अभिमान और अधीर 😊 शुरुआत सिर्फ़ नज़रों का खेल थी। लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे दोनों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ जज़्बात काबू में नहीं रहे। एक शाम, जब हल्की बारिश की बूंदें हवा में घुल रही थीं, अभिमान ने अचानक अधीर का हाथ... अभिमान और अधीर 😊 शुरुआत सिर्फ़ नज़रों का खेल थी। लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे दोनों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ जज़्बात काबू में नहीं रहे। एक शाम, जब हल्की बारिश की बूंदें हवा में घुल रही थीं, अभिमान ने अचानक अधीर का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए कॉलेज की पुरानी दीवार के पास ले गया। अधीर की धड़कनें तेज़ थीं, और उसकी आँखों में सवाल। अभिमान ने झुककर उसकी नज़रों में झाँका… और उस पल सब कुछ थम गया। क्या वो अधीर के होंठों तक पहुँच पाएगा, या किस्मत उनकी इस अधूरी ख्वाहिश को फिर टाल देगी?
अधीरा
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Abhimanu
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Meera
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Ranvijay
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नील
Side Hero
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रात का सन्नाटा था। घड़ी की सुइयाँ 11 बजा चुकी थीं। कमरे की खिड़की से आती हल्की चाँदनी में अभिमान गहरी नींद में डूबा हुआ था। तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा— ट्रिंग… ट्रिंग…
पहले तो उसने करवट बदल ली, लेकिन कॉल कटने के बाद तुरंत ही दोबारा फोन बजा। इस बार पूरी तरह से लगातार रिंगटोन गूँज रही थी।
अभिमान (नींद में चिढ़कर):
"कौन है यार रात के ग्यारह बजे… सोने भी नहीं देते…"
वह गुस्से में फोन उठाता है।
अभिमान (तेज़ आवाज़ में):
"हैलो! क्या है? कौन बोल रहा है?"
फोन के दूसरी तरफ से एक गहरी, घबराई हुई आवाज़ आई।
फोन पे :
"प्लीज़… मेरी मदद करो। सिर्फ तुम ही बचा सकते हो उसे…"
यह सुनते ही अभिमान नींद से एकदम चौकन्ना हो बैठ गया।
अभिमान (चकित होकर):
"क्या? कौन? साफ-साफ बोलो… किसकी बात कर रहे हो?"
आवाज़ थोड़ी काँपते हुए बोली—
"वो…… उसे जबरन शादी के लिए बाँध दिया गया है। अगर तुम नहीं गए तो देर हो जाएगी। तुम ही मेरे लिए आख़िरी उम्मीद हो… मैं ही बचा लेता उस को पर मैं लन्दन हुँ पता नहीं था की मैं इधर आऊंगा ओर वो लोग उस के साथ plz अभी i only trust only you.... plz help me..,.."
अभिमान का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
अभिमान:
"देखो, यार आप फिक्र मत करो । मैं उसे बचा लूँगा। बस एड्रेस भेज दो। ओर परेशान मत हो।"
तभी फ़ोन पर टिंग की आवाज़ आई और एक मैसेज स्क्रीन पर चमका— एक होटल का नाम और उसका ऐड्रेस।
अभिमान तेज़ी से बाथरूम की तरफ भागा। चेहरे पर पानी के छींटे मारे, और कुछ ही मिनटों में ब्लैक जीन्स- वाइट टीशर्ट पहनकर बाहर आ गया।फ़ोन उठा के आपमें दोस्तों को लगा रहा था अगर किसे की हेल्प लगी तो जूते बाँधते हुए वह बड़बड़ाया—
"सालों… सबके सब दोस्त आज ही के दिन सो गए… फोन भी नहीं उठा रहे। पता हैं आज के जीत की पार्टी कर के सब के सब टल्ली होकर सोए होंगे। चलो कोई नहीं… अगर सब काम अपने दम पर ही करना है तो सही। जीतने के लिए आज ये बाज़ी मैं अकेला खेलूँगा।"
ब्लु मून होटल का दृश्य
रात का सन्नाटा, पर होटल चमचमाती रोशनी से जगमगा रहा था। गाड़ियाँ बाहर खड़ी थीं। शहनाई और ढोल-ताशों की आवाज़ें गूँज रही थीं।
अभिमान (हैरान होकर खुद से):
"ये क्या… यहाँ तो शादी हो रही है। लेकिन… वो लड़की कहाँ है?"
वह भीड़ में घुसा, लेकिन चारों तरफ सिर्फ कुछ रिश्तेदार, मेहमान और सिक्योरिटी थी। उस को दुल्हन के कमरे तक नहीं पता था।तभी किसी के आवाज सुनी
एक नौकर: ये शेरवानी दूल्हे के कमरे में ले जाऊं।
दूसरा नौकर: " हां ठीक है बढ़िया इतनी सिक्योरिटी क्यों बड़ी हुई है तुम्हें कुछ मालूम है क्या?"
पहले नौकर: " पता नहीं बड़े लोग बड़ी बातें छोड़ो हमें क्या करना है सेकंड फ्लोर पर ये लेकर जाओ "
अभिमान (गुस्से से होंठ भींचते हुए):
"यार… दुल्हन को तो ढूँढना है… पर रास्ता ही नहीं मिल रहा। लगता है अब दूल्हे से जाकर बात करनी पड़ेगी। तो शायद बात बन जाए।"
अचानक उसकी नज़र दूल्हे के कमरे की ओर पड़ी। दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला था।
दूल्हे का कमरा
कमरे में दूल्हा तैयार हो रहा था। ओर शराब के नशे में भी था। लेकिन मौका देखते ही अभिमान अंदर घुसा उससे बात करना चाह पर उसने देखा कि यह तो बात करने की स्थिति में नहीं है तो उस ने झट से उसे बेहोश कर दिया।
अभिमान (साँस फूलते हुए):
"सॉरी भाई… ये करना ज़रूरी था।"
उसने जल्दबाज़ी में दूल्हे का शेरवानी पहन ली। शीशे में खुद को देखकर उसके चेहरे पर तनाव और डर दोनों झलक रहे थे। साथ मैं सहारा भी बधा।
अभिमान (धीरे से):
"अब सिर्फ एक काम रह गया है… उसे किसी भी तरह यहाँ से ले जाना। हाल में तो दुल्हन दिखेगी वहीं से उसे भगा के ले जाऊंगा।"
तभी अचानक दो लोग अंदर आए।
चल राज तुझे निचे बुला राहे हैं:
"अरे दूल्हे राजा! पंडित जी बुला रहे हैं। सब नीचे इंतज़ार कर रहे हैं। तुम्हें आज भी शराबी रखी है ना जब इतना हिल ढुल रहा है चल से पकड़ो ले चलो। नहीं तो अंकल नाराज हो जायेगे"
अभिमान सकपकाकर खड़ा हो गया। कुछ बोल पाता, उससे पहले ही उसे पकड़कर नीचे ले जाया गया।
मंडप में सब सजी-धजी भीड़ थी। पंडित मंत्र पढ़ रहे थे। दुल्हन भारी घूँघट में बैठी थी। अभिमान ने उसकी ओर देखने की कोशिश भी नहीं की, लेकिन चेहरा पूरी तरह ढका हुआ था।
दुल्हन मन ही मन, दुल्हन की जगह बैठी हुई):
"हे भगवान… अगर ये शादी हुई तो मेरी ज़िंदगी खत्म हो जाएगी। plz हमको हमारी मदद के लिए जल्दी से जल्दी भेजो "
अभिमान बगल में बैठ गया। उसकी धड़कनें तेज़ थीं। वह बार-बार घूँघट के नीचे झाँकने की कोशिश करता, लेकिन कुछ साफ दिखाई नहीं देता। आसपास देखा कि बहुत सारे बॉडीगार्ड नजर आ रहे थे कोई दरवाजा ही नहीं दिख रहा था की यहां से दुल्हन को लेकर भाग जाए
अभिमान के सीने में दर्द-सा उठा।
"क्या सच में… ये मेरी आँखों के सामने… मैं किसी और का..... मेरा इश्क आ.... अधूरा रहा गया......?"
उसकी आँखों में हल्की-सी नमी आ गई। मगर तुरंत उसने पलकें झुका लीं।
"नहीं… लड़के आँसू नहीं दिखाते। वादा निभाना है… चाहे जैसे भी हो।"
पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। आग जल रही थी। लोग तालियाँ बजा रहे थे।
पंडित जी:
"अब आप दोनों सात फेरे लीजिए।"
अभिमान काँपते हुए खड़ा हुआ। उसके कदम भारी लग रहे थे। लेकिन वह जानता था कि अब पीछे हटना नामुमकिन है।
हर फेरे के साथ उसका दिल और टूट रहा था। "ये शादी मेरी नहीं… एक बोझ है। पर दोस्त से किया वादा पूरा करना है।"
दुल्हन उसके साथ चुपचाप चल रही थी। चेहरा अब भी घूँघट में था।
पंडित जी:
"विवाह संपन्न हुआ। अब दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद दें।"
भीड़ ताली बजाती है। अभिमान बस नज़रें झुकाए बैठा रहा।
उसका दिल चिल्ला रहा था— "ये शादी नहीं… एक कैद है।"
पर उसके होंठ बंद थे।
अंत में उसने सिर्फ एक बात मन ही मन दोहराई —
"जिसे बचाने आया हूँ… अब उसी से बंध चुका हूँ ।"
क्या हमारे हीरो का प्यार अधूरा रह जाएगा?
कौन है वह लड़की जो ना चाहते हुए भी उसे शादी गई?
plz follow me.....
आख़िरी पाँच सेकंड
इम्पीरियल बिज़नेस कॉलेज, दिल्ली —यहाँ का हर स्टूडेंट जानता था कि जब भी खेल के मैदान पर सफ़ेद जर्सी वाला लड़का नंबर 11 दौड़ता है, तो जीत लगभग तय होती है।
वही लड़का था—अभिमान।
सूरज धीरे-धीरे डूब रहा था, शाम की सुनहरी किरणें बास्केटबॉल कोर्ट पर पड़ रही थीं। चारों ओर दर्शकों का हुजूम उमड़ा हुआ था। लड़कियों की चीख़ें और लड़कों की सीटी मिलकर एक शोर मचा रही थीं। मैदान के एक तरफ़ काले टी-शर्ट पहने रॉयल स्पोर्ट्स कॉलेज की टीम खड़ी थी और दूसरी ओर सफ़ेद जर्सी में इम्पीरियल बिज़नेस कॉलेज की टीम।
स्कोर बराबर था।
बस दो मिनट बचे थे।
“अबे नील, डिफ़ेन्स टाइट रखना!” रणविजय ने चिल्लाकर कहा।
“कबीर, बॉल इधर!”
कबीर ने गेंद पकड़ी और बिजली-सी फुर्ती से नील की तरफ़ पास की। नील ने कोशिश की कि बॉल अभिमान तक पहुँचाए, लेकिन सामने से दो खिलाड़ी दीवार बनकर खड़े थे।
स्टैंड्स से आवाज़ें गूंज रही थीं—
“अभी-अभी-अभी-अभी!”
यह कॉलेज की पहचान बन चुका था।
लोग उसे अभी कहकर पुकारते थे।
अभिमान ने नीले रंग की गहरी आँखों से मैदान को देखा। पसीना उसके माथे से बहकर गालों पर आ रहा था।
उसने दाँत भींचे और सोचा—अगर ये गोल मिस हुआ तो पूरी टीम हार जाएगी… और मैं हार नहीं मानता।
नील ने अचानक एक नकली मूव किया और बॉल उसके पैरों से घूमती हुई अभिमान तक पहुँची।
पूरा मैदान गूँज उठा।
अभिमान ने बॉल पकड़ी।
सामने तीन खिलाड़ी खड़े थे।
उसने तेज़ी से पहला डॉज किया, फिर दूसरा… और तीसरे को छलाँग लगाकर पार किया।
घड़ी पर 5 सेकंड बचे थे।
“फेंक दे! शॉट मार अभी!” रणविजय चिल्ला रहा था।
कबीर और नील भी साँस रोककर खड़े थे।
4 सेकंड…
3 सेकंड…
अभिमान ने छलांग लगाई।
पूरा शरीर हवा में तैर गया।
बॉल उसके हाथों से छूटी और सीधे नेट की तरफ़ बढ़ी।
2 सेकंड…
1 सेकंड…
धड़ाम!
बॉल ने नेट को चीरते हुए गोल कर दिया।
पूरा मैदान फट पड़ा—
“अभी… अभी… अभी…!!!”
लड़कियाँ झूम रही थीं, लड़के कूद रहे थे, और कबीर, नील और रणविजय भागकर आए और अभिमान को अपने कंधों पर उठा लिया।
टीम के बाकी खिलाड़ी भी उछल पड़े।
“यू आर अ फायर, भाई!” कबीर ने हँसते हुए चिल्लाया।
“मैंने कहा था ना, नंबर 11 कभी मिस नहीं करता।” नील ने मुस्कुराते हुए कहा।
रणविजय ने जोश से बोला—“आज फिर साबित कर दिया तूने, तू ही है किंग!”
अभिमान मुस्कुराया, पर वह मुस्कान घमंड से भरी थी।
उसने भीड़ की ओर देखा—सैकड़ों लड़कियाँ उसे देख रही थीं। कुछ ने उसके नाम के पोस्टर उठा रखे थे, कुछ मोबाइल से वीडियो बना रही थीं।
वह चुपचाप बोला—
“मैं हूँ अभिमान। जीत मेरी आदत है।”
टीम ड्रेसिंग रूम में लौटी।
हवा अब भी चीख़ों और तालियों से गूंज रही थी।
सब लोग ख़ुश थे। लेकिन तभी—
ठक-ठक!
दरवाज़ा खुला और अंदर आई टीना।
लाल कलर की शॉर्ट ड्रेस, हाई हील्स, और चेहरा इतना मेकअप से ढका कि पहचानना मुश्किल।
वह सीधी भागकर आई और अभिमान को पीछे से कसकर पकड़ लिया।
“ओ माय गॉड, अभी! यू आर द बेस्ट! आई लव यू!” उसने चीख़कर कहा।
अभिमान का चेहरा सख़्त हो गया।
उसने उसका हाथ पकड़कर सामने किया और आँखों में देखकर बोला—
“कितनी बार कहा है टीना, मुझसे दूर रहा करो। मुझे ये सब पसंद नहीं।”
“पर… पर मैं तो तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ ना!” टीना ने होंठ काटते हुए कहा।
“गर्लफ्रेंड?” अभिमान ने ठंडी हँसी हँसी।
“तुमने अपने दिमाग से मान लिया है। मैंने कभी हाँ नहीं कहा। सुन लो टीना—तुम मेरी गर्लफ्रेंड नहीं हो और कभी बन भी नहीं सकती।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
कबीर ने सीटी बजाकर माहौल हल्का करने की कोशिश की—“अरे बाबा, आज जीत का दिन है, लड़ाई कल कर लेना।”
पर टीना की आँखें लाल हो चुकी थीं।
वह दीवानगी से बोली—“देखना अभी, तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़ेगी… और उस दिन तुम खुद कहोगे कि टीना, आई नीड यू।”
अभिमान ने बस सिर घुमा लिया।
उसे पता था—यह लड़की मासूम नहीं है, बल्कि खतरनाक हद तक पज़ेसिव है।
मैच खत्म हो चुका था, पर पूरे कैंपस में अभी भी जोश का तूफ़ान मचा हुआ था। इम्पीरियल बिज़नेस कॉलेज के छात्र झूम-झूमकर नारे लगा रहे थे—
“इम्पीरियल! इम्पीरियल!… अभी! अभी! अभी!”
अभिमान अपनी टीम के साथ मैदान से बाहर निकला। उसके दोनों हाथों में ट्रॉफी थी और पीछे-पीछे कबीर, नील और रणविजय हँसते-खिलखिलाते चल रहे थे।
कैंपस के मेन गेट पर पहुंचते ही भीड़ और तेज़ हो गई। कुछ लड़कियाँ उसके पास दौड़ीं, ऑटोग्राफ माँगा, तो कुछ ने उसके हाथ छूने की कोशिश की। अभिमान ने आधी-अधूरी मुस्कान देकर सबको इग्नोर कर दिया।
कबीर ने कान में कहा—
“भाई, तेरी पॉपुलैरिटी तो किसी फिल्म स्टार से कम नहीं। मैं तो तेरा मैनेजर बनने वाला हूँ।”
रणविजय ने हँसते हुए जवाब दिया—
“मैनेजर बनेगा? पहले खुद की गर्लफ्रेंड तो बना ले।”
नील ने सिर हिलाकर कहा—
“अभी इन सब चीज़ों से ऊपर है। इसके लिए जीत ही सबसे बड़ी गर्लफ्रेंड है। आती जाती रहती है”
सब हँस पड़े।
🎉 पार्टी की शुरुआत
रात करीब दस बजे चारों दोस्त कॉलेज कैंपस के अंदर बने स्टूडेंट्स क्लबहाउस में मिले।
लाइट्स डिम थीं, म्यूज़िक बज रहा था और हर तरफ़ बीयर की बोतलें खुल रही थीं।
“टुडे इज़ आवर नाइट!” रणविजय ने बोतल उठाकर टोस्ट किया।
“हमारी जीत और हमारे भाई—अभिमान—के नाम!”
सबने बोतलें टकराईं।
गिलासों की खनक के साथ हँसी-ठहाके गूँज उठे।
कबीर बोला—“भाई, सच कहूँ तो तू नहीं होता तो आज हमारी हालत खराब हो जाती।”
अभिमान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—“टीम जीतती है, अकेला इंसान नहीं।”
नील ने मुँह बनाकर कहा—“हाँ, ये लाइन तो तूने अच्छी मार दी। लेकिन सबको पता है कि हीरो तू ही है।”
कबीर:- रंजीत अपने आप को बहुत अच्छा समझता है कितनी चीटिंग करी उसने।
नील:- छोड़ना उसको भी देख लेंगे एक न एक दिन वैसे भी कौन सा दूर है हमारे सामने वाले कॉलेज में ही तो है।
अभिमान:- रंजीत कितनी ही चीटिंग करने पर जीत तो हमारी हुई ना उसका नाम छोड़ो और अपनी जीत का जश्न मानो।
रणविजय:- बात तो सही है लेट'एस पार्टी टुनाइट पर ज्यादा लेट मत करना मैं घर पर भूल कर आया हूं कि मैं 12:00 तक घर आ जाऊंगा।
करीब 12 बजे पार्टी खत्म हुई। सब अपने-अपने होस्टल से निकले और फिर एक-एक करके घर चले गए।
🏠 कबीर का घर
कबीर का घर शहर के बीचोंबीच था—एक साफ-सुथरा दो मंज़िला मकान।
दरवाज़ा खोलते ही सामने उसकी माँ अनिता सिंह दिखीं।
“कबीर, इतना लेट? फिर वही पार्टी?”
