ये कहानी है नक्ष और कशिश की। 21 साल की कशिश का मालिक नक्ष मर्चेंट। पैसों की खातिर कशिश को मजबूरी में प्रॉस्टिट्यूशन का काम करना पड़ता है पर अपने पहले कस्टमर के रूप में ही कशिश की मुलाकात हो जाती है एक रूड और एरोगेंट बिजनेसमैन से। क्या होगा जब नक्ष कश... ये कहानी है नक्ष और कशिश की। 21 साल की कशिश का मालिक नक्ष मर्चेंट। पैसों की खातिर कशिश को मजबूरी में प्रॉस्टिट्यूशन का काम करना पड़ता है पर अपने पहले कस्टमर के रूप में ही कशिश की मुलाकात हो जाती है एक रूड और एरोगेंट बिजनेसमैन से। क्या होगा जब नक्ष कशिश को अपनी मिस्ट्रेस बनाकर रख लेगा? एक रात की कीमत कशिश को किस तरीके से चुकानी पड़ेगी? और क्यों नक्ष जैसे बड़े बिजनेसमैन ने कशिश को अपने पास मिस्ट्रेस बनाकर रख लिया.. आखिर क्या थी मजबूरी जो कशिश को बनना पड़ा नक्ष जैसे शैतान की मिस्ट्रेस और क्या कभी वह उसके कैद से निकल पाएगी
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नैनीताल में एक और शांत सुबह थी। लोग रोज़ की तरह चुपचाप अपने-अपने काम पर जा रहे थे। डॉक्टर कादम्बरी भी उन्हीं पैदल यात्रियों में से थीं। हाथ में अपनी पसंदीदा गर्म सैंडविच लिए उन्होंने घड़ी देखी—सुबह के 7 15 हो रहे थे। हॉस्पिटल पर जाने में अभी समय था। उसे कोई अंदाज़ा नहीं था कि उनके आस-पास खतरा मंडरा रहा है। वे हमेशा की तरह कबूतरों को देखने के लिए रुक गईं। ये उनका रोज़ का छोटा-सा रूटीन था। हल्की-सी मुस्कान के साथ उसने बैग से अनाज का डिब्बा निकाला, मुट्ठीभर अनाज लिया और कबूतरों की तरफ़ फेंक दिया। कबूतर झट से टूट पड़े। कादम्बरी उन्हें मुस्कुराते हुए देख ही रही थीं कि अचानक एक आदमी ने उसे ज़ोर से टक्कर मार दी और दोनों ज़मीन पर गिर पड़े।
उसी वक़्त, किसी के घर की छत पर तनिष्क अपनी राइफल लिए खड़ा था। कान पर प्रोटेक्शन और हाथों में मोटे दस्ताने पहने उसने पास पड़ी राइफल उठाई। तभी उसने ब्लूटूथ में अपने आदमी की आवाज़ सुनी, “बॉस, वो पास ही है।”
तनिष्क मुस्कुराया, राइफल सेट की और दूरबीन से देखा।
उसे एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया जो जान बचाकर भाग रहा था। उसका पूरा शरीर डर से काँप रहा था, बार-बार पीछे मुड़कर देख रहा था कि कोई पीछा तो नहीं कर रहा। उसकी हालत देखकर तनिष्क और मुस्कुराया। उसे हमेशा मज़ा आता था ये देखकर कि लोग उससे कितना डरते हैं। उसका नाम ही लोगों को नींद उड़ाने के लिए काफ़ी था।
तनिष्क ने फिर से दूरबीन में देखा। बूढ़ा आदमी एक लड़की से टकराया और दोनों गिर पड़े। वो लड़की थी—कादम्बरी। बूढ़ा जल्दी से उठकर उसे भी उठाने लगा। तनिष्क का निशाना अब बूढ़े पर था। वो ट्रिगर दबाने ही वाला था कि कादम्बरी बूढ़े के सामने खड़ी हो गईं। उसे इंतज़ार करना पड़ा। जैसे ही वो थोड़ा हटीं, तनिष्क ने तीन की गिनती की और गोली चला दी। गोली सीधा बूढ़े के दिल में लगी और वो ज़मीन गिर पड़ा।
हवा में जोरदार चीखें गूँज उठीं। लोग दहशत में चिल्लाने लगे। कबूतरों का झुंड शोर मचाते हुए उड़ गया।
तनिष्क ने राइफल केस में रखी, कान का प्रोटेक्शन उतारा और तीस सेकंड के अंदर वहाँ से निकल गया। ये था तनिष्क बराला—अंडरवर्ल्ड का Scorpion, यहाँ का सबसे खतरनाक माफिया सरगना।
कुछ देर बाद तनिष्क आईने के सामने खड़ा था। वो नहाकर आया था, पैंट पहनी हुई थी। बालों में जेल लगाया, शर्ट पहनकर सारे बटन बंद किए, टाई बांधी, रोलेक्स घड़ी पहनी और परफ्यूम लगाया। फिर काला कोट डालकर खुद को देखा और गर्व से मुस्कुराया। सामने दिख रहा था मुंबई और उत्तराखंड का सबसे ताकतवर बिज़नेस टाइकून और बराला स्टील्स एंड ऑयल कॉर्पोरेशन का सीईओ—तनिष्क बराला।
“पापा।” तनिष्क अपने पिता के स्टडी में गया। उसके पिता फाइलें देख रहे थे लेकिन बेटे की आवाज़ सुनकर ऊपर देखा और मुस्कुराए। उठकर गले लगाया। तनिष्क ने आदर से उनका पैर छुए।
“पापा, हमने बंटी को पकड़ लिया है। लेकिन वो कुछ नहीं बोल रहा कि हमारा सामान किसने चुराया। गोली लगने से वो बेहोश हो गया था। बग्गी ने ट्रीटमेंट किया है लेकिन तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा वरना वो मर जाएगा।” तनिष्क ने सीधे मुद्दे पर बात की।
बृजेश बराला ने गर्व से बेटे को देखा और कहा, “शाबाश बेटे! और रित्विक कहा है?”
“पापा उसका काम पूरा हो गया। गद्दार मर गया।” तनिष्क ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
“मुझे तुम दोनो पर गर्व है बेटा।” पिता की आँखों में चमक थी और तनिष्क को ये देखकर अच्छा लगा।
फिर बृजेश जी ने थोड़ी देर सोचकर कहा, “हम्म… ऑपरेशन? हम उसे अस्पताल नहीं ले जा सकते। सवाल उठेंगे। तुम्हें एक डॉक्टर चाहिए… और मुझे एक डॉ नाम पता है।”
तनिष्क ने भौंहें चढ़ाईं। कौन है वो डॉक्टर?
“कादम्बरी बोस।” बृजेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा। “वो एक जनरल सर्जन है। अनाथ है और अकेली रहती है। कोई ढूँढने वाला नहीं है। मैं उसे कल केस देखने भेज दूँगा और ऑपरेशन तक वहीं रुकने को कह दूँगा।”
तनिष्क ने पूछा, “अगर उसे हमारी पहचान के बारे में पता चल गया तो?”
