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"His purchased love"

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Farheen Rajput

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शहर के सबसे बड़ी कंपनी का मालिक, जो बहुत ताकतवर था, वहीं वो एक साधारण परिवार की गोद ली हुई बच्ची थी। उसने हालातों की मार के चलते..... एक करोड़ रुपये के बदले..... उसके बच्चे को जन्म देने का फैसला किया। बच्चे के जन्म के दिन, बड़ा बेटा स...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. "His purchased love" - Chapter 1

    Words: 1533

    Estimated Reading Time: 10 min

    (मुंबई के एक बड़े हॉस्पिटल का दृश्य.....) हॉस्पिटल के कॉरिडोर में एक 19 साल की बेहद खूबसूरत और नाज़ुक से वजूद की लड़की अपना सर झुकाए बैठी थी! उसके साथ एक वेल–ड्रेस्ड पहने एक लेडी थी..... जिसने अपने एक हाथ में फोन और दूसरे हाथ में कुछ डॉक्यूमेंट्स पकड़े हुए थी! लेडी ने डॉक्टर्स के बताने और अपने हाथ में पकड़ी रिपोर्ट्स को अच्छे से देखने के बाद उस लड़की से कहा..... " मिस रूह..... रिपोर्ट्स के हिसाब से आपकी सारी डिटेल्स सही है। मेडिकल टेस्ट में आप पूरी तरह से फिजिकली फिट साबित हुई हैं, अब फाइनली कोई दिक्कत नहीं है तो हम प्रोसीजर आगे बढ़ा सकते है! "जी"..... रूह ने धीमे लहज़े में जवाब दिया.....! रूह 19 साल की एक स्टूडेंट थी! वो अपर मिडिल क्लास फैमिली से थी! लेकिन अचानक उसके पिता के बिज़नेस में दिवालिया निकलने से उनकी सड़क पर आने की नौबत आ गई थी! हालांकि अभी वो नाज़ुक सी लड़की इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की शर्तों को पूरा करने में कैपेबल नहीं थी। फिर भी उसके पास अपने पिता के बिज़नेस और घर को बचाने के लिए दूजा कोई चारा नहीं था.....!! "आप यहीं रुकें..... मैं अभी आती हूं"..... उस लेडी ने रूह से कहा तो रूह ने जवाब में हौले से गर्दन हिला दी! रूह वहीं बेंच पर चुपचाप बैठी थी! वो खिड़की के बाहर के नज़ारे को देखती रही। उसका चेहरा अजीब तरह से शांत था, फिर भी उसकी नम आँखों में गहरा अँधेरा था..... एक दर्द था..... जो साफ ज़ाहिर हो रहा था! रूह अपने नाज़ुक वजूद और मासूम चेहरे की वजह से अपनी उम्र से छोटी ही लगती थी,लेकिन उसकी आँखें इस कदर गहरी और सूनी थीं जैसे मानो उसने जिंदगी में बेहद उतार-चढ़ाव देखे हों जो बेशक उसकी उम्र से कहीं बढ़कर थे! "इस काम के लिए कहने को तो मैं लाखों में से एक चुनी गई हूं लेकिन शायद ही मुझ जैसा बदकिस्मत कोई दूजा होगा"..... रूह ने मन ही मन सोचा! वो सही सोच रही थी वो वाकई लाखों में से चुनी गई थी..... अपनी खूबसूरती..... अपने अट्रैक्टिव फेस के फीचर्स की वजह से! उससे चुनने वाले शख्स ने इस काम के बदले उसे पाँच मिलियन डॉलर की रकम ऑफर की थी..... हालांकि रूह ने उस आदमी को अभी तक देखा तक नहीं था..... ये सारी बातें उस लेडी के ज़रिए हुई थीं जो उस आदमी की मैनेजर थी! "चलो बॉस से बात हो गई है..... अब हमें निकलना है"..... उस लेडी मैनेजर ने रूह को इत्तिला देने के अंदाज़ में कहा! "जी चलिए"..... रूह ने बैंच से खड़े होते हुए जवाब दिया! रूह उस लेडी के साथ उस बड़ी सी शानदार गाड़ी की तरफ बढ़ गई जिसमें वो हॉस्पिटल आए थे! कुछ देर में वो वापस उसी जगह पहुंच गए जहां वो पिछले तीन दिन से रह रही थी! तीन दिन पहले,उसने अपने पिता से छुपा कर चुपके से एक कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर दिए जिसके बाद उसे इस जगह पर लाया गया। उसे हर दिन यहां इस कमरे में बंद कर दिया जाता था और बाहर किसी से भी कॉन्टैक्ट करने और उससे भी बढ़कर, बाहर जाने से सख़्त मना किया गया था! "हमेशा ये गुमनामी ये अकेलापन ही क्यों मेरे हिस्से आता है आखिर..... मैं ही क्यों बार –बार इस बदकिस्मती का शिकार बनती हूं??".......... रूह ने उस मद्धम रोशनी वाले बंद कमरे के दरवाज़े को घूरते हुए सोचा.....! वो जानती थी कि प्रेग्नेंसी के लिए उसे तैयार करने के लिए,उन्हें उसकी हैल्थ को फिट रखने की सख़्त ज़रूरत थी,ताकि उसका शरीर बच्चे को जन्म देने के लिए बेहतर रूप से तैयार हो सके। उसके लिए दिन में तीन तरह का खाना बनाया जाता था जो बहुत ही लज़ीज़ होता था! जिसमे वेज और नॉन वेज दोनों शामिल होते थे! वो जानती थी ये सारा खाना प्रेग्नेंसी की तैयारी कर रहे लोगों के लिए फायदेमंद हैं, इसलिए भले ही उसे वो खाना पसंद नहीं भी आता था तब भी उसे वो खाना जबरदस्ती निगलना पड़ता था! "जब से मैं यहां आई हूं लगता है कि मैं महज़ एक रॉबट हूं,जो बस दूसरों की मर्ज़ी के हिसाब से चल रही हूं, लेकिन मेरे पास मना करने का कोई ऑप्शन भी तो नहीं है ना,क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट में साफ लिखा था कि मुझे इनकी हर एक बात बिना किसी ऑब्जेक्शन