कबीर हँसकर बोला—“अरे मम्मा, आज जीत हुई है, जश्न तो बनता है।”
पापा राजीव सिंह, जो शहर के नामी वकील थे, अख़बार पढ़ते हुए बोले—
“जितना वक्त खेल में देता है, आधा पढ़ाई को दे, तो ज़िंदगी बन जाएगी।”
माँ :- " बोलते रहते हैं बेटा आज"
कबीर:- " जानता हूं मैं तभी तो लड़की करने रात को 12:00 बजे भी पेपर पढ़ रहे हैं पापा वकील हैं तो क्या हुआ मैं भी अली का बेटा हूं और जोर से हंसाता है।"
अपनी छोटी बहन सान्या की तरफ़ बढ़ा।
सान्या स्कूल में दसवीं क्लास में थी और भाई को देखते ही बोली—
“भैया, फिर से स्टार बनकर आए हो? सब तुम्हारा नाम ले रहे थे।”
कबीर ने हँसते हुए उसके बाल खींच दिए—“तू भी बड़ी स्टार बनेगी, देख लेना।”
थोड़ी देर परिवार के साथ बैठकर कबीर अपने कमरे में गया और बिस्तर पर गिरते ही गहरी नींद में चला गया।
🏠 नील का घर
नील का घर थोड़ा बाहर कॉलोनी में था।
उसकी माँ वंदना मिश्रा दरवाज़े पर खड़ी थीं।
“नील, बेटा! इतनी रात हो गई… खाना भी नहीं खाया?”
नील ने माँ को गले लगाया और कहा—“माँ, मैच जीत गए! कॉलेज का नाम रोशन कर दिया।”
पापा संजय मिश्रा, जो बैंक मैनेजर थे, सोफ़े पर बैठे गर्व से बोले—
“शाबाश बेटे, लेकिन याद रखो—खेल के साथ पढ़ाई भी ज़रूरी है।”
नील ने हाँ में सिर हिलाया।
तभी उसका छोटा भाई आरव भागता हुआ आया।
“भैया! भैया! सब कह रहे थे कि तुम हीरो हो!”
नील ने मुस्कुराकर कहा—“सिर्फ हीरो नहीं, तुम्हारा बड़ा भाई भी हूँ।”
दोनों भाइयों ने हँसते हुए गले लगाया।
🏠 रणविजय का घर
रणविजय का घर अपेक्षाकृत शांत और बड़ा था।
दरवाज़ा खोला तो सामने उसकी मम्मी गीता चौहान खड़ी थीं।
“कहाँ थे बेटा? इतना लेट क्यों?”
रणविजय ने हँसते हुए कहा—“माँ, जीत के बाद पार्टी थी।”
पापा अमर सिंह चौहान, जो एक बिज़नेस्मैन थे, गंभीर स्वर में बोले—
“बेटा, मैं तुमसे यही चाहता हूँ कि तुम अपनी बहन की तरह नाम रोशन करो।”
उसकी बड़ी बहन श्रुति, जो अमेरिका में सेटल थी, वीडियो कॉल पर आ गई।
“कितना मिस करती हूँ मैं तुम्हें… मैच जीत गए ना?”
रणविजय ने मुस्कुराकर कहा—“हाँ दीदी, तुम्हारे छोटे भाई ने कमाल कर दिया।”
🏠 अभिमान का घर – कृष्ण कुंज हवेली
रात के करीब साढ़े बारह बजे, सफेद SUV हवेली के बड़े गेट से अंदर घुसी।
ये हवेली पूरे उदयपुर में मशहूर थी—कृष्ण कुंज हवेली।
चमचमाते संगमरमर की सीढ़ियाँ, बड़े-बड़े झूमर और आँगन के बीच फव्वारा।
गाड़ी रुकी और उससे उतरा—हमारा हीरो, अभिमान।
पसीने से भीगा हुआ, लेकिन चेहरे पर वही जीत का घमंड और नीली आँखों में वही चमक।
दरवाज़ा खोलते ही सामने उसका पापा खड़े थे—माधव सिंह राठौड़।
उदयपुर के सबसे बड़े टेक्सटाइल कारोबारी।
उनकी शर्ट हमेशा किसी नामी ब्रांड की होती, आवाज़ थोड़ी भारी और बातें हमेशा नाटकीय।
“आ गया मेरा शेर!”
उन्होंने हाथ फैलाकर चिल्लाया और फिर ड्रामेटिक अंदाज़ में बोले—
“उदयपुर का नाम रौशन कर दिया, बेटा! आज से तेरी फोटो मैं टेक्सटाइल के कैटलॉग के कवर पर लगवाऊँगा!”
अभिमान ने मुस्कुराकर कहा—“डैड, ये बास्केटबॉल मैच था, कोई टेक्सटाइल की डील नहीं।”
पीछे से मम्मी सविता राठौड़ आईं।
रेड साड़ी में, चेहरे पर कोमलता और आँखों में अपने बेटे के लिए प्यार।
उन्होंने अभिमान का सिर सहलाया—
“जितना खेल में जीत रहा है, उतना पढ़ाई में भी मेहनत कर। असली पहचान डिग्री से होती है।”
तभी दादी कावेरी देवी आ गईं।
सफेद बाल, माथे पर बड़ी बिंदी और हाथ में रुद्राक्ष की माला।
उन्होंने अभिमान को गले लगाया—
“भगवान तुझे हमेशा जीत दिलाए, लेकिन घमंड तेरे पास न टिके।”
अभिमान ने झेंपकर कहा—“दादी, मेरा नाम ही अभिमान है, घमंड तो नेचर में है।”
पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा।
दादा वीरेंद्र सिंह राठौड़, जो रिटायर्ड आर्मी अफ़सर थे, गंभीर आवाज़ में बोले—
“जश्न ठीक है, लेकिन याद रख बेटा—जीत की असली परीक्षा मैदान में नहीं, ज़िंदगी में होती है।”
पापा तुरंत बोले—
“ओहो! फिर से अपने आर्मी वाले लेक्चर मत दो, प्लीज़। ये मैच जीतकर आया है, कोई बॉर्डर से नहीं।”
सब लोग हँसने लगे।
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पूरा परिवार हॉल में बैठा था। बड़े झूमर के नीचे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता सज चुका था।
अभिमान ने पानी पिया और चेयर पर ढेर हो गया।
मम्मी ने कहा—“इतनी रात को खाना मत खा, हैवी हो जाएगा। हल्का-फुल्का दूध पी ले।”
पापा बीच में बोल पड़े—
“नहीं-नहीं, जूस निकालो, प्रोटीन शेक दो! मेरा बेटा चैंपियन है, उसको एनर्जी चाहिए।”
दादी ने माला घुमाते हुए कहा—
“गर्म दूध ही सही है, नींद अच्छी आएगी।”
दादा ने भौंहें चढ़ाकर कहा—
“अरे, जो चाहे उसको दो, पर इतना मत बिगाड़ो। कल को ये बिगड़ जाएगा तो संभाल नहीं पाओगे।”
अभिमान ने हाथ उठाकर सबको रोका—
“ओके… ओके! बस! आप लोग लड़ाई मत करो। मैं सिर्फ ठंडा पानी पियूँगा और सो जाऊँगा।”
पापा ने नाटकीय अंदाज़ में माथा पकड़ लिया—
“हे भगवान! मेरा चैंपियन सिर्फ पानी पीकर सोएगा!”
सब फिर हँस पड़े।
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अभिमान अपने कमरे में आया।
कमरा किसी राजकुमार की तरह सजा हुआ था—बड़ा सा किंग-साइज़ बेड, दीवार पर उसकी ट्रॉफियों की अलमारियाँ, और खिड़की से दिखता उदयपुर का नज़ारा।
वह बिस्तर पर गिरा और खुद से बुदबुदाया—
“सब लोग कहते हैं मैं घमंडी हूँ… शायद हूँ भी। लेकिन ये घमंड मेरी ताक़त है। और हाँ, दोस्ती… दोस्ती के लिए मैं सबकुछ कर सकता हूँ।”
उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद हो गईं।
बाहर हवेली के आँगन में हवा का झोंका आया और पत्तों की सरसराहट के बीच, जैसे समय ने भी कह दिया हो—
कहानी अभी शुरू हुई है…
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👉 भाई, यहाँ तक लगभग 1500 शब्द हो गए।
क्या चाहोगे कि मैं इस हिस्से को और विस्तार से लिखूँ—
फैमिली में थोड़ा और कॉमिक और इमोशनल सीन,
पापा और दादा के बीच मज़ेदार नोकझोंक,
दादी और मम्मी का अपने तरीक़े से अभिमान को समझाना,
और अंत में उसका खुद से किया गया प्रॉमिस—
दिल्ली की सुबह हमेशा की तरह सुनहरी थी। हल्की सुनहरी किरणें पूरे शहर पर अपना जादू बिखेर रही थीं। सड़कों पर धीरे-धीरे चहल-पहल शुरू हो रही थी। लेकिन शहर के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक राजपुरोहित हवेली में आज का माहौल कुछ अलग था।
राजपुरोहित परिवार राजनीति में कई दशकों से दबदबा रखता आया था। घर के मुखिया विधान राजपुरोहित, राजस्थान के बड़े नेता और वर्तमान में विधायक थे। उनकी सोच पुरानी थी—“लड़कियों की पढ़ाई ज़रूरी नहीं, 18 की होते ही शादी कर दो और परिवार का मान बढ़ाओ। उनका मानना था की लड़कियां सिर्फ घर के कामों तक ही सीमित रहती है उन्हें पढ़ना मतलब घर की बर्बादी काफी पुराने ख्यालों की है उनका मानना है बेटी पढ़कर क्या करेगी करना तो उसको चूल्हा चौका ही है ”
आज उनकी बेटी अधीरा के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था—क्योंकि आज उसका कॉलेज का पहला दिन था। महीनों की जिद, आँसू और अपने बड़े भाई की पैरवी के बाद उसे यह मौका मिला था।
अधीरा कोई फिल्मी नायिका जैसी नहीं थी, लेकिन उसकी सादगी में एक अलग ही आकर्षण था। चॉकलेट ब्राउन आँखें, जिनमें मासूमियत और आत्मविश्वास दोनों झलकते थे। छोटे-छोटे कानों में साधारण झुमके, हल्की-सी मुस्कान और कंधे तक आते खुले बाल।
आज उसने अपना पहला कॉलेज डे होने की वजह वह आज जल्दी उठ गई थी या यह बोला जाए कि वह सारी रात सो ही नहीं पाई थी फटाफट नहाके हल्का गुलाबी रंग का सूट पहना था। दुपट्टा बड़ी सलीके से गले में डाला हुआ था। पैरों में साधारण जूती और चाँदी की पायल की मीठी छनक उसके हर कदम के साथ चल रही थी। हाथों में कुछ हरी चूड़ियाँ उसकी सादगी को और बढ़ा रही थीं। अधीर हमारी बहुत सिंपल है वह ज्यादा लोगों के सामने हड़बड़ा जाती है बोल नहीं पाती है क्योंकि उसको शुरू से ही ऐसा माहौल दिया गया और लड़कों के सामने तो उसकी आवाज भी नहीं निकलती। बड़ी मुश्किल से उसको गर्ल्स कॉलेज में B. A की पढ़ाई के लिए उसके पेरेंट्स माने थे
🏠
जब वह घबराते हुए सीढ़ियाँ उतरकर डाइनिंग हॉल पहुँची, तो पूरा परिवार पहले से ही नाश्ते पर बैठा था।
विधान राजपुरोहित (पिता): सख़्त चेहरे वाले, गहरी मूँछों के साथ, हाथ में अख़बार लिए गुस्से में बैठे थे।
सावित्री देवी (माँ): सीधी-सादी लेकिन पति के डर से कभी अपनी राय न रखने वाली।
चंद्रकांत (दादा): 70 साल के, परंपरावादी सोच वाले, जो हमेशा परिवार की इज़्ज़त और समाज की नज़रों की बात करते थे।
गोमती देवी (दादी): तीखी ज़ुबान वाली औरत, जिनकी राय परिवार में अक्सर अंतिम मानी जाती थी।
वीर राजपुरोहित (बड़ा भाई): अधीरा का सबसे बड़ा सहारा, पढ़ाई में अच्छा और दिल्ली से MBA कर चुका था।
विवेक (चचेरा भाई): अधीरा से दो साल बड़ा, लेकिन पिता की तरह लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ़।
🍽️
अधीरा धीरे से टेबल पर बैठी। सबकी निगाहें एक पल को उसी पर टिक गईं।
गोमती देवी (दादी):
“देख बेटी, घर की इज़्ज़त तेरे हाथ में है। बाहर जाकर कोई ऐसा वैसा काम मत कर देना। लड़कियों का ज्यादा पढ़-लिख लेना अच्छा नहीं होता।”
चंद्रकांत (दादा):
“पढ़ाई-लिखाई छोड़ो, शादी की सोचो। यही असली धर्म है लड़की का।”
विवेक (चचेरा भाई):
“और हाँ, कॉलेज में लड़कों से दूर रहना। कोई हमारी नाक न कटवा देना।”
विधान (पिता) गुस्से से:
“मुझे अब भी ये सब पसंद नहीं। लड़कियाँ घर का काम करें, पढ़ाई-लिखाई का दिखावा क्या ज़रूरी है?”
अधीरा के होंठ कांप रहे थे। उसकी आँखों में आँसू छलकने लगे, पर उसने हिम्मत करके सिर झुका लिया।
तभी उसका भाई वीर बोला—
वीर (सख़्ती से):
“बस भी कीजिए सब लोग। मैंने वादा किया है पापा से कि अधीरा कॉलेज जाकर परिवार का नाम रोशन करेगी। वह सिर्फ पढ़ने जा रही है, कोई गलत काम नहीं करने। आप सब उसे डराइए मत। और वैसे भी वह गर्ल्स कॉलेज जा रही है तो वहां पर कोई लड़का नहीं होगा यह बात उसने विधान को देखते हुए शक्ति से कही थी।”
सावित्री देवी (धीरे से):
“हां, जाने दीजिए इसे। शायद यह पढ़कर कुछ अच्छा कर सके।”
अधीरा ने आँसू पोंछे और मुश्किल से मुस्कराई। उसके भाई की बातें सुनकर उसके अंदर हिम्मत लौटी।
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नाश्ते के बाद वीर अपनी बहन को कॉलेज छोड़ने के लिए कार निकालता है। अधीरा का बैग पीछे की सीट पर रखा हुआ था। वीर अधीर के सामने खड़ा होकर उसके घर पर हाथ रखे उसके बालों को हल्का से सफलिंग करता है और कहता है :- लोडो मेरी बहन सबसे अच्छी है बिल्कुल चिंता मत करिए तेरा भाई हर एक कदम पर तेरे साथ है। फिर उसको एक बड़ी सी देरी में निकाल कर देता है जिसको देखकर उसके आंखों में चमक आ जाती है और वह अपने भाई के गले लग जाती है
फिर उसका भाई बोलता है:-बस बस चल कॉलेज के लिए लेट हो रहा है।वह धीरे से बैठ गई।
रास्ते में वीर ने उसकी तरफ देखकर कहा—
“डर मत। मैं हूँ न। बस ध्यान पढ़ाई पर रखना और किसी की परवाह मत करना।”
अधीरा ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में कृतज्ञता थी।
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रास्ते में वे अधीरा की बेस्ट फ्रेंड मीरा शर्मा को लेने उसके घर पहुँचे।
मीरा थोड़ी अलग थी—चुलबुली, खुली सोच वाली और हमेशा अधीरा को हिम्मत देती।
मीरा (हँसते हुए):
“तो मैडम आज आखिरकार कॉलेज का पहला दिन! देखना, हमारी जिंदगी बदल जाएगी।”
अधीरा ने हल्की मुस्कान दी, “काश सब इतना आसान होता, मीरा।”
वीर ने दोनों को कॉलेज गेट तक छोड़ते हुए कहा—
“याद रखना अधीरा, मैं तुम पर भरोसा करता हूँ। मुझे गर्व करना मत भूलना। तुम दोनों मेरे लिए मेरी छोटी बहनें हो कभी भी जरूरत पड़ेगी कोई भी तकलीफ आएगी तो सबसे पहले मुझे फोन लगाना बिल्कुल परेशान मत होना तुम्हारा भाई हमेशा तुम्हारे साथ है चलो बेस्ट ऑफ लक......”
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गाड़ी से उतरते ही अधीरा और मीरा ने सामने देखा—विशाल कॉलेज कैंपस।
भीड़-भाड़, छात्र-छात्राओं की चहल-पहल, इधर-उधर हंसी-मज़ाक की गूंज।
और सामने, बिलकुल पास ही… वही कैंपस था जिसमें अभिमान पढ़ता था।
बिज़नेस कॉलेज और आर्ट्स कॉलेज आमने-सामने खड़े थे।
अधीरा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
वह जानती नहीं थी कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सफर यहीं से शुरू होने वाला है।
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गेट के भीतर कदम रखते ही अधीरा के पैरों में हल्की-सी थरथराहट थी। मीरा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और मुस्कराते हुए बोली—
मीरा (हँसते हुए):
“ऐ मैडम, डर क्यों रही हो? यहाँ सब पढ़ने ही आए हैं, किसी की जान थोड़े ही ले लेंगे।”
अधीरा ने हल्की मुस्कान दी लेकिन अंदर से घबराहट साफ झलक रही थी। कैंपस में हर तरफ चहल-पहल थी। पुरानी स्टूडेंट्स एक-दूसरे को गले मिल रही थीं, कोई ग्रुप में हँसते हुए गप्पे मार रहा था, कोई क्लास के नोट्स पर चर्चा कर रहा था।
लेकिन बीच-बीच में लड़कियों का एक ही नाम गूंज रहा था—“अभिमान… अभिमान… अभी sooooo handsum yar !”
एक लड़की (खुश होकर):
“अरे कल का मैच देखा था न? आख़िरी सेकंड में क्या गोल डाला! पूरे मैदान में आग लगा दी।”
दूसरी लड़की (आँखें चमकाते हुए):
“हाँ, और उसका स्माइल… ओह माय गॉड! पूरा कॉलेज पागल है उस पर।”
क्लासरूम साफ-सुथरा और बड़ा था। लकड़ी की लंबी डेस्क, सामने ग्रीन बोर्ड और खिड़की से आती धूप।
उनकी प्रोफेसर डॉ. कविता मेहता आईं—मध्यम आयु की, बेहद शालीन और सख्त स्वभाव वाली।
डॉ. कविता (क्लास से):
“गर्ल्स, वेलकम टू B.A. फर्स्ट ईयर। ये सफर आसान नहीं होगा, लेकिन अगर आप मेहनत करेंगी तो ज़िंदगी बदल सकती है।”
क्लास तालियों से गूंज उठी।
मीरा ने अधीरा को कोहनी से ठेला और बोली—
“देखा, अब तो पक्के से कॉलेज वाली फिलिंग आ रही है।”
अधीरा मुस्कराई। धीरे-धीरे उसकी झिझक कम होने लगी।
दिन के अंत तक उसकी दो और सहेलियाँ बन गईं—साक्षी और रिया।
साक्षी और रिया दोनों ही कल के मैच की बातें कर रही थी
रिया:- ( बहुत एक्साइटेड होकर ) ' अधीर और मीरा क्या तुम लोगों ने कल का मैच देखा था '
मीरा:- " कल!!! पर हमारा तो कॉलेज आज से चालू हुआ ना"
साक्षी:- " मराठा कॉलेज आज से चालू हुआ पर सामने वाला जो कॉलेज है ना बिजनेस कॉलेज वहां पर कल मैच थी फुटबॉल मैच ऑल ओवर दिल्ली फुटबॉल मैच
मीरा :- " नहीं हमें इस बारे में कुछ नहीं मालूम"
प्रिया:- कल का क्या मैच है यार मेरा भाई बता रहा था अभियान में क्या लास्ट में जीत यार वह तो मेरा हीरो है।
वीरा ने जैसे ही अभिमान का नाम सुना उसके दिमाग में एक शब्द है क्या मान और यह शब्द बोलते ही उसकी दिल की धड़कन एक बार तार पकड़ने लगी उसने अपना हाथ दिल पर रखा और बोलने लगी यह क्या हो रहा है रिलैक्स रिलैक्स खुद को रिलैक्स किया बाग में से पानी की बोतल निकाली और पानी पिया उसके बाद में मीरा और अधीर को लेने उसका भाई आ गया और वह चले गए
अधीरा ने यह सुनते ही अनजाने में हंस दिया। फिर अचानक खुद को संभाल लिया और सिर झुका लिया। “मुझे दिल की धड़कने क्यों इतने तेज हो गई?” उसने मन ही मन सोचा।
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दूसरी तरफ, दिल्ली यूनिवर्सिटी के लड़कों का हीरो अभियान राठौड़ अपने कमरे में बैठा था। पिछली रात वो और उसके तीनों जिगरी दोस्त—कबीर, नील और रणविजय—फुटबॉल मैच जीतकर दिल्ली में छा गए थे।
फोन पर सबसे पहले रणविजय की कॉल आई—
“भाई, आज कॉलेज भूल जाओ। आज पार्टी होगी। दिल्ली जान जाएगी कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के चैंपियन कौन हैं।”
नील हँसते हुए बोला—
“हाँ यार, कल तो मैदान में तेरा खेल देखकर लग रहा था जैसे तू ही इंडिया का कैप्टन है। आज मस्त जश्न करते हैं।”
कबीर ने भी जोड़ दिया—
“भाई, कॉलेज तो रोज़ होगा… पर ये जीत रोज़ नहीं मिलती।”
अभियान ने फोन कान से हटाकर जोर से चिल्लाया—
“ओके बॉयज़! आज पार्टी… और पार्टी भी धमाकेदार!”
