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बैड बॉयज (लव एडिशन)

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Sarvam

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माफिया किंग फॉल इन लव विथ क्यूट बॉय!

Total Chapters (181)

Page 1 of 10

  • 1. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 1

    Words: 1321

    Estimated Reading Time: 8 min

    गोवा का माफिया किंग और एक नाइट क्लब के मालिक का बिगडेल बेटा। अ गै लव स्टोरी!






    अथेना, नाईट क्लब

    रात का समय था जब एक पच्चीस वर्षीय युवक लिफ्ट के बाहर निकल कर तेजी से क्लब से निकलने में लगा था की किसी ने उसका रास्ता रोक लिया “बॉस कुछ कॉलेज गोइंग आपस में लड़ रहे है।”

    “तो उन्हें संभालने की जगह तुम मुझे क्यों बता रहे हो? बाउंसर्स किसलिए रखे हुए है हमने?” वह युवक कोई और नहीं क्लब का पहला मालिक मार्क था।

    “हम नहीं संभाल पा रहे बॉस। इससे पहले की कुछ हो जाये आप प्लीज चलिए।” क्लब में काम करने वाले एक आदमी ने कहा तो मार्क झल्ला उठा। कही जल्दी पहुचने की जरुरत थी उसे।

    “एक काम करो पुलिस को बुला लो। रोज का हो चूका है अब इन लोगो का। अच्छी खासी मरम्मत मिल जाये एक आध को तो सब लाइन पर आ जायेंगे।” मार्क ने उस आदमी को आदेश दिया और एक नजर उस झगडे को देखने के लिए पंहुचा।

    दो ग्रुप आपस में भीड़ रहे थे। मुश्किल से आगे जाने का रास्ता बना कर मार्क बिच में पंहुचा। इससे पहले की वो लड़का सामने वाले को पंच मारता मार्क ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया।

    लड़के का चेहरा ठंडा पड़ गया। गुस्से में उसने देखना चाहा की आखिर किसने उसे रोकने की हिम्मत की थी? पर जैसे ही उसने मार्क को देखा उसका हाथ ढीला पड़ गया। साथ ही उसके चेहरे के भाव भी बदल गए।

    उस लड़के के रुकते ही सामने की तरफ से भी शांति छा गयी। सब अपनी जगह रुक चुके थे। मार्क ने पहले वाले लड़के को पीछे धकेल कर सबको चेतावनी दी “यहाँ आना है तो अपना एटिट्यूट बाहर छोड़ कर आओ। तुम लोगो के बाप का घर नहीं है जो मर्जी आए करने के लिए। सिक्यूरिटी पकड़ कर रखो इन्हें , जब तक की पुलिस नहीं आ जाती।”

    सबने आंखे बड़ी कर ली। वही पहले वाला लड़का अभी भी खुदको धकेले जान के बाद खोया हुआ था ,उसने तुरंत ही होश में आकर कहा “प्लीज ऐसा मत कीजिये मार्क।”

    मार्क ने एकदम से उसकी तरफ पलट कर देखा और अगले ही पल गुस्से से उसका चेहरा लाल पड़ गया “विकास मेहरा? अंदर किसने आने दिया इसे?”

    वो लड़का विकास हलके से सहम कर रह गया। वही सिक्यूरिटी वालो ने सर झुका लिया। ये देख कर मार्क का गुस्सा बढ़ गया। उसने सर्द नजरे अपने स्टाफ पर डालने के बाद कहा “तुम लोगो को वापस आकर  देखूंगा मै।”

    इतना कह कर वह तेजी से सबके बिच में से निकल गया। लडको ने पुलिस का नाम सुन कर मार्क के जाते ही निकलना चाहा पर बाहर जाने के सभी रास्तो को बंद कर दिया गया था।     

    क्लब से निकल कर मार्क सीधे सिटी हॉस्पिटल पंहुचा। रिसेप्शन पर उसने किसी के बारे में पूछा जिसके बाद तुरंत ही वह उन्हें ढूंडते हुए एक जगह जाकर उसके कदम ठिठक गए। डॉक्टर के सामने एक उसी की उम्र का लड़का हाथ में अभी जन्मा हुआ बच्चा लेकर खड़ा था। दूसरा तिन साल का बच्चा उसकी टांग पकड़ कर खड़ा था।

    “रिशु!” मार्क ने उसे पुकारा तो देखा ऋषभ सुन्न होकर खड़ा था। उसके कदम लडखडाने लगे तो मार्क ने ऋषभ के साथ साथ बच्चे को भी पकड़ लिया। बच्चे की किलकारिया पुरे कोरिडोर में गूंज रही थी।

    मार्क को देख कर डॉक्टर ने फिर अपनी बात दोहराई “सॉरी मिस्टर दीक्षित! हम आपकी वाइफ को नहीं बचा सकते। उनके पास काफी कम समय है , उनसे मिल लीजिये एक आखिरी बार।”

    मार्क भी ये सुन कर दंग रह गया “आप.. आप क्या बोल रहे है डॉक्टर? उसे बचाइए, चाहे आपको कुछ भी करना पड़े।”

    डॉक्टर ने सर झुका लिया “हमने अपनी पूरी कोशिश की , इससे आगे सिचुएशन हमारे हाथ में नहीं।”

    डॉक्टर ने हलके से उपर देख कर हाथ उठाये जैसे यही भगवन की मर्जी हो कहने के लिए। फिर वो उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए।

    “डेड .. मम्मा को क्या हुआ? कहा है वो?” उस तिन साल के बच्चे ने चेहरा उठा कर सवाल किया। मगर ऋषभ की तरफ से उसे कोई जवाब ना मिला।

    मार्क ने मुश्किल से ऋषभ को बेंच पर बिठाया और उस तिन साल के बच्चे को देख कर कहा “ऋषि बेबी! डेड के पास रहना हनन। मै आपकी मम्मा से मिल कर आता हु।”

    ऋषि ने अच्छे बच्चे की तरह हां में सर हिलाया तो मार्क अपनी गोद में उस नवजात बच्चे को लेकर उस वार्ड में पंहुचा जहा ऋषभ की पत्नी रुशाली दीक्षित अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी।

    बच्चे की आवाज कानो में पड़ते ही रुशाली ने हलके से आंखे खोल कर उसे देखा और उसकी आँखों से आंसू बह निकले। मार्क ने तुरंत ही उसके आंसू को साफ करते हुए कहा “ये बेवकूफ ऋषभ , बच्चा होने की ख़ुशी में पागल हो चूका है। इसलिए अंदर नहीं आया।”

    रुशाली ने फीकी हंसी के साथ कहा “मुझे पता है वो क्यू अंदर नही आया। मेरे जाने का समय आ चूका है ना। सह नहीं पा रहा होगा। संभाल नही पा रहा होगा खुदको।”

    “ऐसा मत कहो रूशाली। कुछ नहीं होगा तुम्हे।” मार्क ने मुश्किल से कहा। उसकी आवाज रुंध चुकी थी। रुशाली और ऋषभ उसके पुराने और काफी करीबी दोस्त थे। उन दोनो को घर से भगाने को लेकर उनकी शादी करवाने वाला भी मार्क ही था।

    “एक वादा करोगे मुझसे?” रुशाली ने धीमी आवाज में कह कर अपना हाथ आगे बढाया।

    मार्क ने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ लिया “तुम.. तुम ज्यादा बात मत करो और ये देखो ये बच्चा! बिलकुल रिशु की तरह दीखता है ना। अब उसे शिकायत नहीं रहेगी की उसका बच्चा सिर्फ तुम पर गया है।”

    रुशाली ने हां में सर हिला कर कहा “आय एम् सॉरी मार्क! मेरे कारन तुम्हारा प्यार पूरा नहीं हो पाया। लेकिन फिर भी तुम हमारे साथ अपने टूटे हुए दिल को लेकर हर पल खड़े रहे। शायद मेरा और रिशु का साथ यही तक था। आज से वो तुम्हारा है। उसे और बच्चो को तुम्हारे भरोसे छोड़ कर जा रही हु। खयाल रख लोगे ना उनका?”

    “क्या .. बकवास कर रही हो?”, मार्क की आंखे बह निकली थी “वो तुमसे बहुत प्यार करता है। उसे छोड़ कर जाने की बात मत करो। वो कैसे जियेगा तुम्हारे बिना? बच्चे कैसे रहेंगे? उन्हे ना की जरूरत है।”

    “तभी तो सबको तुम्हारे भरोसे छोड़ रही हु। तुम्हारे सामने मेरा प्यार कुछ भी नहीं। क्युकी उसमे त्याग शामिल नहीं था। जितना प्यार करते हो उतना दे भी देना उसे। जरूरत पड़ी तो बीवी बन जाना, जरूरत पड़ी तो मां। बाकी मेरे परिवार को खुश देख कर ही मै खुश हो जाउंगी। इसलिए वादा करो मुझसे, तुम ये मेरे लिए जरुर करोगे। तुम्हे हमारी दोस्ती की कसम! तुम्हे तुम्हारे प्यार की कसम!” रुशाली ने कहा। उसकी सांसे भारी हो रही थी।

    मार्क ने अपना सर झुका लिया तो रुशाली ने मुस्कुराते हुए एक बार अपने बच्चे को देखा “इसका नाम रोहन रखना। मैंने बहुत पहले सोच रखा था।”

    मार्क की आँखों से झर झर आंसू गिरने लगे तो रुशाली ने प्यार से रोहन के सर पर हाथ फिरा कर उसे करीब लेना चाहा। मार्क ने उसे आगे किया तो रुशाली ने उसके माथे को चूम लिया “एक आखिरी बार बोलोगे रिशु को मुझसे बात करने के लिए?”

    “मेरे बारे में कुछ नहीं कहोगी तुम।” मार्क ने कहा तो रुशाली ने हलके से सर हिलाया। बच्चे को उसके पास ही रख कर मार्क पीछे हटा और ऋषभ को बुलाने चला गया।

    रुशाली उसे जाते हुए देख धीमी आवाज में बोली “क्या तुम भूल गए मार्क की मैंने कभी किसी की नहीं सुनी? आज भी नहीं सुनूंगी।” 

    कुछ देर बाद उस वार्ड से ऋषभ के जोर जोर से रोने की आवाज मार्क के कानो में बाहर तक पड़ रही थी। ऋषी डर कर मार्क से चिपक गया। मार्क के आंसू भी दुबारा बहने लगे। शायद , शायद रूशाली सच में सबको उसके भरोसे छोड़ कर जा चुकी थी।

    आगे जानने के कहानी के साथ बने रहे। प्लीज मेरी दुसरी कहानियां भी पढ़कर देखना आपको पसंद आएंगी।

  • 2. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 2

    Words: 1284

    Estimated Reading Time: 8 min

    रुशाली के जाने से दीक्षित मेंशन काफी सुना पड़ चुका था। उस घर में कुछ सुनाई दे रहा था तो बस एक बच्चे के रोने की तेज आवाज। घर के हॉल में रुशाली की तस्वीर के सामने दिया जल रहा था और ऋषभ वहीं रोहन को गोद में लिए बैठा था। बच्चा इतना ज्यादा रो रहा था, लेकिन ऋषभ का ध्यान कहीं और ही था। रोने के लिए आंसू भी बचे नहीं थे उनमें अब। "ऋषभ क्या कर रहे हो? कम से कम बच्चे पर तो ध्यान दो?” मार्क ने हलकी नाराजगी से कहा। ऋषभ के कानो में जैसे उसकी बात पहुंची ही नही थी। एक ठंडी साँस छोड़ते हुए मार्क ने रोहन को अपनी गोद में ले लिया और साथ लायी हुई दूध की बोतल से उस बच्चे को दूध पिलाने लगा। रोहन का रोना एकदम से शांत हो गया तो मार्क को ध्यान आया, "ऋषि कहाँ है?” फिर उसे ऋषभ की तरफ से जवाब ना मिला तो मार्क गुस्से का घुट पीकर रह गया। ज्यादा रोने के कारण रोहन दूध पीते हुए ही मार्क की गोद में सो गया। जिसे लेकर मार्क ऊपर एक कमरे में पहुंचा। रुशाली ने बच्चे के आने की पूरी तैयारी शायद पहले से ही कर रखी थी। पालना तक उसने सजा रखा था। रोहन को उसी में लिटाकर मार्क बिना कोई आवाज किए हल्का सा पीछे हटकर बोला, “स्वीट ड्रीम्स बेबी।” रोहन सोते हुए बहुत क्यूट लग रहा था। बिलकुल ऋषभ की ज़ेरॉक्स कॉपी था। जिसे देख मार्क खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया। अचानक ही उसे ऋषि का ख्याल आया तो वो जल्दी से कमरे के बाहर निकला। उसने नीचे पहुंच कर ऋषि को आवाज लगाते हुए ढूंढना शुरू कर दिया। इस बीच दो बार वो ऋषभ के पास से गुजरा था, लेकिन ऋषभ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मार्क गुस्से में बड़बड़ाया, "ये सही है तुम्हारा। मैं हूँ तो सब मेरे भरोसे डाल दो। अगर मैं ना होता तो क्या करते तुम? कैसे संभालने वाले थे बच्चों को? बस पैदा कर लिया, कोई जिम्मेदारी है की नहीं तुम्हारी?" वह आस-पास घूमते हुए ही ऋषभ को सुनाई दे रहा इस आवाज में बोल रहा था। ऋषभ ने धीरे से पलकें झपकाईं और बिना कुछ कहे ही अपनी जगह से उठकर घर के पिछले हिस्से में बनी गेलरी की तरफ जाने लगा। मार्क की आंखें सिकुड़ गयीं, "क्या? कहाँ जा रहे हो अब?" ऋषभ ने कोई जवाब नहीं दिया तो मार्क उसके पीछे-पीछे चला गया। ऋषभ ने देखा, एक बड़े से गमले के पीछे ऋषि सिकुड़कर बैठा हुआ था। वह जाकर ऋषि के सामने घुटनों के बल बैठ गया "ऋषि!" आवाज सुनकर ऋषि ने घुटनों में छुपाया हुआ चेहरा बाहर निकाला। अपने हाथ से उस छोटे से बच्चे ने अपनी माँ को अग्नि दी थी। आखिर कैसे ना वह दुखी होता? भले ही वो बहुत ज्यादा छोटा था, लेकिन इतना तो उसे समझ आ गया था , उसकी माँ कहीं चली गयी और कभी लौटकर नहीं आएगी। "मम्मा कहाँ चली गयी डेड?" ऋषि ने एकदम से ऋषभ को गले लगाकर कहा। ऋषभ ने एक ठंडी साँस छोड़ी और काफी मुश्किल से कहा, "मम्मा भगवान के पास चली गयी है।" "कभी लौटकर नहीं आएंगी क्या?" ऋषि ने अगला सवाल किया। लेकिन ऋषभ के पास अब कोई जवाब नहीं था। उसने ऋषु को उठाया और घर के अंदर चला गया। इस बीच वो मार्क की बगल से गुजरा, लेकिन उसने ऐसे व्यवहार किया जैसे मार्क वहां था ही नहीं। मार्क के माथे पर बल पड़ गए, "इसे क्या हुआ? किस बात की नाराजगी जता रहा है मुझ पर? बच्चा संभालने को लेकर सुनाया इसलिए?" अगले ही पल अपने बाल नोचकर वह ऋषभ के पीछे उसे मनाने के लिए चल पड़ा। अजीब नखरे थे इस लड़के के। कब ठीक हो जाए, कब नाराज, कुछ कह नहीं सकते थे। मार्क द्वारा बनाया हुआ खाना ऋषभ ने थोड़ा बहुत ऋषि को खिलाया। जो करने में उसे काफी मुश्किल हुई थी। अंत में ऋषभ ने ऋषि को भी उसे कमरे में ले जाकर सुला दिया जहाँ पहले से रोहन सो रहा था। जैसे ही ऋषभ पीछे पलटा, मार्क उसके सामने था। "ऋषु नाराज हो क्या?" मार्क को उसकी नाराजगी दूर करना सबसे जरूरी काम लगता था। हमेशा से! ऋषभ ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह फ्रेश होने के लिए जाना चाहता था, लेकिन मार्क ने उसका रास्ता रोक लिया। ऋषभ ने एक ठंडी साँस छोड़कर कहा, "मार्क, अपने क्लब लौट जाओ। मुझे तुम्हारी कोई जरुरत नहीं है। मेरे लिए कुछ भी करके फिर से मुझ पर कोई एहसान करने की जरुरत नहीं।" मार्क का चेहरा काला पड़ गया। उसने एकदम से ऋषभ के बाजुओं को कसकर पकड़ लिया, "क्या कहा? तुम्हें मेरी जरुरत नहीं है?" ऋषभ ने दर्द से आंखे मिच ली तो मार्क ने एकदम से उसे छोड़ दिया। "कोई एहसान नहीं कर रहा मैं तुम पर। तुम और रुशाली दोनों मेरे बेस्ट फ्रेंड्स हो। मेरी दोस्त ने मुझसे वादा लिया था कि मैं तुम तीनों का ख्याल रखूँगा। इसलिए मैं यहाँ से कहीं नहीं जा रहा।" मार्क ने सीधे शब्दों में उसे अपनी बात समझाई। वो कोई झगड़ा नही चाहता था बस। वरना नाराज होने में वो भी पीछे नहीं था। "दोस्त? क्यों बदनाम कर रहे हो इस रिश्ते को? तुमने कभी दोस्ती निभाई है अपनी तरफ से? तुम तो त्याग करके महान बनते रहे बस।" ऋषभ ने व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा। मार्क का गला सूख गया। अगले ही पल उसने ऋषभ का हाथ पकड़ा और बालकनी में ले जाकर छोड़ते हुए दरवाजा बंद कर दिया "तो रुशाली ने तुम्हें सब बता दिया?" "हाँ, सब बता दिया और अब मुझे समझ आ रहा है कि तुम्हारा बार-बार फ़्लर्ट करना कोई मजाक नहीं होता था। तुम मेरे लिए फिल करते थे। हमेशा से? अनबेलीवेबल!" ऋषभ ने हल्के गुस्से में कहा। "लिसन रिशु, मुझ पर कोई भी इल्जाम लगाकर मेरा दिमाग खराब करने की कोशिश मत करना। मैं अपनी लिमिट में रहा हूँ। अगर मुझसे रुशाली को कोई प्रॉब्लम होती तो उसने पहले ही उसने मुझे तुमसे दूर रहने के लिए बोल दिया होता। लेकिन उसने ऐसा कभी नही किया। क्योंकि उसे मुझ पर तुमसे ज्यादा विश्वास था। प्यार पसन्द जो भी है वो मेरी परेशानी है। ना इससे तुम्हे पहले कोई दिक्कत हुई और ना कभी आगे होगी। आज के बाद मैं ध्यान रखूंगा और तुमसे दूर रहूँगा। बस बच्चों के लिए मुझे यहाँ रुकने दो। क्योंकि तुम्हारे भरोसे उन्हें छोड़ दिया तो पता नहीं क्या करोगे।" मार्क ने एक ही साँस में अपनी बातें पूरी की। वो नहीं चाहता था कि ऋषभ उसे गलत समझे या फिर उससे नफरत करे। तभी ऋषभ ने कहा, "मेरा इतना सब कहने का कोई इरादा नहीं था। मुझे .. मुझे हमारी दोस्ती से कोई परेशानी नहीं। हम आगे भी वैसे ही रह सकते है जैसा पहले थे। लेकिन जो रुशाली ने कहा वो मैं नहीं कर सकता। मैं बस उससे प्यार करता हूँ। तुम मेरे दोस्त हो मार्क। मैं तुमसे वैसी वाली फीलिंग नहीं रखता।" मार्क ने हाथ दिखाकर उसे रोक दिया, "मुझे बहुत अच्छे से पता है ये बात। सफाई देने की जरूरत नही अब। रुशाली ने जो भी कहा हो उसे भूल जाओ और खुदको मजबूर करने की जरुरत नहीं। मुझे पता है मेरी फीलिंग्स जानकर तुम कभी पहले की तरह मेरे साथ रह नहीं पाओगे। क्या पता तुम्हें मुझसे घिन भी आ रही हो?" "नहीं .. नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है। तुम प्लीज कुछ भी मत सोचो।" ऋषभ ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया। लेकिन मार्क एक कदम पीछे हट गया "मुझे फर्क नहीं पड़ता तुम क्या सोचोगे। बस मैं यहाँ से कहीं नहीं जा रहा। जाकर खाना खा लो और नीचे ही सो जाना। मैं बच्चों के पास हूँ।" मार्क ने कहा और कमरे में लौट कर चला गया। ऋषभ खाली आँखों से उसे देखता रह गया। आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 3. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 3

    Words: 1412

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुबह का समय था जब रोहन का रोना एक बार फिर शुरू हो चुका था। बिना रूशाली के दोनो बच्चे संभालना सच में मेहनत भरा काम था। लेकिन ऋषभ ने एक की जिम्मेदारी अपने सर उठा ली थी इसलिए मार्क अपना पूरा ध्यान रोहन पर लगा पा रहा था। इस बीच उसे कोई परवाह नही थी की उसका ध्यान पहली बार क्लब से पूरी तरह हट चुका था। वहा क्या हो रहा था मार्क को कोई खबर नहीं थी। वो हॉल में ही बैठा हुआ था जब दरवाजे से एक आवाज आई "क्या हम अंदर आ सकते है?" मार्क के हाथ में दूध की बोतल थी। रोहन से बाते करते हुए वह उसे पिलाने की कोशिश कर रहा था। एकदम से उसकी आंखे ठंडी पड़ गई जब उसने सामने खड़े विश्वास मेहरा को देखा। विश्वास मेहरा अपने छोटे भाई विकास के साथ अंदर चला आया। कुछ अन्य लोग भी थे उनके साथ। ये देख कर ऋषभ अपनी जगह पर खड़ा हो गया। ऋषि तुरंत ही डर कर उसके पीछे हो चुका था। मार्क अपनी जगह से बिल्कुल नही हिला। विश्वास सीधे उसके सामने सोफे पड़ बैठा और उसने कहा "आपकी दोस्त के बारे में सुना बस इसलिए अब आ रहा हु। भले ही तब तक हमे दिक्कत हो गई हो। लेकिन आपको कोई दिक्कत ना हो ये मेरा भाई चाहता था।" मार्क ने अपनी ठंडी नजरे विकास की तरफ डाली तो विकास गहराई से मुस्कुरा उठा। विश्वास ने फिर मार्क का ध्यान खींचते हुए कहा "आपने केस कर दिया मेरे भाई पर मिस्टर मार्क?" "आपका भाई बस सतरा साल का है मिस्टर मेहरा। क्या आपको ये बात पता नही? एक तो वो क्लब में झूठ बोल कर , पैसे देकर प्रवेश करता है। ऊपर से उसे वहा झगड़े भी करने है।" मार्क ने गुस्से में कहा। "वही तो मिस्टर मार्क। बच्चा है , हो जाती है बचपने में ऐसी गलतियां। लेकिन ये केस वगैरा में उसके करियर पर आगे जाकर क्या असर होगा आप समझ रहे है ना?" विश्वास ने कहा। "मै अच्छे से समझ रहा हु आप मुझे केस वापस लेने के लिए बोलने आए है। मै ऐसा कर भी दूंगा अगर आप वादा करते है आपका भाई मुझे दुबारा मेरे क्लब के आसपास भी नही दिखाई देगा।" मार्क ने बिना बात को घुमाए सीधा मुद्दे पर आकर कहा। "अगर शांति से बात कर सब कुछ सुलझ रहा है तो बिलकुल। जैसा आप कहेंगे हो जायेगा।" विश्वास ने हल्के से सर झुका कर कहा। "तो फिर अब आप आ सकते है।" मार्क ने उससे अनुमति मांगी तो एक नकली मुस्कान के साथ विश्वास उठ कर खड़ा हुआ। एक नजर उसने रूशाली की तस्वीर पर डाली और फिर बच्चो के लिए झूठा अफसोस जताया। फिर वो अपने लोगो के साथ जाने लगा। लेकिन विकास अभी वही खड़ा था। होठों पर मुस्कान लिए आगे आकर वह घुटनो पर हाथ रख मार्क के सामने झुक गया "बस मेरे अठरा के होने का इंतजार है। उसके बाद मैं जब चाहे तब आ सकता हु आपको देखने। तब तक मुझे कंट्रोल करना पड़ेगा खुदको।" इतना कह कर उसने उंगली से रोहन का गाल छुआ "आपके हाथ में बच्चा काफी अच्छा लगता है। कौन ज्यादा क्यूट है फर्क करना मुश्किल।" और अगले ही पल वह मार्क के गाल पर होठ टीका कर भाग गया। ऋषभ की आंखे बड़ी होकर मुंह खुल चूका था। वही मार्क के चेहरे पर दुनिया भर का गुस्सा था। कुछ कहने का मौका विकास ने उसे दिया ही नहीं, वरना वो जरूर उसे सुनाता। इस बीच उसे ऋषभ का खयाल आया तो नजरे अनायस ही घूम गई। अब तक हैरान खड़े ऋषभ का चेहरा एकदम से लाल हो गया और ऋषि को उठा कर गुस्से में पैर पटकते हुए वो चला गया। मार्क ने दो तीन बार पलके झपका दी "मेरे फ्लर्ट करने से दिक्कत है। लेकिन अपना जेलिस होना कभी नोटिस नही किया। खैर , तुम्हे बहुत ज्यादा वक्त की जरूरत है। मै तुम्हे स्पेस दे रहा हु। ताकि तुम इन दूरियों को समझने की कोशिश करोगे।" खुद से कह कर वह हल्के से मुस्कुराया और फिर रोहन से कहा "तुम्हारा बाप दुनिया का सबसे बेवकूफ , नकचड़ा और जिद्दी इंसान है। तुम उसकी तरह बिलकुल मत बनना। तुम्हे अपनी मम्मा की तरह जिंदादिल और खुश रहने वाला बनना है। ठीक है?" रोहन ने खुश होकर बस आवाज कर दी तो मार्क खिलखिला उठा। उसी शहर के एक दूसरे हिस्से में अपनी पीठ पर एक आठ साल के बच्चे को उठाए व्यास आचार्य ने उस आलीशान आचार्य मेंशन में प्रवेश किया। घर के बाहर जैसे काले पत्थर की ईगल की मूर्ति बनी हुई थी । ठीक वैसी ही तस्वीर एक दीवार पर उकेरी गई थी । जो मुख्य दरवाजे से प्रवेश करते ही ठीक सामने दिखाई देती थी । उसके सामने लगे सोफे पर एक बूढ़ा व्यक्ति बैठा हुआ था । तीन साल का बच्चा नीचे उनके पास खेल रहा था । व्यास को देखते ही उन्होंने ठंडी आवाज में कहा "कबीर पर फिर अटैक हुआ?" "किंग के होते हुए उसके प्रिंस कबीर का कोई बाल भी नही छू सकता डेड । सब ठीक है ।" लापरवाही से कहते हुए व्यास ने कबीर को सोफे पर लाकर उतार दिया । नीचे खेल रहा बच्चा एकदम से खड़े होकर मुस्कुराया "डेड! भाई, आप लोग आ गए? मै कब से इंतजार कर रहा था।" "हा समु!" कहते हुए व्यास ने अपने छोटे बेटे समीर को उठा लिया। इस बीच उसके पिता ने कबीर को अपने करीब लेकर अच्छे देखा। जब तक उनकी आंखों को विश्वास नही हुआ कबीर ठीक था वह राहत में ना लौट सके। तभी कोई दनदनाते हुए आया और कबीर का स्कूल बैग एक गार्ड के हाथ से खीच लिया। उसके बाद कबीर के पास जाकर उसका हाथ पकड़ते हुए वो अपने साथ ले जाने लगी। व्यास के मुंह से एक शब्द नही निकला जब तक वो चली नही गई। फिर धीमी आवाज में वो बोला "हमारी महारानी को क्या हुआ? आपने अटैक की बात उनके सामने कर दी?" "सुन लिया उसने तो अब मैं क्या करू ?" उसके पिता ने आराम से कंधे उठा दिए। "डेड आप भी ना। कभी कभी बच्चो की तरह बिहेव करते हो। पता है मुझे , जानबूझ कर डांट पड़वाने के लिए ये किया है।" व्यास ने हल्की नाराजगी से कह कर समीर को उनकी गोद में रख दिया और अपनी पत्नी स्मिता के पीछे उसे मनाने के लिए भागा। व्यास के पिता मुस्कुरा दिए थे "बाप से कभी नही डरा। बीवी से डर जाता है। लव मैरिज!" व्यास जब कमरे में पहुंचा तो स्मिता कबीर की यूनिफॉर्म को चेंज करवा रही थी। हिचकिचाते हुए व्यास ने अंदर प्रवेश किया और स्मिता से कुछ दूरी बनाकर बिस्तर पर बैठ गया। "भूख लगी है की बाहर से ही खाकर आ गए?" स्मिता ने ठंडी आवाज में कबीर से पूछा। कबीर ने बेचारगी से अपने पिता की तरफ देखा तो व्यास ने कहा "मेरा गुस्सा मुझ पर उतारो ना। बच्चे को क्यों ....!" स्मिता की बस एक घूर काफी थी व्यास का मुंह बंद होने के लिए। "हमने आज बाहर कुछ नही खाया मॉम। मुझे भूख लगी है।" कबीर ने तुरंत ही जवाब दिया। बाप बेटे में डर का माहौल था महारानी को लेकर। "हाथ मुंह धो लो। मै कुछ लेकर आती हु।" स्मिता कहते हुए उठने लगी तो व्यास ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया। जैसे ही कबीर वॉशरूम में चला गया व्यास ने कस कर स्मिता को गले लगा लेते हुए सांस लेना भी मुश्किल कर दिया। वह कसमसा कर खुदको छुड़ाने की कोशिश करती रही लेकिन व्यास भी जिद्दी था "जब तक माफी नही मिलेगी और बात नही करोगी मै नही छोड़ने वाला।" स्मिता ने मुंह खोल कर ठंडी सांस छोड़ी "हा छोड़ दो। कर दिया माफ। वरना पता चला माफी मांगते मांगते मुझे मौत दे दी।" एकदम से अपनी पकड़ ढीली करते हुए व्यास ने हल्के से उसका गाल चूम लिया। जब कबीर बाहर आया और उसने दोनो पति पत्नी को शांत होकर बैठे देखा तो उसकी आंखे छोटी हो गई। वह ठंडी आवाज में बडबडा दिया "नाटक करके दोनो पूरे घर को डरा कर रखते हैं। एक बार बड़ा होने दो मुझे , फिर ये काम मै करूंगा।" स्मिता ने उसे घूरा "तुम्हारे लक्षण अभी से नजर आ रहे है मुझे की बिगड़ रहे हो। व्यास संभाल लो इसे समय रहते।" "आह.. मेरे पास बस दो हाथ है। जिसमे मैं सिर्फ तुम्हे संभाल सकता हु।" व्यास ने उसे प्यार से देखते हुए कहा। उसका ध्यान भी नही था स्मिता ने क्या कहा? आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। कहानी की अपडेट्स लेने के लिए सब फॉलो कर ले।