के माननी ही होगी"..... रूह ने सोचते हुए खुद से ही सवाल किया फिर खुद ही बडबडा कर अपनी बात का जवाब भी दिया.....! रूह बिल्कुल सही कह रही थी वो कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के हिसाब से चल रही थी इसीलिए उसने किसी भी ऑर्डर या बात को ना मानने की कोशिश भी नहीं की थी! इसीलिए आज भी वो खुद को चुने गए उस आदमी के मैनेजर के साथ इस प्राइवेट हॉस्पिटल में गई थी जहां उसकी पूरी जांच की जा सके! "पता नहीं वो कौन है जिसे मैंने कुछ वक्त के लिए खुद को सौंप दिया है,मुझे तो उसके बारे में कुछ भी नहीं पता! लेकिन उसके अंदाज़ से लगता है कि वो आदमी कुछ मिस्टीरियस है मैंने उसे अभी तक एक बार भी नहीं देखा"..... खिड़की के बाहर देखती रुह ये सब सोचते हुए अनुमान लगा रही थी! रूह जब से इन लोगों से मिली थी..... कॉन्ट्रैक्ट पर साइन किए थे..... पिछले तीन दिन से यहां रह भी रही थी..... लेकिन अब तक वो उस आदमी से नहीं मिली थी जिसके लिए उसे चुना गया था..... उसे नहीं पता था कि वो कोई बूढ़ा है या जवान..... या वो कहां रहता है..... क्या करता है..... कुछ भी नहीं..... उसे कुछ भी नहीं पता था! "खैर जो भी हो मुझे उससे कोई लेना देना होना भी नहीं चाहिए! मैं सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट के बारे में जानती हूं जिसे पूरा करने के साथ ही पाँच मिलियन डॉलर की कीमत मिलेगी जो मेरे पिता को दुबारा से उबरने में मदद करने के लिए काफी होगी"..... रूह ने खुद से ही बड़बड़ाते हुए खुद को समझाया! हालांकि वो जो कुछ भी कर रही थी उसने अपने पिता से इस मामले का जिक्र तक करने की हिम्मत नहीं की थी। उसने घर छोड़ने से पहले एक अलविदा का नोट छोड़ दिया था जिसमें उसने कहा था कि वो जल्द ही वापस लौटेगी..... सरोगेसी के लंबे टाईम पीरियड के कारण वो शायद ही जल्द घर वापस लौट पाती! क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट की एक शर्त के अनुसार, उसे प्रेग्नेंसी के बाद डिलीवरी होने तक हर वक्त कड़ी निगरानी में रखा जाना था। जब यह शर्त पूरी हो जाएगी तो अगले दिन से पहले ही उसके पिता के बैंक अकाउंट में ये पांच मिलियन डॉलर जमा कर दिए जाते। हालांकि मैनेजर ने उसे कहा था कि अगर वो लड़का पैदा करती है, तो उसे उसे इससे अलग भी पैसे दिए जाएंगे! "सरोगेसी???..... हाहा... ये सच में बहुत फनी है"!..... रूह ने जैसे खुद पर ही तंज़ कसा था.....! हकीकत तो ये थी कि रूह ने पैसे कमाने के लिए हर तरह के ऑप्शन सोचे थे..... लेकिन अपना शरीर बेचना कभी उनमें शामिल नहीं था! हालाँकि उसके लिए यह एक बहुत बड़ी रकम थी और जब उसे इसका ऑफर मिला तो वो इससे इंकार नहीं कर सकी! घर के हालात और तंगी के कारण आखिर में उसने यह रास्ता चुन लिया। इस वक्त रूह जहां मौजूद थी वो समुद्र के किनारे एक शानदार समुद्री सुइट विला था! यहां से नज़र आने वाले खूबसूरत नज़ारो का अपना ही मज़ा था इसीलिए यहां की ज़मीन की कीमतें भी आसमान छूती थीं। "तुम तैयार रहना..... बॉस आज रात को यहां आ जायेंगे"..... मैनेजर ने दरवाज़े पर दस्तक देते हुए खिड़की के पास खड़ी रूह से कहा! रूह ने जवाब में हौले से अपना सर हिला दिया! मैनेजर के चुकी थी! रूह ने एक गहरी साँस ली। ये खबर सुनकर..... अब वो इन खूबसूरत समुद्री नज़ारे का लुत्फ़ उठाने के मूड में हरगिज़ नहीं थी। उसने खिड़की का पर्दा खींचा और भारी मन से सोफे पर आकर पसर गई! रात हो गई थी। आलीशान बेडरूम में पर्दे कसकर खींचे गए थे और सारी रोशनी बंद करके बिल्कुल अंधेरा कायम कर दिया गया था! "तुम नहा कर रेडी हो जाओ! बॉस किसी भी वक्त आते ही होंगे! ध्यान रहे उनके यहां आने से पहले तुम बिल्कुल तैयार रहो"..... मैनेजर ने जैसे रूह को एक फरमान सुनाया.....!!! "जी मैं समझ गई"..... रूह ने मुख्तसर सा जवाब दिया! कमरे में बिल्कुल पिन ड्रॉप साइलेंस था..... रूह ने गुलाब के फूलों के साथ बाथ लिया और फिर चुपचाप उस किंग साइज़ के बेड पर आकर लेट गई। "तुम्हें अपनी आंखों पर पट्टी बांधनी होगी"..... मैनेजर ने कमरे में दाखिल होते हुए एक पट्टी रूह की तरफ बढ़ा कर कहा! "लेकिन क्यों"..... रूह ने असमंजस से पूछ! "क्योंकि बॉस ऐसा चाहते हैं..... उनका हुकुम है ये"..... मैनेजर ने जवाब दिया! "ठीक है"..... रूह ने आगे बिना कोई सवाल किए कहा! पट्टी बांध कर मैनेजर जा चुकी थी! रूह वापस उस बेड पर लेट चुकी थी! एक तो कमरे में अंधेरा उस पर उसकी आंखों पर बंधी पट्टी..... रूह को ऐसा लगा जैसे वो सचमुच अंधी हो गई हो! हालांकि ऐसा करने के साथ ही उसकी सुनने की पावर बहुत बढ़ गई थी। इस वक्त बिस्तर पर लेटी वो समुद्र की हवा के चलने और लहरों के किनारे पर टकराने की आवाज़ भी साफ सुन सकती थी। हालांकि जगमगाती रोशनी और शहर की चहल-पहल के बिना महसूस होता ये सन्नाटा किसी के भी रोंगटे खड़े करने के लिए काफी था!