बृजेश जी का चेहरा सख्त था, “तो उसे मार डालना।”
***
इधर कादम्बरी सदमे में थी। अभी-अभी जिस आदमी से टकराई थीं, उसी को उसकी आँखों के सामने गोली लग गई। खून तेज़ी से बह रहा था। वो कांपते हुए उसके पास गईं, नब्ज़ चेक की, लेकिन वो खत्म हो चुका था। उसने घबराकर लोगों से एम्बुलेंस बुलाने को कहा, पर दिल की धड़कन रुक चुकी थी।
कुछ घंटे पहले हुई उस घटना से कादम्बरी सन्न रह गई। मरे हुए आदमी का चेहरा उसके दिमाग में घूम रहा था और एक आँसू उसकी आँख से लुढ़ककर गाल पर जा गिरा।
इतनी निर्ममता देखकर वो गहरी तरह से चौंक गई। कोई आखिर हत्या क्यों करेगा? क्या उनके पास दिल नहीं था? उसका मन अचानक अतीत में चला गया। वह नौ साल की थी जब रात के दो बजे उनके घर में घुसे लुटेरों ने उसके माँ-बाप को बेरहमी से मार डाला था। उसे याद आया कैसे उसकी माँ ने उसे बिस्तर से नीचे धकेला था और उससे वादा लिया था कि वह शोर नहीं मचाएगी।
उसे याद आया कि कैसे उसके पिता को सीने में गोली मारी गई थी। उसने अपनी आँखों से देखा कि उन लोगों ने उसकी माँ के साथ कितना बुरा किया और फिर उन्हें गोली मार दी। वह तब बच्ची थी। उसने बिस्तर के नीचे से देखा कि कैसे उसके माता-पिता की लाशें ज़मीन पर गिरी थीं। उसकी माँ की चीख उसके कानों में गूंजती रही। उस रात साफ़ सफ़ेद फ़र्श पर फैले खून का दाग उसे आज भी दिखाई देता है। कैसे उसके माता-पिता खून में पड़े हुए थे...उस रात ने सब कुछ बदल दिया...
उस रात ने उस नौ साल की मासूम को अनाथ बना दिया...उस रात ने उसका बचपन छीन लिया...
उस रात ने उसे दो साल तक सदमे में रखा और कई रातें उसकी नींद उड़ी रही...उसका दिल दर्द से भर रह गया और मुँह से सिसकी निकल पड़ी।
उसने उन सब बातों को विस्तार से याद किया और उसके होंठ काँप उठे। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और गाल नम हो गए। वह उस रात की सारी घटनाएं याद करके और ज़्यादा रोने लगी।
वह अपने माता-पिता की दर्दनाक चीखें कभी नहीं भूल सकती थी और उनकी मदद न कर पाने का अहसास उसके दिल में और भी गहरा दर्द भर देता। उसने अक्सर सोचा था कि काश वह भी उनके साथ चली जाए, लेकिन जब वह अपने माता-पिता के सपनों और उम्मीदों के बारे में सोचती, तो आत्महत्या के विचार उसके मन से हटकर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते — कि उसे उनके सपनों को पूरा करना है, इसलिए उसे जीना होगा।
“हे भगवान! कादम्बरी, क्या तुम ठीक हो?” बेला जल्दी से पास आई। कादम्बरी अपनी आँखें बंद करके बुरी तरह रो रही थी और बार-बार सिर हिला रही थी।
“नहीं! प्लीज़ नहीं!” कादम्बरी ने आँखें बंद करके जबड़ा कसते और मुट्ठियाँ बँधाते हुए चिल्लाई। वह उस कोने में छिप जाना चाहती थी जहाँ उसके माता-पिता बेसुध पड़े थे।
“प्लीज़ उन्हें रोको! कोई मदद करो!” कादम्बरी बार-बार चिल्ला रही थी, जिससे लोगों का ध्यान उसकी ओर गया और उसके सहकर्मी चिंतित होकर उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए।
“कादम्बरी? सुनो, तुम ठीक हो?” डॉक्टर अर्जुन ने उसे हिलाकर वास्तविकता में लाने की कोशिश की, पर वह शांत नहीं हो रही थी।
“बचाओ! प्लीज़ मेरी मदद करो!” कादम्बरी चिल्लाई तो लोग चिंता, बेचैनी और दया से उसे देखने लगे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रही है; जो लोग उसे जानते थे, वे उसे सबसे ज़्यादा खुशमिजाज़ इंसान मानते थे, और अब उसकी हालत देखकर वे परेशान थे।
“थोड़ा पानी लाओ, जल्दी!” डॉक्टर अर्जुन ने कहा। एक चपरासी तुरंत पानी ले आया और बिना सोचे, डॉक्टर अर्जुन ने कादम्बरी के चेहरे पर पानी छिड़क दिया। वह ज़ोर से हांफने लगी, उसकी आँखें खुलीं और वह अपने आसपास देखकर डर गई।
डॉक्टर अर्जुन घबराकर बोले, “तुम ठीक हैं, मिस बोस?”
कादम्बरी ने इधर-उधर देखा और समझने की कोशिश की कि वह यहाँ कैसे पहुँची। उसे याद आया कि वह पूरे दिन यहीं थी और अचानक उसका मन अतीत में चला गया था।
आज की घटना ने उसे वही रात याद दिला दी, जिसे वह मुश्किल से भूल पाई थी और जिसे उसने मन के एक कोने में बंद कर रखा था।
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। उसने कई तरह के इलाज कराए थे और बुरे सपने 14 साल की उम्र तक धीरे-धीरे कम हो गए थे। अब 27 साल की उम्र में एक हादसा उसके अतीत को फिर से उसके सामने ले आया।
“डॉक्टर कादम्बरी? आप ठीक हैं?” उसकी साथी डॉक्टर आशा जी ने पूछा —
वो एक माँ जैसी पचीस के आस-पास की उम्र की महिला।
कादम्बरी ज़ोर-ज़ोर से हांफते हुए बताने लगी उसका गला सूख गया है।
“पानी…” वह धीरे से बोली और डॉक्टर अर्जुन ने तुरंत पानी की बोतल पकड़कर उसका ढक्कन खोल दिया।
कादम्बरी ने पानी ऐसे पीया जैसे कोई मैराथन दौड़कर आया हो। लोग उसकी तरफ़ चिंता से देख रहे थे।
वो किसी को कुछ नहीं बताना चाहती थी! वह बस उन दर्दनाक यादों को अपने अंदर ही दबा लेना चाहती थी...
अचानक उसके सिर में तेज़ दर्द उठा और उसने आँखें कसकर बंद कर लीं।
“डॉक्टर कादम्बरी? प्लीज बताओ क्या तुम ठीक हो?” बेला, उसकी सबसे अच्छी दोस्त, ने चिंतित स्वर में कहा।
“मैं ठीक हूँ” कादम्बरी ने कहा और उन साथी डॉक्टरों की ओर देखा जिनके चेहरे पर चिंता साफ़ थी।
कादम्बरी ने कहा “आज हॉस्पिटल आते वक़्त जो कुछ भी हुआ था.. उन्हें सब ने मुझे परेशान कर दिया था।”, बेला, आशा जी और डॉक्टर अर्जुन की ओर देखते हुए कहा वे सब सचमुच परेशान लगे थे।
“ओह, तुमने मुझे डरा दिया।” आशा जी ने कहा और कादम्बरी को गले लगा लिया। कादम्बरी ने उनकी गोद में थोड़ी माँ-सी गर्माहट महसूस करने की कोशिश की, पर वह जानती थी कि वह असली माँ नहीं थीं।
उसका दिल सोचता कि काश उसके माता-पिता आज भी होते तो कितना अच्छा होता... लेकिन ज़िंदगी अक्सर अन्यायपूर्ण होती है,
“मुझे माफ़ कर दो माँ,” कादम्बरी ने आशा जी से कहा, क्योंकि उन्हें माँ कहकर उसे थोड़ी सांत्वना मिलती थी — ऐसा महसूस होता था कि उसका कोई परिवार है।
उसने धीरे से एक लंबी सांस ली और सब कुछ ठीक होने कामना की, ये जाने बिना कि आगे उसके लिए क्या होगा...
