बच्ची बाहर बालकनी में खेल रही थी.. मैं उससे मिलना चाहता हूं..." अर्जुन उस लड़की से कहने लगा । अर्जुन अपने दिमाग में सामने खड़ी लड़की का चेहरा भी याद करने की कोशिश करने लगा। मगर अर्जुन को याद नहीं कि वो चेहरा उसने कभी देखा भी है। उसे लगा उस लड़की से पहली बार ही मिल रहा है। "... मेरे कमरे में बच्चे खेल रही थी..आप यह क्या कह रहे हैं.. मैं कमरे में बिल्कुल अकेली हूं ...मेरे साथ कोई बच्ची नहीं है..." वह अर्जुन से बोली। "... नहीं नहीं मैंने अभी 2 मिनट पहले ही देखी है... मैंने अपनी बालकनी से देखा था... उस बच्ची को आप की बालकनी में ..., अर्जुन उस से बहस करने लगा। "....जी देखिए आप मेरे साथ बदतमीजी कर रहे हैं ...मैं होटल की security को बुलाऊं... अगर आप अभी के अभी जहां से नहीं गए... वह लड़की अर्जुन को धमकी देने लगी।" ..."...ठीक है ...आपको जिस को बुलाना हो बुला लो ...उस बच्ची से तो मैं मिलकर ही जाऊंगा..." वो लड़की को धक्का देता हुआ उसके कमरे के अंदर आ गया। अर्जुन ने पूरा कमरा चेक किया। बालकनी में भी देखा ।बाथरूम को भी चेक किया। मगर वह बच्ची उसे कहीं नहीं मिली। "... अब चाहे तो आप अलमारियां भी चेक कर सकते हैं ...और बेड के नीचे भी... आपको यकीन हो जाएगा... मेरे कमरे में कोई नहीं... मैं अकेली हूं ..."वो अर्जुन को गुस्से से कहने लगी। वो बहुत हैरान था ।उसने अभी तो उस बच्ची को देखा था । वो पछताने लगा। उसे बच्ची की एक फोटो ले लेनी चाहिए थी। वो अपने कमरे से वापस आ गया। अपने कमरे में आते ही उसने अपने आदमीयों को फोन किया और साथ वाले कमरे मैं जो लड़की थी उसकी फोटो उनको भेज दी। उसने उस लड़की का पूरा पूरा बायोडाटा निकालने के लिए कहा। "...आप हमें 1 दिन का वक्त दीजिए बास ...उसका पूरा बायोडाटा मिल जाएगा आपको..."वो अपना फोन कट करने के बाद उस बच्ची के बारे में सोचने लगा।"... वह बच्ची मुझे दो बार दिखी... मगर जब तक मैं उसके पास पहुंचता ... वो गायब हो जाती है ...कहीं कोई मुझसे उसे छुपा तो नहीं रहा... क्योंकि पहली बार तो मैं आराम से उस बच्ची तक पहुंच गया था..." वह सगाई वाले दिन के बारे में सोचने लगा।"... मगर पहले आज मेहंदी के टाइम पर.. फिर आज वो कमरे में से इतनी जल्दी कहां से गायब हो गई। वो बहुत परेशान हो गया। उसको पक्का यकीन हो गया कि कोई है जो उस बच्ची को उस से छुपा रहा है। "... मगर किसी को मुझसे उस बच्चे को छुपाने की क्या जरूरत है... इसका मतलब साफ है... मेरा उस बच्ची से कोई ना कोई संबंध तो जरूर है...।"वह सोचने लगा। और आपको अपने बिस्तर पर पड़ा सोच रहा था। तब तो वो सोचता था,"... वो उस से जब मिलेगा तो बहुत सी बातें क्लियर हो जाएंगी... मगर वह समझ गया था... बात इतनी सीधी थी नहीं है... अगर वो बच्चे के बारे में तलाश करेगा... तो ही उसे पता चलेगा... वरना उस बच्ची के बारे में वो कुछ नहीं जान सकेगा..."। उस ने सोच लिया था,"... सुबह सबसे पहले वह होटल के सीसीटीवी कैमरा चेक करेगा... और उस दिन मंगनी के दिन जो वीडियो और फोटोग्राफ्स उनको भी वह देखेगा... तो पता चल जाएगा... कि वह किसके साथ है.. और कहां है..." यही सब सोचते सो नींद के आगोश में चला गया। सुबह जब उसके फोन पर बैल बजी तो उसकी आंख खुली। जिस आदमी को उसने वह कमरे वाली लड़की की इंफॉर्मेशन निकालने की जिम्मेदारी दी थी उसी का फोन था।"... हां बोलो ...क्या इंफॉर्मेशन है ... क्या कोई उसके बारे में खास बात पता चली..."। "...बास कोई खास बात नहीं है... पहले वह लड़की अपनी सहेली के साथ फ्लैट शेयर करती थी... फिर उसको छोड़ कर अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहने लगी... मैं आपको उसके बॉयफ्रेंड की भी फोटो सेंड करता हूं... उसके बारे में पता लगाने जैसा कुछ भी नहीं था ... वो लड़की इंडिया भी पहली बार आई है... जिनकी शादी में आप आए हुए हैं... विलियम खन्ना वो उन की होने वाली वाइफ की सहेली है... उन्हीं की कंपनी में काम करती है ..इसीलिए यहां पर आई हुई है..।" " पका कुछ और नहीं है.. सिर्फ उसके बारे में यही इंफॉर्मेशन है... अर्जुन उस आदमी से फिर पूछने लगा ।"..सर आप चाहे तो... मैं एक बार फिर पता करवा सकता हूं... मगर उसका उसके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है ..जो पता करने जैसा हो ..."उस आदमी ने सफाई दी। "...ठीक है... तुम उसके बॉयफ्रेंड की फोटो भेज दो... मैं देखता हूं...।"अर्जुन ने फोन तो काट दिया। मगर उसकी समझ में नहीं आ रहा था,"... उससे क्या छूट रहा है... रात उसने पक्का उस बच्ची को बालकनी में देखा था... उसे कोई आंखों का धोखा नहीं हुआ था ...अब वो कोई इतना बेवकूफ भी नहीं है... कि उसे पता ना चले... कोई तो है जो उसके साथ गेम खेल रहा है..."। उसने सोच लिया कि अब सबसे पहले सीसीटीवी कैमरा ही चेक करगा। वो नहा कर तैयार हो गया। आज उसने सोच लिया था शाम तक वो सब कुछ पता करके ही रहेगा।
अर्जुन नहाकर तैयार हो गया था। उसने शाम तक उस बच्चे के बारे में पता लगाने का निश्चय किया था। अर्जुन मल्होत्रा की जिद ऐसी ही थी। जो चीज उसे चाहिए होती थी, वह हर कीमत पर, हर हाल में चाहिए होती थी। अगर वह किसी चीज के लिए ठान लेता था, तो उसे पाकर ही रहता था। फिर चाहे वह बिज़नेस में हो या किसी लड़की के लिए। अब उसे लग रहा था कि वह अपनी बेटी के लिए कर रहा है। अब वह किसी भी कीमत पर पीछे हटने वाला नहीं था; उसे बच्ची के बारे में जानना था। पैसे और पॉवर की उसके पास कोई कमी नहीं थी। उसने बेशुमार पैसा कमाया था। उसके सामने वाले की हिम्मत नहीं थी कि वह उसे ना कह सके। ऐसा ही था अर्जुन मल्होत्रा। अब अपनी बेटी के लिए तो वह कुछ भी कर सकता था। वह सोचने लगा, "...जो भी तुम कोई हो, तैयार हो जाओ अर्जुन का सामना करने के लिए... जो उससे उसकी बेटी छिपा रहा हो... मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगा..." उसके आदमी ने उस लड़की के बॉयफ्रेंड की तस्वीर उसके फ़ोन पर भेज दी थी। साथ में यह भी बताया था कि वह लड़का भी वहीं आया हुआ है और उसका फ़ोन नंबर भी दिया था। अर्जुन ने उस लड़के को होटल की छत पर बुला लिया था। यूँ कहें कि अर्जुन के आदमियों ने उसे होटल की छत पर ले आए थे, तो यह गलत नहीं होगा। "...आपने मुझे यहाँ किस लिए बुलाया है? मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ... कौन हैं आप... और मुझसे क्या चाहते हैं...?" वह लड़का अर्जुन से डर गया था। "...बात यह है कि मैं तुम्हारे साथ वाले कमरे में रुका हुआ था... कल मैंने तुम्हारे कमरे की बालकनी में एक छोटी बच्ची देखी... मगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड साफ़ मुकर गई... कि वहाँ कोई बच्ची नहीं है... सच-सच बताओ... क्या चल रहा है वहाँ पर... जो भी बात है, सच-सच बताना... क्योंकि मैं तुम्हें अगर गायब भी करा दूँ... तो किसी को तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा... और वैसे भी तुम तो इंडिया पहली बार आए हो..." "...हमारी कोई बच्ची नहीं है... मगर मेरी गर्लफ्रेंड की सहेली आई हुई है... उसी की बेटी होगी हमारे कमरे में... उसी को देखा होगा आपने..." "...क्या उस बच्ची की फ़ोटो है तुम्हारे पास...?" अर्जुन उससे पूछने लगा। उसने अपना फ़ोन निकाला और उस बच्ची के साथ अपनी फ़ोटो दिखाई। फ़ोटो में वही बच्ची थी जिसे अर्जुन ने मंगनी वाले दिन देखा था। "...इस बच्ची की माँ का क्या नाम है...?" अर्जुन उस लड़के से बोला। "...अंबर... अंबर नाम है उसका..." अर्जुन सोचने लगा कि वह किसी अंबर नाम की लड़की को नहीं जानता था और ना ही कभी किसी इस नाम की लड़की से मिला था। वैसे भी, उसकी याददाश्त बहुत तेज थी। ऐसे ही तो उसने इतना बड़ा बिज़नेस एंपायर खड़ा नहीं किया था। वह एक पल के लिए चुपचाप बैठ गया और सोचने लगा। वह अंबर जैसे खूबसूरत नाम की लड़की से कभी नहीं मिला था। वह अपने दिमाग पर जोर डालने लगा। उसने बहुत कोशिश की अंबर नाम की लड़की को याद करने की। "...ठीक है, अब तुम मुझे इस अंबर सिन्हा नाम की कोई तस्वीर दिखा सकते हो...?" अर्जुन उस लड़के से पूछने लगा। उस लड़के ने उस बच्ची के साथ अंबर की जो फ़ोटो थी, वह निकालकर दिखाई। उस तस्वीर को देखते ही उसे पूरी कहानी समझ आ गई। "...क्या तुम मुझे बता सकते हो... अभी किस कमरे में ठहरे हैं...?" अर्जुन जल्दी से कमरे का नंबर पूछकर उस कमरे की ओर भागा। वह जल्द से जल्द उस कमरे में पहुँचना चाहता था। जब तक वह कमरे के अंदर गया, कमरा बिल्कुल खाली था। वहाँ पर कुछ भी नहीं था। कोई सामान भी नहीं था। मतलब वे लोग चले गए थे। अर्जुन ने वहाँ ड्रेसिंग टेबल पर बाल देखे। उसने अपने आदमियों को बाल उठाने के लिए कहा। वह अपना डीएनए टेस्ट कराना चाहता था उस बच्ची के साथ। अगर मैच होता है, तो वह उनको ढूँढेगा। मगर उनका भागना अर्जुन की बात सच कर गया था। अर्जुन उस लड़के की गर्लफ्रेंड को भी वहीं पर बुला लिया। उससे पूछने लगा, "मुझे सारी बात बताओ। ...अंबर सिन्हा कौन है और इस वक्त कहाँ गई होगी... और जो छोटी बच्ची जो उसके साथ है... यह किसकी बेटी है... उसका बाप कौन है...?" "...अंबर जब टोरंटो आई थी... उसने जहाँ पर काम करना शुरू किया... मैं वहीं पर काम करती थी... धीरे-धीरे हमारी फ्रेंडशिप हो गई... जब वह मुझे मिली थी... तो अवंतिका उसके पेट में थी..." "...अवंतिका उस छोटी बच्ची का नाम है... बिल्ली आँखों वाली... बड़ा प्यारा नाम है..." वह उसका नाम सुनकर मुस्कुराने लगा। "...उसको अवंतिका के टाइम पर काफ़ी ज़्यादा प्रॉब्लम आई थी... तब मैंने उसकी बहुत हेल्प की थी... बहुत मुसीबत में थी... उसके पास रहने के लिए जगह भी नहीं थी... तब मैंने उसको अपने पास रखा... जब मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहने लगी... तो हम अलग-अलग रहने लगे..." लड़की ने अपनी बात अर्जुन को बताई थी। "...उसने तुझे बताया होगा... अवंतिका किसकी बेटी है... उसका बॉयफ्रेंड या उसका हस्बैंड कभी तो उससे मिलने आया होगा..." "...नहीं, उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं है... ना ही उसका कोई हस्बैंड है... जैसा आप सोच रहे हैं... अवंतिका आप ही की बेटी है... और वह आपकी बेटी कैसे है... यह बात मुझसे ज़्यादा आप जानते हैं..." उस लड़की की आवाज़ में थोड़ा गुस्सा आ गया। "...तो क्या वह इंडिया से अकेली वहाँ गई थी...?" "...नहीं, उसकी बुआ उसे अपने साथ ले गई थी... लेकिन जब अंबर के प्रेग्नेंट होने के बारे में पता चला तो... उसके फ़ूफ़ा जी ने उसे रखने से इंकार कर दिया... उन्होंने कहा अगर अंबर अबॉर्शन नहीं करवाना चाहती तो घर छोड़कर चली जाए।" अंबर ने घर छोड़ना बेहतर समझा। मगर उसने अबॉर्शन नहीं कराया। उसने इस बच्ची के लिए अपनी पूरी ज़िन्दगी बरबाद कर ली।
अंबर ने घर छोड़ना बेहतर समझा, मगर गर्भपात नहीं कराया। उस बच्चे के लिए उसने अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर ली। "...देखो, तुम मुझे अंबर की पूरी कहानी बताओ... क्या हुआ था उसके साथ? उसने इंडिया क्यों छोड़ा? वह अपनी बुआ के साथ क्यों गई? पूरी बात बताओ मुझे..." अर्जुन ने अंबर की मित्र नीहारिका से कहा। "...अंबर पुणे की रहने वाली है। उसका पुणे में अपना छोटा-सा घर था। वह अपने माँ-बाप की लाड़ली बेटी थी। वह पुणे के ही किसी होटल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। उसके पापा किसी कंपनी में क्लर्क का काम करते थे। उसकी माँ गृहिणी थी। वह लोग बहुत खुश थे अपनी ज़िंदगी से। अंबर भी अपने काम से खुश थी।" "...अंबर की उस रात नाइट शिफ्ट थी। जब वह बाथरूम में गई और लौट रही थी, तो किसी कमरे में कुछ लोगों की आवाज़ें सुनाई दीं। वह उन आवाज़ों का पीछा करते हुए उस कमरे तक पहुँची। उसने देखा कि उसके होटल का मालिक किसी के साथ लड़ रहा था। इन दोनों का किसी ड्रग डीलिंग को लेकर झगड़ा था। अंबर ने पूरी बात सुन ली। अंबर को पता चला कि उसके होटल का मालिक ड्रग सप्लाई करता है। उन लोगों ने भी अंबर को देख लिया..." अर्जुन साँस रोककर बात सुन रहा था। "...यहाँ से अंबर का बुरा समय शुरू होता है। उन लोगों ने अंबर को पकड़ लिया और उसे जबरदस्ती नशा दिया गया..." अर्जुन को भी याद आ रहा था, "...उस दिन रात को, नशे की हालत में, मैं उस कमरे में आया था...तो उसने, जिस इंसान से होटल खरीदा था... उसने होटल की डील की खुशी में... मुझे लड़की पेश की थी... जब मैं कमरे में पहुँचा तो वह नशे में चूर बिस्तर पर पड़ी थी... वह लड़की देखने में बहुत सुंदर थी... बिल्कुल परियों जैसी... मैंने देखा उसका रंग गोरा था... गाल गुलाबी थे... बिना किसी मेकअप के... और उसकी आँखें, जिन्हें वह कभी खोल रही थी, कभी बंद कर रही थी... काले रंग की थीं... जो नशे में और भी नशीली हो रही थीं... और लंबे, कमर के नीचे तक उसके बाल थे, जो उस समय बिस्तर पर फैले पड़े थे... उस रात मैं भी काफी नशे में था... मगर मैं अंबर का चेहरा भूल नहीं पाया... ऐसा चेहरा नहीं था... सचमुच वह बहुत मासूम थी... मुझे आज भी कभी-कभी याद आ जाती है..." जब उसने उसको छुआ तो वह रोने लगी। नशे की हालत में उसका खुद पर कोई नियंत्रण नहीं था, ना ही वह खुद को बचा सकती थी। मगर वह सारी रात रोती रही, सिसकियाँ ले रही थी। जब मैं सुबह उठा, वह मेरे उठने से पहले वहाँ से जा चुकी थी।" तकरीबन चार साल हो गए थे इस बात को, मगर वह इसे भुला नहीं पाया था। अर्जुन अपनी सोच से बाहर आया और फिर नीहारिका की बात सुनने लगा। "...