  • 2. "His purchased love" - Chapter 2

    Words: 1496

    Estimated Reading Time: 9 min

    इस वक्त बिस्तर पर लेटी रूह समुद्र की हवा के चलने और लहरों के किनारे पर टकराने की आवाज़ भी साफ सुन सकती थी। हालांकि जगमगाती रोशनी और शहर की चहल-पहल के बिना महसूस होता ये सन्नाटा किसी के भी रोंगटे खड़े करने के लिए काफी था! उसके ज़हन में इस वक्त बहुत उथल-पुथल मची हुई थी..... वो अपनी ज़िंदगी के अब तक के सफर के बारे में सोच रही थी.....! "मैंने कभी नहीं सोचा था,कि मेरी ज़िंदगी मे ऐसा भी कोई दिन आयेगा! मैंने सोचा था मैं खुद को उसे ही सौंपुगी जिससे मैं मोहब्बत करूंगी लेकिन हमेशा की तरह मेरी बदकिस्मती ने मुझसे मेरा ये ख़्वाब भी छीन लिया"..... रूह ने सोचते हुए अफसोस किया! उसका सोचना शायद सही भी था क्योंकि ज़िंदगी हमेशा उसकी परीक्षा लेती आई थी बल्कि अभी भी हर कदम पर उसे आज़मा ही रही थी..... उसे अचानक ही अपनी मां याद आई थी..... उनके बारे में सोचते हुए वो मन में ही बड़बड़ाई.....! "काश! मां आज आप मेरे साथ होती,तो शायद ज़िंदगी कुछ और ही होती लेकिन आपका साथ तो क्या किस्मत ने तो मुझसे आपकी आखिरी निशानी तक छीन ली! मुझे आज भी वो दिन याद है जब मुझसे आपकी आखिरी निशानी को छीना गया था"..... रूह ने बंद आंखों से अपने ज़हन में अतीत के पन्ने पलटे.....!! (ब्लास्ट फ्रॉम दी पास्ट).....!!! “मैं चोर नहीं हूँ!” नौ साल की एक लड़की बाकी सभी बच्चों के शक के दायरे में मुजरिम बनी खड़ी थी! उसकी बड़ी–बड़ी खूबसूरत आँखें लाल थीं जो कि अभी भी आंसुओं से भरी थीं! बेशक वो लड़की दिखने में बहुत खूबसूरत थी। लेकिन उसका शरीर बहुत कमज़ोर होने की वजह से वो कुपोषण का शिकार नज़र आ रही थी! " रूह तुमने चोरी की, तुम बेड गर्ल हो".....पहला बच्चा रूह की ओर देखते हुए घृणा से बोला.....! "हां,तुम गंदी हो,अब हम सब से दूर ही रहना".....दूसरे बच्चे ने दुत्कारते हुए कहा.....! "हां,सही कहा तुमने,अब हम इससे बात ही नहीं करेंगे!ये एक चोर है"..... तीसरे बच्चे ने उसी घृणा भरे लहज़े से बोलते हुए बाकि दो बच्चों का साथ दिया.....! सबको अपनी ओर नफरत और गिरी हुई नज़रों से देखता पाकर रूह को लगा कि ये उसके साथ सरासर अन्याय हो रहा है! उसने रुआंसी होकर एक दूसरी लड़की की ओर इशारा करते हुए..... लगभग घुटकर अपनी चुप्पी तोड़ी.....!!! "मैनें कुछ भी नहीं किया! चोर ये है!ये लॉकेट मेरा है! मेरा य..... यकीन करो..... मैं... मैं चोर नहीं हूँ! मेरी माँ ने इस लॉकेट को मेरे लिए छोड़ा था"..... रूह ने लगभग रुआंसी होकर कहा.....! "तो तुम ये कहना चाह रही हो कि मैंने तुम्हारा सामान चुराया है"?..... उस दूसरी लड़की ने कुछ तुनक कर कहा.....! उसके सामने खड़ी लगभग उसी की उम्र की उस लड़की ने ठंडी निगाहों से रूह को देखा और फिर दूसरे बच्चों की तरफ मासूमियत से मुस्कुराने लगी। रूह की तुलना में वो दूसरी लड़की बहुत ही कॉन्फिडेंट और डॉमिनेट लग रही थी! मानो जैसे वो कहीं की छोटी राजकुमारी हो जिस पर सभी का प्यार बरस रहा था! "बोलो रूह अगर तुम नहीं तो क्या मैं चोर हूं"??..... उस दूसरी लड़की ने भौंहें उचका कर कहा.....! " हां..... तुम ही चोर हो".... रूह ने एक बार फिर रुआंसी होते हुए जवाब दिया.....!! जैसे ही रुह ने ये बात कही..... आसपास के बच्चे तुरंत उस लड़की के बचाव में आगे आ गए.....! "तुम साफ़ झूठ बोल रही हो! झूठी हो तुम! आखिर प्रिंसेज तुम्हारा सामान क्यों चुराएगी?..... एक बच्चे ने आगे आते हुए कहा.....! "बिल्कुल ठीक कहा तुमने! ये इंपॉसिबल है! प्रिंसेज चोर कैसे हो सकती है??..... जाहिर है, यह रूह ही है जिसने उसकी चीज़ चुराई है"..... एक दूसरे बच्चे ने उसका समर्थन करते हुए कहा.....! इन बच्चों की तरह ही बाकी बच्चों ने भी रूह को ही गलत ठहराया..... उसे ही चोर साबित किया..... उन सब की तमाम नफरत और सवालों का सामना करते हुए, रूह चाह कर भी अपने बचाव में कोई खास एक्सप्लेनेशन नहीं दे पाई। वो बस आखिर में असहाय सी बेहद दुखी होकर फूट-फूट कर रोने लगी। "ये सच में मेरा है..... मेरी मां की आखिरी निशानी..... इसे वापस दे दो प्लीज़".... रूह ने रोते हुए प्रिंसेज कहे जाने वाली उस लड़की से कहा.....! प्रिंसेज ने रूह की बात सुनकर उसे घूरा! फिर वो बाकी लोगों की तरफ मुड़ी और उसने अपनी चुप्पी तोड़ी.....! "तो अब साबित हो गया है..... कि रूह ही चोर है! अब उसके साथ कोई भी नहीं खेलेगा! क्योंकि चोर बुरे होते हैं"..... प्रिंसेज ने जैसे सब बच्चों के लिए एक फरमान जारी करते हुए कहा.....! प्रिंसेज की बात सुनकर सब बच्चों ने सहमति में ज़ोर से अपना सिर हिलाया। "उह-हह!..... प्रिंसेस सही कह रही है..... सभी उनकी की बात सुनेंगे"..... कई बच्चो ने एक साथ रूह की ओर देखकर प्रिंसेज का समर्थन किया.....! "हां! आगे से सब इस रूह को नज़रअंदाज़ करेंगे..... सब याद रखेंगे कि ये एक चोर है"..... एक बच्चे ने कहा.....! "हां..... तुम एक चोर है! तुम एक बुरी लड़की हो रूह! तुम्हें शर्म आनी चाहिए,तुमने प्रिंसेज की चीज़ चुराई"..... एक दूसरे बच्चे ने कहा.....! "चोर.....