कादम्बरी अपने बॉस के केबिन में दाखिल हुई, जो साठ साल के थे। उनका नाम बृजेश बराला था। जिस प्राइवेट अस्पताल में वो काम करती थी, उसके मालिक वही थे और बड़े सम्मानित आदमी माने जाते थे। कादम्बरी उनका बहुत आदर करती थी। वो बहुत अच्छे स्वभाव के थे और अपने स्टाफ से हमेशा अच्छे से पेश आते थे।
"गुडमॉर्निंग सर। आप ने मुझे बुलाया?" कादम्बरी ने कहा।
बृजेश बराला मुस्कुराए और बैठने का इशारा किया। कादम्बरी बैठ गई और उनकी ओर देखने लगी।
"हाँ, कादम्बरी। मेने तुम्हे एक जरूरी काम से बुलया है?" बृजेश बराला ने अखबार नीचे रखकर सीधे कादम्बरी की तरफ देख कर कहा।
कादम्बरी हल्के से मुस्कुराई और बोली, "जी सर बताइए
उन्होंने कहा और फिर बोले, "दरसल कादम्बरी, मेरे दोस्त का बेटा बहुत बुरी तरह घायल है और मैं चाहता हूँ कि तुम खुद जाकर उसे देखो।"
"हाँ, ज़रूर सर। कौन सा कमरा नंबर?" कादम्बरी ने पूछा। तो ब्रजेश जी बोले "नहीं, वो यहाँ नहीं है। उसका इलाज उसके घर पर ही करवाया जा रहा है। तुम कोई और सवाल मत करना। बस जाकर उसकी हालत देखो।"
मिस्टर बृजेश बराला की ये सख्त आवाज़ सुनकर कादम्बरी काँप गई। उसका बॉस तो हमेशा नरमी से बात करता था। फिर आज अचानक क्या हो गया
कादम्बरी को अजीब लगा कि वो अचानक इतना सख्त क्यों हो गया। उसने सिर हिलाकर कहा, "ठीक है सर। मैं उनसे कब मिलूँगी?"
"अभी," बृजेश जी ने सख्ती से कहा।
"अभी? लेकिन मेरे काम बाकी हैं—" कादम्बरी ने कहना शुरू ही किया था कि बॉस ने बीच में रोक दिया।
"ये काम ज़्यादा ज़रूरी है। तुम्हारी ड्यूटी मैं किसी और डॉक्टर को दे दूंगा लेकिन इस काम के लिए । मुझे तुम पर भरोसा है, कादम्बरी, तभी मैंने तुम्हें चुना है।"
इस बार बृजेश बराला हल्के से मुस्कुराए। कादम्बरी भी खुशी से मुस्कुराई, "आपके भरोसे के लिए थेंक्स सर।ठीक है मैं अभी चलती हूँ।"
"ठीक है, एम्बुलेंस बाहर खड़ी है। वही तुम्हें वहाँ ले जाएगी। ऑपरेशन पूरा होने तक तुम्हें वहीं रुकना होगा," बृजेश ने कहाँ।
"ओह," कादम्बरी ने माथे पर बल पढ़ने लगे उसने कहाँ, "अगर ज़्यादा दिन रुकना पड़ा तो मैं कुछ सामान ले आऊँ?"
"ज़रूरत नहीं। तुरंत वहां जाना है बस। उनका ड्राइवर तुम्हारा सामान ले आएगा। अब जल्दी करो।"
बृजेश बराला की सख्त आवाज़ पर कादम्बरी ने होंठ भींच लिए और कुछ नहीं बोली। "ओके सर," उसने बस इतना ही कहा।
"बेस्ट ऑफ़ लक!" बृजेश जी मुस्कुराए, लेकिन उस मुस्कान में कुछ अजीब था। कादम्बरी ने इसे महसूस किया, मगर नज़रअंदाज़ कर दिया।
"थेंक्स सर।"
वो विनम्रता से कहकर ऑफिस से बाहर निकली और अपना पर्स लेने अपने केबिन में चली गई।
"बेला , मैं कुछ दिनों में वापस आऊँगी। मिस्टर बृजेश ने मुझे एक केस दिया है और उसका इलाज मरीज़ के घर पर करना है। मैं अभी जा रही हूँ," कादम्बरी ने बेला से कहा।
"पर एकदम अचानक कैसे," बेला चौकते हुऐ बोली।
"हाँ! सर ने अचानक ही कहाँ है. अच्छा मैं जा रही हूँ। अपना ख्याल रखना।" कादम्बरी ने उसे गले लगाया और बाय कहा।
कादम्बरी बाहर निकली और वहाँ खड़ी एम्बुलेंस को देखा।
"क्या ये वही एम्बुलेंस है जिसमें मुझे जाना है?" उसने ड्राइवर से पूछा।
ड्राइवर ने हाँ मे सिर हिलाया।
"ठीक है," कादम्बरी ने कहाँ और पिछला दरवाज़ा खोला। अंदर कुर्सी के पास बहुत से औज़ार और मेडिकल मशीनें रखी थीं।
कादम्बरी चौंक गई कि इतनी सारी मशीनें क्यों ले जाई जा रही हैं। अगर मामला इतना गंभीर है तो मरीज को अस्पताल क्यों नहीं लाया गया?
सिर झटकते हुए उसने अपना मोबाइल निकाला और अपना नया पसंदीदा नॉवेल ऐप खोला। लाइब्रेरी स्क्रॉल करते हुए उसने अपने पसंदीदा लेखक की किताब पढ़ना शुरू कर दिया।
करीब आधे घंटे बाद कादम्बरी को अजीब लगा कि मरीज का घर अब तक क्यों नहीं आया। और 15 मिनट और बीतने पर उसने आखिरकार ड्राइवर से पूछ ही लिया।
खिड़की का शीशा खटखटाते हुए उसने कहा,
" ड्राइवर भईया? हमें वहाँ पहुँचने में और कितना वक्त लगेगा?"