उस रात उन लोगों ने उसे जबरदस्ती पकड़कर, जबरदस्ती नशा दिया गया। फिर उन्होंने अपने किसी क्लाइंट के कमरे में छोड़ दिया। शायद आप ही थे, आपको ज़्यादा पता होगा... आप ही के साथ तो उन लोगों ने उस होटल की डील की थी... आप ही ने वह होटल खरीदा था..." नीहारिका अर्जुन की तरफ देखते हुए बोली। नीहारिका की आँखों में अर्जुन को बहुत गुस्सा दिखाई दे रहा था। "...सुबह जागने पर उसे होश आया। वह वहाँ से सुबह निकलकर जब अपने घर पहुँची, तो उसे पता चला... उसके माँ-बाप रात को वापस नहीं आए थे। उनका एक्सीडेंट हो गया था। सभी ने उसे कितने कॉल किए... मगर उसका फ़ोन बंद था... जो शायद उन लोगों ने, जिन्होंने उसे नशा दिया था, अपने पास रखा था... आखिरी बार अपनी माँ-बाप से भी नहीं मिल सकी..." "...उसकी माँ-बाप की मौत पर उसकी बुआ कनाडा से आई थी। वह जाते हुए अंबर को साथ ले गई। अंबर इन दिनों उस रात क्या हुआ था, इस सदमे से गुज़र रही है। वह किसी को नहीं बता सकी..." जब नीहारिका अर्जुन को अंबर की कहानी सुना रही थी, इसी दौरान अर्जुन ने अपने आदमियों को फ़ोन किया कि वे टोरंटो में अंबर को उसके घर पर ही रोक लें, क्योंकि उसे पता था कि जब तक वह पहुँचेगा, वह वहाँ से निकल जाएगी, और वह किसी भी कीमत पर अपनी बच्ची को नहीं छोड़ना चाहता था। और उसे पता था कि किसी भी कीमत पर अंबर उसे वह बच्ची नहीं देना चाहेगी। "अच्छा, तो फिर आगे बताओ," अर्जुन ने नीहारिका से कहा। नीहारिका दो मिनट के लिए चुप हो गई। फिर साँस लेकर उसने फिर कहना शुरू किया, "...उसकी ज़िंदगी में जो भी कुछ बुरा हुआ और जिन दुखों से वह गुज़री है... उसका कारण सिर्फ़ तुम हो। एक बात याद रखना... उसकी वजह तुम हो... बददुआ लगेगी तुम्हें... कभी खुशी से नहीं रह पाओगे..." "मुझे गालियाँ देने से पहले यह बताओ कि वह अपनी बुआ के साथ कनाडा चली गई... वहाँ जाकर उसके साथ क्या हुआ?" नीहारिका की बातें सुनकर उसका बॉयफ़्रेंड को डर लगने लगा। वह इशारों से उसे कहने लगा, "...चुपचाप तुम अंबर की कहानी बताओ... सामने वाले आदमी को भड़काओ मत..." नीहारिका ने गहरी साँस लेते हुए फिर कहना शुरू किया। इससे पहले कि वह कहना शुरू करती, अर्जुन का फ़ोन फिर बजने लगा। उसके आदमियों का फ़ोन था। उन्होंने अर्जुन को बताया कि अंबर रात को इंडिया से कनाडा के लिए निकल गई थी। यह बात एयरपोर्ट से कन्फ़र्म हो चुकी है। अभी तक वह अपने घर नहीं पहुँची। उन्होंने कहा कि अंबर जहाँ पर पहुँचेगी, हम उसे रोक लेंगे। अर्जुन को पूरा यकीन था, "...अंबर एक बार ज़रूर कनाडा ही जाएगी... क्योंकि अंबर का ज़रूरी सामान तो वहीं पर होगा... उसके बाद वह वहाँ से गायब हो सकती है।" "...चलो, अब जल्दी से बताओ क्या हुआ... गालियाँ मत निकालना शुरू कर देना..." वह नीहारिका की तरफ देखते हुए कहने लगा। प्लीज़ मेरी सीरीज़ पर कमेंट करें, साथ में रेटिंग भी दें। आपको मेरी सीरीज़ कैसी लग रही है, कमेंट में बताएँ।
"...चलो अब मुझे जल्दी से बताओ आगे क्या हुआ अंबर के साथ... अब मुझे गालियां मत निकालना शुरू कर देना," अर्जुन निहारिका की तरफ देखते हुए बोला। "...अंबर की बुआ उसे अपने साथ कनाडा ले गई। वहाँ जाकर उसे पता चला कि अवंतिका उसके पेट में है। उसकी बुआ ने बहुत पूछा कि यह किसका बच्चा है। फिर उसने सब बता दिया—जिस रात उसकी माँ-पापा का एक्सीडेंट हुआ था, उस रात उसके साथ क्या हुआ था। उसकी बुआ और फूफा जी ने उसे यही सलाह दी कि वह यह बच्चा गिरा दे। इस बच्चे को रखने का कोई फायदा नहीं, वैसे भी अंबर के आगे पूरी ज़िंदगी पड़ी है; इस बच्ची के साथ उसकी आगे की ज़िंदगी बहुत मुश्किल हो जाएगी।" "...अंबर ने सीधा बोल दिया कि वह गर्भपात नहीं करवाएगी; इस बच्चे को जन्म देगी। उसने कहा कि जिस देश में वह है, जहाँ पर बहुत सारी सिंगल मदर हैं, तो उसके फूफा जी ने साफ-साफ कह दिया कि अगर अंबर गर्भपात नहीं करवाएगी तो वह घर छोड़कर चली जाए, क्योंकि उसके इस फैसले का उनकी बेटियों पर बहुत बुरा असर होगा। उसी हाल में उसने घर छोड़ दिया; तब तक अवंतिका तीन महीने की थी उसके पेट में।" "...तो क्या उसके पास पैसे थे, अकेले रहने के लिए?" अर्जुन निहारिका से पूछने लगा। "...उसके पास उसकी माँ की ज्वेलरी थी। वहाँ आने के बाद उसने एक महीने पहले ही फैक्ट्री में काम शुरू किया था। हम दोनों एक साथ वहीं पर काम करते थे। मेरी उससे दोस्ती वहीं पर हुई। मेरे डैड ने दूसरी शादी कर ली थी; मेरी स्टेप मदर मुझे पसंद नहीं करती थी, इसलिए मैंने घर छोड़ दिया था। तो वह घर छोड़ने के बाद सीधा मेरे पास आ गई और मुझसे मदद माँगी। मैं जिस बेसमेंट में रहती थी, वह भी उसी में रहने लगी।" "...उसका आने वाला समय ठीक नहीं था। उसने एक महीना और वहाँ पर काम किया, फिर उसकी हालत बिगड़ने लगी। उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती थी। फिर वह वहाँ पर टूरिस्ट वीज़ा पर आई हुई थी; उसे हर बात के पैसे देने पड़ते थे; उसे कोई मेडिकल सुविधाएँ मुफ्त नहीं थीं। जब उसकी हालत बिगड़ने लगी तो उसने काम छोड़ दिया; ऐसा कहना सही होगा कि उसे निकाल दिया गया।" "...उसकी बुआ कभी-कभार उससे मिलने आ जाती थी, मगर वह उसके लिए कुछ ज़्यादा नहीं कर पाई। उसने थोड़ी-बहुत मदद करने की कोशिश भी की थी। जितनी मेरी कमाई थी, उससे मैंने भी उसकी मदद करने की कोशिश की। फिर उसने धीरे-धीरे अपनी माँ की ज्वेलरी बेचनी शुरू कर दी। उसने पूरे नौ महीने बहुत टेंशन में गुज़ारे थे; इसकी वजह से उसकी डिलीवरी में बहुत कॉम्प्लिकेशन होने के चांसेस थे। डॉक्टर ने उसे पहले ही कह दिया था। जब उसकी डिलीवरी का समय नज़दीक आया तो उसने मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया था और उसने मुझसे कहा था कि अगर अवंतिका को जन्म देते समय उसकी मौत हो जाए, तो मैं एक बार ज़रूर उस बच्चे को लेकर तुम्हारे पास आऊँ। उसने सबूत के तौर पर अपनी रिकॉर्डिंग भी छोड़ी थी, जो उस रात के बारे में थी।" "...मगर भगवान की कृपा से वह बच गई। फिर वह धीरे-धीरे ठीक होने लगी। उसके जन्म के बाद वह रात को काम पर जाती थी, क्योंकि मैं दिन को काम पर जाती थी, तो दिन को अवंतिका को देखने वाला कोई नहीं होता था। जब रात को मैं घर में होती, तो वह रात को फैक्ट्री में काम करती थी। अभी जब मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहने लगी, तो भी रात को वह अवंतिका को मेरे पास ही छोड़ती थी।" "...इन पिछले चार सालों में कोई भी लड़का उसकी ज़िंदगी में नहीं आया। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि उसने किसी को अपनी ज़िंदगी में आने ही नहीं दिया। इतने सालों से वह रातों को काम कर रही है; जिस बच्चे के लिए उसने अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा दी, आज वह बच्चा तुम्हारा कैसे हो सकता है?" निहारिका अर्जुन पर गुस्सा होने लगी। "...क्यों नहीं छोड़ देते तुम उसको? तुम उसकी ज़िंदगी में एक बार आए थे; वह बिल्कुल बर्बाद हो गई थी, कोई नहीं रहा था उसका; अब वह बच्चा ही उसके जीने का सहारा है।" अर्जुन निहारिका से बात करने के बाद तुरंत कनाडा के लिए निकल गया। आखिर उसे अपनी बच्ची को लेकर आना था। उधर, अंबर जब अवंतिका के साथ अपने घर पहुँची तो अर्जुन के आदमी, जो वहाँ पहले ही पहुँच चुके थे, उन्होंने उनको घर में बंद कर दिया। अंबर के कनाडा पहुँचने के कुछ घंटों बाद ही अर्जुन वहाँ पर पहुँच गया था। अंबर के सामने, जिस बेसमेंट में अंबर किराए पर रहती थी, उसमें उसके सामने बैठा हुआ था। अंबर उसके पाँव में गिर गई, "...हम दोनों को प्लीज़ हमारे हाल पर छोड़ दो; मुझे मेरी बच्ची मत छीनो।" "मेरी बात ध्यान से सुनो," वह उसे चेयर पर बैठाते हुए बोला। "...देखो इन सब बातों का कोई फायदा नहीं; मेरे पास डीएनए रिपोर्ट भी है। मैं तुम पर केस करूँगा; तुमने मुझसे मेरी बेटी को छुपाया है। याद रखो मैं तुमको कोर्ट में खींच लूँगा। अवंतिका मेरी बेटी है और मैं इसे हर हाल में लेकर रहूँगा। मेरे पास पैसा और पॉवर दोनों है; सोच लो तुम टिक सकोगी मेरे सामने कोर्ट में।" अंबर बैठकर सोचने लगी। वह जानती थी कि वह वकीलों की फ़ीस कहाँ से लाएगी और वह सामने बैठा आदमी अवंतिका को उसके पास कभी नहीं छोड़ेंगे। मगर अवंतिका को भी वह छोड़ नहीं सकती थी। वह अब क्या करे? वह यही सोच रही थी। अर्जुन सामने बैठी अंबर को देखकर सोचने लगा, "...उस रात जो अंबर जिसके साथ थी, वह कितनी खूबसूरत थी! उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखें, जिनको वह कभी नहीं भुला पाया था; उसके लंबे काले बाल, उसके गुलाबी गाल, उसके नरम होंठ... मगर यह जो अंबर उसके सामने बैठी है, उसे वक्त के थपेड़ों ने कितना बदल दिया है! उसकी आँखों के नीचे काले घेरे पड़ चुके हैं।" प्लीज़ मुझे सब्सक्राइब करें और साथ में समीक्षा और रेटिंग भी दें।
यह अंबर जो उसके सामने बैठी थी, उसे वक्त के थपेड़ों ने कितना बदल दिया था। उसकी आँखों के नीचे काले घेरे पड़ चुके थे। रंग तो उसका अभी भी गोरा था, मगर उसमें पीलापन था। वह गुलाबी रंगत कहीं खो गई थी। उसके लंबे, काले बाल उसने कटवा दिए थे; छोटे बालों को उसने एक पोनी की शक्ल में बाँधा हुआ था। पतली तो वह पहले भी बहुत थी, अब शायद पहले से भी कहीं ज़्यादा कमज़ोर हो गई थी। गहनों के नाम पर, उसके बदन पर कोई गहना नहीं था। अंबर ने अवंतिका को अपने सीने से चिपका रखा था और वह बैठकर रो रही थी। "...देखो, तूने मेरी बेटी को बड़ा करने के लिए अपनी जान लगा दी। इसे जन्म देने के लिए भी तुम मरने तक चली गई। तुम्हारा यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा। अगर तुम यह सोचती हो कि मैं अवंतिका को छोड़ दूँगा, यह बात तुम भूल जाओ..." फिर एक पल के लिए अर्जुन चुप हो गया। उसकी बात सुनकर अंबर भी अर्जुन के चेहरे की तरफ देखने लगी। "...जब-जब यह आदमी मेरी ज़िंदगी में आया है, इसने मेरी पूरी ज़िंदगी उलट-पुलट कर रख दी है। उस रात आया था, इतना बड़ा तूफ़ान लेकर; आज फिर आया है मेरी ज़िंदगी में भूचाल लेकर। क्या यह आदमी कभी उसका पीछा नहीं छोड़ेगा...?" अर्जुन के सामने बैठी हुई वह सोच रही थी। कुछ देर चुप रहने के बाद अर्जुन फिर बोला, "...वैसे एक तरीका है जिससे तुम अवंतिका के पास रह सकती हो।" अंबर उसकी बात का इंतज़ार करने लगी। "...कि ऐसा कौन सा तरीका है जिससे अंबर और अवंतिका साथ रह सकते हैं और अर्जुन को भी कोई प्रॉब्लम नहीं होगी...?" "...वैसे ऐसा एक तरीका है जिससे तुम अवंतिका के साथ रह सकती हो। तुम चाहो तो हमारे साथ चल सकती हो। मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है..." अर्जुन अंबर के चेहरे पर नज़रें गड़ाए हुए बोला। अंबर कुछ देर के लिए सोचने लगी। अब उसे कोई और रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा था और वह अवंतिका को छोड़ भी नहीं सकती थी। उसे इस आदमी पर कोई भरोसा भी नहीं था कि वह उसकी बेटी क्यों लेकर जा रहा है; तो वह अपनी बेटी ऐसे किसी को कैसे सौंप सकती थी? ना वह किसी से लड़ सकती थी। अर्जुन से लड़ने के लिए उसके पास ना पैसा था, ना पावर थी, ना ही उसे कोई सपोर्ट करने वाला था। वह अकेली क्या कर सकती थी? चाहे देश हो या देश छोड़ दे, उसे अर्जुन की ताकत का पता था। उसने चाहे इंडिया छोड़ दिया था, मगर मैगज़ीन और न्यूज़ चैनल्स के ज़रिए उसे अर्जुन की हर ख़बर मिलती रहती थी। "...बोलो, तुम्हारा क्या फैसला है? जल्दी बताओ, क्योंकि मेरे पास टाइम नहीं है। फिर मत कहना कि मैंने तुम्हें कोई चॉइस नहीं दी..." अर्जुन अंबर से कहने लगा। "...ठीक है, मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ..." अंबर धीरे से उससे बोली। "...सही फैसला किया है तुमने। तुम्हारे साथ जाने से अवंतिका को भी अच्छा लगेगा और मैं अवंतिका को दुखी नहीं कर सकता। आखिर वह मेरी बेटी है।" "...मैं तुम्हें अपने साथ ले जा रहा हूँ, इसके बदले में तुम भी तो मेरे लिए कुछ करोगी..." अर्जुन डबल मीनिंग बातें करता हुआ उससे बोला। वह उसका मतलब समझ गई थी। उसकी आँखें भर आईं। अर्जुन ने भी उसकी आँखों में गीलापन देख लिया था। 'यह आदमी सच में कितना गिरा हुआ है,' वह सोच रही थी। फिर उसने अपने आप को स्ट्रांग करती हुई, उसके सामने अपने आप को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहती थी। "...देखिए, आपने अभी मुझसे कहा कि मैंने आपकी बेटी के लिए इतना कुछ किया, उसको जन्म देने के लिए अपनी जान देने तक चली गई, तो उसके बदले में मैं आपके साथ रह सकती हूँ। आप मेरा एहसान मानते हैं; इस एहसान के बदले में आप मुझे अवंतिका के साथ रहने दे सकते हैं..." अर्जुन उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगा। उसे इस तरह से कहना अच्छा लगा। वह मुस्कुराते हुए उसे कहने लगा, "...ठीक है, मैं आपको आपके इस एहसान के बदले मेरी बेटी के साथ रहने की इजाज़त देता हूँ। चलिए, आप अपना और अवंतिका का सामान पैक कर लें; हम अभी के अभी इंडिया के लिए निकल रहे हैं।" वह खड़ी होकर सामान पैक करने लगी। अवंतिका जो चेयर पर बैठी हुई थी, अर्जुन उसके पास बैठ गया। उसके आगे हाथ बढ़ाता हुआ वह बोला, "...दोस्त, चलो हम दोस्त हैं..." अवंतिका उसकी बात सुनकर अपनी मॉम की तरफ़ देखने लगी। जब अंबर ने आँखों से इशारा कर दिया, तो उसने हाथ मिला लिया। अपनी प्यारी सी आवाज़ में बोली, "...ठीक है..." अब तीन साल की बच्ची को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है? अंबर ने एक अपना और एक बैग अवंतिका के लिए तैयार कर लिया। थोड़ा सा सामान था उन माँ-बेटी का। अर्जुन के इशारे से उसके आदमियों ने वह बैग उठा लिए। "...कहीं किसी के कोई पैसे तो नहीं चुकाने हैं? किसी का किराया देना हो या किसी का कोई हिसाब रहता हो, मुझे बता दो। मैं मेरी बेटी का कोई हिसाब नहीं छोड़ना चाहता..." अर्जुन अंबर से पूछने लगा। "...नहीं, किसी के कोई पैसे नहीं देने हैं। इस बेसमेंट का इस महीने का किराया भी गया हुआ है..." जवाब में अंबर बोली। अर्जुन ने आगे बढ़कर अवंतिका को गोद में उठा लिया। अंबर भी उसके पीछे चलने लगी। अवंतिका अपनी मॉम को साथ देखकर कुछ नहीं बोली। वह चुपचाप उसके कंधे से लगे हुए, पीछे आती अपनी माँ की तरफ़ देखकर मुस्कुराने लगी। अंबर भी उसके जवाब में मुस्कुरा दी। मगर उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वह बहुत परेशान थी। वह सोच रही थी, "...अब उसका आगे आने वाला टाइम कैसा होगा? अर्जुन पर उसे बिल्कुल भी भरोसा नहीं था और अंबर के पास ऐसा कोई भी नहीं था जिसकी वह हेल्प ले सके। उसने मजबूर होकर अपने आप को हालातों के हवाले कर दिया था। उसे अपने से ज़्यादा अपनी बेटी की फ़िक्र हो रही थी।" प्लीज मुझे सब्सक्राइब करें और साथ में समीक्षा और रेटिंग भी दें।
