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जिन्नजादे की आशिकी

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खूबसूरत दिखना हर एक लड़की का ख्वाब होता है लेकिन आयशा के लिए खूबसूरती बहुत ही बड़ा श्राप बनकर रह गई थी,उसकी खूबसूरती को लेकर पहले तो उसकी सौतेली मां और भाई बहनों ने उस पर जी भर कर अत्याचार किया ,लेकिन फिर उसके खूबसूरत बालों खूबसूरत और आंखों में उलझ क...

Total Chapters (79)

Page 1 of 4

  • 1. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 1

    Words: 2848

    Estimated Reading Time: 18 min

    शहर के बीचोबीच बनी एक बहुत ही खूबसूरत हवेली के अंदर से किसी लड़की के सिसकने की आवाज़ें आ रही थीं। उस महल के एक नौकर वाले कमरे में, एक मामूली सी चटाई पर, एक लड़की ओंधे मुँह लेटी हुई थी। उसकी कमर पर, उसकी गर्दन पर, उसके हाथों पर बेल्ट से मारे जाने के निशान मौजूद थे। साथ ही साथ, कहीं-कहीं से उसके हाथों पर जले हुए के निशान भी थे। कुछ निशान ताज़ा थे, तो कुछ निशान पुराने। आज फिर वह लड़की कितनी देर तक इस तरह से रोती रही। तभी एक 75 साल की बूढ़ी अम्मा उस लड़की के पास आई और उसका सर सहलाने लगी।

    जैसे ही उस लड़की ने अपने सर पर किसी का शफ़कत भरा हाथ पाया, उसने अपनी आँखें उठाईं। उसने अपने सामने अपनी दादी माँ को देखा। अपनी दादी को देखकर वह खुद को रोक नहीं पाई और उनके गले से लगकर फूटकर रो पड़ी। रोते-रोते कहने लगी, "आखिर कब तक, कब तक दादी माँ? कब तक मुझे यह सब कुछ सहना पड़ेगा? और कब मेरी ज़िन्दगी थोड़ी बहुत आसान होगी? कब जाएँगे मेरी ज़िन्दगी से ये सारे दुःख-ग़म?" वह लड़की बहुत ही बुरी तरह से रो रही थी।

    उस लड़की के रोने की आवाज़ सुनकर उसकी दादी माँ भी रोने लगीं। ऐसा लग रहा था कमरे की एक-एक दीवार भी उस लड़की का रोना सुनकर रो रही हो। उसकी दादी माँ भी रोते-रोते बोलीं, "मेरे बच्चे, बस परेशान मत हो। मुझे पूरी उम्मीद है कि बहुत जल्द तेरी सारी परेशानियाँ दूर होंगी। कहने को तो तुम इस हवेली की मालकिन हो, लेकिन तुम्हारी हालत तो किसी नौकर से भी ज़्यादा बदतर है।"

    "मेरी बच्ची, सब्र कर। ऊपर वाले के घर में देर है, अँधेरा नहीं। मुझे पूरी उम्मीद है, एक न एक दिन मेरी बच्ची के लिए भी रोशनी ज़रूर होगी।" हमेशा की तरह, आयशा की दादी माँ ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाना शुरू कर दिया। जब से आयशा की अम्मा, मुमताज़ बेगम का इंतकाल हुआ था, तब उसके पिता, अमजद अली ने दूसरी शादी कर ली थी। आयशा उस वक़्त केवल 4 साल की थी। सौतेली माँ ने आते ही, पहले तो शुरू-शुरू में आयशा को खूब लाड-प्यार जताया।

    लेकिन जैसे ही उसके यहाँ पहले बेटे और फिर एक बेटी ने जन्म लिया, उसके बाद से तो आयशा की ज़िन्दगी उसके घर में नर्क से भी ज़्यादा बदतर हो गई। उसकी सौतेली माँ ने उसके पिता के सामने तो खूब लाड-प्यार जताया, लेकिन अकेले में वह उसे बहुत ही ज़्यादा टॉर्चर करने लगी। उन्होंने आयशा की ज़िन्दगी पूरी तरह से बर्बाद कर दी थी। उसके पिता, अमजद अली तो अपनी दूसरी बीवी के हुस्न में ऐसे गिरफ्तार हुए थे कि उसके अलावा उन्हें कोई और दिखाई ही नहीं देता था।

    दूसरी बीवी से जो औलादें हुईं, पहले बेटा हुआ और बेटी हुई, उसके बाद से वह आयशा से ज़्यादा उन दोनों की ओर तवज्जो देने लगे। आयशा के दादाजी यह सारी चीज़ अपनी आँखों से देखा करते थे, लेकिन अपने बेटे के सामने खामोश रहा करते थे। लेकिन जब एक दिन आयशा के दादा ने उसके सौतेली माँ को आयशा पर हाथ उठाते हुए देख लिया, तो उनके सब्र का बाँध टूट गया। और उन्होंने उस वक़्त एक कड़ा फैसला ले लिया। पूरी हवेली की सारी जायदाद उन्होंने आयशा के नाम कर दी।

    जैसे ही आयशा 21 साल की हो जाएगी, तब उसकी शादी होते ही सारी की सारी जायदाद आयशा और उसके पति की हो जाएगी। यह उन्होंने अपनी वसीयत में साफ़-साफ़ मेंशन कर दिया था। जिस दिन आयशा के पिता और उसकी सौतेली माँ को इस वसीयत के बारे में पता चला, उन दोनों का गुस्सा सीधा उस मासूम सी बच्ची आयशा पर फूटा। इसीलिए उस दिन उसकी सौतेली माँ ने मन ही मन में कसम खा ली थी कि वह आयशा की शादी कभी भी नहीं होने देगी और हमेशा उसे घर की नौकरानी बनाकर रखेगी। अपनी खूबसूरत बीवी के आगे उसके पिता को कुछ भी दिखाई नहीं देता था। उनका तो यह मानना था कि जो उनकी बीवी जो भी कर रही है, बिल्कुल ठीक कर रही है।

    फिर एक दिन आयशा की सौतेली माँ ने आयशा के दादा जी के खाने में ज़हर मिलाकर उनकी भी हत्या कर दी। क्योंकि उन्हें इस बात का बहुत ज़्यादा दुःख था कि उन्होंने अपनी सारी जायदाद आयशा और उसके पति के नाम कर दी थी। आयशा के दादा उसका एक बहुत बड़ा सहारा थे। उसके दादा के जाने के बाद आयशा पूरी तरह से टूट गई। अब सहारे के नाम पर उसके पास कुछ था, तो वो थी सिर्फ़ उसकी बूढ़ी दादी माँ। उसकी बूढ़ी दादी ही उसका सहारा थी, लेकिन उसकी बूढ़ी दादी उसकी सौतेली माँ के ज़ुल्मों से उसे बचा नहीं पाती थी, क्योंकि कितनी ही बार आयशा की सौतेली माँ उनके ऊपर भी हाथ उठा चुकी थी।

    दोनों दादी-पोती एकदम नर्क की ज़िन्दगी वहाँ गुज़ार रही थीं। फिर भी, आयशा की दादी का आयशा को बहुत ही ज़्यादा सहारा था। वह कम से कम उनके गले लगकर रो तो लिया करती थी। अभी दादी-पोती एक-दूसरे के गले लगकर रो ही रही थीं कि तभी उसकी सौतेली माँ एक बार फिर वहाँ आकर खड़ी हो गई। और उन दोनों को इस तरह से रोता हुआ देख, वह तालियाँ बजाती हुई उनके पास जाकर खड़ी हो गई और बोलने लगी, "शुरू हो गया तुम लोगों का यह ड्रामा, न जाने तुम मनहूसों से कब जान छूटेगी हमारी?"

    ऐसा कहकर उसने एक बार फिर से गंदी सी गाली देना शुरू कर दिया। आयशा और उसकी दादी खामोशी से सर झुकाकर उसकी एक-एक बात को सुन रहे थे। तभी आयशा की सौतेली माँ आगे बढ़ी और आयशा के बालों को कसकर पकड़कर बोली, "अब यहाँ बैठे-बैठे टिश्यू बहाती रहोगी क्या? जाकर शाम का खाना नहीं पकाना है क्या? चल, खड़ी हो और शाम का खाना पका। चल, जल्दी कर। और हाँ, मेरे बेटे के लिए आज सलाण में फ़िश फ़्राई बनाना, मेरे बेटे का मन है खाने का। समझी? और मेरी बेटी के लिए खाना उसकी पसंद का, उससे पूछकर ही बनाना, ठीक है? और हाँ, खबरदार जो मुझे बिना पूछे तुमने कुछ भी खाया, तो तुम्हारे लिए ऑलरेडी दोपहर का बासी खाना पड़ा हुआ है। तुम और तुम्हारी यह बूढ़ी दादी चुपचाप कोने में बैठकर उसे खा लेना, समझी? तुम दोनों। अगर तुम लोगों ने ताज़ा खाना खाने की कोशिश की, तो मैं तुम लोगों का वह हाल करूँगी कि तुम लोग याद रखोगे।" ऐसा कहकर एक बार फिर गंदी सी गाली देकर वह आयशा और उसकी दादी को वहाँ छोड़कर चली गई।

    और जाते हुए यह कहना नहीं भूली कि उसे दोबारा से वहाँ न आना पड़े। अपनी सौतेली माँ की बात सुनकर आयशा एक बार फिर रोने लगी और अपनी दादी से कहने लगी, "दादी, मुझे माफ़ कर दो। मैं आपके लिए कुछ भी नहीं कर पा रही हूँ। काश मैं भी आपको अच्छा-अच्छा खाना पकाकर खिला पाती।"

    "लेकिन हम लोगों के नसीब में तो बस बचा-कुचा बासी खाना ही रहता है हमेशा।" आयशा की बातों में उदासी साफ़ नज़र आ रही थी। तभी आयशा की दादी ने उससे कहा, "मेरी बच्ची, तू परेशान बिल्कुल मत हो। एक बार तेरी शादी हो जाए, फिर यह सब कुछ, माल-दौलत, सब कुछ तेरा हो जाएगा। क्योंकि तेरे दादा ने सारी ज़मीन और जायदाद तेरे नाम कर रखी है। यह बात तेरी सौतेली माँ अच्छी तरह से जानती है। इसीलिए तेरी यह सौतेली माँ तुझ पर इतनी ज़्यादा कहर नाजिल करती है, क्योंकि यह जलती है तुझसे।"

    आयशा अपनी दादी की बात सुनकर तड़पकर रह गई और बोली, "मुझे कोई माल-दौलत नहीं चाहिए दादी। मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ सुकून के दो पल चाहिए। ताकि मैं आपके साथ सुकून की थोड़ी सी ज़िन्दगी गुज़ार सकूँ।"

    आयशा की इतनी दर्द भरी बात सुनकर उसकी दादी तड़पकर रह गई और आयशा को एक बार फिर से उन्होंने सीने से लगा लिया और उसके सर को सहलाने लगीं। अभी वह कुछ और कहना चाहती थीं कि तभी एक बार फिर से उसकी सौतेली माँ की कड़क आवाज़ वहाँ सुनाई दी, "अरे, कहाँ मर गईं कलमुही? उसी कमरे में घुसी रहोगी? बाहर भी आओगी नहीं? मेरे बेटे को भूख लगी है। जा, जाकर खाना बना, मनहूस कहीं की।"

    अपनी सौतेली माँ की बात सुनकर आयशा जल्दी से अपनी दादी से दूर हटी और बोली, "मुझे जाना होगा दादी। अगर मुझे जाने में देर हो गई, तो वो फिर आ जाएगी और बहुत मारेगी मुझे।"

    तभी आयशा की दादी तड़पकर बोलीं, "लेकिन मेरे बच्चे, तेरे हाथों में तो बहुत ही ज़्यादा दर्द है। क्योंकि इन लोगों ने तुझे जानवरों की तरह मारा था। सुबह जब तू करीम को चाय देने के लिए गई थी, चाय का कप तेरे हाथ से टूट गया था। तभी लोगों ने तुझे बहुत बुरी तरह से मारा था मेरे बच्चे, और अभी ये ज़ख़्म नहीं भरे हैं। फिर तू सारा खाना कैसे बनाएगी? और खाना बनाते हुए नमक-मिर्च-मसाले सब तेरे हाथों में लगेंगे, तो तुझे और तकलीफ़ होगी।"

    अपनी दादी की बात सुनकर आयशा हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली, "रहने दो दादी, आप परेशान ना हों। मुझे कोई दर्द नहीं होता है। बचपन से लेकर आज तक मार खाते-खाते अब मुझे मार खाने की आदत हो गई है। और वैसे भी, अब मैं 19 साल की हो गई हूँ। पिछले 15 सालों से मैं इन लोगों की मार खाते-खाते इतनी तो मज़बूत हो ही गई हूँ कि अब इन ज़ख़्मों से मुझे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता है।"

    ऐसा कहते हुए आयशा किचन में चली गई। इस बड़ी सी हवेली में, उसकी सौतेली माँ ने जहाँ पहले 10 से 12 नौकर काम किया करते थे, उन सभी को काम पर से निकाल दिया था। सारा काम आयशा के जिम्मे कर दिया था। शाम का, सुबह का, दोपहर का खाना बनाने से लेकर पूरे हवेली की साफ़-सफ़ाई और इतना ही नहीं, पूरे बगीचे की देखभाल, सब कुछ आयशा के जिम्मे ही था। अगर आयशा से कोई भी काम करने में देर हो जाती थी, तो उसे जानवरों की तरह मारा जाता था। उसके पिता वहाँ होकर भी नहीं होते थे। उन्हें तो अपनी बेटी की दुःख-तकलीफ़ कभी भी दिखाई ही नहीं देती थी। उनकी बीवी उन्हें जैसा कहा करती थी, वह वैसा ही किया करते थे।

    हमेशा की तरह, आयशा जल्दी ही किचन में चली गई और अपना दुपट्टा अपने सर से बाँधकर जल्दी से फ़िश धोनी शुरू कर दी। और उसके बाद आयशा को याद आया कि उसकी सौतेली बहन ने उससे कॉफ़ी मँगवाई है, तो वह फ़िश धोने के बाद अपनी सौतेली बहन के लिए कॉफ़ी बनाने लगी।

    और आयशा का सौतेला भाई तो उसे कुछ भी नहीं समझता था। उसके नज़रों में तो आयशा उसकी एक पालतू नौकरानी थी, और वह आयशा को जानबूझकर तंग करने के लिए कभी कुछ, कभी कुछ उससे बिना वजह करवाता रहता था। कहने को तो आयशा की सौतेली बहन उससे पूरे 6 साल छोटी थी, लेकिन आयशा की खूबसूरती, उसके खूबसूरत बालों और उसकी खूबसूरत आँखों को देखकर वह उससे बहुत ही ज़्यादा जलती थी और हमेशा अपनी माँ के कान उसके खिलाफ़ भरती रहती थी।

    आयशा ने कॉफ़ी बनाकर तैयार कर दी। और जब वह अपनी सौतेली बहन को कॉफ़ी देने के लिए गई, तभी अचानक उसके कमरे की ओर जाते हुए उसे उसकी दादी के ज़ोर-ज़ोर से खांसने की आवाज़ सुनाई देने लगी। इसीलिए आयशा उस कॉफ़ी को हाल में रखकर ही जल्दी से अपनी दादी के कमरे की ओर भागी। जैसे ही वह अपनी दादी के कमरे में गई, उसने देखा उसकी दादी खांसते-खांसते बेहाल हो गई थीं। तभी आयशा ने अपनी दादी को प्यार से पकड़कर उठाया और उनका कमर रगड़ने लगी और जल्दी से उन्हें पानी पिलाया। पानी पीने के बाद उनकी दादी को थोड़ा सा बेहतर लगने लगा।

    तब आयशा ने अपनी दादी से कहा, "दादी, अगर आप ठीक हैं, तो क्या मैं जाऊँ? वह सकीना को कॉफ़ी देनी है?"

    आयशा की सौतेली बहन का नाम सकीना था। तब उसकी दादी जल्दी से घबराकर बोलीं, "हाँ, मेरी बच्ची, तू जल्दी जा। अगर तूने जाने में देर कर दी, तो कहीं ऐसा ना हो कि वह लोग फिर से जानवर बन जाएँ।"

    ऐसा कहकर उसकी दादी ने उसे भेज दिया। जैसे ही आयशा कॉफ़ी उठाकर सकीना के कमरे की ओर गई, तो उसे अंदर से दोनों माँ-बेटी की आवाज़ें आने लगीं। आयशा की सौतेली माँ अपनी बेटी से कह रही थी, "तुझे मैंने कितनी बार समझाया है, अपने बालों में हमेशा अच्छे से तेल लगवाया कर। तूने बाल देखे हैं अपने? कितने कमज़ोर हो गए हैं। तूने उस कलमुही आयशा के बाल देखे हैं? कितने हसीन हैं? कितनी बार उसके बालों को कटवा चुकी हूँ, लेकिन महीने भर में ही उसके बाल फिर से बढ़ जाते हैं, और पहले से ज़्यादा लम्बे और घने हो जाते हैं।"

    तब सकीना चिढ़कर बोली, "रहने दे ना मॉम, उस नौकरानी को मुझसे कंपेयर मत किया कर। मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है।"

    तभी आयशा, जो बाहर ही खड़ी थी, जब उसे लगा कि अगर उसने अंदर जाने में और देर कर दी, तो ये माँ-बेटी फिर से उसके पीछे पड़ जाएँगी, यह सोचकर उसने सकीना का दरवाज़ा बाहर से खटखटा दिया। दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनकर सकीना ने गुस्से से कहा, "आजा, अंदर आजा।"

    उसने बड़ी बदतमीज़ी से कहा, क्योंकि वह समझ चुकी थी कि ज़रूर आयशा उसके लिए कॉफ़ी लेकर आई होगी। जैसे ही आयशा उसके कमरे में गई, तो सकीना ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। मिले-जुले कपड़ों में भले ही आयशा खड़ी हुई थी, लेकिन वह बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। आयशा को देखकर सकीना जल भुन उठी और उसने उसके हाथ से कॉफ़ी ली। और जैसे ही कॉफ़ी का उसने पहला घूँट लिया, तो उसे कॉफ़ी ठंडी लगी। जबकि कॉफ़ी इतनी ज़्यादा ठंडी नहीं थी, लेकिन उसे तो आयशा को देखते ही गुस्सा आ गया था, क्योंकि उसकी माँ ने अभी थोड़ी देर पहले उसके खूबसूरत बालों की तारीफ़ की थी। और अपना गुस्सा उतारने के लिए उसने वह कॉफ़ी का मग उठाकर आयशा के मुँह पर फेंक दिया। जैसे ही आयशा के ऊपर गरम-गरम कॉफ़ी गिरी, आयशा एकदम से चीख उठी। आयशा की चीख काफी ज़्यादा भयानक थी।

    आयशा की चीख सुनकर उसकी दादी के साथ-साथ उसके बाबा, उसका सौतेला भाई भी वहाँ आ गए। इस तरह से सबको वहाँ आया देखकर उसकी सौतेली माँ थोड़ा सा डर गई, क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि अगर उसके बाबा के मन में आयशा के लिए मोहब्बत जाग गई, तो वह उसके और उसके बच्चों के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा। यह सोचकर उसने जल्दी से अपना दुपट्टा लिया और आयशा का चेहरा साफ़ करने लगी। तभी उसके बाबा आयशा को चिल्लाते हुए देखकर जोर से बोले, "क्या हो रहा है यहाँ पर? क्यों चीखना-चिल्लाना लगा रखा है?"

    लेकिन इससे पहले कि आयशा कुछ बोल पाती, तभी उसकी दादी रोती-पिटती आयशा को देखने लगी और बोलीं, "हाय-हाय! मेरी बच्ची की क्या हालत कर दी इन दरिंदों ने!"

    जैसे ही आयशा की दादी ने यह सब कहा, उसकी सौतेली माँ जल गई और तपकर रह गई। और फिर वह आयशा की दादी और आयशा पर गुस्सा करते हुए बोली, "एक तो ठंडी कॉफ़ी ले आई हो, और ऊपर से मेरी बेटी को ही उल्टी-सीधी बातें सुनवा रही हो।"

    और उसके बाद आँखों में मगरमच्छ के आँसू लाते हुए उसके पिता की ओर देखते हुए बोली, "देखिए जी, इसमें सकीना की कोई गलती नहीं है। आयशा ने ही बदतमीज़ी की थी।"

    हमेशा की तरह, उसके पिता ने उसकी सौतेली माँ की बात सुनकर सच मान ली और आयशा को डाँटते हुए कहने लगे, "क्या तुम एक भी काम ढंग से नहीं कर सकती हो?"

    जैसे ही आयशा के पिता ने आयशा को डाँटा, आयशा के सब्र का बाँध टूट गया। और वह बिना किसी की परवाह किए वहाँ से दौड़ती हुई सीधा गार्डन में चली गई। क्योंकि एक गार्डन ही एक ऐसी जगह थी जहाँ पर वह सुकून के कुछ पल बिताया करती थी। जल्दी से आयशा गार्डन में चली गई, लेकिन उसका चेहरा और गर्दन काफी ज़्यादा जल गए थे और उसके गर्दन और चेहरा एकदम से लाल पड़ गए थे। आयशा को काफी ज़्यादा जलन हो रही थी, तो इसीलिए वह गार्डन में जो हैंडपंप लगा हुआ था, उसे खोलकर उसके ठंडे-ठंडे पानी में नीचे बैठ गई।

  • 2. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 2

    Words: 1740

    Estimated Reading Time: 11 min

    आयशा पर उसकी सौतेली बहन ने गरमागरम कॉफी उड़ेल दी थी। उसकी गर्दन और चेहरे पर गहरे लाल निशान पड़ गए थे।

    आयशा को जलन बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वह सबकी परवाह किए बिना बाग़ में हेड पंप के नीचे बैठ गई।

    हैंड पंप के नीचे बैठकर आयशा जोरों से रोने लगी। वह जानती थी उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है।

    वह रोते हुए अपने चेहरे, गर्दन और बाल धो रही थी। लेकिन जलन कम नहीं हो रही थी, क्योंकि कॉफी पूरी गरमागरम थी।

    आयशा का दर्द से बुरा हाल था। उसे बहुत जलन हो रही थी। ठंडा पानी पड़ने पर उसे थोड़ा आराम मिला। वह घंटों वहीं बैठी रोती रही। अपनी बुरी किस्मत पर उसे बहुत गुस्सा आता था। कितनी बार उसने मरने के बारे में सोचा, लेकिन फिर अपने बूढ़ी दादी का ख्याल कर मरने का विचार छोड़ देती थी।

    आयशा जिस हेड पंप के नीचे बैठी थी, उसके बराबर में एक ऊँचा, लंबा, घना पेड़ था। उस पेड़ पर जिन्न का बसेरा था।

    आयशा को पता नहीं था कि कोई उसे देख रहा है। एक गहरी नीली आँखों वाला जिन्न-ज़ादा पेड़ पर सोया हुआ था। किसी के रोने की आवाज़ सुनकर वह जाग उठा।

    वह गुस्से से लाल-पीला हो गया था। उसका इरादा चीखने वाले को सबक सिखाना था, लेकिन खूबसूरत लड़की को देखकर वह अपनी पलकें झपकना भूल गया।

    एक जिन्न-ज़ादे को एक इंसान से मोहब्बत हो गई थी! पहली नज़र में ही उसे आयशा से मोहब्बत हो गई थी।

    वह देर तक पेड़ पर बैठा उसे देखता रहा। आयशा के बाल झटकते हुए कुछ छींटें जिन्न-ज़ादे पर भी पड़ रही थीं।

    लेकिन आयशा को कोई दिखाई नहीं दे रहा था। वह समझ रही थी कि वह अकेली है।

    लेकिन आयशा की ज़िंदगी में खेलना-हँसना नहीं था। उसकी ज़िंदगी में सिर्फ़ रोना था। वह जी भरकर रो रही थी। जिन्न-ज़ादा देर तक उसे रोते हुए देखता रहा।

    आयशा ने रोना बंद किया और हैंड पंप बंद करके जाने लगी, तभी जिन्न-ज़ादे ने एक सफ़ेद मोतियों की अंगूठी उसके पास फेंक दी।

    आयशा का ध्यान अपनी जलन पर था। उसका गला और चेहरा बुरी तरह जल रहा था।

    रोती हुई आगे बढ़ी तो उसके पैरों में कुछ चुभा। एक खूबसूरत अंगूठी देखकर वह हैरान हो गई और आस-पास देखने लगी।

    वह सोचने लगी कि अंगूठी कहाँ से आई, क्योंकि उस बाग़ में उसके अलावा कोई नहीं आता था। कभी-कभी उसकी सौतेली माँ बाग़ की सैर करने आती थी, और आयशा की सफ़ाई चेक करती थी। लेकिन वह इस तरफ़ कभी नहीं आती थी। आयशा हेड पंप के पास थी, जो बाग़ के आखिरी छोर पर था।

    अंगूठी हाथ में लेने के बाद आयशा इधर-उधर देखने लगी। वह सोच रही थी कि अंगूठी का मालिक आस-पास ही होगा।

    क्योंकि किसी की चीज़ लेना उसके ख़िलाफ़ था।

    इसलिए उसने अंगूठी अपने पास रख ली, यह सोचकर कि जब मालिक मिलेगा, वह उसे लौटा देगी।

    यह सोचकर अंगूठी हाथ में लेकर आयशा अपने कमरे की ओर जाने लगी।

    कमरे में जाते ही उसे एहसास हुआ कि चेहरे और गर्दन की जलन धीरे-धीरे ठीक हो रही थी।

    आयशा को यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी जल्दी जलन कैसे जा सकती थी।

    रात हो चुकी थी, आयशा अपने कमरे में लेट गई। कुछ देर बाद उसकी दादी आई।

    "मेरे बच्चे, तू ठीक तो है ना?" दादी ने पूछा।

    आयशा की आवाज़ सुनकर, आयशा रोते हुए उनके गले लग गई।
    "दादी, आज उन्होंने गरमागरम कॉफी मेरे ऊपर उड़ेल दी! और कितना अत्याचार करेंगे ये लोग मुझ पर!"

    आयशा की बात सुनकर, उसकी दादी तड़प गई।
    "मेरा बच्चा! मुझे दिखा, कहाँ से जलाया है उन मक्कारों ने! मेरे पास तेरे लिए मरहम है, मैं अभी मरहम लगा देती हूँ।"

    आयशा ने अपनी गर्दन और मुँह दादी को दिखाया।

    "दादी, यहाँ जल रहा था, लेकिन अब जलन का एहसास नहीं हो रहा है। क्योंकि मैं गार्डन में हेड पंप के नीचे बैठ गई थी, उसके ठंडे पानी से मुझे काफ़ी राहत मिली है।"

    आयशा की बात सुनकर, उसकी दादी उसे हैरानी से देखने लगी। आयशा के जिस्म पर कहीं भी जलने का निशान नहीं था। आयशा की रंगत और भी खूबसूरत और उजली हुई सी दिखाई दे रही थी। उसकी दादी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था।

    लेकिन कुछ ज़्यादा ना सोचते हुए, उसकी दादी ने उसके सर पर हाथ रखा।
    "मेरी बच्ची, तू फ़िक्र मत कर, ऊपर वाला तेरा निगहबान है। वह हमेशा तेरी रक्षा करेगा, वह हमेशा तुझे अपनी हिफ़ाज़त में रखेगा। मुझे पूरा यक़ीन है।"

    अपनी दादी की बात सुनकर, आयशा ने अपनी दादी को गले लगा लिया। उसकी दादी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए, उसके माथे को चूमा।
    "आराम कर, मेरी बच्ची। फिर सुबह पाँच बजे ये लोग तुझे उठा देंगे और तुझे जानवरों की तरह पूरे घर का काम करवाएँगे, और फिर मारेंगे-पीटेंगे। इसीलिए तेरे शरीर को आराम की सख़्त ज़रूरत है।"

    "दादी, फ़िक्र ना करें, अब मुझे आदत हो गई है।" आयशा ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा।

    "ये लोग तेरे साथ मुझे भी सोने नहीं देते हैं। कहीं रात में मैं तुझे कुछ सीखा-बुझा ना दूँ, इसीलिए ये लोग मेरे साथ तुझे अकेला ज़्यादा देर नहीं छोड़ते हैं। देखती है ना तू सब अपनी आँखों से।" दादी ने कहा।

    "फ़िक्र मत कीजिए, दादी। मैं अपना ख़्याल रख लूँगी। आप जाइए और आराम कीजिए। और अगर आपको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो, तो आप मुझे बताइएगा।" आयशा ने कहा।

    उसकी दादी उसके गाल को प्यार से चूमती हुई चली गई।

    दूसरी ओर, सकीना और उसकी माँ हँस रही थीं। आयशा की खूबसूरती दोनों की आँखों में चुभा करती थी। सकीना ने आयशा पर गरम कॉफ़ी उड़ेलकर उसकी खूबसूरती को बर्बाद करने का पहला क़दम उठा दिया था।

    "मुझे क्या लगता है, उसकी खूबसूरती बदसूरती में बदल गई होगी ना? अब तो बहुत भयानक दिखाई दे रही होगी ना?" सकीना ने अपनी माँ से कहा।

    "हाँ, मेरी बच्ची, हाँ! बहुत गुमान है ना उस बूढ़िया को अपनी पोती की खूबसूरती पर! अब तू देख, जब सुबह हम उसका चेहरा देखेंगे, तो कितना भयानक और डरावना दिखेगा!" उसकी माँ ने हँसते हुए कहा। वह दोनों माँ-बेटी आयशा का मज़ाक़ उड़ा रही थीं।

    दूसरी ओर, आयशा निढाल सी चटाई पर जा गिरी। उसके कमरे में सोने के लिए सिर्फ़ एक मैली-कुचली चटाई थी, जो नौकरों को दी जाती थी। माँ के गुज़रने के बाद से आयशा उसी चटाई पर सोती थी।

    आयशा के पिताजी ने कभी भी आयशा की ज़रूरत का ख़्याल नहीं रखा था।

    आयशा ने अंगूठी एक छोटे से संदूक में रख दिया।

    आयशा के पास अलमारी के नाम पर सिर्फ़ एक छोटा सा संदूक था, जो उसकी अम्मी, मुमताज़ बेगम इस्तेमाल करती थीं।

    अंगूठी संदूक में रखने के बाद आयशा लेट गई।

    हल्की नींद में उसे एहसास हुआ कि कोई उसके आस-पास है और उसे कहीं ले जा रहा है।

    यह एहसास होते ही, उसने डर के मारे आँखें खोल लीं। उसने अपने आप को अपने कमरे में पाया। लेकिन यह अजीब सा एहसास उसे परेशान कर गया।

  • 3. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 3

    Words: 1962

    Estimated Reading Time: 12 min

    आयशा आधी रात के बाद उठ बैठी थी क्योंकि उसे एक अजीब सा सपना आया था। वह फिर सो नहीं पाई। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे कहीं ले जा रहा हो।

    उठने के बाद, आयशा अपनी कमरे की छोटी सी खिड़की के पास खड़ी हो गई। वहाँ से उसका खूबसूरत बाग़ साफ़ दिखाई देता था।

    आयशा हमेशा ऐसा करती थी। जब भी उसे बहुत मारा-पीटा जाता था और रात भर नींद नहीं आती थी, तो वह घंटों खिड़की के पास खड़ी होकर अपने बाग़ को निहारती थी।

    बाग़ देखने से उसे बहुत सुकून मिलता था। आज भी वह बाग़ देख रही थी, लेकिन आज कुछ अलग था। आज बाग़ के पीछे के छोर पर, अजीब तरह की रोशनी जगमगा रही थी; जो बाग़ को और भी खूबसूरत बना रही थी। आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है, क्योंकि वह बचपन से इस बाग़ को देखती आई थी, लेकिन आज तक ऐसी रोशनी, इतनी जगमगाहट, उसने कभी नहीं देखी थी।

    फिर आज अचानक ऐसा क्या हो गया था? आयशा ने सोचा, शायद उसकी सौतेली माँ ने कुछ अलग तरह के बल्ब लगवाए होंगे। क्योंकि उसकी सौतेली माँ को घर में अलग-अलग तरह के प्रयोग करना बहुत पसंद था। वह कोई हिस्सा बनवा देती थी, या कोई कमरा बनवा देती थी। यह काम वह करती रहती थी। यह सब करके, उसकी सौतेली माँ समझती थी कि वह इस घर की मालकिन है और सब कुछ उसके आदेश से होता है।

