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Rishton ki siyasat.

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Md Zafar

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रिश्तों की सियासत ​खून से सने हाथों, सत्ता की भूख और चकाचौंध से भरी दुनिया में आपका स्वागत है। "रिश्तों की सियासत" सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक भयंकर तूफ़ान है, जो रिश्तों के सबसे गहरे और स्याह पहलुओं को उजागर करता है। यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ प्यार...

Total Chapters (10)

Page 1 of 1

  • 1. Rishton ki siyasat. - Chapter 1

    Words: 1721

    Estimated Reading Time: 11 min

    मेरे प्यारे लीडर्स,

    सबसे पहले मैं आप सबसे दिल से माफ़ी माँगना चाहती हूँ 🙏।

    काफ़ी दिनों से मैं कोई नया वीडियो अपलोड नहीं कर पा रही थी। वजह ये थी कि मेरे घर में एक पर्सनल केस की वजह से काफी परेशानियाँ चल रही थीं। उस मामले ने मुझे इतना उलझा दिया कि मैं आप लोगों से दूर हो गई। मुझे पता है कि आप सब मेरे नए स्टोरी एपिसोड का इंतज़ार करते हैं, और मैं उस भरोसे पर खरी नहीं उतर पाई।

    आज मैं हाथ जोड़कर आप सबसे माफी चाहती हूँ ❤️।

    लेकिन अब से मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मैं आपको रेगुलर और बेहतरीन कहानियाँ दूँ। आप सबका प्यार और सपोर्ट ही मेरी ताकत है।

    --- or

    आप सोच रहे होंगे कि मैंने "समय का सफ़र मोहब्बत तक" का अगला एपिसोड क्यों नहीं डाला।

    असल में वह कहानी अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है। मैं चाहती हूँ कि जब भी वह आपके सामने आए, तो वह और भी बेहतर और गहराई से लिखी हुई हो। इसलिए मैंने सोचा कि थोड़ा इंतज़ार करना सही रहेगा। 🙏

    लेकिन, आपके इंतज़ार को खाली नहीं जाने दूँगी।

    इस बीच मैं आपके लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ – "रिश्तों की सियासत"।

    उम्मीद है कि यह कहानी आपको उतनी ही पसंद आएगी और आपका प्यार और सपोर्ट मुझे हमेशा की तरह मिलता रहेगा। ❤️

    📖 अध्याय 1 : रिश्तों की सियासत की शुरुआत

    मुंबई – शहर जो कभी सोता नहीं।

    जहाँ ऊँची-ऊँची गगनचुंबी इमारतें आसमान को छूने का अहसास कराती हैं और अँधेरी गलियों में ज़िंदगी अपने सबसे सख़्त रूप में दिखाई देती है। इस शहर का हर कोना एक नई कहानी कहता है। और इन्हीं कहानियों में सबसे खतरनाक और रोमांचक नाम था – देववंश सिंह ओबेरॉय।

    🔥 देववंश सिंह ओबेरॉय – डर का दूसरा नाम

    देववंश का नाम सुनते ही अंडरवर्ल्ड से जुड़े हर छोटे-बड़े गुंडे की रूह काँप उठती थी।

    वह सिर्फ इंसान नहीं, बल्कि तूफ़ान था। उसके साम्राज्य की नींव खून, हिंसा और डर पर रखी गई थी। मुंबई के अँधेरे इलाकों से लेकर दुबई, हांगकांग और लंदन तक उसके नेटवर्क फैले हुए थे।

    लेकिन लोग सिर्फ उसका खौफ ही नहीं जानते थे।

    उसकी दूसरी पहचान भी उतनी ही चमकदार थी – ओबेरॉय इंडस्ट्रीज।

    यह एशिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक थी। टेक्सटाइल, फैशन, कॉस्मेटिक्स, स्टील, रियल एस्टेट और यहाँ तक कि हथियारों के कारोबार तक, ओबेरॉय इंडस्ट्रीज का दबदबा हर जगह था।

    देववंश सिर्फ एक माफिया नहीं था, बल्कि एक चतुर बिज़नेसमैन भी था।

    वह अपने भाइयों के लिए दीवार बनकर खड़ा रहता। उसके लिए परिवार सबसे ऊपर था। उसके लिए सत्ता, दौलत, ताकत – सब सिर्फ इसलिए थे ताकि उसका परिवार सुरक्षित और इज़्ज़तदार रहे।

    👔 अर्जुन सिंह ओबेरॉय – राजनीति का खिलाड़ी

    देववंश का दूसरा सबसे बड़ा सहारा था उसका छोटा भाई – अर्जुन सिंह ओबेरॉय।

    मुंबई का मुख्यमंत्री।

    बाहर से देखो तो एक करिश्माई नेता, जो जनता की भलाई की बातें करता था, लेकिन अंदर से वह पूरी तरह अपने बड़े भाई देववंश का वफादार था।

    उसके लिए राजनीति सिर्फ एक खेल थी, जिसमें हर चाल वह अपने भाई की मर्ज़ी से चलता था।

    लोग उसे मुख्यमंत्री मानते थे, लेकिन असल में वह अपने भाई का साया था।

    अर्जुन के लिए देववंश सिर्फ बड़ा भाई नहीं था – वह उसके लिए पिता समान था। उसका हर आदेश, उसके लिए कानून से भी ऊपर था।

    🌟 विवान सिंह ओबेरॉय – चकाचौंध का सितारा

    तीसरा भाई, विवान सिंह ओबेरॉय – जिसे दुनिया "प्रिंस" के नाम से जानती थी।

    वह बॉलीवुड का नहीं, बल्कि हॉलीवुड तक का सुपरस्टार था।

    लाखों-करोड़ों फैंस उसकी एक मुस्कान पर दीवाने थे।

    पर उसकी चकाचौंध भरी दुनिया के पीछे उसका दिल हमेशा अपने परिवार के लिए धड़कता था।

    वह अपने भाइयों के लिए जान भी दे सकता था।

    लोग उसे स्क्रीन पर हीरो मानते थे, लेकिन असल ज़िंदगी में भी वह अपने परिवार का असली हीरो था।

    😊 ईशान सिंह ओबेरॉय – मासूम पर खतरनाक

    सबसे छोटा भाई – ईशान।

    वह देववंश का दाहिना हाथ था।

    उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी।

    उसकी शरारतें परिवार को हँसा देती थीं, लेकिन जब बात सम्मान या सुरक्षा पर आती थी, तो वह किसी आग उगलते शेर से कम नहीं था।

    उसके अंदर एक अनोखा संतुलन था – मासूमियत और गुस्सा।

    और यही संतुलन उसे परिवार का सबसे प्यारा और जरूरी सदस्य बनाता था।

    ओबेरॉय परिवार की नींव और स्तंभ
    अगर ओबेरॉय भाइयों का साम्राज्य आज इतना विशाल और शक्तिशाली है, तो उसकी नींव और उसके स्तंभों का गहरा इतिहास है। यह कहानी सिर्फ़ देववंश, अर्जुन, विवान और ईशान की नहीं, बल्कि उनके माता-पिता और दादा-दादी की है, जिन्होंने अपने खून, पसीने और समझदारी से इस परिवार को आज इस मुक़ाम तक पहुँचाया है।
    रुद्र प्रताप और सुवर्णा: साम्राज्य की नींव
    ओबेरॉय परिवार की नींव रखी थी उनके पिता, रुद्र प्रताप सिंह ओबेरॉय ने। वह मुंबई के सबसे शक्तिशाली माफ़िया थे, जिनका नाम सुनकर लोग काँप उठते थे। लेकिन रुद्र प्रताप के लिए, यह ताक़त सिर्फ़ अपने परिवार को सुरक्षित रखने का एक ज़रिया थी। वह कठोर थे, लेकिन उनके दिल में अपने बेटों के लिए असीम प्यार था। उनकी पत्नी, सुवर्णा सिंह ओबेरॉय, अपनी पीढ़ी की सबसे मशहूर और सफल फ़ैशन डिज़ाइनर थीं। वह अपने पति की कठोर दुनिया में एक शांति और कला की लहर की तरह थीं। उन्होंने अपने बेटों में नैतिकता, कला और प्यार के बीज बोए।
    ओबेरॉय परिवार का जीवन तब हमेशा के लिए बदल गया, जब एक भीषण गैंग-वॉर में रुद्र प्रताप की जान चली गई। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, एक बच्चे को बचाया। इस दुखद घटना ने उनके बेटों को हिला दिया। उनकी माँ, सुवर्णा, इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाईं और अपने पति की मौत के कुछ ही महीनों बाद चल बसीं। इस घटना ने देववंश को अपने भाइयों के लिए एक दीवार बनने पर मजबूर कर दिया।
    अभय प्रताप और जानकी देवी: परिवार के स्तंभ
    रुद्र प्रताप और सुवर्णा के असमय चले जाने के बाद, ओबेरॉय परिवार को संभाला उनके दादा-दादी ने। दादा महाराज अभय प्रताप सिंह ओबेरॉय अपनी पीढ़ी के सबसे प्रभावशाली राजनेताओं में से एक थे। सत्ता के गलियारों में उनकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि उनका एक इशारा ही काफ़ी होता था। उनका राजनीतिक अनुभव और दूरदर्शिता आज भी ओबेरॉय भाइयों के काम आती है।
    वहीं, दादी महाराणी जानकी देवी ओबेरॉय, इस परिवार की सच्ची matriarch हैं। वह अपने स्वभाव से शांत, दयालु और समझदार हैं। उन्होंने ही अपने पोतों को सही-गलत का फ़र्क़ सिखाया और उन्हें परिवार के मूल्यों से जोड़े रखा। जानकी देवी का प्यार और उनका भावनात्मक सहारा ही इस परिवार को अंदर से जोड़े रखता है।
    आज भी, जब ओबेरॉय भाइयों को कोई मुश्किल आती है, तो वे अपने दादा-दादी की सलाह और प्यार के लिए उनके पास जाते हैं। अभय प्रताप की राजनीतिक समझ और जानकी देवी की ममता ही इस परिवार को सिर्फ़ एक माफ़िया और बिज़नेस साम्राज्य से कहीं ज़्यादा बनाती है। यह एक ऐसा परिवार है जहाँ रिश्ते और विरासत सबसे ऊपर हैं, और इन्हीं दोनों बुजुर्गों की बदौलत यह परिवार आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है।
    ---

    🌸 ईशा – परी जैसी लड़की

    अब कहानी का दूसरा सिरा।

    मुंबई की भीड़भाड़ से दूर, एक छोटे से अनाथ आश्रम में रहती थी – ईशा।

    वह सचमुच किसी परीकथा की नायिका जैसी थी।

    लंबे, घने, काले बाल, गोरा रंग और सबसे खास – नीली आँखें।

    उन आँखों में मासूमियत भी थी और गहराई भी।

    ईशा की सबसे बड़ी खूबसूरती उसका दिल था।

    वह हर किसी का दर्द समझ लेती थी।

    उसकी हंसी आश्रम के हर कोने को रोशन कर देती थी।

    लेकिन उसके जीवन में एक खालीपन था – माँ-बाप का प्यार।

    उसे मंदिर के पास नदी किनारे पर आश्रम के काका ने पाया था।

    किसने छोड़ा, क्यों छोड़ा – यह आज तक कोई नहीं जान पाया।

    🤝 ईशा और मेहर – दो परछाइयाँ

    ईशा की सबसे अच्छी दोस्त थी मेहर।

    वह भी अनाथ थी।

    दोनों एक-दूसरे की परछाईं थीं।

    सुख-दुख की साथी।

    आश्रम में उनका रिश्ता बहनों से भी बढ़कर था।

    ---

    🎉 पूजा का आयोजन

    उस दिन आश्रम में एक खास पूजा रखी गई थी।

    पूरा आश्रम फूलों से सजाया गया था।

    बच्चों की हंसी और मंत्रों की गूंज माहौल को पवित्र बना रही थी।

    इस पूजा का मुख्य आकर्षण था – मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ओबेरॉय का आगमन।

    वे आश्रम में डोनेशन देने आए थे।

    उनकी गाड़ियों का काफिला और सुरक्षा इतनी थी कि पूरा आश्रम किसी किले में बदल गया था।

    अर्जुन जैसे ही पूजा स्थल पर पहुँचे, सब लोग उन्हें प्रणाम करने लगे।

    लेकिन उनकी नजर सिर्फ एक जगह टिक गई – मेहर पर।

    💔 पहली नज़र का प्यार – या चाल?

    मेहर की मासूमियत और खूबसूरती ने अर्जुन को घायल कर दिया।

    उसके लिए यह पहली नजर का प्यार था – या शायद एक खतरनाक जुनून।

    वह तुरंत अपने अंगरक्षकों को इशारा करता है।

    उसकी आँखों में चमक थी, पर उसके पीछे छुपी थी चालाकी और खतरा।

    पूजा खत्म हुई।

    मेहर ईशा के साथ हँसते-बोलते बाहर निकली।

    लेकिन तभी अचानक कुछ गुंडों ने उसे घेर लिया।

    ईशा घबरा गई।

    उसने चीखकर मेहर का नाम पुकारा, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।

    गुंडे मेहर को जबरदस्ती उठाकर ले गए।

    और सबसे डरावनी बात – ईशा ने अपनी आँखों से देखा कि यह सब अर्जुन सिंह ओबेरॉय की गाड़ी के अंगरक्षक करवा रहे थे।

    ईशा का खून सूख गया।

    उसका पूरा शरीर काँप रहा था।

    🚔 पुलिस स्टेशन – टूटी हुई उम्मीद

    ईशा हिम्मत जुटाकर पुलिस स्टेशन पहुँची।

    उसने पूरी घटना पुलिस को बताई।

    लेकिन पुलिसवालों ने उस पर हँस दिया।

    "तुम्हें पता भी है तुम किसके बारे में बोल रही हो?

    वह मुंबई का मुख्यमंत्री है।

    जाओ यहाँ से, वरना जेल में डाल देंगे!"

    ईशा रोती हुई वहाँ से निकली।

    उसकी हिम्मत टूट चुकी थी।

    उसके मन में सिर्फ एक सवाल था –

    अब क्या होगा?

    क्या वह अपनी दोस्त को बचा पाएगी?

    क्या वह इतनी ताकतवर सियासत और अंडरवर्ल्ड से भरे ओबेरॉय परिवार के सामने खड़ी हो पाएगी?

    ---

    ❓ सवाल आपसे

    अगर आप ईशा की जगह होते तो क्या करते?

    क्या आप इतनी बड़ी ताकत के सामने खड़े होकर अपनी दोस्त के लिए लड़ते?

    ---

    📢 मेरे प्यारे लीडर्स

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  • 2. Rishton ki siyasat. - Chapter 2

    Words: 1795

    Estimated Reading Time: 11 min

    दूसरा अध्याय: डर का साया

    ​सीन 1: मेहर का सुनहरा पिंजरा

    ​अर्जुन का फार्महाउस

    ​अर्जुन के आलीशान फार्महाउस के एक कमरे में मेहर बेसुध पड़ी थी। कमरा काले और लाल रंग के मेल से सजा था, जो प्यार और खतरे का अजीब सा मेल दिखा रहा था। किंग-साइज बेड पर एक बड़ा और खूबसूरत झूमर अपनी रोशनी बिखेर रहा था। कमरे की हर एक चीज़ बेशकीमती और पुरानी थी, जो ओबेरॉय परिवार की दौलत और शानो-शौकत की गवाही दे रही थी।

    ​दरवाज़ा धीरे से खुला और दरवाज़े पर मुंबई के मुख्यमंत्री, अर्जुन सिंह ओबेरॉय की परछाई नज़र आई। वह अंदर आए और देखा कि मेहर अभी भी बेहोश है। वह एक लाल अनारकली सूट में सोई हुई थी, उसके बाल पूरे बिस्तर पर बिखरे थे। रात के चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर गिर रही थी, जो उसे एक परी जैसा रूप दे रही थी।

    ​अर्जुन धीरे-धीरे उसके पास गया। उसके दिल में एक अजीब सी हलचल थी। वह झुककर मेहर के गालों से उसके बाल हटाता है और फुसफुसाता है, "ना जाने ये दिल कैसे धड़कने लग गया तुझे देखकर। पर जब अर्जुन ओबेरॉय को कोई चीज़ पसंद आ जाती है, तो वह उसे अपने हाथों से कभी दूर जाने नहीं देता।" वह पास ही रखे सोफे पर बैठ जाता है और मेहर को एकटक देखता रहता है। उसकी नज़रें सिर्फ मेहर पर टिकी थीं।

    ​दूसरी तरफ, शहर में

    ​शहर की अँधेरी गलियों में ईशा मदद के लिए हर दरवाज़े पर जा रही थी। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, उसका दिल मेहर के लिए तड़प रहा था। पर कोई उसकी मदद करने को तैयार नहीं था। वह हर जगह से मायूस होकर लौट रही थी। पुलिस स्टेशन से मिली फटकार अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी। उसे लग रहा था कि वह अकेली पड़ गई है, इस दुनिया में उसकी सुनने वाला कोई नहीं है।

    ​अगली सुबह, फार्महाउस में

    ​अगली सुबह, कमरे की खिड़की से आती सूरज की किरणें मेहर की आँखों पर पड़ीं और उसे होश आने लगा। उसने जल्दी से अपनी आँखों पर हाथ रखा और धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। एक पल के लिए उसे लगा कि वह किसी सपने में है, लेकिन जब उसने खुद को एक इतने बड़े और आलीशान कमरे में देखा तो वह घबरा गई। वह जल्दी से बिस्तर पर उठकर बैठ गई।

    ​तभी उसकी नज़र सामने वाले सोफे पर बैठे उस शख्स पर पड़ी, जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी थी - अर्जुन सिंह ओबेरॉय।

    ​मेहर की आँखों में फिर से आँसू भर आए। वह काँपती हुई आवाज़ में बोली, "मैं यहाँ... मैं यहाँ कैसे आ गई?"