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🍻 दिल्ली की गलियों से पार्टी तक
चारों दोस्त अपनी-अपनी बाइक पर निकले। अभियान की स्पोर्ट्स बाइक सबसे अलग चमक रही थी। दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक था, लेकिन जब ये चारों साथ निकलते थे तो हर किसी की नज़र इन पर टिक जाती थी।
सबसे पहले ये लोग कनॉट प्लेस पहुँचे। वहाँ का माहौल ही अलग था—लाइट्स, कैफ़े, म्यूज़िक। वहाँ बैठकर बीयर पार्टी शुरू हुई। हर किसी के चेहरे पर खुशी थी।
कबीर बोला—
“भाई, कल जब तूने वो गोल मारा ना, तो पूरा ग्राउंड ‘अभियान-अभियान’ चिल्ला रहा था।”
रणविजय हँसते हुए बोला—
“तेरा नाम अब दिल्ली यूनिवर्सिटी की हर लड़की के दिल में है।”
नील ने बीयर का घूंट लिया और बोला—
“अब तो तू कैंपस का हीरो है। पर हीरो को हीरोइन भी चाहिए।”
सभी हँस पड़े।
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🌆 रात का जश्न और बाइक रेस
शाम ढलते ही चारों इंडिया गेट के पास पहुँचे। वहाँ भीड़ थी, पर इन चारों का swag अलग ही था। सेल्फ़ी लेते लोग, गाड़ियों की रोशनी और हवा में हल्का-सा संगीत।
नील ने अचानक कहा—
“भाई, पार्टी तो हो गई। अब कुछ धमाल चाहिए। चलो रेस लगाते हैं।”
अभियान की आँखों में चमक आई—
“रेस… रात की दिल्ली की सड़कों पर… बस यही चाहिए था।”
दिल्ली की चौड़ी सड़कें, स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी और दूर तक फैली नीयॉन चमक। चारों बाइक्स स्टार्ट हुईं—
गड़गड़ गड़गड़…
लोग साइड होकर खड़े होने लगे। बाइक्स ने स्पीड पकड़ी। हवा चेहरे को चीरती जा रही थी। चारों दोस्त चीखते-चिल्लाते, हँसते-खेलते अपनी बाइक्स पर ऐसे भाग रहे थे जैसे दिल्ली उन्हीं की हो।
अभियान सबसे आगे था। उसकी स्पोर्ट्स बाइक हवा को चीरती हुई निकली। पीछे-पीछे कबीर, रणविजय और नील।
अचानक नील ने चिल्लाकर कहा—
“भाई, जो हारेगा वो ट्रीट देगा!”
अभियान मुस्कुराया—
“और जो जीतेगा… वो दिल्ली का असली बादशाह कहलाएगा।”
स्पीडोमीटर 120… 150… 170…
दिल्ली की सड़कें आज इन चार दोस्तों की गवाही दे रही थीं।
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🌙 रात का अंत
रेस खत्म हुई। अभियान सबसे आगे रहा। सब दोस्त बाइक रोककर हँसते हुए गले मिले।
रणविजय ने कहा—
“भाई, तू हीरो है… और हमेशा रहेगा।”
अभियान ने आसमान की तरफ देखा। चमकते तारों के बीच उसके दिल में अजीब-सी खुशी थी।
उधर, उसी वक्त अपनी कमरे की खिड़की से अधीर रात के आसमान को देख रही थी।
उसने धीरे से खुद से कहा—
“दिल्ली… सच में नई कहानियाँ लिखती है। और यह मेरा दिल की धड़कन इतनी तेज क्यों धड़की सिर्फ नाम सुनने से ही क्या हो गया है कहीं मुझे दिल की बीमारी तो नहीं हो गई ”
और कहानी यहीं से दोनों की किस्मतों को धीरे-धीरे जोड़ने लगी।
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दिल्ली यूनिवर्सिटी का वो सुबह का नज़ारा हर दिन की तरह रौनक भरा था। कैंपस के गेट पर गाड़ियों की भीड़ लगी हुई थी, बाइक की आवाज़ें हवा को चीर रही थीं। सफ़ेद शर्ट और ब्लैक जीन्स में, लेदर जैकेट पहने अभिमान राठौड़ अपनी रॉयल इंफिनिटी ब्लू बाइक से उतरकर बड़े स्टाइल से हेलमेट उतारता है। उसकी नीली आँखों की चमक और चेहरे की एटीट्यूड भरी स्माइल देखकर कैंपस में खड़ी लड़कियाँ ठहर-सी जाती हैं।
आज का दिन उसके लिए अलग था। अभी उसने बाइक स्टैंड में गाड़ी लगाई ही थी कि उसके मोबाइल पर पापा का कॉल आया।
पापा (फ़ोन पर) –
“अभिमान, याद है ना बेटा, आज मीटिंग है? दोपहर में तुम्हें मेरे साथ ऑफिस से सीधे जाना है। बाइक से मत आना, मैं कार भेज रहा हूँ तुम्हें लेने।”
अभिमान हल्की झुंझलाहट के साथ हँस पड़ा।
अभिमान –
“डैड, आप हमेशा मेरी राइड खराब कर देते हो। लेकिन ठीक है, मीटिंग मिस नहीं करूंगा। तीन लेक्चरर रिटर्न कर लूंगा उसके बाद में आप गाड़ी भेज देना वैसे भी मीटिंग 3:00 बजे है ना तो 2:00 बजे गाड़ी भेज देना।”
पाप:- done....
अभिमान अपनी कॉलेज में चल जाता है उसके बाद अधीर और मीरा को उसका भाई कॉलेज छोड़कर चले जाता है दोनों मिल ही नहीं पाए आगे मिलेंगे क्या......
दोपहर के 2:00 जब अधीरा ओर मीरा की छुट्टी का टाइम होता है।
अभियान अपने कॉलेज के
गेट के पास खड़ा होकर अपनी लग्ज़री कार का इंतज़ार करने लगा। तभी कैंपस के उस पार से एक आवाज़ आई—
आरव की (जोर से आवाज आई ) –
“धीरा… इधर आ जल्दी! चल आज मुझे एक मीटिंग के लिए जाना है ”
वो नाम जैसे हवा में तैरता हुआ सीधा अभिमान के कानों में गिरा।
“धीरा…”
अभिमान का दिल अचानक धड़कने लगा। उसने भौंहें चढ़ाकर इधर-उधर देखा। सामने कॉलेज से एक लड़की एक लड़के के साथ गेट की तरफ बढ़ रही थी। ( मीरा थोड़े से पीछे थी वह प्रिया और साक्षी से बात करते हुए आ रही थी) लड़की ने नीला सूट पहना हुआ था, दुपट्टा सँभालते हुए तेज़ी से चल रही थी। उसके पैरों की पायल और हाथों की चूड़ियाँ छन-छन की मीठी आवाज़ पैदा कर रही थीं।
अभिमान बस दूर से खड़ा रह गया। चेहरा साफ़ नहीं देख पाया, बस उसके बालों की लट हवा में उड़ती हुई दिखाई दी और उसकी चाल में एक अजीब-सी मासूमियत थी।
आरव गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला –
“चलो धीरा, देर हो रही है।”
लड़की ने मुस्कुराकर हामी भरी –
“आ रही हूँ।”
और पलक झपकते ही कार में बैठकर चली गई।
अभिमान वहीं ठिठक कर खड़ा रह गया।
उसके कानों में वही नाम गूंज रहा था –
“धीरा… धीरा…”
उसने खुद से बुदबुदाया –
“धीरा… कौन हो तुम? और क्यों ये नाम सुनते ही दिल इतनी जोर से धड़कने लगा? अपना हाथ ले जाकर अपने दिल के ऊपर रख लेता है।”
तभी उसके ड्राइवर ने आकर कहा –
“छोटे साहब, कार आ गई है। चलिए, मीटिंग के लिए लेट हो जाएगी।”
अभिमान झटके से होश में आया और कार में बैठ गया। लेकिन रास्ते भर उसका ध्यान कहीं और ही था। सड़कों के ट्रैफिक, हॉर्न, भीड़… सब गायब। बस दिमाग में वो नाम गूंज रहा था और पायल की छनक उसके कानों में जैसे अटक गई थी।
राठौड़ ग्रुप ऑफ टेक्सटाइल्स का ऑफिस दिल्ली के सबसे पॉश एरिया में था। बड़ी-बड़ी इमारतें, सिक्योरिटी गार्ड्स, और अंदर एकदम मॉडर्न इंटीरियर।
मीटिंग रूम में अभिमान अपने पापा विजय राठौड़ के साथ बैठा था। विजय जी हल्के-फुल्के कॉमिक नेचर के थे, लेकिन बिज़नेस टेबल पर आते ही उनका रौब अलग ही दिखता था।
सामने पार्टी वालों ने अपना प्रपोज़ल रखा। थोड़ी देर तक सब गंभीरता से बातें करते रहे, फिर अचानक विजय जी ने हंसते हुए कहा –
विजय राठौड़ –
“भाईसाहब, इतना छोटा प्रॉफिट मार्जिन लेकर क्या करेंगे आप? हम तो सोच रहे हैं कि बच्चों की गुल्लक भरवा देंगे इस डील से।”
पूरा रूम एक पल को हंस पड़ा, लेकिन उसी पल अभिमान ने गंभीरता से कहा –
अभिमान –
“देखिए, अगर आपको हमारे साथ जुड़ना है तो हमारी कंडीशन क्लियर है। हम क्वालिटी से समझौता नहीं करेंगे, और अगर आपको सिर्फ प्रॉफिट चाहिए तो शायद हम सही पार्टनर नहीं हैं।”
सामने वाले चुप हो गए। माहौल थोड़ा तनावपूर्ण हो गया। लेकिन विजय जी ने मुस्कराते हुए बात समेट ली –
विजय राठौड़ –
“डरिए मत, हम बिज़नेस तोड़ने नहीं आए। बस ये दिखाना था कि राठौड़ ग्रुप कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं करता।”
आखिरकार डील साइन हो गई। बाहर निकलते ही विजय जी ने अभिमान के कंधे पर हाथ रखा –
“बेटा, आज तूने दिल खुश कर दिया। बिज़नेस में सिर्फ दिमाग नहीं, दिल भी चाहिए।”
अभिमान ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन मन अब भी उलझा हुआ था। मीटिंग खत्म हो चुकी थी, मगर उसका दिल अब भी गेट पर सुनी उस आवाज़ में अटका हुआ था।
उधर, राजपुरोहित हवेली में अधीरा अपने कमरे से बाहर निकली ही थी कि दादी ने आवाज़ लगाई –
दादी –
“लड़की, कहाँ जा रही है? दिनभर पढ़ाई-पढ़ाई… घर का काम कौन करेगा? शादी के बाद ये किताबें तेरे काम नहीं आएंगी।”
चाचा भी जोड़ बैठे –
“हाँ, तेरा भाई तो तुझे सिर पर चढ़ा रखा है। काम सीख ले, वरना ससुराल में नाक कट जाएगी।”
अधीरा ने होंठ भींच लिए। आँखों में आंसू थे, मगर उसने झुका लिया सिर।
माँ चुपचाप खड़ी थी। दादी के आगे बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी।
दादी –
“चल, किचन में आ। देख, आटा कैसे गूंथा जाता है। अगर लड़की को रसोई नहीं आती तो वो घर नहीं संभाल सकती।”
अधीरा धीरे-धीरे किचन की ओर बढ़ी। उसकी चूड़ियाँ खनकीं, पायल की आवाज़ गूंजी। लेकिन इस बार उस आवाज़ में डर और मजबूरी थी, मासूम खुशी नहीं।
उसका मन अब भी कॉलेज की सुबह में अटका था—जब उसने अनजाने में उस लड़के का नाम सुना था जिसे बाकी सब “मान” कहते थे 2 दिन से कॉलेज में बस अभिमान के नाम की चर्चा थी।
और इस तरह उस दिन का सूरज ढल गया।
एक ओर अभिमान अपनी लग्ज़री कार में बैठा उस अनसुनी-सी लड़की की आवाज़ याद कर रहा था।
दूसरी ओर अधीरा घर के कामों में डूबी......
दोनों की दुनिया अलग-अलग थीं, मगर किस्मत अब धीरे-धीरे उनकी राहों को एक-दूसरे से जोड़ रही थी।
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दिल्ली यूनिवर्सिटी का विशाल कैंपस अपनी रौनक के लिए जाना जाता था। सुबह की क्लासेज़ ख़त्म होते-होते दोपहर तक माहौल और भी हल्का हो जाता। लड़के-लड़कियाँ कैंटीन में, गार्डन में या फिर लॉबी में ग्रुप बनाकर बैठे दिखाई देते।
क्लासरूम में चार दोस्त हमेशा की तरह अपनी आख़िरी बेंच पर बैठे थे – अभिमान, कबीर, नील और रणविजय। ये चारों कॉलेज के सबसे चर्चित ग्रुप में से थे। सबमें लीडरशिप और शरारत का अजब-सा मिक्स था, लेकिन सबसे अलग और आकर्षक था अभिमान राठौड़।
आज का माहौल थोड़ा अलग था। क्लास के बीच में ही अचानक प्रिंसिपल सर के असिस्टेंट अंदर आए और सीधा अभिमान के पास जाकर बोले –
असिस्टेंट –
“अभिमान, प्रिंसिपल सर ने तुम्हें और तुम्हारे तीनों दोस्तों को अभी बुलाया है। स्टूडेंट यूनियन के प्रेज़िडेंट होने के नाते तुम्हें मीटिंग में आना ज़रूरी है।”
सारी क्लास की निगाहें उनकी तरफ उठ गईं। कबीर हल्की मुस्कान के साथ कुहनी मारते हुए बोला –
“अबे लीडर जी, बुलावा आ गया है। उठिए… कॉलेज की गद्दी आपकी राह देख रही है।”
नील भी मज़ाक में जोड़ बैठा –
“हाँ भाई, वैसे भी हर साल फ्रेशर्स पार्टी का मैनेजमेंट हमीं करते हैं। इस बार भी वही बुलावा है।”
रणविजय ने चश्मा उतारते हुए कहा –
“चलो, चलकर सुन ही लेते हैं। वैसे भी क्लास तो अब बोर हो रही है।”
अभिमान ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा –
“तुम लोग जाओ। मुझे नहीं जाना। हर बार वही पुरानी बातें, वही लड़कियों के झुंड। मुझे मुझे नहीं जाना ।”
तीनों दोस्त एक-दूसरे को देखने लगे। कबीर ने फिर चिढ़ाते हुए कहा –
“अरे वाह! मैं तो मालूम था तेरा तो हर बार कही है तुझे इंटरेस्ट ही नहीं आता है , पर हमको तो जाना पड़ेगा भाई तेरा काम भी हम नहीं देखेंगे?”
अभिमान ने हल्के-से गुस्से में कहा –
“मज़ाक मत करो। सच में मन नहीं है।”
नील ने मुस्कुराकर कहा –
“चल छोड़ भी दे। अगर तू नहीं आएगा तो बाकी सब कैसे होगा? सर ने बुलाया है, मना करने का सवाल ही नहीं है।”
रणविजय बोला –
“और वैसे भी… सुना है इस बार प्रिंसिपल मैम भी होंगी। उनका गर्ल्स कॉलेज की तरफ से बुलावा है। फ्रेशर्स पार्टी वहाँ रखी जाएगी।”
ये सुनते ही अभिमान जैसे थोड़ा ठिठका। गर्ल्स कॉलेज… और उसके दिमाग में वही नाम घूम गया – धीरा…
एक अजीब-सी बेचैनी उसके दिल में उतर गई।
उसने दोस्ती में हवा बनाते हुए, नज़रें झुकाकर कहा –
“ठीक है… चलते हैं। देख ही लेंगे।”
कॉलेज का प्रिंसिपल ऑफिस शानदार और अनुशासित माहौल के लिए मशहूर था। बड़े-बड़े बोर्ड, ट्रॉफियाँ और कॉपरेटिव स्टाफ।
कमरे में पहले से प्रिंसिपल सर – अजय शुक्ला और उनकी पत्नी प्रिंसिपल मैम – संगीता शुक्ला बैठे थे। दोनों ही शिक्षा जगत की बड़ी पहचान थे।
जैसे ही अभिमान और उसके दोस्त अंदर दाखिल हुए, सर ने मुस्कुराकर कहा –
“आ गए हमारे चारों सितारे! बैठो बेटा, बैठो।”
मैम ने गंभीर लेकिन मीठे स्वर में कहा –
“देखो बच्चों, इस बार हमारे गर्ल्स कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी का आयोजन है। हर साल की तरह इस बार भी मैनेजमेंट की जिम्मेदारी तुम लोगों पर है। हमें भरोसा है कि तुम चारों इसे शानदार तरीके से संभालोगे।”
कबीर ने मुस्कान के साथ कहा –
“मैम, ये तो हमारा पुराना काम है। चिंता मत कीजिए।”
नील और रणविजय भी उत्साह से सिर हिलाते रहे।
पर अभिमान कुछ देर चुप रहा। अंदर से मन तो कर रहा था साफ़ मना कर दे, लेकिन न जाने क्यों उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं।
उसने धीरे से कहा –
“ठीक है मैम… हम लोग सब संभाल लेंगे। कल से ही प्रिपरेशन शुरू कर देंगे।”
मैम ने संतोष भरी मुस्कान दी और कहा –
“गुड। thank you.....