    यह सोचकर उसने अपना सिर झटक दिया। और कुछ देर बाग़ देखने के बाद, जैसे ही वह अपनी चटाई पर लेटने गई, उसे एक बहुत ही सुन्दर खुशबू महसूस हुई।

    आयशा ने दिल खोलकर उस खुशबू को सूँघना शुरू कर दिया, क्योंकि वह खुशबू उसे एक अलग ही एहसास करवा रही थी।

    आयशा को इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि जब वह खिड़की के पास खड़ी थी, उसी वक्त, अदृश्य होकर कोई उसे बहुत करीब से देख रहा था और अपनी नीली गहरी आँखों में उसका खूबसूरत चेहरा बसा रहा था।

    दूसरी ओर, आयशा की सौतेली माँ और सौतेली बहन, सकीना, सुकून से सो रही थीं। उन दोनों को लग रहा था कि सुबह तक आयशा की खूबसूरती बदसूरती में बदल जाएगी।

    क्योंकि सकीना को हमेशा आयशा की खूबसूरती से जलन होती थी। सकीना का रंग उसकी माँ पर गया था। उसकी माँ भी हल्के साँवले रंग की थी, और सकीना भी। लेकिन आयशा अपनी माँ, मुमताज बेगम, पर गई थी; जो बहुत खूबसूरत औरत थी। आयशा भी रंग-रूप से अपनी माँ पर ही गई थी। इसीलिए, उसकी सौतेली माँ और सौतेली बहन को आयशा से बहुत चिढ़ होती थी।

    लेकिन अब, आयशा पर कॉफ़ी फेंकने के बाद, उन्हें यकीन हो गया था कि आयशा बहुत बदसूरत हो गई होगी; इतनी बदसूरत कि कोई उसकी ओर देखेगा भी नहीं।

    इसी सुकून और चैन के साथ वे दोनों सो गई थीं, ताकि अगली सुबह वे आयशा का बदसूरत चेहरा देख सकें।

    हमेशा की तरह, अगली सुबह ठीक 5:00 बजे आयशा उठ गई। वह जानती थी कि अगर वह 5:00 बजे नहीं उठी, तो उसकी सौतेली माँ या तो उसके ऊपर ठंडा पानी फेंकेगी या फिर कुछ गर्म चीज से उसे जलाने की कोशिश करेगी।

    वह हमेशा ऐसा करती थी। जब आयशा को सोकर उठने में देर हो जाती थी, तो वह या तो उसके ऊपर ठंडा पानी डाल देती थी या फिर किसी गर्म चीज से उसके हाथ-पैर जला देती थी।

    लेकिन आज आयशा 5:00 बजे ही उठ गई। और उठते ही, थोड़ा सा हाथ-मुँह धोने के बाद, वह सीधा किचन में चली गई, क्योंकि उसे 6:00 बजे तक सारा नाश्ता बनाकर तैयार करना होता था।

    क्योंकि उसके अब्बा हर रोज़ सुबह अपने दफ़्तर जाते थे। साथ ही, उसका सौतेला भाई और सौतेली बहन भी अपने कॉलेज जाते थे। तो हर रोज़ सुबह 7:00 बजे तक उसे सारा काम खत्म करना होता था। जब वह 5:00 बजे उठती थी, तो 7:00 बजे तक सारा काम निपटा लेती थी।

    आयशा जैसे ही किचन में गई, उसने देखा कि सारा नाश्ता बना हुआ था। हॉट पॉट में गरमा-गरम पराठे थे। चूल्हे पर गरमा-गरम सब्ज़ी रखी हुई थी। साथ ही, चाय भी कपों में रखी हुई थी।

    यह सब देखकर उसे बहुत हैरानी हुई। एक बार तो उसे लगा कि कहीं उसकी सौतेली माँ ने यह सब बनाया हो, लेकिन तभी उसकी सौतेली माँ की आवाज आई: "अरे, कहाँ मर गई कलमोही? मेरी चाय कहाँ है? कब नाश्ता लगाओगे? तुम्हारे अब्बा को जाने में देर हो रही है! क्या तुम्हें समय दिखाई नहीं देता? क्या हर रोज़ सुबह बताना पड़ेगा?" सुबह-सुबह उन्होंने गालियों से आयशा का स्वागत किया।

    अब आयशा को यकीन हो गया था कि नाश्ता उसकी सौतेली माँ ने नहीं बनाया था। आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि फिर किसने बनाया। लेकिन नाश्ता बना हुआ था, इसलिए जल्दी-जल्दी आयशा ने वह सारा नाश्ता टेबल पर लगा दिया। जैसे ही उसकी सौतेली माँ आई, उसने टेबल पर गरमा-गरम खाना देखकर हैरानी से मुँह खोल दिया।

    उन्होंने सोचा था कि अगर उसने नाश्ता तैयार नहीं किया होगा, तो उसे गाली देगी और मारेगी भी, लेकिन सारा नाश्ता तैयार देखकर वह खामोश हो गई। क्योंकि आयशा नाश्ता लगाकर किचन में चाय लेने गई थी, इसलिए उसकी सौतेली माँ ने अपने बच्चों और अपने पति को नाश्ते के लिए बुला लिया।

    हमेशा की तरह, दादी को नहीं बुलाया गया था। बचा हुआ नाश्ता आयशा और दादी मिलकर खाती थीं। जैसे ही वे सब नाश्ते के लिए टेबल पर आए, उन्होंने गरमा-गरम पराठे, दो तरह की सब्ज़ियाँ, और पराठों की खुशबू देखी। उन्होंने चाव से खाना शुरू कर दिया। आज आयशा के अब्बू उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाए और बोले, "वह बेटा, आज तो क्या नाश्ता बनाया है!"

    जैसे ही आयशा के अब्बू की आवाज़ उसके कानों में पहुँची, उसे ऐसा लगा जैसे उसे कोई बड़ा तोहफा मिल गया हो। आज पहली बार उसके अब्बू ने उसके लिए "बेटा" शब्द का इस्तेमाल किया था, जो उसके लिए बहुत मायने रखता था। लेकिन आयशा की तारीफ सुनकर सकीना और उसकी अम्मी जल-भुन गईं। इसलिए सकीना तेज आवाज़ में बोली, "अरे, लड़की, कहाँ मर गई? क्या हम यह नाश्ता ऐसे ही खाएँगे? तुझे पता है ना मैं पराठे बिना चाय के नहीं खाती, तो चाय कहाँ है? इतना टाइम क्यों लग रहा है?" उसके अब्बू ने उसकी तारीफ की थी, इसलिए जानबूझकर आयशा को नीचा दिखाने के लिए उसने चाय न होने का नाटक शुरू कर दिया था।

    लेकिन जल्दी ही आयशा चाय लेकर उनके सामने खड़ी हो गई। चाय मँगवाने का एक कारण यह भी था कि वे आयशा का चेहरा देखना चाहते थे। क्योंकि उसकी सौतेली बहन ने आयशा पर जो कॉफ़ी डाली थी, उसके बाद उसका चेहरा कितना बदसूरत हो गया है, वे देखना चाहते थे। जैसे ही आयशा चाय की ट्रे लेकर आई और उसकी सौतेली माँ और सकीना की नज़र आयशा के चेहरे पर गई, तो उनके मुँह हैरानी से खुले के खुले रह गए।

    आयशा का चेहरा पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत हो गया था।

    आयशा का खूबसूरत चेहरा देखकर उन दोनों माँ-बेटी का बुरा हाल था। लेकिन जैसे ही उसके पिता की नज़र आयशा के चेहरे पर गई, तो वे उसकी खूबसूरती देखकर बोले, "अरे, वह बेटा, आज तो आप बड़ी खूबसूरत लग रही है!" उनकी तारीफ़ सुनकर उसकी सौतेली माँ और बहन और भी ज़्यादा जल गईं। अब सकीना को मन कर रहा था कि वह गरमा-गरम चाय उठाकर आयशा के मुँह पर दे मारे।

    लेकिन अपने अब्बू के सामने वह ऐसा नहीं कर सकती थी। वह जानती थी कि अगर उसने ऐसा किया, तो उसके अब्बू के सामने उसकी माँ की सच्चाई आ जाएगी। क्योंकि वह उसके अब्बू से छिपकर ही आयशा को सताती थी। यहाँ यह बात और थी कि अगर सामने भी वे लोग आयशा को कुछ कहते, तो उसके अब्बू ज़्यादा ध्यान नहीं देते थे। उन्हें लगता था, सौतेली माँ है, थोड़ा-बहुत तो डांटेगी ही, लेकिन यह थोड़ा-बहुत कितना ज़्यादा हो जाता था, उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था।

    नाश्ता करने के बाद उसके अब्बू दफ़्तर के लिए चले गए। उनके जाने के बाद उसकी सौतेली माँ उठी और अचानक आयशा के बालों को कसकर पकड़ लिया। आयशा के बालों को पकड़ने के बाद उसका इरादा आयशा का सिर गरमा-गरम चाय पर मारने का था।

    लेकिन इससे पहले कि वह ऐसा करती, उसके सौतेले भाई ने अपनी माँ का हाथ पकड़ लिया और बोला, "मॉम, ये आप क्या कर रही हैं? छोड़ दीजिए आयशा को।" और आयशा की ओर देखते हुए बोला, "आयशा, तुम अपने कमरे में जाओ।" उसकी माँ अपने बेटे की हरकत पर हैरान थी, क्योंकि उसके बेटे ने आज तक आयशा को मारने से नहीं रोका था। लेकिन आज अचानक उसे क्या हो गया था? लेकिन कहीं भी उसके सौतेली माँ को अपने बेटे की आँखों में आयशा के लिए कोई बुरा इरादा दिखाई नहीं दिया।

    जैसे ही आयशा के पिता ने आयशा की खूबसूरती की तारीफ़ की थी, उसी वक्त आयशा के सौतेले भाई ने आयशा की ओर देखा था और उसकी खूबसूरती को देखकर वह मन ही मन में एक शैतानी प्लान बनाने लगा था।

  • 4. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 4

    Words: 2112

    Estimated Reading Time: 13 min

    आज आयशा के सौतेले भाई ने अपनी मां को रोक दिया था क्योंकि वह आयशा को मार रही थी न जाने आयशा के सौतेले भाई के दिमाग में क्या चल रहा था लेकिन आयशा का आज खिलता हुआ उजाला हुआ रंग रूप देखने के बाद उसकी नीयत आयशा को लेकर पूरी तरह से बदल चुकी थी अपनी मां के कहने पर वह कमरे में तो चला गया था लेकिन बेचैनी से इधर-उधर टहलने लगा था बार-बार उसके जहन में आयशा का खूबसूरत चेहरा खूबसूरत आंखें लंबे-लंबे घने बाल ही आ रहे थे     आयशा कभी किसी तरह का कोई मेकअप यूज नहीं किया करती थी उसके होंठ कुदरती लाल थे साथ ही साथ उसकी झील से नीली गहरी आंखें थी जिन्हें देखकर कोई भी दीवाना बन सकता था     सब लोगों के नाश्ता करके जाने के बाद आयशा अपनी दादी के लिए नाश्ता लेकर उनके कमरे में चली गई थी उसने देखा उसकी दादी बैठी हुई तस्बीह कर रही थी  तस्बीह पर वह अपने अल्लाह ताला को याद कर रही थी आयशा  को कुछ देर अपनी दादी को इसी तरह से तस्बीह करते हुए देखना अच्छा लगता था वह कुछ देर अपनी दादी के पास ऐसे ही बैठी रही   जैसे ही उसके दादी की नजर आयशा पर पड़ी उसका सर पर हाथ फेरने लगी थी और जो भी वह तस्बीह कर रही थी वह करते-करते अचानक से वह आयशा के चेहरे पर फूंक मारने लगीं   जैसे उन्होंने पहली तस्बीह पढ़ कर आयशा के ऊपर फूंक मारी तब आयशा का चेहरा एकदम से जलने लगा था  आयशा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक से उसके साथ क्या हुआ है कल तो अपने आप ही उसके चेहरे की सारी की सारी जलन दूर हो गई थी   और आज अचानक से दादी के तस्बीह पढ़ कर उस पर फूंकने के बाद उस को वो जलन वापस से  महसूस होने लगीं थी      जैसे ही उसके दादी ने आयशा का चेहरा देखा वहां पर आज जले हुए के लाल गहरे निशान दिखाई देने लगे थे तभी उसने अपनी बेटी से कहा था बेटा कल रात तो तुम्हारे चेहरे पर एक भी निशान नहीं था फिर अचानक से यह निशान क्यों दिखाई दे रहे हैं     तब आयशा ने अपनी दादी से कहा था पता नहीं दादी कल तो मेरा जो दर्द था वह एकदम से गायब हो गया था और आज जैसे ही आपने मुझ पर फूंक मारी फिर से मुझे जलने का निशान जलन महसूस होने लगी  है       जैसे ही आयशा ने यह कहा उसकी दादी कुछ सोचने लगी थी और तब आयशा यही नहीं रुकी थी उसने आगे कहना शुरू कर दिया था दादी आज एक और अजीब  बात मेरे साथ हुई है जैसे ही मैं आज सुबह नहा धोकर किचन में खाना बनाने के लिए गई तो मैंने देखा पहले से ही सारा खाना बना हुआ रखा हुआ था   मुझे तो समझ में नहीं आ रहा कि अचानक से सारा का सारा खाना  किसने बना दिया फिर आयशा खुश होते हुए बोली थी चलो खेर कुछ भी हो आज बाबा ने पहली बार मेरी तारीफ की थी मेरे लिए तो यही काफी था ऐसा कहकर आयशा खुशी से अपनी दादी से लिपट गई थी तभी उसके दादी ने आयशा से कहा था  बेटी क्या तुम्हारे चेहरे पर तुम्हें जलन हो रही है तब आयशा ने हां मैं अपने गर्दन हिला दी थी और कहा था जी दादी अचानक से मेरे चेहरे पर मुझे बहुत ही ज्यादा जलन महसूस हो रही है   तब उसकी दादी ने उसे कहा था बेटा कल रात तुम्हारे लिए मैंने एक पैक बनाया था तुम मुझे ठीक लगीं तो मैंने तुम्हें नहीं लगाया था मैं तुम्हें अभी यह पैक लगा देती हूं       ऐसा कह कर उन्होंने जल्दी ही  आयशा के चेहरे पर बनाया हुआ जलन से राहत देने वाला एक पैक लगा दिया था   पैक लगाने के बाद आयशा को थोड़ा-थोड़ा ठंडा लगने लगा था और वह  खुद को थोड़ा सा ठीक महसूस करने लगीं थी       और फिर उसे खाने का ख्याल आया जो वो अपनी दादी के लिय लेकर आई थी  तभी उसने अपनी दादी को खाना खिलाना शुरू कर दिया था लेकिन जैसे ही  उसकी दादी ने पहले पराठा का टुकड़ा अपने मुंह में रखा उन्हे वह बिल्कुल कड़वा लगा था     और जबकि आयशा को वह बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट और मजेदार लग रहा था     जैसे ही आयशा की दादी ने आयशा से कहा बेटा यह पराठा तो बहुत ही ज्यादा कड़वा ऐसा लग रहा है इसमें मैदा आटे की जगह करेला या नीम के पत्ते पीसकर बनाया हुआ हो     तब आयशा ने अपनी दादी से कहा दादी आपको हो क्या आ गया है ये पराठा तो बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट है देखिए मैं भी खा रही हूं लेकीन आयशा की दादी एक टुकड़े से ज्यादा दूसरा पराठा का टुकड़ा खाने की हिम्मत नहीं कर पाई थी    क्योंकि उसे वह सब बहुत ही ज्यादा बुरा लग रहा था      तब आयशा ने अपनी दादी से कहा था दादी आपने तो कुछ नहीं कहा खाया है तो उसने अपनी दादी से कहा था मैं आपके लिए अभी कुछ बना कर ले आती हूं       ऐसा कह कर जल्दी ही वह किचन में चली गई थी जैसे ही आयशा किचन में गई उसके दादी उसे गहरी नजरों से देखने लगी थी और अचानक से उसके दादी के सामने आयशा का कल रात का चेहरा आ गया था       आयशा कल रात कितनी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी और आज अचानक से आयशा के चेहरे पर तस्बीह करते ही फूंक मार कर फूंक मारने से उसका चेहरा एकदम से पहले जैसा लाल हो गया था        दादी को काफी ज्यादा हैरानी होने लगीं थी साथ ही साथ वह एक गहरी सोच में डूब गई थी उन्हें धीरे-धीरे जिन्नातों पर शक होने लगा था लेकिन वह अभी यकीन नहीं कर पा रही थी     आयशा जल्दी से जाकर किचन में अपनी दादी के लिए थोड़ी सी खिचड़ी बना लेकर आई थी      जैसे  ही उसकी दादी ने खिचड़ी खाई वह उसके मुंह में घुल गई थी और उन्हें  वह खिचड़ी बहुत अच्छी लगी थी जल्दी ही दादी ने खिचड़ी खा ली थी   तब उसने अपनी बेटी से कहा था बेटी तुम भी जाओ जाकर अपने कमरे में आराम करो और हां दस मिनट के बाद अपना मूंह ठंडे पानी से धो लेना ज्यादा देर इस पैक को चेहरे पर नही रखते है,   और बेटी मे जानती हू मैरी बच्ची को अभी बहुत से काम होंगे  उसके बाद इन सब के जाने के बाद तुम्हें इन सब के पहले बर्तन साथ-साथ मैं कपड़े भी धोने होंगे तब आयशा ने दादी की बात सुनकर हां में सर हिला दिया था     और जल्दी ही वह अपने कमरे में चली गईं थी जैसे ही आयश अपने कमरे में गई उसने देखा उसका सौतेले भाई उसी के कमरे में बैठा हुआ उसका इंतजार कर रहा था     अपने सौतेले भाई को देख कर आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि आज तक उसका सौतेला भाई उसके कमरे में नहीं आया था तो अचानक से उसके कमरे में वह क्या करने के लिए आया था       आयशा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस वक्त उसे क्या कहे लेकिन उससे पहले कि वह उसे कुछ कहती तभी उसका सौतेले भाई आयशा की और आगे बढ़ा था     और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोलने लगा था आयशा मैं जानता हूं मेरी मां तुम पर बहुत ही ज्यादा जुल्मों सितम करती हुई आई है       लेकिन तुम फिक्र मत करो आज के बाद मैं तुम्हारा  निगेहबान रहूंगा और मैं तुम्हारा ध्यान रखूंगा कोई भी तुम्हें कुछ भी कहने के बारे में सोच नहीं सकेगा     ऐसा कहकर उसने जैसे ही आयशा को गले लगाने की कोशिश की थी आयशा ने जल्दी से उसे खुद से दूर धकेल दिया था और कहा था कि आप क्या कर रहे हैं   जैसे उसने अपने सौतेले भाई को अपने आप से दूर धकेल उसका सौतेला भाई गुस्से से तिल मिला उठा था और जल्दी से उठकर उसने आयशा के बालों को कस कर पकड़कर उसे चटाई पर फेंक दिया था       और खुद वह उसके ऊपर आने की कोशिश करने लगा था जब से उसने आयशा के खूबसूरत जिस्म और उसकी खूबसूरत आंखों के साथ-साथ उसके खूबसूरत बालों को देखा था तब से वह उसके और पूरी तरह से आकर्षित हो गया था           इसीलिए उसे हर हाल में औरत के जिस्म के चाहना होने लगीं थी लेकिन उसने इस बात कभी लिहाज नहीं किया था जिस लड़के पर वह हाथ डालने जा रहा है वह कोई और नहीं बल्कि उसकी सौतेली बहन थी चाहे सौतेली ही क्यों न हो लेकीन थी तो बहन ही लेकिन उसने इस बात का भी लिहाज नहीं किया था       और उसने एक साथ लगातार दो चांटे आयशा के गालों पर मार दिए थे तब आयशा ने अपने आप को बचाते हुए उसके हाथों में जोरों से काट लिया था और खूब जोरों से चिल्लाने लगी थी साथ-साथ वह लड़का भी चिल्लाने लगा था     और उन दोनो की चीखों को सुन कर आयशा की सौतेली मां उसकी दादी उसकी सौतेली बहन सकीना उस के कमरे में आ गए थे     जैसे ही उन्होंने देखा कि आयशा बुरी तरह से चिल्ला रही थी तो उसकी सौतेली मां ने आगे बढ़कर दो चांटे आयशा के ऊपर मार दीए थे और बोली थी  तेरी हिम्मत केसे हुइ मेरे बेटे पर चिल्लाने की इस तरह से क्यों चिल्ला रही है मेरे बेटे के साथ क्या किया तूने पकड़े जानें पर उस के सोतेले  भाई ने रोने वाली शक्ल बना ली थी   और रोते हुए अपनी मां से शिकायत करने लगा था कहने लगा था की मां जैसे ही मैं आज उसके हाल-चाल पूछने के लिए उसके कमरे में  आया तो यह मुझे गले लगाने की कोशिश करने लगी थी     मैंने इसे कहा भी था कि तुम मेरी सौतेली बहन हो हम यह नहीं कर सकते है लेकिन उसने मेरी एक नहीं मानी और यह मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगी थ   उसके सौतेले भाई ने बड़ी ही मक्कारी के साथ सारा का सारा इल्जाम आयशा के ऊपर डाल दिया था आयशा की सौतेली मां की आंखों में अंगारे दहकने  लगे थे और उसे बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ रहा था     तभी उसने आयशा के बालों को कसकर पकड़ लिया था बोला था कुछ ज्यादा ही जवानी का जोश चढ़ गया है तुझे आज मैं तुझे जिंदा नहीं  छोडूंगी      तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी एक लोटे बेटे पर हाथ डालने की , ऐसा कह कर उस की सौतेली मां ने लगातर दो तिन चांटे और आयशा को मार दीए थे,   लेकीन गुस्से मे उन्हे इस बात का ऐहसास नही रहा जो चांटे वो आयशा को मार रही है उन चांटो की चोट उल्टा उस की सौतेली मां को ही लग रही थी       जब की आयशा की दादी उसे बचाने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन उसकी सौतेली मां के सामने किसी की कहां चलने वाली थी जल्दी उसके सौतेली मां  ने आयशा को मारने के लिय एक कोड़ा निकाल लिया था उस कोड़े से वह हमेशा आयशा पर वार किया करती थी और जल्दी ही उस  कोड़े को देख कर आयशा बुरी तरह से थर-थर कांपने लगी थी        और वह अपनी बेगुनाही का सबूत देना चाहती थी वह रह रहकर चिल्ला रही थी कह रहि थी मेरी कोई गलती नहीं है सब कुछ इसी ने ही किया है लेकिन उसकी कोई सुनने के लिए तैयार नहीं था केवल उसकी दादी उसकी बात मान रही थी लेकिन उसकी सौतेली मां को तो आयशा पर अपना गुस्सा निकालने का मौका मिल गया थ     इसीलिए कोडे लेकर उसने जल्दी से आयशा को मारना शुरू कर दिया था जब जब आयशा को मारने के लिए कोडे उठाती तब तब आयशा जोरों से चिल्लाती थी      उसकी सौतेली मां सौतेली बहन और साथ-साथ उसके सौतेले भाई को बहुत ही ज्यादा मजा आ रहा था क्योंकि उसके सौतेले भाई ने तो सोचा था कि आयशा आसानी से उसके कब्जे में आ जाएगी लेकिन आयशा ने तो शोर मचाकर सबको बूला दिया था तो यह बात उसे अंदर तक तपा गई थी इसलिए आयशा को पीटता हुआ देखकर वह बहुत ही ज्यादा खुश हो रहा था।   जैसे-जैसे उसके सौतेली मां आयशा की पीठ पर कोड़े बरसाना शुरू किया था वह तब ज़ोर से चिल्ला रही थी दर्द की वजह से नहि बल्कि वह डर की वजह से चिल्ला रही थी और करीब आधे घंटे बाद 50  से 60 कोड़े आयशा पर मारने के बाद वह तीनों मां बेटी वहां से चले गए थे       तब उसकी दादी आयशा को को चुप कराने की कोशिश करने लगी थी तब उसने रोते-रोते अपनी दादी से कहा था दादी आज पता नहीं क्या हुआ है जब जब सौतेली मां मुझे कोड़े मार रही थी मैं केवल डर के मारे चिल्ला रही थी जबकि कोडे का मुझे दर्द ही नहीं हो रहा था   जैसे  ही उसकी दादी ने यह सुना वह आंखें फाड़ कर उसकी और देखने लगी थी।।।।।।।।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻🙏🏻🙏🏻        

  • 5. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 5

    Words: 2054

    Estimated Reading Time: 13 min

    उसकी दादी का हैरानी से बहुत बुरा हाल था। उसने अपनी पोती आयशा से कहा, "बेटी, तुम मुझे अपनी पीठ दिखाओ, जहाँ तुम्हारी सौतेली माँ ने तुम पर कोड़े बरसाए हैं।" आयशा ने झट से अपना हल्का सा सूट ऊपर करके अपनी पीठ दादी को दिखाई।

    दादी की नज़र उसकी पीठ पर पड़ी, तो उसकी आँखें और ज़्यादा हैरानी से फैल गईं। आयशा की पीठ पर कोड़े का एक भी निशान नहीं था। जबकि पहले, जब भी उसे मारा जाता था, उसके जिस्म पर गहरे निशान बन जाते थे, जिन्हें जाने में महीने या हफ़्ते लग जाते थे। लेकिन आज कोई निशान नहीं था। उन्हें समझ आ गया कि कोई जिन्न आयशा के ऊपर आशिक हो चुका था। वह इस तरह का सामना पहले भी कर चुकी थी, और अब फिर ऐसा कुछ होने जा रहा था, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।

    दादी ने जल्दी से आयशा से कहा, "बेटी, तुम मुझे एक बात बताओ, तुमने पिछले दो दिनों में क्या-क्या किया है और कहाँ-कहाँ गई थी?"

    आयशा अपनी दादी को हैरानी से देखने लगी और बोली, "आप ये सवाल क्यों पूछ रही हैं?"

    "बेटी, अभी तुम सवाल मत करो, बस मुझे जवाब दो। दो दिन से तुम कहाँ-कहाँ गई थी और क्या-क्या हुआ तुम्हारे साथ? मुझे सारी बात बताओ। और क्या तुम्हें किसी की कोई चीज़ मिली है, यह भी बताओ।"

    आयशा के सवालों से चौंक गई थी, और वह समझ नहीं पाई थी कि उनकी दादी ऐसे सवाल क्यों पूछ रही हैं।

    आयशा ने जल्दी-जल्दी बताया कि जब उसकी सौतेली बहन ने उसके ऊपर गरमागरम कॉफ़ी डाली थी, तो वह भागकर सीधी बगीचे में गई थी। बगीचे के आखरी छोर पर, हेड पंप के नीचे जाकर बैठ गई थी और वहीं रोती रही थी। बगीचे से वापस अपने कमरे की ओर लौटते वक्त उसे एक अंगूठी मिली थी। वहाँ कोई मौजूद नहीं था, इसलिए मैंने अंगूठी अपने पास रख ली थी।

    यह सुनकर दादी की आँखें हैरत से फटी रह गईं, और उन्होंने जल्दी से आयशा से कहा, "बेटा, जल्दी से मुझे वह अंगूठी लाकर दिखाओ।"

    आयशा को समझ में नहीं आ रहा था कि दादी ऐसा क्यों कर रही हैं, लेकिन दादी के हुक्म पर आयशा वह अंगूठी दादी के सामने ले आई।

    अंगूठी देखकर, दादी ने आयशा को गले से लगा लिया और बोली, "मेरी बच्ची, बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है।"

    "लेकिन दादी, आखिर ऐसी क्या गड़बड़ हो गई है, और आप इतना क्यों डर रही हैं?" आयशा ने हैरानी से पूछा।

    दादी ने उसे अपने सीने से लगाते हुए कहा, "मेरी बेटी, तेरे पीछे एक जिन्न पड़ चुका है।"

    यह सुनकर आयशा का हैरानी से बहुत बुरा हाल हो गया था। वह कभी अपनी दादी को देख रही थी, तो कभी खुद को। दादी के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे थे।

    "दादी, आप क्या कह रही हैं? जिन्न, और वह भी मेरे पीछे? भला ऐसा कैसे हो सकता है? और क्या दादी, जिन्न होते हैं?" आयशा ने पूछा।

    दादी गहरी नज़रों से आयशा को देखने लगी और बोली, "मेरी बच्ची, मैं जो कुछ भी कह रही हूँ, वह ठीक कह रही हूँ। तेरे लिए जो खाना पकाया था, वह किसी और ने नहीं, जिन्न ने ही पकाया था। और तेरे ज़ख़्मों पर जो मरहम लगाया था, वह भी जिन्न ने ही लगाया था। मुझे पूरा यकीन है, तभी तो तस्बीह पढ़ने पर, जैसे मैंने तुझे फूँक मारी, तेरी जलन वापस से शुरू हो गई थी।"

    आयशा ने दादी की बातें ध्यान से सुनीं, और एक-एक करके कड़ियाँ जोड़नी शुरू कर दीं। उसकी हैरत का कोई ठिकाना नहीं था। वह सर पकड़कर बैठ गई। दादी ने कहा, "बेटी, ये अंगूठी तुझे वहीं जाकर रखनी होगी, जहाँ से तू इसे उठाकर लेकर आई थी। उसके बाद मैं जिन्न से बचने के लिए तुझे ताबीज़ बनाकर दूँगी। मुझे पूरी उम्मीद है, उसके बाद कोई जिन्न तेरा पीछा नहीं कर पाएगा।"

    आयशा ने सोचा था कि उसकी ज़िन्दगी में कोई इंसान आएगा, जो उसके दुख दर्द कम करेगा, हर मुसीबत से बचाएगा। लेकिन उसकी ज़िन्दगी में आया तो एक जिन्न। आयशा ने शुरू से सोचा था कि कोई ऐसा उसकी ज़िन्दगी में आएगा जो उसके सारे दुख और तकलीफ़ों को हर लेगा और दूर कर देगा, उसे बहुत सारी खुशियाँ देगा। लेकिन यहाँ तो एक इंसान की जगह एक जिन्न आ गया था, और उस जिन्न से बचने के लिए अब उसे ताबीज़, गंडों का सहारा लेना पड़ेगा।

    आयशा की दादी आयशा को उसके कमरे में छोड़कर अपने कमरे में गई और उसने अपना बरसों पुराना संदूक खोला। संदूक खोलकर उसने उसमें से सात रंग की अलग-अलग पोटलियाँ निकालीं। कुछ सोचकर उसने एक पोटली खोल ली। पोटली के अंदर दो खूबसूरत कलम रखे हुए थे। साथ ही एक छोटी सी काँच की शीशी में रंग-बिरंगा सा पदार्थ भरा हुआ था। पता नहीं आयशा की दादी क्या करना चाह रही थी। उसने वह सारा सामान निकालकर एक तरफ़ फैला लिया, और एक साफ़ कागज़ पर उस खूबसूरत कलम को काँच की शीशी में भरे पदार्थ में डुबोकर कुछ लिखने लगी।

    जल्द ही दादी ने कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें लिख दीं, और उसे एक काले रंग के कपड़े में सील करके जल्दी से तैयार करके आयशा के पास ले जाने लगी। आयशा उस वक़्त अपने कमरे में नहीं थी। वह ताबीज़ लेकर आयशा को ढूँढ़ने लगी। हॉल में आकर उसने देखा कि आयशा की सौतेली माँ, बहन और भाई, तीनों हॉल में बैठे आयशा के ख़िलाफ़ प्लान बना रहे थे।

    उन्होंने दादी को देखा, तो एकदम से चुप हो गए। दादी ने कहा, "सकीना, आयशा कहाँ है?"