चोर.....चोर.....चोर.....चोर"..... एक –एक कर सब बच्चे एक साथ रूह को चोर कहकर पुकार रहे थे..... धीरे –धीरे बच्चे तितर-बितर होते ही जोर-जोर से उस पर हंसने लगे। अकेली असहाय सी रूह दीवार के सहारे टिकी खड़ी हुई थी। उसने दूसरे बच्चों की पीठ को देखते हुए..... अपने आंसू रोकने की ज़ोरदार कोशिश के साथ..... अपनी मुट्ठियाँ कसकर भींच लीं थी हालांकि अंदर से वो बुरी तरह टूट रही थी.....! (फ्लैशबैक एंड).....!!! रूह अभी अपने ज़हन में अतीत के पन्ने पलट ही रही थी कि अचानक इस गहरे सन्नाटे के बीच बाहर गाड़ी रुकने की आवाज़ से वो चौंकी! वो फौरन ही अतीत से आज में लौट आई थी.....! "क्या ये वही है जिसके लिए मुझे यहां लाया गया है??..... रूह ने धड़कते दिल के साथ मन ही मन सोचा.....! उस आदमी के बारे में सोचते ही जो एक तरह से एक अरसे के लिए उसका खरीदार था..... रूह का दिल अचानक से बुरी तरह धड़क उठा था! उसे अपने अंदर एक अजीब सी घबराहट और बेचैनी महसूस हुई। जब उसने सीढ़ियों पर चढ़ते हुए कदमों की आवाज़ तेज़ होते हुए सुनी..... जिसका मतलब साफ था..... कि वो उसके करीब आ रहा था! ये महसूस करते हुए रूह अंदर ही अंदर बुरी तरह हड़बड़ा गई कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुल गया। "क्या वाकई वो पल आ गया है जब मुझे खुद को उसे सौंपना पड़ेगा??..... क्या मैं वाकई ये कर पाऊंगी??"..... रूह ने अपनी ऊपर नीचे होती बेचैन सांसों के बीच मन ही मन सोचा.....! तेज़ कदमों की आवाज़ की आहट और आवाज़ के साथ, रूह को फौरन ही एहसास हो गया था कि कोई अंदर आया है और उसके बिस्तर के पास रुक गया। वो अब बुरी तरह घबरा गई थी और फौरन ही बिस्तर पर बैठ गई। उसकी घबराहट में तब और इज़ाफ़ा हो गया जब उसने महसूस किया कि बिस्तर का एक किनारा थोड़ा नीचे की ओर झुक गया..... जो इस बात की तरफ साफ इशारा था कि कोई उस पर बैठ गया था..... रूह से बस थोड़े फासले पर.....!!! "आ.....आप को.....कौन हैं??"..... रूह ने लगभग कांपते लहज़े से पूछा.....! रूह जो पहले से ही घबराई हुई थी अब उस आदमी की खामोशी पर और भी ज़्यादा परेशान महसूस कर रही थी! रूह ने अपने कांपते वजूद को संभालने के लिए सहारे के लिए अपनी पीठ दीवार से टिका ली। उसे इस वक्त बेहद अजीब लग रहा था और अब उसे वाकई खुशी हो रही थी कि उसकी आंखों पर पट्टी थी और उसके सामने एक घुटन भरा अंधेरा था। वो बहुत मुश्किल से देख पा रही थी कि उसके सामने बैठा शख्स बहुत ही बड़ा सा मस्कुलर..... और स्ट्रांग था! मगर जो भी था उसका दिल अभी भी बेबसी और घबराहट से तेज़ी से धड़क रहा था। "आखिर ये है कौन??"..... रूह ने खुद से ही सवाल किया.....! हालाँकि रूह उसका चेहरा नहीं देख सकती थी, फिर भी किसी तरह वो उसकी मजबूत,भारी भरकम वजूद को साफ महसूस करने में कैपेबल थी! खासकर उसकी ठंडी निगाहों को। उसके ओरे से ऐसी वाइब आ रही थी जैसे वो कहीं का कोई अभिमानी राजा हो और जिसके आगे सारी दुनिया सर झुकाती हो! और जहाँ तक रूह का सवाल था..... तो किसी पुराने राजा के ज़माने की तरह वो उसके लिए महज़ दिल बहलाने के लिए लाया गया कोई तोहफा हो! "आप... आप कौन हैं?"..... रूह ने एक बार फिर जवाब की उम्मीद से अपना मुंह खोलते है उससे सवाल किया.....! लेकिन कोई जवाब नहीं..... वो आदमी अभी भी बिल्कुल चुप रहा। जवाब देने की बजाय उसने अपना शरीर थोड़ा आगे की ओर घुमाया..... और फौरन ही रुह के करीब उस पर झुक गया। रूह को महसूस हुआ कि उस आदमी का वजूद उसके करीब आ रहा है। लेकिन इससे पहले की वो कुछ रिएक्ट कर पाती..... उस बड़े से वजूद वाले आदमी ने फौरन ही रुह को थामते हुए..... उसे पूरी तरह से अपने शरीर के नीचे कैद कर लिया। उसके शरीर का वजन खुद पर महसूस होने के एहसास से ही रुह का पूरा शरीर काँप उठा। वो उसकी छुअन से अंदर तक बुरी तरह सिहर उठी थी.....!

