कहानी शुरू होती हैं 1980 के दशक में लखनऊ की उन तंग गलियों में जहां रोशनी सिर्फ रातों में होती थी । दिन के उजाले सिर्फ अंधेरा ही लेकर आते थे ....और उन ही तंग गलियों की एक कमसिन तवायफ , जिसका नाम था नूर ....सिर्फ नूर .....पूरे कोठे की शान लेकिन हर गन्द... कहानी शुरू होती हैं 1980 के दशक में लखनऊ की उन तंग गलियों में जहां रोशनी सिर्फ रातों में होती थी । दिन के उजाले सिर्फ अंधेरा ही लेकर आते थे ....और उन ही तंग गलियों की एक कमसिन तवायफ , जिसका नाम था नूर ....सिर्फ नूर .....पूरे कोठे की शान लेकिन हर गन्दगी से दूर .....जिस नाम से जुड़ने भर से किरदार कलंकित हो जाते थे वहां नूर ...एक अनछूई तवायफ थी और इसी तवायफ को किसी से सच्ची मोहब्बत हो गयी ....जो सिर्फ उसके जिस्म से खेलने आया था । नूर जिसने कभी किसी को नजर भर भी ना देखा , उसकी नजरें ठहर गयी । एक ऐसी शख्सियत पर ....जो उसके हिस्से में कभी थी ही नहीं .. नूर के पास सिर्फ दो रास्ते बचे थे या तो खुद को बर्बाद कर दे या फिर सबकुछ बर्बाद कर दे - तो कौन-सा रास्ता चुनेंगी नूर ....क्या मोहब्बत में सिर्फ दर्द ही मिलेगा उसे ... जिसने जिंदगी में कोई खुशी नहीं पायी । क्या उसके लिए इश्क भी एक सजा बन जायेगा ? इतिहास गवाह हैं - वो जिस्म से खिलौना बने तो क़ुबूल है, मगर ज़िंदगी सँवारती दिखे तो मंज़ूर नहीं
Page 1 of 1
1955
उन तंग गलियों का सबसे अदाकारी कोठा ....रानो बाई का कोठा .....आज फिर रोशनी से जगमगा रहा था । चारों तरफ लोगों की भीड़ उमड़ी थी । जो चेहरे समाज के इज्जतदार चेहरों में शामिल थे ......इस महफिल में रुआब के साथ जाम पर जाम चढ़ा रहे थे और उनकी वह लार पटकती आंखें , बस उन हसीन चेहरों पर टिकी थी जो पूरी महफिल की जान लूट रही थी ......रानो बाई का कोठा ... लखनऊ का इकलौता कोठा था जहां मर्द सिर्फ नजरों से जाम पी सकते थे किसी भी तवायफ को छूना इजाजत से बाहर था और जब बात रानो बाई की आती तो कोई ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था और अगर सोचने भर का ख्याल भी आता तो बस गर्दन , धड़ से अलग हो जाती थी
वैसे इस महफिल की जान , बेकरार दिलों का चैन , सुकून सब कुछ थी - नूर ....जैसा दिल वैसी ही हसीन ...एकदम शांत और सुंदर और साथ ही पढ़ी लिखी लड़की....जो इस कोठे पर क्यों थी कोई नहीं जानता था ? वो कहां से आयी थी और किस हालात में आयी थी यह भी नहीं .... किसी को उसका असली नाम तक नहीं पता था और उसके हुस्न की खुबसूरती को देखकर ... उसे एक नाम मिल गया - नूर ... हर दिल की चाहत और हर नज़र का नशा सिर्फ इकलौता नाम था नूर ... जिसके नाम भर से कोठे पर लोगों की लाइन लग जाती थी । जिस्म की नुमाइश करना तवायफों का धंधा हुआ करता था पर हर कोठे का भी एक उसूल होता था । कहते हैं अगर किसी भी औरत के कदम कोठे पर पड़े तो हर दहलीज, हर सीमा खत्म हो जाती हैं लेकिन इस कोठे की एक सीमा थी जिसे लांघना मौत से कम भी नहीं था ।
तो चलिए चलते हैं दर्द से भरी इस मोहब्बत के सफर में ....
चारों तरफ फैली उस महफील के बीच में खड़ी नूर अपनी अदाओं से हर किसी का दिल बहला रही थी -
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं,
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं,
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं।।
(इन आँखों की...)
