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Samay Ka Safar Mohabbat Tak

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Md Zafar

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kahani bahut Khatarnak bahut khubsurat hai bahut acchi hai ab jarur sune ismein Time travel per base kahani Hai. yeh kahani ek ladki ki Hai Jo accident ke vajah se Time travel karti hai apne sabse pyare Raja ke samay mein vah ladki ek histry ki Chhat...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. Samay Ka Safar Mohabbat Tak - Chapter 1

    Words: 1514

    Estimated Reading Time: 10 min

    समय का सफ़र मोहब्बत तक - अध्याय 1

    ​मुंबई की चकाचौंध भरी दुनिया में, दो अनाथ लड़कियाँ, नेहा और नीलम, अपने सपनों को पंख दे रही थीं. नेहा, 18 साल की, इतिहास की किताबों में अपनी दुनिया ढूंढती थी, जबकि 19 साल की नीलम का दिल रोमांटिक उपन्यासों में बसता था. दोनों की दोस्ती अटूट थी, क्योंकि दोनों ने एक ही तरह की मुश्किलों का सामना किया था. एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप पर पढ़ना उनका एक साझा सपना था, जिसे वो जी जान से पूरा कर रही थीं.

    ​आज सुबह उनकी नींद 8 बजे के बाद खुली. अलार्म की कर्कश आवाज़ को उन्होंने शायद अनसुना कर दिया था. दोनों हड़बड़ी में तैयार हुईं. नेहा ने अपनी पसंदीदा काली टी-शर्ट और जीन्स पहनी, जबकि नीलम ने नीले रंग की फ्लोरल ड्रेस. जल्दबाज़ी में दोनों ने बाल भी बस जैसे-तैसे बाँधे और अपने-अपने बैग उठाकर यूनिवर्सिटी की ओर भागीं. उनकी स्कूटी की रफ़्तार हवा से बातें कर रही थी, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. क्लास शुरू हो चुकी थी और दरवाज़े बंद थे. निराश होकर दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुराईं. "लगता है आज का दिन हमारा नहीं है," नीलम ने हँसते हुए कहा. नेहा ने भी सहमति में सिर हिलाया.

    ​उन्होंने कैंटीन से दो सैंडविच लिए और अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ीं—यूनिवर्सिटी की विशाल लाइब्रेरी. ये जगह उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद थी. लाइब्रेरी की धीमी रोशनी और किताबों की महक उन्हें सुकून देती थी. नीलम, हमेशा की तरह, एक रोमांटिक नॉवेल ढूँढने निकल पड़ी, और एक किनारे बैठकर उसमें खो गई. वहीं, नेहा इतिहास की किताबों की अलमारी के पास पहुँची. उसकी आँखें इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसा ढूँढ़ रही थीं जो उसे और इस दुनिया को जोड़ सके.

    ​तभी उसकी नज़र एक पुरानी और धूल जमी हुई किताब पर पड़ी. बाकी किताबों से अलग, यह किताब सुनहरे धागों की कढ़ाई से सजी हुई थी. यह इतनी ख़ूबसूरत थी कि नेहा खुद को रोक नहीं पाई. उसने धीरे से उसे उठाया, और धूल का एक गुबार उठा. किताब के बाहरी कवर पर बड़े अक्षरों में लिखा था, "समय का सफ़र मोहब्बत तक." नेहा ने जिज्ञासा से पहला पन्ना पलटा. वहाँ एक सवाल लिखा था, "क्या तुम यह पढ़कर मेरे पास दोबारा आओगी?" और नीचे लिखा था कि ये कहानी महेशमति के राजा रुद्राक्ष प्रताप सिंह ने अपने हाथों से लिखी थी. यह पढ़कर नेहा का दिल तेज़ी से धड़कने लगा.

    ​वह किताब लेकर ज़मीन पर बैठ गई. जैसे-जैसे उसने पन्ने पलटने शुरू किए, राजा रुद्राक्ष के जीवन का दर्द उसके दिल को छूने लगा. किताब में लिखा था कि कैसे राजा रुद्राक्ष ने अपने राज्य और अपनी प्रजा को बचाने के लिए पड़ोसी राजाओं से युद्ध लड़ा, और कैसे अंत में उसकी अपनी रानी ने ही धोखे से पड़ोसी राजा से हाथ मिला लिया. रुद्राक्ष की दर्दनाक और अकेली मौत का वर्णन पढ़कर नेहा की आँखों से आँसू बहने लगे. उसे महसूस हुआ जैसे वो उस दर्द को खुद महसूस कर रही हो.

