Novel Cover Image

द ग्रेट लॉर्ड!

User Avatar

Talha

Comments

0

Views

27

Ratings

0

Read Now

Description

ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी गहरी, बेहोश नींद में था, जब तक कि एक तेज़ रोशनी ने मुझे झकझोर कर जगा नहीं दिया। आख़िरी बात जो मुझे याद थी, वो ये थी कि मैं अपनी गेमिंग चेयर पर बैठा गॉड ऑफ़ वॉर खेल रहा था। लेकिन जब तक किसी ने मेरी आँखों में तेज़ रौशनी नहीं च...

Total Chapters (12)

Page 1 of 1

  • 1. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 1

    Words: 1222

    Estimated Reading Time: 8 min

    ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी गहरी, बेहोश नींद में था, जब तक कि एक तेज़ रोशनी ने मुझे झकझोर कर जगा नहीं दिया।

    आख़िरी बात जो मुझे याद थी, वो ये थी कि मैं अपनी गेमिंग चेयर पर बैठा गॉड ऑफ़ वॉर खेल रहा था। लेकिन जब तक किसी ने मेरी आँखों में तेज़ रौशनी नहीं चमकाई मुझे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।

    मैं ने अपनी धुंधली आँखों को मसलने की कोशिश की, लेकिन कुछ अजीब था। पहले तो मुझे लगा शायद ये स्लीप पैरालिसिस है और मैं हिल नहीं पा रहा। लेकिन फिर एहसास हुआ कि… मेरे पास हाथ ही नहीं हैं।

    ये तो और भी ज़्यादा डरावना था।

    मेरे चेहरे पर पड़ रही चकाचौंध रोशनी भी हटने का नाम नहीं ले रही थी और दिमाग एकदम धुंधला था।

    “क्या बकवास है ये?” मैं ने बड़बड़ाते हुए कहा।

    और तभी मुझे एक जवाब सुनाई दिया — जब कि मुझे पूरा यक़ीन था कि मैं घर पर अकेला हूँ।

    “मुझे लगा मैं ने कुछ सुना!” एक लड़की की हैरान आवाज़ आई।

    “ओह, देवताओं की कृपा!” दूसरी आवाज़ गूंजी– “हमारा भगवान आखिरकार आ गया!”

    ये अब तक के सब से अजीब सपनों में से एक था।

    धीरे-धीरे मेरी आँखें रोशनी की आदत डालने लगीं। मैं ने इधर-उधर देखा, लेकिन मेरी कंप्यूटर स्क्रीन गायब थी। और उस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि मैं एक बेहद ख़ूबसूरत लड़की को घूर रहा था — जिस के लंबे, सुनहरे, चमकदार बाल कमर तक लहरा रहे थे।

    लेकिन… उस की स्किन बैंगनी थी।

    हाँ, बैंगनी।

    वो शायद अब तक की सब से हसीन लड़की थी जिसे मैं ने कभी देखा था, लेकिन उस का रंग एकदम अलग था और उस की ड्रेसिंग भी… काफ़ी क्रेज़ी थी।

    उस का “टॉप” बस कुछ सफ़ेद पट्टियों और गहरे पीले फूलों वाले डेकोरेटिव ऐक्सेंट्स से बना था, जो मुश्किल से उस के गोल, उभार को ढक रहे थे। और नीचे की तरफ़ तो बस हल्के, पारदर्शी कपड़े की कुछ पट्टियाँ थीं।

    सीधी बात, उस के कपड़ों ने इमैजिनेशन के लिए ज़्यादा स्पेस नहीं छोड़ा था।

    वो बैंगनी लड़की चमकती हरी घास में घुटनों के बल बैठी थी और उस के हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। उस की आँखें आसमान की तरफ़ थीं और पुतलियाँ भी बिल्कुल उस की स्किन की तरह बैंगनी थीं।

    उस के सामने लकड़ी की एक बड़ी, चौकोर-सी वस्तु थी, जिस पर पुरानी, रहस्यमयी नक्काशी बनी थी। मैं ने नज़रें मोड़ कर आस-पास देखने की कोशिश की, लेकिन पता चला… मेरी आँखों पर मेरा कोई कंट्रोल ही नहीं है।

    पक्का ये सपना है, लेकिन अब तक का सब से अजीब वाला।

    “अरे, हेलो? कोई बता सकता है क्या चल रहा है?” मैं ने सोचा, लेकिन आवाज़ ऐसे गूंज रही थी जैसे दिमाग़ के अंदर ही हो।

    “वीर, आप आखिरकार आ गए!” बैंगनी लड़की ने हैरानी से कहा और फिर उस के चेहरे पर चमकती हुई, राहत भरी मुस्कान फैल गई, “मुझे पता था आप आएँगे!”

    ओके, कम से कम उसे मेरा नाम मालूम था। 

    तभी मेरी नज़र बगल की तरफ़ घूमी और मैं ने एक और लड़की को देखा। वो इंसानों जैसी ही दिख रही थी और वो भी घास पर घुटनों के बल बैठी थी, लेकिन उस के चेहरे के हावभाव में शक साफ़ झलक रहा था।

    उस ने भी वही पट्टियों वाली लगभग-कुछ-भी-न-ढकने वाली ड्रेस पहन रखी थी, जैसी पहली लड़की ने पहनी थी। लेकिन उस के बाल गहरे भूरे थे और चेहरा… एकदम सुपरमॉडल जैसा। पीली त्वचा, नक्काशीदार नक्श और बड़ी-बड़ी, लगभग ऐनिमे-स्टाइल की काली आँखें।

    मैं उस की साइड से उस के सीने तक नज़र दौड़ा रहा था और सच्ची कहूँ तो उस के सीने का हर हिस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। मेरी नज़रें उस के फ्लैट, तने हुए, हल्के पीले रंग के पेट तक नीचे खिसक गईं।

    जो भी ये सपना था… इस से जागने का तो मेरा कोई इरादा नहीं था।

    “मुझे भी सुनाई दे रहा है,” भूरे बालों वाली ने अपनी बैंगनी साथी की तरफ़ मुड़ते हुए कहा– “मानना पड़ेगा, धृति, मैं ने तो सोचा था कुछ नहीं होने वाला… लेकिन हाँ, मुझे भी कुछ सुनाई दे रहा है।”

    “मुझे यक़ीन नहीं हो रहा कि वो सच में आ गए…” धृति ने हल्की, भावुक साँस के साथ कहा। लेकिन इस बार, उस की मुलायम सी आवाज़ मेरे दिमाग़ के अंदर गूँज रही थी। “मैं ने इस के सच होने की प्रार्थना की थी… और अब ये सच हो रहा है! वीर आ चुके हैं!”

    “धृति?” मैं ने पूछने की कोशिश की… लेकिन फिर कन्फर्म हो गया कि मेरे मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही। असल में, मुझे ये भी पक्का नहीं था कि मेरा मुँह है भी या नहीं। मैं ने अपने शरीर को छूने की कोशिश की, लेकिन मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ। ये बहुत अजीब अहसास था, वैसा ही जैसा उस वक़्त हुआ था जब मैं ने अपने दोस्त की शादी में ओवरड्रिंक कर ली थी और फिर डांस फ्लोर के पास बैठ कर घंटों म्यूज़िक सुनता रह गया था।

    “उस ने मेरा नाम लिया!” बैंगनी-त्वचा वाली हसीना खुशी से चहकी– “ओह्ह! ये तो सच में वरदान है!”

    “धृति, तुम कौन हो?” मैं ने दिमाग़ में सोचा।

    “मैं आप की समर्पित सेविका हूँ, मेरे स्वामी,” उस ने तुरंत जवाब दिया– “कृपया बताएँ, आप को मुझ से क्या चाहिए? मैं आप की हर आज्ञा मानने को तैयार हूँ। हमारी प्रार्थना का जवाब देने के लिए आप का जितना धन्यवाद करूँ, कम है… मेरे दिव्य स्वामी।”

    अब मामला हर मिनट और इंट्रेस्टिंग होता जा रहा था।

    “उह्ह, पहले ये तो बताओ कि तुम हो कौन, थोड़ा डिटेल में,” मैं ने जवाब दिया। मैं ने ल्यूसिड ड्रीम्स के बारे में सुना था, जहाँ इंसान सपने के अंदर अपने ऐक्शन्स कंट्रोल कर सकता है। शायद यही हो रहा था मेरे साथ।

    “क्या आप को नहीं पता, मेरे स्वामी?” उस ने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाते हुए कहा– “हम आप की अनुयायी हैं। हम आप की पुजारिन हैं और हम ने यहाँ तक ये तीर्थयात्रा इसलिए की है ताकि आप हम पर कृपा करें। हम ने आप के चमत्कारों के बारे में सुना है और आप की महिमा के आगे नतमस्तक हैं।”

    एक बेहद ख़ूबसूरत (भले ही बैंगनी) लड़की से खुद को भगवान कहलवाना मुझे अच्छा लग रहा था… लेकिन अजीब ये था कि मेरा शरीर साथ नहीं दे रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं अधूरा हूँ। मेरी नज़रें उसी जगह पर अटकी हुई थीं जहाँ वो मुझे घूरने दे रही थीं और मुझे किसी भी तरह का फिज़िकल बॉडी फील नहीं हो रहा था।

    मैं ने पलकें झपकाने की कोशिश की, ये चेक करने के लिए कि मेरी आँखें हैं भी या नहीं… और तभी, अचानक मेरी नज़रें दूसरी तरफ़ शिफ़्ट हो गईं।

    अब भी मैं भूरे बालों वाली को देख पा रहा था, लेकिन इस बार मेरी नज़रें एक और लड़की पर जा टिकीं। वो एक बेहद ख़ूबसूरत गुलाबी बालों वाली लड़की थी, जो बाकी दोनों के सामने, एक पत्थर जैसी वेदी के आगे घुटनों के बल बैठी थी। वो बाकी दोनों से थोड़ी छोटी थी, लेकिन उस की समुंदर-सी हरी आँखें ऊपर की ओर टिकी थीं। उस ने भी वही सेक्सी ड्रेस पहनी हुई थी और मेरी नज़रें उस के शरीर पर फिसल गईं।

    उस की दूधिया, मुलायम त्वचा साफ़ दिखाई दे रही थी…

    लेकिन उस के बारे में सब से अद्भुत बात ये नहीं थी।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 2. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 2

    Words: 1257

    Estimated Reading Time: 8 min

    गुलाबी बालों वाली के पास इंद्रधनुषी पंख थे, जो दोपहर की धूप में हल्के-हल्के चमक रहे थे। उन पंखों पर लैवेंडर की मद्धिम आभा झिलमिला रही थी और वो हवा में बहुत धीरे-धीरे फड़फड़ा रहे थे। उसे देख कर साफ़ लग रहा था कि वो किसी तरह की दिव्य कन्या है। उस के कान छोटे और नुकीले थे और यही बात उसे और भी एक्ज़ॉटिक बना रही थी।


    मानना पड़ेगा, मुझे हमेशा से ही नॉन-ह्यूमन हसीनाओं के लिए थोड़ा सा आकर्षण रहा है। शायद ये आदत उन तमाम वीडियो गेम्स और ऐनिमे की वजह से है जो मैं ने खेले और देखे थे। फाइनल फ़ैंटेसी से ले कर मॉर्टल कॉम्बैट तक, हर जगह हॉट मॉन्स्टर बेब्स भरी पड़ी हैं। 


    शायद मेरा दिमाग आज कुछ ज़्यादा ही क्रिएटिव मोड में चला गया था… लेकिन मैं ने सोचा, चलो, जो हो रहा है, उसे इंजॉय करते हैं।


    पता नहीं कल रात मैं ने कितना पिया था…


    “उम्म्म, हाँ, मैं ही तुम्हारा स्वामी, वीर हूँ,” मैं ने जवाब दिया और तभी मुझे ताली बजने की आवाज़ सुनाई दी। मैं ने धृति को ढूँढने की कोशिश की, लेकिन अजीब बात ये थी कि वो अब नज़र नहीं आ रही थी। ताली की आवाज़ पास से आ रही थी… ऐसा लग रहा था जैसे वो मैं ही बजा रहा हूँ।


    “मैं यहाँ आया हूँ… तुम सब को आशीर्वाद देने।”


    अचानक एक हल्की-सी चीख सुनाई दी, मतलब मैं ने सही बात कह दी थी। लेकिन ना तो भूरे बालों वाली ने और ना ही दिव्य कन्या ने वो आवाज़ निकाली थी। ये भी हो सकता है… कि मैं धृति की आँखों से देख रहा था।


    अब मेरी नज़र के सामने बस दो हसीनाएँ थीं — वो हसीन दिव्य कन्या और वो डार्क-ब्राउन बालों वाली। मेरी कन्फ्यूज़न हर सेकंड बढ़ रही थी।


    “धृति, शायद तुम सही थीं,” गुलाबी बालों वाली ने नपे-तुले स्वर में कहा– “अगर वीर सच में यहाँ है, तो मुझे खुशी है कि मैं ने तुम्हारे साथ ये सफ़र तय किया। मैं तैयार हूँ, मेरे स्वामी, जब भी आप मुझे आशीर्वाद देना चाहें।”


    “मुझे भी लगता है… मैं तैयार हूँ,” डार्क-ब्राउन बालों वाली हसीना ने धीमे स्वर में कहा– “सेरेना, मैं तुम्हारे फ़ैसले पर भरोसा करती हूँ। अगर तुम्हें यक़ीन है कि ये सच में भगवान वीर हैं, तो मैं भी मान लेती हूँ।”


    “क्या, तुम मुझ पर भरोसा नहीं करती?” वो जानी-पहचानी आवाज़ आई — धृति की आवाज़। उस ने हल्की-सी नाराज़गी से कहा, “अभया, हम इतना लंबा सफ़र साथ चले और मुझे पता है कि तुम्हें शक था, लेकिन अब साफ़ दिख रहा है… वीर आखिरकार हमें बचाने के लिए यहाँ आ गए हैं।”


    “शायद…” अभया ने बुदबुदाई– “धृति, बस… तुम कई बार बहुत एक्साइटेड हो जाती हो। मेरे लिए उन चीज़ों पर यक़ीन करना मुश्किल है जो मेरी आँखों के सामने नहीं हैं। लेकिन… मैं भी ये आवाज़ अपने दिमाग़ के अंदर सुन रही हूँ, कोई तो है जो हम से बात कर रहा है। इसलिए… कम से कम अभी के लिए, मैं यक़ीन कर लूँगी।”


    “तो… मैं हूँ कहाँ, वैसे?” मैं ने फिर से आभासी पलकें झपकीं और इस दफा मेरी नज़रें फिर बदल गईं। अब मैं धृति को देख पा रहा था, साथ में अभया को भी।


    क्या अब मैं दिव्य कन्या की आँखों से देख रहा था?


