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MY innocent brother in law

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Sameer Bose

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ये कहानी 18 + हैं इसलिए आप सोच समझ कर इसे पढ़, क्यों कि इसमें बोहोत से सीन ओवर बोल्ड हो सकते हैं , इसलिए दूसरों को दोष देने से पहले खुद पर विचार किए कि आप इसे पढ़ ही क्यों रहे हैं , रायचंद फैमिली का सबसे क्रूर बिज़नेसमैन *अद्विक रायचंद*—जि...

Total Chapters (14)

Page 1 of 1

  • 1. MY innocent brother in law - Chapter 1 (खनक की शादी का रिश्ता आया )

    Words: 596

    Estimated Reading Time: 4 min

    मुंबई की भीगी-सी शाम थी। खनक बंसल हाॅस्पिटल से घर लौटी ही थी। डॉक्टर थी वो—ब्रेन साइंस की स्पेशलिस्ट। दिनभर मरीजों की फाइलों और मेडिकल रिपोर्ट्स के बीच बीता वक्त, उसे थका तो देता था, मगर लोगों की मुस्कुराहट वापस लाने का सुख उसे हर दिन नई एनर्जी भी देता था।

    घर में कदम रखते ही उसने देखा मम्मी-पापा ड्रॉइंग रूम में बैठे हैं, और साथ में उसकी छोटी बहन कियारा भी। मगर आज माहौल कुछ बदला-बदला था। मम्मी की आँखों में चमक थी, पापा की मुस्कान में कोई छुपा राज़, और कियारा तो ऐसे मुस्कुरा रही थी जैसे कोई बड़ा बम गिराने वाली हो।

    “खनक… बेटा, आज एक बहुत अच्छा रिश्ता आया है तुम्हारे लिए।” मम्मी ने जैसे ही कहा, खनक का दिल धक से रह गया। “रिश्ता?” उसने धीरे से दोहराया।

    “हाँ… मुंबई के सबसे अमीर खानदान के बेटे रितिक रायचंद का। रायचंद इंडस्ट्रीज़ जानते हो न? उसी घर से रिश्ता आया है।” पापा की आवाज़ में एक गर्व था।

    खनक के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई, मगर शर्म से आँखें नीचे झुक गईं। चेहरा गुलाब की तरह लाल हो गया। बिना कुछ बोले, वो चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

    मम्मी-पापा ने एक-दूसरे की तरफ देखा और हल्का-सा मुस्कुराए। उनकी बेटी की चुप्पी, उसका झिझकना… सब कुछ बता रहा था कि खनक के मन में कोई विरोध नहीं है, वो इस रिश्ते से खुश हैं|

    कमरे में पहुँचते ही खनक ने पर्स बेड पर रखा और धीरे-धीरे आईने के सामने बैठ गई। दिल की धड़कन जैसे कानों में सुनाई दे रही थी। रायचंद खानदान… इतना बड़ा नाम… और उसका रिश्ता उनके बेटे से…?

    तभी दरवाज़ा धड़ाम से खुला और कियारा अंदर आ गई। “ओहो… हमारी दी तो शरमा भी रही हैं!” कियारा ने उसकी तरफ देखकर शरारती मुस्कान फेंकी। “कियारा… प्लीज़, चुप रहो।” खनक ने चेहरा छुपाने की कोशिश की।

    “चुप? वो भी मैं?” कियारा उसके पास बैठ गई और बोली, “तो बताओ दी… रितिक जी को देखते ही हाँ करोगी या ना?”

    “ जो मम्मी - पापा चाहेंगे वो होगा, मुझे मम्मी- पापा की पसंद पर पुरा विश्वास हैं!” खनक ने शर्माते हुए कहा। “हम्म… समझ गई। शरमाना मतलब दिल में घंटियाँ बज रही हैं। मैं तो पहले से जानती थी, हमारी दी को एक रईस राजकुमार ही मिलेगा।” कियारा ने उसके गाल खींचते हुए कहा।

    खनक ने बस तकिए से अपना चेहरा ढक लिया। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं। रितिक रायचंद… ये नाम खनक को अब जैसे हर सांस के साथ सुनाई दे रहा था।

    “दी… शादी के लिए रेडी हो गई न?” कियारा ने शरारत से पूछा। खनक ने उसे घूरा, “कियारा… तुम कभी चुप नहीं रह सकती?”

    “अरे, मैं तो बस पूछ रही थी। वैसे शादी के बाद की सुहागरात के बारे में सोचा है? मोमबत्ती की हल्की रोशनी… फूलों से सजा कमरा… और दूल्हा-दुल्हन अकेले…” कियारा ने आँखें नचाईं।

    “कियारा… बस भी करो!” खनक ने चेहरा तकिए में छुपा लिया, मगर गाल गुलाबी होते जा रहे थे।

    “और फिर हनीमून… स्विट्ज़रलैंड या मालदीव… रितिक जी तुम्हारा हाथ थामकर बर्फीली वादियों में ले जाएंगे… और तुम बस उनकी बाहों में खो जाओगी…” कियारा ने इतनी मासूमियत से कहा कि खनक खुद को रोक नहीं पाई और हँस पड़ी।

    “तुम्हारा दिमाग ठीक है? अभी तो बस रिश्ता आया हैं, दोनों परिवारों का मिलना बाकी हैं ” खनक ने शर्माते हुए कहा।

    “तो क्या हुआ? मैंने सुना है रायचंद खानदान के लड़के बहुत हैंडसम होते हैं। तुम्हारी किस्मत तो चमक गई, दी।” कियारा ने मुस्कुराते हुए कहा और धीरे से कान में फुसफुसाई, “और सुहागरात पर तो रितिक जी के साथ कपड़े खुल कर सारी बातें करोगी।”

  • 2. MY innocent brother in law - Chapter 2(जानू… आह… प्लीज़… थोड़ा और… तेज़ करो…” )

    Words: 724

    Estimated Reading Time: 5 min

    खनक ने तकिए से ही कियारा को हल्का-सा मारा, “तुम बहुत बिगड़ चुकी हो!” कियारा हँसते-हँसते कमरे से चली गई, मगर खनक का दिल अब और भी तेज़ धड़कने लगा था।

    वो आईने के सामने खड़ी हुई… अपने चेहरे की लालिमा देखी… और मन ही मन सोचने लगी शादी का जोड़ा, सुहागरात के वो हसीन लम्हें, रितिक का मुस्कुराता चेहरा…

    धीरे-धीरे उसकी आँखों में सपने सजने लगे। एक अजनबी से अजनबीपन धीरे-धीरे मोहब्बत में बदलने लगा था… और वो खुद भी नहीं समझ पाई कब उसकी धड़कनों ने रितिक रायचंद को अपना दूल्हा मान लिया।

    कुछ ही दिनों में जैसे खनक की ज़िंदगी ने करवट ले ली। रितिक रायचंद का रिश्ता आते ही बातों का सिलसिला इतना तेज़ बढ़ा कि पलक झपकते ही शादी की तारीख तय हो गई। रायचंद खानदान की शानो-शौकत और बंसल परिवार का अपनापन… दोनों का संगम अब एक बड़े उत्सव में बदल चुका था।

    आज खनक के घर में हल्दी की रस्म थी। सुबह से ही घर में रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ था। हर तरफ पीली साड़ियाँ, फूलों की सजावट और हँसी-ठिठोली गूंज रही थी।

    खनक को पीले जोड़े में लाकर चौकी पर बिठाया गया। उसकी सहेलियाँ और कियारा मिलकर उसे हल्दी लगा रही थीं। कियारा ने तो जैसे मिशन बना लिया था—*दी को इतना पीला करना है कि दूल्हे राजा देखते ही शरमा जाएं!*

    “देखो-देखो… हमारी दी तो पहले ही लाल हो रही हैं, हल्दी की ज़रूरत ही नहीं!” कियारा ने शरारत की, और सब हँस पड़े। खनक बस मुस्कुराई, मगर आँखें झुकी रहीं।

    शाम को मेहंदी का फंक्शन था। रायचंद परिवार के लोग भी आ चुके थे। खनक के हाथों पर जब रितिक के नाम की मेहंदी लगाई गई, तो सबने उसे छेड़ा। “लो… दूल्हे राजा का नाम सज गया हमारी खनक के हाथों में!” मासी बोलीं।