वह सोच रही थी, "...उसका आने वाला समय कैसा होगा... अर्जुन पर उसे बिल्कुल भी भरोसा नहीं था... और अंबर के पास कोई भी ऐसा नहीं था... जिसकी वजह से उसने मजबूर होकर अपने आप को हालातों के हवाले कर दिया था... उसे अपने से ज़्यादा अपनी बेटी की फिक्र हो रही थी..." इंडिया वापस आते हुए प्लेन में उन तीनों की सीटें इकट्ठी ही थीं। अर्जुन और अंबर दोनों साइड पर थे और बीच में अवंतिका बैठी थी। "...अंकल, क्या अब हम आपके साथ आपके घर चलेंगे...?" उसने, जो अर्जुन और अंबर की बातें सुनी थीं, उसी से अंदाज़ा लगाती हुई बोली। उसके छोटे से मन में बहुत सवाल चल रहे थे। "हाँ बेटा, अब तुम दोनों हमारे ही साथ रहोगे... मगर तुम मुझे अंकल नहीं, पापा कहो... समझ में आया ना? मुझे अब तुम पापा कहो..." अर्जुन दुलारता हुआ बोला। "...मैं आपको सचमुच पापा कह सकती हूँ..." वह चहकती हुई बोली। "...पता है, मेरे सभी फ्रेंड के पास पापा हैं... मेरे कहने का मतलब है, उनके पास माँ और पापा दोनों हैं... मेरे पास केवल माँ थी। 🥺..." अवंतिका ने अर्जुन का हाथ पकड़ लिया, दूसरे हाथ से अपने माँ का हाथ पकड़ लिया। जैसे वह अपनी खुशियों को अपनी मुट्ठी में बंद करने की कोशिश कर रही थी। अंबर भी साथ बैठकर उसकी खुशी देख रही थी। अवंतिका को खुश देखकर उसे भी अच्छा लगा। थोड़ी देर बाद वह अपनी सीट से खड़ी हो गई। "...क्या हुआ बेटा? आप खड़े क्यों हो गए...?" अर्जुन अवंतिका से बोला। कुछ देर अवंतिका चुपचाप खड़ी रही। "...क्या बात है? कोई प्रॉब्लम है? वाशरूम जाना है अवंतिका...?" अंबर कहने लगी। अवंतिका फिर भी नहीं बोली। फिर अर्जुन कहने लगा, "...क्या हुआ मेरी प्रिंसेस को? बताओ बेटा..." "...मैं आपके एक बार गले लग जाऊँ..." अवंतिका अर्जुन के चेहरे की तरफ देखती हुई बोली। अर्जुन ने उसे उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया और खींचकर सीने से लगा लिया। वह भी खुशी से चहक उठी। अंबर चुपचाप उन बाप-बेटी को देखती रही। अर्जुन और अवंतिका छोटी-छोटी बातें करते रहे। अर्जुन उससे उसके दोस्तों के बारे में पूछता रहा। अंबर अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचने लगी। उसे अपने आने वाले कल के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वह आँखें बंद करके अर्जुन के साथ आ गई थी। जब वे लोग इंडिया पहुँचे, उस समय काफी रात थी। जहाज से उतरने के बाद गाड़ियों तक पहुँचने तक अर्जुन ने अवंतिका को अपनी गोद में उठा रखा था। वह उसके कंधे से लगी हुई सो रही थी। अंबर उसके पीछे-पीछे चल रही थी। अब जब वह अर्जुन के घर जाने वाली थी, तो उसका मन बहुत घबरा रहा था। वह रास्ते में भी बिल्कुल भी नहीं सो सकी थी, चाहे उसका रास्ता लंबा था। जब वे लोग एयरपोर्ट के बाहर पहुँचे, तब अर्जुन की गाड़ी पहले ही खड़ी थी। वे लोग अर्जुन के घर पहुँच गए। अर्जुन अपने पेंटहाउस में रहता था। उसका घर टॉप फ्लोर पर था। जैसे-जैसे लिफ्ट ऊपर जा रही थी, अंबर को बहुत घबराहट हो रही थी। अर्जुन का ड्राइवर और उसकी सिक्योरिटी उनको घर तक छोड़कर चले गए थे। घर तक पहुँचते-पहुँचते अर्जुन, अवंतिका और अंबर ही रह गए थे। अर्जुन ने घर का दरवाज़ा खोला। घर के अंदर आते ही उसने एक कमरे का दरवाज़ा खोलकर बेड पर अवंतिका लिटा दिया। "...तुम दोनों रूम में सो जाओ... और हाँ, जहाँ से भागने की कोशिश मत करना... जहाँ पर मेरी सिक्योरिटी है... तुम मुझे मेरी मर्ज़ी के बिना जहाँ से नहीं जा सकती..." यह कहता हुआ अर्जुन उनको छोड़कर अपने रूम में चला गया। "...उसने अर्जुन के साथ चुपचाप रहकर कहीं गलती तो नहीं कर दी...?" अंबर सोचने लगी। "...उसे एक बार उनसे लड़ना चाहिए था... उसे ऐसे हथियार नहीं डालने चाहिए थे..." पर दूसरे ही पल वह सोचती, "...उसने यह अवंतिका के लिए किया है।" रात को जाने किस पहर उसे नींद आई। रात को लेट होने की वजह से सुबह उसकी आँख देर से खुली। उसने देखा अवंतिका उसके साथ नहीं थी। वह उठकर उसे आस-पास देखने लगी। दरवाज़ा खुला देखकर वह बाहर चली गई। कमरे से बाहर निकलते ही उसने लॉबी में किचन की तरफ़ अपनी निगाह दौड़ाई। अवंतिका डाइनिंग टेबल पर अर्जुन के साथ बैठी थी। एक औरत और एक आदमी, जो अर्जुन के सर्वेंट थे, अवंतिका को ब्रेकफास्ट करवाने की कोशिश कर रहे थे। वह वहाँ बैठकर नखरे कर रही थी। "...गुड मॉर्निंग मम्मा..." अवंतिका अंबर को देखकर बोली। "...गुड मॉर्निंग बेटा..." "...मैम आप क्या लेंगी? चाय या कॉफी...?" वहाँ पर जो आदमी था उसने अंबर से पूछा। "...एक कप चाय बना दीजिए..." अंबर लॉबी में लगे हुए सोफे पर बैठ गई। "...मैम आप ही बता दीजिए... बेबी ब्रेकफास्ट में क्या खाएगी...?" "...सिर्फ़ एक उबला अंडा, पे नमक डालकर ले आइए... सुबह यह सिर्फ़ एक अंडा खाती है..." अंबर उनसे बोली। अवंतिका टेबल पर अंडा खाने लगी। अर्जुन, जो कि ऑफिस जाने के लिए तैयार बैठा था, उठकर अंबर के पास सोफे पर आ गया। वह चाय पीती हुई अंबर से बोला, "...थोड़ी देर में मेरा वकील तुमसे मिलने के लिए आ रहा है... मैं अवंतिका को अडॉप्ट कर रहा हूँ... मुझे इसके सारे हक़ चाहिए..." "...मगर मैं इसके सारे हक़ आपको क्यों दूँगी...?" वह अंबर की बात काटता हुआ रूड आवाज़ में बोला, "...मैं ऑफिस जा रहा हूँ... मेरे पास बात करने के लिए ज़्यादा टाइम नहीं है... मेरा वकील एक घंटे में आ जाएगा... वह ही तुमसे बात करेगा..." यह कहकर अर्जुन अवंतिका के गाल पर किस करता हुआ ऑफिस चला गया। अंबर की तो पूरी चाय भी नहीं पी गई थी। उसने अपना कप वहीं रखा। वह कमरे में आ गई। उसकी आँखों में आँसू आने लगे। उसे समझ आ रहा था कि वह शख़्स क्या करने वाला है। वह समझ रही थी कि अर्जुन अवंतिका को गोद लेने के बाद उसको घर से निकाल देगा और अवंतिका को अपने पास रख लेगा। वह कानूनी कार्रवाई पूरी करने के लिए ही अंबर को साथ लेकर आया था। वह बहुत परेशान थी।
वो समझ गई थी कि अर्जुन अवंतिका को गोद लेने के बाद उसे घर से निकाल देगा और अवंतिका को अपने पास रख लेगा। वो कानूनी कार्रवाई पूरी करने के लिए ही अंबर को साथ लेकर आया था। वो बहुत परेशान थी। मगर वो जानती थी कि यहां कोई नहीं जो उसकी मदद कर सके। उसने अपने आप को पूरी तरह से हालातों पर छोड़ दिया और आँखें बंद करके बैठ गई। वो काफी देर तक वहीं बैठी रही। वो अब क्या करे, इसके बारे में सोचने लगी। थोड़ी देर बाद घर के केयरटेकर विनोद ने अंबर से कहा कि कोई वकील उससे मिलने आया था। वकील रामकुमार उसके पास बैठते ही बोला, "...देखिए मैम, अर्जुन सर ने मुझे भेजा है... वो अवंतिका को गोद लेना चाहते हैं... इसलिए मैं कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए आपके पास आया हूँ..." "...मैं उसे कैसे दे दूँ... मैं उसे नहीं छोड़ सकती..." अंबर ने मिन्नत की। "...देखिए, अर्जुन साहब अवंतिका को छोड़ेंगे बिल्कुल नहीं... अगर आप चाहें तो बीच का रास्ता निकल सकता है..." "...बीच का रास्ता निकल सकता है... मतलब... क्या मतलब है आपका..." "...देखिए, अगर आपने अवंतिका के बर्थ सर्टिफिकेट पर अर्जुन साहब का नाम लिखवाया होता तो आज कोई प्रॉब्लम नहीं होती... आप दोनों उसके पेरेंट्स होते... मगर आपने अपने पापा का नाम उसके फादर के तौर पर लिखवाया है... पेपर के हिसाब से उसके नाना ही उसके फादर हैं... इसलिए अर्जुन का उस पर कोई हक नहीं... मगर आप दोनों का मैरिज सर्टिफिकेट बन जाता है... तो उसके हिसाब से आप दोनों का बराबर का हक हो सकता है... अर्जुन सर अवंतिका को आपसे छीनना भी नहीं चाहते हैं... वो चाहते हैं कि अवंतिका आप दोनों के ही पास रहे..." "...तो ठीक है... अवंतिका के लिए मुझे मैरिज सर्टिफिकेट बनाने से कोई प्रॉब्लम नहीं..." "...तो ठीक है... मैडम, आप तैयार होकर मेरे साथ चलिए... सर मैरिज रजिस्ट्रार ऑफिस पहुँच जाएँगे..." "...रजिस्ट्रार के ऑफिस मतलब कहाँ जाना है..." "...आप दोनों का मैरिज सर्टिफिकेट बनाने के लिए रजिस्ट्रार के ऑफिस जाना है... वहाँ पर आप दोनों की साइन होंगी... फिर ही सर्टिफिकेट बनेगा..." एक पल सोचने के बाद अंबर बोली, "...फिर ठीक है... मैं अभी तैयार होकर आती हूँ..." अंबर जाते हुए अवंतिका को भी अपने साथ ले ली। वो रजिस्ट्रार के ऑफिस पहुँच गई। जब वो रजिस्ट्रार के ऑफिस के अंदर पहुँची तो उसने देखा कि अर्जुन पहले से वहाँ बैठकर उनका इंतज़ार कर रहा था। अर्जुन खड़े होकर उसके पास आया और उसने अंबर से अवंतिका, जिसे अंबर ने गोद में उठा रखा था, ले ली। अंबर कुछ नहीं बोली। उसने जहाँ-जहाँ वकील ने कहा वहाँ साइन करती गई। जब दोनों के साइन हो गए तो रजिस्ट्रार ने कहा, "...मुबारक हो! आज से आप दोनों पति-पत्नी हुए..." और वकील ने उन दोनों के सामने मिठाई रख दी। अर्जुन एक पीस उठाकर अंबर के मुँह में डाला और बचा हुआ अपने मुँह में। "...पापा, मुझे भी मिठाई खानी है..." अवंतिका चेयर पर खड़ी हो गई जो पहले चेयर पर बैठे अंबर और अर्जुन को देख रही थी। अर्जुन आगे बढ़कर उसे गोद में उठा लिया और बोला, "...मेरी प्रिंसेस को कितनी मिठाई खानी है..." यह कहते हुए अर्जुन ने अवंतिका का गाल चूमा। "...आज से अवंतिका की मम्मी और पापा हमेशा के लिए अवंतिका के साथ रहेंगे..." "...सच में..." अवंतिका खुश हो गई। अर्जुन अवंतिका को गोद में उठाए आगे बढ़ गया। अंबर भी उसके पीछे-पीछे चलने लगी। वो लोग गाड़ी से जा रहे थे। ड्राइवर ने गाड़ी मॉल के सामने रोक दी। अंबर चुपचाप देखती रही, वो कुछ नहीं बोली। मगर अवंतिका से नहीं रहा गया, "...पापा, हम कहाँ आये हैं? यह हमारा घर तो नहीं है..." अर्जुन उसे गोद में उठाए हुए गाड़ी से नीचे उतर गया। मगर अंबर चुपचाप बैठी रही। अर्जुन ने गाड़ी का पिछला दरवाजा खोल दिया, "...अंबर, चलो... हमें अवंतिका के लिए कुछ कपड़े लेने हैं..." कहता हुआ वो आगे बढ़ गया। अंबर भी गाड़ी से उतरकर उसके साथ चल दी। "...सर, बताइए किस साइज़ के कपड़े चाहिए? बच्चे के लिए... कितने साल का है..." "...अंबर, बताओ इनसे... अवंतिका का साइज़ क्या है..." सेल्सगर्ल की बात सुनकर अर्जुन अंबर से बोला। अंबर आगे बढ़कर अवंतिका के लिए कपड़े देखने लगी। वहाँ पर अवंतिका ने इतने कपड़े ट्राई करके देखे। जो पहन रही थी उसे वही पसंद आ रहा था। तो वो हर कपड़े के लिए हाँ बोल रही थी। "...मुझे ये भी चाहिए... मुझे वो भी चाहिए..." अर्जुन ने उसके लिए इतनी सारी शॉपिंग की। उस मॉल में ही उन्हें शाम होने को आई। अंबर अवंतिका को टोक रही थी, "...इतने कपड़े हो गए और तुम क्या करोगी..." "...जिस चीज़ पर अवंतिका हाथ रखेगी... वही चीज़ उसकी होगी..." अर्जुन अंबर को टोकने लगा। अर्जुन ने अवंतिका के लिए खिलौने, कपड़े, जूते, हर चीज़ खरीदी। अंबर गुस्सा हो रही थी। एक ही दिन में इतना सारा सामान खरीदने की कोई ज़रूरत नहीं थी। उसकी बात वो दोनों बाप-बेटी नहीं सुन रहे थे। "...चलो, पहले हम लोग कुछ खा लेते हैं... बहुत भूख लग रही है... आज हम दोनों ने बहुत काम किया है..." अर्जुन अवंतिका से बोल रहा था। "...चलो पापा, मुझे भी इतनी भूख लगी है..." चाहे उसने कपड़े खरीदते हुए बीच में चॉकलेट, चिप्स और भी बहुत कुछ खा लिया था। मगर अवंतिका को फिर भी भूख लग रही थी। उसने अर्जुन की तरफ अपनी दोनों बाहें फैला दीं। अर्जुन उसे उठाता हुआ बोला, "...लगता है आज मेरी प्रिंसेस बहुत थक गई है... बहुत काम किया है..." "...यस पापा..." कहती हुई वो उसके गले से लग गई। अंबर चाहे ऊपर से गुस्सा हो रही थी, मगर वो अवंतिका के लिए बहुत खुश थी। उसे अर्जुन का अवंतिका के लिए प्यार दिख रहा था। वो सोचने लगी, "...शायद यही अवंतिका की किस्मत के लिए अच्छा हो... कि वो दोनों अर्जुन के पास आ गई हैं... वो अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार थी... मगर वो चाहकर भी कभी अवंतिका के लिए इतना नहीं कर पाती... वो अपनी पूरी जान लगा रही थी... फिर भी उसकी सिर्फ़ बुनियादी ज़रूरतें ही पूरी हो रही थीं... मगर अर्जुन अवंतिका के लिए पूरी दुनिया खरीद सकता था... सबसे बड़ी बात उसे दिख रहा था... कि वो सचमुच अवंतिका के लिए दुनिया खरीद रहा है... और अभी तो यह सिर्फ़ शुरुआत थी..."