    “आप को नहीं पता, वीर?” धृति ने हैरानी से भौंहें चढ़ाईं– “मुझे एक सपना आया था… कि हमें यहाँ आना चाहिए। ये आप के भुला दिए गए प्राचीन मंदिर के खंडहर हैं। मैं ने सपना देखा था कि हम यहाँ प्रार्थना करेंगे… और आप हमारे सामने प्रकट हो जाएँगे। हम इस पूजा स्थल के सामने एक दिन और एक रात से प्रार्थना कर रहे हैं… और अब आप हमें अपनी दिव्य कृपा देने आए हैं। ये कितना अद्भुत है ना?”


    “ओकेईईई…” मैं ने गहरी साँस लेते हुए कहा, कोशिश करते हुए कि सही शब्द चुनूँ– “खैर… अब जब मैं यहाँ हूँ… मुझे बताओ, तुम्हें मुझसे क्या चाहिए।”


    ये जो भी सपना था, अब काफ़ी लंबा खिंचने लगा था। आस-पास खड़ी इन अविश्वसनीय हसीनाओं के बीच, मुझे खुद को चुटकी काट कर जगाने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था — भले ही मेरे नामौजूद हाथों से ये मुमकिन भी नहीं था। फिर भी, पूरा माहौल बेहद अजीब लग रहा था।


    मैं ने फिर से दो बार पलक झपकीं… और अचानक मेरी दृष्टि एकदम फ़ैल गई। अब मैं सही से चारों ओर देख पा रहा था।


    मेरी नज़र में अब तीनों हसीनाएँ थीं। वे अभी भी घुटनों पर बैठी थीं, लेकिन दिव्य कन्या और भूरे बालों वाली इंसानी हसीना — अभया — थोड़ी आरामदेह मुद्रा में पीछे की ओर टिक गई थीं।


    सिर्फ़ बैंगनी त्वचा वाली धृति ही घास पर सीधी घुटनों के बल बैठी थी, उस के हाथ सीने पर जुड़े हुए थे और उस की बैंगनी आँखें आसमान की ओर टिकी थीं। उस के चेहरे पर भक्ति और श्रद्धा की चमक साफ़ दिख रही थी।


    तभी मैं ने पहली बार लोकेशन पर ध्यान दिया।


    हम किसी प्राचीन बग़ीचे में थे, जो लगभग बीस बाई बीस का था। चारों ओर टूटी-फूटी सफ़ेद पत्थर की दीवारें थीं, जिन्हें मोटी, हरी बेलों ने पूरी तरह ढक लिया था। कोने में एक पुराना, टेढ़ा-मेढ़ा पेड़ उग रहा था और थोड़ा हट कर मिट्टी के टूटे हुए प्लांटर से स्ट्रॉबेरी की बेलें झाँक रही थीं।


    ऊपर देखा तो एकदम साफ़, बादल रहित नीला आसमान दिखा और नीचे देखने पर मैं ने महसूस किया कि मेरी नज़रें लगभग लड़कियों के चेहरे की ऊँचाई पर थीं।


    अजीब। बहुत अजीब।


    “हमें कुछ नहीं चाहिए, बस हमारी भक्ति स्वीकार हो जाए,” धृति बोली और उस के भरे, गहरे लाल होंठों पर एक स्वर्गीय मुस्कान खेल गई।


    “और हाँ… थोड़ा कुछ खाने को भी मिल जाए…” अभया ने हल्की खीझ के साथ अपनी आँखें घुमाते हुए कहा– “भगवान हो कर भी अगर अपने भक्तों को खाना नहीं दे सकते तो क्या फ़ायदा?”


    “अभया!” बैंगनी त्वचा वाली धृति ने हाँफते हुए कहा– “वीर के बारे में ऐसे नहीं बोल सकते! मैं उन के क्रोध को आमंत्रित नहीं करना चाहती… भले ही मुझे पूरा यक़ीन है कि वे दयालु और कृपालु हैं।”


    “अरे, ठीक है, धृति, टेंशन मत लो,” मैं ने उसे भरोसा दिलाया– “मैं इतना गिरा हुआ नहीं हूँ।”


    मेरे ये शब्द सुन कर तीनों हसीनाएँ एक-दूसरे को देखने लगीं, उन की भौंहें उलझन में सिकुड़ गईं।


    “गिरा … हुआ?” दिव्य कन्या — जिस के पंख हल्के-हल्के फड़फड़ा रहे थे — ने मासूमियत से पूछा– “लेकिन… मैं आप को कहीं गिरा हुआ नहीं देख रही, तो समझ नहीं पा रही कि आप कहना क्या चाह रहे हैं। आप की आवाज़ हमारे दिमाग़ में गूंज रही है… लेकिन आप का शरीर यहाँ मौजूद नहीं है।”


    “छोड़ो… कोई बात नहीं,” मैं ने जवाब दिया– “तुम लोग मुझे अपने बारे में थोड़ा और बता सकती हो?”


    “बिल्कुल, मेरे स्वामी,” धृति ने कहा और अपने सीने पर एक हाथ रखते हुए हल्का झुक कर बोली– “मैं धृति हूँ और मैं एक जलजा हूँ। मैं ने ही इस तीर्थयात्रा का नेतृत्व किया है और मैं आप की महिमा में अटूट आस्था रखती हूँ। आप जो भी आदेश देंगे, मैं उसे पूरा करने के लिए तैयार हूँ।”


    “जलजा?” मैं ने सोचा। “तो… तुम्हारा पानी से कोई संबंध है?”


    “बिल्कुल सही, वीर,” धृति ने संतोष से मुस्कुराते हुए जवाब दिया – “हम वो प्राणी हैं जो झरनों, नदियों, झीलों और हर तरह के स्वच्छ जल पर शासन करते हैं। मैं आशा करती हूँ… कि मैं आप को प्रसन्न कर पा रही हूँ।”


    “ओह, तुम ने सही सोचा,” मैं ने हँसते हुए जवाब दिया– “तुम… वाकई अविश्वसनीय रूप से ख़ूबसूरत हो। और हाँ, तुम से मिल कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।”



    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 3. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 3

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    “अरे, ये कहने की ज़रूरत नहीं थी,” धृति हल्का-सा हँसते हुए बोली और उस की बैंगनी गालों पर हल्की-सी लाली फैल गई। “लेकिन मुझे अच्छा लगा कि आप हमारी प्रशंसा करते हैं। और ये अभया हैं। सेरेना एक दिव्य कन्या है, ये भी आप की पूजा करने आई है। शायद ये दो उतनी भक्त नहीं हैं जितनी मैं हूँ, लेकिन मुझे यक़ीन है कि आप अपनी दया से इन्हें भी बना लेंगे।”

    “मैं… मैं कोशिश करूँगा?” मुझे सच में नहीं पता था क्या कहना चाहिए, क्योंकि मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई मुझे इस तरह पूजेगा। “मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा कि तुम सब की मदद कर सकूँ। सेरेना, अभया, तुम से मिल कर अच्छा लगा।”

    “ध… धन्यवाद,” दिव्य कन्या ने बहुत धीमी और शर्मीली आवाज़ में कहा– “आप से मिल कर मुझे भी अच्छा लगा।”

    “हाँ, खैर… मुझे भी अच्छा लग रहा है कि आप हम से मिलने आए,” अभया ने सिर हिलाते हुए कहा और अपने लंबे बाल कंधे से पीछे फेंक दिए– “मैं आप की पूजा तो करूँगी, लेकिन मुझे सबूत चाहिए कि आप वही देवता हैं, जिस का दावा करते हैं।”

    “मैं… मुझे नहीं पता ये कैसे साबित करूँ, लेकिन शायद… तुम को यक़ीन दिलाने की कोशिश करूँगा?” मुझे समझ नहीं आ रहा था देवता लोग असल में कैसे बात करते हैं।

    क्या ये मेरी ज़िम्मेदारी थी कि मैं उन्हें मनाऊँ, या फिर ये, जो मुझे मानती हैं, बस मेरी पूजा करें और मेरे चमत्कार पर भरोसा करें?

    मैं ने अपना नामौजूद सिर झटका। ये मैं क्या सोच रहा हूँ? मुझे तो ये भी समझ नहीं आ रहा कि इन महिलाओं के मेरे अनुयायी होने का मतलब आख़िर है क्या।

    ये सपना बहुत ही रियल लग रहा है।

    “नहीं, स्वामी, आप को हमें मनाने की ज़रूरत नहीं,” धृति ने धीरे से कहा और सिर झुका लिया– “ये हमारा काम है, आप की पुजारिनों के तौर पर। हम आप को प्रसन्न करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देंगे। कम से कम… मैं तो लगाऊँगी।”

    जलजा ने एक नुकीली नज़र अभया की तरफ़ डाली, जिस पर अभया ने अपनी बड़ी, मृगनयनी आँखें घुमाईं।

    उस ने जवाब दिया– “मुझे माफ़ करना, लेकिन मैं किसी ऐसे देवता पर यक़ीन नहीं कर सकती जिसे देख भी नहीं सकती।”

    “लेकिन तुम उन्हें सुन तो सकती हो, है ना?” धृति ने ज़िद की– “तुम ने भी मेरे साथ प्रार्थना की थी, इस का मतलब तुम ने कहीं न कहीं विश्वास किया था। बस उन की कोमल आवाज़ सुनो … तुम्हें उन के हृदय की करुणा और अपनी आत्मा की गहराइयों में उन का आशीर्वाद महसूस होगा।”

    धृति को लगता था कि मैं सच में कोमल और दयालु हूँ। मैं हल्का-सा हँसा, क्योंकि भले ही मैं खुद को बुरा इंसान नहीं कहूँ, लेकिन मैं परफेक्ट भी नहीं था।

    देवता तो कतई नहीं था और हक़ीक़त में कभी भी किसी महिला ने मुझे इस तरह नहीं पूजा था।

    सच तो ये था कि मैं ये सपना इसलिए जारी रखे हुए था क्योंकि धृति का भक्ति में डूबा दिल मुझे अजीब-सा सुख दे रहा था… और हाँ, उन तीनों के ख़ूबसूरत चेहरे, निखरी काया और लंबे बाल, जो हवा में लहराते हुए उन के चेहरों को छू रहे थे, वो भी कम असरदार नहीं थे।

    मैं ने याद करने की कोशिश की कि इस सपने से पहले मैं क्या कर रहा था। मुझे लगा शायद ये सब उन गेम्स से जुड़ा है जो मैं खेलता था। उन में भी ऐसी कन्याएँ होती हैं।

    लेकिन सच कहूँ तो, सेरेना जैसी सुंदर दिव्य कन्या की कल्पना गेम में भी मुश्किल थी।

    मैं ने एक बार फिर उन तीनों की ओर देखा — उन के हल्के, लगभग न के बराबर कपड़े, उन की चमकती आँखें और वह रहस्यमय माहौल… ये सब मुझे किसी भी गेम की याद नहीं दिला रहे थे।

    क्योंकि मैं अब तक तीनों हसीनाओं की आँखों से देख पा रहा था, इसलिए मैं ने अंदाज़े से दो बार और पलकें झपकाईं, ताकि पता चल सके कि क्या कोई और नया विज़न पॉइंट भी उपलब्ध है।

    “ओह्ह्ह…” मेरी साँसों में हल्की हैरानी घुल गई, जब मुझे एहसास हुआ कि अब मैं पूरे बग़ीचे को ऊपर से देख सकता हूँ — जैसे किसी बर्ड्स-आई व्यू कैमरा से।

    हालाँकि, ये नज़ारा पूरी तरह साफ़ नहीं था। सामने तीनों हसीनाओं की आँखों से निकलती रोशनी की धाराएँ-सी बन रही थीं। जहाँ-जहाँ उन की निगाहें जातीं, वहीं-वहीं का इलाका विज़िबल हो जाता। बाक़ी के हिस्से धुंधले थे, जैसे किसी गेमिंग डंज़न मैप में वो ज़ोन जो अभी तक एक्सप्लोर नहीं हुए।

    मेरी नज़र फिर धृति की आँखों से निकली रोशनी के रास्ते आगे बढ़ी। वो सीधे एक पूजा स्थल की तरफ़ देख रही थी। जैसे ही उस ने अपना सिर मोड़ा, वहाँ फिर से धुंध छा गई।

    फिर मैं ने सेरेना और अभया की नज़रों के झाँका। दोनों एक-दूसरे को देख रही थीं। उन की आँखों से निकलती लाइट बीम्स से साफ़ पता चल रहा था कि वे मन ही मन एक-दूसरे से कुछ बात कर रही हैं।

    जब अभया ने हल्का सा सिर मोड़ कर आम के पेड़ की तरफ़ देखा, तो मैं उस की टेढ़ी-मेढ़ी डालियों और पीछे की सफ़ेद पत्थर की दीवार को देख पाया। लेकिन उसी पल सेरेना का चेहरा मेरी विज़न से ओझल हो गया।

    धीरे-धीरे मुझे समझ में आने लगा…
    मैं जो देख रहा हूँ, वो इन हसीनाओं की निगाहों के साथ लिंक्ड है।

    ये जहाँ देखेंगी, मैं वही देख पाऊँगा।

    एक और दिलचस्प बात…

    ऐसा लग रहा था कि शुरू में मैं सीधा पूजा स्थल की आँखों से देख रहा था। शायद मेरी पहली विज़न पॉइंट वहीं से जुड़ी थी, क्योंकि वह इस बग़ीचे के बिलकुल सेंटर में था।

    मैं ने अपना फोकस फिर से वापस पूजा स्थल के व्यू पॉइंट पर शिफ़्ट किया और तीनों हसीनाओं की तरफ़ बारी-बारी से देखा।

    भले ही तीनों एक-दूसरे से बिलकुल अलग थीं — धृति अपनी रहस्यमयी बैंगनी त्वचा के साथ, दिव्य कन्या अपने चमकते पंखोन के साथ और अभया अपनी तीखी, विद्रोही आँखों के साथ — लेकिन एक बात कॉमन थी।

    वे सब अविश्वसनीय रूप से ख़ूबसूरत थीं।

    मैं ने तो अब तक वीडियो गेम्स, ऐनिमी और फैंटेसी पेंटिंग्स में ही ऐसी हसीनाओं और दिव्य प्राणियों की झलक देखी थी…

    लेकिन अब… वे सब मेरे सामने थीं।

    इतनी वास्तविक। इतनी ज़िंदा। बुरी तरह सांसें रोक देने वालीं।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

    l

  • 4. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 4

    Words: 1092

    Estimated Reading Time: 7 min

    कल रात सोने से पहले मैं ने क्या खाया था? छोला भटूरा? मैगी? या फिर कुछ और?