    ​अर्जुन मुस्कुराते हुए उसके पास आता है और उसके आँसू पोंछते हुए शांत लहजे में कहता है, "अब तुम मेरी हो, स्वीटी। तुम्हारी ज़िंदगी अब यही है। तुम्हें अब यहीं रहना होगा, मेरे पास हमेशा के लिए।"

    यह सुनते ही मेहर के दिल की धड़कन रुक सी गई। वह रोने लगी।

    "और आज शाम... हमारी शादी है," अर्जुन ने उसके काँपते हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा। "मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपने पास रखना चाहता हूँ। इसके लिए शादी तो एक ज़रूरी काम हुआ ना?" वह एक सनकी मुस्कुराहट के साथ बोलता है।

    अर्जुन मुस्कुराता है और फिर बिस्तर से उठकर कमरे से बाहर निकल जाता है। मेहर फूट-फूटकर रोने लगती है। वह दरवाज़े की तरफ दौड़ती है, यह सोचकर कि वह यहाँ से भाग जाएगी, लेकिन अर्जुन ने सभी दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद करवा दी थीं। वह अब एक सोने के पिंजरे में कैद हो चुकी थी।

    दोपहर का वक्त

    दोपहर को, कुछ नौकरानी मेहर के लिए खाना लेकर आईं। मेहर ने खाने से मना कर दिया और गुस्से में कहा, "तुम लोग यहाँ से चले जाओ और मुझे यहाँ से जाने दो... प्लीज़।"

    नौकरानियाँ चुपचाप वहाँ से चली गईं और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया। मेहर अकेली कमरे में बैठी रोती रही। उसकी भूख मर चुकी थी, उसकी प्यास सूख चुकी थी।

    शाम का वक्त: शादी का इंतज़ाम

    शाम के वक्त अर्जुन फिर से मेहर के कमरे में आता है। उसके हाथ में एक सोने की थाली थी जिस पर एक खूबसूरत मैरून रंग का लहंगा सजा हुआ था।

    "स्वीटी... तैयार हो जाओ। आज हमारी शादी होने वाली है।"

    मेहर रोती हुई बोली, "मैं यह शादी नहीं करूँगी! नहीं करूँगी!"

    अर्जुन का चेहरा सख्त हो गया। "करनी तो पड़ेगी, स्वीटी।"

    "मैं यह नहीं पहनूँगी!" मेहर ने गुस्से में कहा।

    अर्जुन उसकी तरफ बढ़ता है, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट थी। "मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि तुम इसे पहनती हो या नहीं... वैसे भी आज रात मैं इसे उतारने वाला हूँ।"

    यह सुनकर मेहर का शरीर काँप गया। वह बेबसी से रोती हुई बेड पर बैठ गई।

    अर्जुन थाली वहीं रखकर बाहर जाने लगा। दरवाज़े पर रुककर उसने मुड़कर मेहर को देखा। "ना स्वीटी... इस जन्म में तुमको मुझसे छुटकारा नहीं मिल सकता। मैंने सुना है कि आश्रम के लोग तुम्हारे लिए तुम्हारी जान से बढ़कर हैं।"

    यह कहते हुए उसकी आँखों में सनकीपन और खतरा झलक रहा था। अर्जुन ने सोने की थाली वहीं रखी और कमरे से बाहर निकल गया, दरवाज़ा बाहर से लॉक कर दिया।

    शादी का समारोह

    अर्जुन के फार्महाउस के एक बड़े हॉल को दुल्हन की तरह सजाया गया था। फूलों, दीयों और झालरों से पूरा हॉल जगमगा रहा था। लेकिन इस रौनक के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी थी। हॉल के बीचों-बीच एक खूबसूरत मंडप सजा था।

    अर्जुन अपने असिस्टेंट के साथ वहाँ खड़ा था। असिस्टेंट ने कहा, "बॉस, मेहर मैडम तैयार नहीं हो रही हैं।"

    अर्जुन ने एक पल सोचा और फिर कहा, "कोई बात नहीं। दुल्हन को मंडप तक ले आओ।"

    कुछ देर बाद, मेहर को दो महिला अंगरक्षक पकड़कर मंडप तक लाईं। वह उसी लाल अनारकली सूट में थी और लगातार रो रही थी। उसका चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था।

    अर्जुन ने मेहर का हाथ थामा और उसे मंडप में अपने पास बिठाया। पंडित ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। अग्नि के सामने दो अनजान लोगों को एक अटूट रिश्ते में बाँधा जा रहा था।

    फेरे लेते हुए, मेहर की आँखों में सिर्फ अपने और ईशा के बीते हुए दिन घूम रहे थे। हर कदम उसे लग रहा था कि वह अपनी आज़ादी से और दूर जा रही है।

    सिंदूर और मंगलसूत्र

    सिंदूर लगाने का समय आया। अर्जुन ने मेहर की मांग में सिंदूर भरना चाहा, लेकिन मेहर ने अपना सिर हटा लिया। अर्जुन ने उसका सिर पकड़ा और जबरदस्ती उसकी माँग में सिंदूर भर दिया। उस वक्त मेहर की आँखों से आँसू झर-झर कर गिरे, जैसे उसने अपनी सारी उम्मीदें और सपने खो दिए हों।

    अगले ही पल, अर्जुन ने मंगलसूत्र निकाला। वह मंगलसूत्र मेहर के गले में पहनाते हुए अपनी मोहब्बत और अधिकार दोनों जताना चाहता था। जैसे ही उसने मंगलसूत्र पहनाया, मेहर ने अपनी आँखों से एक और आँसू टपकाया। वह मंगलसूत्र सिर्फ एक गहना नहीं था, बल्कि उसकी बेबसी का प्रतीक बन गया था।

    पायल और बिछिया

    शादी की थकान से चूर, मेहर अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसकी आँखें सूजी हुई थीं और उनसे लगातार आँसू बह रहे थे, जो उसके गालों पर नम लकीरें बना रहे थे। यह वह रात थी जिसका उसने कभी सपना नहीं देखा था, और अब यह उसके लिए एक डरावने सच में बदल गई थी।
    अचानक दरवाज़ा धीरे से खुला। मेहर ने सिर उठाकर देखा। अर्जुन दरवाज़े पर खड़ा था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। वह धीरे-धीरे, रहस्यमयी ढंग से कमरे के अंदर आता है, और एक बहुत ही डरावना गाना गुनगुना रहा था:
    "अकेली है ये रात, और मैं हूँ तुम्हारा साया,
    छुप कर भी कहाँ जाओगी, जब मैंने तुम्हें पाया...
    तुम्हारे पाँवों की हर आहट, अब मेरी मुट्ठी में है,
    तुम्हारी हर साँस पर, अब सिर्फ़ मेरा ही हक़ है...
    ये पायल नहीं, बेड़ियाँ हैं, जो तुमको बाँध लेंगी,
    ये बिछिया नहीं, वो काँटे हैं, जो तुमको चुभती रहेंगी...
    हर गली, हर दरवाज़े पर, मेरा पहरा होगा,
    मेरी मर्ज़ी के बिना, यहाँ पत्ता भी ना हिलेगा...
    तुम एक कठपुतली हो, और डोर मेरे हाथ में,
    ना दिन है, ना रात है, बस तुम हो मेरे साथ में..."
    अर्जुन मेहर के पास आकर बेड पर बैठ जाता है। उसके हाथ में पायल और बिछिया थीं।
    "शादी के बाद एक पति का फ़र्ज़ होता है अपनी पत्नी को ये सब पहनाना, है ना स्वीटी?" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा।
    वह मेहर के पाँव अपने हाथ में लेता है और प्यार से पायल और बिछिया पहनाता है। इस दौरान, मेहर सिर्फ बेजान मूर्ति की तरह बैठी रही। उसका दिल खाली हो चुका था।
    अर्जुन पायल पहनाते हुए भी गाना गा रहा था, "तुम्हारे पाँवों की हर आहट, अब मेरी मुट्ठी में है... सिर्फ मेरी मुट्ठी में।"
    पायल पहनाते हुए अर्जुन ने मेहर के पाँव पर अपना हाथ फेरा। मेहर काँप गई। उसके लिए यह पल प्यार का नहीं, बल्कि डर और बेबसी का था।
    अर्जुन ने धीरे से कहा, "आज से तुम सिर्फ़ मेरी हो, मेहर... सिर्फ मेरी।"
    मेहर अपनी आँखों में आँसू लिए उसे देखती रही। उसे पता था कि अब उसकी ज़िंदगी अर्जुन के इस सोने के पिंजरे में ही बीतने वाली है।

    सवाल आपसे

    अब जब मेहर अर्जुन के शिकंजे में है, तो क्या आपको लगता है कि ईशा हार मान लेगी? अपनी दोस्त को बचाने के लिए वह क्या कदम उठाएगी?

    दिव्यांश की परछाई

    उसी वक्त, फार्महाउस से दूर अर्जुन का भाई दिव्यांश सिंह ओबेरॉय अपने दफ़्तर में बैठा था। उसका असिस्टेंट उसके पास आया।

    "सर, एक ख़बर है... बॉस अर्जुन sir आज फार्महाउस में शादी कर रहा है।"

    दिव्यांश ने बिना चेहरा बदले कहा—

    "शादी उसके मामले हैं... मुझे उसमें दिलचस्पी नहीं। मुझे उस लड़की की पूरी जानकारी चाहिए। अगले ke घंटे ka अंदर मेरे डेस्क पर।"

    असिस्टेंट हिचकिचाया—"लेकिन सर... वो लड़की की एक दोस्त आपकी तलाश में है। दिव्यांश कहता है पर क्यों। सर अर्जुन सर ने उसे लड़की से जबरदस्ती शादी की है। और उसे लड़की को किडनैप करते हुए उसे लड़की की दोस्त ने देख लिया है और उसे पता है कि यह अर्जुन सर के गार्डों ने किया है। कल रात वही लड़की पुलिस स्टेशन भी गई थी शिकायत लेकर। शायद... वो अब भी हार नहीं मानी है।"

    दिव्यांश ने कुर्सी पर पीछे टिकते हुए आँखें मूँदीं।

    "दिलचस्प... अर्जुन जो चाहता है, उसे छीन लेता है। लेकिन ये लड़की और उसकी दोस्त... खेल को और बड़ा बनाने वाली हैं।"

    अगले 1 घंटे में वह लड़की मेरे पर्सनल फार्म हाउस में होनी चाहिए। जरा मैं भी तो पता करूं कि इनमें ऐसा क्या है जो मेरा भाई भी इन लोगों का दीवाना हो गया। असिस्टेंट वहां से चला जाता है और दिव्यांश अपने ऑफिस चेयर पर जाकर बैठ जाता है और अपने केबिन से बाहर का व्यू देखने लगता है।

    ---

    सवाल आपसे

    अब जबकि मेहर अर्जुन की जबरन पत्नी बन चुकी है और ईशा अपनी दोस्त को बचाने की जद्दोजहद कर रही है—क्या दिव्यांश इस कहानी में मेहर का रक्षक बनेगा या अपने भाई अर्जुन का साथी?

  • 3. Rishton ki siyasat. - Chapter 3

    Words: 2332

    Estimated Reading Time: 14 min

    ​तीसरा अध्याय: एक नया साया

    ​सीन 1: उम्मीद की किरण और नया खतरा

    ​ईशा का आश्रम

    ​ईशा आश्रम के बीच आँगन में बेसुध पड़ी थी। उसकी आँखें लाल थीं और चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी। उसकी दोस्त, उसकी बहन, मेहर का तीन दिनों से कोई अता-पता नहीं था। आश्रम के बुजुर्ग, रामू काका, उसे देख कर घबराए हुए थे। उन्होंने ईशा को सहारा देते हुए पूछा, "बेटा... मेहर मिली क्या?"

    ​ईशा की आँखों से आँसू झर-झर कर गिरने लगे। वो सिसकते हुए बोली, "नहीं बाबा, वो नहीं मिली... और कोई भी उस मुख्यमंत्री के खिलाफ रिपोर्ट लिखने को तैयार नहीं है।" उसकी आवाज़ में दर्द और निराशा भरी थी।

    ​रामू काका ने ईशा को सांत्वना दी। "हिम्मत मत हारो बेटी। भगवान पर भरोसा रखो।"

    ​"आज तीसरा दिन हो गया है बाबा... ना जाने वो किस हाल में होगी।" ईशा अपनी बेबसी पर और भी रोने लगी। उसका दिल मेहर के लिए तड़प रहा था। अचानक, उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया और वो वहीं आँगन में गिर पड़ी।

    ​रामू काका ने आश्रम की लड़कियों की मदद से ईशा को उसके कमरे में लिटाया। पिछले तीन दिनों से, मेहर के गायब होने के सदमे में, उसने कुछ भी नहीं खाया था। रामू काका दिल ही दिल में भगवान से दुआ कर रहे थे, "हे भगवान, इस बच्ची का सिर्फ एक ही सहारा था... जिसे ये अपने परिवार की तरह मानती थी। उसे इससे दूर मत कीजिए, उसे मेहर से मिलवा दीजिए।" उनकी आँखें भी नम हो गईं।

    ​शाम का वक्त, आश्रम

    ​अचानक आश्रम में ढेर सारी गाड़ियों के रुकने की आवाज़ आई। काले रंग की बीएमडब्ल्यू गाड़ियों से उतरे बॉडीगार्ड्स ने पूरे आश्रम को घेर लिया। उनका हेड गार्ड रामू काका के पास आया और रुखे लहजे में पूछा, "वो लड़की कहाँ है?"

    ​रामू काका ने घबराकर पूछा, "आप लोग कौन हैं और उसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं?"

    ​हेड गार्ड ने उन्हें धक्का देते हुए कहा, "बकवास बंद करो और बस इतना बताओ कि वो लड़की है कहाँ? तेरे सवालों का जवाब देने के लिए हम यहाँ नहीं खड़े हैं।"

    ​शोर सुनकर ईशा को होश आया और वो कमरे से बाहर निकल आई। हेड गार्ड ने उसे देखते ही पहचान लिया और उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा। रामू काका चिल्लाए, "बेटा, भाग जा!"

    ​भागने की कोई जगह न देखकर ईशा पास के एक खाली कमरे में जाकर खुद को अंदर से बंद कर लेती है। हेड गार्ड ने अपने असिस्टेंट को फोन किया, "सर, उस लड़की ने खुद को कमरे में बंद कर लिया है। अब हम क्या करें?"

    ​फोन का स्पीकर ऑन था। असिस्टेंट के साथ दिव्यांश सिंह ओबेरॉय भी फोन पर सारी बातें सुन रहा था। दिव्यांश ने असिस्टेंट से कहा, "मैं आ रहा हूँ। गाड़ी निकालो।"

    ​असिस्टेंट ने ड्राइवर को जल्दी से कॉल किया और बॉडीगार्ड्स को तैयार होने के लिए कहा। दिव्यांश और असिस्टेंट प्राइवेट लिफ्ट से ऑफिस के नीचे आए। नीचे 40 काली बीएमडब्ल्यू गाड़ियाँ खड़ी थीं। दिव्यांश बीच वाली कार में बैठ गया और गार्ड्स बाकी गाड़ियों में बैठ गए। उनका काफिला आश्रम की तरफ निकल पड़ा।

    ​दूसरी तरफ, ईशा अपने कमरे में बैठी बहुत रो रही थी। उसे बाहर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी और वो बाहर भी निकलना चाहती थी, पर डर के मारे नहीं निकल पा रही थी।

    ​ईशा मन ही मन भगवान से कहने लगी, "हे भगवान, हमारे ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है? ज़िंदगी भर हम लोगों ने दुख ही देखा... न माता-पिता का साया हमारे सिर पर था, न कोई अपना... एक दोस्त मिली, वो भी गायब हो चुकी है, और अब ये सब क्या हो रहा है हमारे साथ? हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है। हमारी मदद कीजिए, माता रानी।"

    ​तभी अचानक आश्रम में ढेर सारी गाड़ियों के रुकने की तेज़ आवाज़ आई। यह आवाज़ इतनी तेज़ थी कि आश्रम के सभी लोग घबरा गए। रामू काका अकेले आँगन में खड़े थे, बाकी सबको डर के मारे कमरे में बंद कर दिया गया था।

    ​दिव्यांश अपनी गाड़ी से बाहर आया और हेड गार्ड से पूछा, "वो किस कमरे में है?"

    ​हेड गार्ड ने कहा, "सर, उन्होंने अंदर से दरवाज़ा बंद किया हुआ है।"

    ​तभी रामू काका दिव्यांश के पैरों में गिर गए, "मेरी बेटी को छोड़ दो मालिक... मेरी बेटी अनाथ है, उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। प्लीज़ छोड़ दो उसे..."

    ​दिव्यांश ने रामू काका को कॉलर से पकड़कर उठाया और उन्हें घसीटते हुए उस कमरे के दरवाज़े के पास लेकर गया जहाँ ईशा बंद थी।

    ​"अगर तुमने ये दरवाज़ा नहीं खोला तो ये बूढ़ा आज मरेगा। क्या तुम चाहती हो कि मैं इस बूढ़े को मार दूँ?" दिव्यांश ने आसमान में एक हवाई फायर किया।

    ​गोली की आवाज़ सुनकर ईशा घबरा गई और उसने तुरंत दरवाज़ा खोल दिया।

    ​जैसे ही ईशा बाहर आई, दिव्यांश की नज़रें उस पर टिक गईं। उसकी सादगी और उसकी आँखों की मासूमियत ने उसे एक पल के लिए रोक दिया। दिव्यांश के दिमाग में एक गाना गूँजने लगा:

    ​"ये कौन है, कहाँ से आई,

    जो मेरे दिल में समाई,

    आँखों में है एक तूफ़ान,

    पर चेहरे पर है मासूमियत छाई...

    इसकी हर आहट में है सच्चाई,

    इसकी हर साँस में है बेबसी...

    ये कोई आम लड़की नहीं,

    ये है मेरे दिल की धड़कन नई..."

    ​ईशा की ख़ूबसूरती देखकर दिव्यांश के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट आ गई। मेहर को खोने का दर्द और अर्जुन से मिली मायूसी की झुंझलाहट अब ईशा को देखकर दिव्यांश पर भी भड़क रही थी। ईशा गुस्से में चिल्लाकर दिव्यांश से बोली, "तुम सब अमीरज़ादे एक जैसे होते हो! तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हें किसी की इज़्ज़त करना नहीं सिखाया! तुम दरिंदे हो, दूसरों का खून पीने वाले इंसान हो, जो गरीब और अनाथ को कुछ नहीं समझते!"