एक तुम ही नहीं तन्हा उल्फ़त में परेशान,
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं।
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं।।
(इन आँखों की...)
एक हम ही नहीं अपनी उल्फ़त के शिक़ारी,
इस शहर में तुम जैसे परवाने हज़ारों हैं।
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं,
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं।।
सभी लोग एक निश्चित दूरी पर बैठे थे । उनकी आंखों में हवस थी और हाथों में जाम .....!! नूर ने आखिरी में नृत्य खत्म किया और जैसे ही जाने के लिए मुड़ी .... एक तेज लेकिन नशे से ढलकती आवाज ने उसके कदमों को रोक दिया - अरे हमारे दिल की नूर ए जहां ... बैचेन दिल को करार तो दे जाओ । अब हम शरीफों को ऐसे ना जाओ छोड़कर।
नूर के बगल में खड़ी एक और तवायफ ने उसके कान में धीमी आवाज में कहां - ये मियां लखनऊ के नवाब शाह के चाचा जान हैं नूर ।
नूर ने उसकी तरफ देखा और फिर सामने देखते हुए - मियां आपने कदम कोठे पर रखे हैं और शरीफ होने की बात करते हैं । जुबान लड़खड़ाई नहीं आपकी ....!! खैर हमारा काम ,आपके बैचेन दिल को करार देने का तो कतई नहीं हैं ।
नवाब नसीर खान हंसते हुए हाथ में जाम का गिलास लिए - माना इस महफिल में हसीनाओं को छूना मना हैं पर अपने कुछ बोल तो सुना दिजिए नूर ए हुस्न , हमारे कान बेकरार हैं आपकी मीठी आवाज सुनन के लिए ।
नूर को अंदर ही अंदर गुस्सा आ रहा था लेकिन अभी के लिए कुछ भी ग़लत कर , वह खतरा मौल नहीं लेना चाहती थी इसलिए मुस्कराकर - तो अर्ज किया हैं .....
चारों तरफ इरशाद की आवाज गुंज उठी - तो अर्ज किया हैं
..........
तवायफ़ों की महफ़िल में आज फिर चाँद उतरा है,
हर चेहरा गुलाब, मगर दिलों में ज़हर उतरा है।
एक बोली फिर लगी है, एक रूह फिर बिकने को तैयार है,
शराफ़त के लिबास में कोई शिकारी बेकरार है।
धुआँ उठता है महक से, शराब से, ख़्वाब से,
हर हँसी के पीछे कोई कहानी अधूरी है हिसाब से।
ख़ून-ए-अक़्स ने दामन थामा, आईने ने सवाल किया ...
मियाँ, अब कहाँ जाओगे? होश तो दहलीज़ पर ही छोड़ आए हो…
खैर अपनी बीवी की इजाजत से तो आये हो ना मियां वो क्या हैं ना कल को दोष , हम तवायफों पर आयेगा कि हमने आपका घर तोड़ कर रख दिया पर भला उन मासूम खातूनों को कौन बताए कि अपने घर की दहलीज तवायफ ने नहीं उसके बेगरत शौहर ने लांघी हैं ।
उसकी बात पर सबकी बोलती बंद हो गयी और नूर अपने कमरे की तरफ चली गयी ।
रानो बाई जो कोठे की मालकिन थी और एक लौहे के झूले पर बैठी थी रौब से - मैंने कहां था नासीर कि नूर के मुंह मत लगना पर तुझे हर बार उससे उलझना हैं । रानो बाई का कोठा सिर्फ तवायफों का महफील में नाचने तक सीमित हैं तो उनके जिस्म की तरफ बढ़ते हाथ को काटने में एक पल नहीं लगायेंगे ओरिया बात तुमसे बेहतर कौन जान सकता है । आज की यह महफिल यहीं खत्म होती है अब आप सब लोग जा सकते हैं ।
अपने कमरे में आईने के सामने बैठी नूर हंसते हुए खुद की खूबसूरती को देखकर- खूबसूरत तो तुम हो नूर लेकिन तुम हर बार भूल जाती हो की तवायफ का कोई घर नहीं होता है और ना ही उसकी कोई इज्जत होती है। हर नजर जो उसके जिस्म से गुजरती है उसमें सिर्फ हवस का पानी टपकता है । तवायफ सिर्फ नुमाइश के लिए बनी है उसका मोहब्बत और इश्क से कोई वास्ता नहीं होता हैं । सच में एक तवायफ की जिंदगी सिर्फ दर्द से गुजर सकती है ।
वह अभी सोच ही रही थी कि तभी रानो बाई के कोठे की के