    कसम से, अगर मुझे पता चल जाए, तो मैं वही खाऊँगा, ताकि ये सपना दोबारा आए।
    ये… कमाल का है।

    “ठीक है, मुझे कुछ खाने की ज़रूरत है।” अभया ने आखिरकार घुटनों से उठते हुए कहा।

    और तभी पहली बार मैं ने उसका पूरा बदन साफ़-साफ़ देखा।

    उस का पहनावा… बस नाम का था।
    पतली सफ़ेद कपड़े की पट्टियाँ जो मुश्किल से ढक पा रहे थे। नीचे लहराते कपड़े की पतली स्ट्रिप्स उस की नाज़ुक, लंबी टाँगों पर फिसलती हुई गिरीं थीं।

    स्पष्ट था… उस पारदर्शी कपड़े के नीचे उस ने कुछ भी नहीं पहना था।

    अभया की सोने-सी दमकती टाँगें इतनी परफ़ेक्ट और लंबी थीं कि लगता था जैसे अनंत तक फैली हों।

    वो धीरे-धीरे बग़ीचे के कोने में खड़े पेड़ तक गई, एक पका हुआ सुनहरा आम तोड़ा और उस पर हल्की-सी काट लगाई।

    उस ने एक छोटा कौर लिया, फिर अपनी दो साथियों की तरफ़ देखते हुए बोली — “तुम दोनों कब तक ऐसे घुटनों के बल बैठी रहोगी, बहनों? इतने लंबे सफ़र के बाद भूख तो तुम्हें भी लगी होगी।”

    “मेरे प्रभु… क्या मैं आप के सामने कुछ खा सकती हूँ?”

    धृति की मुलायम आवाज़ मेरे कानों में गूँजी।

    पहले तो मैं ने सिर हिलाने की कोशिश की, फिर याद आया…मेरा कोई भौतिक शरीर ही नहीं है।

    “बिलकुल… खाओ,” मैं ने कहा।
    धृति मुस्कुराई।

    जब धृति और सेरेना भी उठीं, तब मुझे पहली बार उन के पूरे शरीर की झलक मिली।

    उन की काया भी अभया जैसी ही परिपूर्ण थी — मानो देवताओं ने खुद गढ़ी हो।

    सेरेना, यानी वो दिव्य कन्या, पास की बेल से एक लाल, रसीला फल तोड़ लाई।

    अपने भरे-भरे गुलाबी होंठों को हल्का सा खोल कर उस पर बाइट लगाई और नरमी से चबाने लगी।

    उस के हल्के बैंगनी पारदर्शी पंख हवा में धीरे-धीरे हिलते रहे और उस की मासूम अदा ने मुझे बाँधे रखा।

    अच्छा था कि उन्हें पता नहीं था…मैं लगातार उन्हें घूर रहा था।

    तीनों स्वर्गिक प्राणी — अपने-अपने अंदाज़ में परिपूर्ण थीं।

    उन की मौजूदगी उतनी ही मोहक थी जितना उन का रूप।

    और अजीब बात ये थी…जितना मैं उन के लिए अचंभित था, वे भी उतना ही मेरे लिए श्रद्धालु दिख रही थीं।

    “काश थोड़ा मांस भी होता…”

    अभया ने गहरी साँस ले कर कहा।

    “कितना अच्छा होता अगर मैं फिर से शिकार कर पाती… लेकिन मेरे पास हथियार नहीं हैं। वीर… क्या आप के पास कोई उपाय है?”

    “ताकि तुम शिकार कर सको?” मैं थोड़ा हिचकिचाया।

    मुझे उन की मदद करनी थी, पर सच्चाई ये थी कि…इस वक़्त मैं सिर्फ़ देख और बात कर सकता था।

    “उह… शायद… मैं अभी अपनी शक्तियों को एक्सप्लोर कर रहा हूँ।”

    अभया की आँखों में उलझन उतर आई।
    उस ने धृति की तरफ़ मुड़कर धीमे से कहा — “धृति… किस तरह का ईश्वर अपने भक्तों को खाना नहीं खिला पाता?
    तुम ने कहा था कि अगर हम उसे पूजेंगे, तो वो हमारी रक्षा करेगा। लेकिन मुझे तो ये बहुत कन्फ़्यूज़ लग रहा है।”

    धृति ने हल्की सी साँस भरते हुए कंधे उचका दिए।

    “हमारे प्रभु पर सवाल उठाना हमारा काम नहीं है, अभया। मुझे तो बस इतना पता है… कि मुझे एक सपना आया था। उस में मैं ने देखा कि हमें यहाँ आना होगा, और हम अपने नए स्वामी से मिलेंगे। हम आ गए… और देखो… वे यहाँ हैं। शायद हमें उन्हें  समय देना चाहिए…या फिर… हमें और प्रार्थना करनी चाहिए।”

    उस ने फिर मेरी तरफ़ झुकते हुए पूछा —
    “वीर… क्या आप चाहते हैं कि मैं फिर से घुटनों के बल बैठ कर आप की भक्ति करूँ?”

    “नहीं, नहीं, इस की ज़रूरत नहीं।”
    मैं ने नरमी से कहा।

    “आराम से बैठो… मुझे इस से कोई आपत्ति नहीं।”

    “जो भी आप कहें, मेरे प्रभु…” धृति ने हल्के-हल्के लाल गालों पर एक स्वप्निल मुस्कान के साथ कहा और धीरे से पूजा स्थल के पास घास पर बैठ गई।

    अभया और सेरेना भी उस के पास बैठ गई थीं।

    फिर वो दिव्य कन्या अपनी पारदर्शी पंखों पर पीछे की ओर लेट गई…उसके चेहरे पर शांति थी और वो पूरे शरीर पर गिरती धूप की गरमी में नहा रही थी।


    अचानक मुझे अजीब-सा महसूस होने लगा।

    ऐसा लग रहा था जैसे ये सपना कभी ख़त्म ही नहीं होगा और मैं ने अपनी ज़िंदगी में ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं किया था।

    मेरे दिमाग़ में एक पागलपन भरा ख़याल आया…

    क्या ये वर्चुअल रियलिटी हो सकती है?

    क्या मैं किसी तरह अनजाने में किसी वी.आर. सिम्युलेशन में फँस गया हूँ?
    लेकिन… ये कैसे संभव हो सकता है?

    क्या मेरे दोस्तों में से किसी ने मुझ पर कोई चाल चली है?

    मेरे सभी दोस्त कंप्यूटर प्रोग्रामर हैं और हम सब के बीच मज़ाक का पुराना इतिहास रहा है।

    लेकिन ये मानना मुश्किल था कि कोई मेरे अपार्टमेंट में घुस आया, मुझे बिना बताए वी.आर. हेडसेट पहना दिया और फिर मुझे इस दुनिया में खींच लाया।

    वैसे… एक छोटा-सा शक ये भी था कि हो सकता है उन्होंने किसी तरह गॉगल्स पहना दिए हों।

    लेकिन फिर सवाल ये था — मुझे अपने शरीर का ज़रा भी अहसास क्यों नहीं हो रहा?

    और तभी एक और अजीब ख़याल दिमाग़ में आया।

    क्या मैं सच में इस बग़ीचे में हूँ?
    क्या ये तीनों और ये पूरा माहौल हक़ीक़त है?

    ये सोच कर दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
    डर भी था, लेकिन सच कहूँ तो इस बात से ज़्यादा रोमांचक कुछ नहीं हो सकता था।
    तीन अलौकिक सुंदरियाँ मेरी तरफ़ ऐसे देख रही थीं, मानो मैं सच में ईश्वर हूँ।

    मैं ने हल्की-सी चुटकी दे कर खुद को जगाने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।

    “ठीक है…” मैं मन ही मन बोला।

    “जब तक ये सब चल रहा है, इंजॉय करते हैं।”

    मैं ने उन तीनों से पूछा — “तुम तीनों बार-बार कह रही हो कि तुम बहुत दूर से आई हो…कहाँ से आई हो तुम लोग?”

    धृति ने हल्की-सी मुस्कान के साथ हाथ हिलाया — “ओह…प्रभु। जैसा मैं ने कहा, मैं एक जलजा हूँ, और मेरी उत्पत्ति पानी से हुई है। सेरेना जंगलों में रहती है और अभया… खैर, ये बस एक मुसाफ़िर है। हम तीनों अलग-अलग रास्तों से मिले और फिर साथ हो लिए। हम यहाँ पहुंचीं क्योंकि हम आप की भक्त हैं, आप की सेविकाएँ हैं और आप का ही पूजन करती हैं।”

    “हम्म… ठीक है…” मैं बुदबुदाया।

    पर सच कहूँ तो मैं अब भी बहुत कन्फ़्यूज़ था।

    ये सब किसी बड़े रहस्य का हिस्सा लग रहा था।

    मुझे लगा…अगर यहाँ कोई उत्तर है, तो उन्हें धीरे-धीरे खोजना होगा।

    “एक बात बताओ…” मैं ने झिझकते हुए कहा– “तुम्हें… मेरा नाम कैसे पता?”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 5. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 5

    Words: 1212

    Estimated Reading Time: 8 min

    धृति के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान उभरी।
    “अपने सपने के कारण।

    “मुझे सपना आया कि हमें एक ऐसे स्थान पर जाना है जहाँ हमें एक महान देव की पूजा करनी होगी…और उस का नाम है… वीर। हम ने विश्वास किया…और देखो, आज आप हमारे सामने हैं।”

    “हाँ,” सेरेना ने अपनी आँखें बंद करते हुए कहा, उस के पारदर्शी पंख हल्के-हल्के हिल रहे थे।

    “धृति को एक आह्वान मिला था।
    हम ने इसी पूजा स्थल पर आ कर प्रार्थना की, आप को पुकारा…और लगता है हमारी विनती स्वीकार हो गई है। हालाँकि मैं ने अब तक आप का भौतिक स्वरूप नहीं देखा, पर आपकी आवाज़ सीधे मेरे मन में गूँजती है। इस एहसास ने मेरे भीतर एक अनजानी शांति भर दी है।”

    मैं ने कुछ पल रुक कर चारों ओर देखा,
    फिर पूछा — “क्या तुम मुझे हमारे आस-पास की जगह के बारे में और बता सकती हो? ऐसा लगता है जैसे… यहाँ और भी बहुत कुछ है, पर मैं सब देख नहीं पा रहा।”

    अभया ने अचानक अपनी आँखें सिकोड़कर शंका से मेरी ओर देखा।

    “आप… ये सवाल क्यों पूछ रहे हैं?
    क्या… आप सब कुछ देख नहीं सकते?”

    इस से पहले कि मैं जवाब देता,
    धृति ने उसे घूरते हुए डाँटा — “अभया! अगर तुमने यूँ ही सवाल-जवाब करना शुरू किया, तो वीर नाराज़ हो कर हमें छोड़ भी सकते हैं और ये बहुत डरावना होगा!”

    धृति ने अपना हाथ दिल पर रखा जैसे मेरे चले जाने का खयाल ही उसे डराने लगा हो। हालाँकि मेरे सवाल पर वह थोड़ी उलझन में भी दिखी। “बिलकुल बता सकती हूँ, मेरे स्वामी। हम चारों तरफ़ जंगलों से घिरे हुए हैं। सिर्फ़ वही रास्ता है जिस से हम यहाँ तक आए। यह आश्रम कई इमारतों से बना है, पर सब खंडहर हो चुकी हैं। एक प्रार्थना-गृह है, रहने के कमरे हैं और एक अस्तबल भी। अभी तक हम अपनी यात्रा में लाए सामान से ही काम चला रहे थे। अभया सही कह रही है, अब हमारा खाना लगभग ख़त्म हो गया है। हमें जंगली पौधों की पहचान है, पर सिर्फ़ छोटे खंजरों से शिकार नहीं कर सकते। हमारे पास बस कंबल हैं, तन पर कपड़े हैं और कभी-कभी सफ़र में सौदेबाज़ी कर थोड़ी-बहुत चीज़ें लीं। और अब हम आप की दया, आप के स्नेह और आप की शक्ति चाहते हैं ताकि इस कठिन वक़्त से निकल सकें।”

    “बिलकुल, मैं जो भी कर सकता हूँ, करूँगा,” मैं ने जवाब दिया, हालाँकि अंदर से मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि मैं असल में कर भी क्या पाऊँगा।

    मुझे आसपास के जंगलों में दिलचस्पी थी, क्योंकि मेरा शौक़ ही था ‘वाइल्डर्नेस सर्वाइवल स्किल्स’ सीखना। सोचा था किसी एक कन्या से कहूँगा मुझे वहाँ ले चले, अगर ऐसा कोई तरीका न निकला जिस से मैं पूरा इलाका एक साथ देख पाऊँ। असली मुश्किल ये थी कि ज़मीन पर सीधे कुछ कर पाना शायद अभी मेरे बस में नहीं था। लेकिन कौन जाने, आगे चल कर ऐसी शक्ति आ भी जाए।

    ये सोच कर मैं ख़ुद चौंक गया कि मैं ने अपनी ताक़तें बढ़ाने की कल्पना तक कर ली। जब से समझ आया था कि ये सपना ख़त्म नहीं हो रहा, मैं तो बहुत सहजता से खुद को ‘देवता’ मानने लगा था।

    बस ये समझ नहीं आ रहा था कि मुझे करना क्या है।

    मन में यही डर था कि लड़कियां मेरी पूछताछ को शक़ की नज़र से न देखें। अभया को छोड़ बाक़ी दो ने कोई आपत्ति नहीं दिखाई। लेकिन उसे भी दोष नहीं दिया जा सकता था—ये पूरा दृश्य सहजता से मान पाना आसान थोड़े ही था।

    बगीचे और उन के कपड़ों की बनावट देख कर लगता था कि हम या तो किसी प्राचीन काल में हैं या फिर किसी काल्पनिक लोक में। और यह सोच कर ही रीढ़ की हड्डी तक सिहर उठी—क्या मैं सच में किसी दूसरी दुनिया में आ गया हूँ?