  • 3. "His purchased love" - Chapter 3

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस बड़े से वजूद वाले आदमी ने फौरन ही रुह को थामते हुए..... उसे पूरी तरह से अपने शरीर के नीचे कैद कर लिया। उसके शरीर का वजन खुद पर महसूस होने के एहसास से ही रुह का पूरा शरीर काँप उठा। वो उसकी छुअन से अंदर तक बुरी तरह सिहर उठी थी....!!! "ऐसा लग रहा है..... डर और घबराहट से..... मेरा दिल अभी सीने से बाहर निकल आएगा"..... रूह ने मन में सोचते हुए कहा.....! उस मस्क्युलर आदमी के वजूद को खुद पर महसूस करते हुए..... वो फौरन ही बिल्कुल एक गेंद की तरह सिकुड़ गई..... जिसके बाद वो चाह कर भी ज़र्रा भर भी हिलने में कामयाब नहीं हो पा रही थी..... उसने घबराहट में अपने हाथों को अपनी छाती के सामने रखते हुए..... गहरी सांस लेने की कोशिश की..... उसके भारी भरकम वजूद से रूह को अपना दम घुटता सा महसूस होने लगा था! "ओह गॉड..... हेल्प मी..... इसके वजूद से..... मुझे मेरा दम घुटता सा महसूस हो रहा है"..... रूह ने गहरी सांसें लेते हुए मन में बड़बड़ाया.....!!! एक तरफ़ जहां रूह अपनी ही उलझनो में उलझी थी..... वहीं दूसरी तरफ उसके किसी भी रिएक्शन या बोलने का इंतज़ार किए बिना..... उस आदमी ने अपनी आगे की कार्यवाही शुरू कर दी..... उसने एक पल के लिए अपनी आँखें सिकुड़ी..... और फिर अगले ही पल उसके कपड़े सीधे ऊपर खींच लिए..... ये महसूस कर रूह ने हड़बड़ा कर अपनी चुप्पी तोड़ी.....!!! “रुको!”......“मैं... क्या मैं तुम्हें देख सकती हूँ?”..... रूह ने कुछ काँपती आवाज़ में पूछा ....!!! "क्यों?"..... उसने मुख्तसर सा सवाल किया.....!!! रूह ने महसूस किया..... कि उस शख़्स की खूबसूरत आवाज़ किसी गहरी रेड वाइन की तरह थी..... रिच एंड स्वीट..... यह एक अट्रैक्टिव और डॉमिनेंसी रखने वाली आवाज़ थी..... जो आसानी से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच सकती थी। "जानती हो ना..... यहां तुम्हें किस काम के लिए और क्यों लाया गया है??"..... उसमें मद्धम मगर गंभीर आवाज़ में पूछा.....!!! "ह.....हां..... जानती हूं"..... रूह ने कुछ झिझक कर कहा.....!!! "फिर..... व्हाट्स द मैटर"??..... उसने आगे सवाल किया.....!! रूह को समझ ही नहीं आ रहा था..... कि वो उसे क्या जवाब दे..... क्योंकि हकीकत में तो उसके पास उसे रोकने..... या ना कहने का कोई अधिकार ही नहीं था..... उसने अपनी मर्ज़ी से ये रास्ता चुना था..... वो खुद उसे खुद को सौंपने के लिए राज़ी हुई थी..... उसने तो बस उसके सामने अपना ऑफर रखा था..... जिसे उसने खुद कुबूल किया था.....!!! "स्पीक???"..... उसके सवाल ने जैसे रूह को उसके ख्यालों से बाहर खींचा था....!!!! “क्यों.....क्योंकि मुझे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है....... और मुझे डर लग रहा है".... रूह ने जैसे अपनी उलझन उसे समझाई.....!!! रूह की बात सुनकर..... एक पल के लिए वो एक दिलकश हंसी हंसा.....!!! "तुम्हें मुझे देखने की जरूरत नहीं है..... एंड ऑफकोर्स..... तुम्हें डरने की भी कोई जरूरत नहीं है।"..... उसने बहुत ही संजीदगी मगर दिलकशी से भरे लहज़े से कहा.....!!! उसने महसूस किया था..... कि उसके आगोश में समाई उस नाज़ुक से वजूद की लड़की का शरीर पतला और बेहद कोमल था..... उसकी पतली कमर को आसानी से उसके एक हाथ में पकड़ा जा सकता था..... उसकी नज़र उसके गुलाबी होंठों पर ठहरी..... तो उसने अपनी ठंडी सख़्त उंगलियां उसके मुलायम होंठों पर फिराई.....!!! "म.....मैं"..... रूह ने उसकी छुअन से लऱजते अपने होंठों के बीच कहना चाहा.....!!! "शशशशशहहहहह!..... डोंट से एंनीथिंग..... बस अपनी आँखें बंद करो।"..... उसने रूह को टोकते हुए कहा.....!!! रूह उसकी बात सुनकर..... आगे चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई.....!!! "इतना खूबसूरत और नाज़ुक..... बिल्कुल रेशम जैसा"..... उसने रूह के नाज़ुक से वजूद की मन ही मन तारीफ़ की.....!!! उसकी उँगलियाँ थोड़ी नम और ठंडी थीं..... ... और जब उसकी उंगलियों ने उसके गर्म वजूद को छुआ..... तो वह खुद को सिकुड़ने से नहीं रोक पाई..... और उसकी आँखों के सामने का अँधेरा उसके डर में और भी इज़ाफ़ा कर रहा था.....!!! "काम डाउन रूह..... काम डाउन"..... रूह ने मन ही मन जैसे खुद को शांत करने की कोशिश की थी.....!!! जबकि दूसरी तरफ़ वो बड़ी बोल्डनेस के साथ अपनी आगे की कार्यवाही कर रहा था.... रूह का दिल उसकी छाती में जोर-जोर से धड़क रहा था..... ऐसा लग रहा था मानो जैसे उसका दिल किसी भी पल बस उछल कर बाहर आ जायेगा.....!!!! "इट्स लाईक हैवन"..... उसने एक बार फिर मन ही मन रूह की खूबसूरती को सराहा था.....!! जहां एक तरफ़ वो रूह में खोता जा रहा था..... वहीं रूह शर्म, घबराहट, डर..... इन सब इमोशन्स के बोझ तले दबी..... बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रही थी..... अब उसे वाकई अपने फैसले पर पछतावा हो रहा था..... लेकिन पछतावे के लिए..... अब बेहद देर हो चुकी थी....!!! "मुझे ये नहीं करना था..... ओह गॉड..... ये मैंने क्या कर दिया"..... रूह ने मन ही मन खुद को कोसा था.....!! रूह ने शुरू में सोचा था कि वह यह आसानी से कर सकती है..... आखिरकार उसे बस एक बच्चा ही तो पैदा करना था..... हां माना इस सबके लिए उसे कोई एक्सपीरियंस नहीं था..... लेकिन एक औरत होने के नाते..... आज नहीं तो कल उसे ये करना ही था..... हालाँकि, इस अनजान लेकिन दबंग आदमी का सामना करते ही..... उसकी वो सारी हिम्मत और मोटिवेशन हवा हो गई थी..... अब उसे सिर्फ बेहद महसूस हो रहा था! "ओह गॉड प्लीज़ सेव मी..... प्लीज़ हेल्प मी"..... उसने मन ही मन ईश्वर को याद किया.....!! रूह अभी-अभी बालिग हुई थी..... और उसने अभी तक किसी भी तरह की इंटिमिसी को एक्सपीरियंस नहीं किया था..... उसने अभी तक की अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी किसी लड़के का हाथ तक भी नहीं पकड़ा था..... तो उसका डरना और घबराना लाज़मी ही था.....!!! "ओह गॉड!..... बस जल्द से जल्द सुबह हो जाए..... और ये सब खत्म हो"..... रूह ने अपने वजूद पर उसके लबों की हरकत महसूस करते हुए मन में बुदबुदाया.....!! साफतौर पर वो बेचैन थी..... घबराई हुई थी..... हालांकि उसका दिल इस सबके लिए तैयार नहीं था। लेकिन वो कांट्रेक्ट कर चुकी थी..... पैसे ले चुकी थी..... इसीलिए अब उसे ना कहना..... या उसका विरोध करना..... वाकई उसके बस में नहीं था..... आखिर में उसके आगोश में पिघलते हुए..... वह धीरे-धीरे सुबह की धूप में फूल की कलियों की तरह खिल गई थी.....!!!