    सकीना मुँह पिचकाकर बोली, "और कहाँ होगी? ऊपर गई होगी कपड़े सुखाने। और कपड़े सुखाने में उसे काफ़ी देर हो गई है। ज़रूर वह पड़ोस के लड़कों के साथ नैन-मटक्का करने लग गई होगी।"

    दादी अपने दाँत पीसते हुए ऊपर जाने लगी। वह काफ़ी बूढ़ी थी, लेकिन थोड़ा-बहुत रेलिंग के सहारे ऊपर चढ़ लिया करती थी।

    आयशा ऊपर कपड़े सुखाकर नीचे आने वाली थी, लेकिन इससे पहले कि दादी आयशा तक पहुँच पाती, दादी का पैर फिसल गया, और वह सीधा ऊपर से नीचे हॉल में गिर गई।

    दादी के गिरने पर उन्होंने जोरदार चीख मारी। दादी की चीख सुनकर घर वाले वहाँ आ गए। सब दादी को पड़ा हुआ देख रहे थे, लेकिन किसी ने भी दादी को उठाने की कोशिश नहीं की। आयशा दौड़ती हुई सीढ़ियों पर से आई और दादी को उठाने की कोशिश करने लगी। लेकिन वह अकेली दादी को नहीं उठा पा रही थी। इसलिए उसने अपनी सौतेली माँ, बहन से मदद माँगी, लेकिन कोई भी उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था। उन्हें तो लग रहा था कि यह बूढ़ी मर भी जाती है, तो उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है। दादी के हाथों में आयशा के लिए बनाया हुआ ताबीज़ था, और वह उसे देना चाहती थी।

    लेकिन आयशा उनकी बात समझ नहीं पाई, और दादी की हालत बहुत खराब थी। आयशा जोरों से चिल्लाने लगी, और उसने अपने मेन गेट पर जाकर जोरों से मदद के लिए चिल्लाना शुरू कर दिया। जल्दी ही दो मामूली से कपड़ों में दो आदमी वहाँ आ गए और कहने लगे, "हम यहाँ आपके पड़ोस में रहते हैं, और आपकी मदद की आवाज़ सुनी तो हम यहाँ मदद करने के लिए आ गए हैं।"

    बाहर से कुछ लोगों को आता देखकर, सौतेली माँ ने भी नाटक करना शुरू कर दिया। वह भी दादी को उठाने की कोशिश करवाने लगी। सब ने मिलकर दादी को उठाकर बेड पर लेटा दिया। उसके बाद एक डॉक्टर को फ़ोन करके भी बुला लिया गया। हवेली का डॉक्टर पास में ही रहा करता था, तो वह जल्दी ही आ जाया करता था।

    दादी के सर पर गहरी चोट आई थी, तो डॉक्टर ने वहाँ पर मरहम-पट्टी कर दी। लेकिन दादी का एक हाथ की मुट्ठी बंद थी, जिसमें उन्होंने आयशा के लिए बनाया हुआ ताबीज़ पकड़ रखा था। दादी वह मुट्ठी खोलने के लिए तैयार नहीं थी। डॉक्टर ने दादी को पेनकिलर वग़ैरह देने के बाद चला गया। आयशा ने जो दो अजनबी उसकी मदद करने के लिए आए थे, उनका शुक्रिया अदा किया। शुक्रिया अदा करने के बाद वह अजनबी चले गए। आयशा का सौतेला भाई अजनबियों को ध्यान से देखने लगा और अपनी माँ से कहने लगा, "माँ, आज से पहले तो इन लोगों को हमने यहाँ मोहल्ले-पड़ोस में कहीं देखा ही नहीं था।"

    यह सुनकर माँ हैरानी से अपने बेटे की ओर देखने लगी। अगले ही पल अपनी सोच को झटकते हुए बोली, "अरे बेटा, हो सकता है कोई किसी के यहाँ पर किराए पर रहने के लिए आ गया हो, और इस कलमुही की आवाज़ सुनकर मदद करने के लिए यहाँ आ गया हो। अगर हम उनके सामने उसकी मदद नहीं करते, तो लोगों की नज़रों में आ जाते। लेकिन हम कोई भी ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे लोगों की नज़रें हम पर पड़े। और इस कलमुही को तो सबक हम बाद में सिखाएँगे। और यह देखा तूने, इतनी मार खाने के बाद भी कैसे सीधी होकर जल्दी-जल्दी काम निपटा रही थी। लगता है अभी इसकी चमड़ी मोटी हो गई है, इस पर मार का कोई असर ही नहीं होता है। आज रात को मैं इस कलमुही को अच्छे से सबक सिखाऊँगी, और अब तो रोकने के लिए वह बढ़िया भी नहीं होगी।"

    सौतेली माँ आग फेंकती हुई वहाँ से निकल गई। उसके सौतेले बहन-भाई भी साथ ही साथ वहाँ से चले गए। आयशा थोड़ी देर तक अपनी दादी को इस हालत में देखकर रोती रही, और रह-रहकर वह इस बात पर गुस्सा हो रही थी कि वह ऊपर गई ही क्यों? अगर वह ऊपर नहीं जाती, तो उसकी दादी ठीक रहती। लेकिन अब देर हो चुकी थी। उसकी दादी गहरी चोटों का शिकार हो गई थी। दादी मुँह से कुछ भी नहीं बोल पा रही थी, लेकिन उसने इशारों में आयशा से बताना शुरू कर दिया था कि उसके हाथ में उसके लिए ताबीज़ है।

    लेकिन आयशा…

  • 6. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 6

    Words: 1805

    Estimated Reading Time: 11 min

    आयशा अपनी दादी की बात समझ नहीं पाई थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। दवाइयाँ खाकर दादी गहरी नींद में सो गई थीं।

    लेकिन उन्होंने अपना बंद हाथ नहीं खोला था। दादी के सोने के बाद, आयशा अपने कमरे में आई थी। दादी के साथ जो कुछ हुआ था, और जो कुछ दादी ने बताया था, वह सब याद करने लगी थी।

    पर दादी का अचानक गिरना, आयशा को जिन्नातों के काम लगने लगा था। लेकिन वह जल्दी से इस बात पर यकीन नहीं करना चाहती थी।

    क्योंकि जिन्न वगैरह होते हैं या नहीं, यह सब किस्से कहानियों में सुना था। रियल लाइफ में उसका यकीन करना बहुत मुश्किल था।

    आयशा काफी थक चुकी थी, इसलिए वह अपने सोचों में खोकर सो गई थी। सोने के बाद, आयशा को फिर से महसूस हुआ, मानो बहुत ही कमाल की खुशबू उसके आस-पास थी। जो उसने उस दिन रात में खिड़की के पास महसूस की थी। उस खुशबू को महसूस करने के बाद, आयशा को लगा, मानो किसी ने उसे अपने होठों से छुआ हो। आयशा हड़बड़ा कर उठकर बैठ गई थी।

    और वह अपने कान के पीछे वाले हिस्से को हाथ लगाकर देखने लगी थी, जहाँ किसी के छुने का एहसास उसे लग रहा था। मानो किसी ने उसे कान के पीछे किस किया हो।

    आयशा काफी डर गई थी। फिर अचानक उसे अपनी दादी की कही हुई हर बात याद आ गई थी। आयशा को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, क्योंकि रात का दूसरा पहर चल रहा था।

    इसलिए वह सीधी उठकर अपनी दादी के पास गई थी और उनके कमरे में उनके पास बैठ गई थी। उसने देखा उसकी दादी बहुत गहरी नींद में सोई हुई थी।

    अपनी दादी को कुछ देर देखने के बाद, आयशा उनके पास बैठ गई थी और उनका सर सहलाने लगी थी। डॉक्टर ने दादी को नींद का इंजेक्शन दिया था, इसलिए वह गहरी नींद में सोई हुई थी। उसकी दादी को एहसास ही नहीं था कि आयशा उनके बहुत करीब बैठी हुई थी।

    तभी अचानक आयशा की नज़र दादी के बंद हाथ पर पड़ी। और जैसे ही उसने उनकी मुट्ठी खोलने की कोशिश की, वह नाकाम रही थी। वह अपनी दादी का हाथ नहीं खोल पा रही थी। आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक दादी में इतनी ताकत कहाँ से आ गई थी कि वह यह हाथ नहीं खोल पा रही है।

    आयशा का हैरानी के मारे बहुत बुरा हाल हो गया था। आखिर उसकी कमज़ोर दादी में इतनी ताकत कहाँ से आ गई थी? और जैसे ही वह फिर दादी का हाथ खुलवाने के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती कर रही थी, ठीक उसी वक्त उसकी दादी को धीरे-धीरे होश आने लगा था।

    और होश आने पर, जैसे ही उसने अपने सामने आयशा को देखा, तो वह कुछ बोलने की कोशिश करने लगी थी, लेकिन वह नाकाम रही थी। तभी आयशा ने अपनी दादी को समझाते हुए कहा, "दादी, क्या हुआ है आपको? आप इतना परेशान क्यों हो रही हैं? और यह आपके हाथ की हथेली क्यों नहीं खुल रही है? आखिर क्या है आपके हाथ में ऐसा?"

    जैसे ही आयशा ने अपनी दादी से उनकी बंद हाथ की ओर इशारा किया, उसकी दादी ने अचानक वह हाथ खोल दिया था। और हाथ खोलते ही आयशा के हाथों में उसकी दादी का दिया हुआ काला धागा आ गया था।

    जैसे ही उस काले धागे को आयशा ने देखा और अपने हाथ में पाया, तो आयशा के शरीर में अजीब सी झनझनाहट पैदा हो गई थी। उसे काफी अजीब लग रहा था, और वह अपनी दादी को एक शब्द भी नहीं बोल पाई थी। वह केवल खाली नज़रों से अपनी दादी को देख रही थी।

    आयशा को अचानक सब कुछ साफ़ दिखाई देने लगा था। काला धागा हाथ में पकड़ते ही आयशा को समझ में आ गया था कि उसकी दादी के साथ क्या हुआ था। सब कुछ एक फ्लैशबैक की तरह उसकी आँखों के सामने आ गया था।

    आयशा की दादी, जब वह काला धागा लेकर हॉल में आई थी और फिर ताबीज़ देने के लिए धीरे-धीरे ऊपर सीढ़ियों पर चढ़ने लगी थी। और इससे पहले कि वह आयशा आवाज़ लगा पाती, एक काली परछाई उसकी दादी के सामने आ गई थी।

    उस परछाई को देखकर उसकी दादी चीखना चाहती थी, लेकिन वह नाकाम रही थी। फिर उसी परछाई में से एक हाथ उसकी दादी की ओर बढ़ा था, और अचानक उसकी दादी अपना बैलेंस नहीं बना पाई थी और सीधा सीढ़ियों से नीचे गिर गई थी। आयशा को सब कुछ समझ में आ चुका था कि उसके दादी के साथ क्या हुआ था। और उसे समझने में देर नहीं लगी थी कि उसके दादी के साथ जो कुछ हुआ था, वह जिन्नातों ने किया था।

    और अब आयशा को अपनी आँखों देखी पर यकीन हो चुका था। वह पहले जिन्नातों की बात को झुठला रही थी, उस पर यकीन नहीं कर पा रही थी। लेकिन अब यकीन न करने की कोई वजह नहीं थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने एकदम साफ़ था।

    उसे काफी अजीब लग रहा था, और वह अपनी दादी को एक शब्द भी नहीं बोल पाई थी। वह केवल खाली नज़रों से अपनी दादी को देख रही थी।

    आयशा को यकीन ही नहीं हो रहा था कि क्या वाकई ऐसा कुछ हो सकता था। लेकिन अब क्योंकि सब कुछ उसकी आँखों के सामने था, तो शक की कोई गुंजाइश नहीं थी। और अपनी दादी को इतने दर्द में देखकर, आयशा को खुद पर गुस्सा आ रहा था। क्योंकि उसे लग रहा था कि सिर्फ़ उसकी वजह से उसकी दादी की ऐसी हालत है। अगर उसकी दादी उसे जिन्नातों से बचाने के लिए उसके लिए काला धागा नहीं बनाती, तो हो सकता है जिन्नात आयशा की दादी को कुछ नहीं करते और उसे छोड़ देते। लेकिन अब देर हो चुकी थी। अब तो उसकी दादी बेचारी बेड पर पड़ी हुई थी।

    तभी आयशा को अपनी दादी की कही हुई बात याद आई थी, कि जो भी सामान उसे उस गार्डन से मिला था, जब वह उस हैंडपंप के नीचे बैठी हुई थी, वह उस सामान को वहीं जाकर फेंक आए।

    तब आयशा के एक हाथ में तावीज़ पकड़ा हुआ था। और फिर अपने कमरे में जाकर, जैसे ही आयशा ने उस अंगूठी को अपने हाथ में लिया, वह अंगूठी उसे एकदम छोटे से काले साँप में बदली हुई सी नज़र आने लगी थी।

    यह अंगूठी पहले हीरे जड़ी हुई थी, लेकिन जहाँ हीरा लग रहा था, वहाँ अब छोटे-छोटे नाग बन गए थे, जो एकदम काले-स्याह थे और जो आयशा को डसने के लिए तैयार थे। आयशा डर के मारे चीख उठी थी।

    और फिर जैसे ही आयशा ने अपने हाथ में पड़े हुए काले धागे को देखा, उस काले धागे का रंग एकदम लाल हो चुका था। जैसे ही उसने वह तावीज़ अपने हाथ से छोड़ा, वह अंगूठी वापस से हीरे की चमकदार अंगूठी में बदल गई थी।

    आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वह सोच रही थी कि आखिर यह कैसा जादू है? यह कैसा करिश्मा है? क्योंकि सब कुछ उसकी आँखों के सामने था, और सामने होकर भी वह यकीन नहीं कर पा रही थी।

    वैसे आयशा समझ चुकी थी कि तावीज़ की वजह से उस अंगूठी की सच्चाई नज़र आ रही थी। लेकिन आयशा में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह काले धागे पकड़े हुए उस अंगूठी को पकड़ सकती थी। क्योंकि बिना काले धागे के तो वह अंगूठी चमकदार हीरे-मोती की दिखाई दे रही थी।

    लेकिन जैसे ही आयशा दूसरे हाथ में काले धागे को पकड़कर उस अंगूठी को पकड़ रही थी, तो वह अंगूठी एकदम काले नाग जैसी दिखाई दे रही थी।

    तो इसलिए आयशा ने सोच लिया था कि वह यह काला धागा बाद में पहनेगी। उससे पहले वही अंगूठी अभी और इसी वक्त जाकर गार्डन में फेंक कर आएगी।

    यह सोचकर आयशा ने जल्दी ही काले धागे को अपने संदूक पर रख दिया था। और फिर कुछ सोचकर गार्डन की ओर रवाना हो चुकी थी।

    और फिर जल्दी ही उस अंगूठी को लेकर वह रात के 3:00 बजे अपने गार्डन में पहुँच गई थी। आयशा दिन में अपने गार्डन में जाया करती थी, लेकिन रात के इस वक्त जाना उसे काफी भयानक लग रहा था।

    ऊपर से पूरे गार्डन के पेड़-पौधे हवा से इस तरह हिल रहे थे, मानो कोई गाना गुनगुना रहा हो। एकदम हवा को चीरती हुई सन्नाटेदार आवाज़ आ रही थी। सब कुछ काफी भयानक लग रहा था।

    लेकिन आयशा हिम्मत के साथ आगे बढ़ती जा रही थी। और आयशा को लगता था कि उसकी ज़िंदगी तो वैसे ही किसी काम की नहीं है। अगर उसकी मौत भी हो जाती है, तो उस पर एक एहसान ही होगा।

    आयशा मौत को अपने लिए किसी वरदान से कम नहीं समझती थी। लेकिन अपनी दादी की वजह से, वह मरना नहीं चाहती थी। और उसके दादी पर ही जिन्नातों ने हमला कर दिया था, तो उसके पास जीने की कोई वजह नहीं थी।

    इसीलिए वह जोश के साथ अंगूठी लेते हुए जल्दी से हैंडपंप के पास पहुँच गई थी। और ठीक उसी जगह जाकर उसे देखने लगी थी। उस जगह को देखने के बाद, आयशा ने अंगूठी को वहाँ फेंक दिया था।

    और फिर थोड़ा सा चीखते हुए बोली, "कौन हो तुम? तुम्हारी हिम्मत कैसे होगी मेरी दादी के साथ ऐसा करने की? दूर हो जाओ मेरी ज़िंदगी से! मेरी ज़िंदगी में क्या प्रॉब्लम कम है, जो तुम और आ गए हो मेरी ज़िंदगी को नर्क बनाने के लिए? अगर तुम मेरी दादी का यह हाल कर सकते हो, तो सीधे-सीधे मेरी भी जान ले लो ना! मुझे क्यों नहीं मार देते हो?" आयशा वहाँ पर चीखती-चिल्लाती हुई रोने लगी थी।

    और फिर वह अंगूठी वहाँ फेंक कर अपने कमरे में आ गई थी। अपने कमरे में आने के बाद, आयशा कितनी ही देर तक रोती रही थी। अपने कमरे में आने के बाद, आयशा को उस तावीज़ को पहनना भी याद नहीं था, और वह ऐसे ही सो गई थी। वहीं दूसरी ओर, गार्डन में जो अंगूठी आयशा ने फेंकी थी, वह अंगूठी अपने आप ही गायब हो चुकी थी और धुआँ बनकर उस पेड़ पर चली गई थी।

  • 7. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 7

    Words: 1696

    Estimated Reading Time: 11 min

    कमरे में आने के बाद, आयशा काफी देर तक रोती रही थी।

    अपने कमरे में आने के बाद, आयशा को उस ताबीज को पहनना भी याद नहीं रहा, और वह वैसे ही सो गई थी। वहीं दूसरी ओर, जो अंगूठी आयशा ने बाग में फेंकी थी, वह अंगूठी अपने आप ही गायब हो चुकी थी, और धुएँ बनकर उस पेड़ पर चली गई थी।

    रोते-रोते आयशा की आँख लग गई थी, और वह गहरी नींद में सो गई थी।

    अगली सुबह, जैसे ही आयशा उठी, सुबह के पाँच बज चुके थे। आयशा जल्दी से स्नान करके रसोई में चली गई थी, क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थी कि अगर वह रसोई में देर से गई, तो उसकी सौतेली माँ उसके पास आ जाएगी और फिर से उसे परेशान करेगी।

    और उन्हें बहाना मिल जाएगा कि “तूने अभी तक नाश्ता तैयार नहीं किया है।” इसीलिए आयशा जल्दी से रसोई में गई। वहाँ उसने देखा कि आज रसोई में कोई भी काम नहीं हुआ था। तो आयशा समझ गई थी कि शायद वह अंगूठी वापस आ गई है, और इसी वजह से वह जिन्न का जादू उसकी ज़िंदगी से चला गया है।

    आयशा इस बात को लेकर निश्चिंत थी, और फिर जल्दी ही उसने सारा नाश्ता बनाना शुरू कर दिया था। नाश्ता बनाने के बाद, उसने सारा नाश्ता हवेली के बड़े से हॉल में रख दिया था। धीरे-धीरे सभी वहाँ आ गए थे, और नाश्ता करने लगे थे। आज कोई किसी को कुछ भी नहीं कह रहा था, क्योंकि जो कुछ भी हुआ था, उसके बाद से सभी सतर्क हो गए थे।

    आयशा के पिता ने आयशा से कहा था, “तुम अपनी दादी का ध्यान रखना। जो भी उन्हें खाना-पीना है, ध्यान से देना, समझी तुम?”

    आयशा के पिता उसे हिदायत देने के बाद, हमेशा की तरह दफ्तर चले गए थे। उन्हें घर के किसी और मामले से कोई मतलब नहीं था।

    आयशा की सौतेली माँ ने बड़ी चालाकी से अपने बेटे की बात दबा ली थी। जिसने आयशा के ऊपर अपनी इज़्ज़त का हमला किया था, वह अच्छी तरह जानती थी कि अगर यह बात उसके पिता के सामने आ गई, तो उसके पिता ज़रूर कोई न कोई उपाय करेंगे। हो सकता है कि वह आयशा की शादी करने के बारे में सोचने लगे, लेकिन उसकी सौतेली माँ आयशा की शादी कभी नहीं होने देना चाहती थी।

    आयशा के पिता के जाने के बाद, आयशा की सौतेली माँ और सौतेला भाई-बहन आयशा को घृणा भरी नज़रों से देख रहे थे। वहीं उसका सौतेला भाई आज यह देखकर हैरान था कि आयशा आज पहले जैसी खूबसूरत नहीं लग रही थी। तब उसने अपनी सोच को त्याग दिया था, और सोचने लगा था, “क्यों मैं बेकार में इसके चक्कर में आकर इस पर हाथ डाल दिया? आज तो इतनी खूबसूरत भी नहीं लग रही है। पता नहीं मुझे क्या हो गया था।” वह खुद की ही सोच में खोया हुआ टेबल से उठकर जाने लगा, तभी अचानक से बड़ी सी हवेली का झूमर उसके ठीक बगल में गिर पड़ा था।

    जिसकी आवाज़ काफी तेज आई थी। आयशा समेत सभी की चीख निकल गई थी, क्योंकि वह झूमर पूरा कांच का बना हुआ था, जो बहुत खूबसूरत लगता था। लेकिन जैसे ही उसका सौतेला भाई एक कदम और आगे बढ़ाता, तो वह झूमर सीधा उसके सिर पर गिरता, और उसके प्राण उस वक़्त कोई नहीं बचा सकता था।

    उस झूमर के छोटे-छोटे कांच के टुकड़े उसके सौतेले भाई के चेहरे, हाथ, पैर, और पेट पर गड़ गए थे।

    जिसे देखकर उसकी सौतेली माँ पूरी तरह घबरा गई थी, और जल्दी से अपने बेटे के लिए डॉक्टर बुलाने लगी थी। तब भी आयशा को उस पर तरस आया था, इसलिए वह दरवाज़े पर खड़ी होकर मदद के लिए पुकारने लगी थी। जल्दी ही फिर से दो आदमी वहाँ आ गए थे, जो पूरी तरह से अनजान थे। उनके आने के बाद, उसकी सौतेली माँ अपने सौतेले बेटे को आनन-फानन में अस्पताल ले गई थी।

    आयशा की सौतेली माँ ने उसके पिता को भी फोन कर दिया था। उसके पिता भी सीधे अपने दफ्तर से अस्पताल की ओर रवाना हो गए थे।

    आयशा घर पर ही रह गई थी। दोनों माँ-बेटे चले गए थे।

    उसकी दादी बीमार पड़ी हुई थी, और अब उसकी सौतेली माँ, बहन, और उसका सौतेला भाई, उसके पिता समेत अस्पताल में चले गए थे। उस बड़ी सी हवेली में अब आयशा अकेली थी। आयशा को पूरा हॉल साफ़ करने की ज़िम्मेदारी दे दी गई थी।

    हालांकि उसकी सौतेली माँ उस वक़्त रो रही थी, लेकिन जाने से पहले वह आयशा को कहना नहीं भूली थी कि पूरा एक-एक कांच अच्छी तरह से साफ़ कर देना। और जल्दी ही वह अपने बेटे को अस्पताल ले गई थी।

    आयशा कुछ देर सबको जाते हुए देखती रही थी, और फिर वह आराम से एक जगह बैठ गई थी, क्योंकि उसके सौतेले भाई के साथ जो कुछ भी हुआ था, यह देखकर उसके दिल को थोड़ा सा सुकून मिल रहा था। क्योंकि उसके भाई ने कल रात जो उसके साथ घटिया हरकत की थी, उसके बाद से उसे उससे बहुत ही ज़्यादा नफ़रत हो गई थी। और आज उसके साथ अचानक से यह सब होना आयशा को कहीं ना कहीं हैरान कर गया था।

    कुछ देर बैठने के बाद, आयशा अपनी दादी को देखने के लिए चली गई थी। उसने देखा कि उसकी दादी दवाइयों के नशे में सो रही थी। उसके बाद उसने सोचा कि सबसे पहले हॉल साफ़ कर लिया जाए। यह सोचते हुए, आयशा जैसे ही हॉल में गई,

    तो वह हैरान हो गई थी कि जो हॉल थोड़ी देर पहले कांच और उसके सौतेले भाई के खून से रंगा हुआ था, अब वहाँ पर दूर-दूर तक न तो कांच का एक भी टुकड़ा दिखाई दे रहा था, और न ही उसके सौतेले भाई का खून दिखाई दे रहा था।

    और जैसे ही आयशा ने डरते-डरते ऊपर की ओर, छत की ओर देखा था, तो उसे वह बड़ा सा झूमर उसकी छत पर वापस से लगा हुआ ही दिखाई दे रहा था।

    आयशा का हैरानी से बुरा हाल हो गया था। वह डर के मारे चीखना चाहती थी, लेकिन वह चीख भी नहीं पाई थी।

    आयशा को समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक से यह सब क्या हो रहा है। अभी तो यह झूमर पूरा पूरे हॉल में बिखरा पड़ा था, लेकिन अब यह अचानक से ठीक भी हो गया था, और ऊपर भी अपने आप टंग चुका था। आयशा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वास्तव में, उसे अब उस बड़ी सी हवेली में डर लगने लगा था, लेकिन वह अपनी दादी को छोड़कर वहाँ से कहीं नहीं जाना चाहती थी।

    इसलिए वह सीधी अपनी दादी के कमरे की ओर तेज़ी से बढ़ने लगी थी।

    और जैसे ही आयशा अपनी दादी के कमरे की ओर बढ़ने लगी, अचानक से उसे ऐसा लगा मानो वह फिर से पीछे आ गई हो।

    और आयशा फिर कोशिश करती, लेकिन फिर उसे एहसास होता, मानो वह फिर पीछे आ गई हो।

    बार-बार वह दो कमरों के फैसले को तय करने में घंटों लगा रही थी, लेकिन वह जल्दी से अपनी दादी के कमरे तक नहीं पहुँच पा रही थी।

    आयशा समझ गई थी कि कुछ न कुछ ऐसी शक्ति है जो उसे वहाँ नहीं जाने दे रही है। और अचानक से उसके दिलो-दिमाग़ में जिन्न-जादू का ख्याल आ गया था। वह समझ गई थी कि यह सब कुछ जिन्न-जादू ने किया है।

    तब आयशा ने अपनी दादी के कमरे की ओर बढ़ने की कोशिश करना छोड़ दिया था, और सीधी जाकर उसी जगह, यानी कि हवेली के हॉल में जाकर बैठ गई थी। और फिर थोड़ी सी तेज आवाज़ में बोली थी, “कौन हो तुम? मेरे सामने आओ! मैंने कहा, कौन हो तुम? मेरे सामने आओ! मैं तुम्हें अभी इसी वक़्त देखना चाहती हूँ। अगर तुम अभी मेरे सामने नहीं आए, तो मैं अपनी जान ले लूँगी!”

    आयशा ने पास में ही पड़े हुए टेबल पर रखे फलों में से एक चाकू निकाल लिया था, और अपनी गर्दन पर रख लिया था।

    आयशा अपनी दादी की बातों को सुनकर इतनी तो अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि जो कोई भी था, वह आयशा पर मोहित हो चुका था। तो इसका मतलब साफ़ था कि वह आयशा को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होने देगा। इसीलिए आयशा ने जानबूझकर अपनी जान लेने की बात कही थी।

    जैसे ही आयशा ने ऐसा कहा, अचानक से पूरा हॉल, हवेली का जो हॉल था, वह पूरा का पूरा रंग-बिरंगी रोशनी से भर गया था। और इतना रंग-बिरंगी रोशनी से भर गया था कि आयशा को अपनी आँखें खुली रख पाना बहुत मुश्किल हो गया था। इसलिए उसने अपनी आँखों पर अपना हाथ रख लिया था। जैसे ही आयशा ने अपनी आँखों से हल्का-हल्का हाथ नीचे किया, और उसकी नज़र सामने खड़े एक शख़्स पर पड़ी, तो उसकी आँखें हैरत से फटी रह गई थीं।

    उसके सामने सफ़ेद कुर्ते और पजामे में एक बहुत ही खूबसूरत, बहुत ही हैंडसम लड़का खड़ा हुआ था, जिसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह अभी-अभी जवान हुआ हो। उसके चेहरे पर अद्भुत खूबसूरती थी, अद्भुत नूर था। उसकी आँखें एकदम नीले रंग की थीं, और उसके खूबसूरत घने काले बाल उसके चेहरे की खूबसूरती को और निखार रहे थे।

    वह लड़का... अगर किसी लड़की की खूबसूरती को परिभाषित किया जाए, तो उसे परी का रूप दिया जाता है, लेकिन अगर किसी लड़के की खूबसूरती को परिभाषित किया जाए, तो उसे किसी फरिश्ते का रूप देना कुछ गलत नहीं होगा। वह लड़का किसी राजकुमार सा लग रहा था। वह बहुत ही ज़्यादा स्मार्ट, आकर्षक, और मनमोहक था।


    आयशा कितनी देर तक उसे बिना पलक झपकाए देखती रही थी। उसके चेहरे पर इतना आकर्षण था कि आयशा के दिल में ख्याल आया कि वह फटाफट से उठे और उसके खूबसूरत होंठों को चूमे, क्योंकि वह दिखने में बेहद आकर्षक था।

  • 8. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 8

    Words: 1931

    Estimated Reading Time: 12 min

    आयशा उसे देर तक बिना पलक झपकाए देखती रही। उसके चेहरे पर इतना आकर्षण था कि आयशा के दिल में ख्याल आया कि वह उठकर उसके खूबसूरत होंठों को चूमे, क्योंकि वह बेहद आकर्षक दिखता था। किन्तु जैसे ही यह ख्याल आया, उसने तुरंत अपनी सोच को त्याग दिया और सोचने लगी, "यह मैं क्या कर रही हूँ? मैं इससे इतनी आकृष्ट क्यों हो रही हूँ? ज़रूर इसका कोई काला जादू होगा।" सोचते हुए आयशा अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और उसके सामने जाकर खड़ी हो गई। उसकी ओर देखते हुए उसने कहा, "कौन हो तुम? और यह सब क्या हो रहा है? मेरे साथ तुम यह सब क्यों कर रहे हो?"

    आयशा ने सीधा सवाल कर लिया था। तब वह लड़का, आयशा को कुछ देर अपनी आँखों में बसाए हुए, बोला, "मेरा नाम शहजादा गुलफाम है और मैं एक जिन्न हूँ। मैं यहाँ आपके बुलावे पर आया हूँ, क्योंकि मैं आपसे मोहब्बत करता हूँ।"

    उसने आयशा के चेहरे का भाव देखे बिना ही अपनी बात कह दी थी। आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रहा है। वह केवल आँखें फाड़कर उसकी ओर देख रही थी।

    आयशा को उस जिन्न को देखकर गुस्सा आने लगा था। उसे याद आ गया था कि उसने ही उसकी दादी के साथ ऐसा किया था। उसकी दादी पूरी तरह बिस्तर पर थीं। तब आयशा ने कहा, "देखिए, जो भी आप हैं, मुझे नहीं पता, लेकिन आपने मेरी दादी के साथ जो किया है, वह बिल्कुल गलत है। इसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं करूँगी। और यह क्या मोहब्बत? क्या आपको नहीं पता कि इंसान और जिन्न की मोहब्बत नहीं होती?"

    तब शहजादा गुलफाम ने कहा, "नहीं, आपको गलतफहमी हुई है। हमने आपकी दादी को धक्का नहीं दिया था। हम तो केवल उनकी मदद करना चाहते थे। क्योंकि आखिरी सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त वे थक गई थीं, इसलिए हमने अपना हाथ बढ़ाया था ताकि उनका हाथ पकड़कर उन्हें आराम से सीढ़ियाँ चढ़ा सकें। लेकिन हमारा हाथ देखकर वे इतना डर गईं कि अपना संतुलन खो बैठीं और गिर गईं। हम चाहकर भी उन्हें बचा नहीं पाए। लेकिन जब आपने मदद के लिए पुकारा, तब हमने अपने दो आदमियों, दो जिन्नो को, इंसान का रूप देकर आपकी मदद के लिए भेजा था।"

    तभी आयशा को वे दो आदमी याद आ गए जो उसकी दादी को उठाने में मदद करने के लिए आए थे। आयशा हैरानी से उसकी बातें सुन रही थी।

    तब शहजादा गुलफाम ने आगे कहा, "इतना ही नहीं, जब आपके भाई पर झूमर गिरा था, और आपने मदद के लिए पुकारा था, तब भी हमने अपने दो जिन्नो को इंसान के रूप में आपकी मदद के लिए भेजा था। और रही बात आपके सौतेले भाई की, हाँ, यह सच है कि आपके सौतेले भाई पर हमला हमने ही किया था। क्योंकि उसने आपके साथ बदतमीज़ी की थी, आपके ऊपर हाथ उठाया था। हम चाहे तो वहीं उसकी जान ले लेते, लेकिन नहीं, हम उसके लिए ऐसी सज़ा मुक़र्रर करना चाहते थे जिससे उसे जो उसने आपके साथ किया, उसे जीवन भर पछतावा हो। इसीलिए हमने हमेशा के लिए उसके चेहरे को बदसूरत बना दिया।"

    आयशा साँसें थामकर उसकी बात सुन रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हो रहा है, लेकिन जो कुछ भी वह कह रहा था, वह बिल्कुल सही लग रहा था।

    तब वह जिन्न थोड़ा आगे बढ़ा और आयशा के बिलकुल करीब आकर खड़ा हो गया। और बोला, "हमें आपसे मोहब्बत है और हम आपसे शादी करना चाहते हैं। इसके लिए हम अपने घर में भी बात कर चुके हैं। तो क्या आप हमसे शादी करने के लिए तैयार हैं?"