एक दूसरी तवायफ जिसका नाम काजल था वह चिल्लाते हुए नूर के कमरे में आई उसकी धड़कने बढ़ी हुई थी और वह हांफ रही थी । उसके चेहरे पर एक अलग ही डर था वह लड़खड़ाती आवाज में - नूर जल्दी चलो । नवाब नासिर ने अपनी कुछ दोस्तों के साथ कोठे की एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है रानो बाई ने तुमको बुलाया है ।
काजल की बात सुनते ही नूर के चेहरे पर एक अलग ही डर आ गया उसने अपनी चूड़ियां उतार कर फेंकी और फटाफट भागते हुए बाहर आ गई लखनऊ की उस सकरी से गली जहां पर चारों तरफ सिर्फ कोठी ही बने हुए थे रोड पर बहुत सारी तवायफे इकट्ठा हो गई थी और कुछ लोग भी जो दिन के उजाले में शराफत का चोला उठकर रखते हैं और रात के अंधेरे में यहां की महफिलों में नशा चढ़ाने आ जाते हैं ।
आज तो शायद कयामत ही आ जानी थी जब नूर भागती हुई बाहर आई तो एक तरफ रानो बाई ने उस लड़की को जो अभी लगभग 17 साल की ही थी को शाॅल ओढ़ाकर सीने से चिपकाए खड़ी थी । नूर की आंखों में गुस्से की ज्वाला धड़कने लगी उसने पास ही पड़ी बांस की लकड़ी उठाई और उन सभी मर्दों की तरफ बढ़ते हुए - आज तुम सब का नशा ना उतरा तो हमारा नाम भी नूर नहीं हैं ।
उसने सभी को कूट-कूट कर अधमरा कर दिया था हर कोई डर से पीछे खड़ा था किसी के अंदर भी हिम्मत नहीं थी कि आज नूर को रोक दे । वह मारते हुए लगातार चिल्ला रही थी- तुम लोगों की नजरों में तवायफ का कोई आत्म सम्मान नहीं होता हैं । अगर नवाब के खानदान से हो तो इसका मतलब यह नहीं की तवायफ तुम्हारी मलकियत हो गई । जिसे तुम जैसे चाहो वैसे इस्तेमाल कर सकते हो । तुम जैसे बेशर्म और नीर्लज्ज लोगों की वजह से आज लखनऊ की हर एक गली कोठों से भरी है । अगर शरीर में इतनी हवास है तो दिन की उजाले में आया करो ताकि सबको पता लगे की आग तवायफ के जिस्म में नहीं तुम जैसे लोगों के जिस्म में उबल रही हैं ।
लेकिन नवाब नासिर का घमंड नहीं गया था । वो हंसते हुए हवस भरी आवाज में - मैं बस उस नाजुक कली को छूने ही वाला था नूर पर अफसोस , सबकुछ बिगड़ गया ।
नवाब नासिर के शब्दों में नूर के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया था उसने गुस्से से पास ही रखा कटार उठाया और नासिर के हाथ पर चला दिया , उसके हाथ की तीन उंगलियां कटकर दूर गिर गई और चारों तरफ खून ही खून हो गया । सबने डर से आंखें खींच ली और नवाब नासीर दूसरे हाथ से हाथ को पकड़े दर्द से लगातार चिल्ला रहा था । नूर का गुस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ था उसने नवाब नासिर को घसीटते हुए उठाया और उसी की गाड़ी में डालते हुए - बहुत इज्जत का चोला ओढ़े घूमते हो लखनऊ के अंदर , नवाब गिरी का बहुत शौक है ना ....!! आज तुम्हारे महल में तुम्हारी इज्जत उछलेंगी और ऐसा करने वाली एक तवायफ होगी । इस दुनिया में ऐसा पहली बार होगा कि कटघरे में तवायफ नहीं तुम जैसा ह**** नीच इंसान होगा ।
नवाब नासिर को डर लगने लगा था उन्होंने जो भी किया अपनी हवस और नशे में किया था लेकिन अब उन का चेहरा डर से पीला पड़ गया था । अगर अज़ान को यह पता चला तो वह उन्हें सारी जायदाद से बेदखल कर देगा ।
नूर ने गुस्से से ड्राइविंग सीट संभाली और रानो बाई को काजल के साथ बैठने का कहकर धूल उड़ते हुए गाड़ी लेकर लखनऊ के खुली सड़कों की तरफ बढ़ गई जहां पर घूमना , शायद तवायफ के लिए बदकिरदारी का धब्बा था ।
जारी हैं ......