    ये सचमुच सपना है?

    अब मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था।

    एकसाथ कई लड़कियों का देवता बन जाना हर आदमी का सपना होता है—कम से कम मेरा तो था। इसीलिए अब भी मन कह रहा था कि ये सब शायद मैं ही गढ़ रहा हूँ, शायद देर रात दोस्तों संग ‘गेमिंग’ और शराब पीने के बाद का अजीब मतिभ्रम है ये!

    मगर क्या मैं अपने आस-पास की दुनिया से सचमुच संपर्क कर सकता हूँ?

    मैं ने पूरी ताक़त से ध्यान लगाया कि अपने नज़र न आने वाले हाथों को हिला पाऊँ। क्योंकि पूजा स्थल पूरे बगीचे का केंद्र लगता था, मैं ने वहीं छूने की कोशिश की। लगा जैसे सतह मेरी उंगलियों के बिल्कुल पास है। और यह अहसास धीरे-धीरे और प्रबल होता गया।

    और फिर, अचानक, कुछ और भी अजीब हुआ।

    मेरी आँखों के सामने अचानक नंबरों वाला एक डिस्प्ले चमक उठा, जैसे मैं फिर से कोई वीडियो गेम खेल रहा हूँ।

    व्हाट।

    द।

    हेल।

    “वाओ, ये तो कमाल है,” मैं ने दबी साँस में कहा।

    लग रहा था कि मैं सभी लड़कियों के आँकड़े देख सकता हूँ, साथ ही बस्ती (या जो भी यह जगह थी) का लेवल भी। टार्गेट्स और रिवार्ड्स तक दिख रहे थे। मैं तुरंत इंटरफ़ेस को अच्छे से खंगालना चाहता था।

    “क्या आप ने कुछ कहा, स्वामी?” धृति ने घास पर सीधे बैठते हुए अपने हाथ जोड़ लिए।

    “ओह, नहीं… मैं तो बस खुद से बात कर रहा था,” मैं ने जल्दी से जवाब दिया। अब समझ गया था कि मुझे ज़रा संभल कर बोलना होगा। मैं नहीं चाहता था कि उन्हें पता चले कि मेरे पास उन का पूरा डेटा मौजूद है। हालाँकि, मानना पड़ेगा, ये जानकारी बहुत काम की थी।

    ऐसा लग रहा था कि मैं सिर्फ़ मानसिक रूप से ‘टैप’ कर के किसी भी ऑप्शन को खोल सकता हूँ। पहला हेडिंग था — ‘विलेज लेवल’। मैं ने ध्यान केंद्रित किया और अगली स्क्रीन खुल गई। लिखा था: मोनेस्ट्री: लेवल 1।

    धृति ने जो हाल बताया था, उस के हिसाब से ये कोई हैरानी की बात नहीं थी। अगर गेम्स का थोड़ा भी अनुभव सही निकला, तो मेरा पहला मिशन शायद यही था — इस जगह को फिर से जीवित और विकसित करना।

    लेकिन मुझे ज़्यादा दिलचस्पी लड़कियों के आँकड़ों में थी। सब से पहले मैं ने सेरेना का चयन किया। पाँच अट्रीब्यूट्स और उन के सामने नंबर लिखे थे:

    [ ताक़त: 6
    सहनशक्ति: 1
    बुद्धि: 1
    ध्यान: 2
    फुर्ती: 1 ]

    मतलब साफ था—सेरेना की सब से बड़ी खूबियाँ उस की ताक़त और ध्यान क्षमता थीं।

    मैं ने थोड़ी देर इन गुणों का मतलब समझने की कोशिश की। ताक़त तो सीधी बात थी—शरीर की शक्ति। सहनशक्ति शायद मैराथन धावक जैसी क्षमता। बुद्धि का मतलब समझना आसान था और ध्यान यानी आस-पास के वातावरण को पहचानने की कला। फुर्ती तो साफ़ तौर पर गति और हरकतों से जुड़ी थी, जैसे किसी जिम्नास्ट की।

    तो कुल मिला कर, सेरेना मज़बूत भी थी और सतर्क भी—दोनों गुण मुझे बेहद पसंद आए।

    सब से दिलचस्प हिस्सा तो उस का स्पेशल एबिलिटी था। इंटरफ़ेस पर लिखा था:

    [ स्पेशल एबिलिटी: निर्माण कला (विकसित होती है रसायन विद्या में) : लेवल 1 ]

    मतलब, इस दिव्य कन्या की खासियत चीज़ें बनाने की थी, जो आगे चल कर रसायन विद्या तक पहुँच सकती थी और अभी उस की कला का लेवल उसी पर था जिस पर मोनेस्ट्री का—यानि 1।

    चूँकि मैं सीधे ज़मीन पर कुछ कर नहीं सकता था, मुझे तुरंत ख्याल आया कि इस की ये स्किल मोनेस्ट्री के लिए बहुत काम आ सकती है।


    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 6. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 6

    Words: 1142

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं सोचने लगा कि क्या इसे प्राकृतिक चीज़ों से चीज़ें बनाने का अनुभव है?

    इसे सिखाना कितना आसान होगा?

    वैसे मेरे हाथ भी काफ़ी हुनरमंद थे और मुझे उम्मीद थी कि मैं अपनी जानकारी उस दिव्य कन्या तक पहुँचा पाऊँगा।

    हालाँकि ये भी संभव था कि उस के पास पहले से ही मुझ जैसी स्किल्स हों, इसलिए मैं उसे कम नहीं आँकना चाहता था।

    मैं ने सेरेना का पेज क्लोज़ किया और अगली लाइन में होने की वजह से अभया की स्टैट्स खोल दीं।

    उस की स्क्रीन पर लिखा था —

    शक्ति (Strength): 2
    सहनशक्ति (Endurance): 2
    बुद्धि (Intelligence): 1
    अनुभूति (Perception): 1
    चपलता (Agility): 1

    स्पष्ट था कि अभया की स्किल्स ज़्यादातर शारीरिक क्षमताओं पर केंद्रित थीं।
    और फिर जब मैं ने उस का स्पेशल स्किल देखा तो मुझे कोई हैरानी नहीं हुई —

    हंटिंग/एनिमल हस्बेंड्री → विकसित हो कर एनिमल कम्युनिकेशन: लेवल 1

    उस ने पहले भी शिकार का ज़िक्र किया था, लेकिन उस ने ये भी कहा था कि उस के पास हथियारों की कमी है।

    मुझे लगा कि अगर सेरेना हथियार बना सकती है, तो अभया के लिए आस-पास के जंगल से मांस जुटाना मुश्किल नहीं होगा।

    मैं खुद भी एक पैशनेट आउटडोर मैन था।
    मेरे पास शिकार का भरपूर अनुभव था —
    चाहे बात राइफल की हो या धनुष-बाण की।

    साथ ही, मैं जानवरों को फँसाने के लिए ट्रैप्स लगाने में भी माहिर था।

    अगली बारी थी धृति की।
    मैं ने उस की स्टैट्स स्क्रीन खोली —

    शक्ति (Strength): 1
    सहनशक्ति (Endurance): 1
    बुद्धि (Intelligence): 2
    अनुभूति (Perception): 1
    चपलता (Agility): 2

    विशेष योग्यता: वाटर सीकिंग/फिशिंग → विकसित हो कर वाटर मैजिक: लेवल 1

    ये देख कर मुझे सब से इंट्रेस्टिंग बात ये लगी कि तीनों सेविकाओं में से सिर्फ़ सेरेना के पास ही कोई आउटलाइनिंग नंबर था — उस की शक्ति (Strength)।

    ये सोच कर थोड़ा अजीब लगा कि सेरेना, जो नाज़ुक और छोटी काया की थी, वास्तव में सब से स्ट्रॉन्ग थी।

    आख़िर दिव्य कन्याएँ तो ताक़त के लिए मशहूर नहीं होतीं।

    लेकिन फिर मैं ने खुद को याद दिलाया कि ये तो पूरी स्थिति ही अनोखी है तो इस में ये बात भी ज़्यादा अजीब नहीं।

    ख़ैर… धृति की वाटर स्किल्स एक बहुत अच्छी निशानी थीं।

    पानी का स्रोत ढूँढना यहाँ जीने के लिए सब से क्रिटिकल फैक्टर था।

    और उस के पास वो क्षमता मौजूद थी।

    सर्वाइवल की सोचते हुए मैं धृति के वाटर मैजिक के बारे में कल्पना करने लगा।
    वीडियो गेम्स में अक्सर ये शक्ति पानी के अटैक या पानी को अलग-अलग रूपों (जैसे बर्फ़) में बदलने की क्षमता देती है। क्या यहाँ भी ऐसा ही होगा?

    मैं सोच रहा था कि क्या ये औरतें अपनी विशेष क्षमताओं के बारे में जानती हैं?
    मुझे इन से इस पर बात करनी चाहिए, लेकिन उस से पहले मैं बाकी स्क्रीन भी देखना चाहता हूँ।

    सब से ज़्यादा मुझे दिलचस्पी थी विलेज क्वेस्ट में और ये जानने में कि अगर मैं उसे पूरा करूँ तो मुझे क्या इनाम मिलेगा।

    मैं ने विलेज क्वेस्ट मेन्यू खोला और उस पर लिखा टेक्स्ट पढ़ा —

    ‘पाँच अलग-अलग प्रोटीन्स के साथ खाना पकाओ।’

    साफ है कि मेरा सेरेना और अभया की प्रतिभाओं को जोड़ने का आइडिया सही था।

    मुझे उम्मीद थी कि यहाँ के जंगल में इतनी जैव विविधता होगी कि ये लक्ष्य पूरा करना आसान होगा।

    जहाँ तक खंडहरों की बात थी, उन का आर्किटेक्चर मुझे कुछ अजीब-सा लग रहा था।

    लेकिन सच कहूँ तो मुझे यक़ीन भी नहीं था कि हम अभी पृथ्वी पर ही हैं।

    अगर टाइम ट्रैवल संभव था, तो यूनिवर्स ट्रैवल भी मुमकिन हो सकता था।

    ये सोच कर मैं थोड़ा रोमांचित भी था और असमंजस में भी।

    मैं ने फ़िलहाल ये विचार किनारे रखे और इनाम पर नज़र डाली।

    और सच कहूँ तो, ये सब से बेहतरीन जानकारी थी।

    ‘इनाम: गॉड विज़न।’

    ये नाम ही इतना शानदार लगा।

    शायद इस का सीधा कनेक्शन मेरी निगाहों की सीमा से था, जिस की वजह से आसपास की जगह को पूरी तरह एक्सप्लोर करना और मोनेस्ट्री को दोबारा बसाना मुश्किल हो रहा था।

    दिलचस्प ये भी था कि इसे विलेज क्वेस्ट कहा गया था, मोनेस्ट्री क्वेस्ट नहीं।

    क्या इस का मतलब ये था कि असली लक्ष्य सिर्फ़ मोनेस्ट्री नहीं, बल्कि एक पूरा समृद्ध विलेज बनाना था?

    पूरा सीन मुझे स्ट्रैटेजी गेम्स जैसे सिविलाइज़ेशन की याद दिला रहा था।
    लेकिन यहाँ की हर चीज़ मुझे उतनी ही फ़ैसिनेटिंग लग रही थी, जितनी शॉकिंग।
    हर कुछ मिनटों में मैं ये सोच कर हक़बका जाता कि मैं अपने अपार्टमेंट में नहीं हूँ।

    घर की आरामदायक चीज़ों की याद तो आती थी, लेकिन अपने सपने को मैं बिल्कुल खत्म नहीं करना चाहता था…आख़िरकार उस में मैं उन बेहद खूबसूरत औरतों का देवता बन कर जी रहा था।

    मैं ने औरतों से पूछा — “क्या किसी को पता है कि ये गॉड विज़न क्या होता है?”