    ​तभी नीलम उसके पास आई और उसे देखकर चौंक गई. "नेहा, क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?" उसने धीरे से पूछा. "देख, पढ़ते-पढ़ते तो शाम हो गई. सारी क्लासें भी ख़त्म हो गईं. चल अब घर चलें."

    ​नेहा ने नम आँखों से नीलम को देखा. "यह बस एक कहानी नहीं है नीलम. इस राजा के साथ बहुत अन्याय हुआ है. मुझे समझ नहीं आ रहा... इतिहास में ऐसा क्यों होता है? जो अच्छा होता है, उसी के साथ बुरा क्यों होता है?"

    ​नीलम ने नेहा को सांत्वना दी. "शायद यही जिंदगी है, नेहा. वक्त सबके लिए एक जैसा नहीं होता और हर किसी की किस्मत में अलग-अलग बातें लिखी होती हैं. ये सब छोड़ दे. ये तो बीता हुआ कल है."

    ​नेहा ने अपने आँसू पोंछे, और दोनों लाइब्रेरी से बाहर निकल आईं. उन्होंने अपनी स्कूटी उठाई और अपने अपार्टमेंट की तरफ निकल पड़ीं. लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. रास्ते में अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई. हाईवे पर बारिश और तेज़ रफ़्तार के कारण एक ट्रक बेकाबू हो गया और उनकी स्कूटी से जा टकराया. दोनों सड़क पर गिर गईं. पूरे हाईवे पर खून और पानी फ़ैल गया था, और दोनों बेहोश पड़ी थीं.

    ​कुछ ही देर बाद, एक एम्बुलेंस आई और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. नीलम को ज़्यादा चोट नहीं आई थी और वो जल्द ही होश में आ गई, पर नेहा... नेहा कोमा में चली गई थी.

    ​दूसरी तरफ, नेहा ने अपनी आँखें खोलीं. वह खुद को एक घने और खूबसूरत जंगल में पाकर हैरान थी. धूप पत्तों के बीच से छनकर उसकी आँखों पर पड़ रही थी. उसने हाथ से अपनी आँखें ढँकने की कोशिश की, फिर धीरे-धीरे उठी और सोचने लगी, 'मैं कहाँ हूँ? मैं तो नीलम के साथ अपार्टमेंट जा रही थी...' तभी उसे याद आया कि कैसे एक ट्रक ने उन्हें टक्कर मारी थी. 'तो फिर मैं इस जंगल में कैसे आ गई?'

    ​तभी पीछे से एक आदमी सामने आया. उसने सफेद धोती और सुनहरी मोजड़ी पहनी थी और उसके हाथ में एक ख़ूबसूरत तलवार थी. उसकी बांह पर तलवार के वार का एक गहरा ज़ख्म था, जिससे खून बह रहा था. वो कोई और नहीं, महेशमति का राजा रुद्राक्ष प्रताप सिंह था, पर नेहा इस बात से अनजान थी.

    ​नेहा ने उससे पूछा, "एक्सक्यूज़ मी, मैं कहाँ आ गई हूँ? और क्या यहाँ किसी नाटक की शूटिंग चल रही है?"

    ​रुद्राक्ष के लिए ये शब्द बिलकुल नए थे. उसे 'शूटिंग' और 'ड्रामा' का मतलब समझ नहीं आया. उसने गुस्से में कहा, "ए लड़की, तुम किस तरह और किस भाषा में बात कर रही हो? और तुमने ये विचित्र कपड़े क्यों पहने हैं?"

    ​नेहा को लगा कि रुद्राक्ष सच में एक्टिंग कर रहा है. "भाई, तुम तो बहुत अच्छी एक्टिंग करते हो! मुझे लगता है मैं गलती से तुम्हारे शूटिंग सेट पर आ गई हूँ. पर मुझे यहाँ कोई कैमरा या लाइट तो दिख नहीं रही."

    ​रुद्राक्ष को अब गुस्सा आ रहा था. उसने अपनी तलवार उठाई और उसकी तरफ इशारा किया. "यह कोई नाटक नहीं है, मूर्ख लड़की! तुम मेरे राज्य, महेशमति में हो."