  • 4. "His purchased love" - Chapter 4

    Words: 1856

    Estimated Reading Time: 12 min

    रूह खुद को पूरी तरह उसे सौंप चुकी थी..... लेकिन जितना उसने सोचा था..... उसके लिए ये इतना भी आसान नहीं था..... वो इस वक्त बेहद दर्द में थी..... जबकि उस शख्स के पास उसके दर्द की परवाह करने का वक्त ही नहीं था...... उसका ध्यान सिर्फ़ अपनी तीव्र इच्छा पर ठहरा था। उसके लिए, ये सिर्फ़ एक शारीरिक मिलन था,..... एक ऐसा मिलन जिसमें वो इस औरत के लिए, कोई इमोशनल लगाव नहीं रखता था। ऐसे में उसकी परवाह..... ज़ाहिर तौर पर उसके लिए ये वक़्त की बर्बादी थी। "क्या इसे अपनी इच्छा के आगे मेरा दर्द और तकलीफ नज़र ही नहीं आ रहे"??..... रूह ने दर्द से गहरी सांस लेते हुए सोचा.....!!! "लेकिन इसे क्यों ही मेरी हालत पर दया करनी चाहिए??.... आखिर एक वक्त तक ये मेरा मालिक है..... इसने मुझे इस दर्द के बदले एक अच्छा मुआवज़ा दिया है..... तो ये दर्द तो मुझे भुगतना ही होगा"!..... रूह ने खुद के सवाल का खुद ही जवाब दिया.....!!! वो खुद को समझा ज़रूर रही थी..... लेकिन ये दर्द, ये तकलीफ़ें, उसकी आँखों से अब बिना रुके आँसुओं के साथ बह निकलीं। एक चीख उसके होठों से निकली थी.... उसकी आँखें लाल हो गई थीं,..... उसने अपनी दर्द और कमजोरी छिपाने की कोशिश में अपने होंठ कस कर दबा लिए थे.....मगर वो जितना कोशिश कर रही थी..... ये दर्द उसके लिए इतना ही सहना मुश्किल हो रहा था.....!!! "ऐसा लग रहा है..... जैसे इस दर्द से मेरी जान ही निकल जाएगी"!..... रूह ने दर्द की टीसो के बीच मन में दोहराया.....!!! आखिरकार वो एक बेबस बिल्ली के बच्चे की तरह सिसक पड़ी थी।..... इस वक्त अपने वजूद पर संवार वो आदमी उसे एक हार्टलेस..... बेरहम इंसान महसूस हो रहा था..... जो उसकी तकलीफ़ को देख कर भी अनदेखा कर रहा था...... उसने लाख देखने और हाथ चलाने की कोशिश की..... लेकिन सिवाय गहरे अंधेरे के उसे कुछ नज़र ही नहीं आया..... वो दोनों एक-दूसरे से बिलकुल जुदा थे।..... लेकिन फिर भी आज इतने करीब और एक साथ थे.....!!! "आह!"..... वो दर्द से कराह उठी थी जब उसने खुद ही अपने दांतों से अपने होंठ पर ज़ख्म बना दिया.....!!! इन लम्हों में गहराई से खोए हुए उस शख्स ने.... अचानक अपनी आँखें उठाईं जब उसे अपनी गर्दन पर गर्म नमी का एहसास हुआ..... जो कि असल में उसके होंठों से रिसे खून की बूंदें थीं..... उसने देखा कि वो दर्द से कराहने के बावजूद भी..... लगातार अपने होंठ काट रही थी.....!!! ये देखकर "अन्वय सिंह राठौड़" का चेहरा फ़ौरन ही सख्त हो गया। उस छोटे से मासूम चेहरे को देखकर, जिस पर इस वक्त बेशुमार दर्द था,..... अगले ही पल उसने झुक कर अपने होंठ आहिस्ता से डिसेंटली उसके होंठों पर रख दिए। उसकी हर सिसकी और दर्द ने अचानक ही जैसे दम तोड़ा था.....!!! "मैंने खुद ही खुद का रूल कैसे तोड़ दिया??"..... अन्वय ने उसके मासूम चेहरे को देखते हुए खुद से ही सवाल किया.....!!! अन्वय के लिए किस करना वर्जित था! उसके हिसाब से किस का असल मतलब प्यार से होता है..... जिसका सीधा मतलब इमोशंस और फीलिंग्स से जुड़ा होता है..... इसीलिए उसने पहले कभी किसी औरत को नहीं चूमा था..... उसके लिए उनके होंठ गंदे थे। उसके आसपास हमेशा हाई सोसायटी की लड़कियां रहती थीं..... पर उसने उन तितलियों को कभी नहीं छुआ था। पर आज, उसे नहीं पता क्यों, मगर इसे दर्द में देखकर उसने इसे किस किया था..... वो भी नर्मी और शायद इमोशंस के साथ.....!!! "इसके इस मासूम चेहरे में कोई तो कशिश है"!..... अन्वय ने उसके चेहरे को देखकर किस को डीप करते हुए मन में कहा.....!!! ये सच था कि रूह में उसे कुछ तो कशिश महसूस हुई थी!..... वाकई उसने कभी नहीं सोचा था कि ये पल उसे इतने खूबसूरत महसूस हो सकते हैं..... इसी के साथ अन्वय ने अपनी आँखें मूंदते हुए..... उसके नाज़ुक से वजूद को एक बार