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Durga: His chosen one

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Description

मृत्युंजय रघुवंशी- एक ऐसा नाम जिसे सुनकर लोग सिर झुकाते हैं, और जिसका दिल किसी ने कभी नहीं छुआ— जब तक वो उसके रास्ते में नहीं आई। एक छोटी-सी कैफ़े चलाने वाली बंगाली लड़की… दुर्गा बासु। मिठास उसकी जुबान में, और आग उसकी आँखों म...

Characters

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मृत्युंजय रघुवंशी

Hero

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दुर्गा बासु

Heroine

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. Durga: His chosen one - Chapter 1

    Words: 1287

    Estimated Reading Time: 8 min

    ⚠️ Disclaimer

    यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसमें दिखाए गए सभी पात्र, घटनाएँ, स्थान, नाम और परिस्थितियाँ लेखक की कल्पना पर आधारित हैं। इनका किसी भी वास्तविक व्यक्ति, जीवित या मृत, किसी संगठन, राज्य, जाति, धर्म, संस्कृति, व्यवसाय या स्थान से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है। यदि किसी प्रकार की समानता महसूस हो, तो वह सिर्फ एक संयोग माना जाएगा। इस कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है, और इसके सभी पात्र, संवाद और स्थितियाँ पूर्णत: कल्पित (Imaginary) हैं।

    *************

    राजस्थान…

    रेत का रंग जहाँ सुनहरा लगता है, हवेलियों में इतिहास सांस लेता है और राजा–महाराजाओं की कहानियाँ आज भी लोगों की जुबान पर जिंदा हैं।

    और इन्हीं कहानियों के बीच खड़ा है —

    “अमरगढ़ पैलेस”, रघुवंशी वंश का शाही निवास।

    ऊँचे-ऊँचे गुंबद, लाल बलुए पत्थर पर उकेरी गई जटिल कारीगरी, पीले झरोंखों से आती सुबह की धूप और बीच में फैला एक विशाल प्रांगण जहाँ मोर सुबह की पूजा की तरह नाचते हैं।

    यह महल एक इमारत नहीं… एक विरासत है,

    एक ऐसा घर जिसे राजस्थान आज भी सम्मान से सिर झुकाकर देखता है।

    ---

    अमरगढ़ पैलेस के डाइनिंग हॉल में, विशाल संगमरमर की मेज़ के सबसे आगे बैठा था लगभग पचास वर्ष का एक व्यक्तित्व राजेश सिंह रघुवंशी,

    रघुवंशी वंश के मुखिया, जिनका रुतबा और सादगी दोनों ही लोगों को झुकाने के लिए काफी थे।

    उनके बिल्कुल पास खड़ी थीं उनकी पत्नी— रेवती रघुवंशी,

    लगभग चालीस वर्ष की, शांत लेकिन तेज़ आँखों वाली रानी सा, जो अपने परिवार को प्रेम और अनुशासन दोनों से थामे रहती थीं। वह राजेश के प्लेट में नाश्ता परोस रही थीं, तभी… तेज़ कदमों की आहट के साथ एक चंचल-सी आवाज़ गूँजी—

    “मा सा! मैं आ गई!” लगभग अठारह साल की राजकुमारी आरूशी, बिजली की तरह वहाँ पहुँच गई। बेफ़िक्र, हरदम मुस्कुराने वाली महल की सबसे प्यारी और शरारती राजकुमारी ।

    रेवती जी तुरंत उसे झिड़कती हैं,

    “आरू! कितनी बार कहा है, ऐसे दौड़ते हुए मत आया करो।”

    आरू ने तुरंत अपने पिता की ओर देखा, चेहरे पर शैतानी मुस्कान लिए—

    “बाबा सा! देखो ना… माँ सा फिर से डाँट रही है।”

    उसकी बात सुनकर राजेश जी मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।

    “रानी सा, आप हमारी राजकुमारी को मत डाँटिए। कुछ ही दिन तो है उसके यहाँ… फिर तो पढ़ाई के लिए मुंबई चली जाएगी।”

    “ हमने पहले ही कहा है राजा सा… इसे यहाँ पढ़ने में क्या दिक्कत है? यहाँ भी तो अच्छे कॉलेज हैं।” रेवती जी ने हल्की नाराज़गी से कहा।