"एक घंटा और मैडम जी।" ड्राइवर बोला
"एक घंटा और?" कादम्बरी घबरा गई ये सोच कर। मतलब अस्पताल से ये जगह दो घंटे की दूरी पर थी। उसे तो लगा था कि वो अभी भी नैनीताल में हैं।
"हम आखिर कहाँ जा रहे हैं?" उसने पूछा।
" रानीखेत ," ड्राइवर ने जवाब दिया।
कादम्बरी के दिल में डर सा उठने लगा। वो वापस अपनी सीट पर टिककर बैठ गई।
फोन ने लो बैटरी का अलर्ट दिया। यह देख कर उसे और टेंशन हो गई ।एक घंटे बाद, जब बैटरी 5% रह गई थी, वो आखिर उस जगह पहुँच चुकी थी
कादम्बरी एम्बुलेंस से उतरी और चारों तरफ देखा। पेड़ ही पेड़। और दूर तक बहुत अंधेरा था। उसकी साँस अटक गई। जिस घर में मरीज था, उसके आस-पास कोई और घर नहीं था। घर बिल्कुल जंगल के बीच था।
उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने ड्राइवर से पूछा, "भईया ये घर जंगल में क्यों है? क्या आस-पास और कोई घर नहीं है?" ये बोलते वक़्त उसकी आवाज़ काँप रही थी।
"डॉक्टर मैडम, ये एक फार्महाउस है, इसलिए शहर से दूर है। और सात किलोमीटर तक कोई घर नहीं, क्योंकि ये सारी ज़मीन मिस्टर तनिष्क की है," ड्राइवर ने बताया।
"मिस्टर तनिष्क?" कादम्बरी ने उलझन में ड्राइवर को देख कर दोहराया।
तो ड्राइवर बोला"हाँ, इस जगह के मालिक। आइए, मैं आपको दरवाज़े तक छोड़ दूँ।"
कादम्बरी ने सिर हिलाया। बाहर से उसे एक बड़ा पेड़ दिख रहा था।
पर जैसे ही वो दरवाज़े के अंदर दाखिल हुई, उसने दूर तक फैला मैदान और फिर एक दो मंज़िला इमारत देखी।
मुख्य गेट पर एक छोटी कार खड़ी थी।
"डॉक्टर साहिबा, कार में बैठ जाइए। घर थोड़ी दूरी पर है। मालिक नहीं चाहेंगे कि उनके मेहमान पैदल जाएँ।" ड्राइवर ने कहाँ तो कादम्बरी ने सिर हिलाया और कार में बैठ गई।
उसने घड़ी देखी—रात के 9:50 बजे थे। थकी हुई वो जम्हाई लेने लगी। अब वो घर उसकी नज़र में आया। लकड़ी और काँच से बना सुंदर घर, जिसमें रोशनी बहुत कम थी। घर के बाहर करीब पंद्रह बॉडीगार्ड खड़े थे। कादम्बरी ने देखा वो सब कितने मजबूत और तगड़े थे।
वो कार से उतरी और जगह को गौर से देखने लगी, तभी उसे किसी की आहट सुनाई दी।
"डॉक्टर कादम्बरी बोस ?" गहरी, भारी और रूह काप देने वाली आवाज़ सुनकर वो अचानक पलटी।
उसने देखा एक लंबा, जवान आदमी खड़ा था। "हेलो डॉ, मैं तनिष्क हूँ। तनिष्क बराला।"
कादम्बरी ने उसकी बात सुनी, लेकिन वहीं खड़ी रह गई। उसका मुँह खुला रह गया
उसने सोचा था कि मिस्टर या मास्टर तनिष्क कोई बूढ़े आदमी होंगे जिनका पेट निकला हुआ होगा और सिर गंजा होगा। उसे नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों सोचा, लेकिन उसके दिमाग में यही तस्वीर आई थी। लेकिन सामने खड़ा आदमी बिल्कुल अलग था। वो करीब 6 फीट 3 इंच लंबा और चौड़ा था। उसकी मजबूत काया उसकी फिटिंग शर्ट से साफ झलक रही थी। उसका रंग गोरा था और आँखें गहरी भूरी थी। देखने में वो सचमुच बहुत आकर्षक था।
उसने हल्की खांसी की तो कादम्बरी के गाल लाल हो गए। उसे एहसास हुआ कि वो अब तक तनिष्क को घूर रही थी और उसके हेलो का भी जवाब नहीं दिया
"सॉरी, । हेलो, आपसे मिलकर अच्छा लगा, मिस्टर बराला ।" कादम्बरी ने कहाँ वो शर्मिंदा थी, लेकिन उसने संभलने की कोशिश की।
"आप यहां है ये हमारे लिए भी खुशी की बात है, डॉक्टर," तनिष्क ने बिना किसी भाव के कहा, जब उसने सामने खड़ी छोटी सी लड़की को देखा।
कादम्बरी मुश्किल से 5 फीट 6 इंच की थी। हील्स की वजह से थोड़ी लंबी लग रही थी। उसके लंबे बाल पीठ तक लहरा रहे थे।
उसकी हिरणी जैसी आँखें भी भूरे रंग की थीं।
वो मॉडल जैसी पतली नहीं थी, बल्कि उसका शरीर भरा-पूरा और आकर्षक था। तनिष्क को पक्का यकीन था कि उसका ब्रा साइज़ 36D होगा और ये बात उसके लिए दिलचस्प थी।
उसका चेहरा नाज़ुक था, गाल हल्के गोल, कमर पतली, पेट बिलकुल सपाट थे। उसका फिगर ऐसा था कि किसी को भी अपनी ओर खींच ले।
उसका रंग गोरा था और होंठ दिल की सेप जैसे। उसकी लिपस्टिक, टॉप, ट्राउजर , हील्स — सब कुछ गुलाबी रंग का था। हाथ में पकड़ा बैग भी पिंक था। तनिष्क को उसे देखकर स्ट्रॉबेरी का ख्याल आया और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
ये डॉक्टर सचमुच दूसरी लड़कियों जैसी नहीं है। सिर्फ उसका डॉक्टर वाला लैब कोट सफेद था। कादम्बरी ने घबराकर बाल कान के पीछे किए तो तनिष्कने देखा कि उसके नाखूनों पर भी गुलाबी नेल पॉलिश थी।
"अंदर चलो। ," तनिष्क की आवाज़ भारी और दबंग थी। कादम्बरी उसकी आवाज़ सुनकर सिहर उठी। उसका पूरा व्यक्तित्व ताकत और रौब से भरा था।
कादम्बरी ने उस दबंग आदमी का बर्ताव देखा और ना मे सिर हिलाया। उसे ऐसे लोग बिल्कुल पसंद नहीं जो दूसरों से बदतमीज़ी करते हैं। मगर सामने चल रहे आदमी के खिलाफ कुछ कहने की उसकी हिम्मत नहीं थी।
उसने चारों ओर देखा। वहां खड़े लोग बहुत खतरनाक लग रहे थे। कादम्बरी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
" पेशेंट कहाँ है?" कादम्बरी ने घर में कदम रखते हुए पूछा।
"मेरे पीछे आओ," तनिष्क ने हुक्म दिया। कादम्बरी ने भौंहें चढ़ाईं लेकिन चुप रही।
वो एक कमरे में पहुँचे। स्ट्रेचर पर पड़े मरीज की हालत देखकर कादम्बरी चौंक गई।
उसके पेट और बाएं हाथ में गहरे घाव थे।
"ओह! ये बहुत सीरियस है। उइसे से तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए।" कादम्बरी ने जल्दी से कहा।
"आपको नैनीताल से इसलिए बुलाया गया है ताकि इसे अस्पताल न ले जाया जाए। इलाज यहीं करना होगा। आपको जो भी चाहिए होगा, मिलेगा।" तनिष्क ने सख़्त लहजे में कहा और उसे घूर कर देखने लगा ।
"लेकिन—" कादम्बरी ने कहना शुरू ही किया था कि तनिष्क ने रोक दिया।
"आप सिर्फ़ अपना काम कीजिए, डॉक्टर। मेरे भाई को बचाइए। जितना कहा गया है उतना ही कीजिए। आपकी राय की ज़रूरत नहीं है।" उसने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा। कादम्बरी उसकी बात सुनकर सहम गई, लेकिन खुद को संभाला।
मिस्टर बराला, आपका ये बर्ताव ठीक नहीं है! उस ने तनिष्क से कहा, मगर तनिष्क को वो गुस्से में एक छोटी बच्ची जैसी लगी।
कादम्बरी को हमेशा कड़वी बातों से तकलीफ होती थी, लेकिन वो जानती थी कि जवाब देने पर उसका ही नुकसान होगा। वहाँ उसे बचाने वाला कोई नहीं था।
"ऑपरेशन शुरू करो। मैं चाहता हूँ कि वो जल्दी होश में आ जाए।" तनिष्क ने घमंड से कहा और बिना कुछ सुने बाहर चला गया।
"ये क्या बकवास है.. मैं अकेली इस कॉरपोरेशन कैसे कर सकती हूं ." कादम्बरी ने धीरे से बुदबुदाया और मरीज के पास पहुँची। उसकी हालत काफी खराब थी।
"हेलो डॉक्टर"
उसने मुड़कर देखा तो दो लोग लैब कोट पहने खड़े थे।
कादम्बरी ने हैरान होकर पूछा, "हैलो, क्या आप भी डॉक्टर हैं?"