अर्जुन अवंतिका के लिए पूरी दुनिया खरीद सकता था। सबसे बड़ी बात, उसे दिख रहा था कि वह सचमुच अवंतिका के लिए दुनिया खरीद रहा था। अभी तो यह सिर्फ शुरुआत थी। ..."बोलो अंबर, क्या खाओगी?" अर्जुन, मनू को देखते हुए बोला। ..."कुछ भी, आप जो चाहें मंगवा लें।" ..."और मेरी प्रिंसेस को क्या खाना है?" ..."अवंतिका सिर्फ सैंडविच खाएगी।" अवंतिका बोलने से पहले ही अंबर बोली। ..."नहीं, मुझे सैंडविच नहीं खाना। मुझे रोल खाने हैं, और मुझे कॉफी भी पीनी है।" अवंतिका बोली। ..."देखो बेटा, तुम जो चाहे मंगवा लो, खाओगी तो केवल सैंडविच।" अर्जुन ने तीनों के लिए आर्डर कर दिया। अवंतिका को ना कुछ और खाना था, ना ही उसने खाया। अवंतिका ने जब कुछ भी नहीं खाया, तो अर्जुन ने उसके लिए रोल मंगवा दिए, जिन्हें वह झट से खा गई। ..."तुम्हारी मम्मा को तुम्हारे बारे में तुमसे ज़्यादा पता है..." अर्जुन अवंतिका से कहने लगा। वह लोग फ़ूड कोर्ट से निकलकर फिर माल की तरफ़ जाने लगे। ..."अब इसके लिए आप कितना कुछ और लेंगे? बहुत हो गया। अब घर चलते हैं।" अंबर, जो कि बिल्कुल थक चुकी थी, बोली। ..."पापा, आप ने मेरे लिए इतना कुछ ले लिया। हम अम्मा के लिए भी शॉपिंग करें क्या?" ..."चलो, क्या लेना है तुम्हें तुम्हारी मम्मा के लिए?" वह लेडीज़ वाले सेक्शन की तरफ़ बढ़ गया। ..."नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे पास बहुत कपड़े हैं।" अंबर अर्जुन से कहने लगी। मगर अर्जुन अवंतिका को साथ लिए हुए लेडीज़ सेक्शन में जा चुका था। ..."बोलो, माँ को क्या पसंद है? क्या लोगी तुम अपनी मम्मा के लिए?" अवंतिका ने एक स्टैचू की तरफ़ उंगली कर दी। उस स्टैचू को साड़ी पहनाई गई थी। सचमुच, साड़ी बहुत सुंदर थी। ..."ठीक है, आप इसे पैक दीजिए।" तब तक अंबर भी उनके पास आ चुकी थी। ..."अंबर, तुम अपना और इनका साइज़ बता दो, हम तुम्हारे लिए कुछ ड्रेसेज़ देखते हैं।" ..."नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे पास बहुत कपड़े हैं।" अंबर अवंतिका को जबरदस्ती गोद में उठाती हुई वहाँ से बाहर चली गई। ..."पता है कितनी ज़िद्दी लड़की है! ऐसे नहीं मानेगी। कोई और तरीका अपनाना पड़ेगा इसे मनाने के लिए।" अर्जुन अपने आप में ही बड़बड़ाता हुआ वहाँ से निकल गया। उनको बाज़ार में ही बिल्कुल रात होने को आई थी। ..."सारा काम ख़त्म हो गया। अब हम लोग आ जाएँ।" अर्जुन ने गाड़ी रोकने से पहले किसी को फ़ोन किया। जब उन्होंने अपने घर का दरवाज़ा खोला, तो उनके सामने कई लोग खड़े थे। अंदर जाते ही अंबर को उठाकर, अंबर जिस कमरे में रात को ठहरी थी, उसी में ले गई। ..."सर, आप एक बार चेक कर लेते... इसीलिए हम रुके हुए हैं।" वे लोग अर्जुन से कहने लगे। अर्जुन अवंतिका को बुलाने के लिए उनके कमरे में चला गया। ..."चलो अवंतिका, अंबर तुम भी आ जाओ। अवंतिका के लिए एक सरप्राइज़ है।" वह दोनों उसके पीछे-पीछे ही आ गए। अवंतिका को गोद में उठाए हुए अंबर, अर्जुन के पीछे-पीछे सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। अर्जुन जिस घर में रहता था, वह एक लग्ज़री पेंटहाउस था। दो बेडरूम, किचन, लॉबी और अर्जुन का एक स्टडी रूम नीचे था, और दो बेडरूम और अर्जुन का जिम ऊपर बना हुआ था। नीचे के बेडरूम थोड़े ठीक साइज़ के थे, मगर ऊपर के जो दो बेडरूम थे, वे बहुत ज़्यादा शानदार थे। एक तो अर्जुन का खुद का बेडरूम था, जिसमें बाथरूम के अलावा एक बड़ा ड्रेसिंग रूम था। जिसमें अलमारियाँ बनी हुई थीं और उसके बेडरूम की एक दीवार ग्लासवॉल थी, जिससे सारा शहर दिखता था। ग्लास की इस तरफ़ से तो शहर दिखाई देता था, मगर दूसरी तरफ़ से अंदर का कुछ भी नहीं दिखता था। और ग्लासवॉल का आधा हिस्सा स्लाइडिंग डोर था, जिसे जब चाहे ओपन कर सकते थे। उसके साथ ही एक बहुत बड़ा बेडरूम और था, जिसे अर्जुन ने अवंतिका के लिए तैयार करवाया था। यह बेडरूम भी अर्जुन के बेडरूम जैसा ही था। इससे भी सारा शहर दिखता था और आधा हिस्सा स्लाइडिंग डोर था। अर्जुन ने इसे अवंतिका के हिसाब से एडजस्ट करवा दिया था। बहुत ही ज़्यादा ख़ूबसूरत था अवंतिका का कमरा। उसे लड़कियों के हिसाब से पिंक कलर करवा दिया गया था। बच्चों के हिसाब से ही उसकी अलमारी, स्टडी टेबल, अवंतिका की चेयर थी। उसमें हर चीज़ अवंतिका के हिसाब से थी। अवंतिका का पूरा कमरा उसके खिलौनों से भरा हुआ था। किसी भी छोटे बच्चे के लिए जो हो सकता था, वह उस कमरे में था। ऊपर ही एक साइड पर जिम बना हुआ था जहाँ पर अर्जुन अपना वर्कआउट करता था। ऊपर लॉबी का साइज़ छोटा था जहाँ पर सोफ़े रखे हुए थे। नीचे जो दो बेडरूम थे, वे तो बहुत ही सुंदर थे, मगर उनका साइज़ छोटा था और उनमें अलग से ड्रेसिंग रूम नहीं थे। कमरे में ही अलमारी बनी हुई थी। बाथरूम का साइज़ भी ऊपर जो बाथरूम बने हुए थे, उनसे छोटा था। नीचे ही एक स्टडी रूम था जिसे अर्जुन ऑफ़िस के तौर पर यूज़ करता था। एक बड़ी सी लॉबी थी जिसके एक साइड पर किचन था और किचन के साथ एक बहुत ही छोटा कमरा था, जो सर्वेंट के लिए बना हुआ था। उसमें रहता कोई नहीं था। उनके जो विनोद और उसकी वाइफ़ घर में काम करते थे, उनके लिए बिल्डिंग के नीचे ही एक छोटा फ़्लैट दिया गया था। अर्जुन की सिक्योरिटी और ड्राइवर सब सभी को उस बिल्डिंग के नीचे छोटे-छोटे फ़्लैट दिए गए थे। अर्जुन का पेंटहाउस बिल्डिंग की नौवीं मंज़िल पर था। घर में विनोद और उसकी पत्नी अनिता ही थे जो सुबह से लेकर शाम तक रहते थे। जब अर्जुन लेट आता था, तो वह खाना बनाकर रख जाते थे। अर्जुन खुद ही खाना ले लेता था। अर्जुन को अकेले रहना पसंद था। और फिर जिस तरह की आरामदायक ज़िन्दगी अर्जुन जीता था, उसमें उसे किसी का इंटरफ़ेरेंस पसंद नहीं था। मगर वह अपनी लाइफ़ में अवंतिका और अंबर दोनों को जबरदस्ती ले आया था। अंबर रात को जब से आई थी, उसने सिर्फ़ वह कमरा ही देखा था, और फिर परेशानी में उसका ध्यान घर की तरफ़ नहीं गया था। सचमुच, कितना शानदार घर है, वह सोच रही थी।
अंबर ने रात आने के बाद केवल एक कमरा ही देखा था, और परेशानी में उसका ध्यान घर की ओर नहीं गया था। "...सचमुच कितना शानदार घर है..." वह सोच रही थी। अपनी सोच में डूबी अंबर, अर्जुन के पीछे-पीछे कमरे में पहुँची। अर्जुन ने अंबर की गोद से अवंतिका को ले लिया। "...देखो कैसा है...मेरी प्रिंसेस का रूम..." अर्जुन अवंतिका से कहने लगा। वह छोटी बच्ची कमरे को देखकर खुश हो गई। वह खिलौनों से भरा पड़ा था। "...सचमुच बहुत खूबसूरत है..." अंबर भी बोल पड़ी। "...अवंतिका का रूम आज ही तैयार हुआ है... अच्छा लगा तुम्हें..." वह अंबर से पूछने लगा। "...बहुत सुंदर है... मगर अवंतिका रात को अकेली कैसे रहेगी..." अंबर अपनी परेशानी बताने लगी। "...कोई बात नहीं... रात को अकेली नहीं रहेगी... तुम उसके साथ तो होगी ही..." "...मगर मुझे तो आप दोनों के साथ रहना है..." अर्जुन की बात सुनकर अवंतिका बोली। उस छोटी बच्ची को लगा जैसे वह पहले अकेली मम्मा के साथ रहती थी, अब भी अकेले मम्मा के साथ ही रहेगी। "...मुझे अकेले मम्मा के साथ नहीं रहना... मुझे आप दोनों के साथ रहना है... अगर इतने सारे खिलौने ना भी हों... तो भी कोई बात नहीं... मुझे केवल पापा और मम्मा चाहिए..." वह सिसकते हुए अर्जुन के गले से लग गई। "...मेरा बेटा क्यों रो रहा है... मम्मा और पापा हमेशा के लिए तुम्हारे साथ हैं... चलो अब पापा तुम्हें अपना रूम दिखाते हैं... ठीक है चलो..." अर्जुन ने अंबर का भी हाथ पकड़ लिया और उन दोनों को अपने कमरे में ले जाने लगा। जब अंबर, अर्जुन और अवंतिका के साथ कमरे में गई, तो सचमुच उसका कमरा बहुत आलीशान था। बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था। सामने की काँच की खिड़की से पूरा शहर दिखाई दे रहा था। कमरे में किंग साइज बेड लगा हुआ था। बेड के पीछे की दीवार पर उसकी बहुत खूबसूरत तस्वीर लगी हुई थी। इसमें वह बहुत स्मार्ट लग रहा था। एक पल के लिए तो अंबर की नजर भी तस्वीर पर ठहर गई। "...पापा आपके कमरे में तो आपकी इतनी अच्छी फोटो लगी है... मगर मेरे कमरे में तो मेरी फोटो ही नहीं है..." अवंतिका, जो बेड पर इधर-उधर छलांग लगा रही थी, अर्जुन से बोली। "...कोई बात नहीं बेटा... तुम्हारी भी हम तस्वीर लगा देंगे..." "...पापा इस घर में केवल आपकी ही तस्वीर है... मेरी और मम्मा की तो है ही नहीं... मुझे आप दोनों के साथ अपनी तस्वीर लगानी है..." अवंतिका अर्जुन से बोली। "...ठीक है मेरी प्रिंसेस का जैसा हुक्म..." अर्जुन अवंतिका से लाड़ करने लगा। अवंतिका, जो पूरे दिन की थकी हुई थी, बेड पर लेट गई। अंबर, जो अभी तक खड़ी हुई कमरा देख रही थी, बोली, "...चलो बेटा चलो... अपने रूम में चलो..." वह आगे बढ़कर अवंतिका को अपनी बाहों में उठाने लगी। "...नहीं मम्मा अब मैं यहीं पर ही रहूंगी... हम दोनों पापा के साथ सोएंगे... ठीक है..." "...नहीं बेटा चलो... अपने रूम में सोना चाहिए... कितना अच्छा रूम है... तुम्हारा..." अंबर उसे प्यार से समझाने लगी। "...नहीं नहीं नहीं... मैं नहीं जाऊंगी..." अवंतिका ने यह कहकर अपनी आँखें बंद कर लीं और वह सोने का नाटक करने लगी। "...कोई बात नहीं अंबर... मत उठाओ... कोई बात नहीं आज मेरे साथ ही सो जाए..." "...नहीं अभी खाना भी खाना है... वैसे भी रात को आपको बहुत तंग करेगी... कितनी बार उठती है अवंतिका रात को..." "...कोई बात नहीं... जब रात को तंग करेगी तब देखा जाएगा... चलो अवंतिका खाना तो खाना पड़ेगा बेटा..." अर्जुन के कहने पर अवंतिका झट से उठ गई। "...चलो पापा अब हम खाना खाने चलें... फिर जहाँ पर आकर सोएंगे... ठीक है... और मम्मा आप मुझे हमेशा की तरह कहानी सुनाना..." वह अर्जुन की गोद में चढ़ते हुए बोली। अवंतिका को खुश देखकर अंबर बहुत खुश थी। अर्जुन अवंतिका को लाड़ प्यार कर रहा था। अर्जुन का प्यार अवंतिका के लिए उसे दिखाई दे रहा था। ऐसी जिंदगी जो उसने सिर्फ दो ही दिनों में अवंतिका को देनी शुरू कर दी थी, वह उसे पूरी उम्र में भी नहीं दे सकती थी। वह एक बात से डर रही थी- अर्जुन का प्यार हमेशा उसके लिए ऐसा ही बना रहेगा। खाना खाने के लिए वे लोग नीचे आ गए। खाना खिलाने की थोड़ी देर बाद अंबर ने अवंतिका को अपने कंधे पर रख लिया। जब अर्जुन ने उसे देखा तो पता चला अवंतिका सो चुकी है। अर्जुन समझ गया था कि अंबर ने उसे जानबूझकर सुला दिया था। अगर अवंतिका अर्जुन के कमरे में जाएगी तो वह अंबर को भी साथ में बुलाएगी। वह उसके कमरे में आना नहीं चाहती थी। "...कोई बात नहीं... कब तक भागोगी मुझसे... अब तुम मेरी कानूनी पत्नी हो... मेरे कमरे में भी आओगी... मेरे बेड पर भी आओगी... मेरी बाहों में भी आना पड़ेगा... और मेरे दिल में तो तुम पहले ही आ चुकी हो... रही बात तुम्हारे दिल की... इसके ताले तोड़ने थोड़े मुश्किल होंगे... मगर अर्जुन मल्होत्रा के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं... अगर मैंने तुम्हें अपना ना बना लिया... तो मेरा नाम अर्जुन मल्होत्रा नहीं... तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम्हारे इस दिल पर मेरा कब्ज़ा होगा... रही बात मैं तुमसे अपनी बात मनवाने की तो उसका भी कोई तोड़ निकालता हूँ... क्योंकि तुम तो हर बात पर कह दोगी... नहीं मेरे पास है... मुझे नहीं चाहिए... मैं इसका क्या करूंगी... देखता हूँ क्या करता हूँ तुम्हारा..." अर्जुन अपने मन में सोचने लगा। वह सचमुच अंबर को अपनी बनाना चाहता था। कानूनन तो वह अर्जुन की हो चुकी थी, जिसका अंबर को कोई होश नहीं था। वह उसे अपने घर में भी ले आया था। वह अंबर को हमेशा के लिए अपने पास रखना चाहता था। इसलिए उसने पूरी योजना बनाकर काम किया था। वह जानता था अवंतिका अंबर की कमज़ोरी है। उसने अंबर को अपना बनाने के लिए अवंतिका का ही इस्तेमाल किया था। अब आगे वह क्या करने वाला था, अंबर नहीं जानती थी। अंबर अवंतिका को गोद में उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। अर्जुन ने अवंतिका, जो अंबर के कंधे पर लगी हुई थी, के माथे पर प्यार से चूमा। उसका चेहरा अंबर के बालों को छू गया। अर्जुन को अंबर के बालों से निकल रही खुशबू मदहोश कर रही थी।