तो नूर जैसी हिम्मत थी और किसी से ना डरने वाली लड़की कैसे आई रानो बाई के कोठे पर ?
आगे क्या करेगी नूर ?
जाने के लिए पढ़िए नूर ए अज़ान
नूर .....
नवाब अज़ान हैदर खान
चाचा - नवाब नसीर खान
इनकी पत्नी - बेगम रज़ा खान
इनका बेटा - नवाब अयान खान
चाची चाची को अपने बेटे के लिए नवाबी तख्त चाहिए जिसके लिए वो अजा़न की शादी अपनी किसी लड़की से करना चाहते हैं ताकि सारी संपत्ति पर कब्जा जमा सके ।
अज़ान को उनके इरादे पता हैं लेकिन वो अयान की वजह से चुप हैं । उसमें जान बसती हैं उसकी
नूर एक तवायफ हैं रानो बाई के कोठे पर ...उसका राज यह हैं कि लखनऊ में लड़कियों को और राज्यों से शादी करके लाते और मौत का नाटक करके उन्हें कोठे पर बेच दिया जाता और वहां से तस्करी करके दुबई ... वो दिल्ली की रहने वाली हैं और एक आईपीएस आॅफिसर हैं जिसकी इस मिशन के लिए लखनऊ में पोस्टिंग होनी थी पर उसने एक तवायफ बनकर आना चुना ....!!
नवाब नसीर खान ने रानो बाई के कोठे की एक लड़की पर हाथ डाला था और उसके बदले में नूर ने उनका हाथ काट दिया और धक्का देते हुए , उसे लेकर अज़ान खान के दरबार में पहूंच गयी । जहां उन्हें एक वर्ष तक महल में ही नौकर बनकर काम करने की सजा सुनाई गयी । नूर ने अपना चेहरा नहीं दिखाया नकाब में जो था पर वहां उसकी सबसे बहस हुई लेकिन उसने अपना दिल अज़ान को एक ही बार में दे दिया ।
इसके बाद वो अज़ान से एक साधारण सी लड़की बनकर मिली थी और उसे अपने प्यार का अहसास कराया पर अज़ान का एक दुश्मन , रानो बाई के कोठे पर चला गया और वहां जाने से अज़ान को नूर की असलियत पता चल गयी । उसे , उसके किरदार से भी नफ़रत हो गयी ।
अज़ान अपने महल आ गया और नूर दर्द में तड़पती रही ।
इसी बीच नूर को पता लगा कि रानो बाई के सामने वाले कोठे पर बीस लड़कियों की तस्करी होगी ... एक ऐसी जगह इसी के साथ , उसने रंगे हाथ उन सबको पकड़ लिया और अब वो अज़ान को अपना सच बताना चाहती थी वो कौन हैं लेकिन रजा खान ने तो अपनी चाल चल दी थी । रात को वो अपनी कार से कहीं जा रही थी तभी उस पर गुंडों ने हमला कर दिया , उससे तो वह बच गयी लेकिन अज़ान खान के महल में घूस गयी जहां पर रज़ा खान ने उसपर चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया और साथ ही यह कि वो उनके दुश्मन से मिली थी और उसने ही अज़ान पर हमला करवाया था ।
नूर कठघरे में खड़ी थी । रज़ा ने यह भी बताया कि उसने नसीर खान पर भी झूठा इल्जाम लगाया था । इसके लिए उसने , उसी लड़की को पेश कर दिया , जिसके साथ नहीं ने बदसलूकी की थी और उस लड़की के मना करने पर वो न्याय की गुहार करने लगी । पुलिस को बुलाया गया लेकिन जैसे ही पुलिस ने नूर को देखा , उन्होंने झूक कर सलाम करते हुए - साॅरी बोला था और साथ ही माफी भी मांगी । तब सच सामने आया कि जिसे वो नूर के नाम से जानते थे असल में वो नक्षत्रा भानु थी लखनऊ की नयी आईपीएस आॅफिसर नक्षत्रा भानु .... सबके होश उड़ गये और फिर नक्षत्रा ने अज़ान से अकेले में बात करनी चाही और अज़ान ने ताने कसे , नक्षत्रा ने सच बताया ।