  • 4. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 4

    Words: 1574

    Estimated Reading Time: 10 min

    ठाकुर मेंशन, एक गाड़ी पोर्च में आकर रूकी तो वही सीढियों पर परेशानी से अपना फोन लेकर चक्कर काट रहा सृजन ठाकुर एकदम से रुक गया। गाड़ी से उतरते अनिकेत को देख कर उसका जबड़ा भींच गया। फोन को जोर से नीचे फेक कर तोड़ते हुए वो अनिकेत के पास पहुंचा और उसके बाजू पकड़ लिए। गुस्से में वो बोला "बिना बताए कहा चले गए थे? कितनी बार कहा है की अकेले जाने से पहले एक नही दस बार सोच लेना?" अनिकेत सहम उठा। उसके गले से आवाज निकलना मुश्किल हो गई। दोनो ही लड़के लगभग तेईस या चौबीस की उम्र के थे। सृजन ठाकुर एक गैंग का लीडर था। बस दो से तीन साल हुए थे उसे अनिकेत से शादी किए हुए। जिसके लिए भी उसे अनिकेत को किडनैप करना पड़ा। वरना लड़के ने घरवालों और समाज का नाम देकर हाथ खड़े करते हुए पैर पीछे ले लिए थे रिश्ते से। आज अचानक वो अकेला गाड़ी लेकर कही चला जब सृजन घर पर नहीं था। आते ही जब उसे अनिकेत ना मिला तो उसने बस लोगो को लगा ही दिया था काम पर। "अब कुछ बोलोगे भी की नही?" सृजन एक बार फिर उस पर चिल्ला दिया। इससे पहले अनिकेत कुछ कहता तीन साल का एक छोटा सा बच्चा गाड़ी से बाहर उतर कर उसका पैर पकड़ते हुए बोला "चाचू!" सृजन एकदम से शांत पड़ गया। उसकी नजरे नीचे घूम गई। एक छोटा सा बच्चा डरा सहमा अनिकेत के पीछे छुप रहा था। सृजन ने मुंह खोल कर एक लंबी सांस छोड़ी और अनिकेत का चेहरा थाम लिया "अनि, बेबी क्या हो रहा है बताओगे ? ये बच्चा कौन है? किसका है?" अनिकेत ने मुश्किल से कहा "भाई... भाभी की कार एक्सीडेंट में ... डेथ! कृष्णा बच गया। भाई ने उसकी जिम्मेदारी... मुझे .. मुझे दी है।" उसका गला भर आया था। ये देख सृजन ने उसे अपने गले लगा लिया तो अगले ही पल अनिकेत सिसकते हुए रो पड़ा। कुछ ही समय बाद सृजन उस छोटे से बच्चे को देख रहा था जो अनिकेत की दूसरी तरफ अभी भी डरा सहमा सा बैठा था। तभी अनिकेत ने हिचकते हुए कहा "मै.. मै इस बच्चे को गोद लेना चाहता हु। मै ऐसा कर सकता हु ना? आपको कोई दिक्कत तो नही?" सृजन ने अनिकेत की आंखो में देखा और कहा "मैने कभी तुम्हे किसी चीज के लिए रोका है जो तुम इतना हिचक रहे हो कुछ कहने के लिए? अगर तुम उसे गोद लेना चाहते हो तो हम जरूर ऐसा करेंगे। मुझे तुम्हारे किसी फैसले से आपत्ति नही। बस जो आज हुआ वो अगली बार नही होना चाहिए इसका ध्यान रखना।" आखिरी बात उसने सख्ती से कही तो अनिकेत ने सर हिलाया "अचानक ही फोन आ गया तो मुझे कुछ सूझा नही। आप भी घर नही लौटे थे तब तक।" सृजन ने गहरी सांस भरी। हा सिचुएशन सच में पैनिक होगी जिसमे सृजन को उसके पास होना चाहिए था। उसने आगे बढ़ कर गहराई से अनिकेत का माथा चूम लिया "सॉरी ! मै तुम्हारे पास मौजूद ना रह सका।" "मुझे आपसे कोई शिकायत नही।" अनिकेत ने पलके झपका दी। इसी बीच सृजन का फोन बजने लगा। जैसे ही उसने कॉल करके वाले का नाम देखा उसका मुंह बन गया "अब क्या हुआ इस जीजे को।" एक चिढ़ भरी आवाज में उसने फोन उठा कर कान से लगाया "बोलो!" अगले ही पल सामने से कुछ ऐसा कहा गया जिसे सुन कर सृजन चौक उठा। ********** एक नवजात शिशु को हाथ में लेकर सृजन ने कहा "मुझे लगा था की इस बार पक्का बेटी ही होगी। फिर जैसे आपने मेरी दीदी चुराई ठीक वैसे ही मैं इसे चुरा कर ले जाता।" उसके सामने उसका जीजा जीवन कश्यप एक गैंग का लीडर (फॉक्स गैंग) खड़ा था। उसने झूठा अफसोस जता कर कहा "अफसोस ऐसा हो नहीं पाया।" "तो फिर कोई बात नही। अपने बेटे से मैं कहूंगा की वो तुम्हारा छोटा बेटा चुरा ले आए।" सृजन ने एक टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा। जीवन ने आंखे छोटी कर ली "तुम्हारा बेटा?" सृजन ने अनिकेत के पास मौजूद कृष्णा को देख कर कहा "वो रहा मेरा बेटा। हम उसे गोद ले रहे है। और बच्चे , ये रहा हमारा टारगेट। बड़े होने के बाद हाथ पैर धोकर इसके पीछे पड़ जाना। हमे इसे किसी भी तरह अपने पास ले जाना है ताकि इस इंसान को सबक सीखा सके।" जीवन का चेहरा हल्का सा लाल पड़ गया। वही उस वार्ड में मौजूद कोई हंस पड़ा। सृजन पलटा तो बेड पर उसकी बड़ी बहन वृंदा लेटी हुई थी। घरवाले मान नही रहे थे तो जीवन ने भी वृंदा को घर से भगा लिया था। समय गुजरा लेकिन घरवालों की सोच में कोई बदलाव नहीं हुआ। तो बस भाई बहन अब गोवा में अपने पार्टनर के संग शिफ्ट हो चुके थे। सृजन और जीवन की पहले से कुछ खास बनती नही थी। ऐसे में जब जीवन उसकी बहन को भगा ले गया तो उससे लड़ने का सृजन को मौका मिल चुका था। सृजन मुस्कुराते हुए वृंदा के करीब जा बैठा। बच्चा अभी भी उसके हाथ में था। उसने कहा "ये बिलकुल आपके ऊपर गया है दीदी। मुझे विश्वास है इसका स्वभाव भी आपकी तरह होगा। ना की कुछ खडूस लोग और उसके जुड़वा बच्चों की तरह।" कह कर उसने सीधे सामने देखा। जीवन के अलावा दो बच्चे उसके पास खड़े थे। जिनमे से एक ने कहा "बहुत हो गया। अब मुझे अपना भाई देखना है।" वह दोनो बिलकुल जीवन की जेरॉक्स कॉपी थे। उम्र बस आठ साल की होगी। लेकिन गंभीरता अभी से उनके चेहरों पर अभी से नजर आ रही थी। जीवन ने सृजन के पास से बच्चे को लिया और वृंदा की दूसरी तरफ बैठ गया। दोनो बच्चे करीब आए तो जीवन ने बच्चे को गोद में खिलाते हुए कहा "लिटल वि ये रहे आपके दोनो बिग ब्रदर्स ! अखिल भाई , विनीत भाई। अगर कोई आपको चुराने की कोशिश करे तो ये आपको बचाएंगे।" सृजन ने मुंह बना लिया तो वही वृंदा फिर हंस पड़ी। सृजन ने सर झटका और हल्के से वृंदा का माथा चूम कर कहा "आप कैसी हो? तीसरे बच्चे को जन्म देने के बाद?" वृंदा का मुंह बन गया "चिंता से पूछ रहे हो की ताना दे रहे हो?" "अब दो बच्चे होने के बाद अगर तीसरा कर रहे हो तो .. ताना ही समझ लो इसे।" सृजन ने तिरछी नजर जीवन पर डालते हुए कहा। "क्युकी हम ज्यादा रोमांटिक है तो हमे दस बच्चे भी कम पड़ेंगे।" जीवन ने घमंड से कहा। "रोमांटिक माय फूट।" सृजन ने दांत चबा कर कहा। इसी बीच अनिकेत ने आगे आकर अपने साथ लाया हुआ गुलदस्ता वृंदा की तरफ बढ़ाया "कंग्राटुलेशंस दीदी!" "थैंक यू अनिकेत! वैसे ये बच्चा? क्या बोल रहे थे तुम लोग? गोद ले रहे हो?" वृंदा ने बुके लेकर अपने बेटे विनीत को पकड़ा दिया। अनिकेत ने तुरंत ही कृष्णा को गोद में उठा लिया और खुशी से कहा "हा, ये मेरा भतीजा है। इसे हम गोद ले रहे है।" सृजन ने देखा अनिकेत के चेहरे पर शायद ही इतनी ज्यादा खुशी पहले कभी किसी चीज के लिए आई हो। "बेहतर है। डबल खुशी के मौके पर अब सब मेरी बात सुनो। बेबी और इनके बेबी के नाम से आश्रम में कुछ देकर आओ।" वृंदा ने कहा तो अखिल और विनीत चिढ़ गए। उनकी मां का हर छोटी बड़ी खुशी में आश्रम जाकर दान करके आओ खत्म ही नही होता था। ऐसा भी नही था की कुछ भेज दो। वह उन्हे खुद जाने के लिए बोला करती थी। ********* धीरे धीरे दिन और महीने गुजरने लगे। मार्क और ऋषभ एक साथ एक छत के नीचे जरूर रह रहे थे। लेकिन उनके बीच बाते ना के बराबर हो रही थीं। जैसे मार्क ने कहा था वो दूरी बनाकर रखेगा, उसने अपनी बात निभाई। ऋषभ चाहे कितना भी पहले की तरह उसके साथ रहने की कोशिश करे। लेकिन ये सच्चाई कभी ना बदलती की मार्क की फीलिंग्स के बारे में ऋषभ अब अच्छी तरह जानता था। "मार्क कहा जा रहे हो?" ऋषभ ने उसे टोक दिया जब वो मुख्य दरवाजे की तरफ पहुंचा। उसके साथ रोहन भी था। "क्लब जाना होगा। रोहन को ले जाना मजबूरी है। तुम दोनो को संभाल भी नही पाओगे।" मार्क ने पलट कर उसे जवाब दिया। "कुछ हुआ है क्या?" ऋषभ के माथे पर भी बल आ गए। "डिड यू रिमेंबर वो बच्चा? जो विश्वास मेहरा का भाई है। वह क्लब आकर फिर से तमाशा कर रहा है। उसे समझाने जाना पड़ेगा।" मार्क ने बिना सोचे बोल दिया। लेकिन ऋषभ का जबड़ा कस चूका था। उसने कहा "तुम्हे जाने की कोई जरूरत नही। मै चला जाता हु।" "वो तुम्हारी नही सुनेगा रिशु। उसे प्यार वाली भाषा समझ नही आती।" मार्क ने कहा। "तो तुम कौन सी भाषा में समझाने जा रहे हो उसे? या फिर तुम्हे जाना ही है उसे देखने के लिए?" ऋषभ एकदम से उस पर गुस्से में चिल्ला दिया। उसके शांत होते ही घर में एक सन्नाटा छा गया और अगले ही पल मार्क की गोद में मौजूद रोहन जोर से रो पड़ा। ऋषभ ने दो तीन बार पलके झपका दी। आखिर भूल कैसे जाता था वो की मार्क के साथ वह अकेला नही था। बच्चे भी अब साथ होते थे। वो कभी भी मार्क पर ऐसे चिल्ला नही सकता। "डोंट क्राई बेबी। डेड की आदत है। अब तो आपको भी आदत लग जानी चाहिए थी इसकी।" मार्क कहते हुए पलट कर जाने लगा। ऋषभ ने कुछ कहना चाहा लेकिन फिर वो भी ऋषि को उठा कर उसके पीछे भागा। ऐसे कैसे वो मार्क को अकेला छोड़ देता? आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 5. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 5

    Words: 1515

    Estimated Reading Time: 10 min

    अथेना, शाम हो चुकी थी जब मार्क अपने साथ रोहन को लिए हुए क्लब के अंदर पहुंचा । नीचे फ्लोर पर टूटे हुए ग्लास के कांच बिखरे थे और विकास मेहरा बार काउंटर पर आराम से बैठा था । क्लब में अभी पूरा स्टाफ नही था । ना ही अभी कोई कस्टमर था । "ये सब क्या किया तुमने ?" मार्क ने गुस्से में विकास की तरफ बढ़ते हुए कहा । "आराम से मार्क । कांच लग जायेगा ।" विकास तुरंत ही सीधा हो गया । "नीचे उतरो तुम पहले इडियट । और क्यू आए हो यहां? मैने मना किया है ना तुम्हे यहां भटकने से ?" मार्क का लहजा अभी भी पहले की तरह ही था । "आपने कहा था मैं अंडर एज हु इसलिए नही आ सकता । लेकिन आज ही मैं अठराह का हुआ । बर्थडे है मेरा । और इस खास दिन पर आपको देखने की इच्छा थी । लेकिन पता चला आज कल आप आ ही नही रहे क्लब ? इसलिए कुछ तो करना था आपको बुलाने के लिए । मै पे कर चुका है पहले ही नुकसान के लिए । चाहो तो मैनेजर से पूछ लो ।" विकास ने कहा और काउंटर से नीचे उतर कर उससे पीठ लगाए खड़ा हो गया । "तुम्हारा कोई बहाना नही सुनना मुझे समझे ना । पहले नुकसान करो , फिर उसे भरने का ड्रामा । विकास मेहरा, एक मिनट का समय दे रहा हु । मेरी आंखों के सामने से गायब हो जाओ वरना मै फिर से तुम्हारे खिलाफ केस डाल दूंगा । और इस बार तुम्हारा भाई कितनी भी रिक्वेस्ट करे , उसे वापस नहीं लूंगा ।" मार्क ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा । विकास ने हाथो को सिने के पास सामने कर पाउट बनाते हुए कहा "इतना निर्दई मत बनो मार्क । इट्स माई बर्थडे । थोड़ा बहुत कर दिया नुकसान तो क्या हो गया ?" मार्क का चेहरा लाल पड़ गया "तुम अभी भी यही खडे हो ।" "मै कही नही जा रहा । मुझे अपना बर्थडे आपके साथ सेलिब्रेट करना है । लेट्स गो! और आपको एक बेबी को क्लब लेकर नही आना चाहिए ।" विकास ने उसका बाजू छूकर कहा । पीछे खड़े होकर ऋषभ सारा तमाशा देख रहा था । उसका शरीर गुस्से के कारण कांप रहा था । आखिर क्यों ही मार्क उस लड़के का मनोरंजन कर रहा था । बस सिक्योरिटी को बुला कर उसे बाहर निकाल फेकने की देर थी । "मार्क !" ऋषभ ने आवाज लगाकर याद दिलाया की वो भी उसके आस पास मौजूद था । मार्क को जल्दी ये मामला खत्म करना होगा । विकास ने एक नजर ऋषभ पर डालने के बाद कहा "हेय मार्क , आय नो आपकी कोई फैमिली नही है । लेकिन ये क्या बात हुई की आप अपने दोस्त के घर की आया बन रहे हो ? इट्स ओके , हम साथ मिल कर जल्द ही एक अच्छी फैमली बना लेंगे । अगर आप चाहे तो हम इंतजार भी नही करते ज्यादा । मै अब बालिक हो चुका हु ।" ऋषभ पैर पटकते हुए आगे आया "कुछ ज्यादा ही बकवास नही कर रहे तुम बच्चे? क्यू पीछे पड़े हो उसके? क्या तुम्हे पता भी है वो लडको में इंटरेस्टेड है या फिर नही?" विकास ने दो तीन बार पलके झपका दी । फिर वो मार्क को देखने लगा । एक छोटी सी मुस्कान मार्क के होठों पर आकर गायब हो चुकी थी । जैसे ही विकास ने उसकी तरफ देखा मार्क बोला "मुझे लडको में इंटरेस्ट नहीं है । तुम बहुत तमाशा कर चुके । अब जा सकते हो ।" विकास किसी सदमे से उसे देखने लगा "मजाक कर रहे हो ना मेरे साथ?" "क्या तुम मेरा चेहरा देख कर मेरी सेक्युलिटी के बारे में बता सकते हो? देखो अगर ऐसा होता तो ऋषभ मेरा दोस्त नही बल्कि बॉयफ्रेंड होता ।" मार्क ने जैसे ही कहा ऋषभ की आंखे हल्की सी बड़ी होकर गाल लाल हो गए । मार्क बहुत ही आराम से उससे फ्लर्ट करके पहले भी उसे शर्माने पर मजबूर कर देता था । इसमें कोई नई बात नही थी । मार्क के पास फ्लर्टिंग की बढ़िया स्किल्स थी । लोगो को इंप्रेस करना उसके बाए हाथ का खेल था । बस इसी कारण विकास भी उससे इंप्रेस था । "सुन लिया ना अब? तुम जा सकते हो । दुबारा इस क्लब में नजर मत आना । वरना केस मै करूंगा ।" ऋषभ ने ठंडी आवाज में कहा । विकास ने हल्के से मार्क की तरफ देखा "अगर ये सच भी है तो मूझे फर्क नही पड़ता मार्क । कम से कम आज के दिन मेरे साथ रह लो । मै फिर आपको परेशान नही करूंगा ।" मार्क ने ठंडी सांस छोड़ी "द क्लब इज योर्स फॉर द नाइट । अपने दोस्तो को बुलाओ और पार्टी करो । बस मुझे फिर कोई नुकसान नही चाहिए यहां ।" इतना कह कर मार्क जाने लगा । इससे ज्यादा वो विकास के लिए कुछ नही कर सकता था । "आप मेरे साथ मौजूद रहो आज । तभी मै किसी बात की गेरंटी दे सकता हु ।" विकास ने उसका हाथ पकड़ कर कहा । "मार्क हम घर जा रहे है ।" ऋषभ ने भी बीच में ही कहा । मार्क बुरी तरह फस चुका था । किसी का दिल टूट चुका था तो किसी का दिल वो तोड़ना नहीं चाहता था । "मै यही हु ।" मार्क ने कहा और पीछे हट कर ऋषभ को अपने साथ चलने का इशारा किया । क्लब के दो फ्लोर्स पार्टी के लिए अवेलबल थे । उसके ऊपर दो फ्लोर स्टे के लिए थे और अंत में जो फ्लोर था वहा एक अपार्टमेंट बना था जहा मार्क रहता था । ऋषि को खेलने के लिए छोड़ कर ऋषभ उस अपार्टमेंट की बड़ी सी बालकनी में चला गया । ठंडी हवा बह रही थी और समंदर में उठती लहरे वहा से साफ देखी जा सकती थी । पुरे शहर में एक लौता क्लब था जो किसी समंदर के पास बना था । इसलिए बहुत लोग इसे खरीदने की इच्छा जताते थे । "रिशु!" मार्क की आवाज से ऋषभ होश में लौटा । गुस्से में मार्क की तरफ पलट कर वो बोला "तुम उसकी बर्थडे पार्टी ज्वाइन करने वाले हो ?" "है तो आखिर बच्चा ही । और आज उसका जन्मदिन है । बहुत मन बना कर आया था की उसे डांट कर, धमका कर भगा दूंगा । लेकिन अच्छा नही लग रहा अब । वैसे भी उसने कहा है की आज के बाद परेशान नही करेगा ।" मार्क ने ठंडी सांस छोड़ कर कहा । जितना कठोर वो बन लेता था उससे कही गुना ज्यादा उसका दिल कोमल था । ऋषभ ने बाहें मोड़ ली "मुझे फर्क नही पड़ता ।" "तो नाराज क्यू हो रहे हो ? और तुमने मेरी तरफ से क्यू कहा की मुझे लड़के पसंद नही ? ऑफ कोर्स मुझे लड़के पसंद है ।" मार्क ने भी बाजू मोड़ कर आराम से कहा । ऋषभ का जबड़ा कस गया "इसका मतलब तुम्हे अब वो भी पसंद आ रहा है ? ओह , मैने बीच में पड़ कर सब बिगाड़ तो नही दिया ? एक काम करो , जाओ उसके पास ।" "सच में चला जाऊ?" मार्क ने एक भौह उचका दी । ऋषभ तिलमिला कर रह गया । उसने जोर से मार्क के सीने पर मुक्का मारा "जाओ चले जाओ यहां से । मुझे तुम्हारी शक्ल नही देखनी ।" मार्क हल्के से हंस पड़ा और आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया । कुछ समय तक ऋषभ कसमसाया । आखिर इतने दिनो की नाराजगी थी की मार्क उसे इग्नोर कर रहा था । लेकिन धीरे धीरे वो नाराजगी ठंडी होकर मार्क की बाहों में वो शांत पड़ गया । मार्क की पकड़ ऋषभ पर मजबूत थी । उसने अपना चेहरा ऋषभ की गर्दन में छुपाते हुए कहा "मुझे बस तुम पसंद हो । तुम्हारे लिए मैं किसी को भी ठुकरा सकता हु । और तुम्हारे लिए इंतजार भी कर सकता हु । तुम आज मुझे अपनाओ , कल अपनाओ या दस साल बाद अपनाओ ! मै हमेशा तुम्हे इंतेजार करता हुआ दिखूंगा ।" ऋषभ ने उसकी शर्ट को मुट्ठियों में पकड़ लिया "प्रोमिस !" "या... इट्स अ प्रोमिस ।" मार्क ने कहा । जैसे ही सूरज पूरी तरह डूब कर अंधेरा हो गया क्लब में म्यूजिक शुरू होकर लोग उस पर झूमने लगे । दोनो बच्चे सो चुके थे तो यू ही टहलते हुए ऋषभ पहले माले पर पहुंचा । कांच की दीवार पर हाथ रख उसने जैसे ही नीचे देखा उसका मुंह फूल गया । मार्क पार्टी ज्वाइन कर चुका था । वो काउंटर कर खड़ा था और ड्रिंक बना रहा था । उसके ठीक सामने विकास हाथ पर चेहरा टिकाए बैठे कुछ कह रहा था । "मार्क हैंडसम तो है । कोई भी उस फिदा हो जाए ।" अनायस ही ऋषभ के मुंह से निकला और जल्द ही उसे इस बात का एहसास हुआ । एकदम से पलट कर उसने अपने धड़कते दिल पर हाथ रख लिया । क्या ये फिल करना सही भी था ? उसका प्यार तो रूशाली थी । और दो बच्चो का बाप था वो । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे। और फॉलो करना बहुत जरूरी है।