फिर पूरी तरह अपने आगोश में कैद कर लिया था.... हवा में अब महज़ नर्मी और रोमांस की का शोर घुला था.....!! ********************************************* अगली बार रूह की आँखें खुली..... तो अभी भी उसके आगे अंधेरे की गहरी खाई थी!..... उसने महसूस किया कि उसकी आँखों पर लाल रंग का रेशमी कपड़ा ठंडे पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था। उसने अचानक बाथरूम से पानी बहने की आवाज़ आई। उसने खुद को शांत दिखाने की कोशिश की..... लेकिन वहीं जानती थी कि इस वक्त उसके अंदर कितना शोर चल रहा था.....!!! "सब खत्म हो चुका..... सब खत्म...... उम्मीद करती हूं कि बस ये पहली और आखिरी बार होगा..... बस इसी के साथ मेरा यहां आने का मकसद पूरा हो जाए"!..... उसने दिल ही दिल में दुआ की थी.....!!! जो बीत चुका था..... हो चुका था..... वो उसे बदल नहीं सकती थी..... लेकिन अब बस उसे बच्चे को जन्म देने तक इंतज़ार करना था। ताकि पैसे लेकर फिर वो अपनी ज़िंदगी में वापस चली जाए । लगभग आधी रात हो चुकी थी। अन्वय सिंह राठौड़ ने नहाकर कपड़े बदले..... वो बाथरूम से बाहर आया..... इस वक्त वो बहुत अट्रैक्टिव लग रहा था..... उसने अपनी नज़रे बेड पर उस नाज़ुक से वजूद पर घुमाईं..... जिसने खुद को उस सफ़ेद चादर में लपेटे हुए था.....!!! उसकी पीठ उसकी ओर थी। उसका मुड़ा हुआ बदन काँप रहा था..... उसके गोरे नाज़ुक बदन पर उसके दिए कई एग्रेसिव निशान थे।उसने देखा - उसके मुलायम, रेशमी बाल, बिखरे हुए और पसीने से भीगे, तकिये के किनारे पर लटके थे!..... उसने कुछ पल तक उसे ठंडी नज़र से देखा,..... फिर कुछ देर बाद वो बिना रुके वहां से मुड़ कर चला गया! दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ सुनकर, अचानक ही जैसे रूह ने एक सुकून भरी सांस ली थी!!!! "थैंक गॉड..... चला गया वो"!..... रूह ने एक चैन की सांस लेते हुए कहा.....!!! अन्वय के जाने के साथ ही रूह ने अपने कंधे सिकोड़ लिए और इसी के साथ उसने अपनी कलाइयों पर ज़ख्मों को महसूस किया। उसकी आँखें सूजी हुई थीं, मगर वो आवाज़ तक नहीं निकाल पाई, हल्की सी फुसफुसाहट भी नहीं। कुछ पल बाद ही उसने कार स्टार्ट होने की आवाज़ सुनी। कुछ ही देर में कार की आवाज़ दूर होती गई..... उसे एहसास हुआ कि वो चला गया है..... बस वो अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। उसने आँखें बंद कर लीं और वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। "ये मैंने क्या किया..... क्या किया मैंने??..... मैंने इस अनजान जगह..... इस अनजान बंगले में, अपनी इज़्ज़त एक अनजान आदमी को सौंप दी"!..... रूह ने सुबकते हुए खुद से ही बड़बड़ाया.....!!! पहले वो सोचती रही कि आखिर उस शख्स ने उसे ही क्यों चुना। बहुत सोचने पर उसे समझ आया कि वो एक आम सी मामूली लड़की थी..... और भविष्य में बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ना उसके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा..... वो नहीं जानती थी कि जो कुछ भी उसने किया था वो सही है या नहीं..... और आखिर वो कब तक अपने पिता से ये बात छिपा पाएगी..... जो भी था मगर उसके परिवार की हालत ने उसे इस दोराहे पर लाकर खड़ा दिया था..... इसीलिए उसे दुख ज़रूर था मगर उसे कोई पछतावा नहीं था - या यूँ कहें कि अब वो पछतावा करने की हालत में ही नहीं थी। "अपने परिवार को बचाने के लिए..... उनकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए मेरे पास इसके सिवा कोई रास्ता भी तो नहीं था"!..... रूह ने जैसे ख़ुद को अपराधबोध से निकालने की कोशिश की थी.....!!! क्योंकि एक गोद ली हुई बेटी होने के बावजूद भी उसके पिता ने उसे अपने बच्चों की तरह ही प्यार किया था। हालांकि उसकी माँ और बहन उसे पसंद नहीं करती थीं, फिर भी अपने पिता के बेशुमार प्यार की वजह से उसे इसकी भी कोई शिकायत नहीं थी! वो अपने पिता