अज़ान को विश्वास नहीं हो रहा था पर फिर आखिर उनके प्यार की जय हुई । उनका प्यार परवाना चढ़ रहा था लेकिन नक्षत्रा थी जोधपुर के राजा की बेटी और अज़ान था नवाब .... दिल पर किसी का जोर नहीं चलता और हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई ।
बहुत मुश्किल हुआ , नक्षत्रा की शादी तय कर दी गयी । उसने अज़ान को फोन पर बताया कि उसे मिलना हैं एक आखिरी बार वो अज़ान से मिलना चाहती थी लेकिन अज़ान नहीं आया । उसका तो एक्सीडेंट हो गया था और नक्षत्रा उसे बीना मिले ही लौटना पड़ा जैसे ही वो जोधपुर गयी , उसने बताया की वो किस्से प्यार करती हैं और शादी नहीं करेंगी । वो इरादों की पक्की थी । अज़ान का मुस्लिम होना , उनके परिवार वालों ने मना कर दिया और नक्षत्रा के पास एक खत आया जिसमें लिखा था कि अज़ान को उससे शादी नहीं करनी बट अज़ान तो कोमा में जा चुका था । वो बिल्कुल टूट गयी साथ में कुछ फ़ोटोज थी जो उसे भेजी गयी । नक्षत्रा , इन सब से टूट सी गयी , दिल अज़ान पर भरोसा करता लेकिन दिमाग , उसने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया , धीरे-धीरे वो बिल्कुल पागल होने लगी थी । एक बार फिर उसकी पोस्टिंग हुई लखनऊ में जहां बहुत दिनों से शराब में परेशान नक्षत्रा को हाॅस्पीटल ले जाया गया जहां अज़ान का कोमा में होने के बारे में पता चला और साथ ही यह भी कि यह साजिश , उसके माता पिता और अज़ान के चाचा चाची ने रची थी । वो अब तक कोमा में जा क्योंकि उसके चाचा चाची , उसे दवाई दे रहे थे । ख़त के जरीए , उसने सबको एक जगह कर लिया और रिश्ते खत्म कर लिए ....हर कोई नफ़रत की आग में जल रहा था । एक दिन अज़ान को होश आया और नक्षत्रा खुश थी और सबकुछ ठीक होने लगा था । उनका प्यार परवाना चढ़ रहा था और फिर उनकी बेटी हुई ... लेकिन फिर सबकुछ खत्म , चाचा , चाची और उसके भाव विरेंद्र भानु ने उनको मौत के घाट उतार दिया , अयान उनके साथ नहीं था पर फोन पर सारी बात सुन ली ।
उसने नाटक किया कि वो कुछ नहीं जानता .... घर आकर , उसने नन्ही सी आरना को उठाया और उसे अपने दोस्त के पास छोड़ दिया और चाचा चाची को काॅल पर बताया कि आरना का किडनैप हो गया । कुछ दिनों में सबूत जुटाकर , उसने पुलिस को भिजवा दिये । सब लोग जेल चले गये और अयान , आरना को लेकर लंदन चला गया , आज सोलह साल बाद वो इंडिया लौटा था आरना की जिद पर , उसने आरना से कुछ नहीं छूपाया था ... करना के पास अपने मां पापा की एक ही तस्वीर थी जिसे वो अपने सीने लगायें रखती थी । अयान ने अपने भाई भाभी की जिंदगी पर एक कहानी लिखी थी .... आरना , एयरप्लेन में उसको पढ़कर रो रही थी । छत्तीस साल के अयान ने किसी को अपनी जिंदगी में शामिल नहीं किया था सिर्फ आरना के लिए .... यह उसका पछतावा था शायद खुद की वजह से सबकुछ जो हुआ था
..............
नूर एक तवायफ हैं और अज़ान एक नवाब , इनकी लवस्टोरी नाॅवेल के लिए एक कवर इमेज बनानी है मुझे जहां तस्वीरें में नूर ने चेहरे पर नकाब ले रखा हैं लाल रंग का सुंदर लहंगा पहना हैं वहीं अज़ान ने ब्लैक पठानी कुर्ता पहना हैं , अज़ान ने नूर को कमर से थामे रखा हैं और दोनों की नजरें एक दूसरे पर टिकी हैं
इमेज पर नाॅवेल का नाम " नूर ए अज़ान" लिखा होना चाहिए
और इसके नीचे ही खुबसूरत अक्षरों में होना चाहिए