    “गॉड विज़न?” सेरेना ने हैरानी से दोहराया– “माफ़ कीजिए, वीर, मैं ने इस बारे में कभी नहीं सुना।”

    “ये तो आप को खुद पता लगाना चाहिए, है ना?” अभया ने तंज़ कसा।

    “आख़िरकार देवता तो आप ही हो यहाँ।”

    उस की तिरछी मुस्कान और हल्की-सी नफ़रत भरी टोन मुझे अजीब तरह से आकर्षित करने लगी।

    शायद इसलिए कि मुझे उन औरतों से बोरियत होती थी, जो बिना कुछ कहे-समझे क़दमों में बिछने को तैयार हो जाती थीं।

    मेरे सामने दिख रहा इंटरफ़ेस वाक़ई कमाल का था।

    लेकिन मुझे पूरा यक़ीन था कि औरतों को ये जान कर अच्छा नहीं लगेगा कि मैं उन के बारे में पहले से इतनी जानकारी रखता हूँ।
    इसलिए मैं ने सोचा कि बातचीत में कैज़ुअली वही बातें छेड़ दूँ जो मैं ने स्क्रीन से जानी हैं, ताकि इन्हें ये न लगे कि मैं किसी जादुई स्क्रीन पर इन के आँकड़े देख रहा हूँ।

    वैसे भी, ये शायद ऐसे कॉन्सेप्ट को समझ भी न पाएँ।

    कभी-कभी तो मुझे सच में लग रहा था कि मैं किसी हाई-लेवल गेमिंग सीनारियो में फँस गया हूँ, और ये इंटरफ़ेस मेरी शंका को और गहरा कर रहा था।

    “तो अभया, तुम ने कहा था तुम्हें शिकार करना पसंद है,” मैं ने सहज अंदाज़ में कहा– “ज़रा और बताओ इस बारे में।”

    “मुझे हमेशा से जानवरों से लगाव रहा है।” भूरे बालों वाली ने कंधे उचकाए, लेकिन उस की आवाज़ में पहले से ज़्यादा उत्साह था।

    “बहुत साल पहले जहाँ से मैं आई हूँ, वहाँ हमारा एक फ़ार्म था। हम मुर्ग़ियाँ और भैंस पालते थे खाने के लिए, घोड़े सवारी के लिए और कुत्ते सिर्फ़ दुलार के लिए। वो दिन बहुत अच्छे थे। पिताजी मुझे अक्सर जंगल ले जाते, वहीं मैं ने फँदों से शिकार करना और तीर चलाना सीखा। कई बार हम घर पर पूरा खाना ले कर लौटते, और उस खुशी की बात ही कुछ और थी। अपने लोगों के लिए खाना जुटाने जैसा सुख और कुछ नहीं। अब मुझे लगता है कि सेरेना और धृति ही मेरा परिवार हैं। अगर मुझे हथियार मिल जाए, तो मैं यक़ीनन अपनी इन बहनों के लिए भी शिकार कर सकती हूँ।”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 7. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 7

    Words: 1077

    Estimated Reading Time: 7 min

    “मैं… शायद तुम्हारे लिए एक बना पाऊँ,” सेरेना ने हल्की झिझक के साथ कहा और नज़रें झुका लीं।

    “मुझे थोड़ी बहुत ये चीज़ आती है, शायद मैं एक धनुष बना सकूँ।”

    “मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ,” मैं ने बैंगनी पंखों वाली दिव्य कन्या से कहा।

    मुझे अब तक इस बात की आदत नहीं पड़ी थी कि जब मैं औरतों से बात करता हूँ तो वो मेरे चेहरे के भाव या बॉडी लैंग्वेज़ नहीं देख पातीं। इसलिए मैं जानबूझ कर बहुत नरमी और अपनाइयत भर कर बोलता था।

    “ये तो बहुत अच्छा होगा, मेरे प्रभु,” सेरेना ने दोस्ताना स्वर में कहा।

    उस के लाल होंठों के कोने स्वाभाविक रूप से ऐसे मुड़े हुए थे जैसे हमेशा हल्की मुस्कान बिखेरते हों।

    “ये कला मैं ने बचपन में ही थोड़ी सी सीखी थी। मैं अभया की तरह किसी फ़ार्म में तो नहीं पली, लेकिन चूँकि दिव्य कन्याएँ अपना ज़्यादातर समय जंगल में बिताती हैं, इसलिए लकड़ी और पेड़ों के बारे में हम बहुत कुछ जान लेते हैं।”

    मुझे लग रहा था मामला और दिलचस्प होता जा रहा है।

    हालाँकि मुझे पता था कि इन औरतों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन उन की प्राकृतिक क्षमताएँ उन्हें बहुत आगे तक ले जा सकती थीं।

    “तुम ने बचपन में कुछ ख़ास सीखा था, धृति?” मैं ने बैंगनी त्वचा वाली जलजा से पूछा।

    “शायद, मेरे प्रभु,” धृति ने होंठों पर उँगली टिकाते हुए कहा।

    “हम जलजा तब जन्म लेते हैं जब किसी नए जल-स्रोत का निर्माण होता है। यानी हम सीधे पानी से पैदा होते हैं। मुझे हमेशा से तैरने और पानी के जीवों से संवाद करने का गुण मिला है। धारा या तालाब में डूबे रहने से मुझे बेहद सुकून मिलता है। पर ये कोई सीखी हुई कला नहीं, बल्कि जन्म से मिली पहचान है।”

    मुझे अब पूरा भरोसा होने लगा कि इंटरफ़ेस बिलकुल सही जानकारी दे रहा है।
    लेकिन अब सवाल ये था कि मैं इन्हें “विलेज क्वेस्ट” के बारे में कैसे समझाऊँ।

    मैं उन को विलेज क्वेस्ट समझाना चाहता था, लेकिन अभी उन्हें बस एक टाइम के खाने की ज़रूरत थी।

    अगर मैं उन्हें पाँच अलग-अलग प्रोटीन ढूँढने की बात करता, तो शायद मामला और उलझ जाता।

    इसलिए मैं ने सोचा कि थोड़ा अलग तरह से बात शुरू करता हूँ।

    “देखो, मुझे लगता है हमें ये करना चाहिए—” मैं ने कहना शुरू किया।

    “‘हमें?’ ये ‘हम’ कौन हैं?” अभया ने बीच में टोका– “अब तक तो जो भी काम हुआ है, वो हमारे ही हाथों से हुआ है। आप चाहे कितने भी दयालु हों, लेकिन मैं ने अभी तक कोई तरीका नहीं देखा जिस से आप हमारे लिए सीधे तौर पर कुछ कर पाएँ हों।”

    “अभया, उन्हें बोलने तो दो,” सेरेना ने धीरे से कहा।

    मैं खुश था कि शांत स्वभाव वाली दिव्य कन्या मेरी तरफ़दार थी। मुझे अब तक ये साफ़ नहीं था कि वो सच में मुझे अपना देवता मानती है या नहीं।

    अभया ने लंबी साँस ली– “माफ़ कीजिये, मैं कभी-कभी चिड़चिड़ी हो जाती हूँ जब बहुत देर तक ठीक से खाना न मिले। आप बोलिए।”

    “कोई बात नहीं,” मैं ने हँसते हुए कहा – “हैंग्री होना नॉर्मल बात है।”

    “हैंग्री?” भूरे बालों वाली ने भौं उठाई।

    “हंग्री प्लस एंग्री बराबर हैंग्री,” मैं ने समझाया– “मतलब भूख के कारण गुस्सा आना।”

    “ओह।” अभया ने गला साफ़ किया– “हाँ, वही तो मैं हूँ।”

    “देखा?” धृति ने पूजा स्थल की ओर इशारा करते हुए कहा। “वो हमें समझते हैं।”

    “मैं बस ये कह रहा था कि हमें जितने भी मीट के सोर्स मिल सकते हैं, उतने ढूँढने की प्रैक्टिस करनी चाहिए,” मैं ने समझाया– “धृति, तुम मछली पकड़ सकती हो, अभया शिकार कर सकती है और सेरेना, तुम इन के लिए ज़रूरी औज़ार बना सकती हो।”

    “जी, मेरे प्रभु, ये तो बहुत बढ़िया ख्याल है,” धृति ने खुशी से ताली बजाते हुए कहा– “मुझे लगता है आसपास पानी होगा, मैं सुबह होते ही ढूँढ लूँगी। हालाँकि, अब तो अँधेरा होने लगा है। शायद हमें रात के लिए बस यहीं टिक जाना चाहिए?”

    “लेकिन आज रात खाएँगे क्या?” अभया ने बड़बड़ाते हुए पूछा।

    मैं सोचने लगा कि आखिर इस भूरे बालों वाली ने इस यात्रा में हिस्सा ही क्यों लिया, जब हर वक़्त इतनी परेशान रहती है।

    लेकिन शायद ये सवाल बाद में करना बेहतर होगा।

    ऊपर से, वो कमाल की हॉट भी थी।

    “जैसा धृति ने कहा, रात हो रही है,” सेरेना ने जवाब दिया– “हम एक और शाम बस आम, सेब और कुछ बेर से गुज़ार सकते हैं, है ना? मुझे पता है ये कोई बढ़िया खाना नहीं है, लेकिन जैसा वीर ने कहा, हम कल से शिकार शुरू करेंगे। मैं तो धनुष और बाकी चीज़ें बनाने का इंतज़ार कर रही हूँ।”

    “हाँ, यही सही प्लान है,” मैं ने हामी भरी।
    मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैं इतनी आसानी से भगवान की भूमिका में ढल गया था और इन जादुई औरतों का लीडर बन रहा था।

    लेकिन हक़ीक़त यही थी।

    और अब मुझे खुद भी यक़ीन होने लगा था कि ये सब सचमुच असली है।

    धृति, सेरेना और अभया फल इकट्ठा करने लगीं, और मैं ने थोड़ा रुक कर सोचना शुरू किया। बगीचे में इन का पीछा करना तो आसान है क्योंकि मुझे पूजा स्थल से पूरा नज़ारा मिलता है, लेकिन अगर मुझे इन्हें अलग-अलग दिशा देनी पड़े तो क्या होगा?
    ये जानने के लिए मैं ने सोचा कि धृति से मदद माँगता हूँ, क्योंकि वो सब से ज़्यादा मेरी भक्त लगती थी।

    “धृति, मैं एक छोटा-सा प्रयोग करना चाहता हूँ,” मैं ने उस जलजा से कहा।

    “क्या तुम कुछ देर के लिए बगीचे से बाहर जा सकती हो?”

    “ज़रूर, मेरे प्रभु,” उस ने सिर झुका कर जवाब दिया।

    “कहाँ जाऊँ?”

    “बस इतनी ही गुज़ारिश है कि तुम इन दीवारों से बाहर निकलो, जहाँ से पूजा स्थल नज़र न आए,” मैं ने समझाया।

    “जैसा आप चाहें,” धृति ने कहा और जंग लगे पुराने गेट को धकेल बाहर निकल गई।

    ये पहली बार था जब मैं इस नये इलाक़े को देख पा रहा था और सच कहूँ तो मेरे अंदर जिज्ञासा की लहर दौड़ गई।

    मैं ने अपनी दृष्टि धृति की आँखों से जोड़ दी।

    जैसा मैं ने सोचा था, वो जो कुछ देख रही थी, मैं भी वही देख पा रहा था।

    दिन की रौशनी तेज़ी से ढल रही थी, लेकिन जर्जर मोनेस्ट्री की दीवारों से बाहर घना जंगल साफ़ दिख रहा था।

    मुझे ध्यान आया कि अब आग जला लेनी चाहिए। और इस के लिए हमें जल्द ही लकड़ी और सूखी टहनियों की ज़रूरत होगी।

    “धृति, तुम लोग सफ़र के दौरान आग कैसे जलाती थीं?”


    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 8. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 8

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    अजीब था कि मैं उस की आँखों से देख रहा था लेकिन उस के चेहरे के भाव नहीं देख पा रहा था।

    “हम अपने खंजर और चकमक पत्थर का इस्तेमाल करती हैं, मेरे स्वामी,” धृति ने हँसते हुए कहा– “हम सफ़र में अपना इंतज़ाम कर लेती थीं, लेकिन अक्सर सामान के लिए सौदेबाज़ी करनी पड़ती थी। इसलिए हम पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं रहीं।”

    “तुम कितने वक़्त से सेरेना और अभया के साथ सफ़र कर रही हो?” मैं ने पूछा।

    “कुछ महीने पहले मैं अभया से मिली थी,” धृति ने बताया।

    “वो इंसानों के एक खेमे में थी, और मुझे तुरंत लगा कि वो अपनी स्थिति से ख़ुश नहीं। लग रहा था कि वो पहले से ही काफ़ी सफ़र कर चुकी थी और बहुत थकी हुई थी।
    मैं ने उसे अपने साथ आने के लिए मना लिया। हालाँकि अभी भी उसे पूरा यक़ीन नहीं कि ये यात्रा व्यर्थ किसी काम की है, जैसा कि आपने महसूस भी किया होगा। अभया कभी-कभी सख़्त लगती है, लेकिन मेरे साथ उस ने हमेशा नेकी दिखाई है। मुझे पूरा यकीन है कि धीरे-धीरे वो भी आप के प्रति श्रद्धालु हो जाएगी। वो बस ऐसी औरत है जिसे सबूत चाहिए होते हैं। सेरेना से मेरी मुलाक़ात उस खेमे के पास जंगल में हुई।
    मुझे लगता है वो अपने परिवार से भाग रही थी। वो बहुत शर्मीली है और अकेली भी।
    सेरेना बहुत तार्किक सोच रखती है, लेकिन जब मैं ने उसे भगवान के बारे में बताया, तो उस की जिज्ञासा बढ़ गई। मुझे यक़ीन है कि समय के साथ वो भी सच्ची आस्तिक बनेगी। माफ़ कीजिए, कि मैं आप के लिए और ज़्यादा समर्पित पुजारिनें नहीं ला पाई। लेकिन मुझे पूरा यक़ीन है कि आप के प्यार और शक्ति से हम सब की आत्मा और शरीर एक अच्छे स्तर तक पहुँच जाएँगे।”

    यह सब जानकारी काफ़ी इंटरेस्टिंग थी और मुझे उम्मीद थी कि वो सब मेरे लिए और ज़्यादा डिवोटेड होंगी, भले ही ये मेरी पहली प्रायोरिटी नहीं थी। वो अब तक की सब से खूबसूरत लड़कियाँ थीं जिन्हें मैं ने देखा था, और मैं बस उन के साथ टाइम स्पेंड करना चाहता था और उन्हें और अच्छे से जानना चाहता था।

    मैं खुद में ही हलका सा हँसा जब ये सोचा कि उन की डिवोशन कहीं सिर्फ़ स्पिरिचुअल ही नहीं बल्कि थोड़ा सा सेक्शुअल भी हो सकती है। लेकिन फिलहाल मैं अपनी उम्मीदें बढ़ाना नहीं चाहता था। वैसे भी, मेरे पास बॉडी ही कहाँ थी कि मैं… उह्ह… सच में उन के साथ कुछ कर पाता।

    खैर, अभी प्रैक्टिकल मैटर्स पर फोकस करना ज़रूरी था।

    “धृति, क्या तुम्हें लकड़ी इकट्ठा करना आता है? अगर तुम्हें हेल्प चाहिए तो मुझे बता देना।”

    “बिल्कुल, स्वामी,” उस ने जवाब दिया, “लेकिन आप की मौजूदगी मुझे ताकत देगी क्योंकि मुझे जंगल में जाना होगा। वहाँ कई तरह के प्राणी रहते हैं और मैं उन में से किसी से टकराना नहीं चाहती।”

    “राइट, प्राणी…” मैं ने धीमे स्वर में कहा और सोचने लगा कि इस का मतलब क्या हो सकता है। जब मैं पहले ही जलजा और एक दिव्य कन्या से मिल चुका था, तो पॉसिबिलिटीज़ तो अनलिमिटेड थीं। फिर भी, मैं ने उसे डिस्ट्रैक्ट न करने का फैसला किया और ठाना कि इस बारे में डिटेल बाद में पूछूँगा।

    “मुझे नहीं लगता हमें बहुत गहराई तक जाने की ज़रूरत पड़ेगी। अगर हमें कुछ सूखी घास या पेड़ों की छाल मिल जाए और थोड़ा-सा बंडल तीलियों का, तो रात भर के लिए काम चल जाएगा। तुम्हारे पास लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी तो नहीं है, है न?”