    खनक ने हल्की-सी नजर रितिक की तरफ डाली। वो दूर से खड़ा बस मुस्कुरा रहा था। हैंडसम, कॉन्फिडेंट, और सबकी नज़रों का केंद्र रितिक रायचंद सच में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था।

    संगीत की रात तो जैसे जादू ही ले आई। दोनों परिवारों ने मिलकर गाने गाए, डांस हुए। रितिक ने भी अपने कज़िन्स के साथ स्टेज पर डांस किया।

    खनक जब लहंगे में स्टेज पर आई, तो जैसे सबकी नज़रें थम गईं। रितिक की आँखों में एक अनकही सी चमक थी। ये पहली बार था जब खनक ने सीधे उसकी आँखों में देखा… और जैसे उस पल दोनों के बीच खामोशी ही सबसे बड़ी जुबान बन गई।

    कियारा फिर से मौके पर आ गई,“दी, दूल्हे राजा तो आज से ही दीवाने हो गए लगते हैं।” खनक ने बस मुस्कान दबा ली। मगर दिल के किसी कोने में वो भी मान चुकी थी—रितिक रायचंद अब उसकी तक़दीर बन चुका है।

    वही रात के वक्त फंक्शन खत्म होने के बाद बंसल हाउस का माहौल बेहद चहल-पहल भरा था। घर में मेहमान, रिश्तेदार, हंसी-मज़ाक और गपशप का सिलसिला जोरों पर था। खनक अपनी कजनों के साथ कमरे में बैठी थी, सब लोग मेहंदी, हल्दी और संगीत के फंक्शन की बातों पर हंस रहे थे |

    तभी रिया नाम की खनक की एक कजन अचानक फुसफुसाते हुए आई और बोली,“अरे चलो… चलो… तुम्हें कुछ दिखाती हूँ… बड़ी मसालेदार चीज़ है।” बाकी लड़कियों की आंखों में शरारत चमकी और सब रिया के पीछे-पीछे दौड़ पड़ीं। खनक भी हंसते हुए उनके साथ चल दी। रिया उन्हें टेरेस पर लेकर गई।

    टेरेस पर पहुंचते ही सबके कदम अचानक रुक गए। पड़ोस के घर की टेरेस पर बने एक कमरे से *जोर-जोर* से मदहोशी भरी सिसकियां सुनाई दे रही थीं। एक लड़की की आवाज़ आ रही थी, “जानू… आह… प्लीज़… थोड़ा और… तेज़ करो…”

    तभी लड़के की मदहोश भरी हांफती हुई आवाज आई," वाइफी तुम्हें ऐसे देखकर,तो मेरी स्पीड खुद ब खुद बढ़ा जाती हैं,"

    आवाजों में ऐसी मादकता थी कि सुनते ही सब कजनों के गाल लाल हो गए। एक-दूसरे का चेहरा देखकर सब लड़कियां दबे हंसी हंसने लगीं।

    रिया ने खनक की कोहनी मारते हुए फुसफुसाकर कहा,
    “कल तो खनक भी ऐसी ही आवाज़ करेगी… है ना खनक?” बाकी सब लड़कियां खनक को देखकर ठहाके मारने लगीं। खनक का चेहरा शर्म से और भी लाल हो गया।

    “तुम लोग पागल हो क्या!” खनक हड़बड़ाते हुए बोली और वहाँ से भाग गई। पीछे खड़ी कजनें खनक के भागते हुए चेहरे को देखकर और भी ज़ोर से हंस पड़ीं। शादी से पहले का वो पल खनक के दिल में अजीब-सी गुदगुदी छोड़ गया।

  • 3. MY innocent brother in law - Chapter 3 (सुहागरात पर क्या होता है )

    Words: 513

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुहागरात पर क्या होता है

    आज का दिन खनक की ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन था उसकी शादी का दिन। सुबह से ही घर में शहनाई की मधुर धुन गूंज रही थी। मेकअप आर्टिस्ट, डेकोरेटर, रिश्तेदार—हर कोई भाग-दौड़ में लगा हुआ था।

    गार्डन को बड़े ही शाही अंदाज़ में सजाया गया था। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल, चमचमाती लाइट्स और बीच में बना ग्रैंड मंडप मानो किसी फिल्मी शादी का सीन हो।

    शाम होते ही बारात की धूम गूंज उठी। ढोल-ताशों की आवाज़, नाचते रितिक के कज़िन्स और दोस्त—पूरा माहौल मस्ती में डूबा था।

    रितिक घोड़ी पर सवार, शेरवानी और सहारे में किसी शहज़ादे से कम नहीं लग रहा था। उसके चेहरे पर मुस्कान थी, जैसे पूरी बारात सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि उसकी शान के लिए आई हो।

    दुल्हन के घरवालों ने फूलों की माला से बारात का स्वागत किया। चारों ओर से आवाज़ें उठीं,“दूल्हे राजा आए!” स्टेज पर खनक लाल जोड़े में आई। लहंगे की चमक और चेहरे की लाली ने सबको पलभर को थमा दिया। रितिक की नज़रें जैसे उस पर अटक गईं।

    जयमाला का पल आया तो दोनों परिवारों ने मस्ती शुरू कर दी। रितिक के कज़िन दूल्हे को ऊपर उठा रहे थे, ताकि खनक माला न पहना सके। खनक की सहेलियाँ भी पीछे नहीं रहीं उन्होंने रितिक को घेर लिया।आखिरकार माला पहनी गई, और तालियां पूरे माहौल में गूंज उठी|

    फेरे शुरू हुए। मंत्रों की गूंज, पंडित जी की आवाज़, और आग के चारों ओर खनक-रितिक के कदम… जैसे हर फेरा दोनों की ज़िंदगी को एक नए रिश्ते में बांध रहा था।

    सात फेरों के बाद सिंदूर दान का पल आया। रितिक ने जैसे ही खनक की मांग में सिंदूर भरा, उसकी आँखों में हल्की-सी नमी और मुस्कान एक साथ आ गई। और फिर रितिका ने खनक को मंगलसूत्र पहनाया, अब खनक officially *खनक रितिक रायचंद* बन चुकी थी।

    इसी बीच रितिक के दोस्त और कज़िन खनक की सहेलियों के साथ फ्लर्ट करने में लगे थे। “अरे दूल्हन की सहेलियों, सुहागरात पर क्या होता है? जरा हमें भी बताओ ना,” एक दोस्त ने मज़ाक में पूछा।

    खनक की सहेली ने तुरंत पलटकर कहा, “तुम लड़कों की तो बस यही टेंशन रहती है! शादी हुई नहीं, सुहागरात के सपने पहले से शुरू!”

    दूसरा कज़िन बोला, “अरे भई, हम तो बस एजुकेशन के लिए पूछ रहे हैं… ताकि जब हमारी बारी आए तो हम भी एक्सपर्ट रहें।” सहेलियाँ खिलखिलाकर हँस पड़ीं।
    “तो सुनो, सुहागरात पर दूल्हा-दुल्हन पहले तकिए से बातें करते हैं… फिर मोमबत्ती की रोशनी में चाय पीते हैं…” एक सहेली ने सीरियस टोन में कहा।

    “सच में?” लड़के पूरे भोलेपन से बोले। “नहीं बेवकूफों, फिर शुरू होता है असली रोमांस… जो तुम लड़के समझ नहीं सकते!” दूसरी सहेली ने चुटकी ली। पूरा ग्रुप हँसी से लोटपोट हो गया।


    रात का समय था, शादी की सभी रस्में पूरी हो चुकी थी जयमाला, फेरे,सिंदूरदान और मंगलसूत्रदान के बाद अब माहौल विदाई की ओर बढ़ रहा था। लेकिन उससे पहले खनक की सहेलियां और कियारा की शरारतें बाकी थीं। जैसे ही पंडित जी ने फेरे पूरे करवाए, कियारा ने आंखों ही आंखों में खनक की सहेलियों को इशारा किया, प्लान तैयार था।

  • 4. MY innocent brother in law - Chapter 4 (दूल्हा राजा वैसे भी तुम्हें बेड पर उठा कर पटक देंगे )

    Words: 556

    Estimated Reading Time: 4 min

    दूल्हा राजा वैसे भी तुम्हें बेड पर उठा कर पटक देंगे

    रितिक जब अपने दोस्तों और कजनों से हंसी-मजाक कर रहा था, तभी सहेलियां झटपट आगे बढ़ीं और उसके जूते उठा ले गईं।