  • 6. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 6

    Words: 1534

    Estimated Reading Time: 10 min

    अथेना, विकास ने निराशा के साथ कहा "भाई मुझे पढ़ाई के लिए बाहर भेज रहे है । इसलिए मैने भी निर्णय ले लिया की अब चला जाऊ ।" "गुड डिसीजन! तुम्हारी उम्र पढ़ाई लिखाई करने की है । प्यार मोहब्बत के चक्कर में पड़ कर अपनी जिंदगी बरबाद करने की नही ।", मार्क ने उसके सामने एक आखिरी ड्रिंक बना कर रखा "अब चाहो तो इंजॉय करो या फिर घर लौट जाओ । मुझे बच्चो को देखना है ।" विकास ने ठंडी सांस छोड़ी "मार्क अपना हाथ देना ।" मार्क के माथे पर बल पड़ गए तो विकास ने कहा "माफिया फैमिली से जरूर हु लेकिन काट कर लेकर नही जाऊंगा आपका हाथ । दो एक मिनट के लिए ।" मार्क ने मुंह बना कर अपना हाथ काउंटर पर रखा । अगले ही पल उसे हाथ में लेकर हल्के से चूमते हुए विकास बोला "आप मेरा पहला प्यार हो । शायद ही मैं आपको कभी भूल पाऊंगा मार्क । जिंदगी में कभी आप अकेले पड़ जाओ तो मुझे याद कर लेना । खैर मैं यहां रहूंगा की नही वो बाद की बात है । वैसे मैं सोशियल मीडिया पर एक्टिव रहता हु । वहा से आप मेरा नाम ढूंढ लेना । ओके?" मार्क ने असहज होकर अपना हाथ पीछे खीच लिया तो विकास समझ गया मार्क को गंदा महसूस हुआ उसके छूने से । वो स्टूल से खड़ा होकर बोला "गुड बाय मार्क! किस्मत ने चाहा तो फिर मिलेंगे ।" बिना पलटे ही हाथ हिला कर उसने मार्क को बाय किया और पार्टी छोड़ कर क्लब से निकल गया । मार्क अभी भी अपना हाथ सहला रहा था । अनजाने में उसकी नजर ऊपर के फ्लोर पर पड़ी तो आंखे बड़ी करके अगले ही पल वो लिफ्ट की तरफ भागा । "रिशु लिसन! यार नाराज मत होना अभी । उसने एकदम से हाथ मांग लिया । मुझे नही पता था वो ऐसा कुछ कर जायेगा ।" मार्क ने ऋषभ के पीछे पीछे चलते हुए कहा । जबकि ऋषभ गुस्से में फुंकारते हुए कमरे में चक्कर काट रहा था । "मुझे इस बारे में कोई बात नही करनी ।" ऋषभ की आवाज में नाराजगी साफ झलक रही थी । "ऐसे कैसे बात नही करनी? मुझे पता है तुम नाराज हो गए हो? लेकिन मेरी कोई गलत नही थी इसका विश्वास कर लो ।" मार्क ने विनती भरी आवाज में कहा । "मै कोई नाराज नही हु ।" ऋषभ एक जगह रुकने को ही तैयार नही था । मार्क ने उसका बाजू पकड़ा और रोक कर अपने सामने किया "अब कहो जो कहना है । बोलो की हा हु मै नाराज और जलन हुई मुझे किसी ओर को तुम्हे छूता देख ।" उसकी बात पर सहमति जताने वाला था एक पल के लिए ऋषभ । लेकिन एकदम से रुका और नजरे चुराने लगा। मार्क के होठों पर मुस्कान आ गई "मान लो रिशु । छोटे नही हो जाओगे तुम ।" "बकवास मत करो । और क्या दो बच्चो के बाप के पीछे पड़े हो । शर्म नही आती जरा भी?" ऋषभ ने अपनी नाक सहला कर कहा । "शर्म तो हमने उसी दिन छोड़ दी जब आपसे प्यार कर बैठे । और दो बच्चो का बाप अभी बहुत जवान है । वैसे तुम और रूशाली ही मेरे लिए फैमिली की तरह हो । इसलिए तुम्हारे बच्चे , मेरे बच्चे हुए की नही?" मार्क ने कहा तो ऋषभ ने अफसोस के साथ सर हिला दिया । "अरे क्या मान नही रहे तुम? अपना हिस्सा , जमीन जायदाद सब रोहन के नाम कर दूंगा जब वो बड़ा हो जायेगा । तब तो मानोगे?" मार्क ने कहा । इससे पहले की ऋषभ कुछ कहता रोहन रोते हुए जाग गया । ऋषभ को छोड़ते हुए मार्क एकदम से रोहन की तरफ भागा । रोहन के रोने से अगर ऋषि जाग जाता तो दोनो रोते बच्चे संभालने मुश्किल हो जाते । ********* तीन साल बाद, एक प्ले स्कूल के बाहर पांच साल के वेद को लिए जीवन और वृंदा खड़े थे । वेद का रोना जारी था क्युकी वो अपनी मम्मा को छोड़ कर कही नही जाना चाहता था । "बेबी रोते नही । आपको स्कूल जाकर मजा आयेगा देखना । नए दोस्त भी बनेंगे ।" वृंदा ने उसे समझाते हुए कहा । "मुझे आपके साथ घर जाना है मम्मा ।" वेद अपनी आंखे मल रहा था । छोटी सी यूनिफॉर्म और पीठ पर छोटा सा बैग लिए वो बहुत क्यूट लग रहा था । जीवन ने थोड़ा सा सख्त आवाज में कहा "लिटल वी, आपको आपके भाईयो की तरह स्कूल जाना था ना ? तो अब मना क्यू कर रहे हो ? अच्छे बच्चे रोते नही और ना ही डरते है । जाओ अब जल्दी ।" वेद सिसकियां भरते हुए उन्हें हाथ हिला कर बाय करने लगा तो वृंदा को हंसी भी आ रही थी । जब बात ना बने तो अक्सर दोनो में से एक सख्त बन जाया करता था तीनो बच्चो के लिए । फिर तपाक से सब मान जाते थे । पलट कर वेद धीमे कदमों से जाने लगा । "तुम्हे तो हर चीज पर हंसी आ जाती है ।" जीवन ने वृंदा की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा । वृंदा उसका हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई "वो बहुत क्यूट है । हंसी भी आती , और प्यार भी ।" नीचे ना देखने के कारण और भरी आंखो की वजह से वेद का पैर अपने ही जूते में उलझ गया । वो गिरने लगा तो जीवन और वृंदा की आंखे एकदम से बड़ी हो गई । लेकिन जल्द ही वो राहत में आ गए । एक दूसरे बच्चे ने वेद को गिरने से पहले ही बैग से पकड़ लिया था । वेद को सीधा करते हुए उसने कहा "क्या तुम बेबी हो जो गंगा जमुना बहा रहे हो स्कूल जाने के नाम से ? मुझे देखो , मुस्कुराते हुए जा रहा हु । यहां सारे बच्चे रोंदू ही दिख रहे है मुझे । कोई मेरे टाइप का नही है यहां । लगता है मुझे ही किसी को अपने जैसा बनना पड़ेगा अब ।" लड़के ने अपने ऊपर घमंड करते हुए कहा । वेद उसे गुस्से में देखने लगा । अगले ही पल अपनी आंखे साफ कर वो बोला "तुमने किसे रोंदू कहा ? मै नही रो रहा देखो मेरी आंखे ।" "ठीक से साफ करो । तब जाकर मै मानूंगा ।" लड़के ने फिर कहा तो वेद ने जल्दी से आंखे मल कर उन्हे अच्छे से साफ किया । लड़के ने एकदम से फिर उसके कंधे पर हाथ डाला "मेरे साथ रहोगे तो रोना भूल जाओगे । और याद रहेगी सिर्फ मस्ती । वैसे मेरा नाम रोहन दीक्षित है । तुम्हारा ? आह हा, बेबी ! रोंदू बेबी !" "मेरा नाम वेद कश्यप है ।" वो चिल्ला कर बोला । साथ ही रोहन का हाथ भी हटाने लगा । लेकिन रोहन ने ऐसा होने नही दिया । जीवन ने कंधे उठा दिए "सी, उसे दोस्त भी मिल गया । अब चिंता की कोई बात नही ।" वृंदा ने सर हिला दिया । फिर वो बोली "चलो अब कैफे के लिए जगह देखते है । यहाँ बस स्कूल के सामने ही है ।" "वी , मत करो यार ! फिर सारा काम छोड़ कर मुझे तुम्हारी रखवाली के लिए पूरा दिन यहां बैठना पड़ेगा ।" जीवन ने मना करते हुए कहा । लेकिन वृंदा के सर पर तो कैफे शुरू करने का भूत सवार हो चुका था । अपनी बेकिंग स्किल्स को वो थोड़ी सी हवा देना चाहती थी बस । दूसरी तरफ कमर पर हाथ रखे खड़े ऋषभ ने भौंहे उठा रखी थी । उसने एकदम से कहा "ये लड़का किसी भी जगह हेसिटेट होता है की नही ?" "क्यू होगा ? मुझ पर गया है मेरा बेटा ।" पास खड़े मार्क ने घमंड से कहा । "डेड, मार्क देर हो रही है मुझे । आप लोग रोहन के पहले दिन के चक्कर में मुझे बाहर खड़ा कराओगे ।" ऋषि ने हाथ में पहनी खड़ी देख गंभीरता से कहा । "और ये पढ़ाकू कीड़ा! बेटा बस दूसरी क्लास में है अभी तू । इतना लोड तो कभी तेरे बाप ने भी नही लिया होगा ।", मार्क ने कहा तो ऋषभ ने हल्के से उसके सर पर चपत लगा दी । फिर वो बोला "जिसकी इच्छा होगी वो पढ़ेगा । जिसकी नही होगी वो ना पढ़े । मै अपने बच्चो को फोर्स नही करने वाला । उनके बाप फिलहाल इस शहर के सबसे बड़े क्लब के अमीर मालिक है ।" मार्क आंखे मिच कर गहराई से मुस्कुरा पड़ा । बहुत अच्छा लगता था उसे ये सुन कर जब भी ऋषभ उसे बच्चो के बाप के तौर पर कंसीडर कर लेता था । उनसे कुछ दूरी पर खड़े जीवन ने जैसे ही गाड़ी में बैठना चाहा किसी का फोन उसे आने लगा । उसने फोन उठाया तो सामने से कुछ कहा गया । जीवन की आंखे सिकुड़ गई "टायगर गैंग ! मतलब वो पुरोहित ? कैसे हुई डेथ ? हार्ट अटैक ! ठीक है । किसी की मौत में शामिल होना हमारा कर्तव्य है । आखिर हमारी डियर माफिया फैमिली से थे वो ।" जीवन को ज्यादा फर्क नही पड़ रहा था इस बात से । फोन बंद कर कुछ गार्ड्स को नजरो से ही वेद को प्रोटेक्ट करने का इशारा कर वो गाड़ी में बैठ निकल गया । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

  • 7. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 7

    Words: 1662

    Estimated Reading Time: 10 min

    शाम हो चुकी थी जब एक तेरह साल के बच्चे ने अपने पिता के मृत शरीर को अग्नि दी । उसकी आंखो के आंसू अब सुख चुके थे । क्युकी पिता की कुछ बाते जो याद आ रही थी । "अपने आंसू कभी किसी बाहरी इंसान को मत दिखाना अर्जुन । लोग तुम्हे संत्वता देने की कोशिश करते हुए करीब आकर बरबाद कर जायेंगे । इस दुनिया में सबसे बड़ी ताकत पैसे की होती है । जो किसी को भी अपने सामने झुकने पर मजबूर कर दे । मै रहूं, चाहे ना रहु । लेकिन ये ताकत का नशा तुम्हारे अंदर से कभी जाना नही चाहिए । यही तुम्हे जिंदा रखेगा ।" मिस्टर पुरोहित की आवाज अर्जुन के कानो में जैसे गूंज रही थी । उसने लाल हो चुकी आंखो को बंद कर लिया । मिस्टर पुरोहित ने कभी शादी नही की थी । अर्जुन को उन्होंने गोद लिया था और बिलकुल सगे बेटे की तरह प्यार दिया । आज वो प्यार और अपनी गैंग की ताकत पीछे छोड़ कर हमेशा के लिए उसे फिर से अनाथ कर जा चुके थे । इसी बीच किसी ने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा । अर्जुन ने नजरे घुमा कर देखा तो व्यास ने उसे करीब करके सीने से लगा लिया । अर्जुन अकेला नही था ये वो उसे दिखाना चाह रहे थे । तभी उसी की उम्र के कबीर ने उसका हाथ थाम लिया । वो भी अपने दोस्त के साथ हमेशा रहेगा । अंतिम संस्कार में कही सारे माफिया शामिल हुए थे । जिनमे ज्यादा तर गैंग्स के लीडर थे । इंट्रो: ईगल गैंग: लीडर: व्यास आचार्य, पत्नी स्मिता आचार्य, उनके दो बच्चे :कबीर और समीर! जय उनके घर के काम करने वाले सर्वेंट का बेटा है । टायगर गैंग: लीडर : मिस्टर पुरोहित जिन्होंने अर्जुन पुरोहित को गोद लिया था । अर्जुन के साथ बचपन से ही एक लड़का है केविन, जो उसके पिता के खास गार्ड का बेटा है । फॉक्स गैंग का लीडर :जीवन कश्यप ! पत्नी वृंदा और तीन बच्चे : अखिल, विनीत और वेद बैट गैंग: लीडर: सृजन ठाकुर! इसने अपने प्यार अनिकेत से शादी की है और अब अनिकेत का भतीजा ही उनका बेटा है । वुल्फ गैंग: लीडर: विश्वास मेहरा भाई: विकास मेहरा विश्वास का एक बेटा है विहान! मार्क और ऋषभ : स्कूल टाइम के दोस्त जो काफी समय से साथ है । अथेना नाइट क्लब के मालिक । उनके दो बच्चे है: रोहन और ऋषि! धीरे धीरे सभी शमशान घाट से निकलने लगे थे । इसी बीच जीवन कश्यप अपने साथ सृजन और विश्वास मेहरा को लेकर व्यास आचार्य के सामने पहुंचा । एक गहरी सांस भर कर उसने कहा "काफी बुरा हुआ ।" व्यास ने कोई जवाब नही दिया । वो जानता था इन लोगो को कोई खास मतलब नही था मिस्टर पुरोहित के मरने से । ठीक उसे सही साबित करते हुए जीवन ने झूठा अफसोस जता कर कहा "आपकी ताकत कम हो गई किंग । एक लौता सपोर्टर , भगवान को प्यारा हो गया ।" व्यास ने उसे घूरा तो जीवन ने हाथ खड़े कर दिए "बच्चे के लिए बुरा लग रहा है मुझे । बच्चे का क्या कसूर । इसके बारे में कुछ अच्छा सोचना किंग । हमारी नजरे है आप पर ।" जीवन ने हल्के से अर्जुन के सर पर हाथ फेरा और वहा से निकल गया । ठीक सृजन ने भी अर्जुन के साथ वही किया । अंत में बचे विश्वास ने ठंडी नजरे अर्जुन और व्यास पर डाली । जिसके बाद एक टेढ़ी मुस्कान होठों पर लिए वो निकला । व्यास ने दो तीन बार पलके झपकाई । किसी भी परिस्थिति में अब वो अर्जुन को अकेला नही छोड़ सकता था । ******** अथेना, "अजीब जबरदस्ती है । क्लब बंद क्यू रखना पड़ेगा ?" ऋषभ ने हैरानी से कहा । जिसे मार्क अपने साथ लिफ्ट में ले जा रहा था । "क्युकी एक गैंग लीडर की डेथ हुई है । तुम्हे पता है ना गोवा में ये गैंग लीडर्स क्या पोजिशन रखते है ? जितना पुलिस पॉलिटिशंस का नही इतना इनका सिक्का चलता है ।" मार्क ने कहा और लिफ्ट अपने अपार्टमेंट के फ्लोर पर खुलते ही ऋषभ का हाथ पकड़ कर ले जाने लगा । "अगर हम यहां रुकेंगे तो बच्चो का क्या ?" ऋषभ को अब भी समझ नही आ रहा था की मार्क क्या करने की कोशिश में था ? "बच्चे बड़े हो रहे है । मुझे ऋषि से परमिशन मिली है की मैं आज बाहर रह सकता हु तुम्हारे साथ । वो रोहन का खयाल रख लेगा । बाकी केयर टेकर घर में मौजूद है तो चिंता की कोई बात नही । पहली बार वो अकेले नही रहने वाले ।" मार्क ने कहा । ऋषभ ने हल्के से सर हिला दिया । फिर अचानक ही एक्साइट होकर बोला "वैसे हम क्या करेंगे यहां रुक कर ? क्या फिर से कोई डेट प्लान की तुमने?" "ट्रस्ट करना मुश्किल है की ये वही बोरिंग इंसान है जो मेरे प्यार को समझ नही रहा था । ना ही एक्सेप्ट कर रहा था ।" मार्क ने अफसोस के साथ कहा । "एक्सक्यूज मि । दो बच्चे है मेरे । अनरोमैंटिक और बोरिंग किसे बोल रहे हो तुम ? मुझसे ज्यादा रोमांटिक कोई है नही इस दुनिया में । बस वो बात अलग है की सिर्फ अपने पार्टनर के साथ ।" ऋषभ अपनी धुन में बोल गया । तभी मार्क ने उसे अपार्टमेंट के बंद दरवाजे से लगा दिया । ऋषभ हल्का सा हैरान हो गया । अपने बीच की दूरी मिटाते हुए मार्क ने गहरी आवाज में कहा "चार साल से डेट कर रहे है । शादी कर ले अब ?" "शादी ?" ऋषभ ने हैरानी से कहा । "यू तो साथ रहने के लिए हमे किसी शादी की जरूरत नही । लेकिन मैने सुना है की शादी सेंटीमेंट्स से जुड़ी हुई होती है । किसी कमिटमेंट की तरह , जिसके बाद सात जन्म का कुछ सीन है ना ?" मार्क अपना सर खुजाते हुए बोला । "ओके ! तो तुम्हारे जैसा कुल गाय ये सब भी पता करता है । अच्छी बात है । अभी शादी करनी है ?" ऋषभ ने आराम से कहा । मार्क ने हल्के से हा में सर हिलाया और दरवाजे के पास लगे हुए स्विच्स ऑन कर दिए । पुरे अपार्टमेंट में रोशनी हो गई । जिसके साथ मार्क की डेट के लिए की गई मेहनत साफ नजर आ रही थी । ऋषभ का हाथ पकड़ कर मार्क बालकनी में पहुंचा तो वहा बस कैंडल्स की रोशनी थी । एक तरफ पुल के पास टेबल लगा हुआ था । वही पर ले जाकर ऋषभ के लिए मार्क ने कुर्सी खींची । ऋषभ हल्की हंसी के साथ बोला "हमारी डेट बस खाना खाकर घर चले जाने जितनी ही होती है । आज कुछ तो स्पेशल होना चाहिए । तुमने शादी के लिए प्रोपोज किया है ।" "हम्मम! खयाल अच्छा है । लेकिन तुमने क्या मुझे नौसिखिया समझ रखा है ?" मार्क ने उसके बैठने से पहले ही हाथ को पकड़ कर घुमाते हुए अपनी तरफ खीच लिया । ऋषभ खिलखिला कर हंस पड़ा । वो मार्क के गले जा लगा था । इसी बीच मार्क ने टेबल पर रखे म्यूजिक सिस्टम के रिमोट का बटन दबाया तो गाना चल पड़ा । उसी के साथ ही ऋषभ को लिए मार्क अपने कदम आगे बढ़ाने लगा । "एक्सरसाइज के लिए कोई ओर समय नही मिला था ?" ऋषभ ने शरारत से कहा । मार्क का मुंह बन गया "रिशु हर बात को काटना या टोकना जरूरी होता है क्या ? तुम मेरी मेहनत और मुड़ दोनो का कबाड़ा कर देते हो । अगर तुम्हे इतनी ही दिक्कत है मेरी प्लान की गई डेट्स को लेकर तो कभी खुद कोई अरेंजमेंट क्यू नही करते ?" ऋषभ सोच कर बोला "तुम्हारी विश सर आंखों पर । अगली डेट मेरे नाम ।" "मेरे कहने के बाद ?" मार्क ने आंखे घुमा ली । उसी के साथ ऋषभ उसकी उंगली पकड़ कर डांस करते हुए राउंड घूम गया । उसने मार्क के सीने से अपनी पीठ लगा ली तो मार्क ने मजबूती से उसे गले लगा लिया । "बस कहने भर की तो देर है । तुम्हे पता है मै थोड़ा सा स्लो हू । कुछ बाते मुझे लेट समझ आती है ।" ऋषभ ने कहा । मार्क ने एकदम से उसकी गर्दन में चेहरा छुपा लिया । बस हम्मम करके उसने जवाब दिया । उसकी गर्म सांसे ऋषभ की गर्दन पर पड़ रही थी । जिसके कारण ऋषभ की आंखे भी बंद पड़ गई । "मैने सारी तैयारी कर ली है । पेपर्स पर साइन करने की देर है बस ।" कुछ पलों बाद मार्क ने धीमी आवाज में उसके कान के पास कहा तो ऋषभ की आंखे हैरानी से खुल गई । वो मार्क की तरफ पलटा "अभी शादी करनी है तुम्हे ?" "तुम्हे कोई परेशानी है ?" मार्क ने भौंहे उठा दी । "दो पेपर्स ! मुझे कोई परेशानी नही ।" ऋषभ ने हाथ बढ़ा दिया । मार्क की मुस्कान गहरी हो गई । अगले ही पल उसने पेपर्स को ऋषभ के हाथ में पकड़ा दिया । जिस पर वो पहले से साइन कर चुका था । "बड़े तेज हो रहे हो ?" ऋषभ ने हल्के हल्के से सर हिला कर उसे देखने के बाद पेन उठाया और साइन करने लगा । "मै तेज ही हु । तभी तो तुम साथ हो ।" मार्क खोई आवाज में बोला । उसकी नजरे गौर से ऋषभ के साइन पर बनी थी । जैसे ही साइन पूरे हुए मार्क ने उसे गोद में उठा कर हवा में घुमा दिया । चिल्लाते हुए वो बोला "मै आज बहुत खुश । मुझे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी , अपना प्यार मिल चुका है ।" ऋषभ सर हिला कर हंस दिया "हा बाबा समझ गया । नीचे उतारो मुझे चक्कर आ रहे है ।" "नही ! आज कुछ मत कहना । मुझे मनमानी करने दो ।" मार्क ने उसे देखते हुए गहरी आवाज में कहा । ऋषभ ने कुछ पल उसकी आंखो में देखने के बाद पलके झपका दी । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 8. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 8

