व्योम ठाकुर जिसका मतलब ही आसमान होता है और जिस तरह आसमान का सम्राज्य पुरी दुनिया में फैला होता है बिलकुल उसी तरह इनका सम्राज्य भी पुरी दुनिया में फैला है । तो वही तारा जो आसमान में चमकती है लेकिन बीना आसमान के उसका कोई वजूद नहीं होता बिलकुल उसी तरह त... व्योम ठाकुर जिसका मतलब ही आसमान होता है और जिस तरह आसमान का सम्राज्य पुरी दुनिया में फैला होता है बिलकुल उसी तरह इनका सम्राज्य भी पुरी दुनिया में फैला है । तो वही तारा जो आसमान में चमकती है लेकिन बीना आसमान के उसका कोई वजूद नहीं होता बिलकुल उसी तरह तारा त्रिवेदी का वजूद है , उसका इस दुनिया में व्योम की 'अधुरी दुल्हन' के सिवा कोई वजूद नहीं । लेकिन व्योम के वजूद से चमकने वाली तारा की जिन्दगी तो तब अंधेरी होती है जब तारा को मजबूरी में खुद का सौदा करना पड़ता है और उसी दिन उसकी दामन में दाग लग जाता है । और हमेशा चमकने वाली तारा अंधेरे में डूब जाती है । कैसे तारा व्योम की अधुरी दुल्हन बनी? क्यों किया तारा ने अपना ही सौदा और किससे? जानने के लिए पढ़िए"Thakur's Incomplete Bride" सिर्फ "Story Mania" पर ।
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1980 का दशक! राजस्थान , जयपुर! इस वक्त आसमान में हवाएं वहुत तेजी के साथ चल रही थी । और हलकी हलकी बारिश भी हो रही थी और उसी पहर महाकाल का मन्दिर हीरे की तरह चमक रहा था और इस बिच में मंदिर के बीचों बिच में बने उस फूलो के मंडप में एक नौ लड़की बैठी थी । उसके बगल में एक पंद्रह साल के क़रीब का लड़का बैठा था वो दिखने में बेहद हैंडसम था । उसकी पर्सनेलिटी बिल्कुल किसी चाइल्ड हॉलीवुड एक्टर ( प्रेजेंट टाइम चाइल्ड हॉलीवुड ऐक्टर बट उस टाइम के हिसाब से वो उसी उम्र ने कसा बदन रखने वाला लड़का था ) तरह थी , और उसके चेहरे में किसी तरह के कोई भाव नही थे । था तो सिर्फ गुस्सा और आंखो में बेइंतेहा गुस्सा । वही वो लड़की जो दिखने में बेहद खुबसूरत थी बिल्कुल किसी हूर परी की तरह । उसकी कत्थई आंखे किसी झील का नमूना नज़र आती थी । और उसके पतले गुलाबी होठ बेहद खुबसूरत थे । पर आज मानो जैसे उसकी खूबसूरती को किसी की नज़र लग गई थी । लेकिन आज 9 साल की उम्र में उसे यहां पर दुलहन बना कर बैठा दिया गया था । जिसे शादी शब्द का मतलब तक नही पता । उसके एक हाथ में उसकी कपड़ो की बनी गुड़िया थी । उसी पल पण्डित जी की आवाज़ उन दोनो लड़का और लड़की के कानो में गूंजी , "ठाकुर साहब आप और तारा बिटिया फेरों के लिए खड़े हो जाइए" । कुछ ही देर में वो दोनो अब फेरे ले रहें थे साथ ही पण्डित जी शान्त मन से मंत्र उच्चारण कर रहें थे । लेकिन वो लड़का फेरे जल्दी जल्दी लेने के मूड में था पर तारा वो तो बेचारी दो फेरे लेने के बाद ही थक चुकी थी । दो फेरे के बाद ही उसने झुक कर अपने दोनो पैरो के घुटनो में अपने हाथ को रखा और गहरी गहरी सांस लेते हुए कहा , "दादा जी हम थक गए , अब हमसे नहीं चला जायेगा" । ये सुनते ही वो लड़का