अंबर यह नहीं जानती थी कि अर्जुन आगे क्या करने वाला था। अंबर अवंतिका को गोद में उठाए सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। अर्जुन अवंतिका, जो अंबर के कंधे पर लगी हुई थी, के माथे पर प्यार करने लगा। अर्जुन का चेहरा अंबर के बालों को छू गया। अंबर के बालों से निकल रही खुशबू अर्जुन को मदहोश करने लगी। "...अवंतिका को मुझे दे दो...मैं इसे कमरे में सुला आता हूँ...", अर्जुन ने अंबर से कहा। "...नहीं, कोई बात नहीं...मैं ही ले जाती हूँ...वैसे भी मैं अभी सोने जा रही हूँ...", अंबर ने कहा और अवंतिका को उठाए सीढ़ियाँ चढ़ गई। असल में, अर्जुन का इरादा कुछ देर अंबर से बात करने का था। मगर अंबर खाना खाते ही ऊपर चली गई। अर्जुन भी अपने कमरे में चला गया। केयरटेकर विनोद और उसकी पत्नी भी जा चुके थे। अर्जुन जाकर बिस्तर पर लेट गया। अंबर के बालों को छूने का एहसास उसे बार-बार याद आ रहा था। उसे आज फिर वह रात याद आ गई; आज से चार साल पहले वाली रात। "...उस रात के एहसास को वह आज तक नहीं भुला था...वह भोली-सी, काली-काली आँखों वाली लड़की जो नशे की हालत में उसके बिस्तर पर पड़ी थी...वह व्हाइट शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र पहने हुए थी...उसकी व्हाइट शर्ट आगे से थोड़ी भीगी हुई थी...वह चाहे खुद भी नशे में था, फिर भी उसे याद था...उसे चार साल से उसके चेहरे का हर नक्श याद था...उसे उसके शरीर की हर खुशबू याद थी...और वह जो उसने उस रात अंबर के साथ महसूस किया था...वह भी उसे याद था। यह कहना गलत नहीं होगा कि अर्जुन को उस रात अंबर से प्यार हो गया था..." चाहे कितनी ही लड़कियाँ उसकी ज़िंदगी में आई हों, पर वह एहसास कभी किसी के साथ नहीं हुआ था। उसने जिससे वह होटल खरीदा था, उससे संपर्क भी किया था और उस लड़की के बारे में पता करने की कोशिश की थी। मगर उसने कह दिया था कि वह लड़की जहाँ नौकरी करती थी, वह अब देश छोड़कर जा चुकी है। फिर उसे लगा कि अब अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ चुकी है तो उसे ढूँढ़ने का क्या फायदा। मगर उसने जब से अंबर को देखा था, उसने सोच लिया था कि वह अंबर और अवंतिका दोनों को अपनाएगा। वह दिखावा तो ऐसा कर रहा था कि उसे अवंतिका चाहिए थी। मगर सच यह था कि उसे अवंतिका के साथ अंबर भी चाहिए थी। अगर वह अंबर से साफ़-साफ़ कहता कि तुम भी उसके साथ चलो, मुझसे शादी कर लो, तो वह कभी ऐसा नहीं करती, वह जिद्दी लड़की थी। इतना तो वह जान गया था। तो फिर उसने ऐसा दिखाया कि वह अंबर से अवंतिका को छीन लेगा। जब उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा, तभी अंबर उसके साथ आई थी। और उसने अवंतिका के लिए ही उससे शादी की थी। अंबर को एहसास भी नहीं हुआ था कि वह अब अर्जुन मल्होत्रा की कानूनी पत्नी बन गई है। अर्जुन जानता था कि इन चार सालों की मुश्किलों ने अंबर को मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत दुख दिया है। वह पतली-सी लड़की और भी कमज़ोर हो गई थी। उसका चेहरा भी फीका पड़ गया था। पर उसे पता था कि अब वह अंबर मल्होत्रा बन चुकी है। अब उसका चेहरा भी चमकेगा और वह खुद भी चमकेगी। अर्जुन ने सोच लिया था कि उसे अंबर से कैसे डील करना है और सुबह उठते ही वह अपना काम शुरू करने वाला था। सबसे पहले तो अर्जुन को अंबर को यह याद दिलाना था, यह एहसास कराना था कि वह उसकी पत्नी बन चुकी है, जो कि वह मैरिज सर्टिफिकेट पर साइन करके ही भूल चुकी थी। अर्जुन ने यह भी तय कर लिया था कि वह अपने आप को पूरी तरह से बदल देगा। आयाशी भरी ज़िंदगी, जो अब तक उसने जिया थी, वह छोड़ देगा। वह एक अच्छा पति और पिता बनेगा। उसे अंबर की नज़र में अपनी इमेज भी सुधारनी थी और इमेज सुधारने से पहले खुद को सुधारना बहुत ज़्यादा ज़रूरी था। जिस तरह की ज़िंदगी अर्जुन जिया था, उस किस्म की ज़िंदगी जीने वाले अर्जुन पर तो अंबर कभी भी विश्वास नहीं करेगी। फिर अर्जुन ने खुद अंबर के साथ जो किया था, वह अंबर कैसे भूलेगी? फिर वह खुद ही सोचने लगा कि अगर वह उससे प्यार करने लगे तो वह उसे माफ़ कर सकती है। उसके लिए अर्जुन का खुद को बदलना सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। उस रात जब वह अंबर के पास कमरे में आया था, उसे नशे की हालत में देखकर वह उसे उन लड़कियों जैसी ही समझा था जो पैसे के लिए यह सब करती हैं। मगर जब अर्जुन उस खूबसूरत लड़की के पास आया, तो शुरुआत से ही एहसास होने लगा था कि वह उन लड़कियों जैसी नहीं है। उसकी उन नशीली आँखों के आँसू भी याद थे जब अर्जुन ने उसके साथ जबरदस्ती की थी; कैसे वह उन मोटी-मोटी आँखों से आँसू बहा रही थी। अर्जुन बिस्तर पर लेटा हुआ उसके शरीर का हर नक्श याद कर रहा था। नशे में पड़ी हुई वह लड़की रो रही थी। अर्जुन भी तब नशे में था। इतना तो वह समझ रहा था कि वह गलत कर रहा है, मगर उसके बिस्तर पर पड़ी हुई लड़की का जिस्म उसे पागल कर रहा था। अंबर ने उसका सारा कंट्रोल खुद पर से ख़त्म कर दिया था। उसका अपने आप पर कंट्रोल कहाँ था? यह सब सोचते-सोचते अर्जुन की कब आँख लग गई, उसे पता भी नहीं चला। जब सुबह उसकी नींद खुली तो उसे घर में आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। उसने रात को दरवाज़ा बंद नहीं किया था, थोड़ा खुला था; तो अवंतिका की चहचहाने की आवाज़ें पूरे घर में गूंज रही थीं। अंबर उसकी दूध पीने के लिए मिन्नतें कर रही थी। अंबर और अवंतिका, उन दोनों की आवाज़ें सुनकर अर्जुन को अच्छा लगा। वह भी उठकर नीचे चला गया। प्लीज मेरी सीरीज़ पर कमेंट करें, साथ में रेटिंग भी दें।
अवंतिका के चहकने की आवाज पूरे घर में गूंज रही थी। अंबर उसकी दूध पीने के लिए मिन्नतें कर रही थी। अंबर और अवंतिका, दोनों की आवाजें सुनकर अर्जुन को अच्छा लग रहा था। वह भी उठकर नीचे चला गया। पहले अर्जुन का रूटीन यह था: सुबह की चाय वह अपने कमरे में ही पीता था। उसके बाद वह जिम जाता और फिर ब्रेकफास्ट करता। मगर अंबर और अवंतिका के आने से उसका रूटीन बदलना शुरू हो गया था। "गुड मॉर्निंग प्रिंसेस..." सीढ़ियों से उतरते हुए अर्जुन ने अवंतिका से कहा। "...गुड मॉर्निंग पापा..." कहते हुए अवंतिका अर्जुन की गोद में चढ़ गई। "...गुड मॉर्निंग बीवी..." अर्जुन ने अंबर से कहा। "...रात नींद तो अच्छी आई... आप दोनों को..." उसकी बात सुनकर अंबर इधर-उधर देखने लगी। "...मैं तुमसे बात कर रहा हूँ... अंबर... इधर-उधर क्या देख रही हो...?" "...नहीं, मुझे लगा आपने किसी और को बुलाया... आप 'बीवी'... कह रहे थे..." "...मेरी बीवी तुम ही हो..." वह हँसने लगा। उसकी बात सुनकर अंबर उसकी तरफ देखने लगी। "...ऐसे क्या देखती हो... कल ही तो हमारी शादी हुई है... आज तुम भूल गई, बीवी...?" "...हमारी शादी कब हुई?" अंबर हैरानी से बोली। "...कल... रजिस्टर के सामने... और क्या हुआ था... हम लोगों ने कोर्ट मैरिज की थी..." "...कोर्ट मैरिज ऐसे होती है...?" अंबर हैरानी से बोली। "...ऐसे थोड़ी ना शादी होती है... शादी के लिए तो मंत्र और फेरे होते हैं... वो चाहो तो हम अब पूरे कर सकते हैं... वैसे तुम मेरी कानूनन पत्नी हो... और मैं तुम्हारा पति, और अवंतिका हमारी प्यारी सी बेटी..." अर्जुन हँसता हुआ बोला। "...वैसे कायदे से तो रात... हमारी सुहागरात होनी चाहिए थी..." अर्जुन धीरे से अंबर के पास आता हुआ बोला। "...मगर तुम तो मेरे कमरे में भी नहीं आई..." यह कहते हुए उसने जाकर चाय का कप उठा लिया। अंबर हैरान-परेशान वहीं खड़ी रही। वह सोचने लगी, "...यह आदमी सुबह-सुबह कैसी बातें कर रहा है... कहीं इसने उठते ही शराब तो नहीं पी ली..." तभी विनोद अर्जुन के पास आकर बोला, "...सर, एक औरत आई है... वो आपसे मिलना चाहती है..." "...ठीक है... भेज दो..." सामने से एक 50 साल की औरत, जिसका नाम रीटा फर्नांडिस था, वहाँ उनके पास आ गई। "...गुड मॉर्निंग मैम... गुड मॉर्निंग सर..." वह आते ही बोली। "...आओ मिसेज रीटा फर्नांडिस... मैं आपकी ही वेट कर रहा था... बैठो..." वह अर्जुन के कहने पर बैठ जाती है। "...ये मेरी वाइफ अंबर मल्होत्रा है... और यह मेरी बेटी अवंतिका..." अर्जुन ने उसे बताया। "...अंबर, मैंने मिसेज रीटा फर्नांडिस को अवंतिका के लिए नैनी के तौर पर रखा है... बाकी तुम देख लेना... अगर इसका काम अच्छा नहीं लगेगा तो... एक महीने के बाद इससे चेंज कर देंगे..." अंबर सबसे पहले तो उसकी बात सुनकर हैरान हो जाती है। "...अवंतिका के लिए नैनी की क्या ज़रूरत है... मैं उसको देख सकती हूँ..." अंबर अर्जुन से कहने लगी। उसकी बात सुनकर अर्जुन हाथ के इशारे से उसे रोक देता है। "...अंबर, यह फाइनल है कि रीटा यहाँ पर नैनी के तौर पर काम करे... अगर हम दोनों को कहीं अकेले बाहर जाना हो... अगर तुम्हें कोई काम पड़ जाए... तो बहुत ज़रूरी है... अवंतिका को देखने वाला कोई होना चाहिए... रीटा इसी बिल्डिंग में रहेगी... जो सुबह जल्दी काम पर आ सके... यह अवंतिका के स्कूल जाने से पहले आ जाया करेगी... और शाम को जब हम कहेंगे तब तक रहेगी... रात को भी जब इसकी ज़रूरत पड़ती है तो आ सकती है..." यह कहकर अर्जुन अपने कमरे में चला गया। अंबर वहीं पर परेशानी में खड़ी रही। फिर वह अर्जुन के पीछे उसके रूम तक चली गई। उसने बाहर खड़े होकर दरवाज़ा खटखटाया। "...डोर खुला है..." अर्जुन ने कहा। उसे लगा शायद विनोद आया होगा। दरवाज़ा खोलकर अंबर कमरे के अंदर चली गई। उसे देखकर अर्जुन बोला, "...तुम सीधे भी कमरे में आ सकती हो... तुम्हें दरवाज़ा खटखटाने की कोई ज़रूरत नहीं है..." "...मैं सिर्फ़ आपसे यह कहना चाहती हूँ कि मेरे होते हुए किसी नैनी की ज़रूरत नहीं है... मैं पूरा टाइम अवंतिका पर ही हूँ... मुझे कहीं भी नहीं जाना है... और मुझे नहीं लगता कि आप मुझे नौकरी करने की भी इजाज़त देंगे..." "...देखो अंबर, तुम मेरी वाइफ की हैसियत से जहाँ हो... जैसे-जैसे सबको पता चलता जाएगा तो शायद तुम्हें भी मेरे साथ आना-जाना पड़ेगा... तुम अवंतिका को संभालो, तुम्हें कौन रोकता है... वह सिर्फ़ तुम्हारी हेल्प के लिए है... और रही बात तुम्हारे नौकरी करने की, अगर तुम चाहो तो मेरा ऑफ़िस ज्वाइन कर सकती हो... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है... हाँ, मेरे ऑफ़िस के बाहर तुम नौकरी नहीं कर सकती..." उसकी बात सुनकर अंबर बोली, "...मैं आपकी वाइफ की हैसियत से जहाँ कैसे हुई... मैं अवंतिका के लिए जहाँ पर हूँ... और ना ही मुझे आपके ऑफ़िस में काम करने में कोई दिलचस्पी है... सबसे बड़ी बात, अभी अवंतिका स्कूल कहाँ जाने लगी है..." "...तुम शायद भूल रही हो... इस घर में तुम्हारी हैसियत मिसेज अंबर अर्जुन मल्होत्रा की है... इसीलिए तुम जहाँ हो... अगर तुम उस दिन उस मैरिज के डॉक्यूमेंट्स पर साइन नहीं करती... तो तुम जहाँ पर भी नहीं रहती... उस दिन वकील ने तुझसे बात की थी... अगर अब मेरी बीवी के नाम से तुमने साइन किए हैं... तो शायद मुझे उसके फ़र्ज़ भी निभाने पड़ेंगे... ठीक है, अभी अवंतिका स्कूल नहीं जाती... मगर कुछ ही दिनों में उसकी एडमिशन होने वाली है... वह 3 साल से ऊपर की हो रही है... स्कूल तो जाएगी ना... और देखो, मैं तुमसे ज़्यादा बहस नहीं करना चाहता... प्लीज़ मुझे तैयार होना है... तुम जा सकती हो..." वह रूखेपन से बोलता हुआ बाथरूम में चला गया। "...अंबर, मैं तुमसे रूखे से बात नहीं करना चाहता... मगर तुम इतनी जिद्दी हो, मेरी कोई बात नहीं मानती... हर बात के बीच आती-जाती हो... मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए घर पर हेल्पर रखना चाहता हूँ..." वह अपने मन में सोचने लगा। अर्जुन तैयार होकर ऑफ़िस चला गया। मिसेज रीटा फर्नांडीज एक अच्छी औरत थी। अर्जुन के जाने के बाद अंबर ने रीटा को कुछ कहा। रीटा अंबर से अवंतिका की आदतों के बारे में पूछती रही। उसने अवंतिका के खाने-पीने का भी ख्याल रखा। रीटा अवंतिका से दिन भर खेलती भी रही। शाम तक रीटा और अवंतिका की काफ़ी अच्छी दोस्ती हो गई।