    Words: 1430

    Estimated Reading Time: 9 min

    आचार्य मेंशन, स्मिता ने दरवाजा खोला तो व्यास और कबीर उसके सामने खड़े थे । "बच्चे को ऐसी जगह ले गए व्यास । और आने में भी इतनी देर कर दी ? चिंता हो रही थी मुझे ।" स्मिता ने कहा । "तुम्हारा बच्चा भविष्य में होने वाला किंग है । उसे इन चीजों की आदत जितनी जल्दी लग जाए बेहतर होगा । और मै यू ही नही आ सकता था । किसी को साथ लाया हु । आज से ये यही पर रहेंगे ।" व्यास ने कहते हुए पीछे देखा तो स्मिता की नजर भी दो सर झुकाए खड़े बच्चो पर चली गई । उनमें से एक को वो देख चुकी थी पहले "अर्जुन !" आखिर वो उसके बेटे का दोस्त और व्यास के करीबी दोस्त का बेटा था । मिस्टर पुरोहित के साथ काफी बार अर्जुन इस घर में आ चुका था । स्मिता कैसे भुल सकती थी की अर्जुन की देख रेख के लिए पीछे कोई बचा नही होगा । उसने गहरी सांस भर कर कहा "आओ बेटा ! इसे आज से अपना ही घर समझना ।" अर्जुन ने नजरे उठाई तो स्मिता ने उसे करीब आने का इशारा किया । कबीर ने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा "मेरे माता पिता आज से तुम्हारे भी माता पिता है । और मैं तुम्हारा भाई । खुदको अकेले समझने की हिम्मत मत करना आज से ।" अर्जुन काफी ज्यादा भावुक हो चुका था । वह चुपचाप आगे चला गया तो स्मिता उसे अपने साथ ले जाने लगी । व्यास के अलावा केविन के पिता भी सामान के साथ मौजूद थे । वह अकेले यकीनन अर्जुन को सैफ रखने में सक्षम नहीं थे । दीक्षित मेंशन , एक कमरे में ऋषि बिस्तर पर लेटा था और  उसके हाथ पर रोहन का सर था । "एक थी चिड़िया , एक था कव्वा !" ऋषि ने रोहन की डिमांड पर कहानी सुनाना शुरू कर दिया तो रोहन ने मुंह बना लिया । "ब्रो , सालो से एक ही कहानी सुना कर पका रहे हो । थोड़ा तो समय के साथ अपडेट हो जाओ ? कव्वें चिड़िया से आगे बढ़ो । इतनी किताबे पढ़ते हो , उसमे से कुछ अच्छा सा नही सुना सकते ?" रोहन ने उसे कहानी शुरू होते ही टोक दिया । ऋषि उसे घूरने लगा "तुमने कहा कहानी सुनाओ इसलिए सुना रहा हु । ज्यादा मुंह बना कर मुझे परेशान किया तो कमरे से बाहर निकाल दूंगा ।" रोहन ने उस पर पकड़ कस कर तुरंत ही कहा "जो मर्जी आए सुनाओ । लेकिन कमरे से मत निकालना । मुझे आपके पास सोना है । अकेले में डर लगता है ।" "अगेन? रोहन कितना बता चुका हु । भूत जैसा कुछ नही होता । तुम अपने मन में डर लेकर बैठे हो ।" ऋषि ने उसे समझाया । "अगर भूत नही होते तो मार्क क्यू डरते है ? वो तो बड़े भी है ।" रोहन ने उससे तर्क वितर्क करना शुरू किया । एक ठंडी सांस छोड़ कर ऋषि ने रोहन के सर पर थपकी देना शुरू किया । रोहन की आधी से ज्यादा बातो को वो टाल देना बेहतर समझता था । क्युकी इसकी जबान और सवाल दुनिया घूम कर आते थे फिर । अथेना, एक चादर में लिपटे मार्क और ऋषभ अपनी ही अलग दुनिया में खोए हुए थे । ऋषभ की आंखे बंद थी लेकिन मार्क की नींद खुशी के मारे जैसे गायब हो चुकी थी । लगातार वो ऋषभ के थकान भरे चेहरे पर उंगलियां फिरा रहा था । ऋषभ ने आंखे खोल कर उसके हाथ पर चपत लगाई "मुझे सोने दो ।" "मुझे नींद नही आ रही । बाते करो मुझसे ।" मार्क ने होठ समेट कर कहा । "ताकत नही है मेरे अंदर ।" ऋषभ ने करवट बदलनी चाही पर मार्क ने ऐसा होने नही दिया । ऋषभ ने मुंह खोल कर हल्की सी सांस छोड़ी "क्या है मार्क ?" "आय लव यू ।" मार्क ने हल्के से उसका गाल चूम कर कहा । "हम्मम!" ऋषभ ने पलके झपका दी । "हम्मम क्या होता है ? बोलो .. आय लव यू टू मार्क !" उसने प्यार से कहा । "आय लव यू टू हब्बी? अब प्लीज मुझे बक्श दीजिए ?" ऋषभ ने विनती भरी आवाज में कहा तो मार्क के चेहरे पर शरारती मुस्कान खिल गई । "नेवर !" कह कर उसने ऋषभ के होठों को अपने कब्जे में ले लिया था । ऋषभ चाह कर भी उसकी किस रेजिस्ट नही कर पाया । उसकी उंगलियां मार्क के बालो में चली गई । एक मिनट बाद दूर होकर मार्क बोला "मै दुनिया की सारी खुशियां तुम्हारे कदमों के लाकर रख दूंगा ।" "मेरी दुनिया ही तुम और बच्चे हो । अब मुझे कुछ नही चाहिए ।" ऋषभ ने धीमी आवाज में कहा । मार्क ने गहराई से उसका माथा चूम लिया । और अगले ही पल अपना चेहरा उसने ऋषभ की गर्दन में छुपा लिया । ऋषभ ने मुंह खोल कर आवाज निकाली । जो यकीनन हलकी सी चिडन भरी थी । शायद आज रात मार्क उसे सोने देने की मंशा मे नही था । ठाकुर मेंशन, सृजन जैसे ही घर पहुंचा उसने देखा अनिकेत किसी से गुस्से में फोन पर बात कर रहा था । "जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते तो अब ब्लैक मेल करने का तरीका अपनाओगे आप ? मै बता चुका हु की भाई ने कृष्णा की जिम्मेदारी मुझे दी है । किसी भी कीमत पर मैं उसे किसी ओर के पास नही भेजने वाला । और आप क्या कह रहे हो ? बड़ा होकर वो हमसे सवाल करेगा की उसके पेरेंट्स ऐसे क्यू है ? तो कान खोल कर सुन लीजिए । हम कृष्णा की परवरिश ही ऐसी कर रहे है की वो इस चीज को एक्सेप्ट करें और अनकंफर्टेबल ना हो । आपको उसके भविष्य की , उसकी मेंटल हेल्थ की चिंता है ना ? वो आप लोग हो जिन्हे हम अलग नजर आते है । अगर इस चीज को नॉर्मल करके आप जैसे लोग बच्चे से अजीब सवाल ना करे तो उसके मेंटल हेल्थ की आपको चिंता करने की जरूरत नही होगी । बस इतना ही कहूंगा पापा की अब मुझे और मेरे बेटे को अकेला छोड़ दीजिए । मै आपके लिए मर गया था ना । अब मैंने भी कंसीडर कर लिया है की मेरा कोई परिवार नही ।" एक सांस में अपनी बात को खत्म करते हुए अनिकेत ने फोन काट दिया और लंबी लंबी सांसे भरने लगा । इसी बीच किसी ने उसे पीछे से बाहों में भर कर कहा "आर यू ओके? " "मै.. मै ठीक हु । आप कब लौटे ?" अनिकेत ने चौक कर कहा । "बस जब बिना डरे तुम अपने पिता को जवाब दे रहे थे । बिलकुल सही कहा तुमने । हम अपने बेटे की परवरिश ऐसी करेंगे की लोग उससे सवाल पूछने से पहले दस बार सोच ले ।" सृजन ने घमंड से कहा । "यस डेड! अगर किसी ने मेरी मम्मा के खिलाफ कुछ भी गलत कहा तो मैं उसके दांत तोड़ दूंगा ।" न जाने कृष्णा कहा से आया और उसने कहा । अनिकेत ने आंखे बड़ी कर ली "ये .. ये क्या बोल रहे हो तुम ? किससे सिख रहे हो ?" "ओह कम ऑन मॉम ! कोई आपको हर रोज फोन करके परेशान कर रहा है और आप परेशान हो रहे हो तो मुझे खुदको स्ट्रॉन्ग बनाना होगा ना ? ताकि कोई आपको परेशान ना कर पाए ।" कृष्णा ने कंधे उठा कर कहा । "देट्स माय बॉय । कोई हमारे अनी को हर्ट नही कर सकता हमारे होते हुए ।" सृजन ने कह कर कृष्णा को गोद में उठा लिया । "डेड मै बड़ा हो गया हु । मुझे ऐसे गोद में मत उठाया करो ।" कृष्णा ने हंस कर कहा । "बहुत बड़ा हो गया है ? शादी करवा दे फिर ?" सृजन ने भौंहे उचका दी । "मै तो बड़ा हो गया लेकिन बेबी अभी अपनी नाक ही पोछता है । कैसे होगी फिर शादी ?" कृष्णा ने मासूमी से कहा । "हेय भगवान । सृजन आपने पूरा बिगाड़ दिया है इसे । दीदी भी कुछ नही कहती । अभी बच्चा है और आप उसके मन में ऐसी बाते डाल रहे हो । अगर बड़ा होकर भी यही जिद करेगा तो सच में शादी करवा दोगे ?" अनिकेत अपना सर पकड़ कर नीचे बैठ गया । "बिलकुल करवाएंगे । बस बेबी की हा जरूरी है । वो काम तो मेरा बेटा कर ही लेगा । आखिर मेरा बेटा जो है ।" सृजन घमंड से बोला । अनिकेत आंखे छोटी करते हुए उसे देखता रह गया । अब तो समय ही बताएगा की बड़े होकर उनका बेटा क्या करेगा ? आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 9. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 9

    Words: 1485

    Estimated Reading Time: 9 min

    पांच साल बाद , अथेना एक अठराह साल के लड़के ने बिना किसी भाव के दो लोगो को गोली मार दी । उसी समय किसी की चीख उसके कानो में पड़ी । दरअसल वो चीख नही थी । शायद कोई गुस्से में चिल्लाया था । लड़का उस दिशा में पलटा तो एक दस साल का बच्चा बिना डरे दनदनाते हुए वहा पहुंचा । उंगली दिखा कर उसने कहा "एई लड़के , तुमने मेरे क्लब को अपना घर समझ रखा है ? यहां मर्डर करने की हिम्मत भी कैसे की ? रुको , मै अभी जाकर पुलिस को फोन करूंगा ।" अठराह साल के लड़के की आंखे छोटी हो गई । हल्की सी गर्दन टेढ़ी करते हुए उसने सामने खड़े क्यूट से बच्चे को ऊपर से नीचे तक देखा । बड़ी सुंदर और बड़ी बड़ी आंखे थी उसकी । जो माथे पर बिखरे बालो ने छुपा रखी थी । साथ ही उसके गले में एक यूनिक सा लॉकेट लटक रहा था । जो किसी चाबी की तरह था । जिस पर ऊपर वाले हिस्से का क्राउन का शेप बना था । कही सारे छोटे छोटे डायमंड उस पर लग हुए थे । उंगली में गन को घुमा का वो अठराह साल का लड़का दस साल के बच्चे के सामने जाकर रुका और अगले ही पल उसे किसी गुड़िया की तरफ उठा कर जल्दी से पास वाले स्टोर रूम में घुस गया । तभी दो लड़के वहा भागते हुए उस कोरिडोर में पहुंचे । उनके पिछे कुछ लोग भी थे । उनसे से एक में गुस्से में हाथ की मुट्ठी बना कर कहा "बच गया !" "कभी ना कभी तो हाथ आ ही जायेगा ।", कहते हुए दूसरे लड़के ने अपने लोगो की तरफ देखा "हटाओ इन लाशों को ।" उनके लोग तुरंत ही काम पर लगे गए । पहले वाला लड़का अभी भी अपनी तेज नजरो से हर तरफ देख रहा था । "एके , चले ?" दूसरे लड़के ने कहा । "वो यहां हो सकता है विनीत ।" पहले लड़के अखिल ने दूसरे लड़के की तरफ पलट कर कहा । "दो लोगो को मार दिया उसने एके । इससे पहले कुछ हो जाए हमे निकलना होगा । तुम्हे पता है ना की डेड इस बारे में जानेंगे तो क्या होगा ?" विनीत ने उसे समझाते हुए कहा । अखिल ने अपना गला तर किया और सर झटक दिया । तुरंत ही बिना कुछ कहे तेज कदमों से वो लिफ्ट की तरफ निकल गया । विनीत ने भी चारो तरफ देखा । जिसके बाद वो भी अखिल के पीछे चला गया । वही स्टोर रूम के अंदर मौजूद लड़के ने उस बच्चे को अभी भी अपनी गोद में उठाया हुआ था । गन पकड़े हाथ से ही उसने बच्चे का मुंह बंद कर रखा था । जैसे ही उसे एहसास हुआ बाहर मौजूद लोग चले गए उसने एक राहत भरी सांस छोड़ी । "कौन हो तुम । और ... मुझे रोहन दीक्षित को छूने की कोशिश भी कैसे की तुमने ?" उस बच्चे ने नीचे उतरने के लिए कसमसा कर कहा । "कही के राजकुमार हो तुम जो मैं तुम्हे छू नही सकता ? अगर हो तो मुझे भी अपनी बिरादरी का समझना । मेरा नाम कबीर आचार्य है । नाइस टू मिट यू रोहन दीक्षित ।" उसे गोद में उठाए हुए ही कबीर स्टोर रूम से बाहर निकला । "अच्छा हुआ तुमने अपना नाम बता दिया । अब पुलिस को बताने में आसानी होगी । तुमने दो लोगो का खून !" कहते हुए रोहन एकदम से चुप हो गया । अभी अभी उस कोरिडोर में कबीर ने दो लोगो को मार गिराया था । "लाश ही नही तो खून कैसा और इल्जाम कैसा ?" कबीर ने उसे देख भौंहे उचका दी । "अभी अभी यहां दो लाश थी । छत निगल गई या फर्श खा गई ? या फिर कोई भूत तो नही खा गया ?" रोहन ने आंखे बड़ी करके कबीर की आंखो में देखा । कबीर ने दो तीन बार पलके झपका दी और अगले ही पल हंस पड़ा "बड़े क्यूट हो तुम । वैसे कोई भूत प्रेत नही है । जिसका सामान था वो अपने साथ ले गया ।" "मतलब ?" रोहन भूत नही था जान कर राहत के साथ बोला । कबीर उसे उठाए हुए ही आगे बढ़ रहा था । उसने कहा "मतलब ये बताओ की तुम मालिक हो इस क्लब के ? तभी मै सोचू बच्चा कौन ले आया यहां?" "मै आ जाता हु कभी कभी यहा । ये क्लब मेरे डैड और मार्क का है ।" रोहन ने उसे जवाब दिया । "ग्रेट ! अगर मै तुमसे दोस्ती कर लू तो तुम मुझे यहां फ्री में एंट्री दे सकते हो ।" कबीर की मुस्कान जरा भी कम नहीं हो रही थी । "हा दे तो सकता हु । लेकिन हम दोस्त कहा है ? और मैं क्यू करू तुमसे दोस्ती ?" रोहन ने कहा । "बड़े फायदे है । मेरे डैड माफिया किंग है ।" कबीर ने धीमी आवाज में उसके कान के पास कहा तो रोहन ने आंखे बड़ी कर ली । वो भी धीमी आवाज में बताने लगा "बहुत सुना है मैने मार्क के मुंह से । वो कहते है की बड़े लोगो से कॉन्टैक्ट बना कर रखने चाहिए । जरूरत के समय काम आते है । तो क्या मैं भी आपसे कॉन्टैक्ट बना कर रखूं भ...!" "नो!", कबीर तेज आवाज में रुक कर बोला "जस्ट कॉल मि बडी! जिससे हम दोस्त बन सके । भैया वगैरा दोस्त नही होता ।" रोहन ने दो तीन बार तेजी से पलके झपका दी "तो चिल्ला क्यू रहे हो ? आराम से बताओ ना ? छोटा सा दिल है मेरा । बाहर आ गया तो ?" कबीर को फिर हंसी आ गई "तुम्हे कहा छोड़ूं? कौन से फ्लोर पर जा रहे थे तुम ?" "मै बस यही खेल रहा था । मुझे ऊपर अपार्टमेंट में जाना है । मै सीढियों से नीचे आ गया । चलो जल्दी ऊपर छोड़ दो । वरना डेड गुस्सा हो जायेंगे ।" रोहन को याद आया तो आपने सर पर मार कर वो बोला । "ओके क्यूटी!" कबीर ने हल्की हंसी के साथ सर हिला कर कहा और लिफ्ट लेकर उसे अपार्टमेंट तक छोड़ा । *********** सुबह का समय था । अखिल और विनीत का मुंह फिर बना हुआ था । अपनी मां के साथ वो एक आश्रम पहुंचे थे । न जाने वेद ने यहां कौन से दोस्त बना रखे थे की उनके लिए वृंदा कुछ ज्यादा ही कर रही थी । यहां तक की उसने उन बच्चो का एडमिशन तक वेद के साथ करवा दिया था । अखिल ने पतली गली पकड़ ली और एक तरफ निकल गया । बीचरा विनीत फंस कर रह गया । उसके भागने से पहले ही वृंदा ने उसका बाजू पकड़ लिया था । चाह कर भी वो अब कही जा नही सकता था । अखिल आस पास देखते हुए बाहर निकल रहा था । तभी एक बच्चा उससे आकर टकरा गया और गिरते ही रोने लगा । "आह... बस यही होना रह चुका था ।" अखिल ने चिड़ी हुई आवाज में कहा और बच्चे को देखा । "चोट लग गई क्या ?" बिना उसकी मदद के लिए आगे बढ़े ही उसने दूर से पूछा । बच्चे ने सिसकियां भरते हुए अपना पुराना सा जूता देखा जिसका निचला हिस्सा निकल चुका था । जैसे ही उसने चेहरा उठाया अखिल की सख्त पड़ी हुई आंखे साधारण हो गई । कुछ तो था उन आंखो में । जिसने अखिल को पिघला दिया । अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसने कहा "चलो खड़े हो जाओ । चोट लगी है तो हम दवाई लगा लेते है ।" "कोई चोट नही लगी । लेकिन मेरा जूता !" और वो बच्चा गला फाड़ कर रोने लगा । अखिल ने उसका जूता देखने के बाद नीचे बैठ कर कहा "तुम्हे तो नही लगी ना । फिर क्यू रो रहे हो ?" "क्युकी मेरे पास ये लौते जूते है ।" उस बच्चे ने कहा । अखिल ने अपने जूते उतारने शुरू किए "मेरे रख लो । अगली बार मैं नए जूते लेकर आऊंगा ।" बच्चे ने रोना बंद कर उसके जूते देखे जो काफी बड़े थे । वो तुरंत ही बोला "नही चाहिए मुझे । मै पहनूंगा कैसे उन्हे ?" अखिल ने सर पकड़ लिया "ये भी है । एक काम करते है । मै शाम तक वापस आऊंगा तुम्हारे लिए नए जूते लेकर । फिर तो ठीक है ?" "क्या सच में ?" बच्चे ने पुरी तरह रोना बंद कर आंखो में चमक लिए कहा । "वादा करता हु ।" अखिल ने उसकी आंखो में चमक देख कर हल्की मुस्कान के साथ कहा । "थैंक यू ।" बच्चा भी मुस्कुरा उठा । "तुम्हारा नाम जान सकता हु मै ?" अखिल ने जिज्ञासा वश कहा । "मेरा नाम अरी है । और आपका ?" उस बच्चे ने कहा । "मेरा नाम अखिल है । तुम एके बुला सकते हो । भूलोगे तो नही ?" अखिल ने कहा तो बच्चे ने तुरंत ही सर हिलाया । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 10. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 10

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    हाथ में मौजूद कुछ बुक्स एकदम से विनीत ने किसी बच्चे के सामने पटकी क्युकी वो कब से उसके पास खड़ा था लेकिन वो बच्चा उसे भाव ही नही दे रहा था । बच्चे को कोई फर्क नही पड़ा । अपनी ड्राइंग करने में वो व्यस्त था । विनीत को बेइज्जती महसूस हुई । गला खंखार कर वो बोला "अच्छी ड्राइंग करते हो । क्या कही से सीखा है ?" "नही !" बच्चे ने रूखा सा जवाब दिया । विनीत ठंडी हंसी हंस दिया "कितना बड़ा एहसान किया मुझे जवाब देकर । आज तक किसी की हिम्मत नही हुई मुझे इस तरह इग्नोर करने की ।" बच्चे की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो विनीत पैरो के बल उसके सामने बैठ गया । बात उसके इगो पर आ चुकी थी । चुटकी बजा कर वो बोला "हेय, नाम क्या है तुम्हारा ? जानते हो मै कौन हु? तुम मुझे इग्नोर कैसे कर सकते हो ?" "मुझे नही जानना आप कौन है ।" बच्चा फिर उसकी बेइज्जती कर चुका था । विनीत तिलमिला कर रह गया । अगले ही पल उसने बच्चे की स्केच बुक को छीना और उसके पन्ने पलटने लगा । एक से बढ़ कर एक स्केचेस थे । सच में , इतनी सी उम्र में बच्चे की कलाकारी का कोई जवाब नही था । विनीत जाकर रुका पहले पन्ने पर और बोला "हाह, लो पता चल गया मुझे तुम्हारा नाम । श्लोक ! राइट ?" श्लोक ने अपनी स्केच बुक छीन ली और सारे कलर्स समेटने लगा । अपनी बुक किसी के द्वारा लेने पर वो गुस्सा हो चुका था । विनीत ने दो तीन बार पलके झपका दी । जैसे ही उसे लगा बच्चा जा रहा था उसका हाथ पकड़ कर विनीत बोला "क्या हुआ ? मैने बस तुम्हारा नाम देखने के लिए बुक उठाई थी ।" श्लोक एकदम से कांप गया और उसके हाथ से सारा सामान छूट कर नीचे गिरा । "विनीत छोड़ो उसे ।" दूर से ही वृंदा ने चिल्ला कर कहा और भागते हुए वहा पहुंची । अपनी मां द्वारा डांटने पर विनीत ने तुरंत ही श्लोक का हाथ छोड़ा । खुदको आजाद पाकर श्लोक तुरंत ही भाग निकला । उसका सारा सामान पीछे छूट चुका था । वृंदा के सामने खड़े होकर विनीत बोला "मैने कुछ नही किया मम्मा !" "हा मुझे विश्वास है । लेकिन वो बच्चा बहुत सेंसिटिव है । उसे परेशानी है किसी के छूने से ।" वृंदा ने ठंडी सांस छोड़ कर कहा । "कैसी परेशानी ?" विनीत गंभीर होकर बोला । "चार पांच साल का होगा । बेचा गया था उसे । किंग द्वारा रेस्क्यू किए हुए बच्चो में शामिल था वो । घरवालों की कोई खबर नहीं , तब से यही पर है । वो अनजान लोगो से अभी भी बहुत डरता है । बेबी का दोस्त है ना , इसलिए बस थोड़ी बहुत जानकारी जुटाई । शुरुवात में मुझसे भी बात नही करता था वो । लेकिन बेबी से घुल मिल गया ।" वृंदा ने कहा तो विनीत ने हल्के से सर हिलाया । नीचे पड़ी हुई स्केच बुक और सारा सामान उठा कर विनीत ने कहा "मै उसे परेशान नही करूंगा । बस ये लौटा कर आया ।" वृंदा ने कुछ नही कहा तो विनीत दूसरी तरफ गया और एक बॉक्स से बहुत सारी चॉकलेट्स उठा कर आश्रम के अंदर चल पड़ा श्लोक को ढूंढते हुए । एक कमरे में बहुत सारे सोने के लिए बिस्तर लगे हुए थे । किसी ने इशारा कर विनीत को श्लोक की जगह दिखाई तो विनीत ने उसे जाने का इशारा किया । श्लोक खुदको चादर में छुपा कर अपनी जगह लेटा हुआ था । "हेय श्लोक ! अपनी स्केच बुक वापस लो वरना मै इसे चुरा कर ले जाऊंगा ।" विनीत ने बिस्तर के पास खड़े होकर कहा तो चादर से बस वो छोटा सा हाथ बाहर आया । विनीत मुस्कुराए बिना नहीं रह सका । बुक की जगह उसने सारी चॉकलेट्स श्लोक के हाथ पर रख दी । चादर हल्की सी हटी और अगले ही पल श्लोक ने उन्हें बिस्तर पर गिरा कर हाथ हिलाया । वो बस अपनी बुक वापस चाहता था । उसके आगे उसे किसी चीज की लालसा नहीं थी । "तुम चीज क्या हो बच्चे ? मै तुम्हारे लिए चॉकलेट लाया और तुम्हे अपनी पुरानी सी बुक वापस चाहिए । खैर , चादर हटाओ और मुंह दिखाओ । तभी मै इसे वापस करूंगा ।" विनीत ने दूर ही खड़े होकर कहा । लेकिन श्लोक एक शब्द भी नही बोला । अंत में हार मान कर विनीत ने उसकी बुक के साथ बाकी सारा सामान वही बिस्तर पर रख दिया । फिर वो हल्के से झुक कर बोला "मुझसे डरने की जरूरत नहीं है । मै वेद का बिग ब्रदर हु । जैसे उसे प्रोटेक्ट करता हु , तुम्हे भी करूंगा अगर तुमने मुझसे दोस्ती कर ली ।" श्लोक ने फिर भी कोई जवाब नही दिया तो विनीत ने कहा "अच्छा ! मै अब चलता हु । नेक्स्ट टाइम मिलेंगे ।" वह सीधा हुआ और वहा से निकल गया । जब कदमों की आवाज दूर जाकर शांत हो गई तब श्लोक ने अपना मुंह बाहर निकाला था । जल्दबाजी में वृंदा.. अखिल और विनीत को लेकर घर पहुंची तो देखा जीवन काफी ज्यादा गुस्से में था । दोनो बच्चो को देखते ही वो चिल्ला कर बोला "क्या किया तुम दोनो ने पिछली रात ? बस अठराह के हुए हो , गैंग की जिम्मेदारी नही दी अभी मैने तुम्हे ।" अखिल ने आंखे घुमा ली "जब आपको पहले से पता है तो पूछने का क्या मतलब हुआ डेड?" जीवन का चेहरा लाल पड़ गया "तुमने किंग के बेटे पर हमला किया । यहां हम सब आपस में शांति बना कर रखने की कोशिश करते है ताकि आराम से सब अपना काम कर सके । और वही तुम बच्चो ने आग भड़काने का काम शुरू कर दिया । वैसे भी मौका चाहिए उस किंग को हमे सुनाने और टारगेट करने का ।" "अपने पति को शांत करो मम्मा ! बीपी बढ़ जाएगा खामखा ।" अखिल ने लापरवाही से कहा । जीवन गुस्से के कारण कांपने लगा "आखिर ये लड़का इतना बत्तमीज क्यू है वि? किस पर गया है ये ?" "मुझसे क्यू पूछ रहे हो ? आप पर ही गया है ।" वृंदा ने आराम से कंधे झटक दिए । बाप बेटों के बीच पड़ना उसने बंद कर दिया था । वो सिर्फ अपने बेबी के मामले में बोला करती थी , क्युकी उसे सबसे ज्यादा केयर की जरूरत पड़ती थी । जीवन ने सकपका कर विनीत की तरफ देखा "मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी । तुमने रोका क्यू नही इसे ?" "मै क्यू रोकने लगा जब सामने दुश्मन हो ? और हर बात ले लिए उम्मीद आप मुझसे कैसे कर सकते है ?" विनीत ने कहा । "तुम दोनो मुझ पर गए ही नही हो । दोनो वि पर गए हो । वही बिलकुल तुम्हारी तरह मेरी बात नही मानती ।" जीवन ने दोनो को उंगली दिखा कर कहा । "हा अब सारा इल्जाम मुझ पर डाल दो । मैने कुछ नही किया इस सबमें । मुझे मत बीच में घसीटो ।" वृंदा ने कहा । "और डेड, ऐसे बच्चो की तरह विवाद करोगे बात बात पर तो आपके बच्चे आपको गंभीरता से लेना छोड़ देंगे । आप एक स्ट्रिक्ट डेड नही है , ना ही कभी बन सकते हो तो कोशिश भी मत करो ।" विनीत ने कह कर जीवन को तिलमिलाने पर मजबूर कर दिया । "बहुत बड़े हो गए हो तुम लोग । जिम्मेदारी चाहिए ना ? आज ही दोनो न्यू यॉर्क जाओगे । वहा जाकर कोलेज भी करना और बिजनेस भी संभालना । अगर जरा सा भी लॉस मुझे वहा नजर आया तो लाठी लेकर आऊंगा और बताऊंगा स्ट्रीक डेड कैसा होता है ?" जीवन के कहते ही सबकी आंखे बड़ी हो चुकी थी । वृंदा ने कुछ कहना चाहा लेकिन जीवन ने हाथ दिखा कर उसे रोक दिया "एक शब्द नही वी । मै बहुत ज्यादा गंभीर हु । सारी सिचुएशन देख और समझ कर मैने ये फैसला लिया है । इन दोनो के कारण क्या क्या हो सकता है इसका अभी तुम्हे जरा भी अंदाजा नही । आग से खेल रहे है तुम्हारे बच्चे अभी से । और इनको छेड़ने के लिए किंग का बेटा ही मिला था ।" "हम कही नही जायेंगे मम्मा ।" दोनो लडको ने वृंदा को पकड़ कर कहा । "जे प्लीज , एक बार अच्छे से सोचिए । मै समझाऊंगी ना इन्हे की आगे से ऐसा ना करे ? दूर मत भेजिए ।" वृंदा ने कहा । "इन्हे जाना ही होगा । तुम माथा पीट लो इस एके के सामने , ये वही करेगा जो इसके मन में आता है ।" जीवन ने अखिल को घूर कर कहा । "आप पर ही गया ...!" वृंदा अभी बोल ही रही थी की जीवन ने उसे घूरा । वृंदा ने अपने शब्दो का घुट भर लिया । "जिमी! इनके लिए शाम की टिकट बुक करो । और तुम भी साथ जाओगे । इनकी हर पल की खबर चाहिए मुझे ।" जीवन ने कहा तो हॉल में ही खड़ा एक लड़का आगे आया और उसने हा में सर हिलाया । अखिल और विनीत ने एक दूसरे की तरफ देखा । अब कोई रास्ता नही था , उन्हे जीवन की बात माननी ही पड़ती । अखिल तो ये सोचने लगा , अगर जाना ही था तो थोड़ा और कांड करके आ जाता पिछली रात । कम से कम कबीर को जख्मी भी कर पाता तो उसके दिल को शांति पहुंच जाती । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 11. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 11