    “नहीं, हमारे पास नहीं है,” धृति ने आह भरते हुए बताया– “हमारे टूल्स काफ़ी कमज़ोर हैं और अब तक हम अपनी ज़िंदगी दूसरों पर डिपेंड कर के ही चला रहे थे। हम तो आप के मोनेस्ट्री तक पहुँच ही तब पाए जब हमारा सारा सामान लगभग खत्म हो चुका था।”

    “अब तुम्हारे पास मैं हूँ,” मैं ने उसे भरोसा दिलाने की कोशिश की। हमें खंडहर हो चुके मंदिर को फिर से खड़ा करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी थी, और मैं ने अपने दिमाग में प्राचीन कुल्हाड़ी बनाने के तरीकों को याद करना शुरू किया। काश मेरे मेंटल इंटरफ़ेस में कोई विकिपीडिया सेक्शन भी होता, लेकिन जो नॉलेज अभी था वही मेरे लिए ब्लेसिंग जैसा था।

    धृति जैसे ही जंगल के किनारे पहुँची, अंधेरा इतना बढ़ गया था कि शुरुआती पेड़ों की पंक्ति से आगे मैं कुछ देख नहीं पा रहा था। उस ने जल्दी से सूखी घास और गिरी हुई छाल इकठ्ठा कर ली और अपनी बाँहों में कई टहनियाँ समेट लीं। तभी मुझे एहसास हुआ कि एक सिंपल-सी टोकरी भी लड़कियों के काम आ सकती है।

    “क्या मैं अब बाकी दो के पास लौट जाऊँ?” जलजा ने मुझ से पूछा।

    “हाँ, ये ठीक रहेगा,” मैं ने जवाब दिया, लेकिन मेरा पहला रिएक्शन सिर हिलाने का था, और फिर याद आया कि मैं धृति के लिए सिर्फ़ एक आवाज़ ही हूँ।

    धृति गार्डन की तरफ़ लौट चली और मुझे आसपास के खंडहर थोड़े-बहुत दिखने लगे। वहाँ कई टूटी-फूटी इमारतों के निशान थे, लेकिन अंधेरे में मैं साफ़ पहचान नहीं कर सका कि क्या। मुझे हल्की-सी पानी की आवाज़ भी सुनाई दी, और मुझे लगा कि धृति सही कह रही थी—कहीं पास ही में कोई धारा बह रही है।

    “धृति, क्या यहाँ से कोई जगह नीचे की ओर ढलान पर जाती है?” मैं ने पूछा।

    उस ने बाएँ मुड़ कर देखा, जहाँ मुझे ज़मीन थोड़ी नीची होती दिखी।

    “हाँ, स्वामी, और वहीं मुझे पानी की मौजूदगी का आभास होता है।”

    “हाँ, स्वामी, और वहीं मुझे उस पानी की उपस्थिति महसूस होती है जो मुझे बेहद खुशी देती है,” जलजा ने खुशमिज़ाज लहजे में बताया– “मैं कल उस जगह को और अच्छे से देखने के लिए बहुत उत्साहित हूँ… आप की इजाज़त हो तो।”

    “तुम यहाँ कब आई थीं?” मैं ने बैंगनी त्वचा वाली से पूछा।

    “ओह, हम तो बस कल ही पहुँचे,” धृति ने समझाया– “पूजा स्थल के चारों तरफ़ का गार्डन हमें एक नैचुरल जगह लगी रहने के लिए, क्योंकि वहाँ खाना भी था, और पूजा स्थल भी जहाँ हम आप की आराधना कर सकें। इस के अलावा, यह जगह बाकी एरिया से थोड़ी ज़्यादा महफूज़ लगी, क्योंकि इस की ज़्यादातर दीवारें अब भी सही सलामत हैं।”

    “ये तो स्मार्ट डिसीज़न है,” मैं ने उस की तारीफ़ की– “लगता है तुम लोग पहले से ही अच्छे फैसले ले रही हो।”

    “धन्यवाद, स्वामी,” जलजा खिलखिलाई, और हमेशा की तरह बेहद खुश लगी,  “आप की तारीफ़ ही मेरे लिए सब कुछ है।”

    हम अब गार्डन के किनारे तक पहुँच चुके थे, और मैं ने तुरंत पूजा स्थल वाला व्यू ऑन कर लिया ताकि सब को एक साथ देख सकूँ। तभी मेरी नज़र पहली बार एक फायर सर्कल पर पड़ी, जो राख से भरा था। वह गार्डन के एक धूलभरे कोने में बना था, पूजा स्थल से कुछ दूरी पर। लोकेशन काफी परफेक्ट थी क्योंकि वहाँ की दीवारें आग को हवा से बचा रही थीं। मुझे लगा कि लड़कियों ने सही जगह चुनी है।

    अभया घास पर बैठी एक सेब खा रही थी और बहुत थकी हुई लग रही थी। मैं ने सोचा कि शायद अच्छी नींद के बाद उस का मूड बेहतर हो जाएगा, लेकिन इस के लिए मुझे इंतज़ार करना होगा।

    “धृति, तुम वापस आ गई!” सेरेना ने एक्साइटमेंट से कहा और दौड़ कर अपनी सहेली को गले लगा लिया– “तुम काफ़ी देर तक बाहर थी और वीर भी हम से बात करना बंद कर चुके थे, तो मैं बहुत चिंतित हो गई थी।”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 9. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 9

    Words: 1166

    Estimated Reading Time: 7 min

    मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं सब लड़कियों से बराबर बात नहीं करता तो वो फिक्रमंद हो जाएँगी। अपने फ़ॉलोअर्स को आश्वस्त करना भी शायद मेरी ज़िम्मेदारी थी—एक भगवान होने के नाते। और ये सोच कर मैं हँस पड़ा कि असलियत में मैं तो एक कम्प्यूटर प्रोग्रामर था। फिर भी, ये सब किसी भी आरपीजी या सिम्युलेशन गेम से कहीं ज़्यादा मज़ेदार लग रहा था, क्योंकि ये लड़कियां स्क्रीन पर दिखने वाले किसी भी कैरेक्टर से कहीं ज़्यादा खूबसूरत थीं।

    “सेरेना, जैसा तुम देख सकती हो, मैं तुम्हारे लिए लकड़ियाँ ले आई हूँ ताकि तुम रात का अलाव तैयार कर सको,” धृति ने दिव्य कन्या से कहा, और लकड़ियाँ फायर सर्कल तक पहुँचा कर एक ढेर में रख दीं।

    “थैंक यू!” सेरेना ने खुशी से कहा और ताली बजाई– “मुझे आग जलाने दो, और जब ये हो जाएगी तो हम सब सुबह तक आराम कर सकते हैं। वीर? क्या मैं आप से एक सवाल पूछ सकती हूँ?”

    “बिल्कुल,” मैं ने जितना हो सके उतने दोस्ताना अंदाज़ अपनाया – “क्या बात है?”

    “मुझे उम्मीद है कि ये गलत नहीं लगेगा,” दिव्य कन्या ने धीरे से कहा, “लेकिन आप का बोलने का तरीका बहुत अजीब है। खैर, मेरा असली सवाल ये नहीं है। मैं ये जानना चाहती थी कि क्या आप आज रात हमारी निगरानी करेंगे?”

    “मैं… शायद?” मैं ने कहा, क्योंकि मुझे खुद भी पक्का नहीं था। मुझे ज़रा भी थकान महसूस नहीं हो रही थी और सच कहूँ तो मैं ने कभी इतना एनर्जेटिक फील नहीं किया था। मुझे लगा शायद देव होने की वजह से अब मुझे नींद की ज़रूरत ही नहीं। तो मैं ने उस के सवाल का साफ़ जवाब देने का सोचा। “हाँ, मैं तुम पर नज़र रखूँगा। तुम्हें कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं।”

    “जान कर अच्छा लगा,” सेरेना ने हल्की मुस्कान के साथ साँस छोड़ी। और मुझे लगभग यक़ीन हो गया कि वो जल्द ही पूरी तरह मेरी पूजा करने लगेगी।

    मैं ने देखा वो कितनी स्किल्ड थी। उस ने धृति द्वारा लाई गई टहनियों को फायर रिंग के बीच में सजा दिया। फिर उस के चारों तरफ़ सूखी घास और छाल रखी। फिर अपने चकमक को तीलियों पर लगाया और खंजर से वार किया, जिस से चिंगारी निकली। तीलियाँ और छाल तुरंत जल उठे और उस ने धीरे-धीरे उस में और जोड़कर आग को बड़ा कर दिया। उस ने लपटों पर हल्की-सी फूँक मारी और देखते ही देखते उस ने परफेक्ट कैम्पफ़ायर तैयार कर दिया था।

    कम से कम अब एक टेंशन तो खत्म हुई।

    धृति और अभया ने पूजा स्थल के पास ज़मीन पर अपनी सिंपल चादरें बिछा लीं और सब जल्दी ही रात के लिए सेटल हो गईं। आसमान में तारे झिलमिला रहे थे, गार्डन पर चाँदनी की हल्की रौशनी पड़ रही थी, और लग रहा था कि रात साफ़-सुथरी बीतेगी।

    “शुभरात्रि, स्वामी,” धृति बुदबुदाई और उस की पलकों ने आँखें ढँक लीं। “आज आप ने हमें जो आशीर्वाद दिए उस के लिए धन्यवाद।”

    मुझे यक़ीन नहीं था कि मैं ने वास्तव में उन के लिए क्या किया था, लेकिन फिर भी मैं कॉम्प्लिमेंट पा कर खुश था।

    “गुडनाइट, धृति,” मैं बोला– “गुडनाइट, अभया, और गुडनाइट, सेरेना। मैं तुम्हें मेरी भाषा समझने और बोलने का भी आशीर्वाद देता हूँ। उम्मीद है तुम सब अच्छी नींद लो।”

    “गुडनाइट, वीर,” अभया और दिव्य कन्या दोनों ने जवाब दिया और लगभग तुरंत ही नींद में डूब गईं।

    कमाल है! मैं ने तो बस कहा था और वो सच में मेरी तरह बोल पड़ी थीं।

    मैं ने पूजा स्थल से चारों ओर नज़र दौड़ाई तो अहसास हुआ कि अब मेरे पास करने को कुछ नहीं। मैं ने अपना व्यू उन की तरफ़ स्विच किया, लेकिन सब कुछ ब्लैक था क्योंकि लगता था मुझे उन के ड्रीम्स देखने की कैपेबिलिटी नहीं थी। बर्ड्स-आई व्यू भी डार्क था क्योंकि सब की आँखें बंद थीं, तो मैं ने कुछ पल पूजा स्थल से उन के सोते हुए जिस्मों को देखने में ही बिता दिए।

    अभया लंबी और पतली थी, उस के शरीर पर नज़र डालते ही साफ़ पता चलता था कि उस की छाती उभरी और मज़बूत थी, और कमर बेहद पतली। धृति का फिगर थोड़ा ज़्यादा कर्वी था। सेरेना बाकी दोनों के मुकाबले बहुत नन्ही लग रही थी, और उस ने करवट ले कर खुद को अपने पंखों में ढकते हुए सिकोड़ लिया था। उस के लैवेंडर कलर पंख आग की रोशनी में चमक रहे थे, और मैं उसे काफ़ी देर तक बस देखता ही रह गया।

    लेकिन मैं हमेशा उन पर नज़र गड़ाए नहीं रह सकता था, और मानना पड़ेगा कि मैं थोड़ा बोर होने लगा था। मैं ने आग पर नज़र टिकाई और सोचा टाइम को फास्ट-फ़ॉरवर्ड करने की कोशिश करूँ। और मेरी हैरानी की बात थी कि ये वाकई काम कर गया। मैं ने तीनों को जल्दी-जल्दी करवट बदलते देखा जैसे कोई फ़ास्ट-फ़ॉरवर्ड वीडियो चल रहा हो। चाँद की मूवमेंट भी ऐसे दिख रही थी जैसे टाइम-लैप्स वीडियो हो।

    जब सूरज उगने लगा तो मैं ने पहले लालिमा देखी, फिर वो पीली हुई और फिर नीली रोशनी में बदल गई।

    सब से पहले अभया हिली। उस ने उठ कर अपने हाथ ऊपर खींचते हुए स्ट्रेच किया, और मैं चाह कर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाया कि उस की ड्रेस कैसे उसके लगभग पूरे फिगर को एक्सपोज़ कर रही थी। मुझे लगता था कि ये भूरे बाल वाली मुझे खास पसंद नहीं करती, लेकिन फिर भी मैं ने सोचा कि फ्रेंडली रहने में क्या हर्ज़ है।

    “गुड मॉर्निंग, अभया,” मैं ने अपने शब्द सीधे उस खूबसूरत औरत के दिमाग़ में भेजे। अब भी ये मुझे थोड़ा अजीब लगता था, पर यकीन था जल्दी ही मैं इस का आदी हो जाऊँगा।

    अगर ये सब मेरा कोई ड्रीम नहीं निकला तो।

    “गुड मॉर्निंग, वीर,” भूरे बालों वाली ने जम्हाई लेते हुए जवाब दिया, “क्या आप ने अच्छी नींद ली?”

    “उम… मुझे नहीं लगता कि देवता सोते हैं…” मैं ने हल्की झेंप के साथ जवाब दिया।

    “आप को तो देवताओं के बारे में बहुत कम पता है,” अभया हँसी, मगर इस बार उस का टोन दोस्ताना था।

    “हाँ, मैं तो इस पूरे झोल में बिलकुल नया हूँ,” मैं ने कबूल किया।

    “तो फिर मैं भी पुजारन बनने में नई ही हूँ,” अभया ने कहा और हल्की मुस्कान दी– “क्या आप चाहते हैं कि मैं भी बाकी के साथ आप की पूजा करूँ?”