    "अरे… ये क्या हो रहा है?" रितिक को भनक लगी तो उसने पीछे मुड़कर देखा। "जूते आपके गिरवी हैं, दूल्हा राजा!" कियारा हंसते हुए बोली। "और इसे छुड़ाने के लिए मोटी रकम देनी होगी।" खनक की सबसे करीबी सहेली प्रीति बोली।

    रितिक ने मुस्कुराते हुए अपने कजनों की ओर देखा, "यार, इनसे कोई तो जूते छुड़वाओ, वरना ये तो आज ही मुझे कंगाल कर देंगी।" कजनों ने भी मजाक में साथ दिया, " भाई, दुल्हन के बिना तो चल जाएगा, पर जूते के बिना नहीं।"

    आखिरकार थोड़ी नोकझोंक और हंसी-ठिठोली के बाद रितिक को जूते वापस पाने के लिए एक मोटा लिफाफा देना पड़ा। सहेलियां खुश होकर नोट गिनने लगीं और खनक चुपचाप मुस्कुरा रही थी, खनक देख रही थी, रितिक इतना अमीर होने के बाद भी down to earth हैं|

    फिर विदाई का समय आ गया। माहौल अचानक से इमोशनल हो गया। खनक अपने माता-पिता से लिपटकर रो रही थी, उसकी सहेलियां भी आंखें पोंछ रही थीं। रितिक ने धीरे से खनक का हाथ पकड़ा और उसे कार तक लेकर गया। दोनों की आंखों में कई तरह की इमोशन थे एक नया जीवन, एक नई शुरुआत।

    कुछ देर बाद बारात रामचंद्र विला पहुंची। दरवाजे पर रितिक की दादी आरती की थाल लेकर खड़ी थीं। जैसे ही रितिक और खनक ने कदम रखा, दादी ने मुस्कुराते हुए कहा,"बहू, अब ये घर तुम्हारा है, हमेशा खुश रहो।"

    ख़नक ने चावल की कलश को धीरे से गिराया और फिर अलते के पानी में पैर रखकर अंदर कदम रखा। फर्श पर उसके लाल पैरों की छपाई नई दुल्हन के आगमन की गवाह बन रही थी। घर की बड़ी-बूढ़ियां मुस्कुराते हुए शगुन के गीत गा रही थीं।

    अब बारी थी अंगूठी ढूंढने की रस्म की। एक बड़े से चांदी के बाउल में दूध और गुलाब की पंखुड़ियां डालकर उसमें अंगूठी डाली गई। रितिक और खनक को बैठाकर दोनों से कहा गया,"जो पहले अंगूठी निकालेगा, वही घर में राज करेगा।"

    सारे रिश्तेदार हंसने लगे। रितिक के कजन और भाभियां इधर-उधर से खड़े होकर कमेंट पास कर रहे थे। "अरे देखो, दूल्हा राजा तो जीतने की पूरी कोशिश करेगा, पर दुल्हन भी कम नहीं है।"
    "देखते हैं आज कौन किस पर भारी पड़ता है!"

    रितिक और खनक दोनों ने एक साथ अंगूठी ढूंढनी शुरू की। भीड़ के बीच से रितिक की एक भाभी नोटी अंदाज़ में बोली,"अरे बहू, अगर तुम जीत गईं तो रात को दूल्हा राजा वैसे भी तुम्हें बेड पर उठा कर पटक देंगे। और जीत कर भी तुम्हें तो अब दूल्हे के नीचे ही रहना हैं, "

    सारा हॉल ठहाकों से गूंज उठा। खनक शर्म से लाल हो गई और रितिक मुस्कुराकर बोला,"भाभी, जीत हो या हार… वाइफ तो मेरी ही है। और नीचे तो अब भी भाई के सोती हो😋...."

    सब रिश्तेदार हंस-हंसकर लोटपोट हो रही थीं। एक ने तो सीधा कह ही दिया,"बस-बस, सुहागरात के सीन का ट्रेलर मत दिखाओ, असली फिल्म तो रात को ही चलेगी।"

    आखिरकार रितिक ने अंगूठी ढूंढ ली, और भाभियों ने तालियां बजाईं।"लो भई, अब दूल्हा राजा का ही राज चलेगा," किसी ने चुटकी ली।

    रस्में खत्म होते-होते माहौल में प्यार, हंसी और शरारत का रंग घुल चुका था। रितिक और खनक एक-दूसरे को देखकर चुपचाप मुस्कुरा रहे थे।

  • 5. MY innocent brother in law - Chapter 5 (सुहागरात की रात तो बिस्तर पर कबड्डी होती है )

    Words: 541

    Estimated Reading Time: 4 min

    सारी रस्में खत्म होते-होते रात काफी हो चुकी थी। अंगूठी ढूंढने की रस्म में तो कजन और भाभियों ने खनक और रितिक को जमकर छेड़ा था। हर कोई सुहागरात पर ताने मारने और शरारत करने के मूड में था। तभी रायचंद फैमिली की मुखिया, रितिक की दादी सावित्री जी ने माहौल को भांप लिया।

    सावित्री जी को पता था कि अगर रितिक और खनक को घर में रखा गया, तो ये शैतान कजन और भाभियां उनकी सुहागरात चैन से नहीं होने देंगे। पहले से ही कुछ लोग कमरे में गुब्बारे और पटाखे डालने की बातें कर रहे थे, कोई तकिए के नीचे अलार्म छुपाने की प्लानिंग कर रहा था, तो कोई दूल्हा-दुल्हन के कमरे के बाहर ड्रम बजाने का आईडिया दे रहा था।

    दादी ने सबकी शरारतों पर मुस्कुराते हुए रितिक और खनक को बुलाया। “देखो बच्चों,” सावित्री जी ने गंभीरता से कहा, “ये शैतान लोग तुम्हारी सुहागरात को मैदान-ए-जंग बना देंगे। इसलिए मैंने तुम्हारे लिए 5-स्टार होटल में हनीमून स्वीट बुक कराया है।”

    सब कजन और भाभियां एक साथ बोले, “अरे… दादी ये तो चीटिंग है!” दादी ने हंसकर कहा, “नहीं बेटा, ये तुम्हारी भलाई के लिए है। नई बहू और दूल्हे को कम से कम पहली रात तो चैन से बिताने दो।”

    रितिक मुस्कुराया और खनक हल्की सी शर्म से लाल हो गई। कजन अब भी हार मानने को तैयार नहीं थे।
    “हम भी होटल चलेंगे, बाहर से ही डिस्टर्ब करेंगे!” एक कजन बोला। “हाँ, कमरे के बाहर डीजे ले जाएंगे,” भाभियों ने चुटकी ली।

    लेकिन सावित्री जी का फैसला अटल था। उन्होंने ड्राइवर को गाड़ी तैयार करने को कहा और रितिक-खनक को आशीर्वाद देकर भेज दिया। “जाओ बेटा, तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत प्यार और सुकून से हो,” दादी ने मुस्कुराते हुए कहा।

    गाड़ी जैसे ही रायचंद विला से बाहर निकली, कजन और भाभियां मुंह बनाते रह गए, और खनक-रितिक एक-दूसरे को देखकर चुपचाप मुस्कुरा दिए। होटल में पहुंच कर वो अपने हनीमून स्वीट तक पहुंचे `

    हनीमून स्वीट में कदम रखते ही खनक की सांसें थम सी गईं। कमरा जैसे किसी सपनों की दुनिया से निकला हो हल्की-हल्की रोशनी में चमकती scented candles, red heart shaped balloons , और बिस्तर पर बिखरी **गुलाब की पंखुड़ियों** ने माहौल को मदहोशी भरा बना दिया था।

    रितिक ने धीरे से खनक का हाथ थामा और मुस्कुराते हुए उसे कमरे के बीचोंबीच बने **किंग-साइज़ बेड** पर बैठा दिया। खनक का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। तभी उसे अपनी मम्मी की बातें याद आईं “सुहागरात की सजे पर घूंघट करके बैठना होता है।”

    खनक ने तुरंत अपनी लाल चुनरी को झटके से खींचकर घूंघट कर लिया। घूंघट के पीछे उसका चेहरा लाल हो चुका था। तभी एक और याद आई उसकी शादीशुदा सहेली की, जिसने मज़ाक में कहा था, “सुहागरात की रात तो बिस्तर पर कबड्डी होती है, पति सीधा कूदकर जीतने आता है!”