    Words: 1060

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    अथेना, सुबह का समय था जब कबीर को ढूंढने पहुंचे अर्जुन को मेसेज मिला की कबीर घर पहुंच चुका था । कबीर के कारण सुबह सुबह उठ कर अर्जुन को क्लब आना पड़ा था । इसलिए गुस्से में वो लिफ्ट में चढ़ा तो पहले से एक बच्चा लिफ्ट में मौजूद था । अर्जुन ने हल्की सी सिटी बजाई और पीछे जाकर आराम से टेक लगा कर खड़ा हुआ । लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर ही जा रही थी । बच्चे के हाथ में मोटी मोटी जनरल नॉलेज की किताबे देख कर अर्जुन ने हैरत से कहा "कितने साल के हो तुम ? किसी खास एग्जाम के लिए प्रिपरेशन कर रहे हो?" अर्जुन बोर्ड एग्जाम देने जा रहा था । फिर भी किसी बात की गंभीरता उसे नही थी । उसे बच्चे की तरफ से जवाब नही मिला । बल्कि बच्चे ने अपना चश्मा नाक पर चढ़ा लिया । अर्जुन की भौंहे हल्की सी ऊपर उठ गई थी । उसने कहा "मैने तुम्हे कही बार यहां आते जाते देखा लेकिन बात नहीं हो पाई हमारी ।" इस बार भी सामने से शांति बनी रही तो अर्जुन ने हल्के से चिढ़ कर पैरो को क्रॉस किया और हाथ सर के पीछे बांध लिए "गूंगे हो ? कम से कम अपना नाम ही बता दो अगर नही हो तो ।" "मै आवारा लोगो से बात करना पसंद नही करता ।" बच्चे ने मुंह खोलते ही अर्जुन को हैरान कर दिया । "एक्सक्यूज मि ! आवारा किसे कहा तुमने ?" अर्जुन तिलमिला उठा था । "जो पूरी रात क्लब में रह कर सुबह घर जाए ।" बच्चे ने उसकी तरफ अब भी नही देखा था । "लेकिन मै तो ..! " अर्जुन ने सफाई देनी चाही लेकिन फिर रुक गया । हल्के से सर हिला कर वो बोला "तुम भी तो यही हो । और बच्चो को आने कौन दे रहा है यहां?" "ये जगह मेरे बाप की है ।" बच्चा जो की ऋषि था उसने आराम से कहा । अर्जुन ने दांत चबा कर कहा "तुमने मुझे आवारा बोल भी कैसे दिया ? कम से कम अपनी उम्र के हिसाब से तो बाते करो बच्चे ? और तुम्हारी नजर में कौन कामयाब है हनन? यहां आने वाले लोग अक्सर कामयाब ही होते है तभी कदम रख पाते है इस महंगी जगह ।" "कामयाब वो नही होता जो पैसे कमा कर ऐसी जगह उन्हे उड़ाने आ जाए । बल्कि अपने काम के प्रति समर्पित रह कर उसकी मेहनत के फल को अच्छी जगह उपयोग करे । ये जगह सिर्फ मोह माया से भरी है ।" ऋषि ने कहा । अर्जुन ने एकदम से अपने गाल पर हाथ रख लिया "तुम्हारी बात बिल्कुल किसी तमाचे की तरह लगी मेरे गाल पर । कहा थे आप गुरुदेव ? आंखे खोल दी आपने मेरी ।" अगले ही पल भाव बदल कर अर्जुन ने ऋषि को कॉलर से पकड़ कर पीछे खींचते हुए कहा "यकीनन तुम्हारे पिता से तुम्हारे खयालात नही मिलते होगे ।" ऋषि ने आंखे छोटी कर उसे घुरा । जितना शांत वो अब तक लग रहा था उतना ही गुस्सा उसकी नाक पर नजर आने लगा । "ऋषि दीक्षित !" अर्जुन ने बुक के कवर पर खूबसूरत अक्षरों में लिखे नाम को पढ़ कर कहा । ऋषि ने तुरंत ही उस नाम को ढक लिया लेकिन अब कोई फायदा नही था । साथ ही वो अर्जुन से अपनी कॉलर छुड़ाने के लिए कसमसाने लगा । "तुम्हे एक बोरिंग लाइफ जीता देख मुझे दुख हो रहा है । शायद तुम्हारा कोई दोस्त नहीं होगा । कोई बात नही । मै बन जाऊंगा । तो दोस्ती करोगे ?" अर्जुन ने थोड़ा अकड़ते हुए कहा । जैसे वो एहसान करने वाला था ऋषि पर । अंत में अपनी कॉलर छुड़ा कर ऋषि बोला "मै आवारा लोगो से दोस्ती करने से बेहतर अकेला रहना ज्यादा पसंद करता हु ।" अर्जुन जबरदस्ती हंस पड़ा "तुमने मुझे बहुत गुस्सा दिला दिया है ।" इसी बीच लिफ्ट का दरवाजा खुला और ऋषि बिना उसे सुने बाहर निकल गया । "हेय बच्चे ! ऋषि दीक्षित रुको ।" अर्जुन ने उसके पीछे भाग कर कहा । लेकिन जल्द ही ऋषि एक गाड़ी की पिछली सीट पर जा बैठा और ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी । ************ आचार्य मेंशन, तेरह साल का समीर फूट फुट कर रोते हुए बोल रहा था "आखिर क्यों जायेगा जय कही ? वो मेरा एक लौता दोस्त है । उसे मुझसे दूर मत करो ।" "लेकिन जय ट्रेनिंग के लिए जा रहा है समु ! बच्चे ऐसे नही करते । तुम नही चाहते तुम्हारा दोस्त स्ट्रॉन्ग होकर आए ताकि भविष्य में तुम्हे प्रोटेक्ट कर सके ?" व्यास ने उसे समझाते हुए कहा । "नही नही बिलकुल नहीं । अगर जय कही जायेगा तो मैं खाना नही खाऊंगा । कुछ नही करूंगा ।" समीर जिद भरी आवाज में पैर पटकने लगा । व्यास ने ठंडी सांस छोड़ कर स्मिता को देखा । उसी समय स्मिता से सख्त लहजे में कहा "समु रोना बंद ! और अभी के अभी अपने कमरे में जाओ ।" पल भर में समीर की आवाज बंद हो गई और बहती नाक पोछ्ते हुए उसने नजरे उठा कर एक लड़के को देखा । सर झुका रखा था उस लड़के ने । उसकी बगल में एक और लड़का था । वो दोनो कोई ओर नही जय और केविन थे । उन्हे साथ ही ट्रेनिंग के लिए भेजा जा रहा था ताकि भविष्य में वो कबीर और अर्जुन को प्रोटेक्ट करने के लिए तैयार रहे । "जय तुम कहो ना तुम्हे मुझे छोड़ कर नही जाना ? हम दोस्त है ना । मेरे लिए तुम इतना भी नही कर सकते ?" समीर ने सिसकियां भरते हुए उम्मीद से कहा । जय ने पीछे बांधे हाथो की मुट्ठियां बना रखी थी । बिना सिर उठाए ही वो बोला "हम दोस्त नही है सर । और मेरा जाना भी जरूरी है ।" समीर ने अविश्वास से उसे देखा । कुछ पल लगे उसे जय की बात समझने में । उसने गुस्से में जबड़ा कस लिया । उसका एक लौता दोस्त इस तरह से उसे डिच करेगा उसने सपने में भी नही सोचा था । अपनी आंखे साफ कर समीर तेज कदमों से चला गया । जय ने हल्की सी नजरे उठाई । तकलीफ तो उसे भी हो रही थी । लेकिन वो मजबूर था । उसने अपने पिता से वादा किया था की वो हमेशा किंग की आज्ञा का पालन करेगा । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 12. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 12

    Words: 1559

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    कुछ सालो बाद , क्लब के अपार्टमेंट में मार्क लैपटॉप लेकर बैठा था और ऋषभ ने कस कर उसका हाथ पकड़ा था । पीछे ही ऋषि बार बार चक्कर काटे जा रहा था । उन तीनो को आंखे छोटी करके देख रहा रोहन सेब खाने में व्यस्त था । इसी बीच मार्क ने एक्साइट होकर कहा "येय .. ऋषि बेबी तुम्हे मेडिकल की सीट मिल गई ।" ऋषभ जोर से चिल्ला पड़ा था वही ऋषि अपने मुंह पर हाथ रखे बस विश्वास करके की कोशिश कर रहा था की उसे सीट मिल गई । रोहन ने आंखे घुमा ली और वहा से बाहर निकल पड़ा । दोनो बाप अपने बच्चे को कांग्राटुलेट कर रहे थे । पंधरा साल का रोहन लिफ्ट लेकर पहले फ्लोर पर पहुंचा । उसे अच्छे से पता था यहां आज उसके दोस्त की खास मीटिंग थी जिसके लिए पूरा क्लब अभी से लेकर पूरी रात खाली रहने वाला था । रोहन ने लापरवाही से दरवाजा खोला और अंदर पहुंचा तो सबकी नजरे उस तरफ घूम गई । एक बड़े से सोफे पर लगभग तेईस साल का कबीर बैठा हुआ था । ब्लेजर को उसने पास ही उतार रखा था और शर्ट की बाजुए समेटी हुई थी । कभी कभी तो रोहन भी अपनी नजरे नही हटा पाता था उस हैंडसम लड़के से । फिर उसे याद आता था वो भी लड़का है और कबीर से ज्यादा हैंडसम भी । गर्व से उसका सीना फिर से हमेशा की तरह फूल गया और वो लापरवाह सी चाल चलते हुए अंदर आया । "आप लोग आ सकते है ।" कबीर ने अपने क्लाइंट्स से कहा । सभी कबीर से हाथ मिला कर वहा से निकलने लगे । कबीर ने फिर रोहन की तरफ देखा तो एकदम से आकर रोहन उसकी बगल में बैठ कर सोफे पर पसर गया । सेब अभी भी उसके हाथ में था जिसे खाने से पहले उसने एक लंबी सांस छोड़ी । "किस वजह से परेशान है क्यूटी ?" कबीर ने फाइल्स को समेटना शुरू कर दिया । "ये लोग क्यू खड़े है यहां अभी भी ?" रोहन ने पूरे कमरे में नजर दौड़ाई । कबीर के गार्ड्स सर झुका कर खड़े थे । जिनमे जय भी शामिल था । कबीर ने उसे फाइल्स सौंपी और सबको बाहर जाने का इशारा किया । जैसे ही वो चले गए रोहन ने सर फेका और मुंह खोल कर जोर से रोना शुरू करते हुए कहा "ये डेड और मार्क बहुत बुरे है । हमेशा कहते है की हमे कोई फर्क नही पड़ता हमारे बच्चे पढ़े या नही । लेकिन जब .. ब्रो मेडल्स , ट्रॉफी और सर्टिफिकेट लेकर घर लौटते है तो सेलिब्रेशन करने में कोई कमी नही रखते । चिल्ला कर पूरा घर सर पर उठा लेते है । ये कितनी बुरी बात है ।" कहते हुए उसने कबीर की बाजू पर मारना शुरू कर दिया । अपने भाव अगर वो कही व्यक्त कर पाता था तो वो कबीर ही था । कबीर ने गला खराश दिया तभी रोहन ने उसकी बाजू पर अपनी नाक को पोछा । होठों को आपस मे भींच कर कबीर ने आंखे बंद की और फिर सामने पड़े टिशू उठा कर रोहन का चेहरा पकड़ा । उसकी आंखे नाक साफ करते हुए उसने कहा "तो फिर तुम मेहनत क्यू नही करते ? अगर तुम भी टॉप करोगे तो तुम्हे भी वो अप्रिशिएट करेंगे । क्या तुम्हे अपने ही भाई से जलन है ?" "मुझे जलन नही है लेकिन बुरा लगता है । क्युकी मुझसे पढ़ाई छोड़ कर सब कुछ हो जाता है बड़ी । वो लोग मुझे नंबर लाने के लिए प्रेशर भी तो नही करते । बोलो कैसे होगा ?" रोहन सिसकते हुए बोलने लगा । कबीर ने अपने बालो में हाथ घुमाया "मै तो करता हु ना प्रेशर । फिर मेरी बात क्यू नही सुनते ।" "नही बडी । वो वाला नही , पापा की बेल्ट वाला प्रेशर ज्यादा वर्क करता है ऐसा मैने सुना ।" रोहन का रोना एकदम से बंद हो चुका था । "काफी कुछ सुन लेते हो तुम ।" कबीर ने उसके माथे पर फ्लिक करते हुए कहा । पल पल लड़के के भाव मौसम भी तरह बदलते रहते थे । रोहन ने माथा सहलाया "मै बहुत परेशान हु बडी और दुखी भी ।" "आइसक्रीम खाने चलोगे फिर ?" कबीर ने एकदम से कहा तो उसके हाथ से टिशू पेपर का बॉक्स छीन कर रोहन ने अच्छे से आंखे और नाक को साफ कर लिया । फिर अपनी बाहें भी फैला दी ताकि कबीर उसे गोद में उठा ले । कबीर अपना ब्लेजर पहनने लगा । "तुम अब बड़े हो चुके हो रोहन ।" कबीर ने ठंडी सांस छोड़ते हुए कहा और उसके सामने पीठ करके बैठ गया । रोहन ने जल्दी से उसके गले में हाथ फसा कर पीठ से लटकते हुए कहा "जब मैं कहता हु की मैं बड़ा हो गया तब आप ही कहते हो , नही .. तुम अभी बच्चे हो । ये नही कर सकते , वो नही कर सकते ।" "बस बातो से चुप करवाना आता है तुम्हे ।" कबीर ने कहा और उसे अच्छे से पकड़ कर वहा से निकल गया । जैसे हो वो कमरे से बाहर आए मार्क सामने आ गया "मुझे पता था तुम यहीं आए होगे ।" "जाने वाले को टोकते नही मार्क, मै पहले ही बता दे रहा हु । हम आइसक्रीम खाने जा रहे है । जल्द ही लौट आयेंगे , क्युकी बड़ी की अभी मीटिंग है दूसरी ।" रोहन ने कबीर के पीछे सर निकाल कर बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा । मार्क ने अफसोस के साथ सर हिला दिया और एक तरफ हट कर उन्हे जाने दिया । कबीर के बारे में हर बात पता होती थी रोहन को । और उनकी दोस्ती तो लगभग पांच सालो से चल रही थी अब । शाम के समय डूबते सूरज को देखते हुए रोहन दोनो हाथो में आइसक्रीम लेकर खा रहा था । बीच पर वो एक बेंच पर बैठे हुए थे । कबीर उसकी बगल मे ही था । अचानक ही रोहन ने कहा "आप इतनी कम उम्र में कितना कुछ करते हो ना ? मुझे आपकी तरफ देख कर गर्व होता है । आपको भी होता होगा ना गर्व की मैं , रोहन दीक्षित आपका दोस्त है ?" कबीर ने चुपचाप हा में सर हिलाया । बड़ा ही आत्ममुग्ध लड़का था । "मार्क ने कहा जल्द ही नए किंग की घोषणा होगी । तो अगले किंग आप बनोगे ?" रोहन आगे बोला । "हम्मम, डेड को रेस्ट चाहिए । अपनी वाइफ को वो समय देना चाहते है ।" कबीर ने सर हिलाया । "हाउ रोमांटिक !" रोहन ने जैसे ही कहा कबीर ने उसके सर पर हल्के से मारा । रोहन ने उसे घूरा लेकिन कबीर को कोई फर्क नही पड़ा । बेंच पर पसर कर वो बोला "पढ़ाई छोड़ कर सच में तुम से सब होता है ।" उसी से रोहन को कुछ याद आया "बडी सुनो ना , एक लड़की जो मेरी क्लास में ..!" रोहन ने बस इतना ही कहा था की फिर उसके सर पर पड़ी । कबीर ने गुस्से में कहा "बस ये बाते करने में तुम्हे कोई आलस नहीं आता । कितनी बार है कहा है लड़कियों के बारे में बात मत किया करो ?" "लेकिन मै तो ये कह रहा था की वो आपकी तस्वीर लेकर घूमती है ।" रोहन ने मुंह फुला कर नाराजगी से कहा । कबीर हल्का सा सकपका गया "म.. मेरी तस्वीर ?" "हा , जो मैने लेकर फाड़ दी । ऐसे कैसे उसने मेरे दोस्त की तस्वीर अपने पास रखी थी ? चोरनी कही की । मैने उसे चेतावनी दी , अगर दुबारा उसने आपकी तस्वीर को देखा भी तो मैं उसकी आंखे निकाल लूंगा ।" रोहन गुस्से ने दांत पीसते हुए बोला । कबीर जोर से हंस पड़ा । रोहन को अपनी बाजू में दबोच कर उसके कहा "शाबास मेरे शेर । बस यही करना था तुम्हे । मै ऐसी ही उम्मीद रखता था तुमसे ।" "शबासी ही देनी थी तो पहले मारा क्यू ?" रोहन ने दुबारा उसे घूरा और ठंडी आवाज में कहा । "वो इसलिए क्युकी तितला बन रहे हो धीरे धीरे ।" कबीर ने कह कर उसकी आइसक्रीम छीन ली और दूर भाग गया । रोहन जोर से चिल्लाया "मेरी आइसक्रीम ! आपको खानी है तो दूसरी लाओ बड़ी । मेरी वापस करो ।" "आकर ले लो ।" कबीर ने पलट कर कहा और पानी में किनारे उल्टे कदम चलने लगा । रोहन भी अपनी बची हुई दूसरी आइसक्रीम पूरी मुंह में डाल कर उसके पिछे भागा । काफी समय तक वो पानी में खेलते रहे जब तक की जय ने आवाज लगा कर कबीर को वापस ना बुला लिया । कबीर जब लौटा तो जय के चेहरे पर परेशानी थी "हमे वापस जाना होगा । किंग ने आपको घर बुलाया है ।" जय अपने गर्दन को खुजा रहा था । जिसे देख कर कबीर की आंखे ठंडी पड़ गई । उसने जल्दी से अपना ब्लेजर उतारा और एकदम से रोहन के सर पर डाल कर उसका चेहरा छुपा दिया । "बड़ी!" रोहन ने उसे निकलना चाहा लेकिन तभी कबीर ने उसे उठा लिया । अपनी बाजुओं में रोहन को पूरी तरह छुपा कर वो तेजी से गार्ड्स के बीच चलते हुए गाड़ी के पास पहुंचा । जैसे ही वो गाड़ी में बैठे एक दूसरी गाड़ी कही से पूरी स्पीड में आई और उसने कबीर की गाड़ी को टक्कर मारी । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 13. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 13