अर्जुन के जाने के बाद अंबर ने रीटा से कुछ नहीं कहा। रीटा अंबर से अवंतिका की आदतों के बारे में पूछती रही। उसने अवंतिका का ख्याल रखा और उसके साथ खेली। शाम तक रीटा और अवंतिका अच्छी दोस्त बन गई थीं। इसमें कोई शक नहीं था कि रीटा के आने से अंबर की मेहनत कम हो गई थी। उसे आराम करने का समय मिल गया था। जब से अंबर वहाँ आई थी, निहारिका का कोई फ़ोन नहीं आया था। अंबर को निहारिका से बात करने का भी समय नहीं मिल पाया था। रीटा अवंतिका को उसके कमरे में खिलौनों के साथ खिला रही थी। अंबर वहाँ से उठकर आई और लॉबी में बैठकर निहारिका को फ़ोन लगाया। पहली ही घंटी पर निहारिका ने फ़ोन उठा लिया। "कैसी हो तुम? क्या हाल हैं तुम्हारे?" निहारिका ने पूछा। "ठीक हूँ। इन दिनों समय ही नहीं मिला तुम्हें फोन करने का। अब फ्री बैठी थी, सोचा तुम्हें फोन कर लूँ," अंबर ने कहा। "...तुम्हारी आवाज से लग रहा है तुम काफी ठीक हो। मुझे तो लगा था तुम बुझी-बुझी आवाज में बात करोगी। तुम्हारी आवाज की खनक बता रही है कि अर्जुन ने इतना बुरा नहीं किया तुम्हारे साथ," निहारिका ने कहा। "...अर्जुन का व्यवहार मेरे साथ अच्छा है, और अवंतिका को तो उसने राजकुमारी बना दिया है, जो शायद मैं जिंदगी में कभी सोच भी नहीं सकती थी। उसने तीन दिनों में अवंतिका के लिए इतना कुछ कर दिया है," अंबर खुशी से बताने लगी। "...ऐसा क्या किया उसने हमारी अवंतिका के लिए? जरा खुलकर बताओ," निहारिका ने कहा। "...मैं तुम्हें एक मिनट में फिर फोन करती हूँ," यह कहकर अंबर ने फोन काट दिया। वह उठकर अवंतिका के कमरे में गई। उसने अवंतिका और उसके कमरे की कई फोटोज़ खींचकर निहारिका को भेज दीं। तस्वीरें देखने के बाद निहारिका का फ़ोन आ गया। "...क्या यह सचमुच अवंतिका का कमरा है?" निहारिका ने पूछा। "...यह अवंतिका का ही कमरा है," अंबर ने कहा। "...और उसके साथ वो लेडी कौन है?" "वो आज ही उसके लिए नैनी रखी है अर्जुन ने। आज पहले दिन काम पर आई है।" "...अच्छा अंबर बताओ, तुम लोगों को रखा कहाँ पर है अर्जुन ने?" निहारिका ने पूछा। "...और कहाँ? अपने घर में रखा है। हम लोग उसी के घर में रहते हैं," अंबर ने जवाब दिया। "...क्या तुम सच कह रही हो? अंबर, तुम दोनों को उसने अपने घर में रखा है?" "...क्यों तुम इतनी हैरान हो रही हो?" अंबर ने निहारिका से पूछा। "...हैरान नहीं हूँ तो क्या हूँ? मुझे तो लगा था उसने तुम दोनों को किसी फ़्लैट में रखा होगा। अपने घर पर रखा है... फिर तो सबको बताना पड़ेगा कि अवंतिका उसकी अपनी बेटी है। अगर वह तुम दोनों को अलग फ़्लैट में रखता, तो उसे किसी को बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि अवंतिका कौन है।" "...अर्जुन अवंतिका से बहुत प्यार करता है। वो तो रात को भी उसे अपने पास सुलाता है। पूरे घर में अभी तो अवंतिका का ही राज है। वह दिन कहती है तो दिन है, रात कहती है तो रात है। अर्जुन खूब खेलता है उसके साथ," अंबर निहारिका को खुश होकर बता रही थी। सचमुच निहारिका हैरान हो गई। "...और तुम कहाँ रहती हो जब अवंतिका उसके साथ उसके कमरे में सोती है?" निहारिका ने शरारत से पूछा। "...मैं वैसे तो रात को अवंतिका के साथ अवंतिका के कमरे में रहती हूँ। मेरा भी अपना कमरा है। उन दोनों का बेडरूम ऊपर है और मेरा बेडरूम नीचे है," अंबर ने बताया। "...अर्जुन ने अवंतिका को कानूनी तौर पर गोद ले लिया है। तुम्हें पता ही है कि मैंने फादर के तौर पर अपने पापा का नाम लिखवाया था। तो वो चाहता था कि फादर के रूप में उसका नाम हो, इसीलिए उसने कोर्ट मैरिज की मेरे साथ और हम अवंतिका पर कानूनी तौर पर दोनों का ही हक है," अंबर ने निहारिका को बताया। "...इतनी बड़ी बात तुम मुझे अब बता रही हो? तुमने शादी कर ली और वह भी अर्जुन मल्होत्रा के साथ! अब तुम मिसेज़ अंबर अर्जुन मल्होत्रा हो, फेमस बिज़नेस टायकून की धर्मपत्नी, और तुमने मुझे बताया भी नहीं," निहारिका सचमुच हैरान हो गई उसकी बात सुनकर। "...तुम तो ऐसे हैरान हो रही हो जैसे मैंने सचमुच की शादी की हो। मुझे सिर्फ़ एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज है, और कुछ नहीं। ज़्यादा खुश होने की भी ज़रूरत नहीं है," अंबर ने उसे टोका। "...तुम्हें क्या लगता है उसने तुमसे सिर्फ़ अवंतिका के लिए शादी की है?" "...और नहीं तो क्या? क्योंकि मैं भी अवंतिका को छोड़ना नहीं चाहती थी और उसे भी अवंतिका चाहिए थी, तो इसलिए यह कॉन्ट्रैक्ट मैरिज हुई है," अंबर ने जवाब दिया। "...सचमुच कितनी बड़ी बेवकूफ़ हो तुम! पता है, उसके लिए अवंतिका को पाना कोई बड़ी बात नहीं थी। उसके लिए तुमसे शादी करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। पता है ना वो कितना पावरफ़ुल है? उसने तुमसे शादी तुम्हारे लिए की है। मुझे लगता है वो तुमसे प्यार करता है, इसीलिए उसने तुम दोनों को अपने घर में रखा हुआ है। वरना तुम दोनों को फ़्लैट लेकर वो कहीं भी रख सकता था। अगर वह अवंतिका के लिए सिर्फ़ गिल्टी फील करता, तो तुम दोनों को सिर्फ़ खर्चा दे सकता था। मगर अपने साथ कोई किसी को तभी रखता है जब कोई किसी से बहुत प्यार करता है, नहीं तो कोई किसी को अपने साथ नहीं रखता," निहारिका उसे समझाती हुई बोली। "...देखो निहारिका, जैसा तुम सोच रही हो, थोड़े ही दिनों में पता लग जाएगा कि वह क्या करने वाला है। इसलिए तुम्हारी बात भी थोड़े ही दिनों में क्लियर हो जाएगी। मुझे नहीं लगता किसी तीन साल की बेटी की माँ में उसे कोई इंटरेस्ट होगा। उसके लिए तो रोज़ नई-नई लड़कियाँ चाहिए होंगी। इतना तो उससे मैं भी जानती हूँ। वो एक प्लेबॉय है, आए दिन उसके बारे में मैगज़ीन में कुछ ना कुछ छपता रहता था," अंबर उसकी बात का जवाब देने लगी।
"...इतना तो उसे मैं भी जानती हूँ...वो एक प्लेबॉय है...आए दिन उसके बारे में मैगज़ीन में कुछ ना कुछ चलता रहता है..." अंबर उसकी बात का जवाब देने लगी। "...देखो अंबर, अब तुम उसकी कानूनन वाइफ हो...और उसको और अपने घर को संभालो...उसने तुमसे कोर्ट मैरिज अवंतिका के लिए नहीं की...तुम्हारे लिए की है...देखो, साथ रहने के लिए आजकल शादी की कोई ज़रूरत नहीं है...मैं भी तो अपने बॉयफ्रेंड के साथ रह ही रही हूँ...मगर वो तुम्हें जानता है...तुम कितनी जिद्दी हो...इसीलिए उसने तुमसे शादी की है...अब तुम अपने पति पर ध्यान दो...थोड़ा सा ध्यान अपने पर भी दो...पहले जैसी मत रहा करो..." निहारिका उसको समझाने लगी। वो सचमुच चाहती थी कि उसकी सहेली बहुत खुश रहे। उसे पता था कि अंबर ने पिछले सालों में कितने दुख सहे हैं। "...देखो निहारिका, तुम गलत सोच रही हो...ना तो उसे मुझ में इंटरेस्ट है...और ना ही मुझे उसमें...मैं कैसे इंसान के साथ कभी नहीं रह सकती...मैं उस रात को कभी नहीं भूल सकती...उस रात उसने मेरे साथ क्या किया था...वो रात आज भी मुझे याद है...मुझे नफ़रत है उस आदमी से...और मैं यह भी अच्छी तरह से जानती हूँ...एक औरत जिसकी तीन साल की बेटी है...उसे कोई इंटरेस्ट नहीं होगा...क्योंकि उसे तो नई-नई लड़कियाँ चाहिए...उसे मुझ जैसी लड़की में कभी इंटरेस्ट नहीं हो सकता..." "...अगर उसे तुझ में कोई इंटरेस्ट नहीं होता...तो वो उस रात तुम्हारे साथ कभी नहीं होता...तुम उस रात उसे अच्छी लगी होगी...इसीलिए उसने तुमसे शादी की..." निहारिका उसका जवाब देती हुई बोली। "...उसे ग्लैमरस, सेक्सी, हॉट लड़कियाँ चाहिए...वैसे भी चार साल पहले वाली अंबर और आज वाली अंबर में बहुत फ़र्क है...तब मैं उन्नीस-बीस साल की लड़की थी...जिसे किसी ने छुआ नहीं था...जिसका कोई बॉयफ्रेंड भी नहीं था...मगर आज मैं एक लड़की की माँ हूँ...मुझ में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उसे पसंद आए...ना उसमें ऐसी कोई बात है...जो मुझे अच्छी लगे...इसलिए यह बात फिर कभी मत कहना..." यह कहते हुए उसने फ़ोन काट दिया। उसे निहारिका पर गुस्सा था कि वह कैसी बातें कर रही थी। जो बात निहारिका समझ गई थी, वो बात अंबर नहीं समझ सकी थी। अर्जुन सचमुच उसको चाहता था। चलिए, कैसे बताएगा अर्जुन अंबर को कि वो उससे प्यार करता है और कैसे समझेगी अंबर अर्जुन के प्यार को? निहारिका का फ़ोन काटने के बाद अंबर उसकी बात के बारे में सोचती रही। "...अगर अर्जुन शादी उसके लिए करता तो...उससे कुछ तो बताता...नहीं, यह उसने अवंतिका के लिए की है...रही मेरे साथ बिहेवियर की तो...वह बहुत जल्द पता लग जाएगा...वैसे भी उसके जैसा आदमी एक लड़की के साथ शादी करके एक के साथ कभी निभा नहीं सकता...उसे तो रोज़ नई लड़की चाहिए...यह बात मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ..." वो रात को अब तक नहीं भुली थी। इसलिए वो उससे नफ़रत करती थी। उसे याद आने लगा जब उन लोगों ने उसे पकड़ लिया था। तो वह आपस में बात कर रहे थे, "...अब इसका क्या करें...इसने हमारी पूरी बात सुन ली है...इसे पता चल गया है कि हम नशे का कारोबार करते हैं..." होटल का मालिक दूसरे आदमी से बोला। "...अब हम इसे छोड़ नहीं सकते...यह पुलिस को बता सकती है...इसे मार देते हैं..." दूसरा आदमी कहने लगा। अंबर को उन लोगों ने उसी कमरे में बाँध रखा था। "...नहीं, मुझे जाने दीजिए, प्लीज़...मैं किसी को नहीं बताऊँगी..." अंबर उनकी मिन्नत करने लगी। "...हम इसे मार नहीं सकते...क्योंकि फिर उसकी लाश को ठिकाने भी लगाना पड़ेगा...इसके घरवाले इसे ढूँढ़ेंगे...पुलिस भी इसे ढूँढती हुई आएगी...कि आपके होटल में काम करने वाली लड़की गायब हो गई...मैं चक्कर में नहीं पड़ना चाहता..." होटल का मालिक बोला। "...तो फिर अब हम क्या करें..." दूसरे आदमी ने कहा। "...मैंने सोच लिया है...उसका क्या करना है...तुम्हें पता है ना मैं यह होटल बेच रहा हूँ...अर्जुन मल्होत्रा को...आज उसकी फ़ाइनल डील है...मैंने सुना है वो लड़कियों का बहुत शौक़ीन है...तो मैं इसको डील की खुशी में...इसको उसके आगे पेश करूँगा..." "...मगर यह क्यों मानेगी...इस बात के लिए..." दूसरा आदमी बोला। "...यह नहीं मानेगी...इसको हम लोग इंजेक्शन देंगे नशे का...तो फिर यह कुछ नहीं कर सकेगी..." "...यह बात सही है तुम्हारी...ऐसा ही करेंगे हम...इसके साथ..." दूसरा आदमी खुश हो गया। फिर उन लोगों ने ज़बरदस्ती अंबर को इंजेक्शन लगा दिया। अंबर को यह सब याद आ रहा था। धीरे-धीरे उस पर नशा हावी होने लगा। वो लोग उसे पकड़कर एक कमरे में ले गए और उस कमरे में बंद कर दिया। उस नशे की वजह से उसकी बॉडी पर उसका कोई कंट्रोल नहीं था। उसका दिमाग काम कर रहा था। वह समझ रही थी कि उसके साथ बहुत बुरा होने वाला है। ना तो वो बेड से उठ पा रही थी, ना ही वो कुछ बोल पा रही थी। उसकी आँखों से आँसू आ रहे थे। थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुला। उसने मुश्किल से अपनी आँखें खोलते हुए दरवाज़े की तरफ़ देखा। उसने देखा कि एक हैंडसम सा नौजवान अंदर आया था। वह उससे हेल्प लेने के बारे में सोचने लगी। उसने बोलने की कोशिश की, मगर नशे की वजह से वो बोल ना सकी। वो अंदर आकर बेड के पास खड़ा हो गया। उससे ठीक तरह से चला भी नहीं जा रहा था। अंबर समझ गई कि वह भी नशे में है। वो मुस्कुराता हुआ अंबर के पास आया और अपने दोनों हाथों से अंबर का चेहरा पकड़ लिया। अंबर उसे अपने आप को छुड़ाना चाहती थी, मगर नशे की वजह से वो छुड़ा ना सकी। अंबर की आँखें कभी खुल रही थीं, कभी बंद हो रही थीं। नशा उस पर हावी हो रहा था, मगर उसे सब समझ आ रहा था। उसकी मोटी-मोटी आँखों से आँसू आ रहे थे। प्लीज़ मेरी सीरीज़ पर कमेंट करें, साथ में रेटिंग भी दें।
अंबर की आँखें कभी खुल रही थीं, कभी बंद हो रही थीं। नशा उस पर हावी हो रहा था, मगर उसे सब समझ आ रहा था। उसकी मोटी-मोटी आँखों से आँसू आ रहे थे। उसने अपने होंठ अंबर के होंठों पर रखे हुए थे और उसका एक हाथ अंबर की शर्ट में हरकत कर रहा था। अंबर ने उसका हाथ अपनी शर्ट में से निकालने की कोशिश की, मगर वह निकाल नहीं सकी। वह उसका चेहरा पकड़कर बोला था, "...तुम कितनी खूबसूरत हो... बिल्कुल परियों जैसी... तुम्हारी ये काली-काली आँखें... इनमें डूब जाने को दिल करता है... तुम्हें देखकर ऐसा लग रहा है... मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपने पास रख लूँ..." फिर अंबर ने उसके होंठों से अपने होंठ आजाद कराने चाहे। वह अपना हाथ अंबर की शर्ट से निकालने के बाद अंबर के बटन खोलने लगा था। अंबर को उसकी आँखों की हवस दिखाई दे रही थी। वह उसके खुले बदन को देखकर कितना खुश हो रहा था! उसने अंबर की शर्ट पूरी तरह से उतार दी थी। अंबर अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही थी। यह देख वह खुश हो रहा था। उसने अंबर से कहा, "...देखो अगर तुम सहयोग करोगी तो वह उसे ज्यादा तंग नहीं करेगा..." अंबर की उम्र उस समय मुश्किल से उन्नीस वर्ष की होगी। अर्जुन उस समय तीस वर्ष का होगा। अंबर को याद आ रहा था कि अर्जुन उसकी शर्ट के बटन खोलकर कितना खुश हो रहा था। अर्जुन ने उसके सीने पर कितनी जोर से वार किया था कि खून निकल आया था। अंबर को बहुत बुरा लग रहा था। अर्जुन का ध्यान अंबर को कैसा लग रहा है, इस बात पर नहीं था। वह अंबर को इंजॉय कर रहा था। अर्जुन ने अंबर की जांघों पर भी कितनी जगह से काटा था! उस रात एक बार से अर्जुन का मन नहीं भरा था। वह उससे बोला, "...कितना मज़ा आ रहा है तुम्हारे साथ... तुम्हें छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा है..." अंबर को याद था कि अर्जुन ने उसके शरीर पर कितने निशान छोड़े थे। वह रात उसके लिए कितनी दर्दनाक रात थी! अंबर जिंदगी में कभी भी अर्जुन के पास नहीं आना चाहती थी। वह जानती थी, वह रात का दर्द कभी नहीं भुला था। वह उस रात की वजह से अर्जुन से नफ़रत करती थी। वह अर्जुन के साथ फिर कभी कोई रात नहीं बिताना चाहती थी, उसकी पत्नी बनकर भी नहीं। उसे याद था कैसे अर्जुन उस रात को उसके शरीर के साथ खेला था। वह अपने आनंद में अंबर के दर्द को भूल गया था। अंबर उस रात को याद करके वहीं बैठी हुई रोने लगी थी। जब शाम को अर्जुन लेट आया था, अंबर उसके सामने नहीं आई। रीटा भी जा चुकी थी। अवंतिका अर्जुन के आने से पहले ही सो गई थी। अंबर जाग रही थी। जब उसे अर्जुन के आने का पता चला, तो वह भी अवंतिका के साथ जाकर लेट गई। खाना खाने के बाद, जब अर्जुन अपने कमरे की तरफ़ जाने लगा, तो वह पहले अवंतिका के कमरे में आ गया। वह धीरे से दरवाज़ा खोलकर अंदर आया; उसने देखा अंबर और अवंतिका दोनों सो रहे हैं। उसने उन दोनों को प्यार से देखा। फिर सोचने लगा, "...