    अचानक शादी के प्रस्ताव को सुनकर आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। उसकी शादी के लिए कोई इंसान नहीं, बल्कि एक जिन्न पूछ रहा था!

    तब आयशा ने कहा, "नहीं, यह आप क्या कह रहे हैं? इंसान और जिन्न की शादी नहीं हो सकती। आप गलत कह रहे हैं। आपको यहाँ से जाना होगा। मैं आपसे शादी नहीं कर सकती। आप जाइए यहाँ से और आइंदा मेरी ज़िंदगी में दखल देने की कोशिश मत करना, समझें?"

    ऐसा कहकर आयशा ने उसे जाने को कहा। आयशा की बातें सुनकर शहजादा गुलफाम थोड़ा दुखी हुआ, लेकिन अगले ही पल वह वहाँ से गायब हो चुका था। उसके गायब होने के बाद आयशा देर तक उसकी खुशबू को महसूस करती रही। और उसे अब समझ आ गया था कि हर रात खिड़की पर जो खुशबू महसूस करती थी, वह इसी जिन्न की थी।

    कुछ देर उसके बारे में सोचने के बाद आयशा अपनी दादी के कमरे में गई। उसने देखा उसकी दादी उठकर बैठी हुई थीं। वे पहले से ज़्यादा ठीक हो चुकी थीं। उसकी दादी को बिलकुल ठीक देखकर उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। तभी उसे याद आया कि उसने जिन्न से इस बारे में झगड़ा किया था कि उसने उसकी दादी की ऐसी हालत क्यों की है, इसलिए वह उससे नफ़रत करती है। ज़ाहिर है, जिन्न जाने से पहले उसकी दादी को ठीक कर गया था।

    आयशा अपनी दादी को ठीक देखकर कहीं न कहीं खुश हो गई थी। उसने उन्हें गले लगा लिया और कहने लगी, "दादी, आप ठीक हो गईं! आप जानती हैं मैं आपके बिना कितनी अकेली हो गई थी।"

    तब आयशा की दादी ने उसके माथे को चूमा और बोली, "मेरी बच्ची, तुझे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मैं अब ठीक हूँ। और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं इतनी जल्दी कैसे ठीक हो गई।"

    तब आयशा ने अपनी दादी को सारी बात बताई कि आपको किसी और ने नहीं, बल्कि उसी जिन्न ने ठीक किया है। उसे मैंने अपनी आँखों से देखा था। जैसे ही आयशा ने अपनी दादी से यह कहा, दादी की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।

    उसने कहा, "बेटे, तुझे उसे बुलाने के लिए नहीं कहना चाहिए था। तूने बहुत बड़ी गलती कर दी है।"

    जैसे ही आयशा की दादी ने यह कहा, आयशा हैरानी से उन्हें देखने लगी और बोली, "आप ऐसा क्यों कह रही हैं? मैंने तो उसे साफ़ मना कर दिया है कि मैं आपसे किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती और न ही मैं आपसे शादी करूँगी।"

    तब आयशा की दादी ने आयशा के गाल को छूते हुए कहा, "मेरी बच्ची, वह अब तक छुपा हुआ क्यों था और तेरे सामने क्यों नहीं आ रहा था? क्योंकि तूने एक बार भी उसे अपने सामने आने के लिए नहीं कहा था। इसीलिए वह तेरे करीब तो था, लेकिन अदृश्य होकर। लेकिन अब तूने सामने से जैसे ही उसे आने के लिए कहा, तो उसके वजूद को एक शरीर मिल गया और वह उस रूप में तेरे सामने आया। इसका मतलब साफ़ है, अब वह हमेशा तेरे साथ रहेगा। वह कभी भी तुझे अकेला नहीं छोड़ेगा।"

    जैसे ही आयशा की दादी ने यह कहा, आयशा थर-थर कांपने लगी और कहने लगी, "दादी, आप क्या कह रही हैं? और वह जिन्न भला मेरे साथ क्यों रहेगा? और मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।" तब उसकी दादी ने कहा, "मैंने तुझे जो धागा दिया था, वह कहाँ है? फटाफट जाओ और वह धागा लेकर आओ।"

    दादी की बात सुनकर आयशा जल्दी से अपने कमरे की ओर भागी।

    जैसे ही आयशा अपने कमरे में धागा लेने गई, उसे एक बार फिर से अपने कमरे में बहुत अच्छी खुशबू महसूस हुई। और वह समझ गई कि वह जिन्न उसके आस-पास है। जैसे ही वह पीछे पलटी, उसने देखा वह जिन्न उसकी नाक के सामने खड़ा था।

    उसे इतने करीब देखकर आयशा डर गई। जैसे ही वह पीछे हटी, जिन्न ने उसके खूबसूरत बालों को पकड़ लिया और अपने होठों को उसके होठों के करीब लाते हुए बोला, "तुम चाहे कितने भी धागे-ताबीज़ पहन लो, लेकिन तुम मुझे मुझसे दूर नहीं कर सकती। और एक और बात, कान खोलकर सुन लो, अगर तुमने अपनी दादी की बात मानी, तो मैं तुम्हारी दादी की हालत बहुत बुरी कर दूँगा। मैं तुम्हारी दादी की जान भी ले सकता हूँ। तुम तो मेरी ताकत देख ही चुकी हो ना? इसीलिए मुझसे दूर जाने के बारे में सोचना भी मत।"

    शहजादा गुलफाम की बात सुनकर आयशा की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उस वक़्त कैसे बचे, क्योंकि वह उसके बेहद करीब था। उसकी साँसें उसकी साँसों से टकरा रही थीं, जिसकी वजह से जिन्न की सारी खुशबू आयशा के अंदर आ रही थी। आयशा का दिल तो चाह रहा था कि वह उसकी खुशबू को जी भरकर महसूस करे, लेकिन वह यह भी जानती थी कि उसके सामने कोई इंसान नहीं, जिन्न था। इसीलिए उसे जितना हो सके, उससे बचना था।

    तब जिन्न ने आयशा से कहा, "मैं ज़िंदगी भर तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम पर कभी किसी तरह की कोई आँच नहीं आने दूँगा। दुनिया भर की दौलत, हीरे-जवाहरात, मोती, मैं तुम्हें सब लाकर दूँगा और हमेशा दुनिया की बुरी नज़रों से बचाकर रखूँगा। और मैं तुम्हें कभी बीमार भी नहीं पड़ने दूँगा, तुम कभी बूढ़ी भी नहीं होगी। जैसा तुम कहोगी, वैसा मैं तुम्हारे लिए घर बनाऊँगा। पर बदले में तुम्हें मेरी बीवी बनकर मेरे साथ रहना होगा, क्योंकि मैं तुम्हारे इन खूबसूरत बालों, इन खूबसूरत आँखों में उलझ गया हूँ और मुझे नहीं लगता मैं जीवन भर इनसे निकल पाऊँगा।"

    जिन्न की रोमांटिक बातें सुनकर आयशा के गाल शर्म से लाल हो गए थे। जिन्न ने यह महसूस कर लिया और कहा, "जब तक हमारा निकाह नहीं हो जाता, तब तक मैं तुम्हें नहीं छू पाऊँगा।" ऐसा कहकर वह उसके होठों के बेहद करीब होते हुए हटा। और आयशा के हृदय तितली की तरह फड़फड़ाने लगे, क्योंकि उस वक़्त उसका दिल उसे किस करने का इशारा कर रहा था।

    फिर जैसे ही जिन्न उसके पास से चला गया, आयशा ने खुद को डाँटा और जिन्न की बात को याद करने लगी। क्योंकि उसने साफ़-साफ़ कहा था कि अगर उसने अपनी दादी की बात मानी, तो वह उसकी दादी की जान लेने में एक पल नहीं सोचेगा। पर अब उसकी दादी के कहे मुताबिक, अब चौबीस घंटे वह जिन्न उसके आस-पास रहने वाला था।

  • 9. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 9

    Words: 2009

    Estimated Reading Time: 13 min

    जिन्नजादे के जाने के बाद आयशा देर तक उसके बारे में सोचती रही। फिर उसे अचानक उसकी दादी का ख्याल आया क्योंकि उसकी दादी ने ही वह काला धागा मंगवाया था।

    इसलिए आयशा जल्दी से धागा लेकर दादी के पास जाने लगी। साथ ही उसने यह भी सोच लिया था कि वह दादी की जान को किसी भी तरह का खतरा नहीं होने देगी, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े। अगर जिन्नजादे इसके लिए उसकी जान भी ले ले, तो उसे कोई परवाह नहीं थी।

    जैसे ही आयशा की दादी ने आयशा को देखा, वह तुरंत उसके पास उठकर खड़ी हो गई और उसके पास जाकर बोली, "मुझे वह काला धागा दिखाओ।"

    जैसे ही दादी ने आयशा के हाथ में काला धागा देखा, उनकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि वह काला धागा अब एकदम लाल धागे में बदल चुका था। और जैसे ही दादी ने उस लाल धागे को हाथ में लिया, कंपकंपा कर उनके हाथ से वह धागा नीचे छूट गया।

    ऐसा लग रहा था मानो दादी को कुछ याद आ गया हो। उसके बाद दादी देर तक अपनी पोती आयशा को देखती रही। उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली, "मेरी बच्ची, मुझे माफ कर देना। मैं सही तरीके से तुम्हारी रक्षा नहीं कर पा रही हूँ। लेकिन अब केवल एक ही रास्ता है तुम्हारी जान बचाने के लिए। वह मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकती हूँ। लेकिन जब तक मैं तुम्हारा इलाज न कर दूँ, तब तक तुम बगीचे में नहीं जाओगी और न ही तुम जिन्नजादे के बारे में सोचोगी। याद रखना, जितना तुम उसके बारे में सोचोगी, उतना ही जल्दी वह तुम्हारे आसपास आएगा और तुम पर लिपट जाएगा।"

    एक बार को तो आयशा का दिल किया कि वह अपनी दादी को सब कुछ बता दे कि वह जिन्नजादा उसके सामने आ चुका है। और इतना ही नहीं, वह यह भी कह चुका है कि अगर उसने उसके बारे में उसकी दादी को कुछ बताया तो वह उसकी दादी की जान ले लेगा।

    लेकिन आयशा कुछ सोचकर चुप हो गई। वह अभी उन्हें कुछ नहीं बताना चाहती थी क्योंकि वह जिन्नजादे की ताकत को अच्छी तरह से देख चुकी थी।

    जिस तरह से जिन्नजादे ने उसके सौतेले भाई पर हमला किया था और जिस तरह से उसके मदद के लिए आदमी भी भेजे थे, वह समझ चुकी थी कि उसके अंदर कितनी शक्तियाँ हैं। इसलिए उसने उस वक्त चुप रहने में ही भलाई समझी।

    आयशा को इस तरह खोया-खोया देखकर उसकी दादी ने उससे पूछा, "क्या हुआ बेटी? तुम क्या सोच रही हो?"

    लेकिन इससे पहले कि आयशा कुछ कहती, उन्हें अपने घर के बाहर किसी तरह का शोर सुनाई दिया।

    दोनों ने एक-दूसरे को देखा और जल्दी ही अपने कमरे से आकर बाहर देखा। वे चौंक गईं। क्योंकि उनकी सौतेली माँ, उसकी सौतेली बहन और उसके अब्बा वहाँ आ गए थे। और जैसे ही उन्होंने उन दोनों के ठीक पीछे व्हीलचेयर पर बैठे हुए उसके सौतेले भाई को देखा, तो वह पूरी तरह से हैरान हो गईं।

    क्योंकि उसके सौतेले भाई का चेहरा बहुत ही भयानक और कुरूप हो गया था। वह बहुत भद्दा दिखाई दे रहा था। अगर कोई सामान्य इंसान उसे देखता, तो उल्टी किए बिना नहीं रह सकता था।

    जैसे ही दादी ने अपने पोते की ऐसी हालत देखी, उनके दिल में उसके लिए रहम पैदा हो गया। और जल्दी ही वह उसके पास जाकर पूछने लगी, "क्या हुआ? मेरे बच्चे को इतनी बुरी हालत किसने कर दी?" तभी उसकी सौतेली माँ आँखों में आँसू लाकर बोली,

    "अरे बुढ़िया! ज़रूर तेरी ही कोई बद्दुआ लगी होगी जो मेरे बच्चों पर ऐसी आफ़त आन पड़ी है। तूने देखा, मेरे बच्चे का पूरा चेहरा कितना बेकार हो गया है! अब यह कितना भयंकर दिखाई दे रहा है!"

    अपनी बहू की बात सुनकर दादी के दिल में दर्द सा उमड़ आया। क्योंकि भले ही उन्होंने कितना ही आयशा को तंग किया हो, लेकिन आज तक उन्होंने उसके बच्चों के लिए किसी तरह की बद्दुआ का प्रयोग नहीं किया था। केवल उन्हें हिदायत पाने की दुआ किया करती थीं और आयशा को भी शुरू से यही बात समझाया करती थीं कि एक दिन इन लोगों को अपनी गलती का एहसास हो जाएगा।

    तब दादी बोली, "यह कैसी बातें कर रही हो बहू? यह क्या तरीका हुआ बात करने का? मैं पूछ रही हूँ, आखिर हुआ क्या है?" दादी को कुछ भी नहीं पता था कि आखिर क्या हुआ था।

    तब आयशा डरने लगी कि कहीं ये लोग वापस से उस झूमर को न देख लें क्योंकि वह झूमर वापस अपनी जगह पर लग चुका था। वह इस बात को लेकर काफी डर महसूस कर रही थी। क्योंकि वह जानती थी अगर उसकी सौतेली माँ ने उस झूमर को देख लिया, तो पक्का वह एक बार फिर से उसे अपना निशाना बना लेंगी और उसके साथ मारपीट करने से पीछे नहीं हटेगी।

    तभी अचानक डरते-डरते आयशा झूमर की ओर देखने लगी, लेकिन वह देखकर चौंक गई कि अब हवेली के ऊपर वह झूमर नहीं था। जैसे ही आयशा ने यह देखा, उसकी जान में जान आ गई क्योंकि उस जिन्नजादे ने वह झूमर एक बार फिर गायब कर दिया था।

    तब आयशा की सौतेली माँ अपनी बूढ़ी सास की बात सुनकर बोली, "ज़रूर तुम दोनों कलमुँहे की नज़र लगी है मेरे बच्चे पर! जब भी तो उसकी ऐसी हालत हो गई है!" वैसे भी उसकी सौतेली माँ किसी न किसी पर अपनी भड़ास निकालना चाहती थी।

    और आयशा उसके लिए बेस्ट ऑप्शन थी। इसलिए हमेशा की तरह उसने आयशा से उल्टी-सीधी बातें करना शुरू कर दिया और आयशा के ठीक सामने खड़े होकर उसे गंदी-गंदी गालियाँ देना शुरू कर दिया।

    और जैसे ही उसने एक-दो गंदी गालियाँ दीं, अचानक से उसकी सौतेली माँ को जोरों से खांसी आने लगी। वह इतनी जोरों से खांस रही थी मानो वह साँस भी नहीं ले पा रही थी।

    अपनी सौतेली माँ की ऐसी हालत देखकर आयशा का दिल चाहा कि वह औरत का ध्यान रखे, उसे पकड़े, लेकिन वह समझती थी अगर उसने उसे छुआ तो वह एक बार फिर उस पर बरसना शुरू हो जाएगी। क्योंकि वे लोग कभी भी आयशा की परछाई अपने ऊपर नहीं पड़ने देते थे। उन्हें छूना तो फिर बहुत बड़ी बात थी।

    लेकिन जब उसकी सौतेली माँ को साँस लेना मुश्किल हो गया, तब आयशा ने उसकी कमर को सहलाना शुरू कर दिया और उसे पानी पिलाया। पानी पीने के बाद, जब वह थोड़ा साँस लेने लगी, तो उसने आयशा की ओर देखा।

    और एक बार फिर वह उसे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन क्या हुआ? उसकी जुबान ही नहीं उठ रही थी। वह आयशा को गाली देना चाहती थी, एक बार फिर से टॉर्चर करना चाहती थी, लेकिन इस बार उसके मुँह से आवाज ही नहीं निकल रही थी। उसकी आवाज दब कर रह गई थी। जैसे ही आयशा ने यह देखा, तो वह काफी हैरान हो गई और कहीं न कहीं उसे समझ में आ गया कि यह सब क्या हुआ है और किसने किया है। क्योंकि वह बहुत ही खूबसूरत खुशबू अपने आस-पास महसूस कर रही थी।

    तो आयशा समझ चुकी थी कि यह सब कुछ जिन्नजादे ने ही किया है। जिन्नजादे ने ही उसकी सौतेली माँ को खांसी दिला दी थी और साथ ही साथ उसकी आवाज को भी गायब कर दिया था।

    तब आयशा ने धीरे से कहा, "मेरी सौतेली माँ की आवाज ठीक कर दो।" आयशा ने काफी धीरे से बोला था, लेकिन जिन्नजादे ने सुन लिया था और वह मुस्कुराने लगा था क्योंकि वह इतना तो समझ गया था कि आयशा अब उसके बारे में समझने लगी है। साथ ही साथ उसके मन में उसके लिए डर होने का एहसास भी उसे होने लगा है। यही बात उसके लिए बहुत मायने रखती थी। जल्दी ही आयशा का हुक्म था, तो वह भला कैसे टाल सकता था? इसलिए जिन्नजादे ने जल्दी ही उसकी सौतेली माँ की आवाज वापस लौटा दी।

    आवाज मिलने के बाद अब उन्होंने आयशा को कोई गाली नहीं दी और अपने बेटे को देखने लगी। जल्दी ही कुछ लोगों की मदद से उन्होंने उसे उसके कमरे तक भिजवा दिया। और चौबीस घंटे उसकी देखभाल के लिए एक मुलाज़िम रख लिया क्योंकि वह अपने बेटे की देखभाल अच्छी तरह से नहीं कर सकती थी। साथ उसे वॉशरूम वगैरा ले जाने के लिए भी उन्हें किसी की ज़रूरत थी। इसलिए उन्होंने एक मुलाज़िम अपने घर में रख लिया।

    तभी उसके अब्बा हैरान-परेशान से हाल में बैठे हुए थे क्योंकि उनके बेटे की हालत बहुत ही बुरी हो चुकी थी। उनका बेटा आखिर उनका इकलौता बेटा था, तो उन्हें उसकी फिक्र हो ही रही थी। तभी आयशा की सौतेली बहन सकीना रोते हुए अपने अब्बा के पास आई और बोली, "अब आप मेरा क्या होगा? मेरी तो यूनिवर्सिटी के एग्ज़ाम होने हैं और भाई की ऐसी हालत हो गई है। अब मैं यूनिवर्सिटी किसके साथ जाऊँगी? आप तो मुझे अकेले जाने भी नहीं देंगे।" ऐसा कहकर वह बहुत तेज़ी से रोने लगी।

    सकीना यूनिवर्सिटी सिर्फ़ एक लड़के से मिलने के लिए जाया करती थी। और कहीं न कहीं अपने भाई के बीमार होने पर उसे ऐसा लगने लगा था कि उसके अब्बा उसकी यूनिवर्सिटी जाना छुड़ा देंगे। लेकिन सकीना किसी भी कीमत पर यूनिवर्सिटी जाना नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि जिस लड़के से वह मोहब्बत करती थी, वह यूनिवर्सिटी में ही उसे मिला करता था। और अपने भाई की नज़रों से बचकर वह हर रोज़ यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी या गार्डन, जहाँ भी उन्हें मौका मिलता था, वे लोग मिल लिया करते थे। उस लड़के का नाम आरिफ़ था।

    सकीना आरिफ़ को बहुत मोहब्बत करती थी। वह कॉलेज जाने के बहाने उसे मिला करती थी। लेकिन अब अपने भाई की ऐसी हालात होने पर कहीं न कहीं उसे लगने लगा था कि उसके अब्बा अब उसे कॉलेज नहीं जाने देंगे।

    क्योंकि जिस वक़्त सकीना का कॉलेज में एडमिशन हुआ था, उसी वक़्त उसके भाई का भी हुआ था और उसके अब्बा ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि जब तक उसका भाई कॉलेज जाएगा, तब तक सकीना भी कॉलेज जाएगी। और आयशा का तो उन्होंने नाम भी नहीं लिया था क्योंकि उसकी सौतेली माँ ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि आयशा घर से बाहर नहीं जाएगी। उन्होंने भी अपनी बीवी की बात मान ली थी और आयशा को उन्होंने कॉलेज में एडमिशन नहीं लेने दिया था। लेकिन अब सकीना को इस तरह से रोते हुए देखकर उनके दिमाग में एक आईडिया आ चुका था।

    और उन्होंने सकीना से कहा, "अगर तुम कॉलेज जाना चाहती हो, तो एक काम करो, आयशा का एडमिशन अपने साथ करवा लो। फिर तुम दोनों बहन कॉलेज आना-जाना कर सकती हो। साथ ही साथ मैं तुम लोगों को एक गाड़ी दे दूँगा और ड्राइवर समेत जो तुम्हें कॉलेज लेकर भी जाएगा और ले भी आया करेगा और घर भी ले आया करेगा।"

    अपने पिता की बात सुनकर सकीना को गुस्सा आ गया। क्योंकि वह आयशा को अपने साथ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। लेकिन फिर वह सोचने लगी कि घर से बाहर निकलने का अगर उसके पास कोई रास्ता है, तो वह है सिर्फ़ आयशा। और वैसे भी आयशा थोड़े ही मेरे पर ध्यान रखेगी। यह सोचते हुए सकीना ने हाँ कह दिया।

  • 10. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 10

    Words: 2077

    Estimated Reading Time: 13 min

    आयशा का यूनिवर्सिटी में एडमिशन कराने के लिए उसे पहले अपनी माँ को मनाना था। वह जानती थी उसकी माँ कभी नहीं चाहेगी कि आयशा कॉलेज जाए।

    आयशा ने किसी तरह पाठशाला से बारहवीं कक्षा पास कर ली थी।

    लेकिन उसके बाद उसकी माँ ने उसे कॉलेज में एडमिशन नहीं दिलाया था।

    आयशा की सौतेली माँ ने कभी नहीं चाहा था कि आयशा पढ़ाई करे। बारहवीं तक उसकी दादी ने लड़-झगड़ कर उसकी पढ़ाई पूरी करवाई थी।

    लेकिन आगे वह भी नहीं लड़ पाई थी क्योंकि उसके पिता ने साफ़ मना कर दिया था और सकीना को केवल उसके भाई के साथ जाने की अनुमति थी।

    आयशा का परिवार पिछड़ी सोच का था जहाँ लड़कियों की शिक्षा को अच्छा नहीं माना जाता था।

    लेकिन उसकी सौतेली माँ ने अपनी बेटी सकीना को उसके भाई के ज़रिये कॉलेज में एडमिशन दिलवा दिया था। लेकिन अब, क्योंकि उसका भाई बीमार हो चुका था, सकीना ने आयशा को अपना मोहरा बनाने के बारे में सोचा था।

    वह समझ चुकी थी कि अगर आयशा उसके साथ जाती है, तो उसके बाबा उसे जाने देंगे, वरना उसका भी कॉलेज छूट जाएगा।

    लेकिन वह किसी भी कीमत पर कॉलेज नहीं छोड़ना चाहती थी।

    क्योंकि कॉलेज में उसका प्यार था, आरिफ। उससे मिलने के लिए वह कुछ भी कर सकती थी।

    इसलिए उसने अपनी माँ को अपने आँसुओं के झूठे जाल में फँसाकर आयशा के लिए भी हामी भरवा ली थी।

    और जल्दी ही उसके अब्बा ने आयशा का एडमिशन उसी कॉलेज में करवा दिया था। आयशा को यह बात जानकर बहुत खुशी हुई थी।

    क्योंकि वह शुरू से ही बहुत पढ़ना चाहती थी, लेकिन उसकी सौतेली माँ ने बारहवीं के बाद उसे पढ़ने नहीं दिया था।

    लेकिन अब उसका कॉलेज में एडमिशन हो चुका था, यह बात उसे बहुत अच्छी लगी और वह इस बात को लेकर बहुत खुश थी।

    और वह अपनी यह खुशी अपनी दादी के साथ बाँट रही थी।

    आयशा को इस बात का दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि दो और आँखें थीं जो आयशा को खुश देखकर खुशी से चमक रही थीं।

    लेकिन उसकी खुशबू वहाँ फैल चुकी थी और आयशा उसकी खुशबू का एहसास कर चुकी थी। उस खुशबू को अपने अंदर बसाने के बाद आयशा ने सोचा कि मुझे उससे बात करनी होगी, ताकि वह उसकी ज़िन्दगी में अब बिलकुल न आए क्योंकि उसकी ज़िन्दगी अब थोड़ी बहुत सामान्य होने वाली थी।

    आयशा को शहज़ादे के आस-पास होने का एहसास हो चुका था, लेकिन वह अपनी दादी के सामने कुछ नहीं कहना चाहती थी।

    क्योंकि शहज़ादे ने उसे साफ़ कहा था कि वह उसके बारे में अपनी दादी को कुछ न बताए। अगर उसने अपनी दादी को कुछ भी बताया, तो वह उसकी दादी की जान लेने में एक पल भी नहीं सोचेगा।

    शहज़ादे की धमकी से आयशा बहुत डर गई थी। इसलिए उसने शहज़ादे के वहाँ होते हुए भी उसे इग्नोर कर दिया था।

    जल्दी ही आयशा अपने कमरे में आ गई थी और खुशी से घूमने लगी थी क्योंकि वह शुरू से ही पढ़ना चाहती थी और उसका पढ़ने का सपना पूरा होने जा रहा था।

    आयशा को इस बात का दूर-दूर तक कोई अंदाजा नहीं था कि कॉलेज में उसके साथ क्या होने वाला था।

    आयशा जैसे ही घूम रही थी, उसे फिर से वहाँ खुशबू का एहसास हुआ और उसने घूमना बंद कर दिया और अपने दुपट्टे को संभालने लगी थी।

    वह अच्छी तरह जानती थी कि अगर उसे खुशबू आ रही है तो शहज़ादा बहुत करीब होगा और उसे देख रहा होगा। इसलिए आयशा ने जल्दी से खुद को ढँक लिया।

    वहीं शहज़ादे कामरान के होठों पर मुस्कराहट आ गई थी। आयशा की हरकत को देखकर वह उसे अपने होठों से छूना चाहता था।

    लेकिन उसने ठान लिया था कि जब तक आयशा के साथ उसका निकाह नहीं हो जाता, वह उसे नहीं छू सकता था।

    वह केवल उसकी खूबसूरती को दूर से ही महसूस कर सकता था। शहज़ादा कामरान मुस्कुराते हुए आयशा को देर तक देखता रहा था।

    उसके बाद आयशा उसकी खुशबू को अपने अंदर समाती हुई सो गई थी, क्योंकि वह बहुत अच्छी खुशबू थी और वह उसे इग्नोर नहीं कर पाती थी।

    जल्दी ही आयशा गहरी नींद में सो गई थी और शहज़ादा कामरान उसके बराबर में लेटकर पूरी रात उसे देखता रहा था।

    क्योंकि जिन्न कभी नहीं सोते थे और आयशा को सोते हुए देखकर उसे बहुत सुकून मिल रहा था।

    शहज़ादा भले ही आयशा के साथ मामूली सी चटाई पर लेटा हुआ था, लेकिन अपने जादू से उसने उस चटाई को इतना मुलायम बना दिया था कि आयशा को वह चटाई एकदम नरम रुई के समान लग रही थी।

    और वह उसके बेहद करीब लेट गया था और आयशा को अपनी आँखों में बसाने लगा था।

    कितनी देर तक वह आयशा के करीब लेटा रहा, बस उसका शरीर उसके शरीर को नहीं छू रहा था, केवल हल्का सा ही फासला था।

    लेकिन आयशा की गर्म साँसें वह अपने चेहरे पर आराम से महसूस कर सकता था और किसी तरह कंट्रोल करके वह उसी के पास लेटा रहा था।

    पूरी रात वह आयशा को सोते हुए इस तरह से देखता रहा था क्योंकि आयशा ने अब शहज़ादे को खुद बुला लिया था, तो शहज़ादा 24 घंटे उसके आस-पास रहने वाला था।

    उसकी दादी ने उसे यह बात पहले ही बता दी थी, लेकिन आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या वह शहज़ादे से अपना पीछा छुड़ाए या फिर उसे अपना ले।

    क्योंकि शहज़ादे ने उसकी ज़िन्दगी में आने के बाद उसकी ज़िन्दगी को बहुत खूबसूरत बना दिया था।

    वरना आयशा की ज़िन्दगी काँटों भरी थी। जब देखो उसकी सौतेली माँ उसे मारती-पिटती रहती थी।

    उसके सौतेले भाई-बहन उस पर अत्याचार करते रहते थे।

    लेकिन अब शहज़ादे ने अपनी शक्ति से उसकी सौतेली माँ को सबक सिखा दिया था और उसके साथ बदतमीज़ी करने वाले उसके सौतेले भाई की हालत ऐसी कर दी थी कि वह खुद को शीशे में नहीं देख सकता था।

    आयशा को यह एहसास बहुत अच्छा लग रहा था, लेकिन वह जानती थी कि अगर वह शहज़ादे को हाँ कह देती है, तो उसकी ज़िन्दगी कितनी बुरी बन सकती है।

    क्योंकि अभी तो सब कुछ उसे हरा-भरा दिखाई दे रहा था, लेकिन उसके बाद उसकी ज़िन्दगी में कितना गहरा अँधेरा होने वाला था, यह बात भी वह जानती थी।

    क्योंकि उसकी दादी ने उसे जिन्नातों की सच्चाई बता दी थी। इसलिए आयशा हर तरह से शहज़ादे से दूरी बनाकर रखना चाहती थी।

    और शहज़ादे के आस-पास होने की बात तो उसकी दादी ने पहले ही कह दिया था कि जब तक वह उसके लिए कुछ मुनासिब हल न निकाल ले, तब तक जैसे चल रहा है, उसे चलने दे।

    हालाँकि उसने अपनी दादी को कुछ नहीं बताया था, लेकिन उसकी दादी सब कुछ समझ चुकी थी, क्योंकि उसकी दादी यह सब बातें दूसरी बार महसूस कर रही थी।

    अतीत में कोई था जिसके साथ यह सब कुछ हुआ था।

    लेकिन उसके बारे में उसकी दादी आयशा को कुछ नहीं बताना चाहती थी।

    क्योंकि आयशा अभी उनकी नज़रों में बच्ची थी।

    और बच्चे को ज़्यादा परेशानी देना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था।

    वहीं आयशा आज बहुत खुश थी क्योंकि उसे अगली सुबह कॉलेज भी जाना था।

    उसके अब्बा ने कॉलेज आने-जाने के लिए गाड़ी का प्रबंध कर दिया था और एक ड्राइवर भी, जो उन्हें रोज कॉलेज लेकर जाएगा और घर भी ले आएगा।

    इसलिए आयशा कल सुबह का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। आज सुबह पाँच बजे ही आयशा की आँख खुली थी।

    और आयशा जैसे ही उठी, उसे बहुत अच्छा लग रहा था। क्योंकि वह जब भी चटाई से सोकर उठती थी, उसकी कमर अकड़ जाती थी।