मीटिंग खत्म होते-होते दो बज गए। चारों दोस्त बाहर निकले। कबीर ने हंसते हुए कहा –
“अबे, ये प्रिंसिपल सर-मैम की जोड़ी न, सच में डेंजर है। हर बार हमें ही पकड़ लेते हैं।”
नील बोला –
“हाँ यार। और देखो, अभि भी मान गया। वरना तो या गर्ल्स कॉलेज जाने के नाम से ही चढ़ता है ।”
रणविजय ने चुटकी ली –
“कभी-कभी तो लगता है हमारे अभी को पता नहीं कौन लड़की मिलेगी इसकी कभी गर्लफ्रेंड बनेगी की भी नहीं ।”
अभिमान बस हल्की मुस्कान दे पाया। उसका मन कहीं और ही भटक रहा था।
अचानक उसने कहा –
“यार, मुझे थोड़ी जल्दी है। मैं निकल रहा हूँ।”
कबीर ने तंज कसते हुए कहा –
“अरे वाह! अब तो जल्दी निकलना भी तुम्हारा नया शौक हो गया है। चल भाग”
अभिमान ने हाँ में सिर हिलाया और जल्दी-जल्दी गेट की ओर बढ़ गया।
दिल फिर से तेजी से धड़कने लगा। वो सोच रहा था –
“आज शायद… शायद मैं उसे देख पाऊँ। पता नहीं क्यों मैं उसे देखने जा रहा हूं”
गेट पर भीड़-भाड़ थी। तभी सामने से एक लड़का आया और ज़ोर से बोला –
“लाडो! धीरे चल, जल्दी क्या है?”
सामने वही लड़की दिखी… जिसने उसके दिल की धड़कनें पहली बार से भी तेज़ की थीं। आज भी वही, हल्की-सी मुस्कान लिए चल रही थी। उसके साथ उसकी सहेलियाँ थीं।
अभिमान ने पूरी कोशिश की उसका चेहरा साफ़ देख ले… लेकिन भीड़ और तेज़ी में बस उसकी पीछे की झलक ही देख पाया आज गुलाबी सूट मैं भी कमर तक लहराती गूथ का की हुई चोटी ।
वो कार में बैठ गई और पलक झपकते ही निकल गई। आज भी उसके साथ एक नया लड़का था आज के कारण भाई आए थे।
अभिमान वहीं खड़ा रह गया।
उसके भीतर बेचैनी और गुस्सा दोनों उठ रहे थे।
“ये क्या हो रहा है मुझे? मुझे तो कभी लड़कियों में दिलचस्पी नहीं रही… फिर क्यों ये नाम, ये आवाज़, ये पायल की छनक दिमाग से निकलती ही नहीं? लड़की अपने आप को समझती क्या है कितना एटीट्यूड है आपका चेहरा भी नहीं दिख रही डिस्कशन रोज ने लड़कों के साथ दिखती है पता नहीं कितने बॉयफ्रेंड होंगे फिर कुछ बोला नहीं बॉयफ्रेंड ना....”
( खुद ही नहीं पता था उसे क्या हो रहा है गुस्सा आ रहा है खुद पर आ रहा है की लड़की पे आ रहा हैं)
पता नहीं हमारे अभियान और अधीर कब फेस टू फेस मिलेगी......
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राजपुरोहित हवेली की शाम हमेशा शोरगुल और रौनक से भरी रहती थी। नीचे दादी-चाचा-चाची अपनी-अपनी बातें कर रहे थे, पापा अख़बार पढ़ते-पढ़ते बीच-बीच में खाँसते और किसी ना किसी पर नाराज़ हो जाते। माँ रसोई में थीं, लेकिन बीच-बीच में आवाज़ लगाना नहीं भूलतीं –
माँ –
“अधीरा! ज़रा देखना नमक तो ज़्यादा नहीं हो गया सब्ज़ी में?”
अधीरा चुपचाप रसोई से थाली उठाकर सबकी टेबल पर रख आई। चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आँखों में हल्की थकान साफ़ झलक रही थी। मन तो पढ़ाई में था, लेकिन घर का काम उससे पहले आता था।
खाना परोसने के बाद जैसे ही उसने सोचा कि अब अपने कमरे में जाकर पढ़ाई कर लेगी, दादी फिर बोलीं –
दादी –
“लड़की, ध्यान रखना कल टेस्ट है तो क्या हुआ? घर का नाम खराब मत कर देना। हमें तो पढ़ाई-लिखाई में विश्वास ही नहीं… लेकिन तेरा भाई कहता है कि तू संभाल लेगी।”
अधीरा ने बस ‘जी दादी’ कहकर सिर हिला दिया।
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🏠 अधीरा का कमरा
रात का समय था। हवेली के बड़े हाल में हल्की-हल्की रोशनी जल रही थी। नीचे दादी और चाचा-चाची की आवाज़ें अब भी गूंज रही थीं। लेकिन ऊपर के कमरे में, अधीरा अपने नोट्स में डूबी हुई थी। टेबल पर फैली किताबें, पेन, हाइलाइटर और एक आधा खुला डायर—उसके सपनों की गवाह थे।
कमरे का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। सबसे पहले आरव अंदर आया। सूट-पैंट में था, बाल सलीके से सेट, हाथ में मोबाइल। बिज़नेस कॉल करके अभी-अभी फ्री हुआ था। चेहरे पर वही सीरियस एक्सप्रेशन—जैसे किसी बड़े प्रोजेक्ट पर चर्चा करने आया हो।
आरव (गंभीर अंदाज़ में):
“मैडम जी, इतनी किताबें फैलाई हैं… लग रहा है कोई पूरा मॉल ही खोल डाला है।”
अधीरा ने सिर उठाया और मुस्कुराई –
“भाई, टेस्ट है कल… तुम्हें मज़ाक ही सूझ रहा है।”
आरव उसके पास आकर किताब बंद कर देता है –
“टेस्ट-फेस्ट तो चलता रहेगा, लेकिन पहले ये बताओ कि मेरी छोटी बहन उदास क्यों लग रही है?”
अधीरा हँस पड़ी –
“उदास नहीं हूँ… बस पढ़ाई ज़्यादा है।”
इतने में पीछे से करण भी आ गया। हाथ में चॉकलेट का पैकेट था।
करण –
“लाडो , देखो! तुम्हारी फेवरेट चॉकलेट लाया हूँ। अब तो मुस्कुरा दो।”
उसने चॉकलेट उसके सामने लाकर लहराई। अधीरा हँसते हुए बोली –
“आप दोनों न, हमेशा मुझे बिगाड़ते हो।”
आरव कुर्सी पर बैठ गया और बोला –
“अरे, हम बिगाड़ नहीं रहे। हम तो तुम्हें खुश कर रहे हैं। वैसे भी तू पूरे दिन घरवालों के ताने सुनती है… कम से कम हम तो तेरा मूड अच्छा कर सकते हैं।”
अधीरा ने करण को गले लगा लिया और बोली –
“तुम दोनों ही तो हो जो मेरे साथ खड़े रहते हो। वरना इस घर में तो किसी को मेरी पढ़ाई की फिक्र नहीं है।”
आरव ने गंभीर होकर कहा –
“सुन लाडो… तेरे भाई है ना। पापा से मैंने ही प्रॉमिस लिया है कि तू घर की इज़्ज़त रखेगी। मुझे पूरा यक़ीन है कि तू उन्हें कभी निराश नहीं करेगी। और अगर कोई तुझे रोकने की कोशिश करेगा तो सबसे पहले मैं उनके सामने खड़ा रहूँगा।”
अधीरा की आँखें भर आईं। उसने तुरंत हँसी में टालने की कोशिश की –
“बस-बस, इतनी इमोशनल बातें मत करो। चलो अब ये चॉकलेट बाँटो और मुझे पढ़ाई करने दो।”
करण ने मस्ती में कहा –
“पढ़ाई-पढ़ाई… ये लड़की न, बड़ी होकर प्रोफेसर बन जाएगी।”
अधीरा ने तकिया उठाकर दोनों पर फेंका –
“बस करो आप दोनों! मुझे बहुत पढ़ना है।”
कमरे में हँसी गूँजने लगी। तीनों भाई-बहन उसी हँसी-मज़ाक में देर रात तक बातें करते रहे।
आरव उसके पास बैठ गया, लेकिन तुरंत उसका पेन उठाकर बोला –
“ये सब तो चलता रहेगा। पहले ये बता, खुश है ना तू? कोई टेंशन तो नहीं?”
अधीरा –
“खुश हूँ भाई। बस घर की बातें सुनकर कभी-कभी दिल भारी हो जाता है।”
आरव ने उसके सिर पर हाथ रखा। उसकी टोन बदल गई—अब वह सीरियस बिज़नेसमैन नहीं, बल्कि बहन का सबसे बड़ा शेल्टर था।
“देख लाडो… चाहे पूरा घर कुछ भी बोले, तू मेरी जिम्मेदारी है। और तेरे लिए मैं किसी से भी लड़ सकता हूँ। समझी?”
अधीरा की आँखें भर आईं। लेकिन इससे पहले कि माहौल इमोशनल हो जाए, दरवाज़ा फिर खुला।
कारण माहौल को हल्का करने के लिए–
“और हाँ, तेरी शादी के बाद भी तुझे रोज़ चॉकलेट मिलेगा। तेरे होने वाले पति को मैं कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कराऊँगा।”
तीनों ज़ोर से हँस पड़े।
अधीरा हँसते-हँसते बोली –
“याद है… जब मैं स्कूल में पहली बार डांस करने गई थी, और मैंने घबराकर स्टेज से भाग लिया था? तब आप दोनों ने ही मुझे चॉकलेट खिलाकर कहा था कि ‘हमारी बहन सबसे बेस्ट है।’”
करण बोला –
“अरे याद है क्यों नहीं! और तू भूल गई जब तूने मेरी कॉपी में फुल झाड़ू की ड्रॉइंग बना दी थी और मैडम ने मुझे खड़ा कर दिया था?”
आरव हँस पड़ा –
“हाँ… और जब तूने मेरी किताबें छुपा दी थीं ताकि मैं पढ़ न पाऊँ। फिर रात भर मैंने तुझे तंग किया था। तू रोने लगी थी और फिर भी कह रही थी—‘मुझे मज़ा आया!’”
अधीरा हँसते-हँसते लोटपोट हो गई।
अधीरा –
“आप दोनों दुनिया के बेस्ट भाई हो। सच कह रही हूँ, अगर तुम दोनों न होते तो शायद मैं कभी कॉलेज भी नहीं जा पाती।”
आरव ने गंभीर होकर कहा –
“कॉलेज जाना तेरी मेहनत थी, लाडो। हम तो बस तेरा साथ दे रहे हैं। और ये मत सोचना कि तू अकेली है। जब तक आरव और करण हैं, कोई तुझे कुछ नहीं कह सकता।”
करण ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा –
“और तू अगर टॉपर नहीं बनी, तो मैं तेरी जगह क्लास में जाकर एग्ज़ाम दूँगा।”
अधीरा हँसते हुए बोली –
“पागल! आप को तो हिस्ट्री का H तक नहीं पता।”
आरव और करण दोनों हँस पड़े।
कमरे में देर रात तक तीनों की हँसी गूंजती रही। कभी मज़ाक, कभी पुरानी यादें, कभी प्यार भरी नोकझोंक।
आख़िर में अधीरा ने कहा –
“अब सच में मुझे पढ़ाई करनी है। वरना कल टेस्ट बिगड़ जाएगा।”
आरव और करण ने एक-दूसरे को देखा और बोले –
“ठीक है, मैडम। पढ़ लो… लेकिन याद रखना, तू अकेली नहीं है। हम दोनों हमेशा तेरे साथ हैं।”
दोनों भाई कमरे से बाहर चले गए। अधीरा ने चॉकलेट का एक टुकड़ा मुँह में रखा, किताब खोली, और मुस्कुराकर पढ़ने लगी।
उसकी आँखों में अब सपनों के साथ-साथ अपने भाइयों का अटूट भरोसा भी चमक रहा था।
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सुबह की हल्की-हल्की धूप दिल्ली के आसमान पर बिखरी हुई थी। कॉलेज का नया दिन शुरू हो चुका था। लड़कियों और लड़कों के कॉलेज के गेट पर फिर से वही रौनक थी—हंसी-मज़ाक, हल्की-फुल्की गपशप और क्लास की जल्दी।
अभिमान अपने दोस्तों नील, कबीर और रणविजय के साथ बाइक्स खड़ी करके गेट पर ही खड़ा था। चेहरे पर वही बेचैनी, जो पिछले तीन दिनों से उसके साथ थी। अंदर ही अंदर वह उम्मीद कर रहा था कि शायद आज उस नाम से जुड़ा चेहरा दिख जाए—“धीरा”… वही नाम जिसने उसकी नींद और चैन सब छीन लिया था।
अधीरा का घर
दूसरी तरफ अधीरा अपने घर पर तैयार हो रही थी। नाश्ते की मेज़ पर हमेशा की तरह कुछ ताने सुनने पड़े।
माँ ने हल्के गुस्से ओर प्यार में कहा—
“तुम्हें हमेशा जल्दी रहती है, ठीक से नाश्ता भी नहीं करती।”
दादी:- ( गुस्सा करते हुए ) :- तुम्हें ही तो शौक था कॉलेज भेजने का भेजो ना समझना नहीं है क्यों भेजना कॉलेज मुझे तो समझ में ही नहीं आता की लड़कियों को पढ़ना ही क्यों चूल्हा चौका करें पार कौन समझाए....
आरव:- plz दादी.....
अधीरा चुप रही। मन थोड़ा भारी हो गया। पर तभी उसका भाई आरव (जो बिजनेस मीटिंग के लिए लेट हो रहा है )
उसके पास आया।
जल्दी चल मुझे लेट हो रहा है बाहर कर में तेरा वेट कर रहा हूं....
कार मे....
अधीर चुपचाप बैठी हुई थी और आंखों में हल्की सी नमी थी
उसने बिना कुछ कहे अपनी बहन के सिर पर हाथ फेरा और जेब से एक बड़ी डेयरी मिल्क निकालकर उसके हाथ में रख दी।
“लो, मेरी लाडो… मुस्कुराओ। सुबह-सुबह मुँह बिगाड़कर कॉलेज मत जाना।”
अधीरा का चेहरा खिल उठा। उसका दूसरा भाई कारण भी पास आ गया और मज़ाक करते हुए बोला—
“इतनी बड़ी चॉकलेट मत देना यार, फिर हमारी बहन हमें याद ही नहीं करेगी।”
तीनों के बीच छोटी-सी हंसी-मज़ाक छिड़ गई। कुछ देर पहले जो दिल में बोझ था, वह हल्का हो गया। चॉकलेट हाथ में लिए अधीरा कार में बैठ गई। आरव ड्राइव कर रहा था और कारण बार-बार हंसी-मजाक करता हुआ कह रहा था—
मेरा भी उन सब के साथ में कर में बैठ गई मीरा और अधीर पीछे बैठे थे और दोनों किसी बात पर हंस रहे थे....
अब और करण ने जब उसको हम मुस्कुराते हुए देखा तो दोनों के दिल में तसल्ली हुई....
कॉलेज गेट
गाड़ी से उतरकर जैसे ही अधीरा कॉलेज की तरफ बढ़ी, अभिमान की नज़र उसके पीछे पड़ी।
उसकी धड़कन तेज़ हो गई।
“यार, ये वही है… आज येलो ड्रेस में कितनी…,” उसने मन ही मन सोचा।
नील ने हल्के से उसे कोहनी मारी—
“क्या हुआ भाई? कहाँ खो गया?”
कबीर हंसा—
“लगता है, किसी को अपनी गर्लफ्रेंड मिल गई जब भी तो हमको आधा घंटे से यहां करके खड़े करके के रखा है ”
रणविजय भी छेड़ते हुए बोला—
“ओये, तू तो कहता था इसे लड़कियों में इंटरेस्ट नहीं है, और अब…”
अभिमान झल्लाकर बोला—
“चुप रहो सब! कुछ भी बोल देते हो। मैं ड्राइवर की रहा देख रहा था को एक फाइल लेनी थी। पर तुमसे तो बोलना ही बेकार है चलो चले अंदर ”
पर उसके दोस्तों की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
घंटियाँ बजीं और सब अपने-अपने क्लास में चले गए।
करीब दोपहर में नील ने कहा—
“अरे, आज हमें सामने वाले कॉलेज में जाना है, फ्रेशर्स पार्टी की मीटिंग है।”
रणविजय बोला—
“तो 2 बजे के बाद चलते हैं, क्लास खत्म होने दो। वहां से लड़कियों का झुंड भी खत्म हो जाएगा।”
नील:- अरे नैना पहले चलते हैं ना फर्स्ट ईयर में कोई नई लड़की आई होगी चलो मिलेंगे ना.....
कबीर:- चुप कर कितनी गर्लफ्रेंड बदलेगा हम 2:00 के बाद ही जाएंगे.....
पर अभिमान अचानक बोला—
“नहीं… हम अभी चलते हैं। पहले ही निपटा लें। वैसे भी क्या काम है यहाँ? और मुझे 2:00 के बाद में ऑफिस जाना है”
( यह बात अभिमन्यु ऐसे ही बोल दी थी उसने सोचा कि क्यों ना जल्दी जाकर देखा जाए शायद वह लड़की मिल जाए तो 3 दिन से उसका दिमाग खा रही है)
उसके दोस्त एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा कर चल दिये....
अधीरा अपनी क्लास में
उधर अधीरा अपनी फ्रेंड्स मीरा, साक्षी और प्रिया के साथ क्लास में बैठी थी। नोट्स बना रही थी, हंसते-बोलते हुए अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी। उसे क्या पता कि उसके ही पास कोई उसकी एक झलक के लिए बेचैन घूम रहा है।
अभिमान और उसके दोस्त सामने वाले गर्ल्स कॉलेज में पहुँचे।
करीब दोपहर में चारों दोस्तों को बुलावा आया।
बॉयज़ कॉलेज के प्रिंसिपल सर और गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल मैम (जो असल में पति-पत्नी थे) दोनों सामने बैठे थे।
मैम ने कहा—
“इस साल भी फ्रेशर्स पार्टी का मैनेजमेंट आप लोगों पर ही है। हर बार आपने अच्छा काम किया है, उम्मीद है इस बार भी करेंगे।”
साथ ही दो लड़कियाँ भी बैठी थीं—रिया और सोनल—गर्ल्स कॉलेज की यूनियन लीडर्स।
रिया बोली—
“हमें सिक्योरिटी पर खास ध्यान देना होगा। हमारी कॉलेज की ज़्यादातर फ्रेशर्स पहली बार पार्टी में आएँगी।”
सोनल ने जोड़ा—
“और इस बार कोई अल्कोहल नहीं। साफ नियम है। लड़कियों के लिए सेफ माहौल होना चाहिए।”
प्रिंसिपल सर ने गम्भीर लहज़े में कहा—
“डीजे और डांस रहेगा, लेकिन हर चीज़ डीसेंट। गेम्स रख सकते हो, कल्चरल इवेंट्स भी। पर किसी भी हालत में शोर-शराबा और गड़बड़ नहीं चाहिए। समझ गए?”
कबीर ने तुरंत पेन निकालकर सब नोट किया।
नील ने सुझाव दिया—
“हम थीम ‘ट्रेडिशनल विद अ ट्विस्ट’ रख सकते हैं।”
रणविजय मुस्कुराते हुए बोला—
“और डीजे मेरी तरफ से पक्का रहेगा, सबसे बेस्ट।”
मैम हंस दीं।
“ठीक है, पर सब कुछ कंट्रोल में। याद रहे, ज़िम्मेदारी तुम्हारी है।”
अभिमान बस चुपचाप बैठा रहा। उसके कान सुन रहे थे, पर नज़रें बार-बार दरवाज़े की तरफ जा रही थीं। शायद कहीं से वो आ जाए।
मीटिंग खत्म हुई और सब बाहर निकल आए। तभी अभिमान को याद आया—
“ओह, मेरा फोन अंदर ही रह गया!”