पलट कर तारा को घूरने लगा लेकिन तभी एक आदमी तूरंत उस लडक़ी की तरफ़ बढ़े और बोले , "तारा बिटिया ये कैसी बाते कर रही है आप? अगर आप फेरे नहीं लेंगे तो ठाकुर साहब आपकों अपनी दुल्हन कैसे बनाएंगे?" । ये सुनते ही तारा का छोटा सा चेहरा मायूस हो गया । उसने उस लड़के की तरफ़ अपनी उंगली दिखाते हुए मुंह फुलाकर कर कहा , "हां ठाकुर साहब अगर तारा नहीं चलेगी तो आप तारा को दुलन नही बनाओगे?" । उस लड़के ने गुस्से से अपने हाथो को मुठिया बंद की ओर आगे बढकर झटके में तारा को अपनी गोद में उठा लिया । तारा ने तूरंत अपना सर उसके सिने में रख लिया और कहा , "क्या अब आप हमे उठाकर चलने वालों हो"?" । "Shhhh अगर एक शब्द और तुमने कहा तो मैं तुम्हे यही आग में फेक दूंगा" उस लडके ने गुस्से से दांत पीसते हुए कहा तो तारा एक दम से डर कर उसके सिने के इर्द गिर्द अपने नन्हे नन्हे हाथ लपेट कर उससे लगी रही । वो अब कुछ नहीं कह रही थी । वही वहां मौजुद सभी लोगो ने इस तरह उस लड़के को तारा को गोद में उठाते देख अपने मूंह पर हाथ रख लिया । ये उनके लिए थोड़ा शर्मनाक था की एक पति अपनी पत्नी को सबके सामने कैसे अपनी गोद में उठा सकता है । भले ही वो दोनो अभि अपनी उम्र के छोटे हिस्से में थे लेकिन थे तो लड़का और लड़की ही ना? लेकिन इस वक्त किसी ने कुछ नहीं कहा । थोडी देर बाद वो लड़का तारा को अपनी गोद में लिए हुए ही मण्डप में वापस बैठा तब पण्डित जी ने सिंदुर और मंगलसूत्र उस लडके की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा , "ठाकुर साहब अब आप तारा बिटिया की मांग में सिंदूर भर दिजिए और उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिजिए" । ये सुनते ही तारा त्रिवेदी की आंखे थोडी सी नम हो गईं लेकिन उसने अपनी नमि को बिल्कुल भी बरकरार नहीं होने दिया । क्यूंकि भले ही तो नौ साल की थी लेकिन शादी मंगलसूत्र और सिंदुर का मतलब तो उसे अपने गांव मुहल्ले से पता था । वही उस लड़के ने सिंदूर की डिब्बी को अपने हाथ में उठाया और जैसे उसने एक चुटकी सिंदुर को अपनी उंगली में की उसी पल मंदिर की सीढ़ियो के पास से किसी की तेज आवाज़ सबके कानो में पड़ी , "मां सा आप ये शादी नहीं करा सकती" । इस आवाज़ को सुनते ही सभी एक दम से उस तरफ़ देखने लगे जहां एक मिडिल ( Guys मैं चाहूं तो मैं शुद्ध हिंदी वर्ड्स यूज कर सकतीं हूं अगर आप कहे तो ) एज औरत खड़ी थी । वो औरत दिखने में काफ़ी खुबसूरत थी और शाही खानदान से भी नज़र आती थी । वही उस लड़की की बात पर वहां मौजुद लोगो में से तूरंत एक औरत जो राजस्थान की ठकुराइन सा अद्राक्षी ठाकुर थी वो आगे बढी और बोली , "अनु आपको हमने शान्त रहने को कहा है ना? हमने कहा ना आप कुछ नहीं बोलेंगी हमे हो करना है वो हम करेंगे ही" । ये सुनते ही वो औरत जिनका नाम अनु ठाकुर था वो चिढ़ते हुए बनाते हुए बोली , "हम क्यों नही बोलेंगे मां सा? हम्मम बताइए? आप जानती है ना हम ठाकुर सा की मां है तो फिर आप ठाकुर सा की