    ​ईशा की बातों से दिव्यांश की आँखें लाल हो गईं। उसके माथे की नसें तन गईं। उसने रामू काका का कॉलर छोड़कर ईशा के बाल कसकर पकड़ लिए।

    ​दिव्यांश ने दाँत भींचकर कहा, "दरिंदा... और न जाने क्या-क्या... तुम मुझको कह रही हो? अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि असल दरिंदा किसे कहते हैं!"

    ​वो ईशा को घसीटते हुए अपनी कार की तरफ ले जाने लगा। रामू काका उसे रोकने के लिए दिव्यांश के पास आए। दिव्यांश ने गुस्से में अपनी पिस्तौल से रामू काका के हाथ पर गोली चला दी।

    ​"आहह..." रामू काका दर्द से चिल्लाए और वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़े। उसी समय बारिश शुरू हो गई और उनका खून पूरे आँगन में फैल गया।

    ​ईशा की आँखों से आँसू बहने लगे। वो रोते हुए कहने लगी, "प्लीज़... छोड़ दो उन्हें... वो मर जाएँगे... प्लीज़ मुझे छोड़ दो!"

    ​वो दिव्यांश के सामने गिड़गिड़ा रही थी, पर दिव्यांश ने उसके बालों को खींचते हुए उसे अपनी गाड़ी में धकेल दिया। उसकी गाड़ी फार्महाउस की तरफ निकल पड़ी और उसके पीछे-पीछे उसके गार्ड्स की गाड़ियाँ भी निकल गईं।

    ​कार के अंदर ईशा दिव्यांश से छूटने की पूरी कोशिश कर रही थी। गुस्से में आकर उसने दिव्यांश के हाथ पर दाँतों से काट लिया।

    ​यह देखकर दिव्यांश ने उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा और उसका गला पकड़कर कहा, "तूने मुझे दरिंदा कहा है... अब तुझे पता चलेगा कि मैं कितना बड़ा दरिंदा हूँ।"

    ​उसने ईशा को कार की सीट पर धकेल दिया। ईशा की साँसें तेज़ हो गई थीं। उसके दिल में मेहर के लिए चिंता और दिव्यांश का डर, दोनों का सैलाब उमड़ रहा था। उसे लगा कि वो अब एक नए जाल में फँस चुकी है, एक नए दरिंदे के शिकंजे में।

    दिव्यांश ने ईशा को अपने आलीशान फार्महाउस की ओर खींचा। बाहर से वह जगह किसी सपनों के महल जैसी लग रही थी – हरी-भरी ज़मीन, नर्म रोशनी से जगमगाता आँगन और ऊँचे दरवाज़े। लेकिन ईशा की आँखों में यह सारी ख़ूबसूरती धुँधली पड़ चुकी थी। उसके ज़हन में बार-बार वही मंज़र घूम रहा था – रामू काका का खून से सना आँगन। दिल की गहराइयों तक कंपकंपी दौड़ रही थी।

    उसकी आँखों से आँसू झर-झर बह रहे थे, पर दिव्यांश को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था। उसने उसके बालों को बेरहमी से खींचा और उसे ज़बरदस्ती भीतर के कमरे की ओर ले गया।

    कमरे का माहौल खौफ़नाक था – भारी परदों से ढकी खिड़कियाँ, लाल और काले रंग की सजावट, और हवा में पसरा सन्नाटा। दिव्यांश ने उसे ज़मीन पर धक्का दिया।

    जैसे ही उसने अपनी आस्तीनें मोड़ीं, उसकी नज़र हाथ पर पड़े दाँतों के निशानों पर गई। वो निशान उसके लिए किसी जलील करने वाले तंज़ जैसे थे। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

    "इस लड़की ने मुझे चोट पहुँचाई… और मुझे आज तक कोई छू भी नहीं सका।" उसके चेहरे पर हैवानियत की झलक थी।

    वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा। ईशा काँप रही थी, उसके रुँधे गले से सिर्फ़ टूटी-फूटी आवाज़ें निकल रही थीं। दिव्यांश ने अपनी मुट्ठी भींची और उसके सामने खड़ा होकर बोला:

    "अब तुम समझोगी… कि मैं कौन हूँ। यह तो बस शुरुआत है। तुम्हें बहुत कुछ सहना अभी बाकी है।"

    दिव्यांश ने ईशा को उसके बालों से खींचते हुए उठाया और एक काश कर थप्पड़ मारा उसे थप्पड़ से ईशा के गालों पर बेहद लाल कलर के निशान पड़ गए और उसके फोटो के किनारो से खून आने लग गया। ईशा रो रही थी गिर गिर रही थी दिव्यांश के सामने की प्लीज मुझे छोड़ दीजिए पर दिव्यांश को कोई रहम नहींआया। दिव्यांश ने अपने कमर से बेल्ट निकाला और अपने हाथों में मोरेट हुए। ईशा को एक बार देखा और उसे पर बेल्ट बरसने लगा। जब जब बेल्ट ईशा की बदन से लगते उसकी चीखें निकलती और उसके बदन से एक खून की धार बहने लगती। दिव्यांश गुस्से में पागल हो चुका था। जब दिव्यांश उसे मार कर थक गया तो उसने ईशा को बालों से पकड़ कर बैठ पड़ा खेल दिया। और ईशा के ऊपर जाकर उसे अपनी बाहों के घेरे में कैद कर लिया और उसके चेहरे के सामने जाकर बोला अब तुम्हें पता लगेगा कि कितने किस दरिंदा कहा है। तभी दिव्यांश ने झटके से ईशा का दुपट्टा उसके गले से खींच दिया। ईशा कस के चिल्लाई भगवान के लिए मुझे छोड़ दो मैं ऐसा कभी नहीं करूंगी। प्लीज छोड़ दो उसकी आंखों से आंसू गिर रहा था। दिव्यांश उसे किस करने लगता है। बहुत पैशनेट तरीके से कभी अप्पर लिप कभी लोहार लिपि को किस करता। उसे किस नहीं कह सकते थे उसके होंठ फट चुके थे। दिव्यांश ने धीरे-धीरे करके ईशा के सारे कपड़े फाड़ दिए। दिव्यांश कभी उसके गर्दन पर किस करता। कभी सीने पर। ईशा उसे हटाने की पूरी कोशिश कर रही थी पर उसे जैसा हट्टा कट्टा नौजवान उसे कहां हटा। तभी वह ईशा के अंदर एक झटके में इंटर करता है। विकास के चिल्लाती है और उसकी आंखों से आंसू गिरने लगते हैं उसे ऐसा लग रहा था माना कि उसकी जान निकल गई हो। वह पूरी रात ईशा के ऊपर इसी तरीके से मनमर्जी करता रहा। पर इशा अब शांत हो चुकी थी। उसे अब पता चल चुका था कि उसका सब कुछ लुट चुकाहै। अब उसके पास कुछ नहीं बचा।

    अगली सुबह फार्म हाउस पर ईशा तो आधी रात ही में भी होश हो चुकी थी पर दिव्यांश का दिल भर ही नहीं रहा था। वह उसे सुबह के 3:00 छोड़ता है और उसके बगल पर लेट जाता है। दोनों व्हाइट सिल्क की चादर में सोए हुए थे। ईशा की नींद सुबह 4:00 बजे खुलता है। वह देखी है कि दिव्यांश वह हवन उसके बगल पर सोया हुआ है। वह धीरे-धीरे करके उठाती है उसके बदन में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था मानो मर जाएगी। वह धीरे-धीरे कोशिश करके उठाती है और वह कोशिश करती है कि उसके गले से कोई आवाज नानिकले। और वह अपने कपड़े को पहन कर धीरे से फार्महाउस के बाहर निकल जाती है। फार्महाउस के गार्ड उसे नहीं रखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दिव्यांश ने उसे रोकने की कोई आर्डर नहीं दिए हैं इसी वजह से ईशा आसानी से फार्म हाउस से निकल जाती है और वह धीरे-धीरे चलते हुए में रोड पर पहुंच जाती है और उसकी आंखों से बहुत ज्यादा आंसू गिर रहे थे वह अपने जिंदगी को खुश रही थी कि। उसके मां-बाप ने उसे छोड़ दिया फिर एक दोस्त मिला वह भी उसे छोड़ कर चली गई पर अब उसके पास कुछ बचा नहीं। तभी उसे अपने मंगेतर का याद आता है। जिससे उसकी सगाई हुई थी। वह भी आश्रम ही में रहता था। पर वह बिजनेस स्टडी के लिए देश के बाहर चला गया था। वह दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे इसलिए दोनों की सगाई रामू काका ने करवा दी थी और उसके मंगेतर शिवाय ने उससे वादा किया था कि वह जब अपना बिजनेस खड़ा कर लेगा तब उससे शादी करेगा और उसने भी एक वादा किया था कि वह उसका इंतजार उसके आने तक करेगी पर अब इंतजार करने का क्या फायदा अब तो वह उसके लायक भी नहीं बची थी वह दिल ही दिल में सोच रही थी। तभी उसे के दिल में से आकाश आती है। अब तेरा जीकर क्या फायदा तुझे मर जाना चाहिए। उसका दिमाग बार-बार यही कह रहा था। तभी सामने से एक कर आती है और उसे टक्कर मार देती है वह बीच रास्ते में खड़ी थी। उसे कर से एक मिडल एज औरत निकलती है और वह डरी हुई होती है। वह अपना ड्राइवर से कहती है कि देखो उसे क्या हो गया तो ड्राइवर कहता है कि इसकी हालत हमें ठीक नहीं लगती इस अस्पताल लेकर जाना चाहिए। और वह औरत फिर इसकी को अस्पताल लेकर निकल जाती है।

    दिव्यांश के इस हिंसक बर्ताव के बाद क्या ईशा कभी भी किसी पर भरोसा कर पाएगी? क्या यह घटना उसे हमेशा के लिए बदल देगी?


    मेरे प्यारे पाठकों,
    कहानी का अगला हिस्सा लाने में हुई देरी के लिए मैं माफी चाहती हूँ। अब से आपको कहानी के नए अध्याय समय पर देने की पूरी कोशिश रहेगी।
    आपकी राय मेरे लिए बहुत ज़रूरी है। अगर आपको कहानी पसंद आ रही है, तो कृपया इसे लाइक, शेयर और सब्सक्राइब ज़रूर करें। आपके कमेंट्स से मुझे और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है।

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  • 4. Rishton ki siyasat. - Chapter 4

    Words: 2118

    Estimated Reading Time: 13 min

    यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसमें वर्णित सभी पात्र, घटनाएँ और स्थान केवल लेखक की कल्पना का हिस्सा हैं। इसका वास्तविक जीवन, व्यक्तियों या घटनाओं से कोई संबंध नहीं है। यह कहानी केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है।

    ​चौथा अध्याय: जुनून का नया रूप

    ​सुबह की पहली किरणें अभी भी फार्महाउस की खिड़कियों से छनकर नहीं आ रही थीं। रात के गहरे सन्नाटे के बाद अब वहाँ सिर्फ़ धीमी और ठंडी हवा का शोर था। दिव्यांश अपनी विशालकाय, सफ़ेद सिल्क की चादरों में बेसुध लेटा हुआ था। उसकी नींद हमेशा से ही दुश्मनों की तरह थी, जो उसे कभी भी पूरी नहीं मिल पाई थी। पर आज उसे खुद भी हैरानी थी कि इतनी गहरी नींद उसे कैसे आ गई।

    ​अचानक उसकी आँखें खुलती हैं। पहली चीज़ जो उसे महसूस होती है, वो थी उसके शरीर का अधूरापन। वह उठकर बैठता है और देखता है कि उसने कोई कपड़े नहीं पहने हैं, सिवाय उसके बॉक्सर के। उसका दिमाग़ तेजी से पिछली रात की घटनाओं को जोड़ने लगता है। ईशा... वह लड़की जो उसके लिए अचानक एक जुनून बन गई थी। कहाँ गई वो?

    ​उसने खुद को झट से बॉक्सर पहना और कमरे में उसे ढूँढने लगा। पर कमरा ख़ाली था। उसकी बेचैनी बढ़ती गई। उसने बाथरूम और बालकनी तक में देखा, पर ईशा कहीं नहीं थी। उसका दिल एक अनजानी घबराहट से भर गया। वह तुरंत अपने कमरे से बाहर आया और पूरे फार्महाउस में उसे ढूँढने लगा।

    ​“गार्ड्स! यहाँ आओ!” उसकी आवाज़ में गुस्सा और बेचैनी दोनों थी।

    ​पूरे 10-15 गार्ड्स फौरन उसके सामने हाज़िर हो गए। उनकी साँसें तेज़ थीं और चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था। दिव्यांश ने गुस्से से पूछा, “वो लड़की कहाँ है? तुम लोगों ने उसे बाहर क्यों जाने दिया?”

    ​एक गार्ड ने डरते-डरते जवाब दिया, “सर… वो… वो सुबह ही चली गईं थीं। हमें लगा कि आपने उन्हें जाने का आदेश दिया होगा क्योंकि आपने हमें उन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कहा था।”

    ​यह सुनते ही दिव्यांश का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसकी आँखों में आग जल रही थी। उसकी नसों में गुस्सा इस कदर दौड़ रहा था कि वो खुद पर काबू नहीं रख पा रहा था।

    ​“तुम लोगों ने उसे जाने दिया? बिना मेरी इजाज़त के?” उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और बिना कुछ सोचे उस गार्ड पर तान दी जिसने जवाब दिया था। एक ही पल में गोली चल गई और गार्ड वहीं पर ढेर हो गया। बाकी गार्ड्स के चेहरे का रंग उड़ गया। वो सब दिव्यांश के इस हिंसक रूप को देखकर काँप उठे। दिव्यांश का खून अब उसके चेहरे पर छलक रहा था, जो कि एक तरह से उसके गुस्से का सबूत था।

    ​“ढूँढो उसे! वो जहाँ भी हो, उसे ढूँढकर मेरे सामने लाओ! अभी!” दिव्यांश चिल्लाया।

    ​उसने गुस्से में अपने कमरे की तरफ़ क़दम बढ़ाए, लेकिन उसके दिमाग़ में अभी भी एक ही ख्याल था—ईशा! उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और अंदर चला गया। तभी उसकी नज़र बिस्तर पर पड़ी, जहाँ एक अजीब तरह की शांति फैली हुई थी। सिल्क की चादर पर ईशा की टूटी हुई काँच की चूड़ियाँ पड़ी थीं, जो पिछले कल की रात की निशानी थीं। उसके पास ही ख़ून के कुछ धब्बे थे, जो ईशा के दर्द की कहानी बयां कर रहे थे।

    ​उसने चूड़ियों का एक टुकड़ा उठाया और अपनी मुट्ठी में भींच लिया। दर्द की बजाय, उसके चेहरे पर एक पागलपन भरी मुस्कान आ गई। उसकी आँखें पूरी तरह से लाल थीं। उसने चूड़ियों के उस टुकड़े को अपनी हथेली पर रख लिया और फ़ारसी में एक शायरी बुदबुदाई:

    ​“तूफ़ान है मेरे दिल में, तेरी आहटों का साया है,

    क़ैद-ए-इश्क़ में है तू, ये कैसा अजीब माया है।

    तेरे बदन की हर खुशबू, मेरी सांसों में समाई है,

    तू अब मेरी है सिर्फ़ मेरी, यही रब की खुदाई है।” (तू मेरे दिल में तूफ़ान की तरह है, तेरे हर कदम का साया मुझ पर है। तू मेरे प्यार की क़ैद में है, ये कैसी अजीब माया है। तेरे जिस्म की हर खुशबू मेरी साँसों में बसी है। तू अब मेरी है, सिर्फ़ मेरी, यही भगवान का न्याय है।) तुम कहाँ तक भागोगी, ईशा? तुम सोचती हो कि मुझसे दूर चली जाओगी? यह तुम्हारी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है। तुम मेरा जुनून हो और मैं अपने जुनून को यूँ ही जाने नहीं दे सकता। यह खेल अभी शुरू हुआ है। तुम जहाँ भी हो, मैं तुम्हें ढूँढ लूँगा। और जब तुम मिलोगी, तो मेरा प्यार तुम्हें फिर से जकड़ लेगा। तुम मेरी हो, सिर्फ़ मेरी... और यह बात तुम्हें हमेशा याद रखनी होगी।

    ​वह उस पल एक सनकी आशिक जैसा लग रहा था। उसने अपने होंठों पर एक शैतानी मुस्कान लाते हुए कहा, “अब तुम मेरी हो चुकी हो, ईशा... और तुम्हें मुझसे दूर जाने का कोई हक़ नहीं।” दिव्यांश के जुनून का यह रूप अब सिर्फ़ हवस का नहीं था, बल्कि एक अजीब-सा पागलपन था, जो उसे पूरी तरह से अपनी गिरफ़्त में ले चुका था।

    सड़क पर ज़िंदगी और मौत के बीच झूलती ईशा के लिए शायद ज़िंदगी ने एक और मौका देने का फ़ैसला कर लिया था। जिस तरह से एक अजनबी कार से उसे टक्कर लगी और फिर देवयानी ठाकुर उसे बचाने के लिए सामने आईं, यह किसी चमत्कार से कम नहीं था।

    देवयानी ठाकुर, भारत की नंबर वन फैशन डिज़ाइनर। उनकी कार अचानक एक लड़की से टकराई, जो सड़क के बीचोंबीच खड़ी थी। देवयानी की आँखें डर से फैल गईं। उन्होंने तुरंत अपने ड्राइवर राकेश से कहा, “राकेश, देखो क्या हुआ!”

    गाड़ी से उतरते ही देवयानी ने उस लड़की को देखा। वह पूरी तरह से बेसुध थी और उसके चेहरे पर बेबसी का एक साया था। देवयानी ने राकेश से कहा, “राकेश, इसकी हालत ठीक नहीं लग रही। इसे तुरंत गाड़ी में लिटाओ और अस्पताल चलो।”

    राकेश ने ईशा को बड़ी सावधानी से कार की पिछली सीट पर लिटाया। देवयानी ने ईशा का सर अपनी गोद में रख लिया और धीरे-धीरे उसके बालों को सहलाने लगीं। ईशा के चेहरे पर एक मासूमियत थी, जिसे देखकर देवयानी का दिल पिघल गया। वह सोच रही थीं कि यह लड़की इतनी खूबसूरत और मासूम है, तो इसकी ऐसी हालत कैसे हो गई?