    ​यह सुनकर नेहा की हँसी छूट गई. "अच्छा? और मैं तुम्हारी प्रजा? मुझे जाने दो. मैं यहाँ बहुत देर से हूँ. मुझे देर हो रही है."

    ​रुद्राक्ष को समझ नहीं आ रहा था कि इस लड़की के साथ क्या हो रहा है. उसने गुस्से में तलवार नीचे की और कहा, "तुम्हें अपने राज्य जाने की कोई ज़रूरत नहीं है. तुम यहीं रहोगी!"

    ​नेहा को अभी तक यह एहसास नहीं था कि वो एक अलग समय में आ गई है, और उसकी मुलाक़ात उसी राजा से हुई है जिसकी कहानी उसने अभी-अभी पढ़ी थी.

    ​रुद्राक्ष तलवार उठाकर नेहा को डराता है और कहता है कि वह उसके राज्य में है. नेहा को अब भी यही लगता है कि यह सब एक शूटिंग का हिस्सा है. वह रुद्राक्ष से कहती है कि 'भाई, तुम सच में बहुत अच्छे एक्टर हो, पर अब मेरा नाटक देखने का मन नहीं. मुझे जाने दो.' रुद्राक्ष गुस्से में आ जाता है और उसे बताता है कि वह कोई एक्टर नहीं, बल्कि महेशमति का राजा है.
    रुद्राक्ष को लगता है कि नेहा की मानसिक हालत ठीक नहीं है. वह मन ही मन सोचता है, 'यह लड़की तो पूरी तरह से पागल लग रही है. ऐसे विचित्र कपड़े, ये बेतुकी बातें... कौन जाने यह किस मुसीबत में फँसी है.'
    वह नेहा को रेहन (यानी उधार) रखकर अपने महल ले जाने का फैसला करता है. उसे लगता है कि कम-से-कम महल में उसे कोई नुकसान नहीं होगा. वह उसे बताता है, 'क्योंकि तुम भटक गई हो और अपनी सुध-बुध खो बैठी हो, मैं तुम्हें अपने महल में आश्रय दूँगा. लेकिन तुम्हें वहाँ मेरी प्रजा बनकर नहीं, बल्कि मेरी रेहन बनकर रहना होगा.'
    नेहा यह सुनकर हँसने लगती है. 'रेहन? ये क्या होता है? और मैं तुम्हारी प्रजा नहीं! मैं मुंबई से हूँ! तुम चलो, मैं तुम्हें दिखाती हूँ मेरा मुंबई!'
    यह सुनकर रुद्राक्ष और भी ज़्यादा परेशान हो जाता है. 'मुंबई? ये कौन सा राज्य है? मैंने तो कभी इसका नाम नहीं सुना.'
    वह नेहा को जबरदस्ती अपनी घोड़ी पर बिठाता है और महल की ओर ले जाता है. नेहा रास्ते भर चीखती रहती है, 'मुझे छोड़ो! मुझे जाना है! ये घोड़ा क्यों दौड़ा रहे हो?'
    रुद्राक्ष उसे इग्नोर करता है और बस यही सोचता है, 'लगता है इस लड़की पर किसी चुड़ैल का साया है. इसे तो वैध (हकीम) को दिखाना पड़ेगा.'
    महल में पहुँचने के बाद, रुद्राक्ष नेहा को सीधे अपने राजवैद्य के पास ले जाता है. वह वैद्य से कहता है, 'वैद्य जी, इस लड़की को देखिए. यह भटक गई है और अपने आप को 'मुंबई की प्रजा' कहती है. इसके कपड़े और बातें विचित्र हैं. मुझे लगता है इसे किसी बुरी आत्मा ने पकड़ लिया है.'
    वैद्य नेहा को ध्यान से देखता है और उसकी अजीब बातें सुनकर सोच में पड़ जाता है. वह भी राजा से सहमत होता है कि यह लड़की मानसिक रूप से बीमार है और उसे इलाज की ज़रूरत है.
    क्या वैद्य नेहा की मदद कर पाएगा? क्या नेहा कभी यह जान पाएगी कि वह समय में पीछे आ गई है? क्या रुद्राक्ष और नेहा के बीच की यह अनोखी कॉमेडी एक प्यार की कहानी में बदल पाएगी?