शादी हमारी इजाजत के बीना एक ऐसी गरीब परिवार की लड़की से ठाकुर साहब की शादी कैसे करा सकतीं है? जो हमारे बिरादरी की भी नहीं है , जो सिर्फ़ आपके एक दोस्त की पोती है" ?" । ये सुनते ही अद्राक्षी जी गुस्से से कांपने लगी । उन्होने तुरन्त चिल्लाते हुए कहा , "अनु चुप हो जाइए" । लेकिन अनु चुप नहीं हुई वो आगे कहती गई , "हम क्यों चुप हो जाए मां सा हां? हम ठाकुर साहब को जन्म देने वाली मां है और इस नाते हम ये हरगिज नही चाहते है की हमारे ठाकुर सा की शादी एक ऐसी लड़की से हो जाएं को हमारे बराबर बिलकुल नहीं और आपकों पता है उसके बाद क्या होगा? समाज में हमे सब नीची निगाहों से देखेंगे" । अनु की बाते सुन कर तारा को तो कुछ समझ नही आ रहा था लेकिन झील के दादा वीरेन त्रिवेदी को काफ़ी बुरा लग रहा था । उनकी नज़रे अपने आप झूक गई थी । वही उसी पल अनु के पति अमिताभ जी आगे आए और गुस्से से बोले , "अनु हम सब कुछ बोल नहीं रहे है इसका मतलब ये नही है की आप जो चाहे वो बोलेंगी ! वो आपसे बड़े है आप उनके बारे में ऐसी बाते कर भी कैसे सकती है?" । ये सुन अनु ने मुंह बनाते हुए कहा , "हां हां आप तो बोलेंगे ही आखिर आप भी तो मां की पल्लू में छुप कर रहने वालो में से है! आपकों कहां कोई फर्क पड़ने वाला है? फर्क पड़ेगा तो हमारे बेटे को आख़िर उनकी ही जिन्दगी में ना इस तारा नाम के नमूने को लाया जा रहा है" । "अरे मैं तो कहती हुं की अगर इनको बीमारी है तो जाकर कोई अच्छा सा इलाज कराए ऐसे क्यूं अपनी पोती को हमारे गले मढ रहे है" । ये सुनते ही वीरेन जी का दिल एक दम से टूट गया । उन्होने कभी सोचा नहीं था की उनकी बीमारी का कोई इस तरह से मजाक बनाएगा। उन्होने आगे बढकर उस लड़के की गोद में बैठी तारा का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा कर दिया । उस लड़के ने एक दम से वीरेन को देखा तभी एक तेज थप्पड़ की आवाज़ पुरे मन्दिर में गूंज गई । इसके साथ ही अमिताभ जी गुस्से से चिल्लाए , "बस बहुत हो गया अनु ! तुम हमारी बीवी हो इसका ये मतलब हरगिज नही है की हम तुम्हारी हर एक बकवास सुनेंगे"। अनु का चेहरा एक दम से एक तरफ़ झुक गया । उसकी आंखे लाल हो चुकी थी और आंखो से आंसु भी आने लगें थे । वही मन्दिर में ही साइड में खड़े एक आदमी और औरत ये देख कर खुश हो रहे थे । उस औरत ने खुश होते हुए उस आदमी से कहा , "देखा सुमित जी अभी तो तमाशा शुरू हुआ है, हमने कहा था ना बस एक बार शादी का दिन आ जाए खुद ब खुद सब हो जायेगा हमे कुछ नही करना पड़ेगा" । उनकी बात पर सुमित ने ही धिरे से हंसते हुए कहा , "बिल्लूल सही प्रतिभा ! अब हमे नही लगता ये शादी होने वाली" । वो उस लडके के छोटे चाचा और छोटी चाची थी । वही अनु ने गुस्से से अमिताभ को देखा फिर कहा , "आपने हम पर? हम पर हाथ उठाया वो भी सिर्फ उनके लिए?" । बोलते वक्त उनकी आवाज़ बुरी तरह से कांप रही थी राही उनकी बात सुन कर अमिताभ ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा , "हां हमने तुम पर हाथ उठाया क्यूंकि तुम्हारी जुबान बहुत बढ़ गई है" । अनु का गुस्सा और भी बढ़ गया । उन्होने कस कर अपने हाथों की मुठिया बना ली वही अमिताभ ने अद्राक्षी जी की तरफ़ इशारा किया तब अद्राक्षी जी ने पण्डित जी से कहा , "पंडीत जी शादी की बाकि की रस्मे पुरी करवाइए" । उन्होने इतना कहा ही था की तभी वीरेन जी ने तारा को अपनी गोद में उठा लिया और तेज आवाज़ में कहा , "अब ये शादी नहीं होगी" । ये सुनते ही सभी हैरान रह गए । वही वो लड़का भी एक दम से वीरेन जी का चेहरा देखने लगा । वही अद्राक्षी जी ने जैसे ही ये सुना वो हैरानी से उनकी तरफ़ बढते हुए बोली , "वीरेन ये क्या कह रहे हो तुम? ये शादी कैसे नहीं हो सकती? हमने तो हमेशा से सोचा था ना की हम अपने पोते और तुम अपनी पोती की शादी कराएंगे तो फिर अचानाक से तुम कैसे कह सकते हो की ये शादी नहीं होगी?" । ये सुन वीरेन वहां से तारा को अपनी गोद में लिए जाते हुए बोले , "नही अब ये शादी नहीं होगी क्यूंकि मैं अपनी पोती को उस घर में हरगिज नही दे सकता जिस घर में मेरी इज्जत ना हो" । कहते हुए वो मन्दिर की सीढ़ियो टक पहूच गए वही झील टुकुर टुकुर विरेन की ही सुरत देख रहि थी। वो लड़का भी जाते हुए वीरेन का देख रहा था । वही अद्राक्षी जी की मुंह की बात इक दम से उनके मुंह में ही दब कर रह गई। वो कुछ कह ही नहीं पा रही थी । वही अनु के चेहरे ने एक तीखी मुस्कान आ गई । अमिताभ गुस्से से अनु को देखते हुए वीरेन की तरफ़ दौड़कर जाते हुए बोले , "अंकल आप ऐसे तारा को ठाकुर साहब की अधूरी दुलहन बना कर नही ले जा सकते? वीरेन जी के कदम अपनी जगह पर रूक गए लेकिन फिर उन्होने अपने कदम कहते हुए आगे बढ़ा दिए , "हमारी पोती अभी सिर्फ 9 साल की है और इसलिए हम इस अधूरी शादी को नहीं मानते" । कह कर वो तारा को ले कर एक गाडी में बैठे और वहां से निकल गए । वही सभी लोग उन्हें जाता हुआ बस देखते रह गए । अद्राक्षी जी की आंखो में नाराजगी गुस्सा साफ़ था तो वही अमिताभ की आंखो में भी था । अमिताभ ने हार मानते हुए पण्डित जी की तरफ़ देखा फीर कहा , "पंडीत जी शादी पुरी नही होगी" । इसके बाद उन्होने अनु को घूरा फिर गुस्से से वहां से नीकल गए । अद्राक्षी जी भी भी चली गईं और वही सुमित और प्रतिभा भी मुसकुराते हुए वहां से निकल गए । पंडित जी भी अन्दर चले गए थे । अब वहां पर सिर्फ वो लड़का और अनु बची हुई थी। वो लड़का अपनी जगह से खड़ा हुआ फिर जाने लगा तब अनु ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ करते हुए कहा , "ठाकुर साहब हमने जो किया आपकी अच्छाई के लिए किया ! हम नही चाहते थे की वो गरीब लड़की आपकी पत्नी और जीवन संगिनी बने और आपकी जिन्दगी में आए ! आप समझ रहे है ना हम क्या कहना चाहते है?"। लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नही दिया और जानें लगा तब अनु ने खिंच कर उसे अपने गले से लगाते हुए कहा , "ठाकुर साहब आप भी हमसे नाराज हो गाए?" । इस बार उस लड़के ने बिल्कुल ठंडी आवाज़ ने जवाब दिया , "मां सा मैं आपसे कभी नाराज नही हो सकता ! क्यूंकि आपने मुझे जन्म दिया है और मुझे मालुम है आप जो भी करेंगी वो मेरे लिए सही करेंगी" । अचानक ही अनु को जो थोड़ा बहुत लग रहा रहा की उनसे शायद गलती हो गई है इस तरह से बोलकर लेकिन जैसे ही उन्होने अपने बेटे की बात सुनी उनके दिल को एक सुकून मिल गया । उन्होने उसका हाथ पकड़ा और मन्दिर से निचे उतर आईं । कुछ ही देर में उनकी गाड़ी भी कुछ ही देर में ठाकुर पैलस के लिए नीकल गई। वही दुसरी तरफ़ , वीरेन गाडी चला रहे थे और तारा टुकुर टुकुर वीरेन का चेहरा देख रही थी । उसने अपने हाथ में पकड़े उस कपड़े को गुडिए को घुमा घुमा कर देखते हुए कहा , "दादू आपने तो कहा था की तारा आज से उन दादी के साथ रहेगी और फिर ठाकुर साहब तारा को बहुत सारे गुड़िया भी देंगे और उसके बाद आप शहर डाक्टर अंकल के पास जाओगे" । तारा की बात पर वीरेन जी ने उसकी तरफ़ देखा फीर एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा , "अब हम कही नही जायेंगे अब हम सिर्फ़ अपनी तारा के साथ रहेंगे और हम शांति से रहेंगे"। ये सुनते ही तारा ने खुश होते हुए कहा , "क्या सच्ची दादू? क्या सच्ची ने आप तारा को छोड़ कर कहीं नहीं जाओगे?" । वीरेन जी ने अपनी गरदन हीला दी । कुछ ही देर में उनकी गाड़ी एक विला के बाहर आ कर रुकी । वीरेन जी की हैसियत अच्छी खासी थी वो भी राजस्थान में अपना एक अलग नाम और ओहदा रखते थे लेकिन ठाकुर्स के मुकाबले कम । वो गाड़ी से तारा को अपनी गोद में लिए हुए बाहर आए ही अगले ही पल उनके क़दम अपने आप पिछे हो गए । और पूरा विला खुद ब खुद उन्हें आग की लपटों में जलता हुआ नज़र आने लगा । त्रिवेदी विला आग में जल रहा था और इन सब से डरी तारा वीरेन जी से लिपटी हुई थी और वीरेन जी की आंखो में खौफ था । आज उनका सब कुछ ख़त्म हो चूका था । तभी एक मुलाजिम भागता हुआ आया वो काफी घबरा हुआ लग रहा था। उसे देखते ही वीरेन जी ने कहा , "ये सब क्या है और ये सब कैसे हुआ है?" । ये सुन उस मुलाजिम ने हांफते हुए कहा , "मालिक मालिक अभि इंडस्ट्रीज से खबर आई है पुरे इंडस्ट्रीज़ में भी आग लग गई है कई लोग मर रहें है" । 9 साल बाद_! क्या तारा अपनी अधुरी शादी को कभी पूरा कर पाएगी?
9 साल बाद!
राजस्थान , रामपुर गांव - काल्पनिक नाम!
"दादू हम आपसे वादा करते है हमे जो करना होगा हम करेंगे और हम आपकों बचा लेंगे, हम आपकों कुछ नहीं होने देंगें" , एक लड़की जो इस वक्त एक घर जो ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन खुबसूरत था उसके एक छोटे से कमरे में बैठी हुई थी ।
और उसके सामने वीरेन जी बिस्तर पर लेटे हुए थे । उनका चेहरा पूरा पिला पड़ा हुआ नज़र आ रहा था जैसे वो कितने ज्यादा तकलीफ में हो । वही उस लड़की की बात पर उन्होने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा , "तारा बिटिया! आपके दादू बिल्कुल ठिक है आपकों फिक्र करने की जरूरत नहीं है आप जाइए विद्यालय ( School ) वरना देरी हो जायेगी ।