वह दौड़ते हुए प्रिंसिपल मैम के ऑफिस की तरफ लौटा। उसी समय अधीरा भी अपनी क्लास से भागती हुई नीचे आ रही थी—उसका भाई बाहर कार में इंतज़ार कर रहा था।
कॉरिडोर के मोड़ पर अचानक दोनों टकरा गए।
एक पल के लिए जैसे समय थम गया।
अभिमान का कंधा अधीरा से टकराया, दोनों लड़खड़ाए। उसकी किताबें गिर गईं। अधीरा ने सँभलते हुए किताबें उठाईं और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई। पर जाते-जाते उसका आंचल अभिमान के चेहरे से हल्के से छूता हुआ निकल गया।?
उस पल दोनों की धड़कनें तेज़ हो गईं।
अभिमान सन्न खड़ा रह गया।
हाआआ... ल... डा... की....अ
पर अधीरा ने पलटकर नहीं देखा। उसके कदम तेज़ हो गए क्योंकि बाहर आरव इंतज़ार कर रहा था। मीरा पहले ही जा चुकी थी
अभिमान वहीं खड़ा रह गया। उसके दोस्तों ने दूर से आवाज़ दी—
“क्या हुआ भाई? फोन मिल गया?”
पर अभिमान के चेहरे पर बस एक अजीब-सी गुस्सा था…
रणविजय ने पुकारा—
“क्या हुआ भाई??”
अभिमान धीरे-धीरे बाहर आया। चेहरा तना हुआ था।
उसके दिल में एक ही ख्याल घूम रहा था—
“ये लड़की अपने आप को समझती क्या है? तीन दिन से मुझे बेचैन कर रखा है। न चेहरा दिखाती है, न कुछ… इतनी घमंडी है क्या?”
गुस्सा उसकी आँखों में साफ झलक रहा था।
उसके दोस्त कुछ समझ नहीं पाए, पर वह भीतर-ही-भीतर निश्चय कर चुका था—
अब ये अधूरा गुस्सा किसी दिन फूटेगा ज़रूर।
जैसे तीन दिन से जिस बेचैनी ने उसे सताया था, और ज्यादा बढ़ गई थी उसे अधीर पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था उसे लग रहा था कि अधीर घमंडी है जिसको अपना चेहरा नहीं दिख रही पर अब हमारे अभियान जी को कौन बताएं..... हमारी अधीरा मासूम है
अगला चैप्टर : धड़कनों का बोझ और आने वाली पार्टी का जोश
दिन ढल चुका था। कॉलेज की सारी भागदौड़, टेस्ट का टेंशन और नई-नई मीटिंग की बातें अधीर के दिमाग में घूम रही थीं।
अधीर के घर पर
जैसे ही अधीर अपने घर के गेट पर पहुंची, उसका भाई कारण मुस्कुराते हुए बोला –
भाई: "चलो, आज तुमने टेस्ट अच्छा दिया होगा? चेहरा तो कुछ ज़्यादा ही खिल रहा है।"
अधीर हल्की-सी मुस्कुराई।
अधीर: "हाँ भैया, आज टेस्ट अच्छा गया। बस… कॉलेज भी ठीक-ठाक जा रहा है।"
घर में कदम रखते ही वही रोज़ का माहौल सामने आ गया।
दादी दरवाज़े पर खड़ी बोलीं –
दादी: "पढ़ाई-लिखाई तो ठीक है, पर घर का काम भी देखा करो। हर वक्त किताबों में डूबी रहती हो।"
चाची भी पीछे-पीछे आकर ताना मार गईं –
चाची: "लड़कियों को इतना भी शौक नहीं होना चाहिए पढ़ाई का। शादी के बाद सब यही काम आएगा? किताबें रोटी सेंकेंगी क्या?"
अधीरा:- जी अभी आई चाची...
अधीर अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर गिर पड़ी।
थोड़ी देर आंखें बंद कीं, तो अचानक वही पल सामने आ गया – गलियारे में टक्कर, आंचल का उड़ना, दिल की धड़कनों का तेज़ हो जाना।
वह सोचने लगी –
"कौन था वह? क्यों अचानक दिल ऐसे धड़कने लगा? चेहरा क्यों नहीं देख पाई? कुछ तो है…"
चेहरे पर हल्की-सी स्माइल थी और आंखें अपने आप बंद हो गईं।
अभिमन्यु के घर पर
उधर अभिमन्यु भी घर पहुंच चुका था। चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था।
ड्राइंग रूम में पापा न्यूज़ देख रहे थे।
पापा: "क्या हुआ बेटा? बहुत चुप-चुप लग रहे हो आज?"
अभिमन्यु गुस्से से बोला –
अभिमन्यु: "कुछ नहीं पापा… कॉलेज का झंझट है। लोग खुद को बहुत बड़ा समझते हैं।"
मां आकर उसका सर सहलाने लगीं –
मां: "अरे, गुस्सा छोड़ो। पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दो। सब ठीक हो जाएगा।"
मां-पापा की बातें सुनकर उसका गुस्सा थोड़ा कम हुआ। उसने डिनर किया और अपने कमरे में चला गया।
बिस्तर पर लेटते हुए वही ख्याल दिमाग में घूम रहा था –
"आखिर ये लड़की अपने आप को समझती क्या है? तीन दिन हो गए, चेहरा तक नहीं दिखाया। एक न एक दिन तो मैं इसका सच सामने लाऊंगा। उस दिन देखूंगा, कितनी अकड़ है इसमें।"
उसकी आंखें धीरे-धीरे बंद हुईं, मगर मन में आग जलती रही।
सुबह का दिन बाकी दिनों जैसा ही निकला।
गर्ल्स कॉलेज में अब एक नई हलचल थी। नोटिस बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा गया –
“फ्रेशर्स पार्टी – सैटरडे, शाम ५ बजे”
पूरे कॉलेज में उत्साह की लहर दौड़ गई।
लड़कियां हंसी-मजाक करतीं, ड्रेस डिस्कस करतीं, कोई मेकअप की बातें करती तो कोई डांस प्रैक्टिस की।
मीरा तो उछल-उछल कर सबको बता रही थी –
मीरा: "अरे वाह! देखना, मैं तो एकदम स्टार लगने वाली हूं उस दिन।"
उसकी आंखों में सपनों की चमक थी।
पर अधीर शांति से बैठी थी।
मीरा ने उसे छेड़ा –
मीरा: "तू इतनी चुप क्यों है? तू भी तो ड्रेस सिलवा ले।"
अधीर हल्की-सी मुस्कुराई और बोली –
अधीर: "मीरा, मैं पार्टी में नहीं आऊंगी।"
मीरा चौंक गई –
मीरा: "क्या? क्यों? सब आएंगी, तो तू क्यों नहीं?"
अधीर ने गहरी सांस ली –
अधीर: "घर वाले मानेंगे ही नहीं। और वैसे भी… मुझे ऐसे शोर-शराबे में मज़ा नहीं आता।"
मीरा उदास हो गई –
मीरा: "लेकिन पार्टी तेरे बिना अधूरी लगेगी।"
अधीर ने बस चुपचाप मुस्कुरा दिया। मन में कहीं एक हल्की सी कसक थी।
यहां दूसरी तरफ लड़कों के कॉलेज में भी तैयारी की चर्चा थी।
क्लास के बाद यूनियन मीटिंग में सर ने सबको समझाया –
सर: *"देखो, ये पार्टी दोनों कॉलेज के लिए बहुत इंपोर्टेंट है।
कुछ बातें ध्यान रखना –
कोई अल्कोहल नहीं होगी।
सिक्योरिटी सख्त रहेगी, लड़कियों की सेफ्टी हमारी पहली जिम्मेदारी है।
डीजे रहेगा, लेकिन गाने लिमिट में होंगे।
डांस, फैशन शो, सिंगिंग – ये सब इवेंट्स लिस्टेड हैं।"*
लड़कियों के कॉलेज से आईं दो यूनियन लीडर्स भी वहां मौजूद थीं। उन्होंने भी अपनी राय रखी –
सोनल : "हम चाहती हैं कि हर लड़की को कम्फर्टेबल माहौल मिले।"
रिया : "और डीजे के अलावा कोई ड्रामा नहीं होना चाहिए।"
सभी ने सिर हिलाकर हामी भरी।
मीटिंग खत्म हुई, तो अभिमन्यु चुपचाप बाहर निकला।
दिल में बस एक ही बात घूम रही थी –
"चार दिन बाद पार्टी है… शायद वहीं मुझे उसका चेहरा देखने को मिले।"
घर लौटकर अधीर अपने कमरे की खिड़की से आसमान देखने लगी।
चांदनी में उसका चेहरा चमक रहा था।
वह सोच रही थी –
"पता नहीं क्यों, उस टक्कर की याद अब भी धड़कनें बढ़ा देती है।
दूसरी तरफ अभिमन्यु अपने कमरे में लेटा हुआ था।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान और आंखों में गुस्से की चमक थी।
"सैटरडे… उस दिन सब पता चलेगा।"
और इसी सोच के साथ दोनों की रात कट गई।
🎭 कॉलेज में हलचल
सप्ताह भर से कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी की चर्चाएं गर्म थीं।
नोटिस बोर्ड पर इवेंट्स की लंबी लिस्ट टंगी हुई थी –
डांस
सिंगिंग
ड्रामा
फैशन शो
ऐंकरिंग
मीरा और अधीर अपनी दो सहेलियों के साथ नोटिस बोर्ड के पास खड़ी थीं। चारों तरफ लड़कियां अपनी-अपनी एंट्री डाल रही थीं।
मीरा ने चमकते हुए कहा –
मीरा: "बस! हो गया। मैंने अपना नाम डांस में लिखवा दिया है। अब देखना, सबकी नज़र मुझ पर ही टिकेगी।"
उसकी आंखों में स्टार्स चमक रहे थे।
अधीर की दोनों फ्रेंड्स भी एक्साइटेड थीं। एक ने डांस में नाम लिखा, दूसरी ने ड्रामा में।
मीरा ने अधीर की ओर देखा और बोली –
मीरा: "अब तेरी बारी है। तू सिंगिंग में नाम लिखवा। तू बहुत अच्छा गाती है।"
अधीर सकपका गई।
अधीर: "न… नहीं। मैं पार्टी में नहीं आऊंगी। मेरे घर वाले मानेंगे ही नहीं।"
मीरा ने भौंहे चढ़ाईं –
मीरा: "तू रहने भी दे। तेरे घर वालों को मैं मना लूंगी।"
अधीर हल्की-सी मुस्कुराई।
अधीर: "तू जानती है ना, मेरे घर वाले… उन्हें मना पाना आसान नहीं है। रहने दे मीरा।"
पर मीरा मन ही मन सोच चुकी थी –
"पार्टी में अधीर ज़रूर आएगी। चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े।"
उसी दिन दोपहर में, जब अधीर घर लौट रही थी, उसके भाई करण ने गेट पर कार रोकी।
अधीर क्लास से बाहर आई, चेहरा थका हुआ मगर आंखों में हल्की संतोष की चमक।
अभिमन्यु भी उसी वक्त गेट के पास अपने दोस्तों के साथ खड़ा था।
उसकी नज़र बार-बार भीड़ में अधीर को खोज रही थी।
मगर आज भी उसे उसका चेहरा नहीं दिखा।
सिर्फ एक हल्की छवि, लाल दुपट्टे का किनारा, और आवाज़ों के बीच उसका दूर होता कदम।
अभिमन्यु की आंखों में चिंगारी भड़क उठी।
"घमंडी लड़की! आखिर चाहती क्या है? चेहरा दिखाना इतना मुश्किल है क्या?"
गुस्से से उसने अपने दोस्तों से कहा –
अभिमन्यु: "बस अब पार्टी वाले दिन देखना। उसी दिन उसका चेहरा सामने आना चाहिए। और तब मैं बताऊंगा उसे कि वो खुद को समझती क्या है।"
नील:- " क्या बकवास कर रहा है कैसे देखना है तुझे "
अभिमन्यु :- किसी को नहीं चलो लेट हो रहा है
शाम होते ही मीरा ने अपने फोन से कॉल लगाया।
फोन की स्क्रीन पर लिखा – करण।
फोन उठाते ही करण की हंसी गूंजी –
करण: "ओहो, आज तो बड़ी जल्दी याद आ गई। कहीं मुझे मिस तो नहीं कर रही थी?"
मीरा आंखें घुमाते हुए बोली –
मीरा: "ज्यादा फ्लर्ट मत कर। काम की बात सुन – अगर तुम ने अधीर को पार्टी में आने के लिए मना लिया, तो मैं तुझसे बात करती रहूंगी। वरना… ब्लॉक कर दूंगी।"
करण हकला गया –
करण: "क्या! इतना बड़ा अल्टीमेटम? अरे, अधीर को मनाना आसान काम नहीं है। घर वाले तो उसके पीछे पड़े रहते हैं। जानती हो ना दादी चाचा चाचा मां पापा सब कोई भी अधीर को पार्टी में जाने नहीं देगा "
मीरा ने नकली गुस्से से कहा –
मीरा: "मुझे नहीं पता। तू कुछ भी कर। लेकिन अगर वो नहीं आई तो मैं तुझ से बात बंद कर दूंगी। और हाँ… अब तक मे ने तुम्हारे प्रपोज का जवाब भी नहीं दिया है। जवाब चाहिए ना ।"
करण शरमा गया –
करण: "जवाब तो चाहिए, पर तूने कभी सीरियस होकर सुना ही नहीं।"
मीरा खिलखिला उठी –
मीरा: "ठीक है, डील फाइनल। अगर तू अधीर को पार्टी में ले आया, तो मैं तेरे साथ एक डेट पर चलूंगी।"
करण का दिल जैसे फटाके की तरह फूटा –
करण: "सच? पक्का? वादा?"
मीरा: "वादा। अब जाकर बहन को मना। वरना नंबर ब्लॉक समझ ले।"
फोन कट गया।
करण ने फोन पकड़ते ही छत की ओर देखा और बोला –
"हे भगवान! ये लड़की मुझे पागल कर देगी। पर अब अधीर को मनाना ही पड़ेगा। अधीर तो फिर भी मान जाएगी पर घर वाले क्या-क्या करना पड़ रहा है।"
रात को अधीर अपने कमरे में किताबें समेट रही थी। तभी करण अंदर आया। साथ में अब भी था उसके हाथ में तीन कप कॉफी थी कारण के लिए उसके लिए और अधीर के लिए उसने एक कप कॉफी अधूरा पकड़े और एक कारण को पकड़ा....
उसने बहन की किताब खींच ली।
करण: "लाडो , तेरे कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी है ना?"
अधीर ने आंखें नीची कर लीं।
अधीर: "हाँ है, पर उससे क्या? मुझे तो जाने नहीं देंगे। कॉलेज तो बड़ी मुश्किल से जाने दिया है बस में कॉलेज जाना चाहती हूं कोई भी तकलीफ परेशानी...."
करण उसके पास बैठ गया।
करण: "क्यों नहीं देंगे? मैं बात करूंगा घर वालों से। तू भी हक रखती है खुश होने का।"
आरव:- " कारण सही बोल रही लाडो अगर तू जाना चाहती है तो मैं घर वालों से बात करता हूं तेरी खुशी के लिए तो हम दोनों भाई कुछ भी कर सकते हैं।"
अधीर ने उदासी से कहा –
अधीर: "भाई, आप जानते हो ना… यहां मेरी कोई नहीं सुनता। दादी-चाची तो वैसे ही मुझे रोक लेंगी। फिर पापा का गुस्सा ना बाबा ना.... मुझे नहीं जाना कहीं "
करण ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा –
करण: "अगर तू खुश है, तो मैं लड़ भी जाऊंगा सबसे। बस तू हाँ बोल दे।"
अधीर चुप रही, मगर उसके दिल में एक हल्की-सी उम्मीद जगी।
"क्या पता… शायद मैं भी पार्टी में जा पाऊं?"
🎤 उधर अभिमन्यु और उसके दोस्त
अभिमन्यु अपने दोस्तों के साथ पार्टी की प्लानिंग कर रहा था।
दोस्त 1: "डांस फ्लोर तैयार है।"
दोस्त 2: "डीजे के लिए सॉन्ग लिस्ट भी रेडी है।"
अभिमन्यु ने ठंडी सांस भरी।
अभिमन्यु: "सब बढ़िया है… बस अब इंतज़ार है उस दिन का। जब मुझे उसका चेहरा आखिरकार दिखेगा।"
दोस्तों ने हंसते हुए छेड़ा –
दोस्त: "लगता है इस पार्टी में कोई स्पेशल सरप्राइज़ होने वाला है तेरे लिए।"
अभिमन्यु मुस्कुराया नहीं। बस गुस्से से आंखें चमक उठीं।
"हाँ… सरप्राइज़ तो होगा। उस घमंडी लड़की के लिए।"
🌙
उस रात अधीर खिड़की से बाहर आसमान देखती रही।
दिल में डर था, लेकिन साथ ही कहीं न कहीं मीरा और करण की बातें याद करके एक हल्की-सी उम्मीद भी थी।
वहीं अभिमन्यु बिस्तर पर लेटा हुआ सोच रहा था –
"पार्टी के दिन… सब खेल खत्म।"
सुबह का वक़्त था।
राजपुरोहित हाउस के डाइनिंग हॉल में चाँदी की थालियाँ और गरमागरम नाश्ते की महक फैली थी।
सुनहरे झूमर की रोशनी कमरे में गिरी थी और बड़े-बड़े फ्रेम्स में पूर्वजों की तस्वीरें दीवार पर टंगी थीं।
अधीर चुपचाप कुर्सी पर बैठी थी।
उसकी चॉकलेटी ब्राउन आँखों में झिझक थी, होंठ दबे हुए।
माँ कविता उसके सामने बैठी थीं – चेहरे पर बेचैनी, बार-बार अधीर की ओर देख लेतीं।
पापा विक्रम ने जैसे ही कप नीचे रखा, उनकी भारी आवाज़ गूंजी –
“ये पार्टी में जाने की ज़िद फिर से क्यों उठी?
कॉलेज पढ़ाई के लिए भेजा है, शादी-ब्याह के लिए नहीं।”
विक्रम का चेहरा गुस्से से लाल, माथे पर मोटी शिकनें।
बगल में बैठे दादा बलवीर सिंह ने छड़ी पर हाथ मारते हुए और भी सख़्त स्वर में कहा –
“बेटी का नाम पार्टी से जोड़ते ही मत बोला करो। हमारे घर की इज़्ज़त का सवाल है कोई जरूरत नहीं है पार्टी पार्टी में जाने की हमने तो कहा ही था कि कॉलेज में भी जाने की कोई जरूरत।”
अधीर की पलकों पर नमी उभर आई, उसने नज़रें झुका लीं।
कमला देवी (दादी) पास बैठी थीं, होंठ दबाकर अधीर को देख रही थीं – नाराज़गी और ममता का मिला-जुला भाव। कह रही थी यह देखो तुम्हारे वजह से घर में कितना हंगामा हो रहा है हम तुमको पढ़िए पार्टी में जाने की जब बोला था घर मेरा हो तो तुमको कॉलेज पढ़ने जाना था आज कल के बच्चे सुनने.....