"नहीं, मैं गौतम हूँ, फार्मासिस्ट। और ये पूजा है, नर्स।" कादम्बरी ने उन दोनों को देखा और सिर हिला दिया।
कादम्बरी ने सोचा कि ये लोग कितने अजीब और रहस्मयी हैं।
"ठीक है! आप दोनों मेरे साथ आओ.. हमें पेशेंट का ऑपरेशन करना है। मशीन चलाने में मदद करो ताकि हम इलाज शुरू कर सकें।"
उसने अपने बाल क्लिप से बाँधे और बैग एक तरफ रख दिया।
अब वो पूरी तरह से अपने काम में जुट चुकी थी। गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी।
कादम्बरी ने दो घंटे में गोली को ढूँढ लिया। लेकिन उसकी आँखें भारी हो रही थीं।
रात के 12 बज रहे थे। पूरे दिन काम और सफर से वो बहुत थक चुकी थी।
"हम आधे घंटे में गोली निकाल देंगे। उम्मीद है मरीज ठीक हो जाएगा।" कादम्बरी ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा और बाहर थोड़ा टहलने का मन बनाया।
"जी डॉक्टर कादम्बरी।" नर्स पूजा ने कहा। उसने सिर हिलाया और बाहर निकल गई। ठंडी हवा चल रही थी। हवा ने जैसे ही उसे छुआ, उसने गहरी सांस लेकर सुकून महसूस किया। चारों ओर शांति थी, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सा डर था।अजनबी लोगों से भरे घर में अकेले होने का डर...
तभी उसे पीछे से हल्के संगीत की आवाज़ सुनाई दी। वो धीरे-धीरे उस तरफ बढ़ी। वहाँ 10 - 12 आदमी शानदार सोफों पर बैठे थे। उनके हाथों में सिगार और शराब थी।
कादम्बरी ने तनिष्क को भी देखा। वो आराम से सोफे पर बैठा था, उसके एक हाथ में सिगार और दूसरे में शराब का गिलास।
वो उसे देख ही रही थी कि तभी उसके पैरों के पास से एक चूहा निकल गया। वो डरकर चीख पड़ी, घबराकर पीछे हटी और अचानक गिर गई।
"आह!!!"
कादम्बरी ने अपनी चोट लगी हथेलियाँ देखीं और दर्द से "आउच!" कहा। फिर नज़र उठाई तो वे भौंचक्की रह गई—सारे मर्द उसके चारों तरफ़ खड़े थे। वो गुस्से से बोली—"क्या? सब तमाशा देखने आए हो?"
तनिष्क ने धीरे से कहा—"डॉक्टर, आप यहाँ कर क्या रही हैं?"
कादम्बरी झेंपते हुए बोली —"मैं... बस थोड़ी हवा लेने निकली थी। फिर… फिर वो चूहा आ गया, तो मैं... डर के मारे गिर पड़ी।"
उसने कहा और फिर खड़े होने की कोशिश की, ये देखते हुए कि किसी ने भी उसे खड़ा करने में कोई मदद नहीं कर रहे थे।
कादम्बरी मन ही मन बोली —"वाह भई, क्या जेंटलमेन हैं, एक लड़की गिरी हुई है तो उठाना तो दूर की बात है आँखों में हेल्प वाली फीलिंग भी नजर नहीं आ रही है!"
वो खड़ी हुई, अपनी गंदी ड्रेस को देखा और मुँह बना लिया। वो उसकी सबसे पसंदीदा ड्रेस थी!
तनिष्क बोला —"डॉक्टर, आपको ख्याल रखना चाहिए। हमे ऐसे लोग नहीं पसंद जो कोने में खड़े-खड़े सबको देखते रहे।"
कादम्बरी शर्मिंदा हुए बोली —"कितनी बार कहूँ कि बस हवा खाने निकली थी मैं!"
तनिष्क —"ख़ैर.जो भी हो.. ऑपरेशन पूरा कर लिया?"
कादम्बरी (गुस्से में दाँत पीसते हुए)—"नहीं, और ये आसान भी नहीं है! आपके भाई को इंफेक्शन हो सकता है। उसे अस्पताल ले जाना सबसे सही होगा।"
उसने बोलना शुरू ही किया लेकिन Mr. Arrogant ने फिर से उसकी बात काट दी!
तनिष्क बीच में बोला —"मैंने राय नहीं माँगी किया।तुम बस अपना काम जल्दी करो। तुम्हे मेरे भाई को ठीक करना ही होगा। और ज़्यादा दिमाग मत चलाओ।"
कादम्बरी मन मे बुदबुदाई—"कितना अक्खडु आदमी है!"
फिर उससे बोली—"वैसे, आपके भाई को गोली कैसे लगी?"
जब कादम्बरी ये कहा तो सबका चेहरा अचानक भारी हो गया।और कादम्बरी के आस-पास की हवा अचानक ठंडी हो गई थी।
तनिष्क बोला —"मेरा चचेरा भाई बंदूक साफ़ कर रहा था। गलती से ट्रिगर दबा और मेरे भाई को दो गोली लग गईं।"
इतना कहते हुए उसने अपना हाथ का इशारा रित्विक की तरफ किया जो कि अभी-अभी यहाँ आया था और रित्विक की देखकर हैरान हो गया कि उसे आने के साथ ही उसके भाई ने फंसा दिया..
कादम्बरी ने आँखें सिकोड़कर कर कहा —"बस इतना ही?"
तनिष्क तंज कसते हुए बोला —"हाँ डॉक्टर, और कुछ जानना है या अब अपना काम करेंगी?"
कादम्बरी आँखें मटाकर कर चुपचाप अंदर निकल गई।
पीछे से रित्विक बोला—"ये डॉ है.. बड़ी तुनकमिज़ाज है!"