    खनक का दिल धक-धक करने लगा। उसने घूंघट के पीछे ही खुद को संभालने की कोशिश की, जबकि रितिक काफ़ी रिलैक्स मूड में कॉफी टेबल पर रखा **ड्राई फ्रूट मिल्क** का गिलास उठाकर एक लंबा घूंट भर रहा था।

    फिर वह मुस्कुराता हुआ दूसरा गिलास लेकर खनक के पास आया। गिलास नाइटस्टैंड पर रखकर उसने बिना एक शब्द बोले धीरे से खनक का घूंघट उठाया। उसकी उंगलियों का स्पर्श खनक की धड़कनों को और तेज़ कर गया।

  • 6. MY innocent brother in law - Chapter 6 (रितिक जी, अह्ह्ह्ह कुछ हो रहा हैं," )

    Words: 554

    Estimated Reading Time: 4 min

    रितिक जी, अह्ह्ह्ह कुछ हो रहा हैं,"

    रितिक ने उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए उसके माथे पर एक लंबा किस दिया। उसकी आवाज़ में भरी हुई मदहोशी ने खनक की सांसें थमा दीं,“आज की रात के लिए… इस ड्राई फ्रूट मिल्क की तुम्हें बहुत ज़रूरत है… मैं तुम्हें सोने नहीं दूँगा…”

    खनक की आँखें झुक गईं, चेहरा शर्म से लाल हो गया। रितिक ने प्यार से गिलास उसके होंठों तक लाया।
    “पी लो… तुम्हारी ही तो ताक़त बढ़ानी है…”

    खनक ने काँपते हाथों से गिलास पकड़ा, लेकिन जैसे ही उसने पहला घूंट लिया, रितिक ने जानबूझकर थोड़ा-सा मिल्क उसके ब्लाउज से विजिबल हो रहे क्लीवेज पर गिरा दिया। “ओह… सॉरी… गलती हो गई…” उसकी आवाज़ में मासूमियत नहीं, शरारती भरी मदहोशी थी।

    खनक का चेहरा शर्म से और लाल हो गया। वह कुछ कहती, उससे पहले ही रितिक झुका और मुस्कुराते हुए बोला,“अभी साफ करता हूँ…”

    उसकी गर्म साँसें खनक की skin को छू रही थीं। अगले ही पल रितिक की होठों ने उसके क्लीवेज को छू लिया, रितिक ने खनक के क्लीवेज पर बाइट किया।

    खनक सिसक उठी उसका पूरा शरीर कांप उठा। उसके मन में अपनी सहेलियों की बातें गूंज रही थीं,“सुहागरात पर शर्म मत करना, वरना पति जीत जाएगा!”

    लेकिन इस पल में तो वह खुद अपनी हार मानने को तैयार थी। रितिक के हर स्पर्श के साथ उसकी सांसें भारी होती जा रही थीं। रितिक ने मुस्कुराते हुए उसकी आँखों में झांका।“डरो मत… आज की रात… तुम्हारी मैं यादगार बना दूंगा, कि तुम जिंदगी भर नहीं भूल पाओगी ”

    उसकी आवाज़ जैसे नशे का जादू घोल रही थी। खनक की पलकों पर अब शर्म और चाहत का अजीब-सा नशा उतर आया था।

    कमरे की नर्म रोशनी में सुहागरात का जादू गहराता जा रहा था। बाहर हल्की हवा में गुलाब की खुशबू फैली थी, और कमरे के बीचोंबीच सजा **फूलों का बिस्तर** अब असली रस्म का गवाह बनने वाला था।

    खनक की सांसें पहले ही तेज़ हो चुकी थीं, और रितिक की आँखों में एक पागलपन-सा नशा था। उसने धीरे-धीरे खनक का हाथ थामा और फिर एक-एक कर उसके गहनों को उतारना शुरू किया।

    सबसे पहले मांग-टीका रितिक ने उसे उतारते हुए खनक के माथे पर एक हल्की बाइट की। खनक की उंगलियां अपने लहंगे के दुपट्टे को कसकर पकड़े थीं। वह सिसकते हुए आंखें बंद कर रही थी, मानो खुद को संभालने की कोशिश कर रही हो।

    फिर इयररिंग निकले। रितिक के होंठ उसके कान की लोब को हल्के से काटते चले गए। खनक की धड़कनें तेज़ थीं, और गाल लाल पड़ चुके थे।

    नथ, नेकलेस , कड़े, हर गहना उतरता, और हर बार रितिक उस जगह पर अपने होठों और दांतों के निशान छोड़ता। खनक लहंगे को मुठ्ठी में भरकर सिसकती, पर ना जाने क्यों एक अजीब-सी खुशकिस्मती का अहसास भी उसके दिल में घर कर रहा था। खनक मदहोशी भरी आवाज़ में बोली," रितिक जी, अह्ह्ह्ह कुछ हो रहा हैं," रितिक बस तिरछी मुस्कान मुस्कुराया|


    खनक की मदहोश आँखों में झांकते हुए रितिक की आवाज़ धीमी और मादक हो गई,
    “तेरी साँसों की गर्मी, तेरे होंठों का स्वाद,
    तेरे बदन की खुशबू, मेरा सबसे बड़ा फरियाद।
    आज चाँद भी शरमाया है तेरे हुस्न के आगे,
    मैं खोना चाहता हूँ तुझमें, तेरी बाहों के साए में।”

    खनक का चेहरा लाल हो उठा, उसकी पलकों की झुकी शर्म ने रितिक के दिल में और भी आग लगा दी।

  • 7. MY innocent brother in law - Chapter 7 ( <br> सेक्सी रस्म )

    Words: 525

    Estimated Reading Time: 4 min

    हनीमून स्वीट में खनक और रितिक की सुहागरात शुरू हो चुकी थी, धीरे - धीरे दोनो आगे बढ़ रहे थे जब रितिक ने बाजूबंद और कमरबंद उतरे, खनक का पूरा शरीर जैसे पिघलता जा रहा था। पायल उतरते वक्त रितिक की उंगलियां उसके पैरों को छूतीं, और खनक की सांसें जैसे थम सी जातीं।

    रितिक का हर स्पर्श खनक के दिल में हजारों गुदगुदियां छोड़ रहा था। फिर वह उसके कान के पास झुककर मदहोश भरी आवाज़ में फुसफुसाया,“खनक डार्लिंग… एक रस्म और बाकी है… जो सिर्फ दूल्हा-दुल्हन के बीच होती है।”

    खनक ने हल्का सा चेहरा उठाया। उसके दिल में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी। वह खुद को दुनिया की सबसे खुशकिस्मत लड़की महसूस कर रही थी।

    अचानक रितिक ने अपनी शेरवानी की जेब से सोने की एक चेन निकाली और बिना कुछ कहे सीधे खनक के ब्लाउज़ के अंदर डाल दी। खनक हैरानी से उसे देखने लगी। “ये… ये क्या कर रहे हो…?” उसकी आवाज़ कांप रही थी, पर चेहरे पर लाली और भी गहरी हो चुकी थी।

    रितिक उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराया। उसने दोनों हथेलियों में खनक का चेहरा थामा और धीमे से कहा,“खनक डार्लिंग… इस रस्म में दूल्हे को ये चेन आंखें बंद करके दूल्हन के ब्लाउज़ से निकालनी होती है… तभी रस्म पूरी होती है।”

    खनक का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसकी सहेलियों की सुहागरात वाली नोटी बातें उसे याद आ गईं, और चेहरा शर्म से और लाल हो गया। रितिक ने अपनी आँखें बंद कीं। कमरे में बस उसकी सांसों की गर्माहट और खनक की धड़कनों की आवाज़ रह गई।

    धीरे-धीरे रितिक की उंगलियां खनक ब्लाउज़ के अंदर पहुंचीं। खनक ने अनजाने में अपने दुपट्टे को सीने पर और कसकर पकड़ लिया, पर रितिक के चेहरे पर तिरछी मुस्कान आई। रितिका जान पूछ कर खनक के उभार मसल रहा था, खनक की सिसकियां तेज़ हो रही थी, उसने तो कभी ऐसी रस्म का जिक्र सुन ही नहीं था|