उनकी बात पर तारा ने उनके हाथ को चूमते हुए खड़े हो कर कहा , "बहुत जल्दी दादू बहुत जल्दी हम ऑपरेशन के पैसे जमा कर लेंगे उसके बाद हम खुद आपकों ले कर दिल्ली जायेंगें" ।
कहते हुए तारा की आंखे नम हो गईं थी । वो अब कमरे से बाहर निकल गई वही उसके जाते ही वीरेन जी ने खुद में ही गहरी सांस भरी और कहा , "हम जानते है तारा नौ साल पहाले हमने अपना सब कुछ खो दिया, अपना धन दौलत सब कुछ लेकिन हम आप पर बोझ नहीं बनना चाहते है" ।
वही तारा कुछ ही देर में घर से बाहर निकल गई । वो सीधा पैदल ही चलती हुई बच्चो को पढ़ाने के लिए स्कूल जा रहीं थी । अपनी बारहवी पुरी करने के बाद तारा ने कुछ महीनो पहले ही अपनी पढ़ाई छोड़ गांव का स्कूल ज्वाइन कर लिया था क्योंकी उसे पैसों की जरूरत थी ।
कुछ ही देर में वो स्कूल पहुंची की स्कूल के पीऊन ने उससे आ कर कहा , "तारा बिटिया वो तुम्हे स्कूल के अध्यापक ( प्रिंसिपल ) साहब बुला रहे है अपने दफ्तर में" ।
तारा ने गरदन हीला दी और वो क्लास रूम में जानें के बजाय सीधा प्रिंसिपल के केबिन की तरफ़ चली गईं । वो उस दिन से नौ साल दिखने में और भी खुबसूरत हो गई थी । उस्सकी कत्थई आँखें अब और भी खुबसूरत लगती थी ।
इस वक्त उसकी खुबसूरत देख कर हर कोई कहता था की इस पुरे गांव की क्या पुरे राजस्थान में उसके जैसा खुबसूरत कोई नही होगा । इस वक्त तारा ने एक सिंपल साड़ी पहन रखी थी । वक्त ने शायद उसे उम्र से पहले ही बहुत मैच्योर बना दिया था । उसे शायद वक्त से पहले ही सब कुछ सोचना समझना आ गया था । और उस नौ साल पुराने हादसे ने वैसे ही उसके परिवार की सारी धन दौलत छीन ली थी । तारा के आई बाबा की मौत तो बहुत पहले ही हो चूकी थी जब वो सिर्फ दो साल की थी।
वो प्रिंसिपल के केबिन की तरफ़ जा ही रही थी की तभी किसी ने उसे पिछे से टोका , "अरे तारा मैडम कैसी है आप?" ।
तारा ने पलट कर देखा तो एक यंग एज आदमी खड़ा था । उसे देख तारा मुस्कुराईं फीर बोली , "हम ठिक है शुक्ला जी" ।
ये सुन तरुण हंसा फिर बोला बोला , "अछा तो किससे मिलने जा रहीं है?" ।
एक पल के लिए तारा खामोश हो गई लेकिन फिर बोली , "प्रिंसिपल साहब से" ।
कह कर उसने अपने कदम केबिन की तरफ़ बढ़ा दिए तो वही पिछे से उसे जाता देख तरुण खुद में ही मुसकुराया और बोला , "तारा मैडम बहुत बुरा फंसने वाली है आप इन प्रिंसिपल के हाथो" ।
कह कर वो भी चला गया । वही कुछ ही देर में तारा ने कैबिन का डोर नॉक किया तो अन्दर से आवाज़ आई , "आ जाओ" ।
इस आवाज़ को सुनते ही एक पल के लिए तारा का दिल बैठ गया । उसने कस कर अपनी साड़ी को अपनी मुट्ठी में भर ली लेकिन फिर एक गहरी सांस भरकर वो अन्दर चली गई ।
अन्दर जाते ही उसकी नज़र सामने बैठे इन्सान पर पड़ी जिसकी उम्र चालीस पार थी। तारा का खिला हुआ चेहरा अपने आप पिला पड़ने लगा था । उसका दिल जोरो से धड़क रहा था लेकिन उसे ये नही पता था की आख़िर उसका दिल इतनी जोरो से क्यों धड़क रहा है?