    “ काकी माँ… हमारी आरू अब परिंदे की तरह बड़ी हो गई है।

    दुनिया देखेगी, उड़ान भरेगी… तभी तो आगे बढ़ेगी।”

    उनकी बात पूरी ही हुई थी कि हॉल में किसी भारी कदमों की आवाज़ गूँजी। सभी नज़रें मुड़ गईं।

    एक लम्बा, चौड़ा, शाही कद–काठी वाला नौजवान।

    हल्की हरी आँखें, लंबी पलके, स्थिर चाल…

    मेज़ के पास पहुँचकर उसने झुककर राजेश और रेवती के पैर छुए।

    वह था— मृत्युंजय रघुवंशी, रघुवंशी वंश का इकलौता वारिस और राजस्थान का होने वाला राजा।

    “जय… पर वो वहाँ अकेले कैसे संभालेगी? हमें फिक्र होती है।” रेवती जी ने चिंता भरी आवाज मे कहा।

    मृत्युंजय ने धीमी, आश्वस्त करने वाली आवाज़ में कहा—

    “काकी माँ, आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। हम खुद आरू को वहाँ छोड़कर आएँगे। और कुछ दिन साथ रुकेंगे भी… ताकि उसे नई जगह में घुलने-मिलने में दिक्कत न हो।”

    आरू ने खुशी से ताली बजाई,

    “बस! तय हो गया। मैं मुंबई जा रही हूँ!” सब हँस पड़े।

    और यहीं से शुरू होती है हमारी कहानी—

    मृत्युंजय रघुवंशी और उसके शाही परिवार की।

    जिसके जीवन में अभी तूफ़ान आना बाकी है…

    ************

    राजस्थान से दूर… सैकड़ों किलोमीटर के फासले पर,

    मुंबई में स्थित था एक प्यारा-सा कैफ़े—

    “ Sweet Bites ”।

    सुबह-सुबह कैफ़े में वैसी खुशबू फैली थी,

    जैसे बादलों के बीच से आती धूप और गर्म कुकीज़ का संगम हो।

    काउंटर के पीछे एक लड़की ध्यान से कुछ बेक कर रही थी—

    आटा गूँथने की आवाज़, ओवन की हल्की सी गुनगुनाहट,

    और उसके चेहरे पर फैली मासूम-सी एकाग्रता…

    तभी तेज़ आवाज़ में दरवाज़ा खुला। और एक लड़की अंदर आते ही बोली—

    “ओए बंगालन! क्या बना रही है? बड़ी ज़बरदस्त खुशबू आ रही है।”

    उसकी आवाज पर पहली लड़की पलटी… और तभी उसका चेहरा साफ दिखा।

    छोटा-सा, गोल-सा चेहरा। उसकी बड़ी बड़ी आँखो पर लगी गहरी काजल की मोटी रेखा से और भी बड़ी लगती काली आँखें।

    गुलाबी होठ, जैसे किसी गुलाब की पंखुड़ी। कमर तक आते काले, हल्के घुँघराले बाल। हाइट लगभग 5’5, उम्र 24। चेहरे पर भोली-सी चमक।

    हाँ… यही है हमारी कहानी की नायिका — दुर्गा बासु।

    दुर्गा ने हाथ पोंछते हुए पीछे मुड़ी और मुस्कुराते हुए बोली ---

    "पंजाबन, तूई एशे गेली?"

    (पंजाबन, तुम आ गई?)