    रितिका खनक के उभारो के पॉइंट को रब करते हुए मदहोश भरी आवाज़ में बोला," उफ़ क्या रसीले संतरे हैं, खनक तो शर्म से पानी - पानी हो चुकी थी, कुछ पल की तलाश के बाद जब रितिक ने आखिरकार चेन निकाल ली, खनक की आंखें शर्म से झुकी हुई थीं।

    रितिक ने आंखें खोलकर चेन को अपनी मुट्ठी में कस लिया और खनक के कान के पास झुककर फुसफुसाया,“रस्म अभी पूरी नहीं हुई, अभी चेन नीचे वाले हिस्से में जाएगी, और मुझे फिर से ढूंढनी होगी, ”

    खनक शर्माते हुए बोली," ऐसी रस्म नहीं होती, आप मुझसे झूठ बोल रहे हैं ," रितिक खनक की बात सुनकर बोला," ये मेरी खुद की बनाई हुई रस्में हैं, जो तुम्हें निभानी पड़ेगी," खनक घबराई नज़रों से रितिक को देख रही थी|

    रितिका ने खनक का लहंगा ऊपर सरकाना शुरु किया, खनक शर्म से कांप रही थी, ये अहसास उसके लिए नए और खूबसूरत थे, रितिक खनक के पैर चूमते हुए ऊपर की और बढ़ रहा था, उसने खनक का लहंगा ऊपर किया, और अपने होंठ उसकी इनर थाई पर रख कर चूमने लगा, खनक तड़पते हुए मदहोश भरी आवाज़ में बोली, " रितिक जी , मुझे कुछ हो रहा हैं, बस अब और मत तरसाओ, मुझे अपना बना लो,"

  • 8. MY innocent brother in law - Chapter 8 ( <br>“हा… हा… हा… हा…!” )

    Words: 507

    Estimated Reading Time: 4 min

    खनक का चेहरा अब पूरी तरह लाल हो चुका था। उसकी पलकों के नीचे प्यार, शर्म और चाहत का अजीब सा तूफान था, खनक का दिल धक-धक कर रहा था, जैसे सीने से बाहर निकल जाएगा।

    उसके चेहरे पर लाली, पलकों पर झिझक और होंठों पर हल्की थरथराहट सब कुछ रितिक की आँखों में एक पागलपन भर रहा था।

    रितिक ने धीरे से चेन साइड टेबल पर रखी और खनक का चेहरा अपने हाथों में थाम लिया। उसकी उंगलियाँ खनक की गर्दन की नर्मी को छू रही थीं, जैसे वह हर धड़कन को महसूस करना चाहता हो।

    “खनक…” उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा नशा था, “आज की रात… सिर्फ़ हमारी है। यहाँ कोई रस्म नहीं… कोई मज़ाक नहीं… सिर्फ़ मैं… और तुम।”

    खनक ने हल्की-सी हाँ में सिर हिलाया। उसके हाथ अब भी अपने लहंगे के दुपट्टे को कसकर पकड़े थे, मानो यही उसे हिम्मत दे रहा हो।

    रितिक ने धीरे-धीरे उसकी कमर पर हाथ रखा और उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। खनक का शरीर उसकी चेस्ट से सटते ही कांप उठा। रितिक की उंगलियाँ अब उसके ब्लाउज़ के हुक पर थीं, और खनक की सांसें तेज़ होती जा रही थीं।

    उसने धीमे से झुककर खनक के कंधे पर होंठ रखे पहले हल्का-सा चुंबन, फिर ज़रा-सा दांतों का स्पर्श। खनक सिसक उठी, पर उसकी आँखों में कोई इंकार नहीं था। रितिक का हर स्पर्श उसके लिए नया था, पर डर की जगह एक अजीब-सी गुदगुदी और चाहत थी जो उसे बहा ले जा रही थी।

    कमरे में अब बस गुलाब की खुशबू, मोमबत्ती की लौ और दो धड़कनों की आवाज़ थी। रितिक ने धीरे-धीरे उसका लहंगा ढीला किया, उसकी चूड़ियों को हटाया और हर बार उसकी कलाई पर हल्का-सा किस छोड़ता गया।

    “तुम्हें पता है…” रितिक ने उसकी कान की लोब पर सांसें छोड़ते हुए फुसफुसाया, “मैंने इस रात के लिए कितने सपने देखे हैं…” खनक की पलकों पर शर्म की परत थी, पर होंठों पर मुस्कान तैर रही थी। उसने दुपट्टे को चेहरे तक खींचने की कोशिश की, पर रितिक ने हल्का सा हाथ पकड़कर उसे रोका।

    “नहीं… आज कोई पर्दा नहीं… सिर्फ़ हम दोनों।”
    उसकी आवाज़ में अब एक हुक्म भी था और चाहत भी।
    खनक ने आँखें बंद कर लीं। वह अब पूरी तरह से रितिक के हवाले थी, और रितिक ने उसे ऐसे थामा जैसे वह उसकी सबसे कीमती अमानत हो।

    कमरे में मोमबत्तियों की हल्की रोशनी थी, गुलाब की खुशबू अब भी हवा में तैर रही थी। कुछ पल पहले तक रितिक की बाहों में सिमटी खनक का दिल धक-धक कर रहा था। उसकी शर्म, उसकी मासूमियत सब कुछ इस पल को अनोखा और यादगार बना रहे थे।

    लेकिन अचानक… रितिक ने उसे ऐसे दूर धकेला, जैसे वह कोई खिलौना हो। खनक का संतुलन बिगड़ा, वह लगभग बिस्तर पर गिरते-गिरते संभली। “रितिक जी…?” खनक की आवाज़ में घबराहट थी, पर उसने सोचा शायद ये कोई मज़ाक होगा।

    रितिक के चेहरे पर मुस्कुराहट थी पर वो मासूम मुस्कुराहट नहीं… एक शैतानी हंसी थी, जो धीरे-धीरे ज़ोरदार ठहाकों में बदल गई। “हा… हा… हा… हा…!”
    कमरे की खामोशी उसकी हंसी से चीर दी गई।

  • 9. MY innocent brother in law - Chapter 9 (कौन से फ्लावर का प्रोटेक्शन लूं )

    Words: 512

    Estimated Reading Time: 4 min

    खनक पहले तो हल्का-सा मुस्कुराई, लेकिन फिर उसके चेहरे पर बेचैनी उतर आई। ये हंसी अब मज़ाक नहीं थी… ये जैसे उसकी रूह तक को हिला रही थी।
    “रितिक जी… ये… क्या बात है?” खनक ने कांपती आवाज़ में पूछा।

    अचानक रितिक ने उसकी ठोड़ी को कसकर पकड़ लिया। उसकी पकड़ में गुस्सा, तकलीफ़ और बदले की आग थी। “तुझे मेरे साथ सुहागरात मनानी है, है ना?” रितिक की आवाज़ ज़हर से भी ज्यादा कड़वी थी।
    खनक की सांसें अटक गईं।

    रितिक के होंठों पर एक तंज भरी मुस्कान थी,“उस दिन माॅल में तो मुझे नामर्द बोल रही थी… याद है खनक? बोल रही थी… अगर मैं इस दुनिया का आख़िरी लड़का भी बचा, तो भी तुम मेरे कबीर नही आओगी… है ना?”

    खनक का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी आँखों में पुरानी यादें घूमने लगी , छह महीने पहले…खनक अपनी दोस्त के साथ शॉपिंग के लिए माॅल गई थी। हाथ में ढेर सारे बैग लिए, वह हड़बड़ी में एस्केलेटर से नीचे उतर रही थी, जब अचानक उसका कंधा किसी से टकराया।

    “सॉरी…” खनक ने मुड़कर कहा। उसके सामने रितिक रायचंद खड़ा था सूट-बूट में, एकदम हैंडसम, और उसके चेहरे पर वही कॉन्फिडेंस, जो करोड़पति शख्सों की पहचान होता है।

    रितिक ने उसके हाथों से बैग थाम लिए। “बेबी, इतना भी क्या जल्दी है? गिर जाती तो?” खनक ने चौंककर उसे देखा। “मेरा नाम खनक है, और मैं कोई बेबी-वेबी नहीं हूँ, ठीक है?”