    तभी उनकी नज़र ईशा के शरीर पर पड़ी। जगह-जगह चोट के निशान थे और कुछ जगहों पर तो खून के धब्बे भी थे। सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि उसके गले और सीने पर लव बाइट्स के निशान साफ़ दिख रहे थे। देवयानी के दिल में एक अनजाना डर समा गया। उन्हें ऐसा लगा मानो वह इस लड़की को पहले से जानती हों। उनकी आँखों में अचानक एक असीम दुख उतर आया।

    वे जल्दी से सिटी अस्पताल पहुँचे। डॉक्टरों ने तुरंत ईशा को स्ट्रेचर पर लिटाया और उसे आईसीयू में ले गए। देवयानी बाहर वेटिंग एरिया में बेचैनी से बैठी थीं। उन्हें लग रहा था जैसे वह अपनी किसी अपनी के लिए इंतज़ार कर रही हों।

    करीब एक घंटे बाद, डॉक्टर बाहर आईं। उनके चेहरे पर एक अजीब-सी गंभीरता थी। उन्होंने देवयानी को अपने केबिन में बुलाया।

    “मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ,” डॉक्टर ने कहा।

    देवयानी ने घबराते हुए पूछा, “डॉक्टर, उस लड़की को क्या हुआ है? वह ठीक तो है ना?”

    डॉक्टर ने सवालिया अंदाज़ में पूछा, “क्या आप उस लड़की को जानती हैं?”

    “नहीं... मैं उसे नहीं जानती। वह मेरी कार के नीचे आ गई थी,” देवयानी ने जवाब दिया।

    डॉक्टर के चेहरे पर चिंता और बढ़ गई। उन्होंने देवयानी से कहा, “आप मुझे माँ ही समझकर सब बताइए, आखिर इस लड़की को क्या हुआ है?”

    डॉक्टर ने गहरी साँस ली और अपनी बात शुरू की, “देखिए, इस लड़की के शरीर पर जो चोट के निशान हैं, वे किसी हादसे के नहीं हैं। इसके साथ दरिंदगी की गई है। और उसने पिछले तीन दिनों से कुछ नहीं खाया है। आपके कार से टक्कर लगने की वजह से वह बेहोश नहीं हुई है, बल्कि कमजोरी की वजह से बेहोश हो गई थी।”

    यह सुनकर देवयानी का दिल टूट गया। उनकी आँखों से एक बूँद आँसू छलक आया। वह मन ही मन बोलीं, "हे भगवान, तूने इस मासूम लड़की के साथ इतना बुरा क्यों किया?"

    वह केबिन से बाहर आ गईं। उनके दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे। यह लड़की गरीब घर की दिख रही थी, पर मुंबई के पॉश इलाके में क्या कर रही थी, जहाँ सिर्फ़ अमीर लोग रहते हैं? और ऐसा कौन दरिंदा होगा जिसने ऐसी मासूम लड़की की यह हालत की होगी? उनके मन में एक ही ख्याल आया—शायद किसी अमीरज़ादे ने उसका यह हाल किया होगा।

    तभी उनकी नज़र अस्पताल के गलियारों में घूम रहे कुछ बॉडीगार्ड्स पर पड़ी, जिनके हाथों में ईशा की तस्वीर थी। वे ईशा को ढूँढ रहे थे। देवयानी तुरंत समझ गईं कि ये उसी दरिंदे के लोग होंगे। उन्होंने तुरंत अपने ड्राइवर राकेश को बुलाया और कहा, “राकेश, हमें इस लड़की को यहाँ से तुरंत निकालना होगा।”

    राकेश ने हैरानी से पूछा, “मैम, हम इसे कहाँ ले जाएँगे?”

    “हम इसे अपने घर राजस्थान लेकर चलेंगे। अभी, इसी वक़्त अपने प्राइवेट जेट से,” देवयानी ने जवाब दिया।

    देवयानी और राकेश ने सावधानी से ईशा को अस्पताल से बाहर निकाला और एयरपोर्ट की तरफ़ रवाना हो गए। शाम के 4 बजे, वे राजस्थान एयरपोर्ट पर लैंड हुए। ईशा अभी भी बेहोश थी। देवयानी उसे अपनी कार में लेकर अपने घर 'रोज़ मेंशन' के लिए रवाना हो गईं।

    रोज़ मेंशन: एक नई सुबह का इंतज़ार

    राजस्थान के अरावली की पहाड़ियों के बीचों-बीच स्थित रोज़ मेंशन, किसी परी कथा के महल जैसा दिखता था। गुलाबी रंग का यह महल, गुलाबों के बागानों से घिरा था, जिसकी खुशबू हवा में घुली हुई थी। शाम की हल्की रोशनी में यह और भी ख़ूबसूरत लग रहा था। पर इस ख़ूबसूरती के भीतर, एक टूटी हुई आत्मा को नया जीवन मिलने वाला था।

    देवयानी अपनी कार से उतरीं और ईशा को अपनी गोद में उठाकर घर के अंदर ले गईं। उन्होंने अपने नौकरों से कहा कि वे मेहमान के लिए एक कमरा तैयार करें और डॉक्टर को बुलाएँ। ईशा को एक बड़े और आरामदायक कमरे में लिटाया गया। कमरा गुलाबी और सफ़ेद रंग के फूलों से सजा था, जहाँ हर तरफ़ एक सुकून भरी शांति थी।

    रात हो चुकी थी, पर ईशा अब भी बेहोश थी। देवयानी उसके पास बैठी हुई थीं, उसके माथे को सहला रही थीं। वह डॉक्टर की रिपोर्ट को फिर से याद कर रही थीं—दरिंदगी, तीन दिन की भूख... और उसके दिल में गुस्सा और दर्द एक साथ उमड़ रहा था।

    देवयानी ने राकेश को बुलाकर कहा, “राकेश, मैं चाहती हूँ कि कल सुबह से ही तुम उस दरिंदे को ढूँढना शुरू करो। जिसने भी इस लड़की के साथ ऐसा किया है, उसे मैं छोड़ूँगी नहीं। मैं खुद एक माँ हूँ, और मुझे पता है कि ऐसी हालत में एक माँ का दिल कितना रोता है।”

    राकेश ने सिर हिलाया और कहा, “जी, मैम। मैं कल सुबह से ही काम शुरू कर दूँगा।”

    अगले दिन की सुबह, ईशा की आँखें धीरे-धीरे खुलती हैं। उसने देखा कि वह एक बहुत ही ख़ूबसूरत कमरे में है। कमरे की दीवारों पर गुलाबी रंग के वॉलपेपर थे और एक बड़ा-सा झूमर छत से लटक रहा था। उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था कि वह यहाँ कैसे पहुँची।

    तभी कमरे में एक महिला आती है, जो बेहद ख़ूबसूरत थी। उनके चेहरे पर एक सादगी थी, जो ईशा को आकर्षित कर रही थी।

    “बेटा, तुम ठीक हो?” देवयानी ने प्यार से पूछा।

    ईशा को देखकर देवयानी की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने उसे गले लगा लिया और कहा, “तुमसे मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई, बेटा। तुम्हें कुछ नहीं हुआ है, तुम सुरक्षित हो। तुम मेरी गोद में हो।”

    ईशा ने देवयानी से पूछा, “आप कौन हैं और मैं यहाँ कैसे आई?”

    देवयानी ने अपनी पूरी कहानी उसे बताई। कि कैसे उनकी कार से टक्कर हुई और वह उसे अस्पताल ले गईं। ईशा यह सब सुनकर रोने लगी। वह बोली, “आप जैसी अच्छी इंसान का इस दुनिया में होना बहुत मुश्किल है। आप मेरी माँ जैसी हैं।”

    देवयानी ने उसे गले लगाया और कहा, “तुम अब मेरी बेटी हो। तुम्हें अब कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता।”

    ईशा ने धीरे-धीरे देवयानी से अपने माता-पिता, मेहर, रामू काका और उस भयानक रात के बारे में सब कुछ बताया। देवयानी की आँखें नम हो गईं। उन्होंने कसम खाई कि वह उस दरिंदे को छोड़ेंगी नहीं।

    ईशा ने देवयानी को बताया कि उसकी सगाई शिवाए से हुई थी, जो अभी विदेश में पढ़ रहा है। देवयानी ने उसे समझाया कि वह शिवाए को उसके बारे में अभी कुछ न बताए, जब तक वह पूरी तरह से ठीक न हो जाए।

    अब ईशा के पास एक नया परिवार था। वह रोज़ मेंशन में एक नई ज़िंदगी की शुरुआत कर रही थी। पर उसके दिल में उस रात का दर्द और दिव्यांश का खौफ़ अभी भी ताज़ा था।

    क्या ईशा की ज़िंदगी में अब सब कुछ अच्छा होगा? क्या देवयानी उस दरिंदे को ढूँढ पाएँगी?

  • 5. Rishton ki siyasat. - Chapter 5

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    ​पांचवा अध्याय: एक नई सुबह और एक नई साजिश

    ​दूसरी तरफ, मेहर को अर्जुन के फार्महाउस में आए हुए करीब एक हफ्ता हो चुका था, लेकिन वो अर्जुन को कभी अपने करीब नहीं आने देती थी। उसे पिछली रात का भयानक मंजर याद आ रहा था, जब उसकी सुहागरात थी। उस रात, उसने अर्जुन को धमकी दी थी कि अगर वो उसके पास आया तो वो अपनी जान दे देगी। उसने पास रखा कांच का गिलास तोड़कर उसके टुकड़े को अपने गले पर रख लिया था। यह देखकर अर्जुन घबरा गया था और बोला, "ठीक है, मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगा।"

    ​अर्जुन ने यह बात कह तो दी थी, पर उसका मन बेचैन था। उसे हर पल मेहर के करीब जाना था और इस चाहत में वो दिन-ब-दिन और भी ज्यादा बेचैन और गुस्से से भरता जा रहा था। एक रात, वो मेहर के कमरे में आया और उससे कहने लगा, "तुम मुझे अपने पास नहीं आने दे रही, क्या मैं तुम्हें एक बार गले भी नहीं लगा सकता? प्लीज, बस एक बार मुझे गले लगाने दो।"

    ​मेहर ने सोचा कि सिर्फ एक बार गले लगाने की तो बात है, उसके बाद अर्जुन यहाँ से चला जाएगा। पर ये उसकी सबसे बड़ी भूल थी। अर्जुन के हाथ में एक इंजेक्शन था जिसमें एक नशीला, यौन उत्तेजक ड्रग था। जैसे ही मेहर ने उसे गले लगाया, अर्जुन ने उसके गले में वो इंजेक्शन लगा दिया। मेहर ने तुरंत उसे धक्का दिया और चिल्लाकर बोली, "तुमने मेरे साथ ये क्या किया है?"

    ​अर्जुन के चेहरे पर एक डरावनी, शैतानी मुस्कान आ गई। "मेरी प्यारी स्वीटी, मुझे तुम चाहिए," वो फुसफुसाया, "चाहे जैसे भी। तुम्हें पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ, कुछ भी... यहाँ तक कि किसी को मार भी सकता हूँ।"

    ​मेहर के चेहरे पर धीरे-धीरे पसीना आने लगा और उसका शरीर काबू से बाहर होने लगा। वो खुद को नियंत्रित करने की पूरी कोशिश कर रही थी। वो दौड़कर वॉशरूम में गई और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। वो शावर के नीचे खड़ी हो गई और ठंडे पानी का शावर लेने लगी। उसका मन पूरी तरह से बेकाबू हो चुका था। वो अपनी गर्दन को नोचने लगी और धीरे-धीरे अपने सारे कपड़े उतारने लगी।

    ​बाहर, अर्जुन एक गाना गा रहा था:

    ​काइसे कहूँ इश्क़ में तेरे

    कितना हूँ बेताब मैं

    आँखों से आँखें मिला के

    चुरा लूँ तेरे ख़्वाब मैं (x2)

    मेरे साए हैं साथ में

    यारा जिस जगह तुम हो

    मैं जो जी रहा हूँ

    वजह तुम हो.. वजह तुम हो.. (x2)

    हो... है ये नशा, या है ज़हर

    इस प्यार को हम क्या नाम दें

    (इस प्यार को हम क्या नाम दें)

    है ये नशा, या है ज़हर

    इस प्यार को हम क्या नाम दें

    कब से अधूरी है इक दास्ताँ

    आजा उसे आज अंजाम दें

    तुम्हें भूलूँ कैसे मैं

    मेरी पहली खता तुम हो

    ​जैसे ही गाना ख़त्म हुआ, मेहर ने वॉशरूम का दरवाज़ा खोला और नग्न अवस्था में अर्जुन के पास गई। "अर्जुन, प्लीज, मेरी मदद करो," उसने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा। अर्जुन ने कहा, "मैं अपनी बीवी की बात कैसे टाल सकता हूँ।" और फिर उसने मेहर को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटाया। उस रात, वो दोनों एक हो गए, एक पति-पत्नी की तरह।

    ​अगली सुबह, जब मेहर की आँखें खुलीं, तो उसने खुद को एक सफ़ेद सिल्क की चादर में अर्जुन के साथ सोते हुए पाया। वो उसे देखकर रोने लगी। उसके पूरे शरीर में भयानक दर्द था और उसने देखा कि उसकी पूरी देह पर जगह-जगह लव बाइट्स के निशान थे। उससे चला भी नहीं जा रहा था। वो खुद को चादर में लपेटकर वॉशरूम की तरफ़ गई और शावर के नीचे बैठकर बुरी तरह रोने लगी। "हे भगवान, यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है?" वो बार-बार यही सोच रही थी, "क्यों आपको मुझ पर दया नहीं आती?"

    ​वो लगातार तीन घंटे तक वॉशरूम में उसी तरह बैठी रही और फिर बेहोश हो गई।

    ​तीन घंटे बाद, अर्जुन की नींद खुली। जब उसने मेहर को अपने पास नहीं पाया, तो वो उसे पूरे कमरे में ढूँढने लगा। तभी उसे वॉशरूम से पानी गिरने की आवाज़ आई। उसने दरवाज़ा खोला और देखा कि मेहर वहीं बेहोश पड़ी थी। वो उसे उठाकर बिस्तर पर लाया और उसे कपड़े पहनाए। उसने तुरंत अपने असिस्टेंट को कॉल करके डॉक्टर को बुलाया।

    ​अगले दस मिनट में, डॉक्टर अर्जुन के फार्महाउस पर आ गए। अर्जुन गुस्से से उन्हें घूर रहा था। उसे यह बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था कि कोई उसकी बीवी के पास आए, पर वो जानता था कि डॉक्टर अपना काम कर रहे थे। फिर भी, उसे गुस्सा आ रहा था।

    ​डॉक्टर ने मेहर को चेक किया और अर्जुन से कहा, "सर, मैडम ज़्यादा देर तक पानी में रहने की वजह से बेहोश हो गई हैं और कुछ दिनों से वो डिप्रेशन में भी चल रही हैं। यह उनके लिए ठीक नहीं है। उनका ख़्याल रखिए और उनके खाने-पीने का भी ध्यान रखिए।"

    ​उसी रात, मुंबई के एक आलीशान और शानदार होटल, द ओबेरॉय पैलेस में, दो भाई अपने हाथों में व्हिस्की का गिलास लिए अपने दूसरे दो भाइयों का मज़ाक उड़ा रहे थे। ये थे ओबेरॉय परिवार के तीसरे और चौथे बेटे, विवान सिंह ओबेरॉय और ईशान सिंह ओबेरॉय। विवान एक मशहूर सुपरस्टार और एक्टर था, जबकि ईशान अपने बड़े भाई दिव्यांश के बिज़नेस में मदद करता था।

    ​होटल के लग्ज़री सुइट की बालकनी से शहर की जगमगाती हुई रात का नज़ारा दिखाई दे रहा था। अरब सागर की लहरें दूर से ही दिखाई पड़ रही थीं और शहर की गगनचुंबी इमारतें आसमान को छू रही थीं। यह सुइट पूरी तरह से विलासिता और आधुनिकता का प्रतीक था।

    ​विवान ने अपना गिलास हिलाते हुए कहा, "पता नहीं ये दोनों भाई कहाँ रहते हैं। मुझसे तो महीने में एक बार भी नहीं मिलते।"

    ​ईशान ने व्हिस्की का एक घूँट लिया और बोला, "मैं दिव्यांश भाई के ऑफ़िस में काम करता हूँ, फिर भी हफ़्तों तक उनसे नहीं मिल पाता। पता नहीं ये दोनों भाई एक हफ़्ते से कहाँ हैं?"

    ​दोनों भाई एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए और फिर से शहर की रोशनी को देखने लगे। उन्हें नहीं पता था कि उनके भाइयों की ज़िंदगी में क्या तूफ़ान चल रहा था और वो दोनों कहाँ थे।


    क्या मेहर को इस भयानक स्थिति से कोई बचा पाएगा, या उसे अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी

  • 6. Rishton ki siyasat. - Chapter 6

    Words: 1728

    Estimated Reading Time: 11 min

    छठवां अध्याय: ओबेरॉय विला का दरबार

    ​अगली सुबह, मुंबई का आलीशान होटल 'द ओबेरॉय पैलेस'। विवान और ईशान अपने-अपने कमरों में गहरी नींद में सोए हुए थे। अचानक, ईशान के फोन पर दादी का कॉल आया। आधी नींद में ही उसने फोन उठाया और बिना कॉलर आईडी देखे हड़बड़ाते हुए बोला, “अबे कौन है? इतना सुबह-सुबह कौन कॉल करता है?”

    ​दूसरी तरफ से दादी की नाराज़गी भरी आवाज़ आई, “अरे नालायक! मैं हूँ! तुम चारों भाई एक महीने से कहाँ हो? मैंने पिछले एक महीने से तुम चारों का चेहरा तक नहीं देखा। शायद तुम लोग भूल गए हो कि ओबेरॉय विला में दो बूढ़े इंसान रहते हैं, तुम्हारे दादा-दादी। या तुमने यह सोच लिया है कि हम लोग अभी से ही परलोक सिधार गए हैं?”