    लेकिन आज सोकर उठने पर उसे अपनी कमर में कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। वह खुद को बहुत हल्का-फुल्का महसूस कर रही थी।

    तभी शहज़ादा भी आयशा के उठने के साथ उठकर बैठ गया था और आयशा को देखने लगा था।

    आयशा जल्दी ही बाथरूम में चली गई थी। शहज़ादा उसके पीछे नहीं गया था। वह आयशा के आने का इंतज़ार करने लगा था।

    जल्दी ही आयशा नहा-धोकर आ गई थी और अपने बालों को तौलिए से सुखाने लगी थी। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके बालों की कुछ बूँदें शहज़ादे पर पड़ रही थीं। आयशा को वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन शहज़ादा उसके बेहद करीब खड़ा हुआ था।

    और वह आयशा को खूबसूरती से बाल सुखाते हुए देख रहा था। वह कभी उसकी आँखों को देख रहा था, कभी उसके होठों को।

    आयशा के होठ लाल गुलाबी थे, जो उसे और भी ज़्यादा खूबसूरत बनाते थे।

    शहज़ादा कितनी देर तक आयशा के बालों की खूबसूरती में खोया रहा, उसकी महक वह अंदर तक समा रहा था।

    लेकिन उसने आयशा को हाथ नहीं लगाया था और बस वह उसी पल का इंतज़ार करने लगा था कि आयशा कब पूरी तरह से उसकी होगी।

    साथ ही शहज़ादे ने एक बोल्ड स्टेप ले लिया था।

    उसने एक खूबसूरत नौजवान का रूप लेकर आयशा के कॉलेज में जाने का फैसला कर लिया था।

    वह जानता था कि अगर उसे आयशा को अपने करीब करना है तो उसे इंसानी रूप में उसे इम्प्रेस करना होगा।

    अगर वह इंसानी रूप में उससे मोहब्बत करने लगेगी, तो वह जिन्न रूप में भी उसे अपना लेगी। शहज़ादे ने अपना प्लान पूरा तैयार कर लिया था।

    वहीं आयशा हमेशा की तरह नहा-धोकर जैसे ही बाहर आई, उसने देखा कि पूरा नाश्ता-खाना सब कुछ बना हुआ था।

    क्योंकि आज आयशा का कॉलेज का पहला दिन था, तो शहज़ादे ने उसके लिए सारा खाना-नाश्ता पहले ही तैयार कर दिया था। जैसे ही आयशा ने यह देखा, उसकी हैरत का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपनी दादी से सब कुछ कहना चाहती थी, लेकिन फिर वह कुछ सोचकर चुप हो गई थी।

    लेकिन आयशा जानती थी कि भले ही शहज़ादे ने खाना बना दिया हो, लेकिन उसके कपड़े अभी भी पड़े हुए थे और उसकी सौतेली माँ ने उसे साफ़ कह दिया था कि वह कॉलेज एक ही शर्त पर जाएगी।

    वह कॉलेज जाते वक़्त घर का सारा काम करके जाएगी और कॉलेज से आने के बाद भी घर का सारा काम करेगी। इतनी बड़ी हवेली की सफाई से लेकर झाड़ू-पोछा, बर्तन, हर एक चीज की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ आयशा की ही थी।

    आयशा ने खुशी-खुशी सब करने की हामी भर ली थी। उसे तो इसी बात की तसल्ली थी कि उसे कम से कम कॉलेज जाने को तो मिल रहा था।

    लेकिन आयशा ने जैसे ही देखा कि पूरी हवेली चकाचक थी, साथ ही साथ सब कपड़े भी धुले हुए थे और सारा खाना बना हुआ था, गार्डन भी बहुत खूबसूरत लग रहा था, ऐसा लग रहा था मानो सारा काम किसी ने बड़ी सफाई से किया हो।

  • 11. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 11

    Words: 1627

    Estimated Reading Time: 10 min

    आयशा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह यह सारा काम हुआ देखकर खुश हो या रोए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इसके बारे में किसी को क्या बताए। उसकी सौतेली माँ उठकर आई और सारा काम हुआ देखकर हैरान रह गई।

    उसने सोचा था कि आयशा के कॉलेज जाने से पहले उसे थोड़ा-सा सुनाएगी, या मारेगी, लेकिन ऐसा न होने से उसका सारा प्लान खराब हो गया था।

    इसलिए अब उसके पास आयशा को डाँटने या मारने की कोई वजह नहीं थी। फिर भी, वह आयशा को टोन्‍ट देने से बाज़ नहीं आई। "लगता है तुम्हें कॉलेज जाने की कुछ ज़्यादा ही जल्दी है। इसीलिए पूरी रात नहीं सोई हो और पूरी रात जाकर सारा काम तुमने खत्म कर दिया है, ना? पर एक बात कान खोलकर सुन लिया करो—कॉलेज से तेरी किसी तरह की कोई शिकायत है, या तूने किसी आदमी या लड़के के साथ नैन-मट्‌टा किया, तो मैं तेरा वह हाल करूँगी, जो सोच भी नहीं सकती। समझी?"

    आयशा ने अपनी सौतेली माँ को कोई जवाब नहीं दिया। हल्की-सी मुस्कराहट के साथ उसने अपनी गर्दन हिला दी और अपनी दादी के कमरे की ओर जाने लगी। वह अपनी दादी को नाश्ता करवाकर कॉलेज के लिए निकलना चाहती थी। क्योंकि ठीक 8:00 बजे उन्हें कॉलेज के लिए निकलना था और 7 बज चुके थे। उसके पास ज़्यादा समय नहीं था। आयशा अपनी दादी के कमरे में गई तो देखकर हैरान हो गई कि उसकी दादी कमरे में नहीं थी।

    आयशा को यह बात अजीब लगी। आमतौर पर उसकी दादी इतने समय तक अपने कमरे में ही होती थी। लेकिन आज दादी वहाँ नहीं थीं, इसलिए आयशा ने हर जगह अपनी दादी को ढूँढ़ना शुरू कर दिया। आयशा की नज़र बाहर निकलकर गार्डन पर पड़ी और गार्डन के लास्ट के छोर पर उसने अपनी दादी को बैठी हुई देखा। वह हैरान रह गई।

    वह सोचने लगी कि आखिर दादी वहाँ क्या करने गई होगी? कहीं दादी को शक तो नहीं हो गया है कि आखिर क्या चल रहा है? आयशा को दूर-दूर तक इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि उसकी दादी वहाँ क्या कर रही थी। दूर से देखने पर उसे यह ज़रूर पता चल रहा था कि उसकी दादी किसी से बात कर रही हैं। लेकिन वहाँ पर दादी के अलावा कोई और दिखाई नहीं दे रहा था। अब आयशा को समझ नहीं आया कि वह क्या करे? वह इतनी सुबह-सुबह वहाँ तक कैसे जाए, क्योंकि उसकी दादी ने उसे वहाँ जाने से सख्ती से मना किया हुआ था।

    लेकिन दादी को इस तरह से वहाँ बैठी हुई देखकर वह खुद को रोक नहीं पाई और जल्दी ही वह भी गार्डन की ओर चल दी। जैसे ही आयशा अपनी दादी के पास गई, तो उसे दादी की आवाज़ धीरे-धीरे सुनाई देने लगी। उसकी दादी किसी से कह रही थीं, "तुम्हें यह सब देखना होगा, तुम्हें उसे समझना होगा।"

    जैसे ही आयशा ने यह सब सुना, तो वह अपने आप को रोक नहीं पाई। "दादी, आप किससे बात कर रही हैं? और किसे कह रही हैं कि समझना होगा?"

    आयशा को इस तरह से अपने सामने देखकर उसकी दादी थोड़ा-सा हड़बड़ा गईं। "तेरी बेटी तो यहाँ क्यों आ गई? और मैं तो यहाँ ऐसे ही गार्डन में टहल रही थी। थोड़ा-सा घुटनों में दर्द था, तो सोचा क्यों न थोड़ी देर गार्डन में टहल लूँ, और जब थक गई तो यहाँ आकर बेंच पर बैठ गई हूँ।"

    दादी की बातों से झूठ साफ़ झलक रहा था, लेकिन आयशा उस वक़्त उन्हें कुछ नहीं कहना चाहती थी। तब आयशा ने अपनी दादी के गले में अपने दोनों हाथों को डालते हुए कहा, "दादी, आप मेरे लिए बिल्कुल भी परेशान मत होइए। आप जानती हैं, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है और मैं आज बहुत ज़्यादा खुश हूँ। और आप देखना, मैं खूब मन लगाकर पढ़ाई करूँगी और फ़र्स्ट आऊँगी। और उसके बाद किसी की भी हिम्मत नहीं होगी हमें कुछ भी कहने की।"

    आयशा की आँखों में चमक देखकर उसकी दादी भी खुश हो गईं और कहने लगीं, "मुझे पूरी उम्मीद है मेरी बच्ची अपने हर एक इम्तिहान में ज़रूर कामयाब होगी।" और तभी अचानक से दादी के चेहरे के एक्सप्रेशन बदलने लगे। आयशा को समझ में नहीं आया। अभी तो दादी इतनी ज़्यादा खुश थीं, लेकिन अचानक से उनका पूरा चेहरा काफ़ी सख्त हो गया।

    और तब उन्होंने थोड़ी सख्त आवाज़ में आयशा से कहा, "बेटी, तुम जाओ यहाँ से, जाओ जल्दी से।" जैसे ही आयशा ने दादी की इस तरह की आवाज़ सुनी, तो वह भी थोड़ा-सा घबरा गई और बिना दादी से कोई सवाल किए वह तेज़ी से वहाँ से भागने लगी। आयशा के जाने के बाद उसकी दादी ने गुस्से से पेड़ की ओर घूरते हुए कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की? आखिर तुम समझ क्यों नहीं रही हो? मैंने कहा ना अपने बेटे को मेरी पोती से दूर रखो।"

    लेकिन तभी उन्हें किसी और की आवाज़ सुनाई दी। वह कोई और नहीं, बल्कि शहज़ादे कामरान की जिन्न माँ थी, जो आयशा की दादी से बात कर रही थी। आयशा की दादी शहज़ादे कामरान की माँ को अच्छी तरह से जानती थीं। उनका एक अतीत था, जिसकी वजह से वह उन्हें जानती थीं, और आज आयशा की दादी ने डिसीज़न ले लिया था कि वह सीधे शहज़ादे कामरान की माँ से बात करेगी कि उनका बेटा उनकी पोती के पीछे पड़ा हुआ है और वह अच्छी तरह से अपने बेटे को उसकी पोती के पीछे से हटा ले और समझा दे कि जिन्न और इंसानों का कभी भी मिलन नहीं हो सकता, कभी भी रिश्ता नहीं हो सकता।

    लेकिन आयशा के आने से पहले शहज़ादे कामरान की माँ ने उन्हें उनकी बात मान ली थी और कह दिया था कि आप बिल्कुल भी परेशान ना हों, मैं अपने बेटे को आयशा के पीछे जाने से रोकूँगी। लेकिन जैसे ही आयशा आई और उन्होंने आयशा की ख़ूबसूरती को देखा, तो वह भी उसे पसंद करने लगीं। और उन्होंने जब आयशा अपनी दादी से बात कर रही थी, उसी वक़्त आयशा की दादी से कहा था कि मुझे तो आपकी पोती बहुत पसंद आई है। अगर मेरा बेटा इसे पसंद करता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

    इसलिए दादी के चेहरे के भाव एकदम सख्त हो गए थे, और इसलिए उन्होंने जल्दी से आयशा को वहाँ से जाने के लिए कह दिया था। तब आयशा की दादी ने उस शहज़ादे कामरान की जिन्न माँ से कहा था, "मैं नहीं जानती तुम ऐसा क्या करोगी जिससे तुम्हारा बेटा मेरी पोती से दूर रहे, लेकिन एक बात कान खोलकर सुन लो—अगर तुमने कुछ नहीं किया, तो मजबूरन मुझे कोई न कोई कड़ा कदम उठाना पड़ेगा। क्योंकि मैं अपनी पोती की ज़िंदगी किसी भी कीमत पर बर्बाद नहीं होने दूँगी। समझी? और तुम जानती हो अगर मैं कड़ा कदम उठाऊँगी, तो मेरा कड़ा कदम क्या हो सकता है।"

    आयशा की दादी सीधे-सीधे शहज़ादे कामरान की माँ को धमकी देते हुए वहाँ से चली गई थीं। शहज़ादे कामरान की माँ, जो कि एक जिन्न थी, वह उनकी धमकी सुनकर काफ़ी ज़्यादा परेशान हो गई थी और वह अच्छी तरह से जानती थी कि जो कुछ भी वह कह रही थी, वह कर भी सकती थी। क्योंकि अतीत में भी वह उन शक्तियों का प्रयोग कर चुकी थी। कुछ सोचते हुए शहज़ादे कामरान की माँ, जो कि जिन्न बेगम थी, उन्होंने अपने बेटे से बात करने का फ़ैसला ले लिया था और जल्दी ही अपनी अदालत में उन्होंने अपने बेटे को बुला लिया था।

    उसका बेटा खड़ा हुआ अपनी माँ की ओर देख रहा था। उसकी माँ हमेशा से बड़ी ही शान-ओ-शौक़त के साथ अपने बेटे से मिला करती थी, लेकिन आज उनकी आँखों में कुछ अलग सा जुनून उसे साफ़ दिखाई दे रहा था। तब शहज़ादे कामरान ने अपनी माँ से कहा, "क्या हुआ अम्मी जान? आप इतनी परेशान क्यों हैं?"

    तब शहज़ादे कामरान की माँ ने उसे कहा, "हमें सुना है तुम एक लड़की पर आशिक हो चुके हो। हम जानते हैं कि वह लड़की बहुत ही ज़्यादा ख़ूबसूरत है, और हमें भी वह लड़की बहुत ज़्यादा पसंद आई है। लेकिन तुम अच्छी तरह से जानते हो कि किसी जिन्न लड़के के इंसानी लड़की से मोहब्बत करने का क्या अंजाम हो सकता है? तुम्हारी हालत भी कहीं तुम्हारे चाचा जान की जैसी ना हो जाए?" कुछ सोचते हुए उन्होंने जल्दी ही अपने किसी जिन्न साथी का नाम लिया, जिसे सुनकर कामरान भी चौंक गया। और बोला, "नहीं-नहीं अम्मी जान, हमारी हालत कभी भी चाचा जान की तरह नहीं हो सकती है, क्योंकि चाचा जान की मोहब्बत एकतरफ़ा थी, और हमें पूरा यकीन है आयशा हमसे मोहब्बत करेगी, और हमारी मोहब्बत दोनों तरफ़ा होगी।" शहज़ादे कामरान की माँ अपने बेटे की आँखों में आयशा के लिए जुनून साफ़ देख सकती थी।

    तभी उन्होंने कहना शुरू कर दिया, "ठीक है, हम तुम्हें एक महीने का समय देते हैं। अगर एक महीने के अंदर-अंदर वह लड़की भी तुमसे मोहब्बत करती है, तो हम तुम्हारा निकाह उस लड़की के साथ करवा देंगे। लेकिन अगर वह लड़की एक महीने में भी तुमसे मोहब्बत नहीं कर पाई, तो तुम्हें पीछे हटना होगा, और तुम अपनी हालत अपने चाचा जान की जैसी नहीं बनने दोगे।"

    अपनी माँ की बात सुनने के बाद शहज़ादे कामरान ने हाँ में सर हिला दिया था। वैसे भी एक महीना बहुत था आयशा को अपनी मोहब्बत का यकीन दिलाने का। कहीं न कहीं शहज़ादे कामरान यानी कि जिन्नज़ादे को इस बात का पूरी तरह से यकीन था, और जल्दी ही वह एक बड़े ही ख़ूबसूरत से नौजवान में बदलकर यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हो चुका था।

  • 12. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 12

    Words: 2058

    Estimated Reading Time: 13 min

    और जल्दी ही वह एक बड़े ही खूबसूरत नौजवान में बदलकर यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हो गया था। क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि यूनिवर्सिटी ही एक ऐसी जगह है जहाँ वह आयशा से रोज मिल सकता है और साथ ही साथ वह उससे अपने प्यार का इज़हार कर सकता है।

    वहीं आयशा, अपनी दादी से मिलकर आने के बाद काफी उदास हो गई थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसकी दादी ने उसे इस तरह से बात क्यों की थी। लेकिन फिर कुछ सोचते हुए उसने सोच लिया था कि ज़रूर कुछ न कुछ बात थी, लेकिन इसका पता वह जाकर लगाएगी। क्योंकि अभी उसे कॉलेज के लिए देर हो रही थी। ऑलरेडी दादी के पास जाने से आधा घंटा उसका बर्बाद हो चुका था। और तभी उसकी सौतेली बहन, सकीना, उसके सर पर सवार हो गई थी।

    "अगर तुमने आज पहले दिन ही लेट किया, तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगी, समझी तुम? एक तो मैंने तुझ पर रहम खाकर तेरा कॉलेज में एडमिशन करवा दिया है, ऊपर से तू अभी तक तैयार भी नहीं हुई है!"

    सकीना जो कि आराम से साढ़े सात बजे तक सोकर उठती थी, उसके बाद तैयार होकर सीधा कॉलेज जाया करती थी। वहीं आयशा बेचारी को सुबह पाँच बजे उठना पड़ता था और घर का सारा काम करने के बाद उसे फिर तैयार होकर कॉलेज के लिए जाना होता था। लेकिन उसे इस चीज से कोई मतलब नहीं था। सकीना को तो यही लग रहा था कि अगर आयशा ने देर कर दी तो वह अपने महबूब से जल्दी नहीं मिल पाएगी। इसीलिए वह आयशा को जल्दी तैयार होने को कहकर अपना बैग लेने के लिए अपने कमरे में चली गई थी।

    सकीना की बात सुनने के बाद आयशा डरने लगी थी कि कहीं वह कॉलेज के पहले दिन ही लेट न हो जाए और सकीना गुस्से से उसे छोड़कर न चली जाए। इसीलिए जल्दी से तैयार होकर अपना बैग लेकर बाहर हाल में आ गई थी। तब तक उसकी दादी भी वहाँ आ गई थी। उसने जल्दी से जाकर दादी को गले से लगा लिया था।

    तब उसकी दादी ने उसकी नज़र उतारते हुए कहा था, "मेरे बच्चे, तुझे किसी की नज़र न लगे। और हाँ, अच्छे से पढ़ाई कर लेना। मुझे पूरी उम्मीद है, तुम ज़रूर कामयाब होगी।"

    तभी आयशा पूछना चाहती थी कि आपने बगीचे में इस तरह का बर्ताव क्यों किया था, लेकिन वह उस वक़्त कुछ सोचकर कुछ भी नहीं कह पाई थी।

    तभी आयशा ने अपनी दादी से कहा था, "मैंने आपके लिए खाना बना दिया है। आप वही खाना खाएँ जो घर में बना हुआ रखा है, उसे मत खाएँ।"

    आयशा की बात सुनकर दादी कुछ हैरान हो गई थी क्योंकि आयशा ने जब जिन्नात का बना हुआ खाना दादी को खिलाया था, तो दादी को वह खाना कड़वा लगा था। तो इसीलिए आयशा ने दूसरा खाना दादी के लिए बना दिया था। तब दादी ने आयशा की बात मानते हुए उसे कह दिया था, "उसके खाने-पीने को लेकर परेशान मत हो। अच्छे से जाओ और अच्छे से अपनी पढ़ाई करके वापस आओ।"

    दादी की बात सुनकर आयशा मुस्कुरा दी थी और जल्दी ही बाहर गाड़ी में अपनी बहन सकीना के आने का इंतज़ार करने लगी थी।

    सकीना आयशा को गाड़ी में देखकर खुश हो गई थी क्योंकि उसे लगने लगा था कि अगर वह समय से नहीं आएगी तो वह उसे अच्छी खासी डाँटेगी, हो सकता है एक-दो थप्पड़ भी मार दे। कहने को तो सकीना आयशा से दो-तीन साल छोटी थी, लेकिन आयशा पर वह कभी भी हाथ उठा लिया करती थी।

    आयशा सकीना के साथ कॉलेज के लिए रवाना हो गई थी और जैसे-जैसे वे दोनों कॉलेज जा रही थीं, आयशा की आँखें हैरत से फटी जा रही थीं। आज कितने ही दिनों के बाद आयशा घर से बाहर निकली थी। इसीलिए आस-पास की जगह को देखना उसे काफी अच्छा लग रहा था। उसको अंदर तक सुकून पहुँच रहा था। और जैसे ही गाड़ी कॉलेज के सामने रुकी, आयशा की हैरत का कोई ठिकाना नहीं था। वह बड़ी ही खूबसूरत सफ़ेद और लाल रंग की इमारतें थीं, जो अपने आप में यूनिवर्सिटी को और भी ज़्यादा खूबसूरत बनाती थीं।

    यूनिवर्सिटी में अंदर जाने से पहले छोटा सा, बहुत ही खूबसूरत सा बगीचा पड़ता था। उसे पार करके यूनिवर्सिटी के अंदर जाया जाता था। आयशा को वह जगह बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसका दिल कर रहा था कि वह कितनी देर तक खड़ी होकर इस जगह को घूमती रहे।

    और जैसे ही आयशा सकीना के साथ कॉलेज में कदम रखा, तो सभी लड़कों और लड़कियों की नज़र आयशा पर पड़ गई थी। क्योंकि आयशा बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। आयशा ने सफ़ेद रंग का सलवार-कमीज़ पहना था जिसमें उसकी खूबसूरती और भी ज़्यादा दिखाई दे रही थी।

    सकीना ने जैसे ही यह देखा कि खासकर लड़कों की नज़र सिर्फ़ आयशा पर आकर ठहर गई थी, तो सकीना जलकर राख हो गई थी क्योंकि आयशा के आगे सकीना का रंग हल्का सा फीका पड़ता हुआ सा था। इसीलिए हमेशा से ही सकीना आयशा की खूबसूरती से जलती हुई आई थी। और आज जैसे ही कॉलेज के लड़कों ने आयशा को देखना शुरू कर दिया था, तो सकीना को बहुत ही ज़्यादा बुरा लगा था।

    वह आयशा को डाँटते हुए बोली थी, "तुम सीधी जाकर अपनी क्लास में बैठो। किसी से फालतू बात करने की कोशिश मत करना। अगर मुझे तुम्हारी जरा सी भी शिकायत आई, तो मैं एक मिनट में तुम्हारा नाम यूनिवर्सिटी से कटवा दूंगी, समझी तुम?"

    उसने आयशा को धमकी दे दी थी और इससे पहले कि वे दोनों क्लास में अलग-अलग जातीं, तभी सकीना का बॉयफ्रेंड, आरिफ़, जो कि सकीना के साथ एक खूबसूरत लड़की को देखकर उस पर आशिक हो चुका था, वह भी उसके सामने आकर खड़ा हो गया था।

    जैसे ही सकीना ने आरिफ़ को देखा, वह उसे उस वक़्त गले लगाना चाहती थी, लेकिन आयशा को पास में देखकर वह थोड़ा सा रुक गई थी। और फिर जैसे ही सकीना ने आरिफ़ की नज़रों का पीछा किया, तो वह गुस्से के मारे बहुत ही ज़्यादा बुरा हाल हो गया था। क्योंकि आरिफ़ भी आयशा को ही देख रहा था और वह सकीना से पूछे बिना नहीं रह पाया था कि सकीना के साथ आखिर यह लड़की कौन है, बड़ी खूबसूरत है।

    जैसे ही आरिफ़ ने सकीना के सामने आयशा की खूबसूरती की तारीफ़ की, तो सकीना का दिल चाहा कि वह किसी वक़्त आयशा का मुँह किसी पत्थर से फोड़कर कुचल दे या उसे बदसूरत बना दे। क्योंकि उसकी मोहब्बत ने उसी के सामने उसकी सौतेली बहन को खूबसूरत कहा था, तो कहीं न कहीं यह बात उसे अंदर तक चुभ गई थी।

    और फिर वह सब भुलाते हुए बोली थी, "आरिफ़, तुम्हें क्या लेना-देना है कौन खूबसूरत है कौन नहीं? तू अपने काम से काम रख। और यह मेरी सौतेली बहन है और एक नंबर की बदतमीज़ और बेवकूफ़ लड़की है। इसमें दिमाग नाम की कोई चीज नहीं है।"

    सकीना ने आयशा के लिए झूठे शब्दों का इस्तेमाल किया था ताकि आरिफ़ उसे इस तरह से न देखे। और आरिफ़ समझ चुका था कि अगर सकीना के सामने उसने आयशा की तारीफ़ की तो वह उसके साथ भी बुरा कर सकती थी। आखिरकार सकीना के रवैये से वह अच्छी तरह से वाकिफ़ था। इसीलिए वह जल्दी से अपनी बात पलटते हुए बोला था, "रे नहीं बेबी, तुम तो नाराज़ हो गईं। मेरा कहने का मतलब यह नहीं था। मैं तो सिर्फ़ इसलिए पूछ रहा था कि लड़की कौन है, तुमने आज से पहले नहीं देखी न?"

    तब सकीना ने उसे बता दिया था, "तुम्हें देखने की ज़रूरत भी नहीं है कि यह लड़की कौन है कौन नहीं। तुम चलो क्लास में।" और इस तरह से वह आयशा को उंगली दिखाकर वार्न करती हुई अपनी क्लास में चली गई थी।

    तभी आयशा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस ओर जाए। और अभी आयशा हल्का सा आगे बढ़ने ही लगी थी कि तभी अचानक से वह किसी से बहुत बुरी तरह से टकरा गई थी। और उसके हाथ में जो किताबें थीं, वे सारी बिखर गई थीं। लेकिन जिससे वह टकराई थी उसने उसे गिरने नहीं दिया था। उसने अपनी खूबसूरत कमर में अपने हाथ डाल दिए थे और उसका एक हाथ उसके कंधे पर था।

    जैसे ही आयशा ने सामने वाले की शक्ल देखी तो वह हैरान हो गई थी क्योंकि वह कोई बहुत ही ज़्यादा हैंडसम और डैशिंग सा लड़का था जो आयशा को नीली आँखों से देख रहा था। एक बार को तो उसे देखकर आयशा के मन में उस जिन्नज़ादे का ख्याल आ गया था। लेकिन फिर आयशा ने अपनी सोच को झटक दिया था क्योंकि उस जिन्नज़ादे और इस लड़के की सूरत में काफी फर्क था।

    तब आयशा जल्दी से उस लड़के से माफ़ी मांगते हुए बोली थी, "मुझे माफ़ कर दीजिए, मैं आपको नहीं देखी और इस चक्कर में हमारी टक्कर हो गई और आपकी और मेरी दोनों की ही किताबें नीचे गिर गईं।"

    तब तक वह लड़का सारी किताबें उठाकर खड़ा हो चुका था और आयशा को देते हुए बोला था, "आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर गलती आपकी थी तो गलती मेरी भी थी। मैं भी शायद कहीं और खोया हुआ था। वैसे आपसे यह हसीन मुलाक़ात याद रहेगी।" ऐसा कहकर बड़े ही स्टाइल से उसने अपना हाथ आयशा के आगे कर दिया था और कहा था, "मेरा नाम गुलफ़ाम है। क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ, मिस ब्यूटीफुल?"

    उस लड़के की बात सुनकर आयशा हँसना चाहती थी, लेकिन वह कुछ सोचकर नहीं हँसी थी। और फिर वह भी धीमी आवाज़ से बोली थी, "जी, मेरा नाम आयशा है और मैं कॉलेज में नई हूँ। मैंने आज ही ज्वाइन किया है।"

    तब गुलफ़ाम बोलने लगा था, "रे, यह तो कोइंसिडेंस हो गया! क्योंकि मैं भी कॉलेज में नया आया हूँ। मैंने भी आज ही ज्वाइन किया है। तो चलो, मुझे लगता है नए लोगों की क्लासेस उस तरफ़ हैं, दोनों साथ चलते हैं।" ऐसा कहकर वह आयशा को अपने साथ चलने के लिए कहने लगा था।

    आयशा ने कुछ देर सोचा और फिर वह भी उसके साथ चलने लगी थी क्योंकि वह भी वहाँ पर नई थी, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि किस ओर जाना है। आयशा को अपने साथ चलने को कहकर उस लड़के ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था कि आयशा उसके पीछे आ रही है या नहीं। तभी आयशा ने उसके बर्ताव पर अपना थोड़ा सा मुँह बिचका लिया था। और फिर जल्दी ही वह भी उसे फॉलो करते हुए उसके ठीक पीछे-पीछे चलने लगी थी।

    और अभी वे दोनों क्लासरूम में जाने ही वाले थे कि तभी कुछ लड़के-लड़कियों का एक गैंग उनके ठीक सामने आकर खड़ा हो गया था। वह लड़का और आयशा दोनों ही उन्हें ऊपर से लेकर नीचे तक देखने लगे थे। कुछ लड़कियों ने मॉडर्न जींस वगैरह कपड़े पहने हुए थे। लड़के भी काफी मॉडल और कूल लग रहे थे। उन्हें देखने के बाद आयशा ने उनसे कहा था, "जी, आप लोग कौन हैं? आप लोग हमें अंदर जाने दीजिए, हमारी क्लास का टाइम हो रहा है।"

    आयशा ने बड़ी ही मीठी सी आवाज़ में कहा था, ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसके कानों में एक बड़ी ही खूबसूरत और मीठी सी धुन बजा दी हो। तभी आयशा की हाँ में हाँ मिलाते हुए गुलफ़ाम ने भी उन लड़कों और लड़कियों से कहा था, "आप लोग कौन हैं और इस तरह से हमारे सामने क्यों आकर खड़े हो गए हैं? हमें क्लास के लिए देरी हो रही है। आप लोग प्लीज़ साइड हो जाइए और सामने से हटिए।"

    उन दोनों की बातें सुनकर वे सब के सब जो लड़के-लड़कियाँ थे, जोरों से हँसने लगे थे और बोले थे, "वह तो तुम दोनों ही नए हो, आज तो बड़ा ही मज़ा आएगा!" उन दोनों ने उन्हें बड़े ही अजीब तरीके से कहा था।

    तभी उन गैंग में से एक लड़का बार-बार आयशा को बड़ी ही गहरी नज़रों से देख रहा था।

  • 13. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 13

    Words: 2080

    Estimated Reading Time: 13 min

    आयशा को कुछ देर तक उस तरह से घूरने के बाद, उसने अपने दोस्तों से कहा,

    "रे यार, चलो छोड़ो, जाने दो इन लोगों को।"

    लेकिन तभी, एक लड़की, जिसने उस लड़के को आयशा को घूरते हुए देखा था, उसके बराबर में आकर खड़ी हुई और बोली,

    "क्यों? क्या हुआ? इस लड़की पर दिल आ गया क्या तेरा? बड़ी देर से देख रही हूँ, बड़े गौर से देख रहा है इसको।"

    तभी वह लड़का उस लड़की के कान में बोला, "शायद तुम ठीक कह रही हो। तुमने देखा इसकी स्किन कितनी खूबसूरत है, और इसकी आँखें कितनी ब्यूटीफुल हैं! दिल कर रहा है बस इसे देखता रहूँ। देखता रहूँ। देखता रहूँ।"

    उसने कुछ इस अंदाज़ से कहा था कि उस लड़की के तन-बदन में पूरी तरह से आग लग गई थी। और अब तो वह किसी भी कीमत पर आयशा को वहाँ से नहीं जाने देना चाहती थी। असल में, वे सीनियर क्लास के स्टूडेंट्स थे, जो नए आने वाले स्टूडेंट्स की रैगिंग किया करते थे।

    इस ओर जैसे ही उनकी नज़र नई लड़की आयशा और एक लड़के, गुलफाम पर पड़ी, तो वे उन लोगों को तंग करने के लिए उनके ठीक सामने जाकर खड़े हो गए।

    गुलफाम ने उन लड़के-लड़कियों से एक बार फिर कहा, "देखिए, आप लोग जाइए। और वैसे भी, रैगिंग करना मना है। और वरना, अगर आप लोग नहीं हटे, तो मजबूरन मुझे प्रिंसिपल से आपकी शिकायत करनी होगी।"

    जैसे ही गुलफाम ने यह कहा कि अगर आप लोग हमारे रास्ते से नहीं हटे, तो हमें प्रिंसिपल से आपकी शिकायत करनी होगी, तो यह सुनते ही वे सारे के सारे लड़के-लड़कियाँ पूरी तरह से हँसने लगे।

    और कहने लगे, "प्रिंसिपल से शिकायत? क्या तुम्हें पता नहीं प्रिंसिपल इसके अब्बा हैं?" जैसे ही उन्होंने पास में खड़े एक लड़के की ओर इशारा किया और बताया कि प्रिंसिपल इसके अब्बा हैं, तो उनकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहा।

    आयशा और गुलफाम एक-दूसरे को देखने लगे। तब गुलफाम ने आँखों में आयशा को शांत रहने के लिए कहा, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    तब वह लड़का, जो आयशा को लगातार घूर रहा था, थोड़ा सा आगे बढ़ा। आयशा के पास आने पर, उसने आयशा को ऊपर से लेकर नीचे तक बड़ी ही बेशर्मी से देखा।

    लेकिन आयशा को देखने के चक्कर में वह पास में खड़े गुलफाम का चेहरा नहीं देख पा रहा था। क्योंकि आयशा को वह इतनी बदतमीज़ी से घूर रहा था कि शहजादे गुलफाम की आँखों का रंग बदलने लगा। वह गुलफाम कोई और नहीं, बल्कि जिन्नजादा ही था, जो बड़े ही खूबसूरत नौजवान के रूप में आयशा के कॉलेज में एडमिशन लेकर आ चुका था, और इस वक्त आयशा के ठीक बराबर में खड़ा हुआ था।

    जिन्नजादे ने अपना असली रूप, यानी शहजादे कामरान का रूप नहीं लिया था, क्योंकि इससे आयशा उसे पहचान सकती थी। इसीलिए उसने अपने रंग-रूप को पूरी तरह से बदलकर एक अलग ही रूप में आयशा के सामने पेश कर दिया था। आयशा को लगातार उससे हल्की-हल्की, भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। उस खुशबू को महसूस करके आयशा को लग रहा था कि शायद उसके आस-पास ज़रूर कोई जिन्नजादा है, लेकिन...