    रितिक मुस्कुराया। “ओह, तो मिस खनक … मैं इतना ही अच्छा लग रहा हूँ, तो सीधे बोल दो… कि सेक्सी फन करने चलते हैं?” खनक ने हैरान होकर कहा, “क्या बकवास कर रहे हो ?” रितिक और करीब झुका। “बकवस नहीं तुम्हारे दिल की बात कर रहा हूं, वैसे आज रात के सेक्सी फन के लिए कौन से फ्लावर का प्रोटेक्शन लूं?”

    खनक के कानों तक उसकी गर्म सांसें पहुंचीं। लेकिन खनक के चेहरे पर अब झिझक नहीं, गुस्सा था।
    “सुनो मिस्टर,” खनक ने ऊँची आवाज़ में कहा, “तुम अगर इस दुनिया में अकेले भी बचे होगे, तब भी मैं तुम्हारे करीब नहीं आऊंगी। और हाँ… मेरी नजर में तुम जैसे लोग नामर्द ही होते हैं, जो लड़कियों से इस तरह की गंदी बातें करते हैं।”

    माॅल में लोग मुड़कर देखने लगे। रितिक के चेहरे की मुस्कुराहट पथ्थर हो गई। “तुमने सुना ना?” खनक ने ठंडी आवाज़ में कहा, “नामर्द…!” इसके बाद खनक मुड़ी और अपनी सहेली के साथ वहां से चली गई।

    रितिक वहीं खड़ा रहा, मुट्ठियाँ भींचे, चेहरे पर अपमान का रंग गहरा हो चुका था। “लड़की… इस बेज्जती का बदला मैं जरूर लूंगा,” उसने दांत पीसते हुए खुद से कहा।

    खनक की आँखें पुरानी याद से बाहर आईं। उसके हाथ कांप रहे थे। “रितिक जी… वो तो बस गुस्से में…”
    “चुप!” रितिक गरजा। उसकी आंखों में नफरत और जीत का मिला-जुला भाव था।

    “आज देख… खनक बंसल… तू मेरी सुहागरात की सेज पर बैठी है। वो लड़का… जिसे तूने नामर्द कहा… आज वही तुझे अपनी बाहों में लेने वाला है। और तू… पूरी तरह से पिघल चुकी है मेरे लिए।” खनक ने डर और गुस्से से कहा, “रितिक जी… आप पागल हो गए हैं क्या?”

  • 10. MY innocent brother in law - Chapter 10 ( <br>ये शादी तो बस मेरे बदला है )

    Words: 532

    Estimated Reading Time: 4 min

    रितिक पास झुका, उसकी सांसें खनक के चेहरे को छू रही थीं। “पागल…? नहीं खनक… ये पागलपन नहीं… ये बदला है। उस एक चांटे का बदला… उस नामर्द कहने का बदला… उस अपमान का बदला, जो तुमने सबके सामने मुझे दिया था।”

    खनक की आँखों से आंसू बह निकले। “लेकिन शादी… ये सब मजाक था?” रितिक ने ठंडी हंसी हंसते हुए कहा, “शादी? ओह खनक… ये शादी तो बस मेरे बदले की स्क्रिप्ट का पहला सीन था।” खनक का दिल जैसे किसी ने निचोड़ दिया हो। रितिक अचानक खनक से दूर हुआ, उसकी आँखों में एक अजीब-सी ठंडक थी।

    “खनक,” रितिक की आवाज़ में एक अजीब-सी कड़वाहट थी, “अब पूरी ज़िंदगी तुम मेरी पत्नी बनकर रहोगी… पर तुम्हें कभी मेरा प्यार नहीं मिलेगा। तुम अपनी जवानी की हसरतों को पूरा करने के लिए तरसोगी। तुमने मुझे नामर्द कहा था ना? अब तुम्हें कभी पति का सुख नहीं मिलेगा। अब ना तुम्हें मैं अपनाऊंगा , ना कोई और तुम्हें अ अपना पाएगा, अब तुम्हारी पुरी जिंदगी अकेले काटेगी, ”

    खनक के कानों में जैसे किसी ने बर्फ़ की सुइयाँ चुभा दीं। वो हैरानी से उसकी ओर देखने लगी। उसकी आँखों में सवाल थे ये वही रितिक था, जो कुछ पल पहले उसकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत सपना सच कर रहा था?

    “आप… मेरे साथ ये सब नहीं कर सकते…” खनक की आवाज़ काँप रही थी, जैसे किसी ने उसकी रूह से खेल लिया हो। पर रितिक बस हल्की-सी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखता रहा। उसकी आँखों में अब प्यार नहीं, बस ठंडा और निर्दयी सन्नाटा था।

    “कर तो चुका हूँ, खनक,” वो धीमे से बोला, “तुम्हें लगता था तुम मुझे नीचा दिखा सकती हो? अब देखो, तुम्हारी शादी… तुम्हारा प्यार… सब एक मज़ाक है। तुम मेरी पत्नी तो बनोगी, पर वो सुख कभी नहीं पाओगी जिसकी तुमने कल्पना की थी।”

    ये कहकर रितिक धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ा। उसके कदमों की आवाज़ कमरे की खामोशी को चीरती रही। खनक अभी भी बेड पर बैठी थी, जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं बची थी। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे, पर रितिक के चेहरे पर कोई असर नहीं पड़ा।

    दरवाज़ा बंद हुआ, और खनक अकेली रह गई।
    उसका दुल्हन वाला श्रृंगार, सजी हुई सेज, चारों ओर गुलाब की पंखुड़ियाँ सब एक पल में जैसे किसी ने राख में बदल दिया हो। वो दिन, जो उसकी ज़िंदगी का सबसे हसीन दिन होना चाहिए था, एक पल में उसकी सबसे कड़वी याद बन गया।

    खनक ने कांपते हाथों से अपने दुपट्टे को सीने से लगाया। उसकी आँखों में दर्द, गुस्सा और अपमान का तूफ़ान था। रितिक ने उसकी आत्मा को तोड़ दिया था।


    रितिक के जाने के बाद खनक का गुस्सा और दर्द जैसे एक साथ फट पड़ा। उसने पागलों की तरह सजी हुई सेज पर रखे फूल, हार्ट शेप्ड बलून, मोमबत्तियाँ सब कुछ उठाकर फेंकना शुरू कर दिया।

    गुलाब की पंखुड़ियाँ फर्श पर बिखर गईं, पर खनक का दिल और भी बिखर चुका था। वो अपना दुपट्टा खींचकर ज़मीन पर गिर पड़ी, दोनों हाथों से चेहरा ढक लिया और फूट-फूटकर रोने लगी। उसकी सिसकियों की आवाज़ उस कमरे की चुप्पी में गूंज रही थी, जिस कमरे में खनक मदहोश भरी सिसकियां गूंजनी थी, वहां उसकी खुद से भरी सिसकियां गूंज रही थी |

  • 11. MY innocent brother in law - Chapter 11( <br>सुहागरात को मेहनत बहुत करनी पड़ती है )

    Words: 518

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की धूप समंदर की लहरों पर पड़ रही थी, पर होटल के हनीमून स्वीट के बाहर का माहौल भारी था। सावित्री देवी, रायचंद परिवार की मुखिया, अपनी सख़्त और रॉयल पर्सनैलिटी के लिए जानी जाती थीं। उनके साथ थी बेला, जो घर की नौकरानी कम, दादी की खास ज़्यादा थी शरारती, बोलने में ज़रा भी नहीं झिझकने वाली।

    सावित्री जी ने कमरे के बाहर खड़ी होकर डोरबेल बजाई।"टिंग-टाॅंग… टिंग-टाॅंग…" कमरे के अंदर से कोई हरकत नहीं। बेला ने होंठों पर शरारती मुस्कान लाते हुए कहा,"दादी जी, लगता है साहब और बहू रानी ने कल रात कुछ ज्यादा ही उछल कूद कर ली है कि अब तक उठ ही नहीं पाए।"

    सावित्री जी ने उसे घूरा। "अरे, चुप कर पगली! तू हर बात में मिर्च मसाला क्यों डालती है?" बेला फिर हँस पड़ी,"दादी, मैं तो बस कह रही थी… सुहागरात को मेहनत बहुत करनी पड़ती है… शायद इसलिए दोनों कुछ ज्यादा ही थक गए होंगे…"

    सावित्री जी ने झट से उसके कान खींचे,"बहुत बातें कर रही है न तू… एक थप्पड़ मार दूँगी तो सारी शरारत निकल जाएगी।" बेला मुस्कुराई, पर शर्म से उसके गाल गुलाबी हो गए। दादी ने फिर से घंटी बजाई। "टिंग-टाॅंग… टिंग-टाॅंग…" फिर भी कोई जवाब नहीं।