    ​ईशान घबराकर तुरंत उठ बैठा और बिस्तर पर बैठते हुए बोला, “नहीं दादी! ऐसी बात नहीं है...” उसकी आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी। उसने कहा, “मैं पिछले एक हफ्ते से दिव्यांश और अर्जुन भैया से नहीं मिला हूँ और न ही वो मेरा कॉल उठा रहे हैं। मैं क्या करूँ? मैं उनको ढूंढने की बहुत कोशिश कर रहा हूँ, पर क्या करूँ? जब तक वो नहीं चाहेंगे, तब तक मैं भी उनको नहीं ढूंढ सकता।”

    ​दादी ने सख्ती से कहा, “अच्छा कोई बात नहीं! तुम दोनों नालायक भाई, विवान और ईशान, दोनों अभी ओबेरॉय विला आओ। मुझे तुम दोनों से बात करनी है। अगले एक घंटे में तुम लोग नहीं आए, तो तुम्हारी खैर नहीं!” इतना कहकर दादी ने फोन काट दिया।

    ​ईशान तुरंत बिस्तर से उठकर अपनी कमर पर तौलिया लपेटे, विवान के कमरे की ओर दौड़ा। कमरे के बाहर दरवाज़े को ज़ोर-ज़ोर से थपथपाने लगा। “भैया! उठो! सोना बंद करो! दादी ने हमें एक घंटे में ओबेरॉय विला बुलाया है, वरना हमारी खैर नहीं!”

    ​इतनी ज़ोर की आवाज़ सुनकर विवान हड़बड़ाकर उठा और दरवाज़ा खोलकर बोला, “अबे कुत्ते! इतनी तेज़ी से दरवाज़ा क्यों ठोक रहा है?”

    ​ईशान ने तुरंत जवाब दिया, “मैं कुत्ता हूँ तो आप क्या हो? दादी ने एक घंटे में ओबेरॉय विला बुलाया है और आप यहाँ सो रहे हो! अगर हम वहाँ नहीं पहुँचे, तो आप तो दादा जी का गुस्सा जानते ही हैं। वो कोई दिव्यांश भैया से कम थोड़ी हैं। मुझे तो लगता है दोनों का गुस्सा एक-दूसरे के बराबर है, और न जाने हम दोनों इन जल्लादों के यहाँ कब पैदा हो गए!”

    ​विवान ने उसे रोका, “बातें करना बंद कर और जल्दी जाकर फ्रेश हो, हमें अभी इसी वक़्त ओबेरॉय मेंशन निकलना है।” और दोनों तुरंत अपने-अपने कमरों में फ्रेश होने चले गए।

    ​थोड़ी देर बाद, दोनों तैयार होकर अपने-अपने बॉडीगार्ड्स के साथ अपनी कारों में बैठकर ओबेरॉय विला के लिए निकल गए। जब उनकी कारों का काफिला निकला, तो ऐसा लग रहा था मानो कोई राजा-महाराजाओं का काफिला जा रहा हो। आधे घंटे बाद, वे मुंबई के एक बेहद पॉश इलाके में पहुँचे, जहाँ सिर्फ महल जैसे घर बने हुए थे। वहाँ एक बहुत ही ख़ूबसूरत, सफेद रंग का विला था। गेट पर ‘ओबेरॉय विला’ लिखा हुआ था।

    ​विला इतना विशाल था कि उसे घूमने में पूरा दिन लग जाए। इसके गार्डन में कमल के तालाब थे और उन तालाबों के ऊपर एक ख़ूबसूरत पुल था। बीच में एक बहुत ही प्यारा फ़ाउंटेन था, जिसमें रंग-बिरंगी मछलियाँ तैर रही थीं।

    ​दोनों भाइयों की गाड़ियाँ मेन गेट से ओबेरॉय विला में दाखिल हुईं। वे अपनी कार से उतरकर विला के अंदर जाने लगे। ईशान चिल्लाते हुए बोला, “मेरी प्यारी दादी! कहाँ हो आप?”

    ​तभी दादी की आवाज़ आई, “नालायक! तुझे अभी मेरी याद आ रही है? अभी मुझ पर प्यार आ रहा है और पिछले एक महीने से तू कहाँ था?”

    ​ईशान ने नकली आँसू बहाते हुए कहा, “दादी, मैं क्या बताऊँ? आपका वो अक्खड़ बड़ा पोता बहुत बुरा है। मुझे दिन-दिन भर खटाता रहता है। मैं उसके ऑर्डर्स फॉलो करते-करते थक चुका हूँ।”

    ​विवान ने उसे छेड़ा, “यह बात अपने बड़े भाई दिव्यांश भैया के सामने तो कहकर दिखाओ, तब तुझे पता लगेगा।”

    ​ईशान ने नखरे करते हुए कहा, “देखा! सब कोई मुझे दिव्यांश भैया के नाम से चिढ़ाते हैं। मैं जानता हूँ कि मैं सबसे छोटा भाई हूँ, इसीलिए सब मुझे परेशान करते हैं। दादी, आप कुछ करो ना।”

    ​दादी ने उसके गाल पर हाथ रखते हुए कहा, “अच्छा ठीक है, बाबा! दिव्यांश को आने दो। अगर मैं उसे डाँट नहीं लगाऊँगी, तो मेरा नाम बदल देना। देखो तो! मेरा प्यारा पोता ईशान कितना दुबला हो गया है, काम करते-करते।”

    ​तभी दूसरी तरफ से दादाजी सीढ़ियों से नीचे आते हुए बोले, “सुनिए! आप अपने पोते को ज़्यादा लाड़-प्यार करना बंद करें।” नीचे आकर उन्होंने दोनों को देखा। ईशान और विवान तुरंत साइड में जाकर सीधे खड़े हो गए, क्योंकि उन्हें पता था कि दादा का गुस्सा दिव्यांश भैया से कम नहीं है। अगर उन्होंने कुछ उल्टा-सीधा कहा, तो वो उन्हें छोड़ेंगे नहीं।

    ​फिर दादाजी ने पूछा, “दिव्यांश और अर्जुन कहाँ हैं? पिछले एक महीने से हमसे मिलने के लिए नहीं आए और न ही वो कॉल उठा रहे हैं।”

    ​विवान ने कहा, “हम लोगों ने भी बहुत कॉल करने की कोशिश की, पर वो दोनों कॉल ही नहीं उठा रहे हैं। और उनके बॉडीगार्ड हम लोगों को कुछ बताते ही नहीं। जब तक दिव्यांश और अर्जुन भाई की मर्ज़ी नहीं होती, वो दोनों हमें कुछ नहीं बताते।”

    ​दादाजी हेड-चेयर पर बैठते हुए बोले, “ठीक है, मैं बात करता हूँ।” उन्होंने दिव्यांश के असिस्टेंट को कॉल लगाया। दूसरी तरफ, असिस्टेंट ने डरते हुए कॉल उठाया और कहा, “हेलो सर।”

    ​दादाजी की कठोर आवाज़ आई, “कहाँ हैं तुम्हारे बॉस?”

    ​“सर, वो अपने फ़ार्महाउस पर हैं।”

    ​“उस नालायक से कह देना कि मुझे कल के कल वो दोनों मेरे विला पर मिलने चाहिए।” इतना कहते ही उन्होंने कॉल काट दिया।

    ​यह सुनते ही असिस्टेंट ने मन ही मन कहा, “दोनों दादा-पोते खड़ूस हैं। किसी की बात ही नहीं सुनते। न पोता मेरी बात सुनता है, न दादा मेरी बात सुनते हैं।” पर उसे पता था कि वह यह बात उनके सामने नहीं कह सकता, अगर कहता, तो अगले दिन उसकी लाश किसी नाले में पड़ी मिलती।

    ​असिस्टेंट सीढ़ियों से चढ़ते हुए फ़ार्महाउस में गया और दिव्यांश के कमरे में जाकर दरवाज़ा खटखटाया। अंदर से दिव्यांश की कठोर आवाज़ आई, “कम इन।” असिस्टेंट अंदर आया और बोला, “सर, दादाजी ने आप दोनों भाई को ओबेरॉय विला बुलाया है और वो बहुत गुस्से में हैं। कह रहे हैं कि आप दोनों पिछले एक महीने से उनसे मिलने नहीं आए।”

    ​यह सुनते ही दिव्यांश ने अपने असिस्टेंट से कहा, “कल सुबह हम लोग विला के लिए निकलेंगे। और एक बात और सुन लो, जो चीज़ यहाँ हुई है, वो मेरे परिवार के किसी सदस्य को पता नहीं चलनी चाहिए। और अर्जुन को फोन करके बोल दो कि दादाजी ने हम दोनों को मिलने के लिए बुलाया है।”

    ​असिस्टेंट ‘यस सर’ कहते हुए कमरे से बाहर निकल गया और बाहर निकलकर उसने दिल ही दिल में कहा कि इनके सामने खड़े होने में ऐसा लगता है कि अभी ये मेरी जान मेरे जिस्म से निकाल लेंगे.

    असिस्टेंट ने मन ही मन में अपनी भड़ास निकालने के बाद, अर्जुन को फ़ोन लगाया। दूसरी तरफ, अर्जुन ने कॉल उठाया और कठोर आवाज़ में पूछा, “हैलो, तुमने क्यों कॉल किया?” उस वक्त अर्जुन अपनी लाइब्रेरी में बैठा हुआ था और रियासतों के काम में व्यस्त था।
    दिव्यांश का असिस्टेंट सहमा हुआ सा बोला, “सर, दिव्यांश सर ने कहा है कि ओबेरॉय विला पहुँचने के लिए… आपको दादाजी ने आप दोनों को बुलाया है। दादाजी बहुत गुस्से में लग रहे हैं, इसलिए उन्होंने आप दोनों को कल सुबह नाश्ते के समय बुलाया है।”
    अर्जुन ने कहा, “ठीक है, मैं पहुँच जाऊँगा।” और फ़ोन काट दिया।
    असिस्टेंट ने मन ही मन में सोचा, ‘चलो, मेरा काम ख़त्म हुआ। अब कल सुबह की तैयारी करनी है। इनके दादाजी तो इन दोनों को कुछ नहीं कहेंगे, पर मैं जैसे ही वहाँ पहुँचूँगा, वही मुझे डाँटने लगेंगे। अब मैं कैसे बताऊँ कि जब इनका पोता इनकी बात नहीं मानता, तो मेरी बात क्या खाक मानेगा? मैं तो एक मामूली-सा नौकर हूँ इनका।’ यह सोचते हुए वह बेचारा उदास सा अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।
    दूसरी तरफ, अर्जुन लाइब्रेरी में बैठे हुए अपने असिस्टेंट से बोला, “बाकी का काम तुम देख लो और सुबह में हम लोग ओबेरॉय विला के लिए निकलेंगे। दादाजी ने हम दोनों भाइयों को बुलाया है।”
    तभी अर्जुन का असिस्टेंट घबराते हुए बोला, “सर, क्या आप अपने दादाजी को नहीं बताने वाले कि आपने शादी कर ली है?”
    अर्जुन कुछ देर सोच में पड़ गया। फिर उसने गुस्से में कहा, “तुम यहाँ से बाहर जाओ! मैं यह सारी बातें देख लूँगा।”
    असिस्टेंट लाइब्रेरी से बाहर निकल गया और अर्जुन लाइब्रेरी की कुर्सी पर बैठा अपना सर ऊपर करके आँखें बंद करके सोचने लगा। वह सोच रहा था कि ‘कभी न कभी मुझे यह बात तो बतानी ही होगी घर वालों को। मैं कल ही उन्हें बता देता हूँ।’
    वह अपनी कुर्सी से उठा और अपने कमरे की तरफ गया, जहाँ मेहर थी। उसने दरवाज़ा खोला। मेहर उसे सोफे पर बैठी हुई दिखी। वह मेहर के पास गया और उसके सामने खड़ा होकर बोला, “मुझे तुमसे बात करनी है।”
    मेहर ने कुछ नहीं कहा और सर उठाकर उसकी तरफ देखने लगी।
    अर्जुन ने कहा, “कल हम लोग मेरे दादा-दादी से मिलने जा रहे हैं। वहाँ जाकर तुम्हें यह पता नहीं लगने देना है कि मैंने तुमसे ज़बरदस्ती शादी की है। समझी?”
    तभी मेहर ने हिम्मत करके कहा, “मैं उन्हें बताऊँगी! मैं तुम्हारा सारा सच उन्हें ज़रूर बताऊँगी कि तुम कितने बड़े दरिंदे हो!”
    यह सुनते ही अर्जुन गुस्से में आया और उसने मेहर के गालों को ज़ोर से भींचते हुए कहा, “जैसे तुम्हारे लिए तुम्हारे अनाथ आश्रम के लोग तुम्हारी जान से बढ़कर हैं, उसी तरह मेरे लिए मेरे दादा-दादी मेरी जान से बढ़कर हैं। अगर उन्हें यह बात पता चली, तो सबसे पहले मैं तुम्हारे अनाथ आश्रम के लोगों को मारूँगा, उसके बाद तुम्हें मारूँगा। क्योंकि मेरे लिए प्यार से बढ़कर मेरे दादा-दादी हैं। समझी?” और उसका गाल झटका, फिर गुस्से में कमरे से बाहर चला गया।
    अर्जुन के जाने के बाद मेहर की आँखों से आँसू बहने लगे। वह वहीं सोफ़े पर रोने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक तरफ उसके दिल में उस अजनबी परिवार के लिए नफरत थी, तो दूसरी तरफ अपने अनाथ आश्रम के लोगों को बचाने की ज़िम्मेदारी थी। वह रोते-रोते वहीं सोफ़े पर बेहोश हो गई।
    क्या मेहर कल सुबह अर्जुन के साथ ओबेरॉय विला जाएगी, या वह खुद को बचाने के लिए कोई रास्ता निकालेगी?

  • 7. Rishton ki siyasat. - Chapter 7

    Words: 1926

    Estimated Reading Time: 12 min

    सातवां अध्याय: ओबेरॉय विला में नई दुल्हन

    ​अगली सुबह, अर्जुन के फार्महाउस पर सन्नाटा पसरा हुआ था। सूरज की पहली किरणें अभी ठीक से भी नहीं निकली थीं कि अर्जुन मेहर के कमरे की तरफ कदम बढ़ा रहा था। उसके हाथों में एक बहुत ही खूबसूरत, गहरे मरून रंग की बनारसी साड़ी थी, जिसके बॉर्डर पर सुनहरे धागों की बारीक कढ़ाई थी। किनारों पर छोटे-छोटे हीरे जड़े हुए थे, जो रोशनी में चमक रहे थे। साथ में, कुंदन के गहने भी थे, जो उस साड़ी की खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे।

    ​मेहर अपने बिस्तर पर बैठी, शून्य में ताक रही थी। उसकी आँखें उदास थीं और मन में बीते हुए कल की घटनाओं का बोझ था। वह अपनी ज़िंदगी के बारे में सोच रही थी, कि कैसे एक ही पल में उसकी दुनिया पूरी तरह से बदल गई थी। तभी दरवाजा खुला और अर्जुन अंदर आया। वह मेहर के सामने जाकर खड़ा हो गया और बिना कोई भाव दिखाए, बोला, “तैयार हो जाओ, हमें सुबह 7 बजे ओबेरॉय विला के लिए निकलना है।”

    ​मेहर ने चुपचाप उसकी आँखों में देखा। उसकी खामोश आँखें पूछ रही थीं, "तुम्हें यह सब करके क्या मिल रहा है?" अर्जुन उसकी आँखों की खामोशी को अच्छी तरह समझ रहा था, पर उसने कुछ नहीं कहा और चुपचाप कमरे से बाहर चला गया।

    ​कुछ देर बाद, मेहर ने धीरे से उठकर उस साड़ी और गहनों को उठाया और ड्रेसिंग रूम में चली गई। करीब बीस मिनट बाद, वह तैयार होकर बाहर आई। वह सचमुच बहुत खूबसूरत लग रही थी। गहरे मरून रंग की साड़ी उसके गोरे रंग पर बेहद जँच रही थी। उसने अपने बाल खुले छोड़ दिए थे, जो उसकी सादगी को बढ़ा रहे थे। वह चुपचाप ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर बैठ गई और गहने पहनने लगी। तभी उसकी नज़र सिंदूर की डिब्बी पर पड़ी। वह उसे एकटक देखती रही, मन में एक ही सवाल था - "क्या यही मेरी नई जिंदगी है?" उसने एक गहरी साँस ली और ज्यादा न सोचते हुए, उस सिंदूर को अपनी माँग में भर लिया।

    ​वह तैयार होकर नीचे हॉल में आई। अर्जुन ने जब उसे देखा, तो एक पल के लिए वह उसे देखता ही रह गया। उसकी आँखें मेहर की खूबसूरती पर अटक गईं, पर उसने कुछ नहीं कहा। उसने बस इतना ही कहा, "चलो, हमें देर हो रही है।" दोनों हॉल से बाहर निकले और अपनी-अपनी कारों में बैठ गए। उनके आगे-पीछे पुलिस और कमांडो की गाड़ियां चलने लगीं, मानो किसी राजा का काफिला जा रहा हो।

    ​गाड़ी में बैठते ही मेहर ने हिम्मत करके पूछा, “आप अपने दादाजी से क्या कहेंगे... हमारी शादी कैसे हुई?” अर्जुन ने शांति से जवाब दिया, “वह सब मैं देख लूँगा। तुम्हें ये सब बातें सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम बस मेरे दादा-दादी के सामने अच्छा व्यवहार करना।” इतना सुनकर मेहर चुप हो गई और गाड़ी की खिड़की से बाहर भागते हुए घरों और पेड़ों को देखने लगी। अचानक, उसकी आँख से एक आँसू की बूँद गिरी, जिसे उसने तुरंत पोंछ दिया। शायद वह अर्जुन से अपनी उदासी छिपाना चाहती थी, पर छिपा न पाई, क्योंकि अर्जुन की नज़र लगातार उसी पर थी।

    ​एक घंटे बाद, सुबह 8 बजे, दोनों भाई अर्जुन और दिव्यांश की गाड़ियाँ एक साथ ओबेरॉय विला में दाखिल हुईं। अर्जुन ने दिव्यांश की कार देखते हुए मन ही मन सोचा, "दादा-दादी को तो मैं समझा सकता हूँ, पर दिव्यांश भाई को क्या समझाऊँगा? उन्हें तो हर चीज़ मेरे बिना बोले ही पता चल जाती है। मुझे पक्का यकीन है कि उन्हें यह बात भी पता होगी कि मैंने मेहर से ज़बरदस्ती शादी की है।" दोनों भाई अपनी गाड़ियों से बाहर निकले और एक-दूसरे की आँखों में देखा। उनकी आँखों-आँखों में ही बातें हो रही थीं।