और तभी एक आदमी हँसते हुए बोला —"और बहुत हॉट भी है।"
सब हँस पड़े, पर तनिष्क बस गहरी नज़र से कादम्बरी को जाता हुआ देखता रहा।
" साहिर के बारे में क्या.. कुछ बोला उसने?" तनिष्क ने गहरी सांस लेते हुए रित्विक से पूछा।
"नहीं, वो तो ऐसे खामोश है जैसे उसके पास बोलने के लिए जुबान ही नहीं है" रित्विक ने उससे कहा
तो फिर ठीक है. उसकी जुबान ना ही रहे तो बेहतर है!" तनिष्क ने अपना अंतिम आदेश दिया और रित्विक ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया।
***
कादम्बरी (खुद से बोली )—"चलो, वक्त आ गया. ऑपरेशन का। भगवान, बस सब अच्छा करना..."
दो घंटे बाद...
कादम्बरी जब ऑपरेशन रूम से बाहर निकली तो रित्विक बाहर ही खड़ा था उसने कादम्बरी को देखा तो उसके चेहरे पर चमक थी.. उसने रित्विक से कहा.. "पेशेंट अब खतरे से बाहर है
रित्विक खुश हो कर बोला —"वाह डॉक्टर, आपने तो कमाल कर दिया। हमें तो लगा था ये बंदा नहीं बचेगा।"
कादम्बरी मुस्कुराते हुए—"भगवान का शुक्र है। वैसे पेसेंट की हटात अभी भी हालत नाज़ुक है, पर उम्मीद है सब ठीक होगा।"
तभी दरवाजा से तनिष्क तीन आदमियों के साथ अंदर आया। उसने सीधे कादम्बरी से सवाल किया- "सर्जरी कैसी रही डॉक्टर?"
कादम्बरी बोली"सक्सेफुल रही, लेकिन मरीज की हालत बहुत कमजोर है—"
एक आदमी बीच में बोला —"उसे होश कब आएगा?"
कादम्बरी (गुस्से से मे बोली)—"क्या आपको उसकी जान की भी फ़िक्र है या बस उसके होश मे आने का इंतज़ार कर रहे है ? वाकई आपका पेसेंट से कोई रिश्ता भी है ?"
वो और बोल पाती, उससे पहले तनिष्क झुककर उसके करीब आ गया। जैसे ही उसका चेहरा उसके पास पहुँचा, वो चौंकी। उसकी भूरी-भूरी आँखें गहरे भूरे रंग से टकरा रही थीं।
तनिष्क (आँखों में आँखें डालकर बोला)—"डॉक्टर! बस उसे होश मे लाओ।ताकि तुम बेफिक्र होकर अपने घर जा सको। समझीं?"
कादम्बरी दाँत भींचकर गुस्से मे बोली —"ठीक है!"
उसकी नज़रें चुनौती भरी थीं और तनिष्क के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी.. उसे कादम्बरी को परेशान कर के मजा आ रहा था
कादम्बरी गुस्से में वहां से चली जाती है.. और तनिष्क बस उसे देखते हुए हंस रहा था..
***
कादम्बरी ने अपनी आँखें बंद कर लीं और धीरे से जम्हाई ली।
उसे नींद आ रही थी और भूख भी लग रही थी। उसे खाना खाए हुए 14 घंटे हो गए थे और यहाँ के मर्दों में इतनी भी शालीनता नहीं थी कि उससे पूछ सकें कि उसे भूख लगी है या नहीं।
कादम्बरी अपने आप से कहाँ —"मुझे भूख लगी है और यहाँ किसी को फ़र्क ही नहीं! लगता है खुद ही रसोई ढूँढनी पड़ेगी।"
जब उसने रसोई देखी तो उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई । ये देखकर कि वहाँ कोई नहीं था, वो रसोई में चली गई और रेफ्रिजरेटर में देखने लगी। इस उम्मीद से कि उसे खाने के लिए वहां कुछ मिल जाएगा
जब उसने देखा कि फ्रिज में सिर्फ़ शराब की बोतलें और बर्फ़ है, तो उसके चेहरे पर निराशा छा गई।
कादम्बरी ने कहाँ —"कमाल है! ये लोग इंसान हैं या शराबी. घर में ही शराब का क्लब खोल रखा है ?"
निराश होकर उसने फ्रिज बंद किया और खाने की तलाश में अलग-अलग अलमारियाँ खोलीं, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला।
अहम अहम! तभी पीछे से खाँसी की आवाज़।
वो पलटी तो देखा की, रित्विक उसे देख कर मुस्कुरा रहा हैं।
कादम्बरी ने घबराते हुए कहा —"मैं बस कुछ खाने की चीज़ ढूँढ रही थी। हर जगह बस शराब ही शराब है.. आप लोग जिंदा रहने के लिए बस शराब पीते हैं क्या..!"
रित्विक हँसकर बोला —" नहीं ऐसा नहीं है हम लोग खाना भी कहते हैं लेकिन फिलहाल हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं.. पर तुम फिकर मत करो हम तुम जैसे खूबसूरत लड़की को भूख नहीं रहने देंगे ., तुम्हारे लिए कुछ खाने का इंतज़ाम करते हैं चलो!"
रित्विक देख सकता था कि कादम्बरी थोड़ी घबराई हुई है उसने मुस्कुराते हुए कहा.. हमसे डरने की जरूरत नहीं है जब तक कि हम खुद सामने से डराए नहीं.. वैसे हमारे इंट्रोडक्शन ठीक से नहीं हुआ था मेरा नाम रित्विक है और मैं तनिष्क का कजिन हूं और उसका बिजनेस पार्टनर ..
ऐसा कहते हुए रित्विक ने अपना हाथ आगे बढ़ाया.. कादम्बरी को उसका व्यवहार तनिष्क से अलग नजर आया वो थोड़ा हंसमुख और मनमौजी किस्म का था और हमेशा मुस्कुराता रहता था इसीलिए उसने मुस्कुराते हुए उसके साथ हाथ मिलाया
रित्विक देख सकता था कि अब वो थोड़ी कंफर्टेबल हो गई इसीलिए वो उसे अपने साथ लेकर किचन से बाहर निकलता है.. कादम्बरी भी उसके साथ चली गई इस उम्मीद से कि उसे कुछ खाने को मिल जाएगा उसे सच में बहुत भूख लगी थी..