    सावित्री जी ने गहरी साँस लेकर अपने बाॅडीगार्ड को इशारा किया,"जाओ, रिसेप्शन से मास्टर की लेकर आ। लगता है, हमें खुद ही दरवाज़ा खोलना पड़ेगा।" कुछ देर में मास्टर की आ गया।

    दादी ने चाबी ली और दरवाज़ा खोलते हुए कहा,
    "बेला, तू अंदर जाकर देख।" बेला घबराई,
    "दादी… अगर मैं अंदर गई और वो दोनों… मतलब… वैसी हालत में मिले तो…? जैसे बिना कपड़ों के एक दूसरे की बाहों में, हाय दइया, दादी आप ही जाओ,"

    सावित्री जी ने उसे घूरा,"चुप! मैं उनकी दादी हूँ… मुझे शोभा नहीं देता… पर तू तो उनकी उम्र की है… तू उनको देख भी लेगी तो इतना बड़ा मामला नहीं बनेगा।" बेला ने गहरी साँस ली और धीरे से दरवाज़ा खोला। जैसे ही वो अंदर गई, उसके कदम रुक गए।

    हनीमून स्वीट… जिसकी सजावट पर लाखों रुपए खर्च हुए थे, उसकी हालत देखकर बेला का मुँह खुला का खुला रह गया। गुलाब की पंखुड़ियाँ फर्श पर बिखरी पड़ी थीं। बैलून फटे पड़े थे। कैंडल स्टैंड टूटे पड़े थे। तकिए ज़मीन पर थे। और कमरे के बीचों-बीच…

    खनक फर्श पर बैठी थी। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ा था, आँखें लाल थीं, और वो छत को ऐसे घूर रही थी जैसे उसकी सारे इमोशनल, सारे सपने वहीं कहीं अटक गए हों।

    बेला का दिल धक से रह गया। "दादी!" उसने घबराई आवाज़ में पुकारा। सावित्री जी फटाफट अंदर आईं।
    "अरे… ये क्या हालत बना रखी है कमरे की… और तुम…"
    उन्होंने खनक के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा।
    "बेटा… ये क्या हुआ? रितिक कहाँ है?"

    खनक ने जैसे उन्हें सुना ही नहीं। उसकी आँखों में आँसू थे, पर आवाज़ गले में अटक गई थी। दादी ने दो-तीन बार पूछा,"बोल न बेटा… रितिक कहाँ है?" खनक की आँखों से आखिरकार बाँध टूटा। वो फूट-फूटकर रो पड़ी।
    "दादी… रितिक जी… उन्होंने…" सिसकियों के बीच उसने सारी बातें दादी को बताई कैसे सुहागरात पर रितिक उसको हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया।

  • 12. MY innocent brother in law - Chapter 12 ( <br>फर्स्ट नाइट* की पूरी कहानी )

    Words: 508

    Estimated Reading Time: 4 min

    दादी का चेहरा लाल हो गया। गुस्से से उनकी आँखें चमकने लगीं। उन्होंने तुरंत फोन उठाया और रितिक का नंबर मिलाया।

    पहली बार फोन नहीं उठा। दूसरी बार भी नहीं।
    तीसरी बार… फोन उठा। "हाँ दादी?" रितिक की आवाज़ आई, जिसमें कोई भाव नहीं था।

    "रितिक!" सावित्री जी की आवाज़ में गुस्सा साफ झलक रहा था, "ये क्या बेहूदगी है? सुहागरात पर बीवी को ताने मारकर, उसको अकेला छोड़कर चले गए? तुम्हें शर्म नहीं आई? और ये क्या बकवास हैं, बदला...."

    रितिक का स्वर ठंडा था,"दादी, मैं बिज़ी हूँ। फालतू बातों के लिए टाइम नहीं है मेरे पास।" दादी के गुस्से का पारावार नहीं रहा,"तुम है कहाँ?" रितिक ने बेरुखी से जवाब दिया,"तीन महीने के बिज़नेस ट्रिप पर हूँ। आकर बात करता हूँ।" और फोन काट दिया।

    दादी ने फिर फोन लगाया इस बार फोन स्विचऑफ़ था।
    सावित्री जी ने गहरी सांस ली। उनके चेहरे पर दर्द और गुस्सा दोनों थे। वो खनक के पास आईं, जो अब भी रो रही थी।

    उन्होंने खनक को गले लगाते हुए कहा,"बेटा, तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। रायचंद खानदान की बहू की इज़्ज़त ऐसे मिट्टी में नहीं मिलने दूँगी। रितिक को मैं खुद समझाऊँगी और तुम्हें तुम्हारा हक़ दिलाऊँगी। रितिका कुछ भी कहें, उसने ये शादी बदले के लिए की हैं, पर सच यही हैं, तुम उसकी लीगल वाइफ हो, "

    खनक ने भीगी आँखों से उनकी तरफ देखा। दादी ने उसके चेहरे से आँसू पोंछे,"हमें थोड़ा वक्त दो। हम सब ठीक कर देंगे, पर बेटा, तब तक ये बात तुम अपने मायके वालों को मत बताना।" खनक ने चुपचाप सिर हिला दिया।

    उसके लिए शादी कोई मज़ाक नहीं थी। ये रिश्ता उसकी ज़िंदगी का सपना था। उसने सोचा भी नहीं था कि रितिक सुहागरात को इस तरह रौंद देगा।

    दादी ने खनक का हाथ थामा,"चलो बेटा… यहाँ से चलते हैं।" बेला ने चुपचाप खनक का बैग उठाया। होटल से निकलते समय खनक ने आख़िरी बार उस कमरे को देखा जहाँ उसकी खुशियों का सपना चकनाचूर हो गया था।

    दोपहर की हलचल से पूरा **बंसल हाउस** गुलज़ार हो उठा था। हर कोने में रोशनी की झालरें लटक रही थीं, और फूलों की खुशबू पूरे घर में घुली हुई थी। आज खनक और रितिक के **फेग फेरे** की रस्म थी, और इसी बहाने रायचंद फैमिली भी पूरे शान-ओ-शौकत के साथ बंसल हाउस आने वाली थी।

    उधर खनक की कज़न रिया और कियारा सजावट में हाथ बँटाते हुए धीरे-धीरे बातें कर रही थीं। रिया हंसते हुए कियारा के कान में बोली, “देखना, जैसे ही खनक आएगी, मैं उसकी *फर्स्ट नाइट* की पूरी कहानी पूछूँगी। पता तो चले, हमारी शांत-संकोची बहन की सुहागरात कैसी रही।”

    कियारा ने हँसी रोकते हुए रिया को देखा और बोली,
    “तुम ही पूछना, मुझे तो डांट नहीं खानी। वैसे भी खनक दीदी का गुस्सा तो तूफान से कम नहीं है।” रिया शरारती अंदाज़ में मुस्कुराई,“बस देख लेना, आज कुछ ना कुछ मसाला तो मिलेगा ही।” दोनों हँस पड़ीं, और काम में लग गई | रिया और कियारा, जो पूरे दिन तैयारियों में जुटी रहीं, आखिरकार शाम के वक्त थोड़ी राहत मिलने पर नहाने का सोचती हैं।

  • 13. MY innocent brother in law - Chapter 13( <br>आह्ह्हृ..हर जगह रोमांस ही रोमांस!”)

    Words: 506

    Estimated Reading Time: 4 min

    बंसल हाउस में कुल तीन बाथरूम थे दो घर के अंदर और एक टेरेस पर। घर के अंदर वाले बाथरूम बच्चों के कब्ज़े में थे, जो ठहाके लगाते हुए पानी उछाल-उछालकर नहा रहे थे। मजबूरी में रिया और कियारा टेरेस की तरफ बढ़ती हैं, उम्मीद थी कि वहाँ का बाथरूम खाली मिलेगा।

    जैसे ही दोनों टेरेस पर पहुंचीं, उन्होंने देखा कि दरवाज़ा अंदर से बंद था। हल्की-सी मदहोशी भरी और पानी की आवाज़ें आ रही थीं। दोनों ने चुपके से कान लगाकर सुना और फिर एक-दूसरे को देख कर माथे पर हाथ मारा “ओह नो!”