कोई बात नहीं... बहुत जल्दी तुम दोनों ही मेरे कमरे में होंगे... अंबर, भाग लो मुझसे जितना भागना है... अपना तो मैं तुम्हें बनाकर रहूँगा..." उसने आकर अवंतिका के माथे पर किस किया और फिर जाकर सो गया। लेटे हुए वह सोच रहा था। कल वह अंबर को शॉपिंग पर लेकर जाएगा। मगर वह जानता था कि अंबर ऐसे तो मानेगी नहीं और अंबर को कैसे मनाना है। उसने वह भी सोच लिया था। क्योंकि सीधे-सीधे मानने वालों में से तो अंबर है नहीं। लेटा हुआ वह अकेले ही मुस्कुराया और फिर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। आखिर अंबर को मनाने के लिए वह क्या करने वाला था? सुबह अंबर की आँख देर से खुली। क्यों? रात को कितनी देर तक अपनी उस बीती हुई काली रात के बारे में सोचती रही। साथ में वह यह भी सोच रही थी, "...कितनी अजीब बात है... जिस इंसान ने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की... वह उसी के घर में थी और... उसी की बेटी की माँ थी... उस इंसान को पछतावा भी नहीं था अपनी उस रात का..." यही सब सोचते हुए वह रात को लेट सोई थी, तो अब काफी सुबह हो गई थी जब वह उठी थी। जब अपने कमरे से नीचे आई, तो रीटा आ चुकी थी। वह दूध का गिलास लिए अवंतिका के पीछे-पीछे चल रही थी और अवंतिका नखरा कर रही थी। उसे अवंतिका को देखकर हँसी आ गई। अर्जुन वहीं सोफे पर बैठकर चाय पी रहा था। लाबी का स्लाइडिंग गेट, जो बालकनी की तरफ़ जाता था, खुला हुआ था। बाहर से ताज़ी हवा अंदर आ रही थी। लाबी का माहौल काफी खुशनुमा था। वह अर्जुन के सामने वाले सोफे पर आकर बैठ गई। वह अवंतिका से कहने लगी, "...अवंतिका, दूध पी लो... देखो... आंटी तुम्हारी कितनी मिन्नत कर रही है..." उसके कहने से अवंतिका ने दूध का गिलास पकड़ लिया और पीने लगी। अनीता चाय लेकर आई, "...मैम, आपकी चाय..." चाय पीने के बाद अर्जुन अपने जिम में चला गया। अनीता और विनोद ब्रेकफ़ास्ट की तैयारी करने लगे। थोड़ी देर बाद ऊपर से अर्जुन ने अंबर को बुलाया, "...अंबर, जरा ऊपर आकर मेरी बात सुनना..." उसकी बात सुनकर अंबर अर्जुन की आवाज़ के पीछे उसके जिम में चली गई। "...ब्रेकफ़ास्ट के बाद तुम तैयार हो जाना... हम दोनों बाज़ार शॉपिंग के लिए चलेंगे... अवंतिका रीटा के पास घर में रह जाएगी... और फिर अनीता और विनोद भी यहीं पर हैं..." वह एक्सरसाइज़ करता हुआ अंबर से बोला। "...मुझे बाज़ार कोई शॉपिंग नहीं करनी... अवंतिका की शॉपिंग बहुत हो चुकी है..." अर्जुन की बात सुनकर अंबर ने जवाब दिया। उसे लगा अर्जुन अवंतिका के लिए शॉपिंग की बात कर रहा है। "...मैं अवंतिका की नहीं, तुम्हारी बात कर रहा हूँ... तू इन पुराने कपड़ों में घर में घूमती अच्छी नहीं लगती... जहाँ पर मेरे मेहमान भी आते हैं... तो अब हम तुम्हारे लिए कपड़े लेने बाज़ार चलेंगे..." अर्जुन अपनी एक्सरसाइज़ बीच में रोककर बोला। "...मेरे पास बहुत हैं कपड़े... मुझे कुछ नहीं लेना..." यह कहते हुए अंबर वहाँ से जाने लगी। जब अंबर बाहर जाने लगी, तो अर्जुन उसके सामने आ गया। अंबर उससे डरकर पीछे हटने लगी; वह दीवार से लग गई। अर्जुन बिल्कुल उसके पास आ गया। "साइड पर हटीए... मुझे जाने दीजिए... मुझे जाना है..." अंबर दीवार के साथ सिमटी हुई कहने लगी। अर्जुन ने अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा थाम लिया और फिर अपना चेहरा उसके चेहरे के नज़दीक लेकर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। अर्जुन ने हौले से अंबर को किस कर लिया। "...यह क्या बदतमीज़ी है... क्या कर रहे हो... आप छोड़िए मुझे..." अंबर अर्जुन से खुद को छुड़ाने लगी। "...जब तुम मेरी कोई बात नहीं मानोगी... तो मैं तुम्हारे साथ ऐसा ही करूँगा... वैसे भी अब तुम मेरी कानूनन बीवी हो... यह तो हक़ है मेरा..." अर्जुन उसे छोड़ता हुआ बोला। "...ठीक है... थोड़ी ही देर में तैयार हो जाना..." अर्जुन अंबर से फिर कहने लगा। "...तुम मुझे ऐसे डरा नहीं सकते... मैंने कह दिया ना... मुझे नहीं जाना शॉपिंग करने... मैं नहीं जाऊँगी..." उसकी बात के जवाब में अंबर बोली। मेरी कहानी पर ना कोई समीक्षा और ना कोई रेटिंग। यह बात तो गलत है। अगर आपको कहानी पसंद आ रही है, तो प्लीज़ मुझे बताओ।
तो थोड़ी देर में तैयार हो जाना... हम शॉपिंग के लिए चलेंगे। अर्जुन ने अंबर से कहा। "मुझे नहीं जाना शॉपिंग के लिए..." यह कहकर अंबर वहाँ से जाने लगी। उसने जाती हुई अंबर का हाथ खींच लिया और उसे दीवार के साथ लगा दिया। फिर मुस्कुराते हुए अंबर को देखने लगा। अंबर समझ गई कि वह क्या करने वाला है। उसने अर्जुन से अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की। अर्जुन ने उसके दोनों हाथ पकड़ कर दीवार से लगा दिए। एक हाथ से उसके दोनों हाथ पीछे से पकड़ लिए, दूसरे हाथ से उसके बालों पर ले जाते हुए अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। कितनी देर तक वह उसके होंठों को चूमता रहा। अंबर छटपटाती रही। पर उसने नहीं छोड़ा। कितनी देर बाद उसने अंबर को छोड़ा और मुस्कुराने लगा। अंबर को उसने अभी भी दीवार पर लगाया हुआ था। "...मुझे ना सुनने की आदत नहीं है... अगर तुम यही सब कुछ करना चाहती हो... फिर ना कह सकती हो... वरना चुपचाप जाकर तैयार हो जाओ... नहीं, तुम कहो तो हम कमरे में चलते हैं... एक बार और ना कह कर देख लो..." वह अंबर से मुस्कुराता हुआ कहने लगा। अंबर वहाँ से भाग गई। वह आकर रोने लगी। उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। वह अपनी एक्सरसाइज भी कर बैठा था। उसे अंबर से प्यार करना तो अच्छा लगा था, मगर वह यह सब उसकी मर्जी से करना चाहता था, किसी जोर-जबर्दस्ती से नहीं। वह उसे अपना बनाना चाहता था। अंबर ब्रेकफास्ट करने टेबल पर भी नहीं आई। अर्जुन ने अनीता से कहकर उसका नाश्ता रूम में भिजवा दिया था। अर्जुन को अंबर की फिक्र होने लगी थी, मगर वह अंबर के सामने खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहता था। वह जानता था कि उसे अंबर को अपना बनाने के लिए उसे जोर-जबर्दस्ती करनी पड़ेगी। इतनी आसानी से मानने वालों में से अंबर नहीं थी। अगर वह जिद्दी नहीं होती तो शायद अवंतिका को भी इस दुनिया में नहीं ला पाती। वह सोच रहा था जैसे अंबर ने अवंतिका को इस दुनिया में लाने के लिए जिद की थी, अब वही जिद वह अंबर को अपनी जिंदगी में लाने के लिए करेगा। असल में वह देख रहा था कि अंबर इन दिनों कैसे कपड़े पहन रही थी। अर्जुन मल्होत्रा की पत्नी थी, उसे उसी तरह के कपड़े पहनने चाहिए थे। वह पुराने कपड़े उसे बिल्कुल भी उस पर अच्छे नहीं लग रहे थे। और वह आते समय दो छोटे-छोटे बैग ही लेकर आई थी। एक में अवंतिका का सामान था और एक में उसका। जिस दिन उसने अवंतिका के लिए शॉपिंग की थी, उस दिन वह उसके लिए शॉपिंग करना चाहता था। मगर उसकी हर बात के लिए ना सुनकर वह चुप कर गया। तब वह सोचने लगा था कि वह क्या करे? जिससे अंबर मान जाए, और उसे रास्ता मिल गया था। अब उसे पता था कि उसकी ना को कैसे हां में बदलना है। यह सोचकर वह खुश था। ब्रेकफास्ट के बाद जब अर्जुन तैयार हो गया, उसने अनीता से कहा कि वह रूम में जाकर अंबर को बुला लाए। अनीता के बुलाने पर अंबर आ गई। उसने कपड़े तो ठीक पहने थे, मगर कोई मेकअप नहीं किया था। अर्जुन बोला, "...प्लीज अंबर, फेस पर थोड़ा मेकअप भी कर लो और... साथ में जो बाल बांधे हैं, इन्हें भी खुला छोड़ दो..." तुम मेरे साथ बाहर जा रही हो।" इससे पहले अंबर कुछ बोलती, अर्जुन फिर बोला, "...मुझे ना मत कहना... सोच समझकर बोलना..." अंबर समझ गई थी कि अगर उसने ना बोला तो वह क्या करेगा। वह गुस्से में पैर पटकती हुई कमरे में चली गई। फिर थोड़ी देर बाद वह हल्का सा मेकअप और बालों को खुला छोड़कर वापस आ गई। अर्जुन उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराया और उसका हाथ पकड़कर घर से बाहर चला गया। उसने शहर के सबसे बड़े मॉल के आगे अपनी गाड़ी रोकी। अर्जुन गाड़ी से उतर गया, मगर अंबर वैसे ही बैठी रही। अर्जुन ने उसकी साइड वाला दरवाजा खोलकर उससे बोला, "...चलो बीवी, अब गाड़ी से उतरो..." एक तो वह पहले ही तप रही थी, फिर अर्जुन का यूँ उसे बीवी कहना और तपा गया। गाड़ी से उतरते ही अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ लिया। वह अंबर का हाथ पकड़े हुए ही मॉल में दाखिल हुआ। वहाँ पर लोगों की नज़र उन दोनों पर थी। लोग अर्जुन को जानते थे। वे देख रहे थे कि उसके साथ में जो लड़की है, वह कौन है? अंबर अपना हाथ छुड़ाने लगी, "...आप मेरा हाथ छोड़िए... सब हमारी तरफ ही देख रहे हैं..." "...देखते हैं तो देखने दो... आखिर तुम मेरी वाइफ हो... कोई मैं तुम्हें भगाकर नहीं लाया... जो मैं लोगों से डरता रहूँ..." अर्जुन ने उसका हाथ छोड़कर उसके कमर में हाथ डाल लिया। फिर अंबर ने भी उसका कोई विरोध नहीं किया। वह जानती थी अर्जुन वही करेगा जो उसका मन मानेगा। सबसे पहले वह अंबर को साड़ियों के सेक्शन की तरफ ले गया। वहाँ पर उसने अंबर के लिए काफी साड़ियाँ खरीदीं। उनमें से कुछ सीफ़ोन की थीं, तो कुछ लहरिया, कुछ भारी बनारसी, तो कुछ कढ़ाई वाली, तो कई प्लेन थीं। "...मुझे इतनी साड़ियों की ज़रूरत नहीं है..." अंबर ने अर्जुन से कहा। "...इतनी तो तुमने ले ही लो..." फिर अंबर ने उसे कुछ नहीं कहा। उसके बाद उन्होंने कुछ डिज़ाइनर सूट खरीदे। बहुत खूबसूरत रंगों के सूट थे। कोई व्हाइट था तो कोई रेड, कुछ सूट सिंपल प्लेन थे तो कुछ कढ़ाई वाले थे। कभी अंबर सूट-सलवार बहुत शौक से पहनती थी। अर्जुन ने उसके लिए कुछ जींस और टॉप और कुछ खूबसूरत कुर्ते भी खरीदे, जिन्हें वह जींस और प्लाज़ो के साथ पहन सकती थी। इतनी सारी शॉपिंग करते हुए बीच-बीच में अंबर महसूस कर रही थी जैसे कोई उनकी फ़ोटो खींच रहा है। जब आस-पास देखती तो कोई नहीं होता था। वह धीरे से अर्जुन से बोली, "...मुझे ऐसा क्यों लग रहा है... कोई हमारी फ़ोटो खींच रहा है..." "...तो क्या हुआ बीवी... खींचता है तो खींचने दो... तुम शॉपिंग पर ध्यान दो..." "...हाँ ठीक है, अब बहुत शॉपिंग हो गई है... मैंने साड़ियाँ, सूट, टॉप सब ले लिए हैं... प्लीज अब घर चलते हैं..." अंबर अर्जुन से विनती करने लगी। "अभी तो बहुत शॉपिंग बाकी है बीवी। चलो पहले हम कुछ खाकर आते हैं।" वह उसे लेकर मॉल में ही बने हुए रेस्टोरेंट में चला गया। वहाँ पर बैठे हुए भी अंबर महसूस करती थी जैसे किसी की नज़रें उन पर हों। रेस्टोरेंट के बाद वह उसे ड्रेसेज़ वाले सेक्शन की ओर ले गया। ड्रेसेज़ को देखकर अंबर कहने लगी, "...मैं ऐसे कपड़े नहीं पहनती... मुझे यह नहीं चाहिए..." "...बीवी, पहले नहीं पहनती थी... मगर अब तुम्हें सब कुछ पहनना पड़ेगा... चुपचाप जिसे मैं कहता हूँ उन्हें ट्राई करो..." अंबर वह ड्रेस लेकर ट्राई रूम में चली जाती है। एक सेल्स गर्ल भी उसकी मदद के लिए साथ चली जाती है। वह ड्रेस पहनकर बाहर नहीं आती। सेल्स गर्ल आकर कहती है कि मैडम ड्रेस चेंज कर रही हैं, वे बाहर नहीं आएंगी। उसकी बात सुनकर अर्जुन खुद ही सीधा ट्राई रूम में चला जाता है। सामने खड़ी अंबर को देखता है उसने घुटनों तक शॉर्ट ड्रेस पहनी हुई थी, जिसका आगे से गला बहुत ज़्यादा डीप था। उसका पूरा क्लीवेज दिख रहा था और पीछे से भी पूरी डीप नेक ड्रेस थी। उसकी गोरी पीठ दिखाई दे रही थी। अर्जुन को देखकर अंबर खुद को आगे से हाथों से छुपाती हुई दूसरी ओर घूम गई। अब अर्जुन के सामने उसकी खुली गोरी पीठ दिखाई दे रही थी। अंबर चाहे खुद को छुपाने के लिए घूम गई थी, मगर सामने मिरर में से अर्जुन को उसका डीप गला दिखाई दे रहा था, जो अर्जुन को बहकाने के लिए काफी था। वह उसे एकटक खड़ा देखता रहा। फिर धीरे से उसने उसके बाल साइड पर करते हुए गोरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए। फिर वह उसकी पूरी गोरी पीठ को हौले-हौले चूमने लगा। उसका एक हाथ आगे से अंबर की ड्रेस में चला गया। वह धीरे-धीरे से अपने हाथ से उसकी ड्रेस में हरकत करने लगा। अंबर के पूरे शरीर में एक झनझनाहट सी दौड़ गई। उसे उम्मीद नहीं थी कि अर्जुन उसके साथ ऐसा करेगा। उसे तो लगता था कि एक तीन साल के बच्चे की माँ के शरीर में उसे कोई दिलचस्पी नहीं होगी। उसने खुद को अर्जुन से छुड़ाना चाहा, मगर उसे तो कोई होश ही नहीं था। वह उसकी गोरी पीठ को पूरी शिद्दत से चूमने लगा था। अंबर के जिस्म की खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। उस पर उस रात की तरह मदहोशी छा रही थी। अर्जुन का हाथ जो आगे से अंबर की ड्रेस में हरकत कर रहा था, उसकी हरकत बढ़ गई थी। अंबर को डर लगने लगा था क्योंकि वह पूरी तरह से अर्जुन के हवाले थी। अब अर्जुन आगे क्या करेगा? क्या अंबर अपने आपको उससे बचा लेगी? अगर आप अंबर और अर्जुन के रोमांस का कोई बड़ा सा पार्ट पढ़ना चाहते हैं तो उसके लिए प्लीज कमेंट करें। अगर आपका कोई कमेंट नहीं आएगा तो स्टोरी अपनी चाल से चलेगी। अगर आप लोग चाहेंगे तो हम अंबर-अर्जुन के रोमांस का...