लेकिन तभी आरव ने धीमी मुस्कान के साथ बहन की तरफ देखा।
उसकी आँखें कह रही थीं – “घबराना मत, मैं हूँ।”
कारण ने भी आगे बढ़कर कहा –
“पापा, बस दो घंटे की बात है। 6 से 8। मैं और आरव भईया भी साथ रहेंगे। नहीं होगा विश्वास करो मैं हूं ना।
आरव:- पापा वैसे भी पार्टी गर्ल्स की ही है वह लड़की तो आएंगे ही नहीं ना हम चिंता मत करो लाडो जल्दी जाएंगे और जल्दी आ जाएंगे.....
एक-एक पल का ध्यान रखेंगे। घर की इज़्ज़त पे आँच नहीं आने देंगे।”
कमरे में सन्नाटा।
विक्रम की मुट्ठियाँ बंधी हुई थीं, चेहरे पर सख़्ती बनी रही।
लेकिन उनकी आँखों में बच्चों के आत्मविश्वास को देखकर हल्की दरार आई।
उन्होंने गहरी साँस लेकर कहा –
“ठीक है… पर अगर देर हुई तो समझ लो कॉलेज बंद। कोई भी हंगामा हुआ तो हमसे बुरा नहीं होगा बता रहे हैं हम सीधे किसी से शादी कर देंगे फिर हमसे मत बोलना कि अभी 21, की भी नहीं हुई है।”
दादा बलवीर सिंह ने आँखें तरेरीं –
“याद रखना, एक गलती और…”
लेकिन आरव झट से बोल पड़ा –
“नहीं दादा जी, मैं हूँ ध्यान रखूंगा कोई गलती नहीं होगी ।”
अधीर ने जैसे ही सुना, उसके चेहरे पर मासूम मुस्कान खिल गई।
आँखें चमक उठीं, होंठों से निकला –
“थैंक यू भैया…”
उसने दोनों भाइयों को गले से लगा लिया।
उसकी खुशी से पूरा माहौल नरम पड़ गया।
कॉलेज जाने से पहले, अधीर के दोनों भाई उसे कार से छोड़ने निकले।
कारण ड्राइव कर रहा था, आरव बगल में बैठा।
पीछे सीट पर अधीर उसके साथ में मीरा बैठी हुई थी जैसे ही मीरा को पता चला कि अधीर पार्टी में आएगी – पूरे रास्ते उसकी आँखों में चमक और होंठों पर हँसी।
मीरा:- ( करण की तरफ देखकर उसकी आंख मारती है ):- मैं बहुत खुश हूं हम बहुत मस्त एंजॉय करेंगे पार्टी में
“भैया, आप दोनों बेस्ट हो!” – अधीर ने हाथ पकड़ते हुए कहा।
आरव मुस्कुराया – “अब पार्टी का मज़ा लेना, लेकिन वादा निभाना।”
कारण ने मज़ाक में कहा –
“और शॉपिंग के लिए भी चलना पड़ेगा। मीरा तुम भी चल लेना।”
अधीर खिलखिलाकर हँसी –
“पक्का, भैया! ठीक है फिर कॉलेज के बाद शाम में चलते हैं ”
उसकी मासूम हँसी कार में गूंज उठी।
दिल्ली गर्ल्स कॉलेज का बड़ा सा गेट।
गेट पर रंग-बिरंगे बलून, दीवारों पर फैशन शो और डांस कंपटीशन के पोस्टर्स।
अंदर हॉल में लड़कियाँ हंसी-ठिठोली करतीं, डेकोरेशन टीम रंग-बिरंगे पर्दे टांग रही थी।
इसी बीच अभिमान अपने दोस्तों (कबीर, नील, रणविजय) के साथ एंट्री करता है।
ब्लू जैकेट में उसकी पर्सनालिटी बिजली जैसी लग रही थी।
चेहरे पर गंभीर एक्सप्रेशन, लेकिन आँखों में हल्की चमक।
“डीजे का साउंड चेक करो, अल्कोहल बिलकुल नहीं चाहिए। सिक्योरिटी डबल रखो।”
– अभिमान ने स्टेज पर खड़े होकर आदेश दिया।
लड़कियों की यूनियन लीडर रिया और शालिनी भी पास खड़ी थीं।
उन्होंने सिर हिलाकर हामी भरी –
“सब कंट्रोल में है, सर।”
अभिमान की ब्लू आँखें बार-बार इधर-उधर घूम रही थीं।
उसे याद था वो नाम – “धीर”
उसने दो बार पूरा हॉल चक्कर लगाया।
लेकिन कहीं अधीर नजर नहीं आई।
उसका चेहरा कठोर हो गया, होंठ दब गए।
“इतनी घमंडी? खुद को समझती क्या है? चेहरा नहीं दिखाना चाहती तो मत दिखाए… मैं भी नहीं दिखाऊंगा।”
उसकी आँखों में गुस्से की लकीरें उभर आईं।
क्लास की गेट के सामने जब वो पहुंचा, दिल की धड़कन तेज़ हुई।
लेकिन अगले ही पल चेहरा सख़्त करके पलट गया।
धीमे कदमों से बाहर निकल गया।
उसी वक्त अधीर अपनी क्लास में बैठी थी।
मीरा ने कान में फुसफुसाया –
“देखना, ये पार्टी तेरी लाइफ बदल देगी।” पार्टी में आने वाली है की तो मैं तेरा नाम लिखवा देता हूं गाने के लिए.....
अधीर की आँखों में हल्की झिझक और होंठों पर प्यारी सी मुस्कान थी।
आधीरा :- पर....
मीरा:- ( हाथ पकड़ते हुए खींच के हाल में ली जाती है) बार-बार कुछ नहीं आप फटाफट चल रहे तेरा नाम लिखवा दूंगी.....
....
लेकिन बाहर कॉरिडोर में –
अभिमान की ब्लू आँखें गुस्से से भरी थीं।
उसने बाइक का हेलमेट कसकर पहना और तेज़ी से बाहर निकल कहा था कि तभी उसे वापस से अधीर की आवाज सुनाई देती है जो मीरा को किसी चीज के लिए मना कर रही थी जान के दिल की धड़कन एक बार फिर बढ़ गई उसका हाथ अपने आप अपने दिल पर चला गया और धीरे से सहलाते हुए बोलता है संभल..... जा..... संभल..... में जा एक बार के लिए अभियान लगा लो पलट कर उसे देख लेना चाहिए फिर पता नहीं क्या मन में आया कि वह गुस्से से निकल गई।।।।
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दिल्ली गर्ल्स कॉलेज का गेट, 2:00 बजे दोपहर।
सूरज की हल्की सुनहरी किरणें गेट के लोहे पर चमक रही थीं।
भीड़ में लड़कियों का शोर, हँसी, और बसों के हॉर्न।
अधीर बैग कंधे पर, किताबें सीने से लगाकर खड़ी।
मीरा मोबाइल पर हँसते हुए किसी को चैट भेज रही।
कारण (चेहरा कॉन्फिडेंट, हल्की शरारती मुस्कान) – ब्लैक कार के बोनट पर टिककर, सनग्लासेस लगाए खड़ा।
कारण ने विंडो नीचे की और ऊँची आवाज़ में बोला –
कारण: “मैडम, आपकी टैक्सी हाज़िर है! जल्दी बैठो वरना मीटर डाउन हो जाएगा।”
मीरा (हँसकर, एक्साइटेड फेस): “अबे, तुम तो पूरा ड्राइवर बन गया।”
अधीर (थोड़ा झेंपते हुए, हल्की मुस्कान): “भैया, आप भी ना… हमेशा मज़ाक।”
तीनों कार में बैठ गए।
अधीर खिड़की के पास बैठकर बाहर का नज़ारा देखने लगी, उसके चेहरे पर मासूमियत थी।
मीरा बीच-बीच में चुपके से कारण की तरफ देखती, और कारण गाड़ी चलाते हुए मुस्कुरा देता।
🛍️
दिल्ली का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल।
भीड़-भाड़, चमचमाती रोशनी, एसी की ठंडक, और ब्रांडेड शोरूम्स।
मॉल का साड़ी सेक्शन बहुत ही जगमगाता हुआ था।
चारों तरफ़ रैक पर रंग-बिरंगी साड़ियाँ रखी हुई थीं – लाल, हरे, पीले और सुनहरे।
हॉल में हल्की-सी इत्र की महक थी, और ऊपरी रोशनी आईनों पर पड़कर चमक रही थी।
मीरा (गुलाबी साड़ी आईने के सामने लगाते हुए, हंसी भरे चेहरे से):
धीरे से “करण, ये देखो! कैसी लग रही हूँ?”
करण (भौंहें चढ़ाकर, हल्की मुस्कान दबाते हुए):
“नहीं… ये बहुत ओवर लग रही है। तू वैसे भी खुद खूबसूरत है, इतना चटक रंग ज़रूरत नहीं।”
मीरा (हैरानी से, मजाकिया एक्सप्रेशन):
“अरे वाह! आज तो बड़े शायराना मूड में हो।”
करण ने हंसते हुए अगली साड़ी निकाली – पीली।
करण (संजीदगी से):
“ये भी नहीं… बहुत सिंपल है। पार्टी में सब ग्लैमरस आएंगे, तू क्यों पीछे रहे?”
मीरा (थोड़ा चिढ़कर, नकली गुस्से वाला चेहरा):
“तो तुम्हें कौन सी पसंद है, महाराज? सारी की सारी मैं ही ट्राई करूँ?”
मीरा ने नीली साड़ी उठाई।
आईने के सामने खड़ी होकर उसने उसे अपने कंधे पर डाला।
नीली रेशमी चमक रोशनी में और निखर आई।
मीरा (हैरानी से, खुद को देखकर, मुस्कुराते हुए):
“ये… ये कुछ अलग लग रही है।”
करण की नज़रें उस पर टिक गईं।
वो थोड़ा पास आकर बोला –
करण (धीरे से, आँखों में गहराई, चेहरा गंभीर लेकिन हल्का मुस्कुराता):
“बस… यही वाली। नीला रंग तेरे लिए ही बना है। ये साड़ी नहीं… तू इसमें और भी खास लग रही है।”
मीरा का चेहरा हल्का लाल हो गया।
उसने जल्दी से नज़रें आईने से हटाईं और नकली गुस्से से बोली –
मीरा (चेहरा झेंपा हुआ, पर मजाकिया अंदाज़):
“इतनी तारीफ़ मत करो… मैं सच में मान जाऊँगी।”
करण मुस्कुराया।
उसने सेल्समैन को इशारा करके कहा –
“पैक कर दो। यही मीरा की पार्टी वाली साड़ी होगी।”
अधीर पास खड़ी थी, बार-बार अलग-अलग साड़ियाँ देख रही थी।
पर उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था कि वो परेशान है।
अधीर (चेहरा सोच में डूबा, हल्की झुंझलाहट):
“मुझे समझ नहीं आ रहा… ये ठीक है या वो?”
मीरा ने हंसकर कहा –
“तू क्यों इतनी टेंशन ले रही है? चल, ये देख… ग्रीन कलर वाला कितना प्यारा है।”
अधीर ने हल्की मुस्कान के साथ वही हाथ में लिया।
वो ज्यादा चमकीला नहीं था, पर उसकी मासूमियत के साथ बिल्कुल मेल खा रहा था।
करण (थोड़ा ध्यान से देखकर, सिर हिलाते हुए):
“हाँ… ये अच्छा है। सिंपल भी है और रॉयल भी। पार्टी में तू अलग दिखेगी। मेरी बहन बहुत सुंदर लगी थी ”
अधीर (चेहरा हल्का शर्माया, छोटी-सी मुस्कान):
“ठीक है… ये ले लेती हूँ।”
मीरा पैकिंग होते-होते अचानक रुक गई।
उसने शरारती मुस्कान के साथ करण की तरफ देखा और बोली –
मीरा (हंसी रोकते हुए, आंखों में शरारत):
“करण, एक बात पक्की कर लो। ये नीली साड़ी… अब हमेशा मेरी रहेगी। किसी और को नहीं दोगे।”
करण (हंसकर, लेकिन हल्के रोमांटिक एक्सप्रेशन के साथ):
“कसम मीरा… ये साड़ी सिर्फ तेरी है। और वैसे भी… नीला रंग मेरे लिए अब तेरे नाम से जुड़ गया है।”
मीरा का चेहरा लाल हो गया।
उसने झेंपकर तुरंत नजरें फेर लीं।
आईने में उसकी झलक दिख रही थी – आँखों में हल्की शरारत और होंठों पर अधूरी मुस्कान।
अधीर ने दोनों को देखा और मन ही मन हल्का-सा मुस्कुराई, लेकिन तुरंत ही परेशान चेहरा बना लिया, जैसे उसे ये सब ज्यादा समझ में नहीं आ रहा।
मीरा:- चलो शॉपिंग तो हो गया फटाफट कुछ कहते हैं बहुत तेज भूख लगती है
आधीरा:- हम्म्म चलो
अधीर (खुश, मासूम,) – पास्ता खाते हुए होंठों पर सॉस लग गया।
मीरा (हँसते हुए, जोरदार एक्सप्रेशन): “देख! यही होता है जल्दी-जल्दी खाने से।”
कारण (संजीदा चेहरा, हल्की मुस्कान): टिश्यू बढ़ाते हुए – “लो, साफ करो लो लाडो ।”
तीनों हँसने लगे।
मीरा की हंसी सबसे जोरदार थी, अधीर की स्माइल मासूम थी और कारण की नज़रें मीरा पर टिकी थीं।
अभिमान अनमने मन से दोस्तों के साथ आया।
अभिमान (चेहरा चिड़चिड़ा, आँखों में गुस्सा, उदासी भी):
“मन नहीं है, बेकार सब।”
कबीर (हंसता हुआ चेहरा): “भाई, पार्टी तेरे बिना अधूरी है।”
नील (गंभीर चेहरा): “एक बार देख तो सही, सब ठीक लग रहा है।”
रणविजय (शरारती स्माइल): “चल, भी अब, कैसी है तुझे हुआ क्या है दो-तीन दिन से देख रहा हूं बहुत चिड़चिड़ा हो गया है।”
अभिमान:- पता नहीं मुझे भी मेरे सवालों के जवाब चाहिए जो कम मिलेंगे मुझे खुद नहीं पता।
नील:- कोई प्यार का मामला तो नहीं है....
कबीर रणविजय और अभियान एक साथ चलते शट अप नील
अभिमान ने ब्लैक शर्ट उठाई, उसे पसंद नहीं है आखिर में ढूंढते फिरते उसने ही ग्रीन कलर शर्ट पसंद किया।
सब शॉपिंग करने के बाद फूड काउंटर पर पहुंचे कदम रखते ही अचानक अभिमान को
वो आवाज़… वही मासूम हँसी।
उसकी आँखें चमक उठीं।
अधीर, मीरा और कारण एक टेबल पर बैठे हँस रहे थे।
अधीर की हंसी मीठी थी, मासूम सी।
अभिमान का दिल जोर से धड़कने लगा।
अभिमान (चेहरा अचानक नरम, आँखों में बेचैनी, दिल की धड़कन तेज):
“यही है… वही आवाज़… ये नाम, ये हंसी… क्यों मैं इस लड़की से परेशान हूँ?”
वो धीरे-धीरे उनकी टेबल की ओर बढ़ा।
हर कदम भारी लग रहा था।
लेकिन जैसे ही वो पास पहुँचा, ही था की।......
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अभिमान (चेहरा थका हुआ, आँखों में बेचैनी):
वो दोस्तों के बीच खड़ा था, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार इधर-उधर घूम रही थीं।
तभी उसकी नज़र सामने पड़ी—
नीले दुपट्टे की हल्की सी लहर हवा में उड़ रही थी। उसकी हंसी मुझे सुनाई दे रही थी वह उसे चार टेबल दूर बैठी थी।
उसकी धड़कनें अचानक तेज़ हो गईं बता रही थी कि वह उसके आसपास ही है ।
“यही है… यही वो है…”
वो बिना सोचे समझे आगे बढ़ने लगा।
उसकी आँखें बस अधीर की पीठ पर टिक गई थीं।
एक लड़का, जो ट्रे उठाए हुए था और अपने दोस्तों की ओर देखकर हंस रहा था, सीधे अभिमान से टकरा गया।
धड़ाम!!!
ठंडी ड्रिंक और सॉस की छींटें सीधा अभिमान की सफ़ेद शर्ट पर गिर पड़ीं।
अभिमान (चेहरा लाल, गुस्से से फटता हुआ):
“क्या देख रहा था बे? आँखें नहीं हैं क्या? ये फूड कोर्ट है या रेसकोर्स?!”
वो लड़का सहमकर चुप खड़ा रह गया। की गलती दोनों की थी पर वह लड़का अभिमन्यु की तेज आवाज सुनकर डर गया
अभिमान की ऊँची आवाज़ सुनकर अधीर चौंक गई।
उसने धीरे-धीरे सिर घुमाया और पलटकर देखा।
सामने…
नीली आँखों वाला व लड़का खड़ा था…
अधीर (चेहरा सख्त से अचानक मासूम, आँखें फैली हुईं):
जैसे ही उस ने अभिमान की ओर देखा नीली आंखें आंखों में बहुत सारा गुस्सा आंखों पर चल फेस कट बहुत ही सुंदर ब्लू शर्ट पहने हाथ में ब्रांडेड वॉच और किसी पर बहुत तेज तेज गुस्सा हो रहा है, उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
दिल की धड़कनें इतनी तेज़ कि उसे खुद सुनाई देने लगीं।
उस पल… पूरी दुनिया जैसे रुक गई। अपना हाथ अपने दिल पर रख लिया और खुद को सहलाने लगी यह क्या हो रहा है....
अभिमान (चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ, आँखों में आग):
“तुम्हारे जैसे बेवकूफों की वजह से ही इंसान का दिन खराब होता है! अब देख, मेरी शर्ट का क्या हाल कर दिया है!”
उसका गुस्सा सुनकर अधीर के चेहरे की चमक एक पल में डर में बदल गई।
वो झट से चेहरा फेरकर अपनी प्लेट की तरफ़ देखने लगी,
लेकिन अंदर से उसकी सांसें अभी भी तेज़ थीं… दिल अब भी धड़क रहा था।
तभी नील ने आगे बढ़कर अभिमान के कंधे पर हाथ रखा।
नील (चेहरा शांत, हल्की मुस्कान):
“बस कर भाई… हो गया। इतना गुस्सा ठीक नहीं। चल, वॉशरूम चल, पहले शर्ट ठीक कर ले। बाकी बातें बाद में।”
अभिमान (चेहरा चिढ़ा हुआ, पर धीरे-धीरे ठंडा होता):
“ह्म्म… चल।”
वो लड़के को धक्का देकर हटाता है और नील के साथ वॉशरूम की ओर चला जाता है।
वॉशरूम से निकलकर उसने शर्ट ठीक की और सीधे दोस्तों से कहा –
“बस… अब मूड नहीं है। घर चलते हैं।”
सब दोस्त भी चुपचाप मान गए।
उसका चेहरा देख समझ चुके थे कि आज ज्यादा बहस करना ठीक नहीं।
इधर, करण, अधीर और मीरा भी शॉपिंग पूरी करके अपने-अपने घर निकल गए।
– पार्टी का दिन
सुबह से ही कॉलेज में हलचल थी।
फ्रेशर्स पार्टी की तैयारियाँ जोरों पर थीं।
नील :- हॉल में लाइट्स लग रही थीं।चेक कर रहा था सब सही है कि नहीं
स्टेज पर साउंड चेक हो रहा था।
डेकोरेशन टीम फूल और रिबन सजा रही थी।
अभिमान के दोस्त (चेहरे पर एक्साइटमेंट, शरारती मुस्कान):
“आज धमाल मचाएंगे भाई! अपनी भी एक परफॉर्मेंस है ना ?”