    अंदर अल्पा थी खनक और कियारा की कज़न, जिसकी अभी एक महीने पहले ही लव मैरिज हुई थी। अल्पा का रोमांस का तो कोई टाइम-टेबल ही नहीं था। मौका मिले ना मिले, वह अपने पति के साथ प्यार जताने का तरीका ढूंढ ही लेती थी।

    आज भी नज़ारा वही था , बाथरूम में शावर के नीचे अल्पा का हसबैंड बिना एक कपड़े के खड़ था, और अल्पा ने लाल कलर की बहुत टाइट ब्रा और पैंटी पहन रखी थी। वह बड़ी मदहोशी से अपने हसबैंड पैरों के बीच में साबुन मल रही थी, और दोनों के बीच मानो दुनिया की कोई चिंता ही नहीं थी।

    अल्पा मदहोश भरी आवाज़ में बोली," जानू इसके बाद तुम मुझे साबुन लगाना," अल्पा का हसबैंड उसको डांटते हुए बोला," बेबी ये हमारा घर नहीं हैं, जो बाथरूम में रोमांस करने बैठ गई, जल्दी से शावर लो , और बाहर चलो, अगर कोई टेरिस पर आ गया, तो क्या होगा, चलो मुझे साबुन दो,"

    बाहर खड़ी रिया और कियारा के चेहरे पर ऐसी एक्सप्रेशन थी जैसे किसी ने उन्हें सरप्राइज़ टेस्ट की खबर दे दी हो। रिया ने फुसफुसाते हुए कहा,
    “ये अल्पा दीदी भी ना… शादी को महीना हुआ है और देखो! हर जगह रोमांस ही रोमांस!”

    कियारा हँसी दबाते हुए बोली,“अब हमें ही इंतज़ार करना पड़ेगा… वरना नीचे बच्चे बाथरूम से निकलते नहीं और ऊपर ये लोग निकलने का नाम नहीं लेंगे।” दोनों ने एक-दूसरे को देखा और एक साथ माथे पर हाथ मारा।

    उधर अल्पा को बाहर खड़ी अपनी कज़न्स की कोई परवाह नहीं थी। वो हँसते-हँसते अपने हसबैंड पर पानी डाल रही थी, जैसे ये उनका *प्राइवेट हनीमून* चल रहा हो। उसका हसबैंड भी अपने माथे पर हाथ रखकर बोला, " मेरी बीवी अनोखी हैं,"

    रिया और कियारा मजबूरी में टेरेस की रेलिंग पर बैठ गईं, और बोलीं,“चलो, जब तक ये दोनों नहा रहे हैं, हम यहीं बैठकर गॉसिप करते हैं।”

    रायचंद विला में खनक को नई नवेली दुल्हन की तरह तैयार करने के लिए ब्यूटिशन का पूरा स्टाफ हाज़िर था।
    खनक के सामने ड्रेसिंग टेबल पर बड़े-बड़े शीशे लगे थे। उसकी आँखों में एक अजीब-सी उदासी थी, पर चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कान सजाए, वो ब्यूटिशन के हर स्टेप को चुपचाप झेल रही थी।

    ब्यूटिशन उसकी भौहें ठीक कर रही थी, गालों पर हल्का-सा ब्लश, होठों पर लाल लिपस्टिक, माथे पर बड़ी-सी लाल बिंदी, और फिर लाल और सुनहरे रंग की बनारसी साड़ी उसके तन पर लिपटी, जिस पर सुनहरी ज़री की कढ़ाई सूरज की किरणों की तरह चमक रही थी।

  • 14. MY innocent brother in law - Chapter14 (रितिक की ज़हरीली बातें, )

    Words: 567

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    जब खनक ने साड़ी पहन ली, तो गहनों की बारी आई—मांगटीका, नथ, लंबा हार, कंगन, कमरबंद, बाजूबंद और पैरों में बिछी पायलें। उसके बालों में गजरे की महक से मानो पूरा कमरा महक उठा। खनक को शीशे में देख कर कोई भी कह सकता था कि आज वो सचमुच रायचंद खानदान की बहू कम, एक रानी ज़्यादा लग रही थी।

    सज-धजकर जब खनक बाहर आई, तो दादी सावित्री जी और बाकी रिश्तेदारों ने उसकी नज़र उतारी और बोले,“बिल्कुल हमारी रानी बहू लग रही है।”

    फिर सब लोग बंसल हाउस के लिए निकलने लगे। दादी की कार में कुछ रिश्तेदार बैठे, और दूसरी में खनक थी।
    रास्ते में रिश्तेदारों की फुसफुसाहट शुरू हो गई। किसी ने दादी से पूछा,“रितिक कहाँ है? दूल्हा तो दिखाई नहीं दे रहा!”

    दादी ने बिना पलक झपकाए झूठ बोला,“उसे एक ज़रूरी बिज़नेस का काम आ गया था, बेटा। सुबह ही जाना पड़ा, आउट ऑफ इंडिया गया है। जल्द ही लौट आएगा।” क्योंकि रितिक बिज़नेस मैन था, तो सबने बात मान ली और किसी ने ज़्यादा सवाल नहीं पूछे।

    दूसरी कार में बैठी खनक खिड़की से बाहर देख रही थी। उसकी आँखों में नमी थी, पर उसने पल्लू से चुपचाप उसे पोंछ लिया। शादी की वो रात उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना चकनाचूर कर गई थी। आज जब सब उसे नई नवेली बहू कह रहे थे, अंदर से वो खुद को टूटा हुआ महसूस कर रही थी।

    आखिरकार रायचंद फैमिली की कारों का काफिला **बंसल हाउस** पहुँचा। वहाँ खनक के मम्मी-पापा और पूरे परिवार ने रायचंद फैमिली का बड़े धूमधाम से स्वागत किया। ढोल-नगाड़ों की आवाज़ गूंज रही थी, और रिश्तेदारों के चेहरों पर खुशी साफ झलक रही थी।

    पर जैसे ही सबकी नज़र रितिक की गैर-मौजूदगी पर गई, सवाल फिर से शुरू हो गए।“रितिक नहीं आया?”
    “दामाद जी को तो साथ आना चाहिए था!”

    दादी ने वही पुराना झूठ दोहराया,“ज़रूरी काम आ गया था, बेटा। सुबह ही जल्दबाजी में जाना पड़ा, वरना भला वो अपनी दुल्हन को ऐसे अकेला छोड़ता!” बंसल फैमिली थोड़ी उदास हुई, पर उन्होंने सोचा रितिक बिज़नेस मैन है, काम की मज़बूरी होगी।

    लेकिन जब उन्होंने खनक को देखा लाल-सुनहरी साड़ी में, सिर से पाँव तक गहनों से सजी, बालों में गजरा, चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी, सबको लगा, रितिक की गैरमौजूदगी के कारण खनक दुखी हैं|

    “देखो हमारी बेटी कितनी रानी लग रही है,” खनक की माँ ने आँखों में आँसू भरकर कहा। पिता ने भी गले से लगाते हुए कहा,“हमारी लाडली सच में बहुत अच्छे घर में गई है।”

    उसके बाद खाना-पीना, हँसी-मज़ाक और गपशप का सिलसिला शुरू हो गया। पर इस पूरे वक्त खनक चुपचाप बैठी रही। किसी ने उसकी आँखों में छुपी बेचैनी नहीं देखी।

    सबने सोचा, शायद शादी की थकान और रितिक का अचानक बिजनेस के लिए जाने के कारण खनक उदास होगी। असलियत सिर्फ खनक जानती थी उसकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत सपना उसी के दूल्हे ने चकनाचूर कर दिया था।

    खनक की कजन उसे कमरे में ले गईं। हँसते हुए सबने कहा,“चल बता, फास्ट नाइट पर क्या-क्या हुआ?”
    खनक ने उनकी ओर देखा, पर चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी।

    उसकी आँखों में कल रात की कड़वी यादें तैरने लगीं रितिक की ज़हरीली बातें, उसका गुस्सा, और बीच रात में उसे अकेला छोड़कर चला जाना।

    खनक की आँखें भर आईं। वो उन सबको उदास नज़रों से देखती रही और फिर अचानक फूट-फूटकर रो पड़ी। उसकी कजन चौंक गईं,“अरे खनक, रो क्यों रही हैं?”
    कमरे का माहौल एक पल में बदल गया।