अर्जुन का हाथ, जो आगे से अंबर की ड्रेस में हरकत कर रहा था, उसकी हरकत बढ़ने लगी थी। अंबर को डर लगने लगा। अब वह पूरी तरह से अर्जुन के हिसार में थी। अर्जुन ने अपना एक हाथ अंबर के पेट पर घुमाते हुए अपने साथ लगा लिया था। अंबर अपने आप को छुड़ाना चाहती थी, मगर अर्जुन उसकी बात नहीं सुन रहा था। अंबर ने अपना एक पैर जोर से अर्जुन के पैर पर मारा। जिससे अर्जुन को एकदम से होश आया। "...सॉरी, मुझे पता नहीं चला...", वो अपने बालों में हाथ फिराता हुआ बाहर आ गया। अंबर भी कपड़े बदलकर उसके पीछे-पीछे आ गई। "...जो ड्रेस आपको अच्छी लगे, आप ले लो। मैं कोई ड्रेस ट्राई नहीं करूंगी...", वह गुस्से से बोली। अर्जुन ने उसके लिए वहाँ से कई ड्रेस खरीदीं, जो काफी शार्ट एंड सेक्सी थीं। वह अपने मन में सोचने लगा, "...कोई बात नहीं...आज नहीं तो कल...बीवी, तुम इन ड्रेसों को पहनोगी..."। वह फिर बोल पड़ा, "...अरे बीवी, यह ड्रेस तो ट्राई कर लेती..."। उसकी बात सुनकर अंबर उसकी तरफ आँखें निकाल कर देखने लगी। "...हमें इन नशीली आँखों से क्यों डरा रही हो? हम तो पहले ही इनमें डूब चुके हैं...", अर्जुन अंबर से कहने लगा। अंबर ने कोई भी शार्ट ड्रेस ट्राई नहीं की। अर्जुन ने उसके साइज़ के हिसाब से उसके लिए कई शार्ट्स और क्रॉप टॉप्स भी ले लिए। काफी शाम हो चुकी थी। अंबर बहुत थक गई थी। फिर घर से अवंतिका का भी फ़ोन आ रहा था। "...प्लीज़ अर्जुन, अब हम घर चलें...", अंबर अर्जुन से कहने लगी। "...बस अब तुम्हारे केवल नाइट सूट्स देख लें...उसके बाद चलते हैं...", वह अंबर का हाथ पकड़कर उसे नाइट ड्रेस सेक्शन में ले गया। वहाँ पर उसने उसके लिए लोअर और टी-शर्ट के साथ-साथ सेक्सी नाइटी और हाफ पैंट और क्रॉप टॉप भी लिए। "...मैं सिर्फ़ लोअर टी-शर्ट पहनती हूँ...मैं नाइटी और हाफ पैंट नहीं पहनती...", वह अर्जुन से कहने लगी। "...कोई बात नहीं बीवी, मत पहनना...मगर एक बार मुझे ले लेने दो...", अर्जुन ने उसके मना करने के बाद भी वो सारी नाइट ड्रेस ले लीं। जब वे लोग वापस आ रहे थे, तो अर्जुन अंबर से कहने लगा, "...अंबर, हम कल दोपहर के बाद बाज़ार चलेंगे। सुबह मेरी एक ज़रूरी मीटिंग है..."। "...कल किसलिए? आज शॉपिंग कर ली मैंने...", अंबर ने कहा। "...बीवी, आज हमने सिर्फ़ कपड़े लिए हैं। आपके जूते, ज्वेलरी, मेकअप का सामान और एक्सेसरीज़...वह सभी सामान रह गया है...इसलिए हम कल दोपहर के बाद बाज़ार चलेंगे...और मुझे ना नहीं सुनना है...इस बार इस बात पर फिर कोई चर्चा नहीं होगी...जो बात मैंने कह दी, वही होगी...", उसकी बात सुनकर अंबर को बहुत गुस्सा आया। वह आज वाली अर्जुन की हरकत भुली नहीं थी। घर पहुँचते-पहुँचते वे काफी लेट हो गए थे। अवंतिका उनका इंतज़ार कर रही थी। दोनों को देखकर वह उनके गले लग गई। "...पता है...आप लोगों ने कितनी देर कर दी...मैं आपका कितना वेट कर रही थी...", अवंतिका बोली। "...मैंने तो मम्मा से कहा था...कि वो जल्दी करें...मगर मम्मा ने शॉपिंग करते हुए इतना टाइम लगा दिया...", अर्जुन अंबर की तरफ़ देखता हुआ अवंतिका से कहने लगा। तब तक अर्जुन के आदमी अंबर का सारा सामान, जिसकी शॉपिंग हुई थी, उठाकर घर में आ गए। उन्होंने अंबर के रूम में रखकर चले गए। अर्जुन की बात सुनकर अंबर अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके उसकी तरफ़ देखने लगी। "...यह आदमी कितना झूठ बोलता है...मेरी वजह से कहाँ देर हुई? देर तो इसकी वजह से हुई...क्या ज़रूरत थी...मेरे लिए पूरा माल खरीदने की...", वह सोचती हुई गुस्से में पैर पटकती कमरे में चली गई। अंबर अपनी आँखें जब बड़ी-बड़ी करके अर्जुन की तरफ़ देखती थी, तो उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगता था। वह उसकी आँखों में डूबने को तैयार था, मगर वह जानता था अंबर अभी उसे अपने पास नहीं आने देगी। रात को अवंतिका अर्जुन के पास आकर बोली, "...पापा, मैं आपके साथ सो जाऊँ..."। "...यह भी कोई पूछने की बात है? मेरी प्रिंसेस आज मेरे पास सोएगी...", उसने अवंतिका को अपने साथ सुला लिया। अंबर उसे ढूँढती हुई अर्जुन के रूम में आ गई। "...अरे, यह तो सो गई...मैं इसे उठाकर ले जाऊँ...", अंबर अर्जुन से बोली। "...सोने दो ना...मुझे अच्छा लग रहा है...तुम भी यहीं सो जाओ...", यह कहकर अर्जुन अंबर की तरफ़ देखने लगा। "...नहीं, कोई बात नहीं...मैं अवंतिका के रूम में जा रही हूँ...अगर रात को उठी, तो मुझे फ़ोन कर देना...", वह कहती हुई वहाँ से चली गई। अर्जुन मन में सोचने लगा, "...कोई बात नहीं अंबर...आज नहीं तो कल मैं तुम्हें अपने पास ले ही आऊँगा...मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ...तुम सोच भी नहीं सकती...मुझे अवंतिका और तुम दोनों अपनी ज़िंदगी में चाहिए...मैं तुम्हें रानियों की तरह रखूँगा...जो टाइम बुरा था...तुम पर...वह बीत गया...मगर अब देखना कैसे खुशियों से मैं तुम्हारी ज़िंदगी भर दूँगा...मुझे पता है तुम्हें मनाने में थोड़ा टाइम लगेगा...मगर मैं तुम्हें मना ही लूँगा...क्योंकि हम दोनों की जान तो अवंतिका में बसती है...वह ही हम दोनों को जोड़ेगी...और मैं अपनी प्यारी बेटी को भी ज़िंदगी में कोई दुःख नहीं होने दूँगा...मेरी बेटी हमेशा राजकुमारियों की तरह रहेगी...अब मैं तुम दोनों के साथ हँसी-खुशी ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ...मुझे किसी और लड़की से कुछ नहीं चाहिए...अब तो मुझे अपनी बाहों में केवल तुम ही चाहिए...मुझे पता है हमारी उम्र का काफी फ़र्क है...तुम मुश्किल से 24 साल की हो और मैं 34 का हूँ...तो मुझसे कम से कम 10 साल छोटी हो...मगर सच में मैं इतना खुश रखूँगा...तुम्हें हमारी उम्र का कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा..."। अंबर उन बाप-बेटी को अकेले छोड़कर आ गई थी। वह अवंतिका की खुशी देख रही थी। अंबर को दिख रहा था, "...कैसे अर्जुन उससे लाड़-प्यार कर रहा है...कैसे वह अवंतिका पर जान छिड़कता है...सच में यही चाहिए था उसे अवंतिका के लिए..."। वह दोनों के पास रुकना चाहती थी, मगर उसे अर्जुन की शरारतों से डर लगता था। अंबर को याद था कैसे उसने अंबर को किस किया था। तब उसे बहुत गुस्सा आया था। फिर बाद में वहाँ पर तो उसने हद ही कर दी थी। वह आँखें बंद करके माल वाली बात सोचने लगी। उसे कितनी शर्म आई थी जब अर्जुन एकदम से ट्राई रूम में आ गया था। उसकी ड्रेस का गला आगे से और पीछे से इतना डीप था। वह अपने आप को छुपाते हुए घूम गई थी। मगर वह कितनी शिद्दत से उसकी पीठ को चूम रहा था। उसने अपना हाथ आगे से उसकी ड्रेस में डाल दिया था। उसकी तो जान ही निकल गई थी। उसे वह कितने साल पहले वाला अर्जुन याद आ गया था। मगर यह भी सच था...उसकी ज़िंदगी में उसे अर्जुन के सिवा किसी ने नहीं छुआ था। एक पल के लिए तो वह खुद भी मदहोश होने लगी थी। वह सोने ही लगी थी कि निहारिका का फ़ोन आ गया। "...मैंने तुम्हें कितने फ़ोन किए...कहाँ थी तुम? मुझे तुम्हारी फ़िक्र होने लगी थी...", अंबर का फ़ोन उठाते ही निहारिका गुस्से से बोली। "...सॉरी यार, मेरा फ़ोन साइलेंट पर था...मैं शॉपिंग करने के लिए बाज़ार गई थी..."। "...अवंतिका और तुम दोनों गए थे क्या? जान मेरे जीजू तुम्हें लेकर गए थे...", उसने 'जीजू' शब्द का इस्तेमाल अर्जुन के लिए किया था। निहारिका के अर्जुन को 'जीजू' कहने पर अंबर को गुस्सा आ गया। "...तुम अर्जुन को जीजू क्यों कह रही हो?", अंबर ने पूछा। "...क्यों नहीं कहूँगी? और क्या? शादी की है उसने तुमसे? छोड़ इस बात को...पहले यह बताओ तुम किसके साथ शॉपिंग करने गई थी...", निहारिका ने जवाब दिया। आपको अगर कहानी पसंद आ रही है तो प्लीज़ कमेंट करें।
...क्यों नहीं कहूंगी... उसने शादी की है तुमसे... इस बात को छोड़... पहले यह बता... तू किसके साथ गई थी शॉपिंग करने..."। "..मैं कहां गई थी... अर्जुन जबर्दस्ती ले गया था... मैं क्या बताऊं तुम्हें... सारा माल ही उठा लाया..।" यह अच्छा है... एक तो तुम्हारे लिए इतनी शापिंग की... दूसरा तुम उस के लिए ऐसा बोल रही हो...।" निहारिका की बात सुनकर अंबर गुस्से से बोली,"... तुम उसकी साइड ले रही हो.. तुम्हें पता उसने मेरे साथ क्या किया.."अंबर गुस्से में बोल गई।"... क्या किया ...मतलब ...पूरी बात बताओ अंबर..." निहारिका को कुछ कुछ समझा आने लगा था। अंबर ट्राई रूम की बात किसी को नहीं बताना चाहती थी। मगर गुस्से में उसके मुंह से यह बात निकल गई थी। उसे निहारता को पूरी बात बतानी पड़ी । उसकी पूरी बात सुनकर निहारिका जोर जोर से हंसने लगी।"... कमाल की बात करती हो... मैं तुम्हें अपना दुख बता रही हूं... तुम हंस रही हो... निहारिका तुम बदल गई हो... पहले तुमने मेरी कितनी हेल्प की थी..."। "...मैं बदली नहीं हूं ..पर ठीक है... पहले तो मुझे एक बात बताओ ...तुम तो कहती थी बच्चे की मां में उसे कोई इंटरेस्ट नहीं होगा... तो अब बताओ उसे तुझ में कितना इंटरेस्ट है... मुझे तो लगता है उस पर उस रात का जादू अभी तक गया ही नहीं... ऐसा क्या किया था... तुमने 4 साल पहले..." निहारता उससे कहने लगी। "...तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आ रही है.. यह सब बातें करते हुए..." अंबर ने गुस्से से उससे कहा। "...देखो अंबर... एक बात मेरी समझ में आ रही ...कि वो तुम्हें पसंद करता है... इसीलिए तुम्हें भी अपने साथ रख रहा है... इसीलिए उसने तुमसे कोर्ट मैरिज की है... मैं ये नहीं कहती... कि उस रात उस ने तुम्हारे तुम्हारे साथ जो किया वह ठीक था... मगर हम अपनी सारी जिंदगी दर्द में तो नहीं जी सकते... तुम्हें भी खुश होने का हक है ...मैं तुझे यही कहूंगी... अगर वो एक कदम आगे बढ़ा रहा है ...तो दो तुम दो कदम आगे बढ़ जाओ... उसकी पत्नी और उसके बच्चे की मां के रूप में उसके साथ उसके घर में रहो... इन सब बातों में कुछ नहीं रखा...।" "...क्या तुम्हें पता है... कि तुम क्या बोल रही हो... होश में हो... मैं उसे ऐसे कैसे माफ कर सकती हूं ... वो एक प्लेबॉय है ...उसे रोज नई लड़कियां चाहिए... ऐसा नहीं है कि मैं अकेली हूं उसकी जिंदगी में... पता नहीं कितनी अंबर। आई होंगी उसकी जिंदगी में... और पता नहीं ...अभी भी कितनी लड़कियां हैं उसकी लाइफ में..." उसकी बात सुनकर अंबर जवाब देने लगी। "... देखो तुम उसकी बेटी की मां हो... इसलिए हमेशा तुम उसकी जिंदगी रहोगी... अगर तुम उस से ऐसे दूरी बनाकर रखोगी... तो जरूर कोई लड़की के पास आएगी... जां वो किसी लड़की के पास जाएगा ... आखिर वो एक हैंडसम नौजवान है... उसकी भी कुछ जरूरतें हैं... अगर उसकी सारी जरूरतें तुम पूरी करो... तो वो बाहर क्यों जाएगा ...अंबर अपना घर संभाल... उस से दूर मत जाना. ..उसको सिर्फ अपना बना कर रखो ... तुम अकल से काम लो..."। निहारिका उसे समझाने लगी। "... निहारिका तुम ऐसी बातें मत करो... मैं ऐसा नहीं कर सकती... मैं उस रात को कभी नहीं भूल सकती.."अंबर बोली। "...देखो अब जो उस रात हुआ... तुम उस बात को बुरा सपना समझ कर भूल जाओ... अगर उस रात को याद रखोगी... तो तुम्हें बहुत मुश्किल हो जाएगी... और वैसे भी अगर तुम उस से दूरी बनाओगी... तो वो किसी न किसी के पास तो जाएगा ...इस बात का असर अवंतिका की लाइफ पर भी पड़ेगा ...कल बड़े होकर अवंतिका तुम्हें माफ नहीं करेगी...।" रात को फोन काटने के बाद भी अंबर बहुत देर तक निहारिका की बातों के बारे में सोचती रही। वो सब कुछ बर्दाश्त कर सकती थी मगर अवंतिका की लाइफ में जो खुशी आई थी । वो खुशियां उसकी वजह से खत्म हो जाए। कभी नहीं सोच सकती थी। फिर भी वो अर्जुन को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी। फिर अर्जुन ने उसके सामने उस रात को लेकर कोई गलती भी फील नहीं की थी ।उसने एक बार भी नहीं कहा था कि उसने अंबर के साथ बहुत गलत किया था। अभी थोड़े ही तो दिन हुए थे अर्जुन को उसकी जिंदगी में आए। वो सोचने लगी आगे चलकर देखते हैं। अर्जुन उसके साथ कैसे रहता है ?फिर वो कोई फैसले पर पहुंचेगी यह सभ सोचते हुए उसे बहुत लेट नींद आई। सुबह उसकी आंख बहुत लेट खुली। उसने देखा तो धूप निकल चुकी थी। जब वो अवंतिका से नीचे लाबी में जाने लगी। लॉबी में सोफे पर अर्जुन के पास कोई बैठा हुआ था। अवंतिका के पीछे रीटा नाश्ता लेकर भाग रही थी, उसे खिलाने के लिए । अंबर को सीढ़ियों से नीचे उतरता देकर अर्जुन बोला,"... गुड मॉर्निंग बीवी.. बहुत लेट हो गया आज उठने में.."। अर्जुन के पास जो आदमी बैठा था ।वो खड़ा हो गया,".. गुड मॉर्निंग भाभी जी..। अंबर ने उन दोनों की गुड मॉर्निंग का जवाब दिया और किचन में जाने लगी। उसे किचन में जाता देख अर्जुन ने उसको आवाज लगाई,"... अंबर जरा इधर आना .. मैं तुमसे किसी को मिलाना चाहता हूं...। अर्जुन की आवाज सुनकर अंबर उन लोगों के पास आने लगी। बीच में उसे अपने कपड़ों का ख्याल आ गया ।उसमें लोअर टी शर्ट पहना हुआ था जो दिखने में पुराना लग रहा था। जब उसने एक बार अपने कपड़ों को देखा फिर अर्जुन की तरफ देखा तो अर्जुन मुस्कुरा दिया। अर्जुन ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया। वो उसके पास जाकर बैठ गई। "...इन से मिलो अंबर... यह मेरा पीए सौरभ मित्तल है... यह बहुत इंटेलिजेंट आदमी है... कह सकती हो कि 10 सिरों वाला रावण है... मेरे इतने बड़े बिजनेस को संभालने में मेरी बहुत हेल्प की है ..तुम्हारे और अवंतिका के पास भी मैं इसी की हेल्प से पहुंचा था... तुम्हारे साथ कोर्ट मैरिज का आईडिया किसी का था..." अर्जुन सौरभ मित्तल की तारीफ कर रहा था। सौरव मित्तल उम्र में अर्जुन से चार साल छोटा होगा। काफी स्मार्ट आदमी था वो।दिखने में पर्सनैलिटी काफी अच्छी थी। "...भाभी जी मैं आपसे मिलना चाहता था... इसीलिए आपको जो सामान देना था... मैं वह खुद लेकर आया हूं... वरना यह सारा सामान तो आपसे कोई भी आकर दे सकता था..." सौरभ अंबर से बोला। "...यह लीजिए भाभी जी यह आपका नया आधार कार्ड है ...आप कितने सालों से इंडिया से बाहर थी... इस नए आधार कार्ड पर अर्जुन सर के नाम की एंट्री की गई है... ये अवंतिका का आधार कार्ड है ...ये आपका बैंक अकाउंट के कुछ कार्ड हैं... और आप मुझे अपना पासपोर्ट दे दीजिए..." उसकी बात सुनकर अंबर बोली,"... वो किसलिए...""... अब आपके पासपोर्ट पर अर्जुन सर के नाम की एंट्री भी होगी... वो आपका शादी से पहले का पासपोर्ट है..." सौऊ मित्तल नंबर बोला। अंबर ने उसे अपना पासपोर्ट दे दिया। सौरभ मित्तल चला गया ।उसके जाने के बाद अर्जुन अंबर से बोल,"... अंबर तुम ने पुराना नाइट सूट क्यों पहना है...""... मैं रात बहुत थक गई थी... मैंने कोई भी सामान बाहर नहीं निकाला... आज पहन लूंगी...""... ठीक है ...देखो तूम जहां मेरी बीवी की हैसियत से हो...कुछ भी ऐसा मत करना जिससे मेरी बेइज्जती हो.. मैं चाहता हूं ...तुम हमेशा अच्छे से तैयार होकर रहो... जहां पर बहुत लोग आएंगे तुमसे मिलने के लिए... किसी को तुम्हें देखकर ऐसा ना लगे कि मैंने तुम्हें जबरदस्ती जहां रखा हुआ है... मेरी भी कोई इज्जत है.." अर्जुन उसे समझाता हुआ बोला। अर्जुन ऑफिस चला गया । अंबर का दिमाग वही अटका हुआ था। जब सौरभ मित्तल ने उसे भाभी कहा था। सौरभ मित्तल के भाभी कहने से वो समझ रही थी कि वह अर्जुन की वाइफ के रूप में उसे इज्जत दे रहा है। दोपहर को वह कुछ भी तैयार हो गई थी। अवंतिका और रीटा भी उस के साथ जा रही थी। अर्जुन उस से कह गया था कि वह 2:00 बजे उन लोगों को लेने आएगा। दोपहर को सौरभ मित्तल ही उन लोगों को लेने आया था। उसने आकर अंबर को बताया था ,"... सर वही शॉप पर सीधा पहुंचेंगे... उनकी आज बहुत जरूरी मीटिंग आ गई थी.."। अवंतिका, रीटा और अंबर सौरभ मित्तल के साथ चले गए। अर्जुन उनके वहां पहुंचने से पहले ही ज्वेलरी शॉप में मौजूद था। अवंतिका भाग का उसकी गोद में चढ़ गई। वो अवंतिका को गोद में उठाता हुआ अंबर को देखने लगा। उसने ने रेड कलर का अनारकली सूट पहना हुआ था और खुले बालों में वो बहुत सुंदर लग रही थी। उसे देखकर अर्जुन मुस्कुरा दिया। उन्होंने वहां पर काफी ज्वेलरी खरीदी। अंबर के ना ना करते हुए भी अर्जुन ने उसके लिए डायमंड ज्वेलरी, पार्टी वियर ज्वेलरी, घर पहनने के लिए हल्के गहने खरीदे। ज्वेलरी शॉप के मालिक को अर्जुन ने अपनी वाइफ कहकर मिलवाया । अंबर को सचमुच अच्छा लगा। उसके बाद अर्जुन ने अंबर के लिए जूते खरीदे। फिर वो मेकअप का सामान और बैग, पर्स वगैरह खरीदते हुउ लेट रात को घर पहुंचे । रात का खाना भी वो लोग बाहर ही खा कर आए । अर्जुन ने पुरा टाइम जां तो अंबर का हाथ पकड़ा हुआ था ।जां उसकी कमर में अपना हाथ डाला हुआ था । अंबर ने भी उस का कोई विरोध नहीं किया। घर पहुंच कर जब उन्होंने ने टीवी आन किया तो टीवी चैनल पर अर्जुन और अंबर की ही न्यूज़ चल रही थी। ऐसी क्या बात है जो अंबर और अर्जुन दोनों टीवी पर आ रहे थे?। प्लीज मेरी स्टोरी पर कमेंट करें और साथ में रेटिंग भी दे। आपकी कमेंट और रेटिंग से हमें स्टोरी लिखने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।