    ​तभी दिव्यांश ने कहा, “दादाजी से बात करने के बाद, मुझे लाइब्रेरी में आकर मिलना।”

    ​जैसे ही दिव्यांश अंदर गया, दादी हॉल में बैठी हुई थीं। अर्जुन और मेहर जब साथ में अंदर आए, तो दादी ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया। दादी ने अर्जुन से पूछा, “यह लड़की कौन है? और तुम इसके साथ क्या कर रहे हो?” अर्जुन घबराकर बोला, “दादी... दादी... मैंने शादी कर ली है।”

    ​यह बात सुनकर उसी वक्त अपने कमरों से नीचे आते विवान और ईशान के हाथ से सेब गिर गए, जो वे खा रहे थे। दादी ने बात को समझते हुए कहा, “अच्छा हुआ कि तुमने शादी कर ली। मैं तो तुम दोनों भाइयों को कह-कहकर थक गई थी। देखो, अर्जुन ने शादी कर ली, और तुम दिव्यांश, बड़े भाई होकर भी शादी नहीं कर रहे हो।” दिव्यांश ने चिढ़कर कहा, “दादी, सबको मेरी शादी की इतनी क्यों पड़ी है? जब मेरा मन करेगा, तब मैं कर लूँगा। अभी मेरा कोई मूड नहीं है शादी के चक्कर में पड़ने का।”

    ​दादी ने अपनी सर्वेंट रोज़ी को बुलाया और पूजा की थाली और चावल से भरा कलश लाने को कहा। रोज़ी जल्दी से थाली लेकर आई और उसे चौखट पर रख दिया। दादी ने आरती की और मेहर को अपने सीधे पैर से कलश को ठोकर मारकर गृह प्रवेश करने को कहा। मेहर के चेहरे पर भले ही घबराहट नहीं दिख रही थी, पर वह मन ही मन में बहुत डरी हुई थी। रस्में पूरी करके वे हॉल में आए। तभी दादाजी अपने कमरे से बाहर आए और एक नज़र अर्जुन को देखकर बोले, “तुम दोनों भाई मेरी लाइब्रेरी में आओ। मुझे तुम दोनों से बात करनी है।”

    ​अर्जुन मेहर को दादी के पास छोड़कर लाइब्रेरी में चला गया। दिव्यांश भी दादाजी के पीछे-पीछे चला गया। नीचे हॉल में, विवान और ईशान “भाभी... भाभी...” कहते हुए मेहर के पीछे पड़ गए और उससे पूछने लगे, “आप दोनों की शादी कैसे हुई? लव मैरिज?” मेहर कुछ बोल नहीं पा रही थी। तभी दादी ने दोनों को डाँटकर हटाया और खुद मेहर के पास बैठकर पूछा, “बेटा, तुम्हारी फैमिली में कौन-कौन है?” मेहर ने धीरे से बताया, “मेरी फैमिली में कोई नहीं है। मैं अनाथ आश्रम में रहती थी।”

    ​दादी ने फिर पूछा, “तो तुम दोनों कैसे मिले?” मेहर ने जवाब दिया, “हम दोनों अनाथ आश्रम में ही मिले थे। वे वहाँ एक समारोह के लिए आए थे।” विवान और ईशान ने शरारती अंदाज़ में “ओह! ओह! ओह!” करते हुए कहा, “अच्छा, तो वहाँ से आप लोगों का प्यार आगे बढ़ा! मुझे तो लगता था कि भाई सिर्फ सरकारी काम के लिए जाते हैं, पर मुझे पता नहीं था कि वहाँ इतनी अच्छी और खूबसूरत लड़कियाँ भी होती हैं जिनसे भैया ने इश्क़ लड़ा लिया।” यह सब सुनकर शर्म से मेहर के गाल गुलाबी हो गए।

    ​दूसरी तरफ, लाइब्रेरी में दादाजी ने अर्जुन से पूछा, “तुमने यह शादी अचानक कैसे कर ली? तुम दोनों का तो कोई शादी का मूड ही नहीं था।”

    ​अर्जुन ने जवाब दिया, “मैंने मेहर को दो दिन पहले एक अनाथ आश्रम में देखा। वह मुझे पसंद आ गई, इसलिए मैंने उससे शादी कर ली। आपको पता है मुझे कोई लड़की पसंद नहीं आती, पर मेहर को देखकर मुझे लगा कि यही मेरी लाइफ पार्टनर बनने के लायक है, इसलिए मैंने उससे तुरंत शादी कर ली।”

    ​दादाजी ने शांत होकर कहा, “ठीक है कोई बात नहीं। अब अपनी बहू का ध्यान रखो।” फिर उन्होंने दिव्यांश से पूछा, “और तुम कब शादी कर रहे हो?”

    ​दिव्यांश ने चिढ़कर कहा, “दादाजी, सबको मेरी शादी की क्यों पड़ी हुई है? जब मेरा मन करेगा, तब मैं कर लूँगा, पर अभी मेरा कोई मूड नहीं है।”

    ​दादाजी ने बात बदलते हुए कहा, “ठीक है। पर वह मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन का क्या मामला है? उस काम में इतनी रुकावट क्यों आ रही है?”

    ​दिव्यांश ने जवाब दिया, “मैं उसको देख लूँगा। मैं अभी थोड़े दिनों के लिए देश से बाहर था, इसलिए देख नहीं पाया। आप चिंता न करें, मैं उसे जल्दी ठीक कर दूँगा।”

    ​फिर तीनों दादा-पोते नाश्ते के लिए नीचे आ गए। वे एक बहुत ही खूबसूरत, काले और सुनहरे रंग की डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। धीरे-धीरे करके सब लोग - दादी, ईशान, और विवान - भी अपनी-अपनी जगह बैठ गए। डाइनिंग टेबल के हेड-चेयर पर एक तरफ दादाजी बैठे थे और दूसरी तरफ दिव्यांश।

    ​दादी ने मेहर से कहा, “बेटा, आज तुम्हारी पहली रसोई की रस्म नहीं हो पाई, पर कल ज़रूर होगी। इसलिए सुबह उठकर कृष्ण जी की पूजा ज़रूर कर लेना।” मेहर ने धीरे से कहा, “ठीक है दादी माँ।” पूरी परिवार शांति से नाश्ता करने लगा। मेहर अर्जुन के बगल वाली सीट पर बैठी थी और दोनों खामोशी से खा रहे थे।

    ​दूसरी तरफ राजस्थान में, ईशा को होश आए हुए दो दिन हो चुके थे। देवयानी ठाकुर ने उसका बहुत ध्यान रखा था, जिससे ईशा को सुकून महसूस हो रहा था। वह मन ही मन देवयानी के बारे में सोच रही थी, "अगर मेरी माँ होती, तो ऐसी ही होती। मुझे कोई तकलीफ नहीं होने देती।" तभी देवयानी उसके कमरे में आईं और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोलीं, “बेटा, अब तुम ठीक हो। इतने दिनों तक कमरे में बंद रहना सही नहीं है। तुम्हें थोड़ा बाहर आकर भी हम लोगों के साथ बैठना चाहिए। और हाँ, आज तुम्हें दो नए लोगों से मिलवाना है।”

    ​ईशा ने उनकी तरफ देखा। देवयानी ने बताया, “आज मेरे पति और मेरे एक बेटा-बेटी जर्मनी से वापस आने वाले हैं। आज शाम को उनसे तुम मिलना। और देखो, मैं तुम्हारे लिए कितनी प्यारी ड्रेस लाई हूँ। तुम्हें उदास नहीं रहना चाहिए। जल्दी से तैयार होकर आओ, हम दोनों नाश्ता करते हैं।” इतना कहकर देवयानी ईशा के कमरे से बाहर चली गईं।

    ​ईशा अपने बिस्तर पर बैठी हुई सोचने लगी, “हे भगवान, यह सब मेरे ही साथ क्यों किया आपने? जिससे मैं प्यार करती हूँ, अब उसके पास भी कभी नहीं जा सकती। मैं शिवाय से कैसे आँखें मिलाऊँगी?”

    कुछ देर के बाद
    ईशा ने धीरे-धीरे देवयानी के दिए हुए कपड़े पहने। हरे रंग की सलवार कमीज में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी, पर उसकी आँखों में गहरी उदासी थी। उसने एक लंबी साँस ली और खुद को तैयार करते हुए कमरे से बाहर निकली।
    सीढ़ियों से उतरते हुए उसने देखा कि नीचे हॉल में कोई नहीं था, सिवाय देवयानी के, जो एक छोटी मेज पर अकेली बैठी नाश्ता कर रही थीं। चारों ओर सन्नाटा पसरा था और कुछ नौकर अपने-अपने कामों में लगे थे। ईशा को उम्मीद थी कि वह देवयानी के परिवार से मिलेगी, पर खाली हॉल देखकर वह थोड़ा हैरान हो गई।
    जैसे ही वह नीचे पहुँची, देवयानी ने मुस्कुराकर उसे देखा। "आओ बेटा, नाश्ता तैयार है," उन्होंने प्यार से कहा।
    ईशा धीरे से उनके पास गई और उनकी बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई। उसने नाश्ते की प्लेट उठाई, पर खाने का मन नहीं था। उसके दिमाग में शिवाय के ख्याल घूम रहे थे। तभी एक नौकर ने आकर देवयानी को कुछ बताया।
    देवयानी ने ईशा की तरफ़ देखा और कहा, "मेरे पति और बेटे-बेटी अभी तक नहीं पहुँचे हैं। शायद फ्लाइट लेट हो गई हो। मुझे लगा तुम सब से मिल कर अच्छा महसूस करोगी, पर कोई बात नहीं। आज शाम को ज़रूर मिलोगे।"
    ईशा ने बस सिर हिलाया और खाने लगी। उसकी आँखें नम हो गईं, पर उसने किसी तरह खुद को संभाल लिया। वह खामोशी से खा रही थी, और देवयानी उसकी उदासी को महसूस कर सकती थीं।
    देवयानी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा। "बेटा, मुझे पता है तुम परेशान हो। पर चिंता मत करो, यहाँ तुम सुरक्षित हो। जब तुम ठीक हो जाओगी, तो हम सब कुछ बात करेंगे," उन्होंने धीमे स्वर में कहा।
    ईशा ने बस हल्का-सा सिर हिलाया। वह समझ गई कि देवयानी उसके दिल का हाल जानती हैं, पर वह अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं थी।


    आपको क्या लगता है कि ईशा की मुलाकात देवयानी के परिवार से होने के बाद, उसकी उदासी कुछ कम हो पाएगी?

  • 8. Rishton ki siyasat. - Chapter 8

    Words: 1615

    Estimated Reading Time: 10 min

    आठवां अध्याय: जब परिवार मिला

    रात अपने आंचल में चाँद को समेटे हुए थी। गुलाब मेंशन का विशाल बगीचा, जहाँ कमल का तालाब चाँद की रोशनी में मोतियों सा चमक रहा था, पूरी तरह शांत था। हवा भी धीमी गति से बह रही थी, मानो ईशा के दिल का दर्द महसूस कर रही हो। ईशा एक खूबसूरत लकड़ी के झूले पर बैठी हुई थी। उसकी आँखें तालाब की ओर लगी थीं और गालों पर आँसुओं की धारा बह रही थी। पर कोई सिसकी नहीं, कोई आवाज़ नहीं। बस खामोश आँसू थे, जो उसके टूटे हुए दिल की कहानी कह रहे थे। उसके दिमाग में सिवाय का चेहरा घूम रहा था, वह हर पल उसे याद करके रो रही थी।

    तभी, सड़क पर एक शोर सा हुआ। 10-20 गाड़ियों का काफिला मेंशन के मुख्य द्वार पर आ रुका। ईशा ने सर उठाया और आँखों के आँसू पोंछे। बीच की कार से एक बॉडीगार्ड निकला और पिछली सीट का दरवाजा खोला। उस कार से एक 45-50 साल का आदमी बाहर आया। उसके पीछे एक लड़का और एक लड़की थी, दोनों की उम्र करीब 21-22 साल लग रही थी। लड़के ने एक स्टाइलिश ब्लैक थ्री-पीस सूट पहना हुआ था और लड़की ने एक प्यारी सी सफ़ेद फ्लोरल ड्रेस और ब्लैक हील्स पहनी थी।

    "बेटे, मेरी लाडली बेटी का सामान गाड़ी से निकाल कर लाओ," उस आदमी ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।

    लड़के ने चिढ़कर अपनी नाक चढ़ाई और कहा, "मैं इस नकचढ़ी का नौकर नहीं हूँ।"

    "तुम मेरी प्यारी बेटी को नकचढ़ी कहना बंद करो!" पिता ने नाराज़गी से कहा।

    दोनों बाप-बेटी हँसते हुए मेंशन की ओर बढ़ चले। लड़का अपनी बहन का सामान निकालते हुए मन ही मन बड़बड़ाया, "हाँ, मैं तो इस घर का इकलौता नौकर हूँ। इस लड़की का पर्सनल नौकर समझ रखा है मुझे। बचपन में गई थी, तो सुकून से रहता था, अब यह आ गई है तो मेरा जीना हराम कर देगी। अपने बड़ी बहन होने का रौब दिखाती चली नकचढ़ी, चुड़ैल!"

    ईशा उन्हें दूर से ही देख रही थी। उसे लगा, "ये लोग कितने अच्छे हैं। कितना प्यार करते हैं एक-दूसरे से। काश मेरा भी परिवार ऐसा होता।" ईशा ने उन्हें देख लिया था, पर वे उसे नहीं देख पाए थे क्योंकि वह झूले पर बैठी थी।

    हॉल में पहुँचते ही देवयानी जी उन्हें देखकर ख़ुश हो गईं। उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया। "बेटा, तुम इतने दिनों बाद आ रही हो। ऐसा लगता है, तुम्हें हमारी याद ही नहीं आती।"

    वह लड़की, जिसका नाम अनन्या था, मुस्कुराकर बोली, "ऐसी कोई बात नहीं है मम्मी, वहाँ बहुत काम था।"

    तभी पीछे से वह लड़का, जिसका नाम विहान था, अपने बहन का सामान घसीटते हुए आया और नाराज़गी से अपनी माँ के पास जाकर खड़ा हो गया। "अब यह नकचढ़ी आ गई है, तो आप लोग मुझे भूल ही जाएँ।"

    देवयानी जी ने विहान का कान खींचा और कहा, "विहान, अपनी बहन को नकचढ़ी कहना बंद कर। वह तुमसे बड़ी है।"

    विहान ने अकड़कर कहा, "बड़ी? सिर्फ़ 2 मिनट तो बड़ी है! और किसे पता कि ये पहले पैदा हुई या मैं? हम दोनों की शक्ल तो एक जैसी दिखती है, डॉक्टर को भी उस वक़्त शायद पता न चला हो और मैं बड़ा हूँ।"

    "बदमाश! अब इतना लड़ाई-झगड़ा करना बंद करो," देवयानी जी ने डाँटते हुए कहा। "तुम्हारी बहन इतने सालों बाद आई है, कुछ उसका भी ख़्याल रखो।"

    वे सब सोफे पर बैठ गए। तभी देवयानी जी को ईशा की याद आई। उन्होंने स्टाफ को बुलाया और पूछा, "ईशा कहाँ है?"

    स्टाफ ने बताया, "वह गार्डन में झूले पर बैठी है।"

    "उस बच्ची को यहाँ बुलाकर लाओ," देवयानी जी ने कहा।

    सूर्य ठाकुर, देवयानी जी के पति, ने पूछा, "आप किसकी बात कर रही हैं?"

    देवयानी जी ने ईशा के बारे में सब कुछ बताया, कि वह उन्हें कैसे मिली और उसकी कितनी बुरी हालत थी।

    तभी ईशा गार्डन से होते हुए हॉल में आ गई। देवयानी जी उसके पास गईं और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास बिठाया। "देखो बेटा, ये मेरे पति सूर्य ठाकुर हैं। तुम इन्हें पापा भी कह सकती हो।"

    ईशा ने घबराते हुए ऊपर देखा और नमस्ते कहा।

    "बच्चा, हमसे मत घबराओ। हम भी तुम्हारे पापा की तरह हैं," सूर्य ठाकुर ने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा।

    यह सुनकर ईशा की आँखों से एक बूँद आँसू गिर पड़ा। देवयानी जी ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "आप कैसे हैं! आपने मेरी बेटी को रुला दिया।"

    सूर्य जी हँसते हुए बोले, "अच्छा, मैं आपकी बेटी को अब कभी नहीं रुलाऊँगा। बच्चा, क्या तुम अपनी मम्मी से मुझे डाँट सुनवाना चाहती हो? अगर नहीं, तो जल्दी से मुस्कुरा दो। अगर तुम्हारे आँखों से एक बूँद और आँसू गिरा, तो तुम्हारी मम्मी मुझे अपने ही घर से बाहर निकाल देंगी।"

    देवयानी जी मुस्कुराईं और अपने बेटा-बेटी से ईशा का परिचय करवाया। "देखो ईशा बेटा, यह मेरी बेटी अनन्या है और यह मेरा बेटा विहान। दोनों जुड़वा हैं, पर मेरी बेटी मेरे बेटे से दो मिनट बड़ी है।"

    अनन्या ने मुस्कुराते हुए पूछा, "आपकी उम्र क्या है?"