    लेकिन आयशा ने अपनी सोच को झटक दिया। वह सोचने लगी, "भला जिन्नजादा उसके कॉलेज में कैसे आ सकता है? ज़रूर किसी मॉडर्न बच्चे ने इस तरह का परफ्यूम लगाया होगा।"

    आयशा ने अपने आप ही अंदाज़ा लगा लिया था। तभी वह लड़का, जो बुरी तरह से आयशा को देख रहा था, अचानक से उसका एक हाथ अपने आप ही अपनी कमर पर जाने लगा, और वह दर्द से करहाने लगा। किसी को कुछ भी एहसास नहीं था कि अचानक से उस लड़के को क्या हुआ है, और इस तरह से वह क्यों रो रहा था। लेकिन शहजादे गुलफाम ने अपनी आँखों को लगातार गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया था।

    और आँखों ही आँखों में उसने उस लड़के के हाथ को बड़ी ही जोरों से मरोड़कर उसकी कमर पर लगा दिया था। उस लड़के को इस तरह से चिल्लाता हुआ देखकर उसके बाकी के दोस्त काफी ज़्यादा हैरान और परेशान हो गए। और तभी गुलफाम ने आयशा का हाथ पकड़ लिया।

    "चलो, हमें लगता है हमें अंदर जाना चाहिए।"

    आयशा, अजीब तरह से उस लड़के को देखती हुई, जल्दी ही गुलफाम के साथ क्लासरूम में अंदर चली गई।

    तब आयशा ने अपना हाथ गुलफाम के हाथों में देखा, तो उसने अपने हाथ छुड़ा लिए। गुलफाम ने भी उसका हाथ छोड़ दिया।

    "उस लड़के को अचानक से क्या हुआ था? क्या तुम कुछ जानते हो?"

    लेकिन आयशा के सवाल से बचने के लिए गुलफाम ने कहा, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मुझे लग रहा है उसकी हड्डी वगैरह में कोई दर्द उठ गया होगा। और वैसे भी, यह सब कुछ कॉमन है। आजकल के स्टूडेंट्स ज़्यादा से ज़्यादा नशे वगैरह में रहते हैं, इसीलिए उनके शरीर में ज़्यादा ताक़त नहीं है।" गुलफाम ने अपने अंदाज़ में आयशा को बता दिया था।

    आयशा ने भी ज़्यादा ना सोचते हुए, चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गई। गुलफाम उसकी ठीक बराबर वाली सीट पर बैठा था, और बार-बार वह सिर्फ़ आयशा को ही देख रहा था। कभी वह उसके खूबसूरत बालों को देख रहा था, तो कभी उसकी खूबसूरत आँखों को। आयशा को दूर-दूर तक इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि शहजादे गुलफाम उसके बेहद करीब बैठा हुआ है, और वह कोई और नहीं, बल्कि जिन्नजादा था।

    आयशा पहली बार कॉलेज के क्लासरूम में बैठी थी। उसे काफी ज़्यादा खुशी हो रही थी। बार-बार वह मुस्कुरा रही थी। उसके गालों पर पड़ रहे छोटे-छोटे डिंपल उसे और भी ज़्यादा खूबसूरत बना रहे थे।

    जिन्नजादा अपने जज़्बातों पर काबू करता हुआ, बड़ी मुश्किल से बैठा हुआ था।

    अभी क्लास चल ही रही थी कि तभी वह लड़के-लड़कियों का गैंग एक बार फिर से आयशा की क्लास में आ गया, और आयशा और उस लड़के, जिन्नजादे गुलफाम को घूर-घूर कर देखने लगा।

    तभी कॉलेज के प्रोफ़ेसर ने उन लड़कों-लड़कियों को देखते हुए कहा, "तुम लोग इतनी लेट क्यों आए हो? और यह सब क्या हो रहा है?"

    तब उनमें से एक लड़की, बड़े ही स्टाइल से आगे चलती हुई आई और कॉलेज के प्रोफ़ेसर से बोली, "आज की क्लास नहीं होगी।" जैसे ही प्रोफ़ेसर ने यह सुना, उसके माथे पर सिलवटें उभर आईं।

    "तुम लोगों ने यह रोज़-रोज़ का नया ड्रामा लगा रखा है। क्लास भला क्यों नहीं होगी?"

    तब उन्होंने कहा, "इस लड़के और लड़की ने हमारी बेइज़्ज़ती की है।" उसने गुलफाम और आयशा की ओर इशारा करते हुए कहा, "इसीलिए हम जब तक यह दोनों हमसे माफ़ी नहीं माँग लेते, तब तक कोई क्लासेस नहीं होगी।"

    जैसे ही आयशा और गुलफाम ने यह सुना, उनकी हैरानी के मारे बहुत बुरा हाल हो गया। वहीं गुलफाम को अब गुस्सा आने लगा। वह चाहता तो एक मिनट में सबको वहाँ से उड़ा सकता था, लेकिन वह कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहता था जिससे उसे या आयशा को किसी तरह की कोई परेशानी का सामना करना पड़े। इसीलिए वह जल्दी से बोला, "लेकिन हम लोगों ने कुछ नहीं किया है, तो हम लोग आप लोगों से माफ़ी क्यों माँगें?"

    तो प्रोफ़ेसर ने आयशा और गुलफाम को समझाते हुए कहा, "बेटा, इन लोगों की बात मान लो। वरना यह आज कॉलेज में एक भी क्लास नहीं होने देंगे। यह अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलादें हैं, जिनका हर दूसरे दिन किसी न किसी तरह का लफड़ा लगा ही रहता है।" प्रोफ़ेसर की आवाज़ में उन बच्चों के लिए गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था, क्योंकि वे सब बड़े घराने के बच्चे थे—कोई प्रिंसिपल का बेटा था, कोई ट्रस्टी की बेटी थी, या कोई और। इसीलिए उनका कॉलेज में काफ़ी अच्छा-खासा दबदबा था।

    आयशा तो वैसे भी काफ़ी ज़्यादा दबी हुई सी लड़की थी। उसने एक पल में ही उनसे माफ़ी माँग ली। "हमें माफ़ कर दीजिए, अगर आप लोगों को कुछ भी गलत लगा हो तो।"

    जैसे ही आयशा ने माफ़ी माँगी, वे सब के सब ताली मारकर हँसने लगे। वहीं गुलफाम ने अपने दोनों हाथों के मुट्ठे कसकर भींच लिए, मानो वह अपना गुस्सा काबू करने की कोशिश कर रहा हो, और आँखों ही आँखों में वह उन्हें घूरने लगा।

    तब एक लड़की, बड़े ही स्टाइल से गुलफाम के पास आकर खड़ी हो गई, और उसके ऊपर हल्का सा झुकते हुए बोली, "हे हैंडसम, अब तुम भी माफ़ी माँग लो। सच बताऊँ, तुम्हारे इस क्यूट से चेहरे से माफ़ी सुनने का बहुत दिल कर रहा है।"

    उसने जानबूझकर गुलफाम को छेड़ते हुए कहा था, क्योंकि गुलफाम के अंदर इतना ज़्यादा आकर्षण था कि कोई भी लड़की ज़्यादा देर उसे दूर नहीं रह पाती थी। एक तो वह जिन्नजादा था, ऊपर से उसने जिस नौजवान का खूबसूरत चेहरा लिया था, वह नौजवान बड़ा ही ड्रेसिंग, स्मार्ट और हैंडसम था। उसकी पर्सनालिटी उसके कपड़े भी छुपा नहीं पा रहे थे। उसके जिस्म का कठोरपन साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। इसीलिए वह लड़की उसके ऊपर हल्का सा झुकी हुई थी, जिससे वह लड़की अपने शरीर के उभरे हुए अंग गुलफाम को दिखाना चाहती थी। इसीलिए वह उसके ऊपर झुकी थी। लेकिन गुलफाम ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। उसने उसमें किसी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। यह बात वह लड़की ने अच्छी तरह से महसूस कर ली थी।

    तभी वह प्रोफ़ेसर गुलफाम की ओर देखते हुए बोले, "रे बेटा, प्लीज़ माँग लो तुम भी माफ़ी, और बात खत्म करो। फिर हमें आगे के क्लासेस भी कंटिन्यू करनी हैं।"

    प्रोफ़ेसर की बात सुनकर, गुलफाम ने आयशा की ओर देखा। आयशा ने भी आँखों में गुलफाम से माफ़ी माँगने के लिए कह दिया था। भला आयशा ने बोला था, तो वह उसकी बात कैसे टाल सकता था? इसीलिए जल्दी ही उसने उनसे माफ़ी माँगते हुए कहा, "मुझे माफ़ कर दीजिए। आगे से मैं आप लोगों की कोई भी बात नहीं टालूँगा।"

    जैसे ही गुलफाम ने यह कहा, वह लड़के-लड़कियाँ, जो इतने खट्टे होकर आए थे, उन्होंने आपस में एक-दूसरे को हाथ मारना शुरू कर दिया और हँसने लगे, और जल्दी से वहाँ से निकलने लगे। तभी वह लड़की, जिसका नाम जास्मिन था, जो गुलफाम के ऊपर झुकी थी, उसने गुलफाम के बेहद करीब जाकर उसे कहा,

    "यू नोटि! तो तुमने आखिर माफ़ी माँग ही ली। अगर तुम माफ़ी नहीं माँगते, तो तुम सोच भी नहीं सकते थे मैं तुम्हारे साथ क्या करने वाली थी। बाय द वे, मैं तुम्हें छोड़ने वाली अब भी नहीं हूँ।"

    जैस्मिन ने गुलफाम को अजीब तरह की नज़रों से देखते हुए कहा और जल्दी ही वहाँ से निकल गई। गुलफाम उसे अपने पास खड़े रहना बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, और अब उसका मूड कुछ ज़्यादा ही खराब हो चुका था। क्लास में रहना उसके लिए पॉसिबल नहीं था।

    इसीलिए वह गुस्से से क्लास से बाहर निकल गया। प्रोफ़ेसर उसे रोकता ही रह गया, लेकिन गुलफाम उसकी कहाँ सुनने वाला था।

    वहीं आयशा को गुलफाम का इस तरह से बाहर जाना काफ़ी ज़्यादा बुरा लगा। वह सोच रही थी, "बेचारे का भी आज पहला दिन था, और उसके साथ भी देखो आज क्या से क्या हो गया था।"

    गुलफाम क्लासरूम से निकलकर सीधा कॉलेज के बगीचे में जाकर बैठ गया। यह बगीचा ही ऐसी जगह थी जो उसे काफ़ी हद तक सुकून दिया करती थी। वह अपना गुस्सा कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। हालाँकि, उसे आयशा को छोड़कर आना बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन वह ज़्यादा देर क्लासरूम में नहीं बैठ सकता था। अगर वह ज़्यादा देर क्लासरूम में बैठा, तो उसकी असलियत सबके सामने आने से कोई नहीं रोक सकता था।

    क्या होगा जब जिन्नजादा 24 घंटे आयशा के साथ रहेगा? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ। धन्यवाद।

  • 14. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 14

    Words: 2057

    Estimated Reading Time: 13 min

    जिन्न जादा उस वक्त काफी ज्यादा गुस्से में था और वह उन सभी लड़कों को और लड़कियों को अच्छी तरह से सबक सिखाना चाहता था लेकिन वह कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहता था जो उसे आयशा से दूर कर दे इसीलिए उसे एक इंसान की तरह ही उन सबके बीच रहकर आयशा से मोहब्बत करनी थी और उससे भी बदले में मोहब्बत का एहसास कराना था बस जिन्नजादा एक बार आयशा से निकाह करना चाहता था जैसे ही आयाशा का उसके साथ निकाह हो जाएगा उसके बाद वह क्या तबाही मचाने वाला था इसका एहसास किसी को भी दूर-दूर तक नहीं था  आ्लाएशा स अटेंड करने के बाद जैसे ही बाहर आई उसने देखा वो लड़का गुलफाम गुस्से से गार्डन में बैठा हुआ था आयशा ने सोचा कि एक बार जाकर उससे बात की जाए लेकिन फिर उसे जल्दी ही उसकी सौतेली बहन सकीना दिखाई दी थी वह भी आरिफ के साथ आयशा कुछ सोचते हुए उसके पास चली गई थी जैसे ही आयशा सकीना के पास गई सकीना ने उसे देखते ही मुंह पिचका लिया था और कहा था तु यह क्या कर रही है और इस तरह से मेरे सामने क्यों आ रही है क्योंकि कहीं ना कहीं आरिफ बार-बार आयशा को देखे जा रहा था तो यह बात सकीना को बहुत ही ज्यादा बुरी लगी थी इसीलिए वह आयशा का वहां आना ना बर्दाश्त नहीं कर पाई थी कि कहीं एक बार फिर से उसका बॉयफ्रेंड उसे छोड़कर आयशा की और न देखने लग जाए और ऐसा ही हुआ था जैसे ही आयशा सकीना के पास गई आरिफ उसे गहरी नजरों से देखने लगा था अब साकीना का गुस्से के मारे बहुत ही ज्यादा बुरा हाल हो गया था क्योंकि वह सब कुछ बर्दाश्त कर सकती थी  लेकिन आरिफ की नजर किसी और पर वह कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी पिछले 2 सालों से वह आरिफ के साथ थी और अपने भाई से छुपा कर उससे मिला करती थी लेकिन अब तो उसका भाई कॉलेज में नहीं था तो इसलिए अब वह खुल्लम-खुल्ला उससे मिल रही थी और आयशा का तो उसे किसी तरह का कोई खौफ नहीं था जैसे ही उसके सौतेली बहन ने आयशा को देखकर मुंह पिचका ई तब आयशा ने सकीना से कहा था वह मैं यह जानना चाह रही थी कि हम घर कितने बजे तक चलेंगे क्योंकि आज की मेरी तीन क्लासेस मेरी पूरी हो चुकी है उसके बाद कोई और क्लास नहीं है जैसे ही आयशा ने सकीना से घर चलने की बात कही तो उसका पारा सातवें में आसमान पर पहुंच गया था कि वैसे भी कभी भी क्लास अगर कम हो ज्यादा हो सकीना को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था उसे फर्क सिर्फ इस बात से पढ़ता था कि कितना टाइम हुआ आरिफ के साथ बिता सकती थी।।।। तब उसने उसे कहा था कि तुम जाओ जाकर अपना टाइम कहीं पर भी बिता लो अभी हम पूरे 1 घंटे के बाद घर चलेंगे समझी तुम और अभी मेरी क्लासेस है सकीना ने जानबूझकर झूठ बोलते हुए कहा था जबकि आयाशा को यह बात अच्छी तरह से पता चल चुकी थी कि कॉलेज में केवल तीन से चार क्लासेस ही होते थे इससे ज्यादा नहीं हुआ करती थी क्योंकि सभी के सभी स्टूडेंट बोर हो जाया करते थे सभी बड़े-बड़े घराने से थे तो उसी के मन मुताबिक क्लासेस वगैरह हुआ करती थी कॉलेज के पास कुछ ज्यादा खास रूल रेगुलेशन नहीं थे क्योंकि ज्यादातर तो कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को उन्ही प्रोफेसर्स के थे जो वहां पढ़ाया करते थे इसी तरह इसीलिए सभी  को सबको हर तरह से खुली छूट थी और वह अब आयशा के पास कोई और रास्ता नहीं था इसलिए वह सकीना पर एक गहरी नजर डालती हुई जलती हुई उसकी आंखों के सामने से हट गई थी वह जान चुकी थी अगर उसने ज्यादा सकीना को तंग करने की कोशिश की या उससे ज्यादा कुछ कहा तो सकीना उसके ऊपर हाथ उठाने से पहले एक बार भी नहीं सोचेगी  और सबके सामने उसकी बेइज्जती हो जाएगी इसीलिए आयशा जल्दी ही वहां से हट गई थी और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कहां जाए तभी उसे गार्डन में बैठे हुए गुलफाम का ख्याल आया था उसने सोचा कि वैसे कुछ लड़के ने उसकी आज काफी मदद की थी तो क्यों ना थोड़ी देर उसके पास ही बैठ लिया जाए वैसे भी कोई और तो उससे बात करने को तैयार ही नहीं था लड़के जो थे वह उसे घूरे जा रहे थे क्योंकि वह बहुत खूबसूरत थी और लड़कियां ऐसी बात से जलन के मारे के लड़के उसे क्यों घूर रहे हैं इस बात से उसके पास आना पसंद नहीं कर रही थी इसीलिए ऐसा ना चाहते हुए भी गुलफाम की ओर जाने लगी थी गुलफाम भले ही पर दूसरी साइड मुंह करके बैठा हुआ था लेकिन उसे एहसास हो चुका था कि उसकी मोहब्बत उसके करीब आ रही है और उसके चेहरे पर अपने आप ही एक मुस्कुराहट आती जा रही थी  और जितना भी उसे गुस्सा आ रहा था वह अब एकदम से धूल बनकर उड़ चुका था आयशा गुलफाम के ठीक पीछे खड़ी होकर बोली थी अगर आपको बुरा न लगे तो क्या मैं भी यहां आपके पास बैठ सकती हूं जैसे ही आयशा ने यह कहा गुलफाम के मन में तितलियां उड़ने लगी थी और कहने लगा था मैं तो  चाहता ही यही हूं कि सिर्फ और सिर्फ तुम मेरे आस-पास रहो तुम मेरे आस-पास बैठो और गार्डन में भी वह इस वजह से गुस्सा होकर बैठ गया था कि जैस्मिन ने उसके क्लोज आने की कोशिश की थी और उसे अपने शरीर का हिस्सा दिखाने की भी कोशिश की थी इसी बात से गुस्सा होकर वह वहां कर बैठ गया था और जैसे ही आयशा ने यह कहा वह जल्दी से पीछे मुड़कर उसने देखा था और बड़े ही साआदत मंद होकर  उसने कहा था जी जी आप यहां पर बैठिए प्लीज यह मेरा ओनर होगा कि आप मेरे पास बैठेंगे जैसे ही गुलफाम में थोड़ा सा  शायराना  लहजे में कहा आयशा के गाल एक दम से लाल हो गए थे क्योंकि पहली बार वह किसी लड़के से इस तरह से मिल रही थी और उसे लड़के में अजीब सा आकर्षण था कि वह उसकी और ही खींची चली जा रही थी तब आयशा उसके करीब बैठ गई थी तभी आयशा को अपने पैर के नीचे कुछ चुभता हुआ सा महसूस होने लगा था आयशा ने जैसे ही अपना पेर हटाया उसने देखा कि एक अंगूठी उसके पैर के नीचे पड़ी हुई थी जैसे ही आयशा ने वह अंगूठी देखी तो उसे जिन्नजादे वाली अंगूठी का ख्याल आ गया था और उसने उस अंगूठी को थोड़ी देर देखने के बाद वहीं छोड़ दिया था उसने उसे उठाने की हिम्मत नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी दादी की सारी बातें याद आ गई थी कि तुम्हें वह अंगूठी नहीं उठानी चाहिए थी यह वह तो इसीलिए उसने वह अंगूठी नहीं उठाई लेकिन जैसे ही गुलफाम ने यह देखा की आयाशा उस अंगूठी को नहीं उठा रही है तो उसे अंदर-अंदर काफी बुरा लगा था उसने कहा था क्या हुआ मिस आप यह अंगूठी क्यों नहीं उठा रही है अगर आपकी रिंग नीचे गिर गई है तो आप इसे उठा सकती है तब आयशा ने गुलफाम से कहा था नहीं नहीं यह मेरी रिंग नहीं है और मैं तो रिंग पहनती भी नहीं हूं यह जरूर किसी ने किसी लड़की के यहां पर गिर गई होगी और वैसे भी वह जो रिंग थी वह काफी मामूली सी थी उसे पर कोई किसी तरह का कोई हीरे मोती नहीं लगे हुए थे तभी जिन्नजादे ने थोड़े से जोर देते हुए उसे कहा था मुझे लगता है आपको यह अंगूठी उठा लेनी चाहिए जिस भी लड़की  की होगी आप उसे दे दीजिएगा कहीं ना कहीं आयशा को  यह बात बुरी नहीं लगी थी और उसने जैसे ही वह अंगूठी उठाई उसने देखा उसे अंगूठी पर एक मामूली से सही लेकिन एक सफेद रंग का छोटा सा नग था जो शायद हीरे मोती का ना होकर नॉर्मल सच्चे मोती का था उसे देखते ही आयशा खुश हो गई थी और कहने लगी थी वह तो बड़ी खूबसूरत है आपको पता है मुझे हमेशा से ही इसी तरह की अंगूठी पसंद थी  जैसे ही आयाशा ने भाव वेस में यह कह दिया तब जिन्नजादा हल्के से स्माइल के साथ उसे देखने लगा था और कहने लगा था तो ठीक है आप इसे तब तक पहन सकती है और जब भी कोई लड़की इस अंगूठी को पहचानेगी की तो आप उसे दे दीजिएगा  आयशा को यह सौदा बुरा नहीं लग रहा था वैसे भी उसकी सौतेली मां तो उसे किसी तरह की कोई अंगूठी दिलाने वाली नहीं थी और अब वह अंगूठी अगर उसे मिल रही थी तो उसे ले लेनी चाहिए थी यह सोचते हुए आयशा ने वह अंगूठी ले ली थी लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या  वह इस अंगुठी को पहन ले वो अभी सोच ही रही थी की तभी जिन्नजादे  ने आयशा केहाथ से अंगूठी को लेकर उसके हाथ में पहना दिया था और कहने लगा था लीजिए इतना क्यों सोच रही थी , आप इस अंगूठी को पहनने के लिए ऐसा कहते हुए वहां से उठ खड़ा हुआ था   और वहां से जाने लगा था लेकिन जैसे ही आयशा एवं अंगूठी पहनी ना जाने उसके दिलों दिमाग में एक दम से क्या चलने लगा था और वह उसे बड़ा ही अजीब सा लगने लगा था और उसका सर सा घूमने लगा था वही जिन्न जादा बडी सी मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ता चला जा रहा था क्योंकि आयशा को उसने अपने हाथों से अंगूठी पहना दी थी और वह अंगूठी पहनते ही आयशा अब उसकी बीवी बन चुकी थी।     यहो जिन्नजादे की सोची समझी साजिश थी वह अच्छी तरह से जानता था अगर उसने मोटे नग वाली हीरे वाली अंगूठी आयाशा को दी तो वह  सब पहचान ने में देर नहीं लगाएगी और अगर उस पल जैसे कि उसने पहले आएशा को गार्डन मे  उसे अंगूठी दी  थी  अगर उस  वक्त आयशा पहन लेती तो वह उसकी बीवी बन जाती लेकिन आयाशा ने उस अंगूठी को नहीं पहना था उल्टा उसे उठा कर संदूक में रख दीया था  लेकिन आज जिन्नजादे ने एक सिंपल सी अंगूठी को मौका देखते ही आयाशा के हाथों में पहना दिया था भले ही वह अंगूठी दिखने में सिंपल थी लेकिन उसकी कीमत कितने करोड़ में थी यह कोई नहीं जानता था अंगूठी की पहनने के बाद आयशा को कुछ अजीब सा लगने लगा था और तभी अचानक से आयशा को अपने गरदन के पास किसी के चूमने का एहसास हुआ था आशा को यह एहसास काफी जोरों से हुआ था उस को ऐहसास होते ही चीख निकल गई थी उसकी चीख निकलते ही सकीना जो कि उसे थोड़ी दूरी पर ही खड़ी थी तुरंत उसके पास आ गई थी और कहने लगी थी यह क्या बदतमीजी है तुम इस तरह से क्यों चिल्ला रही हो क्या तुम सबको बताना चाहती हो कि तुम यहां बैठी हुई हो क्या तुम शांति से एक जगह नहीं बैठ सकती हो सकीना ने आते ही उसे उल्टी सीधी बातें सुनाना शुरू कर दी थी तभी आयशा ने सकीना से कहा था नहीं नहीं मेरा मतलब यह नहीं था पता नहीं मुझे ऐसा हुआ जैसे कोई अभी मेरे साथ था जैसे ही आयशा ने यह कहा सकीना जोरों से हंसने लगी थी सकीना के साथ-साथ दो-चार स्टूडेंट और आ गए थे और वह आयशा की ऐसी बेवकूफ भरी बातें सुनकर हंसने लगे थे आयशा के गाल शर्मिंदगी के मारे लाल हो गए थे क्योंकि वह किसी को क्या बताती की वह किसी को यह बताती किसी ने अभी उसके गर्दन के पास उसे चुम्मा था अगर वह इस तरह का कुछ बताती तो आएशा का वहां मजाक बनना लाजमी था क्योंकि उस पूरे गार्डेन उस के अलावा और कोई नही था, गुलफाम भी थोड़ी देर पहले ही चला गया था।।। इसीलिए आयशा ने किसी से कुछ भी ना कहने का डिसीजन ले लिया था और वह चुपचाप वहां से चली गई थी उसके जाने के बाद सकीना उसे गहरी नजरों से देखने लगी थी लेकिन इसी के साथ-साथ दो नजरे और थी जो आयशा को बड़ी ही बुरी तरह से देख रही थी वह कोई और नहीं बल्कि सकीना का बॉयफ्रेंड आरिफ था जिसे सकीना पहली नजर में ही भा गई थी और वह उसके साथ रिश्ता बनाने की ख्वाब देखने लगा था।।।।।।🙏🏻🙏🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

  • 15. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 15

    Words: 2078

    Estimated Reading Time: 13 min

    आयशा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने कुछ किया ही नहीं था, फिर भी उसे ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई बड़ी गलती कर दी हो। अंगूठी पहनने के बाद उसे एक अजीब सी ताकत का एहसास हो रहा था। वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा था।

    वेल शहजादे गुलफाम ने आयशा से शादी करने के बाद तुरंत उसे ढूंढ निकाला था और उसकी गर्दन पर जोरदार किस किया था। वह अपने आप को रोक नहीं पाया था; अब तो वह उसकी बीवी बन चुकी थी, तो वह उसे कैसे छोड़ सकता था?

    आयशा को उस किस का बहुत गहरा एहसास हुआ था। वह चिल्लाई, लेकिन बहन सकीना ने बताया कि आस-पास कोई नहीं है। "दैट्स नॉट फेयर," सकीना ने कहा था, और यह सुनकर आयशा को बहुत बुरा लगा था।

    वह सोचने लगी कि शायद उसने कोई बुरा सपना देखा होगा। उसने उस किस को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया और वहाँ से चली गई। एक घंटे बाद, दोनों घर की ओर रवाना हुईं।

    पूरे रास्ते सकीना ने आयशा से बात नहीं की। वह अपने बॉयफ्रेंड से चैट करने में व्यस्त थी। वहीँ, उसका बॉयफ्रेंड आयशा को पाने की कोशिश में था। आयशा की खूबसूरती देखकर वह उसका दीवाना हो गया था।

    वह आयशा के साथ समय बिताना चाहता था। इसके लिए उसने अपनी गर्लफ्रेंड सकीना को अपना हथियार बनाया था। वह जानता था कि सकीना आयशा से कितनी नफरत करती है और उसकी खूबसूरती से कितनी जलती है। पहली मुलाकात में ही उसे यह बात समझ आ गई थी।

    आयशा और सकीना जल्दी ही घर पहुँच गईं। घर पहुँचते ही सौतेली माँ ने आयशा से कहा, "आ गई महारानी? अब आ गई हो तो जल्दी से दोपहर का खाना बनाकर लगाओ। सबको बहुत भूख लगी है।"

    हालांकि वे दो बजे आए थे, और आते ही सौतेली माँ ने उसे खाना बनाने को कहा था। फिर अपनी बेटी सकीना के सर पर हाथ फेरते हुए बोली, "अरे मेरी बेटी, कॉलेज से आकर थक गई होगी। जाकर अपने कमरे में आराम कर। खाना बन जाने पर तुम्हें बुला लूँगी।"

    आयशा का दिल कट गया। वह इस हरकत पर रोती थी, लेकिन कुछ नहीं कर सकती थी। उसके परिवार में केवल उसकी दादी उसे प्यार करती थीं।

    दादी हाल ही में ठीक हुई थीं। सौतेली माँ की बात सुनकर दादी को गुस्सा आया, लेकिन वह बूढ़ी औरत ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी। वह खुद उन पर निर्भर थी। फिर भी, हिम्मत करके वह आयशा के पास आई और उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली, "बच्चे, कॉलेज का पहला दिन कैसा रहा? मुझे पूरी उम्मीद है तुमने मन लगाकर पढ़ाई की होगी। अभी कॉलेज से आई हो, थोड़ी देर बैठ जाओ, उसके बाद खाना बना लेना।"

    यह सुनकर आयशा के चेहरे पर मुस्कान आ गई। लेकिन सौतेली माँ के चेहरे पर सिलवटें आ गईं। "आप क्या कहना चाह रही हैं? क्या हम दोपहर का खाना देर से खाएँगे? एक तो यह महारानी देर से आई है, और ऊपर से आप इसे आराम करने के लिए कह रही हैं। आखिर क्या हुआ है? कॉलेज ही तो गई थी, पढ़कर ही तो आई है, तो क्या उसमें थक गई है? अगर ऐसी बात है, थक जाती है तो कल से यह कॉलेज ही नहीं जाएगी।"

    आयशा तुरंत बोली, "नहीं-नहीं अम्मी, ऐसा मत करिए। मैं सारा खाना अभी बना देती हूँ। मुझे कोई थकान नहीं हुई है।" आयशा ने जल्दी से बात संभाल ली थी। उसे डर था कि कहीं उसकी सौतेली माँ उसका कॉलेज जाना न रोक दे।

    उसने अभी-अभी कॉलेज जाना शुरू किया था। वह इतनी जल्दी कॉलेज से नहीं हटना चाहती थी। वह अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी। आयशा की दादी भी चुप हो गई थी। उसके अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सौतेली माँ का मुकाबला कर सके। वह अपने बेटे की किस्मत पर अफ़सोस करती हुई अपने कमरे में चली गई।

    आयशा जल्दी से हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने में जुट गई। उसने एक चूल्हे पर सब्जी चढ़ाई और दूसरे पर रोटियाँ डालनी शुरू कर दीं। अपने सौतेले भाई के लिए उसने खिचड़ी बनानी शुरू कर दी, क्योंकि सौतेली माँ ने सख्त निर्देश दिए थे कि अगले पन्द्रह दिन तक उसका सौतेला भाई सिर्फ़ खिचड़ी या मसूर/मूंग की दाल का पानी ही खाएगा।

    आयशा बहुत थक गई थी, लेकिन वह जल्दी से अपना काम खत्म करना चाहती थी। उसे केवल इस बात की खुशी थी कि कम से कम उसे कॉलेज जाने का मौका मिला था। अगर उसने खाना नहीं बनाया होता, तो उसे पूरा यकीन था कि उसकी सौतेली माँ देर नहीं लगाती उसका कॉलेज रोकने में। आयशा किसी भी कीमत पर अपना कॉलेज नहीं छोड़ना चाहती थी।

    आयशा ने एक घंटे के अंदर सारा खाना तैयार करके टेबल पर रख दिया और अपने कमरे में जाने लगी। लेकिन जैसे ही उसने अपना पहला कदम कमरे में रखा और कमरा देखा, तो उसकी आँखें हैरत से फटी की फटी रह गईं।

    उसका पूरा कमरा बहुत खूबसूरती से सजा हुआ था। जहाँ सोने के लिए उसके पास सिर्फ़ एक चटाई थी, वहाँ अब एक बड़ा बेड था, मुलायम गद्दे के साथ। एक ड्रेसिंग टेबल, एक अलमारी, और यहाँ तक कि एसी भी लगा हुआ था।

    आयशा को यह दुनियावी सुख-सुविधा देखकर हैरानी हुई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इतना सामान कहाँ से आ गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था।

    एक पल के लिए उसे लगा कि सौतेली माँ या उसके अब्बा ने यह उसके लिए अरेंज किया होगा, लेकिन अगले ही पल उसने यह सोच छोड़ दी। उसे अच्छी तरह याद था कि जब उसने एक बार अलमारी माँगी थी, तो उसे कितनी पिटाई हुई थी। पिटाई के निशान महीनों तक उसके शरीर पर रहे थे। फिर यह सब किसने किया था?

    आयशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह दौड़कर अपनी दादी के पास गई और बोली, "दादी, आप मेरे साथ आइए, मुझे आपको एक चीज दिखानी है।"

    जैसे ही आयशा की दादी आयशा के साथ आई और आयशा उसे अपने कमरे में ले गई, आयशा ने कहा, "यह सब देखिए दादी।" दादी ने चारों तरफ देखा, लेकिन उन्हें कुछ नहीं दिखा। सिर्फ़ एक मामूली चटाई, पानी का मटका और एक छोटा सा संदूक। वही पुराना कमरा।

    जबकि आयशा को उसका कमरा बहुत खूबसूरत और चीजों से भरा हुआ दिखाई दे रहा था। दादी ने कहा, "क्या बात है बेटा, क्या दिखाना चाहती हो?"

    आयशा हैरान थी। क्या दादी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था? क्या दादी को नज़र नहीं आ रहा था कि पूरा कमरा कितनी सारी चीजों से भरा पड़ा है?

    आयशा ने दादी से पूछा, "दादी, क्या आपको कुछ दिखाई नहीं दे रहा है?" दादी ने कहा, "नहीं बेटा, मुझे कुछ नहीं दिखाई दे रहा है।" आयशा ने आगे कुछ नहीं बताया। वह समझ गई थी कि यह सब किसने किया है। अगर वह दादी को बताती, तो दादी परेशान हो सकती थीं।

    आयशा किसी को भी परेशान नहीं करना चाहती थी। इसलिए बोली, "दादी, बस कुछ नहीं। मैं आपको ऐसे ही कमरे में ले आई थी, क्योंकि मेरा मन नहीं लग रहा था।"

    दादी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मेरी बच्ची, तू कॉलेज से थकी हुई आ रही है, और आते ही तुझे खाना बनाना पड़ गया। तू काफी थक गई होगी। नहा-धोकर आराम कर ले, और थोड़ी देर सो जा। मैं तब तक तेरे लिए खाना ले आती हूँ।"

    यह सुनकर आयशा मुस्कुरा दी और बाथरूम में नहाने के लिए चली गई। आयशा को पानी भी अजीब सा लग रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वह दूध से नहा रही हो।

    लेकिन जल्दी ही उसने अपनी सोच छोड़ दी। नहा-धोकर तैयार होकर जैसे ही वह बाहर आई, तो वह हैरान रह गई। उसके कमरे में एक बड़ा दस्तरखान लगा हुआ था, जिस पर तरह-तरह के लजीज खाने रखे हुए थे।

    आयशा की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसे यकीन नहीं हो रहा था। जो दो वक़्त की रोटी के लिए भी तरसा करती थी, आज उसके सामने इतना सारा लज़ीज़ खाना था।

    आयशा को अजीब लगा। वह सोचने लगी कि क्या यह खाना खाए या नहीं। उसे एहसास हो गया था कि यह खाना जिन्न ने रखा है। लेकिन वह सब इतना कुछ क्यों कर रहा था? उसने तो उसे जाने के लिए कह दिया था।

    आयशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन खाने को देखकर उसके मुँह में पानी आ रहा था। मिठाइयाँ, पकवान, सब्ज़ी, मांस, सब कुछ रखा हुआ था।

    आयशा का दिमाग घूम गया। वह खाने को देखकर खुद को रोक नहीं पा रही थी। कितने सालों से उसने अच्छा खाना नहीं खाया था। और अब उसके सामने इतना अच्छा खाना था।

    वह जल्दी से बैठकर खाना खाने लगी। जैसे ही उसने खाना खाना शुरू किया, दो खूबसूरत आँखें उसकी ओर देख रही थीं। उसके होठों पर मुस्कान आ गई।

  • 16. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 16

    Words: 1824

    Estimated Reading Time: 11 min

    इतने सारे लजीज पकवान देखकर आयशा खुद को रोक नहीं पाई। उसने कई सालों से यह सब नहीं खाया था। जब उसकी माँ जिंदा थी, तब वह उसके लिए अलग-अलग तरह के पकवान बनाया करती थी। लेकिन जब से उसकी सौतेली माँ उसकी ज़िन्दगी में आई थी, उसकी ज़िन्दगी से स्वाद ही खत्म हो गया था। आज इतना अच्छा खाना देखकर आयशा खुद को रोक नहीं पाई।

    वह यह भी अच्छी तरह जानती थी कि यह खाना झूठा है, यह झूठी ज़िन्दगी है। लेकिन आयशा उस वक़्त उस ज़िन्दगी को दिल से जीना चाहती थी। इसीलिए उसने उसे स्वीकार कर लिया था और जल्दी ही खाना शुरू कर दिया था।

    जैसे ही आयशा ने पहली बर्फी का टुकड़ा उठाकर मुँह में रखा, वह टुकड़ा उसके मुँह में घुल सा गया। उसे उसका स्वाद बेहद स्वादिष्ट और मीठा लगा। आखिरकार, वह जिन्नजातों का बनाया हुआ खाना था, उसमें अलग ही लेवल का स्वाद था।

    आयशा जल्दी ही एक-एक करके सभी चीजें बड़े शौक से खाने लगी। और शहज़ादे कामरान, जो उसके बेहद करीब था, आयशा को बड़े प्यार से खाते हुए देख रहा था।

    "खूब पेट भर के खाओ," मन ही मन में वह कह रहा था, "आज रात तुम्हें एनर्जी की ज़्यादा ज़रूरत है।" शहज़ादे कामरान का सीधा मतलब आयशा के साथ आज शारीरिक संबंध बनाने का था।

    जिसे वह आज किसी भी कीमत पर बनाना चाहता था। आयशा की खूबसूरती में वह इतना आगे बढ़ चुका था कि उसके लिए पीछे हटना नामुमकिन था।

    हालांकि उसकी माँ ने उसे उससे दूर रहने को कहा था, लेकिन वह उसे एक पल के लिए भी दूर नहीं रहना चाहता था। और अब तो आयशा के साथ उसका निकाह हो चुका था, इसका मतलब था कि उसे आयशा के साथ ज़िन्दगी जीने का अधिकार मिल चुका था। इसीलिए वह आज आयशा को पूरी तरह से अपना बना लेना चाहता था।

    वहीं आयशा, इस बात से बेखबर, अपने सामने रखे स्वादिष्ट खाने का चटकारे लेकर स्वाद ले रही थी। उसे इस बात का दूर-दूर तक एहसास नहीं था कि इस खूबसूरत झूठी ज़िन्दगी के बदले उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी थी।

    जल्दी ही आयशा ने जितना हो सका उतना खाना खा लिया था। तभी उसे बाहर किसी के खांसने की आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि आयशा की दादी की थी। आयशा जल्दी से खाना छोड़कर अपनी दादी के पास भागी।

    क्योंकि वह अपनी दादी को जरा सा भी बीमार देखना पसंद नहीं करती थी। वह चाहती थी कि उसकी दादी बिल्कुल स्वस्थ रहे। और वैसे भी, उसकी दादी के अलावा उसका था ही कौन?

    इसीलिए आयशा ज़्यादा से ज़्यादा समय अपनी दादी के साथ बिताया करती थी। आयशा जल्दी से दौड़कर अपनी दादी के पास गई। जैसे ही उसने देखा कि उसकी दादी खांसते-खांसते बेहाल हो चुकी थी और उसकी सौतेली माँ लापरवाही से एक जगह बैठी हुई थी, उसने अपनी दादी को उठाकर एक गिलास पानी तक देना ज़रूरी नहीं समझा था। तब आयशा आगे गई और टेबल पर रखा पानी अपनी दादी को देने लगी।

    जैसे ही उसकी दादी ने पानी पिया, उन्हें थोड़ी राहत मिली। पानी पीने के बाद उन्होंने आयशा के सर पर हाथ रखते हुए कहा, "जीती रहो मेरे बच्चे, जीती रहो। पता नहीं कितने दिन की और ज़िन्दगी है मेरी इस घर में, पर इतना तो मैं ज़रूर जानती हूँ, अगर तुम इस घर में ना रही तो मेरी ज़िन्दगी एक दिन की भी नहीं है।"

    आयशा की दादी ने कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह दी थी। आयशा की सौतेली माँ ने उनकी बातों को सुनकर भी अनसुना कर दिया था और उसी तरह से लापरवाही से बैठी रही, मानो उन्हें उनकी बातों से कोई फर्क ही न पड़ा हो।

    अभी वे लोग बातें कर ही रहे थे कि तभी आयशा के अब्बा अपने दफ्तर से लौट आए। जैसे ही वे लौटे, वे अचानक अपनी माँ के पास आकर बैठ गए।

    जैसे ही आयशा की सौतेली माँ ने यह देखा, तो उनकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। आयशा के अब्बा अपनी माँ के पास बैठते हुए बोले, "अम्मी जान, आपकी तबीयत तो ठीक है ना? हम जानते हैं हम अपने काम में बहुत ज़्यादा मशगूल रहते हैं और हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है, लेकिन फिर भी हमें आपकी फिक्र है। आप ये मत सोचिएगा कि हम आपसे बेफ़िक्र हो गए हैं।"

    आज कितने ही दिनों के बाद आयशा के अब्बा ने इस तरह की बातें अपनी अम्मी जान से की थीं। जैसे ही आयशा की दादी और आयशा ने यह बातें सुनीं, तो वे दोनों काफी हद तक खुश हो गईं। वहीं आयशा की सौतेली माँ जलकर राख हो गई।

    और फिर अचानक उठने का नाटक करती हुई एकदम से चिल्ला पड़ी, "मेरे पैरों में बहुत जोरों से मोच आ गई है!" जबकि ऐसा कुछ नहीं था, उसके पैरों में किसी तरह की कोई मोच नहीं आई थी। वह तो केवल आयशा के अब्बा का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहती थी।

    जिसमें वह काफी हद तक कामयाब हो गई। जल्दी ही आयशा के अब्बा तुरंत अपनी माँ के पास से उठ गए और सीधा अपनी बीवी के पास चले गए। "क्या हुआ तुमको? तुम ठीक तो हो ना?"

    और फिर वह नाटक करने लगी कि "मेरे पैरों में अचानक से मोच आ गई है।" यह देखकर आयशा के अब्बा काफी परेशान हो गए और बोले, "तुम्हें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम अपने कमरे में चलो, तो मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ।"

    ऐसा कहकर वह जल्दी ही आयशा की सौतेली माँ की कमर में हाथ डालकर उसे उसके कमरे में ले जाने लगे। तभी आयशा ने अपनी सौतेली माँ के चेहरे पर मक्कार भरी मुस्कराहट देख ली। वह समझ चुकी थी कि उसने जानबूझकर नाटक किया है। लेकिन आयशा को इस बात से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। वैसे भी वह अपने अब्बा को अब ज़्यादा अहमियत नहीं देती थी। क्योंकि इतने सालों की बेरुख़ी ने उसके अंदर भी बेरुख़ी को कूट-कूटकर भर दिया था।

    तभी आयशा ने मन ही मन में कहा, "ऊपरवाला करे, सचमुच में उनके पैरों में मोच आ जाए।" जैसे ही आयशा ने थोड़ी सी कड़वाहट से यह कहा, तभी आयशा की सौतेली माँ की चीख़ जोरों से सुनाई देने लगी। क्योंकि जिन्नज़ादे ने आयशा के मन की बात पढ़ ली थी और जल्दी ही उसकी सौतेली माँ का पैर सचमुच मरोड़ दिया था।

    पहले तो आयशा की सौतेली माँ जहाँ जानबूझकर मोच आने का नाटक कर रही थी, अब उसे सचमुच अपना पैर टूटा हुआ सा महसूस होने लगा था और वह सचमुच चीख़ने-चिल्लाने लगी थी। तब आयशा के अब्बा ने उसे कहा, "भाग्यवान! मैं तुम्हें तुम्हारे कमरे में लेकर तो जा रहा हूँ, तो इस तरह से क्यों चिल्ला रही हो?"

    लेकिन अब जहाँ उसके चेहरे पर जहरीली और झूठी मुस्कराहट थी, अब उसके चेहरे पर दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था और कुछ आँसू भी उसके गालों पर लुढ़क आए थे। जैसे ही आयशा ने देखा, वह काफी ज़्यादा हैरान हो गई।

    फिर उसे समझने में देर नहीं लगी कि यह सब किसने किया है। क्योंकि जल्दी ही उसे अपने पास एक बड़ी ही अच्छी, खूबसूरत खुशबू महसूस होने लगी। अचानक खुशबू स्मेल करते ही आयशा के चेहरे पर ऑटोमेटिक मुस्कराहट आ गई।

    कहीं ना कहीं आयशा अब थोड़ी-थोड़ी स्वार्थी बनती जा रही थी, क्योंकि जिन्नज़ादे उसकी ज़िन्दगी में आकर उसके जितने भी दुःख-दर्द थे, वह काफी हद तक दूर कर दिए थे। आयशा को इस झूठी ज़िन्दगी में जीने में बड़ा ही मज़ा सा आ रहा था।

    तब आयशा ने अपनी दादी से कहा, "दादी, अब आप जाकर आराम कीजिए। वैसे भी काफी रात हो गई है, और मैं भी अब सो जाती हूँ। सुबह फिर मुझे कॉलेज भी जाना है और जल्दी उठकर सबके लिए नाश्ता भी बनाना है।" तब आयशा की दादी ने उसके सिर के ऊपर अपना हाथ रखा और कहा, "ठीक है मेरी बेटी, तुम खैर से जाओ और आराम करो। खुदा तुझे सलामत रखे।"

    दादी की बात सुनकर आयशा जल्दी से मुस्कुराते हुए अपने कमरे में जाने लगी। वैसे भी वह आज इस बात को लेकर खुश थी कि आज उसे ज़मीन पर नहीं सोना पड़ेगा, बल्कि आज उसके कमरे में उसके लिए मखमली कंबल, मखमली बेड, बहुत ही सॉफ्ट और रुई जैसे गद्दे हैं, तो उसे आज बहुत ही प्यारी और खूबसूरत नींद आएगी।

    यह सोचते हुए आयशा जल्दी ही अपने कमरे में चली गई। और जैसे ही वह अपने कमरे में गई, उसने देखा उसका कमरा पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था। साथ ही साथ उसके कमरे में अब कितने सारे रंग-बिरंगे फूल थे, जो उसके कमरे की खूबसूरती को और भी ज़्यादा बढ़ा रहे थे।

    जैसे ही आयशा ने यह सब कुछ देखा, तो उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। और वह कुछ देर वहाँ की खूबसूरती देखकर खो सी ही गई थी और फिर घूम-घूमकर खूबसूरती को अपने अंदर बसाने लगी। क्योंकि वहाँ की हर चीज से बहुत ही कमाल की खुशबू आ रही थी।

    आयशा उस खुशबू को अंदर तक बसाने के बाद चित होकर बेड पर लेट गई। और जैसे ही वह लेटी, उसे अपनी कमर के नीचे काफी ज़्यादा सॉफ्ट और मुलायम सा महसूस हुआ। उसके बाद धीरे-धीरे आयशा नींद की वादियों में जाने लगी।

    लेकिन तभी अचानक से आयशा का दुपट्टा अपने आप ही उसके शरीर से अलग हो गया। आयशा उस वक़्त काफी गहरी नींद में थी, तो उसे इस बात का दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि उसके जिस्म से उसका दुपट्टा अलग हो चुका था।

    धीरे-धीरे आयशा का कुर्ता भी अब ऊपर होने लगा, लेकिन आयशा उस वक़्त उस मुलायम और नरम बेड में काफी चैन और सुकून की नींद सोई हुई थी। उसे एहसास ही नहीं था कि वह जिन्नज़ादा, जो कि इनडायरेक्टली उसका सोहर बन बैठा था, वह अब धीरे-धीरे उसके पास आ रहा था।

    आयशा ने तो आज जी भरकर, पेट पूरा भरकर खाना खाया था और ऊपर से आज उसे मखमली बिस्तर सोने के लिए मिला था, तो इसीलिए वह बेसुध सोई हुई थी। उसे एहसास ही नहीं था कि धीरे-धीरे उसके जिस्म के कपड़े उससे अलग होते जा रहे थे।

  • 17. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 17

    Words: 1957

    Estimated Reading Time: 12 min

    आयशा उस वक्त गहरी नींद में थी। उसे पता नहीं था कि उसका दुपट्टा उसके जिस्म से अलग हो चुका था और धीरे-धीरे उसका सूट ऊपर होने लगा था। जल्दी ही एक मनमोहक खुशबू उसके चारों ओर फैल गई।

    आयशा गहरे नशे में थी। उसे पता नहीं था कि आज रात उसके साथ क्या होने वाला था।

    शहजादा कामरान ने जल्दी ही आयशा के पूरे जिस्म को किस करना शुरू कर दिया। वह आयशा को हर तरह से अपना बना लेना चाहता था। वैसे भी, आयशा से उसकी शादी हो चुकी थी; उसने अपने हाथों से उसे अंगूठी पहनाई थी।

    आयशा को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था। शहजादा कामरान ने उसके खाने में कुछ ऐसा मिलाया था जिससे उसे आज रात होने वाली घटना का एहसास ही नहीं हुआ।

    शहजादा कामरान यह अच्छी तरह जानता था कि अगर आयशा अपने होशो-हवास में होती, तो वह किसी भी कीमत पर उसे स्वीकार नहीं करती।

    वह आयशा की खूबसूरती देखकर मुग्ध हो गया था। आयशा के नहाने गए समय भी वह बाथरूम में मौजूद था।

    वह उसके जिस्म के हर कटाव, हर उभरे हुए अंग को ध्यान से देख रहा था। अब वह आयशा को पूरी तरह अपना बना लेना चाहता था।

    इसीलिए उसने जल्दी ही उसके पूरे जिस्म पर किस करना शुरू कर दिया। आयशा हल्का-हल्का रिएक्ट कर रही थी, लेकिन उसे कुछ पता नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है।

    जल्दी ही शहजादा ने सारी हदें पार करते हुए आयशा के साथ शारीरिक संबंध बना लिए। उसने पूरी रात आयशा के साथ ऐसा ही किया। कभी वह आयशा के खूबसूरत होंठों को अपने होंठों में बंद कर उनका रस चूस रहा था, तो कभी उसकी खूबसूरत गर्दन को अपने होठों से चूम रहा था।

    पूरी रात आयशा के साथ संबंध बनाने के बाद, शहजादा ने आयशा के सोकर उठने से पहले ही एक दवा और एक गिलास दूध वहाँ रख दिया।

    क्योंकि आयशा के साथ संबंध एक इंसान ने नहीं, बल्कि एक जिन्न ने बनाया था, इसलिए उसका उठना बहुत मुश्किल था। आयशा के साथ पहली बार इस तरह की ज्यादती हुई थी, इसलिए उसके शरीर से काफी खून निकल गया था।

    अगली सुबह, लगभग पाँच बजे, आयशा उठी। उसका अलार्म बज चुका था। पाँच बजे उसे अपनी सौतेली माँ की हर बात माननी होती थी, सारा काम करना पड़ता था।

    आयशा की आँखें तो खुल गई थीं, लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उठकर बैठ जाए। न तो उसमें बैठने की हिम्मत थी, न ही उसकी टाँगें काम कर रही थीं।

    आयशा अपनी टाँगें हिला तक नहीं पा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था मानो उसके ऊपर किसी ने बहुत भारी वज़न रख दिया हो।

    आयशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हुआ है, लेकिन उसे अपने जिस्म का हर हिस्सा टूटा हुआ सा महसूस हो रहा था।

    बार-बार उसके जिस्म के हर हिस्से से दर्द की सिहरन महसूस हो रही थी। उसे अपने नाजुक अंगों में बेहद दर्दनाक दर्द का एहसास हो रहा था।

    आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ क्या हुआ था। उसे केवल इतना याद था कि उसने कल रात अच्छी तरह से खाना खाया था, और खाना खाने के बाद सीधा सो गई थी।

    आयशा सोचने लगी कि कहीं इस मखमली बिस्तर पर सोने की वजह से तो उसकी कमर नहीं अकड़ गई है। अपनी अम्मी के जाने के बाद से वह हमेशा चटाई पर सोती थी। आज अचानक उसे मखमली गद्दे पर सोने को मिला था, तो उसे लगने लगा कि शायद उसी की वजह से उसकी कमर अकड़ गई है, इसलिए वह नहीं उठ पा रही है, नहीं हिल पा रही है।

    लेकिन तभी आयशा को अपनी गर्दन के पास कुछ अजीब सा एहसास हुआ। उसके कमरे में शीशे के नाम पर एक छोटा सा स्कूटर का शीशा था। उसने जल्दी से उसे निकाल लिया।

    जैसे ही उसने अपना चेहरा देखा, आयशा एकदम शॉक हो गई। उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था। उसके होंठ काफी मोटे हो गए थे, क्योंकि शहजादा ने काफी देर तक उसके होंठों को चूमा था। उसे इस बात का कोई एहसास नहीं था।

    जैसे ही उसका ध्यान अपनी गर्दन की ओर गया, उसने देखा कि उसकी पूरी गर्दन अजीब निशानों से भरी हुई थी।

    धीरे-धीरे आयशा ने अपने एक-एक अंग को देखना शुरू कर दिया। जहाँ-जहाँ से वह कपड़ा हटाकर अपना जिस्म देख रही थी, वहाँ उसे गहरे, गोल, लाल रंग के चकत्ते दिखाई देने लगे।

    आयशा सोचने लगी कि शायद उसे किसी तरह की बीमारी हो गई है, जिसकी वजह से उसे इतना सब कुछ महसूस हो रहा है।

    तभी आयशा ने जोरों से चिल्लाकर अपनी दादी को बुलाने की कोशिश की, लेकिन न तो उसकी आवाज कमरे से बाहर जा रही थी, और न ही वह चिल्ला पा रही थी।

    तभी आयशा के बगल में एक दवा और दूध रखा हुआ दिखाई दिया। जैसे ही आयशा ने वह दवा और दूध देखा, वह हैरान हो गई। वह सोचने लगी कि आखिर कौन उसके कमरे में यह दवा और दूध रखकर गया है? आयशा की फ़िक्र तो किसी को भी नहीं थी। और किसी को कैसे पता कि आयशा बीमार है?

    आयशा ने ज़्यादा न सोचते हुए, उस दवा को उठा लिया और दूध एक झटके में पी लिया। हालाँकि दूध पीने पर उसका गला दर्द कर रहा था, क्योंकि शहजादे ने उसकी गर्दन को जी भरकर चूसा था, जिसकी वजह से उसकी गर्दन के अंदर तक का हिस्सा दुख रहा था।

    आयशा ने जल्दी ही वह दूध खत्म करके वह दवा ले ली। उसके बाद जैसे ही उसने अपना चेहरा आईने में देखा, तो वह हैरान हो गई। उसका चेहरा पहले की तरह खूबसूरत हो गया था।

    अब उसे अपने जिस्म पर किसी तरह के निशान नज़र नहीं आ रहे थे। आयशा की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। उसे ज़्यादा दर्द भी महसूस नहीं हो रहा था।

    आयशा अपने आप को पहले जैसा हल्का-फुल्का महसूस करने लगी। और फिर जल्दी ही आयशा अपने बिस्तर से उठी और बाथरूम में घुस गई।

    बाथरूम में नहाने के बाद, उसने जल्दी ही अपने कपड़े पहने और किचन की ओर रवाना हो गई। आयशा जितनी देर बाथरूम में थी, उतनी देर दो आँखें उसे बड़े ध्यान से देख रही थीं।

    आयशा ने जो गोली खाई थी, वह शहजादा ने उसके लिए रखी थी। उस गोली में इतनी ताकत थी कि आयशा का कोई भी दर्द, कोई भी निशान, किसी को दिखाई नहीं देगा, महसूस नहीं होगा, और न ही आयशा उसे महसूस कर पाएगी।

    लेकिन असलियत यह थी कि आयशा की शादी के बाद की पहली रात उसके जिन्न शौहर के साथ हो चुकी थी। आयशा को तो सपने में भी इस बात का अंदाज़ा नहीं था।

    उसने सोचा था कि शायद उसे कोई बीमारी हो गई है, इसीलिए उसके पूरे जिस्म पर लाल रंग के चकत्ते बन गए थे और उसके होंठ, नाक, मुँह, गाल सब कुछ सूज गए थे। इतना ही नहीं, उसके जिस्म के नाजुक अंगों में भी दर्द हुआ था।

    लेकिन उसने इस बात को अपने दिलो-दिमाग से निकाल दिया, क्योंकि एक गोली खाने के बाद वह पहले जैसी बिल्कुल ठीक हो गई थी। इसलिए उसने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन यह बात उसके दिमाग में खटक ज़रूर रही थी कि आखिर उसका चेहरा इतना अजीब सा क्यों लग रहा था।

    लेकिन फिर सौतेली माँ के डर से वह जल्दी ही किचन में घुस गई और खाना बनाने के लिए पहुँच गई। लेकिन जैसे ही वह किचन में गई, उसने देखा कि सारा खाना पहले से ही बना हुआ था और हमेशा की तरह झाड़ू-पोछा, बर्तन, कपड़े, सारा काम हो चुका था।

    जैसे ही आयशा ने यह देखा, वह मुस्कुराने लगी और खुश हो गई। लेकिन उसके बाद उसने अपनी दादी के लिए अपने हाथों से खाना बनाना शुरू कर दिया, क्योंकि वह जानती थी कि अगर उसकी दादी ने यह खाना खाया, तो उन्हें यह खाना कड़वा लगेगा।

    और फिर जिन्न की सच्चाई दादी के सामने आ जाएगी और दादी उस पर बहुत गुस्सा करेगी और उस जिन्न को भगाने के लिए धागे-ताबीज़ बनाएगी।

    हालाँकि आयशा उस दिन के बाद उस जिन्न से नहीं मिली थी, लेकिन वह फिर भी चाहती थी कि वह जिन्न उसके आस-पास रहे।

    क्योंकि उसके आने के बाद उसकी ज़िंदगी पहले से भी ज़्यादा अच्छी हो गई थी। अब उसे कोई काम नहीं करना पड़ता था। इतना ही नहीं, उसका कमरा भी बहुत खूबसूरत रहा करता था और उसे बासी खाना खाने की कोई ज़रूरत नहीं थी; उसके लिए स्पेशली बहुत अच्छा खाना आता था।

    इसलिए आयशा थोड़ी सी स्वार्थी हो गई थी, इसलिए वह अपनी दादी को इस बात का पता नहीं लगने देना चाहती थी।

    इसलिए जल्दी ही आयशा ने अपनी दादी के लिए हल्का सा खाना बनाकर, मूंग की दाल के साथ दो रोटियाँ उनके लिए रख दीं, क्योंकि आयशा की दादी को रोटी दाल में भिगोकर खाना बहुत पसंद था।

    इसलिए आयशा ने दाल में भी रोटी चूर कर रख दी और जल्दी से अपनी दादी के पास ले जाने लगी।

    जैसे ही आयशा अपनी दादी के पास गई और जैसे ही उसकी दादी ने आयशा को देखा, तो हैरान हो गईं। क्योंकि आयशा भले ही ठीक-ठाक दिखाई दे रही थी, लेकिन आयशा का चेहरा हल्का सा सफ़ेद पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि उसके जिस्म में खून ही ना हो। उसकी दादी ने उसे ऐसे देखा तो वह काफी हैरान हो गईं।

    "क्या हुआ आयशा बेटा? क्या हुआ है? तू कुछ परेशान है? तू किस तरह की टेंशन ले रही है? ऐसा लग रहा है तेरे जिस्म में खून ही नहीं है।"

    तब आयशा ने अपनी दादी से कहा, "दादी, मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ। इनफैक्ट, मैं बहुत ज़्यादा खुश भी हूँ।"

    अपनी खुशी की वजह वह दादी को नहीं बताना चाहती थी। लेकिन फिर जैसे ही दादी ने यह सुना कि आयशा कह रही है कि वह बहुत ज़्यादा खुश है, तो दादी भी खुश हो गईं और उन्होंने ज़्यादा टोका नहीं। वह सोचने लगीं कि क्या पता बेटी के "वह वाले दिन" चल रहे हों, इसीलिए इतनी कमज़ोर सी दिखाई दे रही थी।

    जल्दी ही आयशा ने अपनी दादी को अपने हाथ से बनाया हुआ खाना दे दिया और उसकी दादी ने उसके सर पर हमेशा की तरह हाथ रख दिया।

  • 18. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 18

    Words: 1814

    Estimated Reading Time: 11 min

    अपनी दादी से आशीर्वाद लेने के बाद, आयशा कॉलेज के लिए तैयार होने लगी। लेकिन आयशा का पीला चेहरा कहीं न कहीं उसकी दादी की आँखों में खटक रहा था। खैर, उन्होंने उस वक्त ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। उन्होंने सोचा कि बिचारी थक भी तो जाती है; सारा दिन घर का काम करती है, खाना बनाती है, झाड़ू-पोछा, बर्तन, कपड़े—हर काम का ध्यान रखती है। अगर आयशा उस बड़ी सी हवेली में ना होती, तो उस हवेली का एक भी काम ना होता। सारा काम उसकी सौतेली माँ उसी से करवाती थी। हवेली में, जब मुमताज बेगम हुआ करती थीं, तब नौकरों की लाइन लगी रहती थी, और अपनी प्यारी सी बेटी आयशा को फूलों की तरह पाला करती थीं। लेकिन उनकी मौत के बाद, सब कुछ बदल चुका था। दादी खाना खाते हुए सारी बातें सोचने लगीं और फिर जल्दी ही दवा खाकर थोड़ी देर टहलने के लिए बाग़ की ओर चली गईं।


    वहीं, आयशा ने आज हल्के पिंक रंग का एक बहुत खूबसूरत चूड़ीदार सूट पहना था। उसमें वह बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। जैसे ही आयशा तैयार हुई और सकीना की नज़र उस पर पड़ी, तो वह उसे देखती ही रह गई। और आयशा को इतना खूबसूरत देखकर उसका खून खौलने लगा। हालाँकि, आयशा ने सकीना के ही दिए हुए कपड़े पहने हुए थे; जो भी कपड़े सकीना को पसंद नहीं आते थे, वह आयशा को दे देती थी। शुरू से ही, आयशा सकीना के उतरे हुए कपड़े ही पहनती आई थी। सकीना सब कुछ सहन कर सकती थी, लेकिन आयशा की खूबसूरती उसकी आँखों में बचपन से ही चुभती आई थी। और अब तो आयशा और भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी, तो यह बात उसे अंदर तक जला गई थी। इसलिए उसने जल्दी से आयशा से कहा, "तुम क्या इन कपड़ों में कॉलेज जाओगी? तुम्हारे दिमाग खराब हो गए हैं? इतनी सज-धज के भला कॉलेज कौन जाता है? हाँ, क्या करने जाती हो तुम कॉलेज? आज तो तुम्हारा दूसरा ही दिन है। कहीं कोई लड़का तो तुम्हें पसंद नहीं आ गया, जो तुम्हें उसके साथ नैन-मटकक्का करना है?" सकीना ने हमेशा से ही आयशा को बुरा-भला कहा था, तो अब आयशा को खूबसूरत देखकर उसने एक बार फिर उसे उल्टी-सीधी बातें सुनाना शुरू कर दिया था।