अभिमान (चेहरा सीरियस, आँखों में हल्की बेचैनी):
“हाँ… तैयार है।”
(लेकिन उसका ध्यान अब भी उसी लड़की की ओर था… जिसकी झलक कल भी उस को देखने को नहीं मिली थी ।)
दूसरी तरफ़…
अधीर के घर पर भी तैयारियों का माहौल था।
आरव (चेहरा जिम्मेदार, हल्की मुस्कान):
“ लोडो कोई भी दिक्कत हो, तो तुरंत फोन करना। मैं वहीं आ जाऊँगा।”
करण (चेहरा मजाकिया, हंसते हुए):
“और प्लीज़… टाइम पर वापस आ जाना। वरना दादा-पापा हमें खा जाएंगे।”
अधीर मुस्कुराई।
उसका चेहरा थोड़ा घबराया हुआ था, लेकिन आँखों में चमक भी थी।
अधीर (चेहरा शर्माया, धीमी आवाज़ में):
“ठीक है भैया… मैं ध्यान रखूँगी। परेशानी होगी तो तुरंत आपको कॉल कर लूंगी आप हमें कितने समय पर आ जाना ”
दोपहर 1:00 बजे अधीर मीरा के घर पहुँच गई।
दोनों साथ में तैयार होने वाली थीं।
दरवाज़ा खुलते ही मीरा मुस्कुराते हुए सामने आई।
उसका चेहरा हमेशा की तरह चमक रहा था, आँखों में शरारत और होंठों पर हल्की लिपस्टिक की चमक।
मीरा (चेहरा एक्साइटेड, आवाज़ ऊँची):
“अरे वाह अधीर! आज तो हम दोनों साड़ियों में धमाल मचाएँगे। मैंने तो कल ही पार्लर वाली को बोल दिया था। वो थोड़ी देर में आएगी हमें तैयार करने।”
अधीर (चेहरा हल्का संकोची, मुस्कान दबाते हुए):
“मीरा… तू जानती है न, मैं बस सिंपल रहना चाहती हूँ। सादी-सी साड़ी और हल्का-सा मेकअप… वही ठीक है।”
मीरा (चेहरा मज़ाकिया, आँखें बड़ी करते हुए):
“सिंपल? अरे पगली! ये फ्रेशर्स पार्टी है… पहली बार सबकी नज़रें हम पर होंगी। तू सिंपल रहेगी तो सब सोचेंगे कि तू बोरिंग है। और वैसे भी… सिंपल और साड़ी? हद करती है तू।”
अधीर हँस दी।
अधीर (चेहरा हल्की शरारत, स्माइल):
“मीरा, मेरी सादगी ही मेरी खूबसूरती है।”
दोनों खिलखिलाकर हँस दीं।
थोड़ी देर बाद पार्लर वाली आ गई।
टेबल पर साड़ी, मेकअप किट, हेयरस्टाइलिंग टूल्स सब रखे गए।
मीरा (चेहरा उत्साहित): अपनी ब्लू और सिल्वर बॉर्डर वाली साड़ी आईने के सामने बार-बार चेक करती।
अधीर (चेहरा झिझकता, लेकिन मन ही मन खुश): अपनी ग्रीन साड़ी हल्के हाथों से छू रही थी, जैसे वो उसके लिए बहुत खास हो।
मीरा (चेहरा तुनककर, आँखें घुमाते हुए):
“तू हमेशा मुझे टेंशन देती है। चल ठीक है, तू सिंपल रह। मैं तो पूरी क्वीन बनकर जाऊँगी।”
पार्लर वाली दोनों को तैयार करने लगी।
🎸 अभिमान और दोस्तों की तैयारी
दूसरी तरफ़, Delhi Business Institute का म्यूज़िक रूम रोशनी और इंस्ट्रूमेंट्स से भरा था।
चारों तरफ़ केबल्स, माइक, गिटार केस, ड्रम सेट और पियानो।
अभिमान (चेहरा गंभीर, गिटार ट्यून करते हुए):
“सुनो, आज की परफॉर्मेंस में कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए। ये वेलकम नाइट है, सबकी नज़र हम पर होगी।”
रणविजय (चेहरा जोशीला, ड्रम पर बीट मारते हुए):
“आराम कर भाई, तेरा गिटार और मेरा ड्रम जब साथ बजेगा, तो पूरी हॉल की दीवारें हिलेंगी।”
नील (चेहरा शांत, पियानो पर हल्की धुन बजाते हुए):
“मगर ध्यान रहे… ट्यूनिंग और टाइमिंग सही हो। वरना मज़ाक बन जाएगा।”
कबीर (चेहरा शरारती, माइक पकड़ते हुए):
“और एंट्री मेरी होगी”
सभी हँसने लगे।
शाम धीरे-धीरे ढल रही थी।
दूसरी तरफ़ अभिमान और उसके दोस्त अपने-अपने इंस्ट्रूमेंट्स फाइनल चेक कर रहे थे।
अभिमान और अधीर की पहली सामना-सामनी झलक हो कल होंगी या.....।
🎉 पार्टी का आगाज़
शाम के 5 बजते ही Delhi ardt and scince Institute का ऑडिटोरियम जगमगा उठा।
चारों तरफ़ रंग-बिरंगी लाइट्स, फूलों की सज़ावट, बलून और शिमर पेपर से सजावट हुई थी।
स्टेज के ऊपर “Welcome Freshers 2025” लिखा हुआ था।
फ्लोर पर कार्पेट, चारों तरफ़ राउंड टेबल और फूड स्टॉल्स लगे हुए थे।
स्पीकर्स से हल्का सा म्यूज़िक बज रहा था – जैसे-जैसे वक्त बढ़ रहा था, माहौल भी और जोशीला होता जा रहा था।
हर कोई अपने-अपने ड्रेसेस में बेहद खूबसूरत लग रहा था।
कॉलेज की गलियों से लेकर गेट तक, सिर्फ एक ही चर्चा थी
– “आज की पार्टी यादगार होने वाली है।”
अभिमान –
सफ़ेद प्लेजर अंदर ग्रीन शर्ट और वाइट पैंट में, काले चमकदार जूते, हाथों में ब्रांडेड वॉच और बाल जेल से सेट किए हुए।
उसकी पर्सनैलिटी इतनी डैशिंग लग रही थी कि स्टेज पर आने से पहले ही कई लड़कियाँ उसे देखकर फुसफुसाने लगीं –
“वाह… आज तो पूरा हीरो लग रहा है।”
करण –
ब्लैक सूट के साथ sky blue शर्ट, और टाई हल्की-सी ढीली।
चेहरे पर हल्की सी शरारत और मुस्कुराहट… वो उन लड़कों में से था जो एंट्री से पहले ही सबका ध्यान खींच लेते हैं।
रणविजय –
डार्क ब्लू ब्लेज़र, व्हाइट शर्ट और डेनिम।
गले में पतली चेन और हाथ में स्टाइलिश रिंग, उसे बिल्कुल cool boy बना रही थी।
नील –
वाइन-कलर का कोट-पैंट, अंदर काला शर्ट।
चेहरे पर गम्भीरता, लेकिन वही उसकी पहचान थी।
पियानो बजाने वाले की सी ठंडी-सी लेकिन गहरी मौजूदगी।
चारों एक साथ बैकस्टेज पहुंचे तो जैसे हवा में हलचल सी हो गई।
हर कोई कह रहा था –
“ये सीनियर्स तो स्टार लग रहे हैं!”
जब हमारे बॉयस ने एंट्री करी तो हर लड़की आह भर रही थी क्योंकि उनके बीच में बहुत कम बॉयज थे और हमारे लड़के हीरो रहे थे कि क्या ही कहना.....
करण कार से दोनों को छोड़ने आया था।
जैसे ही उसने मीरा को देखा, उसकी आँखें पलभर के लिए ठहर गईं।
करण (चेहरा हल्की मुस्कान, धीमी आवाज़ में):
“मीरा… आज तो तुम… कमाल की लग रही हो।”
मीरा ने हल्के से हँसकर अपने दुपट्टे को ठीक किया।
मीरा (चेहरा हल्की शर्म, आवाज़ में मिठास):
“धन्यवाद, करण। तुम भी आज अच्छे लग रहे हो।”
करण ने धीरे से मीरा के हाथ में एक चॉकलेट पकड़ा दी उसके तारीफ के लिए बड़ी वाली कैडबरी है वह खुश हो गई...
करण फिर अधीर की तरफ़ देखता है।
करण (सच्ची मुस्कान, आत्मीय स्वर):
“और मेरी बहन… आज तो बिलकुल राजकुमारी लग रही है। सिंपल लेकिन बहुत खूबसूरत।”
अधीर हल्का-सा मुस्कुरा कर बोली –
अधीर (चेहरा शांत, आवाज़ धीमी):
“भाई… बस इतना ही काफ़ी है।”
करण ने दोनों को गेट तक पहुँचाया और वहीं रुक गया।
वो पीछे से देखता रहा…
एक तरफ़ उसकी आँखें मीरा पर अटकी थीं, दूसरी तरफ़ उसका दिल बहन की खूबसूरती पर गर्व से भर गया था।
करण:- लाडो से बोला कि वह उसे लेने आएगा उसे एक और कर देना जैसे ही फ्री होंगे और टेंशन मत ले अच्छे से इंजॉय कर पार्टी को घर में सब ठीक ही होगा जस्ट इंजॉय योर पार्टी...
उसी वक्त गेट पर कार रुकती है।
बाहर उतरती हैं –
अधीर (हीरोइन) –
ग्रीन कलर की साड़ी, हाथों में पतली-सी चूड़ियाँ, माथे पर छोटी-सी बिंदी, आँखों में काजल, होंठों पर हल्का-सा लिप बाम।
उसके खुले बाल लहराते हुए उसके कंधों पर गिर रहे थे।
सादगी और खूबसूरती का मिलन… उसे देखकर कोई भी नज़रें हटाने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
मीरा –
ब्लू शेड की नेट साड़ी, मैचिंग ब्लाउज़, बाल बन में बंधे हुए और हल्का-सा मेकअप।
वो बिल्कुल पार्टी क्वीन लग रही थी।
चलते-चलते वह अपने दुपट्टे को ठीक करती और हल्के से मुस्कुराती… मानो स्टेज उसके लिए ही बना हो।
अंदर हॉल में हर तरफ़ शोर-गुल, हँसी, म्यूज़िक और कैमरों की फ्लैशेज़ थीं।
सीनियर्स और जूनियर्स मिलकर मस्ती कर रहे थे।
अधीर और मीरा ने अंदर एंट्री की।
सबकी नज़रें पलभर के लिए अधीर पर ठहर गईं।
“इतनी सादगी में भी कोई इतना खूबसूरत लग सकता है?”
वहीं मीरा पर लड़कियों में जलन साफ़ झलक रही थी।
मीरा सीधा ग्रीन रूम में चली गई।
उसे अपनी डांस परफॉर्मेंस के लिए टच-अप करना था।
अधीर भी उसके साथ गई, क्योंकि वो मीरा को अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी।
ग्रीन रूम में एक लड़की आई उसका नाम था श्वेता जिसने मीरा को बोला कि मीरा तुम्हारी सबसे पहले परफॉर्मेंस है तुम रेडी होना तो मैं गणेश वंदना में डांस करना है।
मीरा:- हाँ मे रेडियो कितनी देर में प्रोग्राम चालू होगा
श्वेता:- 5 मिनट में तुम मेरा परफॉर्मेंस चालू होगा मेरा बोलती है। और अधीर तुम्हारा जो म्यूजिक का परफॉर्मेंस है उसके लिए कुछ इंस्ट्रूमेंट वगैरह चाहिए है या कोई तुम्हारे लिए प्ले करें तुम बता दो
अधीरा:- नहीं मैं कुछ नहीं चाहिए है।
मीरा:- नहीं श्वेता मेम आप एक काम करो अगर कहीं से गिटार अरेंज कर सकती हो तो गिटार ला दो अधीर गिटार बहुत अच्छा बजती। गिटार बजाने के साथ गाना गाएगा।आदिरा से बोलते कि अधीर तू बाहर जाकर बैठ और वहां से मेरा पूरा वीडियो बनाना
अधीरा:- पर....ठीक है मैं जाती हूं अधीरा बाद से बाहर चले जाती है और बाहर उसकी फ्रेंड छुट्टी और प्रिया के पास में बैठ जाती है।
उसी वक्त जब हमारी हीरोइन ने एंट्री करी बैकस्टेज –
अभिमान ( के दिल की धड़कन बढ़ गई उसने उसको समझ में आ गया कि आ गई है ) सिंपल लड़के एक बार दरवाजे की तरफ दिखा पर मैं उसे कोई नहीं दिखाओ फिर उसने अपने गिटार की स्ट्रिंग्स चेक कर रहा था।
रणविजय और विजय अपने इंस्ट्रूमेंट्स ट्यून कर रहे थे।
कबीर माइक्रोफोन से प्रैक्टिस कर रहा था।
अधीर ठीक उसी समय ग्रीन रूम से गुज़री, उसकी दिल की धड़कन बढ़ गई एक नजर अभिमन्यु को दिखा जो की पीठ करके बैठा हुआ था दरवाजे की तरह और फिर वह आगे.....
ये वही पल था –
दोनों एक ही छत के नीचे थे, लेकिन अभी तक एक-दूसरे की नज़र में नहीं आए थे।
🌙 रात अभी शुरू हुई थी…
स्टेज तैयार था…
परफॉर्मेंस होने वाली थी…
और आने वाली कुछ ही घड़ियों में… हीरो और हीरोइन की किस्मत आमने-सामने होने वाली थी।
स्टेज पर हल्की नीली रोशनी फैल रही थी। ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था। चारों तरफ गहमा-गहमी थी। लड़कियाँ झिलमिल कपड़ों में, लड़के सूट-बूट में, और डेकोरेशन का नज़ारा किसी बड़े इवेंट से कम नहीं था।
तभी श्वेता (थोड़ी हड़बड़ी में 😅) उनके पास आई –
श्वेता: “अभिमान … एक रिक्वेस्ट थी। हमारे यहाँ एक फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट है, उसने बोला कि उसे गिटार चाहिए। अगर मिल जाए तो…”
कबीर (हंसते हुए): “अरे पगली, अभी … मेरा मतलब अभिमन्यु, अपना गिटार किसी को देता है क्या?”
रणविजय (शरारती एक्सप्रेशन 😏): “भूल जा, उसके गिटार की सिक्योरिटी उससे भी ज्यादा है।”
अभिमान (कड़क आवाज़, माथे पर लकीरें 😠):
“नो वे। मैं अपना गिटार किसी को नहीं देता। नाम क्या है उस लड़की का?”
श्वेता बोलने ही वाली थी कि तभी मीरा भागते हुए आई (चेहरा चमकता हुआ, पसीने की बूंदें ✨) –
“श्वेता, चलो! तुम्हें स्टेज पर बुला रहे हैं। मेरा नाम अनाउंसमेंट हो गया है।
श्वेता:-
अभिमान , प्लीज़… गिटार दे देना। बाद में बात करते हैं।”
अभिमान कुछ सोच ही रहा था कि श्वेता मीरा के साथ निकल गई।
🎶 अचानक एंकर की आवाज़ गूंजी –
“और अब हमारी पार्टी की शुरुआत होगी गणेश वंदना से… स्वागत कीजिए मीरा शर्मा का।”
मीरा (चेहरे पर आत्मविश्वास, आँखों में चमक ✨) स्टेज पर आई। उसने हल्के ऑरेंज-गोल्डन कॉम्बिनेशन का कॉस्ट्यूम पहना था। पायल की छनक, हाथों में चमकते कंगन और चेहरे पर मुस्कान।
संगीत शुरू हुआ… देवा श्री गणेश.....
मीरा ने जैसे ही नृत्य शुरू किया, पूरा हॉल तालियों की गूंज से भर गया। हर मूवमेंट में ऊर्जा थी, हर भाव में भक्ति।
, अधीर (चेहरे पर उत्साह और थोड़ी घबराहट 😊) मीरा को जाते हुए देख रही थी। वह मन ही मन प्रार्थना कर रही थी –
“बस मीरा की परफॉर्मेंस शानदार हो जाए।”
उधर दूसरी तरफ, बैकस्टेज ही, अभिमान (चेहरे पर हल्की बेचैनी 😑) और उसके दोस्त – रणविजय (मस्त-मौला मूड 😎), नील (सिरियस चेहरा 🤔), कबीर (मजाकिया हंसी 😊) अपने इंस्ट्रूमेंट्स की ट्यूनिंग कर रहे थे।
🎶 स्टेज पर मीरा ने ऐसा डांस किया कि सब लोग खड़े होकर तालियाँ बजाने लगे। गणपति बप्पा मोरया की गूंज पूरे ऑडिटोरियम में फैल गई।
मीरा जैसे ही बैकस्टेज लौटी, अधीर भी बाहर से उठकर अंदर बैक साइड में आ गई। अधीर (चेहरे पर चमक और खुशी 🌸) दौड़कर आई और उसे गले लगाया –
अधीर: “मीरा… तू तो कमाल कर गई! सच में… तूने स्टेज हिला दिया।”
मीरा (मुस्कुराते हुए 😊): “थैंक यू… और तू भी तैयार रह, तेरी बारी आने वाली है। यह बता तूने मेरा वीडियो अच्छे से बनाया कि नहीं बनाया ”
अधीर (थोड़ा नर्वस 😬): “ हां मैंने अच्छे से बनाया है और मुझे तैयार होने की क्या जरूरत है मैं ठीक दू पता नहीं… मैं कर पाऊँगी या नहीं।”
मीरा ने उसका ड्रेस ठीक किया, उसकी चूड़ियों को सेट किया और बोली –
“डोंट वरी… तू सबसे अच्छी परफॉर्म करेगी। ऑल द बेस्ट मेरी बेस्टी.....”
इसी बीच दूसरी अनाउंसमेंट गूंजी –
“अब स्वागत कीजिए बिज़नेस कॉलेज के स्टार बैंड का… अभिमन्यु और उसके दोस्तों का।”
लाइट्स डिम हुईं। रणविजय ड्रम पर, नील पियानो पर, कबीर बास गिटार पर, और बीच में अभिमन्यु (चेहरे पर गज़ब का कॉन्फिडेंस, आँखों में ब्लू चमक ✨)।
उसने गिटार उठाया, हल्की स्माइल दी… और गाना शुरू किया। उसने आंखें बंद करी और उसको पायल की आवाज चूड़ियों की आवाज और लहराता हुआ दुपट्टा दिखा और एकदम से उसने गाना शुरू किया
🎶
"तेरा चेहरा जब नज़र आए"
मेरी बेचैनियों को चैन मिल जाए,
तेरा चेहरा जब नज़र आये…
तेरा चेहरा जब नज़र आये…
मेरे दीवानेपन को सब्र मिल जाए,
तेरा चेहरा जब नज़र आये…
ज़िक्र तुम्हारा जब-जब होता है,
देखो न… होंठों पे तेरा एहसास रह जाता है…
मेरे हर रास्ते को मंज़िल मिल जाए,
तेरा चेहरा जब नज़र आये…
मैं रात-दिन ये दुआ करूँ,
तेरे लिए मैं जियूँ मरूँ,
चारों पहर तुझे देखा करूँ,
मेरा जहाँ ये तुझपे फ़ना करूँ…
बैरन हवाएँ मुझे ना जाने,
दे गई सदा क्यूँ अभी-अभी,
है सरफरोशी ये आशिकी भी,
जायेगी जान मेरी इसमें कभी…
उसकी आवाज़ में जादू था। हॉल में सन्नाटा छा गया। सब लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे।
रणविजय कारण और कबीर तीनों शोक हो गए पहली लाइन सुनते हैं और फिर अपना अपना म्यूजिक चेंज कर दे क्योंकि वह गाना दूसरा गाने वाले थे लेकिन अभी नहीं तो कोई दूसरा ही गाना चालू कर दिया था....