    "मेरी उम्र अभी 25 साल है," ईशा ने धीरे से कहा।

    "तो आप हमसे बड़ी हुईं, हम आपको दी बोलेंगे," अनन्या ने कहा।

    विहान ने तुरंत कहा, "सही कहा, मैं भी आपको बड़ी दी कहूँगा। और अब से हम दोनों एक टीम में हैं। आप इस नकचढ़ी की टीम में मत जाइएगा। यह लड़की मुझे बहुत परेशान करती है।"

    अनन्या ने आँखें तरेरते हुए कहा, "मैं एक मॉडल हूँ और अभी जर्मनी से आई हूँ। मैं अपना मॉडलिंग करियर यहीं शुरू करना चाहती हूँ।"

    "और मैं एक सिंगर हूँ," विहान ने कहा। "मैं भी जर्मनी में ही सिंगर था, पर अब इंडियन सॉन्ग गाना चाहता हूँ।"

    देवयानी जी ने अपने पति की ओर इशारा करते हुए कहा, "और ये एक टेक्सटाइल इंडस्ट्री के बिजनेसमैन हैं। और मैं एक फैशन डिजाइनर हूँ।"

    पूरे परिवार ने ईशा को अपने बारे में और भी कई बातें बताईं। पहली बार ईशा के चेहरे पर मुस्कान आई थी। वह सब की बातें मुस्कुराते हुए सुन रही थी, मानो अपने सारे ग़म भूल चुकी हो।

    थोड़ी देर बाद, देवयानी जी ने कहा, "डिनर का समय हो गया है। सब लोग फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर आ जाओ।" उन्होंने ईशा के बाल सहलाए। "बच्चा, तुम भी फ्रेश हो जाओ। मैंने तुम्हारे लिए कुछ बनाया है। मुझे पता नहीं कि तुम्हें क्या पसंद है, पर मैंने अपने मन से बनाया है। खाकर बताना कि तुम्हें पसंद आया या नहीं।"

    सब अपने कमरों में चले गए। थोड़ी देर बाद, सब अपने-अपने नाईट सूट पहनकर डाइनिंग टेबल पर बैठे थे।

    "मॉम, क्या आपने छोले-भटूरे बनाए हैं? मेरे फेवरेट!" विहान ने पूछा। "अच्छा हुआ इस नकचढ़ी के आने से मेरा तो कुछ फायदा हुआ।"

    अनन्या ने मेज के नीचे से विहान के पैर पर लात मारी। "मैं चुप हूँ तो क्या समझ रखा है मुझे? कुछ भी बोलकर चला जाएगा।"

    "तुम दोनों लड़ना बंद करो," देवयानी जी ने डाँटा।

    देवयानी जी ने ईशा को गाजर का हलवा सर्व किया। "बेटा, इसे टेस्ट करके बताओ। यह मैंने ख़ास तुम्हारे लिए बनाया है।"

    ईशा ने एक निवाला खाया और कहा, "आंटी, यह बहुत अच्छा है।"

    देवयानी जी ने रूठने का नाटक करते हुए कहा, "लगता है आप मुझसे प्यार ही नहीं करतीं।"

    ईशा घबरा गई, "ऐसी बात नहीं है।"

    "तो आपने मुझे 'आंटी' क्यों कहा? आप मुझे 'मम्मी' बुलाइए।"

    डिनर के बाद, सब अपने-अपने कमरों में चले गए। थोड़ी देर बाद, देवयानी जी ईशा के कमरे में हल्दी वाला दूध लेकर आईं। "बेटा, इसे पी लो। यह तुम्हें हेल्दी रखेगा।"

    ईशा ने चुपचाप वह दूध पी लिया और धीरे-धीरे नींद में चली गई, क्योंकि देवयानी जी ने उस दूध में नीम की गोली मिलाई थी। ईशा को उस दिन के बाद से रातों में नींद नहीं आती थी और उसे पैनिक अटैक आते थे। देवयानी जी एक हल्की लाइट जलाकर, कमरे को गर्म करके, बाहर निकल गईं और अपने बेडरूम में चली गईं, जहाँ सूर्य ठाकुर भी बैठे थे।

    देवयानी जी चुपचाप सूर्य के बगल में आकर बैठ गईं और उनके सीने पर सर रख लिया। "सुनिए ना," उन्होंने कहा। "क्या आपको ईशा उसकी तरह नहीं दिखती?"

    सूर्य ने गहरी साँस ली, "हाँ, मुझे भी वह वैसी ही दिखती है।"

    सूर्य ने पूछा, "क्या तुम्हें पता है कि उसके साथ इतनी बर्बरता किसने की?"

    देवयानी जी ने जवाब दिया, "मुझे सिर्फ़ इतना पता है कि उसका नाम दिव्यांश है। वह बताना नहीं चाहती, पर उसे रात में पैनिक अटैक आते हैं, तो वह कभी-कभी उसका नाम चिल्लाने लगती है।"

    "और वह तुम्हें कहाँ मिली थी?" सूर्य ने पूछा। "मुंबई के पास के उस इलाके में, जहाँ सिर्फ़ मल्टी-बिलियनर लोग रहते हैं।"

    सूर्य के दिमाग में एक चेहरा आया, जिसका नाम दिव्यांश था। वह देवयानी को अपने सीने से उठाते हुए उनकी आँखों में आँखें डालकर बोले, "हमें लगता है कि ईशा को हमें इंडिया से बाहर भेज देना चाहिए। वह यहाँ सुरक्षित नहीं है।"

    देवयानी जी ने घबराकर पूछा, "आप इतना हड़बड़ाकर यह बात क्यों कह रहे हैं? अचानक आपको यह बात कहाँ से सूझी कि ईशा को हमें बाहर भेज देना चाहिए?"

    सूर्य ने कहा, "दिव्यांश एक अंडरवर्ल्ड माफ़िया है। उसका बिज़नेस भी है जो पूरे दुनिया में फैला हुआ है और इंडिया में सबसे ज़्यादा। तुमने उसका नाम सुना होगा, उसके भाई का नाम अर्जुन है। और उसका पूरा नाम सिर्फ़ दिव्यांश नहीं, दिव्यांश सिंह ओबेरॉय है।"

    देवयानी जी ने कहा, "हम उसे क्या बोलकर इंडिया से बाहर भेजेंगे? और वह अकेली वहाँ नहीं रह पाएगी।"

    सूर्य बोले, "हमें अपने दोनों बच्चों को भी उसके साथ भेजना होगा, क्योंकि अगर वह उसी की बेटी है तो मैंने उसकी माँ से वादा किया था कि मैं उसका हमेशा ख़्याल रखूँगा।"

    देवयानी जी ने सहमति दी, "ठीक है, मैं कल ईशा से बात करूँगी।"

    क्या ईशा देश छोड़कर चली जाएगी? क्या दिव्यांश उसे ढूँढ पाएगा? आगे की कहानी के लिए बने रहिए।

  • 9. Rishton ki siyasat. - Chapter 9

    Words: 1656

    Estimated Reading Time: 10 min

    अध्याय 9: नया सफ़र
    वही दूसरी तरफ़ ओबेरॉय विला में, दिव्यांश अपने कमरे में बैठा हुआ था। उसकी एक हाथ में रेड वाइन और दूसरे हाथ में एक काले रंग का डैगर चाकू था, जिसे वह अपने हाथों में घुमा रहा था। उसकी आँखें बिलकुल लाल थीं और उसने सिर्फ़ एक बॉक्सर पहना हुआ था। वह अपनी बालकनी की कुर्सी पर बैठा हुआ, एकटक चाँद को देख रहा था और ईशा के बारे में सोच रहा था। तभी वह बड़बड़ाया, "जाना, तुम कहाँ हो?" उसकी आवाज़ में एक गहरी उदासी और गुस्सा था। "तुम्हें लगता है कि तुम मुझसे पीछा छुड़ा लोगी, पर यह तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है। ऐसा कभी नहीं होने वाला।"
    उसने शैतानी मुस्कान के साथ अपने दूसरे हाथ में पकड़े हुए वाइन के ग्लास को एक ही घूँट में ख़त्म कर दिया। खाली ग्लास को देखते हुए उसने कहा, "मुझे पता है कि तुम्हारा एंगेजमेंट हो चुका था, पर आई स्वियर, अगर मुझे पता चला कि तुम अपने फ़ियांसे के साथ हो, तो मैं तुम्हें जीने के लायक नहीं छोड़ूँगा।" इस धमकी के साथ उसने खाली ग्लास को ज़मीन पर पटक दिया, जो चूर-चूर हो गया। वह चुपचाप खड़ा होकर एकटक चाँद को देखने लगा, जैसे चाँद भी उसकी बेचैनी को महसूस कर रहा हो। फिर वह पलटकर अपने कमरे में गया और किंग साइज़ बेड पर जाकर सो गया। उसके मन में तूफ़ान चल रहा था, और उसका शांत चेहरा उस तूफ़ान को छिपा रहा था।
    रोज़ मेंशन
    अगली सुबह, रोज़ मेंशन में देवयानी जी सुबह 8 बजे ईशा के कमरे में आईं। उस समय ईशा तैयार हो रही थी। तभी ईशा ने आईने में देवयानी जी को देखा और मुस्कुराकर कहा, "माँ, आप यहाँ क्या कर रही हैं? मैं नीचे ही आ रही थी। आपको आने की कोई ज़रूरत नहीं थी।"
    देवयानी जी धीरे-धीरे उसके पास गईं, उसका हाथ पकड़ा और कहा, "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, बच्चा।"
    "माँ, आपको हमसे क्या बातें करनी हैं?" ईशा ने पूछा। दोनों बिस्तर पर बैठ गईं। देवयानी जी ने ईशा के गालों पर हाथ रखते हुए कहा, "बच्चा, क्या तुम मेरी एक बात मानोगी? तुम मुझे ग़लत मत समझना। मैं तुम्हें अपने बच्चों की तरह प्यार करती हूँ।"
    ईशा ने उनके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "मैं जानती हूँ कि आप मुझे बहुत प्यार करती हैं, वरना इस अनजान शहर में आप मुझे अपने पास क्यों रखतीं?"
    देवयानी जी ने गहरी साँस ली, "बच्चा, मैंने और सूर्य जी ने कल तुम्हारे बारे में बात की है। उन्होंने कहा है कि तुम्हारी जान यहाँ सुरक्षित नहीं है, तुम्हें देश छोड़कर बाहर चले जाना चाहिए।"
    ईशा घबरा गई, "पर... पर मैं अकेली कैसे जाऊँगी?"
    "तुम उसकी चिंता मत करो।" देवयानी जी ने उसे आश्वासन दिया, "तुम्हारे साथ विहान और अनन्या भी जाएँगे।"
    ईशा ने हिचकिचाते हुए कहा, "अनन्या इतने दिनों बाद अपने घर आई है, उसे अपना करियर यहाँ शुरू करना है। उन्हें आप यहीं रहने दीजिए, मैं अकेली चली जाऊँगी, माँ।"
    तभी अनन्या दरवाज़े पर खड़ी होकर बोल पड़ी, "ऐसी कोई बात नहीं है, दी। मैंने आपको अपने मन से अपनी दी माना है, और हम दोनों आपके साथ ही जाएँगे। पर एक बात कह देती हूँ मम्मी, हम लोग फिर से दोबारा जर्मनी नहीं जाएँगे। मैंने अपनी ज़िंदगी के 15 साल अकेले वहीं बिताए हैं, इसलिए मैं रशिया जाना चाहती हूँ।"
    देवयानी जी मुस्कुराईं, "जो तुम चाहो, बस मेरे दोनों बच्चों का ध्यान रखना। मुझे पता है कि तुम ईशा से बड़ी हो, पर अभी ईशा को तुम्हारी ज़रूरत है।"
    अनन्या ईशा के पास बैठी, उसके कंधे को पकड़ा और उसके गाल पर किस करते हुए कहा, "मैं अपनी दी का बहुत ख़्याल रखूँगी।"
    देवयानी जी ने कहा, "तुम लोगों की फ़्लाइट कल शाम की है। मैं बुक करवा देती हूँ और पापा तुम्हें छोड़ने जाएँगे।"
    अनन्या और ईशा ने कहा, "ठीक है, मम्मी।" देवयानी जी बिस्तर से खड़ी होकर बोलीं, "अब यह सब बातें छोड़ो और जल्दी से नीचे आकर ब्रेकफ़ास्ट कर लो।" यह बोलकर वह कमरे से बाहर निकल गईं।
    ओबेरॉय विला
    वहीं दूसरी तरफ़ ओबेरॉय विला में, आज मेहर को आए हुए एक महीना हो चुका था। वह सब फ़ैमिली मेंबर्स से घुल-मिल चुकी थी। बस उसे दिव्यांश और अर्जुन से डर लगता था। बाक़ी सब उसके लिए अपने जैसे बन चुके थे। पर अर्जुन के मन में शक आ चुका था कि मेहर उसे अपने क़रीब क्यों नहीं आने देती। इस वजह से उन दोनों में लड़ाई भी हो जाती थी। अर्जुन को लगता था कि वह किसी और से प्यार करती है, इसलिए वह उसको ख़ुद के पास आने नहीं देती। पर ऐसा नहीं था। मेहर मन ही मन में कहती थी कि "मैं ऐसे इंसान से कैसे प्यार कर लूँ, जिसने मेरे साथ ज़बरदस्ती की हो?"
    उसी दिन अचानक, दोपहर में मेहर को विला के हॉल में चक्कर आए और वह गिर गई। उस वक़्त विवान उसे देख लेता है। विवान चिल्लाते हुए कहता है, "दादी माँ! देखिए, भाभी माँ को क्या हो गया, वह बेहोश हो चुकी हैं।"
    सब कोई हॉल में आ जाते हैं: दादी माँ, दादा जी, ईशान, विवान। विवान मेहर को गोद में उठाकर अर्जुन के कमरे में ले जाता है और उसे बेड पर सुला देता है। ईशान कहता है कि "अर्जुन भाई कहाँ हैं?"
    तभी दादी माँ कहती हैं, "अर्जुन तो मीटिंग में गया हुआ है, दिल्ली। वहाँ पॉलिटिकल लीडर्स की मीटिंग है, इस वजह से वह गया हुआ है।"
    तभी विवान डॉक्टर को फ़ोन लगाकर कहता है कि "ओबेरॉय विला में 10 मिनट में पहुँचिए।" सब घबराए हुए थे। तभी ईशान का असिस्टेंट डॉक्टर को अपने साथ मेहर के कमरे में लेकर आता है। वह डॉक्टर मेहर को चेक करने लगती है और सबसे कहती है कि "प्लीज़, आप बाहर चले जाइए। मैं इन्हें चेक करके आपको बताती हूँ कि इन्हें क्या हुआ है।"
    वह मेहर को चेक करती है और कुछ देर बाद कमरे से बाहर आती है। रूम के बाहर सब लाइन लगाकर खड़े हुए थे और सबके चेहरे पर घबराहट थी। तभी दादी जी कहती हैं, "मेरे बच्चे को क्या हो गया? वह बेहोश कैसे हो गई?"
    तभी डॉक्टर जी कहती हैं, "दादी माँ, घबराने की कोई बात नहीं है। यह ख़ुशख़बरी की बात है। आपकी बहू प्रेग्नेंट है, तीन हफ़्ते की।"
    सबके चेहरों पर अचानक आश्चर्य के भाव आ जाते हैं। तभी ईशान और विवान एक-दूसरे को गले लगाते हुए कहते हैं, "अरे भाई! मैं चाचा बन गया!" और दोनों वहीं पर नाचने लगते हैं। डॉक्टर यह देखकर हल्के से मुस्कुराती है। तभी दादा जी असिस्टेंट को कहते हैं कि "डॉक्टर को उनकी फ़ीस दे दो और इतनी अच्छी ख़ुशख़बरी सुनाने के लिए इन्हें इनाम ज़रूर दे देना।" असिस्टेंट डॉक्टर को विला के बाहर जाकर छोड़ देता है।
    तभी सब कोई एक साथ मेहर के कमरे में चले जाते हैं और दादी माँ मेहर का सिर सहलाने लगती हैं। मेहर के पास बैठते हुए, मेहर अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलती है और हड़बड़ाते हुए कहती है कि "मुझे क्या हुआ था? आप लोग यहाँ क्या कर रहे हैं?"
    तभी दादी माँ कहती हैं, "बेटा, अब इतनी हड़बड़ाहट के साथ उठना-बैठना कम करो। तुमने हमें आज बहुत बड़ा तौफ़ा दिया है। हम परदादी बनने वाले हैं। तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया।" दादा जी भी उसके पास आकर उसके सिर को सहलाते हैं और अपने स्टाफ़ को बुलाकर मेहर की नज़र पैसों की गड्डी से उतारकर, अपने स्टाफ़ को कहते हैं कि "आपस में बाँट लो।"
    और विवान और ईशान मेहर के बिस्तर पर, उनके पाँव के पास बैठते हुए कहते हैं, "भाभी माँ, थैंक्यू। अब हमसे भी छोटा कोई होगा!" हमें बहुत ख़ुशी है यह बात सुनकर। वह लोग बहुत ज़्यादा एक्साइटेड थे, जो उनके चेहरे पर साफ़ तौर पर दिख रहा था।
    रोज़ मेंशन और एयरपोर्ट
    वहीं दूसरी तरफ़, रोज़ मेंशन में सब कोई अपना सामान पैक करके हॉल में खड़े थे। देवयानी जी सबको दही-शक्कर खिला रही थीं और कह रही थीं कि "बच्चा अपना ध्यान रखना और ईशा का ख़ास तौर पर ध्यान रखना। मेरी बच्ची वहाँ अकेली जा रही है।"
    तभी विहान और अनन्या कहते हैं, "वह अकेली कैसी जा रही है? मेरी दी हम लोग के साथ जा रही है और वह हमेशा हम लोग के साथ रहेगी।"
    फिर सूर्य जी कहते हैं, "देवयानी जी, अब हमें जाने की इजाज़त दें, फ़्लाइट का टाइम होने वाला है।" और फिर देवयानी जी अपने आँसू पोंछते हुए सबको अलविदा कहती हैं और सब कार में बैठकर एयरपोर्ट के लिए रवाना हो जाते हैं।
    एयरपोर्ट पर पहुँचते ही, सूर्य जी अपने बच्चों से कहते हैं, "बच्चों, तुम लोग रशिया के लिए रवाना हो जाओ। मैं अगले हफ़्ते तुम लोगों से मिलने आ जाऊँगा।" और ईशा के सर पर हाथ रखते हुए कहते हैं, "बच्चा, घबराना नहीं। मैं अगले हफ़्ते तुमसे मिलने ज़रूर आऊँगा। मुझे इस हफ़्ते थोड़ा काम हो गया ऑफ़िस में, इस वजह से मैं तुम्हारे साथ नहीं आ पा रहा हूँ।"
    ईशा अपने सिर को हिलाते हुए कहती है, "ठीक है, पापा, कोई बात नहीं।" तभी एयरपोर्ट में अनाउंसमेंट हो जाती है कि रशिया की फ़्लाइट टेक ऑफ़ के लिए तैयार है, सब कोई अपनी बोर्डिंग कर लें। तभी तीनों, विहान, ईशा, और अनन्या, सूर्य जी के पाँव छूते हुए कहते हैं कि "पापा, अब हम लोग चलते हैं।" और सब कोई एरोप्लेन में बोर्डिंग करने के लिए चले जाते हैं। पीछे से सूर्य जी सबको देख रहे थे।
    वहीं जब ईशा जब प्लेन टेक ऑफ़ कर रहा था, तो वह दिल ही दिल में सोच रही थी कि "अब मैं जब वहाँ से आऊँगी, तो मैं ख़ुद के पैरों पर खड़ी होकर वापस आऊँगी।" और वह वहाँ से चली जाती है और दिल ही दिल में एक वादा करती है कि "मेहर, मैं तुम्हें ज़रूर ढूँढ लूँगी।"
    क्या ईशा को मेहर मिल पाएगी? क्या दिव्यांश ईशा को ढूँढ पाएगा, जब वह रशिया में होगी? या फिर क्या उसकी ज़िन्दगी में एक नया मोड़ आएगा, जहाँ उसे एक ऐसा साथी मिलेगा जो उसके लिए दिव्यांश से भी बड़ा दुश्मन होगा? क्या मेहर के गर्भ में पल रहा बच्चा अर्जुन की ज़िंदगी में ख़ुशियाँ लाएगा या फिर उसके आने से कोई नया तूफ़ान आएगा?