    पंक्ति ने आँखें घुमाकर काउंटर पर बन रहा केक देखा और बोली—

    "यार दुर्गा, मैंने कहा ना… मुझे ये तूई-तुमी कुछ समझ नहीं आता।"

    दुर्गा ने हंसते हुए काजल वाली बड़ी आँखें उठाईं—

    "अरे बाबा, तुमी समझ जाओगी धीरे-धीरे… इतना भी कठिन नहीं है।"

    तो जो दुसरी लड़की थी वह थी दुर्गा की बेस्ट फ्रेंड पंक्ति शर्मा । पंक्ति दर असल अनाथ थी। उसका हर सुख दुख वह दुर्गा के साथ ही शेयर करती थी , दुर्गा का परिवार ही उसका परिवार था । दुर्गा और पंक्ति सिर्फ दोस्त नहीं थीं—बिज़नेस पार्टनर भी थीं।

    कॉलेज के दिनों से ही एक-दूसरे की ताकत को समझ चुकी थीं।

    दुर्गा – कुकिंग और बेकिंग का हुनर उसके हाथों में बसा था।

    पंक्ति – तेज दिमाग, बिज़नेस माइंड, और बेहतरीन स्ट्रैटेजी बनाने में माहिर।

    कॉलेज खत्म होते ही दोनो ने साथ मिलकर इस कैफे को खोला था, बिना किसी बैकअप के, सिर्फ सपनों और मेहनत के भरोसे और आज—बस एक साल में—कैफे अच्छा-खासा प्रॉफिट कमा रहा था।

    ************

    दुर्गा की माँ एक सिंगल मदर थीं। उसके पापा आर्मी में जवान थे—और देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे।

    शायद इसलिए दुर्गा में एक अजीब-सी गर्माहट थी… और उतनी ही मज़बूती भी।

    उसका कैफे मुंबई के टॉप कॉलेज कैंपस के ठीक बाहर था।

    और उसी कॉलेज में पढ़ता था उसका छोटा भाई—

    अर्नव बासु, जो अपने फाइनल ईयर में था।

    **********

    दुर्गा और पंक्ति अपने अपने काम पर लग गए , तभी दरवाजा खुला और अंदर आया दुर्गा का छोटा भाई अर्नव।

    जैसे ही उसने अपनी बहन को देखा, चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान आ गई।

    " शुभो सोकाल दीदी "

    ( गुड मॉर्निंग दीदी )

    फिर उसने पंक्ति को देखा।

    "ओह पंक्ति दी, यू आर आलसो हीयर … गुड मॉर्निंग !" अर्नव उत्साह से बोला।

    पंक्ति ने हँसते हुए उसके बाल बिगाड़ दिए।

    "गुड मॉर्निंग, छोटे!"

    दुर्गा भौंह उठाते हुए बोली—

    "गुड मॉर्निंग… तू यहाँ कैसे? अभी तो कॉलेज शुरू होने में टाइम है ना?"

    अर्नव ने कंधे उचकाए।

    "हाँ… पर मैं बस आपकी थोड़ी मदद करने आया हूँ।"

    दुर्गा ने उसे घूरा—बहन वाली स्ट्रिक्टनेस में।

    "तुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है, अर्नव!

    तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।

    यहाँ मैं हूँ… तुम सबका ख्याल रखने के लिए।"

    अर्नव ने नकली-पप्पी चेहरे वाला ड्रामा किया।

    "अच्छा ठीक… लेकिन अब आ ही गया हूँ तो क्या मैं आज अपनी स्पेशल कॉफी बना लूँ?"

    पंक्ति तुरंत मुस्कुरा उठी।

    "नेकी और पूछ-पूछ! बना ना—वैसे भी तू अपनी बहन से ज़्यादा अच्छा बनाता है!"

    दुर्गा ने उसे हल्की-सी आँख दिखाई, और तीनों की हँसी कैफे में गूंज गई।

    कुछ ही देर में— अर्नव कॉफी मशीन संभाले हुए, दुर्गा कप सेट करती हुई, पंक्ति काउंटर पर झुककर उन दोनों को छेड़ती हुई—

    तीनों अपने-अपने अंदाज़ में मज़े ले रहे थे। कॉफी तैयार हुई।

    खुशबू पूरे कैफे में फैल गई। तीनों साथ बैठे—

    थोड़ी मस्ती, थोड़ी नोकझोंक, और ढेर सारी हँसी के बीच—

    कॉफी को इन्जॉय करते रहे।

    ***********

    तो हमे बंगाली बिल्कुल नही आती हमने इसमे जितनी भी बंगाली लिखी है वो गुगल बाबा की मदद से लिखी है तो कोई गलती होगी तो हमे जरूर बताए।

    To be continue 🪷

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