    Words: 1244

    Estimated Reading Time: 8 min

    सिटी हॉस्पिटल , सभी को रस्ते से हटाते हुए कुछ गार्ड्स तेजी से अंदर बढ़ रहे थे । तभी एक डॉक्टर ने सामने से आकर पास ही पड़े स्ट्रेचर को खीचा और तेज आवाज में कहा “इस पर लिटाओ बच्चे को कबीर ।” गार्ड्स एकदम से हट गए और कबीर सामने आया । उसके चेहरे पर हलकी फुलकी चोट लगी थी । लेकिन कपड़ो पर काफी सारा खून था । जो यक़ीनन उसका नहीं उसकी गोद में मौजूद रोहन का था । कबीर के चेहरे का रंग पूरी तरह उड़ चूका था । बड़े से बड़े जख्म को झेल जाने वाला अब समय डर रहा था । अपने लिए नहीं बल्कि अपने कारन उस बच्चे को कुछ ना हो जाये इसलिए । “कबीर उसे स्ट्रेचर पर रखो , पहले काफी सारा खून बह चूका है उसका । हमें जल्द से जल्द उसे ट्रीट करना होगा । वर्ना उसकी जान को खतरा है ।” उस डॉक्टर ने कहा । कोई कोट नहीं पहना था उसने । लेकिन गले में टेथोस्कोप जरुर लटक रहा था । साथ ही जैसे उसने जल्दबाजी में अपने सर्जरी के कपडे पहने हो । “उसे डर लगता है हॉस्पिटल से । उसने मुझे हर जगह साथ रहने के लिए बोला है । मै अकेला नहीं छोडूंगा उसे । अंदर जाऊंगा उसके साथ ।” कबीर ने डॉक्टर की तरफ देखते हुए कहा तो डॉक्टर ने एक ठंडी साँस छोड़ी । ये लड़का आसानी से कुछ मानने तो नहीं वाला था । इसलिए हां कहने में डॉक्टर ने बेहतरी समझी । कबीर ने रोहन को स्ट्रेचर पर लिटा दिया । जिसके बाद तुरंत ही अस्पताल के स्टाफ ने लीड लेते हुए रोहन को शिफ्ट किया । जो अपने होश पूरी तरह खो चूका था । एक भारी रात गुजर चुकी थी । जिस गाड़ी ने हिट किया उसके अंदर कोई भी जिन्दा नहीं बचा था । इतनी जोरदार टक्कर मरने के बाद वैसे भी किसी का बचना मुश्किल ही था । वो तो अच्छा था कबीर की गाड़ी का पिछला हिस्सा ज्यादा डैमेज हुआ सिट के मुकाबले । लेकिन रोहन को टक्कर के कारन गिरने की वजह से काफी गंभीर छोट आ चुकी थी । मौके पर सारा काम निपटा कर जय अस्पताल पहुच गया । जहा एक वार्ड के बाहर कबीर के अलावा रोहन की फॅमिली बैठी थी । सर्जरी अच्छे से पूरी हुई जिसका पूरा श्रेय कभी कभी अस्पताल पधारने वाले डॉक्टर अर्जुन को जाता था । हां उसने मेडिकल की फिल्ड ही चुनी । इंटर्नशिप के दौरान ही पूरा अस्पताल खरीद कर बैठ गया और अब अपनी मर्जी का मालिक था । जब उसने मेडिकल फील्ड चूज की तो सबके लिए जैसे ये कोई सदमा था । लेकिन फिर व्यास ने सोचा बेहतर है उनमे से कोई डॉक्टर बन जाये । ताकि भविष्य में आने वाली परेशानिया सुलझने में मदद मिल सके । इसी बिच किसी ने आकर कहा की रोहन को होश आ गया । कबीर ने सबसे पहले जाना चाहा लेकिन तभी ऋषभ का गुस्सा फुट पड़ा “बेहतर होगा आगे से तुम मेरे बेटे से दूर ही रहो । तुम्हारे साथ उसकी दोस्ती मुझे सिर्फ उसके लीये खतरा नजर आ रही है । जो आज हुआ वो भविष्य में कभी भी हो सकता है । तुम्हे खुद ही ये बात किसी के समझाने से पहले समझ आ जानी चाहिए । माफ़ करना लेकिन मै अपने बेटे के साथ कोई रिस्क नहीं लूँगा ।” कबीर ने शर्मिंदगी से सर झुका कर कहा “मै समझता हु सर । बस एक आखिरी बार ही मुझे मिलने दो । उसके बाद मै कभी रोहन के आसपास नहीं आऊंगा ।" “रिशु शांत हो जाओ । जो हुआ वो उन्होंने एक्स्पेक्ट नहीं किया था और हमारा जिद्दी बेटा किसी की सुनता भी नहीं है । पहले रोहन से मिल लेते है । उसके बाद अपना फैसला सूना देना । “ मार्क ने उसे शांत करते हुए कहा तो ऋषभ ने एक लम्बी साँस छोड़ी और तेजी से वार्ड के अंदर चला गया । “यही रहना ! तुम्हे ना देखने पर वह पागल हो जायेगा ।" मार्क ने कबीर के कंधे पर हाथ रख कर कहा और ऋषभ के पीछे ही ऋषि को लेकर अंदर चला गया। उनके जाते ही कबीर ने अपने कदम पीछे लिए और एक राहत भरी साँस खिची । बस अपनी आँखों को एक बार विश्वास दिलाना चाहता था वो की रोहन ठीक था । “कबीर सर ! “ जय ने उसके करीब जाकर कहा । “मुझे बताओ की वो लोग एक बुरी मौत मर चुके है ।” कबीर बस इसके अलावा कुछ सुनना ही नहीं चाहता था । “उनकी मौके पर ही मौत हो गयी ।” जय ने सर हिला कर जवाब दिया । “किसने किया ये सब? कब तक बताओगे मुझे?” कबीर ने ठंडी आवाज में कहा । “हमारा शक सबके उपर बराबर है । किंग की घोषणा के बाद कोई भी आपको मारने की कोशिश कर सकता है की वो अपनी जिम्मेदारी आपको देना चाहते है । बहुत से लोग उनके निर्णय के खिलाफ है ।” जय ने कहा । “आह्ह एक काम करना , जिस पर भी शक हो उनका भारी नुकसान होना चाहिए । ताकि अगली बार मुझसे भिड़ने से पहले वो दस नही सौ बार सोचे ।” कबीर ने हाथो की मुट्ठिया कस कर कहा । जय ने एकदम से गला खराश दिया “एक बच्चे के साथ रह कर आप इससे ज्यादा कुछ सोच नहीं पाए सर?” कबीर ने उसे घुर कर देखा “जो कहा वो करो ।" “यस.. यस सर ! “ जय ने हडबडा कर हां कहा । कुछ ही देर में ऋषभ, मार्क और ऋषि बाहर निकले तो कबीर ने अंदर प्रवेश किया । दरवाजा खुलने की आवाज सुन कर ही बिस्तर पर पड़े रोहन के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी । कबीर हाथो में खुबसूरत फूलो का गुलदस्ता लेकर पंहुचा था । रोहन के सर पर पट्टी बंदी थी । हाथो को सर के पीछे लगाकर उसने बड़े ही आराम से कहा “अब मस्त एक दो हफ्ते तक स्कुल की छुट्टी । आप कम्पनी देने रहना मुझे । हम यहाँ मजे करेंगे ।" कबीर ने अफ़सोस के साथ सर हिलाया । बस उसे इसी बात की उम्मीद थी रोहन से । फूलो को बिस्तर के कोने पर रख कर उसने रोहन के सर के पीछे हाथ लगाया और एकदम से उसे हल्का सा उठा कर अपने गले लगा लिया । “आप डर गए थे बड़ी?” रोहन ने भी आंखे बंद कर उसकी पीठ पर अपने छोटे छोटे हाथ रखते हुए कहा । “हां बहुत ।” कबीर ने धीमी आवाज में जवाब दिया । “और क्या आप रोये भी?” रोहन ने कहा । “हां मै रोया भी था तुम्हारे लिए। ” कबीर ने उसकी बात पर सहमती जताई । “गोवा का होने वाला माफिया किंग मेरे लिए रोया । क्या ये बात फ्लेक्स करने जैसी है ? मै उस लड़की को जाकर बताऊ ये बात , वो बहुत जलेगी मुझसे ।” रोहन ने कहा तो कबीर अपनी हंसी को रोक नहीं पाया । उसने कहा “लडकियों से दूर रहो फ्लर्टी इन्सान ।” रोहन भी उसके साथ हंस दिया । जब कबीर पीछे हुआ तो रोहन ने उसके चेहरे पर लगी छोटी मोटी चोट को देख कर कहा “आपने इस पर दवाई भी नहीं लगाई बड़ी?” “तुम लगा दो हमेशा की तरह ।” कबीर ने पलके झपका कर कहा । “सब मुझे ही करना पड़ता है । ओफ्फ्फ ये लड़का.. मेरे बिना क्या होगा इसका?” रोहन ने कंधे उठा कर कहा । कबीर ने बस उसकी हा में अपनी हा मिला दी । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 14. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 14

    Words: 1306

    Estimated Reading Time: 8 min

    सिटी हॉस्पिटल, सुबह का समय था जब ऋषि कॉफ़ी लेने अस्पताल के कैन्टीन में पंहुचा था । इसी बिच उसकी नजर एक कोने में बैठे अर्जुन पर पड़ी । ऋषि ने कुछ सोचा और एक एक्स्ट्रा कॉफ़ी खरीद कर उस दिशा में बढ़ गया । “गुड मोर्निंग डॉक्टर!” ऋषि ने धीमी आवाज में थोडा हिचकिचा कर कहा । “गुड मोर... मोर्निंग!” अर्जुन ने कहते हुए जैसे उपर देखा उसकी आवाज हल्की सी लड़खड़ा गई । लेकिन जल्द ही उसने खुदको संभाल लिया था । उसके चेहरे के भाव जरा भी ना बदले और इन्तेजार करने लगा वो ऋषि के कुछ कहने का । “एक्चुअली मैं भी इस साल मेडिकल कोलेज ज्वाइन करने वाला हु । क्या आप मुझे कुछ टिप्स देना चाहेंगे? मै अभी थोड़ा कंफ्यूज हु ।" ऋषि ने उसके सामने एक कॉफ़ी रखते हुए कहा । “अहह... टिप्स? अच्छे से पढाई करो और क्या? पढोगे तभी एक सफल डॉक्टर बन पाओगे मेरी तरह । आज कल कॉम्पिटिशन का जमाना है । इसमें टिकना है तो सिवाय पढाई के दूसरा कोई आप्शन नहीं ।” अर्जुन ने एक ऊँगली को ना में हिला कर कहा । ऋषि बहुत ही गंभीरता से उसे सुन रहा था । “मेरे नोट्स पड़े है । अगर चाहिए तो अपना मेल आयडी शेयर कर देना ।" अर्जुन के कहा तो ऋषि की आंखे चमक उठी । जल्दी से वो आस पास पेन के लिए देखने लगा । अर्जुन ने अपनी जेब से लगा पेन निकाल कर उसके सामने रख दिया तो ऋषि ने मेल आयडी के साथ अपना नंबर भी एक टिशु पेपर पर लिख कर दे दिया । “मेरा नाम ऋषि दीक्षित है ।” उसने कहते हुए पेन लौटा दिया । “मेरा नाम अर्जुन पुरोहित है ।” अर्जुन ने हलके से सर हिला कर टिशु पेपर उठा कर देखने लगा । “आय नो , आप अपने बीजी शेड्यूल से समय निकाल कर यहाँ बैठे होंगे । इसलिए मै आपको ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करूँगा और एक बात , आपको थैंक यु भी कहना था । आपने मेरे छोटे भाई की जान बचायी ।” ऋषि की बाते सुन कर अर्जुन आसमान में उड़ने लगा था । लेकिन चेहरे पर फिर भी कोई भाव आने नहीं दिए । उसे बाय करते हुए ऋषि वहा से निकल गया तो हडबडा कर सबसे पहले अर्जुन ने अपने फ़ोन में वो नंबर सेव कर लिया । “आवारा कहा था उसने एक दिन मुझे । ” अर्जुन ने होठो पर तिरछी मुस्कान लिए कहा । “कुछ गलत भी नहीं कहा था । आप आज भी वैसे ही हो और उन्हें ये बात पता नहीं । वो आपको पंहुचा हुआ डॉक्टर समझ रहा है । पहुचे हुए तो आप हो , लेकिन डॉक्टर नहीं ।” पीछे खड़े एक लड़के ने कहा तो अर्जुन ने गर्दन घुमाई । “तुम मेरी तरफ से हो की मेरे खिलाफ केविन? डॉक्टर की डिग्री लेने के लिए कितनी मेहनत की है तुम्हे पता भी है?” उसने घमंड से कहा । “हां मेहनत तो आपने बहुत की । एक बच्चे को स्टोक किया , उसकी होबिज और सपने रट लिए । फिर अपनी फिल्ड चूज की । सिर्फ खुदको आवारा ना साबित करने के लिए । लेकिन अब अपनी डिग्री का उपयोग कहा कर रहे हो?” केविन ने अफ़सोस के साथ अर्जुन को उसके कांड सुनाये । “तुम आज कल बहुत बकवास नहीं करने लगे?” अर्जुन ने कहा । “आपके हाथ पैर क्यों कांप रहे है?” उसकी बात को नजरंदाज करते हुए केविन ने कहा । अर्जुन ने इस बात पर गौर किया । हां ऐसा हो रहा था और शायद तब से जब उसे एहसास हुआ ऋषि उसकी तरफ बढ़ रहा था “शायद एक्साइट मेंट के चक्कर में ।" केविन ने अफ़सोस के साथ सर हिला दिया । अर्जुन ने उससे नजरे हटा ली तो एक मुस्कान ने उसके होठो पर जगह बना ली “देखना अब वो कैसे मेरे पीछे भागेगा ।” “किसी भ्रम में मत रहिये । उसने बस आपको अप्रिशिएट किया क्युकी आप एक डॉक्टर है । अगर उसे पीछे भी आना होगा तो डॉक्टर अर्जुन के पीछे आयेगा, अर्जुन पुरोहित के पीछे पागल होकर नहीं ।” केविन ने उसे सच्चाई बताई तो अर्जुन ने गुस्से में सामने पड़ी फाइल उठा कर उसे मारनी चाही । “तू सच में मेरा दुश्मन है । तेरे होते हुए मुझे किसी और की जरुरत ही नहीं ।" अर्जुन दांत पिस कर कहा तो केविन जल्दी से उससे दूर होकर खड़ा हुआ । कॉफ़ी लेकर अस्पताल के अंदर दुबारा जाकर ऋषि लिफ्ट का इन्तेजार कर रहा था । तभी उसकी नजर एक पोस्टर पर पड़ी और वो उसी दिशा में बढ़ गया । उस पोस्टर पर अर्जुन की बड़ी सी तस्वीर थी । निचे कुछ लिखा हुआ भी था । जैसे की ऋषि को पढने का बहुत शौक था तो वो न्यू भी नहीं छोड़ता था । कुछ महीनो पहले ही उसने ये खबर पढ़ी थी । अर्जुन पुरोहित ने इस अस्पताल को खरीद लिया , और अब ये अस्पताल नुकसान झेलते हुए भी जरुरत मंद लोगो का फ्री में ही इलाज करता था । दूसरे अस्पताल लगातार इस अस्पताल कर ऑब्जेक्शन लेकर इसे बंद करवाने की कोशिश में थे । लेकिन आज तक ऐसा कोई कर नही पाया । “मै अपनी इंटर्नशिप के लिए यही पर आऊंगा । मुझे आपके साथ काम करना है डॉक्टर अर्जुन ।” ऋषि ने गहरी मुस्कान के साथ कहा और वहा से चला गया । कबीर काफी समय तक अस्पताल में रोहन के पास रुका रहा , जब तक की वो सो नहीं गया । उसके बाद कबीर वहा से निकल गया था । रात को जब रोहन की आंखे खुली तो बस उसका परिवार मोजूद था उसके पास । “उठ गए तुम?” मार्क ने उसके सर पर हलके से हाथ फिरा कर कहा । “आप लोग मेरे कारन यहाँ अटक गए हो ना? मै कही भी आराम कर लूँगा , चिंता मत करो । चाहो तो मुझे घर शिफ्ट करो या फिर क्लब ।” रोहन ने कहा । “एक हफ्ते से पहले तुम्हे डिस्चार्ज नहीं देने वाले डॉक्टर । क्युकी चोट इतनी गंभीर थी ।” ऋषभ ने गुस्से और चिंता के मिले जुले भावो के साथ कहा । “अच्छा ठीक है । फिर कोई एक ही मेरे पास रुक जाओ । एक जन को ब्रो के एडमिशन की प्रोसेस देखनी होगी ना?” रोहन ने कहा । “बहुत बड़ा हो गया है मेरी चिंता करने के लिए?” ऋषि ने आंखे छोटी करके उसे देखा । “यार ये दोनों ऐसे क्यों करते है मेरे साथ ... मार्क?” रोहन शिकायती लहजे में बोला । “इग्नोर करो उन्हें ।” मार्क ने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमा लिया । क्युकी वो जानता था ऋषभ बहुत ज्यादा गुस्से में था पिछली रात से । जो अब तक रोहन पर निकला नहीं था । “मै तुम्हारे पास रुक जाऊंगा ।” मार्क ने कह दिया ताकि ऋषभ और ऋषि घर चले जाये । ऋषभ ने एक ठंडी साँस छोड़ी “तुमने ही बिगाड़ा है इसे । गुस्सा सिर्फ तुम डिजर्व करते हो ।” ऋषभ ने उसे ऊँगली दिखाई और पैर पटकते हुए बाहर निकल गया । ऋषि भी उसके पीछे चला गया । रोहन उसी तरफ देख रहा था "मेरे कारण डेड आपसे तो नाराज नही होंगे ना ?" "वो मुझसे ज्यादा समय तक नाराज नही रह पाता । मै मना लूंगा उसे ताकि तुम डांट से बच जाओ ।", मार्क ने उसका ध्यान भटकाते हुए कहा “एक हफ्ते तक बाप बेटा अब मजे करेंगे यहाँ ।” “और बड़ी कहा है?” रोहन ने एकदम से सवाल किया । “उसे काम था तो वो चला गया ।” मार्क ने नजरे चुरा कर कहा । “कब तक आएंगे?” रोहन ने अगला सवाल दाग दिया । “कुछ बताया नहीं ।" मार्क ने कहा । “अपना फोन दो , मै खुद ही पूछ लूँगा ।” रोहन ने कहा तो मार्क को चुपचाप उसे फ़ोन देना पड़ गया । क्युकी रोहन के फोन की स्क्रीन पूरी टूट गयी थी एक्सीडेंट में । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 15. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 15

    Words: 1526

    Estimated Reading Time: 10 min

    सिटी हॉस्पिटल, रात का समय था जब कबीर से बात करने के बाद रोहन उसके आने का इन्तेजार करने लगा । हलाकि की कबीर की तरफ से कोई हां नहीं मिली । उसके बोलने से पहले ही रोहन ने अपना आर्डर सुना कर फोन काट दिया था । वरना कबीर ने मीटिंग में बीजी होने का बहाना मार दिया था । “क्या लगता है वो आएगा?” मार्क ने उसके सामने खाने की प्लेट रख दी । लेकिन रोहन ने मुह फेर लिया । “मै उनके आने के बाद ही खाऊंगा और मुझे विश्वास है वो जरुर आएंगे ।” रोहन ने सपाट लहजे में जवाब दिया । उसे जरा जरा अंदेशा हो चूका था की कुछ तो ऐसा हुआ था जिसके कारन कबीर ने उसे नजरंदाज करना शुरू कर दिया । वर्ना वो ऐसी हालत में उसे अकेला छोड़ कर जाने की हिम्मत कभी नहीं कर पाता । “चलो शर्त लगाते है ।” मार्क ने गहरी आवाज में कहा तो रोहन ने अपनी आंखे बंद कर ली । वो अच्छी तरह जनता था मार्क का अंदाजा गलत साबित नहीं होता था । “डेड ने उनसे कुछ कहा ना?” बात बदलते हुए वो धीरे से बोला । “डेड को तुम्हारी सेफ्टी की चिंता है ।” मार्क ने उसे सीधा जवाब नहीं दिया । “जो हुआ उसमे बड़ी की गलती नहीं थी । आप तो जानते हो ना ? वो होने वाले किंग है । उन पर ऐसे हमले होना आम सी बात है । उन्होंने जानबूझ कर मुझे चोट नहीं पहुचाई ।” रोहन ने कहा और एक पल बाद खुद ही सकपका गया । क्युकी मार्क भौंहे उचकाते हुए उसे चुपचाप देखने लगा था । फिर हलकी हंसी के साथ ना में सर हिला कर वो बोला “बेहतर रहेगा अगर तुम उसके साथ कही बाहर जाने की या मिलने की जिद ना करो । वर्ना तुम्हे अपनी दोस्ती बिच में ही छोडनी होगी । तुम्हारी चिंता सिर्फ रिशु को नहीं मुझे भी है । और मै भी तुम्हे कबीर से दूर रहने के लिए बोल दूंगा ।” रोहन उसकी बात सुन कर चौक गया “प्लीज मार्क ऐसा कुछ मत करना । आय प्रोमिस आज के बाद मै उन्हें कही बाहर ले जाने की जिद नहीं करूँगा । बस क्लब के अंदर उनसे मिला करूँगा ।” मार्क ने सर हिलाया “तो फिर खाना ख़त्म करो । मै एक निर्दयी बाप नहीं हु । तुम्हारी ख़ुशी भी मुझे तुम्हारी सेफ्टी जितनी ही जरुरी है ।” “उनके आने के बाद खाऊंगा । तब तक पैक करके रख दो ना , ठंडा हो जायेगा ।” रोहन ने विनती करते हुए कहा तो मार्क ने ठंडी साँस छोड़ कर उसकी बात को मान लिया । लड़का परेशान करने में कोई कसर नहीं बाकि रखता था अपने आस पास के लोगो को । लगभग आधे घंटे में ही जय ने गाड़ी को अस्पताल के पार्किंग में लाकर रोक दिया । कबीर घर से आया था और पुरे रस्ते मुह खोल कर ठंडी साँस छोड़ता रहा । तेईस साल का हो चूका था वो , लेकिन आज भी व्यास उसे डांटने में कोई कसर बाकि नहीं रखता था । मुश्किल से आ पाया था वो । वर्ना व्यास के स्ट्रिक्ट आर्डर थे जब तक वो किंग की घोषणा नहीं कर देता कबीर खुले आम घुमने से बचेगा। जय ने बाहर आकर उसके लिए दरवाजा खोल दिया “किंग आप आएंगे जल्दी की मै चला जाऊ? मुझे समीर सर को ढूंड कर घर पहुचाने की जिम्मेदारी मिली है । जो की जरा भी आसान काम नही ।” कबीर ने एक बार फिर लम्बी साँस छोड़ी और पास ही पड़ा एक बैग उठा कर गाडी से बाहर आया “शायद वो रेसिंग क्लब में होगा ।“ “बताने के लिए बहुत धन्यवाद ।” जय ने हलके से सर हिलाया और उसे अंदर तक पहुंचाने के लिए उसके पीछे पीछे चल पड़ा । जैसे ही उन्होंने लिफ्ट में प्रवेश किया तो देखा अर्जुन और केविन पहले से लिफ्ट में चढ़े हुए थे । “तुम्हारे कारन आज मै पूरा दिन यहाँ फंस कर रह गया हु । इसे मेरा एहसान समझना ।” अर्जुन ने हलके हलके से कबीर के बाजु पर मार कर कहा । “हां ठीक..!”, वो अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही केविन बोल पड़ा “विश्वास मत कीजिये इस झूठ पर । पूरा दिन बहुत मन लगा था इनका आज अस्पताल में । बस अब नहीं लग रहा , क्युकी पेशेंट की फॅमिली घर चली गयी है ।" केविन की बात पर अर्जुन ने गुस्सा होकर उसके सर पर मारा तो वही कबीर हंस पड़ा । आवारा अर्जुन से डॉक्टर अर्जुन बनने की स्टोरी वो तीनो बहुत अच्छे से जानते थे । “अर्जुन सर बहुत नींद आ रही है । अगर आपको ये कॉफ़ी नहीं चाहिए तो मुझे दे दो?” जय ने अर्जुन के हाथो की तरफ इशारा किया । जिसे जल्दी से अपने कोट में छिपा कर अर्जुन ना में सर हिलाने लगा । “तुम आज उनकी जान मांग लो, लेकिन ये कॉफ़ी नहीं । किसी जीती हुई ट्रोफी की तरह सुबह से इसे हाथ में लेकर घूम रहे है डॉक्टर साहब ।” केविन ने अपना सर सहला कर कहा तो जय को हैरानी हुई । “ऐसा भी क्या खास है इस कॉफ़ी में?” जय ने पूछा । “शायद ये ऋषि दीक्षित ने खरीदी है , राईट?” कबीर ने गेस लगाते हुए कहा तो अर्जुन ने शर्म भरी मुस्कान के साथ हां में सर हिला दिया । कबीर ने जैसे ही देखा लिफ्ट का दरवाजा खुलने वाला था । एकदम से अर्जुन के हाथ से कॉफ़ी छीन कर वो बाहर भाग गया । अर्जुन के साथ बाकि दोनों मुह खोले उसकी हरकत को देखते रहे । लिफ्ट की आवाज पर अर्जुन होश में लौटा और हलकी सी तेज आवाज में कहा “कबीर के बच्चे , अगर कॉफ़ी की एक बूंद भी वेस्ट हुई तो उसका बदला तुम्हे अपना खून देकर चुकाना होगा ।” “एक कॉफ़ी के लिए खून ? मैंने मांग कर ही गलती कर दी ।” जय सिहरते हुए बोला । जिसके बाद वो दोनों भी बाहर आए । कबीर ने कॉफ़ी लौटाने में ज्यादा परेशान नहीं किया । वो अर्जुन की भावनाए अच्छे से समझ रहा था । जिसके बाद अर्जुन मुह फुलाते हुए उसे अच्छे से कूट कर अपनी ड्यूटी पर चला गया । जय ने कबीर को वार्ड तक छोड़ा और साथ ही कहा की वो समीर को घर ड्रॉप कर दुबारा लौटेगा । तब तक कबीर वहा से बाहर ना निकले । कबीर ने जैसे ही वार्ड का दरवाजा खोला हाथ बांध कर उसी दिशा में नाराज होकर बैठा रोहन उसे दिख गया । दरवाजा बंद करने के साथ लॉक करते हुए कबीर अंदर जाकर उसकी बगल में खड़ा हुआ “कैसा लग रहा है अब?” “आपने आने से मना कर दिया था । बहुत बीजी हो रहे हो आज कल?” रोहन ने नाराजगी जारी रखते हुए कहा । “फाइन ! मैने झूठ कहा । मीटिंग में नही था । घर में था । डेड ने अच्छे से क्लास लगाई है आज । एट लिस्ट तुम तो छोड़ ही दो। ” कबीर ने कहते हुए एक वाइन की बोतल निकाली और मार्क की तरफ उछल दी । “मुझे पता ही था तुम जरुर आओगे । इसने शर्त नही लगाई मेरे साथ ।” मार्क ने एक छोटी सी मुस्कान के साथ कहा तो रोहन का मुह खुल गया । इसी बिच कबीर ने उसकी तरफ एक बोक्स बढाया “ये तुम्हारे लिए । मेरे कारन तुम्हारा फ़ोन टूट गया था ।” “न्यू फ़ोन?” रोहन की नाराजगी पल भर में गायब होकर चेहरे पर चमक आ गयी और उसने कबीर के हाथ से बोक्स ले लिया । “व्हाट? तो हम उसकी स्क्रीन बदल सकते थे । एकदम से नया लेने की कोई जरुरत नहीं थी । तुम उसे बिगाड़ रहे हो कबीर आचार्य ।” मार्क ने बिच में ही सख्त आवाज में कहा । “बोल भी कौन रहा है?” कबीर और रोहन ने एक साथ उसकी तरफ देख कर कहा तो मार्क सकपका गया । रोहन ने अपना ध्यान फिर कबीर की तरफ लगाया “थैंक यु बडी । मुझे कब से नया फ़ोन चाहिए था?” कबीर मुस्कुरा दिया । उसे ये बात अच्छे से पता थी । उसने कहा “डिनर कर लिया? मै घर से खाना पैक करके लाया हु । आज डिनर मोम ने बनाया है । एंड ट्रस्ट मी,  वो बहुत अच्छी कुक है ।" “क्या सच में? मुझे बहुत भूख लग रही थी ।” रोहन ने उत्साहित होकर कहा तो मार्क वाइन की बोतल खोलते हुए रोहन घूरने लगा । रोहन को पता थी ये बात । फिर भी जानबूझ कर उसने मार्क को नहीं देखा । नहीं मतलब वो पागल था जो रोहन को खाना खाने के लिए बोल रहा था । उसने वाइन का घुट पीकर मार्क ने खुद से कहा “बस इतनी ही उम्र होगी मेरी जब तुम्हारे बाप के आगे मुझे कुछ भी नजर नहीं आता था । लेकिन बहुत समय गुजरा अपनी फीलिंग्स को समझ लेने में । तब तक देर हो चुकी थी । आय होप तुम ये देर ना कर दो ।” वह उठ कर खड़ा हुआ और बालकनी की तरफ बढ़ गया “मै बाद में खाऊंगा तो तुम लोग शुरू रखो ।” रोहन ने उसे हां में जवाब दिया । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे । कमेंट्स कम हो रही है 🤨