रित्विक उसे लेकर हवेली के पीछे वाले हिस्से में आ जाता है कादम्बरी चुपचाप उस ओर चली गई। सब मर्द बैठे थे, कुछ लैपटॉप चला रहे थे और कुछ मोबाइल पर। कादम्बरी ने अपनी घड़ी देखी और फिर सोचा कि ये लोग सोते कब हैं।
रित्विक बोला —"भाई, डॉक्टर को भूख लगी है।" मैं इतनी खूबसूरत लड़की को भूखा नहीं देख सकता हूँ, तो मैं उसे कुछ खिलाने बाहर ले जाऊं ?" रित्विक ने कहा और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया। वो शरमा गई क्योंकि सभी लोग अपना काम छोड़कर उसे घूरने लगे।
तनिष्क लैपटॉप देखते हुए अचानक से रुक गया उसने एक नजर रित्विक को देखा और फिर उसने कादम्बरी को देखा वो उठ कर खड़ा होता है और कहता है.. तुम्हें तकलीफ उठाने की कोई जरूरत नहीं है तुम अभी-अभी बाहर से आए हो यहां कि सिक्योरिटी पर ध्यान दो डॉक्टर को क्या खिलाना है ये मैं देख लूंगा.. चलो, डॉक्टर।"
कादम्बरी (मन में बोली अरे मुझे खाने के लिए सिर्फ खाना चाहिए साथ में कोई इंसान नहीं कोई भी ले जाओ लेकिन लेकर चलो यार मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है )— जब तनिष्क उसे अपने साथ चलने के लिए कहता है तो वो बिना किसी सवाल जवाब के चुपचाप उसके पीछे-पीछे चल देती है
तनिष्क अपनी गाड़ी के पास पहुंचता है और कादम्बरी थोड़ी ही दूरी पर थी पर उसने देखा कि उसके कपड़े मैले हो गए हैं.. इसीलिए वो वहां पर खड़े होकर अपने कपड़ों से मिट्टी साफ कर रही थी तनिष्क अपनी गाड़ी के पास पहुंचता है पर जब उसने गाड़ी का दरवाजा खोला तो देखा कि कादम्बरी थोड़ी दूरी पर खड़ी है उसने कादम्बरी को देखते हुए गुस्से में कहा.. "मेरे पास पूरी रात नहीं है तुम्हारे साथ बिताने के लिए.. जल्दी आओ
कादम्बरी एकदम से ठीठक जाती है वो तेज कदमों से गाड़ी के पास आती है और दरवाजा खोलकर अंदर बैठ जाती है तनिष्क भी दूसरी तरफ से ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी स्टार्ट कर देता है गाड़ी थोड़ी ही आगे निकली थी कि कादम्बरी आसपास का माहौल देखकर एकदम से डर जाती है.. दूर-दूर तक जंगल का अंधेरा ही अंधेरा और चलती हुई गाड़ी से बस गाड़ी की लाइट सड़क देखने में मदद कर रही थी इतने अंधेरे में अगर कादम्बरी को रहने का मौका मिले तो वो तो कभी ना रहे..
उसे ध्यान आता है कि उसे ये तक नहीं पता कि वो है कहां पर इसीलिए उसने फोन पर इस जगह को चेक करने की कोशिश की पर तभी उसे एहसास होता है कि वो अपना फोन और पर्स तो फार्महाउस पर ही भूल आई है
। कादम्बरी अचानक बोली—"अरे! मेरा फोन और पर्स फार्महाउस पर ही रह गया। वापस चलें?"
तनिष्क उसे अपनी घूरती हुई नजरों से देखते हुए कहता है )—"डॉक्टर, प्रोफ़ेशनल लोग अपना फोन कहीं नहीं छोड़ते। मुझे तो कहा गया था कि आप बहुत अच्छी डॉक्टर हैं... लेकिन मुझे तो बस एक पिंक बार्बी डॉल नज़र आती है। जो पूरी तरह से लापरवाह भी।"
कादम्बरी (आँखें बड़ी कर के उसे देखते हुए गुस्से में रहती )—"क्या? बार्बी डॉल? मैं?! मैं कहां से आपको बार्बी डॉल नज़र आता हूं "
तनिष्क हंसने लगता है और हंसते हुए उसके कपड़ों की तरफ इशारा करते बोला —" ये ड्रेस. पिंक कलर की और तुम पर अच्छी लगती है। यहां तक की तुम्हारा फोन कवर तुम्हारा बैग और तुम्हारी उंगली में लगा हुआ नेल पोलिश तक पिंक कलर का ... इतने सबके बाद मैं तुम्हें बार्बी डॉल नहीं कहूं तो क्या कहूं "
कादम्बरी गुस्से से बोली —" पिंक कलर मेरा फेवरेट है और मेरी छोड़ो मैं मे तो फिर भी कोई कलर पहना हुआ है आपने कभी खुद को देखा है हमेशा काले कपड़ों में ही नजर आते हैं.. अगर मैं पिक में बार्बी डॉल नजर आता हूं तो आप ब्लैक कपड़ों में चमगादड़ नजर आते हैं
तनिष्क हँसकर बोला —"कम से कम मैं बैटमैन जैसा तो हूँ।"
कादम्बरी (बाँहें क्रॉस करके गुस्से में बोली )—" आप सीधी तरह से ड्राइव कीजिए मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी है
तनिष्क उसके और मज़े लेते हुए बोला —" तुम्हारी हरकतें छोटे बच्चों जैसी है "
कादम्बरी झट से बोली —"चुप! एकदम चुप । मैंने कहा ना, मुझसे आपसे बात मत करो!"
(तनिष्क हँसता है और सोचता है: "इसे जब मेरी असली पहचान पता चलेगी, तब इसका क्या हाल होग!")
10 मिनट बाद वे दोनों शहर के सबसे शानदार रेस्टोरेंट पहुँच गए।
कार से उतरते ही कादम्बरी ने रेस्टोरेंट देखा, फिर अपनी ड्रेस पर पड़े कीचड़ के दाग़ों पर नज़र डाली।
"मिस्टर तनिष्क मैं इन कपड़ों में अंदर नहीं जा सकती," उसने धीरे से कहा।
तनिष्क ने उसकी ड्रेस पर मुश्किल से दिख रहे दाग़ देखे और आँखें घुमाईं।
"डॉक्टर, कोई नोटिस भी नहीं करेगा। अब चलो," उसने अपनी गहरी आवाज़ में कहा और एंट्रेंस की तरफ़ बढ़ गया।
कादम्बरी ने भौंहें चढ़ाईं लेकिन फिर तेज़ी से उसके पीछे भागी। जब वे उसके बराबर पहुँची तो तनिष्क मुस्कुराया, मगर उसकी तरफ़ देखा नहीं।
वेटर उन्हें अंदर ले गया। घबराहट में कादम्बरी ने तनिष्क का हाथ पकड़ लिया। रेस्टोरेंट खाली था।
"डॉक्टर, मैंने कहा था न, किसी आदमी को ऐसे मत छुआ करो।"
"यहाँ कोई नहीं है। क्या तुम्हें यक़ीन है कि यहाँ खाना सुरक्षित है?" कादम्बरी ने डरते हुए धीमी रोशनी वाले हॉल की तरफ़ देखा।
तनिष्क मुस्कुरा दिया।
युवा डॉक्टर सबसे खतरनाक आदमी से पूछ रही थी कि यहाँ रहना सुरक्षित है या नहीं...
"डॉक्टर, ये मेरा रेस्टोरेंट है। यहाँ कोई खतरा नहीं है," तनिष्क ने कहा और देखा कि ये सुनकर कादम्बरी कितनी निश्चिंत हो गई।
"ओह! वाह... मतलब ये रेस्टोरेंट भी तुम्हारा है, और वो फार्महाउस भी। तुम कितने अमीर हो! ये सब विरासत में मिला है?"
वो उसका हाथ छोड़कर टेबल की ओर बढ़ गई। "मिस्टर तनिष्क हम यहीं बैठेंगे!"
कादम्बरी की उत्सुकता पर तनिष्क मुस्कुराया और सिर हिलाया।
कादम्बरी बैठ गई और तनिष्क को देखा जो बीच की टेबल पर बैठ रहा था। वेट्रेस आई, मेन्यू रखा।
कादम्बरी ने मेन्यू देखा तो मुँह में पानी आ गया, लेकिन दाम देखकर आँखें फैल गईं।
"हे भगवान! सच बताओ, ये रेस्टोरेंट तुम्हारा ही है न? तुम झूठ नहीं बोल रहे थे?"