    “मुझे नहीं लगता कि सेरेना अभी सच में मेरी फॉलोअर बनी है, लेकिन धृति तो काफ़ी डिवोटेड लगती है,” मैं ने उस से कहा– “मुझे लगता है तुम वही करो जिस में तुम कंफ़र्टेबल हो।”

    “ये तो बिलकुल भी देवता जैसा जवाब नहीं है,” अभया ने कहा और अपनी गहरी भूरी आँखें साइड में मोड़ लीं, जैसे मुझे शक्की नज़रों से देख रही हो। “एक देवता तो ज़्यादा… डिमांडिंग होता है।”

    “शायद मैं बाकी देवताओं जैसा नहीं हूँ। मैं तो बस तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूँ?”

    “ये तो बहुत फ़नी है, वीर,” भूरे बालों वाली ने हँसते हुए कहा– “देवता और इंसान की फ्रेंडशिप? ऐसा कभी सुना नहीं, और बाकी को बताने का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा। लेकिन हाँ, मानना पड़ेगा कि आप दयालु तो लगते हैं।”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 10. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 10

    Words: 1121

    Estimated Reading Time: 7 min

    अभया ने पुराने और फटे कंबल समेटे तो मैं ने सोचा कि इन औरतों के लिए सही बिस्तर बनाना ज़रूरी है। धृति और सेरेना भी उठीं; सेरेना लकड़ी लेने जंगल की ओर गई। धृति ने मुझ से बात की और बताया कि उस ने मुझे सपने में देखा। मैं ने खाने की कमी की चिंता जताई और धृति व अभया से शिकार पर जाने को कहा, ताकि पाँच तरह का मांस मिल सके। जलजा (धृति) ने कहा कि उसे पानी चाहिए और पास की धारा ढूँढना चाहती है। मैं ने भाला बनाने का वादा किया और उस के साथ धारा तक जाने की इच्छा जताई।


    “इससे ज़्यादा खुशी की बात कुछ और नहीं हो सकती, स्वामी।” बैंगनी त्वचा वाली ने सिर झुका कर हाथ जोड़ लिए जैसे प्रार्थना कर रही हो– “क्या हम अभी चलें?”


    “जितनी जल्दी हो सके उतना अच्छा,” मैं ने उत्साहित लहजे में कहा– “अभया, तुम यहाँ अकेली रह लोगी?”


    “हाँ, बिल्कुल,” भूरे बाल वाली ने थोड़े हैरतज़दा शक्ल के साथ जवाब दिया– “मैं अकेली ठीक रहूँगी, और सेरेना भी जल्द ही लकड़ी ले कर लौट आएगी।”


    “तो चलो, धृति,” मैं ने कहा, और जलजा फाटक से निकल गई।


    जैसे ही मैं पूजा स्थल से दूर हुआ, मेरा नज़रिया अपने आप धृति की तरफ़ शिफ्ट हो गया। लगता था मेरा दृष्टिकोण उस औरत पर निर्भर करता है जो मेरे सब से पास हो, लेकिन मैं ने थोड़ा प्रयोग किया तो पाया कि मैं अब भी अभया की आँखों से देख सकता था जब कि वह गार्डन में बैठी थी, और सेरेना की आँखों से भी जो जंगल में लकड़ी तलाश रही थी।


    धृति चलते-चलते बोली, “मुझे लगता है रास्ता इसी तरफ़ है, स्वामी।” वह मुझे एक छोटी पहाड़ी से नीचे घने पेड़ों के बीच ले गई। कुछ ही दूर चलने के बाद हम एक मध्यम आकार की धारा के किनारे पहुँच गए, “ओह, मैं बहुत खुश हूँ कि हमें ये मिल गई!”


    उस की आँखों से मैं साफ़, ताज़ा पानी को चट्टानों के बीच बहते देख रहा था। छोटे-छोटे चमकीले मछलियों के झुंड तालाब जैसी जगह में तैर रहे थे। मैं ने सोचा, क्या यहाँ कोई बड़ी मछलियाँ भी होंगी, क्योंकि इतनी छोटी मछलियाँ ज़्यादा काम की नहीं थीं। फिर भी, नज़ारा बेहद ख़ूबसूरत था।


    तभी मैं ने कुछ और देखा।


    एक हल्की सफ़ेद कपड़े की परत ज़मीन पर गिरी, और मुझे एहसास हुआ कि वो धृति की ड्रेस का हिस्सा था। उस के नज़रिए से मैं ने देखा कि वह पानी में उतर गई, लेट गई और अपने ऊपर पानी के छींटे मारने लगी।


    फिर उस की आँखें उस के शरीर की ओर गईं—और मुझे अहसास हुआ कि मैं उसे पूरी तरह बे-लिबास देख पा रहा हूँ।


    ओ शिट।


    मैं कुछ पल धृति के मुलायम हिस्सों को बहते पानी में ऊपर-नीचे होते देखता रह गया, फिर अचानक याद आया कि मेरे पास अपनी दृष्टि पूरी तरह बंद करने की क्षमता है। मैं उस की प्राइवेसी भंग नहीं करना चाहता था, हालांकि मुझे यक़ीन था कि उसे पता होगा कि मैं देख सकता हूँ।


    अजीब बात यह थी कि उस के नग्न शरीर को देख कर भी मुझे कोई शारीरिक प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी, लेकिन दिमाग़ ग़लत दिशाओं में भटकने लगा।


    “ए… धृति?” मैं ने गला खँखारते हुए अंधेरे में कहा– “तुम्हें… तुम्हें पता है न कि मैं तुम्हें देख सकता हूँ?”


    “क्या हुआ, स्वामी?” जलजा ने थोड़ी हैरानी से पूछा– “कुछ ग़लत है? मैं ने तो बताया था कि मैं धारा में नहाने वाली हूँ।”


    “उम्म… हाँ, शायद तुम ने कहा था,” मैं ने जवाब दिया– “बस मुझे ये नहीं पता था कि तुम इस तरह…”


    “मैं समझी नहीं,” धृति की आवाज़ उलझन भरी थी– “एक जलजा का यही तरीका होता है। हम जितना हो सके पानी के साथ ऐसे ही जुड़ते हैं।”


    “ठीक है, समझ गया,” मैं ने अपनी आवाज़ को सामान्य रखने की कोशिश करते हुए कहा– “तुम नदी से जुड़ो, मुझे ऐतराज़ नहीं। लेकिन मैं सोचता हूँ अभी थोड़ी देर के लिए अभया और सेरेना को देख लूँ। मछली पकड़ने की बात बाद में कर लेंगे।”


    “जैसा आप चाहें, स्वामी,” धृति ने बहते पानी की आवाज़ के बीच कहा– “मैं बहुत ख़ुश हूँ कि फिर से पानी में हूँ। अगर आप को सही लगे तो यहाँ एक-दो घंटे ऐसे ही बिताना चाहूँगी।”


    “हाँ, ठीक है,” मैं बोला–  “मैं थोड़ी देर बाद मिलूँगा।”


    “विदा, स्वामी,” उस ने संतोष की साँस भरते हुए कहा। साफ़ था कि वह अपने स्नान का भरपूर आनंद ले रही थी।


    वह अपने शरीर को ले कर तनिक भी शर्मिंदा नहीं लग रही थी, और उस की मासूमियत ने मुझे छू लिया। मैं ने फिर से सोचा कि क्या कभी मुझे भी इन औरतों से भौतिक रूप में मिलने का मौका मिलेगा।


    मैं ने नज़रिया वापस पूजा स्थल पर शिफ्ट किया और देखा कि सेरेना लौट आई थी। उस ने जंगल से लाई लकड़ियों से आग फिर से सुलगा दी थी, पर हमें असली ज़रूरत बड़ी लकड़ियों की थी, जो बिना औज़ारों के लाना मुश्किल था। जब तक जंगल में कोई गिरी हुई बड़ी लकड़ी न मिल जाए।


    हमें सच में कुछ औज़ारों की ज़रूरत थी।


    “वीर ने कहा था कि हमें धनुष बनाना है,” अभया अपनी साथी से कह रही थी– “मुझे तो अब और ये हालात बर्दाश्त नहीं हो रहे। अगर मुझे और खाना लाने के लिए सड़क तक जाना पड़ा, तो मैं जाऊँगी। ये सब थोड़ा—”


    “अभया और सेरेना,” मैं ने बीच में टोका। अब भी उन के दिमाग़ में सीधा बोलना अजीब लगता था, लेकिन और कोई चारा नहीं था। “अगर हमारे पास लकड़ी ही नहीं होगी तो हम आगे नहीं बढ़ पाएँगे। हमें औज़ार चाहिए ताकि हथियार बना कर शिकार कर सकें। और हालाँकि मैं ने कल धनुष बनाने की बात की थी, लेकिन जब मैं धृति के साथ धारा पर गया था तो मुझे लगा कि मछली भाले से पकड़ना कहीं आसान रहेगा। और भाला बनाना बहुत मुश्किल भी नहीं है। अगर हम एक पत्थर का हैण्ड ऐक्स बना लें, तो उस से आसानी से एक पेड़ का पतला तना काट कर नुकीला कर सकते हैं। लेकिन उस से पहले हमें सही आकार का चकमक पत्थर चाहिए।”


    “जी स्वामी, मैं आपके इरादे समझ रही हूँ,” सेरेना बोली। मुझे अब भी यक़ीन नहीं था कि वह पूरी तरह मेरी अनुयायी बनी है या नहीं, लेकिन जब वह मुझे “स्वामी” कहती थी तो अच्छा लगता था। “मुझे लगता है मैं सही पत्थरों को पहचान सकती हूँ। चकमक अक्सर नदी किनारों पर मिलता है, है न? क्या धृति को कोई धारा मिली?”


    “हाँ, और वो अभी वहीं पर है—” मैं ने कहना शुरू किया।


    “मैं भाले का इस्तेमाल जानती हूँ,” अभया ने अचानक रौबदार आवाज़ में कहा– “मैं ने कई बार शिकार किया है। शायद इस काम में मुझे ही अगुवाई करनी चाहिए।”



    ⋙ (...To be continued…) ⋘



    कब मिलेगा वीर को शरीर? मैं नहीं बताऊँगा। 🤣

  • 11. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 11

    Words: 1082

    Estimated Reading Time: 7 min

    “हम सब मिल कर करेंगे तो ज़्यादा अच्छा होगा,” सेरेना ने नरमी से टोका– “काम बहुत है, और ज़्यादा हाथों से आसानी होगी। तुम मेरे साथ धारा के पास चलो, वहीं हमें सही पत्थर मिल सकता है।”

    “हाँ, यह अच्छा प्लान है,” मैं ने सबसे गहरी और दिव्य-सी आवाज़ में कहा। “मैं तुम तीनों को थोड़ी प्राइवेसी देता हूँ। बगीचे के गेट से बाहर निकलो और दायीं तरफ जाओ, फिर ज़मीन ढलान पर उतरती है। वहाँ से पेड़ों के बीच से होते हुए चलोगी तो धारा मिल जाएगी।”

    “जैसा आप चाहें, स्वामी,” सेरेना ने सिर झुकाया– “हम जल्द ही पत्थर ले कर लौटेंगे।”

    “अभया, क्या तुम एक कड़ा, गोल पत्थर ढूँढ सकती हो?” मैं ने पूछा, क्योंकि मैं चाह रहा था कि उसे भी कोई अहम ज़िम्मेदारी दूँ।

    “हाँ, हमें हैमरस्टोन चाहिए कुल्हाड़ी बनाने के लिए, सही कहा ना?” अभया ने सोचते हुए कहा।

    “बिलकुल सही, तुम ने समझ लिया,” मैं बोला। मैं उन के ज्ञान से प्रभावित था, और अब मुझे लग रहा था कि काम मेरी उम्मीद से आसान हो सकता है।

    वे सब मेरी निगाह से ओझल हो गईं, और मैं सोचने लगा कि और क्या काम जल्दी पूरे कराने चाहिए। धनुष तो है ही, लेकिन शिकार के साथ-साथ हमें जंगली जानवरों या उन “प्राणियों” से भी बचना है जिन का ज़िक्र धृति ने किया था। मेरे दिमाग़ में ओगर, ट्रोल्स और ड्रैगन तक की तस्वीरें घूम गईं। और तीनों में से किसी को भी खोने का ख़याल तक डरावना था।

    हथियार बेहद ज़रूरी था। मुझे लगा कि एक गुलेल भी बनवाना मज़ेदार होगा, और मैं सेरेना की क्राफ्टिंग स्किल को ले कर उत्सुक था कि उसे पहले से कितना आता है। हमें बहुत सारी रस्सियाँ चाहिए थीं, जिन्हें बनाना आसान लग रहा था, मगर बिना हाथों के किसी को गांठ बाँधना सिखाना मुझे मुश्किल लग रहा था।

    देवता होना अपनी जगह काफ़ी कूल था—जैसे ये मेंटल इंटरफ़ेस, अलग-अलग व्यूज़, और सुंदर लड़कियों द्वारा मेरी पूजा। लेकिन अच्छा होता अगर मेरा शरीर ज़मीन पर होता ताकि मैं उन के कामों में हाथ बँटा पाता।

    और अगर वो मेरे शरीर की वैसे ही पूजा करतीं जैसी दिमाग़ में गूंजती आवाज़ की करती थीं, तो फिर तो…. हाय…. कल्पना भी नहीं कर सकता। 

    मैं ने हल्की झुंझलाहट में साँस छोड़ी। आज का दिन लंबा होने वाला था, लेकिन उम्मीद थी कि हम कुछ प्रॉडक्टिव कर पाएँगे। मैं अभया के लिए शिकार मिलने और उस के पेट में असली मांस जाने का इंतज़ार कर रहा था। साफ़ दिख रहा था कि वो किसी काम की लीड लेना चाहती है। अचानक मेरे दिमाग़ में आया कि हम एक साथ तीन भाले बना सकते हैं, ताकि हर लड़की के पास अपना हो। और ये इतना सिंपल होगा कि उन की क्राफ्टिंग स्किल कैसी भी हो, सब इस में हाथ बँटा सकेंगी।

    थोड़ी देर बाद अभया, सेरेना और धृति लौट आईं, और मुझे अंदर ही अंदर खुशी हुई जब देखा कि अभया और दिव्य कन्या ने वो पत्थर ढूँढ़ लिए थे जिन का मैं ने सुझाव दिया था। धृति फिर से अपने प्राचीन अंदाज़ कपड़ों में थी, और वो इतने गीले थे कि जैसे उस ने कोई वेट-टी-शर्ट कॉन्टेस्ट जीता हो। मुझे ख़ुद को बार-बार याद दिलाना पड़ा कि उस की प्राइवेसी इन्वेड न करूँ। वो इतनी मासूम लगती थी कि मैं चाहता था अगर कुछ भी इंटिमेट हो तो उस की मर्ज़ी से हो।

    इंटिमेट? मैं तो साफ़ तौर पर बहुत आगे सोच रहा था।

    “सेरेना, अभया, ग्रेट जॉब,” मैं ने दोनों की तारीफ़ की– “धृति, तुम ने देखा था कि धारा में कौन-सी मछलियाँ थीं?”