  • 16. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 16

    Words: 1845

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था और उस रेसिंग क्लब में शोर देखने लायक था । ट्रैक पर काफी सारी बाइक्स एक के पीछे एक दौड़ रही थी । जिसमे सबसे आगे थी तिन बाइक्स । बिच में ब्लैक चल रही थी,  एक तरफ ब्लू तो दूसरी तरफ रेड । उन बाइक सवारों ने अपनी बाइक से मिलते कपडे पहने हुए थे । अचानक ही शोर बढ़ने लगा जब रेस ख़त्म होने को आई थी । बिच में चल रही बाइक की स्पीड एकदम से बढ़ गयी और उसने बाकि दोनों बाइक के साथ हलकी सी दुरी बना ली । रेड वाली भी कहा पीछे रहने वाला था । उसने पूरी कोशिश की ब्लैक वाला आगे निकल कर रेस को ना जित पाए । इस बिच ब्लू वाला बस अपनी रेस जितने पर फोकस कर रहा था । भीड़ से निकल कर जय आगे आया तो देखा ब्लैक बाइक ने सबसे पहले एंडिंग पॉइंट को छू लिया था । जय हलके से मुस्कुरा दिया और इन्तेजार करने लगा । सारी बाइक्स कुछ दूर जाकर रुकी । रेड बाइक वाले लड़के ने हेलमेट उतरा और पेट्रोल टैंक पर अपना हाथ मार दिया । फिर अगले ही पल उसने ठंडी नजरे साथ में खड़े दोनों बाइक सवारों पर डाली । ब्लू बाइक वाले ने अपना हेलमेट निकाला तो उसके बाल साधारण से थोड़े ज्यादा लम्बे थे । जिनकी पोनी बांध रखी थी उसने । फिर भी कुछ बाल माथे पर बिखरे हुए थे । एक कान में सोने की बाली थी और आँखों में मस्ती पन था । अपनी गर्दन को झटक कर उसने पहले वाले लड़के को देखा जिसकी गहरी कालि आंखे उसे घुर रही थी । “ओह्ह्ह मिस्टर मेंहरा फिर तीसरे आए?” ब्लू बाइक वाले लड़के ने कहा । उसे अपने दुसरे आने का कोई दुःख नहीं था । वो पहला वाला लड़का कोई और नहीं विहान मेंहरा था । दूसरा कृष्णा ठाकुर और तभी तीसरे लड़के ने अपना हेलमेट उतारा । वहा मोजूद लडकिया समीर आचार्य को देखने के बाद पागल होने लगी थी । क्युकी लड़का बहुत कम बिना मास्क के नजर आता था । जय का चेहरा ठंडा पड़ गया समीर के लिए इतना शोर सुन कर । मगर कुछ कर भी तो नहीं सकता था वो । अपनी बाइक से उतर कर समीर ने बाकि दोनों लडको को देखा । किसी की आँखों में एक दुसरे के लिए साधारण भाव नही थे । समीर के होठो पर टेढ़ी मुस्कान आ गयी “प्लीज ऐसे खा जाने वाली नजरो से मत देखो । तुम्हारे देखने से , नजर लगाने से समीर आचार्य कोई भी रेस हारने नहीं वाला .. लूजर्स!” कृष्णा की मुट्ठिया कस गयी “कुछ ज्यादा हलके में ले रहा हु मै तुम्हे समीर आचार्य । अगली रेस में फिर मिलेंगे और तब तुम्हे बताऊंगा लूजर कौन है?” “गुड लक ।” समीर ने कह कर उसे आंख मार दी और वहा से जाने लगा । कृष्णा ने दांत पिस कर होठो ही होठो में कहा “बास्टर्ड!” विहान भी कुछ ऐसी ही नजरो से उसे देखे जा रहा था । उसके बाद कृष्णा और विहान भी अलग अलग होकर चले गए । तीनो लड़के एक ही यूनिवर्सिटी , एक ही क्लास में पढ़ते थे । लेकिन उनकी आपस में कभी नहीं बनी । ये कहना ज्यादा बेहतर रहेगा की एक दुसरे के जानी दुश्मन थे वो । जो यक़ीनन आगे जाकर गैंग्स के बिच वार करवाने का काम करते , ये कोई भी उन्हें देख कर बता देता । समीर चेंज करके वोशरुम से बाहर कमरे में आया तो बस एक काली ट्राउजर उसने पहनी हुई थी । एकदम से उसकी आंखे ठंडी पड़ गयी जब जय को कमरे में हाथ पीछे बांधे खड़ा देखा । हलके से सर झुकाते हुए जय ने कहा “किंग ने आपको इसी समय घर बुलाया है सर ।” “सो? तुम इनविटेशन लेकर आए हो? पांच साल का बच्चा हु मै जो खुद से घर नहीं ढूंड सकता?” समीर ने बिना किसी भाव के कहा और उस कमरे में पड़े बिस्तर से टी शर्ट उठा कर पहन ली । बाली में हलके से हाथ घुमा कर उसने उपर से जेकेट चढ़ाई और बाइक की चाबी उठा कर बिना आगे कुछ बोले कमरे से बाहर निकल गया । जैसे ही वो कमरे से बाहर निकला उसी समय कृष्णा उसके सामने आ गया था । दोनों लडको ने एक दुसरे को देखा और जबड़ा कस लिया । “रास्ता छोडो मेरा ।” समीर ने कहा । “बिच में तुम आकर खड़े हो गए । तुम हटो ।” कृष्णा भी पीछे हटने को तैयार नहीं था । दोनों ने एक दुसरे की तरफ कदम बढाया । कृष्णा थोडा सा लम्बा था समीर के मुकाबले । इसका ये मतलब बिलकुल नहीं था समीर किसी भी चीज में कृष्णा से कम था । “समीर सर , वी हैव टू गो ।” जय ने उन्हें टोकते हुए कहा । कृष्णा ने एक नजर जय को देखा फिर कुटिल मुस्कान के साथ बोला “बच्चे को अकेले घर जाने में डर लग रहा है ? उसका प्रोटेक्टर फिर पीछे पीछे आ गया । जाओ जल्दी उसे इन्तेजार मत कराओ । बाहर अँधेरा हो चूका है ।" समीर का चेहरा गुस्से में लाल होने लगा । वही उसे चिढाने के बाद कृष्णा ने जानबूझ कर रास्ता छोड़ दिया । जिसके बाद तो समीर और भी गुस्सा हो गया था । उसके कंधे पर अपना कन्धा मारते हुए समीर तेजी से आगे निकल गया । जय ने एक गहरी साँस भरी । अब ये गुस्सा जरुर जय पर निकलता । समीर ने बाइक पर बैठना चाहा तो जय ने उसे रोकते हुए कहा “गाडी में बैठिये । बाइक कोई और ले आएगा ।” समीर मान नहीं रहा था तो जय ने बाइक की चाबी निकाल ली “अगर आपने नहीं सुना तो मजबूरन मुझे किंग को बताना होगा ।” समीर ने एकदम से उसे कोलर से पकड़ लिया “हाउ डेयर यु ? तुमने मेरी बाइक को छुआ कैसे? मेरी चीजो को छूने की अनुमति मै किसी को नहीं देता,  एक मामूली से गार्ड को तो बिलकुल भी नहीं ।” जय के दिल पर वो बात लग गयी । लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । समीर ने उसे पीछे धकेल दिया “चाबी लौटाओ ।” “गाड़ी में बैठिये ।” समीर जिद पर अड़ा रहता था तो जय भी पीछे नहीं हटता था । “ना तुम मेरे बाप हो , ना भाई ! तुम्हारी बात और तुम्हारा होना मेरे लिए जरा भी मेटर नहीं करता । अगली बार अगर डेड किसी भी चीज के लिए आर्डर दे तो किसी ओर को भेज दिया करना । खुद मुझे अपनी शक्ल दिखाने मत आ जाना ।” समीर ने दुबारा उसे धकेल दिया और चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गया । चेहरा घुमा कर जय ने एक लम्बी साँस छोड़ी । फिर चाबी को दुसरे गार्ड की तरफ उछाल कर खुद ड्राइव करने गाड़ी में बैठ गया । जिस बाइक को वो छू भी नहीं सकता था उसे अब दूसरा गार्ड ले जायेगा तो समीर इतनी आपत्ति बिलकुल नहीं जताएगा । उसे बस जय से प्रोब्लम थी । “बाइक पर हल्का सा डेंट भी दिखा तो तुम्हारे चेहरे की हालत उससे बत्तर करूँगा मै ।” समीर ने चेतावनी देकर कहा । जय ने गाडी का कांच खोल कर वही बात दुसरे गार्ड को दोहरा दी । जिस पर समीर ने तिरछी नजर से जय को देखा लेकिन अगले ही पल आंखे बंद करके बैठ गया । ठाकुर मेंशन , घर का मुख्य दरवाजा खोल कर वो सोये हुए को जगाना नहीं चाहता था । इसलिए किसी चोर की तरह किचन की खिड़की से चुपचाप अंदर घुस गया । धीरे धीरे बिना कोई आवाज के वो सीढियों तक पंहुचा ही था की एकदम से रुक कर उसने सामने देखा । घर की लाइट जल उठी और कृष्णा जबरदस्ती मुस्कुरा कर सामने खड़े अनिकेत को देखने लगा । “समय क्या हो रहा है?” अनिकेत हाथ बांधे खड़ा था । लाइट जला कर सृजन भी अनिकेत की बगल में आकर खड़ा हुआ । “वो तो घडी को पता होगा । मैंने तो पहनी ही नहीं इसलिए पता नहीं चला की कितना समय बित गया?" कृष्णा जबरदस्ती मुस्कुराना जारी रखते हुए बोला । बड़ी ही सफाई से उसने घडी को जेकेट की बाजु में छुपा लिया था । “ग्यारह बज रहे है और मैंने इस घर में प्रवेश करने का समय रखा है शाम के सात बजे । जब मै ऑफिस से लौटा तो तुमने कमरे में जाकर सो रहा हु ये बताया था । लेकिन फिर कमरे से गायब हो गए?” अनिकेत ने ठंडी आवाज में कहा । कृष्णा ने आंखे मीच ली । गला खराश कर वो बोला “वो क्या है ना मम्मा,  एक दोस्त को एमर्जंसी आ गयी थी । बस मदद करने चला गया था मै। ” “नंबर?”, अनिकेत ने तुरंत ही फ़ोन निकाला “नंबर बताओ दोस्त का ।” “अनी बेबी छोड़ दो ना आज के लिए । बस पहली बार तो पकड़ा है तुमने उसे?” सृजन ने कहा और अगले ही पल आंखे मीच ली । आगे की बात उसने क्यू मुंह से निकाली ? “अच्छा तो राजकुमार हमेशा भागते है और महाराज को पूरी पूरी खबर है इसकी?” अनिकेत की नजरो का रुख अब सृजन की तरफ हो गया । सृजन ने अपने ही हाथो अपने पैर पर कुल्हाड़ी चला ली थी । एक सीढ़ी पीछे जाकर वो खड़ा हो गया । “जवाब दो ।" अनिकेत ने तेज आवाज में कहा तो कृष्णा के साथ एक गैंग का माफिया लीडर भी कांप गया था । “अह .. वो .. हां , मेरा .. मेरा मतलब नही । हमारा बेटा कही नहीं भागता । वो हमेशा कमरे में ही होता था जब मै उसे चेक करने जाता था ।" सृजन की जबान उसका साथ छोड़ रही थी । अनिकेत ने बारी बारी दोनों को ऊँगली दिखाई “कान , आंखे , नाक सब खोल कर सुन लो । सात बजे इस घर में कदम रखने का समय है । अगर गलती से भी इस समय के बाद ये मुझे उसके कमरे में ना मिला तो तुम दोनों की खैर नहीं ।" “लेकिन बीवी , यही तो उम्र है घुमने फिरने और ...!” सृजन ने कहा तो अनिकेत ने हाथ दिखा कर उसे रोक दिया । “जवान खून है, आवारा दोस्तों के साथ रह कर बिगड़ जाये ये नहीं चाहता मै । अगर इसकी जगह हमारी बेटी होती तब भी यही बात बोलते?” अनिकेत ने कहा तो सृजन चुप हो गया । “ट्रस्ट मी मम्मा , आपकी परवरिश में कोई कमी नहीं है । लडकियों की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता मै ।” कृष्णा ने कसम खाते हुए कहा । हां अब देखेगा भी क्यों ? बचपन से जब एक ही लड़के को देखता आया हो? अनिकेत ने अपने बालो में हाथ घुमाया । फिर एक तरफ हट कर उसने कहा “जाओ अपने रूम में । आज छोड़ दिया , अगली बार नहीं छोडूंगा । लड़का हो या लड़की , सबके लिए रूल्स सेम होने चाहिए ।” कृष्णा मुस्कुरा दिया और सीढिया चढ़ कर उसके करीब जाते हुए उसका गाल चूम लिया “मै याद रखूँगा मम्मा ,गुड नाईट ।” इतना कह कर उसने सृजन को हाय फाइव दिया और तेजी से कमरे की तरफ भागा । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे ।

  • 17. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 17

    Words: 1115

    Estimated Reading Time: 7 min

    आचार्य मेंशन, रात का समय था जब गाड़ी से बाहर जाकर समीर , जय के नीचे उतरने का भी इंतजार करने लगा । ताकि अंदर जाकर अपने मॉम , डेड से वो शिकायत कर सके । वहीं जय ने गाड़ी का कांच नीचे करते हुए बिना किसी भाव के कहा, "गुड नाईट सर । मुझे कबीर सर के पास लौटना है ।" उसका जवाब सुन कर समीर ने दो-तीन बार पलकें झपका दी "वेट, ऐसे कैसे चले जाओगे? अभी के अभी अंदर आओ । मुझे डेड के सामने क्लियर करना है कि आज से तुम मेरे आस-पास भी नहीं भटकोगे ।" जय ने ठंडी सांस छोड़ी, "डोंट बी चाइल्डिश, समीर सर । मेरे पास इतना फालतू समय नहीं है, आपकी बचकानी हरकतें झेलने के लिए ।" जय ने कहा और कांच को बंद कर गाड़ी को घुमा लिया , इससे पहले कि समीर कुछ कह पाता । समीर का चेहरा जितना सख्त था, आंखें उतनी ही नर्म पड़ गईं कि उनमें किसी भी पल नमी उतर आए । लेकिन उसने खुद को काबू में रखने की पूरी कोशिश की । जय मिरर में उसे तेजी से अंदर जाते हुए देख सकता था । सर झटक कर उसने अपना ध्यान ड्राइविंग पर लगाया । अपनी ट्रेनिंग पूरी करके वो बस दो सालों में ही लौटा था और तब से समीर का ऐसा बर्ताव झेलने की उसे आदत लग चुकी थी । उसकी बस एक बात ने समीर के मन से उसकी दोस्ती को पूरी तरह खत्म कर, नफरत और गुस्सा भर दिया था । "नफरत है या नहीं, पता नहीं, लेकिन गुस्सा बहुत है । जो लड़का एक पल मेरे बिना नहीं रह पाता था, अब वो मेरा चेहरा तक देखना नहीं चाहता ।" एक ठंडी सांस छोड़ कर जय ने कहा, "वेरी गुड, जय । तुम यही डिजर्व करते हो । एक शब्द सोच-समझ कर कहने की अक्ल नहीं थी तुम्हारे अंदर उस समय ।" खुद पर ही गुस्सा आ जाता था उसे । हलके से अपना हाथ गाड़ी के स्टीयरिंग पर मार कर वह जल्दी से अस्पताल की तरफ जा रहे रास्ते पर आगे बढ़ गया । सिटी हॉस्पिटल, रोहन को खाना और दवाई खिलाने के बाद, कबीर ने जबरदस्ती उसके हाथ से फोन लेकर उसे लिटाते हुए कहा, "जो करना है, कल सुबह करना । अभी सिर्फ आराम ।" "मैं पूरा दिन सो रहा था । इस समय मुझे कोई नींद नहीं आ रही । थोड़ी देर खेलने दो ना?" रोहन ने आँखों में विनती लिए हुए कहा । "तुम्हारे सर पर चोट लगी है । फ़ोन की स्क्रीन ज्यादा समय तक देखने से तकलीफ होगी । और अगर नींद नहीं आ रही तो हम बातें कर सकते हैं ।" कबीर ने उसका फ़ोन वापस नहीं दिया । रोहन ने लेटे हुए ही उसे देखकर हाथ बाँध लिए, "कैसी बातें?" "जैसे कि कुछ समय पहले नाराज होकर, तुमने मुझे आने के लिए मजबूर कर दिया ।" कबीर ने याद दिलाकर कहा । "ओह, एक्सक्यूज़ मी! मैंने मजबूर नहीं किया था । आप अपनी स्व इच्छा से यहां पधारे । चाहे तो आप इग्नोर कर सकते थे ।" रोहन ने लापरवाही से कंधे उठाकर कहा । कबीर खुद पर ही व्यंग्य से हंस पड़ा, "तो ऐसी बात है? आगे से ध्यान रखूंगा मैं बेवकूफ बनने से पहले । क्योंकि तुम्हें तो फर्क नहीं पड़ता ।" रोहन का मुंह खुल गया । फिर उसने नाटकीय अंदाज में कहा , "ओके, फाइन । मैं चाहता था आप आ जाओ । नहीं, मतलब आपकी हिम्मत ही कैसे हुई थी मुझे अकेला छोड़कर जाने की? इतनी चोट लगी है मुझे और आप फिर भी चले गए?" "नाटक करना बंद करो और अब ध्यान से मेरी बात सुनो । आज के बाद, जब भी तुम बुलाओगे, मैं नहीं आ पाऊंगा तुम्हारे पास । जिद करना छोड़ना होगा तुम्हें । ना ही हम पब्लिक प्लेस में घूम पाएंगे । समझ गए?" कबीर ने ऊंगली दिखाकर अपने हर एक शब्द पर जोर दिया । रोहन का चेहरा फीका पड़ गया, "मतलब आप पहले की तरह रोज नहीं मिलोगे?" कबीर ने ना में सर हिलाया । वह मजबूर था । "तो कुछ ऐसा करो ना जिससे हम रोज मिल सकें?" रोहन ने कहा । कबीर सोच में पड़ गया । एक मिनट बाद ही उसने सर हिलाया, "टेंथ में अच्छे मार्क लेकर आओ । मैं तुम्हें हमारे कॉलेज में एडमिशन दूंगा ।" रोहन का मुंह बन गया, "इससे मेरा क्या फायदा? मतलब हम मिल कैसे पाएंगे?" "मैं पहले ही जाकर कॉलेज के प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठ जाऊंगा । फिर रोज मिल सकेंगे । और किसी को शक भी नहीं होगा की मैं वहा तुम्हारे लिए हु ।" कबीर ने कहा तो रोहन की आँखें चमक उठीं । दोनों हाथों के अंगूठे दिखाकर वो बोला, "बस दो साल और फिर हम पहले की तरह हर रोज मिलेंगे । ठीक है ना?" "तो फिर अब मुझे जाने की अनुमति है? ज्यादा समय तक मैं नहीं रुक सकता तुम्हारे पास?" कबीर ने हा में सर हिला कर कहा । रोहन ने एकदम से अपनी बाहें फैला दी, "गुड लक, होने वाले किंग! अगर हम ना मिल पाए तो मुझे मैसेज करके बता देना, आप किंग बन चुके हो । क्या आपको क्राउन भी मिलेगा किंग की तरह?" कबीर धीरे से उसकी बाहों में समा गया और कहा, "हाँ, जिम्मेदारियों का भारी सा क्राउन । फ़िलहाल मुझे सबके मत से नहीं चुना जा रहा । मुझे बस अपने पिता की जगह और जिम्मेदारी कुछ सालों के लिए मिल रही है । क्या पता भविष्य में कोई और किंग बन जाए?" "आपसे बेहतर और कोई नहीं है । मेरा लक है ना आपके साथ । आप हमेशा किंग रहोगे क्योंकि आपके अंदर क्वालिटी है ।" रोहन ने उसकी पीठ थपथपा दी । "अम्म, तुम्हारा गुड लक मिल गया , अब बस कोई चीज मुझे हरा नहीं सकती । माय लकी चार्म! अपना ख्याल रखना । मेरी नज़रें हमेशा तुम पर हैं , इसलिए लड़कियों से दूर रहना ।" कबीर ने अलग होकर उसे चेतावनी दी । रोहन जोर से हंस पड़ा और सर हिलाया, "मुझे नहीं पसंद लड़कियाँ । कितनी बार बताना पड़ेगा?" कबीर ने पलकें झपका दी और कुछ पल उसे गहरी नज़रों से देखता रहा, मानो अपनी आँखों में भर ले रहा हो । कुछ ही देर में उसने बालकनी के दरवाजे पर हाथ मारकर कहा, "मैं जा रहा हूँ, अंदर आ जाओ अब । ज्यादा मत पीना, अगर रात को रोहन को जरूरत पड़ी तो उठने चाहिए समय से ।" बाहर से मार्क ने नशीली आवाज में उसे बाय किया तो कबीर सर हिलाते हुए निकल गया । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे । कहानी बचपन से आगे बढ़ कर सीधे कॉलेज तक जायेगी । इसलिए कमेंट्स में अपनी एक्साइटमेंट दिखा देना । बाकी फॉलो भी कर लेना ।

  • 18. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 18

    Words: 1324

    Estimated Reading Time: 8 min

    चार साल बाद , सुबह का समय था जब वो गाड़ी एयरपोर्ट से सीधे एक अनाथ आश्रम के बाहर आकर रूकी । गाड़ी का दरवाजा खुलते ही एक सत्ताईस साल का लड़का अपने काले ब्लेजर को सही करते हुए बाहर निकला । आंखो से चश्मा उतार कर उसने अपनी गहरी नजरे उस जगह पर डाली । आखिरी बार वो यही पर आया था शहर छोड़ने से पहले । तभी गाड़ी की दूसरी तरफ से उसी की उम्र का एक लड़का बाहर आया । उसने चश्मा उतारने का कष्ट ना लेते हुए गाड़ी के ऊपर हाथ रखे और कहा "सीरियसली एके, शहर में लैंड होते ही तुम्हे सबसे पहले ये करना जरूरी लगा ? मुझे तो लगा था उस नेपो किंग की लाश गिराना तुम्हारा पहला काम रहेगा ।" "वादा किया था मैंने ।" अखिल ने ठंडी आवाज में कहा । "हाय मैं तो सिहर उठता हु घंटो की चुप्पी के बाद तुम्हारी इतनी ठंडी आवाज सुन कर । अगर वादा किया था तो किसी को भेज देते तुम्हारा काम करने के लिए ।" वो दूसरा लड़का कोई ओर नही विनीत था । "वादा मैने किया था ।" अखिल ने कहा और आगे चल पड़ा । विनित अपनी जगह से हिला नही था । खुदसे कैलकुलेशन करते हुए उसने कहा "वो बेबी की उम्र का था । मतलब अब उन्नीस का होगा । आश्रम से अठराह के बाद जाना पड़ता है । डैम, एक साल लेट हो गया मैं ।" इतना कह कर वो भी अखिल के पीछे भागा । "आपको बस उसका नाम पता है । अब यहां उस नाम के कितने बच्चे आकर चले गए हैं । हम एक्जैक्ट कैसे बताए आप किसकी बात कर रहे है ? कम से कम उसकी उम्र ही बता दीजिए ।" टेबल पर रखी गन को देख कर वो आदमी अपनी कुर्सी छोड़ कर दीवार से चिपका खड़ा था । "रजिस्टर ले आओ । एके खुद ढूंढ लेगा उसे ।" विनित ने लापरवाही से कहा । वो दूसरी तरफ हाथ बांधे खड़ा था । "बच्चो की पर्सनल इन्फॉर्मेशन रिवील करना ..!" इससे आगे वो आदमी कुछ कहता अखिल ने गन को उठा कर हल्के हल्के से टेबल पर पटकना शुरू कर दिया । आदमी का गला सुख गया था । वही अखिल अपनी ठंडी आवाज में बोला "हमारी मां के दान पर पलता है पूरा आश्रम । और तू हमे ही मना कर रहा है?" आदमी ने कुछ नही कहा और एक लॉकर को खोल कर कुछ रजिस्टर अखिल के सामने लाकर रख दिए । विनित भी आगे आया और अखिल की मदद करने लगा । इस बीच उन्हे एक जैसे नाम से तीन बच्चे मिले , लेकिन किसी का भी चेहरा उस बच्चे से मैच नही करता था जिससे अखिल ने वादा किया था । अचानक ही अखिल का हाथ पन्ना पलटते हुए रुक गया । फिर से वो नाम दिखा "अरी!" और इस बार बच्चे का चेहरा वही था जिसे अखिल ढूंढ रहा था । "ये रहा !" अखिल ने कहा । "ये पिछले साल ही आश्रम से निकल चुका है ।" आदमी ने बताया । "आश्रम छोड़ने से पहले वाली कोई तस्वीर है इसकी ?" अखिल ने नजरे उठा कर आदमी को देखा । आदमी ने चुपचाप हा में सर हिला कर उसे एक तस्वीर दिखा दी । अखिल ने कुछ पल गौर से उस तस्वीर को देखा । वही विनीत की नजरे उसकी बगल में खड़े दूसरे बच्चे पर जा रुकी । उसका चेहरा आज भी बच्चे जैसा था ... मतलब वो मासूमियत । कुछ नही बदला था । विनित ने यू ही गैस लगाकर कहा "ये श्लोक है ना ?" आदमी ने उस तस्वीर को देखने के बाद हा में सर हिलाया । आखिर कार सबसे होशियार बच्चा था वो आश्रम का । कोई उसे कैसे भुल सकता था ? "कहा होंगे अब ये ?" विनित ने कहा । "मुझे कैसे पता होगा ? उनकी जिंदगी यहां थे तब तक ही हमारे हाथ में थी । अपनी शर्तो पर जीने लायक बना दिया था हमने उन्हें । लेकिन उनका कोलेज !" आदमी का ही रहा था की विनीत ने उसकी बात को काट दिया । आत्मविश्वास के साथ वो श्लोक के बारे में बता सकता था "ऑफ कोर्स जहा बेबी पढ़ता है । केवीए यूनिवर्सिटी!" लेकिन अरी कहा होगा इसका अखिल को कोई अंदाजा नही था । आदमी ने सर हिलाया "दोनो को साथ में वहा से स्कॉलरशिप मिल गई थी ।" अखिल एकदम से उठा और वहा से निकल पड़ा । विनित भी उसके पीछे भागा "ब्रो, अब आगे क्या ?" "मुझे उसे ढूंढना है । बिना किसी सपोर्ट वो कैसे सरवाइव कर रहा होगा ?" अखिल ने कहा । "किसी के लिए परवाह करने वालों में से नही हो तुम । और भूल गए , यहां हम किंग के लिए आए है ? कुछ समय ओर, अगर उसने बाकी गैंग्स का विश्वास जीत लिया होगा तो वो परमानेंट का किंग बन जायेगा । हमे उसके पीछे लगना चाहिए ?" विनित ने कहा तो अखिल के कदम ठिठक गए । अखिल ने अपना माथा सहलाया "यस, यूर राइट ! किंग के बारे में पता करते है पहले ।" विनित ने मुंह खोल कर उसे देखा "भाई , पहले घर चलते है ? यहां आने का समय है मतलब घर भी जा सकते है ना हम ?" "पहले किंग के बारे में पता लगाते है । घर बाद में भी जा सकते है ।" अखिल ने आराम से कहा और वो फिर से चल पड़ा । "कभी कभी कूटने का मन करता है इसे । कमीना कही का ।" विनित दांत पिस कर बडबडा दिया । रात का समय , अथेना एक उन्नीस साल का लड़का जिसने काले रंग की जैकेट को सफेद रंग की टी शर्ट पर पहना हुआ था । पैर पर पैर चढ़ा कर उसने हाथ में शराब का ग्लास उठा कर कहा "क्या मैं अपनी इच्छा से कही जा नही सकता ?" "ऑफ कोर्स जा सकते हो बेबी । लेकिन तुम , मुझे भी साथ ले आते ?" सामने खड़े बाइस साल के लड़के ने कहा । "मिस्टर कृष्णा ठाकुर , सगाई होने का ये अर्थ नही तुम मेरे मालिक बन चुके हो । मेरी लाइफ को आज तक कोई कंट्रोल नही कर पाया , तुम्हे लगता है तुम कर सकते हो ?" वेद ने एक बार भी कृष्णा की तरफ नजरे नही उठाई थी । "तुम ऐसा क्यू बोल रहे हो ? मैने कब कोशिश की तुम्हे कंट्रोल करने की ?" कृष्णा ने आगे आना चाहा तो अब जाकर वेद ने नजरे उठाई । कृष्णा अब भी वैसा ही था जैसे पहले था , बिलकुल लापरवाह ! लेकिन अपने बेबी के लिए जरूरत से ज्यादा पजेसिव और इमोशनल । जिसकी कदर उसके बेबी को जरा भी नही थी । "यू नो व्हाट , मेरा तुम्हे देखने या तुमसे बात करने का भी मन नही करता । क्यू आखिर बंधा हु मै इस फोर्स फूल इंगेजमेंट में ? एक म्यूचुअल डिसीजन के साथ हम सगाई तोड़ क्यू नही लेते ? तुम भी आजाद , मै भी आजाद ! क्यू एक दूसरे को स्ट्रेस देना ?" वेद ने शराब का ग्लास पटक कर गुस्से में कहा । कृष्णा उसके पैरो के पास जा बैठा "ऐसे मत बोलो बेबी । मैं बहुत प्यार करता हु तुमसे । मेरे लिए ये रिश्ता .. बहुत स्पेशल है ।" उसने वेद का हाथ अपने हाथ में लेना चाहा । लेकिन वेद ने उसके हाथ को दूर झटका "तुम प्यार करते हो , तुम रिश्ता चाहते थे , तुम्हारी इच्छा थी और मेरा क्या ? मुझ पर सब कुछ जबरदस्ती लाद दिया गया ।" कृष्णा ने उसके हाथो की तरफ देखा । जहा उसकी उंगली में सगाई की अंगूठी थी , वही वेद ने सगाई के दूसरे दिन ही अंगूठी को उतार कर रखना शुरू कर दिया था । हा बस अपनी मां को दिखाने के लिए पहन लेता था । वरना उसके दोस्तो को भी पता नही था पिछले साल उसकी सगाई हो चुकी थी । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे । फॉलो करना बिलकुल भी ना भूले ।