वही उस आदमी ने तारा को एक टेढ़ी मुसकुराहट के साथ देखा फिर कहा , "तारा मैडम आपकों नहीं लगता है आप दिन ब दिन कुछ ज्यादा ही खुबसूरत होती जा रहीं है? हम बता रहें है आप अपनी खूबसूरती को कम कर लीजिए वरना नज़र लग जाएगी" ।
कहते हुए वो तारा के करीब आ कर खड़ा हो गया । और उसके चहरे ने अपनी उंगली को फेरने लगा । तारा ने कस कर अपनी आँखें बंद कर ली और उसके गोरे गालों ने आंसू का कुछ बूंद लुढ़क कर गिर गया ।
लेकिन वो आदमी टेढ़ा मुसकुराते हुए तारा के चहरे में बस उंगली घुमाए जा रहा था । उसने अपने एक हाथ को अब तारा की कमर में रखा तारा एक दम से रो पड़ीं ।
वही उस आदमी ने उस आदमी ने तारा की कमर को सहलाते हुए कहा , "क्या है तारा मैडम आप रो क्यों रही है? आपकों रोना नही चाहीए वो क्या है ना अगर आप रोएंगी तो फिर हम अपना काम कैसे करेंगे?" ।
कहते हुए उसने तारा की साड़ी की प्लेट खोलनी चाही । लेकिन तारा ने जल्दी से उसका हाथ पकड़ लिया और कहा हकलाते हुए कहा , "प्लीज़ प्रिंसिपल साहब हम ये सब नहीं कर सकतें" ।
ये सुनते ही उस आदमी का गुस्सा एक दम से भड़क उठा । उसने गुस्से से तारा को देखा और उसकी साड़ी की प्लेट को जबरदस्ती खोलते हुए कहा , "तेरी इतनी हिम्मत जो तू अशोक शुक्ला को मना कर सके हां? बोल तेरी इतनी हिम्मत? तूझे पता हैये अशोक सिंह जिस भी लडकी को अपनी बिस्तर को शोभा बनने को कहता है ना वो लडकी खुशी खुशी उसके बिस्तर की शोभा बन जाति है लेकिन तू? तू मुझे मना कर रही है?" ।
कहते हुए उसने करीबन में उसकी साडी की प्लेट खोल दी थी वही तारा अब डर से कांप रही थी। जब से वो इस स्कूल में आई थी तब से उसके साथ अशोक उसके साथ ऐसा करने की कोशिश करता आया था लेकिन आज तक वो खुद को बचाती आई थी
पर आज? आज तो जैसे अशोक पुरी तरह से पागल हो गया था। तारा को समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे । उसने जल्दी से अशोक को खुद से दूर धक्का दिया और ख़ुद की साड़ी को अपने ऊपर जैसे तैसे लपेटने लगी ।
वही अशोक ने जैसे ही देखा की तारा ने उसे धक्का दिया है वो गुस्से से उसकी तरफ़ आया लेकिन वो उसे छू भी पता की उससे पहले ही केबिन का दरवाज़ा नॉक हुआ ।
अचानक ही अशोक के चेहरे में खौफ नज़र आने लगा तो वही तारा और ज्यादा डर से कांपते हुए अपनी साड़ी बनाने लगी । तभी एक बार फिर से दरवाज़ा नॉक हुआ ।
इस बार अशोक ने गुस्से से तारा को देखा और कहा, "जा जाकर बाथरूम में साड़ी सही कर" ।
तारा ने जल्दी से गरदन हीला दी और कैबिन से ही लगे बाथरुम में चली गईं । वही अशोक ने गहरी सांस लेते हुए दरवाज़ा खोला तो सामने तरुण था ।
तरुण अशोक का छोटा भाई था और साथ ही वो इस स्कूल का वाइस प्रिंसिपल भी था , वो दिखने में काफी हैंडसम था । तरुण मुस्कुराते हुए अन्दर आया और फिर चेयर ने बैठते हुए बोला , "भाइया कल ठाकुर साहब फाइनली हमारे गांव और हमारे स्कूल के अनाथ बच्चो के लिए चैरिटी करने आ रहें है" ।
ये सुनते ही अशोक का चेहरा को तारा की वजह से कुछ देर पहले गुस्से से कांप रहा था उसकी बात सुन कर चमक उठा । उसमें तुरंत पूछा , "तुम्हे ये बात किसने बताई की जयपुर से हमारे गांव आ रहें है?" ।
ये सुन तरुण ने उसे घूरा फिर कहा , "कोई क्यों बताएगा? ठाकुर साहब ने मुझे खुद बताया है बिकॉज We Are Friends और आपकों तो पता ही है वो दो तीन दिन पहले ही अपनी पढ़ाई पुरी कर London से लौटा है" ।
ये सुन अशोक ख़ामोश हो गया । लेकिन फिर उसने कुछ सोच कर कहा , "ठाकुर साहब तुम्हारा दोस्त है ना? तो तुम उससे ये जरूर कहना की वो हमारेस्कूल के लिए ज्यादा से ज्यादा चैरिटी दे"।