की कर्जदार थी..... अब जबकि आर्थिक तंगी और हालातों ने परिवार को मुसीबत में डाल दिया था,तो उसे किसी तरह अब उनकी अच्छाई का बदला चुकाना ही था। "ओह गॉड!..... मेरा सर फट रहा है..... मैं अब कुछ और सोचना ही नहीं चाहती"!..... रूह ने अपने सर को पकड़ते हुए बड़बड़ाया.....!!! अन्वय सिंह राठौड़ को शायद कभी अंदाजा भी नहीं हो सकता था..... कि इस रात ने रूह की ज़िंदगी में..... उसकी आत्मा पर कितने गहरे निशान छोड़े थे.... इन गहरी सोचों के भंवर में फंसी रूह की नींद कब जाकर लगी..... उसे महसूस ही नहीं हुआ.....!!! ********************************************* सुबह सूरज की किरणों की रोशनी कमरे में फैली..... तो रूह धीरे से बिस्तर पर बैठ गई..... और उसने अपनी आँखों पर से उस लाल रेशमी कपड़े को हटाया। उसने खुद को उस सफ़ेद चादर से ढँक लिया और खिड़की के पास जाकर उसने पर्दे खोले..... मगर, इस नई सुबह की नई रोशनी भी उसके दिल के अंधेरे को रोशन नहीं कर पाई। तभी अचानक बाहर तेज़ कदमों की आवाज़ आई! और एकाएक एक तेज़ आवाज़ के साथ कमरे का दरवाज़ा खुल गया। डर से घबराकर रूह ने फ़ौरन ही पीछे मुड़ कर देखा, तो एक अट्रैक्टिव और खूबसूरत लड़की..... शानदार और क्लासी से कपडो के साथ ही..... ब्रांडेड चीज़ें पहने कमरे के अंदर दाखिल हुई.... और गुस्से से दनदनाते हुए उसके पास आई। उसके साथ वो लेडी भी मौजूद थी,जिसके साथ रूह ने सरोगेसी का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था। "तुम... तुम वो सरोगेट हो?!"....उसने गुस्से में पूछा, जलन और गुस्सा उस लड़की की आँखों में साफ दिख रहे थे। "ह.....हाँ... और तुम...."??..... रूह ने कुछ अटकते हुए कहा.....!!! रूह का सवाल सुनकर वो लड़की उसके पास आई, गहरी और तेज़ नज़रों से उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। जैसे ही उसकी नज़र उसके बदन पर उभरे निशान पर पड़ी..... तो वो हैरान रह गई..... रूह ने ये मेहसूस करते हुए..... घबराहट में खुद को चादर से और भी ज़्यादा ढँक लिया, मगर वो निशान उसकी गर्दन पर अभी भी साफ़ दिख रहे थे। "को.....कौन हो तुम??"..... रूह ने कुछ झिझकते हुए अपना सवाल दोहराया.....!!! रूह ने सवाल दोहराया लेकिन जवाब में उसे अपने दाएं गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मिला! "तुम एक बेशर्म औरत हो!..... तुम... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई.......उसके करीब जाने की??"..... उस लड़की ने गुस्से से बौखला कर बोलते हुए रूह के बाल पकड़ लिए.....!!! दर्द और घबराहट से रूह का चेहरा पीला पड़ गया था। "ये हरगिज़ मत सोचना कि उसके बच्चे को जन्म देकर,..... तुम उसकी ज़िंदगी में अपना मुकाम ऊँचा कर लोगी.....मैं तुम्हें वार्निंग दे रही हूं..... खबरदार!.... खबरदार जो उसके नज़दीक आने की कोशिश भी की तो..... मैं उसकी मंगेतर हूँ..... और तुम सिर्फ़ एक मामूली सरोगेट हो..... जो तुम्हारा नहीं है, तो भूल से भी उसकी ख्वाहिश करने की भूल मत करना.... समझी?!"..... उस लड़की ने गुस्से से बौखला कर लफ्ज़ों में ज़हर उगलते हुए कहा.....!!! "मैं.....मैंने कॉन्ट्रैक्ट पर साइन किया है, और मैं शर्तें जानती हूँ..... मतलब मैं अपनी जगह जानती हूँ..... मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है..... यकीन करे मेरा..... प्लीज़"!..... रूह ने हैरत से घिरे हुए घबरा कर जवाब दिया.....!! "अच्छा है कि तुम जानती हो..... अगर नहीं जानती तो ये तुम्हारे लिए ही नुकसानदेह साबित होगा"!..... वो गुस्से से फूलते हुए बोली.....!!! वो अच्छे से जानती और समझती थी कि अगर वो खुद मां बन सकती..... तो ये लड़की कभी भी राठौड़ परिवार के वारिस को जन्म देने के लिए यहां मौजूद ही नहीं होती..... लेकिन सब कुछ जानते बूझते भी..... जब उसे एहसास हुआ कि वो दोनों पूरी रात एक साथ थे..... तो वो जलन और गुस्से से सुलग उठी थी!