  • 19. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 19

    Words: 1476

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    अथेना, रात का समय था जब उस क्लब के एक वीआईपी एरिया में वेद के सामने कृष्णा नीचे बैठा हुआ उसे बेचारगी से देख रहा था । अभी अभी वेद ने सगाई तोड़ देने की बात कही थी । "बेबी, हम कोशिश करे तो साथ मिल कर इस रिश्ते को निभा सकते है । जैसे तुम कहोगे , मै बिल्कुल वैसा करूंगा । तुम बस बोलो की तुम्हे क्या चाहिए ?" कृष्णा ने कहा । "मुझे तुमसे कुछ नही चाहिए , सिवाय इसके की मैं अब इस कैद में नही रह सकता । हद होती है क्रिश किसी चीज की । इतना कौन चिपकता है ? इतना कौन बात बात पर कंट्रोल करता है सामने वाले को ? तुम्हारा बार बार पीछे आना उफ्फ! नही झूठ बोल सकता मै अपने दोस्तो से की तुम कौन हो मेरे ? और ये बार बार जो पैरो में गिर जाते हो ? मुझे अब अजीब सा होने लगता है तुम्हारे आस पास ।" वेद ने उसके कंधे पर हाथ मार कर उसे पीछे धकेलने की कोशिश की । कृष्णा लड़खड़ा कर नीचे बैठ गया । एक फीकी मुस्कान के साथ उसने कहा "मैने बचपन से बस तुम्हे चाहा है ।" "तो क्या ये मेरी गलती है ? मैं नही चाहता तुम्हे । आखिर कितनी बार बताना होगा ? तुम्हारा स्वभाव मुझे नही पसंद । अगर छोटी सी चीज तुम्हारे हिसाब से ना हो तो पागल हो उठते हो । जब तुमने पहली बार प्रोपोज किया मेरे एटीन बर्थडे पर , तब मैने तुम्हे बहुत ही विनम्रता से रिजेक्ट कर दिया था । फिर तुमने क्या किया ? अपने डेड को मनाया , और मामू ने तुरंत मेरी मम्मा को मना लिया । तुम्हे अच्छे से पता था मेरी मम्मा , मामू की बात को कभी नही टालती । इवन, मेरे डेड ने तक मेरी बात पहली बार नही सुनी ।" वेद उस पर गुस्से में चिल्ला दिया । कृष्णा की आंखो में नमी उतर आई थी "क्या कमी है मुझमें ? क्या मुझसे बेहतर कोई मिल सकता है तुम्हे ?" "मुझे नही चाहिए ! ना तुम , ना तुमसे बेहतर कोई । मुझे अपनी लाइफ अभी इंजॉय करनी है । शुरू में मुझे लड़के पसंद थे । लेकिन अब तुम्हे देख कर मुझे लड़के और प्यार नाम की चीज से ही नफरत हो चुकी है । तुम्हारे अंदर जरा भी सेल्फ रिस्पेक्ट नही है क्रिश । अगर मै कहूं मेरे जूते चाट लो , तुम वो करने के लिए भी तैयार हो जाओगे ।" वेद ने उस पर निराशा जता कर कहा । क्रीश ने एक ठंडी सांस छोड़ी "नही बेबी ! तुम गलत हो । मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट इतनी भी नही गिर गई की मैं ये काम भी कर दू । शायद मैंने सच में ज्यादा कर दिया जो तुम मेरे बारे में ये सोचने लगे । तभी तुम्हे कभी मेरा प्यार नजर नही आया ।" इतना कह कर वो उठ खड़ा हुआ "मै कृष्णा ठाकुर , आज और इसी समय हमारी सगाई को तोड़ रहा हु । आज के बाद तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग होंगे । बस एक रिक्वेस्ट है । इस बात को हमारे बीच ही रहने दो । घरवालों को इंवॉल्व करने की जरूरत नही । मैं नही चाहता हमारे कारण उनके रिश्ते जरा भी बिगड़े ।" वेद ने कुछ नही कहा । बाहें मोड़ कर उसने चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया था । क्रिश ने कुछ पल उसे देखा और फिर तेज कदमों से बाहर निकल गया । उसके जाते ही किसी ने अंदर कदम रख कर ठंडी आवाज में कहा "ये सब क्या सुना मैने बेबी?" वेद ने आंखे बड़ी करते हुए सामने देखा "रोहन ?" रोहन उसके सामने चला आया "तुमने कहा था वो लड़का पागल है और बार बार तुम्हारा पीछा करता है । लेकिन अब , वो तुम्हारा मंगेतर निकल आया ? मेरा बेबी कब से झूठ बोलने लगा हनन?" वेद ने होठों को आपस में समेट लिया । वो रोने की कगार पर आया था "मै अपने दोस्तो को किस मुंह से बताता की मेरी सगाई मेरी इच्छा के विरुद्ध एक लड़के के साथ करा दी गई थी?" रोहन ने कमर पर हाथ रख सर ऊपर उठाया "तुमने ये सोच भी कैसे लिया हम किसी भी बात के लिए तुम्हे जज करेंगे । जबकि तुम्हारे साथ जबरदस्ती हुई थी ? क्या वृंदा मां ने तुम्हे फोर्स किया ? वो ऐसी नही है , मै विश्वास के साथ कह सकता हु ।" "उन्हे लगता है मुझे क्रिश से बेहतर कोई लड़का नही मिलेगा ।" वेद ने रुंधे गले से कहा । रोहन सोच में पड़ गया । अगर वृंदा ने कोई फैसला लिया था तो वो बहुत सोच विचार करने के बाद लिया होगा । लेकिन एक लड़के से सगाई ? "बेबी ? क्या तुम लडको में दिलचस्पी रखते हो ?" रोहन ने एकदम उंगली दिखा कर गंभीरता से पूछा । वेद के चेहरे का रंग उड़ गया । उसने सर झुकाया और हकलाते हुए कहा "मैने .. मैने तुम्हे या अरी, श्लोक को कभी उस नजर से नहीं देखा । आय स्वीयर !" रोहन उसकी बगल ने बैठ गया और उसके कंधे में हाथ डाल कर कहा "तभी मै कहूं वृंदा मां ने एक लड़के से कैसे तुम्हारी सगाई कर दी । लुक बेबी , तुम जवान हो । अच्छे दिखते हो । रिच भी हो , कोई आसानी से तुम्हारा फायदा उठा सकता है अच्छे बनने का ढोंग कर । अगर वृंदा मां किसी को तुम्हारे लिए बेस्ट समझती है मतलब वो इंसान असल में बेस्ट होगा । तुम्हे उनके निर्णय पर ऐसे सवाल नही उठाना चाहिए ।" वेद ने दो तीन बार पलके झपका दी । इस विषय पर आज तक उसने किसी से खुल कर बात नही की थी । इसलिए सही गलत का फैसला भी वो कभी कर नही पाया । "मुझे वो अच्छा नही लगता ।" वेद ने तुरंत ही कहा । "क्यू अच्छा नही लगता ? क्या तुम्हे गलत तरीके से छूता है ? किसी बात के लिए फोर्स करता है ? मारता है या डांटता है? बत्तमीजी करता है? अगर ऐसा है तो मुझे बताओ । " रोहन ने प्यार से पूछा । "ऐसा कुछ भी नही करता ।" वेद ने उसकी तरफ देख कर पूरी सच्चाई से जवाब दिया । "फिर क्या करता है ना पसंद आने के लिए? हैंडसम तो है , पैरो में गिर जाता है । अगर कोई मुझे ऐसा मिलता तो मैं एक पैर पर शादी करने के लिए तैयार खड़ा होता ।" रोहन ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया । वेद ने कहा "वो बार बार पीछे आता है किसी पपी की तरह । छोटी छोटी बातो पर सॉरी बोलते रहता है । जैसे उसके अलावा कोई ओर शब्द उसने कभी सीखा ही नही ।" "बेवकूफ कही के । तुम्हारा कुछ नही हो सकता बेबी । तुम वापस नर्सरी में जाकर बैठ जाओ । ये क्लब तुम्हारे लिए सही जगह नही है अभी ।" रोहन ने मुंह बना लिया । "मजाक मत करो मेरे साथ ।" वेद उस पर चिल्लाया । "मजाक तुमने खुदका बना लिया है । रिलेशन शिप में इंसान सामने वाले से यही सब एक्सपेक्ट करता है । वो तो बिना मिले भी मुझे अच्छा लगा । बार बार सॉरी बोलना , मतलब वो तुम्हे नाराज करने से डरता है । हाय, तुम्हे नही चाहिए तो मुझे दे डालो ।" रोहन ने जैसे ही कहा वेद गुस्से में उसे घूरने लगा । "मेरी सगाई हुई है उसके साथ भूलो मत ।" वेद ने कहा । "अच्छा ? सगाई की अंगूठी तो नजर नही आ रही मुझे ।" रोहन ने आंखे छोटी कर उसकी उंगलियां तलाशते हुए तंज कस दिया । वेद ने अगले ही पल आपका वॉलेट निकाल कर उसमे से रिंग पहन लेते हुए दिखाई "ये देखो , सगाई की है । हमारी सगाई की अंगूठी ।" "अब इसे उतार कर वापस रख दो । मैने सुना की उसने सगाई तोड़ दी ।" रोहन ने अफसोस के साथ सर हिलाया । वेद ने चौक कर उसे देखा । कुछ समय तक वो कुछ भी ना बोल सका । फिर धीरे से उसने कहा "वो कौन होता है सगाई तोड़ने वाला ? मैने तोड़ी है ।" "भैंस के आगे बीन बजाना!" रोहन बडबडा दिया । वेद ने आंखे सिकुड़ कर उसकी तरफ देखा तो रोहन ने इशारे से कहा वो इंजॉय करे , उसे बाहर जाना है । "ओय, मुझे अकेला छोड़ कर कहा जा रहे हो ? उन दोनो को भी बुला लो ।" वेद ने तेज आवाज में कहा । रोहन निकलते हुए बोला "ड्यूटी खत्म होने तक वो कुछ भी कर लो अपनी जगह से हिलने का नाम नही लेते । सॉरी लेकिन मै तुम्हे कंपनी नही दे सकता । श्लोक पर नजर रखनी पड़ती है मुझे ,घटिया लोगो से बचाने के लिए ।" वेद ने कुछ नही कहा और अपना ग्लास उठा कर उसके पीछे भागा । वो क्यू अकेला रहे । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे । फॉलो करना बिलकुल ना भूले ।

  • 20. बैड बॉयज (लव एडिशन) - Chapter 20

    Words: 1596

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    शाम ढल चुकी थी और अंधेरा होने लगा था । आचार्य ऑटोमोबाइल कम्पनी के पार्किंग में खड़े विनीत ने हाथ झाड़ते हुए एक गाड़ी के पास से हटकर सीधे एक कैमरा की ओर देखा, जिसे शायद उसका भाई बंद करवा चुका था । “सालों बाद हुई हमारी मुलाकात को तुम कभी नहीं भूल पाओगे कबीर आचार्य ।” इतना कहकर वह जाने ही वाला था कि अचानक कोई उससे आकर टकरा गया । विनीत ने गुस्से में कुछ कहना चाहा, लेकिन तभी उसने अपने पेट में तीखा दर्द महसूस किया । हल्की कराह के साथ, विनीत ने उस शख्स को पीछे धकेल दिया और अपना पेट पकड़ लिया, जहां हल्का सा कट आकर खून बहने लगा । शख्स के हाथ में छोटा सा खंजर चमक उठा , जिस पर ईगल का निशान बना था । “वेलकम मिस्टर विनीत कश्यप । क्या यादगार मुलाकात सिर्फ तुम ही बना सकते हो, मैं नहीं? आय होप अब आप दोनों भाइयों को ये जिंदगी भर याद रहे ।” उस शख्स ने मास्क पहना हुआ था, उसने अपनी जैसी आंखो मे शरारत लिए विनीत को आंख मारी । विनित का जबड़ा कस गया और वही वो शख्स मुस्कुराते हुए दूसरी गाड़ी की तरफ निकल गया । विनीत के कदम लड़खड़ा गए । उस शख्स की चौड़ी पीठ देखकर वह साफ-साफ बता सकता था कि वही कबीर आचार्य था । उसकी गहरी आवाज आज भी विनीत भुला नही था । “अह्ह्ह एके, वेयर आर यु डेम इट!” विनीत की आंखो के आगे अंधेरा छाने लगा था । वो नीचे गिरने लगा तभी कही से अखिल दौड़ते हुए उसके पास पहुंचा और उसे संभाल लिया । “एक मिनट के लिए तुम्हें अकेला छोड़ा था, खुद को सेफ तक नहीं रख पाए?” अखिल तंज भरे लहजे में बोला । “इस हालत में भी पहले सुना लो अच्छे से, खून और जान का क्या है, वो तो आते जाते रहते हैं?” विनीत बुरी तरह चिढ़ गया, दर्द के कारण उसकी हालत खराब हो रही थी । “घाव ज्यादा गहरा नहीं है, चेहरा देखा कि कौन था?” अखिल ने उसकी शर्ट हटा कर जख्म पर नजर मारी । “साले तू मुझे डॉक्टर के पास पंहुचा, वरना मैं ऊपर पहुंच जाऊंगा ।” विनीत ने गुस्से में जोर से उसके कंधे पर मुक्का मारा, उसकी हालत को देखते हुए भी अखिल को अपने सवालों की पड़ी थी । **************** अथेना, क्लब के म्यूजिक के शोर में कोई किसी की आवाज तक ठीक से सुन नहीं सकता था । ऐसे में एक लड़के ने दूसरे के कान में कहा, “तू जाकर कोई दूसरा काम देख पीछे , यहाँ मैं संभाल लूँगा ।” “नहीं अरी, आज पहले से स्टाफ कम है, अगर मैंने जगह छोड़ी तो तुम पर प्रेशर आ जायेगा ।” उस दूसरे लड़के श्लोक ने कहा । दोनों ने काले रंग की शर्ट और पेंट पहनी थी, वह क्लब का ड्रेस कोड था, जिसमें उनके चेहरे कुछ ज्यादा ही खिलकर दिखते थे । “मैं मैनेज कर लेता हूँ ।” अरी की नजरें सामने गईं, जहां एक अधेड़ उम्र का आदमी श्लोक के सामने आकर बैठ चुका था, उसकी नजरें श्लोक के शरीर पर गंदे तरीके से घूम रही थी । “एक काम कर , तू इधर आ मैं उसे संभालता हूँ ।” अरी ने कहा । श्लोक ने ना में सिर हिलाया, “मैं संभाल लूँगा, आदत हो चुकी है यहाँ इन सबकी, तू चिंता मत कर, अपने काम पर ध्यान दे ।” तभी कोई अरी के सामने आकर खड़ा हो गया, जिसके कारण दोनों जल्दी से एक-दूसरे से अलग होकर अपने काम पर लगे । श्लोक ने सामने बैठे आदमी की पसंद की ड्रिंक बनाई और काउंटर पर रखी ही थी कि उस आदमी ने श्लोक का हाथ पकड़ लिया । श्लोक का चेहरा ठंडा पड़ गया । उसने आदमी को घूरा तो एक भद्दी हंसी के साथ वह आदमी बोला, “और भी कोई सर्विस देते हो तुम?” “जो आप चाहते हैं, वह तो बिल्कुल नहीं । इसलिए मेरा हाथ छोड़ कर किसी और जगह ट्राय कीजिए ।” श्लोक ने सख्त शब्दों में उसे मना कर दिया । आदमी ने उसका हाथ छोड़े बिना अपनी जेब से एक कार्ड निकालकर काउंटर पर रख दिया । “जितना इस क्लब में महीने का कमाते हो, उतना मैं एक रात का दूंगा । सोच कर देखना, तुम्हें काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।” “काम करने में मुझे बड़ा आलस आता है । मुझे बताओ क्या ऑफर दे रहे हो?” आदमी का हाथ पकड़कर रोहन ने कहा और कार्ड भी उठा लिया । रोहन को देखते ही आदमी बुरी तरह सकपका गया । उसने श्लोक का हाथ जल्दी से छोड़ दिया, क्योंकि उसे अच्छे से पता था कि यह क्लब के मालिक का बिगड़ैल बेटा उसे यहाँ से बेइज्जती के साथ बाहर फेंक देगा । अपना हाथ बुरी तरह सहलाकर, श्लोक ने घिन भरी नजरों से उस आदमी को देखा और पीछे हट गया । वहीं, रोहन ने कार्ड पर नाम पढ़ने के बाद कहा, “शायद मैं आपके बारे में जानता हूँ । आप वही हैं न, जिन्हें एक लड़की ने क्लब के बाहर छेड़ने के कारण पीटा था? क्या अंकल, अपनी उम्र का तो ख्याल करो । कभी लड़की, कभी लड़का, और जब फंस जाओ तो लोगों से भीख मांगो कि मेरी तुम्हारी उम्र की बच्ची है, मैं क्यों ही तुम्हें छेड़ूँगा?” आदमी गला तर करते हुए अपनी नजरे चुराने लगा । उसने जल्दी से ड्रिंक उठाया और वहाँ से गायब हो गया । हाथ में मौजूद कार्ड को बुरी तरह मरोड़ कर, रोहन ने दूसरी तरफ फेंक दिया और फिर श्लोक ने गले में बाजू डाला “तू ठीक है?” “मेरे लिए ड्रिंक बना दे, फिर ठीक हो जायेगा और मैं कोई एक्स्ट्रा सर्विस भी नहीं मांगूंगा ।” वेद आदमी की जगह को झाड़ कर वहाँ बैठ गया । श्लोक के साथ-साथ अरी भी मुस्कुराता उठा । जो हालत विनीत की थी, उसके बाद उसे घर तो बिलकुल नहीं ले जाया जा सकता था, और ना ही अस्पताल । एक छोटे से घर में वह दर्द से पड़ा कराह रहा था । अखिल ने खून रोकने की पूरी कोशिश जारी रखी जब तक जिमी डॉक्टर को लेकर नहीं आता । तभी विनीत का इंतजार खत्म हुआ । “थोड़ी और देर हो जाती तो मैं पक्का निकलने वाला था तुम सबको छोड़ कर । अब जल्दी आ डॉक्टर सिर्फ खड़े मत रहो वहा !” विनीत बड़ी मुश्किल से चिल्ला दिया । “जी जी बिलकुल सर, मैं आपको इतनी आसानी से ऊपर पहुंचने नहीं दूंगा ।” डॉक्टर ने सामने आकर अपने मुंह पर से मास्क हटा कर मुख दर्शन कराए, जिस पर अखिल और विनीत दोनों की आंखें फैल गईं । “जिमी के बच्चे, तुझे पूरे शहर में दूसरा कोई डॉक्टर नहीं मिला?” विनीत ने गुस्से और हताशा के मिले-जुले भावों के साथ सामने खड़े अर्जुन को देखा । “जो पहला डॉक्टर मिला, उसी को उठा लाया बॉस! क्यों, कोई दिक्कत है इनके साथ?” जिमी ने अब जाकर उस मास्क वाले डॉक्टर का बिना मास्क वाला चेहरा देखा और वह अपनी जगह लड़खड़ा गया । आखिर इतनी बड़ी गलती वह कैसे कर सकता था? लेकिन यह कभी-कभार अस्पताल जाने वाला डॉक्टर आज ही क्यों अस्पताल गया था? “बहुत खून बह चुका है पेशंट का । मैं इलाज शुरू करू?” अर्जुन ने टेढ़ी मुस्कान के साथ अपने फर्स्ट एड बॉक्स पर हलके से उंगलियां मारते हुए कहा । “मैं मर जाऊंगा एके, लेकिन इसके हाथो इलाज नहीं करूंगा । क्या पता ये कोई जहर देकर मुझे मार दे?” विनीत ने कसकर अखिल का हाथ दबा दिया । अखिल ठंडी नजरों से अर्जुन को देख रहा था । अगर अर्जुन आया था, मतलब उसके गार्ड्स ने उसका पीछा जरूर किया होगा । “हमारे पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है ।” अखिल ने कहा और अर्जुन के लिए जगह खाली कर दी । एक शैतानी हंसी के साथ अर्जुन आगे बढ़ा तो विनीत पीछे सरकने लगा । उसे अर्जुन पर जरा भी विश्वास नहीं था । न जाने अखिल क्यों उसके हाथ में विनीत की जिंदगी की डोर सौंप रहा था । जल्द ही उस घर में गर्मी बढ़ गई जब अर्जुन के गार्ड केविन ने वहां प्रवेश किया । अर्जुन को पहले तो विनीत का इलाज करता देख उसका सिर चकरा गया । उसने कहा, “बॉस, आप ठीक हैं न?” “ठीक तो हमारे दुश्मन नहीं हैं । तभी तो मुझे यहाँ इलाज करने बुलाया है,” अर्जुन ने आराम से कहा । “मैं पूछ रहा था कि आपका दिमाग ठीक है न?” केविन ने मुंह बिगाड़कर कहा, तो अर्जुन ने उसकी बात का गुस्सा विनीत के जख्म पर निकाल दिया । जोर से चिल्ला कर विनीत बोला, “सालों, अपनी बातें बाहर जाकर करना, दर्द कम करने की जगह बढ़ाओ मत उसे ।” “ज़रूर, ज़रूर,” अर्जुन ने फिर से कॉटन को इसके जख्म पर दबा कर कहा । जिसके बाद विनीत की चीखें जो शुरू हुईं वो अर्जुन के इलाज करने के बाद ही शांत हुईं । अर्जुन और केविन एकदम शांति से निकल पाए क्योंकि फॉक्स गैंग के वारिस कोई लड़ाई करने की हालत में इस समय नहीं थे । “कुत्ते ने बिना अनेस्थेशिया के टांके लगाए हैं मुझे । किसी दिन हाथ आ जाए, इसका मुंह अच्छे से सिल दूंगा ।” विनीत ने अपना पेट पकड़ा हुआ था, जिस पर अब एक बड़ी सी पट्टी बंधी हुई थी । “बच्चा है क्या जो इतना सा दर्द नहीं झेल पा रहा? आराम कर अब, और जिमी तू जाकर दवाई लेकर आ, वरना पूरी रात ऐसे ही चिल्लाता रहेगा ।” अखिल ने एक ठंडी सांस छोड़कर कहा । उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे । कबीर आचार्य इस समय उसके दिमाग से निकलने का नाम नहीं ले रहा था । आगे जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे और फॉलो करना बिलकुल ना भूले ।