  • 10. Rishton ki siyasat. - Chapter 10

    Words: 2100

    Estimated Reading Time: 13 min

    अध्याय 10: तूफ़ान से पहले का सन्नाटा

    ​अर्जुन अपनी मीटिंग ख़त्म कर के जैसे ही ओबेरॉय विला के गेट पर पहुँचा, उसका मन बेचैन हो रहा था। दिल्ली में उसका काम तो ख़त्म हो गया था, लेकिन किसी अनजानी बेचैनी ने उसे घेर रखा था। कार से उतरते ही, उसे लगा जैसे पूरा विला शांत है, पर अंदर कुछ चल रहा है। वह दरवाज़ा खोलकर अंदर आया और उसके क़दम सीधे दादी माँ के कमरे की तरफ़ बढ़े।

    ​दादी माँ उसे देखते ही ख़ुश हो गईं। "अरे बेटा, तुम आ गए!" उन्होंने कहा।

    ​"हाँ दादी माँ," अर्जुन ने पूछा, "सब ठीक है ना? मुझे कुछ बेचैनी सी हो रही है।"

    ​दादी माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, "सब ठीक है बेटा, बल्कि ख़ुशख़बरी है।" उन्होंने अर्जुन का हाथ पकड़कर कहा, "तुम्हारी पत्नी, तुम्हारी मेहर, माँ बनने वाली है।"

    ​यह सुनकर अर्जुन का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसके चेहरे पर एक पल के लिए हैरानी, फिर ख़ुशी की लहर दौड़ गई। उसे यक़ीन नहीं हो रहा था। वह बस इतना कह पाया, "क्या... क्या आप सच कह रही हैं दादी माँ?"

    ​"हाँ बेटा, बिल्कुल सच।" दादी माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा। "वह तीन हफ़्ते की प्रेग्नेंट है।"

    ​अर्जुन ने एक पल भी नहीं सोचा, वह बस भागते हुए अपने कमरे की तरफ़ दौड़ा। उसके दिमाग में बस यही ख़्याल चल रहा था, "मेहर प्रेग्नेंट है, मैं पापा बनने वाला हूँ।" उसका मन ख़ुशी से भर गया था। वह दरवाज़े के पास पहुँचा, जहाँ वह ठिठक गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसने अपने बाल ठीक किए और दरवाज़े को हल्के से धक्का दिया।

    ​कमरे में, मेहर बिस्तर पर सिर झुकाए बैठी हुई थी। उसकी आँखें लाल थीं और वह किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी। उसकी ख़ामोशी ने कमरे को और भी भारी बना दिया था।

    ​अर्जुन की आँखें मेहर पर ठहर गईं। उसने दरवाज़ा बंद किया और धीरे-धीरे मेहर के पास आकर बैठ गया। वह अपने घुटनों पर बैठते हुए उसके पेट को छूना चाहता था, पर उसने झट से अपना हाथ पीछे खींच लिया। मेहर ने अर्जुन के हाथ को झटक दिया। उस ठुकराए जाने की भावना से अर्जुन का दिल सहम गया। एक पल पहले जो ख़ुशी उसके चेहरे पर थी, वह अब गुस्से और निराशा में बदल गई।

    ​उसने मेहर का हाथ ज़ोर से पकड़ लिया। मेहर ने अपना सिर ऊपर किया। उसकी आँखों में आँसू थे।

    ​"क्या हुआ?" अर्जुन ने पूछा, उसकी आवाज़ में गुस्सा था। "तुम ख़ुश क्यों नहीं हो? तुम्हें ख़ुश होना चाहिए। यह मेरा बच्चा है, हमारा बच्चा है!"

    ​मेहर ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी तरफ़ देखा।

    ​अर्जुन को लगा कि मेहर अभी भी उससे नफ़रत करती है। "तुम मुझसे नफ़रत करती हो?" उसने पूछा।

    ​मेहर ने अपना सिर नीचे कर लिया, और उसके गालों पर आँसू बहने लगे।

    ​अर्जुन को और भी गुस्सा आ गया। वह उठकर मेहर के चेहरे के दोनों तरफ़ हाथ रखते हुए बोला, "तुम इस बच्चे से भी नफ़रत करती हो? क्या तुम नहीं चाहती हो कि मैं पापा बनूँ? क्या तुम इस बच्चे को मुझसे दूर करोगी?"

    ​मेहर ने ज़ोर से अपना सिर हिलाया, "नहीं!"

    ​"तो फिर तुम ख़ुश क्यों नहीं हो?" अर्जुन ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा। "तुम क्यों रो रही हो?"

    ​"तुम... तुम इसे ख़ुशी कहते हो?" मेहर ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा। "क्या तुम्हें सच में लगता है कि यह सब ख़ुशी है?"

    ​अर्जुन ने मेहर को कसकर पकड़ लिया। "हाँ! यह ख़ुशी है! यह मेरे और तुम्हारे प्यार की निशानी है! यह हमारे बच्चे की ख़ुशी है!"

    ​मेहर ने आँखें बंद कर लीं। "प्यार...? क्या तुम इसे प्यार कहते हो? क्या तुम भूल गए कि तुमने मेरे साथ क्या किया था? तुम मुझसे क्या उम्मीद करते हो?" उसने चिल्लाते हुए कहा।

    ​"तो तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें ज़बरदस्ती रखूँगा?" अर्जुन ने उसे और कसकर पकड़ते हुए कहा, "तुम मुझे पसंद नहीं करती हो, ठीक है। लेकिन तुम मुझे मेरे बच्चे से दूर नहीं कर सकती हो। मैं जानता हूँ, तुम यह सब जानबूझकर कर रही हो। अगर तुमने मुझे मेरे बच्चे से दूर करने की कोशिश की, तो मैं यह भी नहीं देखूँगा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ! मैं तुम्हारा प्यार हूँ या नहीं, मैं तुम्हारा पति हूँ या नहीं, पर मैं इस बच्चे का बाप ज़रूर हूँ।"

    ​मेहर के गाल अर्जुन के हाथों के दबाव से लाल हो गए थे। उसके होंठ काँप रहे थे।

    ​अर्जुन ने उसे छोड़ दिया और मुँह मोड़ लिया। "तुम्हारी ख़ुशी मेरे लिए मायने नहीं रखती," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक गहरा ग़ुस्सा और दर्द था। "अब सिर्फ़ मेरा बच्चा मायने रखता है। मुझे अपने बच्चे से दूर रखने की कोशिश भी मत करना। वरना तुम्हें मेरे ग़ुस्से का सामना करना पड़ेगा।"

    ​यह कहकर अर्जुन ग़ुस्से में दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। मेहर वहीं बैठी रह गई, उसके गालों पर अब भी अर्जुन के हाथों के निशान थे और उसके दिल में एक तूफ़ान उठ रहा था। उसके कानों में बस यही शब्द गूँज रहे थे, "मेरा बच्चा... मेरा बच्चा..."। रोटी-रोटी अपने पेट पर हाथ रखते हुए बिस्तर पर ही करवट होकर लेट जाती है। और अपनी जिंदगी के बारे में सोचने लगती है इन सब बातों को सोते सोते उसकी आंखें भारी होने लगती है।

    अगली सुबह, जब सूरज की किरणें खिड़की से छनकर मेहर के चेहरे पर पड़ीं, तो उसकी आँखें धीरे-धीरे खुलीं। रात की उदासी और आँसू अब नहीं थे, उनकी जगह एक अजीब सी शांति थी। वह बिस्तर पर उठी और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर रात का दर्द अभी भी साफ़ दिख रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक नई चमक थी। वह अपने पेट पर हाथ रखकर मुस्कुराई। अब उसे अपने बच्चे के आने की ख़ुशी थी, न कि डर।

    वह अपने आप से बात करने लगी। "हाँ... मैं अर्जुन से शादी कर चुकी हूँ," उसने ख़ुद से कहा। "लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैं उसे माफ़ करूँ। मैं उसे कभी माफ़ नहीं कर सकती, जिसने मुझे इतना दर्द दिया।" उसके होंठ काँपे, पर अब उसकी आवाज़ में एक दृढ़ता थी।

    तभी उसके मन में एक और ख़्याल आया। "लेकिन... अर्जुन अच्छे नहीं हैं तो क्या हुआ," उसने कहा। "उनके घर वाले तो बहुत अच्छे हैं। दादी माँ, दादा जी, विवान, ईशान... ये सभी लोग कितने अच्छे हैं। ये लोग तो मुझे अपनी बेटी की तरह मानते हैं। जब से मैं इस घर में आई हूँ, इन लोगों ने मेरा बहुत ख़्याल रखा है। मेरे लिए इस घर में सबसे बड़ा सहारा ये ही लोग हैं।"

    मेहर मुस्कुराई। उसे याद आया कि कैसे विवान और ईशान ने उसकी देखभाल की थी जब वह बेहोश हो गई थी। कैसे दादी माँ ने उसे अपनी गोद में लिटाकर प्यार से समझाया था। और दादा जी ने उसे अपनी बेटी की तरह माना था। "मैं इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी," उसने अपने आप से कहा। "मैं अपने बच्चे के लिए यहाँ रहूँगी। मैं इसे अपनी दुनिया में लेकर आऊँगी। इस बच्चे को मैं अर्जुन और मेरे बीच की नफ़रत की वजह नहीं बनने दूँगी। यह बच्चा इस घर की ख़ुशियाँ और प्यार का प्रतीक होगा।"

    मेहर ने अपने आप से वादा किया कि वह अपनी ज़िंदगी को दोबारा शुरू करेगी, लेकिन अर्जुन के बिना। वह इस घर में अपनी एक नई दुनिया बनाएगी, जहाँ सिर्फ़ प्यार होगा, न कि दर्द।

    दिन, हफ़्ते और फिर महीने बीतते गए। ओबेरॉय विला की हवा में धीरे-धीरे एक बदलाव आ रहा था। मेहर की ज़िंदगी ने एक नई दिशा ले ली थी। अब उसकी सुबह की शुरुआत आँसुओं से नहीं, बल्कि एक अजीब सी शांति और ख़ुशी से होती थी। वह हर रोज़ सुबह उठकर आईने के सामने अपने बढ़ते हुए पेट को देखकर मुस्कुराती थी। यह सिर्फ़ एक बच्चा नहीं था, यह उसकी अपनी दुनिया थी, उसका सहारा था।
    हालाँकि अर्जुन से उसका रिश्ता अब भी तनावपूर्ण था। अर्जुन ने उस दिन के बाद से मेहर से दूरी बना ली थी। वह घर पर तो होता था, लेकिन दोनों के बीच एक अनजानी दीवार खड़ी हो चुकी थी। मेहर भी इस दूरी से संतुष्ट थी। उसने मन ही मन यह तय कर लिया था कि वह अपनी ज़िंदगी में अर्जुन की परछाई तक को नहीं आने देगी। उसका बच्चा ही अब उसका सब कुछ था।
    घर के बाक़ी सदस्यों ने मेहर का पूरा ख़्याल रखा। दादी माँ, दादा जी, और तो और विवान और ईशान भी। विवान और ईशान, जो पहले हमेशा एक-दूसरे से लड़ते रहते थे, अब मेहर की गर्भावस्था के बारे में मज़ेदार कहानियाँ सुनाते और उसे हँसाते रहते।
    "मेहर भाभी, आपको पता है," ईशान ने एक दिन मज़े लेते हुए कहा, "जब आप प्रेग्नेंट हैं, तो आपको आइसक्रीम ज़्यादा खानी चाहिए। मैंने टीवी पर देखा था।"
    विवान ने तुरंत उसे बीच में टोक दिया, "अरे बुद्धू, टीवी पर कुछ भी दिखाते हैं। मेहर भाभी, आप बस ख़ुश रहिए, क्योंकि आपका बच्चा बहुत ख़ूबसूरत होगा, बिल्कुल मेरे जैसा।"
    और इस पर ईशान और विवान के बीच एक मज़ेदार बहस छिड़ जाती थी, जिसे देखकर मेहर की हँसी नहीं रुकती थी। ओबेरॉय परिवार के इस प्यार और देखभाल ने मेहर को एक नई ताक़त दी थी।
    इस बीच, दुनिया के दूसरे कोने में, रूस की ठंडी हवाओं में एक और कहानी आकार ले रही थी। ईशा, विवान और अनन्या की ज़िंदगी भी तेज़ी से बदल रही थी। सूर्य जी के बिज़नेस में ईशा ने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। वह अब सिर्फ़ उनकी बेटी नहीं थी, बल्कि उनकी व्यावसायिक भागीदार बन चुकी थी। उसकी तीक्ष्ण बुद्धि और दृढ़ निर्णय लेने की क्षमता ने रूस में सूर्य जी के बिज़नेस को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा दिया था।
    विवान का संगीत का सफ़र भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। उसका पहला और दूसरा एल्बम, दोनों ही सुपर-हिट साबित हुए थे। अब वह सिर्फ़ एक गायक नहीं, बल्कि देश के टॉप गायकों में से एक था। उसके शो के लिए लोग दीवाने थे और उसकी एक झलक पाने के लिए घंटों इंतज़ार करते थे।
    और अनन्या... वह अब सिर्फ़ जर्मनी की मॉडल नहीं, बल्कि रूस की सबसे मशहूर मॉडल में से एक बन चुकी थी। वर्साचे (Versace) जैसे बड़े ब्रांड्स के लिए वह मॉडलिंग करती थी। उसका हर वॉक किसी फ़ैशन शो की सबसे बड़ी हाइलाइट होता था। जब वह रैंप पर चलती, तो उसकी आँखों में एक ऐसी चमक होती थी जो उसके आत्मविश्वास को बयाँ करती थी।
    एक दिन, सब कुछ बहुत शांत था। सूरज की किरणें खिड़की से छनकर रूस के उस आलीशान विला में आ रही थीं, जहाँ ईशा, विवान और अनन्या रहते थे। ईशा सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी कि तभी उसे चक्कर आया और वह लड़खड़ाकर सीढ़ियों से नीचे गिर गई।
    "दीदी!" विवान और अनन्या ने एक साथ चिल्लाते हुए ईशा की तरफ़ दौड़ लगाई।
    ईशा की आँखों के सामने अँधेरा छा गया था। जब उसे होश आया, तो वह अपने कमरे के बिस्तर पर लेटी हुई थी। विवान और अनन्या उसके पास घबराए हुए खड़े थे।
    "दीदी, आप ठीक तो हैं?" विवान ने चिंता से पूछा।
    "हाँ... हाँ मैं ठीक हूँ," ईशा ने धीरे से कहा। उसके हाथ में थोड़ा दर्द था।
    तभी अनन्या ने सूझ-बूझ दिखाते हुए विवान से कहा, "विवान, दी को कमरे में ले चलो। मैं तुरंत डॉक्टर को कॉल करती हूँ।"
    कुछ देर बाद डॉक्टर आए और उन्होंने ईशा को चेक करने के बाद विवान और अनन्या से कमरे से बाहर जाने को कहा। दोनों भाई-बहन बेचैन होकर बाहर खड़े थे। थोड़ी देर बाद जब डॉक्टर बाहर आए, तो उन्होंने दोनों को देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "बधाई हो! आपकी बहन गर्भवती हैं।"
    यह सुनकर विवान और अनन्या के चेहरे पर एक पल के लिए ख़ुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन अगले ही पल वे हैरान रह गए। उन्हें पता था कि ईशा की क्या हालत थी। उनके मन में हज़ारों सवाल उठने लगे। डॉक्टर ने अपनी बात कही और वहाँ से चले गए।
    अनन्या ने विवान की तरफ़ देखा और कहा, "हमें मम्मी-पापा को यह बात तुरंत बता देनी चाहिए।"
    "तुम सही कह रही हो," विवान ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "मैं अभी उन्हें कॉल करके रूस बुलाता हूँ।"
    विवान तुरंत कॉल करने के लिए दूसरी तरफ़ चला गया, जबकि अनन्या धीरे-धीरे ईशा के कमरे में गई। ईशा अभी भी बेहोशी की हालत में थी। अनन्या उसके पास बैठकर उसके बाल सहलाने लगी।
    "दी... मैं नहीं जानती कि क्या हो रहा है, लेकिन मैं आपके साथ हूँ," अनन्या ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा दर्द और प्यार था।
    इधर, मेहर को भी अपनी गर्भावस्था के दो महीने पूरे हो चुके थे। वह अपने आने वाले बच्चे के बारे में सोचकर हर रोज़ एक नई उम्मीद के साथ जी रही थी। लेकिन क्या यह ख़ुशी ज़्यादा देर तक रहेगी? क्या ईशा की ख़बर से उसके जीवन में फिर कोई तूफ़ान आएगा?