तनिष्क ने भौंहें चढ़ाईं, "मैं झूठ क्यों बोलूँगा?"
"तो फिर हमें पैसे देने की ज़रूरत नहीं है, है न? मतलब कुछ भी ऑर्डर कर सकते हैं?" कादम्बरी ने मासूमियत से पूछा।
तनिष्क ने हल्की मुस्कान दी।
"तुम्हें तो नहीं देना, पर मुझे देना पड़ता है।"
कादम्बरी हँस दी। तभी वेट्रेस ने पूछा, "आप क्या ऑर्डर करेंगी?"
"मुझे कोक के साथ व्हाइट सॉस पास्ता चाहिए और डेज़र्ट में सिज़लिंग ब्राउनी विद डबल स्कूप आइसक्रीम।"
"और सर?"
"बस रेड वाइन," तनिष्क ने कहा।
"तुम कुछ खाओगे नहीं?" कादम्बरी ने पूछा।
"नहीं।"
"ठीक है, लेकिन जब मैं खा रही हूँ तो मुझसे मत माँगना," कादम्बरी ने भौंहें उठाईं।
तनिष्क अचानक हँस पड़ा। वेटर-वेट्रेस तक हैरान हो गए।
"तुम वाकई मज़ेदार हो," तनिष्क ने कहा।
"जो भी हो! लेकिन एक बात बताओ, ये सब विरासत में मिला है या तुमने खुद बनाया है? मुझे लगता है विरासत में ही मिला होगा," कादम्बरी ने कहा और खुद ही जवाब भी जोड़ दिया।
तनिष्क को उसकी बातें सुनकर और मज़ा आने लगा।
"जवाब नहीं दोगे?" कादम्बरी ने आँखें चौड़ी कीं।
तनिष्क उसकी मासूम हेज़ल जैसी आँखों को देखता रहा।
"जवाब तो तुमने खुद ही दे दिया।"
"नहीं, मैं बस अंदाज़ा लगा रही थी... तो तुम्हारी कहानी क्या है?"
"इतनी दिलचस्पी क्यों? कहीं तुम मुझ पर फ़िदा तो नहीं हो, डॉक्टर?" तनिष्क ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ओह प्लीज़! मेरा बॉयफ्रेंड है," कादम्बरी ने झूठ कहा। (असल में वो सिर्फ़ जिज्ञासु थी।)
तनिष्क की आँखें सख़्त हो गईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
इतने में खाना आ गया।
कादम्बरी ने फ़ौरन खाना शुरू कर दिया। तनिष्क ने कभी किसी लड़की को इतनी बेपरवाही से खाते नहीं देखा था। उसके साथ रहने वाली लड़कियाँ तो बस सलाद पर जीती थीं।
"आख़िरी बार कब खाया था?" तनिष्क ने पूछा।
"सुबह नाश्ता किया था। शाम को कॉफ़ी पी। ड्यूटी बहुत टाइट थी, लंच मिस हो गया। मतलब करीब 18 घंटे पहले," कादम्बरी ने कहा।
तनिष्क ने सिर हिलाया, "सोचा था डॉक्टर अपनी सेहत का ख़्याल रखते हैं।"
"रखती हूँ, पर ड्यूटी के आगे खाना मायने नहीं रखता," कादम्बरी ने चिकन का टुकड़ा खाते हुए कहा।
"काबिल-ए-तारीफ़ है," तनिष्क ने उसे गौर से देखते हुए कहा।
वो अब भी नहीं जानती थी कि तनिष्क असल में कौन है।
"वैसे, मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती। तुम्हारे नाम के अलावा। बताओ न, तुम क्या करते हो?"
तनिष्क ने मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ बातें न जानना ही बेहतर है। फिर भी बता दूँ—मैं विलियम्स स्टील मिल्स, होटल्स, पब्स और शुगर फ़ैक्ट्रीज़ का सीईओ हूँ। और हाँ, कई रेस्टोरेंट्स और प्रॉपर्टीज़ भी मेरी हैं।"
"हे भगवान! तुम तो बहुत अमीर हो! लड़कियाँ तुम्हारे पीछे पागल होती होंगी!" कादम्बरी ने अनजाने में कह दिया। फिर सँभलते हुए बोली, "तो ये सब विरासत में मिला है या खुद बनाया है?"
तनिष्क मुस्कुराया, "कुछ मेरा है, कुछ विरासत का। अब तुम बताओ।"
"मैं तो नॉर्मल इंसान हूँ। डॉक्टर हूँ और मीठा बहुत पसंद है," कादम्बरी ने कहा।
"ये तो दिलचस्प नहीं है," तनिष्क ने चिढ़ाते हुए कहा।
"मुझे कुकिंग और बेकिंग भी आती है। बहुत अच्छे केक और ब्राउनी बनाती हूँ।"
"ये भी दिलचस्प नहीं है।"
"अब आप बदतमीज़ी कर रहे हैं! मैं अमीर नहीं सही, लेकिन लोगों को खुश तो करती हूँ," कादम्बरी ने माथे पर बल डालकर कहा।
तनिष्क को हैरानी थी। उसके सामने कोई इतनी बेबाकी से बोल रहा था।
"डॉक्टर, आपको मरीज़ को देखना है। जल्दी खाओ ताकि लौट सकें," तनिष्क ने फिर गंभीर लहजा अपनाया।
"लेकिन मेरी ब्राउनी बाकी है। पैक करवा लें?"
तनिष्क उठ खड़ा हुआ, "ड्रेक, ब्राउनी पैक करवा दो।"
"और वैनिला आइसक्रीम भी," कादम्बरी ने बीच में कहा।
तनिष्क हँसा, "हाँ, और आइसक्रीम भी।"
वेटर पैक्ड बॉक्स ले आया। कादम्बरी ने लिया और मुस्कुराई।
"चलें?"
तनिष्क बाहर चला गया। कादम्बरी भी पीछे-पीछे कार तक पहुँची।
कार में सफ़र शांत रहा।
"मुझे नींद आ रही है। आप लोग इतनी देर तक जागते कैसे हो?" कादम्बरी ने पूछा।
तनिष्क को उसके सवाल पसंद नहीं थे, फिर भी बोला, "तुम्हें मुझसे या मेरे लोगों से परेशानी है?"
"नहीं... बस वो सब लंबे-चौड़े और खतरनाक लगते हैं।"
"डर गई हो?" तनिष्क ने हल्की मुस्कान दी।
"नहीं... पर इतने अजनबी पुरुषों के बीच रहना असुरक्षित लगता है," कादम्बरी ने कहा।
तनिष्क ने गंभीरता से कहा, "मेरी इजाज़त के बिना कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता। वे जानते हैं कि न मानने पर क्या होता है।"
कादम्बरी खिलखिला दी, "वाह! आप तो फ़िल्मों के हीरो जैसे लगते हो, जो नायिका को सुपरमैन बनने का वादा करते हैं।"
तनिष्क ने सिर हिलाया। सफ़र चुपचाप बीत गया और वे फार्महाउस पहुँच गए।
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