तरुण ने कुछ सोच कर कहा , "हां बात करूंगा मैं लेकिन बात यह है की कल ठाकुर साहब पहली बार हमारे गांव आ रहें है तो मैं चाहता हुं उसका स्वागत हम बहुत धूम धाम से करे! वो हमारे राजस्थान के कर्ता धर्ता है! लोग उन्हें देखने के लिए तरसते है लोग चाहते है की वो उनके गांव में अपने क़दम रखे लेकिन वो हमारे गांव में आ रहे है" ।
ये सुनते ही अशोक ने तूरंत कहा , "हां तो इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है? हम जम कर तैयारी करेंगे ठाकुर साहब के आने की खुशी में" ।
तरुण ने कुछ कहे बेगैर गरदन हिलाई तभी वॉश रूम का दरवाज़ा और तारा बाहर निकली । हालांकि तारा अभि भी डरी हुई थी लेकिन वो तरूण की मौजूदगी में वॉश रूम से बाहर सिर्फ इसलिए निकली थी क्यूंकि अगर वो तरूण के जानें के बाद बाहर निकलती तो शायद अशोक वो हरकत उसके साथ फिर से कर सकता था ।
वही तरूण और अशोक की नज़र एक दम से तारा पर गई, अशोक की नजरो में गुस्सा था तो वही तरूण ने कहा , "अरे तारा मैडम आप अभि तक यही है? अच्छा हुआ आप यहीं है मुझे आपसे कुछ बात करनी थी" ।
तरुण ने कहा जिस पर तारा चलती हुई उसके बगल में आ कर खड़ी हो गईं । और धिरे से कहा , "जी शुक्ला साहब कहिए" ।
"कल ठाकुर साहब हमारे गांव आने वाले है तो हम चाहते है इसकी तैयारी हम सब जम कर करे क्यूंकि वो क्या है ना ठाकुर साहब पहली बार हमारे गांव में अपने क़दम रखने वाले है" ।
तारा ने जैसे ही ठाकुर साहब आ रहें है सूना उसने हैरानी से कहा , "क्या? क्या सच में हमारे गांव में ठाकुर साहब आने वाले है?" ।
ये सुन तरुण ने गरदन हिलाई और कहा , "देखो पुरे गांव में एक तुम अच्छा नाचती हो और तुम्हारी कुछ सहेलियां है वो लोग तो मैं चाहता हुं की तुम अपनी सहेलियों के साथ मिलकर तैयारी कर लो और कल उनके स्वागत में तुम अपनी सहेलियों के साथ नचोगी" ।
ये सुनते तारा ने परेशानी से कहा , "लेकिन शुक्ला साहब हम इतनी जल्दी में नृत्य की तैयारी कैसे करेंगे?" ।
"देखो तारा ये तुम्हारी जिम्मेदारी है जाओ आज तुम्हारी स्कूल से छुट्टी है तुम नृत्य की तैयारी करो अपनी सहेलियों के" तरुण ने कहा तो तारा ने भी कुछ सोच कर हां में अपनी गरदन हीला ।
इस स्कूल में तारा बच्चो को English पढ़ाने के साथ साथ डांस भी सिखाती थी । उसे अठारह साल की उम्र में ही डांस में महारत हासिल थी ।
तारा कुछ ही देर में वहां से चली गईं वही तारा के जानें के बाद तरुण कुछ देर टक अशोक से बाते डिस्कस करता रहा ।
वही तारा कुछ ही देर में अपने घर वापस पहुंची तो उसने देखा वीरेन जी सो रहे है ये देख वो अपने पड़ोस वाले चौल में चली गईं जहा उसकी सारी दोस्त रहती थी ।
कुछ ही देर में चार लड़कियां गांव के ही रेतीले एरिया में बैठी आपस में बाते कर रही थी ।
तारा ने परेशानी से कहा , "देखो लड़कियों हमे बहुत अच्छा परफॉर्म करना होगा आख़िर ठाकुर साहब पहली बार हमारे गांव आ रहें है" ।
उसकी बात पर एक लडकी नित्या ने कहा , "हां ना हम अपना अछा देंगे लेकिन इसके लिए तैयारी भी चहिए इसलिए हमे पहले तैयारी करनी होगी और बहुत अच्छी तैयारी करनी होगी"।
ये सुन दुसरी लड़की दिया ने कहा, "हां और हम तो कहते है तो की हमे वो वाले गाने में नृत्य करना चाहीए" ।
ये सुन तीसरी लड़की राही ने गाने का नाम बताया और फिर कुछ ही देर में वो डांस प्रैक्टिस करने लगी ।
आगे ज़ारी हैं।
क्या होगा जबठाकुर साहब गांव आयेंगे?
क्या ये वही ठाकुर साहब है जिनकी अधूरी दुल्हन तारा है?