बैकस्टेज खड़ी अधीर का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा (चेहरे पर हैरानी, आँखों में चमक 🌸)।
“ये आवाज़… ये कौन है?”
वह मीरा की हेल्प कर रही थी, उसका ड्रेस चेंज करने में लगी थी। लेकिन दिल और कान उसी आवाज़ पर अटक गए। पता नहीं उसके लिए दिल की धड़कन बढ़ रही थी एक अजीब सी बची नहीं हो रही थी बस किसी भी तरह उसे यह आवाज के मालिक तक पहुंचना था......
जैसे ही मीरा का काम खत्म हुआ, अधीर भागकर ऑडिटोरियम की तरफ निकली…
लेकिन तब तक गाना खत्म हो चुका था। सब लोग तालियाँ बजा रहे थे। स्टेज़ की लाइट बंद हो गई
अधीर (चेहरे पर निराशा और बेचैनी 😔) वहीं रुक गई –
“काश… एक बार और सुन पाती।”
अभिमान और उसके दोस्त स्टेज से उतरे, लेकिन भीड़ और बैकस्टेज की अफरातफरी में उसकी नज़र अधीर पर नहीं पड़ी।
हालाँकि उसने अपना गिटार किसी क्रू मेंबर को देकर कहा –
“वो लड़की जिसे गिटार चाहिए था… उसे दे देना। मैं देखना चाहता हूँ, वो कौन है।”
आगे की परफॉर्मेंस चलती रही। सिंगर्स, डांसर्स, सब आते-जाते रहे। लेकिन अधीर की परफॉर्मेंस टेक्निकल इशू के कारण थोड़ी देर के लिए रुक गई।
अभिमान (चेहरे पर झुंझलाहट 😒) अपने दोस्तों से बोला –
“यार, बहुत हो गया। मैं निकल रहा हूँ। कल सुबह पापा के साथ मीटिंग मे भी जाना है।”
रणविजय (मुस्कुराकर): “जा भाई… यहाँ हम हैं।”
अभिमान बाहर निकलने ही वाला था कि अचानक उसके कदम रुक गए।
🎶 ऑडिटोरियम में हल्की डिम लाइट फैली।
स्टेज पर सिर्फ एक चेयर, एक माइक और एक लड़की।
उसके हाथों में वही गिटार था।
धीरे-धीरे उसकी आवाज़ गूंजी –
“रघुकुल रघुवर तेरी राह निगाहें…” 🎶
अभिमान के कदम वहीं थम गए।
उसकी आँखें स्टेज पर टिक गईं।
दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
वह पलटकर फिर से दौड़ कर अंदर आ.....
कुछ देर बाद उसका नाम पुकारा गया।
स्टेज पर कुर्सी रखी गई।
वह हरे बॉर्डर वाली साड़ी में धीरे-धीरे आई।
उसने गाना शुरू किया—
“रघुकुल रघुवर तेरी राह निहारूँ…”
अभिमान बाहर निकलने ही वाला था।
लेकिन जैसे ही उसने यह आवाज़ सुनी – उसके क़दम जम गए।
वह पलटा।
और उसकी दौड़कर वापस से ऑडिटोरियम में आया और स्टेज़ के सामने जाकर खड़ा हुआ कि उसके पर जम गए उसने देखा स्टेज पर एक लड़की.....
खुले बाल कंधों पर बिखरे हुए, माथे पर छोटी-सी डायमंड बिंदी, एक हाथ में चूड़ियाँ, दूसरे में घड़ी।
वह कुर्सी पर बैठी, आँखें बंद कीं और गिटार थामा।
रघुवर तेरी राह निहारे
रघुवर तेरी राह निहारे
सातों जनम से सिया…
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया…
मैंने सुध बुध चैन गवा के
राम रतन पा लिया
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया
उसकी आवाज़ में सादगी, पवित्रता और जादू था।
गिटार के तार उसके हाथों के नीचे झूम रहे थे।
उसकी चूड़ियाँ छनक रही थीं, और बाल चेहरे पर हल्के-हल्के गिर रहे थे। एक शब्द अभिमान के दिल तक पहुंच रहे थे
गयी पनघट पर भरण भरण पनियां
हो नैनो के, नैनो के तेरे बाण से
मूर्छित हुई रे हिरनिया
झूम झ न…ना…ना…ना…
झना…न ना…ना…ना…
बनी रे बनी मैं तेरी जोगनिया
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया
वहाँ बैठी थी वह लड़की।
जिसे वह ढूँढ रहा था। यही वह आवाज जो उसे पिछले एक हफ्ते से परेशान कर रही थी.....
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर, वचन न जाई
जय रघुवंशी अयोध्यापति
राम चन्द्र की जय
दुविधा मेरी सब जग जाने
जाने ना निरमोहिया
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया
ना तो मईया की लोरी
ना ही फागुन कि होरी
मोहे कुछ दूसरा ना भाए रे…
जबसे नैना ये जाके
एक धनुर्धर से लागे
तबसे बिरहा मोहे सताए रे
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया
()यह गाना फिल्म कलंक )
उसकी आँखें बंद थीं, आइब्रो परफेक्ट, पलकों की लहराती छाया, होठों पर हल्की-सी मुस्कान…
जब उसके होंठ हिले और शब्द निकले – अभियान की साँस अटक गई।
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
और जब उसकी नज़र उसके होठों पर गई –
उसकी धड़कन जैसे एक पल को रुक ही गई।
अभिमान (मन में, चेहरे पर हैरानी और दीवानगी) – “ये… ये व...ही है…”
तालियाँ गूँज उठीं।
लेकिन अभियान को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
उसकी आँखें सिर्फ़ उसी पर थीं। उसे लग रहा था कि वह स्टेज पर ही बैठी है और वह उसको देख ही रहा था
गाना ख़त्म हुआ। ओर
अधीर धीरे-धीरे उठी और मंच से उतरी।
मीरा भागकर उसे गले लगी।
मीरा (चेहरे पर चमक, आँखों में खुशी) – “कमाल कर दिया तूने! तूने तो सब को दीवाना बना दिया।”
अधीर हँसी, पर उसी वक़्त उसका फोन बजा।
भाई की आवाज़ आई –
आरव फोन से आवाज़ (प्यार भरी) – “लाडो… हम आ रहे हैं लेने। 10.मी मे गेट पे आ जा अब घर.....”
आधीरा:- हाँ हां भाई बस आई
अधीर ने मीरा से कहा –
अधीर (चेहरा शांत, आवाज़ में मजबूरी) – “मीरा, मैं जा रही हूँ। तू पार्टी एंजॉय कर। मुझे तो घर पहुँचना है।”
मीरा:- पर....
अधीरा:- प्लीज तू जानती है ना बड़े मुश्किल से परमिशन मिली थी आप हो गया वैसे भी और पार्टी क्या वह तो चलती रहेगी तो इंजॉय कर मैं निकलती हूं।
( जल्दी-जल्दी में वह गिटार अपने साथ ले जाती है गिटार वापस करना ही भूल जाती हो )
मीरा:- चल ठीक है वैसे भी पापा आने वाले मेरे को लेने के लिए तो निकाल बाय
रणविजय ने हमको देखा तो वह उसकी ओर आया और उसको आवाज लगई :-अभी.....अभी क्या हुआ
हमारे अभियान को तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था...
फिर रणविजय ने जोर से उसको धक्का दिया जब वह होश में आया...
ओर इधर-उधर देखने लगा।
चेहरे पर बेचैनी, आँखों में घबराहट।
अभियान (बुदबुदाते हुए) – “कहाँ गई… कहाँ गई वो…”
रणविजय ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
रणविजय (चेहरा उलझा, आँखें टिकी हुई) – “कौन...क्या हुआ भाई? तू इतना परेशान क्यों है? तू चला गया था ना फिर यहां वापस कैसे आ गया?”
अभिमान चौंका जाता हैं , फिर सँभला कर ।
चेहरे पर नकली मुस्कान लाई।
अभि:- (धीरे से, थकी आवाज़) – “कुछ नहीं… मैं चलता हूँ। कुछ हैं पर....।”
रणविजय:-(( अभिमान के कंधे पर हाथ रखकर ) अभी क्या हुआ तू परेशान लग रहा है बात क्या है बताओ....
नील भी उसके पास आ गया
नील:- भाई तू अभी तक गया नहीं?
कबीर:- हैं तू अभी तक यही है.....
अभि:-(झुंझलाकर जुंझला) क्या है तुम सब लोग की प्रॉब्लम क्या है मैं गया नहीं....... गया नहीं...... (फिर एकदम से वह सबके चेहरे दिखता है तो फिर बोलता है ) सॉरी यार बस परेशान हूं मैं निकल रहा हूं कल बातें करेंगे चलो बाय
वह भीड़ से निकल गया।
पर दिल में एक नाम, एक चेहरा और वो अधूरी धुन गूंजती रही।
कॉलेज के हॉल में तालियों की गूंज अभी भी कानों में गूंज रही थी।
अभिमान सबको हल्की मुस्कान के साथ बाय करके धीरे-धीरे बाहर निकल आया। उसके चेहरे पर वही उलझन थी—वही बेचैनी, जो धीरा की परफॉर्मेंस के दौरान उसके दिल में उठी थी। उसने अपनी गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि अचानक उसकी नज़र सामने पड़ी। मैंने अपनी गाड़ी की स्पीड कम कर दी
गेट के पास अधीरा खड़ी थी। हाथ में गिटार थामे हुए, होंठों पर वही मासूम हंसी, आँखों में चमक। उसकी मुस्कान मानो रात की चांदनी को मात दे रही थी।
उसके सामने एक सफेद गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी से अधीरा का भाई आरव बाहर निकला—
आराम (हंसते हुए):
“कैसी रही परफॉर्मेंस, लाडो? पूरे कॉलेज ने झूम के ताली बजाई होगी न?”
अधीर (हल्की हंसी के साथ):
“बहुत अच्छा हुआ, भैया… सच में बहुत मज़ा आया। इतने दिनों बाद गिटार हाथ में लिया था। लगा जैसे दिल का बोझ हल्का हो गया।”
( अभि को उस आवाज सुनाई नहीं दे रही थी उसकी चूड़ियां उसकी हंसी... )
कारण (गाड़ी से झांकते हुए, शरारत से):
“और तालियाँ? वो तो मैंने दूर से भी सुनी। तू तो स्टार बन गई है। तेरा गाना....”
फिर आरव की और देख कर लेट हो रहा है आज
चल आ जा अंदर फटाफट बेड पर मुझे बता तेरे कॉलेज में क्या-क्या हुआ....
plz follow me.....
अभिमान वहीं खड़ा रहा। उसकी उंगलियाँ अनजाने में स्टीयरिंग पर कस गईं। वह चाहकर भी अपनी नज़रें हटा नहीं पा रहा था। अधीरा के साथ किसी लड़की को देखकर अभिमान के दिल में अजब सी जलन होने लगी थी
गाड़ी धीरे-धीरे उसके सामने से गुज़री। उस पल को मानो वक़्त ने थाम लिया।
अधीर का चेहरा शीशे से साफ़ दिखाई दिया। उसने एक पल के लिए साइड की ओर देखा और…
उनकी आँखें मिल गईं।
अभिमान की सांसें रुक गईं। उसकी धड़कनें अनियंत्रित हो उठीं।
अधीर के चेहरे पर हल्की सी चौंक, फिर मुस्कान, फिर एक नर्म झलक… और उसी क्षण, दोनों का हाथ अपने-अपने दिल पर चला गया। दिल में कैफियत बढ़ती चली गई धड़कनों का शोर इतना सुनाई देने लगा दोनों को अपनी अपनी कि ऐसे लग रहा था कि दिल बाहर निकाल कर आ जाएगा....
अधीर (धीरे से फुसफुसाई, होंठों पर कंपकंपी):
“मान…”
अभिमान (बहुत धीमे स्वर में, बस होठों से निकला):
“धीरा…”
और दोनों के दिल को चैन आ गया.....
गाड़ी आगे बढ़ गई।
पर वो लम्हा—वो नज़र, वो नाम—अभिमान के दिल में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
अधीर का घर
दरवाज़े से होकर अधीर अपने कमरे में दाखिल हुई। वह थकी हुई थी, पर चेहरे पर संतोष और खुशी थी।
कमरे में पहले से ही उसके भैया आरव बैठे था । क्योंकि अधीर आपने आते समय अपनी दादी की बहुत सारी डांट सुनी थी क्योंकि अधीर 5 मिनट लेट हो गई थी.....
उसने अपने भाइयों को पहले ही बोल दिया था कि वह बीच में कुछ ना बोले
आरव:-(मुस्कुराते हुए):
“तो, हमारी रॉकस्टार लाडो वापस आ गई। कैसा लगा स्टेज पर खड़े होकर?”
अधीर (बेड पे पर बैठते हुए, आंखें चमकते हुए):
“भैया… आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूंगी। इतने दिनों बाद गाना गाया… गिटार बजाया… सब कुछ जैसे एक सपने जैसा था।”
उसने गिटार धीरे से एक तरफ रखा और तकिए पर सिर टिका दिया।
कारण चुपके से किचन से खाना लेकर आया और उसकी थाली सामने रख दी।
अधीर (आश्चर्य से):
“अरे! दादी ने तो मना किया था… कह रही थी कि देर से आई तो खाना नहीं मिलेगा।”
कारण (प्यार से, उसके हाथ में कौर रखते हुए):
“तो क्या हुआ? तेरे भाई हैं न। तेरे बिना तो हमें भी भूख नहीं लगती। खा ले, लाडो।”
आराम भी उसके पास बैठ गया।
आरव (धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए):
“तू बहुत थक गई है न? चल, आज हम दोनों ही तुझे खिलाएंगे।”
अधीर की आंखों में नमी सी उतर आई। भाईयों का यह प्यार उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत थी। उसने मुस्कुराते हुए दोनों से कहा—
अधीर (धीमे स्वर में):
“आप दोनों मेरी सबसे बड़ी ताक़त हो… आज गाते वक्त, बजाते वक्त मुझे बस यही लगा कि आप दोनों है तभी तो मैं यहां पर हूं और अपने सपने.... और… पता नहीं क्यों… दिल में कुछ अजीब सा भी महसूस हुआ।”
आरव और कारण ने एक-दूसरे की ओर देखा, फिर मुस्कुराए।
कारण (मजाकिया अंदाज़ में):
“अजीब? कहीं वो ‘स्टार वाला अजीब’ तो नहीं, जिसे कहते हैं… दिल धड़कने लगे, नाम याद आने लगे?”
अधीर ने शरमा कर तकिए से अपना चेहरा ढक लिया।
अधीर (धीरे से, हंसते हुए):
“पता नहीं… बस ऐसा लगा जैसे… सब मुझे घूर रहे हैं इसलिए मैंने आंखें बंद करी और गाना गया मैंने देखा ही नहीं लोगों को ।”
भाईयों की हंसी कमरे में गूंज उठी।
लेकिन अधीर के दिल में वही पल फिर से ताज़ा हो उठा—जब उसकी आंखें उससे मिली थीं… और उसके होठों से निकला नाम—मान।
कारण:- लाडो ये गिटर किसी का हैं.....
अधीरा:-( आपने सर पे हाथ मार के ) पा.... पता नहीं...
आरव:- (चौक कर ) फिर तेरा पास किसे आया....
अधीरा:- पता नहीं भैया परफॉर्मेंस के टाइम मीरा ने कहीं से लेकर आई थी कल कॉलेज जाउंगी तब दे दूंगी...
कारण:-( मीरा के सर पर प्यार से मारते हुए ) भाई लगता है आज हमारी बहन कुछ ज्यादा ही खुश है उसको यही याद नहीं कि कल तो संडे है।
अधीरा:- अरे हां मैं तो भूल ही गई चलो कोई नहीं मंडे को दे दूंगी...
आरव:- चलो बहुत देर हो गई अब सो जाओ कारण तू भी चल अपने कमरे में...
गुड नाइट लाडो (दोनों भाई एक साथ उसको विश करते हैं और फिर अपने अपने कमरे में जाकर सो जाते हैं)
अधीर भी अपने सर को तकिए पर रखती है और अभिमान की आंखों को याद कर रही होती है जब गाड़ी से उसने पहली बार उस की आँखो मे देखा था था..
रात का सन्नाटा पूरे शहर पर उतर आया था। बाहर हल्की ठंडी हवा चल रही थी, आसमान में चाँद की धुँधली रोशनी खिड़कियों से भीतर उतर रही थी। लेकिन दो दिलों के भीतर इस रात कोई शांति नहीं थी।
अधीर का कमरा हो…
कुछ देर बाद जब दोनों भाई अपने कमरे में चले गए, अधीर अकेली रह गई। लाइट धीमी थी, खिड़की से आती हवा उसके खुले बालों को छू रही थी। वह करवट बदलकर लेटी और आँखें बंद कीं। तभी उसका मन उसी पल में लौट गया जब गाड़ी में जाते वक्त उसने एक झलक देखी थी।
वह झलक... वो आँखें… वो बेचैन नज़रें।
मान।
उसके दिल की धड़कनें रफ्तार पकड़ने लगी थी
अधीर ने अपने तकिए को कसकर पकड़ा और आँखें बंद करके धीमे स्वर में बुदबुदाई –
"मान..."
क्या ये ही मान थे... इनका नाम पूरे कॉलेज में....
अभिमान का कमरा
उधर, अपने भव्य कमरे में अभिमान बिस्तर पर लेटा था, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। सारी पार्टी, सारी परफॉर्मेंस के बाद भी उसके दिमाग में बस एक ही तस्वीर घूम रही थी — वो ग्रीन साड़ी, छोटी सी डायमंड की बिंदी, गिटार बजाते हुए बंद आँखें… और फिर गाड़ी में बैठते वक्त मिली वो नज़र।
अभिमान बेचैन होकर उठ बैठा। खिड़की तक जाकर बाहर झाँका, लेकिन बाहर सिर्फ अंधेरा और चाँदनी थी।
"क्यों… क्यों इतनी हलचल है इस नाम में… धीरा… बस एक बार उसका चेहरा देख पाया, और अब… दिल थमने का नाम ही नहीं ले रहा।"
उसके होठों से अनजाने में निकला –
"धीरा..."
उसका हाथ सीने पर चला गया, दिल की धड़कन तेज़ हो चुकी थी।
इधर अधीर अपने कमरे में लेटी थी, आँखें मूँदे हुए, होंठों पर नाम लिए –
"मान..."
उधर अभिमान अपने कमरे में, तकिए पर सिर रखकर आँखें बंद कर चुका था –
"धीरा..."
दोनों एक-दूसरे के नाम में खोकर, अपनी-अपनी बेचैनियों के बीच, धीरे-धीरे नींद की आगोश में चले गए।
रात चुप थी… लेकिन दो दिलों की धड़कनें, एक-दूसरे तक पहुँच चुकी थीं।
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