    सकीना की बातें सुनकर आयशा की आँखों में आँसू आ गए थे, लेकिन एक भी आँसू अभी तक नीचे नहीं गिरा था, कि तभी अचानक सकीना के पेट में दर्द होना शुरू हो गया। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया कि अचानक सकीना को क्या हुआ है। इस तरह से पेट दर्द होना! अभी तो वह ठीक-ठाक बोल रही थी, अचानक से उसके पेट में दर्द होना शुरू हो गया था। सकीना जिस जगह खड़ी थी, उसी जगह बैठ गई। और जहाँ वह आयशा को बुरा-भला कहकर रुला रही थी, अब वह खुद रोने लगी थी, क्योंकि उसका पेट दर्द बहुत ही ज़्यादा, बहुत ही भयंकर था। उसे रह-रहकर बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था।


    तभी आयशा ने मन ही मन में सोचा, "या अल्लाह! अगर इसका पेट दर्द खत्म नहीं हुआ, तो यह आज कॉलेज नहीं जाएगी, और अगर यह आज कॉलेज नहीं गई, तो मैं भी कॉलेज नहीं जा पाऊँगी। नहीं-नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए। प्लीज़ इसे ठीक कर दो।" जैसे ही आयशा ने अपने मन ही मन में यह बात बोली, किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया कि अचानक सकीना को क्या हुआ, अचानक से सकीना का पेट दर्द ठीक हो गया। तभी सकीना की माँ लँगड़ाते हुए वहाँ आ गई और कहने लगी, "बेटा, तू जल्दी से यह पी ले। यह काला नमक का नींबू पानी है, इससे तुझे आराम आएगा। मुझे लगता है तेरे पेट में गैस का गोला उठा है।"


    अपनी माँ की बात सुनकर सकीना ने उन्हें एक नज़र देखा और फिर जल्दी उनके हाथ से वह पानी का गिलास लेकर पी लिया। पानी का गिलास पीते ही सकीना का पेट दर्द इस तरह से गायब हो गया, मानो उसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। सकीना के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था। वह जल्दी से अपनी माँ को गले लगाते हुए बोली, "थैंक यू सो मच अम्मी जान! आप नहीं जानतीं, मेरे पेट में अभी बहुत ज़ोरों से दर्द हो रहा था। आप तो देख रही हैं ना मेरी हालत, और पता नहीं आपने ऐसा क्या दिया कि देखो मेरा पेट दर्द बिल्कुल ठीक हो गया।" तब सकीना की माँ उसके माथे को चूमते हुए बोली, "मेरी बच्ची, तुझे परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं जानती हूँ मेरी बेटी को कब किस चीज़ की ज़रूरत पड़ सकती है।"


    उन माँ-बेटी के खोखले प्यार को देखने के बाद, आयशा ने अपना मुँह बिचका लिया। और वह इसी बात से शुक्र मना रही थी कि कम से कम वह ठीक तो हुई। अगर वह ठीक नहीं होती, तो वह कॉलेज भी नहीं जा पाती। अब आयशा जल्दी ही सकीना के साथ कॉलेज के लिए रवाना हो चुकी थी। थोड़ी देर पहले सकीना जो आयशा की खूबसूरती को लेकर टोण्ट कर रही थी, उसने अब उसे कुछ नहीं कहा। उल्टा, वह खामोश हो गई थी, क्योंकि उसे अपने पेट दर्द के आगे अब कुछ भी याद नहीं रहा था। जल्दी ही वह दोनों कॉलेज पहुँच चुकी थीं।


    जैसे ही वह दोनों कॉलेज गईं, सबसे पहले गुलफाम की नज़र आयशा पर पड़ी। आयशा को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। आखिरकार पूरी रात उसने आयशा के साथ बिताई थी, तो अब उसे आयशा से और ज़्यादा मोहब्बत हो गई थी। गुलफाम आँखों ही आँखों में बड़ी ही गहरी नज़रों से आयशा को देख रहा था। लेकिन अचानक गुलफाम को ऐसा महसूस हुआ, मानो आयशा को उसके अलावा कोई और भी देख रहा हो। जैसे ही उसने अपने आस-पास अपनी नज़रें घुमाना शुरू किया, तो जल्दी ही उसकी नज़र आरिफ पर आकर ठहर गई।


    जैसे ही गुलफाम ने आरिफ को आयशा को इस तरह से देखते हुए पाया, तो उसका गुस्से के मारे बहुत बुरा हाल हो गया। वह इस वक्त आरिफ की आँखें निकाल लेना चाहता था, लेकिन वह कुछ नहीं कर पाया, क्योंकि उसके आस-पास काफ़ी सारे कॉलेज के बच्चे थे। उन सबके सामने गुलफाम कुछ भी करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था, क्योंकि उसे आयशा के साथ लंबी ज़िंदगी गुज़ारनी थी। इसीलिए वह किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था, न ही वह कोई ऐसा काम करना चाहता था जिससे आयशा उससे दूर हो जाए।


    कॉलेज में आते ही सकीना ने अपने बॉयफ्रेंड को ढूँढना शुरू कर दिया, और जल्दी ही उसकी नज़र आरिफ पर जाकर ठहर गई। लेकिन जैसे ही उसने आरिफ की नज़रों का पीछा किया और यह पाया कि आरिफ उस वक्त सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी सौतेली बहन आयशा को देख रहा है, तो उसका गुस्से और जलन के मारे बहुत बुरा हाल हो गया। और वह आयशा को घूर कर देखते हुए बोली, "अपने काम से कम रखा करो और सीधा जाकर अपनी क्लास में बैठो। खबरदार, जो तूने किसी से बात करने की कोशिश की, तो मैं तेरी शिकायत सीधा अब्बा से कर दूँगी, और तू अच्छी तरह से जानती है फिर अब्बा तेरा क्या हाल करेंगे।" सकीना ने बेवजह अपना गुस्सा आयशा पर उतार दिया था। आयशा ने उस वक्त उसे कुछ नहीं कहा, क्योंकि वह जानती थी अगर उसने उसे कुछ कहा, तो हो सकता है वह उसके साथ और ज़्यादा बदतमीज़ी करे, और वह सबके सामने बेइज़्ज़त नहीं होना चाहती थी। इसीलिए आयशा उसकी बात मानते हुए जल्दी ही अपनी क्लास की तरफ़ जाने लगी।


    लेकिन जैसे ही वह क्लास में गई, तभी उसके सामने गुलफाम खड़ा हुआ था। आयशा ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ गुलफाम को हेलो किया और फिर जाकर अपनी डेस्क पर बैठ गई। गुलफाम भी हल्के से मुस्कुराता हुआ आयशा के सामने वाली डेस्क पर बैठ चुका था। वह जानबूझकर उसके साथ नहीं बैठा था, क्योंकि वह अपनी शराफ़त से आयशा को इम्प्रेस करना चाहता था। वह चाहता था आयशा गुलफाम रूप में उसे प्यार करे और उससे मोहब्बत का इज़हार करे, ताकि वह आयशा के साथ दिन में भी शारीरिक संबंध बना सके, लेकिन इंसानी तरीके से। गुलफाम भले ही क्लास में बैठा हुआ था, लेकिन रह-रहकर वह आयशा की ओर ही देख रहा था। बार-बार आयशा के खूबसूरत होंठों पर उसकी नज़र जाकर ठहर रही थी, जिन्हें कल रात उसने अच्छी तरह से चूमा था। लेकिन उसका दिल अब फिर से आयशा के साथ सब कुछ करने को कर रहा था, और यह सब सोचते हुए उसका गला सूखने लगा।


    और अभी कुछ ही देर हुई थी कि तभी अचानक से सकीना का बॉयफ्रेंड आरिफ उस क्लास में आ गया, जबकि उसकी वह क्लास भी नहीं थी। क्लास में आते ही आरिफ ने चारों तरफ़ अपनी नज़रें दौड़ाईं और जल्दी ही आयशा पर उसकी नज़र जाकर ठहर गई। आयशा को कुछ पल देखने के बाद, वह सीधा आयशा के सामने जाकर खड़ा हो गया और फिर उसे कहने लगा, "तुम आयशा हो ना, सकीना की बहन?" जैसे ही आयशा ने किसी गैर-मर्द से अपना नाम सुना, तो वह हैरान हो गई। और अपने सामने आरिफ को देखकर जल्दी ही उसे आरिफ याद आ गया कि यह तो वही लड़का है जो कि कल उसकी बहन के साथ था। तभी आयशा ने जल्दी से खड़े होकर अपना दुपट्टा सही करते हुए उसकी ओर देखते हुए कहा, "हाँ हाँ, मैं ही आयशा हूँ। जी, कहिए।"


    जैसे ही आयशा ने इतनी मासूम भरी आवाज़ में यह सब कहा, आरिफ को वह अंदर ही अंदर बहुत प्यारी लगी। लेकिन आरिफ का इरादा तो वहाँ आने का कुछ और ही था। तभी आरिफ ने आयशा से कहा, "तुम... मैं तुम्हें कुछ ज़रूरी बात बताने के लिए आया हूँ। तुम्हारी बहन सकीना को... उसके पेट में अचानक से ज़ोरों से दर्द हो रहा है, तो उसे मदद की ज़रूरत है। तो तुम मेरे साथ चलो।" जैसे ही आरिफ ने यह कहा, आयशा काफ़ी परेशान हो गई और फिर कुछ सोचते हुए जल्दी ही वह आरिफ के साथ जाने लगी। लेकिन उसे इस बात का कोई एहसास नहीं था कि गुलफाम वहीं बैठा हुआ आरिफ को बड़ी ही काली नज़रों से देख रहा था, और उसके चेहरे में छिपी मक्कारी को भी अच्छी तरह से महसूस कर पा रहा था, जिसे आयशा नहीं देख पा रही थी, क्योंकि आयशा बहुत मासूम थी। तभी अचानक...

  • 19. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 19

    Words: 2059

    Estimated Reading Time: 13 min

    आरिफ सीधे आयाशा के पास आया और कहा, "तुम्हारी बहन सकीना की तबीयत बहुत खराब है। उसके पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है, और वह तुम्हें मदद के लिए बुला रही है।"

    आयाशा यह सुनकर बहुत परेशान हो गई और बिना सोचे-समझे आरिफ के साथ जाने को तैयार हो गई।

    लेकिन उसे इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि आरिफ की आँखों में सिर्फ़ झूठ और मक्कारियाँ छिपी हुई थीं। आयाशा तो देख नहीं पाई, लेकिन जिन्नज़ादा, गुलफ़ाम, देख पा रहा था।

    जिन्नज़ादे ने देख लिया था कि आरिफ साफ़-साफ़ झूठ बोल रहा है, और वह समझ गया था कि वह आयाशा के साथ कुछ न कुछ गलत करने वाला है।

    यह सोचते ही उसने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बँध लीं।

    आयाशा आरिफ के साथ क्लास से जल्दी ही निकल गई। जिन्नज़ादा चाहकर भी उसे नहीं रोक सका। वह उस वक्त इंसानों की भीड़ में था। आयाशा आरिफ के साथ तेज़ी से चल रही थी। आरिफ उसे दो-चार क्लासेस छोड़ते हुए कॉलेज के सेकंड फ़्लोर पर ले जा रहा था।

    आयाशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ जा रही है। उसने सकीना की क्लास भी नहीं देखी थी। उसे लग रहा था कि शायद आरिफ उसे सही जगह ले जा रहा है।

    लेकिन आरिफ उसे स्टोर रूम में ले गया। वहाँ बड़े-बड़े अक्षरों में साफ़-साफ़ "स्टोर रूम" लिखा हुआ था। जैसे ही आयाशा ने यह देखा, उसने सवालिया निगाहों से आरिफ की ओर देखा।

    तब आरिफ ने कहा, "वह बहुत कमज़ोर महसूस कर रही थी, और क्लास में सभी स्टूडेंट उसे अजीब नज़रों से देख रहे थे। यह स्टोर रूम ऐसी जगह है जहाँ जल्दी कोई आता-जाता नहीं है, इसीलिए वह यहाँ आ गई है। तुम जाकर अंदर से देख लो, तब तक मैं बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ।"

    आरिफ के कहने पर आयाशा ने खुद को थोड़ा हल्का महसूस किया। उसे लगने लगा था कि आरिफ उसके साथ अंदर नहीं आ रहा है। आरिफ के कहने पर, "तुम जाकर अंदर चेक कर लो, तब तक मैं तुम्हारा बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ," वह उसकी बात को सच मान बैठी और जल्दी ही स्टोर रूम के अंदर चली गई।

    स्टोर रूम कॉलेज के सेकंड फ़्लोर के बिलकुल आखिरी कोने में था, जहाँ कॉलेज की पुरानी फ़ाइलें और कबाड़ का सामान भरा हुआ था।

    आयाशा ने चारों तरफ़ देखा और सकीना को आवाज़ लगाना शुरू कर दिया। लेकिन सकीना वहाँ होती तो बोलती।

    आरिफ मक्कार भरी मुस्कराहट के साथ स्टोर रूम में गया और उसे अंदर से लॉक कर दिया।

    स्टोर रूम साउंडप्रूफ़ था। दरवाज़ा बंद करने पर कमरे की आवाज़ बाहर नहीं आ सकती थी।

    लेकिन आरिफ को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उसकी यह मक्कारी उस पर कितनी भारी पड़ने वाली है।

    वहीं सकीना गार्डन में अपने बॉयफ़्रेंड के आने का इंतज़ार कर रही थी। गार्डन में एक सुनसान जगह थी जहाँ वह हमेशा अपने बॉयफ़्रेंड से मिलती थी और उसे गले लगाकर किस करती थी।

    सकीना ने कभी आरिफ को अपनी लिमिट क्रॉस नहीं करने दी थी, क्योंकि उसे अपनी अम्मी का डर था। उसकी अम्मी ने उसे साफ़-साफ़ कह रखा था कि अगर उसने कोई गड़बड़ की तो वह उसकी शादी 80 साल के बूढ़े से कर देगी।

    सकीना यह बात अपने दिल पर लगा बैठी थी। वह जानती थी कि उसकी माँ कुछ भी कर सकती थी, और पूरी हवेली पर उसकी माँ की हुकूमत थी।

    आज आरिफ और सकीना ने एक भी क्लास अटेंड नहीं की थी। आरिफ ने उसे सपने दिखाए थे और कहा था कि वह हमेशा मिलने वाली जगह, गार्डन में उसका इंतज़ार करे, उसके लिए कुछ सरप्राइज़ है, तब तक वह कुछ ज़रूरी काम निपटाकर आता है।

    सकीना को गार्डन में इंतज़ार करने को कहकर वह सीधे आयाशा के पास गया और उसे धोखे से स्टोर रूम तक ले आया।

    आयाशा ने पूरा स्टोर रूम ढूँढ़ डाला, लेकिन सकीना कहीं नहीं दिखी। वह दरवाज़े से बाहर जाने लगी।

    जैसे ही वह दरवाज़े के पास आई, उसने देखा आरिफ खड़ा है और मुस्कुरा रहा है। आयाशा के माथे पर बल पड़ गए। उसने कहा, "यह क्या बदतमीज़ी? और तुमने दरवाज़ा क्यों बंद किया? और यहाँ तो सकीना कहीं नहीं है!"

    आयाशा की थोड़ी तेज आवाज़ सुनकर आरिफ जोरों से हँसने लगा और बोला, "मैंने तुमसे झूठ बोला है। यहाँ तुम्हारी प्यारी बहन सकीना नहीं है। यहाँ सिर्फ़ मैं हूँ। सच बताऊँ, जब से तुम्हें देखा है, तुम्हारी ख़ूबसूरती का कायल हो गया हूँ। मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ। बस एक बार मेरी ख़्वाहिश पूरी कर दो, मैं वादा करता हूँ, तुम्हारे हर सपने पूरे करूँगा। सकीना को छोड़कर हमेशा के लिए तुम्हारा हो जाऊँगा। बस एक बार मुझे खुश कर दो।"

    आरिफ की बातें सुनकर आयाशा का दिल घृणा से भर गया। उसका दिल कर रहा था कि वह उसे उठाकर बाहर फेंक दे या उसका सर फोड़ दे, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी। आरिफ लंबा-चौड़ा और मज़बूत था, और आयाशा उससे दुबली-पतली। आयाशा ने कहा, "यह क्या बदतमीज़ी? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे इस तरह बात करने की? मैं अभी जाकर तुम्हारी सकीना से और प्रिंसिपल से शिकायत करती हूँ।"

    जैसे ही आयाशा दरवाज़े की ओर बढ़ी, आरिफ ने उसका हाथ पकड़ लिया, उसका हाथ मोड़कर उसे अपनी छाती से लगाया और उसके कान में बोला, "इतनी भी क्या जल्दी है? पहले थोड़ा सा खेल तो खेल लिया जाए।" यह बदतमीज़ी से कहने पर आयाशा रोने लगी। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसके साथ ऐसा कुछ होगा। कोई उसे धोखे से बुलाएगा और वह आ भी जाएगी।

    आयाशा को अब खुद पर गुस्सा आ रहा था, और वह खुद को बेबस महसूस करने लगी थी।

    तभी अचानक आयाशा जोरों से रोने लगी और आरिफ के सामने गिड़गिड़ाने लगी। लेकिन आरिफ के सर पर शैतान सवार था। उसे सिर्फ़ आयाशा और उसका ख़ूबसूरत जिस्म दिखाई दे रहा था। वह उसके होंठों और अंगों को देख रहा था। वह उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहता था। उसने आयाशा को खींचा, उसे एक थप्पड़ मारा, और उसके ऊपर आने की कोशिश की।

    अचानक वह हवा में उड़ता हुआ सा महसूस हुआ। उसने आयाशा को नहीं छू पाया। जिन्नज़ादे ने पीछे से उसे पकड़ लिया था और उसे किताबों की अलमारी पर दे मारा था।

    आयाशा हैरान हो गई। उसे वहाँ कोई नहीं दिख रहा था, लेकिन उसे समझ आ गया कि किसी ने उसकी मदद की है, और वह कोई और नहीं, बल्कि जिन्नज़ादा था।

    आयाशा ने अपना दुपट्टा ठीक किया और आँसुओं को पोंछने लगी। तब उसने देखा आरिफ अपना सर दीवार पर जोर-जोर से मार रहा था। दरअसल जिन्नज़ादे उसकी गर्दन पकड़कर दीवार पर मार रहा था। जब तक आरिफ बेहोश नहीं हो गया, तब तक जिन्नज़ादा उसे मारता रहा।

    बेहोश होने के बाद वह आयाशा के बहुत करीब आया और उसके गालों को हल्का सा किस कर लिया। किस करने के बाद उसने जल्दी ही स्टोर रूम का दरवाज़ा खोला।

    आयाशा जल्दी से वहाँ से बाहर निकल गई। जिन्नज़ादे ने उस गाल को किस किया था जिस पर आरिफ ने थप्पड़ मारा था, ताकि निशान मिट जाये।

    आयाशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह नहीं देखना चाहती थी कि किसने उसे बचाया है, और न ही किसी से कुछ कहना चाहती थी। वह सिर्फ़ उस जगह से निकलना चाहती थी। उस जगह में उसका दम घुट रहा था। आयाशा भागती हुई सीधे अपनी क्लास रूम में चली गई।

    सकीना को डेढ़ घंटे से ज़्यादा हो गया था आरिफ का इंतज़ार करते हुए, लेकिन आरिफ नहीं आया था। वह बहुत निराश हो चुकी थी। गुस्से में उसने आरिफ को हर जगह ढूँढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला।

    आयाशा क्लास में बैठकर रोती रही। बार-बार आज जो कुछ हुआ वह याद आ रहा था। तभी उसने महसूस किया कि उसके बराबर में बैठा गुलफ़ाम नहीं है। यह बात उसे अजीब लगी, लेकिन उसने सोचा कि शायद वह किसी काम से बाहर गया होगा। उसने अपनी सोच को झटक दिया और अपनी किताबें समेटकर क्लास से बाहर आ गई। उसका क्लास में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था।

    जैसे ही वह क्लास से बाहर आई, उसने देखा सकीना भी बाहर खड़ी है। आयाशा सकीना के पास गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या वह सकीना को आरिफ के बारे में बताए, लेकिन फिर वह चुप हो गई।

    वह जानती थी कि अगर उसने सकीना को आरिफ की हरकत के बारे में बताया तो सकीना उस पर ही इल्ज़ाम लगाएगी और उसका कॉलेज जाना भी बंद करवा सकती है।

    इसलिए आयाशा ने उसे कुछ नहीं बताया। उसे उम्मीद थी कि आरिफ भी उसे कुछ नहीं बताएगा, क्योंकि उसने गलती की थी और उसे सज़ा भी मिल चुकी थी।

    आयाशा को यकीन हो गया था कि जिन्नज़ादे ने उसकी ज़िन्दगी और इज़्ज़त बचाई है, और उसे उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए।

    इसलिए उसने आज गार्डन में जाने का फ़ैसला कर लिया।

  • 20. जिन्नजादे की आशिकी - Chapter 20

    Words: 1982

    Estimated Reading Time: 12 min

    सकीना ने आयशा को देखते ही कहा, "तुम यहां क्या कर रही हो? क्या तुम्हें क्लास अटेंड नहीं करनी है?"

    आयशा ने उत्तर दिया, "सकीना, आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है। क्या हम आज जल्दी घर चलें?"

    सकीना ने आयशा को ध्यान से देखा और कहा, "आज मेरा भी दिल नहीं लग रहा है कॉलेज में। चलो, घर चलते हैं।"

    सकीना ने पूरा कॉलेज खंगाल दिया था, लेकिन आरिफ कहीं नहीं मिला था। इसलिए, कॉलेज में उसके रुकने का कोई मतलब नहीं था। वह तो वहाँ सिर्फ़ आरिफ के लिए ही आती थी। आरिफ के गायब होने पर, कॉलेज में रहकर वह क्या करती?

    कुछ सोचते हुए, दोनों ड्राइवर के साथ घर के लिए रवाना हो गईं।

    घर पहुँचकर, आयशा ने देखा कि उसकी सौतेली माँ उनका इंतज़ार कर रही थी। आयशा की नज़र तुरंत अपनी दादी पर पड़ी। वह दौड़कर दादी को आज के दिन की सारी बातें बताना चाहती थी, पर उसने यह बात अपने अंदर ही दबा ली। वह जानती थी कि अगर उसने किसी को कुछ भी बताया, तो उसका कॉलेज जाना बंद हो जाएगा, और वह किसी भी कीमत पर कॉलेज जाना बंद नहीं करना चाहती थी।

    आयशा मंद कदमों से दादी के पास गई और उन्हें गले लगा लिया। गले लगते ही, आयशा की आँखों से आँसू बहने लगे।

    दादी ने उसके आँसू महसूस कर लिए, पर उस वक़्त उन्होंने कुछ नहीं कहा। दादी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मेरे बच्चे, आ गई तुम? मुझे लग रहा है तुम बहुत थक गई हो। एक काम करो, कपड़े बदल लो और कुछ खा लो, उसके बाद काम करना।"

    लेकिन इससे पहले कि आयशा कुछ कह पाती, उसकी सौतेली माँ बोली, "कोई ज़रूरत नहीं है कपड़े बदलने की। अभी तक मेरे बेटे ने कुछ नहीं खाया। जाओ, उसके लिए परहेज़ी खाना बनाओ।"

    आयशा की सौतेली माँ के शब्दों से उसका दिल टूट गया। वह किसी अपने के साथ वक़्त बिताना चाहती थी, और इस बड़ी हवेली में उसका अपना सिर्फ़ उसकी दादी थीं। पर उसकी सौतेली माँ ने उसे आते ही खाना बनाने के लिए कह दिया था, वह भी परहेज़ी खाना, उसके बेटे के लिए।

    बेचारगी भरी नज़रों से दादी को देखते हुए, आयशा किचन में चली गई। वहाँ पहुँचकर वह हैरान रह गई, पहले से ही किचन में खिचड़ी बनी हुई थी।

    खिचड़ी देखकर, आयशा कुछ संतुष्ट हुई। कम से कम किसी को तो उसकी फ़िक्र है। फ़िर, खिचड़ी किचन में ही रखकर, वह अपने कमरे में चली गई।

    वह जानती थी कि अगर उसने इसी वक़्त खिचड़ी अपने भाई या सौतेली माँ को दे दी, तो उसकी सौतेली माँ को शक हो जाएगा कि उसने इतनी जल्दी खिचड़ी कैसे बना ली। इसलिए, थोड़ी देर खिचड़ी बनाने का नाटक करने के बाद, वह सीधे अपने कमरे में चली गई।

    अपने कमरे में पहुँचकर, आयशा को कपड़े बदलने का मन नहीं हुआ। वह सीधे बिस्तर पर लेट गई। लेटी-लेटी ही, उसके आँसू बहने लगे। आज उसकी इज़्ज़त पर हमला हुआ था, यह दूसरी बार था। पहले भी, उसी के घर में उसकी इज़्ज़त पर हमला हो चुका था, और आज दिन-दहाड़े कॉलेज में! आयशा को अपनी किस्मत पर बहुत रोना आ रहा था।

    पर फिर, उसे याद आया कि उसे उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए, जो उसके लिए खाना बनाता है, उसका ध्यान रखता है, उसे मखमली बिस्तर पर सुलाता है, और जिसने आज उसकी इज़्ज़त बचाई और उसके साथ बुरा करने वालों को सज़ा दी। आयशा कुछ सोचकर मुस्कुरा दी।

    फिर, जल्दी से नहाकर, कपड़े बदलकर, हाथ में एक कटोरा लेकर, वह गार्डन की ओर रवाना हो गई। वह गार्डन में जाकर जिन्नजादे का शुक्रिया अदा करेगी।

    लेकिन गार्डन जाने से पहले, आयशा ने अपने हाथों से थोड़ी सी खीर बना ली। खीर बनाकर, वह उसे गार्डन में ले जाने लगी। उसने सोचा कि अगर जिन्नजादे वाकई है और उसे सुनता है, तो वह खीर भी खा लेगा और उसका शुक्रिया कबूल कर लेगा। यही सोचते हुए, आयशा खीर लेकर गार्डन में चली गई।

    गार्डन में पहुँचकर, आखिरी छोर पर, उसने देखा कि वहाँ घास बहुत कम थी, जबकि वह छोर हमेशा घास से भरा रहता था। इतनी कम घास देखकर, आयशा को आश्चर्य हुआ।

    फिर उसने उस पेड़ को देखा, जिसके बारे में दादी ने बताया था कि वहाँ जिन्नातों का बसेरा है। वह पेड़ बहुत खूबसूरत था, गार्डन का सबसे खूबसूरत पेड़। उसकी शाखाएँ चारों तरफ झुकी हुई थीं, कुछ शाखाएँ जमीन को छू रही थीं।

    आयशा ने कुछ देर पेड़ को देखा, फिर एक टहनी को छूते हुए कहना शुरू कर दिया, "मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं तुम्हारा शुक्रिया किस तरह अदा करूँ। तुमने आज मेरी जान, मेरी इज़्ज़त, दोनों बचाई हैं। अगर मेरी इज़्ज़त के साथ कुछ भी हो जाता, तो...तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया। और मैंने शुक्रिया के तौर पर तुम्हारे लिए खीर लाई हूँ। आशा है तुम्हें पसंद आएगी।" कहकर, आयशा ने टहनी को चूम लिया।

    चूमने के बाद, उसने खीर का कटोरा गार्डन में बनी बेंच पर रख दिया और अपने कमरे की ओर चली गई।

    तभी, शहजाद कामरान अपने असली रूप में आ गया और बार-बार उस हाथ को देख रहा था जिसे आयशा ने चूमा था। शहजाद कामरान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। आयशा ने जिस टहनी को छुआ था, शहजाद कामरान ने अपना हाथ उसी में छुपा रखा था, और उसी हाथ पर आयशा ने उसे चूमा था। यह आयशा से उसकी पहली मोहब्बत की किस थी, जो उसे बहुत अच्छी लगी। वह बहुत खुश महसूस कर रहा था, मानो वह उड़ना चाहता हो, पर उड़ नहीं पा रहा हो।

    वहीँ, आयशा ने घर का सारा काम खत्म करने के बाद अपने कमरे में चली गई। सारा दिन हो चुका था, उसे सिर्फ़ सोना ही चाहती थी, क्योंकि उसके जिस्म को आराम की ज़रूरत थी।

    आयशा को एहसास नहीं था कि उसके जिस्म को अभी भी आराम नहीं मिलने वाला था। जैसे ही आयशा नींद में गई, जिन्नजादा उसके कमरे में आ पहुँचा और एक बार फिर से आयशा के दुपट्टे को उसके जिस्म से अलग कर दिया। वह बार-बार इस बात को लेकर खुश हो रहा था कि आयशा ने उसे किस किया था। वह जी भरकर आयशा को प्यार करना चाहता था, अपनी खुशी का इज़हार करना चाहता था। जल्दी ही जिन्नजादे ने आयशा को किस करना शुरू कर दिया। उसने अपने मखमली बिस्तर में ऐसा परफ्यूम लगाया था जिससे आयशा होश में नहीं आने वाली थी। उसे एहसास नहीं होगा कि उसके साथ क्या हो रहा है।

    जल्दी ही जिन्नजादे ने उसके पूरे जिस्म को किस करना शुरू कर दिया और फिर सारी हदें पार करते हुए उसे एक बार फिर से अपना बना लिया।

    पूरी रात जिन्नजादे ने आयशा के साथ मोहब्बत की। आयशा को दर्द का एहसास हो रहा था, उसकी आँखों से आँसू भी निकल रहे थे, लेकिन ना तो वह होश में आ पा रही थी, और ना ही समझ पा रही थी कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा है। वह तो बस मखमली बिस्तर पर सोई हुई थी। कहीं न कहीं, आयशा को लगने लगा कि जिन्नजादा उसका हमदर्द है, जो उसके लिए खाना पकाता है, उसके लिए दुनिया भर के काम करता है, और जिसने उसकी इज़्ज़त भी बचाई थी। इसलिए, जिन्नजादे के लिए आयशा के दिल में एक अलग तरह का सॉफ्ट कॉर्नर पैदा होने लगा था।

    जिन्नजादे ने आयशा के साथ पूरी रात प्यार किया और उसके बाद उसने एक गिलास दूध और वही दवा वहाँ रख दी और आयशा के कपड़े फिर से अच्छी तरह से पहना दिए।

    आयशा को कपड़े पहनाने के बाद, जिन्नजादे ने उसे माथे पर किस किया और वहाँ से चला गया। साथ ही, वह खीर का कटोरा उसके पास रखना नहीं भूला।

    जैसे ही जिन्नजादा गायब हुआ, अगली सुबह, लगभग 5:00 बजे, आयशा की आँख खुली। उसकी आँख खुली और उसे फिर से अपना जिस्म टूटा हुआ सा महसूस हुआ। वह सोच रही थी कि आखिर उसके साथ ये हो क्या रहा है? दो दिन से उसे ऐसा क्यों लग रहा है मानो उसका पूरा जिस्म टूट रहा हो?

    और जैसे ही उसने अपने पास रखी हुई दवा और उसके पास रखा हुआ खाली खीर का कटोरा देखा, तो वह काफी हैरान हो गई। खीर का खाली कटोरा देखकर उसे यकीन हो गया कि जिन्नजादे ने वह खीर खा ली और उसका शुक्रिया भी कबूल कर लिया है। आयशा इस बात को लेकर खुश हो गई। तभी, अचानक आयशा को अपने निचले शरीर में एक अलग ही तरह का दर्द महसूस हुआ।