    “हाँ मेरे स्वामी,” खूबसूरत जलजा बोली और उस के चेहरे पर चमकदार मुस्कान आई, जब वो अपने घने बालों से पानी निचोड़ रही थी। “मैं ने ट्राउट देखीं, जो खाने के लिए बिल्कुल सही होंगीं।”

    “ग़ज़ब, धृति!” मैं ने उसे एन्करेज किया और नज़रें चुराने की कोशिश की, ताकि उस के भीगे कपड़ों से झलकती खूबसूरती पर अटक न जाऊँ। “तो चलो, टूल्स बनाना शुरू करते हैं। मैं ने डिसाइड किया है कि तुम सब के पास अपना-अपना भाला होगा—शिकार, मछली पकड़ने और डिफ़ेंस के लिए।”

    “हम्म, ये तो मुझे पहले सोचना चाहिए था,” अभया ने साँस छोड़ी।

    “तुम्हारे दिमाग़ में पहले से बहुत कुछ चल रहा है,” मैं ने कहा– “मैं मदद करने के लिए हूँ।”

    “हाँ,” उस ने हल्की मुस्कान के साथ हामी भरी। “मैं तो बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूँ ग्रुप को लीड करने का, जब भाले बन जाएँगे।”

    “कमाल रहेगा, अभया,” मैं ने जितना हो सका नरमी से कहा– “हमें सच में तुम्हारे एक्सपर्टीज़ की ज़रूरत है।”

    “जी, थैंक यू,” भूरे बाल वाली बुदबुदाई, लेकिन उस के हल्के गुलाबी गाल बता रहे थे कि उसे मेरी तारीफ़ अच्छी लगी।

    “तो, क्या किसी को पता है कि हैंड ऐक्स(कुल्हाड़ी) कैसे बनाते हैं?” मैं ने पूछा।

    “मैं ने पहले कभी बनाया तो नहीं, लेकिन देखा है और मुझे लगता है बेसिक आइडिया समझती हूँ,” सेरेना बोली। बाक़ी दोनों ने सिर हिला दिया।

    “ठीक है, तो तुम सब बारी-बारी से उस पर काम करोगी, ताकि सब को नई स्किल सीखने का मौका मिले,” मैं ने कहा।

    “जी मेरे स्वामी, ये अच्छा सुझाव है,” धृति धीमे स्वर में बोली। 

    सेरेना ने करीब एक फ़ुट चौड़ा, धूसर-सा पत्थर दोनों हाथों से उठाया हुआ था। मैं बगीचे में नज़र दौड़ा रहा था कि कहीं कोई बड़ी, सपाट चट्टान मिल जाए जिस पर काम किया जा सके। आखिरकार मुझे एक सेब के पेड़ के ठीक उल्टे कोने में एक खाली जगह में चट्टान दिख गई।

    “सेरेना, उस कोने वाली चट्टान पर ये पत्थर रख दो,” मैं ने सुझाव दिया। काश मैं इशारा कर पाता, लेकिन गुलाबी बालों वाली दिव्य कन्या ने तुरंत जगह पहचान ली। शायद यही उस की गहरी समझ (परसेप्शन) का कमाल था।

    सेरेना पत्थर ले कर वहाँ गई और उसे रख दिया, फिर मुस्कुराई।

    “ये तो मज़ेदार चैलेंज था, वीर। अच्छा लगा कि मैं आप के लिए इसे कर पाई।”

    “मैं ने वैसा ही पत्थर ढूँढ लिया है जैसा आप ने कहा था,” अभया ने बताया और एक गोल, भूरे रंग का पत्थर हवा में उठा कर दिखाया। फिर सेरेना के पास आ खड़ी हुई।

    कुछ ही देर में धृति भी आ गई, और तीनों कन्याएँ उस चट्टान के चारों ओर गोल घेरा बना कर खड़ी हो गईं जिस पर पत्थर रखा था।

    “देखो, अगर इस हथौड़ी जैसे पत्थर से बड़े पत्थर को मारोगी, तो उस की परतें उतरनी शुरू हो जाएँगी,” मैं ने समझाया– “ये थोड़ा सब्जेक्टिव काम है—हर बार देखना होगा कि किस दिशा से मारने पर सही आकार बनेगा। काफ़ी मेहनत लगेगी, इसलिए मेरा सुझाव है बारी-बारी से करो।”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 12. द ग्रेट लॉर्ड! - Chapter 12

    Words: 1059

    Estimated Reading Time: 7 min

    “जी, स्वामी,” जलजा ने कहा, उस की बड़ी नीली आँखों में दृढ़ता चमक रही थी। “आओ, हम सब इस के चारों ओर बैठ कर और काम शुरू करते हैं। सेरेना, तुम शुरुआत करोगी? कोशिश करना कि इसे कील जैसी आकृति मिले।”


    “और एक बात ध्यान रखना—हथ्था छोड़ना ज़रूरी है,” मैं ने जोड़ा– “बिना पकड़ के लकड़ी काटना मुश्किल होगा। एक तरफ़ कील जैसा नुकीला हिस्सा बनाओ, लेकिन नीचे लंबा हिस्सा छोड़ दो ताकि उसे पकड़ सको।”


    “समझ गई, और मुझे काम शुरू करने में खुशी होगी,” दिव्य कन्या बोली। उस ने हथौड़ी-पत्थर उठाया और धीरे-धीरे बड़े पत्थर को तोड़ना शुरू किया। पहले तो उस का हाथ झिझक रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उस में आत्मविश्वास आ गया, और पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े झरने लगे। अंत में उस ने नीचे देखते हुए उत्साह से कहा, “लगता है अब मैं समझने लगी हूँ। एक प्राकृतिक धार उभरती दिख रही है। आप देख रहे हैं, स्वामी?”


    “हाँ, बिल्कुल!” मैं ने देखा कि धीरे-धीरे त्रिकोण-सा आकार बन रहा था, साथ में एक छोटा-सा पत्थर का हैंडल भी निकल रहा था। सेरेना की तरक़्क़ी से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ। “तुम शानदार काम कर रही हो। क्या कोई और इसे आज़माना चाहेगा? सेरेना, मुझे यक़ीन है हाथों पर ज़ोर पड़ रहा होगा।”


    “ओह, नहीं, मैं ठीक हूँ,” सेरेना शरमा कर बोली और नज़रें झुका लीं– “लेकिन मुझे खुशी होगी अगर कोई और भी इसे आज़माए, ताकि सब सीख सकें।”


    “क्या अब मेरी बारी आ सकती है?” अभया ने पूछा– “आख़िर हथोड़ी-पत्थर मैं ने ही ढूँढा है…”


    “ज़रूर, बहन।” सेरेना ने गोल पत्थर उस की ओर बढ़ा दिया। 


    अभया धीरे-धीरे चकमक पत्थर को दिव्य कन्या के डिज़ाइन के मुताबिक़ तराश रही थी। वह पत्थर की नैचुरल दरारों को गौर से देखती और उसी हिसाब से टुकड़े तोड़ती। उस की तकनीक देख कर भी मैं इम्प्रेस हुआ।


    कुछ देर बाद उस ने मुस्कुराते हुए सिर उठाया।


    “लगता है मैं ने काफ़ी प्रोग्रेस कर ली है, लेकिन धृति को अभी मौका नहीं मिला,” भूरे बालों वाली ने बाकी दोनों को देखा – “मैं थकी नहीं हूँ, लेकिन लगता है हम सब को ये स्किल्स सीखनी चाहिए।”


    “मैं कोशिश करूँगी,” बैंगनी त्वचा वाली जलजा खिलखिलाई– “मैं ने कभी ज़्यादा धरती से जुड़ी चीज़ों पर काम नहीं किया, क्योंकि मेरा नेचर पानी से जुड़ा है। लेकिन मैं पूरी कोशिश करूँगी।”


    धृति ने अभया से पत्थर लिया और सावधानी से काम शुरू किया। पहले उस ने छोटे-छोटे हिस्से तोड़े, फिर चेहरे पर मुस्कान आई जब उस ने देखा कि औज़ार धीरे-धीरे आकार लेने लगा है।


    “इन छोटे-छोटे टुकड़ों को ज़रूर संभाल कर रखना,” मैं ने उन से कहा– “इन से हम आगे और टूल्स बना सकते हैं।”


    “हाँ, मेरे स्वामी,” जलजा ने सिर हिलाया और सारे टुकड़े एक तरफ़ सलीके से इकट्ठा कर दिए।


    कुछ ही मिनटों में औज़ार तैयार लग रहा था—इतना तो था कि छोटे पेड़ काट कर भाले बनाए जा सकें। मैं ने सोचा शायद कोई नया नोटिफ़िकेशन मेरे इंटरफ़ेस पर पॉप-अप होगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। शायद असली टेस्ट तब होगा जब लड़कियां सच में पाँच तरह का प्रोटीन इकट्ठा करके पकाएँगी।


    “लगता है ये काम हो गया!” मैं ने उन से कहा– “अब हमें जंगल जा कर लकड़ी ढूँढनी होगी। लेकिन क्या तुम पहले थोड़ा आराम करना चाहोगी? और कुछ खा भी लो।”


    “अगर मैं ने एक और सेब या आम खाया तो बीमार पड़ जाऊँगी,” धृति हँस दी – “और मेरे ख्याल से ये दोनों भी यही सोच रही होंगी। शायद हमें दोपहर का खाना स्किप करके लकड़ी ढूँढने जाना चाहिए। शाम से पहले शायद मैं मछली भी पकड़ लूँ।”


    “सही प्लान है,” मैं ने हामी भरी। मैं नहीं चाहता था कि वो थक जाएँ, लेकिन सिर्फ़ फल खाने से उन्हें असली प्रोटीन नहीं मिल रहा था।


    तीनों उठीं और अंगड़ाई लेने लगीं। सेरेना ने नया औज़ार उठाया। उस की तसल्ली साफ़ दिखा रही थी कि वह अपने काम पर ख़ुश थी। 


    “तो, जंगल में हमें असल में करना क्या है, मेरे स्वामी?” धृति ने पूछा।


    “तुम्हें कुल्हाड़ी का इस्तेमाल कर के पतली डालियाँ काटनी होंगी, भालों के लिए,” मैं ने जलजा को समझाया– “टेक्नीक मैं जंगल में डिटेल से बताऊँगा।”


    “और हमें किस तरह के पेड़ ढूँढने हैं?” सेरेना का सवाल आया। 


    “हमें तीन छोटे पेड़ ढूँढने होंगे जिन से भाले बनाए जा सकें,” मैं ने समझाया– “बेहतर होगा अगर उन की टहनियाँ ज़्यादा न हों और तना स्मूथ हो।”


    “हाँ, बिल्कुल सही,” अभया ने सिर हिलाते हुए कहा। मैं ने सोचा इस की लीडरशिप इंस्टिंक्ट को ट्रिगर करना सही रहेगा।


    “अभया, क्यों न तुम रास्ता दिखाओ? शायद तुम सही पेड़ पहचानने में मदद कर सको।”


    “धन्यवाद, वीर, मुझे ये करना अच्छा लगेगा,” वो मुस्कुराई।


    लग रहा था कि मैं उस के साथ सही अप्रोच पकड़ रहा हूँ, और ये मुझे अच्छा लगा।


    वो बगीचे से निकल कर जंगल की ओर बढ़ीं। जब वे मेरी नज़रों से ओझल हुईं, तो मैं ने अभया की दृष्टि से देखना शुरू किया क्योंकि वही सब से आगे चल रही थी। काश मेरी देव-शक्ति में उन के दिमाग़ पढ़ने की क्षमता भी होती, ताकि मैं जान पाता वे मेरे बारे में क्या सोचती हैं।


    अभया बाकी दो को ले कर करीब सौ फ़ीट अंदर जंगल में गई। तभी मैं ने सेरेना की संतोषभरी साँस सुनी। शायद इसलिए कि वह अपने नेचुरल हैबिटैट में थी। मुझे भी जंगल में वापसी कर के अच्छा लगा। पेड़ों से छन कर आती धूप की किरणें, पैरों के नीचे चीड़ की सुइयों और टहनियों की चरमराहट, सब कुछ मुझे सुकून दे रहा था। मैं ने पेड़ों की छाल पर उग रहे रंग-बिरंगे कवक देखे, और दूर एक बड़े सींगों वाला हिरण भी नज़र आया। ऊपर पंछियों की चहचहाहट गूंज रही थी, और धीरे-धीरे मेरी वो बेचैनी कम होने लगी जो तब से थी जब मैं ने महसूस करना शुरू किया था कि ये कोई सपना नहीं है।


    जंगल हमेशा से मेरी पसंदीदा जगहों में से रहा है, और मैं ने घंटों ऑनलाइन वीडियोज़ देखे थे कि कैसे प्रीहिस्टोरिक औज़ार और स्ट्रक्चर बनाए जाते हैं। शायद ये मेरी किस्मत थी, या फिर यही वजह थी कि मुझे देवता बनने के लिए चुना गया। 


    वैसे, मुझे नहीं लग रहा था कि सिंपल भाले बनाना मुश्किल होगा, और इस से लड़कियां वुडवर्किंग की शुरुआत कर सकेंगी। हालांकि, मैं जानना चाह रहा था कि सेरेना को पहले से कितना एक्सपीरियंस है। 


    “सेरेना, तुम ने कहा था तुम क्राफ्टिंग में एक्सपर्ट हो, तो अब तक क्या-क्या बनाया है?” मैं ने दिव्य कन्या से पूछा।



    ⋙ (...To be continued…) ⋘